Extramarital Affair : देवर के इश्क में पत्नी ने कराई पति की हत्या

Extramarital Affair : 3 बच्चों की मां बन जाने के बाद रीना को अपने परिवार की ठीक से देखरेख करनी चाहिए थी. लेकिन ऐसा करने के बजाए वह अपने देवर के साथ इश्क की पतंग उड़ाने लगी. इसी बीच उस ने एक दिन…

जनपद हरदोई के अतरौली थाना क्षेत्र के गांव बहोइया के रहने वाले रामसिंह की भरावन चौराहे पर दरजी की दुकान थी. उस का विवाह गांव मांझगांव की रीता से हुआ था. बाद में उस से एक बेटा हुआ. लेकिन रीता राम सिंह से उम्र में बड़ी थी, इसी बात को ले कर उस का पत्नी से विवाद होता रहता था. यह विवाद इतना बढ़ गया कि रीता अपने मायके चली गई, तो फिर लौट कर वापस नहीं आई. रामसिंह ने कई सालों तक उस के वापस आने की राह देखी, जब वह वापस नहीं आई तो राम सिंह ने करीब 12 साल पहले गांव बसंतापुर की रीना से विवाह कर लिया. रीना रामसिंह से 10 साल छोटी थी. कालांतर में रीना 2 बच्चों की मां बनी. उस के बड़े बेटे का नाम सौरभ था और छोटे का गौरव. बाद में रीना आंगनवाड़ी में सहायिका के रूप में काम करने लगी.

जैसेजैसे उम्र बढ़ रही थी, रामसिंह का दमखम जवाब देने लगा था. दिन भर दुकान पर खटने के बाद वह घर आता तो रास्ते में दारू के ठेके से दारू पी कर घर लौटता था. घर आ कर खाना खाते ही सो जाता था. उसे बीवी की जरूरतों को पूरा करने की सुध ही नहीं रहती थी. रामसिंह के मकान के बराबर में ही उस के चाचा श्रीपाल रहते थे. श्रीपाल के 2 बेटे थे सोनेलाल उर्फ भूरा और कमलेश. कमलेश लखनऊ में बीकौम की पढ़ाई कर रहा था. भूरा भरावन चौराहे पर ही एक दुकान पर सिलाई का काम करता था. वह अविवाहित था. रामसिंह और भूरा की उम्र में काफी अंतर था, इस के बावजूद भी दोनों भाइयों में अच्छी पटती थी. एक दिन भूरा अपने साथियों के साथ तालाब में मछलियां पकड़ने गया.

वह काफी मछलियां पकड़ कर लाया. उस ने सोचा क्यों न थोड़ी मछलियां रामसिंह भैया को दे आए. वह मछलियां ले कर रामसिंह के घर पहुंचा तो रीना सब्जी बनाने के लिए बैंगन काट रही थी. थैला उस के आगे रखते हुए भूरा बोला, ‘‘छोड़ो भाभी, ये बैंगनसैंगन काटना. ये लो मस्त मछलियां, इन को साफ कर के पकाओ. आज रात मैं भी खाना यहीं खाऊंगा.’’

रीना ने एक नजर मछलियों पर डाली, फिर होंठों पर मुसकान सजाते हुए बोली, ‘‘भूरा शिकार फंसाने में तो तुम माहिर हो. गजब की मछलियां फंसाई हैं.’’

भूरा ने भी मजाकिया अंदाज में जवाब दिया, ‘‘ये तो छोटीछोटी मछलियां हैं, कोई बड़ी मछली फंसे तो बात बने.’’

‘‘देवरजी, उस के लिए दमदार कांटा होना चाहिए.’’ रीना ने तिरछी नजरों से कामुक वार किया.

‘‘कांटा तो दमदार है भाभी, पर कोई आजमाए तो.’’ भूरा की इस बात पर रीना लजा गई.

मछलियां दे कर भूरा बाहर निकला तो घर के बाहर बैठे राम सिंह ने पूछा, ‘‘क्या हुआ?’’

‘‘आज भाभी मछलियां बनाएंगी और मैं शाम को यहीं आ कर खाना खाऊंगा.’’ भूरा बोला.

‘‘फिर तो दारू मुझे ही मंगानी पड़ेगी. शाम को जल्दी आ जाना.’’ रामसिंह ने कहा. शाम हुई तो रीना ने मछली और रोटियां तैयार कर के रख दीं. इस बीच रामसिंह और भूरा भी आ गए. रामसिंह और भूरा दारू पीते हुए गपशप करने लगे. कितना समय बीत गया, पता ही नहीं चला. रामसिंह ने कुछ ज्यादा ही शराब पी ली. जब वह सुधबुध खोने लगा तो रीना ने कलाई पकड़ कर उसे उठाया और कमरे के अंदर ले जा कर पलंग पर लिटा दिया. पलंग पर ढेर होते ही राम सिंह खर्राटे भरने लगा. भूरा ने माफी मांगते हुए कहा, ‘‘भाभी, भैया कुछ ज्यादा ही पी गए. गलती मेरी भी है, मुझे उन को रोकना चाहिए था. खैर आप भी खाना खा लो. मछलियां बहुत स्वादिष्ट बनाई हैं आप ने, मजा आ गया.’’ भूरा  ने रीना की प्रशंसा की.

रीना ने भरपूर नजरों से भूरा को देखा. भूरा का युवा चेहरा नशे की मस्ती में चमक रहा था. वह बोली, ‘‘तुम्हारे भैया को सचमुच ज्यादा चढ़ गई, पड़ते ही सो गए.’’

‘‘शराब चीज ही ऐसी है, भाभी. कितनी भी थकान हो, गम हो, परेशानी हो, आराम से नींद आ जाती है.’’

रीना ने ठंडी आह भरी, ‘‘हां दारू पी कर लोग थकान उतार लेते हैं. जहां असली नशा हो, वहां नजर भी नहीं डालते.’’

रीना के इन शब्दों में दर्द भी था और आमंत्रण भी. भूरा ने उस की आंखों में आंखें डालीं तो वहां उसे प्यास का समंदर ठाठें मारता दिखा. वह रोमांटिक अंदाज में बोला, ‘‘सच कहती हो भाभी. अब खुद को ही देख लो. आप के पास क्या नहीं है. अपने आप में पूरा मयखाना हो. जिस के रोमरोम में नशा है और भैया घर के मयखाने न देख कर शराब में डूब जाते हैं.’’

‘‘ओह, तो मैं तुम्हें नशे की बोतल लगती हूं.’’ रीना एकदम से भूरा के करीब आ गई. भूरा ने दुस्साहस किया. रीना की कलाई पकड़ कर उसे अपने पास खींच लिया और उस का हाथ अपने सीने पर रखते हुए बोला, ‘‘मेरे दिल से पूछ कर देख लो. यह बता देगा कि तुम कैसी हो. तुम हसीन हो, नशीली हो, मस्त हो.’’

3 बच्चों की मां, जो शरीर सुख से वंचित हो, कोई कुंवारा जवां मर्द उस के हुस्न की तारीफ करे, उस का हाथ थामे तो उस का बहकना स्वाभाविक है. रीना भी भूरा का अंदाज देख कर गदगद हो गई. भूरा ने उस का चेहरा थाम कर अपनी हथेलियों में लिया और अपनी गर्म सांसों से उस के चेहरे को नहलाना शुरू किया तो वह सुधबुध खोने लगी. धीरेधीरे यह खेल अपनी सीमाएं लांघता गया और उन के बीच अनैतिक संबंध बन गए. कुंवारे भूरा ने रीना की व्याकुल देह को उस रात जो सुख दिया, उस से रीना उस की दीवानी हो गई. अब वह अकसर पति रामसिंह की नजरों से बच कर वासना का खेल खेलने लगी.

महीनों बीत गए. उन का खेल इसी तरह चलता रहा. भूरा रीना से ऐसे समय मिलने जाता, जब रामसिंह दुकान पर होता. एक दिन भूरा रीना को अपनी बांहों में समेटे पड़ा था. तभी अचानक रीना ने सास की झलक देखी तो उस ने भूरा को धक्का दे कर परे किया और हड़बड़ा कर उठ बैठी. भूरा पकड़े गए चोर की तरह सिर झुका कर वहां से चला गया. रीना भी सिर झुकाए धरती निहारने लगी. सास राधा देवी का खून खौल रहा था. उस ने आंखें निकाल कर कहा, ‘‘कुलच्छिनी, तू इतनी नीच निकली. अरे, कुछ तो शरम की होती.’’

रीना ने सास के पैर पकड़ लिए, ‘‘अम्मा, इस में मेरा कोई कुसूर नहीं है. भूरा ही न जाने क्यों मेरे पीछे पड़ा रहता है.’’

‘‘पीछे पड़ा रहता है,’’ राधा अपना हाथ नचाते हुए बोली, ‘‘आज मैं ने तेरी चोरी पकड़ ली तो पाकसाफ होने का ढोंग कर रही है. मैं कल ही तेरे बाप को बुला कर तेरी करतूत बताती हूं.’’ सास ने धमकी दी. रीना सास के पैरों में गिर पड़ी. माफी मांगते हुए गिड़गिड़ाई, ‘‘इस बार माफी दे दो अम्मा. आइंदा उस से बात करते भी देखा तो अपने हाथों से मेरा गला घोंट देना.’’

खानदान की इज्जत का सवाल था. इसलिए राधा देवी ने चेतावनी दे कर रीना को माफ कर दिया. बाद में उन्होंने यह बात अपने पति श्यामलाल को जरूर बता दी. बहू की हरकत से श्यामलाल भी सन्न रह गए. उन्होंने राधा से कहा, ‘‘बात अपनी ही इज्जत की है, इसलिए ज्यादा तूल देंगे तो अपनी ही बदनामी होगी. बहू ने अगर गलती मान ली है और दोबारा गलती न करने का भरोसा दिया है तो एक बार उसे सुधरने का मौका देना ही ठीक है.’’

उस दिन से राधा सतर्क हो गई. सासससुर ने यह बात राम सिंह की जानकारी में नहीं आने दी थी. इस के बाद भूरा ने रीना के घर आनाजाना बंद कर दिया.  कुछ दिन दोनों शांत रहे, पर अंदर ही अंदर दोनों बेचैन थे. उन से यह दूरी बरदाश्त नहीं हो पा रही थी. आखिरकार एक दिन दोनों को मौका मिल ही गया. भूरा अपनी ताई राधा की नजरें बचा कर किसी तरह रीना के पास पहुंच गया और हसरतें पूरी कर लौट आया. इस के बाद दोनों को लंबे समय तक मिलन का मौका नहीं मिला. राधा की नजरें हमेशा बहू की पहरेदारी करती रहतीं.

एक दिन शाम को दुकान से वापस आते समय राम सिंह को भूरा मिल गया. राम सिंह ने उस से पूछा, ‘‘भूरा, क्या बात है आजकल तुम मिलते ही नहीं, घर भी नहीं आते.’’

भूरा चौंका. इस का मतलब राधा ताई ने रामसिंह को कुछ नहीं बताया था. भूरा ने तुरंत बहाना ढूंढ लिया, ‘‘अरे भैया, बस ऐसे ही कुछ काम में फंसा हुआ था.’’

‘‘बहुत दिन हो गए हैं, बैठे हुए. कल शाम को आओ, फिर महफिल जमाते हैं.’’

भूरा ने हां तो कर दी, पर उसे डर था कि रामसिंह के साथ उस के घर में खातेपीते देख कर राधा कहीं तूफान न खड़ा कर दे. उस का साहस जवाब दे गया. उस ने राम सिंह के घर न जाने का निश्चय कर लिया. अगले दिन शाम को भूरा घर नहीं पहुंचा तो रामसिंह उसे खुद जा कर पकड़ लाया. इत्तफाक से राधा और श्यामलाल घर पर ही थे. दोनों को देख कर भूरा की नजरें झुक गईं. वे दोनों भूरा को देख कर कुढ़ रहे थे, पर बेटे का भूरा के प्रति अपनत्व देख कर उन्होंने उस वक्त कुछ कहना ठीक नहीं समझा. भूरा ऐसा जाहिर कर रहा था, जैसे उसे अपनी गलती का बहुत पछतावा हो. उस ने रीना को नजर उठा कर भी नहीं देखा.

उस दिन से भूरा के लिए फिर से रीना के घर जाने का रास्ता खुल गया. राधा चाह कर भी रामसिंह को रीना और भूरा के रिश्ते की बात नहीं बता सकी. उस ने इशारोंइशारों में बेटे को समझाना चाहा कि जवान लड़के का यों उस के घर में घुसे रहना ठीक नहीं है. लेकिन रामसिंह भूरा पर कुछ ज्यादा ही विश्वास करता था. उस के इस विश्वास का फायदा उठाते हुए रीना और भूरा फिर से वासना के खेल में डूब गए. अब उन को राधा की भी परवाह नहीं थी. लेकिन एक साल पहले राम सिंह ने दोनों को एक दिन खेत पर रंगरलियां मनाते हुए देख लिया. रामसिंह ने दोनों को जम कर मारापीटा. उस दिन के बाद से रीना और भूरा मोबाइल पर बात कर के अपने मन को समझाने लगे. जब मौका होता, रीना उसे बुला लेती.

भूरा भी रामसिंह के सामने पड़ने से बचने लगा. इस के बाद तो भूरा अपनी दुकान से हट कर कहीं जाता तो रामसिंह उस का पीछा करता कि कहीं वह घर पर रीना से तो मिलने नहीं जा रहा. करीब 8 महीने पहले रीना ने एक बेटी को जन्म दिया लेकिन वह अधिक दिन जीवित नहीं रह सकी. भूरा उसे अपनी बेटी मान रहा था. उस के मरने से वह बहुत दुखी हुआ. 17 जुलाई, 2020 की शाम 7 बजे रामसिंह अपनी दुकान से लौटा. वह शराब पी कर आया था. उस ने खाना खाया, रीना घर पर नहीं थी. उस की बहन शिल्पी आई हुई थी, पता चला कि रीना सुबह ही उसी के साथ मायके बसंतापुर चली गई थी. इसलिए रामसिंह खाना खा कर घर के बाहर चारपाई डाल कर सो गया. दूसरे दरवाजे पर उस के पिता श्यामलाल और रामसिंह के बच्चे सो रहे थे.

18 जुलाई की सुबह साढ़े 5 बजे गांव की महिलाएं बाहर निकलीं तो उन्होंने राम सिंह की चारपाई के नीचे खून पड़ा देखा तो दंग रह गईं. महिलाओं ने शोर मचाया तो रामसिंह के घर वाले व गांव के अन्य लोग वहां एकत्र हो गए. घर वालों ने रीना को खबर करने के बाद अतरौली थाने में घटना की सूचना दे दी. सूचना पा कर इंसपेक्टर संतोष तिवारी पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. रामसिंह की लाश चारपाई पर पड़ी थी. उस के सिर, चेहरे व पेट पर गहरे घाव थे जो किसी तेज धारदार हथियार के मालूम पड़ रहे थे. घटनास्थल के आसपास का निरीक्षण किया गया तो वहां से करीब 70 मीटर की दूरी पर एक सूखे कुएं में खून से सनी एक कुल्हाड़ी पड़ी दिखी.

इस पर इंसपेक्टर तिवारी ने फोरैंसिक टीम बुला ली. फोरैंसिक टीम ने कुएं से कुल्हाड़ी निकलवा कर उस के हत्थे से फिंगरप्रिंट उठाए. घटना की खबर पा कर रीना भी तुरंत घर वापस आ गई थी. इंसपेक्टर संतोष तिवारी ने घटनास्थल का मुआयना करने के बाद रीना, श्यामलाल व घर के अन्य लोगों से पूछताछ की तो उन्हें आभास हो गया कि हत्या के पीछे किसी करीबी का ही हाथ है. घर वाले जानते हैं लेकिन बता नहीं रहे हैं. आलाकत्ल कुल्हाड़ी का घटनास्थल के पास मिलना दर्शा रहा था कि घटना को अंजाम देने के बाद हत्यारे ने जल्दी में कुल्हाड़ी को कुएं में फेंका और घर जा कर सो गया. फिलहाल इंसपेक्टर तिवारी ने लाश पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भेज दी.

रीना की तरफ से उन्होंने अज्ञात के खिलाफ भादंवि की धारा 302 के तहत मुकदमा दर्ज करा दिया. पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने के बाद इंसपेक्टर तिवारी ने घर वालों से सख्ती से पूछताछ की तो सारी हकीकत सामने आ गई. पूछताछ के बाद उन्होंने 19 जुलाई, 2020 को रीना और सोनेलाल को उन के घर से गिरफ्तार कर लिया और थाने ला कर उन से सख्ती से पूछताछ की तो दोनों ने अपना जुर्म स्वीकार कर लिया. रामसिंह के बराबर निगरानी रखने से भूरा और रीना का मिलना मुश्किल होता जा रहा था. घटना से एक महीने पहले भूरा अपनी दुकान से कहीं काम से गया और वापस लौट कर आया तो राम सिंह को शक हुआ कि वह रीना से मिल कर आ रहा है. गुस्से से उबल रहे रामसिंह ने भूरा को कैंची से मारा. अपने आप को बचाने के लिए भूरा ने अपना दायां हाथ आगे किया तो से उस के हाथ में घाव हो गया और खून बहने लगा.

घर आ कर उस ने मोबाइल पर बात कर के रीना को खेत पर बुलाया और उसे अपना हाथ दिखा कर पूरी बात बताई. इस पर रीना ने कहा, ‘‘अब बहुत ज्यादा हो गया. अगर साथ रहना है तो इसे (रामसिंह को) रास्ते से हटाना ही पड़ेगा.’’

इस के बाद दोनों घर लौट गए. अब भूरा राम सिंह से नजदीकियां बढ़ाने की कोशिश करने लगा, जिस से उसे विश्वास में ले कर उस की हत्या कर सके. लेकिन राम सिंह शराब पी कर अकसर भूरा को डांट देता था. 17 जुलाई, 2020 की सुबह रीना भूरा से मिली और कहा, ‘‘मैं आज मायके जा रही हूं, मौका देख कर आज इस का काम तमाम कर देना.’’ कह कर रीना चली गई. रीना के जाने के बाद रामसिंह दुकान पर चला गया, उस के पीछे से भूरा भी अपनी दुकान चला गया. शाम को रामसिंह दुकान से सीधे शराब के ठेके पर गया और शराब पी कर घर चला गया. उस के जाने के 10 मिनट बाद भूरा भी शराब पी कर घर चला आया.

शाम 7 बजे खाना खाने के बाद राम सिंह सो गया. रात 10 बजे भूरा ने राम सिंह के बड़े बेटे बिन्नू से कुल्हाड़ी ले कर अपने पास रख ली. रात साढ़े 12 बजे के आसपास भूरा अपने घर से निकला. बीच रास्ते में गाय बंधी थी. किसी तरह की आवाज न हो, इस के लिए उस ने गाय की रस्सी खूंटे से खोल दी, जिस से गाय वहां से चली गई. भूरा रामसिंह की चारपाई के पास पहुंचा और रामसिंह के सिर पर साथ लाई कुल्हाड़ी का एक तेज प्रहार कर दिया. रामसिंह के शरीर में कोई हरकत नहीं हुई. इस के बाद भूरा ने उस के ऊपर 4 वार किए. रामसिंह की मौत होने के बाद वह पास के एक सूखे कुएं के पास गया और कुल्हाड़ी कुएं में फेंक दी. फिर घर आ कर सो गया.

लेकिन भूरा और रीना का गुनाह कानून की नजर में आ ही गया. कागजी खानापूर्ति करने के बाद दोनों को सक्षम न्यायालय में पेश किया गया, वहां से दोनों को जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

Agra News : एकतरफा इश्‍म में अंधे डॉक्‍टर ने प्रेमिका को मारी 3 गोलियां

Agra News : डिगरी ले कर डाक्टर बन जाना ही सब कुछ नहीं होता. इस पेशे में डाक्टर के लिए सेवाभाव, संयम, विवेक और इंसानियत भी जरूरी हैं. विवेक तिवारी डाक्टर जरूर बन गया था, लेकिन उस में इन में से कोई भी गुण नहीं था. अपने एक तरफा प्यार में वह चाहता था कि डा. योगिता वही करे जो वह चाहता है. ऐसा नहीं हुआ तो…

बीते 19 अगस्त की बात है. उत्तर प्रदेश पुलिस को सूचना मिली कि आगरा फतेहाबाद हाईवे पर बमरोली कटारा के पास सड़क किनारे एक महिला की लाश पड़ी है. यह जगह थाना डौकी के क्षेत्र में थी. कंट्रोल रूप से सूचना मिलते ही थाना डौकी की पुलिस मौके पर पहुंच गई. मृतका लोअर और टीशर्ट पहने थी. पास ही उस के स्पोर्ट्स शू पड़े हुए थे. चेहरेमोहरे से वह संभ्रांत परिवार की पढ़ीलिखी लग रही थी, लेकिन उस के कपड़ों में या आसपास कोई ऐसी चीज नहीं मिली, जिस से उस की शिनाख्त हो पाती. युवती की उम्र 25-26 साल लग रही थी.

पुलिस ने शव को उलटपुलट कर देखा. जाहिरा तौर पर उस के सिर के पीछे चोट के निशान थे. एकदो जख्म से भी नजर आए. युवती के हाथ में टूटे हुए बाल थे. हाथ के नाखूनों में भी स्कीन फंसी हुई थी. साफतौर पर नजर आ रहा था कि मामला हत्या का है, लेकिन हत्या से पहले युवती ने कातिल से अपनी जान बचाने के लिए काफी संघर्ष किया था. मौके पर शव की शिनाख्त नहीं हो सकी, तो डौकी पुलिस ने जरूरी जांच पड़ताल के बाद युवती की लाश पोस्टमार्टम के लिए एमएम इलाके के पोस्टमार्टम हाउस भेज दी. डौकी थाना पुलिस इस युवती की शिनाख्त के प्रयास में जुट गई.

उसी दिन सुबह करीब साढ़े 9 बजे दिल्ली के शिवपुरी पार्ट-2, दिनपुर नजफगढ़ निवासी डाक्टर मोहिंदर गौतम आगरा के एमएम गेट पुलिस थाने पहुंचे. उन्होंने अपनी बहन डाक्टर योगिता गौतम के अपहरण की आशंका जताई और डाक्टर विवेक तिवारी पर शक व्यक्त करते हुए पुलिस को एक तहरीर दी. डाक्टर मोहिंदर ने पुलिस को बताया कि डाक्टर योगिता आगरा के एसएन मेडिकल कालेज से पोस्ट ग्रेजुएशन कर रही है. वह नूरी गेट में गोकुलचंद पेठे वाले के मकान में किराए पर रहती है. कल शाम यानी 18 अगस्त की शाम करीब सवा 4 बजे डाक्टर योगिता ने दिल्ली में घर पर फोन कर के कहा था कि डाक्टर विवेक तिवारी उसे बहुत परेशान कर रहा है. उस ने डाक्टरी की डिगरी कैंसिल कराने की भी धमकी दी है.

फोन पर डाक्टर योगिता काफी घबराई हुई थी और रो रही थी. पुलिस ने डाक्टर मोहिंदर से डाक्टर विवेक तिवारी के बारे में पूछा कि वह कौन है? डा. मोहिंदर ने बताया कि डा. योगिता ने 2009 में मुरादाबाद के तीर्थकर महावीर मेडिकल कालेज में प्रवेश लिया था. मेडिकल कालेज में पढ़ाई के दौरान योगिता की जान पहचान एक साल सीनियर डा. विवेक से हुई थी. डाक्टरी करने के बाद विवेक को सरकारी नौकरी मिल गई. वह अब यूपी में जालौन के उरई में मेडिकल औफिसर के पद पर तैनात है. डा. विवेक के पिता विष्णु तिवारी पुलिस में औफिसर थे. जो कुछ साल पहले सीओ के पद से रिटायर हो गए थे. करीब 2 साल पहले हार्ट अटैक से उन की मौत हो गई थी.

डा. मोहिंदर ने पुलिस को बताया कि डा. विवेक तिवारी डा. योगिता से शादी करना चाहता था. इस के लिए वह उस पर लगातार दबाव डाल रहा था. जबकि डा. योगिता ने इनकार कर दिया था. इस बात को लेकर दोनों के बीच काफी दिनों से झगड़ा चल रहा था. डा. विवेक योगिता को धमका रहा था. नहीं सुनी पुलिस ने पुलिस ने योगिता के अपहरण की आशंका का कारण पूछा, तो डा. मोहिंदर ने बताया कि 18 अगस्त की शाम योगिता का घबराहट भरा फोन आने के बाद मैं, मेरी मां आशा गौतम और पिता अंबेश गौतम तुरंत दिल्ली से आगरा के लिए रवाना हो गए. हम रात में ही आगरा पहुंच गए थे. आगरा में हम योगिता के किराए वाले मकान पर पहुंचे, तो वह नहीं मिली. उस का फोन भी रिसीव नहीं हो रहा था.

