शेख के चंगुल में फंसी रीना की वतन वापसी

अक्तूबर, 2017 महीने में सोशल मीडिया पर एक ऐसा वीडियो वायरल हो रहा था, जिसे जो  कोई भी देखता था, उस का कलेजा दहल उठता था. वीडियो में एक महिला पंजाब के जिला संगरूर के आम आदमी पार्टी के सांसद भगवंत मान को संबोधित करते हुए गुहार लगा रही थी कि वह बहुत ही गरीब परिवार से है. एक साल पहले वह नौकरी के लिए सऊदी अरब के दावाद्मी शहर आई थी. वह जहां नौकरी करती है, उसे कई कई दिनों तक खाना नहीं दिया जाता. कमरे में बंद कर के बाहर से ताला बंद कर दिया जाता है. उस के साथ बेरहमी से मारपीट करने के साथसाथ अन्य तरह से भी यातनाएं दी जाती हैं.

महिला के कहने के अनुसार, उस का पति है, बच्चे हैं, मां है, जो बहुत बीमार है. उन का औपरेशन होना है. वह अपने घर वालों के बीच आना चाहती है. लेकिन उसे आने नहीं दिया जा रहा है. वीडियो में अपनी दुखभरी कहानी बयान करते हुए वह महिला पंजाब के लड़कों और लड़कियों से अपील कर रही थी कि वे भूल कर भी नौकरी के लिए सऊदी अरब न आएं, क्योंकि यहां न केवल शोषण किया जाता है, बल्कि तरह तरह से प्रताडि़त भी किया जाता है.

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किसी तरह निकल कर वह स्थानीय थाने भी गई थी, लेकिन पुलिस ने उस की मदद करने के बजाय उसे डरा धमका कर वापस भेज दिया, जहां उस की जम कर पिटाई की गई. इस तरह वह फिर उसी घर पहुंच गई.

अपनी दुखभरी कहानी सुनाने के बाद वह महिला सांसद भगवंत मान को संबोधित करते हुए कह रही थी, ‘भगवंत मान साहब, मेरी मदद कीजिए. मैं यहां बहुत दुखी हूं. मैं यहां मुसीबत में फंसी हूं. मुझे यहां आए एक साल हो गया है. मैं एक साल से जुल्म सह रही हूं. आप ने होशियारपुर की एक लड़की की मदद की थी, उसे यहां से निकलवाया था, उसी तरह मुझे भी निकलवाइए. मैं आप की बेटी की तरह हूं.

‘मुझे पता नहीं था कि मेरे साथ इस तरह होगा. यहां मुझे कई कई दिनों तक खाना नहीं दिया जाता. मेरे साथ मारपीट की जाती है. मैं सऊदी अरब के दावाद्मी शहर में रहती हूं. मैं यहां नौकरी करने आई थी, लेकिन यहां आ कर मैं बुरी तरह फंस गई हूं.

‘अब आप किसी तरह मुझे यहां से निकलवाइए. अगर आप ने मुझे यहां से नहीं निकलवाया तो मैं मर जाऊंगी. मुझे ये लोग मार डालेंगे. मैं अपने बच्चों के पास वापस आना चाहती हूं. मेरी मां का औपरेशन होना है. वह बहुत बीमार हैं.’

अपनी शरीर पर लगी चोटों की ओर इशारा करते हुए वह आगे कह रही थी, ‘देखिए, मेरे साथ किस तरह मारपीट की गई है. जगहजगह से खून निकल रहा है. ये लोग बहुत गंदे हैं. मैं अपने भाईबहनों से यही कहूंगी कि वे कभी सऊदी अरब न आएं. मेरी हालत देख लीजिए, मैं जिस तरह से दिन काट रही हूं, उस से यही विनती है कि आप लोग यहां कभी मत आना.’

सोशल मीडिया पर वायरल हुए इस वीडियो से पंजाब में जैसे तूफान आ गया. समाजसेवी संस्थाओं ने जनता के साथ मिल कर पंजाब के शहरों में जगहजगह पर भारत सरकार और राज्य सरकार के खिलाफ प्रदर्शन करने और जुलूस निकालने शुरू कर दिए.

सभी जिलों के डीसी औफिसों के घेराव किए गए. सऊदी अरब में शेखों के चंगुल में फंसी उस महिला की शीघ्र वापसी के लिए ज्ञापन दिए गए. इसी के साथ समाचारपत्रों में भी उस महिला के बारे में प्रमुखता से समाचार छपे.

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जिसजिस ने भी वह वीडियो देखा, उन सब की यही प्रार्थना थी कि यह महिला किसी तरह मुक्त हो जाए. सांसद भगवंत मान कुछ करते, उस के पहले ही भारत सरकार की विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने उस वीडियो को देखा और उस महिला की परेशानी को गंभीरता से लेते हुए खुद ही संज्ञान ले कर ट्वीट किया.

इसी के साथ विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने सऊदी अरब स्थित भारतीय दूतावास को उस महिला के बारे में पता करने का आदेश दिया. उन्हीं की पहल पर उस लड़की को शेख के चंगुल से मुक्त करा कर भारत लाने के प्रयास शुरू कर दिए गए.

बाद में पता चला कि उस महिला का नाम रीना रानी था. 9 अक्तूबर को उस ने अपनी मां चंदरानी को यह वीडियो भेजा था. इस वीडियो को देख कर घर वाले परेशान हो उठे. चंदरानी ने भारत सरकार व आम आदमी पार्टी के सांसद भगवंत मान को वह वीडियो भेज कर प्रार्थना की कि किसी भी तरह उन की बेटी को शेखों के चंगुल से मुक्त कराया जाए.

रीना रानी ने वीडियो में जो अपनी परेशानी बताई थी, उसे ले कर अखबारों में खबरें छपने लगी थीं. खबर पढ़ कर भगवंत मान ने रीना रानी की मां चंदरानी से फोन द्वारा संपर्क किया और उन्हें सांत्वना दी कि वह रीना को सऊदी अरब से जल्द ही भारत लाएंगे.

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भगवंत मान ने रीना के मामले में गंभीरता दिखाते हुए विदेश मंत्री सुषमा स्वराज से बात की तो पता चला कि यह पूरा मामला उन के संज्ञान में है और उन्होंने रीना के बारे में पता कर के उसे मुक्त करा कर भारत लाने की काररवाई शुरू कर दी है. इस के बाद सुषमा स्वराज ने रीना रानी की मां चंदरानी से फोन पर बात की और रीना का पता और फोन नंबर हासिल कर गृह मंत्रालय को भेज दिया.

सऊदी अरब में फंसी रीना होशियारपुर के थाना दसूहा के गांव बोदल कोटली के रहने वाले किशन की पत्नी थी. किशन से उस की शादी सन 1991 में हुई थी. इस समय उस की एक बेटी नवजोत 21 साल की और बेटा हरीश 17 साल का है. किशन दुबई में नौकरी करने गया था, लेकिन पारिवारिक परेशानी की वजह से वापस आ गया. भारत आने के बाद दुर्घटना में उस के दोनों पैर बेकार हो गए, जिस से वह चलफिर नहीं सकता था.

वही अकेला कमाने वाला था. उस के अपंग होने से घर में भूखों मरने की नौबत आ गई. दोनों बच्चों की पढ़ाई भी प्रभावित हुई. इस पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा. घर चलाने के लिए रीना मेहनत मजदूरी करने लगी. किसी तरह दो जून की रोटी का जुगाड़ तो हो जाता था, लेकिन पति की दवा, बच्चों की पढ़ाई और कपड़ों का जुगाड़ नहीं हो पाता था.

पंजाब के तमाम लोग विदेशों में जा कर नौकरी कर रहे हैं. उन में तमाम महिलाएं भी हैं. महिलाओं को विदेशों में घरों में काम करने के लिए अच्छा पैसा मिलता है. रीना के गांव की भी तमाम महिलाएं विदेशों में जा कर नौकरी कर रही हैं और अच्छाखासा पैसा कमा रही हैं. घर की परेशानी को देखते हुए रीना ने भी विदेश जाने का मन बनाया.

किसी से ब्याज पर रुपए ले कर विगत 24 अक्तूबर, 2016 को किसी एजेंट के जरिए वह 2 साल के वीजा पर सऊदी अरब चली गई. उसे वहां एक शेख के घर में काम करना था. एजेंट ने उसे बताया था कि उस परिवार में 12 लोग हैं.

रीना सऊदी अरब के दावाद्मी शहर के रहने वाले उस शेख के घर पहुंच कर काम करने लगी. 4 महीने तक तो सब ठीक रहा, लेकिन उस के बाद उसे परेशान किया जाने लगा. उसे बुरी तरह से मारापीटा जाने लगा. एक तरह से वह नरक की जिंदगी जीने लगी. अब रीना की समझ में आया कि उस के साथ धोखा हुआ है.

एजेंट ने उसे मलेशिया भेजने की जगह सऊदी अरब भेज दिया. वह भी ऐसे जालिम लोगों के यहां, जिन्होंने उस का जीना हराम कर दिया. वह वहां हंसने की कौन कहे, किसी से बात भी नहीं कर सकती थी. किसी तरह उस ने अपने ऊपर होने वाले अत्याचारों की वीडियो बना कर मां को भेजी तो उसे भारत वापस लाने के प्रयास शुरू कर दिए गए.

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विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के आदेश पर सऊदी अरब स्थित भारतीय दूतावास रीना को शेख के घर से मुक्त करा कर दूतावास ले आया, ताकि रीना को भारत भेजने की काररवाई की जा सके. क्योंकि रीना को एजेंट ने धोखे से ट्रैवल वीजा पर सऊदी भेजा था. इसलिए उसे वापस भेजने में कानूनी अड़चनें आ रही थीं.

लेकिन विदेश मंत्री सुषमा स्वराज का आदेश था, इसलिए दूतावास अधिकारी दोनों देशों के बीच कानूनी अड़चनों को दूर कर रीना को भारत भेजने की तैयारी शुरू कर दी. जब तक कानूनी अड़चनें दूर नहीं हुईं, तब तक रीना को सऊदी अरब के लेबर कोर्ट में रखा गया. लेकिन रीना शेख के चंगुल से आजाद हो चुकी थी. अब वह रोजाना पंजाब में रह रहे अपने घर वालों से बात करने लगी थी.

विदेश मंत्री सुषमा स्वराज इस मामले में निजी तौर पर दिलचस्पी ले रही थीं और रीना रानी की सुरक्षित वापसी के लिए जीजान से जुटी थीं. उन्हें पता चल चुका था कि रीना होशियारपुर से टूरिस्ट वीजा पर पहले दुबई गई थी, जहां से उसे सऊदी अरब ले जाया गया था.

2 देशों, सऊदी अरब और दुबई की इमिग्रेशन पौलिसी की कानूनी अड़चन की वजह से रीना की वापसी में देर हो रही थी. उन्होंने जल्दी से जल्दी इस समस्या का समाधान करा कर रीना के घर वापसी का रास्ता खोल दिया. इस तरह 17 नवंबर, 2017 को रीना सऊदी अरब से सकुशल भारत आ गई.

18 नवंबर की शाम रीना अपने घर पहुंची. घर वालों के गले लग कर रोते हुए उसे अजीब सा सुख मिल रहा था. उस ने लोगों से जो अपनी आपबीती बताई, वह इस प्रकार थी—

अपने घर को गरीबी से उबारने की चाहत में रीना 16 अक्तूबर, 2016 को सऊदी अरब पहुंची. शुरू में तो 3-4 महीने तक सब ठीक रहा. लेकिन उसे 25 हजार के वेतन पर जहां ले जाया गया था, लेकिन उसे 25 हजार की जगह 15 हजार रुपए ही वेतन दिया गया. इस के बाद उसे परेशान किया जाने लगा. वे इंसान को इंसान नहीं, मशीन समझते थे.

रीना से 20-20 घंटे काम करवाते थे.

वे काम में जरा भी ढील होने पर जानवरों की तरह पीटते थे. कई कई दिनों तक खाना नहीं देते थे. उन की यातनाओं से तंग आ कर उस ने कई बार आत्महत्या करने का मन बनाया, लेकिन परिवार और मां के बारे में सोच कर हिम्मत नहीं कर पाई.

किसी तरह उस ने बच्चों से वाईफाई का पासवर्ड ले कर अपनी परेशानी की वीडियो बनाई और वाट्सऐप के जरिए मां को वह वीडियो भेज दिया. उसी की बदौलत वह वहां से मुक्त हो सकी.

वीडियो भेजने के कुछ दिनों बाद सऊदी पुलिस रीना को खोजते हुए पहुंची. शेख के घर की एक लड़की ने रीना को अंगरेजी में समझाने की कोशिश की कि पुलिस उसे भारत ले जाने आई है, लेकिन शेख ने नहीं जाने दिया.

इस के बाद 2 बार फिर पुलिस आई, लेकिन उसे नहीं भेजा गया. अंत में 16 नवंबर को पुलिस आई और उसे जबरदस्ती अपने साथ ले गई. इस के बाद सारी काररवाई पूरी कर उसे भारत लाया गया.

दो सगे भाइयों की करतूत : 20 साल तक बहन को दी यातना

दुनिया में इंसान को सब कुछ मिल जाता है, लेकिन एक ही मां से पैदा हुए भाईबहन कभी नहीं मिलते. भाईबहन का प्यार दुनिया के लिए एक मिसाल है. भाई अपनी बहन को इतना प्यार करता है कि उस के लिए कुछ भी करने को तैयार रहता है. बहन भी शादी के बाद ससुराल चली जाती है तो हमेशा अपने भाई की खुशी की कामना करती रहती है.

लेकिन आज की इस रंग बदलती दुनिया में मुंबई के रहने वाले 2 भाइयों रविंद्र वेर्लेकर और मोहनदास वेर्लेकर ने अपनी सगी बहन सुनीता वेर्लेकर को 20 सालों तक एक अंधेरी कोठरी में कैद कर के रखा. बिना किसी कसूर के उस ने उस कोठरी में जो जिंदगी गुजारी, उसे जान कर हर किसी का मन द्रवित हो उठेगा.

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11 जुलाई, 2017 की बात है. हमेशा की तरह उस दिन भी सवीना मार्टिंस अपनी संस्था के औफिस में समय से पहुंच गई थीं. वह अपने कंप्यूटर पर आए ईमेल मैसेज चैक करने लगीं. मैसेज को पढ़ते पढ़ते उन की नजर एक निवेदन पर आ कर रुक गई. वह निवेदन बहुत ही गंभीर और अत्यंत मार्मिक था. किसी अजनबी व्यक्ति द्वारा भेजे गए उस मैसेज को पढ़ कर सवीना मार्टिंस सन्न रह गईं. उन्हें उस संदेश पर विश्वास ही नहीं हो रहा था कि ऐसे भी लोग हैं, जो इंसान और इंसानियत के नाम पर कलंक है.

सवीना मार्टिंस गोवा के पणजी शहर की एक जानीमानी समाजसेवी संस्था की अध्यक्ष हैं. उन की संस्था नारी उत्पीड़न रोकने का काम करती है. औनलाइन भेजे गए उस मार्मिक संदेश में उस व्यक्ति ने लिखा था कि ‘पणजी बांदोली गांव सुपर मार्केट के आगे एक बंगले के पीछे बनी कोठरी में सुनीता वेर्लेकर नामक महिला कई सालों से कैद है. मेरी आप से विनती है कि आप उस की मदद कर के उसे उस कैद से मुक्त कराएं.’

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                                                           सवीना मार्टिंस

सवीना मार्टिंस ने उस ईमेल मैसेज का प्रिंटआउट निकाल कर अपने पास रख लिया. अपने सहयोगियों के साथ बांदोली गांव जा कर उस मैसेज की सच्चाई का पता लगाया. इस के बाद उन्होंने पणजी महिला पुलिस थाने जा कर वहां की महिला थानाप्रभारी रीमा नाइक से मुलाकात कर उन्हें पूरी बात बता कर ईमेल मैसेज का प्रिंट उन के सामने रख दिया. सवीना ने सुनीता वेर्लेकर को बंदी बना कर रखने वाले उस के दोनों भाइयों के खिलाफ शिकायत दर्ज करवा कर उसे कैद से मुक्त कराने की मांग की.

थानाप्रभारी रीमा नाइक ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए इस की जानकारी अपने सीनियर अधिकारियों को दे दी. अधिकारियों का निर्देश मिलते ही वह पुलिस टीम के साथ तुरंत घटनास्थल की तरफ रवाना हो गईं. जिस समय पुलिस टीम बताए गए पते पर पहुंची, उस से पहले ही समाजसेवी संस्था के सदस्य, डाक्टर, प्रैस वाले और एंबुलैंस वहां पहुंच चुकी थी.

पुलिस टीम और संस्था के सदस्यों को पहले तो सुनीता वेर्लेकर के दोनों भाइयों और भाभियों ने गुमराह करने की कोशिश की. उन्होंने बताया कि सुनीता कई साल पहले पागल हो कर कहीं चली गई थी. पर पुलिस और संस्था के सदस्यों को उन की बातों पर विश्वास नहीं हुआ. उन्होंने उन के मकान की तलाशी ली तो एक मकान में ताला बंद मिला.

उस मकान से तेज बदबू आ रही थी. थानाप्रभारी को शक हुआ कि ये लोग झूठ बोल रहे हैं. उन्होंने उस मकान का ताला खोलने को कहा तो वे आनाकानी करने लगे. पुलिस ने उन्हें डांटा तो उन्होंने मकान का ताला खोल दिया.

मकान का गेट खुलते ही अंदर से दुर्गंध का ऐसा झोंका आया, जिस से वहां लोगों का खड़े रहना दूभर हो गया. सभी को अपनीअपनी नाक पर रूमाल रखना पड़ा. मकान के एक कमरे में पुलिसकर्मियों ने झांक कर देखा तो उस में एक महिला बैठी मिली. उस से बाहर आने को कहा गया तो वह चारपाई से उठ कर एक कोने में चली गई. वह सुनीता वेर्लेकर थी.

संस्था के सदस्य और पुलिस नाक पर रूमाल रख कर कमरे के अंदर गई. अंदर का दृश्य देख कर सभी स्तब्ध रह गए. कमरे के एक कोने में डरीसहमी सुनीता वेर्लेकर दोनों हाथों से अपना चेहरा छिपाए बैठी थी. उस के बदन पर कपड़े भी नाममात्र के थे. यही वजह थी कि शरम की वजह से वह बाहर आने को तैयार नहीं थी. संस्था के सदस्यों ने उसे कपड़े ला कर दिए तो वह उन्हें पहन कर कोठरी से बाहर आई.

पिछले 20 सालों से एक कमरे में कैद सुनीता वेर्लेकर ने बाहर आ कर उजाला देखा तो वह अपने आप को संभाल नहीं पाई. खुशी से उस की आंखों से आंसू टपकने लगे. वह बेहोश जैसी हो गई. संस्था के सदस्यों ने उसे संभाला और पीने का पानी दिया.

घटनास्थल पर मौजूद डाक्टरों ने सुनीता का सरसरी तौर पर निरीक्षण किया और उसे एंबुलैंस में लिटा दिया. डाक्टर उसे पहले गोवा के आयुर्वेदिक मैडिकल अस्पताल ले गए.

प्राथमिक उपचार के बाद वहां के डाक्टरों ने उसे बांदोली के मानसरोवर अस्पताल भेज दिया. सुनीता का परीक्षण किया गया तो वह मानसिक रूप से ठीक पाई गई. उपचार के बाद अस्पताल से उसे छुट्टी दे दी गई.

सुनीता को अस्पताल भेज कर पुलिस और संस्था के सदस्यों ने कमरे का निरीक्षण किया, जिस में सुनीता रहती थी तो पाया कि उस कमरे में सुनीता की जिंदगी बद से बदतर बनी हुई थी. वह उसी कमरे में नित्यक्रिया करती थी, जिस के कारण कोठरी में कीड़ों मकोड़ों और मच्छरों की भरमार थी.

पता चला कि पिछले 20 सालों से सुनीता वेर्लेकर नहाई नहीं थी. उस के खाने के लिए एक टूटी प्लेट और सोने के लिए एक चारपाई थी. उसे खाना दरवाजा खोल कर देने के बजाय दरवाजे की निकली हुई एक पट्टी के बीच से ऐसे डाला जाता था, जैसे किसी कुत्ते बिल्ली को दिया जाता है.

घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण करने और आसपास के लोगों से पूछताछ करने के बाद पुलिस टीम ने सुनीता के भाई रविंद्र वेर्लेकर, मोहनदास वेर्लेकर, भाभी अनीता वेर्लेकर और अमिता वेर्लेकर को हिरासत में ले लिया. थाने में जब इन सभी से पूछताछ की गई तो सभी ने अपना अपराध स्वीकार कर सुनीता पर किए गए अत्याचारों की जो कहानी सुनाई, वह इस प्रकार थी—

45 साल की सुनीता शिरोडकर उर्फ वेर्लेकर जितनी ही सुंदर थी, उतनी ही महत्त्वाकांक्षी भी. पिता का नाम रामदेव वेर्लेकर था. सुनीता वेर्लेकर उन की एकलौती बेटी थी, जिसे वह बहुत ही प्यार करते थे. रामदेव वेर्लेकर के परिवार में पत्नी के अलावा 2 बेटे रविंद्र वेर्लेकर और मोहनदास वेर्लेकर थे. दोनों की शादियां हो चुकी थीं. घर में सब से छोटी होने की वजह से सुनीता दोनों भाभियों अनीता और अमिता की भी लाडली थी.

सुनीता वेर्लेकर ने भी भाइयों की ही तरह पणजी के कालेज से पढ़ाई की. अच्छे नंबरों से बारहवीं पास करने के बाद वह उच्च शिक्षा हासिल कर अपना भविष्य तय करना चाहती थी. लेकिन मातापिता इस पक्ष में नहीं थे. पुरानी सोच वाले मातापिता का मानना था कि बेटियों को अधिक पढ़ाना ठीक नहीं है. उन्होंने उस की पढ़ाई बंद करा दी.

20 साल की उम्र में मातापिता उस के लिए योग्य वर की तलाश में जुट गए. अपनी जानपहचान वालों के माध्यम से शीघ्र ही उन्हें सुनीता के लिए लड़का भी मिल गया. लड़के का नाम था रमेशचंद्र शिरोडकर. मुंबई की एक निजी कंपनी में वह नौकरी करता था. उस के घर की आर्थिक स्थिति भी ठीकठाक थी.

सुनीता के पिता रामदेव वेर्लेकर को यह रिश्ता पसंद आ गया. इस के बाद सामाजिक रीतिरिवाज से दोनों की शादी कर दी गई. यह 25 साल पहले की बात है. शादी के बाद रमेशचंद्र शिरोडकर और सुनीता मुंबई में हंसीखुशी से रहने लगे.

2-3 साल कैसे गुजर गए, उन्हें पता ही नहीं चला. इस के बाद समय जैसे ठहर सा गया था, क्योंकि सुनीता इतने सालों बाद भी मां नहीं बन सकी थी. जिस की वजह से रमेशचंद्र उदास रहने लगा और धीरेधीरे सुनीता से दूर जाने लगा. सुनीता भी इस बात को ले कर काफी दुखी थी. एक दिन ऐसा आया कि रमेशचंद्र की जिंदगी में दूसरी लड़की आ गई.

उस लड़की के आने के बाद रमेशचंद्र काफी बदल गया. अब वह आए दिन सुनीता को प्रताडि़त करने लगा. उस ने सुनीता से साथ मारपीट भी शुरू कर दी. उस के चरित्र पर भी कीचड़ उछालने लगा. उसी लड़की की वजह से एक दिन वह सुनीता को उस के मायके यह कह कर छोड़ आया कि सुनीता का किसी लड़के से चक्कर चल रहा है.

सुनीता को मायके पहुंचा कर रमेशचंद्र ने उस लड़की से विवाह कर नई गृहस्थी बसा ली. इस के बाद वह सुनीता को भूल गया. रमेशचंद्र जिस तरह सुनीता पर घिनौना लांछन लगा कर मायके छोड़ आया था, उस से वेर्लेकर परिवार काफी दुखी था. सुनीता भी पति के इस आरोप और व्यवहार से इस प्रकार आहत थी कि उस का हंसना मुसकराना सब बंद हो गया था.

वह उदास और खोईखोई सी रहने लगी थी. उस की आंखों से अकसर आंसू बहते रहते थे. शादी के कुछ दिनों पहले ही उसे छोड़ कर चली गई थी. एक पिता ही था, जो बेटी के मन की स्थिति को समझता था.

रामदेव बेटी का पूरा खयाल रखते थे. वह उसे समझाते बुझाते रहते थे. पिता भी अपनी लाडली बेटी का दुख अधिक दिनों तक सहन नहीं कर सके और एक दिन बेटी के दर्द को सीने से लगा कर हमेशा हमेशा के लिए यह संसार छोड़ गए. उन्हें हार्टअटैक हुआ था.

पिता की मौत के बाद सुनीता अकेली रह गई. एक तरफ पति की बेवफाई और दूसरी तरफ पिता की मौत ने सुनीता को तोड़ कर रख दिया. अब सुनीता की देखभाल करने वाला कोई नहीं था. दोनों भाई और भाभियां उस की उपेक्षा करने लगीं. इस से सुनीता का स्वभाव चिड़चिड़ा सा हो गया. वह अपने प्रति लापरवाह हो गई. वह अकसर अकेली बैठी बड़बड़ाती रहती. जहां बैठती, वहां घंटोंघंटों बैठी रह जाती. जहां जाती, वहां से जल्दी लौट कर नहीं आती. रातदिन का उस के लिए कोई मायने नहीं रह गया था.

सुनीता के इस व्यवहार से उस के भाइयों और भाभियों ने उस का ध्यान रखने के बजाय उसे पागल करार करने में कोई कसर नहीं छोड़ी. फिर एक दिन बिना किसी कसूर के उस के भाइयों और भाभियों ने उसे एक कमरे में बंद कर दिया. 10×10 फुट के उस कमरे में हमेशा अंधेरा रहता था. इस के बाद भाईभाभियों ने यह अफवाह फैला दी कि सुनीता पागल हो कर पता नहीं कहां चली गई.

समय का पहिया अपनी गति से घूमता रहा. सुनीता उस अंधेरी कोठरी में रह कर अपने भाइयों और भाभियों द्वारा दी गई सजा काट रही थी. भाभियां तो दूसरे घरों से आई थीं, लेकिन भाई तो अपने थे. ताज्जुब की बात यह थी कि उन सगे भाइयों का दिल भी इतना कठोर हो गया था कि उन्हें भी उस पर दया नहीं आई. वे बड़े बेदर्द हो गए थे.

अंधेरी कोठरी में कैद सुनीता पर उस के भाई भाभी जिस प्रकार का जुल्म ढा रहे थे, उस प्रकार का तो अंगरेजी हुकूमत ने भी शायद अपने कैदियों पर नहीं ढाया होगा.

घर का जूठा और बचाखुचा खाना ही उसे कोठरी के अंदर पहुंचाया जाता था. नित्यक्रिया के लिए भी उसे उसी कोठरी के कोने का इस्तेमाल करना पड़ता था. न तो नहाने के लिए पानी मिलता था, न पहनने के लिए कपड़े और न सोने के लिए बिस्तर था. उस कोठरी में इंसान तो क्या, जानवर भी नहीं रह सकता था.

यदि उसे वहां से मुक्त नहीं कराया जाता तो एक दिन उस की लाश ही बाहर आती. अस्पताल से छुट्टी मिलने के बाद पुलिस ने सुनीता को न्यायालय में पेश किया, जहां से उसे गोवा के पर्वभरी प्रायदोरिया आश्रम गृह भेज दिया गया.

पुलिस ने पूछताछ के बाद सुनीता वेर्लेकर के बड़े भाई रविंद्र वेर्लेकर, छोटे भाई मोहनदास वेर्लेकर, भाभी अमिता वेर्लेकर, अनीता वेर्लेकर के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर उन्हें कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

कथा लिखे जाने तक चारों की जमानत हो चुकी थी और वे जेल से बाहर आ चुके थे. सुनीता वेर्लेकर गोवा के आश्रम में थी, जहां उस की अच्छी देखरेख हो रही थी.

—कथा में रामदेव और रमेशचंद्र काल्पनिक नाम हैं

कैमरे में कैद दर्द-ए-दिल

एक नहीं, बल्कि कई बार डा. रिपुदमन सिंह भदौरिया के दिल में यह खयाल आया था कि बैंक खाते से सारी जमापूंजी निकाल कर और कुछ यहां वहां से जुगाड़ कर 10 लाख रुपए इकट्ठा करे और दे मारे उस कमबख्त ब्लैकमेलर राजाबाबू के मुंह पर, जिस के एक फोन और सीडी ने उन के दिन का चैन और रातों की नींद छीन रखी है.

सोतेजागते, उठतेबैठते और खातेपीते एक ही डर उन के दिलोदिमाग में समाया था कि उन की और उस महाकमबख्त मनीषा की रंगरलियों वाली सीडी सोशल मीडिया पर वायरल हो गई तो क्या होगा. इतना सोचते ही उन के हाथपैर फूल जाते और दिमाग सुन्न हो जाता था.

उन के दिमाग में यह बात भी आई कि अगर सीडी वायरल हो गई तो उन के सारे यारदोस्त, नातेरिश्तेदार, जानपहचान वाले ही नहीं, अंजान लोग भी ढूंढढूंढ कर उन्हें नफरत और तरस भरी निगाहों से देखेंगे. वे उन की खिल्ली उड़ाते हुए कहेंगे कि यही है वह डाक्टर, जो मरीज ठीक करने के बहाने औरतों से अय्याशी करता है.

लानत है इस सरकारी डाक्टर पर, इस के पास तो महिलाओं को ले जाना ही खतरे वाली बात है. यह तो अच्छा करने के बजाय उन्हें हमेशा के लिए बिगाड़ देता है. मरीजों के ब्लडप्रेशर का इलाज करने वाले डा. रिपुदमन सिंह का ब्लडप्रेशर उस वक्त और बढ़ जाता, जब वह सोचते कि हकीकत सामने आने पर सरकार उन्हें सस्पैंड कर के उन का मैडिकल प्रैक्टिस का लाइसेंस भी रद्द कर सकती है.

अगर ऐसा हो गया तो वह किसी काम के नहीं रहेंगे. उन की पूरी मेहनत और इज्जत मिट्टी में मिल जाएगी. लोग भी उन से कतराने लगेंगे. यारदोस्त भी उन से कन्नी काटने लगेंगे. ब्लैकमेलर राजाबाबू ने उन से जो 10 लाख रुपए मांगे थे, उन के लिए खास बड़ी रकम नहीं थी, पर खौफ और डर इस बात का था कि ये 10 लाख रुपए उसे दे भी दें तो इस बात की क्या गारंटी कि वह उन का पिंड छोड़ देगा.

हो सकता है कि कुछ दिनों बाद वह फिर उसी सीडी का डर दिखा कर उन से और रकम ऐंठने की कोशिश करे, तब क्या होगा.

चंबल इलाके के भिंड जिले के एक सरकारी अस्पताल में डा. रिपुदमन पिछले 4 दिनों से जिस कशमकश से गुजर रहे थे, उस का रास्ता और मंजिल एक ही था कि जिंदगी भर इन ब्लैकमेलर्स के हाथों लुटते रहो और ऐसा नहीं कर सकते तो बेइज्जती का पंचनामा बनवाने को तैयार रहो.

कोई और रास्ता उन्हें समझ नहीं आ रहा था. बात भी कुछ ऐसी थी, जिस की चर्चा या जिक्र वह किसी से नहीं कर सकते थे.

रहरह कर वह 30 अगस्त, 2017 की दोपहर को कोस रहे थे, जब उन की पहली मुलाकात मनीषा पाल नाम की युवती से हुई थी. उस दिन वह मरीजों से फुरसत पा कर अपनी केबिन में आ कर बैठे थे कि एक बेइंतहा खूबसूरत 25-26 साल की युवती उन के केबिन में दाखिल हुई.

युवती की खूबसूरती का उन पर कोई खास असर नहीं हुआ. क्योंकि डाक्टरी पेशे में आए दिन तरहतरह के मरीज डाक्टरों के पास आते रहते हैं, उन का मरीज से रिश्ता 5-6 मिनट का ही होता है. बीमारी देखी, दवा लिखी, हिदायतें दीं और बात खत्म. दोबारा मरीज उसी हालत में आता था, जब उसे फायदा न हुआ हो.

पर यहां बात कुछ और ही थी. मनीषा की तरफ देखते ही रिपुदमन ने निहायत ही पेशेवर अंदाज में कहा, ‘‘कहिए, क्या तकलीफ है?’’

‘‘तकलीफ बहुत है डाक्टर साहब, इसीलिए तो आप के पास आई हूं.’’ मनीषा ने कुछ शोखी और कुछ परेशानी भरे स्वर में जवाब दिया तो रिपुदमन अचकचा उठे.

उन्होंने रूटीनी अंदाज में मनीषा को मरीजों वाले स्टूल पर बैठने का इशारा करते हुए कहा, ‘‘हां बताइए, क्या तकलीफ है?’’

इस थोड़ी सी देर में एक बात जो उन्हें न चाहते हुए भी नोटिस में लेनी पड़ी थी कि युवती की टाइट जींस और उस से भी ज्यादा टाइट टौप उभारों को ढंकने के बजाय उन्हें और ज्यादा दिखा रहे थे.

आजकल की मौडर्न युवतियां छोटे शहरों में भी ऐसी ड्रैस पहनने लगी हैं, इसलिए उन्होंने इस बात से अपना ध्यान झटका और मनीषा की तरफ दोबारा सवालिया निगाहों से देखा तो जवाब में मनीषा ने कहा तो कुछ नहीं, पर जो किया, वह उन की उम्मीद से परे था.

एक झटके में मनीषा ने अपनी टीशर्ट उठाई और उसे कंधों तक ले जाते हुए बोली, ‘‘डाक्टर साहब, सीने में बहुत तेज दर्द है.’’

ऐसे लगा मानो विश्वामित्र के सामने कोई मेनका आ कर अपनी पर उतारू हो आई हो. मनीषा के उन्नत वक्षों को देख कर रिपुदमन ने घबरा कर अपनी दोनों आंखें बंद कर लीं. पर चंद सेकेंड पहले जो नजारा उन्होंने देखा था, वह आंखों से चढ़ कर दिमाग तक पहुंच गया था. आंखें बंद कर लेने से कोई फायदा नहीं हुआ. क्योंकि सब कुछ उन के दिमाग में घूमने लगा.

खुद को संभालने में उन्हें चंद सैकेंड ही लगे और वह संभल कर बोले, ‘‘इस के लिए तो आप को किसी लेडी डाक्टर के पास जाना चाहिए.’’

‘‘क्यों?’’ मनीषा बिंदास स्वर में बोली, ‘‘लेडी डाक्टर ही क्यों, आप क्यों नहीं? क्या आप दिल के दर्द का इलाज नहीं जानते?’’

इस जवाब से उन की समझ में आ गया कि लड़की खब्त मिजाज और बेशर्म भी है. तरहतरह के मरीजों से उन का पाला पड़ता रहता था, लेकिन ऐसी मरीज से पहली दफा वास्ता पड़ा था. समझाने और टरकाने के अंदाज में वह बोले, ‘‘देखिए, कोई लेडी डाक्टर ही आप को देख पाएगी.’’

‘‘ठीक है, दिखा लूंगी, पर हाल फिलहाल तो आप देख लीजिए. दर्द वाकई ज्यादा है, जिसे डाक्टर से छिपाना मैं ठीक नहीं समझती.’’ मनीषा अब दार्शनिकों के से अंदाज में बोली तो रिपुदमन की समझ में यह भी आ गया कि यह सनकी युवती आसानी से उन का पीछा नहीं छोड़ने वाली.

उन्होंने अपना स्टेथकोप उठाया और उसे पीठ व छाती पर जगहजगह लगाया, फिर पर्चे पर कुछ दवाइयां उसे लिख कर दे दीं. इस दौरान मनीषा नादान बनती वाचाल लड़की की तरह अपनी बीमारी से ताल्लुक रखती कई बातें उन से पूछती रही, जिन का वह सब्र से जवाब देते रहे.

मनीषा चली गई तो उन्होंने मीलों लंबी सांस ली. केबिन में बिखरी खुशबू नथुनों और दिमाग में समा रही थी. इसी दौरान दूसरा मरीज आ गया तो वह उसे देखने में व्यस्त हो गए और कुछ देर पहले का नजारा भी दिलोदिमाग से निकल सा गया.

रोजाना की तरह घर आ कर वह अपने कामकाज में लग गए और अस्पताल की बातों को भूल गए. लेकिन देर रात मोबाइल फोन की घंटी से उन की नींद खुली तो वह स्क्रीन पर अंजान नंबर देख झल्ला उठे.

‘क्या पता कौन होगा आधी रात में,’ सोचते हुए उन्होंने काल रिसीव की तो दूसरी तरफ से बगैर किसी भूमिका के हायहैलो की आवाज आई, ‘‘डाक्टर साहब, दवाइयां लेने के बाद भी दिल का दर्द नहीं जा रहा है, ऐसा लग रहा है, मानो कोई मसल रहा हो.’’

रिपुदमन को पहचानने में देर नहीं लगी कि यह आवाज उसी खूबसूरत युवती यानी मनीषा की है, जो दोपहर में उन के पास आई थी और उन के दिल में हलचल मचा गई थी. फिर भी अंजान बनने की एक्टिंग करते हुए उन्होंने पूछा, ‘‘कौन बोल रही हैं आप?’’

‘‘अरे, मैं हूं मनीषा, जिसे दोपहर में आप ने चैक किया था. डाक्टर साहब तब मैं ने सब कुछ तो दिखा दिया था, पर दर्द है कि ठीक नहीं हो रहा है. क्या करूं समझ नहीं आ रहा. अब प्लीज, आप ही कुछ कीजिए.’’ उस ने कहा.

आवाज में दर्द कम, एक आमंत्रण ज्यादा था, जिसे डा. रिपुदमन तो क्या कोई मामूली मर्द भी आसानी से भांप सकता था कि युवती चाहती क्या है और उस के कहने का मतलब क्या है. रिपुदमन के दिमाग का फ्यूज इस बार मनीषा की आवाज से उड़ गया था. फिर भी खुद की प्रतिष्ठा और डाक्टरी पेशे की गरिमा को बनाए रखते हुए उन्होंने फोन पर ही मनीषा को दूसरी गोली का नाम लिखाते उसे खा लेने की सलाह दी.

मनीषा का फोन काटने का इरादा नहीं लग रहा था, इसलिए वह बेवजह के सवाल किए जा रही थी. सवाल भी एक पुरुष को भड़काने वाले थे. लंबी द्विअर्थी बातें करने के बाद उन्होंने इतिश्री करते हुए मनीषा को फिर किसी लेडी डाक्टर को दिखाने की सलाह दे डाली.

इति तो नहीं, पर अति जरूर हो रही थी. मनीषा पाल की बातों और खूबसूरती ने फिर बाकी रात रिपुदमन को सोने नहीं दिया.

बारबार उन की आंखों के सामने वह दृश्य घूम उठता था, जब मनीषा ने एक झटके में अपनी गुलाबी टीशर्ट कंधे तक उठा दी थी. फिर थोड़ी देर पहले की गई बातों से तो बिलकुल साफ लग रहा था कि वह उन के लिए अपना सब कुछ न्यौछावर करने को तैयार है.

युवा रिपुदमन की हालत किशोरों जैसी हो गई थी. जैसे ही वह नींद में जाने को होते, गदराई मनीषा उन्हें जगा देती. उस से हुई मुलाकात और बातों से मैडिकल के दौरान फिजियोलौजी नाम के विषय की पढ़ाई हवा हो गई थी. बाकी रात संस्कारों और वासना का युद्ध होता रहा, जिस में रिपुदमन की समझ में नहीं आ रहा था कि कौन भारी पड़ रहा है.

जितना वह मनीषा को अपने से दूर करने की कोशिश करते थे, वह न्यूटन के नियम की तरह वापस उन्हीं की तरफ आ जाती थी. अगले 3 दिन सुकून से कटे. मनीषा का कोई फोन नहीं आया तो रिपुदमन को लगा कि वह लड़की उन की जिंदगी में हवा के महकते झोंके की तरह आई थी और चली गई.

31 अगस्त को छुट्टी ले कर वह अपने घर ग्वालियर आ गए. तीसरे दिन अचानक फिर उन के पास उस का फोन आया. वह पहले की ही तरह बगैर किसी औपचारिकता के बोली, ‘‘अब दर्द में आराम तो है, लेकिन वह पूरी तरह ठीक नहीं हुआ है. इसलिए बेहतर होगा कि आप एक बार और चैक कर लें.’’

‘‘यह तो मुमकिन नहीं है. क्योंकि इस समय मैं ग्वालियर में हूं.’’ डा. रिपुदमन ने कहा.

‘‘वाह क्या हसीन इत्तफाक है,’’ मनीषा चहक कर बोली, ‘‘मैं भी ग्वालियर आई हुई हूं. आप घर का पता दे दें तो मैं वहीं आ कर दिखा दूं.’’

न चाहते हुए भी रिपुदमन ने उसे अपने घर का पता दे दिया. उस वक्त वह घर में अकेले थे. कुछ देर बाद ही मनीषा उन के घर पहुंच गई. उसे घर आया देख कर रिपुदमन घबरा उठे, पर क्या करते. आ बैल मुझे मार वाली बात भी उन्हीं ने पता दे कर की थी. उन्हें घबराया देख कर मनीषा ने साथ लाए बैग से कोल्डड्रिंक की 2 बोतलें निकाल कर कहा, ‘‘आप तो करेंगे नहीं, लीजिए मैं ही आप का स्वागत करती हूं.’’

रिपुदमन के चेहरे पर शंका देख कर वह हंसते हुए बोली, ‘‘अरे बाबा रास्ते में अपने लिए सेनेटरी नैपकिन खरीद रही थी तो दुकान वाले के पास खुल्ले पैसे नहीं थे, इसलिए सोचा कि कोल्डड्रिंक ही ले लूं. कम से कम आप के साथ कोल्डड्रिंक पीने का सौभाग्य तो मिलेगा. यकीन मानें, इस में कोई जहरवहर नहीं है.’’

इस बार मनीषा और भी उत्तेजक कपड़ों में आई थी. वाकई वह कहर ढा रही थी, जिस से रिपुदमन खुद को बचा नहीं पाए और मनीषा के हाथों कोल्डड्रिंक पी लिया. कोल्डड्रिंक पीने के कुछ देर बाद ही धीरेधीरे उन पर बेहोशी छाने लगी और इस के बाद उन्हें कुछ होश नहीं रहा कि कमरे में क्याक्या हुआ.

जब होश आया तो मनीषा वहां नहीं थी. रिपुदमन याद करने की कोशिश भर करते रहे कि क्या हुआ था, पर याद्दाश्त ने उन का एक हद से ज्यादा साथ नहीं दिया. अच्छी बात यह थी कि घर का सारा सामान सलामत था यानी मनीषा कोई चोरनी या लुटेरन नहीं थी. यह बात सुकून देने वाली थी.

छुट्टी बिता कर वह ग्वालियर से भिंड चले आए, लेकिन फिर मनीषा का कोई फोन नहीं आया न ही चैक कराने या दिखाने वह खुद आई तो उन्हें स्वाभाविक तौर पर हैरानी हुई. धीरेधीरे रिपुदमन फिर अपने अस्पताल की जिंदगी में व्यस्त हो गए और मनीषा की यादों का काफिला भी धीमा होता चला गया.

8 सितंबर, 2017 को एक अंजान आदमी का फोन उन के पास आया. उस ने बेहद शातिर और दबी आवाज में इतना कह कर फोन काट दिया कि मैं राजाबाबू बोल रहा हूं. शाम तक एक पार्सल आप को मिलेगी, उस में एक सीडी है उसे देख लेना कि कैसे आप एक महिला मरीज का इलाज कर रहे हैं. और हां, 10 लाख रुपयों का इंतजाम भी कर के रखना, नहीं तो बहुत जल्द यह सीडी हर कोई देख रहा होगा. फैसला आप के हाथ में है.

इतना सुनते ही रिपुदमन के हाथों के तोते उड़ गए. पलभर में ही वह सारा वाकिया और माजरा समझ गए. धौंस सुनते ही उन का गला सूखने लगा और वह शाम होने का इंतजार करने लगे. फोन करने वाले ने गलत कुछ नहीं कहा था, सचमुच शाम तक सीडी उन के पते पर आ गई थी.

जैसे हाईस्कूल के बच्चे अपने रिजल्ट का इंतजार करते हैं, वैसे ही डा. रिपुदमन सीडी कंप्यूटर में लगा कर इंतजार करने लगे कि आखिर इस में है क्या. पांव तले जमीन खिसकना किसे कहते हैं, यह उन्हें सीडी देख कर समझ में आ गया, जिस में वह और मनीषा एकदम निर्वस्त्र हालत में पलंग पर थे और बिलकुल ब्लू फिल्मों जैसी हरकतें कर रहे थे. उन के और मनीषा के कुछ नग्न हालत के फोटो भी सीडी में थे.

अब सोचनेसमझने के लिए कुछ नहीं रह गया था. एक गलती इतनी भारी पड़ेगी, यह उन्होंने कभी सोचा भी नहीं था. 4 दिन तो उधेड़बुन में उन्होंने किसी तरह गुजार दिए, पर यह तय नहीं कर पाए कि अब क्या करें और कैसे इज्जत बचाएं. यह तो उन्हें साफ समझ में आ गया था कि मनीषा अकेली नहीं है. चूंकि फोन किसी मर्द ने किया था, इसलिए जाहिर था उस के और भी साथी थे. अब रिपुदमन को लगा कि वह एक गिरोह के चक्रव्यूह में फंस कर अभिमन्यु जैसे छटपटा रहे हैं.

जब बदनामी झेलनी ही है तो क्यों न एक दफा पुलिस की मदद ले कर देखी जाए, यह सोचते ही उन्हें उम्मीद की एक किरण नजर आई कि शायद पुलिस वाले उन की मदद कर बेड़ा पार लगा दें. आखिर कोशिश करने में जाता ही क्या है. नहीं तो मनीषा और फोन पर अपना नाम राजाबाबू बताने वाला शख्स तो जोंक की तरह उन का खून चूसते रहेंगे.

13 सितंबर, 2017 की दोपहर डा. रिपुदमन सिंह हिम्मत जुटा कर ग्वालियर के एसपी डा. आशीष कुमार से व्यक्तिगत रूप से मिले और उन्हें सारी बात बताई. तजुर्बेकार एसपी साहब को माजरा समझते देर न लगी कि डा. रिपुदमन सिंह ब्लैकमेलर्स गिरोह के चंगुल में फंस गए हैं. लिहाजा उन्होंने तुरंत क्राइम ब्रांच के टीआई दिलीप सिंह को मामला सौंपते हुए रिपोर्ट दर्ज कर काररवाई करने के निर्देश दिए.

तेजतर्रार इंसपेक्टर दिलीप सिंह ने डा. रिपुदमन सिंह की सारी कहानी सुनी. चूंकि डा. रिपुदमन ने ब्लैकमेलर्स को अभी कोई पैसे नहीं दिए थे, इसलिए उन्होंने तुरंत योजना बना डाली कि बेहतर होगा कि राजाबाबू नाम के ब्लैकमेलर को उन से रकम लेते दबोचा जाए. दिलीप सिंह ने अपनी टीम में एएसआई गंभीर सिंह, धर्मेंद्र और हरेंद्र के अलावा लेडी कांस्टेबल अर्चना कसाना को शामिल किया.

योजना के मुताबिक, अगले दिन डा. रिपुदमन सिंह ने राजाबाबू को फोन कर दिया कि वह उन से पैसे ले कर मामले को निपटा दे. तयशुदा स्थान पर जैसे ही राजाबाबू रिपुदमन सिंह से ब्लैकमेलिंग के पैसे ले रहा था, आसपास छिपी पुलिस टीम ने उसे रंगेहाथों धर दबोचा.

खुद को पुलिस की गिरफ्त में आया देख कर राजाबाबू की समझ में आ गया कि अब खेल खत्म हो चुका है, इसलिए मार ठुकाई से बचने के लिए यही बेहतर है कि संगी साथियों के बारे में बता दिया जाए. लिहाजा उस ने अपने साथियों के नाम पुलिस को बता दिए. उस की जानकारी के आधार पर जल्द ही पुलिस टीम ने मनीषा पाल के साथसाथ इन के तीसरे साथी अनिल वाल्मीकि को भी गिरफ्तार कर लिया.

पूछताछ में पता चला कि राजाबाबू का असली नाम कृष्णकुमार और मनीषा का असली नाम नेहा कुशवाह है. नेहा कुशवाह शादीशुदा है और वह उत्तर प्रदेश के उरई की रहने वाली है. उस ने पुलिस को बताया कि उस ने नर्सिंग का कोर्स किया है. नेहा की गिरफ्तारी की बात जब उस के घर वालों को बताई गई तो उस का पति रामलखन उरई से ग्वालियर पहुंच गया.

उस ने बताया कि अब से करीब 13 साल पहले नेहा ने उस से लवमैरिज की थी. मूलरूप से सूरत, गुजरात की रहने वाली नेहा को सूरत में ही औटोरिक्शा चलाने वाले रामलखन से प्यार हो गया था. दोनों शादी कर के उरई आ कर बस गए थे.

रामलखन ने यह भी बताया कि नेहा ने नर्सिंग का कोर्स नहीं किया है, बल्कि वह उरई के एक नर्सिंगहोम में काम करने लगी थी और धीरेधीरे नर्सिंग का काम सीख कर नर्स कहलाने लगी थी. पुलिस वाले भी यह जान कर दंग रह गए कि एकदम लड़कियों सी दिखने वाली नेहा 2 बच्चों की मां है. उरई के नर्सिंगहोम में ही नेहा की मुलाकात वहां के सफाईकर्मी अनिल वाल्मीकि से हुई थी.

यहां काम करतेकरते दोनों ने महसूस किया था कि डाक्टर लोग खूब रंगीनमिजाजी करते हैं. कुछ दिनों बाद नेहा की पहचान अनिल के जरिए राजाबाबू उर्फ कृष्णकुमार से हुई और फिर कृष्णकुमार के जरिए वह विकास गुप्ता के संपर्क में आई. नेहा कब कैसे ब्लैकमेलिंग के धंधे में आ गई, इस बारे में रामलखन ने अनभिज्ञता जाहिर की.

इस शातिर चौकड़ी ने योजना बनाई कि क्यों न डाक्टरों की रंगीनमिजाजी की वीडियो बना कर उन्हें ब्लैकमेल किया जाए. इस योजना में तय हुआ कि नेहा मरीज बन कर डाक्टरों के पास जा कर उन्हें फंसाएगी और उन के साथ की गई रंगीनमिजाजी और शारीरिक संबंधों की फिल्म बनाएगी. ब्लैकमेलिंग और पैसा वसूली का काम बाकी के 3 लोग करेंगे.

आइडिया चल निकला. कैमरा चलाना सीख कर नेहा उसे ऐसी जगह फिट कर देती थी, जहां से उस की और डाक्टर के शारीरिक संबंधों की फिल्म आसानी से शूट हो सके. पूछताछ में पता चला कि इस गिरोह ने पहली फिल्म विकास गुप्ता की साली की बनाई थी. पर तब उन का मकसद केवल उस की शादी तोड़ना था.

दरअसल, विकास के संबंध अपनी साली से थे, जिस की शादी लहार के एक डाक्टर से तय हो गई थी. उस डाक्टर को नेहा के जरिए इन्होंने फंसाया था. इस के बाद तो इन के हौसले बुलंद हो गए और ये चारों इसे फुलटाइम जौब बना बैठे.

नेहा ने अपना नाम और पहचान बदल कर मनीषा पाल रख लिया. विकास जो इस गिरोह का मास्टरमाइंड था, उस ने उस का फरजी आधार कार्ड मनीषा पाल के नाम से बनवा दिया था.

