लेस्बियन मां ने की बेटे की हत्या – भाग 2

पूछताछ में पंकज शर्मा के मकान से 5 मकान दूर रहने वाले नीतीश आनंद ने बताया कि जब उन के घर से बच्चे के चीखने चिल्लाने की आवाजें आईं तो वह दौड़ेदौड़े घटनास्थल पर पहुंचे. उन्होंने देखा कि बच्चे के सिर पर गहरी चोट लगी थी. उस के पूरे शरीर पर चाकू से गोदे जाने के निशान थे. खून से लथपथ वह तड़प रहा था. इस से पहले कि वह दूसरे की मदद से उसे ले कर अस्पताल जा पाते, उस ने दम तोड़ दिया. इसी बीच उस के मम्मीपापा को सूचित किया जा चुका था.

सीसीटीवी फुटेज से मिले सुराग

फिर सवाल था कि आखिर कौन हो सकता है, किस ने अपनी खुन्नस और अपनी दुश्मनी मासूम बच्चे से निकाली? इन्हीं सवालों के सहारे पुलिस मौके से सुराग और सबूतों को बटोरने में जुट गई. पुलिस ने बच्चे के बारे में जानकारी इकट्ठा की. उस की मां से कुछ बुनियादी सवालों को ले कर भी पूछताछ की. जैसे वो कहां जाता था, किन बच्चों के साथ खेलता था, किसकिस से मिलता था. हालांकि मामूली सवालों के जवाब से पुलिस को तसल्ली नहीं हुई.

घटनास्थल का पुलिस कमिश्नर अमित पी. जबलगी ने भी दौरा किया और उस के बाद फोरैंसिक टीम ने नमूने इकट्ठे कर जांच के लिए भेज दिए. पूछताछ में पंकज शर्मा ने रोते हुए बताया कि उन के परिवार के साथ इलाके में किसी से भी कोई रंजिश नहीं है.

किंतु कुछ दिन पहले स्कूल में उन के बेटे और एक सीनियर छात्र के बीच किसी बात को ले कर झगड़ा हो गया था. दोनों एक साथ ही स्कूल जाया करते थे. फिर भी उन्हें यह विश्वास नहीं हो पा रहा है कि मामूली झगड़े के लिए कोई कैसे इस तरह से निर्मम तरीके से बच्चे की हत्या कर सकता है?

पुलिस के सामने सब से बड़ा सवाल था कि आखिर बच्चे को ले कर किसी की किसी के साथ क्या दुश्मनी हो सकती है? इस दिशा में तहकीकात शुरू की गई. पूछताछ के लिए सब से पहले उस के मम्मीपापा से कई सवाल किए गए.

इस के अलावा जांचकर्ताओं को पता चला कि शांता अकसर अपने बेटे को पीटती थी. इस का कारण पूछने पर उस ने बताया कि वह पढ़ नहीं पाता था, तब उसे पीटती थी. उस के बयानों की पुष्टि के लिए कुछ पड़ोसियों और स्नेहांशु के हमउम्र दोस्तों से भी पूछताछ की गई.

तमाम पूछताछ और छानबीन करने पर भी पुलिस को जब कोई सुराग नहीं मिला, तब पुलिस की टीम घटना के अगले दिन मौका ए वारदात पर फिर जा पहुंची. वहां सुराग खंगालने लगी. तमाम साइंटिफिक सुरागों, मोबाइल टावर से मिली लोकेशन और फोरैंसिक एक्सपर्ट के जरिए मिले सबूतों के साथसाथ कुछ सीसीटीवी फुटेज भी खंगाले गए.

घर के बाहर लगे सीसीटीवी कैमरे के फुटेज निकाले गए. सीसीटीवी में पुलिस ने देखा कि 2 महिलाएं स्नेहांशु के घर से बाहर निकल रही हैं. इन में से एक स्नेहांशु की मम्मी थी तो दूसरी की पहचान उस की सहेली इशरत परवीन के रूप में हुई. पुलिस ने मृतक के घर वालों के मोबाइल फोन नंबरों की काल डिटेल्स निकलवाई.

पुलिस ने इशरत के बारे में जल्द ही कई जानकारियां जुटा ली थीं. शांता शर्मा से उस का फोन नंबर ले लिया था और उस के फोन की काल डिटेल्स भी निकलवा ली थी. काल डिटेल्स के अनुसार शांता के नंबर से उस की हर रोज काफी समय तक बात होती रहती थी. किंतु घटना के दिन उस की शांता से काफी कम समय के लिए बात हुई थी.

एक और चौंकाने वाली बात थी कि उस रोज उस का मोबाइल करीब 6 घंटे तक बंद रहा. इशरत परवीन के मोबाइल की लोकेशन दोपहर 2 बजे कोलकाता के वाटगंज में दिखी थी. फिर उस का मोबाइल स्विच्ड औफ हो गया था. दोबारा तकरीबन 5-6 घंटे बाद शाम को 8 बजे उस के मोबाइल की टावर लोकेशन कोलकाता के वाटगंज की थी.

मां आई शक के दायरे में

असल में चंद मिनट के लिए ही उस का मोबाइल फोन चालू हुआ था, फिर उसी के नंबर से शांता के मोबाइल नंबर पर बात हुई थी. पुलिस के लिए यही बात चौंकाने वाली थी. यहीं से पुलिस को शक हुआ और दोनों ही उस बच्चे की हत्या के संदेह के दायरे में आ गईं. देर किए बगैर पुलिस हत्या के आरोप में बच्चे की मां शांता शर्मा को पूछताछ के लिए थाने ले आई.

पुलिस ने बच्चे की हत्या और घटना के समय उस के वहां नहीं होने के बारे में कई सवाल किए गए. इस क्रम में यह भी पूछा गया कि उस ने अपने बच्चे को क्यों मारा? कई बार वह अपने ही जवाब में उलझी हुई तो भयभीत भी नजर आई. उस के मनोभाव और जवाब बदलते देख कर पुलिस ने उसे हिरासत में ले लिया. सीधे लौकअप में डाल दिया.

उस के गिरफ्त में आने के बाद सनसनी फैल गई. इस की खबरें लोकल चैनल और सोशल मीडिया पर तेजी से चलने लगीं. पूछताछ के दरम्यान उस के विचलित होने की हरकतों से पुलिस का शक और गहरा हो गया था.

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                                                  शांता और उस की सहेली इशरत

दूसरी तरफ शांता गिरफ्त में आते ही तब कमजोर पड़ गई थी, जब उस के पति के साथ कुछ बातचीत हुई. पति ने उस के कान में क्या कुछ कहा, जो वह एकदम से ढीली पड़ गई. उस ने वह बात पुलिस से भी कही.

दरअसल, पंकज शर्मा ने अपनी पत्नी के गलत आचरण के बारे में बताते हुए कहा था, ”जैसी करनी वैसी भरनी है साहब जी…आदत से लाचार थी. मेरे मना करने पर भी नहीं मानती थी.’’

”क्या उस का किसी के साथ कोई चक्कर था? कोई बौयफ्रेंड था?’’ पुलिस ने पूछा तो इस पर पंकज शर्मा छूटते ही तीखे लहजे में बोले, ”बौयफ्रेंड नहीं सर, उस की गर्लफ्रेंड थी.’’

”तुम्हारा कहना है कि उस का किसी लड़की के साथ ही चक्कर था. मतलब कि वह लेस्बियन है?’’ जांच अधिकारी चौंकते हुए बोला. फिर थोड़ा ठहर कर पूछा, ”लेकिन इस का बच्चे की हत्या से क्या संबंध हो सकता है?’’

”वह मैं नहीं जानता, लेकिन इतना पता है कि वह अपनी सहेली इशरत के साथ घंटों बंद कमरे में अकेले समय गुजारती थी,’’ पंकज बोला.

”यह तुम क्या कह रहे हो अपनी पत्नी के बारे में!’’

”मैं बिलकुल सही कह रहा हूं सर, मैं ने अपनी पत्नी शांता और उस की सहेली इशरत को कई बार समलैंगिक संबंध बनाते हुए पकड़ा है. इस पर उन्हें डांटा भी था. शांता को समझाया भी था कि शादी से पहले तक जो था, सो था अब बच्चा बड़ा हो रहा है. उसे मालूम होगा, तब उस पर बुरा असर पड़ेगा. लेकिन वह नहीं मानती थी.’’ पंकज शर्मा बोले.

”तुम ने उस की सहेली से भी इस संबंध को खत्म करने के बारे में कुछ नहीं कहा?’’ जांच अधिकारी ने सवाल किया.

”मैं ने उसे भी समझाने की कोशिश की थी, लेकिन बाद में बीवी ने चुप रहने को कहा था और हिदायत देती हुई मुझे इशरत की तरफ से धमकी दी कि अगर मैं ने इस बारे में उस से दोबारा बात की तो वह मुझे रेप के मामले में फंसा देगी. फिर मैं डर गया और अपने मुंह पर ताला जड़ लिया.’’ यह कहते हुए पंकज शर्मा ने एक लंबी सांस ली. उन्होंने महसूस किया कि जैसे उन के दिलोदिमाग पर से कोई बोझ उतर गया हो.

पुलिस टीम के सामने एक और नई बात आ गई थी. साथ ही उस के शक की सूई शांता की सहेली इशरत की ओर भी घूम गई थी. उस वक्त रात अधिक हो चुकी थी और वह कोलकाता वाटगंज में रहती थी, जो दूसरे थाना क्षेत्र में था. उसे हिरासत में लेने के लिए उत्तरपाड़ा थाना पुलिस पहले श्रीरामपुर महिला थाने पहुंची और वहां की पुलिस टीम के साथ इशरत परवीन को उस के घर से उठा लाई.

लेस्बियन मां ने की बेटे की हत्या – भाग 1

पुलिस की शुरुआती जांच में हैवानियत का पता चला. 10 वर्षीय स्नेहांशु के सिर को भारी चीज से कुचला गया था. उस के हाथों की  नसें काट दी गई थीं. सब्जी काटने वाली छुरी से उस के शरीर पर अनगिनत जख्म किए गए थे. घटनास्थल पर ही एक टेढ़ी छुरी पड़ी थी. घर में रखे गए सारे सामान सुरक्षित थे. इसे देख कर कोई भी आसानी से समझ सकता था कि घटना लूट को अंजाम देने के लिए नहीं की गई थी.

पुलिस की फोरैंसिक टीम ने लाश और घटनास्थल की जांच के बाद पाया कि हत्यारा बच्चे के साथ बड़ी बेरहमी से पेश आया होगा.

जिस तरह से बच्चे की हत्या की गई थी, उस से यह भी जाहिर हो रहा था कि हो न हो जिस ने भी मारा, उसे इस बच्चे से बेहद नफरत रही होगी. इतना ही नहीं, जख्मों से यह भी साफ पता चला कि कातिल किसी भी सूरत में बच्चे को जीवित बचने नहीं देना चाहता था.

पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता से करीब 17 किलोमीटर दूर हुगली जिला काफी चहलपहल वाले क्षेत्रों में से एक है. यहां के ऐतिहासिक, धार्मिक और कारोबारी महत्त्व वाले घनी आबादी के शहर कोन्नगर के आदर्शनगर मोहल्ले में 18 फरवरी, 2024 की शाम के वक्त अचानक चिल्लपों मच गई थी. कई लोग स्नेहांशु के घर की ओर दौड़ पड़े थे, जबकि कुछ लोग अपनेअपने घरों के दरवाजे पर आ कर कानाफूसी करने लगे थे.

”अरी ओ सोनू की मां, सुना है स्नेहांशु को किसी ने मार दिया? अभी तो एक घंटा पहले इधर साइकल चला रहा था. क्या हुआ उसे? जा… जा कर पता करो तो क्या बात है?’’ एक वृद्धा पड़ोसी महिला से बोली.

”हां चाची, मैं ने भी थोड़ी देर पहले उस के घर से चीखने चिल्लाने की आवाजें सुनी थीं. उस के घर से टीवी की बहुत तेज आवाज आ रही थी, पता नहीं चल पाया कि कोई चीख रहा है या कोई मारपीट वाली फिल्म चल रही है.’’ 10 साल के स्नेहांशु के स्कूल में पढऩे वाले सोनू की मां बोली.

”अरे, मैं तो चली जाती शांता के घर… मेरे घुटने में दर्द है न! ज्यादा चल नहीं सकती मैं. आज सुबह से शांता भी नहीं दिखाई दी. लगता है, उस की सहेली आई हुई है.’’ वृद्धा बोली.

”हां चाची, शांता बहन की सहेली को तो मैं ने दोपहर में ही उस के घर जाते देखा था, लेकिन स्नेहांशु को क्या हुआ. सोनू को भेजती हूं पता करने.’’

”अरे नहीं वह बच्चा है, तू ही चली जा.’’ वृद्धा बोली.

”जी चाची,’’ कहती हुई सोनू की मां स्नेहांशु के घर की ओर जाने लगी.

उसी वक्त उस ओर तेजी से पुलिस की एक गाड़ी भी गुजरी. वृद्धा हैरानी से देखती हुई बुदबुदाई, ”लगता है, मैं ने सही सुना…पता नहीं क्या हो गया इस मोहल्ले में!’’

स्नेहांशु के बारे में बात कर रही औरतों के घर से करीब 200 मीटर की दूरी पर दाईं ओर गली में मुड़ते ही पंकज शर्मा पूरे परिवार के साथ रहते थे. परिवार में पत्नी शांता शर्मा के अलावा उन का 10 साल का बेटा स्नेहांशु था. हां, साथ में प्यारा सा पालतू कुत्ता और पड़ोस में उन के भाई का परिवार भी रहता था.

शांता अपने ससुर ओमप्रकाश शर्मा, सास प्रेमलता शर्मा, देवर प्रभात शर्मा और जय के साथ रहती थी. पति पंकज और बेटा स्नेहांशु भी साथ थे. एक अन्य देवर प्रवीर अपने परिवार के साथ सिलीगुड़ी में रहता था.

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चाकू से गोद कर किस ने की बच्चे की हत्या

पंकज शर्मा के घर में कोहराम मचा हुआ था. वहां उत्तरपारा थाने से आई पुलिस मौजूद थी. शाम होने के चलते गली में लोगों का आवागमन अधिक था. पड़ोसियों के अलावा आतेजाते लोगों की अच्छीखासी भीड़ लग चुकी थी.

घर में हत्या की वारदात हुई थी. हत्या एक बच्चे की थी. मरने वाला चौथी कक्षा में पढऩे वाला 10 साल का स्नेहांशु था. गोलमटोल चेहरे वाला वह बहुत ही प्यारा बच्चा था. घर में उसी बच्चे की रक्तरंजित लाश पड़ी हुई थी. लाश की हालत ऐसी कि वह देखी नहीं जा रही थी. मौजूद लोग उस की मासूमियत और स्वभाव की चर्चा कर रहे थे.

कहें तो लोगों को भरोसा ही नहीं हो पा रहा था कि कुछ समय पहले गली में साइकल चलाने वाला स्नेहांशु अब इस दुनिया में नहीं रहा. सभी के दिमाग में कई सवाल कौंध रहे थे कि आखिर उसे किस ने मारा होगा? क्यों मारा होगा? एक बच्चे से किसी की भला क्या दुश्मनी हो सकती है? क्या वह घर में अकेला था?…लेकिन उन का कुत्ता तो बहुत वफादार था!

पास बैठी मां शांता का रोरोकर बुरा हाल था. इस घटना के बारे में पहली जानकारी स्नेहांशु की हमउम्र चचेरी बहन को तब हुई थी, जब वह किसी काम से उस के घर आई थी.

उस से पुलिस ने शुरुआती पूछताछ की. उस ने बताया कि मृत भाई की हालत देख कर वह काफी डर गई थी. उस वक्त घर में और कोई नहीं था. वह भाग कर सीधे अपने घर आ गई थी. उस ने अपने मम्मीपापा को उस बारे में बताया. उन्होंने ही पहले पुलिस को, फिर पंकज शर्मा को फोन कर दिया था.

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                    स्नेहांशु शर्मा

स्नेहांशु शर्मा एक जानेमाने अंगरेजी माध्यम के स्कूल में पढ़ता था. उस के मम्मीपापा दोनों कामकाजी थे. पंकज शर्मा कोलकाता की एक निजी कंपनी में काम करते थे, जबकि मां शांता शर्मा एक कौस्मेटिक की दुकान में काम करती थी.

इत्तफाक ही था कि वारदात के वक्त दोनों घर से बाहर थे, जबकि घर के दूसरे सदस्य भी बस कुछ देर के लिए बाहर गए थे. इसी बीच कातिल ने घर में घुस कर स्नेहांशु की जान ले ली.

साथ ही पुलिस कुछ ऐसी बातों पर गौर किया, जिन से बच्चे की हत्या का सुराग मिल सकता था. पुलिस ने पाया कि घर का पालतू कुत्ता वारदात के वक्त खामोश था. वहां मौजूद मोहल्ले के अन्य लोगों का कहना था कि वह किसी भी अजनबी को देखते ही भौकने लगता था.

इसी बात को ले कर पुलिस के लिए हैरानी की बात यह थी कि घर में स्नेहांशु  का कत्ल हो गया और कुत्ते को एक बार भी किसी ने भौकते नहीं सुना. उस की मां ने बताया कि वह कुछ समय के लिए बाजार गई थी. पुलिस के गले यह बात नहीं उतरी थी कि बच्चे को छोड़ कर वह अकेली बाजार गई थी, जबकि सामान्य तौर पर ऐसा नहीं होता है.

महत्त्वाकांक्षी आंचल का अंजाम – भाग 3

खूबसूरती और महत्त्वाकांक्षा बनी पतन का कारण

जवानी के साथ बढ़ती खूबसूरती ने आंचल के ख्वाबों की ऊंचाई भी बढ़ा दी. वह ग्लैमर की दुनिया में नाम कमाने के बारे में सोचने लगी. लेकिन इस के लिए न तो उस के पास अनुभव था और न ही ग्लैमर की दुनिया तक पहुंचने का रास्ता उसे पता था. अपने ख्वाबों को पूरा करने के लिए वह आधुनिक परिवेश में ढलती गई और इसी चक्कर में उस के कदम बहक गए.

उन्हीं दिनों वह वन विभाग के एक रेंजर के प्यार में उलझ गई. बाद में आंचल ने उस रेंजर की अश्लील सीडी बना ली. इस सीडी के बहाने वह रेंजर को ब्लैकमेल कर 3 करोड़ रुपए मांगने लगी. रेंजर ने पुलिस में मुकदमा दर्ज करा दिया. इस मामले में सन 2014 में पुलिस ने आंचल को गिरफ्तार किया था. आंचल को करीब ढाई महीने तक जेल में रहना पड़ा. बाद में वह जमानत पर छूट गई.

बेटी की ऐसी गुश्ताखियों से लगे सदमे के कारण पिता राकेश यादव की मौत हो गई. जेल से छूटने के बाद आंचल ज्यादा स्वच्छंद हो गई. उस ने धमतरी शहर छोड़ दिया और वह रायपुर जा कर रहने लगी.

रायपुर में उस की जानपहचान कई रईसजादों से हो गई. जल्दी ही उस की दोस्ती का दायरा रायपुर, भिलाई और दुर्ग के अलावा कई अन्य शहरों के हाईप्रोफाइल लोगों तक फैल गया. वह रायपुर में होने वाली हाईप्रोफाइल नाइट पार्टियों की शान बन गई.

रईसजादों से दोस्ती हुई तो आंचल ने रायपुर की फ्लावर वैली में किराए का एक बंगला ले लिया. साथ ही उस ने लग्जरी कार भी ले ली.

वह आधुनिक तौरतरीकों और शानोशौकत से ग्लैमरस लाइफ जीने लगी. कभीकभी वह धमतरी भी आ जाती थी. साथ ही कभी उस की मां या भाई भी रायपुर आ जाते थे. इस बीच भाई सिद्धार्थ ने धमतरी में किराए पर टैक्सी चलाने का काम शुरू कर दिया था.

आंचल भले ही रायपुर में रहती थी, लेकिन उस की स्वच्छंदता और चालचलन के किस्से धमतरी में रह रहे भाई सिद्धार्थ और मां ममता के कानों तक पहुंच जाते थे. उन्हें मौडर्न लाइफ स्टाइल के नाम पर आंचल का अश्लीलता बिखेरने वाले छोटेछोटे कपड़े पहन कर पार्टियों में शामिल होना और शराब पीना अच्छा नहीं लगता था. इस से उन के परिवार की बदनामी हो रही थी.

आंचल के कारण सिद्धार्थ और ममता को लोगों के ताने सुनने पड़ते थे. बदनामी की वजह से सिद्धार्थ की शादी भी नहीं हो रही थी. इसे ले कर आंचल और सिद्धार्थ में अकसर विवाद होता रहता था. आंचल और सिद्धार्थ के बीच पिता की संपत्ति का भी विवाद था.

आंचल ने 3 डौगी पाल रखे थे. इन में से एक डौगी का नाम उस ने अपने छोटे भाई सिद्धार्थ उर्फ जिमी के नाम पर जिमी रखा हुआ था. कई बार आंचल अपने भाई को जलील करने के लिए उस के टुकड़ों पर पलने वाला कुत्ता तक कह देती थी. बेटी के रहने सहने के ढंग और भाई के साथ उस के व्यवहार से मां भी परेशान थी.

गुस्से में उबला खून बना खतरनाक

25 मार्च को आंचल रायपुर से पेशी के सिलसिले में धमतरी आई थी. वह अपनी कार से अपने 3 पालतू कुत्ते भी लाई थी. शाम करीब 7 बजे अपनी काले रंग की कार से वह घर पहुंची. थोड़ी देर बाद उस का भाई सिद्धार्थ से पुरानी बातों को ले कर विवाद हो गया.

इस पर आंचल ने भाई से कहा कि तुम मेरी कमाई पर पल रहे हो. तुम्हारी औकात घर के पालतू कुत्ते जिमी जैसी है. यह सुन कर सिद्धार्थ को गुस्सा आ गया. उस ने आंचल को 2 तमाचे जड़ दिए.

चांटे खाने से तिलमिलाई आंचल ने अपने बैग से चाकू निकाला और सिद्धार्थ पर हमला कर दिया. इस से सिद्धार्थ के हाथ पर जख्म हो गया और खून रिसने लगा. खून बहता देख कर सिद्धार्थ अपना आपा खो बैठा.

उस ने आंचल से चाकू छीन लिया और उसी से आंचल के पेट पर कई वार किए. फिर उस ने तब तक उस पर गला दबाए रखा जब तक कि उस के प्राण नहीं निकल गए.

इस घटना के वक्त आंचल की मां ममता घर में ही थी. वह बाथरूम में काम कर रही थी. ममता बाथरूम से कमरे में आई तो आंचल फर्श पर पड़ी थी उस के पेट से खून बह रहा था और सांसें थम चुकी थीं. सिद्धार्थ ने मां को सारी बात बता दी. मां भी आंचल की हरकतों और तानों से त्रस्त थी. इसलिए वह बेटे का साथ देने को तैयार हो गई. आखिर मांबेटे ने मिल कर आंचल का शव ठिकाने लगाने की योजना बनाई.

आंचल का शव घर में पड़ा छोड़ कर सिद्धार्थ उस का मोबाइल ले कर बाइक से मकई चौक गया. वहां उस ने पान खाया, फिर म्युनिसिपल स्कूल के पास आ कर आंचल का मोबाइल स्विच औफ कर दिया. इस के बाद सिद्धार्थ घर लौट आया.

सिद्धार्थ ने मां की मदद से आंचल की कार की डिक्की में उस की लाश रखी. फिर वह पुलिस और सीसीटीवी कैमरों से बचने के लिए कार ले कर जिला अस्पताल के बगल से जाने वाली पतली गली में हो कर म्युनिसिपल स्कूल के पास पहुंचा.

वहां से वह बस्तर रोड पर निकल गया. गुरुर और कनेरी होते हुए वह गंगरेल नहर पर पहुंच गया. नहर पर पहुंच कर उस ने डिक्की से आंचल की लाश कार से निकाली. नहर के किनारे ले जा कर उस ने लाश को रस्सी के सहारे एक भारी पत्थर से बांधा और लाश नहर में लुढ़का दी.

नहर में आंचल का शव फेंकने के बाद सिद्धार्थ ने उस की घड़ी, मोबाइल फोन, सोने का ब्रेसलेट आदि चीजें वालेदगहन के पास फेंक दीं.

घर वापस लौट कर सिद्धार्थ ने आंचल की कार में लगे खून के धब्बों को साफ किया. इस से पहले मां ने कमरे में फर्श पर फैले खून को साफ कर दिया था. आंचल की लाश ठिकाने लगाने के बाद मांबेटे ने पुलिस को बताने के लिए झूठी कहानी रच ली.

दूसरे दिन नहर में आंचल का शव मिलने और शिनाख्त होने के बाद वे पुलिस को यही बताते रहे कि 25 मार्च की रात 9 बजे आंचल जब घर आई तो उस के मोबाइल पर काल आ गई थी. इस के बाद वह काल करने वाले को अपशब्द कहते हुए बाहर चली गई और फिर वापस नहीं लौटी.

पूछताछ के दौरान पुलिस को सिद्धार्थ की कलाई पर कटे का निशान नजर आया. कलाई में कट का निशान लगने के बारे में सिद्घार्थ और उस की मां ने अलगअलग बातें बताईं. इलाज कराने की बात पर भी दोनों ने अलगअलग अस्पतालों के नाम बताए. इस से पुलिस का शक मांबेटे पर गहरा गया.

छिप न सका अपराध

पुलिस ने आंचल की कार की तलाशी ली तो उस में खून के निशान मिले. इस के अलावा सीसीटीवी कैमरे खंगालने पर भगवती अस्पताल के पास से रात करीब 9 बजे आंचल की कार जाती हुई दिखाई दी. आंचल की कार में सिद्धार्थ के फिंगरप्रिंट भी मिल गए.

कई ठोस सबूत मिलने के बाद पुलिस ने जब सिद्धार्थ को हिरासत में ले कर पूछताछ की तो वह जल्दी ही टूट गया. इस के बाद उस ने आंचल की हत्या की सारी कहानी पुलिस को बता दी.

पुलिस ने सिद्धार्थ के बयानों के आधार पर उस की मां ममता यादव को भी गिरफ्तार कर लिया. सिद्धार्थ की निशानदेही पर आंचल की घड़ी, मोबाइल फोन ब्रैसलेट आदि बरामद हो गए. वह चाकू भी बरामद हो गया, जिस से आंचल की हत्या की गई थी.

यह विडंबना रही कि ग्लैमरस जिंदगी जीने की तमन्ना में आधुनिकता का लबादा ओढ़ कर स्वच्छंद उड़ान भरने वाली आंचल न तो अपनी जिंदगी जी सकी और ना ही अपने परिवार को सुकून से रहने दिया. उस के जिंदगी जीने के तौरतरीकों से हंसता खेलता परिवार बिखर गया. आंचल के खून से हाथ रंग कर  भाई और मां जेल पहुंच गए.

गर्लफ्रेंड के लिए विमान का अपहरण

महत्त्वाकांक्षी आंचल का अंजाम – भाग 2

आंचल के संबंध हाईप्रोफाइल लोगों से होेने और एक बार पहले ब्लैकमेलिंग के चक्कर में जेल जाने से पुलिस ने अनुमान लगाया कि यह हत्या योजनाबद्ध तरीके से की गई है. इसलिए पुलिस ने आंचल के संपर्क वाले लोगों को जांच के दायरे में लिया. साथ ही धमतरी में लगे सीसीटीवी कैमरों के फुटेज खंगालने का काम भी शुरू किया. पुलिस ने आंचल का मोबाइल तलाशने और उस की लोकेशन का पता लगाने की भी कोशिश की. लेकिन कुछ पता नहीं चला.

आंचल की हत्या का मामला हाईप्रोफाइल होने के कारण दुर्ग रेंज के आईजी हिमांशु गुप्ता 27 मार्च को थाना गुरुर पहुंचे. उन्होंने इस मामले में पुलिस अधिकारियों से आवश्यक जानकारी ली और उन्हें दिशानिर्देश दिए. आईजी ने धमतरी के एसपी बालाजी राव को भी इस मामले में बालोद पुलिस का सहयोग करने को कहा.

आंचल के धमतरी और रायपुर में रहने और कई शहरों के रईसजादों से संपर्क होने की वजह से जांच कई नजरिए से होनी जरूरी थी. इस के लिए पुलिस की 5 अलगअलग टीमें बनाई गईं. इन टीमों ने अलगअलग लोगों को ध्यान में रख कर जांच शुरू की. इन में एक कोण पैसे और ब्लैकमेलिंग का भी था.

आंचल ने रायपुर के वीआईपी रोड स्थित फ्लावर वैली में करीब 35 हजार रुपए महीना किराए पर बंगला ले रखा था. 28 मार्च को पुलिस ने आंचल के इस बंगले की तलाशी ली. तलाशी में पुलिस को सीडी, लैपटौप, पैनड्राइव, वन विभाग के अफसरों के नाम लिखे कुछ दस्तावेज आदि मिले.

पुलिस ने इन की जांच पड़ताल की. लेकिन कहीं से भी आंचल की हत्या का कोई क्लू नहीं मिला. पुलिस ने आंचल की फ्रैंड्स से भी पूछताछ कर के हत्या का कारण जानने का प्रयास  किया, लेकिन ऐसी कोई जानकारी नहीं मिली, जिस से इस मामले में उम्मीद की कोई किरण नजर आती.

पुलिस की जांच का फोकस आंचल के दोस्तों, हाईप्रोफाइल लोगों और उस के घर वालों पर था. पुलिस ने कुछ बिंदुओं पर जांच शुरू की. ऐसा कर के पुलिस यह पता लगाने की कोशिश कर रही थी कि आंचल कब और किस समय कहां जाती थी और किन लोगों के ज्यादा संपर्क में थी.

अपने महंगे शौक पूरे करने और ग्लैमरस जिंदगी जीने के लिए आंचल के पास आमदनी के क्या स्रोत थे, यह भी जानने की कोशिश की गई. यह भी पता लगाया गया कि 25 मार्च को दिन भर उस की किनकिन लोगों से मोबाइल पर बात हुई थी. उस दिन वह रायपुर से धमतरी आई तो किनकिन लोगों को इस बात की जानकारी थी और किन लोगों से उस की मुलाकात हुई.

साथ ही यह भी कि रात 9 बजे वह बाइक पर बैठ कर किस के साथ गई थी. इस के अलावा एक पुलिस टीम को सीसीटीवी कैमरे खंगालने और आंचल के मोबाइल की काल डिटेल्स निकलवाने की जिम्मेदारी भी सौंपी गई.

साइबर सेल की मदद से पुलिस ने आंचल के मोबाइल की काल डिटेल्स निकाली. पता चला कि 25 मार्च को आंचल के फोन पर 40 से ज्यादा लोगों के काल आए थे. इन में कई हाईप्रोफाइल लोगों के अलावा रायपुर व भिलाई के रहने वाले उस के दोस्त भी शामिल थे. पुलिस ने इन में से कई लोगों से पूछताछ की.

जांच के लिए कई कोण मिले पर सब बेकार साबित हुए

जांच में पुलिस को यह भी पता चला कि जगदलपुर के एक व्यक्ति ने आंचल के पिता राकेश यादव से 50 लाख रुपए में उन का धमतरी का मकान और जमीन खरीदी थी. बाद में आंचल ने पिता की मानसिक स्थिति खराब होने की बात कह कर इस सौदे से इनकार कर दिया था. इस पर मकान खरीदने वाले ने आंचल के खिलाफ पुलिस में मुकदमा दर्ज कराया था. पुलिस ने जमीन खरीदने वाले शख्स को जांच के दायरे में ले कर पूछताछ की.

जांच में पुलिस को कोलकाता के एक कथित तांत्रिक बाबा से भी आंचल के संपर्कों का पता चला. बाबा आंचल से मिलने रायपुर भी आता था. आंचल इस बाबा के जरिए कोई सिद्धि हासिल कर सफलता की ऊंचाइयों पर पहुंचना चाहती थी.

बाद में इस बाबा से आंचल का मोहभंग हो गया था. बाबा से पीछा छुड़ाने के बाद आंचल को अहसास हुआ कि वह ठगी गई है. आंचल ने अपने करीबी कुछ लोगों को बताया था कि बाबा ने पैसे हड़पने के साथ उस का शोषण भी किया था. हालांकि बाबा के खिलाफ आंचल ने पुलिस में कोई रिपोर्ट दर्ज नहीं कराई थी.

पुलिस ने आंचल के ब्लैकमेलिंग के पुराने मामले को ध्यान में रख कर वन विभाग के अधिकारियों और कर्मचारियों से भी पूछताछ की. लेकिन ऐसी कोई बात सामने नहीं आई, जिस से आंचल के हत्यारों का सुराग मिल पाता.

सभी एंगलों पर चल रही जांचपड़ताल के बीच 27 मार्च की शाम दुर्ग के आईजी हिमांशु गुप्ता और बालोद के एसपी एम.एल. कोटवानी ने धमतरी में आंचल के घर जा कर उस की मां ममता यादव और भाई सिद्धार्थ से पूछताछ की. इस पूछताछ में पुलिस को आंचल की हत्या के बारे में कुछ अहम सुराग मिले. इस के बाद पुलिस ने जांच की दिशा तय कर ली.

आवश्यक तथ्य  जुटाने के बाद पुलिस ने 30 मार्च की शाम आंचल के भाई सिद्धार्थ यादव को हिरासत में ले लिया. उसे थाने ला कर सख्ती से पूछताछ की गई. बाद में उसे आंचल की हत्या के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया. सिद्धार्थ से पूछताछ के आधार पर उस की मां ममता यादव को भी गिरफ्तार  किया गया. मांबेटे से पूछताछ में जो कहानी उभर कर सामने आई. उस का कारण था आंचल की वजह से होने वाली परिवार की बदनामी.

धमतरी के रहने वाले राकेश यादव आबकारी विभाग में निरीक्षक थे. उन का छोटा सा परिवार था. इस परिवार में पत्नी ममता यादव के अलावा बड़ी बेटी थी आंचल और छोटा बेटा था सिद्धार्थ. राकेश यादव ने दोनों बच्चों आंचल और सिद्धार्थ को बड़े लाड़प्यार से पाला. आंचल ने धमतरी के एक इंग्लिश मीडियम स्कूल से 12वीं तक की पढ़ाई करने के बाद ग्रैजुएशन की. इस के बाद उस ने एक निजी बीमा कंपनी में काम करना शुरू कर दिया.

कहा जाता है कि तीखे नाकनक्श वाली आंचल जैसेतैसे जवान होती गई, वैसेवैसे उस की खूबसूरती गजब ढाने लगी. आंचल जब आइने में अपना चेहरा देखती थी तो उसे अपनी खूबसूरती पर रश्क होता. उस की सहेलियां भी उसे हीरोइन कह कर चिढ़ाती थीं. वे उस से कहती थीं कि तू इतनी खूबसूरत है कि फिल्मी हीरोइन भी तेरे आगे पानी भरेंगी.

महत्त्वाकांक्षी आंचल का अंजाम – भाग 1

छत्तीसगढ़ के बालोद जिले में गुरुर थाने से करीब 5-7 किलोमीटर दूर स्थित धानापुरी गांव के कुछ लोग सुबह 8 बजे जब गंगरेल भिलाई नहर में नहाने गए तो वहां उन्होंने एक युवती की लाश तैरती देखी.

ग्रामीणों ने इस की सूचना धानापुरी की सरपंच योगेश्वरी मानिक सिन्हा और गुरुर थाना पुलिस को दी. पुलिस ने वहां पहुंच कर नहर में तैरती लाश को बाहर निकलवाया. लाश किसी युवती की थी, जिस की उम्र करीब 30 साल थी. लाश के हाथपैर और गला रस्सी से बंधा हुआ था. रस्सी को एक भारी पत्थर से बांधा गया था. मृतका के पेट पर चाकू से वार करने के 2 निशान थे. पुलिस जब नहर से लाश निकालने की काररवाई कर रही थी, तब आसपास के काफी ग्रामीण एकत्र हो गए.

पुलिस ने मौके पर मौजूद लोगों से युवती की शिनाख्त कराने के प्रयास किए. लेकिन कोई भी उस युवती को नहीं पहचान सका. युवती चुस्त कुरता और सलवार पहने थी. मृतका की हथेली पर अंग्रेजी में ए. यादव लिखा था और बाएं हाथ पर पंखुड़ी का टैटू बना हुआ था.

इस बीच, बालोद के एसपी एम.एल. कोटवानी भी मौके पर पहुंच गए. निरीक्षण कर उन्होंने अनुमान लगाया कि युवती की हत्या रात को की गई होगी और उस के शव को करीब 10 किलोमीटर के दायरे से ला कर वहां फेंका गया है.

लाश को पत्थर से बांध कर संभवत: इसलिए फेंका गया होगा कि वह पानी के नीचे डूबी रहे. लेकिन गंगरेल नहर में बहाव तेज होने से लाश पत्थर सहित पानी के साथ बह कर धानापुरी की तरफ आ गई.

प्राथमिक काररवाई के बाद पुलिस ने युवती के शव को सरकारी अस्पताल भिजवा दिया. आगे की जांच के लिए सब से पहले लाश की शिनाख्त जरूरी थी, कपड़ों और टैटू से लग रहा था कि युवती किसी खातेपीते परिवार की और बड़े शहर की रहने वाली थी. समझदारी से काम लेते हुए पुलिस ने युवती के शव के फोटो वाट्सएप के जरिए सोशल मीडिया पर डाल दिए.

इस का परिणाम भी जल्दी ही सामने आ गया. कई लोगों ने उस शव की शिनाख्त आंचल यादव के रूप में की. पुलिस को केवल मृतका का नाम पता चला था, बाकी जानकारी नहीं मिली थी. इस पर पुलिस ने आंचल यादव नाम की युवतियों के फेसबुक अकाउंट खंगाले.

इस में आंचल यादव नाम के एक फेसबुक अकाउंट पर लगी फोटो से लाश का हुलिया मेल खा रहा था. आंचल के फेसबुक अकाउंट पर एक ऐसी फोटो भी मिल गई. जिस में उस के हाथ पर पंखुड़ी का टैटू साफ नजर आ रहा था. टैटू का मिलान होने पर यह तय हो गया कि लाश आंचल यादव की ही है.

आंचल की लाश की हुई शिनाख्त

फेसबुक अकाउंट और अन्य सूत्रों से पुलिस को पता चला कि आंचल गुरुर से 5-7 किलोमीटर दूर जिला मुख्यालय धमतरी की विवेकानंद कालोनी की रहने वाली थी. वह धमतरी के अलावा छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में भी रहती थी.

शव की विश्वसनीय शिनाख्त मृतका के घर वाले कर सकते थे. इस के लिए गुरुर थाना पुलिस ने धमतरी सिटी कोतवाली पुलिस से संपर्क किया. धमतरी पुलिस के सहयोग से गुरुर थाना पुलिस का संपर्क आंचल के परिवार से हो गया.

पुलिस की सूचना पर आंचल के भाई सिद्धार्थ ने अस्पताल जा कर शव की शिनाख्त की. शव आंचल यादव का ही था. पुलिस ने पोस्टमार्टम कराने और आवश्यक काररवाई के बाद देर शाम आंचल का शव उस के भाई सिद्धार्थ को सौंप दिया. बालोद थाने में हत्या का मामला पहले ही दर्ज कर लिया गया था.

पुलिस ने आंचल के बारे में जानकारी लेने के लिए उस के परिवार वालों से पूछताछ की. उस की मां ममता यादव ने बताया कि आंचल एक दिन पहले यानी 25 मार्च को रायपुर से अदालत की किसी पेशी के सिलसिले में धमतरी आई थी. उस रात वह करीब 9 बजे अपनी कार से धमतरी में विवेकानंद कालोनी स्थित घर पर पहुंची थी.

घर पहुंचते ही उस के मोबाइल पर एक काल आई. फोन पर बात करने के बाद आंचल घर से चली गई. मां ने उसे रात में जाने से रोका भी था, लेकिन वह नहीं मानी और थोड़ी देर में लौट आने की बात कह कर घर से बाहर निकल गई.

पुलिस ने अपने स्तर पर आंचल यादव के बारे में पता करवाया. पता चला कि ग्लैमरस लाइफ जीने वाली आंचल का धमतरी, भिलाई और रायपुर के अलावा छत्तीसगढ़ व अन्य कई बड़े शहरों के हाई प्रोफाइल लोगों से संपर्क था. वह अकसर रायपुर की पेज थ्री पार्टियों और क्लबों में नजर आती थी. उसे लग्जरी कारों का भी शौक था.

तीखे नाकनक्श वाली आंचल जिस शानोशौकत और आधुनिकता से रहती थी, उस से लोगों का अनुमान था कि वह मौडलिंग करती है और छत्तीसगढ़ की छौलीवुड हीरोइन है. आंचल ने अपने फोटोशूट कराने के लिए पर्सनल फोटोग्राफर रखा हुआ था. हालांकि लोगों ने आंचल को कभी मौडलिंग करते या  किसी फिल्म अथवा एलबम वगैरह में नहीं देखा था, लेकिन उस का रहनसहन और जीवनशैली किसी फिल्मी हीरोइन से कम नहीं थी. इसलिए सभी उसे मौडल या हीरोइन समझते थे.

आंचल रोजाना फेसबुक व सोशल मीडिया पर एक्टिव रहती थी. वह फेसबुक पर रोजाना अपना एक ग्लैमरस फोटो अपलोड करती थी. अपने फेसबुक अकाउंट पर 25 मार्च को शाम 4 बज कर 7 मिनट पर अंतिम बार उस ने एक कुत्ते के साथ वाला फोटो अपलोड किया था. आंचल के फेसबुक पर 22 हजार से ज्यादा फौलोअर थे.

प्रारंभिक जांच पड़ताल में यह बात भी सामने आई कि फरवरी 2014 में वन विभाग के एक रेंजर की अश्लील सीडी बना कर आंचल ने उसे ब्लैकमेल कर 3 करोड़ रुपए मांगे थे. इस मामले में उसे पुलिस ने गिरफ्तार भी किया था. कुछ दिन बाद जेल से छूटने पर आंचल ने अपना गृहनगर धमतरी छोड़ दिया था और रायपुर में अकेली रहने लगी थी. आंचल ने अपनी फेसबुक प्रोफाइल पर खुद को रिलायंस लाइफ इंश्योरेंस कंपनी की एक्जीक्यूटिव सेल्स मैनेजर बताया था.

शौर्ट पोस्टमार्टम रिपोर्ट में आंचल की हत्या की पुष्टि हो गई. उस के पेट में चाकू से वार करने के निशान थे. यह स्पष्ट नहीं हुआ था कि हत्या से पहले उस के साथ दुष्कर्म हुआ था या नहीं. पोस्टमार्टम करने वाले डाक्टर ने रिपोर्ट में लाश के करीब 12 घंटे तक पानी में रहने की बात कही थी.

इस से पुलिस ने अनुमान लगाया कि घर से निकलने के कुछ ही देर बाद आंचल की हत्या कर दी गई होगी. मां ने बताया था कि आंचल के पास मोबाइल था. लेकिन पुलिस को कोई मोबाइल फोन नहीं मिला था.

रहस्य बन गई थी आंचल की हत्या

आंचल के घर वालों ने 27 मार्च को धमतरी में उस की लाश का अंतिम संस्कार कर दिया. आंचल के शव की अंत्येष्टि के बाद पुलिस ने उस के घर वालों से पूछताछ की. इस में वही बात सामने आई कि 25 मार्च की रात 9 बजे आंचल के मोबाइल पर किसी की काल आई थी.

उस के बाद वह अपनी कार घर पर छोड़ कर कहीं चली गई थी. वह किस के साथ गई, इस के बारे में आंचल की मां और भाई ने अनभिज्ञता जताई. मां ने इतना जरूर बताया कि आंचल किसी के साथ बाइक पर बैठ कर गई थी.

प्यार करने की खौफनाक सजा

सुबह करीब साढ़े 5 बजे आगरा के पुलिस नियंत्रण कक्ष को सूचना मिली कि आगरा-ग्वालियर की अपलाइन रेल पर शाहगंज और  सदर बाजार के बीच में एक युवक ने ट्रेन के सामने कूद कर आत्महत्या कर ली है. सूचना शाहगंज और सदर बाजार के बीच होने की मिली थी. यह बात मौके पर जा कर ही पता चल सकती थी कि घटना किस थाने में आती है, इसलिए नियंत्रणकक्ष द्वारा इत्तला शाहगंज व सदर बाजार दोनों थानों को दे दी गई.

खबर मिलने के बाद दोनों थानों की पुलिस के साथसाथ थाना राजकीय रेलवे पुलिस आगरा छावनी की पुलिस टीम भी वहां पहुंच गई. पुलिस को रेलवे लाइनों के बीच एक युवक की लाश 2 टुकड़ों में पड़ी मिली. यह 25 जुलाई, 2014 की बात है.

सब से पहले पुलिस ने यह देखा कि जिस जगह पर लाश पड़ी है, वह क्षेत्र किस थाने में आता है. जांच के बाद यह पता चला कि वह क्षेत्र थाना सदर की सीमा में आता है.

रेलवे लाइनों में लाश पड़ी होने की सूचना पा कर आसपास के गांवों के तमाम लोग वहां पहुंच गए. लोगों ने उस की शिनाख्त करते हुए कहा कि मरने वाला युवक शिवनगर के रहने वाले नत्थूलाल का बेटा मनीष है. लोगों ने जल्द ही मनीष के घर वालों को खबर कर दी तो वे भी रोते बिलखते वहां पहुंच गए. जवान बेटे की मौत पर वे फूटफूट कर रो रहे थे.

सदर बाजार के थानाप्रभारी सुनील कुमार सिंह ने एएसपी डा. रामसुरेश यादव, एसपी सिटी समीर सौरभ व एसएसपी शलभ माथुर को भी घटना की जानकारी दे दी तो वे भी घटनास्थल पर पहुंच गए.

जिस तरीके से वहां लाश पड़ी थी, देख कर पुलिस अधिकारियों को मामला आत्महत्या का नहीं लगा बल्कि ऐसा लग रहा था जैसे उस की हत्या कहीं और कर के लाश ट्रैक पर डाल दी हो ताकि उस की मौत को लोग हादसा या आत्महत्या समझें.

कपड़ों की तलाशी ली तो पैंट और कमीज की जेबें खाली निकलीं. मनीष के घर वालों ने बताया कि उस के पास 2 मोबाइल फोनों के अलावा पर्स में पैसे व वोटर आईडी कार्ड व जेब में छोटी डायरी रहती थी जिस में वह लेबर का हिसाब किताब रखता था. इस से इस बात की पुष्टि हो रही थी कि किसी ने हत्या करने के बाद उस की ये सारी चीजें निकाल ली होंगी ताकि इस की शिनाख्त नहीं हो पाए.

पुलिस ने नत्थूलाल से प्रारंभिक पूछताछ  कर मनीष की लाश का पंचनामा तैयार कर के लाश पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दी और नत्थूलाल की तहरीर पर अज्ञात लोगों के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर के जांच थानाप्रभारी सुनील कुमार ने संभाल ली. एसएसपी शलभ माथुर ने जांच में क्राइम ब्रांच को भी लगा दिया.

थानाप्रभारी ने सब से पहले मनीष के घर वालों से बात कर के यह जानने की कोशिश की कि उस का किसी से कोई झगड़ा या दुश्मनी तो नहीं थी. इस पर नत्थूलाल ने बताया कि मनीष पुताई के काम का ठेकेदार था. वह बहुत शरीफ था. मोहल्ले में वह सभी से हंसता बोलता था.

उन से बात करने के बाद पुलिस को यह लगा कि उस की हत्या के पीछे पुताई के काम से जुड़े किसी ठेकेदार का तो हाथ नहीं है या फिर प्रेमप्रसंग के मामले में किसी ने उस की हत्या कर दी. इसी तरह कई दृष्टिकोणों को ले कर पुलिस चल रही थी.

अगले दिन पुलिस को मनीष की पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी मिल गई. पुलिस को शक हो रहा था, पोस्टमार्टम रिपोर्ट से वह सही साबित हुआ. यानी मनीष ने सुसाइड नहीं किया था, बल्कि उस की हत्या की गई थी. रिपोर्ट में बताया गया कि उस की सभी पसलियां टूटी हुई थीं, उस के दोनों फेफड़े फट गए थे. गुप्तांगों पर भी भारी वस्तु से प्रहार किया गया था. इस के अलावा उस के शरीर पर घाव के अनेक निशान थे.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट से यह बात साफ हो गई कि मनीष की हत्या कहीं और की गई थी और हत्यारे उस से गहरी खुंदक रखते थे तभी तो उन्होंने उसे इतनी बेरहमी से मारा.

मनीष के पास 2 महंगे मोबाइल फोन थे जो गायब थे. पुलिस ने उस के फोन नंबरों की काल डिटेल्स निकलवाई. उस से पता चला कि उन की की अंतिम लोकेशन सोहल्ला बस्ती की थी.

इस बारे में उस के पिता नत्थू सिंह से पूछताछ की. उन्होंने बताया कि सोहल्ला बस्ती में मनीष का कोई खास यारदोस्त तो नहीं रहता. उन्होंने यह जरूर बताया कि मनीष के 2 कारीगर मुन्ना और बंडा इस बस्ती में रहते हैं. वह उन के पास अकसर जाता रहता था.

मनीष की कालडिटेल्स पर नजर डाल रहे एएसपी डा. रामसुरेश यादव को एक ऐसा नंबर नजर आया था जिस से अकसर रात के 12 बजे से ले कर 2 बजे के बीच लगातार बातचीत की जाती थी. जिस नंबर से उस की बात होती थी, बाद में पता चला कि वह नंबर माधवी नाम की किसी लड़की की आईडी पर लिया गया था.

जांच में लड़की का नाम सामने आते ही पुलिस को केस सुलझता दिखाई दिया. क्योंकि मुन्ना और बंडा उस के भाई थे. एसएसपी को जब इस बात से अवगत कराया तो उन्होंने माधवी और उस के भाइयों से पूछताछ करने के निर्देश दिए. एक पुलिस टीम फौरन माधवी के घर दबिश देने निकल गई. लेकिन घर पहुंच कर देखा तो मुख्य दरवाजे पर ताला बंद था. यानी घर के सब लोग गायब थे.

माधवी के पिता भूपाल सिंह, भाई और अन्य लोग कहां गए, इस बारे में पुलिस ने पड़ोसियों से पूछा तो उन्होंने अनभिज्ञता जता दी. पूरे परिवार के गायब होने से पुलिस का शक और गहरा गया.

किसी तरह पुलिस को भूपाल सिंह का मोबाइल नंबर मिल गया. उसे सर्विलांस पर लगाया तो उस की लोकेशन आगरा के नजदीक धौलपुर गांव की मिली. पुलिस टीम वहां रवाना हो गई. फोन की लोकेशन के आधार पर पुलिस ने माधवी, उस के पिता भूपाल सिंह, 3 भाइयों कुंवरपाल सिंह, बंडा और मुन्ना को हिरासत में ले लिया.

थाने ला कर उन सब से मनीष की हत्या के बारे में पूछताछ की तो भूपाल सिंह ने स्वीकार कर लिया कि मनीष की हत्या उस ने ही कराई है. उस ने उस की हत्या की जो कहानी बताई, वह इस प्रकार निकली.

मनीष के पिता और दादा दोनों ही रेलवे कर्मचारी थे. इसलिए उस का जन्म और परवरिश आगरा की रेलवे कालोनी में हुई थी. उस की 3 बहनें और एक छोटा भाई था. पिता नत्थूलाल रेलवे कर्मचारी थे ही, साथ ही मां विमलेश ने भी घर बैठे कमाई का अपना जरिया बना रखा था. वह आगरा कैंट रेलवे स्टेशन पर आनेजाने वाले ट्रेन चालकों व गार्डों के लिए खाने के टिफिन पैक कर के उन तक पहुंचाती थी. इस से उन्हें भी ठीक आमदनी हो जाती थी.

मनीष समय के साथ बड़ा होता चला गया. इंटरमीडिएट करने के बाद वह रेलवे के ठेकेदारों के साथ कामकाज सीखने लगा. फिर रेलवे के एक अफसर की मदद से उसे मकानों की पुताई के छोटेमोटे ठेके मिलने लगे. देखते ही देखते उस ने रेलवे की पूरी कालोनी में रंगाई पुताई का ठेका लेना शुरू कर दिया. वह ईमानदार था इसलिए उस के काम से रेलवे अधिकारी भी खुश रहते थे.

मोटी कमाई होने लगी तो मनीष के हावभाव, रहनसहन, खानपान सब बदल गया. महंगे कपड़े, ब्रांडेड जूते, नईनई बाइक पर घूमना मनीष का जैसे शौक था. 2-3 सालों में उस की आर्थिक स्थिति काफी मजबूत हो गई थी.

वह जिस तरह कमा रहा था, उसी तरह दान आदि भी करता. गांव में गरीब लड़कियों की शादी में वह अपनी हैसियत के अनुसार सहयोग करता था. मोहल्ले में भी वह अपने बड़ों को बहुत सम्मान करता था. इन सब बातों से वह गांव में सब का चहेता बना हुआ था.

करीब 4-5 साल पुरानी बात है. मनीष का कामकाज जोरों पर चल रहा था. उसे रंगाई पुताई के कारीगरों की जरूरत पड़ी तो वह पास की ही बस्ती सोहल्ला पहुंच गया. वहां पता चला कि बंडा और मुन्ना नाम के दोनों भाई यह काम करते हैं.

वह इन दोनों के पास पहुंचा और बातचीत कर के अपने काम पर ले गया. मनीष को दोनों भाइयों का काम पसंद आया तो उन से ही अपने ठेके का काम कराने लगा. वह उन्हें अच्छी मजदूरी देता था इसलिए वे भी मनीष से खुश थे.

धीरेधीरे मनीष का मुन्ना के घर पर भी आनाजाना शुरू हो गया. इसी दौरान मनीष की आंखें मुन्ना की 17-18 साल की बहन माधवी से लड़ गईं. माधवी उन दिनों कक्षा-9 में पढ़ती थी. यह ऐसी उम्र होती है जिस में युवत युवती विपरीतलिंगी को अपना दोस्त बनाने के लिए आतुर रहते हैं. माधवी और मनीष के बीच शुरू हुई बात दोस्ती तक और दोस्ती से प्यार तक पहुंच गई. फिर जल्दी ही उन के बीच शारीरिक संबंध भी कायम हो गए.

इस तरह करीब 4 सालों तक उन के बीच प्यार और रोमांस का खेल चलता रहा. माधवी भी अब इंटरमीडिएट में आ चुकी थी. प्यार के चक्कर में पड़ कर वह अपनी पढ़ाई पर भी ज्यादा ध्यान नहीं दे रही थी, जिस से वह इंटरमीडिएट में एक बार फेल भी हो गई. उस के घर वालों को यह बात पता तक नहीं चली कि उस का मनीष के साथ चक्कर चल रहा है.

माधवी सुबह साइकिल से स्कूल के लिए निकलती लेकिन स्कूल जाने की बजाय वह एक नियत जगह पहुंच जाती. मनीष भी अपनी बाइक से वहां पहुंच जाता. मनीष किसी के यहां उस की साइकिल खड़ी करा देता था. इस के बाद वह मनीष की बाइक पर बैठ कर फुर्र हो जाती.

स्कूल का समय होने से पहले वह वापस साइकिल उठा कर अपने घर चली जाती. उधर मनीष भी अपने कार्यस्थल पर पहुंच जाता. वहां माधवी के भाइयों को पता भी नहीं चल पाता कि उन का ठेकेदार उन की ही बहन के साथ मौजमस्ती कर के आ रहा है.

माधवी के पिता भूपाल सिंह गांव से दूध खरीद कर शहर में बेचते थे. वह बहुत गुस्सैल थे. आए दिन मोहल्ले में छोटीछोटी बातों पर लोगों से झगड़ना आम बात थी. झगड़े में उन के तीनों बेटे भी शरीक  हो जाते थे, जिस से मोहल्ले में एक तरह से भूपाल सिंह की धाक जम गई थी.

लेकिन इतना सब होने के बाद भी मनीष के साथ इस परिवार के संबंध मधुर थे. मुन्ना और बंडा भी मनीष के घर जाने लगे.

मनीष और माधवी एकदूसरे को दिलोजान से चाहते थे. उन्होंने शादी कर के साथसाथ रहने का फैसला कर लिया था. लेकिन उन के सामने समस्या यह थी कि उन की जातियां अलगअलग थीं. दूसरे माधवी के पिता और भाई गुस्सैल स्वभाव के थे इसलिए वे डर रहे थे कि घर वालों के सामने शादी की बात कैसे करें. लेकिन बाद में उन्होंने तय कर लिया कि उन के प्यार के रास्ते में जो भी बाधा आएगी, उस का वह मिल कर मुकाबला करेंगे.

माधवी जब घर पर अकेली होती तो मनीष को फोन कर के घर बुला लेती थी. एक बार की बात है. उस के पिता ड्यूटी गए थे भाई भी अपने काम पर चले गए थे और मां ड्राइवरों के टिफिन पहुंचाने के बाद खेतों पर गई हुई थी. माधवी के लिए प्रेमी के साथ मौजमस्ती करने का अच्छा मौका था. उस ने उसी समय मनीष को फोन कर दिया तो वह माधवी के घर पहुंच गया.

मनीष माधवी के घर तक अपनी बाइक नहीं लाया था वह उसे रेलवे फाटक के पास खड़ी कर आया था. उस समय घर में उन दोनों के अलावा कोई नहीं था इसलिए वे अपनी हसरत पूरी करने लगे. इत्तफाक से उसी समय घर का दरवाजा किसी ने खटखटाया. दरवाजा खटखटाने की आवाज सुनते ही दोनों के होश उड़ गए. उन के जहन से मौजमस्ती का भूत उड़नछू हो गया. वे जल्दीजल्दी कपड़े पहनने लगे.

तभी माधवी का नाम लेते हुए दरवाजा खोलने की आवाज आई. यह आवाज सुनते ही माधवी डर से कांपने लगी क्योंकि वह आवाज उस के पिता की थी. वही उस का नाम ले कर दरवाजा खोलने की आवाज लगा रहे थे.

माधवी पिता के गुस्से से वाकिफ थी. इसलिए उस की समझ में नहीं आ रहा था कि अब क्या किया जाए. कमरे में भी ऐसी कोई जगह नहीं थी जहां मनीष को छिपाया जा सके. दरवाजे के पास जाने के लिए भी उस की हिम्मत नहीं हो रही थी. उधर उस के पिता दरवाजा खोलने के लिए बारबार आवाजें लगा रहे थे.

दरवाजा तो खोलना ही था इसलिए डरते डरते वह दरवाजे तक पहुंची. दरवाजा खुलते ही मनीष वहां से भाग गया. मनीष के भागते ही भूपाल सिंह को माजरा समझते देर नहीं लगी. वह गुस्से से बौखला गया. घर में घुसते ही उस ने बेटी से पूछा कि मनीष यहां क्यों आया था.

डर से कांप रही माधवी उस के सामने मुंह नहीं खोल सकी. तब भूपाल सिंह ने उस की जम कर पिटाई की और सख्त हिदायत दी कि आइंदा वह उस से मिली तो वह दोनों को ही जमीन में जिंदा गाड़ देगा.

शाम को जब भूपाल के तीनों बेटे कुंवर सिंह, मुन्ना व बंडा घर आए तो उस ने उन्हें पूरा वाकया बताया. बेटों ने मनीष की करतूत सुनी तो वे उसी रात उसे जान से मारने उस के घर जाने के लिए तैयार हो गए. लेकिन भूपाल सिंह ने उन्हें गुस्से पर काबू कर ठंडे दिमाग से काम लेने की सलाह दी.

इस के बाद बंडा व मुन्नालाल ने मनीष के साथ काम करना बंद कर दिया था. 15 दिनों बाद माधवी की बोर्ड की परीक्षाएं थीं इसलिए उन्होंने माधवी पर भी पाबंदी लगाते हुए उस का स्कूल जाना बंद करा दिया.

4 महीने बीत गए. माधवी ने सोचा कि घर वाले इस बात को भूल गए होंगे. इसलिए उस ने मनीष से फिर से फोन पर बतियाना शुरू कर दिया. लेकिन अब वह बड़ी सावधानी बरतती थी. लेकिन माधवी की यही सोच गलत निकली. उसे पता नहीं था कि उस के घर वाले मनीष को ठिकाने लगाने के लिए कितनी खौफनाक साजिश रच चुके हैं.

योजना के अनुसार 28 जून, 2014 को सुबह के समय बंडा ने मेज पर रखा माधवी का फोन फर्श पर गिरा कर तोड़ डाला. माधवी को यह पता न था कि वह फोन जानबूझ कर तोड़ा गया है. घंटे भर बाद बंडा उस के फोन को सही कराने की बात कह कर घर से निकला.

इधर भूपाल सिंह ने यह कह कर अपनी पत्नी को मायके भेज दिया कि उस के भाई का फोन आया था कि वहां पर उस की बेटी को देखने वाले आ रहे हैं. पिता के कहने पर मां के साथ माधवी भी अपने मामा के यहां चली गई. जाते समय भूपाल सिंह ने पत्नी से कह दिया था कि मायके में वह माधवी पर नजर रखे.

उन दोनों के घर से निकलते ही बंडा घर लौट आया. उस ने तब तक माधवी का सिम कार्ड निकाल कर अपने फोन में डाल लिया. उस ने माधवी के नंबर से मनीष को एक मैसेज भेज दिया. उस ने मैसेज में लिखा कि आज घर पर कोई नहीं है. रात 8 बजे वह घंटे भर के लिए घर आ जाए.

पे्रमिका का मैसेज पढ़ते ही मनीष का दिल बागबाग हो गया. उस ने माधवी को फोन करना भी चाहा लेकिन उस ने इसलिए फोन नहीं किया क्योंकि माधवी ने उसे मैसेज के अंत में मना कर रखा था कि वह फोन न करे. केवल रात में जरूर आ जाए, ऐसा मौका फिर नहीं मिलेगा.

रात 8 बजे मनीष दबेपांव माधवी से मिलने उस के घर पर पहुंच गया. घर का मुख्य दरवाजा भिड़ा हुआ था. दरवाजा खोल जैसे ही वह सामने वाले कमरे में गया, उसे पीछे से माधवी के भाइयों ने दबोच लिया.

माधवी के भाइयों ने उस का मुंह दबा कर उस के सिर पर चारपाई के पाए से वार कर दिया. जोरदार वार से मनीष बेहोश हो कर गिर पड़ा. उस के गिरते ही उस पर उन्होंने लातघूंसों की बरसात शुरू कर दी. उन्होंने उस के गुप्तांग को पैरों से कुचल दिया. कुछ ही देर में उस की मौत हो गई.

हत्या करने के बाद लाश को ठिकाने भी लगाना था. आपस में सलाह करने के बाद उस के शव को तलवार से नाभि के पास से 2 हिस्सों में काट डाला. करीब 4 घंटे तक मनीष की लाश उसी कमरे में पड़ी रही.

लाश के टुकड़ों से खून निकलना बंद हो गया तो रात करीब 1 बजे जूट की बोरी में दोनों टुकड़े भर लिए. उन्हें रेलवे लाइन पर फेंकने के लिए मुन्ना और बंडा बाइक से निकल गए. हत्या करने के बाद उस की सभी जेबें खाली कर ली गई थीं ताकि पहचान न हो सके. उस के महंगे दोनों मोबाइल स्विच्ड औफ कर के घर पर ही रख लिए.

मुन्ना और बंडा जब लाश ले कर घर से निकल गए तो घर पर मौजूद भूपाल और उस के बेटे कुंवरपाल ने कमरे से खून के निशान आदि साफ किए. इस के बाद उन्होंने हत्या में प्रयुक्त हथियार, मनीष के दोनों मोबाइल आदि को एक मालगाड़ी के डिब्बे में फेंक दिया. वह मालगाड़ी आगरा से कहीं जा रही थी. मनीष की जेब से मिले कागजों और पर्स को भी उन्होंने जला दिया.

मुन्ना और बंडा लाश को सोहल्ला रेलवे फाटक से करीब आधा किलोमीटर दूर आगरा-ग्वालियर रेलवे ट्रैक पर ले गए. बाइक रोक कर ये लोग मनीष के शव को बोरे से निकाल कर मुख्य लाइन पर फेंकना चाह रहे थे तभी उन्हें सड़क पर अपनी ओर कोई वाहन आता दिखाई दिया.

तब तक वे शव को बोरे से निकाल चुके थे. उन्होंने तुरंत लाश के दोनों टुकड़े लाइन पर डाल दिए और बोरी उठा कर वहां से भाग निकले.

दोनों भाइयों ने रास्ते में एक खेत में वह बोरी जला दी और घर आ गए. घर आ कर मुन्ना व बंडा ने खून के निशान वाले कपड़े नहाधो कर बदल लिए. जब उन्होंने शव को पास की ही रेलवे लाइन पर फेंकने की बात अपने पिता को बताई तो भूपाल ने माथा पीट लिया.

वह समझ गया कि लाश पास में ही डालने की वजह से उस की शिनाख्त हो जाएगी और पुलिस उन के घर पहुंच जाएगी. इसलिए सभी लोग घर का ताला लगा कर रात में ही 2 बाइकों पर सवार हो कर वहां से भाग निकले.

घर से भाग कर वे चारों माधवी व उस की मां के पास पहुंचे. वहां पर भूपाल सिंह ने पत्नी को सारा वाकया बताया तो वह भी डर गई. उसे पति व बेटों पर बहुत गुस्सा आया. लेकिन अब होना भी क्या था अब तो बस पुलिस से बचना था.

वे चारों वहां से भाग कर आगरा के पास धौलपुर स्थित एक परिचित के यहां पहुंचे. लेकिन पुलिस के लंबे हाथों से बच नहीं सके. सर्विलांस टीम की मदद से वे पुलिस के जाल में फंस ही गए. हत्या में माधवी का कोई हाथ नहीं था इसलिए उसे पूछताछ के बाद छोड़ दिया.

पूछताछ के बाद सभी हत्यारोपियों को अदालत में पेश कर जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक सभी हत्यारोपी जेल की सलाखों के पीछे थे.

—कथा पुलिस सूत्रों व मनीष के घर वालों के बयानों पर आधारित. माधवी परिवर्तित नाम है.

अंधविश्वास में दी मासूम बच्ची की बलि

खूनी नशा : एक गलती ने खोला दोहरे हत्याकांड का राज

गुरुवार 31 जनवरी को थोड़ी देर पहले बारिश हुई थी, इसलिए ठंड बढ़ गई थी. रात 8 बजते बजते ठंड से ठिठुरता भीमगंज मंडी कुहासे की चादर में लिपट गया था. इस के बावजूद बाजारों की चहलपहल में कोई कमी नहीं आई थी. इलाके में जैन मंदिर, राम मंदिर और गुरुद्वारा होने की वजह से आम दिनों की तरह उस दिन भी लोगों की अच्छीखासी आवाजाही थी.

सर्राफा कारोबारी राजेंद्र विजयवर्गीय का दोमंजिला मकान जैन मंदिर के सामने ही था. उन के परिवार में पिता चांदमल के अलावा 45 वर्षीय पत्नी गायत्री और 18 वर्षीय बेटी पलक थी. स्टेशन रोड पर उन की विजय ज्वैलर्स के नाम से सर्राफे की दुकान थी. राजेंद्र विजयवर्गीय के पिता चांदमल का रोजाना का नियम था कि शाम 7 बजे जब जैन मंदिर में आरती होती थी. वे घर से राम मंदिर जाने के लिए निकल जाते थे. मंदिर से वह स्कूटर से दुकान पर पहुंचते और दुकान बंद करने के बाद घर लौट आते थे, तब तक साढ़े 8 बज जाते थे.

पितापुत्र दोनों अकसर साथ ही घर लौटते थे. उस दिन राजेंद्र कुछ जरूरी काम निपटाने की वजह से दुकान पर ही रुक गए थे. जबकि चांदमल लगभग साढ़े 8 बजे नौकर के साथ घर लौट आए थे. नौकर को बाहर से ही रुखसत कर चादंमल ऊपरी मंजिल स्थित अपने निवास पर पहुंचे. उन्होंने गेट पर लगी कालबेल बजाई.

लेकिन रोजाना फौरन खुल जाने वाले दरवाजे पर कोई हलचल नहीं हुई. जबकि कालबेल की आवाज बाहर तक सुनाई दे रही थी. उन्होंने दरवाजे पर दस्तक देने की कोशिश की तो यह देख कर हैरान रह गए कि दरवाजा अंदर से लौक्ड नहीं था. वह एक ही धक्के में खुल गया. ऐसा पहली बार ही हुआ था.

चांदमल ने बहू गायत्री के कमरे की तरफ बढ़ते हुए आवाज लगाई तो वहीं खड़े रह गए. गायत्री के कमरे के बाहर खून बिखरा पड़ा था. बहू की खामोशी और फर्श पर बिखरे खून ने उन्हें इस कदर डरा दिया कि वे बुरी तरह चीख पड़े.

चांदमल के चिल्लाने की आवाज ग्राउंड फ्लोर पर रहने वाली किराएदार रश्मि ने सुनी तो चौंकी. वह तभी मंडी से सब्जी ले कर लौटी थी. वह हड़बड़ाई सी सीढि़यों की तरफ दौड़ी. बदहवास से खड़े चांदमल ने कमरे में बिखरे खून की तरफ इशारा किया तो रश्मि ने पहले चांदमल को संभाला. फिर गायत्री की तलाश में कमरे की तरफ बढ़ी.

वहां का दृश्य देख कर चांदमल और रश्मि दोनों की आंखें फटी रह गईं. ड्राइंगरूम के फर्श पर गायत्री की खून से लथपथ लाश पड़ी थी. चांदमल को संभालने की कोशिश में रश्मि को थोड़ा आगे पलक पड़ी दिखाई दी. उस के आसपास खून का दरिया सा बना हुआ था. साफ लगता था कि दोनों मर चुकी हैं.

चांदमल ने इस वीभत्स दृश्य को देखा तो उन के रहे सहे होश भी उड़ गए. सन्नाटे में खड़े चांदमल समझ नहीं पा रहे थे कि आखिर ये सब कैसे हो गया. अंतत: उन्होंने जैसेतैसे रश्मि की मदद से खुद को संभाला और मोबाइल से बेटे राजेंद्र को इत्तला दी. इस के बाद उन्होंने रश्मि को फोन दे कर पुलिस को सूचना देने को कहा.

पुलिस को खबर देने के बाद रश्मि ने मोहल्ले के लोगों को आवाज दी. जरा सी देर में पूरा मोहल्ला इकट्ठा हो गया. जैन मंदिर से भीमगंज मंडी पुलिस स्टेशन का फासला बमुश्किल एक किलोमीटर का है. थानाप्रभारी श्रीचंद्र सिंह ने फोन कर के उच्चाधिकारियों को घटना के बारे में बताया.

पुलिस अधिकारी पहुंचे घटनास्थल पर

इस के बाद श्रीचंद्र सिंह पुलिस टीम के साथ 15-20 मिनट में राजेंद्र विजयवर्गीय के मकान पर पहुंच गए. दोहरे हत्याकांड ने कोटा के पुलिस महकमे को हिला दिया था. आईजी विपिन कुमार पांडे, एसपी दीपक भार्गव, एडीएम पंकज ओझा सहित आधा दरजन थानों की पुलिस मौके पर पहुंच गई. डौग स्क्वायड और फोरैंसिक टीम को भी बुला लिया गया. विजयवर्गीय परिवार के घर के बाहर भारी भीड़ जुट गई थी.

पुलिस अधिकारियों ने देखा कि खून तो बैडरूम में फैला था, लेकिन गायत्री और पलक दोनों के शव ड्राइंगरूम में पड़े थे. पुलिस को लगा कि हत्यारों ने मांबेटी दोनों को उन के कमरों में मारा होगा और फिर शवों को घसीटते हुए ड्राइंगरूम में ला कर पटक दिया होगा.

दोनों के कमरों से ड्राइंगरूम तक खिंची खून की लकीर भी इसी ओर इशारा कर रही थी. जिस दरिंदगी से मांबेटी की हत्या की गई थी, उस से लगता था कि दोनों की हत्याएं किसी रंजिश की वजह से गई थीं.

इस बारे में राजेंद्र विजयवर्गीय का कहना था कि हम लोग तो सीधी सच्ची जिंदगी जी रहे थे. दुश्मनी या रंजिश का तो कोई सवाल ही नहीं है. लेकिन एसपी दीपक भार्गव राजेंद्र के जवाब से संतुष्ट नहीं थे. क्योंकि घटनास्थल का वीभत्स दृश्य साफ साफ रंजिश की ओर इशारा कर रहा था. हत्यारों ने किसी वजनी हथियार से दोनों के सिर, गरदन और हाथों पर इतने घातक वार किए थे कि उन का भेजा तक बाहर आ गया था.

मौका मुआयना करने के दौरान पुलिस को बैड पर 2 सरिए पड़े नजर आए. खून सना चाकू बैड के नीचे पड़ा था. चाकू पर लगा खून बता रहा था कि मांबेटी के गले उस चाकू से ही रेते गए होंगे. बैडरूम में रखी अलमारियों के टूटे हुए ताले बता रहे थे कि वारदात को चोरी डकैती के लिए अंजाम दिया गया था.

लेकिन राजेंद्र विजयवर्गीय सदमे की वजह से कुछ भी बताने की स्थिति में नहीं थे. पुलिस ने भी उन पर दबाव नहीं बनाया. एसपी भार्गव का मानना था कि हत्यारे 2 या 2 से ज्यादा रहे होंगे. प्रारंभिक जांच और मौकामुआयना के बाद पुलिस ने दोनों शवों को पोस्टमार्टम के लिए एमबीएस अस्पताल भिजवा दिया.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट में दोनों की मौत हैड इंजरी से होनी बताई गई. गायत्री के सिर पर 5 चोटें थीं, साथ ही सिर में मल्टीपल फ्रैक्चर भी थे. सिर की कई हड्डियां टूट गई थीं. जबकि पलक के सिर में 2 चोटें थीं. इन में एक चोट इतनी घातक थी कि भेजा ही बाहर आ गया था.

हथियार सरियों के रूप में सामने आ चुके थे. गायत्री और पलक दोनों के हाथों पर भी गहरी खरोंचें और चोटें थीं.

मौके पर टूटी हुई चूडि़यों के टुकड़े भी पाए गए थे. इस का मतलब उन्होंने अपने बचाव के लिए बदमाशों से काफी संघर्ष किया था. मांबेटी के नाखूनों में त्वचा और मांस के अंश थे, जो हत्यारों के हो सकते थे. इस का पता लगाने के लिए नेल स्क्रैपिंग का सैंपल भी लिया गया. पुलिस की फोरैंरिक टीम ने भी मौके से फिंगरप्रिंट और फुटप्रिंट उठाए.

विजयवर्गीय के घर से एक सड़क सीधी स्टेशन की तरफ जाती थी और दूसरी हटवाड़े से होते हुए शहर की ओर. यही सड़क शहर के अलावा सैन्य क्षेत्र की तरफ भी जाती थी. यही वजह रही होगी कि हत्यारे बिना किसी की नजर में आए वारदात कर के आसानी से फरार हो गए थे.

नहीं मिल रहा था कोई क्लू

पुलिस यह सोच कर भी चल रही थी कि वारदात को अंजाम देने के लिए हत्यारों ने कम से कम 5-7 दिन तक रैकी की होगी. खोजी कुत्ते भी इसीलिए भटक कर रह गए थे. वारदात को जिस तरह अंजाम दिया गया था, उस से लगता था कि आरोपी विजयवर्गीय परिवार के अच्छे खासे परिचित रहे होंगे.

जिस घर में वारदात हुई, उस का मुख्यद्वार लोहे का था. लेकिन कुंडी ऐसी थी जो अंदर बाहर दोनों तरफ से आसानी से खोली जा सकती थी. ऐसे में घर में किसी के घुसने की खबर लगने का कोई मतलब ही नहीं था. राजेंद्र विजयवर्गीय की पत्नी गायत्री और ससुर चांदमल सामाजिक गतिविधियों से भी जुड़े हुए थे. इसलिए उन के यहां लोग अकसर आतेजाते रहते थे.

राजेंद्र विजयवर्गीय का कहना था कि घर में 5 सीसीटीवी कैमरे लगे हुए थे. जब कोई घर में ऊपर आता था तो गायत्री या पलक कैमरे में देख कर ही दरवाजा खोलती थीं. जाहिर है, इस का मतलब था आने वाले परिचित ही रहे होंगे.

दरअसल पुलिस को सभी कैमरे टूटे हुए मिले थे. उन की हार्डडिस्क भी गायब थी. इस का मतलब हत्यारे घर के चप्पेचप्पे से वाकिफ थे. घर की दोनों तिजोरियों के ताले तोड़े गए थे. मतलब बदमाशों को पता रहा होगा कि घर की दौलत उन्हीं तिजोरियों में है.

पोस्टमार्टम के बाद जब मांबेटी का अंतिम संस्कार किया गया. उन्हें श्रद्धांजलि देने के लिए हजारों लोग एकत्र हुए. व्यापारी संघ के लोगों में इस वारदात को ले कर अच्छाभला रोष था. उन्होंने पुलिस पर दबाव बनाने के लिए धरनेप्रदर्शन की चेतावनी भी दी.

अगले दिन यानी पहली फरवरी को एसपी दीपक भार्गव ने राजेंद्र से घर से चोरी गए सामान की बाबत पूछा तो उन्होंने बताया कि तिजोरियों में करीब एक करोड़ रुपए की नकदी और जेवर गायब हैं. इस का मतलब वारदात को धन के लालच में अंजाम दिया गया था. इस बात को राजेंद्र ने भी स्वीकार किया. इस से पुलिस को तफ्तीश की एक दिशा मिल गई. निस्संदेह इस वारदात में विजयवर्गीय परिवार का कोई करीबी ही शामिल रहा होगा.

10 टीमें जुटीं जांच में

दोहरे हत्याकांड का खुलासा करने के लिए डीजीपी विपिन पांडे के निर्देशन में एसपी दीपक भार्गव ने 10 टीमों का गठन किया. हत्या और लूट के मामले से जुड़े संदिग्ध और आदतन अपराधियों से पूछताछ का काम डीएसपी भंवर सिंह हाड़ा को सौंपा गया. उन की मदद के लिए हर थाने से 10 जवानों की टीम बनाई गई.

सीसीटीवी कैमरों को खंगालने की जिम्मेदारी उद्योगनगर पुलिस इंसपेक्टर विजय शंकर शर्मा और उन की टीम ने संभाली. इस के अलावा मामले से जुड़ी हर सूचना के एकत्रीकरण और पुलिस प्रशासनिक बंदोबस्त का प्रभारी थाना भीमगंज मंडी के इंसपेक्टर श्री चंद्र सिंह को बनाया गया.

पुलिस ने इलाके में वारदात के उस एक घंटे में किए गए सभी मोबाइल काल्स को राडार पर ले लिया. सौ से डेढ़ सौ कैमरों से सीसीटीवी फुटेज भी ली गई.

कैमरे खंगालने के लिए एडीशनल एसपी राजेश मील और प्रशिक्षु आईपीएस अमृता दुहन पूरी मुस्तैदी से लगे रहे. पुलिस की अलगअगल टीमों ने अपराधियों की तलाश में होटलों और धर्मशालाओं को भी खंगाला. एसपी दीपक भार्गव ने तो भीमगंज मंडी थाने में ही पड़ाव डाल दिया. वह पुलिस टीमों से पलपल की जानकारी लेते रहे. इस बीच पुलिस ने पूरी रेंज में हाई अलर्ट जारी कर दिया था. शहर की सीमाओं पर पूरी तरह नाकेबंदी कर दी गई थी ताकि अपराधी शहर छोड़ कर भागना चाहे तो धर लिया जाए.

अंगौछा बना सूत्र

इस दोहरे हत्याकांड की जांच में एक मोड़ शनिवार 2 फरवरी को उस समय आया जब पुलिस को घटनास्थल से सफेद रंग का एक अंगौछा मिला. संभवत: हत्यारे अफरातफरी में अंगौछा छोड़ गए थे.

पुलिस ने अंगौछे की पहचान को ले कर जब राजेंद्र विजयवर्गीय से पूछा, तो वे कुछ नहीं बता सके. अलबत्ता मुखबिरों में से एक ने संदेह जताया कि यह अंगौछा राजेंद्र की दुकान पर मुनीमी करने वाले मस्तराम का हो सकता है.

पुलिस जांच में मस्तराम जैसे सैकड़ों लोग राडार पर थे. रविवार 3 फरवरी की शाम पुलिस को एक मुखबिर से सूचना मिली कि राजेंद्र विजयवर्गीय परिवार का एक पुराना कर्मचारी आजकल जम कर पैसे उड़ा रहा है. उस ने 70 हजार का मोबाइल और महंगे कपड़े खरीदे हैं.

कहावत है कि अपराधी वारदात करने के बाद किसी न किसी बहाने मौकाएवारदात पर जरूर आता है. कई बार यही चूक उस के पकड़े जाने का सबब बनती है. इस मामले में भी ऐसा ही हुआ. 3 फरवरी को गायत्री और  पलक की शोकसभा थी. शोकसभा में मातमपुर्सी के लिए आया एक व्यक्ति फूटफूट कर रोने लगा. वह बारबार कह रहा था, ‘‘यह सब कैसे हो गया?’’

राजेंद्र को दिलासा देने के लिए जब वह उन के पास गया तो उस के मुंह से निकलती शराब की बदबू विजय की नाक तक पहुंच गई. उन्होंने उसे वहां से जबरन हटाने का प्रयास किया लेकिन वह और ज्यादा जोरों से रोने लगा.

शोकसभा में सादे कपड़ों में भीमगंज मंडी थानाप्रभारी श्रीचंद्र सिंह भी मौजूद थे. उन्हें यह सब कुछ अटपटा लगा तो उन्होंने राजेंद्र विजयवर्गीय से पूछा कि वह कौन है. राजेंद्र ने बताया कि उस का नाम मस्तराम मीणा है और वह बूंदी के बड़ा तीरथ गांव का रहने वाला है. उन्होंने यह भी बताया कि मस्तराम उन का बहुत विश्वस्त नौकर था. 3 साल पहले वह उन की दुकान पर मुनीम था.

नतीजतन मस्तराम पुलिस की नजर में चढ़ गया. पुलिस उसे उठा कर थाने ले आई. जब उस से सख्ती से पूछताछ की गई तो पूरी कहानी पता चल गई. पता चला कि इस वारदात को मस्तराम ने अपने एक साथी लोकेश मीणा, जो उसी के गांव का रहने वाला था, के साथ मिल कर अंजाम दिया था.

मस्तराम मीणा और लोकेश मीणा एक ही गांव के रहने वाले थे और दोनों दोस्त थे. बूंदी जिले की केशोराय पाटन तहसील के बड़ा तीरथ गांव के रहने वाले 3 भाइयों के परिवार में 28 साल का मस्तराम अविवाहित था. उस के पिता किसान प्रभुलाल मीणा की 3 साल पहले मौत हो गई थी.

इस के बाद तीनों भाइयों ने पुश्तैनी जमीन 18 लाख में बेच दी थी और रकम का बंटवारा कर लिया था. मस्तराम को बंटवारे में 6 लाख रुपए मिले. उस ने यह रकम अय्याशी में उड़ा दी. मस्तराम ने केशवराय पाटन इंस्टीट्यूट से इलेक्ट्रिशियन ट्रेड में आईटीआई की परीक्षा पास की थी. शराब के नशे में हुड़दंग करने पर वह गांव वालों से कई बार पिट चुका था.

इस वारदात में मस्तराम का सहयोगी रहा लोकेश मीणा 10वीं में फेल होने के बाद से ही आवारागर्दी करने लगा था. उस ने आरसीसी पाइप्स की ठेकेदारी भी की थी. लेकिन झगड़ा फसाद करने के कारण धंधा नहीं चल पाया. केशोराय पाटन थाने में उस के खिलाफ कई मुकदमे दर्ज थे.

कुछ समय पहले वह अपनी भाभी को भी ले कर भाग गया था. तभी से उस के घर वालों ने उस से किनारा कर लिया था. मस्तराम और लोकेश मीणा दोनों सोचते थे कि किसी बड़ी लूट को अंजाम दें और ऐशोआराम की जिंदगी जिएं.

मक्कारी में 2 कत्ल कर डाले

मस्तराम मीणा सर्राफ राजेंद्र विजयवर्गीय की दुकान पर नौकरी कर चुका था. उसे पता था कि घर का कौन सदस्य कब आताजाता है, नकदी जेवर कहां रखे हैं. उस ने लोकेश को अपनी योजना बताई कि एकदो को मारना तो पड़ेगा लेकिन मोटा माल मिलेगा. लोकेश इस के लिए तैयार हो गया.

कह सकते हैं कि इस हत्याकांड का मास्टरमाइंड मस्तराम ही था. पूछताछ में उस ने बताया कि दोनों ने वारदात से पहले दुकान और घर दोनों जगहों की रेकी की. रेकी के बाद वारदात का वक्त शाम के 7 बजे का रखा गया. उस समय राजेंद्र विजयवर्गीय दुकान पर होते थे और उन के पिता चांदमल को राम मंदिर में दर्शन करते हुए दुकान पर पहुंचना होता था.

रात साढ़े 8-9 बजे से पहले दोनों में से कोई नहीं लौटता था. ग्राउंड फ्लोर की किराएदार रश्मि अकेली रहती थी और उस वक्त सब्जी मंडी चली जाती थी. लूट के लिए हत्या करना पहले ही तय था, इसलिए दोनों सरिए और चाकू साथ ले कर आए थे. मांबेटी गायत्री और पलक दोनों उन्हें जानती थीं, इसलिए कालबेल बजाने पर दरवाजा खुलवाने में कोई दिक्कत नहीं थी.

दरवाजा खोलते ही गायत्री सामने नजर आई. दोनों को बैठने को कह कर जैसे ही वह अपने कमरे की तरफ बढ़ी, दोनों ने मौका दिए बगैर सरिए से उन के सिर पर ताबड़तोड़ वार कर दिए. फिर भीतर जा कर पलक का भी यही हाल किया. दोनों में जान न रह जाए, यह सोच कर मस्तराम और केशव ने चाकू से दोनों का गला रेत कर उन की मौत की तसल्ली कर ली.

बाद में दोनों ने मांबेटी की लाशों को घसीट कर ड्राइंगरूम में डाल दिया. मस्तराम को पता था कि जेवर और नकदी गायत्री के कमरे की तिजोरी में रखे होते हैं. मस्तराम और लोकेश अपने साथ बैग ले कर आए थे. तिजोरी तोड़ कर जितनी भी रकम और जेवर मिले, उन्होंने बैग में भरे और वहां से फुरती से निकल गए. बस पकड़ कर दोनों सीधे गांव पहुंचे और गहने व रकम का बड़ा हिस्सा घर में छिपा दिया.

फिर दोनों ने रात में ही बूंदी से रोडवेज की बस पकड़ी और जयपुर चले गए. जयपुर में दोनों बसस्टैंड के पास ही एक होटल में रुके. अगले दिन दोनों ने जम कर खरीदारी की और शराब पी. दोनों ने अपने लिए 70-70 हजार के महंगे मोबाइल फोन, कपड़े और अन्य सामान खरीदा. शनिवार 2 फरवरी को दोनों वापस कोटा आ गए.

मस्तराम को अपने पकड़े जाने का डर नहीं था. फिर भी अपनी इस तसल्ली के लिए कि किसी को उस पर शक न हो, वह शोक जताने का दिखावा करने चला गया. बस उस की यही सोच उसे ले डूबी. राजेंद्र विजयवर्गीय ने पुलिस को बताया कि हत्यारों ने करीब एक करोड़ की लूट की थी.

पुलिस ने दोनों आरोपियों के कब्जे से लूटे गए 37 लाख में से 21.70 लाख रुपए और 2 किलो 26 ग्राम सोना, साढ़े 13 किलो चांदी के जेवर बरामद कर लिए. मस्तराम ने बताया कि गायत्री और पलक जो गहने पहने थी, उन्होंने वे भी उतार लिए थे. सीआई श्रीचंद्र सिंह ने बताया कि आरोपियों के कब्जे से सोने की चेन और कंगन भी बरामद कर लिए गए.

लोकेश ने वारदात करने के बाद 8 लाख रुपए, कंगन और चेन अपने गांव जा कर खेत में गाड़ दिए. लूट की रकम का बंटवारा करने के बाद मस्तराम पाटन के एक गांव में अपने रिश्तेदारों के पास गया था. उस ने उन्हें 8 लाख रुपए यह कह कर रखने को दिए कि रकम जमीन बेच कर मिली है, थोड़े दिन रख लो फिर आ कर ले जाऊंगा.

वारदात खुलने के बाद मस्तराम के रिश्तेदारों ने यह रकम पुलिस को यह कहते हुए सौंप दी कि उन्हें इस घटना के बारे में कोई जानकारी नहीं थी.

इस मामले में भीमगंज मंडी के थानाप्रभारी श्रीचंद सिंह की भूमिका महत्त्वपूर्ण रही. शोकसभा में मस्तराम मीणा के हावभाव उन्हें खटके तो उन्होंने पूरा ध्यान उसी पर लगा दिया. इस कोशिश में उन्हें उस की कलाइयों पर खरोंचों के निशान नजर आए, जिस से उन का शक पुख्ता हो गया. उन्होंने कांस्टेबल शिवराज को उसे फौरन उठाने को कहा.

सीआई श्रीचंद्र सिंह ने बताया कि जयपुर में अच्छीखासी खरीदारी के बाद दोनों हत्यारे वापस होटल नहीं पहुंचे थे. अगले दिन होटल मालिक ने कमरे की सफाई करवाई तो प्लास्टिक की थैली में कपड़े मिले, जिन्हें स्टोर में रखवा दिया गया था. श्रीचंद्र सिंह ने वह थैली भी बरामद कर ली.

इस मामले को केस औफिसर स्कीम में लिया गया है और 15 दिन में कोर्ट में चालान पेश किया जाएगा. इस केस को सुलझाने में एएसपी राकेश मील, उमेश ओझा, प्रशिक्षु आईपीएस अमृता दुहन, डीएसपी भंवर सिंह, राजेश मेश्राम, सीआई महावीर सिंह, मुनींद्र सिंह, मदनलाल और विजय शंकर शर्मा सहित 200 पुलिसकर्मी शामिल रहे.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

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