Jaunpur Crime: मुसलिम गर्लफ्रेंड के लिए मांबाप को 6 टुकड़ों में काट डाला

Jaunpur Crime: एक ऐसी शर्मनाक घटना सामने आई है जिस ने रिश्तों को तारतार कर रख दिया है. एक प्रेमी ने मुसलिम प्रेमिका के लिए अपने मांबाप को 6 टुकड़ों में काट डाला. आखिर ऐसा क्या था उस प्रेमिका में जिस से एक इंजीनियर बेटा ने मांबाप को इतनी बेरहमी से मार डाला?  क्या है इस मर्डर का पूरा सच जानने के लिए पढ़ते हैं आगे जो आप को करेगा होने वाली घटना से सचेत और सावधान?

यह दर्दनाक घटना उत्तर प्रदेश के जौनपुर से सामने आई है. यहां एक इंजीनियर बेटे अम्बेश कुमार ने अपने मांबाप की हत्या कर दी. अम्बेश ने मांबाप का सिर लोहे के खलबट्टे से कूच दिया था. फिर आरी से उन के 6 टुकडे कर डाले. इस के बाद उन टुकड़ों को बोरियों में भर कर गोमती नदी में बारीबारी से फेंक आया.

पुलिस के अनुसार, अम्बेश बीटेक की डिग्री लेने के बाद कोलकाता में एक कंपनी में बतौर क्वालिटी इंजीनियर कार्यरत था. वहां उसे 25 हजार की सैलरी मिलती थी. इसी जौब के दौरान उस की मुलाकात एक मुसलिम युवती से हुई. दोनों की नजदीकियां बढ़ी और 2019 में दोनों ने लव मैरिज शादी कर ली. दोनों के 2 बेटे हैं, जिन की उम्र 5 साल और 11 महीने है.

अम्बेश की लव मैरिज से परिवार खुश नहीं था. इसी को ले कर उस के पापा श्याम बहादुर और मम्मी बबीता के बीच बहस हो जाया करती थी. इसी बात को ले कर दोनों के बीच 8 दिसंबर, 2025 को झगड़ा हुआ  तो गुस्से में उस ने अपने मम्मीपापा की खलबट्टे से कूच कर हत्या कर दी.

हत्या करने के बाद अम्बेश ने अपनी बहन को फोन कर बताया कि मम्मी और पापा  कहीं चले गए हैं. वह इसी तरह नाटक करता रहा. 12 दिसंबर, 2025 को अचानक वह भी लापता हो गया. इस के बाद अम्बेश की बड़ी बहन वंदना ने उसे फोन मिलाया तो उस का कुछ पता नहीं चल सका. तब वंदना ने फिर अम्बेश की गुमशुदगी की सूचना दर्ज करा दी.

पुलिस को उस ने बताया कि  उस के मम्मीपापा पहले गायब हो गए, अब भाई भी लापता है. इस के बाद पुलिस ने इस मामले की गंभीरता से जांच की तो पुलिस को अम्बेश मिल गया. उस से पूछताछ की गई तो उस ने अपना जुर्म कुबूल कर लिया.

एएसपी आयुष श्रीवास्तव ने बताया कि अम्बेश ने बताया कि मम्मीपापा मेरी शादी तुड़वाना चाहते थे. वे चाहते थे कि वह दूसरी शादी कर ले. अम्बेश मुसलिम पत्नी को तलाक देने के लिए तैयार भी था, लेकिन उसे गुजारा भत्ता देना पड़ता. मम्मीपापा गुजारा भत्ता देने के लिए तैयार नहीं थे. तो उस ने पत्नी को तलाक देने से इनकार कर दिया.

इस के बाद मम्मी ने अम्बेश से घर से निकल जाने को कहा. तब अम्बेश ने कहा कि यह तो मेरी नानी का घर है. मुझे नेवासा में दिया था. इसी बात को ले कर मम्मी ने अम्बेश को धक्का मार दिया और कहा कि इसी समय घर से निकल जा. इसी बात को ले कर अम्बेश गुस्सा आ गया. पास में रखा टेबल के लोहे का खलबट्टा था. उस का मूसल उठाया और मम्मी के सिर पर मार दिया. इस के बाद पापा भी वहां आ गए.  वह पुलिस को फोन करने की धमकी देने लगे. वह पुलिस को फोन कर ही रहे थे तभी अम्बेश ने उन को भी मूसल मार दिया.

पापा और मम्मी चिल्लाए. दोनों फर्श पर जा गिरे. इस के बाद उन की सांसें थम चुकी थीं. दोनों की हत्या करने के बाद अम्बेश की समझ में नहीं  आ रहा था कि वह क्या करे.

यह अपराध छिपाने के लिए उस के दिमाग में एक आईडिया आया. वह बेसमेंट से सरिया काटने वाली इलेक्ट्रिक आरी ले आया और दोनों की लाशों के 3-3 टुकड़े कर दिए. फिर 6 को प्लास्टिक की बोरी में भर कर गोमती नदी में फेंक आया.

पुलिस ने आरोपी अम्बेश को अरेस्ट कर लिया है. पुलिस उस के खिलाफ सबूत इकट्ठे कर काररवाई कर रही है. Jaunpur Crime

Love Crime: इश्क की आग में कुछ इस तरह बरबाद हुआ एक परिवार

Love Crime: 2 लोगों के साथ जगराओं के थाना सिटी पहुंची लक्ष्मी ने थानाप्रभारी इंसपेक्टर इंद्रजीत सिंह को बताया था कि उस के पति प्रवासराम 2 दिन पहले काम पर गए तो अब तक लौट कर नहीं आए हैं. थानाप्रभारी ने पूरी बात बताने को कहा तो लक्ष्मी ने बताया कि उस के पति प्रवासराम मूलरूप से बिहार के जिला बांका के थाना रजौली के गांव उपराम के रहने वाले थे.

कई सालों पहले वह काम की तलाश में जगराओं आ गया था और पीओपी का काम सीख कर बडे़बडे़ मकानों में पीओपी करने के ठेके लेने लगा था. उस का काम ठीकठाक चलने लगा तो वह गांव से पत्नी और बच्चों को भी ले आया. जगराओं में वह डा. हरिराम अस्पताल के पास रहता था. सन 2001 में प्रवासराम की लक्ष्मी से शादी हुई थी. उस के कुल 6 बच्चे थे, जिन में 4 बेटियां और 2 बेटे थे. वह सुबह काम पर जाता था तो शाम 7 बजे तक वापस आता था. लक्ष्मी की बात सुन कर इंद्रजीत सिंह ने पूछा, ‘‘जिस जगह तुम्हारा पति काम करता था, वहां जा कर तुम ने पता किया था?’’

‘‘जी साहब, यह लड़का उन्हीं के साथ काम करता था.’’ साथ आए 20-22 साल के एक लड़के की ओर इशारा कर के लक्ष्मी ने कहा.

थानाप्रभारी ने उस लड़के की ओर देखा तो उस ने कहा, ‘‘साहब, मेरा नाम सोनू है, मैं उन्हीं के साथ काम करता था. वह 2 दिनों से काम पर नहीं आए हैं, जिस से हम सभी बहुत परेशान हैं. हम सभी खाली बैठे हैं.’’

इंद्रजीत सिंह ने एएसआई बलजिंदर सिंह को पूरी बात समझा कर प्रवासराम की गुमशुदगी दर्ज करा कर उस की पत्नी से उस का एक फोटो लेने को कहा. थानाप्रभारी के आदेश पर बलजिंदर सिंह ने प्रवासराम की गुमशुदगी दर्ज कर लक्ष्मी से उस का एक फोटो ले लिया. इस के बाद उन्होंने उस की फोटो के साथ सभी थानों को उस की गुमशुदगी की सूचना दे दी. यह 4 अप्रैल, 2017 की बात है. इस का मतलब प्रवासराम 2 अप्रैल से गायब था.

6 अप्रैल, 2017 को पुलिस को जगराओं के बाहरी इलाके में सेम नानकसर रोड पर स्थित एक गंदे नाले में एक लाश मिली. उसे बिस्तर में लपेट कर फेंका गया था. मौके पर पहचान न होने की वजह से पुलिस ने लाश को मोर्चरी में रखवा कर उस के पोस्टर जारी कर दिए थे. पोस्टर देख कर अगवाड़ लोपो के रहने वाले मृतक के साढू समीर ने उस की शिनाख्त डा. हरिराम अस्पताल के पास रहने वाले प्रवासराम की लाश के रूप में कर दी थी.

इंद्रजीत सिंह ने तुरंत सिपाही भेज कर लक्ष्मी को बुलवा लिया था. लाश देखते ही लक्ष्मी रोने लगी. अब शक की कोई गुंजाइश नहीं रह गई थी. वह लाश उस के गुमशुदा पति प्रवासराम की ही थी. लाश की शिनाख्त होने के बाद इंद्रजीत सिंह ने प्रवासराम की गुमशुदगी की जगह अज्ञात लोगों के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज कर लाश लक्ष्मी और उस के रिश्तेदारों को सौंप दी. उसी दिन शाम को उन्होंने उस का अंतिम संस्कार कर दिया.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार, प्रवासराम की हत्या 4 दिनों पहले गला घोंट कर की गई थी. उस की गरदन पर रस्सी के निशान थे. थानाप्रभारी ने इस मामले की जांच बलजिंदर सिंह को ही सौंप दी थी. उन्होंने मृतक की पत्नी लक्ष्मी और उस के भाइयों को बुला कर विस्तार से पूछताछ की. मृतक के भाई अनूप का कहना था कि उस के भाई की न किसी से कोई दुश्मनी थी और न किसी तरह का कोई लेनादेना था. इस के बाद बलजिंदर सिंह ने लक्ष्मी से पूछा, ‘‘तुम सोच कर बताओ कि काम पर जाने से पहले तुम्हारी पति से कोई खास बात तो नहीं हुई थी?’’

‘‘कोई बात नहीं हुई थी साहब, रोज की तरह उस दिन भी वह अपना खाने का टिफिन ले कर सुबह साढ़े 7 बजे घर से गए तो लौट कर नहीं आए.’’

बलजिंदर सिंह ने वहां जा कर भी पूछताछ की, जहां प्रवासराम काम करा रहा था. उस के साथ काम करने वाले मजदूर ही नहीं, मकान के मालिक ने भी बताया कि प्रवासराम निहायत ही शरीफ और ईमानदार आदमी था. लड़ाईझगड़ा तो दूर, वह किसी से ऊंची आवाज में बात भी नहीं करता था. समय पर काम कर के मालिक से समय पर मजदूरी ले कर अपने मजदूरों को उन की मजदूरी दे कर उन्हें खुश रखता था. बलजिंदर सिंह को अब तक की पूछताछ में कोई ऐसा सुराग नहीं मिला था, जिस से वह हत्यारों तक पहुंच पाते. यह तय था कि हत्यारे 2 या 2 से अधिक थे. लेकिन उन की समझ में नहीं आ रहा था कि ऐसे शरीफ आदमी की भला किसी की क्या दुश्मनी हो सकती थी, जो उसे मार दिया.

थानाप्रभारी इंद्रजीत सिंह से सलाह कर के बलजिंदर सिंह मुखबिरों की मदद से यह पता करने लगे कि मृतक की पत्नी का किसी से अवैध संबंध तो नहीं था. इस की एक वजह यह थी कि लक्ष्मी ने कई बार बयान बदले थे. यही नहीं, पूछताछ के दौरान वह डरीडरी सी रहती थी. कभी वह कहती थी कि 2 अप्रैल को काम से लौटने के बाद वह कुछ लेने के लिए बाजार गए थे तो लौट कर नहीं आए तो कभी कहती थी कि सुबह काम पर गए थे तो लौट कर नहीं आए थे.

उस की इन्हीं बातों पर उन्हें उस पर शक हो गया था. मुखबिरों से उन्हें पता चला था कि लक्ष्मी के घर सिर्फ 20-22 सल के सोनू का ही आनाजाना था. उसी सोनू के साथ लक्ष्मी प्रवासराम की गुमशुदगी दर्ज कराने थाने आई थी. उस की उम्र लक्ष्मी से इतनी कम थी कि उस पर संदेह नहीं किया जा सकता था. लेकिन मुखबिर ने जो खबर दी थी, उस से सोनू ही संदेह के घेरे में आ गया था. पुलिस जब उसे गिरफ्तार करने पहुंची तो वह घर पर नहीं मिला.

बलजिंदर सिंह महिला सिपाही की मदद से लक्ष्मी को थाने ले आए और जब उस से कहा कि उसी ने सोनू के साथ मिल कर अपने पति की हत्या की है तो वह अपने बच्चों की कसम खाने लगी. उस का कहना था कि पुलिस को शायद गलतफहमी हो गई है. वह भला अपने पति की हत्या क्यों करेगी. लेकिन पुलिस को मुखबिर पर पूरा भरोसा था. इसलिए जब उस के साथ थोड़ी सख्ती की गई तो उस ने अपने पति प्रवासराम की हत्या का अपराध स्वीकार करते हुए बता दिया कि उसी ने अपने प्रेमी सोनू के साथ साजिश रच कर पति प्रवासराम की हत्या कराई थी.

इस हत्या में उस का प्रेमी सोनू और उस के 2 दोस्त मिल्टन और छोटू सोनू शामिल थे. सोनू के दोस्त का नाम भी सोनू था, इसलिए यहां उस का नाम छोटू सोनू लिख दिया गया है. लक्ष्मी ने ही प्रवासराम की हत्या करा कर उस की लाश गंदे नाले में फेंकवा दी थी. इस के बाद लक्ष्मी की निशानदेही पर उस के प्रेमी सोनू और उस के साथी अवधेश (बदला हुआ नाम) को हिरासत में ले लिया गया था. जबकि उस का साथी सोनू फरार होने में कामयाब हो गया था. शायद उसे लक्ष्मी, अवधेश और सोनू के गिरफ्तार होने की सूचना मिल गई थी.

बलजिंदर सिंह ने उसी दिन यानी 9 अप्रैल, 2017 को तीनों अभियुक्तों लक्ष्मी, अवधेश और सोनू को जिला मजिस्टै्रट की अदालत में पेश कर के लक्ष्मी और सोनू को 2 दिनों के पुलिस रिमांड पर ले लिया, जबकि नाबालिग होने की वजह से अवधेश को बाल सुधारगृह भेज दिया गया. रिमांड अवधि के दौरान प्रवासराम की हत्या की जो कहानी प्रकाश में आई, वह  इस प्रकार थी- 6 बच्चों की मां बन जाने के बाद भी लक्ष्मी की देह की आग शांत होने के बजाय और भड़क उठी थी. इस की वजह यह थी कि प्रवासराम सीधासादा और शरीफ आदमी था. उस ने लक्ष्मी से कहा था कि अब उसे खुद पर संयम रखना चाहिए, क्योंकि उस के 6 बच्चे हो चुके हैं. अब उसे अपने इन बच्चों की फिक्र करनी चाहिए.

प्रवासराम दिनभर काम कर के थकामांदा घर लौटता और खाना खा कर अगले दिन काम पर जाने के लिए जल्दी सो जाता. लक्ष्मी को यह जरा भी नहीं सुहाता था. जब पति ने उस की ओर से पूरी तरह मुंह मोड़ लिया तो उस की नजरें खुद से लगभग 22 साल छोटे सोनू पर जा टिकीं. काम से फारिग होने के बाद अकेला रहने वाला सोनू अक्सर प्रवासराम के साथ उस के घर आ जाता था. वह घंटों बैठा प्रवासराम और लक्ष्मी से बातें किया करता था. लक्ष्मी की नजरें उस पर टिकीं तो वह उस से हंसीमजाक के साथसाथ शारीरिक छेड़छाड़ भी करने लगी. युवा हो रहे सोनू को यह सब बहुत अच्छा लगता था.

एक दिन दोपहर को जब सोनू काम से छुट्टी ले कर लक्ष्मी के घर पहुंचा तो लक्ष्मी ने उसे पकड़ कर बैड पर पटक दिया और मनमानी कर डाली. सोनू के लिए यह एकदम नया सुख था. उसे ऐसा लगा, जैसे वह जन्नत की सैर कर रहा है. उस दिन के बाद यह रोज का नियम बन गया. सोनू काम के बीच कोई न कोई बहाना कर के लक्ष्मी के पास पहुंच जाता और मौजमस्ती कर के लौट जाता. यह सब लगभग एक साल तक चलता रहा. किसी तरह इस बात की जानकारी प्रवासराम को हुई तो उस ने लक्ष्मी को खरीखोटी ही नहीं सुनाई, बल्कि प्यार से समझाया भी, पर उस के कानों पर जूं नहीं रेंगी.

जब प्रवासराम ने लक्ष्मी पर रोक लगाने की कोशिश की तो सोनू के प्यार में पागल लक्ष्मी ने सोनू के साथ मिल कर प्रवासराम की हत्या की योजना बना डाली. एक दिन उस ने सोनू से कहा, ‘‘जब तक प्रवासराम जिंदा रहेगा तो हम दोनों इस तरह मिल नहीं पाएंगे. वैसे भी अब उस के वश का कुछ नहीं रहा. वह बूढा हो गया है, अब उस का मर जाना ही ठीक है.’’

लक्ष्मी के साथ मिल कर प्रवासराम की हत्या की योजना बना कर सोनू ने साथ काम करने वाले अवधेश और छोटू सोनू को कुछ रुपयों का लालच दे कर अपने साथ मिला लिया. घटना वाले दिन यानी 2 अप्रैल, 2017 को सोनू पार्टी देने के बहाने शराब की बोतल और चिकन ले कर लक्ष्मी के घर पहुंचा. अवधेश और छोटू सोनू भी उस के साथ थे. उस ने प्रवासराम से कहा, ‘‘भइया चिकन और शराब लाया हूं, आज पार्टी करने का मन है.’’

योजनानुसार चारों शराब पीने बैठ गए. खुद कम पी कर सोनू और उस के साथियों ने प्रवासराम को अधिक शराब पिला दी. रात के 11 बजे तक प्रवासराम जरूरत से ज्यादा शराब पी कर लगभग बेहोश हो गया तो लक्ष्मी ने सोनू को इशारा किया. सोनू ने छोटू सोनू और अवधेश की तरफ देखा तो छोटू सोनू ने बेसुध पड़े प्रवासराम के दोनों पैर कस कर पकड़ लिए. अवधेश उस की छाती पर सवार हो गया तो लक्ष्मी और सोनू ने प्रवासराम के गले में रस्सी डाल कर कस दिया. प्रवासराम तड़प कर शांत हो गया तो चारों ने मिल कर लाश को बैड से उतार कर नीचे खिसका दिया.

अवधेश और छोटू सोनू तो अपनेअपने घर चले गए, जबकि सोनू लक्ष्मी के कमरे पर ही रुक गया. दोनों पूरी रात उसी बैड पर मौजमस्ती करते रहे, जिस बैड के नीचे प्रवासराम की लाश पड़ी थी. अगले दिन यानी 3 अप्रैल की रात को अवधेश और छोटू सोनू की मदद से सोनू प्रवासराम की लाश को बिस्तर में लपेट कर रेहड़े से ले जा कर सेम नानकसर रोड पर बहने वाले गंदे नाले में फेंक आया. रिमांड अवधि के दौरान लक्ष्मी की निशानदेही पर पुलिस ने उस के घर से वह रस्सी बरामद कर ली थी, जिस से प्रवासराम का गला घोंटा गया था. हत्या करते समय लक्ष्मी ने अपने सभी बच्चों को दूसरे कमरे में सुला कर बाहर से कुंडी लगा दी थी, जिस से बच्चों को कुछ पता नहीं चल सका था.

रिमांड अवधि समाप्त होने पर 11 अप्रैल, 2017 को लक्ष्मी और उस के प्रेमी सोनू को पुन: अदालत में पेश किया गया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया. अवधेश को पहले ही बाल सुधार गृह भेज दिया गया था. इस हत्याकांड का एक आरोपी छोटू सोनू अभी फरर है. पुलिस उस की तलाश कर रही है. प्रवासराम की हत्या और लक्ष्मी के जेल जाने के बाद उन के सभी बच्चों को प्रवासराम का छोटा भाई अपने घर ले गया है. लक्ष्मी ने अपनी वासना में अपना परिवार तो बरबाद किया ही, 3 लड़कों की जिंदगी पर सवालिया निशान लगा दिए. Love Crime

कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. अवधेश बदला हुआ नाम है.

Gorakhpur Crime: रिश्तों की मर्यादा टूटी, चाची की यारी में चाचा का खौफनाक कत्ल

Gorakhpur Crime: 17 अक्तूबर, 2016 की सुबह जिला गोरखपुर के चिलुआताल के महेसरा पुल के नजदीक जंगल में एक पेड़ के सहारे एक साइकिल खड़ी देखी गई, जिस के कैरियर पर एक बोरा बंधा था. बोरा खून से लथपथ था, इसलिए देखने वालों को अंदाजा लगाते देर नहीं लगी कि बोरे में लाश हो सकती है. लाश  होने की संभावना पर ही इस बात की सूचना थाना चिलुआताल पुलिस को दे दी गई थी. सूचना मिलते ही थानाप्रभारी इंसपेक्टर रामबेलास यादव पुलिस बल के साथ घटनास्थल पर आ पहुंचे थे. बोरे से उस समय भी खून टपक रहा था.

इस का मतलब था कि बोरा कुछ देर पहले ही साइकिल से वहां लाया गया था. उन्होंने बोरा खुलवाया तो उस में से एक आदमी की लाश निकली. मृतक की उम्र 35-36 साल रही होगी. उस के सिर पर किसी वजनदार चीज से वार किया गया था. वह रंगीन सैंडो बनियान और लुंगी पहने था. शायद रात को सोते समय उस की हत्या की गई थी. पुलिस को लाश की शिनाख्त कराने में जरा भी दिक्कत नहीं हुई. वहां जमा भीड़ ने मृतक की शिनाख्त प्रौपर्टी डीलर सुरेश सिंह के रूप में कर दी थी. वह चिलुआताल गांव का ही रहने वाला था.