नेहा दिल की मरीज बन कर डाक्टर के पास जाती थी और अपनी खूबसूरती के जाल में डाक्टरों को फंसा कर उन्हें शारीरिक संबंध बनाने के लिए उकसाती थी. डाक्टर भी तो आखिरकार मर्द ही है, इसलिए जल्द ही नेहा के देहजाल में उलझ जाता था. यह गिरोह ग्वालियर, चंबल में ही अब तक 2 डाक्टरों से लगभग 15 लाख रुपए ऐंठ चुका है.

भोपाल के एक नामी डाक्टर से 25 लाख रुपए ऐंठने की बात भी इन्होंने कबूली. इस के अलावा 20 और ऐसे डाक्टरों के नाम बताए, जो इन का अगला शिकार बनने वाले थे. इन डाक्टरों से संबंधित सारी जानकारी विकास ने कंप्यूटर में डाल रखी थी. इन में ग्वालियर, झांसी और विदिशा के डाक्टरों के नाम हैं. यानी इस ब्लैकमेलर गिरोह के रोडमैप में सैंट्रल रेलवे के स्टेशन खास मुकाम थे.

ये लोग फंसाए जाने वाले डाक्टर की पूरी जानकारी पहले से ही हासिल कर लेते थे, जिस से शिकार करने में आसानी हो. प्राथमिकता उन डाक्टरों को ही दी जाती थी, जो कुंवारे हों या अकेले रहते हों और वे जल्द ही खूबसूरत महिलाओं के मुरीद हो जाते हों.

पूछताछ में नेहा ने भी सारा सच उगल दिया. उस की निशानदेही पर पुलिस ने उस का स्पाई कैमरा यानी खुफिया कैमरा भी जब्त कर लिया. नेहा ने यह भी बताया कि उसे अब तक महज 5 हजार रुपए ही दिए गए हैं. बाकी रकम विकास गुप्ता के पास है. पुलिस ने विकास की गिरफ्तारी के लिए कई जगहों पर दबिशें दीं, पर वह नहीं मिला.

नेहा, अनिल और कृष्णकुमार उर्फ राजाबाबू से रिमांड पर पूछताछ करने के बाद जेल भेज दिया गया. रिपुदमन ने हिम्मत दिखाते हुए पुलिस की मदद ली तो न केवल खुद को बल्कि अपनी बिरादरी के और भी डाक्टरों को बचा लिया, जिन्हें लाखों का चूना यह गिरोह लगाने वाला था.

यह सबक दूसरे डाक्टरों को मिल गया कि वे दिलफेंक और नेहा जैसी बड़े दिल की मरीजों के सामने अपने दिल को काबू में रखें, नहीं तो जो हश्र ऐसे मामलों में होता है, उस से बच पाना मुश्किल ही नहीं, बल्कि नामुमकिन है. रिपुदमन का झूठ ग्वालियर में चर्चा का विषय है कि कैसे एक बेहोश आदमी पूरे जोश से सैक्स क्रियाएं कर रहा है, लेकिन ऐसी रिपोर्ट लिखाना शायद उन की मजबूरी हो गई थी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित और रिपुदमन सिंह परिवर्तित नाम है.

मिलावटी मसालों वाला गिरोह

गाजियाबाद के कस्बा लोनी में स्थित विकास नगर में कुछ उत्साही युवकों ने भंडारे का आयोजन किया था. गली नंबर 8 के पास हलवाई के लिए टेंट लगाया जा चुका था. सब्जी, आटा, घी, तेल वगैरह एकत्र हो चुका था. हलवाई के साथ आए कारीगरों ने भट्ठी तैयार कर ली थी.

सब्जी आलू की बनाई जानी थी, आलू काट लिए गए थे. सब सामान तैयार था, कमी मिर्चमसालों की थी. यह सब लाने का जिम्मा अतुल ने उठाया था. वह अभी तक मसाले देने नहीं आया था, जबकि अतुल के दोस्तों का कहना था, ‘मसाले तो अतुल ने एक हफ्ता पहले ही खरीद लिए थे. मसालों को उसे सुबह ही पहुंचा देना चाहिए था.’ वह नहीं आया, इस के पीछे क्या वजह है कोई नहीं जानता था.

”रामू, तुम अतुल के घर जा कर देखो. कहीं अतुल आज के भंडारे की डेट भूल तो नहीं गया है.’’ गणेश नाम के एक व्यक्ति ने वहां मौजूद एक युवक को संबोधित कर के कहा.

”देखता हूं दादा.’’ रामू सिर हिला कर बोला और गली नंबर 8 में ही स्थित अतुल जैन के घर की तरफ चल पड़ा.

अभी रामू दोचार कदम ही चला था कि सामने से अतुल अपनी स्कूटी से आता हुआ नजर आ गया. रामू के पांव रुक गए. अतुल पास आया, तब रामू को उस की स्कूटी पर मसालों का कट्टा नजर आ गया.

”सब तुम्हारा ही इंतजार कर रहे हैं अतुल. मैं तुम्हें बुलाने जा रहा था कि तुम आ गए.’’

”मैं देर से सोया था, थोड़ी देर पहले ही जागा हूं. अभी नहाया भी नहीं, पहले मसाले पहुंचाने आ गया.’’ अतुल ने कहा और स्कूटी आगे बढ़ा कर टेंट के नजदीक रोक दी.

रामू भी लौट आया. मसाले का कट्टा उतार कर उसी ने हलवाई के पास पहुंचाया, ”लो उस्ताद, मसाले भी आ गए.’’

हलवाई ने कट्टे की रस्सी खोली और टेबल पर कट्टे से मसाले के पैकेट निकाल कर रखने लगा.

अतुल वहां से हट कर गणेश के पास आ गया और बात करने लगा. अभी थोड़ी ही देर हुई थी कि हलवाई उन के पास आ कर खिन्न होते हुए बोला, ”मसाले कहां से उठा कर लाए हो भाई. सारे मसाले नकली हैं. इन से सब्जी में कोई टेस्ट नहीं आएगा.’’

”यह क्या कह रहे हो उस्ताद? मसाले नकली कैसे हो गए, मैं ने तो बाजार भाव में ही खरीदे हैं, किसी रेहड़ी या पटरी से नहीं खरीदे हैं.’’ अतुल हैरान परेशान स्वर में बोला.

”बेशक बाजार भाव से खरीदे हैं लेकिन मैं रातदिन पार्टी भंडारे का काम करता हूं, मुझे मसालों की अच्छे से पहचान है. तुम जो मसाले लाए हो, सब मिलावटी और नकली हैं.’’

”अतुल, उस्तादजी अगर कह रहे हैं कि मसाले नकली हैं तो नकली ही होंगे. तुम जहां से इन्हें लाए हो वापस दे कर अच्छी दुकान से मसाले खरीद लाओ.’’ गणेश ने गंभीर होते हुए कहा.

”मैं ने करावल नगर से ये मसाले खरीदे थे. मैं इन्हें बाद में वापस कर दूंगा. आप ये 2 हजार रुपए रखो और मसाले खरीद लाओ.’’ अतुल ने जेब से 2 हजार रुपए निकाल कर हलवाई को दे दिए.

”मुझे अपनी स्कूटी दे दो, मैं जवाहर नगर से मसाले खरीद कर लाता हूं.’’

”ले जाइए.’’ अतुल ने स्कूटी की चाबी हलवाई की तरफ बढ़ाते हुए कहा, ”रामू, तुम उस्तादजी के साथ चले जाओ.’’

रामू ने सिर हिलाया. हलवाई उसे ले कर मसाले खरीदने चला गया.

नकली मसालों की इस तरह पुलिस को लगी भनक

जब ये बातें हो रही थीं, वहीं पास से गुजर रहा पतला सा व्यक्ति रुक कर उन की बातें सुनने लगा था. हलवाई गया तो वह व्यक्ति लपक कर उन के पास आ गया.

”हलवाई मसालों को नकली बता रहा है, कहीं तुम ये मसाले करावल नगर की उस मसाला फैक्ट्री से तो नहीं लाए हो, जो न्यू नाइस चिकन कार्नर के पास में है?’’ उस व्यक्ति ने गंभीर हो कर पूछा.

”हां, मसाले मैं ने वहीं से खरीदे हैं.’’ अतुल जल्दी से बोला, ”किंतु आप कौन हैं और उस फैक्ट्री के बारे में आप को कैसे जानकारी है?’’

युवक मुसकराया फिर आगे मुंह कर फुसफुसाया, ”मुझे उस के बारे में सब पता है. उस नकली मसाला बनाने वाली फैक्ट्री के ऊपर मेरी कई दिनों से नजर जमी हुई है. मैं तय नहीं कर पा रहा था कि उस फैक्ट्री में असली मसाले तैयार होते हैं या नकली. आज पारखी (हलवाई) ने मेरी परेशानी दूर कर दी. उस फैक्ट्री में नकली मसाले बनाए जाते हैं. अब उस फैक्ट्री पर पुलिस रेड होगी. हां, तुम अभी यह बात कहीं लीक मत करना और कल सुबह अपना माल बदल लेना.’’

”ठीक है.’’ अतुल ने कहा.

वह युवक आराम से टहलता हुआ पैदल ही एक ओर बढ़ गया. अतुल और गणेश उसे हैरानी से देखते रह गए. दरअसल, वह युवक दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच का मुखबिर था.

ASI kanwarpal

       एएसआई कंवर पाल

पहली मई, 2024 को करीब साढ़े 10 बजे मुखबिर साइबर सेल क्राइम ब्रांच के औफिस में पहुंचा. उस वक्त अपने कक्ष में एएसआई कंवर पाल एक जरूरी फाइल देख रहे थे. मुखबिर ने उन्हें सैल्यूट किया तो कंवरपाल मुसकरा पड़े, ”पुलिस की संगत में रह कर तुम भी खुद को पुलिस वाला ही समझने लग गए हो.’’

मुखबिर ने खींसे निपोरी, ”ऐसी बात नहीं है साहब, कहां आप पढ़ेलिखे अफसर और कहां मैं तीसरी पास सड़कछाप आदमी. बस तहजीब कहती है, अपने से बड़े को सम्मान करो, सो कर लेता हूं. आप को तो खुश होना चाहिए साहब.’’

”तुम्हें देख कर खुशी ही होती है, क्योंकि तुम कभी बिना वजह नहीं आते हो.’’ कंवरपाल मुसकरा कर बोले, ”बोलो, क्या खबर है?’’

”साहब, मुझे आप ने करावल नगर में नकली मसाले तैयार होने का पता ठिकाना मालूम करने के काम पर लगाया था.’’

”याद है. हमारी एक टीम नकली मसालों के धंधे का पता लगाने में जुटी हुई है. इस में एसआई प्रवेश, मैं और हैडकांस्टेबल विपिन और अनुज शामिल हैं. तुम ने क्या मालूम किया है?’’

”बहुत कुछ मालूम कर लिया है साहब.’’ मुखबिर एएसआई कंवरपाल के सामने आ कर कुरसी पर बैठते हुए बोला, ”करावल नगर में नकली मसालों को बना कर सप्लाई किया जा रहा है. एक ऐसा गवाह भी मुझे मिल गया है, जिस ने उसी फैक्ट्री से भंडारा करने के लिए मसाले खरीदे थे. भंडारा लोनी के विकास नगर में होना था, मैं कल सुबह वहीं से गुजर रहा था. मुझे पता लगा, जो मसाले करावल नगर से भंडारा करने के लिए खरीदे गए थे, हलवाई ने उन्हें देख कर बता दिया कि वे नकली हैं.’’

”यह पक्की जानकारी है या…’’

”एकदम पक्की है साहब. एक हफ्ते से मैं उस मसाला फैक्ट्री की टोह ले रहा था. वह फैक्ट्री न्यू नाइस चिकन कार्नर के पास स्थित है. मैं ने कल फैक्ट्री में घुस कर पूरी जानकारी जुटाई है. फैक्ट्री में मसाला पीसने की चक्की भी है. वहां बड़े पैमाने पर मसालों में हानिकारक पदार्थ मिलाए जाते हैं.

”लाल मिर्च, हल्दी, धनिया पाउडर, गरम मसाले आदि में सड़ा हुआ सामान डाला जा रहा है जो आम लोगों के लिए बहुत खतरनाक है. इस के प्रयोग से उन की सेहत खराब हो सकती है. साहब, कुछ नामी ब्रांड के नाम से इन मिलावटी मसालों को पैकेटों में भरा जाता है. इन्हें पकड़ा नहीं गया तो ये अपने मुनाफे के लिए दिल्ली ही नहीं, एनसीआर तक में लोगों की तबियत खराब कर डालेंगे. आप इन पर तुरंत ऐक्शन लीजिए.’’

”अगर तुम्हारी सूचना सही हुई तो तुम्हें मोटा ईनाम दिया जाएगा. तुम कुछ देर बाहर रुको, मैं अफसरों को इस की जानकारी दे कर रेड डालने की इजाजत लेता हूं.’’

मुखबिर उठ कर कंवरपाल के कक्ष से बाहर निकल गया. एएसआई कंवरपाल ने इंसपेक्टर वीरेंद्र सिंह को फोन से मुखबिर द्वारा दी गई नकली मसाला फैक्ट्री के बारे में जानकारी दे दी. उन्होंने मुखबिर के साथ तुरंत एएसआई कंवरपाल को अपने कक्ष में आने को कहा.

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                  इंसपेक्टर वीरेंद्र सिंह

एएसआई कंवरपाल अपने कक्ष से निकल कर बाहर आए. मुखबिर बाहर खड़ा था. एएसआई कंवरपाल को देखते ही मुखबिर सावधान हो कर खड़ा हो गया.

”आओ मेरे साथ.’’ एएसआई कंवरपाल ने मुखबिर को इशारा किया और उसे ले कर इंसपेक्टर वीरेंद्र सिंह के औफिस में आ गए.

इंसपेक्टर को सैल्यूट कर के उन्होंने मुखबिर की तरफ देख कर कहा, ”साहब, मैं ने नकली मसाला बनाने वाली फैक्ट्री की टोह में एक सप्ताह पहले इसे लगाया था. यह पक्की जानकारी ले कर आया है.’’

”क्या उस फैक्ट्री में नकली मसाले तैयार किए जाते हैं?’’ इंसपेक्टर वीरेंद्र सिंह ने मुखबिर से पूछा.

”जी हां, साहब. मसालों में हानिकारक चीजें मिला कर वे लोग नामी कंपनियों के पैकेट तैयार करते हैं.’’ मुखबिर ने गंभीर स्वर में कहा, ”वहां तुरंत रेड डालने की जरूरत है.’’

नकली मसाला फैक्ट्री पर रेड के लिए बन गई पुलिस टीम

इंसपेक्टर वीरेंद्र सिंह ने उच्चाधिकारियों से बात कर के उन के निर्देश पर तुरंत एक रेड पार्टी का गठन कर दिया. इस रेड पार्टी में एसआई हरविंदर, प्रवेश राठी, एएसआई विनोद, हैडकांस्टेबल विपिन, अनुज को शामिल किया गया. इन के साथ मुखबिर को जाना था, क्योंकि वह उस फैक्ट्री के बारे में जानता था, जहां नकली मसाले तैयार किए जा रहे थे.

HC Anuj kumar                            HC vipin

                       हैडकांस्टेबल अनुज                                                 हैडकांस्टेबल विपिन

सादे कपड़ों में रेड पार्टी मुखबिर के साथ करावल नगर में स्थित मसाला फैक्ट्री के पास पहुंच गई. दरवाजे खुलवा कर पुलिस टीम फैक्ट्री में घुसी तो वहां काम करने वाले घबरा गए.

HC vinod                                     HC-anand

            एएसआई विनोद                                                             हैडकांस्टेबल आनंद 

एक साथ इतने लोगों को अंदर आया देख कर टेबल के पास बैठा एक व्यक्ति चौंक कर खड़ा हो गया. वह उन्हें देख कर हैरान होते हुए बोला, ”कौन हैं आप लोग? क्या आप यहां पर मसाले खरीदने आए हैं?’’

”हम क्राइम ब्रांच से हैं. काफी समय से हमारी एक टीम तुम लोगों की टोह में थी. आज तुम तक पहुंचने में हमें सफलता मिली है.’’

वह व्यक्ति बुरी तरह घबरा गया. वह हड़बड़ा कर बोला, ”सर, ऐसा कुछ नहीं है. यहां कोई नकली मसाला नहीं बनाया जाता.’’

एसआई हरविंदर ने एक करारा झापड़ उस की कनपटी पर रसीद कर दिया, ”मैं ने यह कहां कहा कि यहां नकली मसाला बनता है! तुम क्यों सफाई देने लगे?’’

”जी, मैं सच कह रहा हूं.’’ वह थप्पड़ खा कर अपना गाल सहलाते हुए बोला.

”हम देख लेंगे, सच क्या है.’’ एसआई हरविंदर ने टीम को इशारा किया, ”आप अंदर देखिए.’’

टीम के सभी सदस्य अंदर लपके.

SI Harvinder singh                    SI parvesh

            एसआई हरविंदर                                                           एसआई प्रवेश राठी

अंदर एक अधेड़ व्यक्ति मैन्युफैक्चरिंग यूनिट के अंदर हल्दी पीसता मिला. उसे अपने काबू में कर के टीम यूनिट का मुआयना करने लगी. अंदर काफी कट्टे रखे थे. इन में देखा गया तो पूरी टीम के होश उड़ गए.

अंदर कट्टों में खराब चावल की किनकी, सड़े हुए गोले (नारियल), पशुओं को खिलाने वाला चोकर, सड़े हुए बेर, जामुन की गुठलियां, हल्दी की गांठ, अमचूर पाउडर, मसाले की पत्तियां, साबुत धनिया, लाल मिर्च साबुत, लाल मिर्च के डंठल, आर्टिफिशियल कलर, तेल आदि मिले. कुछ बोरों में यूकेलिप्टस के पत्ते, लकड़ी का बारीक बुरादा भी भरा मिला.

Nakli masale

चक्की के पास पिसी हुई हल्दी पड़ी थी. क्राइम ब्रांच की टीम हैरान थी कि रुपया कमाने के लिए ये लोग सब की जिंदगी और सेहत के साथ खतरनाक खिलवाड़ कर रहे थे. सड़े हुए चावल, सड़े हुए गोले, यूकेलिप्टस के पत्ते, लकड़ी का बुरादा मसाला तैयार करने में इस्तेमाल किया जा रहा था.

पुलिस ने बुलाया फूड सेफ्टी डिपार्टमेंट के अफसरों को

इस में जहरीला कलर, सड़ा हुआ सरसों तेल, पशुओं का चोकर, सड़े बेर, जामुन की गुठलियां, सड़ा नारियल तक पीसा जा रहा था. साइट्रिक एसिड भी मिलाया जाता था.

यहां 2 व्यक्ति थे. इन के नाम पूछे गए. एक ने अपना नाम खुर्शीद मलिक (42 वर्ष). पता गिरी मार्केट, लोनी, गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश, बताया. दूसरे का नाम दिलीप सिंह उर्फ बंटी (46 वर्ष) निवासी दयालपुर, मेन रोड करावल नगर, दिल्ली.

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       आरोपी खुर्शीद मलिक

यह फैक्ट्री दिलीप सिंह की थी. यह पिछले 6-7 महीने से बी-24ए दयालपुर, करावल नगर, दिल्ली, नजदीक न्यू नाइस चिकन कार्नर में किराए पर यह मैन्युफैक्चरिंग यूनिट चला रहा था.

दिलीप सिंह ने पूछताछ में बताया कि वह मिलावटी मसाला तैयार कर नामी ब्रांड के मसालों के नकली रैपर्स में भर कर दिल्ली की खारी बावली, मिठाई पुल, मुस्तफाबाद, लोनी, गाजियाबाद, सदर बाजार में थोक व फुटकर में बेच कर मोटी कमाई कर रहा था.

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      आरोपी दिलीप उर्फ बंटी

सभी नकली मसालों के सैंपल लेना जरूरी था. एसआई प्रवेश ने फूड सेफ्टी औफिसर (जीएनसीटी) को सूचित कर के सारी बात बताई और टीम को करावल नगर आने के लिए कहा.

यह काररवाई चल ही रही थी कि अपनी स्कूटी पर अतुल जैन वह मसालों का कट्टा ले कर वहां आ गया, जो उस ने 23 अप्रैल को ही भंडारे के लिए वहां से खरीदे थे.

आते ही वह दिलीप उर्फ बंटी से झगड़ा करने लगा, ”तुम से मैं ने जो मसाले खरीदे थे, वे नकली हैं. तुम यहां नकली मसाले बनाने का धंधा करते हो?’’ अतुल जैन गुस्से में बोला, ”मैं तुम्हारी पुलिस में शिकायत करूंगा.’’

”हम क्राइम ब्रांच से हैं.’’ एसआई हरविंदर ने अतुल के पास आ कर कहा, ”यह मिलावटी मसाले बनाने और बेचने के जुर्म में हमारी गिरफ्त में है. क्या तुम इस के खिलाफ गवाही दोगे मिस्टर अतुल?’’

”अवश्य दूंगा सर, ऐसे लोगों को कानून की तरफ से सख्त से सख्त सजा मिलनी चाहिए.’’ वह बोला.

”गुड बौय.’’ एसआई हरविंदर ने अतुल की पीठ थपथपाई, ”तुम अपनी कंप्लेंट हमें लिखवा दो. मिस्टर विनोद, आप अतुल की लिखित शिकायत ले लो.’’

”ओके सर.’’ एएसआई विनोद अपने साथ अतुल को ले कर एक तरफ चले गए.

थोड़ी ही देर में मंसूर अली, एफएसओ तथा फूड ऐंड सेफ्टी डिपार्टमेंट, दिल्ली सरकार अपनी टीम के साथ वहां आ गए. उन्होंने आते ही हल्दी पाउडर, मिर्च, मिर्च पाउडर, अमचूर, धनिया पाउडर, गरम मसाले की शुद्धता जांचने के लिए इन के सैंपल लिए. इसी प्रकार उपरोक्त सभी मसालों के सैंपल पौलीथिन में ले कर उन के नंबर लिखे गए. इस के बाद दिलीप सिंह उर्फ बंटी की निशानदेही पर निम्नलिखित सामान पुलिस कब्जे में लिया गया.

खुली पड़ी हल्दी को अलगअलग 3 प्लास्टिक कट्टों में भर कर उन कट्टों को वहां रखी इलैक्ट्रोनिक मशीन पर तौला गया. पहला कट्टा एस-1 का वजन 46 किलोग्राम, दूसरे कट्टे एस- 2 का वजन 41 किलोग्राम, तीसरे कट्टे एस-3 का वजन 42 किलोग्राम निकला था.

ऐसे ही सीरियल नंबर डाल कर सभी सड़े हुए गोले, सड़ी हुई चावल किनकी, लकड़ी का बुरादा, यूकेलिप्टस के पत्ते, एसिड, तेल, सड़े हुए बेर, जामुन की गुठलियां आदि का वजन कर के उन के सैंपल ले लिए गए.

छापे के दौरान एक और नकली मसाला बनाने वाली फैक्ट्री का पता चला

अभी यह सब काम निपटने ही वाला था कि एएसआई विनोद अपने साथ अतुल जैन को ले कर वापस आ गए. उन्होंने अतुल जैन द्वारा इस फैक्ट्री से खरीदे गए नकली मसालों का हवाला दे कर एक लिखित कंप्लेट लिख ली थी.

अतुल जैन ने आते ही एक धमाका किया. वह एसआई हरविंदर से बोला, ”सर, यहीं पास में ही काली घटा रोड पर एक दूसरी मैनुफैक्चरिंग यूनिट है, वहां भी इसी प्रकार नकली मसाला बनाया जाता है. यही सब जहरीली और नुकसान पहुंचाने वाली सड़ीगली चीजें मिला कर वहां भी नामी कंपनियों के पैकेट तैयार किए जाते हैं.’’

एसआई हरविंदर चौंके, ”ऐसा है तो वहां भी छापा डालते हैं, तुम हमें वहां ले चलो.’’

”आइए सर,’’ अतुल जैन ने कहा.

एसआई हरविंदर ने हैडकांस्टेबल विपिन कुमार और अनुज को वहां छोड़ा और अपनी टीम तथा फूड ऐंड सेफ्टी तथा एफएसओ मंसूर अली को साथ ले कर अतुल जैन के इशारे पर काली घटा रोड पर उस मैनुफैक्चरिंग यूनिट में पहुंच गए, जहां नकली मसालों को तैयार किया जा रहा था.

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           आरोपी सरफराज

यहां पर उन्हें सरफराज (32 वर्ष) निवासी 1385/15, मुस्तफाबाद, दिल्ली मिला. वहां फर्श पर हल्दी की तरह दिखने वाला पीला चाट मसाला पाउडर का मिक्सर पड़ा था. सरफराज से इस पाउडर के बारे में पूछा गया तो वह कोई जवाब नहीं दे पाया, न लाइसैंस संबंधित कागजात दिखा पाया. उसे क्राइम ब्रांच टीम ने गिरफ्त में ले लिया.

इस मसाला फैक्ट्री में भी सड़ा हुआ सामान जैसा करावल नगर की फैक्ट्री से बरामद किया गया, यहां भी भारी मात्रा में भरा हुआ था. उन के सैंपल लिए गए. जरूरी सैंपल निकाल कर दोनों फैक्ट्रियों को लौक लगा कर उन्हें सील लगा दी गई.

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क्राइम ब्रांच की टीम दिलीप सिंह उर्फ बंटी, सरफराज तथा खुर्शीद को साथ ले कर वापस औफिस में आ गई. लेडी एसआई निशा रानी (क्राइम ब्रांच) द्वारा मसाला फैक्ट्रियों में नकली और जहरीले मसाला बनाए जाने का मामला भादंवि की धारा 272/273/420/34 के तहत करवाया गया.

दिलीप उर्फ बंटी और सरफराज फैक्ट्री के मालिक थे, जबकि खुर्शीद इन से माल खरीद कर अपने टैंपो द्वारा दिल्ली तथा एनसीआर के बाजारों में सप्लाई करता था और मोटा मुनाफा कमाता था.  इन के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर के उन्हें कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया गया. मामले की जांच एएसआई कंवरपाल को सौंप दी गई.

कानून को तमाशा बनाने के चक्कर में

उत्तराखंड की राजधानी देहरादून के सुभाष रोड स्थित प्रदेश पुलिस मुख्यालय में उस दिन भी रोज की ही तरह पुलिस महानिदेशक बी.एस.  सिद्धू समेत अन्य अधिकारी अपनेअपने औफिसों में बैठे कार्य में लगे थे. पुलिस अधीक्षक ममता वोहरा भी अपने औफिस में जरूरी फाइलें निपटा रही थीं, तभी ड्यूटी पर तैनात उन के पीए ने इंटरकौम से सूचना दी, ‘‘मैडम, एक लड़की आप से मिलना चाहती है.’’

‘‘ठीक है, उसे अंदर भेज दो.’’ ममता वोहरा ने कहा.

उन के कहने के पल भर बाद एक लड़की दरवाजे पर टंगा परदा हटा कर अंदर आ गई. लड़की को देखते ही वह पहचान गईं. उस का नाम गुडि़या था और वह एक बहुचर्चित दुराचार मामले की वादी थी. उन्हें लगा, लड़की अपने केस की प्रगति के बारे में जानने आई है, इसलिए उन्होंने कहा, ‘‘कहिए सब ठीक तो है? हमारी पुलिस उसे गिरफ्तार करने की कोशिश में लगी है. वह जल्दी ही पकड़ा जाएगा.’’

‘‘वह तो ठीक है मैडम, लेकिन…’’ लड़की ने इतना ही कहा था कि ममता वोहरा ने पूछा, ‘‘लेकिन क्या…’’

‘‘मैडम, मैं अपना बयान दोबारा देना चाहती हूं.’’ गुडि़या ने कहा.

सवालिया नजरों से उसे घूरते हुए पूछा, ‘‘मतलब?’’

‘‘मैडम, रिपोर्ट दर्ज कराने के बाद मैं ने जो बयान दिया था, अब उस में मैं कुछ बदलाव करना चाहती हूं.’’

‘‘क्यों?’’ एसपी वोहरा ने हैरानी से पूछा.

‘‘मैडम, उस समय मेरी तबीयत ठीक नहीं थी. उलझन में पता नहीं मैं ने क्या कुछ कह दिया था. गफलत में जो कह गई, अब उस में सुधार करना चाहती हूं.’’

इतना कह कर गुडि़या ने एक कागज उन की ओर बढ़ा दिया. ममता वोहरा ने उसे ले कर गौर से पढ़ा. उस में उस ने अपना बयान बदलने के बारे में लिखा था. उसे पढ़ कर उन्हें हैरानी हुई कि आखिर यह ऐसा क्यों करना चाहती है. उस का मामला काफी गंभीर ही नहीं था, बल्कि पूरे प्रदेश में चर्चा का विषय भी बना हुआ था.

इसलिए विचारों से निकल कर उन्होंने गुडि़या से कहा, ‘‘देखो, मुझे इस मामले में अपने अधिकारियों से बात करनी पड़ेगी. तुम अपना यह प्रार्थना पत्र मेरे पास छोड़ जाओ.’’

गुडि़या ने अपना वह प्रार्थना पत्र उन्हीं के पास छोड़ दिया और बाहर आ गई. यह 5 मई, 2014 की बात थी.

पुलिस अधीक्षक ममता वोहरा के लिए यह हैरानी की बात थी कि लगातार न्याय की मांग करती आ रही लड़की अचानक अपनी बात से पलटना क्यों चाहती है. पीडि़त होने के नाते उस के साथ उन की शुरू से ही सहानुभूति रही थी.

पुलिस अधीक्षक ममता वोहरा ने गुडि़या द्वारा दिए गए प्रार्थना पत्र से अधिकारियों को अवगत करा दिया. इस मुद्दे पर डीजीपी बी.एस. सिद्धू ने अपर पुलिस महानिदेशक (एडीजी) आर.एस. मीना और एसएसपी अजय रौतेला के साथ रायमशविरा किया.

अधिकारी गुडि़या के इस कदम से न केवल हैरान थे, बल्कि असमंजस की स्थिति में भी थे. मामला हाईप्रोफाइल था. इसलिए अधिकारियों को जब पता चला कि गुडि़या ने 2 दिन पहले अदालत में भी अपना बयान दोबारा कराने के लिए शपथ पत्र दिया है तो उन्हें चिंता हुई. यह बात अलग थी कि उस के उस शपथ पत्र पर अभी सुनवाई नहीं हुई थी.

गुडि़या के इस कदम से पुलिस को अनेक आशंकाएं हुईं. इस की वजह यह थी कि अभी अभियुक्त की गिरफ्तारी नहीं हुई थी. जबकि पुलिस की कई टीमें उस का गैरजमानती वारंट लिए अंतरराज्यीय स्तर पर उस की तलाश कर रही थीं.

अभियुक्त रसूख, राजनीतिक पहुंच और दौलत वाला था. लड़की को बयान बदलने के लिए डराया धमकाया भी जा सकता था. कहीं इसी वजह से तो गुडि़या बयान बदलने के लिए मजबूर नहीं है? अगर सचमुच में ऐसा था तो यह कानून के लिए एक बड़ी चुनौती थी. अभियुक्त के गिरफ्तार न होने से पुलिस वैसे ही सवालों के घेरे में थी.

दरअसल 18 अप्रैल, 2014 को गुडि़या ने देहरादून के थाना राजपुर में एक मुकदमा दर्ज कराया था. जिस से पूरे उत्तराखंड राज्य में सनसनी फैल गई थी. यह मुकदमा प्रदीप सांगवान के खिलाफ दर्ज कराया गया था.

सनसनी की वजह यह थी कि मूलरूप से सोनीपत का रहने वाला प्रदीप सांगवान कोई मामूली आदमी नहीं था. उस के पिता किशनचंद सांगवान भारतीय जनता पार्टी से सांसद रह चुके थे. वह खुद भी एक राष्ट्रीय पार्टी से जुड़ा हुआ था.

उस ने देहरादून और पहाड़ों की रानी मसूरी में अपना घर बना रखा था. इस के अलावा देहरादून के सहस्रधारा स्थित पिकनिक स्थल के रूप में विकसित किए गए जौयलैंड वाटर पार्क का मालिक भी था. देहरादून में उस के रहने की यही वजहें थीं.

गुडि़या ने आरोप लगाया था कि प्रदीप सांगवान ने उस के साथ न सिर्फ दुष्कर्म किया था, बल्कि उस दौरान उस की एक वीडियो क्लिप भी बना ली थी. जिस के बल पर वह उस का यौन शोषण कर रहा था. उस वीडियो क्लिप को सार्वजनिक करने और सोशल नेटवर्किंग साइट ‘फेसबुक’ पर डालने की धमकियां दे कर वह उस का मनचाहा इस्तेमाल कर रहा था. उसे जो धमकियां दी जा रही थीं, उस के सुबूत में उस ने अपने मोबाइल फोन में पुलिस को कुछ मैसेज भी दिखाए थे.

मामला बेहद गंभीर था. ऐसे मामलों में कानून हर तरह से पीडि़ता के साथ होता है. उस की बात को गंभीरता से सुना ही नहीं जाता, बल्कि तुरंत काररवाई भी की जाती है. राजपुर के थानाप्रभारी  प्रदीप राणा ने तुरंत इस बात की उच्चाधिकारियों को जानकारी दी थी, जहां से उन्हें उचित काररवाई के निर्देश मिले थे.

गुडि़या की शिकायत व बयानों के आधार पर थानाप्रभारी ने मुकदमा अपराध संख्या 33/14 पर नामजद मुकदमा दर्ज करा दिया था और मामले की जांच इंसपेक्टर अंशू चौधरी को सौंपी गई थी. चूंकि मामला रसूखदार आदमी से जुड़ा था, इसलिए यह मीडिया वालों के लिए सुर्खियां बन गया था.

मुकदमा दर्ज होते ही एसएसपी अजय रौतेला ने पुलिस अधीक्षक (नगर) नवनीत भुल्लर, होमीसाइड सेल के प्रभारी प्रदीप टमटा और स्पेशल टास्क फोर्स की टीम को भी प्रदीप सांगवान की गिरफ्तारी के लिए लगा दिया था. पुलिस उस की तलाश में निकली तो वह गायब मिला.

प्रदीप सांगवान से मिलने से ले कर दुराचार तक की जो कहानी गुडि़या ने पुलिस को बताई थी, वह कम चौंकाने वाली नहीं थी. वह पूरी कहानी कुछ इस प्रकार थी, जिस में वह एक खूबसूरत जाल में उलझ कर रह गई थी.

गुडि़या उत्तरप्रदेश के जिला बिजनौर की रहने वाली थी. नौकरी व सुनहरे भविष्य की तलाश में वह साल 2012 में देहरादून आ गई थी. देहरादून में वह अपनी एक सहेली के पास रुकी थी. यहां कोई नौकरी कर के वह अपने पैरों पर खड़ी होना चाहती थी. उस ने नौकरी की तलाश भी शुरू कर दी. कुछ जगह उसे अवसर मिले भी, परंतु काम पसंद नहीं आया.

तब उस की उस सहेली ने कहा, ‘‘तू किसी प्लेसमेंट एजेंसी का सहारा क्यों नहीं लेती?’’

‘‘मैं खुद ही कोई बढि़या नौकरी तलाश लूंगी. अखबार रोज देख ही रही हूं, कहीं न कहीं नौकरी मिल ही जाएगी.’’

‘‘अरे हां, कल मैं ने देखा था, जौयलैंड वाटर पार्क में कैशियर की जगह खाली है. वहां ज्यादा काम भी नहीं है. कोशिश करो, शायद तुम्हें वहां नौकरी मिल ही जाए.’’

अगले ही दिन गुडि़या अपना बायोडाटा ले कर जौयलैंड पार्क जा पहुंची. थोड़े इंतजार के बाद वाटर पार्क के मालिक प्रदीप सांगवान से उस की मुलाकात भी हो गई. पहली नजर में प्रदीप सांगवान गुडि़या को अच्छा आदमी लगा. गुडि़या को इस से भी ज्यादा खुशी तब हुई, जब औपचारिक बातचीत के बाद उस ने उसे नौकरी पर रख लिया.

अगले दिन यानी 24 जून, 2012 से गुडि़या अपनी नौकरी पर जाने लगी. उसे कैशियर के पद पर रखा गया था, इसलिए वाटर पार्क में आनेजाने वाले पैसों का हिसाब उसे ही रखना था. बैंक के लेनदेन का हिसाब भी उसे ही देखना था, इस के अलावा पार्क से होने वाली प्रतिदिन कमाई की एंट्री भी उसे ही करनी थी.

गुडि़या मेहनत कर के जमाने की रफ्तार के साथ आगे बढ़ना चाहती थी. सोच की इसी इमारत पर नौकरी के रूप में उस ने पहली सीढ़ी पर कदम रखा. वह सुंदर भी थी और मेहनती भी. उत्तराखंड की आबोहवा उसे शुरू से ही पसंद थी. कुछ ही दिनों में अपने काम से उस ने सभी का दिल जीत लिया.

जल्दी ही वह वाटर पार्क में काम करने वाले अन्य लोगों से भी घुलमिल गई थी. उस का सोचना था कि वहां नौकरी करते हुए उस के सपने पूरे होंगे. अपवाद को छोड़ दिया जाए तो जिंदगी के सफर के रास्ते हर इंसान अपनी ओर से अच्छा ही चुनता है.

रास्ते सीधे भी होते हैं तो कई मोड़ से भी हो कर गुजरते हैं. मोड़ वाले रास्ते में कब, कौन, किस तरह की कड़वी हकीकत से रूबरू हो जाए, इस बात को कोई नहीं जानता. कभीकभी अचानक ऐसे भी मोड़ आ जाते हैं, जब इंसान को अपना अक्स भी धुंधला नजर आने लगता है. गुडि़या के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ.

नौकरी के उस के 2 सप्ताह बड़ी अच्छी तरह बीते. वह बहुत खुश थी. वक्त पंख लगा कर उड़ रहा था. तीसरा सप्ताह चल रहा था. एक दिन प्रदीप ने कहा, ‘‘गुडि़या आज तुम्हें मेरे साथ मसूरी चलना है.’’

‘‘क्यों सर?’’

‘‘वहां एक प्रिंसिपल हैं. मैं तुम्हें उन से मिलवाना चाहता हूं, क्योंकि उन्हें मार्केटिंग का बहुत अच्छा नौलेज है. मैं चाहता हूं कि तुम उन से कुछ सीख लो, जिस का तुम्हें भी लाभ होगा और हमें भी.’’

‘‘ओके सर.’’ गुडि़या ने हामी भर दी. वह प्रदीप के यहां नौकरी करती थी. मन में कोई आशंका थी नहीं, जिस की वजह से वह उस के साथ जाने से मना कर देती. वह जाने के लिए तैयार हो गई. उसे क्या पता था कि उसे बहाने से एक ऐसे खूबसूरत जाल में उलझाया जा रहा है, जिस में फंस कर वह छटपटा कर रह जाएगी.

शाम तक वह प्रदीप के साथ पहाड़ों की रानी मसूरी पहुंच गई. देहरादून से वहां पहुंचने में एक घंटे से भी कम समय लगा. वहां पहुंच कर प्रदीप ने कहा, ‘‘हम तो आ गए, लेकिन…’’

‘‘लेकिन क्या सर?’’ गुडि़या ने पूछा.

‘‘प्रिंसिपिल यहां हैं ही नहीं.’’

‘‘कब आएंगी?’’

‘‘कह नहीं सकता. क्योंकि उन का मोबाइल बंद है.’’

मसूरी में भी प्रदीप का घर था. उस ने कह उस रात गुडि़या को वहीं रुकने के लिए तैयार कर लिया. फिर वह रात गुडि़या के लिए कयामत की रात साबित हुई. गुडि़या के अनुसार प्रदीप ने शराफत का नकाब उतार कर उस रात कई बार उस के साथ जबरदस्ती की. उस ने उस दौरान की वीडियो क्लिप भी बना ली.

सुबह उस ने गुडि़या से साफसाफ कह दिया कि अगर उस ने इस बारे में किसी से कुछ कहा या आगे उस की बात नहीं मानी तो उस की इस क्लिप को फेसबुक पर अपलोड कर दिया जाएगा, जिसे सारी दुनिया देखेगी.

सब कुछ गंवा कर गुडि़या अपनी बदकिस्मती पर आंसू बहा कर रह गई. इस के बाद से उस के यौन शोषण का सिलसिला चल निकला. यह सब होते धीरेधीरे एक साल से ज्यादा हो गया. वह आंसू बहा कर रह जाती थी.  वहां जब भी विरोध करती, उसे धमका दिया जाता. गुडि़या को अपनी जिंदगी दोजख सी लगने लगी. जब वह कुछ ज्यादा ही परेशान हो गई तो इंसाफ के लिए पुलिस की दहलीज पर जा पहुंची और प्रदीप के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करा दी.

मामला प्रकाश में आते ही चर्चा का विषय बन गया. इस की राजनीति के गलियारों में भी चर्चा हो रही थी. पुलिस ने गुडि़या का मैडिकल कराया. 22 अप्रैल को सिविल जज (तृतीय) के यहां धारा 164 के तहत उस का बयान दर्ज कराया. अगले दिन पुलिस ने गुडि़या का कलमबंद बयान दर्ज किया, जिस में उस ने अपने साथ हुई पूरी घटना को दोहरा दिया.

जांच अधिकारी इंसपेक्टर अंशू चौधरी ने सुबूत जुटाने के लिए घटनास्थल मसूरी के रिहाइशी इलाके और वाटर पार्क का निरीक्षण कर के नक्शा तैयार किया. पुलिस सुबूत जुटाने में कोई कमी नहीं छोड़ना चाहती थी, इसलिए वाटर पार्क के कर्मचारियों समेत करीब 16 लोगों के बयान दर्ज किए.

मामला पहुंच वाले आदमी से जुड़ा था, पुलिस तथ्यों के आधार पर ही आगे की काररवाई करना चाहती थी. प्रदीप की गिरफ्तारी के लिए पुलिस की टीमें गठित कर दी गई थीं, जो लगातार उसे तलाश रही थीं. कई दिन बीत गए, वह हाथ नहीं आया.

3 मई को पुलिस ने उस के देहरादून स्थित आवास पर छापा मारा. वह तो फरार था, इसलिए कहां से मिलता. पुलिस ने वहां की जांचपड़ताल के दौरान मोबाइल, लैपटौप और अन्य समान बरामद किया. इस के बाद पुलिस ने अदालत से उस का गैरजमानती वारंट हासिल कर लिया. अदालत ने प्रदीप को भगोड़ा भी घोषित कर दिया.

प्रदीप के जहांजहां मिलने की संभावना थी, वहांवहां पुलिस टीमें छापा मार रही थीं. चंडीगढ़, दिल्ली, मेरठ में संभावित ठिकानों पर उस की तलाश की गई. मामले ने काफी तूल पकड़ा तो इस की जांच पुलिस अधीक्षक ममता वोहरा को सौंप दी गई. वह बिना किसी दबाव के पीडि़ता को इंसाफ दिलाना चाहती थीं. इस के लिए तमाम सामाजिक संगठन आवाज भी उठा रहे थे.

पुलिस प्रदीप सांगवान को पकड़ने के लिए जीजान से जुटी थी, तभी गुडि़या ने अचानक बयान बदलने का शपथ पत्र दिया तो पुलिस अधिकारी अजीब उलझन में पड़ गए. इस से पुलिस को आशंका हुई कि कहीं उस की जान खतरे में तो नहीं है. किसी दबाव में तो वह ऐसा नहीं कर रही है.

पुलिस महानिदेशक बी.एस. सिद्धू ने अधीनस्थों को निर्देश दिए कि पहले यह सुनिश्चित किया जाए कि पीडि़ता की जान खतरे में तो नहीं है. इस के बाद यह पता लगाया जाए कि वह ऐसा कर क्यों रही है?

उसे प्रत्यक्ष रूप से सुरक्षा देने से उस की पहचान उजागर हो सकती थी, इसलिए उसे प्रत्यक्ष रूप से सुरक्षा न दे कर उस पर खुफिया नजर रखने के लिए एक टीम लगा दी गई. इसी के साथ उस का नंबर सर्विलांस पर लगा दिया गया कि अगर कोई उसे डराधमका रहा होगा तो यह बात भी सामने आ जाएगी.

इतना सब कर के प्रदीप की गिरफ्तारी के प्रयासों की समीक्षा कर के कोशिश और तेज कर दी गई. अधिकारियों के निर्देशानुसार पुलिस टीमें तेजी से काम में जुट गईं. इस में स्पेशल इन्वेस्टिगेटिव टीम के सदस्यों को भी शामिल किया गया था. पुलिस ने अदालत से प्रदीप का कुर्की वारंट भी हासिल कर लिया था.

12 मई को गुडि़या द्वारा अदालत में बयान बदलने संबंधी शपथ पत्र पर सुनवाई हुई. अदालत ने उस की अपील को नामंजूर करते हुए कहा, ‘‘न ऐसा कोई कानूनी प्रावधान है और न ही यह विधि सम्मत है.’’

गुडि़या की बात अदालत ने नहीं मानी थी. यह उस के लिए एक बड़ा झटका था.

अगले दिन यानी 13 मई को इस मामले में अचानक चौंकाने वाला मोड़ आ गया. पुलिस महानिदेशक बी.एस. सिद्धू ने आननफानन इस मामले को ले कर प्रेसवार्ता बुलाई तो सभी ने सोचा कि अभियुक्त गिरफ्तार हो गया होगा. लेकिन जो हुआ, उस की किसी ने कल्पना नहीं की थी.

दरअसल पुलिस ने गुडि़या को ही गिरफ्तार कर लिया था. उस पर पुलिस को गुमराह करने और अभियुक्त को ब्लैकमेल कर के समझौता करने का आरोप था. यह आरोप फोरैंसिक सुबूतों के साथ था, जिस में यह आरोप किसी और ने नहीं, पुलिस ने ही लगाया था.

गोपनीय रूप से गुडि़या की निगरानी कर रही पुलिस को जांच में पता चला था कि उस ने दुराचार के मामले में समझौते के लिए एक बड़ा सौदा कर लिया था.

उसी सौदे के बाद अभियुक्त प्रदीप को बचाने के लिए वह अपना बयान बदलना चाहती थी. इज्जत का यह सौदा मामूली रकम में नहीं, आधा करोड़ रुपयों से भी ज्यादा में हुआ था. रकम से गुडि़या ने मकान और सुखसुविधा के आधुनिक साधन जुटा भी लिए थे. पुलिस ने उस के पास से लाख रुपए नकद बरामद भी किए थे.

पुलिस ने गुडि़या के साथ उस के एक दोस्त सईद को भी गिरफ्तार किया था. इस सौदेबाजी में दिल्ली निवासी अजय मान ने अपने जीजा प्रदीप सांगवान को बचाने में सईद की मार्फत गुडि़या से बात की थी.

समझौता चूंकि दोनों पक्षों की रजामंदी से हुआ था, इसलिए कोई भी एकदूसरे के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज नहीं करा सकता था. इसलिए गुडि़या, उस के साथी और अजय के खिलाफ थाना कोतवाली में सबइंस्पेक्टर नीलम रावत की ओर से ब्लैकमेलिंग का मुकदमा दर्ज किया गया था.

प्रदीप सांगवान पर दर्ज मुकदमों की धाराओं में सुबूतों को प्रभावित करने की धारा 201 बढ़ा दी गई थी. गुडि़या की गिरफ्तारी के पीछे चौंकाने वाली जो कहानी थी, वह इस प्रकार थी.

पुलिस ने गुडि़या पर नजर रखनी शुरू की तो उस की काल डिटेल्स में 2 संदिग्ध नंबर नजर आए. दोनों नंबरों की जांच की गई तो पता चला कि उन में से एक नंबर दिल्ली के रहने वाले अजय का था तो दूसरा सईद चौधरी का.

पुलिस को लगा कि वही दोनों गुडि़या को धमका रहे हैं. इसी शक के आधार पर गुडि़या के मोबाइल की रिकौर्डिंग शुरू की गई तो मामला कुछ दूसरा ही सामने आया. अजय प्रदीप सांगवान का साला था तो सईद गुडि़या का दोस्त. सईद उत्तराखंड के ही जिला ऊधमसिंहनगर के काशीपुर के रहने वाले इफ्तिखार हुसैन का बेटा था.

गुडि़या की उस से रोज ही बातें होती थीं. मोबाइल की काल रिकौर्डिंग से पता चला कि वे उसे धमकी नहीं देते थे, बल्कि समझौते की बात करते थे. गुडि़या की समझौते की बात हो चुकी थी.

एक दिन सईद ने फोन कर के पूछा, ‘‘क्या हाल है गुडि़या?’’

‘‘मैं ठीक हूं.’’

‘‘उस ने पैसे दिए कि नहीं?’’

‘‘अभी उस ने पैसे कहां दिए हैं?’’ गुडि़या ने कहा तो सईद बोला, ‘‘फिर भी तुम ने कोर्ट में अर्जी लगा दी.’’

‘‘हां, अर्जी तो लगा दी है, लेकिन मैं ने यह नहीं कहा है कि मैं बयान वापस ले रही हूं. मैं ने अर्जी में लिखा है कि पहले दिए गए बयान में कुछ तथ्य छूट गए हैं, जिस की वजह से मैं दोबारा बयान देना चाहती हूं. उस हिसाब से मैं कुछ भी कह सकती हूं.’’

‘‘ऐसा तो नहीं कि बयान बदल देने के बाद वह बाकी पैसे देने में दिक्कत करे?’’

‘‘कुछ कहा नहीं जा सकता. कर भी सकते हैं. इसीलिए मैं ने ऐसा लिखा है.’’

‘‘खैर, तुम दोनों तरफ से सेफ हो. मैं ने तुम्हारी हर तरह से मदद की है. पैसे के लिए क्या कह रहा था?’’

‘‘कह रहा था 5 लाख अभी ले लो, बाकी इलेक्शन के बाद दे दूंगा. मेरे नाम मकान की रजिस्ट्री तो करा दी है, कुछ पैसे भी दिए हैं, जिस से मैं ने घर का सामान खरीद लिया है.’’

‘‘वह डबल गेम तो नहीं खेल रहा?’’

‘‘मैं अजय से बात कर लूंगी. अगर वह पैसे दे देगा, तभी मैं अपना केस वापस लूंगी.’’

‘‘अभी तुम अजय से कोई बात मत करो. जब मैं कहूंगा, तभी करना. देख लेना और जैसा भी हो बता देना.’’

‘‘टेंशन मत लो, अभी गेंद मेरे ही पाले में है. ओके बाय.’’ अपनी बात पूरे आत्मविश्वास के साथ कह कर गुडि़या ने फोन काट दिया.

ये बातें सुन कर पुलिस सन्न रह गई थी. समझते देर नहीं लगी कि दुराचार के इस मामले में पुलिस और कानून को तमाशा बनाया जा रहा है.

पुलिस ने गुडि़या के खिलाफ सुबूत जुटाने शुरू कर दिए. उस ने अपने नाम मकान की रजिस्ट्री की बात की थी. इस के लिए दस्तावेजों की जांच जरूरी थी. पुलिस ने रजिस्ट्री औफिस से एक महीने के अंदर मकानों की खरीदफरोख्त करने वाले लोगों की सूची हासिल कर ली.

लेकिन इस सूची की जांच की गई तो उस में गुडि़या का नाम नहीं था. यह हैरान करने वाली बात थी. जबकि फोन टेपिंग में उस ने स्पष्ट कहा था कि उस के नाम एक मकान की रजिस्ट्री हुई थी.

पुलिस ने रजिस्ट्री औफिस जा कर जब हो चुकी रजिस्ट्री की एंट्री करने वाला रजिस्टर चेक किया तो सच्चाई का पता चल गया. क्योंकि उस रजिस्टर पर खरीदारों के फोटो चस्पा होते हैं. यह एक चौंकाने वाली जानकारी हाथ लगी. खरीदारों की सूची में फोटो तो गुडि़या का लगा था, लेकिन उस में नाम दूसरा था. शायद ऐसा उस ने चालाकी से किया था. उस ने नाम तो बदल दिया था, परंतु चेहरा कैसे बदलती.

वह मकान मोहल्ला बंजारावाला में मीनाक्षी बिष्ट से 2 मई, 2014 को 17 लाख रुपए में खरीदा गया था. पुलिस के अनुसार उस मकान की वास्तविक कीमत 35 लाख रुपए थी. शायद स्टांप ड्यूटी बचाने के लिए उस का बैनामा 17 लाख रुपए में कराया गया था.

अब तक प्राप्त सुबूतों में अभियुक्त को ब्लैकमेल करने की पुष्टि हो गई थी. सुबूत पक्के थे, इसलिए पुलिस ने गुडि़या की गिरफ्तारी की योजना बना कर अदालत से वारंट हासिल किया और छापा मार कर उसे गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ में पता चला कि ब्लैकमेलिंग से मिली रकम से उस ने अपने लिए आधुनिक सुखसुविधाओं के तमाम साधन जुटा रखे थे.

ब्लैकमेलिंग में गुडि़या के दोस्त सईद ने मदद की थी, इसलिए उसे भी शिकंजे में लेना जरूरी था. गुडि़या और उस की बातचीत से पुलिस को पता चल चुका था कि अजय मान ने उसे नौकरी का औफर दिया था और साक्षात्कार के लिए देहरादून आने को कहा था. पुलिस ने इस का फायदा उठाते हुए एक कंपनी का नाम ले कर उसे नौकरी का औफर दिया और साक्षात्कार के लिए देहरादून बुलाया. नौकरी की खुशी में वह देहरादून आ गया. पुलिस पहले से उस की फिराक में ही थी. देहरादून आने पर उसे गिरफ्तार कर लिया गया.

पुलिस ने गुडि़या और सईद को आमनेसामने बैठा कर विस्तारपूर्वक पूछताछ की. विश्वास करना मुश्किल था कि एक लड़की ने दुराचार को हथियार बना कर किस तरह अपनी किस्मत को बदलने की कोशिश की तो दुराचार के अभियुक्त ने खुद को बचाने की. उस ने पैसे ऐंठने की योजना मुकदमा दर्ज होने के बाद तब बनाई थी, जब उस के पास समझौते के लिए प्रस्ताव आए. लाखों की रकम और मकान का प्रस्ताव उसे पसंद आ गया था.

इस के बाद गुडि़या ने अपने दोस्त सईद से बात की तो उस ने उसे समझौता कर लेने की सलाह दी. उस समय वह यह भूल गई कि दुराचार का सख्त कानून महिलाओं और लड़कियों के हक में उन्हें न्याय दिलाने के लिए बनाया गया है ना कि नाजायज इस्तेमाल कर के कमाई करने के लिए.

गुडि़या को एक ही झटके में लाखों रुपए मिलते नजर आ रहे थे. समझौते की शर्तों में उस के लिए बहुत जल्दी मोहल्ला बंजारावाला में मीनाक्षी बिष्ट का मकान तलाश लिया गया.

किसी को शक न हो, इस के लिए गुडि़या ने बैनामे के समय अपना वह नाम लिखवाया, जो शैक्षिक प्रमाण पत्रों में था. जबकि रिपोर्ट उस ने घरेलू नाम से लिखवाई थी. इसीलिए रजिस्ट्री औफिस की सूची में उस का नाम न देख कर पुलिस उलझ गई थी.

मकान मिल गया और कुछ नकद भी तो गुडि़या केस वापस लेने को तैयार हो गई. इसी प्रक्रिया के तहत उस ने जांच अधिकारी पुलिस अधीक्षक ममता वोहरा और अदालत में फिर से बयान कराने का प्रार्थना पत्र भी दे दिया. पुलिस ने उस के पत्र पर जांच शुरू कर दी और अदालत ने भी उस की बात नहीं मानी. इस तरह कानून को तमाशा बनाने के चक्कर में वह अपने ही बुने जाल में फंस गई.

पुलिस ने गुडि़या और सईद से काफी लंबी पूछताछ की थी. इस पूछताछ में पुलिस ने पुख्ता सुबूत जुटा लिए. अगले दिन दोनों को अदालत में पेश किया गया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. जेल भेजे जाने से पूर्व प्रयोगशाला के विशेषज्ञों ने जांच के लिए दोनों की आवाजों के सैंपल ले लिए थे, ताकि पुष्टि हो सके कि मोबाइल पर हुई बातचीत उन्हीं दोनों की थी.

इस के बाद पुलिस ने प्रदीप सांगवान के साथ उस के साले अजय की तलाश शुरू कर दी. पुलिस ने प्रदीप का पासपोर्ट जब्त कर के लुक औफ सर्कुलर जारी करा दिया है, ताकि वह विदेश न भाग सके. अजय का गैरजमानती वारंट हासिल कर लिया गया है. प्रदीप सांगवान पर पुलिस ने ढाई हजार रुपए का इनाम भी घोषित कर दिया.

कथा लिखे जाने तक जेल गई गुडि़या और उस के साथी सईद की जमानत नहीं हो सकी थी. प्रदीप और अजय को गिरफ्तार नहीं किया जा सका था. गुडि़या ने प्रदीप पर जो आरोप लगाए थे, अब वे कितना सच साबित होंगे यह तो वक्त ही बताएगा.

लेकिन उस ने खुद की गलती से दुराचार को हथियार बना कर जिस तरह खुद को कानून के फंदे में उलझा लिया है, अब उस से निकलना मुश्किल है. ऐसे में लोग कभी खुद पर तो कभी हालात पर खीझते हैं. यह भी सच है कि कानून सुरक्षा और न्याय के लिए बने हैं, न कि मनचाहे इस्तेमाल के लिए.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. गुडि़या परिवर्तित नाम है.

15 टुकड़ों में बंटी गीता

राजधानी पटना के थाना परसा बाजार के थानाप्रभारी नंदजी अपने औफिस में बैठे थे. तभी 60-65 साल का एक व्यक्ति अंदर आया. उन्होंने उस पर सरसरी निगाह डालने के बाद सामने खाली पड़ी कुरसी पर बैठने का इशारा किया. वह कुरसी पर बैठ गया. उस के माथे पर उभरी चिंता की लकीरों से साफ लग रहा था कि वह परेशान और चिंतित है.

नंदजी ने उस के आने का कारण पूछा तो वह बोला, ‘‘साहब, मेरा नाम राकेश चौधरी है, मैं तरेगना डीह गांव का रहने वाला हूं. मैं बहुत परेशान हूं, मेरी मदद कीजिए.’’

परेशानी पूछने पर वह बोला, ‘‘साहब, मेरी विवाहित बेटी गीता एक हफ्ते से घर से लापता है. उस का मोबाइल फोन भी बंद है. स्थानीय अखबारों में कई दिनों से टुकड़ों में मिली महिला की लाश की खबरें छप रही हैं. उस खबर को पढ़ कर ही मैं यहां आया हूं.’’

इस के बाद वह व्यक्ति अपने थैले से गीता की तसवीर निकाल कर नंदजी की ओर बढ़ाते हुए बोला, ‘‘यह गीता की तसवीर है, मुझे डर है कि कहीं उस के साथ कोई अनहोनी घटना तो नहीं घट गई.’’

‘‘आप फिक्र न करें.’’ नंदजी ने तसवीर पकड़ते हुए कहा, ‘‘वैसे आप कैसे इतने यकीन से कह सकते हैं कि गीता इसी थानाक्षेत्र से लापता हुई है?’’

‘‘साहब, मैं यह बताना भूल गया कि मेरी नातिन यानी गीता की बेटी जिस का नाम पूनम है, अपने पति रंजन के साथ कुसुमपुरम कालोनी में किराए के मकान में रहती है. जब मैं उस के घर गया तो ताला लगा मिला. पड़ोसियों से पूछने पर पता चला कि पूनम 18 तारीख से ही घर पर नहीं है. उस का फोन भी बंद है, इसलिए मैं यहां आ गया.’’

नंदजी के कहने पर राजेश चौधरी ने अपनी बेटी गीता की गुमशुदगी की तहरीर लिख कर दे दी.

दरअसल, 18 अप्रैल को पटना-गया पैसेंजर ट्रेन के गया रेलवे स्टेशन पर पैसेंजर ट्रेन की एक बोगी में ऊपर की सीट पर कोने में बादामी रंग के लेदर के 2 बड़े बैगों में किसी महिला के हाथपैरों के कटे हुए 3-3 टुकड़े मिले थे.

इस के 3 दिन बाद 20 अप्रैल को जक्कनपुर के पटना-गया रेलखंड पर गुमटी के पास रेलवे ट्रैक पर किसी महिला का कटा हुआ सिर और फ्लैक्स में बंधे हुए धारदार हथियार मिले थे. उसी दिन उन्हीं के थानाक्षेत्र परसा बाजार की कुसुमपुरम कालोनी में किसी महिला का धड़ से कमर तक का हिस्सा एक नाले से बरामद किया गया था.

दरअसल, 2 जिलों पटना और गया के 3 थानाक्षेत्रों गया जंक्शन, पटना के जक्कनपुर और परसा बाजार में 15 टुकड़ों में बंटा एक महिला का शव मिला था. शव एक अधेड़ महिला का था, जिस की उम्र करीब 40-50 साल के बीच रही होगी. 1-1 दिन के अंतराल में मिले शव के टुकड़ों से पटना और गया में सनसनी फैल गई थी.

गया, जक्कनपुर और परसा बाजार से मिले अंगों को एसएसपी मनु महाराज एक ही महिला के होने की आशंका जता रहे थे. उन का तर्क था कि हत्यारों ने लाश के टुकड़े 3 जगहों पर इसलिए फेंके होंगे, ताकि पुलिस आसानी से न तो महिला की शिनाख्त करा सके और न ही कातिलों तक पहुंच सके. इस से साबित हो रहा था कि कातिल जो भी था, बहुत चालाक था. स्थानीय अखबारों ने शव के टुकड़ों की सनसनीखेज खबर बना कर पुलिस की बखिया उधेड़ रखी थी.

राजेश चौधरी की बेटी गीता 17 अप्रैल से लापता थी. उस ने उस का जो हुलिया बताया था, शव के कटे अंगों को जोड़ कर देखने पर काफी मिलताजुलता लग रहा था. नंदजी ने सोचा कि कहीं शव के टुकड़े गीता के ही तो नहीं हैं.

नंदजी ने जक्कनपुर के इंसपेक्टर ए.के. झा को अपने थाने में बुला लिया. वह जब परसा बाजार थाना पहुंचे तो उन्होंने उन का परिचय राजेश चौधरी से करवाया और सारी बात उन्हें बता दी. इस के बाद वह राजेश चौधरी और इंसपेक्टर झा को साथ ले कर एसएसपी मनु महाराज के औफिस गए और उन्हें पूरी जानकारी दी.

एसएसपी मनु महाराज ने जक्कनपुर के थानाप्रभारी ए.के. झा से उस फ्लैक्स के बारे में जानकारी ली, जिसे जक्कनपुर के रेलवे ट्रैक से बरामद किया गया था और उस में खून से सने 3 धारदार हथियार मिले थे. उस फ्लैक्स पर फ्रैंड्स क्लब औफ कुसुमपुरम, नत्थूरपुर रोड, परसा बाजार लिखा था. फ्लैक्स पर लिखे पते के आधार पर पुलिस ने अनुमान लगाया कि हो न हो, महिला का कुसुमपुरम से कोई संबंध रहा होगा.

पुलिस की मेहनत तब रंग लाई. जब लापता बेटी की तलाश के लिए राजेश चौधरी थाने पहुंच गए. पुलिस को यकीन हो चला था कि टुकड़ों में मिला शव गीता का ही रहा होगा.

क्योंकि जिस दिन से गीता लापता हुई थी, उसी के अगले दिन से उस की बेटी और दामाद भी मकान पर ताला लगा कर फरार थे. पुलिस के शक की सूई मृतका की बेटी पूनम और दामाद रंजन की ओर घूम गई थी, लेकिन वह जल्दबाजी में कोई कदम नहीं उठाना चाहती थी.

चूंकि यह सनसनीखेज मामला परसा बाजार थाने से जुड़ा था, इसलिए इस केस को गया राजकीय रेलवे थाने और जक्कनपुर थाने से स्थानांतरित कर के जांच के लिए परसा बाजार थाने को सौंप दिया गया.

एसएसपी मनु महाराज के आदेश पर इस मामले की जांच की जिम्मेदारी परसा बाजार थानाप्रभारी नंदजी को सौंपी गई. जक्कनपुर थाने के इंसपेक्टर ए.के. झा को कहा गया कि केस के खुलासे में वह नंदजी को सहयोग करें.

थानेदार नंदजी और ए.के. झा ने फ्लैक्स पर लिखे पते को ध्यान में रखते हुए जांच आगे बढ़ाई. फ्लैक्स पर फ्रैंड्स क्लब औफ कुसुमपुरम, नत्थूरपुर रोड, परसा बाजार लिखा था. पुलिस ने शक के आधार पर कुसुमपुरम के 6 युवकों को हिरासत में ले लिया. पूछताछ में उन युवकों ने बताया कि इस तरह के फ्लैक्स उन्होंने सरस्वती पूजा में लगाए थे. बाद में डेकोरेशन वाले फ्लैक्स में सामान लपेट कर ले गए थे.

उन युवकों से पूछताछ के आधार पर पुलिस उस डेकोरेटर तक पहुंच गई, जिस ने सरस्वती पूजा में सजावट की थी. डेकोरेटर ने पुलिस को बताया कि जेनरेटर देने वाला राजेश चौधरी फ्लैक्स को अपने साथ ले गया था. डेकोरेटर से पुलिस ने राजेश का पता लिया और शाहपुर थानाक्षेत्र स्थित उस के गांव खाजेकलां पहुंच गई. राजेश घर पर ही मिल गया. अचानक पुलिस को देख कर वह घबरा गया.

उस के चेहरे के उड़े रंग और पसीने को देख कर पुलिस का शक और पुख्ता हो गया. पुलिस उसे गिरफ्तार कर के थाना परसा बाजार ले आई. वहां जब उस से कड़ाई से पूछताछ की गई तो उस ने सारा राज उगल दिया. पूछताछ में उस ने बताया कि मरने वाली गीता उस के दोस्त रंजन की सास थी. रंजन ने उसे 20 हजार रुपए देने का लालच दिया था. उस के कहने पर ही उस ने उस का साथ दिया था. हत्या के बाद उन दोनों ने मिल कर गीता के शरीर के 15 टुकडे़ किए थे. यह बात 22 अप्रैल की है.

राजेश के बयान के आधार पर पुलिस ने उसी रात खाजेकलां से मृतका के पति उमेशकांत चौधरी, उस की बेटी पूनम और प्रेमी अरमान मियां को गिरफ्तार कर लिया. रंजन पुलिस के आने से पहले ही फरार हो गया था.

पुलिस ने पूनम और उमेशकांत से गीता की हत्या और अरमान से उस के प्रेम के रिश्ते के बारे में पूछताछ की तो दोनों ने अपना गुनाह कबूल कर लिया. उमेशकांत ने पत्नी की हत्या का षडयंत्र कैसे रचा था, उस से परदा उठ गया.

गीता देवी हत्याकांड के आरोपियों से पूछताछ के बाद पुलिस ने उमेशकांत चौधरी, पूनम, रंजन चौधरी और राजेश को नामजद आरोपी बना कर भादंवि की धारा 302, 201, 120बी के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया. चारों आरोपियों को गिरफ्तार कर के अदालत पर पेश किया गया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. पुलिस पूछताछ में गीता हत्याकांड की कहानी कुछ इस तरह सामने आई—

48 वर्षीय उमेशकांत चौधरी मूलरूप से पटना के शाहपुर थाना के गांव जमसौर का रहने वाला था. वह शारीरिक रूप से विकलांग था. विकलांगता के आधार पर उसे पटना सचिवालय स्थित भवन निर्माण विभाग में ड्राफ्ट्समैन की नौकरी मिल गई थी. करीब 25 साल पहले उस का विवाह इसी जिले के मसौढ़ी, तरेगना डीह के रहने वाले राकेश चौधरी की बेटी गीता से हुआ था.

औसत कदकाठी की गीता को शादी के बाद जब पति के विकलांग होने की बात पता चली तो उस के अरमान आंसुओं में बह गए. उस के साथ अपनों ने ही धोखा किया था.

शादी से पहले मांबाप ने बेटी को उस के पति की विकलांगता के बारे में कुछ नहीं बताया था. अलबत्ता, उन्होंने इतना जरूर कहा था कि लड़का सरकारी नौकरी में है. अच्छा कमाता है, उस में कोई दुर्गुण नहीं है और वह परिवार व पैसे से भी मजबूत है.

बेटी के भावी जीवन के प्रति एक पिता की यह सोच गलत भी नहीं थी. खैर, पति जैसा भी था, उस का जीवनसाथी था. गीता से वह बहुत प्यार करता था. दोनों की जीवन नैया आहिस्ताआहिस्ता चलने लगी. धीरेधीरे गीता 3 बच्चों की मां बन गई. 3 बच्चों की मां बनने के बाद भी उस की शारीरिक बनावट को देख कर कोई नहीं कह सकता था कि वह 3 बच्चों की जन्म दे चुकी है.

उमेशकांत के बचपन का एक दोस्त उसी गांव में रहता था, जिस का नाम अरमान मियां था. वह गबरू जवान था. उस का आनाजाना घर के भीतर तक था. दोस्त की बीवी को वह भाभी कह कर बुलाता था और कभीकभी उस से मजाक भी कर लेता था. गीता इसे गंभीरता से नहीं लेती थी.

अरमान ने जब से दोस्त की पत्नी को देखा था, उस पर उस का दिल आ गया था. गीता भी अरमान के कसरती और सुडौल बदन को देख कर उस पर मर मिटी थी. जल्दी ही दोनों के संबंध बन गए. उमेशकांत भले ही शरीर से विकलांग था, लेकिन आंख से अंधा या कान से बहरा नहीं था.

उसे पत्नी और दगाबाज दोस्त की घिनौनी करतूतों का पता चला तो वह गुस्से से लाल हो उठा. उस ने पत्नी को समझाया कि वह अपनी हरकतों से बाज आए. लेकिन अरमान के प्यार में अंधी गीता को न तो पति की बात सुनाई दी और न ही उस की नसीहत का कोई असर हुआ. इसी बात को ले कर उमेश पत्नी से नाराज रहता था.

गीता और अरमान के अवैध संबंधों से परेशान हो कर उमेशकांत पत्नी गीता और बच्चों को ले कर ससुराल तरेगना डीह आ गया और वहीं पर परिवार के साथ रहने लगा. धीरेधीरे बच्चे बड़े होते गए. इस बीच उस के बडे़ बेटे को बैंक में नौकरी मिल गई और वह चुनार चला गया. बेटी पूनम की खाजेकलां के रंजन कुमार से शादी हो गई थी. छोटी बेटी को उस ने पढ़ाई के लिए परिवार से दूर भेज दिया था.

इस के बावजूद गीता में बदलाव नहीं आया था. वह अरमान से मिलने जमसौर चली जाती थी. इस बात को ले कर पतिपत्नी में विवाद काफी बढ़ गया था. फिर भी गीता ने अरमान को नहीं छोड़ा. अरमान की वजह से उमेशकांत की बसी बसाई गृहस्थी उजड़ गई थी. दोनों सिर्फ रिश्तों के पतिपत्नी रह गए थे.

गीता के मायके में रहने के दौरान अरमान का वहां भी आनाजाना लगा रहा. इस से परेशान हो कर उमेशकांत बेटी पूनम को ले कर कुसुमपुरम कालोनी में किराए का कमरा ले कर रहने लगा. पूनम पिता की तकलीफ को समझती थी. वह मां के चालचलन को भी अच्छी तरह जानती थी. दामाद रंजन भी ससुर के साथ ही खड़ा रहता था.

गीता हर महीने के आखिरी दिन कुसुमपुरम कालोनी वाले घर आती और जबरन पति की सारी तनख्वाह ले कर चली जाती. उस में से आधी रकम वह खुद रखती और आधी अपने आशिक को दे देती.

वह मायके में ही मांबाप के साथ रह रही थी. इस बात से उमेशकांत और पूनम उस से काफी नाराज थे. पत्नी की हरकतों से आजिज आया उमेशकांत समझ नहीं पा रहा था कि इस मुसीबत से हमेशा के लिए कैसे पीछा छुड़ाए. इस बारे में उस ने बेटी पूनम और दामाद रंजन से बात की. बेटी और दामाद भी गीता की हरकतों से आजिज आ चुके थे. वे भी उस से पीछा छुड़ाना चाहते थे.

दामाद रंजन ने ससुर को भरोसा दिलाया कि वह परेशान न हों. इस मुसीबत से छुटकारा पाने का वह कोई न कोई रास्ता निकाल ही लेगा. रंजन आपराधिक सीरियल बड़े चाव से देखा करता था.

सीरियल देख कर ही उस ने सास को रास्ते से हटाने की योजना बनाई. उस की योजना यह थी कि सास की हत्या कर के उस के शरीर के छोटेछोटे टुकड़े किए जाएं और बैग में भर कर उसे ट्रेन में डाल दिया जाए. उस के बाद सारा खेल ही खत्म हो जाएगा.

रंजन ने सास की हत्या की फूलप्रूफ योजना बना डाली. उस ने इस योजना के बारे में अपने ससुर उमेशकांत को भी बता दिया. उमेशकांत पत्नी से खुद इतना आजिज आ चुका था कि अब उसे उस के नाम से भी घृणा हो गई थी. वह चाहता था कि जितनी जल्दी हो सके, गीता नाम की बला से मुक्ति मिल जाए. उस ने हां कर दी.

रंजन चौधरी इस योजना को अकेला अंजाम नहीं दे सकता था. उसे एक ऐसे सहयोगी की जरूरत थी, जो उस का साथ भी दे और इस राज को अपने सीने में दफन भी रखे.

ऐसे में उसे अपने ही गांव का बचपन का साथी और कारोबारी पार्टनर राजेश याद आया. वह उस का हमराज था. उस ने 20 हजार रुपए का लालच दे कर उसे अपनी योजना में शामिल कर लिया. राजेश शादीविवाह में किराए पर जनरेटर चलाता था. रंजन उस के धंधे में बराबर का सहयोगी था.

योजना के मुताबिक, 17 अप्रैल 2017 को पूनम ने मां को फोन किया और विश्वास में ले कर उसे चिकन की दावत पर कुसुमपुरम वाले किराए के मकान पर बुलाया. दोपहर बाद गीता मायके से कुसुमपुरम पहुंच गई. घर से निकलते समय उस ने किसी को कुछ नहीं बताया था कि वह कहां जा रही है. जब वह बेटी के घर पहुंची तो वहां पूनम के अलावा उमेशकांत और दामाद रंजन भी मौजूद थे. थोड़ी देर चारों हंसीठिठोली करते रहे, ताकि गीता को शक न हो.

पूनम मां को रंजन से बातचीत करने को कह कर किचन में चली गई. उमेशकांत भी बेटी के पीछेपीछे हो लिया. उमेशकांत ने पहले ही नींद की दवा मंगा कर रख ली थी.

पूनम कटोरी में मीट और थाली में चावल परोस कर ले आई. नींद की 10 गोलियां पीस कर उस ने अच्छी तरह मीट की कटोरी में मिला दी थीं. पूनम ने मां को खाना खिलाया. खाना खाने के थोड़ी देर बाद गीता का सिर भारी होने लगा और उसे नींद आ गई. गोलियों ने अपना असर दिखा दिया था.

गीता के बेहोश होते ही पूनम, रंजन और उमेशकांत सक्रिय हो गए. योजना के अनुसार, रंजन ने उमेशकांत और पूनम को वहां से खाजेकलां भेज दिया, जहां उस का पुश्तैनी मकान था. इस के बाद रंजन ने खाजेकलां से अपने दोस्त राजेश को कुसुमपुरम बुला लिया. वह रात 9 बजे के करीब कुसुमपुरम आ गया.

बेहोश गीता को जब होश आया तो वह उल्टियां करने लगी. रंजन और उस का दोस्त राजेश आगे के कमरे में बैठे टीवी देख रहे थे. गीता समझ गई कि बेटी, पति और दामाद ने मिल कर उस के साथ धोखा किया है. बात समझ में आते ही वह अपने फोन से अरमान को फोन कर के सारी बातें बताने लगी.

रंजन ने सास को फोन करते सुन लिया. वह घबरा गया कि कहीं उन की योजना पर पानी न फिर जाए. वह दौड़ कर सास के पास पहुंचा और उस के हाथों से फोन छीन लिया. फोन छीनते समय दोनों के बीच गुत्थमगुत्था भी हुई, तब तक राजेश भी आ गया था.

रंजन ने सास को उठा कर बैड पर पटक दिया. राजेश ने उस के दोनों पैर पकड़ लिए और रंजन ने उस का गला घोंट कर हत्या कर दी. रंजन ने सास का मोबाइल फोन ले कर उसे स्विच्ड औफ कर दिया, ताकि कोई उस से संपर्क करने की कोशिश न कर सके. बाद में उस ने हथौड़ी से फोन का चूरा कर के नाले में फेंक दिया.

जब रंजन और राजेश दोनों को यकीन हो गया कि गीता मर चुकी है तो उन्होंने लाश को बैडरूम से निकाल कर बरामदे में रखी चौकी पर रख दिया. रंजन पहले ही लोहा काटने वाले 2 ब्लेड और 1 गड़ासा खरीद लाया था, वह कमरे से गड़ासा ले आया और उसी से उस ने गीता का गला काट दिया. उस ने एक बड़ा टब चौकी के नीचे रख दिया था, ताकि घर में खून न फैले. टब में खून जमा हो गया तो वह उसे बाथरूम में फेंक आया. बाथरूम में कई बाल्टी पानी गिरा कर उस ने खून नाली में बहा दिया.

धड़ को सिर से अलग करने के बाद रंजन और राजेश ने मिल कर गीता के दोनों पैरों के 6, दोनों हाथों के 6 और धड़ के कमर के बीच से 3 टुकड़े यानी कुल मिला कर 15 टुकड़े किए. योजना के अनुसार, पहले से खरीद कर लाए गए 2 बड़े लैदर के बैगों में हाथ और पैरों के टुकड़े भर दिए.

कटे सिर और धारदार हथियारों को रंजन ने फ्लैक्स के टुकड़े में लपेट दिया और उसे काले रंग की बड़ी सी पौलीथिन में रख दिया. यह सब करने में उन्हें ढाई घंटे का समय लगा. लाश के टुकड़ों को बैग में भरने के बाद दोनों बाथरूम में गए और शरीर पर लगे खून को अच्छी तरह साफ किया. इस के बाद दोनों ने बड़ी सफाई से सारे सबूत मिटा दिए. तब तक सुबह हो गई थी.

योजना के अनुसार, रंजन और राकेश को 18 अप्रैल को दोपहर के डेढ़ बजे एकएक बैग ले कर पटना-गया पैसेंजर ट्रेन में चढ़ना था. उन्होंने ऐसा ही किया और इत्मीनान से सीट पर बैठ गए. दोनों बैगों को उन्होंने ऊपर वाली सीट पर कोने में रख दिया. फिर पुनपुन स्टेशन पर उतर कर दोनों घर लौट आए. उन बैगों को उसी दिन रात में गया जंक्शन पर जीआरपी ने बरामद किया था.

अगले दिन 19 अप्रैल को रंजन और राजेश ने जक्कनपुर स्टेशन के बीच गुमटी के पास गीता का कटा हुआ सिर और रेलवे ट्रैक पर फ्लैक्स में लिपटे धारदार हथियार फेंक दिए.  फिर रात में ही धड़ और कमर के बीच से किए गए टुकड़ों को उन्होंने बोरे में भर कर कालोनी से दूर नाले में फेंक दिया. 20 अप्रैल को जक्कनपुर और परसा बाजार पुलिस ने सिर और धड़ बरामद कर लिए.

बहरहाल, रंजन चौधरी ने फूलप्रूफ योजना बनाई थी. हर चालाक कातिल की तरह उस से भी एक चूक यह हो गई थी कि उस ने धारदार हथियारों को फ्लैक्स में लपेट कर फेंका था. फ्लैक्स के ऊपर पता लिखा था. उस पते के आधार पर ही पुलिस टुकड़ों में बंटी गीता के कातिलों तक पहुंच गई और सनसनीखेज हत्या से परदा उठा दिया. इस मामले में अरमान मियां से भी पूछताछ की गई, लेकिन निर्दोष पाए जाने पर उसे छोड़ दिया गया.

कथा लिखे जाने तक गिरफ्तार किए गए चारों आरोपियों उमेशकांत, पूनम, राजेश जमानत पर जेल से बाहर आ गए थे. फरार चल रहा रंजन चौधरी गिरफ्तार कर लिया गया था. पुलिस ने चारों आरोपियों के खिलाफ न्यायालय में आरोपपत्र दाखिल कर दिया था. राजेश और रंजन अभी भी जेल में हैं. पति, बेटी और दामाद को अपने किए पर जरा भी अफसोस नहीं है.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

सुहागरात का थप्पड़ : शादी के 25 दिन बाद ही मारा गया मनीष

सुहागरात जिंदगी की ऐसी रात है कि शादी के पहले जहां युवा इस के खयालों में खोए रहते हैं, वहीं शादी के बाद इस की यादों में. यही वजह है कि हर दंपति इसे यादगार  बनाना चाहता है. प्रथम परिचय, पहले अभिसार और दांपत्य की बुनियाद सुहागरात, नीरस और उबाऊ लोगों को भी गुदगुदा जाती है. फिर मनीष तो 22 साल का नौजवान था. वह इस रात का तब से इंतजार कर रहा था, जिस दिन उस की शादी तय हुई थी.

शाम से ही उस के जीजा और भाभियां सुहागरात का कमरा सजाते हुए उस से हंसीमजाक भी कर रहे थे. घर में सब से छोटा होने की वजह से उसे तमाम नसीहतें भी मिल रही थीं, जिस से उसे चिढ़ सी हो रही थी. एक तो वह शादी के उबाऊ रीतिरिवाजों से वैसे ही तंग था, दूसरे पंडित की वजह से 2 दिन गुजर जाने के बाद भी वह पत्नी पूजा के पास नहीं जा सका था. सिर्फ उस के पायलों की छनछनाहट और चूडि़यों की खनखनाहट ही उस तक पहुंच सकी थी.

उतरती मई की भीषण गर्मी से बेखबर मनीष बेचैनी से रात होने का इंतजार कर रहा था. जनवरी में उस की और पूजा की सगाई हुई थी. तभी से उस का चेहरा उस की आंखों के सामने नाच रहा था. अब जब मिलन की घड़ी नजदीक आई तो ये जीजा और भाभियां बेवजह समय बरबाद कर रहे थे.

जैसेतैसे वह घड़ी आ ही गई. भाभियों ने उसे बुला कर सुहागकक्ष में धकेल दिया. कमरे के अंदर जाते ही मनीष ने पहला काम लाइट बुझाने का किया तो बाहर से भाभियों के हंसने के साथ आवाज आई, ‘‘लाला, अंधेरे में दुलहन का चेहरा कैसे दिखेगा?’’

कहीं ऐसा न हो कि भाभियां दरवाजे से कान सटाए मजे लेने की सोच रही हों, इसलिए मनीष कुछ देर चुपचाप खड़ा रहा. जब उसे लगा कि बाहर कोई नहीं है तो वह उस पलंग की ओर बढ़ा, जिस पर दुलहन पूजा सिमटी गठरी सी बनी बैठी थी.

पूजा का क्या हाल है, यह उसे पता नहीं था. लेकिन उस का दिल बहुत तेजी से धड़क रहा था. किसी तरह उसे काबू में कर के वह पलंग पर जा कर बैठ गया और पूजा की प्रतिक्रिया का इंतजार करने लगा.

पूजा उसी तरह सिर झुकाए चुपचाप बैठी रही. लड़कियां कितनी भी पढ़ीलिखी और आधुनिक क्यों न हो जाएं, वे इस रात को शरमाती ही हैं. यह मनीष को पता था, इसलिए उस ने पहल करते हुए पूजा की ओर हाथ बढ़ाया तो वह इस तरह चौंक कर पीछे हट गई, मानो करंट लगा हो. मनीष ने पूछा, ‘‘क्या हुआ?’’

जवाब में पूजा कुछ नहीं बोली तो मनीष ने अगला सवाल किया, ‘‘कोई परेशानी है क्या?’’

‘‘नहीं.’’ पूजा ने धीमे से संक्षिप्त सा जवाब दिया.

मनीष की जान में जान आई कि चलो जवाब तो मिला. उस ने पूछा, ‘‘तो फिर क्या हुआ?’’

‘‘कुछ नहीं, मैं इस सब के लिए अभी तैयार नहीं हूं.’’ पूजा ने कहा.

पूजा की बात का मतलब समझ कर मनीष ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘मैं कहां तुम्हें खाए जा रहा हूं. वैसे भी यह रात बातों के लिए बनी है. वह तो जिंदगी भर होता रहेगा.’’

इतना कह कर मनीष ने पूजा का हाथ पकड़ा तो उस ने उस का हाथ झटक दिया. पत्नी की इस हरकत से उस का माथा ठनका. उस ने थोड़ा गुस्से से पूछा, ‘‘आखिर बात क्या है?’’

‘‘आप मुझे छू भी नहीं सकते.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘बस यूं ही.’’

‘‘कोई तो बात होगी. मेरी तुम से शादी हुई है, इसलिए तुम्हें छूने का मेरा हक बनता है. अगर कोई बात है तो बताओ?’’ मनीष ने व्यग्रता से कहा.

जवाब में पूजा कुछ नहीं बोली तो मनीष झल्ला उठा. पूजा की बेरुखी से उस के सुहागरात के सारे अरमान झुलस गए थे. वह यह सोच सोच कर हलकान होने लगा कि पूजा उसे छूने क्यों नहीं दे रही है. यह बात उस की मर्दानगी और वजूद को ललकार रही थी. इसलिए उस ने एक बार फिर थोड़ा गुस्से से पूजा का हाथ पकड़ने की कोशिश की तो इस बार पूजा ने भी थोड़ा गुस्से से उस का हाथ और जोर से झटक दिया.

चटाक की आवाज के साथ एक जोरदार तमाचा पूजा के गाल पर पड़ा. जहां चुंबन जड़ा जाना चाहिए था, वहां तमाचा जड़ दिया गया था. थप्पड़ की वह आवाज कूलर के शोर में दब गई थी. लेकिन इस से इस बात का खुलासा हो गया था कि पूजा पति को शरीर सौंपने की कौन कहे, छूने तक नहीं देना चाहती.

निराश मनीष पलंग पर दूसरी ओर मुंह कर के लेट गया. उस के सारे अरमान मिट्टी में मिल गए थे. लेकिन मन के किसी कोने में अभी भी एक आस थी कि पूजा शायद हंसते हुए कहेगी कि ‘क्या हुआ यार? मैं तो मजाक कर रही थी. जबकि तुम सीरियस हो गए.’

लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ. उस का दिल टूट चुका था, पर दिमाग दुरुस्त था. उस समय उस की समझ और धैर्य दाद देने लायक थी. वह एकदम से किसी नतीजे पर नहीं पहुंचना चाहता था. लेकिन दाल में कुछ काला है, यह वह जरूर समझ गया था. कुछ ही देर में वह बेचैन और बेबस नए पति की जगह एक गंभीर युवक बन गया था.

मनीष के पिता सीताराम मीणा का अपने सीहोर रोड स्थित गांव भैंसाखेड़ा में ही नहीं, पूरे मीणा समाज में खासा रसूख था. उन की गिनती इलाके के संपन्न किसानों में होती थी. इस के अलावा उन की अच्छीखासी चलती दूध की डेयरी भी थी. डेयरी की जिम्मेदारी मनीष ही संभालता था. उस के चाचा परशुराम मीणा का नाम कौन नहीं जानता. वह राज्य के गृहमंत्री बाबूलाल गौर के बहैसियत विधायक ग्रामीण प्रतिनिधि हैं और भाजपा से पार्षद भी रह चुके हैं.

4 भाईबहनों में सबसे छोटे मनीष ने पढ़ाई लिखाई में कोई कसर नहीं रखी. लेकिन कमउम्र में ही उसे खेतीकिसानी, खास कर डेयरी में रुचि जाग उठी थी, इसलिए नौकरी के बारे में उस ने सोचा ही नहीं.

मीणाओं में लड़के लड़कियों की शादी कमउम्र में ही कर दी जाती थी. लेकिन अब समय थोड़ा बदल गया है. मनीष जब खेती किसानी में रम गया और उम्र भी शादी लायक हो गई तो उस के पिता ने उस की शादी अपने दोस्त की बेटी पूजा से तय कर दी.

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ससुराल के बारे में मनीष सिर्फ इतना जानता था कि वे लोग भी उसी की तरह संपन्न किसान हैं. इस के अलावा उस के ससुर एक सरकारी स्कूल में शिक्षक थे. उस ने रिश्तेदारों से यह भी सुन रखा था कि उस की होने वाली पत्नी बहुत खूबसूरत है.

जनवरी में पूजा से उस की सगाई हुई और 29 मई को शादी. 30 मई को मनीष पूजा को दुलहन बना कर अपने घर ले आया.

पूजा के बारे में ही सोचते सोचते मनीष की आंख लग गई थी. आंख खुली तो उसे लगा शायद सुबह होने वाली है. उस ने पलट कर पूजा की ओर देखा. वह अब भी जाग रही थी.

सुहागरात को पत्नी को थप्पड़ का तोहफा दे कर मनीष बिलकुल खुश नहीं था. लेकिन उस ने बरताव ही ऐसा किया कि वह खुद को रोक नहीं पाया. उसे उठता देख पूजा भी उठ बैठी. बाहर जाते हुए उस ने पूजा से कहा, ‘‘आज तुम्हारी विदाई है. लेकिन अब जब भी आना, खुल कर बात करना, वरना मेरे घर वालों को तुम्हारे घर वालों से बात करनी पड़ेगी.’’

‘‘ठीक है.’’ पूजा ने कहा, ‘‘लेकिन इस के लिए मुझे थोड़ा समय चाहिए.’’

‘‘तुम्हारे आने तक मैं खामोश रहूंगा.’’ कह कर मनीष चला गया.

पूजा विदा हो कर मायके आ गई. पत्नी के व्यवहार से मनीष गुमसुम और उदास रहने लगा था, जिसे घर वालों ने पूजा की याद समझा. कोई भी उस के दिल की व्यथा नहीं समझ सका. बात भी ऐसी थी, जिसे वह किसी से कह भी नहीं सकता था. 2-4 दिनों बाद घर वालों की बातचीत से पता चला कि 25 जून को वे पूजा को विदा कराने जाएंगे. पूजा की विदाई के बारे में जान कर उस का दिल धड़का जरूर, लेकिन पत्नी के आने की जो खुशी किसी के मन में होती है, वह कहीं भी नही ंथी.

घर वाले 25 जून को पूजा को विदा करा ले आए. उस दिन रिवाज के अनुसार घर में पूजापाठ का आयोजन था. उस आयोजन में काफी लोगों को बुलाया गया था. इसलिए घर में काफी चहलपहल थी.

उस दिन मनीष सुबह ही अपनी भैंसों को ले कर जंगल की ओर चला गया था. क्योंकि घर में पूजा होने की वजह से दोपहर को उसे जल्दी वापस आना था.

दोपहर बाद होने वाली पूजा में उस की मौजूदगी जरूरी थी. वह भैंसों को ले कर कुछ ही दूर गया था कि उस के मोबाइल फोन की घंटी बजी. स्क्रीन पर उभरा नंबर पूजा के फुफेरे भाई संदीप का था, इस से उसे लगा कि पूजा ने ही कोई संदेश भिजवाया होगा. उस ने फोन रिसीव किया तो दूसरी ओर से संदीप ने कहा, ‘‘जीजाजी, आप बैरागढ़ आ जाइए, कुछ जरूरी बात करनी है.’’

मनीष ने यह भी नहीं पूछा कि क्या बात करनी है. उस ने अपनी भैंसें चचेरे भाई के हवाले कीं और खुद बैरागढ़ की ओर चल पड़ा. वह कुछ ही दूर गया था कि रास्ते में बीनापुर निवासी वीरेंद्र अपनी एसयूवी कार लिए मिल गया.

वीरेंद्र को वह जानता था. वह संदीप का दोस्त भी था और  रिश्तेदार भी. पूजा के यहां भी उस की रिश्तेदारी थी. वीरेंद्र ने कहा कि संदीप यहीं आ रहा है तो वह वहीं रुक गया. इस के बाद वीरेंद्र ने उसे अपनी कार में रखी माजा की बोतल निकाल कर थमा दी. दूसरी एक बोतल निकाल कर उस ने खुद खोल ली. दोनों माजा पीते हुए बातचीत करने लगे.

दूसरी ओर सुबह का गया मनीष दोपहर तक घर नहीं लौटा तो घर वाले नाराज होने लगे कि कम से कम आज तो उसे जल्दी आ जाना चाहिए था. परेशानी की बात यह थी कि एक तो उस का फोन बंद था, दूसरे वह किसी को कुछ बता कर नहीं गया था.

इंतजार करतेकरते शाम और फिर रात हो गई और मनीष लौट कर नहीं आया तो घर वालों की नाराजगी चिंता में बदल गई. उस की तलाश शुरू हुई. जब उस के बारे में कहीं से कोई खबर नहीं मिली तो देर रात उस की गुमशुदगी की रिपोर्ट थाना खजूरी सड़क में दर्ज करा दी गई.

पूजा में आए ज्यादातर लोग वापस चले गए थे. सभी की नजरें पूजा पर टिकी थीं कि वह पति के लिए परेशान है. जबकि सही बात यह थी कि सिर्फ वही जानती थी कि इस समय मनीष कहां है और अब वह कभी वापस नहीं आएगा. दोपहर को ही उस के मोबाइल पर मैसेज आ गया था कि काम हो गया है. यानी मनीष की हत्या हो चुकी है.

मनीष के घर वालों ने वह रात आंखों में काटी. सुबह घर वाले उस की तलाश में निकलते, उस के पहले ही थाने से खबर आ गई कि मनीष की लाश बरामद हो गई है. यह खबर मिलते ही घर में कोहराम मच गया. रोनापीटना सुन कर पूरा गांव सीताराम के घर इकट्ठा हो गया.

थाना खजूरी सड़क के थानाप्रभारी एन.एस. रघुवंशी ने गांव वालों की सूचना पर कोल्हूखेड़ी के जंगल से मनीष की लाश बरामद की थी. लाश की शिनाख्त तुरंत हो गई थी. उस की गुमशुदगी दर्ज ही थी, इसलिए तुरंत उन्होंने लाश बरामद होने की जानकारी उस के घर वालों को दे दी थी.

एक कद्दावर भाजपाई नेता के भतीजे की हत्या की सूचना पा कर पुलिस अधिकारी भी घटनास्थल पर पहुंच गए थे. लाश देख कर ही लगता था कि उस की हत्या गला दबा कर कहीं दूसरी जगह की गई थी. सुबूत मिटाने और पुलिस को चकमा देने के लिए लाश यहां ला कर फेंकी गई थी.

शुरुआती पूछताछ में यह उजागर हो गया था कि मनीष में न कोई ऐब था, न किसी से उस की रंजिश थी. तब किसी ने उस की हत्या क्यों की, पुलिस की यह समझ में नहीं आ रहा था.

लेकिन पुलिस को जब पता चला कि मनीष की अभी जल्दी ही शादी हुई है तो पुलिस का ध्यान तुरंत उस की नवविवाहिता पत्नी पूजा पर गया. पुलिस अधीक्षक अरविंद सक्सेना ने मनीष और पूजा के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकलवा ली. इस काल डिटेल्स से पता चला कि शादी के बाद पूजा 25 दिन मायके में रही और इस बीच मनीष से उस की एक भी बार बात नहीं हुई. जबकि एक अन्य नंबर पर पूजा ने इन्हीं 25 दिनों में 470 बार बात की थी. पुलिस ने उस नंबर के बारे में पता किया तो वह नंबर पूजा के बीनापुर निवासी एक रिश्तेदार वीरेंद्र मीणा का था.

इस के बाद मनीष की हत्या का राज खुलने में देर नहीं लगी. पुलिस ने वीरेद्र को गिरफ्तार कर लिया. थाने ला कर वीरेंद्र से पूछताछ की गई तो उस ने तुरंत मनीष की हत्या का अपना अपराध स्वीकार कर लिया. उस ने बताया, ‘‘मांजा की बोतल में मैं ने नींद की गोलियां घोल कर मनीष को पिला दी थीं. जब वह बेहोश होने लगा तो मैं ने अंगौछे से उस का गला घोंट दिया. उस के बाद संदीप की मदद से उस की लाश को ले जा कर कोल्हूखेड़ी के जंगल के रास्ते पर फेंक दिया था.’’

वीरेंद्र मीणा ने पुलिस द्वारा की गई पूछताछ में मनीष की हत्या के पीछे की जो कहानी सुनाई थी, वह इस प्रकार थी.

वीरेंद्र और पूजा एकदूसरे को प्यार करते थे. यह सिलसिला तकरीबन 4 सालों से चला आ रहा था. भोपाल के करौंद में समाज के एक धार्मिक समारोह में दोनों की मुलाकात हुई तो उसी पहली मुलाकात में दोनों एकदूसरे को दिल दे बैठे थे.

इन के प्यार की मध्यस्था कर रहा था पूजा का फुफेरा भाई संदीप. वही दोनों के मिलनेजुलने की व्यवस्था करता था. वीरेंद्र और संदीप आपस में रिश्तेदार थे. संदीप पूजा का भाई था, इसलिए उस पर कोई शक नहीं करता था कि वह बहन को ले जा कर उस के प्रेमी वीरेंद्र को सौंपता होगा.

वीरेंद्र होनहार भी था और स्मार्ट भी. वह आईएएस की तैयारी कर रहा था. इस के लिए उस ने दिल्ली जा कर कोचिंग भी की थी. स्नातक भी उस ने जालंधर विश्वविद्यालय से किया था. बड़े शहरों में रहने की वजह से वह रहता भी ठाठ से था. खानदानी रईस था ही.

पूजा और वीरेंद्र का प्यार परवान चढ़ा तो शादी की भी बात चली. लेकिन पूजा के पिता ने इस शादी के लिए साफ मना कर दिया. क्योंकि वीरेंद्र उन का दूर का रिश्तेदार था. इस के बावजूद पूजा और वीरेद्र ने हिम्मत नहीं हारी. उन्हें उम्मीद थी कि आज नहीं तो कल, घर वाले जरूर मान जाएंगे.

लेकिन जब पूजा के पिता ने उस की शादी अपने दोस्त के बेटे मनीष से तय कर दी तो उन की उम्मीद पर पानी फिर गया. पूजा शादी के लिए मना नहीं कर पाई, लेकिन उस ने वीरेंद्र को भरोसा दिलाया कि वह जब तक जिंदा रहेगी, तनमन से उसी की रहेगी. चाहे वह पति ही क्यों न हो, कोई उसे छू नहीं पाएगा.

ऐसा हुआ भी. पूजा ने सचमुच मनीष को हाथ नहीं लगाने दिया था. सुहागरात को थप्पड़ वाली बात उस ने वीरेंद्र को बताई तो उस का खून खौल उठा. उस ने उसी समय कसम खाई कि मनीष दोबारा पूजा को हाथ लगाए, उस के पहले ही वह उस की हत्या कर देगा.

वीरेंद्र, पूजा और संदीप, तीनों ही हमउम्र थे. वीरेंद्र संपन्न परिवार का था और उस के पास एक्सयूवी कार भी थी. उस का बहुत बड़ा मकान था और फिल्मी हीरो जैसे लटकेझटके भी. इसलिए पूजा को मनीष रास नहीं आया था. उसे वह डेयरी वाला नहीं, बल्कि भैंसों के तबेले वाला नौकर लगता था.

तीनों का सोचना था कि मनीष की हत्या के बाद पूजा विधवा हो जाएगी. उस के कुछ दिनों बाद वीरेंद्र उस से शादी कर लेगा. क्योंकि मीणा समाज में आज भी विधवा से जल्दी कोई शादी नहीं करता. पूजा के सपने बड़े थे, इसीलिए उस के इरादे खतरनाक हो गए थे. मनीष के हाथों थप्पड़ खा कर वह नागिन सी फुफकार उठी थी.

वीरेंद्र के बयान के आधार पर पुलिस ने पूजा और संदीप को भी गिरफ्तार कर लिया था. पूछताछ में उन दोनों ने अपनाअपना अपराध स्वीकार कर लिया था. पूजा का तो कहना था कि वह भले ही जेल में रहेगी, लेकिन अपने प्रेमी के साथ एक छत के नीचे तो रहेगी. पूछताछ के बाद पुलिस ने तीनों को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया था.

वीरेंद्र और पूजा के प्यार और साजिश की बलि चढ़ा बेचारा मनीष, जिस का गुनाह सिर्फ यह था कि वह दुनियादारी से ज्यादा वाकिफ नहीं था. वह शादी के पहले ही पत्नी को प्यार करने लगा था.

दरअसल, मीणा समाज में लड़कियों को जो आजादी मिली है, वह फैशनेबल कपड़े पहनने और कौस्मेटिक सामान खरीदने तक ही सीमित है. वे निजी फैसले नहीं ले सकतीं. अगर पूजा अपने पिता के फैसले का डट कर विरोध करती तो शायद खुद भी गुनाह से बच जाती और वीरेंद्र को भी बचा लेती. उस की बेवकूफी 3 परिवारों को ले डूबी.

— कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

19 साल बाद खुला हत्या का राज

छठी क्लास में पढ़ने वाले महादेवन का स्कूल घर से कई किलोमीटर दूर था. वह पैदल ही स्कूल आताजाता था, जबकि उस के साथ पढ़ने वले कई छात्र साइकिल से आतेजाते थे. उस का मन करता था कि उस के पास भी साइकिल हो. उस ने अपने पिता विश्वनाथन आचारी से कई बार साइकिल दिलाने का अनुरोध किया, लेकिन वह अभी उसे साइकिल दिलाना नहीं चाहते थे.

इस की वजह यह थी कि महादेवन की उम्र अभी केवल 13 साल थी. 3 बेटियों के बीच वह उन का अकेला बेटा था, इसलिए वह कोई रिस्क नहीं उठाना चाहते थे. वह चाहते थे कि 2-3 साल में बेटा जब थोड़ा बड़ा और समझदार हो जाएगा तो उसे साइकिल खरीदवा देंगे.

मगर महादेवन को पिता की बात अच्छी नहीं लगी. उस ने साइकिल खरीदवाने की जिद पकड़ ली. वैसे विश्वनाथन आचारी के पास पैसों की कोई कमी नहीं थी. उन की केरल के चंगनाशेरी के निकट मडुमूला में उदया स्टोर्स के नाम से एक दुकान थी. दुकान से उन्हें अच्छीखासी आमदनी हो रही थी और परिवार भी उन का कोई ज्यादा बड़ा नहीं था. परिवार में पत्नी विजयलक्ष्मी के अलावा 3 बेटियां और एक बेटा महादेवन था.

चूंकि वह एकलौता बेटा था, इसलिए घर के सभी लोग उसे बहुत प्यार करते थे. सभी का लाडला होने की वजह से उस की हर मांग पूरी की जाती थी. विश्वनाथन ने उस के जन्मदिन पर एक तोला सोने की चेन गिफ्ट की थी, जिसे वह हर समय पहने रहता था. वह उसे साइकिल खरीदवाने के पक्ष में तो थे, लेकिन अभी उस की उम्र कम होने की वजह से फिलहाल मना कर रहे थे.

लेकिन बेटे की जिद और मायूसी के आगे विश्वनाथन को झुकना पड़ा. आखिर उन्होंने बेटे को एक साइकिल खरीदवा दी. साइकिल पा कर महादेवन की खुशी का ठिकाना न रहा. यह बात सन 1995 की है. इस के बाद महादेवन दोस्तों के साथ साइकिल चलाने लगा. जब वह अच्छी तरह से साइकिल चलाना सीख गया तो उसी से स्कूल आनेजाने लगा.

महादेवन 2 सितंबर, 1995 को भी घर से साइकिल ले कर निकला था, लेकिन तब से आज तक वह वापस नहीं लौटा. दरअसल स्कूल से लौटने के कुछ समय बाद महादेवन साइकिल ले कर निकल गया. ऐसा वह रोजाना करता था और 1-2 घंटे में घर लौट आता था.

उस दिन वह कई घंटे बाद भी घर नहीं लौटा तो मां विजयलक्ष्मी को चिंता हुई. उन्होंने उसे उन जगहों पर जा कर देखा, जहां वह साइकिल चलाता था. महादेवन नहीं मिला तो विजयलक्ष्मी ने दुकान पर बैठे पति के पास बेटे के गायब होने की खबर भिजवा दी.

बेटे के घर न लौटने की बात सुन कर विश्वनाथन आचारी दुकान से सीधे घर चले आए. उन्होंने बेटे को इधरउधर ढूंढना शुरू किया और उस के यारदोस्तों से पूछा, परंतु उन्हें बेटे के बारे में कहीं से कोई जानकारी नहीं मिली.

एकलौते बेटे का कोई पता न चलने से मां का रोरो कर बुरा हाल था. चारों तरफ से हताश होने के बाद विश्वनाथन पत्नी के साथ थाना चंगनाशेरी पहुंचे और थानाप्रभारी को बेटे के गुम होने की बात बताई. लेकिन थानाप्रभारी ने मामले को गंभीरता से नहीं लिया. उन्होंने बस उस की गुमशुदगी दर्ज कर ली.

थाने में बच्चे के गुम होने की सूचना दर्ज कराने के बाद भी आचारी अपने स्तर से बेटे को ढूंढते रहे. काफी खोजने के बाद भी उन के हाथ निराशा ही लगी. बच्चे के गायब होने के 4-5 दिनों बाद आचारी के घर पर एक चिट्ठी आई. चिट्ठी पढ़ कर वह सन्न रह गए. उस चिट्ठी में लिखा था, ‘‘तुम्हारा बेटा महादेवन हमारे कब्जे में है. अगर तुम्हें वह जिंदा चाहिए तो मोटी रकम का इंतजाम कर लो.’’

पैसे पहुंचाने के लिए चिट्ठी में एक पता लिखा था. आचारी बेटे के लिए कुछ भी करने को तैयार थे. उन्होंने तय कर लिया कि अपहर्त्ता उन से चाहे जितने पैसे ले लें, लेकिन उन्हें बेटा सही सलामत मिले. मामला कहीं उलटा न हो जाए, इसलिए उन्होंने चिट्ठी वाली बात पुलिस को नहीं बताई.

पैसे इकट्ठे करने के बाद वह अकेले ही चिट्ठी में दिए पते पर नियत समय पर पहुंच गए. जिस कलर के कपड़े पहने हुए व्यक्ति को पैसे सौंपने की बात पत्र में लिखी थी, उस कलर के कपड़े पहने वहां कोई भी नहीं दिखा. आचारी ने चारों तरफ नजरें घुमा कर देखा. फिर भी उन्हें उस रंग के कपड़े पहने कोई शख्स नहीं दिखा. उन्होंने वहां कुछ देर इंतजार किया. इस के बाद भी उस कलर के कपड़े पहने कोई शख्स नहीं आया तो वह निराश हो कर घर लौट आए.

फिर आचारी ने अगले दिन अपहर्त्ताओं द्वारा भेजी गई चिट्ठी के बारे में पुलिस को बता दिया. पत्र से पुलिस को भी यकीन हो गया कि महादेवन का किसी ने पैसों के लिए अपहरण किया है. पत्र द्वारा पुलिस ने अपहर्त्ताओं तक पहुंचने की कोशिश की लेकिन सफलता नहीं मिली.

इधरउधर हाथ मारने के बाद पुलिस को कामयाबी नहीं मिली तो उस ने इस संवेदनशील मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया. आचारी थाने के चक्कर लगाते रहे, लेकिन पुलिस ने उन की बातें पर तवज्जो नहीं दी.

13 वर्षीय महादेवन को घर से गए हुए महीने, साल बीत गए. बेटे की याद में रोतेरोते विजयलक्ष्मी की आंखों के आंसू सूख चुके थे तो पुलिस अधिकारियों के पास चक्कर लगाते लगाते आचारी के जूते घिस चुके थे. इस के बाद भी आचारी ने हिम्मत नहीं हारी. वह बेटे को खोजने का दबाव पुलिस पर बनाए रहे.

आचारी को जब लगा कि पुलिस बेटे को ढूंढने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखा रही तो उन्होंने उच्च न्यायालय की शरण ली. हाईकोर्ट ने इस मामले को गंभीरता से लिया और इस केस की जांच क्राइम ब्रांच से कराने के आदेश दिए. हाईकोर्ट के आदेश पर क्राइम ब्रांच के एडीजीपी विल्सन एम. पौल ने पुलिस अधीक्षक के.जी. साइमन के नेतृत्व में एक जांच टीम बनाई. इस टीम में एसआई के. एफ. जोब, ए.बी. पोन्नयम, नंगराज आदि को शामिल किया गया.

इस के बाद क्राइम ब्रांच ने महादेवन के रहस्यमय तरीके से गायब होने की तफ्तीश शुरू की. चूंकि उस को गायब हुए कई साल बीत चुके थे, इसलिए काफी मशक्कत के बाद भी क्राइम ब्रांच को ऐसा कोई सूत्र नहीं मिल सका, जिस से पता चल सकता कि महादेवन कहां गया था?

अपने एकलौते बेटे के गम में विश्वनाथन आचारी की हालत ऐसी हो गई थी कि सन 2006 में उन्होंने दम तोड़ दिया. 54 साल की उम्र में पति के गुजर जाने के बाद विजयलक्ष्मी के ऊपर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा. बेटे के गम में वह पहले से ही काफी कमजोर हो गई थी. बाद में उस की भी तबीयत खराब रहने लगी और सन 2009 में उस ने भी दम तोड़ दिया.

महादेवन को गायब हुए 14 साल हो चुके थे. उस की चिंता में मांबाप चल बसे थे और जो 3 बहनें थीं, वे भी भाई के गम में अकसर रोती रहती थीं. उधर क्राइम ब्रांच के लिए यह केस एक चुनौती के रूप में था. क्राइम ब्रांच ने एक बार फिर केस की जांच महादेवन के घर से ही शुरू की.

इस बार क्राइम ब्रांच की टीम ने यह जानने की कोशिश की कि आचारी की किसी से कोई दुश्मनी तो नहीं थी. फिर यह पता लगाया कि महादेवन जब साइकिल ले कर घर से निकला था तो उस के साथ कौन था.

इस बारे में टीम ने उस के दोस्तों और मोहल्ले के लोगों से भी बात की. इस पर मोहल्ले के कुछ लोगों ने बताया कि उस दिन महादेवन को हरि कुमार की साइकिल की दुकान पर देखा गया था. इस बात की पुष्टि महादेवन की दुकान पर काम करने वाले एक युवक ने भी की.

इस से क्राइम ब्रांच के शक की सुई हरि कुमार की तरफ घूम गई. हरि कुमार की मडुमूला जंक्शन के पास साइकिल रिपेयरिंग की दुकान थी. क्राइम ब्रांच टीम ने पूछताछ के लिए हरि कुमार को बुलवा लिया. लेकिन उस ने टीम को यही बताया कि महादेवन अपनी साइकिल ठीक कराने अकसर उस की दुकान पर आता रहता था. उस दिन भी उस की साइकिल खराब हो गई थी. साइकिल ठीक करा कर वह उस के यहां से चला गया था.

पुलिस टीम को लग रहा था कि हरि कुमार सही बात नहीं बता रहा था. लिहाजा उस दिन उसे हिदायत दे कर छोड़ दिया. इसी बीच टीम ने हरि कुमार की लिखावट का नमूना ले लिया था. आचारी के पास फिरौती का जो लैटर आया था, वह पुलिस फाइल में लगा हुआ था. क्राइम ब्रांच ने उस पत्र की राइटिंग और हरि कुमार की राइटिंग को जांच के लिए फोरैंसिक लैबोरेटरी भेजा.

फोरैंसिक जांच में दोनों राइटिंग एक ही व्यक्ति की पाई गईं. इस से स्पष्ट हो गया कि आचारी के पास फिरौती का जो पत्र आया था, वह हरि कुमार ने ही भेजा था. इस का मतलब हरि कुमार ने ही महादेवन का अपहरण किया था. हरि कुमार के खिलाफ पक्का सुबूत मिलने पर क्राइम ब्रांच ने उसे पूछताछ के लिए फिर उठा लिया.

चूंकि टीम को अब पुख्ता सुबूत मिल चुका था, इसलिए टीम ने इस बार उस से सख्ती से पूछताछ की तो उस ने स्वीकार किया कि उस ने महादेवन की हत्या कर दी थी. 19 साल पहले उस ने एक नहीं, बल्कि 2-2 हत्याएं की थीं. 2-2 हत्याएं करने का राज उस ने उगल दिया था. दूसरा कत्ल उस ने अपने एक नजदीकी दोस्त का किया था. उस दोस्त की गुमशुदगी भी आज तक रहस्यमय बनी हुई थी.

महादेवन की हत्या की उस ने जो कहानी बताई, वह हैरान कर देने वाली थी.

विश्वनाथन ने बेटे की जिद के आगे झुक कर उसे साइकिल दिला तो दी थी, लेकिन उन्हें यह पता नहीं था कि यही साइकिल हमेशा के लिए बेटे को उन से दूर कर देगी.

महादेवन की मुराद पूरी हो चुकी थी, इसलिए वह फूला नहीं समा रहा था. स्कूल भी वह साइकिल से ही आनेजाने लगा. इस के अलावा स्कूल से लौटने के बाद वह यार दोस्तों के साथ साइकिल चलाता था. मडुमूला जंक्शन के पास हरि कुमार की साइकिल रिपेयरिंग की दुकान थी. जब कभी महादेवन की साइकिल खराब होती, वह हरि कुमार की दुकान पर जा कर ठीक कराता था.

महादेवन एक खातेपीते परिवार से था. वह हर समय गले में सोने की चेन पहने रहता था. जबकि हरि कुमार आर्थिक परेशानी झेल रहा था. साइकिल रिपेयरिंग की दुकान से उसे कोई खास आमदनी नहीं होती थी. 13 साल के महादेवन के गले में सोने की चेन देख कर हरि कुमार के मन में लालच आ गया. उस पर अपना विश्वास जमाने के लिए हरि कुमार उस से बड़े प्यार से बात करनी शुरू कर दी.

2 सितंबर, 1995 को स्कूल से घर लौटने के बाद महादेवन ने खाना खाया और साइकिल ले कर घर से निकल गया. ऐसा वह रोजाना करता था और 1-2 घंटे बाद लौट आता था. उस दिन घर से निकलने के बाद महादेवन की साइकिल खराब हो गई. वह साइकिल ठीक कराने हरि कुमार की दुकान पर गया. चूंकि उस समय दुकान पर कई ग्राहक पहले से बैठे थे, इसलिए हरि कुमार ने साइकिल अपने यहां खड़ी कर ली और उस से थोड़ी देर बाद आने को कहा.

कुछ देर बाद महादेवन साइकिल लेने पहुंचा तो उस समय हरि कुमार दुकान पर अकेला था. महादेवन से सोने की चेन छीनने का अच्छा मौका देख कर हरि कुमार ने उसे दुकान में बुला लिया. जैसे ही महादेवन दुकान में घुसा, हरि कुमार ने उस के गले से चेन निकालने की कोशिश की. महादेवन ने इस का विरोध किया और चीखने लगा. तभी हरि कुमार ने दुकान बंद कर दी और उस का गला दबाने लगा.

गले पर दबाव बढ़ा तो महादेवन का दम घुटने लगा. कुछ ही पलों में दम घुटने से उस बच्चे की मौत हो गई. उस की हत्या करने के बाद हरि ने उस के गले से एक तोला वजन की सोने की चेन निकाल ली.

उस का मकसद पूरा हो चुका था. अब उस के सामने समस्या लाश को ठिकाने लगाने की थी. इस के लिए उस ने अपने दोस्त कोनारी सली और साले प्रमोद को दुकान पर ही बुला लिया.

महादेवन की हत्या की बात उस ने उन्हें बता दी. तीनों ने लाश को ठिकाने लगाने की योजना बनाई. योजना के बाद उन्होंने लाश को एक बोरे में भरा और आटो में रख कर उसे कोट्टायम के निकट एक तालाब में डाल आए. लाश ठिकाने लगा कर हरि कुमार निश्चिंत हो गया. लेकिन यह उस की भूल थी.

उस के दोस्त कोनारी सली ने ही उसे ब्लैकमेल करना शुरू कर दिया. पुलिस को हत्या की बात बताने की धमकी दे कर वह उस से पैसे ऐंठने लगा. हरि कुमार उस का मुंह बंद करने के लिए उस की डिमांड पूरी करता रहा.

उसी दौरान हरि कुमार ने सवा लाख रुपए में अपनी जमीन बेची. कोनारी सली को जब यह बात पता लगी तो उस ने हरि कुमार से 50 हजार रुपए की मांग की. अब हरि कुमार उसे कोई पैसा नहीं देना चाहता था. वह जानता था कि अगर उसे पैसे देने को साफ मना कर देगा तो कोलारी पुलिस के सामने हत्या का राज खोल सकता है. इस बारे में हरि ने अपने साले प्रमोद से बात की और दोनों ने कोनारी सली से हमेशा के लिए छुटकारा पाने का प्लान बना लिया.

योजना के अनुसार, हरि ने वाशपल्लि में त्यौहार के दिन शाम 7 बजे कोनारी सली को शराब पीने के लिए अपनी दुकान में बुला लिया. लालच में कोनारी सली वहां पहुंच गया. दुकान में ही तीनों ने शराब पीनी शुरू की. उसी दौरान उन्होंने कोनारी सली के पैग में साइनाइड मिला दिया. जहर मिली शराब पीने से कुछ ही देर मे कोनारी सली की मौत हो गई.

दोनों उस की लाश को बोरे में भर कर एक आटो से कोट्टायम मरयपल्लि के पास ले गए. यहां पास में ही कोनारी सली का घर था. वहीं पास में स्थित एक पानी भरे गहरे तालाब में वह बोरी डाल दी. इसी तालाब में इन्होंने महादेवन की भी लाश डाली थी. इस तालाब को लोग प्रयोग नहीं करते थे.

उस की लाश ठिकाने लगाने के बाद दोनों अपनेअपने काम में जुट गए. कोनारी सली की हत्या महादेवन की हत्या के करीब डेढ़ साल बाद की गई थी.

उधर जब कोनारी सली कई दिनों बाद भी घर नहीं लौटा तो उस के घर वालों ने थाने में गुमशुदगी दर्ज कराई. काफी छानबीन के बाद भी जब वह घर नहीं आया तो घर वालों ने यही सोचा कि वह बिना बताए घर छोड़ कर कहीं भाग गया है. इस के कुछ दिनों बाद हरि कुमार के साले प्रमोद की भी बाथरूम में फिसल जाने के बाद मौत हो गई. उस की मौत भी एक रहस्य बन कर रह गई.

जुर्म के दोनों राजदारों की मौत के बाद हरि कुमार बेखौफ हो गया. अब उसे किसी का कोई डर नहीं रहा.

इस पूछताछ के बाद जब लोगों को पता चला कि हरि कुमार ने न केवल महादेवन की, बल्कि अपने दोस्त कोनारी सली की भी हत्या की थी, सैकड़ों की संख्या में लोग थाने पर जमा हो गए. वे हरि कुमार को सौंप देने की मांग कर रहे थे, ताकि वे अपने हाथों से उसे सजा दे सकें. लेकिन पुलिस ने ऐसा नहीं किया.

महादेवन को खोजते खोजते उस के मांबाप गुजर चुके थे. अब उस की 3 बहनें सिंघु, स्वप्ना और स्मिता ही बची थीं. भाई की हत्या का राज खुलने के बाद वे भी थाने गईं. उन्होंने पुलिस से अनुरोध किया कि उन के घर को तबाह करने वाले हत्यारे हरि कुमार के खिलाफ सख्त से सख्त काररवाई की जाए.

पुलिस हत्यारे हरि कुमार को उस जगह भी ले गई थी, जहां उस ने दोनों लाशें ठिकाने लगाई थीं. चूंकि हत्याएं किए हुए 18-19 साल बीत चुके थे, जिस से वहां से लाशों से संबंधित कोई चीज नहीं मिली.

अपराधी चाहे कितना भी शातिर क्यों न हो, अगर पुलिस कोशिश करे तो अपराधी तक पहुंच ही जाती है. सुबूत खत्म करने के बाद हरि कुमार भले ही पुलिस से 19 साल तक बचता रहा, लेकिन पुलिस के हाथ उस तक पहुंच ही गए. लाख कोशिश करने के बाद भी हत्यारा पुलिस से बच नहीं सका.

क्राइम ब्रांच ने उसे गिरफ्तार कर न्यायालय में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों और जनचर्चा पर आधारित

-आर. जयदेवान/  डा. अनुराधा पी. के.

फांसी के फंदे पर लटके नोट

सलोनी से करीब 6 किलोमीटर दूर आलबरस गांव है जो दुर्ग जिले में आता है. इस गांव में हर साल 23 दिसंबर को मड़ई मेला लगता है. यह मेला आसपास के जिलों में बहुत प्रसिद्ध है.

मेले में हजारों की संख्या में लोग जुटते हैं. रुद्र नारायण को उस के दूर के जीजा पंचराम देशमुख ने मेला देखने को बुलाया तो वह अपने पिता की साइकिल उठा कर आलबरस चौक पर पहुंच गया, जहां पंचराम उस का इंतजार कर रहा था.

रुद्र को देखते ही पंचराम चहका, ‘‘तुम तो बड़े होशियार निकले, बिल्कुल समय पर आ गए.’’

साइकिल खड़ी कर रुद्र नारायण पंचराम की ओर उन्मुख हुआ, ‘‘जीजा, बचपन में मैं एक बार मेला देखने आया था. कितने साल गुजर गए, फिर दोबारा नहीं आ पाया. आज आप के कहने पर आया हूं.’’

पंचराम ने उस से पूछा, ‘‘किसी को बताया है कि सीधे चले आए हो.’’

‘‘नहीं जीजा,’’ किसी को नहीं बताया. बताता तो, पिताजी अकेले आने देते क्या? देखो न कितनी दूर से साइकिल चला कर आया हूं.’’ रुद्र के स्वर में गर्व था.

यह सुन कर पंचराम ने मन ही मन खुश होते कहा, ‘‘शाबाश, तुम ने बहुत अच्छा किया, जो घर पर किसी को नहीं बताया. तुम कोई चिंता मत करना मैं हूं ना, मैं तुम्हें मड़ाई मेला घुमाऊंगा, खिलाऊंगा…और पिलाऊंगा भी?

‘‘क्या मतलब जीजा.’’ रुद्र ने पूछा.

‘‘रुद्र, अब तुम कोई बच्चे नहीं रहे…अच्छा बताओ, तुम ने कभी शराब पी है कि नहीं.’’

‘‘एक बार पी थी दोस्तों के साथ. उस के बाद फिर कभी नहीं पी.’’ रुद्र नारायाण ने आंखें नीची कर के झिझकते हुए कहा.

‘‘तो इस में शरमाने की क्या बात है, शराब पीना तो मर्दों की निशानी है.’’ पंचराम ने उसे उत्साहित किया, तो रुद्र खिल उठा.

‘‘चलो आज मैं तुम्हें दुनिया का आनंद दिलाता हूं. पहले थोड़ा मजा लेंगे फिर मड़ई घूमेंगे. आज मेरे साथ रहने पर देखना कितना आनंद आता है.’’ पंचराम ने कहा, फिर उसे ले कर वह शराब की दुकान पर गया.

शराब और पास की एक दुकान से खाने के लिए कुछ सामान ले कर दोनों एक खेत के पास बैठ गए. वहां पर दोनों ने शराब पीनी शुरू कर दी. पंचराम देशमुख ने रुद्र नारायण को योजनानुसार ज्यादा शराब पिला दी.

न न करते भी, सोचीसमझी साजिश के तहत, रुद्र नारायण को पंचराम शराब पिलाता रहा. अबोध रुद्र नारायण मुंह बोले जीजा की इधरउधर की बातों में डूबा शराब पी कर मदमस्त हो गया. उस पर इतना नशा चढ़ा कि वह आंखें बंद कर वहीं लेट गया.

पंचराम यही चाहता था. शराब के नशे में चूर हो चुके रुद्र को अर्ध चेतना अवस्था में लेटा छोड़ कर वह अपनी साइकिल में बंधी रस्सी खोल लाया और मौके का फायदा उठा कर उस ने रुद्र के गले में रस्सी का फंदा बना कर उस का गला घोंट दिया.

गले में फंदा कसते ही रुद्र ने आंखें खोल कर पंचराम को देखा और मौत के आगोश में समा गया.

रुद्र की हत्या करने के बाद पंचराम ऐसे खुश हुआ जैसे उस की वर्षों की साध पूरी हो गई हो. रुद्र ने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि उस का मुंह बोला जीजा, पंचराम देशमुख उस की उस तरह बेदर्दी से हत्या कर देगा.

पंचराम ने रुद्र नारायण के गले में पड़ी रस्सी निकाल कर जोरों से अट्टहास लगाया. उसे लग रहा था कि अब उस की मुराद पूरी हो जाएगी. अब उसे लखपति बनने से कोई नहीं रोक सकता. दरअसल उस के गुरु समान मित्र और तथाकथित तांत्रिक धनराज नेताम ने बताया था कि अगर वह फांसी की रस्सी उस के पास ले कर आएगा तो वह देखते ही देखते उसे रुपयोंपैसों से मालामाल कर देगा.

पंचराम देशमुख जिला दुर्ग के आलबरस गांव का रहने वाला था. उस ने होश संभाला तो उस के पास एक ही हुनर था वाल पेंटिंग बनाने का. यही काम कर के वह जीवनयापन करने लगा.

मगर अब पेंटर का काम कम मिलने लगा था, क्योंकि प्रिंटिंग की दुनिया में फ्लेक्स प्रिंटिंग का युग आ चुका था और लोग कम दर पर फ्लेक्स प्रिंट करवा लेते थे. आमदनी कम हाने पर उस के तंगहाली में दिन कटने लगे. परिवार पालना भी मुश्किल हो गया.

पंचराम की ससुराल बलोद जिले के गांव सलोनी में थी. एक बार जब वह अपनी ससुराल गया तो वहीं पर उस की मुलाकात धनराज नेताम से हुई, जो गांव सलोनी में बंदर भगाने के लिए तांत्रिक क्रिया करने आया था. पंचराम को किसी ने धनराज के बारे में बताया कि यह बहुत बड़ा तांत्रिक है.

उस ने बताया कि गांव में बंदरों का आतंक है, जाने कहां से इतने सारे बंदर आ गए जिन से गांव वाले परेशान हैं. कई प्रयास किए गए, मगर बंदरों से छुटकारा नहीं मिला. तब तांत्रिक धनराज को विशेष रूप से बुलाया गया है. धनराज से मिलने के बाद पंचराम बहुत खुश हुआ. चूंकि पंचराम को गांव के लोग दामाद जैसा ही सम्मान देते थे. इसलिए तांत्रिक के साथ पंचराम की भी अच्छी खातिरदारी हुई.

जब एक साथ जाम छलके तो पंचराम और तांत्रिक की दोस्ती हो गई. बातोंबातों में धनराज ने उस से कहा, ‘‘मैं ने जो तंत्र क्रिया की है, उस का कमाल देखना. इस के बाद गांव में एक भी बंदर नहीं दिखेगा.’’

यह सुन कर पंचराम आश्चर्य चकित रह गया. उस ने तंत्रमंत्र के बारे में सुना था मगर किसी तांत्रिक से मुलाकात पहली बार हुई थी. धनराज ने आगे कहा, ‘‘मैं किसी को भी लखपति बना सकता हूं.’’

‘‘कैसे?’’ यह सुन कर बरबस पंचराम ने पूछा.

‘‘मुझे बस एक फांसी की रस्सी ला दो… फिर देखो, रुपए बरसेंगे.’’ धनराज नेताम ने शराब का गिलास होंठों पर लगा कर कहा.

‘‘यह कौन सी बड़ी बात है.’’ पंचराम ने बोला, ‘‘फांसी की रस्सी तो मैं ला सकता हूं.’’

‘‘तो लाओ, फिर देखना, कैसे पत्तों की तरह आकाश से नोट बरसाऊंगा.’’

धनराज नेताम की आश्चर्य मिश्रित बातें सुन कर पंचराम देशमुख उस का मुरीद बन गया. दूसरे दिन आश्चर्यजनक घटना हुई कि गांव में धनराज द्वारा की गई तांत्रिक किया के बाद किसी को एक भी बंदर देखने को नहीं मिला. यह चमत्कार नहीं, संयोग था. मगर इस से धनराज के प्रति पंचराम देखमुख की आस्था बढ़ गई.

पंचराम उस का भक्त बन गया और लखपति बनने के लिए फांसी की रस्सी ढूंढने की कोशिश तेज कर दी. एक दिन दुर्ग जिले के अंडा थाने में तैनात एक कांस्टेबल से दूर का संबंध निकाल कर पंचराम उस के पास पहुंच गया और उस से कहा, ‘‘भैया, क्या फांसी की रस्सी मिल सकती है?’’

उस की बात सुनते ही कांस्टेबल ने चौंकते हुए कहा, ‘‘क्या करोगे तुम उस का वह भला तुम्हें कैसे मिल सकती है, वह तो जल्लाद के पास मिलेगी. और जल्लाद तुम्हें वो क्यों देगा.’’

यह सारी जानकारी मिलने पर वह निराश हो गया. पंचराम का चेहरा लटक गया तो कांस्टेबल ने पूछा ‘‘अच्छा यह तो बाताओ, फांसी की रस्सी का क्या करोगे?’’

‘‘अब तुम से क्या छिपाना. सुना है कि फांसी की रस्सी मिल जाए तो रुपए बरसते हैं.’’ पंचराम ने बताया.

यह सुन कर कांस्टेबल हंसने लगा और उसे समझाया, ‘‘ऐसा नहीं हो सकता. यदि ऐसा होता तो सारे जल्लाद करोड़पति होते. ये सब फालतू की बातें हैं.’’

मगर पंचराम के दिमाग से यह बात इतनी आसानी से कैसे निकल सकती थी. वह तो करोड़पति बनने के सपने देख रहा था. इसलिए वह फांसी की रस्सी की ताक में लगा रहा.

जब चारों तरफ निराशा मिली तो एक दिन उस की निगाह रुद्र नारायण पर पड़ी. 15 वर्षीय रुद्र नारायण उस की ससुराल वाले गांव सलोनी में रहता था. वह उसे  जीजा कहता था. पंचराम सोचने लगा कि क्यों न उसे मार कर फांसी की रस्सी तैयार कर ले.

उस ने तांत्रिक धनराज नेताम को इस बारे में बताया तो उस ने स्वीकृति देते हुए कहा, ‘‘चलेगा, बस रस्सी फांसी की हो.’’ इस के बाद पंचराम ने पिलेश्वर देखमुख के घर आनाजाना बढ़ा दिया.

पंचराम गांव वालों की निगाह में दामाद बाबू था, पिलेश्वर देशमुख उस का सम्मान करता और अपने दुखसुख की बातें साझा करता था. इसी का फायदा उठा कर पंचराम ने 23 दिसंबर, 2019 को योजनानुसार रुद्र को मड़ई मेला घुमाने के लिए बुलाया और मौका देख कर उस के गले में रस्सी का फंदा डाल उस की हत्या कर दी.

फिर उसी दिन शाम को वह घटनास्थल पर दोबारा पहुंचा और उस की लाश के ऊपर केरोसिन डाल कर, आग लगा दी.

29 दिसंबर, 2019 शनिवार को दोपहर दुर्ग जिले के थाना अंडा के टीआई राजेश झा को किसी ने फोन कर के सूचना दी कि गांव आलबरस के पास एक खेत में लाश पड़ी है.

लाश मिलने की सूचना पा कर राजेश झा चौंके, क्योंकि साल के अंतिम दिन चल रहे थे और क्षेत्र में यह वारदात हो गई थी. खबर मिलते ही वह एक एसआई और 2 कांस्टेबलों को साथ ले कर मौके की तरफ रवाना हो गए.

साल के अंतिम महीने और अंतिम दिनों में पुलिस विभाग सारे पेंडिंग पड़े प्रकरणों का निवारण करता है, जिस की वजह से काफी व्यस्तता रहती है. व्यस्तता अंडा थाने में भी थी, मगर टीआई काम छोड़ कर तत्काल घटनास्थल की ओर रवाना हो गए. उन्होंने घटना स्थल का सूक्ष्मता से अवलोकन किया.

अधजली लाश के पास शराब की खाली 3 बोतलें, गिलास मिले, नीले रंग की टीशर्ट का एक जला हुआ टुकड़ा, बेल्ट और जूते भी पड़े मिले. लाश किसी बालक की थी. घटनास्थल पर मौजूद कोई भी ग्रामीण उस लाश की शिनाख्त नहीं कर सका था.

मामला संगीन दिखाई पड़ रहा था. उन्हें लग रहा था कि जरूर किसी ने बालक के साथ अनाचार किया होगा और उसे जला कर साक्ष्य छिपाने की कोशिश की है. टीआई ने उच्च अधिकारियों एएसपी (ग्रामीण) लखन पटले व एसएसपी अजय कुमार यादव को घटना की जानकारी दे दी. उच्च अधिकारियों के निर्देश पर टीआई ने मौके की काररवाई निपटा कर लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी.

हत्या का केस दर्ज होते ही टीआई राजेश झा ने इस मामले की जांच शुरू कर दी. सब से पहले उन्होंने अपने जिले के सभी थानों के अलावा सीमावर्ती जिला बालोद के थानों में भी अज्ञात बालक की लाश मिलने की सूचना भेज कर और जानना चाहा कि उन के क्षेत्र से इस आयु वर्ग का कोई बालक लापता तो नहीं है.

टीआई झा को बालोद जिले के अर्जुंदा थाने से खबर मिली कि 26 दिसंबर, 2019 को एक 15 साल के किशोर रुद्र नारायण देशमुख के लापता होने की सूचना वहां थाने में दर्ज है. पता चला कि रुद्र 23 दिसंबर को अपने गांव सलानी से कहीं गया था. गुमशुदगी की सूचना रुद्र के पिता ने दर्ज कराई थी.

टीआई राजेश झा ने रुद्र के पिता पिलेश्वर व परिजनों को अंडा थाने बुलवाया और घटनास्थल पर मिली बेल्ट, टीशर्ट का टुकड़ा आदि दिखाया. उन चीजों को देखते ही पिलेश्वर देशमुख फफक कर रो पड़ा. वह बोला, ‘‘साहब, यह मेरे बेटे रुद्र की टीशर्ट का ही टुकड़ा है, बेल्ट भी उसी की है. मुझे बच्चे की लाश दिखाई जाए.’’

टीआई ने एक एसआई के साथ पिलेश्वर व परिजनों को हास्पिटल भेजा जहां की मोर्चरी में रुद्र की लाश रखी थी. पिलेश्वर और उस के साथ आए लोगों ने लाश की शिनाख्त रुद्र नारायण देशमुख के रूप में की. इस के बाद लाश का पोस्टमार्टम कराया गया.

डाक्टरों ने पोस्टमार्टम रिपोर्ट में बताया कि रुद्र की हत्या रस्सी के फंदे से गला घोट कर की गई थी. गले पर रस्सी के रेशे भी पाए गए. पोस्ट मार्टम रिपोर्ट से साफ हो चुका था कि किसी ने रुद्र की हत्या गला घोट कर की और बाद में जला दी. मगर यह हत्या क्यों की गई? पुलिस के सामने यह एक बड़ा सवाल था.

टीआई राजेश झा ने मृतक के पिता पिलेश्वर जो कि एक किसान है से पूछा कि क्या आप की किसी से कोई दुश्मनी वगैरह तो नहीं है. या किसी पर कोई शक है, जो रुद्र की हत्या कर सकता है?

इस पर पिलेश्वर ने बताया कि उस की किसी से रंजिश नहीं है. साथ ही उस ने यह भी बताया कि रुद्र का दूर के जीजा पंचराम देशमुख से बहुत लगाव था. वह उस से काफीकाफी देर तक फोन पर भी बातें करता था. कल पंचराम का हमारे पास फोन आया था, वह पूछ रहा था कि क्या कोई आरोपी पकड़ा गया है? पुलिस इस केस में अब क्या कर रही है?

पिलेश्वर के मुंह से यह सुनते ही टीआई राजेश झा का ध्यान पंचराम की तरफ केंद्रित हो गया. उन्होंने पंचराम के बारे में पिलेश्वर से सारी जानकारी ली और पंचराम को फोन किया, लेकिन उस का फोन स्विच्ड औफ था.

तब पुलिस टीम के साथ वह आलबरस गांव स्थित उस के घर पहुंच गए. लेकिन वह घर से गायब था. उस की पत्नी ने बताया कि वह तो 24 दिसंबर से घर नहीं आए हैं.

अब टीआई राजेश झा को इस मामले में अपराध की बू आती दिखने लगी. उन्होंने उस के मोबाइल की काल डिटेल्स निकलवाई तो चौंकाने वाली जानकारी मिली. उस की लोकेशन धमतरी जिले के किसी गांव की मिली.

उन्होंने आरक्षक वीरनारायण, राजकुमार चंद्रा, डी. राव, अलाउद्दीन और राजकुमार दिवाकर की टीम को पंचराम की गिरफ्तारी के लिए भेजा. यह टीम 6 घंटों का सफर कर के धमतरी जिले के गांव गुटकेल पहुंची. यह टीम फोन के टावर की मदद से तांत्रिक धनराज के घर पहुंच गई. वहां पुलिस टीम को पता चला कि धनराज और पंचराम जंगल में चूहा मारने गए हुए हैं.

पुलिस टीम जाल बिछा कर पंचराम का इंतजार करने लगी. 31 दिसंबर, 2019 को जब पंचराम व धनराज जंगल से 2 बड़े चूहे पकड़ कर घर लौटे तभी पुलिस ने उन्हें दबोच लिया और हिरासत में ले कर अंडा थाने ले आई. दोनों से पूछताछ की गई तो पंचराम ने स्वीकार कर लिया कि रस्सी से गला घोट कर उस ने ही रुद्र की हत्या की थी.

उस ने बताया कि वह लखपति बनना चाहता था, तांत्रिक धनराज ने उसे बताया था कि फांसी की रस्सी, नारियल, सिंदूर ला दे तो एक सप्ताह में वह हवा में पत्तों की तरह नोटों की वर्षा कर सकता है, इसीलिए उस ने रस्सी से गला घोंट कर रुद्र की हत्या की थी.

पुलिस ने आरोपी पंचराम देशमुख और तथाकथित तांत्रिक धनराज नेताम के इकबालिया बयान दर्ज कर के उन्हें भादंवि की धारा 302, 120 बी, 34 के तहत गिरफ्तार कर प्रथम श्रेणी न्यायिक मजिस्ट्रैट श्रीमती प्रतीक्षा शर्मा के समक्ष पेश किया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

17 महीने से छिपी लाश का रहस्य

नाले के पास बिना सिर वाला एक धड़ पड़ा हुआ है, जिस के बदन पर नीले कलर की टीशर्ट पर लाल सफेद लाइनिंग साफ नजर आ रही थी. मरने वाले के हाथ में लोहे का कड़ा और पीले लाल कलर का धागा बंधा हुआ था. उस के शरीर के निचले हिस्से में लाल रंग की अंडरवियर और बनियान थी. सिर के बाल  तथा दाढ़ी व मूंछ में मेहंदी कलर लगा हुआ था. जिस जगह यह सिर कटा धड़ पड़ा हुआ था, उस के कुछ ही दूरी पर एक प्लास्टिक की बोरी भी पड़ी हुई थी.

पुलिस टीम ने जब उस बोरी को खोला तो उस में मृतक का सिर मिला. पहली नजर में हत्या का मामला दिख रहा था. लिहाजा उन्होंने सीन औफ क्राइम मोबाइल यूनिट के प्रभारी डा. आर.पी. शुक्ला को मौके पर बुला लिया.

फोरैंसिक एक्सपर्ट डा. आर.पी. शुक्ला ने मौका मुआयना कर शव को देख कर बताया कि मरने वाले की उम्र 35 साल से अधिक लग रही है. लाश को देखने से प्रतीत हो रहा है कि लाश महीनों पुरानी है और उस की गरदन काट कर हत्या की गई होगी.

एफएसएल टीम ने मौकामुआयना कर वैज्ञानिक साक्ष्य एकत्र कर धड़ को संजय गांधी मैडिकल कालेज की फोरैंसिक शाखा भेज दिया. यह बात 26 अक्तूबर, 2022 की है.

सोशल मीडिया पर यह खबर जंगल की आग की तरह फैलते ही कुछ ही घंटों में पुलिस को पता चल गया कि बिना सिर वाली लाश पास के गांव ऊमरी में रहने वाले 42 साल के रामसुशील पाल की है.

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           एसपी नवनीत भसीन

रीवा जिले के एसपी नवनीत भसीन ने मऊगंज थाने की टीआई श्वेता मौर्य, एसआई लालबहुर सिंह, एएसआई आदि के नेतृत्व में एक टीम का गठन कर जल्द ही रामसुशील की हत्या का खुलासा करने का निर्देश दिया.

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         टीआई श्वेता मौर्य

पुलिस टीम जांच करने जब ऊमरी गांव पहुंची तो पूछताछ में पता चला कि रामसुशील ऊमरी गांव में रहने वाले साधारण किसान मोहन पाल का सब से बड़ा बेटा था. वह पेशे से ड्राइवर था. अपने पेशे की वजह से वह कईकई महीने तक घर से बाहर रहता था.

रामसुशील की पहली पत्नी की मौत के बाद करीब 4 साल पहले उस ने मिर्जापुर निवासी रंजना पाल से विवाह किया था. शादी के शुरुआती समय तो सब ठीकठाक चलता रहा, मगर कुछ समय बाद ही दोनों के बीच मनमुटाव हो गया था.

पुलिस टीम ने जब घर के आसपास रहने वाले लोगों से पूछताछ की तो पता चला कि रामसुशील तो पिछले डेढ़ साल से गांव में किसी को दिखा ही नहीं. जब गांव के लोग पूछताछ करते तो पत्नी रंजना बताती कि उस का पति काम के सिलसिले में उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर गया है.

पुलिस को रामसुशील के घर जा कर यह भी मालूम हुआ कि रंजना भी कुछ दिनों पहले अपने बच्चों को ले कर मायके मिर्जापुर गई हुई है. इस वजह से पुलिस के शक की सूई रंजना की तरफ ही घूम रही थी. लिहाजा पुलिस की एक टीम रंजना की तलाश के लिए मिर्जापुर भेजी गई.

पुलिस ने सख्ती दिखाते हुए रंजना से पूछताछ की तो उस ने पति की मौत की पूरी कहानी बयां कर दी.

मध्य प्रदेश के रीवा जिले के मऊगंज जनपद पंचायत के छोटे से गांव ऊमरी श्रीपथ में रहने वाले किसान मोहन पाल के 3 बेटों में 42 साल का रामसुशील सब से बड़ा था. उस के बाद अंजनी पाल और सब से छोटा 30 साल का गुलाब था.

रामसुशील पेशे से ट्रक ड्राइवर था. उस की पहली शादी 22 साल की उम्र में हो गई थी. एक बेटे और बेटी के जन्म के बाद वह अपनी पत्नी के साथ बुरा व्यवहार करने लगा था. नशे की लत और उस की प्रताडऩा से तंग आ कर पत्नी ने आग लगा कर आत्महत्या कर थी.

उस समय उस के बच्चों की उम्र कम थी, इसलिए समाज के लोगों ने रामसुशील के मातापिता को बच्चों की परवरिश के लिए उस की दूसरी शादी करने की सलाह दी.

उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर में रहने वाली रंजना पाल भी पति की मारपीट से तंग आ कर मायके में रह रही थी. उस के 2 बेटे थे. समाज के लोगों ने यही सोच कर दोनों की शादी करा दी कि दोनों के बच्चों की परवरिश होने लगेगी.

इस तरह ढह गई मर्यादा की दीवार

रामसुशील नशे का आदी होने की वजह से घरपरिवार की जिम्मेदारियों से बेखबर रहता था. लिहाजा दोनों के बीच तकरार बढऩे लगी.

रामसुशील का परिवार गांव में घर के 3 हिस्सों में अलगअलग रहता था. एक हिस्से में रामसुशील का परिवार, दूसरे हिस्से में उस का भाई अंजनी पाल अपनी पत्नी और बच्चों के साथ, जबकि सब से छोटा भाई गुलाब  मातापिता के साथ रहता था. उस समय गुलाब की शादी नहीं हुई थी.

रामसुशील काम के सिलसिले में अकसर 15-15 दिन घर से बाहर रहता था. इस का फायदा उठाते हुए रंजना का झुकाव अपने देवर गुलाब की तरफ हो गया. उस समय गुलाब 30 साल का गोराचिट्टा जवान व कुंवारा था.

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   आरोपी गुलाब पाल

गुलाब भाभी का लाडला देवर था, परंतु रामसुशील की बुरी आदतों की वजह से अपने भाइयों से नहीं पटती थी. रामसुशील पैतृक संपत्ति का ज्यादा भाग खुद उपयोग कर रहा था. इस वजह से उस के भाई भी उस से नफरत करते थे.

ऐसे में रंजना ने गुलाब पर डोरे डालने शुरू कर दिए. गुलाब उम्र की जिस दहलीज पर खड़ा था, वहां पर शादीशुदा नाजनखरों वाली भाभी रंजना के बिछाए प्रेम जाल में वह फंस ही गया. लिहाजा जल्द ही दोनों के बीच अवैध संबंध हो गए.

इस के बाद तो गुलाब और रंजना का इश्क परवान चढऩे लगा था. जब भी उन्हें मौका मिलता, वे अपनी हसरतों को पूरा कर लेते. लेकिन कहते हैं कि इश्क और मुश्क छिपाए नहीं छिपते. यही हाल हुआ भौजाई रंजना और देवर गुलाब के इश्क का. आखिर पति रामसुशील को देवर भौजाई के चोरीछिपे चल रहे इश्क का पता चल ही गया.

एक दिन शराब के नशे में चूर रामसुशील जब घर पहुंचा तो रंजना पर बरस पड़ा, ”छिनाल, तूने आखिर अपनी औकात दिखा ही दी. गुलाब के साथ रंगरलियां मना रही है.’’

रामसुशील ने भद्दी गालियां देते हुए रंजना की पिटाई कर दी. अब तो आए दिन दोनों के बीच झगड़ा आम बात हो गई थी. जब रामसुशील गुस्से में रंजना की पिटाई करता तो प्रेमी गुलाब के सीने पर सांप लोट जाता.

छोटा भाई क्यों बना जान का दुश्मन

रोजरोज अपनी प्रेमिका की पिटाई से उसे दुख पहुंचता. एक दिन मौका पा कर गुलाब ने रंजना से साफसाफ कह दिया, ”भौजी, हम से तुम्हारा दर्द देखा नहीं जाता. आखिर कब तक जुल्म सहती रहोगी.’’

”कुछ समझ भी नहीं आता, आखिर ऐसे मर्द के साथ मैं निभाऊं कैसे.’’ रंजना बोली.

”मेरी तो इच्छा है कि ऐसे मर्द को तुम्हारी जिंदगी से हमेशा के लिए दूर कर दूं, फिर हमारे प्यार में कोई अड़चन ही नहीं होगी.’’ गुलाब रंजना से बोला.

”लेकिन यह काम इतना आसान नहीं है. यदि यह राज किसी को पता चल गया तो जेल में चक्की पीसेंगे हम दोनों.’’ रंजना ने आशंका व्यक्त करते हुए कहा.

”मेरे पास एक प्लान है, तुम अगर मानो तो किसी को कानोकान खबर नहीं होगी.’’ गुलाब चहकते हुए बोला.

”बताओ, ऐसा कौन सा प्लान है तुम्हारे पास?’’ रंजना बोली.

”भौजी, मैं बाजार से चूहे मारने वाली दवा ला कर दूंगा, तुम चुपचाप खाने में मिला कर रामसुशील भैया को खिला देना.’’ गुलाब बोला.

”फिर… घर के लोगों को क्या बताएंगे कि कैसे मर गए?’’ रंजना आगे की मुश्किल देखते हुए बोली.

”तुम इस की चिंता मत करो. रातोंरात मैं लाश को ठिकाने लगा दूंगा और लोगों से कह देंगे कि भैया काम के सिलसिले में बाहर गए हुए हैं.’’ गुलाब रंजना को आश्वस्त करते हुए बोला.

गुलाब और रंजना का प्यार अब घर वालों को भी पता चल चुका था. गुलाब के रंजना से संबंधों की भनक पिता मोहन पाल को लगी तो उन्होंने माथा पीट लिया. समाज में ऊंचनीच न होने के भय से उन्होंने यह सोच कर गुलाब की शादी कर दी कि शादी होते ही वह अपनी भाभी से दूर रहने लगेगा.

मगर शादी होने के बाद भी गुलाब की रंजना से नजदीकियां कम नहीं हुईं. गुलाब की पत्नी भी गुलाब की इन हरकतों से परेशान थी. गुलाब अपनी नवविवाहिता पत्नी पर फिदा होने के बजाय रंजना भाभी की जवानी के गुलशन का भंवरा बना हुआ था. गुलाब की नईनवेली पत्नी जब गुलाब को रंजना से दूर रहने को कहती तो वह उलटा उस के साथ ही मारपीट करने लगता.

रामसुशील जब भी घर आता तो वह देखता कि गुलाब रंजना के इर्दगिर्द घूमता रहता है. इस बात को ले कर वह गुलाब को भलाबुरा भी कह चुका था. गुलाब अपने भाई से जब जमीन के बंटवारे की बात कहता तो रामसुशील उसे डराधमका कर चुप करा देता.

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         आरोपी अंजनी पाल

जमीनजायदाद के बंटवारे को ले कर जब भी उन का आपसी विवाद होता तो उस के चाचा रामपति और उस के लड़के सूरज और गुड्डू भी गुलाब और अंजनी का पक्ष लेते. इस से रामसुशील अपने चाचा और उन के बेटों के साथ गालीगलौज करता.

समोसे की चटनी में मिलाया जहर

रामसुशील से तंग आ कर 2021 के मई महीने में रंजना और गुलाब ने रामसुशील को रास्ते से हटाने का प्लान बनाया और एक रात रंजना ने घर पर स्वादिष्ट समोसे बनाए.

समोसे खाने का रामसुशील शौकीन था, उसे टमाटर की चटनी के साथ समोसे खाना बहुत अच्छा लगता था. रंजना ने समोसे के साथ परोसी गई चटनी में चूहे मारने की दवा मिला दी थी.

रामसुशील चटखारे मार कर समोसे खा गया, मगर उसे इस बात का पता नहीं था कि उस की पत्नी ने जो प्यार जता कर समोसे परोसे हैं, उस में उस की मौत छिपी हुई थी.

पेट भर समोसे खा लेने के बाद रामसुशील सोने चला  गया. बच्चों के सोने के बाद जब रंजना रात के करीब 12 बजे पति के बिस्तर पर पहुंची तो उस ने हिलाडुला कर पति की नब्ज टटोली.

कोई हलचल न पा कर रंजना ने गुलाब को फोन कर खबर कर दी. गुलाब भी इसी पल का इंतजार कर रहा था. उस ने जमीन के बंटवारे में हिस्सा दिलाने का लालच दे कर अपने भाई अंजनी पाल को भी साथ ले लिया.

जैसे ही गुलाब और अंजनी भाभी के बुलावे पर रामसुशील के पास कमरे में पहुंचे तो रामसुशील को बेहोश देख कर बहुत खुश हुए. उन्हें लगा कि भाई जिंदा न बचे, इसलिए अपने साथ लाए धारदार हथियार से गुलाब ने रामसुशील का गला काट कर भाई अंजनी की मदद से धड़ और सिर प्लास्टिक की बोरी में भर दिया.

दूसरे दिन सुबह जल्दी उठ कर अंधेरे में ही गुलाब लाश वाली बोरी को साइकिल पर लाद कर अपने चाचा रामपति पाल के खेत पर पहुंच गया. वहां चाचा के लड़के सूरज और गुड्डू की मदद से भूसा रखने वाले कमरे में उस ने लाश की बोरी दबा दी.

इस काम में चाचा के बेटों गुड्डू पाल और सूरज पाल ने इसलिए मदद की क्योंकि एक बार जमीनी विवाद में इन का झगड़ा रामसुशील से हो गया था, तब रामसुशील ने पूरे गांव के सामने उन का अपमान किया था. अपने अपमान का बदला लेने के लिए वे गुलाब के इस प्लान में शामिल हो गए.

सुबह जब बच्चे सो कर उठे तो उन्हें रंजना ने बताया कि उस के पापा काम के सिलसिले में बाहर गए हैं. रामसुशील को रास्ते से हटाने के बाद गुलाब और रंजना के प्रेम की राह आसान हो गई थी. अब वे अपनी मरजी के मुताबिक जिंदगी जी रहे थे. गुलाब अपनी बीवी की उपेक्षा कर भाभी रंजना पर अपनी कमाई लुटा रहा था. रंजना भी गुलाब की दीवानगी का खूब फायदा उठा रही थी.

17 महीने बाद कैसे खुला राज

लाश को छिपाए करीब 17 महीने बीतने को थे, परंतु हर समय गुलाब के मन में पकड़े जाने का भय बना रहता था. गुलाब के चाचा रामपति को जब इस बात का पता चला तो वह गुलाब पर लाश को वहां से हटाने का दबाव बनाने लगे थे.

उन्होंने साफतौर पर कह दिया था, ”भूसा भरने वाले कमरे से वह जल्द ही लाश को हटा दे, नहीं तो वह पुलिस को सब कुछ बता देंगे.’’

पशुओं के लिए रखा भूसा भी खत्म होने को था. 25 अक्तूबर, 2022 की रात को गुलाब ने लाश वाली बोरी ला कर पास के गांव निबिहा के नाले के पास फेंक दी और घर जा कर चैन की नींद सो गया.

अगली सुबह रामसुशील की लाश मिलते ही गुलाब राज खुलने के डर से भयभीत हो गया और उस ने फोन लगा कर रंजना को बताते हुए सचेत कर दिया था.

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                                                    हिरासत में आरोपी

सूचना मिलने पर मऊगंज थाने की टीआई श्वेता मौर्य पुलिस टीम के साथ मौके पर पहुंची और सिर व धड़ बरामद कर पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिए. पुलिस जांच में रंजना से पूछताछ की गई तो थोड़ी सख्ती से रंजना जल्दी ही टूट गई और पुलिस को उस ने सच्चाई बता दी.

देवरभाभी के प्रेम और वासना की आग में अंधे हो कर रामसुशील को ठिकाने लगा कर यही समझ बैठे थे कि वे पुलिस की आंखों में धूल झोंक कर कानून की नजरों से बच जाएंगे, परंतु उन का यह भ्रम जल्दी ही टूट गया.

17 महीने तक भूसे के ढेर में दबी लाश जब बाहर निकली तो रामसुशील की हत्या का पूरा सच सामने आ गया.

पुलिस ने गुलाब, रंजना के साथ उस के भाई अंजनी व चाचा रामपति को भादंवि की धारा 302 और 201 के तहत मामला कायम कोर्ट में पेश किया, जहां से रंजना को महिला जेल रीवा और गुलाब, अंजनी और रामपति को उपजेल मऊगंज भेज दिया.

कथा लिखे जाने तक 2 आरोपी जेल में बंद थे और उन के खिलाफ आरोपपत्र कोर्ट में पेश किया जा चुका था.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित