बीवी का डबल इश्क पति ने उठाया रिस्क – भाग 1

मृतक की उम्र 35 से 40 वर्ष के बीच की लग रही थी. वह पैंटशर्ट पहने हुए था. उस के जिस्म पर चोट के निशान थे और सिर फटा हुआ था. सिर के गहरे जख्म से खून बह कर उस के सारे चेहरे और शर्ट पर फैल कर सूख चुका था. इस से अनुमान लगाया गया कि युवक को मरे हुए 10-12 घंटे से ऊपर हो गए हैं.

जमीन पर खून दिखाई नहीं दे रहा था और न ही ऐसे चिह्न वहां थे, जिस से यह समझा जा सके कि युवक की हत्या इसी जगह की गई है. साफ लग रहा था कि युवक की हत्या कहीं और की गई होगी, उस के बाद उसे ला कर यहां पर फेंक दिया गया था.

मिग्सन ग्रीन सोसायटी (गौतमबुद्ध नगर) का रहने वाला रवि कहीं जाने के लिए नहाधो कर तैयार हुआ था. उस ने अभी जूते के फीते बांधे ही थे कि जेब में रखे मोबाइल की घंटी बजने लगी. रवि ने मोबाइल निकाला. स्क्रीन पर उस की प्रेमिका प्रियंका का फोन नंबर फ्लैश हो रहा था.

रवि तुरंत काल रिसीव कर आतुरता से बोला, ”बोलो जानम, इस गरीब की याद कैसे आ गई तुम्हें?’’

”गरीब क्यों कहते हो अपने आप को रवि. मेरी नजर में तो तुम राजा हो राजा.’’ दूसरी ओर से प्रियंका का स्वर उभरा.

रवि हंस पड़ा, ”चलो, तुम्हारी नजर में मेरी कुछ तो कीमत है. कहो, कैसे याद किया मुझे?’’

”कहां हो?’’

”घर पर ही हूं.’’

”मेरे घर चले आओ, मैं अकेली हूं आज.’’ प्रियंका के स्वर में कामुकता का भाव था.

”तुम्हारा पति आलोक कहां गया?’’ रवि ने पूछा.

”अपनी बहन के यहां गया है, कल लौटेगा. तुम आ जाओ, रात रंगीन करने का बहुत अच्छा मौका हाथ आया है.’’

”मैं अभी आया मेरी जान.’’ आतुरता से बोला रवि, ”बोलो, क्या ले कर आऊं, चिकन या मटर पनीर?’’

”मैं ने चिकन मंगवा रखा है, पीने का मन हो तो अपनी चौइस का ब्रांड लेते आना.’’

”ठीक है,’’ रवि ने कहा और काल डिसकनेक्ट कर उस ने मोबाइल जेब के हवाले कर लिया. घर से निकल कर एक ठेके से उस ने अद्धा खरीदा, उसे जेब में रख कर उस ने आटो किया और देवला गांव, पक्षी विहार, गौतमबुद्ध नगर में स्थित आलोक के घर पहुंच गया. उस ने दरवाजा खटखटाया. दरवाजा प्रियंका ने खोला.

रवि अंदर आ गया. प्रियंका ने दरवाजा बंद कर दिया और वह भी रवि के पीछे अंदर बैडरूम में पहुंच गई. उस ने बढिय़ा बनावशृंगार किया हुआ था.

”बच्चे दिखाई नहीं दे रहे हैं प्रियंका.’’ रवि ने पलंग पर बैठते हुए पूछा.

”मैं ने उन्हें नानी के यहां भेज दिया है.’’ प्रियंका अंगड़ाई लेते हुए रवि की बगल में आ बैठी.

”बहुत समझदार हो.’’

”यार रवि, जब एंजौय करते हैं तो किसी प्रकार का डिस्टरबेंस नहीं होना चाहिए. अब पूरी रात हमारी है.’’ प्रियंका ने कहने के बाद रवि के गले में अपनी नाजुक कलाइयां डाल दीं, ”तुम्हारी शिकायत थी कि मैं तुम्हें कभी पूरा मौका नहीं देती.’’

”मैं गलत कहां कहता हूं, तुम अपना सारा प्यार सर्वेश पर लुटाती रही हो.’’ रवि के स्वर में शिकायत थी.

”पहले वह मुझे अच्छा लगता था, लेकिन जब तुम मेरी जिंदगी में आए तो मैं ने तुम दोनों को तराजू में रख कर तोला. तुम और तुम्हारा प्यार सर्वेश से कहीं अधिक वजनी निकला, इसलिए मैं ने सर्वेश की ओर से किनारा कर लिया.’’ प्रियंका ने अपना गाल रवि के गाल से रगड़ते हुए कहा.

रवि ने प्रियंका की कमर में बाहें लपेट कर उसे अपनी गोद में खींच लिया, ”मैं ने तुम्हें दिल से प्यार किया है स्वीट हार्ट. सर्वेश की तरह मैं तुम्हारे जिस्म का भूखा नहीं बना. हम कई दिनों से मिल रहे हैं, आज तुम ने पहली बार मुझे बिस्तर पर आमंत्रित किया है. मैं अपने आप को खुशनसीब मान रहा हूं.’’

”अब समय मत गंवाओ… मैं तुम्हारे प्यार के लिए तड़प रही रही हूं.’’

रवि ने प्रियंका के यौवन को दुलारना शुरू कर दिया. उस की अंगुलियां प्रियंका के गुदाज जिस्म पर फिसलने लगीं. प्रियंका पल प्रतिपल उन्मादित होती चली गई और वह पल भी आ गया, जब रवि ने उसे पूरी तरह अपने आगोश में समेट लिया और उस पर छाता चला गया.

वह रात प्रियंका और रवि ने पूरी मौजमस्ती से गुजारी. सुबह वहीं से फ्रैश हो कर रवि काम पर जाने के लिए निकला तो उसी वक्त प्रियंका का पति आलोक वहां आ गया.

भेद खुलतेखुलते ऐसे बचा

रवि एक बार के लिए आलोक को देख कर सकपका गया, फिर उस ने तुरंत अपने आप को संभाल लिया, ”आलोक भैया नमस्ते. मैं आप से ही मिलने आया था, भाभी ने बताया आप बाहर गए हुए हो, लौट रहा था कि आप आ गए.’’

”कैसे हो, बहुत दिनों बाद इधर आए हो.’’ आलोक ने आत्मीयता से पूछा.

”समय ही नहीं मिलता भैया.’’ रवि बोला, ”आज सोचा सुबह सुबह मिल लूंगा, अच्छी किस्मत है मेरी, मेरा आना बेकार नहीं गया. आप आ गए.’’

”कुछ काम था क्या मुझ से?’’

”काम कुछ नहीं भैया, अगले हफ्ते मेरा बर्थडे है. मैं छोटी सी पार्टी दे रहा हूं. आप भाभीजी को ले क र आ जाना.’’ रवि ने झूठ बोला.

”जरूर आऊंगा, दिन और समय बता दो.’’

”2 अक्तूबर.’’ रवि हंस कर बोला, ”उस दिन बापूजी का जन्मदिन होता है. मैं भी उसी दिन पैदा हुआ था. आप शाम को 5 बजे आ जाइए, खाना भी वहीं खाइएगा.’’

”ठीक है, मैं जरूर आऊंगा.’’ आलोक कह कर रवि के साथ बाहर आ गया. उस ने इधरउधर देखा, फिर धीरे से बोला, ”रवि, एक बात कहनी है तुम से.’’

”कहिए न भैया.’’ धड़कते दिल से रवि ने कहा.

”यह सर्वेश अजकल तुम्हारी भाभी प्रियंका को कुछ ज्यादा ही परेशान कर रहा है. गलती प्रियंका की ही थी, जो उसे मुंह लगा लिया. प्रियंका ने तो उस से अपनापन जताया था, अब वह उसी पर हावी होने की कोशिश कर रहा है. प्रियंका कहीं बाहर जाती है तो वह उस पर गलत कमेंट करता है. उसे 1-2 बार समझाया, लेकिन वह बाज ही नहीं आ रहा है.’’

”धुनाई कर दो हरामी की. मैं आप के साथ हूं.’’ रवि जोश में भर कर बोला, ”ऐसे व्यक्ति को सबक मिलना जरूरी है.’’

”ठीक कहते हो, जब जरूरत होगी, मैं तुम्हें बुला लूंगा.’’ आलोक ने कहा.

”मैं आप का फोन सुनते ही आ जाऊंगा भैया. अब चलता हूं, काम के लिए देर हो रही है.’’ कहने के बाद रवि इजाजत ले कर पैदल ही वहां से चल पड़ा.

वह अब काफी संतुष्ट था, क्योंकि आलोक की गैरमौजूदगी में उस के घर रात भर रहने की बात रहस्य ही बनी रही थी. आलोक को उस पर थोड़ा सा भी शक नहीं हुआ था.

महत्त्वाकांक्षी आंचल का अंजाम – भाग 1

छत्तीसगढ़ के बालोद जिले में गुरुर थाने से करीब 5-7 किलोमीटर दूर स्थित धानापुरी गांव के कुछ लोग सुबह 8 बजे जब गंगरेल भिलाई नहर में नहाने गए तो वहां उन्होंने एक युवती की लाश तैरती देखी.

ग्रामीणों ने इस की सूचना धानापुरी की सरपंच योगेश्वरी मानिक सिन्हा और गुरुर थाना पुलिस को दी. पुलिस ने वहां पहुंच कर नहर में तैरती लाश को बाहर निकलवाया. लाश किसी युवती की थी, जिस की उम्र करीब 30 साल थी. लाश के हाथपैर और गला रस्सी से बंधा हुआ था. रस्सी को एक भारी पत्थर से बांधा गया था. मृतका के पेट पर चाकू से वार करने के 2 निशान थे. पुलिस जब नहर से लाश निकालने की काररवाई कर रही थी, तब आसपास के काफी ग्रामीण एकत्र हो गए.

पुलिस ने मौके पर मौजूद लोगों से युवती की शिनाख्त कराने के प्रयास किए. लेकिन कोई भी उस युवती को नहीं पहचान सका. युवती चुस्त कुरता और सलवार पहने थी. मृतका की हथेली पर अंग्रेजी में ए. यादव लिखा था और बाएं हाथ पर पंखुड़ी का टैटू बना हुआ था.

इस बीच, बालोद के एसपी एम.एल. कोटवानी भी मौके पर पहुंच गए. निरीक्षण कर उन्होंने अनुमान लगाया कि युवती की हत्या रात को की गई होगी और उस के शव को करीब 10 किलोमीटर के दायरे से ला कर वहां फेंका गया है.

लाश को पत्थर से बांध कर संभवत: इसलिए फेंका गया होगा कि वह पानी के नीचे डूबी रहे. लेकिन गंगरेल नहर में बहाव तेज होने से लाश पत्थर सहित पानी के साथ बह कर धानापुरी की तरफ आ गई.

प्राथमिक काररवाई के बाद पुलिस ने युवती के शव को सरकारी अस्पताल भिजवा दिया. आगे की जांच के लिए सब से पहले लाश की शिनाख्त जरूरी थी, कपड़ों और टैटू से लग रहा था कि युवती किसी खातेपीते परिवार की और बड़े शहर की रहने वाली थी. समझदारी से काम लेते हुए पुलिस ने युवती के शव के फोटो वाट्सएप के जरिए सोशल मीडिया पर डाल दिए.

इस का परिणाम भी जल्दी ही सामने आ गया. कई लोगों ने उस शव की शिनाख्त आंचल यादव के रूप में की. पुलिस को केवल मृतका का नाम पता चला था, बाकी जानकारी नहीं मिली थी. इस पर पुलिस ने आंचल यादव नाम की युवतियों के फेसबुक अकाउंट खंगाले.

इस में आंचल यादव नाम के एक फेसबुक अकाउंट पर लगी फोटो से लाश का हुलिया मेल खा रहा था. आंचल के फेसबुक अकाउंट पर एक ऐसी फोटो भी मिल गई. जिस में उस के हाथ पर पंखुड़ी का टैटू साफ नजर आ रहा था. टैटू का मिलान होने पर यह तय हो गया कि लाश आंचल यादव की ही है.

आंचल की लाश की हुई शिनाख्त

फेसबुक अकाउंट और अन्य सूत्रों से पुलिस को पता चला कि आंचल गुरुर से 5-7 किलोमीटर दूर जिला मुख्यालय धमतरी की विवेकानंद कालोनी की रहने वाली थी. वह धमतरी के अलावा छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में भी रहती थी.

शव की विश्वसनीय शिनाख्त मृतका के घर वाले कर सकते थे. इस के लिए गुरुर थाना पुलिस ने धमतरी सिटी कोतवाली पुलिस से संपर्क किया. धमतरी पुलिस के सहयोग से गुरुर थाना पुलिस का संपर्क आंचल के परिवार से हो गया.

