UP Crime : मांबेटी को जलाया जिंदा

UP Crime : उत्तर प्रदेश के कानपुर (देहात) जनपद के रूरा थाने से 5 किलोमीटर दूर मैथा ब्लौक के अंतर्गत एक बड़ी आबादी वाला गांव है मड़ौली. अकबरपुर और रूरा 2 बड़े कस्बों के बीच लिंक रोड से जुड़े ब्राह्मण बाहुल्य इसी गांव में कृष्ण गोपाल दीक्षित सपरिवार रहते थे. उन के परिवार में पत्नी प्रमिला के अलावा 2 बेटे शिवम, अंश तथा एक बेटी नेहा थी. कृष्ण गोपाल दीक्षित के पास मात्र 2 बीघा जमीन थी. इसी जमीन पर खेती कर और बकरी पालन से वह अपना परिवार चलाते थे. बेटे जवान हुए तो वह भी पिता के काम में सहयोग करने लगे.

कृष्ण गोपाल के घर के ठीक सामने अशोक दीक्षित का मकान था. अशोक दीक्षित के परिवार में पत्नी सुधा के अलावा 3 बेटे गौरव, अखिल व अभिषेक थे. अशोक दीक्षित दबंग व संपन्न व्यक्ति थे. उन के पास खेती की अच्छीखासी जमीन थी. इस के अलावा उन के 2 बेटे गौरव व अभिषेक फौज में थे. संपन्नता के कारण ही गांव में उन की तूती बोलती थी. उन के बड़े बेटे गौरव का विवाह रुचि दीक्षित के साथ हो चुका था. रुचि खूबसूरत थी. वह अपनी सास सुधा के सहयोग से घर संभालती थी.

घर आमनेसामने होने के कारण अशोक व कृष्ण गोपाल के बीच बहुत नजदीकी थी. दोनों परिवारों का एकदूसरे के घर आनाजाना था. अशोक की पत्नी सुधा व कृष्ण गोपाल की पत्नी प्रमिला की खूब पटती थी, लेकिन दोनों के बीच अमीरीगरीबी का बढ़ा फर्क था. कृष्ण गोपाल व उस के परिवार के मन में सदैव गरीबी की टीस सताती रहती थी.

मड़ौली गांव से लगभग एक किलोमीटर दूर सडक़ किनारे ग्राम समाज की भूमि पर कृष्ण गोपाल दीक्षित का पुश्तैनी कब्जा था. सालों पहले इस वीरान पड़ी भूमि पर कृष्ण गोपाल के पिता चंद्रिका प्रसाद दीक्षित व बाबा ने पेड़ लगा कर कब्जा किया था. बाद में पेड़ों ने बगीचे का रूप ले लिया. इसी बगीचे में कृष्ण गोपाल ने एक कमरा बना लिया था और सामने झोपड़ी डाल ली थी. इसी में वह रहते थे और पशुपालन करते थे.

भू अभिलेखों में ग्राम समाज की यह जमीन गाटा संख्या 1642 में 3 बीघा दर्ज है, जिस में से एक बीघा भूमि पर कृष्ण गोपाल का कब्जा था. लेकिन जो 2 बीघा जमीन थी, उस पर कृष्ण गोपाल किसी को भी कब्जा नहीं करने देता था. उस पर भी वह अपना अधिकार जमाता था. कृष्ण गोपाल ही नहीं, गांव के दरजनों लोग ग्राम समाज की जमीन पर काबिज हैं. किसी ने खूंटा गाड़ कर कब्जा किया तो किसी ने कूड़ाकरकट डाल कर. किसी ने कच्चापक्का निर्माण करा कर कब्जा किया तो किसी ने सडक़ किनारे दुकान बना ली. इस काबिज ग्राम समाज की भूमि पर किसी ने अंगुली नहीं उठाई और आज भी काबिज हैं.

सिपाही लाल ने शुरू किया विवाद…

लेकिन कृष्ण गोपाल की काबिज भूमि पर आंच तब आई, जब गांव के ही सिपाही लाल दीक्षित ने गाटा संख्या 1642 की 2 बीघा में से एक बीघा जमीन अपनी बेटी रानी के नाम तत्कालीन ग्रामप्रधान के साथ मिलीभगत कर पट्टा करा दी. रानी का विवाह रावतपुर (कानपुर) (UP Crime) निवासी रामनरेश के साथ हुआ था. लेकिन उस की अपने पति से नहीं पटी तो वह मायके आ कर रहने लगी थी. उस का पति से तलाक हुआ या नहीं, यह तो पता नहीं चला, पर उस का पति से लगाव खत्म हो गया था.

यह बात सन 2005 की है. सिपाही लाल ने बेटी के नाम पट्ïटा तो करा दिया, लेकिन वह कृष्ण गोपाल के विरोध के कारण उस पर कब्जा नहीं कर पाया. बस यही बात कृष्ण गोपाल के पड़ोसी अशोक दीक्षित को चुभने लगी. दरअसल, रानी रिश्ते में अशोक की बहन थी. वह चाहते थे कि रानी पट्टे वाली जमीन पर काबिज हो. इस मामले को ले कर अशोक दीक्षित ने परिवार के अनिल दीक्षित, निर्मल दीक्षित, गेंदनलाल व बढ़े बउआ को भी अपने पक्ष में कर लिया. अब ये लोग कृष्ण गोपाल के विपक्षी बन गए और मन ही मन रंजिश मानने लगे.

अशोक दीक्षित का बेटा गौरव दीक्षित फौज में था. उसे भी इस बात का मलाल था कि उस के पिता रानी बुआ को पट्टे वाली जमीन पर काबिज नहीं करा पाए. वह जब भी छुट्टी पर गांव आता, वह कृष्ण गोपाल के परिवार को नीचा दिखाने की कोशिश करता. एक बार उस ने शिवम की बहन नेहा के फैशन को ले कर भद्दी टिप्पणी कर दी. इस पर नेहा और उस की मां प्रमिला ने उसे तीखा जवाब दिया, जिस से वह तिलमिला उठा.

कृष्ण गोपाल दीक्षित के दोनों बेटे शिवम व अंशु भी दबंगई में कम न थे. दोनों विश्व हिंदू परिषद के सक्रिय सदस्य थे. विहिप के धरनाप्रदर्शन में दोनों भाग लेते रहते थे. दोनों भाई आर्थिक रूप से भले ही कमजोर थे, लेकिन खतरों के खिलाड़ी थे. अब तक शिवम की शादी शालिनी के साथ हो गई थी. वह पुश्तैनी मकान में रहता था. दिसंबर, 2022 में गौरव छुट्टी पर आया तो एक रोज सडक़ किनारे एक दुकान पर किसी बात को ले कर उस की अंशु से तकरार होने लगी. तकरार बढ़ती गई और दोनों एकदूसरे को देख लेने की धमकी देने लगे.

इस घटना के बाद गौरव ने फैसला कर लिया कि वह कृष्ण गोपाल व उस के बेटों को सबक जरूर सिखाएगा और उन की अवैध कब्जे वाली ग्राम समाज की भूमि को मुक्त करा कर ही दम लेगा. इस के बाद गौरव ने अपने पिता अशोक दीक्षित व परिवार के अन्य लोगों के साथ कान से कान जोड़ कर सलाह की और पूरी योजना बनाई. योजना के तहत गौरव ने लेखपाल अशोक सिंह चौहान से मुलाकात की. पहली ही मुलाकात में दोनों एकदूसरे से प्रभावित हुए. कारण, अशोक सिंह चौहान भी पहले फौज में था. रिटायर होने के बाद उसे लेखपाल की नौकरी मिल गई थी.

चूंकि दोनों फौजी थे, अत: जल्द ही उन की दोस्ती हो गई. इस के बाद गौरव ने लेखपाल को पैसों का लालच दे कर उसे अपनी मुट्ठी में कर लिया. योजना के तहत ही गौरव ने अपने पिता अशोक दीक्षित के मार्फत परिवार के एक व्यक्ति गेंदनलाल दीक्षित को उकसाया और उसे शिकायत करने को राजी कर लिया. गेंदन लाल ने तब दिसंबर के अंतिम सप्ताह में एक प्रार्थनापत्र कानपुर (देहात) की डीएम नेहा जैन को दिया. इस प्रार्थना पत्र में उस ने लिखा कि मड़ौली गांव के निवासी कृष्ण गोपाल दीक्षित व उस के बेटों ने ग्राम समाज की भूमि पर अवैध कब्जा कर कमरा बना लिया है व झोपड़ी भी डाल ली है. इस जमीन को खाली कराया जाए.

गेंदन लाल को बनाया मोहरा…

गेंदन लाल के इस शिकायती पत्र पर डीएम नेहा जैन ने काररवाई करने का आदेश एसडीएम (मैथा) ज्ञानेश्वर प्रसाद को दिया. ज्ञानेश्वर प्रसाद ने इस संबंध में जानकारी लेखपाल अशोक सिंह चौहान से जुटाई तो पता चला कि कृष्ण गोपाल जिस जमीन पर काबिज है, वह जमीन ग्राम समाज की है.

लेखपाल अशोक सिंह चौहान घूसखोर था. वह कोई भी काम बिना घूस के नहीं करता था. उस की निगाह अवैध कब्जेदारों पर ही रहती थी. जो उसे पैसा देता, उस का कब्जा बरकरार रहता, जो नहीं देता उन को धमकाता. मड़ौली के ग्राम प्रधान मानसिंह की भी उस से कहासुनी हो चुकी थी. उन्होंने उस की शिकायत भी डीएम साहिबा से की थी. लेकिन उस का बाल बांका नहीं हुआ. उस ने अधिकारियों को गुमराह कर अपना उल्लू सीधा कर लिया था. मैथा ब्लाक में एसडीएम ज्ञानेश्वर प्रसाद भी उस के जायजनाजायज काम में लिप्त रहते थे.

13 जनवरी, 2023 को बिना किसी नोटिस के एसडीएम ज्ञानेश्वर प्रसाद की अगुवाई में राजस्व विभाग की एक टीम कृष्ण गोपाल के यहां पहुंची और ग्राम समाज की भूमि पर बना उस का कमरा ढहा दिया. कमरा ढहाए जाने के पहले कृष्ण गोपाल ने एसडीएम (मैथा) के पैरों पर गिर कर ध्वस्तीकरण रोकने की गुहार लगाई, लेकिन वह नहीं पसीजे. लेखपाल अशोक सिंह चौहान तो उन्हें बेइज्जत ही करता रहा. एसडीएम ज्ञानेश्वर प्रसाद ने कृष्ण गोपाल से कहा कि 5 दिन के अंदर वह अपनी झोपड़ी भी हटा ले, वरना इसे भी ढहा दिया जाएगा. काररवाई के दौरान एक मैमो भी बनाया गया, जिस में गवाह के तौर पर 15 ग्रामीणों के हस्ताक्षर कराए गए.

14 जनवरी, 2023 को पीडि़त कृष्ण गोपाल दीक्षित व उन के घर के अन्य लोग लोडर से बकरियां ले कर माती मुख्यालय धरना देने पहुंच गए. समर्थन में विहिप नेता आदित्य शुक्ला व गौरव शुक्ला भी पहुंच गए. पीडि़त परिजनों ने आवास की मांग की तो अफसरों ने उन्हें माफिया बताया. माफिया बताने पर विहिप नेताओं का पारा चढ़ गया. उन्होंने सर्दी में गरीब का घर ढहाने व प्रशासन की संवेदनहीनता पर नाराजगी जताई. उन की एडीएम (प्रशासन) केशव गुप्ता से झड़प भी हुई.

दूसरे दिन पीडि़तों की आवाज दबाने के लिए तहसीलदार रणविजय सिंह ने अकबरपुर कोतवाली में शांति भंग की धारा में कृष्ण गोपाल दीक्षित, उन की पत्नी प्रमिला, बेटों शिवम व अंशु, बेटी नेहा व बहू शालिनी तथा सहयोग करने वाले विहिप नेता आदित्य व गौरव शुक्ला के खिलाफ मुकदमा दर्ज करा दिया.

14 जनवरी, 2023 को ही लेखपाल अशोक सिंह चौहान ने थाना रूरा में कृष्ण गोपाल व उन के दोनों बेटों के खिलाफ एक मुकदमा दर्ज कराया, जिस में उस ने लिखा, ‘13 जनवरी को प्रशासन अवैध कब्जा हटाने गया था. उस वक्त कृष्ण गोपाल व उन के बेटे शिवम व अंशु प्रशासन से गालीगलौज करते हुए मारपीट पर उतारू हो गए थे. जोरजोर से झगड़ा करने लगे थे. गांव के लोगों को सरकारी कर्मचारियों पर हमला करने के लिए उकसाने लगे थे. वह कहने लगे कि यहां से भाग जाओ वरना बिकरू वाला कांड अपनाएंगे.’

लेखपाल की तहरीर के आधार पर रूरा पुलिस ने रिपोर्ट तो दर्ज कर ली थी, लेकिन किसी को गिरफ्तार नहीं किया गया. दूसरी तरफ इस मामले के खिलाफ पीडि़त कृष्ण गोपाल ने तहसील अकबरपुर में वाद दायर किया, जिस की सुनवाई की तारीख 20 फरवरी निर्धारित की गई.

बदले की भावना से चलाया बुलडोजर…

मड़ौली गांव में दरजनों लोग ग्रामसमाज की भूमि पर काबिज थे, उन की भूमि पर प्रशासन का बुलडोजर नहीं चला, लेकिन बदले की भावना से तथा मुट्ïठी गर्म होने पर कृष्ण गोपाल को निशाना बनाया गया. पर कृष्ण गोपाल भी जिद्ïदी था. उस ने कमरा ढहाए जाने के बाद उसी जगह पर ईंटों का पिलर खड़ा कर उस पर घासफूस की झोपड़ी बना ली थी. यही नहीं, उस ने हैंडपंप को ठीक करा लिया था और शिव चबूतरे को भी नया लुक दे दिया था.

कृष्ण गोपाल दीक्षित को 5 दिन में जगह को कब्जामुक्त करने का अल्टीमेटम प्रशासनिक अधिकारियों ने दिया था, लेकिन 2 सप्ताह बीत जाने के बावजूद भी उस ने जगह खाली नहीं की थी. दरअसल, कृष्ण गोपाल ने तहसील में वाद दाखिल किया था और सुनवाई 20 फरवरी को होनी थी. इसलिए वह निश्चिंत था और जगह खाली नहीं की थी. लेखपाल अशोक सिंह चौहान व अन्य प्रशासनिक अधिकारी जमीन कब्जा मुक्त न होने से खफा थे. लेखपाल उन के कान भी भर रहा था और उन्हें गुमराह भी कर रहा था. अत: प्रशासनिक अधिकारियों ने कृष्ण गोपाल की झोपड़ी भी ढहाने का मन बना लिया.

13 फरवरी, 2023 की शाम 3 बजे एसडीएम (मैथा) ज्ञानेश्वर प्रसाद, कानूनगो नंदकिशोर, लेखपाल अशोक सिंह चौहान और एसएचओ दिनेश कुमार गौतम बुलडोजर ले कर मड़ौली गांव पहुंचे. साथ में 15 महिला, पुरुष पुलिसकर्मी भी थे. लोडर चालक दीपक चौहान था. अचानक इतने अधिकारियों और पुलिस को देख कर झोपड़ी में आराम कर रहे कृष्ण गोपाल और उन की पत्नी प्रमिला बाहर निकले. प्रशासनिक अधिकारियों ने जमीन पर अवैध कब्जा बताते हुए उन से तुरंत जगह खाली करने को कहा.

इस पर प्रमिला, उन के बेटे शिवम व बेटी नेहा ने कहा कि कोर्ट में उन का वाद दाखिल है और सुनवाई 20 फरवरी को है. लेकिन पुलिस व प्रशासनिक अधिकारी नहीं माने. उन्होंने जगह को तुरंत खाली करने की चेतवनी दी. इस के बाद शिवम अपने पिता के साथ झोपड़ी का सामान निकाल कर बाहर रखने लगा. इसी समय एसडीएम (मैथा) ज्ञानेश्वर प्रसाद ने बुलडोजर चालक दीपक चौहान को संकेत दिया कि वह काररवाई शुरू करे. बुलडोजर शिव चबूतरा ढहाने आगे बढ़ा तो एसएचओ (रूरा) दिनेश गौतम ने उसे रोक दिया. वह चबूतरे पर चढ़े. उन्होंने शिवलिंग व नंदी को प्रणाम कर माफी मांगी फिर चबूतरे से उतर आए. उन के उतरते ही बुलडोजर ने चबूतरा ढहा दिया और मार्का हैंडपंप को उखाड़ फेंका.

जीवित भस्म हो गईं मांबेटी…

अब तक प्रमिला के सब्र का बांध टूट चुका था. उन्हें लगा कि अधिकारी उन की झोपड़ी नेस्तनाबूद कर देंगे. वह पुलिस व लेखपाल से भिड़ गईं. उस ने लेखपाल अशोक सिंह चौहान के माथे पर हंसिया से प्रहार कर दिया. फिर वह बेटी नेहा के साथ चीखती हुई बोली, ‘‘मर जाऊंगी, लेकिन कब्जा नहीं हटने दूंगी.’’

इस के बाद वह नेहा के साथ झोपड़ी के अंदर चली गई और दरवाजा बंद कर लिया. महिला पुलिसकर्मियों ने दरवाजा खुलवाने का प्रयास किया, लेकिन दरवाजा नहीं खुला. इधर प्रशासनिक अधिकारियों को लगा कि मांबेटी ध्वस्तीकरण रोकने के लिए नाटक कर रही हैं. उन्होंने झोपड़ी गिराने का आदेश दे दिया. बुलडोजर ने छप्पर ढहाया तो झोपड़ी में आग लग गई. हवा तेज थी. देखते ही देखते आग ने विकराल रूप धारण कर लिया.

आग की लपटों के बीच मांबेटी धूधू कर जलने लगी. कृष्ण गोपाल चिल्लाता रहा कि पत्नी और बेटी झोपड़ी के अंदर है. परंतु अफसरों ने नहीं सुनी और जलता छप्पर जेसीबी से और दबवा दिया. इस से उन का निकल पाना तो दूर, दोनों को हिलने तक का मौका नहीं मिला और दोनों जल कर भस्म हो गईं.

कृष्ण गोपाल व उन का बेटा शिवम मां व बहन को बचाने किसी तरह झोपड़ी में घुस तो गए. लेकिन वे उन दोनों तक नहीं पहुंच पाए. आग की लपटों ने उन दोनों को भी झुलसा दिया था. शिवम बाहर खड़ा चीखता रहा, ‘‘हाय दइया, कोउ हमरी मम्मी बहना को बचा लेऊ.’’ पर उस की चीख अफसरों ने नहीं सुनी. वे आंखें मूंदे खतरनाक मंजर देखते रहे.

इधर मड़ौली गांव के लोगों ने कृष्ण गोपाल के बगीचे में आग की लपटें देखीं तो वे उस ओर दौड़ पड़े. वहां का भयावह दृश्य देख कर ग्रामीणों का गुस्सा फूट पड़ा और वे पुलिस तथा प्रशासनिक अधिकारियों पर पथराव करने लगे. ग्रामीणों का गुस्सा देख कर पुलिस व अफसर किसी तरह जान बचा कर वहां से भागे. ग्रामीणों का सब से ज्यादा गुस्सा लेखपाल पर था. उन्होंने उस की कार पलट दी और तोड़ डाली. वे कार को फूंकने जा रहे थे, लेकिन कुछ समझदार ग्रामीणों ने उन्हें ऐसा करने से मना कर दिया.

सूर्यास्त होने से पहले ही मांबेटी के जिंदा जलने की खबर जंगल की आग की तरह मड़ौली व आसपास के गांवों में फैल गई. कुछ ही देर बाद सैकड़ों की संख्या में लोग घटनास्थल पर आ पहुंचे. लोगों में भारी गुस्सा था और वह शासनप्रशासन मुर्दाबाद के नारे लगाने लगे थे. शिव चबूतरा तोड़े जाने से लोगों में कुछ ज्यादा ही रोष था. इस बर्बर घटना की जानकारी पुलिस व प्रशासनिक अधिकारियों को हुई तो चंद घंटों बाद ही एसपी (देहात) बी.बी.जी.टी.एस. मूर्ति, एएसपी घनश्याम चौरसिया, एडीजी आलोक सिंह, आईजी प्रशांत कुमार, कमिश्नर डा. राजशेखर तथा डीएम (कानपुर देहात) नेहा जैन आ गईं और उन्होंने घटनास्थल पर डेरा जमा लिया.

कानून व्यवस्था को बनाए रखने के लिए पुलिस अधिकारियों ने भारी संख्या में पुलिस व पीएसी बल बुलवा लिया. कमिश्नर डा. राजशेखर, एडीजी आलोक सिंह तथा आईजी प्रशांत कुमार ने घटनास्थल का निरीक्षण किया तथा कृष्ण गोपाल व उन के बेटों को धैर्य बंधाया. निरीक्षण के बाद अधिकारियों ने मृतक मांबेटी के घर वालों से पूछताछ की. मृतका प्रमिला के पति कृष्ण गोपाल ने अफसरों को बताया कि एसडीएम (मैथा), कानूनगो व लेखपाल बुलडोजर ले कर आए थे. उन के साथ गांव के अशोक दीक्षित, अनिल, निर्मल व बड़े बउआ और गांव के कई अन्य लोग भी थे. ये लोग अधिकारियों से बोले कि आग लगा दो तो अफसरों ने आग लगा दी. हम और हमारा बेटा उन दोनों को बचाने में झुलस गए. लेकिन उन्हें बचा नहीं पाए और वे आग में जल कर खाक हो गईं. कृष्ण गोपाल के बेटे शिवम दीक्षित ने भी इसी तरह का बयान दिया.

दोषियों को बचाने में जुटा प्रशासन…

अधिकारियों ने कुछ ग्रामीणों से भी पूछताछ की. राजीव द्विवेदी नाम के व्यक्ति ने बताया कि अशोक दीक्षित का बेटा गौरव दीक्षित फौज में है. वह दबंग है. उसी ने पूरी साजिश रची. उस के साथ गांव के कुछ लोग हैं. इस में एसडीएम, एसएचओ और लेखपाल भी मिले हैं. डीएम साहिबा अपने कर्मचारियों को बचा रही हैं. ग्रामीणों ने बताया कि इस पूरे मामले में प्रशासन दोषी है. अफसरों ने पैसा लिया है. वह जबरदस्ती कब्जा हटाने पर अड़े हुए थे. उन्होंने कहा मृतका प्रमिला की बेटी नेहा की शादी तय हो गई थी. उस की अब डोली की जगह अर्थी उठेगी. प्रमिला भी समझदार महिला थी. उस ने कभी किसी का अहित नहीं सोचा.

ग्रामीण व मृतका के परिजन जहां अफसरों को दोषी ठहरा रहे थे, वहीं प्रशासनिक अफसर उन का बचाव कर रहे थे. जिलाधिकारी नेहा जैन ने इस मामले पर सफाई देते हुए कहा कि अतिक्रमण हटाने के लिए राजस्व टीम पुलिस के साथ मौके पर पहुंची थी. महिलाएं आईं और रोकने का प्रयास किया. लेखपाल पर हंसिया से अटैक भी किया. इस के बाद मांबेटी ने झोपड़ी के अंदर जा कर आग लगा ली.

कानपुर (देहात) के एसपी बी.बी.जी.टी.एस. मूर्ति ने कहा, ‘‘एसडीएम व अन्य कर्मचारी अवैध कब्जा हटाने गए थे. इस दौरान कुछ लोग विरोध कर रहे थे. महिला व उन की बेटी भी विरोध में शामिल थी. विरोध करतेकरते उन दोनों ने खुद को झोपड़ी के अंदर बंद कर लिया. थोड़ी देर बाद झोपड़ी के अंदर आग लग गई. इस में महिला व उन की बेटी की मौत हो गई. आग लगी या लगाई गई, इस की जांच होगी.’’

पूछताछ के बाद रूरा पुलिस थाने में मृतका प्रमिला के बेटे शिवम दीक्षित की तहरीर के आधार पर मुअसं 38/2023 पर भादंवि की धारा 302/307/429/436/323 व 34 के तहत 11 नामजद, 15 पुलिसकर्मियों व 13 अन्य के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज की गई. नामजद आरोपियों में एसडीएम (मैथा) ज्ञानेश्वर प्रसाद, लेखपाल अशोक कुमार सिंह चौहान, रूरा प्रभारी निरीक्षक दिनेश गौतम, कानूनगो नंद किशोर, जेसीबी चालक दीपक चौहान, मड़ौली गांव के अशोक दीक्षित, अनिल दीक्षित, निर्मल दीक्षित, गेंदन लाल, गौरव दीक्षित व बढ़े बउआ के नाम थे. मामले की जांच थाना अकबरपुर के इंसपेक्टर प्रमोद कुमार शुक्ला को सौंपी गई.

रिपोर्ट दर्ज होने के बाद शासन ने एसडीएम ज्ञानेश्वर प्रसाद को सस्पेंड कर दिया तथा 2 आरोपियों जेसीबी चालक दीपक चौहान व लेखपाल अशोक सिंह चौहान को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया. सस्पेंड एसडीएम ज्ञानेश्वर प्रसाद व थाना रूरा के एसएचओ दिनेश गौतम भूमिगत हो गए. अन्य आरोपियों की धरपकड़ के लिए 5 पुलिस टीमें लगा दी गईं.  इधर जल कर खाक हुई मांबेटी का मामला प्रदेश की राजधानी लखनऊ तक पहुंचा तो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भावुक हो उठे. उन्होंने पीडि़त परिवार को हरसंभव मदद का आश्वासन दिया तथा अपनी टीम को लगा दिया. यही नहीं, उन्होंने पूरे घटनाक्रम की जानकारी अफसरों से ली और सख्त काररवाई का आदेश दिया.

इसी कड़ी में भाजपा की क्षेत्रीय विधायक व राज्यमंत्री प्रतिभा शुक्ला देर रात घटनास्थल मड़ौली गांव पहुंचीं. उन्होंने पीडि़त परिवार को धैर्य बंधाया फिर कहा, ‘‘मैं इस क्षेत्र की विधायक हूं और यहां ऐसी बर्बर घटना घट गई. महिलाओं के साथ अत्याचार हुआ. ऐसे में मेरा कल्याण विभाग में होना बेकार है. जब हम अपनी बेटी और मां को नहीं बचा पा रहे. पहले घर के बाहर निकालते फिर गिराते. जमीन तो यूं ही पड़ी है. आगे भी पड़ी रहेगी. कोई कहीं नहीं ले जा रहा है.’’

गांव वालों का फूटा आक्रोश…

पुलिस अधिकारी मांबेटी के शवों को रात में ही पोस्टमार्टम हाउस भेजने की कोशिश कर रहे थे. लेकिन पीडि़त घर वालों व गांव वालों ने शव नहीं उठाने दिए. उन्होंने एक मांग पत्र कमिश्नर डा. राजशेखर को सौंपा और कहा कि जब तक उन की मांगें पूरी नहीं होती वह शव नहीं उठने देंगे. उन्होंने मुख्यमंत्री या उपमुख्यमंत्री को भी घटनास्थल पर आने की शर्त रखी. पीडि़त परिजनों ने जो मांग पत्र कमिश्नर को सौंपा था, उन में 5 मांगें थी.

1- मृतक परिवार को 5 करोड़ रुपए का मुआवजा,

2-मृतका के दोनों बेटों को सरकारी नौकरी,

3-मृतका के दोनों बेटों को आवास,

4- परिवार को आजीवन पेंशन तथा

5- दोषियों को कठोर सजा.

चूंकि पीडि़त परिवार की मांगें तत्काल मान लेना संभव न था, अत: अधिकारियों ने पीडि़त परिवार को समझाया और उनकी मांगों को शासन तक पहुंचाने की बात कही, लेकिन परिजन अपनी बात पर अड़े रहे. उन्होंने राज्यमंत्री प्रतिभा शुक्ला की भी बात नहीं मानी. लाचार अधिकारी मौके पर ही डटे रहे और मानमनौवल करते रहे.

14 फरवरी, 2023 की सुबह कानपुर नगर/देहात से प्रकाशित समाचार पत्रों में जब मांबेटी की जल कर मौत होने की खबर सुर्खियों में छपी तो पूरे प्रदेश में राजनीतिक भूचाल आ गया. कांग्रेस पार्टी प्रमुख राहुल गांधी, सपा प्रमुख अखिलेश यादव तथा बसपा प्रमुख मायावती ने जहां ट्वीट कर योगी सरकार की कानूनव्यवस्था पर तंज कसा तो दूसरी ओर इन पार्टियों के नेता घटनास्थल पर पहुंचने को आमादा हो गए. लेकिन सतर्क पुलिस प्रशासन ने इन नेेताओं को घटनास्थल तक पहुंचने नहीं दिया. किसी विधायक को उन के घर में नजरबंद कर दिया गया तो किसी को रास्ते में रोक लिया गया.

एसआईटी के हाथ में पहुंची जांच…

इधर 24 घंटे बीत जाने के बाद भी जब घर वालों तथा गांववालों ने मांबेटी के शवों को नहीं उठने दिया तो कमिश्नर डा. राजशेखर ने प्रदेश के उपमुख्यमंत्री बृजेश पाठक से वीडियो काल कर पीडि़तों की बात कराई. उपमुख्यमंत्री ने मृतका के बेटे शिवम दीक्षित से कहा कि आप हमारे परिवार के सदस्य हो. पूरी सरकार आप के साथ खड़ी है. दोषियों के खिलाफ केस दर्ज हो गया है और कड़ी से कड़ी काररवाई होगी. उन्हें ऐसी सख्त सजा दिलाएंगे कि पुश्तें याद रखेंगी.

डिप्टी सीएम बात करतेकरते भावुक हो गए. उन्होंने शिवम से कहा कि आप कतई अकेला महसूस न करें, जिन्होंने तुम्हारी मांबहन को तुम से छीना है, उन्हें इस का खामियाजा भुगतना पड़ेगा. इस घटना से हम सभी द्रवित है. इस के बाद उन्होंने शिवम की पत्नी शालिनी तथा भाई अंशु से भी बात की और उन्हें धैर्य बंधाया. डिप्टी सीएम से बात करने के बाद पीडि़त परिवार शव उठाने को राजी हो गया. इस के बाद पुलिस अधिकारियों ने मांबेटी के शवों के पोस्टमार्टम हेतु माती भेज दिया. शाम साढ़े 6 से साढ़े 7 बजे के बीच 3 डाक्टरों (डा. गजाला अंजुम, डा. शिवम तिवारी तथा डा. मुनीश कुमार) के पैनल ने वीडियोग्राफी के बीच पोस्टमार्टम किया.

मांबेटी के अंतिम संस्कार के बाद पुलिस ने आरोपी अशोक दीक्षित के घर रात 2 बजे छापा मारा, लेकिन घर पर महिलाओं के अलावा कोई नहीं मिला. पुलिस टीम ने महिलाओं से पूछताछ की तो गौरव की पत्नी रुचि दीक्षित ने बताया कि उन के परिवार का इस केस से कोई लेनादेना नहीं है. उन के पति गौरव दीक्षित फौज में है. वह श्रीनगर में तैनात है. उन का देवर अभिषेक दीक्षित राजस्थान में फौज में है. छोटा देवर अखिल 29 जुलाई से घर से लापता है. उन के ससुर अशोक दीक्षित खेती करते हैं. रुचि ने पुलिस टीम की अपने पति गौरव से फोन पर बात भी कराई.

आरोपी अशोक दीक्षित की पत्नी सुधा दीक्षित ने पुलिस को बताया कि उन के पति व बेटों को इस मामले में साजिशन फंसाया जा रहा है. इधर शासन ने भी मांबेटी की मौत को गंभीरता से लिया और जांच के लिए अलगअलग 2 विशेष जांच टीमों (एसआईटी) का गठन किया. पहली टीम का गठन डीजीपी हाउस लखनऊ द्वारा किया गया.5 सदस्यीय इस टीम में हरदोई के एसपी राजेश द्विवेदी को अध्यक्ष, हरदोई सीओ (सिटी) विकास जायसवाल को विवेचक बनाया गया. जबकि हरदोई के कोतवाल संजय पांडेय, हरदोई महिला थाने की एसएचओ राम सुखारी तथा क्राइम ब्रांच के इंसपेक्टर रमेश चंद्र पांडेय को शामिल किया गया.

दूसरी विशेष जांच टीम (एसआईटी) का प्रमुख कमिश्नर डा. राजशेखर व एडीजी आलोक सिंह को बनाया गया और विवेचक कन्नौज के एडीएम (वित्त एवं राजस्व) राजेंद्र कुमार को बनाया गया. इस टीम को भी तत्काल प्रभाव से जांच के आदेश दिए. एसआईटी की दोनों टीमें मड़ौली गांव पहुंची और जांच शुरू की. एसपी राजेश द्विवेदी की टीम ने घटनास्थल का निरीक्षण किया फिर पीडि़त परिवार के लोगों से पूछताछ कर बयान दर्ज किए. टीम ने गांव के प्रधान व कुछ अन्य लोगों से भी जानकारी जुटाई. टीम ने थाना अकबरपुर व रूरा में पीडि़तों के खिलाफ दर्ज रिपोर्ट का भी अध्ययन किया. टीम ने उन 15 लोगों को भी नोटिस जारी किया जो गवाह के रूप में दर्ज थे.

दूसरी विशेष जांच टीम ने भी जांच शुरू की. डा. राजशेखर की टीम ने लगभग 60 लोगों की लिस्ट तैयार की और उन्हें जिला मुख्यालय पर शिविर कार्यालय निरीक्षण भवन में बयान दर्ज कराने को बुलाया. टीम ने कुछ मोबाइल फोन नंबर भी जारी किए, जिस पर कोई भी व्यक्ति घटना से संबंधित बयान दर्ज करा सके.

बहरहाल, कथा लिखने तक एसआईटी की जांच जारी थी. रूरा पुलिस ने गिरफ्तार आरोपी लेखपाल अशोक सिंह चौहान व चालक दीपक चौहान को माती कोर्ट में पेश किया, जहां से उन दोनों को जिला जेल भेज दिया गया. आरोपी एसएचओ दिनेश गौतम व एसडीएम ज्ञानेश्वर प्रसाद भूमिगत हो चुके थे. अन्य आरोपियों को पकडऩे के लिए पुलिस प्रयासरत थी. मृतका प्रमिला के दोनों बेटों शिवम व अंशु को 5-5 लाख रुपए की सहायता राशि शासन द्वारा प्रदान कर दी गई थी तथा उन्हें सुरक्षा भी मुहैया करा दी गई थी.

-कथा पुलिस सूत्रों तथा पीडि़त परिवार से की गई बातचीत पर आधारित

Haryana Crime : 2 करोड़ रुपए की प्रौपर्टी के लिए बेटे ने किया पिता का कत्ल

Haryana Crime : सेवानिवृत्त कैप्टन पारसराम के पास किसी चीज की कमी नहीं थी. करोड़ों की संपत्ति के मालिक होने के बावजूद वह इतने कंजूस थे कि बेटों को तो घर से निकाल ही दिया, बेटी का भी इलाज नहीं कराते थे. यहां तक कि उन की पत्नी एक आश्रम में काम कर के खाना लाती थी. इस कंजूसी का नतीजा उन की हत्या के रूप में सामने आया पारसराम पुंज सेना के कैप्टन पद से रिटायर जरूर हो गए थे, लेकिन लोगों पर हुकुम और डिक्टेटरशिप चलाने की उन की

आदत नहीं गई थी. सेवानिवृत्त के बाद यह बात उन की समझ में नहीं आई थी कि सेना और समाज के नियमों में जमीनआसमान का अंतर होता है. अपने घर वालों के साथ मोहल्ले वालों पर भी वह अपनी हिटलरशाही दिखाते रहते थे. घर वालों की बात दूसरी थी, लेकिन मोहल्ले वाले या और दूसरे लोग उन के गुलाम तो थे नहीं जो उन की डिक्टेटरशिप सहते. लिहाजा इसी सब को ले कर मोहल्ले वालों से उन की अकसर कहासुनी होती रहती थी. उन की पत्नी अनीता उन्हें समझाने की कोशिश करती तो वह उलटे उसे ही डांट देते थे. उन के घर में पत्नी के अलावा एक बेटी निष्ठा थी.

22 अक्तूबर, 2013 को करवाचौथ का त्यौहार था. इस त्यौहार के मौके पर महिलाओं के साथसाथ आजकल तमाम लड़कियां भी हाथों पर मेहंदी लगवाने लगी है. करवाचौथ से एक दिन पहले 21 अक्तूबर को निष्ठा भी अपने हाथों पर मेहंदी लगवा कर रात 8 बजे घर लौटी थी. उस समय घर पर पारसराम पुंज भी मौजूद थे. निष्ठा की मां अनीता पंजाबी बाग स्थित एक संत के आश्रम में गई हुई थीं. तभी निष्ठा ने कहा, ‘‘पापा, मम्मी ने बाहर से सरगी (करवाचौथ का सामान) लाने को कहा था, आप ले आइए.’’

मार्केट पारसराम पुंज के घर से कुछ ही दूर था. वह पैदल ही सरगी का सामान लेने बाजार चले गए. जब वह सामान खरीद कर घर लौटे तो उन के दोनों हाथों में सामान भरी पौलिथीन की थैलियां थीं. अभी वह अपने दरवाजे पर पहुंचे ही थे कि किसी ने उन के ऊपर चाकू से हमला कर दिया. दर्द से छटपटा कर उन्होंने जोर से बेटी को आवाज लगाई. उस समय तकरीबन साढ़े 8 बज रहे थे.

निष्ठा ने जब पिता के चीखने की आवाज सुनी थी, तब वह पहली मंजिल पर थी. चीख की आवाज सुन कर उस ने सोचा कि शायद आज फिर पापा का किसी से झगड़ा हो गया है. वह जल्दीजल्दी सीढि़यां उतर कर नीचे आई. घर का मुख्य दरवाजा भिड़ा हुआ था उस ने जैसे ही दरवाजा खोला, उस के पिता सामने गिरे पड़े थे और हाथ में चाकू लिए एक युवक वहां से भाग रहा था. कुछ आगे एक युवक लाल रंग की मोटरसाइकिल पर बैठा था. जिस ने सिर पर हेलमेट लगा रखा था. कुछ लोग गली में मौजूद थे, लेकिन उन्हें पकड़ने की किसी की भी हिम्मत नहीं हुई. युवक मोटरसाइकिल पर बैठ कर भाग गए.

पिता को लहूलुहान देख कर निष्ठा जोरजोर से रोने लगी. उस के रोने की आवाज सुन कर आसपास के लोग वहां आ गए. पीछे वाली गली में निष्ठा का ममेरा भाई नरेंद्र रहता था. वह दौड़ीदौड़ी उस के पास गई और यह बात उसे बताई. जब तक वह आता, तब तक वहां काफी लोग जमा हो गए थे. मामा को लहूलुहान देख कर वह भी घबरा गया. लोगों के सहयोग से वह पारसराम को नजदीक के आचार्यश्री भिक्षु सरकारी अस्पताल ले गया, लेकिन डाक्टरों ने पारसराम पुंज को मृत घोषित कर दिया. इसी दौरान किसी ने पुलिस कंट्रोल रूम को फोन कर के सूचना दे दी कि मोतीनगर के सुदर्शन पार्क स्थित मकान नंबर बी-462 के सामने एक आदमी का मर्डर हो गया है.

पीसीआर ने यह सूचना थाना मोतीनगर को दे दी. हत्या की खबर मिलते ही थानाप्रभारी शैलेंद्र तोमर, इंसपेक्टर (तफ्तीश) रमेश कलसन, हेडकांस्टेबल सत्यप्रकाश और कांस्टेबल कृष्ण राठी आदि के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. उन्होंने देखा कि सुदर्शन पार्क के मकान नंबर बी-462 के सामने काफी मात्रा में खून पड़ा था. पता चला कि किसी ने रिटायर्ड कप्तान पारसराम पुंज को कई चाकू मारे थे, जिन्हें आचार्यश्री भिक्षु अस्पताल ले जाया गया है. थानाप्रभारी अस्पताल पहुंचे तो डाक्टरों से पता चला कि पारसराम की अस्पताल लाने से पहले ही मौत हो गई थी.

पुलिस ने लाश कब्जे में ले कर उसे पोस्टमार्टम के लिए दीनदयाल अस्पताल भेज दिया. थानाप्रभारी ने सेना के पूर्व कैप्टन पारसराम पुंज की हत्या की खबर आला अधिकारियों को भी दे दी. थोड़ी देर में डीसीपी रणजीत सिंह और एसीपी ईश सिंघल भी मौकाएवारदात पर पहुंच गए. मौका मुआयना करने के बाद पुलिस अधिकारियों ने आसपास के लोगों से बात की. मृतक की बेटी निष्ठा और कुछ लोगों ने पुलिस को बताया कि उन्होंने हमलावर को हाथ में चाकू लिए वहां से भागते देखा था.

डीसीपी रणजीत सिंह ने इस केस को सुलझाने के लिए एसीपी ईश सिंघल के नेतृत्व में एक पुलिस टीम बनाई. टीम में थानाप्रभारी शैलेंद्र तोमर, इंसपेक्टर रमेश कलसन, एसआई गुलशन नागपाल, हेडकांस्टेबल सत्यप्रकाश, कांस्टेबल कृष्ण राठी, अमित कुमार, रणधीर आदि को शामिल किया गया. पुलिस को घटनास्थल से ऐसा कोई सुबूत नहीं मिला, जिस के सहारे हत्यारों तक पहुंचा जा सकता. यह एक तरह से ब्लाइंड मर्डर केस था. इसलिए पुलिस ने सब से पहले पूर्व कैप्टन पारसराम और उस के परिवार के बारे में छानबीन करनी शुरू की.

छानबीन में पता चला कि मृतक पारसराम पुंज तेजतर्रार व्यक्ति थे. उन के मिजाज की वजह से मोहल्ले के लोगों से उन की अकसर कहासुनी होती रहती थी. लेकिन इस मामूली कहासुनी की वजह से कोई उन की हत्या नहीं कर सकता है. पुलिस को ऐसा नहीं लग रहा था. फिर भी पुलिस ने मोहल्ले के उन लोगों से भी पूछताछ की, जिन से कप्तान साहब की नोंकझोंक होती रहती थी. इस के बाद पुलिस ने पारसराम पुंज और बेटी निष्ठा पुंज के मोबाइल फोन नंबरों की काल डिटेल्स निकलवाई. इस से पता चला कि निष्ठा की कुछ नंबरों पर ज्यादा बातें होती थीं. 16 साल की निष्ठा जवान होने के साथ साथ खूबसूरत भी थी. इसी मद्देनजर पुलिस ने यह सोचना शुरू कर दिया कि कहीं निष्ठा का किसी लड़के के साथ कोई चक्कर तो नहीं चल रहा था. हो सकता है कप्तान साहब उस के प्यार में रोड़ा बन रहे हों और इसलिए उस ने अपने प्रेमी की मार्फत अपने पिता को ठिकाने लगवा दिया हो.

जिन नंबरों पर निष्ठा की ज्यादा बात होती थी, पुलिस ने उन का पता लगाया तो वे एक झुग्गी बस्ती में रहने वाले युवकों के नंबर निकले. पूछताछ के लिए पुलिस ने उन युवकों को थाने बुलवा कर पूछताछ करनी शुरू की. उन्होंने बताया कि उन की निष्ठा से केवल दोस्ती थी. उस के पिता के मर्डर से उन का कोई लेनादेना नहीं था. उन लड़कों से सख्ती से की गई पूछताछ के बाद भी कोई नतीजा सामने नहीं आया. इसी बीच पुलिस टीम को मुखबिर से खास जानकारी यह मिली कि हमलावर लाल रंग की जिस पैशन मोटरसाइकिल से आए थे, उस पर (Haryana Crime) हरियाणा का नंबर था. वह नंबर क्या था, यह पता नहीं लग सका. जबकि बिना नंबर के मोटरसाइकिल ढूंढना आसान नहीं था.

जांच टीम ने एक बार फिर घटनास्थल से मेन रोड तक आने वाले रास्तों का मुआयना किया. उन्होंने देखा कि जहां पारसराम पुंज का मर्डर हुआ था, उस के सामने वाले मकान के बाहर सीसीटीवी कैमरा लगा हुआ था. संभावना थी कि कातिलों की और उन की मोटरसाइकिल की फोटो उस कैमरे में जरूर कैद हुई होगी. यही सोच कर पुलिस ने उस मकान के मालिक से बात की. उस ने बताया कि उस के कैमरे की डीवीआर नहीं हो रही है. इस से पुलिस की उम्मीद पर पानी फिर गया.

जिस गली में पारसराम का मकान था, उस के बाहर मोड़ पर सुरेश का चावल का गोदाम था. गोदाम के बाहर भी सीसीटीवी कैमरे लगे हुए थे. पूछताछ के बाद पता चला कि वहां लगे सीसीटीवी कैमरे भी काम नहीं कर रहे थे. पुलिस टीम जांच का जो कदम आगे बढ़ा रही थी, वह आगे नहीं बढ़ पाता था. इस तरह जांच करते हुए पुलिस को 2 सप्ताह बीत गए. टीम ने निष्ठा के फोन की काल डिटेल्स का एक बार फिर अध्ययन किया. उस से पता चला कि घटना वाले दिन एक फोन नंबर पर निष्ठा की 4 बार बात हुई थी. उस नंबर के बारे में निष्ठा से पूछा गया तो उस ने बताया कि यह नंबर उस के भाई यानी कप्तान साहब की पहली पत्नी ऊषा से पैदा हुए बेटे लाल कमल पुंज का है. इस के बाद ही पुलिस को पता लगा कि कप्तान साहब ने 2 शादियां की थीं. निष्ठा उन की दूसरी पत्नी अनीता की बेटी थी.

पुलिस ने निष्ठा से पूछा कि उस की लाल कमल से क्या बात हुई थी तो उस ने जवाब दिया कि उस ने घर का हालचाल जानने के लिए फोन किया था. उस ने यह भी बताया की लाल कमल कभीकभी घर भी आता रहता था. पूछताछ में जानकारी मिली कि लाल कमल अपनी पत्नी के साथ पानीपत में रहता था. पुलिस को यह बात पहले ही पता लग चुकी थी कि हमलावर जिस मोटरसाइकिल से आए थे, वह हरियाणा की थी. लाल कमल भी (Haryana Crime) हरियाणा में ही रह रहा था. इस से पुलिस को शक होने लगा कि कहीं लाल कमल ने ही तो पिता को ठिकाने नहीं लगवा दिया. उस के फोन नंबर की भी काल डिटेल्स निकलवाई गई तो पता चला कि घटना वाले दिन उस के फोन की लोकेशन पानीपत में ही थी.

फिर भी पुलिस टीम लाल कमल पुंज से पूछताछ करने के लिए पानीपत पहुंच गई. पुलिस ने जब उस से उस के पिता की हत्या के बारे में मालूमात की तो उस ने बताया कि उन के मर्डर की सूचना निष्ठा ने दी थी. उस के बाद वह दिल्ली गया था.

‘‘क्या तुम्हारे पास कोई मोटरसाइकिल है?’’ थानाप्रभारी ने पूछा.

‘‘हां सर, मेरे पास हीरो की पैशन बाइक है.’’ लाल कमल ने बताया.

पारसराम पर हमला करने के बाद हमलावर लाल रंग की पैशन बाइक से फरार हुए थे, इसलिए पुलिस को लाल कमल पर शक होने लगा. पुलिस ने उस से कुछ कहने के बजाए उस के दोस्तों से पूछताछ की तो पता चला कि कमल अपने पिता से  नाराज रहता था. उन्होंने उसे अपनी प्रौपर्टी से हिस्सा देने से मना कर दिया था. इस जानकारी के बाद पुलिस का शक विश्वास में बदलने लगा. बिना किसी सुबूत के पुलिस लाल कमल को टच करना ठीक नहीं समझ रही थी. इसलिए वह सुबूत जुटाने में लग गईर्. पुलिस को लाल कमल की बाइक का नंबर भी मिल गया था. अब पुलिस यह जानने की कोशिश करने लगी कि 21 अक्तूबर को कमल की बाइक दिल्ली आई थी या नहीं.

पारसराम पुंज की हत्या 21 अक्तूबर को हुई थी. इसलिए पुलिस ने पानीपत से दिल्ली वाले रोड पर जितने भी पेट्रौल पंप थे, सब के सीसीटीवी कैमरों की घटना से 2 हफ्ते पहले तक की फुटेज देखी कि कहीं कमल ने किसी पेट्रोल पंप पर पैट्रोल तो नहीं भराया था. इस काम में कई दिन लग गए, लेकिन कोई सफलता नहीं मिली. दिल्ली पुलिस ने करनाल हाइवे पर कई सीसीटीवी कैमरे लगा रखे हैं. उन कैमरों की मौनिटरिंग अलीपुर थाने में होती है और वहीं पर उन कैमरों की डिजिटल वीडियो रिकौर्डिंग होती है. थानाप्रभारी शैलेंद्र तोमर, इंसपेक्टर रमेश कलसन और हेडकांस्टेबल सत्यप्रकाश ने थाना अलीपुर जा कर 21 अक्तूबर, 2013 की फुटेज देखी. उस हाईवे पर रोजाना हजारों की संख्या में वाहन गुजरते हैं, इसलिए 2-3 दिनों तक फुटेज देखने की वजह से उन की आंखें भी सूज गई. लेकिन सफलता की उम्मीद में उन्होंने इस की परवाह नहीं की. वह अपने मिशन में लगे रहे.

उन की कोशिश रंग लाई. फुटेज में लाल कमल पुंज की पैशन मोटरसाइकिल नंबर एचआर 60 डी 7511 दिखाई दे गई. बाइक चलाने वाले के अलावा उस पर एक युवक और बैठा था. कपड़ों और कदकाठी से लग रहा था कि बाइक लाल कमल चला रहा था. रिकौर्डिंग में उस बाइक के दिल्ली आते समय की और रात को दिल्ली से जाते समय की फुटेज मौजूद थी. यह सुबूत मिलने के बाद पुलिस ने लाल कमल पुंज से फिर पूछताछ की तो उस ने बताया कि 21 अक्तूबर को वह अपने दोस्त दिनेश मणिक के साथ दिल्ली गया था, लेकिन वह सुदर्शन पार्क नहीं गया था.

पुलिस को लगा कि वह झूठ बोल रहा है, इसलिए पुलिस उसे और दिनेश माणिक को पूछताछ के लिए पानीपत से दिल्ली ले आई. पुलिस ने दोनों से अलगअलग पूछताछ करनी शुरू कर दी. वे दोनों सच्चाई को ज्यादा देर तक नहीं छिपा सके. उन्होंने स्वीकार कर लिया कि पूर्व कैप्टन पारसराम पुंज की हत्या उन्होने ही की थी. दोनों से पूछताछ के बाद उन की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी. पश्चिमी दिल्ली के मोतीनगर क्षेत्र स्थित सुदर्शन पार्क के मकान नंबर बी-462 में रहने वाले पारसराम पुंज सेना में कैप्टन थे. उन की शादी ऊषा से हुई थी, जो मूलरूप से उड़ीसा की रहने वाली थी. बाद में ऊषा 2 बेटों लाल कमल उर्फ सोनू और दीपक उर्फ बाबू के अलावा एक बेटी की मां बनी. 3 बच्चों के साथ ऊषा हंसीखुशी से रह रही थी. लेकिन कैप्टन पारसराम का स्वभाव कुछ अलग था. वह आर्मी की तरह अपने घर में भी डिक्टेटरशिप चलाते थे और छोटीछोटी बातों पर पत्नी और बच्चों को गलती की सजा देते थे.

जब तक कप्तान साहब ड्यूटी पर रहते थे, घर के सभी लोग अमनचैन से रहते थे, लेकिन उन के छुट्टियों पर घर आते ही घर में एकदम से खामोशी छा जाती थी. घर के सभी सदस्य भीगी बिल्ली बन कर रह जाते थे. उन के डर की वजह से घर वाले ज्यादा नहीं बोलते थे. वह सोचते थे कि पता नहीं किस बात पर उन्हें सजा मिल जाए. कप्तान पारसराम परिवार के सदस्यों को सेना के जवानों की तरह कड़े अनुशासन में रखना चाहते थे. वह यह बात नहीं समझते थे कि सेना और समाज के नियम कायदों में जमीनआसमान का अंतर होता है.

सेना से रिटायर होने के बाद पारसराम ने चांदनी चौक इलाके में सर्जिकल सामान बेचने की दुकान खोल ली. उन के तीनों बच्चे पढ़ रहे थे. शाम को दुकान से घर लौटने के बाद वह किसी न किसी बात को ले कर पत्नी से झगड़ने लगते थे. कभीकभी वह उस की पिटाई भी कर देते थे.

पारसराम स्वभाव से बेहद कंजूस थे. पत्नी को खर्चे के लिए जो भी पैसे देते थे, एकएक पैसे का हिसाब लेते थे. उन की इजाजत के बिना वह एक भी पैसा खर्च करने से डरती थी. इस तरह पति के रिटायर होने के बाद ऊषा अंदर ही अंदर घुटती रहती थी. फिर एक दिन वह किसी को बिना बताए बेटी को ले कर कहीं चली गई, जिस का आज तक कोई पता नहीं चला. यह करीब 20 साल पहले की बात है.

पारसराम ने पत्नी को संभावित जगहों पर तलाशा, लेकिन वह नहीं मिली. बाद में सन 1995 में पारसराम ने अनीता नाम की महिला से शादी कर ली. करनाल के एक गांव की रहने वाली अनीता की पहली शादी यमुनानगर हरियाणा में हुई थी. लेकिन पति की मौत हो जाने की वजह से उस की जिंदगी में अंधेरा छा गया था. पारसराम से शादी कर के वह मोतीनगर के सुदर्शन पार्क स्थित उन के घर में रहने लगी. 3 मंजिला मकान में उस का परिवार ही रहता था. उस ने मकान का कोई भी फ्लोर किराए पर नहीं उठा था.

पारसराम ने चांदनी चौक में दुकान खरीदने के अलावा रोहिणी सेक्टर-23 में भी 200 वर्ग गज का एक प्लौट खरीद कर डाल दिया था. इसी बीच अनीता एक बेटे और बेटी की मां बन गई, जिन का नाम लाल कमल और निष्ठा रखा गया. पारसराम ने बड़े बेटे लाल कमल को भी अपने साथ सर्जिकल सामान की दुकान पर बैठाना शुरू कर दिया था. उस ने पत्राचार से बीकौम किया था.

लाल कमल पारसराम के साथ दुकान पर बैठता जरूर था, लेकिन उस की मजाल नहीं थी कि वह वहां के पैसों से अपने शौक पूरे कर सके. जवान बच्चों का अपना भी कुछ खर्च होता है, इस बात को पारसराम नहीं समझते थे. वह चाहते तो बच्चों का दाखिला किसी अच्छे स्कूल में करा सकते थे, लेकिन कंजूस होने की वजह से उन्होंने ऐसा नहीं किया. बेटी निष्ठा का दाखिला भी उन्होंने नजदीक के ही एक सरकारी स्कूल में करा दिया था.

पारसराम घमंडी स्वभाव के थे. वह मोहल्ले वालों से भी उसी अंदाज में बात करते थे. तानाशाही रवैये की वजह से मोहल्ले वालों से उन की अकसर नोकझोंक होती रहती थी. कभीकभी तो वह गली में रेहड़ी पर सब्जी बेचने वालों से भी झगड़ बैठते थे. उन की पत्नी और बच्चे उन की इस आदत से परेशान थे.

सन 2006 में पारसराम ने लाल कमल की शादी पानीपत की ज्योति से करा दी. शादी होने के बाद लाल कमल का खर्च बढ़ गया, लेकिन पिता उसे खर्च के लिए पैसे नहीं देते थे. पारसराम अपनी पेंशन और दुकान की कमाई अपने पास ही रखते थे. इस से लाल कमल काफी परेशान रहता था. इस के अलावा अपनी बहू के प्रति भी उन की नीयत खराब हो चुकी थी. ज्योति ससुर की नीयत भांप चुकी थी. उस ने यह बात पति को बताई तो लाल कमल ने अपनी मां अनीता से शिकायत की. अनीता ने पति से डरते हुए यह बात पूछी तो उन्होंने उल्टे पत्नी को ही डांट दिया.

बताया जाता है कि बाद में पारसराम ने अपनी दुकान बेच दी और दिन भर घर पर ही रहने लगे. वह घर में तनाव वाला माहौल रखते थे. इस से घर वाले और ज्यादा परेशान हो गए. पिता की आदतों को देखते हुए लाल कमल पत्नी को ले कर परेशान रहने लगा. घर में रोजाना होने वाली कलह से परेशान हो कर लाल कमल अपने भाई और पत्नी को ले कर पानीपत चला गया और इधरउधर से पैसों का इंतजाम कर के उस ने वहीं पर इनवर्टर, बैटरी बेचने और मोबाइल रिजार्च करने की दुकान खोल ली. अब पारसराम के साथ पत्नी अनीता और बेटी निष्ठा ही रह गई थी.

पारसराम के पास करीब 2 करोड़ रुपए की संपत्ति थी. इस के बावजूद वह बेटों को फूटी कौड़ी देने को तैयार नहीं थे. घर में अकसर तनाव का माहौल रहने की वजह से निष्ठा को भी माइग्रेन का दर्द रहने लगा था. पारसराम ने बेटी का इलाज भी नहीं कराया. जब भी वह दर्द से कराहती तो वह उसे मेडिकल स्टोर से दर्द निवारक दवा ला कर दे देते थे.

दिल्ली के पंजाबी बाग इलाके में एक संत का आश्रम है. अनीता उस आश्रम में जाती थी. वहां उसे मानसिक शांति मिलती थी. आश्रम में ही वह सेवा करती, वहीं चलने वाले भंडारे में खाना खाती और शाम को घर जाते समय पति और बेटी के लिए भी आश्रम से खाना ले आती थी. पूरे दिन आश्रम में रहने के बाद वह शाम को करीब 9 बजे घर लौटती थी. पारसराम ने उस से कह दिया था कि शाम का खाना वह आश्रम से ही लाया करे. इसलिए वह वहां से बेटी और पति के लिए खाना लाती थी.

उधर लाल कमल चाहता था कि पिता उसे कोई अच्छी सी दुकान खुलवा दें, लेकिन उन के जीते जी ऐसा संभव नहीं था. जब वह बेटी का इलाज तक नहीं करा रहे थे तो उनसे बिजनैस के लिए पैसे देने की उम्मीद कैसे की जा सकती थी. लाल कमल की दुकान के पास ही पानीपत की नागपाल कालोनी में दिनेश मणिक उर्फ दीपू की मोबिल औयल और स्पेयर पार्टस की दुकान थी. लाल कमल की उस से दोस्ती थी. वह उस से हमेशा पिता की बुराई करता रहता था.

लाल कमल कभीकभी दिल्ली जा कर निष्ठा और आश्रम में मां से मिलता रहता था. निष्ठा उसे अपनी माइग्रेन बीमारी के बारे में बताया करती थी. निष्ठा का इलाज न कराने पर लाल कमल को पिता पर गुस्सा आता था. लाल कमल को लगता था कि उसे पिता की मौत के बाद ही उन की प्रौपर्टी मिल सकती है, इसलिए उस ने पिता को ठिकाने लगाने की ठान ली. यह काम वह अकेला नहीं कर सकता था, इसलिए उस ने अपने दोस्त दिनेश मणिक उर्फ दीपू से बात की. लाल कमल ने दिनेश से कहा कि अगर वह उस के पिता की हत्या कर देगा तो वह उसे उन की प्रौपर्टी का 25 प्रतिशत दे देगा.

यह बात उस ने पहले ही बता दी थी कि प्रौपर्टी की कीमत करीब 2 करोड़ रुपए है. इसी लालच में दिनेश उस का साथ देने को तैयार हो गया.

इस के बाद दोनों पारसराम को ठिकाने लगाने की योजना बनाने लगे. इस बीच लाल कमल ने निष्ठा से फोन कर के जानकारी ले ली कि मां आश्रम के लिए कितने बजे घर से निकलती है और कितने बजे घर लौटती है. दिनेश ने लाल कमल के साथ जा कर कई बार उस के घर और इलाके की रेकी की. हत्या के लिए उन्होंने पानीपत से एक चाकू भी खरीद लिया था.

पूरी योजना बनाने के बाद लाल कमल  21 अक्तूबर, 2013 को अपनी पैशन मोटरसाइकिल नंबर एचआर 60 डी 7511 से दिनेश को साथ ले कर दिल्ली के लिए रवाना हुआ. वह जानता था कि अगर वह फोन अपने साथ दिल्ली ले जाएगा तो फोन की लोकेशन के आधार पर पुलिस उस तक पहुंच सकती है. इसलिए उस ने अपना ही नहीं, बल्कि दिनेश का फोन भी पानीपत दिल्ली रोड से चांदनी बाग की तरफ जाने वाली सड़क पर एक जगह छिपा दिया. ये दोनों शाम 8 बजे के करीब मोतीनगर के सुदर्शन पार्क की मार्केट में पहुंच गए.

दोनों ने तय कर लिया था कि वारदात को घर में ही अंजाम देंगे. इत्तफाक से लाल कमल ने बाजार में खरीदारी करते हुए अपने पिता को देख लिया. वह उस समय पत्नी के करवा चौथ व्रत का सामान खरीद रहे थे. उन्हें क्या पता था कि पत्नी के व्रत रखने से पहले ही मौत उन्हें आगोश में ले लेगी. लाल कमल एक ओर छिप कर उन पर निगाहें रखने लगा.

सामान ले कर जैसे ही पारसराम घर की तरफ चले, लाल कमल भी बाइक से धीरेधीरे उन के पीछे चल दिया. उस ने हेलमेट लगा रखा था. उस के पीछे दिनेश बैठा था. लाल कमल ने दिनेश को शिकार दिखा दिया था. जैसे ही पारसराम अपने घर के दरवाजे पर पहुंचे, दिनेश ने बाइक से उतर कर पारसराम पर चाकू से कई वार किए.

लाल कमल ने कुछ आगे जा कर बाइक खड़ी कर ली थी. अचानक हमला होने से वह घबरा गए. वह चिल्लाए तो दिनेश तेजी से भाग कर मोटरसाइकिल पर बैठ गया तो दोनों वहां से नौ दो ग्यारह हो गए.

हत्या करने के बाद वे सीधे पानीपत गए. सब से पहले उन्होंने चांदनी बाग रोड पर छिपाए गए अपने मोबाइल फोन उठाए. फिर गोहाना रोड से पहले गऊशाला की प्याऊ पर दिनेश ने खून से सने हाथ धोए. फिर देवी माता रोड पर नाले के पास वह चाकू फेंक दिया, जिस से मर्डर किया था.

पुलिस ने लाल कमल और दिनेश मणिक उर्फ दीपू से पूछताछ करने के बाद उन्हें 9 नवंबर, 2013 को हत्या के आरोप में गिरफ्तार कर उन्हें उसी दिन तीस हजारी कोर्ट में महानगर दंडाधिकारी सुनील कुमार शर्मा के समक्ष पेश कर के उन का 2 दिनों का पुलिस रिमांड लिया.

रिमांड अवधि में लाल कमल और दिनेश की निशानदेही पर पुलिस ने नाले के पास से चाकू, खून सने कपड़े, मोटरसाइकिल, हेलमेट आदि बरामद कर लिए. रिमांड अवधि समाप्त होने के बाद पुलिस ने 11 नवंबर, 2013 को लाल कमल पुंज उर्फ सोनू और दिनेश मणिक उर्फ दीपू को पुन: न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया. कथा लिखे जाने तक दोनों अभियुक्त जेल में बंद थे.

कथा पुलिस सूत्रों और जनचर्चा पर आधारित कथा में निष्ठा परिवर्तित नाम है.

 

Crime stories : तीन दोस्तों ने मिलकर लंगोटिया यार को फावड़े से काटा

Crime stories : औरत जब भाइयों में दरार डाल देती है तो दोस्त क्या चीज हैं. रामू के दोस्तों ने जब उस से अपनी माशूका के पास ले चलने को कहा तो उस की देह में आग लग गई और फिर जो हुआ, वह अप्रत्याशित था. मैनपुरी के मोहल्ला हिंदपुरम की रहने वाली कुसुमा पूरे मोहल्ले की भाभी थी. ज्यादातर लड़के उस की गदराई जवानी के दीवाने थे. वे उस के घर के चक्कर लगाते रहते थे. कुसुमा घर पर 2 बच्चों के साथ रहती थी, जबकि उस का पति मुकेश दिल्ली में रहता था. वह 2-3 महीने में 1-2 दिनों के लिए ही घर आता था. पति से दूर रहना कुसुमा को अच्छा नहीं लगता था. वह पति के साथ दिल्ली में रहना चाहती थी.

लेकिन मुकेश की इतनी तनख्वाह नहीं थी कि वह बीवीबच्चों को साथ रख सकता. वह 2-3 महीने में 1-2 दिनों के लिए पत्नी और बच्चों से मिलने घर आ जाता था. कुसुमा जवान थी. उस की भी कुछ हसरतें थीं. लेकिन मुकेश उस तरफ ध्यान नहीं देता था. नतीजतन कुसुमा का झुकाव मोहल्ले के लड़कों की ओर होने लगा. उन्हीं लड़कों में एक रामू था, जो कुसुमा के घर से तीसरे नंबर के मकान में रहता था. रामू के पिता फूल सिंह की मौत हो चुकी थी. उस के 4 भाई और 2 बहनें थीं. पिता की मौत के बाद मां शांति ने जैसेतैसे घरपरिवार संभाला था. 19 साल का रामू कुसुमा का ऐसा दीवाना हुआ था कि जब देखो, तब उस के घर के चक्कर लगाता रहता था. शांति को जब इस बात का पता चला तो उस ने रामू को समझाया, ‘‘बेटा, कुसुमा अच्छी औरत नहीं है, इसलिए उस के यहां ज्यादा आनाजाना ठीक नहीं है.’’

मगर रामू कुसुमा के आकर्षण में इस कदर बंधा था कि उसे उस के अलावा कुछ अच्छा ही नहीं लगता था. इसीलिए उस ने मां की बात एक कान से सुनी और दूसरे से निकाल दी. कुसुमा चालू किस्म की औरत थी. रामू उम्र के उस पड़ाव पर था, जहां से फिसलने में देर नहीं लगती. कुसुमा और रामू की जरूरत एक ही थी, इसलिए उन के बीच नजदीकियां और अपनापन बढ़ने लगा. एक शाम कुसुमा के दरवाजे पर दस्तक हुई तो उस ने दरवाजा खोला. सामने रामू खड़ा था. उसे देखते ही वह चौंक कर बोली, ‘‘रामू…तुम. आओ, अंदर आ जाओ.’’

रामू अंदर आ गया. उस के हाथ में एक पैकेट था. कुसुमा रसोई में जा कर चाय बना लाई. रामू चाय पीने लगा तो कुसुमा ने कहा, ‘‘पैकेट में क्या है?’’

‘‘खुद ही देख लो.’’ रामू ने शरमाते हुए कहा. कुसुमा ने पैकेट खोला तो उस में साड़ी दिखी. वह बोली, ‘‘रामू, साड़ी बहुत अच्छी है. अपनी मां के लिए लाए हो क्या?’’

‘‘तुम भी भाभी, कैसी बातें करती हो? क्या मैं तुम्हारे लिए एक साड़ी भी नहीं ला सकता? मुझे दुकान पर पसंद आ गई तो मैं ने तुहारे लिए खरीद ली. तुम पहनोगी न?’’

‘‘हां…हां, क्यों नहीं. जब तुम इतने प्यार से लाए हो तो जरूर पहनूंगी. लो अभी पहन कर दिखाती हूं.’’ कह कर कुसुमा साड़ी ले कर अंदर चली गई. रामू इस बात से खुश हो रहा था कि कुसुमा ने उस के द्वारा दी गई पहली चीज स्वीकार कर ली. कुछ ही देर में कुसुमा वह साड़ी पहन कर आई तो रामू उसे देखते हुए बोला, ‘‘भाभी इस साड़ी में तुम बहुत ही खूबसूरत लग रही हो. इसे तुम मेरे प्यार का पहला तोहफा समझो.’’

‘‘प्यार का तोहफा? यह तुम क्या कह रहे हो?’’ कुसुमा बोली.

‘‘हां भाभी, सचमुच रातदिन तुम मेरे जेहन में बसी रहती हो. जब मैं काम पर होता हूं, तब भी तुम्हारे ही बारे में सोचता रहता हूं.’’

चाहती उसे कुसुमा भी थी, लेकिन वह इजहार के लिए रामू की तरह बेचैन नहीं थी. इसलिए रामू की बातें सुन कर कुछ पल के लिए वह चुपचाप उसे देखती रही. रामू का मन कर रहा था कि वह कुसुमा को बांहों में भर कर अपनी मोहब्बत का इजहार कर दे, लेकिन ऐसा करने की उस की हिम्मत नहीं हो रही थी. तभी कुसुमा ने रामू के पास आ कर रामू की बातों को टटोलते हुए कहा, ‘‘क्या तुम सचमुच मुझ से प्यार करते हो?’’

‘‘हां, करता हूं. चाहो तो मेरे दिल की आवाज खुद सुन लो.’’ रामू चहक कर बोला.

‘‘मुझे छोड़ कर भाग तो नहीं जाओगे?’’

‘‘कभी नहीं. अपनी जान दे सकता हूं, लेकिन तुम्हें छोड़ नहीं सकता. यह मेरा वादा है.’’

‘‘तो ठीक है, आज रात को आ जाना. फुरसत में बातें करेंगे. मैं तुम्हारा इंतजार करूंगी.’’ कुसुमा ने कहा.

कुसुमा के इस प्रस्ताव से रामू का दिल खुशी से उछल पड़ा. वह रात को आने का वादा कर के चला गया. कुसुमा के घर से जाने के बाद रामू का मन किसी काम में नहीं लग रहा था. वह बस यही सोच रहा था कि जल्द से जल्द दिन ढल कर अंधेरा हो जाए, जिस से वह कुसुमा के साथ मौजमस्ती करे. कहते हैं, इंतजार के पल लंबे हो जाते हैं. यही हाल राजू का भी हो रहा था. वह अंधेरा होने का बड़ी बेसब्री से इंतजार कर रहा था. खैर, रोजाना की तरह उस दिन भी शाम हुई, लेकिन वह दिन रामू के लिए बहुत बड़ा हो गया था.

शाम का खाना खाने के बाद रामू कुछ देर तक इधरउधर घूमता रहा. उस के बाद मौका देख कर कुसुमा के घर में घुस गया. कुसुमा ने खाना खिला कर बच्चों को पहले ही सुला दिया था. जैसे ही रामू ने उस के दरवाजे पर दस्तक दी, कुसुमा ने दरवाजा खोल दिया. रामू को देख कर मुसकराते हुए बोली, ‘‘टाइम के बड़े पाबंद हो. अंदर आ जाओ.’’

‘‘भाभी हम वादा कर के मुकरने वालों में में नहीं हैं.’’ रामू ने अंदर आते हुए कहा.

कुसुमा ने कुंडी बंद कर दी. रामू उस के बेड पर जा कर बैठ गया. कुसुमा उस के पास बैठ गई और उस का हाथ दोनों हाथों में ले कर बोली, ‘‘रामू, अब तुम मुझे भाभी नहीं कहोगे. आज से तुम मेरा नाम ले पुकारोगे.’’

किसी महिला ने रामू का हाथ पहली बार थामा था. इसलिए उस का शरीर सिहर उठा. दोनों के बीच अब किसी तरह की रोकटोक नहीं थी, इसलिए रामू ने कुसुमा के गालों पर होंठ रखते हुए कहा, ‘‘ठीक है, आज से तुम्हें जो अच्छा लगेगा, वही कहूंगा.’’

इस के बाद दोनों एकदूसरे के बदन से खेलने लगे. रामू ने पहली बार इस सुख का अनुभव किया था, इसलिए उसे बहुत अच्छा लगा. लेकिन घर पहुंच कर रामू को लगा कि कुसुमा के साथ संबंध बना कर उस ने अच्छा नहीं किया. अपराधबोध की वजह से उस ने कुसुमा के घर की ओर जाना ही बंद कर दिया. शायद रामू यह नहीं जानता था कि जिस दलदल में उस ने कदम रख दिया है, वहां से निकलना आसान नहीं है.

3-4 दिनों बाद कुसुमा ने ही रामू को फोन किया, ‘‘रामू, कई दिन हो गए तुम दिखाई नहीं दिए, क्या कहीं बाहर चले गए हो क्या?’’

‘‘नहीं, मैं तो घर में ही हूं.’’

‘‘तुम्हारी तबीयत तो ठीक है?’’

‘‘हां.’’

‘‘बातें तो तुम बड़ी लंबीचौड़ी कर रहे थे. कहां गई तुम्हारी वह मर्दानगी? तुम इसी समय आ जाओ, तुम से एक जरूरी बात करनी है. न चाहते हुए भी रामू कुसुमा के घर पहुंच गया. और फिर वही सब हुआ, जो कुसुमा चाहती थी. इस के बाद कुसुमा का जब भी मन होता, रामू को फोन कर के बुला लेती और अपने मन की करती. इस तरह रामू उस के हाथ की कठपुतली बन कर रह गया. रामू दिन में तो घर से गायब रहता ही था, कुसुमा के पास आनेजाने की वजह से रात में भी गायब रहने लगा. शांति ने जब बेटे के घर से गायब रहने की वजह का पता किया तो उन्हें पता चलते देर नहीं लगी कि उस का बेटा कुसुमा के जाल में फंस गया है.

रामू की इस करतूत से पूरा परिवार हैरान रह गया था. यह कोई अच्छी बात नहीं थी, इसलिए मां ने ही नहीं, भाइयों ने भी रामू को रोका. मारपीट भी की, लेकिन रामू नहीं माना तो नहीं माना. कुसुमा से उसे जो सुख मिलता था, उस की चाहत में वह उस के पास पहुंच ही जाता था. परेशान हो कर एक दिन शांति कुसुमा के घर जा पहुंची और उसे बुराभला कहने लगी. तब कुसुमा ने कहा, ‘‘काकी, मैं तुम्हारे बेटे को बुलाने नहीं जाती, वह खुद ही मेरे पास आता है. तुम उसी को क्यों नहीं रोक लेती. अब तुम्हारे ही घर कोई आएगा, तो क्या तुम उसे भगा दोगी? तुम उसे तो रोकती नहीं, मुझे बेकार में बदनाम करने चली आई.’’

शांति चुपचाप घर लौट आई. उसी बीच मुकेश गांव आया तो किसी ने उस से रामू और कुसुमा के संबंधों के बारे में बताया. उस ने इस बारे में कुसुमा से पूछा तो रोते हुए उस ने कहा, ‘‘मैं कब से कह रही हूं कि तुम मुझे अपने साथ ले चलो. बीवी को इस तरह गांव में अकेली छोड़ोगे तो दिलजले लोग ऐसी ही बातें करेंगे.’’

मुकेश को लगा कि कुसुमा सच कह रही है, इसलिए उस की बात पर विश्वास कर के वह निश्चिंत हो कर दिल्ली चला गया. लेकिन अब मुकेश जब भी घर आता, गांव का कोई न कोई आदमी कुसुमा और रामू को ले कर उसे जरूर टोकता. इन बातों से उसे लगने लगा कि कुछ न कुछ जरूर गड़बड़ है. इस के बाद उस ने कुसुमा को मारपीट कर धमकाया कि अब अगर उस ने उस के बारे में कुछ सुना तो वह उसे उस के मायके पहुंचा देगा. यही नहीं, उस ने शांति के घर जा कर उस से भी कहा कि वह रामू को रोके अन्यथा ठीक नहीं होगा.

इस पर जलीभुनी शांति ने कहा, ‘‘मैं खुद ही तुम्हारी पत्नी से परेशान हूं. इस के लिए मैं पंचायत बुलाने वाली हूं.’’

शांति की इस धमकी से मुकेश परेशान हो गया. अगर शांति ने पंचायत बुलाई तो गांव में उस की इज्जत का जनाजा निकल जाएगा. नाराज और दुखी मुकेश ने सारा गुस्सा और क्षोभ घर आ कर कुसुमा की पिटाई कर के निकाला. अगले दिन शांति ने पंचायत बुलाई, जिस में मुकेश और कुसुमा को भी बुलाया गया. पंचायत में कुसुमा ने साफ कहा कि रामू से उस का कोई संबंध नहीं है. इस बात को ले कर उसे बेकार ही गांव में बदनाम किया जा रहा है. पंचों ने जब मुकेश से कुछ कहना चाहा तो उस ने कहा, ‘‘मैं इस मामले में कुछ नहीं कर सकता, क्योंकि कुसुमा अब मेरे वश में नहीं है.’’

पंचायत बिना किसी फैसले के ही खत्म हो गई. मुकेश दूसरे दिन शाम को दिल्ली चला गया. इस पंचायत के बाद मोहल्ले का हर आदमी कुसुमा को अपना दुश्मन नजर आने लगा. इसलिए वह मोहल्ले के हर आदमी से पंगा ले कर उस की ऐसीतैसी करने लगी. उस की इस हरकत से हर कोई उस से घबराने लगा. अब किसी की हिम्मत उस से कुछ कहने की नहीं पड़ती थी. इस के बाद उस की और रामू की मोहब्बत की गाड़ी आराम से चलने लगी. डर के मारे मोहल्ले वालों ने उन की ओर से आंखें मूंद लीं.

शांति रामू को कुसुमा से किसी भी तरह अलग नहीं कर पाई तो उस ने सोचा कि रामू की शादी कर दे. नईनवेली दुलहन पा कर वह खुद ही कुसुमा का पीछा छोड़ देगा. उस ने रामू के लिए लड़कियां देखनी शुरू कर दीं. जल्दी ही उस ने जिला मैनपुरी के थाना एलांद के गांव सुशनगढ़ी के रहने वाले मान सिंह की बेटी सुमन से उस की शादी तय कर दी. कुसुमा को जब पता चला कि रामू की शादी तय हो गई है तो वह सुलग उठी. वह किसी भी कीमत पर यह शादी नहीं होने देना चाहती थी. भला वह कैसे चाहती कि उस का प्रेमी किसी से शादी कर के उसे सुलगने के लिए छोड़ दे. इसलिए उस ने रामू से साफसाफ कह दिया कि अगर उस ने यह शादी की तो वह जान दे देगी.

‘‘शादी के बाद भी मैं तुम्हारा ही रहूंगा भाभी. मां बहुत परेशान हैं. मैं अब उसे और दुखी नहीं कर सकता.’’ रामू ने कुसुमा को समझाना चाहा.

‘‘वाह, क्या बात कही है? तुम्हारी वजह से मैं कितनी बदनामी झेल रही हूं, तुम्हें पता है. लोग मुझे चरित्रहीन कहते हैं. अब बीच मंझधार में तुम मुझे छोड़ कर किसी और का होना चाहते हो. कान खोल कर सुन लो, जीते जी मैं ऐसा कभी नहीं होने दूंगी.’’ कुसुमा ने चेतावनी दी.

रामू घर वालों के बारे में सोच रहा था कि वह घर वालों को क्या जवाब दे. तभी कुसुमा ने उस का हाथ पकड़ कर कहा, ‘‘चलो, हम कहीं दूर भाग चलते हैं. अगर तुम ने ऐसा नहीं किया तो मेरा मरा मुंह देखोगे.’’

कुसुमा के तेवर देख कर रामू को यकीन हो गया कि अगर उस ने शादी कर ली तो कुसुमा सचमुच आत्महत्या कर लेगी. तब वह फंस सकता है. काफी सोचसमझ कर उस ने गहरी सांस ले कर कहा, ‘‘ठीक है, तुम तैयारी करो. मैं तुम्हें साथ ले कर भागने को तैयार हूं.’’

1 जून, 2013 को रामू की शादी होनी थी. दोनों ओर जोरशोर से शादी की तैयारियां चल रही थीं. शादी की तारीख से 2 दिन पहले रामू घर से गायब हो गया. रामू का गायब होना घर वालों के लिए सदमे की तरह था. उन के लिए परेशानी यह थी कि वे लड़की वालों को क्या जवाब देंगे. रिश्तेदारों को कौन सा मुंह दिखाएंगे. क्योंकि अब तक कार्ड भी बंट गए थे. कुसुमा भी घर से गायब थी, इसलिए सब को पूरा यकीन था कि जहां भी हैं, दोनों एक साथ हैं. सब से बड़ी परेशानी यह थी कि लड़की वालों को कैसे समझाया जाए. शांति बेटे मनोज को ले कर सुशनगढ़ी पहुंची. जब उस ने मान सिंह को सारी बात बताई तो उस ने अपना सिर पीट लिया. उस की बेटी का क्या होगा, कौन करेगा उस से शादी? लोग पूछेंगे कि शादी क्यों टूटी तो वह क्या जवाब देगा?

मान सिंह को इस तरह परेशान देख कर शांति ने कहा, ‘‘हम बहुत शर्मिंदा हैं समधीजी. अब इज्जत बचाने का एक ही रास्ता है. अगर आप मान जाएं तो सब ठीक हो जाएगा.’’

‘‘कौन सा रास्ता?’’ मान सिंह ने पूछा.

‘‘मेरे बेटे शिवशंकर को तो आप ने देखा ही है. वह बहुत ही नेक है. कमाताधमाता भी ठीकठाक है. वह आप की बेटी को खुश रखेगा. अगर आप तैयार हों तो…?’’

मान सिंह के पास उन की बात मानने के अलावा दूसरा कोई विकल्प नहीं था. उस ने उदास मन से कहा, ‘‘ठीक है, इज्जत बचाने के लिए शिवशंकर से ही सुमन की शादी कर देता हूं.’’

इस के बाद शिवशंकर ने चुपचाप मां की बात मान ली तो 1 जून, 2013 को सुमन से उस की शादी हो गई. इस तरह उस ने 2 परिवारों की इज्जत बचा ली.

11 जून, 2013 को रामू और कुसुमा लौट आए. पत्नी की इस हरकत की जानकारी दिल्ली में रह रहे मुकेश को भी हो गई थी. लेकिन वह हालात के सामने हारा हुआ था. इसलिए चुप्पी साधे दिल्ली में ही पड़ा रहा. सप्ताह भर बाद रामू घर लौटा तो सभी ने उसे खूब खरीखोटी सुनाई. इस पर उस ने कहा, ‘‘मैं सुमन को धोखा नहीं देना चाहता था, इसलिए मैं कुसुमा के साथ चला गया था.’’

शांति ने सोचा, जो होता है, वह अच्छा ही होता है. रामू की मुलायम सिंह, राहुल और तेजा से खूब पटती थी. इन में से मुलायम सिंह और तेजा पास के ही गांव के रहने वाले थे, जबकि राहुल मैनपुरी के कुरावली कस्बे का रहने वाला था. एक दिन सभी एक साथ एक ढाबे में बैठे खापी रहे थे, तभी राहुल न कहा, ‘‘यार रामू, कभी हम लोगों को भी कुसुमा भाभी से मिलवा.’’

‘‘तुम लोग उस से मिल कर क्या करोगे?’’ रामू ने पूछा. तेजा ने हंसते हुए कहा, ‘‘जो तू करता है, वही हम लोग भी करेंगे.’’

‘‘खबरदार, कुसुमा के बारे में अब एक भी शब्द बोला तो…?’’ रामू गुर्राया.

‘‘इस में तुझे मिर्चें क्यों लग रही है? कौन सी वह तेरी बीवी है?’’ मुलायम सिंह ने रामू के कंधे पर हाथ रख कर कहा.

‘‘यह अच्छी बात नहीं है, इसलिए मैं चाहता हूं कि तुम लोग उस की बात बिलकुल मत करो.’’ कह कर रामू उठ खड़ा हुआ.

राहुल ने रामू का हाथ पकड़ कर बैठाने की कोशिश करते हुए कहा, ‘‘भई, हम सब दोस्त हैं, इसलिए जो भी मिले, हम सब को मिलबांट कर खाना चाहिए.’’

राहुल की यह बात रामू को इतनी बुरी लगी कि उस ने गुस्से में उसे 2-4 तमाचे जड़ दिए. मुलायम ने रामू को धकेल कर अलग करते हुए कहा, ‘‘यह तुम ने अच्छा नहीं किया रामू.’’

‘‘कान खोल कर सुन लो, तुम में से किसी ने भी मेरी जिंदगी में दखल देने की कोशिश की तो मैं उस के साथ भी यही करूंगा.’’ कह कर रामू चला गया.

बाकी तीनों दोस्त रामू के इस रवैये से सन्न थे. किसी से कुछ कहते नहीं बन रहा था. आखिर चुप्पी मुलायम सिंह ने तोड़ी. ‘‘हम इतने भी गएगुजरे नहीं हैं कि इस की मारपीट चुपचाप सह लेंगे.’’

रामू के ये सभी दोस्त उस से जल रहे थे. वे कुसुमा को पाना चाहते थे, लेकिन रामू ने उन की इच्छाओं पर पानी फेर दिया था. इसलिए वे रामू को सबक सिखाने के बारे में सोचने लगे. 2 दिनों तक तीनों रामू द्वारा किए अपमान का बदला लेने की साजिश रचते रहे. अंतत: उन्होंने तय किया कि रामू को ऐसी सजा दी जाए कि कोई दोस्त फिर कभी अपने किसी दोस्त का इस तरह अपमान न कर सके. इस के बाद उन्होंने योजना भी बना डाली. उसी योजना के तहत तीनों ने रामू से माफी मांगी. रामू ने सोचा कि जब इन्हें अपनी गलती का अहसास हो गया है तो उसे भी अपनी गलती के लिए माफी मांग लेनी चाहिए. उस ने भी दोस्तों से अपनी गलती के लिए माफी मांग ली. इस के बाद मुलायम ने कहा, ‘‘इस खुशी में आज रात मैं सभी को पार्टी दे रहा हूं.’’

‘‘क्या खिलाएगा पार्टी में?’’ रामू ने पूछा.

‘‘भई पार्टी है तो कुछ अच्छा ही होगा. शाम को हम तुझे तेरे घर लेने आएंगे, तू तैयार रहना.’’ तेजा ने कहा.

शाम को रामू घर में ही था. उस के दोस्त उसे बुलाने आए तो मां को बता कर वह उन के साथ चला गया. एक ढाबे से गोश्त और रोटियां पैक कराई गईं. इस के बाद शराब की दुकान से एक बोतल शराब खरीदी गई. सारी व्यवस्था कर के तय किया गया कि भूरा की दुकान की छत पर बैठ कर खानापीना होगा. भूरा की दुकान हिंदपुरम कालोनी के सामने ही थी. कालोनी अभी नईनई बस रही है, इसलिए यहां अभी इक्कादुक्का मकान ही बने हैं. दूसरी ओर खेत हैं, इसलिए लोगों का आनाजाना इधर कम ही होता है. यही वजह थी कि अंधेरा होते ही इधर सन्नाटा पसर जाता था. यह मैनपुरी का काफी संवेदनशील इलाका माना जाता है.

तीनों दोस्त रामू को साथ ले कर भूरा की दुकान की छत पर आ गए. इस के बाद बातचीत के बीच खानापीना होने लगा. रामू काफी अच्छे मूड में था, इसलिए उस ने शराब थोड़ी ज्यादा पी ली. दोस्तों ने उसे पिलाई भी कुछ ज्यादा. काफी देर हो गई तो रामू ने कहा, ‘‘भई, अब घर चलना चाहिए.’’

‘‘कौन से घर, मां के या माशूका के?’’ मुलायम सिंह ने छेड़ा. रामू लड़ाईझगड़े के मूड़ में नहीं था, इसलिए उठ कर खड़ा हो गया. वह चलता, उस के पहले ही मुलायम सिंह ने उसे छेड़ते हुए कहा, ‘‘चल, हम भी तेरे साथ तेरी माशूका के यहां मौजमस्ती करने चलते हैं.’’

दरअसल, मुलायम सिंह उसे उकसाना चाहता था. मुलायम की इस बात पर रामू को गुस्सा आ गया तो वह उस की ओर झपटा. फिर क्या था, तीनों दोस्तों ने उसे दबोच कर गिरा दिया. इस के बाद वहां रखे फावड़े से उस की गर्दन काट दी. अब उन्हें लाश को ठिकाने लगाना था. काफी सोचविचार कर वे लाश को घसीट कर नीचे ले आए और सड़क के उस पार बहने वाले नाले में फेंक कर भाग खड़े हुए. काफी रात बीत गई और रामू नहीं लौटा तो शांति परेशान होने लगी. उस ने सोचा कि वह कुसुमा के यहां होगा. इसलिए उस ने सवेरा होते ही मनोज को कुसुमा के घर भेजा. तब पता चला कि रात में वह कुसुमा के घर भी नहीं था. इस के बाद उस की खोज शुरू हुई.

रामू अपने दोस्तों के साथ गया था. उस के दोस्तों से उस के बारे में पूछा जाता, उस के पहले ही किसी लड़के ने आ कर बताया कि रामू की लाश सड़क के किनारे बहने वाले नाले में पड़ी है. कोतवाली पुलिस को सूचना दी गई. सूचना मिलते ही इंस्पेक्टर शंकर सिंह और क्षेत्राधिकारी वी.पी. सिंह पुलिस बल के साथ घटनास्थल पर आ पहुंचे. निरीक्षण में उन्होंने देखा कि खून नाले से सामने की दुकान तक फैला है. छत पर जाने वाली सीढि़यों पर भी खून फैला था. पुलिस छत पर पहुंची तो वहां भी खून फैला दिखाई दिया. वहीं खून से सना फावड़ा भी पड़ा था. इस का मतलब यह था कि उसी फावड़े से छत पर मृतक की हत्या की गई थी.

पूछताछ में पता चल गया कि मृतक के मोहल्ले की ही एक महिला से अवैध संबंध थे. घरवालों ने भी बता दिया था कि कल शाम को रामू को उस के 3 दोस्त बुला कर ले गए थे. इस के बाद रामू के छोटे भाई शिवशंकर ने मैनपुरी कोतवाली में भाई की हत्या की रिपोर्ट दर्ज करने के लिए जो तहरीर दी, उस के आधार पर उसे पुलिस ने अपराध संख्या 641/13 पर भादंवि की धारा 302, 201, 120बी के तहत मुलायम सिंह पुत्र सूरज, निवासी नगला पंजाबा, राहुल पुत्र किशनलाल, निवासी कुरावली तथा तेजा पुत्र बाबूराम, निवासी हिंदपुरम कालोनी और कुसुमा पत्नी मुकेश, निवासी हिंदपुरम कालोनी के खिलाफ दर्ज कर लिया. मुलायम सिंह, तेजा और राहुल तो पहले से ही फरार थे, कुसुमा को भी जब पता चला कि रिर्पोट में उस का भी नाम है तो वह भी फरार हो गई.

लेकिन पुलिस ने जाल बिछा कर मुलायम सिंह, तेजा और राहुल को उसी दिन यानी 16 जुलाई, 2013 की देर शाम गिरफ्तार कर लिया. तीनों को थाने ला कर पूछताछ की गई तो उन्होंने अपना जुर्म स्वीकार कर के रामू की हत्या की पूरी कहानी सुना दी. अगले दिन पुलिस ने तीनों को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. पूछताछ में उन्होंने साफसाफ कहा था कि रामू की हत्या में कुसुमा शामिल नहीं थी. लेकिन रिपोर्ट में उस का नाम शामिल था, इसलिए 26 जुलाई, 2013 को उस ने अदालत में आत्मसमर्पण कर दिया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

इस तरह कुसुमा की वासना की आग ने अपना घर तो जलाया ही, शांति के घर को भी नहीं बख्शा. शांति का कहना है कि रामू ने तो नादानी की ही, कुसुमा भी कम गुनहगार नहीं है. उसी ने उस के मासूम बेटे को गुमराह किया था. कथा लिखे जाने तक चारों आरोपी जेल में थे.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारि

Punjab crime : रात में लड़की बनकर घूमता था सीरियल किलर, 18 महीने में किए 11 कत्ल

Punjab crime : एक खतरनाक सीरियल किलर (Serial Killer) की दास्तां, जिसने 11निर्दोष लोगों की हत्या कर दी. इस खौफनाक सीरियल किलर के वारदातों को सुनकर आप की रूह कांप उठेगी.

अक्सर ऐसे सीरियल किलर के बारे में पढ़ते रहे हैं जो आसानी से पकड़े नहीं जाते हैं, लेकिन यहां आपको एक अजीबोगरीब (Serial Killer) के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसने धोखेबाजों को मारना अपना मिशन बना लिया था. वह कत्ल करने के बाद उनके पैर छूकर माफी मांगता और मारने के बाद उनकी पीठ पर ‘धोखेबाज’ लिख देता था.

दिन में पुरुष और रात में महिला दिखता

इस सीरियल  किलर का नाम रामस्वरूप है. जिसे पंजाब पुलिस ने पकड़ा है, यह सीरियल किलर एक अनोखी पहचान रखता है. रामस्‍वरूप दिन में दिन में पुरुष जैसी और रात में महिला जैसी रूप बनाता था. पंजाब पुलिस ने इस किलर की पहचान के लिए स्केच भी जारी किया था.

भूलने वाला सीरियल किलर

यह सीरियल किलर 11 कत्ल कर चुका था और कैमरे के सामने उसने अपना जुर्म कबूल कर लिया. हैरानी की बात यह है कि कबूल करने के बाद यह सीरियल किलर खुद कहता है कि मेरी याददाश्त कमजोर है और मुझे अभी तक याद नहीं है कि मैंने कितने कत्ल किए हैं. किलर अपने आप को एक भुलक्कड़ मानता है.

अजीबोगरीब हरकतें करनेवाला रामस्‍वरूप

रामस्‍वरूप कत्ल करने के बाद लोगों की पीठ पर धोखेबाज लिख देता था. इतना ही नहीं, वह मृतक के हाथ पैर पकड़कर उससे माफी भी मांगता था. इसकी इस अजीब हरकत ने उसे इसे एक रहस्यमय और डरावना शख्स बना दिया था.

इस सीरियल किलर ने 18 अगस्त को कीरतपुर साहिब गढ़ मोड़ा टोल प्लाजा के करीब चाय पानी की दुकान वाले 37 वर्षीय शख्स की हत्या कर दी और उसका मोबाइल अपने साथ ले गया. इसी मोबाइल के जरिए पुलिस मोबाइल बेचने वाले के पास पहुंचती है जहां उसे पता चलता है कि मोबाइल बेचने के लिए एक महिला आई थी लेक‍िन देखने में वह पुरुष जैसा लग रहा था. पंजाब पुलिस ने इस शख्स के जरिए सीरियल किलर का स्केच तैयार किया और उसकी तलाश शुरू की. मोबाइल और स्केच के आधार पर ही रामस्वरूप की पहचान और गिरफ्तारी संभव हो सकी. इसके बाद पंजाब पुलिस स्केच के आधार पर उस रामस्वरूप के पास तक पहुंचती है और उसे अरेस्ट कर लेती है.

जब पुलिस उसे पकड़ती है तो लगता है कि उसने सिर्फ एक कत्ल किया होगा लेकिन जब वह अपना मुंह खोलता है तो पुलिस शौक्‍ड रह जाती है उसने ऐसे खुलासे किए कि पुलिस कुछ ही देर में समझ गई कि वह एक खतरनाक सीरियल किलर के सामने खड़ी है.

किस तरह से करता था कत्ल

रामस्‍वरूप एक “गे सेक्स वर्कर” था. यह रात को महिलाओं की तरह सजता था और घूंघट में चेहरा ढक कर ग्राहकों की तलाश में जुड़ जाता. जब इसे कोई ग्राहक मिल जाता है तो वह उस ग्राहक से पैसे के लिए लड़ता और उस ग्राहक का गला घोंट कर हत्या कर देता.

पंजाब पुलिस के मुताबिक इस सीरियल किलर ने डेढ़ साल में 11 कत्ल किए है. अभी पुलिस इससे जुड़े और सबूत तलाश रही है.

Murder story : पूर्व प्रेमी के लिए पति का मर्डर

Murder story : सुमित श्रीवास्तव से मुलाकात हो जाने के बाद मानसी ने प्रेमी गणेश को छोड़ सुमित से लव मैरिज कर ली. इस दौरान ऐसा क्या हुआ कि कुछ दिनों बाद ही वह फिर से गणेश की बांहों में आने के लिए छटपटाने लगी. इस के लिए मानसी और गणेश ने जो प्लान बनाया, क्या उस में उन्हें कामयाबी मिली? पढ़ें, लव क्राइम की यह कहानी.

गणेश सुमित श्रीवास्तव को ले कर बहुत परेशान था, लेकिन वह समझ नहीं पा रहा था कि क्या करे. एक दिन वह अपने जिगरी दोस्तों दीपक कोली, शिवम गोविंदा और शिव के साथ बैठा था. ये सभी लंगोटिया यार थे. चारों हर शाम एक साथ बैठ कर खातेपीते और मौजमस्ती करते थे. उसी दौरान गणेश ने अपने दिल का दर्द अपने दोस्तों को सुनाया, ”यारो, एक बात को ले कर मैं बहुत परेशान हूं. तुम्हें तो पता ही है कि मैं मानसी को दिलोजान से चाहता हूं. उस से शादी भी करना चाहता हूं. लेकिन इस वक्त सुमित उस के दिलोदिमाग पर राज कर रहा है. यह मुझ से बरदाश्त नहीं होता.’’

अभी गणेश की बात पूरी भी नहीं हो पाई थी, तभी दीपक कोली बोला, ”अरे यार, इतनी छोटी सी बात के लिए परेशान क्यों हो रहा है. तू चाहे तो तेरे दर्द के कांटे को आज ही सफा कर डालते हैं.’’

”नहीं यार, ये काम इतनी जल्दबाजी के नहीं होते.’’

”अबे यार, तू कैसा प्रेमी है, प्रेम भी करता है और उसे पाने से डरता भी है.’’ गणेश की बात सुनते ही उस के सामने बैठे शिवम ने जबाव दिया.

”नहीं यार, ऐसा कुछ नहीं, बल्कि मैं चाहता हूं कि सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे. मैं मानसी को हर तरह से समझाबुझा कर हार चुका हूं. लेकिन वह सुमित के होते मुझ से शादी करने को तैयार नहीं.’’ गणेश ने कहा.

गणेश की बात सुनते ही उस के सामने बैठा गोविंदा बोला, ”अबे यार, तू भी निरा गोबर गणेश ही है. कोई भी प्यार करने वाली लड़की अपना मुंह नहीं खोलना चाहती. उस का तो एक ही इलाज है, सुमित को ही तुम दोनों के बीच से हटा देते हैं. न रहेगा बांस, न बजेगी बांसुरी.’’ शिवम बोला.

तभी गणेश बोला, ”यार, यह काम इतना ईजी भी तो नहीं है, जितना तुम समझ रहे हो.’’

”अरे यार क्या बात करता है, यह काम तू हम पर छोड़ दे. तू तो केवल मुरगा पार्टी का इंतजाम कर. बाकी सब हम पर छोड़ दे.’’ शिवम ने अपनी बात रखी.

उसी शाम पांचों दोस्तों ने सुमित को मौत की नींद सुलाने का प्लान बनाया. गोविंदा ने गणेश को समझाया, ”तू तो किसी भी तरह से सुमित को पार्टी के बहाने बुला लेना. जब सुमित आ जाएगा तो उसे शराब पिलाने के बाद बाकी काम हम कर देंगे. इस के बाद Murder story लाश को नदी में फेंक देंगे. किसी को कुछ पता भी नहीं चलेगा.’’

यह प्लान बनाते ही पांचों ने उस के मर्डर का दिन 14 नबंवर (गुरु पूर्णिमा) के दिन निश्चित कर दिया था. सुमित की मौत की प्लानिंग करने के बाद 13 नबंवर, 2024 को गणेश प्रेमिका मानसी से जा कर मिला. मानसी के पास जाते ही उस ने फिर से उसे समझाने की कोशिश की, ”मानसी, मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूं. मैं तुम से शादी कर तुम्हें अपनी बीवी बनाना चाहता हूं.’’

लेकिन मानसी ने उस की बात का एक ही जबाव दिया, ”गणेश, सुमित के रहते तुम्हारा यह सपना पूरा होने वाला नहीं.’’

”मानसी, अगर तुम्हें पाने के लिए मुझे सुमित के खून से हाथ भी रंगने पड़े तो मैं पीछे नहीं हटूंगा.’’ गणेश ने अपना अटूट प्यार दिखाते हुए कहा.

”ठीक है, जो तुम्हें करना है करो, इस में मैं कुछ नहीं बोलूंगी.’’ मानसी ने भी अपने मन की बात गणेश के सामने रख दी थी.

मानसी ने पति को क्यों भेजा मौत के मुंह में

मानसी की बात सुनते ही गणेश समझ गया कि वह भी यही चाहती है. तभी गणेश ने मानसी को बताया, ”14 नवंबर के दिन हम सुमित को एक शानदार पार्टी देंगे और यह पार्टी उस की जिंदगी की आखिरी पार्टी होगी.’’

यह बात मानसी को बता कर गणेश वहां से चला गया. 14 नवंबर, 2024 की शाम को अपने प्लान के मुताबिक गणेश ने मानसी से मुरगा बनाने को कहा. गणेश ने मानसी को समझा दिया था कि जैसे ही सुमित घर आए, उसे मीट ले कर हमारे पास भेज देना. शाम होते ही गणेश ने सुमित श्रीवास्तव को फोन कर बता दिया कि आज रात तुम्हारी पार्टी है. तुम जल्द ही प्रीत विहार (कल्याणी नदी) पहुंचो. लेकिन ज्यादा देर हो जाने के कारण सुमित ने जाने से मना कर दिया. उस वक्त मानसी भी उस के पास ही बैठी थी. तभी मानसी ने सुमित की बात सुनते ही कहा, ”आज शाम गणेश का फोन आया था. कह रहा था कि भाभीजी आज तो तुम्हारे हाथ का बना मुरगा खाने का मन है. हो सके तो शाम को मुरगा बना कर सुमित भैया के हाथ भिजवा देना. शायद तुम्हारे इंतजार में आज उस ने खाना भी न खाया हो.’’

मानसी की बात सुनते ही सुमित उस के बारे में सोचने पर मजबूर हो गया. फिर वह गणेश के पास जाने को तैयार भी हो गया. तब मानसी ने एक टिफिन में मुरगे का मीट और रोटियां भी रख दीं. टिफिन ले कर सुमित प्रीत विहार में कल्याणी नदी के किनारे पहुंच गया. वहां पर गणेश अपने दोस्तों के साथ उस का ही इंतजार कर रहा था. सुमित के पहुंचते ही सभी ने वहीं पर एक साथ बैठ कर शराब पी और मीट भी खाया. शराब पीने के बाद जब सुमित पर नशा हावी हो गया तो पांचों ने मौका पाते ही जूतों के फीते निकाल कर सुमित का गला घोंट दिया. जिस के थोड़ी देर बाद ही उस की मौत हो गई.

उस के बाद भी उन्होंने उस के सिर पर बियर की कई बोतलें फोड़ डालीं, ताकि वह जिंदा न बचे. उस के बाद उन्होंने उस की लाश को नदी में फेंक दिया. फिर पांचों अपनेअपने घर चले गए.

मानसी ने पति की हत्या कराने के बाद क्यों दर्ज कराई रिपोर्ट

उस रात जब सुमित घर वापस नहीं आया तो मानसी समझ गई कि गणेश ने अपना काम पूरा कर दिया है. उस ने उसे फोन इसलिए नहीं किया, क्योंकि वह उसी काल से फंस सकती थी. अगले दिन 15 नवंबर को मानसी ने अपने ससुर को फोन कर बताया कि रात सुमित घर वापस नहीं आया. उन का कहीं अतापता नहीं. मानसी के जरिए से यह बात चारों ओर फैली तो उस के फैमिली वालों ने पड़ोसियों को साथ ले कर सुमित को हर जगह ढूंढा, लेकिन उस का कहीं भी पता न चल सका.

16 नवंबर, 2024 को मानसी रोतीधोती रमपुरा पुलिस चौकी पहुंची, जहां पर उस ने सुमित के गायब होने की तहरीर दी. उस वक्त गणेश भी उस के साथ था. तभी गणेश ने शिवम को फोन कर एक बार सुमित की लाश को देखने को कहा, ताकि वे किसी भी तरह से पकड़ में न आएं. उसी शाम शिवम ने 50 किलोग्राम का नमक का कट्टा खरीदा. फिर शिवम अपने दोस्त शिव और दीपक कोली को साथ ले कर कल्याणी नदी पर पहुंचा. वहां पर पहुंचते ही उन्होंने सुमित की डैडबौडी को उस जगह से उठा कर कुछ दूरी पर ले जा कर गड्ढा खोद कर नमक डालने के बाद दफन कर दिया था.

मानसी की लिखित तहरीर के आधार पर पुलिस ने मुकदमा दर्ज कर उस की जांच शुरू की. सब से पहले पुलिस ने सुमित के घर के आसपास लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज चैक की तो उस में वह उस रात अकेला ही घर से निकलता नजर आया. उस के बाद भी पुलिस ने अन्य रास्तों पर भी लगे सीसीटीवी कैमरे चैक किए, लेकिन पुलिस के हाथ कोई सफलता हाथ नहीं लगी. 22 नवंबर को रुद्रपुर के प्रीत विहार के कुछ स्थानीय व्यक्तियों ने नदी के किनारे से तेज स्मैल आने की पुलिस से शिकायत की. लोगों की शिकायत पर पुलिस वहां पर इनवैस्टीगेशन के लिए पहुंची तो नदी किनारे एक ताजा खुदे गड्ढे से स्मैल आने का शक हुआ.

शक के आधार पर पुलिस ने उस गड्ढे को खुदवाना शुरू किया. गड्ढे से थोड़ी मिट्टी हटाने के बाद ही उस में एक इंसान का हाथ नजर आया. उस के बाद गड्ढे को और गहरा खोदा गया तो उस में से नमक निकलनी शुरू हुई. गड्ढे को कोई 5-6 फीट गहरा खोदने पर एक डैडबौडी निकली. गड्ढे से एक व्यक्ति की डैडबौडी मिलने की सूचना से पूरे क्षेत्र में सनसनी फैल गई थी. देखते ही देखते घटनास्थल पर भारी भीड़ जमा हो गई थी. पुलिस ने उस डैडबौडी को बाहर निकाल कर उस की जांचपड़ताल की तो उस के एक हाथ पर सुमित श्रीवास्तव नाम गुदा हुआ मिला. सुमित श्रीवास्तव नाम सामने आते ही पुलिस समझ गई थी कि यह वही सुमित है, जिस की गुमशुदगी की रिपोर्ट मानसी नामक युवती ने 16 नवंबर को रमपुरा पुलिस चौकी में दर्ज कराई थी.

गायब सुमित श्रीवास्तव की लाश मिलते ही पुलिस ने फोन द्वारा उस की वाइफ मानसी को इस की सूचना दी. सुमित की लाश मिलने की सूचना पर उस के फैमिली वाले रोतेबिलखते घटनास्थल पर पहुंचे. इस घटना की जानकारी मिलते ही एसपी (सिटी) मनोज कत्याल, सीओ निहारिका तोमर, कोतवाल मनोज रतूड़ी भी घटनास्थल पर पहुंचे. सभी अफसरों ने मौके पर पहुंच कर घटना का जायजा लिया. सुमित के शव की शिनाख्त होते ही पुलिस ने उसे पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया था. घटना की जानकारी मिलते ही पूर्व एमएलए राजकुमार ठुकराल, समाजसेवी संजय ठुकराल, ललित बिष्ट सहित बड़ी संख्या में लोग इकट्ठा हो गए. उन्होंने मृतकों के घर वालों को ढांढस बंधाया और पुलिस की काररवाई पर तरहतरह के सवाल भी उठाए.

एसएसपी मणिकांत मिश्रा ने इस केस को सुलझाने के लिए सीओ (सिटी) निहारिका तोमर के निर्देशन में एक पुलिस टीम बनाई. टीम में कोतवाल मनोज रतूड़ी, एसएसआई ललित मोहन रावल, एसआई नवनी बुधानी, गणेश भट्ट, जितेंद्र कुमार, होशियार सिंह, चंदन बिष्ट, चंद्र सिंह, नेहा राणा, कांस्टेबल महेंद्र कुमार, महेश राम, ताजबीर सिंह, रमेशचंद्र, दलीप कुमार आदि को शामिल किया.

पुलिस को ऐसे मिला हत्या का क्लू

पुलिस टीम ने सुमित की डैडबौडी मिलने के बाद सीसीटीवी कैमरों और सर्विलांस की मदद ली तो गणेश के साथ अन्य व्यक्ति भी जाते नजर आए. उसी दौरान पुलिस को जानकारी मिली कि गणेश का सुमित के घर पहले से आनाजाना था. इस जानकारी के मिलते ही पुलिस ने गणेश को पूछताछ के लिए उठा लिया. पुलिस ने गणेश से इस मामले में सख्ती से पूछताछ की तो उस ने अपना मुंह तक नहीं खोला. जबकि पुलिस पहले ही उस के मोबाइल को सर्विलांस पर लगा कर उस की हकीकत जान चुकी थी. पुलिस को मानसी और उस के मोबाइल पर काफी समय तक बात होने के सबूत Murder story भी मिले. इस से साफ हो गया था कि मानसी और उस के बीच जरूर पहले से ही कुछ खिचड़ी पक रही थी.

जब काफी पूछताछ के बाद भी गणेश सच्चाई बताने को तैयार नहीं हुआ तो पुलिस ने सख्ती से पूछताछ की. जिस के तुरंत बाद ही वह लाइन पर आ गया. उस ने स्वीकार किया कि मानसी और उस के बीच काफी समय से अवैध संबंध चले आ रहे थे. उसी ने मानसी को एक मोबाइल भी खरीद कर दिया था, ताकि दोनों के बीच बातचीत होती रहे. गणेश ने स्वीकार किया कि मानसी उस की पहली मोहब्बत थी. इसीलिए वह उस पर काफी पैसा लुटा चुका था. वह उस से शादी करना चाहता था. उस की चाहत में उस ने अपने दोस्तों के साथ मिल कर सुमित को मौत के घाट उतार दिया था.

यह इनफार्मेशन मिलते ही पुलिस ने उस के दोस्तों में से दीपक कोली, शिवम और शिव को भी गिरफ्तार कर लिया. अभियुक्तों व सुमित के फैमिली वालों से पूछताछ के बाद इस केस की जो स्टोरी सामने उभर कर आई, वह इस प्रकार थी. बहुत समय पहले मानसी और गणेश की फैमिली उत्तराखंड के शहर रुद्रपुर के रमपुरा में पासपास ही रहती थीं. यही कारण था कि मानसी और गणेश बचपन से ही एक साथ खेलेकूदे थे. उन की शिक्षा भी एक ही स्कूल में हुई थी. मानसी और गणेश दोनों ही साथसाथ स्कूल आतेजाते थे. कक्षा एक से कक्षा 5 तक दोनों एक साथ पढ़े थे. इसी कारण दोनों में गहरी दोस्ती थी.

कक्षा 5 तक आतेआते दोनों के बीच प्रेम प्रसंग भी हो गया था. उस के बाद दोनों के स्कूल अलगअलग हो गए थे, लेकिन स्कूल से लौटने के बाद दोनों एक साथ ही खेलते और पढ़ाई भी करते थे. उसी दौरान मानसी की मुलाकात सुमित श्रीवास्तव से हुई. सुमित उत्तर प्रदेश के बरेली जिले के गांव मसवासी मानपुर के राजू श्रीवास्तव का बेटा था. अब से लगभग 15 साल पहले राजू श्रीवास्तव की पत्नी का किसी बीमारी के चलते देहांत हो गया था. पत्नी की डैथ के बाद राजू श्रीवास्तव ने ही अपने पांचों बच्चों की परवरिश की थी.

3 भाई और 2 बहनों में सुमित सब से बड़ा था. राजू श्रीवास्तव की एक बहन उत्तराखंड के शहर रुद्रपुर की रमपुरा कालोनी में रहती थी. अब से कई साल पहले सुमित अपनी बुआ के साथ रुद्रपुर घूमने आया था. उस के बाद उस का मन यहीं पर लग गया. जिस के बाद वह बुआ के पास ही रहने लगा था. घर के आसपास रहते हुए जल्दी ही उस की दोस्ती मानसी से हो गई थी. कुछ समय तक तक मानसी, गणेश और सुमित एक साथ ही खेले. उसी दौरान मानसी का लगाव सुमित श्रीवास्तव की और बढऩे लगा था. जिस के बाद वह गणेश में कम दिलचस्पी लेने लगी थी.

उस समय तक मानसी जवानी की दहलीज पर आ खड़ी हुई थी. वह जन्म से ही भरे बदन की युवती थी. वक्त बदलते सुमित का मन भी मचल उठा. दोनों के दिलों में एकदूसरे के प्रति चाहत बढ़ी तो दोनों एकदूसरे के साथ अपनी दुनिया बसाने के सपने संजोने लगे थे. समय की चाल बढ़ते ही दोनों प्यार की दीवार को लांघ कर हदों को पार करने लगे थे. नतीजा यह निकला कि कुछ ही दिनों में दोनों के प्यार के चर्चे समाज के सामने आ गए.जब इस बात की जानकारी मानसी के फैमिली वालों को हुई तो उन्हें बहुत बड़ा झटका लगा. पहले तो उन्होंने उसे समझाने की कोशिश की, उस के बाद सुमित की बुआ से भी उस की शिकायत की. सुमित की बुआ ने भी उसे समझाने की कोशिश की. लेकिन दोनों पर किसी की बात का कोई असर नहीं पड़ा. दोनों छिपछिप कर मिलने लगे.

उसी वक्त मानसी ने एक मुलाकात में सुमित के सामने अपने दिल की बात रखते हुए कहा, ”सुमित, क्यों न हम कहीं बाहर जा कर शादी कर लें. उस के बाद हम दोनों आजादी से साथसाथ रहेंगे.’’

जब एक मोड़ पर मिला पुराना प्रेमी

चाहता तो सुमित भी यही था, लेकिन वह अपनी तरफ से हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था. यही सोचते एक दिन दोनों ने आखिरी निर्णय लिया. अब से लगभग 8 साल पहले दोनों ने घर से भाग कर शादी कर ली. शादी करने के बाद दोनों ही मुरादाबाद शहर में रहने लगे थे. सुमित वहीं पर एक कारखाने में नौकरी करने लगा था. कुछ दिन मुरादाबाद में रहने के बाद सुमित मानसी को साथ ले कर रामपुर चला गया. कुछ वक्त दोनों का रामपुर में गुजरा. फिर सुमित मानसी को ले कर रुद्रपुर के ट्रांजिट कैंप कालोनी रमपुरा में आ कर रहने लगा. रुद्रपुर में मानसी ने एक बेटे को जन्म दिया.

उसी समय सुमित ने एक आटोरिक्शा खरीद लिया था और उसी को चला कर वह अपनी रोजीरोटी चलाने लगा था. आटो चलाने के दौरान सुमित को शराब की लत लग गई थी, जिस के बाद वह अपनी आधी से ज्यादा कमाई शराब में ही खर्च कर डालता था. मानसी ने उसे कई बार समझाने की कोशिश की, लेकिन वह उस की एक भी बात मानने को तैयार नहीं था. बात बढऩे पर वह मानसी के साथ गालीगलौज करते हुए उसे मारनेपीटने भी लगा था. सुमित की हरकतों से आजिज आ कर मानसी का उस के प्रति पनपा प्यार भी फीका पडऩे लगा था. वह उसे खर्च के लिए पैसे देने में भी आनाकानी करने लगा था. जिस के कारण वह हमेशा ही अपने दिल के अरमानों को मसोस कर रह जाती थी. उसी समय एक दिन उस की फिर से मुलाकात गणेश से हो गई.

शाम का वक्त था. गणेश बाजार से अपने घर की ओर जा रहा था. उसी समय रास्ते के चौराहे पर उस की नजर एक युवती पर पड़ी. जैसे ही उस की बाइक उस युवती के पास से गुजरी, उस ने एक तिरछी नजर उस युवती पर डाली. उसे देखते ही वह सकपका गया, ”मानसी यहां!’’

उस ने अपनी बाइक साइड में लगा कर रोक दी. जैसे ही वह युवती उस के पास पहुंची, गणेश बोला, ”मानसी, तुम यहां कैसे? इस वक्त तुम कहां जा रही हो?’’

यूं अचानक गणेश को सामने खड़ा देख जैसे मानसी का रोमरोम खिल उठा था.

”अरे गणेश, तुम कैसे हो?’’

मेरी छोड़ो, तुम अपनी सुनाओ. तुम तो सुमित से शादी करने के बाद शहर छोड़ कर चली गई थी. फिर अचानक यहां कैसे?’’

”अब सारी राम कहानी यहीं पर सुनोगे, आगे नहीं बढ़ोगे.’’

गणेश ने अपनी बाइक सड़क के किनारे खड़ी कर दी. तभी मानसी ने गणेश से सवाल किया, ”अब इस वक्त तुम कहां रह रहे हो?’’

”मैं तो अभी भी रमपुरा में ही रह रहा हूं, मुझे यह शहर छोड़ कर कहां जाना है.’’

”अच्छा, मैं भी तो उसी कालोनी में रह रही हूं. आओ, तुम्हें अपना कमरा दिखाती हूं. वही बैठ कर कुछ बातचीत करेंगे.’’

मानसी को पाने के लिए गणेश ने क्यों चुना खतरनाक रास्ता

मानसी की बात सुनते ही उस का मन हिचकोले लेने लगा था. उस के बाद मानसी उसे सीधे अपने कमरे पर ले गई. गणेश उस दिन खुशी से फूला नहीं समा रहा था. जब बरसों बाद दोनों एक साथ बैठे तो बातों का सिलसिला चालू हुआ. मानसी की कहानी सुन कर गणेश समझ गया था कि वह अपने पति सुमित के साथ खुश नहीं है. शादी के इतने साल बाद भी वह उस की महत्त्वाकांक्षाओं को समझ नहीं पाया था. यही कारण था कि इतने साल बाद भी गणेश से मिलने के बाद उस की चाहत की घंटी फिर से बज उठी थी. गणेश को देखते ही उसे लगने लगा था कि वही उस के ख्वाबों को हकीकत में बदल सकता है. तभी मानसी ने गणेश को प्यार की हरी झंडी भी दिखा दी थी.

उसी वक्त मानसी ने गणेश को बता दिया था कि उस का पति सुमित आटोरिक्शा चलाता है, जो देर रात ही घर पहुंचता है. गणेश के जाने से पहले मानसी ने उसे अपना मोबाइल नंबर देने के बाद उस का नंबर भी अपने मोबाइल में सेव कर लिया था. मानसी को देखते ही उस के मन में ऐसा भूचाल आया कि उस ने घर पहुंचते ही उसे फोन कर दिया था. शायद वह भी जैसे उस के फोन का ही इंतजार कर रही थी. कुछ देर इधरउधर की बातें करने के बाद मानसी ने अपने दिल की बात गणेश के सामने रख दी थी. गणेश के मन में भी वही सब खिचड़ी पक रही थी. मानसी से बात कर के उस का मन बहुत ही हलका महसूस हो रहा था. उसे लगा कि उस का पहला प्यार फिर से उस की झोली में आ पड़ा है.

उस दिन के बाद दोनों ही फोन पर एकदूसरे से बात करने लगे थे. सुमित के घर से निकलते ही मानसी फोन कर के उसे अपने कमरे पर बुला लेती थी. उस के बाद दोनों शहर में मौजमस्ती करने निकल जाते. यह सिलसिला दोनों के बीच काफी समय तक चलता रहा. एक दिन मानसी ने उस की मुलाकात सुमित से भी करा दी थी. सुमित पहले से जानता था कि गणेश उन के पड़ोस में रहता है. सुमित और गणेश दोनों ही शराब के शौकीन थे. यही कारण रहा कि जल्दी ही दोनों के बीच गहरी दोस्ती भी हो गई थी.

गणेश रेनू का बचपन का दोस्त था. उसी कारण दोनों के बीच जल्दी संबंध हो गए थे. उस के बाद गणेश ने ही उस का सारा खर्च उठाना शुरू कर दिया था.

इस केस के खुलते ही पुलिस ने मानसी, उस के प्रेमी गणेश चंद्रा, वंश, दीपक कोली और शिवम निवासी रमपुरा को गिरफ्तार करने के बाद कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया था. जबकि एक आरोपी गोविंदा घर से फरार हो गया था, जिस की पुलिस तलाश कर रही थी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. कथा में मानसी परिवर्तित नाम है.

कीवर्ड (लव क्राइम)

 

Murder story : कविता ने लिखी खूनी कविता

Murder story : एक दिन कविता पटेल मोबाइल के कौंटैक्ट नंबर देख रही थी, तभी उसे शादी से पहले के प्रेमी बृजेश का नंबर दिखा. नंबर देखते ही उसे पुराने दिन याद आने लगे. वह बृजेश से बात करने की कोशिश तो करती, लेकिन कुछ सोच कर रुक जाती थी.

आखिरकार एक दिन उस ने बृजेश से बात करने की गरज से फोन किया तो बृजेश बर्मन ने काल रिसीव करते हुए कहा, “हैलो कौन?’’

“बृजेश, पहचाना नहीं मुझे. तुम तो बहुत जल्दी बदल गए, अब तो मेरी आवाज भी भूल गए.’’ कविता ने शिकायती लहजे में कहा.

“जानेमन तुम्हें कैसे भूल सकता हूं. इस अननोन नंबर से काल आई तो पहचान नहीं सका.’’ बृजेश सफाई देते हुए बोला.

“तुम ने तो मेरी शादी के बाद कभी काल भी नहीं की,’’ कविता बोली.

“कविता, मैं तुम्हें दिल से चाहता था, इसलिए मैं तुम्हारा बसा हुआ घर नहीं उजाड़ना चाहता था. मैं ने अपने दिल पर पत्थर रख कर तुम्हारी खुशियों की खातिर समझौता कर लिया था,’’ बृजेश बोला.

“सचमुच इतना प्यार करते हो तो मुझ से मिलने दमोह आ जाओ, मुझ से तुम्हारी जुदाई बरदाश्त नहीं हो रही.’’ कविता ने फिर से उस के प्रति चाहत दिखाते हुए कहा.

इतना सुनते ही बृजेश का दिल बागबाग हो गया. फिर एक दिन वह कविता से मिलने उस की ससुराल पहुंच गया. कई महीने बाद बृजेश और कविता ने अपने दिल की बातें कीं तो उन का पुराना प्यार जाग गया. उस के बाद दोनों की मेलमुलाकात का सिलसिला चल निकला. बृजेश से जब कविता का दोबारा संपर्क हुआ तो उस समय वह टेंट हाउस में काम करने लगा था. कविता से उस की मुलाकात अकसर कालेज जाते समय होती थी.

प्रेमी को बताती थी मुंहबोला भाई

जब बृजेश कविता की ससुराल भी आने लगा तो कविता ने अपने ससुर और पति से उस का परिचय मुंहबोले भाई के तौर पर कराया. वैसे तो कविता को दीपचंद जैसा नेक पति मिल गया था, परंतु पति के शादी के बाद नौकरी के लिए चले जाने से कविता का पुराना प्यार जाग गया था. दीपचंद को जब कविता और बृजेश के प्रेम संबंधों का पता चला तो हंसते खेलते परिवार में कलह होते देर न लगी. लाख समझाने के बाद भी जब कविता नहीं मानी तो दीपचंद ने कविता पर सख्त पहरा लगा दिया. इस का अंजाम यह हुआ कि कविता के कहने पर बृजेश ने कविता की मांग का सिंदूर मिटा दिया.

22 जुलाई, 2023 दोपहर के करीब 2 बज रहे थे. मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड अंचल के दमोह जिले के गैसाबाद थाने में टीआई विकास सिंह चौहान अपने कक्ष में बैठे कुछ जरूरी फाइल देख रहे थे. तभी अधेड़ उम्र के एक व्यक्ति ने उन के कक्ष के बाहर से आवाज लगाई, “साब, क्या मैं अंदर आ सकता हूं?’’

टीआई चौहान ने एक नजर सामने खड़े उस व्यक्ति पर डालते हुए कहा, “हां, आ जाइए. बैठिए.’’

जब वह व्यक्ति कुरसी पर बैठ गया तो उन्होंने पूछा, “बताइए, क्या काम है?’’

“साहब, मेरा नाम हाकम पटेल है और मैं खैरा गांव का रहने वाला हूं. मेरा बेटा पिछले 3 दिनों से लापता है.’’

टीआई विकास सिंह चौहान ने एक कर्मचारी को पानी लाने का इशारा करते हुए हाकम पटेल से कहा, “आप इत्मीनान से मुझे पूरी बात विस्तार से बताइए.’’

“जी साहब, 19 जुलाई, 2023 की शाम 7 बजे मेरा 26 साल का इकलौता बेटा दीपचंद पटेल घर से निकला था. तब से उस का कुछ पता नहीं चल रहा है. उस का मोबाइल भी बंद आ रहा है.’’ यह कहते हुए हाकम ने कर्मचारी के हाथ से पानी का गिलास ले लिया.

“शादी हो गई बेटे की?’’ टीआई चौहान ने पूछा.

“हां साहब, 2021 में उस की शादी हो गई. बेटेबहू में किसी तरह का कोई मनमुटाव भी नहीं था.’’ गटागट पानी पीने के बाद हाकम ने बताया.

“किसी पर शक है तुम्हें, किसी से कोई रंजिश तो नहीं थी?’’

“नहीं साहब, हमारी किसी से कोई दुश्मनी नहीं थी, इसलिए किसी पर शक भी नहीं है.’’

दीपचंद की गुमशुदगी दर्ज कराते हुए टीआई चौहान ने हाकम को भरोसा दिलाया कि पुलिस जल्द ही उस के बेटे दीपचंद को खोज निकालेगी. दीपचंद के लापता होने की खबर उस के ससुराल दमोह से सटे हुए पन्ना तक पहुंची तो दीपचंद के ससुर और साले के साथ कुछ नातेरिश्तेदार भी दमोह पहुंच गए. वे हाकम के साथ मिल कर दामाद की तलाश में जुट गए. जैसेजैसे दिन बीत रहे थे, टीआई विकास सिंह चौहान को दीपचंद के बिना वजह लापता होने की बात खटक रही थी. दमोह जिले के एसपी सुनील तिवारी के निर्देश पर एसडीओपी (हटा) नितिन पटेल ने दीपचंद की खोजबीन के लिए एक पुलिस टीम गठित कर टीआई चौहान को पतासाजी करने के निर्देश दिए.

हाकम पटेल अपनी करीब 8-10 एकड़ जमीन पर खेतीबाड़ी करते हैं. हाकम ने 2 शादियां की थीं. पहली पत्नी से कोई बच्चा नहीं हुआ और कुछ समय बाद बीमारी के चलते उस की मौत हो गई तो हाकम ने दूसरी शादी कर ली तो दूसरी पत्नी से दीपचंद पैदा हुआ. दीपचंद जब छोटा ही था कि उस की मां घर छोड़ कर किसी दूसरे मर्द के साथ चली गई. पिता हाकम ने दीपचंद को लाड़प्यार से पालापोसा. दीपचंद केवल 12वीं कक्षा तक ही पढ़ाई कर पाया था. जवान होते ही दीपचंद की शादी पन्ना जिले के सुनवानी गांव की कविता से कर दी गई.

कविता के कदम दीपचंद के घर में पड़ते ही बाप बेटे काफी खुश थे, क्योंकि लंबे अरसे बाद घर में कोई महिला आई थी. दोनों चूल्हा फूंकफूंक कर थक चुके थे, ऐसे में कविता ने जब इस घर की दहलीज पर कदम रखा तो जल्द ही वह दोनों की आंखों का तारा हो गई. ससुर हाकम उसे बेटी की तरह दुलारते तो दीपचंद भी उस की हर ख्वाहिश पूरी करता. पुलिस के लिए दीपचंद की गुमशुदगी एक पहेली बनी हुई थी. दीपचंद की न तो किसी से रंजिश थी और न ही कोई दुश्मनी. गांव में पूछताछ के दौरान भी कोई सुराग पुलिस के हाथ नहीं लगा, जिस से दीपचंद का पता चल सके. पुलिस की आखिरी उम्मीद दीपचंद की काल डिटेल्स रिपोर्ट पर टिकी हुई थी.

पुलिस ने जब दीपचंद के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई तो पता चला कि दीपचंद की 19 जुलाई की शाम आखिरी बार पन्ना के लोहरा गांव में रहने वाले बृजेश बर्मन उर्फ कल्लू से बात हुई थी. इस के बाद पुलिस ने बृजेश बर्मन के मोबाइल की काल डिटेल्स निकलवाई तो पता चला कि बृजेश की सब से ज्यादा बात चिकला निवासी गणेश विश्वकर्मा से हुई थी. दीपचंद समेत तीनों के फोन नंबर भी टावर लोकेशन में एक साथ खैरा गांव में मिले. इस से साफ हो गया था कि घर से दीपचंद इन दोनों के साथ ही निकला था.

दीपचंद का मोबाइल बंद होने से पहले की आखिरी टावर लोकेशन गांव वर्धा की थी. इसी टावर लोकेशन में गणेश विश्वकर्मा व बृजेश बर्मन के मोबाइल फोन भी बंद हो गए थे. यह जानकारी मिलने के बाद पुलिस टीम को पूरा भरोसा हो गया कि दीपचंद के लापता होने के बारे में इन दोनों को जरूर कुछ पता होगा. पुलिस टीम के लिए एक चौंकाने वाली बात यह पता चली कि बृजेश बर्मन उर्फ कल्लू की काल डिटेल्स में दीपचंद की पत्नी कविता का नंबर भी मिला. 19 जुलाई, 2023 को भी बृजेश और कविता के बीच बातचीत हुई थी. इस के पहले भी दोनों के बीच लगातार बात होने की पुष्टि हुई.

पुलिस ने बृजेश बर्मन और फिर गणेश विश्वकर्मा को हिरासत में ले कर पूछताछ की. पहले तो बृजेश ने यह कह कर पुलिस को बरगलाने की कोशिश की कि वह कविता को बहुत पहले से जानता है वह उस के मायके में किराए पर रह चुका है. इसी जानपहचान के चलते कविता से बात करता रहता था. पुलिस को उस की बात पर भरोसा नहीं हुआ. पुलिस के संदेह की सुई बृजेश के इर्दगिर्द घूम रही थी. पुलिस ने तुक्का मारते हुए बृजेश से कहा, “कविता ने सब कुछ बता दिया है, अब तुम्हारी बारी है. सच बताओगे तो ठीक नहीं तो दूसरा ही तरीका अपनाना पड़ेगा.’’

आखिरकार, तीर निशाने पर लगा और पुलिस की सख्ती के आगे बृजेश बर्मन टूट गया. बृजेश ने दीपचंद की हत्या की पूरी साजिश और हत्या की जो कहानी सुनाई, वह पुराने प्रेम संबंधों की कहानी निकली, जिस में अपने प्रेमी के लिए कविता ने अपनी मांग का सिंदूर ही मिटा दिया. बहू की यह करतूत जान कर दीपचंद के पिता हाकम पटेल के पैरों से तो जैसे जमीन ही खिसक गई.

शादी के पहले के प्रेमी से जोड़े संबंध

शादी के बाद दीपचंद जैसा पति और हाकम जैसा नेकदिल ससुर पा कर कविता भी काफी खुश थी, उस ने ससुराल को ही अपना घर मान लिया था. कविता के मम्मीपापा राजस्थान के जोधपुर में एक सीमेंट फैक्टी में काम करते थे. दीपचंद का मन खेतीबाड़ी में नहीं लगता था. इस वजह से वह उन दिनों काम की तलाश कर रहा था. जब कविता के पिता ने उसे जोधपुर में काम दिलाने की बात की तो वह शादी के कुछ महीनों बाद ही राजस्थान पहुंच गया. दीपचंद तब राजस्थान की एक सीमेंट फैक्ट्री में नौकरी पर चला गया.

घर में अकेली कविता को तन्हाई ने डस लिया. उस के मन के एक कोने में अब भी अपने बचपन के प्यार बृजेश बर्मन उर्फ कल्लू की यादें थीं. जब अकेलापन भारी पड़ने लगा तो उस ने बृजेश से फिर तार जोड़ लिए. कविता का मायका सुनवानी पन्ना में था, वह पहले शराब कंपनी में काम करता था. तब कविता के पापा के घर में ही किराए पर रहता था. कविता ने बीएससी तक की पढ़ाई की थी और वह शुरू से ही सपनों की दुनिया में सैर करने वाली लड़की थी. बृजेश तब शराब कंपनी में काम कर के अच्छे पैसे कमा रहा था. उसे कविता पहली ही नजर में पसंद आ गई थी. वह आतेजाते कविता से बात करने के बहाने ढूंढता. उस समय कविता की उम्र महज 19 साल थी.

एक दिन बृजेश शाम को जल्दी अपने रूम पर आ गया. उस समय कविता की मां मंदिर गई थीं और पिता किसी काम से बाहर गए हुए थे. बृजेश ने मौका देखते ही अपने प्यार का इजहार करते हुए कहा, “कविता, तुम बहुत खूबसूरत हो. आई लव यू कविता.’’

कविता भी मन ही मन बृजेश को चाहने लगी थी, मगर डर के मारे यह बात दिल में दबाए बैठी थी. जब बृजेश ने प्यार का इजहार किया तो उस ने भी कह दिया, “आई लव यू टू बृजेश.’’

कविता की स्वीकृति मिलते ही बृजेश ने उस का हाथ पकड़ा और गालों पर चुंबन लेते हुए कहा, “कविता, मैं तुम्हारे बिना एक पल भी नहीं रह सकता.’’

कविता का चेहरा मारे शर्म के लाल हो गया, उस ने जल्दी से अपना हाथ छुड़ाया और अपने कमरे की तरफ भाग गई. धीरेधीरे दोनों में गहरी दोस्ती और फिर प्यार परवान चढ़ने लगा. बृजेश अकसर कविता के लिए महंगे गिफ्ट भी ला कर देने लगा. कविता पटेल और बृजेश बर्मन अलगअलग जाति के थे. दोनों शादी के लिए राजी थे, मगर सामाजिक रीतिरिवाजों में इस की इजाजत नहीं थी. बृजेश उसे घर से भगा कर शादी करना चाहता था, लेकिन कविता घर से भाग कर शादी करने की हिम्मत नहीं जुटा पाई. आखिर में मई, 2021 में कविता की शादी उस के घर वालों ने दमोह जिले के खैरा गांव निवासी दीपचंद से कर दी.

किराएदार से हुआ था प्यार

23 साल की कविता की शादी दीपचंद पटेल से हुई थी. उस समय कविता हायर सेकेंडरी तक पढ़ी थी. जब उस ने अपने ससुर से आगे पढ़ने की इच्छा जताई तो उन्होंने उस का एडमिशन पन्ना के अमानगंज कालेज में करवा दिया. शादी से पहले कविता का उस के मकान में रहने वाले किराएदार बृजेश बर्मन उर्फ कल्लू से अफेयर जरूर था, मगर दोनों की जाति अलग होने की वजह से उन की शादी नहीं हो पाई. शादी के बाद सब ठीकठाक चल रहा था. कविता के ससुर उसे बेटी की तरह प्रेम करते थे. शादी के बाद कविता अपने प्रेमी बृजेश को भी भुला चुकी थी. कविता के पति की नौकरी राजस्थान की सीमेंट फैक्ट्री में थी. शादी के कुछ दिन बाद दीपचंद वापस नौकरी पर लौट गया तो कविता को खाली घर काटने लगा.

एक दिन वह मोबाइल के कौंटैक्ट नंबर देख रही थी, तभी उसे बृजेश का नंबर दिखा. उसे पुराने दिन याद आने लगे. वह बृजेश से बात करने की कोशिश तो करती, लेकिन कुछ सोच कर रुक जाती थी. आखिरकार एक दिन उस ने बृजेश से बात करने की गरज से फोन किया तो बृजेश ने काल रिसीव करते हुए कहा, “हैलो कौन?’’

“बृजेश, पहचाना नहीं मुझे. तुम तो बहुत बदल गए, अब तो मेरी आवाज भी भूल गए.’’ कविता ने शिकायत की.

“जानेमन तुम्हें कैसे भूल सकता हूं. इस अननोन नंबर से काल आई तो पहचान नहीं सका.’’ बृजेश सफाई देते हुए बोला.

“तुम ने तो मेरी शादी के बाद कभी काल भी नहीं की,’’ कविता बोली.

“कविता, मैं तुम्हें दिल से चाहता था, इसलिए मैं तुम्हारा बसा हुआ घर नहीं उजाड़ना चाहता था. मैं ने अपने दिल पर पत्थर रख कर तुम्हारी खुशियों की खातिर समझौता कर लिया था,’’ बृजेश बोला.

“सच में इतना प्यार करते हो तो मुझ से मिलने दमोह आ जाओ, तुम्हारी जुदाई बरदाश्त नहीं हो रही.’’ कविता ने फिर से उस के प्रति चाहत दिखाते हुए कहा.

कई महीने बाद बृजेश और कविता ने अपने दिल की बातें कीं तो उन का पुराना प्यार जाग गया. उस के बाद दोनों की मेल मुलाकात का सिलसिला चल निकला. बृजेश से जब कविता का दोबारा संपर्क हुआ तो उस समय वह टेंट हाउस में काम करने लगा था. कविता से उस की मुलाकात अकसर कालेज जाते समय होती थी. जब बृजेश कविता की ससुराल भी आने लगा तो कविता ने अपने ससुर और पति से उस का परिचय मुंहबोले भाई के तौर पर कराया.

बृजेश ने दीपचंद से भी दोस्ती कर ली थी. दीपचंद खाने पीने का शौकीन था, इसलिए अकसर ही दीपचंद की बैठक बृजेश के साथ होने लगी. दीपचंद और उस के पिता हाकम को यह शक तक नहीं हुआ कि वह यहां कविता के लिए आता है. दीपचंद को उस की गैरमौजूदगी में जब बृजेश के कुछ अधिक ही घर आने की खबर मिलने लगी तो उसे संदेह हुआ. फिर दीपचंद राजस्थान से नौकरी छोड़ कर लौट आया. वह पन्ना की सीमेंट फैक्ट्री में काम पर लग गया. वह अपने गांव खैरा के घर से ही ड्यूटी आनेजाने लगा. दीपचंद के लौटने के बाद दोनों का मिलना मुश्किल हो गया था.

धीरेधीरे दीपचंद को पत्नी कविता और बृजेश के संबंधों की भनक लग चुकी थी. हालांकि दोनों ने अपने संबंधों को दीपचंद के सामने स्वीकार नहीं किया. कविता हमेशा बृजेश को मुंहबोला भाई ही बताती रही. शादी के 2 साल बाद भी उन के संतान नहीं हुई थी. कविता अकसर दीपचंद को अपने से दूर रखती थी. इस से दीपचंद का संदेह और पुख्ता हो गया था. वह कविता पर दबाव बनाने लगा कि वह बृजेश से मेलजोल बंद कर दे और न ही उस से फोन पर बात करे. बृजेश को ले कर उस का कविता से विवाद भी होने लगा था. इस कहासुनी में वह कभीकभी कविता की पिटाई भी कर देता था. यहां तक कि दीपचंद ने पत्नी कविता को खर्च के लिए पैसे देने भी बंद कर दिए तो कविता को समझ आ गया था कि अब पति के जिंदा रहते वह बृजेश से अपने संबंधों को जारी नहीं रख पाएगी.

बृजेश भी कविता के प्यार में इतना पागल हो चुका था कि उसे कविता से मिले बगैर चैन नहीं मिलता. कविता के मन में हरदम यही विचार आता था कि वह पति को रास्ते से हटा दे और उस के बाद बृजेश के साथ इसी तरह नाजायज संबंध बनाए रखेगी. इस से उस के ससुर की जमीनजायदाद में भी उस का हिस्सा बना रहेगा और प्रेमी की बाहों का झूला भी उसे मिलता रहेगा. यहीं से कविता ने बृजेश के साथ मिल कर पति को रास्ते से हटाने की साजिश रची.

प्रेमी के लिए मिटाया सिंदूर

जब कविता पति की हत्या के लिए तैयार हो गई तो बृजेश ने अपने साथ टेंटहाउस में साथ काम करने वाले दोस्त गणेश विश्वकर्मा को साजिश में शामिल कर लिया. उस ने गणेश को दोस्ती का वास्ता दे कर रुपए देने का लालच दिया. योजना के मुताबिक कविता इस बीच मायके चली गई, जिस से दीपचंद के अचानक लापता होने पर संदेह न हो. हत्या के लिए 19 जुलाई, 2023 की तारीख तय की गई. उस दिन दीपचंद ने काम से छुट्टी ले रखी थी, यह बात कविता ने दीपचंद को फोन कर के तसल्ली भी कर ली थी कि वह घर पर ही है. इस के बाद उस ने बृजेश को फोन कर दीपचंद की लोकेशन बता दी.

बृजेश ने पन्ना जिले के अमानगंज निवासी बिट्टू दुबे की चार पहिया गाड़ी एमपी20 सीई 6749 किराए पर ले ली. इस के बाद वह सुनवानी से गणेश विश्वकर्मा को साथ ले कर खैरा गांव पहुंचा. वहां दीपचंद को फोन कर घर के बाहर मिलने बुलाया. फिर पार्टी के बहाने दीपचंद को साथ ले कर वर्धा होते हुए खजरूट स्थित पेट्रोल पंप के पास पहुंचे. वहां एक गुमटी से सिगरेट, पानी और नमकीन के पैकेट लिए. बृजेश ने शराब पहले ही खरीद ली थी. रास्ते में एक जगह रुक कर तीनों ने शराब पी.

बृजेश और गणेश ने दीपचंद को ज्यादा शराब पिलाई. दीपचंद जल्दी ही शराब के नशे में धुत हो गया. इस के बाद बृजेश ने गाड़ी पंडवन पुल के पास बने मंदिर की ओर मोड़ दी. कल्लू ने मंदिर के पास गाड़ी रोक कर दीपचंद को गाड़ी से उतारा. इस के बाद गणेश और बृजेश ने दीपचंद को जमीन पर पटक दिया और उस का गला दबा दिया. इस से दीपचंद बेहोश हो गया. दीपचंद के बेहोश होने के बाद बृजेश बर्मन उर्फ कल्लू ने गाड़ी में रखी लाठी उठाई और सिर पर तब तक वार किए, जब तक वह मर नहीं गया. इस के बाद उस के लोअर से मोबाइल और पर्स निकाल लिए. पर्स में करीब 700 रुपए थे, जो बृजेश ने रख लिए और पर्स और चप्पलें झाड़ी में फेंक दीं.

पुलिस ने बरामद किए अहम सबूत

इस के बाद बृजेश बर्मन और गणेश विश्वकर्मा ने दीपचंद की लाश को गाड़ी नंबर एमपी20 सीई6749 में डाल कर पंडवन की केन नदी में ले जा कर बहा दिया. दीपचंद का मोबाइल और घटना में प्रयुक्त खून से सना डंडा भी नदी में फेंक दिया. तब तक रात के साढ़े 10 बज चुके थे. दोनों ने गाड़ी में लगे खून को साफ किया और रात में ही गाड़ी उस के मालिक बिट्टू दुबे को सौंप कर अपने अपने घर आ गए. 3 दिन बाद जब दीपचंद के लापता होने की खबर फैली तो बृजेश भी दिलासा देने उस के घर गया, जिस से किसी को उस पर शक न हो.

आरोपियों ने खजरूट की जिस दुकान से शराब व सिगरेट खरीदी थी, पुलिस ने उस दुकान मालिक वीरभान सिंह से पूछताछ की तो उस ने बताया कि उस दिन बृजेश बर्मन व गणेश विश्वकर्मा गाड़ी से आए थे और शराब व सिगरेट खरीदी थी. वीरभान ने यह भी बताया कि ड्राइवर वाली सीट पर बृजेश बर्मन बैठा था, बगल वाली सीट पर दीपचंद बैठा था. बृजेश बर्मन और गणेश विश्वकर्मा पन्ना के सुनवानी के जिस टेंटहाउस में काम करते थे, उस के मालिक कमलेश विश्वकर्मा से भी पुलिस टीम ने पूछताछ की तो कमलेश ने बताया कि 21 अगस्त को जब गैसाबाद की पुलिस जांच करने सुनवानी आई थी, उस रात गणेश ने शराब के नशे में बृजेश बर्मन के साथ मिल कर दीपचंद की हत्या की बात बताई थी.

टीआई विकास सिंह चौहान ने बृजेश और गणेश की निशानदेही पर झाड़ियों में छिपाई चप्पलें और खाली पर्स जब्त कर लिया. इस के अलावा घटना में प्रयुक्त बिट्टू दुबे की गाड़ी भी जब्त कर ली. जहां दीपचंद का शव फेंका गया, वह जगह पन्ना जिले में आती है. केन नदी पन्ना जिले की सब से बड़ी नदी है और इस में बड़ी संख्या में मगरमच्छ भी रहते हैं. इस से यह आशंका भी व्यक्त की जा रही थी कि नदी में बहाए गए शव को मगरमच्छों ने अपना ग्रास न बना लिया हो. स्थानीय पुलिस और एसडीआरएफ के सहयोग से केन नदी में दीपचंद की लाश की सर्चिंग करवाई, लेकिन लाश बरामद नहीं हो सकी.

25 अगस्त, 2023 को गैसाबाद पुलिस ने हत्या, साक्ष्य छिपाने और साजिश रचने का मामला दर्ज कर तीनों आरोपियों को गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश कर दिया, जहां से उन्हें दमोह जेल भेज दिया गया. दीपचंद की हत्या को एक माह से अधिक समय हो गया था, मगर दीपचंद का शव बरामद नहीं हुआ था. इसे ले कर दीपचंद के परिवार और रिश्तेदारों ने पुलिस पर दबाव बनाना शुरू कर दिया था. एसडीआरएफ की टीमें केन नदी में लगातार शव तलाश रही थीं, परंतु सफलता नहीं मिल रही थी. एक माह के दौरान नदी में बाढ़ भी आ चुकी थी, इस से यह अनुमान लगाया जा रहा था कि शव कहीं दूर निकल गया हो. दमोह जिले के एसपी और एसडीओपी नितिन पटेल लगातार पुलिस टीमों को खोजबीन के लिए भेज रहे थे.

30 अगस्त, 2023 को गैसाबाद पुलिस को सूचना मिली कि अमानगंज थाने के जिज गांव के नाले के पास एक क्षतविक्षत शव के अवशेष पड़े हुए हैं. सूचना पर पहुंची पुलिस टीम को केन नदी और एक नाले के बीच बने टापू पर देर रात शव के अवशेष बरामद हुए. शिनाख्त के लिए एसडीओपी (हटा) नीतेश पटेल के निर्देश पर गैसाबाद थाना पुलिस टीम मौके पर दीपचंद के पिता हाकम को ले कर पहुंची. हाकम ने हाथ में बंधे रक्षासूत्र और उस के पहने हुए कपड़ों से उस की शिनाख्त अपने बेटे दीपचंद पटेल के रूप में की.

पुलिस ने शव को बरामद कर पंचनामा और पोस्टमार्टम की काररवाई कर शव के अवशेष डीएनए टेस्ट के लिए सुरक्षित करने के बाद वह परिजनों के सुपुर्द कर दिया.

एसपी सुनील तिवारी ने शव की खोजबीन में लगे पुलिसकर्मियों और एसडीआरएफ टीम के प्रयासों की सराहना की. कविता पटेल ने एक गलती से अपनी मांग का सिंदूर पोंछ कर अपनी बसी बसाई घरगृहस्थी उजाड़ ली और जेल की हवा खानी पड़ी.

हांथपैर बांधा और बालूरेती स्प्रे चलाकर कर दिया Best Friend का कत्ल

Best Friend : जंगल में मिली युवक की लाश इतनी डरावनी हालत में थी कि उसे देखते ही एक सिपाही बेहोश हो कर गिर गया था. लाश की खाल और सिर के बाल गायब थे. आखिर कौन था वह मृतक युवक और किस ने की थी इतने वीभत्स तरीके से उस की हत्या?

आज मौसम बड़ा बेईमान है. आज मौसम…गुनगुनाता हुआ सबइंसपेक्टर किशोर थाने में घुसा तो देखते ही इंसपेक्टर राज मुसकराते हुए बोले, ”क्या बात है किशोर, ऐसा लगता है आजकल तुम्हें आराम काफी अच्छा मिल रहा है, इसीलिए इस भीषण गरमी में भी तुम को मौसम बेईमान लग रहा है.’’

जय हिंद सर! आप ने सच कहा पुलिस की नौकरी में सुकून कहां? पर पिछले एक महीने से चोरी, जेबकतरी जैसे छोटेमोटे मामले ही आ रहे हैं. लग ही नहीं रहा है कि हम पुलिस विभाग में काम कर रहे हैं.’’ किशोर कुरसी पर बैठते हुए बोला.

सच है, जब तक कोई बड़ा केस न सुलझा लिया जाए, तब तक ऐसा लगता है कि खाना पच ही नहीं रहा है.’’ इंसपेक्टर राज भी सहमत होते हुए बोले.

दोनों बातें कर ही रहे थे कि उसी दौरान एक मुखबर आया. उस ने कहा, ”सर, जंगल के इलाके में एक लाश पड़ी हुई है.’’

क्या? कहां पर?’’ राज ने चौंकते हुए पूछा.

लीजिए सर, बड़ा केस आ गया.’’ किशोर इंसपेक्टर साहब की तरफ देखते हुए बोला .

कौन है वह? आदमी या औरत? शिनाख्त हुई क्या?’’ इंसपेक्टर राज ने मुखबिर से ही कई प्रश्न एक साथ पूछ डाले.

सर, लाश तो किसी आदमी की ही लगती है. मगर शिनाख्त करने की स्थिति में बिलकुल भी नहीं है.’’ मुखबिर ने बताया.

ऐंऽऽ इस तरह से मारा है क्या कि शिनाख्त ही संभव नहीं हैï?’’ इंसपेक्टर ने हैरानी से पूछा.

सर, मैं ने अपनी जिंदगी में इस तरह की  लाश पहली बार देखी है. इस कारण मैं उस सीन को बयां नहीं कर सकता.’’ मुखबिर घबराहट में अपना थूक गटकते हुए बोला.

किशोर, तुरंत फोटोग्राफर और बाकी स्टाफ को बुलवाओ. हमें जल्दी ही वहां पर पहुंचना है.’’ इंसपेक्टर राज निर्देश देते हुए बोले.

जी सर, एक महीने की छुट्टी खत्म और पुलिस की ड्यूटी शुरू.’’ अपनी अधूरी बात को पूरा करते हुए किशोर बोला.

लाश के पास किसी को छोड़ा है न?’’ इंसपेक्टर ने मुखबिर से पूछा.

जी और तो कोई मिला नहीं, इसी कारण एक चरवाहे को बोल कर आया हूं, जानपहचान वाला ही है.’’ मुखबिर ने जवाब दिया.

कुछ ही देर में इंसपेक्टर अपने दलबल के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए.

देखिए सर, लाश उधर पड़ी है,’’ मुखबिर घटनास्थल की तरफ इशारा करते हुए बोला. यह जंगल शहर से करीब 7-8 किलोमीटर दूर है.

जंगल तो बहुत ही घना और सुनसान है. अकेला आदमी तो इधर आने में भी डरे.’’ एक सिपाही बोला.

ऐसी वारदातें अकसर सुनसान जगहों पर ही होती हैं.’’ दूसरा सिपाही बोला.

सर, यह रहा वह चरवाहा, जिसे मैं छोड़ कर गया था.’’ मुखबिर इशारा करते हुए बोला.

इन के जाने के बाद कोई यहां आया तो नहीं था.’’ इंसपेक्टर ने उस व्यक्ति से पूछा.

जी नहीं. लाश वहां दूर पड़ी है.’’ चरवाहा बोला.

ओह माय गौड. व्हाट ए बैड एंड होरिबल डैड बौडी.’’ लाश देख कर इंसपेक्टर की आंखें चौड़ी हो गईं.

सर, लाश की ऐसी हालत देख कर एक सिपाही को चक्कर आ गया है. वह गिर पड़ा है.’’ एसआई ने सूचना दी.

हां, लाश है ही इतनी वीभत्स. कमजोर दिल वाला तो बेहोश हो ही जाएगा न.’’ इंसपेक्टर बोले.

जी हां, मैं ने भी कई लाशें देखी हैं, मगर यह लाश उन सब से बिलकुल अलग, अनोखी और डरावनी है. समझ में ही नहीं आ रहा है कि तसवीरें कहां से और किस एंगल से लें.’’ फोटोग्राफर बोला.

सच में ऐसा लग रहा है, जैसे किसी तेजधार हथियार से इस के शरीर से सारी स्किन निकाल ली गई है.’’ एक अन्य सिपाही नाक पर रुमाल रखते हुए बोला.

शरीर और सिर पर बालों का नामोनिशान तक नहीं है. खुले हुए मांस पर उस की खुली हुई आंखें लाश को और भी अधिक डरावना बना रही हैं. कान के ऊपर की परत भी गायब है.’’ एसआई किशोर बोला.

यह बताना भी बहुत मुश्किल होगा कि यह किस धर्म को मानने वाला था.’’ फिंगरप्रिंट एक्सपर्ट भी बौडी की तरफ देखते हुए बोला.

ऐसा लगता है कि इस का मर्डर अभी 5-7 घंटे पहले ही हुआ है. क्योंकि अभी Best Friend  बौडी का डीकंपोजिशन चालू नहीं हुआ है और लाश के चारों ओर चीटियां भी ज्यादा संख्या में जमा नहीं हुई हैं.’’ एक अन्य एक्सपर्ट ने अपने विचार रखे.

देखिए मिस्टर फोटोग्राफर, यहां किसी गाड़ी के टायर के निशान दिख रहे हैं.’’ इंसपेक्टर राज फोटोग्राफर से बोले.

जी हां सर, यह किसी हैवी गाड़ी के टायरों के निशान हैं. संभव है, ये 10 टायरों वाला लोडिंग व्हीकल हो.’’ फोटोग्राफर ने जवाब दिया.

मतलब इसे मारा कहीं और गया है और ला कर यहां फेंका गया है.’’ इंसपेक्टर बोले.

एसआई किशोर बोला, ”सर, हो सकता है कि यह सोच कर यहां पर फेंका गया हो कि इस हालत में इसे कुत्तेबिल्ली तुरंत खा कर समाप्त कर देंगे. मगर यह जंगल बस्ती से इतनी दूर है कि यहां पर जानवर भी नहीं हैं.’’

यहां पर सवाल यह भी है कि इस व्यक्ति को इतनी बुरी तरह से क्यों और किस ने मारा? इस कत्ल का मोटिव क्या है?’’ इंसपेक्टर राज ने अपने स्टाफ की तरफ देखते हुए कहा.

सर, हो सकता है कि यह किसी अवैध संबंध का परिणाम हो और धार्मिक पहचान छिपाने के मकसद से इस तरह से मारा हो.’’ सबइंसपेक्टर किशोर ने शंका व्यक्त की.

यह किसी आपसी रंजिश के कारण भी हो सकता है.’’ फोटोग्राफर बोला.

सर, क्राइम का कारण कुछ भी रहा हो, मगर इतना तो निश्चित है कि मृतक सिविल कंस्ट्रक्शन के बिजनैस से रिलेटेड रहा हो, क्योंकि लाश के आसपास बिखरी हुई बालू और रेती इस तरफ इशारा कर रही है,’’ इंसपेक्टर ने कहा, ”एनीवे इस केस का रिजल्ट तो तफ्तीश के बाद ही मिलेगा. अभी तो आप लोग आसपास से सभी संभावित सबूत इकट्ठा कर लें, फोटोग्राफ लें और लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेज दो.’’

फिर सभी अपनेअपने कामों में जुट गए.

सर, इस लाश के दोनों हाथ कमर के नीचे हैं, इन का फोटो लेने के लिए लाश को पलटना होगा.’’ फोटोग्राफर बोला.

हां, एंबुलैंस भी आ चुकी है. किसी लकड़ी या छड़ी की मदद से लाश को पलट कर स्ट्रेचर पर रख लीजिए और आगे की काररवाई कर लीजिए.’’ इंसपेक्टर बोले.

फोटोग्राफर ने कहा, ”सर, लाश को पलटने के बाद देखिए तो मांस पर कुछ निशान दिखाई दे रहे हैं. ऐसा लगता है कि मारने से पहले इस के दोनों हाथ कमर के पीछे ले जा कर बांध दिए गए थे.’’ 

हां और इस ने जान बचाने के लिए अपनी पूरी ताकत लगाई होगी, इसी कारण मांस तक में इतने गहरे निशान आ गए हैं.’’ इंसपेक्टर ने जवाब दिया.

सर, पोस्टमार्टम की रिपोर्ट आ गई है.’’ एसआई किशोर लगभग 2 दिनों के बाद इंसपेक्टर राज को बता रहा था.

दिखाना जरा, रिपोर्ट में क्या है?’’ इंसपेक्टर बोले.

सर, इस रिपोर्ट के हिसाब से मौत शरीर के विभिन्न हिस्सों पर गहरे आघात की वजह से हुई है.’’ किशोर ने कहा.

वह तो दिख ही रहा था और कुछ विशेष?’’ इंसपेक्टर ने प्रश्नवाचक निगाहों से देखते हुए पूछा.

हां, आप का अनुमान सही था. लाश के मांस में काफी मात्रा में बालूरेती गहराई तक घुसी हुई मिली है. इस से लगता है कि मृतक सिविल कंस्ट्रक्शन काम से संबंधित था.’’ एसआई बोला.

शहर में चल रही सभी सिविल साइट्स पर जा कर तफ्तीश करो और सभी थानों से गुमशुदा व्यक्तियों के बारे में जानकारी लो.’’ इंसपेक्टर ने निर्देश दिया.

यस सर.’’ एसआई बोला.

हां, मैं उन से संपर्क स्थापित कर चुका हूं, वह भी आज ही आने वाला है.’’ इंसपेक्टर ने बताया.

यह मर्डर तो सचमुच आश्चर्यजनक है.’’ फोरैंसिक औफिसर रिपोर्ट और फोटोग्राफ्स देखते हुए बोला.

हां, हम भी इसे देख कर हैरान हैं.’’ इंसपेक्टर बोला.

मैं ने गरम पानी या गरम तेल से कुछ मर्डर्स देखे हैं, जिन में बौडी से स्किन निकल जाती है, मगर यह मामला उस सब से बिलकुल अलग है. आप किस दिशा में कार्य कर रहे हैं? मेरा मतलब है आप का लाइन औफ ऐक्शन क्या है?’’ फोरैंसिक औफिसर ने पूछा.

आसपास के सभी थानों से गुमशुदगी रिपोर्ट के बारे में जानकारी मांगी है, मगर अभी तक कोई जानकारी निकल कर नहीं आई है.’’ इंसपेक्टर ने जवाब दिया.

अब आप अपनी जांच का दायरा बढ़ाइए. इन फोटोग्राफ्स Best Friend को ध्यान से देखिए. यह देखिए, गाड़ी के टायर के निशान क्लिनर साइड के 2 टायरों का रबर एक जैसे टुकड़ों में कटा हुआ है, जबकि फोटो में इंप्रैशन से ऐसा लग रहा है कि शायद नए ही हैं. ऐसा किसी पथरीली सतह पर ट्रक के चलने के कारण हुए निश्चित तौर उस तरफ की कोई सतह भारी और नुकीली रही होगी.

अब आप अपनी टीम लगा कर ऐसे ट्रक की जानकारी निकलवाइए. यह काम किसी लोकल गाड़ी से ही हुआ है, क्योंकि ज्यादा दूर से कोई इस तरह की लाश को इस दशा में ला नहीं सकता.’’ फोरैंसिक औफिसर ने अपना विचार दिया.

जी, बहुत अच्छा क्लू दिया आप ने,’’ इंसपेक्टर धन्यवाद देता हुआ बोला.

लगभग 2 दिन बाद एक सिपाही ने बताया कि ऐसा ट्रक मिल गया है, जिस का मालिक रामसिंह है. चूंकि रामसिंह घर पर नहीं था, इसीलिए उसे थाने में रिपोर्ट करने की सूचना उस के घर पर दे दी गई है और एक मुखबिर को वहां तैनात कर दिया गया है. लगभग 2 घंटे ही गुजरे होंगे कि एक सिपाही आ कर इंसपेक्टर से बोला, ”सर, रामसिंह नाम का एक आदमी आया है, वह आप से मिलना चाहता है. उस का कहना है वह उस ब्लाइंड मर्डर के बारे में कुछ सुराग दे सकता है.’’

भेजो उसे तुरंत.’’ इंसपेक्टर जल्दी से बोले.

नमस्कार सर.’’ अंदर आते ही वह आदमी हाथ जोड़ कर बोला.

आओ रामसिंह, बैठो. बताओ, उस ब्लाइंड मर्डर के बारे में तुम हमारी क्या मदद कर सकते हो?’’ इंसपेक्टर उस के चेहरे की तरफ नजरें गड़ा कर बोले.

सर, मैं ने उस मर्डर को अपनी आंखों से होते हुए देखा है.’’ रामसिंह बोला .

क्या? तुम ने इतने वीभत्स मर्डर को किया कैसे? मरने वाला व्यक्ति कौन था? तुम उसे कैसे जानते थे?’’ इंसपेक्टर ने कई सारे प्रश्न एक साथ पूछ डाले.

सर, मैं ने मर्डर नहीं किया, मैं तो उस का चश्मदीद गवाह हूं. मैं उस ट्रक का ड्राइवर हूं, जिस में इस घटना को अंजाम दिया गया था.’’

यह दिलचस्प कहानी है 3 दोस्तों की, जो मेहनतमजदूरी करने के लिए अपने घर बिहार से हजारों किलोमीटर दूर आए थे. शुरुआत में ये लोग घरों में रंगाईपुताई का काम किया करते थे. इसी दौरान काम करते समय एक उद्योगपति ने इन्हें अपनी फैक्ट्री में स्ट्रक्चर पेंटिंग का काम दिया.

स्ट्रक्चर पेंटिंग का यह काम उन लोगों को अच्छा और ज्यादा कमाई देने वाला लगा. जल्दी ही उन्हें और फैक्ट्रियों में भी काम मिलने लगा. ऊंचेऊंचे स्ट्रक्चरों पर चढ़ कर सफाई करने में समय भी बहुत लग जाता था और मनचाही सफाई भी नहीं आती थी .’’

रुको रामसिंह, सब से पहले मुझे इन दोस्तों के बारे में बताओ. मतलब नाम, काम, गाम.’’ इंसपेक्टर रामसिंह को रोकते हुए बोले.

रामसिंह ने बताया, ”सर, इन तीनों के नाम धनेश, रमेश और जयेश थे. ये लोग बिहार के गोपालगंज गांव के रहने वाले थे. ये लोग वहां पर भी एक ही मोहल्ले में रहते थे. इन में से धनेश सब से ज्यादा पढ़ालिखा और समझदार था. धनेश के पिता काफी समय पहले ही गुजर गए थे और 2 साल पहले ही उस की माताजी भी शांत हो गई थी. वह किसी अनबन के चलते अपनी पत्नी से अलग हो चुका था. उस की पत्नी ने अब दूसरी शादी भी कर ली है. उस के और कोई भाईबहन भी नहीं है.

रमेश और जयेश का पूरा परिवार है तथा बिहार में ही रहता है. ये लोग पिछले करीब 7-8 सालों से यहां पर काम कर रहे हैं. मेरा खुद का अपना एक ट्रक है और इन लोगों ने अपनी सैंड ब्लास्टिंग मशीन मेरे ही ट्रक पर लगा रखी है. बारबार कस्टमर न खोजना पड़े और एक स्थाई इनकम हो जाए, यही सोच कर मैं ने अपने ट्रक को इन के साथ लगा कर इन से पार्टनरशिप कर ली थी.

जब स्ट्रक्चर सफाई में इन्हें ज्यादा परेशानी आने लगी तो इन्होंने किसी के सहयोग से एक सैंड ब्लास्टिंग मशीन मेरे ट्रक पर लगवा ली. यह करीब 2 साल पहले की बात है.’’

यह सैंड ब्लास्टिंग मशीन किस बला का नाम है और यह कैसे काम करती है?’’ इंसपेक्टर ने पूछा.

आसान भाषा में कहें तो यह एक मशीन है, जो 5-6 किलो प्रेशर पर बालूरेती का फव्वारा साफ करने वाली सतह पर फेंकती है. इस से लोहे की सतह पर लगा जंग कीट आदि मिनटों में निकल जाता है और फिर सतह पर अच्छी तरह से पेंटिंग की जा सकती है. काम भी काफी आसानी से हो जाता है.’’ रामसिंह ने समझाया.

जब सब कुछ इतने अच्छे से चल रहा था तो मर्डर की जरूरत क्यों आन पड़ी?’’ इंसपेक्टर ने पूछा.

चूंकि धनेश सब से ज्यादा पढ़ालिखा था, इसीलिए वह कौन्ट्रैक्ट लेने और फाइनल करने अकेले ही जाया करता था. उस ने हम लोगों से पूछे बिना ही हिस्सेदारी में भी परिवर्तन कर दिया था.

कौन्ट्रैक्ट में मिले कुल पैसों का 25 परसेंट हिस्सा वह पहले ही अपने पास रख लिया करता था और बाकी बचे हुए 75 परसेंट में से 4 हिस्से कर बंटवारा करता था. यही बात हम सभी को नागवार गुजरती थी.’’ रामसिंह बोल रहा था.

फिर उस का मर्डर कैसे किया?’’ इंसपेक्टर ने पूछा.

उसे मारने का प्लान लगभग 15 दिन पहले ही बन गया था. इस जंगल से हम कई बार गुजर चुके थे तथा यह जानते थे कि यह इतना घना और सुनसान है कि यहां दूरदूर तक हमारी आवाज सुनने वाला कोई नहीं है.

घटना वाले दिन भी हम इसी रस्ते से गुजर रहे थे. साइट पर सुबह जल्दी पहुंचना होता है, इसी कारण हम मुंह अंधेरे निकल गए थे. धनेश हमेशा की तरह मशीन के पास ट्रक के पिछले हिस्से में सो रहा था.

रमेश और जयेश ने मौका देख कर उस के हाथ और पांव बांध दिए और कंप्रेसर चला कर ब्लास्टिंग नोजल से उस पर 7 किलो प्रेशर से बालूरेती का स्प्रे चालू कर दिया. कुछ ही देर में धनेश की जान निकल गई. उस की पहचान छिपाने के लिए बाद में पूरे शरीर पर ब्लास्टिंग कर दी.’’

बाप रे! यहां तो 50 ग्राम का पत्थर लगने पर चक्कर आ जाते हैं और तुम ने उस पर Best Friend 7 किलो का प्रेशर डाल कर सैंड ब्लास्टिंग कर दी. इसी कारण उस के सिर की हड्डियां तक टूट गईं और सारे शरीर की चमड़ी तक निकल गई.’’ इंसपेक्टर गुस्से से बोले, ”तुम खुद चल कर यहां क्यों आए? बाकी  दोनों कहां हैं?’’ इंसपेक्टर ने पूछा.

मर्डर के बाद दोनों ब्लास्टर घबरा कर बिहार भाग गए. पिछले दिनों काम पर न जाने के कारण फैमिली वालों के दबाव डालने पर मैं ने सारी बातें उन्हें बता दी. फैमिली वालों के कहने पर ही मैं यहां पर आया हूं.’’ रामसिंह बोला, ”साहब, सरकारी गवाह बनने पर कुछ फायदा मिलता है ना?’’

वह तो कोर्ट ही निर्धारित करेगा. पहले तो बिहार चल कर दोनों मास्टर ब्लास्टर्स की खबर लेते हैं.’’ इंसपेक्टर ने कहा. 

 

 

Family Story : 17 महीने तक लाश को जीवीत मानकर सफाई की

Family Story : कभी कभी कुछ ऐसी घटनाएं घटित हो जाती हैं, जिन पर विश्वास कर पाना बहुत ही कठिन होता है. ऐसी अविश्वसनीय घटनाएं या तो अंधविश्वास में घटित होती हैं या फिर मनोरोग विकार में. उत्तर प्रदेश के कानपुर शहर में भी ऐसी ही एक अविश्वसनीय घटना घटित हुई, जिस ने देश ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया को झकझोर कर रख दिया.

कानपुर शहर का एक मिश्रित आबादी वाला मोहल्ला रोशन नगर है. इसी मोहल्ले के कृष्णापुरी के मकान नं. 7/401 में रामऔतार गौतम अपने परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में पत्नी रामदुलारी के अलावा 3 बेटे दिनेश, सुनील व विमलेश थे. रामऔतार गौतम फील्डगन फैक्ट्री में मशीनिष्ट के पद पर कार्यरत थे. उन की आर्थिक स्थिति मजबूत थी. उन का अपना तीनमंजिला मकान था, जिस में सभी भौतिक सुखसुविधाएं मौजूद थीं.

रामऔतार गौतम के तीनों बेटे होनहार थे. बड़ा बेटा दिनेश सिंचाई विभाग में है और वह कानपुर के फूलबाग कार्यालय में तैनात है. जबकि सुनील बिजली उपकरणों की ठेकेदारी करता है. दिनेश व सुनील शादीशुदा हैं. दिनेश की शादी अर्चना से तथा सुनील की गुडि़या से हुई थी. दिनेश व सुनील अपने परिवार के साथ पिता के मकान में ही रहते हैं. रामऔतार गौतम का सब से छोटा बेटा विमलेश कुमार था. वह अपने अन्य भाइयों से ज्यादा तेज दिमाग का था. विमलेश ने इंटरमीडिएट तक की पढ़ाई रामलला स्कूल से की, फिर बीकौम व एमकौम की पढ़ाई छत्रपति शाहूजी महाराज महाविद्यालय से पूरी की.

उस के बाद विमलेश की नौकरी आयकर विभाग में लग गई. वर्तमान में वह अहमदाबाद में आयकर विभाग में असिस्टेंट एकाउंट औफिसर के पद पर कार्यरत था. विमलेश कुमार की शादी मिताली दीक्षित के साथ हुई थी. यह अंतरजातीय प्रेम विवाह था. विमलेश अनुसूचित जाति के थे, जबकि मिताली दीक्षित ब्राह्मण थी. दरअसल, विमलेश कुमार मिताली को उन के किदवई नगर स्थित घर पर ट्यूशन पढ़ाने जाते थे. ट्यूशन पढ़ाने के दौरान ही दोनों एकदूसरे के प्रति आकर्षित हुए और उन के बीच प्यार पनपने लगा.

मोहब्बत परवान चढ़ी तो दोनों ने शादी का निश्चय किया. विमलेश के घरवाले शादी को राजी थे, लेकिन मिताली के घर वाले राजी नहीं थे. लेकिन घरवालों के विरोध के बावजूद मिताली दीक्षित ने वर्ष 2015 में विमलेश कुमार के साथ विवाह रचा लिया और विमलेश की दुलहन बन कर रोशन नगर स्थित ससुराल आ गई. ससुराल में मिताली को सासससुर व पति का भरपूर प्यार मिला, जिस से वह अपने भाग्य पर इतरा उठी. शादी के 2 साल बाद मिताली ने एक बेटे को जन्म दिया, जिस का नाम उस ने संभव रखा. संभव के जन्म से परिवार की खुशियां और बढ़ गईं. मिताली संयुक्त परिवार में जरूर रहती थी, लेकिन कभी उसे किसी तरह की परेशानी नहीं हुई.

मिताली दीक्षित पढ़ीलिखी सभ्य महिला थी. वह किदवई नगर स्थित कोऔपरेटिव बैंक में असिस्टेंट मैनेजर के पद पर कार्यरत थी. सुबह वह सास व जेठानियों के साथ घर का काम निपटाती फिर बैंक जाती. बैंक से वापस आ कर वह फिर घरेलू काम निपटाती. यही उन की दिनचर्या बन गई थी. वह हर तरह से खुशहाल थी. वर्ष 2019 में विमलेश का ट्रांसफर अहमदाबाद (गुजरात) हो गया. पति के बाहर जाने से मिताली विचलित नहीं हुई और अपने कर्तव्य का पालन करती रही. पति का आनाजाना लगा रहता था. वह अपने बेटे संभव से बहुत प्यार करते थे. बेटे के अलावा उन्हें अपने मातापिता व भाइयों से भी बेहद लगाव था. मां से उन्हें कुछ ज्यादा ही लगाव था.

इस बीच मिताली दोबारा गर्भवती हुई और उस ने मार्च 2021 में एक बेटी कोे जन्म दिया. इस का नाम उस ने दृष्टि रखा. नवजात की देखभाल हेतु मिताली ने 6 महीने की छुट्टी बैंक से ले ली.

22 अप्रैल, 2021 को हुई थी मौत

इधर आयकर अधिकारी विमलेश कुमार गौतम 16 अप्रैल, 2021 को विभागीय कार्य हेतु अहमदाबाद स्थित आयकर कार्यालय से निकले तो वह बीमार हो गए. उन्हें सांस लेने में दिक्कत महसूस हो रही थी. उन दिनों कोरोना काल की दूसरी भयंकर लहर चल रही थी और लोग कीड़ेमकोड़ों की तरह मर रहे थे. अत: घबरा कर विमलेश कुमार ने अहमदाबाद से लखनऊ की फ्लाइट पकड़ी, फिर Family Story लखनऊ से अपने घर कानपुर आ गए.

19 अप्रैल, 2021 को घर वालों ने विमलेश कुमार को बिरहाना रोड के मोती हौस्पिटल में भरती करा दिया. अस्पताल में विमलेश का महंगा इलाज शुरू हुआ. लेकिन डाक्टर काल के हाथों से विमलेश कुमार को बचा न सके. 22 अप्रैल, 2021 की सुबह 4 बजे विमलेश ने दम तोड़ दिया. विमलेश के शव को निजी वाहन से रोशन नगर स्थित घर लाया गया. अस्पताल में लगभग 9 लाख रुपया खर्च हुआ तथा अस्पताल की तरफ से घर वालों को मौत का सर्टिफिकेट भी थमा दिया. आयकर अधिकारी विमलेश कुमार की मौत से गौतम परिवार में हाहाकार मच गया. नातेरिश्तेदारों का जमावड़ा शुरू हो गया. मातापिता जहां बेटे की मौत पर आंसू बहा रहे थे, वहीं मिताली की आंखों से भी आंसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे. भाई सुनील व दिनेश भी बेहाल थे.

इसी बीच एक रिश्तेदार महिला ने रोते हुए विमलेश के सीने पर सिर रखा तो उसे विमलेश के सीने से धड़कन महसूस हुई. वह आंसू पोंछते हुए रामदुलारी से बोली, ‘‘बहना, तुम्हारा बिटवा जीवित है.’’

फिर तो बारीबारी से रामदुलारी व दिनेश ने भी धड़कन महसूस की. इस के बाद अंतिम संस्कार की तैयारी रोक दी गई और पड़ोस में रहने वाले एक डाक्टर को बुलाया गया. उस ने विमलेश की मृत देह की अंगुली में पल्स औक्सीमीटर लगाया तो औक्सीजन 77 और पल्स 62 आने लगी. उसे देख मौत का सर्टिफिकेट हाथ में थामने के बावजूद घर वालों ने विमलेश को जीवित मान लिया. इस के बाद सभी अपने घरों को चले गए.

जीवित मान कर शव की करते रहे साफसफाई

परिवार की आर्थिक स्थिति मजबूत थी, इसलिए परिवार के लोग विमलेश कुमार को तुरंत पनेशिया, केएमसी, फार्च्यून व सिटी हौस्पिटल ले गए. लेकिन सभी आरटीपीसीआर रिपोर्ट मांग रहे थे. रिपोर्ट उन के पास नहीं थी. इसलिए शहर के किसी भी अस्पताल ने विमलेश को भरती नहीं किया. घर वालों को लाश में आस नजर आ रही थी. इसलिए उन्होंने अपने घर को ही अस्पताल बना दिया. उन्होंने विमलेश को घर के एसी रूम में तख्त पर लिटा दिया और इलाज शुरू कर दिया. इस इलाज पर उन्होंने करीब 30 लाख रुपए भी खर्च कर दिए. विमलेश की मां रामदुलारी गंगाजल छिड़क कर उस के शरीर को पोछतीं फिर साफसुथरे कपड़े पहनातीं. इस काम में उन का पति रामऔतार भी मदद करते. रामदुलारी चम्मच से 2-4 बूंद गंगाजल उस के मुंह में भी डालतीं.

किसी तरह की बदबू न आए. इस के लिए कमरे में सुगंधित अगरबत्ती, धूपबत्ती भी जलाई जाती. गुप्तरूप से झोलाछाप डाक्टर व कथित तांत्रिक भी आते व पूजापाठ व तंत्रमंत्र करते. अब तक रामदुलारी व उन का पूरा परिवार अंधविश्वास व मनोरोग विकार का शिकार बन गया था. सभी मानने लगे थे कि विमलेश कुमार कोमा में है और एक दिन जीवित हो जाएगा. पढ़ीलिखी तथा बैंक मैनेजर मिताली दीक्षित भी मनोरोगी बन गई थी. उसने भी मान लिया था कि पति कोमा में है और एक दिन वह जीवित हो जाएंगे.

वह रोज बैंक जाने से पहले पति का माथा छू कर बतियाती थी. सिरहाने बैठ कर उसे निहारती थी, उन के सिर पर हाथ फेरती थी और उसे बोल कर जाती थी कि जल्दी ही औफिस से लौट कर मिलती हूं. भाई दिनेश व सुनील जब काम से लौटते थे तो विमलेश से उस का हालचाल पूछते थे. विमलेश की खामोशी के बावजूद वे उन्हें जीवित मान रहे थे.

मिताली को कचोट रही थी आत्मा

मिताली दीक्षित परिवार के प्रभाव में थी. इसलिए वह उन की हां में हां मिला रही थी. लेकिन उस की अंतरात्मा उसे कचोट रही थी. यही कारण था कि उस ने पति की मौत के 5 दिन बाद ही एक पत्र अहमदाबाद स्थित आयकर विभाग को भेज दिया था. पत्र में उस ने लिखा था कि विमलेश कुमार की मौत कोरोना से हो गई है. पेंशन संबंधी औपचारिकताओं का जल्दी से जल्दी निपटारा किया जाए.

आयकर विभाग ने पत्र के आधार पर प्रक्रिया शुरू कर दी थी कि तभी मिताली का एक और पत्र अहमदाबाद आयकर विभाग को प्राप्त हुआ. उस में लिखा था कि औक्सीमीटर से जांच में पति विमलेश की पल्स चलती हुई पाई गई है और वह जीवित है. इसलिए पेंशन व फंड भुगतान की प्रक्रिया को रोक दिया जाए. विभाग ने तब विमलेश की पेंशन, फंड समेत अन्य भुगतान की प्रक्रिया रोक दी. इस के बाद आयकर विभाग ने विमलेश कुमार के मैडिकल बिल और सैलरी भुगतान संबंधी 7 पत्र पत्नी मिताली को भेजे. लेकिन मिताली ने कोई जवाब नहीं दिया.

दरअसल, जैसेजैसे समय बीतता गया वैसेवैसे विमलेश का शरीर काला पड़ता गया. शरीर जब पूरी तरह से सूख गया तो मिताली को यकीन हो गया कि अब शरीर में कुछ नहीं बचा. मिताली ने सासससुर को समझाने का प्रयास किया तो वे उस से झगड़ने लगे. परेशान हो कर मिताली ने एक गुमनाम पत्र अहमदाबाद स्थित आयकर औफिस को भेजा, जिस में उस ने विमलेश की लाश घर पर होने की सनसनीखेज जानकारी दी. इस पत्र के मिलने के बाद आयकर विभाग में खलबली मच गई.

इस के बाद अहमदाबाद से जोनल एकाउंट्स की एक टीम विमलेश के कानपुर स्थित घर पहुंची. लेकिन परिजनों ने टीम को घर के अंदर घुसने नहीं दिया और न ही टीम को कोई जानकारी दी. अहमदाबाद से आई टीम वापस लौट गई और फिर कानपुर आयकर विभाग को पत्र लिख कर शक जताया कि आयकर अधिकारी विमलेश कुमार की मौत हो चुकी है. कानपुर सीएमओ के जरिए इस की Family Story पुष्टि कराएं और जांच रिपोर्ट अहमदाबाद औफिस भिजवाएं.

इस पत्र के बाद कानपुर के आयकर अधिकारियों ने डीएम विशाख जी को सारी जानकारी दी और सीएमओ से विमलेश की जांच कराने का अनुरोध किया. चूंकि मामला पेचीदा था, सो डीएम ने सीएमओ को जांच का आदेश दिया.

डीएम के आदेश पर सीएमओ ने कराई जांच

कानपुर के सीएमओ आलोक रंजन ने तब 3 डाक्टरों की एक टीम जांच हेतु बनाई. इस टीम में डा. ए.वी. गौतम, डा. आशीष तथा डा. अविनाश को शामिल किया गया. सीएमओ ने टीम को निर्देशित किया कि विमलेश कुमार के जीवित या मृत्यु होने की जांच हैलट अस्पताल में ही होगी. अत: उन्हें अस्पताल ही लाया जाए. 23 सितंबर, 2022 की सुबह 11 बजे डाक्टरों की टीम विमलेश कुमार गौतम के घर पहुंची. टीम की मुलाकात विमलेश की मां रामदुलारी व पिता रामऔतार गौतम से हुई. लेकिन उन्होंने जांच कराने से साफ मना कर दिया और कहा कि उन के बेटे विमलेश की धड़कनें चल रही हैं. वह जिंदा है. इसी के साथ उन्होंने मिताली को भी सूचित कर दिया तो वह भी बैंक से घर आ गई.

डाक्टरों की टीम को जब विमलेश के घरवालों ने रोका तो उन्होंने जानकारी सीएमओ आलोक रंजन को दी. आलोक रंजन ने तब पुलिस कमिश्नर वी.पी. जोगदंड को जानकारी दी. उस के बाद जौइंट सीपी आनंद प्रकाश तिवारी, एडिशनल सीपी (वेस्ट) लाखन सिंह यादव तथा प्रभारी निरीक्षक संजय शुक्ला विमलेश के आवास पहुंच गए. पुलिस अधिकारियों ने घर के मुखिया रामऔतार गौतम तथा उन की पत्नी रामदुलारी से बात की और बेटे विमलेश का स्वास्थ परीक्षण कराने को कहा.

विमलेश की पत्नी मिताली तो पति का स्वास्थ परीक्षण कराने को राजी थी, लेकिन बाकी सदस्य टालमटोल कर रहे थे. काफी कहासुनी व पुलिस से झड़प के बाद सभी राजी हो गए. पुलिस के साथ डाक्टरों की टीम ने उस कमरे में प्रवेश किया, जहां विमलेश तख्त पर लेटा था. विमलेश को देख कर पुलिस अफसर व डाक्टर हैरान रह गए. विमलेश का शरीर पूरी तरह से सूख चुका था और काला पड़ गया था. मांस हड्डियों में चिपक गया था. लेकिन डाक्टर व पुलिस अफसर इस बात से हैरान थे कि कमरे से किसी प्रकार की बदबू नहीं आ रही थी और न ही उस के शव से.

डाक्टरों ने कर दिया मृत घोषित

डाक्टरों की टीम ने जांच कर घर वालों को बताया कि विमलेश की मौत हो चुकी है. वह भ्रम न पालें कि वह जिंदा है. इस पर परिवार वाले डाक्टरों से भिड़ गए और जांच को गलत ठहराने लगे. उस के बाद विमलेश कुमार के शव को हैलट अस्पताल लाया गया और परिवार वालों के सामने ईसीजी किया गया. रिपोर्ट में सीधी लकीर दिख रही थी, फिर भी परिवार के लोग संदेह जताते रहे. परिवार के लोग विमलेश के शव का पोस्टमार्टम नहीं कराना चाहते थे. उन्होंने लिख कर भी दे दिया. पुलिस भी बला टालना चाहती थी. और वैसे भी कोई आपराधिक मामला नहीं बनता था सो पुलिस ने लिखित में ले कर घर वालों को शव सौंप दिया. इस के बाद घर वालों ने शव का अंतिम संस्कार भैरवघाट पर कर दिया.

17 माह तक घर में अफसर बेटे का शव रखने का मामला अखबारों में प्रकाशित हुआ तो लोग अवाक रह गए. उन्हें यकीन ही नहीं हो रहा था कि मृत व्यक्ति का शव इतने दिनों तक रखा जा सकता है. टीवी चैनलों के माध्यम से यह मामला देशदुनिया में कई दिनों तक सुर्खियां बटोरता रहा. कानपुर पुलिस भी हैरान थी कि ऐसी क्या वजह थी कि शव 17 महीने तक घर में रखा रहा. कहीं परिवार किसी तांत्रिक के चक्कर में तो नहीं फंसा था. कहीं अफसर का वेतन तो परिवार वाले नहीं हड़पना चाहते थे. कहीं पूरा परिवार अंधविश्वास या मनोरोग का शिकार तो नहीं हो गया था.

इन्हीं सब बिंदुओं की जांच के लिए जौइंट सीपी आनंद प्रकाश तिवारी ने जांच एडिशनल डीसीपी (वेस्ट) लाखन सिंह यादव को सौंपी. लाखन सिंह यादव ने इस प्रकरण की बड़ी बारीकी से जांच की और परिवार के मुख्य सदस्यों से अलगअलग बात की. जांच में यही तथ्य निकला कि मां के अंधविश्वास में 17 माह तक विमलेश का शव घर में रखा रहा.

खराब औक्सीमीटर से हुई थी गलतफहमी

मातापिता के इस अंधविश्वास को पूरे घर ने अपना विश्वास बना लिया और उसी तरह से विमलेश की सेवा करने लगे. श्री यादव ने घर के सामान की जांच की पर कोई लेप नहीं मिला. औक्सीजन सिलेंडर तथा तख्त की भी जांच की. जांच में यह बात सामने आई कि जो औक्सीमीटर विमलेश को लगाया गया था, वह खराब था. खराबी के कारण ही वह गलत रीडिंग बता रहा था. जांच से यह भी पता चला कि परिवार ने विमलेश का वेतन नहीं लिया था.

एडिशनल डीसीपी (वेस्ट) लाखन सिंह यादव ने मृतक विमलेश के मातापिता से पूछताछ की और कई सवाल दागे. इन सवालों का जवाब देते हुए उन्होंने बताया कि उन्होंने कभी कोई कैमिकल विमलेश की बौडी पर नहीं लगाया. वह गंगाजल के पानी से उस का शरीर पोछते थे और कपड़ा बदलते थे. सफाई का विशेष ध्यान रखते थे. उन्होंने बताया कि वह तो अंतिम क्रिया की तैयारी कर रहे थे लेकिन एक रिश्तेदार महिला ने धड़कन महसूस की, तब पता चला कि बेटा जिंदा है. पुलिस अफसर लाखन सिंह यादव ने मृतक विमलेश कुमार की पत्नी मिताली से भी पूछताछ की तो उस का दर्द उभर पड़ा. उस ने हर सवाल का जवाब बड़ी तत्परता से दिया.

मृतक विमलेश के घर वालों की मनोदशा समझने के लिए एडीसीपी (वेस्ट) लाखन सिंह यादव ने जीएसवीएम मैडिकल कालेज के मनोचिकित्सा विभाग के सहायक प्रोफेसर गणेश शंकर से बातचीत की. उन्होंने कहा कि यह अपने आप में एक अनोखा मामला है. इस तरह के बहुत कम मामले देखे गए हैं. प्रथमदृष्टया यह मामला शेयर्ड डिलीवरी डिसऔर्डर नाम की बीमारी का प्रतीत होता है. यह एक ऐसी बीमारी है, जो बहुत कम लोगों को होती है. इस बीमारी में एक व्यक्ति अपनी मानसिक स्थिति से नियंत्रण खो देता है. वह अन्य लोगों को भी इस के प्रभाव में ले लेता है, जिस से वे लोग भी उसी बात पर भरोसा कर लेते हैं, जिस का सच्चाई से दूरदूर तक नाता नहीं होता है. उन का मानना है कि मृतक विमलेश का परिवार भी इसी बीमारी से ग्रसित था.

बहरहाल कथा संकलन तक एडिशनल डीसीपी (वेस्ट) ने अपनी जांच रिपोर्ट जौइंट सीपी आनंद प्रकाश तिवारी को सौंप दी थी. इस के अलावा सीएमओ आलोक रंजन ने भी विमलेश की मौत हो जाने की जांच रिपोर्ट अहमदाबाद के आयकर विभाग को भेज दी. मृतक विमलेश के परिवार वालों ने भी सच्चाई को स्वीकार कर लिया है. फिर भी स्वास्थ विभाग की टीम परिवार की निगरानी में जुटी है.

 

 

Wife murder story : सिर कटी लाश का रहस्य छिपाने के लिए काट डाला बीवी के होंठ का तिल 

Wife murder story  : मुंबई के पास वसई थाना क्षेत्र के भुईगांव समुद्र तट पर झाडि़यों के बीच एक लावारिस काले रंग का बड़ा सा ट्रौली बैग देख लोगों ने पुलिस को सूचना दी. सूचना मिलते ही वसई पुलिस मौकाएवारदात पर पहुंच गई. पुलिस को पहली ही नजर में मामला संदिग्ध नजर आया. क्योंकि एक सुनसान समुद्र किनारे पर किसी सूटकेस के पड़े होने का और कोई मतलब समझ में नहीं आ रहा है.

फिलहाल पुलिस ने उस ट्रौली बैग को अपने कब्जे में ले लिया और उसे खोला. जैसी आशंका थी, वही हुआ. सूटकेस खोलते ही पुलिस की आंखें फटी रह गईं. बैग से एक सिर कटी लाश बरामद हुई थी. कदकाठी आदि देख कर लग रहा था कि उस युवती की उम्र 26-27 की होगी. लग रहा था कि हत्यारे ने शातिर तरीके से लाश ठिकाने लगाने की कोशिश की थी. सिर कटी लाश मिलने से वहां सनसनी फैल गई. पुलिस ने मौके की काररवाई निपटा कर सिर कटी लाश यानी धड़ को पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भेज दिया. पुलिस ने उस के कटे सिर को ढूंढना शुरू कर दिया, लेकिन काफी कोशिश करने के बाद भी कटा सिर बरामद नहीं हो सका. यह बात 26 जुलाई, 2021 की थी.

चूंकि पहली ही नजर में यह बात साफ हो गई थी कि हत्यारा बेहद चालाक और शातिर है. वसई पुलिस ने बिना देर किए आईपीसी की धारा 302, 201 के तहत हत्या का मामला अज्ञात के खिलाफ दर्ज कर लिया. मृतका की शिनाख्त के लिए पुलिस ने उस के कपड़ों, सूटकेस के विभिन्न एंगिल से फोटो खिंचवा कर उस के 200 बड़े बैनर और पोस्टर बनवा लिए. फिर वह पूरे महाराष्ट्र के साथ ही आसपास के राज्यों में लगवा दिए ताकि कहीं से भी अगर कोई इन तसवीरों को देख कर पुलिस से संपर्क करे तो आगे जांच की जा सके. जिस के बाद हत्यारों को पकड़ा जा सके.

इतना ही नहीं पुलिस ने पड़ोसी राज्य के बौर्डर के थानों में संपर्क किया, आसपास के थानों में फोन घुमाए. इस के अलावा क्राइम ऐंड क्रिमिनल ट्रैकिंग ऐंड मिसप्स पर भारत भर में हजारों गुमशुदा शिकायतों की जांच की गई, लेकिन वहां भी कोई सुराग नहीं मिला.

एक साल बाद भी नहीं मिला सुराग

पुलिस ने पोस्टमार्टम कराने के साथ ही लाश का डीएनए सैंपल सुरक्षित रखवा दिया. इस के बाद पुलिस मामले में कोई सुराग मिलने का इंतजार करने लगी. पुलिस ने इसे चुनौती के रूप में स्वीकार करते हुए लाश की शिनाख्त के लिए पूरी ताकत लगा दी.  जोनल डीसीपी संजय कुमार पाटिल ने 6 टीमों का गठन किया, जिस में इंसपेक्टर ऋषिकेश पावल, इंसपेक्टर (क्राइम) अब्दुल हक, एपीआई राम सुरवासे, सुनील पवार, सागर चव्हाण, एसआई विष्णु वघानी, कांस्टेबल सुनील मालवकर, विनोद पाटिल, मिलिंद घरत, शरद पाटिल, विनायक कचरे शामिल थे.

इस के साथ ही सीसीटीवी कैमरों की जांच भी की गई. लेकिन इतने प्रयास के बाद भी पुलिस को कोई क्लू नहीं मिला. दिन गया रात आई, रात गई दिन आया और धीरेधीरे दिन, महीने इस तरह पूरा एक साल गुजर गया. लेकिन इस बीच पुलिस को इस सिर कटी युवती की लाश के सिलसिले में कहीं से कोई सूचना नहीं मिली. कर्नाटक के बेलगाम में रहने वाले जावेद शेख पिछले एक साल से अपनी 25 वर्षीय बेटी सान्या उर्फ सानिया शेख से बात करने के लिए परेशान थे. जब भी वह फोन मिलाते, बेटी का मोबाइल स्विच्ड औफ मिलता था. जबकि उस के पति के नंबर पर फोन मिलाने पर रौंग नंबर कह कर फोन काट दिया जाता था. अपनी बेटी से बात करने के लिए पूरा परिवार तरस गया था. उस की कोई खोजखबर भी नहीं मिल रही थी.

जावेद इस बात से बहुत परेशान थे. अपनी बेटी से उन की आखिरी बार बात 8 जुलाई, 2021 को हुई थी. बेटी की ससुराल मुंबई के नालासोपारा में थी. उन दिनों कोविड के चलते यात्रा करना व कहीं आनाजाना मुश्किल हो रहा था.

बेटी की तलाश में पहुंचे मुंबई

आखिर काफी सोचविचार के बाद जावेद और उन के घर वालों ने मुंबई जा कर सानिया शेख के बारे में पता करने का निर्णय लिया. जावेद शेख अपने बेटों व कुछ परिचितों के साथ 27 अगस्त, 2022 को मुंबई के लिए रवाना हुए. मुंबई पहुंच कर जावेद नालासोपारा स्थित सानिया की ससुराल पहुंचे. वहां पहुंच कर उन्हें जो जानकारी मिली, उस से उन के पैरों तले की जमीन जैसे खिसक गई. यह जान कर वह हैरान रह गए कि जिस फ्लैट में सानिया के ससुराल वाले रहते थे, एक साल पहले बेच कर वे लोग यहां से चले गए थे. ससुराल वाले कहां चले गए, इस की वहां किसी को जानकारी नहीं थी.

अब सानिया के घर वालों को दाल में कुछ काला नहीं, बल्कि पूरी दाल ही काली नजर आने लगी थी. क्योंकि ससुराल वालों के फ्लैट बेचने की जानकारी उन्हें मुंबई आने के बाद ही हुई थी. इस संबंध में उन्हें किसी ने कोई बात नहीं बताई थी. इधर सानिया से पिछले एक Wife murder story साल से बात नहीं हो पाना, फ्लैट को बेच देना, ये बातें किसी साजिश की ओर इशारा कर रही थीं. तब जावेद शेख 29 अगस्त, 2022 को बिना देर किए नालासोपारा के अचोले थाने पहुंच गए. उन्होंने पुलिस को बताया कि सानिया के मातापिता की मौत उस के बचपन में ही हो गई थी. भतीजी सानिया को उन्होंने अपनी बेटी मान कर पालापोसा था.

5 साल पहले 2017 में उस की शादी मुंबई के ठाणे जिले के नालासोपारा इलाके के रश्मि रीजेंसी अपार्टमेंट निवासी आसिफ शेख के साथ कर दी. आसिफ मुंबई के अंधेरी इलाके में एक लौजिस्टिक कंपनी में काम करता था. 2 बैडरूम वाले फ्लैट में आसिफ के मातापिता और उस का भाई अपने परिवार के साथ रहते थे. जावेद शेख ने बताया कि पिछले एक साल से वह सानिया से बात करने की कोशिश कर रहे थे. लेकिन दामाद आसिफ हर बार रौंग नंबर बता कर काट देता था. पुलिस ने जावेद से कहा कि वह अपने फोन में ससुराल वालों के अन्य नंबरों को तलाश कर उन पर फोन करें.

एक साल से नहीं हो पा रही थी बात

इत्तफाक से जावेद को फोन बुक में आसिफ की मां का मोबाइल नंबर मिल गया. उन्होंने उन्हें फोन लगाया. उस समय जावेद सानिया की सास से बात करने में कामयाब हो गए. बातचीत के दौरान आसिफ की मां ने धोखे में आ कर उन्हें ये बता दिया कि अब वे लोग नालासोपारा की प्रौपर्टी बेच कर मुंब्रा शिफ्ट हो गए हैं और मुंब्रा में मैरिज होम के पास रहते हैं. इस जानकारी के मिलते ही पुलिस ने जावेद से मुंब्रा जा कर ससुराल वालों से मिलने की बात कही. इस पर जावेद परिचितों के साथ मुंब्रा स्थित आसिफ के घर जा पहुंचे. वहां उन्होंने सानिया और आसिफ की 4 साल की बेटी अमायरा को तो घर में देखा, लेकिन सानिया उन्हें कहीं नजर नहीं आई.

जब जावेद ने बेटी सानिया के बारे में उस के पति आसिफ से पूछा तो उस ने टका सा जवाब दे दिया. कहा, ‘‘शादी के बाद भी सानिया किसी से प्यार करती थी. उस के किसी से रिश्ते भी थे. एक साल पहले वह अपनी बेटी को छोड़ कर अपने प्रेमी के साथ भाग गई.

‘‘सानिया फरार होने से पहले एक पत्र लिख कर छोड़ गई थी. पत्र में लिखा था कि मैं अपनी मरजी से अपने प्रेमी के साथ जा रही हूं. मुझे ढूंढने की कोशिश मत करना.’’

जावेद ने आसिफ से पूछा, ‘‘तब आप ने पुलिस में शिकायत तो की होगी?’’

इस पर आसिफ ने कहा कि बदनामी के डर से हम ने पुलिस में कोई शिकायत नहीं की और न आप लोगों को इस बारे में बताए. यहां तक कि बदनामी के डर से हमें अपना फ्लैट तक बेचने को मजबूर होना पड़ा. उस की यह बात जावेद और अन्य के गले नहीं उतरी. उन्होंने पुलिस को पूरे घटनाक्रम की जानकारी दी. पुलिस ने इस संबंध में सानिया की गुमशुदगी दर्ज कर नए सिरे से मामले की जांच शुरू कर दी.

फोटो से की शिनाख्त

अचोले पुलिस ने साल भर पहले वसई भुईगांव बीच से मिली सिर कटी युवती की लाश की फोटो सानिया के पति आसिफ और अन्य ससुराल वालों को दिखाई तो उन्होंने लाश को पहचानने से ही इंकार कर दिया. लेकिन जब पुलिस ने वह फोटो बेलगाम से आए सानिया के घर वालों को दिखाए तो उन्होंने देखते ही पहचान लिया कि ये उन की बेटी की लाश है. घर वालों ने Wife murder story लाश के साथ मिले कपड़ों वगैरह की भी पहचान कर ली. इस तरह पुलिस अब साल भर पहले सूटकेस में बंद मिली युवती की सिर कटी लाश की पहचान कर चुकी थी. लेकिन पुलिस को अब यह पता करना बाकी था कि आखिर सानिया की हत्या किस ने और क्यों की? क्या उस के प्रेमी ने सानिया के साथ यह हैवानियत की थी?

अब प्रश्न यह था कि क्या सानिया के प्रेमी को ससुराल वाले जानते थे? लिहाजा पुलिस ने मायके वालों की शिकायत पर सब से पहले सानिया के ससुराल वालों को ही पूछताछ के लिए बुला लिया. ससुराल वालों ने पुलिस के सामने भी सानिया के अपने प्रेमी के साथ घर से भाग जाने की वही कहानी दोहराते हुए उस के कत्ल पर हैरानी जताई. उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि वे सानिया के प्रेमी के बारे में कुछ नहीं जानते. जबकि मायके वालों ने किसी से सानिया के अफेयर की बात को सिरे से खारिज कर दिया.

ससुराल वालों के हावभाव देख कर व उन की बातों से सानिया के मायके वालों के अलावा पुलिस को भी लगने लगा था कि हो ना हो सानिया के कत्ल में ससुराल वालों का ही हाथ है. लेकिन पुलिस के पास कोई सबूत न होने के चलते उस ने किसी को भी गिरफ्तार करने से पहले पूरे मामले को समझ लेना ठीक समझा. इस के लिए पुलिस ने मृतका के पति आसिफ शेख और उस की बेटी अमायरा के डीएनए सैंपल एकत्र कर लिए. जबकि सानिया की लाश का डीएनए सैंपल पहले ही लिया जा चुका था. पुलिस ने तीनों सैंपल को मैचिंग के लिए कलीना फोरैंसिक लैब भेजा. इसी लैब में सानिया का डीएनए सैंपल पिछले एक साल से सुरक्षित रखा था.

पति आसिफ, बेटी अमायरा तथा सानिया के डीएनए सैंपल का मिलान करने पर लैब ने अपनी जो रिपोर्ट दी, उस के अनुसार सिर कटी लाश किसी और की नहीं, आसिफ की पत्नी सानिया शेख की ही थी.

डीएनए से हुई लाश की शिनाख्त

इस पर बिना देर किए पुलिस ने 14 सितंबर, 2022 को सानिया की हत्या के आरोप में उस के 30 वर्षीय पति आसिफ शेख को हिरासत में ले लिया. उस से पूछताछ की गई. आसिफ वही रटीरटाई कहानी फिर से दोहराने लगा. उस ने वह लैटर भी पुलिस को दिखाया, जो सानिया जाते समय छोड़ गई थी. मृतका के चाचा ने बताया कि जो लैटर की लिखावट है वह सानिया की नहीं है. शक यकीन में तब्दील हो गया. तब पुलिस ने अपने तरीके से आसिफ से पूछताछ की. पुलिस की सख्ती के सामने आसिफ टूट गया और उस ने सच उगल दिया. आसिफ ने अपने घर वालों के साथ सानिया की हत्या करने का जुर्म कुबूल कर लिया.

पता चला कि आसिफ की सानिया के साथ दूसरी शादी थी. आसिफ ने अफेयर के शक के चलते पहली बीवी को तलाक दे दिया था. पुलिस ने आसिफ के साथ ही उस के बड़े भाई यासीन, पिता हनीफ तथा बहनोई यूसुफ को भी गिरफ्तार कर लिया. सवाल यह था कि एक परिवार ने अपने ही परिवार की बहू की हत्या आखिर क्यों की?

उस सिर कटी लाश का खौफनाक राज खुला तो सब के होश उड़ गए. आरोपियों ने सानिया के कत्ल की वजह के बारे में जो बताया, उसे सुन कर मृतका के घर वालों के साथ ही पुलिस भी हैरान रह गई. सानिया शेख अपने पति और ससुराल वालों के निशाने पर उस वक्त आ गई, जब वे लोग सानिया की बेटी अमायरा को सानिया की निस्संतान ननद को सौंपना चाहते थे. सानिया अपने कलेजे के टुकड़े को किसी भी हाल में गोद देने को तैयार नहीं थी. उस ने साफ इंकार कर दिया. बेटी के लिए मां के दिल में उमड़ी ममता थी, जो उस की मौत का सबब बनी.

21 जुलाई, 2021 को बकरीद का दिन था. सुनियोजित तरीके से आरोपियों ने सानिया के हाथपैर बांध दिए. फिर उसे पानी से भरे एक बड़े टब में डुबो दिया. कुछ देर बाद ही पानी में डूबने से सानिया की मौत हो गई. इस के बाद उन के सामने लाश को ठिकाने लगाने की समस्या थी. हनीफ ने किया सानिया का सर धड़ से अलग इस के लिए शुरुआत में पति आसिफ ने उस का गला काटना शुरू किया. लेकिन कुछ मिनटों के बाद ही उस के हाथ थम गए, उस ने हार मान ली. तब आसिफ के पिता हनीफ ने आगे का काम किया और सानिया का सिर धड़ से अलग कर दिया.

उस की पहचान छिपाने के लिए कातिल हैवानियत की हदों से आगे निकल गए. उन्होंने उस के सिर के लंबे बालों को काटने के लिए इलैक्ट्रिक ट्रिमर का इस्तेमाल किया और सिर से बालों का पूरी तरह से सफाया कर दिया. इतना ही नहीं, हत्यारों ने सोचा कि अगर फिर भी सिर पुलिस को मिल गया तो कहीं वे पकड़े न जाएं, इसलिए मृतका के ऊपरी होंठ पर जो तिल था उसे चाकू से हटा दिया. ऐसी गिरी हुई हरकत ससुराल वालों ने सानिया की बच्ची को जबरन गोद लेने के लिए की.

अब हत्यारे पूरी तरह निश्चिंत थे कि यदि सिर पुलिस को मिल भी जाएगा तो वे 7 जन्मों तक इस की पहचान नहीं कर पाएंगे. आसिफ ने सिर को एक पौलीथिन की थैली में पैक कर दिया. इस के बाद वह सिर को कपड़े में छिपा कर अपने बड़े भाई यासीन के साथ बाइक पर बैठ कर साथ ले गया और सिर को मुंबई अहमदाबाद हाईवे पर खानीवाडे क्रीक में फेंक कर घर लौट आए.

लाश ठिकाने लगा कर मनाई बकरीद

अब उन्हें सानिया के धड़ को निपटाना था. इस के लिए उस के धड़ को चादर में लपेट कर एक बड़े काले रंग के ट्रौली बैग में भर दिया. आसिफ ने मुंब्रा में ही रहने वाले कैब चलाने वाले अपने बहनोई यूसुफ को फोन किया कि वह अपनी गाड़ी ले कर घर आ जाए ताकि शव को आसानी से ठिकाने लगाया जा सके. इस पर यूसुफ कार ले कर कुछ ही देर में घर आ गया. इस के बाद आसिफ ने कार में ट्रौली बैग रखा और यूसुफ के साथ जा कर उसे मुंबई के वसई के भुईगांव समुद्र तट पर फेंक आए.

आरोपियों ने खून से सने फर्श की सफाई करने के साथ ही अपनेअपने कपड़े बदले. सभी ने शाम को बकरीद का त्यौहार मनाया. क्योंकि विवाद की मुख्य वजह ही अब समाप्त हो गई थी. यूसुफ भी खुश था कि अब उसे सानिया की बेटी अमायरा मिल जाएगी. इसलिए उस ने लाश को ठिकाने लगाने में बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया. सानिया की हत्या करने के 3 महीने बाद आसिफ और उस के परिवार ने वह घर बेच दिया और परिवार मुंब्रा इलाके में रहने लगा.

वसई थाने के सीनियर इंसपेक्टर कल्याणराव ए. कर्पे ने बताया कि यह एक सुनियोजित हत्या थी, क्योंकि जिस दिन सानिया की हत्या की गई, उस दिन ससुराल वालों ने मृतका की बेटी अमायरा को बकरीद का त्यौहार मनाने के बहाने यूसुफ की पत्नी के साथ उस के घर भेज दिया था. जावेद शेख ने बताया, ‘‘अमायरा के जन्म के बाद सानिया के ससुराल वाले इस बात पर जोर देते थे कि सानिया अपनी ननद को अपनी बेटी अमायरा को गोद दे दे. वे हमेशा उस पर दबाव डालते थे और उस की बच्ची को छीनने की कोशिश करते थे.

‘‘कोविड के दौरान जब आसिफ दुबई में फंसा था तो ससुर हनीफ ने नालासोपारा में इस बात को ले कर सानिया के साथ मारपीट भी की थी. इस पर सानिया ने अचोल थाने में भी शिकायत की थी. लेकिन रिश्तेदारों की दखलअंदाजी के बाद कोई मामला दर्ज नहीं किया गया था.’’

पुलिस को पति आसिफ ने सानिया के घर से जाते समय का जो लैटर दिया वह फरजी निकला. पुलिस ने पति आसिफ, उस के बड़े भाई यासीन, पिता हनीफ, बहनोई यूसुफ  को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया.

सानिया की हत्या के 6 दिन बाद ही उस की सिर कटी लाश पुलिस को मिल गई थी. लेकिन साल भर का वक्त सिर कटी लाश के रहस्य से परदा उठने में लग गया. पुलिस नहीं जानती थी कि सिर कटी लाश के कातिल घर में ही बैठे हुए हैं. परदाफाश भी एक शख्स (चाचा) के प्रयासों से संभव हो सका, जो अपनी बेटी को तलाशते हुए एक साल बाद मुंबई पहुंचे थे. वहीं वसई पुलिस की भी समझदारी भी काम आई, जो उस ने लाश के कपड़ों, बैग आदि के फोटो कराने के साथ ही डीएनए सैंपल सुरक्षित रखा.

इसी डीएनए सैंपल ने अनसुलझे हत्या का राज खोल दिया. सानिया के मायके वालों को 13 महीने के लंबे इंतजार के बाद सानिया के बारे में खबर तो जरूर मिली, लेकिन बेटी की मौत की. यह बात साफ है कि जुर्म करने वाला अपराधी किसी भी क्राइम को अंजाम देने से पहले खुद के बच निकलने का हर रास्ता अपनी समझ से पूरी तरह तैयार रखता है. होशियारी बरतने के बाद भी जानेअनजाने या हड़बड़ी में ही सही, वह ऐसा कोई न कोई सबूत छोड़ जाता है जिस पर पहुंच कर जांच करने वाली एजेंसी की नजर पड़ ही जाती है.

लिहाजा शातिर से शातिर अपराधी भी अपने द्वारा भूल से भी छोड़े गए अपने मूक गवाह की चाल में फंस कर कानून के शिकंजे में अपनी गरदन खुद ही फंसा बैठता है. सानिया के जीवन में दुख और गम के सिवाए कुछ नहीं था. बचपन में ही Wife murder story मांबाप के गुजरने के बाद वह अकेली रह गई थी. तब उस के चाचाचाची ने उसे अपनी बेटी की तरह पालपोस कर बड़ा किया और पढ़ाया. कहते हैं कि जब किसी की किस्मत खराब होती है तो उसे कहीं भी सुकून नहीं मिलता. साल 2017 में जब सानिया 20 साल की थी, चाचा ने उस की शादी आसिफ के साथ कर दी थी.

बेटी पैदा होने के बाद ससुरालीजन उस की जान के प्यासे बन गए. मां की ममता सानिया की जिंदगी पर भारी पड़ गई. चाचा को सपने में भी इस बात का अंदाजा नहीं था कि बच्ची के लिए ससुरालीजन सानिया की जान ले लेंगे.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Suicide : 77 पन्नों के सुसाइड नोट में लिखी मां को मारने की डिटेल

Suicide story in Hindi : रविवार 4 सितंबर, 2022 को रात 8-साढ़े 8 बजे का वक्त था. दिल्ली के रोहिणी स्थित बुद्ध विहार थाने के प्रभारी विपिन यादव अपने मातहतों के साथ दिन भर के कार्यों की समीक्षा में व्यस्त थे. तभी उन्हें सूचना मिली कि उन के इलाके के एक घर का दरवाजा लाख खटखटाए जाने के बावजूद नहीं खुल रहा है और भीतर से उठ रही सड़ांध से मोहल्ले के लोग परेशान हैं. थानाप्रभारी विपिन यादव इस सूचना की भयावहता को तुरंत भांप गए और तुरंत अपनी टीम ले कर घटनास्थल की ओर रवाना हो गए.

सूचना के अनुसार रोहिणी सेक्टर-24 के पौकेट 18 में वह जिस घर के बंद दरवाजे पर पहुंचे, वह श्रीनिवास पाल का 3 मंजिला मकान था. बिजली विभाग में कार्यरत रहे श्रीनिवास पाल को गुजरे तो 10 साल हो चुके थे. इस घर में उन की विधवा मिथिलेश पाल अपने इकलौते बेटे क्षितिज उर्फ सोनू के साथ रहती थीं. मगर मोहल्ले के लोगों ने कई दिनों से दोनों को देखा नहीं था. घर के चारों ओर अजीब सी बदबू फैली हुई थी. यह बदबू किसी अनहोनी को बयां कर रही थी. विपिन यादव ने दरवाजे पर लगी घंटी बजाई, मगर दरवाजा नहीं खुला. वे काफी देर तक घंटी बजाते रहे, मगर भीतर से कोई प्रतिक्रिया देखने को नहीं मिली.

हार कर उन्होंने ऊपर की ओर देखा. मकान की पहली मंजिल कोई बहुत ज्यादा ऊंची नहीं थी. उन्होंने अपने सिपाही को घर की पहली मंजिल की बालकनी पर चढ़ने का आदेश दिया. सिपाही बालकनी के रास्ते तुरंत ऊपर चढ़ गया. उस ने पहली मंजिल से नीचे जाने वाली सीढि़यों का दरवाजा तोड़ा और नीचे उतर कर मेन गेट खोल दिया. थानाप्रभारी विपिन यादव अपने सहयोगी इंसपेक्टर राम प्रताप सिंह और अन्य सिपाहियों के साथ जैसे ही अंदर पहुंचे, मारे बदबू के उन का सिर घूम गया. पूरे घर में सड़ांध भरी हुई थी. सामने के दरवाजे पर एक कागज चिपका था, जिस पर लिखा था, ‘मेरी मां का शव इस दरवाजे के पीछे बाथरूम में है.’

थानाप्रभारी विपिन यादव तेजी से बाथरूम में घुसे. वहां का दृश्य देख कर उन के होश उड़ गए. जमीन पर सड़ीगली हालत में घर की मालकिन मिथिलेश पाल का शव पड़ा था. उन के शरीर पर कीड़े रेंग रहे थे. गरदन पर तेज धार वाली किसी वस्तु से काटे जाने का निशान था और शरीर का सारा खून बह कर बाथरूम के फर्श पर जम चुका था. विपिन यादव के साथ आए सिपाही अन्य कमरों की पड़ताल करने लगे. दूसरे कमरे में उन्हें मिथिलेश पाल के 25 वर्षीय बेटे क्षितिज की लाश बैड पर पड़ी मिली. पुलिस यह देख कर हैरान रह गई कि बैड के दोनों तरफ पानी से भरी 2 बाल्टियां रखी थीं, जिन से क्षितिज ने अपने पैरों के अंगूठे बांधे हुए थे. उस की गरदन कटी हुई थी और पूरा पलंग उस के खून से सना हुआ था.

क्षितिज के सिरहाने की तरफ 2 मोबाइल फोन पड़े थे और बिजली के स्विच से कनेक्ट किया हुआ एक इलैक्ट्रिक कटर खून से सना हुआ नीचे जमीन पर पड़ा था. वहीं पास में एक बड़े साइज (250 पेज) का रजिस्टर भी मिला, जिस के शुरुआती पेजों पर कार्बन पेंसिल से अध्यात्म की बातें लिखी थीं. गंधर्व विवाह और देव विवाह जैसी बातें भी उस में लिखी हुई थीं और उस के बाद के 77 पेजों में एक लंबाचौड़ा सुसाइड नोट था. यह सुसाइड नोट क्षितिज पाल द्वारा लिखा गया था. थानाप्रभारी विपिन यादव को यह देख कर हैरत हुई कि ये पूरा रजिस्टर किसी पेन के बजाय कार्बन पेंसिल से लिखा गया था, जो आमतौर पर कम ही इस्तेमाल होती हैं. हालांकि 77 पेज के सुसाइड नोट के आखिर में क्षितिज ने स्याही से अपने दोनों हाथ के अंगूठे के निशान लगाए थे.

थानाप्रभारी विपिन यादव को यह समझते देर नहीं लगी कि पूरा मामला हत्या और Suicide story in Hindi आत्महत्या का है. क्षितिज ने पहले अपनी 60 वर्षीय मां मिथिलेश को मारा और फिर खुद आत्महत्या कर ली. लेकिन इलैक्ट्रिक कटर से हत्या और आत्महत्या का जो तरीका उस ने अपनाया, वह बेहद खौफनाक था. विपिन यादव ने तुरंत फोरैंसिक जांच के लिए क्राइम टीम और एफएसएल टीम को बुलाया. आसपास के लोगों से पूछताछ में पता चला कि इस घर में मिथिलेश अपने इकलौते बेटे क्षितिज के साथ रहती थीं. अन्य कोई रिश्तेदार नहीं था, बस झांसी में मिथिलेश की छोटी बहन और जीजा थे, जो कभीकभार यहां आतेजाते थे.

लोगों ने यह भी बताया कि क्षितिज की मां बड़ी धार्मिक थीं और हर हफ्ते सत्संग भी जाया करती थीं. वहीं क्षितिज अकसर घर पर ही रहता था. मोहल्ले में उस का कोई दोस्तयार नहीं था और वह बहुत कम लोगों से मिलता था. लोग यह जान कर आश्चर्यचकित थे कि क्षितिज ने अपनी मां की हत्या कर खुद आत्महत्या कर ली. आखिर क्षितिज ने ऐसा क्यों किया? अपनी उस मां को क्यों मार दिया, जिस से वह बेहद प्यार करता था? हत्या में इलैक्ट्रिक कटर का इस्तेमाल भी अचरज में डालने वाला था. लोगों को यह सवाल भी परेशान कर रहा था कि खुद की गरदन इलैक्ट्रिक कटर से काटने से पहले क्षितिज ने पानी से भरी बाल्टियों से अपने पैर के अंगूठे क्यों बांधे?

लेकिन इन सभी सवालों के जवाब सामने आए क्षितिज के 77 पेज के सुसाइड नोट से. उस रजिस्टर में क्षितिज ने न सिर्फ पूरी घटना के एकएक पल का ब्यौरा लिखा था, बल्कि अपनी पूरी जिंदगी की दास्तान उस में दर्ज कर दी थी. पुलिस के मुताबिक क्षितिज 2 साल से खुद को मारने की उधेड़बुन में लगा था. हत्या और आत्महत्या के लिए क्या उपाय अपनाए जाएं, ये सब वह लंबे समय से गूगल पर सर्च कर रहा था. यह वारदात भागतीदौड़ती दिल्ली के एक घर की चारदीवारी में घिरे अकेले पुरुष के अवसाद की कहानी है. क्षितिज, जिसे अपने नाम की तरह बचपन से ही क्षितिज को छूने की चाह थी, मगर उस के अकेलेपन ने उसे ऐसी मानसिक स्थिति में धकेल दिया कि वह जिंदगी की जेल से आजाद होने के लिए बेचैन हो उठा.

उसे अपने चारों ओर उदासी और नकारात्मकता ही दिखाई देने लगी. वह खुद को अकेला और हताश महसूस करने लगा और आखिर में जो कदम उठाया, उसे देख कर लोगों के रोंगटे खड़े हो गए. रजिस्टर के 77 पेज में जो लिखा गया, वह हत्या और आत्महत्या की खतरनाक कहानी है. यह सुसाइड नोट दिल दहला देने वाला है. यह बताता है कि युवाओं में बढ़ते डिप्रेशन यानी अवसाद और हताशा के लक्षणों को नजरंदाज करने का अंजाम कितना खतरनाक हो सकता है. क्षितिज की मां मिथिलेश उत्तर प्रदेश के झांसी जिले की रहने वाली थीं. उन की शादी दिल्ली के श्रीनिवास पाल से हुई, जो बिजली विभाग में कार्यरत थे. शादी के बाद मिथिलेश अपने पति के पास दिल्ली आ गईं. उन की एक बहन भी हैं, जो झांसी में अपने पति और बच्चों के साथ रहती हैं.

शादी के 14 साल बाद जब मिथिलेश की गोद भरी तो उन की खुशी का ठिकाना नहीं रहा. बेटे क्षितिज को पा कर पतिपत्नी बहुत खुश थे. वे प्यार से उसे सोनू कह कर पुकारते थे. श्रीनिवास ने बेटे की परवरिश में कोई कमी नहीं रखी. बहुत प्यार दिया. अच्छे नामचीन स्कूल में पढ़ाया और उस से बहुत सारी उम्मीदें बांधी. मगर अफसोस कि वे अपनी उम्मीदों को पूरा होते नहीं देख सके. 10 साल पहले बीमारी के चलते उन की मौत हो गई. पति का यूं अचानक चले जाना मिथिलेश पर गाज बन कर टूटा. वह बुरी तरह टूट गईं. हताशा और अकेलेपन ने उन्हें घेरा तो वह सत्संग और मंदिरों में सहारा तलाशने लगीं. वहीं श्रीनिवास का लाडला बेटा क्षितिज उर्फ सोनू पिता की अचानक मौत से सहम सा गया. 15 साल की नाजुक उम्र में जब उसे पिता के प्यार और मार्गदर्शन की सब से ज्यादा जरूरत थी, वह उसे छोड़ कर चले गए.

इस घटना ने क्षितिज को डरा दिया. वह सब से कटाकटा सा रहने लगा. स्कूल में भी वह अकेला और अन्य बच्चों से अलग रहता. उस का कोई दोस्त नहीं था. इस अकेलेपन ने उसे मानसिक रूप से तोड़ दिया, उसे दब्बू और डरपोक बना दिया. वह टीचर के सवालों से डरने लगा. वह दोस्तों के हंसीमजाक से डरने लगा. यहां तक कि अपनी स्कूल बस में चढ़नेउतरने में भी उस के पांव कांपने लगे. वह न तो खेलों में हिस्सा लेता और न ही किसी एक्स्ट्रा एक्टिविटी में. बस अपने आप में ही गुमसुम रहता. धीरेधीरे सब उस से कटने लगे. उसे उस के हाल पर छोड़ दिया. इस बात का जिक्र क्षितिज ने अपने सुसाइड नोट में किया है.

दरअसल, क्षितिज साइकोलौजिकल डिसऔर्डर का शिकार हो चुका था. अपने हालात की वजह से डिप्रेशन में जा रहा था, मगर उस के इन लक्षणों को न उस के स्कूल के टीचर भांप सके और न घर में उस की मां. उस ने लिखा, ‘मेरी मां मेरी उम्मीद थीं. पापा के जाने के बाद मां और मैं अकेले पड़ गए. मेरे पापा हम सब को ऐसे समय में छोड़ कर चले गए जब हमें सब से ज्यादा जरूरत थी. 10वीं कक्षा में था मैं उस समय, जब पापा की मौत हो गई.

‘बाद में दिल्ली यूनिवर्सिटी के एसओएल में एडमिशन लिया. लेकिन किस्मत धोखा दे गई. 2 बार फिसल गया. डिप्रेशन रहता है. एक रात, 2 रात, 3 रात, 5 रात तक जगा रहता हूं. कई बार बेहोश सा पड़ा रहता हूं. बीमारियां मेरे अंदर भरती जा रही हैं. मां कई बार टोकती थीं. मां भी हाई ब्लडप्रेशर से परेशान रहती थीं.’

क्षितिज पढ़ाई में पिछड़ने लगा. लगातार फेल होता रहा और अंत में उस ने पढ़ाई छोड़ दी. वह ज्यादा समय घर पर अपने कमरे में बंद रहने लगा. उस की मां उस से बारबार कोई काम करने या पढ़ाई करने को कहतीं, लेकिन अवसाद का शिकार क्षितिज मां की कोई बात पूरी नहीं कर पा रहा था. Suicide story in Hindi सुसाइड नोट में उस ने लिखा है, ‘मेरी अच्छी परवरिश के लिए मां ने सिलाई भी की. मां कहती थी कुछ ट्यूशन कर लो. छोटे बच्चों को पढ़ाना शुरू कर दो. सुन कर मैं डर गया था.’

क्षितिज अपने पापा को अपना हीरो समझता था. उन के जाने का घाव उस के दिल पर गहरा हुआ था. मां का अकेलापन और पिता के लिए उन का रोना उस से देखा नहीं जाता था. वह मां से भी बहुत प्यार करता था. पिता की पेंशन से दोनों का गुजारा किसी तरह चल रहा था, लेकिन उस की मां चिंताओं के कारण बीमार सी रहने लगी थीं. उन की आंखों से कम दिखने लगा था. कभीकभी वह क्षितिज पर झुंझलाने लगतीं तो कभी बहुत प्यार लुटाती थीं. मगर एकदूसरे के दिलदिमाग में क्या चल रहा था, इस से दोनों ही अनभिज्ञ थे. दोनों अपनेअपने दुख के साथ अकेले थे.

क्षितिज ने तय कर लिया कि अब जीना नहीं है. वह मां को इस दुनिया में अकेला नहीं छोड़ना चाहता था. इसलिए उस ने उन की भी हत्या करने का प्रण कर लिया. पहली सितंबर को उस ने बाइक बांधने वाली डोरी निकाली और पलंग पर बैठी मां के पीछे से आ कर उन के गले में डोरी लपेट कर कस दी. मिथिलेश छटपटाईं मगर अपना गला नहीं छुड़ा पाईं. कुछ ही देर में वह बेसुध हो कर एक ओर लुढ़क गईं. क्षितिज ने तुरंत मां का सिर अपनी गोद में रख कर उन का मुंह दबा लिया. चंद सेकेंड में मिथिलेश के प्राणपखेरू उड़ गए.

मां को मारने के बाद क्षितिज ने भागने या बचने की कोई कोशिश नहीं की, बल्कि वह आत्महत्या के उपाय सोचने लगा. मां के सिवा उस का कोई भी नहीं था. दरअसल, वह खुद मरना चाहता था मगर मां को दुनिया में अकेला छोड़ कर नहीं जाना चाहता था. अपने 77 पेज के सुसाइड नोट में क्षितिज ने लिखा, ‘2 साल से मरना चाह रहा था. मैं मरने से पहले अपनी मां को उस दुख से आजाद करना चाहता हूं. हर इतवार को मां सत्संग में जाती थीं. इस बार भी (पिछले हफ्ते) मां जब आईं, थोड़ी हंसी भी हुई थी. मां की आंखों में जाला आ गया है, लगता है मोतियाबिंद है. अब तो मैं मर जाना चाहता हूं. गुरुवार है आज. बाइक की डोरी से मां का गला इसलिए घोटा ताकि मां को मरने से पीड़ा न हो.’

मां का गला घोटने के बाद क्षितिज ने रजिस्टर उठा लिया और लिखा, ‘जैसे ही मैं ने मां के गले में डोरी कसी, मां 4 से 5 सेकेंड में निढाल हो कर गिर गईं. मुझे पता था दिमाग में औक्सीजन नहीं पहुंचने पर मौत हो जाती है. मां के गिरते ही मैं ने उन का सिर गोद में रख लिया. 8-10 मिनट तक गला दबा कर रखा. मैं मुंह दबा कर रोए जा रहा था. गुरुवार दिन भर और पूरी रात रोता रहा हूं. मुझे पापा की बहुत याद आ रही है. मरने के बाद भी मां की आंखें खुली थीं. मैं ने बंद करने की कोशिश की, मगर हो न सकीं.

‘शुक्रवार है आज. मां के शव को देखा नहीं जा रहा. मैं ने अपनी मां के चेहरे को गंगाजल से नहलाया है. उन के पास बैठ कर भगवत गीता का 18वां अध्याय पढ़ा. पूरी भगवत गीता नहीं पढ़ सका. मैं ने फिर गीता मां के सीने पर रख दी.’

मां की हत्या करने के बाद क्षितिज खुद को मारने के रास्ते ढूंढने लगा. वह मां के शव को कमरे में बंद कर के बाजार गया और एक इलैक्ट्रिक कटर खरीद कर लाया. कई दुकानें तलाशने के बाद आखिरकार एक दुकान पर उसे कटर और ब्लेड मिल गया. घर आ कर उस ने सब से पहले अपनी मृत मां के गले पर कटर चलाया. ऐसा शायद उस ने ट्रायल के तौर पर किया था. ताकि जब खुद की गरदन उड़ानी हो तो कटर ठीक से चला सके शायद इसलिए.

उस ने लिखा, ‘पहले मैं ने पिस्टल खरीदने की कोशिश की. नहीं मिली. फिर इलैक्ट्रिक कटर का विचार आया है. इलैक्ट्रिक कटर ले कर रात को घर लौटा था. मां के शव के पास खूब रोया हूं.’

उस ने रजिस्टर में आगे लिखा, ‘मां की मौत को आज 71 घंटे हो चुके हैं. बदबू आने लगी है. मां की गरदन कटर से काट दी है. शरीर से अलग नहीं की है.

‘शुक्रवार शाम से शव में बदबू आने लगी थी. मां के शव को बाथरूम में घसीट कर ले गया. दरवाजा बंद कर दिया है ताकि बदबू न आए. मैं बस सुसाइड नोट पूरा करना चाहता हूं. बदबू घर में भर चुकी है. अब बारी है मेरे सुसाइड करने की.’

मरने से पहले क्षितिज अपने जीवन के एकएक पल को जैसे उस रजिस्टर में कैद कर देना चाहता था. कभी मुंह पर कपड़ा रख कर तो कभी अगरबत्ती सुलगा कर वह किसी तरह बदबू से बचता हुआ लगातार लिखे ही जा रहा था.

‘आज शनिवार है. 3 दिन से खाली पेट हूं. कुछ खाया ही नहीं. मुझे याद आया रसोई में मैं ने गर्म पानी पीने को रखा है. कमरे में बदबू नहीं रुक रही. इस से मेरी भी तबीयत बिगड़ने लगी है. मैं ने पेंसिल के बुरादे को जलाया है. धूपबत्ती जलाई है. घर में एक जायफल रखा था, उसे भी जलाया है. सारा डियो भी छिड़क दिया. फिर भी बदबू नहीं रुक रही है. लेकिन मैं मास्क लगा कर सुसाइड नोट पूरा करूंगा.’

इस बीच क्षितिज के घर पर कई लोग आए. उन्होंने दरवाजे की घंटी बजाई, लेकिन जब दरवाजा नहीं खुला तो वापस चले गए. क्षितिज की मां मिथिलेश हर इतवार पड़ोस में रहने वाली एक सहेली के साथ सत्संग जाती थी. मगर उस दिन जब वह नहीं आई तो उन की सहेली ने कई फोन मिथिलेश के फोन पर किए. फोन नहीं उठा तो उन्होंने क्षितिज का फोन मिलाया. 2-3 घंटियां बजने के बाद आखिरकार क्षितिज ने फोन उठा लिया. उधर से आवाज आई, ‘आज मिथिलेश सत्संग में नहीं आई. फोन भी नहीं उठा रही है. मेरी जरा उस से बात करा दो.’

क्षितिज पहले तो घबरा गया, लेकिन फिर कड़ाई से बोला, ‘मां मर चुकी हैं. 4 दिन पहले मैं ने उन्हें मार दिया. अब मैं भी मरने की तैयारी कर रहा हूं.’

मिथिलेश की सहेली ने तुरंत फोन काट दिया. शायद वह क्षितिज की बात सुन कर डर गई. उस ने यह बात किसी को नहीं बताई. अगर वह उसी वक्त शोर मचा कर पड़ोसियों को इकट्ठा कर लेती और अपनी सहेली का घर खुलवा लेती या पुलिस को फोन कर देती तो शायद क्षितिज पुलिस को जीवित मिल जाता. लेकिन दूसरे के पचड़े में कौन पड़े, यह सोच उस महिला पर हावी हो गई और वह चुप मार गई. फिर उस ने आगे लिखा, ‘आज रविवार है. इस समय दोपहर के 2 बज रहे हैं. 3 दिन से प्रौपर्टी डीलर फ्लोर किराए पर दिखाने के लिए 3 बार किराएदारों के साथ आ चुका है. मैं ने दरवाजा नहीं खोला. आज हर हालत में नोट पूरा कर लूंगा. यह सब देखना बहुत डरावना लगता है.

‘पापा के जाने के बाद मां के जीजा ने हमारी पिता की तरह देखभाल की. इसलिए मैं घोषणा करता हूं कि मेरे मरने के बाद मेरी बाइक उन के नाम होगी. मेरी इच्छा है कि मां का अंतिम संस्कार मेरी मौसी करें.’

सुसाइड नोट पूरा करने के बाद क्षितिज ने बाथरूम में जा कर मां के शव पर नजर डाली. बदबू के मारे वह उस के पास नहीं बैठा. अब वह जल्द से जल्द खुद को खत्म कर लेना चाहता था. उस ने बाथरूम में रखी दोनों बाल्टियों में पानी भरा और उन्हें अपने बैडरूम में ले आया. उस ने इलैक्ट्रिक कटर को स्विच बोर्ड में लगाया. चला कर देखा और पलंग पर रख दिया. इस के बाद उस ने पानी भरी बाल्टियों से अपने दोनों पैरों के अंगूठे बांध लिए ताकि जब वह इलैक्ट्रिक कटर अपने गले पर चलाए और दर्द से छटपटाए तो बैड से नीचे न गिरे.

शायद उसे इस बात का अंदेशा था कि कहीं ऐसा न हो कि छटपटाहट के कारण गला पूरा न कट पाए या कटर उस के हाथों से छूट जाए. ऐसे में जो पीड़ा होगी, वह असहनीय होगी. इसलिए वह पूरी तैयारी कर के बिस्तर पर लेटा. इस केस के जांच अधिकारी इंसपेक्टर राम प्रताप सिंह भी कहते हैं कि पैरों को बाल्टी से बांधने के पीछे क्षितिज का मकसद रहा होगा कि मौत के समय छटपटाहट हो तो पैर बंधे रहें. खुद को मारने के लिए इतनी हिम्मत जुटाना यह साबित करता है कि अब क्षितिज किसी भी कीमत पर इस दुनिया में नहीं रहना चाहता था. वह अपनी मां से बहुत प्रेम करता था और उन के बगैर अपने जीवन की कल्पना वह नहीं कर सका था.

बुद्ध विहार थाने में इस घटना की एफआईआर हत्या की धाराओं में दर्ज हुई है. हालांकि मरने वाला और मारने वाला दोनों ही नहीं हैं, मगर पुलिस को तो अपनी जांच करनी ही है. दोनों के शवों को पोस्टमार्टम के बाद मिथिलेश की बहन और जीजा के सुपुर्द कर दिया गया, जिन्होंने उन का अंतिम संस्कार किया. मिथिलेश के घर को पुलिस ने फिलहाल सील कर दिया है. डिप्रेशन एक खतरनाक बीमारी है. इस का शिकार व्यक्ति आम व्यक्ति की तरह ही नजर आता है. इस से ग्रसित व्यक्ति को कई बार स्वयं को भी इस का पता नहीं चल पाता. बाहर के लोग तो समझ ही नहीं पाते कि उस की मानसिक हालत कैसी है और वह कब क्या कदम उठा ले, लेकिन साथ रहने वाले उस के बदलते व्यवहार को पकड़ सकते हैं और बातचीत के जरिए उस की मानसिक स्थिति का पता लगा सकते हैं.

यदि समय रहते इस का इलाज हो जाए तो इस के दुष्परिणामों को कम किया जा सकता है तथा संपूर्ण मुक्ति भी पाई जा सकती है. इस के 2 मुख्य परिणाम भयावह हैं— एक तो आत्महत्या जो हम आए दिन अखबारों और मीडिया के माध्यम से देखसुन रहे हैं, दूसरा है मानसिक संतुलन खो देना यानी पागलपन. जब दिमाग दबाव को झेल नहीं पाता तो यही स्थिति आती है. अन्य शारीरिक जटिलताएं और बीमारियां भी शरीर में इस अवस्था के कारण पैदा हो सकती हैं जो अनगिनत हैं. आज के समय में इस के मुख्य कारणों में से एक है करीबी लोगों से निकटता का अभाव.

लोग एक घर में रहते हुए भी एकदूसरे से कोसों दूर हो गए हैं. जरूरत से ज्यादा मोबाइल या आभासी दुनिया में डूबे रहना भी इस का कारण और लक्षण दोनों हो सकते हैं. आज के समय में भागमभाग ज्यादा है, भावनात्मक जुड़ाव मंद पड़ गए हैं, वे चाहे मातापिता के बच्चों से हों या बच्चों के उन से या अन्य परिवारजनों, रिश्तेदारों के परस्पर हों. मित्रता भी स्वार्थपरायण हो रही है. आसपड़ोस से बातचीत निजता में खलल की परिभाषा में हो गया है. पुस्तकें पढ़ने और सृजनात्मक कार्यों में आम लोगों की रुचि कम हुई है. कला और संस्कृति से बहुत कम लोग जुड़े हैं. सेवा, देखभाल, आत्मीयता सब घरपरिवारों से गायब सा दिख रहा है. ईर्ष्या और द्वेष संतोष और प्रसन्नता पर भारी पड़ रहे हैं. अकेलापन बढ़ रहा है. काफी लोग परिवार की खिचखिच की वजह से अलग व अकेले भी रहने लगे हैं.

व्यावसायिक कारणों से भी बहुत लोग अकेले रहते हैं तथा व्यावसायिक जीवन के दबाव से भी परेशान रहते हैं. विद्यार्थी और युवा वर्ग अनिश्चितताओं के चलते घर या सामाजिक दबाव के कारण भी अवसादग्रस्त हो रहे हैं. विचलित करने वाली खबरें, महामारी में डर का माहौल आदि आग में घी का काम करता है. दिखावे का जीवन और अनावश्यक स्पर्धा का माहौल तन और मन दोनों को भटकाए रखता है.

यह सच है कि ऊपर से सामान्य सी लगने वाली अवसाद की इस समस्या ने बहुत नुकसान किया है, परंतु इस का मतलब यह भी नहीं कि यह लाइलाज है. इस में घर से ले कर समाज के लिए यह एक जिम्मेदारी का काम हो जाए तो क्षितिज और मिथिलेश जैसे अनेक जीवन बचाए जा सकते हैं.