डा. मोहिंदर ने आगे बताया कि योगिता के नहीं मिलने और मोबाइल पर भी संपर्क नहीं होने पर हम ने सीसीटीवी फुटेज देखी. इस में नजर आया कि डा. योगिता 18 अगस्त की शाम साढ़े 7 बजे घर से अकेली बाहर निकली थी. बाहर निकलते ही उसे टाटा नेक्सन कार में सवार युवक ने खींचकर अंदर डाल लिया. डा. मोहिंदर ने आरोप लगाया कि सारी बातें बताने के बाद भी पुलिस ने ना तो योगिता को तलाशने का प्रयास किया और ना ही डा. विवेक का पता लगाने की कोशिश की. पुलिस ने डा. मोहिंदर से अभी इंतजार करने को कहा. जब 2-3 घंटे तक पुलिस ने कुछ नहीं किया, तो डा. मोहिंदर आगरा में ही एसएन मेडिकल कालेज पहुंचे. वहां विभागाध्यक्ष से मिल कर उन्हें अपना परिचय दे कर बताया कि उन की बहन डा. योगिता लापता है. उन्होंने भी पुलिस के पास जाने की सलाह दी.

थकहार कर डा. मोहिंदर वापस एमएम गेट पुलिस थाने आ गए और हाथ जोड़कर पुलिस से काररवाई करने की गुहार लगाई. शाम को एक सिपाही ने उन्हें बताया कि एक अज्ञात युवती का शव मिला है, जो पोस्टमार्टम हाउस में रखा है. उसे भी जा कर देख लो. मन में कई तरह की आशंका लिए डा. मोहिंदर पोस्टमार्टम हाउस पहुंचे. शव देख कर उन की आंखों से आंसू बहने लगे. शव उन की बहन डा. योगिता का ही था. मां आशा गौतम और पिता अंबेश गौतम भी नाजों से पाली बेटी का शव देख कर बिलखबिलख कर रो पड़े. शव की शिनाख्त होने के बाद यह मामला हाई प्रोफाइल हो गया. महिला डाक्टर की हत्या और इस में पुलिस अधिकारी के डाक्टर बेटे का हाथ होने की संभावना का पता चलने पर पुलिस ने कुछ गंभीरता दिखाई और भागदौड़ शुरू की.

आगरा पुलिस ने जालौन पुलिस को सूचना दे कर उरई में तैनात मेडिकल आफिसर डा. विवेक तिवारी को तलाशने को कहा. जालौन पुलिस ने सूचना मिलने के 2 घंटे बाद ही 19 अगस्त की रात करीब 8 बजे डा. विवेक को हिरासत में ले लिया. जालौन पुलिस ने यह सूचना आगरा पुलिस को दे दी. जालौन पुलिस उसे हिरासत में ले कर एसओजी आफिस आ गई. जालौन पुलिस ने उस से आगरा जाने और डा. योगिता से मिलने के बारे में पूछताछ की, तो वह बिफर गया. उस ने कहा कि कोरोना संक्रमण की वजह से वह क्वारंटीन में है. विवेक तिवारी बारबार बयान बदलता रहा. बाद में उस ने स्वीकार किया कि वह 18 अगस्त को आगरा गया था और डा. योगिता से मिला था. विवेक ने जालौन पुलिस को बताया कि वह योगिता को आगरा में टीडीआई माल के बाहर छोड़कर वापस उरई लौट आया था.

आगरा पुलिस ने रात करीब 11 बजे जालौन पहुंचकर डा. विवेक को हिरासत में ले लिया. उसे जालौन से आगरा ला कर 20 अगस्त को पूछताछ की गई. पूछताछ में वह पुलिस को लगातार गुमराह करता रहा. पुलिस ने उस की काल डिटेल्स निकलवाई, तो पता चला कि शाम सवा 6 बजे से उस की लोकेशन आगरा में थी. डा. योगिता से उस की शाम साढ़े 7 बजे आखिरी बात हुई थी. इस के बाद रात सवा बारह बजे विवेक की लोकेशन उरई की आई. कुछ सख्ती दिखाने और कई सबूत सामने रखने के बाद उस से मनोवैज्ञानिक तरीके से पूछताछ की गई. आखिरकार उस ने डा. योगिता की हत्या करने की बात स्वीकार कर ली. बाद में पुलिस ने उसे न्यायिक अभिरक्षा में जेल भेज दिया.

पुलिस ने 20 अगस्त को डाक्टरों के मेडिकल बोर्ड से डा. योगिता के शव का पोस्टमार्टम कराया. पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार डा. योगिता के शरीर से 3 गोलियां निकलीं. एक गोली सिर, दूसरी कंधे और तीसरी सीने में मिली. योगिता पर चाकू से भी हमला किया गया था. पोस्टमार्टम कराने के बाद आगरा पुलिस ने डा. योगिता का शव उस के मातापिता व भाई को सौंप दिया. प्रतिभावान डा. थी योगिता पूछताछ में डा. योगिता के दुखांत की जो कहानी सामने आई, वह डा. विवेक तिवारी के एकतरफा प्यार की सनक थी.

दिल्ली के नजफगढ़ इलाके की शिवपुरी कालोनी पार्ट-2 में रहने वाले अंबेश गौतम नवोदय विद्यालय समिति में डिप्टी डायरेक्टर हैं. वह राजस्थान के उदयपुर शहर में तैनात हैं. डा. अंबेश के परिवार में पत्नी आशा गौतम के अलावा बेटा डा. मोहिंदर और बेटी डा. योगिता थी. योगिता शुरू से ही पढ़ाई में अव्वल रहती थी. उस की डाक्टर बनने की इच्छा थी. इसलिए उस ने साइंस बायो से 12वीं अच्छे नंबरों से पास की. पीएमटी के जरिए उस का सलेक्शन मेडिकल की पढ़ाई के लिए हो गया. उस ने 2009 में मुरादाबाद के तीर्थंकर मेडिकल कालेज में एमबीबीएस में एडमिशन लिया.

इसी कालेज में पढ़ाई के दौरान योगिता की मुलाकात एक साल सीनियर विवेक तिवारी से हुई. दोनों में दोस्ती हो गई. दोस्ती इतनी बढ़ी कि वे साथ में घूमनेफिरने और खानेपीने लगे. इस दोस्ती के चलते विवेक मन ही मन योगिता को प्यार करने लगा लेकिन योगिता की प्यारव्यार में कोई दिलचस्पी नहीं थी. वह केवल अपनी पढ़ाई और कैरियर पर ध्यान देती थी. इसी दौरान 2-4 बार विवेक ने योगिता के सामने अपने प्यार का इजहार करने का प्रयास किया लेकिन उस ने हंस मुसकरा कर उस की बातों को टाल दिया. योगिता के हंसनेमुस्कराने से विवेक समझ बैठा कि वह भी उसे प्यार करती है. जबकि हकीकत में ऐसा कुछ था ही नहीं. विवेक मन ही मन योगिता से शादी के सपने देखता रहा.

इस बीच, विवेक को भी डाक्टरी की डिगरी मिल गई और योगिता को भी. बाद में डा. विवेक तिवारी को सरकारी नौकरी मिल गई. फिलहाल वह उरई में मेडिकल आफिसर के पद पर कार्यरत था. डा. विवेक मूल रूप से कानपुर का रहने वाला है. कानपुर के किदवई नगर के एन ब्लाक में उस का पैतृक मकान है. इस मकान में उस की मां आशा तिवारी और बहन नेहा रहती हैं. विवेक के पिता विष्णु तिवारी उत्तर प्रदेश पुलिस में अधिकारी थे. वे आगरा शहर में थानाप्रभारी भी रहे थे. कहा जाता है कि पुलिस विभाग में विष्णु तिवारी का काफी नाम था. वे कानपुर में कई बड़े एनकाउंटर करने वाली पुलिस टीम में शामिल रहे थे. कुछ साल पहले विष्णु तिवारी सीओ के पद से रिटायर हो गए थे. करीब 2 साल पहले उन की हार्ट अटैक से मौत हो गई थी.

मुरादाबाद से एमबीबीएस की डिगरी हासिल कर डा. योगिता आगरा आ गई. आगरा में 3 साल पहले उस ने एसएन मेडिकल कालेज में पोस्ट ग्रेजुएशन करने के लिए एडमिशन ले लिया. वह इस कालेज के स्त्री रोग विभाग में पीजी की छात्रा थी. वह आगरा में नूरी गेट पर किराए के मकान में रह रही थी. इस बीच, डा. योगिता और विवेक की फोन पर बातें होती रहती थीं. कभीकभी मुलाकात भी हो जाती थी. डा. विवेक जब भी मिलता या फोन करता, तो अपने प्रेम प्यार की बातें जरूर करता लेकिन डा. योगिता उसे तवज्जो नहीं देती थी.

दोनों के परिवारों को उन की दोस्ती का पता था. डा. विवेक के पास योगिता के परिजनों के मोबाइल नंबर भी थे. उस ने योगिता के आगरा के मकान मालिकों के मोबाइल नंबर भी हासिल कर रखे थे. कहा यह भी जाता है कि विवेक और योगिता कई साल रिलेशन में रहे थे. पिछले कई महीनों से डा. विवेक उस पर शादी करने का दबाव डाल रहा था, लेकिन डा. योगिता ने इनकार कर दिया था. इस से डा. विवेक नाराज हो गया. वह उसे फोन कर धमकाने लगा. 18 अगस्त को विवेक ने योगिता को फोन कर शादी की बात छेड़ दी. योगिता के साफ इनकार करने पर उस ने धमकी दी कि वह उसे जिंदा नहीं छोड़ेगा, उस की एमबीबीएस की डिगरी कैंसिल करा देगा. इस से डा.

योगिता घबरा गई. उस ने दिल्ली में अपनी मां को फोन कर रोते हुए यह बात बताई. इसी के बाद योगिता के मातापिता व भाई दिल्ली से आगरा के लिए चल दिए थे. योगिता को धमकाने के कुछ देर बाद डा. विवेक ने उसे दोबारा फोन किया. इस बार उस की आवाज में क्रोध नहीं बल्कि अपनापन था. उस ने कहा कि भले ही वह उस से शादी ना करे लेकिन इतने सालों की दोस्ती के नाम पर उस से एक बार मिल तो ले. काफी नानुकुर के बाद डा. योगिता ने आखिरी बार मिलने की हामी भर ली. उसी दिन शाम करीब साढ़े 7 बजे डा. विवेक ने योगिता को फोन कर के कहा कि वह आगरा आया है और नूरी गेट पर खड़ा है. घर से बाहर आ जाओ, आखिरी मुलाकात कर लेते हैं. योगिता बिना सोचेसमझे बिना किसी को बताए घर से अकेली निकल गई. यही उस की आखिरी गलती थी.

घर से बाहर निकलते ही नूरी गेट पर टाटा नेक्सन कार में सवार विवेक ने उसे कार का गेट खोल कर आवाज दी और तेजी से कार के अंदर खींच लिया. रास्ते में डा. विवेक ने योगिता से फिर शादी का राग छेड़ दिया, तो चलती कार में ही दोनों में बहस होने लगी. डा. विवेक उस से हाथापाई करने लगा. इसी हाथापाई में योगिता ने अपने हाथ के नाखूनों से विवेक के बाल खींचे और चमड़ी नोंची, तो गुस्साए विवेक ने उस का गला दबा दिया. डा. विवेक योगिता को कार में ले कर फतेहाबाद हाईवे पर निकल गया. एक जगह रुक कर उस ने अपनी कार में रखा चाकू निकाला. चाकू से योगिता के सिर और चेहरे पर कई वार किए. इतने पर भी विवेक का गुस्सा शांत नहीं हुआ, तो उस ने योगिता के सिर, कंधे और छाती में 3 गोलियां मारीं. यह रात करीब 8 बजे की घटना है.

हत्या कर के रातभर सक्रिय रहा विवेक इस के बाद योगिता के शव को बमरौली कटारा इलाके में सड़क किनारे एक खेत में फेंक दिया. पिस्तौल भी रास्ते में फेंक दी. रात में ही वह उरई पहुंच गया. रात को ही वह उरई से कानपुर गया और अपनी कार घर पर छोड़ आया. दूसरे दिन वह वापस उरई आ गया. बाद में पुलिस ने कानपुर में डा. विवेक के घर से वह कार बरामद कर ली. यह कार 2 साल पहले खरीदी गई थी. कार में खून से सना वह चाकू भी बरामद हो गया, जिस से हमला कर योगिता की जान ली गई थी. बहुत कम बोलने वाली प्रतिभावान डा. योगिता गौतम का नाम कोरोना संक्रमण काल में यूपी की पहली कोविड डिलीवरी करने के लिए भी दर्ज है. कोरोना महामारी जब आगरा में पैर पसार रही थी, तब आइसोलेशन वार्ड विकसित किया गया.

इस के लिए स्त्री और प्रसूति रोग विभाग की भी एक टीम बनाई गई. जिसे संक्रमित गर्भवतियों के सीजेरियन प्रसव की जिम्मेदारी दी गई. विभागाध्यक्ष डा. सरोज सिंह के नेतृत्व में गठित इस टीम में शामिल डा. योगिता ने 21 अप्रैल को यूपी और आगरा में कोविड मरीज के पहले सीजेरियन प्रसव को अंजाम दिया था. इस के बाद भी उन्होंने कई सीजेरियन प्रसव कराए. डा. योगिता के कराए प्रसव की कई निशानियां आज उन घरों में किलकारियां बन कर गूंज रही हैं. सिरफिरे डाक्टर आशिक के हाथों जान गंवाने से 5 दिन पहले ही 13 अगस्त को डा. योगिता का पीजी का रिजल्ट आया था. जिस में वह पास हो गई थी. पीजी कर योगिता विशेषज्ञ डाक्टर बन गई थी. लेकिन वक्त को कुछ और ही मंजूर था.

लोगों की जान बचाने वाली डा. योगिता की उस के आशिक ने ही जान ले ली. घटना वाले दिन भी वह दोपहर 3 बजे तक अस्पताल में अपनी ड्यूटी पर थी. डा. योगिता की मौत पर आगरा के एसएन मेडिकल कालेज में कैंडल जला कर योगिता को श्रद्धांजलि दी गई. कालेज के जूनियर डाक्टरों की एसोसिएशन ने प्रदर्शन कर सच्ची कोरोना योद्धा की हत्या पर आक्रोश जताया. बहरहाल डा. विवेक ने अपने एकतरफा प्यार की सनक में योगिता की हत्या कर दी. उस की इस जघन्य करतूत ने योगिता के परिवार को खून के आंसू बहाने पर मजबूर कर दिया. वहीं, खुद का जीवन भी बरबाद कर लिया. डाक्टर लोगों की जान बचाने वाला होता है, लोग उसे सब से ऊंचा दर्जा देते हैं, लेकिन यहां तो डाक्टर ही हैवान बन गया. दूसरों की जान बचाने वाले ने साथी डाक्टर की जान ले ली.

 

Love Crime : भागकर शादी करने पर पिता ने बेटी और दामाद को मारी गोली

Love Crime : प्यार करने वालों का सदियों से जमाना दुश्मन रहा है. लेकिन नाजिया के तो उस के घर वाले ही दुश्मन बन बैठे. पिता मुजम्मिल और भाई मोहसिन ने उस की लौकडाउन की लवस्टोरी का इस तरह अंत किया कि…

कोरोना काल के चलते जहां एक तरफ पूरी दुनिया अस्तव्यस्त हुई, वहीं आम इंसान के जीवन पर  भी काफी असर पड़ा है. यही कारण है कि आज आम जनता अपनेअपने घरों में कैद रहने के लिए विवश है. 7 सितंबर, 2020 को रात के साढ़े 8 बजे काशीपुर शहर में सड़क पर सन्नाटा पसरा था. उस वक्त नाजिया अपने शौहर राशिद के साथ दवा लेने डाक्टर के पास गई हुई थी. तभी उस के मोबाइल पर उस के अब्बू की काल आई. अपने अब्बू की काल देखते ही उस के दिल की धड़कनें दोगुनी हो चली थीं. क्योंकि उस के अब्बू ने बहुत समय बाद उसे फोन किया था. अब्बू ने न जाने किस लिए फोन किया, उस की समझ में नहीं आ रहा था. यह उस के लिए जिज्ञासा के साथसाथ चिंता का विषय भी था.

नाजिया अपनी दवाई ले चुकी थी. राशिद ने अपनी बाइक स्टार्ट की और घर की ओर निकल पड़ा. उस के पीछे बैठी नाजिया अपने अब्बू से मोबाइल पर बात करने लगी. नाजिया को पता था कि उसे घर पहुंचने में केवल 3-4 मिनट ही लगेंगे. उस के बाद वह घर पर आराम से उन से बात कर लेगी. जैसे ही राशिद की बाइक उस के घर के मोड़ पर पहुंची. सामने से आ रहे कुछ लोगों ने उन पर ताबड़तोड़ फायरिंग शुरू कर दी. इस से पहले कि राशिद और नाजिया कुछ समझ पाते, दोनों ही बाइक से नीचे सड़क पर गिर कर तड़पने लगे. उन के कई गोलियां लगी थीं. देखते ही देखते सड़क उन के खून से तरबतर हो गई.

अधिक खून रिसाव के कारण दोनों की मौके पर ही मौत हो गई. इस घटना के घटते ही नाजिया के हाथ से मोबाइल छूट कर वहीं गिर गया था. खामोशी में डूबे मोहल्ले में अचानक 4-5 गोलियों के चलने की आवाज ने लोगों में दहशत पैदा कर दी थी. दोनों पर की ताबड़तोड़ फायरिंग घटनास्थल के आसपास बने मकानों की खिड़कियां खुलीं और लोगों ने सड़क का मंजर देखा तो देखते ही रह गए. सड़क पर एक साथ 2 लाशें पड़ी हुई थीं. एक युवक और एक युवती की. उन के पास में ही एक बाइक पड़ी हुई थी. मतलब साफ था कि कोई युवकयुवती का मर्डर कर फरार हो चुका था. यह मंजर देख कर आसपड़ोस वालों ने हिम्मत जुटाई और सड़क पर बाहर निकल आए थे. एक के बाद एक लोगों के घर से निकलने का सिलसिला शुरू हुआ, तो घटनास्थल पर लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा.

दोनों मृतक उसी मोहल्ले के रहने वाले थे, इसी कारण दोनों की शिनाख्त होने में भी कोई परेशानी नहीं आई. वहां पर मौजूद लोगों में से किसी ने मृतक युवक राशिद के भाई के मोबाइल पर फोन कर इस घटना की जानकारी दी. घटना की जानकारी मिलते ही उस के घर वालों के साथ उस के पड़ोसी भी तुरंत ही घटनास्थल पर पहुंच गए. घटनास्थल पर पहुंचते ही राशिद के परिवार वालों ने उस के शरीर को छू कर देखा, जो पूरी तरह से ठंडा पड़ चुका था. उस की मौत हो चुकी थी. उस के पास पड़ी नाजिया भी मौत की नींद सो चुकी थी. घटनास्थल पर पड़े खून को देख कर सभी लोगों का मानना था कि उन्हें डाक्टर के पास ले जाने का भी कोई लाभ नहीं होगा.

जैसेजैसे लोगों को इस मामले की जानकारी मिलती गई, वैसेवैसे वहां पर लोगों का जमघट लगता गया. तुरंत ही इस सनसनीखेज मामले की सूचना किसी ने पुलिस नियंत्रण कक्ष को दे दी. चूंकि यह क्षेत्र काशीपुर कोतवाली के अंतर्गत आता है, इसलिए कोतवाली प्रभारी सतीशचंद्र कापड़ी पुलिस टीम के साथ घटनास्थल की तरफ रवाना हो गए. सूचना मिलने पर एएसपी राजेश भट्ट, सीओ मनोज ठाकुर भी मौके पर पहुंचे.  घटनास्थल पर पहुंच कर पुलिस ने जांचपड़ताल की. युवकयुवती दोनों की लाशें पासपास पड़ी हुई थीं. युवक राशिद का चेहरा बुरी तरह से क्षतिग्रस्त हो चुका था. मृतक के चेहरे को देख कर लगता था कि हत्यारों ने उस के सिर से सटा कर गोली चलाई थी. जिस के कारण उस के चेहरे की पहचान ही खत्म हो गई थी.

इस मामले को ले कर पुलिस ने युवक युवती के परिवार वालों के बारे में जानकारी जुटाई. राशिद के परिवार वालों ने बताया कि दोनों का काफी लंबे समय से प्रेम प्रसंग चल रहा था, जिस के चलते दोनों घर से भाग गए थे. उसी दौरान जून, 2020 में दोनों ने प्रेम विवाह कर लिया था. फिर कुछ समय बाद दोनों काशीपुर वापस आ गए थे. तब से पास में ही दोनों किराए का कमरा ले कर रह रहे थे. नाजिया की तबीयत खराब होने के कारण उस शाम दोनों बाइक से दवाई लेने डाक्टर के पास गए थे. वहां से वापसी के दौरान किसी ने उन की गोली मार कर हत्या कर दी. औनर किलिंग का शक घटनास्थल की जांचपड़ताल के दौरान पुलिस ने मृतक राशिद और उस की बीवी नाजिया के मोबाइल अपने कब्जे में ले लिए थे.

पुलिस ने दोनों के मोबाइल चैक किए तो पता चला कि घटना के वक्त नाजिया अपने पिता के मोबाइल पर बात कर रही थी. यह बात सामने आते ही पुलिस समझ गई कि उन दोनों की हत्या में जरूर युवती के पिता मुजम्मिल का हाथ हो सकता है. पुलिस ने तुरंत ही युवती के घर पर जा कर उस के बारे में जानकारी ली तो पता चला कि मुजम्मिल घर से फरार है. उस के घर पर ताला लटका हुआ था. उस के अन्य परिवार वाले भी घर से गायब थे. घर के सभी लोगों के अचानक फरार होने से इस हत्याकांड में उस की संलिप्तता साफ जाहिर हो गई थी. पुलिस ने युवती के घर वालों को सब जगह खोजा,लेकिन उन का कहीं भी अतापता न लग सका.

यह सब जानकारी जुटाने के बाद पुलिस ने दोनों शव पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भेज दिए. इस केस में मृतक राशिद के भाई नईम की तहरीर के आधार पर पुलिस ने 4 आरोपियों मुजम्मिल, उस के बेटे मोहसिन के अलावा अफसर अली, जौहर अली पुत्र निसार अली निवासी अलीखां के खिलाफ भांदंवि की धारा 302/342/504/34 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया. इस केस में नामजद मुकदमा दर्ज होते ही इस घटना की जांच एएसपी (काशीपुर) राजेश भट्ट व सीओ मनोज ठाकुर के नेतृत्व में अलगअलग 3 पुलिस टीमों का गठन किया गया. इन टीमों में काशीपुर कोतवाली प्रभारी सतीशचंद्र कापड़ी, एसआई अमित शर्मा, रविंद्र सिंह बिष्ट, दीपक जोशी, कैलाशचंद्र, कांस्टेबल वीरेंद्र यादव, राज पुरी, अनुज त्यागी, सुरेंद्र सिंह, राजेंद्र प्रसाद, सुनील तोमर, दलीप बोनाल, संजीत प्रसाद, प्रियंका, रिचा आदि को शामिल किया गया.

पुलिस टीमों ने आरोपियों के शरीफ नगर, ठाकुरद्वारा, रामपुर और मुरादाबाद में कई संभावित स्थानों पर दबिश डाली. काफी प्रयास करने के बाद भी आरोपी पुलिस पकड़ में नहीं आए. पुलिस काररवाई के दौरान 9 सितंबर, 2020 को पुलिस को एक मुखबिर से सूचना मिली कि मुजम्मिल और उस का बेटा मोहसिन दोनों ही दडि़याल रोड लोहिया पुल के पास कहीं जाने की फिराक में खड़े हैं. आरोपी चढ़े पुलिस के हत्थे सूचना पाते ही काशीपुर कोतवाली प्रभारी सतीश कुमार कापड़ी तुरंत पुलिस टीम ले कर लोहिया पुल पर पहुंचे. पुलिस ने चारों ओर से घेराबंदी करते हुए दोनों को गिरफ्तार कर लिया. दोनों को हिरासत में ले कर पुलिस कोतवाली आ गई.

पुलिस ने दोनों से इस दोहरे हत्याकांड के बारे में कड़ी पूछताछ की. कुछ समय तक तो मुजम्मिल ने पुलिस को घुमाने की पूरी कोशिश की. फिर बाद में मुजम्मिल ने बताया कि जिस समय वह बेटे के साथ अपनी बेटी नाजिया से मिलने के लिए घर के नुक्कड़ पर पहुंचा, उस वक्त तक उन दोनों की हत्या हो चुकी थी. उस ने अपने बेटे के साथ दोनों को मृत पाया तो वह बुरी तरह से घबरा गया. उन के जाने से पहले ही उन दोनों को कोई मौत के घाट उतार चुका था. उन को उस हालत में देख कर बापबेटे दोनों बुरी तरह से घबरा गए थे. उन्हें डर था कि उन की हत्या का इलजाम उन पर न लग जाए. इसी कारण वे तुरंत ही मौके से फरार हो गए थे.

उस की बातें सुन कर कोतवालीप्रभारी सतीशचंद्र कापड़ी को उस पर शक हो रहा था कि यह झूठ बोल रहा है. उन्होंने मुजम्मिल और उस के बेटे मोहसिन पर थोड़ी सी सख्ती बरती तो दोनों ने अपना जुर्म कबूल कर लिया. उस के तुरंत बाद ही पुलिस ने उन की निशानदेही पर 315 बोर के 2 तमंचे बरामद कर लिए. पुलिस ने दोनों के खिलाफ 3/25 शस्त्र अधिनियम के 2 अलग मुकदमे भी दर्ज कर लिए. सरेआम ताबड़तोड़ फायरिंग कर दोहरे हत्याकांड को अंजाम देने वाले आरोपियों से वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों के सामने पूछताछ करने पर जो जानकारी सामने आई, वह इस प्रकार थी. उत्तराखंड के शहर काशीपुर के मोहल्ला अली खां में रहता था कमरूद्दीन का परिवार. कमरुद्दीन का बड़ा परिवार था. लेकिन बच्चों के बड़े होते ही वह भी पैसे कमाने लगे, जिस से उस के परिवार की आर्थिक स्थिति काफी मजबूत हो गई थी.

उस का एक बेटा काम करने दुबई चला गया और दूसरा सऊदी अरब. उन के और लड़के भी काशीपुर में ही अपना कामधंधा करते थे. कमरुद्दीन के घर के पास ही मुजम्मिल का मकान भी था. मुजम्मिल की आर्थिक स्थिति पहले से ही मजबूत थी. मुजम्मिल मूलत: शरीफनगर (ठाकुरद्वारा) का निवासी था. गांव में उस की काफी जमीनजायदाद थी. अब से लगभग 10 साल पहले मुजम्मिल ने अपनी गांव की कुछ जुतासे की जमीन बेची और काशीपुर के मोहल्ला अलीखां में आ कर बस गया. उस की ससुराल भी यहीं पर थी. काशीपुर आने के तुरंत बाद ही उस ने यहां पर कुछ जुतासे की जमीन खरीदी और उस पर खेती का काम करना शुरू किया. मुजम्मिल के परिवार में उस की बीवी सहित कुल 8 सदस्य थे.

जमीन के बाकी बचे पैसों से मुजम्मिल ने एक कैंटर खरीद लिया था. मुजम्मिल के 4 बेटे जवान थे, जो काफी समय पहले से ही अपना कामधंधा करने लगे थे. कैंटर मुजम्मिल स्वयं ही चलाता था, जिस से काफी आमदनी हो जाती थी. 2 बेटियों में वह एक की पहले ही शादी कर चुका था, उस के बाद सब से छोटी नाजिया बची थी. नाजिया और राशिद की लवस्टोरी कमरुद्दीन और मुजम्मिल दोनों ही पड़ोसी थे, इसी नाते दोनों परिवार एकदूसरे के घर आतेजाते थे. भले ही दोनों अलगअलग जाति से ताल्लुक रखते थे, लेकिन दोनों परिवारों में घर जैसे ही ताल्लुकात थे. मुजम्मिल के बेटे राशिद की मोहसिन से अच्छी दोस्ती भी थी. राशिद और मोहसिन का जब कभी भी कहीं काम होता तो दोनों साथसाथ ही घर से निकलते थे.

मोहसिन की एक बहन थी नाजिया. नाजिया देखनेभालने में जितनी सुंदर थी, उस से कहीं ज्यादा तेजतर्रार भी थी. भले ही नाजिया राशिद के दोस्त की बहन थी, लेकिन उस के दिल को वह भा गई थी. घर आनेजाने की कोई पाबंदी थी नहीं. इसी आनेजाने के दौरान नाजिया ने राशिद की आंखों में अपने प्रति प्यार देखा तो वह भी उस की अदाओं पर मर मिटी. प्यार का सुरूर आंखों के रास्ते उतरा तो दिल में जा कर समा गया. दोनों के बीच मोहब्बत का सफर चालू हुआ तो अमरबेल की तरह बढ़ने लगा. देखतेदेखते उन के प्यार के चर्चे घर की दीवारों को लांघ कर मोहल्ले में छाने लगे थे. यह बात नाजिया के घर वालों को पता चली तो आगबबूला हो उठे. मुजम्मिल ने अपनी बेटी को समझाने की कोशिश की, लेकिन वह राशिद को छोड़ने को तैयार न थी.

उस के बाद मुजम्मिल ने राशिद के परिवार वालों को उन के बेटे की काली करतूतों का हवाला देते हुए उसे समझाने को कहा. लेकिन राशिद भी प्रेम डगर से पीछे हटने को तैयार न था. एक पड़ोसी होने के नाते जितना दोनों परिवारों में प्यार था, पल भर में वह नफरत में बदल गया. हालांकि दोनों ही परिवार वालों ने अपनेअपने बच्चों को समझाने का अथक प्रयास किया. लेकिन दोनों ही अपनी जिद पर अड़े थे. इस मामले को ले कर दोनों परिवारों के बीच विवाद बढ़ा तो मामला पंचायत तक जा पहुंचा. भरी पंचायत में फैसला हुआ कि राशिद काशीपुर छोड़ कर कहीं बाहर जा कर काम देखे. परिवार वालों के दबाव में राशिद रोजगार की तलाश में सऊदी चला गया. राशिद के काशीपुर छोड़ कर चले जाने के बाद नाजिया उस की याद में तड़पने लगी.

कुछ ही दिनों में उस ने राशिद से सऊदी में भी मोबाइल द्वारा संपर्क बना लिए. फिर दोनों ही मोबाइल पर प्रेम भरी बातें करते हुए साथसाथ जीनेमरने की कसमें खाने लगे. पूरी दुनिया में कोरोना का कहर बरपा तो राशिद अपने घर लौट आया. इस वक्त घर आना उस की मजबूरी बन गई थी. अपने घर काशीपुर आते ही उस ने शहर में एक टायर शोरूम में नौकरी कर ली. उसी दौरान मोहसिन अपनी पुरानी रंजिश को भूल कर राशिद से मिला. मोहसिन जानता था कि लौकडाउन खुलते ही राशिद दोबारा सऊदी चला जाएगा. दरअसल राशिद के सऊदी चले जाने के बाद से ही मोहसिन के दिल में भी सऊदी जाने की तमन्ना पैदा हो गई थी. मोहसिन जानता था कि वह राशिद के संपर्क में रह कर ही सऊदी तक पहुंच सकता है. मोहसिन के संपर्क में आने के बाद राशिद को मनचाही मंजिल और भी आसान लग रही थी.

उसी दोस्ती के कारण राशिद का नाजिया के घर आनाजाना बढ़ गया था. यही आनाजाना दोनों को उस मुकाम तक ले गया, जहां से दोनों का लौटना नामुमकिन हो गया था. यानी उन के प्रेम संबंध और ज्यादा मजबूत हो गए. फिर अब से लगभग 3 महीने पहले राशिद और नाजिया अचानक घर से फरार हो गए. नाजिया के घर से फरार होते ही उस के घर वालों को गहरा सदमा लगा. उन्होंने कभी सोचा भी नहीं था कि उन की बेटी एक दिन उन की इज्जत को तारतार कर देगी. मुजम्मिल को पता था कि वह जरूर राशिद के साथ गई होगी. राशिद के बारे में जानकारी लेने पर पता चला वह भी घर से गायब था. मुजम्मिल को दुख इस बात का था कि उस की बेटी ने गैरबिरादरी के लड़के के साथ भाग कर समाज में उस की नाक कटवा दी थी.

मुजम्मिल के मानसम्मान को ठेस पहुंची तो उस ने दोनों से मोबाइल पर बात कर उन्हें जान से मारने की धमकी दे डाली थी. उस के बावजूद भी दोनों ने बाहर रहते ही चोरीछिपे एक मौलवी के सामने निकाह भी कर लिया. यह बात जब नाजिया के घर वालों को पता चली तो घर में मातम सा छा गया. बदनामी की वजह से साधी चुप्पी समाज में अपनी इज्जत को देख नाजिया के अब्बू मुजम्मिल ने इस राज को राज ही बने रहने दिया. मुजम्मिल ने इस मामले में पूरी तरह से चुप्पी साध ली और फिर नाजिया और राशिद के वापस आने का इंतजार करने लगा. राशिद ने नाजिया के साथ निकाह करते ही अपना मोबाइल नंबर भी बदल लिया था, जिस के बाद मुजम्मिल की उन से बात नहीं हो पाई थी. मुजम्मिल पेशे से ड्राइवर होने के नाते काफी तेजतर्रार था. वह किसी तरह से राशिद का नया मोबाइल नंबर हासिल करना चाहता था.

वह जानता था कि राशिद के घर वालों से ही उस का नंबर मिल सकता है. उस ने किसी तरह उस की अम्मी को विश्वास में लेते हुए उस का मोबाइल नंबर हासिल कर लिया. जब मुजम्मिल के सब्र का बांध टूट चुका तो उस ने दूसरी चाल चली. मुजम्मिल ने एक दिन अपनी बेटी को फोन कर कहा, ‘‘नाजिया बेटी, तुम ने जो भी किया ठीक ही किया. बेटा बहुत दिन हो गए. तुम्हारे बिना हम से रहा नहीं जाता. हमें अब तुम से कोई गिलाशिकवा नहीं है. तुम दोनों घर वापस आ जाओ. हम चाहते हैं कि तुम दोनों का धूमधाम से निकाह करा दें.’’

मुजम्मिल की बात सुन कर नाजिया को विश्वास नहीं हुआ. उस ने यह बात पति राशिद को बताई. साथ ही यह भी समझाया कि आप मेरे अब्बू की बातों में मत आना. मैं उन की नसनस से वाकिफ हूं. वह झूठा प्यार दिखा कर हमें काशीपुर बुलाने के बाद हमारे साथ क्या कर डालें, कुछ पता नहीं. इस के बावजूद राशिद मुजम्मिल की बातों में आ कर नाजिया को साथ ले कर काशीपुर चला आया. काशीपुर आने के बाद राशिद ने मोती मसजिद के पास अलीखां मोहल्ले में ही एक किराए का कमरा ले लिया और वहीं पर नाजिया के साथ रहने लगा. यह बात मुजम्मिल को भी पता लग गई थी. उस के बाद मुजम्मिल अपने दिल में राशिद और नाजिया के प्रति फैली नफरत को खत्म करने के लिए उचित समय का इंतजार करने लगा.

बापभाई ही बने प्यार के दुश्मन अपनी बेटी और राशिद के प्रति उस के दिल में इस कदर नफरत पैदा हो गई थी कि वह किसी भी सूरत में दोनों को मौत के घाट उतारने की योजना बना चुका था. उसी योजना के तहत मुजम्मिल ने उत्तर प्रदेश के एक गांव से 315 बोर के 2 तमंचे और 8 कारतूस खरीदे. उस के बाद मुजम्मिल अपने बेटे मोहसिन को साथ ले कर दोनों का साए की भांति पीछा करने लगा. राशिद और नाजिया कब, कहां और क्यों जाते हैं, यह जानना उस की दिनचर्या में शामिल हो गया. इस घटना से 15 दिन पहले मुजम्मिल को जानकारी मिली कि नाजिया राशिद के साथ जसपुर स्थित कालू सिद्ध की मजार पर गई हुई है.

कालू सिद्ध की मजार पतरामपुर के जंगलों में स्थित है. जहां पर दूरदूर तक झाड़झंखाड़ और वन फैला है. यह जानकारी मिलते ही मुजम्मिल अपने बेटे मोहसिन को साथ ले कर कालू सिद्ध के रास्ते में भी छिप कर बैठा. लेकिन उस दिन उन्हें नाजिया अकेले ही दिखाई दी थी. जबकि मुजम्मिल नाजिया के साथ राशिद को भी खत्म करने की फिराक में था. लेकिन उस दिन दोनों बापबेटे गम का घूंट निगल कर अपने घर वापस आ गए.  फिर दोनों के साथ मिलने की ताक में रहने लगे. 7 सितंबर 2020 की शाम को पता चला कि राशिद नाजिया को साथ ले कर बाइक से कहीं पर गया हुआ है. यह जानकारी मिलते ही उस ने अपनी योजना को अंजाम देने के लिए पूरी तैयारी कर ली. लेकिन उस वक्त उसे यह जानना भी जरूरी था कि वे दोनों शहर में गए हैं या फिर कहीं बाहर.

यह जानकारी लेने के लिए वह अपने घर के मोड़ पर एक चबूतरे पर जा बैठा. वहां पर पहले से ही कई लोग बैठे हुए थे. वहां पर भी उस का मन नहीं लगा. उस के मन में राशिद और नाजिया को ले कर जो खिचड़ी पक रही थी, वह उसे ले कर परेशान था. मुजम्मिल वहां से उठ कर अपने घर चला आया. जब राशिद और नाजिया को गए हुए काफी समय बीत गया तो उस के सब्र का बांध टूट गया. उस ने उसी समय नाजिया को फोन मिला दिया. अपने अब्बू का फोन आते ही वह भावुक हो उठी और उस ने बता दिया कि वह दवाई लेने आई हुई थी. अब वह कुछ ही देर में घर की ओर ही निकल रही है. यह जानकारी मिलते ही मुजम्मिल अपने बेटे मोहसिन को साथ ले कर अपने घर की ओर आने वाले मोड़ पर जा पहुंचा. उस वक्त तक वहां पर बैठे लोग भी अपनेअपने घर जा चुके थे.

जैसे ही राशिद नाजिया को साथ ले कर घर की ओर जाने वाले मोड़ पर पहुंचा, मुजम्मिल और उस के बेटे मोहसिन ने इस घटना को अंजाम दे डाला. पुलिस ने मुजम्मिल और उस के बेटे मोहसिन से विस्तार से पूछताछ के बाद उन्हें 10 सितंबर, 2020 को कोर्ट में पेश किया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया था. इस केस का खुलासा करने वाली पुलिस टीम की सराहना करते हुए एएसपी राजेश भट्ट ने ढाई हजार रुपए देने की घोषणा की.

 

Love Stories : चादर में लपेटा लिवइन रिलेशन

Love Stories : 10 महीने से बंद कमरे का ताला तोड़ कर बलवीर सिंह राजपूत ने कमरे की सफाई की तो उन्हें फ्रिज के अंदर चादर में लिपटी एक युवती की लाश मिली. कौन थी वह युवती और किस ने की उस की हत्या? पढ़ें, रहस्य से भरी यह कहानी.

10 जनवरी, 2025 की सुबह की बात है. कड़ाके की सर्दी थी और कोहरे की चादर भी फैली हुई hथी, लेकिन हौलेहौले अस्तित्व में आती सूरज की किरणों ने कोहरे से लडऩा शुरू किया तो मौसम का मिजाज तेजी से बदलने लगा. सर्दी कम होती चली गई, साथ ही कोहरे की चादर भी हटती चली गई. इसी बीच देवास में भोपाल रोड स्थित पौश कालोनी वृंदावनधाम में किराए पर रहने वाले बलवीर राजपूत ने बीएनपी (बैंक नोट प्रैस) थाने को फोन कर सूचना दी कि कालोनी के मकान नंबर 128 से दुर्गंध आ रही है. जिस कमरे से दुर्गंध आ रही है, उस के दरवाजे पर पिछले 10 महीने से ताला लगा हुआ था.

दुर्गंध आने की सूचना मिलते ही टीआई अमित सोलंकी समझ गए कि वहां कुछ न कुछ गड़बड़झाला अवश्य है. क्योंकि इस तरह की जो भी सूचनाएं मिलती हैं, उन में से ज्यादातर मामले हत्या के ही निकलते हैं. बहरहाल, एसएचओ पुलिस टीम के साथ वृंदावनधाम कालोनी की तरफ निकल गए. निकलने से पहले उन्होंने इस की सूचना अपने उच्चाधिकारियों को भी दे दी. जिस मकान से दुर्गंध आने की बात कही गई थी, वह 2 मंजिला था. टीआई और अन्य पुलिसकर्मियों ने भी कमरे से आती दुर्गंध को महसूस किया था. उस कमरे के ठीक बगल वाले 4 कमरों में बलवीर राजपूत अपने परिवार के साथ रह रहा था.

बलवीर ने पुलिस को बताया कि वह जुलाई 2024 से धीरेंद्र श्रीवास्तव के इस मकान के एक भाग को किराए पर ले कर अपनी पत्नी और बच्चों के साथ रह रहा है. उसे अपने बच्चों की पढ़ाईलिखाई के लिए और कमरों की जरूरत महसूस हुई तो उस ने मकान मालिक धीरेंद्र श्रीवास्तव से मोबाइल पर बात कर तकरीबन 10 महीनों से बंद पड़े 2 कमरे भी उसे किराए पर देने के लिए अनुरोध किया. मकान मालिक धीरेंद्र श्रीवास्तव ने बलवीर को बताया कि उन कमरों में पूर्व में रहने वाले किराएदार संजय पाटीदार (41) का कुछ घरेलू सामान रखा हुआ है और अभी कमरे पर संजय पाटीदार का ही ताला लगा हुआ है. उस से मैं कई बार अपना सामान उठा कर ले जाने के लिए कह चुका हूं, लेकिन वह पिछले 6 महीने से बहानेबाजी कर रहा है.

कभी कहता है कि मेरी सास को हार्ट अटैक आ गया है तो कभी कहता है कि मेरे चाचा के बेटे का निधन हो गया है, इसलिए आने में असमर्थ हूं. आप मुझे कुछ समय की मोहलत और दे दीजिए और मेरे सामान को कमरे में रखा रहने दें, मैं जल्द ही आप का पूरा किराया दे कर अपना सामान उठा कर ले जाऊंगा.

किस की थी फ्रिज में रखी लाश

वह न तो मुझे समय पर किराया दे रहा है न ही कमरे का ताला खोल रहा है, जबकि इस से पहले  वह हर महीने मुझे औनलाइन किराया भेज देता था. इसलिए तुम ऐसा करो कि ताला तोड़ कर कमरे में रखा संजय पाटीदार का सामान कमरे के बाहर रख दो और कमरे की साफसफाई कर के उसे अपने उपयोग में लेना शुरू कर दो. इस पर बलवीर ने कमरे में लगे ताले को 8 जनवरी की रात को तोड़ दिया था. इस के बाद जैसे ही वह कमरे में घुसा तो उसे गृहस्थी के सामान के साथ कपड़े में लपेट कर रखा हुआ फ्रिज दिखाई दिया, जोकि बिना उपयोग में आए चल रहा था.

बलवीर ने बिजली की खपत कम करने के मकसद से फ्रिज का स्विच औफ कर दिया और कमरे की कुंडी लगा कर अपने कमरे में सोने चला गया. 9 जनवरी को सुबह होने पर बलवीर ने उस बंद पड़े कमरे की साफसफाई की, लेकिन कमरे में रखे संजय पाटीदार के सामान के साथ किसी तरह की छेड़छाड़ नहीं की, उसे यथावत कमरे में ही रखा रहने दिया. 10 जनवरी, 2025 को दोपहर के वक्त जब संजय पाटीदार के कमरे से तेज दुर्गंध आने लगी तो बलवीर सिंह राजपूत ने कमरे की कुंडी खोल कर देखा तो बंद फ्रिज में से खून रिसने के साथ ही तेज दुर्गंध आ रही थी. बलवीर ने समय न गंवाते हुए तुरंत बीएनपी (बैंक नोट प्रेस) थाने को इस की सूचना दी.

सूचना पर पहुंची पुलिस टीम ने लोगों की मौजूदगी में जैसे ही फ्रिज का दरवाजा खोला, तभी चादर में लिपटी फ्रिज में करीने से रखी कोई चीज फ्रिज में से बाहर गिर गई. पुलिस ने जब उस चीज की चादर हटाई तो उस में एक महिला की लाश थी. लाश को चादर से बाहर निकालते ही घर में बदबू फैल गई. मृतका की उम्र 30-35 साल से ज्यादा नहीं लगती थी. पता चला कि वह संजय पाटीदार के साथ रहने वाली प्रतिभा उर्फ पिंकी थी. उस के गले में दुपट्टा कसा हुआ था, साथ ही उस के हाथ भी बंधे हुए थे.

पुलिस ने उच्चाधिकारियों की मौजूदगी में मकान को छान मारा, लेकिन वहां पर कुछ भी आपत्तिजनक सामान नहीं मिला. सिर्फ मृतका के संजय पाटीदार के साथ फोटो और दस्तावेज के. उसी दौरान एसपी पुनीत गहलोद, एएसपी जयवीर भदौरिया, प्रैस फोटोग्राफर तथा फिंगरप्रिंट ब्यूरो के सदस्य भी वहां पहुंच गए. मौकामुआयना करने के बाद टीआई को दिशानिर्देश देने के बाद एसपी पुनीत गहलोत लौट गए.

पहले पति को क्यों छोड़ा पिंकी ने

देखते ही देखते यह खबर समूची वृंदावन धाम कालोनी में फैल गई कि किसी ने प्रतिभा उर्फ पिंकी की हत्या कर दी है. थोड़ी देर में कालोनी के लोग काफी बड़ी संख्या में मौकाएवारदात पर जमा हो गए. पुलिस ने पड़ोसियों से पिंकी की हत्या के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि उस की हत्या के बारे में उन्हें कोई जानकारी नहीं है. वैसे मार्च 2024 के बाद किसी ने भी पिंकी को वृंदावनधाम कालोनी में नहीं देखा था. जब भी किसी पड़ोसी ने संजय पाटीदार से पिंकी के बारे में पूछा तो उस ने उन्हें यही बताया कि उस की मम्मी को हार्ट अटैक आ गया है, इसलिए वह अपनी मम्मी की देखभाल के लिए गई है.

पुलिस को लगा कि जरूर दाल में कुछ काला है. इस के बाद पुलिस के शक की सुई संजय पाटीदार पर ही टिक गई. मामला गंभीर था, इसलिए मौके पर मौजूद टीआई ने इनवैस्टीगेशन के लिए उज्जैन से फोरैंसिक टीम को भी वहां बुला लिया. फोरैंसिक टीम की 2 महिला अधिकारियों ने बारीकी से घटनास्थल और मृत महिला की लाश का निरीक्षण करने के बाद मौके से जरूरी सबूत सावधानीपूर्वक एकत्रित कर लिए. इस बीच पुलिस ने मौके की काररवाई निपटाने के बाद लाश को पोस्टमार्टम के लिए देवास के जिला अस्पताल में भिजवा दिया.

हत्या के इस मामले को सुलझाने के लिए एसपी पुनीत गहलोत ने एएसपी जयवीर भदौरिया, टीआई अमित सोलंकी के अलावा क्राइम ब्रांच और साइबर सेल टीम को भी लगा दिया. टीम ने अपने स्तर पर गहनता के साथ इस जघन्य हत्याकांड की छानबीन शुरू कर दी. इस का परिणाम यह निकला कि पुलिस टीम को मृतका पिंकी और संजय पाटीदार के बारे में तमाम सारी चौंकाने वाली जानकारियां मिल गर्ईं. इन जानकारियों से तमाम सारे राज परतदरपरत खुलते चले गए. पता चला कि पिंकी संजय की पत्नी नहीं थी, वह तो संजय पाटीदार के साथ पिछले 5 सालों से लिवइन रिलेशनशिप में रह रही थी. संजय से पहले उस ने 2016 में राजस्थान के सुभाष माहेश्वरी से लव मैरिज की थी, लेकिन यह शादी ज्यादा समय तक नहीं चली, क्योंकि पिंकी ने शादी के बाद बेहतरीन जिंदगी जीने के सपने संजो रखे थे.

पिंकी के ख्वाब चकनाचूर हुए तो उस की अपने पति सुभाष से अनबन रहने लगी. पति ने उसे बहुत समझाया, लेकिन छोटीछोटी बातों पर झगड़ा होना आए दिन की बात हो गई तो रिश्तों में कड़वाहट बढऩे लगी. शिकवेशिकायतों के बीच दोनों 2017 में एकदूसरे से अलग हो गए तो पिंकी राजस्थान से अपने पैतृक शहर उज्जैन लौट आई. पिंकी की जिंदगी किस दिशा में जाने वाली थी, यह वह खुद भी नहीं जानती थी, लेकिन यह भी सच था कि वह आजादी की जिंदगी जीना चाहती थी. पति से अलगाव के बाद वह मायके आ गई. उस का यह कदम फेमिली वालों को खासकर उस के पापा और भाई को कतई रास नहीं आया. लेकिन पिंकी अपने सामने किसी दूसरे की चलने नहीं देती थी. उस के अडिय़ल रुख के कारण उस से आजिज आ कर फेमिली वालों ने भी उस से पूरी तरह से किनारा कर लिया.

ऐसी स्थिति में वह उज्जैन में ही अपने घर के ही करीब किराए पर कमरा ले कर रहने लगी. कुछ दिन बाद पिंकी की मुलाकात संजय पाटीदार से हुई. चंद मुलाकातों में दोनों एकदूसरे के करीब आ गए. उन के बीच प्यार हो गया. पिंकी को संजय के सहारे की जरूरत थी. उधर संजय भी पिंकी की अदाओं और खूबसूरती का दीवाना बन चुका था. सरल स्वभाव की पिंकी ने अपने परिचितों और पड़ोसियों से संजय का परिचय अपने पति के रूप में कराया था. यह बात अलग थी कि दोनों का रिश्ता लिवइन रिलेशन का था.

10 महीने तक ठिकाने क्यों नहीं लगाई लाश

10 जनवरी, 2025 की दोपहर को हत्या के इस मामले में मृतका कि लाश की शिनाख्त हो जाने के बाद अब पुलिस के लिए जांच को आगे बढ़ाने के लिए सब से जरूरी था, मृतका के साथ रहने वाले संजय पाटीदार को खोज निकालना. संजय पाटीदार को धर दबोचने के लिए एसपी ने एएसपी जयवीर भदौरिया को लगा दिया. उन्होंने पिंकी की लाश मिलने के चंद घंटों बाद ही संजय पाटीदार के ठौरठिकानों का पता लगाना शुरू कर दिया. उन्होंने अपनी सूझबूझ से संजय पाटीदार को उज्जैन के मौलाना गांव से गिरफ्तार कर लिया और उसे ले कर देवास आ गए.

इस हत्या का राज खुल जाने के बाद पहली गिरफ्तारी संजय पाटीदार की हुई थी, अत: देवास के (बैंक नोट प्रेस) बीएनपी थाने में संजय पाटीदार से पूछताछ शुरू हुई. पहले तो वह पुलिस को बहकाता रहा, लेकिन जब पुलिस ने उस पर मनोवैज्ञानिक ढंग से दबाव बनाया तो उस ने प्रतिभा उर्फ पिंकी की हत्या 2 मार्च, 2024 को ही अपने मित्र विनोद दवे के साथ मिल कर करने और लाश घर में रखे फ्रिज में छिपाने की बात कुबूल कर ली. संजय पाटीदार ने अपनी गिरफ्तारी के बाद पिंकी की हत्या करने के पीछे की जो वजह बताई, वह लिवइन रिलेशनशिप में दरकते रिश्तों की चौंकाने वाली कहानी निकल कर आई.

संजय पाटीदार मूलरूप से मध्य प्रदेश के उज्जैन जिले के मौलाना गांव का रहने वाला था. जैसे ही संजय जवान हुआ, उस के पेरेंट्स ने उस की शादी कर दी. उस की पत्नी उस के साथ उज्जैन में रहती थी और वह उज्जैन की अनाज मंडी में काम करता था. उस का काम काफी अच्छा चल रहा था. वह जो पैसे कमाता, उस में से कुछ पैसे अपने पापा के पास भेज देता था. इस बीच उस की पत्नी 2 बच्चों की मां बन गई थी. बताया जाता है कि इस बीच संजय ने मंडी के काम को छोड़ दिया और उज्जैन में रह कर स्वयं का फ्रीगंज इलाके में एक मल्टीलेवल मार्केटिंग (एमएलएम) कंपनी का औफिस खोल लिया. इसी कंपनी में प्रतिभा उर्फ पिंकी भी काम करती थी. इसी दौरान दोनों के बीच दोस्ती हो गई. बाद में उन के बीच प्रेम संबंध बन गए तो दोनों लिवइन रिलेशनशिप में रहने लगे.

उज्जैन में संजय ने शहर की विवेकानंद कालोनी, अन्नपूर्णा नगर, तिरुपति धाम में किराए पर कमरा ले कर पिंकी को अपने साथ रखा. जब एमएलएम का काम अच्छा नहीं चला तो कुछ समय बाद संजय ने इस काम को बंद कर दिया और 2023 में प्रतिभा को उज्जैन से देवास ले आया और वृंदावनधाम कालोनी में धीरेंद्र श्रीवास्तव का मकान किराए पर ले कर रहने लगा. धीरेंद्र इंदौर में रहते थे. वृंदावनधाम कालोनी में आने के बाद अपनी गृहस्थी चलाने के लिए देवास मंडी में काम करना शुरू कर दिया, वहीं पिंकी ने घर में ही रह कर कालोनी की महिलाओं के कपड़े सिलने का काम शुरू कर दिया. यहां पर भी पड़ोसियों के द्वारा पति के बारे में पूछने पर पिंकी ने संजय को अपना पति बताया था. पिंकी ने कुछ पड़ोसियों को यह भी बताया था कि देवास आने के पहले उस का 2 साल का बेटा भी था, जिस की निमोनिया से उपचार के दौरान मौत हो चुकी है.

कालोनी में रहने वाले लोगों से जब पुलिस ने पड़ताल के दौरान बात की तो सभी ने इस बात पर ज्यादा हैरानी जताई कि (पिंकी और संजय) दोनों शादीशुदा नहीं थे. पता चला कि पिंकी अपनी आजीविका चलाने के लिए देवताओं की मूर्तियों की सुंदरसुंदर पोशाकें सिलती थी. पुलिस को यह भी पता चला कि संजय उज्जैन के मौलाना गांव का रहने वाला है और वह पहले से शादीशुदा है और उस के पत्नी और बच्चे भी हैं. उस की बड़ी बेटी की तो शादी तक तय हो चुकी है. उन दोनों के बीच होने वाले झगड़े की असल वजह यह थी कि पिंकी संजय पाटीदार पर शादी करने के लिए दवाब बना रही थी.

पुलिस ने बताया कि प्रतिभा उर्फ पिंकी का अपने घर वालों से बीते 7 सालों से किसी तरह का कोई संपर्क नहीं था. शनिवार 11 जनवरी, 2025 को पुलिस के बुलावे पर वह देवास पहुंचे. उन्होंने उस की लाश की शिनाख्त प्रतिभा उर्फ पिंकी प्रजापति के रूप में कर दी.

आखिर छिप न सका जुर्म

पिंकी के फेमिली वालों का कहना था कि 2016 में उस ने राजस्थान के सुभाष माहेश्वरी से हम लोगों की इच्छा के खिलाफ लव मैरिज कर ली थी. उस के बाद से हमारा प्रतिभा उर्फ पिंकी से कोई संपर्क नहीं था. पुलिस को पड़ोसियों से पता चला कि बलवीर सिंह चौहान से पहले इस मकान में जुलाई 2023 से जून 2024 तक संजय पाटीदार और प्रतिभा उर्फ पिंकी रहा करती थी, लेकिन किसी ने सपने में भी नहीं सोचा था कि संजय इतना बेरहम इंसान हो सकता है. उधर संजय पाटीदार ने पुलिस पूछताछ में जब अपना गुनाह कुबूल कर लिया, तब पुलिस ने 11 जनवरी, 2025 को उसे कड़ी सुरक्षा के बीच कोर्ट में पेश किया और विस्तार से पूछताछ करने और सबूत जुटाने के लिए एक दिन के पुलिस रिमांड पर ले लिया.

रिमांड अवधि में टीआई अमित सोलंकी लोगों के गुस्से और हमले की आशंका के मद्देनजर भारी सुरक्षा के बीच उसे अपने साथ वृंदावन धाम कालोनी के मकान नंबर 128 ले कर पहुंचे. वहां उन्होंने उस से घटना का सीन रीक्रिएट कराया. उस ने पुलिस को यह भी बताया कि पिंकी उस के मित्र विनोद को जानती थी. इसलिए वह भी हम दोनों की तकरार के दौरान कमरे के भीतर पहुंच गया. इस दौरान हम दोनों में बातचीत होती रही. इस बातचीत के दौरान पिंकी शादी की हठ करने लगी. संजय ने अपने शादीशुदा होने का हवाला देते हुए उसे समझाने की भरसक कोशिश की, लेकिन वह कुछ भी सुनने को राजी नहीं थी.

दोस्त विनोद ने भी उसे समझाने का प्रयास किया तो वह उसे भी भद्दी गालियां देने लगी. जब संजय ने पिंकी से शादी करने से साफ इनकार कर दिया तो वह बुरी तरह तिलमिला गई और संजय को भी भद्दीभद्दी गालियां देने लगी. पिंकी की बदजुबानी से संजय की सहनशक्ति जवाब दे गई और इसी दौरान गुस्से में उस ने पिंकी के दुपट्टे से उस का गला घोंट दिया. हालांकि उस ने चिल्लाने का प्रयास किया तो विनोद ने उस का मुंह दबा दिया.

वह कुछ मिनट छटपटाने के बाद शांत हो गई. इस के बावजूद भी पूरी तरह आश्वस्त होने के लिए संजय ने पिंकी की छाती पर हाथ रख कर दिल की धड़कनों के बंद होने की जांच भी की थी. फिर विनोद की मदद से संजय ने पिंकी के दोनों हाथ बांधे और फ्रिज की सभी ट्रे बाहर निकालीं और अपने मित्र की मदद से उस के शव को चादर में बांध कर फ्रिज में ठूंस दिया. फिर फ्रिज को हाई पर सेट कर दिया. संजय पाटीदार के रिमांड अवधि और सभी तरह की तहकीकात पूरी होते ही पुलिस ने फिर से कोर्ट में पेश किया, जहां से उसे न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. भोलाभाला दिखाई देने वाला संजय पाटीदार अब सलाखों के पीछे है.

देवास के बैंक नोट प्रेस थाना पुलिस उज्जैन के इंगोरिया इलाके में रहने वाले संजय पाटीदार के मित्र और इस हत्या में संजय के सहयोगी रहे विनोद दवे को देवास लाने के लिए कोर्ट से प्रोटेक्शन वारंट ले कर राजस्थान की टोंक जेल जाने की तैयारी कर रही थी, साथ ही उसे भी हत्या के इस मामले में सहअभियुक्त बनाने के लिए विधिवत काररवाई की जा रही थी.

 

 

Crime Story : प्रेमी के साथ मिल कर पत्नी बनी कातिल

Crime Story : प्रविंद्र ने अपने चचेरे भाई अनुज को अपने यहां इसलिए रख लिया था कि परदेस में रह कर अनुज के चार पैसे बच जाएंगे. लेकिन अनुज ने आस्तीन का सांप बन कर प्रङ्क्षवद्र की ही 22 वर्षीय पत्नी सरिता को अपने प्रेम जाल में फांस लिया. प्रङ्क्षवद्र ने जब इस का विरोध किया तो…

22 वर्षीया सरिता खूबसूरत, गोरीचिट्टी व छरहरी काया की हसीना थी. उस के नैननक्श भी काफी तीखे थे. उस के चेहरे में कुछ ऐसा जादू था कि जो भी उसे एक बार देख लेता था, बस उसी में ही खो सा जाता था. 10 साल पहले जब सरिता प्रविंद्र की दुलहन बन कर आई थी तो प्रविंद्र का चचेरा भाई अनुज उसे देखता ही रह गया था.

अनुज उस वक्त एक इंस्टीट्यूट से इलैक्ट्रिकल ट्रेड में आईटीआई कर रहा था. उस समय उस की उम्र 18 साल थी. वैसे तो सरिता की शादी प्रविंद्र से हो गई थी, मगर अकसर अनुज भी हर दूसरेतीसरे दिन प्रविंद्र के घर में किसी न किसी बहाने से आताजाता रहता था. वह सरिता पर डोरे डाल रहा था. इसी तरह से जब कई महीने हो गए तो सरिता भी अनुज के मन में चल रही बात को भांप गई.

एक दिन सरिता ने अकेले में अनुज से पूछ ही लिया, ”देवरजी, आजकल तुम कहां खोए से रहते हो?’’ सरिता की इतनी बात सुन कर अनुज समझ गया था कि सरिता भी उस की ओर आाकर्षित होने लगी है. उस वक्त तो वह अपने दिल की बात सरिता से कह नहीं पाया, वह सिर्फ इतना बोला, ”कहीं नहीं भाभी.’’ मगर वह अपने दिल की बात सरिता से कहने के लिए अच्छे वक्त का इंतजार करने लगा था.

और फिर एक दिन अनुज को अपने दिल की बात कहने का मौका मिल गया. उस दिन प्रविंद्र का पूरा परिवार मेला देखने गया हुआ था. सरिता उस समय घर पर अकेली ही थी, तभी अनुज ने उस के घर के दरवाजे पर जा कर दस्तक दी. अनुज को देख कर सरिता बड़ी खुश हो गई. वह अनुज के लिए चाय बनाने के लिए रसोई में चली गई. इसी बीच घर के ड्राईंगरूम में बैठा अनुज सरिता के खयालों में डूब चुका था, तभी अचानक सरिता चाय की ट्रे ले कर वहां आई. जैसे ही सरिता ने चाय के प्याले मेज पर रखे तो अनुज उस समय बेकाबू हो गया और उस ने सरिता का हाथ पकड़ लिया.

अनुज ने कहा, ”भाभी, मुझे अब तुम से प्यार हो गया है, अब मैं तुम्हारी जुदाई सहन नहीं कर सकता. तुम्हारे बिना मैं मर जाऊंगा.’’

इस के बाद अनुज को सरिता की मौन स्वीकृति मिल चुकी थी और दोनों पहली बार अलिंगनबद्ध हो गए थे. इस के बाद से अकसर अनुज व सरिता चोरीछिपे एकदूसरे से मिलने लगे थे. दोनों के अवैध संबंधों का यह सिलसिला बेरोकटोक चलने लगा था. इसी बीच 5 साल बीत चुके थे. तब तक सरिता एक बेटी एक बेटे की मां बन चुकी थी.

देवरभाभी के कैसे हुए संबंध

सरिता का प्रविंद्र व अनुज आपस में चचेरे भाई थे तथा वे मूलरूप से उत्तर प्रदेश के जिला सहारनपुर के थाना फतेहपुर के अंतर्गत गांव कमालपुर के रहने वाले थे. उस समय प्रविंद्र गांव में बाइक मिस्त्री का काम करता था. अनुज उस वक्त इलैक्ट्रिकल ट्रेड से आईटीआई करने के बाद नौकरी की तलाश करने लगा था. इसी दौरान वर्ष 2020 में देश में कोरोना संकट आ गया था. इस कारण समूचे देश में सभी कारोबार ठप्प होने लगे थे.

काम की तलाश में प्रविंद्र व अनुज अपने गांव से 40 किलोमीटर दूर देहरादून में आ कर रहने लगे थे. प्रविंद्र ने तो वहां अपना बाइक की मरम्मत का काम शुरू कर दिया था. अनुज ने भी नौकरी के लिए उत्तराखंड के विद्युत विभाग में अप्लाई कर दिया था. इसी बीच अनुज व प्रविंद्र मोहल्ला पटेल नगर में एक साथ ही रहते थे. जब प्रविंद्र घर से चला जाता तो अनुज और सरिता घर में रंगरलियां मनाते थे. इसी प्रकार 2 साल बीत चुके थे. इसी दौरान अनुज की नौकरी उत्तराखंड पावर कारपोरेशन में अस्थाई रूप से बतौर लाइनमैन लग गई थी. नौकरी लगने के बाद अनुज ने अपनी तनख्वाह सरिता पर खर्च करनी शुरू कर दी थी तथा सरिता अब खूब बनठन कर फैशनेबल कपड़ों में रहने लगी थी. अब प्रविंद्र को कुछकुछ शक होने लगा था कि उस के घर में कुछ गड़बड़ हो रहा है.

एक दिन किसी काम से दोपहर को प्रविंद्र को घर में आना पडा. जब वह घर पहुंचा तो उस ने देखा कि दरवाजा अंदर से बंद था और घर के अंदर से हंसीठहाकों की आवाजें आ रही थीं. प्रविंद्र चुपचाप हो कर बाहर खडा ये आवाजें सुनता रहा. प्रविंद्र को यकीन हो गया कि घर के अंदर से आने वाली आवाजें अनुज व सरिता की ही हैं. तब प्रविंद्र ने घर का दरवाजा खटखटाया. कुछ देर बाद दरवाजा खुला तो कमरे में सरिता व अनुज अपने अस्तव्यस्त कपड़ों को ठीक करते हुए निकले थे. अनुज तो तुरंत ही घर से निकल कर भाग खड़ा हुआ था.

सरिता तो अपनी गलती पर प्रविंद्र से माफी मांगने लगी थी. प्रविंद्र ने सरिता से कहा कि कल तक अनुज अपना सामान व कपड़े उठा कर कहीं अलग चला जाए. वह मेरे घर में रहने के लायक नहीं है. इस के बाद ऐसा ही हुआ. अनुज अब अपने चचेरे भाई प्रविंद्र से अलग कमरा ले कर रहने लगा था. सरिता व अनुज भले ही अलग रहने लगे थे, मगर उन दोनों के बीच जो अवैध संबंध थे, वे खत्म नहीं हुए थे. 2 महीने बीत जाने के बाद दोनों में एकदूसरे के प्रति वासना की आग फिर से भड़कने लगी थी. इस के बाद दोनों मोबाइल से एकदूसरे से बातें करने लगे.

पहले तो दोनों में मोबाइल द्वारा बातें करने का सिलसिला शुरू हुआ, इस के बाद अकसर सरिता व अनुज घर से बाहर चोरीछिपे मिलने लगे. कुछ समय तक दोनों इसी प्रकार मिलते रहे. वह चोरीछिपे नहीं बल्कि खुले रूप से साथ रहना चाहते थे, इसलिए दोनों ने मिल कर एक खतरनाक योजना बनाई. वह योजना प्रविंद्र को रास्ते से हटाने की थी. इस के बाद वे दोनों अपनी इस योजना को अमलीजामा पहनाने के प्रयास में जुट गए.

पुलिस को क्यों लगा हत्या का मामला

वह 16 दिसंबर, 2024 का दिन था. उस समय सुबह के 11 बज रहे थे. देहरादून की कोतवाली पटेल नगर के एसएचओ कमल कुमार लुंठी उस समय कोतवाली में ही थे. तभी उन के औफिस में संतरी ने उन्हें जानकारी दी कि क्षेत्र के श्री महंत इंद्रेश अस्पताल से एक डैथ मेमो आया है. जब श्री लुंठी ने डैथ मेमो को देखा तो उस में डाक्टर ने लिखा था कि बीती रात पटेलनगर निवासी विवाहिता सरिता ने अपने कुछ रिश्तेदारों के साथ अपने बीमार पति प्रविंद्र को उपचार हेतु इमरजैंसी में भरती कराया था. उस वक्त प्रविंद्र के गले पर चोटों के निशान थे तथा उस के कान से खून रिस रहा था. इस कारण प्रविंद्र की मौत संदिग्ध लग रही है. कृपया उचित काररवाई करने की कृपा करें.

एसएचओ कमल कुमार लुंठी को यह मामला संदिग्ध मौत का लग रहा था. इस के बाद उन्होंने तुरंत ही श्री महंत इंद्रेश अस्पताल पहुंचने का निश्चय किया. चलने से पहले श्री लुंठी ने इस संदिग्ध मौत की जानकारी अपने सीओ अभिनय चौधरी तथा एसएसपी अजय सिंह को मोबाइल द्वारा दे दी. जब श्री लुंठी अस्पताल पहुंचे तो उन्होंने सब से पहले मृतक प्रविंद्र की डैडबौडी की बड़े ध्यान से जांच की. शव के गले पर चोटों के निशान थे. शव के कानों से खून भी आ रहा था. उसे देख कर उन्हें लगा कि यह सामान्य मौत नहीं, बल्कि हत्या का हो सकता है. इसी दौरान संदिग्ध मौत की सूचना पा कर सीओ अभिनय चौधरी भी अस्पताल पहुंच गए थे.

इस के बाद अभिनय चौधरी ने भी प्रविंद्र के शव का निरीक्षण किया. इस के बाद कमल कुमार लुंठी ने प्रविंद्र के शव का पंचनामा भर कर उसे पोस्टमार्टम के लिए कोरोनेशन अस्पताल भिजवा दिया था. प्रविंद्र के शव को पोस्टमार्टम के लिए भिजवाने के बाद श्री लुंठी ने थानेदार योगेश दत्त को पटेल नगर भेजा और उन्होंने प्रविंद्र के घर के आसपास जा कर उस के बारे में जानकारी जुटाने को कहा. इस के बाद पुलिस ने प्रविंद्र के भाई सुमित की ओर से प्रविंद्र की संदिग्ध मौत का मुकदमा बीएनएस की धारा 103 (1) के तहत दर्ज कर लिया. उसी दिन शाम को पुलिस ने प्रविंद्र के परिवार की सारी जानकारी जुटा ली. जांच में पता चला कि प्रविंद्र की पत्नी सरिता के साथ प्रविंद्र के चचेरे भाई अनुज के अवैध संबंध थे. प्रविंद्र के घर से जाने के बाद अकसर अनुज पहले उस के घर जा कर रंगरलियांमनाता था.

एक बार आपत्तिजनक हालत में पकड़े जाने के बाद अनुज ने सरिता से होटलों में मिलना शुरू कर दिया था. हो सकता है कि उन दोनों ने ही कहीं प्रविंद्र की हत्या न कर दी हो? इस के बाद लुंठी ने अनुज से पूछताछ करने का फैसला किया. अनुज व सरिता को पटेलनगर कोतवाली लाने के लिए पुलिस की 2 टीमों का गठन किया गया था. कुछ ही घंटों में पुलिस अनुज को हिरासत में ले कर कोतवाली आ गई थी. सीओ अभिनय चौधरी व कोतवाल कमल कुमार लुंठी ने प्रविंद्र की मौत के बारे में अनुज से पूछताछ की. उन्होंने पूछा कि जब प्रविंद्र ने तुम्हें सरिता से मिलने के लिए मना किया था तो फिर तुम सरिता से अलगअलग होटलों में क्यों मिलते थे? घटना वाले दिन तुम्हारी लोकेशन प्रविंद्र के घर की हमें मिल रही है. तुम हमें प्रविंद्र की मौत की सच्चाई सचसच बता दो.

अनुज ने सोचा कि जब पुलिस को सारी बातें पता ही चल गई हैं तो अब सच्चाई छिपाने से कोई फायदा नहीं है. अत: अनुज ने प्रविंद्र की हत्या करने की बात स्वीकार कर ली. उस ने हत्या की जो जानकारी पुलिस को जुबानी बताई, वह इस प्रकार थी.

अवैध संबंध के रास्ते पर इस तरह फिसलते गए देवरभाभी

उस ने बताया सरिता रिश्ते में मेरी भाभी लगती थी. जब से वह मेरे चचेरे भाई प्रविंद्र से ब्याह कर आई थी, मैं तब से ही उस पर फिदा हो गया था. बाद में मेरे सरिता के साथ अवैध संबंध बन गए थे. एक बार प्रविंद्र ने हम दोनों को रंगेहाथों पकड़ भी लिया था. तब उस ने मुझे कमरे से निकाल दिया था. इस के बाद मैं प्रविंद्र के मकान के पास में ही कमरा ले कर रहने लगा था. वैसे तो हम दोनों बाद में भी चोरीछिपे मिलते ही रहते थे, मगर हम दोनों से यह जुदाई सहन नहीं हो पा रही थी. हम दोनों एकदूसरे को पाने के लिए शादी करना चाहते थे, मगर प्रविंद्र हम दोनों के रास्ते का कांटा बना हुआ था. अत: हम दोनों शीघ्र ही प्रविंद्र को रास्ते से हटाने की योजना बना रहे थे. इस के लिए हम उचित मौके की तलाश में रहने लगे थे.

15 दिसंबर, 2024 की रात को मैं पावर हाउस पर अपनी ड्यूटी पर था. इसी दौरान मेरे मोबाइल पर सरिता की वाट्सऐप काल आई कि प्रविंद्र नशे में है, तुम जल्दी घर पर आ जाओ. मैं जैसे ही प्रविंद्र के घर की ओर चला तो वहां पर मोहल्ले की स्ट्रीट लाइटें जल रही थीं. पहचाने जाने के डर से मैं वापस अपने बिजलीघर आया था और उस क्षेत्र की बिजली सप्लाई बंद कर दी थी. उस समय प्रविंद्र के घर के आसपास अंधेरा छा गया था. जब मैं प्रविंद्र के घर पहुंचा था तो प्रविंद्र नशे में धुत अपने बच्चों के साथ सो रहा था. मुझे देख कर सरिता दोनों बच्चों को ऊपर के कमरे में छोड़ कर नीचे आ गई थी.

इस के बाद मैं ने व सरिता ने चुन्नी से प्रविंद्र का गला घोंट दिया था. जब प्रविंद्र ने खुद को छुड़ाने का प्रयास किया तो सरिता ने प्रविंद्र के सिर को कई बार बैड के सिरहाने पर पटका था. इस के बाद प्रविंद्र निढाल हो कर एक ओर लुढ़क गया था. मैं वापस अपनी ड्यूटी पर बिजली घर आ गया था. योजना के अनुसार, सरिता ने अपने एक रिश्तेदार को यह कह कर घर बुला लिया कि प्रविंद्र की तबीयत खराब है. उस रिश्तेदार के साथ सरिता प्रविं्रद को ले कर श्री महंत इंद्रेश अस्पताल पहुंची, जहां डाक्टरों ने प्रविंद्र को मृत घोषित कर दिया.

दूसरी पुलिस टीम सरिता को ले कर कोतवाली आई तो सरिता ने भी पुलिस के सामने अपने पति की हत्या करनी कुबूल कर ली थी. अपने बयानों में भी सरिता ने अनुज के ब्यानों का समर्थन किया था. इस के बाद पुलिस ने प्रविंद्र की हत्या में प्रयुक्त चुन्नी, अनुज की स्प्लेंडर बाइक व अनुज और सरिता के मोबाइल फोन भी अपने कब्जे में ले लिए थे. इस के बाद एसएसपी अजय सिंह ने एक प्रैसवार्ता कर प्रविंद्र हत्याकांड का खुलासा किया. हत्याकांड का खुलासा करने वाली पुलिस टीम को एसएसपी अजय सिंह ने ढाई हजार रुपए का नकद इनाम देने की घोषणा की.

प्रविंद्र की पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मृत्यु का कारण गला घोंटा जाना तथा सिर में चोटें लगना बताया गया था. कथा लिखे जाने तक अनुज व सरिता देहरादून जेल में बंद थे. प्रविंद्र हत्याकांड की विवेचना थानेदार योगेश दत्त द्वारा की जा रही थी. योगेश दत्त आरोपियों के खिलाफ सबूत इकट्ठे कर अदालत में चार्जशीट दाखिल करने की तैयारी कर रहे थे.

 

 

Maharashtra Crime : बेवफा पत्नी ने कराया कांस्टेबल पति का कत्ल

Maharashtra Crime : पूजा की जिंदगी में गैरमर्द की दखल बढऩे के साथ ही पति विजय के साथ किए गए कसमेवादे राख हो गए. जब इस पर कांस्टेबल पति ने सवाल उठाया तब पत्नी ने तलवार निकाल ली…और फिर जो हुआ, उस की सरल जिंदगी गुजारने में विश्वास रखने वाले कांस्टेबल ने कल्पना तक नहीं की थी…

कांस्टेबल विजय चव्हाण पत्नी पूजा से बेहद प्रेम करता था और उसे हरसंभव खुश रखने की कोशिश करता था. उस के चेहरे पर मुसकान देख कर वह अपनी थकान भूल जाता था. उन दोनों को जो भी देखता था, वह उन के बीच के प्रेमसंबंध की तारीफ किए बिना नहीं रहता था. पासपड़ोस के लोग उन्हें एक आदर्श दंपति मानते थे. उन का दांपत्य जीवन परवान चढऩे लगा था. जितना खुशमिजाज विजय था, उतनी ही हसीन दिलरुबा पूजा थी. उन की दिनचर्या एकदूजे के सलाहमशविरे के साथ शुरू होती थी. सारे कामकाज सहजता से निपटते रहते थे और रात एकदूजे के आलिंगन में गुजर जाती थी.

किंतु जब विजय अपनी ड्यूटी पर होता, तब वह अपने काम के दबाव में रहता, घरद्वार को भूल कर काम में उलझा रहता, जबकि पूजा घर में अकेले होती. समय गुजारने के लिए एकमात्र सहारा मोबाइल था. उस पर फिल्में, सीरियल्स, रील्स, यूट्यूब, तरहतरह की विडियो क्लिपिंग्स आदि देख कर मन बहलाती थी. ऐसे में कई बार वह किसी से बातें करने को तरसती रहती. उस की भावनाएं और दिल की बातें दिल में ही रह जातीं. महानगरीय जिंदगी में सभी तरह सुविधाएं हो कर भी यह एक तरह की कड़वाहट आमतौर पर हर किसी की जिंदगी में किसी न किसी रूप में होती ही है. इस का असर पूजा पर भी हुआ था. हालांकि इस का भी उस ने मोबाइल से समाधान निकाल लिया था. हुआ यह था कि एक बार उसे एक अनजान नंबर से काल आई.

”हैलो! कैसी हो पूजा?’’ दूसरी तरफ से आवाज आई.

”कौन बोल रहे हैं? और तुम्हें मेरा नाम कैसे पता है?’’ पूजा अकचका गई.

”अरे, तुम भूल गई इतनी जल्दी? मैं भूषण हूं…भूषण!’’ फोन करने वाला बोला.

”अच्छा भूषण ब्राह्मïणे!’’ पूजा बोली.

”हांहां सही पहचाना. क्या हो रहा है, मजे में जिंदगी गुजर रही है?’’

”अरे क्या मजे की जिंदगी, दिन में घर पर अकेली पड़ी रहती हूं. कोई बोलनेबतियाने वाला नहीं होता है…’’ पूजा निराशा से बोली.

”अरे मैं हूं न! आ गया हूं तुम्हारे शहर में ही. सिर्फ याद करो, हाजिर रहूंगा…गुलाम की तरह!’’ यह कहते हुए भूषण हंसने लगा.

”अच्छा जी!’’ पूजा खुश होती हुई बोली.

अचानक पूजा की जिंदगी में भूषण आ गया, वह पूजा को कई सालों से जानता था. वे आपस में मिलतेजुलते थे. उन के बीच दोस्ती थी. मन ही मन में भूषण उस से प्रेम करता था, लेकिन उस ने कभी अपने दिल की बात उसे बताई नहीं थी. इसी बीच पूजा की शादी हो गई. पूजा ससुराल आ गई. पति विजय को पा कर खुश थी. समय गुजरने के साथसाथ वह भूषण को लगभग भूल गई थी. अचानक उस का फोन आने पर उस के शांत मन में हलचल होने लगी.

दोनों काफी समय बाद मिले. फिर धीरेधीरे उन दोनों के बीच बातचीत बढ़ती चली गई. साथसाथ पुरानी यादें भी उजली होने लगीं. जानेअनजाने में उन के बीच नजदीकियां बढ़ गईं. भूषण ने पूजा को उस की इच्छाओं और सपनों की याद दिला कर उस की सोई हुई कामना और मनोकामना जगा दी थी. यही नहीं, उस ने उस की दबी काम वासना को भी भड़का दिया था. उसे लगने लगा कि भूषण उसे विजय से ज्यादा अच्छी तरह समझता है. वह उस के दिल के काफी करीब है. पति विजय से ज्यादा भूषण उसे सच्चा प्यार करता है.

उस से प्यार भरी बातें वाट्सऐप चैटिंग से होती थीं. पूजा इस से बेखबर थी कि उस की जानकारी दूसरे लोगों को भी हो सकती है और अगर विजय को मालूम हो गया, तब तो मानो उस के दांपत्य में कलह पैदा होनी निश्चित थी. एक बार जब दोनों युवा दिलों की धड़कनें प्रेम की धारा में बहने लगीं, तब वे सब कुछ भूल गए. एक समय ऐसा भी आया कि जब वे अनैतिक संबंधों के साथ वासना की आंधी में बह गए. कहते हैं न क्षण भर में लिया गया निर्णय जीवन भर पछतावे का कारण बन सकता है. ऐसा ही हुआ खुशहाल जीवन गुजार रहे दंपति पूजा और विजय के साथ. पूजा प्रेमी के प्यार में रंग चुकी थी. उस की बाहों में बेसुध हो जाती थी. वह पति की काल और मैसेज से अनजान हो जाती थी.

 

कई बार पति उस से शिकायती लहजे में कह चुका था कि उस ने काल क्यों नहीं रिसीव की? मिस काल का जवाब क्यों नहीं दिया? मैसेज क्यों नहीं देखा? इसे ले कर वह कई बार पूजा को डांट भी चुका था. वह उस के बदले व्यवहार से परेशान रहने लगा था. समझ नहीं पा रहा था कि उस की हर बात को मानने वाली पूजा उस की उपेक्षा क्यों करने लगी है? एक दिन ड्यूटी पर जाते वक्त डपटते हुए बोला, ”देख रहा हूं पूजा कि पिछले कई दिनों से तुम मेरे प्रति बेफिक्र होती जा रही हो. न तो मेरी पसंद का खाना पकाती हो और न मेरे कपड़े संभालती हो. आखिर क्या हो रहा है यह सब, मेरा फोन भी नहीं रिसीव करती हो. यह अच्छी बात नहीं है.’’

बड़बड़ाता हुआ विजय ड्यूटी पर चला गया. पूजा पर उस की बातों का कोई असर नहीं हुआ. उस के सामने मानो वह बहरी बन गई थी. उस के दिल और दिमाग पर तो प्रेमी भूषण का नशा चढ़ा हुआ था. उस के आगे पति फीका लगने लगा था. उस के साथ वह अपनी जिंदगी बेस्वाद समझने लगी थी. पूजा के बदले हुए व्यवहार को देख कर विजय को हैरानी हुई. उस की डांटडपट का भी कोई असर नहीं हुआ.

जबकि उस के साथ जब फोन पर बात होती तो तुरंत खत्म कर देती थी. जब भी विजय पूजा को काल करता, तब उस का फोन बिजी होता था, जो लंबे समय तक बना रहता था. इस बारे में पूछने पर पूजा बहाने बनाती हुई कभी रौंग नंबर तो कभी मार्केटिंग वाले का काल बता देती थी. बारबार झूठ बोलने से विजय को पूजा पर शक होने लगा. उस ने इस का पता लगाने की कोशिश की. एक दिन जब पूजा किचन में थी और उस का फोन चार्जिंग में लगा था. उस के फोन पर काल आने लगी. फोन साइलेंट मोड में था.

विजय उस पर अनजान नंबर देख कर चौंक गया. कुछ सेकेंड में ही मिस काल बंद हो गया, किंतु उस ने देखा उस नंबर से तुरंत वाट्सऐप मैसेज आया. स्क्राल कर वह मैसेज देखने लगा. तभी पूजा कमरे में आ गई और झपटते हुए फोन ले लिया. नाराजगी से बोली, ”क्या देखते हो मेरे फोन में? मैं तुम्हारा फोन देखती हूं कभी?’’

पूजा के फोन झपटने और डपटने के अंदाज से विजय का उस के प्रति शक और भी गहरा हो गया था. उस के बाद से विजय पत्नी के फोन काल और मैसेज पर नजर रखने लगा. जल्द ही उसे पता चल गया कि उस के पीछे पूजा क्या गुलछर्रे उड़ाती है. उस का जरूर किसी के साथ अफेयर चल रहा है. यह सब जान कर भी उसे विश्वास ही नहीं हो रहा था कि वह जिस पूजा से बेहद प्यार करता है, वह किसी और से प्यार करने लगी है. फिर पता चल गया कि पूजा और भूषण ब्राह्मणे के बीच प्रेम संबंध शादी से पहले से चल रहे थे. अब वह अवैध संबंध फिर से कायम हो गए हैं. विजय ने इस पर दबी जुबान से आपत्ति जताते हुए पत्नी को समझाने की कोशिश की. उस पर भरोसा रखने को कहा. समाज, परिवार और संस्कार की बात की. किंतु इन सब का पूजा पर कोई असर नहीं हुआ.

एक दिन पूजा ने प्रेमी से कह दिया कि विजय को उन के संबंधों के बारे में पता लग चुका है, इसलिए अब हमें मिलने में ऐहतियात बरतनी होगी. पूजा ने यहां तक कह दिया कि अब छिपछिप कर मिलने में मजा नहीं आ रहा है.

”तो क्या किया जाए?’’ भूषण ने पूछा.

”कोई उपाय निकालो कि सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे.’’ पूजा बोली.

”तो तुम्हारा पति सांप है… कहीं हमें डंस लिया तो!’’ भूषण ने मजाक किया.

”इसीलिए तो कहती हूं…इस से पहले ही कुछ करो वरना देर हो जाएगी… हमारेतुम्हारे बीच वह दुश्मन बन चुका है, बातबात में भाषण देता है.’’ पूजा बोली.

”तुम्हीं बताओ, क्या किया जाए? तुम जो कहोगी मैं मानने को तैयार हूं. कहो तो यहां से भगा ले जाऊं?’’ भूषण मुसकराता हुआ बोला. पूजा को उस की एक तरह से सहमति मिल गई थी. धीमी आवाज में बोली, ”मेरे दिमाग में एक योजना है, कान इधर लाओ बताती हूं.’’

भूषण ने अपना कान उस की मुंह की ओर कर दिया. पूजा फुसफुसाती हुई कुछ बातें बोली. उस की योजना सुन कर भूषण बोल पड़ा, ”अरे वाह! तुम ने इतना कुछ सोच लिया. आगे का काम मैं संभाल लूंगा. जरूरत पड़ी तो किसी की मदद भी लूंगा. इस साल के अंतिम दिन नए साल के आगमन के जश्न के साथ काम भी पूरा हो जाएगा.’’

इस तरह से पूजा ने जो उपाय सोचा था, उसे सफल बनाने का काम भूषण के जिम्मे था. उस ने पूजा के दिमाग की तारीफ की और उस के मौसेरे भाई प्रकाश को अपने साथ कर लिया. साल 2024 का अंतिम दिन था. चारों तरफ नए साल के स्वागत की तैयारियां चल रही थीं. विजय चव्हाण को भी उस रोज कुछ खास चाहत थी. वह शराब का शौकीन था, उस की सूखती हलक को शराब की जरूरत थी. दिसंबर 2024 की 31 तारीख के रात के साढ़े 11 बजे थे. उस रात प्रकाश चव्हाण, उस के साथी भूषण ब्राह्मणे और प्रवीण पानपाटिल की मुलाकात विजय चव्हाण से हुई. उन्होंने उसे नए साल के जश्न के लिए शराब पार्टी में आमंत्रित किया.

”अरे विजय दादा, आज नया साल आने वाला है. चलो, कुछ मजा करें!’’ प्रकाश के कहने पर विजय थोड़ा झिझका, लेकिन जब उस के दोस्तों ने उस से आग्रह किया तो वह उन्हें मना नहीं कर पाया.

उन्होंने जम कर नए साल के आगाज का जश्न मनाया. खूब शराब पी. उस के बाद रात में घनसोली रेलवे स्टेशन के पास एक ठेले पर नशे की हालत में जा पहुंचे. वहां उन्होंने बुर्जीपाव खाया. विजय पर  शराब का नशा बहुत ज्यादा हावी हो चुका था. वह अद्र्धबेहोशी की हालत में था. उस के पैर चलते हुए लडख़ड़ा रहे थे. वे सुनसान रास्ते पर बढ़े जा रहे थे. प्रकाश ने भूषण की ओर देखा. भूषण ने इशारा समझ लिया और मुसकराया. इशारा पाते ही भूषण और प्रवीण ने नशे में धुत विजय का गला दबाना शुरू कर दिया. नशे में हट्ठाकट्ठा विजय शक्तिहीन बना रहा. उस की सांसें तुरंत बंद हो गईं और कुछ ही देर में उस की मौत हो गई.

योजना के मुताबिक विजय की मौत को दुर्घटना में बदलने की जरूरत थी. इस के लिए तीनों ने शव को घनसोली रबाले रेलवे ट्रैक पर फेंकने का फैसला किया. उन्होंने विजय के शव को अपनी गाड़ी में डाल दिया और रबाले से घनसोली के लिए रवाना हो गए. रेलवे स्टेशन के बीच जब ट्रैक के पास पहुंचे, उसी वक्त एक लोकल ट्रेन आ रही थी. भूषण ने अपने साथियों के साथ मिल कर विजय के शव को रेलवे ट्रैक पर फेंक दिया. वहां से उन के जाने के बाद एक मोटरमैन यानी लोकल ट्रेन का ड्राइवर वहां से गुजर रहा था. उस ने लाश फेंकते हुए देख लिया था. उस ने वायरलेस सेट से इस की सूचना रेलवे पुलिस को दे दी.

नए साल 2025 के पहले दिन सुबह का समय था. ठाणे पनवेल लोकल के एक मोटरमैन ने घनसोली रेलवे स्टेशन पर तैनात एक पुलिस कांस्टेबल नागेश कदम को सूचित किया कि 2 अज्ञात लोगों ने रबाले और घनसोली स्टेशनों के बीच एक व्यक्ति को चलती ट्रेन के सामने धक्का दे दिया है. उस के बाद पुलिस कांस्टेबल नागेश ने इस की सूचना तुरंत अपने वरिष्ठ अधिकारियों को दी. फिर वाशी रेलवे पुलिस स्टेशन के सीनियर इंसपेक्टर राजेश शिंदे, इंसपेक्टर संतोष माने (जांच अधिकारी), सचिन गावटे, विजय खेड़कर पुलिस टीम के साथ तुरंत घटनास्थल पर पहुंचे.

घटनास्थल पर पुलिस ने देखा कि एक पुरुष का शव खून से लथपथ रेल ट्रैक के बीच में पड़ा हुआ था. पुलिस टीम तुरंत लाश ले कर नवी मुंबई के वाशी नगर निगम अस्पताल पहुंच गई. अस्पताल के डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया. जांच में शव के कपड़ों की तलाशी लेने पर मृतक के जेब से मिला पहचानपत्र देखने से चौंकाने वाला सच सामने आया. यानी कि खून से लथपथ मृत व्यक्ति कोई आम व्यक्ति नहीं, बल्कि वह 42 साल का पुलिस कांस्टेबल विजय रमेश चव्हाण उम्र था.

आगे पुलिस की जांच में खुलासा हुआ कि वो पनवेल रेलवे पुलिस स्टेशन में पोस्टेड था. पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पता चला कि उस की हत्या 31 दिसंबर, 2024 की रात 9 बजे से 1 जनवरी, 2025 की सुबह साढ़े 5 बजे के बीच हुई थी. इस मामले में पहली जनवरी, 2025 को वाशी रेलवे पुलिस स्टेशन में अज्ञात व्यक्तियों के खिलाफ भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) की धारा 103(1), 3(5) के तहत हत्या का मामला दर्ज किया गया. इस मामले की जांच के लिए लौह मार्ग पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों के मार्गदर्शन में अपराध शाखा की विशेष टीमों का गठन किया गया था. तकनीकी जांच, सीसीटीवी फुटेज और खुफिया जानकारी के आधार पर पुलिस के हाथ एक बड़ी जानकारी लग गई. यानी इस अपराध में मृतक विजय चव्हाण की पत्नी पूजा का मौसेरा भाई प्रकाश उर्फ धीरज चव्हाण का हाथ होने की संभावना पैदा हो गई है.

पुलिस ने विभिन्न स्थानों पर तलाशी अभियान चला कर सब से पहले प्रकाश उर्फ धीरज गुलाब चव्हाण (उम्र 23 वर्ष) को उस के घर से गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ के दौरान प्रकाश गुलाब चव्हाण ने अपराध कबूल कर लिया. उस की निशानदेही पर उस के अन्य साथियों को धुले और नवी मुंबई से गिरफ्तार कर लिया गया. विजय चव्हाण की पत्नी पूजा चव्हाण को भी पति के कत्ल की साजिश में शामिल पाए जाने पर गिरफ्तार कर लिया गया. फिर उन्हें पुलिस थाने ला कर गहनता से पूछताछ की गई तो प्रकाश उर्फ धीरज चव्हाण के साथसाथ भूषण निंबा ब्राह्मणे (29 वर्ष), प्रवीण आबा पानपाटिल (21 वर्ष) भी पुलिस गिरफ्त में आ गया.

पूछताछ में पता चला कि भूषण ब्राह्मणे का मृतक की पत्नी पूजा चव्हाण के साथ अनैतिक संबंध था. यह चौंकाने वाली जानकारी सामने आते ही विजय को खत्म करने की साजिश रची गई थी, क्योंकि वह उन के प्यार के रिश्ते में बाधक बन चुका था. इसी बीच पुलिस को एक अहम सबूत मिला कि विजय के मोबाइल पर गूगलपे अकाउंट पर 24 रुपए का ट्रांजैक्शन हुआ. पुलिस ने इस लेनदेन पर नजर रखी. एक छोटे बुर्जीपाव ठेले से प्राप्त सीसीटीवी फुटेज से पुलिस को विजय के अंतिम क्षणों के बारे में महत्त्वपूर्ण जानकारी मिली. उस रात विजय और प्रकाश तो वहीं थे, लेकिन उस के बाद विजय का कोई पता नहीं चला. जैसेजैसे जांच आगे बढ़ी, पूजा और भूषण की काल रिकौर्ड से उन के बीच बारबार बातचीत का पता  पुलिस को चला.

मुंबई रेलवे पुलिस आयुक्त रवींद्र शिसवे, पुलिस उपायुक्त (सेंट्रल सर्कल रेलवे) मनोज पाटिल, एसीपी (हार्बर डिवीजन) राजेंद्र रानमाले के मार्गदर्शन में वाशी पुलिस स्टेशन के सीनियर पुलिस इंसपेक्टर राजेश शिंदे, इंसपेक्टर संतोष माने (जांच अधिकारी), सचिन गवते, विजय खेडकर, सावंत, असिस्टेंट पुलिस इंसपेक्टर टेलर, गोपाल, एसआई कांबले, लोनकर, होलकर और वाशी रेलवे पुलिस स्टेशन क्राइम ब्रांच, पनवेल, वडाला और ठाणे की सतर्कता के कारण इस अपराध का परदाफाश हो गया.

पुलिस ने समस्त आरोपियों से पूछताछ करने के बाद उन्हें कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया.

 

 

Extramarital Affair : दूसरी पत्नी की आशनाई

Extramarital Affair : आए दिन होने वाले शिकवेशिकायतों के बावजूद बबलू की जिंदगी 2 बीवियों संग राजीखुशी से गुजर रही थी. एक बार उस ने आधी रात में दूसरी बीवी को जब उस के प्रेमी की बांहों में देखा तो घर में ऐसा भूचाल आ गया कि…

रतलाम के दीनदयाल नगर के रहने वाले बबलू उर्फ संजय की दोनों बीवियों को अपनीअपनी सौतन के बारे में मालूम था. उस की पहली बीवी कुआंझागर गांव में बूढ़े सासससुर के साथ रहते हुए गृहस्थ जीवन गुजार रही थी, जबकि दूसरी पास के तेतरी गांव में रहती थी. संयोग से दोनों का नाम माया था. दूसरी बीवी पास में ही हुसैन समोसावाला के कौटेज पर चौकीदारी का काम करती थी, जहां बबलू भी चौकीदार था. दोनों की जानपहचान काम करते हुए करीब ढाई साल पहले हुई थी. बबलू उस की अल्हड़ जवानी और खूबसूरती पर फिदा हो गया था. जबकि दिलफेंक और बातूनी बबलू भी कुछ कम आशिकमिजाज नहीं था.

 

एक दिन बातोंबातों में उस ने बोल दिया, ”मेरी जिंदगी भी गजब की हसीन और माया से भरी हुई है. इधर भी माया, उधर भी माया.’’

”क्या मतलब हुआ इस का? चौकीदारी के काम में नईनई आई माया ने सवाल किया था.

”एक तुम माया हो और एक वह मोहमाया है…’’ बबलू बोला और वहां से चला गया. थोड़ी देर में ही उस के पास लौट आया… उस के दोनों हाथों में चाय का कप था.

”यह लो अब चाय के मजे लो!’’

”अरेअरे! तुम क्यों लाए, बोल देते मैं थर्मस में ले आती. वैसे एक बात कहूं, तुम हो मजेदार इंसान!’’ माया हंसती हुई बोली.

”वह तो हूं ही, यहां टाइम पास करने के लिए ऐसा बनना पड़ता है. यह लो पहले चाय पीयो…’’

इस तरह दोनों के बीच बातें होने लगीं. इधरउधर की बातें करते और चौकीदारी के उबाऊपन को दूर करते थे. जल्द ही उन के बीच अच्छी दोस्ती हो गई और एकदूसरे को दिल दे बैठे. बबलू माया की हर बात का खयाल रखने लगा था. बिंदास और बोल्ड स्वभाव की माया को उस के शादीशुदा होने के बारे में पता चल चुका था. यही बात उसे अच्छी लगी कि बबलू ने अपने बारे में कुछ भी उस से नहीं छिपाया था. उस ने प्रेम का इजहार करते हुए पहली बार में ही अपने बारे में सच्चाई बता दी थी. माया को उस में एक सच्चे इंसान की झलक दिखी और फिर भी उसे न जाने क्या सूझी, उस के साथ पतिपत्नी की तरह रहने लगी.

और फिर बबलू 2 बीवियों वाला एक जिम्मेदार पति बन गया. उस ने पहली बीवी से भी कुछ नहीं छिपाया. उसे भी सब कुछ सचसच बता दिया. बबलू की यही सच्चाई पहली बीवी को भी पसंद आई और इस का कोई विरोध नहीं किया.

2 पत्नियों के साथ खुश था बबलू

उस की दोनों बीवियों की उम्र में काफी अंतर था. दूसरी बीवी उम्र में उस से काफी छोटी, खिली हुई कली जैसी जवानी से भरी हुई थी. कहने को तो पहली पत्नी के मन में सौतन को ले कर तकलीफ नहीं थी, लेकिन किसी ब्याहता स्त्री के लिए यह सहन करना आसान नहीं होता. ऐसा ही बबलू की पहली पत्नी के साथ भी हुआ था. वह जब भी 2-3 दिनों के बाद  अपने गांव आता था, तब उस की पहली पत्नी शिकायतों का पिटारा ले कर बैठ जाती थी.

”अरे! तुम गलत टाइम पर आए हो!’’ अचानक घर आए पति बबलू से उस के सामान का थैला ले कर पहली पत्नी माया बोली.

”ऐसा क्यों भला?’’ बबलू आश्चर्य से बोला.

”अब छोड़ो, बाद में बताऊंगी!’’ माया ने कहा.

”अरे परेशान मत करो, तुम तो जानती हो कि माया के साथ रह कर भी मैं तुम्हें कितना याद करता हूं.’’ बबलू बोला.

”अब रहने भी दो. इतना ही मुझ पर मरते तो सौतन ला कर मेरी छाती पर नहीं बिठाते. महीने में 2 दिन के लिए आते हो और बातें करते हो जैसे मेरे बिना सैंयाजी के गले से खाना भी नहीं उतरता हो.’’ पहली पत्नी माया ने शिकायती अंदाज में कहा.

”तुम जलीकटी बातें करना कब छोड़ोगी?’’

”जब तुम मेरी सौतन को छोड़ दोगे.’’

”यह नहीं हो सकता.’’

”तो सुनते रहो मेरी जलीकटी. गनीमत मनाओ कि इस के बाद भी मैं तुम्हें पास आने देती हूं. कोई और होती तो अब तक भाग गई होती किसी के साथ.’’ माया तेवर के साथ बोली.

बात को बदलते हुए बबलू बोला, ”अच्छा ठीक है, अब खाना खिला दो, बहुत भूख लगी है.’’

”सच है, दूसरी भूख पूरी करने वाली माया जो है.’’

”अरे? तुम फिर शुरू हो गई.’’

”अच्छा, गुस्सा न करो, हाथमुंह धो लो… थोड़ा सुस्ता लो… तब तक खाना पक जाएगा.’’ माया बोली.

बबलू ने पत्नी की बात को आज्ञा की तरह मान लिया. हाथमुंह धो कर बाहर कमरे में अपने मातापिता के पास जा कर बैठ गया. उन का हालसमाचार पूछने लगा. उन से बातें करने लगा.

मांबाप की देखभाल उस की पहली पत्नी ही गांव में रहते हुए करती थी, जबकि दूसरी पत्नी माया उस के साथ ही तेतरी में रहती थी. माया की उम्र बबलू से करीब 20 साल कम थी. उस से शादी कर साथ रहने को ले कर पहली पत्नी काफी नाराज हो गई थी, लेकिन उसे माया की कमाई से मिलने वाले पैसे का लालच दे कर मना लिया था. उस के पास महीने में 2-3 बार कुआंझागर आने लगा था.

21 जनवरी के रोज भी वह माया को छोड़ कर पहली पत्नी के पास आया था. वह अपनी मां से बात कर रहा था. तभी पत्नी ने तेज आवाज दी, ”अम्मा!…अरी ओ अम्मा!’’

”अच्छा अभी आती हूं… तू बाबूजी के पास बैठ, मैं तेरे लिए रोटी सेंक कर आती हूं.’’ बोलती हुई मां वहां से उठ कर तुरंत चली गई. मां को इस तरह से अपनी बहू की एक आवाज पर चली जाना बबलू को कुछ अच्छा नहीं लगा. वह सोचने लगा, इस का मतलब पत्नी उस से घर का सारा कामकाज करवाती होगी.

हालांकि उस का ऐसा सोचना गलत तब निकला, जब उसे पत्नी से मालूम हुआ कि वह इन दिनों मासिक धर्म के दौर में है. उसे अपनी सोच पर कुछ समय के लिए पछतावा हुआ, साथ ही अफसोस भी कि वह ऐसे वक्त में बेकार ही आया! उसे यह भी समझने में देरी नहीं लगी कि पत्नी ने आते ही क्यों कहा था कि वह गलत वक्त पर आया है. वह अब क्या करे, क्या नहीं! इसी उधेड़बुन में  पड़ गया. इसी बीच मां ने खाना खाने के लिए आवाज लगाई. अचानक उस के दिमाग में बिजली कौंध गई. इसी अपने अधलेटे बाबूजी से बोला, ”मैं दूसरे गांव से तेतरी लौट रहा था, सोचा आप लोगों से मिलता चलूं. खाना खा कर लौट जाऊंगा.’’

बबलू रोमांटिक मूड बना कर आया था, जिस पर पानी फिर चुका था. इसलिए वापस दूसरी पत्नी के पास लौटना ही बेहतर समझा. शाम हो चुकी थी और ठंड भी बढ़ गई थी. पत्नी और अम्माबाबूजी के मना करने के बावजूद वह तेतरी के लिए घंटे भर में ही लौट गया. उस के भीतर वासना हिलोरें मार रही थी. वह शराब का भी शौकीन था और उस ने माया को भी इस का जबरदस्त चस्का लगा दिया था. शराब के नशे में माया और भी कामुक हो जाती थी. वह उसे तृप्त कर देती थी. शराब के नशे में यौनसंबंध बनाना उसे बेहद पसंद था. यही सोचते हुए उस ने शराब की अद्धा बोतल खरीद ली.

बंद कमरे का ऐसा खुला रहस्य

तेतरी पहुंचतेपहुंचते आधी रात के करीब हो गई थी. घर के पास पहुंच कर वह चौंक गया. ठीक दरवाजे के बाहर एक बाइक खड़ी थी. दरवाजे तक जाने का रास्ता भी नहीं बचा था. वह भुनभुनाया, ‘कौन कमबख्त यहां बाइक लगा गया है?’

इधरउधर नजरें दौड़ाईं, कोई नजर नहीं आया. बाइक भी अनजानी लगी. फिर किसी तरह बाइक को थोड़ी टेढ़ी कर कमरे के दरवाजे का पास पहुंच गया. दरवाजे की कुंडी के पास की दरार से अंदर की थोड़ी रोशनी बाहर आ रही थी. वहां से वह झांक कर देखने लगा. भीतर का नजारा देख कर फिर चौंक गया. माया बैड पर अधनंगी बैठी थी. हाथ में शराब का गिलास लिए घूंट मार रही थी. वह कुंडी खटखटाने को ही था कि उस ने देखा माया के चेहरे पर सिगरेट का गहरा धुंआ भर गया है. वह समझ गया कि उस के साथ कोई मर्द है, जो सिगरेट पी रहा है.

तभी एक मर्द दिखा, उस ने माया के हाथ से शराब का गिलास ले लिया. फिर उस ने माया को बाहों में जकड़ लिया था. जैसे ही उस ने माया को अपनी गोद में बिठाया, उस का चेहरा दिख गया. बबलू ने उसे पहचान लिया. वह भरत भाभोर था. जेतवाड़ा का रहने वाला था और वहीं लोडिंग पिकअप पर काम करता था. माया उसी के साथ अंतरंग स्थिति में बेसुध थी. भाभोर उसे शराब पिला रहा था. चूम रहा था. दोनों कामवासना से भरे खोए हुए थे. बबलू के लिए यह नजारा एक बिजली के झटके के समान था. वह आक्रोश से भर गया था. हालांकि गुस्से में उस ने धैर्य से काम लिया. दरवाजा खटखटाने के बजाय वहां से हट कर उस ने पास के गांव में रहने वाले आपने रिश्तेदारों और दोस्तों को फोन कर दिया. उन्हें तुरंत उस के पास आने के लिए बोला.

थोड़ी देर में ही कोलावाखेड़ी गांव से उस का मौसेरा भाई सुनील, जुलवानिया से दिनेश परमार और आलेनिया गांव से ईश्वर सिंगाड़ा और राहुल, राहुल मालीवाड़ पहुंच गए. कड़ाके की ठंड में घर के बाहर बैठे बबलू ने उन्हें कमरे के भीतर दूसरे मर्द के साथ अय्याशी कर रही माया के बारे में बताया. उन्हें रंगेहाथों पकडऩे के लिए उन से मदद मांगी. इसी बीच कमरे के भीतर माया ने बाहर की हलचल सुन ली. वह चौंकने के साथसाथ अज्ञात आशंका को ले कर चिंतित हो गई.  उस ने खिड़की से बाहर देखा. वहां बबलू को कुछ लोगों के साथ देख कर परेशान हो गई. कमरे से बाहर निकलने का कोई दूसरा रास्ता नहीं था. वह बेहद डर गई कि आगे क्या होने वाला है. डर कर उस ने कमरे में अंदर से ताला लगा लिया. जबकि बबलू ने दरवाजा खटखटाना शुरू कर दिया था.

दूसरी पत्नी का प्यार चढ़ा परवान

बबलू के पास एक ही उपाय था कि किसी तरह से दरवाजे को तोड़ दिया जाए. सभी  दरवाजे के किनारे से खुदाई करने लगे. जबकि भीतर कमरे में माया दुबकी रही और भाभोर दरवाजा खुलने के साथ भाग निकलने की ताक में था. जल्द ही बबलू और दूसरे लोगों ने मिल कर दरवाजा बाहर से तोड़ दिया. दरवाजे का आधा भाग खुलते ही भाभोर ने भागने की कोशिश की, लेकिन उसे सभी ने पकड़ लिया. उस ने जान छुड़ा कर भागना चाहा, किंतु तब तक उस पर लाठी, लोहे के सब्बल आदि से मार पडऩे लगी. भाभोर धराशाई हो गया. उस के बाद बबलू ने सभी साथियों के साथ मिल कर वहां शराब पी, जबकि माया पीटे जाने के डर से कमरे में ही दुबकी रही.

सुबह होने से पहले बबलू ने अपने दोस्त दिनेश परमार के साथ मरणासन्न भाभोर को उस की बाइक पर लाद कर कनेरी गांव में हाईस्कूल के पास फेंककर वापस तेतरी गांव लौट आया. सुबह होते ही 22 जनवरी, 2025 को मध्य प्रदेश के रतलाम के डीडी नगर थाने के टीआई रविंद्र दंडोतिया को कनेरी में किसी युवक की लाश होने की सूचना मिली. लाश की शिनाख्त होने पर उस की पहचान भरत भाभोर के रूप में हुई, जो जैतमाड़ी का निवासी था.

इस की जांच के लिए एसपी अमित कुमार ने एएसपी राजेश खाखा और सीएसपी सत्येंद्र घनोरिया के नेतृत्व में एक टीम गठित कर दी. जांच के लिए चौतरफा पुलिस के मुखबिर लगा दिए गए. उन की सक्रियता से पता चला कि भरत भाभोर का तेतरी निवासी बबलू की पत्नी माया के साथ महीनों से प्रेम संबंध बनाए हुए था. इस की जानकारी बबलू को जरा भी नहीं थी. जबकि उस ने भी माया से प्रेम किया था और औपचारिक विवाह बंधन में बंध कर उस के साथ रह रहा था.

घटना के बाद से माया भी घर से लापता थी. जांच की प्रक्रिया आगे बढ़ी. सुनील पुलिस के कब्जे में आ गया. वह कोलवाखेड़ी निवासी रामलाल गणवा का बेटा था. उस ने भाभोर की हत्या की पूरी दास्तान सुना दी. उस के बाद उसे अदालत में पेश कर जेल भेज दिया गया. पुलिस को माया और बबलू के प्रेम संबंधों के बारे में अच्छी तरह से मालूम हो गया था. बबलू माया को 2-3 दिनों के लिए छोड़ कर अपनी पहली पत्नी और मातापिता से मिलने के लिए पुश्तैनी गांव कुआंझागर चला जाता था. इसी बीच माया और भरत भाभोर एकदूसरे के करीब आ गए थे. माया अपने पति की गैरमौजूदगी में प्रेमी भाभोर को घर बुला लेती थी और उस के संग बेफिक्र हो कर गुलछर्रे उड़ाती थी.

वारदात के दिन भी बबलू अपनी पहली पत्नी के पास गया था. मगर संयोग से वह उसी रात लौट आया था. उस ने माया को भरत के साथ कमरे में बंद देखा था. उन्हें सबक सिखाने के लिए उस ने भरत की जम कर पिटाई की थी. इस बीच मौका देख कर माया फरार हो गई थी. डीडी नगर थाने में धारा 103(1) बीएनएस के तहत केस दर्ज कर लिया गया था. टीआई रविंद्र दंडोदिया और जांच टीम के प्रयास से वारदात के 10 दिन बाद बबलू और उस की पत्नी माया को भी गिरफ्तार कर लिया. बबलू ने अपना जुर्म स्वीकार कर लिया. तब उसे भी न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक 3 आरोपी फरार थे.

 

 

Crime Stories : पति की धमकी से तंग आकर पत्नी ने कराया पति का कत्ल

Crime Stories : पति पत्नी के बीच के झगड़े और मतभेद आम सी बात है. वक्त के साथ सब ठीक हो जाता है. लेकिन अगर हमदर्द बन कर कोई तीसरा दोनों के बीच कूद जाए तो परिणाम भयावह…

वह 26 जून, 2020 की मध्यरात्रि थी. समय सुबह के 3 बजकर 20 मिनट. उत्तराखंड के जिला हरिद्वार की लक्सर कोतवाली के कोतवाल हेमेंद्र सिंह नेगी देहात क्षेत्र के गांवों में गस्त कर रहे थे, तभी उन के मोबाइल की घंटी बजी. नेगी ने मोबाइल स्क्रीन देखी, कोई अज्ञात नंबर था. इतनी रात में कोई यूं ही फोन नहीं करता. नेगी ने मोबाइल काल रिसिव की. दूसरी ओर कोई अपरीचित था, जिस की आवाज डरीसहमी सी लग रही थी. हेमेंद्र सिंह के परिचय देने पर उस ने कहा, ‘‘सर, मेरा नाम अभिषेक है और मैं आप के थाना क्षेत्र के गांव झीबरहेडी से बोल रहा हूं.

मुझे आप को यह सूचना देनी थी कि आधा घंटे पहले बदमाशों ने मेरे चचेरे भाई प्रदीप की हत्या कर दी है.’’

‘‘हत्या, कैसे? पूरी बात बताओ’’

‘‘सर मुझे हत्यारों की तो कोई जानकारी नहीं है, क्योंकि उस वक्त मैं गहरी नींद में था. करीब आधा घंटे पहले मेरे मकान की दीवार से किसी के कूदने की आवाज आई थी. मुझे लगा कि गांव में बदमाश आ गए हैं. मैं तुरंत नीचे आ कर दरवाजा बंद कर के लेट गया.

‘‘थोड़ी देर बाद चचेरे भाई प्रदीप के कराहने की आवाज आई तो मैं बाहर आया. मैं ने देखा कि प्रदीप लहूलुहान पड़ा था, उस के पेट, छाती व सिर पर धारदार हथियारों से प्रहार किए गए थे.’’ अभिषेक बोला.

‘‘फिर?’’

‘‘सर, फिर मैं ने अपने घरवालों को जगाया और प्रदीप को  तत्काल अस्पताल ले जाने को कहा. लेकिन हम प्रदीप को अस्पताल ले जाते, उस ने दम तोड़ दिया.’’ अभिषेक बोला.

‘प्रदीप किसान था?’ नेगी ने पूछा

‘नहीं सर प्रदीप स्थानीय श्री सीमेंट कंपनी में ट्रक चलाता था और गत रात ही वह देहरादून से लौटा था. रात को वह अकेला ही अपने घर की छत पर सो रहा था.’ अभिषेक बोला.

‘‘प्रदीप की गांव में किसी से कोई रंजिश तो नहीं थी?’ नेगी ने पूछा.

‘‘नहीं सर वह तो हंसमुख स्वभाव का था और गांव के सभी बिरादरी के लोग उस की इज्जत करते थे. प्रदीप ज्यादातर अपने काम से काम रखने वाला आदमी था.’’ अभिषेक बोला.

‘‘ठीक है अभिषेक, पुलिस 15 मिनट में घटनास्थल पर पहुंच जाएगी.’’

कोतवाल हेमेंद्र नेगी ने फोन डिस्कनेक्ट कर दिया. नेगी ने सब से पहले लक्सर कोतवाली की चेतक पुलिस को गांव झीबरहेड़ी में प्रदीप के घर पहुंचने का आदेश दिया. फिर इस हत्या के बारे में सीओ राजन सिंह, एसपी देहात स्वप्न किशोर सिंह और वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक सेंथिल अबुदई कृष्णाराज एस. को सूचना दी. नेगी गांव झीबरहेड़ी की ओर चल दिए. 20 मिनट बाद नेगी प्रदीप के घर पर पहुंच गए. उस समय सुबह के 4 बज गए थे और अंधेरा छंटने लगा था. प्रदीप के घर में उस का शव आंगन में चादर से ढका रखा था, आसपास गांव वालों की भीड़ जमा थी. नेगी व चेतक पुलिस के सिपाहियों ने सब से पहले ग्रामीणों को वहां से हटाया. इस के बाद शव का निरीक्षण किया. हत्यारों ने प्रदीप की हत्या बड़ी बेरहमी से की थी.

बदमाशों ने प्रदीप का पूरा शरीर धारदार हथियारों से गोद डाला था. जब नेगी ने प्रदीप के बीबी बच्चों की बाबत, पूछा तो घर वालों ने बताया कि कई सालों से प्रदीप की बीबी ममता बच्चों के साथ अपने मायके बादशाहपुर में रहती है. घरवालों से नंबर ले कर नेगी ने ममता को प्रदीप की हत्या की जानकारी दी. इस के बाद नेगी ने गांव वालों से प्रदीप की दिनचर्या के बारे में जानकारी ली और पूछा कि उस की गांव में किसी से दुश्मनी तो नहीं थी. नेगी का अनुमान था कि प्रदीप की हत्या का कारण रंजिश भी हो सकता है, क्योंकि यह मामला लूट का नहीं लग रहा था.

नेगी ग्रामीणों से प्रदीप के बारे में जानकारी जुटा ही रहे थे, कि सीओ राजन सिंह, एसपी देहात एसके सिंह और वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक सेंथिल अबुदई कृष्णाराज एस भी पहुंच गए. तीनों अधिकारियों ने वहां मौजूद ग्रामीणों से प्रदीप की हत्या के बारे में पूछताछ की. इस के बाद अधिकारियों ने कोतवाल नेगी को प्रदीप के शव को पोस्टमार्टम के लिए जेएन सिन्हा स्मारक राजकीय अस्पताल रुड़की भेजने के निर्देश दिए और चले गए. शव को अस्पताल भेज कर नेगी थाने लौट आए. उन्होंने प्रदीप के भाई सोमपाल की ओर से धारा 302 के तहत हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया और मामले की जांच शुरू कर दी. प्रदीप की हत्या का मामला थोड़ा पेचीदा था, क्योंकि न तो प्रदीप का कोई दुश्मन था और न लूट हुई थी.

अगले दिन 27 जून को एसपी देहात एसके सिंह ने इस केस का खुलासा करने के लिए लक्सर कोतवाली में मीटिंग की, जिस में सीओ राजन सिंह, कोतवाल हेमेंद्र नेगी, थानेदार मनोज नोटियाल, लोकपाल परमार, आशीष शर्मा, यशवीर नेगी सहित सीआईयू प्रभारी एनके बचकोटी, एएसआई देवेंद्र भारती व जाकिर आदि शामिल हुए. एसके सिंह ने सीओ राजन सिंह के निर्देशन में इन सभी को जल्द से जल्द प्रदीप हत्याकांड का खुलासा करने के निर्देश दिए. निर्देशानुसार सीआईयू प्रभारी एनके बचकोटी ने झीबरहेड़ी में घटी घटना का साइट सैल डाटा उठाया. साथ ही रात में हत्या के समय आसपास चले मोबाइलों की काल डिटेल्स खंगाली. इस के बाद पुलिस द्वारा उन मोबाइल नंबरों की पड़ताल की गई.

साथ ही बचकोटी ने सीआईयू के एएसआई देवेंद्र भारती व जाकिर को प्रदीप हत्याकांड की सुरागरसी करने के लिए सादे कपड़ों में झीबरहेड़ी भेजा. सिपाहियों कपिलदेव व महीपाल को उन्होंने प्रदीप की पत्नी ममता के बारे में जानकारी जुटाने के लिए उस के मायके बादशाहपुर भेजा था. इस का परिणाम यह निकला कि 28 जून, 2020 की शाम को पुलिस और सीआईयू के हाथ प्रदीप हत्याकांड के पुख्ता सबूत लग गए. पुलिस को जो जानकारी मिली, वह यह थी कि मृतक प्रदीप के साथ अमन भी ट्रक चलाता था. वह गांव हरीपुर, जिला सहारनपुर का रहने वाला था. इसी के चलते वह प्रदीप के घर आताजाता था. प्रदीप की पत्नी ममता का चालचलन ठीक नहीं था, इस वजह से पति पत्नी में अकसर मनमुटाव रहता था.

घर में आनेजाने से अमन की आंखे ममता से लड़ गई थीं और वे दोनों प्रदीप की गैरमौजूदगी में रंगरलियां मनाने लगे थे. गत वर्ष जब प्रदीप को ममता व अमन के अवैध संबंधों की जानकारी हुई तो उस ने दोनों को धमकाया भी, मगर 42 वर्षीया ममता अपने 23 वर्षीय प्रेमी अमन को छोड़ने के लिए तैयार नहीं थी. इस विवाद के चलते वह अपने बच्चों के साथ मायके बादशाहपुर जा कर रहने लगी थी. उस के जाने के बाद प्रदीप अपने झीबरहेडी स्थित मकान पर अकेला रहने लगा. 29 जून, 2020 को पुलिस को प्रदीप की पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिल गई, जिस में उस की मौत का कारण शरीर पर धारदार हथियारों के प्रहारों से ज्यादा खून बहना बताया गया था.

यह जानकारी मिलने के बाद पुलिस को अमन पर शक हो गया. दूसरी ओर सीआईयू प्रभारी एनके बचकोटी को जिस मोबाइल नंबर पर शक था, वह अमन का ही नंबर था. सीआईयू ने अमन की गिरफ्तारी के लिए जाल बिछा दिया था. अमन को शाम को ही पुलिस ने लक्सर क्षेत्र से उस समय गिरफ्तार कर लिया, जब वह ममता से मिलने जा रहा था. अमन को पकड़ने के बाद पुलिस उसे कोतवाली ले आई. इस के बाद एसपी देहात एसके सिंह व सीओ राजन सिंह ने उस से प्रदीप की हत्या के बारे में सख्ती से पूछताछ की. अमन ने पुलिस को जो जानकारी दी, वह इस प्रकार है—

अमन ने अपना जुर्म कबूल करते हुए बताया कि वह प्रदीप के साथ गत 3 वर्षो से ट्रक चलाता था. उस का प्रदीप के घर आना जाना होता रहता था. प्रदीप की बीवी ममता पति के रूखे व्यवहार से परेशान रहती थी. जब उस ने ममता से प्यार भरी बातें करनी शुरू कर दीं, तो वह भी उसी टोन में बतियाने लगी. तनीजा यह हुआ कि उस के ममता से अवैध संबंध बन गए. यह जानकारी मिलने पर प्रदीप ने मुझे धमकी दी, जिस से मैं बुरी तरह डर गया. इस के बाद उस ने प्रदीप द्वारा दी गई धमकी की जानकारी ममता को दी. तब उस ने ममता की सहमति से प्रदीप की हत्या की योजना बनाई. 26 जून को उस ने प्रदीप के बेटे शकुन को फोन किया और उस से प्रदीप के बारे में पूछा.

शकुन के मुताबिक प्रदीप उस शाम घर पर ही था. रात 12 बजे मैं छुरी ले कर झीबरहेडी की ओर निकल गया. प्रदीप के मकान के पीछे खेत थे रात करीब 2 बजे वह खेतों की ओर से मकान पर चढ़ गया. उस समय प्रदीप मकान की छत पर अकेला बेसुध सोया पड़ा था. उसे देख कर उस का खून खौल गया. इस के बाद उस ने पूरी ताकत लगा कर प्रदीप के गले पर वार करने शुरू कर दिए. उस ने प्रदीप के गले, सिर व पेट पर कई वार किए. इस के बाद वह मकान की छत से कूद कर, वापस लक्सर आ गया. लक्सर से बादशाहपुर ज्यादा दूर नहीं था. इसलिए लक्सर पुलिस ममता को भी कोतवाली ले आई. जब ममता ने अमन को पुलिस हिरासत में देखा, तो वह सारा माजरा समझ गई और पुलिस के सामने अपने पति की हत्या का षडयंत्र रचने में अपनी संलिप्तता मान कर ली.

इस के बाद एसपी देहात एसके सिंह ने प्रदीप हत्याकांड का खुलासा होने और 2 आरोपियों के गिरफ्तार होने की जानकारी वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक हरिद्वार सेंथिल अबुदई कृष्णाराज को दी. 30 जून, 2020 को एसपी देहात एसके सिंह ने लक्सर कोतवाली में प्रैसवार्ता के दौरान मीडियाकर्मियों को प्रदीप हत्याकांड के खुलासे की जानकारी दी. इस के बाद पुलिस ने अमन व ममता को कोर्ट में पेश कर के जेल भेज दिया. 3 बच्चों की मां होने के बाद भी ममता अमन के प्रेम में इस कदर डूबी कि उस ने पति की हत्या अपने प्रेमी से कराने में कोई संकोच नहीं किया, बल्कि इस हत्याकांड को छिपाए रखा.

प्रदीप से ममता की शादी वर्ष 2001 में हुई थी. प्रदीप का 18 वर्षीय बेटा सन्नी हैदराबाद में कोचिंग कर रहा है और 17 साल की बेटी आंचल और 12 साल का बेटा शकुन मां ममता के साथ बादशाहपुर में रहते थे.

(पुलिस सूत्रों पर आधारित)

Madhya Pradesh Crime : गुस्‍साए भाई ने बहन की प्रेमी की ले ली जान

Madhya Pradesh Crime : साधारण परिवार का जय कुमार जागीरदार राजेंद्र सिंह राठौर के यहां ट्रैक्टर चलाता था. उसी दौरान उसे राजेंद्र सिंह की नाबालिग बेटी संध्या से प्यार हो गया. कई सालों तक दोनों का यह खेल चलता रहा, फिर एक दिन…

16 जनवरी, 2020. हाड़ कंपा देने वाले कोहरे में डूबी ठंडी सुबह के 7 बजे थे. उसी दौरान टीकमगढ़ जिले के बम्हौरीकलां थाने की सीमा में बम्हौरीकलां जतारा रोड पर बामना तिगेला के पास गुजर रहे लोगों ने एक बंद बोरा पड़ा देखा. उस पर मक्खियां भिनभिना रही थीं. जिस से लोगों को शक हुआ कि बोरे में जरूर कोई संदिग्ध चीज है, इसलिए किसी ने यह सूचना फोन द्वारा बम्हौरीकलां थाने में दे दी. सूचना मिलने के बाद थानाप्रभारी वीरेंद्र सिंह पंवार घटनास्थल पर पहुंच गए. पुलिस ने जब उस बोरे को खुलवाया तो उस में 22-24 वर्षीय युवक की लाश मिली. मृतका के सिर और आंखों पर गहरी चोट के निशान थे.

थानाप्रभारी ने लाश मिलने की जानकारी एसडीपीओ प्रदीप सिंह राणावत और एसपी अनुराग सुजानिया को दे दी. कुछ ही देर में एसडीपीओ राणावत फोरैंसिक टीम के साथ मौके पर पहुंच गए. फोरैंसिक टीम ने जांच के बाद बताया कि मृतक की हत्या करीब 30-32 घंटे पहले हुई होगी. कड़ाके की ठंड होने के बाद भी वहां तमाम लोगों की भीड़ जमा थी. पुलिस ने वहां मौजूद लोगों से शव की शिनाख्त कराने की कवायद शुरू कर दी. लेकिन शव की पहचान कोई नहीं कर सका. संयोग से उसी समय पास के गांच पचौरा का रहने वाला एक व्यक्ति किशोरीलाल वहां पहुंचा. उस के साथ उस का बेटा नारायण सिंह और जागीरदार राजेंद्र सिंह राठौर भी थे.

दरअसल, उस से 2 दिन पहले किशोरीलाल का बेटा जयकुमार गायब हो गया था. वह अपने बेटे की रिपोर्ट दर्ज करवाने थाने जा रहा था, तभी उसे बामना तिगेला पर अज्ञात युवक का शव मिलने की खबर मिली तो वह मौके पर पहुंच गया. वहां मिली लाश की पहचान उस ने अपने बेटे जयकुमार के रूप में कर दी. मृतक के पिता ने पुलिस को बताया कि जयकुमार पहले गांव के जागीरदार राजेंद्र सिंह राठौर के यहां ट्रैक्टर चलाने का काम करता था. लेकिन कुछ दिनों से उस ने वहां काम छोड़ कर ट्रक चलाना शुरू कर दिया था. पुलिस के पूछने पर किशोरीलाल ने बताया कि जयकुमार की किसी से कोई रंजिश थी या नहीं, इस की जानकारी उसे नहीं है. मौके की जरूरी काररवाई करने के बाद पुलिस ने लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी.

अगले दिन पुलिस को जयकुमार की जो पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिली, उस से साफ हो गया कि मृतक के सिर, चेहरे और पसली पर किसी भारी चीज से वार किए गए थे. जिस से उस की मौत हो गई. एसपी ने इस हत्याकांड को सुलझाने के लिए एसडीपीओ प्रदीप सिंह राणावत के निर्देशन में थानाप्रभारी बम्होरीकलां वीरेंद्र सिंह पंवार, चौकीप्रभारी कनेरा एसआई रश्मि जैन और उन के स्टाफ की 3 टीमें गठित करने के निर्देश दिए. इस टीम ने मृतक का मोबाइल नंबर ले कर उस की काल डिटेल्स निकलवाई. इस में पुलिस को 2 ऐसे नंबर मिले, जिन से मृतक की कई बार काफी देर तक बातें हुआ करती थीं. यही नहीं घटना से पहले भी दोनों नंबरों से मृतक की बात होने का पता चला. घटना के बाद से ही ये दोनों नंबर बंद थे.

इस से थानाप्रभारी पंवार समझ गए कि हत्या का संबंध किसी न किसी तरह से इन दोनों नंबरों से है. मृतक के मोबाइल की काल डिटेल्स से एक और खास बात सामने आई कि मृतक के गांव की कई लड़कियों से दोस्ती थी. उन से उस की फोन पर बातें हुआ करती थीं. इसलिए पुलिस ने इस हत्याकांड की जांच अवैध संबंध के एंगल से भी करनी शुरू कर दी थी. पुलिस मृतक के मोबाइल की काल डिटेल्स से शक के घेरे में आए फोन नंबरों की जांच में जुट गई. इस के अलावा जिस जगह लाश मिली थी, उस तरफ जाने वाले रास्तों पर लगे सीसीटीवी कैमरों के फुटेज भी खंगाले गए. पुलिस ने इस रास्ते में काम करने वाले किसानों से पूछताछ कर सबूत जुटाने की कोशिश की.

इस दौरान पचौरा गांव का एक बड़ा किसान राजेंद्र सिंह, जयकुमार की हत्या के संबंध में लगातार पुलिस से संपर्क बनाए हुए था. राजेंद्र सिंह, जयकुमार की हत्या के बारे में आए दिन नईनई थ्यौरी भी पुलिस के दिमाग में बैठाने की कोशिश कर रहा था. उस की यह कवायद देख कर थानाप्रभारी पंवार को राजेंद्र पर ही शक होने लगा. थानाप्रभारी ने अपने शक के बारे में एसडीपीओ राणावत से चर्चा की, उन की सहमति से पंवार ने पचौरा गांव में अपने मुखबिर मृतक जयराम कुमार और जागीरदार राजेंद्र सिंह के परिवार के संबंधों की जानकारी जुटाने में लगा दिए.

इस का परिणाम यह निकला कि मुखबिरों ने थानाप्रभारी को यह खबर दी कि गांव में राजेंद्र की नाबालिग बेटी संध्या (परिवर्तित नाम) के साथ मृतक के नाम की चर्चा आम है. दूसरा यह कि नौकर का नाम बहन के साथ आने पर कुछ दिन पहले राजेंद्र के बेटे धनेंद्र और मृतक जयकुमार में विवाद भी हुआ था. जिस के बाद राजेंद्र ने जयकुमार को नौकरी से निकाल दिया था. यह बात साफ हो जाने पर पुलिस ने धनेंद्र और राजेंद्र के मोबाइल की लोकेशन निकलवाई जिस में पता चला कि जिस दिन जिस जगह पर जयकुमार की लाश मिली थी, धनेंद्र, उस के पिता और चाचा गजेंद्र के मोबाइल फोन की लोकेशन उसी जगह पर थी. इस आधार पर एसपी के निर्देश पर बम्हौरीकलां पुलिस ने धनेंद्र राजेंद्र और नाबालिग बेटी संध्या को पूछताछ के लिए थाने बुला लिया.

पूछताछ में धनेंद्र और राजेंद्र पहले तो पुलिस को बरगलाने की कोशिश करते रहे लेकिन जब पुलिस ने जुटाए गए सबूत उन के सामने रखे तो उन्होंने संध्या से इश्क के चक्कर में जयकुमार की हत्या करने की बात स्वीकार कर ली. उन के बयानों के आधार पर पुलिस की एक टीम धनेंद्र के चाचा गजेंद्र की गिरफ्तारी के लिए गांव पहुंची तो वह घर से फरार मिला. लेकिन पुलिस ने घेराबंदी कर अगने दिन ही चंदेरा तिगला के पास से उसे गिरफ्तार कर लिया. हत्या की रात जयकुमार के पास 2 मोबाइल थे, क्योंकि वह उस रात अपनी भाभी का मोबाइल भी ले गया था. ये दोनों मोबाइल देवेंद्र ने कुंचेरा बांध में फेंक दिए थे, जहां से पुलिस ने दोनों मोबाइल बरामद कर लिए. इस के अलावा वह कार भी बरामद कर ली, जयकुमार की लाश फेंकने में जिस का इस्तेमाल किया गया था. इस के बाद मालिक की बेटी के संग इश्क की कहानी कुछ इस तरह सामने आई—

पंचैरा गांव के जागीरदार कहे जाने वाले राजेंद्र की बेटी संध्या की खूबसूरती आसपास के गांवों में चर्चा का विषय बनी हुई थी. बुंदेलखंड के ठाकुर परिवार में जन्मी संध्या के चेहरे पर बिखरा राजपूती खून उस की सुदंरता पर चारचांद लगाने लगा था. इसलिए संध्या गांव के हर युवा के दिल की धड़कन बनी हुई थी. लेकिन उस के पिता राजेंद्र सिंह और चाचा गजेंद्र सिंह के रुतबे के कारण कोई भी युवक उसे आंख उठा कर देखने की हिम्मत नहीं कर पाता था. इस गांव में रहने वाले किशोरीलाल अहीरवार का बेटा जयकुमार काम की तलाश में था सो उस ने गांव के रईस ठाकुर राजेंद्र सिंह से नौकरी की याचना की तो उन्होंने उसे अपने ट्रैक्टर ड्राइवर की नौकरी पर रख लिया. उस समय जयकुमार 18 वर्ष का था जबकि संध्या 14 वर्ष के आसपास की थी.

घर परिवार की इज्जत के लिए हर एक कदम फूंकफूंक कर रखने वाले राजेंद्र यहीं धोखा खा गए. क्योंकि उन्हें यह तो पता था कि जयकुमार ट्रैक्टर चलाना जानता है. लेकिन इस बात की जानकारी नहीं थी कि 18 साल का यह लड़का उतनी लड़कियों के साथ खेल चुका है, जितनी उस की उम्र भी नहीं थी. जयकुमार भी दूसरों की तरह संध्या की खूबसूरती का कायल था. इसलिए उस ने पहले दिन ही सोच लिया था कि अगर मौका लगा तो संध्या की खूबसूरती पर कब्जा कर के ही मानेगा. इसलिए उस ने काम शुरू करने के साथ संध्या को हासिल करने की कोशिश शुरू कर दी, जिस के चलते उस ने संध्या को छोटी ठकुराइन कह कर बुलाना शुरू कर दिया.

वास्तव में उस ने संध्या के लिए यह संबोधन काफी सोचसमझ कर चुना था. क्योंकि वह जानता था कि उसे इस नाम से बुला कर वह संध्या की नजर में खास बन जाएगा. हुआ भी यही. जब उस ने संध्या को पहली बार छोटी ठकुराइन कह कर बुलाया तो संध्या चौंकी ही नहीं बल्कि उस के मन में छोटी ठकुराइन होने का अहसास शहद की मिठास की तरह घुल गया. घर का यही नौकर जयकुमार उसे खास लगने लगा. इसलिए उस के मुंह से बारबार छोटी ठकुराइन शब्द सुनने के लिए अकसर उस के आसपास मंडराने लगी. जयकुमार इश्क का पुराना खिलाड़ी था. उसे लड़कियों का चेहरा देख कर उन के मन की बात जानने की महारत हासिल थी. इसलिए वह जल्द ही समझ गया कि संध्या उस के पीछे क्यों घूमती रहती है.

ठाकुर परिवार में कडे़ नियम होने की वजह से बाहरी लोगों का घर के भीतर तक आनाजाना आसान नहीं था. ऐसे में संध्या के दिल में उठने वाली तरंगों को छेड़ने वाला जयकुमार के अलावा दूसरा कोई और नहीं था. क्योंकि काम के सिलसिले में उसे घर में आनेजाने की कोई रोक नहीं थी. इस मौके का फायदा उठा कर जयकुमार संध्या के नजदीक जाने की कोशिश करने लगा. जिस के चलते उस ने धीरेधीरे संध्या से उस की तारीफ करनी शुरू कर दी. किशोर उम्र में अपनी तारीफ सुनना हर एक लड़की को अच्छा लगता है, इसलिए संध्या को लगने लगा कि जयकुमार सारा काम छोड़ कर दिन भर उस के सामने बैठ कर उस के रूप का गुणगान करता रहे.

वह जयकुमार से बात करने के लिए कभीकभी उसे अपने निजी काम भी बताने लगी, जिसे जयकुमार एक पैर पर खड़ा हो कर करने भी लगा. जब जयकुमार को लगा कि लोहा गरम है, चोट की जा सकती है तो उस ने एक दिन डरने की एक्टिंग करते हुए संध्या से कहा, ‘‘मुझे आप से एक बात कहनी है छोटी ठकुराइन.’’

‘‘कहो, क्या कहना है?’’ संध्या बोली.

‘‘नहीं डर लगता है कि आप नाराज हो जाएंगी.’’ जयकुमार ने कहा.

‘‘नहीं होऊंगी, बोलो.’’ संध्या बोली.

‘‘छोडि़ए छोटी ठकुराइन, मुझ जैसे गरीब का ऐसा सोचना भी पाप है.’’ कह कर जयराम ने बात अधूरी छोड़ दी. क्योंकि वह जानता था कि अधूरी बात संध्या के मन पर जितना असर करेगी, उतना पूरी नहीं.

हुआ भी यही. जय कुमार का बात अधूरी छोड़ना संध्या को बुरा लगा. क्योंकि सच तो यही है कि खुद संध्या मन ही मन जयकुमार से प्यार करने लगी थी. इसलिए उसे लग रहा था कि बुद्धू अपने मन की बात बोल देता तो कितना अच्छा होता. अगले कुछ दिनों तक जयकुमार के आगेपीछे घूम कर उसे अपने दिल की बात कहने का मौका देने की कोशिश करने लगी. लेकिन अपनी योजना के अनुसार जयकुमार चुप रहा, जिस से संध्या का गुस्सा बढ़ता जा रहा था. एक दिन जयकुमार ने जब उसे छोटी ठकुराइन कह कर पुकारा तो वह फट पड़ी, ‘‘मत बोल मुझे छोटी ठकुराइन.’’

‘‘क्यों कोई गलती हुई क्या हम से?’’  जय कुमार ने पूछा.

‘‘हां.’’ संध्या बोली.

‘‘क्या?’’

‘‘तुम ने उस दिन बात अधूरी क्यों छोड़ी थी? बोलो, क्या कहना चाहते हो तुम?’’

‘‘कह तो दूंगा पर वादा करो कि आप को मेरी बात अच्छी न भी लगी तो भी न तो मुझ से बात करना छोड़ोगी और न मेरी शिकायत ठाकुर साहब (पापा) से करोगी.’’

‘‘वादा रहा, अब जल्दी बोलो नहीं तो कोई आ जाएगा.’’  संध्या से उतावलेपन से कहा.

‘‘आई लव यू.’’ जयकुमार ने उस की आंखों में देखते हुए कहा तो जैसे संध्या के मन में सैकड़ों गुलाब एक साथ खिल उठे.

‘‘तुम मुझ से नाराज तो नहीं हो.’’ जय कुमार ने उसे खामोश खडे़ देख पूछा.

‘‘नहीं.’’ कह कर वह थोड़ा मुसकराई.

‘‘क्या तुम भी मुझ से प्यार करती हो?’’ उस ने पूछा.

‘‘हां,’’ संध्या ने सिर हिला कर धीरे से जवाब दिया.

‘‘तो ठीक है, कल दोपहर में जब बड़ी ठकुराइन सोती हैं, मैं काम के बहाने आऊंगा. उस समय पापा और भैया भी नहीं रहेंगे.’’

‘‘ठीक है,’’ कहते हुए संध्या शरमाते हुए अंदर भाग गई.

सचमुच दूसरे दिन जय कुमार मौका निकाल कर राजेंद्र सिंह की हवेली पर पहुंचा तो संध्या उसी का इंतजार कर रही थी. यह देख कर जयकुमार ने सीधे उस की तरफ बढ़ते हुए उसे अपनी बांहों मे लेने के साथ उस के पूरे बदन पर अपने होंठों की मुहर लगानी शुरू कर दी. जिस से संध्या के शरीर में खुशबू के फव्वारे फूटने लगे. कुछ देर तक जय कुमार उसे पागलों की तरह प्यार करता रहा, फिर वहां से चुपचाप चला गया. चूंकि राजेंद्र सिंह की हवेली काफी बड़ी थी, सो संध्या और जयकुमार को मिलने में कोई परेशानी नहीं थी. इसलिए उस दिन के बाद दोनों मौका मिलते ही एकदूसरे की बांहों में सुख की तलाश करते रहे.

जयकुमार को राजेंद्र सिंह की नाबालिग बेटी से इश्क लड़ाना कभी भी महंगा पड़ सकता था. इसलिए वह काफी डरा हुआ भी रहता था. लेकिन ठाकुर की बेटी होने के कारण इश्क के रास्ते पर निकल पड़ी संध्या को किसी का डर नहीं था. इसलिए वह जयकुमार को खुल कर प्यार करने के लिए उकसाने लगी. दिन में बात नहीं बनी तो उस ने जयकुमार को रास्ता बताया कि रात को सब के सो जाने के बाद वह उस के कमरे मे आ जाए. जयकुमार भी यही चाहता था, सो उस दिन के बाद से वह आए दिन अपनी रातें संध्या के कमरे में उस के साथ प्यार में डूब कर गुजारने लगा.

जयकुमार काफी संभल कर चल रहा था. लेकिन नादानी के दौर से गुजर रही संध्या में अभी इतनी गंभीरता नहीं थी कि वह अपने इश्क को संभाल कर रख सके. प्यार में पागल संध्या दिन भर जयकुमार के इर्दगिर्द रहने लगी, जिस के चलते संध्या के भाई धनेंद्र को दोनों के बीच पक रही खिचड़ी का आभास होने लगा. उस ने दोनों पर नजर रखनी शुरू कर दी, तो कुछ ही दिनों में उसे पूरा यकीन हो गया कि जयकुमार और उस की बहन घर वालों की आंखों में धूल झोंक कर इश्कबाजी कर रहे हैं. एक मामूली नौकर द्वारा अपनी इज्जत पर हाथ डालने के दुस्साहस के कारण धनेंद्र का खून खौल उठा. लेकिन मामला इज्जत का था, सो उस ने विवाद करने के बजाय जयकुमार को डांटफटकार कर घर से निकाल दिया.

राजेंद्र के परिवार ने जयकुमार को नौकरी से निकालने का बहाना उस के द्वारा काम में लापरवाही बरतना बताया. धीरेधीरे गांव वालों में इस के सही कारण की चर्चा होने लगी. लेकिन जयकुमार और संध्या दोनों को एकदूसरे की आदत पड़ चुकी थी, इस से परिवार वालों के विरोध के बाद भी चोरीछिपे मिल कर एकदूसरे की तड़प शांत करने का खेल लगातार जारी रहा. इस के लिए जयकुमार ने संध्या को एक सिम कार्ड उपलब्ध करा दिया, जिस से वह केवल जयकुमार से बात करती थी. घटना वाले दिन भी यही हुआ. उस रोज पास के एक गांव के रईस ठाकुर धनेंद्र के लिए अपनी बेटी का रिश्ता ले कर आए थे.

दिन भर घर में मेहमानों की भीड़ रही, जिस के बाद ठाकुर परिवार ने खेत पर दारू और मुर्गा पार्टी का आयोजन किया. जिस के चलते शाम होते ही घर के सारे मर्द पार्टी के लिए खेत पर निकल गए. घर पर केवल मां और संध्या थी. संध्या को प्रेमी से मिलने के लिए यह समय काफी मुफीद लगा, इसलिए शाम को ही उस ने जयकुमार को फोन कर रात में चुपचाप अपने कमरे में प्यार की महफिल जमाने का निमंत्रण दे दिया था. जयकुमार नौकरी से निकाल दिए जाने के बाद भी कई बार इसी तरह संध्या से मिला करता था. इसलिए उस रोज रात गहराते ही वह शराब पी कर चुपचाप संध्या के कमरे में दाखिल हो गया. संध्या उसी का इंतजार कर रही थी. एकदूसरे को आमनेसामने देख कर वे दुनिया को भूल कर प्यार के सागर में गोते लगाने लगे.

इधर खेत पर पार्टी खत्म कर रात 12 बजे के आसपास धनेंद्र अपने चाचा गजेंद्र के साथ घर लौटा, जिस के बाद चाचा तो अपने कमरे मे चले गए. अपने कमरे में जाते समय धनेंद्र संध्या के कमरे के सामने से गुजरा तो उसे कमरे से आवाजें सुनाई दीं. आवाज सुन कर धनेंद्र ने बहन के कमरे में झांका तो अंदर का नजारा देख कर उस का खून खौल उठा. संध्या अपने कमरे में बिस्तर पर जयकुमार के साथ प्यार के सागर में हिचकोले ले रही थी. धनेंद्र ने सब से पहले फोन लगा कर अपने चाचा को यहां आने को कहा और खुद गुस्से में कमरे के दरवाजे पर लात मार कर कमरे में दाखिल हो गया.

धनेंद्र को गुस्से में देख कर संध्या अपने कपड़े समेट कर मां के कमरे की तरफ भाग गई, धनेंद्र पास में पड़ा डंडा उठा कर जयकुमार पर पिल पड़ा. इस पिटाई में जयकुमार की मृत्यु हो गई, उसी समय धनेंद्र का चाचा गजेंद्र भी आ गया. धनेंद्र ने पूरी बात चाचा को बताई. इस के बाद चाचा और भतीजा मिल कर लाश को ठिकाने लगाने की योजना बनाने लगे. तभी राजेंद्र सिंह भी घर पहुंच गया. सोचविचार कर तीनों ने लाश बोरी में बंद कर अपने घर में छिपा दी और अगली रात को अपनी गाड़ी में डाल कर उसे ठिकाने लगाने निकल पड़े. इन लोगों ने बम्हौरीकलां जतारा रोड पर बामना निगेला के पास लाश डाल दी.

उधर जयकुमार 14 जनवरी, 2020 की शाम से लापता था. 2 दिन बाद भी जब वह घर नहीं लौटा तो उस के पिता किशोरीलाल को चिंता हुई. वह 16 जनवरी को बेटे के बारे में पूछने के लिए जमींदार राजेंद्र सिंह राठौर के पास गया. क्योंकि जयकुमार पहले उस के यहां काम करता था. राजेंद्र सिंह ने जयकुमार के बारे में अनभिज्ञता जताई. इतना ही नहीं, सहानुभूति दिखाते हुए वह उस के साथ थाने जाने के लिए तैयार हो गया. जब ये लोग थाने जा रहे थे तभी उन्हें बामना निगेला के पास लाश मिलने की सूचना मिली. वहां जा कर देखा तो लाश जयकुमार की ही निकली.

तीनों ने सोचा था कि किशोरी के साथ लगे रहने से पुलिस उन पर शक नहीं करेगी. लेकिन एसपी अनुराग सुजानिया के निर्देशन और एसडीपीओ प्रदीप सिंह राणावत के नेतृत्व में गठित टीम ने केस का खुलासा कर आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया. तीनों आरोपियों से पूछताछ कर उन्हें कोर्ट में पेश किया गया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

 

Love Stories : दूसरे बॉयफ्रेंड के चक्‍कर में पहले को दे दिया जहर

Love Stories : सुखविंदर कौर कुलदीप को जी जान से चाहती थी, लेकिन राजस्थान में नौकरी पर चले जाने के बाद वह सुखविंदर को भूल सा गया. इसी दौरान सुखविंदर के अली हुसैन उर्फ आलिया से संबंध बन गए. जब कुलदीप ने उन के प्यार में रोड़ा बनने की कोशिश की तो…

29 जून, 2020 की रात कुलदीप सिंह खाना खाने के बाद टहलने के लिए घर से निकला ही था कि उस के मोबाइल पर किसी का फोन आ गया. कुलदीप फोन पर बात करतेकरते सड़क पर आगे बढ़ गया. लेकिन जब वह काफी देर तक घर वापस नहीं लौटा तो उस के परिवार वाले परेशान हो गए. उन की चिंता इसलिए भी बढ़ी, क्योंकि उस का मोबाइल भी बंद था. जब उस के घर वाले बारबार फोन लगाने लगे तो रात के कोई 10 बजे उस का फोन 2 बार कनेक्ट हुआ, लेकिन उस के बाद तुरंत कट गया.

उन्होंने तीसरी बार कोशिश की तो उस का मोबाइल स्विच्ड औफ था. इस से उस के घर वाले बुरी तरह घबरा गए. कुलदीप जिस गांव में रहता था, वह ज्यादा बड़ा नहीं था. उस के परिवार वालों ने उस के बारे में गांव के सभी लोगों से पूछताछ की, गांव की गलीगली छान मारी लेकिन उस का कहीं अतापता नहीं चल सका. किसी अनहोनी की आशंका के चलते कुलदीप के चाचा बूटा सिंह आईटीआई थाने पहुंचे. लेकिन वहां पर पूरा थाना क्वारंटीन होने के कारण उन्हें पैगा चौकी भेज दिया गया.

अगले दिन सुबह ही पैगा चौकीप्रभारी अशोक फर्त्याल ने कुलदीप के गांव जा कर उस के घर वालों से उस के बारे में जानकारी हासिल की. पुलिस अभी कुलदीप को इधरउधर तलाश कर रही थी कि उसी दौरान 2 जुलाई को गांव के कुछ युवकों ने गांव के बारात घर से 200 मीटर की दूरी पर खेतों के किनारे स्थित नाले में एक शव पड़ा देखा. उन्होंने यह जानकारी ग्राम प्रधान राजेंद्र सिंह को दी. ग्राम प्रधान ने कुछ गांव वालों को साथ ले जा कर शव को देखा तो उस की शिनाख्त लापता  कुलदीप सिंह के रूप में हो गई. नाले में पड़े गलेसड़े शव की सूचना पाते ही एएसपी राजेश भट्ट, सीओ मनोज ठाकुर, आईटीआई थानाप्रभारी कुलदीप सिंह, पैगा पुलिस चौकी इंचार्ज अशोक फर्त्याल मौके पर पहुंच गए.

पुलिस ने कुलदीप सिंह के शव को बाहर निकलवा कर उस की जांचपड़ताल कराई तो उस के शरीर पर किसी भी प्रकार की चोट के निशान नहीं थे. पुलिस ने जरूरी काररवाई कर शव पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. शव का पोस्टमार्टम 2 डाक्टरों के पैनल ने किया. पैनल में डा. शांतनु सारस्वत, और डा. के.पी. सिंह शामिल थे. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में बताया गया कि कुलदीप सिंह की मौत गला दबाने से हुई थी. जहर की पुष्टि हेतु जांच के लिए विसरा सुरक्षित रख लिया गया था. पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने के बाद पुलिस ने मृतक कुलदीप के परिवार वालों से जानकारी जुटाई तो पता चला कुलदीप का गांव की ही एक युवती के साथ चक्कर चल रहा था.

सुखविंदर कौर नाम की युवती कुलदीप के मोबाइल पर घंटों बात करती थी. इस जानकारी के बाद पुलिस ने सुखविंदर कौर को पूछताछ के लिए हिरासत में ले लिया. पुलिस पूछताछ के दौरान पहले तो सुखविंदर ने इस मामले में अनभिज्ञता दिखाने की कोशिश की. लेकिन बाद में उस ने स्वीकार किया कि उस रात कुलदीप उस से मिला जरूर था, लेकिन उस के बाद वह घर जाने की बात कह कर चला गया था. वह कहां गया उसे कुछ नहीं मालूम. पुलिस ने सुखविंदर को घर भेज दिया. सुखविंदर से बात करने के दौरान पुलिस इतना तो जान ही चुकी थी कि दोनों के बीच गहरे संबध थे. उन्हीं संबंधों के चक्कर में कुलदीप को जान से हाथ धोना पड़ा होगा.

पुलिस ने कुलदीप के दोनों मोबाइल नंबर सर्विलांस पर लगाए तो पता चल गया कि घटना वाली रात कुलदीप सुखविंदर कौर के संपर्क में आया था. पुलिस ने सुखविंदर के मोबाइल की काल डिटेल्स निकलवाई. पता चला कि वह कुलदीप के साथसाथ गांव के ही शाकिर के बेटे अली हुसैन उर्फ आलिया के संपर्क में भी थी. उस रात सुखविंदर ने कुलदीप के मोबाइल पर कई बार काल की थी. लेकिन उस ने उस का मोबाइल रिसीव नहीं किया था. शाम को फोन मिला तो सुखविंदर ने कुलदीप से काफी देर बात की थी. यह भी पता चला कि उस रात सुखविंदर ने आलिया के मोबाइल पर भी कई बार बात की थी.

इस से यह बात तो साफ हो गई कि कुलदीप की हत्या का कारण आलिया और सुखविंदर दोनों ही थे. यह बात सामने आते ही पुलिस ने फिर से सुखविंदर को पूछताछ के लिए हिरासत में लिया और उस से सख्ती से पूछताछ की. उस ने स्वीकार कर लिया कि पिछले 2 साल से उस के कुलदीप से प्रेम संबंध थे. लेकिन पिछले कुछ महीनों से उस की अपने ही पड़ोस में रहने वाले युवक आलिया से नजदीकियां बढ़ गई थीं. लेकिन कुलदीप उस का पीछा छोड़ने को तैयार नहीं था. उस की इसी बात से तंग आ कर उस ने आलिया को अपने प्रेम संबंधों का वास्ता दे कर कुलदीप की हत्या करा दी. कुलदीप की हत्या का राज खुलते ही पुलिस ने सुखविंदर के दूसरे प्रेमी आलिया को भी तुरंत गिरफ्तार कर लिया. पुलिस ने उस से भी पूछताछ की. उस ने बताया कि उस ने सुखविंदर के कहने पर ही कुलदीप की हत्या करने में उस का सहयोग किया था.

पुलिस ने आलिया और सुखविंदर कौर की निशानदेही पर बलजीत के खेत से कुलदीप के मोबाइल के अलावा एक खाली गिलास, पीले रंग का गमछा और जहर की एक खाली शीशी भी बरामद की. पुलिस पूछताछ में पता चला कि सुखविंदर एक साथ 2 नावों में यात्रा कर रही थी, जो कुलदीप को बिलकुल पसंद नहीं था. उसी से चिढ़ कर उस ने अपने दूसरे प्रेमी आलिया के साथ मिल कर उस की हत्या करा दी. इस प्रेम त्रिकोण का अंत कुलदीप की हत्या से ही क्यों हुआ, इस के पीछे एक विचित्र सी कहानी सामने आई. काशीपुर (उत्तराखंड) कोतवाली के अंतर्गत थाना आईटीआई के नजदीक एक गांव है बरखेड़ी.

यह सिख बाहुल्य आबादी वाला छोटा सा गांव है. इस गांव में कई साल पहले सरदार हरभजन सिंह आ कर बसे थे. वह पेशे से डाक्टर थे. उस समय आसपास के क्षेत्र में उन के अलावा अन्य कोई डाक्टर नहीं था. इसी वजह से यहां आते ही उन का काम बहुत अच्छा चल निकला था. समय के साथ उन की बीवी प्रकाश कौर 3 बेटियों की मां बनीं. सुखविंदर कौर उन में सब से छोटी थी. हरभजन सिंह ने डाक्टरी करते हुए इतना पैसा कमाया कि अपना मकान भी बना लिया और 2 बेटियों की शादी भी कर दी. उस समय सुखविंदर काफी छोटी थी. डाक्टरी पेशे से जुड़े होने के कारण हरभजन सिंह ने इस इलाके में अपनी अच्छी पहचान बना ली थी.

अब से लगभग 7 वर्ष पूर्व किसी लाइलाज बीमारी के चलते हरभजन की मौत हो गई. उन के निधन के बाद उन की बीवी प्रकाश कौर पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा. प्रकाश कौर के पास न तो कोई बैंक बैलेंस था और न कोई आमदनी का जरिया. हालांकि हरभजन सिंह अपनी 2 बेटियों की शादी कर चुके थे, लेकिन उन्हें छोटी बेटी की शादी की चिंता थी. प्रकाश कौर के सामने अजीब सी मजबूरी आ खड़ी हुई. जब प्रकाश कौर के सामने भूखों मरने की नौबत आ गई तो उन्हें हालात से समझौता करना पड़ा. उन्हें गांव में मेहनतमजदूरी करने पर विवश होना पड़ा.

उन्होंने जैसेतैसे मेहनतमजदूरी कर बेटी सुखविंदर कौर को पढ़ाया लिखाया. उस ने हाई  स्कूल कर लिया. सिर पर बाप का साया न होने की वजह से सुखविंदर कौर के कदम डगमगाने लगे थे. मां प्रकाश कौर रोजी रोटी कमाने के लिए घर से निकल जाती तो सुखविंदर कौर घर पर अकेली रह जाती थी. उसी दौरान उस की मुलाकात कुलदीप से हुई. कुलदीप गांव का ही रहने वाला था. उस के पिता गुरमीत सिंह की गांव में अच्छी खेतीबाड़ी थी. गुरमीत सिंह का परिवार भी काफी बड़ा था. हर तरह से साधनसंपन्न इस परिवार में 7 लोग थे. भाईबहनों में हरजीत सब से बड़ा, उस के बाद कुलदीप, निशान सिंह और उन से छोटी 2 बेटियां थीं. हरजीत सिंह की शादी हो चुकी थी. उस के बाद कुलदीप सिंह का नंबर था.

कुलदीप सिंह होनहार था. सुखविंदर कौर उस समय हाईस्कूल में पढ़ रही थी. उसी उम्र में वह कुलदीप सिंह को दिल दे बैठी. सुखविंदर कौर स्कूल जाती तो कुलदीप सिंह से भी मिल लेती थी. वह उस के परिवार की हैसियत जानती थी. जिस तरफ सुखविंदर का घर था, वह रास्ता कुलदीप के खेतों पर जाता था. खेतों पर आतेजाते कुलदीप की सुखविंदर से जानपहचान हुई. जब दोनों एक दूसरे के संपर्क में आए तो उन के बीच प्रेम का बीज अंकुरित हो गया. मां के काम पर निकल जाने के बाद सुखविंदर घर पर अकेली होती थी. उसी का लाभ उठा कर वह उस रास्ते से निकल रहे कुलदीप को अपने घर में बुला लेती.

फिर दोनों मौके का लाभ उठा कर प्यार भरी बातों में खो जाते थे. कुलदीप उसे जी जान से प्यार करता था. प्यार की राह पर चलतेचलते दोनों ने जिंदगी भर एक दूसरे के साथ जीनेमरने की कसमें खाईं. कुलदीप उस के प्यार में इस कदर गाफिल था. उस ने बीकौम करने के बाद आईटीआई का कोर्स कर लिया था, जिस के बाद उसे रुद्रपुर की एक फैक्ट्री में अस्थाई नौकरी मिल गई थी. रुद्रपुर में नौकरी मिलते ही कुलदीप वहीं पर कमरा ले कर रहने लगा. उस के रुद्रपुर चले जाने पर सुखविंदर परेशान हो गई. जब उसे उस की याद सताती तो वह मोबाइल पर बात कर लेती थी. लेकिन मोबाइल पर बात करने से उस के दिल को सुकून नहीं मिलता था.

उसी दौरान उस ने कई बार कुलदीप पर शादी करने का दबाव बनाया. लेकिन कुलदीप कहता कि जब उसे सरकारी नौकरी मिल जाएगी, वह उस से शादी कर लेगा. जबकि सुखविंदर उस की सरकारी नौकरी लगने तक रुकने को तैयार नहीं थी. एक साल रुद्रपुर में नौकरी करने के बाद उस की जौब राजस्थान की एक बाइक कंपनी में लग गई. कुलदीप को राजस्थान जाना पड़ा. कुलदीप के राजस्थान चले जाने के बाद तो सुखविंदर की उम्मीदों पर पूरी तरह से पानी फिर गया. जब कभी वह मोबाइल पर कुलदीप से बात करती तो उस का मन बहुत दुखी होता था. कुलदीप ने उसे कई बार समझाने की कोशिश की, लेकिन वह उस की एक भी बात मानने को तैयार नहीं थी.

घटना से लगभग 6 महीने पहले सुखविंदर की नजर अपने पड़ोसी अली हुसैन उर्फ आलिया पर पड़ी. गांव में शाकिर हुसैन का अकेला मुसलिम परिवार रहता था. यह परिवार पिछले 40 वर्षों से इस गांव में रह रहा था. 8 महीने पहले ही ग्राम प्रधान राजेंद्र सिंह ने इस परिवार को ग्राम समाज की जमीन उपलब्ध कराई थी, जिस पर शाकिर ने मकान बनवा लिया था. शाकिर हुसैन का एक भाई कलुआ बहुत पहले बरखेड़ी छोड़ कर दूसरे गांव बरखेड़ा पांडे में जा बसा था. वहां पर उस का आनाजाना बहुत कम होता था. शाकिर हुसैन के पास खेतीबाड़ी की जमीन नहीं थी. वह शुरू से ही गांव वालों के खेतों में मेहनत मजदूरी कर अपने परिवार का पालनपोषण करता आ रहा था.

उस के 3 बेटों मोहम्मद , रशीद और रफीक में अली हुसैन उर्फ आलिया सब से छोटा था. वह हर वक्त बनठन कर रहता था. वह गांव के लोगों के खेतों में काम करना अपनी तौहीन समझता था. लेकिन न तो उस के खर्चों में कमी थी और न ही उस की शानशौकत में. उस के रहनसहन को देख गांव वाले हैरत में थे कि उस के पास खर्च के लिए पैसा कहां से आता है. गांव में छोटीमोटी चोरी होती रहती थी, लेकिन कभी भी कोई चोर किसी की पकड़ में नहीं आया था. गांव के अधिकांश लोग उसी पर शक करते थे. लेकिन बिना किसी सबूत के कोई उस पर इल्जाम नहीं लगाना चाहता. जब एक चोरी में उस का नाम सामने आया तो उस की हकीकत सामने आ गई. उस के बाद गांव वाले उस से सावधान रहने लगे.

आलिया गांव के हर शख्स पर निगाह रखता था. इस सब के चलते आलिया को पता चला कि कुलदीप के सुखविंदर कौर के साथ अनैतिक संबंध हैं. उस ने कुलदीप को कई बार उस के घर से निकलते देखा था. उसी का लाभ उठा कर उस ने मौका देख सुखविंदर से उस के और कुलदीप के प्रेम संबंधों को ले कर बात की. शुरू में सुखविंदर ने इस बारे में उस से कोई बात नहीं की. लेकिन वह कुलदीप को ले कर परेशान जरूर थी. उस के साथ बिताए दिन उस के दिल में कांटा बन कर चुभने लगे थे. सुखविंदर खुद भी कुलदीप के पीछे पड़तेपड़ते तंग आ चुकी थी. उस की की तरफ से उम्मीद कमजोर पड़ी तो उस ने आलिया से नजदीकियां बढ़ा लीं. वह कुलदीप की प्रेम राह को त्याग कर आलिया के प्रेम जाल में जा फंसी. फिर आलिया उस के दिल पर राज करने लगा. आलिया के संपर्क में आया तो वह कुलदीप को भुला बैठी.

कई बार कुलदीप राजस्थान से उस के मोबाइल पर काल मिलाता तो वह रिसीव ही नहीं करती थी. कुलदीप उस के बदले व्यवहार को देख कर परेशान रहने लगा था. उस दौरान वह कई बार काशीपुर अपने गांव आया. उस ने सुखविंदर से कई बार मिलने की कोशिश की लेकिन सुखविंदर ने उस से मिलने में कोई रुचि नहीं दिखाई. तभी उसे गांव के एक दोस्त से उस की हकीकत पता की, तो उसे पता चला कि सुखविंदर कौर का आलिया से चक्कर चल रहा है. यह सुनते ही कुलदीप को जोरों का धक्का लगा. उसे सुखविंदर कौर से ऐसी उम्मीद नहीं थी. वह जैसेतैसे सुखविंदर कौर से मिला और उसे काफी समझाने की कोशिश की, लेकिन सुखविंदर ने उस की एक बात नहीं मानी.

कुलदीप निराश हो कर राजस्थान चला गया. लेकिन वहां जाने के बाद भी वह सुखविंदर कौर की बेवफाई से परेशान था. वह चाह कर भी उसे अपने दिल से नहीं निकाल पा रहा था. सुखविंदर कौर की बेवफाई का सिला मिलने के बाद उस का नौकरी से मन उचट गया था. तभी देश में कोरोना बीमारी के चलते लौकडाउन लग गया. लौकडाउन से उस की फैक्ट्री बंद हुई तो उसे अपने घर काशीपुर लौटना पड़ा. तब तक देश भर में इमरजेंसी जैसे हालात हो गए थे. लोग अपनेअपने घरों में कैद हो कर रह गए थे. काशीपुर आने के कुछ समय बाद उसे मुरादाबाद रोड स्थित किसी फैक्ट्री में काम मिल गया. कुलदीप ने मौका देख कर कई बार सुखविंदर से संपर्क साधने की कोशिश की लेकिन उस ने उस से मिलने में कोई रुचि नहीं दिखाई.

कुलदीप ने घर पर रहते कई बार उस के मोबाइल पर फोन मिलाया तो अधिकांशत: व्यस्त ही मिला. फिर एक अन्य युवक से यह जानकारी मिली कि सुखविंदर आलिया से ज्यादा घुलमिल गई है. बात कुलदीप को बरदाश्त नहीं था. कुलदीप कई बार आलिया से भी मिला और उसे समझाने की कोशिश की. लेकिन आलिया ने साफ शब्दों में कह दिया कि अगर वह और सुखविंदर प्यार करते हैं तो उसे समझाए, वह सुखविंदर के पीछे नहीं बल्कि सुखविंदर ही उस के पीछे पड़ी है. कुलदीप किसी भी कीमत पर सुखविंदर कौर को छोड़ने को तैयार नहीं था. जब सुखविंदर कौर और आलिया कुलदीप की हरकतों से परेशान हो उठे तो दोनों ने कुछ ऐसा करने की सोची, जिस से कुलदीप से पीछा छूट जाए.

सुखविंदर यह जानती थी कि कुलदीप अभी भी उस का दीवाना है. वह उस की एक काल पर ही कहीं भी आ सकता है. इसी का लाभ उठा कर उस ने कुलदीप को रास्ते से हटाने के लिए आलिया को पूरा षडयंत्रकारी नक्शा तैयार कर के दे दिया. पूर्व नियोजित षडयंत्र के तहत 29 जून को सुखविंदर कौर ने दिन में कई बार कुलदीप के मोबाइल पर काल की. लेकिन कुलदीप सिंह अपनी ड्यूटी पर था, उस ने सुखविंदर की काल रिसीव नहीं की. शाम को दोबारा कुलदीप के मोबाइल पर उस की काल आई तो सुखविंदर ने उसे शाम को गांव के पास स्थित बलजीत सिंह के बाग में मिलने की बात पक्की कर ली.

कुलदीप सिंह उस की हरकतों से पहले ही दुखी था, लेकिन प्रेमिका होने के नाते वह उस की पिछली हरकतों को भूल कर मिलने के लिए तैयार हो गया. उसे विश्वास था कि जरूर कोई खास बात होगी, इसीलिए सुखविंदर उसे बारबार फोन कर रही है. यही सोच कर कुलदीप सिंह खुश था. शाम को उस ने जल्दी खाना खाया और वादे के मुताबिक बाहर घूमने के बहाने घर से निकल गया. घर से निकलते ही उस ने सुखविंदर को फोन कर उस की लोकेशन पता की. उस के बाद वह बताई गई जगह पर पहुंच गया. गांव के बाहर मिलते ही सुखविंदर ने कुलदीप को अपने आगोश में समेट लिया. कुलदीप को लगा कि सुखविंदर आज भी उसे पहले की तरह प्यार करती है.

इसीलिए वह उस से इतनी गर्मजोशी से मिल रही है. कुलदीप उस की असल मंशा को समझ नहीं पाया. सुखविंदर कौर पूर्व प्रेमी कुलदीप का हाथ हाथों में थामे बाग की ओर बढ़ गई. बाग में एक जगह बैठते हुए उस ने पुराने सभी गिलेशिकवे भूल जाने को कहा. सुखविंदर ने कुलदीप से कहा कि आज वह काफी दिनों बाद मिल रही है. इसी खुशी में वह उस के लिए स्पैशल दूध बना कर लाई है. कुलदीप इतना नादान था कि उस के प्यार में पागल हो कर उस की चाल को समझ नहीं पाया. उस ने थैली से दूध निकाल कर गिलास में डाला और कुलदीप को पीने को दे दिया.

सुखविंदर ने थैली में थोड़ा दूध यह कह कर बचा लिया था कि इसे बाद में वह पी लेगी. दूध पीने के बाद कुलदीप को कुछ अजीब सा जरूर लगा लेकिन सुखविंदर को बुरा न लगे, इसलिए कुछ नहीं बोला. दूध पीते ही कुलदीप का सिर घूमने लगा. जब सुखविंदर को लगा कि जहर कुलदीप पर असर दिखाने लगा है तो उस ने पास ही छिपे अली हुसैन उर्फ आलिया को इशारा कर बुला लिया. आलिया ने मौके का लाभ उठा कर गमछे से गला घोंट कर कुलदीप की हत्या कर दी. बेहोश होने के कारण कुलदीप विरोध भी नहीं कर पाया. सांस रुकने से कुलदीप मौत की नींद सो गया. कुलदीप को मौत की नींद सुला कर आलिया और सुखविंदर ने उस के शव को खींच कर पास के नाले में फेंक दिया, ताकि उस की लाश जल्दी से न मिल सके. फिर दोनों अपनेअपने घर चले आए.

सुखविंदर कौर और आलिया को पूरा विश्वास था कि उस की हत्या का राज राज ही बन कर रह जाएगा. फिर दोनों शादी कर लेंगे. लेकिन आलिया और सुखविंदर की चालाकी धरी की धरी रह गई. इस केस के खुलते ही पुलिस ने कुलदीप हत्याकांड की आरोपी सुखविंदर कौर उस के प्रेमी अली हुसैन उर्फ आलिया को भादंवि की धारा 302/201 के तहत गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया. आलिया को पुलिस हिरासत में लेते ही उस का पिता अपने घर का खासखास सामान समेट कर अपने भाई कलुआ के घर बरखेड़ा पांडे चला गया. गांव वाले कुलदीप की हत्या से आहत थे, इसलिए उन्होंने गांव से नामोनिशान मिटाने के लिए उस के घर में आग लगा दी.

इतना ही नहीं आक्रोशित गांव वालों ने रात में जेसीबी से उस का घर तोड़फोड़ दिया. इस घटना से पूरे गांव में अफरातफरी का माहौल था. इस घटना की सूचना किसी ने पुलिस को दे दी. सूचना मिलते ही सीओ मनोज कुमार ठाकुर, कोतवाल चंद्रमोहन सिंह, पैगा चौकीप्रभारी अशोक फर्त्याल समेत बड़ी तादाद में पुलिस फोर्स मौके पर पहुंची. जिस के बाद भीड़ तितरबितर हो गई. पुलिस पूछताछ के दौरान ग्राम प्रधान राजेंद्र सिंह ने पुलिस को बताया कि जमानत पर रिहा होने के बाद आरोपी फिर से गांव में आ कर न रहने लगे, यह सोच कर गांव वालों ने उस के घर को क्षति पहुंचाने की कोशिश की थी.

इस मामले में भी पुलिस ने अपनी काररवाई करते हुए कुलदीप के ताऊ बूटा सहित 30-35 लोगों के खिलाफ आईपीसी की धारा 147,427,436,के तहत केस दर्ज किया.