शिनाख्त होने के बाद रामबेलास यादव ने मृतक के घर वालों को सूचना देने के लिए 2 सिपाहियों को भेजा. दोनों सिपाही मृतक के घर पहुंचे तो घर पर कोई नहीं मिला. पड़ोसियों से पता चला कि सुरेश सिंह के बिस्तर पर भारी मात्रा में खून मिलने और उस के बिस्तर से गायब होने से घर के सभी लोग उसी की खोज में निकले हुए थे. घर पर पुलिस के आने की सूचना मिलने पर मृतक सुरेश सिंह के बड़े भाई दिनेश सिंह घर आए तो जंगल में एक लाश मिलने की बात बता कर दोनों सिपाही उन्हें अपने साथ ले आए. लाश देखते ही दिनेश सिंह फफक कर रो पड़े. इस से साफ हो गया कि मृतक उन का भाई सुरेश सिंह ही था.

इस के बाद पुलिस ने घटनास्थल की सारी काररवाई निपटा कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए बाबा राघवदास मैडिकल कालेज भिजवा दिया और उस साइकिल को जब्त कर लिया, जिस पर लाश बोरे में भर कर वहां लाई गई थी. थाने लौट कर रामबेलास यादव ने मृतक के बडे़ भाई दिनेश सिंह की तहरीर पर सुरेश सिंह की हत्या का मुकदमा अज्ञात के खिलाफ दर्ज कर लिया. मृतक सुरेश सिंह प्रौपटी डीलिंग का काम करता था. विवादित जमीनों को खरीदनाबेचना उस का मुख्य धंधा था. पुलिस ने इसी बात को ध्यान में रख कर जांच आगे बढ़ाई, लेकिन उस का ऐसा कोई दुश्मन नजर नहीं आया, जिस से लगे कि हत्या उस ने कराई है.

यह हत्याकांड अखबारों की सुर्खियां बना तो एसएसपी रामलाल वर्मा ने एसपी (सिटी) हेमराज मीणा को आदेश दिया कि वह जल्द से जल्द इस मामले का खुलासा कराएं. उन्होंने सीओ देवेंद्रनाथ शुक्ला और थानाप्रभारी रामबेलास यादव को सुरेश सिंह तथा उस के घरपरिवार के आसपास जांच का घेरा बढ़ाने को कहा. क्योंकि उन्हें लग रहा था कि यह हत्या दुश्मनी की वजह से नहीं, बल्कि अवैधसंबंधों की वजह से हुई है. क्योंकि मृतक को जिस तरह बेरहमी से मारा गया था, इस तरह लोग अवैध संबंधों में ही नफरत में मारे जाते हैं. इसी बात को ध्यान में रख कर जांच आगे बढ़ाई गई तो जल्दी ही नतीजा निकलता नजर आया.

किसी मुखबिर ने बताया कि पिछले कई सालों से सुरेश सिंह की अपनी पत्नी से पटती नहीं थी. दोनों में अकसर लड़ाईझगड़ा होता रहता था और इस की वजह सुरेश सिंह का सगा भतीजा राहुल चौधरी था. क्योंकि उस के अपनी चाची राधिका से अवैध संबंध थे. घटना से सप्ताह भर पहले भी इसी बात को ले कर सुरेश और राधिका के बीच काफी झगड़ा हुआ था. तब सुरेश ने पत्नी की पिटाई कर दी थी, जिस से नाराज हो कर वह बच्चे को ले कर मायके चली गई थी. रामबेलास यादव को हत्या की वजह का पता चल गया था. राहुल से पूछताछ करने के लिए वह उस के घर पहुंचा तो उस के पिता दिनेश सिंह ने बताया कि वह तो लखनऊ में है.

लखनऊ में राहुल गोमतीनगर में किराए का कमरा ले कर रहता है और सरकारी नौकरी के लिए तैयारी कर रहा है. पिता का कहना था कि हत्या वाले दिन के एक दिन पहले वह लखनऊ चला गया था. जबकि मुखबिर ने उन्हें बताया था कि घटना वाले दिन सुबह वह चिलुआताल में दिखाई दिया था. पिता का कहना था कि घटना से एक दिन पहले यानी 16 अक्तूबर, 2016 को राहुल लखनऊ चला गया था, जबकि मुखबिर का कहना था कि घटना वाले दिन वह चिलुआताल में दिखाई दिया था. मुखबिर की बात पर विश्वास कर के रामबेलास यादव ने राहुल को लखनऊ से लाने के लिए 2 सिपाहियों को भेज दिया.

लखनऊ पुलिस की मदद से गोरखपुर पुलिस 22 अक्तूबर, 2016 को लखनऊ के गोमतीनगर से राहुल चौधरी को गिरफ्तार कर गोरखपुर ले आई. थाने ला कर उस से सुरेश सिंह की हत्या के बारे में पूछताछ की गई तो उस ने बिना किसी हीलाहवाली के चाची से अवैध संबंधों की वजह से चाचा सुरेश सिंह की हत्या का अपना अपराध स्वीकार कर लिया. राहुल ने चाची के प्रेम में पड़ कर चाचा की हत्या की जो कहानी सुनाई, वह इस प्रकार थी—

उत्तर प्रदेश के जिला गोरखपुर के थाना चिलुआताल में सुरेश सिंह पत्नी राधिका सिंह और 6 साल के बेटे के साथ रहता था. उस का बड़ा भाई था दिनेश सिंह. राहुल उसी का बेटा था. दोनों भाइयों के परिवार भले ही अलगअलग रहते थे, लेकिन रहते एक ही मकान में थे. सुखदुख में भी एकदूसरे की मदद भी करते थे. गांव वाले भाइयों के इस प्रेम को देख मन ही मन जलते थे. सुरेश सिंह चेन्नई में किसी प्राइवेट कंपनी में नौकरी करता था. लेकिन पत्नी राधिका बेटे के साथ गांव में रहती थी. वह साल में एक या 2 बार ही घर आता था. उस के न रहने पर जरूरत पड़ने पर घर के छोटेमोटे काम उस के बड़े भाई का बेटा राहुल कर दिया करता था.

राहुल और राधिका थे तो चाचीभतीजा, लेकिन हमउम्र होने की वजह से दोनों दोस्तों की तरह रहते थे, बातचीत भी वे दोस्तों की ही तरह करते थे. इस का नतीजा यह निकला कि धीरेधीरे उन के बीच मधुर संबंध बन गए. उन के मन में एकदूसरे के लिए चाहत के फूल खिले तो एकदूसरे के स्पर्श मात्र से उन का रोमरोम खिल उठने लगा. राहुल चाची राधिका से जुनून के हद तक प्यार करने लगा तो राधिका ने भी उस के प्यार पर अपने समर्पण की मोहर लगा दी. एक बार मर्यादा टूटी तो उन्हें जब भी मौका मिलता, जिस्म की भूख मिटाने लगे. दोनों ने अपने इस अनैतिक रिश्ते पर परदा डालने की कोशिश तो बहुत की, लेकिन पाप के इस रिश्ते को वे छिपा नहीं सके.

लोग राधिका और राहुल को ले कर तरहतरह की चर्चाएं भी करने लगे, पर उन्होंने इस बात पर ध्यान नहीं दिया. जब सुरेश सिंह के किसी शुभचिंतक ने उसे फोन कर के चाचीभतीजे के बीच पक रही खिचड़ी की जानकारी दी तो वह नौकरी छोड़ कर गांव आ गया. यह सन 2014 की बात है. सुरेश ने खूब पैसे कमाए थे. उन्हीं पैसों से उस ने गांव में रह कर प्रौपर्टी का काम शुरू कर दिया, जो थोड़ी मेहनत के बाद अच्छा चल निकला. कामधंधे की वजह से अकसर उसे दिन भर घर से बाहर रहना पड़ता था, इसलिए राहुल और राधिका को मिलने में कोई परेशानी नहीं होती थी. लेकिन एक दिन अचानक वह दोपहर में घर आ गया तो उस ने दोनों को आपत्तिजनक स्थिति में पकड़ लिया.

फिर क्या था, सुरेश ने न पत्नी को छोड़ा और न भतीजे को. उस ने इस बात को ले कर भाई से बात की तो बेटे की हरकत से वह काफी शर्मिंदा हुए. समाज और रिश्तों की दुहाई दे कर उन्होंने बेटे को घर से निकाल दिया तो वह लखनऊ आ गया और गोमतीनगर में किराए पर कमरा ले कर रहने लगा. यहां वह सरकारी नौकरी की परीक्षाओं की तैयारी कर रहा था. सुरेश की वजह से गांव में राहुल और उस की चाची की काफी बदनामी हुई थी. यही नहीं, उसे घर से भी निकाल दिया गया था. राधिका की खूब थूथू हुई थी. गांव से ले कर नातेरिश्तेदारों तक ने उस की खूब फजीहत की थी.

धीरेधीरे बात थमती गई. मांबाप से मांफी मांग कर राहुल फिर घर लौट आया. मांबाप ने उसे माफ जरूर कर दिया था, लेकिन उस पर कड़ी नजर रखी जा रही थी. राधिका से उसे मिलने की सख्त मनाही थी. जबकि वह चाची से मिलने के लिए तड़प रहा था. लेकिन सख्त पहरेदारी की वजह से दोनों का मिलन संभव नहीं हो पा रहा था. चाचा सुरेश की वजह से राहुल प्रेमिका चाची से मिल नहीं पा रहा था. उसे लग रहा था कि जब तक चाचा रहेगा, वह चाची से कभी मिल नहीं पाएगा. चाचा प्यार की राह का कांटा लगा तो वह उसे हटाने के बारे में सोचने लगा. आखिर उस ने उसे हटाने का निश्चय कर लिया.

अब वह ऐसी राह खोजने लगा, जिस पर चल कर उस का काम भी हो जाए और वह फंसे भी न. काफी सोचविचार कर उस ने तय किया कि वह अपना मोबाइल फोन औन कर के बाइब्रेशन पर लखनऊ वाले कमरे पर ही छोड़ देगा और रात में गोरखपुर पहुंच कर चाचा की हत्या कर के लखनऊ अपने कमरे पर आ जाएगा. पुलिस उस पर शक करेगी तो मोबाइल लोकेशन के सहारे वह बच जाएगा. तब वह शायद यह भूल गया था कि कातिल कितना भी चालाक क्यों न हो, कानून के लंबे हाथों से उस का बचना आसान नहीं है.

राहुल जब से घर आ कर रहने लगा था, सुरेश और उस की पत्नी राधिका के बीच उसे ले कर अकसर झगड़ा होता रहता था. जबकि इस बीच राहुल एक बार भी चाची से नहीं मिला था. रोजरोज के झगड़े से परेशान हो कर राधिका नाराज हो कर बेटे को ले कर मायके चली गई थी. राधिका के चली जाने से राहुल काफी दुखी था. उस का मन घर में नहीं लगा तो 16 अक्तूबर को मांबाप से कह कर वह लखनऊ चला गया. चाची से न मिल पाने की वजह से राहुल तड़प रहा था. तड़प की वेदना से आहत हो कर उस ने योजना को अमलीजामा पहना दिया. योजना के अनुसार 17 अक्तूबर की शाम 4 बजे इंटरसिटी ट्रेन से वह गोरखपुर के लिए चल पड़ा. रात 11 बजे के करीब वह गोरखुपर पहुंचा. स्टेशन से टैंपो ले कर वह चिलुआताल के बरगदवां चौराहे पर पहुंचा और वहां से पैदल ही घर पहुंच गया.

उसे घर तो जाना नहीं था, इसलिए सब से पहले उस ने पिता के कमरे के दरवाजे की सिटकनी बाहर से बंद कर दी, ताकि शोर होने पर वह बाहर न निकल सकें. इस के बाद पीछे की दीवार के सहारे वह सुरेश सिंह के कमरे में पहुंचा, जहां वह गहरी नींद सो रहा था. उसे देखते ही नफरत से राहुल का खून खौल उठा. उसे पता था कि चाचा के घर में लोहे की रौड कहां रखी है. उस ने लोहे की रौड उठाई और पूरी ताकत से सुरेश के सिर पर 3 वार कर के उसे मौत के घाट उतर दिया.

राहुल को विश्वास हो गया कि सुरेश की मौत हो चुकी है तो उस ने घर में रखा बोरा उठाया और उसी में उस की लाश भर कर रात के 4 बजे के करीब बाहर झांक कर देखा कि कोई देख तो नहीं रहा. जब उसे लगा कि कोई नहीं देख रहा है तो उस ने सुरेश की ही साइकिल घर उस की लाश वाले बोरे को कैरियर पर रख कर जंगल की ओर चल पड़ा. लेकिन जब वह झील की ओर जा रहा था, तभी एक ट्रैक्टर आता दिखाई दिया. उसे देख कर वह घबरा गया और साइकिल को एक पेड़ से टिका कर भागा. ट्रैक्टर पर बैठे एक मजदूर ने उसे भागते देख लिया तो उस ने उस का नाम ले कर पुकारा भी, लेकिन रुकने के बजाए राहुल बरगदवां चौराहे की ओर भाग गया.

वहां से उस ने टैंपो पकड़ी और गोरखपुर रेलवे स्टेशन पहुंचा, जहां से ट्रेन पकड़ कर लखनऊ स्थित अपने कमरे पर चला गया. उस ने चालाकी तो बहुत दिखाई, लेकिन वह काम न आई और पकड़ा गया. राहुल चौधरी की निशानदेही पर पुलिस ने हत्या में प्रयुक्त लोहे की रौड बरामद कर ली थी. पूछताछ के बाद राहुल को अदालत में पेश किया गया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. राधिका के पति की हत्या की खबर पा कर ससुराल आ गई थी. राहुल ने जो किया था, उस से उसे काफी दुख पहुंचा. क्योंकि उस ने राहुल से कभी नहीं कहा था कि वह उस के पति की हत्या कर उसे विधवा बना दे.

राहुल के मांबाप भी काफी दुखी हैं. उन्होंने राहुल से अपना नाता तोड़ कर उसे उस के हाल पर छोड़ दिया है. Gorakhpur Crime

कथा में राधिका सिंह बदला नाम है. कथा पुलिस सूत्रों एवं राहुल के बयानों पर आधारित

Hindi Crime Stories: आशिकी में पति दफन

Hindi Crime Stories: जिस सुख और आनंद के लिए सुदेवी ने प्रेमी के साथ साजिश रच कर पति को ठिकाने लगवा दिया, क्या वह सुख उसे मिल सका…

एसपी (रूरल) सुरेंद्रनाथ तिवारी थाना महराजगंज निरीक्षण के लिए आए थे, तभी एक लड़का और एक औरत थाने पहुंची. दोनों काफी घबराए हुए थे. उन्हें देख कर ही लग रहा था कि वे किसी बड़ी मुसीबत में हैं. सुरेंद्रनाथ की नजर उन पर पड़ी तो उन्होंने दोनों को अपने पास बुला कर पूछा, ‘‘कहो, क्या बात है? जो भी परेशानी हो, सचसच बताओ?’’

लड़का हाथ जोड़ कर बोला, ‘‘हुजूर, मेरा नाम दिनेश है.’’ इस के बाद औरत की ओर इशारा कर के बोला, ‘‘यह मेरी भाभी सुदेवी है. हम लोग थाना बिठूर के गांव हिंगूपुर से आए हैं. 21 अप्रैल को मेरा बड़ा भाई हरिश्चंद्र थाना महराजगंज के गांव जाना के रहने वाले अपने साढू मंगू के यहां गया था, तब से उस का कुछ पता नहीं है. हम ने उसे हर जगह खोज लिया है. मंगू ने ही भैया को गांव में लगने वाला मेला देखने को बुलाया था.’’

सुरेंद्रनाथ तिवारी को लगा कि सुदेवी भी कुछ कहना चाहती है, इसलिए उन्होंने उस की ओर देखते हुए कहा, ‘‘तुम भी कुछ कहना चाहती हो क्या? लेकिन एक बात का ध्यान रखना, जो भी कहना, सचसच कहना.’’

‘‘जी हुजूर,’’ सुदेवी बोली, ‘‘21 अप्रैल को जब मैं कन्नौज में अपनी बुआ की बेटी के यहां थी तो उन्होंने फोन कर के बताया था कि वह जाना में साढू के यहां मेला देखने आए हैं. आज घर लौटने को कहा था. लेकिन जब वह घर नहीं लौटे और फोन पर भी बात नहीं हुई तो मैं 23 अप्रैल को जाना गई और जीजा और उन के घर वालों से उन के बारे में पता किया. उन लोगों ने बताया कि उन्हें उस दिन शाम को सर्वेश के साथ देखा गया था.’’

‘‘यह सर्वेश कौन है?’’ एसपी साहब ने पूछा.

‘‘हुजूर, सर्वेश मेरे बहनोई का भतीजा है. मेरे ऊपर उस की नीयत खराब थी, जिस की वजह से एक बार मेरे पति ने उसे डांटा भी था. मुझे लगता है कि सर्वेश ने ही उन का अपहरण कर लिया है या फिर मार डाला है.’’

मामला गंभीर था, इसलिए सुरेंद्रनाथ तिवारी ने थानाप्रभारी जीवाराम को आदेश दिया कि तुरंत जाना जा कर सर्वेश को पकड़ कर सख्ती से पूछताछ करें, जिस से हरिश्चंद्र के बारे में पता लग सके. जीवाराम ने एसआई आर.के. सिंह, सरिता मिश्रा, सिपाही बृजेशचंद्र शर्मा, आशित कुमार तथा राजेंद्र कुमार सिंह को साथ लिया और जाना जा कर सर्वेश के घर छापा मारा. सर्वेश उस समय घर पर ही था, इसलिए जीवाराम उसे पकड़ कर थाने ले आए. थाने में जब उस से हरिश्चंद्र के बारे में पूछा गया तो वह साफ मुकर गया. लेकिन वह परेशान जरूर हो उठा. उस के चेहरे पर आई घबराहट से थानाप्रभारी ने भांप लिया कि यह झूठ बोल रहा है.

उन्होंने उस पर दबाव बनाने के लिए कहा, ‘‘तुम्हारे झूठ बोलने से कोई फायदा नहीं है, सुदेवी ने हमें सब बता दिया है. इसलिए तुम्हारी भलाई इसी में है कि तुम भी सब कुछ सचसच बता दो.’’

इस पर सर्वेश ने कहा, ‘‘साहब, हरिश्चंद्र को तो मैं ने मार दिया है. लेकिन ताज्जुब की बात यह है कि जिस सुदेवी ने वादा किया था कि हत्या के इस राज को वह किसी को नहीं बताएगी. उसी ने आप से सब बता दिया. साहब,  हरिश्चंद्र की हत्या मैं ने सुदेवी के कहने पर ही की थी. हम दोनों के बीच नाजायज संबंध थे. हत्या की साजिश हम दोनों ने मिल कर रची थी. हत्या करने के बाद मैं ने सुदेवी को बताया भी था कि हरिश्चंद्र को ठिकाने लगा दिया है.’’

सुदेवी उस समय थाने में ही थी. जीवाराम ने उसे बुला कर जब बताया कि सर्वेश ने हरिश्चंद्र का कत्ल कर दिया है तो वह दहाडे़ मार कर रोने लगी. तब जीवाराम ने उसे डांटते हुए कहा, ‘‘त्रियाचरित्र करने की जरूरत नहीं है. सर्वेश ने हमें यह भी बता दिया है कि तू ने ही साजिश रच कर हरिश्चंद्र की हत्या कराई है.’’

इस के बाद सुदेवी ने भी अपना अपराध स्वीकार कर लिया तो सर्वेश की निशानदेही पर पुलिस ने जाना गांव के बगल से बहने वाले नाले के पास से हरिश्चंद्र का शव बरामद कर लिया. लाश सड़ चुकी थी. वहीं झाडि़यों से वह खून सनी ईंट भी बरामद कर ली गई, जिस से हत्या की गई थी. घटनास्थल की सारी औपचारिक काररवाई निपटा कर थाना महराजगंज पुलिस ने शव को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. सर्वेश और सुदेवी ने हरिश्चंद्र की हत्या का अपराध स्वीकार कर लिया था, इसलिए थाना महराजगंज पुलिस ने मृतक के छोटे भाई दिनेश की ओर से सर्वेश और सुदेवी के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया. पुलिस पूछताछ में हरिश्चंद्र की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह एक औरत द्वारा आशिकी में अपना ही सिंदूर उजाड़ने की वाली थी.

कानपुर शहर से 40 किलोमीटर दूर जीटी रोड पर बसा है कस्बा शिवराजपुर. इसी कस्बे में रामबाबू अपने परिवार के साथ रहता था. इसी रामबाबू की बेटी है सुदेवी. सुदेवी शादी लायक हुई थी तो उस ने उस की शादी कानपुर के थाना बिठूर के गांव हिंगूपुर के रहने वाले छोटेलाल के बड़े बेटे हरिश्चंद्र से कर दी थी. छोटेलाल का खातापीता परिवार था. यह 10-12 साल पहले की बात है. सुदेवी ने जो चाहा था, उसे ससुराल में वह सब कुछ मिल गया था, इसलिए वह खुश थी. सब से बड़ी बात यह थी कि हरिश्चंद्र उसे हद से ज्यादा प्यार करता था. यही हर लड़की का सपना होता है. सुदेवी सचमुच भाग्यशाली थी. पति ही नहीं, ससुराल का हर आदमी उसे बहुत प्यार करता था.

हंसीखुशी से 5 साल बीत गए. इस बीच सुदेवी 2 बेटों, गोल्डी और निखिल की मां बन गई. 2 बच्चों की जिम्मेदारियां बढ़ीं तो हरिश्चंद्र को आय बढ़ाने के लिए ज्यादा मेहनत की जरूरत पड़ने लगी. वह अधिक कमाई के चक्कर में ज्यादा से ज्यादा घर से बाहर रहने लगा. बस, पति का साथ न मिलने की वजह से सुदेवी के कदम बहक गए. हुआ यह कि बरसात में हरिश्चंद्र का घर गिर गया. घर बनवाने के लिए उस ने जाना के रहने वाले अपने साढू गंगू से कोई राजमिस्त्री बताने को कहा तो उस ने कहा, ‘‘साढूभाई राजमिस्त्री तो घर में ही है. हमारा भतीजा सर्वेश बहुत अच्छा राजमिस्त्री है. आजकल वह बड़ेबड़े ठेके ले रहा है. वैसे तो वह खाली नहीं है, लेकिन घर का काम है, इसलिए उसे समय तो निकालना ही पड़ेगा. तुम जब कहो, मैं उसे भेज दूं.’’

‘‘ठीक है भाई, आप ने हमारी एक बहुत बड़ी समस्या हल कर दी. बरसात खत्म होते ही मकान बनवाना शुरू कर दूंगा.’’

28 वर्षीय सर्वेश हृष्टपुष्ट युवक था. वह काम भले राजमिस्त्री का करता था, लेकिन रहता ठाठ से था. सर्वेश रिश्तेदार था. इसलिए हरिश्चंद्र के यहां काम करने आया तो घर में ही रहताखाता और सोता था. सुदेवी उस की मौसी लगती थी, इसलिए वह उस से खूब बातें करता था. मौकेबेमौके हंसीठिठोली भी कर लेता था. सुदेवी भी उस की लच्छेदार बातों में खूब रस लेती थी. बातों ही बातों में दोनों एकदूसरे की ओर आकर्षित होने लगे. धीरेधीरे सर्वेश और सुदेवी के बीच की दूरियां सिमटती चली गईं. दोनों रिश्ते को भूल कर खुल कर हंसीमजाक और छेड़छाड़ करने लगे. कुंवारा सर्वेश जहां मौसी से स्त्री सुख पाने को लालायित रहने लगा था, वहीं पति की उपेक्षा का शिकार सुदेवी सर्वेश की जवानी पर मर मिटी थी.

आग दोनों तरफ लगी थी. बस उन्हें मौके की तलाश थी. एक दिन सुबह से बरसात हो रही थी, जिस की वजह से काम बंद था. हरिश्चंद्र किसी काम से ठिबूर चला गया था और बच्चे भी स्कूल चले गए थे. दोपहर को सर्वेश आंगन में आया तो सुदेवी पेटीकोट और ब्लाउज पहने नहा रही थी. भीगे कपड़े उस के बदन से चिपके हुए थे. उन कपड़ों में सुदेवी का अंगअंग साफ झलक रहा था. सुदेवी इस बात से अनजान थी कि उसे कोई देख रहा है. अचानक सर्वेश उस के सामने आ कर खड़ा हो गया तो उसे फटकारने या शरमाने के बजाय सुदेवी उसे अजीब नजरों से ताकने लगी.

सर्वेश के लिए यह एक तरह का इशारा था. इशारा समझते ही सर्वेश ने बाहर का दरवाजा बंद किया और सुदेवी को उठा कर कमरे में ले आया. इस के बाद मर्यादा की सारी सीमाएं टूट गईं और रिश्ते तारतार हो गए. सर्वेश के साथ यौवन का आनंद मिलने के बाद सुदेवी ने पति हरिश्चंद्र की ओर से मुंह मोड़ लिया. वह हरिश्चंद्र की उपेक्षा करने लगी. बातबात में उस से लड़नेझगड़ने लगी. इस की वजह यह थी कि उसे सर्वेश से जो शारीरिक सुख मिल रहा था, वैसा सुख हरिश्चंद्र काफी दिनों से नहीं दे सका था. सर्वेश हट्टाकट्टा जवान था, जबकि हरिश्चंद की जवानी ढल चुकी थी.

धीरेधीरे सर्वेश सुदेवी की जिंदगी में पूरी तरह से आ गया. घर के लोग इस सब से बेखबर थे. कोई सोच भी नहीं सकता था कि ऐसा भी हो सकता है. लेकिन जो सोचा नहीं जा सकता था, वैसा हो रहा था. जब भी दोनों को मौका मिलता वे एक हो जाते. यह भी सच है कि एक न एक दिन पाप का घड़ा ऐसा ही अवश्य भरता है. सुदेवी और सर्वेश के साथ भी हुआ. एक दिन रात में हरिश्चंद्र की नींद खुली तो सुदेवी बिस्तर से गायब थी. उतनी रात को पत्नी कहां गई, हरिश्चंद्र सोच में पड़ गया, क्योंकि दरवाजा भी अंदर से बंद था. वह सर्वेश के कमरे में गया तो वह भी नहीं था. इस के बाद हरिश्चंद्र को शक हुआ. कुछ सोच कर वह छत पर गया तो वहां का नजारा देख कर उस के पैरों तले से जमीन खिसक गई. सुदेवी और सर्वेश आपत्तिजनक स्थिति में थे.

हरिश्चंद्र को देखते ही सर्वेश तो भाग खड़ा हुआ, लेकिन सुदेवी कहां भाग कर जाती. हरिश्चंद्र ने उस की जम कर पिटाई की. शोर सुन कर घर वाले आ गए. जब उन्हें सच्चाई का पता चला तो सब ने सिर पीट लिया. इस के बाद हरिश्चंद सुदेवी पर नजर रखने लगा और सर्वेश के घर आने पर सख्त पाबंदी लगा दी. अब दोनों का मिलना असंभव हो गया, लेकिन फोन पर उन की बातें हो जाती थीं. जब कभी हरिश्चंद्र गांव से बाहर जाता, सुदेवी फोन कर के सर्वेश को बुला लेती. लेकिन हरिश्चंद्र को बच्चों से सर्वेश के आने की खबर मिल ही जाती. तब वह सुदेवी की जम कर पिटाई करता. उस समय सुदेवी रोते हुए यही कहती, ‘‘तुम्हारी जितनी इच्छा हो मार लो, लेकिन याद रखना, एक दिन इस का खामियाजा तुम्हें भुगतना ही पड़ेगा.’’

पत्नी की इस धमकी पर हरिश्चंद्र को और भी गुस्सा आ जाता. उस हालत में वह उस की और पिटाई करता. लेकिन सुदेवी के सिर से सर्वेश के प्यार का भूत नहीं उतरा तो नहीं उतरा. वह सर्वेश की इस कदर दीवानी हो गई थी कि उस के लिए पति को मिटाने का फैसला कर लिया. इस के बाद उस ने सर्वेश के साथ मिल कर एक ऐसी योजना बनाई, जिस की किसी ने कल्पना तक नहीं की थी. उसी योजना के तहत सुदेवी खुद तो बुआ की बेटी की शादी में शामिल होने कन्नौज चली गई. जाने से पहले उस ने बड़ी बहन श्यामदुलारी को फोन कर के कह दिया था कि वह मेला देखने के बहाने उस के पति हरिश्चंद्र को अपने गांव जाना बुला ले. क्योंकि उन का मूड आजकल ठीक नहीं है.

छोटी बहन के कहने पर श्यामदुलारी ने मोबाइल पर हरिश्चंद्र से बात की तो वह मेला देखने के लिए जाने को राजी हो गया. 21 अप्रैल, 2015 को हरिश्चंद्र साढू गंगू के घर पहुंच गया. साढू के घर हरिश्चंद्र का सामना सर्वेश से हुआ तो उस ने लपक कर उस के पैर छू लिए और कुशलक्षेम पूछी. हर साल की तरह उस दिन जाना में मेला लगा था और रात में नौटंकी का कार्यक्रम था. सर्वेश और सुदेवी में मोबाइल पर लगातार बातें हो रही थीं. उस ने सुदेवी को बता दिया था कि बकरा (हरिश्चंद्र) हलाल होने के लिए आ गया है.

योजना के अनुसार, सर्वेश हरिश्चंद्र को मेला दिखाने ले गया. शाम तक दोनों मेला देखते रहे. उस के बाद वह उसे शराब के ठेके पर ले गया. सर्वेश ने खुद तो कम शराब पी, जबकि हरिश्चंद्र को ज्यादा पिलाई. इस के बाद टहलने के बहाने वह हरिश्चंद्र को गांव के बाहर बहने वाले नाले के पास ले गया और वहां धक्का दे कर जमीन पर गिरा दिया. हरिश्चंद्र जैसे ही जमीन पर गिरा, उस की गरदन पर पैर रख कर तब तक दबाए रहा, जब तक उस की मौत नहीं हो गई. मरने के बाद सर्वेश ने हरिश्चंद्र के चेहरे को ईंट से कुचल कर विकृत कर दिया और लाश को वहीं गड्ढे में दफना दिया. रात 11 बजे सर्वेश ने फोन कर के सुदेवी को बता दिया कि उस ने कांटे को निकाल दिया है.

इसी के साथ उस ने सुदेवी से अनुरोध किया कि वह गांव आ जाए, क्योंकि वह उस से मिलने के लिए तड़प रहा है. 23 अप्रैल को सुदेवी पति की खोज के बहाने जाना पहुंची. बहनबहनोई को उस ने पति के लापता होने की जानकारी दे कर पति को खोजने के बहाने सर्वेश के साथ मौजमस्ती करती रही. कुछ दिनों बाद वह घडि़याली आंसू बहाते हुए हिंगूपुर आ गई और जब ससुराल में हरिश्चंद्र के लापता होने की बात बताई तो सभी सन्न रह गए. हरिश्चंद्र के छोटे भाई दिनेश को शक हुआ कि भाई के लापता होने में भाभी सुदेवी का हाथ हो सकता है, इसलिए उस ने पहले तो भाभी को खूब खरीखोटी सुनाई, उस के बाद रिपोर्ट दर्ज करवाने को कहा. देवर के दबाव में सुदेवी डर गई और रिपोर्ट दर्ज कराने को राजी हो गई.

27 अप्रैल, 2015 को सुदेवी दिनेश के साथ थाना महराजगंज पहुंची और सर्वेश पर पति के अपहरण या मार डालने का आरोप लगा कर रिपोर्ट दर्ज करने का अनुरोध किया. इस के बाद सर्वेश पकड़ा गया तो सारा राज सामने आ गया. पूछताछ के बाद 28 अप्रैल, 2015 को पुलिस ने सर्वेश और सुदेवी को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक उन की जमानतें स्वीकृत नहीं हुई थीं. Hindi Crime Stories

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Hindi True Crime: कंटीली राह का राही

Hindi True Crime: शादीशुदा होते हुए भी धर्मवीर बाजारू औरतों के पास जाता था. इस से खफा हो कर उस की बीवी भी मायके चली गई. फिर एक दिन उस का यही शौक उस के लिए जानलेवा साबित हुआ.

गोरखपुर राजकीय रेलवे पुलिस के थानाप्रभारी गिरिजाशंकर त्रिपाठी को उन के एक खास मुखबिर ने सूचना दी कि पुराना पार्सल गेट नंबर-6 पर स्थित आरपीएफ मालखाने के पास एक युवक लहूलुहान पड़ा तड़प रहा है. थानाप्रभारी ने टाइम देखा तो उस समय रात के करीब 10 बज रहे थे. यह सूचना मिलते ही वह उसी समय पुलिस टीम के साथ मुखबिर द्वारा बताई जगह पर पहुंच गए. स्ट्रीट लाइट की रोशनी में वहां सब कुछ साफ दिखाई दे रहा था. एक युवक पेट के बल खून से लथपथ पड़ा था. पास जा कर देखा तो पता चला कि उस की दाहिनी कनपटी पर किसी वजनदार चीज से वार किया गया था.

पास ही एक बड़ा पत्थर पड़ा था जिस पर ताजा खून लगा था. लग रहा था कि हत्यारों ने इसी पत्थर से उस के ऊपर वार किया था. मौके पर शराब की 2 खाली शीशियां भी पड़ी थीं. पुलिस ने युवक की जामातलाशी ली तो उस की पैंट की जेब से एक कागज की परची मिली. उस परची पर एक मोबाइल नंबर और एक बैंक का खाता नंबर लिखा था. पुलिस ने उन सबूतों को अपने कब्जे में ले लिया. युवक का जिस्म अभी भी गरम था. उस की सांसें भी चल रही थीं. रेलवे के नियम के अनुसार रेलवे परिक्षेत्र में हुई घटना, दुर्घटना के घायलों को आरपीएफ के जवान ही अस्पताल ले जाते हैं, इसलिए थानाप्रभारी ने आरपीएफ को घटना की सूचना दे दी.

सूचना पा कर आरपीएफ के 2 जवान मौके पर पहुंचे और गंभीर रूप से घायल युवक को टैंपो से नेताजी सुभाषचंद्र बोस जिला अस्पताल ले गए, जहां डाक्टरों ने युवक को मृत घोषित कर दिया. इस के बाद थानाप्रभारी गिरिजा शंकर त्रिपाठी ने जरूरी काररवाई कर के लाश को पोस्टमार्टम के लिए बाबा राघवदास मैडिकल कालेज भेज दिया. यह बात 31 अक्तूबर, 2014 की है. मृतक कौन था और कहां का रहने वाला था, पुलिस के पास इस की कोई जानकारी नहीं थी. मृतक के पास से जो परची मिली थी, उस पर लिखे फोन नंबर को थानाप्रभारी ने अपने फोन से रात में ही मिलाया. दूसरी ओर से काल किसी पुरुष ने रिसीव की. उस ने पूछा, ‘‘हैलो, कौन बोल रहे हैं?’’

‘‘मैं गोरखपुर जीआरपी थाने से इंसपेक्टर गिरिजाशंकर त्रिपाठी बोल रहा हूं.’’ थानाप्रभारी ने अपना परिचय देने के बाद उस से पूछा, ‘‘क्या मैं जान सकता हूं कि तुम कौन बोल रहे हो और कहां रहते हो?’’

‘‘सर, मैं गोरखपुर से धर्मेश उपाध्याय बोल रहा हूं.’’ पुलिस का नाम सुनते ही धर्मेश की आंखों से नींद गायब हो गई, ‘‘क्या बात है सर, इतनी रात गए…’’

‘‘यह नंबर तुम्हारा ही है?’’ उस की बात बीच में काट कर इंसपेक्टर त्रिपाठी ने सवाल किया.

‘‘जी हां, यह मेरा ही नंबर है.’’ धर्मेश ने जवाब दिया.

‘‘हमें मालखाने के पास एक युवक घायलावस्था में मिला था. उसी की जेब से मिली परची पर यह नंबर लिखा था. तुम अस्पताल आ कर उस युवक को देख लो कि कहीं वह तुम्हारा कोई परिचित तो नहीं है?’’ थानाप्रभारी ने कहा.

धर्मेश का बड़ा भाई धर्मवीर कई दिनों से घर से निकला हुआ था. यह बात थानाप्रभारी को बताते हुए उस ने उन से घायल मिले युवक की कदकाठी और कपड़ों के बारे में पूछा तो थानाप्रभारी ने घायल युवक का जो हुलिया बताया, वह उस के भाई धर्मवीर से मेल खा रहा था. उसे चिंता होने लगी. यह बात उस ने दूसरे कमरे में सो रहे पिता प्रेमनारायण उपाध्याय को बताई तो उन की नींद भी हराम हो गई. थानाप्रभारी ने धर्मेश को उस युवक की मौत की खबर नहीं दी थी, ताकि घर वाले रात में परेशान न हों. लेकिन घर वालों की नींद तो गायब हो चुकी थी. बेटे की फिक्र में प्रेमनारायण का बदन कांपने लगा. धर्मेश का गांव डिगुलपुर जिला मुख्यालय से दूर था.

वहां से जिला अस्पताल जाने के लिए कोई साधन नहीं था, इसलिए भोर होते ही वह पिता के साथ गोरखपुर के लिए निकल पड़ा. रास्ते भर दोनों धर्मवीर की सलामती के लिए प्रार्थना करते रहे. सुबह 8 बजे तक दोनों गोरखपुर के थाना जीआरपी पहुंचे. थानाप्रभारी ने मृतक युवक के कपड़े उन्हें दिखाए तो कपड़े देखते ही दोनों रोने लगे. कपड़े धर्मवीर उपाध्याय के ही थे. मैडिकल कालेज ले जा कर जब उन्हें लाश दिखाई गई तो उन्होंने उस की पुष्टि धर्मवीर उपाध्याय के रूप में कर दी. शिनाख्त हो जाने के बाद पुलिस ने राहत की सांस ली. थानाप्रभारी गिरिजाशंकर त्रिपाठी ने प्रेमनारायण और उन के बेटे धर्मेश से बात की तो उन्होंने बताया कि धर्मवीर की हत्या महराजगंज के सुभाष पांडेय और कुशीनगर के संत यादव ने की होगी.

धर्मेश ने इन दोनों के खिलाफ थाने में रिपोर्ट भी दर्ज करा दी. नामजद मुकदमा दर्ज होते ही पुलिस ने दोनों की तलाश में उसी शाम उन के घरों पर दबिश डाली तो दोनों आरोपी अपनेअपने घरों से दबोच लिए गए. दोनों को पुलिस गोरखपुर ले आई. दोनों से सख्ती से पूछताछ की गई तो वे खुद को निर्दोष बताते हुए धर्मवीर की हत्या से साफ इनकार करते रहे. पूछताछ के बाद पता चला कि संत यादव कुशीनगर जिले के कसया कस्बे का बड़ा व्यवसाई था. उस के पास कई ट्रक थे. सुभाष पांडेय उस का बिजनैस पार्टनर था. घटना से करीब 15-20 दिनों पहले ही धर्मवीर उपाध्याय किसी परिचित के माध्यम से संत यादव के संपर्क में आया था.

धर्मवीर उपाध्याय गोरखपुर के सिकरीगंज इलाके डिगुलपुर गांव के रहने वाले प्रेमनारायण उपाध्याय का बड़ा बेटा था. प्रेमनारायण सीआरपीएफ के जवान थे, जो 2 साल पहले रिटायर हुए थे. धर्मवीर के अलावा उन का एक और बेटा धर्मेश था. संत यादव को ड्राइवर की जरूरत थी, इसलिए उन्होंने उसे अपने यहां नौकरी पर रख लिया था. अक्तूबर 2014 में संत यादव ने उसे सामान से भरा ट्रक ले कर असम भेजा था. धर्मवीर सामान ले कर असम पहुंचा. लौटते समय उसे वहां से 67 हजार रुपए भाड़ा मिला. असम से वापस लौटते समय धर्मवीर की संत यादव से बातचीत भी हुई थी, तब उस ने भाड़े के 67 हजार रुपए मिलने की बात बता दी थी. लेकिन हफ्ते भर बाद भी वह गोरखपुर नहीं पहुंचा तो संत यादव को चिंता हुई.

उस ने धर्मवीर को फोन किया, पर उस का फोन लगातार स्विच्ड औफ मिला. कई दिनों बाद भी जब उस का धर्मवीर से संपर्क नहीं हुआ तो उस के माथे पर चिंता की लकीरें उभर आईं. इस के बाद संत यादव को विश्वास हो गया कि धर्मवीर ने उस के साथ बड़ा धोखा किया है. वह ट्रक और रुपए दोनों ले कर चंपत हो गया है. उस ने अपने स्तर पर उस का पता लगाना शुरू किया. कई दिनों बाद उसे ट्रक के बारे में पता चल गया. ट्रक बिहार के आरा जिले में लावारिस हालत में खड़ा था. आरा पहुंच कर संत यादव ट्रक ले कर वापस आ गया. उसे इस बात का शक होने लगा कि कहीं किसी ने धर्मवीर की हत्या तो नहीं कर दी.

इसी बीच धर्मवीर के घर वालों को उस की हत्या की जानकारी मिल गई. धर्मवीर के घर वालों को संत यादव और उस के साथी सुभाष पर ही शक हुआ. इसी शक के आधार पर धर्मेश ने दोनों के खिलाफ नामजद मुकदमा दर्ज करवाया था. यह जानकारी मिलने के बाद पुलिस को भी लगने लगा कि पैसों के विवाद में ही इन दोनों ने मिल कर धर्मवीर की हत्या कर दी होगी. सच उगलवाने के लिए पुलिस कई दिनों तक उन से सख्ती से पूछताछ करती रही, लेकिन पुलिस उन दोनों से कोई ठोस जानकारी नहीं उगलवा पाई. तब पुलिस ने हिदायत दे कर उन्हें छोड़ दिया.

इस केस की मौनिटरिंग कार्यवाहक रेलवे पुलिस उपाधीक्षक नम्रता श्रीवास्तव कर रही थीं. उन्होंने इस केस को खोलने में लगी टीम की बैठक बुलाई. बैठक में हत्या के विभिन्न कोणों पर रोशनी डाली गई. बैठक में धर्मवीर के पारिवारिक पहलुओं पर जांच केंद्रित करने का फैसला किया गया. पुलिस ने जांच की गई तो पता चला कि धर्मवीर और उस की पत्नी मनीषा के रिश्तों के बीच काफी गहरी खाई है. मनीषा अपनी तीनों बेटियों को ले कर महराजगंज के फरेंदा गांव स्थित अपने मायके में रह रही थी. पुलिस को एक और चौंका देने वाली सूचना मुखबिर से मिली कि मनीषा की बुआ का बेटा पूना में रहता था.

वह क्रिमिनल था. पुलिस का ध्यान इसी बात पर गया कि कहीं ऐसा तो नहीं कि मनीषा ने उसी की मदद से पति को ठिकाने लगवा दिया हो? यानी कुल मिला कर पुलिस के शक की सूई मनीषा की तरफ घूम गई. शक के आधार पर पुलिस ने मनीषा से कई चक्र में पूछताछ की, लेकिन इस पूछताछ से भी कोई हल नहीं निकला. पुलिस की जांच में वह भी बेकसूर दिखी. पुलिस की जांच जहां से चली थी, वहीं फिर आ कर रुक गई. पुलिस को उस की कालडिटेल्स से काफी उम्मीद बंधी थी. धर्मवीर की कालडिटेल्स पुलिस चेक कर चुकी थी, उस से भी कोई खास जानकारी नहीं मिली.

पुलिस को सारी उम्मीदों पर पानी फिरता दिखाई दे रहा था. थानाप्रभारी की समझ में यह बात नहीं आ रही थी कि धर्मवीर की हत्या किस ने और क्यों की? एक दिन थानाप्रभारी अपने कक्ष में बैठे इसी घटना पर मंथन कर रहे थे. उसी समय उन के दिमाग में एक आइडिया आया. उसी आइडिया को ध्यान में रखते हुए उन्होंने जिस जगह पर धर्मवीर की हत्या हुई थी, उस इलाके में उस दिन सक्रिय रहे मोबाइल नंबरों की जानकारी निकलवाई. पता चला कि उस दिन उस इलाके के फोन टावर के संपर्क में 35 हजार फोन नंबर आए थे. अब इतने नंबरों में से कातिल का नंबर ढूंढना आसान नहीं था. फिर भी उन्होंने अपनी टीम से उन सभी नंबरों का विश्लेषण कराया.

कई महीने की कड़ी मशक्कत के बाद उन नंबरों में से 4 नंबर संदिग्ध निकले. उन नंबरों की जांच की गई तो वे चारों नंबर स्विच्ड औफ मिले. उन नंबरों को पुलिस ने जांच के दायरे में ले लिया. इस बीच थानाप्रभारी एक बार फिर धर्मवीर के गांव डिगुलपुर पहुंचे. लोगों से बात करने पर उन्हें पता चला कि धर्मवीर शराबी तो था ही, अय्याश प्रवृत्ति का भी था. यह जानकारी उन के लिए अहम साबित हुई. छानबीन कर के वह गोरखपुर वापस लौट आए. इसी बीच मुखबिर ने उन्हें एक चौंका देने वाली सूचना दी. मुखबिर ने उन चारों संदिग्ध नंबरों को देख कर बताया कि उन में से एक नंबर कुशमिला उर्फ मुसकान नामक युवती का है. मुसकान कालगर्ल थी. उस का धंधा स्टेशन के इर्दगिर्द चलता था और घटना के बाद से वह गायब थी.

पुलिस ने मुसकान के फोन नंबर की जांच की तो पता चला कि उस ने अपना सिम फरजी आईडी पर लिया था, इसलिए पुलिस उस के ठिकाने तक नहीं पहुंच सकी. घटना को हुए 10 महीने बीत चुके थे, लेकिन पुलिस हत्यारों का पता तक नहीं लगा पाई थी. शक की सूई मुसकान पर थी, लेकिन उस का फोन स्विच्ड औफ था. पुलिस ने उस के नंबर को सर्विलांस पर लगा रखा था. अगस्त, 2015 में जैसे ही उस ने अपना फोन नंबर औन किया, तभी सर्विलांस से उस की लोकेशन बिहार के बेतिया जिले की आई. पुलिस ने कई दिनों तक उस के फोन पर होने वाली बातें सुनीं.

बातचीत के दौरान एक बार मुसकान के मुंह से गोरखपुर में मालखाने के पास एक युवक की हत्या करने की बात निकल गई. इस के बाद पुलिस को विश्वास हो गया कि धर्मवीर की हत्या में उस का हाथ है. उस के बाद पुलिस ने मुसकान की गिरफ्तारी की योजना बनाई. गुपचुप तरीके से गोरखपुर पुलिस बिहार के पश्चिमी चंपारण के बेतिया जिला पहुंची. स्थानीय पुलिस के सहयोग से गोरखपुर पुलिस ने पता लगा लिया कि मुसकान बेतिया में एक आर्केस्ट्रा कंपनी में काम करती है. पुलिस ने उस आर्केस्ट्रा कंपनी में दबिश दी. वहां जा कर पता चला कि वह तो 2 दिन पहले ही गोरखपुर चली गई. लिहाजा पुलिस खाली हाथ वापस लौट आई.

13 अगस्त, 2015 को सुबहसुबह एक मुखबिर ने इंसपेक्टर गिरिजा शंकर त्रिपाठी को फोन कर के सूचना दी कि पुराने पार्सल गेट पर मुसकान अपने एक साथी के साथ खड़ी है. वह कहीं भागने की फिराक में है. सूचना पक्की और बेहद महत्त्वपूर्ण थी, इंसपेक्टर त्रिपाठी बगैर देर किए घर से निकल लिए. जिस समय खबरी का फोन उन के पास आया था, उस समय वह घर से कार्यालय आने के लिए तैयार हो रहे थे. सूचना मिलने के 10 मिनट बाद वह थाने पहुंच गए. घर से निकलने से पहले उन्होंने टीम के सदस्यों को थाने में पहुंचने के लिए कह दिया था. थाने पहुंचते ही उन्हें एसएसआई सुधीर कुमार, एसआई राघवेंद्र मिश्र, हरीश तिवारी, हेडकांस्टेबल किसलय मिश्र, कांस्टेबल रणजीत पांडेय, अनिल कुमार, विजय सिंह, अभय पांडेय, संजय सिंह, संदीप यादव और महिला कांस्टेबल शीला गौड़ तैयार मिलीं.

टीम को ले कर वह पुराना पार्सल गेट नंबर 6 पर पहुंच गए. पुलिस ने गेट को चारों ओर से घेर लिया. पुलिस को देख कर मुसकान डर गई. उस ने वहां से खिसकने की कोशिश की, लेकिन पुलिस ने उसे दबोच लिया. उसे और उस के साथी को गिरफ्तार कर के पुलिस थाने ले आई. पूछताछ में पता चला कि उस के साथ वाले युवक का नाम विजय पांडेय है. पुलिस ने उन से धर्मवीर उपाध्याय की हत्या किए जाने की वजह पूछी तो बिना किसी हीलाहवाली के दोनों ने अपना इकबालिया जुर्म कबूल करते हुए कहा कि उन्होंने ही धर्मवीर की हत्या की थी. घटना को अंजाम देने में उन के 2 और साथी विकास कुमार उर्फ मुकेश और सुमेर कुमार उर्फ समीर भी शामिल थे.

फिर मुसकान और विकास ने पुलिस के सामने रोंगटे खड़े कर देने वाली जो कहानी बताई, वह इस प्रकार थी. उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले के गांव डिगुलपुर के रहने वाले प्रेमनारायण उपाध्याय सीआरपीएफ में नौकरी करते थे. वह 2 साल पहले ही नौकरी से रिटायर हुए थे. उन के 2 बेटे थे धर्मवीर और धर्मेश. धर्मवीर गांव के आवारा लड़कों के साथ रह कर बिगड़ गया था. तब उन्होंने यह सोच कर महराजगंज के फरेंदा की मनीषा के साथ उस की शादी कर दी कि गृहस्थी में फंस कर वह सुधर जाएगा. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. यह बात 15 साल पहले की है.

शादी के बाद भी उस के चालचलन में कोई तब्दीली नहीं आई. आवारा दोस्तों के साथ घूमनेफिरने, शराब पीने की उस की आदत नहीं गई. मनीषा ने उसे समझाया भी, लेकिन उस पर कोई फर्क नहीं पड़ा. ऐसे में मनीषा के सामने आंसू बहाने के अलावा कोई उपाय नहीं बचा था. ऐसे शख्स से शादी कर के उस के सारे सपने रेत के ढेर की तरह ढह गए थे. इसी दौरान धर्मवीर ने ड्राइविंग सीख ली. वह ट्रक चलाने लगा. ट्रक ले कर वह जब भी बाहर जाता, 2-3 महीने बाद ही घर लौटता. इतने दिनों बाद घर लौटने पर भी वह परिवार के साथ कम यारदोस्तों के संग ज्यादा समय बिताता था. दोस्तों में ही कमा कर लाए हुए अधिकांश पैसे खर्च कर देता था. उस की इस आदत से उस के मांबाप ही नहीं, सासससुर भी चिंतित रहते थे.

इसी तरह शादी के 5-6 साल बीत गए. मनीषा भी 3 बेटियों की मां बन गई. मनीषा पति से नाखुश रहती थी. बच्चों के भविष्य की चिंता मनीषा को रहती थी. एक दिन वह तीनों बेटियों को ले कर ससुराल से मायके आ गई. धर्मवीर को जब यह पता चला तो वह गुस्से से पागल हो उठा. वह ससुराल पहुंच गया और पत्नी से लड़नेझगड़ने लगा. उस ने पत्नी को लाने के लिए काफी मिन्नतें कीं. लेकिन मनीषा ने ससुराल लौटने से साफ मना कर दिया. धर्मवीर ने ऐसा कई बार किया, पर मनीषा नहीं आई. 23-24 अक्तूबर, 2014 को धर्मवीर सामान से लदा ट्रक ले कर असम पहुंच गया था. सामान डिलीवरी करने के बाद उसे वहां से भाड़े के 67 हजार रुपए मिले.

एक साथ इतनी बड़ी रकम देखते ही धर्मवीर की नीयत डोल गई. ट्रक मालिक संत यादव ने जब भाड़े के बारे में उस से पूछा तो उस ने भाड़ा मिलने की बात बता दी. उस के बाद धर्मवीर ने अपना मोबाइल स्विच्ड औफ कर के रख दिया और ट्रक बिहार के आरा जिले में छोड़ कर ट्रेन से गोरखपुर आ गया. जब हफ्ते भर बाद भी धर्मवीर संत यादव के पास नहीं पहुंचा तो वह समझ गया कि धर्मवीर ने उस के साथ धोखा किया है. उधर रुपए ले कर धर्मवीर गोरखपुर के रास्ते अपनी ससुराल पहुंच गया. वह 1-2 दिन ससुराल में रुका. बच्चों और पत्नी को खुश करने के लिए खूब पैसे खर्च किए.

उस के बाद वहां से अपने साढ़ू के यहां महराजगंज चला गया. 2 दिन साढ़ू के यहां रुक कर 31 अक्तूबर, 2014 को शाम 6 बजे के करीब वह गोरखपुर पहुंच गया. उस समय उस के पास 40 हजार रुपए बचे थे. बाकी के 27 हजार रुपए वह खर्च कर चुका था. इधरउधर समय बिताने के बाद धर्मवीर साढ़े 9 बजे स्टेशन पहुंचा. वह अय्याश तो था ही, इसलिए वह यह भी जानता था कि उसे जिस चीज की तलाश है, वह यहीं मिलेगी. पैदल टहलते हुए वह पुराना पार्सल गेट नंबर-6 पहुंचा. वहां उसे 22 वर्षीय मुसकान मिली. बात करने पर मामला 500 रुपए में तय हो गया.

धर्मवीर मुसकान के साथ जाने से पहले शराब पीना चाहता था. उस ने मुसकान को यह बात बताई तो उस ने भी उस के साथ 2 पैग लेने को कह दिया. धर्मवीर उस की इच्छा जान कर खुश हो गया. वह उसे रिक्शे पर बैठा कर धर्मशाला बाजार ले गया. उस के पीछेपीछे मुसकान के साथी विकास पांडेय, विकास उर्फ मुकेश और सुमेर उर्फ समीर भी लग गए. वहीं से धर्मवीर ने शराब के साथ खाने के लिए मछली भी खरीदी. धर्मशाला बाजार के रेलवे लाइन के किनारे एक जगह बैठ कर दोनों ने मछली खाई और शराब पी. वहां से वे पुराना पार्सल गेट नंबर 6 पहुंचे. अब तक वहां गहरा सन्नाटा फैल गया था. वहीं पर धर्मवीर मुसकान के साथ हसरतें पूरी करना चाहता था. इस से पहले कि वह कुछ करता, तभी मुसकान के तीनों साथी वहां आ धमके.

अचानक सामने लड़कों को देख कर धर्मवीर सकपका गया. वे तीनों धर्मवीर से पैसों की मांग करने लगे तो दिखावे के लिए मुसकान ने उन लड़कों से विरोध जताया. धर्मवीर उन से उलझ गया. कुछ ही देर में धर्मवीर और उन तीनों लड़कों के बीच गुत्थमगुत्था हो गई. उसी दौरान सुमेर ने पीछे से धर्मवीर के दोनों हाथ पकड़ लिए और मुकेश ने धक्का दे कर पेट के बल गिरा दिया. सुमेर ने धर्मवीर की पीठ पर घुटना रख कर मुंह दबा दिया. विकास पांडेय के कहने पर मुसकान ने धर्मवीर के पैर दबोच लिए. तब धर्मवीर को लगा कि मुसकान भी इन लड़कों के साथ मिली है. वे लड़के नशेड़ी थे, इसलिए धर्मवीर उन के काबू में नहीं आ रहा था. फिर विकास पांडेय ने पास में पड़ा पत्थर उठा कर उस के सिर पर दे मारा.

पत्थर के वार से धर्मवीर का सिर फट गया और वह तड़पने लगा. विकास ने धर्मवीर की जेब टटोली. उस की जेब से 40 हजार रुपए निकले. इतने रुपए पा कर वे बहुत खुश हुए. चारों ने 10-10 हजार रुपए आपस में बांट लिए और तुरंत मौके से फरार हो गए. मुसकान और उस के साथियों ने पुलिस से बचने के लिए अपनेअपने मोबाइल औफ कर दिए. उन्होंने तय कर लिया कि कोई भी एकदूसरे को तब तक फोन नहीं करेगा जब तक मामला ठंडा नहीं हो जाता. मुसकान गोरखपुर छोड़ कर बेतिया, बिहार चली गई. कई साल पहले वह बेतिया में रह चुकी थी. वहां रह कर वह आर्केस्ट्रा कंपनी में नाचती थी. मुसकान गोरखपुर से बेतिया कैसे पहुंची, उस की रोमांचित कर देने वाली अपनी अलग कहानी है.

दरअसल, मुसकान गोरखपुर जिले के खोराबार के महेवा मंडी स्थित खिरवनिया गांव के रहने वाले रघुनाथ मल्लाह की बेटी थी. उसे बचपन से ही नाचनेगाने का शौक था. वह घर में टेलीविजन के कार्यक्रम देख कर नाचती थी. घर वालों को उस का यह काम पसंद नहीं था. 15 साल की उम्र में वह घर से बेतिया भाग गई और वहां अपने एक रिश्तेदार की मदद से आर्केस्ट्रा कंपनी में नाचने लगी. आर्केस्ट्रा कंपनी का मालिक उस का दैहिक शोषण करने लगा तो वह उस कंपनी को छोड़ कर दूसरी कंपनी में चली गई. वहां भी वह नहीं बच पाई. इस बार आर्केस्ट्रा के मालिक ने उस से प्रेमविवाह किया. 2-3 सालों तक मौजमस्ती करने के बाद उस ने मुसकान को छोड़ दिया.

ठोकरें खा कर मुसकान अपने घर लौट आई. घर वालों ने उसे घर में पनाह नहीं दी. दरदर की ठोकरें खाती मुसकान पेट की आग बुझाने के लिए अपने तन को बेचने पर मजबूर हो गई. उस से मिलने वाले पैसों से फुटपाथ पर खानाबदोश की जिंदगी शुरू की. फिर समय ने ऐसी करवट ली कि उस के हाथ खून से सन गए और वह हत्यारिन बन गई. कुशमिला उर्फ मुसकान को अपने किए पर बहुत पछतावा है. काश, उस ने घर वालों की बात मान ली होती तो शायद उसे यह दिन नहीं देखना पड़ता. कथा लिखे जाने तक चारों आरोपियों में से सुमेर उर्फ समीर को छोड़ कर बाकी 3 जेल की सलाखों के पीछे थे. समीर पुलिस के हत्थे नहीं चढ़ पाया था. पुलिस तीनों के खिलाफ अदालत में आरोपपत्र दाखिल कर चुकी है. कथा लिखने तक किसी की जमानत नहीं हुई थी. Hindi True Crime

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

True Crime Story: ढोंगी गुरू का अपराधिक अतीत

True Crime Story: कविता रानी को पूरा विश्वास था कि स्वामी सच्चिदानंद उस का परलोक सुधार देगा. परलोक सुधारने की कौन कहे, उस ने उस का सारा धन तो हड़प ही लिया, जान भी ले ली. पंजाब के जनपद नवांशहर में थाना काठगढ़ के तहत एक गांव है मत्तो. यहां के किराना दुकानदार सोमनाथ के 7 भाईबहनों में सब से छोटी थी कविता रानी, जिस की शादी मोहल्ला शिवनगर निवासी सुरेंद्र कुमार से हुई थी. कालांतर में इस दंपति के 2 बेटे हुए, जिन्हें ले कर सुरेंद्र स्पेन चला गया था. पति और बेटों के जाने के बाद कवितारानी नवांशहर के अपने मकान में अकेली रह गई थी.

सोमनाथ बहन का हालचाल लेने के लिए अकसर उस के घर जाया करते थे. पहली दिसंबर, 2009 को शाम 6 बजे उन्हें स्पेन से कविता के बड़े बेटे अजय का फोन आया, ‘‘मामाजी, पिछले 2-3 दिनों से मम्मी को फोन कर रहा हूं, उन से बात नहीं हो पा रही है. आप जा कर जरा मां को देख आएं.’’

अजय की बात ने सोमनाथ को भी चिंता में डाल दिया. वह तुरंत नवांशहर के लिए रवाना हो गए. वहां पहुंच कर उन्होंने देखा, घर के बाहरी गेट पर ताला लटक रहा है. 2 लड़कों ने उन के पास आ कर बताया कि वे कालेज स्टूडैंट हैं और सामने वाले घर में किराए पर रहते हैं. उन में से एक ने उन्हें चाबी सौंपते हुए कहा, ‘‘2-3 दिनों पहले यह चाबी हमें यहां पड़ी मिली थी. शायद आंटीजी के कहीं जाते वक्त उन के हाथ से छूट कर गिर गई है. हम आप को पहचानते हैं, आप आंटीजी के भाई हैं न?’’

दोनों लड़कों ने अपने नाम अजीत चौहान और ऋषि चौहान बताते हुए कविता के घर की ओर इशारा कर के एक साथ कहा, ‘‘यह चाबी हमें इसी गेट के ताले की लग रही है. हम ने इसे उठा कर अपने पास रख लिया था कि आंटीजी के आने पर उन्हें दे देंगे.’’

सोमनाथ ने लड़कों को साथ ले कर गेट का ताला खोला. वे भीतर गए तो सामने के कमरे में भी ताला लगा था, साथ ही अंदर से तेज बदबू आ रही थी. सोमनाथ समझदार आदमी थे. उन्हें समझते देर नहीं लगी कि बदबू लाश की है. उन के मन में आया, ‘कहीं ऐसा तो नहीं कि भीतर उन की बहन मरी पड़ी हो और यह बदबू उसी की लाश से आ रही हो?’

यह बात मन में आते ही सोमनाथ दोनों लड़कों को साथ ले कर थाने जा पहुंचे. थानाप्रभारी राजकुमार ने उन से तहरीर ले कर मामला दर्ज करवाया और पुलिसपार्टी के साथ घटनास्थल के लिए रवाना हो गए. पुलिस ने ताला तोड़ा और मुंह पर कपड़ा लपेट कर भीतर गई. घर का सारा सामान बिखरा पड़ा था और उस के बीच चादर में लिपटी कविता की लाश पड़ी थी. लग रहा था कि मामला लूटपाट के लिए कत्ल का है. कविता के गले में उसी का दुपट्टा कस कर मारा गया था. अपनी काररवाई पूरी कर के पुलिस ने लाश को पोस्टमार्टम के लिए सिविल अस्पताल भिजवा दिया. रात काफी हो जाने की वजह से काररवाई रोक कर पुलिस ने घर को सील कर दिया.

अगली सुबह पुलिस ने घर को फिर से खोल कर वहां की तलाशी ली तो एक ड्राइविंग लाइसेंस हाथ लगा, जो स्वामी सच्चिदानंद के नाम से था. पासपड़ोस के लोगों ने लाइसेंस देख कर बताया कि यह बहुत मशहूर आदमी है, टीवी के साधना चैनल पर इस के नियमित प्रवचन आते हैं. पता चला कि यह बक्करखाना क्षेत्र में किराए का घर ले कर रहता था. वहीं अपना डेरा बना कर वह प्रवचन दिया करता था, जिसे सुनने के लिए काफी लोग आया करते थे, जिन में कविता रानी भी थी. स्वामी को संदेह के दायरे में रख कर पुलिस ने उस के यहां छापा मारा. पता चला कि स्वामीजी उस रात एक स्थानीय जागरण में व्यस्त थे, जहां से फारिग होने के बाद सुबह ही अपने कुछ शिष्यों के साथ कुरुक्षेत्र चले गए थे.

जागरण आयोजकों ने पुलिस को बताया कि उस रात स्वामीजी थोड़ीथोड़ी देर के लिए 2 बार जागरण में आए थे. मतलब यह रात भर वह जागरण में नहीं रहे थे. पुलिस ने अपना सारा ध्यान स्वामी सच्चिदानंद पर जमा दिया, साथ ही उन के बारे में पता करने के लिए मुखबिरों का भी सहारा लिया गया. मुखबिरी के आधार पर 7 दिसंबर, 2009 को स्वामी को उस वक्त बंगा रेलवे फाटक के पास से गिरफ्तार कर लिया गया, जब वह अपनी इंडिका कार से अपनी एक शिष्या के साथ कहीं जा रहा था.

विधिवत गिरफ्तारी के बाद सच्चिदानंद को अदालत पर पेश कर के 2 दिनों के कस्टडी रिमांड पर लिया गया. उस से व्यापक पूछताछ की गई. इस पूछताछ से स्वामी सच्चिदानंद की जो कहानी सामने आई, वह कुछ इस तरह थी: जिला गुरदासपुर का बड़ा कस्बा है कादियां. यहां के मोहल्ला धर्मपुरा के रहने वाले तिलकराज भारद्वाज छिटपुट काम कर के अपने परिवार का भरणपोषण करते थे. उन की 7 औलादें थीं, जिन में दूसरे नंबर का था सत्येंद्र कुमार. बचपन ही से उसे एक्टिंग का शौक था.

जैसेजैसे वह बड़ा होता गया, उस के मन में एक्टर बनने की इच्छा प्रबल होती गई. सत्येंद्र की यह इच्छा तो पूरी नहीं हुई, लेकिन दसवीं पास करने के बाद उसे पंजाब सरकार के रेवेन्यू विभाग में पटवारी की नौकरी जरूर मिल गई. यह अलग बात है कि अपनी इस नौकरी से वह संतुष्ट नहीं था. उसे जहां कहीं किसी फिल्म की शूटिंग होने की बात पता चलती, वह छुट्टी ले कर वहां पहुंच जाता. अपनी इसी सनक के चलते एक बार वह छुट्टी ले कर मुंबई गया तो काफी दिनों बाद लौटा. परिणामस्वरूप उसे नौकरी से बरखास्त कर दिया गया. इस के बाद वह किसी अन्य काम की तलाश में दिल्ली चला गया. यहांवहां भटकते हुए एक दिन वह पानी पीने के लिए एक ऐसे डेरे में चला गया, जहां एक संत का प्रवचन चल रहा था.

वहां बहुत भीड़ थी. पानी की तो छोडि़ए, वहां तरहतरह के पकवान मुफ्त में बांटे जा रहे थे. पेट भर खाने के बाद सत्येंद्र वहीं पसर गया. जितना बढि़या खाना उसे वहां खाने को मिला था, उस से भी कहीं ज्यादा मजा आया उसे प्रवचन सुनने में उस ने देखा कि श्रद्धालु न केवल संतजी के पैरों में माथा टेक रहे थे, बल्कि अच्छीभली रकम भी चढ़ा रहे थे. बस, यहीं से सत्येंद्र का दिमाग दूसरी दिशा में सोचने लगा. उसे लगा कि इस अंधविश्वासी देश में नाम और दाम कमाने का इस से बेहतर जरिया कोई दूसरा नहीं हो सकता.

पूछताछ में सत्येंद्र ने पुलिस को बताया, ‘‘वाकजाल फैलाने में मैं कुशल था ही, मेरी वाणी में भी ओज था. ऊपर वाले ने चेहरामोहरा भी आकर्षक दिया था. अपनी बात कहने का तरीका भी मुझे काफी हद तक आ गया था. बस थोड़ी जरूरत थी धर्म शास्त्रों की जानकारी की. बिना देरी किए मैं धर्मकर्म का ज्ञान जुटाने लगा. बाबाओं के प्रवचन पूरे ध्यान से सुनने लगा. टीवी चैनलों पर खरीदे गए वक्त में बाबा प्रवचन देने आते तो मैं ध्यान से उन का तौरतरीका देखता और पूरे मनोयोग से उन के प्रवचनों को सुनता.

‘‘आखिर मैं ने तय कर लिया कि मैं इसी धंधे को अपना कर नाम और दाम कमाऊंगा. इस के लिए मैं ने सब से पहले अपने लिए गेरुआ वस्त्र सिलवाए. फिर धार्मिक ग्रंथ खरीद कर उन का अध्ययन शुरू कर दिया. थोड़ीबहुत तैयारी कर के सन् 2004 में मैं छोटेमोटे धार्मिक समारोहों में प्रवचन देने लगा. आत्मविश्वास से भरे मेरे प्रवचन लोगों को पसंद आने लगे. अब मैं ने अपने आप को स्वामी सच्चिदानंद कहलवाना शुरू कर दिया था.’’

सत्येंद्र के बताए अनुसार, पता नहीं यह उस की आवाज का जादू था या उस के आकर्षक व्यक्तित्व का कमाल कि उस के प्रवचनों की धाक जमने लगी. धीरेधीरे उस का सर्कल बढ़ने लगा. जल्दी यह स्थिति आ गई कि उस के कार्यक्रमों में धर्मभीरु लोगों की अच्छीखासी भीड़ जुटने लगी. चढ़ावे के रूप में काफी पैसा भी आने लगा. लोगों की अंधश्रद्धा को देखते हुए उस ने अपना नाम स्वामी सतिंदरानंद की जगह स्वामी सच्चिदानंद रख लिया. क्योंकि इस नाम में कुछ ज्यादा आकर्षण था. उस के दिन तेजी से बदलने लगे. उन्हीं दिनों उस का संपर्क दिल्ली के गणेशनगर निवासी चमनलाल मोंगा से हुआ. उस का अपना कारोबार था. जल्दी ही वह उस का शिष्य बन कर दिनरात उस की सेवा करने लगा. मोंगा को किसी बात की कोई चिंता नहीं थी. लेकिन वह इस लोक में रहतेरहते अपना परलोक सुधारना चाहता था.

मोंगा ने इस बारे में जब स्वामी सच्चिदानंद से बात की तो उस ने उसे यह कह कर डरा दिया कि वह परलोक की चिंता छोड़े, अभी तो उस का यह लोक भी नहीं संवरा. इस पर उस ने सच्चिदानंद के पैर पकड़ लिए. तब उस ने उसे झांसे में लेने का प्रयास करते हुए कहा कि उस के एकलौते बेटे की उम्र केवल 3 महीने रह गई है. यही नहीं, उस की एकलौती बेटी भी उस की इस तरह दुश्मन बन जाएगी कि वह कहीं का नहीं रहेगा. इस पर मोंगा बच्चों की तरह फूटफूट कर रोते हुए सच्चिदानंद के पैरों पर नोटों की गड्डियां रख कर बर्बाद होने से बचाने की प्रार्थना करने लगा.

स्वामी सच्चिदानंद ने मोंगा को जो बातें बताईं थीं, उन्हें सच साबित करने के लिए उस ने जाल बिछाना शुरू कर दिया. उस ने मोंगा की जवान बेटी को बुला कर उसे अपने जाल में फंसा लिया. जब लड़की वश में हो गई तो उस ने उसे कुछ इस तरह से उकसाया कि उस ने अपने पिता समेत 11 लोगों पर गैंगरेप का केस दर्ज करवा दिया और खुद उस के साथ उस के डेरे में रहने लगी. साधना चैनल पर सच्चिदानंद का जो कार्यक्रम आता था, उस का सारा खर्च चमनलाल मोंगा उठाता था, लेकिन उस ने उस का चमन उजाड़ कर उस की बेटी को अपनी शिष्या बना लिया था.

फिर 2008 के अंत में वह उसे साथ ले कर नवांशहर चला गया. यहां आ कर उस ने प्रचार किया कि उस का एक भाई जज है. अपना प्रभाव जमाने के लिए उस ने यह भी प्रचारित किया कि पहले वह भी जज था, लेकिन मोहमाया त्याग कर उस ने साधु का चोला पहन लिया है. नवांशहर में वह खूब मशहूर हो गया. बक्करखाना रोड पर किराए का मकान ले कर सच्चिदानंद ने अपना डेरा बना लिया और रोज प्रवचन करने लगा. उस के यहां श्रद्धालुओं की भीड़ जुटने लगी. इन्हीं में कविता रानी भी थी, जो उस से कुछ ज्यादा ही प्रभावित हो गई थी. उस का पति और बेटे विदेश में थे. करने को उस के पास कुछ था नहीं. वह भी परलोक सुधारने की गरज से उस के यहां जाने लगी थी और उस की शिष्या बन गई थी. बहाने बना कर उस ने उस से करीब 6 लाख रुपए ऐंठ लिए थे.

एक दिन कविता को विश्वास में ले कर सच्चिदानंद ने उस से कहा कि उस से खार खाने वाले लोंगों ने उस पर झूठे मुकदमे कर दिए हैं, जिन्हें खत्म करवाने के लिए उसे 20 लाख रुपए चाहिए. इस से कविता को उस पर शक हो गया. परिणाम यह हुआ कि उस ने उस से अपना पिछला पैसा मांग लिया. तब सच्चिदानंद को लगा कि उस का पांसा उल्टा पड़ गया है. कुछ दिन तो वह उसे टालता रहा, लेकिन जब वह उस के पीछे ही पड़ गई तो उसे लगा कि कविता अपना पैसा वापस ले कर ही रहेगी. इस मुसीबत से छुटकारा पाने के लिए सच्चिदानंद ने एक योजना बनाई. 28 नवंबर, 2009 को उस ने फोन कर के कविता से कहा कि पैसों का इंतजाम हो गया है, आज वह उसे उस के पूरे 6 लाख रुपए दे देगा.

साथ ही यह भी कहा कि जागरण की वजह से वह थोड़ा व्यस्त है, इसलिए रात में 10, साढ़े 10 बजे पैसा देने आएगा, क्योंकि सुबह उसे कुरुक्षेत्र जाना है. इस तरह जागरण के बीच से उठ कर वह कविता के यहां जा पहुंचा. कविता बेसब्री से उस का इंतजार कर रही थी. जैसे ही वह भीतर पहुंचा, उस ने सीधेसीधे अपने 6 लाख रुपए मांगे. उस ने रोनी सी सूरत बनाते हुए कहा, ‘‘क्या बताऊं, मैं ने तो पूरे 6 लाख रुपए का इंतजाम कर लिया था. लेकिन जगराता में झगड़ा हो जाने से किसी ने मेरी जेब से पैसे निकाल लिए.’’

‘‘देखो, तुम्हारा यह झूठफरेब मेरे आगे चलने वाला नहीं है. तुम सीधेसीधे मेरे 6 लाख रुपए निकालो वरना मैं तुम्हारी शिकायत पुलिस से करूंगी.’’

कविता के मुंह से इतना निकला था कि स्वामी सच्चिदानंद उर्फ सत्येंद्र ने पूरे जोर से उस की नाक पर घूंसा मारा. वह बेहोश सी हो कर नीचे गिरने को हुई, तभी उस ने उस के गले में पड़ा दुपट्टा उस की गरदन पर कस दिया. जरा सी देर में वह मौत की नींद सो गई. सच्चिदानंद ने उस की लाश चादर में लपेट कर एक तरफ रख दी. उस के बाद कमरे का सामान इस तरह बिखेर दिया, जैसे वहां किसी ने लूटपाट की हो. यह उस का दुर्भाग्य ही था कि यह सब करते समय उस का ड्राइविंग लाइसेंस वहां गिर गया. उस ने कविता के दोनों सैलफोन भी उठा लिए थे, जिन्हें बाद में उस ने तोड़ दिए थे.

कविता को ठिकाने लगाने के बाद कथित स्वामी सच्चिदानंद इत्मीनान से जा कर जागरण में बैठ गया, ताकि उस पर किसी को शक न हो. सुबह 6 बजे अपने चेलों को ले कर वह कुरुक्षेत्र चला गया. बाद में दिल्ली वाली अपनी शिष्या को भी उस ने वहीं बुला लिया. इस के बाद वह जालंधर और अमृतसर में घूमता रहा. आखिर बंगा फाटक से गुजरते हुए वह पकड़ा गया. कथित स्वामी सच्चिदानंद के साथ पकड़ी गई उस की शिष्या से भी पुलिस ने पूछताछ की. लेकिन वह कविता की हत्या के षडयंत्र में शामिल नहीं थी. वह तो खुद ढोंगी स्वामी के जाल में फंसी हुई थी, जिस ने उस के दबाव में अपने पिता तथा अन्य लोगों पर बलात्कार का मुकदमा दर्ज करा दिया था.

इस मामले में उस की कोई भूमिका न पाए जाने पर पुलिस ने उसे उस के अभिभावकों के हवाले कर दिया. 10 दिसंबर, 2009 को अभियुक्त सत्येंद्र उर्फ स्वामी सच्चिदानंद को फिर से अदालत में पेश कर के न्यायिक अभिरक्षा में भिजवा दिया गया. इस के ठीक एक महीने बाद कथित स्वामी सच्चिदानंद को जब पेशी पर अदालत ले जाया जा रहा था तो रास्ते में पुलिस वालों को गच्चा दे कर वह फरार हो गया. पंजाब पुलिस ने पूरा जोर लगा दिया, लेकिन वह आदमी दोबारा उन के हत्थे नहीं चढ़ा. देखतेदेखते साढ़े 5 साल का लंबा अरसा गुजर गया.

मगर जैसी कि कहावत है, 100 दिन चोर के 1 दिन साधु का. दिल्ली पुलिस की स्पेशल सैल ने 6 जुलाई, 2015 को कथित स्वामी सच्चिदानंद को बेगमपुर इलाके के एक मकान से गिरफ्तार कर लिया. स्पैशल सैल के डीसीपी राजीव रंजन, एसीपी संदीप ब्याला और इंसपेक्टर संजय नागपाल ने उस से सख्ती से पूछताछ की तो अपनी उक्त कहानी बताने के बाद उस के आगे की दास्तान इस तरह से सुनाई: दरअसल ढोंगी सत्येंद्र उर्फ सच्चिदानंद नवांशहर में बहुत बुरी तरह फंस गया था. उस के खिलाफ कत्ल का मुकदमा दर्ज हो गया था. पुलिस ने उसे पकड़ कर जेल भी भिजवा दिया था. चूंकि उस के सारे सपने चकनाचूर हो गए थे, इसलिए वह भाग निकला. वहां से भागने के बाद सच्चिदानंद उत्तराखंड पहुंच कर साधुओं की एक टोली में शामिल हो कर उन की सेवा करने लगा. अपना रंगरूप भी उस ने साधुओं जैसा ही बना लिया था.

कुछ दिनों बाद वह उत्तरकाशी चला गया, जहां किस्मत से विश्वनाथ मंदिर में उसे पुजारी की नौकरी मिल गई. दिल्ली में उस की शिष्या यानी प्रेमिका थी कल्पना. एक दिन साधु वेश में ही वह दिल्ली जा कर उस से मिला. कल्पना उस की प्रेम दीवानी थी. नवांशहर में भी वह उस के साथ पकड़ी गई थी, मगर पुलिस ने उसे शुरू ही में निर्दोष मान कर उस के कुछ रिश्तेदारों के हवाले कर दिया था. सच्चिदानंद को कत्ल केस में गिरफ्तार कर के हवालात में डाल दिया गया. वहां से उस के फरार हो जाने के बारे में कल्पना को कुछ पता नहीं था. पता चलने पर भी न उस ने इस बात का बुरा माना और न जरा भी घबराई, बल्कि उस के साथ उत्तरकाशी में रहने को तैयार हो गई.

जबकि सच्चिदानंद के लिए फिलहाल यह संभव नहीं था. विश्वनाथ मंदिर से उसे इतना पैसा नहीं मिलता था कि वह अपने साथसाथ कल्पना का भी खर्च उठा पाता. दूसरी ओर वह कल्पना को छोड़ना भी नहीं चाहता था. इसलिए अतिरिक्त धन कमाने के लिए उस ने अलग से कोई धंधा करने की सोची. नए धंधे के रूप में उस ने पंजाब में स्मैक सप्लाई करना शुरू कर दिया. इस से उसे मोटी कमाई होने लगी तो वह विश्वनाथ मंदिर को छोड़ कर दिल्ली में ही रहने लगा. अब वह एक तरफ मादक पदार्थों की तस्करी कर रहा था तो दूसरी तरफ दिल्ली के कई इलाकों में प्रवचन कर के अपने आडंबर को भी जारी रखे हुए था. बीचबीच में वह धर्मांध लोगों को चूना लगाने से भी बाज नहीं आ रहा था. इन ठगियों से उस ने कई लोगों की संपत्तियां भी हथिया ली थीं.

कथित स्वामी सच्चिदानंद अपने सभी काम पूरी होशियारी से कर रहा था. फिर भी मादक पदार्थों की तस्करी करते 14 अक्तूबर, 2014 को वह पंजाब में पठानकोट पुलिस के हत्थे चढ़ गया. चूंकि वह साधु लिबास में था और मादक पदार्थों की मात्रा भी कुल 250 ग्राम थी, इसलिए उस ने पुलिस को यही बताया कि यह नशा वह अपने निजी इस्तेमाल के लिए रखे हुए था. जो भी हो, पुलिस ने उस की बातों में आ कर उस से सख्त पूछताछ नहीं की, वरना उस के द्वारा किए गए कत्ल जैसे संगीन अपराध का तभी खुलासा हो जाता और वह जालंधर की उसी जेल में सलाखों के पीछे होता, जहां से अदालत ले जाते वक्त फरार हुआ था.

खैर, पठानकोट पुलिस ने सच्चिदानंद से नरमी का व्यवहार करते हुए उस का कस्टडी रिमांड न ले कर उसे अदालत पर पेश कर के जेल भेज दिया. इस का फायदा उठा कर एक दिन उस ने वहां से भी फरार होने की सोची. एक दिन जेल के अपने सैल में लेटे हुए उस ने यह कह कर जोरों से चिल्लाना शुरू कर दिया कि उस के पेट में जोरों का दर्द हो रहा है. जेल अधिकारियों ने तत्काल उसे अस्पताल में भरती करवाने की व्यवस्था कर दी. अस्पताल में उस की निगरानी के लिए 2 सिपाही भी तैनात किए गए. आखिर वह उन्हें चकमा दे कर पहली ही रात अस्पताल से फरार हो गया.

वहां से वापस दिल्ली पहुंच कर वह कल्पना के साथ लिव इन रिलेशन में रहने लगा, साथ ही स्वामी सच्चिदानंद के रूप में प्रवचनों के कार्यक्रम भी करता रहा. लेकिन पता नहीं कैसे पुलिस ने उस के आपराधिक अतीत का पता लगा कर उसे गिरफ्तार कर लिया. दिल्ली पुलिस ने अपनी पूछताछ पूरी कर सत्येंद्र उर्फ स्वामी सच्चिदानंद को न्यायिक हिरासत में भेजने की व्यवस्था करने के अलावा पंजाब पुलिस को उस की गिरफ्तारी की सूचना दे दी. पठानकोट पुलिस की एक टीम दिल्ली जा कर उसे ट्रांजिट रिमांड पर ले आई. इस बार उन्होंने स्वामी सच्चिदानंद उर्फ सत्येंद्र से गहन एवं व्यापक पूछताछ की. इस पूछताछ में भी उस ने वही सब बताया था, जो वह पहले ही दिल्ली पुलिस को बता चुका था.

पूछताछ के बाद उसे न्यायिक हिरासत में गुरदासपुर की सैंट्रल जेल भेज दिया गया, जहां से नवांशहर पुलिस उसे ट्रांजिट रिमांड पर ले गई. True Crime Story

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित.

Hindi Crime Story: वासना की आग – परिवार हुआ बरबाद

Hindi Crime Story:‘‘तुम्हारी बात तो कोई नहीं है, क्योंकि तुम तो कभी मेरा कहना मानती ही नहीं हो. पर कम से कम बेटियों का तो खयाल रखो. तुम्हारी आदतों का उन पर गलत प्रभाव पड़ सकता है. उन के बारे में तो सोचो.’’ राम सजीवन ने अपनी पत्नी फूलमती को समझाते हुए कहा.

‘‘हमें पता है कि हमें अपनी बेटियों को कैसे रखना है. हम कोई नासमझ नहीं हैं, जो अच्छीबुरी बात न समझें. लेकिन तुम्हें तो केवल दूसरों की बातें सुन कर हमारे ऊपर आरोप लगाने में ही मजा आता है.’’ पत्नी फूलमती ने झल्लाते हुए पति की बातों का जबाव दिया.

‘‘दूसरे की बातों में क्यों आऊंगा मैं? क्या मुझे दिखाई नहीं दे रहा कि तुम क्या करती हो. तुम्हारी बातें पूरे मोहल्ले में किसी से भी छिपी हुई नहीं हैं.’’ कहते हुए राम सजीवन घर से बाहर जाने लगा.

‘‘दरअसल, अब तुम शक्कीमिजाज के हो गए हो. हमारे पास जो भी खड़ा हो जाए. जो भी हमारे काम आ जाए. हमारे दुखदर्द में शामिल हो जाए, उसे देख कर तुम केवल यही सोचते हो कि उस के हमारे साथ संबंध बन गए हैं.’’ फूलमती बोली.

‘‘हम शक नहीं कर रहे बल्कि हकीकत है. हमें अब तुम्हारी चिंता नहीं है क्योंकि तुम मनमानी करोगी. हम तो बस बेटियों को ले कर परेशान हो रहे हैं. एक बार वे अपने घर चली जाएं. बस, उस के बाद तो हम तुम्हें कभी देखेंगे भी नहीं.’’ राम सजीवन ने कहा.

पत्नी की गलत आदतों की वजह से राम सजीवन मानसिक रूप से परेशान रहने लगा था. उस के एक बेटा और 3 बेटियां थीं. वह अपने तीनों जवान बच्चों को भी अच्छी सीख देता रहता था. जब उसे लगा कि पत्नी पर उस के कहने का कोई असर नहीं हो रहा है तो उस ने खुद को परिवार से दूर करना शुरू किया. वह स्वभाव से एकाकी रहने लगा. 38 साल की फूलमती ने 20-22 साल के कई लड़कों के साथ दोस्ती कर ली थी. वह उन लड़कों को अपने घर पर बुलाती रहती थी. यह बात मोहल्ले वालों से भला कैसे छिपी रह सकती थी. जिस से पूरे मोहल्ले में फूलमती के ही चर्चे होते रहते थे.

राम सजीवन को लगता था कि पत्नी की बुरी हरकतों का प्रभाव उस की जवान हो रही बेटियों पर पड़ेगा. इस कारण वह पत्नी को लड़कों की संगत से दूर रहने को कहता था. पति की बात को मानने के बजाय फूलमती उस से झगड़ने लगती थी. इस कारण पति और पत्नी अलगअलग रहने लगे.

राम सजीवन अपने घर से दूर अपने प्लौट पर बने मकान में रहने लगा था. जबकि फूलमती लखनऊ के ही थाना गोसाईंगंज स्थित बखारी गांव के मजरा रानीखेड़ा में एक बेटे रवि कुमार और तीनों बेटियों के साथ रह रही थी. पति के अलग रहने से फूलमती को और भी आजादी मिल गई थी. क्योंकि अब उसे कोई रोकनेटोकने वाला नहीं था. अलग मकान पर रहने के बाद भी राम सजीवन पत्नी को अकसर समझाता रहता था, जिस की वजह से दोनों में झगड़ा भी हो जाता था.

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11 मई, 2021 की बात है. लखनऊ शहर के थाना गोसाईंगंज स्थित बखारी गांव के मजरा रानी खेड़ा के रहने वाले रवि कुमार ने पुलिस को सूचना दी कि उस के पिता 40 साल के राम सजीवन की हत्या किसी ने गांव के बाहर कर दी गई है. उस के पिता अपने घर से दूर प्लौट पर रहते थे. सूचना पा कर थानाप्रभारी अमरनाथवर्मा पुलिस टीम के साथ मौके पर पहुंच गए. पुलिस ने लाश का निरीक्षण किया तो उस का चेहरा ईंट से कुचला हुआ था. खून सनी ईंट भी वहीं पड़ी थी. मृतक के घर के लोग वहां मौजूद थे. उन से प्रारंभिक पूछताछ के बाद लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी. अज्ञात के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करने के बाद पुलिस ने जांच शुरू कर दी.

राम सजीवन दलित था. गांव में उस की किसी से ऐसी कोई दुश्मनी नहीं थी जिस की वजह से हत्या की जा सके. ऐसे में पुलिस को हत्या की वजह समझ नहीं आ रही थी. लखनऊ के पुलिस कमिश्नर डी.के. ठाकुर के निर्देश पर डीसीपी (दक्षिण) डा. ख्याती गर्ग, अपर पुलिस उपायुक्त (दक्षिण) पूर्णेंदु सिंह और एसीपी स्वाति चौधरी के निर्देशन में गोसाईंगंज के थानाप्रभारी इंसपेक्टर अमरनाथ वर्मा के नेतृत्व में एक पुलिस टीम बनाई गई.

टीम में इंसपेक्टर डा. रामफल प्रजापति, एसआई फिरोज आलम सिद्दीकी, दीपक कुमार पांडेय, महिला एसआई नीरू यादव, कांस्टेबल गिरजेश यादव, रमापति पांडेय, अकबर, कुलदीप, सगीर अहमद, किशन जायसवाल, जितेंद्र भाटी को शामिल किया गया. थाना पुलिस के अलावा क्राइम ब्रांच की टीम को भी केस की जांच में लगा दिया गया. इस टीम में इंसपेक्टर तेज बहादुर सिंह, एसआई संतोष कुमार सिंह, दिलीप मिश्रा, प्रमोद कुमार सिंह कांस्टेबल विनय यादव, वीर सिंह, अजय तेवतिया, राजीव कुमार और अभिषेक कुमार शामिल थे.

राम सजीवन की हत्या की वजह जानने के लिए जब पुलिस ने उस की पत्नी फूलमती से पूछा तो वह बोली, ‘‘उन की किसी से कोई दुश्मनी नहीं थी. हमारे साथ भी कोई लड़ाईझगड़ा नहीं था. बस वह नाराज हो कर गांव के बाहर वाले मकान में रहते थे.’’

फूलमती के पति की हत्या हुई थी. इस कारण वह परेशान थी. इस वजह से पुलिस बहुत दबाव डाल कर उस से पूछताछ नहीं कर पा रही थी. फूलमती हर बार बयान बदल रही थी. एक बार उस ने कहा, ‘‘वह खराब संगत में रहता था. इस कारण कुछ नशेड़ी लोगों से उस की दोस्ती हो गई थी. हो सकता है कि उन लोगों में से किसी ने नशे में हत्या की हो.’’

पुलिस को भी राम सजीवन का शव जिस हालत में मिला था, उसे देख कर ऐसा ही लग रहा था जैसे किसी ने मारने के बाद भी अपना गुस्सा निकालने के लिए ईंट से हमला कर के मुंह को कुचल दिया हो. जिस से उस की पहचान न हो सके. पर यह मसला पहचान छिपाने का नहीं दुश्मनी का लग रहा था. पुलिस ने गांव के लोगों से भी पूछताछ शुरू की तो पता चला कि राम सजीवन और उस की पत्नी के झगड़े की वजह पत्नी का कुछ अलग लोगों से संबंध था. 4 बच्चों की मां होने के बाद भी फूलमती दूसरे लोगों से हंसीमजाक करने में आगे रहती थी.

इस जानकारी के बाद पुलिस ने फूलमती से फिर से पूछताछ शुरू की. बारबार बयान बदलने से पुलिस को भी यह विश्वास होने लगा कि हत्या की जानकारी फूलमती को जरूर होगी. पुलिस के साथ पूछताछ और सवालों में वह फंस गई. थानाप्रभारी ने पूछा, ‘‘तुम्हें यह तो पता है कि किस ने मारा है. भले ही तुम उस में शामिल न रही हो. अगर तुम सच बता दोगी तो तुम्हें कुछ नहीं होगा. जिस ने यह हत्या की है, उसी को सजा मिलेगी.’’

पुलिस से यह भरोसा पा कर फूलमती ने कहा, ‘‘गांव बखारी के ही रहने वाले कल्याण ने यह किया है. राम सजीवन उसे हमारे घर आता देख कर गुस्सा होता था. यह बात उस से सहन नहीं हुई तो उस ने राम सजीवन की हत्या कर दी.’’

अब पुलिस टीम ने बिना समय गंवाए कल्याण को पकड़ लिया. कल्याण ने खुद को फंसता देख पूरी कहानी बता दी. कल्याण ने बताया, ‘‘राम सजीवन को मेरा फूलमती से मिलनाजुलना अच्छा नहीं लगता था. इस बात से वह फूलमती से नाराज रहता था. फूलमती भी पति की रोजरोज की कलह से परेशान हो गई थी. उसी के कहने पर राम सजीवन को रास्ते से हटाया.

‘‘फूलमती के दबाव डालने के बाद मैं ने उसे रास्ते से हटाने की योजना बनाई. मैं अकेले यह काम करने की हालत में नहीं था. इसलिए मैं ने अपने साथी सतीश से बात की. सतीश आपराधिक प्रवृत्ति का था. वह सुरियामऊ गांव का रहने वाला था.

‘‘हम लोगों ने अपने 2 और साथी सूरज और नीरज को भी शामिल किया. इस के बाद 11 मई की रात को राम सजीवन के घर में घुस कर हम चारों ने उस की हत्या कर दी.’’

कल्याण ने बताया, ‘‘राम सजीवन की हत्या करने के बाद उस के शव को घर से 100 मीटर दूर गांव से बाहर वाली सड़क पर डाल दिया. इस की जानकारी फृलमती को दी तो उस ने अपने मन की भड़ास और गुस्सा निकालने के लिए ईंट से मृत पति के चेहरे पर कई वार किए. मुंह को बुरी तरह से कुचल दिया.’’

कल्याण से मिली जानकारी के आधार पर गोसाईंगंज पुलिस ने सब से पहले फूलमती को पकड़ा उस के बाद रानीखेड़ा के रहने वाले 20 साल के सूरज, सुरियामऊ के रहने वाले 22 साल के सतीश, इसी गांव के 19 साल के नीरज को भी पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया. पुलिस ने आरोपियों के पास से खून लगे कपड़े भी बरामद किए.

पुलिस ने राम सजीवन हत्याकांड में 5 अभियुक्तों राम सजीवन की पत्नी फूलमती, कल्याण, सतीश, सूरज और नीरज के खिलाफ धारा 302, 147, 149 और 201 आईपीसी के साथ 3 (2) (5) एससीएसटी ऐक्ट के तहत गिरफ्तार कर लिया. गोसाईंगंज थाना पुलिस और क्राइम टीम ने राम सजीवन की निर्मम हत्या करने वाले सभी आरोपियों को गिरफ्तारकर कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया. Hindi Crime Story

UP News: प्यार में खत्म हुई ‘सीमा’

UP News: नाबालिग सीमा अपने प्रेमी प्रभु के साथ भाग गई थी. पुलिस ने सीमा को बरामद कर के प्रभु को गिरफ्तार भी कर लिया. इस के बावजूद जब सीमा की हत्या हो गई तो पुलिस को संदेह उस के घर वालों पर ही हुआ. पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बरेली जनपद के थाना विशारतगंज के मोहल्ला वार्ड नंबर 11 में भूरे खां अपने परिवार के साथ रहता था. भूरे के परिवार में पत्नी नसीम, 6 बेटियां और 2 बेटे थे. इन में केवल सब से बड़ी सकीना का विवाह हुआ था, बाकी सभी अविवाहित थे.

इश्तियाक दिल्ली में किसी फैक्ट्री में नौकरी करता था. मुश्ताक भी कुछ दिनों तक दिल्ली में रहा था, लेकिन इधर वह घर पर ही रह रहा था. पूरा परिवार जरी का काम करता था, जिस से होने वाली कमाई से उन के घर का खर्च आसानी से चल रहा था. भूरे की 15 साल की बेटी सीमा किशोरावस्था की सीमा पार कर के जवानी की दहलीज पर कदम रख रही थी. जवानी की चमक से उस का रूपरंग दमकने लगा था. वह ज्यादा पढ़ीलिखी नहीं थी, इस के बावजूद उसे फिल्मों का जबरदस्त शौक था. उस की सहेलियां भी उसी जैसी सोच की थीं. इसलिए उन में जब भी बातें होतीं, फिल्मों और उन में दिखाए जाने वाले प्रेमसंबंधों को ले कर होतीं.

यह उम्र का ही तकाजा था कि सीमा को उन बातों में खूब मजा आता था. उस के दिल में भी उमंगें थीं, उस के ख्यालों में भी अपने चाहने वाले की तस्वीर थी. लेकिन यह तस्वीर कुछ धुंधली सी थी. उस की आंखें ख्यालों की तस्वीर के चाहने वाले की तलाश किया करती थीं. लेकिन काफी कोशिशों के बाद भी वह धुंधली तस्वीर साफ हो रही थी और न वह कहीं नजर आ रहा था. उस के आगेपीछे चक्कर लगाने वाले लड़के कम नहीं थे, लेकिन उन में से एक भी ऐसा नहीं था, जो उस के ख्यालों की तस्वीर में फिट बैठता.

2 साल पहले सीमा पिता भूरे के साथ एक रिश्तेदारी में बरेली के ही एक गांव रेवती गई. यह गांव उस के गांव से ज्यादा दूर नहीं था. लौटते समय वह रेवती रेलवे स्टेशन पर खड़ी ट्रेन का इंतजार कर रही थी, तभी एक वेंडर युवक पानी की बोतल बेचते हुए उस के पास से गुजरा. उस लड़के में सीमा ने न जाने क्या देखा कि उस का दिल एकदम से धड़क उठा. उस की निगाहें उस पर टिक कर रह गई. उस के दिल से आवाज आई, ‘सीमा यही है तेरा चाहने वाला.’

उस युवक का चेहरा आंखों के रास्ते दिल में पहुंचा तो उस के ख्यालों में बनी धुंधली तस्वीर, बिलकुल साफ हो गई. वह युवक जब तक उस की नजरों के सामने रहा, सीमा उसे एकटक निहारती रही. उसे अपनी ओर इस तरह निहारते देख वह युवक भी बारबार उसी को देखने लगा. जब उन की निगाहें आपस में मिल जातीं तो दोनों के होंठों पर मुसकराहट तैर उठती. ट्रेन आई तो सीमा पिता के साथ ट्रेन में बैठ गई. पूरे रास्ते उस की आंखें के सामने उसी युवक का चेहरा घूमता रहा.

वह विशारतगंज रेलवे स्टेशन पर ट्रेन से उतर कर स्टेशन से बाहर आई तो उस नवयुवक को एक अंडे की दुकान पर देखा. वह ग्राहकों को अंडे बेच रहा था. इस का मतलब वह दुकान उसी की थी. इस का मतलब युवक विशारतगंज का रहने वाला था. यह जान कर सीमा को काफी खुशी हुई. उस ने सोचा कि वह जब भी चाहेगी, उस युवक के बारे में पता कर के उस से मिल सकेगी. यह बात दिमाग में आते ही उसे काफी सुकून मिला. वह पिता के साथ घर आ गई.

सीमा ने जल्दी ही उस युवक के बारे में पता कर लिया. उस का नाम था प्रभु गोस्वामी. वह वार्ड नंबर 6 में रहता था. उस के पिता महेश की मौत हो चुकी थी. परिवार में मां और 2 छोटे भाई थे. घर प्रभु की ही कमाई से चल रहा था. रेलवे स्टेशन के पास वह अंडे की दुकान लगाता था, साथ ही स्टेशन और ट्रेन में पानी की बोतलें बेच लेता था. एक दिन सुबह प्रभु छत पर बैठा मौसम का आनंद ले रहा था, तभी अचानक उस के मोबाइल की घंटी बज उठी. इतनी सुबह फोन करने वाला उस का कोई दोस्त ही होगा, यह सोच कर वह मोबाइल स्क्रीन पर नंबर देखे बगैर ही बोला, ‘‘हां बोल?’’

‘‘जी, आप कोन बोल रहे हैं?’’ दूसरी ओर से किसी लड़की की मधुर आवाज आई तो प्रभु चौंका. उसे अपनी गलती का अहसास हुआ तो उस ने तुरंत ‘सौरी’ कहते हुए कहा, ‘‘माफ करना, दरअसल मैं ने सोचा कि इतनी सुबहसुबह कोई दोस्त ही फोन कर सकता है, इसीलिए… वैसे आप को किस से बात करनी है, आप कौन बोल रही हैं?’’

‘‘मैं सीमा बोल रही हूं. मुझे भी अपनी दोस्त से बात करनी थी. लेकिन लगता है नंबर गलत डायल हो गया है.’’

‘‘कोई बात नहीं, आप को अपनी दोस्त का नंबर सेव कर के रखना चाहिए. ऐसा करेंगी तो गलती नहीं होगी.’’

‘‘आप पुलिस में हैं क्या?’’

‘‘नहीं तो, क्यों?’’

‘‘बात तो पुलिस वालों की ही तरह कर रहे हो. सवाल के साथ सलाह भी.’’ कह कर सीमा जोर से हंसी.

‘‘अरे नहीं, मैं ने तो वैसे ही कह दिया. दोस्त आप की, फोन भी आप का. आप चाहें नंबर सेव करें या न करें.’’

‘‘आप बुजुर्ग हैं?’’ सीमा ने फिर छेड़ा.

‘‘जी नहीं, अभी मैं नौजवान हूं.’’

‘‘तब तो किसी न किसी के खास होंगे?’’

‘‘आप बहुत बातें करती हैं.’’

‘‘अच्छी या बुरी?’’

‘‘अच्छी.’’

‘‘क्या अच्छा है मेरी बातों में?’’

अब हंसने की बारी प्रभु की थी. वह जोर से हंसा फिर बोला, ‘‘माफ करना, मैं आप से नहीं जीत सकता.’’

‘‘और मैं माफ न करूं तो?’’

‘‘तो आप ही बताएं, मैं क्या करूं?’’ प्रभु ने हथियार डाल दिए.

‘‘अच्छा जाओ, माफ किया.’’

दरअसल, सीमा ने किसी तरह प्रभु का मोबाइल नंबर हासिल कर लिया था. सीमा के पास खुद का मोबाइल नहीं था. इसलिए उस ने अपनी सहेली का मोबाइल ले कर बात की थी. पहली ही बातचीत में दोनों काफी घुलमिल गए. उन के बीच कुछ ऐसी बातें हुईं कि दोनों ही एकदूसरे के लिए अपनापन महसूस करने लगे. इस के बाद उन के बीच अक्सर बातें होने लगीं. सीमा ने प्रभु को बता दिया था कि उस दिन उस ने अनजाने में नहीं, जानबूझ कर फोन किया था और वह भी उस का नंबर हासिल कर के. इतना ही नहीं, उन की मुलाकात भी हो चुकी है.

जब प्रभु ने मुलाकात के बारे में पूछा तो सीमा ने रेवती रेलवे स्टेशन पर हुई मुलाकात के बारे में बता दिया. प्रभु यह जान कर खुश हआ, क्योंकि उस दिन सीमा का खूबसूरत चेहरा आंखों के जरिए उस के दिल में उतर चुका था. इस के बाद दोनों की मुलाकातें होने लगीं. दिनोंदिन उन का प्यार प्रगाढ़ होता गया. सीमा दीवानगी की हद तक प्रभु को चाहने लगी थी. प्रभु इस बात को बखूबी जानता था, लेकिन उस के दिमाग में जातिधर्म की बात बैठी हुई थी, इसलिए उसे हमेशा सीमा को खो देने का डर सताता रहता था. प्रेम दीवानों के प्रेम की खुशबू जब जमाने तक पहुंचती है तो लोग उन दीवानों पर तमाम बंदिशें लगाने लगते हैं. यही सीमा के घर वालों ने भी किया.

सीमा का गैरधर्म के लड़के के साथ इश्क लड़ाना घर वालों को रास नहीं आया. उन्होंने सीमा पर प्रतिबंध लगाने शुरू कर दिए. लेकिन तमाम बंदिशों के बाद भी सीमा प्रभु से मिलने का मौका निकाल ही लेती थी. इसी बीच एक मुलाकात में प्रभु को उदास देखा. सीमा ने कारण पूछा, ‘‘तुम्हारे दिल में ऐसी क्या बात है, जिस की वजह से तुम्हारे चेहरे पर उदासी छाई है?’’

‘‘कुछ नहीं, तुम्हें ऐसे ही लग रहा है.’’ प्रभु ने टालने की कोशिश की.

‘‘मुझे ऐसे ही नहीं लग रहा, कोई बात है जिस की वजह से तुम उदास हो. तुम्हें मेरी कसम, बताओ क्या बात है?’’

‘‘सीमा मुझे डर है कि मैं तुम्हें खो न दूं.’’

‘‘क्यों, तुम्हें ऐसा क्यों लगता है?’’

‘‘हम दोनों की जाति तो छोड़ो, धर्म भी अलगअलग है. ऐसे में घर समाज ही नहीं, घर वाले ही हमारी शादी के लिए नहीं राजी होंगे.’’

‘‘सच्चा प्यार ऊंचनीच और जातिधर्म का मोहताज नहीं होता. लोग कहते हैं न कि जोडि़यां ऊपर वाला बनाता है. इसलिए हम दोनों में प्यार हुआ है तो इस का मतलब है कि ऊपर वाले को हमारा प्यार मंजूर है. फिर इस में संदेह की कोई बात कहां है.’’

‘‘लेकिन तुम्हरे घर वाले तो हमें दूर करने के लिए जमीनआसमान एक किए हुए हैं.’’

‘‘चिंता मत करो, मैं अपने घर वालों को किसी न किसी तरह समझा लूंगी. अगर नहीं समझा पाई तो हमारे सामने और भी रास्ते हैं. देखो प्रभु, हमें दुनिया से जितना लड़ना पड़े, हम लड़ेंगे और जीतेंगे भी. कोई ताकत हमें जुदा नहीं कर सकती.’’

इतना कह कर सीमा प्रभु के सीने से लग गई. ऐसी विपरीत परिस्थिति में भी सीमा ने हार नहीं मानी. उस की हिम्मत उस का प्यार था, जिसे वह हर हाल में अपने से जुदा नहीं कर सकती थी. फिर कुछ देर और बात कर के दोनों अपनेअपने घरों को लौट गए. सीमा ने अपने घर वालों से बात की, लेकिन वे राजी नहीं हुए, उल्टे उस की पिटाई कर दी. बंदिशों के बाद भी उन के चोरीछिपे मिलने की भनक सीमा के घरवालों को लग ही जाती थी. उसी बीच रामलीला मेले में प्रभु पर चाकू से जानलेवा हमला किया गया. लेकिन संयोग था कि प्रभु बच गया. पुलिस में शिकायत भी की गई, लेकिन पुलिस ने कोई काररवाई नहीं की.

इस घटना ने सीमा को यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि अगर वे यहां रहें तो दोनें की जान को खतरा बना रहेगा. उन दोनों को अलग करने के लिए उस के घर वाले किसी भी हद तक जा सकते हैं, इसलिए उस ने एक फैसला लिया. 18 फरवरी को सीमा रेलवे स्टेशन पहुंची और प्रभु से भाग चलने की जिद करने लगी. प्रभु तैयार नहीं हुआ तो वह वहां खड़ी सद्भावना एक्सप्रेस के आगे लेट गई और जान देने की धमकी देने लगी. हार कर प्रभु को उस की बात माननी पड़ी. वह सीमा को वहां से अपने घर ले गया और छिपा दिया. रात में दोनों रेलवे स्टेशन पहुंचे और ट्रेन से हिमाचल प्रदेश चले गए. प्रभु घर से 10 हजार रुपए ले कर गया था. वहां दोनों ने विवाह कर लिया और पतिपत्नी की तरह रहने लगे.

इधर सीमा के घर वालों को प्रभु के साथ उस के भाग जाने की खबर लगी तो उन्होंने उस की खोजबीन शुरू कर दी. काफी खोजबीन के बाद भी जब उस का कुछ पता नहीं चला तो एक मार्च को सीमा के पिता भूरे ने विशारतगंज थाने में प्रभु और उस के चाचा रमेश पर तमंचे की नोक पर सीमा का अपहरण करने का आरोप लगाते हुए तहरीर दी. थानाप्रभारी शुजाउर रहीम ने प्रभु और रमेश के विरूद्ध भादंवि की धारा 363, 366, 452, 504 के तहत मुकदमा दर्ज करा दिया. मुकदमा दर्ज होने के बाद पुलिस ने प्रभु के घरवालों और रिश्तेदारों पर दबाव बनाना शुरू किया तो प्रभु ने होली के एक दिन पहले 5 मार्च को एक भाजपा नेता के माध्यम से सीमा को पुलिस के हवाले कर दिया.

पुलिस ने उसे महिला थाना भेजने के बजाय बिना मैडिकल कराए ही परिजनों के हवाले कर दिया. 9 मार्च को उस के कोर्ट में बयान होने थे. इसी बीच 8 मार्च को देर रात पुलिस ने प्रभु को भी गिरफ्तार कर लिया.  9 मार्च की सुबह साढ़े 7 बजे भूरे विशारतगंज थाने पहुंचा कि किसी नकाबपोश ने सुबह 4 बजे सीमा की हत्या कर दी है. उस समय घर का मेनगेट खुला हुआ था. सीमा की मां नसीम टौयलेट गई थी, बाकी लोग सो रहे थे. अचानक गोली चलने की आवाज सुनाई दी तो सभी उठ कर दौड़े. पास जा कर देखा तो सीमा के सिर से खून बह रहा था और उस का शरीर शिथिल पड़ चुका था. उस की मौत हो चुकी थी. उन्होंने एक नकाबपोश को वहां से भागते देखा था, वह कोई और नहीं प्रभु था.

उस का आरोप सुन कर थानाप्रभारी शुजाउर रहीम ने कहा कि प्रभु तो उन की हिरासत में है, वह कैसे खून कर सकता है? बहरहाल, शुजाउर रहीम पुलिस फोर्स के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. मामले की गंभीरता को देखते हुए उन्होंने घटना की जानकारी उच्चाधिकारियों को दे दी और खुद सिपाहियों के साथ घटनास्थल के लिए रवाना हो गए. कुछ ही देर में एसपी (ग्रामीण) ब्रजेश श्रीवास्तव और सीओ (आंवला) धर्म सिंह मार्छाल भी घटनास्थल पर पहुंच गए. सीमा के सिर में काफी गहरा घाव था, जिस से अनुमान लगाया कि हत्यारे ने बहुत नजदीक से गोली चलाई थी. पुलिस अधिकारियों ने घर वालों से पूछताछ की तो सभी के बयान अलगअलग थे. शुरुआती जांच में और अब तक की पूछताछ में यह मामला औनर किलिंग का लग रहा था.

घटना के बाद से ही सीमा का बड़ा भाई इश्तियाक घर से गायब था. पुलिस ने आसपड़ोस में पूछताछ की तो पता चला कि देर रात तक सीमा के घरवाले जागते रहे थे. सीमा से लड़ाईझगड़ा होने की बात भी सामने आई. देर रात तक उन के घर में अफरातफरी का माहौल बना रहा था. उस के बाद कुछ समय के लिए सब शांत हो गया. सुबह 4 बजे गोली चलने की आवाज आई और फिर उस के बाद रोनेपीटने की आवाजें आने लगीं. इस के बाद सीमा की हत्या किए जाने की बात सामने आई. सीमा की हत्या में सारे हालात किसी अपने की ओर इशारा कर रहे थे. वह अपना कोई और नहीं, उस का बड़ा भाई इश्तियाक हो सकता था. वही घर से गायब था और उस का मोबाइल भी बंद था.

पूछताछ के बाद सीमा की लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी गई. इस के बाद पुलिस ने घर की तलाशी ली, लेकिन कुछ खास हाथ नहीं लगा. आगे की जांच में पता चला कि घटना की रात सीमा का मामा गुड्डू भी आया था. गुड्डू बरेली के थाना सिरौल के गांव हरदासपुर में रहता था. पुलिस ने उस के घर छापा मारा तो वह घर में ही था. लेकिन पुलिस को देखते ही वह छत के रास्ते भागने में सफल हो गया.

14 मार्च को थानाप्रभारी शुजाउर रहीम, एसआई चमन सिंह, प्रताप सिंह और अतुल दुबे की टीम ने गुड्डू को बदायूं के कुंवरगांव से गिरफ्तार कर लिया. उस के पास से हत्या में प्रयुक्त 315 बोर का तमंचा भी बरामद हो गया. दरअसल, सीमा का मामा गुड्डू पंजाब में फेरी लगा कर कबाड़ी का काम करता था. उसे फोन से सीमा के गैर धर्म के लड़के के साथ भाग जाने की जानकारी मिली तो वह क्रोध से जल उठा. जब पुलिस ने सीमा को बरामद कर घर वालों के हवाले किया तो गुड्डू ने भूरे से सीमा को समझाने को कहा. लेकिन सीमा प्रभु के पास जाने की जिद पर अड़ी थी. गुड्डू ने भी उसे समझाने की बहुत कोशिश की, लेकिन वह नहीं मानी. इस के बाद गुड्डू के सामने एक ही रास्ता बचा कि वह सीमा को खत्म कर दे.

8 मार्च की सुबह वह हावड़ा-अमृतसर एक्सपे्रस टे्रन से बरेली के आंवला स्टेशन पर उतरा. वहां से वह अपने गांव हरदासपुर गया और शाम को विशारतगंज आ गया. देर रात वह भूरे के घर पहुंचा. उस ने सीमा को अपनी जिद छोड़ने के लिए काफी समझाया, जिसे ले कर काफी देर तक बहस चलती रही. सीमा का बड़ा भाई इश्तियाक भी मामा गुड्डू के सुर में सुर मिला रहा था. जब किसी तरह बात नहीं बनी तो सीमा के सो जाने पर गुड्डू ने इश्तियाक के साथ मिल कर सीमा के सिर से तमंचा सटा कर गोली मार दी. एक ही झटके में सीमा मौत की नींद सो गई. इस के बाद दोनों वहां से फरार हो गए. कुछ लोगों ने गुड्डू का पीछा भी किया, लेकिन वह किसी के हाथ नहीं आया.

शुजाउर रहीम ने गुड्डू और इश्तियाक के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज करा कर गुड्डू को सीजेएम की अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक इश्तियाक फरार था. पुलिस उस की तलाश कर रही थी. गुड्डू को जरा भी कानून का ज्ञान होता तो सीमा की जान बच सकती थी. सीमा नाबालिग थी. ऐसी स्थिति में अदालत उसे उस के घर वालों को ही सौंपती न कि प्रेमी प्रभु को. UP News

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित.

Suspense Story: जहरीलों निगाहों का निशाना

Suspense Story: प्रगट मसीह ने सुमन से शादी सिर्फ इसलिए की थी, क्योंकि उस की मां के पास लाखों का मकान था. इस के बाद प्रगट ने उस मकान को हासिल करने के लिए ऐसा क्या किया कि उसे जेल जाना पड़ा?

‘‘सा हब, मेरे बेटे को ढूंढ दीजिए. मैं गरीब विधवा औरत हूं, मेरे बेटे के सिवाय मेरा कोई और सहारा नहीं है.’’ कृष्णा नामक एक विधवा औरत ने थाना सदर के अंतर्गत पड़ने वाली पुलिस चौकी मरांडो के प्रभारी बलबीर सिंह के पास जा कर गुहार लगाई. कृष्णा के साथ समाजसेवक सरदार प्रगट सिंह भी थे, जो ग्राम प्रधान भी थे. चौकीप्रभारी ने पूरी बात विस्तार से बताने के लिए कहा तो कृष्णा ने बताया कि वह न्यू गुरु तेगबहादुर नगर के मकान नंबर 15 में रहती है. काफी समय पहले उस के पति मगट सिंह की मृत्यु हो चुकी है. उस की 2 संताने हैं, एक 32 वर्षीय बेटा वीर सिंह, दूसरी 28 वर्षीया बेटी सुमन. 7 साल पहले सुमन की शादी प्रगट मसीह के साथ हुई थी.

कृष्णा ने आगे बताया, ‘‘मेरे घर पर केवल मैं और मेरा बेटा वीर सिंह ही रहते थे. 27 जुलाई, 2014 को वीर सिंह कोल्डड्रिंक पीने के लिए गली के कोने तक गया. उस के बाद लौट कर नहीं आया. मैं ने उस की तलाश उन जगहों पर कर ली है, जहां उस के मिलने की संभावना थी. इसलिए साहब, आप से निवेदन है कि आप मेरे बेटे को ढूंढने में मेरी मदद करें.’’

यह 28 जुलाई, 2014 की बात है. चौकीप्रभारी बलबीर सिंह ने समाजसेवक सरदार प्रगट सिंह और कृष्णा देवी के बयान के आधार पर वीर सिंह की गुमशुदगी दर्ज कर के उस की तलाश शुरू कर दी. लेकिन वह किसी नतीजे पर पहुंच पाते इस के पहले ही उन का तबादला हो गया. उन की जगह चौकी का प्रभार एएसआई निशान सिंह ने संभाला. निशान सिंह ने गुमशुदा वीर सिंह के फोटो की कौपी सभी थानों को भेज दी. लुधियाना व निकटवर्ती शहर के थानों को वीर सिंह का हुलिया बता कर वायरलैस मैसेज करवा दिए गए. इस के बावजूद वीर सिंह का कोई सुराग नहीं मिला.

निशान सिंह ने वीर सिंह के पड़ोसियों से भी पूछताछ की. उन के अनुसार वीर सिंह सीधासादा मंदबुद्घि इंसान था. अब तक की गई तफ्तीश से यह बात स्पष्ट हो गई थी कि वीर सिंह का अपहरण नहीं हुआ था. ऐसे में एक संभावना यह बनती थी कि मंदबुद्धि होने की वजह से वह खुद ही कहीं चला गया हो. इस के अलावा एक संभावना यह भी थी कि कहीं किसी दुश्मनी की वजह से किसी ने उसे न उठा लिया हो. बहरहाल, निशान सिंह ने समाजसेवक प्रगट सिंह से इस बारे में बात की तो एक नई बात यह पता चली कि लापता होने वाले दिन वीर सिंह अपने बहनोई प्रगट मसीह के साथ बाइक पर बैठ कर कहीं जाते देखा गया था. मोहल्ले में की गईं पूछताछ के दौरान एक प्रौपर्टी डीलर ने यह भी बताया कि कृष्णा देवी अपना मकान बेचना चाहती थीं.

इस बारे में निशान सिंह ने जब कृष्णा से पूछा तो उस ने इस बात से इनकार करते हुए बताया कि उस ने अपना मकान बेचने की बात कभी नहीं की. हां, उस का दामाद प्रगट मसीह उस पर मकान बेचने के लिए दबाव जरूर डाल रहा था. यहां तक कि उस का बेटा वीर सिंह भी इस बात का विरोध कर रहा था. इन 2 लोगों के बयानों से इस केस की जांच को नई दिशा मिल गई. निशान सिंह का शक विश्वास मे बदलने लगा. उन्होंने प्रगट मसीह की तलाश काररवाईं तो वह घर से फरार मिला. इस के बाद पुलिस ने उस की तलाश में छापेमारी शुरू कर दी. आखिर कई महीनों की मेहनत के बाद 25 मार्च, 2015 को प्रगट मसीह को मलेरकोटला रोड से गिरफ्तार कर लिया गया. उस से पूछताछ के बाद निशान सिंह ने उस की निशान देही पर गांव लोहारा में दबिश दे कर उस के साथी निर्मल सिंह उर्फ मिंटू को भी गिरफ्तार कर लिया.

गिरफ्तारी के बाद हुई पूछताछ के दौरान दोनों ने हर अपराधी की तरह अपने आप को निर्दोष बताया, लेकिन जब निशान सिंह ने थोड़ी सख्ती की तो दोनों की जुबान खुल गई. अपना अपराध स्वीकार करते हुए प्रगट मसीह ने जो कहानी बताई, वह प्रेम और विश्वास में धोखा देने वाले एक धूर्त इंसान की शर्मनाक कहानी थी. मगट सिंह व उन की पत्नी कृष्णा देवी निहायत ही शरीफ और सीधेसादे लोग थे. उन की 2 संतानें थीं, बेटा वीर सिंह और बेटी सुमन. वीर सिंह मंदबुद्धि था. उसे पागल कहना बेईमानी होगी, क्योंकि वह जो भी काम करता था, उसे भले ही धीरेधीरे करे, लेकिन काफी सोचविचार कर करता था. मगट सिंह ने दोनों बच्चों की पढ़ाई का पूरा खयाल रखा. उस वक्त वह पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी में लिपिक थे. घरपरिवार अच्छे से चल रहा था.

सन 2001 में मगट सिंह अपनी नौकरी से रिटायर हो गए. रिटायरमेंट में उन्हें अच्छाखासा पैसा मिला. उन पैसों से उन्होंने गिल गांव की हरगोविंद कालोनी में 100 गज का प्लौट खरीद कर अपना मकान बना लिया. फिलहाल इस मकान की कीमत लाखों में है. सब कुछ ठीकठाक चल रहा था कि अचानक एक सुबह सैर करते समय प्रगट सिंह फिसल कर गिर गए. उन की रीढ़ की हड्डी में गंभीर चोट आई. वह बिस्तर पर पड़ गए. उन का चलनाफिरना बंद हो गया. वक्त का पहिया ऐसा उल्टा घूमा कि उन्होंने एक बार बिस्तर पकड़ा तो फिर वह उन की मौत के बाद ही छूट पाया. उन की मौत के बाद कृष्णा देवी ने अकेले ही अपने दम पर बच्चों की परवरिश की. मंदबुद्धि होने के कारण वीर सिंह ज्यादा नहीं पढ़ सका, इसलिए कृष्णा ने उसे मशीन का काम सीखने पर लगा दिया.

कृष्णा की बेटी सुमन जवान हो चुकी थी. उसी दौर में उस की मुलाकात प्रगट मसीह से हुई. दरअसल सुमन को पास वाले गांव में अपनी किसी सहेली के विवाह समारोह में जाना था. वह मेन रोड पर खड़ी हो कर आटो का इंतजार कर रही थी. सर्दियों के दिन थे, ऊपर से हलकीहलकी बूंदाबांदी हो रही थी. काफी इंतजार के बाद भी उसे कोई साधन नहीं मिला. बारिश की वजह से सुमन के कपड़े भीगने लगे थे कि तभी सुमन के पास एक कार आ कर रुकी. ड्राइविंग सीट पर बैठा युवक प्रगट मसीह था. उस ने सुमन से बड़ी शालीनता से कहा, ‘‘आइए, मैं आप को छोड़ देता हूं.’’

संकोचवश सुमन ने एक बार तो मना कर दिया, पर मौसम का मिजाज और प्रगट मसीह की शालीनता देख कर उस ने बात मान ली. वह कार में बैठ गई. प्रगट मसीह ने उसे उस की सहेली के गांव पहुंचाया ही नहीं, बल्कि अगले दिन सहेली के घर से वापस भी ले आया. प्रगट मसीह के इस व्यवहार से सुमन काफी प्रभावित हुई. इस मुलाकात के बाद रास्ते में आतेजाते कहीं न कहीं प्रगट मसीह सुमन को दिखाई देने लगा. दोनों मिलते तो 2-4 बातें भी हो जातीं. सुमन भी धीरेधीरे उस की ओर आकर्षित होने लगी. फिर जल्दी ही वह दिन भी आ गया जब एक दिन दोनों ने अपनेअपने प्यार का इजहार कर दिया.

इस के बाद दोनों की रोजाना कहीं न कहीं मुलाकातें होने लगीं. जल्दी ही दोनों ने शादी करने का फैसला कर लिया. सुमन की मां कृष्णा इस के पक्ष में नहीं थी, वह उस की शादी अपनी बिरादरी में करना चाहती थी, किसी ईसाई के साथ नहीं. लेकिन सुमन हर हाल में प्रगट मसीह से ही शादी करना चाहती थी. अंतत: उस ने मां से विद्रोह कर के अप्रैल, 2007 में प्रगट मसीह के साथ कोर्टमैरिज कर ली. दरअसल, कहानी वह नहीं थी, जो प्रत्यक्ष में दिखाई दे रही थी. हकीकत में प्रगट मसीह लोहरा गांव निवासी पाल सिंह का बेटा था. वह बचपन से ही आवारा और आपराधिक प्रवृत्ति का था, वह बिना हाथपैर हिलाए खूब पैसा कमाना चाहता था. युवा होते ही उस ने आवारा दोस्तों की एक मंडली बना ली थी और उन के साथ शराबजुआ चोरीचकारी आदि करता रहता था.

सुमन से उस की मुलाकात इत्तफाक से नहीं, बल्कि सोचीसमझी योजना के तहत हुई थी. प्रगट ने कालोनी के बसस्टौप पर सुमन को खड़ी देखा था. उस ने अपने दोस्तों से जब उस के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया, ‘‘गुरु, यह सोने का अंडा देने वाली मुर्गी है.’’

‘‘क्या मतलब?’’

‘‘मतलब यह कि इस की मां विधवा है. भाई मंदबुद्धि और इन का मकान लाखों रुपए का है. अगर इस चिडि़या को जाल में फांस लो तो समझो लाखों रुपए का मकान तुम्हारा.’’

बस, उसी दिन से वह सुमन को अपने जाल में फांसने की योजना बनाने लगा. सुमन अपनी सहेली की शादी में पास के गांव जाएगी, यह बात प्रगट मसीह को पहले ही पता लग गई थी. इसीलिए वह सुमन को लिफ्ट देने और उस पर अपना प्रभाव जमाने के लिए अपने एक दोस्त की कार मांग लाया था. बहरहाल, सुमन से शादी होने के बाद प्रगट मसीह सुमन के घर पर ही रहने लगा. जबकि यह बात न सुमन को अच्छी लगती थी और न उस की मां को. इस बात को ले कर घर में क्लेश शुरू हो गया. धीरेधीरे झगड़ा इतना बढ़ा कि मजबूरन प्रगट मसीह को अपनी ससुराल छोड़ कर अपने घर लोहारा जाना पड़ा.

समय अपनी गति से चलता रहा. इसबीच एकएक कर सुमन 5 बच्चों की मां बन गई. प्रगट मसीह को जब भी मौका मिलता, वह अपनी सास कृष्णा देवी पर दबाव डालता कि वह यह मकान बेच कर चंडीगढ़ रोड पर मकान ले ले. पर कृष्णा उस की बातों में कभी नहीं आई. इस के बावजूद प्रगट ने इलाके के कई प्रौपर्टी डीलरों को मकान बेचने के लिए कह रखा था. प्रगट मसीह और सुमन की शादी को लगभग 7 साल हो चुके थे. मकान हथियाने के जिस मकसद से प्रगट सुमन से शादी की थी, वह अभी तक पूरा नहीं हुआ था. आखिर उस ने अपना मकसद पूरा करने के लिए एक योजना बनाई. अपनी योजना में उस ने अपने दोस्त निर्मल सिंह उर्फ मिठू को भी शामिल कर लिया था. निर्मल पेंटर का काम करता था. प्रगट ने योजना पूरी होने के बाद उसे एक लाख रूपए देने का वादा किया था.

अपनी योजना को अंजाम देने के लिए प्रगट ने 28 जुलाई, 2014 की तारीख तय की और निर्मल के साथ घात लगा कर अपनी ससुराल वाली गली के नुक्कड़ पर बैठ गया. उस समय शाम का वक्त था और वह जानता था कि उस का साला इस वक्त टहलने और कोल्डड्रिंक पीने गली से निकल कर रोड तक आता है. वीर सिंह जैसे ही दुकान पर कोल्डड्रिंक पी कर मुड़ा, प्रगट मसीह ने उसे आवाज दे कर रोक लिया और घुमाने के बहाने बाइक पर बैठा कर नहर की ओर चल दिया. बाइक प्रगट मसीह खुद चला रहा था. बीच में वीर सिंह और पीछे निर्मल सिंह बैठा था. रास्ते में बाइक रोक कर प्रगट मसीह ने शराब खरीद ली.

घवदी नहर पर आगे जा कर प्रगट मसीह ने बाइक रोक ली उस के बाद वहीं बैठ कर तीनों ने शराब पी. वीर सिंह को नशा हो गया तो निर्मल सिंह की मदद से उस ने अंगोछे से वीर सिंह का गला घोंट कर उस की हत्या कर दी. तत्पश्चात दोनों ने मिल कर उस की लाश नहर में फेंक दी और वापस लौट आए. किसी को उस पर शक न हो, इस के लिए वह अपनी सास व प्रधान के साथ मिल कर वीर सिंह की तलाश का नाटक करता रहा. एएसआई निशान सिंह ने प्रगट मसीह और निर्मल सिंह के बयान दर्ज कर के दोनों को 25 मार्च, 2015 को मैडम अमनदीप कौर की अदालत में पेश कर के 2 दिनों के पुलिस रिमांड पर लिया. रिमांड अवधि के दौरान दोनों अभियुक्तों की निशानदेही पर मृतक वीर सिंह का पर्स, आधार कार्ड, अंगोछा और बाइक बरामद कर ली गई.

रिमांड की अवधि समाप्त होने पर 27 मार्च, 2015 को दोनों को पुन: अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जिला भेज दिया गया. चूंकि अब वीर सिंह की हत्या हो चुकी थी, इसलिए अपहरण की धारा 365 के साथ हत्या की धारा 302, 201, 34 और जोड़ दी गईं. एएसआई निशान सिंह ने नहर में बड़ी दूर तक जाल डलवा कर वीर सिंह की लाश तलाशने का प्रयास किया, पर कथा लिखे जाने तक लाश बरामद नहीं हो सकी थी. शायद पानी के तेज बहाव के कारण लाश दूर तक चली गई थी. Suspense Story

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

Superstition : तांत्रिक के कहने पर कलेजा निकाल खा गया कपल

Superstition : शादी के 10 साल बाद भी जब परशुराम और सुनयना के कोई बच्चा नहीं हुआ तो सुनयना तांत्रिकों के चक्कर लगाने लगी. एक तांत्रिक ने सुनयना को एक बच्ची की बलि दे कर कलेजा खाने की सलाह दी. संतान प्राप्ति के लिए सुनयना और उस के पति ने ऐसा किया भी लेकिन…

उस दिन नवंबर, 2020 की 15 तारीख थी. सुबह के यही कोई 8 बज रहे थे. तभी थाना घाटमपुर प्रभारी इंसपेक्टर राजीव सिंह को नरबलि की खबर मिली. यह खबर भदरस गांव के किसी व्यक्ति ने उन के मोबाइल फोन पर दी थी. उस ने बताया कि दीपावली की रात गांव के करन कुरील की 7 वर्षीय बेटी श्रेया उर्फ भूरी की बलि दी गई है. उस की लाश भद्रकाली मंदिर के पास पड़ी है. खबर पाते ही थानाप्रभारी पुलिस टीम के साथ भदरस गांव पहुंच गए. भद्रकाली मंदिर गांव के बाहर था. वहां भारी भीड़ जुटी थी. दरअसल मासूम बच्ची की बलि चढ़ाए जाने की बात भदरस ही नहीं, बल्कि अड़ोसपड़ोस के गांवों तक फैल गई थी. अत: सैंकड़ों लोगों की भीड़ वहां जमा थी.

भीड़ देख कर राजीव सिंह के हाथपांव फूल गए. क्योंकि वहां मौजूद लोगों में गुस्सा भी था. लोगों ने साफ कह दिया था कि जब तक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी घटनास्थल पर नहीं आएंगे, तब तक वह बच्ची के शव को नहीं उठने देंगे. थानाप्रभारी राजीव सिंह ने यह जानकारी पुलिस अधिकारियों को दे दी फिर जांच में जुट गए. श्रेया उर्फ भूरी की नग्न लाश भद्रकाली मंदिर के समीप नीम के पेड़ के नीचे गन्नू तिवारी के खेत में पड़ी थी. शव के पास मृत बच्ची का पिता करन कुरील बदहवास खड़ा था और उस की पत्नी माया कुरील दहाड़े मार कर रो रही थी. घर की महिलाएं उसे संभालने की कोशिश कर रही थीं.

मासूम का पेट किसी नुकीले व धारवाले औजार से चीरा गया था और पेट के अंदर के अंग दिल, फेफड़े, लीवर, आंतें तथा किडनी गायब थीं. मासूम श्रेया के गुप्तांग पर चोट के निशान थे. माथे पर तिलक लगा था और पैर लाल रंग से रंगे थे. देखने से ऐसा प्रतीत हो रहा था कि नरपिशाचों ने बलि देने से पहले मासूम के साथ दुराचार भी किया था. शव के पास ही मृतका की चप्पल, जींस तथा अन्य कपड़े पड़े थे. नमकीन का एक खाली पैकेट भी वहां पड़ा मिला. थानाप्रभारी सिंह ने वहां पड़ी चीजों को साक्ष्य के तौर पर सुरक्षित कर लिया. उसी दौरान एसएसपी प्रीतिंदर सिंह, एसपी (ग्रामीण) बृजेश कुमार श्रीवास्तव तथा सीओ (घाटमपुर) रवि कुमार सिंह भी वहां आ गए.

पुलिस अधिकारियों ने मौके पर फोरैंसिक टीम तथा कई थानों की फोर्स बुलवा ली. पुलिस अधिकारियों ने उत्तेजित भीड़ को आश्वासन दिया कि जिन्होंने भी इस वीभत्स कांड को अंजाम दिया है, वह जल्द ही पकड़े जाएंगे और उन्हें सख्त से सख्त सजा दिलाई जाएगी. अधिकारियों के इस आश्वासन पर लोग नरम पड़ गए. उस के बाद उन्होंने घटनास्थल का निरीक्षण किया. मासूम बालिका का शव देख कर पुलिस अधिकारी भी सिहर उठे. एसएसपी के बुलावे पर डौग स्क्वायड टीम भी घटनास्थल पर पहुंची. डौग स्क्वायड प्रभारी अवधेश सिंह ने जांच शुरू की. उन्होंने नीम के पेड़ के नीचे पड़ी मासूम के खून के अंश व उस की चप्पल खोजी कुतिया को सुंघाई. उसे सूंघने के बाद यामिनी खेत की पगडंडी से होते हुए गांव की ओर दौड़ पड़ी.

कई जगह रुकने के बाद वह सीधे मृतक बच्ची के घर पहुंची. यहां से बगल के घर से होते हुए गली के सामने बने एक घर पर पहुंची. 4 घरों में जाने के बाद गली के कोने में स्थित एक मंदिर पर जा कर रुक गई. टीम ने पड़ताल की, लेकिन कुछ हाथ नहीं लगा. इस के बाद यामिनी गांव का चक्कर लगा कर घटनास्थल पर वापस वह आ गई. यामिनी हत्यारों तक नहीं पहुंच सकी. निरीक्षण के बाद पुलिस अधिकारियों ने मृतका श्रेया के शव को पोस्टमार्टम के लिए लाला लाजपतराय चिकित्सालय कानपुर भिजवा दिया. मोर्चरी के बाहर भी भारी संख्या में पुलिस बल तैनात कर दिया गया गया. उधर नरबलि की खबर न्यूज चैनलों तथा इंटरनेट मीडिया पर वायरल होते ही कानपुर से ले कर लखनऊ तक सनसनी फैल गई.

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने स्वयं इस दुस्साहसिक वारदात को संज्ञान में लिया. मुख्यमंत्री ने मंडलायुक्त, डीएम व एसएसपी प्रीतिंदर सिंह से वार्ता की और तुरंत आरोपियों के खिलाफ सख्त से सख्त काररवाई करने का आदेश दिया. उन्होंने दुखी परिवार के प्रति गहरी संवेदना व्यक्त की और 5 लाख रुपए आर्थिक मदद देने की घोषणा की. उन्होंने कहा, ‘सरकार इस प्रकरण की फास्टट्रैक कोर्ट में सुनवाई करा कर अपराधियों को जल्द सजा दिलाएगी.’

मुख्यमंत्री ने नाराजगी जताई तो प्रशासन एक पैर पर दौड़ने लगा. आननफानन में 3 डाक्टरों का पैनल गठित किया गया और शव का पोस्टमार्टम कराया गया. मासूम के शव का परीक्षण करते समय पोस्टमार्टम करने वाली टीम के हाथ भी कांप उठे थे. मासूम के पेट के अंदर कोई अंग था ही नहीं. दिल, फेफड़े, लीवर, आंतें, किडनी, स्पलीन और इन अंगों को आपस में जोड़े रखने वाली मेंब्रेन तक गायब थी. मासूम के निजी अंगों में चोट के निशान थे, जिस से दुष्कर्म की पुष्टि हुई थी. मासूम के पेट में कुछ था या नहीं, आंतें गायब होने से इस की पुष्टि नहीं हो सकी. पोस्टमार्टम के बाद श्रेया का शव उस के पिता करन कुरील को सौंप दिया गया.

इधर रात 10 बजे एसडीएम (नर्वल) रिजवाना शाहीद के साथ नवनिर्वाचित विधायक (घाटमपुर क्षेत्र) उपेंद्र पासवान भदरस गांव पहुंचे और मृतका श्रेया के पिता करन कुरील को 5 लाख रुपए का चैक सौंपा. उन्हें 2 बीघा कृषि भूमि का पट्टा दिलाने का भी भरोसा दिया गया. चैक लेते समय करन व उन की पत्नी माया की आंखों में आंसू थे. उन्होंने नर पिशाचों को जल्द गिरफ्तार करने की मांग की. चूंकि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने मामले को वर्क आउट करने में देरी पर नाराजगी जताई थी, इसलिए एसएसपी प्रीतिंदर सिंह व एसपी (ग्रामीण) बृजेश कुमार श्रीवास्तव ने थाना घाटमपुर में डेरा डाल दिया और डीएसपी रवि कुमार सिंह के निर्देशन में खुलासे के लिए पुलिस टीम गठित कर दी.

इस टीम ने भदरस गांव पहुंच कर अनेक लोगों से गहन पूछताछ की. गांव के एक झोलाछाप डाक्टर ने गांव के गोंगा के मझले बेटे अंकुल कुरील पर शक जताया. पड़ोसी परिवार की एक बच्ची ने भी बताया कि शाम को उस ने श्रेया को अंकुल के साथ जाते हुए देखा था. अंकुल कुरील पुलिस की रडार पर आया तो पुलिस टीम ने उसे घर से उठा लिया. उस समय वह ज्यादा नशे में था. उसे थाना घाटमपुर लाया गया. उस से कई घंटे तक पूछताछ की लेकिन अंकुल नहीं टूटा. आधी रात के बाद जब नशा कम हुआ तब उस से सख्ती के साथ दूसरे राउंड की पूछताछ की गई. इस बार वह पुलिस की सख्ती से टूट गया और मासूम श्रेया की हत्या करने का जुर्म कबूल कर लिया.

अंकुल ने जो बताया उस से पुलिस अधिकारियों के रोंगटे खड़े हो गए और मामला ही पलट गया. अंकुल ने बताया कि उस के चाचा परशुराम व चाची सुनयना ने 1500 रुपए में मासूम बच्ची का कलेजा लाने की सुपारी दी थी. उस के बाद उस ने अपने दोस्त वीरन के साथ मिल कर करन की बेटी श्रेया को पटाखा देने के बहाने फुसलाया. उसे वह गांव से एक किलोमीटर दूर भद्रकाली मंदिर के पास ले गए. वहां दोनों ने उस के साथ दुराचार किया फिर अंगौछे से उस का गला घोंट दिया. उस के बाद चाकू से उस का पेट चीर कर अंगों को निकाल लिया गया. उस ने कलेजा पौलीथिन में रख कर चाची सुनयना को ला कर दिया. सुनयना और परशुराम ने कलेजे के 2 टुकड़े किए और कच्चा ही खा गए. ऐसा उन्होंने संतान प्राप्ति के लिए किया था.

इस के बाद वादे के मुताबिक चाची ने 500 रुपए मुझे तथा हजार रुपए वीरन को दिए, फिर हम लोग घर चले गए. 16 नवंबर, 2020 की सुबह 7 बजे पुलिस टीम ने पहले वीरन फिर परशुराम तथा उस की पत्नी सुनयना को गिरफ्तार कर लिया. सुनयना के घर से पुलिस ने हत्या में प्रयुक्त अंगौछा तथा 2 चाकू बरामद कर लिए. चाकू को सुनयना ने भूसे के ढेर में छिपा दिया था. उन तीनों को थाने लाया गया. यहां तीनों की मुलाकात हवालात में बंद अंकुल से हुई तो वे समझ गए कि अब झूठ बोलने से कोई फायदा नहीं है. अत: उन तीनों ने भी पूछताछ में सहज ही श्रेया की हत्या का जुर्म कबूल कर लिया.

पुलिस ने जब परशुराम कुरील से कलेजा खाने की वजह पूछी तो उस के चेहरे पर पश्चाताप की जरा भी झलक नहीं थी. उस ने कहा कि सभी जानते हैं कि किसी बच्ची का कलेजा खाने से निसंतानों के बच्चे हो जाते हैं. वह भी निसंतान था. उस ने बच्चा पाने की चाहत में कलेजा खाया था. चूंकि सभी ने जुर्म कबूल कर लिया था और आलाकत्ल भी बरामद करा दिया था. अत: थानाप्रभारी राजीव सिंह ने मृतका के पिता करन कुरील की तहरीर पर भादंवि की धारा 302/201/120बी के तहत अंकुल, वीरन, परशुराम व सुनयना के विरुद्ध रिपोर्ट दर्ज कर ली और सभी को विधिसम्मत गिरफ्तार कर लिया.

अंकुल व वीरन के खिलाफ दुराचार तथा पोक्सो एक्ट के तहत भी मुकदमा दर्ज किया गया. पुलिस जांच में एक ऐसे दंपति की कहानी प्रकाश में आई, जिस ने अंधविश्वास में पड़ कर संतान पाने की चाह में एक मासूम के कलेजे की सुपारी दी और उसे खा भी लिया. उत्तर प्रदेश के कानपुर शहर से करीब 40 किलोमीटर दूर एक बड़ा कस्बा है घाटमपुर. इस कस्बे से कुछ दूरी पर स्थित है-भदरस गांव. परशुराम कुरील इसी दलित बाहुल्य इस गांव में रहता था. लगभग 10 साल पहले उस की शादी सुनयना के साथ हुई थी. परशुराम के पास कृषि भूमि नाममात्र की थी. वह साबुन का व्यवसाय करता था.

वह गांव कस्बे में फेरी लगा कर साबुन बेचता था. इसी व्यवसाय से वह अपने घर का खर्च चलाता था. भदरस और उस के आसपास के गांव में अंधविश्वास की बेल खूब फलतीफूलती है. जिस का फायदा ढोंगी तांत्रिक उठाते हैं. भदरस गांव भी तांत्रिकों के मकड़जाल में फंसा है. यहां घरघर कोई न कोई तांत्रिक पैठ बनाए हुए है. बीमारी में तांत्रिक अस्पताल नहीं मुर्गे की बलि, पैसा कमाने को मेहनत नहीं, बकरे की बलि, दुश्मन को ठिकाने लगाने के लिए शराब और बकरे की बलि, संतान के लिए नरबलि की सलाह देते हैं. इन तांत्रिकों पर पुलिस भी काररवाई से बचती है. कोई जघन्य कांड होने पर ही पुलिस जागती है.

परशुराम और उस की पत्नी सुनयना भी तांत्रिकों के मकड़जाल में फंसे हुए थे. महीने में एक या दो बार उन के घर तंत्रमंत्र व पूजापाठ करने कोई न कोई तांत्रिक आता रहता था. दरअसल, सुनयना की शादी को 10 वर्ष से अधिक का समय बीत गया था. लेकिन उस की गोद सूनी थी. पहले तो उस ने इलाज पर खूब पैसा खर्च किया. लेकिन जब सफलता नहीं मिली तो वह अंधविश्वास में उलझ गई और तांत्रिकों व मौलवियों के यहां माथा टेकने लगी. तांत्रिक उसे मूर्ख बना कर पैसे ऐंठते. धीरेधीरे 5 साल और बीत गए. लेकिन सुनयना की गोद सूनी की सूनी रही.

सुनयना की जातिबिरादरी के लोग उसे बांझ समझने लगे थे और उस का सामाजिक बहिष्कार करने लगे थे. समाज का कोई भी व्यक्ति परशुराम को सामाजिक काम में नहीं बुलाता था. कोई भी औरत अपने बच्चे को उस की गोद में नहीं देती थी. क्योंकि उसे जादूटोना करने का शक रहता था. परिवार के लोग उसे अपने बच्चे के जन्मदिन, मुंडन आदि में भी नहीं बुलाते थे, जिस से उसे सामाजिक पीड़ा होती थी. सामाजिक अवहेलना से सुनयना टूट जरूर गई थी, लेकिन उस ने हिम्मत नहीं हारी थी. 10 सालों से उस का तांत्रिकों के पास आनाजाना बना हुआ था. एक रोज वह विधनू कस्बा के एक तांत्रिक के पास गई और उसे अपनी पीड़ा बताई.

तांत्रिक ने उसे आश्वासन दिया कि वह अब भी मां बन सकती है, यदि वह उपाय कर सके.

‘‘कौन सा उपाय?’’ सुनयना ने उत्सुकता से पूछा.

‘‘यही कि तुम्हें दीपावली की रात 10 साल से कम उम्र की एक बालिका की पूजापाठ कर बलि देनी होगी. फिर उस का कलेजा निकाल कर पतिपत्नी को आधाआधा खाना होगा. बलि देने तथा कलेजारूपी प्रसाद चखने से मां काली प्रसन्न होंगी और तुम्हें संतान प्राप्ति होगी.’’

‘‘ठीक है बाबा. मैं उपाय करने का प्रयत्न करूंगी. अपने पति से भी रायमशविरा करूंगी.’’ सुनयना ने तांत्रिक से कहा. उन्हीं दिनों परशुराम के हाथ ‘कलकत्ता का काला जादू’ नामक तंत्रमंत्र की एक पुस्तक हाथ लगी. इस किताब में भी संतान प्राप्ति के लिए उपाय लिखा था और मासूम बालिका का कलेजा कच्चा खाने का जिक्र किया गया था. परशुराम ने यह बात पत्नी सुनयना को बताई तो वह बोली, ‘‘विधनू के तांत्रिक ने भी उसे ऐसा ही उपाय करने को कहा था.’’

अब परशुराम और सुनयना के मन में यह अंधविश्वास घर कर गया कि मासूम बालिका का कच्चा कलेजा खाने से उन को संतान हो सकती है. इस पर उन्होंने गंभीरता से सोचना शुरू किया तो उन्हें लगा अंकुल उन की मदद कर सकता है. अंकुल, परशुराम के बड़े भाई गोंगा कुरील का बेटा था. 3 भाइयों में वह मंझला था. वह नशेबाज और निर्दयी था, गंजेड़ी भी. अपने भाईबहनों के साथ मारपीट और हंगामा भी करता रहता था. अपने स्वार्थ के लिए परशुराम ने भतीजे अंकुल को मोहरा बनाया. अब वह उसे घर बुलाने लगा और मुफ्त में शराब पिलाने लगा. गांजा फूंकने को पैसे भी देता. अंकुल जब हां में हां मिलाने लगा तब एक रोज सुनयना ने उस से कहा, ‘‘अंकुल, तुम्हें तो पता ही है कि हमारे पास बच्चा नहीं है. लेकिन तुम चाहो तो मैं मां बन सकती हूं.’’

‘‘वह कैसे चाची?’’

‘‘इस के लिए तुम्हें मेरा एक काम करना होगा. आने वाली दीपावली की रात तुम्हें किसी बच्ची का कलेजा ला कर देना होगा. देखो ‘न’ मत करना. यदि तुम मेरा काम कर दोगे तो हमारे घर में खुशी आ सकती है.’’

‘‘ठीक है चाची, मैं तुम्हारे लिए यह काम कर दूंगा.’’

अंकुल राजी हो गया तो उन लोगों ने मासूम बच्ची पर मंथन किया. मंथन करतेकरते उन के सामने भूरी का चेहरा आ गया. श्रेया उर्फ भूरी करन कुरील की बेटी थी. उस की उम्र 7 साल थी. करन परशुराम के घर के समीप रहता था. उस की 3 बेटियों में श्रेया दूसरे नंबर की थी. वह कक्षा 2 में पढ़ती थी. करन किसान था. उसी से जीविका चलाता था. वीरन कुरील अंकुल का दोस्त था. पारिवारिक रिश्ते में वह उस का भाई था. वीरन भी नशेड़ी था, सो उस की अंकुल से खूब पटती थी. अंकुल ने वीरन को सारी बात बताई और अपने साथ मिला लिया था. अब अंकुल के साथ वीरन भी परशुराम के घर जाने लगा और नशेबाजी करने लगा.

14 नवंबर, 2020 को दीपावली थी. अंकुल और वीरन शाम 5 बजे परशुराम के घर पहुंच गए. परशुराम ने दोनों को खूब शराब पिलाई. सुनयना ने दोनों को कलेजा लाने की एवज में 1500 रुपए देने का भरोसा दिया. इस के बाद उस ने अंकुल व वीरन को गोश्त काटने वाले 2 चाकू दिए. इन चाकुओं को पत्थर पर घिस कर दोनों ने धार बनाई. सुनयना ने लाल रंग से भरी एक डब्बी अंकुल को दी और कुछ आवश्यक निर्देश दिए. शाम 6 बजे अंकुल और वीरन, परशुराम के घर से निकले. तब तक अंधेरा घिर चुका था. वे दोनों जब करन के घर के सामने आए तो उन की निगाह मासूम श्रेया पर पड़ी. वह नए कपड़े पहने पेड़ के नीचे एक बच्ची के साथ खेल रही थी. अंकुल ने भूरी को बुलाया और पटाखों का लालच दिया.

भूरी पर मौत का साया मंडरा रहा था. वह मान गई और अंकुल के साथ चल दी. दोनों भूरी को ले कर गांव के बाहर आए और फिर भद्रकाली मंदिर की ओर चल पड़े. श्रेया को आशंका हुई तो उस ने पूछा, ‘‘भैया, कहां ले जा रहे हो?’’ यह सुनते ही अंकुल ने उस का मुंह दबा दिया और वीरन ने चाकू चुभो कर उसे डराया, जिस से उस की घिग्घी बंध गई. फिर वे दोनों भूरी को भद्रकाली मंदिर के पास ले गए और नीम के पेड़ के नीचे पटक दिया. उन दोनों ने श्रेया उर्फ भूरी के शरीर से कपड़े अलग किए तो उन के अंदर का शैतान जाग उठा. उन्होंने बारीबारी से उस के साथ दुराचार किया. इस बीच मासूम चीखी तो उन्होंने अंगौछे से उस का गला कस दिया, जिस से उस की मौत हो गई.

इस के बाद सुनयना के निर्देशानुसार अंकुल ने श्रेया के पैरों में लाल रंग लगाया तथा माथे पर टीका किया. फिर चाकू से उस का पेट चीर डाला. अंदर से अंग काट कर निकाल लिए और कलेजा पौलीथिन में रख कर वहां से निकल लिए. रास्ते में पानी भरे एक गड्ढे में बाकी अंग फेंक दिए और कलेजा ला कर परशुराम को दे दिया. परशुराम ने कलेजे को शराब से धोया फिर चाकू से उस के 2 टुकड़े किए. उस ने एक टुकड़ा स्वयं खा लिया तथा दूसरा टुकड़ा पत्नी सुनयना को खिला दिया. सुनयना ने खुश हो कर 500 रुपए अंकुल को और 1000 रुपए वीरन को दिए. उस के बाद वे दोनों अपनेअपने घर चले गए.

इधर दीया जलाते समय करन को श्रेया नहीं दिखी तो उस ने खोज शुरू की. करन व उस की पत्नी माया रात भर बेटी की खोज करते रहे. लेकिन उस का कुछ भी पता नहीं चला. सुबह गांव के कुछ लोगों ने उसे बेटी की हत्या की जानकारी दी. तब वह वहां पहुंचा. इसी बीच किसी ने घटना की जानकारी थाना घाटमपुर पुलिस को दे दी थी. 17 नवंबर, 2020 को पुलिस ने अभियुक्त अंकुल, वीरन, परशुराम व सुनयना को कानपुर कोर्ट में पेश किया, जहां से उन चारों को जिला जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित