hindi love stories : बचपन के प्यार को पाने की जिद में किया सब कुछ

hindi love stories : शाम का वक्त था. दिल्ली के वसंत कुंज स्थित फोर्टिस अस्पताल का पूरा स्टाफ अपनी ड्यूटी पर था. तभी एक युवक अस्पताल के स्ट्रेचर को ठेलता हुआ अस्पताल के इमरजेंसी वार्ड में पहुंचा और बदहवासी में बोला, ‘‘डाक्टर साहब, मेरी वाइफ ने जहर खा लिया है, इसे बचा लो वरना मैं जी नहीं सकूंगा.’’

उस की बात सुन कर अस्पताल के डाक्टरों ने उस युवती का चैकअप शुरू किया. उस की नब्ज और धड़कन गायब थीं. चैकअप के बाद डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया. डाक्टर द्वारा पूछे जाने पर मृतका के साथ आए युवक राहुल मिश्रा ने बताया कि उस ने औफिस से लौटने के बाद पूजा को फर्श पर बेसुध पड़े देखा, उस की बगल में ही एक सुसाइड नोट पड़ा था.

नोट को पढ़ने के बाद उस की समझ में आया कि पूजा ने जहर खा लिया है. इस के बाद वह पूजा को गाड़ी में डाल कर सीधे अस्पताल ले आया.

चूंकि मामला सुसाइड का था, इसलिए अस्पताल प्रशासन ने पूजा राय की मौत की सूचना इलाके के थाना किशनगढ़ को दे दी. थोड़ी ही देर में किशनगढ़ थाने की पुलिस वहां पहुंच गई. पूजा की लाश को अपने कब्जे में ले कर पुलिस राहुल मिश्रा से घटना के बारे में पूछताछ करने लगी.

पूछताछ के दौरान राहुल मिश्रा ने पुलिस को बताया कि वह गुड़गांव की एक बड़ी कंपनी में मैकेनिकल इंजीनियर के पद पर तैनात है. थोड़ी देर पहले जब वह फ्लैट में पहुंचा तो पूजा फर्श पर पड़ी थी और उस के बगल में सुसाइड नोट रखा था, जिस में उस ने सुसाइड करने की बात लिखी थी.

पूजा की लाश को पोस्टमार्टम के लिए सफदरजंग अस्पताल भेज कर थानाध्यक्ष राजेश मौर्य पूजा के पति राहुल मिश्रा के साथ उस के फ्लैट में पहुंचे. राहुल ने उन्हें पूजा का लिखा हुआ सुसाइड नोट सौंप दिया. कमरे का मुआयना करने के बाद थानाध्यक्ष राजेश मौर्य किशनगढ़ थाना लौट गए. पहली नजर में उन्हें यह मामला सुसाइड का ही लग रहा था.

उसी दिन यानी 16 मार्च, 2019 को किशनगढ़ थाने में सीआरपीसी 173 के तहत यह मामला दर्ज कर लिया गया. अगले दिन डाक्टरों की एक टीम ने पूजा राय का पोस्टमार्टम किया. उस का विसरा भी जांच के लिए रख लिया गया. इस दौरान थानाध्यक्ष राजेश मौर्य ने पूजा के मायके सिंदरी, झारखंड को इस घटना की सूचना दे कर उस के पिता सुरेश राय को दिल्ली बुला लिया.

सुरेश राय ने अपने दामाद पर आरोप लगाते हुए थानाध्यक्ष राजेश मौर्य से कहा, ‘‘मेरी बेटी पूजा ने सुसाइड नहीं किया है, बल्कि उस की हत्या की गई है.’’

राजेश पर आरोप लगने के बाद पुलिस ने 18 मार्च को 3 डाक्टरों के पैनल से पूजा का पोस्टमार्टम कराया. डाक्टरों ने पोस्टमार्टम के बाद उस के विसरा को जांच के लिए भेज दिया. करीब एक महीने के बाद 27 अप्रैल, 2019 को पूजा का पोस्टमार्टम तथा विसरा रिपोर्ट आ गई, जिस में उस के मरने का कारण उस के सिर में घातक चोट का लगना तथा जहर मिला जूस पीना बताया गया.

इस के बाद पुलिस ने 31 अप्रैल को पूजा राय की हत्या का मामला आईपीसी की धारा 302 के अंतर्गत दर्ज कर लिया. इस मामले की तफ्तीश थानाध्यक्ष राजेश मौर्य को सौंपी गई.

केस की जांच संभालते ही थानाध्यक्ष राजेश मौर्य ने अपने आला अधिकारियों को पोस्टमार्टम रिपोर्ट तथा केस में आए इस बदलाव से अवगत करा दिया. साउथ वेस्ट दिल्ली के डीसीपी देवेंद्र आर्य इस मामले में पहले से ही दिलचस्पी ले रहे थे.

उन्होंने केस का खुलासा करने के लिए एसीपी ईश्वर सिंह की निगरानी में एक टीम बनाई, जिस में थानाध्यक्ष राजेश मौर्य, इंसपेक्टर संजय शर्मा, इंसपेक्टर नरेंद्र सिंह चहल, एसआई मनीष, पंकज, एएसआई अजीत, कांस्टेबल गौरव आदि को शामिल किया गया.

थानाध्यक्ष ने उसी दिन मृतका के पति राहुल मिश्रा को थाने बुला कर उसे बताया कि पूजा ने आत्महत्या नहीं की, बल्कि किसी ने उस की हत्या की है. इसलिए वह इस मामले को सुलझाने में सहयोग करें.

थानाध्यक्ष की बात सुन कर राहुल को हैरानी हुई. वह बोला, ‘‘सर, पूजा की तो किसी से कोई दुश्मनी नहीं थी. ऐसे में भला उस की हत्या कौन कर सकता है? अगर ऐसा है तो मेरी पत्नी के हत्यारे का पता लगा कर उसे जल्द से जल्द पकड़ने की कोशिश करें.’’

‘‘चिंता मत करो, पुलिस अपना काम करेगी. बस आप जांच में सहयोग करते रहना.’’ थानाध्यक्ष ने कहते हुए राहुल से उस से और पूजा से मिलने आने वाले सभी लोगों के फोन नंबर ले कर सभी नंबरों की काल डिटेल्स निकलवा कर उन की बारीकी से जांच की. राहुल की काल डिटेल्स में एक फोन नंबर ऐसा मिला, जिस पर उस की ज्यादा बातें होती थीं.

वह नंबर पद्मा तिवारी का था, जो दिल्ली के मयूर विहार में रहती थी. राहुल ने बताया कि पद्मा उस की दोस्त है. घटना वाले दिन भी पद्मा ने शाम के वक्त राहुल के मोबाइल पर फोन कर उस से काफी देर तक बातें की थीं. इस से दोनों ही पुलिस के शक के दायरे में आ गए.

इस के बाद थानाध्यक्ष राजेश मौर्य ने राहुल के फ्लैट पर पहुंच कर वहां आसपड़ोस में रहने वालों से पूछताछ की तो पता चला कि 16 मार्च, 2019 की सुबह पद्मा तिवारी पूजा से मिलने उस के फ्लैट पर आई थी. इस के बाद किसी ने पूजा को फ्लैट से बाहर निकलते नहीं देखा था. अलबत्ता शाम के वक्त राहुल पूजा को बेहोशी की हालत में ले कर फोर्टिस अस्पताल गया था.

थानाध्यक्ष को अब मामला कुछकुछ समझ में आने लगा था, लेकिन उस वक्त उन्होंने राहुल मिश्रा से ऐसा कुछ नहीं कहा जिस से उसे पता चले कि उन्हें उस के ऊपर शक हो गया है.

राहुल से पूछताछ के बाद जब वह अपनी टीम के साथ वहां से चलने को हुए तो राहुल को फिर से थाने में आने का आदेश दिया. इस के अलावा उन्होंने राहुल की दोस्त पद्मा तिवारी को भी फोन कर उसे किशनगढ़ थाने में पहुंच कर मामले की जांच में सहयोग करने के लिए कह दिया.

जब राहुल और पद्मा किशनगढ़ थाने में पहुंचे तो उन दोनों से उन की काल डिटेल्स तथा उन के द्वारा पूर्व में दिए गए बयानों में आ रहे विरोधाभासों के आधार पर अलगअलग पूछताछ की गई तो उन के बयानों में फिर से काफी विरोधाभास नजर आया.

सुसाइड नोट की राइटिंग की जांच के लिए पुलिस ने पद्मा की हैंडराइटिंग की जांच की. इस जांच में पुलिस को सुसाइड नोट की राइटिंग और पद्मा की हैंडराइटिंग काफी हद तक एक जैसी लगी.

तीखे पुलिसिया सवालों से आखिर पद्मा टूट गई. उस ने पूजा की हत्या करने का जुर्म स्वीकार कर लिया. फिर राहुल ने भी मान लिया कि पूजा की हत्या पूरी तरह सुनियोजित थी. इतना ही नहीं, घटना वाले दिन पद्मा ने उस के मोबाइल पर फोन कर उसे पूजा की हत्या की जानकारी दी थी.

उन्होंने पूजा की हत्या क्यों की, इस बारे में जब उन से विस्तार से पूछताछ की गई तो पूजा राय की हत्या के पीछे जो तथ्य उभर कर सामने आए, वह बचपन के प्यार को पाने की जिद की एक हैरतअंगेज कहानी थी.

कहा जाता है कि बचपन की दोस्ती और स्कूल के दिनों का प्यार भुलाए नहीं भूलता. और जब शादी के बाद वही बचपन का प्यार उस के शादीशुदा जीवन में अचानक सामने आ कर खड़ा हो जाए तो जिंदगी किस दोराहे या चौराहे पर पहुंचेगी, यह अनुमान लगाना आसान नहीं होता. कुछ ऐसा ही हुआ 32 वर्षीय मैकेनिकल इंजीनियर राहुल मिश्रा और उस के बचपन की दोस्त 33 वर्षीय एमबीए पद्मा तिवारी के साथ.

राहुल मिश्रा अपने पिता रामदेव मिश्रा के साथ झारखंड के शहर सिंदरी में रहता था. वह वहां के डिनोबली स्कूल में पढ़ता था. पद्मा तिवारी भी उस के क्लास में थी. पद्मा तिवारी के मातापिता भी सिंदरी में रहते थे. दोनों बचपन से ही एकदूसरे के दोस्त थे. उम्र बढ़ने के साथ उन की दोस्ती प्यार में बदल गई.

12वीं पास करने के बाद दोनों आगे की पढ़ाई के लिए न चाहते हुए भी एकदूसरे से बिछड़ गए, क्योंकि राहुल मिश्रा ने ग्वालियर से मैकेनिकल इंजीनियरिंग की डिग्री ली थी और सन 2010 में गुड़गांव स्थित एक कंपनी में उस की नौकरी लग गई. राहुल अपनी नौकरी में व्यस्त था. उस का पद्मा तिवारी से एक तरह से संपर्क टूट गया था.

सन 2015 में राहुल मिश्रा के स्कूल के दोस्तों ने एक वाट्सऐप ग्रुप बनाया, जिस में राहुल मिश्रा और पद्मा तिवारी का नाम भी शामिल था. इस ग्रुप के द्वारा पद्मा ने राहुल मिश्रा से मोबाइल फोन पर संपर्क किया. चूंकि उन की काफी दिनों बाद बातचीत हुई थी, इसलिए वे बहुत खुश हुए.

बातचीत से पता चला कि पद्मा ने नोएडा में रह कर एमबीए किया था. उस के बाद उसे नोएडा की एक मल्टीनैशनल कंपनी में नौकरी मिल गई थी. इस समय वह नोएडा में नौकरी कर रही थी, जहां उसे अच्छी खासी तनख्वाह मिलती थी. इस के बाद दोनों लगातार एकदूसरे से फोन पर बातें करने लगे.

इस से उन के स्कूल के दिनों का प्यार फिर से जीवित हो गया. अब दोनों ही अच्छी सैलरी ले रहे थे, इसलिए उन का जब मन होता, वे इधर उधर घूम कर दिल की बातें कर लेते थे. उन की नजदीकियां उस मुकाम पर पहुंच चुकी थीं कि अब दोनों को कोई जुदा नहीं कर सकता था.

लेकिन होनी को कुछ और ही मंजूर था. सन 2017 में जब राहुल मिश्रा के घर में उस की शादी की बात चली तो उन लोगों ने अपनी बहू के रूप में सिंदरी की ही रहने वाली पूजा राय को पसंद कर लिया. इस पर राहुल ने अपने घर वालों को बताया कि वह सिंदरी की रहने वाली सहपाठी पद्मा तिवारी से प्यार करता है और उसी से शादी करना चाहता है.

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                                                 राहुल और पूजा

राहुल ने घर वालों को यह भी बताया कि एमबीए करने के बाद पद्मा नोएडा की एक कंपनी में ऊंचे पद पर नौकरी कर रही है. लेकिन राहुल के पिता रामदेव मिश्रा ने राहुल की बात को हलके में लिया और उस की बात अनसुनी करते हुए पूजा से ही उस की शादी पक्की कर दी.

बनने लगी हत्या की योजना

राहुल को इस बात का दुख हुआ. वह अब ऐसा उपाय सोचने लगा कि किसी तरह उस की पूजा से शादी टूट जाए. उस ने तय कर लिया कि वह पूजा से मिल कर बता देगा कि उस का पद्मा के साथ अफेयर चल रहा है.

एक दिन वह पूजा राय के पास पहुंचा और अपने व पद्मा तिवारी के बीच सालों से चले आ रहे अफेयर की बात यह सोच कर बता दी कि यह सुन कर शायद वह उस से शादी करने से मना कर देगी. लेकिन पूजा समझदार लड़की थी.

वह राहुल की इस बात पर नाराज नहीं हुई बल्कि उसे उस की साफगोई अच्छी लगी कि राहुल दिल का साफ है जो उस ने यह बात उसे बता दी. यानी अपने होने वाले पति के मुंह से उस के पुराने अफेयर के बारे में जानकारी मिलने के बाद भी पूजा उस से शादी के लिए तैयार थी.

अप्रैल, 2017 में राहुल मिश्रा की शादी पूजा राय से हो गई. शादी के बाद राहुल पूजा को ले कर दिल्ली आ गया और साउथ दिल्ली के किशनगढ़ इलाके में किराए का एक फ्लैट ले कर रहने लगा. राहुल से शादी कर के पूजा बहुत खुश थी.

उस ने तय कर लिया था कि वह राहुल को इतना प्यार देगी कि वह अपना पिछला प्यार भूल जाएगा. पूजा ने राहुल की सेवा करने में सचमुच कोई कसर नहीं छोड़ी. यहां तक कि महंगाई के कारण घर चलाने के लिए जब अधिक रुपयों की जरूरत महसूस हुई तो उस ने भी नौकरी करने का फैसला कर लिया.

उधर राहुल पूजा से शादी के बाद भी पद्मा को अपने दिल से नहीं निकाल सका. पद्मा का हाल भी राहुल की तरह ही था. दोनों वक्त निकाल कर एकदूसरे से मिलतेजुलते रहे. पद्मा मयूर विहार में एक किराए के फ्लैट में रहती थी.

अक्तूबर 2018 में जब पूजा की नौकरी करने के लिए उस का बायोडाटा तैयार करने की बात आई तो राहुल ने इसी बहाने पद्मा को अपने फ्लैट पर बुला लिया. पद्मा ने पूजा का बायोडाटा तैयार कर दिया. आगे चल कर पूजा को भी गुड़गांव की एक मल्टीनैशनल कंपनी में नौकरी मिल गई. इस के बाद पद्मा किसी न किसी बहाने उस के यहां आती रही.

जब पद्मा का राहुल के यहां ज्यादा आनाजाना बढ़ गया तो पूजा को पद्मा और राहुल के रिश्तों पर शक हो गया. उसे पद्मा का बारबार फ्लैट पर आना अखरने लगा. तब पूजा उस के साथ रूखा व्यवहार करने लगी.

इतना ही नहीं, वह पद्मा को हंसीमजाक के दौरान राहुल को ले कर कुछ ऐसी बात कर देती जिसे सुन कर वह तिलमिला कर रह जाती थी. पर पद्मा दिल के हाथों मजबूर थी. वह राहुल को बहुत चाहती थी. इसलिए उस ने राहुल के फ्लैट पर आना नहीं छोड़ा. इसलिए पूजा के व्यंग्य करने के बाद भी वह उस के यहां आती रही.

पद्मा ने ही ली पूजा की जान

लेकिन जब पूजा ने उस के और राहुल के रिश्तों को ले कर जलीकटी सुनानी जारी रखीं तो एक दिन उस ने यह बात राहुल को बताई और इस का कोई हल निकालने को कहा. पद्मा की बात सुन कर राहुल को अपनी पत्नी पर बहुत गुस्सा आया. उसी दिन दोनों ने मिल कर निश्चय कर लिया कि वे इस के बदले पूजा को जरूर सबक सिखाएंगे. दोनों ने इस के लिए एक योजना भी बना ली.

16 मार्च, 2019 को शनिवार का दिन था. योजना के अनुसार राहुल सुबह तैयार हो कर गुड़गांव स्थित अपने औफिस चला गया. चूंकि पूजा की उस दिन छुट्टी थी, इसलिए वह फ्लैट पर अकेली आराम कर रही थी. राहुल के जाने के कुछ देर बाद पद्मा पूजा से मिलने फ्लैट पर पहुंची तो पूजा ने उस से कहा कि उसे किसी काम से बाहर निकलना है, इसलिए वह उसे अधिक समय नहीं दे पाएगी.

इस पर पद्मा ने उस से कहा, ‘‘कुछ देर बातचीत कर के मैं चली जाऊंगी तो तुम चली जाना.’’

पद्मा अपने साथ 2 गिलास फ्रूट जूस ले कर आई थी. उस ने दोनों गिलास पूजा के सामने टेबल पर रख दिए. उस वक्त काम करने वाली आया घर का कामकाज निपटा रही थी. इस बीच पूजा ने पद्मा के साथ नाश्ता किया. जब आया अपना काम खत्म कर वहां से चली गई तो पद्मा ने पूजा से जूस पी लेने के लिए कहा.

जैसे ही पूजा ने जूस पीने के लिए गिलास उठाना चाहा तो पद्मा ने कहा कि वह उस के लिए एक गिलास पानी ले आए. यह सुन कर पूजा जूस का गिलास वहीं छोड़ कर पानी लाने के लिए चली गई.

पूजा के जाते ही पद्मा ने अपने कपड़ों में छिपा कर लाया जहरीला पदार्थ उस के गिलास में डाल कर मिला दिया. पूजा किचन से पानी का गिलास ले कर लौटी और गिलास पद्मा को दे दिया. इस के बाद पूजा ने पद्मा द्वारा लाया जूस का गिलास उठाया और धीरेधीरे पूरा जूस खत्म कर दिया.

जूस पीने के थोड़ी देर बाद अचानक उस की तबीयत खराब होने लगी. उल्टी और पेट दर्द की शिकायत होने पर उस ने फ्लैट से बाहर निकलना चाहा लेकिन पद्मा ने उसे पकड़ कर दबोच लिया. पूजा के बेहोश होने पर पद्मा ने उस का सिर बारबार फर्श से पटका ताकि उस के जीवित रहने की संभावना न रहे.

पूजा की हत्या करने के बाद पद्मा ने फ्लैट को अच्छी तरह साफ किया और पेपर के बने उन दोनों गिलासों को अपने साथ ले कर वहां से मयूर विहार अपने कमरे पर लौट आई. शाम को उस ने अपने प्रेमी राहुल मिश्रा को फोन कर बता दिया कि आज उस ने उस की पत्नी पूजा का किस्सा तमाम कर दिया है.

साथ ही उस ने यह भी बताया कि उस ने पूजा के पास में सुसाइड नोट भी लिख कर छोड़ दिया है, जिसे पढ़ कर पुलिस और तमाम लोग यह समझेंगे कि पूजा ने किसी कारण परेशान हो कर सुसाइड कर लिया है.

शाम के वक्त राहुल औफिस से अपने फ्लैट पर पहुंचा तो योजना के अनुसार पूजा की डैडबौडी को ले कर वसंत कुंज स्थित फोर्टिस अस्पताल पहुंचा और वहां डाक्टर से नाटक करते हुए अपनी पत्नी की जान बचा लेने की गुहार लगाई.

लेकिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट में हेड इंजरी तथा पूजा को जूस में जहर देने की बात सामने आई, जिस से राहुल और पद्मा द्वारा रचे गए पूजा के नकली सुसाइड के रहस्य से पदा हटा दिया.

अगले दिन पुलिस ने दोनों आरोपियों को अदालत में पेश कर दिया गया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. hindi love stories

Murder Story : फॉरेस्ट ऑफिसर का कातिल निकला प्रेमी

Murder Story : लाश पहाड़ी की तलहटी में पड़ी थी, जो काफी हद तक सड़गल गई थी. लाश देख कर ही लग रहा था कि इस की मौत कई दिनों पहले हुई है. पुलिस ने जब बारीकी से लाश का निरीक्षण किया तो उस के शरीर और सिर पर चोट के निशान थे. इस से पुलिस को लगा कि शायद इस की हत्या की गई है. पुलिस को लाश से थोड़ी दूर पर एक मोबाइल फोन, जूता और चश्मा पड़ा मिला. पुलिस ने अंदाजा लगया यह सामान मरने वाली लड़की का ही होगा.

Lash ke paas mila darshna ka samaan

लाश के पास मिला दर्शना का सामान

रेंज फारेस्ट औफीसर (Range Forest Officer) दर्शना पवार (Darshana Pawar) की लाश तो मिल गई थी, पर उस के दोस्त राहुल का अभी भी कुछ पता नहीं था. इसलिए अब पुलिस की जांच 2 दिशाओं में बंट गई. एक ओर पुलिस राहुल को खोज रही थी तो दूसरी ओर पुलिस अब यह पता कर रही थी कि दर्शना की मौत कैसे हुई? अगर यह दुर्घटना है तो दुर्घटना कैसे हुई? अगर हत्या हुई है तो किस ने और क्यों दर्शना की हत्या की? राहुल का फोन भी स्विच्ड औफ था, इसलिए उस के बारे में कुछ पता नहीं चल रहा था.

दर्शना की पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने पर साफ हो गया कि उस की मौत दुर्घटना से नहीं हुई, बल्कि उस की हत्या की गई थी. क्योंकि उस के शरीर पर चोट के जो निशान मिले थे, वे दुर्घटना के नहीं थे, बल्कि किसी नुकीली चीज द्वारा चोट पहुंचाए जाने के थे.

पुलिस को तो पहले ही हत्या की आशंका थी, लेकिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने से साफ हो गया कि दर्शना की हत्या की गई थी. अगर दुर्घटना हुई होती तो राहुल उस के साथ ही था, चोट उसे भी लगती. वह किसी अस्पताल में होता या फिर दर्शना के घायल होने या पहाड़ी में नीचे गिरने की सूचना देता. पर वह तो गायब था, इसलिए पुलिस को अब उस पर ही शक होने लगा.

महाराष्ट्र (Maharashtra) के जिला अहमदनगर (Ahmednagar) का एक कस्बा है कोपरगांव. दर्शना अपने मम्मीपापा के साथ यहीं रहती थी. उस का एक निम्नमध्यमवर्गीय परिवार था. उस के पापा अहमदनगर की एक शुगर मिल में ड्राइवर थे और मां घर संभालती थीं.

दर्शना पढऩे में ठीकठाक थी. इसलिए मम्मीपापा उस की पढ़ाई पर विशेष ध्यान दे रहे थे. वे सोचते थे कि बिटिया पढ़लिख कर कुछ बन जाएगी तो उस की जिंदगी सुधर जाएगी. उन्होंने जिस तरह अभावों भरा जीवन जिया है, कम से कम वैसा जीवन उसे नहीं जीना पड़ेगा. इसीलिए वे तमाम परेशानियों को झेल कर उसे पढ़ा रहे थे.

अहमदनगर से पढ़ाई पूरी करने के बाद दर्शना सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी करना चाहती थी. अहमदनगर से यह संभव नहीं था. इस के लिए उसे पुणे जाना पड़ता. क्योंकि सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी कराने वाली अच्छी कोचिंग वहीं थी. मम्मीपापा उसे पुणे भेजने में थोड़ा झिझक रहे थे, क्योंकि एक तो उन की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी, दूसरे वह बेटी को अकेली इतने बड़े शहर में भेजने से घबरा रहे थे. तब इस के लिए मदद की दर्शना के एक दोस्त राहुल हंडोरे ने.

वैसे तो राहुल हंडोरे (Rahul Handore)  मूलरूप से नासिक की सिन्नार तहसील के शाह गांव का रहने वाला था, लेकिन उस ने बचपन से ही अहमदनगर में रह कर दर्शना के साथ ही पढ़ाई की थी. बचपन से ही दोनों साथ पढ़े थे, इसलिए दोनों में अच्छी दोस्ती थी.

राहुल दर्शना के घर भी आताजाता था, इसीलिए जब दर्शना के घर वाले उसे पुणे भेजने में हिचके तो राहुल ने कहा, ”चिंता की कोई बात नहीं है. मैं भी सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी करने के लिए पुणे जा रहा हूं. इसलिए आप लोग दर्शना को निङ्क्षश्चत हो कर भेज दीजिए. मेरे रहते दर्शना को वहां कोई परेशानी नहीं होने पाएगी.’’

राहुल घर के सदस्य जैसा हो गया था, इसलिए दर्शना के मम्मीपापा उसे पुणे भेजने के लिए राजी हो गए. उन्होंने दर्शना से कहा, ”देखो बेटा, जैसे तैसे हम अपना काम चला लेंगे, पर तुम्हारे करिअर में किसी तरह की अड़चन नहीं आने देंगे.’’

इस तरह दर्शना अपने अरमान पूरे करने पुणे आ गई. महाराष्ट्र का पुणे शहर शिक्षा के मामले में बहुत आगे है. जिस तरह दिल्ली में सिविल सेवा परीक्षाओं की तैयारी कराने के लिए तमाम कोचिंग सेंटर खुले हैं, वैसा ही कुछ पुणे में भी है. इसी वजह से लोग इसे स्टूडेंट्स का शहर कहते हैं. क्योंकि तमाम कोचिंग सेंटर होने की वजह से उस इलाके के ज्यादातर लड़के लड़कियां तैयारी के लिए यहां आ कर रहते हैं. दर्शना भी राहुल के साथ पुणे आ कर सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी करने लगी.

तैयारी में किसी तरह की कमी न रह जाए, इस के लिए दर्शना जीजान से जुट गई. अपने मकसद में सफल होने के लिए उस से जितनी मेहनत हो सकती थी, वह उतनी मेहनत करने लगी. अपना करिअर बनाने के लिए उस ने एक तरह से अपनी पूरी ताकत झोंक दी. आखिर इस का परिणाम भी अच्छा ही आया.

बेटी की कामयाबी पर गदगद हुआ परिवार

दर्शना की लगन और मेहनत का ही नतीजा था कि इस साल के महाराष्ट्र पब्लिक सर्विस कमीशन (एमपीएससी) का रिजल्ट आया तो दर्शना का तीसरा स्थान था. इस तरह उस का चयन रेंज फारेस्ट औफीसर के रूप में हो गया था.

मृतका दर्शना

दर्शना के पापा एक मामूली कर्मचारी थे. उन की बेटी ने इतनी बड़ी कामयाबी हासिल की तो अब लोग बेटी के नाम से उन्हें भी जानने लगे. उन की खुशी की तो कोई सीमा ही नहीं थी. एक तरह से देखा जाए तो उन्होंने जो तपस्या की थी, बेटी की इस कामयाबी से उन्हें उस का फल मिल गया था. लोग बेटी की तारीफ तो कर ही रहे थे, साथ ही यह भी कह रहे थे कि आप भाग्यशाली हैं, जो आप को ऐसी बेटी मिली है.

दर्शना के इस तरह नौकरी पाने से उस के घर सब कुछ बहुत अच्छा हो गया था. चारों ओर उस की इस कामयाबी की चर्चा हो रही थी. इस की वजह यह थी कि वह नीचे स्तर से इस ऊंचाई पर पहुंची थी. यही वजह थी कि उस की इस कामयाबी के लिए उसे जगह जगह सम्मानित किया जा रहा था, जिस से उस के साथसाथ घर वालों का मान भी बढ़ रहा था.

इसी क्रम में दर्शना को सम्मानित करने के लिए सदाशिव पेठ स्थित उस कोचिंग वालों ने भी बुलाया, जिस कोचिंग में पढ़ कर दर्शना को यह कामयाबी मिली थी.

चयनित होने के बाद दर्शना कोपरगांव स्थित अपने घर चली गई थी. कोचिंग द्वारा बुलाए जाने पर दर्शना 9 जून, 2023 को एक बार फिर पुणे आई और इस बार वह अपनी एक सहेली के यहां ठहरी. क्योंकि चयन होने के बाद उस ने अपना कमरा छोड़ दिया था.

11 जून को कोचिंग सेंटर वालों ने दर्शना को सम्मानित किया. सम्मानित करने के बाद कोचिंग के प्रबंधक ने उस से अपने बारे में कुछ कहने के लिए कहा तो दर्शना ने जो बातें कही और जिस तरह कही, वे कोचिंग में पढऩे वाले बच्चों के लिए प्रेरणादायक तो थी ही, उस की इन बातों से वे सभी भी बहुत प्रभावित हुए जो निम्नमध्यम वर्ग के लोगों को कुछ नहीं समझते.

उस की बातों से उन लोगों की समझ में आ गया कि ज्ञान सचमुच बलवान बनाता है. इस से दर्शना को और तमाम लोग भी जान गए. दर्शना द्वारा कही गई बातों का लोगों ने वीडियो बना कर सोशल मीडिया पर भी वायरल किया, जिस से दर्शना का तो मान बढ़ा ही, उस संस्थान की भी प्रतिष्ठा बढ़ गई, जहां पढ़ कर दर्शना ने यह कामयाबी हासिल की थी. इस के बाद दर्शना पुणे में ही अपनी सहेली के यहां रुक कर दोस्तों से मिलती रही.

12 जून को उस ने अपनी सहेली से कहा कि आज वह अपने दोस्त राहुल हंडोरे के साथ राजगढ़ और सिंहगढ़ का किला देखने जा रही है. उस ने यह बात फोन कर के अपने पैरेंट्स को भी बता दी थी. दर्शना को किला देखने जाने से किसी ने मना नहीं किया, क्योंकि सभी जानते थे कि दर्शना ने खूब मेहनत की है, तभी उसे यह सफलता मिली है. इसलिए थोड़ा घूमेगी फिरेगी तो उस का मन भी बहल जाएगा और पढ़ाई की थकान भी उतर जाएगी.

दर्शना जिस राहुल हंडोरे के साथ जा रही थी, वह वही राहुल है, जिस के साथ वह अहमदनगर में पढ़ी थी और पुणे में सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी के लिए आई थी. उस के साथ कहीं जाने में घर वालों को भी कोई ऐतराज नहीं था, क्योंकि दोनों पुराने और घनिष्ठ मित्र थे. फिर अब दर्शना खुद हर तरह सक्षम और समझदार हो गई थी. वह खुद अपना अच्छाबुरा सोच सकती थी.

दर्शना को तो नौकरी मिल गई थी, पर राहुल का अभी कुछ नहीं हुआ था. वह अभी तैयारी ही कर रहा था, साथ ही अपना खर्च चलाने के लिए पुणे में प्राइवेट नौकरी भी कर रहा था.

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राजगढ़ का किला

12 जून की सुबह दोनों राजगढ़ का किला देखने के लिए बाइक से निकल गए. दर्शना और राहुल के दोस्तों और घर वालों को पता था कि दोनों किला देखने गए हैं. पर जब शाम को इन के घर वालों ने हालचाल जानने के लिए फोन किया तो दोनों के ही फोन स्विच्ड औफ बता रहे थे.

फिर तो दोनों के ही घर वाले घबरा गए. उन के दोस्तों से पता किया गया तो उन्होंने बताया कि अभी तक दोनों लौट कर ही नहीं आए हैं. इस के बाद तो दोनों के ही घर वाले बेचैन हो उठे. क्योंकि दर्शना की जहां अच्छी बढिय़ा नौकरी लग चुकी थी, वहीं राहुल भी पढऩे में ठीकठाक था और मेहनत से तैयारी कर रहा था. इसलिए उस के घर वालों को भी उम्मीद थी कि आज नहीं तो कल उसे भी कोई न कोई अच्छी नौकरी मिल ही जाएगी.

दर्शना और राहुल के बारे में जब कुछ पता नहीं चला और न उन के फोन चालू हुए तो अगले दिन उन के घर वाले उन्हें खोजने के लिए पुणे आ गए. अपने हिसाब से उन्होंने दोनों को पुणे में खोजा, किले में भी गए, पर उन का कुछ पता नहीं चला. अब दोनों के ही घर वालों की बेचैनी और बढ़ गई थी. क्योंकि उन की समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर दोनों कहां चले गए.

जब दोनों ही परिवार उन्हें ढूंढ ढूंढ कर थक गए तो 14 जून, 2023 को दर्शना के घर वालों ने जहां थाना सिंहगढ़ में उस की गुमशुदगी दर्ज करा दी, तो राहुल के घर वालों ने थाना मालवाड़ी में उस की गुमशुदगी दर्ज कराई.

पहाड़ी की तलहटी में मिली दर्शना की लाश

दर्शना अपनी कामयाबी से उस इलाके में चर्चा का विषय बन चुकी थी. उसे लगभग हर कोई जानने लगा था. गांव वाले भले न जानते रहे हों, पर शहर और कस्बे का तो लगभग हर कोई उसे जानता था.

इसलिए जब एक तरह से पूरे इलाके में सेलिब्रिटी हो चुकी दर्शना की गुमशुदगी की दर्ज कराई गई तो पुलिस भी सन्न रह गई. चूंकि मामला गंभीर और रहस्यमयी था, इसलिए थाना पुलिस के साथसाथ क्राइम ब्रांच पुलिस भी इस मामले की जांच में लग गई.

क्राइम ब्रांच ने दर्शना और राहुल की खोज के लिए 5-5 पुलिस वालों की 5 टीमें बनाईं और सभी टीमों को अलगअलग जिम्मेदारियां सौंप दीं.

ग्रामीण पुलिस इस मामले में जीजान से लगी थी. पर उसे कोई कामयाबी नहीं मिल रही थी. 19 जून को किसी अजनबी ने पुलिस को सूचना दी कि किले के पास पहाड़ी के नीचे तलहटी में एक महिला की (Murder Story) लाश पड़ी है.

सूचना मिलते ही पुलिस घटनास्थल पर पहुंच गई. दर्शना और राहुल की गुमशुदगी दर्ज थी. वे दोनों किले से ही गायब हुए थे. इस से पुलिस को लगा कि कहीं यह लाश दर्शना की तो नहीं है. तुरंत दर्शना के घर वालों को बुलाया गया. लाश देखते ही दर्शना के घर वालों पर तो जैसे दुख का पहाड़ टूट पड़ा. क्योंकि वह लाश दर्शना की ही थी. परिवार की सारी खुशियां पलभर में दुख में बदल गईं. सभी का रोतेरोते बुरा हाल हो गया.

ग्रामीण पुलिस मामले की जांच कर ही रही थी. लाश देख कर पुलिस यह अंदाजा नहीं लगा पा रही थी कि यह मामला हत्या का है या दर्शना के साथ कोई अनहोनी हुई है. क्योंकि लाश की स्थिति बहुत खराब थी. अब तक वह काफी हद तक सडग़ल चुकी थी. पुलिस ने घटनास्थल की काररवाई कर के लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया.

सीसीटीवी फुटेज

इसी बीच पुलिस को किले के पास एक होटल पर लगे सीसीटीवी कैमरे से एक फुटेज मिली, जिस में सुबह करीब साढ़े 8 बजे दर्शना राहुल के साथ बाइक से किले की ओर जाती दिखाई दी. पर दिन के करीब 10 बजे राहुल किले की ओर से लौटा तो बाइक पर अकेला ही था यानी लौटते समय दर्शना उस के साथ नहीं थी. इस से साफ हो गया कि दर्शना के साथ जो कुछ भी हुआ, वह किले के अंदर या उस के आसपास ही हुआ था.

एटीएम से आरोपी तक पहुंची पुलिस

जबकि राहुल जिंदा है और फोन बंद कर के फरार है. अब तक जो पुलिस को शक था, राहुल के इस तरह फोन बंद कर के लापता होने से विश्वास में बदलने लगा था. इसलिए पुलिस ने अपना पूरा ध्यान उसी पर केंद्रित कर दिया. पर उस का पता कैसे चले, क्योंकि उस ने अपना फोन तो बंद कर रखा था.

इस बीच पुलिस ने पता किया कि राहुल का खर्च कैसे चलता था. घर वाले पैसे देते थे तो कैश देते थे या बैंक के माध्यम से भेजते थे. पूछने पर घर वालों ने बताया था कि वह अपना खर्च चलाने के लिए प्राइवेट नौकरी करता था. उस का बैंक में अकाउंट है, कंपनी का वेतन उसी में आता था.

राहुल

पुलिस का सोचना था कि राहुल अगर जिंदा है तो उसे खर्च के लिए पैसों की जरूरत तो पड़ती ही होगी. खर्च के लिए वह एटीएम से पैसे जरूर निकालता होगा. पुलिस ने जब इस बारे में बैंक से पता किया तो पता चला कि राहुल ने अपने बैंक अकाउंट से एटीएम द्वारा दिल्ली से पैसे निकाले थे.

राहुल को दिल्ली में कैसे पकड़ा जाए, पुणे पुलिस इस बात पर विचार कर ही रही थी कि उस का फोन कुछ देर के लिए चालू हुआ. लेकिन थोड़ी हो देर में फिर स्विच औफ हो गया. पुलिस ने जब उस की लोकेशन पता की तो वह कोलकाता की थी. पता चला कि उस ने अपने एक रिश्तेदार को फोन कर के बात की थी.

उस रिश्तेदार से राहुल ने क्या बात की थी, जब पुलिस ने रिश्तेदार से पूछा तो उस ने बताया कि राहुल कह रहा था कि अब वह पुणे कभी लौट कर नहीं आएगा. क्योंकि उस का उस के एक दोस्त से झगड़ा हो गया है. इसलिए उस ने पुणे हमेशा हमेशा के लिए छोड़ दिया है.

राहुल की लोकेशन कोलकाता की मिली थी. इस से पहले कि पुलिस कोलकाता जाती या वहां की पुलिस से संपर्क करती, राहुल की लोकेशन मुंबई की मिली. फिर तो पुणे पुलिस ने राहुल को फोन की लोकेशन के आधार पर मुंबई के अंधेरी स्टेशन से 27 जून, 2023 की रात को गिरफ्तार कर लिया.

क्या इसी को कहते हैं प्यार

राहुल को पुणे ला कर अदालत में पेश कर के पूछताछ के लिए 3 जुलाई तक के लिए रिमांड पर लिया गया. पूछताछ में राहुल ने दर्शना की हत्या का अपना अपराध स्वीकार कर लिया. उस ने अपनी बाइक और वह कटर भी बरामद करा दिया था, जिस का उपयोग उस ने दर्शना की हत्या में किया था.

पुलिस कस्टडी में आरोपी राहुल

राहुल ने हत्या का अपना अपराध स्वीकार कर लिया तो एसपी (ग्रामीण) अमित गोयल की मौजूदगी में राहुल को पत्रकारों के सामने पेश किया गया, जहां उस ने दर्शना की हत्या की जो कहानी सुनाई, वह इस प्रकार थी—

साथसाथ पढ़ाई करते और उठतेबैठते राहुल हंडोरे को दर्शना से प्यार हो गया था. पर उस ने कभी अपने प्यार का इजहार दर्शना से किया नहीं था. क्योंकि उसे लगता था कि जब उचित समय आएगा, तब वह दर्शना से दिल की बात कह देगा. उस के लिए उचित समय तब आता, जब उस की कहीं नौकरी लग जाती.

दर्शना उस के मन की बात जानती थी. उसे भी राहुल पसंद था. पर उस के मन में यही था कि जब दोनों की नौकरी लग जाएगी, तब दोनों शादी कर लेंगे. दोस्ती दोनों में थी ही, वे एकदूसरे से हर बात उसी तरह शेयर करते थे, जैसे कोई अपने बौयफ्रेंड या गर्लफ्रेंड से करता है.

जब दर्शना की नौकरी लग गई और राहुल की नहीं लगी तो दर्शना राहुल से दूर होने लगी. घर वालों ने उस के लिए लड़का भी देखना शुरू कर दिया. जब इस बात की जानकारी राहुल को हुई तो उस ने दर्शना के सामने ही उस के मम्मीपापा से विवाह के लिए बात की.

दर्शना के मम्मीपापा ने उस के साथ दर्शना का विवाह करने से साफ मना कर दिया. इस के बाद उस ने दर्शना की ओर देखा तो दर्शना की नजरों में उसे पैरेंट्स की बात में सहमति नजर आई. इस तरह राहुल ने दर्शना के साथ विवाह का जो सपना सालों से संजोया था, वह टूट गया. इस से राहुल को बेइज्जती सी महसूस हुई.

वह वहां से तो चुपचाप चला आया, पर उस ने मन ही मन दर्शना से बदला लेने की ठान ली. उस ने तय कर लिया कि दर्शना उस की नहीं तो वह उसे किसी और की भी नहीं होने देगा. अब वह मौके की तलाश में था.

11 जून को पुणे में दर्शना को कोचिंग सेंटर वालों ने सम्मानित करने के लिए बुलाया तो राहुल भी वहां उस से मिलने गया. अगले दिन उस ने दर्शना के साथ वेल्हा तहसील स्थित रायगढ़ और सिंहगढ़ किला घूमने का आयोजन किया तो दर्शना उस के साथ जाने के लिए खुशीखुशी तैयार हो गई. क्योंकि अच्छा दोस्त होने की वजह से वह उस पर आंख मूंद कर विश्वास करती थी. यह बात दर्शना ने अपने दोस्तों और घर वालों को बता भी दी थी.

अगले दिन यानी 12 जून को दोनों सुबह राजगढ़ और सिंहगढ़ के किलों की ट्रैकिंग के लिए निकल गए. राजगढ़ के किले के अंदर एकांत पा कर राहुल ने एक बार फिर दर्शना से विवाह की बात छेड़ दी. तब दर्शना ने साफ कह दिया कि वह वहीं विवाह करेगी, जहां उस के घर वाले चाहेंगे.

राहुल तो ठान कर ही आया था कि उसे अपने अपमान का बदला लेना है, इसीलिए तो वह दर्शना की हत्या करने के लिए हथियार के रूप में कटर ले कर आया था. दर्शना के मना करते ही राहुल ने उस पर कटर से हमला बोल दिया और उस की हत्या (Murder Story) कर दी.

दर्शना की हत्या करने के बाद राहुल ने उस की लाश उठा कर पहाड़ी के नीचे तलहटी में फेंक दी. उसी के साथ उस के फोन, चश्मा, जूते आदि भी फेंक दिए और फिर वहां से अपने फोन को स्विच्ड औफ कर के अकेला ही लौट आया. कमरे पर बाइक खड़ी कर के वह फरार हो गया.

पूछताछ के बाद पुलिस ने 3 जुलाई, 2023 को राहुल को फिर अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Love story : लिव इन पार्टनर की हत्या कर सूटकेस में डाली लाश

Love story : किसी तरह से जब सूटकेस खुला, तब पुलिस टीम देख कर चौंक गई. क्योंकि उस में थोड़े से  कपड़ेलत्तों के बीच एक युवती का शव था. शव को किसी तरह से ठूंस कर सूटकेस को बंद किया गया था. उस के बाल और दुपट्टे का एक कोना सूटकेस की चेन में फंसा हुआ था.

सूटकेस में मिली लाश की खबर मुंबई पुलिस की क्राइम ब्रांच को दे दी गई. शव की हालत देख कर यह निश्चित था कि युवती की हत्या कर उसे ठिकाने लगाने की कोशिश की गई है.

कोरोना काल 2020 का समय चरम पर था. पूरे देश में लौकडाउन लग चुका था. सभी तरह के यातायात ठप थे. दुकानें, औफिस, छोटेबड़े कलकारखाने सब बंद कर दिए गए थे. सुनसान सड़कों पर केवल वही गाडिय़ां दौड़ रही थीं, जिन में खानेपीने और रोजमर्रा के जरूरी सामान, हरी सब्जियां, दूध, दवाइयां आदि होते थे या फिर सुरक्षा में जुटे पुलिसकर्मी और मरीजों को अस्पतालों तक पहुंचाने वाली एंबुलेंस आदि थी.

दूरदराज से रोजीरोटी के लिए आए शहरों और महानगरों में लाखों लोग हर हाल में जल्द से जल्द अपने घर जाना चाहते थे. उन्हीं दिनों मजदूरों के लिए मुंबई से अलगअलग राज्यों के मुख्य शहरों तक जाने वाली कुछ स्पैशल ट्रेनें चलाई गई थीं. मुंबई से ओडिशा तक जाने वाली खचाखच भरी एक स्पैशल ट्रेन में मनोज किसी तरह से सवार हो गया था.

उस ने बड़ी मुश्किल से बैठने के लिए सीट पर जगह बना ली थी. पसीने से लथपथ था. बोगी में काफी शोरगुल था. छोटे तौलिए से अपना मुंह पोंछने के बाद सीट के नीचे घुसाए अपने बैग से पानी की बोतल निकालने के लिए झुका ही था कि इसी बीच एक लड़की उसे डपटती हुई बोली, ”अरे! तुम मेरी सीट पर कैसे बैठ गए? यहां तो मैं बैठी थी.’’

”तुम कैसे बैठी थी. यहां पहले से 5 लोग थे. मैं किसी तरह से बैठ पाया हूं. तुम्हारा सामान कहां है?’’ मनोज बोला.

”मैं एक बैग सीट पर रख कर दूसरा बड़ा सामान लाने गई थी. तुम ने मेरे बैग को सीट के नीचे डाल दिया और मजे में बैठ गए. गलत बात है.’’ लड़की नाराजगी से बोली.

बैठने को ले कर बहस होते देख सामने बैठी एक महिला बोली, ”कोई बात नहीं, सभी को जाना है, तुम भी इसी में किसी तरह जगह बना लो. दिल में जगह होनी चाहिए, बस!’’

”कहां जगह है?’’ लड़की बोली.

तभी मनोज के बगल में बैठा आदमी बोल पड़ा, ”यहां बैठ जाना, मैं ट्रेन चलने पर ऊपर चला जाऊंगा.’’

”चलो, हो गया इंतजाम. लाओ दूसरा सामान, इसे सीट के नीचे डाल देता हूं.’’ मनोज बोला.

थोड़ी देर में ट्रेन चल पड़ी. लड़की को भी बैठने की जगह मिल गई थी. बगल में बैठे मनोज ने पूछा, ”तुम्हें कहां जाना है?’’

”आखिरी स्टेशन तक, ओडिशा!’’ लड़की बोली.

”वहां से?’’ मनोज दोबारा पूछा.

”वहां से अपने गांव…पता नहीं वहां जाने के लिए कोई सवारी मिलेगी या नहीं?’’ लड़की गांव का नाम बताती हुई वहां तक पहुंचने को ले कर चिंतित भी हो गई.

”चिंता की कोई बात नहीं है, कोई न कोई गाड़ी तो मिल ही जाएगी?’’ मनोज बोला.

इसी के साथ मनोज ने बताया कि वह ओडिशा के एक गांव का रहने वाला है, लेकिन बेंगलुरु में काम करने गया था. वहां मन लायक काम नहीं मिला, तब कुछ समय पहले ही काम की तलाश में मुंबई आया था, लेकिन वहां आ कर वह फंस गया था.

बातों बातों में दोनों अपनीअपनी समस्याएं बताने लगे. बोलचाल की भाषा और लहजे से मालूम हुआ कि दोनों एक ही प्रदेश के हैं, लेकिन उन के गांव अलगअलग हैं. उन के बीच दोस्ती हो गई. लड़की ने मनोज को अपना नाम प्रतिमा पवल किस्पट्टा बताया. उस ने कहा कि मुंबई में काफी समय से हाउसकीपिंग का काम कर रही है.

ट्रेन के सफर में हुई जानपहचान के दौरान ही उन्हें मालूम हुआ कि वे दोनों क्रिश्चियन समुदाय से हैं. उन्होंने अपनेअपने फोन में एकदूसरे का नंबर सेव कर लिया. साथ ही मनोज ने मुंबई में उस के लिए कोई काम तलाशने का आग्रह किया.

स्पैशल ट्रेन काफी देरी से ओडिशा की राजधानी पहुंच गई थी. वहां से दोनों अपनेअपने गांव चले गए. उन के बीच फोन पर बातें होती रहीं. उन्होंने फोन पर ही अपनी मोहब्बत का इजहार भी कर दिया था. कोरोना का दौर खत्म होने में काफी वक्त लग गया था. पूरी तरह से लौकडाउन खत्म होने के बाद ही प्रतिमा मुंबई काम के लिए साल 2022 के शुरुआती माह में लौट पाई थी. वहां उस की बहन अपने परिवार समेत पहले से रहती थी. उस की मदद से उसे हाउसकीपिंग का काम मिल गया था.

इस बीच उस की फोन पर मनोज से भी बात होती रहती थी. वह मनोज से प्यार करने लगी थी, लेकिन उसे ओडिशा में कोई ढंग का काम नहीं मिल पाया था. काम की तलाश में बेंगलरु चला गया था, लेकिन उसे वहां भी पहले जैसा काम नहीं मिल पाया था.

कारण बिल्डिंग कंस्ट्रशन का काम पूरी तरह से शुरू नहीं हो पाया था. इस बारे में उस ने प्रेमिका को फोन पर ही अपनी समस्याएं गिनाई थीं. एक दिन प्रतिमा ने उस से कहा, ”मनोज, अगर वहां रेगुलर काम नहीं मिल रहा है तो क्यों नहीं मुंबई आ जाते हो.’’

”कोरोना से पहले मुंबई गया था, लेकिन वहां भी काम नहीं मिला था. कंस्ट्रक्शन वाले उन कंपनियों के बंदों को लेते हैं, जिन का मुंबई में काम चल रहा हो.’’ मनोज ने अपनी समस्या बताई.  ”कोई बात नहीं, यहां की किसी कंपनी में तुम्हारा रजिस्ट्रैशन मैं करवाने का इंतजाम करती हूं.’’ प्रतिमा बोली.

”अगर ऐसा हो जाए, तब मुझे वहां काम मिल सकता है.’’ मनोज खुशी से बोला.

”तुम आज ही मुंबई के लिए ट्रेन पकड़ लो. यहां आते ही कोई न कोई काम मिल जाएगा. तुम्हें नहीं पता मुंबई एक मायावी नगरी है, यहां कोई भी भूखा नहीं सोता. मेहनत और ईमानदारी से काम करने पर दो पैसे जरूर मिलते हैं.’’ प्रतिमा समझाने लगी.

बीच में ही मनोज बोल पड़ा, ”ठीक है, ठीक है मैं कल की किसी ट्रेन से मुंबई के लिए निकल पड़ूंगा. अपना एड्रेस और लोकेशन भेज देना.’’ मनोज ने कहा.

कुछ ही देर में मनोज को प्रतिमा ने मुंबई का एड्रैस भेज दिया. उस ने तुरंत मुंबई जाने की तैयारी की और अगले रोज मुंबई जाने वाली ट्रेन की लोकल बोगी में सवार हो गया.

सूटकेस खुलते ही क्यों चौंकी पुलिस

बात बीते साल 2023 में नवंबर माह के 19 तारीख की है. मुंबई के कुर्ला इलाके में मेट्रो कंस्ट्रक्शन साइट पर गश्त करती पुलिस को एक लावारिस सूटकेस मिला. संदिग्ध सूटकेस में विस्फोटक होने की आशंका के साथ इस की सूचना निकट के थाने को दे दी गई.

सूचना पाते ही बम स्क्वायड पहुंच गया. सूटकेस के नंबर वाला लौक बड़ी मुश्किल से खुल पाया. उस की चेन भी भीतर पड़े कपड़े और महीन धागे से फंस गई थी. सूटकेस खुला तो उस के अंदर एक युवती की लाश निकली. क्राइम ब्रांच के सामने सब से पहला सवाल था कि लाश किस की है?

इस की तहकीकात के लिए क्राइम ब्रांच के डीसीपी राज तिलक रौशन ने अलगअलग टीमें बनाईं. लावारिस लाश भरा सूटकेस उस वक्त मिला था, जब पूरे देश की निगाहें क्रिकेट वल्र्ड कप के फाइनल मुकाबले पर टिकी थीं.

आरोपी तक कैसे पहुंची पुलिस

पुलिस की एक जांच टीम मौके पर लगे सीसीटीवी कैमरे और इंटेलीजेंस की मदद से तहकीकात में जुट गई, जबकि दूसरी टीम लाश की पहचान के लिए उस की शिनाख्त करने लगी.

मामला कुर्ला पुलिस स्टेशन में दर्ज कर लिया गया था. शव को राजावाड़ी अस्पताल ले जाया गया. वहां डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया. उस के बाद महिला के शव को पोस्टमार्टम के लिए अस्पताल भेज दिया गया.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट में महिला की गला दबा कर हत्या की बात सामने आई. उस आधार पर कुर्ला पुलिस धारा 302, 201 आईपीसी के तहत मामला दर्ज कर जांच शुरू कर दी गई. इस दौरान मृत महिला के गले में क्रास और शरीर पर कपड़ों से पुलिस ने उस के ईसाई समाज के मध्यमवर्गीय परिवार से होने का अंदाजा लगाया.

पुलिस की टीम ने मौके पर लगे हुए सीसीटीवी कैमरों और इंटेलीजेंस की मदद से आरोपी के बारे में पता लगाना शुरू किया. सूचना के आधार पर पुलिस ने आरोपी की तलाश शुरू की.

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अपराध शाखा के संयुक्त आयुक्त लखमी गौतम, अतिरिक्त पुलिस आयुक्त (अपराध) शशि कुमार मीना के आदेशानुसार एवं पुलिस उपायुक्त राज तिलक रौशन के मार्गदर्शन में गठित कुल 8 टीमें लावारिस लाश की गुत्थी सुलझाने में जुट गई थीं. सभी सीसीटीवी फुटेज की जांच करने लगीं. गुप्त खबरची के माध्यम से मृतका के पहचान की भी कोशिश होने लगी. उस की तसवीरें सोशल मीडिया पर अपलोड कर दी गईं. जल्द ही इस के नतीजे भी सामने आ गए. मृतका की बहन ने लाश की पहचान कर ली. मृतका की पहचान प्रतिमा पवल किस्पट्टा के रूप में हुई. उस की उम्र 25 साल के करीब थी.

उन से मिली जानकारी के अनुसार मृतका धारावी में किराए की एक खोली (कमरा) में रह रही थी. उस के साथ पति भी रहता था. पति मूलत: ओडिशा के एक गांव का रहने वाला था. उस के बारे में आसपास के लोगों से पूछताछ के बाद सिर्फ यही मालूम हो पाया कि वह गांव गया हुआ है. उस ने पड़ोसियों को बताया था कि उस की बहन बीमार है. लोगों ने पति का नाम मनोज बताया.

पड़ोसियों से मालूम हुआ कि पहले प्रतिमा अकेली ही थी, लेकिन वह बीते एक माह से मनोज उस के साथ रह रहा था. उस के बारे में पुलिस को यह भी मालूम हुआ कि वह 18 नवंबर, 2023 के बाद नहीं देखा गया था.

इस तहकीकात के साथसाथ सीसीटीवी खंगालने वाली दूसरी टीम को मनोज के कुछ सुराग हाथ लग गए थे. 18 नवंबर की रात को वह एक आटो धारावी से ले कर आसपास के कुछ इलाके में घूमता नजर आया था. आटो किसी रेलवे स्टेशन के रास्ते पर जाने के बजाए कुर्ला में एक कंस्ट्रक्शन साइट पर रुक गया था. उस के बाद उस का पता नहीं चल पाया था.

जांच की एक अन्य टीम मुंबई के रेलवे स्टेशनों पर भी जा पहुंची थी, उन में मुंबई का लोकमान्य तिलक टर्मिनस खास था. वहां पुलिस टीम को एक घबराया हुआ युवक दिख गया, जिस का हुलिया दूसरी जांच टीम से मिली जानकारी से मेल खाने वाला था. उस के पास पुलिस तुरंत जा पहुंची. पास आई पुलिस को देख कर युवक भागने लगा, जिसे पुलिस ने दौड़ कर पकड़ लिया.

पकड़ा गया युवक मनोज बारला था. उसे ठाणे पुलिस ला कर पूछताछ की गई. जब सूटकेस वाली लावारिस महिला की लाश के बारे में उस से पूछा गया, तब वह खुद को रोक नहीं पाया. रोने लगा. एक पुलिसकर्मी ने उसे पीने के लिए पानी दिया. कुछ सेकेंड बाद पानी पी कर जब वह सामान्य हुआ, तब उस से दोबारा पूछताछ की जाने लगी. फिर उस ने लाश के साथ अपने संबंध के बारे में जो कुछ बताया, वह काफी दिल दहला देने वाला था.

दरअसल, यह अभावग्रस्त जिंदगी से तंग आ चुके प्रेमियों की कहानी थी, जो बीते एक माह से बिना शादी किए रह रहे थे. इसे पुलिस रिकौर्ड में लिवइन रिलेशन दर्ज कर लिया गया. उन का प्रेम खत्म हो चुका था और प्रेमी सलाखों के पीछे जाने के काफी करीब था. उस ने जो आगे की कहानी बताई, वह इस प्रकार निकली—

मनोज ने पुलिस को बताया कि मुझे दुख है कि मैं ने अपने हाथों से अपनी ( Love story ) प्रेमिका प्रतिमा पवल किस्पट्टा का गला घोंट दिया. उसी प्रेमिका को मार डाला, जिस ने मुझ से प्रेम किया और मुझे नौकरी दिलाने के लिए ओडिशा से यहां बुलाया था.

उस ने बताया कि प्रतिमा के कहने पर ही वह मुंबई में आया था. मुंबई में स्थित वड़ापाव की एक मशहूर दुकान पर काम करना शुरू कर दिया था. वह एमजी नगर रोड, धारावी में प्रेमिका प्रतिमा के साथ ही रहने लगा था. उन्होंने शादी नहीं की थी, लेकिन प्रतिमा उसे अपना पति बना चुकी थी. इस तरह से उन के लिवइन रिलेशनशिप की शुरुआत हो गई थी.

उन्होंने साथ रहते हुए भविष्य के सुनहरे सपने देखे थे. किंतु वे आर्थिक तंगी से भी गुजर रहे थे. पैसे की कमी को ले कर उन के बीच कभीकभार बहस भी हो जाती थी.

मनोज शिकायती लहजे में बताने लगा, ”सर, प्रतिमा मेरी प्रेमिका जरूर थी, पैसा भी कमाती थी. मैं जब भी अपने खर्चे के लिए मांगता था, तब किचकिच करने लगती थी. इसी बात पर मेरी उस से लड़ाई हो जाती थी. वह बारबार कहती थी कि अपना खर्च कम करो, अपनी कमाई के पैसे लाओ, फिर मुझ से मांगना.’’

इसी के साथ मनोज ने प्रतिमा के चरित्र पर भी शंका के लहजे में बोला, ”सर, प्रतिमा का कोई यार भी था. उस से बहुत देर तक वह फोन पर बातें करती थी. मैं सब समझता हूं सर! एक समय में कभी वह मुझ से भी फोन पर देरदेर तक बातें करती थी…’’

हत्या की बताई चौंकाने वाली वजह

इस शिकायती और संदेह वाली बातों पर पुलिस ने पूछा, ”तुम ने इस बारे में कभी पता लगाने की कोशिश की कि उस के पास पैसे हैं या नहीं? हो सकता है उस के पास उस वक्त पैसे नहीं हों, जब तुम मांगते होगे.’’

”नहीं सर, उस के पास पैसे होते थे, लेकिन नहीं देती थी.’’ मनोज बोला.

”चलो मान लिया, उस के पास पैसे होते थे, लेकिन उसी ने तुम्हें काम पर भी रखवाया था. वहां से पैसे मिले होंगे…उस का तुम ने क्या किया?’’ पुलिस ने पूछा.

”एक माह के ही मिले थे, सारे पैसे मैं ने अपने घर भेज दिए थे.’’ मनोज बोला.

”प्रतिमा को कुछ भी नहीं दिया?’’

”उसे क्यों देता, उसे भी तो पैसे मिले थे?’’ मनोज बोला.

”तुम्हें उस ने साथ रखा था, पति की तरह रहते थे. तुम्हारी भी तो घर चलाने की जिम्मेदारी थी.’’ पुलिस ने समझाया.

”लेकिन सर, वह अपने पैसे दूसरों पर खर्च करती थी, मुझे मालूम था वह कोई रिश्तेदार नहीं था. उस का एक प्रेमी था.’’ मनोज फिर प्रेमिका के चरित्र पर शंका के लहजे में बोला.

”इस का तुम ने कुछ पता किया या फिर यूं ही संदेह करते रहे?’’

”मैं क्या उस के बारे में पूछता. एक बार कुछ बोलने वाला ही था कि वह चीखने लगी… ताने मारने लगी… मुझे ही भलाबुरा कहने लगी थी.’’

”मुझे तो मालूम हुआ है कि प्रतिमा की कुछ माह से नौकरी छूट गई थी.’’

”हां, इस की जिम्मेदार भी वही थी. झगड़ालू स्वाभाव था. अपने मालिक से बातबात पर झगड़ पड़ती थी. उसे नौकरी से निकाल दिया था.’’ मनोज ने बताया.

”हो सकता है, दूसरे काम की तलाश में लोगों से फोन पर बात करती हो और तुम उसी को ले कर शक करने लगे हो.’’

”मैं इतना बुद्धू नहीं हूं सर, जो किसी लड़की के फोन पर हंस हंस कर बात करने का मतलब नहीं समझ पाऊं.’’ मनोज बोला.

”खैर, छोड़ो इन बातों को, सचसच बताओ 18 नवंबर, 2023 को क्या हुआ था?’’ पुलिस अब असली मुद्दे पर आ गई थी.

”असल में 18 तारीख को उस ने मुझ से कमरे का किराया देने के लिए पैसे मांगे. मेरे पास पैसे नहीं थे. इस पर उस ने मुझे दुकान से एडवांस मांगने को कहा, जो मुझ से नहीं हो सकता था. कारण, वहां से पहले ही एडवांस ले चुका था.’’

”फिर तुम ने क्या किया?’’

”मैं क्या करता, पैसे मेरे पास नहीं थे. इस बात को ले कर काफी बहस होने लगी. मैं परेशान हो गया. उस ने मुझे गालियां देनी शुरू कर दीं. दोपहर से हमें झगड़ते हुए शाम घिर आई. मैंं गुस्से से घर से बाहर निकल पड़ा. कुछ समय में ही वापस लौट आया. आते ही वह बरस पड़ी, ”आ गए, आटा लाए?’’

इस पर मैं ने जैसे ही कहा कि मेरे पास पैसे नहीं है तो वह एक बार फिर बरस पड़ी. गालियां देती हुई बोली, ”नहीं है तो भूखे रहो… मरो यहीं, मैं चली.’’

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इत्मीनान से रखी सूटकेस में लाश

मनोज ने आगे बताया, ”तब तक रात के साढ़े 9 बज चुके थे. प्रतिमा ने अपना बैग उठाया और पैर पटकती हुई घर से जाने लगी. मैं ने तुरंत उस का हाथ खींच लिया, जिस से उस का संतुलन बिगड़ गया और गिरने को हो आई. उस के बाद प्रतिमा और भी गुस्से में आ गई. आंखें लाल करती हुई गालियां देने लगी. मेरे खानदान तक को कोसने लगी.’’

मनोज ने आगे बताया, ”असल में उस का हाथ खींचने से चुन्नी उस के गले में फंस गई थी. इस कारण उस ने समझा कि मैं ने उस का गला जानबूझ कर कसने की कोशिश की है. गालियां देती हुई  मुझ पर आरोप लगा दिया कि मैं उसे गला कस कर मारना चाहता हूं.

”यह बात मेरे दिमाग में बैठ गई और उस की हत्या की बात कीड़े की तरह पलक झपकते ही दिमाग में कुलबुलाने लगी. फिर क्या था, ऐसा हुआ कि मानो मैं ने अपना होश खो दिया हो…

”मेरा गुस्सा चरम पर पहुंच चुका था. मैं ने 2-3 जोरदार थप्पड़ जड़ दिया. थप्पड़ खा कर वह जमीन पर गिर गई. तिलमलाती हुई वह उठने लगी, लेकिन जब तक वह उठ पाती, मैं ने दोनों हाथों से उस का गला दबा दिया. अपनी भाषा में गाली दी और हाथों की पकड़ मजबूत कर दी.

”कुछ सेकेंड बाद ही दुबलीपतली प्रतिमा बेजान हो चुकी थी. उस की चीख भी बंद हो चुकी थी. गुस्से में आ कर उस की हत्या तो हो गई, लेकिन उस के बाद मैं घबरा गया.’’

”और इस तरह तुम ने अपनी प्रेमिका (  Love story ) की हत्या कर डाली. उस के बाद तूने क्या किया?’’ जांच अधिकारी ने पूछा.

”रात के 10 बजने को हो आए थे. मैं अपने हाथों से प्रतिमा (Love story) की हत्या से घबरा गया था. थोड़ी देर तक उस के पास बैठा सोचता रहा, उस की मौत का मातम मनाता रहा, लेकिन पकड़े जाने, कड़ी सजा होने…जैसे खयाल मन में आने लगे. इसी बीच मेरी नजर घर में रखे उसी के एक बड़े सूटकेस पर गई. मैं ने झट उसे खाली किया और कपड़ों की तह के बीच जैसेतैसे कर के उस की लाश को ठूंस दिया.

”उस सूटकेस को ले कर कमरे पर से निकल गया. उस वक्त रात के करीब पौने 12 हो चुके थे. सायन से आटोरिक्शा लिया और कुर्ला लोकमान्य तिलक टर्मिनस जा पहुंचा. मैं सूटकेस को रेलवे स्टेशन के किसी इलाके में छोडऩा चाहता था, लेकिन लोगों की भीड़ देख कर ऐसा नहीं कर पाया. वापस लौट आया…’’ मनोज बोलतेबोलते रुक गया.

”आगे बताओ,’’ जांच अधिकारी ने कहा.

”उस के बाद मैं और भी घबरा गया क्योंकि आटोरिक्शा वाला बारबार मुझ से कह रहा था कि साहब जल्दी उतरो स्टेशन आ गया है. मैं पशोपेश में था कि क्या करना है और क्या नहीं! आखिरकार मैं ने आटो वहीं छोड़ दिया.

”वापस कमरे पर जाने के बारे में सोचते हुए दूसरा आटोरिक्शा लिया और सीएसटी पुल के नीचे सार्वजनिक शौचालय के सामने चेंबूर सांताक्रुज चैनल कुर्ला पश्चिम में एक जगह पर आया. वहां मेट्रो का काम चल रहा था. रात का समय था. एकदम सुनसान. वह जगह मुझे उचित लगी.’’

मनोज ने आगे बताया, ”मैं ने आटो वहीं छोड़ दिया. उस के जाने के बाद इधरउधर देखा. कहीं कोई नजर नहीं आ रहा था. वहां मेट्रो का काम चल रहा था. आम लोगों को जाने से रोकने के लिए कई बैरिकेड्स लगे थे. मैं ने तुरंत एक बैरिकेड को थोड़ा खिसका कर सूटकेस को अंदर सरका दिया. कुछ देर वहां रुकने के बाद मैं आगे बढ़ गया और आटो ले कर सायन धारावी लौट आया.’’

आगे की जानकारी देता हुआ मनोज बारला बोला, ”मैं कमरे पर जा कर फिर गहरी नींद में सो गया. अगले रोज 19 नवंबर को देर से नींद खुली. फटाफट तैयार हुआ और सुबह 11 बजे के करीब ओडिशा जाने के लिए रेलवे स्टेशन चला आया, किंतु ट्रेन पकडऩे से पहले ही क्राइम ब्रांच द्वारा पकड़ लिया गया.’’

पुलिस ने मनोज बारला के इस बयान को दर्ज कर लिया गया. आगे की काररवाई के बाद उसे गिरफ्तार कर मजिस्ट्रैट के सामने हाजिर कर दिया गया. वहां से जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

दीवानगी की हद में मंगेतर बना दरिंदा

अपनी रोजमर्रा की रफ्तार से चल रहे कोटा शहर का शुक्रवार 8 दिसंबर का दिन बेहद सर्द था.  एक दिन पहले बारिश हो कर हटी थी, जिस से ठिठुरन में खासा इजाफा हो गया था. बादलों की वजह से सूरज सुबह से ही ओझल था. लिहाजा पूरा शहर धुंधलके की गिरफ्त में था. चंबल नदी के करीब होने के कारण शहर के स्टेशन का इलाका कुछ ज्यादा ही सर्द था. लगभग आधा दरजन छोटीमोटी बस्तियों में बंटे इस इलाके में तकरीबन 20 हजार की आबादी वाला क्षेत्र नेहरू नगर कहलाता है.

मिलीजुली बिरादरी वालों की इस बस्ती में ज्यादातर निम्नमध्य वर्ग के दिहाड़ी कामकाजी लोग रहते हैं. बस्ती के करीब से अच्छीखासी चौड़ाई में फैला एक नाला गुजरता है. इसलिए इस की तरफ से गुजरने वाला करीब एक फर्लांग का फासला कुछ संकरा हो जाता है.

इसी बस्ती की रहने वाली शाहेनूर अपनी छोटी बहन इशिका के साथ कोचिंग के लिए जा रही थी. हाथों में किताबें थामे दोनों बहनें चलतेचलते आपस में बातचीत करती जा रही थीं. जैसे ही वे नेहरू नगर बस्ती से निकलने वाले रास्ते की तरफ कदम बढ़ाने को हुईं, शाहेनूर एकाएक ठिठक  कर रह गई.

किसी अनचाहे शख्स के अंदेशे में उस ने पलट कर पीछे देखा. पीछे एक बाइक सवार को देख कर उस की आंखों में खौफ की छाया तैर गई क्योंकि वह उस युवक को जानती थी. शाहेनूर ने तुरंत अपनी छोटी बहन का हाथ जोर से पकड़ा और घसीटते हुए कहा, ‘‘जरा तेज कदम बढ़ाओ.’’

इशिका ने बहन को खौफजदा पाया तो फौरन पलट कर पीछे देखा. वह भी पूरा माजरा समझ गई. इस के बाद दोनों बहनें फुरती से तेजतेज चलने लगीं.

दाढ़ीमूंछ और सख्त चेहरे वाला वह युवक साबिर था, जो शाहेनूर का मंगेतर था. पर किसी वजह से उस से सगाई टूट गई थी. उस युवक को देख कर दोनों बहनों की चाल में लड़खड़ाहट आ गई थी. आशंका को भांप कर शाहेनूर ने मोबाइल निकाल कर किसी का नंबर मिलाया.

वह मोबाइल पर बात कर पाती, उस के पहले ही साबिर उस के पास पहुंच गया. उस ने मोबाइल वाला हाथ झटकते हुए शाहेनूर का गला दबोच लिया. गले पर कसती सख्त हाथों की गिरफ्त से छूटने के लिए शाहेनूर ने जैसे ही हाथ चलाने की कोशिश की, साबिर ने जेब में रखा मिर्च पाउडर उस के ऊपर फेंक दिया.

चीखते हुए शाहेनूर ने एक हाथ से आंखें मलने लगी और दूसरे हाथ से छोटी बहन इशिका का हाथ पकड़ने की कोशिश की. इशिका भी बहन के लिए चीखने लगी. तभी साबिर ने चाकू निकाल कर शाहेनूर पर ताबड़तोड़ वार करने शुरू कर दिए.

बदहवास इशिका ने चिल्लाने की कोशिश की, लेकिन उस के गले से आवाज निकलने के बजाय वह जड़ हो कर रह गई. तब तक दरिंदगी पर उतारू साबिर शाहेनूर पर ताबड़तोड़ वार करता हुआ उसे छलनी कर चुका था. उस की दर्दनाक चीखों से आसपास का इलाका गूंज रहा था और उस के शरीर से फव्वारे की मानिंद छूटता खून जमीन को सुर्ख कर रहा था.

उधर से गुजरते लोगों ने यह खौफनाक नजारा देखा भी, लेकिन बीचबचाव करने की हिम्मत कोई नहीं कर सका. सभी मुंह फेर कर चलते बने. इशिका ने राहगीरों को मदद के लिए पुकार भी लगाई, लेकिन उस की कोशिश नाकाम रही. नतीजतन उस ने वापस अपने घर की तरफ गली में दौड़ लगा दी. घर पहुंच कर उस ने बहन पर हमले वाली बात घर वालों को बता दी.  यह खबर सुन कर घर वालों की चीख निकल गई.

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वे रोतेबिलखते इशिका के साथ चल दिए. करीब 5 मिनट बाद वे घटनास्थल पर पहुंच गए. शाहेनूर की खून से लथपथ लाश वहां पड़ी थी. घर वाले दहाड़ें मार कर रोने लगे. कुछ लोग वहां जमा हो चुके थे. खबर आग की तरह इलाके में फैली तो भीड़ का सैलाब उमड़ पड़ा.

किसी ने इस वारदात की खबर फोन द्वारा भीममंडी थाने को दी तो कुछ ही देर में थानाप्रभारी रामखिलाड़ी मीणा पुलिस बल के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. मृतका की छोटी बहन इशिका ने सारी बात पुलिस को बता दी. इस से पुलिस को पता चल गया कि इस का हत्यारा साबिर है. घटनास्थल पर उस की मोटरसाइकिल भी खड़ी थी.

पुलिस ने घटनास्थल का निरीक्षण किया तो गली में दूर तक खून सने पावों के निशान मिले, जो निश्चित रूप से भागते हुए साबिर के थे. थानाप्रभारी ने इस मामले की जानकारी वरिष्ठ अधिकारियों को दे दी और खुद वहां मौजूद लोगों से बातें करने लगे. अभी यह सब काररवाई चल ही रही थी कि एसपी अंशुमान भोमिया, एडिशनल एसपी अनंत कुमार और सीओ शिवभगवान गोदारा समेत अन्य पुलिस अधिकारी घटनास्थल पर पहुंच गए.

घटनास्थल की जरूरी काररवाई कर के पुलिस ने शव को पोस्टमार्टम के लिए अस्पताल भिजवा दिया. दिनदहाड़े हुई हत्या के बाद लोगों में डर बैठ गया. एसपी अंशुमान भोमिया ने सीओ शिवभगवान गोदारा के नेतृत्व में एक पुलिस टीम बनाई, जिस में थानाप्रभारी रामखिलाड़ी मीणा सहित अन्य तेजतर्रार पुलिसकर्मियों को शामिल किया.

टीम ने आरोपी साबिर की संभावित जगहों पर तलाश की, पर कोई जानकारी नहीं मिली. उस के बाद मुखबिर की सूचना पर साबिर को मुरगीफार्म के पास जंगल से दबोच लिया गया. वह चंबल नदी क्षेत्र के घने जंगल में छिपने की कोशिश कर रहा था. अगर एक बार वह बीहड़ में पहुंच जाता तो उस का गिरफ्त में आना मुश्किल था.

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शाहेनूर की मां शमीम बानो

छाबड़ा में तैनात शाहेनूर के पिता असलम खान को हादसे की खबर कर दी गई, लेकिन तब तक वह कोटा नहीं पहुंचे थे. शव इस कदर क्षतविक्षत था कि एक पल के लिए तो डाक्टर भी स्तब्ध रह गए. उन के मुंह से निकले बिना नहीं रहा कि लगता है हमलावर साइकोपेथी का शिकार था और वह अपना दिमागी संतुलन पूरी तरह खो चुका था.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट में शाहेनूर के शरीर पर 2 दरजन से ज्यादा घाव मिले थे. पोस्टमार्टम की रिपोर्ट के मुताबिक मौत की वजह वे घातक वार बने, जिन्होंने दाएं फेफड़े और लीवर को पंक्चर कर दिया था. चाकू के गहरे वार पीठ, सीना, हाथ सिर, मुंह और आंखों सहित हर जगह पाए गए. चाकू का हर वार 2 से 3 सेंटीमीटर चौड़ा था. डाक्टरों के मुताबिक हर वार पूरी ताकत से किया गया था.

शुरुआती पूछताछ में शाहेनूर के मामा फिरोज अहमद और मां शमीम बानो ने पुलिस को बताया कि पिछले साल अगस्त में शाहेनूर उर्फ शीनू की मंगनी साबिर हुसैन से की गई थी. साबिर फेब्रिकेशन का काम करता था. इस के बाद साबिर का उन के घर आनाजाना शुरू हो गया.

इसी दौरान उन्हें साबिर के चालचलन के बारे में कई जानकारियां मिलीं. पता चला कि साबिर न सिर्फ अव्वल दरजे का नशेड़ी है, बल्कि उस की सोहबत जरायमपेशा किस्म के लोगों से भी है. शमीम बानो ने कहा, ‘तब हम ने घर बैठ कर आपस में मशविरा कर के इस नतीजे पर पहुंचे कि साबिर से बेटी का रिश्ता कायम रखने का मतलब शाहेनूर सरीखी संजीदा लड़की का भविष्य दांव पर लगाना होगा. नतीजतन रिश्ता तोड़ना ही बेहतर समझा गया. काफी सोचनेसमझने के बाद करीब 6 महीने पहले हम ने साबिर से रिश्ता तोड़ दिया.’

साबिर असलम खान के घर आनेजाने का आदी हो चुका था और शाहेनूर से प्यार भी करने लगा था. वह शाहेनूर से शादी करना चाहता था. शमीम बानो का कहना था कि मंगनी तोड़ने से साबिर इस हद तक बौखला गया कि एक दिन वह तूफान मचाता हुआ घर पहुंच गया. उन की मौजूदगी में शाहेनूर के साथ मारपीट कर बैठा.

शाहेनूर के पिता असलम उन दिनों घर पर नहीं थे. वह छाबड़ा में अपनी नौकरी पर थे. असलम छोटीछोटी बातों पर बहुत गुस्सा करने वाले इंसान थे. बेटी की पिटाई वाली बात उन्हें इसलिए नहीं बताई गई कि वह गुस्से में आगबबूला हो कर कोई अनर्थ न कर बैठें या कहीं कोई बवाल ना मच जाए.

इस के बाद यह बात आईगई हो गई. साबिर का भी असलम के यहां आनाजाना एक तरह से बंद हो गया. पर वह अकसर शाहेनूर के घर के आसपास की गलियों में घूमता दिखाई देता था.

बाद में जब असलम को बात पता चली तो उन्होंने पुलिस में जाना इसलिए जरूरी नहीं समझा, क्योंकि खामखाह बिरादरी में बदनामी होती. शाहेनूर से दूरी बनाने के बजाय साबिर उसे फोन पर परेशान करने लगा. शाहेनृर ने यह बात घर वालों को बताई तो घर वालों ने उस से यह कह दिया कि वह साबिर से बात न करे.

साबिर की हिम्मत दिनोंदिन बढ़ती जा रही थी. शाहेनूर 12वीं कक्षा में पढ़ रही थी. उस ने ऐच्छिक विषय उर्दू ले रखा था, इस की वजह से वह 3 बजे के करीब एक इंस्ट्टीयूट में उर्दू की पढ़ाई करने जाती थी. साबिर जब शाहेनूर को रास्ते में परेशान करने लगा तो घर का कोई न कोई सदस्य उसे कोचिंग तक छोड़ने जाने लगा.

4 बेटियों के पिता असलम खान कोटा से तकरीबन 100 किलोमीटर दूर बारां जिले के छाबड़ा कस्बे में नौकरी करते थे. वह थर्मल में बतौर तकनीशियन तैनात थे. शाहेनूर और इशिका के अलावा उन की 2 बेटियां और थीं, जो काफी छोटी थीं. नौकरी के लिहाज से असलम छाबड़ा में ही रहते थे. लेकिन हफ्तापंद्रह दिन में कोटा में अपने घर आते रहते थे.

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पुलिस ने जिस वक्त चंबल के बीहड़ों से साबिर को गिरफ्तार किया था. उस की कलाइयां लहूलुहान थीं और वो नशे में धुत था. तलाशी में पुलिस ने उसकी जेब से पाउडर सरीखा जहरीला पदार्थ बरामद किया था. पूछताछ में उस ने कबूल किया कि आत्महत्या करने की कोशिश में उस ने अपनी कलाई की नसें काटने की कोशिश की थी. जहर की पुडि़या भी उस ने खुदकुशी की खातिर ही अपने पास रखी थी. लेकिन वह उसे इस्तेमाल करता, इस से पहले ही पुलिस ने उसे पकड़ लिया.

साबिर ने पुलिस को बताया कि वह पहले अपने परिवार के साथ बोरखेड़ा में रहता था. लेकिन पिछले कुछ दिनों से खेडली इलाके में कमरा किराए  पर ले कर अकेला रह रहा था. पूछताछ के दौरान वह हर सवाल पर ठहाके मार कर हंस रहा था.

सुबह होने पर जब उस का नशा उतरा तो उस ने रोना शुरू कर दिया. शायद उसे अपने किए पर पछतावा हो रहा था. पुलिस ने उसे भादंवि की धारा 302 के तहत गिरफ्तार कर सोमवार 12 दिसंबर को कोर्ट में पेश कर 2 दिनों के रिमांड पर ले लिया.

13 दिसंबर को पुलिस अधिकारियों की मौजूदगी में पुलिस ने शाहेनूर की हत्या के बारे में पूछताछ की तो उस ने बताया कि उस का दिल तो उसी दिन टूट गया था, जिस दिन शाहेनूर से उस का रिश्ता टूटा था. वह उसे दिलोजान से चाहता था, पर उस ने मेरी मोहब्बत को तरजीह नहीं दी.

साबिर ने बताया कि उसे मारने के बाद वह खुद भी मर जाना चाहता था. इसलिए उस ने अपनी कलाई की नसें काटीं. वह जंगल में जहर खा कर मर जाता, लेकिन पुलिस ने उस की मंशा पूरी नहीं होने दी.

पूछताछ के बाद पुलिस ने उसे न्यायालय में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. मामले की जांच थानाप्रभारी रामखिलाड़ी मीणा कर रहे थे.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

प्रेमी को पाने के लिए रची अनूठी साजिश

28 नवंबर, 2017 की सुबह 8 बजे के करीब सुधाकर किसी काम से बाहर गया हुआ था. स्वाति बच्चों  को स्कूल के लिए तैयार कर के उन के लंच बौक्स में खाना रख रही थी. उसे खुद भी अस्पताल जाना था, इसलिए वह सारे काम जल्दी जल्दी निपटा रही थी. जब वह लंच बौक्स तैयार कर के बच्चों के बैग में रख रही थी, तभी उस के मोबाइल फोन की घंटी बजी.

स्वाति ने मोबाइल उठा कर स्क्रीन पर नजर डाली तो डिसप्ले हो रहा नंबर बिना नाम का था. मतलब फोन किसी अपरिचित का था. उस ने फोन रिसीव कर के जैसे ही हैलो कहा, दूसरी ओर से किसी पुरुष की दमदार आवाज आई, ‘‘यह नंबर सुधाकर रेड्डी का है?’’

‘‘जी, यह उन्हीं का नंबर है. मैं उन की पत्नी बोल रही हूं. आप कौन हैं और उन से क्या काम है? वह अभी बाहर गए हुए हैं. घर आते ही उन्हें बता दूंगी.’’ स्वाति ने कहा.

‘‘बताने की कोई जरूरत नहीं है. वह मेरे परिचितों में हैं.’’ दूसरी ओर से हड़बड़ाई आवाज में कहा गया.

‘‘फिर फोन क्यों किया?’’ स्वाति ने पूछा.

‘‘भाभीजी, कालोपुर कालोनी के पास किसी ने सुधाकर पर तेजाब फेंक कर उसे घायल कर दिया है.’’

‘‘क्याऽऽ?’’ सुन कर स्वाति घबरा गई. फोन काट कर वह कालोपुर कालोनी की ओर भागी. वहां पहुंच कर उस ने देखा तो पति सड़क किनारे घायल पड़ा तड़प रहा था. उस ने फोन कर के यह जानकारी सास को दी. इस के बाद तो घर में ही नहीं, रिश्तेदारी में भी कोहराम मच गया.

थोड़ी देर में सभी वहां पहुंच गए. सुधाकर को जिला अस्पताल ले जाया गया, वहां के डाक्टरों ने उस की हालत देख कर हैदराबाद रेफर कर दिया. स्वाति पति सुधाकर को ले कर हैदराबाद पहुंची, जहां उसे जाने माने अपोलो अस्पताल में भरती कराया गया. दूसरी ओर सुधाकर के भाई ने थाना नगरकुरनूल में उस पर हुए हमले की अज्ञात के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करा दी.

सुधाकर रेड्डी का चेहरा और सीना तेजाब से बुरी तरह से झुलस गया था. मुकदमा दर्ज होने के बाद पुलिस उस का बयान लेने अस्पताल पहुंची. लेकिन वह बयान देने की स्थिति में नहीं था.

पुलिस अपनी जरूरी काररवाई कर के चली गई. पुलिस के जाने के बाद स्वाति ने सासससुर को फोन कर के बताया कि डाक्टरों ने चेहरे के दागों को मिटाने के लिए उस के चेहरे की प्लास्टिक सर्जरी करने की सलाह दी है. इस के लिए घर वालों ने हामी भर दी. उन्होंने कहा कि जैसा डाक्टर कहते हैं, वह करे. सर्जरी में जो भी खर्च आएगा, वे देने को तैयार हैं. पैसे की कोई चिंता न करे, बस सुधाकर किसी भी तरह स्वस्थ हो जाए.

सुधाकर का चेहरा तेजाब से बुरी तरह विकृत हो गया था और सूजा हुआ था. एकबारगी देख कर उसे कोई भी नहीं पहचान सकता था. लेकिन जब से वह इलाज के लिए अस्पताल में भरती हुआ था, तब से अजीब अजीब हरकतें कर रहा था. नाते रिश्तेदार उसे देखने आ रहे थे. लेकिन वह उन में से बहुतों को पहचान नहीं पा रहा था. यह देख कर घर वाले और रिश्तेदार हैरान थे कि उस की याद्दाश्त को क्या हो गया है? वह किसी को पहचान क्यों नहीं पा रहा है? कहीं सुधाकर की जगह वह कोई बहुरूपिया तो नहीं है.

आखिर घर वालों ने यह सोच कर संतोष कर लिया कि यह उन का वहम भी हो सकता है. संभव है, इस हादसे का उस के दिमाग पर गहरा असर हुआ हो, जिस की वजह से वह अजीबगरीब हरकतें कर रहा है. इस के बाद उन लोगों ने उस की हरकतों पर ध्यान देना बंद कर दिया. कोई रिश्तेदार कुछ कहता तो वह कह देते कि हादसे की वजह से शायद इस की याद्दाश्त चली गई है. स्वाति हर समय अस्पताल में पति के साथ मौजूद रहती थी.

8 दिसंबर, 2017 को स्वाति सुधाकर की देखरेख के लिए एक रिश्तेदार को छोड़ कर किसी काम के लिए बाहर चली गई. रिश्तेदार भरोसे का था, इसलिए वह निश्चिंत थी. मरीजों को खाना अस्पताल से ही मिलता था और रोजाना अलगअलग खाना दिया जाता था. उस दिन नाश्ते में मटन सूप था. खाना देने वाला बौय मटन सूप ले कर आया और उसे सुधाकर को पीने को दिया तो वह नाराज हो कर बोला, ‘‘तुम्हें पता होना चाहिए कि मैं शुद्ध शाकाहारी हूं. मांस मछली खाने की कौन कहे, मैं छूता तक नहीं.’’

सुधाकर की यह बात सुन कर रिश्तेदार चौंका. वह सोच में पड़ गया कि ऐसा कैसे हो सकता है. सुधाकर तो मांसाहारी खाना खाता था. मटन सूप तो उसे खूब पसंद था. फिर उस ने मना क्यों किया. उस की अजीब हरकतों को ले कर सब वैसे ही परेशान थे, इस बात ने उन की परेशानी और बढ़ा दी.

अस्पताल में मटन सूप न पीने पर हुआ शक

यह बात उस रिश्तेदार के दिमाग में खटकी लेकिन उस ने कुछ कहा नहीं. थोड़ी देर में स्वाति आई तो उस ने यह बात उस से भी नहीं कही. बिना कुछ कहे ही वह चला गया. उस रिश्तेदार ने यह बात स्वाति से भले ही नहीं कही, लेकिन सुधाकर के पिता को जरूर बता दी. साथ ही उन से पूछा भी, ‘‘सुधाकर तो मांस मछली का बड़ा शौकीन था, उस ने यह सब खाना कब से छोड़ दिया था? अस्पताल में उसे मटन सूप पीने को दिया गया तो वह चिल्लाने लगा कि वह मांसाहारी नहीं शाकाहारी है.’’

इस बात ने सुधाकर के पिता को भी हैरान कर दिया. वह भी सोच में पड़ गए. इस की वजह थी सुधाकर की अजीब हरकतें. वह सोच ही रहे थे कि क्या करें, तभी उसी दिन दोपहर किसी ने फोन कर के उन्हें जो बताया, उसे सुन कर वह हैरान रह गए. सहसा उन्हें विश्वास ही नहीं हुआ.

उस आदमी ने उन्हें बताया कि अस्पताल में भरती जिस आदमी के इलाज पर वह लाखों रुपए खर्च कर रहे हैं, वह उन का बेटा एम. सुधाकर रेड्डी नहीं, बल्कि एक तरह से उन का दुश्मन है. वह सुधाकर की हत्या कर के उस की जगह लेने की कोशिश कर रहा है.

यह जान कर सुधाकर के पिता परेशान हो उठे कि यह हो क्या रहा है, ऐसा कैसे हो सकता है. कोई आदमी किसी की हत्या कर के उस की जगह कैसे ले सकता है. यह सब सोच कर वह चिंतित हो उठे. इस तरह उन के सामने 2 चीजें आ गईं, जिन से उन्हें शंका हुई.

सुधाकर जब से अस्पताल में भरती हुआ था, तब से उस का बातव्यवहार, चालचलन और हावभाव काफी बदला बदला सा लग रहा था. कभीकभी घर वालों को उस पर शक तो होता था कि वह उन का बेटा सुधाकर नहीं है, लेकिन उन के पास कोई सबूत नहीं था. लेकिन जब ये 2 बातें उन के सामने आईं तो उन का शक यकीन में बदल गया.

उन्होंने यह बात पत्नी को बताई तो पत्नी ने कहा, ‘‘ऐसा कैसे हो सकता है? यह कोई फिल्म थोड़े ही है कि कोई किसी की हत्या कर के उस की जगह ले ले.’’

सुधाकर के पिता ने पत्नी को इस बात के लिए राजी किया कि क्यों न हकीकत का पता लगाया जाए कि वह हमारा बेटा सुधाकर ही है या कोई और, जो बेटे के रूप में उस की जगह लेना चाहता है. पत्नी राजी हो गईं तो वह कुछ रिश्तेदारों को ले कर अस्पताल पहुंच गए. उन्होंने रिश्तेदारों के सामने खड़ा कर के सुधाकर से पूछा कि ये हमारे कौन रिश्तेदार हैं, कहां रहते हैं, इन का नाम क्या है?

यह पूछने पर सुधाकर एकदम से हड़बड़ा गया. वह चूंकि उन रिश्तेदारों को पहचानता ही नहीं था तो क्या बताता. वह चुप रहा तो सुधाकर के मातापिता जहां परेशान हो उठे, वहीं स्वाति भी परेशान हुई. वह इधरउधर की बातें करने लगी.

अब सुधाकर के घर वालों को पूरा विश्वास हो गया कि दाल में कुछ काला जरूर है. सुधाकर का भाई प्रभाकर पिता के साथ थाना नगरकुरनूल गया और थानाप्रभारी श्रीनिवास राव को सारी बात बता कर सच्चाई का पता लगाने का आग्रह किया.

आधार कार्ड से खुली पोल

मामला हैरान करने वाला था. श्रीनिवास राव ने उन्हें आश्वासन दे कर घर भेज दिया. वह भी सोच में पड़ गए, क्योंकि ऐसा मामला उन की जिंदगी में पहली बार सामने आया था. उन्होंने एसपी एस. कमलेश्वर को पूरी बात बताई. वह भी हैरान रह गए. यह मामला किसी सस्पेंस फिल्म जैसा पेचीदा था. जिस व्यक्ति को खुद घर वाले नहीं पहचान पा रहे थे, उसे दूसरा कोई कैसे पहचान सकता था.

एसपी एस. कमलेश्वर ने औफिस में मीटिंग बुलाई, जिस में एडीशनल एसपी जे. चेनायाह, एएसपी लक्ष्मीनारायण और थानाप्रभारी श्रीनिवास राव शामिल हुए.

मीटिंग से पहले श्रीनिवास राव ने सुधाकर के पिता से उस की पहचान से संबंधित जरूरी जानकारी के अलावा आधार कार्ड, पैनकार्ड तथा वोटर आईडी वगैरह ले लिया था.

पुलिस अधिकारियों के सामने चुनौती यह थी कि अस्पताल में जिस आदमी का इलाज चल रहा था, वह सुधाकर रेड्डी नहीं था तो कौन था? इस की पहचान कैसे की जाए. एस. कमलेश्वर ने सुधाकर की पहचान के सारे प्रमाण अपने पास मंगवा लिए थे. 2-3 घंटे चली बैठक में काफी माथापच्ची के बाद पुलिस अधिकारी इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि सुधाकर रेड्डी की पहचान आधार कार्ड के माध्यम से की जाए, क्योंकि उस में फिंगरप्रिंट होते हैं, जो दूसरे से कभी नहीं मिलेंगे.

थानाप्रभारी श्रीनिवास राव मीटिंग से सीधे अस्पताल पहुंचे और जब सुधाकर रेड्डी का अंगूठा रख कर उस का आधार खोला गया तो सुधाकर का आधार कार्ड खुलने के बजाय किसी सी. राजेश रेड्डी का आधार कार्ड खुल गया. इस से पूरा मामला साफ हो गया.

श्रीनिवास राव ने यह बात एसपी एस. कमलेश्वर को बताई तो वह भी समझ गए कि अस्पताल में भरती युवक एम. सुधाकर रेड्डी नहीं बल्कि उस की जगह राजेश रेड्डी इलाज करा रहा है. अब यह पता लगाना जरूरी हो गया था कि राजेश रेड्डी कौन है और सुधाकर रेड्डी की जगह अस्पताल में क्यों भरती है. अगर वह राजेश रेड्डी है तो सुधाकर रेड्डी कहां है? साथ ही यह भी कि स्वाति उस अजनबी को सुधाकर रेड्डी यानी अपना पति बता कर उस का इलाज क्यों करा रही है?

एसपी एस. कमलेश्वर ने थानाप्रभारी श्रीनिवास को आदेश दिया कि स्वाति और राजेश को किसी तरह का कोई शक हो, इस से पहले स्वाति को हिरासत में ले कर पूछताछ करो और राजेश के कमरे के बाहर पुलिस का पहरा बैठा दो.

10 दिसंबर, 2017 की सुबह महिला पुलिस की मदद से स्वाति को हिरासत में ले लिया गया और राजेश के कमरे के बाहर पुलिस का पहरा बैठा दिया गया, जिस से वह भाग न सके. स्वाति को थाना नगरकुरनूल लाया गया, जहां उस से पूछताछ शुरू हुई. स्वाति कोई क्रिमिनल तो थी नहीं, जो पूछताछ में पुलिस को छकाती. पूछताछ में उस ने जल्दी ही सारी सच्चाई उगल दी.

उस ने बताया कि अस्पताल में भरती युवक उस का पति एम. सुधाकर रेड्डी नहीं बल्कि प्रेमी सी. राजेश रेड्डी है. प्रेमी के साथ मिल कर उस ने सुधाकर की 26 नवंबर की सुबह हत्या कर के उस की लाश को वहां से 150 किलोमीटर दूर जिला महबूबनगर के मैसन्ना जंगल में ले जा कर जला दिया था.

उस ने पुलिस को सुधाकर की हत्या से ले कर राजेश के तेजाब से झुलस कर अस्पताल में भरती होने तक की जो कहानी सुनाई, उसे सुन कर पुलिस हैरान रह गई. स्वाति ने पुलिस को सुधाकर की हत्या और राजेश के तेजाब से झुलस कर अस्पताल में भरती होने की जो कहानी सुनाई, वह इस प्रकार थी—

32 वर्षीय एम. सुधाकर रेड्डी मेहनती आदमी था, उस का भरापूरा परिवार था. वह नगरकुरनूल की पौश कालोनी कोलापुर में पत्नी एम. स्वाति रेड्डी और 2 बच्चों आशीष और मिली के साथ किराए के मकान में रहता था. जबकि उस के मांबाप छोटे बेटे प्रभाकर के साथ गांव में रहते थे. सुधाकर पत्थर तोड़ने वाले एक यूनिट में नौकरी करता था. उसे वहां से अच्छाखासा पैसा मिलता था. नौकरी की वजह से उसे ज्यादातर घर से बाहर रहना पड़ता था. स्वाति एक प्राइवेट अस्पताल में नर्स थी.

स्वाति जवान और खूबसूरत थी. उस के दिल में कुछ अरमान थे. उन्हीं के सहारे वह जी रही थी. पति काम की वजह से अकसर बाहर ही रहता था. पति के बिना स्वाति को बिस्तर काटने को दौड़ता था. उस की रातें करवटें बदलते हुए बीतती थीं. पति घर आता तो स्वाति उस से मन की पीड़ा कहती, सुधाकर पत्नी की पीड़ा को समझता था, लेकिन वह चाह कर भी उस की इच्छा पूरी नहीं कर पाता था. वह नौकरी की दुहाई दे कर उसे समझाता. स्वाति पति की विवशता समझती थी, लेकिन वह मन का क्या करती, जो उस के काबू में नहीं था.

पहली ही मुलाकात में राजेश रेड्डी को दे बैठी दिल

स्वाति नर्स थी. अस्पताल के काम से उसे दूसरे अस्पतालों में फिजियोथेरैपिस्ट से मिलने जाना पड़ता था. बात 2 साल पहले की है. वह अस्पताल की ओर से एक प्राइवेट अस्पताल के फिजियोथेरैपिस्ट से मिलने गई थी. वहीं उस की मुलाकात सी. राजेश रेड्डी से हुई. उसे देख कर वह चौंकी, क्योंकि उस का चेहरा मोहरा और कदकाठी उस के पति सुधाकर से काफी मेल खा रहा था.

एकबारगी उसे देख कर कोई भी उस में और सुधाकर में फर्क नहीं कर सकता था. इसी पहली मुलाकात में स्वाति उस की मुरीद हो गई. स्वाति सुंदर तो थी ही, राजेश ने भी पहली मुलाकात में ही उसे अपने दिल की मलिका बना लिया. स्वाति अपना काम कर के चली तो आई लेकिन दिल राजेश के पास ही छोड़ आई.

इस के बाद किसी न किसी बहाने दोनों की मुलाकातें होने लगीं. इन्हीं मुलाकातों ने उन दोनों को एकदूसरे से प्यार करने को मजबूर कर दिया. राजेश की शादी नहीं हुई थी, जबकि स्वाति शादीशुदा थी. उस के 2 बच्चे भी थे. लेकिन अब यह सब कोई मायने नहीं रखते थे. राजेश की पर्सनैलिटी पर स्वाति इस तरह मर मिटी कि उसे न पति का खयाल रहा, न बच्चों का.

राजेश रेड्डी अपने मांबाप और भाई के साथ कोलापुर में रहता था. उस का परिवार काफी संपन्न था. मांबाप उसे पढ़ालिखा कर डाक्टर बनाना चाहते थे. राजेश मांबाप के सपनों को पूरा करने के लिए जीजान से जुटा भी रहा, लेकिन वह डाक्टर नहीं बन सका. हां, फिजियोथेरैपिस्ट जरूर बन गया. पढ़ाई पूरी करने के बाद उसे एक प्राइवेट अस्पताल में नौकरी मिल गई थी, वहीं उस की मुलाकात स्वाति से हुई थी.

स्वाति और राजेश का प्यार दिनोंदिन बढ़ता गया. एक ऐसा समय भी आया जब वे एकदूसरे को देखे बिना नहीं रह पाते थे. उन के बीच की सारी दूरियां मिट चुकी थीं. मर्यादाओं को तोड़ कर वे कब के जिस्म के बंधन में बंध गए थे. स्वाति को राजेश के जिस्म की खुशबू सुधाकर के जिस्म से ज्यादा अच्छी लग रही थी. अब उसे पति से ज्यादा प्रेमी प्यारा लगने लगा था.

स्वाति के संबंध पतिपत्नी की तरह बन गए थे. स्वाति का हाल तो यह था कि वह राजेश की एक दिन की जुदाई भी बरदाश्त नहीं कर पा रही थी. पति जितने दिन बाहर रहता, स्वाति उसे साथ रखती थी. बच्चे छोटे थे, इसलिए वे कुछ भी नहीं जानसमझ पा रहे थे. स्वाति राजेश से कहने लगी थी कि वह उस से शादी कर के उसे सुधाकर से मुक्ति दिलाए. 2 सालों तक दोनों के प्यार की किसी को भनक तक नहीं लग पाई थी.

स्वाति चाहती तो सुधाकर से तलाक ले कर राजेश से शादी कर सकती थी लेकिन न जाने क्यों उसे लगता था कि सुधाकर के जीते जी ऐसा नहीं हो पाएगा. उसे लगता था कि राजेश से तभी शादी कर पाएगी, जब सुधाकर रास्ते से हट जाए.

यही सोच कर स्वाति राजेश के साथ मिल कर सुधाकर को रास्ते से हटाने की योजना बनाने लगी. लेकिन यह काम इतना आसान नहीं था. सुधाकर को ठिकाने लगाना तो आसान था, लेकिन खुद बचाना भी जरूरी था. वे दोनों इस के लिए आपराधिक धारावाहिक और इसी तरह की फिल्में देखने लगे. आखिर उन्हें श्रुति हसन की सुपरहिट फिल्म ‘येवाडु’ से सुधाकर को रास्ते से हटाने का आइडिया मिल गया.

इस फिल्म में दिखाया गया था कि पत्नी प्रेमी के साथ मिल कर पति की हत्या कर देती है और बाद में प्लास्टिक सर्जरी के जरिए प्रेमी का चेहरा पति जैसा करा देती है. उस के बाद प्रेमी प्रेमिका के साथ उसी के घर में रहने लगता है. कुछ दिनों बाद दोनों वह शहर छोड़ कर दूसरे शहर में रहने चले जाते हैं.

जैसा फिल्म में देखा था, स्वाति और राजेश ने तय किया कि वे भी ऐसा ही करेंगे. सुधाकर की हत्या कर के बाद में प्लास्टिक सर्जरी के जरिए राजेश का चेहरा सुधाकर जैसा बनवा दिया जाएगा. उस के बाद दोनों पतिपत्नी की तरह साथ रहेंगे. इस से किसी को शक भी नहीं होगा. कुछ दिनों बाद वे यह शहर छोड़ कर पुणे जा कर बस जाएंगे.

सुधाकर के पास कार और स्कूटर दोनों थे. कभी वह नौकरी पर कार से जाता था तो कभी स्कूटर से. 21 नवंबर को वह स्कूटर से ड्यूटी पर गया था. उस के जाने के बाद स्वाति ने फोन कर के राजेश को बुला लिया और कार से उस के साथ घूमने निकल गई.

संयोग से सुधाकर के चचेरे भाई ने उसे राजेश के साथ कार में जाते देख लिया. वह राजेश को पहचानता नहीं था, इसलिए उस ने भाभी को किसी अजनबी के साथ जाने की बात सुधाकर को फोन कर के बता दी.

प्रेमी को ले कर पति से हुआ झगड़ा

सुधाकर चिंता में पड़ गया कि पत्नी किस के साथ घूम रही है. उसे गुस्सा भी आया. यह बात उसे परेशान कर रही थी. उस का मन नौकरी पर नहीं लगा तो वह घर वापस आ गया. तब तक स्वाति घर नहीं आई थी. जब वह आई तो राजेश को ले कर पतिपत्नी में खूब झगड़ा हुआ. सुधाकर राजेश के बारे में पूछता रहा लेकिन स्वाति ने कुछ नहीं बताया. ऐसा 3 दिनों तक चलता रहा.

स्वाति ने राजेश से कह दिया कि उस की वजह से 3 दिनों से घर में लड़ाई झगड़ा हो रहा है. उन के संबंधों के बारे में किसी और को पता चले, उस के पहले ही सुधाकर को रास्ते से हटा दिया जाए. राजेश स्वाति की बात मान कर उस का साथ देने को तैयार हो गया.

25 नवंबर को राजेश मां से विजयवाड़ा जाने की बात कह कर घर से निकला और सीधे स्वाति के घर जा पहुंचा. उस समय सुधाकर कहीं गया हुआ था.

स्वाति ने राजेश को घर में ही बैड के नीचे छिपा दिया. उस दिन भी स्वाति और सुधाकर में खूब झगड़ा हुआ था, लेकिन स्वाति ने यह नहीं बताया था कि राजेश कौन है और उस का उस से क्या संबंध है. इसी वजह से घर में खाना तक नहीं पका था. स्वाति ने राजेश को घर में छिपा तो लिया था, लेकिन उसे डर लग रहा था कि अगर राजेश के घर में होने की खबर सुधाकर को हो गई तो कयामत आ जाएगी.

बहरहाल, किसी तरह रात कट गई. 26 नवंबर की सुबह 4 बजे के आसपास स्वाति जागी. दबे पांव बिस्तर से उतर कर उस ने बैड के नीचे छिपे राजेश को उठाया. इस के बाद पर्स से एनेस्थेसिया का इंजेक्शन निकाला और राजेश की मदद से सुधाकर की गरदन में लगा दिया. सुधाकर बेहोश हो गया.

इस के बाद राजेश ने उस के मुंह पर तकिया रख कर तब तक दबाए रखा, जब तक कि उस की मौत नहीं हो गई. उसे हिलाडुला कर देखा गया तो उस के शरीर में कोई हरकत नहीं हुई. वह मर चुका था. लाश को उन्होंने कार में रखा और उसे 150 किलोमीटर दूर महबूबनगर के मैसन्ना जंगल में ले गए. जंगल में बीचोबीच लाश जला कर वे लौट आए.

स्वाति और राजेश खुश थे कि उन्होंने रास्ते का कांटा हटा दिया है. अब उन्हें कोई रोकने टोकने वाला या लड़ाई झगड़ा करने वाला नहीं बचा. साजिश का पहला पायदान वे चढ़ चुके थे. अब दूसरी साजिश को अंजाम देना था.

योजनानुसार प्रेमी के ऊपर खुद फेंका तेजाब

27 नवंबर की सुबह स्वाति और राजेश शहर के एक प्राइवेट अस्पताल पहुंचे, जहां सर्जरी की सुविधा उपलब्ध थी. दोनों ने वहां पता किया कि 30 प्रतिशत तक जले मरीज की सर्जरी पर कितना खर्च आता है. वहां उन्हें बताया गया कि इस तरह के मरीज पर 3 से 5 लाख रुपए का खर्च आ सकता है.

दोनों घर लौट आए और आगे क्या और कैसे करना है, इस की रूपरेखा तैयार की. स्वाति और राजेश ने तय किया कि अगली सुबह कालोनी के बाहर सुनसान जगह पर दूसरी घटना को अंजाम दिया जाएगा.

28 नवंबर की सुबह साढ़े 7 बजे स्वाति ने बच्चों को स्कूल भेज दिया और राजेश को ले कर कालोनी के बाहर सुनसान जगह पर पहुंच गई. योजना के अनुसार, स्वाति और राजेश पहले गले मिले, उस के बाद साथ लाए तेजाब को स्वाति ने राजेश के चेहरे पर फेंक दिया. चेहरे के साथ उस की गरदन भी झुलस गई. प्रेमी की पीड़ा से स्वाति को काफी दुख पहुंचा, लेकिन ऐसा करना उस की मजबूरी थी. क्योंकि अब राजेश को सुधाकर बनवाना था. योजना को अंजाम दे कर वह घर लौट आई.

घर पहुंच कर स्वाति ने त्रियाचरित्र रचते हुए सासससुर को फोन कर के बताया कि सुधाकर के ऊपर किसी ने तेजाब फेंक दिया है. वह उसे ले कर अस्पताल जा रही है. सासससुर के अस्पताल पहुंचने तक राजेश के चेहरे पर मरहमपट्टी हो चुकी थी. चेहरा पट्टी से ढका होने के कारण वे उसे पहचान नहीं सके.

लेकिन शारीरिक बनावट और कदकाठी देख कर उन्हें संदेह तो हुआ, पर उस समय वे कुछ कह नहीं सके. राजेश को सुधाकर बना कर अस्पताल लाने वाली स्वाति ने सासससुर को अपनी बातों में कुछ इस तरह उलझाए रखा कि उन्हें राजेश को सुधाकर मानने के लिए विवश होना पड़ा.

सुधाकर पर हुए तेजाब के हमले की जांच पुलिस कर रही थी. इस जांच में पुलिस को कोलापुर कालोनी के पास लगे सीसीटीवी कैमरे से इस हमले की फुटेज मिल गई. उस फुटेज में साफ दिख रहा था कि स्वाति राजेश के साथ कालोनी के बाहर हंसहंस कर बातें करते हुए टहल रही थी. दोनों गले मिले और उस के बाद स्वाति ने बोतल का तेजाब राजेश के चेहरे पर फेंक दिया. राजेश तेजाब की जलन से वहीं बैठ कर छटपटाने लगा, जबकि स्वाति घर चली गई. इस के बाद क्या हुआ, कहानी के शुरू में ही उल्लेख किया जा चुका है.

स्वाति द्वारा रची गई साजिश का परदाफाश हो गया था. प्रेमी को पति का रूप दे कर जीवन भर साथ रहने का उस का सपना टूट चुका था. दूसरी ओर राजेश की मां बेटे को ले कर परेशान थी. वह शादी में विजयवाड़ा जाने की बात कह कर निकला था. कई दिन बीत जाने के बाद भी वह घर नहीं लौटा था. उसे किसी अनहोनी की आशंका होने लगी थी, क्योंकि राजेश से फोन पर भी बात नहीं हो पा रही थी.

प्रेमी को पति बनाने की ख्वाहिश रह गई अधूरी

बेटे को ले कर परेशान राजेश की मां ने स्वाति से कई बार पूछा था, लेकिन उस ने उन्हें कुछ नहीं बताया था. दरअसल, उन्हें राजेश और स्वाति के संबंधों के बारे में पता था. राजेश ने ही मां को उस के बारे में बताया था. इसलिए वह स्वाति से राजेश के बारे में बारबार पूछ रही थीं. जब उन्हें सच्चाई का पता चला तो वह इतनी शर्मिंदा हुई कि राजेश के कहने पर भी उन्होंने उसे उस के हाल पर छोड़ दिया.

स्वाति और राजेश की साजिश का खुलासा होने के बाद 10 दिसंबर, 2017 को पुलिस ने एम. सुधाकर रेड्डी की हत्या के आरोप में उस की पत्नी एम. स्वाति रेड्डी को गिरफ्तार कर लिया था. सी. राजेश रेड्डी का अभी इलाज चल रहा था, इसलिए पुलिस ने उसे फिलहाल गिरफ्तार नहीं किया. पूछताछ में उस ने भी सुधाकर की हत्या का अपना अपराध कबूल कर लिया था.

राजेश के इलाज का खर्च 5 लाख आया था, जिस में से सुधाकर के मांबाप ने बेटा समझ कर डेढ़ लाख रुपए अस्पताल में जमा करा दिए थे. सच्चाई का पता चलने के बाद बाकी रकम उन्होंने जमा नहीं की. अब बाकी पैसे राजेश से मांगे जा रहे थे. पुलिस को उस के स्वस्थ होने का इंतजार था ताकि स्वस्थ होते ही उसे गिरफ्तार किया जा सके.

पुलिस ने एम. सुधाकर रेड्डी की हत्या के आरोप में स्वाति और राजेश के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 201, 120बी के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया था. स्वाति जेल में बंद है, जबकि राजेश का अभी इलाज चल रहा था.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

प्रेमिका की हत्या का गवाह बना सूटकेस

एसएचओ ने घटनास्थल पर पहुंच कर देखा तो वहां वास्तव में एक सूटकेस अधजली हालत में पड़ा था. उसी के साथ कुछ अधजली लकड़ियों से पेट्रोल की गंध भी महसूस हुई. इस से उन्होंने अंदाजा लगाया कि किसी ने बाहर से यह सूटकेस यहां ला कर उस पर लकड़ियों रख कर पेट्रोल डाल कर जलाने की कोशिश की थी.

सूटकेस में एक युवती की लाश निकली, लेकिन वहां मौजूद लोगों में से कोई भी मृतका की शिनाख्त नहीं कर पाया तो यही लगा कि मृतका आसपास के क्षेत्र की रहने वाली नहीं होगी. मृतका की उम्र यही कोई 24-25 साल थी.

गुजरात के शहर राजकोट के बाहर ग्रामीण इलाके में गांव पदधारी के पास काफी जमीन बंजर पड़ी है. इस जमीन पर घास के अलावा और कुछ नहीं होता, इसलिए उधर लोग कम ही आतेजाते थे. केवल जानवर चराने वाले दोपहर बाद अपने जानवर ले कर चराने के लिए आते थे.

9 अक्तूबर, 2023 की दोपहर के बाद जब कुछ लोग अपने जानवर उस सुनसान बंजर जमीन पर चराने के लिए ले आए तो उन्हें ही वहां वह अधजला सूटकेस दिखाई दिया था.

उन लोगों ने इस बात की सूचना गांव के सरपंच कनुभाई परमार को दी. कुछ ही देर में कनुभाई गांव के कई लोगों के साथ घटनास्थल पर जा पहुंचे. सभी को मामला गड़बड़ लगा.

सरपंच ने तुरंत इस की सूचना क्षेत्रीय थाना पदधारी में दे दी. सरपंच की सूचना पर ही थाना पदधारी के एसएचओ जी.जे. जाला सहयोगियों के साथ घटनास्थल पर पहुंचे थे.

घटनास्थल पर काफी लोग जमा थे. जिस स्थिति में लाश मिली थी, साफ था कि यह सुनियोजित हत्या कर लाश ठिकाने लगाने का मामला था. लाश की शिनाख्त जरूरी थी, इसलिए पुलिस ने आसपास का निरीक्षण शुरू किया कि शायद वहां कोई ऐसी चीज मिल जाए, जिस से लाश की शिनाख्त हो जाए.

काफी कोशिश के बाद भी वहां कोई ऐसी चीज नहीं मिली, जिस से लाश के बारे में कुछ पता चलता. सिर्फ एक गाड़ी के टायरों के निशान जरूर दिखाई दिए. वे निशान भी थोड़ा अलग थे. वे निशान किसी बड़ी गाड़ी के दिख रहे थे, क्योंकि वह निशान चौड़े टायरों के थे.

एसएचओ ने फोटोग्राफर के साथसाथ फोरैंसिक टीम को भी बुला लिया था. घटनास्थल की सारी काररवाई करने के बाद पुलिस ने सूटकेस जब्त कर लाश पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दी.

थाने लौट कर एसएचओ जी.जे. जाला ने पूरे स्टाफ को बुला कर कहा, ”सब से पहले तो यह पता लगाओ कि आसपास के किसी गांव की इस उम्र की कोई युवती गायब तो नहीं है? इस के बाद यह पता करो कि जिले के किसी थाने में इस तरह की युवती की गुमशुदगी तो नहीं दर्ज कराई गई? क्योंकि लाश की जो हालत थी, उस से साफ लग रहा था कि उस युवती की हत्या कम से कम 3 दिन पहले हुई थी.

पुलिस अपने सूत्रों से यह पता लगाने में जुट गई कि लाश वाली युवती कौन हो सकती है? आसपास के ही नहीं, पूरे राजकोट के सभी थानों से पता किया गया कि किसी थाने में 24-25 साल की युवती की गुमशुदगी तो नहीं दर्ज कराई गई है. दुर्भाग्य से राजकोट के किसी थाने में उस तरह की युवती की कोई गुमशुदगी नहीं दर्ज थी.

कहीं किसी मुखबिर से भी सूचना नहीं मिल रही थी कि उस तरह की युवती कहां रहती थी और अब दिखाई नहीं दे रही है. जब जिले के किसी थाने से कोई जानकारी नहीं मिली तो एसएचओ ने अगलबगल के जिलों से पता किया. पर इस में भी उन्हें निराश ही होना पड़ा. अब क्या किया जाए, एसएचओ ने सहयोगियों के साथ सलाह मशविरा किया. क्योंकि बिना शिनाख्त के हत्यारे तक पहुंचा नहीं जा सकता था.

जब कोई सहयोगी उचित सलाह नहीं दे सका तो एसएचओ जी.जे. जाला ने खुद ही अपना दिमाग लगाया. उन्होंने वह सूटकेस मंगवाया, जिस में रख कर लाश जलाई गई थी. उन्होंने उस अधजले सूटकेस को उलटपलट कर देखा तो उस में उस के ब्रांड का नाम मिल गया यानी यह पता चल गया कि वह सूटकेस किस कंपनी का था.

यह पता चलते ही एसएचओ ने ड्राइवर से थाने की जीप निकलवाई और 2 सिपाहियों को साथ ले कर शहर में उस ब्रांड के सूटकेस के जितने भी शोरूम थे, सभी पर जा पहुंचे. लाश 9 अक्तूबर को मिली थी.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पता चला था कि हत्या 6 अक्तूबर को की गई थी. इसलिए पहली अक्तूबर, 2023 से ले कर 8 अक्तूबर, 2023 तक उस ब्रांड के उस साइज के जितने भी सूटकेस बिके थे, शोरूमों से उन्हें खरीदने वालों के नाम, पते और फोन नंबर प्राप्त कर लिए.

पता चला कि इस बीच उस तरह के कुल 27 सूटकेस बिके थे. दरअसल, यह ब्रांडेड सूटकेस था और इस की वारंटी होती है, इसलिए वापसी का चक्कर रहता है. यही वजह थी कि इसे खरीदने वाला ग्राहक बिल में अपना पूरा नाम, पता और फोन नंबर लिखवाता है.

यह सब करते करते एक महीने का समय निकल गया था. यानी नवंबर महीना चल रहा था. थाने आ कर एसएचओ जी.जे. जाला ने उस बीच उस ब्रांड के सूटकेस खरीदने वाले एकएक आदमी को फोन करना शुरू किया. अपना परिचय दे कर एसएचओ उस के द्वारा खरीदे गए सूटकेस के बारे में पूछते तो हर आदमी सूटकेस खरीदने की वजह बताने के साथसाथ वीडियो काल पर सूटकेस भी दिखा देता.

किसी का सूटकेस किसी रिश्तेदार के यहां होता तो वह अपने रिश्तेदार से बात करा देता. अगर किसी से फोन पर बात न हो पाती तो जी.जे. जाला शोरूम से मिले पते के आधार पर उस के घर पहुंच जाते और पूरी बात बता कर उस के द्वारा खरीदे गए सूटकेस के बारे में पता करते.

इसी तरह एसएचओ जी.जे. जाला ने 26 सूटकेसों के बारे में पता कर लिया. जब उन्होंने 27वें आदमी को फोन किया तो वह बहाने बनाने लगा. कभी वह कहता कि सूटकेस कोई ले गया है तो कभी कहता कि जो सूटकेस ले गया है, अभी दे कर नहीं गया. जब जी.जे. जाला सूटकेस ले जाने वाले का पता पूछते तो वह पता बताने को तैयार नहीं होता.

मजबूर हो कर जी.जे. जाला राजकोट के गांधीग्राम इलाके के आत्मन अपार्टमेंट में रहने वाले उस व्यक्ति मेहुल चोटलिया के यहां पहुंच गए. जब वह आत्मन अपार्टमेंट पहुंचे तो अपार्टमेंट के नीचे उन्हें एक एसयूवी दिखाई दी, जिस के टायर उतने ही चौड़े थे, जितने चौड़े टायर के निशान घटनास्थल पर मिले थे. उस एसयूवी को देखते ही उन्हें लगा कि हो न हो, इसी आदमी ने उस घटना को अंजाम दिया होगा.

उस समय मेहुल चोटलिया घर पर ही था. पुलिस ने उस के फ्लैट की घंटी बजाई तो उस ने दरवाजा खोला. दरवाजे पर पुलिस देख कर वह घबरा गया. क्योंकि उस के मन में चोर था.

एसएचओ ने उस की शक्ल देख कर ही अंदाजा लगा लिया कि वह सही ठिकाने पर आ गए हैं. उन्होंने आने की वजह बताई तो वह सूटकेस दिखाने में पहले की ही तरह बहानेबाजी करता रहा.

पुलिस को उस पर शक तो था ही, इसलिए उन्होंने उस के फ्लैट की तलाशी ली तो उस के फ्लैट से ऐसी तमाम चीजें मिलीं, जिन का उपयोग महिलाएं करती हैं. लेकिन जब उस से पूछा गया कि उस के फ्लैट में तो कोई महिला है नहीं, यह सामान किस का है? तब पुलिस के इस सवाल का मेहुल कोई उचित जवाब नहीं दे सका.

तब पुलिस ने उस से तरहतरह के सवाल करने शुरू किए. मेहुल झूठ पर झूठ बोलता रहा. पुलिस उसे ले कर नीचे आई तो सामने ही उस की एसयूवी खड़ी थी. पुलिस ने जब उस एसयूवी के बारे में पूछा तो उस ने कहा कि यह गाड़ी उसी की है.

पुलिस ने उस गाड़ी के टायर एक बार फिर देखे तो वे वैसे ही थे, जिस तरह के निशान उस जली हुई लाश के पास पाए गए थे. एसएचओ जी.जे. जाला को पूरा विश्वास हो गया कि पदधारी गांव के पास सूटकेस में जो लाश जलाई गई थी, वह इसी मेहुल चोटलिया ने ही जलाई थी.

मेहुल को थाने ला कर पूछताछ शुरू हुई. मेहुल मानने को तैयार ही नहीं था कि वह लाश उसी ने जलाई थी. वह लगातार झूठ बोलते हुए इस बात से इनकार करता रहा. चूंकि पुलिस को अब तक काफी सबूत मिल चुके थे, इसलिए पुलिस भी लगातार उस से पूछताछ करती रही.

आखिर झूठ बोलते बोलते जब मेहुल थक गया तो उस ने स्वीकार कर लिया कि उसी ने अपने साथ रहने वाली अपनी लिवइन पार्टनर आयशा मकवाना की हत्या कर उस की लाश वहां ले जा कर जलाई थी.

इस के बाद मेहुल ने आयशा से प्यार करने से ले कर उस की हत्या कर के लाश को सूटकेस में रख कर जलाने तक की जो कहानी सुनाई, वह कुछ इस प्रकार थी.

मेहुल चोटलिया राजकोट का ही रहने वाला था. होटल मैनेजमेंट की पढाई करने के बाद उसे राजकोट में ही एक होटल में मैनेजर की नौकरी मिल गई थी. मेहुल थोड़ा आजाद खयाल युवक था, इसलिए नौकरी लगने के बाद उस ने राजकोट के ही गांधीग्राम इलाके के आत्मन अपार्टमेंट में एक फ्लैट खरीद लिया था और उसी में अकेला ही रहने लगा था. उसे गाड़ी का शौक था, इसलिए उस ने चौड़े टायरों वाली एसयूवी कार खरीद ली थी.

आजाद खयाल मेहुल चोटलिया को होटल से अच्छा खासा वेतन मिलता था, इसलिए वह मौज से रहता था. उस के पास अब सब कुछ था, लेकिन कोई गर्लफ्रेंड नहीं थी. मेहुल को गर्लफ्रेंड की कमी बहुत खलती थी. उस ने इस के लिए प्रयास करना शुरू किया तो एक दिन उसी के होटल में उस की मुलाकात आयशा मकवाना से हो गई.

24 साल की आयशा अहमदाबाद की रहने वाली थी. राजकोट में वह एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी करती थी और राजकोट में अकेली ही रहती थी. आयशा भी आजादखयाल थी. वह जीवन के सारे सुख भोगना चाहती थी, पर जिम्मेदारियों का बोझ नहीं उठाना चाहती थी.

ऐसा ही हाल लगभग मेहुल का भी था. इसलिए जब दोनों की मुलाकात हुई तो दोनों के विचार आपस में मिलने की वजह से उन में दोस्ती हो गई. यह दोस्ती जल्दी ही प्यार में बदल गई तो दोनों ने बिन फेरे हम तेरे बनने का फैसला कर लिया.

यानी वह लिवइन रिलेशन में रहने लगे. इस तरह साथ रहने को आज की नई पीढ़ी पसंद भी करती है. इस में रहते तो दोनों पतिपत्नी की तरह हैं, पर दोनों ही एकदूसरे के प्रति न तो जिम्मेदार होते हैं और न ही एकदूसरे का कहना मानते हैं और न ही एकदूसरे के लिए कुछ करना चाहते हैं. सिर्फ मौजमजे के साथी होते हैं.

मेहुल और आयशा भी इसी तरह लिवइन में साथसाथ पतिपत्नी की तरह रह रहे थे. रहते जरूर दोनों साथसाथ पतिपत्नी की तरह थे, लेकिन अपनी अपनी मरजी के मालिक थे, इसलिए दोनों में अकसर लड़ाई झगड़ा होता रहता था.

6 अक्तूबर, 2023 को भी किसी बात को ले कर मेहुल और आयशा में लड़ाई हो रही थी, तभी गुस्से में आयशा ने मेहुल को एक तमाचा मार दिया. एक लड़की हो कर आयशा ने एक मर्द मेहुल को तमाचा मार दिया था, इसलिए मेहुल से यह अपमान बरदाश्त नहीं हुआ और उस ने गुस्से में आयशा का गला इतनी जोर से दबा दिया कि उस की मौत हो गई.

गुस्से में मेहुल ने आयशा की हत्या तो कर दी, लेकिन अब पकड़े जाने का डर सताने लगा था. उसे पता था कि अगर पुलिस ने आयशा की हत्या के आरोप में उसे पकड़ लिया तो उस की बाकी की जिंदगी जेल में ही कटेगी.

यह 6 अक्तूबर की शाम घटना थी. उस ने आयशा की लाश को बैडबौक्स में छिपा दिया और इस बात पर विचार करने लगा कि वह आयशा की लाश को कैसे और कहां ठिकाने लगाए कि पुलिस उस की शिनाख्त न करा सके. क्योंकि अब तक वह इतना तो जान ही चुका था कि जब तक लाश की शिनाख्त नहीं हो सकेगी, तब तक पुलिस उस तक पहुंच नहीं पाएगी.

यही सोचते सोचते वो रात भी बीत गई और अगला पूरा दिन भी. 8 अक्तूबर को लाश से बदबू आने लगी. इस से मेहुल डर गया कि अगर बदबू ज्यादा बढ़ेगी तो पड़ोसी पुलिस को सूचना दे देंगे. तब वह पकड़ा जाएगा.

काफी सोचविचार कर वह बाजार गया और वहां एक सूटकेस के शोरूम से एक ट्रौली वाला सूटकेस खरीद लाया. उसे अंदाजा था कि आयशा की लंबाई ज्यादा नहीं है, इसलिए उस की लाश आराम से उस सूटकेस में आ जाएगी. चूंकि वह शोरूम ब्रांडेड सूटकेस का था, इसलिए बिल बनाते समय उस के नामपते के साथ फोन नंबर भी लिखा गया.

मेहुल सूटकेस ले कर घर आया और आयशा की लाश बैडबौक्स से निकाल कर उस सूटकेस में रख ली. इस के बाद उस ने लिफ्ट से सूटकेस नीचे उतारा और एसयूवी कार में रख कर पास के बाजार गया, जहां से उस ने लकडिय़ां खरीदीं. पेट्रोल पंप से एक बोतल पेट्रोल खरीदा और अपनी एसयूवी से शहर से बाहर ग्रामीण इलाके में आ गया.

कार चलाते हुए वह पदधारी गांव के पास पहुंचा तो गांव के पास उसे सुनसान इलाका दिखाई दिया. उस ने वहीं पर कार से सूटकेस निकाला और उस पर लकडिय़ां रखीं, फिर पेट्रोल डाल कर आग लगा दी.

जब तक लकडिय़ां जलती रहीं, वह वहीं खड़ा रहा. लकडिय़ों की आग बुझने लगी तो वह कार ले कर घर वापस आ गया. उसे जरा भी नहीं लग रहा था कि पुलिस उस तक पहुंच जाएगी, इसलिए निश्चिंत हो कर अपने घर में रह रहा था. लेकिन पुलिस 2 महीने बाद उस तक पहुंच ही गई.

थाना पुलिस ने अहमदाबाद में रहने वाले आयशा के घर वालों को सूचना दी. घर वालों ने आ कर लाश की फोटो देख कर शिनाख्त कर दी. पुलिस ने उन की डीएनए जांच भी कराई है. पूछताछ के बाद पुलिस ने मेहुल चोटलिया को राजकोट की अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया है.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

17 महीने से छिपी लाश का रहस्य

नाले के पास बिना सिर वाला एक धड़ पड़ा हुआ है, जिस के बदन पर नीले कलर की टीशर्ट पर लाल सफेद लाइनिंग साफ नजर आ रही थी. मरने वाले के हाथ में लोहे का कड़ा और पीले लाल कलर का धागा बंधा हुआ था. उस के शरीर के निचले हिस्से में लाल रंग की अंडरवियर और बनियान थी. सिर के बाल  तथा दाढ़ी व मूंछ में मेहंदी कलर लगा हुआ था. जिस जगह यह सिर कटा धड़ पड़ा हुआ था, उस के कुछ ही दूरी पर एक प्लास्टिक की बोरी भी पड़ी हुई थी.

पुलिस टीम ने जब उस बोरी को खोला तो उस में मृतक का सिर मिला. पहली नजर में हत्या का मामला दिख रहा था. लिहाजा उन्होंने सीन औफ क्राइम मोबाइल यूनिट के प्रभारी डा. आर.पी. शुक्ला को मौके पर बुला लिया.

फोरैंसिक एक्सपर्ट डा. आर.पी. शुक्ला ने मौका मुआयना कर शव को देख कर बताया कि मरने वाले की उम्र 35 साल से अधिक लग रही है. लाश को देखने से प्रतीत हो रहा है कि लाश महीनों पुरानी है और उस की गरदन काट कर हत्या की गई होगी.

एफएसएल टीम ने मौकामुआयना कर वैज्ञानिक साक्ष्य एकत्र कर धड़ को संजय गांधी मैडिकल कालेज की फोरैंसिक शाखा भेज दिया. यह बात 26 अक्तूबर, 2022 की है.

सोशल मीडिया पर यह खबर जंगल की आग की तरह फैलते ही कुछ ही घंटों में पुलिस को पता चल गया कि बिना सिर वाली लाश पास के गांव ऊमरी में रहने वाले 42 साल के रामसुशील पाल की है.

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           एसपी नवनीत भसीन

रीवा जिले के एसपी नवनीत भसीन ने मऊगंज थाने की टीआई श्वेता मौर्य, एसआई लालबहुर सिंह, एएसआई आदि के नेतृत्व में एक टीम का गठन कर जल्द ही रामसुशील की हत्या का खुलासा करने का निर्देश दिया.

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         टीआई श्वेता मौर्य

पुलिस टीम जांच करने जब ऊमरी गांव पहुंची तो पूछताछ में पता चला कि रामसुशील ऊमरी गांव में रहने वाले साधारण किसान मोहन पाल का सब से बड़ा बेटा था. वह पेशे से ड्राइवर था. अपने पेशे की वजह से वह कईकई महीने तक घर से बाहर रहता था.

रामसुशील की पहली पत्नी की मौत के बाद करीब 4 साल पहले उस ने मिर्जापुर निवासी रंजना पाल से विवाह किया था. शादी के शुरुआती समय तो सब ठीकठाक चलता रहा, मगर कुछ समय बाद ही दोनों के बीच मनमुटाव हो गया था.

पुलिस टीम ने जब घर के आसपास रहने वाले लोगों से पूछताछ की तो पता चला कि रामसुशील तो पिछले डेढ़ साल से गांव में किसी को दिखा ही नहीं. जब गांव के लोग पूछताछ करते तो पत्नी रंजना बताती कि उस का पति काम के सिलसिले में उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर गया है.

पुलिस को रामसुशील के घर जा कर यह भी मालूम हुआ कि रंजना भी कुछ दिनों पहले अपने बच्चों को ले कर मायके मिर्जापुर गई हुई है. इस वजह से पुलिस के शक की सूई रंजना की तरफ ही घूम रही थी. लिहाजा पुलिस की एक टीम रंजना की तलाश के लिए मिर्जापुर भेजी गई.

पुलिस ने सख्ती दिखाते हुए रंजना से पूछताछ की तो उस ने पति की मौत की पूरी कहानी बयां कर दी.

मध्य प्रदेश के रीवा जिले के मऊगंज जनपद पंचायत के छोटे से गांव ऊमरी श्रीपथ में रहने वाले किसान मोहन पाल के 3 बेटों में 42 साल का रामसुशील सब से बड़ा था. उस के बाद अंजनी पाल और सब से छोटा 30 साल का गुलाब था.

रामसुशील पेशे से ट्रक ड्राइवर था. उस की पहली शादी 22 साल की उम्र में हो गई थी. एक बेटे और बेटी के जन्म के बाद वह अपनी पत्नी के साथ बुरा व्यवहार करने लगा था. नशे की लत और उस की प्रताडऩा से तंग आ कर पत्नी ने आग लगा कर आत्महत्या कर थी.

उस समय उस के बच्चों की उम्र कम थी, इसलिए समाज के लोगों ने रामसुशील के मातापिता को बच्चों की परवरिश के लिए उस की दूसरी शादी करने की सलाह दी.

उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर में रहने वाली रंजना पाल भी पति की मारपीट से तंग आ कर मायके में रह रही थी. उस के 2 बेटे थे. समाज के लोगों ने यही सोच कर दोनों की शादी करा दी कि दोनों के बच्चों की परवरिश होने लगेगी.

इस तरह ढह गई मर्यादा की दीवार

रामसुशील नशे का आदी होने की वजह से घरपरिवार की जिम्मेदारियों से बेखबर रहता था. लिहाजा दोनों के बीच तकरार बढऩे लगी.

रामसुशील का परिवार गांव में घर के 3 हिस्सों में अलगअलग रहता था. एक हिस्से में रामसुशील का परिवार, दूसरे हिस्से में उस का भाई अंजनी पाल अपनी पत्नी और बच्चों के साथ, जबकि सब से छोटा भाई गुलाब  मातापिता के साथ रहता था. उस समय गुलाब की शादी नहीं हुई थी.

रामसुशील काम के सिलसिले में अकसर 15-15 दिन घर से बाहर रहता था. इस का फायदा उठाते हुए रंजना का झुकाव अपने देवर गुलाब की तरफ हो गया. उस समय गुलाब 30 साल का गोराचिट्टा जवान व कुंवारा था.

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   आरोपी गुलाब पाल

गुलाब भाभी का लाडला देवर था, परंतु रामसुशील की बुरी आदतों की वजह से अपने भाइयों से नहीं पटती थी. रामसुशील पैतृक संपत्ति का ज्यादा भाग खुद उपयोग कर रहा था. इस वजह से उस के भाई भी उस से नफरत करते थे.

ऐसे में रंजना ने गुलाब पर डोरे डालने शुरू कर दिए. गुलाब उम्र की जिस दहलीज पर खड़ा था, वहां पर शादीशुदा नाजनखरों वाली भाभी रंजना के बिछाए प्रेम जाल में वह फंस ही गया. लिहाजा जल्द ही दोनों के बीच अवैध संबंध हो गए.

इस के बाद तो गुलाब और रंजना का इश्क परवान चढऩे लगा था. जब भी उन्हें मौका मिलता, वे अपनी हसरतों को पूरा कर लेते. लेकिन कहते हैं कि इश्क और मुश्क छिपाए नहीं छिपते. यही हाल हुआ भौजाई रंजना और देवर गुलाब के इश्क का. आखिर पति रामसुशील को देवर भौजाई के चोरीछिपे चल रहे इश्क का पता चल ही गया.

एक दिन शराब के नशे में चूर रामसुशील जब घर पहुंचा तो रंजना पर बरस पड़ा, ”छिनाल, तूने आखिर अपनी औकात दिखा ही दी. गुलाब के साथ रंगरलियां मना रही है.’’

रामसुशील ने भद्दी गालियां देते हुए रंजना की पिटाई कर दी. अब तो आए दिन दोनों के बीच झगड़ा आम बात हो गई थी. जब रामसुशील गुस्से में रंजना की पिटाई करता तो प्रेमी गुलाब के सीने पर सांप लोट जाता.

छोटा भाई क्यों बना जान का दुश्मन

रोजरोज अपनी प्रेमिका की पिटाई से उसे दुख पहुंचता. एक दिन मौका पा कर गुलाब ने रंजना से साफसाफ कह दिया, ”भौजी, हम से तुम्हारा दर्द देखा नहीं जाता. आखिर कब तक जुल्म सहती रहोगी.’’

”कुछ समझ भी नहीं आता, आखिर ऐसे मर्द के साथ मैं निभाऊं कैसे.’’ रंजना बोली.

”मेरी तो इच्छा है कि ऐसे मर्द को तुम्हारी जिंदगी से हमेशा के लिए दूर कर दूं, फिर हमारे प्यार में कोई अड़चन ही नहीं होगी.’’ गुलाब रंजना से बोला.

”लेकिन यह काम इतना आसान नहीं है. यदि यह राज किसी को पता चल गया तो जेल में चक्की पीसेंगे हम दोनों.’’ रंजना ने आशंका व्यक्त करते हुए कहा.

”मेरे पास एक प्लान है, तुम अगर मानो तो किसी को कानोकान खबर नहीं होगी.’’ गुलाब चहकते हुए बोला.

”बताओ, ऐसा कौन सा प्लान है तुम्हारे पास?’’ रंजना बोली.

”भौजी, मैं बाजार से चूहे मारने वाली दवा ला कर दूंगा, तुम चुपचाप खाने में मिला कर रामसुशील भैया को खिला देना.’’ गुलाब बोला.

”फिर… घर के लोगों को क्या बताएंगे कि कैसे मर गए?’’ रंजना आगे की मुश्किल देखते हुए बोली.

”तुम इस की चिंता मत करो. रातोंरात मैं लाश को ठिकाने लगा दूंगा और लोगों से कह देंगे कि भैया काम के सिलसिले में बाहर गए हुए हैं.’’ गुलाब रंजना को आश्वस्त करते हुए बोला.

गुलाब और रंजना का प्यार अब घर वालों को भी पता चल चुका था. गुलाब के रंजना से संबंधों की भनक पिता मोहन पाल को लगी तो उन्होंने माथा पीट लिया. समाज में ऊंचनीच न होने के भय से उन्होंने यह सोच कर गुलाब की शादी कर दी कि शादी होते ही वह अपनी भाभी से दूर रहने लगेगा.

मगर शादी होने के बाद भी गुलाब की रंजना से नजदीकियां कम नहीं हुईं. गुलाब की पत्नी भी गुलाब की इन हरकतों से परेशान थी. गुलाब अपनी नवविवाहिता पत्नी पर फिदा होने के बजाय रंजना भाभी की जवानी के गुलशन का भंवरा बना हुआ था. गुलाब की नईनवेली पत्नी जब गुलाब को रंजना से दूर रहने को कहती तो वह उलटा उस के साथ ही मारपीट करने लगता.

रामसुशील जब भी घर आता तो वह देखता कि गुलाब रंजना के इर्दगिर्द घूमता रहता है. इस बात को ले कर वह गुलाब को भलाबुरा भी कह चुका था. गुलाब अपने भाई से जब जमीन के बंटवारे की बात कहता तो रामसुशील उसे डराधमका कर चुप करा देता.

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         आरोपी अंजनी पाल

जमीनजायदाद के बंटवारे को ले कर जब भी उन का आपसी विवाद होता तो उस के चाचा रामपति और उस के लड़के सूरज और गुड्डू भी गुलाब और अंजनी का पक्ष लेते. इस से रामसुशील अपने चाचा और उन के बेटों के साथ गालीगलौज करता.

समोसे की चटनी में मिलाया जहर

रामसुशील से तंग आ कर 2021 के मई महीने में रंजना और गुलाब ने रामसुशील को रास्ते से हटाने का प्लान बनाया और एक रात रंजना ने घर पर स्वादिष्ट समोसे बनाए.

समोसे खाने का रामसुशील शौकीन था, उसे टमाटर की चटनी के साथ समोसे खाना बहुत अच्छा लगता था. रंजना ने समोसे के साथ परोसी गई चटनी में चूहे मारने की दवा मिला दी थी.

रामसुशील चटखारे मार कर समोसे खा गया, मगर उसे इस बात का पता नहीं था कि उस की पत्नी ने जो प्यार जता कर समोसे परोसे हैं, उस में उस की मौत छिपी हुई थी.

पेट भर समोसे खा लेने के बाद रामसुशील सोने चला  गया. बच्चों के सोने के बाद जब रंजना रात के करीब 12 बजे पति के बिस्तर पर पहुंची तो उस ने हिलाडुला कर पति की नब्ज टटोली.

कोई हलचल न पा कर रंजना ने गुलाब को फोन कर खबर कर दी. गुलाब भी इसी पल का इंतजार कर रहा था. उस ने जमीन के बंटवारे में हिस्सा दिलाने का लालच दे कर अपने भाई अंजनी पाल को भी साथ ले लिया.

जैसे ही गुलाब और अंजनी भाभी के बुलावे पर रामसुशील के पास कमरे में पहुंचे तो रामसुशील को बेहोश देख कर बहुत खुश हुए. उन्हें लगा कि भाई जिंदा न बचे, इसलिए अपने साथ लाए धारदार हथियार से गुलाब ने रामसुशील का गला काट कर भाई अंजनी की मदद से धड़ और सिर प्लास्टिक की बोरी में भर दिया.

दूसरे दिन सुबह जल्दी उठ कर अंधेरे में ही गुलाब लाश वाली बोरी को साइकिल पर लाद कर अपने चाचा रामपति पाल के खेत पर पहुंच गया. वहां चाचा के लड़के सूरज और गुड्डू की मदद से भूसा रखने वाले कमरे में उस ने लाश की बोरी दबा दी.

इस काम में चाचा के बेटों गुड्डू पाल और सूरज पाल ने इसलिए मदद की क्योंकि एक बार जमीनी विवाद में इन का झगड़ा रामसुशील से हो गया था, तब रामसुशील ने पूरे गांव के सामने उन का अपमान किया था. अपने अपमान का बदला लेने के लिए वे गुलाब के इस प्लान में शामिल हो गए.

सुबह जब बच्चे सो कर उठे तो उन्हें रंजना ने बताया कि उस के पापा काम के सिलसिले में बाहर गए हैं. रामसुशील को रास्ते से हटाने के बाद गुलाब और रंजना के प्रेम की राह आसान हो गई थी. अब वे अपनी मरजी के मुताबिक जिंदगी जी रहे थे. गुलाब अपनी बीवी की उपेक्षा कर भाभी रंजना पर अपनी कमाई लुटा रहा था. रंजना भी गुलाब की दीवानगी का खूब फायदा उठा रही थी.

17 महीने बाद कैसे खुला राज

लाश को छिपाए करीब 17 महीने बीतने को थे, परंतु हर समय गुलाब के मन में पकड़े जाने का भय बना रहता था. गुलाब के चाचा रामपति को जब इस बात का पता चला तो वह गुलाब पर लाश को वहां से हटाने का दबाव बनाने लगे थे.

उन्होंने साफतौर पर कह दिया था, ”भूसा भरने वाले कमरे से वह जल्द ही लाश को हटा दे, नहीं तो वह पुलिस को सब कुछ बता देंगे.’’

पशुओं के लिए रखा भूसा भी खत्म होने को था. 25 अक्तूबर, 2022 की रात को गुलाब ने लाश वाली बोरी ला कर पास के गांव निबिहा के नाले के पास फेंक दी और घर जा कर चैन की नींद सो गया.

अगली सुबह रामसुशील की लाश मिलते ही गुलाब राज खुलने के डर से भयभीत हो गया और उस ने फोन लगा कर रंजना को बताते हुए सचेत कर दिया था.

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                                                    हिरासत में आरोपी

सूचना मिलने पर मऊगंज थाने की टीआई श्वेता मौर्य पुलिस टीम के साथ मौके पर पहुंची और सिर व धड़ बरामद कर पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिए. पुलिस जांच में रंजना से पूछताछ की गई तो थोड़ी सख्ती से रंजना जल्दी ही टूट गई और पुलिस को उस ने सच्चाई बता दी.

देवरभाभी के प्रेम और वासना की आग में अंधे हो कर रामसुशील को ठिकाने लगा कर यही समझ बैठे थे कि वे पुलिस की आंखों में धूल झोंक कर कानून की नजरों से बच जाएंगे, परंतु उन का यह भ्रम जल्दी ही टूट गया.

17 महीने तक भूसे के ढेर में दबी लाश जब बाहर निकली तो रामसुशील की हत्या का पूरा सच सामने आ गया.

पुलिस ने गुलाब, रंजना के साथ उस के भाई अंजनी व चाचा रामपति को भादंवि की धारा 302 और 201 के तहत मामला कायम कोर्ट में पेश किया, जहां से रंजना को महिला जेल रीवा और गुलाब, अंजनी और रामपति को उपजेल मऊगंज भेज दिया.

कथा लिखे जाने तक 2 आरोपी जेल में बंद थे और उन के खिलाफ आरोपपत्र कोर्ट में पेश किया जा चुका था.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

रागिनी गायिका को मिला मौत का तोहफा

ग्रेटर नोएडा की बीटा-2 कोतवाली के प्रभारी सुरजीत उपाध्याय शाम 8 बजे खाना खाने के बाद अपने औफिस में पहुंचे. वह वहां से गश्त के लिए निकलने की तैयारी कर रहे थे, तभी पीसीआर द्वारा उन्हें सूचना मिली कि मित्रा एन्क्लेव सोसाइटी के गेट पर बदमाशों ने एक महिला की गोली मार कर हत्या कर दी है. महिला को उस के साथी कैलाश अस्पताल ले कर गए हैं.

हत्या जैसी वारदात किसी भी अधिकारी के मुंह का स्वाद कसैला कर देती है. बावजूद इस के सुरजीत उपाध्याय ने देर नहीं की. उन्होंने एसआई अनूप के नेतृत्व में एक टीम मित्रा एन्क्लेव सोसाइटी की तरफ रवाना कर दी और खुद एसआई संदीप कालखंडे, हेडकांस्टेबल किशोरीलाल, कांस्टेबल अंशुल, दीपक, राशिद और सुमित को ले कर कैलाश अस्पताल पहुंच गए.

वहां पता चला कि जिस महिला को गोली लगी है, वह रागिनी व लोकगीतों की मशहूर गायिका सुषमा है. अस्पताल में सुषमा के परिवार और जानपहचान वालों की भीड़ जमा हो चुकी थी. पुलिस के अस्पताल पहुंचने से पहले ही डाक्टरों ने सुषमा को मृत घोषित कर दिया था. जिस कारण अस्पताल में सुषमा के परिजनों का विलाप शुरू हो गया था.

चूंकि अब यह वारदात हत्या की हो चुकी थी, इसलिए परिजनों से पूछताछ करने से पहले थानाप्रभारी सुरजीत उपाध्याय ने इस घटना की जानकारी ग्रेटर नोएडा की सीओ (प्रथम) तनु उपाध्याय के साथ एसपी (ग्रामीण) रणविजय सिंह और एसएसपी वैभव कृष्ण को दे दी. कुछ ही देर में ये तीनों अधिकारी भी कैलाश अस्पताल पहुंच गए.

सुषमा की बहन सोनू ने घटना के बारे में विस्तार से पुलिस को सारी बात बता दी.

सोनू ने बताया कि उस रात यानी पहली अक्तूबर की रात के करीब 8 बजे वह अपनी बहन सुषमा, सहेली वैशाली और ड्राइवर सचिन के साथ अपनी ब्रेजा कार से ग्रेटर नोएडा स्थित मित्रा सोसायटी के बाहर पहुंची थी. उस की बहन सुषमा दूध लेने के लिए सोसाइटी के बाहर ही कार से नीचे उतर गई थी.

ठीक उसी वक्त मित्रा सोसाइटी के गेट से एक पल्सर बाइक बाहर निकली, जिस पर चालक समेत 2 लोग सवार थे. दोनों ने ही  हेलमेट पहने हुए थे. एक क्षण के लिए उन की बाइक सोसाइटी के बाहर सुषमा की कार के समीप आ कर रुकी. तब तक सुषमा अपनी कार का दरवाजा खोल कर नीचे उतर चुकी थी.

अचानक रुकी बाइक की पिछली सीट पर बैठा युवक बाइक से नीचे उतर कर सुषमा के बेहद करीब पहुंच गया. फुरती के साथ उस ने जेब से पिस्टल निकाली और सुषमा पर ताबड़तोड़ गोलियां बरसा दीं.

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सुषमा को 4 गोलियां लगीं, जिस में से एक सिर में, दूसरी सीने में और बाकी 2 गोलियां शरीर के दूसरे हिस्सों में लगीं. एक के बाद एक 4 गोलियां लगने के बाद सुषमा लहरा कर वहीं गिर पड़ी. अचानक सुषमा पर हुए इस हमले को जब तक वे तीनों समझते और कार से नीचे उतर कर सुषमा की मदद करते, तब तक गोलीबारी करने वाले बाइक पर सवार हो कर फरार हो गए थे.

जिस समय यह वारदात हुई थी, उस वक्त सोसाइटी में चहलपहल थोड़ी कम थी. लेकिन इस के बावजूद मुख्य द्वार पर बने गार्ड रूम से सिक्योरिटी गार्ड बाहर निकल आए और गोलियों की आवाज सुन कर सोसाइटी में इधरउधर टहल रहे लोग भी दरवाजे पर आ गए.

किसी की समझ में नहीं आया कि अचानक यह हमला कैसे हुआ और हमलावर कौन थे. वे सोसाइटी के भीतर कैसे पहुंचे. सुषमा की बहन सोनू मदद के लिए चीखने चिल्लाने लगी तब तक वहां लोगों की भीड़ एकत्र हो चुकी थी. किसी ने सुषमा को जल्द हौस्पिटल ले जाने की बात कही, तो सोनू ने सचिन की मदद से खून से लथपथ सुषमा को दोबारा अपनी गाड़ी में डाला.

कुछ ही देर में उन की कार समीप के कैलाश हौस्पिटल पहुंची, जहां तत्काल सुषमा को आईसीयू में भरती कर के उस का उपचार शुरू कर दिया गया. तब तक सोनू ने अपने परिचितों और परिवार वालों को फोन कर के सुषमा पर हुए हमले की जानकारी दे दी और उन से अस्पताल पहुंचने के लिए कहा. इस दौरान किसी ने पुलिस नियंत्रण कक्ष को भी गोलीबारी से हुए इस हमले की सूचना दे दी थी.

जिस के बाद पीसीआर की गाड़ी जब मित्रा एन्क्लेव सोसाइटी पर पहुंची तो पता चला कि इस हमले में रागिनी गायिका सुषमा गंभीर रूप से घायल हुई है और उसे कैलाश अस्पताल ले जाया गया है.

जिस जगह यह वारदात हुई थी, वह क्षेत्र बीटा-2 कोतवाली क्षेत्र में आता है. पीसीआर ने बीटा-2 कोतवाली को पूरी वारदात की जानकारी दे कर आगे की काररवाई के लिए कैलाश अस्पताल पहुंचने को कहा था.

थानाप्रभारी सुरजीत उपाध्याय ने सुषमा की बहन सोनू के साथ कार में सवार वैशाली और कार चालक सचिन के बयान भी दर्ज किए. सोनू के बयान के आधार पर थानाप्रभारी ने हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया.

एसएसपी वैभव कृष्ण ने एसपी (ग्रामीण) रणविजय सिंह को निर्देश दिया कि वह अपनी निगरानी में जल्द से जल्द हत्या की इस वारदात का खुलासा करें. इसीलिए एसपी रणविजय सिंह ने बीटा-2 थानाप्रभारी सुरजीत उपाध्याय को इस केस की जांच का जिम्मा सौंप कर उन की मदद के लिए क्राइम ब्रांच की स्टार-2 टीम के इंचार्ज यतेंद्र सिंह, हेड कांस्टेबल सत्येंद्र सिंह, कृष्ण कुमार, प्रवीण मलिक, अमित शर्मा और उदयवीर को तैनात कर दिया. सीओ तनु उपाध्याय को पूरे मामले की मौनिटरिंग करने की जिम्मेदारी सौंपी गई.

मरने वाली सुषमा उसी मित्रा एन्क्लेव सोसायटी के फ्लैट नंबर सी-104 में रहती थी. जिस वक्त अपार्टमेंट के बाहर सुषमा को गोली मारी गई थी, उस वक्त सुषमा का पति गजेंद्र भाटी अपने 2 बच्चों के साथ घर में ही मौजूद था. जैसे ही उसे पत्नी को गोली मारे जाने की सूचना मिली तो उस के होशोहवास उड़ गए और वह तत्काल कैलाश हौस्पिटल पहुंच गया.

मामला दर्ज करने के बाद पुलिस ने जांच का काम तेजी से शुरू कर दिया. पुलिस की टीमें प्रत्यक्षदर्शियों से पूछताछ करने लगीं. पुलिस ने सुषमा के फोन की काल डिटेल्स खंगाली. मित्रा सोसाइटी के गेट और आसपास लगे सीसीटीवी फुटेज को देखा जाने लगा, सुषमा की जिंदगी के हर पन्ने को पुलिस बारीकी से पढ़ने लगी.

सुषमा से दोस्ती और दुश्मनी रखने वाले तमाम लोगों को पुलिस ने जांच के केंद्र में ले लिया और धीरेधीरे पुलिस कातिलों के करीब पहुंचने लगी.

6 अक्तूबर, 2019 की शाम करीब 7 बजे का वक्त था. एक अहम सूचना के बाद थाना पुलिस और क्राइम ब्रांच की स्टार-2 की टीम ने सिग्मा-4 सैक्टर के समीप सर्विस रोड पर बदमाशों को पकड़ने के लिए घेराबंदी की हुई थी. तभी तेजी से आती एक फौर्च्युनर कार को पुलिस ने वहां रोकने का प्रयास किया. लेकिन कार चालकों ने कार को रोकने के बजाए पुलिस पर गोली चला दी.

इस के बाद दोनों तरफ से गोलियां चलने लगीं. 10 मिनट बाद कार से उतर कर भाग रहे 2 बदमाशों के पैरों पर पुलिस ने गोली चलाई, जिस से वे घायल हो गए. पुलिस ने जब उन्हें काबू कर के पूछताछ की तो हैरान करने वाली जानकारी सामने आई.

दोनों कुख्यात अपराधी थे. इन में से एक मुकेश पड़ोसी जिले बुलंदशहर के थाना अगौता के गांव जोलीगढ़ का और दूसरा संदीप गौतमबुद्ध नगर के थाना जेवर इलाके में स्थित गांव थोरा का रहने वाला था.

दोनों बदमाशों के पैर में गोली लगी थी, इसलिए उन्हें तत्काल इलाज के लिए अस्पताल में भरती करा दिया गया. पुलिस की एक टीम जहां उन से पूछताछ का काम कर रही थी तो दूसरी टीम उन से पूछताछ में मिली जानकारी के आधार पर छापेमारी करने में जुट गई. संदीप और मुकेश जिस फौर्च्युनर गाड़ी में सवार थे, पुलिस ने उस की तलाशी ली तो उस में से एक 30 एमएम का पिस्टल और .315 बोर का तमंचा बरामद हुआ था.

बुलंदशहर के रहने वाले मुकेश के बारे में जब जानकारी जुटाई गई तो पता चला कि उस के खिलाफ लूट, डकैती जैसे गंभीर अपराधों के 22 मुकदमे पहले से दर्ज हैं, जबकि संदीप के खिलाफ भी लूट के 2 मुकदमे दर्ज होने की जानकारी सामने आई.

पुलिस की टीम ने जब इलाज के दौरान दोनों से पूछताछ की तो अचानक रागिनी गायिका सुषमा की हत्या की गुत्थी सुलझती चली गई. संदीप और मुकेश से हुई पूछताछ के आधार पर पुलिस की 2 अलगअलग टीमों ने छापेमारी शुरू कर दी.

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पुलिस ने उसी रात सुषमा के पति गजेंद्र भाटी, गजेंद्र के ड्राइवर अमित, गजेंद्र के गांव बिलासपुर में रहने अमित के तयेरे भाई अजब सिंह, बुलंदशहर के मेहसाना गांव में रहने वाले अजब सिंह के दोस्त प्रमोद को भी गिरफ्तार कर लिया गया.

जब इन सभी आरोपियों से पूछताछ हुई, तो सुषमा हत्याकांड की हैरान कर देने वाली कहानी सामने आई-

उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर जिले के जहांगीरपुर थाना क्षेत्र में एक गांव है नेकपुर. इसी गांव में रहने वाले जाट परिवार में सुषमा का जन्म हुआ था. 26 साल की सुषमा अपने मातापिता की 6 संतानों में सब से बड़ी थी. सुषमा की 5 बहनें और एक भाई है. भाई तीसरे नंबर का है. 3 छोटी बहनों को छोड़ कर सभी का विवाह हो चुका था.

सुषमा जब स्कूल में पढ़ती थी और उस की उम्र 13 साल थी, उसी समय से उसे रागिनी और लोकगीत गाने का ऐसा शौक लगा कि वह जल्द ही रागिनी गायकों की मंडली में जा कर गाने लगी.

16 साल की उम्र तक आतेआते सुषमा इलाके की जानीमानी युवा रागिनी गायिका बन गई. सुषमा को उस के गांव के नाम नेकपुर के नाम से पुकारा जाने लगा. धीरेधीरे उस की पहचान रागिनी गायिका सुषमा नेकपुर के रूप में कायम हो गई.

सुषमा की कला को देख कर उस की तीसरे नंबर की बहन सोनू को भी स्कूली समय से ही गानेबजाने का शौक लग गया और वह भी बाद में अपनी बहन सुषमा की तरह न सिर्फ स्टेज पर रागिनी गायिका की तरह परफौर्म करने लगी, बल्कि रागिनी पर होने वाले ग्रुप डांस में भी शामिल होने लगी. सोनू को बचपन से ही मर्दाना लिबास और मर्दाना रूपरंग में रहने का शौक था. इसलिए वह ज्यादातर पैंटशर्ट पहनती. उस के हेयरस्टाइल भी मर्दों जैसे ही थे.

धीरेधीरे सोनू के साथ एक उपनाम भी जुड़ गया सम्राट और लोग उसे सोनू सम्राट के नाम से जानने लगे.

सुषमा ने छोटी बहन सोनू के हुनर को देख कर उसे भी अपने साथ जोड़ लिया. सुषमा और सोनू की मंडली का ग्रेटर नोएडा की सिसौदिया म्यूजिक कंपनी से करार था. सुषमा के स्टेज शो को सिसौदिया म्यूजिक कंपनी ही रिकौर्ड कर के उस की सीडी बाजार में बेचती थी. साथ ही सुषमा के स्टेज शो और रागिनी के वीडियो यूट्यूब पर भी डाले जाते थे, जिस पर सिसौदिया म्यूजिक कंपनी का ही अधिकार था.

सुषमा और सोनू सम्राट कुछ ही सालों में पश्चिमी उत्तर प्रदेश से ले कर हरियाणा और राजस्थान के कुछ हिस्सों में भी इतनी लोकप्रिय हो गईं कि लोग जागरण से ले कर स्टेज शो कराने के लिए उन्हें मुंहमांगी रकम दे कर बुलाने लगे.

गांव देहात में रहने वाले लोगों को जवान होती बेटी के हाथ पीले करने की बहुत जल्दबाजी होती है. सुषमा ने जैसे ही जवानी की दहलीज पर कदम रखा, उस के मातापिता ने उस के लिए लड़के देखने शुरू कर दिए. लेकिन इसी दौरान सुषमा को गाजियाबाद में रहने वाला एक युवक संदीप कौशिक पसंद आ गया.

जब परिवार वालों ने सुषमा के लिए लड़कों की खोजबीन शुरू की, तो सुषमा ने उन्हें अपनी पसंद के बारे में बताया. सुषमा अपने पैरों पर खड़ी थी, वह बालिग थी और साथ ही परिवार की मदद भी करती थी. इसलिए मातापिता ने विजातीय होने के बावजूद सुषमा को संदीप कौशिक से शादी करने की मंजूरी इसलिए दे दी, क्योंकि वह ब्राह्मण जैसी उच्च जाति का लड़का था.

संदीप एक बड़ी कंपनी में नौकरी करता था. संयुक्त परिवार में रहता था और विजातीय होने के कारण उस के परिवार के रस्मोरिवाज और संस्कार भी सुषमा से अलग थे.

सुषमा ज्यादातर जागरण की पार्टियों और शादी समारोह के फंक्शन में अपने ग्रुप के साथ जाती थी. इन सब कारणों से सुषमा समय बेसमय अपनी ससुराल आतीजाती थी, जिस के चलते जल्द ही अपने पति संदीप कौशिक और उस के परिवार वालों से सुषमा की अनबन शुरू हो गई.

7-8 महीने भी नहीं बीते थे कि सुषमा और संदीप का मनमुटाव इस मुकाम तक पहुंच गया कि उस ने सुषमा से अलग होने का फैसला कर लिया.

सुषमा और संदीप अलगअलग तो रहने लगे, लेकिन उन का संबंध इतनी आसानी से खत्म नहीं हुआ. परिवार वालों के कहने पर सुषमा ने गाजियाबाद कोर्ट में अपने पति संदीप के खिलाफ दहेज उत्पीड़न का मामला दर्ज करवा दिया.

यह मामला 2-3 साल तक अदालत में चलता रहा. इस दौरान सुषमा अपनी बहन सोनू के साथ पूरी तरह रागिनी गायन के कार्यक्रमों में व्यस्त रहने लगी. सुषमा ने अब अपने गांव नेकपुर की जगह ग्रेटर नोएडा में ही फ्लैट ले कर रहना शुरू कर दिया था. क्योंकि गांव से आनेजाने में उसे काफी परेशानी होती थी.

सुषमा दिनोंदिन लोकप्रियता की सीढि़यां चढ़ रही थी. ग्रामीण इलाकों में रहने वाले रागिनी के शौकीनों में उस की लोकप्रियता लगातार बढ़ रही थी. इधर 4 साल पहले अदालत में चल रहे दहेज उत्पीड़न के मुकदमे से परेशान हो कर संदीप कौशिक ने सुषमा से अदालत से बाहर उसे 10 लाख रुपए का हरजाना दे कर समझौता कर लिया और दोनों के बीच रजामंदी से तलाक हो गया.

पति से तलाक के बाद सुषमा एक बार फिर आजाद हो गई. सुषमा अब अपने रागिनी गायन के काम में पूरी तरह खो गई थी. अब ग्रामीण क्षेत्र की बहुत सी लड़कियां भी सुषमा की शिष्या बन कर उस से रागिनी की कला और गायन विद्या सीखने लगी थीं.

जिन दिनों अदालत में सुषमा का अपने पति से तलाक का मुकदमा चल रहा था, उन्हीं दिनों सुषमा की जिंदगी में गजेंद्र भाटी ने प्रवेश किया. गौतमुद्धनगर के बिलासपुर का रहने वाला गजेंद्र भाटी (30) एक जमींदार परिवार का नौजवान था.

परिवार में पत्नी रीना के अलावा 3 बच्चे भी थे. गजेंद्र भाटी को उस के दोस्त गज्जी के नाम से पुकारते थे. उस के बिलासपुर और दनकौर में 2 ईंट भट्ठे थे. इस के अलावा गांव में उस की खेती की कई बीघा जमीन थी. उस ने ग्रेटर नोएडा में साईं प्रौपर्टी के नाम से प्रौपर्टी डीलिंग का औफिस भी खोल रखा था. ग्रेटर नोएडा की कई सोसाइटियों में उस ने फ्लैट खरीद कर पैसे का निवेश भी किया हुआ था.

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      हत्यारोपी गजेंद्र भाटी

कहते हैं जब इंसान के पास दौलत आती है तो साथ में बुरी आदतें भी आनी शुरू हो जाती हैं. गजेंद्र को भी अमीरी के साथ शराब पीने और लड़कियों के साथ अय्याशी की लत लग गई थी. वह अकसर दोस्तों के साथ अपने औफिस और फार्महाउसों में शराब की पार्टियां करता था. कभीकभी इन पार्टियों में कालगर्ल भी बुलाई जाती थी.

गज्जी की पत्नी रीना गांव की एक सीधीसादी और साधारण शक्लसूरत वाली थी, इसलिए वह घर से बाहर खूबसूरत लड़कियों में अपने लिए खुशी तलाशता था. करीब 5 साल पहले गज्जी की सुषमा से पहली मुलाकात नोएडा की सिसौदिया कैसेट कंपनी के औफिस में हुई थी. गजेंद्र भाटी वहां सुषमा की आवाज में एक भजन की कैसेट रिकौर्ड करवाने के लिए आया था.

अमूमन सोनू और सुषमा साथ ही परफौर्म करती थीं, पर उस भजन कैसेट में सुषमा ने अकेले ही परफौर्म किया था, क्योंकि ये भाटी की डिमांड थी. गजेंद्र पहली मुलाकात में ही सुषमा पर फिदा हो गया. उस ने सुषमा को उस भजन के लिए मुंहमांगी रकम दी थी, जिस से सुषमा भी पहली ही बार में उस से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकी थी.

सुषमा और गजेंद्र की मुलाकात जल्द ही दोस्ती में बदल गई. सुषमा की लोकप्रियता के चर्चे गजेंद्र ने पहले भी सुने थे. जब सुषमा हकीकत में गजेंद्र की दोस्त बन गई तो गजेंद्र उसे अपने साथ इधरउधर घुमाने लगा.

गजेंद्र के पास पैसे की कमी नहीं थी. लिहाजा सुषमा को प्रभावित करने के लिए वह उसे महंगे तोहफे देता था. इस सब का असर यह हुआ कि दोनों के बीच एकदूसरे के लिए प्यार और अपनत्व के भाव पैदा हो गए.

हर औरत को एक मर्द के सहारे की जरूरत होती है. लिहाजा जब गजेंद्र जैसा अमीर और जवान दोस्त सुषमा के प्यार में डूबा तो सुषमा भी उस के प्यार में डूबने से बच न सकी. दोनों के बीच जल्द ही जिस्मानी संबध भी कायम हो गए.

एक बार दोनों के बीच रिश्ते कायम हुए तो फिर अकसर ही ऐसा होने लगा. इस के बाद जल्द ही गजेंद्र ने सुषमा के सारे खर्चे भी उठाने शुरू कर दिए. जिस फ्लैट में सुषमा अपनी बहन सोनू सम्राट के साथ रहती थी, उस के किराए से ले कर घर के तमाम खर्चे भी गजेंद्र ही उठाने लगा. एक तरह से गजेंद्र और सुषमा बिना शादी के पतिपत्नी के तौर पर साथ रहने लगे थे.

चूंकि तब तक सुषमा का संदीप के साथ कानूनी तलाक नहीं हुआ था, इसलिए सुषमा और गजेंद्र ने लिवइन रिलेशन में रहने के बावजूद अपने संबंधों को दुनिया से छिपा रखा था. लेकिन जब 4 साल पहले सुषमा का तलाक हो गया तो सुषमा ने अपने परिवार के सामने गजेंद्र के साथ अपने प्रेम संबधों का इजहार कर दिया.

चूंकि गजेंद्र ने सुषमा से वायदा किया था कि वह जल्द ही उस के साथ शादी कर लेगा, इसलिए सुषमा के परिजनों ने गजेंद्र के साथ भी उस के संबधों को कबूल कर लिया.

इस के बाद कुछ ऐसा हुआ कि सुषमा की जिद पर गजेंद्र ने एक मंदिर में जा कर पुजारी के सामने सुषमा के गले में माला डाल कर मांग में सिंदूर भर कर उसे अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया. लेकिन उस ने वायदा किया कि अपने परिवार को मनाने और पत्नी को तलाक देने के बाद वह उस के साथ विधिवत रूप से शादी कर लेगा. सुषमा ने उस वक्त गजेंद्र की इस बात पर पूरी तरह भरोसा कर लिया.

गुपचुप ढंग से की गई शादी के कुछ दिन बाद सुषमा को पहले पति से हरजाने के रूप में जो 10 लाख रुपए मिले थे, उस में से 7 लाख रुपए गजेंद्र ने सुषमा से ये कह कर ले लिए थे कि उस के सारे खाते इनकम टैक्स विभाग ने सीज कर दिए हैं और उसे पैसों की जरूरत है.

सुषमा से लिए हुए पैसों से भाटी ने ब्रेजा कार खरीदी, लेकिन उसे भी उस ने अपने नाम करा लिया था. ये कार उस ने किसी ब्रजपाल नाम के व्यक्ति के नाम पर ली, जिस के बारे में सुषमा को जरा सा भी इल्म नहीं हुआ. यही कार उस ने सुषमा को इस्तेमाल करने के लिए दी हुई थी.

इधर वक्त बीतने के साथ सुषमा बीचबीच में अकसर पूरे समाज के सामने गजेंद्र को शादी करने का वचन याद दिलाने लगी. वक्त इसी तरह तेजी से बीतने लगा. इस दौरान उस ने गजेंद्र के 2 बच्चों के रूप में साढे़ 3 साल पहले एक बेटी और उस के डेढ़ साल बाद एक बेटे को जन्म दिया. हालांकि गजेंद्र अब समाज में सुषमा को एक पत्नी की हैसियत से अपने साथ ले कर आताजाता था. लेकिन उस ने अपने परिवार के बीच अभी भी उसे वह दरजा नहीं दिया था.

गजेंद्र ने जब सुषमा से संबध बनाए थे, तभी उस ने वायदा किया था कि वह उस के और बच्चों के भविष्य की सुरक्षा के लिए एक फ्लैट खरीद कर देगा. 2 साल पहले उस ने ग्रेटर नोएडा के बीटा-2 सेक्टर की मित्रा एन्क्लेव सोसाइटी में सी-104 नंबर का 3 बैडरूम का फ्लैट खरीदा और तभी से सुषमा अपनी बहन और बच्चों के साथ वहां जा कर रहने लगी थी. लेकिन गजेंद्र ने इस मकान की रजिस्ट्री अपने नाम कराई थी.

इस फ्लैट को भाटी ने यह बोल कर खरीदा था कि वो सुषमा के लिए है. इसीलिए सुषमा ने कहा कि मेरे नाम मत खरीदो, इसे बेटे के नाम कर दो. लेकिन उस ने दोनों के नाम न कर के रजिस्ट्री खुद के नाम करा ली. इस से सुषमा को अपने दोनों बच्चों के भविष्य की चिंता सताने लगी थी.

इन वजहों से अब गजेंद्र और सुषमा के बीच अकसर विवाद होने लगा था. पहला तो यह कि सुषमा पूरे समाज के सामने गजेंद्र से अपने संबधों की मान्यता चाहती थी, दूसरे वह अपने व अपने बच्चों के भविष्य के लिए मित्रा सोसाइटी के फ्लैट को अपने नाम कराने की जिद करने लगी थी.

यह विवाद वक्त के साथसाथ इस तरह बढ़ने लगा कि अकसर कईकई दिन तक दोनों के बीच बातचीत तक बंद हो जाती थी. मकान की रजिस्ट्री अपने नाम कराने का विवाद धीरेधीरे इस कदर बढ़ता चला गया कि सुषमा अब गजेंद्र से अपना और अपने बच्चों का हक भी मांगने लगी थी.

तब गजेंद्र को लगने लगा कि उस ने अपने गले में मुसीबत डाल ली है. वह कभीकभी इतना परेशान हो जाता कि खुद को खत्म करने की बात सोचने लगता, तो कभी उस के मन में सुषमा से पीछा छुड़ाने के खयाल आने लगते.

13 फरवरी, 2018 को तो सुषमा और गजेंद्र के बीच इसी बात को ले कर विवाद इतना बढ़ गया कि गजेंद्र ने सुषमा को अपनी जान देने की धमकी देनी शुरू कर दी. एक दिन उस ने सुषमा को डराने के लिए आत्महत्या का नाटक भी किया. उस ने स्टूल पर चढ़ कर फांसी लगाने का नाटक किया था. लेकिन बाद में उस का ये नाटक हकीकत में बदल गया. उस का पैर स्टूल से ऐसे फिसला कि वो वहीं लटक गया.

उस दिन घर में मौजूद सुषमा व सोनू ने किसी तरह उसे रस्सी के फंदे से उतार कर अस्पताल पहुंचाया और उसे बचा लिया. ठीक होने के बाद कुछ दिन तक सब कुछ सामान्य रहा. लेकिन बाद में सुषमा अपने बच्चों के लिए जमीन में हिस्सेदारी और अन्य तरह की मांगें फिर करने लगी.

रोजरोज की समस्या को हमेशा के लिए खत्म करने के लिए गजेंद्र ने आखिर फैसला किया कि अपनी जान देने से अच्छा है कि सुषमा नाम के कांटे को ही अपनी जिंदगी से निकाल दिया जाए. इसीलिए करीब 7 महीने पहले से ही गजेंद्र ने सुषमा की हत्या की साजिश का तानाबाना बुनना शुरू कर दिया.

इस के लिए पहले गजेंद्र ने सुषमा के मोबाइल फोन पर कुछ ऐेसे संदिग्ध फोन कर के उसे जान से मारने की धमकी देनी शुरू कर दी, जिस से लोगों को लगे कि सुषमा को पहले से ही धमकियां दी जा रही थीं. बाद में उस ने अपने लोगों के जरिए सुषमा के फेसबुक व सोशल मीडिया पर अश्लील टिप्पणियां करवानी शुरू कर दीं, ताकि वह बदनाम हो जाए.

जब यह बात सुषमा ने गजेंद्र को बतानी शुरू की तो गजेंद्र ने सुषमा को ये विश्वास दिलाना शुरू कर दिया कि शायद सुषमा का पहला पति संदीप उसे परेशान कर रहा है. दरअसल अब गजेंद्र को सुषमा पर यह भी शक होने लगा था कि सुषमा का उस के अलावा किसी अन्य के साथ भी संबध बना हुआ है. क्योंकि वह अब ज्यादातर घर से बाहर रहने लगी थी.

जब गजेंद्र उर्फ गज्जी समझ गया कि सुषमा को रास्ते से हटाने की पृष्ठभूमि तैयार है तो उस ने अपने ड्राइवर अमित से एक दिन कहा कि यार ये सुषमा आजकल बहुत परेशान कर रही है. कोई ऐसा आदमी बता, जो सफाई से इस का काम कर दे और मेरे ऊपर भी कोई शक न जाए. गजेंद्र ने ये भी कहा कि इस काम के लिए वो कितना भी पैसा खर्च करने के लिए तैयार है.

अमित गजेंद्र का बहुत पुराना ड्राइवर था. उस के हर सुखदुख के साथ उस के हर राज में भागीदार रहता था. जब उस ने देखा कि गजेंद्र भैया बहुत परेशान हैं, तो उस ने इस बारे में अपने गांव बिलासपुर में रहने अपने चाचा अजब सिंह से बात की. अजब सिंह कुंवारा था. क्योंकि बचपन से ही वह अपराधियों की सोहबत में रहा था, इसलिए उस ने शादी भी नहीं की थी.

अजब सिंह ने अमित और गजेंद्र से इस बारे में विस्तार से बात की. जब वह उन का मकसद समझ गया तो अजब सिंह ने बुलंदशहर के मेहसाणा गांव में रहने वाले अपने दोस्त प्रमोद को एक दिन ग्रेटर नोएडा बुलवा लिया.

प्रमोद ने जब पूरी बात जान ली तो उस ने गजेंद्र से सुषमा की हत्या करने के लिए 15 लाख रुपए मांगे. लेकिन जब गजेंद्र ने इतने रुपए देने से मना किया तो सौदेबाजी होने लगी. आखिर में 8 लाख रुपए में प्रमोद से सुषमा की हत्या का सौदा तय हो गया.

गजेंद्र ने तय रकम में से आधे यानी 4 लाख एडवांस दे दिए थे, जबकि बाकी काम होने के बाद देने तय हुए. लेकिन गजेंद्र ने शर्त रखी थी कि काम इस तरह होना चाहिए कि उस के ऊपर कोई आंच न आए. लिहाजा इस के लिए एक योजना तैयार की गई.

प्रमोद ने इस के लिए एक क्लाइंट बन कर सुषमा से मुलाकात की और अपने गांव मेहसाणा में 19 अगस्त, 2019 को एक रागिनी कार्यक्रम के लिए उसे 15 हजार रुपए में आमंत्रित कर लिया. इस के अलावा प्रमोद ने अपने गांव में भी समारोह के लिए टैंट आदि लगवाए और उस में लोगों को आमंत्रित कर लिया. इस काम में भी जो खर्चा हुआ, वह गजेंद्र ने ही वहन किया था.

19 अगस्त, 2019 को सुषमा सोनू व एक शिष्या वैशाली और ड्राइवर को ले कर मेहसाणा गांव पहुंच गई. उस के ग्रुप के बाकी लोगों को सीधे अपने साधन से वहीं पहुंचना था. लेकिन वहां जा कर एक अजीब सा हादसा हो गया.

सुषमा को तो लगा था कि गांव में पहुंच कर उस का भव्य स्वागत होगा. हालांकि वह तय समय पर ही समारोह में पहुंच गई थी, लेकिन वहां पहंचते ही समारोह के आयोजक प्रमोद के अलावा कई लोगों ने उन के साथ इस बात को ले कर झगड़ा करना शुरू कर दिया कि वे समारोह में 2 घंटे देर से पहुंचे हैं और उन के बहुत से मेहमान वापस लौट गए. सुषमा ने जब उन्हें समझाना चाहा कि वे समय पर पहुंचे हैं तो प्रमोद व उस के साथी भड़क गए.

कई लोग उन से हाथापाई करने लगे. कुछ लोगों ने अचानक उस की गाड़ी पर लाठियों से हमला बोल दिया, जिस से उस की गाड़ी के शीशे टूट गए.

1-2 लोगों ने जब लाठियों का रुख सुषमा की तरफ किया तो सुषमा मौके की नजाकत को समझ कर तत्काल गाड़ी में बैठ गई. इस से पहले कि कोई कुछ समझता, ड्राइवर सचिन ने गाड़ी वहां से दौड़ा दी. लेकिन इस आपाधापी में सुषमा को कुछ चोटें जरूर लगीं.

इस घटना में सुषमा के साथ उस की बहन और साथी जान बचा कर भाग निकलने में कामयाब रहे थे. सुषमा के कहने पर सचिन ने गाड़ी का रुख बुलंदशहर कोतवाली देहात की तरफ मोड़ दिया. उस ने वहां जा कर कार्यक्रम के संचालक प्रमोद के अलावा अंजान लोगों के खिलाफ जानलेवा हमले का मुकदमा दर्ज करवा दिया.

इधर जब ग्रेटर नोएडा वापस लौटने के बाद सुषमा ने गजेंद्र को अपने ऊपर हुए हमले की जानकारी दी तो उस ने सुषमा को बताया कि हो न हो, इस हमले के पीछे भी संदीप के लोगों का ही हाथ है. हालांकि उस दिन सुषमा का खात्मा नहीं होने के कारण गजेंद्र को अजब सिंह, अमित और प्रमोद पर गुस्सा तो बहुत आया था, लेकिन उस ने किसी तरह खुद को संभाल लिया.

गजेंद्र ने उस दिन सुषमा के साथ ऐसा बर्ताव किया मानो उसे ही सुषमा की सब से ज्यादा फिक्र हो और उस के लिए बेहद चिंतित है. गजेंद्र ने सुषमा को तमाम मतभेदों के बाद इस बात की सख्त हिदायत दी कि अब वह जहां भी जाएगी, अपने बारे सारी जानकारी उसे जरूर देगी ताकि उसे पता तो रहे कि वह कहां है और क्या कर रही है.

मेहसाणा गांव में सुषमा की हत्या करने की योजना के नाकाम होने से सुषमा की हत्या की सुपारी लेने वाला प्रमोद, अजब सिंह और अमित हतोत्साहित जरूर हुए थे. लेकिन इस के बावजूद उन्होंने गजेंद्र भाटी से वायदा किया कि हर हाल में वे अब की बार शिकार का कत्ल कर के ही उसे अपना मुंह दिखाएंगे.

इस के बाद अजब सिंह और प्रमोद ने इस काम को अंजाम देने के लिए अपने परिचित जेवर के एक अपराधी संदीप और अगौता के रहने वाले मुकेश को इस योजना में शामिल कर लिया. प्रमोद ने सुपारी की रकम में से 2 लाख रुपए भी उन दोनों को दिए साथ ही उन्हें अलीगढ़ से एक पिस्टल व तमंचा खरीद कर उन दोनों को ला कर दे दिया.

इधर, बुलंदशहर कोतवाली देहात पुलिस ने प्रमोद के खिलाफ जो मुकदमा दर्ज किया था, उस में उन्होंने प्रमोद की तलाश शुरू की दी थी, लेकिन वह अपने घर से फरार था. लिहाजा पुलिस ने उस की गिरफ्तारी के लिए वारंट जारी कर दिया. इस दौरान सुषमा लगातार बुलंदशहर पुलिस के अधिकारियों से संपर्क कर के खुद पर जानलेवा हमला करने वालों की गिरफ्तारी का दबाव बनाती रही.

दूसरी तरफ गजेंद्र भी सुषमा की हत्या के लिए फाइनल साजिश तैयार करने में जुटा था. उस ने एक दिन इस साजिश में शामिल लोगों को ग्रेटर नोएडा बुला कर उन्हें पूरी रणनीति समझा दी. उस ने सभी आरोपियों को वारदात करने के लिए नए सिमकार्ड खरीद कर दिए और हिदायत दी कि इस काम के संबध में सभी लोग नए सिम का ही प्रयोग करेंगे.

इस के अलावा गजेंद्र ने संदीप, मुकेश, प्रमोद, अजब सिंह और अमित को 15 सिंतबर को मित्रा सोसायटी के सामने बनी अंसल सोसाइटी में एक फ्लैट किराए पर ले कर दिया और सभी बदमाशों ने उस फ्लैट में डेरा डाल दिया. इस फ्लैट में गजेंद्र भी जाता रहता था.

घटना वाली सुबह गजेंद्र सुषमा के साथ ही घर में था. सुषमा अपनी बहन और वैशाली को साथ ले कर उसे यह बता कर बुलंदशहर गई थी कि वह शाम तक लौट आएगी.

गजेंद्र ने उसी दिन सुषमा की हत्या का फैसला कर लिया. क्योंकि सुषमा उसे बता चुकी थी कि वह 1-2 दिन में बीजेपी जौइन करने वाली है. गजेंद्र जानता था कि कि अगर सुषमा ने सत्ताधारी पार्टी को जौइन कर लिया तो उसे मारना भी मुश्किल हो जाएगा और बुलंदशहर में हमले का राज भी खुल सकता है. क्योंकि पुलिस उस की छानबीन फिर तेज कर सकती है.

गजेंद्र जानता था कि सुषमा ने बतौर कलाकार के तौर पर तो बहुत नाम कमा लिया था. लेकिन वह अब राजनीति में जा कर कोई मुकाम हासिल करना चाहती थी. हालांकि उस ने कई साल पहले ही बीएसपी जौइन कर ली थी. 2017 के विधानसभा चुनाव में बुलंदशहर के किसी विधानसभा क्षेत्र से वह पार्टी का टिकट चाहती थी. लेकिन पार्टी ने उसे टिकट नहीं दिया था.

सुषमा ने उस वक्त कई मौकों पर खुद को बतौर बीएसपी की भावी विधानसभा प्रत्याशी के तौर पर प्रचारित करते हुए उस के पोस्टर व होर्डिंग भी लगवाए थे. इसीलिए निराश हो कर अब उस ने भाजपा नेताओं के साथ अपनी जानपहचान बढ़ानी शुरू कर दी थी और जल्द ही पार्टी में शामिल होने वाली थी.

उस दिन सुषमा इसी मकसद से बुलंदशहर गई थी, जहां वह बुलंदशहर भाजपा जिला अध्यक्ष हिमांशु मित्तल से जिला कैंप कार्यालय पर मिली थी. मित्तल ने उसे 1-2 दिन में ही किसी कार्यक्रम में पार्टी की सदस्यता ग्रहण कराने का आश्वासन दिया था. राजनीति में आने के बाद सुषमा अपनी पकड़ मजबूत कर के जल्द ही चुनाव लड़ने का सपना देख रही थी.

राजनीतिक रूप से मजबूत होने के बाद सुषमा उस के लिए और ज्यादा घातक और बड़ी मुसीबत बन सकती है, इसलिए उस दिन दोपहर बाद से ही गजेंद्र सुषमा से लगातार फोन पर बात करते हुए उस की लोकेशन की पलपल की जानकारी ले कर अपने साथियों को देता रहा. उस ने उन्हें हिदायत दी कि सुषमा का आज ही काम तमाम होना है.

शाम 6 बजे गजेंद्र की सुषमा से हुई बात से यह पता चल गया कि अगले 2 घंटे के भीतर सुषमा घर लौट आएगी तो मुकेश व संदीप अपनी बाइक ले कर हैलमेट लगा कर पहले ही सोसाइटी में आ कर छिप गए. संयोग से किसी ने उन्हें भीतर आने से नहीं रोका, न ही उन की गाड़ी का नंबर नोट किया गया.

वारदात को अंजाम देने के बाद मुकेश व संदीप को बैकअप देने के लिए सोसाइटी से कुछ ही दूर गजेंद्र की फौर्च्युनर कार में अमित, प्रमोद व अजब सिंह भी बैठे थे. वारदात से आधा घंटा पहले संदीप और मुकेश ने अपने मोबाइल बंद कर दिए थे. क्योंकि गजेंद्र उन्हें बता चुका था कि किसी भी वक्त सुषमा अपनी ब्रेजा कार से सोसायटी के गेट पर आ कर रुकने वाली है.

गजेंद्र ने उन्हें यह भी बता दिया था सुषमा गेट पर ही गाड़ी से उतर जाएगी क्योंकि उस ने सोसाइटी के बाहर एक स्टाल से दूध लाने के लिए उसे बोला है. बस मुकेश और संदीप सोसाइटी के भीतर बाइक पर सवार हो कर मुख्यद्वार की तरफ देखने लगे ताकि जैसे ही सुषमा गेट पर उतरे, वे उस का काम तमाम कर दें. वैसा ही हुआ जैसी योजना तैयार हुई थी.

सोसाइटी के मुख्य द्वार पर सुषमा ने गाड़ी रुकवाई और वह नीचे उतर गई. ठीक उसी समय दोनों शूटर संदीप और मुकेश ने बाइक स्टार्ट की और ठीक मुख्यद्वार के पास सुषमा के समीप जा कर रोक दी. बाइक पर पीछे बैठे मुकेश ने नीचे उतर कर पिस्टल निकाल कर सुषमा पर ताबड़तोड़ 4 गोलियां चला दीं. मुश्किल से 2 से 3 मिनट में संदीप और मुकेश ने अपने काम को अंजाम दे दिया और उस के बाद बाइक से फरार हो गए.

करीब 2 किलोमीटर दूर जाने के बाद मुकेश ने अपने मोबाइल में से नया सिम निकाल कर उस में अपना पुराना सिम डाला और उस से गजेंद्र के पर्सनल नंबर पर फोन कर के सूचना दी कि उन्होंने अपना काम कर दिया है. बस यहीं पर उन से चूक हो गई.

पुलिस ने जब इस मामले की छानबीन शुरू की तो मामले के जांच अधिकारी सुरजीत उपाध्याय ने ऐसा महसूस किया कि सुषमा की हत्या के बाद गजेंद्र और उस का चालक अमित सब से ज्यादा ड्रामा कर रहे हैं. दोनों ही अस्पताल में सब से ज्यादा रो रहे थे. ऐसा आमतौर पर वही लोग करते हैं जो ऐसा जताना चाहते हैं कि उन पर किसी को शक न हो.

हालांकि गजेंद्र पोस्टमार्टम आदि कराने के बाद नेकपुर स्थित सुषमा के गांव भी पहुंचा था और उस ने ही सुषमा के शव को मुखाग्नि भी दी थी. यही कारण था कि सुषमा के परिवारजनों को उस पर जरा भी शक नहीं हुआ था.

मामले के जांच अधिकारी सुरजीत उपाध्याय को सुषमा की बहन सोनू ने सिर्फ यही बताया था कि वारदात वाली रात 8 बजे वह अपनी बहन सुषमा के साथ बुलंदशहर जिले से लौटी थी. वहां वे किसी काम से भाजपा कार्यालय गए थे. इस के बाद सुषमा कोतवाली देहात थाने में अपने ऊपर हमले के पुराने केस के सिलसिले में भी प्रगति जानने के लिए पहुंची थी.

वारदात वाले दिन सुषमा की कार खुर्जा के कलेना गांव निवासी उस का ड्राइवर सचिन चला रहा था. साथ में उस की शिष्या वैशाली भी थी. वारदात वाली रात को सोनू ने किसी पर भी शक नहीं जताया था. लेकिन अगली सुबह उस ने पुलिस को जो शिकायत लिख कर दी, उस में सोनू ने लिख कर दिया था कि हैलमेट लगाने वाले हमलावर मित्रा एन्क्लेव सोसाइटी में रहने वाले बृजेश की बाइक पर सवार थे. इस शिकायत में बाइक का नंबर भी लिखा गया था.

पुलिस ने जब सोसाइटी में रहने वाले बृजेश से पूछताछ की तो पता चला उस के पास तो बाइक है ही नहीं. यह भी पता चला कि न तो वह सुषमा को जानता है और न ही सुषमा से उस का कोई लेनादेना है. साथ ही छानबीन में पता चला कि जो नंबर सोनू ने शिकायत में लिख कर दिया था, उस नंबर की कोई बाइक पंजीकृत ही नहीं थी.

जब जांच अधिकारी सुरजीत उपाध्याय ने सोनू से इस बारे में बात की तो उस ने बताया कि यह शिकायत उस के जीजा गजेंद्र भाटी ने लिख कर उसे दी थी. बस इसी के बाद गजेंद्र भाटी जांच अधिकारी के शक के दायरे में आ गया.

गजेंद्र भाटी पर पुलिस का शक तब यकीन में बदल गया, जब अगले दिन सोनू ने जांच अधिकारी के सामने एक नया खुलासा किया.

दरअसल, सोनू इस बात से भलीभांति वाकिफ थी कि सुषमा और गजेंद्र में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है. इसीलिए सोनू ने वारदात के बाद ही गजेंद्र से पूछ लिया था कि गजेंद्र सच बताओ इस के पीछे किस का हाथ है.

गजेंद्र जानता था कि सोनू बहुत कुछ जानती है और वह सुषमा और उस के बारे में पुलिस को काफी कुछ बता सकती है. इसलिए उस ने सुषमा का अंतिम संस्कार करने के बाद सोनू से कहा, ‘‘सोनू, तुम तो जानती ही हो कि सुषमा ने किस तरह मेरी जिंदगी को नरक कर के रख दिया था, इसलिए मजबूरी में मुझे ही सुषमा का काम तमाम कराना पड़ा.’’

चूंकि गजेंद्र जानता था सुषमा की मौत के बाद अब उस के परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं रह जाएगी. इसलिए उस ने सोनू को लालच दिया कि वह किसी तरह पुलिस को बरगला कर इस मामले को शांत करवा दे इस के बदले वह उसे 50 लाख रुपया दे देगा ताकि उस की आगे की जिंदगी संवर सके.

लेकिन सोनू ने अगले ही दिन यह बात जांच अधिकारी सुरजीत उपाध्याय को बता दी, जिस के बाद गजेंद्र पूरी तरह पुलिस की नजर में चढ़ गया. इसी के बाद पुलिस ने गजेंद्र और सुषमा के मोबाइल की काल डिटेल्स निकाली. इस की जांचपड़ताल के बाद पता चला कि वारदात वाले दिन गजेंद्र ने सुषमा से अन्य दिनों की अपेक्षा ज्यादा बात की थी.

साथ ही यह बात भी पता चली कि गजेंद्र सुषमा से बात होने के बाद हर बार अलगअलग नंबरों पर कुछ देर बात करता था. काल डिटेल्स से यह भी पता चला कि जिस वक्त सुषमा को गोली लगी, उस के कुछ देर बाद गजेंद्र के मोबाइल पर एक अलग नंबर से काल आई थी.

क्राइम ब्रांच की टीम के प्रभारी यतेंद्र ने जब उस नंबर की जांच की तो पता चला कि यह नंबर उसी मोबाइल फोन में चल रहा था, जिस पर सुषमा की हत्या होने से पहले एक दूसरा सिम लगा था और गजेंद्र उस नंबर पर बात कर रहा था.

इस जांच के बाद कडि़यों से कडि़यां जुड़ती चली गईं और पुलिस की दोनों जांच टीमों ने गजेंद्र, उस के ड्राइवर अमित, अमित के चाचा अजब सिंह, प्रमोद, संदीप और मुकेश को संदेह के दायरे में रख कर जांच आगे बढ़ानी शुरू कर दी.

तब तक पुलिस ने गजेंद्र को ये आभास नहीं होने दिया कि वह शक के दायरे में है. इन सभी के मोबाइल की निगरानी शुरू की गई तो पता चला 6 अगस्त की शाम को इन सभी की लोकेशन एक ही जगह पर है.

इसी के आधार पर पुलिस ने अपनी घेराबंदी शुरू कर दी और शाम को मुकेश और संदीप के साथ पुलिस की मुठभेड़ हो गई, जिस में घायल होने के बाद संदीप और मुकेश पुलिस के चंगुल में फंस गए.

बस इस के बाद पुलिस को जांच के एक सिरे से दूसरे सिरे तक पहुंचने में ज्यादा वक्त नहीं लगा और इस के बाद गजेंद्र, अमित, अजब सिंह और प्रमोद सभी पुलिस की गिरफ्त में आ गए.

सभी आरोपियों की गिरफ्तारी के बाद जांच अधिकारी सुरजीत उपाध्याय ने मित्रा एन्क्लेव सोसाइटी के गेट से कब्जे में ली गई सीसीटीवी फुटेज से भी सुषमा पर गोली चलाने वाले संदीप और मुकेश के हुलिए का मिलान कराया तो उन का हुलिया मेल खा गया.

पुलिस ने वह मोटरसाइकिल भी बरामद कर ली, जिसे हत्या को अंजाम देने के लिए इस्तेमाल किया गया था.

पूछताछ में पता चला कि गजेंद्र पिछले कई महीनों से सुषमा से छुटकारा पाने की साजिश बनाने में जुटा था. किसी को उस पर शक न हो इस के लिए उस ने वारदात के बाद सुषमा के पूर्व पति संदीप कौशिक के खिलाफ सुषमा के मन में जहर भरना शुरू कर दिया था. ताकि सुषमा की हत्या के बाद पुलिस पूरी तरह संदीप कौशिक को शक के दायरे में रख कर जांचपड़ताल में उलझ जाए.

इस के लिए सुषमा ने गजेंद्र के कहने पर अपनी हत्या से कुछ माह पहले बीटा-2 थाने में और व एसएसपी कार्यालय में शिकायत दी थी कि उस का पहला पति उसे इसलिए परेशान करता है, क्योंकि उस ने दूसरी शादी कर ली है.

सुषमा ने संदीप कौशिक के खिलाफ फेसबुक समेत सोशल मीडिया पर उस के खिलाफ आपत्तिजनक टिप्पणी किए जाने की शिकायत पुलिस से की थी. लेकिन पुलिस ने इस शिकायत को उस वक्त गंभीरता से नहीं लिया था.

इस ब्लाइंड मर्डर की गुत्थी सुलझाने वाली बीटा-2 थाने की पुलिस और क्राइम ब्रांच की टीम को गौतमबुद्धनगर के एसएसपी वैभव कृष्ण ने 25 हजार रुपए का ईनाम देने की घोषणा की है.

—कथा पुलिस जांच व अभियुक्तों और परिजनों से हुई पूछताछ पर आधारित

प्रेमी ने किए प्रेमिका के 31 टुकड़े

पुलिस टीम जब उस जंगल में पहुंची, तब तक वहां पर ग्रामीणों की भारी भीड़ जमा हो चुकी थी. पुलिस ने जब गड्ढे की खुदाई कराई तो वहां का मंजर देख कर सभी के दिल दहल उठे थे. एक युवती की लाश के पूरे 31 टुकड़े कर हत्यारे ने जमीन में दफन कर रखे थे.

जब लाश के टुकड़ों को गड्ढे से बाहर निकाला गया तो वह टुकड़े पिछले 3 दिनों से लापता तिलबती के निकले. लाश की सूचना मिलते ही पुलिस ने तिलबती के घर वालों को घटनास्थल पर बुलवा लिया. घर वालों ने लाश की शिनाख्त लापता तिलबती के रूप में कर दी. पुलिस अब आगे की जांच में जुट गई थी.

शाम का धुंधलका चारों तरफ घिर आया था. अंधेरा घिरते ही गांव के सभी लोग अपनेअपने घरों को रोजमर्रा की भांति लौटने लगे थे. गांव के अन्य लोगों की तरह लुदुराम गोंड भी अपने खेत से काम निपटा कर अपने घर पहुंच गया था.

जब वह अपने घर पहुंचा तो उस ने देखा कि उस की पत्नी मृदुला कुछ परेशान सी दिखाई दे रही थी. पत्नी के माथे पर उसे चिंता की लकीरें साफसाफ नजर आ रही थीं. यह सब देख कर लुदुराम का चौंकना स्वाभाविक था.

”अरे मृदुला क्या बात है, आज तुम कुछ परेशान सी दिखाई दे रही हो?’’ लुदुराम ने पत्नी से पूछा.

”अब मैं परेशान न होऊं तो क्या करूं? अरे हमारे घर में एक बहुत परेशानी वाली बात जो हो गई है.’’ मृदुला ने चिंता भरे स्वर में कहा.

”जरा मुझे भी तो बताओ, आखिर बात क्या है?’’ लुदुराम ने पूछा.

”तुम्हारी लाडली बेटी तिलबती सुबह 10 बजे से घर से निकली हुई है, अब शाम के 6 बज गए हैं, लेकिन अभी तक लौट कर घर नहीं आई है.’’ मृदुला ने कहा.

”अगर वह अभी तक घर नहीं लौटी है तो बेटे माधव से पता करा सकती थी न तुम?’’ लुदुराम बोला.

”माधव शाम को 5 बजे से अपनी छोटी तिलबती को इधरउधर ढूंढने में ही तो लगा हुआ है. मगर तिलबती का अब तक कहीं भी कोई पता नहीं चला.’’ मृदुला ने चिंतित होते हुए कहा.

पत्नी मृदुला की बात सुन कर लुदुराम भी एकदम चिंता में पड़ गया था. तिलबती (23 वर्ष) उस के जिगर का टुकड़ा थी, जिसे वह अपने सभी बच्चों से ज्यादा प्यार करता था.

”देखो मृदुला, तुम घबराओ मत. मैं गांव में उसे ढूंढने जा रहा हूं. हमारी बिटिया हमें जल्द ही मिल जाएगी.’’ कहते हुए लुदुराम घर से निकल पड़ा था.

तिलबती अकसर अपनी सहेली निर्मला के घर अपने करिअर की बातें करने चली जाया करती थी. लुदुराम सब से पहले निर्मला के घर पर गया, जो उस के घर से लगभग एक किलोमीटर की दूरी पर था. लुदुराम ने निर्मला का दरवाजा खटखटाया तो निर्मला ने दरवाजा खोल दिया.

”अरे काका, आप इतनी शाम को कैसे हमारे घर पर आ गए? आइए बैठिए तो.’’ निर्मला ने लुदुराम को अंदर आने को कहा.

”अरे बेटी, हमारी तिलबती का सुबह से ही कुछ पता नहीं चल रहा है. जरूर तुम्हारे घर पर ही आई होगी. हम सब बहुत परेशान हो रहे हैं.’’ लुदुराम ने जल्दीजल्दी कहा.

”काका, तिलबती को तो मैं ने सुबह से ही नहीं देखा है. आज उस का फोन भी नहीं आया, नहीं तो वह मुझे दिन में एक बार फोन तो जरूर कर लेती है. अरे काका, आप घबराओ मत, मैं अभी उस से बात करती हूं.’’ कहते हुए निर्मला ने अपने मोबाइल से फोन किया.

मगर दूसरी तरफ से मोबाइल स्विच्ड औफ का मैसेज आ रहा था. निर्मला ने 4-5 बार काल किया, मगर दूसरी ओर से हर बार यही मैसेज सुनने को मिल रहा था.

”क्या हुआ बेटी, तिलबती का फोन लगा क्या?’’ लुदुराम ने आशाभरी निगाहों से देखते हुए कहा.

”नहीं काका, तिलबती का फोन तो बंद आ रहा है. चलो काका, मैं भी आप के साथ तिलबती को ढूंढने चलती हूं.’’ कहती हुई निर्मला भी लुदुराम साथ चल पड़ी थी.

तब तक तिलबती के गायब होने की बात सुन कर गांव के अन्य लोग भी लुदुरामू के साथ आ गए थे. सभी ने मिल कर तिलबती को ढूंढा, परंतु उस का पता नहीं चल पाया. बेटी के न मिलने के कारण तिलबती की मां मृदुला का रोरो कर बुरा हाल हो रहा था. गांव की महिलाएं उसे ढांढस बंधा रही थीं.

पूरी रात भर सभी गांव वालों ने मिल कर तिलबती की पूरे गांव भर में तलाशी ली, परंतु उस का कहीं भी कुछ भी सुराग नहीं मिल सका.

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      मृतका तिलबती

लुदुराम गोंड ओडिशा के नवरंगपुर जिले के गांव बागबेड़ा, थाना राईघर का रहने वाला एक किसान था. उस के परिवार में एक बेटा माधव व 2 बेटियां सौम्या और तिलबती थीं. सब से बड़ी बेटी सौम्या का विवाह हो चुका था, उस से छोटा बेटा माधव था, जो खेती में लुदुराम का हाथ बंटाता था, जबकि सब से छोटी बेटी तिलबती थी, जिस की उम्र 23 वर्ष की हो चुकी थी.

तिलबती को पढऩे लिखने, चित्रकारी करने और सिलाईकढ़ाई करने का बड़ा शौक था. उस ने बारहवीं कक्षा पास करने के बाद कई कोर्स कर लिए थे और वह नौकरी के लिए काफी लंबे समय से प्रयासरत भी थी. लेकिन वह 22 नवंबर, 2023 को ऐसी गायब हुई कि उस का पता नहीं चला.

अगले दिन बृहस्पतिवार 23 नवंबर को लुदुराम गांव के कुछ संभ्रांत लोगों के साथ थाना राईघर पहुंचा और बेटी के गायब होने की सूचना दर्ज करा दी.

पुलिस पूछताछ में लुदुराम ने बेटी तिलबती के अपहरण की आशंका से साफ इंकार किया तो पुलिस भी पशोपेश में पड़ गई थी. तब पुलिस को ऐसा लगा कि किसी ने रंजिशन तिलबती को गायब करा दिया होगा.

जब लुदुराम ने किसी से रंजिश होने से इंकार किया तो पुलिस की यह आशंका भी निर्मूल साबित हुई. प्राथमिकी दर्ज कराने के बाद पुलिस अपनी आवश्यक खोजबीन में जुट गई.

तिलबती के मिले 31 टुकड़े

5 दिन से लापता तिलबती की खोज में राईघर पुलिस दिनरात जांच में जुटी थी, तभी एक मुखबिर ने एसडीपीओ आदित्य सेन को एक गुप्त सूचना देते हुए कहा, ”हुजूर, मुरुमडीही गांव के पास स्थित जंगल में एक गड्ढे के अंदर से किसी का हाथ बाहर दिखाई दे रहा है. शायद किसी जंगली जानवर ने इंसान की लाश को खाने की वजह से खोद डाला. वहां पर गांव वाले भी इकट्ठा हो गए हैं. मामला काफी गंभीर लग रहा है?’’

यह सूचना सुन कर एसडीपीओ आदित्य सेन तुरंत अपनी पुलिस टीम व फोरैंसिक टीम को ले कर घटनास्थल की ओर चल पड़े.

पुलिस जंगल में पहुंची तो वहां भारी संख्या में लोग जमा थे. पुलिस ने जब गड्ढा खुदवाया तो उस में एक युवती की 31 टुकड़ों में कटी लाश मिली. लाश की शिनाख्त 23 वर्षीय तिलबती के रूप में हुई. लाश के टुकड़े देख कर गांव के लोग आक्रोशित हो गए और वह पुलिस के खिलाफ नारेबाजी करने लगे.

आखिर किस ने की तिलबती की हत्या

सचमुच में प्यार एक ऐसा अहसास है, जिसे समझ पाना बड़ा ही मुश्किल होता है. प्यार एक ऐसा अहसास होता है, जिस में किसी के प्रति हर दिन बहुत ही लगाव बढऩे लगता है. जो भी इस अनोखे प्यार में अपने आप को डाल देता है, वह पहले से ज्यादा खुश और खूबसूरत हो जाता है.

ऐसा ही कुछ तिलबती के साथ भी हुआ. तिलबती एक दिन बाजार जाने के लिए बस का इंतजार कर रही थी, तभी एक युवक बाइक ले कर उस के पास आ कर रुक गया.

दोनों की नजरें मिलीं तो युवक ने तिलबती से कहा, ”मुझे लगता है कि आप शायद मार्केट की तरफ जा रही हैं. अभी करीब एक घंटे तक यहां बस आने की कोई उम्मीद नहीं है. मैं मार्केट की तरफ ही जा रहा हूं. अगर आप चाहें तो मैं आप को वहां ड्रौप कर दूंगा.’’

”ये कौन सी बात हुई कि जान न पहचान, मैं तेरा मेहमान. मैं तो आप को जानती तक नहीं हूं.’’ तिलबती ने गुस्से से कहा.

”देखिए जी, मैं रोज इसी जगह से निकलता हूं, आप को देखता हूं. आज एक बस का एक्सीडेंट हो गया है, इसलिए बाकी बसें उसी जगह पर खड़ी हैं. पब्लिक ने बवाल कर के रख दिया है वहां पर. वैसे मैं तो आप की मदद ही करना चाहता था, मगर आप तो तो मुझ पर गुस्सा करने लगी हैं.’’ युवक ने बुरा सा मुंह बनाते हुए कहा.

”अरे आप तो बड़े अजीब इंसान हैं, इतनी जल्दी नाराज हो गए.’’ तिलबती ने मुसकराते हुए कहा, ”आप ने बात ही ऐसी की थी कि मेरा नाराज होना स्वाभाविक था. चलना है तो बताओ, मुझे देर हो रही है,” युवक ने अपनी बाइक स्टार्ट करते हुए कहा.

”आप कम से कम अपना नाम तो बता दीजिए जनाब?’’ तिलबती ने कहा.

”मेरा नाम चंद्रा राउत है, मैं मुरुमडीही गांव का रहने वाला हूं और खेतीकिसानी करता हूं.’’ युवक ने अपना परिचय देते हुए कहा.

”अरे वाह, आप का नाम तो बहुत ही सुंदर है. मेरा नाम…’’

तिलबती अपनी बात भी पूरी नहीं कर सकी, तभी चंद्रा राउत बोल पड़ा, ”मैं तुम्हारे बारे में बहुत कुछ जानता हूं. तुम्हारा नाम तिलबती गोंड पिता का नाम लुदुराम गोंड, गांव बागबेड़ा. यही है न!’’ चंद्रा राउत ने मुसकराते हुए कहा.

”अरे, तुम्हें तो मेरे बारे में सब कुछ पता है. इसलिए मैं अब आप के साथ चल सकती हूं.’’ तिलबती ने चंद्रा की बाइक पर बैठते हुए कहा.

उस दिन के बाद से दोनों में दोस्ती हो गई थी. चंद्रा राउत रोजरोज बाइक से तिलबती को पास के कस्बे में ले जाने लगा था. उन दिनों तिलबती पास के कस्बे से सिलाई का कोर्स कर रही थी. उस के अलावा तिलबती नौकरी के लिए औनलाइन आवेदन भी करती रहती थी, जिस में चंद्रा राउत अब तिलबती की मदद करता रहता था.

अब तिलबती चंद्रा राउत के साथ फिल्म देखने भी जाने लगी थी. इस दौरान तिलबती यह महसूस करने लगी थी कि बातचीत करने के दौरान चंद्रा राउत उस के नजदीक आने की काफी कोशिश करता है. चंद्रा राउत की बात भी बड़ी मजेदार होती थीं. अब तिलबती को भी लगने लगा था कि वह चंद्रा के प्रति आकर्षित होती जा रही है.

एक दिन चंद्रा राउत ने तिलबती से कहा, ”तिलबती, मैं एकांत में तुम से कुछ बात करना चाहता था.’’

तिलबती ने सोचा कि कुछ बात करना चाहता होगा, इसलिए उस ने हामी भर दी. यह चंद्रा राउत की एक चाल थी. उस ने कस्बे के एक होटल में एक कमरा पहले से बुक करा रखा था. चंद्रा उसे उस कमरे में ले गया.

”ये तुम मुझे अकेले में कहां पर ले कर आ गए हो चंद्रा?’’ तिलबती ने पूछा.

”तिलबती, मैं तुम से बेइंतहा मोहब्बत करने लगा हूं,’’ चंद्रा ने होटल के कमरे में उसे बांहों में भरते हुए कहा.

”अरे, ये तुम क्या कर रहे हो? तुम्हें पता है न कि मैं एक कुंवारी लड़की हूं. कहीं कुछ ऊंचनीच हो गई तो मैं कहीं भी मुंह दिखाने लायक नहीं रहूंगी.’’ तिलबती अपने आप को चंद्रा की बाहों से छुड़ाते हुए बोली.

”देखो तिलबती, मेरी मोहब्बत के दिल को देखो, वह तुम्हारे लिए कितना तड़प रहा है. मैं तुम से प्यार करता हूं, तुम से मैं बाकायदा सब के सामने विवाह करूंगा. मेरे पास धनदौलत की बिलकुल भी कमी नहीं है. मैं तुम्हें सदा अपने दिल की रानी बना कर रखूंगा,’’ कहते हुए चंद्रा ने तिलबती को एक बार फिर अपनी बाहों में जकड़ लिया और उस के होंठों पर अपने होंठ रख दिए.

तिलबती को लगा कि जब उस का प्रेमी उस को जिंदगी भर के लिए अपनाने को तैयार है और अब वह भी उस को प्यार करने लगी है तो उसे लगा कि सब कुछ अब उस के कंट्रोल से बाहर होता जा रहा है. उस दिन की तन्हाई में चंद्रा राउत ने आखिरकार उस दिन अपनी हसरतें पूरी कर ही लीं. उस दिन के बाद से उन दोनों के बीच अवैध संबंध स्थापित हो गए. इस के बाद तो उन की दुनिया ही बदल गई थी.

सहेली से पता चला प्रेमी का राज

एक दिन तिलबती चंद्रा राउत से मिल कर आ रही थी, तभी उस की सहेली निर्मला ने उसे रोक लिया. वह बोली, ”कहो तिलबती, कहां से मौजमस्ती कर के आ रही हो?’’ निर्मला ने सीधेसीधे उस पर सवाल दाग दिया.

”अरे निर्मला तुम. कहीं से नहीं यार, बस एक दोस्त से मिल कर आ रही थी.’’ तिलबती ने मुसकराते हुए कहा.

”देखो तिलबती, हम दोनों बचपन से एक साथ पलेबढ़े, एक साथ स्कूल में भी पढे हैं. तुम तो अब एकदम बदल ही गई हो. सचमुच मुझे तुम से ऐसी उम्मीद बिलकुल भी नहीं थी. पहले तो तुम मुझे रोज मिला करती थी, अपनी सारी बातें मुझे सिलसिलेवार बताया करती थी. मगर पिछले कुछ महीनों से तुम मुझ से बहुत कुछ छिपाने लगी हो.’’ निर्मला ने उसे अपने कमरे में बुला लिया था.

”निर्मला, ऐसी बात तो नहीं है. बस मैं प्यार में इतनी मदहोश हो गई थी कि सचमुच तुम्हें भी भूल गई थी. मुझे माफ कर देना प्लीज,’’ कहते हुए तिलबती ने निर्मला के दोनों हाथ पकड़ लिए थे.

”तिलबती तुम इतनी समझदार हो कर भी ऐसे कैसे बहक सकती हो. तुम्हारे घर वाले तुम्हें इतना प्यार करते हैं. उन्होंने तुम्हें इतनी छूट दे रखी है तो इस का मतलब तो यह नहीं कि तुम उन सब को खुलेआम धोखा दे डालो?’’ निर्मला ने उस की आंखों में आंखें डालते हुए कहा.

”साफ साफ बताओ निर्मला, आखिर तुम कहना क्या चाहती हो?’’ तिलबती ने गुस्से से कहा.

”तो सुनो, तुम पिछले 2 सालों से चंद्रा राउत के प्यार में पड़ी हो और यह बात अब मुझे पता चली!’’ निर्मला ने कहा.

”अरे यार निर्मला, प्यार करना गुनाह है क्या? वैसे मैं तुम्हें बताने ही वाली थी, मगर इतनी ज्यादा व्यस्त थी कि तुम से बात करने का मौका ही नहीं मिल सका.’’ तिलबती बोली.

निर्मला ने कहा, ”तुम्हें फुरसत कहां है तिलबती, दिनरात चंद्रा के साथ गुलछर्रे उड़ाने से तुम्हें समय कहां मिल पाता है. अब तो पानी सिर के ऊपर आ गया है. तुम इतनी बेवकूफ होगी, मुझे ऐसा बिलकुल भी नहीं लगता था तिलबती,’’

”निर्मला, प्यार करना अगर बेवकूफी है तो हां, मैं हूं बेवकूफ. बस और भी कुछ कहना है तुम्हें तो कहो, मैं अपने घर जा रही हूं.’’ तिलबती अब उठ कर खड़ी हो गई थी.

”जरा, ये तो सुन कर जाओ कि जिस से तुम पिछले 2 सालों से बेइंतहा प्यार कर रही हो, वह शादीशुदा है.’’ निर्मला ने जब यह बात कही तो तिलबती चौंक गई.

”तुम यह कैसे जानती हो? और चंद्रा राउत के बारे में तुम्हें क्याक्या पता है? सब कुछ कह दो,’’ तिलबती बोली.

”चंद्रा राउत हमारी दूर की रिश्तेदारी में आता है. मुझे तो यह बात कल ही पता चली कि तुम और चंद्रा एकदूसरे से प्यार करते हो. मैं ने सोचा चंद्रा तो एक मर्द हो कर भूल कर सकता है, मगर तुम तो एक लड़की हो. भला इतनी बड़ी भूल कैसे कर सकती हो. आगे सुनो, चंद्रा की पत्नी का नाम सिया राउत है और उस के 5 बच्चे भी हैं.’’

”बसबस आगे तुम कुछ मत कहो निर्मला, चंद्रा का घर मुरुमडीही में कहां पर है?’’ तिलबती ने पूछा.

”चंद्रा राउत का गांव में आखिरी घर है और वहां से जंगल का इलाका शुरू हो जाता है.’’ निर्मला और कुछ भी कहना चाहती थी परंतु तिलबती यह सुनते ही अपने घर की ओर चल पड़ी थी.

प्रेमी की पत्नी हुई हत्या में शामिल

चंद्रा के बारे में यह जानकारी पा कर उस पूरी रात तिलबती सो न सकी थी. चंद्रा राउत अपने प्रेम के जाल में फंसा कर उस का शारीरिक शोषण कर रहा था, यह बात बारबार तिलबती के दिल को कचोट रही थी. उस ने फैसला कर लिया था कि वह चंद्रा राउत से मिल कर उसे सबक जरूर सिखाएगी ताकि वह किसी दूसरी लड़की के साथ ऐसा घिनौना काम न कर सके.

प्रेमी से मिलने 10 किलोमीटर पैदल चली थी तिलबती, जहां पर मिली मौत की सौगात.

रात तो किसी तरह तिलबती ने गुजार दी, मगर सुबहसुबह किसी से मिलने का बहाना बना कर वह पैदल ही घर से निकल गई. प्रेम प्रसंग के चलते तिलबती कई बार चंद्रा राउत से शादी की जिद भी कर चुकी थी, लेकिन हर बार कोई न कोई बहाना बना कर चंद्रा शादी करने से मना कर देता था.

उस दिन तिलबती आर या पार का फैसला अपने मन में बना कर अपने प्रेमी से मिलने उस के घर पहुंच गई. वहां पहुंचते ही उस ने चंद्रा राउत के ऊपर गालियों की बौछार कर दी थी.

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             चंद्रा राउत

चंद्रा राउत की पत्नी सिया राउत पहले कुछ नहीं समझी, परंतु जब सारी बात उस की समझ में आई तो उस ने अपने पति से तिलबती को घर के भीतर बुलाने को कहा. चंद्रा राउत भी किसी न किसी तरह तिलबती से अपना पीछा छुड़ाना चाहता था. उधर दूसरी तरफ सिया भी अपने और अपने 5 बच्चों के भविष्य को ले कर चिंता में पड़ गई थी, इसलिए दोनों ने आंखों ही आंखों में एक खतरनाक फैसला कर लिया. उन्होंने तिलबती को अपने रास्ते से हमेशा हमेशा के लिए हटाने की बात तय कर ली.

प्लान के मुताबिक चंद्रा राउत ने तिलबती को अंदर आ कर बात करने के लिए समझाया और कहा, ”तिलबती, तुम घर के भीतर तो चलो, यहां बाहर चिल्ला कर इस समस्या का हल होने वाला नहीं है. मेरी पत्नी सिया भी एक समझदार औरत है, हम तीनों आपस में बैठ कर इस समस्या का कोई न कोई हल अवश्य निकाल लेंगे.’’

तिलबती प्रेमी चंद्रा राउत की बातों में आ कर उस के साथ कमरे में चली गई. जैसे ही तिलबती घर के भीतर घुसी, सिया राउत ने घर का दरवाजा बंद कर के चिटकनी और कुंडा लगा दिया.

दोनों ने मिल कर पहले तिलबती से जम कर मारपीट की, जब तिलबती घायल हो गई तो दोनों ने मिल कर उस की गला दबा कर हत्या कर दी.

हत्यारे यहीं नहीं रुके उन्होंने मीट काटने वाले चापड़ से तिलबती की लाश के पूरे 31 टुकड़े कर दिए. उस के बाद उन्होंने अंधेरा होने का इंतजार किया और फिर अंधेरा होने पर लाश जंगल में ले गए. जंगल में गड्ढा खोद कर तिलबती की लाश के टुकड़े दफन कर दिए. उन्होंने लाश के टुकड़ों के ऊपर नमक डाल दिया था ताकि वह जल्दी गल जाएं.

चंद्रा राउत और उस की पत्नी सिया राउत ने सोचा कि तिलबती को गांव में आते किसी ने देखा भी नहीं होगा. उस की लाश उन्होंने नमक डाल कर दफन कर दी. इसलिए उन का राज हमेशा हमेशा के लिए दफन हो कर रह जाएगा, मगर ऐसा न हो सका.

अपराध चाहे कैसा भी क्यों न हो, कितनी ही चतुराई से क्यों न किया गया हो, उस का परदाफाश हो ही जाता है.

तिलबती मर्डर केस में भी ऐसा ही हुआ. रात को जंगली जानवरों ने गड्ढे को खोद दिया, जिस में से तिलबती का हाथ बाहर आ गया. जिसे गांव के एक युवक ने देख लिया और पुलिस को खबर कर दी. इस घटना के बाद ग्रामीणों में काफी रोष था. उन्होंने दोनों आरोपियों के लिए फांसी का मांग की थी.

एक युवती को प्यार करने की कीमत अपनी जान दे कर चुकानी पड़ी, उसे ऐसी दर्दनाक मौत दी गई कि जिसे सुन कर रोंगटे खड़े हो जाएं.

युवती का कसूर सिर्फ इतना ही था कि वह जिस शख्स से प्यार करती थी, उस के साथ अपनी सारी जिंदगी गुजारना चाहती थी, लेकिन वह पहले से ही शादीशुदा था. बावजूद इस के उस कातिल प्रेमी ने उसे अपने प्यार के जाल में फंसाया, जिस का अंजाम युवती को अपनी जान दे कर भुगतना पड़ा.

कथा लिखी जाने तक राईघर गांव पुलिस ने इस संबंध में आईपीसी की धारा 302, 201 के तहत रिपोर्ट दर्ज कर दोनों आरोपियों चंद्रा राउत और उस की पत्नी सिया राउत को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया था.

—कथा में मृदुला, सौम्या, माधव और निर्मला परिवर्तित नाम हैं. कथा पुलिस सूत्रों व जनचर्चा पर आधारित है.

समाज की डोर पर 2 की फांसी

डेयरी संचालक भूरा राजपूत अपना काम निपटा कर वापस घर आया तो उस की नजर घरेलू कामों में लगीं बेटियों पर पड़ी. उन की 4 बेटियों में 3 तो घर में थीं लेकन सब से बड़ी बेटी शैफाली घर में नजर नहीं आई. उन्होंने पत्नी से पूछा, ‘‘रेनू, शैफाली दिखाई नहीं दे रही. वह कहीं गई है क्या?’’

‘‘अपनी सहेली शिवानी के घर गई है. कह रही थी, उस की किताबें वापस करनी हैं.’’ रेनू ने पति को बताया.

पत्नी की बात सुन कर भूरा झल्ला उठा, ‘‘मैं ने तुम्हें कितनी बार समझाया है कि शैफाली को अकेले घर से मत जाने दिया करो, लेकिन मेरी बात तुम्हारे दिमाग में घुसती कहां है. उसे जाना ही था तो अपनी छोटी बहन को साथ ले जाती. उस पर अब मुझे कतई भरोसा नहीं है.’’

पति की बात सही थी. इसलिए रेनू ने कोई जवाब नहीं दिया.

शैफाली सुबह 10 बजे अपनी मां रेनू से यह कह घर से निकली थी कि वह शिवानी को किताबें वापस कर घंटा सवा घंटा में वापस आ जाएगी. लेकिन दोपहर एक बजे तक भी वह घर नहीं लौटी थी. उसे गए हुए 3 घंटे हो गए थे. जैसेजैसे समय बीतता जा रहा था, वैसेवैसे रेनू और उस के पति भूरा की चिंता बढ़ती जा रही थी.

रेनू बारबार उस का मोबाइल नंबर मिला रही थी, लेकिन उस का मोबाइल स्विच्ड औफ था. जब भूरा से नहीं रहा गया तो शैफाली का पता लगाने के लिए घर से निकल पड़ा. उस ने बेटे अशोक को भी साथ ले लिया था.

शैफाली की सहेली शिवानी का घर गांव के दूसरे छोर पर था. भूरा राजपूत वहां पहुंचा तो घर का दरवाजा अंदर से बंद था. भूरा ने दरवाजा खटखटाया तो कुछ देर बाद शिवानी के भाई संदीप ने दरवाजा खोला. शैफाली के पिता को देख कर संदीप घबरा गया. लेकिन अपनी घबराहट को छिपाते हुए उस ने पूछा, ‘‘अंकल आप, कैसे आना हुआ?’’

भूरा गुस्से में बोला, ‘‘शैफाली और शिवानी कहां हैं?’’

‘‘अंकल शैफाली तो यहां नहीं आई. मेरी बहन शिवानी मातापिता और भाई के साथ गांव गई है. वे लोग 2 दिन बाद वापस आएंगे.’’ संदीप ने जवाब दिया.

संदीप की बात सुन कर भूरा अपशब्दों की बौछार करते हुए बोला, ‘‘संदीप, तू ज्यादा चालाक मत बन. तू ने मेरी भोलीभाली बेटी को अपने प्यार के जाल में फंसा रखा है. तू झूठ बोल रहा है कि शैफाली यहां नहीं आई. उसे जल्दी से घर के बाहर निकाल वरना पुलिस ला कर तेरी ऐसी ठुकाई कराऊंगा कि प्रेम का भूत उतर जाएगा.’’

‘‘अंकल मैं सच कह रहा हूं, शैफाली नहीं आई. न ही मैं ने उसे छिपाया है.’’ संदीप ने फिर अपनी बात दोहराई.

यह सुनते ही भूरा संदीप से भिड़ गया. उस ने संदीप के साथ हाथापाई की. फिर पुलिस लाने की धमकी दे कर चला गया. उस के जाते ही संदीप ने दरवाजा बंद कर लिया. यह बात 13 जून, 2019 की है. भूरा राजपूत लगभग 2 बजे पुलिस चौकी मंधना पहुंचा.  संयोग से उस समय बिठूर थाना प्रभारी विनोद कुमार सिंह भी चौकी पर मौजूद थे.

भूरा ने उन्हें बताया, ‘‘सर, मेरा नाम भूरा राजपूत है और मैं कछियाना गांव का रहने वाला हूं. मेरे गांव में संदीप रहता है. उस ने मेरी बेटी शैफाली को बहलाफुसला कर अपने घर में छिपा रखा है. शायद वह शैफाली को साथ भगा ले जाना चाहता है. आप मेरी बेटी को मुक्त कराएं.’’

चूंकि मामला लड़की का था. थानाप्रभारी विनोद कुमार सिंह पुलिस के साथ कछियाना गांव निवासी संदीप के घर जा पहुंचे. घर का मुख्य दरवाजा बंद था. थानाप्रभारी विनोद कुमार सिंह ने दरवाजे की कुंडी खटखटाई, साथ ही आवाज भी लगाई. लेकिन अंदर से कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई.

संदीप के दरवाजे पर पुलिस देख कर पड़ोसी भी अपने घरों से बाहर आ गए. वे लोग जानने की कोशिश कर रहे थे कि आखिर संदीप के घर ऐसा क्या हुआ जो पुलिस आई है. जब दरवाजा नहीं खुला तो थानाप्रभारी विनोद कुमार सिंह सहयोगी पुलिसकर्मियों के साथ पड़ोसी विजय तिवारी की छत से हो कर संदीप के घर में दाखिल हुए.

घर के अंदर एक कमरे का दृश्य देख कर सभी पुलिस वाले दहल उठे. कमरे के अंदर संदीप और शैफाली के शव पंखे के सहारे साड़ी के फंदे से झूल रहे थे. इस के बाद गांव में कोहराम मच गया. भूरा राजपूत और उस की पत्नी रेनू बेटी का शव देख कर फफक पड़े. शैफाली की बहनें भी फूटफूट कर रोने लगीं. पड़ोसी विजय तिवारी ने संदीप द्वारा आत्महत्या करने की सूचना उस के पिता दिनेश कमल को दे दी.

थानाप्रभारी विनोद कुमार सिंह ने प्रेमी युगल द्वारा आत्महत्या करने की बात वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को दी तो कुछ देर बाद एसपी (पश्चिम) संजीव सुमन तथा सीओ अजीत कुमार घटनास्थल पर आ गए. उन्होंने फोरैंसिक टीम को भी बुलवा लिया.

उस के बाद पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया और फंदों से लटके शव नीचे उतरवाए. मृतक संदीप की उम्र 20-22 वर्ष थी, जबकि मृतका शैफाली की उम्र 18 वर्ष के आसपास. मौके पर फोरैंसिक टीम ने भी जांच की.

टीम ने मृतक संदीप की जेब से मिले पर्स व मोबाइल को जांच के लिए कब्जे में ले लिया. मृतका शैफाली की चप्पलें और मोबाइल भी सुरक्षित रख ली गईं. पुलिस टीम ने वह साड़ी भी जांच की काररवाई में शामिल कर ली जिस से प्रेमीयुगल ने फांसी लगाई थी.

दोनों के परिजनों ने लगाए एकदूसरे पर आरोप

अब तक मृतक संदीप के मातापिता  व भाईबहन भी गांव से लौट आए थे और शव देख कर बिलखबिलख कर रोने लगे. संदीप की मां माधुरी गांव जाने से पहले उस के लिए परांठा सब्जी बना कर रख कर गई थी. संदीप ने वही खाया था.

पुलिस अधिकारियों ने मृतकों के परिजनों से घटना के संबंध में पूछताछ की और दोनों के शव पोस्टमार्टम हेतु लाला लाजपत राय अस्पताल कानपुर भिजवा दिए. मृतकों के परिजन एकदूसरे पर दोषारोपण कर रहे थे, जिस से गांव में तनाव की स्थिति बनती जा रही थी. इसलिए पुलिस अधिकारियों ने सुरक्षा की दृष्टि से गांव में पुलिस तैनात कर दी. साथ ही आननफानन में पोस्टमार्टम करा कर शव उन के घर वालों को सौंप दिए.

कानपुर महानगर से 15 किलोमीटर दूर जीटी रोड पर एक कस्बा है मंधना. जो थाना बिठूर के क्षेत्र में आता है. मंधना कस्बे से कुरसोली जाने वाली रोड पर एक गांव है कछियाना. मंधना कस्बे से मात्र एक किलोमीटर दूर बसा यह गांव सभी भौतिक सुविधाओं वाला गांव है.

भूरा राजपूत अपने परिवार के साथ इसी गांव में रहता है. उस के परिवार में पत्नी रेनू के अलावा एक बेटा अशोक तथा 4 बेटियां शैफाली, लवली, बबली और अंजू थीं. भूरा राजपूत डेयरी चलाता था. इस काम में उसे अच्छी आमदनी होती थी. उस की आर्थिक स्थिति मजबूत थी.

भाईबहनों में बड़ी शैफाली थी. वह आकर्षक नयननक्श वाली सुंदर युवती थी. वैसे भी जवानी में तो हर युवती सुंदर लगती है. शैफाली की तो बात ही कुछ और थी. वह जितनी खूबसूरत थी, पढ़ने में उतनी ही तेज थी. उस ने सरस्वती शिक्षा सदन इंटर कालेज मंधना से हाईस्कूल पास कर लिया था. फिलहाल वह 11वीं में पढ़ रही थी.

पढ़ाई लिखाई में तेज होने के कारण उस के नाज नखरे कुछ ज्यादा ही थे. लेकिन संस्कार अच्छे थे. स्वभाव से वह तेजतर्रार थी, पासपड़ोस के लोग उसे बोल्ड लड़की मानते थे.

कछियाना गांव के पूर्वी छोर पर दिनेश कमल रहते थे. उन के परिवार में पत्नी माधुरी के अलावा 2 बेटे थे. संदीप उर्फ गोलू, प्रदीप उर्फ मुन्ना और बेटी शिवानी थी. दिनेश कमल मूल रूप से कानपुर देहात जनपद के रूरा थाने के अंतर्गत चिलौली गांव के रहने वाले थे. वहां उन की पुश्तैनी जमीन थी. जिस में अच्छी उपज होती थी. दिनेश ने कछियाना गांव में ही एक प्लौट खरीद कर मकान बनवा लिया था. इस मकान में वह परिवार सहित रहते थे. वह चौबेपुर स्थित एक फैक्ट्री में काम करते थे.

दिनेश कमल का बेटा संदीप और बेटी शिवानी पढ़ने में तेज थे. इंटरमीडिएट पास करने के बाद संदीप ने आईटीआई कानपुर में दाखिला ले लिया. वह मशीनिस्ट ट्रेड से पढ़ाई कर रहा था.

शैफाली की सहेली का भाई था संदीप

शिवानी और शैफाली एक ही गांव की रहने वाली थीं, एक ही कालेज में साथसाथ पढ़ती थीं. अत: दोनों में गहरी दोस्ती थीं. दोनों सहेलियां एक साथ साइकिल से कालेज आतीजाती थीं. जब कभी शैफाली का कोर्स पिछड़ जाता तो वह शिवानी से कौपी किताब मांग कर कोर्स पूरा कर लेती और जब शिवानी पिछड़ जाती तो शैफाली की मदद से काम पूरा कर लेती. दोनों के बीच जातिबिरादरी का भेद नहीं था. लंच बौक्स भी दोनों मिलबांट कर खाती थीं.

एक रोज कालेज से छुट्टी होने के बाद शिवानी और शैफाली घर वापस आ रही थीं. तभी रास्ते में अचानक शैफाली का दुपट्टा उस की साइकिल की चेन में फंस गया. शैफाली और शिवानी दुपट्टा निकालने का प्रयास कर रही थीं, लेकिन वह निकल नहीं रहा था.

उसी समय पीछे से शिवानी का भाई संदीप आ गया. वह मंधना बाजार से सामान ले कर लौट रहा था. उस ने शिवानी को परेशान हाल देखा तो स्कूटर सड़क किनारे खड़ा कर के पूछा, ‘‘क्या बात है शिवानी, तुम परेशान दिख रही हो?’’

‘‘हां, भैया देखो ना शैफाली का दुपट्टा साइकिल की चेन में फंस गया है. निकल ही नहीं रहा है.’’

‘‘तुम परेशान न हो, मैं निकाल देता हूं.’’ कहते हुए संदीप ने प्रयास किया तो शैफाली का दुपट्टा निकल गया. उस रोज संदीप और शैफाली की पहली मुलाकात हुई. पहली ही नजर में दोनों एकदूसरे की ओर आकर्षित हो गए. खूबसूरत शैफाली को देख कर संदीप को लगा यही मेरी सपनों की रानी है. हृष्टपुष्ट स्मार्ट संदीप को देख कर शैफाली भी प्रभावित हो गई.

सहेली के भाई से हो गया प्यार

उसी दिन से दोनों के दिलों में प्यार की भावना पैदा हुई तो मिलन की उमंगें हिलोरें मारने लगीं. आखिर एक रोज शैफाली से नहीं रहा गया तो उस के कदम संदीप के घर की ओर बढ़ गए. उस रोज शनिवार था. आसमान पर घने बादल छाए थे, ठंडी हवा चल रही थी. संदीप घर पर अकेला था. वह कमरे में बैठा टीवी पर आ रही फिल्म ‘एक दूजे के लिए’ देख रहा था. तभी दरवाजे पर दस्तक हुई. संदीप ने दरवाजा खोला तो सामने खड़ी शैफाली मुसकरा रही थी.

‘‘शिवानी है?’’ वह बोली.

‘‘वह तो मां के साथ बाजार गई है, आओ बैठो. मैं शिवानी को फोन कर देता हूं.’’ संदीप ने कहा.

‘‘मैं बाद में आ जाऊंगी.’’ शैफाली ने कहा ही था कि मूसलाधार बारिश शुरू हो गई.

‘‘अब कहां जाओगी?’’

‘‘जी.’’ कहते हुए शैफाली कमरे में आ गई और संदीप के पास बैठ कर फिल्म देखने लगी.

कमरे का एकांत हो 2 युवा विपरीत लिंगी बैठे हों, और टीवी पर रोमांटिक फिल्म चल रही हो तो माहौल खुदबखुद रूमानी हो जाता है. ऐसा ही हुआ भी शैफाली ने फिल्म देखते देखते संदीप से कहा, ‘‘संदीप एक बात पूछूं?’’

‘‘पूछो?’’

‘‘प्यार करने वालों का अंजाम क्या ऐसा ही होता है.’’

‘‘कोई जरूरी नहीं.’’ संदीप ने कहा, ‘‘प्यार  करने वाले अगर समय के साथ खुद अनुकूल फैसला लें और समझौता न कर के आगे बढ़ें तो उन का अंत सुखद होगा.’’

‘‘अपनी बात तो थोड़ा स्पष्ट करो.’’

‘‘देखो शैफाली, मैं समझौतावादी नहीं हूं. मैं तो तुरत फुरत में विश्वास करता हूं और दूसरे मेरा मानना है कि जो चीज सहज हासिल न हो उसे खरीद लो.’’

‘‘अच्छा संदीप अगर मैं कहूं कि मैं तुम से प्यार करती हूं, तब तुम मेरा प्यार हासिल करना चाहोगे या खरीदना पसंद करोगे?’’

शैफाली के सवाल पर संदीप चौंका. उस का चौंकना स्वाभाविक था. वह यह तो जानता था कि शैफाली बोल्ड लड़की है, लेकिन उस की बोल्डनैस उसे क्लीन बोल्ड कर देगी, वह नहीं जानता था. संदीप, शैफाली के प्रश्न का उत्तर दे पाता, उस के पहले ही शिवानी मां के साथ बाजार से लौट आई. आते ही शिवानी ने चुटकी ली, ‘‘शैफाली, संदीप भैया से मिल लीं. आजकल तुम्हारे ही गुणगान करता रहता है ये.’’

‘‘धत…’’ शैफाली ने शरमाते हुए उसे झिड़क दिया. फिर कुछ देर दोनों सहेलियां हंसी मजाक करती रहीं. थोड़ा रुक कर शैफाली अपने घर चली गई.

बढ़ने लगा प्यार का पौधा

उस दिन के बाद दोनों में औपचारिक बातचीत होने लगी. दिल धीरेधीरे करीब आ रहे थे. संदीप शैफाली को पूरा मानसम्मान देने लगा था. जब भी दोनों का आमना सामना होता, संदीप मुसकराता तो शैफाली के होंठों पर भी मुसकान तैरने लगती. अब दोनों की मुसकराहट लगातार रंग दिखाने लगी थी.

एक रविवार को संदीप यों ही स्कूटर से घूम रहा था कि इत्तेफाक से उस की मुलाकात शैफाली से हो गई. शैफाली कुछ सामान खरीदने मंधना बाजार गई थी. चूंकि शैफाली के मन में संदीप के प्रति चाहत थी. इसलिए उसे संदीप का मिलना अच्छा लगा. उसने मुसकरा कर पूछा, ‘‘तुम बाजार में क्या खरीदने आए थे?’’

‘‘मैं बाजार से कुछ खरीदने नहीं बल्कि घूमने आया था. मुझे पंडित रेस्तरां की चाय बहुत पसंद है. तुम भी मेरे साथ चलो. तुम्हारे साथ हम भी वहां एक कप चाय पी लेंगे.’’

‘‘जरूर.’’ शैफाली फौरन तैयार हो गई.

पास ही पंडित रेस्तरां था. दोनों जा कर रेस्तरां में बैठ गए. चायनाश्ते का और्डर देने के बाद संदीप शैफाली से मुखातिब हुआ, ‘‘बहुत दिनों से मैं तुम से अपने मन की बात कहना चाह रहा था. आज मौका मिला है, इसलिए सोच रहा हूं कि कह ही दूं.’’

शैफाली की धड़कनें तेज हो गईं. वह समझ रही थी कि संदीप के मन में क्या है और वह उस से क्या कहना चाह रहा है. कई बार शैफाली ने रात के सन्नाटे में संदीप के बारे में बहुत सोचा था.

उस के बाद इस नतीजे पर पहुंची थी कि संदीप अच्छा लड़का है. जीवनसाथी के लिए उस के योग्य है. लिहाजा उस ने सोच लिया था कि अगर संदीप ने प्यार का इजहार किया तो वह उस की मोहब्बत कबूल कर लेगी.

‘‘जो कहूंगा, अच्छा ही कहूंगा.’’ कहते हुए संदीप ने शैफाली का हाथ पकड़ा और सीधे मन की बात कह दी, ‘‘शैफाली मैं तुम से प्यार करने लगा हूं.’’

शैफाली ने उसे प्यार की नजर से देखा, ‘‘मैं भी तुम से प्यार करती हूं संदीप, और यह भी जानती हूं कि प्यार में कोई शर्त नहीं होती. लेकिन दिल की तसल्ली के लिए एक प्रश्न पूछना चाहती हूं. यह बताओ कि मोहब्बत के इस सिलसिले को तुम कहां तक ले जाओगे?’’

साथ निभाने की खाईं कसमें

‘‘जिंदगी की आखिरी सांस तक.’’ संदीप भावुक हो गया, ‘‘शैफाली, मेरे लफ्ज किसी तरह का ढोंग नहीं हैं. मैं सचमुच तुम से प्यार करता हूं. प्यार से शुरू हो कर यह सिलसिला शादी पर खत्म होगा. उस के बाद हमारी जिंदगी साथसाथ गुजरेगी.’’

शैफाली ने भी भावुक हो कर उस के हाथ पर हाथ रख दिया, ‘‘प्यार के इस सफर में मुझे अकेला तो नहीं छोड़ दोगे?’’

‘‘शैफाली,’’ संदीप ने उस का हाथ दबाया, ‘‘जान दे दूंगा पर इश्क का ईमान नहीं जाने दूंगा.’’

शैफाली ने संदीप के होंठों को तर्जनी से छुआ और फिर उंगली चूम ली. उस की आंखों की चमक बता रही थी कि उसे जैसे चाहने वाले की तमन्ना थी, वैसा ही मिल गया है.

शैफाली और संदीप की प्रेम कहानी शुरू हो चुकी थी. गुपचुप मेलमुलाकातें और जीवन भर साथ निभाने के कसमेवादे, दिनों दिन उन का पे्रमिल रिश्ता चटख होता गया. दोनों का मेलमिलाप कराने में शैफाली की सहेली शिवानी अहम भूमिका निभाती रही.

एक दिन प्यार के क्षणों में बातोंबातों में संदीप ने बोला, ‘‘शैफाली, अपने मिलन के अब चंद महीने बाकी हैं. मैं कानपुर आईटीआई से मशीनिस्ट टे्रड का कोर्स कर रहा हूं. मेरा यह आखिरी साल है. डिप्लोमा मिलते ही मैं तुम से शादी कर लूंगा.’’

संदीप की बात सुन कर शैफाली खिलखिला कर हंस पड़ी.

संदीप ने अचकचा कर उसे देखा, ‘‘मैं इतनी सीरियस बात कर रहा हूं और तुम हंस रही हो.’’

‘‘बचकानी बात करोगे तो मुझे हंसी आएगी ही.’’

‘‘मैं ने कौन सी बचकानी बात कह दी?’’

‘‘शादी की बात.’’ शैफाली ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘बुद्धू शादी के बाद पत्नी की सारी जिम्मेदारियां पति की हो जाती हैं. एक पैसा तुम कमाते नहीं हो, मुझे खिलाओगे कैसे? मेरे खर्च और शौक कैसे पूरे करोगे?’’

‘‘यह मैं ने पहले से सोच रखा है,’’ संदीप बोला, ‘‘डिप्लोमा मिलते ही मैं दिल्ली या नोएडा जा कर कोई नौकरी कर लूंगा. शादी के बाद हम दिल्ली में ही अपनी अलग दुनिया बसाएंगे.’’

बनाने लगे सपनों का महल

संदीप की यह बात शैफाली को मन भा गई. दिल्ली उस के भी सपनों का शहर था. इसीलिए संदीप ने उस से दिल्ली में बसने की बात कही तो उस का मन खुशी से झूम उठा.

संदीप और शैफाली का प्यार परवान चढ़ ही रहा था कि एक दिन उन का भांडा फूट गया. हुआ यूं कि उस रोज शैफाली अपने कमरे में मोबाइल पर संदीप से प्यार भरी बातें कर रही थी. उस की बातें मां रेनू ने सुनीं तो उन का माथा ठनका. कुछ देर बाद उन्होंने उस से पूछा, ‘‘शैफाली, ये संदीप कौन है? उस से तुम कैसी अटपटी बातें करती हो?’’

शैफाली न डरी न लजाई, उस ने बता दिया, ‘‘मां संदीप मेरी सहेली शिवानी का भाई है. गांव के पूर्वी छोर पर रहता है. बहुत अच्छा लड़का है. हम दोनों एकदूसरे से प्यार करते हैं और शादी करना चाहते हैं.’’

रेनू कुछ देर गंभीरता से सोचती रही, फिर बोली, ‘‘बेटी अभी तो तुम्हारी पढ़ने लिखने की उम्र है. प्यारव्यार के चक्कर में पड़ गई. वैसे तुम्हारी पसंद से शादी करने पर मुझे कोई एतराज नहीं है. किसी दिन उस लड़के को घर ले अना, मैं उस से मिल लूंगी और उस के बारे में पूछ लूंगी. सब ठीकठाक लगा तो तुम्हारे पापा को शादी के लिए राजी कर लूंगी.’’

3-4 दिन बाद शैफाली ने संदीप को चाय पर बुला लिया. होने वाली सास ने बुलाया है. यह जान कर संदीप के पैर जमीन पर नहीं पड़ रहे थे. उसे विश्वास हो था कि शैफाली के घर वालों की स्वीकृति के बाद वह अपने घर वालों को भी मना लगा. उस ने अभी तक अपने मांबाप को अपने प्यार के बारे में कुछ भी नहीं बताया था. घर में उस की बहन शिवानी ही उस की प्रेम कहानी जानती थी.

शैफाली की मां रेनू ने संदीप को देखा तो उस की शक्ल सूरत, कदकाठी तो उन्हें पसंद आई. लेकिन जब जाति कुल के बारे में पूछा तो रेनू की आंखों के आगे अंधेरा छा गया. संदीप दलित समाज का था.

नहीं बनी शादी की बात

संदीप के जाने के बाद रेनू ने शैफाली को डांटा, ‘‘यह क्या गजब किया. दिल लगाया भी तो एक दलित से. राजपूत और दलित का रिश्ता नहीं हो सकता. तू भूल जा उसे, इसी में हम सब की भलाई है. समाज उस से तुम्हारा रिश्ता स्वीकर नहीं करेगा. हम सब का हुक्कापानी बंद हो जाएगा. तुम्हारी अन्य बहनें भी कुंवारी बैठी रह जाएंगी. भाई को भी कोई अपनी बहनबेटी नहीं देगा.’’

शैफाली ने ठंडे दिमाग से सोचा तो उसे लगा कि मां जो कह रही हैं, सही बात है. इसलिए उस ने उस वक्त तो मां से वादा कर लिया कि वह संदीप को भूल जाएगी. लेकिन वह अपना वादा निभा नहीं सकी. वह संदीप को अपने दिल से निकाल नहीं पाई.

संदीप के बारे में वह जितना सोचती थी उस का प्यार उतना ही गहरा हो जाता. आखिर उस ने निश्चय कर लिया कि चाहे जो भी हो, वह संदीप का साथ नहीं छोड़ेगी. शादी भी संदीप से ही करेगी.

भूरा राजपूत को शैफाली और संदीप की प्रेम कहानी का पता चला तो उस ने पहले तो पत्नी रेनू को आड़े हाथों लिया, फिर शैफाली को जम कर फटकार लगाई. साथ ही चेतावनी भी दी, ‘‘शैफाली, तू कान खोल कर सुन ले, अगर तू इश्क के चक्कर में पड़ी तो तेरी पढ़ाई लिखाई बंद हो जाएगी और तुझे घर से बाहर जाने की इजाजत नहीं मिलेगी.’’

घर वालों के विरोध के कारण शैफाली भयभीत रहने लगी. वह अच्छी तरह जान गई थी कि परिवार वाले उस की शादी किसी भी कीमत पर संदीप के साथ नहीं करेंगे. उस ने यह बात संदीप को बताई तो उस का दिल बैठ गया. वह बोला, ‘‘शैफाली घर वाले विरोध करेंगे तो क्या तुम मुझे ठुकरा दोगी?’’

‘‘नहीं संदीप, ऐसा कभी नहीं होगा., मैं तुम से प्यार करती हूं और हमेशा करती रहूंगी. हम साथ जिएंगे, साथ मरेंगे.’’

‘‘मुझे तुम से यही उम्मीद थी, शैफाली.’’ कहते हुए संदीप ने उसे अपनी बांहों में भर लिया. उस की आंखों से खुशी के आंसू बहने लगे.

रेनू अपनी बेटी शैफाली पर भरोसा करती थीं. उन्हें विश्वास था कि समझाने के बाद उस के सिर से इश्क का भूत उतर गया है. इसलिए उन्होंने शैफाली के घर से बाहर जाने पर एतराज नहीं किया. लेकिन उस का पति भूरा राजपूत शैफाली पर नजर रखता था. उस ने  पत्नी से कह रखा था कि शैफाली जब भी घर से निकले, छोटी बहन के साथ निकले.

संदीप ने बुला लिया शैफाली को

13 जून, 2019 की सुबह 8 बजे संदीप के पिता दिनेश कमल अपनी पत्नी माधुरी बेटी शिवानी तथा बेटे मुन्ना के साथ अपने गांव चिलौली (कानपुर देहात) चले गए. दरअसल, बरसात शुरू हो गई थी. उन्हें मकान की मरम्मत करानी थी. उन्हें वहां सप्ताह भर रुकना था. जाते समय संदीप की मां माधुरी ने उस से कहा, ‘‘बेटा संदीप, मैं ने पराठा, सब्जी बना कर रख दी है. भूख लगने पर खा लेना.’’.

मांबाप, भाईबहन के गांव चले जाने के बाद घर सूना हो गया. ऐसे में संदीप को तन्हाई सताने लगी. इस तनहाई को दूर करने के लिए उस ने अपनी प्रेमिका शैफाली को फोन किया, ‘‘हैलो, शैफाली आज मैं घर पर अकेला हूं. घर के सभी लोग गांव गए हैं. तुम्हारी याद सता रही थी. इसलिए जैसे भी हो तुम मेरे घर आ जाओ.’’

‘‘ठीक है संदीप, मैं आने की कोशिश करूंगी.’’ इस के बाद शैफाली तैयार हुई और मां से प्यार जताते हुए बोली, ‘‘मां, कुछ दिन पहले मैं अपनी सहेली शिवानी से कुछ किताबें लाई थी. उसे किताबें वापस करने उस के घर जाना है. घंटे भर बाद वापस आ जाऊंगी.’’ मां ने इस पर कोई ऐतराज नहीं किया.

शैफाली किताबें वापस करने का बहाना बना कर घर से निकली ओर संदीप के घर जा पहुंची. संदीप उस का बेसब्री से इंतजार कर रहा था. उस के आते ही संदीप ने उसे बांहों में भर कर चुंबनों की झड़ी लगा दी. इस के बाद दोनों प्रेमालाप में डूब गए.

दोनों ने लगा लिया मौत को गले

इधर भूरा राजपूत घर पहुंचा तो उसे अन्य बेटियां तो घर में दिखीं पर शैफाली नहीं दिखी. उस ने पत्नी से पूछताछ की तो उस ने बताया कि वह सहेली के घर किताबें वापस करने लगने लगी थी. यह सुनते ही भूरा का मथा ठनका. उसे शक हुआ कि शैफाली बहाने से घर से निकली है और प्रेमी संदीप से मिलने गई है.

भूरा ने कुछ देर शैफाली के लौटने का इंतजार किया, फिर उस की तलाश में घर से निकल से निकल पड़ा. वह सीधा संदीप के घर पहुंचा. संदीप घर पर ही था. शैफाली के बारे में पूछने पर उस ने भूरा से झूठ बोल दिया कि शैफाली उस के घर नहीं है. शैफाली को ले कर भूरा की संदीप से हाथापाई भी हुई फिर वह पुलिस लाने की धमकी दे कर वहां से पुलिस चौकी चला गया.

संदीप ने शैफाली को घर में ही छिपा दिया था. पिता की धमकी से वह डर गई थी. उस ने संदीप से कहा, ‘‘संदीप, घर वाले हम दोनों को एक नहीं होने देंगे. और मैं तुम्हारे बिना जी नहीं सकती. अब तो बस एक ही रास्ता बचा है वह है मौत का. हम इस जन्म में न सही अगले जन्म में फिर मिलेंगे.’’

संदीप ने शैफाली को गौर से देखा फिर बोला, ‘‘शैफाली मैं भी तुहारे बिना नहीं जी सकता. मैं तुम्हारा साथ दूंगा. इस के बाद दोनों ने मिल कर पंखे के कुंडे से साड़ी बांधी और साड़ी के दोनों किनारों का फंदा बनाया, एकएक फंदा डाल कर दोनों झूल गए. कुछ ही देर में उन की मौत हो गई.

इधर भूरा राजपूत अपने साथ पुलिस ले कर संदीप के घर पहुंचा. बाद में पुलिस को कमरे में संदीप और शैफाली के शव फंदों से झूले मिले. इस के बाद दोनों परिवारों में कोहराम मच गया.