पुलिस की सूचना पर आंचल के भाई सिद्धार्थ ने अस्पताल जा कर शव की शिनाख्त की. शव आंचल यादव का ही था. पुलिस ने पोस्टमार्टम कराने और आवश्यक काररवाई के बाद देर शाम आंचल का शव उस के भाई सिद्धार्थ को सौंप दिया. बालोद थाने में हत्या का मामला पहले ही दर्ज कर लिया गया था.

पुलिस ने आंचल के बारे में जानकारी लेने के लिए उस के परिवार वालों से पूछताछ की. उस की मां ममता यादव ने बताया कि आंचल एक दिन पहले यानी 25 मार्च को रायपुर से अदालत की किसी पेशी के सिलसिले में धमतरी आई थी. उस रात वह करीब 9 बजे अपनी कार से धमतरी में विवेकानंद कालोनी स्थित घर पर पहुंची थी.

घर पहुंचते ही उस के मोबाइल पर एक काल आई. फोन पर बात करने के बाद आंचल घर से चली गई. मां ने उसे रात में जाने से रोका भी था, लेकिन वह नहीं मानी और थोड़ी देर में लौट आने की बात कह कर घर से बाहर निकल गई.

पुलिस ने अपने स्तर पर आंचल यादव के बारे में पता करवाया. पता चला कि ग्लैमरस लाइफ जीने वाली आंचल का धमतरी, भिलाई और रायपुर के अलावा छत्तीसगढ़ व अन्य कई बड़े शहरों के हाई प्रोफाइल लोगों से संपर्क था. वह अकसर रायपुर की पेज थ्री पार्टियों और क्लबों में नजर आती थी. उसे लग्जरी कारों का भी शौक था.

तीखे नाकनक्श वाली आंचल जिस शानोशौकत और आधुनिकता से रहती थी, उस से लोगों का अनुमान था कि वह मौडलिंग करती है और छत्तीसगढ़ की छौलीवुड हीरोइन है. आंचल ने अपने फोटोशूट कराने के लिए पर्सनल फोटोग्राफर रखा हुआ था. हालांकि लोगों ने आंचल को कभी मौडलिंग करते या  किसी फिल्म अथवा एलबम वगैरह में नहीं देखा था, लेकिन उस का रहनसहन और जीवनशैली किसी फिल्मी हीरोइन से कम नहीं थी. इसलिए सभी उसे मौडल या हीरोइन समझते थे.

आंचल रोजाना फेसबुक व सोशल मीडिया पर एक्टिव रहती थी. वह फेसबुक पर रोजाना अपना एक ग्लैमरस फोटो अपलोड करती थी. अपने फेसबुक अकाउंट पर 25 मार्च को शाम 4 बज कर 7 मिनट पर अंतिम बार उस ने एक कुत्ते के साथ वाला फोटो अपलोड किया था. आंचल के फेसबुक पर 22 हजार से ज्यादा फौलोअर थे.

प्रारंभिक जांच पड़ताल में यह बात भी सामने आई कि फरवरी 2014 में वन विभाग के एक रेंजर की अश्लील सीडी बना कर आंचल ने उसे ब्लैकमेल कर 3 करोड़ रुपए मांगे थे. इस मामले में उसे पुलिस ने गिरफ्तार भी किया था. कुछ दिन बाद जेल से छूटने पर आंचल ने अपना गृहनगर धमतरी छोड़ दिया था और रायपुर में अकेली रहने लगी थी. आंचल ने अपनी फेसबुक प्रोफाइल पर खुद को रिलायंस लाइफ इंश्योरेंस कंपनी की एक्जीक्यूटिव सेल्स मैनेजर बताया था.

शौर्ट पोस्टमार्टम रिपोर्ट में आंचल की हत्या की पुष्टि हो गई. उस के पेट में चाकू से वार करने के निशान थे. यह स्पष्ट नहीं हुआ था कि हत्या से पहले उस के साथ दुष्कर्म हुआ था या नहीं. पोस्टमार्टम करने वाले डाक्टर ने रिपोर्ट में लाश के करीब 12 घंटे तक पानी में रहने की बात कही थी.

इस से पुलिस ने अनुमान लगाया कि घर से निकलने के कुछ ही देर बाद आंचल की हत्या कर दी गई होगी. मां ने बताया था कि आंचल के पास मोबाइल था. लेकिन पुलिस को कोई मोबाइल फोन नहीं मिला था.

रहस्य बन गई थी आंचल की हत्या

आंचल के घर वालों ने 27 मार्च को धमतरी में उस की लाश का अंतिम संस्कार कर दिया. आंचल के शव की अंत्येष्टि के बाद पुलिस ने उस के घर वालों से पूछताछ की. इस में वही बात सामने आई कि 25 मार्च की रात 9 बजे आंचल के मोबाइल पर किसी की काल आई थी.

उस के बाद वह अपनी कार घर पर छोड़ कर कहीं चली गई थी. वह किस के साथ गई, इस के बारे में आंचल की मां और भाई ने अनभिज्ञता जताई. मां ने इतना जरूर बताया कि आंचल किसी के साथ बाइक पर बैठ कर गई थी.

लंदन में रची दत्तक पुत्र की हत्या की साजिश – भाग 3

गोपाल को गोद लेने का राज आया सामने

गोपाल को गोद लेने के दस्तावेज तैयार किए जाने के ठीक एक महीने बाद ही 26 अगस्त, 2015 को आईसीआईसीआई प्रूडेंशियल लाइफ इंश्योरेंस कंपनी के साथ बीमा के लिए आवेदन किया गया था. इस कंपनी का मुख्यालय मुंबई में है.

गोपाल के लिए ली गई जीवन बीमा पौलिसी का नाम ‘वेल्थ बिल्डर’ था. इस के जरिए ‘प्रस्तावित’ या ‘नामांकित’ को वार्षिक प्रीमियम के मूल्य का 10 गुना भुगतान किया जाता है. इस की प्रस्तावक आरती धीर थी. इस का अर्थ यह था कि गोपाल की मौत पर बीमा का लाभ आरती को ही मिलता.

जूनागढ़ के एसपी सौरव सिंह के अनुसार इस के लिए सिर्फ वार्षिक प्रीमियम 15 हजार पौंड (15 लाख 75 हजार रुपए) की 2 किस्तें ही दी गई थीं. उन की बीमा राशि बहुत बड़ी थी. वे यह अच्छी तरह से जानते थे कि गोपाल की मृत्यु की स्थिति में उसे बीमा राशि का 10 गुना भुगतान मिल जाएगा. इस अनुसार आरती धीर को गोपाल की मृत्यु के बाद करीब एक करोड़ 57 लाख 50 हजार रुपए (डेढ़ लाख पाउंड) मिलते.

गुजरात पुलिस के सामने लंदन में बैठे मुख्य आरोपियों के प्रत्यर्पण के जरिए भारत ला कर पूछताछ करने की मुख्य समस्या थी ताकि उन्हें यहां मजिस्ट्रैट के सामने पेश किया जा सके.

कारण, दंपति ने लंदन पुलिस को बीमा भुगतान के लिए गोपाल को मारने की योजना बनाने से साफतौर पर इनकार कर दिया था. साथ ही ब्रिटेन ने मानवाधिकार के आधार पर भारत में मुकदमे का सामना करने के लिए जोड़े को प्रत्यर्पित करने के अनुरोध को खारिज कर दिया था. जबकि इसे ले कर गुजरात पुलिस ने भारत सरकार से अनुमति मांगी थी और भारत सरकार ने अपील करने की अनुमति दे दी थी.

भारत सरकार के अनुरोध के बाद जून 2017 में यूके में दोनों गिरफ्तार तो कर लिए किए गए, लेकिन 2 जुलाई, 2017 को वेस्टमिंस्टर मजिस्ट्रैट कोर्ट के एक न्यायाधीश ने मानवाधिकार के आधार पर उन के प्रत्यर्पण से इनकार कर दिया.

अपने फैसले में वरिष्ठ जिला न्यायाधीश एम्मा अर्बुथनौट ने पाया कि उन के प्रत्यर्पण को उचित ठहराने के लिए पर्याप्त सबूत थे. परिस्थितियों के मुताबिक पहले दृष्टिकोण में मामला आरती धीर और उस के पति कंवलजीत सिंह रायजादा द्वारा मिल कर काम करने तथा अन्य लोगों के साथ मिल कर अपराध करने के कई साक्ष्य उजागर हो चुके थे.

इस वजह से नहीं हो पाया आरोपियों का यूके से प्रत्यर्पण

इस के विपरीत गुजरात में दोहरे हत्याकांड की सजा पैरोल के बिना आजीवन कारावास है. इसे देखते हुए उन्होंने कहा कि प्रत्यर्पण ब्रिटेन के कानून के तहत जोड़े के मानवाधिकारों के विपरीत होगा. इस कारण यदि प्रत्यर्पित किया जाता है तो जोड़े को ‘एक अपरिवर्तनीय सजा’ दी जा सकती है, जो ‘अमानवीय और अपमानजनक’ होगी.

इस तरह से गोपाल और उस के बहनोई की हत्या का मामला 2 देशों के बीच प्रत्यर्पण कानून और मानवाधिकारों में उलझने के कारण ठंडे बस्ते में चला गया. दंपति लंदन में आजाद घूमते रहे और दूसरे धंधे में लग गए.

हालांकि भारत के प्रत्यर्पण अनुरोध को 2019 में अस्वीकार किए जाने के बाद 2020 में लंदन के हाईकोर्ट में एक अपील की गई, लेकिन वह भी असफल हो गई.

आरती और कंवलजीत के काले धंधे के कारनामों में नशीली दवाओं की तस्करी, मनी लौंड्रिंग मुख्य थे. वे गुजरात में हत्या के मामले में भले ही बच गए, लेकिन आस्ट्रेलिया में नशीली दवाओं की तस्करी के मामले में पकड़े जाने के बाद वे अंतरराष्ट्रीय कानून के शिकंजे में आ चुके थे. उन पर आस्ट्रेलिया में आधा टन से अधिक कोकीन निर्यात करने का आरोप लग चुका था.

दरअसल, मई 2021 में सिडनी पहुंचने पर आस्ट्रेलियाई सीमा बल द्वारा कोकीन पकड़े जाने के बाद राष्ट्रीय अपराध एजेंसी (एनसीए) ने आरती और कंवलजीत की पहचान की थी. नशीली दवाओं को यूके से एक वाणिज्यिक उड़ान के माध्यम से भेजा गया था और 6 धातु के टूलबौक्स के भीतर छिपाया गया था.

इस मामले की सुनवाई लंदन की कोर्ट में होने के बाद कई आपराधिक मामलों का खुलासा होने लगा था. उन में ही बीमा की राशि हासिल करने के लिए दत्तक पुत्र की हत्या का मामला भी था.

लंदन की साउथवार्क क्राउन कोर्ट ने सुनवाई के सिलसिले में पाया कि उन्हें भारत में दत्तक पुत्र गोपाल की हत्या के लिए भी तलाश है. वे निर्यात के 12 और मनी लौंड्रिंग के 18 मामलों में दोषी हैं.

इस सुनवाई के दौरान न्यायाधीश ने दंपति के कई आपराधों में लिप्त होने और उन की काम करने में आपराधिक गतिविधियों की तुलना लोकप्रिय अपराध नाटक ‘ओजार्क’ और ‘ब्रेकिंग बैड’ से की.

इस बाबत तैयार की गई रिपोर्ट के अनुसार अभियोजक ह्यू फ्रेंच ने उन्हें एक वैसे ‘क्रूर और लालची’ जोड़े के रूप का विवरण दिया, जो अंतरराष्ट्रीय संगठित अपराध की दुनिया में सक्रिय बना हुआ था. उन्हें अंतरराष्ट्रीय संगठित अपराध की दुनिया में काम करने वाला पाया गया.

एनसीए के जांचकर्ताओं ने दोनों पर यूके से नशीली दवाएं सिडनी एक कामर्शियल उड़ान के जरिए भेजने का आरोप लगाया था. 6 टूलबौक्स में 514 किलोग्राम कोकीन पाई गई थी.

दंपति ने ड्रग्स की तस्करी के लिए ही जून 2015 में विफ्लाई फ्रेट सर्विसेज नामक एक कंपनी बनाई थी. पतिपत्नी ही इस के डायरेक्टर थे. जांच में कंवलजीत की अंगुलियों के निशान धातु के टूलबौक्स की रैपिंग पर पाए गए थे और टूलबौक्स के आर्डर की रसीदें दंपति के घर से बरामद हुई थीं.

काली कमाई से जुटाए करोड़ों रुपए

इस संबंध में एनसीए ने खुलासा किया कि जून 2019 से आस्ट्रेलिया को 37 खेप भेजी गईं, जिन में से 22 नकली थीं और 15 में कोकीन थी. उन्होंने हवाई अड्डे से माल ढुलाई प्रक्रियाओं की बारीक जानकारी हीथ्रो में एक उड़ान सेवा कंपनी में नौकरी करते हुए सीखी थी. एनसीए के वरिष्ठ जांच अधिकारी पियर्स फिलिप्स के अनुसार आरती धीर और कंवलजीत सिंह रायजादा ने यूके से आस्ट्रेलिया तक लाखों पाउंड मूल्य की कोकीन की तस्करी के लिए हवाई माल ढुलाई उद्योग के अपने अंदरूनी जानकारी का इस्तेमाल किया था, जहां वे जानते थे कि कैसे अधिक से अधिक मुनाफा कमाया जा सकता है.

उन्होंने अपने काले धंधे की कमाई के पैसे और धन को छिपाने के भी सफल प्रयास किए. अवैध मुनाफे की कमाई को नकदी के रूप घर और अनाज आदि रखने के कंटेनरों में रखा. साथ ही सोना और चांदी भी खरीदी. जैसेजैसे उन की काली कमाई बढ़ती जा रही थी, वैसेवैसे उन का लालच और अधिक बढ़ता जा रहा था.

दोनों को जांच टीम ने 21 जून, 2021 को हैनवेल में उन के घर से गिरफ्तार कर लिया था. उन के फ्लैट की तलाशी में 5,000 पाउंड मूल्य की सोने की परत चढ़ी चांदी की छड़ें, घर के अंदर 13,000 पाउंड और बौक्स में 60,000 पाउंड नकद मिले.

इस बारे में पूछताछ में पाया गया कि उन्होंने ईलिंग में 8,00,000 पाउंड में एक फ्लैट और 62,000 पाउंड में एक लैंड रोवर कार भी खरीदी थी.

उन्होंने 2019 से 22 अलगअलग बैंक खातों में लगभग 7,40,000 पाउंड (लगभग 7 करोड़ 77 लाख रुपए) नकद जमा किए थे और उन पर मनी लौंड्रिंग का आरोप लगाया गया था.

इस पूरे मामले पर काम करने वाले 3 एनसीए अधिकारियों ने दंपति के खिलाफ कोर्ट में सारे सबूत जुटा दिए थे. हालांकि दोनों ने आस्ट्रेलिया को कोकीन निर्यात करने और मनी लौंड्रिंग से इनकार किया. बावजूद इस के लंदन की साउथवार्क क्राउन कोर्ट में एक मुकदमे के बाद जूरी द्वारा उन्हें निर्यात के 12 मामलों और मनी लौंड्रिंग के 18 मामलों में 7 साल तक चले मुकदमे के बाद 31 जनवरी, 2024 दोषी ठहराया गया.

अगले रोज 31 जनवरी, 2024 को आरती धीर और उस के पति कंवलजीत रायजादा को 33-33 साल जेल की सजा सुना दी गई.

गुजरात में गोपाल की बहन अल्पा को एक स्थानीय पत्रकार ने फोन कर इस की जानकारी दी. यह सुनते ही अल्पा ने तुरंत अपना टीवी चालू किया और उस के भाई और पति के हत्यारे को जेल की सजा सुनाए जाने पर राहत की सांस ली. दोनों को 33-33 साल जेल की सजा सुनाई गई थी.

कहानी लिखे जाने तक दंपति जेल में थे, लेकिन गुजरात में अल्पा को यह समझ में नहीं आ रहा था कि उस के भाई और पति की हत्या के मामले को नशीली दवाओं की तस्करी के मामले से कम क्यों आंका गया?

2 भगोड़े एनआरआई को 33 साल की सजा दिए जाने की घटना ने ब्रिटिश के दोहरे मानदंडों को ले कर सवाल खड़े कर दिए कि आखिर हत्या की साजिश से अधिक महत्त्वपूर्ण ड्रग तस्करी क्यों हो गई? गोपाल के परिवार वालों के सामने यह सवाल बना हुआ है कि क्या 2 जनों की कीमत उस से कम थी?

जी का जंजाल बनी प्रेमिका

लंदन में रची दत्तक पुत्र की हत्या की साजिश – भाग 2

इस मामले को केशोद के थाने में दर्ज किया गया. वहां से पुलिस इंसपेक्टर अशोक तिलवा ने इस की जांचपड़ताल की. घटना की तहकीकात के बाद नीतीश नाम के व्यक्ति की गिरफ्तारी हुई. उस से पूछताछ होने पर इस वारदात में भाड़े पर शामिल किए गए दोनों हमलावरों के नाम भी सामने आए. वे हमलावर उन के द्वारा ही 55 लाख रुपए दे कर बुलाए गए थे.

जब उस से सख्ती से पूछताछ की गई, तब एक चौंकाने वाली जानकारी सामने आई. नीतीश ने बताया कि उस ने ब्रिटेन में रहने वाले दंपति कंवलजीत सिंह रायजादा और आरती धीर के इशारे पर इस वारदात को करवाया. पूछताछ में नीतीश मुंड ने यह भी बताया कि गोपाल की हत्या की 2 असफल कोशिशें पहले भी हो चुकी थीं.

हत्या से 4 हफ्ते पहले उस ने नीतीश को एक फरजी आईडी पर लिया गया सिम कार्ड खरीदने के लिए 25,000 रुपए भी भेजे थे, ताकि साजिश में शामिल दूसरे लोगों के साथ किसी का फोन काल नहीं जुडऩे पाए.

आरती धीर और कंवलजीत सिंह रायजादा का नाम सुन कर हरसुखभाई की पत्नी अल्पा भी चौंक पड़ी. कारण, यह वही जोड़ा था, जिस ने उस के भाई गोपाल को गोद लिया था. यह बात उस ने पुलिस को भी पूछताछ के दरम्यान बताई.

वह इस बात से आश्चर्यचकित थी कि आखिर उस ने उसे क्यों मरवाया? उन्हें उस के पति से क्या शिकायत थी, जो पति को भी मरवा दिया?

अल्पा ने पुलिस को बताया कि नीतीश मुंड की गिरफ्तारी के बाद कंवलजीत के पिता उस से मिलने आए थे, जो स्थानीय बैंक में मैनेजर हैं. उन्होंने उसे पुलिस को यह बताने के लिए पैसे की पेशकश की थी कि मुंड निर्दोष है. हत्या की साजिश के सिलसिले में पुलिस ने उन्हें भी गिरफ्तार कर लिया था. बाद में उन की जमानत हो गई थी.

लंदन से रची गई थी हत्या की साजिश

पुलिस यह भी पता लगा रही थी कि इस घटना के तार और किनकिन लोगों के साथ जुड़े हो सकते हैं? इस में किन की क्या भूमिका हो सकती है? गोद लेने वाले दंपति की मंशा क्या थी? मासूम गोपाल का अपहरण क्यों किया जा रहा था?

बहुत जल्द ही इस का राज पकड़े गए नीतीश मुंड के बयानों से खुल गया. पुलिस जांच के अनुसार नीतीश मुंड इस मामले का एक बिचौलिया था, जो पहले हनवेल में आरती धीर और कंवलजीत के फ्लैट पर रहता था. गुजरात में पुलिस के सामने उस का एक कुबूलनामा कलमबद्ध किया गया था, जिस में दंपति को हत्या की साजिश में शामिल बताया गया था.

गोपाल की मौत का कारण वही एनआरआई दंपति था, जिस ने उसे 2 साल पहले गोद लिया था. पुलिस ने अल्पा की तरफ से दर्ज रिपोर्ट में उन पर ही 11 वर्षीय दत्तक पुत्र गोपाल की हत्या करने का आरोप लगाया गया. यह दंपति गोपाल की आकस्मिक मौत दिखा कर उस के नाम की गई बीमा के मुआवजे की एक बड़ी धनराशि हड़पना चाहते थे. लंदन में रहने वाले दंपति ने गोपाल को गोद ले कर उस का डेढ़ लाख पाउंड अर्थात एक करोड़ 57 लाख 50 हजार रुपए का जीवन बीमा करा लिया था.

उस की हत्या करवाने के लिए दंपति ने नीतीश मुंड नामक व्यक्ति से मिल कर साजिश रची थी, जो वीजा समाप्त होने और भारत लौटने तक लंदन में रहता था.

पुलिस की प्रारंभिक जांच रिपोर्ट के अनुसार आरती धीर और कंवलजीत सिंह ने नीतीश मुंड के साथ मिल कर गोपाल को गोद लेने, उस का बीमा करवाने और फिर उसे मार डालने की साजिश रची थी. नीतीश लंदन में रहता था और अकसर गुजरात आताजाता था.

पुलिस जांच में गोपाल की गतिविधियों की भी जानकारी मिली. उस की बड़ी बहन अल्पा ने बताया कि वह बड़ा हो कर पुलिस औफिसर बनना चाहता था. वह बौलीवुड फिल्म ‘सिंघम’ से बहुत प्रभावित था. फिल्म में बाजीराव सिंघम की नकल करता हुआ चोर पुलिस का खेल खेला करता था. वह अपने दोस्तों पर चिल्लाता था, ‘बचना असंभव है!’

वह पढ़ाई में अव्वल था. उसे कार्टून बनाना बहुत पसंद था. उस ने महात्मा गांधी के चित्र के लिए स्कूल में पुरस्कार भी जीता था. उस के दोस्त, शिक्षक, गांव के सभी लोग उस के साथ हुई आकस्मिक घटना को ले कर हैरान थे.

उस के हमलावरों को पकडऩे में पुलिस ने तत्परता दिखाई. उस पर हमला करने वालों की यह सोच गलत साबित हुई कि एक गरीब छोटे लड़के का जीवन कोई मायने नहीं रखता है और भारत के पश्चिमी तट पर पुलिस उन्हें नहीं पकड़ पाएगी. लेकिन पुलिस ने तत्परता दिखाते हुए एक एक कर 5 आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया. उन पर हत्या और अपहरण की धाराएं लगाई गईं और मुकदमा चलाया गया.

लेकिन गोपाल की मौत की गूंज गुजरात के पुलिस महकमे तक ही नहीं गूंजी, बल्कि 4 हजार मील से अधिक दूर ब्रिटेन के पश्चिम लंदन में हैनवेल में भी सुनाई दी. यह वह जगह है, जहां हीथ्रो की पूर्व कर्मचारी आरती धीर और उन के पति कंवलजीत सिंह रायजादा कतार से बनी विक्टोरियन घरों की एक पंक्ति के अंत में रहते थे.

लंदन में गूंजी गुजरात में कराई गई हत्याओं की गूंज

उन का घर एक आधुनिक ब्लौक की पहली मंजिल पर था. वे इस चौंकाने वाली घटना से इलाके में रह रहे अन्य लोगों की निगाह मेें तब आ गए, जब ब्रिटिश पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया.

उन्हें आसपास की दुकान वाले अच्छी तरह जानते पहचानते थे और आसपास के डाकघर में अपने बिलों का भुगतान करने के लिए जाते रहते थे. उन्हें सभी लोग एक अच्छे दंपति के तौर पर जानते थे. उन का व्यवहार लोगों के साथ अच्छा था और वे मिलनसार हो कर भी अपने काम से ही अधिक मतलब रखते थे.

हां, उन के बीच उम्र के अंतर और कदकाठी को देख कर कुछ समय पहले लोगों को उन के मांबेटा होने का संदेह हो जाता था, लेकिन धीरेधीरे सभी उन के पतिपत्नी होने का सच जान चुके थे. उन के बारे में कहने के लिए किसी के पास कोई बुरा शब्द नहीं था.

उन के बारे में लोगों के प्रति अच्छी धारणा थी. वह स्तन कैंसर चैरिटी के लिए धन जुटाने का काम करते थे. यही उन की इलाके में पहचान थी. उन के बारे में गुजरात पुलिस को सिर्फ यही पता था कि वे  एक साधारण गली के एक साधारण फ्लैट में एक साधारण जीवन जी रही हैं.

गुजरात पुलिस के अनुसार उन्होंने गोपाल पर ली गई जीवन बीमा पौलिसी से डेढ़ लाख पाउंड का दावा करने की योजना बनाई थी. यह योजना आरती धीर ने अपने पति कंवलजीत की मदद से बनाई थी. वे चाहते थे कि गोपाल की हत्या के बाद उस की लाश नाले में पड़ी बरामद हो ताकि बीमे की रकम के लिए दावेदारी की जा सके. इस योजना के तहत आरती धीर ने उसे मारने के लिए एक गिरोह की मदद ली थी.

गुजरात पुलिस को हैरानी इस बात की भी थी कि गोपाल की हत्या की साजिश लंदन के एक हाउसिंग एसोसिएशन के फ्लैट से रची गई थी. उन के फ्लैट की खिड़कियों में भारतीय शैली में परदे लटके हुए थे, साथ ही दरवाजे की चौखट पर नींबू और सूखी मिर्च झूल रहे थे. वहां भारतीय संस्कृति की झलक साफ देखी जा सकती थी. जबकि उस पर भारत में हत्या और अपहरण की साजिश सहित 6 आरोप थे.

आरती धीर और कंवलजीत रायजादा वल्र्डवाइड फ्लाइट सर्विसेज (डब्ल्यूएफएस) के लिए हवाई माल ढुलाई का काम करते थे. हालांकि कंपनी से पूछताछ के बाद मालूम हुआ कि उन को 2016 में ‘अनुबंध के उल्लंघन’ के चलते बरखास्त कर दिया गया था.

आरती वहां भी काफी लोकप्रिय थी. उस के साथ काम करने वाली एक सहकर्मी ने लंदन पुलिस को पूछताछ में बताया कि उस के साथ काम करना और साथ रहना मजेदार था.

आरती धीर और कंवलजीत रायजादा के खिलाफ पहली नजर में ही आपराधिक साजिश का मामला सामने आया. उसे गोद लेने से ले कर बीमा संबंधी दस्तावेजों के सबूत के तौर पर जुटाया गया. इस आधार पर ही मामला मुख्य मजिस्ट्रैट और उच्च न्यायालय तक ले जाया गया.

लंदन में रची दत्तक पुत्र की हत्या की साजिश – भाग 1

बाइक सवारों ने कार को टक्कर मारी. कार के रुकने के बाद बाइक सवारों ने 11 वर्षीय गोपाल को कार से बाहर खींच लिया. हरसुखभाई करदानी ने गोपाल को बचाने की कोशिश की. वह भी तुंरत कार से बाहर निकल आया. उस के विरोध करने पर हमलावरों ने दोनों पर ही चाकू से हमला कर दिया. दोनों बुरी तरह से जख्मी हो गए थे. उन्हें उसी अवस्था में सड़क के किनारे छोड़ कर हमलावर फरार हो गए थे.

गोपाल का जख्म काफी गहरा था. कुछ समय में वहां से गुजरते रिक्शा चालक ने दोनों घायलों को सड़क किनारे घायल अवस्था में पाया तो वह उन्हें अस्पताल ले जाया गया. वहां उन का उपचार शुरू किया गया. इलाज के 5 दिन बाद 11 वर्षीय गोपाल की मौत हो गई. उस के हफ्ते भर बाद हरसुखभाई की भी अस्पताल में मौत हो गई थी.

गुजरात के छोटे से पिछड़े इलाके में रहने वाले गरीब हरसुखभाई करदानी ने उस समय राहत की सांस ली थी, जब उस की पत्नी अल्पा के 8 वर्षीय छोटे भाई गोपाल को एक अमीर विदेशी जोड़े ने गोद ले लिया था. जिन्होंने उसे गोद लिया था, वे वैसे तो भारत के ही रहने वाले निस्संतान दंपति थे, लेकिन ब्रिटेन में रहते थे. पति कंवलजीत सिंह रायजादा हीथ्रो का एक कर्मचारी था. जबकि उस की पत्नी आरती धीर चैरिटी का काम करती थी. हालांकि उन की उम्र में काफी अंतर था. वे दिखने में मांबेटे की तरह लगते थे.

सच तो यह था कि करदानी दंपति गोपाल के गोद लिए जाने की प्रक्रिया पूरी होने के बाद बेहद खुश था. क्योंकि वे अपने ऊपर से उस के लालनपालन की बड़ी जिम्मेदारी का बोझ उतरा हुआ महसूस कर रहे थे. आर्थिक तंगी का सामना करते हुए बच्चे की जैसेतैसे परवरिश हो रही थी.

गोपाल उन के साथ 2 साल की उम्र से ही रह रहा था. मां ने उसे छोड़ दिया था और पिता बीमार रहते थे. उस हालत में वह इधरउधर गली और पड़ोसियों के घरों में अनाथों की तरह घूमता रहता था. इस हाल में देख मोहल्ले के लोगों ने कुछ दिनों तक उस की देखभाल की, फिर उन्होंने केशोद में पति के साथ रह रही उस की बड़ी विवाहित बहन अल्पा को सौंप दिया.

उसे ब्रिटेन में पश्चिमी लंदन स्थित हनवेल के रहने वाले अप्रवासी भारतीय दंपति आरती धीर और कंवलजीत सिंह रायजादा ने अपना दत्तक पुत्र बना लिया था. उन्होंने गोपाल के गोद लेने की सारी कानूनी प्रक्रिया पूरी कर ली थी और कानून का पालन करते हुए उन्होंने सारे दस्तावेज भी बना लिए थे.

तब आरती धीर 50 साल की थी और उस का पति आधी उम्र का था. दोनों ने साल 2013 में शादी कर ली थी. शादी का छोटा सा समारोह ईलिंग टाउन हाल के लंचटाइम रजिस्टर औफिस में हुआ था. दरअसल, उन्होंने अपना वीजा बढ़वाने के लिए यह शादी की थी.

उस के बाद उन्होंने बच्चा गोद लेने की योजना बनाई थी. उस के लिए वे साल 2015 में गुजरात आए थे. उन्होंने एक बच्चा गोद लेने के लिए स्थानीय अखबारों में विज्ञापन दिया था. इस बारे में केशोद के रहने वाले हरसुखभाई को भी किसी ने बताया था.

विज्ञापन में लिखा था कि भारतीय मूल का ब्रिटिश जोड़ा किसी अनाथ बच्चे को लंदन में रहने के लिए गोद लेना चाहता है. हरसुखभाई का विज्ञापन के अनुसार विदेशी जोड़े से संपर्क किया.

वैसे कंवलजीत सिंह रायजादा गुजरात के मालिया हटिना का रहने वाला था. गोपाल का जन्म भी वहीं हुआ था. रायजादा के पिता सहकारी बैंक की मालिया हटिना शाखा में मैनेजर थे. मालिया हटिना में रायजादों का एक पड़ोसी था, उसे जब पता चला कि कंवलजीत की पत्नी आरती धीर किसी बच्चे को गोद लेना चाहती है, तब उस के दिमाग में अचानक गोपाल का चेहरा कौंध गया. उसे पता था कि वह बच्चा अनाथ है और उन दिनों अपने बहनोई हरसुखभाई करदानी के साथ केशोद में रह रहा है.

जब धीर और रायजादा आधिकारिक तौर पर शादी के तुरंत बाद 2014 में मालिया हटिना में उन से मिले तो उस की बहन और बहनोई गोद देने के लिए सहमत हो गए.

तब उन्हें रायजादा की पत्नी धीर ने कहा कि वह गोपाल की अपने बेटे की तरह परवरिश करेगी. उस के साथ अच्छा व्यवहार बर्ताव रखेगी और उसे एक अच्छा ब्रिटिश नागरिक बनाएगी और उस का जीवन खुशियों से भर देगी.

गरीबी की वजह से एनआरआई को दिया बच्चा गोद

इस आश्वासन को सुन कर वे काफी खुश हो गए. साथ ही उन्होंने यह भी पाया कि जिन्हें वह बच्चा गोद दे रहे हैं, वह उन के इलाके से ही रायजादा समाज के स्थानीय परिवार हैं.

हरसुखभाई अपने साले गोपाल का अभिभावक था. वह विदेशी जोड़े पर विश्वास कर गोपाल को गोद देने के लिए राजी हो गया. गोद लेने की कागजी काररवाई पूरी कर ब्रिटिश जोड़ा ब्रिटेन लौट गया. वे हरसुख को भरपूर आश्वासन दे गए कि गोपाल को अपने साथ रखने के लिए विदेशी कानूनी प्रक्रिया पूरी होते ही वे जल्द आ कर गोपाल को अपने साथ ले जाएंगे.

हरसुखभाई ने जो सोचा था, वैसा नहीं हुआ. उन के इंतजार में 2 साल गुजर गए, लेकिन वे गुजरात नहीं आए. हां, बीच बीच में उन दोनों ने गोपाल की खोजखबर जरूर ली और उस के खर्च आदि के लिए छोटीमोटी रकम भेजते रहे.

आखिरकार इंतजार की घडिय़ां खत्म होने को आ गईं. साल 2017 के फरवरी माह में हरसुखभाई को गोपाल के ब्रिटेन ले जाने की सूचना मिली. हरसुखभाई खुश हो गया कि गोपाल अब अपने गोद लिए हुए मांबाप के पास कुछ दिनों के भीतर ही चला जाएगा.

उन्होंने उसे गोपाल को वीजा लगवाने के लिए जूनागढ़ जाने को कहा. केशोद उसी जिले में आता है. वहां आनेजाने पर होने वाले खर्च आदि के लिए कुछ पैसे भी भेजे.

गोपाल को तो मानो खुशी का ठिकाना नहीं था. ब्रिटेन जाने को ले कर वह इतना उत्साहित था कि उस ने अपने जीजा से कह कर एक अंगरेजी गुजराती पौकेट डिक्शनरी मंगवा ली थी. वह गर्व से भरा हुआ था. उस ने स्कूल में सभी सहपाठियों को यह बता दिया था. अपने शिक्षकों से भी कहा था कि उसे अब नई स्कूल ड्रेस की जरूरत नहीं है, क्योंकि वह जल्द ही इंग्लैंड जा रहा है.

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वह गोपाल के वीजा कागजात तैयार करने के लिए लगभग 100 मील दूर राजकोट शहर गए थे. वहां से काम पूरा कर गोपाल अपने बहनोई हरसुखभाई के साथ 8 फरवरी, 2017 को अपने शहर केशोद लौट रहे थे. रात के करीब 9 बज चुके थे. वे एक कार में सवार थे. वे अभी अपने घर पहुंचने वाले ही थे कि रास्ते में बाइक पर सवार 2 लोगों ने कार रुकवा कर उन के ऊपर चाकू से जानलेवा हमला कर दिया था.

वे गोपाल का अपहरण करना चाहते थे. हमलावरों ने बाइक से टक्कर मार कर रोक दी. फिर हमलावरों ने गोपाल को चाकू से गोद दिया. गोपाल को बचाने की जब हरसुखभाई ने कोशिश की तो हमलावरों ने उस पर भी चाकू से वार किए. इलाज के दौरान दोनों की ही अस्पताल में मृत्यु हो गई.

दिलरूबा ने ली प्रेमी की जान

एसचओ ने ग्रामीणों की मदद से शव को तालाब से बाहर निकलवाया. शव पूरी तरह नग्न अवस्था में था. शव का बारीकी से निरीक्षण किया तो पाया कि मृतक की उम्र लगभग 30 साल थी और उस के शरीर पर धारदार हथियार से गोदे जाने के कई निशान थे.

उसी दौरान एक युवक ने लाश की शिनाख्त पिडरुआ निवासी तुलसीराम प्रजापति के रूप में की. उस की हत्या किस ने और क्यों की, यह बात कोई भी व्यक्ति नहीं समझ पा रहा था.

26 वर्षीय सविता और 28 वर्षीय तुलसीराम पहली मुलाकात में ही एकदूसरे को दिल दे बैठे थे, सविता को पाने की अभिलाषा तुलसीराम के दिल में हिलोरें मारने लगी थी, इसलिए वह किसी न किसी बहाने से सविता से मिलने उस के खेत पर बनी टपरिया में अकसर आने लगा था.

तुलसीराम प्रजापति के टपरिया में आने पर सविता गर्मजोशी से उस की खातिरदारी करती, चायपानी के दौरान तुलसीराम जानबूझ कर बड़ी होशियारी के साथ सविता के गठीले जिस्म का स्पर्श कर लेता तो वह नानुकुर करने के बजाय मुसकरा देती. इस से तुलसीराम की हिम्मत बढ़ती चली गई और वह सविता के खूबसूरत जिस्म को जल्द से जल्द पाने की जुगत में लग गया.

एक दिन दोपहर के समय तुलसीराम सविता की टपरिया में आया तो इत्तफाक से सविता उस वक्त अकेली चक्की से दलिया बनाने में मशगूल थी. उस का पति पुन्नूलाल कहीं गया हुआ था. इसी दौरान तुलसीराम को देखा तो उस ने साड़ी के पल्लू से अपने आंचल को करीने से ढंका.

तुलसीराम ने उस का हाथ पकड़ कर कहा, ”सविता, तुम यह आंचल क्यों ढंक रही हो? ऊपर वाले ने तुम्हारी देह देखने के लिए बनाई है. मेरा बस चले तो तुम को कभी आंचल साड़ी के पल्लू से ढंकने ही न दूं.’’

”तुम्हें तो हमेशा शरारत सूझती रहती है, किसी दिन तुम्हें मेरे टपरिया में किसी ने देख लिया तो मेरी बदनामी हो जाएगी.’’

”ठीक है, आगे से जब भी तेरे से मिलने तेरी टपरिया में आऊंगा तो इस बात का खासतौर पर ध्यान रखूंगा.’’

सविता मुसकराते हुए बोली, ”अच्छा एक बात बताओ, कहीं तुम चिकनीचुपड़ी बातें कर के मुझ पर डोरे डालने की कोशिश तो नहीं कर रहे?’’

”लगता है, तुम ने मेरे दिल की बात जान ली. मैं तुम्हें दिलोजान से चाहता हूं, अब तो जानेमन मेरी हालत ऐसी हो गई है कि जब तक दिन में एक बार तुम्हें देख नहीं लेता, तब तक चैन नहीं मिलता है. बेचैनी महसूस होती रहती है, इसलिए किसी न किसी बहाने से यहां चला आता हूं. तुम्हारी चाहत कहीं मुझे पागल न कर दे…’’

तुलसीराम प्रजापति की बात अभी खत्म भी नहीं हुई थी कि सविता बोली, ”पागल तो तुम हो चुके हो, तुम ने कभी मेरी आंखों में झांक कर देखा है कि उन में तुम्हारे लिए कितनी चाहत है. मुझे तो ऐसा लगता है कि दिल की भाषा को आंखों से पढऩे में भी तुम अनाड़ी हो.’’

”सच कहा तुम ने, लेकिन आज यह अनाड़ी तुम से बहुत कुछ सीखना चाहता है. क्या तुम मुझे सिखाना चाहोगी?’’ इतना कह कर तुलसीराम ने सविता के चेहरे को अपनी हथेलियों में भर लिया.

सविता ने भी अपनी आंखें बंद कर के अपना सिर तुलसीराम के सीने से टिका दिया. दोनों के जिस्म एकदूसरे से चिपके तो सर्दी के मौसम में भी उन के शरीर दहकने लगे. जब उन के जिस्म मिले तो हाथों ने भी हरकतें करनी शुरू कर दीं और कुछ ही देर में उन्होंने अपनी हसरतें पूरी कर लीं.

सविता के पति पुन्नूलाल के शरीर में वह बात नहीं थी, जो उसे तुलसीराम से मिली. इसलिए उस के कदम तुलसीराम की तरफ बढ़ते चले गए. इस तरह उन का अनैतिकता का खेल चलता रहा.

सविता के क्यों बहके कदम

मध्य प्रदेश के सागर जिले में एक गांव है पिडरुआ. इसी गांव में 26 वर्षीय सविता आदिवासी अपने पति पुन्नूलाल के साथ रहती थी. पुन्नूलाल किसी विश्वकर्मा नाम के व्यक्ति की 10 बीघा जमीन बंटाई पर ले कर खेत पर ही टपरिया बना कर अपनी पत्नी सविता के साथ रहता था. उसी खेत पर खेती कर के वह अपने परिवार की गुजरबसर करता था. उस की गृहस्थी ठीकठाक चल रही थी.

उस के पड़ोस में ही तुलसीराम प्रजापति का भी खेत था, इस वजह से कभीकभार वह सविता के पति से खेतीबाड़ी के गुर सीखने आ जाया करता था. करीब डेढ़ साल पहले तुलसीराम ने ओडिशा की एक युवती से शादी की थी, लेकिन वह उस के साथ कुछ समय तक साथ रहने के बाद अचानक उसे छोड़ कर चली गई थी.

सविता को देख कर तुलसीराम की नीयत डोल गई. उस की चाहतभरी नजरें सविता के गदराए जिस्म पर टिक गईं.  उसी क्षण सविता भी उस की नजरों को भांप गई थी. तुलसीराम हट्टाकट्टा नौजवान था. सविता पहली नजर में ही उस की आंखों के रास्ते दिल में उतर गई. सविता के पति से बातचीत करते वक्त उस की नजरें अकसर सविता के जिस्म पर टिक जाती थीं.

सविता को भी तुलसीराम अच्छा लगा. उस की प्यासी नजरों की चुभन उस की देह को सुकून पहुंचाती थी. उधर अपनी लच्छेदार बातों से तुलसीराम ने सविता के पति से दोस्ती कर ली. तुलसीराम को जब भी मौका मिलता, वह सविता के सौंदर्य की तारीफ करने में लग जाता.

सविता को भी तुलसीराम के मुंह से अपनी तारीफ सुनना अच्छा लगता था. वह पति की मौजूदगी में जब कभी भी उसे चायपानी देने आती, मौका देख कर वह उस के हाथों को छू लेता. इस का सविता ने जब विरोध नहीं किया तो तुलसीराम की हिम्मत बढ़ती चली गई.

धीरेधीरे उस की सविता से होने वाली बातों का दायरा भी बढऩे लगा. सविता का भी तुलसीराम की तरफ झुकाव होने लगा था. तुलसीराम को पता था कि सविता अपने पति से संतुष्ट नहीं है. कहते हैं कि जहां चाह होती है, वहां राह निकल ही आती है.

आखिर एक दिन तुलसीराम को सविता के सामने अपने दिल की बात कहने का मौका मिल गया और उस के बाद दोनों के बीच वह रिश्ता बन गया, जो दुनिया की नजरों में अनैतिक कहलाता है. दोनों ने इस रास्ते पर कदम बढ़ा तो दिए, लेकिन सविता ने इस बात पर गौर नहीं किया कि वह अपने पति के साथ कितना बड़ा विश्वासघात कर रही है.

जिस्म से जिस्म का रिश्ता कायम हो जाने के बाद सविता और तुलसीराम उसे बारबार बिना किसी हिचकिचाहट के दोहराने लगे. सविता का पति जब भी गांव से बाहर जाने के लिए निकलता, तभी सविता तुलसीराम को काल कर अपने पास बुला लेती थी.

अनैतिक संबंधों को कोई लाख छिपाने की कोशिश करे, एक न एक दिन उस की असलियत सब के सामने आ ही जाती है. एक दिन ऐसा ही हुआ. सविता का पति पुन्नूलाल शहर जाने के लिए घर से जैसे ही निकला, वैसे ही सविता ने अपने प्रेमी तुलसीराम को फोन कर दिया.

अवैध संबंधों का सच आया सामने

सविता जानती थी कि शहर से घर का सामान लेने के लिए गया पति शाम तक ही लौटेगा, इस दौरान वह गबरू जवान प्रेमी के साथ मौजमस्ती कर लेगी.

सविता की काल आते ही तुलसीराम बाइक से सविता के टपरेनुमा घर पर पहुंच गया. उस ने आते ही सविता के गले में अपनी बाहों का हार डाल दिया, तभी सविता इठलाते हुए बोली, ”अरे, यह क्या कर रहे हो, थोड़ी तसल्ली तो रखो.’’

”कुआं जब सामने हो तो प्यासे व्यक्ति को कतई धैर्य नहीं होता है,’’ इतना कहते हुए तुलसीराम ने सविता का गाल चूम लिया.

”तुम्हारी इन नशीली बातों ने ही तो मुझे दीवाना बना रखा है. न दिन को चैन मिलता है और न रात को. सच कहूं जब मैं अपने पति के साथ होती हूं तो सिर्फ तुम्हारा ही चेहरा मेरे सामने होता है,’’ सविता ने भी इतना कह कर तुलसी के गालों को चूम लिया.

तुलसीराम से भी रहा नहीं गया. वह सविता को बाहों में उठा कर चारपाई पर ले गया. इस से पहले कि वे दोनों कुछ कर पाते, दरवाजा खटखटाने की आवाज आई. इस आवाज को सुनते ही दोनों के दिमाग से वासना का बुखार उतर गया. सविता ने जल्दी से अपने अस्तव्यस्त कपड़ों को ठीक किया और दरवाजा खोलने भागी.

जैसे ही उस ने दरवाजा खोला, सामने पति को देख कर उस के चेहरे का रंग उड़ गया, ”तुम तो घर से शहर से सौदा लाने के लिए निकले थे, फिर इतनी जल्दी कैसे लौट आए?’’ सविता हकलाते हुए बोली.

”क्यों? क्या मुझे अब अपने घर आने के लिए भी तुम से परमिशन लेनी पड़ेगी? तुम दरवाजे पर ही खड़ी रहोगी या मुझे भीतर भी आने दोगी,’’ कहते हुए पुन्नूलाल ने सविता को एक तरफ किया और जैसे ही वह भीतर घुसा तो सामने तुलसीराम को देख कर उस का माथा ठनका.

”अरे, आप कब आए?’’ तुलसीराम ने पूछा तो पुन्नूलाल ने कहा, ”बस, अभीअभी आया हूं.’’

सविता के हावभाव पुन्नूलाल को कुछ अजीब से लगे, उस ने सविता की तरफ देखा, वह बुरी तरह से घबरा रही थी. उस के बाल बिखरे हुए थे. माथे की बिंदिया उस के हाथ पर चिपकी हुई थी.

यह सब देख कर पुन्नूलाल को शक होना लाजिमी था. डर के मारे तुलसीराम भी उस से ठीक से नजरें नहीं मिला पा रहा था. ठंड के मौसम में भी उस के माथे पर पसीना छलक रहा था. पुन्नूलाल तुलसीराम से कुछ कहता, उस से पहले ही वह अपनी बाइक पर सवार हो कर वहां से भाग गया.

उस के जाते ही पुन्नूलाल ने सविता से पूछा, ”तुलसीराम तुम्हारे पास क्यों आया था और तुम दोनों दरवाजा बंद कर क्या गुल खिला रहे थे?’’

”वह तो तुम से मिलने आया था और कुंडी इसलिए लगाई थी कि आज पड़ोसी की बिल्ली बहुत परेशान कर रही थी.’’ असहज होते हुए सविता बोली.

”लेकिन मेरे अचानक आ जाने से तुम दोनों की घबराहट क्यों बढ़ गई थी?’’

”अब मैं क्या जानूं, यह तो तुम्हें ही पता होगा.’’ सविता ने कहा तो पुन्नूलाल तिलमिला कर रह गया. उस के मन में पत्नी को ले कर संदेह पैदा हो गया था.

पुन्नूलाल ने कड़ा रुख अख्तियार करते हुए पति पर निगाह रखनी शुरू कर दी और हिदायत दे दी कि तुलसीराम से वह आइंदा से मेलमिलाप न करे. पति की सख्ती के बावजूद सविता मौका मिलते ही तुलसीराम से मिलती रहती थी.

सविता और उस के प्रेमी को चोरीछिपे मिलना अच्छा नहीं लगता था. उधर तुलसीराम चाहता था कि सविता जीवन भर उस के साथ रहे, लेकिन सविता के लिए यह संभव नहीं था.

सविता क्यों बनी प्रेमी की कातिल

वैसे भी जब से पुन्नूलाल और गांव वालों को सविता और तुलसीराम प्रजापति के अवैध संबंधों का पता लगा था, तब से सविता घर टूटने के डर से तुलसीराम से छुटकारा पाना चाह रही थी, लेकिन समझाने के बावजूद तुलसीराम उस का पीछा नहीं छोड़ रहा था. तब अंत में सविता ने अपने छोटे भाई हल्के आदिवासी के साथ मिल कर अपने प्रेमी तुलसीराम को मौत के घाट उतारने की योजना बना डाली.

अपनी योजना को अमलीजामा पहनाने के लिए 8 जनवरी, 2024 को सविता अपने मायके साईंखेडा चली गई, जिस से किसी को उस पर शक न हो. वहां से वह 11 जनवरी की दोपहर अपनी ससुराल पिडरुआ वापस लौट आई. उसी दिन शाम के वक्त उस ने तुलसीराम को फोन करके मिलने के लिए मोतियाहार के जंगल में बुला लिया.

अपनी प्रेमिका के बुलावे पर उस की योजना से अनजान तुलसीराम खुशी खुशी मोतियाहार के जंगल में पहुंचा. तभी मौका मिलते ही सविता ने अपने मायके से साथ लाए चाकू का पूरी ताकत के साथ तुलसीराम के गले पर वार कर दिया.

अपनी जान बचाने के लिए खून से लथपथ तुलसीराम ने वहां से बच कर भाग निकलने की कोशिश की तो सविता ने चाकू उस के पेट में घोंप दिया. पेट में चाकू घोंपे जाने से उस की आंतें तक बाहर निकल आईं. कुछ देर छटपटाने के बाद ही उस के शरीर में हलचल बंद हो गई.

इस के बाद सविता के भाई हल्के आदिवासी ने तुलसीराम की पहचान मिटाने के लिए उस के सिर को पत्थर से बुरी तरह से कुचल दिया. फिर सविता ने अपने प्रेमी की नाक के पास अपनी हथेली ले जा कर चैक किया कि कहीं वह जिंदा तो नहीं है.

दोनों को पूरी तरह तसल्ली हो गई कि तुलसीराम मर चुका है, तब उन्होंने तुलसीराम के सारे कपड़े उतार कर उस के कपड़े, जूते एक थैले में रख कर तालाब में फेंक दिए. लाश को ठिकाने लगाने के लिए सविता और उस का भाई हल्के तुलसी की लाश को कंधे पर रख कर हरा वाले तालाब के करीब ले गए. वहां बोरी में पत्थर भर कर रस्सी को उस की कमर में बांध कर शव को तालाब में फेंक दिया.

नग्नावस्था में मिली थी तुलसी की लाश

12 जनवरी, 2024 की सुबह उजाला फैला तो पिडरुआ गांव के लोगों ने तालाब में युवक की लाश तैरती देखी. थोड़ी देर में वहां लोगों की भीड़ जुट गई. भीड़ में से किसी ने तालाब में लाश पड़ी होने की सूचना बहरोल थाने के एसएचओ सेवनराज पिल्लई को दी.

सूचना मिलते ही एसएचओ कुछ पुलिसकर्मियों को ले कर मौके पर पहुंच गए. लाश तालाब से बाहर निकलवाने के बाद उन्होंने उस की जांच की. उस की शिनाख्त पिडरुआ निवासी तुलसीराम प्रजापति के रूप में की.

वहीं पर पुलिस को यह भी पता चला कि तुलसीराम के पिछले डेढ़ साल से गांव की शादीशुदा महिला सविता आदिवासी से अवैध संबंध थे. इसी बात को ले कर पतिपत्नी में तकरार होती रहती थी.

लेकिन तुलसीराम की हत्या इस तरह गोद कर क्यों की गई, यह बात पुलिस और लोगों को अचंभे में डाल रही थी. मामला गंभीर था. एसएचओ ने घटना की सूचना एसडीओपी (बंडा) शिखा सोनी को भी दे दी थी. वह भी मौके पर आ गईं.

इस के बाद उन्होंने भी लाश का निरीक्षण कर एसएचओ को सारी काररवाई कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेजने के निर्देश दिए. एसएचओ पिल्लई ने सारी काररवाई निपटा कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. फिर थाने लौट कर हत्या का मुकदमा दर्ज कर जांच शुरू कर दी.

एसडीओपी शिखा सोनी ने इस केस को सुलझाने के लिए एक पुलिस टीम गठित की. टीम में बहरोल थाने के एसएचओ सेवनराज पिल्लई, बरायथा थाने के एसएचओ मकसूद खान, एएसआई नाथूराम दोहरे, हैडकांस्टेबल जयपाल सिंह, तूफान सिंह, वीरेंद्र कुर्मी, कांस्टेबल देवेंद्र रैकवार, नीरज पटेल, अमित शुक्ला, सौरभ रैकवार, महिला कांस्टेबल प्राची त्रिपाठी आदि को शामिल किया गया.

चूंकि पुलिस को सविता आदिवासी और मृतक की लव स्टोरी की जानकारी पहले ही मिल चुकी थी, इसलिए पुलिस टीम ने गांव के अन्य लोगों से जानकारी जुटाने के बाद सविता आदिवासी को पूछताछ के लिए थाने बुला लिया.

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सविता से तुलसीराम की हत्या के बारे में जब सख्ती से पूछताछ की गई तो उस ने पुलिस को गुमराह करने की भरसक कोशिश की, लेकिन एसएचओ सेवनराज पिल्लई के आगे उस की एक न चली और उसे सच बताना ही पड़ा.

सविता के खुलासे के बाद पुलिस ने सविता के भाई हल्के आदिवासी को भी साईंखेड़ा गांव से गिरफ्तार कर लिया. उस ने भी अपना जुर्म कुबूल कर लिया सविता और उस के भाई हल्के आदिवसी से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने दोनों अभियुक्तों को कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

सविता और उस के भाई हल्के ने सोचा था कि तुलसीराम को मौत के घाट उतार देने से बदनामी से छुटकारा और बसा बसाया घर टूटने से बच जाएगा, लेकिन पुलिस ने उन के मंसूबों पर पानी फेर कर उन्हें जेल की सलाखों के पीछे पहुंचा दिया.

तुलसीराम की हत्या कर के सविता और उस का भाई हल्के आदिवासी जेल चले गए. सविता ने अपनी आपराधिक योजना में भाई को भी शामिल कर के अपने साथ भाई का भी घर बरबाद कर दिया.

बाल्टी में लाश : हादसा या हत्या?

बाल्टी में बच्चा पड़ा था. अगले पल जब बाल्टी पर नजर गई तब उगमराज की चीख निकल गई. असल में 7 महीने का गुन्नू (Gunnu) बाल्टी के पानी में ही (Balti Me Mili Lash) औंधे मुंह उलटा पड़ा था.

उसे तुरंत बाहर निकाला गया. उगमराज चीखते हुए बोले, ”किस ने किया ऐसा. गुन्नू बाल्टी के पानी में कैसे आ गया?…और बाल्टी यहां कहां से आई? कौन लाया इसे यहां..?’’

एक तरफ शोभा अपने बेटे की मौत के गम को नहीं झेल पा रही थी, दूसरी तरफ घर के सभी लोग इस बात को ले कर परेशान थे कि वह कौन निर्दयी कौन हो सकता है, जिस ने मासूम बच्चे को इतनी बेरहमी से मारा होगा? पुलिस भी इस का कोई कारण नहीं तलाश पाई थी.

राजस्थान (Rajasthan) के पाली (Pali) जिले का एक कस्बा है बर. यहां की न्यू कालोनी में रहने वाले चंपालाल चौहान के घर सुबह से ही गहमागहमी थी. उन के यहां एक घरेलू आयोजन चल रहा था. वहां आसपास के लोगों के साथ पड़ोसी भीकमचंद चौहान भी आमंत्रित थे. भीकमचंद के खुशहाल परिवार में 2 बेटे थे उत्तम चंद और उगमराज.

उत्तम चंद के परिवार में 2 बेटे और एक बेटी थी, जबकि उगमराज के घर 10 साल की बेटी के बाद 7 माह पहले ही एक बेटा पैदा हुआ था. उसे पूरा परिवार प्यार से गुन्नू बुलाता था. गुन्नू अपनी मां शोभा की तो आंखों का तारा था. वह उसे पलभर के लिए भी अपनी आंखों से ओझल नहीं होने देती थी. दरअसल, बेटी के जन्म के बाद बड़ी मुश्किल से गुन्नू का जन्म हुआ था. इस से पहले वह 4 बार गर्भपात की पीड़ा भी झेल चुकी थी.

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दोनों भाइयों की खुशहाल जिंदगी संयुक्त परिवार में बीत रही थी. आपसी मेलजोल बना हुआ था. उन के परिवार के लोग चंपालाल परिवार के बुलावे पर दिन में करीब 3 बजे उन के घर गए थे. संयोग से उस वक्त गुन्नू सो रहा था. उस की मां शोभा ने अपने कमरे में लगे झूले में सुला कर दरवाजे की कुंडी बाहर से लगा दी थी. उस वक्त भीकमचंद के मकान में मरम्मत का काम भी चल रहा था. वहां 6 मजदूर काम पर लगे हुए थे.

शोभा को गुन्नू के सोने के समय का पता था. इस कारण वह उसे सोता छोड़ कर पड़ोस में चली गई थी. 2 जुलाई, 2023 की शाम के करीब पौने 5 बजे शोभा का पति उगमराज मजदूरों के काम को देखने के लिए अपने घर गया. मजदूरों से मिल कर वह अपने कमरे में भी गया. वहां झूले पर गुन्नू को नहीं पाया तो उसे थोड़ी चिंता हुई. कारण, शोभा ने उसे बताया था कि वह गुन्नू को झूले पर सुला कर आई है.

उगमराज को न जाने क्या सूझी तुरंत चंपालाल के घर चला गया. वहां शोभा की गोद में गुन्नू को नहीं पा कर पूछ बैठा, ”गुन्नू कहां है?’’

शोभा गुन्नू के बारे में अचानक पूछे जाने पर हैरान हो गई. वह बोली, ”गुन्नू कहां है! झूले पर सो रहा होगा.’’

”…लेकिन वह तो झूले में नहीं है.’’

”नहीं है… क्या मतलब है तुम्हारा? उसे तो मैं अपने कमरे में झूले पर सुला आई थी. मैं ने बताया तो था तुम्हें.’’ शोभा आश्चर्य से बोली.

”वो वहां नहीं है.’’

”तो फिर उसे झूले से कौन ले गया? कहीं उस झूले से जमीन पर तो नहीं गिर गया?’’ बोलती हुई शोभा तुरंत अपने घर गई. उन की बातें उगमराज की भाभी गुड़िया  ने भी सुनी. वह भी शोभा और उगमराज के साथ अपने देवर के कमरे में आ गई. सभी ने देखा झूला खाली था. नीचे जमीन पर या आसपास भी गुन्नू नहीं दिख रहा था.

घर में सभी गुन्नू के नहीं मिलने पर चिंतित हो गए. वे इधर उधर ढूंढने लगे. उसे तलाशते हुए उगमराज घर के स्टोर रूम में चला गया. वहां रखी बाल्टी से उस के पैर टकरा गए. उस में रखा पानी छलक कर उस के पैर पर जा गिरा.

उगमराज खीझता हुआ बोला, ”स्टोररूम में बाल्टी, वह भी पानी से भरी हुई? यह मजदूरों का ही काम होगा. शोभा की नजर बाल्टी पर गई तो उस में उस का बेटा गुन्नू पड़ा था.

”पानी की बाल्टी में यह कैसे आ गया?’’ कहते हुए शोभा ने झट से गुन्नू को अपने सीने लगा लिया. लेकिन यह क्या, उस ने पाया कि उस की सांसें और दिल की धड़कनें सभी बंद हैं. वह रोने लगी. चीखने लगी. बिफरने लगी. बोली, ”चलो, जल्द ले चलो इसे डाक्टर के पास!’’

उगमराज और दूसरे लोगों ने बच्चे की नाक के पास हाथ ले जा कर चैक किया, उस की सांसें जरा भी नहीं चल रही थी. उस की मौत हो चुकी थी.

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इस की सूचना पुलिस को भी दे दी गई. बर थाने के एसएचओ सुखदेव सिंह उगमराज के घर आ गए. उन्होंने बच्चे के मातापिता और घर के अन्य सदस्यों से किसी पर शक होने की जानकारी लेनी चाही. किसी ने इस बारे में कुछ नहीं बताया. कुछ लोगों ने वहां काम करने वाले मजदूरों पर संदेह जताया, लेकिन उन से पूछताछ पर कोई ठोस जानकारी नहीं मिल पाई.

थोड़ी देर के लिए बच्चे की हत्या का आरोप घर में काम करने वाले मजदूरों पर भी लगा, लेकिन उन से पूछताछ के बाद कोई नतीजा नहीं निकला.

घटना के अगले दिन 3 जुलाई, 2023 को बच्चे के मातापिता और दूसरे परिजनों ने सरपंच महेंद्र चौहान के साथ अस्पताल में काफी हंगामा किया और हत्यारे की गिरफ्तारी की मांग करने लगे.

इस हंगामे की सूचना पा कर जेतारण की सीओ सीमा चोपड़ा अस्पताल पहुंच गईं. उन्होंने किसी तरह धरना प्रदर्शन को शांत करवाया और गुन्नू की हत्या का मामला बर थाने में दर्ज करवा दिया. रिपोर्ट में संदेह के आधार पर 2 लोगों पर हत्या का आरोप लगाया गया.

इस वारदात की जांच के सिलसिले में सीओ सीमा ने घटनास्थल की जांच की. उन्होंने पाया कि भीकमचंद के मकान की पहली मंजिल पर निर्माण का कार्य चल रहा था. वहां मजदूरों के अलावा राजमिस्त्री भी थे. मरम्मती का काम भीकमचंद और उन की पत्नी की देखरेख में ही चल रहा था. जांच के दौरान परिजनों का पूरा विवरण जुटाया गया.

पुलिस की पूछताछ 2 दिनों तक लगातार हुई. परिवार, रिश्तेदार, मजदूर और पासपड़ोस के दोस्त आदि से भी गहन पूछताछ हुई. उन से निकाले गए निष्कर्ष के आधार पर शक की सुई परिवार के ही एक सदस्य पर जा टिकी. वह और कोई नहीं मृतक की चाची गुड़िया  थी.

पुलिस ने पाया कि गुन्नू की मौत से सब से ज्यादा दुखी गुड़िया   थी. उस का रोरो कर बुरा हाल था. रोने से उस की भी तबीयत खराब हो गई थी, जिस से उसे अस्पताल में भरती करवाना पड़ा था.

पानी भरी उस बाल्टी की भी जांच की गई, उस में सुनहरे रंग के सितारे नजर आ रहे थे. उसे देखते ही जांच अधिकारी का माथा ठनका, क्योंकि उसी तरह के कुछ सितारे गुड़िया  के चेहरे पर भी चिपके हुए थे और उस ने जो चुन्नी ओढ़ रखी थी, उस पर भी वैसे ही गोल्डन रंग के सितारे लगे हुए थे. जांच की इस जानकारी के बाद पुलिस का गुड़िया  पर शक होना स्वाभाविक था. अब जरूरत इस की पुष्टि होने की थी.

हालांकि इस बारे में जांच टीम आश्वस्त थी कि गुन्नू की हत्या में गुड़िया  का हाथ हो सकता है. उस की स्थिति में सुधार होने पर सुखेदव सिंह ने पूछताछ के लिए उसे थाने बुलवाया. पूछताछ के लिए जांच टीम ने काफी समझदारी से काम लिया. उस से मनोवैज्ञानिक तरीके सवाल पूछे गए.

पहले तो गुड़िया  ने खुद को निर्दोष बताया, लेकिन जल्द ही वह सीओ सीमा चोपड़ा के उलझे हुए सवालों में फंस गई. उसे बाल्टी में मिले गोल्डन सितारों के बारे में बताया गया और उसे झूठ बोलने वाली मशीन से पूछताछ करवाने की बात कही.

सीमा ने उस से पूछा, ”सचसच बताना, तुम 2 जुलाई को उस वक्त मजदूरों के लिए चाय बनाने के लिए घर आई थी न, जिस समय गुन्नू की मां चंपालाल के यहां खाना खा रही थी?’’

”हां, आई थी.’’ गुड़िया  बोली.

”तुम ने चाय बनाई थी?’’

”नहीं, मैं ने चाय नहीं बनाई थी.’’ गुड़िया  तुरंत बोली.

”तब तुम ने चंपालाल के घर पर महिलाओं से क्यों बोला कि मजदूरों को चाय पिला कर आ रही है?’’

इस क्रौस सवाल पर गुड़िया  उलझ गई. जवाब देने के बजाए ‘हां’ ‘न’ करने लगी. उस की सकपकाहट को देख कर सीमा चौधरी ने एक जबरदस्त डांट लगाई और झापड़ मारने के लिए हाथ उठाया ही था कि गुड़िया  घबराहट के साथ बोल पड़ी, ”जी…जी मैडम! में बताती हूं…सब कुछ बताती हूं…’’ बोलते बोलते गुड़िया  रोने लगी.

कुछ सेकेंड बाद दुपट्टे से आंसू पोंछती हुई बोलने लगी, ”मुझ से बहुत बड़ा अपराध हो गया, मैं ने गुन्नू की हत्या का अपराध किया है. मुझे जो सजा देनी है, दे दीजिए, लेकिन उस से गुन्नू वापस तो नहीं आ जाएगा न!’’

”तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई एक दुधमुंहे बच्चे को मारने की? उसे तुम ने बेरहमी से पानी में डुबो कर मार डाला… तुम तो बड़ी निर्दयी हो.’’ सीओ डपटती हुई बोली.

”मैडमजी, यही तो मुझे समझ में नहीं आया… मैं ने यह सब संपत्ति के लालच में किया. मैं चाहती थी कि हमारी पुश्तैनी संपत्ति मेरे बेटों को ही मिले… मैं लालच में अंधी हो गई थी.’’

गुड़िया  द्वारा फैमिली क्राइम (Family Crime) करने की बात स्वीकार लिए जाने के बाद उसे न्यायिक हिरासत में ले लिया गया. उस के बाद जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी—

थाना बर के अंतर्गत न्यू कालोनी में रहने वाले भीकमचंद ने दोनों बेटों उत्तमचंद और उगमराज को अलगअलग कपड़े की दुकान खुलवा दी थी. उत्तमचंद की दुकान बालुंदा गांव में थी, जबकि उगमराज की दुकान बर में ही थी.

दोनों सुबह होते ही अपनीअपनी दुकानों के लिए निकल पड़ते थे. दिन भर दुकान संभालने के बाद शाम को घर वापस लौट आते थे. दोनों संयुक्त परिवार में ही रह रहे थे. परिवार में सब कुछ ठीक चल रहा था, सिर्फ गुड़िया  के मन में ही खलबली मची रहती थी.

उसे बेटे की कमी खलती थी. जब भी वह शोभा के छोटे बेटे गुन्नू को देखती थी, उस के दिल में एक टीस उभरती थी, किंतु मन मसोस कर रह जाती थी. गुन्नू के जन्म के बाद से ही उस के व्यवहार में बदलाव आ गया था. इस के जन्म से पहले गुड़िया  चाहती थी कि देवर उगमराज उस के 2 बेटों में से एक को गोद ले ले.

इस के पीछे उस की मानसिकता संपत्ति का बंटवारा होने से रोकने की थी. उसे पता था कि संपत्ति का आधा भाग गोद दिए बेटे को मिल जाएगा. किंतु गुन्नू के पैदा होने पर उस की सोच पर पानी फिर गया. उस के बाद उस के दिमाग को संपत्ति के एक और हकदार की बात कचोटने लगी.

गुड़िया  को संपत्ति के बंटवारे का डर सताने लगा. वह देवरानी शोभा से जलने लगी. क्योंकि उस की हरसत पर पानी फिर गया था. उस के बाद ही उस ने गुन्नू की हत्या की योजना बना ली थी. उसे सिर्फ मौके की तलाश थी, जो उसे चंपालाल के यहां घरेलू आयोजन के मौके पर 2 जुलाई को मिल गया था.

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उस रोज गुड़िया  भी चंपालाल के यहां कार्यक्रम में शामिल थी. कार्यक्रम के दौरान जब भोजन की तैयार होने लगी, तब गुड़िया  मजदूरों को चाय देने के बहाने से अपने घर आ गई. वहां उस ने गुन्नू को झूले में सोया देखा. उस की आंखों में तब तक चमक आ चुकी थी. वह स्टोर में रखी बाल्टी बाहर ले आई. उस में मटके का पानी भर दिया. पानी भरी बाल्टी दोबारा स्टोर में रख आई.

गुड़िया  ने गहरी नींद में सो रहे गुन्नू को उल्टा कर के पानी भरी बाल्टी में डाल दिया. वह पानी में छटपटाने लगा. कुछ देर तक उस की छटपटाहट वह देखती रही. जब उस की सांस रुकने के बाद पानी के बुलबुले आने बंद हो गए, तब गुड़िया  चुपके से चंपालाल के यहां कार्यक्रम में चली आई.

गुन्नू के पानी में छटपटाने के दरम्यान गुड़िया  की सितारों लगी चुन्नी पानी में गिर कर गुन्नू की देह पर लिपट गई थी. जिस से उस के कुछ सितारे बाल्टी के तले और गुन्नू के शरीर पर भी चिपक गए थे.

गुड़िया  द्वारा अपना जुर्म स्वीकारे जाने के बाद उस के बयान को कलमबद्ध कर लिया गया था. पूरे मामले की जांच के बाद गुड़िया  5 जुलाई, 2023 को कोर्ट में पेश कर दी गई थी. वहां से उसे न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया था.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

गर्लफ्रेंड के लिए विमान का अपहरण – भाग 3

बिरजू का इश्क कहां तक था कि इसी बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि वह अपने प्यार के लिए रायल एयरलाइंस कंपनी खोलने को तैयार हो गए. उन्होंने यह भी सोच लिया था कि उन की इस एयरलाइंस का सारा कामकाज उन की गर्लफ्रेंड ही देखेगी, लेकिन उस का हेडक्वार्टर मुंबई होगा. क्योंकि सल्ला यही चाहते थे कि वह मुंबई आए.

बिरजू ने इशारे इशारे में यह बात अपनी गर्लफ्रेंड को बता भी दी, लेकिन वह इस के लिए भी तैयार नहीं हुई. उस का कहना था कि यह एक तरह का मजाक है, इसलिए वह जहां नौकरी कर रही है, उसे करने दें.

जब बिरजू को लगा कि अब गर्लफ्रेंड किसी भी तरह मुंबई नहीं जाने वाली तो उन्होंने एक साजिश रची. उन्होंने सोचा कि वह ऐसा क्या करें कि जेट एयरवेज ही बंद हो जाए या फिर उस का दिल्ली का औफिस बंद हो जाए. इस के लिए उन्होंने उसे बदनाम करने की योजना बनाई.

इसी के बाद उन्होंने प्लेन हाइजैकिंग की यह साजिश रची और उन्होंने जो लेटर लिखा, उस में लिखा कि अगर यह प्लेन दिल्ली लैंड करेगा तो ब्लास्ट हो जाएगा. उन का सोचना था कि दिल्ली आने के बाद पैसेंजर शोर मचाएंगे तो यह मीडिया में आएगा, जिस से जेट एयरवेज की बदनामी होगी.

हो सकता है इस के बाद जेट एयरवेज अपना दिल्ली का औफिस बंद कर दे. इस के बाद तो उन की गर्लफ्रेंड मजबूरन मुंबई आ जाएगी, क्योंकि जब दिल्ली में नौकरी ही नहीं रहेगी तो वह मुंबई आ ही जाएगी. यही सोच कर उन्होंने यह साजिश रची थी.

यहां तक तो ठीक था, लेकिन बिरजू सल्ला की बदनसीबी यह थी कि इस घटना के 9-10 महीने पहले 2016 में संसद ने एक कानून बनाया था ‘एंटी हाइजैकिंग ऐक्ट 2016’. इस ऐक्ट में यह था कि अगर कोई व्यक्ति किसी प्लेन को हाइजैक करता है और उस हाइजैकिंग के दौरान किसी मुसाफिर या क्रू मेंबर की मौत हो जाती है तो एंटी हाइजैकिंग ऐक्ट के तहत उस पर मुकदमा चलेगा और इस की सजा मौत होगी.

ऐक्ट में यह भी लिखा था कि अगर कोई व्यक्ति प्लेन को हाइजैक करने की कोशिश करता है या किसी तरह की अफवाह फैलाता है यानी बम या हाइजैक करने की खबर देता है तो उस व्यक्ति पर भी एंटी हाइजैकिंग ऐक्ट के तहत मुकदमा चलेगा और उस व्यक्ति को उम्रकैद तक की सजा हो सकती है.

2016 में यह कानून बन गया था. बिरजू को इस कानून के बारे में जानकारी नहीं थी. उन का सोचना था कि अगर वह पकड़े भी गए तो छोटा मोटा मामला है, 2-4 महीने में बाहर आ जाएंगे. लेकिन उन की बदनसीबी ही थी कि 2016 में यह कानून बना और 2017 में 30 अक्तूबर को उन्होंने यह कांड कर दिया.

पूरी जांच के बाद यह मामला एनआईए को सौंप दिया गया. क्योंकि यह आतंकवाद से जुड़ी घटना थी. इसलिए यह पता करना था कि कहीं इस में किसी आतंकवादी संगठन का हाथ तो नहीं है. एनआईए ने पूरे मामले की जांच की और फिर एनआईए की स्पैशल कोर्ट में चार्जशीट दाखिल कर दी.

चार्जशीट दाखिल होने के बाद बिरजू सल्ला पर एनआईए की स्पैशल कोर्ट में मुकदमा चला. 11 जून, 2019 लोअर कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया. यह फैसला बिरजू सल्ला की सोच से बिलकुल अलग था. एंटी हाइजैकिंग ऐक्ट बनने के बाद यह पहला मुकदमा था, जो बिरजू के खिलाफ चला था.

चूंकि कानून बन चुका था कि हाइजैकिंग के दौरान किसी की मौत हो जाती है तो मौत की सजा और हाइजैकिंग की कोशिश की जाती है, वह भले ही ड्रामा ही क्यों न हो, हाइजैकर को उम्रकैद की सजा होगी.

यह दूसरी चीज बिरजू के खिलाफ थी, क्योंकि उन्होंने झूठ में कहा था कि प्लेन में हाइजैकर हैं और कार्गो में बम रखा है. अगर प्लेन पीओके नहीं ले जाया गया तो सभी मारे जाएंगे. इस तरह 30-35 मिनट सभी पैसेंजरों ने जो कष्ट भोगा यानी ऐसी स्थिति में मौत सामने नजर आती है, इस बात को बड़ी गंभीरता से लिया गया और 2016 के उस एंटी हाइजैकिंग ऐक्ट की धारा 3(1), 3(2)(ए), 4बी के तहत दोषी ठहराते हुए एनआईए की स्पैशल कोर्ट ने बिरजू सल्ला को बाकी जीवन के लिए आजीवन कारावास की सजा सुना दी थी.

हाईकोर्ट के फैसले से मिली राहत

इश्क में पागल बिरजू सल्ला कहां अपनी गर्लफ्रेंड को मुंबई लाना चाहते थे और कहां अब उन की पूरी उम्र जेल में गुजरने वाली थी. 11 जून, 2019 को यह सजा सुनाई गई थी. पर इतना ही नहीं, उन की तमाम प्रौपर्टी भी जब्त करने का आदेश दिया गया था. उन पर 5 करोड़ रुपए का जुरमाना भी लगाया गया था.

5 करोड़ की इस राशि के बारे में कहा गया था बिरजू से मिलने वाली इस राशि को चालक दल और यात्रियों में बांट दिया जाए. इस में से एकएक लाख रुपए पायलटों को, 75-75 हजार रुपए एयरहोस्टेस को तो 25-25 हजार रुपए सवारियों को बांटने का आदेश दिया गया था.

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सजा सुनाए जाने के बाद बिरजू सल्ला को अहमदाबाद की साबरमती जेल भेज दिया गया. घर वालों ने एनआईए के इस फैसले के खिलाफ गुजरात हाईकोर्ट में अपील की. जिस की सुनवाई साल 2023 में शुरू हुई और 8 अगस्त, 2023 को हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति ए.एस. सुपेहिया और एम.आर. मेंगडे की पीठ ने अपने फैसले में बिरजू सल्ला को बरी करते हुए कहा कि एनआईए यह साबित नहीं कर पाई कि विमान के वाशरूम में पाया गया नोट बिरजू सल्ला ने ही रखा था.

न्यायमूर्ति श्री सुपेहिया ने कहा कि अभियोजन पक्ष यह भी साबित नहीं कर सका कि आरोपी ने अकेले अपने औफिस में बैठ कर वह धमकी भरा नोट तैयार किया था.

उच्च न्यायालय ने कहा कि जैसा कि शुरुआती जांच में कहा गया है कि सल्ला ने बताया है कि जेट एयरवेज की कर्मचारी अपनी प्रेमिका के लिए एयरलाइन को बदनाम करने के लिए उन्होंने यह अपराध किया था, लेकिन आगे चल कर जांच के दौरान उस के इस मकसद ने अपना महत्त्व खो दिया. इसलिए जो भी सबूत पेश किए गए हैं, उन के अध्ययन से पता चलता है कि वे संदेहात्मक हैं, जो आरोपी को अपराधी नहीं घोषित करते.

जो भी सबूत हैं, वे स्पष्ट रूप से अपीलकर्ता को अपहरण जैसे गंभीर आरोप में दोषी सिद्ध नहीं करते. इसलिए संदेह से भरे सबूतों के आधार पर अपहरण के अपराध में अपीलकर्ता दोषी ठहराने और सजा देने के ट्रायल कोर्ट के फैसले से सहमत नहीं हैं और अपीलकर्ता को बरी करने का आदेश दिया जाता है.

बिरजू सल्ला को अपहरण के आरोप से बरी करते हुए उच्च न्यायालय ने यह भी कहा कि बिरजू सल्ला पर लगाए गए 5 करोड़ रुपए के जुरमाने को भी रद्द किया जाता है.

एयरलाइन के पायलट और चालक दल को ट्रायल कोर्ट ने जिन्हें रुपए देने का आदेश दिया था, अगर उन्होंने रुपए लिए हैं तो वे पैसे वापस करें. जुरमाने की राशि उच्च न्यायालय ने बिरजू को वापस करने का आदेश दिया. इसी के साथ यह भी आदेश दिया कि अगर राज्य सरकार यह रुपया वापस नहीं ले पाती तो खुद यह पैसा अपने पास से सल्ला को वापस करे.

इस तरह बिरजू को हाईकोर्ट से राहत तो मिल गई, लेकिन वह गर्लफ्रेंड के चक्कर में 6 साल की जेल काट कर बाहर आए.

गर्लफ्रेंड के लिए विमान का अपहरण – भाग 2

जैसे ही फ्लाइट ने एयरपोर्ट पर लैंड किया, पुलिस ने डौग स्क्वायड, बम स्क्वायड के साथ प्लेन को घेर लिया. इस के बाद सारे यात्रियों को उतार कर एक जगह इकट्ठा कर लिया गया और जहाज की तलाशी ली गई. जहाज में कहीं कोई बम नहीं मिला.

इस के बाद सारे यात्रियों की सूची निकाली गई. इन 116 यात्रियों में 12 हाइजैकर कौन हो सकते हैं, उन की शिनाख्त की जाने लगी. पता चला कि इन 116 यात्रियों में से कोई भी व्यक्ति संदिग्ध नहीं था. सभी के टिकट या आईडी पर जो डाटा था, वह सही और जैनुइन था.

इस से यह साफ हो गया कि यह फेक काल थी यानी मजाक था. फिर सवाल उठा कि इस तरह का खतरनाक मजाक किया किस ने, अब इस की जांच शुरू हुई.

प्लेन का जो क्रू स्टाफ था, उस से पूछताछ शुरू हुई. इस पूछताछ में शिवानी मल्होत्रा जिस ने सब से पहले देखा था कि बिजनैस क्लास के टायलेट में टिश्यू पेपर खत्म हो गए हैं, उस ने बताया कि जब प्लेन ने टेकआफ किया यानी लाइट बंद हो गई और अब टायलेट यूज किया जा सकता था तो बिजनैस क्लास में बैठे एक आदमी ने उस से ब्लैंकेट मांगा था. वह उस का कंबल लेने गई फिर लौट कर देखा, वह सीट पर नहीं था.

करीब 5 मिनट बाद वह लौटा. इस पर उस ने ध्यान दिया कि उतने समय में उस आदमी के अलावा बिजनैस क्लास के किसी दूसरे आदमी ने टायलेट का यूज नहीं किया था.

शिवानी के बताए अनुसार, टेकआफ के बाद उस टायलेट का उपयोग सिर्फ उसी एक यात्री ने किया था. इस के बाद उस यात्री को बुलाया गया. वह यात्री सामने आया. पूछताछ में पता चला कि उस यात्री का नाम था बिरजू सल्ला उर्फ अमर सोनी पुत्र किशोर सोनी है. उस की उम्र 37 साल थी.

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जब उस से टायलेट जाने के बारे में पूछा गया तो उस ने स्वीकार किया कि हां वह टायलेट गया था. लेकिन इस के आगे उस ने कुछ नहीं बताया.

अरबपति व्यापारी निकला बिरजू सल्ला

इस के बाद मुंबई पुलिस को सूचना दे कर सल्ला के बारे में जानकारी जुटाई गई. मुंबई पुलिस से जो जानकारी मिली, उस से पता चला कि बिरजू सल्ला कोई छोटी मोटी हस्ती नहीं है. सल्ला सोनेचांदी, हीरे जवाहरातों के जाने माने बिजनेसमैन हैं. वह बहुत ही सम्मानित परिवार से हैं.

वह मूलरूप से गुजरात के रहने वाले हैं. मुंबई के दादर बाजार में ज्वैलरी की उन की बहुत बड़ी दुकान है. इस के अलावा भी उन के कई बिजनैस हैं. कुल मिला कर वह अरबपति आदमी हैं और मुंबई के पौश इलाके में उन की विशाल कोठी है.

बिरजू सल्ला के बारे में जान कर पुलिस को लगा कि कहीं कुछ गड़बड़ हो रहा है. इतना बड़ा बिजनैसमैन और सम्मानित आदमी इस तरह का काम क्यों करेगा? फिर भी पुलिस की एक टीम इस मामले की जांच में लग गई. पुलिस के पास सबूत के तौर पर 2 लेटर थे, एक अंगरेजी में और दूसरा उर्दू में.

इस के अलावा जांच में यह भी साबित हो गया कि सल्ला के अलावा और दूसरा कोई अदमी टायलेट गया नहीं था. अगर वे लेटर बिरजू ने नहीं रखे तो फिर किस ने रखे? उस के बाद एयरहोस्टेस गई थीं टायलेट. वे ऐसा कर नहीं सकती थीं. इसलिए जो सबूत थे, वे बिरजू सल्ला की ओर ही इशारा कर रहे थे कि उसी ने यह काम किया है.

बाकी यात्री जो रुके थे, उन्हें दूसरी फ्लाइट से दिल्ली भेज दिया गया. बिरजू सल्ला को संदिग्ध मान कर अहमदाबाद में ही रोक लिया गया. उन से पूछताछ की जाने लगी. पर वह लगातार मना करते रहे कि उन्होंने यह काम नहीं किया.

उसी बीच पुलिस की एक टीम उन के घर गई. इसी के साथ यह भी पता किया जाने लगा कि जो दोनों लेटर टायलेट से मिले थे, वह कहां टाइप किए गए थे और इन का प्रिंट कहां निकाला गया था?

बिरजू सल्ला के घर में जो प्रिंटर था, उस का सैंपल लिया गया. इस के बाद लेटर से उस सैंपल को मैच कराया गया तो वह मैच कर गया. जिस प्रिंटर से वह बाकी के काम करते थे, उसी प्रिंटर से वह लेटर प्रिंट किए गए थे.

अब 2 चीजें बिरजू सल्ला के खिलाफ थीं. एक वह चश्मदीद एयरहोस्टेस, जिस ने बताया था कि एकलौते वही थे, जिन्होंने टायलेट का उपयोग किया था और दूसरा वह प्रिंटर, जिस से वह धमकी भरे लेटर प्रिंट किए गए थे.  इस के बाद लैपटाप और कंप्यूटर को खंगाला गया, इस से पता चला कि लेटर उसी में टाइप किए गए थे. जो लेटर उर्दू में था, उस के बारे में पता चला कि अंगरेजी वाले लेटर को गूगल से ट्रांसलेट किया गया था.

पुलिस के लिए इतने सबूत काफी थे बिरजू को घेरने के लिए. इस के बाद अहमदाबाद की क्राइम ब्रांच पुलिस ने जब तसल्ली से बिरजू को सवालों के जाल में उलझाया तो मजबूरन बिरजू को अपना अपराध स्वीकार करना पड़ा. उन्होंने कहा कि ये दोनों लेटर टायलेट में उन्होंने ही रखे थे, लेकिन बम की खबर फेक थी. न तो प्लेन में कोई हाइजैकर थे और न ही बम था.

हर हालत में गर्लफ्रेंड को मुंबई बुलाना चाहते थे बिरजू सल्ला

अब इस के बाद यह सवाल उठा कि आखिर उन्होंने ऐसा किया क्यों? पुलिस ने कहा कि अगर कोई फेक काल करता या इस तरह का लेटर रखता तो वह बाहर रह कर ऐसा करता. जबकि वह तो इसी प्लेन में बैठे थे, तब उन्होंने ऐसा क्यों किया? क्या उन्हें अहमदाबाद आना था या कोई और काम था?

इस के बाद बिरजू सल्ला ने ऐसा करने के पीछे जो कहानी सुनाई, उस पर अहमदाबाद की क्राइम ब्रांच को विश्वास ही नहीं हो रहा था, लेकिन जब पुलिस ने आगे जांच की तो पता चला कि बिरजू ने जो भी बताया था, वह पूरी तरह सच था. बिरजू ने यह सब करने के पीछे जो कहानी सुनाई थी, वह इस प्रकार थी.

बिरजू सल्ला एक अरबपति कारोबारी थे. वह मुंबई के एक पौश इलाके में शानदार कोठी में परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में पत्नी, 2 बच्चे और 70 साल के पिता किशोरभाई थे. बिजनैस के लिए अकसर वह देश के अन्य शहरों में आयाजाया करते थे. वह दिल्ली भी आतेजाते रहते थे.

दिल्ली आनेजाने के दौरान ही जेट एयरवेज की एक ग्राउंड स्टाफ से उन की दोस्ती हो गई. दोस्ती होने के बाद अकसर दोनों का मिलनाजुलना होने लगा. इस का नतीजा यह निकला कि 35-36 साल के बिरजू को उस युवती से प्यार हो गया.

बिरजू को ही उस युवती से प्यार नहीं हुआ, वह युवती भी बिरजू से प्यार करने लगी थी. क्योंकि उस युवती को यह पता नहीं था कि वह जिस से प्यार कर रही है, वह शादीशुदा है. जब प्यार गहराया तो बात विवाह करने की होने लगी. बिरजू चाहते थे कि वह युवती नौकरी छोड़ कर मुंबई चले और उन का घर संभाले. जबकि युवती न नौकरी छोडऩा चाहती थी और न मुंबई ही जाना चाहती थी. वह इन दोनों चीजों से मना कर रही थी.

जबकि बिरजू उस युवती से बहुत ज्यादा प्यार करते थे. बिरजू ने उसे बहुत समझाने की कोशिश की, बारबार मनाया, कई बार ऐसा भी हुआ कि वह केवल उस से मिलने दिल्ली आए. कई बार वह कहती कि इस समय तो उस की ड्यूटी है. फ्लाइट की ड्यूटी होती थी, जिसे अटेंड करना ही होता था. इस तरह वह बिरजू को समय नहीं दे पाती थी.

इस सब को ले कर बिरजू के मन में आता कि यह सब क्या है, आखिर यह कैसी नौकरी है? उस ने प्रेमिका से कहा कि वह यहां के बजाय मुंबई में नौकरी जौइन कर ले या किसी दूसरी एयरलाइंस में नौकरी कर ले, पर वह न तो नौकरी छोडऩे को तैयार थी और न ही कहीं दूसरी जगह जाने को. उस का कहना था कि वह नौकरी करेगी तो यहीं दिल्ली में ही करेगी.

गर्लफ्रेंड की बातों ने कुछ ऐसा कर दिया कि बिरजू को एयरलाइंस की नौकरी से ही नफरत हो गई. साथ ही वह यह भी सोचने लगे कि वह ऐसा क्या करें कि उन की गर्लफ्रेंड उन के पास मुंबई आ जाए.

उसी दौरान 2017 में बिरजू के एक दोस्त की बेटी की शादी थी. उस ने बिरजू से कहा कि उस के कुछ गेस्ट आ रहे हैं. उन्हें ले आने और ले जाने के लिए 2 चार्टर्ड प्लेन किराए पर चाहिए. इस के लिए बिरजू दिल्ली आए और गल्फ की एक कंपनी से करीब सवा करोड़ में 2 चार्टर्ड की डील कर ली.

इसी बात से बिरजू को खयाल आया कि गर्लफ्रेंड मुंबई नहीं चल रही और नौकरी नहीं छोड़ रही तो क्यों न वह अपनी इस गर्लफ्रेंड के लिए एक एयरलाइंस कंपनी खोल दें. प्लेन डील करने में उन्हें एयरलाइंस के बारे में काफी जानकारी हो गई थी.