Suicide : 77 पन्नों के सुसाइड नोट में लिखी मां को मारने की डिटेल

Suicide story in Hindi : रविवार 4 सितंबर, 2022 को रात 8-साढ़े 8 बजे का वक्त था. दिल्ली के रोहिणी स्थित बुद्ध विहार थाने के प्रभारी विपिन यादव अपने मातहतों के साथ दिन भर के कार्यों की समीक्षा में व्यस्त थे. तभी उन्हें सूचना मिली कि उन के इलाके के एक घर का दरवाजा लाख खटखटाए जाने के बावजूद नहीं खुल रहा है और भीतर से उठ रही सड़ांध से मोहल्ले के लोग परेशान हैं. थानाप्रभारी विपिन यादव इस सूचना की भयावहता को तुरंत भांप गए और तुरंत अपनी टीम ले कर घटनास्थल की ओर रवाना हो गए.

सूचना के अनुसार रोहिणी सेक्टर-24 के पौकेट 18 में वह जिस घर के बंद दरवाजे पर पहुंचे, वह श्रीनिवास पाल का 3 मंजिला मकान था. बिजली विभाग में कार्यरत रहे श्रीनिवास पाल को गुजरे तो 10 साल हो चुके थे. इस घर में उन की विधवा मिथिलेश पाल अपने इकलौते बेटे क्षितिज उर्फ सोनू के साथ रहती थीं. मगर मोहल्ले के लोगों ने कई दिनों से दोनों को देखा नहीं था. घर के चारों ओर अजीब सी बदबू फैली हुई थी. यह बदबू किसी अनहोनी को बयां कर रही थी. विपिन यादव ने दरवाजे पर लगी घंटी बजाई, मगर दरवाजा नहीं खुला. वे काफी देर तक घंटी बजाते रहे, मगर भीतर से कोई प्रतिक्रिया देखने को नहीं मिली.

हार कर उन्होंने ऊपर की ओर देखा. मकान की पहली मंजिल कोई बहुत ज्यादा ऊंची नहीं थी. उन्होंने अपने सिपाही को घर की पहली मंजिल की बालकनी पर चढ़ने का आदेश दिया. सिपाही बालकनी के रास्ते तुरंत ऊपर चढ़ गया. उस ने पहली मंजिल से नीचे जाने वाली सीढि़यों का दरवाजा तोड़ा और नीचे उतर कर मेन गेट खोल दिया. थानाप्रभारी विपिन यादव अपने सहयोगी इंसपेक्टर राम प्रताप सिंह और अन्य सिपाहियों के साथ जैसे ही अंदर पहुंचे, मारे बदबू के उन का सिर घूम गया. पूरे घर में सड़ांध भरी हुई थी. सामने के दरवाजे पर एक कागज चिपका था, जिस पर लिखा था, ‘मेरी मां का शव इस दरवाजे के पीछे बाथरूम में है.’

थानाप्रभारी विपिन यादव तेजी से बाथरूम में घुसे. वहां का दृश्य देख कर उन के होश उड़ गए. जमीन पर सड़ीगली हालत में घर की मालकिन मिथिलेश पाल का शव पड़ा था. उन के शरीर पर कीड़े रेंग रहे थे. गरदन पर तेज धार वाली किसी वस्तु से काटे जाने का निशान था और शरीर का सारा खून बह कर बाथरूम के फर्श पर जम चुका था. विपिन यादव के साथ आए सिपाही अन्य कमरों की पड़ताल करने लगे. दूसरे कमरे में उन्हें मिथिलेश पाल के 25 वर्षीय बेटे क्षितिज की लाश बैड पर पड़ी मिली. पुलिस यह देख कर हैरान रह गई कि बैड के दोनों तरफ पानी से भरी 2 बाल्टियां रखी थीं, जिन से क्षितिज ने अपने पैरों के अंगूठे बांधे हुए थे. उस की गरदन कटी हुई थी और पूरा पलंग उस के खून से सना हुआ था.

क्षितिज के सिरहाने की तरफ 2 मोबाइल फोन पड़े थे और बिजली के स्विच से कनेक्ट किया हुआ एक इलैक्ट्रिक कटर खून से सना हुआ नीचे जमीन पर पड़ा था. वहीं पास में एक बड़े साइज (250 पेज) का रजिस्टर भी मिला, जिस के शुरुआती पेजों पर कार्बन पेंसिल से अध्यात्म की बातें लिखी थीं. गंधर्व विवाह और देव विवाह जैसी बातें भी उस में लिखी हुई थीं और उस के बाद के 77 पेजों में एक लंबाचौड़ा सुसाइड नोट था. यह सुसाइड नोट क्षितिज पाल द्वारा लिखा गया था. थानाप्रभारी विपिन यादव को यह देख कर हैरत हुई कि ये पूरा रजिस्टर किसी पेन के बजाय कार्बन पेंसिल से लिखा गया था, जो आमतौर पर कम ही इस्तेमाल होती हैं. हालांकि 77 पेज के सुसाइड नोट के आखिर में क्षितिज ने स्याही से अपने दोनों हाथ के अंगूठे के निशान लगाए थे.

थानाप्रभारी विपिन यादव को यह समझते देर नहीं लगी कि पूरा मामला हत्या और Suicide story in Hindi आत्महत्या का है. क्षितिज ने पहले अपनी 60 वर्षीय मां मिथिलेश को मारा और फिर खुद आत्महत्या कर ली. लेकिन इलैक्ट्रिक कटर से हत्या और आत्महत्या का जो तरीका उस ने अपनाया, वह बेहद खौफनाक था. विपिन यादव ने तुरंत फोरैंसिक जांच के लिए क्राइम टीम और एफएसएल टीम को बुलाया. आसपास के लोगों से पूछताछ में पता चला कि इस घर में मिथिलेश अपने इकलौते बेटे क्षितिज के साथ रहती थीं. अन्य कोई रिश्तेदार नहीं था, बस झांसी में मिथिलेश की छोटी बहन और जीजा थे, जो कभीकभार यहां आतेजाते थे.

लोगों ने यह भी बताया कि क्षितिज की मां बड़ी धार्मिक थीं और हर हफ्ते सत्संग भी जाया करती थीं. वहीं क्षितिज अकसर घर पर ही रहता था. मोहल्ले में उस का कोई दोस्तयार नहीं था और वह बहुत कम लोगों से मिलता था. लोग यह जान कर आश्चर्यचकित थे कि क्षितिज ने अपनी मां की हत्या कर खुद आत्महत्या कर ली. आखिर क्षितिज ने ऐसा क्यों किया? अपनी उस मां को क्यों मार दिया, जिस से वह बेहद प्यार करता था? हत्या में इलैक्ट्रिक कटर का इस्तेमाल भी अचरज में डालने वाला था. लोगों को यह सवाल भी परेशान कर रहा था कि खुद की गरदन इलैक्ट्रिक कटर से काटने से पहले क्षितिज ने पानी से भरी बाल्टियों से अपने पैर के अंगूठे क्यों बांधे?

लेकिन इन सभी सवालों के जवाब सामने आए क्षितिज के 77 पेज के सुसाइड नोट से. उस रजिस्टर में क्षितिज ने न सिर्फ पूरी घटना के एकएक पल का ब्यौरा लिखा था, बल्कि अपनी पूरी जिंदगी की दास्तान उस में दर्ज कर दी थी. पुलिस के मुताबिक क्षितिज 2 साल से खुद को मारने की उधेड़बुन में लगा था. हत्या और आत्महत्या के लिए क्या उपाय अपनाए जाएं, ये सब वह लंबे समय से गूगल पर सर्च कर रहा था. यह वारदात भागतीदौड़ती दिल्ली के एक घर की चारदीवारी में घिरे अकेले पुरुष के अवसाद की कहानी है. क्षितिज, जिसे अपने नाम की तरह बचपन से ही क्षितिज को छूने की चाह थी, मगर उस के अकेलेपन ने उसे ऐसी मानसिक स्थिति में धकेल दिया कि वह जिंदगी की जेल से आजाद होने के लिए बेचैन हो उठा.

उसे अपने चारों ओर उदासी और नकारात्मकता ही दिखाई देने लगी. वह खुद को अकेला और हताश महसूस करने लगा और आखिर में जो कदम उठाया, उसे देख कर लोगों के रोंगटे खड़े हो गए. रजिस्टर के 77 पेज में जो लिखा गया, वह हत्या और आत्महत्या की खतरनाक कहानी है. यह सुसाइड नोट दिल दहला देने वाला है. यह बताता है कि युवाओं में बढ़ते डिप्रेशन यानी अवसाद और हताशा के लक्षणों को नजरंदाज करने का अंजाम कितना खतरनाक हो सकता है. क्षितिज की मां मिथिलेश उत्तर प्रदेश के झांसी जिले की रहने वाली थीं. उन की शादी दिल्ली के श्रीनिवास पाल से हुई, जो बिजली विभाग में कार्यरत थे. शादी के बाद मिथिलेश अपने पति के पास दिल्ली आ गईं. उन की एक बहन भी हैं, जो झांसी में अपने पति और बच्चों के साथ रहती हैं.

शादी के 14 साल बाद जब मिथिलेश की गोद भरी तो उन की खुशी का ठिकाना नहीं रहा. बेटे क्षितिज को पा कर पतिपत्नी बहुत खुश थे. वे प्यार से उसे सोनू कह कर पुकारते थे. श्रीनिवास ने बेटे की परवरिश में कोई कमी नहीं रखी. बहुत प्यार दिया. अच्छे नामचीन स्कूल में पढ़ाया और उस से बहुत सारी उम्मीदें बांधी. मगर अफसोस कि वे अपनी उम्मीदों को पूरा होते नहीं देख सके. 10 साल पहले बीमारी के चलते उन की मौत हो गई. पति का यूं अचानक चले जाना मिथिलेश पर गाज बन कर टूटा. वह बुरी तरह टूट गईं. हताशा और अकेलेपन ने उन्हें घेरा तो वह सत्संग और मंदिरों में सहारा तलाशने लगीं. वहीं श्रीनिवास का लाडला बेटा क्षितिज उर्फ सोनू पिता की अचानक मौत से सहम सा गया. 15 साल की नाजुक उम्र में जब उसे पिता के प्यार और मार्गदर्शन की सब से ज्यादा जरूरत थी, वह उसे छोड़ कर चले गए.

इस घटना ने क्षितिज को डरा दिया. वह सब से कटाकटा सा रहने लगा. स्कूल में भी वह अकेला और अन्य बच्चों से अलग रहता. उस का कोई दोस्त नहीं था. इस अकेलेपन ने उसे मानसिक रूप से तोड़ दिया, उसे दब्बू और डरपोक बना दिया. वह टीचर के सवालों से डरने लगा. वह दोस्तों के हंसीमजाक से डरने लगा. यहां तक कि अपनी स्कूल बस में चढ़नेउतरने में भी उस के पांव कांपने लगे. वह न तो खेलों में हिस्सा लेता और न ही किसी एक्स्ट्रा एक्टिविटी में. बस अपने आप में ही गुमसुम रहता. धीरेधीरे सब उस से कटने लगे. उसे उस के हाल पर छोड़ दिया. इस बात का जिक्र क्षितिज ने अपने सुसाइड नोट में किया है.

दरअसल, क्षितिज साइकोलौजिकल डिसऔर्डर का शिकार हो चुका था. अपने हालात की वजह से डिप्रेशन में जा रहा था, मगर उस के इन लक्षणों को न उस के स्कूल के टीचर भांप सके और न घर में उस की मां. उस ने लिखा, ‘मेरी मां मेरी उम्मीद थीं. पापा के जाने के बाद मां और मैं अकेले पड़ गए. मेरे पापा हम सब को ऐसे समय में छोड़ कर चले गए जब हमें सब से ज्यादा जरूरत थी. 10वीं कक्षा में था मैं उस समय, जब पापा की मौत हो गई.

‘बाद में दिल्ली यूनिवर्सिटी के एसओएल में एडमिशन लिया. लेकिन किस्मत धोखा दे गई. 2 बार फिसल गया. डिप्रेशन रहता है. एक रात, 2 रात, 3 रात, 5 रात तक जगा रहता हूं. कई बार बेहोश सा पड़ा रहता हूं. बीमारियां मेरे अंदर भरती जा रही हैं. मां कई बार टोकती थीं. मां भी हाई ब्लडप्रेशर से परेशान रहती थीं.’

क्षितिज पढ़ाई में पिछड़ने लगा. लगातार फेल होता रहा और अंत में उस ने पढ़ाई छोड़ दी. वह ज्यादा समय घर पर अपने कमरे में बंद रहने लगा. उस की मां उस से बारबार कोई काम करने या पढ़ाई करने को कहतीं, लेकिन अवसाद का शिकार क्षितिज मां की कोई बात पूरी नहीं कर पा रहा था. Suicide story in Hindi सुसाइड नोट में उस ने लिखा है, ‘मेरी अच्छी परवरिश के लिए मां ने सिलाई भी की. मां कहती थी कुछ ट्यूशन कर लो. छोटे बच्चों को पढ़ाना शुरू कर दो. सुन कर मैं डर गया था.’

क्षितिज अपने पापा को अपना हीरो समझता था. उन के जाने का घाव उस के दिल पर गहरा हुआ था. मां का अकेलापन और पिता के लिए उन का रोना उस से देखा नहीं जाता था. वह मां से भी बहुत प्यार करता था. पिता की पेंशन से दोनों का गुजारा किसी तरह चल रहा था, लेकिन उस की मां चिंताओं के कारण बीमार सी रहने लगी थीं. उन की आंखों से कम दिखने लगा था. कभीकभी वह क्षितिज पर झुंझलाने लगतीं तो कभी बहुत प्यार लुटाती थीं. मगर एकदूसरे के दिलदिमाग में क्या चल रहा था, इस से दोनों ही अनभिज्ञ थे. दोनों अपनेअपने दुख के साथ अकेले थे.

क्षितिज ने तय कर लिया कि अब जीना नहीं है. वह मां को इस दुनिया में अकेला नहीं छोड़ना चाहता था. इसलिए उस ने उन की भी हत्या करने का प्रण कर लिया. पहली सितंबर को उस ने बाइक बांधने वाली डोरी निकाली और पलंग पर बैठी मां के पीछे से आ कर उन के गले में डोरी लपेट कर कस दी. मिथिलेश छटपटाईं मगर अपना गला नहीं छुड़ा पाईं. कुछ ही देर में वह बेसुध हो कर एक ओर लुढ़क गईं. क्षितिज ने तुरंत मां का सिर अपनी गोद में रख कर उन का मुंह दबा लिया. चंद सेकेंड में मिथिलेश के प्राणपखेरू उड़ गए.

मां को मारने के बाद क्षितिज ने भागने या बचने की कोई कोशिश नहीं की, बल्कि वह आत्महत्या के उपाय सोचने लगा. मां के सिवा उस का कोई भी नहीं था. दरअसल, वह खुद मरना चाहता था मगर मां को दुनिया में अकेला छोड़ कर नहीं जाना चाहता था. अपने 77 पेज के सुसाइड नोट में क्षितिज ने लिखा, ‘2 साल से मरना चाह रहा था. मैं मरने से पहले अपनी मां को उस दुख से आजाद करना चाहता हूं. हर इतवार को मां सत्संग में जाती थीं. इस बार भी (पिछले हफ्ते) मां जब आईं, थोड़ी हंसी भी हुई थी. मां की आंखों में जाला आ गया है, लगता है मोतियाबिंद है. अब तो मैं मर जाना चाहता हूं. गुरुवार है आज. बाइक की डोरी से मां का गला इसलिए घोटा ताकि मां को मरने से पीड़ा न हो.’

मां का गला घोटने के बाद क्षितिज ने रजिस्टर उठा लिया और लिखा, ‘जैसे ही मैं ने मां के गले में डोरी कसी, मां 4 से 5 सेकेंड में निढाल हो कर गिर गईं. मुझे पता था दिमाग में औक्सीजन नहीं पहुंचने पर मौत हो जाती है. मां के गिरते ही मैं ने उन का सिर गोद में रख लिया. 8-10 मिनट तक गला दबा कर रखा. मैं मुंह दबा कर रोए जा रहा था. गुरुवार दिन भर और पूरी रात रोता रहा हूं. मुझे पापा की बहुत याद आ रही है. मरने के बाद भी मां की आंखें खुली थीं. मैं ने बंद करने की कोशिश की, मगर हो न सकीं.

‘शुक्रवार है आज. मां के शव को देखा नहीं जा रहा. मैं ने अपनी मां के चेहरे को गंगाजल से नहलाया है. उन के पास बैठ कर भगवत गीता का 18वां अध्याय पढ़ा. पूरी भगवत गीता नहीं पढ़ सका. मैं ने फिर गीता मां के सीने पर रख दी.’

मां की हत्या करने के बाद क्षितिज खुद को मारने के रास्ते ढूंढने लगा. वह मां के शव को कमरे में बंद कर के बाजार गया और एक इलैक्ट्रिक कटर खरीद कर लाया. कई दुकानें तलाशने के बाद आखिरकार एक दुकान पर उसे कटर और ब्लेड मिल गया. घर आ कर उस ने सब से पहले अपनी मृत मां के गले पर कटर चलाया. ऐसा शायद उस ने ट्रायल के तौर पर किया था. ताकि जब खुद की गरदन उड़ानी हो तो कटर ठीक से चला सके शायद इसलिए.

उस ने लिखा, ‘पहले मैं ने पिस्टल खरीदने की कोशिश की. नहीं मिली. फिर इलैक्ट्रिक कटर का विचार आया है. इलैक्ट्रिक कटर ले कर रात को घर लौटा था. मां के शव के पास खूब रोया हूं.’

उस ने रजिस्टर में आगे लिखा, ‘मां की मौत को आज 71 घंटे हो चुके हैं. बदबू आने लगी है. मां की गरदन कटर से काट दी है. शरीर से अलग नहीं की है.

‘शुक्रवार शाम से शव में बदबू आने लगी थी. मां के शव को बाथरूम में घसीट कर ले गया. दरवाजा बंद कर दिया है ताकि बदबू न आए. मैं बस सुसाइड नोट पूरा करना चाहता हूं. बदबू घर में भर चुकी है. अब बारी है मेरे सुसाइड करने की.’

मरने से पहले क्षितिज अपने जीवन के एकएक पल को जैसे उस रजिस्टर में कैद कर देना चाहता था. कभी मुंह पर कपड़ा रख कर तो कभी अगरबत्ती सुलगा कर वह किसी तरह बदबू से बचता हुआ लगातार लिखे ही जा रहा था.

‘आज शनिवार है. 3 दिन से खाली पेट हूं. कुछ खाया ही नहीं. मुझे याद आया रसोई में मैं ने गर्म पानी पीने को रखा है. कमरे में बदबू नहीं रुक रही. इस से मेरी भी तबीयत बिगड़ने लगी है. मैं ने पेंसिल के बुरादे को जलाया है. धूपबत्ती जलाई है. घर में एक जायफल रखा था, उसे भी जलाया है. सारा डियो भी छिड़क दिया. फिर भी बदबू नहीं रुक रही है. लेकिन मैं मास्क लगा कर सुसाइड नोट पूरा करूंगा.’

इस बीच क्षितिज के घर पर कई लोग आए. उन्होंने दरवाजे की घंटी बजाई, लेकिन जब दरवाजा नहीं खुला तो वापस चले गए. क्षितिज की मां मिथिलेश हर इतवार पड़ोस में रहने वाली एक सहेली के साथ सत्संग जाती थी. मगर उस दिन जब वह नहीं आई तो उन की सहेली ने कई फोन मिथिलेश के फोन पर किए. फोन नहीं उठा तो उन्होंने क्षितिज का फोन मिलाया. 2-3 घंटियां बजने के बाद आखिरकार क्षितिज ने फोन उठा लिया. उधर से आवाज आई, ‘आज मिथिलेश सत्संग में नहीं आई. फोन भी नहीं उठा रही है. मेरी जरा उस से बात करा दो.’

क्षितिज पहले तो घबरा गया, लेकिन फिर कड़ाई से बोला, ‘मां मर चुकी हैं. 4 दिन पहले मैं ने उन्हें मार दिया. अब मैं भी मरने की तैयारी कर रहा हूं.’

मिथिलेश की सहेली ने तुरंत फोन काट दिया. शायद वह क्षितिज की बात सुन कर डर गई. उस ने यह बात किसी को नहीं बताई. अगर वह उसी वक्त शोर मचा कर पड़ोसियों को इकट्ठा कर लेती और अपनी सहेली का घर खुलवा लेती या पुलिस को फोन कर देती तो शायद क्षितिज पुलिस को जीवित मिल जाता. लेकिन दूसरे के पचड़े में कौन पड़े, यह सोच उस महिला पर हावी हो गई और वह चुप मार गई. फिर उस ने आगे लिखा, ‘आज रविवार है. इस समय दोपहर के 2 बज रहे हैं. 3 दिन से प्रौपर्टी डीलर फ्लोर किराए पर दिखाने के लिए 3 बार किराएदारों के साथ आ चुका है. मैं ने दरवाजा नहीं खोला. आज हर हालत में नोट पूरा कर लूंगा. यह सब देखना बहुत डरावना लगता है.

‘पापा के जाने के बाद मां के जीजा ने हमारी पिता की तरह देखभाल की. इसलिए मैं घोषणा करता हूं कि मेरे मरने के बाद मेरी बाइक उन के नाम होगी. मेरी इच्छा है कि मां का अंतिम संस्कार मेरी मौसी करें.’

सुसाइड नोट पूरा करने के बाद क्षितिज ने बाथरूम में जा कर मां के शव पर नजर डाली. बदबू के मारे वह उस के पास नहीं बैठा. अब वह जल्द से जल्द खुद को खत्म कर लेना चाहता था. उस ने बाथरूम में रखी दोनों बाल्टियों में पानी भरा और उन्हें अपने बैडरूम में ले आया. उस ने इलैक्ट्रिक कटर को स्विच बोर्ड में लगाया. चला कर देखा और पलंग पर रख दिया. इस के बाद उस ने पानी भरी बाल्टियों से अपने दोनों पैरों के अंगूठे बांध लिए ताकि जब वह इलैक्ट्रिक कटर अपने गले पर चलाए और दर्द से छटपटाए तो बैड से नीचे न गिरे.

शायद उसे इस बात का अंदेशा था कि कहीं ऐसा न हो कि छटपटाहट के कारण गला पूरा न कट पाए या कटर उस के हाथों से छूट जाए. ऐसे में जो पीड़ा होगी, वह असहनीय होगी. इसलिए वह पूरी तैयारी कर के बिस्तर पर लेटा. इस केस के जांच अधिकारी इंसपेक्टर राम प्रताप सिंह भी कहते हैं कि पैरों को बाल्टी से बांधने के पीछे क्षितिज का मकसद रहा होगा कि मौत के समय छटपटाहट हो तो पैर बंधे रहें. खुद को मारने के लिए इतनी हिम्मत जुटाना यह साबित करता है कि अब क्षितिज किसी भी कीमत पर इस दुनिया में नहीं रहना चाहता था. वह अपनी मां से बहुत प्रेम करता था और उन के बगैर अपने जीवन की कल्पना वह नहीं कर सका था.

बुद्ध विहार थाने में इस घटना की एफआईआर हत्या की धाराओं में दर्ज हुई है. हालांकि मरने वाला और मारने वाला दोनों ही नहीं हैं, मगर पुलिस को तो अपनी जांच करनी ही है. दोनों के शवों को पोस्टमार्टम के बाद मिथिलेश की बहन और जीजा के सुपुर्द कर दिया गया, जिन्होंने उन का अंतिम संस्कार किया. मिथिलेश के घर को पुलिस ने फिलहाल सील कर दिया है. डिप्रेशन एक खतरनाक बीमारी है. इस का शिकार व्यक्ति आम व्यक्ति की तरह ही नजर आता है. इस से ग्रसित व्यक्ति को कई बार स्वयं को भी इस का पता नहीं चल पाता. बाहर के लोग तो समझ ही नहीं पाते कि उस की मानसिक हालत कैसी है और वह कब क्या कदम उठा ले, लेकिन साथ रहने वाले उस के बदलते व्यवहार को पकड़ सकते हैं और बातचीत के जरिए उस की मानसिक स्थिति का पता लगा सकते हैं.

यदि समय रहते इस का इलाज हो जाए तो इस के दुष्परिणामों को कम किया जा सकता है तथा संपूर्ण मुक्ति भी पाई जा सकती है. इस के 2 मुख्य परिणाम भयावह हैं— एक तो आत्महत्या जो हम आए दिन अखबारों और मीडिया के माध्यम से देखसुन रहे हैं, दूसरा है मानसिक संतुलन खो देना यानी पागलपन. जब दिमाग दबाव को झेल नहीं पाता तो यही स्थिति आती है. अन्य शारीरिक जटिलताएं और बीमारियां भी शरीर में इस अवस्था के कारण पैदा हो सकती हैं जो अनगिनत हैं. आज के समय में इस के मुख्य कारणों में से एक है करीबी लोगों से निकटता का अभाव.

लोग एक घर में रहते हुए भी एकदूसरे से कोसों दूर हो गए हैं. जरूरत से ज्यादा मोबाइल या आभासी दुनिया में डूबे रहना भी इस का कारण और लक्षण दोनों हो सकते हैं. आज के समय में भागमभाग ज्यादा है, भावनात्मक जुड़ाव मंद पड़ गए हैं, वे चाहे मातापिता के बच्चों से हों या बच्चों के उन से या अन्य परिवारजनों, रिश्तेदारों के परस्पर हों. मित्रता भी स्वार्थपरायण हो रही है. आसपड़ोस से बातचीत निजता में खलल की परिभाषा में हो गया है. पुस्तकें पढ़ने और सृजनात्मक कार्यों में आम लोगों की रुचि कम हुई है. कला और संस्कृति से बहुत कम लोग जुड़े हैं. सेवा, देखभाल, आत्मीयता सब घरपरिवारों से गायब सा दिख रहा है. ईर्ष्या और द्वेष संतोष और प्रसन्नता पर भारी पड़ रहे हैं. अकेलापन बढ़ रहा है. काफी लोग परिवार की खिचखिच की वजह से अलग व अकेले भी रहने लगे हैं.

व्यावसायिक कारणों से भी बहुत लोग अकेले रहते हैं तथा व्यावसायिक जीवन के दबाव से भी परेशान रहते हैं. विद्यार्थी और युवा वर्ग अनिश्चितताओं के चलते घर या सामाजिक दबाव के कारण भी अवसादग्रस्त हो रहे हैं. विचलित करने वाली खबरें, महामारी में डर का माहौल आदि आग में घी का काम करता है. दिखावे का जीवन और अनावश्यक स्पर्धा का माहौल तन और मन दोनों को भटकाए रखता है.

यह सच है कि ऊपर से सामान्य सी लगने वाली अवसाद की इस समस्या ने बहुत नुकसान किया है, परंतु इस का मतलब यह भी नहीं कि यह लाइलाज है. इस में घर से ले कर समाज के लिए यह एक जिम्मेदारी का काम हो जाए तो क्षितिज और मिथिलेश जैसे अनेक जीवन बचाए जा सकते हैं.

Rajasthan stories : राजा के महल में जिंदा लाश बनकर रह गई थी मौली

Rajasthan stories : मनचाहा शिकार तो मिल गया, लेकिन शिकारी थक कर चूर हो चुका था. एक तो थकान, दूसरे ढलती सांझ और तीसरे 10 मील  का सफर. उस में भी 3 मील पहाड़ी चढ़ाई, फिर उतनी ही ढलान. समर सिंह ने पहाड़ी के पीछे डूबते सूरज पर निगाह डाल कर घोड़े की गरदन पर हाथ फेरा. फिर घोड़े की लगाम थामे खड़े सरदार जुझार सिंह की ओर देखा. उन की निगाह डूबते सूरज पर जमी थी.

समर सिंह उन्हें टोकते हुए थके से स्वर में बोले, ‘‘अंगअंग दुख रहा है, सरदार. ऊपर से सूरज भी पीठ दिखा गया. धुंधलका घिरने वाला है. अंधेरे में कैसे पार करेंगे इस पहाड़ी को?’’

जुझार सिंह थके योद्धा की तरह सामने सीना ताने खड़ी पहाड़ी पर नजर डालते हुए बोले, ‘‘थक तो हम सभी गए हैं हुकुम. सफर जारी रखा तो और भी बुरा हाल हो जाएगा. अंधेरे में रास्ता भटक गए तो अलग मुसीबत. मेरे खयाल से तो…’’ जुझार सिंह सरदार की बात का आशय समझते हुए बोले, ‘‘लेकिन इस बियाबान जंगल में कैसे रात कटेगी? हम लोगों के पास तो कोई साधन भी नहीं है. ऊपर से जंगली जानवरों का अलग भय.’’

पीछे खड़े सैनिक समर सिंह और जुझार सिंह की बातें सुन रहे थे. उन दोनों को चिंतित देख एक सैनिक अपने घोड़े से उतर कर सरदार के पास खड़ा हो गया. सरदार समझ गए, सैनिक कुछ कहना चाहता है. उन्होंने पूछा तो सैनिक उत्साहित स्वर में बोला, ‘‘सरदार, अगर रात इधर ही गुजारनी है तो सारा बंदोबस्त हो सकता है. आप हुक्म करें.’’

‘‘क्या बंदोबस्त हो सकता है, मोहकम सिंह?’’ जुझार सिंह ने सवाल किया तो सैनिक दाईं ओर इशारा करते हुए बोला, ‘‘ये छोटी सी पहाड़ी है. इस के पार मेरा गांव है. बड़ी खूबसूरत और रमणीक जगह है उस पार. इस पहाड़ी को पार करने के लिए हमें सिर्फ एक 2 मील चलना पड़ेगा. 1 मील की चढ़ाई और 1 मील उस ओर की ढलान. रास्ता बिलकुल साफ है. अंधेरा घिरने से पहले हम गांव पहुंच जाएंगे. मेरे गांव में हुकुम को कोई तकलीफ नहीं होगी.’’

जुझार सिंह ने प्रश्नसूचक नजरों से समर सिंह की ओर देखा. वह शांत भाव से घोड़े की पीठ पर बैठे थे. उन्हें चुप देख सरदार ने कहा, ‘‘सैनिक की सलाह बुरी नहीं है हुकुम. रात भी चैन से बीत जाएगी और इस बहाने आप अपनी प्रजा से भी मिल लेंगे. जो लोग आप के दर्शन को तरसते हैं, आप को सामने देख पलकें बिछा देंगे.’’

और ऐसा ही हुआ भी. मोहकम सिंह का प्रस्ताव स्वीकार कर के जब समर सिंह अपने साथियों के साथ उस के गांव पहुंचे तो गांव वालों ने उन के आगे सचमुच पलकें बिछा दीं. छोटा सा पहाड़ी गांव था राखावास. साधन विहीन. फिर भी वहां के लोगों ने अपने राजा के लिए ऐसे ऐसे इंतजाम किए, जिन की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी. हुकुम के आने से मोहकम सिंह को तो जैसे पर लग गए थे. उस ने गांव के युवकों को एकत्र कर के सूखी मुलायम घास का आरामदेह आसन लगवाया. उस पर सफेद चादर बिछवाई. सरदार के लिए अलग आसन का प्रबंध किया और सैनिकों के लिए अलग. चांदनी रात थी, फिर भी लकडि़यां जला कर रोशनी की गई.

आननफानन सारा इंतजाम कराने के बाद गांव के कुछ जिम्मेदार लोगों को शिकार भूनने और बनाने की जिम्मेदारी सौंप कर मोहकम सिंह घोड़ा दौड़ाता हुआ 3 मील दूर समालखा गांव गया और वहां से वीरन देवल से 4 बोतल संतूरी ले आया. 36 साल बाद पाकिस्तान से घर लौटा पति की बेहतरीन शराब जो केवल राजामहाराजाओं के लिए बनाई जाती थी. अदना सा एक (Rajasthan stories) सिपाही कितने काम का साबित हो सकता है, यह बात समर सिंह को तब पता चली, जब अपने हाथों मारे गए शिकार के जायकेदार गोश्त और संतूरी का लुत्फ लेते हुए उन की नजर घुंघरू छनका कर मस्त अदाओं के साथ नाचती मौली पर पड़ी.

ऐसा रूपलावण्य, ऐसा अछूता सौंदर्य, ऐसा मदमाता यौवन और अंगअंग में ऐसी लोच समर सिंह ने पहली बार देखा था. उन के महल तक में नहीं थी ऐसी अनिंद्य सुंदरी. ऊपर से फिजाओं में रंग बिखेरती मौली का सधा हुआ स्वर और एक ही लय में बजते घुंघरुओं की रुनझुन. रहीसही कसर मानू की ढोलक की थाप पूरी कर रही थी. घुंघरुओं की रुनझुन और ढोलक की थाप को सुन लगता था, जैसे दोनों एकदूसरे के पूरक हों. पूरक थे भी. मौली का सधा स्वर, घुंघरुओं की रुनझुन और मानू की ढोलक की थाप ही नहीं, बल्कि वे दोनों भी. यह अलग बात थी कि इस बात को गांव वाले जानते थे, पर समर सिंह और उस के साथी नहीं.

मौली और मानू खूब खुश थे. उन्हें यह सोच कर खुशी हो रही थी कि अपने राजा का मनोरंजन कर रहे हैं. इस के लिए उन दोनों ने अपनी ओर से भरपूर कोशिश भी की. लेकिन उन की सोच, उन के उत्साह, उन के समर्पण भाव और कला पर पहली बिजली तब गिरी, जब शराब के नशे में झूमते राजा समर सिंह ने मौली को पास बुला कर उस का हाथ पकड़ते हुए कहा, ‘‘आज हम ने अपने जीवन में सब से बड़ा शिकार किया है. हमारी शिकार यात्रा सफल रही. ये रात कभी नहीं भूलेगी.’’

इस तरह मौली का हाथ कभी किसी ने नहीं पकड़ा था. मानू ने भी नहीं. मानू के हाथों का स्पर्श उसे अच्छा लगता था. लेकिन उस ने उस के पैरों के अलावा कभी किसी अंग को नहीं छुआ था. मौली के पैरों में भी उस के हाथों का स्पर्श तब होता था, जब वह अपने हाथों से उस के पैरों में घुंघरू बांधता था. मौली को राजा द्वारा यूं हाथ पकड़ना अच्छा नहीं लगा. उस ने हाथ छुड़ाने की कोशिश की तो समर सिंह उस की कलाई पर दबाव बढ़ाते हुए बोले, ‘‘आज के बाद तुम सिर्फ हमारे लिए नाचोगी, हमारे महल में. हम मालामाल कर देंगे तुम्हें. तुम्हें और तुम्हारे घर वालों को ही नहीं, इस गांव को भी.’’

घुंघरुओं की रुनझुन भी थम चुकी थी और ढोलक की थाप भी. सब लोग विस्मय से राजा की ओर देख रहे थे. कुछ कहने की हिम्मत किसी में नहीं थी. मानू भी अवाक बैठा था. मौली राजा से हाथ छुड़ाने की कोशिश करते हुए बोली, ‘‘मौली रास्ते की धूल है हुकुम…और धूल उन्हीं रास्तों पर अच्छी लगती है, जो उस की गगनचुंबी उड़ानों के बाद भी उसे अपने सीने में समेट लेते हैं. इस खयाल को मन से निकाल दीजिए हुकुम. मैं इस काबिल नहीं हूं.’’

समर सिंह Raja Ki Kahani ने लोकलाज की वजह से मौली का हाथ तो छोड़ दिया, लेकिन उन्हें मौली की यह बात अच्छी नहीं लगी. रात बड़े ऐशोआराम से गुजरी. मोहकम सिंह और गांव वालों ने हुकुम तथा उन के साथियों की खातिरतवज्जो में कोई कसर न उठा रखी थी. सुबह जब सूरज की किरणों ने पहाड़ से उतर कर राखावास की मिट्टी को छुआ तो वहां का कणकण निखर गया. राजा समर सिंह ने उस गांव का प्राकृतिक सौंदर्य देखा तो लगा जैसे स्वर्ग के मुहाने पर बैठे हों. मौली की तरह ही खूबसूरत था उस का गांव. चारों ओर खूबसूरत पहाडि़यों से घिरा, नीलमणि से जलवाली आधा मील लंबी झील के किनारे स्थित. पहाड़ों से उतर कर आने वाले बरसाती पानी का करिश्मा थी वह झील.

रवाना होने से पहले समर सिंह ने मौली के मांबाप को तलब किया. दोनों हाथ जोड़े आ खड़े हुए तो समर सिंह बोले, ‘‘तुम्हारी बेटी महल की शोभा बनेगी. उसे ले कर महल आ जाना. हम तुम्हें मालामाल कर देंगे.’’

‘‘मौली को हम महल ले आएंगे हुकुम,’’ मौली के मांबाप डरते सहमते बोले, ‘‘नाचनागाना हमारा पेशा है, पर मौली के साथ मानू को भी आप को अपनी शरण में लेना पड़ेगा. उस के बिना तो मौली का पैर तक नहीं उठ सकता.’’

‘‘हम समझे नहीं.’’ समर सिंह ने आश्चर्यमिश्रित स्वर में पूछा तो मौली के पिता बोले, ‘‘मौली और मानू बचपन के साथी हैं. नाचगाना भी दोनों ने साथसाथ सीखा. बहुत प्यार है दोनों में. मौली तभी नाचती है, जब मानू खुद अपने हाथों उस के पांव में घुंघरू बांध कर ढोलक पर थाप देता है. आप लाख साजिंदे बैठा दें मौली नहीं नाचेगी हुकुम…इस बात को सारा इलाका जानता है.’’

‘‘हमारे लिए भी नहीं?’’ समर सिंह ने अपमान का सा घूंट पीते हुए गुस्से में कहा तो मौली के पिता बोले, ‘‘आप के लिए नाचेगी हुकुम…जरूर नाचेगी. लेकिन उस के साथ मानू का होना जरूरी है. सारा गांव जानता है, मौली और मानू दो जिस्म एक जान हैं. अलग कर के सिर्फ दो लाशें रह जाएंगी. उन्हें अलग करना संभव नहीं है.’’

‘‘तुम्हारे मुंह से बगावत की बू आ रही है…और हमें बागी बिलकुल पसंद नहीं.’’ समर सिंह गुस्से में बोले, ‘‘मौली को खुद महल ले कर आते तो हम मालामाल कर देते तुम्हें, लेकिन अब हम खुद उसे साथ ले कर जाएंगे. जा कर तैयार करो उसे. यह हमारा हुक्म है.’’

अच्छा तो किसी को नहीं लगा, लेकिन राजा की जिद के सामने किस की चलती? वही हुआ, जो समर सिंह चाहते थे. रोतीबिलखती मौली को उन के साथ जाने को तैयार कर दिया गया. विदा बेला में मौली ने पहली बार मानू का हाथ थाम कर कहा, ‘‘मौली तेरी है मानू, तेरी ही रहेगी. राजा इस लाश से कुछ हासिल नहीं कर पाएगा.’’

मानू के होंठों से जैसे शब्द रूठ गए थे. वह पलकों में आंसू समेटे चुपचाप देखता रहा. आंसू और भी कई आंखों में थे, लेकिन राजा के भय ने उन्हें पलकों से बाहर नहीं आने दिया. अंतत: मौली राखावास से राजा के साथ विदा हो गई. राखावास में देवल, राठौर, नाड़ीबट्ट और नट आदि कई जातियों के लोग रहते थे. मौली और मानू दोनों ही नट जाति के थे. दोनों साथसाथ खेलतेकूदते बड़े हुए थे. दोनों के परिवारों का एक ही पेशा था—नाचगाना और भेड़बकरियां पालना.

मानू के पिता की झील में डूबने से मौत हो गई थी. घर में मां के अलावा कोई नहीं था. जब यह हादसा हुआ, मानू कुल 9 साल का था. पिता की मौत के बाद मां ने कसम खा ली कि वह अब जिंदगी भर न नाचेगी, न गाएगी. घर में 10-12 भेड़बकरियों के अलावा आमदनी का कोई साधन नहीं था. भेड़बकरियां मांबेटे का पेट कैसे भरतीं? फलस्वरूप घर में रोटियों के लाले पड़ने लगे. मानू को कई बार जंगली झरबेरियों के बेर खा कर दिन भर भेड़बकरियों के पीछे घूमना पड़ता.

मौली बचपन से मानू के साथ रही थी. वह उस का दर्द समझती थी. उसे मालूम था, मानू कितना चाहता है उसे. कैसे अपने बदन को जख्मी कर के झरबेरियों से कुर्ते की झोली भरभर लाल लाल बेर लाता था उस के लिए और बकरियों के पीछे भागतेदौड़ते उस के पांव में कांटा भी चुभ जाता था तो कैसे तड़प उठता था वह. खून और दर्द रोकने के लिए उस के गंदे पांवों के घाव पर मुंह तक रखने से परहेज नहीं करता था वह. कोई अमीर परिवार मौली का भी नहीं था. बस, जैसेतैसे रोजीरोटी चल रही थी. मौली को जो भी घर में खाने को मिलता, उसे वह अकेली कभी नहीं खाती. बहाना बना कर भेड़बकरियों के पीछे साथ ले जाती. फिर किसी बड़े पत्थर पर बैठ कर अपने हाथों से मानू को खिलाती. मानू कभी कहता, ‘‘मेरे नसीब में भूख लिखी है. मेरे लिए तू क्यों भूखी रहती है?’’

तो मौली उस के कंधे पर हाथ रख कर, उस की आंखों में झांकते हुए कहती, ‘‘मेरी आधी भूख तुझे देख कर भाग जाती है और आधी रोटी खा कर. मैं भूखी कहां रहती हूं मानू.’’

इसी तरह भेड़बकरियां चराते, पहाड़ी ढलानों पर उछलकूद मचाते मानू 14 साल का हो गया था और मौली 12 साल की. दुनियादारी को थोड़ाबहुत समझने लगे थे दोनों. इस बीच मानू की मां उस के पिता की मौत के गम को भूल चुकी थी. उस ने गांव के ही एक दूसरे आदमी का हाथ थाम कर अपनी दुनिया आबाद कर ली थी. सौतेला बाप मानू को भी साथ रखने को तैयार था, लेकिन उस ने इनकार कर दिया.

मानू और मौली जानते थे, नाचगाना उन का खानदानी पेशा है. थोड़ा और बड़ा होने पर उन्हें यही पेशा अपनाना पड़ेगा. उन्हें यह भी मालूम था कि उन के यहां जो अच्छे नाचनेगाने वाले होते हैं, उन्हें राज दरबार में जगह मिल जाती है. ऐसे लोगों को धनधान्य की कमी नहीं रहती. हकीकतों से अनभिज्ञ वे दोनों सोचते, बड़े हो कर वे भी कोशिश करेंगे कि उन्हें राज दरबार में जगह मिल जाए. एक दिन बकरियों के पीछे दौड़ते, पत्थर से टकरा कर मौली का पांव बुरी तरह घायल हो गया. मानू ने खून बहते देखा तो कलेजा धक से रह गया. उस ने झट से अपना कुरता उतार कर खून पोंछा. लेकिन खून था कि रुकने का नाम नहीं ले रहा था. मानू का पूरा कुरता खून से तर हो गया, पर खून नहीं रुका. चोट मौली के पैर में लगी थी, पर दर्द मानू के चेहरे पर झलक रहा था.

उसे परेशान देख मौली बोली, ‘‘कुरता खून में रंग दिया, अब पहनेगा क्या?’’

हमेशा की तरह मानू के चेहरे पर दर्द भरी मुसकान तैर आई. वह खून रोकने का प्रयास करते हुए दुखी स्वर में बोला, ‘‘कुरता तेरे पांव से कीमती नहीं है. 10-5 दिन नंगा रह लूंगा तो मर नहीं जाऊंगा.’’

काफी कोशिशों के बाद भी खून बंद नहीं हुआ तो मानू मौली को कंधे पर डाल कर झील के किनारे ले गया. मौली को पत्थर पर बैठा कर उस ने झील के पानी से उस का पैर धोया. आसपास झील का पानी सुर्ख हो गया, पर खून था कि रुकने का नाम ही नहीं ले रहा था. कुछ नहीं सूझा तो मानू ने अपने खून सने कुरते को पानी में भिगो कर उसे फाड़ा और पट्टियां बदलबदल कर घाव पर रखने लगा. उस की यह युक्ति कारगर रही. थोड़ी देर में मौली के घाव से खून बहना बंद हो गया. उस दिन मौली को पहली बार पता चला कि मानू उसे कितना चाहता है. मानू मौली का पांव अपनी गोद में रखे धीरेधीरे उस के घाव को सहला रहा था, ताकि दर्द कम हो जाए. तभी मौली ने उसे टोका, ‘‘खून बंद हो चुका है, मानू. दर्द भी कम हो गया. तेरे शरीर पर, धवले (लुंगी) पर खून के दाग लगे हैं. नहा कर साफ कर ले.’’

मौली का पैर थामे बैठा मानू कुछ देर शांत भाव से झील को निहारता रहा. फिर उस की ओर देख कर उद्वेलित स्वर में बोला, ‘‘झील के इस पानी में तेरा खून मिला है मौली. मैं इस झील में कभी नहीं नहाऊंगा…कभी नहीं.’’

थोड़ी देर शांत रहने के बाद मानू उस के पैर को सहलाते हुए गंभीर स्वर में बोला, ‘‘अपने ये पैर जिंदगी भर के लिए मुझे दे दे मौली. मैं इन्हें अपने हाथों से सजाऊंगा संवारूंगा.’’

‘‘मेरा सब कुछ तेरा है मानू,’’ मौली उस के कंधे पर हाथ रख कर उस की आंखों में झांकते हुए बोली, ‘‘सब कुछ. अपनी चीज को कोई खुद से मांगता है क्या?’’

पलभर के लिए मानू अवाक रह गया. उसे वही जवाब मिला था जो वह चाहता था. वह मौली की ओर देख कर बोला, ‘‘मौली, अब हम दोनों बड़े हो चुके हैं. अब और ज्यादा दिन इस तरह साथसाथ नहीं रह पाएंगे. लोग देखेंगे तो उल्टीसीधी बातें करेंगे. जबकि मैं तेरे बिना नहीं रह सकता. हमें ऐसा कुछ करना होगा, जिस से जिंदगी भर साथ न छूटे.’’

‘‘ऐसा क्या हो सकता है?’’ मौली ने परेशान से स्वर में पूछा तो मानू सोचते हुए बोला, ‘‘नाचनागाना हमारा खानदानी पेशा है न. हम वही सीखेंगे. तू नाचेगी गाएगी, मैं ढोलक बजाऊंगा. हम दोनों इस काम में ऐसी महारत हासिल करेंगे कि दो जिस्म एक जान बन जाएं. कोई हमें अलग करने की सोच भी न सके.’’

मौली खुद भी यही चाहती थी. वह मानू की बात सुन कर खुश हो गई.

मौली का पांव ठीक होने में एक पखवाड़ा लगा और मानू को दूसरा कुरता मिलने में भी. इस बीच वह पूरे समय नंगा घूमता रहा. आंधी, धूप या बरसात तक की चिंता नहीं की उस ने. उसे खुशी थी कि उस का कुरता मौली के काम तो आया. मानू के पिता की ढफ घर में सही सलामत रखी थी. कभी उदासी और एकांत के क्षणों में बजाया करता था वह उसे. मौली का पैर ठीक हो गया तो एक दिन मानू उसी ढफ को झाड़पोंछ कर ले गया जंगल. मौली अपने घर से घुंघरू ले कर आई थी.

मानू ने एक विशाल शिला को चुन कर अपना साधनास्थल बनाया और मौली के पैरों में अपने हाथ से घुंघरू बांधे. उसी दिन से मानू की ढफ की ताल पर मौली की नृत्य साधना शुरू हुई जो अगले 2 सालों तक निर्बाध चलती रही. इस बीच ढफ और ढोलक पर मानू ने नएनए ताल ईजाद किए और मौली ने नृत्य एवं गायन की नईनई कलाएं. अपनी अपनी कलाओं में पारंगत होने के बाद मौली और मानू ने होली के मौके पर गांव वालों के सामने अपनीअपनी कलाओं का पहला प्रदर्शन किया तो लोग हतप्रभ रह गए. उन्होंने इस से पहले न ऐसा ढोलक बजाने वाला देखा था, न ऐसी अनोखी अदाओं के  साथ नृत्य करने वाली.

कई गांव वालों ने उसी दिन भविष्यवाणी कर दी थी कि मौली और मानू की जोड़ी एक दिन राजदरबार में जा कर इस गांव का मान बढ़ाएगी. समय के साथ मानू और मौली का भेड़बकरियां चराना छूट गया और नृत्यगायन पेशा बन गया. कुछ ही दिनों में इलाके भर में उन की धूम मच गई. आसपास के गांवों के लोग अब उन दोनों को तीजत्योहार और विवाह शादियों के अवसर पर बुलाने लगे. इस के बदले उन्हें धनधान्य भी काफी मिल जाता. मानू ने अपनी कमाई के पैसे जोड़ कर सब से पहले मौली के लिए चांदी के घुंघरू बनवाए. वह घुंघरू मौली को सौंपते हुए बोला, ‘‘ये मेरे प्यार की पहली निशानी है. इन्हें संभाल कर रखना. लोग घुंघरुओं को नाचने वाली के पैरों की जंजीर कहते हैं, लेकिन मेरे विचार से किसी नृत्यांगना के लिए इस से बढि़या कोई तोहफा नहीं हो सकता. तुम इन्हें जंजीर मत समझना. इन घुंघरुओं को तुम्हारे पैरों में बाधूंगा भी मैं, और खोलूंगा भी मैं.’’

मौली को मानू की बात भी अच्छी लगी और तोहफा भी. उस दिन के बाद से वही हुआ जो मानू ने कहा था. मौली को जहां भी नृत्यकला का प्रदर्शन करना होता, मानू खुद उस के पैरों में घुंघरू बांध कर ढोलक पर ताल देता. ताल के साथ ही मौली के पैर थिरकने लगते. जब तक मौली नाचती, मानू की निगाह उस के पैरों पर ही जमी रहती. प्रदर्शन के बाद वही अपने हाथों से मौली के पैरों के घुंघरू खोलता. प्यार क्या होता है, यह न मौली जानती थी, न मानू. वे तो केवल इतना जानते थे कि दोनों बने ही एकदूसरे के लिए हैं. मरेंगे तो साथ, जिएंगे तो साथ. मौली और मानू अपने प्यार की परिभाषा भले ही न जानते रहे हों, पर गांव वाले उन के अगाध प्रेम को देख जरूर जान गए थे कि वे दोनों एकदूसरे के पूरक हैं. उन्हें उन के इस प्यार पर नाज भी था. किसी ने उन के प्यार में बाधा बनने की कोशिश भी नहीं की. मौली के मातापिता तक ने नहीं.

एक बार एक पहुंचे हुए साधु घूमते घामते राखावास आए तो गांव के कुछ युवकयुवतियां उन से अपना अपना भविष्य पूछने लगे. उन में मौली भी शामिल थी. साधु बाबा उस के हाथ की लकीरें देखते ही बोले, ‘‘तेरी किस्मत में राजयोग लिखा है. किसी राजा की चहेती बनेगी तू.’’

मौली ने कभी कल्पना भी नहीं की थी, मानू से बिछड़ने की. उस के लिए वह राजयोग तो क्या, सारी दुनिया को ठोकर मार सकती थी. उस ने हड़बड़ा कर पूछा, ‘‘मेरी किस्मत में राजयोग लिखा है, तो मानू का क्या होगा बाबा? …वह तो मेरे बिना…’’

साधु बाबा पलभर आंखें बंद किए बैठे रहे. फिर आंखें खोल कर सामने की झील की ओर निहारते हुए बोले, ‘‘वह इस झील में डूब कर मरेगा.’’

मौली सन्न रह गई. लगा, जैसे धरती आकाश एक साथ हिल रहे हों. न चाहते हुए भी उस के मुंह से चीख निकल गई, ‘‘नहीं, ऐसा नहीं हो सकता. मैं ऐसा नहीं होने दूंगी. मुझे मानू से कोई अलग नहीं कर सकता.’’

उस की बात सुन कर साधु बाबा ठहाका लगा कर हंसे. थोड़ी देर हंसने के बाद शांत स्वर में बोले, ‘‘होनी को कौन टाल सकता है बालिके.’’

बाबा अपनी राह चले गए. मौली को लगा, जैसे उस के सीने पर सैकड़ों मन वजन का पत्थर रख गए हों. यह बात सोचसोच कर वह पागल हुई जा रही थी कि बाबा की भविष्यवाणी सच निकली, तो क्या होगा. उस दिन जब मानू मिला तो मौली उसे खींचते हुए झील किनारे ले गई और उस का हाथ अपने सिर पर रख कर बोली, ‘‘मेरी कसम खा मानू, तू आज के बाद जिंदगी भर कभी इस झील में कदम तक नहीं रखेगा.’’

मानू को मौली की यह बात बड़ी अजीब लगी. वह उस की आंखों में झांकते हुए बोला, ‘‘यह कसम तो मैं ने उसी दिन खा ली थी, जब तेरा खून इस झील के पानी में मिल गया था. फिर भी तू कहती है तो एक बार फिर कसम खा लेता हूं… पर बात क्या है? इतनी घबराई क्यों है?’’

मानू के कसम खा लेने के बाद मौली ने बाबा की बात उसे बताई तो मानू हंसते हुए बोला, ‘‘तू इतना डरती क्यों है? जब मैं झील के पानी में कभी उतरूंगा ही नहीं तो डूबूंगा कैसे? कोई जरूरी तो नहीं कि बाबा की भविष्यवाणी सच ही हो.’’

साधु की भविष्यवाणी को सालों बीत चुके थे. इस बीच मौली 17 साल की हो गई थी और मानू 19 का. दोनों ही बाबा की बात भूल चुके थे.

…और तभी शिकार से लौटते राजा समर सिंह राखावास में रुके थे.

तो क्या साधु महाराज की भविष्यवाणी सच होने वाली थी? 

समर सिंह मौली को अपने साथ क्या ले गए, राखावास के प्राकृतिक दृश्यों की शोभा चली गई, गांव वालों का अभिमान चला गया और मानू की जान. पागल सा हो गया मानू. बस झील किनारे बैठा उस राह को निहारता रहता, जिस राह राजा के साथ मौली गई थी. खानेपीने का होश ही नहीं था उसे. लगता, जैसे राजा उस की जान निकाल ले गया हो. बात तब की है, जब हिंदुस्तान में मुगलिया सल्तनत का पराभव हो चुका था और ईस्ट इंडिया कंपनी का परचम पूरे देश में फहराने के प्रयास किए जा रहे थे. देश के कितने ही राजारजवाड़े विलायती झंडे के नीचे आ चुके थे और कितने भरपूर संघर्षों के बाद भी आने को मजबूर थे.

उन्हीं दिनों अरावली (Rajasthan stories) पर्वतमाला की घाटियों में बसी एक छोटी सी रियासत थी चंदनगढ़. इस रियासत के राजा समर सिंह थे तो अंगरेज विरोधी, पर शक्तिहीनता की वजह से उन्हें भी ईस्ट इंडिया कंपनी के झंडे तले आना पड़ा था. अंगरेजों का उन पर इतना प्रभाव था कि उन्हें अपने घोड़े गोरा का नाम बदल कर गोरू करना पड़ा था. समर सिंह उन राजाओं में थे, जो रासरंग में डूबे रहने के कारण राजकाज और प्रजा का ठीक से ध्यान नहीं रख पाते थे. राजा समर सिंह को 2 ही शौक थे—पहला शिकार का और दूसरा नाचगाने, मौजमस्ती का. मौली को भी उन्होंने इसी उद्देश्य से चुना था. लेकिन यह उन की भूल थी. वह नहीं जानते थे कि मौली दौलत की नहीं, प्यार की दीवानी है.

राजा समर सिंह मौली के रूपलावण्य, मदमाते यौवन और उस की नृत्यकला से प्रभावित हो कर उसे साथ जरूर ले आए थे, लेकिन उन्हें इस बात का जरा भी भान नहीं था कि यह सौदा उन्हें सस्ता नहीं पड़ेगा. राजमहल में पहुंच कर मौली का रंग ही बदल गया. राजा ने उस की सेवा के लिए दासियां भेजीं, नएनए वस्त्र, आभूषण और शृंगार प्रसाधन भेजे, लेकिन मौली ने किसी भी चीज की ओर आंख उठा कर नहीं देखा. वह जिंदा लाश सी शांत बैठी रही. किसी से बोली तक नहीं, मानो गूंगी हो गई हो. दासियों ने समझाया, पड़दायतों ने मनुहार की, पर कोई फायदा नहीं.

राजा समर सिंह को पता चला तो स्वयं मौली के पास पहुंचे. उन्होंने उसे पहले प्यार से समझाने की कोशिश की, फिर भी मौली कुछ नहीं बोली तो राजा गुस्से में बोले, ‘‘तुम्हें महल ला कर हम ने जो इज्जत बख्शी है, वह किसी को नहीं मिलती, और एक तुम हो जो इस सब को ठोकर मारने पर तुली हो. यह जानते हुए भी कि अब तुम्हारी लाश भी राखावास नहीं लौट सकती. हां, तुम अगर चाहो तो हम तुम्हारे वजन के बराबर धनदौलत तुम्हारे मातापिता को भेज सकते हैं. लेकिन अब तुम्हें हर हाल में हमारी बन कर हमारे लिए जीना होगा.’’

मौली को मौत का डर नहीं था. डर था तो मानू का. वह जानती थी, मानू उस के विरह में सिर पटकपटक कर जान दे देगा. उसे यह भी मालूम था कि उस की वापसी संभव नहीं है. काफी सोचविचार के बाद उस ने राजा समर सिंह के सामने प्रस्ताव रखा, ‘‘अगर आप चाहते हैं कि मौली आप के महल की शोभा बन कर रहे तो इस के लिए पहाड़ों के बीच वाली उसी झील के किनारे महल बनवा दीजिए, जिस के उस पार मेरा गांव है.’’

अपने इस प्रस्ताव में मौली ने 2 शर्तें भी जोड़ीं. एक यह कि जब तक महल बन कर तैयार नहीं हो जाता, राजा उसे छुएंगे तक नहीं और दूसरी यह कि महल में एक ऐसा परकोटा बनवाया जाएगा, जहां वह हर रोज अपनी चुनरी लहरा कर मानू को बता सके कि वह जिंदा है. मानू उसी के सहारे जीता रहेगा. मौली मानू को जान से ज्यादा चाहती है, यह बात समर सिंह को अच्छी नहीं लगी थी. कहां एक नंगाभूखा लड़का और कहां राजमहल के सुख. लेकिन उस की जिद के आगे वह कर भी क्या सकते थे. कुछ करते तो मौली जान दे देती. मजबूर हो कर उन्होंने उस की शर्तें स्वीकार कर लीं.

राखावास के ठीक सामने झील के उस पार वाली पहाड़ी पर राजा ने महल बनवाना शुरू किया. बुनियाद कुछ इस तरह रखी गई कि झील का पानी महल की दीवार छूता रहे. झील के तीन ओर बड़ीबड़ी पहाडि़यां थीं. चौथी ओर वाली छोटी पहाड़ी की ढलान पर राखावास था. महल से राखावास या राखावास से महल तक आधा मील लंबी झील को पार किए बिना किसी तरह जाना संभव नहीं था. उन दिनों आज की तरह न साधनसुविधाएं थीं, न मार्ग. ऐसी स्थिति में चंदनगढ़ से 10 मील दूर पहाड़ों के बीच महल बनने में समय लगना स्वाभाविक ही था. मौली इस बात को समझती थी कि यह काम एक साल से पहले पूरा नहीं हो पाएगा और इस एक साल में मानू उस के बिना सिर पटकपटक कर जान दे देगा. लेकिन वह कर भी क्या सकती थी, राजा ने उस की सारी शर्तें पहले ही मान ली थीं.

लेकिन जहां चाह होती है, वहां राह निकल ही आती है. मोहब्बत कहीं न कहीं अपना रंग दिखा कर ही रहती है. मौली के जाने के बाद मानू सचमुच पागल हो गया था. उस का वही पागलपन उसे चंदनगढ़ खींच ले गया. मौली के घुंघरू जेब में डाले वह भूखाप्यासा, फटेहाल महीनों तक चंदनगढ़ की गलियों में घूमता रहा. जब भी उसे मौली की याद आती, जेब से घुंघरू निकाल कर आंखों से लगाता और जारजार रोने लगता. लोग उसे पागल समझ कर उस का दर्द पूछते तो उस के मुंह से बस एक ही शब्द निकलता-मौली.

मानू चंदनगढ़ आ चुका है, मौली भी इस तथ्य से अनभिज्ञ थी और समर सिंह भी. उधर मानू ने राजमहल की दीवारों से लाख सिर टकराया, पर वह मौली की एक झलक नहीं देख सका. महीनों यूं ही गुजर गए. राजा समर सिंह जिस लड़की को राजनर्तकी बनाने के लिए राखावास से चंदनगढ़ लाए हैं, उस का नाम मौली है, यह बात किसी को मालूम नहीं थी. राजा स्वयं उसे मालेश्वरी कह कर पुकारते थे, अत: दासदासियां और पड़दायतें तक उसे मालेश्वरी ही कहती थीं.

राजा ने मौली के लिए अपने महल के एक एकांत कक्ष में रहने की व्यवस्था की थी, जहां उसे रानियों जैसी सुविधाएं उपलब्ध थीं. उस की सेवा में कई दासियां रहती थीं. एक दिन उन्हीं में से एक दासी ने बताया, ‘‘नगर में एक दीवाना मौली मौली पुकारता घूमता है. पता नहीं कौन है मौली, उस की मां, बहन या प्रेमिका. बेचारा पागल हो गया है उस के गम में. न खाने की सुध, न कपड़ों की. एक दिन महल के द्वार तक चला आया था, पहरेदारों ने धक्के दे कर भगा दिया. कहता था, इन्हीं दीवारों में कैद है मेरी मौली.’’

मौली ने सुना तो कलेजा धक से रह गया. प्राण गले में अटक गए. लगा, जैसे बेहोश हो कर गिर पड़ेगी. वह संज्ञाशून्य सी पलंग पर बैठ कर शून्य में ताकने लगी. दासी ने उस की ऐसी स्थिति देख कर पूछा, ‘‘क्या बात है, आप मेरी बात सुन कर परेशान क्यों हो गईं? आप को क्या, होगा कोई दीवाना. मैं ने तो जो सुना था, आप को यूं ही बता दिया.’’

मौली ने अपने आप को लाख संभालना चाहा, लेकिन आंसू पलकों तक आ ही गए. दासी पलभर में समझ गई, जरूर कोई बात है. उस ने मौली को कुरेदना शुरू किया तो वह न चाहते हुए भी उस से दिल का हाल कह बैठी. दासी सहृदय थी. मौली और मानू की प्रेम कहानी सुनने और उन के जुदा होने की बात सुन उस का हृदय पसीज उठा.

क्या मानू मौली से मिल सकेगा या राजा के महलों में कैद होकर रह जायेगा? 

मौली ने उस से निवेदन किया कि वह किसी तरह मानू तक यह संदेश पहुंचा दे कि वह उस से मिले बिना न मरेगी, न नाचेगी. वह वक्त का इंतजार करे. एक न एक दिन उन का मिलन होगा जरूर. जब तक मिलन नहीं होता, तब तक वह अपने आप को संभाले. प्यार में पागल बनने से कुछ नहीं मिलेगा. दासी ने जैसे तैसे मौली का संदेश मानू तक पहुंचाया भी, लेकिन उस पर उस की बातों का कोई असर नहीं हुआ. उन्हीं दिनों एक अंगरेज अधिकारी को चंदनगढ़ आना था. राजा समर सिंह ने अधिकारी को खुश करने के लिए उस की खातिर का पूरा इंतजाम किया. महल को विशेष रूप से सजाया गया. नाचगाने का भी प्रबंध किया गया. राजा समर सिंह चाहते थे कि मौली अपनी नृत्यकला से अंगरेज रेजीडेंट का दिल जीते.

उन्होंने इस के लिए मौली से मानमनुहार की तो उस ने शर्त बता दी, ‘‘मानू नगर में मौजूद है, उसे बुलाना पड़ेगा. वह आ कर मेरे पैरों में घुंघरू बांध देगा तो मैं नाचूंगी.’’

समर सिंह जानते थे कि जो बात मौली की नृत्यकला में है, वह किसी दूसरी नर्तकी में नहीं. अंगरेज रेजीडेंट को खुश करने की बात थी. राजा ने मौली की शर्त स्वीकार कर ली. मानू को ढुंढवाया गया. उस का हुलिया बदला गया. अगले दिन जब रेजीडेंट आया तो पूरी तैयारी के बाद मौली को सभा में लाया गया. सभा में मौजूद सब लोगों की निगाहें मौली पर जमी थीं और उस की निगाहें उन सब से अनभिज्ञ मानू को खोज रही थीं. मानू सभा में आया तो उसे देख मौली की आंखें बरस पड़ीं. मन हुआ, आगे बढ़ कर उस से लिपट जाए, लेकिन चाह कर भी वह ऐसा नहीं कर सकी. करती तो दोनों के प्राण संकट में पड़ जाते. उस ने लोगों की नजर बचा कर आंसू पोंछ लिए.

आंसू मानू की आंखों में भी थे, लेकिन उस ने उन्हें बाहर नहीं आने दिया. खुद को संभाल कर वह ढोलक के साथ अपने लिए नियत स्थान पर जा बैठा. मौली धीरेधीरे कदम बढ़ा कर उस के पास पहुंची तो मानू थोड़ी देर अपलक उस के पैरों को निहारता रहा. फिर उस ने जेब से घुंघरू निकाल कर माथे से लगाए और मोली के पैरों में बांध दिए. इस बीच मौली उसे ही निहारती रही. घुंघरू बांधते वक्त मानू के आंसू पैरों पर गिरे तो मौली की तंद्रा टूटी. मानू के दर्द का एहसास कर उस के दिल से आह भी निकली, पर उस ने उसे जैसे तैसे जज्ब कर लिया.

इधर ढोलक पर मानू की थाप पड़ी और उधर मौली के पैर थिरके. पलभर में समां बंध गया. मौली उस दिन ऐसा नाची, जैसे वह उस का अंतिम नाच हो. लोगों के दिल धड़क धड़क उठे. अंगरेज रेजीडेंट बहुत खुश हुआ. उस ने नृत्य, गायन और वादन का ऐसा अनूठा समन्वय पहली बार देखा था. राजा समर सिंह का जो मकसद था, पूरा हुआ. महफिल समाप्त हुई तो मौली ने मानू से हमेशा की तरह घुंघरू खोलवाने चाहे, लेकिन राजा ने इस की इजाजत नहीं दी. अंगरेज अधिकारी वापस चला गया तो मानू को महल के बाहर कर दिया गया. मौली अपने कक्ष में चली गई. उस ने कसम खा ली कि उस के पैरों से घुंघरू खुलेंगे तो मानू के हाथ से ही.

झील वाला महल तैयार होने में एक साल लगा. छोटे से इस महल में राजा समर सिंह ने मौली के लिए सारी सुविधाएं जुटाई थीं. मौली की इच्छानुसार एक परकोटा भी बनवाया गया था, जहां खड़ी हो कर वह झील के उस पार स्थित अपने गांव को निहार सके. राजा समर सिंह जानते थे कि मौली और मानू एकदूसरे को बेहद प्यार करते हैं. प्यार में वे दोनों किसी भी हद तक जा सकते थे. इसी बात को ध्यान में रख कर राजा समर सिंह ने महल से सौ गज दूर झील के पानी में एक ऐसी अदृश्य दीवार बनवाई, जिस के आरपार पानी तो जा सके लेकिन जीवों का आनाजाना संभव न हो. दीवार के इस पार उन्होंने पानी में 2 मगरमच्छ छुड़वा दिए. यह सब उन्होंने इसलिए किया था ताकि मानू झील में तैर कर इस पार न आ सके, आए तो मगरमच्छों का शिकार हो जाए.

पूरी तैयारी हो गई तो मौली को झील किनारे नवनिर्मित महल में भेज दिया गया. जिस दिन मौली को महल में ले जाया गया, उस दिन महल को खूब सजाया गया था. राजा समर सिंह की उस दिन वर्ष भर पुरानी आरजू पूरी होनी थी. वादे के अनुसार मौली ने राजा के सामने स्वयं को समर्पित कर दिया. उस दिन उस ने अपना शृंगार खुद किया था. बेहद खूबसूरत लग रही थी वह. समर सिंह की बांहों में सिमटते हुए उस ने सिर्फ इतना कहा था, ‘‘आज से मेरा तन आप का है पर मन को आप कभी छू नहीं पाएंगे. मन पर मानू का ही अधिकार रहेगा.’’

राजा को मौली के मन से क्या लेनादेना था. उन की जिद भी पूरी हो गई और हवस भी. उस दिन के बाद मौली स्थाई रूप से उसी महल में रहने लगी. सेवा में दासदासियां और सुरक्षा के लिए पहरेदार सैनिकों की व्यवस्था थी ही. महीने में 6-7 दिन मौली के साथ गुजारने के लिए राजा समर सिंह झील वाले महल में आते रहते थे. वहीं रह कर वह पास वाले जंगल में शिकार भी खेलते थे. मौली का रोज का नियम था. हर शाम वह महल के परकोटे पर खड़े हो कर अपनी वही चुनरी हवा में लहराती जो गांव से ओढ़ कर आई थी. मानू को मालूम था कि मौली झील वाले महल में आ चुकी है. वह हर रोज झील के किनारे बैठा मौली की चुनरी को देखा करता. इस से उस के मन को काफी तसल्ली मिलती. कई बार उस का दिल करता भी कि वह झील को पार कर के मौली के पास जा पहुंचे, लेकिन मौली की कसम उस के पैर बांध देती थी.

देखतेदेखते एक साल और गुजर गया. मौली को गांव छोड़े 2 साल होने को थे. तभी एक दिन राजा समर सिंह को अंगरेज रेजीडेंट का संदेश मिला कि वह उन की रियासत के मुआयने पर आ रहे हैं और उसी नर्तकी का नृत्य देखना चाहते हैं, जो पिछली यात्रा में उन के सामने पेश की गई थी. राजा समर सिंह ने जब यह बात मौली को बताई तो उस ने अपनी शर्त रखते हुए कहा, ‘‘यह तभी संभव है, जब मानू मेरे साथ हो. उस के बिना नृत्य का कोई भी आयोजन मेरे बूते में नहीं है.’’

समर सिंह ने मौली को समझाने की भरपूर कोशिश की, लेकिन वह नहीं मानी. अंगरेज रेजीडेंट को खुश करने की बात थी. फलस्वरूप राजा समर सिंह को झुकना पड़ा. मौली ने राजा से कहा कि वह चंदनगढ़ जाने के बजाय उसी महल में नृत्य करेगी और मानू को भी वहीं बुलाना होगा.

क्या मानू और मौली का महामिलान हो पायेगा? या दो प्रेमी फिर एक दूसरे से हमेशा के लिए बिछड़ जायेंगे? 

राजा समर सिंह नहीं चाहते थे कि मानू किसी भी रूप में मौली के सामने आए जबकि अंगरेज रेजीडेंट को खुश करना भी उन की मजबूरी थी. सोचविचार कर राजा ने झील में बनी अदृश्य दीवार पर ठीक महल के परकोट के सामने पत्थरों का एक बड़ा सा गोल चबूतरा बनवा कर उस पर प्रकाश स्तंभ स्थापित कराया. इस चबूतरे और महल के बीच ही वह कुंड था, जिस में मगरमच्छ रहते थे. मगरमच्छों का भोजन चूंकि उसी कुंड में डाला जाता था, अत: वे वहीं मंडराते रहते थे. महल के परकोटे से 2 मजबूत रस्सियां इस प्रकार प्रकाश स्तंभ में बांधी गईं कि आदमी एक रस्सी के द्वारा स्तंभ तक जा सके और दूसरी से आ सके.

अंगरेज रेजीडेंट के आने का दिन तय हो चुका था. उसी हिसाब से राजा ने झील वाले महल में मेहमाननवाजी की तैयारियां कराईं. जिस दिन रेजीडेंट को आना था, उस दिन 2 सैनिक इस आदेश के साथ राखावास भेजे गए कि वे झील के रास्ते मानू को प्रकाश स्तंभ तक भेजेंगे. मौली ने मानू को झील में न उतरने की कसम दे रखी थी, यह बात समर सिंह नहीं जानते थे. तयशुदा दिन जब अंगरेज रेजीडेंट चंदनगढ़ पहुंचा, राजा समर सिंह यह कह कर उसे झील वाले महल में ले गए कि उन्होंने इस बार उन के मनोरंजन की व्यवस्था प्रकृति की गोद में की है. राजा का झील वाला महल अंगरेज रेजीडेंट को खूब पसंद आया.

मौली भी उस दिन खूब खुश थी. मानू से मिलने की खुशी उस के चेहरे से फूटी पड़ रही थी. उसे क्या मालूम था कि मानू को उस के सामने झील वाले रास्ते से लाया जाएगा और वह ठीक से उस की सूरत भी नहीं देख पाएगी. जब सारी तैयारियां हो गईं और अंगरेज रेजीडेंट भी आ गया तो महल के परकोटे से मौली की चुनरी से राखावास की ओर मौजूद सैनिकों को इशारा किया गया. सैनिकों ने मानू से झील के रास्ते प्रकाश स्तंभ तक तैर कर जाने को कहा तो उस ने इनकार कर दिया कि वह मौली की कसम नहीं तोड़ सकता. इस पर सैनिकों ने उस से झूठ बोला कि मौली ने अपनी कसम तोड़ दी है, वही अपनी चुनरी लहरा कर उसे बुला रही है. मानू ने महल के परकोटे पर चुनरी लहराते देखी तो उसे सैनिकों की बात सच लगी. उस ने बिना सोचेसमझे मौली के नाम पर झील में छलांग लगा दी.

जिस समय मानू झील को पार कर प्रकाश स्तंभ तक पहुंचा, तब तक राजा समर सिंह का एक कारिंदा ढोलक ले कर रस्सी के सहारे वहां जा पहुंचा था. उसी ने मानू को बताया कि महल और प्रकाश स्तंभ के बीच मगरमच्छ हैं. उसे उसी स्थान पर बैठ कर ढोलक बजानी होगी और मौली उसी धुन पर परकोटे पर नाचेगी. कारिंदा राजा का हुक्म सुना कर दूसरी रस्सी के सहारे वापस लौट आया. मौली को जब राजा की इस चाल का पता चला तो वह मन ही मन खूब कुढ़ी, लेकिन वह कर भी क्या सकती थी. उस ने मन ही मन फैसला कर लिया कि आज वह अंतिम बार राजा की महफिल में नाचेगी और नाचते नाचते ही हमेशा हमेशा के लिए अपने मानू से जा मिलेगी.

राजा की महफिल छत पर सजी थी. प्रकाश स्तंभ और महल की छत पर विशेष प्रकाश व्यवस्था कराई गई थी. जब अंधेरा घिर आया और चारों ओर निस्तब्धता छा गई तो मौली को महफिल में बुलाया गया. उस समय उस के चेहरे पर अनोखा तेज था. सजीधजी मौली घुंघरू खनकाती महफिल में पहुंची तो लोगों के दिल धड़क उठे. मौली ने परकोटे पर खड़े हो कर श्वेत ज्योत्सना में नहाई झील को देखा. प्रकाश स्तंभ के पास सिकुड़े सिमटे बैठे मानू को देखा और फिर आकाश के माथे पर टिकुली की तरह चमकते चांद को निहारते हुए बुदबुदाई, ‘‘हे मालिक, तुझ से कभी कुछ नहीं मांगा, पर आज मांगती हूं. इस नाचीज को एक बार, सिर्फ एक बार उस के प्यार के गले जरूर लग जाने देना.’’

मन की मुराद मांग कर मौली ने एक बार जोर से पुकारा, ‘‘मानू…’’

मौली की आवाज के साथ ही मानू के हाथ ढोलक पर चलने लगे. ढोलक की आवाज वादियों में गूंजने लगी और उस के साथ ही मौली के पैरों के घुंघरू भी. पलभर में समां बंध गया. सभा में मौजूद लोग दिल थामे मौली की कला का आनंद लेने लगे. अभी महफिल जमे ज्यादा देर नहीं हुई थी. मौली का पहला नृत्य पूरा होने वाला था. लोग वाहवाह कर रहे थे. तभी मौली तेजी से पीछे पलटी और कोई कुछ समझ पाता, इस से पहले ही मानू का नाम ले कर चीखते हुए परकोटे से प्रकाश सतंभ तक जाने वाले रस्से को पकड़ कर झूल गई. मौली का यह दुस्साहसिक रूप देख पूरी सभा सन्न रह गई.

महल के परकोटे से प्रकाश स्तंभ तक आनेजाने वाले कारिंदे रस्सों में विशेष प्रकार के कुंडे में बंधा झूला डाल कर आतेजाते थे. काम के बाद कुंडे और झूला निकाल कर रख दिए जाते थे. मौली चूंकि रस्से को यूं ही पकड़ कर झूल गई थी और रस्सा नीचे की ओर आ गया था. फलस्वरूप रस्से की रगड़ से उस के हाथ बुरी तरह घायल हो गए थे. वह ज्यादा देर अपने आप को संभाल नहीं पाई और झटके के साथ कुंड में जा गिरी.

हतप्रभ मानू यह दृश्य देख रहा था. मौली के गिरने से छपाक की आवाज उभरी तो मानू ने भी कुंड में छलांग लगा दी. अंगरेज रेजीडेंट, राजा और उस की महफिल इस भयावह दृश्य को देखती रह गई. कुछ देर मानू और मौली पानी में डूबते उतराते दिखाई दिए भी, लेकिन थोड़ी ही देर में वे आंखों से ओझल हो गए हमेशा के लिए. दोनों ही मगरमच्छों का शिकार बन चुके थे.

Social Crime Stories : 5 लाख रुपए के डिमांड ड्राफ्ट से हुई लाश की पहचान

Social Crime Stories : उत्तराखंड की राजधानी देहरादून से पहाड़ों की रानी मंसूरी जाने वाले राजपुर रोड पर आनंदमयी आश्रम के पास पड़ी लाश पर सुबहसुबह किसी की नजर पड़ी तो धीरेधीरे  वहां भीड़ लग गई. एकदूसरे को देख कर उत्सुकतावश लोग वहां रुकने लगे थे. लाश देख कर सभी के चेहरों पर दहशत थी. इस की  वजह यह थी कि लाश देख कर ही लग रहा था कि उस की हत्या की गई थी. किसी ने लाश पड़ी होने की सूचना थाना राजपुर को दी तो थानाप्रभारी अमरजीत सिंह पुलिस बल के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए थे. लाश और घटनास्थल का निरीक्षण शुरू हुआ. मृतक की उम्र 50 साल के आसपास थी. उस के गले पर दबाए जाने का निशान साफ झलक रहा था. इस का मतलब था कि उस की हत्या गला दबा कर की गई थी. उस की कनपटी पर भी चोट का निशान था.

मामला हत्या का था और यह भी साफ था कि हत्यारों ने कहीं और हत्या कर के शव को यहां ला कर फेंका था. क्योंकि वहां संघर्ष का कोई निशान नहीं था. फिर उस व्यस्त मार्ग पर किसी की हत्या करना भी आसान नहीं था. कब कौन सा मामला पुलिस के लिए महत्त्वपूर्ण बन जाए, इस बात को खुद पुलिस भी नहीं जानती. हत्या की वारदात में जांच को आगे बढ़ाने के लिए मृतक की पहचान जरूरी होती है. इसलिए सब से पहले पुलिस ने वहां एकत्र लोगों से लाश की शिनाख्त करानी चाही. लेकिन जब कोई उस की पहचान नहीं कर सका तो पुलिस ने इस आशय से उस की जेबों की तलाशी ली कि शायद ऐसा कुछ मिल जाए, जिस से उस की शिनाख्त हो सके.

पुलिस की यह युक्ति काम कर गई. तलाशी में उस के पास से 2 मोबाइल फोन, एटीएम कार्ड और कुछ कागजात के साथ 5 लाख रुपए का एक डिमांड ड्राफ्ट मिला. इस सब से मृतक की पहचान हुई तो पुलिस विभाग में हड़कंप मच गया, क्योंकि मृतक राज्य के रसूखदार कृषि मंत्री हरक सिंह रावत का निजी सचिव रहा था. वैसे तो वह जिला रुद्रप्रयाग के जखोली ब्लाक का रहने वाला था, लेकिन देहरादून में वह यमुना कालोनी स्थित हरक सिंह रावत के सरकारी आवास में रहता था.

घटना की सूचना पा कर एसएसपी केवल खुराना, एसपी (सिटी) डा. जगदीशचंद्र और सीओ (मंसूरी) जया बलूनी भी घटनास्थल पर पहुंच गए थे. घटनास्थल से पुलिस को ऐसा कोई सुबूत नहीं मिला था, जिस से हत्यारों तक पहुंचा जा सकता. पुलिस ने लाश का पंचनामा भर कर पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. मृतक का नाम युद्धवीर था. चूंकि वह एक मंत्री से जुड़ा था, इसलिए राजनीतिक गलियारों में सनसनी फैल गई. यह 1 अगस्त, 2013 की घटना थी.

मामला राजनीतिक व्यक्ति से जुड़ा था, इसलिए पुलिस की जवाबदेही बढ़ गई थी. पुलिस महानिदेशक बी.एस. सिद्धू और आईजी (कानून व्यवस्था) राम सिंह मीणा ने इस मामले का जल्द से जल्द खुलासा करने के निर्देश दिए. डीआईजी अमित कुमार सिन्हा ने अधीनस्थ अधिकारियों से बातचीत कर के जांच में थाना पुलिस की मदद के लिए स्पेशल औपरेशन गु्रप के प्रभारी रवि सैना को भी टीम के साथ लगा दिया था. सूचना पा कर मृतक युद्धवीर का भाई प्रदीप रावत देहरादून आ गया था. जिस की ओर से थाना राजपुर में अज्ञात हत्यारों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया गया था.

अब तक की जांच में पता चला था कि युद्धवीर 2 मोबाइल नंबरों का उपयोग करता था. ये दोनों ही नंबर  ड्यूअल सिम वाले मोबाइल में उपयोग में लाए जाते थे. पुलिस ने दोनों ही नंबरों की काल डिटेल्स और लोकेशन निकलवा ली. पूछताछ में पता चला था कि 9 अगस्त को वह सुबह ही घर से निकल गए थे. चलते समय उन्होंने कोठी के माली का मोबाइल फोन मांग लिया था. ऐसा उन्होंने पहली बार किया था.

पुलिस ने उन लोगों से पूछताछ शुरू की, जिन की युद्धवीर से 8 अगस्त को बात हुई थी. उन्हीं में से एक बलराज था. पुलिस द्वारा की गई पूछताछ में बलराज ने पुलिस को बताया था कि उस ने एसजीआरआर मैडिकल कालेज में अपनी भांजी का एडमिशन कराने के लिए युद्धवीर से बात की थी. इस के लिए उस ने उस से 60 लाख रुपए मांगे थे. उस ने उन्हें 5 लाख रुपए का ड्राफ्ट और 14 लाख रुपए नकद दे भी दिए थे. बाकी रकम एडमिशन होने के बाद देनी थी. लेकिन एडमिशन नहीं हुआ तो वह अपने 14 लाख रुपए वापस मांगने लगा था.

उन्हीं पैसों के लिए बलराज भी सुबह उस के पास गया था. तब उस ने उस से कहा था कि वह उस का इंतजार करे. आज वह एडमिशन करा कर आएगा या फिर पैसे वापस ले कर आएगा. कई घंटे तक वह उस का इंतजार करता रहा. जब वह नहीं आया तो उस ने उसे कई बार फोन किया. लेकिन उस ने कोई जवाब नहीं दिया. तब वह लौट गया था. रात में उस के मोबाइल फोन का स्विच औफ हो गया था.

आवास पर रहने वाले अन्य लोगों ने भी पुलिस को बताया था कि बलराज वहां आया था. उन्हीं लोगों से पूछताछ में पता चला था कि युद्धवीर दोपहर 2 बजे तक कृषि मंत्री हरक सिंह रावत के पीएसओ प्रदीप चौहान के साथ था. उस ने कहीं जाने की बात कही थी तो प्रदीप चौहान ने उसे 3 बजे के आसपास दरबार साहिब पर छोड़ा था. अंतिम लोकेशन और पूछताछ से पता चला था कि युद्धवीर शाम 6 बजे चकराता रोड स्थित नटराज सिनेमा के बाहर दिखाई दिया था.

मृतक राजनीतिक आदमी से तो जुड़ा ही था, उस का अपना भी राजनीतिक वजूद था. वह रुद्रप्रयाग के अगस्त्य मुनि क्षेत्र से जिला पंचायत सदस्य और जखोली ब्लाक का ज्येष्ठ प्रमुख भी रह चुका था. मंत्री हरक सिंह रावत ने भी उस के परिजनों को सांत्वना दे कर घटना का शीघ्र से शीघ्र खुलासे का आश्वासन दिया था. हत्या को ले कर रंजिश, राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता और प्रेमप्रसंग Social Crime Stories को ले कर चर्चाएं हो रही थीं. पुलिस को लूटपाट की भी संभावना लग रही थी. लेकिन यह बात समझ में नहीं आ रही थी कि वह माली का मोबाइल फोन मांग कर क्यों ले गया था.

पुलिस ने अपना सारा ध्यान इसी बात पर केंद्रित कर दिया. जांच में यह भी पता चला था कि युद्धवीर छात्र छात्राओं के एडमिशन कराने का काम करता था. ऐसे में यह भी संभावना थी कि एडमिशन न होने से खफा हो कर किसी व्यक्ति ने उस की हत्या कर दी हो. तरहतरह के सवाल उठ रहे थे, जिन का माकूल जवाब पुलिस के पास नहीं था. जांच कर रही पुलिस टीम के हाथ एक सुबूत यह लगा था कि युद्धवीर को चकराता रोड पर जब अंतिम बार देखा गया था, तब उस के साथ एक महिला थी. अब पुलिस को यह पता लगाना था कि वह महिला कौन थी? पुलिस ने काल डिटेल्स की बारीकी से जांच की तो उस में देहरादून के ही पौश इलाके इंदिरानगर की रहने वाली सुधा पटवाल का नंबर सामने आया.

पुलिस ने उस के बारे में पता किया तो मिली जानकारी चौंकाने वाली थी. सुधा प्रौपर्टी डीलिंग से ले कर मैडिकल और इंजीनियरिंग कालेजों में एडमिशन कराने वाली शहर की जानीमानी रसूखदार लौबिस्ट थी. कई राजनैतिक लोगों से भी उस के घनिष्ठ रिश्ते थे. पुलिस को उस पर शक हुआ तो उस के मोबाइल फोन की लोकेशन और काल डिटेल्स निकलवाई. इस से पता चला कि उस के मोबाइल की लोकेशन चकराता रोड और लाश मिलने के स्थान की भी थी. इस के साथ एक और मोबाइल की लोकेशन मिल रही थी, जिस से सुधा की लगातार बात होती रहती थी.

उस नंबर के बारे में पता किया गया तो वह नंबर हरिओम वशिष्ठ उर्फ बिट्टू का निकला. वह उत्तर प्रदेश के जिला मेरठ के थाना नौचंदी के शास्त्रीनगर के रहने वाले बृजपाल का बेटा था. उस के मोबाइल को सर्विलांस पर लगा कर एक पुलिस टीम उस की गिरफ्तारी के लिए निकल पड़ी. आखिर सर्विलांस से मिल रही लोकेशन के आधार पर पुलिस ने सुधा और हरिओम को हिरासत में ले लिया.

पहले तो सुधा ने अपने राजनीतिक संपर्कों की धौंस दिखा कर पुलिस को रौब में लेने कोशिश की थी. लेकिन पुलिस के पास ऐसे सुबूत थे कि उस की यह धौंस जरा भी नहीं चली. फिर तो पूछताछ में उस ने पुलिस के सामने जो खुलासा किया, सुन कर पुलिस दंग रह गई. दरअसल युद्धवीर की हत्या की साजिश सुधा ने ही रची थी. उस ने शातिर चाल चल कर एक तीर से कई निशाने साधने की कोशिश की थी.

सुधा और हरिओम से की गई पूछताछ में युद्धवीर की हत्या की चौंकाने वाली जो कहानी निकल कर सामने आई, वह इस प्रकार थी. मूलरूप से उत्तर प्रदेश के जिला बुलंदशहर की रहने वाली सुधा का परिवार कई साल पहले मेरठ में आ कर बस गया था. मेरठ आने के बाद सुधा ने देहरादून के रहने वाले देवराज पटवाल से विवाह कर लिया था. देवराज कंप्यूटर इंस्टिट्यूट तो चलाता ही था, साथ ही कंप्यूटर का बिजनेस भी करता था. वह बड़ेबड़े व्यापारिक और सरकारी संस्थानों में कंप्यूटर सप्लाई करता था.

सुधा बेहद महत्त्वाकांक्षी और शातिर दिमाग महिला थी. अंगे्रजी के अलावा फे्रंच पर भी उस की अच्छी पकड़ थी. जिंदगी को जीने का उस का अपना एक अलग ही अंदाज था. उसे रसूख भी पसंद था और ऊंचे ओहदे वाले लोगों से रिश्ता भी. इस के लिए वह कांगे्रस पार्टी की सदस्यता ग्रहण कर के रसूख वाले लोगों से संपर्क बनाने लगी.

पैसे कमाने के लिए सुधा पार्टटाइम प्रौपर्टी डीलिंग के साथसाथ छात्रछात्राओं के बड़े कालेजों में एडमिशन कराने लगी. करीब 4 साल पहले सुधा के पति देवराज को लकवा मार गया, जिस से वह चलनेफिरने में लाचार हो गया. इस का असर उस के बिजनेस पर पड़ा. घटतेघटते एक दिन ऐसा आया कि उस का बिजनेस पूरी तरह से बंद हो गया.

पति के बिस्तर पर पड़ने के बाद सुधा आजाद हो गई. दौड़धूप कर के उस ने तमाम छोटेबड़े नेताओं से संबंध बना लिए. इस का उसे लाभ भी मिलने लगा. संपर्कों की ही वजह से उस का दलाली का काम बढि़या चल निकला. अब सब कुछ सुधा के हाथ में था. उस की एक बेटी थी, जो दिल्ली से बीटेक कर रही थी. वह बेटी को पढ़ाई के लिए विदेश भेजना चाहती थी. सुधा की पकड़ मोहल्ले से ले कर सत्ता के गलियारों तक हो गई थी. दलाली की कमाई से वह ठाठबाट से रह रही थी. इंदिरानगर की वह जिस कोठी में रहती थी, उस का किराया 20 हजार रुपए महीने था. ऐशोआराम की जिंदगी के लिए वह पैसा पानी की तरह बहाती थी. लोगों पर रौब गांठने के लिए वह नेताओं से अपने संबंधों की धमकी देती थी.

हरक सिंह रावत के यहां भी सुधा का आनाजाना था. इसी आनेजाने में उस की मुलाकात युद्धवीर से हुई तो बातचीत में पता चला कि वह भी एडमिशन कराता है. दोनों की राह एक थी, इसलिए उन में अच्छी पटने लगी. जुलाई में युद्धवीर ने मैडिकल कालेज में एडमिशन कराने की बात की तो उस ने 60 लाख रुपए मांगे. युद्धवीर ने एडमिशन कराने के लिए 14 लाख रुपए एडवांस के रूप में सुधा को दे दिए. लेकिन दिक्कत तब आई, जब एडमिशन नहीं हुआ. ये 14 लाख रुपए बलराज के थे. वह अपने रुपए वापस मांगने लगा तो युद्धवीर सुधा को टोकने लगा.

सुधा इस पेशे की खिलाड़ी थी. ऐसे लोगों को टरकाना उसे अच्छी तरह आता था. इसी तरह के एक मामले में उस पर थाना पिलखुआ में ठगी का एक मुकदमा भी दर्ज हो चुका था. लौबिस्ट के रूप में उस की पहचान बन चुकी थी, इसलिए तमाम लोग उस के पास एडमिशन के लिए आते रहते थे. ऐसे में इस तरह की बातें उस के लिए आम थीं. हरिओम वशिष्ठ भी उस का ऐसा ही शिकार था. सुधा से उस की मुलाकात मेरठ में हुई थी. बातचीत में उस ने हरिओम से देहरादून में प्रौपर्टी में पैसा लगाने को कहा. सुधा की बातचीत और ठाठबाट से हरिओम समझ गया कि यह बेहद प्रभावशाली महिला है. कुछ महीने पहले देहरादून के झाझरा इलाके में 4 बीघा जमीन दिलाने के नाम पर सुधा ने हरिओम से 8 लाख रुपए ले लिए.

बाद में जमीन के कागज फर्जी निकले तो हरिओम को अपने ठगे जाने का भान हुआ. उस ने सुधा से रुपए मांगे तो वह उसे टरकाने लगी. लेकिन हरिओम भी कमाजेर नहीं था. वह उस के पीछे पड़ गया. मजबूर हो कर सुधा ने गहने बेच कर उस के 3 लाख रुपए लौटाए, बाकी रुपए देने का वादा कर लिया. हरिओम को सुधा झेल ही रही थी. अब युद्धवीर वाला मामला भी फंस गया था. दोनों ही पैसे वापस करने के लिए उस पर दबाव बना रहे थे. हरिओम रकम डूबने से काफी खफा था. वैसे तो इस तरह के मामले सुधा अपने रसूख के बल पर दबा देती थी, लेकिन युद्धवीर और हरिओम का मामला ऐसा था, जिस में उस का रसूख काम नहीं कर रहा था. उस की परेशानी तब और बढ़ गई, जब जुलाई के अंतिम सप्ताह में हरिओम ने उसे फोन कर के पैसे वापस करने के लिए धमकी दे दी.

हरिओम की धमकी से सुधा की चिंता बढ़ गई. वह समझ गई कि अगर उस ने हरिओम के पैसे नहीं लौटाए तो वह कुछ भी कर सकता है. आदमी के दिमाग में कब क्या आ जाए, कोई नहीं जानता. परेशानी में दिमाग बचाव के लिए तरहतरह के रास्ते खोजता है. सुधा भी बचाव के Social Crime Stories लिए दिमाग दौड़ाने लगी. फिर उस के दिमाग में जो आया, उस से उसे लगा कि इस से वह सुकून से रह सकेगी. इंसान की फितरत भी है कि वह अपने हिसाब से सिर्फ अपने पक्ष में ही सोचता है. ऐसे में उसे गलत रास्ता भी सही नजर आता है. सुधा के साथ भी ठीक ऐसा ही हो रहा था.

सुधा का एक आपराधिक प्रवृत्ति का दोस्त था उमेश चौधरी. वह हरिद्वार के थाना कनखल के रहने वाले मदनपाल का बेटा था. उस के खिलाफ अलगअलग जिलों में हत्या के 4 मुकदमे दर्ज थे. उमेश की दोस्ती सुधा से भी थी और हरिओम से भी. बात कर के सुधा ने युद्धवीर को खत्म करने के लिए उमेश को 5 लाख रुपए की सुपारी दे दी. रकम काम होने के बाद देना था.

उमेश तैयार हो गया तो सुधा ने कहा, ‘‘तुम्हें हरिओम के साथ ही देहरादून आना है, लेकिन तुम इस बारे में उसे कुछ नहीं बताओगे.’’

‘‘सुपारी ली है मैडम तो बात भी मानूंगा.’’ उमेश ने कहा.

इस के बाद सुधा ने हरिओम को फोन किया, ‘‘1 अगस्त को तुम देहरादून आ जाना. इंतजाम कर के तुम्हारे पैसे दे दूंगी.’’

सुधा की इस बात से खुश हो कर हरिओम ने कहा, ‘‘इस बार मुझे मेरे पूरे पैसे देने होंगे.’’

‘‘ठीक है, हरिओम मैं खुद ही तुम्हारे पैसे दे देना चाहती हूं. लेकिन मेरी भी कुछ मजबूरियां हैं. और हां, तुम एक काम करना.’’

‘‘क्या?’’

‘‘आते समय अपने साथ उमेश को भी लेते आना.’’

‘‘ठीक है.’’ इस के बाद फोन काट दिया गया.

1 अगस्त को हरिओम अपनी स्कार्पियो से पहले हरिद्वार पहुंचा और वहां से उमेश को ले कर देहरादून पहुंच गया. वह उमेश के साथ त्यागी रोड स्थित एक होटल में ठहरा. सुधा हरिओम से मिलने आई तो 3-4 दिनों में उस ने रुपए देने की बात कही. इस के बाद भी सुधा की हरिओम से मोबाइल पर तो बात होती ही रहती थी, वह उस से मिलने भी आती रही. वह हरिओम को एकएक दिन कर के टाल रही थी. 8 अगस्त को हरिओम ने हरिद्वार के रहने वाले अपने दोस्त संजीव को फोन कर के बुला लिया. उसी दिन सुधा ने हरिओम को बताया कि उसे युद्धवीर की हत्या करनी है, क्योंकि युद्धवीर को 14 लाख रुपए वापस करने हैं. अगर उस ने उस के पैसे नहीं लौटाए तो वह उस की हत्या करा देगा. इस काम में उसे उस का साथ देना होगा. इस के बाद वह उस के बाकी पैसे वापस कर देगी.

उसी बीच उमेश ने सुधा का समर्थन करते हुए कहा, ‘‘क्या फर्क पड़ता है यार हरिओम. मुझे इस काम के लिए मैडम ने 5 लाख रुपए देने को कहा है. काम होने पर उस में से मैं आधे तुम्हें दे दूंगा. इस के अलावा तुम्हें अपनी डूबी रकम भी मिल जाएगी. इसलिए तुम्हें मैडम का साथ देना चाहिए.’’

हरिओम इस बात से बेखबर था कि युद्धवीर की हत्या Social Crime Stories का उमेश से पहले ही सौदा हो चुका है. आखिर कुछ देर की बातचीत के बाद हरिओम साथ देने को तैयार हो गया. सुधा का सोचना था कि युद्धवीर की हत्या के बाद उसे 14 लाख रुपए वापस नहीं करने पड़ेंगे. इस के अलावा अगर युद्धवीर का लाया एडमिशन हो गया तो 60 लाख में से बाकी के 46 लाख रुपए भी उसे मिल जाएंगे. इस के बाद वह हरिओम को भी ब्लैकमेल करतेहुए उस के रुपए देने से मना कर देगी.

8 अगस्त को बलराज अपने पैसे लेने आया तो युद्धवीर ने सुधा को फोन किया. सुधा ने उसे गुरुद्वारा साहिब पहुंचने को कहा. प्रदीप चौहान ने उसे गुरुद्वारा साहिब छोड़ दिया. इस के बाद सुधा ने उसे चकराता रोड आने को कहा. उस ने हरिओम को भी वहीं बुला लिया था. हरिओम अपने साथियों के साथ स्कार्पियो से था, जबकि सुधा अपनी स्कूटी से आई थी. उस ने हरिओम का परिचय छद्म नाम से कराते हुए युद्धवीर से कहा, ‘‘यह अनिल श्रीवास्तव हैं.यही कालेज के एडमिशन हेड हैं. इन्हीं को मैं ने 14 लाख रुपए दिए थे. हमें राजपुर रोड चलना होगा. वहीं यह हमें पैसे देंगे.’’

युद्धवीर को क्या पता था कि उसे जाल में उलझाया जा रहा है. पैसों के लिए वह साथ चलने को तैयार हो गया. सुधा युद्धवीर को स्कूटी से ले कर आगेआगे चलने लगी तो उस के पीछेपीछे हरिओम भी अपने साथियों के साथ स्कार्पियो से चल पड़ा. राजपुर रोड पर आ कर सभी रुक गए. सुधा ने अपनी स्कूटी वहीं खड़ी कर दी और गाड़ी चला रहे हरिओम के बगल वाली सीट पर बैठ गई. युद्धवीर पिछली सीट पर उमेश और संजीव के साथ बैठ गया. स्कार्पियो एक बार फिर चल पड़ी. उन लोगों के मन में क्या है, युद्धवीर को पता नहीं था. चलते हुए ही युद्धवीर ने रुपए लौटाने की बात शुरू की तो सुधा का चेहरा तमतमा उठा.

सुधा के इस अंदाज और अंजान लोगों के साथ होने से युद्धवीर को उस पर शक हुआ तो उस ने भागना चाहा. लेकिन स्कार्पियो के दरवाजे से सिर टकरा जाने की वजह से वह गाड़ी के अंदर ही गिर गया. तभी उमेश ने उस के गले में रस्सी डाल कर एकदम से कस दिया. युद्धवीर जान बचाने के लिए छटपटाया, लेकिन उन की पकड़ इतनी मजबूत थी कि वह कुछ नहीं कर सका. अंतत: उस की मौत हो गई. युद्धवीर की हत्या कर के वे उस की लाश को सहस्रधारा नदी की उफनती धारा में फेंकना चाहते थे. युद्धवीर की लाश को उन्होंने बाएं दरवाजे की ओर इस तरह बैठा दिया कि देखने वाले को लगे कि वह सो रहा है. युद्धवीर के मोबाइल फोन जेब से निकाल कर स्विच औफ कर दिए.

रास्ते में एक जगह पुलिस वाहनों की चैकिंग कर रही थी, जिसे देख कर हरिओम घबरा गया और आगे जाने से मना कर दिया. सुधा और उमेश ने उसे बहुत समझाया, लेकिन वह नहीं माना और गाड़ी घुमा ली. लौटते हुए ही उन्होंने लाश आनंदमयी आश्रम के पास सड़क के किनारे फेंक दी. सुधा अपनी स्कूटी ले कर अपने घर चली गई, जबकि हरिओम, उमेश और संजीव स्कार्पियो से हरिद्वार चले गए.

युद्धवीर की हत्या कर सुधा निश्चिंत हो गई कि अब उसे किसी के पैसे नहीं देने पड़ेंगे. उसे विश्वास था कि अगर उस का नाम सामने आया भी तो अपने Social Crime Stories प्रभाव से वह छूट जाएगी. लेकिन उस के मंसूबों पर पानी फिर गया. हरिओम और सुधा से पूछताछ के बाद पुलिस ने उन की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त रस्सी भी बरामद कर ली. पुलिस ने दोनों को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.

इस के बाद पुलिस ने उमेश को भी गिरफ्तार कर लिया. जबकि संजीव हरिद्वार में अपने खिलाफ पहले से दर्ज छेड़छाड़ के एक मामले की जमानत रद्द करवा कर जेल चला गया. कथा लिखे जाने तक किसी भी आरोपी की जमानत नहीं हुई थी. सुधा ने महत्त्वाकांक्षाओं में जिंदगी को न उलझाया होता और युद्धवीर ने उस पर विश्वास न किया होता तो शायद यह नौबत न आती.

— कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

चौहरा हत्याकांड : हनीमून के बाद दबेपांव आई मौत

पत्नी व 3 बच्चों के होते हुए भी सर्राफा कारोबारी मुकेश वर्मा ने रिश्ते की साली स्वाति सोनी के साथ मंदिर में शादी कर ली थी. उस के साथ गोवा में हनीमून के बाद वह घर लौटा तो दबेपांव मौत ने भी घर में दस्तक दे दी. नतीजतन घर के 4 लोग मौत के मुंह में समा गए. आखिर कैसे हुआ यह सब? पढ़ें, यह दिलचस्प कहानी.

प्लान के मुताबिक 10 नवंबर, 2024 की सुबह 10 बजे मुकेश अपनी स्कूटी से घर से निकला. इस के बाद वह अपनी जानपहचान वाले 3 मैडिकल स्टोर्स पर गया और वहां से नींद वाली 15 गोलियां खरीदीं. इन गोलियों को पीस कर उस ने 4 पुडिय़ा बना ली और अपने घर वापस लौट आया. इस के बाद शाम तक वह बीवीबच्चों से खूब हंसता, बोलता, बतियाता रहा. उन्हें मुकेश के प्लान की भनक तक नहीं लगी.

रात 10 बजे मुकेश ने और्डर कर 4 पिज्जा मंगवा लिए. बड़ी चालाकी से उस ने पिज्जा में पिसी हुई नींद की गोलियों का पाउडर मिला दिया. पत्नी व बच्चे उस समय टीवी पर कोई मूवी देख रहे थे. रात 12 बजे के आसपास मूवी खत्म हुई तो सभी ने पिज्जा खाया. बच्चों को पिज्जा का स्वाद कुछ अजीब लगा तो उन्होंने आधाअधूरा पिज्जा ही खाया और बचा हुआ फ्रिज में रख दिया. पिज्जा खाने के बाद पत्नी रेखा, बेटी भव्या और बेटा अभीष्ट ग्राउंड फ्लोर वाले कमरे मेें पड़े पलंग पर जा कर लेट गए, जबकि दूसरी बेटी काव्या फस्र्ट फ्लोर वाले कमरे में जा कर पलंग पर लेट गई. नींद की गोलियों ने कुछ देर बाद ही असर दिखाना शुरू कर दिया. फिर एक के बाद एक सभी गहरी नींद के आगोश में समा गए.

लेकिन मुकेश की आंखों से नींद कोसों दूर थी. रात 2 बजे मुकेश ने अपनी माशूका स्वाति से मोबाइल फोन पर बात की और सारी बात बताई. उस ने स्वाति से फोन पर संपर्क बनाए रखने को भी कहा. स्वाति सुबह तक उस के संपर्क में रही. इधर पत्नी व बच्चे जब गहरी नींद में सो गए तो सुबह लगभग 4 बजे मुकेश ग्राउंड फ्लोर वाले कमरे में पहुंचा. उस ने पलंग पर सो रही पत्नी रेखा, बेटी भव्या व बेटे अभीष्ट पर एक नजर डाली. फिर रस्सी का टुकड़ा, जिसे उस ने पहले से ही कमरे में सुरक्षित कर लिया था, पत्नी रेेखा (44 वर्ष) की गरदन में लपेटा और कसने लगा. नींद की आगोश में समाई रेखा चीख भी नहीं पाई और उस ने दम तोड़ दिया.

रेखा के बाद उस ने बेटी भव्या (19 वर्ष) और बेटा अभीष्ट (13 वर्ष) को भी रस्सी से गला कस कर मार डाला. इस के बाद वह फस्र्ट फ्लोर पर कमरे में सो रही छोटी बेटी काव्या (17 वर्ष) के पास पहुंचा और उस का भी रस्सी से गला कस दिया. पत्नी व बेटियों का गला कसने के बाद मुकेश ने बेटे अभीष्ट को भी नहीं बख्शा और उसे भी मौत की नींद सुला दिया. पत्नी व बच्चों की हत्या करने के बाद मुकेश ने प्रेमिका स्वाति से फोन पर बात की और उसे बताया कि उस ने पत्नी व बच्चों की हत्या कर दी है. वह सुबह इटावा रेलवे स्टेशन पर आ कर मिले और फोन पर संपर्क में रहे.

4 हत्याएं करने के बाद नारमल क्यों रहा मुकेश

मुकेश 3 घंटे तक लाशों के बीच बैठा रहा. इस बीच उस ने बच्चों के गले में पड़ी  सोने की चेन, पत्नी के गले में पड़ा मंगलसूत्र, चेन व दोनों हाथों से सोने कीे अंगूठियां निकाल कर सुरक्षित कर लीं. तिजोरी का लौकर खोल कर उस में रखी ज्वैलरी भी सुरक्षित कर ली. सुबह 8 बजे मुकेश ने दोनों कमरों का ताला बंद किया और कीमती सामान का थैला ले कर प्लान के मुताबिक रेलवे स्टेशन पहुंच गया. अपने किए गए प्रौमिस के मुताबिक स्वाति रेलवे स्टेशन के बाहर मौजूद थी. चंद मिनट पहले ही वह कानपुर से इटावा ट्रेन द्वारा आई थी.

मुकेश ने कुछ मिनट स्वाति से बात की, फिर कीमती सामान वाला थैला उसे थमा दिया. इस के बाद दोनों बस स्टाप आए. मुकेश ने स्वाति को कानपुर जाने वाली बस में बैठा दिया. बस में बैठते ही स्वाति ने अपना मोबाइल फोन स्विच औफ कर लिया. पुश्तैनी मकान में रहने वाले मुकेश के भाइयों ने सुबह मुकेश के दोनों कमरों में ताला लगा देखा तो था, लेकिन उन्होंने ज्यादा गौर नहीं किया. उन्होंने सोचा कि मुकेश परिवार के साथ कहीं घूमनेफिरने गया होगा, एकदो दिन में वापस आ जाएगा.

मुकेश ने पुलिस से बचने का प्लान पहले से ही बना लिया था. उसी प्लान के तहत वह सिविल लाइंस कोतवाली पहुंचा. वहां टंगे बोर्ड से उस ने सीओ (सिटी) अमित कुमार सिंह का फोन नंबर नोट किया. फिर दोपहर में गल्ला मंडी स्थित एक होटल पर भरपेट खाना खाया. यहीं पर उस ने एक सुसाइड नोट तैयार किया. इस सुसाइड नोट में उस ने अपने भाई अखिलेश वर्मा व सीलमपुर दिल्ली निवासी फुफेरे भाई मनोज कुमार वर्मा पर लाखों रुपया हड़पने और मांगने पर ताने मार कर जलील करने का आरोप लगाया. तथा हत्या/आत्महत्या करने को उकसाने का आरोप लगाया.

इस नोट को लिखने के बाद गल्ला मंडी में ही एक ज्वैलर्स की दुकान पर उस ने अपनी सोने की अंगूठी बेची. अंगूठी बेचने से उसे जो पैसे मिले, उन में से 700 रुपया सैलून वाले को तथा डेढ़ हजार रुपया सोनू नाम के व्यक्ति को उधारी के दिए. सामूहिक हत्याकांड को अंजाम देने के बावजूद मुकेश विचलित नहीं हुआ. वह बेखौफ इटावा शहर की गलियों में घूमता रहा. शाम 6 बजे के बाद उस ने अपने साढ़ू भोपाल निवासी आशीष वर्मा तथा भिंड निवासी साले रविंद्र व सत्येंद्र से फोन पर बात की और हालचाल पूछा.

उस ने अपने भाइयों से भी फोन पर बात की, लेकिन किसी को महसूस नहीं होने दिया कि उस ने 4 लोगों का मर्डर किया है. रात करीब सवा 8 बजे मुकेश ने सुसाइड नोट का फोटो खींच कर सीओ (सिटी) अमित कुमार सिंह को वाट्सऐप कर दिया तथा डायल 112 पर सूचना दी कि उस की पत्नी व बच्चों ने सुसाइड कर लिया है. वह भी सुसाइड करने रेलवे स्टेशन जा रहा है. इस के बाद उस ने बेटी काव्या व पत्नी रेखा के मोबाइल फोन के वाट्सऐप स्टेटस पर मृतकों की फोटो लगा कर कैप्शन लिखा, ‘ये सब लोग खत्म.Ó फिर उस ने अपना मोबाइल फोन स्विच्ड औफ कर लिया.

इस स्टेटस को देख कर सगेसंबंधी सन्न रह गए. पड़ोसी भी सकते में आ गए. पड़ोसी मुकेश के घर पहुंचे तो ताला बंद था. उन्होंने मुकेश के बड़े भाई रत्नेश वर्मा व अवधेश वर्मा को सूचना दी. थोड़ी देर बाद दोनों भाई घर आ गए. उन्होंने पड़ोसियों के सहयोग से कमरों का ताला तोड़ा. अंदर का दृश्य देख कर सभी का कलेजा कांप उठा. रत्नेश वर्मा ने सूचना थाना सिविल लाइंस पुलिस को दी तो हड़कंप मच गया. सूचना पाते ही एसएचओ विक्रम सिंह चौहान पुलिस दल के साथ लालपुरा स्थित मुकेश वर्मा के घर आ गए.

मामले की गंभीरता को समझते हुए उन्होंने सूचना पुलिस अफसरों को दी तो थोड़ी देर में मौके पर एसएसपी संजय कुमार वर्मा, एएसपी अभय नाथ त्रिपाठी तथा सीओ (सिटी) अमित कुमार सिंह भी आ गए. पुलिस अफसरों ने घटनास्थल को देखा तो सहम गए. 2 कमरों में 4 लाशें पड़ी थीं. दोनों कमरों में खून की एक बूंद भी नहीं थी. अब तक फोरैंसिक टीम भी आ गई थी और वह जांच में जुट गई थी. घर का मुखिया मुकेश वर्मा घर से नदारद था. पुलिस को पता चल गया था कि उस ने डायल 112 पर पत्नी व बच्चों के सुसाइड करने की जानकारी दी. लेकिन वह स्वयं कहां है, जीवित भी है या नहीं, इस की जानकारी न दे कर उस ने अपना मोबाइल फोन बंद कर लिया था.

अब तक मीडिया को भी घटना की जानकारी मिल गई थी, इसलिए मीडियाकर्मियों की भी भीड़ जुट गई थी. पुलिस औफिसर इस स्थिति में नहीं थे कि वे बता सकें कि मामला हत्या का है या आत्महत्या का. अत: उन के सवालों से बचने के लिए चारों शवों को इटावा के सदर अस्पताल पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. मुकेश की खोज में पुलिस ने उस के मोबाइल फोन को सर्विलांस पर लिया तो रात 8:20 पर उस की लोकेशन इटावा रेलवे स्टेशन के पास मिली. उस के बाद उस का फोन बंद हो गया था. पुलिस की टीम इटावा रेलवे स्टेशन पहुंची. वहां पता चला कि मुकेश रेल से कट कर आत्महत्या करना चाहता था, लेकिन वह सफल नहीं हुआ. वह जीआरपी पुलिस की हिरासत में है. पुलिस टीम तब मुकेश को अपनी कस्टडी में ले कर थाना सिविल लाइंस आ गई.

थाने में पुलिस अफसरों ने जब मुकेश से पूछताछ की तो उस ने पहले से प्लानिंग कर बनाई गई कहानी पुलिस को बताई. उस ने पुलिस अधिकारियों को बताया कि पिछले कई सालों से वह परेशान था. रिश्तेदारों को उस ने 15 लाख रुपए उधार दिए थे, जो वापस नहीं कर रहे थे. पैसा मांगने पर वे उसे जलील करते थे और ताने मारते थे. इस कारण उसे व्यापार करने में दिक्कत आ रही थी. धीरेधीरे घर खर्च का ज्यादा और आमदनी कम होती गई. इस से वह काफी समय से तनाव में था. टेंशन के चलते सिर्फ वह आत्महत्या करना चाहता था. उस ने यह बात पत्नी रेखा को बताई तो वह बोली कि आत्महत्या के बाद उस का और बच्चों का क्या होगा.

फिर पत्नी की सहमति के बाद उस ने सभी को मारने के बाद आत्महत्या करने की योजना बनाई. वह करवाचौथ वाले दिन सभी को मारना चाहता था, लेकिन पत्नी ने उस दिन ऐसा करने से मना कर दिया, जिस से मौत टल गई. इस के बाद दीपावली के बाद का प्लान बनाया. 11 नवंबर, 2024 को बड़ी बेटी भव्या पढ़ाई के लिए वापस दिल्ली जाने वाली थी, इसलिए उस ने एक दिन पहले ही सब को मारने का प्लान बनाया. प्लान के मुताबिक वह मैडिकल स्टोर से नींद की 15 गोलियां खरीद कर लाया. 5 गोलियां पीस कर पत्नी रेखा को पिज्जा के साथ मिला कर खिला दी, बाकी गोलियां बच्चों को पीस कर पिज्जा के साथ खिला दीं.

उस ने बताया कि गला घोंटते समय बच्चे बेहोशी की अवस्था में बोले थे, ”पापा, ये क्या कर रहे हो?

तब मैं ने उन से कहा था कि मेरे मरने के बाद तुम लोग रह नहीं पाओगे. इसलिए मरना ही बेहतर है और फिर गला घोंट कर सभी को मार डाला. मुकेश ने आगे बताया कि घटना को अंजाम देने के बाद वह दिन भर शहर की गलियों में भटकता रहा. रात साढ़े 8 बजे वह इटावा रेलवे स्टेशन पहुंचा और सुसाइड के लिए पूर्वी छोर पर पटरियों के बीच लेट गया. मरुधर एक्सप्रैस उस के ऊपर से गुजर गई, लेकिन वह बच गया. जीआरपी ने उसे पकड़ा. जामातलाशी में पुलिस को मुकेश से 2 मोबाइल फोन बरामद हुए. उन्हें पुलिस ने सुरक्षित कर लिया. मुकेश की निशानदेही पर पुलिस ने उस के घर से रस्सी का वह टुकड़ा बरामद कर लिया, जिस से उस ने पत्नी व बच्चों का गला घोंटा था.

पुलिस अधिकारियों ने पूछताछ के बाद उस की बात को सच मान कर उस का बयान दर्ज किया. लेकिन अधिकारियों के मन में एक फांस चुभ रही थी कि मुकेश को यदि आत्महत्या करनी ही थी तो उस ने घर में क्यों नहीं की? घटना को अंजाम देने के 16 घंटे बाद वह आत्महत्या करने इटावा रेलवे स्टेशन क्यों गया? वह भी बच गया. उस के शरीर पर खरोंच तक नहीं आई. उन्हें लगा कि दाल में कुछ काला जरूर है. 12 नवंबर, 2024 को इस हत्या/आत्महत्या प्रकरण की खबर प्रमुख अखबारों में छपी, जिसे पढ़ कर लोग सन्न रह गए. शहरवासियों तथा सगेसंबधियों की भीड़ मुकेश के घर पर जुट गई. सहमति से आत्महत्या की बात न शहरवासियों के गले उतर रही थी और न ही परिवार तथा सगेसंबधियों की समझ में आ रही थी.

सगेसंबंधी भी नहीं समझ पाए वारदात की वजह

पुलिस ने मामले की तह तक पहुंचने के लिए मुकेश के बड़े भाई एडवोकेट रत्नेश वर्मा, अवधेश वर्मा तथा मां चंद्रकला से पूछताछ की. उन्होंने बताया कि रिश्तेदारों व पड़ोसियों के फोन आने के बाद वह मुकेश के घर गए तो देखा कि लाशें पड़ी थीं. रत्नेश ने बताया कि मुकेश के घर में तनाव जैसी कोई बात नहीं थी. तनाव की बात उस ने कभी उन्हें नहीं बताई. आर्थिक स्थिति भी कमजोर नहीं थी. वह सोनेचांदी के व्यापार में अच्छा पैसा कमाता था. पता नहीं मुकेश ने यह कदम क्यों उठाया.

अब तक मृतका रेखा का भाई भिंड निवासी सत्येंद्र सोनी भी बहन के घर आ गया था. उस ने पुलिस औफिसरों को बताया कि उस ने भांजी काव्या का स्टेट्स देखा था, जिस में लिखा था-ये सब खत्म. बहन और बच्चों की फोटो लगी थी. इस के बाद उस ने सब को फोन लगाया, लेकिन किसी का फोन नहीं लगा. यहां आ कर पता चला कि बहन व बच्चों की हत्या हो गई है.

सत्येंद्र ने आरोप लगाया कि बहनोई मुकेश शराब पीता था. औरत उस की कमजोरी थी. बहनोई मुकेश ने ही प्लान के तहत उस की बहन रेखा व उस के बच्चों की हत्या की है. सहमति से हत्या/आत्महत्या की बात गलत है. सत्येंद्र ने यह भी बताया कि दीपावली के 2 दिन पहले उस की बहन रेखा व बच्चे भिंड आए थे. तब रेखा ने न तनाव वाली बात बताई थी और न ही आर्थिक परेशानी की. वह हंसीखुशी से बच्चों के लिए पटाखे खरीद कर चली गई थी.

पूछताछ के बाद एसएसपी संजय कुमार वर्मा ने दोपहर बाद 2 बजे पुलिस सभागार में प्रैसवार्ता की और मुकेश वर्मा को मीडिया के समक्ष पेश किया. पत्रकारों से रूबरू होते वक्त मुकेश को न कोई पछतावा था और न ही माथे पर कोई शिकन. साले सत्येंद्र ने भी मुकेश पर हत्या का आरोप लगाया था. अत: सिविल लाइंस थाने के एससएचओ विक्रम सिंह ने सत्येंद्र सोनी की तहरीर पर मुकेश वर्मा के खिलाफ भारतीय न्याय संहिता की धारा 103 (1) तथा 61 (2) के तहत रिपोर्ट दर्ज कर ली तथा उसे विधिसम्मत गिरफ्तार कर लिया. शाम 4 बजे उसे इटावा कोर्ट में पेश किया गया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

जेल भेजने के बाद अधर में क्यों अटका मामला

पुलिस ने मुकेश को जेल जरूर भेज दिया था, लेकिन सामूहिक हत्या आत्महत्या का मामला अब भी अधर में ही लटका हुआ था. पुलिस टीम ने जांच आगे बढ़ाई तो मुकेश के एक और झूठ का खुलासा हो गया. पता चला कि मुकेश ने आत्महत्या करने का नाटक किया था. मरुधर एक्सप्रैस ट्रेन उस के ऊपर से गुजरी ही नहीं थी. वह प्लेटफार्म नंबर 4 पर खड़ी मरुधर एक्सप्रैस ट्रेन के इंजन के आगे लेट गया था. गाड़ी चलने के पहले ही चालक की नजर उस पर पड़ गई थी. चालक ने तब उसे जीआरपी के हवाले कर दिया था.

पुलिस की इस गुत्थी को सुलझाया मृतका रेखा की बहन राखी तथा उस के पति आशीष वर्मा ने, जो भोपाल से इटावा आए थे. आशीष वर्मा व राखी ने पुलिस को चौंकाने वाली जानकारी दी. राखी ने बताया कि उस के बहनोई मुकेश वर्मा का कानपुर (बर्रा) की रहने वाली तलाकशुदा महिला स्वाति सोनी से नाजायज रिश्ता है. वह महिला मुकेश की पहली पत्नी नीतू की रिश्तेदार है. रिश्ते में वह मुकेश की साली लगती है.

इन नाजायज संबंधों की जानकारी रेखा को भी हो गई थी. वह इस का विरोध करती थी, जिस से घर में कलह होती थी. बहन ने उसे कई बार फोन पर यह जानकारी दी थी. करवाचौथ पर रेखा ने मुकेश के मोबाइल फोन में स्वाति की तसवीर देखी थी, तब खूब झगड़ा हुआ था. उस ने बताया कि अवैध संबंधों के चलते ही बहनोई मुकेश ने प्रीप्लान कर उस की बहन रेखा व उस के बच्चों की हत्या की है. हत्या के इस प्लान में स्वाति भी शामिल है. उस ने मुकेश को अपने प्रेमजाल में फंसा रखा है.

अवैध रिश्तों में हुई सामूहिक हत्या का पता चलते ही पुलिस अधिकारियों के कान खड़े हो गए. उन्होंने जांच तेज कर दी. पुलिस को मुकेश के पास से 2 मोबाइल फोन बरामद हुए थे. पुलिस ने उन की काल डिटेल्स निकलवाई तो पता चला कि घटना वाली रात 2 बजे से 5 बजे के बीच एक फोन नंबर सक्रिय था, जिस पर मुकेश ने कई बार बात की थी. इस नंबर पर पहले भी उस की बातें होती थीं. पुलिस ने उस मोबाइल नंबर की जानकारी जुटाई तो पता चला कि वह नंबर स्वाति सोनी निवासी विश्व बैंक कालोनी बर्रा (कानपुर) के नाम दर्ज है.

एसएसपी संजय कुमार वर्मा ने स्वाति की गिरफ्तारी के लिए पुलिस टीम भेजी. लेकिन उस के घर पर ताला लगा था. पुलिस टीम तब खाली हाथ लौट आई. पुलिस ने उस की टोह में खबरियों को लगा दिया. इधर सीओ (सिटी) अमित कुमार सिंह मुकेश के उस हस्तलिखित सुसाइड नोट की जांच कर रहे थे, जिसे मुकेश ने उन के वाट्सऐप पर भेजा था. जांच में यह बात सच निकली कि मुकेश के फुफेरे भाई मनोज वर्मा ने उस का लाखों रुपया हड़प लिया था. मांगने पर जलील करता था. झूठे मामले में फंसाने की धमकी देता था. इस के अलावा भाई अखिलेश ने भी उस के रुपए हड़प रखे थे. जांच पूरी होने के बाद सीओ (सिटी) ने उन की गिरफ्तारी का जाल बिछाया.

15 नवंबर, 2024 को सीओ (सिटी) अमित कुमार सिंह की टीम ने अखिलेश व मनोज वर्मा को बस स्टैंड इटावा से दबोच लिया. पूछताछ में दोनों ने गलत फंसाने का आरोप लगाया. लेकिन पुलिस ने उन की एक न सुनी और दोनों को आत्महत्या करने को मजबूर करने के जुर्म में जेल भेज दिया. 20 नवंबर, 2024 की दोपहर 12 बजे एसएचओ विक्रम सिंह चौहान को मुखबिर के जरिए जानकारी मिली कि मुकेश की प्रेमिका स्वाति इस समय अंबेडकर चौराहे के पास निर्माणाधीन रामनगर ओवरब्रिज के नीचे मौजूद है. वह कोर्ट में सरेंडर करने के लिए किसी वकील का वेट कर रही है.

चूंकि मुखबिर की इनफार्मेशन खास थी, इसलिए पुलिस टीम रामनगर ओवरब्रिज के नीचे पहुंची और घेराबंदी कर स्वाति को गिरफ्तार कर लिया. उसे थाना सिविल लाइंस लाया गया. उस की गिरफ्तारी की सूचना पर पुलिस अफसर भी थाने आ गए. पुलिस औफसरों ने स्वाति से पूछताछ की तो उस ने बताया कि मुकेश वर्मा से उस का नाजायज रिश्ता था. पूछताछ के बाद इंसपेक्टर विक्रम सिंह चौहान ने स्वाति सोनी के खिलाफ बीएनएस की धारा 103 (1) तथा 61 (2) के तहत रिपोर्ट दर्ज कर ली तथा उसे गिरफ्तार कर लिया. पुलिस जांच, मुकेश व स्वाति के बयानों तथा अन्य सूत्रों के आधार पर इस सामूहिक हत्याकांड की सनसनीखेज कहानी सामने में आई.

बीवीबच्चों वाला मुकेश क्यों फंसा स्वाति के चक्कर में

उत्तर प्रदेश के इटावा शहर के सिविल लाइंस थाने के अंतर्गत एक मोहल्ला है— लालपुरा. इसी मोहल्ले में खुशीराम वर्मा सपरिवार रहते थे. उन के परिवार में पत्नी चंद्रकला के अलावा 6 बेटे रत्नेश, राकेश, अवधेश, मुकेश, अखिलेश व रघुवेश थे. खुशीराम वर्मा सर्राफा व्यापारी थे. इस व्यवसाय में उन का बड़ा नाम था. उन्होंने अपना हुनर बेटों को ही नहीं, रिश्तेदारों को भी सिखाया था. वे सभी इसी व्यापार से अपनी जीविका चलाते थे. खुशीराम वर्मा के बच्चे पढ़लिख कर जवान हुए तो सभी किसी न किसी व्यापार में रम गए. बेटे कमाने लगे तो उन्होंने एक के बाद एक सभी बेटों का विवाह कर दिया. 3 मंजिला घर में उन के 4 बेटे अवधेश, मुकेश, अखिलेश व रघुवेश वर्मा अपनेअपने परिवारों के साथ रहने लगे.

जबकि सब से बड़ा बेटा रत्नेश वर्मा, जोकि नोटरी वकील था, वह एआरटीओ औफिस के सामने नवविकसित कालोनी में परिवार सहित रहता था. उस से छोटा राकेश वर्मा सपरिवार गाड़ीपुरा मोहल्ले में रहता था. उस की वहीं स्थित चारा मार्केट में सर्राफा की दुकान तथा पालिका बाजार में कपड़े की दुकान थी.

खुशीराम वर्मा के चौथे नंबर का बेटा था— मुकेश. उस की शादी नीतू से हुई थी. शादी के एक साल बाद नीतू ने एक बेटी को जन्म दिया, जिस का नाम उस ने भव्या रखा. भव्या 2 साल की थी, तभी उस की मम्मी नीतू का निधन हो गया. वह कैंसर से पीडि़त थी.

पत्नी की मौत के बाद मुकेश को बेटी के पालनपोषण की समस्या हुई तो उस ने सन 2006 में रेखा से दूसरी शादी कर ली. रेखा भिंड शहर कोतवाली के मोहल्ला झांसी की रहने वाली थी. उस के 2 भाई सत्येंद्र, रविंद्र तथा एक बहन राखी थी. दूसरी शादी के बाद मुकेश खुश था. रेखा ने एक बेटी काव्या व बेटे अभीष्ट को जन्म दिया. रेखा अब दोनों बेटियों व बेटे का पालनपोषण करने लगी. बच्चे कुछ बड़े हुए तो तीनों बच्चे ज्ञानस्थली स्कूल में पढऩे लगे. मुकेश वर्मा सर्राफा व्यापार का मंझा हुआ खिलाड़ी था. सर्राफा की दुकान पर उस का छोटा भाई रघुवेश बैठता था. मुकेश दिल्ली से सोनाचांदी के आभूषण लाता था और इटावा, औरैया, मैनपुरी के व्यापारियों को सप्लाई करता था. उस का बिजनैस कानपुर तक फैला था. इस व्यवसाय से उसे लाखों रुपए की कमाई होती थी.

वर्ष 2019 में मुकेश अपनी पत्नी रेखा के साथ मथुरा-वृंदावन घूमने गया. वहां एक होटल में उस की मुलाकात स्वाति सोनी से हुई. वह भी अपने पति अर्पण के साथ घूमने आई थी. वह भी उसी होटल में रुकी थी, जिस में मुकेश ठहरा था. दोनों के बीच बातचीत शुरू हुई तो रिश्तेदारी खुल गई. स्वाति मुकेश की पहली पत्नी नीतू की मौसी की बेटी निकली. इस नाते मुकेश और स्वाति के बीच जीजासाली का रिश्ता बन गया.

गुपचुप शादी कर गोवा में मनाया हनीमून

स्वाति मुकेश के रहनसहन से प्रभावित हुई. लौटते समय दोनों ने एकदूसरे को अपने फोन नंबर भी दे दिए. स्वाति सोनी, बर्रा (कानपुर) की रहने वाली थी. उस की शादी 2007 में जालौन के उरई कस्बा निवासी अर्पण से हुई थी. अर्पण प्राइवेट नौकरी करता था. उस की आर्थिक स्थिति ज्यादा अच्छी नहीं थी. वह शराब का लती भी था. स्वाति उस से खुश नहीं थी. खर्चे पूरे न होने के कारण स्वाति और अर्पण के बीच अकसर झगड़ा होता रहता था.

स्वाति पहली ही नजर में मुकेश के दिलोदिमाग पर छा गई थी, इसलिए वह उस की ससुराल जाने लगा. मोबाइल फोन पर भी दोनों की रसभरी बातें होने लगीं. जल्दी ही दोनों के बीच दूरियां कम हो गईं और उन के बीच नाजायज रिश्ता बन गया. मुकेश ने स्वाति के पति अर्पण से भी दोस्ती कर ली और उस के साथ शराब की पार्टी करने लगा. लेकिन एक रोज भांडा फूट गया, जब अर्पण ने दोनों को रंगेहाथ पकड़ लिया. अर्पण ने स्वाति को जम कर पीटा. तब स्वाति रूठ कर मायके बर्रा कानपुर आ गई. साथ में बेटे को भी ले आई. बाद में पति अर्पण से उस का तलाक हो गया.

स्वाति मायके में आ कर रहने लगी तो मुकेश का वहां भी आनाजाना शुरू हो गया. मुकेश जब भी बिजनैस के सिलसिले में आता, स्वाति के घर पर ही रुकता. रात में उस के साथ रंगरलियां मनाता. मुकेश ने बर्रा में ही उसे ब्यूटीपार्लर खुलवाया ताकि वह कुछ पैसा कमा सके, लेकिन स्वाति ब्यूटीपार्लर चला नहीं पाई. कुछ समय बाद स्वाति के कहने पर मुकेश ने बर्रा की विश्व बैंक कालोनी में एक मकान खरीद लिया. इस मकान में स्वाति मालकिन बन कर रहने लगी. यही नहीं मुकेश ने खाड़ेपुर में स्वाति को सर्राफा की दुकान भी खुलवा दी. इस दुकान पर मुकेश भी बैठता था. पूछने वालों को स्वाति मुकेश को अपना पति बताती थी. मुकेश अब कईकई दिनों तक बर्रा में ही रुकने लगा था.

स्वाति बहुत चालाक थी. उस की नजर मुकेश की धनदौलत पर टिकी थी. इसलिए वह मुकेश को रिझाने में कोई कसर नहीं छोड़ती थी. स्वाति मुकेश के प्यार में इतनी अंधी हो गई थी कि वह उस के साथ शादी रचा कर जिंदगी भर तक साथ रहने का सपना देखने लगी थी. अपना सपना पूरा करने के लिए स्वाति ने मुकेश के सामने शादी का प्रस्ताव रखा तो वह राजी हो गया. मुकेश यह तक भूल गया कि वह शादीशुदा और 4 बच्चों का बाप है. मुकेश के राजी होने के बाद स्वाति ने उस के साथ मंदिर में विवाह कर लिया. फिर वह हनीमून के लिए मुकेश के साथ गोवा चली गई. वहां से सप्ताह भर बाद मौजमस्ती करने के बाद दोनों लौटे.

एक रोज रेखा ने पति के मोबाइल फोन में स्वाति की फोटो देखी तो उस का माथा ठनका. उस ने गुप्तरूप से जानकारी जुटाई तो पता चला कि दोनों के बीच नाजायज रिश्ता है.

और अवैध संबंधों में स्वाहा हो गया परिवार

अपना घर उजड़ता देख कर रेखा ने विरोध शुरू किया, जिस से दोनों के बीच झगड़ा होने लगा. लेकिन विरोध के बावजूद मुकेश नहीं माना. धीरेधीरे दोनों के बीच नफरत बढ़ती गई.

वर्ष 2021 में मुकेश के छोटे भाई रघुवेश की बीमारी के चलते मौत हो गई. उस के बाद मुकेश ने गल्ला मंडी वाली दुकान 16 लाख रुपए में बेच दी. दुकान बेचने का रेखा ने भरपूर विरोध किया था, लेकिन मुकेश नहीं माना. दुकान बेचने से मिले 16 लाख रुपयों में से 3 लाख रुपया स्वाति ने लटकेझटके दिखा कर ले लिए तथा 10 लाख रुपए उस ने सीलमपुर दिल्ली निवासी फुफेरे भाई मनोज कुमार वर्मा को दे दिया. उस ने चांदी रिफाइनरी का काम शुरू किया था और आधा लाभ देने का वादा किया था. बाद में वह अपने प्रौमिस से मुकर गया.

अब तक मुकेश के बच्चे भी बड़े हो गए थे. बड़ी बेटी भव्या 18 साल की उम्र पार कर चुकी थी. उस ने स्थानीय ज्ञानस्थली स्कूल से इंटरमीडिएट की परीक्षा पास कर दिल्ली यूनिवर्सिटी के रानी लक्ष्मीबाई कालेज में बीकौम (प्रथम वर्ष) में प्रवेश ले लिया था. 17 वर्षीय काव्या 11वीं कक्षा में तथा 13 वर्षीय अभीष्ट 9वीं कक्षा में पढ़ रहा था. तीनों बच्चे होनहार थे. मन लगा कर पढ़ाई कर रहे थे.

रेखा की छोटी बहन राखी भोपाल निवासी आशीष वर्मा को ब्याही थी. रेखा जब परेशान होती थी, तब वह राखी से मोबाइल फोन पर बात करती थी और अपना दर्द बयां करती थी. उस ने राखी को बताया था कि उस के बहनोई के कानपुर की एक तलाकशुदा महिला से नाजायज संबंध है. उस के कारण घर में कलह होती है. दुकान बेचने की जानकारी भी उस ने राखी को दी थी.

ज्योंज्यों समय बीतता जा रहा था, त्योंत्यों मुकेश वर्मा की उलझन भी बढ़ती जा रही थी, जिस के कारण उस का व्यापार में भी मन नहीं लगता था. उस का दिन का चैन छिन गया था और रात की नींद हराम हो गई थी. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे, क्या न करे. इसी उलझन मेें उस ने 7 नवंबर को स्वाति के घर का रुख किया. मुकेश और स्वाति ने कान से कान जोड़ कर पूरा प्लान बना लिया. मुकेश ने पत्नी और बच्चों को मारने का प्लान बना लिया. यही नहीं, पुलिस से बचने के लिए मुकेश ने पूरी योजना भी बना ली.

फिर प्लान के तहत ही मुकेश ने 10 नवंबर की रात पत्नी व बच्चों की हत्या कर दी और स्वयं आत्महत्या करने का नाटक रचा. 21 नवंबर, 2024 को पुलिस ने आरोपी स्वाति सोनी को इटावा कोर्ट में पेश किया, जहां से उसे जिला जेल भेज दिया गया. मुकेश को पुलिस पहले ही जेल भेज चुकी थी.

-कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

 

Social Crime Stories : 20 लाख के लिए साले ने किया जीजा के भाई का कत्ल

Social Crime Stories : आगरा के संजय पैलेस स्थित आईसीआईसीआई बैंक के कैशियर के सामने जैसे ही एक करोड़ रुपए का चैक आया, उस ने नजरें उठा कर चैक रखने वाले को देखा तो एकदम से उस के मुंह से निकल गया, ‘‘नमस्कार इमरान भाई, कहो कैसे हो?’’

‘‘ठीक हूं भाईजान, आप कैसे हैं?’’ जवाब में इमरान ने कहा.

‘‘मैं भी ठीक हूं्.’’ कैशियर ने कहा.

‘‘भाईजान थोड़ा जल्दी कर देंगे, बड़े भाईजान का फोन आ चुका है. वह मेरा ही इंतजार कर रहे हैं.’’ इमरान ने कहा.

कैशियर अपनी सीट से उठा और मैनेजर के कक्ष में गया. थोड़ी देर बाद लौट कर उस ने कहा, ‘‘इमरानभाई, आज तो बैंक में इतनी रकम नहीं है. जो है वह ले लीजिए, बाकी का भुगतान कल कर दूं तो..?’’

‘‘कोई बात नहीं. आज कितना कर सकते हैं?’’ इमरान ने पूछा.

‘‘20-25 लाख होंगे. ऐसा है, आप को आज 20 लाख दे देता हूं. बाकी कल ले लीजिएगा.’’ कैशियर ने कहा तो इमरान ने एक करोड़ वाला चैक वापस ले कर 20 लाख का दूसरा चैक दे दिया. कैशियर ने उसे 20 लाख रुपए दिए तो उन्हें बैग में डाल कर वह बाहर खड़ी अपनी मारुति 800 से शहर से 15 किलोमीटर दूर कुबेरनगर स्थित अपने ताऊ के बेटे पूर्व विधायक जुल्फिकार अहमद भुट्टो के स्लाटर हाउस (कट्टीखाने) की ओर चल पड़ा.

यह शाम के सवा 4 बजे की बात थी. साढे़ 4 बजे के आसपास इमरान पैसे ले कर वाटर वर्क्स चौराहे पर पहुंचा था कि उस के बड़े भाई इरफान का फोन आ गया. फोन रिसीव कर के उस ने कहा, ‘‘भाईजान, बैंक से 20 लाख रुपए ही मिल सके हैं. मैं उन्हें ले कर 10-15 मिनट में पहुंच रहा हूं.’’

इमरान ने 10-15 मिनट में पहुंचने को कहा था. लेकिन एक घंटे से भी ज्यादा समय हो गया और वह स्लाटर हाउस नहीं पहुंचा तो उस के बड़े भाई इरफान को चिंता हुई. उस ने इमरान को फोन किया तो पता चला कि उस के दोनों फोन बंद हैं. इरफान परेशान हो उठा.  वह बारबार नंबर मिला कर इमरान से संपर्क करने की कोशिश करता रहा, लेकिन फोन बंद होने की वजह से संपर्क नहीं हो पाया. अब तक शाम के 7 बज गए थे. इरफान को हैरानी के साथसाथ चिंता भी होने लगी.

इमरान और इरफान आगरा छावनी से बसपा के विधायक रह चुके जुल्फिकार अहमद भुट्टो के चचेरे भाई थे. दोनों भाई आगरा शहर से यही कोई 15 किलोमीटर दूर कुबेरपुर स्थित जुल्फिकार अहमद भुट्टो के स्लाटर हाउस (कट्टीखाने) का कामकाज देखते थे. इरफान फैक्ट्री का एकाउंट संभालता था तो उस से छोटा इमरान फील्ड का काम देखता था. बैंक में रुपए जमा कराने, निकाल कर लाने आदि का काम वही करता था.

चूंकि उन के चचेरे भाई बसपा के विधायक रह चुके थे, इसलिए यह काम इमरान अकेला ही करता था. अपने साथ वह कोई हथियार भी नहीं रखता था. इस की वजह यह थी कि वह खुद तो साहसी था ही, फिर सिर पर बड़े भाई का हाथ भी था. लेकिन जब से उस के बड़े भाई इरफान का साला भोलू स्लाटर हाउस से जुड़ा था, वह इमरान के साथ रहने लगा था. बड़े भाई का साला होने की वजह से भोलू भरोसे का आदमी था. इसीलिए बैंक आनेजाने में इमरान उसे साथ रखने लगा था.

लेकिन 3 दिसंबर को भोलू ने फोन कर के कहा था कि वह जानवरों की खरीदारी के लिए शमसाबाद जा रहा है, इसलिए आज नहीं आ पाएगा. भोलू ने यह बात इमरान और इरफान दोनों भाइयों को बता दी थी, जिस से वे उस का इंतजार न करें. भोलू नहीं आया तो इमरान अकेला ही बैंक चला गया था. वह चला तो गया था, लेकिन लौट कर नहीं आया था.

7 बजे के आसपास पैसे ले कर इमरान के वापस न आने की बात इरफान ने बड़े भाई जुल्फिकार अहमद भुट्टो को बताई तो वह भी परेशान हो उठे. उन्हें पैसों की उतनी चिंता नहीं थी, जितनी भाई की थी. वह इमरान को बहुत पसंद करते थे. इसीलिए उन्होंने उसे अपने यहां रखा था. उन के यहां काम करते उसे लगभग ढाई साल हो गए थे. इस बीच उस ने एक पैसे की भी हेराफेरी नहीं की थी.

जुल्फिकार अहमद भुट्टो ने भी इमरान के दोनों नंबरों पर फोन किया. जब दोनों नंबर बंद मिले तो वह इरफान के अलावा फैक्ट्री के 20-25 लोगों को 6-7 गाडि़यों से ले कर वाटर वर्क्स चौराहे पर जा पहुंचे, क्योंकि इमरान ने वहीं से बड़े भाई इरफान को आखिरी फोन किया था. इधरउधर तलाश करने के बाद वहां के दुकानदारों से ही नहीं, बीट पर मौजूद सिपाहियों से भी पूछा गया कि यहां कोई हादसा तो नहीं हुआ था.

वाटर वर्क्स चौराहे पर इमरान के बारे में कुछ पता नहीं चला तो वाटर वर्क्स चौराहे से फैक्ट्री तक ही नहीं, पूरे शहर में उस की तलाश की गई. लेकिन उस के बारे में कहीं कुछ पता नहीं चला. सब हैरानपरेशान थे. लोगों की समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर इमरान कहां चला गया. ऐसे में जब कुछ लोगों ने आशंका व्यक्त की कि कहीं पैसे ले कर इमरान भाग तो नहीं गया, तब पूर्व विधायक जुल्फिकार अहमद ने चीख कर कहा था, ‘भूल कर भी ऐसी बात मत करना. वह मेरा भाई है, ऐसा हरगिज नहीं कर सकता.’

सुबह होते ही फिर इमरान की खोज शुरू हो गई थी. उस के इस तरह गायब होने से उस के घर में कोहराम मचा हुआ था. घर के किसी भी सदस्य के आंसू थम नहीं रहे थे. सब को इस बात की आशंका सता रही थी कि कहीं इमरान के साथ कोई अनहोनी तो नहीं घट गई. बैंक जा कर भी इमरान के बारे में पूछा गया. बैंक में लगे सीसीटीवी कैमरे की फुटेज भी देखी गई. पता चला, वह बैंक में अकेला ही आया था और अकेला ही गया था.

अब इमरान के घर वालों के पास इमरान की गुमशुदगी दर्ज कराने के अलावा दूसरा कोई चारा नहीं बचा था. जुल्फिकार अहमद भुट्टो पुलिस अधीक्षक (नगर) पवन कुमार से मिले और उन्हें सारी बात बताई. उन्होंने तुरंत थाना हरिपर्वत के थानाप्रभारी सुरेंद्र कुमार और क्षेत्राधिकारी समीर सौरभ को इस मामले को प्राथमिकता से देखने का आदेश दिया. थाना हरि पर्वत पुलिस ने इमरान की गुमशुदगी दर्ज कर इमरान के दोनों नंबर सर्विलांस सेल को दे कर उन की काल डिटेल्स और आखिरी लोकेशन बताने का आग्रह किया.

पुलिस अधीक्षक (नगर) पवन कुमार ने इस मामले की जानकारी वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक शलभ माथुर को भी दे दी थी. पुलिस इस मामले में तत्परता से लग गई. इमरान के मोबाइल जब बंद हुए थे, तब वे वाटर वर्क्स और रामबाग चौराहे के टावरों की सीमा में थे. काल डिटेल्स में ऐसा कोई भी नंबर नहीं था, जिस पर संदेह किया जाता. जो भी फोन आए थे या किए गए थे, वे अपनों को ही किए गए थे या आए थे. जैसे कि इरफान, पूर्व विधायक के घर के नंबरों व भोलू के नंबरों के थे. एक दिन पहले भी इरफान या भोलू के फोन आए थे या इन्हें ही किए गए थे. चूंकि पुलिस को इन फोनों में कुछ नया या संदेहास्पद नजर नहीं आया, इसलिए पुलिस अन्य बातों पर विचार करने लगी.

इस काल डिटेल्स और लोकेशन की एकएक कौपी वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक शलभ माथुर, पुलिस अधीक्षक पवन कुमार और क्षेत्राधिकारी समीर सौरभ को भी दी गई थी. इन अधिकारियों ने जब काल डिटेल्स और लोकेशन का अध्ययन किया तो उन्हें एक नंबर पर संदेह हुआ. पुलिस ने उस नंबर की लोकेशन निकलवाई तो यह संदेह और बढ़ गया. यह आदमी कोई और नहीं, इरफान का साला भोलू था, जो इमरान के साथ बैंक आता जाता था.

पुलिस ने भोलू को थाने बुलाया तो उस के साथ पूरा परिवार ही चला आया. सभी पुलिस से उस पर शक की वजह पूछने लगे तो क्षेत्राधिकारी समीर सौरभ ने कहा, ‘‘पुलिस शक के आधार पर ही अभियुक्तों तक पहुंचती है. हम किसी पर भी शक कर सकते हैं. वह सगा हो या पराया. आप लोग निश्चिंत रहें, हम किसी निर्दोष व्यक्ति को कतई नहीं फंसाएंगे.’’

क्षेत्राधिकारी के इस आश्वासन पर सभी को विश्वास हो गया कि भोलू को सिर्फ पूछताछ के लिए बुलाया गया है. क्योंकि वही उस के साथ बैंक आताजाता था. पुलिस भोलू से पूछताछ करती रही, जबकि वह स्वयं को निर्दोष बताते हुए पुलिस की इस काररवाई को अपने साथ अन्याय कहता रहा था. इस तरह 4 दिसंबर का दिन भी बीत गया. कोई जानकारी न मिलने से इमरान के घर वालों की चिंता बढ़ती ही जा रही थी. 5 दिसंबर की सुबह आगरा से यही कोई 20 किलोमीटर दूर यमुना एक्सप्रेसवे से सटे गांव चौगान के पंचमुखी महादेव मंदिर के पुजारी ने एक्सप्रेसवे से सटे एक गड्ढे में एक Social Crime Stories युवक की लाश देखी. चूंकि लाश खून से लथपथ थी, इसलिए उसे समझते देर नहीं लगी कि किसी ने इस अभागे को मार कर यहां फेंक दिया है.

पुजारी ने इस घटना की सूचना ग्रामप्रधान को दी तो उस ने इस बात की जानकारी थाना एत्मादपुर पुलिस को दे दी. थाना एत्मादपुर पुलिस तुरंत घटनास्थल पर पहुंची और लाश की शिनाख्त कराने की कोशिश की. लाश की शिनाख्त नहीं हो सकी तो उन्होंने इस बात की सूचना जिले के वरिष्ठ अधिकारियों को दे दी. साथ ही उन्होंने मृतक का हुलिया भी बता दिया था. थाना एत्मादपुर पुलिस ने मृतक का जो हुलिया बताया था, वह 3 दिसंबर की शाम से लापता इमरान से हुबहू मिल रहा था. इसलिए वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक शलभ माथुर पुलिस अधीक्षक (ग्रामीण-पश्चिम) बबीता साहू, क्षेत्राधिकारी अवनीश कुमार, समीर सौरभ के अलावा कई थानों का पुलिस बल एवं इमरान के घर वालों को साथ ले कर गांव चौगान पहुंच गए.

शव इमरान का ही था. हत्यारों ने उसे बड़ी बेरहमी से मारा था. उसे गोली तो मारी ही थी, उस का गला भी काट दिया था. पुलिस ने जहां लाश पड़ी थी, वहीं से थोड़ी दूरी पर पड़े चाकू और पिस्टल को भी बरामद कर लिया था. साफ था, इन्हीं से इमरान की हत्या की गई थी. हत्या करने वाले दोनों चीजें वहीं फेंक गए थे. घटनास्थल की काररवाई निपटा कर पुलिस ने लाश को पोस्टमार्टम के लिए आगरा मैडिकल कालेज भिजवा दिया. लाश बरामद होने से साफ हो गया कि इमरान की हत्या हो चुकी है. लाश के पास उस की कार और पैसे नहीं मिले थे, इस का मतलब यह हत्या उन्हीं पैसों के लिए की गई थी, जो वह बैंक से ले कर चला था. लाश बरामद होने के बाद पुलिस ने भोलू से सख्ती से पूछताछ शुरू की. इस की वजह यह थी कि पुलिस के पास उस के खिलाफ अब तक पुख्ता सुबूत मिल चुके थे.

पुलिस ने उस के मोबाइल फोन की 3 दिसंबर की लोकेशन निकलवाई तो चौगान की मिली थी. पुलिस ने इसी लोकेशन को आधार बना कर भोलू के साथ सख्ती की तो उसे इमरान की हत्या की बात स्वीकार करनी ही पड़ी. इस के बाद उस ने अपने उस साथी का भी नाम बता दिया, जिस के साथ मिल कर उस ने इस घटना को अंजाम दिया था. इमरान की हत्या का राज खुला तो इमरान के घर वाले ही नहीं, रिश्तेदार और दोस्त यार भी हैरान रह गए. हैरान होने वाली बात ही थी. इमरान की हत्या करने वाला भोलू इमरान के बड़े भाई का साला तो था ही, इमरान का पक्का दोस्त भी था. इस के बावजूद उस ने हत्या कर दी थी. आइए, अब यह जानते हैं कि आखिर भोलू ने ऐसा क्यों किया था?

हाजी सलीमुद्दीन और हाजी मोहम्मद आशिक, दोनों सगे भाई आगरा के ताजगंज के कटरा उमर खां में रहते हैं. हाजी मोहम्मद आशिक के बड़े बेटे मोहम्मद जुल्फिकार अहमद भुट्टो उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी के विधायक भी रह चुके हैं. मायावती प्रदेश की मुख्यमंत्री थीं तो भुट्टो की प्रदेश में खासी इज्जत थी. इस की वजह यह थी कि वह मायावती के खासमखास नसीमुद्दीन सिद्दीकी के खासमखास थे. भुट्टो के विधायक रहते हुए आगरा के कुबेरपुर स्थित उन के स्लाटर हाउस ने खासी तरक्की की. इस की खपत एकाएक बढ़ गई. काम बढ़ा तो वर्कर भी बढ़ गए. तभी उन्होंने अपने चाचा सलीमुद्दीन के बड़े बेटे इरफान को अपने स्लाटर हाउस का हिसाबकिताब देखने के लिए रख लिया. इरफान को यह काम पसंद आ गया तो 2 साल पहले उस ने अपने छोटे भाई इमरान को भी अपनी मदद के लिए स्लाटर हाउस में रख लिया.

20 वर्षीय इमरान मेहनती युवक था. स्लाटर हाउस में नौकरी करने से पहले वह ताजमहल में गाइड का काम करता था. वहां वह ठीकठाक कमाई कर रहा था, लेकिन जब भुट्टो ने उस से इरफान की मदद के लिए स्लाटर हाउस में काम करने को कहा तो उस ने गाइड का काम छोड़ दिया और भाई के स्लाटर हाउस का काम देखने लगा. 5 भाइयों में सब से छोटे Social Crime Stories इमरान ने स्लाटर हाउस में आते ही रुपयों के लेनदेन से ले कर बाहर के सारे काम संभाल लिए. इस तरह इमरान ने आते ही इरफान का बोझ आधा कर दिया.

इरफान की शादी हो चुकी थी. उस का विवाह आगरा शहर के ही वजीरपुरा के रहने वाले अहसान की बेटी सीमा के साथ हुआ था. उस के ससुर दरी के अच्छे कारीगर थे, इसलिए उन का दरियों का कारोबार था. उन के इंतकाल के बाद इस पुश्तैनी काम में ज्यादा मुनाफा नहीं दिखाई दिया तो उन के सब से छोटे बेटे भोलू ने जूतों के डिब्बे बनाने का काम शुरू कर दिया. जबकि उस के 3 अन्य भाई और चाचा दरी का पुश्तैनी कारोबार ही करते रहे. भोलू का जूतों के डिब्बे बनाने का काम बढि़या चल निकला. उसी की कमाई से जल्दी ही उस ने मारुति स्विफ्ट कार खरीद ली. भोलू अपनी बहन सीमा के यहां आताजाता ही रहता था. इसी आनेजाने में उस ने महसूस किया कि स्लाटर हाउस में जो लोग जानवर सप्लाई करते हैं, उन की अच्छीखासी कमाई होती है. उस के पास पैसे तो थे ही, उस ने अपने बहनोई इरफान से इस संबंध में बात की तो उस ने भुट्टो से बात कर के भोलू को जानवर खरीद कर लाने के लिए कह दिया.

इस के बाद भोलू आगरा के जानवरों के बाजारों, किरावली, शमसाबाद, बटेश्वर आदि से सस्ते दामों में जानवर खरीद कर बहनोई की मार्फत स्लाटर हाउस में बेचने लगा. इस काम में उसे अच्छीखासी कमाई होने लगी. जूतों के डिब्बों का उस का काम चल ही रहा था. इस तरह महीने में वह एक लाख रुपए से अधिक की कमाई करने लगा. किरावली बाजार में जानवरों की खरीदारी के दौरान भोलू की मुलाकात सलमान से हुई तो उसे यह आदमी भा गया. सलमान भी जानवरों की खरीदफरोख्त करता था. इस की वजह यह थी कि एक तो भोलू को कई काम देखने पड़ते थे, दूसरे सलमान इस काम में काफी तेज था. इसीलिए पहली मुलाकात में ही भोलू ने सलमान को बिजनैस पार्टनर बना लिया था. इस के बाद दोनों मिल कर जानवर खरीदने और बेचने लगे.

भोलू ने सलमान को बिजनैस पार्टनर तो बना लिया, लेकिन उस के बारे में उसे ज्यादा कुछ पता नहीं था. उस के बारे में उसे सिर्फ इतना पता था कि वह किरावली का रहने वाला है और उस का मोबाइल नंबर यह है. भोलू के साथ रहने में सलमान को फायदा दिखाई दिया, इसलिए वह उस के साथ रहने लगा. बड़े भाई का साला होने की वजह से इमरान की भोलू से खूब पटती थी. जिस दिन भोलू पशु मेले या बाजार नहीं गया होता था, सारा दिन इमरान उसे अपने साथ रखता था. उसी के सामने वह बैंक से पैसे भी निकालता था और जमा भी कराता था. 50 लाख से ले कर करोड़ रुपए निकालना उस के लिए आम बात थी.

भोलू ने कभी कोई ऐसी वैसी हरकत नहीं की थी, इसलिए इमरान उस पर पूरा विश्वास करने लगा था. भोलू का काम दोनों ओर से ठीकठाक चल रहा था. उस की कमाई महीने में लाख रुपए से ऊपर थी. लेकिन कमाई बढ़ी तो उस की पैसों की भूख भी बढ़ गई थी. अब वह करोड़पति बनने के सपने देखने लगा.

एक दिन शाम को वह सलमान के साथ बैठा था तो उस के मुंह से निकला, ‘‘यार सलमान, मेरे पास एक ऐसी योजना है, जिस के तहत हमें एक करोड़ रुपए आसानी से मिल सकते हैं.’’

‘‘कैसे?’’ सलमान ने पूछा.

इस के बाद भोलू ने उसे जो योजना बताई, सुन कर सलमान की रूह कांप उठी. लेकिन जब भोलू ने उसे पूरी योजना समझा कर मिलने वाली रकम का लालच दिया तो वह उस की योजना में शामिल हो गया.  3 दिसंबर को उन्होंने अपनी इस योजना को अंजाम देने की तैयारी भी कर ली. 2 दिसंबर यानी सोमवार को भोलू इमरान के साथ ही रहा. उस दिन बैंक का कोई काम नहीं था, इसलिए बैंक जाना नहीं हुआ. लेकिन उस दिन भोलू को पता चल गया कि अगले दिन इमरान को बैंक जाना है और लगभग एक करोड़े रुपए निकाल कर लाना है. शाम को घर जाते समय इमरान ने भोलू को वाटर वर्क्स चौराहे पर छोड़ दिया तो वहां से वह वजीरपुरा स्थित अपने घर चला गया.

इमरान की गाड़ी से उतरते ही भोलू ने सलमान को फोन कर के अगले दिन चाकू और पिस्तौल ले कर तैयार रहने के लिए कह दिया था. अगले दिन यानी 3 दिसंबर, 2013 दिन मंगलवार को योजनानुसार 10 बजे के आसपास भोलू ने अपने बहनोई इरफान को फोन कर के बताया कि आज वह सलमान के साथ जानवरों की खरीदारी करने शमसाबाद जा रहा है. इसलिए वह देर शाम तक ही स्लाटर हाउस आ पाएगा. तब इरफान ने उस से कहा था, ‘‘आज इमरान को बैंक से बड़ी रकम निकाल कर लाना है, हो सके तो तुम यह काम करा कर जाओ.’’

इस पर भोलू ने कहा, ‘‘दरअसल वहां कुछ व्यापारी सस्ते जानवर ले कर आने वाले हैं, अगर उन से सौदा पट गया तो काफी मोटा मुनाफा हो सकता है. इसलिए वहां जाना जरूरी है.’’

इस के बाद भोलू ने इमरान को भी फोन कर के कहा था, ‘‘इमरानभाई, मैं सलमान के साथ शमसाबाद जानवर खरीदने जा रहा हूं. इसलिए तुम अकेले ही बैंक चले जाना. क्योंकि मैं देर शाम तक ही वापस आ पाऊंगा.’’

योजनानुसार न तो भोलू शमसाबाद गया न सलमान. दोनों साए की तरह इमरान के पीछे इस तह लगे रहे कि वह उन्हें देख न पाए. इस बीच इमरान को फोन कर के वह पूछता रहा कि वह क्या कर रहा है? लेकिन उस ने यह नहीं पूछा था कि आज वह कितने रुपए निकाल रहा है?

इमरान जैसे ही रुपए ले कर बैंक से निकला, भोलू और सलमान टूसीटर से उस से पहले वाटर वर्क्स चौराहे पर पहुंच गए और वहीं खड़े हो कर इमरान पर नजर रखने लगे. जब उन्हें लगा कि इमरान वाटर वर्क्स चौराहे पर पहुंच गया होगा तो भोलू ने उसे फोन किया, ‘‘इमरानभाई, मैं शमसाबाद से लौट आया हूं और वाटर वर्क्स चौराहे पर खड़ा हूं. इस समय तुम कहां हो?’’

‘‘मैं यहीं वाटर वर्क्स चौराहे पर जाम में फंसा हूं. जहां से जवाहर पुल शुरू होता है, तुम वहीं पहुंचो. मैं वहीं से तुम्हें ले लूंगा.’’

भोलू सलमान के साथ जवाहर पुल के पास जा कर खड़ा हो गया. 5-7 मिनट बाद इमरान वहां पहुंचा तो भोलू इमरान की बगल वाली सीट पर बैठ गया तो सलमान पीछे वाली सीट पर. गाड़ी आगे बढ़ गई. इमरान को बातों में उलझा कर भोलू ने डैशबोर्ड पर रखे उस के दोनों मोबाइल फोन के स्विच औफ कर दिए. कार जैसे ही कुबेरपुर के पास पहुंची, भोलू ने कहा, ‘‘इमरानभाई, मेरे 2 दोस्त चौगान गांव के पास एक्सप्रेसवे के नीचे मेरा इंतजार कर रहे हैं. अगर तुम मुझे वहां तक छोड़ देते तो अच्छा रहता.’’

इमरान ने नानुकुर की, लेकिन चौगान गांव वहां से कोई बहुत ज्यादा दूर नहीं था. फिर भोलू पर उसे पूरा विश्वास था, इसलिए साथ में इतने रुपए होने के बावजूद इमरान ने कार चौगान गांव की ओर मोड़ दी. चौगान से कोई आधा किलोमीटर पहले ही सुनसान जंगली रास्ते पर लघुशंका के बहाने भोलू ने इमरान से कार रुकवा ली. भोलू नीचे उतरा और इधरउधर देख कर अंदर बैठे सलमान को इशारा किया. जैसे ही सलमान नीचे उतरा, भोलू ने तमंचा निकाल कर ड्राइविंग सीट पर बैठे इमरान के सीने पर गोली मार दी. उस ने दूसरी गोली मारनी चाही, लेकिन तमंचा धोखा दे गया. गोली लगते ही इमरान के मुंह से हलकी सी चीख निकली और वह छटपटाने लगा. भोलू ने सलमान से छुरा ले कर इमरान पर कई वार करने के साथ गला भी काट दिया कि कहीं यह बच न जाए. चाकू चलाने के दौरान भोलू के दोनों हाथ जख्मी हो गए, जिस में उस ने रूमाल बांध ली.

इस के बाद इमरान की लाश घसीट कर दोनों ने हाईवे से सटे एक गड्ढे में फेंक दी. वहीं पास ही उन्होंने चाकू और तमंचा भी फेंक दिया. इस के बाद कार ले कर भाग निकले. रास्ते में एक हैंडपंप पर कार रोक कर थोड़ीबहुत धुलाई की. वहां से थोड़ा आगे आ कर एक्सप्रेसवे पर उन्होंने रकम गिनी तो पता चला कि ये तो सिर्फ 20 लाख रुपए ही हैं. जबकि उन्हें एक करोड़ रुपए होने की उम्मीद थी. दोनों ने ही अपना अपना सिर पीट लिया. बहरहाल अब तो जो होना था, वह हो गया था. दोनों ने आधीआधी रकम ले ली. भोलू ने  सलमान को कार ठिकाने लगाने के लिए दे कर एक जगह रकम छिपाई और खुद स्लाटर हाउस पहुंच गया.

स्लाटर हाउस में इमरान के न आने की वजह से इरफान परेशान था. बहनोई से हालचाल पूछ कर वह इमरान की तलाश करने के बहाने बाहर आ गया. इरफान ने उस के हाथों पर रूमाल बंधी देखी तो उस के बारे में पूछा था. तब उस ने बहाना बना दिया था. स्लाटर हाउस से निकल कर भोलू ने छिपा कर रखे रुपए अपने एक परिचित के पास रखे और वापस जा कर इरफान के साथ इमरान की तलाश करने लगा.

दूसरी ओर इमरान की कार ले कर गया सलमान वहां से 5 किलोमीटर दूर एक ढाबे पर पहुंचा और एक दुर्घटनाग्रस्त ट्रेलर के पीछे कार खड़ी कर के ढाबे के एक कर्मचारी को 5 सौ रुपए का नोट दे कर कहा कि वह दिल्ली जा रहा है, इसलिए एक दिन के लिए अपनी इस कार को यहीं खड़ी कर रहा है. ढाबे के उस कर्मचारी को क्या ऐतराज होता, उस ने कह दिया कि खड़ी कर दो. सलमान ने वहीं अपने फोन का स्विच औफ किया और रुपए ले कर फरार हो गया.

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पुलिस ने मोबाइल फोन की लोकेशन के आधार पर इमरान की हत्या में भोलू को गिरफ्तार किया था. इस की वजह यह थी कि उस ने सब से कहा था कि वह शमसाबाद जा रहा है, जबकि उस के मोबाइल फोन की लोकेशन आईसीआईसीआई बैंक से ले कर जहां से इमरान की लाश बरामद हुई थी, वहां तक मिली थी. मामले का खुलासा होने के बाद पुलिस ने इमरान की कार तो उस ढाबे से बरामद कर ली थी, लेकिन सलमान का मोबाइल बंद होने की वजह से उसे नहीं पकड़ पाई. पूछताछ के बाद पुलिस ने भोलू को अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया था.

सलमान की तलाश में आगरा के कई थानों की पुलिस तो लगी ही है, मृतक इमरान के घर वाले भी उस की खोज में लगे हैं. उन्हें 10 लाख रुपयों से ज्यादा इमरान के हत्यारे को जेल की सलाखों के पीछे पहुंचाने की चिंता है.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

चुनाव लड़वाने के लिए ली दोस्त की बीवी उधार, चेयरमैन बनते ही मुकर गयी

Family Story in Hindi : नसीम अंसारी की 2 पत्नियां थीं, लेकिन आर्थिक तंगी और शराब की लत के चलते वह परेशान रहता था. भोजपुर के चेयरमैन शफी अहमद ने चुनाव लड़ाने के लिए जब उस से उस की दूसरी पत्नी रहमत जहां मांगी तो वह इनकार नहीं कर सका. जब रहमत जहां चुनाव जीत कर चेयरमैन बन गई तो उस ने नसीम को पहचानने से भी इनकार कर दिया. ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि …

5 अगस्त, 2018 को एक डेली न्यूजपेपर में एक खबर प्रमुखता से छपी, जिस की हैडलाइन ऐसी थी जिस पर जिस की भी नजर गई, उस ने जरूर पढ़ी. न्यूज कुछ इस तरह से थी— ‘भरोसे पर दोस्त ने दोस्त को पत्नी उधार दी थी, चेयरमैन बन गई तो वापस नहीं किया.’

इस न्यूज में उधार में दी गई बीवी वाली बात पढ़ने वाला हर आदमी हैरत में था. इस हैडलाइन की न्यूज में यह भी शामिल था कि महिला के पति की ओर से बीवी को Family Story in Hindi वापस दिलाने के लिए अदालत में अर्जी लगाई गई है. इस न्यूज के हिसाब से एक शादीशुदा व्यक्ति को अपनी बीवी को नेता बनाने का ऐसा खुमार चढ़ा कि उस ने पत्नी को सियासी गलियारों में उतारने के लिए यह सोच कर बीवी अपने दोस्त को उधार दे दी कि वह उसे चुनाव लड़ाएगा. यह संयोग ही था कि उस की बीवी चुनाव जीतने के बाद चेयरमैन बन गई. लेकिन चेयरमैन बनने के बाद पत्नी ने पति को भुला दिया. शर्त के मुताबिक चुनाव जीतने के बाद महिला के पति ने दोस्त से बीवी लौटाने को कहा तो दोनों की दोस्ती दुश्मनी में बदल गई. यहां तक कि दोस्त ने महिला के पति को पहचानने तक से इनकार कर दिया. इस पर मामला गरमा गया. नतीजा यह हुआ कि जो बात अभी तक 3 लोगों के बीच थी, वह सार्वजनिक हो गई.

उत्तराखंड के ऊधमसिंह नगर के थाना कुंडा, जसपुर के थाना क्षेत्र में एक गांव है बावरखेड़ा. नसीम अंसारी का परिवार इसी गांव में रहता है. नसीम के अनुसार, मुरादाबाद जिले के भोजपुर निवासी पूर्व नगर अध्यक्ष शफी अहमद के साथ उस की काफी समय से अच्छी दोस्ती थी. उसी दोस्ती के नाते शफी अहमद का उस के घर आनाजाना था. कुछ महीने पहले शफी ने उसे विश्वास में ले कर उस की पत्नी रहमत जहां को भोजपुर से चेयरमैन का चनुव लड़ाने की बात कही. शफी अहमद ने नसीम को बताया कि इस बार चेयरमैन की सीट ओबीसी के लिए आरक्षित है.

जबकि वह सामान्य जाति के अंतर्गत आने के कारण अपनी बीवी को चुनाव नहीं लड़ा सकता. नसीम अपने दोस्त के झांसे में आ गया और उस ने दोस्त की मजबूरी समझते हुए चुनाव लड़ाने के लिए अपनी बीवी उस के हवाले कर दी. लेकिन दूसरे की बीवी को चुनाव लड़ाना इतना आसान काम नहीं था. यह बात नसीम ही नहीं, नसीम की बीवी रहमत जहां भी जानती थी. इस के लिए सब से पहले रहमत जहां का कानूनन शफी अहमद की बीवी बनना जरूरी था. शफी की बीवी का दरजा मिलने के बाद ही वह चुनाव लड़ने की हकदार होती.

चुनाव के लिए इशरत बनी शमी की पत्नी चुनाव लड़ने में आ रही अड़चन को दूर करने के लिए दोनों दोस्तों और रहमत जहां ने साथ बैठ कर गुप्त रूप से समझौता किया. उसी समझौते के तहत शफी अहमद ने रहमत जहां से कोर्टमैरिज कर ली. कोर्टमैरिज के बाद शफी अहमद ने अपने पद और रसूख के बल पर जल्दी ही सरकारी कागजातों में रहमत जहां को अपनी बीवी दर्शा कर उस का आईडी कार्ड और आधार कार्ड बनवा दिया. रहमत जहां का आधार कार्ड बनते ही उस ने चुनाव की अगली प्रक्रिया शुरू कर दी. इस से पहले सन 2012 से 2017 तक भोजपुर के चेयरमैन की कुरसी पर शफी अहमद का ही कब्जा रहा था. शफी को पूरा विश्वास था कि इस बार भी जनता उन्हीं का साथ देगी. लेकिन इस बार आरक्षण के कारण शफी को सपा से टिकट नहीं मिल पाया. वजह यह थी कि इस बार भोजपुर चेयरमैन की सीट पिछड़े वर्ग की महिला के लिए आरक्षित कर दी गई थी.

शफी अहमद सामान्य वर्ग में आते थे. इस समस्या से निपटने के लिए शफी अहमद ने रहमत जहां से कोर्टमैरिज कर के उसे कानूनन अपनी बीवी बना कर निर्दलीय चुनाव लड़वाया. शफी के पुराने रिकौर्ड और रसूख की वजह से रहमत जहां चुनाव जीत गई. उस ने अपनी प्रतिद्वंदी परवेज जहां को 117 वोटों से हरा कर जीत हासिल की थी. रहमत जहां को चेयरमैन बने हुए अभी 8 महीने ही हुए थे कि नसीम अंसारी ने अपनी बीवी रहमत जहां को वापस ले जाने के लिए शफी अहमद से बात की तो बात बढ़ गई. शफी ने इस मामले से अपना पल्ला झाड़ते हुए नसीम से कहा कि वह स्वयं ही रहमत जहां से बात करे.

नसीम ने जब इस बारे में रहमत जहां से बात की तो उस ने साफ कह दिया कि तुम से मेरा कोई लेनादेना नहीं है. मैं ने शफी अहमद से कोर्टमैरिज की है. वही मेरे कानूनन पति हैं. मैं तुम्हें नहीं जानती. रहमत जहां की बात सुन कर नसीम स्तब्ध रह गया. उस ने बच्चों का वास्ता दे कर रहमत से ऐसा न करने को कहा, लेकिन उस ने उस के साथ जाने से साफ इनकार कर दिया. नसीम ने वापस मांगी बीवी इस पर नसीम ने फिर से शफी अहमद से बात की और अपनी बीवी वापस मांगी, लेकिन उस ने रहमत जहां को देने से साफ मना कर दिया. शफी अहमद का कहना था कि उस ने रहमत के साथ निकाह किया है और वह कानूनन उस की बीवी है. उसे जो करना है करे, वह रहमत को वापस नहीं देगा.

उस के बाद नसीम के पास एक ही रास्ता था कि वह अदालत की शरण में जाए. उस ने जसपुर के अधिवक्ता मनुज चौधरी के माध्यम से जसपुर के न्यायिक मजिस्ट्रैट की अदालत में धारा 156(3) के तहत प्रार्थनापत्र दिया, जिस में कहा गया कि शफी अहमद ने उस की बीवी से जबरन निकाह कर लिया. नसीम अंसारी ने अदालत में जो प्रार्थनापत्र दिया, उस में कहा कि वर्ष 2006 में उस का निकाह सरबरखेड़ा निवासी दादू की बेटी रहमत जहां के साथ हुआ था, जिस से उस का एक बेटा और एक बेटी हैं. 17 नवंबर, 2017 की रात 10 बजे शफी अहमद, नईम चौधरी, मतलूब, जिले हसन निवासी भोजपुर, उस के घर आए. उन लोग ने मेरी कनपटी पर तमंचा रखा और मेरी पत्नी को कार में डाल कर ले गए. बाद में शफी अहमद ने उस की बीवी के साथ जबरन निकाह कर लिया. उस के कुछ समय बाद कुछ लोग कार से फिर उस के घर आए और उस के दोनों बच्चों को उठा ले गए.

13 अगस्त, 2018 को इस मामले में अदालत ने पीडि़त नसीम अंसारी के अधिवक्ता मनुज चौधरी की दलील सुनने के बाद थाना कुंडा की पुलिस को रिपोर्ट दर्ज करने के आदेश दिए. नसीम Family Story in Hindi अंसारी ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि रहमत जहां ने उसे बिना तलाक दिए ही उस के साथ निकाह किया है, जो शरीयत के हिसाब से गलत है. बदल गई रहमत जहां दूसरी ओर रहमत जहां का कहना था कि उस ने नसीम की रजामंदी से ही शफी के साथ निकाह किया था. आर्थिक तंगी के चलते नसीम ने शफी अहमद से इस के बदले हर माह घर खर्च के लिए 12 हजार रुपए देने का समझौता किया था, जो शफी अहमद उसे हर माह दे रहे हैं. इस में उस का कोई कसूर नहीं. इस वक्त वह कानूनन शफी की पत्नी है और रहेगी. उस के दोनों बच्चे भी उसी के साथ रह रहे हैं, जिन्हें शफी के साथ रहने में कोई ऐतराज नहीं.

बहरहाल, नसीम अहमद की ओर से यह मामला थाना कुंडा में दर्ज हो गया. कुंडा थाने के थानाप्रभारी सुधीर ने सच्चाई सामने लाने के लिए जांच शुरू कर दी. इस मामले पर शुरू से प्रकाश डालें तो कहानी कुछ और ही कहती है. उत्तराखंड के ऊधमसिंह नगर का गांव सरबरखेड़ा थाना कुंडा क्षेत्र में आता है. सरबरखेड़ा मुसलिम बाहुल्य आबादी वाला गांव है. अब से कुछ साल पहले यह गांव बहुत पिछड़ा हुआ था. गांव में गिनेचुने लोगों को छोड़ कर अधिकांश लोग मजदूरी करते थे. लेकिन गांव के पास में नवीन अनाज मंडी बनते ही गांव के लोगों के दिन बहुरने लगे.

अनाज मंडी बनने के बाद मजदूर किस्म के लोगों को घर बैठे ही मजदूरी मिलने लगी तो यहां के लोगों के रहनसहन में काफी बदलाव आ गया. बाद में गांव के पास हाईवे बनते ही जमीनों की कीमतें कई गुना बढ़ गईं. यहां के कम जमीन वाले काश्तकारों ने अपनी जमीन बेच कर अपनेअपने कारोबार बढ़ा लिए. इसी गांव में दादू का परिवार रहता था. दादू के पास जुतासे की नाममात्र की जमीन थी जबकि परिवार बड़ा था, जिस में 5 लड़के थे और 2 लड़कियां. जमीन से दादू को इतनी आमदनी नहीं होती थी कि अपने परिवार की रोजीरोटी चला सके. इस समस्या से निपटने के लिए दादू ने अनाज मंडी में अनाज खरीदने बेचने का काम श्ुरू कर दिया.

दादू गांवगांव जा कर धान, गेहूं खरीदता और उसे एकत्र कर के अनाज मंडी में ला कर बेच देता था. इस से उस के परिवार का पालनपोषण ठीक से होने लगा. दादू का काम मेहनत वाला था. इस काम से आमदनी बढ़ी तो उस के खर्च भी बढ़ते गए. पैसा आया तो दादू को शराब पीने की लत गई. धीरेधीरे वह शराब का आदी हो गया, जिस की वजह से वह फिर आर्थिक तंगी में आ गया. जब घर के खर्च के लिए लाले पड़ने लगे तो वह जुआ खेलने लगा. दरअसल, उस की सोच थी कि वह जुए में इतनी रकम जीत लेगा कि घर के हलात सुधर जाएंगे. लेकिन हुआ उलटा. वह मेहनत से जो कमाता जुए की भेंट चढ़ जाता.

उसी दौरान उस की मुलाकात नसीम से हुई. नसीम में जुआ खेलने की लत तो नहीं थी, लेकिन शराब पीने का वह भी आदी था. नसीम सरबरखेड़ा गांव से करीब 3 किलोमीटर दूर गांव बाबरखेड़ा का रहने वाला था. नसीम अपने 3 भाइयों में दूसरे नंबर का था. तीनों भाइयों पर जुतासे की थोड़ीथोड़ी जमीनें थीं. तीनों ही अलगअलग रहते थे. कई साल पहले नसीम का निकाह थाना ठाकुरद्वारा, जिला मुरादाबाद में आने वाले गांव राजपुरा नंगला टाह निवासी सुगरा के साथ हुआ था. समय के साथ सुगरा 6 बच्चों की मां बनी, जिन में 2 लड़के और 4 लड़कियां थीं. थोड़ी सी जुतासे की जमीन से नसीम के बड़े परिवार का खर्च मुश्किल से चलता था. इस के बावजूद नसीम को शराब पीने की गंदी आदत पड़ गई थी. वह शराब पीने के चक्कर में इधरउधर चक्कर लगाता रहता था.

उसी दौरान उस की मुलाकात दादू से हो गई. शराब पीनेपिलाने के चलते दोनों एकदूसरे के संपर्क में आए. जल्दी ही दोनों की दोस्ती हो गई. दोस्ती के चलते दोनों एकदूसरे के घर भी आनेजाने लगे. उस वक्त तक दादू की बेटी रहमत जहां जवानी के दौर से गुजर रही थी. रहमत जहां देखनेभालने में बहुत सुंदर थी. नसीम ने चलाया चक्कर हालांकि नसीम का दादू के साथ दोस्ती का रिश्ता था, लेकिन जब नसीम ने रहमत जहां को देखा तो उस की नीयत में खोट आ गया. वह उसे गंदी नजरों से देखने लगा. रहमत जहां भी नसीम की निगाहों को परखने लगी थी. रहमत जहां को यह मालूम नहीं था कि नसीम शादीशुदा है. लेकिन जब वह उस की नजरों में प्रेमी बन कर उभरा तो उस ने अपने दिल में उस के लिए गहरी जगह बना ली. प्रेम का चक्कर शुरू हुआ तो दोनों घर से बाहर भी मिलने लगे.

दादू की बेटी क्या खिचड़ी पका रही है, उस के घर वालों को इस बात की जरा भी जानकारी नहीं थी. उन्हीं दिनों दादू का बड़ा लड़का बीमार पड़ गया. बीमारी की वजह से उसे कई दिन तक अस्पताल में भरती रहना पड़ा. उस के इलाज के लिए काफी रुपयों की जरूरत थी जबकि उस वक्त दादू आर्थिक तंगी से गुजर रहा था. कुछ दिन पहले ही नसीम ने अपनी जुतासे की थोड़ी सी जमीन बेची थी. उस के पास जमीन का कुछ पैसा बचा हुआ था. यह बात दादू को भी पता थी. दादू ने अपनी मजबूरी नसीम के सामने रखते हुए मदद करने को कहा तो नसीम ने उस के लड़के के इलाज के लिए कुछ रुपए उधार दे दिए. उन्हीं रुपयों से दादू ने अपने बेटे का इलाज कराया. उस का बेटा ठीक हो गया.

इस के कुछ दिन बाद नसीम ने दादू से अपने पैसे मांगे तो उस ने मजबूरी बताते हुए फिलवक्त पैसे न देने की बात कही. नसीम दादू की मजबूरी सुन कर शांत हो गया. नसीम के सामने दादू से बड़ी मजबूरी आ गई थी. लेकिन दादू की बेटी रहमत जहां को चाहने की वजह से वह दादू से कुछ कह भी नहीं सकता था. यह बात दादू भी समझता था कि नसीम उस की बेटी के पीछे हाथ धो कर पड़ा है लेकिन वह नसीम के अहसानों तले दबा हुआ था, इसलिए उस के सामने मुंह खोल कर कुछ भी नहीं कह सकता था. अपनी मजबूरी के आगे दादू ने नसीम और अपनी बेटी रहमत जहां को अनदेखा कर दिया. दादू की हालत देख कर नसीम भी समझ गया था कि उस के पैसे किसी भी कीमत पर नहीं मिलने वाले.

वह बीच मंझधार में खड़ा था. एक तरफ उस का पैसा था, जो दादू के बेटे की बीमारी पर खर्च हो चुका था. जबकि दूसरी ओर उस की मोहब्बत रहमत जहां थी, जिसे वह दिलोजान से चाहने लगा था. रहमत जहां भी नसीम को दिल से चाहती थी. उसे नसीम के साथ कभी भी कहीं भी जाने से ऐतराज नहीं था. उस वक्त दादू आर्थिक तंगी से गुजर रहा था. उस के पास नवीन अनाज मंडी के सामने हाईवे के किनारे जुतासे की कुछ जमीन थी, जो आर्थिक तंगी के चलते उस ने पहले ही बेच दी. अब उस के पास केवल जुआ खेलने और शराब पीने के अलावा कोई काम नहीं था. ऐसी स्थिति में नसीम ने दादू से अपने पैसों के बदले उस की बेटी का हाथ मांगा तो वह राजी हो गया. रहमत जहां हो गई नसीम की

दादू जानता था कि नसीम और उस की बेटी एकदूसरे को चाहते हैं. अगर उस ने बेटी की शादी उस की रजामंदी के खिलाफ की तो उस का अंजाम ठीक नहीं होगा. यही सोचते हुए उस ने नसीम से अपनी बेटी रहमत जहां का निकाह कर दिया. रहमत जहां से निकाह के बाद नसीम उसे अपनी दूसरी बीवी बना कर अपने घर ले आया. इस में रहमत जहां ने ऐतराज नहीं किया. वह उस के घर में दूसरी बीवी की तरह रहने लगी. नसीम अहमद भी काफी दिनों से शराब का आदी था. शराब और शबाब के चक्कर में उस ने अपनी जुतासे की सारी जमीन दांव पर लगा दी थी. रहमत जहां के प्यार में पड़ कर उस ने उस से निकाह तो कर लिया था, लेकिन जब 2 बीवियां होने से खर्च बढ़ा तो उस का दिमाग घूमने लगा. वह बहुत परेशान रहने लगा.

शफी उर्फ बाबू का पहले से ही बाबरखेड़ा आनाजाना था. वजह यह कि शफी अहमद की एक बुआ का निकाह बाबरखेड़ा में हुआ था. वह अपनी बुआ के घर आताजाता था. शफी अहमद की बुआ का एक लड़का था याकूब, जो नसीम का अच्छा दोस्त था. याकूब के घर पर ही शफी अहमद की जानपहचान नसीम से हुई. नसीम शफी अहमद के बारे में सब कुछ जान चुका था. जब उसे यह पता चला कि शफी भोजपुर कस्बे का नगर पंचायत चेयरमैन है तो वह खुश हुआ. वैसे भी शफी उस के दोस्त याकूब का ममेरा भाई था. गांव में अपना रुतबा बढ़ाने के लिए नसीम कई बार उसे अपने घर भी ले गया था. घर आनेजाने के चक्कर में शफी की नजर नसीम की बीवी रहमत जहां पर पड़ी तो वह उस की खूबसूरती पर फिदा हो बैठा.

हालांकि उस वक्त चेयरमैन शफी के घर में पहले से ही एक से बढ़ कर एक 2 खूबसूरत बीवियां थीं. लेकिन रहमत जहां पर उन की नजर पड़ी तो वह अपने पर काबू नहीं रख सके. इसी चक्कर में उन का नसीम के घर आनाजाना और भी बढ़ गया. कुछ ही दिनों में शफी अहमद के स्वार्थ की नींव पर नसीम से पक्की दोस्ती हो गई. जब कभी शफी अहमद अपने यहां पर कोई प्रोग्राम कराते तो नसीम और उस की बीवी को बुलाना नहीं भूलते थे. इसी आनेजाने के दौरान शफी अहमद और रहमत जहां के बीच प्यार का रिश्ता बन गया. मोबाइल ने जल्दी ही शफी अहमद और रहमत जहां के बीच की दूरी खत्म कर दी. रहमत जहां शफी अहमद के बारे में सब कुछ जान चुकी थी. चेयरमैन के घर में पहले से ही 2 बीवियां मौजूद हैं, यह बात रहमत जहां जानती थी, लेकिन शफी अहमद की ओर से इशारा मिलने पर उस का दिल भी मजबूर हो गया.

शफी अहमद के पास धनदौलत, ऐशोआराम, इज्जत सभी कुछ था. रहमत जहां ने कई बार शफी अहमद से निकाह करने को कहा. लेकिन समाज में अपनी साख खत्म होने की बात कह कर शफी ने मना कर दिया था. इस के बावजूद रहमत जहां अपने दिल को समझा नहीं पा रही थी. नसीम के 2 बच्चों की मां बनने के बावजूद रहमत जहां शफी के प्यार में पड़ गई थी. रहमत को शफी अहमद में दिखा भविष्य इत्तफाक से उसी समय भोजपुर नगर पंचायत का चुनाव आ गया. अब तक नगर पंचायत अध्यक्ष की सीट शफी अहमद के पास थी, लेकिन चुनाव करीब आने पर पता चला कि इस बार सीट ओबीसी के लिए आरक्षित है. शफी अहमद चूंकि सामान्य जाति में आते थे, इसलिए चेयरमैन की सीट उन के हाथ से निकलने का डर था.

शफी अहमद जानते थे कि नसीम की जाति ओबीसी के तहत आती है. बीवी होने के नाते रहमत जहां भी उसी जाति में आती थी. यह बात मन में आते ही शफी अहमद ने तिकड़मबाजी लगानी शुरू की. उन्हें पता था कि अगर नसीम से इस बारे में बात की जाए तो वह उन की बात नहीं टालेगा. हालांकि बात बहुत असंभव सी थी, फिर भी शफी अहमद ने बाबरखेड़ा जा कर नसीम और उस की बीवी रहमत जहां के सामने अपनी परेशानी रखते हुए इस बारे में बात की. पर नसीम ने इस मामले में उन का साथ देने से साफ इनकार कर दिया. नसीम अंसारी जानता था कि रहमत जहां को चुनाव लड़ने के लिए शफी की बीवी बन कर भोजपुर में रहना होगा.

भला वह अपनी बीवी को शफी के पास कैसे छोड़ सकता था. नसीम के दो टूक फैसले के बाद शफी अहमद के सपनों पर पानी फिर गया. फिर भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी. उन की रहमत जहां से मोबाइल पर बात होती रहती थी. शफी ने इस मामले में सीधे रहमत जहां से बात की तो उस के मन में लड्डू फूटने लगे. वह पहले से ही शफी के प्यार में पागल थी. यह बात सुन कर तो उस के दिल में खुशियों के फूल महकने लगे. वह जानती थी कि अगर वह भोजपुर की चेयरमैन बन गई तो उस की किस्मत सुधर जाएगी. शफी अहमद के दिल की बात जान कर उस ने नसीम को प्यार से समझाने की कोशिश की, लेकिन वह नहीं चाहता था कि उस की बीवी किसी और की बन कर रहे. नसीम को यह भी मालूम था कि ऐसे काम इतनी आसानी से नहीं होते. इस के लिए कानूनी काररवाई पूरी करना जरूरी है. फिर भी उस ने अपनी आर्थिक तंगी के चलते शफी अहमद से समझौता कर के अपनी बीवी चुनाव लड़ने के लिए उन्हें दे दी.

नसीम अंसारी के अनुसार आपसी समझौते के तहत शफी अहमद ने कहा था कि चुनाव जीतने के बाद वह उस की बीवी उसे वापस कर देगा. उस के बाद जो भी हुआ करेगा, रहमत जहां भोजपुर जा कर काम निपटा लिया करेगी. यह बात नसीम को भी अच्छी लगी. समझौते के बाद नसीम ने अपनी बीवी रहमत जहां को चुनाव लड़ने की अनुमति दे दी. शफी अहमद ने रहमत जहां को अपनी बीवी दर्शाने के लिए उस के साथ कोर्टमैरिज कर ली. कोर्टमैरिज के बाद रहमत जहां कानूनन शफी अहमद की बीवी बन गई. रहमत जहां को बीवी का दरजा मिलते ही शफी अहमद ने चुनाव की तैयारियां शुरू कर दीं. सन 2017 में जब नामांकन किया जा रहा था, शफी अहमद अपनी नई पत्नी रहमत जहां को पिछड़ी जाति की महिला के रूप में सामने ले आए. यह देख विरोधी उम्मीदवार हैरान रह गए. लेकिन लोगों को विश्वास नहीं हो रहा था कि वह उन की बीवी है.

रहमत जहां बन गई चेयरमैन शफी अहमद रहमत जहां को अपनी बीवी बता कर नामांकन कराने कलेक्टरेट पहुंचे तो विपक्षियों में खलबली मच गई. लेकिन शफी ने रहमत जहां के पिछड़ी जाति के प्रमाणपत्र प्रस्तुत कर के विपक्षियों की नींद उड़ा दी. निकाह के बावजूद लोगों को भरोसा नहीं था कि पिछड़ी की रहमत जहां जीत पाएगी. फिर भी शफी Family Story in Hindi अहमद ने हार नहीं मानी. किसी पार्टी से टिकट नहीं मिला तो उन्होंने रहमत जहां को निर्दलीय चुनाव लड़ाने का फैसला किया. इस सीट पर वह पिछले 5 सालों से काबिज थे. उन्हें पूरा यकीन था कि  जनता उन का साथ देगी. शफी अहमद ने फिर से चेयरमैन की कुरसी पर कब्जा जमाने के लिए दिनरात मेहनत की. फलस्वरूप वह रहमत जहां के नाम पर चुनाव जीत गए. सन 2017 के लिए नगर पंचायत भोजपुर की चेयरमैन का सेहरा रहमत जहां के सिर पर बंध गया.

अभी इस चुनाव को जीते हुए 8 महीने भी नहीं हो पाए थे कि नसीम अहमद ने अपनी बीवी रहमत जहां को पाने के लिए कोर्ट में दावेदारी ठोक दी. इस से पहले नसीम अंसारी  ने अपनी बीवी वापस करने के लिए शफी अहमद से दोस्ती के नाते प्यार से बात की थी, लेकिन जब मामला ज्यादा उलझ गया तो उसे अदालत की शरण लेनी पड़ी. नसीम के प्रार्थनापत्र पर जसपुर के न्यायिक मजिस्ट्रैट प्रकाश चंद ने थाना कुंडा पुलिस को भोजपुर के पूर्व चेयरमैन शफी अहमद, उन के बहनोई नईम चौधरी, भाई जिले हसन और साथी मतलूब के खिलाफ रहमत जहां और उस के 2 बच्चों का अपहरण करने और बंधक बना कर जबरन निकाह करने के आरोप में केस दर्ज कर के जांच करने के आदेश दे दिए.

कुंडा पुलिस दर्ज केस के आधार पर जांच में जुट गई. इस मामले में नसीम अंसारी का कहना था कि शफी अहमद ने उस की आर्थिक तंगी का लाभ उठा कर उस से उस के बीवीबच्चों को छीन लिया. वह अपने बीवीबच्चों को हासिल करने के लिए अंतिम सांस तक लड़ेगा. कई पेंच हैं मामले में वहीं दूसरी ओर नसीम अहमद की बीवी रहमत जहां का कहना था कि उस के निकाह के कुछ समय बाद ही नसीम को शराब पीने की लत पड़ गई थी. जिस के चलते उस ने अपनी जुतासे की पुश्तैनी जमीन भी बेच दी थी. उस के बाद उसे अपने 2 बच्चे पालने के लिए भी भुखमरी के दिन देखने पड़े. रहमत जहां के अनुसार उस ने नसीम को कई बार समझाने की कोशिश की लेकिन उस ने उस की एक नहीं सुनी. उस ने नसीम के शराब पीने का विरोध किया तो उस ने सन 2010 में उसे तलाक दे दिया था. नसीम के तलाक देने के बाद उस ने अपने दोनों बच्चों को साथ ले कर अपने पिता दादू के गांव सरबरखेड़ा में जा कर दिन गुजारे.

रहमत जहां का कहना था कि नसीम के तलाक देने के बाद उस ने 2011 में भोजपुर निवासी शफी अहमद से निकाह कर लिया. उस के बाद भी वह काफी दिनों तक अपने मायके में ही रही. बाद में वह चुनाव लड़ कर चेयरमैन बन गई तो नसीम के मन में लालच आ गया. नसीम अंसारी ने शफी अहमद से अपने खर्च के लिए कुछ रुपयों की मांग की, जिस के न मिलने पर उस ने यह विवाद खड़ा कर दिया. रहमत जहां का कहना था कि उस ने शफी अहमद के साथ निकाह किया है. नसीम उसे पहले ही तलाक दे चुका था. जिस के बाद उस का नसीम के साथ कोई भी संबंध नहीं रह गया था.

फिलहाल कुंडा पुलिस मामले की जांच कर रही है. रहमत किस की होगी, यह अभी भविष्य के गर्त में है.

 

Child Murders : लंदन में रची दत्तक पुत्र की हत्या की साजिश

Child Murders : बाइक सवारों ने कार को टक्कर मारी. कार के रुकने के बाद बाइक सवारों ने 11 वर्षीय गोपाल को कार से बाहर खींच लिया. हरसुखभाई करदानी ने गोपाल को बचाने की कोशिश की. वह भी तुंरत कार से बाहर निकल आया. उस के विरोध करने पर हमलावरों ने दोनों पर ही चाकू से हमला कर दिया. दोनों बुरी तरह से जख्मी हो गए थे. उन्हें उसी अवस्था में सड़क के किनारे छोड़ कर हमलावर फरार हो गए थे.

गोपाल का जख्म काफी गहरा था. कुछ समय में वहां से गुजरते रिक्शा चालक ने दोनों घायलों को सड़क किनारे घायल अवस्था में पाया तो वह उन्हें अस्पताल ले जाया गया. वहां उन का उपचार शुरू किया गया. इलाज के 5 दिन बाद 11 वर्षीय गोपाल की मौत हो गई. उस के हफ्ते भर बाद हरसुखभाई की भी अस्पताल में मौत हो गई थी.

गुजरात के छोटे से पिछड़े इलाके में रहने वाले गरीब हरसुखभाई करदानी ने उस समय राहत की सांस ली थी, जब उस की पत्नी अल्पा के 8 वर्षीय छोटे भाई गोपाल को एक अमीर विदेशी जोड़े ने गोद ले लिया था. जिन्होंने उसे गोद लिया था, वे वैसे तो भारत के ही रहने वाले निस्संतान दंपति थे, लेकिन ब्रिटेन में रहते थे. पति कंवलजीत सिंह रायजादा हीथ्रो का एक कर्मचारी था. जबकि उस की पत्नी आरती धीर चैरिटी का काम करती थी. हालांकि उन की उम्र में काफी अंतर था. वे दिखने में मांबेटे की तरह लगते थे.

सच तो यह था कि करदानी दंपति गोपाल के गोद लिए जाने की प्रक्रिया पूरी होने के बाद बेहद खुश था. क्योंकि वे अपने ऊपर से उस के लालनपालन की बड़ी जिम्मेदारी का बोझ उतरा हुआ महसूस कर रहे थे. आर्थिक तंगी का सामना करते हुए बच्चे की जैसेतैसे परवरिश हो रही थी.

गोपाल उन के साथ 2 साल की उम्र से ही रह रहा था. मां ने उसे छोड़ दिया था और पिता बीमार रहते थे. उस हालत में वह इधरउधर गली और पड़ोसियों के घरों में अनाथों की तरह घूमता रहता था. इस हाल में देख मोहल्ले के लोगों ने कुछ दिनों तक उस की देखभाल की, फिर उन्होंने केशोद में पति के साथ रह रही उस की बड़ी विवाहित बहन अल्पा को सौंप दिया.

उसे ब्रिटेन में पश्चिमी लंदन स्थित हनवेल के रहने वाले अप्रवासी भारतीय दंपति आरती धीर और कंवलजीत सिंह रायजादा ने अपना दत्तक पुत्र बना लिया था. उन्होंने गोपाल के गोद लेने की सारी कानूनी प्रक्रिया पूरी कर ली थी और कानून का पालन करते हुए उन्होंने सारे दस्तावेज भी बना लिए थे.

तब आरती धीर 50 साल की थी और उस का पति आधी उम्र का था. दोनों ने साल 2013 में शादी कर ली थी. शादी का छोटा सा समारोह ईलिंग टाउन हाल के लंचटाइम रजिस्टर औफिस में हुआ था. दरअसल, उन्होंने अपना वीजा बढ़वाने के लिए यह शादी की थी.

उस के बाद उन्होंने बच्चा गोद लेने की योजना बनाई थी. उस के लिए वे साल 2015 में गुजरात आए थे. उन्होंने एक बच्चा गोद लेने के लिए स्थानीय अखबारों में विज्ञापन दिया था. इस बारे में केशोद के रहने वाले हरसुखभाई को भी किसी ने बताया था.

विज्ञापन में लिखा था कि भारतीय मूल का ब्रिटिश जोड़ा किसी अनाथ बच्चे को लंदन में रहने के लिए गोद लेना चाहता है. हरसुखभाई का विज्ञापन के अनुसार विदेशी जोड़े से संपर्क किया.

वैसे कंवलजीत सिंह रायजादा गुजरात के मालिया हटिना का रहने वाला था. गोपाल का जन्म भी वहीं हुआ था. रायजादा के पिता सहकारी बैंक की मालिया हटिना शाखा में मैनेजर थे. मालिया हटिना में रायजादों का एक पड़ोसी था, उसे जब पता चला कि कंवलजीत की पत्नी आरती धीर किसी बच्चे को गोद लेना चाहती है, तब उस के दिमाग में अचानक गोपाल का चेहरा कौंध गया. उसे पता था कि वह बच्चा अनाथ है और उन दिनों अपने बहनोई हरसुखभाई करदानी के साथ केशोद में रह रहा है.

जब धीर और रायजादा आधिकारिक तौर पर शादी के तुरंत बाद 2014 में मालिया हटिना में उन से मिले तो उस की बहन और बहनोई गोद देने के लिए सहमत हो गए.

तब उन्हें रायजादा की पत्नी धीर ने कहा कि वह गोपाल की अपने बेटे की तरह परवरिश करेगी. उस के साथ अच्छा व्यवहार बर्ताव रखेगी और उसे एक अच्छा ब्रिटिश नागरिक बनाएगी और उस का जीवन खुशियों से भर देगी.

गरीबी की वजह से एनआरआई को दिया बच्चा गोद

इस आश्वासन को सुन कर वे काफी खुश हो गए. साथ ही उन्होंने यह भी पाया कि जिन्हें वह बच्चा गोद दे रहे हैं, वह उन के इलाके से ही रायजादा समाज के स्थानीय परिवार हैं.

हरसुखभाई अपने साले गोपाल का अभिभावक था. वह विदेशी जोड़े पर विश्वास कर गोपाल को गोद देने के लिए राजी हो गया. गोद लेने की कागजी काररवाई पूरी कर ब्रिटिश जोड़ा ब्रिटेन लौट गया. वे हरसुख को भरपूर आश्वासन दे गए कि गोपाल को अपने साथ रखने के लिए विदेशी कानूनी प्रक्रिया पूरी होते ही वे जल्द आ कर गोपाल को अपने साथ ले जाएंगे.

हरसुखभाई ने जो सोचा था, वैसा नहीं हुआ. उन के इंतजार में 2 साल गुजर गए, लेकिन वे गुजरात नहीं आए. हां, बीच बीच में उन दोनों ने गोपाल की खोजखबर जरूर ली और उस के खर्च आदि के लिए छोटीमोटी रकम भेजते रहे.

आखिरकार इंतजार की घडिय़ां खत्म होने को आ गईं. साल 2017 के फरवरी माह में हरसुखभाई को गोपाल के ब्रिटेन ले जाने की सूचना मिली. हरसुखभाई खुश हो गया कि गोपाल अब अपने गोद लिए हुए मांबाप के पास कुछ दिनों के भीतर ही चला जाएगा.

उन्होंने उसे गोपाल को वीजा लगवाने के लिए जूनागढ़ जाने को कहा. केशोद उसी जिले में आता है. वहां आनेजाने पर होने वाले खर्च आदि के लिए कुछ पैसे भी भेजे.

गोपाल को तो मानो खुशी का ठिकाना नहीं था. ब्रिटेन जाने को ले कर वह इतना उत्साहित था कि उस ने अपने जीजा से कह कर एक अंगरेजी गुजराती पौकेट डिक्शनरी मंगवा ली थी. वह गर्व से भरा हुआ था. उस ने स्कूल में सभी सहपाठियों को यह बता दिया था. अपने शिक्षकों से भी कहा था कि उसे अब नई स्कूल ड्रेस की जरूरत नहीं है, क्योंकि वह जल्द ही इंग्लैंड जा रहा है.

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वह गोपाल के वीजा कागजात तैयार करने के लिए लगभग 100 मील दूर राजकोट शहर गए थे. वहां से काम पूरा कर गोपाल अपने बहनोई हरसुखभाई के साथ 8 फरवरी, 2017 को अपने शहर केशोद लौट रहे थे. रात के करीब 9 बज चुके थे. वे एक कार में सवार थे. वे अभी अपने घर पहुंचने वाले ही थे कि रास्ते में बाइक पर सवार 2 लोगों ने कार रुकवा कर उन के ऊपर चाकू से जानलेवा हमला कर दिया था.

वे गोपाल का अपहरण करना चाहते थे. हमलावरों ने बाइक से टक्कर मार कर रोक दी. फिर हमलावरों ने गोपाल को चाकू से गोद दिया. गोपाल को बचाने की जब हरसुखभाई ने कोशिश की तो हमलावरों ने उस पर भी चाकू से वार किए. इलाज के दौरान दोनों की ही अस्पताल में मृत्यु हो गई.

इस मामले को केशोद के थाने में दर्ज किया गया. वहां से पुलिस इंसपेक्टर अशोक तिलवा ने इस की जांचपड़ताल की. घटना की तहकीकात के बाद नीतीश नाम के व्यक्ति की गिरफ्तारी हुई. उस से पूछताछ होने पर इस वारदात में भाड़े पर शामिल किए गए दोनों हमलावरों के नाम भी सामने आए. वे हमलावर उन के द्वारा ही 55 लाख रुपए दे कर बुलाए गए थे.

जब उस से सख्ती से पूछताछ की गई, तब एक चौंकाने वाली जानकारी सामने आई. नीतीश ने बताया कि उस ने ब्रिटेन में रहने वाले दंपति कंवलजीत सिंह रायजादा और आरती धीर के इशारे पर इस वारदात को करवाया. पूछताछ में नीतीश मुंड ने यह भी बताया कि गोपाल की हत्या की 2 असफल कोशिशें पहले भी हो चुकी थीं.

हत्या से 4 हफ्ते पहले उस ने नीतीश को एक फरजी आईडी पर लिया गया सिम कार्ड खरीदने के लिए 25,000 रुपए भी भेजे थे, ताकि साजिश में शामिल दूसरे लोगों के साथ किसी का फोन काल नहीं जुडऩे पाए.

आरती धीर और कंवलजीत सिंह रायजादा का नाम सुन कर हरसुखभाई की पत्नी अल्पा भी चौंक पड़ी. कारण, यह वही जोड़ा था, जिस ने उस के भाई गोपाल को गोद लिया था. यह बात उस ने पुलिस को भी पूछताछ के दरम्यान बताई.

वह इस बात से आश्चर्यचकित थी कि आखिर उस ने उसे क्यों मरवाया? उन्हें उस के पति से क्या शिकायत थी, जो पति को भी मरवा दिया?

अल्पा ने पुलिस को बताया कि नीतीश मुंड की गिरफ्तारी के बाद कंवलजीत के पिता उस से मिलने आए थे, जो स्थानीय बैंक में मैनेजर हैं. उन्होंने उसे पुलिस को यह बताने के लिए पैसे की पेशकश की थी कि मुंड निर्दोष है. हत्या की साजिश के सिलसिले में पुलिस ने उन्हें भी गिरफ्तार कर लिया था. बाद में उन की जमानत हो गई थी.

लंदन से रची गई थी हत्या की साजिश

पुलिस यह भी पता लगा रही थी कि इस घटना के तार और किनकिन लोगों के साथ जुड़े हो सकते हैं? इस में किन की क्या भूमिका हो सकती है? गोद लेने वाले दंपति की मंशा क्या थी? मासूम गोपाल का अपहरण क्यों किया जा रहा था?

बहुत जल्द ही इस का राज पकड़े गए नीतीश मुंड के बयानों से खुल गया. पुलिस जांच के अनुसार नीतीश मुंड इस मामले का एक बिचौलिया था, जो पहले हनवेल में आरती धीर और कंवलजीत के फ्लैट पर रहता था. गुजरात में पुलिस के सामने उस का एक कुबूलनामा कलमबद्ध किया गया था, जिस में दंपति को Child Murders हत्या की साजिश में शामिल बताया गया था.

गोपाल की मौत का कारण वही एनआरआई दंपति था, जिस ने उसे 2 साल पहले गोद लिया था. पुलिस ने अल्पा की तरफ से दर्ज रिपोर्ट में उन पर ही 11 वर्षीय दत्तक पुत्र गोपाल की हत्या करने का आरोप लगाया गया. यह दंपति गोपाल की आकस्मिक मौत दिखा कर उस के नाम की गई बीमा के मुआवजे की एक बड़ी धनराशि हड़पना चाहते थे. लंदन में रहने वाले दंपति ने गोपाल को गोद ले कर उस का डेढ़ लाख पाउंड अर्थात एक करोड़ 57 लाख 50 हजार रुपए का जीवन बीमा करा लिया था.

उस की हत्या करवाने के लिए दंपति ने नीतीश मुंड नामक व्यक्ति से मिल कर साजिश रची थी, जो वीजा समाप्त होने और भारत लौटने तक लंदन में रहता था.

पुलिस की प्रारंभिक जांच रिपोर्ट के अनुसार आरती धीर और कंवलजीत सिंह ने नीतीश मुंड के साथ मिल कर गोपाल को गोद लेने, उस का बीमा करवाने और फिर उसे मार डालने की साजिश रची थी. नीतीश लंदन में रहता था और अकसर गुजरात आताजाता था.

पुलिस जांच में गोपाल की गतिविधियों की भी जानकारी मिली. उस की बड़ी बहन अल्पा ने बताया कि वह बड़ा हो कर पुलिस औफिसर बनना चाहता था. वह बौलीवुड फिल्म ‘सिंघम’ से बहुत प्रभावित था. फिल्म में बाजीराव सिंघम की नकल करता हुआ चोर पुलिस का खेल खेला करता था. वह अपने दोस्तों पर चिल्लाता था, ‘बचना असंभव है!’

वह पढ़ाई में अव्वल था. उसे कार्टून बनाना बहुत पसंद था. उस ने महात्मा गांधी के चित्र के लिए स्कूल में पुरस्कार भी जीता था. उस के दोस्त, शिक्षक, गांव के सभी लोग उस के साथ हुई आकस्मिक घटना को ले कर हैरान थे.

उस के हमलावरों को पकडऩे में पुलिस ने तत्परता दिखाई. उस पर हमला करने वालों की यह सोच गलत साबित हुई कि एक गरीब छोटे लड़के का जीवन कोई मायने नहीं रखता है और भारत के पश्चिमी तट पर पुलिस उन्हें नहीं पकड़ पाएगी. लेकिन पुलिस ने तत्परता दिखाते हुए एक एक कर 5 आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया. उन पर हत्या और अपहरण की धाराएं लगाई गईं और मुकदमा चलाया गया.

लेकिन गोपाल की मौत की गूंज गुजरात के पुलिस महकमे तक ही नहीं गूंजी, बल्कि 4 हजार मील से अधिक दूर ब्रिटेन के पश्चिम लंदन में हैनवेल में भी सुनाई दी. यह वह जगह है, जहां हीथ्रो की पूर्व कर्मचारी आरती धीर और उन के पति कंवलजीत सिंह रायजादा कतार से बनी विक्टोरियन घरों की एक पंक्ति के अंत में रहते थे.

लंदन में गूंजी गुजरात में कराई गई हत्याओं की गूंज

उन का घर एक आधुनिक ब्लौक की पहली मंजिल पर था. वे इस चौंकाने वाली घटना से इलाके में रह रहे अन्य लोगों की निगाह मेें तब आ गए, जब ब्रिटिश पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया.

उन्हें आसपास की दुकान वाले अच्छी तरह जानते पहचानते थे और आसपास के डाकघर में अपने बिलों का भुगतान करने के लिए जाते रहते थे. उन्हें सभी लोग एक अच्छे दंपति के तौर पर जानते थे. उन का व्यवहार लोगों के साथ अच्छा था और वे मिलनसार हो कर भी अपने काम से ही अधिक मतलब रखते थे.

हां, उन के बीच उम्र के अंतर और कदकाठी को देख कर कुछ समय पहले लोगों को उन के मांबेटा होने का संदेह हो जाता था, लेकिन धीरेधीरे सभी उन के पतिपत्नी होने का सच जान चुके थे. उन के बारे में कहने के लिए किसी के पास कोई बुरा शब्द नहीं था.

उन के बारे में लोगों के प्रति अच्छी धारणा थी. वह स्तन कैंसर चैरिटी के लिए धन जुटाने का काम करते थे. यही उन की इलाके में पहचान थी. उन के बारे में गुजरात पुलिस को सिर्फ यही पता था कि वे  एक साधारण गली के एक साधारण फ्लैट में एक साधारण जीवन जी रही हैं.

गुजरात पुलिस के अनुसार उन्होंने गोपाल पर ली गई जीवन बीमा पौलिसी से डेढ़ लाख पाउंड का दावा करने की योजना बनाई थी. यह योजना आरती धीर ने अपने पति कंवलजीत की मदद से बनाई थी. वे चाहते थे कि गोपाल की हत्या के बाद उस की लाश नाले में पड़ी बरामद हो ताकि बीमे की रकम के लिए दावेदारी की जा सके. इस योजना के तहत आरती धीर ने उसे मारने के लिए एक गिरोह की मदद ली थी.

गुजरात पुलिस को हैरानी इस बात की भी थी कि गोपाल की हत्या की साजिश लंदन के एक हाउसिंग एसोसिएशन के फ्लैट से रची गई थी. उन के फ्लैट की खिड़कियों में भारतीय शैली में परदे लटके हुए थे, साथ ही दरवाजे की चौखट पर नींबू और सूखी मिर्च झूल रहे थे. वहां भारतीय संस्कृति की झलक साफ देखी जा सकती थी. जबकि उस पर भारत में हत्या और अपहरण की साजिश सहित 6 आरोप थे.

आरती धीर और कंवलजीत रायजादा वल्र्डवाइड फ्लाइट सर्विसेज (डब्ल्यूएफएस) के लिए हवाई माल ढुलाई का काम करते थे. हालांकि कंपनी से पूछताछ के बाद मालूम हुआ कि उन को 2016 में ‘अनुबंध के उल्लंघन’ के चलते बरखास्त कर दिया गया था.

आरती वहां भी काफी लोकप्रिय थी. उस के साथ काम करने वाली एक सहकर्मी ने लंदन पुलिस को पूछताछ में बताया कि उस के साथ काम करना और साथ रहना मजेदार था.

आरती धीर और कंवलजीत रायजादा के खिलाफ पहली नजर में ही आपराधिक साजिश का मामला सामने आया. उसे गोद लेने से ले कर बीमा संबंधी दस्तावेजों के सबूत के तौर पर जुटाया गया. इस आधार पर ही मामला मुख्य मजिस्ट्रैट और उच्च न्यायालय तक ले जाया गया.

गोपाल को गोद लेने का राज आया सामने

गोपाल को गोद लेने के दस्तावेज तैयार किए जाने के ठीक एक महीने बाद ही 26 अगस्त, 2015 को आईसीआईसीआई प्रूडेंशियल लाइफ इंश्योरेंस कंपनी के साथ बीमा के लिए आवेदन किया गया था. इस कंपनी का मुख्यालय मुंबई में है.

गोपाल के लिए ली गई जीवन बीमा पौलिसी का नाम ‘वेल्थ बिल्डर’ था. इस के जरिए ‘प्रस्तावित’ या ‘नामांकित’ को वार्षिक प्रीमियम के मूल्य का 10 गुना भुगतान किया जाता है. इस की प्रस्तावक आरती धीर थी. इस का अर्थ यह था कि गोपाल की मौत पर बीमा का लाभ आरती को ही मिलता.

जूनागढ़ के एसपी सौरव सिंह के अनुसार इस के लिए सिर्फ वार्षिक प्रीमियम 15 हजार पौंड (15 लाख 75 हजार रुपए) की 2 किस्तें ही दी गई थीं. उन की बीमा राशि बहुत बड़ी थी. वे यह अच्छी तरह से जानते थे कि गोपाल की मृत्यु की स्थिति में उसे बीमा राशि का 10 गुना भुगतान मिल जाएगा. इस अनुसार आरती धीर को गोपाल की मृत्यु के बाद करीब एक करोड़ 57 लाख 50 हजार रुपए (डेढ़ लाख पाउंड) मिलते.

गुजरात पुलिस के सामने लंदन में बैठे मुख्य आरोपियों के प्रत्यर्पण के जरिए भारत ला कर पूछताछ करने की मुख्य समस्या थी ताकि उन्हें यहां मजिस्ट्रैट के सामने पेश किया जा सके.

कारण, दंपति ने लंदन पुलिस को बीमा भुगतान के लिए गोपाल को मारने की योजना बनाने से साफतौर पर इनकार कर दिया था. साथ ही ब्रिटेन ने मानवाधिकार के आधार पर भारत में मुकदमे का सामना करने के लिए जोड़े को प्रत्यर्पित करने के अनुरोध को खारिज कर दिया था. जबकि इसे ले कर गुजरात पुलिस ने भारत सरकार से अनुमति मांगी थी और भारत सरकार ने अपील करने की अनुमति दे दी थी.

भारत सरकार के अनुरोध के बाद जून 2017 में यूके में दोनों गिरफ्तार तो कर लिए किए गए, लेकिन 2 जुलाई, 2017 को वेस्टमिंस्टर मजिस्ट्रैट कोर्ट के एक न्यायाधीश ने मानवाधिकार के आधार पर उन के प्रत्यर्पण से इनकार कर दिया.

अपने फैसले में वरिष्ठ जिला न्यायाधीश एम्मा अर्बुथनौट ने पाया कि उन के प्रत्यर्पण को उचित ठहराने के लिए पर्याप्त सबूत थे. परिस्थितियों के मुताबिक पहले दृष्टिकोण में मामला आरती धीर और उस के पति कंवलजीत सिंह रायजादा द्वारा मिल कर काम करने तथा अन्य लोगों के साथ मिल कर अपराध करने के कई साक्ष्य उजागर हो चुके थे.

इस वजह से नहीं हो पाया आरोपियों का यूके से प्रत्यर्पण

इस के विपरीत गुजरात में दोहरे हत्याकांड की सजा पैरोल के बिना आजीवन कारावास है. इसे देखते हुए उन्होंने कहा कि प्रत्यर्पण ब्रिटेन के कानून के तहत जोड़े के मानवाधिकारों के विपरीत होगा. इस कारण यदि प्रत्यर्पित किया जाता है तो जोड़े को ‘एक अपरिवर्तनीय सजा’ दी जा सकती है, जो ‘अमानवीय और अपमानजनक’ होगी.

इस तरह से गोपाल और उस के बहनोई की हत्या का मामला 2 देशों के बीच प्रत्यर्पण कानून और मानवाधिकारों में उलझने के कारण ठंडे बस्ते में चला गया. दंपति लंदन में आजाद घूमते रहे और दूसरे धंधे में लग गए.

हालांकि भारत के प्रत्यर्पण अनुरोध को 2019 में अस्वीकार किए जाने के बाद 2020 में लंदन के हाईकोर्ट में एक अपील की गई, लेकिन वह भी असफल हो गई.

आरती और कंवलजीत के काले धंधे के कारनामों में नशीली दवाओं की तस्करी, मनी लौंड्रिंग मुख्य थे. वे गुजरात में हत्या के मामले में भले ही बच गए, लेकिन आस्ट्रेलिया में नशीली दवाओं की तस्करी के मामले में पकड़े जाने के बाद वे अंतरराष्ट्रीय Child Murders कानून के शिकंजे में आ चुके थे. उन पर आस्ट्रेलिया में आधा टन से अधिक कोकीन निर्यात करने का आरोप लग चुका था.

दरअसल, मई 2021 में सिडनी पहुंचने पर आस्ट्रेलियाई सीमा बल द्वारा कोकीन पकड़े जाने के बाद राष्ट्रीय अपराध एजेंसी (एनसीए) ने आरती और कंवलजीत की पहचान की थी. नशीली दवाओं को यूके से एक वाणिज्यिक उड़ान के माध्यम से भेजा गया था और 6 धातु के टूलबौक्स के भीतर छिपाया गया था.

इस मामले की सुनवाई लंदन की कोर्ट में होने के बाद कई आपराधिक मामलों का खुलासा होने लगा था. उन में ही बीमा की राशि हासिल करने के लिए दत्तक पुत्र की हत्या का मामला भी था.

लंदन की साउथवार्क क्राउन कोर्ट ने सुनवाई के सिलसिले में पाया कि उन्हें भारत में दत्तक पुत्र गोपाल की हत्या के लिए भी तलाश है. वे निर्यात के 12 और मनी लौंड्रिंग के 18 मामलों में दोषी हैं.

इस सुनवाई के दौरान न्यायाधीश ने दंपति के कई आपराधों में लिप्त होने और उन की काम करने में आपराधिक गतिविधियों की तुलना लोकप्रिय अपराध नाटक ‘ओजार्क’ और ‘ब्रेकिंग बैड’ से की.

इस बाबत तैयार की गई रिपोर्ट के अनुसार अभियोजक ह्यू फ्रेंच ने उन्हें एक वैसे ‘क्रूर और लालची’ जोड़े के रूप का विवरण दिया, जो अंतरराष्ट्रीय संगठित अपराध की दुनिया में सक्रिय बना हुआ था. उन्हें अंतरराष्ट्रीय संगठित अपराध की दुनिया में काम करने वाला पाया गया.

एनसीए के जांचकर्ताओं ने दोनों पर यूके से नशीली दवाएं सिडनी एक कामर्शियल उड़ान के जरिए भेजने का आरोप लगाया था. 6 टूलबौक्स में 514 किलोग्राम कोकीन पाई गई थी.

दंपति ने ड्रग्स की तस्करी के लिए ही जून 2015 में विफ्लाई फ्रेट सर्विसेज नामक एक कंपनी बनाई थी. पतिपत्नी ही इस के डायरेक्टर थे. जांच में कंवलजीत की अंगुलियों के निशान धातु के टूलबौक्स की रैपिंग पर पाए गए थे और टूलबौक्स के आर्डर की रसीदें दंपति के घर से बरामद हुई थीं.

काली कमाई से जुटाए करोड़ों रुपए

इस संबंध में एनसीए ने खुलासा किया कि जून 2019 से आस्ट्रेलिया को 37 खेप भेजी गईं, जिन में से 22 नकली थीं और 15 में कोकीन थी. उन्होंने हवाई अड्डे से माल ढुलाई प्रक्रियाओं की बारीक जानकारी हीथ्रो में एक उड़ान सेवा कंपनी में नौकरी करते हुए सीखी थी. एनसीए के वरिष्ठ जांच अधिकारी पियर्स फिलिप्स के अनुसार आरती धीर और कंवलजीत सिंह रायजादा ने यूके से आस्ट्रेलिया तक लाखों पाउंड मूल्य की कोकीन की तस्करी के लिए हवाई माल ढुलाई उद्योग के अपने अंदरूनी जानकारी का इस्तेमाल किया था, जहां वे जानते थे कि कैसे अधिक से अधिक मुनाफा कमाया जा सकता है.

उन्होंने अपने काले धंधे की कमाई के पैसे और धन को छिपाने के भी सफल प्रयास किए. अवैध मुनाफे की कमाई को नकदी के रूप घर और अनाज आदि रखने के कंटेनरों में रखा. साथ ही सोना और चांदी भी खरीदी. जैसेजैसे उन की काली कमाई बढ़ती जा रही थी, वैसेवैसे उन का लालच और अधिक बढ़ता जा रहा था.

दोनों को जांच टीम ने 21 जून, 2021 को हैनवेल में उन के घर से गिरफ्तार कर लिया था. उन के फ्लैट की तलाशी में 5,000 पाउंड मूल्य की सोने की परत चढ़ी चांदी की छड़ें, घर के अंदर 13,000 पाउंड और बौक्स में 60,000 पाउंड नकद मिले.

इस बारे में पूछताछ में पाया गया कि उन्होंने ईलिंग में 8,00,000 पाउंड में एक फ्लैट और 62,000 पाउंड में एक लैंड रोवर कार भी खरीदी थी.

उन्होंने 2019 से 22 अलगअलग बैंक खातों में लगभग 7,40,000 पाउंड (लगभग 7 करोड़ 77 लाख रुपए) नकद जमा किए थे और उन पर मनी लौंड्रिंग का आरोप लगाया गया था.

इस पूरे मामले पर काम करने वाले 3 एनसीए अधिकारियों ने दंपति के खिलाफ कोर्ट में सारे सबूत जुटा दिए थे. हालांकि दोनों ने आस्ट्रेलिया को कोकीन निर्यात करने और मनी लौंड्रिंग से इनकार किया. बावजूद इस के लंदन की साउथवार्क क्राउन कोर्ट में एक मुकदमे के बाद जूरी द्वारा उन्हें निर्यात के 12 मामलों और मनी लौंड्रिंग के 18 मामलों में 7 साल तक चले मुकदमे के बाद 31 जनवरी, 2024 दोषी ठहराया गया.

अगले रोज 31 जनवरी, 2024 को आरती धीर और उस के पति कंवलजीत रायजादा को 33-33 साल जेल की सजा सुना दी गई.

गुजरात में गोपाल की बहन अल्पा को एक स्थानीय पत्रकार ने फोन कर इस की जानकारी दी. यह सुनते ही अल्पा ने तुरंत अपना टीवी चालू किया और उस के भाई और पति के हत्यारे को जेल की सजा सुनाए जाने पर राहत की सांस ली. दोनों को 33-33 साल जेल की सजा सुनाई गई थी.

कहानी लिखे जाने तक दंपति जेल में थे, लेकिन गुजरात में अल्पा को यह समझ में नहीं आ रहा था कि उस के भाई और पति की हत्या के मामले को नशीली दवाओं की तस्करी के मामले से कम क्यों आंका गया?

2 भगोड़े एनआरआई को 33 साल की सजा दिए जाने की घटना ने ब्रिटिश के दोहरे मानदंडों को ले कर सवाल खड़े कर दिए कि आखिर हत्या की साजिश से अधिक महत्त्वपूर्ण ड्रग तस्करी क्यों हो गई? गोपाल के परिवार वालों के सामने यह सवाल बना हुआ है कि क्या 2 जनों की कीमत उस से कम थी?

Crime Stories : 40 महीने कैद में रहा कंकाल

Crime Stories :  बाजरे के खेत में शव मिलने की खबर पूरे गांव में फैल गई. शव को कैमिकल डाल कर इस कदर जला दिया गया था कि लाश कंकाल में बदल गई थी. मृतक की पहचान होनी नामुमकिन थी. लाश के नाम पर शरीर के कुछ भाग की हड्डियां मात्र थीं. कंकाल के पास चप्पलें, कपड़े व अन्य सामान पड़े थे. सामान से लग रहा था कि यह कंकाल किसी महिला का है.

भगवान देवी ने कंकाल के पास मिली चप्पलें, पीले रंग का हेयर क्लिप, हाथ में बंधा कलावा, चांदी की 2 अंगूठियां, लाल रंग का कंगन, सलवार कुरता व अन्य सामान को देख कर कंकाल की पहचान अपनी बेटी रीता उर्फ मोनी के रूप में की. भगवान देवी और उन के पति कुंवर सिंह थाने से ले कर पुलिस के उच्चाधिकारियों, यहां तक कि अदालत तक की दौड़ लगा रहे थे. लेकिन उन्हें बेटी रीता कुमारी उर्फ मोनी की हत्या के बाद उस का कंकाल (लाश) अंतिम संस्कार के लिए पिछले 40 महीनों से पुलिस नहीं दे रही थी.

लाश मिली कंकाल के रूप में

वे चाहते थे कि बेटी की लाश जो कंकाल के रूप में बरामद हुई थी, मिल जाए तो वे उस का विधिविधान से अंतिम संस्कार कर दें. वह कंकाल उन की बेटी की है, इस के उन्होंने पुलिस को सबूत भी जुटा दिए थे. फिर भी पुलिस कंकाल उन की बेटी का नहीं मान रही थी. उत्तर प्रदेश का एक जिला है (Eetawah) इटावा.  यहीं स्थित डा. भीमराव अंबेडकर संयुक्त चिकित्सालय की मोर्चरी में रखे एक डीप फ्रीजर में बेटी की लाश कंकाल (Imprisoned Skeleton) के रूप में पिछले 40 महीने से कैद थी. ऐसा पुलिस के लापरवाह रवैए की वजह से हो रहा था.

पोस्टमार्टम और 2 बार डीएनए टेस्ट के बाद भी पुलिस जांच अधूरी रह गई थी. क्योंकि डीएनए के लिए जो नमूने 2 बार भेजे गए थे, वह सही तरीके से नहीं लिए गए थे. इस के बाद भगवान देवी ने एसएचओ के साथ ही एसएसपी (इटावा) को  22 अक्तूबर, 2020 तथा 22 फरवरी, 2021 व 26 अगस्त, 2021 को प्रार्थनापत्र दिए. इन में आरोपियों के नाम का खुलासा भी किया गया था.

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डा. भीमराव अंबेडकर संयुक्त चिकित्सालय 

लेकिन बारबार प्रार्थनापत्र देने के बावजूद न तो पुलिस ने एफआईआर दर्ज की और न डीएनए रिपोर्ट ही दी गई. भगवान देवी लगातार बेटी का कंकाल देने की गुहार लगाती रही, लेकिन पुलिस हाथ पर हाथ रखे बैठी रही. उस के कानों पर जूं तक नहीं रेंगी.

मोर्चरी के डीप फ्रीजर में 40 माह से कैद रीता उर्फ मोनी के कंकाल के साथ एक ऐसी घटना हुई, जिस से सभी चौंक गए. उस का कंकाल एक ही झटके में डीप फ्रीजर की कैद से मुक्त हो गया और घर वालों ने उस का अंतिम संस्कार भी कर दिया.

क्या चमत्कार हुआ जिससे लाश को मम्मीपापा को सौंपा

2 बार डीएनए टेस्ट से पहचान न होने के बाद अचानक ऐसा क्या चमत्कार हुआ कि मरने वालीे लड़की के कंकाल की पहचान होने के बाद उसे उस के वास्तविक मम्मीपापा को सौंप दिया गया.

आइए, पूरी घटना आप को सिलसिलेेवार बताते हैं. यह खौफनाक घटना आज से लगभग 40 महीने पहले शुरू हुई थी. उत्तर प्रदेश के इटावा जिले के जसवंतनगर थाना क्षेत्र का एक गांव है चक सलेमपुर. इसी गांव का निवासी है कुंवर सिंह. उस के परिवार में पत्नी भगवान देवी के अलावा 5 बच्चे थे. इन में 3 बेटियां व 2 बेटों में सब से बड़ी बेटी अंजलि, राजीव, ज्योति की शादी हो चुकी है. चौथे नंबर की रीता कुमारी उर्फ मोनी थी. सब से छोटा सौरभ उर्फ बंटी है, जो बीएससी कर चुका है. पिता के पास जमीन थी, जिस पर वह अपने बेटों राजीव व सौरभ की मदद से खेती करते थे.

कुंवर सिंह की 22 वर्षीय बेटी रीता कुमारी उर्फ मोनी की एक सप्ताह बाद सगाई होनी थी. घर में खुशी का माहौल था. घर वाले शादी की तैयारी में व्यस्त थे. 19 सितंबर, 2020 को मोनी की तबियत ढीली थी. वह दोपहर 12 बजे अपनी दवा लेने घर से जसवंतनगर की कह कर गई थी. उसे गए हुए 3 घंटे बीत चुके थे, मगर वह वापस घर नहीं आई थी. इस पर घर वालों को चिंता होने लगी. उन्होंने उसे तलाशना शुरू कर दिया.

गांव में उस के साथ पढऩे वाली सहेलियों के घर के अलावा गांव में जिस स्थान पर वह सिलाई सीखती थी, वहां भी पता लगाया. लेकिन उस का कोई पता नहीं चला और रात हो गई, वह लौट कर घर नहीं आई. रीता अपना मोबाइल, जिस में 2 सिम कार्ड थे, ले कर घर से गई थी. उस का फोन भी स्विच्ड औफ आ रहा था. रीता जसवंतनगर के एक कालेज में 11वीं कक्षा में पढ़ रही थी. उस के लापता होने पर उसे तलाशने में उस के घर वालों से ले कर गांव के लोगों ने अपनी पूरी कोशिश की. शुरुआती कोशिश में उन्हें कोई कामयाबी नहीं मिली. इस तरह कई दिन गुजर गए.

रीता उर्फ मोनी के गायब होने के बाद गांव में तरहतरह की चर्चाएं शुरू हो गईं. जितने मुंह उतनी बातें. कोई कह रहा था कि रीता अपने प्रेमी के साथ भाग गई है. कोई कह रहा था कि वह इस रिश्ते से खुश नहीं थी, इसलिए कहीं और चली गई है. थकहार कर रीता उर्फ मोनी की मम्मी भगवान देवी ने थाना जसवंतनगर में बेटी की गुमशुदगी की सूचना 22 सितंबर, 2020 को लिखा दी. गुमशुदगी दर्ज होने के साथ ही इस की जांच तत्कालीन एसआई संजय कुमार सिंह को सौंपी गई.

खेत में मिला बेटी का कंकाल

रीता के लापता होने के सातवें दिन 26 सितंबर को अचानक रीता का सुराग मिला. रीता के घर से लगभग 300 मीटर की दूरी पर बाजरे के एक खेत में मानव कंकाल मिला. घास लेने गए कुछ लोगों ने खेत में पड़े कंकाल को देख कर शोर मचाया, इस पर गांव वाले एकत्र हो गए. गांव वालों से खेत में कंकाल मिलने की जानकारी होते ही रीता के घर वाले दौड़ेदौड़े खेत में पहुंचे. उन्होंने वहां मिले कपड़ों और अन्य सामान से उस की शिनाख्त रीता के रूप में कर ली.

रीता की मम्मी भगवान देवी ने बताया कि घर से जाते समय रीता यही सब पहने हुए थी. बेटी की लाश को इस अवस्था में देखते ही भगवान देवी बेहाल हो गई. उस के आंसू थमने का नाम ही नहीं ले रहे थे. उस ने रोते हुए पुलिस को बताया कि उस की बेटी की हत्या कैमिकल डाल कर हत्यारों ने की है.

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     मृतका रीता के ग़मगीन परिजन

उस ने बताया कि उस की गांव में किसी से कोई दुश्मनी भी नहीं है फिर बेटी का यह हाल किस ने और क्यों किया? बेटी की हत्या से परिवार में कोहराम मच गया. रीता के सामान तो मिले थे, लेकिन उस का मोबाइल फोन नहीं मिला. खेत में कंकाल मिलने की सूचना पर घटनास्थल पर पुलिस, फोरैंसिक टीम के साथ पहले ही पहुंच गई थी. पुलिस ने लाश का निरीक्षण किया. कंकाल की हालत देख कर पुलिस ने अनुमान लगाया कि कंकाल के कुछ हिस्से को कुत्ते या जंगली जानवर खींच कर ले गए होंगे. लाश को किसी कैमिकल से जलाया गया था. इस से उस की पहचान होनी भी मुश्किल हो गई थी.

कंकाल के पास मिले सामान इस बात की गवाही दे रहे थे कि एक सप्ताह पहले लापता हुई गांव की युवती रीता का ही कंकाल है. गांव के जितेंद्र कुमार, बेबी, राजीव आदि ने भी इन चीजों को देख कर रीता के रूप में कंकाल की शिनाख्त की.

फोरैंसिक टीम ने घटनास्थल से सबूत इकट्ठे किए. पुलिस ने पंचनामा भरने के बाद कंकाल को पोस्टमार्टम के लिए जिला चिकित्सालय की मोर्चरी भिजवा दिया. कंकाल की पोस्टमार्टम रिपोर्ट में हत्या का कारण न आने तथा पहचान न होने पर पुलिस ने कंकाल का डीएनए टेस्ट कराने का निर्णय लिया. पुलिस कंकाल व मातापिता के सैंपल ले कर रीता के बड़े भाई राजीव के साथ 29 सितंबर, 2020 को विधि विज्ञान प्रयोगशाला, लखनऊ गई थी.

लखनऊ लैब के अधिकारियों ने उन्हें यह कह कर लौटा दिया कि पूरे कंकाल की जरूरत नहीं है. केवल कंकाल से सैंपल ले कर व कंकाल के रंगीन फोटो विधिवत भिजवाएं. 2 दिन बाद वापस ला कर कंकाल को वहीं रख दिया गया. राजीव ने बताया कि गाड़ी किराए पर ले जाने में उस के 8 हजार रुपए खर्च हो गए थे. इस के 4-5 दिनों बाद पुलिस ने डीएनए टेस्ट के लिए कंकाल व मम्मीपापा के सैंपल ले कर लखनऊ लैब भिजवाए, जिस की रिपोर्ट 26 मार्च, 2022 को कई रिमाइंडर भेजने के बाद मिली, जो सैंपल सही तरीके से न भेजने के कारण स्पष्ट (क्लीयर) नहीं थी.

मां भगवान देवी इस बात की जिद पर अड़ी थी कि कंकाल उस की बेटी का ही है. सैंपल सही से नहीं लिए जाने से लखनऊ लैब की रिपोर्ट स्पष्ट नहीं आई है. इस पर पुलिस से आगरा की लैब में टेस्ट कराने की बात हुई. छोटा भाई सौरभ आगरा की लैब कंकाल व मातापिता के सैंपल ले कर 4 अगस्त, 2022 को पुलिस के साथ गया. आगरा फोरैंसिक लैब वालों ने यह कह कर सैंपल लौटा दिया कि यह हमारे क्षेत्र का मामला नहीं है. जिस क्षेत्र से संबंधित हो, वहां की लैब में जांच कराओ.

कोर्ट के आदेश पर जागी पुलिस

सभी तरफ से निराश होने के बाद भी भगवान देवी चुप नहीं बैठी. अपनी बेटी के लापता होने के बाद उस की हत्या होने के कारण वह दुखी थी. लगभग 2 साल तक थाने व पुलिस के उच्चाधिकारियों के चक्कर काटने के बाद भगवान देवी की हिम्मत जबाव दे गई.

जब अपनी बेटी के शव (कंकाल) को प्राप्त करने के लिए घर वाले परेशान हो गए, तब मां भगवान देवी ने न्याय के लिए साल 2022 में हाईकोर्ट, इलाहाबाद का दरवाजा खटखटाया. रीता की मां भगवान देवी ने अपनी रिट याचिका में पुलिस पर आरोप लगाया कि पुलिस को कई बार प्रार्थनापत्र देने के बाद भी अब तक आरोपियों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज नहीं की गई है, साथ ही डीएनए रिपोर्ट भी नहीं दी गई है. भगवान देवी ने न्यायालय से इस संबंध में एसएसपी, इटावा को निर्देश जारी करने की अपील की.

इस पर न्यायालय ने भगवान देवी की रिट पर सुनवाई करते हुए 11 जुलाई, 2022 के अपने आदेश  में एसएसपी इटावा को भगवान देवी द्वारा 22 सितंबर, 2020 को गुमशुदगी की जो सूचना थाना जसवंतनगर में दर्ज कराई थी. पुलिस पूछताछ में आरोपियों के नाम भी बताए थे. इस के बाद 26 सितंबर को जब बाजरा के खेत में कंकाल मिला, तब कपड़ों व अन्य चीजों से कंकाल की पहचान बेटी रीता के रूप में की थी. इसी गुमशुदगी को प्रथम सूचना रिपोर्ट के रूप में आरोपियों के खिलाफ परिवर्तित करने तथा दोबारा डीएनए टेस्ट कराने और 2 माह में डीएनए रिपोर्ट और जांच प्रगति रिपोर्ट न्यायालय में दाखिल करने के आदेश दिए.

कोर्ट के आदेश के बाद सोई हुई पुलिस सक्रिय हुई और घटना के लगभग 2 साल बाद 22 जुलाई, 2022 को गांव चक सलेमपुर निवासी शटङ्क्षरग का काम करने वाले रामकुमार, उस की पत्नी मिथिलेश कुमारी, बेटा मोहित व थाना बलरई के गांव ज्वालापुर निवासी सत्येंद्र कुमार के खिलाफ पुलिस ने भादंवि की धारा 302, 120बी, 506, 3(2)बी एससी/एसटी एक्ट के अंतर्गत रिपोर्ट दर्ज कर ली. क्षतविक्षत कंकाल और एक परिवार के दावों के बीच फंसी पुलिस ने कोर्ट के आदेश के बाद कंकाल का दोबारा डीएनए कराने का फैसला किया. भगवान देवी व उस के पति कुंवर सिंह का ब्लड सैंपल फोरैंसिक टीम द्वारा लेने के बाद लखनऊ लैब 18 अगस्त, 2022 को डीएनए जांच के लिए भेजा गया.

पुलिस द्वारा कई रिमाइंडर देने पर 11 महीने बाद 10 जुलाई, 2023 को दूसरी बार मिले डीएनए रिपोर्ट इस आधार पर बेनतीजा रही कि शव का नमूना मैच नहीं हो रहा. लैब की इस रिपोर्ट ने पुलिस को चकित और भगवान देवी को परेशान कर दिया. क्योंकि लाश (कंकाल) भगवान देवी के परिवार से जुड़ी नहीं थी.

सामान रीता का, कंकाल किसी और का                            

पुलिस का कहना था कि 11 महीने बाद जो दूसरी रिपोर्ट प्राप्त हुई है, वह मृतका के मम्मीपापा के डीएनए से मैच नहीं हो रही है. पुलिस ने मृतका का मातापिता न मानते हुए कंकाल देने से इंकार कर दिया. 2-2 बार डीएनए की रिपोर्ट सही न आने के बाद मामला फिर ठंडे बस्ते में चला गया.

जांचकर्ताओं ने यह संदेह करते हुए कि कंकाल के पास से मिले सामान जरूरी नहीं हैं कि मृतक रीता के ही हों. हो सकता है कि हत्यारों ने पुलिस को चकमा देने के लिए रीता के कपड़ों व पहने गहनों के साथ किसी दूसरे का शव वहां ला कर डाल दिया हो. इस बात की भी आशंका व्यक्त की गई कि कहीं रीता का अपहरण तो नहीं कर लिया गया?

जांचकर्ताओं ने शव (कंकाल) को डीएनए मैच न होने पर इन्हीं आशंकाओं के चलते सौंपने से इंकार कर दिया. चूंकि हत्या के संभावित मामले में क्षतविक्षत मानव अवशेष ही एकमात्र सुराग थे, इसलिए पुलिस ने यह सुनिश्चित करने के लिए हरसंभव सावधानी बरती कि सबूत प्रभावित न हों और अच्छी तरह से सुरक्षित हों.       भगवान देवी ने आरोप में कहा कि रामकुमार की रीता के साथ दोस्ती थी. वह अकसर उस के मोबाइल पर फोन कर के उस से बात करता था. दोनों चोरीछिपे मिलते भी थे. हम लोगों को इस बात की जानकारी रीता का कंकाल मिलने के बाद उस समय हुई, जब पुलिस ने उस के मोबाइल की काल डिटेल्स निकलवाई. काल डिटेल्स से पता चला कि उस की आखिरी बार रामकुमार से ही बात हुई थी.

जब रामकुमार की पत्नी मिथलेश को इन संबंधों की जानकारी हुई तो सभी आरोपियों ने षडयंत्र के तहत रीता को फोन कर के 19 सितंबर, 2020 को अपने घर बुलाया और मिल कर उस की हत्या कर दी. रात के समय वे उसे बाजरा के खेत में डाल आए. शव को कैमिकल डाल कर जलाया गया था, ताकि उस की पहचान न हो सके.

पुलिस ने आरोपियों को क्यों नहीं किया गिरफ्तार

रीता के मोबाइल की काल डिटेल्स से भी स्पष्ट हो गया कि आखिरी बार रीता के पास रामकुमार के बेटे का ही फोन आया था. उस के पास अधिकतर रामकुमार के ही फोन आते थे. रीता के बड़े भाई राजीव का कहना था कि यदि कंकाल उस की बहन रीता का नहीं है, तो रीता का क्या हुआ? वह कहां है? पुलिस अब तक उस का पता क्यों नहीं लगा सकी? दूसरी ओर अपने दावे में दम दिखाने के लिए भगवान देवी ने भी इटावा के एसएसपी को एक प्रार्थना पत्र दे कर नामजद आरोपियों की गिरफ्तारी की मांग की.

इस पर तत्कालीन जांच अधिकारी संजय कुमार सिंह ने कहा कि जब तक यह साबित नहीं हो जाता कि कंकाल तुम्हारी बेटी रीता का है, तब तक कैसे किसी को आरोपी मान लिया जाए?

भगवान देवी ने तत्कालीन पुलिस अधिकारियों पर आरोप लगाया कि गिरफ्तारी न होने का फायदा उठा कर बेटी के हत्यारे खुलेआम गांव में घूमते रहे, बाद में मौका पा कर वे फरार हो गए.

इसी बीच गांव में भी इस बात की चर्चा चलने लगी कि रीता और रामकुमार के बीच प्रेम संबंध थे. वे चोरीछिपे मुलाकात करने लगे. धीरेधीरे मुलाकात दोस्ती में बदल गई. कहने को दोनों की उम्र में दोगुने का फर्क था. रामकुमार 45 साल का और रीता 22 साल की थी, लेकिन रामकुमार की मीठीमीठी बातों में आ कर रीता बहक गई थी.

दोनों के बीच प्रेम संबंधों की किसी को भनक तक नहीं लगी. दोनों अकसर एकदूसरे से फोन पर बात कर लेते थे. जब दोनों के प्रेम संबंधों की जानकारी रामकुमार की पत्नी मिथिलेश को हुई तो उस ने सुनियोजित ढंग से अंजाम दे कर रीता की हत्या करवा दी. इस के लिए घटना वाले दिन उस ने बेटे मोहित के मोबाइल से रीता को फोन कर के बुला लिया.

इस बात को भगवान देवी ने भी बातचीत के दौरान स्वयं स्वीकार किया है. उस ने बताया कि कंकाल मिलने के बाद रामकुमार ही हमदर्द बन कर खड़ा रहा, यहां तक कि कंकाल मिलने से पहले रीता की तलाश में भी वह उन के साथ रहा. लेकिन बाद में रामकुमार की भूमिका को ले कर जब सवाल खड़े होने लगे, तब रामकुमार पर शक जाहिर करते उस के खिलाफ प्रार्थनापत्र दिए और कोर्ट के आदेश के बाद पुलिस ने नामजद रिपोर्ट दर्ज की.

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पुलिस गोपनीय तरीके से क्यों कर रही थी अंतिम संस्कार

कोर्ट के आदेश पर दूसरी बार कराए गए डीएनए टेस्ट का मैच न होने के बाद पुलिस ने अदालत को रिपोर्ट भेज दी और गुपचुप तरीके से कंकाल की अंत्येष्टि की योजना बनाई. श्मशान में पुलिस ने 5 फीट गहरा तथा 6 फीट लंबा गड्ढा खुदवा कर तैयार कर लिया.

इस की भनक जैसे ही भगवान देवी को हुई तो उस ने पुलिस के सामने हंगामा कर दिया. उस ने पुलिस को चेतावनी दी कि यदि उस की बेटी के संबंध में पूरी काररवाई से पहले कंकाल का अंतिम संस्कार लावारिस की तरह किया गया तो वह इसी गड्ढे में आत्महत्या कर लेगी. भगवान देवी के उग्र तेवर देख कर पुलिस को अपने कदम पीछे करने पड़े.

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इटावा के मुख्य चिकित्साधिकारी डा. गीताराम ने बताया कि डीएनए जांच के लिए सैंपल भेजा गया था. लखनऊ लैब की रिपोर्ट स्पष्ट न आने पर पूरा कंकाल मंगाया गया. इस के बाद भी 2 बार सैंपल भेजे. अभी तक डीएनए रिपोर्ट नहीं आई है. फिर से डीएनए सैंपल न लेना पड़े, इसलिए कंकाल को पुलिस ने डीप फ्रीजर में सुरक्षित रखा है.

प्रदेश भर में गूंजा रीता हत्याकांड

इस के बाद तो मामले की गूंज प्रदेश भर में गूंजने लगी थी. कंकाल की खबर इलैक्ट्रौनिक और प्रिंट मीडिया में प्रमुखता से छाने लगी. 3 साल से इटावा के अस्पताल की मोर्चरी के डीप फ्रीजर में कैद एक युवती की लाश (कंकाल) Crime Stories जिस का 2-2 बार डीएनए टेस्ट कराने के बाद भी मामला अधर में लटका हुआ था.

इटावा के जिला चिकित्सालय की मोर्चरी में पिछले 3 साल से डीप फ्रीजर में बंद कंकाल के लावारिस हालत में पड़े होने की जानकारी को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गंभीरता से लिया.

26 अक्तूबर, 2023 को हाईकोर्ट ने समाचार पत्रों में प्रकाशित रिपोर्ट का स्वत: संज्ञान लेते हुए अपना निर्णय देते हुए मुख्य न्यायमूर्ति प्रीतिंकर दिवाकर, न्यायमूर्ति अजय भनोट की खंडपीठ ने सरकार और पुलिस अधिकारियों से पूछा कि आमतौर पर शव गृहों में रखे गए शवों के अंतिम संस्कार की क्या प्रथा है? इटावा के इस मामले में इतना विलंब होने की क्या वजह है? क्या ऐसा कोई नियम है, जिस के तहत सरकार को निश्चित समय में शवों का अंतिम संस्कार करना होता है?

कोर्ट ने प्रकरण में विवेचना की स्थिति और शव संरक्षित करने की स्थिति, शव संरक्षित करने की पूरी टाइम लाइन बताने का निर्देश दिया. इस के साथ ही केस डायरी और डीएनए जांच के लिए भेजे गए सैंपल और उस की रिपोर्ट के बारे में भी जानकारी मांगी.

मृतका की मम्मी भगवान देवी व घर वालों की भावनाओं को देखते हुए न्यायालय ने पुलिस को हैदराबाद की लैब में डीएनए टेस्ट कराने का निर्देश दिया. इस मामले की अगली सुनवाई की तिथि 31 अक्तूबर, 2023 निश्चित कर दी.

उच्च न्यायालय ने बार एसोसिएशन के महासचिव नितिन शर्मा को इस प्रकरण में न्याय मित्र नियुक्त करते हुए उन से न्यायालय का सहयोग करने के लिए कहा.

मामले का स्वत:संज्ञान लेते हुए राज्य सरकार और इटावा के पुलिस अधिकारियों से विस्तार से जानकारी उपलब्ध कराने के लिए कहा है. कोर्ट ने कहा कि कानूनव्यवस्था का मूल्यांकन न केवल जीवित लोगों के साथ उस के व्यवहार के तरीके से किया जाना चाहिए, बल्कि मृतकों को देने वाले सम्मान से भी किया जाना चाहिए.

कोर्ट ने कहा कि मृतकों की प्रतिष्ठा और जीवितों की प्रतिष्ठा जैसा कोई भी विभाजन प्रतिष्ठा को उस के अर्थ से वंचित कर देगा. मृत्यु जीवन की तुच्छता को दर्शाती है. प्रतिष्ठा जीवन की सार्थकता की गवाही देती है. यदि मृतकों की प्रतिष्ठा सुरक्षित नहीं है तो जीवित लोगों की प्रतिष्ठा सुरक्षित नहीं है.

यदि मृतकों की प्रतिष्ठा को महत्त्व नहीं दिया जाता है तो जीवित लोगों की प्रतिष्ठा को भी महत्त्व नहीं दिया जाता है. संविधान मृतकों का संरक्षक है, कानून उन का सलाहकार है और अदालतें उन के अधिकारों की प्रहरी हैं.

बारबार क्यों कराया गया डीएनए टेस्ट

कोर्ट के आदेश के बाद इटावा पुलिस ने कंकाल के साथ ही रीता के मम्मीपापा के सैंपल ले कर दिसंबर, 2023 में सेंट्रल फोरैंसिक साइंस लैबोरेटरी, हैदराबाद को भेजा गया.

इस लैब से जनवरी, 2024 को जो रिपोर्ट पुलिस को प्राप्त हुई, वह पौजीटिव थी. रिपोर्ट में कहा गया था कि कंकाल व मम्मीपापा के सैंपल की जांच से स्पष्ट हो गया कि कंकाल के मम्मीपापा भगवान देवी व कुंवर सिंह ही हैं.

कंकाल बेटी रीता का ही है, इस बात की जानकारी मिलते ही घर वालों ने राहत की सांस ली. डीप फ्रीजर में कैद रीता का कंकाल, जो पिछले 40 महीने से अंतिम संस्कार का इंतजार कर रहा था, को घर वालों द्वारा लंबी कानूनी लड़ाई के बाद कैद से मुक्त करा लिया गया.

31 जनवरी, 2024 को पुलिस ने रीता की मम्मी भगवान देवी को तहसील बुलाया. वह घर के अन्य सदस्यों के साथ तहसील पहुंची तो उन सब से तहसील अधिकारियों ने कहा कि बेटी का कंकाल ले जाओ और खामोशी से इसे दफना दो. इस के बाद कंकाल उन को सौंप दिया गया.

डीएम इटावा के निर्देश पर 4 सदस्यीय टीम जिस में एसडीएम दीपशिखा, तहसीलदार भूपेंद्र सिंह, एसएचओ कपिल दुबे, क्राइम इंसपेक्टर रमेश सिंह शामिल थे, रीता के परिवार के चक सलेमपुर स्थित खेत पर पहुंचे, जहां उन की देखरेख में भाई राजीव व उस के चचेरे भाई ने गड्ढा खोदने के बाद खामोशी से कंकाल को दफना दिया.

पुलिस शुरू से ही क्यों रही लापरवाह

मृतका के बड़े भाई राजीव व छोटे भाई सौरभ उर्फ बंटी ने बताया कि पुलिस शुरू से ही मामले में ढील डाले रही. शुरू में गुमशुदगी दर्ज कराई थी, उस में किसी को नामजद नहीं किया गया था, लेकिन लाश (कंकाल) मिलने के बाद पुलिस पूछताछ में आरोपियों के नाम बताए थे.

लेकिन तत्कालीन पुलिस अधिकारियों  के ढुलमुल रवैए के चलते किसी भी आरोपी को हिरासत में नहीं लिया गया. नामजद किए गए आरोपी भनक लगते ही घटना के 11वें दिन अपने घर ताला लगा कर रात में ही फरार हो गए.

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                                                                        आरोपी रामकुमार

यदि पुलिस मुख्य आरोपी रामकुमार को हिरासत में ले कर पूछताछ करती तो हत्या का राज उसी समय खुल जाता, लेकिन तत्कालीन पुलिस अधिकारियों ने पूछताछ करना भी जरूरी नहीं समझा और आरोपियों को हत्या के सबूत नष्ट करने का समय दे दिया.

यहां तक कि आरोपी रामकुमार ने साल 2021 में अपना जसवंतनगर का प्लौट व सिरसा में खेती की जमीन भी बेच दी. यह सब उन लोगों ने षडयंत्र के तहत ही किया है.

45 वर्षीय रामकुमार मूलरूप से इटावा जिले के सिरसा का रहने वाला है. लगभग 20-22 साल पहले वह गांव चक सलेमपुर में आ कर मकान बना कर पत्नी के साथ रहने लगा था. वह शटरिंग का काम करता था.

एसएसपी संजय कुमार शर्मा ने बताया कि इस मामले की जांच नए सिरे से शुरू की गई है. जांच के लिए सर्विलांस सहित 3 टीमों को लगाया गया है. जल्द ही हत्या Crime Stories के आरोपियों की गिरफ्तारी कर मामले का परदाफाश किया जाएगा. रिपोर्ट में जो लोग नामजद हैं, उन के बारे में भी गहराई से छानबीन की जाएगी. गुनहगारों को उन की सही जगह पहुंचाया जाएगा.

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                                                     आरोपी मिथिलेश कुमारी

इसी बीच मृतका रीता के कंकाल का डीएनए उस के मम्मीपापा से मैच हो जाने की जानकारी मिलते ही हत्या के आरोपी रामकुमार व उस की पत्नी मिथलेश ने 2 फरवरी, 2024 को इटावा की अदालत में आत्मसमर्पण के लिए प्रार्थनापत्र दिया, लेकिन इसी दौरान मिथिलेश को चोट लग गई, जिस के चलते केवल रामकुमार ही आत्मसमर्पण कर सका.

न्यायालय ने उसे न्यायायिक हिरासत में लेने के बाद जेल भेज दिया. जबकि 28 फरवरी, 2024 को आरोपी रामकुमार के बेटे मोहित गौतम ने भी आत्मसमर्पण के साथ जमानत के लिए प्रार्थनापत्र दिया. न्यायालय ने जमानत प्रार्थनापत्र पर 4 मार्च, 2024 को सुनवाई करते हुए जमानती प्रार्थनापत्र अस्वीकार करते हुए मोहित को जेल भेज दिया.

जांच अधिकारी इंसपेक्टर रमेश सिंह ने बताया कि इस सोशल क्राइम के 2 आरोपियों रामकुमार और मोहित ने न्यायालय में आत्मसमर्पण कर दिया है. दोनों इस समय जेल में हैं. तीसरी आरोपी रामुकमार की पत्नी मिथिलेश कुमारी फरार चल रही है. पुलिस सरगर्मी से उसे तलाश रही है. मुखबिर भी लगा दिए गए हैं, उसे शीघ्र गिरफ्तार कर जेल भेजा जाएगा.

—कथा पुलिस सूत्रों और मृतका के घर वालों से हुई बातचीत पर आधारित

Crime Stories : कैंची से पत्नी ने पति को मार डाला

Crime Stories : पतिपत्नी का रिश्ता विश्वास का होता है जिस की बराबरी किसी रिश्ते से नहीं की जा सकती, लेकिन प्रेमपाश में फंसी अंशिका कहीं की नहीं रही. तथाकथित प्यार की खातिर उस ने अपना तो सुहाग उजाड़ा ही, उसे अपने मासूम बच्चे से भी अलग हो कर जेल जाना पड़ा. मे वाराम यादव 8 जून, 2018 को अपनी बेटी ममता की ससुराल थाना सिरसागंज के गांव इंदरगढ़ गए थे. वहां के किसी वैद्य से उन्हें अपनी दवा लेनी थी. दवा ले कर उन्हें अगले दिन ही दोपहर तक घर लौटना था. लेकिन इस से पहले ही 9 जून की सुबह करीब 5 बजे उन के मोबाइल पर उन के बेटे सुनील की बहू अंशिका का फोन आया.

उस समय वह बहुत घबराई हुई थी. उस ने कहा, ‘‘पापा आप जल्दी से घर आ जाओ, सूर्यांश के पापा सुबह 3 बजे घर से दिशा मैदान के लिए गए थे, लेकिन 2 घंटे हो गए अब तक नहीं लौटे हैं. वह अपना मोबाइल भी घर पर छोड़ गए थे.’’

बहू की बात सुन कर मेवाराम घबरा गए. उन्होंने बहू से कहा कि वह चिंता न करे, वे अभी गांव आ रहे हैं. बात बेटे के लापता होने की थी, इसलिए उन्होंने बेटी के ससुर यानी अपने समधी दिगंबर सिंह को यह बात बताई और अपनी बाइक उठा कर वापस अपने गांव नगला जलुआ के लिए चल दिए. इंद्रगढ़ से उन के गांव की दूरी बाइक से मात्र 30 मिनट की थी. रास्ते भर उन के दिमाग में यही बात घूम रही थी कि आखिर उन का बेटा सुनील चला कहां गया. घर पहुंच कर उन्होंने अपनी बहू अंशिका से पूरी जानकारी ली. अंशिका ने बताया कि वह सुबह 3 बजे के करीब दिशा मैदान गए थे. उस समय वह केवल अंडरवियर और बनियान पहने हुए थे. जब वह काफी देर बाद भी वापस नहीं आए तब मुझे चिंता हुई और मैं ने घर से बाहर जा कर उन्हें खेतों की ओर तलाशा, लेकिन वह कहीं भी दिखाई नहीं दिए.

बोरी में मिली लाश

सुनील मेवाराम का 28 साल का बेटा था. उन्होंने करीब 5 साल पहले उस की शादी अंशिका से की थी. वह भी सुनील को खोजने के लिए जंगल की तरफ चल दिए. उन के साथ गांव के कुछ लोग भी थे. उन्होंने बेटे को संभावित जगहों पर ढूंढा लेकिन पता नहीं लगा. जब वह वापस घर की तरफ आ रहे थे तभी रास्ते में मिले कुछ लोगों ने उन्हें बताया कि रेलवे लाइन के किनारे झाडि़यों में एक बोरी पड़ी है. देखने से लग रहा है कि उस में कोई लाश है. खून भी रिस रहा है. इतना सुनते ही मेवाराम गांव वालों के साथ रेलवे लाइन की तरफ चल दिए. लाइन गांव से लगभग 200 मीटर दूर दक्षिण दिशा में थी.

सभी लोग वहां पहुंचे तो लाइन के पास की झाडि़यों में एक बोरा पड़ा था, बोरे से जो खून रिस रहा था उस पर मक्खियां भिनभिना रही थीं. लोगों ने जब गौर से देखा तो खून की बूंदें थीं. ऐसा लग रहा था कि बोरी को कुछ समय पहले ही ला कर फेंका गया है. वैसे तो वह बोरी पुलिस की मौजूदगी में ही खोली जानी चाहिए थी. लेकिन बोरी देख कर मेवाराम की धड़कनें बढ़ गई थीं. बोरी के अंदर क्या है, यह देखने की उन की उत्सुकता बढ़ गई थी. इसलिए उन्होंने गांव वालों के सामने जब बोरी खुलवाई तो उस में उन के बेटे सुनील की ही लाश निकली. बेटे की लाश देखते ही मेवाराम गश खा कर जमीन पर बैठ गए और रोने लगे. उन की समझ में नहीं आ रहा था कि उन के बेटे की हत्या किस ने और क्यों की. इस के बाद तो यह खबर जल्द ही आसपास के गांवों में भी फैल गई. जिस से वहां तमाम लोग इकट्ठा हो गए. सभी आपस में तरहतरह के कयास लगा रहे थे.

गांव के ही किसी व्यक्ति ने पुलिस को घटना की सूचना दे दी. सूचना मिलने के कुछ देर बाद ही थानाप्रभारी विजय कुमार गौतम पुलिस टीम के साथ वहां पहुंच गए. पुलिस ने जब लाश का निरीक्षण किया तो उस के सिर और शरीर पर तेज धारदार हथियार के घाव थे. इस के अलावा उस की नाक भी कटी हुई थी. सारे घावों से जो खून निकला था, उसे देख कर लग रहा था कि उस की हत्या Crime Stories कुछ घंटों पहले ही की गई थी. रास्ते में जो खून के निशान थे उन का पीछा किया गया तो वह भी गांव के पास तक मिले. उस के बाद उन का पता नहीं चला. इन सब बातों से पुलिस को इतना तो विश्वास हो गया कि सुनील की हत्या गांव में ही करने के बाद उस की लाश यहां डाली गई थी.

थानाप्रभारी ने मृतक के पिता मेवाराम से बात की तो उन्होंने किसी व्यक्ति पर कोई शक नहीं जताया. तब थानाप्रभारी ने जरूरी काररवाई कर लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी. मेवाराम उत्तर प्रदेश के जिला फिरोजाबाद के गांव नगला जलुआ में रहते थे. वह गांव में ही टेलरिंग का काम करते थे. उन के 3 बेटे और 2 बेटियां थीं. उन के पास खेती की 3 बीघा जमीन थी जो बंटाई पर दे रखी थी. टेलरिंग की कमाई से ही वह अपने 4 बच्चों का विवाह कर चुके थे. केवल छोटा बेटा सनी ही शादी के लिए बचा था.

मेवाराम की पत्नी मुन्नी देवी की 3 साल पहले मौत हो चुकी थी. सब से बड़ा सुनील पिछले 4 साल से दक्षिणी दिल्ली के फतेहपुर बेरी स्थित एक फैक्ट्री में सिलाई का काम करता था. यह फैक्ट्री रेडीमेड कपड़े एक्सपोर्ट करती थी. सुनील के दोनों छोटे भाई संजय व सनी भी उसी के साथ रह कर ड्राइवरी करते थे. फतेहपुर बेरी में ही सुनील की बहन पिंकी की सुसराल थी. वहीं पास में ही उन्होंने किराए पर मकान ले लिया था. मेवाराम ने सुनील की शादी 5 साल पहले फिरोजाबाद के गांव ढोलपुरा निवासी वीरेंद्र यादव की बेटी अंशिका उर्फ अनुष्का के साथ की थी. सुनील का डेढ़ साल का बेटा सूर्यांश था. जबकि संजय का अभी कोई बच्चा नहीं था. सुनील और संजय कुछ दिनों के लिए बारीबारी से अपनी पत्नी को गांव से दिल्ली लाते थे.

अंशिका जब दिल्ली से अपनी ससुराल नगला जलुआ लौटती थी तो वहां से जल्द ही अपने मायके ढोलपुरा चली जाती थी. मई 2018 के शुरू में सुनील अंशिका के साथ दिल्ली से अपने गांव आया, कुछ दिन गांव में रहने के बाद वह पत्नी व बेटे सूर्यांश को ढोलपुरा छोड़ कर वापस दिल्ली चला गया. उस के बाद 28 मई को दिल्ली से सुनील पत्नी को लेने आया. वह अपनी ससुराल से पत्नी व बेटे को अपने गांव नगला जलुआ ले आया. उस ने अंशिका से कह दिया था कि 10 जून को दिल्ली चलेंगे. लेकिन दिल्ली लौटने से पहले ही सुनील की हत्या हो गई.

 साड़ी व पेटीकोट पर मिले खून के धब्बे

थानाप्रभारी विजय कुमार गौतम मेवाराम से बात करने के लिए उन के घर पहुंच गए. पूछताछ में मेवाराम ने बताया कि सुनील सुबह 3 बजे दिशा मैदान के लिए कभी नहीं गया, और न ही वह केवल अंडरवीयर में जाता था. उन्होंने बताया कि उन्हें शक है कि सुनील की पत्नी अंशिका उस से कुछ छिपा रही है. इस के बाद थानाप्रभारी ने सुनील के कमरे का निरीक्षण किया तो उन्हें सड़क की ओर के दरवाजे पर खून लगा दिखाई दिया. खून देख कर थानाप्रभारी समझ गए कि सुनील की हत्या इसी घर में करने के बाद उस के Crime Stories शव को रेलवे लाइन के पास फेंका गया था. पुलिस ने अंशिका से सुनील की हत्या के बारे में पूछताछ की तो अंशिका ने रट्टू तोते की तरह ससुर को सुनाई कहानी दोहरा दी. थानाप्रभारी ने उस से पूछा कि सुनील नंगे पैर गया था या चप्पलें पहन कर. इस पर वह कोई जवाब नहीं दे सकी.

पुलिस ने घर में छानबीन की तो अंदर के कमरे के फर्श पर खून के निशान दिखाई दिए, जिसे साफ किया गया था. इस के साथ ही उस कमरे के दवाजे पर भी खून के छींटे साफ दिखाई दे रहे थे. जो सुनील की Murder Story हत्या उसी कमरे में होने की गवाही दे रहे थे. पुलिस को घर में ही अंशिका की साड़ी व पेटीकोट सूखता मिला, जिसे धोने के बाद भी उस पर खून के धब्बे दिख रहे थे.

पुलिस ने फिंगरप्रिंट एक्सपर्ट टीम को भी मौके पर बुला लिया. जिस ने जमीन तथा दरवाजे से खून के नमूने एकत्र किए. अधिकारियों को घटना की जानकारी देने पर एसपी (ग्रामीण) महेंद्र सिंह क्षेत्राधिकारी अभिषेक कुमार राहुल तथा महिला कांस्टेबल बीना यादव को साथ ले कर गांव पहुंच गए. सबूतों के आधार पर पुलिस ने अंशिका को हिरासत में ले लिया. इस के बाद पुलिस घटनास्थल की काररवाई निपटा कर अंशिका और उस के ससुर मेवाराम को थाने ले आई. थाने ले जा कर महिला पुलिस ने जब अंशिका से उस के पति सुनील की हत्या के बारे में सख्ती से पूछताछ की तो वह टूट गई और फूटफूट कर रोने लगी. उस ने अपने पति की हत्या की जो कहानी पुलिस को सुनाई वह इस प्रकार थी—

पत्नी बनी पति की कातिल

अंशिका ने पुलिस को बताया कि उस ने अपने दिल्ली के प्रेमी राजा और उस के साथी रोहित के साथ मिल कर पति की हत्या की थी. उस ने आगे बताया कि करीब ढाई साल पहले वह दिल्ली के फतेहपुर बेरी में अपने पति व देवरों के साथ रहती थी. वहीं सामने के कमरे में उत्तर प्रदेश के बरेली शहर निवासी राजा रहता था. राजा हलवाई का काम करता था. उसी समय राजा की दोस्ती सुनील व उस के देवरों से हो गई थी. राजा का उन के घर भी आनाजाना था. उसी दौरान उस के व राजा के प्रेम संबंध हो गए. इस की किसी को कोई भनक तक नहीं लगी. अंशिका शादी के बाद से ही अपने पति सुनील को पसंद नहीं करती थी. उस ने दिल्ली से अपने प्रेमी राजा को 8 जून की रात को ही गांव बुला लिया था.

राजा अपने दोस्त रोहित के साथ गांव पहुंचा था. उस ने मकान के सड़क की ओर वाले दरवाजे से दोनों को अंदर बुला कर कमरे में छिपा दिया था. उस समय सुनील मकान के मुख्य दरवाजे पर बैठ कर गांव के लोगों से बात कर रहा था. रात 12 बजे सुनील खाना खा कर जब बीच वाले कमरे में पलंग पर गहरी नींद में सो गया, तभी उस ने करीब 2 बजे प्रेमी व उस के दोस्त के साथ मिल कर सुनील को सोते समय दबोच लिया और उस का मुंह बंद कर के अंदर वाली कोठरी में ले गए, जहां कैंची व डंडों से उस की हत्या कर दी गई. इस बीच अंशिका सुनील के हाथ पकडे़ रही. सुनील की हत्या के बाद उस की Crime Stories लाश को एक बोरे में भर कर राजा व उस का दोस्त रेलवे ट्रैक के पास झाडि़यों में फेंक कर दिल्ली वापस चले गए. अंशिका ने बताया कि इस के बाद उस ने बरामदे में पडे़ खून को पानी से धो दिया.

उस के कपड़ों पर भी खून लग गया था, इसलिए उस ने कपड़े धो कर डाल दिए. अंशिका से पूछताछ के बाद पुलिस ने उस के और उस के दिल्ली निवासी प्रेमी राजा तथा उस के साथी रोहित के खिलाफ हत्या व साक्ष्य छिपाने का मुकदमा दर्ज कर लिया. पुलिस ने मुकदमा दर्ज होते ही अपनी काररवाई शुरू कर दी. दिल्ली में रह रहे सुनील के भाई संजय और सनी व बहन को जब सुनील की हत्या की जानकारी मिली तो वह भी दिल्ली से अपने गांव आ गए. संजय और सनी को जब पता चला कि अंशिका सुनील के कत्ल में राजा और रोहित के शामिल होने की बात कह रही है तो वे चौंके, क्योंकि 8 जून, 2018 की रात 11 बजे राजा उन के साथ था.

9 जून की सुबह 6 बजे भी उन्होंने राजा को दिल्ली में देखा था. मेवाराम ने यह बात थाने जा कर थानाप्रभारी विजय कुमार गौतम को बता दी. इस पर पुलिस ने एक बार फिर अंशिका से सख्ती से पूछताछ की. इस के बाद उस ने पुलिस को वास्तविक कहानी बताई, जो इस प्रकार थी—

अंशिका की एक बुआ गांव कटौरा बुजुर्ग में रहती थी. शादी से पहले अंशिका का अपनी बुआ के यहां आनाजाना लगा रहता था. बुआ के मकान के पास ही शमी उर्फ शिम्मी नाम का युवक रहता था. इसी दौरान शमी और अंशिका के बीच प्यार का चक्कर चल पड़ा. दोनों एकदूसरे को बेहद पसंद करने लगे. बाद में दोनों ने शादी की इच्छा जताई. लेकिन अंशिका की नानी को यह रिश्ता पसंद नहीं आया, क्योंकि शमी कुछ कमाता नहीं था. इस के अलावा उस के पास खेती की जमीन भी नहीं थी. करीब 5 साल पहले अंशिका की शादी सुनील से हो जरूर गई थी, लेकिन वह सुनील को पसंद नहीं करती थी. शादी के बाद भी उस के और शमी के संबंध जारी रहे, वह चाह कर भी उसे भुला नहीं सकी. सुनील शादी के बाद जब भी अंशिका को दिल्ली ले जाता तो कुछ दिन रहने के बाद वह गांव जाने की जिद करने लगती थी, गांव आने के बाद वह वहां से अपने मायके चली जाती थी.

मायके से वह अपनी बुआ के गांव जा कर प्रेमी शमी से मिलती थी. सुनील को अंशिका की गतिविधियों पर शक होने लगा था. दोनों में इसी बात को ले कर झगड़ा भी होता था. शमी और अंशिका ने अपने प्यार के बीच कांटा बने सुनील को रास्ते से हटाने की योजना बनाई. शमी ने अंशिका को एक मोबाइल दे रखा था, जिसे वह अपने संदूक में कपड़ों के बीच छिपा कर रखती थी. मौका मिलते ही वह शमी से बात कर लेती थी. 8 जून की शाम को जब अंशिका के ससुर इंदरगढ़ में रहने वाली अपनी बेटी के यहां चले गए तो घर पर अंशिका और सुनील ही रह गए थे. अच्छा मौका देख कर शमी द्वारा दिए गए मोबाइल, जिसे वह सायलेंट मोड पर रखती थी, से शमी को फोन कर के गांव बुला लिया. शमी अपने दोस्त के साथ आया था. अंशिका की मोबाइल पर उस से रात साढ़े 8 बजे, 9 बजे व रात 12 बजे बातचीत हुई.

शमी ने गांव पहुंच कर अंशिका को अपने आने की जानकारी दे दी. रात 12 बजे के बाद अंशिका सुनील से कह कर शौच के बहाने घर से निकली. उस ने खेत में छिपे अपने प्रेमी शमी से कहा कि वह सड़क की तरफ वाले दरवाजे की कुंडी नहीं लगाएगी. जब फोन करूं तभी चुपके से उसी दरवाजे से आ जाना. रात को सुनील खाना खा कर गहरी नींद सो गया. अंशिका ने प्रेमी व उस के साथी को घर में बुला कर अंदर के कमरे में छिपा दिया. रात 12 बजे शमी व उस के साथी ने सोते समय सुनील को दबोच लिया और उस का मुंह बंद कर के अंदर के कमरे में ले गए, जहां कैंची व डंडों से उस की हत्या कर दी. हत्यारों ने कैंची से सुनील की नाक भी काट दी.

सुनील की हत्या होने की भनक गांव वालों को नहीं लगी. हत्या के बाद शव को बोरे में बंद कर रेलवे ट्रैक पर डालने की योजना थी ताकि सुबह 4 बजे फर्रुखाबाद की ओर से आने वाली कालिंदी एक्सप्रेस से शव के परखच्चे उड़ जाएं और मामला दुर्घटना जैसा लगे, लेकिन बोरा वहां लगे तारों में उलझने की वजह से रेलवे लाइन तक नहीं पहुंच सका. वे लोग बोरे को झाडि़यों में फेंक कर भाग गए. इस के बाद मेवाराम ने थाने में नई तहरीर दे कर सुनील की हत्या के लिए अंशिका उस के प्रेमी शमी तथा उस के अज्ञात साथी को दोषी बताया. दूसरे दिन पुलिस ने अंशिका को पति Crime Stories की हत्या, साक्ष्य मिटाने के आरोप में जेल भेज दिया. पुलिस ने हत्या के बाद उस के प्रेमी शमी की गिरफ्तारी के लिए उस के गांव व अन्य ठिकानों पर दबिश दी, लेकिन उस का कोई सुराग नहीं मिला.

अंतत: 18 जून, 2018 को शमी ने न्यायालय में सरेंडर कर दिया. न्यायालय द्वारा उसे जेल भेज दिया गया. दूसरे दिन थानाप्रभारी ने जिला जेल पहुंच कर शमी से सुनील की हत्या के बारे में पूछताछ की. शमी पुलिस को गुमराह करता रहा, इस के बाद 24 जून को पुलिस ने शमी को न्यायालय से 4 घंटे के रिमांड पर ले लिया. शमी की निशानदेही पर पुलिस ने हत्या में इस्तेमाल कैंची गांव के बाहर झाडि़यों से बरामद कर ली. पुलिस के अनुसार हत्या के पीछे शमी और अंशिका के अवैध संबंध थे. कथा लिखे जाने तक शमी के साथी की पुलिस तलाश कर रही थी.

बेटे की हत्या से व्यथित पिता मेवाराम ने कहा कि अगर बहू को मेरा बेटा पसंद नहीं था तो उसे छोड़ देती, उस की हत्या करने की क्या जरूरत थी. अंशिका के जेल जाने के बाद उस का अबोध बेटा दिल्ली में अपने चाचाओं के साथ रह रहा था.

— कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Murder stories : 150 रुपये के लिए प्लंबर बन गया तीन मौतों का कातिल

Murder stories :  गुस्से में की गई जिद कभीकभी बड़ी दुखदायी साबित होती है. प्लंबर धर्मेंद्र और चैतन्य मामूली पैसों को ले कर अपनीअपनी हठ पर अड़े थे. इस हठ ने ऐसा विकराल रूप लिया कि…

यो गमाया साहू छत्तीसगढ़ के महासमुंद जिले के किशनपुर में स्थित उपस्वास्थ्य केंद्र में एएनएम थी. वहीं पर उसे सरकारी क्वार्टर मिला हुआ था, जिस में वह अपने पति चैतन्य साहू और 2 बेटों तन्मय और कुणाल के साथ रहती थी. चैतन्य साहू भी रायपुर के एक प्राइवेट अस्पताल में नौकरी करता था. चूंकि दोनों पतिपत्नी कमा रहे थे, इसलिए घर में आर्थिक समस्या नहीं थी. परिवार खुशहाली से रह रहा था. घर की साफसफाई और बरतन मांजने के लिए योगमाया ने त्यागी राणा नाम की एक बाई रख रखी थी. वह घर में झाड़ूपोंछा आदि काम निबटा कर चली जाती थी. घर के मुख्य दरवाजे की 2 चाबियां थीं. उन में से एक चाबी योगमाया ने बाई को दे रखी थी और एक को वह खुद अपने पास रखती थी.

आंगन में खून देख कर शॉक्ड

बात पहली जून, 2018 की है. काम वाली बाई त्यागी राणा रोज की तरह उस दिन भी सुबह 6 बजे सफाई करने एएनएम योगमाया साहू के क्वार्टर पर पहुंची. घर के मुख्य दरवाजे पर ताला बाहर से लगा देख बाई त्यागी राणा को अजीब लगा. क्योंकि अमूमन गेट पर ताला अंदर की ओर से बंद रहता था. अपने पास मौजूद चाबी से गेट का ताला खोल कर वह अंदर आई तो उस ने कमरे के दरवाजे को हलका सा धक्का दिया तो दरवाजा खुल गया. कमरे में कोई नहीं था. उस के बाद आवाज लगाती हुई वह आंगन में पहुंची तो आंगन में खून देख कर वह घबरा गई और उलटे पांव चीखती हुई बाहर भागी.

वह सीधी स्वास्थ्य केंद्र में मौजूद मितानिन हिरौंदी बाई साहू के पास पहुंची. वह उसी स्वास्थ्य केंद्र में नौकरी करती थी. उस ने उन्हें अपनी आंखों देखी बात बताई. स्वास्थ्य केंद्र में मौजूद स्टाफ के लोग एएनएम योगमाया के क्वार्टर पर पहुंचे तो वहां का नजारा देख कर सभी चौंक गए. योगमाया साहू, पति चैतन्य साहू और उस के बड़े बेटे तन्मय की रक्तरंजित लाशें आंगन में पड़ी हुई थीं. दूसरे कमरे में छोटे बेटे कुणाल का खून से लथपथ शव खाट के एक कोने में पड़ा था. स्वास्थ्य केंद्र में खबर देने के बाद बाई सरपंच सुरेश खुंटे के घर पहुंच गई. सरपंच ने जब सुना कि चैतन्य के घर में 4 हत्याएं हो चुकी हैं तो वह भी हैरान रह गए. पलभर में ही यह खबर पूरे किशनपुर में फैल गई. देखते ही देखते सैकड़ों तमाशबीन मौके पर पहुंच गए.

सूचना सरपंच सुरेश खुंटे ने पिथौरा थाने के थानाप्रभारी को फोन द्वारा दे दी. थानाप्रभारी रात की गश्त से लौट कर गहरी नींद में सो रहे थे. जैसे ही सरपंच का फोन आया तो उन की नींद काफूर हो गई. वह तुरंत सहयोगियों के साथ घटनास्थल की तरफ रवाना हो गए. थानाप्रभारी ने घटनास्थल पर पहुंच कर मौकामुआयना किया. उन्होंने सूचना आला अधिकारियों को दे दी. चौहरे हत्याकांड की सूचना पाने के कुछ देर बाद ही एसपी संतोष सिंह, एएसपी संजय धु्रव और एएसपी (प्रशिक्षु आईपीएस) उदय किरण घटनास्थल पर पहुंच गए.

पुलिस अधिकारियों ने मौकामुआयना किया. आंगन में फैला खून देख कर ऐसा लग रहा था जैसे घटना को 3-4 घंटे पहले अंजाम दिया गया हो. एएनएम योगमाया, उन के पति चैतन्य साहू और बड़े बेटे तन्मय की लाश एक साथ पड़ी थी. लाश से थोड़ी दूर खून से सना एक फावड़ा पड़ा था. लग रहा था कि हत्यारों ने इसी फावड़े से हत्या की थी. कमरे में लोहे की अलमारी खुली पड़ी थी. उस का सामान फर्श और बिस्तर पर बिखरा पड़ा था. यह सब देख कर यही अनुमान लगाया जा रहा था कि हत्यारे शायद चोरी की नीयत से घर में घुसे होंगे. जैसे ही उन्होंने अलमारी का लौक खोलने की कोशिश की होगी तो खटपट की आवाज सुन कर घर के किसी सदस्य की आंख खुली होगी. इसी बीच घटना को अंजाम दिया गया होगा.

पुलिस ने घटना की सूचना मृतक चैतन्य के पिता बाबूलाल साहू को दे कर मौके पर बुला लिया. वह सांकरा में अकेले रहते थे. घटना से 2 दिन पहले ही यानी 30 मई, 2018 की शाम करीब 5 बजे बाबूलाल साहू कुछ रिश्तेदारों के साथ बेटा, बहू और पोतों से मिलने किशनपुर आए थे. 3-4 घंटे बच्चों के बीच बिताने के बाद रात वह करीब 9 बजे सांकरा वापस लौट गए थे. एसपी संतोष सिंह ने बाबूलाल साहू से बेटे या बहू की किसी से कोई रंजिश या दुश्मनी की बात पूछी तो उन्होंने किसी से रंजिश या दुश्मनी होने से साफ इनकार कर दिया. पुलिस को पता चला कि मोहल्ले में चैतन्य या योगमाया साहू का व्यवहार बहुत अच्छा था. किसी के मुसीबत में होने पर दोनों पतिपत्नी उस की तीमारदारी करने उस के घर पहुंच जाते थे. इसलिए किशनपुर का एकएक बच्चा उन के व्यवहार से वाकिफ था.

पुलिस समझ नहीं थी की कातिल कौन है

जब ये इतने भले इंसान थे तो पुलिस यह नहीं समझ पा रही थी कि इस वारदात को किस ने अंजाम दिया, गुत्थी काफी उलझी और पेचीदगी से भरी थी. ध्यान देने वाली बात यह थी कि हत्यारों ने पुलिस को गुमराह करने के लिए घटना को लूटपाट में तब्दील करने की कोशिश की थी. घर की सारी वस्तुएं मौजूद मिलीं. रायपुर से फोरैंसिक टीम और डौग स्क्वायड टीम भी वहां पहुंची, लेकिन उस के हाथ कोई खास सफलता नहीं लगी. स्थानीय लोगों से पूछताछ में पता चला कि रात में चीखने की आवाज तो आ रही थी. उन्होंने यह सोच कर इस ओर ध्यान नहीं दिया कि अस्पताल है, प्रसव पीड़ा के समय यहां महिलाएं चीखती हैं. हो सकता है कोई महिला प्रसव पीड़ा से तड़प रही हो इसीलिए वह आवाज सुन कर भी अपने घरों से बाहर नहीं निकले और हत्यारे अपने काम पूरे कर गए.

पुलिस ने घटना की रिपोर्ट दर्ज कर जांच शुरू कर दी. ब्लाइंड मर्डर की गुत्थी को सुलझाने के लिए एसपी संतोष सिंह ने एएसपी संजय धु्रव के नेतृत्व में एक एसआईटी का गठन किया गया. एसआईटी में प्रशिक्षु आईपीएस उदय किरण, पिथौरा एसडीपीओ के अलावा क्राइम ब्रांच के 10 पुलिसकर्मियों को शामिल किया गया. इस के अलावा पुलिस की 3 टीमों को पिथौरा से बाहर भेजा गया. सनसनीखेज चौहरे हत्याकांड के खुलासे के लिए पुलिस हत्यारों की खोजबीन में भटक रही थी. घटना के 3 दिनों बाद यानी 3 जून की शाम को पुलिस ने शक के आधार पर किशनपुर के ही रहने वाले 3 व्यक्तियों को हिरासत में ले कर पूछताछ की. संदिग्धों से पूछताछ में जब कोई नतीजा नहीं निकला तो उन्हें सख्त हिदायत दे कर छोड़ दिया.

पुलिस ने जहां से जांच की काररवाई शुरू की थी, घूमफिर कर वहीं आ खड़ी हुई. पुलिस ने Murder stories मृतक पतिपत्नी की काल डिटेल्स की जांच कर ली थी लेकिन उस में कोई काल संदिग्ध नहीं मिली. घटना की परिस्थितियों से साफ पता चल रहा था कि इस में कोई अपना शामिल है. लेकिन वह कौन है? पुलिस इसी बात का पता लगाने में जुटी हुई थी. जब पुलिस को कहीं से कोई सुराग हाथ नहीं लगा तो उस ने 4 जून को उसी एरिया के मोबाइल टावर के संपर्क में आने वाले फोन नंबरों की लिस्ट निकलवाई. हजारों मोबाइल नंबरों की लोकेशन ट्रेस हुई. काफी मेहनत और मशक्कत के बाद उन नंबरों में से एक संदिग्ध नंबर सामने आया जो 30/31 मई की रात 2 से 3 बजे के बीच घटनास्थल पर मौजूद मिला था. उस के बाद बड़ी तेजी से उस की लोकेशन बदलती गई.

पते की बात तो यह थी कि वही संदिग्ध नंबर चैतन्य साहू की काल डिटेल्स में भी पाया गया था. एक ही नंबर दोनों जगह पाए जाने से वह नंबर संदेह के घेरे में आ गया. पुलिस ने उस संदिग्ध नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई तो पता चला कि वह नंबर किशनपुर के रहने वाले धर्मेंद्र बहिरा के नाम पर लिया गया था. धर्मेंद्र बहिरा के बारे में पुलिस को पता चला कि वह प्लंबर का काम करता है. 5 जून, 2018 को एसआईटी ने धर्मेंद्र बहिरा को उस के घर से दबोच लिया. एएसपी संजय धु्रव ने उस से सख्ती से पूछताछ शुरू की, ‘‘अच्छा, यह बताओ कि तुम साहू परिवार को कितने दिनों से जानते हो?’’

‘‘साहब, वे मेरे पड़ोसी थे, इसलिए मैं उन्हें लंबे समय से जानता हूं.’’ धर्मेंद्र ने हाथ जोड़ कर जवाब दिया.

‘‘तब तो उन के घर में तुम्हारी अंदर तक पैठ बनी होगी?’’ एएसपी ने फिर सवाल किया.

‘‘नहीं साहब, उन के यहां कभी- कभार जाना होता था. चैतन्य साहू एक बार मेरे पास प्लंबिंग का काम कराने के लिए आए थे.’’ उस ने बताया.

‘‘30/31 मई की रात में तुम कहां थे?’’ एएसपी ने अगला सवाल किया.

‘‘सर, मैं उस रात अपने घर पर था.’’ धर्मेंद्र बोला.

‘‘तुम अपने घर पर थे तो तुम्हारा मोबाइल साहू के घर क्या कर रहा था?’’ एएसपी संजय ने अंधेरे में तीर चलाया.

इतना सुन कर धर्मेंद्र सन्न रह गया. उन्होंने उस के चेहरे के उड़े रंग को भांप लिया था.

‘‘चलो, सीधे मुद्दे पर आते हैं. अच्छा यह बता दो कि तुम ने साहू परिवार का कत्ल क्यों किया? सहीसही बताना.’’ इस बार थानाप्रभारी दीपक चंद ने सवाल किया था.

‘‘साहब, यह झूठ है, मैं ने किसी को नहीं मारा है.’’ धर्मेंद्र ने जवाब दिया.

प्लंबर ने क्यों बना कातिल

एएसपी संजय धु्रव और थानाप्रभारी दीपक चंद समझ गए कि यह आसानी से मानने वाला नहीं है. इस के बाद उन्होंने उस के साथ सख्ती से पूछताछ की तो वह पूरी तरह टूट गया और कबूल कर लिया कि उसी ने साहू परिवार के चारों सदस्यों को मौत के घाट उतारा है. इस के बाद वह पूरी कहानी तोते की तरह बकता चला गया. पुलिसिया पूछताछ से पता चला कि वह बड़ा ही नराधम निकला, महज चंद रुपयों की खातिर उस ने हंसतेखेलते पूरे परिवार की जिंदगी छीन ली. पूछताछ में कहानी कुछ ऐसी सामने आई—

40 वर्षीय चैतन्य साहू मूलरूप से छत्तीसगढ़ के रायपुर का रहने वाला था. इसी जिले की आरंग की रहने वाली योगमाया से उस की शादी सन 2008 में हुई थी. शादी के बाद चैतन्य के 2 बच्चे हुए. उस की जिंदगी खुशियों से भरी हुई थी. वे दोनों बच्चों की ठीक से परवरिश करने में लगे थे. शादी के 7 साल बाद चैतन्य की भी रायपुर के ओम अस्पताल में वार्डबौय की नौकरी लग गई थी. 3 साल तक उस ने वहां नौकरी की. शादी के 8 साल बाद जुलाई 2016 में उस की पत्नी योगमाया की भी नौकरी स्वास्थ्य विभाग में एएनएम पद पर लग गई. उस की पहली पोस्टिंग महासमुंद जिले के किशनपुर के उप स्वास्थ्य केंद्र में हुई थी, जिस के बाद से पतिपत्नी बच्चों सहित रायपुर छोड़ कर पिथौरा में रहने लगे.

योगमाया साहू को किशनपुर के उप स्वास्थ्य केंद्र में ही रहने के लिए क्वार्टर मिल गया था. थोड़े ही समय में पतिपत्नी ने अपने मृदुल व्यवहार से किशनपुर के नागरिकों को अपना मुरीद बना लिया था. योगमाया पीडि़त महिलाओं का खास खयाल रखती थी. प्रसव वेदना के समय वह तीमारदारों की हिम्मत बंधाती थी. यही नहीं, तीमारदारों के बुलाने पर दोनों पतिपत्नी उन के घर तक पहुंच जाते थे. उप स्वास्थ्य केंद्र के पास में 28 वर्षीय धर्मेंद्र बहिरा अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में मांबाप और भाईबहन थे. वह अविवाहित था. धर्मेंद्र मेहनतकश इंसान था. वह एक अच्छा प्लंबर था. लोग उसे बुला कर अपने घरों में काम करवाते थे. योगमाया के यहां उस का आनाजाना था.

एक दिन की बात है. एएनएम योगमाया के क्वार्टर का नल खराब हो गया. चैतन्य ने धर्मेंद्र के घर जा कर क्वार्टर का नल ठीक करने को कह दिया. अगले दिन धर्मेंद्र ने योगमाया के क्वार्टर का नल ठीक कर दिया. इस काम की उस की मजदूरी डेढ़ सौ रुपए हुई थी. चैतन्य ने उसे अगले दिन आ कर पैसे ले जाने को कह दिया तो धर्मेंद्र बिना कुछ बोले मुसकरा कर वहां से चला गया. अगले दिन धर्मेंद्र अपनी मजदूरी के पैसे लेने चैतन्य के क्वार्टर पर गया. चैतन्य घर पर ही था. उस ने कह दिया कि पैसे शाम में आ कर ले जाना, अभी मेमसाहब घर पर नहीं हैं. पैसे उन्हीं के पास रहते हैं. यह सुन कर धर्मेंद्र को बुरा लगा लेकिन पड़ोस की बात होने के नाते बिना कुछ कहे वापस लौट गया.

पैसों को लेकर छिडा विवाद

उस के बाद ऐसे करतेकरते कई दिन बीत गए. चैतन्य कोई न कोई बहाना बना कर उसे घर से वापस लौटा देता था लेकिन उसे पैसे नहीं दिए. चैतन्य अब इस बात पर आ कर अड़ गया कि 50 रुपए के काम के डेढ़ सौ रुपए क्यों दूं. मैं डेढ़ सौ नहीं केवल 50 रुपए ही दूंगा. उस के बाद पैसों को ले कर चैतन्य और धर्मेंद्र के बीच विवाद छिड़ गया. धर्मेंद्र ने चैतन्य से कह दिया कि वह अपनी मजदूरी के डेढ़ सौ रुपए उस से वसूल कर के ही रहेगा. चैतन्य ने भी कह दिया कि वह जो चाहे कर ले, 50 रुपए से एक फूटी कौड़ी ज्यादा नहीं देगा. योगमाया भी पति के ही पक्ष में बोलने लगी. मजदूरी को ले कर दोनों के बीच बात बढ़ गई.

धर्मेंद्र ने सोच लिया कि वह अपनी मेहनत के पैसे ले कर रहेगा, चाहे कुछ भी हो जाए. धर्मेंद्र ने मन ही मन सोच लिया कि उसे अब क्या करना है. उस ने सोच लिया कि चैतन्य साहू मजदूरी के पैसे नहीं दे रहा है तो कोई बात नहीं, वह उस से इस के कई गुना वसूल कर लेगा. दरअसल चैतन्य के क्वार्टर पर आतेजाते धर्मेंद्र उस के क्वार्टर के कोनेकोने से परिचित हो चुका था. उसे मालूम हो चुका था कि घर में कहांकहां कीमती चीजें रखी जाती हैं. उसे यह तक पता चल चुका था कि चैतन्य की पत्नी एएनएम योगमाया साहू के पास सोने और चांदी के कितने गहने हैं और वह कहां रखे हैं. उस ने अपनी मजदूरी के एवज में गहनों को चुराने की योजना बना ली.

योजना के मुताबिक 30-31 मई, 2018 की रात धर्मेंद्र बहिरा चैतन्य साहू के सरकारी क्वार्टर में चुपके से पीछे के रास्ते से घुस गया. उस ने अपने साथ फावड़ा ले रखा था ताकि मुसीबत के वक्त वह अपना बचाव कर सके. दबे पांव क्वार्टर में घुस कर उस ने कमरे का निरीक्षण किया. देखा कि सभी गहरी नींद में सो रहे थे. फिर वह बीच कमरे में रखी अलमारी के पास गया और अपनी मास्टर की से अलमारी खोलने लगा. चाबी की आवाज सुन कर चैतन्य की नींद टूट गई. उठ कर वह उस ओर बढ़ा जिस ओर से खड़खड़ाहट की आवाज आ रही थी. चैतन्य कमरे में पहुंचा तो धर्मेंद्र को देख कर चौंक गया. धर्मेंद्र की नजर जब चैतन्य पर पड़ी, उसे सामने देखा तो उसे सांप सूंघ गया. वह बुरी तरह डर गया और घबरा गया कि अब उस की चोरी पकड़ी जाएगी.

इस घबराहट में उसे कुछ सूझा नहीं तो फावड़े से चैतन्य की गरदन पर ताबड़तोड़ कई वार कर दिए. वह चीखता हुआ फर्श पर जा गिरा. धड़ाम की आवाज सुन कर योगमाया की नींद टूट गई और कमरे में आ गई. फर्श पर पति को लहूलुहान देख कर उस के मुंह से चीख निकल पड़ी. धर्मेंद्र योगमाया को सामने देख कर घबरा गया. घबराहट में उस ने योगमाया की भी गरदन पर फावड़े से ताबड़तोड़ वार कर उसे भी मौत के घाट उतार दिया. इसी बीच मां की आवाज सुन कर तन्मय भी उठ कर कमरे में आ गया और धर्मेंद्र को पहचान गया तो धर्मेंद्र ने उसे भी मौत के उतार दिया. उस के बाद तीनों की लाशें घसीट कर आंगन में ले गया.

चैतन्य का एक और बेटा कुणाल जिंदा था और वह कमरे में अभी भी सो रहा था. धर्मेंद्र को डर था कि कुणाल उसे पहचानता है. कहीं वह जिंदा बच गया और उस ने भांडा फोड़ दिया तो उसे जेल जाना पड़ सकता है. उस समय धर्मेंद्र की मति ऐसी मारी जा चुकी थी कि वह इतना तक नहीं समझ सका कि जब गहरी नींद में सो रहे कुणाल ने उसे वारदात करते देखा ही नहीं है तो वह उस का नाम क्यों लेगा. फिर क्या था विवेकहीन हो चुका धर्मेंद्र उस कमरे में जा पहुंचा, जहां कुणाल सोया था. उस ने सोते हुए कुणाल पर फावड़े से वार कर उसे भी मौत के घाट उतार दिया और लाश उसी बिस्तर पर छोड़ दी.

चारों को मौत के घाट उतारने के बाद दरिंदा बन चुके धर्मेंद्र को होश आया तो उस के होश फाख्ता हो गए. चारों ओर खून ही खून देख कर वह घबरा गया और फावड़ा आंगन में ही छोड़ कर मौके से फरार हो गया. अब उसे पश्चाताप हो रहा था कि आवेश में आ कर वह कितना बड़ा गुनाह कर बैठा. चंद रुपयों के लिए उस ने हंसतेखेलते परिवार की दुनिया ही उजाड़ दी. लेकिन उस के पश्चाताप करने से अब क्या फायदा होने वाला था. जो होना था सो तो हो चुका था. साहू परिवार की दुनिया ही उजड़ चुकी थी.

5 जून, 2018 को पुलिस ने धर्मेंद्र बहिरा को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया. जेल में बंद धर्मेंद्र अपने किए पर पश्चाताप के आंसू बहा रहा था. काश, धर्मेंद्र पहले ही सोचसमझ कर कदम उठाता तो आज साहू परिवार दुनिया में सांस ले रहा होता.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित