Extramarital Affair : बेटे ने बाप के साथ मिल कर मां के प्रेमी का घोंटा गला

Extramarital Affair : अवैध संबंधों की परिणति कभी भी अच्छी नहीं होती. यह बात पुरुष भी जानता है और महिला भी. इस के बावजूद वे गलतियों पर गलतियां करते रहते हैं. यही गलती अखिलेश और अंजुम कर रहे थे, जिस का नतीजा…

20 तारीख के यही कोई सुबह के 6 बजे की बात है. कड़ाके की ठंड के साथसाथ कोहरे की चादर भी फैली हुई थी. पौ फटते ही धीरेधीरे अस्तित्व में आती सूरज की किरणों ने कोहरे से मुकाबला करना शुरू किया तो दिन का मिजाज बदलने लगा. ठंड कम होती गई और कोहरे की चादर झीनी. ग्वालियर के थाना हजीरा क्षेत्र के कांच मिल इलाके में बसी श्रमिकों की बस्ती में रहने वाले लोग नित्यक्रिया के लिए रेल पटरी के पास गए तो उन्हें वहां एक पुरुष की रक्तरंजित लाश पड़ी दिखाई दी. खून चूंकि जम कर काला पड़ गया था, इस से लग रहा था कि उसे मरे हुए 1-2 दिन हो गए होंगे. खबर फैली तो पैर कटी लाश के आसपास काफी भीड़ जमा हो गई.

एकत्र भीड़ में तरहतरह की चर्चाएं हो रही थीं. लोग उसे पहचानने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन उसे कोई भी नहीं पहचान पाया. इस बीच किसी ने हजीरा थाने को फोन कर रेलवे लाइन पर लाश पड़ी होने की सूचना दे दी. कुछ ही देर में  थानाप्रभारी आलोक परिहार पुलिस टीम के साथ मौकाएवारदात पर पहुंच गए. पुलिस को आया देख भीड़ लाश के पास से हट गई. थानाप्रभारी ने लाश का निरीक्षण किया. मृतक की उम्र 45 वर्ष के आसपास थी. उस के गले में साफी लिपटी थी, जिस का एक भाग मुंह में ठुंसा था. इस से यह बात साफ हो गई कि उस की हत्या कहीं और की गई

थी, और बाद में लाश को यहां डाल दिया गया था. तलाशी में पुलिस को मृतक की जेबों से एक पर्स मिला, जिस में ड्राइविंग लाइसैंस और ग्वालियर नगर निगम का परिचय पत्र था. इन दोनों चीजों से मृतक की शिनाख्त हो गई. इस से पुलिस का काम आसान हो गया. मृतक का नाम अखिलेश था, परिचय पत्र और लाइसैंस में उस का पता लिखा था. अखिलेश नगर निगम की कचरा ढोने वाली गाड़ी चलाता था. मौके से पुलिस को मृतक के नामपते के अलावा कोई भी अहम सबूत हाथ नहीं लगा. ड्राइविंग लाइसैंस और परिचय पत्र को कब्जे में ले कर थानाप्रभारी आलोक परिहार ने 2 सिपाहियों को भेज कर मृतक के परिजनों को मौके पर बुलवा लिया. घर वाले अखिलेश की लाश देखते ही बिलखने लगे. आवश्यक लिखापढ़ी के बाद पुलिस ने लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया.

थाने पहुंचते ही थानाप्रभारी ने अज्ञात लोगों के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज कर लिया. मामला संगीन था, इसलिए एसपी नवनीत भसीन के आदेश पर एसपी (सिटी) रवि भदौरिया ने इस ब्लाइंड मर्डर के खुलासे के लिए हजीरा थानाप्रभारी आलोक परिहार की अगुवाई में एक टीम का गठन कर दिया. इस टीम का निर्देशन एएसपी पंकज पांडे कर रहे थे. अगले दिन पुलिस को पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिल गई. रिपोर्ट में मौत की वजह गला घोटा जाना बताया गया था. मौत का समय रात 11 बजे से 2 बजे के बीच का था. समय देख कर पुलिस को लगा कि अखिलेश की हत्या किसी नजदीकी व्यक्ति ने की होगी, इसलिए पुलिस ने उस के पड़ोसियों,

रिश्तेदारों के अलावा परिचितों से भी पूछताछ कर के जानना चाहा कि उस का किनकिन लोगों के यहां ज्यादा आनाजाना था. पूछताछ में पुलिस को पता चला कि अखिलेश पिछले 8 सालों से अवाडपुरा निवासी मुश्ताक के घर आताजाता था. घर में बैठ कर दोनों देर रात तक शराब पीते थे. पुलिस ने अखिलेश और मुश्ताक के घर वालों के मोबाइल नंबर ले कर उन की काल डिटेल्स निकलवाई. काल डिटेल्स का अध्ययन करने पर पता चला कि अखिलेश एक नंबर पर सब से ज्यादा बातें किया करता था. उस नंबर की जांच हुई तो पता चला कि वह मुश्ताक के नाम पर था. लेकिन उस नंबर पर उस की पत्नी अंजुम भी बात करती थी.

हकीकत जानने के लिए पुलिस मुश्ताक के घर गई और उस की पत्नी अंजुम से पूछताछ की लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकला. दोनों ने यह बात स्वीकारी की अखिलेश से बात भी होती थी और वह घर भी आता था. कुछ लोगों से की गई पूछताछ में पुलिस को जानकारी मिली कि पिछले कुछ दिन से मुश्ताक को अखिलेश का घर आनाजाना खटक रहा था. सौरभ और छोटे खान भी उसे टेढ़ी नजर से देखते थे. खास कर सौरभ और छोटे खान को तो अखिलेश फूटी आंख पसंद नहीं था. जबकि अंजुम को बापबेटों की बातें कांटे की तरह चुभती थीं. इसी बात को ले कर अंजुम का अपने शौहर और बेटों से विवाद होता रहता था.

जानकारी काम की थी. पुलिस का शक अंजुम के पति और बेटों के इर्दगिर्द घूमने लगा. यह भी संभव था कि पति और बेटे मां के प्रेमी के कातिल बन गए हों. लेकिन इस बाबत पुख्ता सबूत हाथ न लगने से पुलिस असमंजस की स्थिति में थी. एक और अहम बात यह थी कि अखिलेश की हत्या की भनक पड़ोसियों तक को नहीं थी. पुलिस के पहुंचने पर ही पड़ोसियों के बीच इस बात को ले कर बहस छिड़ी कि आखिरकार मुश्ताक के घर पुलिस के आने की असल वजह क्या है. पुलिस ने कुछ बिंदुओं पर एक बार फिर अंजुम से अलग से पूछताछ की. उस ने बिना डरे बड़ी चतुराई के साथ सभी सवालों के जबाव दिए. अखिलेश से दोस्ती और परिवार में इस बात के विरोध की बात तो उस ने स्वीकार की, लेकिन अखिलेश की हत्या करने की बात नकार दी.

पुलिस ने जब अखिलेश के परिजनों से जानना चाहा कि उस की किसी से कोई ऐसी रंजिश थी, जो हत्या की वजह बनी हो. साथ ही यह भी पूछा कि अखिलेश का किसी के साथ कोई चक्कर तो नहीं चल रहा था. घर वालों ने बताया कि उन की जानकारी में अखिलेश का किसी से कोई विवाद नहीं था. पुलिस टीम ने अखिलेश की तथाकथित प्रेमिका अंजुम और उस के परिवार को शक के दायरे में रख कर जांच में परिवर्तन किया. इस मामले की कई दृष्टिकोण से जांच की गई. महीनों चली जांच में कोई ऐसा ठोस सबूत नहीं मिला जो हत्यारों को कटघरे में खड़ा कर देता. लौट कर बात मुश्ताक और अंजुम पर आ कर ठहर जाती थी. अंतत: पुलिस ने एक बार फिर सर्विलांस ब्रांच की मदद ली. काफी मशक्कत के बाद एक ठोस सबूत हाथ लगा. सबूत यह कि अंजुम, मुश्ताक और अखिलेश के मोबाइल फोन की लोकेशन अवाडपुरा में पाई गई थी.

इस सबूत के बाद पुलिस टीम ने एक बार फिर मुश्ताक के घर के आसपास लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज देखी. एक फुटेज से पता चला कि हत्या वाले दिन अखिलेश मुश्ताक के घर आया तो था, मगर किसी भी फुटेज में वह वापस जाता हुआ दिखाई नहीं दिया. मुश्ताक और अंजुम ने उस के आने की बात से इनकार नहीं किया था. इसलिए उन्हें आरोपी नहीं माना जा सकता था. 2 ठोस सबूतों के बाद पुलिस ने बिना देर किए 7 मार्च को अंजुम को हिरासत में ले लिया और उसे थाने ले आई. थाने की देहरी चढ़ते ही अंजुम की सिट्टीपिट्टी गुम होनी शुरू हो गई. इस बार पुलिस ने उस से सबूतों के आधार पर मनोवैज्ञानिक ढंग से दबाव बना कर पूछताछ की.

अंजुम पुलिस की बात को झुठला नहीं सकी. आखिर उस ने सच बोलते हुए कहा, ‘‘साहब, अखिलेश को मैं ने और मेरे पति व बेटे ने पड़ोसी के साथ मिल कर मारा है.’’

अंजुम ने पुलिस को दिए बयान में अखिलेश की हत्या की जो कहानी बताई, वह काफी दिलचस्प निकली—

अखिलेश साहू नाका चंद्रबदनी माता वाली गली में रहता था और नगर निगम में कचरा ढोने वाली गाड़ी के चालक के पद पर कार्यरत था. उसे शराब पीने की लत थी. अखिलेश का शैलेंद्र के जरिए मुश्ताक से परिचय हुआ था. शैलेंद्र और मुश्ताक पड़ोसी थे. पहले अखिलेश खानेपीने के लिए शैलेंद्र के घर आताजाता था. मुश्ताक भी पीने का शौकीन था, इसलिए वह भी इन के साथ बैठने लगा. फिर कुछ दिन बाद अखिलेश के खर्च पर शराब की महफिल मुश्ताक के घर जमने लगी. अखिलेश के घर वालों ने उसे कई बार समझाया, लेकिन वह नहीं सुधरा तो घर वालों ने उस से इस बारे में बात करना ही छोड़ दिया.

अखिलेश रोजाना शाम की ड्यूटी पूरी कर के शराब पीने के लिए अवाडपुरा में मुश्ताक के घर चला जाता था. इसी दौरान उस की मुलाकात मुश्ताक की पत्नी अंजुम से हुई. जल्दी ही अखिलेश को अंजुम से भावनात्मक लगाव हो गया. अंजुम भी उस से लगाव रखने लगी थी. दोनों के बीच अकसर मोबाइल पर भी बातें होती थीं. भावनात्मक बातों का यह सिलसिला शरीरों पर जा कर रुका. एक बार दोनों के बीच की दूरी मिटी तो फिर यह आए दिन की बात हो गई. जब भी अंजुम और अखिलेश को मौका मिलता, बिना आगेपीछे सोचे हदें लांघ कर अपनी हसरतें पूरी कर लेते.

अंजुम और अखिलेश के बीच अवैध संबंध बने तो उन की बातचीत और हंसीमजाक का लहजा बदल गया. अखिलेश अंजुम का हर तरह से खयाल रखने लगा था, इसलिए आसपड़ोस वालों को संदेह हुआ तो लोग दोनों के संबंधों को ले कर चर्चा करने लगे. नतीजा यह निकला कि लोग अखिलेश को देख कर मुश्ताक के बच्चों से कहने लगे, ‘तुम्हारा दूसरा बाप आ गया.’ अंजुम को उस के बडे़ बेटे सौरभ ने अखिलेश के साथ आपत्तिजनक हालत में देख लिया था. उस ने यह बात पिता को बता दी. मामले ने बेहद संगीन और नाजुक मोड़ अख्तियार कर लिया था, लिहाजा बापबेटे ने अंजुम को ऊंचनीच बता कर भविष्य में अखिलेश से कभी मेलमुलाकात न करने की कसम दिलाई.

अंजुम मुश्ताक की पत्नी ही नहीं, उस के बच्चों की मां भी थी, इसलिए बच्चों के भविष्य की चिंता करते हुए मुश्ताक ने दोबारा ऐसी गलती न करने की चेतावनी दे कर उसे माफ कर दिया. लेकिन जिस का पैर एक बार फिसल चुका हो, उस का संभलना मुश्किल होता है. यही हाल अंजुम और उस के प्रेमी अखिलेश का भी था. कुछ दिन शांत रहने के बाद अंजुम अपने वायदे पर टिकी न रह सकी. मौका पाते ही वह चोरीछिपे अखिलेश से मिलने लगी. इस बात का पता मुश्ताक को लगा तो अपना घर बचाने के लिए उस ने बड़े बेटे के साथ बैठ कर अखिलेश को ठिकाने लगाने की योजना बना डाली. इस योजना में मदद के लिए मुश्ताक के बड़े बेटे ने अपने दोस्त सलमान को भी शामिल कर लिया.

हालांकि बिना अंजुम की मदद के अखिलेश को ठिकाने लगा पाना सौरभ और मुश्ताक के बूते की बात नहीं थी. उन्होंने जैसेतैसे अंजुम को भी इस योजना में शामिल कर लिया. तय योजना के अनुसार 18 दिसंबर की रात अंजुम से फोन करवा कर अखिलेश को घर पर बुलाया गया. उस के आते ही मुश्ताक ने उसे जम कर शराब पिलाई. जब वह नशे में बेसुध हो कर गिरने लगा तो बापबेटे ने अंजुम के हाथों साफी से उस का गला घोटवा कर उस की हत्या करवा दी. इस काम में सौरभ और शौहर मुश्ताक ने भी मदद की. हत्या करने के बाद मुश्ताक और सौरभ रात में ही अखिलेश की लाश को ठिकाने लगाने की सोचते रहे, लेकिन रात ज्यादा हो जाने से उन का यह मंसूबा पूरा न हो सका. फलस्वरूप लाश को बाथरूम में छिपा दिया गया.

अगले दिन 19 दिसंबर को सौरभ घूमने जाने के बहाने अपने मामा की नैनो कार एमपी07सी सी3726 ले आया. जब मोहल्ले में सन्नाटा हो गया, तो रात 11 बजे अखिलेश की लाश को बाथरूम से निकाल कर मुश्ताक, सौरभ, अंजुम और सलमान ने मिल कर कार में इस तरह बैठाया कि अगर किसी की नजर पड़े तो लगे कि अखिलेश ज्यादा नशे में है. लाश को कार में डाल कर आरोपी अंधेरे में कांच मिल क्षेत्र में रेल की पटरी पर लाए और पटरी पर इस तरह रख दिया, जिस से लगे कि उस ने आत्महत्या की है. अपराध करने के बाद कोई कितनी भी चालाकी  से झूठ बोले, पुलिस के जाल में फंस ही जाता है.

अंजुम ने भी पुलिस को गुमराह करने की काफी कोशिश की, लेकिन वह सफल नहीं हो सकी. पुलिस ने अंजुम के बेटे सौरभ की निशानदेही पर वह नैनो कार भी बरामद कर ली, जिस में उस ने और उस के पिता ने अखिलेश की लाश को रेलवे ट्रैक पर फेंका था. काफी खोजबीन के बाद भी अखिलेश का मोबाइल फोन नहीं मिल पाया. विस्तार से पूछताछ के बाद हत्या के चारों आरोपियों सौरभ, उस के पिता मुश्ताक खान, गोरे उर्फ सलमान और अंजुम के खिलाफ धारा 302 के तहत मुकदमा दर्ज कर न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

Kanpur News : लालची पत्नी जिस्मफरोशी के धंधे में उतरी और पति करने लगा दलाली

Kanpur News : महत्त्वाकांक्षी अनीता शुक्ला पैसों की इतनी भूखी थी कि वह जिस्मफरोशी के धंधे में उतर गई. बाद में उस का पति राघवेंद्र शुक्ला भी उस के लिए ग्राहक लाने लगा. इतना ही नहीं, अनीता ने अपनी सगी छोटी बहनों अंकिता और सरिता को भी इस धंधे में उतार दिया. फिर एक दिन…

उस दिन जनवरी, 2020 की 5 तारीख थी. आईजी मोहित अग्रवाल अपने कार्यालय में कानपुर शहर की कानूनव्यवस्था पर पुलिस अधिकारियों के साथ मीटिंग कर रहे थे. दरअसल, नागरिकता कानून को ले कर शहर में धरनाप्रदर्शन जारी थे, जिस से शहर की कानूनव्यवस्था बिगड़ती जा रही थी. इस बिगड़ती कानूनव्यवस्था को सुधारने के लिए ही उन्होंने पुलिस अधिकारियों को बुलाया था ताकि शहर में कोई हिंसक प्रदर्शन न हो और अमनचैन कायम रहे. दोपहर 12 बजे मीटिंग समाप्त होने के बाद आईजी मोहित अग्रवाल ने अपनी समस्या समाधान के लिए आए आगंतुकों से मिलना शुरू किया. इन्हीं आगंतुकों में अधेड़ उम्र के 2 व्यक्ति भी थे, जो आईजी साहब से मिलने आए थे. अपनी बारी आने पर वे दोनों आईजी साहब के कक्ष में पहुंचे और हाथ जोड़ कर अभिवादन किया.

आईजी साहब ने उन पर एक नजर डाली. कुरसी पर बैठने का संकेत किया. इस के बाद उन से पूछा, ‘‘आप लोगों का कैसे आगमन हुआ? बताइए, क्या समस्या है?’’

तभी उन में से एक ने कहा, ‘‘सर, हम चकेरी थाने के श्यामनगर मोहल्ले में रहते हैं. हमारे घर के पास अजय सिंह का आलीशान मकान है. उस मकान में वह खुद तो नहीं रहते लेकिन उन्होंने मकान किराए पर दे रखा है. मकान की पहली मंजिल पर 2 अफसर रहते हैं पर भूतल पर जो किराएदार है, उस की गतिविधियां बेहद संदिग्ध हैं. उस के घर पर अपरिचित युवकयुवतियों का आनाजाना लगा रहता है. हम लोगों को शक है कि वह किराएदार अपनी पत्नी के सहयोग से सैक्स रैकेट चलाता है.

‘‘सर, हम लोग इज्जतदार हैं. इन लोगों के आचारव्यवहार का असर हमारी बहूबेटियों पर पड़ सकता है. इसलिए आप से विनम्र निवेदन है कि इस मामले में उचित कानूनी काररवाई करने का कष्ट करें.’’

आईजी मोहित अग्रवाल ने आगंतुकों की बात गौर से सुनी और फिर उन्हें आश्वासन दिया कि वह इस सूचना की जांच कराएंगे. अगर सूचना सही पाई गई तो दोषियों के खिलाफ काररवाई की जाएगी.

‘‘ठीक है, लेकिन सर हमारा नाम गुप्त रहना चाहिए वरना वे लोग हमारा जीना दूभर कर देंगे.’’ जाते समय उन में से एक बोला. आईजी मोहित अग्रवाल को आगंतुकों ने जो जानकारी दी थी, वह वाकई चौंकाने वाली थी. एकबारगी तो उन्हें उन की खबर पर विश्वास नहीं हुआ, पर इसे अविश्वसनीय समझना भी उचित नहीं था. अत: उन्होंने तत्काल एसपी (क्राइम) राजेश कुमार यादव को कार्यालय बुलवा लिया. एसपी (क्राइम) राजेश कुमार यादव आईजी कार्यालय पहुंचे तो मोहित अग्रवाल ने उन्हें आगंतुकों द्वारा दी गई सूचना के बारे में बताया और कहा कि अगर सूचना की पुष्टि होती है तो दोषियों के खिलाफ जल्द काररवाई करें.

एसपी (क्राइम) राजेश कुमार यादव ने चकेरी थानाप्रभारी रणजीत राय को इस गुप्त सूचना की सत्यता लगाने के निर्देश दिए, तो थानाप्रभारी ने मुखबिरों को लगा दिया. उसी दिन शाम 5 बजे मुखबिरों ने थानाप्रभारी रणजीत राय को इस बारे में जो जानकारी दी, उस ने सूचना की पुष्टि कर दी. उन्होंने बताया कि श्यामनगर क्षेत्र के रामपुरम में एचएएल अफसर का एक मकान है, जिस की देखरेख उस का बेटा अजय सिंह करता है. इस मकान की पहली मंजिल पर पैरा मिलिट्री फोर्स के 2 अफसर रहते हैं. भूतल पर राघवेंद्र शुक्ला अपनी पत्नी अनीता के साथ रहता है. अनीता ही अपने पति के साथ मिल कर वहां सैक्स रैकेट का चलाती है. इस मकान में वह पिछले एक साल से रह रही है.

मुखबिरों से पुख्ता जानकारी मिलने की सूचना थानाप्रभारी ने तत्काल एसपी (क्राइम) राजेश कुमार यादव को दे दी. इस के बाद राजेश यादव ने सैक्स रैकेट का परदाफाश करने के लिए एक पुलिस टीम गठित की. इस टीम में उन्होंने सीओ (कलेक्टरगंज) श्वेता सिंह, थानाप्रभारी रणजीत राय, एसआई (क्राइम ब्रांच) डी.के. सिंह, अर्चना, कांस्टेबल अनूप कुमार, अनुज, मनोज, कविता, रीता आदि को शामिल किया. 5 जनवरी, 2020 को रात 8 बजे थानाप्रभारी रणजीत राय ने सीओ (कलेक्टरगंज) श्वेता सिंह के निर्देश पर अनीता शुक्ला के रामपुरम स्थित मकान पर छापा मारा. मकान के अंदर एक कमरे का दृश्य देख कर थानाप्रभारी वहीं ठिठक गए.

कमरे में एक महिला अर्धनग्न अवस्था में बिस्तर पर चित पड़ी थी. उस के साथ एक युवक कामक्रीड़ा में लीन था. पुलिस पर निगाह पड़ते ही युवकयुवती ने दरवाजे से भागने का प्रयास किया, पर दरवाजे पर खड़े पुलिसकर्मियों ने उन्हें दबोच लिया. दूसरे कमरे में 2 अन्य युवतियां सजीसंवरी बैठी थीं. शायद वे ग्राहक के आने के इंतजार में थीं. महिला दरोगा अर्चना ने उन्हें अपनी हिरासत में ले लिया. इसी समय 3 युवतियों तथा 2 युवकों ने मुख्य दरवाजे की ओर भागने का प्रयास किया, किंतु सीओ श्वेता सिंह व अन्य पुलिसकर्मियों ने उन्हें दबोच लिया.

इस तरह पुलिस छापे में सरगना सहित 6 युवतियां, 2 दलाल तथा एक ग्राहक पकड़ा गया. मकान की तलाशी ली गई तो वहां से कामवर्धक दवाएं, स्प्रे, कंडोम तथा अन्य आपत्तिजनक सामग्री के अलावा 4 मोबाइल फोन तथा कुछ नगदी भी बरामद हुई. पुलिस पकड़े गए युवकयुवतियों को थाना चकेरी ले आई.  जिस मकान में सैक्स रैकेट चलता था, उस का मालिक अजय सिंह था. संदेह के आधार पर पुलिस ने उसे भी थाने बुलवा लिया. अजय सिंह एक अफसर का बेटा था, अत: उसे छोड़ने के लिए थानाप्रभारी के पास रसूखदारों के फोन आने लगे.

लेकिन इंसपेक्टर रणजीत राय ने जांचपड़ताल के बाद ही रिहा करने की बात कही. अजय सिंह ने भी स्वयं को निर्दोष बताया और कहा कि उस ने तो उन लोगों को मकान किराए पर दिया था. उसे सैक्स रैकेट की जानकारी नहीं थी. सीओ श्वेता सिंह ने जिस्मफरोशी के आरोप में पकड़े गए युवकयुवतियों से पूछताछ की तो युवतियों ने अपना नाम अनीता शुक्ला, अंकिता झा, सरिता तिवारी, पूनम, नीलम तथा नेहा बताया. इन में अनीता शुक्ला सैक्स रैकेट की संचालिका थी. अंकिता तथा सरिता अनीता की सगी छोटी बहनें थीं. तीनों बहनें जिस्मफरोशी के धंधे में लिप्त थीं.

युवकों ने अपने नाम राघवेंद्र शुक्ला, आशुतोष झा तथा सत्यम द्विवेदी बताए. इन में राघवेंद्र शुक्ला और आशुतोष झा सगे साढ़ू थे और अपनीअपनी पत्नियों के लिए दलाली करते थे. जबकि लालकुर्ती कैंट (कानपुर) का रहने वाला सत्यम द्विवेदी ग्राहक था. चूंकि सैक्स रैकेट के सभी आरोपियों ने अपना जुर्म कबूल कर लिया था, अत: सीओ श्वेता सिंह ने स्वयं वादी बन कर अनैतिक देह व्यापार निवारण अधिनियम 1956 की धारा 3, 4, 5, 6, 7 के तहत अनीता शुक्ला, अंकिता झा, सरिता तिवारी, नीलम, पूनम, नेहा, राघवेंद्र शुक्ला, आशुतोष झा तथा सत्यम द्विवेदी के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करा दी.

इन सब से पुलिस ने जब पूछताछ की तो देह व्यापार में लिप्त युवतियों ने इस धंधे में आने की अपनी अलगअलग मजबूरी बताई. कालगर्ल्स सरगना अनीता उन्नाव जिले के बेहटा गांव की निवासी थी. उस की 2 छोटी बहनें और थीं, जिन के नाम अंकिता तथा सरिता थे. इन 3 बहनों का एक इकलौता भाई भी था, जो बचपन में ही रूठ कर घर से चला गया था. वह दिल्ली में रहता है और दाईवाड़ा (नई सड़क) स्थित एक किताब की दुकान में काम करता है. अनीता खूबसूरत थी. उस ने जब जवानी की दहलीज पर कदम रखा तो उस के पैर डगमगा गए. उस का मन पढ़ाई में कम और प्यारमोहब्बत में ज्यादा रमने लगा. वह बीघापुर स्थित पार्वती इंटर कालेज में 10वीं में पढ़ती थी. कालेज आतेजाते ही उस की मुलाकात उमेश से हुई.

उमेश निराला कालेज में इंटरमीडिएट में पढ़ रहा था. उमेश और अनीता की मुलाकातें धीरेधीरे बढ़ती गईं और दोनों एकदूसरे को चाहने लगे. प्यार परवान चढ़ा तो उनके बीच की सारी दूरियां खत्म हो गईं. उमेश और अनीता का अवैध रिश्ता आम हुआ तो अनीता के पिता को बड़ा दुख हुआ. उन्होंने बेटी को समझाया, घरपरिवार की इज्जत का वास्ता दिया, लेकिन अनीता की समझ में नहीं आया. वह तो आसमान में उड़ने लगी थी. उस ने उमेश के अलावा और भी कई बौयफ्रैंड बना लिए थे, जिन के साथ वह घूमतीफिरती और मौजमस्ती करती थी. अनीता की बदचलनी का असर उस की दोनों छोटी बहनों पर भी पड़ने लगा. वे भी उसी की राह पर चल पड़ी थीं.

अनीता के कदम बहके तो पिता को उस के ब्याह की चिंता सताने लगी. उन्होंने उस के हाथ पीले करने को स्वयं तो दौड़धूप शुरू की ही, नातेरिश्तेदारों से भी कह दिया कि वह अनीता के लिए कोई लड़का बताएं. एक रिश्तेदार के माध्यम से उन्हें एक लड़का पसंद आ गया. लड़के का नाम था राघवेंद्र कुमार शुक्ला. राघवेंद्र के पिता अजय कुमार शुक्ला उन्नाव जिले के अचलगंज कस्बे के रहने वाले थे. उन के 3 बच्चों में राघवेंद्र सब से बड़ा था. वह पढ़ालिखा तो था किंतु बेरोजगार था. उस का मन खेती में नहीं लगता था और उसे नौकरी भी नहीं मिल रही थी. सो वह आवारा घूमता था. अनीता के पिता ने राघवेंद्र को देखा तो यह सोच कर उसे पसंद कर लिया कि पढ़ालिखा है. शरीर से भी स्वस्थ है, नौकरी आज नहीं तो कल मिल ही जाएगी.

देवनारायण ने राघवेंद्र के पिता अजय कुमार शुक्ला से उस के ब्याह की बात चलाई तो वह राजी हो गए. इस के बाद सन 2010 में अनीता की शादी राघवेंद्र के साथ हो गई. शादी के बाद अनीता ससुराल आई तो सभी ने उस के रूप की तारीफ की. राघवेंद्र भी सुंदर पत्नी पा कर इतरा उठा. सब खुश थे पर अनीता खुश नहीं थी. उसे एक तो बेरोजगार पति मिला था, दूसरे उस की स्वच्छंदता पर प्रतिबंध लग गया था. इसलिए वह परेशान रहती थी. घर से बाहर आनेजाने को ले कर उस की तूतूमैंमैं पति से भी होती थी और सासससुर से भी. अनीता ने जैसेतैसे 3 साल ससुराल में बिताए. इस बीच वह एक बेटे की मां भी बनी. उस के बाद अनीता को ले कर घर में कलह होने लगी. दरअसल, अनीता ने शादी के पहले के अपने प्रेमियों के साथ घूमनाफिरना शुरू कर दिया था.

उन के साथ वह बहाने से उन्नाव तो कभी बदरका घूमने निकल जाती थी. राघवेंद्र तथा उस के परिवार से यह बात अधिक दिनों तक छिपी नहीं रही. वह समझ गए कि अनीता बदचलन है. राघवेंद्र ने पत्नी पर अंकुश लगाना चाहा तो वह पति को ही आंखें दिखाने लगी, ‘‘ज्यादा टोकाटाकी की तो थाने जा कर घरेलू हिंसा और दहेज उत्पीड़न की रिपोर्ट दर्ज करा दूंगी. सभी जेल में दिखाई दोगे. इज्जत नीलाम होगी अलग से.’’

धमकी से डर कर राघवेंद्र ने अनीता को उस की मरजी और हाल पर छोड़ दिया. अनीता ने पति को तो दबाव में ले लिया पर ससुराल वालों को नहीं दबा सकी. वह घर में ऐसी औरत को भला कैसे बरदाश्त करते जो बदचलन हो. लिहाजा सब मिल कर उसे घर से निकालने पर तुल गए. अनीता जानती थी कि अकेली औरत कटी पतंग की तरह होती है. नाम के लिए ही सही, लेकिन पुरुष साथ हो तो वह अनेक मुसीबतों से सुरक्षित रहती है. अपनी इसी सोच के तहत अनीता घर से तो निकली पर पति को भी साथ ले गई. अनीता पति के साथ कानपुर आ गई और किदवईनगर में किराए का कमरा ले कर रहने लगी. वहां राघवेंद्र दादानगर स्थित एक फैक्ट्री में नौकरी करने लगा. अनीता ने भी नौकरी ढूंढ ली और काम पर जाने लगी.

छोटीछोटी उन नौकरियों में वेतन भी मामूली था और मेहनत अधिक थी. अत: आमदनी बढ़ाने के लिए अनीता ने किसी दूसरे काम की तलाश शुरू कर दी. इसी तलाश में अनीता एक कालगर्ल रैकेट की सरगना से जा टकराई. सरगना ने जौब दिलाने का झांसा दे कर अनीता को अपने जाल में फंसाया और फिर देहव्यापार के धंधे में उतार दिया. अनीता खूबसूरत और जवान थी. उस की डिमांड अधिक होती थी, अत: वह खूब पैसे कमाने लगी. राघवेंद्र प्राइवेट नौकरी करता रहा और अनीता देहव्यापार के गंदे तालाब की मछली बनी रही. हालांकि राघवेंद्र को पत्नी का धंधा कतई पसंद नहीं था, मगर वह उसे रोक नहीं पाता था. जब भी अनीता से कुछ कहता तो वह उसे डराधमका कर चुप रहने को विवश कर देती थी. तब राघवेंद्र खून का घूंट पी कर रह जाता.

अनीता ने जब जिस्मफरोशी के धंधे के सभी गुर सीख लिए तो उस ने अपना अलग रैकेट बना लिया. उस के रैकेट में पेशेवर कालगर्ल्स थीं. इस के अलावा वह अपने स्तर से नई कालगर्ल भी तैयार करती थी. इस के लिए अनीता गरीब मजबूर व सुंदर लड़कियों को टारगेट करती. वह उन्हें रुपयों या फिर नौकरी दिलाने का लालच दे कर अपने जाल में फंसाती फिर देहव्यापार में उतार देती. शर्मनाक बात तो यह रही कि अनीता ने अपनी जवान व खूबसूरत सगी बहनों को भी देह के धंधे में उतार दिया. उन के पति ही उन की दलाली करने लगे. अनीता घर में ही देहव्यापार करती थी. वह ग्राहक से फुल नाइट के 5 से 10 हजार रुपए लेती थी. जो ग्राहक कालगर्ल को बाहर ले जाना चाहते थे, उन्हें अतिरिक्त चार्ज देना पड़ता था. कालगर्ल का सारा खर्चा कस्टमर को ही देना पड़ता था.

पुलिस के भय से अनीता किसी एक मकान में लंबे अरसे तक नहीं रहती थी. स्थानीय पुलिसकर्मियों से वह सांठगांठ बनाए रखती थी. 2019 के जनवरी महीने में अनीता ने चकेरी थाने के श्यामनगर क्षेत्र के रामपुरम में एक मकान 15 हजार रुपए महीने के किराए पर लिया. यह मकान अजय सिंह का था. इसी किराए के मकान में अनीता अपना हाईप्रोफाइल सैक्स रैकेट का संचालन करने लगी थी. उस ने अपना दायरा भी बढ़ा लिया था. वह शहर के बाहर भी कालगर्ल्स भेजने लगी थी. अनीता ने शहर के बाहर कालगर्ल भेजने का 25 हजार रुपया तय कर रखा था. वह वाट्सऐप, फेसबुक के जरिए भी ग्राहकों को युवतियों की फोटो भेज कर सौदा तय करती थी और ग्राहकों की डिमांड पर दूसरे शहरों से भी कालगर्ल्स बुलाती थी.

बड़े शहरों के जिस्मफरोशी के दलाल उस के संपर्क में थे. अनीता का पति राघवेंद्र भी अब पत्नी के अनैतिक धंधे में शामिल हो गया था. पैसों का लेनदेन वही करने लगा था. रामपुरम में अनीता का धंधा खूब फलफूल रहा था कि पड़ोसियों की नजर उस के धंधे पर पड़ गई. उन्होंने इस की जानकारी आईजी मोहित अग्रवाल को दी और उस के सैक्स रैकेट का भंडाफोड़ हो गया. पुलिस छापे में पकड़ी गई अंकिता, अनीता की सगी बहन थी. वह अपने पति आशुतोष झा के साथ नौबस्ता थाना क्षेत्र के पशुपतिनगर में रहती थी. वहीं पर एक मंदिर में दोनों की मुलाकात हुई, जो बाद में प्यार में बदल गई. तब अंकिता ने आशुतोष के साथ प्रेम विवाह किया था. आशुतोष मधुबनी, बिहार का रहने वाला था.

आशुतोष से शादी करने के बाद अंकिता पशुपतिनगर में रहने लगी. आशुतोष प्राइवेट नौकरी करता था. इस नौकरी से वह न तो अपनी जरूरतें पूरी कर पाता था और न ही अंकिता की ख्वाहिशें. 2-3 सालों में ही प्यार का नशा उतर गया था और वे दोनों आर्थिक परेशानी से जूझने लगे थे. अंकिता सदैव चिंताग्रस्त रहने लगी थी. अंकिता का अपनी बहन अनीता के घर आनाजाना लगा रहता था. बहन के ठाठबाट से अंकिता प्रभावित थी. वह उस की अहसानमंद भी थी, क्योंकि वह उस की आर्थिक मदद कर देती थी. एक दिन अंकिता ने बातोंबातों में उस से कहा, ‘‘अनीता दीदी, मैं सदैव परेशानी में रहती हूं. आशुतोष इतना नहीं कमा पाता कि हमारा गुजारा हो सके. दीदी, हमें भी कोई धंधा बताओ ताकि हमारा भी गुजारा हो सके.’’

अनीता ने अंकिता के चेहरे पर नजरें गड़ा दीं. फिर कुछ क्षण बाद बोली, ‘‘जो धंधा मैं करती हूं, तू भी शुरू कर दे, कुछ ही दिनों में तेरे दिन भी बहुर जाएंगे.’’

‘‘कौन सा धंधा दीदी?’’ अंकिता ने अचकचा कर पूछा.

‘‘वही जिस्मफरोशी का.’’ अनीता ने बताया.

‘‘दीदी, यह आप क्या कह रही हैं, यह तो बहुत गंदा काम है. क्या आप यही करती हो?’’

‘‘हां, अंकिता मैं यही धंधा करती हूं. बता, इस में गलत क्या है? देख ले, इस में कमाई बहुत है. सोच ले, मन करे तो आ जाना.’’

अंकिता एक सप्ताह तक पसोपेश में पड़ी रही. उस के बाद वह राजी हो गई. फिर अनीता ने बहन को देह धंधे में उतार दिया. आशुतोष झा ने भी प्राइवेट नौकरी छोड़ दी और पत्नी की देह की दलाली करने लगा. अंकिता सजधज कर बहन के अड्डे पर पहुंच जाती और जिस्म का धंधा करती. आशुतोष पत्नी के लिए ग्राहक तलाश कर लाता. छापे वाले दिन अंकिता पति आशुतोष झा के साथ बहन के घर पहुंची ही थी कि पुलिस का छापा पड़ गया और वह पति के साथ पकड़ी गई.

जिस्मफरोशी के अड्डे से पकड़ी गई सरिता फतेहपुर जिले के असोम कस्बे की रहने वाली थी. सरिता अनीता की सब से छोटी बहन थी. उस का विवाह असोम निवासी बलवीर के साथ हुआ था. बलवीर फेरी लगा कर कपड़े बेचता था. कपड़े के व्यवसाय में उसे कभी घाटा तो कभी मुनाफा होता था. उसी से वह जैसेतैसे अपनी गृहस्थी चलाता था. सरिता महत्त्वाकांक्षी थी. वह पति की कमाई से संतुष्ट नहीं थी. सरिता अपनी बहनों के घर आतीजाती थी. वह उन के ठाटबाट देख कर मन ही मन कुढ़ती थी. उस ने बहनों से कमाई और ठाटबाट का रहस्य जाना तो उस ने भी बहनों का साथ पकड़ लिया और जिस्मफरोशी का धंधा करने लगी. उस ने पति बलवीर को भी राजी कर लिया. बलवीर भी पत्नी की देह का दलाल बन गया.

सरिता कुछ ही समय में इस धंधे की खिलाड़ी बन गई. वह असोम तथा फतेहपुर से ग्राहक तथा लड़कियां भी फंसा कर लाने लगी. इस के एवज में अनीता उसे कमीशन भी देती थी. छापे वाले दिन सरिता को ग्राहक के साथ उन्नाव जाना था लेकिन ग्राहक आने से पहले ही वह पुलिस के हत्थे चढ़ गई. उस दिन उस का पति बलवीर उस के साथ अड्डे पर नहीं आया था, जिस से वह बच गया. पुलिस रेड में पकड़ी गई नेहा फतेहपुर की रहने वाली थी. 4 भाईबहनों में वह सब से छोटी थी. उस के पिता प्राइवेट नौकरी कर परिवार का पालनपोषण करते थे. नेहा की शादी कल्याणपुर निवासी रमेश के साथ हुई थी.

रमेश शराबी था, जो कमाता था वह सब शराब में ही उड़ा देता था. नेहा विरोध करती तो वह उसे मारतापीटता था. लगभग 3 साल उस ने जैसेतैसे पति के साथ बिताए, फिर उस का साथ छोड़ कर मायके आ गई. पिता उस की दूसरी शादी रचा कर गृहस्थी बसाना चाहते थे, लेकिन नेहा राजी नहीं हुई. नेहा पिता पर बोझ नहीं बनना चाहती, अत: वह कानपुर आ गई और दादानगर स्थित एक प्लास्टिक फैक्ट्री में काम करने लगी. लेकिन यह नौकरी उसे ज्यादा समय तक रास नहीं आई. वह पढ़ीलिखी थी सो दूसरी नौकरी की तलाश में जुट गई. इसी तलाश में उस की मुलाकात कालगर्ल सरगना अनीता शुक्ला से हुई.

अनीता ने उसे अच्छी नौकरी लगवाने का झांसा दिया और उस की आर्थिक मदद करने लगी. नेहा जवान और खूबसूरत थी. अनीता ने उस को देहसुख का चस्का भी लगा दिया. इस के बाद अनीता ने उसे देहव्यापार के धंधे में उतार दिया.  नेहा फैशनेबल थी. वह जींसटौप पहनती थी. ग्राहक उसे देखते ही पसंद कर लेता था. अनीता नेहा की बुकिंग दिल्ली, आगरा जैसे बड़े शहरों को करती थी और भारीभरकम रकम वसूलती थी. छापे वाले दिन नेहा का सौदा 10 हजार रुपए में तय था. ग्राहक कार से उसे लेने आ रहा था. लेकिन इसी बीच पुलिस का छापा पड़ गया और वह पकड़ी गई.

पुलिस छापे में पकड़ी गई पूनम, असोम (फतेहपुर) की रहने वाली थी. उस का पति फतेहपुर खागा रोड पर टैंपो चलाता था. वह इतना कमा लेता था कि अपनी पत्नी व 2 बच्चों का पालनपोषण हो जाता था. लेकिन एक दिन उस का टैंपो ट्रक से भिड़ गया, जिस से वह बुरी तरह जख्मी हो गया. उस का साल भर इलाज चला पर वह चल न सका. उस का एक पैर खराब हो गया. फिर हमेशा के लिए बिस्तर ही उस का साथी बन गया था. पूनम के पास जो जमापूंजी थी, वह सब उस ने पति के इलाज में लगा दी. वह कर्जदार भी हो गई. बच्चों के भूखों मरने की नौबत जब आ गई तब उसे घर के बाहर कदम निकालना पड़ा. वह फतेहपुर में एक चूड़ी की दुकान पर काम करने लगी. इसी चूड़ी की दुकान पर पूनम की मुलाकात कालगर्ल सरिता से हुई.

सरिता ने पूनम को अच्छी नौकरी दिलवाने का झांसा दिया और अपनी बहन अनीता से मिलवाया. अनीता ने पूनम की मजबूरी समझी और फिर प्रलोभन दे कर सैक्स के धंधे में उतार दिया. पूनम को शुरू में तो धंधा करने में झिझक हुई, किंतु जब शरीर की भरपूर कीमत मिलने लगी तो वह इस धंधे में रम गई. छापे वाले दिन उस का रात भर का सौदा 5 हजार रुपए में तय हुआ था. वह अपने ग्राहक के साथ कमरे में बिस्तर पर थी, तभी पुलिस का छापा पड़ा और वह पकड़ी गई. जिस्म का धंधा करते पकड़ी गई नीलम भी असोम (फतेहपुर) की रहने वाली थी. उस का पति मानसिक रोगी था. घर में ही पड़ा रहता था.

सासससुर और 3 बच्चों का बोझ उस के कंधे पर था. उस की मजबूरी का फायदा असोम की रहने वाली सरिता ने उठाया. सरिता ने उसे अपनी बड़ी बहन अनीता से मिलवाया. अनीता ने नीलम को समाज की कड़वी सच्चाई से अवगत कराया और फिर जिस्म बेचने को राजी कर लिया. मजबूरी में नीलम देह का सौदा करने लगी. हालांकि नीलम का पति और सासससुर यही समझते थे कि नीलम किसी कंपनी में नौकरी करती है और कंपनी के काम से उसे बाहर जाना पड़ता है. छापे वाली रात नीलम ग्राहक के इंतजार में थी, तभी पुलिस का छापा पड़ गया और वह पकड़ी गई.

देहव्यापार के अड्डे पर अय्याशी करते रंगेहाथ पकड़ा गया सत्यम द्विवेदी कानपुर नगर के छावनी थाने के लालकुर्ती मोहल्ले का रहने वाला था. वह कपड़े का व्यापार करता था और अय्याश प्रवृत्ति का था. एक रंगीनमिजाज दोस्त के माध्यम से वह श्यामनगर क्षेत्र में स्थित अनीता के अड्डे पर पहुंचा था. पूनम नाम की कालगर्ल को पसंद कर उस ने पूरी रात का सौदा 5 हजार रुपए में तय किया था. पूनम के साथ वह कमरे में हमबिस्तर था, तभी पुलिस का छापा पड़ा और वह पकड़ा गया. 6 जनवरी, 2020 को थाना चकेरी पुलिस ने देहव्यापार के अड्डे से पकड़े गए सभी आरोपियों को कानपुर कोर्ट में पेश किया, जहां से सभी को जिला जेल भेज दिया गया. द्य

—कथा संकलन सूत्रों पर आधारित. महिला पात्रों के नाम परिवर्तित किए गए हैं.

Madhya Pradesh News : बिजनैसमैन को फसाया और मांगे 20 लाख

Madhya Pradesh News : पिछले दिनों इंदौर और भोपाल में हनीट्रैप के जो मामले सामने आए, उन में बड़ेबड़े लोगों को ब्लैकमेल कर के करोड़ों रुपए वसूले गए थे. पिंकी ने भी इसी तर्ज पर जावरा के बिजनैसमैन मोहित पोरवाल को ब्लैकमेल करने की योजना बनाई. लेकिन तयशुदा रकम मिलने से पहले ही…

घटना मध्य प्रदेश के रतलाम जिले की है. 29 नवंबर, 2019 को दोपहर के 2 बजे का समय था. रतलाम के पास अलकापुरी क्षेत्र में स्थित हनुमान ताल के पास कस्बा जावरा के एक प्रसिद्ध व्यापारी मोहित पोरवाल हाथ में सूटकेस लिए खड़े थे. वह काफी घबराए हुए थे, चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थीं, डर की छाया साफ दिखाई दे रही थी. चेहरे पर आ रहे पसीने को वह बारबार रूमाल से पोंछ रहे थे. उन की नजर सुनसान सड़क पर लगी हुई थी. जबकि वहां से कुछ दूर सुनसान जगह पर सादा कपड़ों में मौजूद 10 पुलिस वालों की नजरें मोहित कुमार पर जमी हुई थीं. साथ ही वहां आनेजाने वाले व्यक्तियों पर भी थीं.

उसी समय एक पुलिसकर्मी थाना औद्योगिक नगर के टीआई शिवमंगल सिंह सेंगर से संपर्क बनाए हुए था. मोहित के आसपास फैले पुलिसकर्मी उस समय सतर्क हो गए, जब उन्होंने 3 व्यक्तियों को चौकन्ने भाव से मोहित की तरफ आते देखा. वे तीनों मोहित के पास आ कर कुछ पल के लिए रुके और मोहित के हाथ से सूटकेस ले कर जाने के लिए तेजी से मुड़े. वे तीनों भाग पाते उस से पहले ही आसपास छिपे पुलिसकर्मियों ने उन्हें अपनी गिरफ्त में ले लिया. उन युवकों ने पूछताछ में अपने नाम शिव उर्फ भोला निवासी लक्ष्मणपुरा, कालू उर्फ अविनाश, दिनेश टका निवासी बिरयाखेड़ी, रतलाम बताए. उन तीनों को पकड़ कर पुलिसकर्मी टीआई शिवमंगल सिंह सेंगर के पास ले आए.

टीआई शिवमंगल सेंगर ने उन से सख्ती से पूछताछ की तो उन्होंने कबूल कर लिया कि उन के गिरोह की सरगना पिंकी शर्मा उर्फ प्रियांशी है, जिस ने व्यापारी मोहित को अपने जाल में फंसाया था. साइबर सेल से मिली जानकारी के बाद एसपी रतलाम को पहले से ही शक था कि पिंकी शर्मा उर्फ प्रियांशी इस गिरोह में शामिल है. जब उस का नाम सरगना के तौर पर सामने आया, तो महिला पुलिस के साथ गई टीम ने उसे एमबी नगर स्थित उस के घर से गिरफ्तार कर लिया. पकड़े जाने पर पिंकी शर्मा ने स्वीकार किया कि पिछले दिनों इंदौर में चर्चाओं में रहे हनीट्रैप कांड की तरह उस ने मोहित को लालच दे कर शिकार बनाया था.

पुलिस ने गिरफ्तार आरोपियों के पास से लूट में प्रयुक्त एक स्कूटर, मोटरसाइकिल, मोहित की सोने की अंगूठी और नकद 2 हजार रुपए के अलावा सोने की बाली, चांदी का कड़ा, खिलौना रिवौल्वर एवं एक चाकू बरामद कर लिया. उन से की गई पूछताछ के बाद ब्लैकमेलिंग करने की पूरी कहानी इस प्रकार सामने आई—

मध्य प्रदेश के रतलाम जिले के रहने वाले 45 वर्षीय मोहित जावरा के जानेमाने अनाज व्यापारियों में से एक हैं. जमा हुआ खानदानी कारोबार है. शहर के रईसों में इन का नाम भी शुमार है. मोहित छोटी उम्र से ही परिवार का बिजनैस संभाल रहे थे. व्यापार के अलावा वह सोशल मीडिया में भी एक्टिव रहते थे. इसी के चलते कुछ महीने पहले वाट्सऐप पर उन की मुलाकात रतलाम की एमबी कालोनी निवासी आधुनिक विचारों वाली 22 वर्षीय सुंदरी पिंकी शर्मा से हुई. धीरेधीरे यह जानपहचान दोस्ती में बदल गई और समय के साथ इस दोस्ती में वे सब बातें भी होने लगीं, जिन्हें बेहद निजी कहा जा सकता है. धीरेधीरे वह पिंकी में काफी रुचि लेने लगे.

बताते हैं पिंकी से उन की 1-2 मुलाकातें सार्वजनिक स्थानों पर हुईं. फिर वह मोहित को अकेले में मिलने के लिए बुलाने लगी. अब तक परिवार के प्रति ईमानदार रहे मोहित, उस से अकेले में मिलने में कोई रुचि नहीं दिखा रहे थे. लेकिन जवान और खूबसूरत दोस्त का खुला आमंत्रण वह भला कब तक ठुकराते, इसलिए न न करते हुए भी वह एक दिन उस की बताई जगह पर मिलने को तैयार हो गए. मिलने के लिए तारीख तय हुई 24 नवंबर की दोपहर और स्थान था विरियाखेड़ी के ईंट भट्ठों का सुनसान इलाका. मन में कुछ आशंकाएं और ढेर सारे सपने ले कर मोहित तय वक्त पर विरियाखेड़ी पहुंच गए. उन के मन में एक शंका थी कि शायद ही पिंकी उन से मिलने आए. लेकिन यह देख कर उन का दिल खुश हो गया कि पिंकी उन के पहुंचने से पहले ही वहां खड़ी उन का इंतजार कर रही थी.

‘‘कितनी देर कर दी जनाब आने में. क्या इसी तरह इंतजार करवाओगे?’’ पिंकी मुसकरा कर बोली.

‘‘नहीं यार,बस आतेआते टाइम लग गया.’’ मोहित ने कहा.

‘‘ओके चलो, पहली बार देर हुई है, इसलिए माफ करती हूं. मालूम है लड़कों को अपनी गर्लफ्रैंड से मिलने उस से पहले पहुंचना चाहिए.’’ वह बोली.

‘‘लड़कों को न, लेकिन मैं लड़का नहीं हूं.’’ मोहित ने कहा.

‘‘तो क्या हुआ, मेरे बौयफ्रैंड तो हो. लेकिन मैं आप को एक बात बताऊं कि मुझे लड़कों के बजाए परिपक्व मर्दों में रुचि है.’’ पिंकी ने बताया.

‘‘वो क्यों?’’ मोहित ने पूछा.

‘‘सब से बड़ी बात तो यह है कि वह इस मामले में अनुभवी होते हैं. दूसरे लड़कों की तरह ज्यादा परेशान भी नहीं करते.’’ पिंकी ने तिरछी नजरों से मोहित की तरफ देखते हुए कहा, ‘‘अब ज्यादा समय खराब मत करो. वहां सामने एक घर है, वहां कोई नहीं आताजाता. चलो, वहीं चल कर बात करते हैं.’’

मोहित उस के साथ उस मकान में जाने से मना करना चाहते थे, लेकिन पिंकी को देखने के बाद वह उसे मना नहीं कर सके और उसे साथ ले कर उस के बताए मकान में चले गए. दोनों के बीच बातचीत शुरू हो गई. पिंकी की सैक्सी बातों और हरकतों से मोहित अपना होश खोने लगे. इस से पहले कि वह अपनी हसरतें पूरी कर पाते, तभी दरवाजे पर लात मार कर अंदर घुस आए 3 युवकों को देख कर मोहित घबरा गए. उन का गीला गला एक झटके में रेगिस्तान बन गया.

‘‘क्या हो रहा है बुड्ढे, बेटी की उम्र की लड़की के साथ अय्याशी की जा रही है.’’ उन में से एक युवक ने मोहित से कहा तो उन से कोई जवाब देते नहीं बना.

‘‘चल कर ले अय्याशी, हम तेरा लाइव शो देखेंगे.’’ दूसरा बोला.

‘‘देखिए, ऐसा कुछ नहीं है. हम लोग यहां यूं ही आए थे.’’ मोहित ने थूक गटकते हुए किसी तरह कहा.

लेकिन वे तीनों नहीं माने. उन्होंने चाकू की नोंक पर मोहित और पिंकी के पूरे कपड़े उतरवा दिए और फिर उसी अवस्था में दोनों के अश्लील फोटो और वीडियो अपने कैमरे में कैद करने के बाद बोले, ‘‘अब जाओ, यह वीडियो हम तुम्हारे बीवीबच्चों को भेज देंगे. फिर आराम से बैठ कर सब के साथ देखना.’’

‘‘देखिए, मैं आप के हाथ जोड़ता हूं. हम यहां ऐसा कुछ भी नहीं कर रहे थे. आप वीडियो और फोटो डिलीट कर दें.’’ मोहित ने उन तीनों से कहा तो उन्होंने इस के बदले में 20 लाख रुपयों की मांग की. उस वक्त मोहित के पास इतना रुपया नहीं था, सो तय हुआ कि हफ्ते भर में मोहित 20 लाख रुपए बदमाशों को दे कर उन से वीडियो और फोटो वापस ले लेंगे. मामला सुलट गया तो पिंकी और मोहित के वहां से जाने के पहले बदमाशों ने मोहित की सोने की अंगूठी और जेब में रखे 2 हजार रुपयों के अलावा पिंकी के जेवर भी लूट लिए.

मोहित जैसेतैसे वापस जावरा पहुंच तो गए लेकिन उन के दिल को पलभर का भी सुकून नहीं था. पिंकी के चक्कर में उन्हें पीढि़यों से बनाई बापदादाओं की इज्जत धूल में मिलती दिखाई दे रही थी. मामला अगर दुनिया के सामने आ जाता तो समाज और अपने परिवार के सामने नजरें ऊंची नहीं कर पाते. इन्हीं सब खयालों से डरे हुए मोहित को रात में नींद भी नहीं आई. पिंकी को याद करने का तो सवाल ही नहीं था. लेकिन अगले ही दिन सुबहसुबह पिंकी का फोन आ गया. उन्होंने बेमन से पिंकी से बात की तो उस ने कल की घटना पर दुख जताया लेकिन उस की बातों से ऐसा नहीं लग रहा था कि उसे इस बात की कोई टेंशन है. उस समय उन्होंने पिंकी की इस बेफिक्री पर ज्यादा गौर नहीं किया.

इधर दोपहर होते ही बदमाशों का फोन आ गया, जिस में कहा गया कि वह जल्द से जल्द उन्हें 20 लाख रुपए दे दें. इस के कुछ देर बाद पिंकी का भी फोन आ गया. उस ने बताया कि बदमाशों ने उसे भी फोन कर जल्द से जल्द 20 लाख रुपए की मांग की है. साथ ही उस ने सलाह भी दी कि वह जल्द से जल्द बदमाशों की मांग पूरी कर दें वरना अपनी दोस्ती खतरे में पड़ जाएगी. यहां पूरी बनीबनाई इज्जत खतरे में पड़ी थी और पिंकी को अब भी प्यारमोहब्बत की बातें सूझ रही थीं. मोहित को पिंकी पर बहुत गुस्सा आ रहा था लेकिन यह मौका गुस्सा दिखाने का नहीं था, इसलिए वह किसी तरह अपने गुस्से को काबू में किए रहे.

दूसरी तरफ एक के बाद एक तीनों बदमाश उन्हें बारबार फोन कर 20 लाख रुपयों की मांग करते हुए पिंकी के साथ बनाया उन का अश्लील वीडियो वायरल करने की धमकी दे रहे थे. जितनी बार बदमाशों का फोन आता, उतनी ही बार पीछे से पिंकी का फोन आ जाता. वह हर बार मोहित को सलाह देती कि जैसे भी हो, बदमाशों की मांग जल्द पूरी कर दें. इस से मोहित को शक होने लगा कि कहीं पिंकी भी इन बदमाशों से मिली हुई तो नहीं है. क्योंकि वह जानते थे कि अगर बदमाशों ने वीडियो वायरल कर भी दी, तो पिंकी का कुछ नहीं बिगड़ेगा. लेकिन उन की पूरी इज्जत धूल में मिल जाएगी. मीडिया में न तो पिंकी का नाम आएगा और न फोटो लेकिन उन के नाम के तो पोस्टर छप जाएंगे. फिर पिंकी क्यों इतना डर रही है. वह बारबार बदमाशों को रुपए देने का दबाव क्यों बना रही है.

काफी सोचविचार के बाद मोहित ने 4 दिन बाद पूरी कहानी रतलाम के एसपी गौरव तिवारी को बता दी. मोहित की बात सुन कर एसपी साहब समझ गए कि मोहित किसी ब्लैकमेल कराने वाले गिरोह के शिकार बन गए हैं. इसलिए उन्होंने इस गिरोह को गिरफ्तार करने के लिए औद्योगिक क्षेत्र के टीआई शिवमंगल सिंह सेंगर के नेतृत्व में एक पुलिस टीम बना दी. पुलिस की साइबर सेल ने पिंकी के मोबाइल की काल डिटेल्स निकाली तो पता चला कि बदमाश जिन फोन नंबरों से मोहित से बात कर रहे थे, उन नंबरों पर काफी दिनों से पिंकी की बारबार बात होती रही है. इस से यह साफ हो गया कि पिंकी ने ही मोहित को हनीट्रैप में फंसा कर ठगने की साजिश रची है. इसलिए एसपी के निर्देश पर जांच अधिकारी शिवमंगल सिंह सेंगर ने योजना बना कर मोहित से आरोपियों को पैसों का इंतजाम हो जाने का फोन करवाया.

बदमाशों ने उन्हें 29 नवंबर, 2019 की दोपहर 2 बजे पैसा ले कर हनुमान ताल पर बुलाया. जिस के बाद योजना अनुसार एसपी रतलाम ने सुबह से ही हनुमान ताल पर सादा लिबास में पुलिसकर्मी तैनात कर दिए. दोपहर में जैसे ही तीनों बदमाश शिव, कालू और दिनेश मोहित से फिरौती के 20 लाख रुपए लेने के लिए आए, पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया. पिंकी के बारे में बताया जाता है कि वह मूलरूप से किला मैदान, झाबुआ की रहने वाली थी. वह रतलाम में एक फाइनैंस कंपनी में नौकरी करती थी. उस कंपनी में राकेश (परिवर्तित नाम) भी नौकरी करता था. वहीं पर दोनों की दोस्ती हुई. राकेश रतलाम के ही  जावरा का रहने वाला था. चूंकि दोनों ही जवान थे, इसलिए जब उन की दोस्ती प्यार में बदली, तब उन्होंने शादी का फैसला कर लिया.

दोनों ने घर वालों की मरजी के बिना लवमैरिज कर ली. लेकिन शादी के कुछ दिनों बाद ही दोनों के बीच मतभेद हो गए. हालांकि इस दौरान पिंकी एक बेटी की मां बन चुकी थी. जब दोनों के बीच ज्यादा ही कलह रहने लगी तो वह बेटी को पति के पास छोड़ कर चली आई. इस दौरान पिंकी की मुलाकात रतलाम के ही रहने वाले सन्ना नाम के बदमाश से हुई. वह सन्ना के साथ रतलाम के चांदनी चौक क्षेत्र में रहने लगी. सन्ना के जरिए पिंकी की जानपहचान लक्ष्मणपुरा, रतलाम के रहने वाले भोला, हाट की चौकी के कालू और बीरियाखेड़ा के दिनेश से हुई. ये सभी आपराधिक सोच वाले युवक थे.

पिछले दिनों इंदौर में हनीट्रैप के मामले में हाईफाई लोगों के फंसने का मामला सामने आया था. उसी से प्रेरित हो कर पिंकी और उस के इन साथियों ने मोटा पैसा कमाने के लिए प्लान बनाया. लिहाजा पिंकी के जरिए वे सब मोटी आसामी को अपने जाल में फांस कर उन्हें ब्लैकमेल करने लगे. पिंकी पिछले 5 सालों से शहर के युवकों को अपने रूपजाल में फंसा कर ठगने का काम कर रही थी. इसी योजना के तहत उस ने मोहित से दोस्ती की और एकांत जगह पर स्थित भट्ठों पर बने कमरे में ले गई और उन्हें अपने रूपजाल में फंसाने का जतन करने लगी. तभी उस के तीनों साथियों ने आ कर मोहित के साथ उस की अश्लील फिल्म बना ली.

मोहित को उस के ऊपर शक न हो इसलिए मोहित के साथ उन्होंने पिंकी के साथ भी लूटपाट का नाटक किया था. लेकिन रतलाम पुलिस ने जल्द ही इस गिरोह के नाटक का परदा गिरा दिया. आरोपी शिव उर्फ भोला, कालू, दिनेश और पिंकी से पूछताछ के बाद पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर न्यायालय में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

 

 

Agra News : वकील का अपहरण करके मांगी 50 लाख रुपए की फिरौती

Agra News : एडवोकेट अकरम अंसारी का अपहरण फिल्मी अंदाज में किया था. बदमाश 50 लाख रुपए की फिरौती मांग रहे थे. पुलिस ने उन्हें फिरौती भी दे दी लेकिन बाद में अपहर्त्ता पुलिस के चंगुल में ऐसे फंसे कि…

फिरोजाबाद जिले के थाना दक्षिण के अंतर्गत एक मोहल्ला है राजपूताना. यहीं के निवासी 35 वर्षीय मोहम्मद अकरम अंसारी पेशे से वकील हैं. वह 3 फरवरी, 2020 को आगरा के बोदला निवासी अपने रिश्तेदार की बीमार बेटी को देखने के लिए आगरा के श्रीराम अस्पताल गए थे. बीमार बेटी को देखने के बाद वकील अकरम अंसारी घर जाने के लिए शाम के समय अस्पताल से निकले. चूंकि उन्हें बस अड्डे से बस पकड़नी थी, इसलिए बस अड्डा तक जाने के लिए उन के साढ़ू फैज अंसारी ने उन्हें कारगिल चौराहे से एक आटो में बैठा दिया था, लेकिन वह घर नहीं पहुंचे.

परिजन सारी रात बेचैनी से अकरम अंसारी का इंतजार करते रहे. बारबार वह अकरम को फोन मिला रहे थे, लेकिन उन का फोन स्विच्ड औफ आ रहा था. इस से घरवालों की चिंता बढ़ रही थी. अगली सुबह अकरम के भाई असलम उन्हें तलाशने के लिए आगरा पहुंचे. वहां पता चला कि साढ़ू फैज अंसारी ने उन्हें बस अड्डा जाने वाले एक आटो में बैठा दिया था. वहां से वह कहां गए, किसी को पता नहीं. इस के बाद असलम ने भाई को रिश्तेदारी व अन्य परिचितों के यहां तलाशा. लेकिन अकरम कहीं नहीं मिले. तब असलम ने आगरा के थाना सिकंदरा में भाई की गुमशुदगी दर्ज करा दी.

दूसरे दिन बुधवार को दोपहर डेढ़ बजे वकील अकरम के छोटे भाई असलम के पास एक फोन आया. फोन करने वाले ने कहा, ‘‘अकरम हमारे कब्जे में है. अगर उस की सलामती चाहते हो तो 50 लाख रुपए का इंतजाम कर लो. फिरौती की रकम कहां पहुंचानी है, इस बारे में फिर से फोन कर के बताएंगे और अगर, पुलिस को बताया तो ठीक नहीं होगा.’’

इस पर असलम ने कहा, ‘‘इतनी बड़ी रकम उन के पास नहीं है.’’

इस पर अपहर्त्ताओं ने कहा, ‘‘हमें पता है कि तुम्हारे 4 मकान हैं. इसलिए रुपयों का इंतजाम कर लो.’’ इस के बाद फोन कट गया. फिरौती मांगने से असलम का परिवार दहशत में आ गया. असलम ने पूरे घटनाक्रम की जानकारी पुलिस को दी. इस पर सिकंदरा के थानाप्रभारी ने तुरंत अपहरण का मुकदमा दर्ज कर लिया. इस के बाद उन्होंने एक पुलिस टीम को अकरम की बरामदगी के लिए लगा दिया. वकील अकरम अंसारी का फिरौती के लिए आगरा से अपहरण करने का समाचार जब समाचारपत्रों के अलावा न्यूज चैनलों पर आया तो अधिवक्ताओं ने उन की बरामदगी के लिए पुलिस प्रशासन पर दबाव बनाना शुरू कर दिया.

मामला एक वकील का था, इसलिए पुलिस की 10 टीमें जांच में जुट गईं. इन टीमों का निर्देशन एसएसपी बबलू कुमार स्वयं कर रहे थे. जिस मोबाइल नंबर से असलम के पास फोन आया था सर्विलांस टीम उस की भी जांच में जुट गई. कई दिन बाद भी जब पुलिस एडवोकेट अकरम के बारे में कोई सुराग नहीं लगा पाई तो 7 फरवरी को फिरोजाबाद सदर तहसील के अधिवक्ताओं ने विरोध प्रदर्शन करते हुए वकील अकरम अंसारी की शीघ्र बरामदगी की मांग की. धीरेधीरे यह आग जनपद की तहसील शिकोहाबाद, जसराना, सिरसागंज के साथ ही आगरा के अधिवक्ताओं में भी फैल गई.

अकरम की बरामदगी न होने से परिजनों में दिनप्रतिदिन बेचैनी बढ़ रही थी. पिता आरिफ अंसारी और मां सरकरा बेगम सीने पर पत्थर रख कर बच्चों को तसल्ली दे रहे थे. अकरम की पत्नी रूबी उर्फ रुकैया अपने दोनों बच्चों के पूछने पर कहती कि पापा दिल्ली रिश्तेदारी में गए हैं, जल्दी आ जाएंगे. पुराने किडनैपरों की हुई तलाश उधर पुलिस ने 100 ऐसे बदमाशों की सूची बनाई जो अपहरण के मामलों में पिछले 5 सालों में जेल जा चुके थे. यह बदमाश आगरा, धालपुर, भरतपुर, फिरोजाबाद और इटावा के थे. इन पर काम करने के बाद 10 गिरोह चुने गए. इन के मोबाइल नंबर हासिल किए गए. 3 गिरोह पर पुलिस का शक था लेकिन तीनों ही उस समय मोबाइल फोन इस्तेमाल नहीं कर रहे थे.

इस पर पुलिस पूरी तरह अपने मुखबिरों पर आश्रित हो गई. एसएसपी बबलू कुमार और एसपी (सिटी) बोत्रे रोहन प्रमोद लगातार पुलिस टीमों से संपर्क बनाए हुए थे. शासन से भी इस मामले में पुलिस से लगातार अपडेट लिया जा रहा था. पुलिस के आला अधिकारी भी पत्रकारों को कुछ बता पाने की स्थिति में नहीं थे. सिर्फ यही जवाब दिया जा रहा था कि जल्द ही कोई न कोई ठोस सुराग मिलने की उम्मीद है. अपहृत वकील अकरम के छोटे भाई असलम और मुकर्रम घटना के बाद से ही आगरा में डेरा डाले थे. जैसेजैसे एकएक कर दिन बीत रहे थे परिवार की दहशत बढ़ती जा रही थी.

उग्र हो गया आंदोलन उधर, अधिवक्ताओं का आंदोलन जोर पकड़ रहा था. आगरा व फिरोजाबाद जनपद के अधिवक्ताओं में अपहृत वकील के 12वें दिन भी बरामद न होने से आक्रोश बढ़ गया था. उन्होंने विरोध में हड़ताल शुरू कर दी थी. पुलिस दिनरात अपहृत वकील की तलाश में जुटी थी. आगरा में 24 फरवरी, 2020 को अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ताजमहल देखने आने वाले थे. उन के आगमन से पूर्व तैयारियों का जायजा लेने के लिए प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ आगरा के दौरे पर आ रहे थे. पुलिस जानती थी कि अधिवक्ता मुख्यमंत्री से मिल कर इस मामले को जरूर उठाएंगे. इसलिए पुलिस के हाथपैर फूल रहे थे. इस बीच पुलिस टीमों ने बाह और धौलपुर के बीहड़ों में डेरा डाल रखा था.

उधर अपहृत वकील के भाई असलम के मोबाइल पर अपहर्त्ताओं ने अलगअलग नंबरों व स्थानों से 4 बार फिरौती की काल कर के संपर्क किया. इस दौरान परिजन पुलिस के संपर्क में रहे. काल आने से पुलिस को बदमाशों की पहचान सुनिश्चित हो गई. लेकिन अपहृत की सकुशल बरामदगी को ले कर पुलिस फूंकफूंक कर कदम रख रही थी. बदमाशों ने जो 50 लाख फिरौती मांगी, उसे कम कर के वह 15 लाख पर आ गए. उन्होंने परिजनों से कह दिया कि इतनी भी रकम नहीं मिली तो वह अकरम को मार देंगे. अपहृत अकरम को सकुशल छुड़वाने के लिए पुलिस ने परिजनों के साथ मजबूत योजना बनाई. 16 फरवरी को अपहर्त्ताओं का फोन आने के बाद अकरम के परिजन बदमाशों के बताए गए स्थान आगरा में सिकंदरा स्थित गुरुद्वारे के पास पैसे ले कर पहुंच गए.

बदमाशों ने उन से पहचान के लिए अपनी गाड़ी पर झंडा लगाने को कहा था. भाई असलम अपने दोस्त के साथ किराए की गाड़ी पर झंडा लगा कर पहुंचा. तभी बदमाशों ने कहा कि बाड़ी कस्बा आ जाओ. वहां पहुंचे तो बदमाश लगातार काल कर के अलगअलग जगह बुलाते गए. करौली मार्ग पर आने के बाद उन्होंने कहा कि सिगरेट के 2 पैकेट ले कर आना. इस के बाद उन्होंने भरतपुर जनपद के गढ़ी भासला क्षेत्र के जंगल में स्थित भैरों बाबा के मंदिर पर रुपयों का बैग रखने को कहा. साथ ही उन्होंने चेतावनी दी कि यदि जरा सी भी चालाकी की या पुलिस को बताया तो अपने भाई को जिंदा नहीं देख सकोगे. वह लोग शाम 6 बजे बताए गए स्थान पर रुपयों से भरा बैग रख कर वापस आ गए. इस बीच पुलिस योजनाबद्ध तरीके से वहां मौजूद रही. बदमाशों ने परिजनों से सोमवार, 17 फरवरी को अधिवक्ता अकरम को गुरुद्वारा पर छोड़ने का वादा किया.

जंजीरों से बांध रखा था अकरम को फिरौती देने के बाद पुलिस टीम सक्रिय हो गई. पुलिस बैग उठाने वाले के पीछे लग गई. इतना ही नहीं, पुलिस ने कस्बा बाड़ी स्थित वह मकान भी पहचान लिया, जिस में अपहर्त्ता नोटों से भरा बैग ले कर गया था. मकान चिह्नित करने के बाद पुलिस ने रात लगभग 8 बजे उस मकान पर दबिश दे कर अपहृत अधिवक्ता अकरम को सकुशल बरामद कर लिया. अपहर्त्ताओं ने उन्हें जंजीरों से बांध कर रखा था. पुलिस ने मकान से 3 अपहर्त्ताओं 56 वर्षीय गैंग लीडर उग्रसैन निवासी कस्बा बाड़ी, धौलपुर, लाखन गुर्जर निवासी सूखे का पुरा, थाना कंचनपुरा, धौलपुर के अलावा सुरेंद्र गुर्जर निवासी कुआंखेड़ा, बिहारी का पुरा, थाना सदर, धौलपुर शामिल को हिरासत में ले लिया.

उन की निशानदेही पर पुलिस ने राकेश व उस के भाई मुकेश निवासी जमूहरा, थाना बाड़ी, धौलपुर के साथ उग्रसैन की पत्नी उर्मिला को भी गिरफ्तार कर लिया. राकेश व मुकेश दोनों उग्रसैन के साले हैं. फिरौती के लिए फोन लाखन करता था. लाखन पर 7-8 मुकदमे चल रहे हैं. उग्रसेन व सुरेंद्र गुर्जर पर भी कई मुकदमे हैं. इन में अपहरण व जानलेवा हमले शामिल हैं. सुरेंद्र गुर्जर पूर्व में राजस्थान के केशव और हनुमंत गिरोह में काम कर चुका है. उस के साथ उग्रसैन और लाखन भी थे. यह मध्य प्रदेश और आगरा में अपहरण कर फिरौती वसूल चुके हैं. गिरोह ने पहले आगरा के सदर क्षेत्र में दंत चिकित्सक का अपहरण कर मोटी फिरौती वसूली थी.

अधिवक्ता अकरम अंसारी की सकुशल बरामदगी की जानकारी जैसे ही उन के परिजनों को मिली तो पूरे परिवार की आंखें खुशी से छलछला उठीं. उन के आवास पर लोगों ने खुशी में आतिशबाजी की. पुलिस अधिकारी पूरे दिन अकरम से पूरे घटनाक्रम की जानकारी लेते रहे. 25 फरवरी को अकरम के घर आते ही मां ने उन्हें गले से लगा लिया. बच्चे भी उन से लिपट गए. अकरम ने बताया कि वह मौत के मुंह से निकल कर आए हैं. 26 फरवरी, 2020 को पुलिस लाइन में एडीजी अजय आनंद ने प्रैसवार्ता आयोजित कर इस सनसनीखेज अपहरण कांड का परदाफाश किया. उन्होंने बताया कि एसएसपी बबलू कुमार के निर्देशन में फूलप्रूफ औपरेशन चला कर पुलिसकर्मियों की 10 टीमें बनाई गई थीं.

जिस में सीओ (कोतवाली) चमन सिंह चावड़ा, सर्विलांस टीम प्रभारी नरेंद्र कुमार, इंसपेक्टर कमलेश सिंह, अरविंद कुमार, अनुज कुमार, अजय कौशल, राजकमल, बैजनाथ सिंह, उमेश त्रिपाठी, एसआई राजकुमार गिरि, कुलदीप दीक्षित अरुण कुमार बालियान, सुशील कुमार, हैड कांस्टेबल आदेश त्रिपाठी, कांस्टेबल अजीत, प्रशांत, करन, विवेक, राजकुमार, अरुण कुमार, आशुतोष त्रिपाठी, रविंद्र, प्रमेश आदि शामिल थे. पुलिस ने अधिवक्ता को सकुशल बरामद करने के साथ 5 अपहर्त्ताओं व एक महिला को गिरफ्तार कर फिरौती की रकम, जो 15 लाख बता कर केवल साढ़े 12 लाख बैग में रखी थी, भी बरामद कर ली. एडीजी ने बताया कि अपहृत को 2-3 दिन पहले बरामद कर सकते थे. लेकिन उन की सकुशल बरामदगी के लिए इंतजार करना पड़ा.

अलगअलग हुलिया बनाए पुलिस ने टीमों के साथ सीओ, एसपी, एसएसपी, तक ने बीहड़ में डेरा डाला. अपहर्त्ताओं की नजर से बचने के लिए पुलिसकर्मियों ने न सिर्फ अपना हुलिया बदला, बल्कि बकरी चराने से ले कर खेतों में मजदूर बन कर काम किया. पुलिस ने फिरौती के लिए फोन करने वाले की आवाज भी रिकौर्ड की. वह आवाज मुखबिरों को सुनाई गई. इस के बाद ही पुलिस को सुराग मिला. पुलिस ने 40 घंटे के औपरेशन के बाद अधिवक्ता अकरम अंसारी को मुक्त करा लिया. इस औपरेशन का नाम ‘अकरम मुक्ति’ रखा गया था. पुलिसकर्मी कोड वर्ड बांकेबिहारी और वंदेमातरम में एकदूसरे से बात करते थे.

बदमाशों ने फिरौती के लिए 4 बार फोन किया था. पहली काल 5 फरवरी को भरतपुर के रूपवास से की गई, इस के लिए सिम खेरागढ़ से ली गई थी. दूसरी काल 8 फरवरी को की गई, जबकि 12 व 15 फरवरी की काल कस्बा बाड़ी से की गई थीं. काल करने के लिए हर बार नया मोबाइल और नया सिम खरीदा गया था. इस के साथ ही हर बार अपहर्त्ता लोकेशन भी बदलते रहे थे. उन्होंने कहा कि पुलिस ने न सिर्फ अधिवक्ता अकरम अंसारी को सकुशल बरामद किया बल्कि 5 अपहर्त्ताओं और एक महिला को गिरफ्तार कर उन से फिरौती की वसूली गई रकम साढ़े 12 लाख भी बरामद कर ली. पुलिस ने बैग में रखी यह रकम 15 लाख बताई थी. डीजीपी ने टीम के इस कार्य की सराहना की. इस संबंध में अपहरण की जो कहानी सामने आई वह इस प्रकार थी—

राजस्थान के गुर्जर गैंग ने बीच आगरा शहर से अधिवक्ता अकरम अंसारी का अपहरण किया था. दरअसल 3 फरवरी, 2020 को अकरम को उन के साढ़ू ने फिरोजाबाद जाने के लिए एक आटो में बैठा दिया था. अकरम सिकंदरा स्थित आईएसबीटी पर उतरे लेकिन वहां फिरोजाबाद जाने के लिए कोई बस नहीं मिली. जब बस नहीं मिली तब अकरम दूसरे आटो से भगवान टाकीज पहुंच कर बस का इंतजार करने लगे. वहां पर आगरा आने व जाने वाली बसें रुकती हैं. शाम 7.20  बजे एक बोलेरो उन के पास आ कर रुकी और ड्राइवर ने पूछा, ‘‘कहां जाओगे?’’

अकरम ने फिरोजाबाद जाने की बात कही तो ड्राइवर ने कहा, ‘‘हां, फिरोजाबाद ही जा रहे हैं.’’ उस समय उस बोलेरो में चालक के अलावा 3 लोग और बैठे थे. उस गाड़ी में अकरम के बैठते ही ड्राइवर चलने लगा तो अकरम ने कहा कि और सवारियां ले लो तो चालक ने कहा कि आगे से ले लेंगे. 10-12 मिनट गाड़ी चलने के बाद अचानक बगल में यात्री के रूप में बैठे बदमाश ने अकरम को सीट के नीचे गिरा कर दबोच लिया और धमकी दी कि यदि चिल्लाया तो गोली मार देंगे. इस के साथ ही उन के ऊपर कपड़ा डाल दिया. बदमाश कह रहे थे यदि तू वीरेंद्र नहीं हुआ तो हम तुझे छोड़ देंगे. अपहर्त्ता ये बात इसलिए कह रहे थे ताकि वह शोर न मचाए. उन्होंने अकरम की आंखों पर पट्टी भी बांध दी.

गाड़ी चलती रही. रात 11 बजे अपहर्त्ता अधिवक्ता अकरम को एक सुनसान जगह पर ले गए. वहां एक घर में उन्हें रखा गया. यह घर धौलपुर के बाड़ी कस्बे में था. वहां 2-3 कमरे थे. पैरों में जंजीर बांध कर उन्हें एक कमरे में बंद कर दिया. आंखों पर पट्टी बांधने के साथ ही अकरम के मुंह पर टेप भी लगा दिया. उन का मोबाइल उन लोगों ने गाड़ी में ही छीन लिया था. कमरे पर ही बदमाशों ने अकरम से उस के बारे में पूरी जानकारी लेने के बाद दूसरे दिन फिरौती के लिए परिजनों को फोन किया था. कमरे में ही चटाई पर अकरम सोते थे. रात में सोने के लिए एक हलकी रजाई दी गई थी. 24 घंटे 2 युवक पहरेदारी पर रहते थे. रात में एक बदमाश भी पास में ही दूसरी चटाई पर सोता था. कई दिन बीत गए. बदमाश बीचबीच में आ कर उन्हें धमका जाते थे. कहते कि तेरे परिवार के लोग फिरौती की रकम नहीं दे पा रहे हैं, हम तुझे मार देंगे.

हालात देख कर बचना था मुश्किल वहां जिस तरह का माहौल चल रहा था इस से अकरम को लग रहा था कि वह अपहर्त्ताओं के चंगुल से मुक्त नहीं हो पाएंगे. उन्हें डर था कि परिजन अपहर्त्ताओं की मांग पूरी नहीं कर पाएंगे. उन का अब घर जाना मुश्किल होगा. बदमाश खाने के लिए कभी रोटी सब्जी तो कभी रोटी दाल देते थे. अकरम रात को ही खाना खाते थे. 15 दिन तक अकरम को नहाने नहीं दिया गया. मकान में एक महिला और उस का पति था. मकान में आगे व पीछे दरवाजे थे. आगे के दरवाजे पर ताला लगा रहता था. अन्य लोग मकान के पीछे के दरवाजे से आतेजाते थे. अकरम ने बताया कि बदमाशों ने उन के साथ मारपीट नहीं की.

अकरम हर दिन यही दुआ करते थे कि पुलिस उन्हें कब छुड़ाएगी? दहशत की वजह से नींद भी नहीं आती थी. जैसेजैसे दिन निकलते जा रहे थे, उम्मीद भी कम होती जा रही थी. मगर, रविवार 23 फरवरी की रात को पुलिस आई और अकरम को मुक्त करा लिया. अपनी दास्ता बयां करतेकरते अकरम की आंखें भर आई थीं. पुलिस लाइन में अकरम के भाई मोउज्जम, असलम, मोहम्मद सोहेल, मुकर्रम और पिता आरिफ अंसारी आए थे. भाइयों ने अकरम को गले लगा लिया. परिवार से मिल कर अकरम की खुशी का ठिकाना नहीं था. पुलिस लाइन में प्रैसवार्ता के दौरान अकरम ने पुलिस अधिकारियों को मिठाई खिलाई और उन को धन्यवाद दिया.

पुलिस ने बताया कि धौलपुर के बीहड़ में अपहर्त्ताओं के 25 गैंग सक्रिय हैं. यह गैंग शिकार को बीहड़ में पकड़ कर ले जाने के बाद फिरौती वसूलते हैं. पुलिस ने सौ से ज्यादा गैंग के बारे में पड़ताल की. इन में 25 गैंग के सक्रिय होने के बारे में पता चला. इन में गब्बर, केशव, रामविलास, भरत, धर्मेंद्र, लुक्का, मुकेश ठाकुर गैंग विशेष रूप से सक्रिय हैं. यह गैंग अलगअलग तरीके से फिरौती के लिए अपहरण की वारदात को अंजाम देते हैं. इन के खिलाफ उत्तर प्रदेश, राजस्थान और मध्य प्रदेश में अनेक मुकदमे दर्ज हैं.

अपहृत वकील को अपहर्त्ताओं के चंगुल से मुक्त कराने वाली पुलिस टीम को एडीजी अजय आनंद ने पुरस्कृत कर सम्मानित किया. पुलिस ने सारी काररवाई पूरी कर गिरफ्तार अपहर्त्ताओं को अदालत में पेश किया, जहां से सभी को जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित है

 

 

Madhya Pradesh Crime : दो हजार रुपए की लालच में मां ने अपने ही प्रेमी से कराया बेटी का रेप

Madhya Pradesh Crime : पैसे ले कर बलात्कार के लिए अपनी नाबालिग बेटी को किसी वहशी को सौंपने वाली कई मांएं होंगी, जिन्हें मां के नाम पर कलंक ही कहा जा सकता है. ऊषा भी ऐसी ही मां थी, जिस ने मात्र 600 रुपए में अपनी नाबालिग बेटी को अपने यार महमूद को सौंप  दिया. लेकिन…

बात 21 अक्तूबर, 2019 की है. मध्य प्रदेश के धार जिले के थाना बगदून के टीआई आनंद तिवारी अपने औफिस में बैठे थे, तभी उन के पास एक महिला आई. उस महिला के साथ 12-13 साल की एक किशोरी भी थी. महिला के साथ आई किशोरी काफी डरी हुई थी. अनीता नाम की महिला ने टीआई को बताया कि इस लड़की के साथ बहुत ही घिनौना कृत्य किया गया है. महिला की बात को समझ कर थानाप्रभारी ने तुरंत एसआई रेखा वर्मा को बुला लिया. रेखा वर्मा ने उस महिला व उस के साथ आई लड़की से पूछताछ की तो उन की कहानी सुन कर वह आश्चर्यचकित रह गईं. वह सोच में पड़ गईं कि क्या कोई मां ऐसी भी हो सकती है. उन दोनों ने पूछताछ के बाद महिला एसआई रेखा वर्मा ने टीआई आनंद तिवारी को सारी बात बता दी.

सुन कर टीआई भी बुरी तरह चौंके. वही क्या कोई भी इस बात पर भरोसा नहीं कर सकता था कि एक मां अपनी मासूम बेटी के साथ एक अधेड़ व्यक्ति से बलात्कार जैसा घिनौना कृत्य करवाया. प्रारंभिक पूछताछ में थाने आई किशोरी ने बताया था कि वह कक्षा 6 में पढ़ती है. पिता मांगीराम की मौत के बाद मां 4 भाईबहनों के साथ रह कर मेहनतमजदूरी करती थी. लेकिन 4 साल पहले मां ने तब मजदूरी करनी छोड़ दी जब उस की दोस्ती मटन बेचने वाले महमूद से हुई. तब से महमूद अकसर उस के घर आने लगा था. पीडि़त बच्ची ने आगे बताया कि महमूद के आने पर मां सब भाईबहनों को बाहर के कमरे में बैठा कर खुद उस के साथ कमरे में चली जाती थी.

ऐसा बारबार होने लगा तो मैं ने एक दिन चुपचाप झांक कर देखा. मां और महमूद पूरी तरह नंगे हो कर गंदा खेल खेल रहे थे. मैं ने मां को इस बात के लिए मना किया तो उस ने उलटा मुझे डांट दिया और खामोश रहने की हिदायत दी. उस लड़की ने आगे बताया कि 15 अक्तूबर को महमूद शाम को हमारे घर आया तो मां ने मुझे उस के साथ पीछे के कमरे में भेज दिया. उस कमरे में महमूद मुझ से अश्लील हरकतें करने लगा. मैं ने भागने की कोशिश की तो मां ने मेरे हाथपैर बांध दिए और खुद दरवाजे पर आ कर खड़ी हो गई. तब महमूद ने मेरे साथ गंदा काम किया.

इस के बाद वह मां को 600 रुपए दे कर चला गया. इस बात की जानकारी मैं ने पड़ोस में रहने वाली अनीता आंटी को दी तो उन्होंने मदद करने का वादा किया. आज फिर महमूद हमारे घर आया और मुझे पकड़ कर पीछे के कमरे में ले जाने लगा, जिस पर मैं मां और उस की पकड़ से छूट कर बाहर भाग आई. काफी देर बाद जब घर वापस लौटी तो मेरी मां ने मेरे साथ मारपीट की, जिस के बाद मैं आंटी को ले कर थाने आ गई. पड़ोस में रहने वाली अनीता के साथ आई मासूम बच्ची के झूठ बोलने की कोई संभावना और कारण नहीं था, इसलिए टीआई आनंद तिवारी ने उसी वक्त मासूम किशोरी का मैडिकल परीक्षण करवाया, जिस में उस के साथ दुष्कर्म किए जाने की पुष्टि हुई.

इस के बाद टीआई ने किशोरी की आरोपी मां ऊषा और उस के आशिक महमूद शाह के खिलाफ बलात्कार एवं पोक्सो एक्ट का मामला दर्ज कर के इस घटना की जानकारी एसपी (धार) आदित्य प्रताप सिंह को दे दी. जबकि वह स्वयं पुलिस टीम ले कर आरोपियों की गिरफ्तारी के लिए निकल गए. दोनों आरोपी घर पर ही मिल गए. आधे घंटे में पुलिस 30 वर्षीय ऊषा और उस के 42 वर्षीय आशिक महमूद को हिरासत में ले कर थाने लौट आई. पूछताछ की गई तो पहले तो मां और उस का आशिक दोनों बेटी को झूठा बताने की कोशिश करते रहे. लेकिन थोड़ी सी सख्ती करने पर उन्होंने सच्चाई बता दी. उन से पूछताछ के बाद जो हकीकत सामने आई, उस ने मां शब्द पर ही ग्रहण लगा दिया. कोई कल्पना भी नहीं कर सकता था कि मां ऐसी भी हो सकती है.

मध्य प्रदेश के धार जिले के पीतमपुर गांव की रहने वाली ऊषा के पति मांगीराम की अचानक मौत हो गई थी. पति की मौत के बाद ऊषा के सामने बच्चों को पालने की समस्या खड़ी हो गई. उस के 4 बच्चे थे. 30 वर्षीय ऊषा को किसी तरहघर का खर्च तो चलाना ही था, लिहाजा वह मेहनतमजदूरी करने लगी. जवान औरत के सिर से अगर पति का साया उठ जाए तो कितने ही लोग उसे भूखी नजरों से देखने लगते हैं. ऊषा पर भी तमाम लोगों ने डोरे डालने शुरू कर दिए थे. इसी दौरान खूबसूरत ऊषा पर मटन की सप्लाई करने वाले महमूद शाह की नजर पड़ी. महमूद का बगदून में पोल्ट्री फार्म था. अपने फार्म से वह ढाबे और होटलों में मटन सप्लाई करता था.

महमूद ऊषा के नजदीक पहुंचने के लिए जाल बुनने लगा. इस से पहले महमूद गरीब घर की ऐसी कई लड़कियों और महिलाओं को अपना शिकार बना चुका था, वह जानता था कि गरीब औरतें जल्दी ही पैसों के लालच में आ जाती हैं. उस ने काम के बहाने ऊषा से जानपहचान बढ़ाई और उस के बिना मांगे ही उसे मटन देने लगा. ऊषा ने जब उस से कहा कि वह पैसा नहीं चुका पाएगी तो उस ने कहा कि कभी मुझे अपने घर बुला कर मटन खिला देना. मैं समझ लूंगा कि सारे पैसे वसूल हो गए. जवाब में ऊषा ने कह दिया कि आज ही आ जाना, खिला दूंगी. इस पर महमूद ने मिर्चमसाले आदि के लिए उसे 200 रुपए भी दे दिए.

ऊषा खुश हुई. उस ने उस के लिए मटन बना कर रखा लेकिन महमूद नहीं आया. अगले दिन ऊषा ने महमूद से शिकायत की तो उस ने कोई बहाना बना दिया और फिर किसी दिन आने को कहा. उस के बाद अकसर ऐसा होने लगा. ऊषा मटन बना कर उस का इंतजार करती. अब वह मटन के साथ उसे खर्च के पैसे भी देने लगा. इस तरह ऊषा का उस की तरफ झुकाव होने लगा. महमूद ऊषा की बातों और मुसकराहट से समझ गया था कि वह उस के जाल में फंस चुकी है, लिहाजा एक दिन वह दोपहर के समय ऊषा के घर चला गया. उस समय ऊषा के बच्चे सरकारी स्कूल में पढ़ने गए हुए थे. महमूद को घर आया देख ऊषा खुश हुई. महमूद उस से प्यार भरी बातें करने लगा. उसी दौरान दोनों ने अपनी हसरतें भी पूरी कर लीं.

हालांकि महमूद शादीशुदा और 2 बच्चों का पिता था. लेकिन ऊषा ने जिस तरह उसे खुश किया, उस से वह बहुत प्रभावित हुआ. इस के बाद उसे जब भी मौका मिलता, ऊषा के घर चला आता. कुछ महीनों बाद उस के कहने पर ऊषा ने मजदूरी करना बंद कर दिया. उस के घर का पूरा खर्च महमूद ही उठाने लगा. वह भी दिन भर महमूद के साथ बिस्तर में पड़ी रहने लगी. ऊषा की बड़ी बेटी 12-13 साल की थी. मां के साथ महमूद को देख कर वह भी समझ गई थी कि मां किस रास्ते पर चल रही है. बेटी ने मां की इस हरकत का विरोध करने की कोशिश की. लेकिन ऊषा पर बेटी के समझाने का तो कोई फर्क नहीं पड़ा, उलटे महमूद की नजर बेटी पर जरूर खराब हो गई.

कुछ समय बाद महमूद ने ऊषा को 2 हजार रुपए दे कर बड़ी बेटी को उस के साथ सोने के लिए तैयार करने को कहा. 2 हजार रुपए देख कर वह लालच में अंधी हो गई और बेटी को उसे सौंपने को तैयार हो गई. जिस के चलते 15 अक्तूबर की शाम को महमूद ऊषा की बेटी के संग ऐश करने की सोच कर उस के घर पहुंचा. ऊषा ऐसी निर्लज्ज हो गई थी कि वह अपनी कोमल सी बच्ची को उस के हवाले करने को तैयार हो गई. महमूद के पहुंचने पर ऊषा ने बेटी को महमूद के साथ बात करने के लिए कमरे में भेज दिया. उसे देखते ही महमूद उस पर टूट पड़ा तो वह रोनेचिल्लाने लगी.

यह देख बेदर्द ऊषा कमरे में आई और बेटी की चीख पर दया दिखाने के बजाए उलटा उसे समझाने लगी, ‘‘कुछ नहीं होगा, थोड़ा प्यार कर लेने दे. तू महमूद को खुश कर देगी तो यह तुम्हें लैपटौप और मोबाइल दिला देंगे.’’

बच्ची डर के मारे रो रही थी. वह नहीं मानी तो बेहया ऊषा ने अपनी बेटी के हाथ और पैर बांध कर बिस्तर पर पटक दिया. इस के बाद महमूद को अपनी मन की करने का इशारा कर के वह कमरे के दरवाजे पर बैठ कर चौकीदारी करने लगी. महमूद वासना का भूखा भेडि़या बन कर उस कोमल बच्ची पर टूट पड़ा. असहाय और मासूम बच्ची दर्द से कराहती रही, लेकिन न तो उस दानव का दिल पसीजा और न ही जन्म देने वाली मां का. उस के नाजुक जिस्म को लहूलुहान करने के बाद महमूद मुसकराते हुए उठा और अपने कपड़े पहनने के बाद ऊषा को 600 रुपए दे कर दूसरे दिन फिर आने को कह कर वहां से चला गया.

बच्ची अपने शरीर से बहता खून देख कर डर गई तो ऊषा ने उसे डांटते हुए कहा, ‘‘नाटक मत कर. हर लड़की के साथ पहली बार यही होता है. तू इस से मरेगी नहीं, 1-2 दिन में सब ठीक हो जाएगा.’’

दूसरे दिन हवस का भेडि़या बन कर महमूद फिर आया पर ऊषा ने उसे समझाया कि बच्ची अभी घायल है. 2-4 दिन उस से मुलाकात नहीं कर सकती. इस पर महमूद ऊषा के संग कमरे में कुछ समय बिता कर चला गया. इधर डर के मारे बच्ची कांप रही थी. वह सीधे आंटी अनीता के पास पहुंची और उन से मदद की गुहार लगाई. 21 अक्तूबर को ऊषा ने फिर अपनी बेटी को महमूद के साथ कमरे में भेजने की कोशिश की, जिस पर वह घर से बाहर भाग गई. लौटने पर ऊषा ने उस की पिटाई की तो उस ने अनीता आंटी को सारी बात बताई.

इस के बाद अनीता बच्ची को ले कर थाने पहुंच गईं. पुलिस ने कलयुगी मां ऊषा और उस के प्रेमी महमूद से पूछताछ के बाद कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया.

—कथा में अनीता परिवर्तित नाम है

 

Uttar Pradesh Crime : प्रेमिका के भाई को मारा फिर बोरी में बंद कर रेत में दफना डाला

Uttar Pradesh Crime : आजकल के ज्यादातर युवा तो प्यार को जानते हैं और जानना चाहते हैं. उन के लिए शारीरिक आकर्षण ही प्यार होता है. इसी आकर्षण को प्यार समझ कर वे ऐसीऐसी कंदराओं में खो जाते हैं, जो अपने अंदर का अंधेरा उन के जीवन में भर देती हैं. ऐसा ही विकास के साथ भी हुआ. आखिर…  

रोजाना की तरह पूनम उस दिन भी स्कूल जाने के लिए अपनी साइकिल से निकली तो रास्ते में पहले से उस का इंतजार कर रहे विकास ने उस के पीछे अपनी साइकिल लगा दी. पूनम ने विकास को पीछे आते देखा तो अपनी साइकिल की गति और तेज कर दी. विकास अपनी साइकिल की रफ्तार और तेज कर के पूनम के आगे जा कर इस तरह खड़ा हो गया कि अगर वह अपनी साइकिल के ब्रेक लगाती तो जमीन पर गिर जाती. साइकिल संभालते हुए पूनम साइकिल से उतर कर खड़ी हुई और बोली, ‘‘देख नहीं रहे हो, मैं स्कूल जा रही हूं. आज वैसे भी देर हो गई है. अगर हमें किसी ने देख लिया तो बिना मतलब बात का बतंगड़ बनते देर नहीं लगेगी.’’

‘‘जिसे जो बातें बनानी हैं, बनाता रहे. मुझे किसी की परवाह नहीं है.’’ विकास ने बड़े प्यार से अपनी बात कह डाली.

पूनम स्कूल जाने के लिए मन ही मन बेचैन थी. उस ने विकास की तरफ देखा और उस से अनुरोध करते हुए बोली, ‘‘देखो, मुझे देर हो रही है. अभी मुझे स्कूल जाने दो. मैं तुम से बाद में मिल लूंगी. तुम्हें जो बात करनी हो, कर लेना.’’

विकास पूनम की बात सुन कर नरम पड़ गया. वह अपनी साइकिल को साइड में कर के पूनम के चेहरे को देखते हुए बोला, ‘‘पूनम, तुम मेरी आंखों में झांक कर देखो, इस में तुम्हें बेपनाह मोहब्बत नजर आएगी. तुम्हें पता है, तुम्हारी चाहत में मैं सब कुछ भूल गया हूं. मुझे दिनरात बस तुम ही तुम नजर आती हो.’’

‘‘वह सब तो ठीक है विकास, पर तुम्हें यह तो पता है कि हम एक ही जगह के हैं और हमारे तुम्हारे घर के बीच बहुत ज्यादा फासला नहीं है. अगर हम दोनों इस तरह प्यारमोहब्बत की पेंग बढ़ाएंगे तो मोहल्ले वालों से हमारा प्रेम कब तक छिपा रहेगा

‘‘तुम मेरे पिता को तो जानते हो, बातबात में गुस्सा हो जाते हैं. अगर उन्हें हम दोनों के प्रेम की भनक लगी तो मैं बदनाम हो जाऊंगी. फिर मेरे पिता मेरी क्या गत बनाएंगे, यह तो ऊपर वाला ही जाने.’’ वह बोली.

‘‘पूनम, मैं सपने में भी तुम्हें बदनाम करने की नहीं सोच सकता. तुम तो मेरी मोहब्बत हो और मोहब्बत के लिए लोग जाने क्याक्या कर जाते हैं. तुम सिर्फ जरा सी बदनामी से डरती हो. पता है, मैं तुम से मिलने और बातें करने के लिए क्याक्या तिकड़म भिड़ाता हूं

‘‘तब कहीं जा कर तुम से तनहाई में मुलाकात होती है. देखो पूनम, मैं तुम्हें बदनाम नहीं होने ही दूंगा. और हां, मैं ने निर्णय ले लिया है कि शादी करूंगा तो सिर्फ तुम से. मेरी दुलहन तुम्हारे अलावा कोई दूसरी नहीं होगी, फिर बदनामी कैसी.’’

पूनम कुछ देर शांत मन से विकास की बातें सुनती रही. फिर लंबी सांस ले कर बोली, ‘‘अच्छा, अब बस करो, मैं स्कूल जा रही हूं. मुझे काफी देर हो चुकी है.’’

पूनम ने इतना कह कर अपनी साइकिल आगे बढ़ाई ही थी कि विकास मुसकराता हुआ बोला, ‘‘हां जाओ, लेकिन मिलने के लिए थोड़ा समय निकाल लिया करो.’’

पूनम बिना कुछ बोले अपने स्कूल की ओर बढ़ गई. पूनम के स्कूल जाने वाले रास्ते के उस मोड़ के पास विकास अकसर उस का रास्ता रोक कर कभी प्रेम से तो कभी थोड़ा गुस्से में अपने प्रेम का इजहार करने लगता था. पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जिला रामपुर, थाना स्वार की चौकी मसवासी के अंतर्गत एक मोहल्ला है भूबरा. वीर सिंह अपने परिवार के साथ इसी मोहल्ले में रहता था. परिवार में उस की पत्नी के अलावा 3 बेटे और 2 बेटियां थीं. वीर सिंह और उस की पत्नी प्रेमवती दोनों दिव्यांग थे. वीर सिंह हाईस्कूल पास था. वह मोहल्ले के छोटे बच्चों को ट्यूशन पढ़ाता था. बड़ा बेटा गिरीश नौकरी करता था. बापबेटे मिल कर परिवार का बोझ उठाते थे.

वीर सिंह की बेटी पूनम खूबसूरत भी थी और चंचल भी. वीर सिंह और प्रेमवती उसे बहुत चाहते थे. पूनम एक स्थानीय स्कूल में दसवीं में पढ़ती थी. 15 वर्षीय पूनम उम्र के उस पायदान पर खड़ी थी, जहां शरीर में काफी बदलाव जाते हैं और दिल में उमंग की लहरें हिचकोले लेने लगती हैं. पूनम पहले से ही सुंदर थी, लेकिन जब कुदरत ने उस के बदन को खूबसूरती के सांचे में ढाल कर आकर्षक आकार दिया तो उस की सुंदरता कयामत ढाने लगी, जिस का पूनम को भी अहसास हो गया था. अपनी सुंदरता पूनम को लुभाती तो थी, लेकिन लोगों की चुभती नजरों से बचने के लिए उसे तरहतरह के जतन करने पड़ते थे. वह लोगों की गिद्ध दृष्टि को अच्छी तरह पहचानती थी. लेकिन विकास उन सब से अलग था. उस की आंखों में पूनम को अपने लिए अलग तरह की चाहत दिखती थी. विकास स्मार्ट भी था और खूबसूरत भी.

विकास मौर्य भी भूबरा मोहल्ले में ही रहता था. पूनम के घर से उस के घर की दूरी महज ढाई सौ मीटर थी. विकास के पिता नरपाल मौर्य खेतीकिसानी का काम करते थे. घर में पिता के अलावा उस की मां जगदेवी, एक बड़ा भाई और 3 बहनें थीं. वीर सिंह और नरपाल मौर्य के परिवारों का एकदूसरे के घर आनाजाना था. इसी आनेजाने में जब विकास की नजर जवान होती पूनम पर पड़ी तो वह बरबस उस की ओर आकर्षित होगया और उसे मन ही मन चाहने लगालेकिन पूनम के घर वालों की वजह से उसे अकेले में पूनम से बात करने का मौका नहीं मिल पाता था. विकास हमेशा इस फिराक में रहता था कि मौका मिले तो पूनम से बात करे.

संयोग से एक साल पहले विकास को मौका मिल गया. पूनम के घर वाले किसी शादी समारोह में गए हुए थे. पूनम घर पर अकेली थी. यह पता चलते ही विकास बहाने से वीर सिंह के घर पहुंच गया और दरवाजे पर दस्तक दी. पूनम उस समय पढ़ रही थी. दस्तक सुन कर उस ने दरवाजा खोला तो सामने विकास खड़ा था. विकास को देख वह बोली, ‘‘सब लोग शादी में गए हैं. घर में कोई नहीं है.’’

विकास ने पूनम की बात खत्म होते ही कहा, ‘‘देखो पूनम, आज मैं सिर्फ तुम से ही मिलने आया हूं. चाचा से मिलना होता तो कभी भी मिल लेता.’’

‘‘ठीक है, अंदर जाओ और बताओ मुझ से क्यों मिलना है.’’ पूनम के कहने पर विकास अंदर गया

विकास के अंदर आते ही पूनम फिर से बोली, ‘‘हां विकास, बोलो, क्या कहना चाहते हो?’’

विकास एकटक पूनम की ओर देखते हुए बोला, ‘‘दरअसल, मैं बहुत दिनों से तुम से एकांत में मिलना चाह रहा था. मैं तुम्हें दिल से चाहने लगा हूं. मुझे तुम से प्यार हो गया है. दिल नहीं माना तो तुम से मिलने चला आया.’’

विकास आगे कुछ और बोलता, इस से पहले ही पूनम के होंठों पर हंसी गई. वह मुसकराते हुए बोली, ‘‘आतेजाते तुम मुझे जिस तरह से देखते थे, उस से ही मुझे आभास हो गया था कि जरूर तुम्हारे दिल में मेरे लिए कोई चाहत है.’’

‘‘इस का मतलब तुम भी मुझे पसंद करती हो. तुम्हारी इन बातों से विश्वास हो गया कि हम दोनों के दिल में एकदूसरे के प्रति प्यार है.’’ विकास कुछ और बोल पाता, तभी पूनम बोल पड़ी, ‘‘मम्मीपापा के आने का समय हो गया है. इसलिए तुम अभी यहां से चले जाओ. मुझे मौका मिला तो मैं फिर बात कर लूंगी.’’

पूनम के इतना कहने के बाद भी विकास वहीं खड़ा रहा और पूनम की खूबसूरती के कसीदे पढ़ता रहा. पूनम से रहा नहीं गया तो वह जबरदस्ती विकास का हाथ पकड़ कर उसे मेनगेट तक ले आई और उसे बाहर कर के मेनगेट बंद कर लिया. लेकिन जातेजाते विकास पूनम को यह याद कराना नहीं भूला कि उस ने बाहर मिलने का वादा किया है. पूनम अपने वादे को नहीं भूली और अगले दिन स्कूल जाते समय रास्ते में विकास दिखा तो उस ने इशारे से बता दिया कि स्कूल से वापस लौटते समय उस से मिलेगीविकास समय से पहले ही पूनम के वापस लौटने वाले रास्ते पर उस का इंतजार करने लगा. पूनम स्कूल से लौटी तो विकास से उस की मुलाकात हुई. उस ने विकास के प्यार को स्वीकार करते हुए कहा, ‘‘मैं तुम्हारे प्यार को स्वीकार कर रही हूं और चाहती हूं कि हम बदनाम हों. इसलिए तुम्हें भी सावधान रहना होगा ताकि किसी को हमारे प्यार की भनक लगे.’’

विकास पूनम के हाथों को अपने हाथों में लेता हुआ बोला, ‘‘तुम भी कैसी बातें करती हो? क्या कभी कोई प्रेमी चाहेगा कि उस की प्रेमिका की समाज में रुसवाई हो? तुम मुझ पर भरोसा रखो.’’

समय बीतता रहा. दोनों लोगों की नजरों से बच कर चोरीछिपे मिलते रहे. दोनों का प्यार इतना बढ़ गया कि वे एकदूसरे के लिए कुछ भी कर सकते थे. यहां तक कि एकदूजे के लिए जान भी दे सकते थे. पर एकदूसरे से अलग होना उन्हें किसी भी हाल में मंजूर नहीं था. बीते 9 दिसंबर को पूनम का सब से छोटा 7 वर्षीय भाई अंश दोपहर 2 बजे के करीब घर के बाहर खेल रहा था, लेकिन अचानक वह लापता हो गया. बडे़ भाई गिरीश ने अपने भाईबहनों के साथ उसे काफी खोजा लेकिन उस का कोई पता नहीं चला. एक दिन पहले ही किसी अनजान युवक ने अंश को 10 रुपए दिए थे. यह बात अंश ने घर कर बताई थी. लेकिन घर के लोगों ने इसे गंभीरता से नहीं लिया था, इस के अगले दिन यह घटना घट गई

जब किसी तरह से अंश का पता नहीं चला तो 10 दिसंबर, 2019 को गिरीश ने स्वार थाने जा कर इंसपेक्टर सतेंद्र कुमार सिंह को पूरी बात बताई. सतेंद्र सिंह ने गिरीश की तहरीर पर अज्ञात के खिलाफ भादंवि की धारा 363 के तहत मुकदमा दर्ज करा दिया. पुलिस ने गिरीश और उस के पिता के मोबाइल नंबर सर्विलांस पर लगवा दिए, ताकि अपहर्त्ता फिरौती के लिए फोन करें तो ट्रेस किया जा सके. 11 दिसंबर, 2019 को अपहर्त्ता ने वीर सिंह के नंबर पर काल कर के अंश को रिहा करने के एवज में 15 लाख रुपए की फिरौती मांगी. सर्विलांस टीम और अंश के घर वालों द्वारा सूचना देने पर मसवासी चौकी इंचार्ज कुलदीप सिंह चौधरी अंश के घर गए और उस के घर वालों से पूछताछ की.

जिस नंबर से काल की गई थी, वह फरजी आईडी पर खरीदा गया था. जिस मोबाइल में वह सिम डाला गया था, उस मोबाइल में उस से पहले जो सिम डाले गए थे, उन की जांचपड़ताल करने के बाद पुलिस अपहर्त्ता तक पहुंच गई. वह कोई और नहीं, अंश की बड़ी बहन पूनम का प्रेमी विकास मौर्य था. 12 दिसंबर को इंसपेक्टर सतेंद्र सिंह और चौकी इंचार्ज कुलदीप सिंह चौधरी ने मानपुर तिराहे से विकास मौर्य को उस के साथी अनुराग शर्मा के साथ गिरफ्तार कर लिया. दोनों से कड़ाई से पूछताछ की गई तो दोनों ने अपने 3 अन्य साथियों विकास सैनी, रवि सैनी और रोहित के नाम बताए. इन सब ने साथ मिल कर अंश का अपहरण कर हत्या कर देने की बात कबूल कर ली. साथ ही हत्या के पीछे की कहानी भी बयान कर दी

विकास मौर्य और पूनम का प्यार दिनोंदिन परवान चढ़ रहा था, वह भी सब की नजरों से बच कर. लेकिन एक दिन पूनम के छोटे भाई अंश ने दोनों को आपत्तिजनक स्थिति में एक साथ देख लिया. पूनम ने जैसेतैसे अंश को समझा दिया और उसे अपने साथ घर ले गई, लेकिन विकास इस बात से डर गया कि कहीं वह घर वालों को उन दोनों के बारे में बता दे. इसी वजह से उस ने अंश का अपहरण कर उसे मार देने का फैसला किया. इस बारे में उस ने पूनम को भनक तक नहीं लगने दी. उस ने अपने दोस्तों सीतारामपुर गांव निवासी अनुराग शर्मा, विकास सैनी, रवि सैनी और भूबरा मोहल्ला निवासी रोहित से बात की. दोस्ती की खातिर ये सब विकास का साथ देने को तैयार हो गए.

8 दिसंबर, 2019 को अंश घर के बाहर बच्चों के साथ खेल रहा था. तभी विकास के साथ अनुराग वहां गया. विकास ने अनुराग को अंश की तरफ इशारा कर के उस की पहचान कराई. अनुराग अंश के पास पहुंचा और उस से प्यार से बात की, साथ ही उसे 10 रुपए दिए. मासूम अंश ने उस से 10 रुपए ले लिए. अनुराग उस से दोस्ती कर के चला गया. अंश ने घर जा कर इस अनजान दोस्त से मिले पैसों के बारे में बताया तो किसी ने इस बात को गंभीरता से नहीं लिया. अगले दिन 9 दिसंबर को योजनानुसार दोपहर 2 बजे विकास अनुराग के साथ बाइक से अंश के घर के पास पहुंचा. रोज की तरह उस समय अंश बच्चों के साथ खेल रहा था. विकास ने उस से कहा कि उस के बड़े भैया गिरीश उसे बुला रहे हैं. वह आगे खड़े हैं. मासूम अंश उन के साथ बाइक पर बैठ गया.

आगे कुछ दूरी पर विकास सैनी, रवि और रोहित खड़े थे. अंश को उन के साथ देख कर वे भी उन के साथ हो लिए. अंश को वे बेलवाड़ा गांव के जंगल में ले गए. वहां रुमाल से बनाया फंदा अंश के गले में डाल कर कस दिया, जिस से अंश की दम घुटने से मौत हो गई. इस के बाद अंश की लाश को एक प्लास्टिक की बोरी में डाल कर रेत में दबा दिया. इस के बाद 11 दिसंबर को विकास ने केस की दिशा मोड़ने के लिए फरजी सिम से अंश के पिता को काल कर के 15 लाख रुपए की फिरौती मांगी. इस से केस की दिशा तो नहीं बदली, लेकिन उस के पकड़े जाने का रास्ता जरूर खुल गया. विकास की यह गलती उसे और उस के साथियों को भारी पड़ी.

12 दिसंबर को ही विकास मौर्य और अनुराग शर्मा की निशानदेही पर इंसपेक्टर सतेंद्र सिंह और चौकी इंचार्ज कुलदीप सिंह चौधरी ने एसडीएम राकेश कुमार गुप्ता की मौजूदगी में रेत में दबी अंश की लाश बरामद कर ली. इस के बाद मुकदमे में दर्ज धारा 363 को भादंवि की धारा 364, 302, 201, 34 तरमीम कर दिया गया. पुलिस ने 14 दिसंबर, 2019 को मुंशीगंज तिराहे से विकास सैनी और रवि सैनी को भी गिरफ्तार कर लिया

आवश्यक कानूनी लिखापढ़ी के बाद चारों अभियुक्तों को न्यायालय में पेश किया गया, जहां से सब को जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक रोहित फरार था.

   —कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. कथा में पूनम परिवर्तित नाम है.

          

 

 

  

Murder Stories : मंहगा फोन खरीदने के लिए युवक ने ली महिला की जान

Murder Stories : युवा गांव के हों या शहर के, सभी के लिए कीमती और ज्यादा से ज्यादा फीचर्स वाले मोबाइल फोन जरूरत नहीं बल्कि शौक बनते जा रहे हैं. कई युवा तो ऐसे फोनों को प्रस्टेज इशू बनाने लगे हैं. गौरव भी ऐसे ही युवाओं में था उस की इस चाहत ने एक ऐसी युवती की जान ले ली जो…

18 अक्तूबर, 2019 को दिन के 12 बजे का वक्त रहा होगा. एक मोबाइल फोन शोरूम के मालिक मनीष चावला ने काशीपुर कोतवाली में जो सूचना दी, उसे सुन कर पुलिस के जैसे होश ही उड़ गए. मनीष चावला ने पुलिस को बताया कि उन के शोरूम पर काम करने वाली युवती पिंकी की किसी ने हत्या कर दी है. शहर में दिनदहाड़े एक युवती की हत्या वाली बात सुनते ही कोतवाल चंद्रमोहन सिंह हैरान रह गए. उन्होंने इस की सूचना उच्चाधिकारियों को दे दी और खुद घटनास्थल के लिए रवाना हो गए. मनीष चावला का मोबाइल शोरूम कोतवाली से कुछ ही दूर गिरीताल रोड पर था, वह थोड़ी देर में ही वहां पहुंच गए.

तब तक वहां काफी भीड़भाड़ जमा हो गई थी. शव शोरूम से सटे स्टोर में पड़ा था. वहां पहुंचते ही कोतवाल चंद्रमोहन सिंह ने पिंकी के शव का जायजा लिया. वहां पर खून ही खून फैला था. उस के शरीर पर धारदार हथियार के कई घाव थे. देखने से लग रहा था जैसे शोरूम में लूटपाट भी हुई हो. कोतवाल का ध्यान सब से पहले शोरूम के सीसीटीवी कैमरों की ओर गया. पूछताछ में मनीष चावला ने बताया कि कुछ दिन पहले ही उस के सीसीटीवी कैमरे खराब हो गए थे, जिन्हें वह अभी तक सही नहीं करा पाए. सूचना मिलने पर एसएसपी बरिंदरजीत सिंह, एएसपी डा. जगदीश चंद्र, सीओ मनोज कुमार ठाकुर, ट्रेनी सीओ अमित कुमार भी वहां पहुंच गए. जांचपड़ताल के दौरान पता चला कि हत्यारे ने पिंकी के पेट पर चाकू से 8 वार किए थे, जिन के निशान साफ दिख रहे थे.

फर्श व शोरूम के काउंटर पर खून के निशान देख कर लग रहा था कि मरने से पहले पिंकी ने हत्यारों का डट कर मुकाबला किया था. एसएसपी के निर्देश पर डौग स्क्वायड और फोरैंसिक टीम भी घटना स्थल पर पहुंच गईं. लेकिन इस मामले में डौग स्क्वायड कोई मदद नहीं कर सका. फोरैंसिक टीम ने शोरूम के अंदर कई जगहों से फिंगर प्रिंट उठाए. प्राथमिक जानकारी जुटाने के बाद पुलिस ने शोरूम के मालिक मनीष चावला से पूछताछ की. चावला ने बताया कि करीब पौने 12 बजे पिंकी ने उन्हें फोन पर बताया था कि दुकान पर कोई ग्राहक आया है और पावर बैंक का रेट पूछ रहा है. पावर बैंक का रेट बताने के बाद उन्होंने पिंकी से कह दिया था कि वह कुछ देर में शोरूम पहुंचने वाले हैं.

उस के लगभग 20 मिनट बाद जब वह शोरूम पहुंचे तो वहां के हालात देख कर उन के होश उड़ गए. उन्होंने बताया कि बदमाश पिंकी की हत्या कर के शोरूम से लगभग डेढ़ लाख रुपए के मोबाइल भी लूट कर ले गए थे. पुलिस समझ नहीं पा रही थी कि पिंकी को किस ने मारा एसएसपी ने पुलिस अफसरों को इस मामले का जल्दी से जल्दी खुलासा करने के निर्देश दिए. साथ ही साथ उन्होंने जांच के लिए तुरंत पुलिस टीम गठित करने को कहा. पुलिस ने उसी वक्त शोरूम के आसपास सीसीटीवी कैमरों की तलाश की, लेकिन वहां कहीं भी सीसीटीवी कैमरा नहीं लगा था. घटना स्थल से सारे तथ्य जुटाने के बाद पुलिस ने लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी. जैसेजैसे शहर में पिंकी हत्याकांड की खबर फैलती गई लोग घटना स्थल पर जमा होते गए. हत्या के बाद पर्वतीय समाज में जबरदस्त आक्रोश पैदा हो गया.

बेटी पिंकी की हत्या के सदमे में उस के पिता मनोज बिष्ट तो सुधबुध ही खो बैठे. पिंकी के परिजनों का दुकानदार मनीष चावला के प्रति गुस्सा बढ़ता जा रहा था. उसी दिन देर शाम को काफी लोग एकत्र हो कर एएसपी डा. जगदीश चंद्र के पास पहुंचे और इस मामले का जल्दी खुलासा करने की मांग की. मृतका पिंकी के पिता ने इस घटना के लिए शोरूम मालिक मनीष चावला को जिम्मेदार ठहराते हुए उस के खिलाफ काररवाई करने की मांग की. एएसपी को सौंपी गई तहरीर में उन्होंने कहा कि शोरूम मालिक मनीष चावला ने अपने शोरूम में सुरक्षा के कोई ठोस इंतजाम नहीं किए थे. शोरूम में सीसीटीवी कैमरे तक नहीं लगाए गए थे.

पिंकी वहां काम करने पर स्वयं भी असुरक्षित महसूस कर रही थी. उस ने कई बार इस बात का जिक्र अपने घरवालों से किया था. पिंकी ने उन्हें बताया था कि उस के मालिक ने शोरूम में लगे सभी कैमरे हटवा दिए थे. जिस के कारण उसे वहां पर अकेले काम करते हुए डर लगता है. वह वहां से नौकरी छोड़ देना चाहती थी, लेकिन मनीष चावला उसे छोड़ने को तैयार नहीं था. उन्हें शक है कि मनीष चावला ने ही उन की बेटी की हत्या कराई है. पुलिस प्रशासन पर बढ़ते दवाब के कारण एएसपी ने उन की तहरीर के आधार पर केस दर्ज करने का आदेश दिया. उसी वक्त युवा पर्वतीय महासभा के पूर्व अध्यक्ष पुष्कर सिंह बिष्ट ने घोषणा की कि अगले दिन शनिवार साढ़े 5 बजे मृतका पिंकी की आत्मा की शांति तथा इस केस के शीघ्र खुलासे के लिए नगर निगम से सुभाष चौक तक कैंडल मार्च निकाला जाएगा.

अगले दिन सुबह ही पूर्व योजनानुसार कई सामाजिक संगठन सड़क पर उतर गए. सड़कों पर जन शैलाब उमड़ा तो पुलिस प्रशासन के पसीने छूटने लगे. क्योंकि इस से अगले दिन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत का काशीपुर आने का प्रोग्राम था. रावत के आगमन से एक दिन पहले ही नगर में हुए जाम और प्रदर्शन को ले कर पुलिस प्रशासन सकते में आ गया. इस जाम को हटवाने के लिए रुद्रपुर से एसएसपी बरिंदरजीत सिंह, एएसपी डा. जगदीश चंद्र, सीओ मनोज ठाकुर, ट्रेनी सीओ अमित कुमार, दीपशिखा अग्रवाल, कोतवाल चंद्रमोहन सिंह, कुंडा थाना प्रभारी राजेश यादव और आईटीआई थानाप्रभारी कुलदीप सिंह अधिकारी आदि जनसैलाब को समझाने में जुट गए.

पिंकी हत्याकांड के विरोध में सैकड़ों नागरिकों और डिगरी कालेज के छात्रों ने महाराणा प्रताप चौक तक कैंडल मार्च निकाला और शोक सभा आयोजित कर मृतका को श्रद्धांजलि दी. साथ ही हत्यारों की तुरंत गिरफ्तारी की मांग भी की. पर्वतीय महासभा के पदाधिकारियों ने पीडि़त परिवार को 40 लाख रुपए का मुआवजा और परिवार के एक सदस्य को नौकरी दिलाने की मांग की. उसी दौरान मृतका का पोस्टमार्टम होने के दौरान जनाक्रोश भड़क उठा. सैकड़ों लोग पोस्टमार्टम हाउस पर एकत्र हो गए और केस का खुलासा होने पीडि़त परिवार को मुआवजा मिलने तक शव का अंतिम संस्कार करने से इनकार करने लगे.

लोगों ने पुलिस पर लापरवाही बरतने का आरोप लगाते हुए नारेबाजी शुरू कर दी. लोग नारेबाजी करते हुए चीमा चौराहे पर जा पहुंचे. वहां पहुंच कर भी भीड़ ने काफी उत्पात मचाया. पुलिस अधिकारियों के काफी समझाने के बाद भी लोग टस से मस न हुए. यह देख एसडीएम ने लोगों को आश्वासन दिया कि 48 घंटे में इस केस का खुलासा कर दिया जाएगा. एसडीएम के आश्वासन के बाद वहां लगा जाम खुल सका. लेकिन इस के बावजूद भी पुलिस प्रशासन ने सतर्कता में ढील नहीं दी. मृतका का अंतिम संस्कार होने तक पुलिस प्रशासन चौकन्ना बना रहा. जाम हटाने के बाद प्रदर्शनकारी पोस्टमार्टम हाउस के लिए रवाना हुए तो पुलिस भी उन के पीछेपीछे रही. पोस्टमार्टम के बाद मृतका के परिजन उस के शव को सीधे श्मशान ले गए, जहां पर उस का दाह संस्कार कर दिया गया. दाहसंस्कार के बाद पुलिस ने राहत की सांस ली.

मृतका के पिता मनोज बिष्ट मूल रूप से पौड़ी गढ़वाल जिले के गांव धुमाकोट के रहने वाले थे. परिवार में मियांबीवी और बच्चों को मिला कर कुल 5 सदस्य थे. बच्चों में 2 बेटियां और उन से छोटा एक बेटा प्रवीण कुमार था. घरपरिवार के लिए नौकरी करती थी पिंकी खेती में गुजरबजर न होने के कारण करीब 2 साल पहले पिंकी अपने भाई प्रवीण को साथ ले कर रोजगार की तलाश में काशीपुर आ गई थी. काशीपुर की सैनिक कालोनी में उस की बुआ आशा रावत रहती थी. जिस के सहारे दोनों भाईबहन यहां आए थे. बुआ ने उन्हें मानपुर रोड स्थित आर.के.पुरम निवासी चंदन सिंह बिष्ट के यहां पर किराए का कमरा दिला दिया था. वहीं रहते हुए पिंकी को गिरीताल रोड स्थित मनीष चावला के मोबाइल फोन शोरूम में नौकरी मिल गई थी. पिंकी उस मोबाइल शोरूम पर अकेली ही रहती थी.

इस घटना से एक दिन पहले ही उस के पिता मनोज बिष्ट काशीपुर से दवा लेने आए थे. उस दिन वह अपनी बहन आशा रावत के घर पर ही रुके हुए थे. लेकिन उन्हें दिन के 3 बजे तक अपनी बेटी की हत्या वाली बात पता नहीं चली थी. 18 अक्तूबर, 2019 को ही दोपहर लगभग साढ़े 3 बजे फरीदाबाद से पिंकी की दूसरी बुआ मीना ने अपने भाई की खबर लेने के लिए पिंकी के मोबाइल पर फोन किया तो वह काल कोतवाल चंद्रमोहन सिंह ने रिसीव की. उन्होंने पिंकी की बुआ को बताया कि पिंकी की किसी ने हत्या कर दी है. उस के बाद मीना ने काशीपुर में अपनी बहन आशा को फोन पर उस की हत्या वाली बात बताई. बेटी की हत्या की बात सुनते ही इलाज के लिए काशीपुर आए मनोज रावत अपनी सुधबुध खो बैठे.

शनिवार की देर शाम पूर्व सीएम हरीश रावत भी मृतका के परिजनों को सांत्वना देने उन के घर पहुंचे. उन्होंने पीडि़त परिवार को सांत्वना दी. रावत ने जल्दी ही अपराधियों को पकड़ने के साथसाथ परिवार को आर्थिक सहायता दिलाने और भाई को सरकारी नौकरी दिलाने का प्रयास करने का आश्वासन दिया. रावत ने उसी वक्त डीजी (कानून व्यवस्था) अशोक कुमार से फोन पर बात कर घटना की जानकारी दी और पीडि़त परिवार की स्थिति से अवगत कराया. इन सब स्थितियों से निपटने के बाद पुलिस प्रशासन पूरी तरह से पिंकी के हत्यारों की तलाश में जुट गया. घटना स्थल से पुलिस ने मृतका का मोबाइल फोन कब्जे में लिया था. पुलिस अपनी हर काररवाई को इस हत्याकांड से जोड़ कर देख रही थी.

पिंकी की उम्र ऐसी थी जहां बच्चों के कदम बहकना कोई नई बात नहीं होती. पुलिस को शंका थी कि हत्या का कारण किसी युवक के साथ पिंकी के संबंध होना तो नहीं है. यह जानने के लिए पुलिस ने उस के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकलवाकर जांच की. लेकिन मोबाइल से कोई ऐसी जानकारी नहीं मिली जिस से उस की हत्या की गुत्थी सुलझ पाती. इस बहुचर्चित हत्याकांड के खुलासे के लिए आईजी अशोक कुमार के निर्देश पर एसएसपी बरिंदरजीत सिंह ने एएसपी डा. जगदीश चंद्र के निर्देशन में 6 पुलिस टीमें गठित कीं. इन टीमों में एक सीओ 2 ट्रेनी सीओ, 2 इंसपेक्टर, एक एसओ के अलावा 9 एसआई और 50 कांस्टेबलों के साथसाथ एसटीएफ और एसओजी की टीमों को भी लगाया गया था.

इस केस को खोलने के लिए पुलिस प्रशासन ने दिनरात एक करते हुए 5 दिनों तक नगर के अलगअलग इलाकों में लगे मोबाइल टावरों से डंप डाटा प्राप्त किए. पुलिस अधिकारी सादा कपड़ों में बाइकों से दिनभर संदिग्धों की टोह लेते नजर आए. एएसपी डा. जगदीश चंद्र, सीओ मनोज ठाकुर, कोतवाल चंद्रमोहन सिंह आदि सभी अधिकारी सादा कपड़ों में संदिग्धों की तलाश में बाजपुर रोड, मुरादाबाद, रामनगर रोड पर कई जगह वीडियो फुटेज चेक करने में जुटे रहे. इस दौरान लगभग 5 हजार संदिग्ध मोबाइल नंबरों की पड़ताल की गई. साथ ही शहर के अलगअलग वार्डों में लगे लगभग 300 सीसीटीवी कैमरों से फुटेज ली गईं. उन्हीं सीसीटीवी फुटेज के दौरान पुलिस टीम को एक संदिग्ध बाइक नजर आई. पुलिस ने उस बाइक की पहचान करने के लिए उस के मालिक के बारे में जानकारी जुटाना चाही तो उस में भी एक अड़चन सामने आ खड़ी हुई.

उस बाइक का नंबर अधूरा था. जिस का पता लगाने के लिए पुलिस को काफी माथापच्ची करनी पड़ी. इस के लिए पुलिस ने बाइक के नंबर की 3 सीरिज में पड़ताल की और तीनों बाइक मालिकों के बारे में जानकारी जुटाई. तफ्तीश रंग लाने लगी सीसीटीवी फुटेज से प्राप्त जानकारी के अनुसार पुलिस बाइक नंबर यूके18जे0431 ट्रेस करने के बाद बाइक मालिक के पास पहुंची. पुलिस ने इस बाइक के मालिक कचनालगाजी निवासी मनोज उर्फ मोंटी से पूछताछ की. अपने घर पुलिस को आई देख मनोज उर्फ मोंटी के हाथपांव फूल गए. पुलिस पूछताछ में मोंटी ने बताया कि उस की बाइक मुरादाबाद के थाना भगतपुर क्षेत्र के गांव मानपुरदत्ता निवासी गौरव ले गया था. उस ने आगे बताया कि गौरव उस का रिश्तेदार है.

18 अक्तूबर को गौरव एक युवक के साथ उस के यहां आया था. उसी दिन वह उस की बाइक मांग कर ले गया था. लेकिन जब वे दोनों एक घंटे बाद घर लौटे तो दोनों के कपड़ों पर खून लगा था. उन की हालत देख डर की वजह से उस का भाई विनोद उर्फ डंपी दोनों को उन के गांव मानपुरदत्ता छोड़ आया था. यह जानकारी मिलते ही पुलिस ने मनोज और उस के भाई विनोद को अपनी हिरासत में ले लिया. उस के बाद पुलिस उन दोनों को ले कर गांव मानपुरदत्ता पहुंची. जहां से पुलिस ने गौरव और उस के दोस्त रोहित को हिरासत में ले लिया. मनोज और विनोद को पुलिस जिप्सी में बैठे देख गौरव और रोहित समझ गए कि अब पुलिस के सामने अपनी सफाई पेश करने से कोई लाभ नहीं. क्योंकि मनोज और विनोद पुलिस को सबकुछ उगल कर ही यहां आए होंगे. सभी को ले कर पुलिस टीम सीधे काशीपुर कोतवाली आ गई.

पुलिस ने चारों आरोपियों से एक साथ कड़ी पूछताछ की. पुलिस के सामने अपना जुर्म कबूल करने के बाद उन में से कोई भी नहीं मुकर सका. चारों आरोपियों ने स्वीकार किया कि उन्होंने ही मोबाइल लूट के लिए पिंकी की जान ली थी. उन की निशानदेही पर पुलिस ने पिंकी की हत्या में इस्तेमाल किए गए चाकू, शोरूम से लूटे गए 10 महंगे मोबाइल फोन, खून से सने कपड़े बरामद कर लिए. पुलिस पूछताछ में पता चला कि इस हत्याकांड को अंजाम देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका गौरव की थी. थाना भगतपर, मुरादाबाद निवासी गौरव कुमार बीकौम द्वितीय वर्ष का छात्र था. वह पढ़ाई के प्रति गंभीर था. लेकिन पढ़ाई के साथसाथ उसे महंगे मोबाइल रखने का भी शौक था. जिस के लिए वह पढ़ाई के साथसाथ कोई भी काम करने में शर्म नहीं करता था.

इस वारदात को अंजाम देने से 6 माह पूर्व उस ने दिनरात पेंटिंग का काम किया. उसी कमाई से उस ने एक महंगा मोबाइल खरीदा. लेकिन एक महीने बाद ही उस का मोबाइल कहीं पर गिर गया. वह मोबाइल उस ने कड़ी मेहनत कर के खरीदा था. मोबाइल खो जाने का उसे जबरदस्त झटका लगा. उस के पास इतने पैसे इकट्ठा नहीं हो पा रहे थे कि वह उन पैसों से एक दूसरा नया एंड्रोयड मोबाइल फोन खरीद सके. गौरव काशीपुर से ही सरकारी नौकरी के लिए कोचिंग कर रहा था. उस का काशीपुर आनाजाना लगा रहता था. आतेजाते कई बार उस की नजर गिरीताल रोड पर स्थित मनीष चावला के मोबाइल फोन शोरूम पर पड़ी थी, जहां पर उस ने कई बार एक अकेली युवती को बैठे देखा था. उस युवती से उस ने मोबाइलों के रेट भी मालूम करने की कोशिश की थी. उसी दौरान उसे पता चला कि इस शोरूम में महंगे से महंगे मोबाइल मौजूद हैं.

हत्यारा बन गया मोबाइल की चाह में उस के बाद गौरव ने उसी शोरूम से मोबाइल लूटने की साजिश रची. उस ने इस बात का जिक्र अपने साथ कोचिंग कर हरे 2 साथियों से किया. यह जानकारी मिलते ही उस के दोनों साथियों ने 17 अक्तूबर को गिरीताल रोड पर जा कर मोबाइल शोरूम की रेकी की. लेकिन उस के साथ आए दोनों साथी इस काम में उस का साथ देने से पीछे हट गए. उस के बाद उस ने अपने ही गांव के रहने वाले किशोर कुमार को इस काम के लिए राजी कर लिया. 18 अक्तूबर को किशोर अपने घर से स्कूल बैग ले कर निकला. लेकिन स्कूल न जा कर वह गौरव के बहकावे में आ कर उस के साथ सीधा काशीपुर आ गया. किशोर कक्षा 10 में पढ़ रहा था. किशोर हेकड़ था. इसीलिए वह उस दिन घर से ही पूरी तरह तैयार हो चाकू ले कर निकला था.

इसी दौरान रास्ते में उन दोनों की मुलाकात रोहित से हुई. रोहित जागरण मंडली में काम करता था. वह भी महंगा मोबाइल खरीदना चाहता था. लेकिन वह पैसे की तंगी की वजह से खरीद न पाया था. गौरव ने उसे भी महंगा मोबाइल दिलाने का झांसा दिया तो वह भी उस का साथ देने के लिए तैयार हो गया. पूर्व नियोजित योजनानुसार गौरव जिस वक्त अपने साथियों के साथ मोबाइल शोरूम पर पहुंचा, उस वक्त पिंकी शोरूम में अकेली थी. वहां पहुंचते ही गौरव ने पिंकी से पावर बैंक और महंगा मोबाइल दिखाने की बात कही. तभी गौरव ने पिंकी से पीने के लिए पानी मांगा. जैसे ही पिंकी वाटर कूलर से पानी निकालने के लिए झुकी, उसी दौरान गौरव ने साथ लाया बेहोश करने वाला स्प्रे छिड़क कर उसे बेहोश करने की कोशिश की.

स्प्रे करते ही गौरव ने पिंकी को अपने कब्जे में ले लिया. उस के बाद पिंकी ने चिल्लाने की कोशिश की तो सामने खड़े किशोर ने हाथ से उस का मुंह बंद कर दिया. पिंकी पूरी तरह से बेहोश नहीं हुई थी, इसलिए वह बुरी तरह चिल्लाने लगी तो रोहित ने चाकू से उस पर वार करने शुरू कर दिए, जिस से वह फर्श पर गिर गई. रोहित पिंकी पर तब तक चाकू से वार करता रह

Family dispute : भाई बना बहन और उसके दो बच्चों का कातिल

Family dispute : राजविंदर ने बिना वजह 3 खून किए थे, जिन में 2 मासूम बच्चे थे. इस हत्याकांड से उसे पश्चाताप होना चाहिए था लेकिन उसे पश्चाताप नहीं, बल्कि इस बात का मलाल था कि वह घर के मालिक दविंदर को क्यों नहीं मार सका. एक खूनी का कारनामा…

दविंदर सिंह ने पैजामा पहनने के बाद अपनी 55 वर्षीय पत्नी गुरविंदर कौर को आवाज दे कर पूछा,

‘‘भाग्यवान, मेरी कमीज कहां है, मिल नहीं रही. ढूंढ कर जल्दी दे दो. मुझे देर हो रही है.’’

पति की आवाज सुन कर गुरविंदर कौर कमरे में आ गई. उन्होंने अलमारी से पति की कमीज निकाल कर उन की ओर बढ़ा दी. कमीज पहनने के बाद दविंदर सिंह ने पगड़ी बांधी और यह कह कर घर से निकल गए कि मैं दोपहर तक लौट आऊंगा. यह 3 अगस्त, 2018 की बात है. लुधियाना के किशोर नगर के रहने वाले दविंदर सिंह गुरुद्वारे में ग्रंथी थे. उस दिन उन्हें किदवई नगर स्थित गुरुद्वारा साहब में पाठ करने जाना था. गुरुद्वारा साहब में श्री गुरुग्रंथ साहिब का अखंड पाठ चल रहा था. गुरुद्वारा साहब में पाठ करने वाले ग्रंथी की हर 3-3 घंटे के अंतराल पर ड्यूटी बदलती थी. अपनी ड्यूटी खत्म कर के वह घर के लिए रवाना हुए और करीब ढाई बजे अपने घर पहुंचे. जब वह घर पहुंचे तब उन के घर के मुख्य दरवाजे पर ताला लगा हुआ था.

उन्होंने सोचा कि शायद उन की पत्नी गुरविंदर घर का कोई सामान लेने या अपने दोहता-दोहती को कुछ दिलवाने दुकान पर गई होगी. यह सोच कर वह घर के बाहर बैठ कर इंतजार करने लगे. काफी देर तक इंतजार करने के बाद भी पत्नी नहीं आई तो वह सोच में पड़ गए कि इतनी देर हो गई, गुरविंदर और बच्चे कहां चले गए. इस बीच वह बारबार पत्नी के मोबाइल पर फोन भी मिलाते रहे. पर हर बार फोन स्विच्ड औफ ही मिला. गरमियों की तपती दोपहर में गली में बैठ कर इंतजार करते हुए उन्हें एक घंटे से ज्यादा बीत गया तो उन्होंने अपनी जगह से उठ कर पड़ोसियों से गुरविंदर और बच्चों के बारे में पूछा.

गुरविंदर को अचानक जरूरी काम से कहीं जाना होता था तो वह घर की चाबी किसी पड़ोसी को दे जाती थी. पर आज उस ने ऐसा नहीं किया था. किसी भी पड़ोसी को गुरविंदर के बारे में कोई जानकारी नहीं थी. दविंदर सिंह के मन में बारबार यह प्रश्न उठ रहा था कि आखिर गुरविंदर गई तो गई कहां. उन्हें वहां इंतजार करते हुए डेढ़ घंटा हो गया था. अंत में हार कर उन्होंने अपने बेटे मनप्रीत को फोन कर के जानकारी दी. मनप्रीत घर के पास ही किसी फैक्ट्री में काम करता था. अपने पिता का फोन सुनते ही वह दौड़ा चला आया था. उस ने आ कर 33 फुटा रोड पर रहने वाली अपनी बहन सोनम को फोन कर के पूछा कि क्या मां उन के घर पर हैं. सोनम ने बताया कि मां और बच्चे यहां नहीं हैं.

अब और कोई चारा नहीं बचा था सो मनप्रीत ने किसी से हथौड़ा ले कर घर के दरवाजे पर लगा ताला तोड़ा और बापबेटे घर के अंदर घुसे. बापबेटे दोनों ऊपरी मंजिल पर चले गए. मनप्रीत ने पिता को खाना परोस दिया. खाना खाते समय भी दोनों के दिमाग में एक ही बात चल रही थी कि गुरविंदर और बच्चे कहां चले गए. इस बीच उन्हें मकान की छत से अपने कुत्ते के भौंकने की आवाजें सुनाई दीं. मनप्रीत ने ऊपर जा कर देखा तो कुत्ता छत पर बंधा हुआ था. उस की समझ में नहीं आया कि कुत्ते को छत पर किस ने बांधा.

बहरहाल, कुत्ते को खोल कर वह नीचे ले आया. इस बीच उस की दोनों बहनें सोनम और नीरू भी वहां पहुंच गई थीं. वे भी मां के इस तरह बिना बताए कहीं चले जाने पर हैरान थीं. उसी दौरान सोनम नीचे वाले कमरे में आई. दरअसल नीचे वाले पोर्शन में अंधेरा रहता था. उसे उन्होंने गोदाम बना रखा था. इसलिए सारा परिवार ऊपर ही रहता था. दविंदर सिंह पाठ करने के साथ शादीब्याह में गद्दे सप्लाई का काम भी करते थे. नीचे वाले पोर्शन को उन्होंने गद्दों का गोदाम बना रखा था. सोनम जब नीचे आई तो उस ने Family dispute गद्दे वाले कमरे में खून फैला देखा. घबरा कर उस ने अपनी बहन नीरू को आवाज दी और खून साफ करने के लिए पोंछा उठा लाई.

नीरू के साथ मनप्रीत सिंह भी नीचे आ गया था. गद्दे वाले कमरे में जब उन्होंने लाइट जला कर देखा तो सामने का दृश्य देख कर उन के होश उड़ गए. सोनम तो उस भयावह दृश्य को देख कर गश खा कर गिर गई थी. कमरे में फर्श पर खून से लथपथ तीन लाशें पड़ी थीं. एक लाश गुरविंदर कौर की थी और 2 लाशें सोनम व नीरू के बच्चों 7 वर्षीय मनदीप कौर और 6 वर्षीय ऋतिक की थी. 3 लाशें मिलने पर कोहराम मच गया. पासपड़ोस की तो छोड़ो, वहां पूरी कालोनी के लोग जमा हो गए. रोने और चीखने की आवाजों से पूरी कालोनी कांप उठी थी. इस बीच किसी ने पुलिस कंट्रोल रूम को भी इस घटना की सूचना दे दी थी.

शहर के भीड़भाड़ वाले व्यस्त इलाके में दिनदहाड़े घर में घुस कर एक ही परिवार के 3-3 लोगों की हत्या करने की बात सुन कर पुलिस महकमे में भी हड़कंप मच गया था. लुधियाना पुलिस कमिश्नर डा. सुखचैन सिंह गिल, एडीसीपी-4 राजवीर सिंह बोपराय, एडीसीपी (क्राइम) रत्न सिंह, सीआईए इंचार्ज राजेश शर्मा, थाना डिवीजन नंबर 7 के प्रभारी व अन्य कई थानों के थानाप्रभारी क्राइम इनवैस्टीगेशन टीम के साथ जल्दी ही मौकाएवारदात पर पहुंच गए. पुलिस ने वहां पहुंचते ही उस पूरे क्षेत्र को अपने कब्जे में ले लिया. लाशों को देख कर ऐसा लगा, जैसे हत्याएं किसी भारी चीज से वार कर के की गई थीं. तलाश करने पर एक कमरे से खून सना हथौड़ा बरामद हुआ.

प्रारंभिक छानबीन में वारदात का मकसद लूटपाट दिखाई दे रहा था, क्योंकि घर के एक कमरे में अलमारी खुली हुई थी. दविंदर सिंह ने बताया कि इस में रखे करीब 40 हजार रुपए और सोने के जेवरात गायब हैं. डौग स्क्वायड की मदद ली गई, लेकिन कोई लाभ नहीं हुआ. जांच टीम को हथौड़े के अलावा वहां से कुछ फिंगरप्रिंट भी मिले. बहरहाल, पुलिस ने मौके की काररवाई कर के तीनों लाशें पोस्टमार्टम के लिए सिविल अस्पताल भेज दीं और अज्ञात लोगों के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया. तफ्तीश के पहले चरण में पुलिस ने मृतकों के परिजनों और गलीमोहल्ले वालों से पूछताछ की. इस पूछताछ से पता चला कि दविंदर सिंह के परिवार में पत्नी गुरविंदर कौर के अलावा 3 बेटियां और एक अविवाहित बेटा मनप्रीत सिंह है. तीनों बेटियों की शादी कर चुके थे.

उन की एक बेटी सोनम 33 फुटा रोड पर किराए के मकान में अपनी 7 वर्षीय बेटी मनदीप कौर के साथ रहती थी. उस का अपने पति से तलाक का मुकदमा चल रहा था. उस की दूसरी बेटी नीरू की शादी पटियाला के तरुण नामक युवक से हुई थी. पिछले कुछ महीनों से तरुण का काम बंद हो गया था, इसलिए पिछले ढाई महीनों से वह अपने पति और 6 वर्षीय बेटे ऋतिक के साथ मायके में रह रही थी. ससुराल में रहते हुए तरुण ने लौटरी बेचने का काम शुरू कर दिया था. तीसरी शादीशुदा बेटी अंबाला में अपने पति के साथ रहती थी. सोनम की बेटी मनदीप और नीरू का बेटा ऋतिक चंडीगढ़ पब्लिक स्कूल में पढ़ते थे. ऋतिक का दाखिला इस घटना से मात्र 10 दिन पहले ही करवाया गया था. स्कूल की छुट्टी के बाद रिक्शे वाला दोनों बच्चों को दोपहर करीब डेढ़ बजे गुरविंदर कौर के घर छोड़ जाता था.

दोनों बच्चे दिन भर नानी के पास रहते थे. शाम को सोनम मां के घर आ कर अपनी बेटी मनदीप को साथ ले जाती थी. पुलिस को यह भी पता चला कि सब से पहले सुबह 8 बजे दोनों बच्चे स्कूल जाते थे. उन के बाद 10 बजे तक गुरविंदर का बेटा मनप्रीत और दामाद तरुण अपनेअपने काम पर चले जाते थे. उन के बाद दविंदर सिंह गुरुद्वारे जाते थे. चूंकि सोनम पास में ही रहती थी, इसलिए घर का काम निपटा कर नीरू अपनी बहन सोनम के घर चली जाया करती थी. गुरविंदर कौर दिन भर घर में अकेली ही रहा करती थी. पूछताछ में यह बात भी पता चली कि गुरविंदर के मामा का लड़का राजविंदर पिछले 2 सालों से उन के घर पर रह रहा था. राजविंदर किसी से भी कोई वास्ता नहीं रखता था. वह गुरविंदर कौर और उस के पारिवारिक सदस्यों के संपर्क में ही था.

राजविंदर सिंह पिछले 9 महीनों से किराए के मकान में रहने लगा था. उसे घर की हर चीज के बारे में पूरी खबर थी कि कौन सी चीज कहां रखी है. उस ने कमरा किराए पर जरूर ले लिया था लेकिन दिन भर वह गुरविंदर के घर पर ही रहता था. दविंदर के बेटेबेटियों ने उस के वहां रहने पर ऐतराज भी जताया था पर गुरविंदर कौर ने सब को यह कह कर चुप करा दिया था कि वह उस का Family dispute भाई है और गरीब भी है. अगर वह यहां दो वक्त की रोटी खा लेता है तो कोई हर्ज नहीं. इस हत्याकांड के बाद से राजविंदर फरार था. पुलिस ने उस के भाई से पूछताछ की तो उस ने बताया कि उसे राजविंदर से मिले हुए करीब 15 साल हो चुके हैं. उस का अपने भाई से कोई वास्ता नहीं है. इतना ही नहीं, राजविंदर अपने किसी रिश्तेदार के संपर्क में भी नहीं था.

करीब 17 साल से वह अपने भाई और घर वालों से भी नहीं मिला था. राजविंदर के बारे में उस के भाई ने बताया कि वह शुरू से ही काफी कम बोलता था. जिस की वजह से यह पता नहीं चलता था कि उस के दिमाग में क्या चल रहा है. गुरविंदर कौर या उस के पारिवारिक सदस्यों को भी राजविंदर के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं थी. पुलिस ने गली में लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज निकलवा कर चैक की तो राजविंदर सिंह अपने किराए के कमरे से निकल कर सवा 2 बजे बाहर रोड की तरफ जाता दिखाई दिया. स्कूल के रिक्शे वाले ने बताया कि उस ने दोनों बच्चों को सवा एक बजे घर के बाहर छोड़ा था और बाकी बच्चों को उन के घर छोड़ने के बाद लगभग 2 बजे जब वह दोबारा उस गली से गुजरा तब गुरविंदर कौर के घर के दरवाजे पर ताला लगा था.

इस का मतलब यह था कि बच्चों के स्कूल से लौटने के तुरंत बाद इस वारदात को अंजाम दिया था. कुछ और लोगों के बयान लेने के बाद यह स्पष्ट हो गया कि इस वारदात को राजविंदर ने ही अंजाम दिया था. पर क्यों? यह बात पुलिस की समझ में नहीं आ रही थी. अगर उसे घर में रखे रुपए ही लूटने होते तो इस के लिए उस के पास तमाम मौके थे, केवल लूट के लिए अपनी बहन और 2 मासूम बच्चों की हत्या करने की बात पुलिस की समझ से बाहर थी. इस हत्याकांड की कोई दूसरी तसवीर भी थी, जो पुलिस को ठीक से दिखाई नहीं दे रही थी. बहरहाल, पुलिस ने राजविंदर के कमरे का ताला तोड़ कर वहां की तलाशी ली. पुलिस को किराए के कमरे से राजविंदर के खून से लथपथ कपडे़ मिले. इस का मतलब था कि हत्याएं करने के बाद वह अपने कमरे पर आया था.

पुलिस ने मकान मालिक की बहू से इस बारे में पूछा, क्योंकि उस समय वही घर पर थी. उस ने पुलिस को बताया कि राजविंदर कह रहा था कि वह किसी काम के लिए लुधियाना से बाहर जा रहा है. पुलिस को उस के कमरे से कुछ अजीबोगरीब चीजें भी मिलीं. मसलन काफी मात्रा में पिसी हुई लाल मिर्च, नींबू, तंत्रमंत्र में इस्तेमाल होने वाले सामान वगैरह. पुलिस कमिश्नर के आदेश पर पुलिस युद्धस्तर पर हत्यारे राजविंदर की तलाश में जुट गई. पुलिस की अलगअलग टीमों ने अपने स्तर पर उस की तलाश में छापेमारी शुरू कर दी. पुलिस को राजविंदर का जो मोबाइल नंबर मिला था, वह पिछले एक हफ्ते से बंद था. उस की लास्ट काल समराला चौक के पास थी. इस ये पहले उस के फोन पर उस के बहनोई दविंदर सिंह का फोन आया था.

इस बारे में पुलिस ने दविंदर से पूछा तो उन्होंने बताया कि उसे फोन कर के घर की चाबी के बारे में जानना चाहा था. पहले तो राजविंदर ने फोन उठाया ही नहीं, बाद में उस ने फोन उठाया तो कुछ न बोल कर 13 सैकेंड तक काल होल्ड पर रखी और फिर काट दी. बाद में राजविंदर ने अपना फोन बंद कर दिया. पुलिस की टीमें लगातार राजविंदर का पता लगाने के लिए पंजाब के शहरों और पड़ोसी राज्यों व महाराष्ट्र भी भेजी गईं. अगले दिन 4 अगस्त को 3 डाक्टरों के पैनल ने शवों का पोस्टमार्टम किया. पैनल में डा. बिंदू नलवा, डा. हरीश केयरपाल और डा. कुलवंत शामिल थे.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट में बताया गया कि हत्यारे ने केवल हथौड़े का ही नहीं, बल्कि तेजधार वाले हथियार का भी प्रयोग किया था. गुरविंदर कौर के शरीर पर 15, ऋतिक के शरीर पर 14 और मनदीप के शरीर पर 4 जगह चोटों के निशान पाए गए. पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार पहले गुरविंदर कौर के गले में चुन्नी डाल कर गला दबाया गया था, जबकि उस के दोनों हाथों पर रस्सी बांधने के निशान थे. गरदन पर तेजधार हथियार से दाईं तरफ वार किए गए थे. दाईं आंख हथौड़ा मार कर फोड़ दी थी. नाक की हड्डी और जबड़े पर भी मारा गया था और सिर पर कई वार किए गए थे.

दोनों टांगों पर भी चोटों के निशान थे. इस के अलावा फेफड़े और लीवर पर भी हथौड़े से वार किए थे. जिस से लीवर और फेफड़े फट गए थे. शरीर पर और भी कई जगह चोटों के निशान थे. 6 वर्षीय ऋतिक की पोस्टमार्टम रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि हत्यारे ने उस की गरदन पर दाईं ओर 2 और छाती पर तेजधार हथियार से एक वार किए थे. इस के अलावा सिर पर हथौड़े से 4 से 5 वार किए. उस के शरीर पर कई जगह चोटें भी आई थीं. वहीं मनदीप कौर के सिर पर 2 से 3 बार हथौड़ा मारा गया था, जिस से उस के दिमाग का कुछ हिस्सा भी बाहर आ गया था.

डीजीपी डा. सुरेश अरोड़ा ने इस मामले को जल्द सुलझाने के लिए लुधियाना पुलिस कमिश्नर डा. सुखचैन सिंह गिल से बात की. पुलिस ने राजविंदर के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकलवाई तो उस में ऐसे कई नंबर सामने आए, जो अमृतसर के रहने वाले लोगों के थे. उन में एक रिक्शे वाले का नंबर भी था. पुलिस ने उन सब से पूछताछ की थी, पर कोई खास सुराग हाथ नहीं लगा. काल डिटेल्स से यह बात भी पता चली कि हत्यारे ने वारदात के दिन सुबह फोन पर अपने भांजे मनप्रीत सिंह से भी बात की थी और उस से काम ढूंढने को कहा था. हत्यारों की तलाश में पुलिस की कई टीमें अमृतसर भेजी गईं, जहां से पता चला है कि राजविंदर समयसमय पर किराए का कमरा बदलता रहता था.

जांच में यह बात भी पता चली थी कि हत्यारे पर दहेज प्रताड़ना का एक मामला भी दर्ज है. इस मामले में वह वांटेड था और पुलिस उसे तलाश रही थी. पुलिस की तरफ से उस की पत्नी और ससुर को भी पूछताछ के लिए बुलाया गया, लेकिन उन से कुछ ज्यादा पता नहीं चल सका. फिर एक दिन दविंदर सिंह के पास राजविंदर का फोन आया. उस ने कहा कि उस ने थाने में जो 40 हजार रुपए गायब होने की रिपोर्ट लिखाई है, वह गलत है. अलमारी में केवल 10 हजार रुपए मिले थे. उस ने यह भी बताया कि उस के चक्कर में गुरविंदर और बच्चों की हत्या हो गई लेकिन वह उन्हें छोड़ेगा नहीं. दविंदर सिंह ने यह सारी जानकारी थानाप्रभारी को बता दी.

राजविंदर के फोन की लोकेशन और अन्य जानकारी मिलने के बाद 19 अगस्त, 2018 को सीआईए-2 इंचार्ज राजेश कुमार शर्मा ने राजविंदर सिंह को संगरूर से गिरफ्तार कर लिया. वह एक धर्मशाला में छिपा बैठा था. उसे गिरफ्तार करने के बाद लुधियाना लाया गया और पुलिस कमिश्नर व अन्य आला अधिकारियों के सामने उस से पूछताछ की गई. पूछताछ के दौरान राजविंदर ने बड़ी आसानी से अपना गुनाह कबूल करते हुए दिल दहला देने वाले इस तिहरे हत्याकांड की जो कहानी बताई, वह एक विवेकहीन आदमी की खराब मानसिकता का परिणाम थी.

दरअसल राजविंदर अपनी बहन गुरविंदर की हत्या नहीं करना चाहता था और न ही दोनों मासूमों से उस की कोई दुश्मनी थी. वह केवल अपने जीजा दविंदर सिंह की हत्या करना चाहता था. पर हालात ऐसे बन गए कि उसे इस तिहरे हत्याकांड को अंजाम देना पड़ा. राजविंदर का असली नाम रविंदर बख्शी था लेकिन बाद में उस ने अपना नाम बदल कर राजविंदर कर लिया था. इस के पीछे कारण यह था कि उसे दहेज प्रताड़ना के एक केस में भगोड़ा घोषित किया गया था. वह पिछले 2 सालों से अपने जीजा दविंदर सिंह का कत्ल करने की योजना बना रहा था. दरअसल राजविंदर सिंह को शक था कि उस की दोनों शादियां टूटने और उस का घर बरबाद होने के पीछे उस की बुआ की लड़की गुरविंदर कौर के पति दविंदर सिंह का हाथ है. असल में राजविंदर के पिता जसविंदर भी गुरुद्वारे में ग्रंथी थे और उन के हरचरण नगर व गुरु अर्जुनदेव नगर में अपने मकान थे, जो बिक चुके थे.

राजविंदर के पिता की मौत हो चुकी थी. उस के मन में यह बात बैठ गई थी कि उन के मकान बिकवाने के पीछे दविंदर की कोई साजिश थी. इन्हीं कारणों से उस के पिता की भी मौत हुई थी. राजविंदर की पहली शादी सन 1997 में हुई थी. पत्नी के साथ विवाद के कारण उस की पत्नी ने सन 2000 में उस के खिलाफ दहेज उत्पीड़न का केस दर्ज करवाया था और उसे छोड़ कर चली गई थी. Family dispute दहेज उत्पीड़न मामले में राजविंदर भगोड़ा घोषित था. पुलिस से बचने के लिए वह अमृतसर चला गया था. उन दिनों उस के पिता दविंदर सिंह के साथ मिल कर काम करते थे.

पहली पत्नी से तलाक होने के बाद दविंदर ने अमृतसर की एक महिला से राजविंदर की दूसरी शादी करवा दी थी. दहेज उत्पीड़न केस में भगोड़ा होने के कारण राजविंदर ने अपनी पहचान छिपा कर फरजी दस्तावेजों के आधार पर अपना नाम बदल कर राजविंदर सिंह और पिता का नाम अजीत सिंह कर लिया था. इस के बाद राजविंदर दूसरी पत्नी को ले कर दिल्ली और मुंबई में रहा. दूसरे शहरों में किराए पर रहते हुए वह कढ़ाई, लोन एजेंट, सेल्समैन आदि की अलगअलग नौकरियां करता रहा. वह फिल्म भी बनाना चाहता था, लेकिन जब उस की दूसरी पत्नी को उस की पहली शादी के बारे में पता चला तो वह उसे छोड़ कर चली गई. इस दौरान उसे सूचना मिली कि काम में नुकसान होने की वजह से उस के पिता ने अपने दोनों घर बेच दिए हैं.

अपने मन से हारे हुए राजविंदर को शक हुआ कि उस की दूसरी पत्नी को पहली शादी वाली बात दविंदर सिंह ने बताई है. जिस की वजह से उस के मन में दविंदर सिंह के प्रति रंजिश पैदा हो गई थी. वह उन का कत्ल करने की योजना बनाने लगा. इस के लिए वह लुधियाना में दविंदर सिंह के घर पर भी रहा लेकिन बाद में पास ही किराए के मकान में रहने लगा. वह पिछले 2 सालों से दविंदर सिंह का कत्ल करने की योजना बना रहा था. इस के लिए उस ने हथौड़ा, कटर, करंट वाली तारें व अन्य प्रकार के सामान जुटा रखे थे. पिछले कुछ महीनों में वह कई बार दविंदर सिंह को मारने के लिए अपने हथियार छिपा कर भी ले गया था लेकिन उसे मौका नहीं मिल सका. इस दौरान राजविंदर को उस के मकान मालिक ने घर खाली करने के लिए चेतावनी दे दी थी क्योंकि उस ने कई महीनों से उस का किराया नहीं दिया था.

जिस के बाद रविंदर ने अब और देर करना उचित नहीं समझा. उस ने वारदात को जल्दी अंजाम देने का पक्का मन बना लिया था. वारदात वाले दिन उसे पता चला कि दविंदर सिंह घर पर ही मौजूद है. अपने साथ हथौड़ा ले कर वह उन के घर चला गया. लेकिन दविंदर सिंह उस के आने से पहले ही किदवई नगर गुरुद्वारे चले गए थे. दविंदर सिंह को घर में न पा कर रविंदर का खून खौल उठा. वह ऊपरी मंजिल पर चला गया और वहां मौजूद गुरविंदर कौर के सिर पर पीछे से हथौड़े का एक भरपूर वार कर दिया. हथौड़े का वार इतना शक्तिशाली था कि एक ही वार से गुरविंदर कौर चारों खाने चित्त हो कर वहीं गिर गईं. गुरविंदर की हत्या करने के बाद वह वहीं बैठ कर दविंदर सिंह के आने का इंतजार करने लगा.

वह मन ही मन तय कर के आया था कि आज अपनी बरबादी के कारण दविंदर सिंह की हत्या कर के ही वहां से जाएगा. इस बीच गुरविंदर कौर को दोबारा खड़े होने का प्रयास करता देख कर वह उन्हें घसीट कर नीचे ले आया और फिर से उन पर हथौड़े से वार किए. गुरविंदर कौर का काम तमाम करने के बाद उस ने ऊपरी मंजिल से सारा खून साफ कर दिया. इस के बाद वह नीचे आ कर बैठ गया. इसी बीच बच्चों में पहले ऋतिक और बाद में मंदीप कौर स्कूल से घर आए, जिन्होंने वहां पर खून देख कर पूछा, ‘‘नानाजी, यह किस का खून है और नानी कहां हैं?’’

इतना पूछने के बाद दोनों बच्चे नानी को देखने के लिए ऊपर जाने लगे तो रविंदर उर्फ राजविंदर ने पहले ऋतिक और फिर मंदीप की हथौड़े और कटर से निर्मम हत्या कर दी. फिर उस ने अलमारी में रखे 10 हजार रुपए निकाल लिए. तीनों हत्याएं किए हुए जब कुछ देर बीत गई और दविंदर फिर भी नहीं लौटे तो पकड़े जाने के डर से वह घर के बाहर ताला लगा कर वहां से फरार हो गया. गुरविंदर के घर से निकलने के बाद वह अपने कमरे पर गया और हाथमुंह धो कर खून आदि साफ करने के बाद कपड़े बदल लिए. फिर वह वहां से चला गया. राजविंदर पहले माछीवाड़ा गया. उस के बाद अमृतसर चला गया. अमृतसर में 2 दिन तक धर्मशाला में रहने के बाद वह राजस्थान स्थित हनुमानगढ़ चला गया.

हनुमानगढ़ से वह संगरूर आ गया और एक धर्मशाला में रहने लगा. उस ने समाचारपत्रों में अपनी फोटो भी देख ली थी. चूंकि उस का टारगेट दविंदर सिंह थे और उस के मन में यह बात बैठी हुई थी कि दविंदर सिंह बच गए हैं, इसलिए उस ने किसी अन्य आदमी के फोन से दविंदर सिंह को फोन कर जान से मारने की धमकी दी और यह भी बताया कि उन के घर से मात्र 10 हजार रुपए मिले थे, 40 हजार की बात झूठी है. दविंदर सिंह ने इस फोन के बारे में पुलिस को बता कर राजविंदर के खिलाफ धमकी देने की एक रिपोर्ट भी दर्ज करवाई थी.

इसी फोन की लोकेशन को ट्रेस करते हुए सीआईए की टीम ने आरोपी को संगरूर की एक धर्मशाला में जा कर धर दबोचा. राजविंदर ने मौके से कुछ नकदी भी उठाई थी, जिस के बारे में वेरीफाई करने के अलावा वारदात में प्रयुक्त हथौड़ा बरामद कर लिया. बाकी के हथियार बरामद करने के लिए पुलिस ने उसे अदालत में पेश कर 2 दिनों के पुलिस रिमांड पर ले लिया. रिमांड के दौरान राजविंदर उर्फ रविंदर की निशानदेही पर हत्या में इस्तेमाल हुए कटर और छुरी भी बरामद कर ली.

रिमांड अवधि समाप्त होने के बाद 21 अगस्त, 2018 को राजविंदर को पुन: अदालत में पेश किया गया, जहां से उसे जिला जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

Gangster राजू ठेहठ : अपराध की दुनिया का बादशाह

आनंदपाल की मौत के बाद राजू ठेहठ के गैंग की ताकत बढ़ गई है. वह जेल से ही अपने गैंग को संचालित करता है. राजू यह बात अच्छी तरह जानता है कि कोई भी गैंगस्टर स्वाभाविक मौत नहीं मरता. या तो वह पुलिस की गोली का निशाना बनता है या फिर अपने दुश्मन की गोली का. इसलिए अब वह किसी तरह राजनीति में आने की कोशिश कर रहा है.

राजस्थान के सीकर जिले के ठेहठ गांव का रहने वाला राजेंद्र उर्फ राजू ठेहठ और बलबीर बानूड़ा में गहरी दोस्ती थी. दोनों पक्के दोस्त थे. वे साथ में शराब के ठेके लिया करते थे. दिनरात एकदूजे के साथ रहते थे. साथ में खाना तो होता ही था, दोनों एकदूसरे से कोई बात भी नहीं छिपाते थे. उन में गहरी छनती थी. राजू ठेहठ और बलबीर बानूड़ा शराब के ठेके ले कर अच्छा मुनाफा कमा रहे थे. कहते हैं न कि दोस्ती के बीच जब धन बेशुमार आने लगता है, तब दोस्ती में यह धन दरार पैदा करा देता है. यही बात इन दोनों में हुई. इन में मतभेद हुए तो ये शराब के ठेके अलगअलग लेने लगे.

ऐसे में दोनों के बीच होड़ लग गई कि कौन ज्यादा पैसे कमाए. वैसे तो दोनों ही व्यवहारिक थे लेकिन जब उन के पास मोटा पैसा आया तो वे अकड़ दिखाने लगे. उन के शराब ठेकों पर अकसर मारपीट होने लगी. यानी वह रौबरुतबा कायम करने लगे. उन की दोस्ती टूटने की भी एक वजह थी. दरअसल, बलबीर बानूड़ा का रिश्ते में साला लगता था विजयपाल. विजयपाल शराब के ठेके पर सेल्समैन था. सन 2005 की बात है. विजयपाल की किसी बात को ले कर राजू ठेहठ से अनबन हो गई. राजू ठेहठ ने अपने गुर्गों के साथ विजयपाल की जबरदस्त पिटाई की, जिस से विजयपाल की मौत हो गई.

बस, उसी दिन से राजू ठेहठ और बलबीर बानूड़ा की दोस्ती टूट गई. दोनों एकदूसरे के खून के प्यासे हो गए. उन्होंने अपनेअपने गैंग बना कर एकदूसरे पर हमले शुरू कर दिए. विजयपाल की हत्या का बदला लेने के लिए बलबीर बानूड़ा उतावला हो रहा था. बलबीर बानूड़ा के गैंग से उन्हीं दिनों आनंदपाल आ जुड़ा. बस फिर क्या था. वे राजू ठेहठ का काम तमाम करने का मौका तलाशने लगे.

राजू ठेहठ गैंग और बलबीर बानूड़ा गैंग के गुंडे आपस में जबतब टकराने लगे. जिस गैंग का व्यक्ति मारा जाता, उस गैंग के लोग बदला ले लेते. इस तरह दोनों गैंग के बीच खूनी खेल शुरू हो गया था. गैंगवार से पुलिस की नींद उड़ गई थी. पुलिस इन सभी के पीछे हाथ धो कर पड़ी थी. आनंदपाल, बलबीर बानूड़ा और राजू ठेहठ के ऊपर अलगअलग थानों में मुकदमे दर्ज होने लगे.

राजू ठेहठ पर विजयपाल की हत्या का मुकदमा चल रहा था. आनंदपाल ने अपने मित्र की मौत का बदला जीवनराम गोदारा की हत्या कर ले लिया. इस तरह कुख्यात अपराधी राजू ठेहठ और आनंदपाल की गहरी दुश्मनी हो गई. दोनों एकूसरे के खून के प्यासे बन गए थे. सन 2012 में पुलिस ने जयपुर से बलबीर बानूड़ा को गिरफ्तार कर लिया था. इस के 8 महीने बाद ही आनंदपाल को भी गिरफ्तार कर लिया गया. दोनों जेल में रह कर ही अपने गैंग का संचालन कर रहे थे.

आनंदपाल और राजू ठेहठ में हो गई दुश्मनी

इस के बाद सन 2013 में राजू ठेहठ भी पकड़ा गया. जेल में रहते हुए ही आनंदपाल और बलबीर बानूड़ा ने सुभाष को राजू ठेहठ की हत्या के लिए तैयार कर दिया. मौका मिलने पर सुभाष ने सीकर जेल में ही राजू ठेहठ को गोली मारी, जो उस के जबड़े में लगी लेकिन वह बच गया. इस के बाद राजू ठेहठ ने इस का बदला लेने के लिए बीकानेर जेल में बंद आनंदपाल पर अपने आदमियों से फायरिंग करवाई, जिस में आनंदपाल तो बच गया लेकिन बलबीर बानूड़ा चपेट में आ गया और जेल में ही उस की मौत हो गई.

इस वारदात को अंजाम देने वाले राजू ठेहठ के आदमी को उसी वक्त जेल में पीटपीट कर मार दिया गया था. राजू ठेहठ का भाई ओम ठेहठ भी गैंग से जुड़ा था और वह भाई राजू के कंधे से कंधा मिला कर गैंग चलाता था. इन शातिर गैंगस्टरों के एक इशारे पर धन्नासेठ लाखों रुपए दे देते थे. राजू ठेहठ और आनंदपाल का इतना खौफ था कि उन के आदमी फोन कर के सेठ लोगों को धमकी देते कि ‘सेठ जीना है तो 20 लाख शाम तक पहुंचा देना.’ सेठ की क्या मजाल कि वह इन्हें मना करे. मना करने वाले को ये लोग दूसरी दुनिया में भेज देते थे. इन की नागौर, सीकर, चुरू, बीकानेर, जयपुर, अजमेर आदि जिलों में तूती बोलती थी.

बाद में आनंदपाल पेशी के दौरान फरार हो गया और इस के बाद पुलिस द्वारा किए गए एक एनकाउंटर में वह मारा गया था. उस की मौत से राजू ठेहठ एकमात्र ऐसा गैंगस्टर था, जिस को सब से ज्यादा खुशी हुई. वह बलबीर बानूड़ा को पहले ही निपटा चुका था. अब पुलिस ने आनंदपाल को निपटा कर उसे दोहरी खुशी दे दी थी. सीकर जिले के रानोली गांव के विजयपाल हत्याकांड में आरोपी गैंगस्टर राजू ठेहठ और उस के साथी मोहन माडोता को कोर्ट ने सन 2018 में उम्रकैद की सजा सुनाई. 23 जून, 2005 को ठेहठ ने विजयपाल की हत्या कर दी थी. सीकर अपर सेशन न्यायाधीश सुरेंद्र पुरोहित ने यह सजा सुनाई.

सीकर और शेखावटी में बदमाशों के बीच गैंगवार शुरू होने के बाद थमने का नाम ही नहीं ले रही थी. राजू ठेहठ को उम्रकैद की सजा के बाद लगा था कि गैंग खत्म होगा, मगर ऐसा नहीं हो सका. पुलिस सूत्रों के अनुसार जेल से ही राजू और उस का भाई ओम ठेहठ गैंग को संचालित कर रहे थे. खैर, आनंदपाल गैंग के सब से बड़े दुश्मन राजू ठेहठ की जान को खतरा था. सीकर पुलिस को आशंका थी राजू ठेहठ के दुश्मन मौका मिलते ही उसे गोलियों से छलनी कर देंगे. यही वजह थी कि सीकर पुलिस राजू ठेहठ की कोर्ट में पेशी के दौरान भारी पुलिस सुरक्षा और बुलेटप्रूफ जैकेट पहना कर ले जाती थी.

कांवडि़ए के रूप में किया गिरफ्तार

उस के साथ जाने वाले पुलिसकर्मी भी बुलेटप्रूफ जैकेट व आधुनिक हथियार से लैस होते थे. राजू ठेहठ और उस का साथी मोहन मांडोता को विजयपाल की हत्या के आरोप में एटीएस ने 16 अगस्त, 2013 को झारखंड के देवघर से गिरफ्तार किया था. उस समय राजू ठेहठ और मोहन मांडोता पीले कपड़े पहन कर कांवड़ ला रहे थे. एटीएस ने पकड़ कर दोनों को रानोली थाना पुलिस को सौंप दिया था.

दोनों आरोपियों ने विजयपाल की हत्या के बाद असम, बंगाल, झारखंड, महाराष्ट्र सहित देश के अलगअलग स्थानों पर 8 साल तक फरारी काटी. आरोपियों की गिरफ्तारी के बाद पूछताछ कर के न्यायिक हिरासत में जेल भेजा गया. आखिर जेल से ही वे पेशी पर आतेजाते रहे. उन्हें उम्रकैद की सजा होने के बाद पहले सीकर और फिर जयपुर जेल में रखा गया. मगर राजू ठेहठ ने वहीं जेल से गैंग को संचालित कर रखा था.

जमानत के बाद बनाया नया ठिकाना

राजू ठेहठ ने जयपुर जेल में उम्रकैद की सजा काटने के दौरान विवादित जमीनों और सट्टा कारोबार से जुड़े बदमाशों से संपर्क बढ़ाए. सीकर के बाद जयपुर में अपने कारोबार को बढ़ाने के लिए वह गैंग के लोगों को आदेश देता था. वह जयपुर को अपना नया ठिकाना बना रहा है. ऐसी जानकारी पुलिस को लगी. इसी दौरान करीब 8 साल बाद राजू ठेहठ को दिसंबर 2021 में जमानत मिली. विजयपाल की हत्या के बाद गिरफ्तार होने के दिन यानी 16 अगस्त, 2013 से राजू ठेहठ जेल में ही बंद था. उस की जमानत हुई तो वह बड़ी ठसक के साथ बाहर आया.

पुलिस उस पर कड़ी निगाह रखे थे कि वह क्या कुछ नया गुल खिलाता है. जमानत पर बाहर आ कर राजू ठेहठ ने जयपुर के महेशनगर स्थित स्वेज फार्म में बीजेपी नेता (पूर्व विधायक) प्रेम सिंह बाजोर के मकान को ठिकाना बनाया था. सुरक्षा के लिए घर पर 30 से ज्यादा सीसीटीवी कैमरे लगाए थे. 3 गनमैन भी राजू ठेहठ के साथ रहते थे. 6 फरवरी, 2022 को राजू ठेहठ ने गृह प्रवेश किया था. इस से पहले राजू ठेहठ ने कालोनी के गेट को गली के कोने से हटवा दिया था. यह गेट गैंगस्टर ठेहठ के जमानत पर आने के बाद से ही लौक कर दिया गया था. खास मेंबर की एंट्री के लिए ही यह गेट खोला जाता था. वहां पास के खाली प्लौट में गाडि़यां पार्क कराई जाती थीं.

सुरक्षा की दृष्टि से गेट के अलावा राजू ठेहठ ने कई तरह के और इंतजाम किए थे. मकान के चारों ओर निगाह रखने के लिए 30 सीसीटीवी कैमरे लगाए गए थे. इस के जरिए आसपास की हर छोटीबड़ी गतिविधियों पर निगाह रखी जाती थी. बिना नंबर की सफेद फौर्च्युनर में बैठ कर ही राजू ठेहठ आताजाता था. राजू ने स्वेज फार्म को ठिकाना बनाया है. इस के बारे में जब लोगों को पता चला तो पूरे इलाके में दहशत का माहौल बन गया. हमेशा गनमेन राजू ठेहठ के साथ घूमते रहते थे. इस की वजह से आसपास के लोग उधर से निकलने से कतराते थे. ज्यादातर समय राजू ठेहठ स्वेज फार्म में ही रहता था.

मानसरोवर के मांग्यावास पर बने फार्महाउस पर लोगों से मुलाकात करता था. राजू ठेहठ ने विवादित जमीन और सट्टा कारोबार पर ध्यान देना शुरू किया.

जमीनें कब्जाने पर देने लगा ध्यान

सीकर के बाद जयपुर में अपने कारोबार को बढ़ाने के लिए जमानत मिलने पर सीकर के बजाय जयपुर में ही रहने लगा. इन लोगों के साथ गैंग बनाने की योजना बनाने लगा. जमानत पर बाहर आते ही राजू ठेहठ गैंग को सक्रिय कर जमीनों पर कब्जे करने लगा था. मार्च 2022 के पहले हफ्ते में जयपुर के भांकरोटा थाने में मानसर खेड़ी बस्सी निवासी 57 वर्षीय रामचरण शर्मा ने एक मामला दर्ज कराया था. रिपोर्ट में बताया कि वह कालोनाइजर है. साल 2004 में रामचंदपुरा में 9 बीघा 17 बिस्वा जमीन खरीदी थी, जिस की देखभाल बनवारीलाल कर रहा था.

कुछ समय पहले मांगीलाल यादव ने जमीन के कुछ हिस्से पर कब्जा कर लिया. थाने में आरोपी मांगीलाल के खिलाफ मामला दर्ज कराया था. 24 फरवरी को बनवारी के मोबाइल पर के.के. यादव नाम के व्यक्ति ने काल कर राजू ठेहठ का आदमी बता कर मांगीलाल के खिलाफ बयान देने को ले कर धमकाया, जिस के बाद दोबारा फोन आया. फोन करने वाले ने अपना नाम राजू ठेहठ बताया. उस ने मांगीलाल से सेटलमेंट कर रुपए दिलवाने का दबाव बनाया. पीडि़त की शिकायत पर पुलिस ने मांगीलाल, के.के. यादव, जगदीश ढाका और राजू ठेहठ के खिलाफ मामला दर्ज किया.

इस के बाद राजू ठेहठ सहित 8 साथियों को शांति भंग करने के आरोप में महेशनगर थाना पुलिस ने गिरफ्तार कर के कोर्ट में पेश किया, जहां से सभी को न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.

लग्जरी लाइफ जीने का है शौकीन

स्वेज फार्म स्थित मकान में रहने के दौरान राजू ठेहठ से कई लोग मिलने आते थे. एडिशनल कमिश्नर अजयपाल लांबा का कहना है कि राजू ठेहठ से मिलने आए लोगों के बारे में जानकारी जुटाई जा रही है.

जयपुर (साउथ) एसपी मृदुल कच्छावा के नेतृत्व में गठित टीम घर में लगे सीसीटीवी फुटेजों के आधार पर मिलने आए उन सभी लोगों की पहचान कर रही है, जिस के बाद सभी लोगों की भूमिका और गतिविधियों की जांच करेगी. गैंगस्टर राजू ठेहठ लग्जरी लाइफ जीने का शौकीन है. वह महंगी कार और बाइक पर काफिले के साथ घूमता था. गैंगस्टर राजू ठेहठ को सीकर बौस के नाम से बुलाया जाने लगा है. उसे जयपुर के स्वेज फार्म में जिस मकान से पकड़ा, उस की कीमत 3 करोड़ रुपए बताई जा रही है.

राजस्थान में गैंगस्टर्स आनंदपाल सिंह और राजू ठेहठ में करीब 2 दशक वर्चस्व की लड़ाई चली थी. आनंदपाल के एनकाउंटर के बाद राजू ठेहठ का वर्चस्व हो गया. जेल में बंद होने के दौरान भी राजू ठेहठ के रंगदारी वसूलने के कई मामले सामने आए थे. दिसंबर 2021 में राजू ठेहठ 8 साल बाद जमानत पर जेल से बाहर आया. जमानत पर बाहर आने के बाद वह गैंग को बढ़ाने में लग गया. उस ने अपना वर्चस्व तो बना लिया. लोगों में सक्रिय रहने के लिए वह रील बना कर सोशल मीडिया पर भी एक्टिव हो गया.

उस ने कभी अकेले बाइक राइडिंग के तो कभी नई लग्जरी कार चलाते हुए वीडियो शूट किए. अपने गनमैन और कारों के काफिले के साथ वीडियो बना कर सोशल मीडिया पर अपलोड किए. गैंगस्टर राजू ठेहठ बीजेपी नेता प्रेम सिंह बाजौर के जिस मकान में रह रहा था, वह महेशनगर थाने की चौकी से महज 100 मीटर की दूरी पर है. बीट प्रणाली की बात करें या संदिग्धों व बदमाशों को निगरानी की, महेशनगर थाना पुलिस फेल नजर आ रही है.

राजस्थान का एक बड़ा गैंगस्टर खुलेआम काफिले और अकेले रोड पर घूमता, लेकिन थाना पुलिस तो दूर सीएसटी और डीएसटी तक को पता नहीं चला. सोशल मीडिया पर सक्रिय राजू ठेहठ ने भरतपुर के जिला प्रमुख राजवीर, जयपुर के सांगानेर पंचायत समिति के ग्राम पंचायत पवालियां सरपंच रामराज चौधरी और चाकसू विधानसभा यूथ कांग्रेस अध्यक्ष कैलाश चौधरी के साथ फोटो शेयर कर रखी हैं.

माना जा रहा है कि राजू ठेहठ राजनीति में सक्रिय अपने परिचितों से संपर्क साध कर चर्चा करता रहता है और वह राजनीति में जल्द से जल्द सक्रिय होना चाहता है. उस के राजनीतिक लोगों के साथ मीटिंग के दौरान शूट किए गए फोटो भी चर्चा में बने रहते हैं. बदमाशों की टोली के साथ घूमने, खानेपीने की फोटो भी राजू ठेहठ ने शूट कर शेयर की हैं. राजस्थान के सीकर जिले के जीणमाता के पास स्थित अरावली शिक्षण संस्थान की फरजी कार्यकारिणी बनाने के मामले में गैंगस्टर राजू ठेहठ का मामला भी सामने आया.

बताया जाता है कि संस्थान की आईडी और पासवर्ड लेने के लिए राजू ठेहठ ने संचालक को अपने घर बुला कर धमकाया था. साथ ही आईडी पासवर्ड नहीं देने पर जान से मारने की धमकी दी थी. इस मामले में भी पुलिस को राजू की तलाश है. राजू ठेहठ की जान लेने के लिए उस के दुश्मन तैयार बैठे हैं. बलबीर बानूड़ा का बेटा और भतीजे भी मौके की तलाश में हैं.

चाचा की मौत का बदला लेने की फिराक में है पवन

इस कहानी की शुरुआत करीब साढ़े 8 साल पहले हुई थी. 14 साल का बच्चा था सुभाष. 10वीं की पढ़ाई कर रहा था. बौक्सिंग  में स्टेट चैंपियनशिप खेल चुका था. स्किल्स में और निखार लाने के लिए हिसार में बौक्सिंग की ट्रेनिंग ले रहा था. इसी तरह सुभाष का बड़ा भाई पवन इलाहाबाद बैंक में नौकरी कर रहा था. 6 महीने ही हुए थे नौकरी लगे. एक महीने पहले शादी हुई थी. जिंदगी में सब कुछ सही चल रहा था, लेकिन फिर आया 23 जुलाई, 2014 का वह खौफनाक दिन. बीकानेर जेल में गोलियां चलीं और दोनों भाइयों की जिंदगी हमेशा के लिए बदल दी.

दोनों भाइयों के नाम के आगे लगे बौक्सर और बैंकर शब्द हट गए. एक कालिख उन के नाम के साथ जुड़ गई. और दोनों भाई बन गए गैंगस्टर. इस के बाद वह अपराध के दलदल में ऐसे फंसे कि घर छूटा, सरकारी नौकरी चली गई. भूखा तक रहना पड़ा. अच्छीखासी जिंदगी बिखर गई. 23 जुलाई, 2014 को राजस्थान के बीकानेर जेल में 2 खूंखार गैंगस्टर आनंदपाल और बलबीर बानूड़ा पर अटैक हुआ था. बलबीर की गोली लगने से मौत हो गई थी. बलबीर बानूड़ा की मौत ने एक झटके में उस के परिवार के पैरों तले की जमीन खींच ली.

जयपुर से 135 किलोमीटर दूर सीकर में बानूड़ा गांव है. बानूड़ा गांव से करीब डेढ़ किलोमीटर दूर एक ढाणी में 4 घर बने हुए हैं. यहीं है बलबीर बानूड़ा का मकान. मनोहर कहानियां की टीम वहां पहुंची तो वहां बलबीर की मां और पत्नी मिलीं. जब उन से बात की तो बलबीर के घर वालों ने कहा कि परिवार ने बहुत दुख झेला है, जख्मों को कुरेदने से कोई फायदा नहीं है.

बलबीर बानूड़ा का बेटा सुभाष फरार है. पवन जोकि बलबीर का भतीजा है, वह भी अपने चाचा बलबीर की मौत का बदला राजू ठेहठ से लेना चाहता है. बलबीर का बेटा सुभाष बानूड़ा भी अपने पिता के हत्यारों राजू ठेहठ गैंग से बदला लेना चाहता है.

सुभाष के बड़े भाई पवन ने बताया, ‘‘काका बलबीर को बीकानेर जेल में मार दिया, तभी तय कर लिया था कि बदला लूंगा.’’

राजू ठेहठ राजनीति में कूदने को है लालायित

पवन का कहना है कि पुलिस ने उस पर कई झूठे मुकदमे लगा दिए हैं. 4 महीने पहले भी लड़ाईझगड़े में मुकदमा लगा दिया. इस की जांच चल रही है. कहीं कुछ भी होता है तो पवन का नाम लगा देते हैं. पवन को जेल से छूटे 21 महीने हो गए हैं. मनोज ओला पर फायरिंग की थी. जेल से आने के बाद 3 से 4 बार ही घर गया हूं. रात को घर जा कर सुबहसवेरे घर से निकलना पड़ता है. पवन के पिता प्रिंसिपल हैं. परिवार पूरी तरह से संपन्न है. खुद का भी काम ठीक चल रहा है. पवन के 2 बेटियां हैं और एक बड़ा भाई है. सुभाष का भाई विकास दुबई में रहता है. मांबाप काफी समझाते हैं, लेकिन अब क्या करें. अब तो काका की हत्या का बदला ले कर ही मानेंगे.

आनंदपाल और राजू ठेहठ गैंग में कट्टर दुश्मनी हो गई. शेखावटी में 2016 तक 15 से ज्यादा हत्याएं हो चुकी थीं. आनंदपाल और बलबीर बानूड़ा की मौत के बाद राजू ठेहठ का वर्चस्व बरकरार है. राजू ठेहठ जेल जाता है और बाहर आने के बाद फिर से गलत धंधे करता है. बस, पुलिस उसे फिर जेल में डाल देती है. राजू ठेहठ निकट भविष्य में राजनीति में आ सकता है. मगर राजू ठेहठ के इतने दुश्मन पैदा हो चुके हैं कि वे उस की जान लेने पर आमादा हैं.

गैंगस्टर का जीवन वैसे भी दुश्मन की गोली या फिर पुलिस की गोली से ही समाप्त होता है. ऐसा कोई विरला गैंगस्टर आज के युग में होगा कि वह अपनी मौत मरे.

राजू ठेहठ अपराध की दुनिया का चमकता गैंगस्टर बन कर कभी जेल तो कभी बाहर आ कर ऐशोआराम से जी रहा है. देखना होगा कि भविष्य में राजू ठेहठ क्या कुछ नया करता है. राजू ठेहठ पर ढाई दरजन से ज्यादा मुकदमे दर्ज हैं.

आशिक बना कातिल : कमरा नंबर 209 में मिली लाश का रहस्य