दांपत्य की लालसा – भाग 1

प्रभावती को गौर से देखते हुए प्लाईवुड फैक्ट्री के मैनेजर ने कहा, ‘‘इस उम्र में तुम नौकरी करोगी, अभी तुम्हारी उम्र ही क्या है? मुझे  लगता है तुम 15-16 साल की होओगी? यह उम्र तो खेलने खाने की होती है.’’

‘‘साहब, आप मेरी उम्र पर मत जाइए. मुझे काम दे दीजिए. आप मुझे जो भी काम देंगे, मैं मेहनत से करूंगी. मेरे परिवार की हालत ठीक नहीं है. भाईबहनों की शादी हो गई है. बहनें ससुराल चली गई हैं तो भाई अपनीअपनी पत्नियों को ले कर अलग हो गए हैं. मांबाप की देखभाल करने वाला कोई नहीं है. पिता बीमार रहते हैं. इसलिए मैं नौकरी कर के उन की देखभाल करना चाहती हूं.’’ प्रभावती ने कहा.

रायबरेली की मिल एरिया में आसपास के गांवों से तमाम लोग काम करने आते थे. प्लाईवुड फैक्ट्री में भी आसपास के गांवों के तमाम लोग नौकरी करते थे. लेकिन उतनी छोटी लड़की कभी उस फैक्ट्री में नौकरी मांगने नहीं आई थी. प्रभावती ने मैनेजर से जिस तरह अपनी बात कही थी, उस ने सोच लिया कि इस लड़की को वह अपने यहां नौकरी जरूर देगा. उस ने कहा, ‘‘ठीक है, तुम कल समय पर आ जाना. और हां, मेहनत से काम करना. मैं तुम्हें दूसरों से ज्यादा वेतन दूंगा.’’

‘‘ठीक है साहब, आप की बहुतबहुत मेहरबानी, जो आप ने मेरी मजबूरी समझ कर अपने यहां नौकरी दे दी. मैं कभी कोई ऐसा काम नहीं करूंगी, जिस से आप को कुछ कहने का मौका मिले.’’ कह कर प्रभावती चली गई.

अगले दिन से प्रभावती काम पर जाने लगी. उस के काम को देख कर मैनेजर ने उस का वेतन 3 हजार रुपए तय किया. 15 साल की उम्र में ही मातापिता की जिम्मेदारी उठाने के लिए प्रभावती ने यह नौकरी कर ली थी.

उत्तर प्रदेश के जिला रायबरेली के शहर से कस्बा तहसील लालगंज को जाने वाली मुख्य सड़क पर शहर से 10 किलोमीटर की दूरी पर बसा है कस्बा दरीबा. कभी यह गांव हुआ करता था. लेकिन रायबरेली से कानपुर जाने के लिए सड़क बनी तो इस गांव ने खूब तरक्की की. लोगों को तरहतरह के रोजगार मिल गए. सड़क के किनारे तमाम दुकानें खुल गईं. लेकिन जो परिवार सड़क के किनारे नहीं आ पाए, उन की हालत में खास सुधार नहीं हुआ.

ऐसा ही एक परिवार महादेव का भी था. उस के परिवार में पत्नी रामदेई के अलावा 2 बेटे फूलचंद, रामसेवक तथा 4 बेटियां, कुसुम, लक्ष्मी, सविता और प्रभावती थीं. प्रभावती सब से छोटी थी. छोटी होने की वजह से परिवार में वह सब की लाडली थी. महादेव की 3 बेटियों की शादी हो गई तो वे ससुराल चली गईं. बेटे भी शादी के बाद अलग हो गए.

अंत में महादेव और रामदेई के साथ रह गई उन की छोटी बेटी प्रभावती. भाइयों ने मांबाप के साथ जो किया था, उस से वह काफी दुखी और परेशान रहती थी. यही वजह थी कि उस ने उतनी कम उम्र में ही नौकरी कर ली थी.

प्रभावती को जब काम के बदले फैक्ट्री से पहला वेतन मिला तो उस ने पूरा का पूरा ला कर पिता के हाथों पर रख दिया. बेटी के इस कार्य से महादेव इतना खुश हुआ कि उस की आंखों में आंसू भर आए.

उस ने कहा, ‘‘मेरी सभी औलादों में तुम्हीं सब से समझदार हो. जहां बुढ़ापे में मेरे बेटे मुझे छोड़ कर चले गए, वहीं बेटी हो कर तुम मेरा सहारा बन गईं. तुम जुगजुग जियो, सभी को तुम्हारी जैसी औलाद मिले.’’

‘‘बापू, आप केवल अपनी तबीयत की चिंता कीजिए, बाकी मैं सब संभाल लूंगी. मुझे बढि़या नौकरी मिल गई है, इसलिए अब आप को चिंता करने की जरूरत नहीं है.’’ प्रभावती ने कहा.

बदलते समय में आज लड़कियां लड़कों से ज्यादा समझदार हो गई हैं. यही वजह है, वे बेटों से ज्यादा मांबाप की फिक्र करती हैं. प्रभावती के इस काम से महादेव और उन की पत्नी रामदेई ही खुश नहीं थे, बल्कि गांव के अन्य लोग भी उस की तारीफ करते नहीं थकते थे. उस की मिसालें दी जाने लगी थीं.

समय बीतता रहा और प्रभावती अपनी जिम्मेदारी निभाती रही. प्रभावती जिस फैक्ट्री में नौकरी करती थी, उसी में बंगाल का रहने वाला एक कारीगर था मनोज बंगाली. वह प्रभावती की हर तरह से मदद करता था, इसलिए प्रभावती उस से काफी प्रभावित थी. मनोज उस से उम्र में थोड़ा बड़ा जरूर था, लेकिन धरीरेधीरे प्रभावती उस के नजदीक आने लगी थी.

जब यह बात फैक्ट्री में फैली तो एक दिन प्रभावती ने कहा, ‘‘मनोज, हमारे संबंधों को ले कर लोग तरहतरह की बातें करने लगे हैं. यह मुझे अच्छा नहीं लगता.’’

‘‘लोग क्या कहते हैं, इस की परवाह करने की जरूरत नहीं है. तुम मुझे प्यार करती हो और मैं तुम्हें प्यार करता हूं. बस यही जानने की जरूरत है.’’ इतना कह कर मनोज ने प्रभावती को सीने से लगा लिया.

‘‘मनोज, तुम मेरी बातों को गंभीरता से नहीं लेते. जब भी कुछ कहती हूं, इधरउधर की बातें कर के मेरी बातों को हवा में उड़ा देते हो. अगर तुम ने जल्दी कोई फैसला नहीं लिया तो मैं तुम से मिलनाजुलना बंद कर दूंगी.’’ प्रभावती ने धमकी दी तो मनोज ने कहा, ‘‘अच्छा, तुम चाहती क्या हो?’’

‘‘हम दोनों को ले कर फैक्ट्री में चर्चा हो रही है तो एक दिन बात हमारे गांव और फिर घर तक पहुंच जाएगी. जब इस बात की जानकारी मेरे मातापिता को होगी तो वे किसी को क्या जवाब देंगे. मैं उन की बहुत इज्जत करती हूं, इसलिए मैं ऐसा कोई काम नहीं करना चाहती, जिस से उन के मानसम्मान को ठेस लगे. उन्हें पता चलने से पहले हमें शादी कर लेनी चाहिए. उस के बाद हम चल कर उन्हें सारी बात बता देंगे.’’ प्रभावती ने कहा.

‘‘शादी करना आसान तो नहीं है, फिर भी मैं वह सब करने को तैयार हूं, जो तुम चाहती हो. बताओ मुझे क्या करना है?’’ मनोज ने पूछा.

‘‘मैं तुम से शादी करना चाहती हूं. मेरे मातापिता मुझे बहुत प्यार करते हैं. वह मेरी किसी भी बात का बुरा नहीं मानेंगे. मैं चाहती हूं कि हम किसी दिन शहर के मंशा देवी मंदिर में चल कर शादी कर लें. इस के बाद मैं अपने घर वालों को बता दूंगी. फिर मैं तुम्हारी हो जाऊंगी, केवल तुम्हारी.’’ प्रभावती ने कहा.

प्रभावती की ये बातें सुन कर मनोज की खुशियां दोगुनी हो गईं. उस ने जब से प्रभावती को देखा था, तभी से उसे पाने के सपने देखने लगा था. लेकिन प्रभावती उस के लिए शराब के उस प्याले की तरह थी, जो केवल दिखाई तो देता था, लेकिन उस पर वह होंठ नहीं लगा पा रहा था. प्रभावती जो अभी कली थी, वह उसे फूल बनाने को बेचैन था.

मंगेतर की कब्र पर रासलीला – भाग 1

सुबह के करीब साढ़े 10 बजे रायबरेली के पुलिस अधीक्षक राजेश पांडेय जैसे ही अपने कार्यालय के सामने गाड़ी से उतरे, बूढ़ा चंद्रपाल यादव अपनी पत्नी जनकदुलारी के साथ उन के सामने  हाथ जोड़ कर खड़ा हो गया. उन के चेहरों से ही लग रहा था कि उन पर कोई भारी विपत्ति आई है.

चंद्रपाल ने कांपते स्वर में कहा, ‘‘साहब, पिछले एक महीने से हमारा जवान बेटा रामकुमार लापता है. हम ने उसे बहुत ढूंढ़ा, थाने में गुमशुदगी भी दर्ज कराई, लेकिन कुछ पता नहीं चला. हर तरफ से निराश हो कर अब आप के पास आया हूं.’’

बात पूरी होते ही पतिपत्नी फफकफफक कर रोने लगे. पुलिस अधीक्षक राजेश पांडेय ने चंद्रपाल का हाथ थाम कर सांत्वना देते हुए कहा, ‘‘आप अंदर आइए, हम से जो हो सकेगा, हम आप की मदद करेंगे.’’

एसपी साहब ने वहां खड़े संतरी को उन्हें अंदर ले कर आने का इशारा किया. साहब का इशारा पाते ही एक सिपाही दोनों को अंदर ले गया. पांडेयजी ने दोनों को प्यार और सम्मान के साथ बैठा कर उन की पूरी बात सुनी.

चंद्रपाल यादव उत्तर प्रदेश के जिला रायबरेली, थाना भदोखर के गांव बेलहिया का रहने वाला था. वैसे तो इस गांव में सभी जाति के लोग रहते हैं, लेकिन यादवों की संख्या कुछ ज्यादा है. गांव के ज्यादातर लोगों की रोजीरोटी खेतीकिसानी पर निर्भर है. चंद्रपाल के परिवार में पत्नी जनकदुलारी के अलावा 2 बेटे थे श्यामकुमार तथा रामकुमार और एक बेटी थी श्यामा. श्यामकुमार और श्यामा की शादी हो चुकी थी. श्यामा अपनी ससुराल में रहती थी. जबकि श्यामकुमार अपने परिवार के साथ मांबाप से अलग रहता था. एक तरह से रामकुमार ही मांबाप के बुढ़ापे का सहारा था.

14 जनवरी, 2013 की रात रामकुमार खापी कर घर में सोया था, लेकिन सुबह को वह गायब मिला. 15 जनवरी की सुबह से ही चंद्रपाल ने 23 वर्षीय रामकुमार की तलाश शुरू कर दी, लेकिन काफी खोजबीन के बाद भी उस के बारे में कुछ पता नहीं चला. कोई रास्ता न देख चंद्रपाल ने थाना भदोखर में उस की गुमशुदगी दर्ज करा दी. पुलिस ने 2-4 दिन इधरउधर देखा, उस के बाद वह भी शांत हो कर बैठ गई.

धीरेधीरे महीना भर से ज्यादा बीत गया. जब रामकुमार का कुछ पता नहीं चला तो गांव वालों ने चंद्रपाल को शहर जा कर कप्तान साहब से मिलने की सलाह दी. इसी के बाद चंद्रपाल पत्नी के साथ पुलिस अधीक्षक राजेश पांडेय से मिलने आया था. एसपी साहब ने उसे सांत्वना देते हुए कहा था कि वे लोग परेशान न हों. वह जल्द से जल्द उन के बेटे के बारे में पता लगवाने की कोशिश करेेंगे.

पुलिस अधीक्षक के इस आश्वासन पर चंद्रपाल और उस की पत्नी जनकदुलारी को काफी राहत महसूस हुई. इस के बाद पुलिस ने नए सिरे से छानबीन शुरू की. पुलिस अधीक्षक राजेश पांडेय के निर्देश पर थाना भदोखर पुलिस, क्राइम ब्रांच और सर्विलांस सेल सभी सक्रिय हो गए. उन दिनों थाना भदोखर के थानाप्रभारी आर.पी. रावत थे. वह अपनी पुलिस टीम के साथ रामकुमार की खोज में लग गए.

यह देख कर पुलिस से नाउम्मीद हो चुके चंद्रपाल को लगा कि शायद अब उन के बेटे के बारे में पता चल जाएगा. लेकिन पुलिस की तत्परता के बावजूद दिन पर दिन बीतते जा रहे थे. रामकुमार का कहीं कोई पता नहीं चल पा रहा था. धीरेधीरे पुलिस ने लाख युक्ति लगाई, लेकिन कोई भी युक्ति काम नहीं आई. गांव वालों की ही नहीं, पुलिस की भी समझ में नहीं आ रहा था कि रामकुमार को जमीन खा गई या आसमान निगल गया.

रामकुमार के पता न चल पाने से पुलिस अधीक्षक भी हैरान थे. उन की भी समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर उस के बारे में पता क्यों नहीं चल रहा है. गांव में उस की किसी से कोई दुश्मनी भी नहीं थी. गांव वालों के अनुसार, वह अपने काम से काम रखने वाला लड़का था. उस की शादी भी नहीं हुई थी. उस का चालचरित्र भी ऐसा नहीं था कि उस बारे में कुछ ऐसावैसा सोचा जाता. हर कोई रामकुमार को ले कर परेशान था कि उसी बीच कुछ ऐसा हुआ कि रामकुमार के लापता होने का रहस्य अपनेआप खुल गया.

26 जुलाई की रात इतनी ज्यादा बारिश हुई कि बेलहिया गांव में पानी ही पानी भर गया. चंद्रपाल के घर में भी पानी भर गया था.  घर का पानी निकालने के लिए चंद्रपाल नाली बना रहा था तो जनकदुलारी ने कहा, ‘‘रामू के बप्पा, रामू के कमरे में भी पानी भर गया है. उस में रखा तख्त सरका देते तो मैं वहां का पानी भी बाहर निकाल देती.’’

रामकुमार का अपना अलग कमरा था. जब से वह गायब हुआ था, जनकदुलारी उस कमरे में कम ही जाती थी. क्योंकि उस में रामकुमार का सारा सामान रखा था, जिसे देख कर उसे बेटे की याद आ जाती थी. इसी वजह से चंद्रपाल का भी उस कमरे में जाने का मन नहीं करता था.

इसलिए उस ने टालने वाले अंदाज में कहा, ‘‘ऐसे ही काम चल जाए तो चला लो, मेरा उस कमरे में जाने का मन नहीं करता.’’

‘‘मन तो मेरा भी नहीं करता. लेकिन कच्ची दीवार है. पानी भरा रहेगा तो दीवारें गिर सकती हैं.’’

चंद्रपाल तख्त हटाने के लिए कमरे में पहुंचा तो उस ने देखा तख्त के नीचे की मिट्टी अंदर धंसी हुई है. वहां गढ्ढा सा बना हुआ था. उस गड्ढे को देख कर चंद्रपाल को हैरानी हुई, क्योंकि वह कोठरी काफी पुरानी थी. उस की जमीन काफी मजबूत थी. उस में इस तरह का गड्ढा खुदबखुद नहीं हो सकता था.

बहरहाल उस ने जैसे ही तख्त हटवाया, उसे जो दिखाई दिया, उस से उस की आंखें खुली की खुली रह गईं. गड्ढे की धंसी हुई मिट्टी में सड़ागला एक इंसानी हाथ दिखाई दे रहा था. चंद्रपाल ने जल्दीजल्दी हाथों से मिट्टी हटानी शुरू की तो थोड़ी ही देर में उस के बेटे रामकुमार की लाश निकल आई.

रामकुमार की लाश निकलते ही चंद्रपाल बदहवास सा चिल्लाने लगा. उस की चीखपुकार सुन कर जनकदुलारी और आसपड़ोस के लोग भी आ गए. रामकुमार की सड़ीगली लाश देख कर घर में कोहराम मच गया. गांव वाले भी हैरान थे. बहरहाल रामकुमार की लाश मिलने की सूचना थाना भदोखर पुलिस को दे दी गई. वहां से यह सूचना पुलिस अधीक्षक राजेश पांडेय को दी गई.

पुलिस के लिए यह सूचना हैरान करने वाली थी. आननफानन में थाना भदोखर के थानाप्रभारी रामराघव सिंह सिपाही कन्हैया सिंह और अमरचंद्र शुक्ला को साथ ले कर गांव बेलहिया आ पहुंचे. थोड़ी ही देर में पुलिस अधीक्षक राजेश पांडेय भी फौरेंसिक टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. पुलिस ने सावधानी से लाश गड्ढे से बाहर निकाली. वह पूरी तरह से सड़गल चुकी थी. लाश के साथ लाल रंग का एक दुपट्टा मिला, जिसे पुलिस ने कब्जे में ले लिया. इस के बाद अन्य काररवाई निपटा कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए रायबरेली भेज दिया.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पता चला कि रामकुमार की हत्या गला दबा कर की गई थी. महीनों पहले हुई हत्या का मामला था, इसलिए पुलिस के लिए यह चुनौती जैसी थी. हत्या की कोई वजह नजर नहीं आ रही थी. लाश घर के अंदर मिली थी, साफ था हत्या घर के अंदर ही की गई थी. ऐसी स्थिति में इस मामले में घरवालों का ही हाथ हो सकता था. लेकिन घर में सिर्फ बूढ़े मांबाप थे. वे अपने बेटे की हत्या क्यों करते? जबकि वही उन का सहारा था.

वैसे भी वह ऐसा नहीं था कि मांबाप उस से परेशान होते. पुलिस ने हत्यारों तक पहुंचने के लिए जब चंद्रपाल और जनकदुलारी से विस्तारपूर्वक पूछताछ की तो उन्होंने एक बात ऐसी बताई, जिस पर पुलिस को संदेह हुआ. पति पत्नी ने पुलिस को बताया था कि जिस रात रामकुमार गायब हुआ था, उस रात उन का रिश्ते का एक भांजा संतोष आया हुआ था. वह पंजाब से एक लड़की साथ लाया था, जिस की शादी वह रामकुमार से कराना चाहता था.

मां और बेटियां खतरनाक सीरियल किलर

महाराष्ट्र के कोल्हापुर की सीरियल किलर बहनों के नाम से कुख्यात सीरियल किलर्स रेणुका शिंदे और सीमा गावित अपनी मां अंजनाबाई गावित के कहने पर अपराध करती थीं. मां ही अपनी बेटियों से मासूम बच्चों का अपहरण कर उन से अपराध करवाती थी. वह दोनों बेटियों को अपनी सुरक्षा के लिए हथियार के रूप में इस्तेमाल करती थी. जब मकसद पूरा हो जाता था, तब बच्चों की बेरहमी से हत्या कर देती थीं. उन 3 सीरियल किलर मां बेटियों ने कोई 2-4 नहीं, बल्कि कुल 42 मासूम बच्चों को तड़पा तड़पा कर मार डाला.

सनसनीखेज हत्याओं की शृंखला ने कोल्हापुर और आसपास के इलाकों को सालों तक आतंकित रखा. लोगों ने अपने बच्चों को शाम के बाद अकेले बाहर निकलने से पूरी तरह से रोक दिया था.

उन का भयानक कृत्य 3 दशक के बाद एक बार फिर लोगों के सामने आया. 3 दशक पहले भी यह केस बहुत चर्चा का विषय बना था. पुलिस रिकौर्ड के अनुसार दोनों बहनों ने 13 बच्चों का किडनैप किया, 9 बच्चों की हत्या कर दी. वे बेरहमी से बच्चों को मारने के बाद बच्चों के शव पर डिजाइन बनातीं, फिर जश्न मनाती थीं. इन सीरियल किलर बहनों ने अपनी मां के साथ मिल कर हैवानियत की हद पार कर दी थी.

आइए बताते हैं कि इन दोनों बहनों ने अपनी मां के साथ मिल कर किस तरह अपने आपराधिक जीवन की शुरुआत छोटे अपराधों से कर बच्चों का अपहरण कर उन की हत्या तक के रास्ते को तय किया.

कोल्हापुर निवासी अंजनाबाई एक ड्राइवर शिंदे के प्यार में पड़ गई और अपने घर से निकल गई. उस ने ड्राइवर से शादी कर ली. उस से 1973 में एक बेटी रेणुका शिंदे हुई. बेटी पैदा होने के बाद ड्राइवर पति ने अंजनाबाई को छोड़ दिया. तब वह अपनी बेटी को ले कर पुणे आ गई. यहां उस ने पूर्व सैनिक मोहन गावित से दूसरी शादी कर ली. अंजनाबाई को उस से 1975 में दूसरी बेटी सीमा गावित पैदा हुई, लेकिन दूसरे पति मोहन ने भी अंजनाबाई को छोड़ दिया.

ऐसे हुई अपराध की शुरुआत

मोहन ने प्रतिमा नाम की दूसरी महिला से शादी कर ली. अब अंजनाबाई के सामने अपना व बेटियों के पेट भरने की समस्या सामने आ गई. अपनी आजीविका चलाने के लिए उस ने अपराध की दुनिया में कदम रखा. इस में उस ने दोनों बेटियों और बड़ी बेटी रेणुका के पति किरण को भी शामिल कर लिया. रेणुका के एक बेटा सुधीर हुआ.

Mother Anjnabai (File Photo)

एक दिन रेणुका ने मंदिर में चोरी की और जब पकड़ी गई तो बेटे को आगे कर उस पर सारा इलजाम डाल दिया. लोगों ने रहम कर बेटे और मां को छोड़ दिया. यहीं से रेणुका और उस की मां व बहन को बच्चों के सहारे अपराध करने का आइडिया मिला. तब अंजनाबाई अपनी दोनों बेटियों के साथ मिल कर चोरियां और झपटमारी करने लगी.

ये लोग भीड़भाड़ वाले स्थानों, मंदिरों से 5 साल से कम उम्र के बच्चों को चुरा लिया करतीं और फिर इन्हीं बच्चों को गोद में ले कर चोरी और झपटमारी के काम में निकल जाती थीं, लेकिन जैसे ही कोई इन्हें ऐसा करते रंगे हाथों पकड़ता, ये फौरन अपने पास मौजूद बच्चे को जमीन पर पूरी ताकत से पटक देतीं.

इस से लोगों का ध्यान चोरी से हट कर बच्चे पर चला जाता और बस उसी समय मौके का फायदा उठा कर ये भीड़ के चंगुल से बच निकलती थीं. ये इसी तरह बच्चों के सहारे छोटीमोटी चोरी, पाकेट काटना, चेन स्नैचिंग जैसी घटनाओं को अंजाम देती थीं.

ये सिलसिला लंबे समय तक चलता रहा. ये तीनों इसी तरह बच्चों के सहारे गुनाहों को अंजाम देतीं और मौका मिलते ही उन्हें मौत की नींद सुला देती थीं. ये तीनों बच्चों को मारने और उन पर जुल्म ढाने के मामले में इतनी आगे निकल गईं कि अच्छेअच्छों का दिल कांप जाए.

रेणुका शिंदे और सीमा गावित इन दोनों बहनों ने अपनी मां के साथ मिल कर जून, 1990 से अक्तूबर 1996 के बीच इन 6 सालों में पुणे, ठाणे, कोल्हापुर, नासिक जैसे शहरों सेे दरजन भर बच्चों का अपहरण किया. वे 5 साल से छोटे बच्चों का अपहरण करती थीं. बच्चों के अपहरण के बाद उन्हें भीड़भाड़ वाली जगहों पर ले जाती थीं, जहां तीनों में से कोई एक लोगों का सामान चुराने की कोशिश करती, अगर चोरी के समय पकड़ी जाती तो वे या तो बच्चे के माध्यम से सहानुभूति जगाने की कोशिश करतीं या बच्चे को चोट पहुंचा कर लोगों का ध्यान भटका देती थीं.

ये अपहृत किए बच्चों से भी चोरी करवाती थीं. जब बच्चा इन के काम का नहीं रहता तो अपहृत बच्चे की बाद में नृशंस तरीके से हत्या कर देती थीं. इन में से 9 बच्चों को दोनों बहनों व उन की मां ने रोंगटे खड़ी कर देने वाली दर्दनाक मौत की नींद सुलाया. उन्होंने मारने के ऐसे तरीके अपनाए, जिन्हें सुन कर ही दिल दहल जाए.

125 आपराधिक मामले थे दर्ज

मां और बेटियों पर करीब 125 आपराधिक मामले दर्ज थे. इन में छोटीमोटी चोरी जैसी घटनाएं तो शामिल थीं, लेकिन ये इन महिलाओं की खौफनाक कहानी का बहुत छोटा सा हिस्सा था. 90 के दशक में इन्होंने चोरी से हत्या की दुनिया में कदम रखा. तब बड़ी बेटी रेणुका की उम्र 17 साल और छोटी बेटी सीमा की उम्र 15 साल थी, जब इन्होंने अपनी मां के साथ मिल कर पहले बच्चे की हत्या की थी.

दूसरे पति की बेटी को भी बनाया निशाना

पति मोहन की दूसरी पत्नी प्रतिमा से 2 बेटियां थीं. अंजनाबाई प्रतिमा से दिल ही दिल बेहद नफरत करती थी. लेकिन अपना मकसद पूरा करने के लिए अंजनाबाई व दोनों बहनों ने उस से दोस्ती का नाटक कर उस के घर में घुसपैठ कर ली. इस के चलते उस ने प्रतिभा की 9 साल की बेटी क्रांति को निशाना बनाया. उन्होंने उस का अपहरण कर हत्या कर दी और लाश गन्ने के एक खेत में दबा दी. इस का शक प्रतिमा को अंजनाबाई और उस की दोनों बेटियों पर था, इसलिए उस ने तीनों के खिलाफ पुलिस में बेटी के किडनैपिंग की शिकायत दर्ज कराई.

इन तीनों महिलाओं का इरादा प्रतिमा की दूसरी बेटी का अपहरण करना भी था, लेकिन पुलिस ने इन के मनसूबों को नाकाम कर दिया. ये महिलाएं 14वें बच्चे को अपना शिकार बनातीं, इस से पहले ही पुलिस इन तक पहुंच गई थी.

पुलिस ने नवंबर, 1996 में तीनों महिलाओं को एक बच्चे के अपहरण के आरोप में नासिक से गिरफ्तार कर लिया. उन के घर पर छापे मारे गए तो कई बच्चों के कपड़े और खिलौने मिले. इस के बाद ही कोल्हापुर पुलिस ने इन हत्यारिनों के घिनौने खेल का परदाफाश कर दिया. पूरे 6 साल तक महाराष्ट्र और गुजरात में घूमघूम कर ये बच्चों को मारती रहीं. अनगिनत मासूमों के मांबाप अपने कलेजे के टुकड़ों के लापता होने पर रोते रहे.

अपहरण के बाद हत्या

पकड़े जाने के बाद जब छानबीन शुरू की तो पुलिस के सामने रोंगटे खड़ी करने वाली जानकारी के साथ ही हैरतअंगेज कारनामे सामने आए. दोनों बहनों ने जब राज उगलने शुरू किए तो हर कोई दंग रह गया. इन महिलाओं ने बताया कि उन्होंने कई शहरों से 13 बच्चों का अपहरण किया था, जिन में से 9 की निर्मम हत्या कर दी गई थी. जबकि छोटी बहन सीमा ने पुलिस को पूरी सच्चाई बताई कि उन्होंने अब तक 42 बच्चों की हत्या की है.

गरीब बच्चों के मांबाप ने बच्चा गायब होने पर पुलिस से शिकायत नहीं की थी, इस के चलते इन पर केवल 13 बच्चों का अपहरण और 9 की हत्या का आरोप लगा. दोनों बहनों के गिरफ्त में आने के बाद रेणुका के पति किरण शिंदे ने सरकारी गवाह बन कर पुलिस की मदद की. वह इन लोगों के क्राइम में शामिल नहीं था, लेकिन इन की हकीकत भलीभांति जानता था. बाद में पुलिस ने उसे छोड़ दिया.

मुंबई के अलगअलग हिस्सों से बच्चों के अपहरण व हत्या के मामले में दोनों बहनों समेत मां अंजनाबाई को मास्टरमाइंड बताया गया था.

क्रूरता की हुई इंतहा

महाराष्ट्र में 90 के दशक में दोनों बहनें रेणुका व सीमा अपनी मां अंजनाबाई के साथ मिल कर मासूम बच्चों का अपहरण करती थीं. फिर उन्हें अपराध की दुनिया में धकेल दिया जाता था. इन बच्चों से भीख मंगवाने, चोरी कराने जैसे काम कराती थीं. मकसद पूरा हो जाने, अपराध की दुनिया में पुराने हो जाने और लोग जब उन बच्चों को पहचानने लगते थे तो ये महिलाएं उन की हत्या कर देती थीं. 13 बच्चों के अपहरण व उन की हत्या करने का आरोप इन पर लगा था.

बच्चों की हत्या की दर्दनाक कहानी

इन महिलाओं ने 2 साल के एक बच्चे का अपहरण कर के पहले तो कई दिनों तक उसे भूखा रखा. मासूम अपनी मां को याद कर बहुत रोता था. इस के चलते उस बच्चे को इतना पीटा कि उस की मौत हो गई.

संतोष नाम के एक बच्चे का भी इन्होंने अपहरण कर लिया. वह मात्र डेढ़ साल का था. एक शाम जब ये महिलाएं कहीं जा रही थीं तब बच्चा रोने लगा. बच्चे के रोने से लोगों का ध्यान उन पर जाएगा, इस डर से उन्होंने बच्चे का सिर जमीन और लोहे की रौड पर तब तक पटका, जब तक कि बच्चे ने उन की गोद में ही दम नहीं तोड़ दिया. इस के बाद बच्चे के शव को सुनसान जगह में फेंक दिया.

ऐसे ही 18 महीने के एक बच्चे की भी इन महिलाओं ने बेरहमी से हत्या की थी. पहले बच्चे का गला घोंट दिया गया. उस के शव को एक पर्स में ठूंसा और उस पर्स को एक सिनेमाहाल के टायलेट की शेल्फ में छोड़ दिया. इतना ही नहीं हत्या के बाद इन बहनों ने भेलपूरी खाते हुए मूवी का आनंद भी लिया.

अपहरण किया गया 3 साल का पंकज नाम का एक बच्चा इन महिलाओं के साथ रह रहा था. पंकज घर के आसपास के लोगों से बात करने की हिम्मत करने लगा था, ताकि वह उन महिलाओं के चंगुल से बाहर निकल सके. इस बात की जानकारी होते ही इन्होंने पंकज को पंखे से उलटा लटका दिया और दीवार में तब तक उस का सिर पटका, जब तक उस की मौत नहीं हो गई.

ये महिलाएं गरीबों के बच्चों की आड़ में चोरी को अंजाम देतीं और पकड़े जाने पर इमोशनल तरीका अपना कर बच जाती थीं.

जेल में हुई मां की मौत

नवंबर 1996 में पुलिस ने तीनों को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया. तीनों के विरुद्ध गंभीर आपराधिक मामले दर्ज थे. रेणुका का पति किरण इन मामलों में मुख्य गवाह बन गया तो उस के खिलाफ सारे मामले हटा दिए गए. गिरफ्तारी के एक साल बाद ही दिसंबर 1997 में अंजनीबाई की जेल में ही मौत हो गई.

156 गवाह कोर्ट में हुए पेश

मांबेटियों को काननू की नजर में गुनहगार ठहराया जाना पुलिस के लिए कोई आसान काम नहीं था. इस के लिए सीआईडी ने अपनी पूरी ताकत लगा दी थी. उस ने कई अहम परिस्थितिजन्य साक्ष्य एकत्र ही नहीं किए बल्कि 156 गवाह अदालत के समक्ष पेश किए. इन गवाहों में सब से अहम गवाह एक मासूम भी था, जो इन के चंगुल से भागने में सफल हो गया था.

पुलिस ने इन के खिलाफ 12 मामलों में ही एफआईआर दर्ज की थी. लिहाजा इतने ही मामलों में उन के विरुद्ध चार्जशीट दाखिल की गई.

राज्यपाल ने 2013 में खारिज की दया याचिका

कोल्हापुर के सत्र न्यायालय ने 2001 में दोनों बहनों शिंदे और गावित को मौत की सजा सुनाई थी. बौंबे हाईकोर्ट ने 2004 में और सुप्रीम कोर्ट ने 31 अगस्त, 2006 में सजा बरकरार रखी. दोनों बहनों ने 2008 में महाराष्ट्र के तत्कालीन राज्यपाल को दया याचिका भेजी, जो 2012-13 में खारिज हो गई. फिर तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी के सामने दया की गुहार लगाई. राष्ट्रपति ने भी 2014 में इन की दया की अरजी ठुकरा दी.

सरकार की देरी से मौलिक अधिकार का हनन

साल 1996 से पुणे की यरवडा जेल में बंद दोनों बहनों रेणुका और सीमा ने बौंबे हाईकोर्ट में फांसी देने की सजा पर देरी से अमल होने पर एक अपील दायर की थी, जिस में दोनों बहनों ने दया याचिकाओं के निपटान में बिना वजह देरी किया जाना जीवन के मूल अधिकार का उल्लंघन बताया. वे 25 सालों से कस्टडी में हैं और लगातार मौत के भय में जी रही हैं. ऐसी देरी जीवन जीने के मौलिक अधिकार का हनन करती है.

हाईकोर्ट के मौत की सजा पर मुहर लगाने के बाद हम 13 सालों से भी ज्यादा समय से पलपल मौत के डर में जी रही हैं. इतना लंबा समय जेल की सलाखों के पीछे बिताना उम्रकैद काटने जैसा है. लिहाजा अदालत हमारी रिहाई का आदेश दे.

cPolice Hirasat me Seema and Renuka (2)

फाइल को खिसकने में लगे 7 साल

कोर्ट ने कहा कि एक ओर केस फाइलें इलैक्ट्रौनिक माध्यमों से भेजी जा रही हैं, लेकिन इस मामले में दया याचिका की फाइल राज्य से केंद्र तक पहुंचने में 7 साल लग गए. कानूनन अगर दया याचिका पर बिना कारण देरी की जाती है तो मौत की सजा कम की जा सकती है. अपराधियों के मूल अधिकारों का उल्लंघन तो किया ही, इन के अपराधों से पीडि़तों के साथ भी अन्याय हुआ.

केंद्र सरकार की ओर से पेश अधिवक्ता ने कोर्ट को बताया कि उस की ओर से देरी नहीं हुई. राज्य सरकार से मिली दया याचिका को बिना देरी किए राष्ट्रपति के पास निर्णय के लिए भेज दिया था. राष्ट्रपति ने इस दया याचिका को 10 महीने में खारिज कर दिया था.

फांसी की सजा बदली उम्रकैद में

18 जनवरी, 2022 को उच्च न्यायालय ने अपना निर्णय दिया. जस्टिस नितिन जामदार व जस्टिस सारंग कोटवाल ने अपने निर्णय में कहा कि राष्ट्रपति ने भी दया याचिका 2014 में नकार दी थी. फिर भी उन्हें 7 साल तक फांसी पर न चढ़ाना शर्मनाक और सरकारी मशीनरी का अपने कर्तव्य का परित्याग करने समान है. व्यवस्था लापरवाही से भरी रही है. इसीलिए हमें फांसी को उम्रकैद में बदलना पड़ रहा है.

2 जजों की बेंच ने इन दोनों बहनों की रिहाई का फैसला महाराष्ट्र सरकार पर छोड़ दिया है. कहा है कि 25 साल से वे जेल में बंद हैं. इन दोनों बहनों को छोड़ दिया जाए या नहीं, इस पर राज्य सरकार फैसला ले. सरकार व अधिकारी अपना कर्तव्य नहीं निभा सके. ढीला व धीमा सिस्टम पीडि़तों को पूरा न्याय नहीं दिला पाया.

ऐसी महिलाओं को फांसी की सजा मिलने पर भी फांसी के फंदे पर न लटकाया जाना उन गरीबों की बदकिस्मती ही कहेंगे, जिन के बच्चों को इन महिलाओं ने दर्दनाक मौत दी.

यदि दिल दहलाने वाली इन सीरियल किलर बहनों को साल 2001 में कोर्ट ने जब फांसी की सजा दी थी. इस फांसी की सजा को साल 2014 में राष्ट्रपति ने माफी देने से इंकार कर दिया था. इस के बावजूद महाराष्ट्र राज्य व केंद्र सरकार ने इन कलयुगी पूतनाओं को फांसी पर नहीं चढ़ाया. यदि सजा के बाद फंदे पर लटका दिया जाता तो भारतीय इतिहास में पहला अवसर होता जब किसी महिला को फांसी पर लटकाया गया होता.

सीरियल किलिंग का यह केस भारत ही नहीं, दुनिया के सब से खतरनाक एवं दर्दनाक मामलों में एक था. इस समय दोनों बहनें रेणुका और सीमा पुणे की यरवदा जेल में बंद हैं.

शादी पर दिया मौत का तोहफा

‘‘मैं जया को बेइंतहा चाहता था, बहुत प्यार करता था उस से. इतना प्यार कि मैं पागल हो गया था उस के लिए. अपने जीतेजी मैं उसे किसी और की जागीर बनते नहीं देख सकता था. इसलिए मैं ने उसे मौत के घाट उतार दिया.’’ कहतेकहते अनुराग पलभर के लिए रुका, फिर आगे बोला, ‘‘अब ज्यादा से ज्यादा क्या होगा, फांसी हो जाएगी. मुझे फांसी भी मंजूर है. कम से कम एक बार में ही मौत तो आ जाएगी. वह किसी और की हो जाती तो मुझे रोजरोज मरना पड़ता.’’

पुलिस हिरासत में यह सब कहते हुए अनुराग नामदेव अपना गुनाह कुबूल कर रहा था या फिर अपनी मोहब्बत की दास्तां सुना कर दिल की भड़ास निकाल रहा था, समझ पाना मुश्किल था. उस की ये बातें सुन कर वहां मौजूद पुलिसकर्मी भी हैरान थे. वजह यह कि इस कातिल के चेहरे पर शर्मिंदगी या पछतावा तो दूर की बात, किसी भी तरह का डर नहीं था.

पुलिस हिरासत में अच्छे अच्छे अपराधियों के कसबल ढीले पड़ जाते हैं, पर अनुराग का आत्मविश्वास वाकई अनूठा था. उस की हर बात जया से अपनी मोहब्बत के इर्दगिर्द घूम रही थी. मानों दुनिया में उस के लिए जया और उस के प्यार के अलावा और कुछ था ही नहीं.

लालघाटी क्षेत्र भोपाल का वह हिस्सा है, जहां शहर खत्म हो जाता है और उपनगर बैरागढ़ शुरू होता है. लालघाटी का चौराहा और रास्ता दोनों भोपाल-इंदौर मार्ग पर पड़ते हैं, जहां चौबीसों घंटे आवाजाही रहती है. एयरपोर्ट भी इसी रास्ते पर है और शहर का चर्चित वीआईपी रोड भी इसी चौराहे पर आ कर खत्म होता है.

पिछले 15 सालों में लालघाटी चौराहे और बैरागढ़ के बीच करीब 2 दर्जन छोटेबड़े मैरिज गार्डन बन गए हैं. इन्हीं में एक है सुंदरवन मैरिज गार्डन. शादियों के मौसम में यह इलाका काफी गुलजार हो उठता है. रास्ते के दोनों तरफ बारातें ही बारातें दिखती हैं. घोड़ी पर सवार दूल्हे, उन के आगे नाचतेगाते बाराती और आसमान छूती रंगबिरंगी आतिशबाजी. नजारा वाकई देखने वाला होता है. शादियों के चलते इस रास्ते पर ट्रैफिक जाम की समस्या आम बात है.

8 मई को सुंदरवन मैरिज गार्डन में रोजाना के मुकाबले कुछ ज्यादा रौनक और चहलपहल थी. रात 8 बजे से ही मेहमानों के आने का सिलसिला शुरू हो गया था. इस मैरिज गार्डन में डा. जयश्री नामदेव और डा. रोहित नामदेव की शादी होनी थी. वरवधू दोनों ही भोपाल के हमीदिया अस्पताल में कार्यरत थे. डा. जयश्री बाल रोग विभाग में थीं और डा. रोहित सर्जरी डिपार्टमेंट में कार्यरत थे.

जयश्री और रोहित की शादी एक तरह से अरेंज मैरिज थी. जयश्री नामदेव 4 साल पहले ही जबलपुर मेडिकल कालेज से पीजी की डिग्री ले कर भोपाल के हमीदिया अस्पताल में बाल रोग विशेषज्ञ के पद पर तैनात हुई थीं. जयश्री के आने से पहले हमीदिया अस्पताल में एक ही डाक्टर नामदेव थे डा. रोहित. अब दूसरी नामदेव डा. जयश्री आ गई थीं. डा. जयश्री स्वभाव से बेहद हंसमुख और मिलनसार थीं. अस्पताल में स्वाभाविक तौर पर उन की खूबसूरती की चर्चा भी होती रहती थी.

अस्पताल में नामदेव सरनेम वाले 2 डाक्टर थे और दोनों कुंवारे. अगर दोनों शादी कर लें तो कितना अच्छा रहेगा. जयश्री और रोहित को ले कर अस्पताल में अकसर इस तरह का हंसीमजाक होता रहता था. डा. जयश्री के पिता घनश्याम नामदेव को जब पता चला कि उन्हीं की जाति का एक लड़का हमीदिया अस्पताल में डाक्टर है तो उन्होंने अपने स्तर पर पता लगा कर जयश्री की शादी की बातचीत चलाई.

रोहित के पिता रघुनंदन नामदेव जिला हरसूद के गांव छनेरा के रहने वाले थे और सिंचाई विभाग में कार्यरत थे. जयश्री और रोहित की शादी की बात चली तो रोहित के घर वाले भी तैयार हो गए. दोनों ही परिवारों के लिए यह खुशी की बात थी, क्योंकि नामदेव समाज में गिनती के ही लड़के लड़कियां डाक्टर हैं.

घनश्याम नामदेव मध्यप्रदेश विद्युत मंडल के कर्मचारी थे, जो रिटायरमेंट के बाद भोपाल के करोंद इलाके में बस गए थे. करोंद में उन्होंने खुद का मकान बनवा लिया था. उन की पत्नी लक्ष्मी घरेलू लेकिन जिम्मेदार महिला थीं. नामदेव दंपति की एक ही बेटी थी जयश्री. होनहार और मेधावी जयश्री ने 2003 में प्री मेडिकल परीक्षा पास करने के बाद भोपाल के गांधी मैडिकल कालेज से एमबीबीएस किया था और फिर जबलपुर मैडिकल कालेज से पोस्ट ग्रेजुएट.

बहरहाल, डा. रोहित और डा. जयश्री की शादी तय हो गई. 3 फरवरी, 2014 को पुराने भोपाल के एक होटल में रोहित और जयश्री की सगाई की रस्म पूरी की गई. सगाई के बाद दोनों पक्ष शादी की तैयारियों में लग गए.

घनश्याम की छोटी बहन अंगूरीबाई का विवाह सागर जिले के गढ़ाकोटा कस्बे में हुआ था. अब से डेढ़ साल पहले उस के पति कल्लूराम की कैंसर से मौत हो गई थी. बहनोई के अंतिम संस्कार का सारा खर्च घनश्याम ने ही उठाया था. अंगूरीबाई के 2 बेटे थे अनुराग नामदेव और अंबर नामदेव. अंबर अभी पढ़ रहा था.  इस परिवार का खरचा कपड़ों के पुश्तैनी व्यापार से चलता था. लेकिन उन का यह व्यापार मामूली स्तर का था, जिसे कल्लूराम के छोटे भाई उमाशंकर नामदेव संभालते थे.

पति की मृत्यु के बाद अंगूरी की सारी दुनिया अपने दोनों बेटों के इर्दगिर्द सिमट कर रह गई थी, क्योंकि वह खुद भी कैंसर की चपेट में आ गई थी. बहन की वजह से घनश्याम उस के और उस के बच्चों को ले कर चिंतित रहते थे. समयसमय पर वह उन की हर मुमकिन मदद भी करते रहते थे.

जब कल्लूराम जीवित थे तो एक दफा उन्होंने घनश्याम से अनुराग की नौकरी के लिए बात छेड़ी थी. इस पर उन्होंने उसे भोपाल आ कर बैंकिंग की कोचिंग लेने को कहा था. अनुराग को सहूलियत यह थी कि रहने और खानेपीने के लिए मामा का घर था. घनश्याम ने कोचिंग की फीस देने के लिए भी कह दिया था. यह सन 2005 की बात है. तब जयश्री एमबीबीएस के दूसरे साल में थी.

मामा से बातचीत के बाद अनुराग भोपाल आ गया और सबधाणी कोचिंग इंस्टीट्यूट में पढ़ाई करने लगा. मामा मामी और ममेरी बहन जयश्री उस का पूरा खयाल रखती थी. सभी को उस के घर के हालात की वजह से सहानुभूति थी. कोचिंग के दौरान एक बार अनुराग गंभीर रूप से बीमार पड़ा तो जयश्री और उस के मामा मामी ने उसे हमीदिया अस्पताल में भरती करवाया. उस की देखभाल से ले कर उस के इलाज का सारा खर्च भी उन्होेंने ही उठाया. मामा के यहां रहते हुए अनुराग जयश्री को एकतरफा प्यार करने लगा था.

कोचिंग के बाद अनुराग का चयन एचडीएफसी बैंक में पीओ के पद पर हो गया. उसे पोस्टिंग मिली सागर में. नौकरी जौइन करने के बाद वह सागर के पौश इलाके सिविल लाइंस में किराए का मकान ले कर रहने लगा.

लेकिन सागर जाने के बाद भी भोपाल से उस का नाता नहीं टूटा. अनुराग जयश्री को प्यार से जया कहता था, लेकिन उस का यह प्यार एक भाई का नहीं, बल्कि एक ऐसे आशिक का था, जिसे न तो रिश्तेनातों का लिहाज था और न मान मर्यादाओं की परवाह.

दरअसल अनुराग मन ही मन जयश्री को चाहने लगा था और यह मान कर चल रहा था कि वह भी उसे चाहती है. नजदीकी रिश्तों में इस उम्र में दैहिक आकर्षण स्वाभाविक बात है, पर समझ आने के बाद वह खुद ब खुद खत्म हो जाता है. लेकिन अनुराग यह बात समझने को तैयार नहीं था कि हिंदू सभ्यता में सामाजिक रूप से भी और कानूनी रूप से भी ऐसे रिश्तों में प्यार, सैक्स और शादी सब कुछ वर्जित है.

अनुराग ने जब अपना प्यार जयश्री पर जाहिर किया तो वह सकते में आ गई. अनुराग उस का फुफेरा भाई था और जयश्री को सपने में भी उस से ऐसी उम्मीद नहीं थी. जयश्री ने अपने स्तर पर ही अनुराग को समझाने की कोशिश की. लेकिन अनुराग आसानी से समझने वालों में नहीं था. जब भी मौका मिलता, वह उस से अपने प्यार की दुहाई दे कर शादी की बात कहता रहता. जब अनुराग जयश्री पर बराबर दबाव बनाने की कोशिश करने लगा तो मजबूरी में उस ने यह बात अपने मातापिता को बता दी.

हकीकत जान कर लक्ष्मी और घनश्याम के पैरों तले से जमीन खिसक गई. फिर भी उन्होंने बेटी को सब्र और समझदारी से काम लेने की सलाह दी और जल्दी ही इस परेशानी का हल निकालने का भरोसा दिलाया. निकट की रिश्तेदारी का मामला था. ऐसे में इस का एक ही रास्ता था कि अंगूरी से बात की जाए, ताकि संबंध खराब न हों. बात की भी गई. बड़े भाई के उपकारों तले दबी अंगूरी ने उन्हें आश्वस्त किया कि वह अनुराग को समझाएगी.

लेकिन अनुराग के तथाकथित प्यार का पागलपन समझने समझाने की हदें पार कर चुका था. मां के समझाने पर वह मान भी गया, पर दिखावे और कुछ दिनों के लिए. वक्त गुजरता रहा, लेकिन अनुराग के दिलोदिमाग से ममेरी बहन जयश्री की प्रेमिका की छवि नहीं मिट सकी. मायूस हो कर वह लुटेपिटे आशिकों की तरह दर्द भरे गानों और शेरोशायरी में अपने बीमार दिल की दवा ढूंढने लगा. लेकिन इस से उस का दर्द बढ़ता ही गया.

3 फरवरी को जयश्री और रोहित की सगाई थी. जयश्री के पिता घनश्याम ने इस की भनक अनुराग को नहीं लगने दी. लेकिन रोहित ने सगाई के 2 दिनों बाद 5 फरवरी को अपनी सगाई के फोटो फेसबुक पर शेयर किए तो उन्हें देख कर अनुराग बिफर उठा. उसे ऐसा लगा जैसे किसी ने उस के जख्मों पर नमक छिड़क दिया हो.

उस ने बगैर वक्त गंवाए घनश्याम और जयश्री से संपर्क कर के न केवल शादी की अपनी बेहूदी ख्वाहिश जाहिर की, बल्कि न मानने पर उन्हें देख लेने की धमकी भी दे डाली. उस की बात सुन कर घनश्याम चिंता में पड़ गए. उन की समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करें, क्योंकि कोई कानूनी काररवाई करते तो बदनामी का डर था. वैसे भी एक तो सगी बहन के लड़के का मामला था, दूसरे ऐसे मामलों में बात उछलने पर बदनामी लड़की की ही होती है.

डा. जयश्री इसलिए ज्यादा चिंतित नहीं थी, क्योंकि उन्होंने अपने मंगेतर डा. रोहित को अनुराग के बारे में सब कुछ बता दिया था. यह एक पढ़ीलिखी युवती का अपने भविष्य और दांपत्य के मद्देनजर समझदारी भरा कदम था.

उधर फेसबुक पर जयश्री और राहुल की सगाई के फोटो देखदेख कर अनुराग का जुनून और बढ़ता जा रहा था. धमकी के बावजूद घनश्याम और जयश्री पर कोई असर न होता देख वह और भी बौखला गया था. उसे लग रहा था कि अब जयश्री उसे नहीं मिल पाएगी.

दूसरी ओर भोपाल में शादी की तैयारियों में लगे घनश्याम चिंतित थे कि कहीं अनुराग कोई बखेड़ा न खड़ा कर दे. उस की बेहूदी हरकतों के बारे में सोचसोच कर कभीकभी वह यह सोच कर गुस्से से भी भर उठते थे कि जिस भांजे को बेटे की तरह रखा, वही आस्तीन का सांप निकला. उन के दिमाग में अनुराग की यह धमकी बारबार कौंध जाती थी कि अगर मेरी बात नहीं मानी तो अंजाम भुगतने को तैयार रहना.

उन के डर की एक वजह यह भी थी कि वह अनुराग के स्वभाव को जानते थे. लेकिन जवान बेटी का बाप होने की बेबसी उन्हें कोई कदम नहीं उठाने दे रही थी. इसलिए शादी के कुछ दिनों पहले उन्होंने अपने भतीजे शैलेंद्र नामदेव से इस बारे में सलाहमशविरा किया तो उस ने फोन पर अनुराग को ऊंचनीच समझाने की कोशिश की. इस पर अनुराग का एसएमएस आया कि तू अपनी दोनों बेटियों का खयाल रख, उन्हें अभी बहुत जीना है.

आखिरकार डरते सहमते 8 मई आ गई. उस दिन जयश्री और रोहित की शादी थी. रात के करीब 8 बजे रोहित और जयश्री स्टेज पर बैठे थे. परिचित और रिश्तेदार आने शुरू हुए तो 9 बजे तक मैरिज गार्डन में काफी भीड़ जमा हो गई. हर कोई खुश था. खासतौर से दोनों के घर वाले और हमीदिया अस्पताल के बाल रोग विभाग और शल्य चिकित्सा विभाग के डाक्टर्स और कर्मचारी.

खाने के पहले या बाद में लोग स्टेज पर जा कर वरवधू को शुभकामनाएं और आशीर्वाद दे रहे थे. घनश्याम और लक्ष्मी भी लोगों की शुभकामनाएं लेते यहां वहां घूम रहे थे. उन की जिंदगी का वह शुभ समय नजदीक आ रहा था, जब उन्हें एकलौती बेटी के कन्यादान की जिम्मेदारी निभानी थी.

तभी अचानक भीड़ में अनुराग को देख कर लक्ष्मी के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं तो वह पति को ढूंढने लगी. घनश्याम नहीं दिखे तो कुछ सोच कर वह एकांत में जा कर खड़ी हो गईं. उसे इस तरह खड़ा देख, उस की एक पड़ोसन ने आ कर पूछा भी कि क्या हुआ जो इस तरह घबराई हुई हो. इस पर लक्ष्मी ने इशारा कर के पड़ोसन को दरवाजे के पास खड़े अनुराग के बारे में बताया.

अनुराग एकदम सामान्य नजर आ रहा था और मेहमानों की तरह ही घूम रहा था. उस के गले में सफेद रंग का गमछा लटका था. तब तक रात के 10 बज चुके थे और भीड़ छटने लगी थी. इस के बावजूद स्टेज के पास वरवधू के साथ फोटो खिंचवाने वालों की लाइन लगी हुई थी. दूसरी ओर अनुराग की निगाहें स्टेज पर ही जमी थीं.

अचानक अनुराग स्टेज की तरफ बढ़ा और पास जा कर रोहित को बधाई दी. इस से पहले कि डा. रोहित उसे धन्यवाद दे पाते, अनुराग ने फुरती से रिवाल्वर निकाला और जयश्री की तरफ तान कर 2 फायर कर दिए. दोनों गोलियां जयश्री के सीने में धंस गईं. कोई कुछ समझ पाता, इस के पहले ही डा. जयश्री स्टेज पर गिर  पड़ीं. इसी बीच अनुराग ने अविलंब रोहित को निशाने पर ले लिया, लेकिन तब तक वह संभल चुके थे. नतीजतन गोली स्टेज के पीछे जा कर लगी, जिस के कुछ छर्रे रोहित के दोस्त कचरू सिसोदिया के पैर में लगे.

करीब 2 मिनट सकते में रहने के बाद जब लोगों को समझ में आया कि दुलहन पर गोली चली है तो उन्होंने गोली चलाने वाले अनुराग को पकड़ कर उस की धुनाई शुरू कर दी. उधर स्टेज पर रोहित जयश्री को संभाल रहे थे. इस बीच वहां मौजूद लेगों में से किसी ने पुलिस और अस्पताल में खबर कर दी थी.

जयश्री को तुरंत अस्पताल ले जाया गया. लेकिन डाक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया. फायर से भगदड़ मच गई थी. डर कर कई लोग वहां से भाग भी गए थे. जहां कुछ देर पहले तक हंसीमजाक चल रहा था, रौनक थी, वहां अब सन्नाटा पसर गया था. स्टेज पर रखे तोहफे और गुलदस्ते डा. जयश्री के खून से सन गए थे.

गुस्साई भीड़ ने अनुराग की जम कर धुनाई की थी, जिस से वह बेहोश हो कर गिर गया था. पुलिस आई तो पता चला कि वह जिंदा है. उसे तुरंत इलाज के लिए अस्पताल ले जाया गया. अब तक किसी को यह नहीं मालूम था कि अनुराग दुलहन का ममेरा भाई है. दूसरे दिन जिस ने भी सुना, स्तब्ध रह गया. अपनी ममेरी बहन को माशूका मानने वाले इस सिरफिरे आशिक की चलाई 2 गोलियों की गूंज भोपाल में ही नहीं, पूरे देश भर में सुनाई दी.

जब जयश्री की मौत की पुष्टि हो गई तो रात 2 बजे रोहित और उस के पिता बारात वापस ले कर अपने गांव छनेरा चले गए. एक ऐसी बारात, जिस के साथ दुल्हन नहीं थी.

बाद में पता चला कि वारदात के दिन अनुराग सागर से अपने एक दोस्त की मोटरसाइकिल मांग कर लाया था और देसी रिवाल्वर उस ने कुलदीप नाम के एक दलाल से 17 हजार रुपए में खरीदी थी. कत्ल की सारी तैयारियां उस ने पहले ही कर ली थीं. सुंदरवन मैरिज गार्डन में प्रवेश के पहले ही वह पूरी रिहर्सल कर चुका था. उसे इंतजार बस मौका मिलने का था, जो उस वक्त मिल गया जब डा. रोहित और जयश्री स्टेज पर लोगों की शुभकामनाएं ले रहे थे.

पुलिस हिरासत में अनुराग ने बताया कि जैसे ही जयश्री ने राहुल के गले में माला डाली, मैं ने अपना आपा खो दिया था. मुझे नहीं मालूम कि लोगों ने मुझे मारा भी था. मैं तो खुद को भी गोली मारने वाला था, लेकिन मौका नहीं मिला.

घायल अनुराग को हमीदिया अस्पताल के बजाय दूसरे अस्पताल में भर्ती कराया गया था. दरअसल पुलिस को डर था कि कहीं अस्पताल के लोग उसे मार न डालें. क्योंकि जयश्री वहां काम करती थी. इस बीच कोहेफिजा थाना पुलिस ने उस के खिलाफ जयश्री की हत्या का मामला दर्ज कर लिया था.

दूसरे दिन पोस्टमार्टम के बाद जब जयश्री की अर्थी उठी तो नामदेव दंपत्ति का दुख देख सारा मोहल्ला रो उठा. लक्ष्मी और घनश्याम रह रह कर बेटी की अर्थी पर सिर पटक रहे थे. हमीदिया अस्पताल में भी मातम छाया था.

एकतरफा प्यार में डूबा अनुराग दरअसल मनोरोगी बन गया था. जिस जुनून में उस ने वारदात को अंजाम दिया था, उसे इरोटोमेनिया भी कहते हैं और डिल्यूजन औफ लव भी. इस रोग में मरीज अपनी बनाई मिथ्या धारणा को ही सच मान कर चलता है और किसी के समझाने पर भी नहीं मानता. ऐसा मरीज बेहद शातिर और खतरनाक होता है.

जयश्री और अनुराग के बीच में क्या कभी प्रेमिल संबंध रहे थे, जैसा कि अनुराग कह रहा है, इस बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता. बहरहाल सच जो भी रहा हो, जयश्री के साथ चला गया. घनश्याम नामदेव ने बदनामी से बचने की जो कोशिश की थी, वह उन्हें काफी महंगी पड़ी. अगर वह वक्त रहते भांजे के खिलाफ कानूनी काररवाई करते तो जयश्री बच सकती थी.

बेटे के हत्यारों के लिए मां बनी रणचंडी

यह कहानी आंध्र प्रदेश की है. आंध्रप्रदेश के मध्य में आता है पल्नाडु जिला. तेलुगु इतिहास में सतवाहन राजाओं के साम्राज्य के पतन के समय पल्लव वंश के राजा ने यहां कृष्णा नदी की घाटी में स्वतंत्र राज्य की स्थापना की थी, इसलिए इस क्षेत्र को पल्लवनाडु के रूप में जाना जाता है, जो आज बिगड़तेबिगड़ते पल्नाडु हो गया है. इस जिले का मुख्यालय नरसारावपेट है.

नरसारावपेट शहर की एसआरकेटी कालोनी में मध्यमवर्गीय लोग रहते हैं. 40 वर्षीया जान बी पठान भी इसी कालोनी में रहती थी. मेहनत मजदूरी करने वाली जान बी का गठा शरीर होने की वजह से वह 30 साल की ही लगती थी. जान बी के पति का नाम शब्बीर था. करीब 15 साल पहले एक दुर्घटना में उस की मौत हो गई थी.

पति की मौत के बाद हिम्मत हारने के बजाय जान बी ने मेहनत कर के अपने 2 बेटों को अच्छी तरह पालापोसा. 17 साल के बड़े बेटे का नाम सुभान तो 16 साल के छोटे बेटे का नाम इलियास था. ये दोनों भी अपनी जिम्मेदारी समझते हुए मां के काम में मदद करने लगे थे.

अधेड़ उम्र का प्यार

साल 2020 में इसी कालोनी में 36 साल का शेख बाजी रहने आया. दिखने में फिल्मी हीरो जैसा सुंदर शेख बाजी टपोरी था और इस इलाके में उस ने एक दबंग के रूप में अपनी छवि बना रखी थी. अकसर छोटेमोटे झगड़ों में उस का नाम आता रहता था.

शेख बाजी शादीशुदा था. उस के परिवार में पत्नी मोबीना के अलावा एक बेटी और 2 बेटे थे. रंगीनमिजाज इस दबंग की नजर जान बी पर पड़ी तो जम कर रह गई. मदद करने के बहाने उस ने जान बी के घर में प्रवेश किया तो जान बी को प्रभावित करने के लिए छोटीमोटी आर्थिक मदद भी करने लगा. विधवा जान बी ने शुरूशुरू में तो उसे कोई खास तवज्जो नहीं दी, पर शेख बाजी ने धैर्यपूर्वक दाना डालना चालू रखा.

करीब 6 महीने में उस की मेहनत रंग लाई और आखिर जान बी को भी उस से प्यार हो गया तो उस ने उसे खुद को समर्पित कर दिया.

इस तरह की बातें छिपी तो रहती नहीं. फिर जान बी का बड़ा बेटा होशियार था और दुनियादारी समझने लगा था. उसे अपनी मां के इस प्रेम संबंधों की जानकारी हो गई. पर वह अपनी मां को क्या कह सकता था? पिता की मौत के बाद मेहनत मजदूरी कर के मां ने ही दोनों बेटों को पालापोसा था. ऐसे में मां से कुछ कहने की उन की हिम्मत नहीं थी.

पर कालोनी में इन के दोस्त थे. कभी वे इस बात की चर्चा कर के सुभान की हंसी उड़ाते तो गुस्से से उस के दिमाग की नसें फूलने लगतीं और खुली मुट्ठी कस जाती. दोस्त मां के बारे में उल्टीसीधी बातें कह कर मजाक उड़ाते तो सुभान को इस तरह तकलीफ होती जैसे उस के कानों में कोई गरम सीसा डाल रहा हो.

सुभान ने धमकाया मां के प्रेमी को

दिल में लगी आग जब बेकाबू होने लगी तो सुभान ने जबरदस्त हिम्मत की. बीच बाजार में जरा भी डरे और शरम किए बगैर उस ने बाजी शेख का कालर पकड़ कर धमकाते हुए कहा, “अब फिर कभी मेरे घर में कदम रखा तो ठीक नहीं होगा. यह जो मैं कह रहा हूं, इसे हलके में मत लेना. अगर अब तुम मेरे घर आए तो अपने पैरों से चल कर नहीं जा पाओगे.”

शेख बाजी सन्न रह गया. 17 साल के लडक़े की हिम्मत देख कर वह सहम गया. कुछ बोले बगैर वह वहां से चला गया. घर जा कर उस ने जब सुभान की धमकी पर विचार किया तो उसे लगा कि अगर जान बी से संबंध रखना है तो इस लडक़े को रास्ते से हटाना होगा. फिर उस ने सुभान को निपटाने का उपाय भी सोच लिया.

शेख बाजी ने अपने जिगरी दोस्त अल्लाह कासिम से बात की. इस के बाद दोनों ने बैठ कर योजना बनाई. इस के बाद 8 अगस्त, 2021 को शेख बाजी जान बी के गेट पर आया और सुभान को बाहर बुलाया.

सुभान बाहर आया तो बाजी ने कहा, “तुम्हारे लिए एक काम ढूंढा है. दूध की एक डेयरी में तुम्हारे लिए नौकरी की बात की है. तुम अभी मेरे साथ चलो.”

सुभान उस के साथ चल पड़ा. दोनों डेयरी के पास पहुंचे तो अल्लाह कासिम वहां एक मिल्क वैन के पास खड़ा था. उस समय वहां आसपास कोई नहीं था. कासिम ने सुभान को पकड़ लिया तो शेख बाजी ने छुरी से सुभान का गला रेत दिया. जब उन्हें विश्वास हो गया कि सुभान मर गया है तो उन्होंने लाश को उठा कर उसी मिल्क वैन में डाल दी.

रात तक सुभान घर नहीं आया तो जान बी छोटे बेटे इलियास को ले कर उसे खोजने निकली. उसे पता था कि शेख बाजी उसे अपने साथ ले गया था, इसलिए सब से पहले वह उस के घर गई. शेख बाजी ने कहा, “वह तो 15 मिनट बाद ही हमारे पास से चला गया था.”

“हमारे यानी?” जान बी ने तुरंत पूछा, “तुम्हारे साथ और कौन था?”

अब तो बाजी के मुंह से निकल गया था, इसलिए उसे सच बताना पड़ा, “अल्लाह कासिम हमारे साथ था.”

हत्यारों को सजा देने की खाई कसम

मांबेटे निराश हो कर घर लौट आए. अगले दिन सुबह मिल्क वैन से सुभान की लाश मिली तो पूरे इलाके में सनसनी फैल गई. पोस्टमार्टम करा कर पुलिस ने सुभान की लाश जान बी को सौंप दी.

सुभान के दोस्तों ने जान बी को बताया कि सुभान ने बाजी को धमकी दी थी, इसलिए यह काम उसी ने किया होगा. जान बी ने शेख बाजी और अल्लाह कासिम के खिलाफ बेटे की हत्या का मुकदमा दर्ज करा दिया. पुलिस ने दोनों को गिरफ्तार किया. पर दोनों ने न तो अपना अपराध स्वीकार किया और न ही वह छुरी बरामद कराई, जिस से सुभान की हत्या की थी. पुलिस को कोई चश्मदीद गवाह भी नहीं मिला था. फिर भी पुलिस ने दोनों को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

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जान बी पर तो दुखों का पहाड़ टूट पड़ा था. 17 साल के बेटे को खोने का गम उसे साल रहा था. पर उस की रगों में पठानी खून बहता था. सुभान के जनाजे पर सिर रख कर उस ने बिलखते हुए सभी के बीच प्रतिज्ञा ली, “मैं पठान की बेटी हूं. जिन लोगों ने मेरे बेटे को मारा है, उन लोगों को मार कर ही मुझे चैन मिलेगा.”

जान बी का छोटा भाई हुसैन अब बहन के घर रहने आ गया था. 8 अगस्त को सुभान की हत्या हुई थी. 10 अगस्त को पुलिस ने बाजी शेख और अल्लाह कासिम को गिरफ्तार किया था. नवंबर के पहले सप्ताह में दोनों जमानत पर छूट कर बाहर आ गए.

शेख बाजी ने जान बी को प्यार किया था. इस बीच अनुभव के आधार पर उस ने जान बी की आक्रामकता को भांप लिया था. उस के द्वारा की गई प्रतिज्ञा भी जगजाहिर थी. इसलिए शेख बाजी घबरा गया था. उस ने पल्नाडु शहर छोड़ दिया और वहां से 50 किलोमीटर दूर चिल्कालुरीपेट गांव में रहने चला गया. अल्लाह कासिम को जान बी की आक्रामकता का पता नहीं था, इसलिए वह बिंदास पल्नाडु में घूमता रहा.

जान बी ने एक आरोपी को मारा बीच बाजार में

जान बी के जीवन का अब एक ही उद्देश्य था, बेटे को मारने वाले शेख बाजी और अल्लाह कासिम को खत्म करना. बहन की मदद के लिए उस का छोटा भाई हुसैन भी तैयार था. बड़े भाई सुभान की हत्या का बदला लेने के लिए जूनून छोटे भाई इलियास पर भी सवार था.

20 दिसंबर, 2021 की शाम इलियास ने अल्लाह कासिम को देखा. सिनेमा थिएटर के जंक्शन के पास एक दुकान के बरामदे में वह बैठा था. उसे देख कर ही लग रहा था कि उस ने खूब शराब पी रखी है. इलियास भागते हुए घर गया और यह बात उस ने मां और मामा को बताई. मटन काटने का छुरा दुपट्टे में छिपा कर जान बी घर से निकली. उस के पीछेपीछे हुसैन और इलियास भी चल पड़े.

थिएटर जंक्शन पर भीड़ की परवाह किए बगैर तीनों ने दुकान के बरामदे में बैठे अल्लाह कासिम को घेर लिया. जान बी की आंखों में उतरा खून देख कर वह घबराया, पर भागने का कोई रास्ता नहीं था. एक आदमी को 3 लोगों ने घेर रखा है, यह देख कर लोगों की भीड़ इकट्ठा होने लगी.

जान बी ने हुसैन और इलियास से कहा, “तुम दोनों इस के हाथ पैर पकड़ो.”

जान बी का इतना कहना था कि हुसैन और इलियास ने अल्लाह कासिम के हाथ पैर पकड़ कर दबोच लिया. जान बी ने दुपट्टे में लपेटा छुरा निकाला. उस की आंखों के सामने बेटे सुभान की लाश का दृश्य था. उस ने दांत भींच कर पूरी ताकत से अल्लाह कासिम के गले में छुरा घुसेड़ दिया.

यह दृश्य देख कर वहां खड़े लोग स्तब्ध रह गए. इस के बाद जान बी ने खचाखच लगातार 4 वार किए. फिर तो अल्लाह कासिम का खेल खत्म हो गया. जान बी ने उस की लाश पर थूक कर संतोष की सांस ली.

इस बीच किसी ने पुलिस को फोन कर दिया था. जान बी वहां से जाती, उस के पहले ही पुलिस आ गई. हंसते हुए जान बी ने खुद को पुलिस के हवाले करते हुए कहा, “मैं ने अपने बेटे के हत्यारे को खत्म कर दिया. अब आप को मुझे जहां ले जाना हो, ले चलिए.”

थाने में भी जान बी ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया था. पुलिस ने इलियास और हुसैन को भी गिरफ्तार कर लिया था. इलियास नाबालिग था, इसलिए उसे बाल सुधार गृह भेज दिया गया. बाकी जान बी और हुसैन को जेल भेज दिया था.

जान बी ने प्रेमी को दी प्यार की डोज

दिसंबर, 2021 को जान बी ने अल्लाह कासिम का कत्ल किया था. अप्रैल, 2022 को वह और हुसैन जमानत पर बाहर आ गए. उस ने इलियास को भी छुड़ा लिया था. अभी उस की प्रतिज्ञा अधूरी थी. सुभान के हत्यारे शेख बाजी का पता कर के उसे और खत्म करना था.

हृदय में घुट रही दुश्मनी की तासीर जैसेजैसे पुरानी होती है, उतनी ही तीव्र होती जाती है. शेख बाजी की तलाश में जान बी दिनरात एक किए हुए थी. काफी मेहनत के बाद आखिर जनवरी, 2023 में शेख बाजी के बारे में उस ने पता कर ही लिया. उसे उस का फोन नंबर भी मिल गया था. जान बी को पता था कि उसे जाल में फंसाने के लिए त्रियाचरित्र ही काम आएगा.

जान बी ने अल्लाह कासिम की हत्या कर दी है, पल्नाडु से 50 किलोमीटर दूर चिल्कालुरीपेट गांव में रह रहे शेख बाजी ने सुना तो वह घबरा गया था.

जान बी ने उसे फोन किया, “मैं जानती हूं कि हमारे संबंध ऐसे थे कि तुम मेरे बेटे का अहित कभी नहीं कर सकते थे. सुभान की हत्या करने वाले अल्लाह कासिम को मैं ने खत्म कर दिया है. तुम्हारे लिए तो मेरे दिल में अभी भी पहले वाला ही प्यार है. उस समय भी तुम्हारे इश्क में पागल थी और अभी भी वही हाल है.”

इसी के साथ मीठी हंसी हंसते हुए उस ने कहा, “जब इच्छा हो, मुझे फोन कर के नरसारावपेट आ जाना. जब तुम्हें आना होगा, इलियास और हुसैन को पैसे दे कर पिक्चर देखने भेज दूंगी.”

जान बी के साथ एकांत पाने के चक्कर में शेख बाजी उस की मीठीमीठी बातों में फंस गया. उसे लगा कि जान बी अभी भी उस के प्यार में पागल है. वह नरसारावपेट आया तो हुसैन और इलियास घर में ही थे. मुसकराते हुए जान बी ने उसे चायनाश्ता कराया. इसी तरह शेख बाजी 4 बार नरसारावपेट आया. जान बी को पता था कि शेख बाजी खतरनाक गुंडा है. इस की हत्या करना अल्लाह कासिम की हत्या करने जैसा आसान नहीं है.

प्रेमी का गला रेत कर मिली शांति

21 जून, 2023 को फोन कर के जान बी ने शेख बाजी को निमंत्रण दिया कि आज उस के भाई हुसैन का जन्मदिन है. इसलिए शाम को वह जरूर आए. शेख बाजी ने खुशीखुशी आने के लिए हां कर दी.

शहर से थोड़ी दूर एक सुंदर स्थान पर आयोजित जन्मदिन की पार्टी में जान बी, शेख बाजी, हुसैन और इलियास के अलावा हुसैन के 2 दोस्त गोपीकृष्ण और हरीश भी थे. हुसैन ने बोतल खोली और बाजी को जम कर शराब पिलाई. शराब के साथ चिकन के भी तरहतरह के आइटम खाने के लिए थे. पेट भर चिकन खाने और जम कर शराब पीने के बाद शेख बाजी विरोध करने लायक नहीं रहा था.

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इलियास और हुसैन ने उस के हाथपैर पकड़ लिए तो मटन काटने वाला छुरा ले कर जान बी पूरी आक्रामकता से उस पर टूट पड़ी. सुभान की गला कटी लाश उस की आंखों के सामने नाच रही थी. रणचंडी बनी जान बी लगातार शेख बाजी के गले पर छुरे से वार करती रही.

शेख बाजी खत्म हो गया, फिर भी जुनून में पागल जान बी के हाथ रुक नहीं रहे थे. तब हुसैन ने उस का हाथ पकड़ कर खींचते हुए कहा, “बाजी, यह खत्म हो चुका है.”

वे साथ में एक डिब्बे में पैट्रोल भी ले कर आए थे. शेख बाजी की लाश पर पैट्रोल डाल कर उसे जला दिया. पैट्रोल कम था, इसलिए लाश आधी ही जली. अधजली लाश को गड्ढे में धकेल कर जान बी सीधे थाने पहुंची.

उस ने एसआई बालांगी रेड्डी और सर्किल इंसपेक्टर भक्तवत्सला के सामने अपना अपराध स्वीकार करते हुए कहा कि उस ने अपने बेटे सुभान के हत्यारे शेख बाजी की हत्या कर दी है.

पुलिस ने लाश बरामद कर के पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दी. पुलिस ने 22 जून, 2023 को जान बी, इलियास, हुसैन, गोपीकृष्ण और हरीश को गिरफ्तार किया. पूछताछ के बाद पुलिस ने छुरा, पैट्रोल वाला डिब्बा भी बरामद कर लिया था.

इस के बाद सभी को अदालत में पेश किया, जहां से इन्हें जेल भेज दिया गया. जान बी को सजा की चिंता बिलकुल नहीं है. क्योंकि जेल जाते समय बेटे की हत्या का बदला लेने का संतोष उस के चेहरे पर साफ झलक रहा था.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. कथा में इलियास परिवर्तित नाम है.

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दगा दे गई सोशल मीडिया की गर्लफ्रैंड – भाग 4

तभी अनिल ने विवेक से बातचीत शुरू करते हुए कह  “;मुझे आप दोनों बारे में सब कुछ पता है. तृप्ति मेरी भी दोस्त है, इसलिए आप को समझा रहा हूं कि अब आप इन का पीछा करना छोड़ दो, यही बेहतर होगा.”

सुन कर विवेक आपे से बाहर हो गया और खड़े हो कर बोला  “आप कुछ नहीं जानते हैं हमारे बारे में. फालतू में ही कबाब में हड्डी बन रहे हो.”

सुन कर तैश मैं आ कर अनिल ने कहा “पहली बात तो यह है कि मैं वेजिटेरियन हूं, इसलिए कबाब और हड्डी की बात मत करो. और दूसरी बात यह है कि जबरदस्ती की दोस्ती ज्यादा दिन नहीं चलती. इसलिए तुम्हें फिर से समझा रहा हूं कि तृप्ति का पीछा छोड़ दो, वरना…”

“मुझे धमकी दे रहे हो,” कह कर विवेक ने आंखें तरेरीं.

तो मुसकराकर अनिल ने कहा, “धमकी नहीं चेतावनी दे रहा हूं कि इन का पीछा कर परेशान करने की शिकायत अगर पुलिस में चली गई तो मुश्किल में पड़ जाओगे.”

प्रोफेसर अनिल की चेतावनी सुन कर विवेक गुस्से से आग बबूला हो गया और पैर पटकता हुआ वहां से चला गया. रेस्टोरेंट में बैठे लोग उन की तरफ देखने लगे थे इसलिए प्रोफेसर अनिल तथा तृप्ति भी रेस्टोरेंट से बाहर निकल गए. विवेक और प्रोफेसर अनिल के बीच हुई इस तकरार से तृप्ति परेशान और भयभीत नजर आ रही थी जिसे देख कर अनिल ने उसे समझाते हुए कहा, “घबराओ नहीं, तुम आगे आगे चलो मैं पीछे आ रहा हूं. ज्यादा परेेशान करे तो इस की पुलिस से शिकायत कर देना, पक्का इलाज कर देगी पुलिस.”

जिस पर तृप्ति अपनी स्कूटी स्टार्ट कर घर की तरफ चल दी. उस के पीछेपीछे प्रोफेसर अनिल भी कार से चल दिया. रोडवेज बस स्टैंड से थोङ़ा आगे पहुंचने पर अचानक विवेक भी स्कूटर से उस का पीछा करने लगा

सीआरपीएफ ग्राउंड के आगे ओवरब्रिज होते हुए मेयो कालेज की तरफ घूम कर तृप्ति ने स्कूटी आगे बढ़ाई ही थी कि तभी मदार पुुलिस चौकी के आगे सुनसान जगह देख कर अचानक विवेक ने आगे आ कर तृप्ति की स्कूटी रुकवा दी और अपना स्कूटर स्टार्ट छोड़ कर ही तृप्ति के पास आ कर विवेक ने सड़क पर फिर एक बार तृप्ति के सामने शादी का प्रस्ताव रख दिया. उस की सड़क छाप मजनू जैसी हरकत देख कर तृप्ति बुरी तरह से भड़क उठी और चीख कर बोली, “मेरा पीछा छोङ़ो, नहीं करूंगी शादी तुम से जाओ.”

उस की आवाज सुन कर सड़क के किनारे टपरी पर चाय पी रहे लोग उधर देखने लगे और तभी ऐसा कुछ घटित हो गया जिस की किसी को भी उम्मीद नहीं थी.

चाकू के पहले वार से बचने के लिए तृप्ति ने हाथों से रोकना चाहा तो हथेलियों पर गहरे घाव हो गए. जब कि गुस्से से पागल हो चुके विवेक ने चाकू का दूसरा वार तृप्ति के दिल पर किया. चाकू के वार ने उस का दिल चीर कर रख दिया और खून का फव्वारे से हत्यारे के हाथ-पैर और कपड़े भीग गए. जबकि चाकू के तीसरे वार से उस के फेफड़े क्षति ग्रस्त हो गए थे. वह निढाल होकर सङक पर गिर गई.

तृप्ति वह स्कूटी अपनी एक परिचित महिला से ले कर तथा अपनी बेटी को उस के पास छोड़ कर कोई जरूरी काम बोल कर सुनील से मिलने इंजीनियरिंग कालेज गई थी. वहीं तृप्ति के घर वाले भी घटना के बारे में कुछ भी नहीं बता सके. वो बेटी के दुर्भाग्य पर आंसू बहा रहे थे. पुलिस ने तृप्ति के शव का पोस्टमार्टम हो जाने के बाद उस का शव उस के परिजनों को सौंप दिया.

एसएचओ श्याम ङ्क्षसह चाारण ने आरोपी विवेक उर्फ विवान से पूछताछ के बाद उसे अदालत में पेश कर 2 दिन का पुलिस रिमांड पर लिया. रिमांड अवधि में उस की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त चाकू, स्कूटर और खून से सने कपड़े बरामद कर लेने के बाद फिर से अदालत में पेश किया. वहां से उसे अजमेर के सेंट्रल जेल भेज दिया.

आरोपी विवेक सिंह ने बताया कि वह पिछले ढाई साल से तृप्ति के साथ लिवइन रिलेशनशिप में रह रहा था. उस पर वह हजारों रुपए खर्च कर चुका था. यही नहीं उस ने प्यार में पागल हो कर अपने हाथ पर तृप्ति के नाम का टैटू भी गोदवा रखा था. वह अपनी कमाई का बङ़ा हिस्सा उस पर खर्च कर देता था. वह उस से शादी कर जिंदगी गुजारना चाहता था. अपने नए दोस्त अनिल के आ जाने पर तृप्ति के तेवर ही बदल गए.

उस की इस बेरुखी से उसे बेवफाई की बू आने लगी, जिसे वह सहन नहीं कर पाया इसलिए उसने उसे जान से मार दिया. लंबी सांस ले कर उस ने कहा उसे अपने किए पर कोई पछतावा नहीं है.

पुलिस ने पुख्ता तैयारी के साथ अजमेर के जिला एवं सत्र न्यायालय यमें आरोपी विवेक सिंह उर्फ विवान के खिलाफ चार्जशीट पेश कर दी थी.

(कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित)