अदालत में मौजूद सभी लोगों की नजरें नवीन पर जम गईं. सभी उन्हें शक की नजरों से देख रहे थे. नवीन के लिए अब यह मामला मनोज की ही नहीं, अपनी भी इज्जत का सवाल बन गया था.
उस ने रमेश गायकवाड़ को कठघरे में बुला कर जिरह शुरू की, ‘‘क्या यह सही नहीं है कि मनोज सोलकर को इंस्टीटयूट में आते जाते देख कर आप ने खुद नौकरी के लिए औफर दिया था? क्या आप इस वास्तविकता से परिचित नहीं थे कि वह संस्था के संस्थापक सोमनाथ सोलकर का पोता है?’’
‘‘जी हां, इसीलिए तो मैं ने औफर दी थी. किसी छोटे मोटे झगड़े की वजह से दादा पोते एक दूसरे से दूर हो गए थे, इसलिए मैं ने सोचा कि यहां आने पर दोनों कभी मिल सकते हैं. लेकिन वह तो चोर निकला.’’
इस के बाद लंबी सांस ले कर उस ने घटना के बारे में बताना शुरू किया, ‘‘एक दिन मेरे पास आ कर उस ने कहा कि वह शादी कर रहा है. मैं ने उसे मुबारकबाद देने के साथ एक सप्ताह की छुट्टी दे दी. उसी बीच एक जरूरी काम से मैं औफिस से 1-2 मिनट के लिए बाहर जाना पड़ा. जरूरत के लिए कुछ रकम हमारे औफिस की तिजोरी में पड़ी रहती है. मैं वापस आया तो वह काफी घबराया हुआ लग रहा था.
उस समय मैं ने ध्यान नहीं दिया. लेकिन अगले दिन रकम गिनी तो उस में 10 हजार रुपए कम निकले. तब मेरा ध्यान मनोज पर गया. उस की घबराहट से मुझे लगा कि वह रकम उसी ने ली है, इसीलिए वह परेशान था.’’
‘‘तुम ने उसे चोरी में फंसाने के लिए तिजोरी खुली छोड़ी थी. जबकि 10 हजार रुपए तुम ने खुद उसे यह कह कर दिए थे कि संस्थान की परंपरा है कि कर्मचारी की शादी पर रुपए उपहार में देता है.’’
‘‘यह झूठ है,’’ रमेश ने थोड़ी ऊंची आवाज में कहा, ‘‘मनोज हनीमून से वापस आया तो मैं ने उसे बताया कि उस की चोरी पकड़ी जा चुकी है. अपनी हरकत की वजह से वह जेल जा सकता है. लेकिन अगर वह चोरी की गई रकम वापस कर दे तो मैं उस के खिलफ कोई कारर्रवाई नहीं करूंगा. उस ने भी यही बात कह कर बरगलाने की कोशिश की थी, जो आप कह रहे हैं. फिर भी उस ने 10 हजार रुपए भिजवा दिए. अब ऐसे आदमी को कौन नौकरी पर रखेगा, मैं ने भी उसे नौकरी से निकाल दिया.’’
‘‘योर औनर, हकीकत यह थी कि इन लोगों को इस बात का डर सता रहा था कि कहीं दादा और पोते की मुलाकात हो गई और फिर उन में मेलजोल हो गया तो…?’’ नवीन ने कहा, ‘‘लेकिन इस डर का भी कोई न कोई आधार होगा? यह आदमी इंस्टीटयूट में सब से बड़े पद पर आसीन है और यह काला सफेद कुछ भी कर सकता है. मुझे लगता है कि इंस्टीटयूट में जरूर कोई गड़बड़ी हो रही है. इसलिए मैं दरख्वास्त करता हूं कि इंस्टीटयूट के आर्थिक और इंतीजामी मामलों की कायदे से जांच कराई जाए.’’
इस पर इंस्टीटयूट के कानूनी सलाहकार शशांक ठाकरे ने कहा, ‘‘माननीय अदालत को यह बताना जरूरी है कि हर साल इंस्टीटयूट का एकाउंटस सही समय पर आडिट कराया जाता है. इसी के साथ यह भी बता दूं कि पिछले कई सालों से रमेशजी इंस्टीटयूट को कायदे से चला रहे हैं. आज तक इन पर कोई दाग नहीं लगा है. इन का रहन सहन भी अपनी आमदनी के हिसाब से ही है.’’
इस जिरह से इस मुकदमे में जान तो पैदा हो गई थी, लेकिन न्यायाधीश ने यह कहते हुए इंस्टीटयूट के खातों की जांच कराने से मना कर दिया कि वह जरा से संदेह पर इंस्टीटयूट के एकाउंटस की जांच और उस के मामलों में दखल देने की इजाजत नहीं दे सकते.
बहरहाल, नवीन ने कुछ तर्क दे कर अगले दिन सुनवाई के लिए न्यायाधीश को तैयार कर लिया. उन्होंने वादा किया कि कल वह मनोज को अदालत में अवश्य पेश करेंगे. उन की पत्नी अवंतिका को पूरा विश्वास था कि मनोज लोनावाला में अपनी मां के पास गया होगा. अगर वहां नहीं हुआ तो उस की मां को जरूर मालूम होगा कि वह कहां है.
मनोज सचमुच मां के यहां ही था. नवीन और आवंतिका को वहां देख कर वह हैरान रह गया था. पहले तो उस का मन हुआ था कि वह उन से मिले ही न. लेकिन उसे लगा कि एक गलती तो उस ने पहले ही की है. अब उन से मुंह छिपा कर दोबारा गलती करना ठीक नहीं है. वह शर्मिंदा तो था ही, फिर भी मिला.
लेकिन नवीन और अवंतिका उस से जिस तरह मिले थे, उस से उस की सारी झिझक और शर्मिंदगी दूर हो गई थी. उन्हें अंदर ला कर उस ने अपनी मां का परिचय कराया. मां के बालों में भले ही सफेदी झलक रही थी, मगर वह अब भी एक आकर्षक व्यक्तित्व की स्वामिनी थीं. उन का नाम सावित्री सोलकर था.
स्वाति भी आ गई थी. सावित्री अभी तक मनोज के हालात से अनजान थीं. जब नवीन ने उन्हें सारी बात बताई तो लंबी सांस लेते हुए उन्होंने कहा, ‘‘इसे देख कर ही मुझे लग रहा था कि यह मुझ से कुछ छिपा रहा है.’’
इस के बाद नवीन ने मनोज की ओर देखते हुए कहा, ‘‘तुम्हारे चले आने के बावजूद मैं ने तुम्हारे पत्र के आधार पर अदालती काररवाई शुरू करा दी है, क्योंकि मुझे पूरा विश्वास है कि वह पत्र तुम ने अपनी मर्जी से नहीं लिखा था.’’