अस्पताल में कैंसर की दवा के नाम पर बेच रहे थे मौत

दिल्ली के रोहिणी क्षेत्र में स्थित राजीव गांधी कैंसर इंस्टीट्यूट एंड रिसर्च सेंटर में हर दिन की तरह उस दिन भी परचा बनवाने वालों की काफी  भीड़ थी. इन में अधिकांश कैंसर मरीज के तीमारदार ही थे, इन के मरीज अंदर हाल में लगी बेंचों पर लेटे या बैठे हुए थे.

इस अस्पताल में कैंसर का इलाज कराने के लिए दिल्ली एनसीआर के अलावा हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र और अन्य राज्यों के साथसाथ नेपाल, अफ्रीका तक से मरीज आते हैं. इसलिए यह अस्पताल काफी प्रसिद्ध हो गया है.

इस भीड़ में सुधा भी थी. जवानी उस पर अभी बरकरार थी. उस की शादी हुए मुश्किल से 3 साल ही हुए थे. पति सूरज हैंडसम एक युवक था, एक प्राइवेट कंपनी में क्लर्क की नौकरी करता था. तनख्वाह 12 हजार रुपए थी. पिता नहीं थे, मां थी.

पिता ने अपनी प्राइवेट नौकरी से दिल्ली के अमन विहार में 50 गज जगह खरीद कर अपना मकान बना लिया था. सुधा, उस का पति सूरज और सास दयावती इन 3 लोगों के लिए यह मकान काफी था. सास घर में रह कर सिलाई वगैरह कर के इतना कमा लेती थी कि घर का खर्च पूरा हो जाता था.

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सूरज की तनख्वाह से ऊपरी खर्च चलने के बाद थोड़ी बहुत बचत हो जाती थी, जिसे वह बैंक में जोड़ता था. एक प्रकार से घर में सुधा को किसी प्रकार की दिक्कत नहीं थी. हंसीखुशी से यह परिवार अपनी जिंदगी बसर कर रहा था.

अचानक एक दिन सूरज के पेट में भयंकर दर्द उठा. उसे सुधा एक प्राइवेट नर्सिंग होम में ले कर गई. दर्द का इंजेक्शन देने के बाद डाक्टर ने सुधा को पति का अल्ट्रासाउंड करवाने की राय दी.

अल्ट्रासाउंड हुआ तो मालूम चला कि सूरज के पेट में एक गांठ है. गांठ किस चीज की है, इस की जांच हुई तो डाक्टर ने सूरज के पेट में कैंसर की गांठ होने की पुष्टि कर दी. सूरज सन्न रह गया. सुधा घबरा कर रोने लगी. डाक्टर ने उसे हिम्मत रखने और राजीव गांधी कैंसर संस्थान में सूरज का इलाज करवाने की सलाह दी. बगैर समय गंवाए सुधा सूरज को ले कर कैंसर संस्थान में लाई थी.

वहां के डाक्टरों ने सूरज की जांच करवाने के बाद इलाज शुरू कर दिया था. सूरज की गांठ की कीमोथेरेपी के लिए जो इंजेक्शन लिखा गया था, वह बहुत महंगा था. इलाज के लिए एक इंजेक्शन से काम नहीं चलने वाला था. सुधा ने सूरज के बैंक अकाउंट और अपने अकाउंट को खाली करने के बाद अपने घर वालों से रुपया लेना शुरू किया. धीरेधीरे वह कर्ज में डूबती चली गई.

फिर कोई कब तक रुपया उधार देता. परिजनों ने हाथ खींचने शुरू कर दिए तो सुधा और उस की सास ने मकान गिरवी रख दिया. कब्जा प्रौपर्टी डीलर को दे कर वे किराए के मकान में आ गए. सूरज का काम पर जाना बंद हुआ तो उसे कंपनी ने भी नौकरी से निकाल दिया. सास जैसे तैसे कपड़े सिलाई कर के खर्च चला रही थीं.

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सुधा को इस बात का संतोष था कि कैंसर के इलाज से सूरज धीरेधीरे ठीक हो रहा था, लेकिन अभी इलाज बंद नहीं करना था. सुधा परेशान थी कि सूरज का इलाज हो तो कैसे हो. पास का रुपया खत्म हो गया था, 2 लाख का कर्ज हो गया था और ससुर की निशानी मकान गिरवी पड़ा था. अब एक ही आसरा बचा था कि वह अपने गहने बेच दे. सुधा ने गहने भी बेच दिए और नए उत्साह से अपने पति का इलाज शुरू किया.

इस तरह फंसाते थे शिकार

एक दिन वह हौस्पिटल के हाल में पति के पास बैठी खाना खा रही थी, तभी एक युवक उस के सामने वाली बेंच पर आ कर बैठ गया. कुछ देर वह दोनों को देखता रहा, फिर उस ने बात शुरू की, ”यह भाई साहब शायद यहां कैंसर का इलाज करा रहे हैं?’’

”जी हां,’’ सुधा ने उत्तर दिया, ”6 महीने से इन का यहां इलाज चल रहा है.’’

”6 महीना… बहुत रुपया खर्च हो गया होगा बहन?’’ युवक ने हैरानी जताते हुए कहा.

”क्या करूं, इलाज भी जरूरी है. जैसे तैसे इलाज करवा रही हूं, बहुत परेशान हो गए हैं हम.’’

”कैंसर की दवा हैं भी तो बहुत महंगी. मेरा भी इलाज चल रहा है कैंसर का, लेकिन मुझे यह राहत है कि 3 लाख वाला इंजेक्शन मुझे डेढ़ लाख रुपए में मिल जाता है.’’

”अरे…’’ सुधा की आंखें हैरत से फैल गईं, ”यह कैसे संभव है भाई साहब, मैं ने तो हर बार 3 लाख रुपया ही दिया है.’’

वह युवक आगे की ओर झुका, इधरउधर देख कर उस ने जैसे तसल्ली कर ली कि उस की बात कोई तीसरा नहीं सुनेगा. फिर वह धीरे से बोला, ”मैं सच्चाई बता रहा हूं. आप को अगर इंजेक्शन लेना है तो मैं डेढ़ लाख में ही दिलवा दूंगा, लेकिन यह बात आप के और मेरे बीच ही रहनी चाहिए.’’

”ठीक है भाई साहब, मैं किसी को नहीं बताऊंगी, बोलो कब दिलवा रहे हो मुझे इंजेक्शन?’’

”पहले यह तो बताओ, कौन सा इंजेक्शन लेना है. डाक्टर ने भाई साहब की कीमोथेरेपी के लिए इंजेक्शन लिखा ही होगा.’’

सुधा ने डाक्टर द्वारा लिखी गई परची बटुए में से निकाल कर उस युवक को दिखाई. उस पर क्कश्वक्रछ्वश्वञ्ज्र लिखा था, जो विदेश में निर्मित इंजेक्शन था. इस की कीमत लगभग 3 लाख रुपए थी.

”मैं आप को यह इंजेक्शन डेढ़ लाख में दिलवा देता हूं, आप रुपए का इंतजाम कर के कल मुझे यहां मिलें. मेरा नाम नीरज है, यह मेरा फोन नंबर रख लीजिए, मैं इधरउधर हुआ तो आप फोन कर लेना.’’

सुधा ने उस से फोन नंबर ले लिया.

”मैं कल ही आप को फोन करूंगी भाई साहब, इस से मेरे लिए बहुत हेल्प हो जाएगी.’’

”कोई बात नहीं, इंसान ही इंसान के काम आता है.’’ वह युवक बोला और उठ कर चला गया.

सुधा और सूरज इस बात से खुश थे कि अब उन्हें सस्ते में कीमोथेरेपी का इंजेक्शन मिल जाएगा. वे नहीं जानते थे कि वह युवक नकली दवा का सौदागर है, जिस के चंगुल में फंस कर सुधा अपने पति की मौत सुनिश्चित कर रही है.

सुधा दूसरे दिन घर से डेढ़ लाख रुपए ले कर आ गई. नीरज उसे हाल में नजर नहीं आया तो उस ने पति से उस युवक का नंबर मिलाने को कहा. सूरज ने अपने मोबाइल में बीते कल नीरज द्वारा दिया गया नंबर सेव कर लिया था.

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सूरज ने उस का नंबर मिला कर घंटी बजने पर मोबाइल पत्नी को दे दिया. दूसरी ओर से कुछ ही सेकेंड बाद उस युवक की आवाज सुनाई दी, ”मैं नीरज बोल रहा हूं…आप?’’

”मैं सुधा हूं भाई साहब, कल आप से दवा लेने की बात राजीव गांधी संस्थान में हुई थी न, मैं उस के लिए रुपए ले कर आ गई हूं.’’

”ओह! सुधाजी, मैं पहचान गया. आप इस वक्त कहां हैं? मैं राजीव गांधी संस्थान के हाल में हूं. आप बैठिए, मैं 10 मिनट में वहां आ रहा हूं.’’ दूसरी ओर से कहा गया.

सुधा अपने पति के साथ हाल की बेंच पर बैठ गई. लगभग 7  मिनट में ही नीरज एक अन्य युवक के साथ वहां आ गया. नमस्कार के आदानप्रदान के बाद उस युवक ने एक इंजेक्शन साथ आए व्यक्ति से ले कर सुधा को दे दिया. सुधा ने पर्स में रखे डेढ़ लाख रुपए नीरज को दे कर कहा, ”आप रुपए गिन लीजिए.’’

साथ आए व्यक्ति ने मुसकरा कर कहा, ”आप गिन कर लाई हैं तो मुझे गिनने की जरूरत नहीं हैं. नीरज के कहने पर मैं 3 लाख की दवा आप को डेढ़ लाख में दे रहा हूं. हां, यह इंजेक्शन खाली हो जाने पर आप मुझे शीशी वापस देंगी तो मैं 5 हजार रुपए और कम कर दूंगा.’’

”यह तो फायदे वाली बात है,’’ सुधा मुसकराई, ”आप को मैं यह शीशी वापस कर दूंगी. भला यह मेरे किस काम की?’’

इस के बाद उन के रास्ते अलग हो गए.

पुलिस को ऐसे मिली जानकारी

सुधा ने कई बार नीरज की मदद से कीमोथेरेपी की यह दवा खरीदी. डाक्टर यही दवा का इंजेक्शन कीमोथेरेपी के वक्त सूरज को देते रहे थे. मगर उन्हें हैरानी थी कि सूरज की तबियत ठीक होने के बजाय अब बिगडऩे लगी थी.

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   आरोपी नीरज चौहान

‘क्कद्गह्म्द्भद्गह्लड्ड’ इंजेक्शन स्पेन की एक दवा कंपनी द्वारा तैयार किया जाता है, इस की कीमत ज्यादा जरूर थी, लेकिन इस का परिणाम बेहतरीन था. सूरज का कैंसर फैलना नहीं चाहिए था, किंतु इंजेक्शन लगने के बावजूद कैंसर की जड़ें फैलने लगी थीं. डाक्टर के अच्छे इलाज के बावजूद सूरज 8 महीनों में ही मौत के मुंह में चला गया.

सुधा की जिंदगी पति बिना नीरस और बेजान हो गई. उस का रोरो कर बुरा हाल था. उस का सब कुछ लुट गया था. उधर नीरज उस व्यक्ति के साथ इसी विश्वविख्यात राजीव गांधी कैंसर संस्थान की कैंटीन में बैठा चाय की चुस्की ले रहा था.

”तूने सुना अभिनव, सूरज नाम के उस मरीज की डैथ हो गई है, जिस की पत्नी सुधा को मैं ने परजेटा का इंजेक्शन डेढ़ लाख में कई बार बेचा था.’’ नीरज ने चाय का लंबा घूंट भर कर बताया.

अभिनव मुसकराया, ”मरने दे यार, हम ने 9 लाख रुपया तो कमा लिया इन 6 महीने में.’’

”हां, यह बात तो है.’’ नीरज ने सिर हिलाया, ”लेकिन पता नहीं मुझे कभीकभी क्यों ऐसे मरीजों से सहानुभूति होने लगती है जो हमारी दवा नहीं खाता तो बच सकता था.’’

”इमोशनल मत हो भाई, जिस की जितनी सांसें लिखी हैं, वह इस धरती पर उतनी ही सांसें लेगा. इस में हमारी दवा का क्या दोष?’’

”फिर भी…’’

नीरज की बात अभिनव ने काट दी, ”चल छोड़ यह टौपिक. आ, परवेज को रिसीव करते हैं, वह माल ले कर आने वाला है.’’

नीरज कप में शेष बची चाय एक घूंट में पी गया और खड़ा हो गया. दोनों कैंटीन से बाहर निकल गए. दोनों ने नहीं देखा, उन की मेज के पास वाली दूसरी मेज के सामने एक पतला सा व्यक्ति बैठा धीरेधीरे चाय की चुस्कियां ले रहा था और कान लगा कर उन की बातें सुन रहा था. दोनों के जाने के बाद वह व्यक्ति जल्दी से अपनी चाय खत्म कर के बाहर लपका.

उस ने इध रउधर नजरें दौड़ाईं, लेकिन उसे नीरज और अभिनव नाम के वे दोनों व्यक्ति बाहर नजर नहीं आए. कुछ सोच कर उस व्यक्ति ने जेब से मोबाइल निकाल कर किसी का नंबर निकाला और धीरेधीरे बात करने लगा.

”गुल्लू, तुम उन दोनों के पीछे लग जाओ, उन का पता ठिकाना मालूम करो. देखो, ये दोनों हाथ से निकलने नहीं चाहिए.’’

”ठीक है साहब, मैं तलाश करता हूं दोनों को.’’ गुल्लू ने कहा और काल डिसकनेक्ट कर वह हाल की तरफ बढ़ गया.

दरअसल, गुल्लू पुलिस का मुखबिर था. उस ने उस समय दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच के डीसीपी अमित गोयल से बात की थी. यह बात 9 मार्च, 2024 की है.

क्राइम ब्रांच की स्पैशल सीपी शालिनी सिंह को डीसीपी अमित गोयल (क्राइम ब्रांच) की ओर से फोन कर के बताया गया कि कैंसर की नकली दवा बनाने वाला एक गैंग दिल्ली और एनसीआर में सक्रिय है. इस के पीछे मेरा एक मुखबिर लगा हुआ है, जो करीब महीना भर से इस गैंग की गतिविधियों पर बारीक नजर रखे हुए है. यदि आप कहें तो रेड डाली जाए.

”अगर ऐसी जानकारी है तो आप क्राइम ब्रांच के कुछ खास इंसपेक्टर्स को इन की टोह में लगा कर पक्की जानकारी जुटाइए, ताकि जब इस गैंग पर हाथ डाला जाए तो हमें नाकामयाबी का मुंह न देखना पड़े.’’ सीपी (स्पैशल) क्राइम ब्रांच शालिनी सिंह ने अपना सुझाव दिया.

”ठीक है, पहले मैं इस गैंग की सही स्थिति मालूम कर लेता हूं. बहुत जल्द आप को सूचना दूंगा.’’ डीसीपी अमित गोयल ने कहा.

उन्होंने क्राइम ब्रांच के तेजतर्रार 3-4 इंसपेक्टर्स अपने मुखबिर गुल्लू के साथ लगा दिए. इस नकली दवा बनाने वाले गिरोह की टोह लेने और असलियत मालूम करने के लिए.

12 आरोपी चढ़े पुलिस के हत्थे

एक सप्ताह के अंदर ही उन्हें अपने खास इंसपेक्टर्स की ओर से कैंसर की नकली दवा बनाने वाले गैंग की पूरी जानकारी और उन के पते ठिकाने मालूम हो गए. उन्होंने यह जानकारी स्पैशल सीपी शालिनी सिंह को दे दी.

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शालिनी सिंह ने क्राइम ब्रांच की एक टीम का गठन कर दिया. इन में इंसपेक्टर कमल, पवन, महिपाल, एसआई आशीष, गुलाब, अंकित, गौरव, यतेंद्र मलिक, राकेश और समय सिंह. एएसआई राकेश, जफरुद्ïदीन, शैलेंद्र के अलावा हैडकांस्टेबल नवीन, रामकेश, वरुण, शक्ति, सुरेंद्र, सुनील, ललित, राजबीर और कांस्टेबल नवीन को शामिल किया गया. इस टीम को 4 भागों में बांट दिया गया. पूरी टीम का नेतृत्व एसीपी सतेंद्र मोहन तथा एसीपी रमेशचंद्र लांबा को सौंपा गया.

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4 भाग में बांटी गई इस क्राइम ब्रांच टीम को एक साथ एक ही समय में 4 अलगअलग जगहों पर छापे डालने थे. शालिनी सिंह चाहती थीं कि इस गैंग के किसी भी व्यक्ति को भाग निकलने का मौका न मिले.

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क्राइम ब्रांच की टीम ने 11 मार्च, 2024 को एक साथ दिल्ली के यमुना विहार, मोती नगर का डीएलएफ कैपिटल ग्रीन, गुरुग्राम के साउथ सिटी में एक साथ छापे मारे तो उन्हें भारी सफलता मिली. इन जगहों पर छापेमारी में कैंसर की नकली दवा बनाने वाले गैंग के 7 लोग पकड़े गए. इन के नाम इस प्रकार हैं— कोमल तिवारी, अभिनव कोहली, विफिल जैन, तुषार चौहान, सूरज शत, परवेज, नीरज चौहान.

मूलरूप से बागपत का रहने वाला नीरज चौहान गुरुग्राम के एक प्रतिष्ठित अस्पताल में मैडिकल ट्रांसक्रिप्शन मैनेजर था. 2022 में वह इंडिया मार्ट के जरिए विफिल जैन के संपर्क में आया. विफिल जैन ने उसे एंटी कैंसर के नकली इंजेक्शन के जरिए मोटी रकम कमाने का आइडिया बताया. नीरज को उस का आइडिया पसंद आया और फिर नीरज ने गैंग बनाना शुरू कर दिया.

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      इंजेक्शन की खाली शीशियां

विफिल जैन भी बागपत का रहने वाला था, लेकिन उस का बचपन दिल्ली के सीलमपुर में बीता. हाईस्कूल पास विफिल सीलमपुर के ही एक मैडिकल स्टोर पर काम करने लगा था. बाद में वह लोकल मार्केट में दवाएं सप्लाई करने लगा. उसी दौरान 2-3 साल पहले उस के दिमाग में कैंसर के नकली इंजेक्शन बनाने का आइडिया आया. फिर उस ने कैंसर अस्पतालों से इंजेक्शन की खाली शीशियां जुटा कर धंधा शुरू कर दिया.

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       आरोपी विफिल जैन

कोमल तिवारी तथा अभिनव कोहली दिल्ली के रोहिणी में स्थित राजीव गांधी कैंसर संस्थान एवं नुसंधान केंद्र में काम करते थे. दोनों कीमोथेरेपी विभाग में नियुक्त थे. कोमल तिवारी बुध विहार (दिल्ली) का रहने वाला है. उस ने बी.फार्मा किया हुआ है. सन 2013 में उस ने राजीव गांधी कैंसर संस्थान व अनुसंधान केंद्र में जौइन किया था.

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        आरोपी कोमल तिवारी

कोमल तिवारी यहां कीमोथेरेपी विभाग का इंचार्ज था, जबकि अभिनव मरीजों को कीमोथेरेपी देने वाली ग्लूकोज में कीमोथेरेपी की दवा मिलाने का काम करता था. नीरज चौहान पहले धर्मशिला, पारस, बीएलके जैसे नामी कैंसर अस्पतालों में काम कर चुका है. इस गैंग का सरगना वही था. इस का काम नकली दवा के इंजेक्शन बनाने के बाद इन्हें बेचने का था.

ये सभी किसी न किसी अस्पताल से जुड़े हुए होने के कारण एकदूसरे के संपर्क में आ गए थे. यहीं से इन के मन में कैंसर की नकली दवा बनाने का आइडिया पनपा.

चूंकि अभिनव व कोमल तिवारी सीधे कैंसर अस्पताल से जुड़े हुए थे, अत: उन्हें मालूम था कि कैंसर जैसे जानलेवा रोग से लड़ रहे मरीज को बचाने के लिए उन के परिजन हर कीमत देने को तैयार रहते हैं.

चूंकि कैंसर की दवाएं बहुत महंगी होती हैं. इस के द्वारा सीधेसीधे कोरा मुनाफा कमाने के लालच में अभिनव व कोमल तिवारी ने कीमोथेरेपी में दी जाने वाले इंजेक्शन की खाली शीशी बेचने का धंधा शुरू कर दिया. दोनों इसी कीमोथेरेपी विभाग से जुड़े थे, इसलिए इन्हें कीमोथेरेपी में इस्तेमाल इंजेक्शन की खाली शीशियां आसानी से उपलब्ध हो जाती थीं.

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        आरोपी  परवेज

वे यह खाली शीशियां 5,000 रुपए प्रत्येक के हिसाब से परवेज को बेच देते थे. परवेज ये शीशियां नीरज चौहान तक पहुंचाने का काम करता था. नीरज इस गैंग का मुखिया था.

नामी अस्पतालों के कर्मचारी थे गैंग में

वह इन नामी देशीविदेशी इंजेक्शन की खाली शीशियों में 100 रुपए कीमत का एंटी फंगल भरते थे, जो एक तरह का पानी जैसा होता है. इस से मरीज को कोई लाभ नहीं होता और न ही कोई नुकसान होता है. हां, मरीज इस नकली दवा को असली समझ कर इस्तेमाल करता रहता है.

रोग ठीक कैसे होगा, धीरेधीरे कैंसर फैलता है और मरीज की मौत हो जाती है. वह इन नकली दवाओं पर लाखों रुपए खर्च कर के भी बच नहीं पाता और ये लोभी लोग उस मरीज की जिंदगी से खिलवाड़ कर के अपनी तिजोरी भर रहे थे. कीमोथेरेपी दवा चारों स्टेज के कैंसर मरीज को दी जाती है.

नीरज गुरुग्राम में रहता था, बाकी 6 लोग दिल्ली के हैं. मोती नगर के डीएलएफ कैपिटल ग्रीन की 11वीं मंजिल पर बने ईडब्ल्यूएस फ्लैट से पुलिस को 140 नकली दवा की शीशियां मिलीं. यहां से 89 लाख रुपए कैश, 18 हजार अमरीकी डालर, दवाओं की शीशियों की कैप को सील करने वाली 3 मशीनें, एक हीट गन मशीन, 197 खाली शीशियां व पैकेजिंग के अन्य सामान भी जब्त किए गए. भरी हुई शीशियों की कीमत 1 करोड़ 75 लाख रुपए आंकी गई.

गुरुग्राम के ठिकाने से पुलिस ने 137 भरी हुई शीशियां, 519 खाली शीशियां और 864 खाली पैकेजिंग बौक्स बरामद किए. भरी शीशियों की कीमत 2 करोड़ 15 लाख रुपए के करीब है.

ये शीशियां भारतीय ब्रांड और 2 विदेशी ब्रांड की थीं. इन में ओपडाटा, कीटूडा, डेक्सट्रोज, फ्लूकोना जोल, केटरुडा, एनफिंजी, परजेटा, डारजालेक्स और एरबिटेक्ल नामी दवा के लेबल लगे थे.

पुलिस ने इन गिरफ्तार किए गए 7 आरोपियों से विस्तार से पूछताछ करने के बाद कोर्ट में पेश कर के रिमांड पर लिया गया तो इन की निशानदेही पर एक अन्य दवा विक्रेता बिहार के मुजफ्फरपुर से पकड़ा गया. इस का नाम आदित्य कृष्णा है.

32 साल के आदित्य ने बीटेक कर रखा है. मुजफ्फरपुर में यह कैमिस्ट शौप चलाता था. शौप पर यह   बेचता था. नीरज से यह नकली कैंसर दवा खरीद कर पुणे और एनसीआर में वह बेचता था.

यह गैंग दिल्ली एनसीआर के अलावा हरियाणा, यूपी, बिहार में भी दवा सप्लाई करता था. अफ्रीकी देशों, नेपाल, व अन्य पड़ोस से आने वाले देशों के कैंसर पीडि़तों को झांसे में ले कर ये लोग कैंसर की नकली दवाएं बेचते थे. उन्हें यह कह कर फांसा जाता था कि कैमिस्ट स्टोर से बहुत सस्ती दवा वह देते हैं.

इन्हें यह कह कर बरगलाया जाता था कि वह मरीज की मदद करने के लिए सस्ती दवा बेचते हैं, एक प्रकार से वह पुण्य कमा रहे हैं. जबकि दौलत के लालची ये नकली दवा के सौदागर उस कैंसर मरीज की मौत का सामान बेचते थे.

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       इंचार्ज रोहित सिंह बिष्ट

इस के अलावा पुलिस ने द्वारका स्थित वेंकटेश्वर अस्पताल के कीमोथेरेपी इंचार्ज रोहित सिंह बिष्ट को भी गिरफ्तार किया. यह पैसों के लालच में इंजेक्शन की खाली शीशियां नीरज को सप्लाई करता था.

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पुलिस के सामने इस गैंग से जुड़े नएनए  लोगों के नाम सामने आते जा रहे थे. आरोपियों की निशानदेही पर पुलिस ने गुरुग्राम के सेक्टर-44 में स्थित फोर्टिस अस्पताल में कार्यरत जितेंद्र, गुरुग्राम के ही मिलेनियम अस्पताल के नर्सिंग स्टाफ साजिद और गुरुग्राम के एक नामी अस्पताल में कार्यरत सीनियर स्टाफ नर्स माजिद हसन को भी गिरफ्तार करने में सफलता हासिल की.

ये सभी लोग इस गैंग से जुड़े थे. पुलिस ने इन सभी के बैंक खातों के कुल एक करोड़ 20 लाख 79 हजार रुपए फ्रीज करा दिए हैं.

सभी आरोपियों से विस्तार से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने उन्हें कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. कथा में कुछ नाम परिवर्तित हैं.

22 साल से लापता बेटा जब संन्यासी बन कर लौटा

किसी चमत्कार के इंतजार में सालों से दिन गुजार रहे रतिपाल और घर वालों को 22 साल बाद साधु वेश में अपना खोया बेटा पिंकू मिला तो सब की आंखें छलक उठीं थीं. बेटा मिलने की खुशी में रतिपाल ने दिल्ली से अपनी पत्नी माया देवी को भी बुला लिया. खोए बेटे पिंकू को साधु वेश में देखते ही मां भावुक हो गई. उस के आंसू थमने का नाम ही नहीं ले रहे थे.

दरअसल, संन्यासी की पारंपरिक पोशाक में आए एक युवक ने सारंगी बजा कर भिक्षा देने की गुहार लगा कर जैसे ही एक रुदन गीत गाना शुरू किया तो उसे सुन कर बड़ी संख्या में गांववाले एकत्र हो गए. जोगी ने अपने आप को गांव के ही रहने वाले रतिपाल सिंह का गायब हुआ बेटा बताया. रुदन गीत सुन कर गांव की महिलाओं और पुरुषों के साथ ही रतिपाल के घर वालों की आंखों से आंसू झरने लगे.

दरअसल, 22 साल से लापता अरुण उर्फ पिंकू के लौटने की खुशी में पूरा गांव रो पड़ा. घर वालों के आंसू तो थमने का नाम ही नहीं ले रहे थे. यह दृश्य उत्तर प्रदेश के अमेठी जिले के थाना जायज के गांव खरौली का था. तारीख थी 28 जनवरी, 2024.

Jogi or Sathi ke Ane Par Ekatra Ganv Wale

बताते चलें कि साधु के वेश में अपने एक साथी के साथ आया वह युवक गांव के ही रतिपाल सिंह का बेटा अरुण उर्फ पिंकू था, जो 22 साल से अधिक समय तक लापता रहने के बाद अब संन्यासी के वेश में उन के सामने था. जब पिंकू लापता हुआ, उस समय वह 11 साल का था. अब पिंकू जोगी बन कर अपने गांव में मां से भिक्षा लेने पहुंचा था. इतने लंबे समय बाद अपने खोए बेटे को संन्यासी के रूप में सामने देख पिता व अन्य परिजन भावुक हो गए.

मां माया देवी, पिता रतिपाल के अलावा पिंकू की बुआओं उर्मिला व नीलम ने भी साधु वेश में आए पिंकू से गृहस्थ जीवन में लौटने की मिन्नतें कीं. लेकिन युवक की जुबान पर एक ही रट थी, ‘आप से भिक्षा लिए बिना मेरी दीक्षा पूरी नहीं होगी. गुरु का आदेश है कि मां के हाथ से भिक्षा पाने के बाद ही योग सफल होगा.’ उस ने कहा, ‘मां, यदि आप भिक्षा नहीं दोगी तो मैं दरवाजे की मिट्टी को ही भिक्षा के रूप में स्वीकार कर चला जाऊंगा.’

अब बेटा नहीं संन्यासी हूं मैं

साधु ने कहा, ”माई, मैं अब आप का बेटा पिंकू नहीं, बल्कि संन्यासी हूं. मैं भिक्षा ले कर वापस झारखंड स्थित पारसनाथ मठ में दीक्षा पूरी करने के लिए चला जाऊंगा.’’

साधु की बातें सुन कर रतिपाल और उन की पत्नी का कलेजा बैठ गया. उन्होंने उसे मनाने के साथ ही कहीं भी जाने से मना किया.

साधु खरौली गांव में 22 जनवरी, 2024 से ही आनेजाने लगा था. वह साथी के साथ आधे गांव में चक्कर लगा कर सारंगी व ढपली पर भजन गाता था. इस के बाद शाम होते ही वापस चला जाता.

रतिपाल मूलरूप से गांव खरौली के रहने वाले हैं. गांव में उन का छोटा भाई जसकरन सिंह, भतीजे व अन्य लोग रहते हैं. गांव में उन की खेती की जमीन भी है. 11वीं पास करने के बाद उन की शादी हो गई थी. साल 1986 में वह दिल्ली आ गए. यहां उन के एक बेटा हुआ, जिस का नाम उन्होंने अरुण रखा. घर में सभी प्यार से उसे पिंकू के नाम से पुकारते थे.

Arun Pankoo Birthday Par Kek Khata Huaa

                                      पिंकू के बचपन की तस्वीर

जब पिंकू 5-6 साल का था, उस की मां भानुमति बीमार हो गई. 3 साल तक उन का दिल्ली में इलाज चलता रहा, लेकिन उन की मृत्यु हो गई. रतिपाल ने बच्चे की परवरिश व अपनी आगे की जिंदगी के लिए वर्ष 1998 में माया देवी से दूसरी शादी कर ली. सब कुछ ठीक चल रहा था.

डांटने से गुस्से में घर से चला गया था पिंकू

कंचे खेलने पर मां की डांट से गुस्से में आ कर साल 2002 में 11 साल की उम्र में पिंकू अपने घर से कहीं चला गया. उस समय वह दिल्ली के शहादतपुर स्थित स्कूल में 5वीं कक्षा में पढ़ता था. घर वालों ने पिंकू को काफी तलाश किया, लेकिन उस का कोई सुराग नहीं मिलने पर पिता रतिपाल ने दिल्ली के थाना खजूरी खास में उस की गुमशुदगी दर्ज कराई.

समय गुजरता गया लेकिन लापता बेटा नहीं मिला. रतिपाल हफ्ते दस दिन में थाने जा कर पुलिस से अपने खोए बेटे के बारे में जानकारी लेते, लेकिन उन्हें हर बार एक ही जबाव मिलता कि तलाशने पर भी आप का बच्चा नहीं मिल रहा है.

रतिपाल ने अपने स्तर से भी बच्चे को तलाश किया, लेकिन उस का कोई सुराग नहीं मिला. अपने इकलौते बेटे के इस तरह घर से चले जाने पर मातापिता ने कलेजे पर पत्थर रख कर सब्र कर लिया.

27 जनवरी, 2024 को खरौली में रह रहे भतीजे दीपक ने दिल्ली रतिपाल के पास फोन किया, ”चाचा, साधु भेष में एक युवक 22 जनवरी से गांव में आया हुआ है, जो अपने को आप का खोया हुआ बेटा अरुण उर्फ पिंकू बता रहा है. जब उस से पिंकू की कोई पहचान बताने को कहा तो उस ने कहा कि पिता जब खुद देख कर बताएंगे, तभी पहचान सभी गांव वालों को दिखाऊंगा. चाचा, आप गांव आ कर देख लो. साधु कल आने की बात कह कर रायबरेली से लगभग 30 किलोमीटर दूर बछगांव स्टेशन जाने की बात कह कर चला गया है.’’

बेटे से मिलने की चाहत और मन में ढेरों सवाल लिए रतिपाल अपनी बहन नीलम के साथ दिल्ली से गांव खरौली 28 जनवरी को ही पहुंच गए. दूसरे दिन वह साधु अपने एक साथी के साथ सुबह 11 बजे गांव आया. आधे गांव का चक्कर लगाता और सारंगी पर भजन गाते हुए साधु रतिपाल के घर पर पहुंचा.

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पिंकू निकला नफीस

साधु ने देखते ही पापा व बुआओं को पहचान लिया. साधु ने उन्हें बताया कि वह वास्तव में उन का बेटा पिंकू है. वह संन्यासी हो गया है, भिक्षा मांगने आया हुआ है. रतिपाल ने उस के पेट पर बचपन की चोट के निशान को देखने के बाद अपने खोए बेटे अरुण उर्फ पिंकू के रूप में उस की पहचान की.

बेटे की खातिर रतिपाल सब कुछ न्यौछावर करने को हो गया तैयार

बचपन में खोए बेटे को 22 साल बाद दरवाजे पर देख पिता व परिजनों की उम्मीद लौट आई थी. आंखों से आंसुओं की धारा फूट पड़ी. स्नेह ऐसा जागा कि भींच कर उसे सीने से लगा लिया. बेटे को घर लाने के लिए पिता सब कुछ न्यौछावर करने को तैयार था.

खोए बेटे के मिलने पर रतिपाल ने घर पर साधु व उस के साथी के साथ भोजन भी किया. अब साधु रतिपाल को पापा तथा रतिपाल उसे पिंकू कह कर पुकारने लगे थे. रतिपाल ने खोए बेटे के मिलने की खुशखबरी अपनी रिश्तेदारी में भी दे दी थी. इस पर कई रिश्तेदार गांव आ गए थे.

एक सप्ताह तक वह जोगी अपने साथी के साथ रोजाना गांव आता और शाम होते ही वापस चला जाता. इस दौरान उस की रतिपाल और परिजनों से बातें भी होतीं. भोजन भी पापा के साथ करता. अपने पापामम्मी व अन्य घर वालों के प्यार को देख कर पिंकू का झुकाव भी उन की ओर होने लगा.

वहीं रतिपाल की बूढ़ी आंखों ने अपने खोए बेटे को 22 साल बाद देखा तो प्यार फफक पड़ा. खोए बेटे को किसी भी तरह वापस पाने के लिए परिवार तड़प उठा. सभी के प्रयास विफल होने पर रतिपाल ने जोगी से किसी भी तरह घर लौटने की गुजारिश की.

इस पर उस ने कहा, ”पापा, आप मेरे गुरु महाराज से बात कर मुझे आश्रम से छुड़ा लो.’’

”पापा, आश्रम से गुरुजी ने मुझे दीक्षा के दौरान लंगोटी, कमंडल व अंगवस्त्र दिए हैं. मठ की प्रक्रिया पूरी करनी होगी. मठ का सामान वापस करना होगा.’’

तब रतिपाल ने कहा, ”बेटा, तुम गुरुजी से बात कर प्रक्रिया के बारे में बताना. मैं तुम्हें घर लाने के लिए प्रक्रिया पूरी कर दूंगा.’’

अनाज व नकदी दे कर किया विदा

दिल पर पत्थर रख कर घर वालों व गांव वालों ने भिक्षा के रूप में उसे 13 क्ंिवटल अनाज और रतिपाल ने जोगी बने बेटे पिंकू को संपर्क में बने रहने के लिए एक नया मोबाइल फोन व नकदी दे कर पहली फरवरी को विदा किया. रतिपाल की बाराबंकी में रहने वाली बहन निर्मला ने पिंकू द्वारा बताए खाते में 11 हजार रुपए की रकम ट्रांसफर कर दी.

पिंकू ने कहा कि वह यहां से सभी सामान ले कर अयोध्या जाएगा, जहांं साधुओं को भंडारा कराएगा. सामान पहुंचाने के लिए रतिपाल ने एक वाहन का इंतजाम कर दिया. पहली फरवरी, 2024 को जोगी अपने साथी के साथ सामान ले कर चला गया. रतिराम, पत्नी माया देवी परिजनों के साथ ही गांव वालों ने भारी मन से जोगी को विदा किया.

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घर से भिक्षा ले कर जाने के बाद संन्यासी बेटे पिंकू का मन पसीज गया. दूसरे दिन उस ने फोन कर पिता से घर लौटने की इच्छा जताई. बेटे के गृहस्थ जीवन में लौटने की बात सुन कर रतिराम की खुशी का पारावार नहीं रहा. उस ने बताया कि गुरु महाराज का कहना है कि गृहस्थ आश्रम में लौटने के लिए दीक्षा के रूप में 10.80 लाख रुपए चुकाने पड़ेंगे.

रतिपाल ने इतनी बड़ी रकम देने में असमर्थता जताई. इतना ही नहीं, पिंकू ने पिता की मठ के गुरु महाराज से फोन पर बात भी कराई. लेकिन इतनी बड़ी रकम देने की उन की हैसियत नहीं थी. तब 4.80 लाख देने की बात कही गई.

गुरुओं की दीक्षा चुकाने की शर्त पर पिता ने आखिरकार बेटे को पाने के लिए 3 लाख 60 हजार रुपए में हां कर दी.

मठ का खाता न बताने पर हुआ शक

बेटे को वापस पाने के लिए मजबूर पिता ने 14 बिस्वा जमीन का सौदा गांव के ही अनिल कुमार वर्मा से 11 लाख 20 हजार रुपए में तय कर लिया. 3-4 दिन रतिपाल को पैसों का इंतजाम करने में लग गए.

इस के बाद साधु पिंकू की ओर से बताए गए आईसीआईसीआई बैंक खाते में पैसा ट्रांसफर करने भाई जसकरन व भतीजे धर्मेश के साथ पहुंचे. रतिपाल ने बताया, बैंक मैनेजर ने उन से कहा कि एक दिन में 25 हजार से ज्यादा रुपए ट्रांसफर नहीं हो सकते. पिंकू ने यूपीआई से भुगतान करने को कहा.

रतिपाल ने पिंकू से कहा कि अपने मठ के ट्रस्ट का बैंक खाते का नंबर दे दो, उस पर भुगतान कर देंगे. इस के बाद वहां आ कर तुम्हें अपने साथ घर ले आएंगे तो साधु ने मना कर दिया. यहीं से रतिपाल को कुछ शक होने लगा. तब प्रशासन से उन्होंने मदद मांगी.

रतिपाल सिंह समझ गए कि बेटे पिंकू के रूप में आया जोगी कोई ठग है. उस ने उन की भावनाओं का सौदा किया है. रतिपाल ने 10 फरवरी, 2024 को थाना जायस में 2 अज्ञात व्यक्तियों के खिलाफ भादंवि की धारा 420, 419 के अंतर्गत रिपोर्ट दर्ज कराई.

एसएचओ देवेंद्र सिंह ने रिपोर्ट दर्ज करने के बाद इस केस की जांच बहादुरपुर चौकी प्रभारी राजकुमार सिंह को सौंपी. आरोपी का मोबाइल बंद आने पर उसे सर्विलांस पर लगा दिया गया.

इस के बाद रतिपाल को जब शंका हुई तो उन्होंने अपने स्तर से जांचपड़ताल करनी शुरू कर दी. उन के हाथ उसी साधु बने युवक के कई फोटो और वीडियो लग गए हैं. रतिपाल ने बताया कि उन्होंने झारखंड के एसपी से फोन पर बात की. पूरा प्रकरण बताया. एसपी को जोगी का मोबाइल नंबर भी दिया.

उन्होंने अपने स्तर से जांच कराई फिर फोन कर बताया कि यह नंबर झारखंड में नहीं, बल्कि गोंडा में चल रहा है. इस के साथ ही झारखंड में पारसनाथ नाम का कोई मठ है ही नहीं. उन्होंने कहा कि उसे पकड़ा जाए और यदि वह गलत है तो सजा मिले.

जोगी की सच्चाई पता करने के लिए रतिपाल ने कोई कोर कसर नहीं छोड़ी. जिस गुरु का नाम बताया, वह भी गलत निकला. दीक्षा में मिले 13 क्विंटल अनाज व अन्य सामान को पिकअप में ले कर साधु अयोध्या जाने की कह कर गया था. पिकअप चालक  के साथ रतिपाल अयोध्या पहुंचे तो वहां कोई नहीं मिला. पिकअप चालक ने बताया कि अरुण अयोध्या न जा कर उसे गोंडा ले गया था, वहीं सारा सामान उतरवाया था.

गोंडा की जिस आईसीआईसीआई बैंक के खाते का नंबर साधु ने रतिपाल को दिया था वह खाता आशीष कुमार गुप्ता, आशीष जनरल स्टोर मुंबई का निकला. बाराबंकी में रहने वाली रतिपाल की बहन निर्मला ने उसी खाते में 11 हजार रुपए की धनराशि ट्रांसफर की थी.

रतिपाल ने बताया कि उन्होंने पुलिस को बैंक स्टेटमेंट सौंप दिया है. उन्होंने बताया कि उन्हें मीडिया के माध्यम से पता चला है कि साधु के भेष में आया युवक जो अपने को उन का खोया बेटा पिंकू बताता था, उस युवक का नाम नफीस है.

ठगी के लिए साधु का वेश धारण किया

सीओ (तिलोई) अजय सिंह ने बताया कि मामला ठगी से जुड़ा हुआ है. पूरे मामले पर मुकदमा पंजीकृत कर मामले की छानबीन की जा रही है. जल्द से जल्द इस पूरे मामले में कड़ी से कड़ी काररवाई की जाएगी. उन्होंने बताया कि 10 फरवरी को जायस थाना क्षेत्र के खरौली गांव निवासी रतिपाल सिंह ने रिपोर्ट दर्ज कराई थी.

गोंडा के एसपी विनीत जायसवाल ने बताया, ”टिकरिया गांव में रहने वाले कई लोगों द्वारा जोगी बन कर जालसाजी करने की शिकायत मिली है. 2 आरोपियों द्वारा अमेठी जिले में भी साधु वेश बना किसी को झांसा देने का मामला प्रकाश में आया है. पुलिस को तलाश के निर्देश दिए गए हैं.’’

रिपोर्ट दर्ज होने और उच्चाधिकारियों के निर्देश के बाद जायस थाने की पुलिस सक्रिय हो गई. रतिपाल ने बताया कि 16 फरवरी, 2024 को एक प्राइवेट वाहन से जायस पुलिस के साथ गोंडा कोतवाली देहात की सालपुर पुलिस चौकी पहुंचे. वहां के चौकी इंचार्ज पवन कुमार सिंह से मिले, उन्होंने जांच में पूरा सहयोग करने की बात कही. इस चौकी से कुछ दूरी पर ही टिकरिया गांव है.

उन्होंने कहा कि गोंडा की सालपुर चौकी पर उन्हें 5 घंटे तक बैठाया गया. कहा कि आप यहीं बैठो, पुलिस दबिश देने जा रही है. नफीस के घर पहुंची पुलिस टीम सब से पहले नफीस के परिवार से मिली. उस समय घर पर बुजुर्ग महिलाएं ही थीं. उन्होंने बताया कि 25 वर्षीय नफीस करीब एक महीने से घर से बाहर है.

पुलिस को आया देख कर आरोपी गन्ने के खेत में भाग गया था. पुलिस ने उसे पकडऩे का प्रयास किया, लेकिन वह हाथ नहीं आया. पुलिस ने बताया, पिंकू बन कर घर पहुंचा ठग टिकरिया निवासी सिजाम का बेटा नफीस है, जो ठगी के मामले में पहले भी जेल जा चुका है.

जबकि उस का भाई राशिद 29 जुलाई, 2021 को जोगी बन कर मिर्जापुर के गांव सहसपुरा परसोधा निवासी बुधिराम विश्वकर्मा के यहां उन का 14 साल पहले लापता हुआ बेटा रवि उर्फ अन्नू बन कर पहुंचा था. मां से भिक्षा मांगी ताकि उस का जोग सफल हो जाए. परिजनों ने बेटा मान कर उसे घर में रख लिया. कुछ दिन बाद वह लाखों रुपए ले कर फरार हो गया था. बाद में पकड़ा गया और जेल गया.

पुलिस की दस्तक के चलते नफीस, उस के दोनों भाई दिलावर और राशिद समेत अधिकांश तथाकथित साधु अंडरग्राउंड हो गए. उस का एक रिश्तेदार असलम भी ऐसे मामले में वांछित चल रहा है. नफीस का मोबाइल बंद है.

पड़ताल में सामने आया कि नफीस के ससुर का भाई असलम उर्फ लंबू घोड़ा भी वाराणसी में जेल जा चुुका है. तब पुलिस ने शिकायत के आधार पर एक परिवार को इसी तरह जोगी का झांसा दे कर ठगने के बाद उसे दबोच लिया था.

पेट के टांकों को देख कर की पहचान

रतिपाल ने बताया कि 22 साल पहले उस का 11 वर्षीय बेटा अरुण उर्फ पिंकू घर से कहीं चला गया था. एक बार वह सीढ़ी से गिर गया था, जिस से उस के पेट में अंदरूनी चोट आई थी. इस बात का 6 माह तक पता नहीं चला. पिंकू की आंत सड़ गई थी, जिस के चलते उस का औपरेशन दिल्ली के कृष्णा नगर स्थित होली चाइल्ड अस्पताल में हुआ था. उस के 14 टांके आए थे.

साधु के भेष में आए व्यक्ति ने उन्हें टांकों के निशान दिखाए थे. लेकिन वे असली थे या बनाए हुए थे, ये नहीं पता. रतिपाल सिंह पहले अपनी बहन नीलम के साथ खरौली गांव पहुंचे थे. खबर दिए जाने पर बहन उर्मिला भी आ गई थी. उन्होंने अपनी पत्नी माया देवी को घर पर ही बच्चों की देखभाल के लिए छोड़ दिया था. खोए पिंकू की पहचान हो जाने के बाद उन्होंने पत्नी को भी गांव बुला लिया था.

रतिपाल की दूसरी शादी के बाद 4 बच्चे हुए. 2 बेटी व 2 बेटे हैं. बड़ी बेटी 24 वर्ष की है. दोनों बेटियों की शादी हो चुकी है. एक बेटा 12वीं तथा सब से छोटा 9वीं में पढ़़ रहा है. वे घर पर ही बर्थडे में बच्चों के लगाए जाने वाली कैप बनाने का कार्य पत्नी के सहयोग से कर गुजरबसर करते हैं.

पूरा परिवार जिस युवक को अपना खोया बेटा पिंकू मान कर प्यार लुटा रहा था. असल में वह जालसाज गोंडा जिले के टिकरिया गांव  का नफीस निकला. टिकरिया के 20-25 लोगों का गैंग कई राज्यों में सक्रिय है. वह खोए बच्चों के बारे में जानकारी करने के बाद परिजनों की भावनाओं से खिलवाड़ कर ठगी करने का काम करते हैं.

साइबर सेल प्रभारी बृजेश सिंह का कहना है कि किसी गांव में बच्चों के खोने या लापता होने पर परिजन खुद उस का प्रचार प्रसार करते हैं. इस प्रचार से उन्हें आस होती है कि शायद कोई व्यक्ति उन की खोई संतान को वापस मिला देगा. पैंफ्लेट व अखबारों से भी पहचान के लिए चोट के निशानों का उल्लेख किया जाता है. ठगों का यह गैंग स्थानीय स्तर पर जानकारी एकत्र कर इसी का फायदा उठा कर ठगी करता है.

मातापिता की भावनाओं से खेल कर संपत्ति व धन हड़पने का नफीस का षडयंत्र विफल हो गया. 22 साल पहले लापता बेटा पिंकू बन कर गांव जायसी पहुंचा साधु वेशधारी पुलिस जांच में गोंडा के गांव टिकरिया निवासी नफीस और उस का साथी पट्टर  निकला. गांव वालों ने वायरल वीडियो में भी दोनों की तस्दीक की. पुलिस की सक्रियता से ठगी की मंशा का खुलासा हुआ तो ठग और उस का साथी दोनों फरार हो गए.

गोंडा में पड़ताल करने पर पता चला कि टिकरिया गांव के कुछ परिवार इस तरह की ठगी करते हैं. उन का एक गैंग ठगी का काम करता है. ठगी जेल तक जा चुकी है. उन्हीं में से एक नफीस का भी परिवार है.

नफीस मुकेश (मुसलिम) का दामाद है. उस की पत्नी का नाम पूनम है. उस का एक बेटा अयान है. ठग साधु कहता था कि उस ने झारखंड के पारसनाथ मठ में दीक्षा ली है. मठ के गुरु का आदेश था कि अयोध्या में दर्शन के बाद गांव जा कर अपनी मां से भिक्षा मांगना, तभी दीक्षा पूरी होगी. सच यह है कि झारखंड में पारसनाथ नाम का कोई मठ है ही नहीं. बेटा बन कर अब तक नफीस कई लोगों को चूना लगा चुका है.

रतिपाल का कहना है कि दोनों ठगों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराने के बाद भी पुलिस हाथ पर हाथ रखे बैठी है. दोनों ठग अब तक पुलिस की गिरफ्त से बाहर हैं. जिस बैंक खाते में 11 हजार रुपए बहन निर्मला ने जमा कराए थे, उस खाते वाले को पकड़ा जाए, जिस से स्थिति स्पष्ट हो जाएगी और इन ठगों का गैंग पकडऩे में मदद मिलेगी.

पुलिस फरार चल रहे दोनों साधु वेशधारी ठगों की सरगरमी से तलाश में जुटी है. पुलिस का कहना है कि समय रहते इन ठगों का भेद खुल जाने से रतिपाल व उन का परिवार बहुत बड़ी ठगी व मुसीबत से बच गए.

पिता रतिपाल को पुत्र वियोग और मिलन के बाद उसे दोबारा पाने की चाह है, लेकिन किसी षडयंत्र की आशंका भी है. उन का कहना है कि खोया हुआ बेटा इस समय 33 वर्ष का होता.

—कथा पुलिस व परिजनों से की गई बातचीत पर आधारित

जयपुर का आदर्श कोऔपरेटिव सोसायटी फ्रॉड

राजस्थान पुलिस (Rajasthan) के स्पैशल औपरेशन गु्रप ‘एसओजी’ के जयपुर मुख्यालय (Jaipur Head Office) पर अगस्त 2018 में एक शिकायत मिली थी. शिकायत में कहा गया था कि आदर्श क्रेडिट कोऔपरेटिव सोसायटी (Adarsh Credit Cooperative Society) अहमदाबाद (Ahmedabad) की ओर से निवेशकों का पैसा नहीं लौटाया जा रहा है.

कंपनी की देश के 28 राज्यों और 4 केंद्रशासित प्रदेशों में करीब 800 से ज्यादा शाखाएं हैं. इन में 309 शाखाएं अकेले राजस्थान में हैं. राजस्थान में कंपनी ने करीब 20 लाख सदस्य बनाए थे. इन में लगभग 10 लाख निवेशक सदस्य शामिल हैं. इन से करीब 8 हजार करोड़ रुपए का निवेश करवाया गया. यह राशि आदर्श क्रेडिट कोऔपरेटिव सोसायटी ने अपनी शैल यानी फरजी कंपनियों में निवेश कर निवेशकों की राशि का दुरुपयोग किया है.

शिकायत में बताया गया कि पहले यह कंपनी राजस्थान के सिरोही शहर में पंजीकृत थी. कुछ साल पहले कंपनी ने अहमदाबाद में मुख्यालय बना लिया था. मल्टीस्टेट कंपनी हो जाने के कारण यह राजस्थान के कोऔपरेटिव रजिस्ट्रार के अधिकार क्षेत्र से बाहर हो गई थी.

मामला गंभीर था. एसओजी के महानिदेशक ने पूरे मामले की जांच पड़ताल कराई. इस बीच, राजस्थान के कोऔपरेटिव रजिस्ट्रार आईएएस अधिकारी नीरज के. पवन ने भी एसओजी को शासकीय पत्र लिख कर आदर्श क्रेडिट कोऔपरेटिव सोसायटी के घोटाले की जानकारी दी.

उन्होंने पत्र के साथ करीब 200 पेज की एक जांच रिपोर्ट भी एसओजी को सौंपी. जांच रिपोर्ट में कहा गया था कि इस कंपनी ने निवेशकों का पैसा ले कर वापस नहीं लौटाया. कंपनी ने निवेशकों का पैसा रियल एस्टेट और फरजी कंपनियों में लगा दिया है.

इस संबंध में कोऔपरेटिव विभाग को कई शिकायतें मिली थीं. इस पर कोऔपरेटिव रजिस्ट्रार कार्यालय के अधिकारियों ने कंपनी के अधिकारियों को तलब कर उन्हें निवेशकों का पैसा लौटाने को कहा था. इस के बावजूद कंपनी ने निवेशकों का पैसा वापस नहीं लौटाया.

एसओजी की प्रारंभिक जांचपड़ताल में आदर्श क्रेडिट कोऔपरेटिव सोसायटी की ओर से फरजीवाड़ा कर निवेशकों का पैसा हड़पने की पुष्टि हो गई. इस पर जयपुर में एसओजी थाने में 28 दिसंबर, 2018 को कंपनी के खिलाफ भादंवि की धारा 406, 409, 420, 467, 468, 471, 477ए और 120बी में मामला दर्ज कर लिया गया.

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रिपोर्ट दर्ज किए जाने के बाद एसओजी के अधिकारियों ने इस मामले में पूरी तरह जांचपड़ताल प्रारंभ की. चूंकि कंपनी का कारोबार 28 राज्यों और 4 केंद्रशासित प्रदेशों में फैला हुआ था, इसलिए जांच का काम कई महीने तक चलता रहा. व्यापक जांचपड़ताल के बाद इसी साल 25 मई को एसओजी के तत्कालीन पुलिस महानिदेशक डा. भूपेंद्र यादव ने इस फरजीवाड़े का खुलासा कर दिया.

उन्होंने बताया कि कंपनी ने मोटा मुनाफा देने के नाम पर करीब 20 लाख सदस्य बनाए. इन सदस्यों की ओर से निवेश की गई करीब 8 हजार करोड़ रुपए की राशि कंपनी के पदाधिकारियों ने 187 फरजी कंपनियों में लगा दी. जांच में सामने आया कि आदर्श सोसायटी को अपने निवेशकों के करीब 14 हजार 682 करोड़ रुपए लौटाने हैं.

एसओजी ने इस घोटाले में 25 मई को आदर्श कंपनी के 11 मौजूदा और पूर्व पदाधिकारियों को गिरफ्तार कर लिया. इन में सिरोही निवासी कंपनी के पूर्व चेयरमैन वीरेंद्र मोदी और कमलेश चौधरी, चेयरमैन ईश्वर सिंह, मुंबई निवासी पूर्व मैनेजिंग डायरैक्टर प्रियंका मोदी व सीनियर वाइस प्रेसीडेंट वैभव लोढ़ा, अहमदाबाद निवासी चीफ फाइनैंस औफिसर समीर मोदी, जयपुर निवासी असिस्टेंट मैनेजिंग डायरैक्टर रोहित मोदी, सिरोही निवासी पूर्व मैनेजिंग डायरैक्टर ललिता राजपुरोहित, आदित्य प्रोजैक्ट के निदेशक भारत मोदी, टैक्टोनिक इंफ्रा के निदेशक भारत दास और 6 कंपनियों के डायरैक्टर विवेक पुरोहित शामिल थे.

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एसओजी को जांच में यह भी पता चला कि सोसायटी के संस्थापक मुकेश मोदी (Mukesh Modi) और उन का भतीजा राहुल मोदी पहले ही आर्थिक अपराध के मामले में दिल्ली में गिरफ्तार हैं. इन दोनों को सीरियस फ्रौड इनवैस्टीगेशन सेल एसएफ.आईओ ने दिल्ली में कुछ माह पहले गिरफ्तार किया था.

कंपनी के 11 पदाधिकारियों की गिरफ्तारी के दूसरे दिन 26 मई को एसओजी ने एक और आरोपी राजेश्वर सिंह को गिरफ्तार कर लिया. जयपुर में वैशाली नगर के हनुमान नगर में रहने वाले राजेश्वर सिंह के पिता महावीर सिंह रिटायर्ड आईएएस अधिकारी हैं. राजेश्वर सिंह एक अन्य कंपनी का डायरैक्टर है.

इस बीच, सोसायटी के संस्थापक मुकेश मोदी के भाई पूर्व चेयरमैन वीरेंद्र मोदी (Virender Modi) ने एसओजी की गिरफ्त में सीने में दर्द की शिकायत की. उसे जयपुर के सवाई मानसिंह अस्पताल के कार्डियक आईसीयू में भरती कराया गया.

वीरेंद्र मोदी को 26 मई को अदालत में पेश किया जाना था, लेकिन अस्पताल में भरती होने के कारण वह अदालत नहीं पहुंचा, तो उस के बीमार होने की सच्चाई जानने के लिए न्यायाधीश अरविंद जांगिड़ अदालत से चल कर खुद अस्पताल पहुंच गए. उन्होंने डाक्टरों से वीरेंद्र मोदी के स्वास्थ्य की जानकारी लेने के बाद उसे एक दिन के रिमांड पर एसओजी को सौंप दिया.

गिरफ्तार आरोपियों से पूछताछ और एसओजी की जांचपड़ताल में आदर्श घोटाले की जो कहानी उभर कर सामने आई, उस से पता चलता है कि हमारे देश में लोगों को मोटे मुनाफे का लालच दे कर किस तरह लूटा जा रहा है.

एक बाबू और उस के टैक्सी ड्राइवर भाई ने अपने दिमाग से खेल रच कर लोगों को बेवकूफ बनाया. वह महज 34 साल में अरबों रुपए के मालिक बन गए. मुकेश मोदी ने अपने भाइयों, बेटे बेटी और दामाद सहित परिवार के लोगों के अलावा दोस्तों को भी कंपनी में शामिल कर अथाह पैसों के सागर में डुबकी लगवाई.

कहानी की शुरुआत करीब 34 साल पहले वर्ष 1985 में हुई थी. सिरोही में प्रकाशराज मोदी रहते थे. वह ग्रामसेवक की सरकारी नौकरी से रिटायर थे. वह रिटायरमेंट के बाद भारतीय किसान संघ से जुड़ गए और उन्हें सिरोही का जिला संयोजक बना दिया गया.

प्रकाशराज मोदी के 3 बेटे हैं, मुकेश मोदी, वीरेंद्र मोदी और भारत मोदी. मुकेश मोदी पहले उद्योग केंद्र में बाबू था. बाद में वह लाइफ और जनरल इंश्योरेंस कंपनियों में बीमा एजेंट के रूप में लंबे समय तक जुड़ा रहा. कहा जाता है कि उस समय मुकेश मोदी मवेशियों की फरजी पोस्टमार्टम रिपोर्ट पेश कर बीमा क्लेम दिलवाने के मामले में मास्टरमाइंड था. बीमा के इस फरजी खेल में उसे अच्छाखासा कमीशन मिलता था.

सन 1985 में मुकेश मोदी और उस के भाइयों ने आदर्श प्रिंटर्स एंड स्टेशनरी कोऔपरेटिव सोसायटी लिमिटेड की शुरुआत की थी. इस सोसायटी में मुकेश मोदी ने खुद को दस्तावेज लेखक और बाइंडर बताया था.

भारत मोदी इस सोसायटी में मशीनमैन, इन का ड्राइवर ईश्वर सिंह भी मशीनमैन और मां सुशीला मोदी बाइंडर थी. इस सोसायटी में उस समय 18 सदस्य बनाए गए. खास बात यह है कि अधिकांश सदस्य बाद में आदर्श क्रेडिट सोसायटी से जुड़ गए.

जब इस सोसायटी का गठन हुआ था, उस समय प्रकाशराज मोदी का एक बेटा वीरेंद्र मोदी कैसेट रिकौर्डर का काम करता था. कैसेट रिकौर्डर का काम बंद हो गया, तो उस ने स्टेशनरी की दुकान खोल ली. इस के बाद वह टैक्सी चलाने लगा.

बाद में आदर्श प्रिंटर्स एंड स्टेशनरी कोऔपरेटिव सोसायटी पर करोड़ों रुपए की स्टेशनरी बिना टैंडर सप्लाई करने के आरोप लगे. एक बार हुई औडिट में सामने आया था कि यह सोसायटी स्टेशनरी कहीं और से खरीद कर बिल अपने पेश करती है. कहा जाता है कि इस सोसायटी के कामकाज से ही मोदी परिवार के दिन बदलने शुरू हो गए थे.

इस दौरान प्रकाशराज मोदी वर्ष 1989 से 1993 तक सिरोही अरबन कौमर्शियल बैंक के चेयरमैन रहे. उन का बेटा वीरेंद्र मोदी निदेशक था. प्रकाशराज की मौत के बाद मुकेश मोदी पहले प्रबंध समिति का सदस्य बना. फिर वह बैंक का चेयरमैन बन गया. इस बीच मोदी परिवार ने वर्ष 1999 में आदर्श क्रेडिट कोऔपरेटिव सोसायटी की शुरुआत की.

उस समय इस की 50 शाखाएं खोली गईं. उस समय निवेशकों का करीब 7-8 करोड़ रुपया जमा हुआ था. कुछ कारणों से करीब 9 महीने बाद ही इसे बंद कर दिया गया और निवेशकों के पैसे लौटा दिए गए.

बाद में इन्होंने रिजर्व बैंक को अरजी दे कर सिरोही अरबन कौमर्शियल बैंक का नाम बदल कर माधव नागरिक सहकारी बैंक रख लिया. यह नाम आरएसएस के दूसरे सरसंघ चालक माधव सदाशिव गोलवलकर के नाम पर रखा गया था. मुकेश मोदी के इस कदम ने उसे आरएसएस के नजदीक खड़ा कर दिया.

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सहकारी संस्थाओं की कमान संभालने और राजनीतिक संरक्षण हासिल होने से मुकेश मोदी और उस के भाई वीरेंद्र मोदी का सिरोही क्षेत्र में लगातार रुतबा बढ़ता गया. वे करोड़ों रुपए में खेलने लगे. सहकारिता के क्षेत्र में प्रभाव बढ़ने और अनापशनाप पैसा आने से वीरेंद्र मोदी की राजनीतिक इच्छाएं जागृत होने लगीं.

वह सन 1999 में सिरोही नगर पालिका का चेयरमैन बन गया. बाद में सन 2003 में सिरोही नगर पालिका चेयरमैन का पद एससी कैटेगरी के लिए आरक्षित हो गया, तो वीरेंद्र मोदी ने अपने चपरासी सुखदेव को नगरपालिका का चेयरमैन बनवा दिया.

इस बीच सन 2002 में केंद्र सरकार ने एक से ज्यादा राज्यों में चल रहे सहकारी बैंकों के लिए बने कानूनों में बदलाव कर दिया. इसे मल्टीस्टेट कोऔपरेटिव सोसायटी एक्ट-2002 नाम दिया गया. अब तक माधव नागरिक सहकारी बैंक पर मोदी परिवार का एकाधिकार हो चुका था. वीरेंद्र मोदी भी इस में शामिल हो गया था.

सन 2005 में इन्होंने पूरी प्लानिंग के साथ आदर्श क्रेडिट कोऔपरेटिव सोसायटी को फिर से शुरू किया तो इन के वारेन्यारे होने लगे. आदर्श सोसायटी को मल्टीस्टेट कोऔपरेटिव सोसायटी एक्ट में पंजीकृत करा कर इस का मुख्यालय सिरोही से अहमदाबाद बना दिया गया.

यह वह समय था, जब गांवों और दूरदराज के इलाकों में बैंकिंग व्यवस्था कमजोर थी. आदर्श क्रेडिट सोसायटी ने बैंकिंग व्यवस्था का विकल्प दिया. उन्होंने पौंजी स्कीम के जरिए अपने पैर जमा कर सरकारी और निजी बैंकों की तुलना में लोगों को ज्यादा ब्याज देने का लालच दिया.

इस का नतीजा यह हुआ कि मध्यम वर्ग और कालेधन के लेनदेन से जुड़े लोगों ने सोसायटी की योजना में अरबोंखरबों रुपए का निवेश किया.

साल 2009 में आदर्श सोसायटी ने गुजरात के घाटे में चल रहे 2 सहकारी बैंकों का अधिग्रहण कर लिया. इन में डीसा नागरिक सहकारी बैंक और सुरेंद्रनगर का मर्केंटाइल सहकारी बैंक शामिल था. इस से आदर्श सोसायटी ने गुजरात में अपने पैर जमा लिए.

कहते हैं कि इंसान के पास जब पैसा और प्रभाव हो, तो वह अपराध करने में भी नहीं झिझकता. वीरेंद्र मोदी के खिलाफ सिरोही में 12 से ज्यादा मामले दर्ज हैं. सिरोही में वीरेंद्र मोदी की पहचान वीरू मोदी के रूप में थी. वीरेंद्र का पहली पत्नी शकुंतला से तलाक हो चुका है. शकुंतला से उस के 2 बेटे हैं. बाद में वीरेंद्र मोदी ने बक्षा नाम की महिला से शादी कर ली. उस से एक बेटा है.

सिरोही के आदर्श नगर में वीरेंद्र मोदी का 10 हजार वर्गफीट एरिया में फैला आलीशान बंगला है. इस में स्विमिंग पूल, गार्डन सहित सभी सुखसुविधाएं हैं. वहां हाईमास्ट लाइट भी लगी हैं. इस लाइटों के बिल का भुगतान पहले नगर पालिका अदा करती थी.

वीरेंद्र के पास काले रंग की रेंज रोवर सहित कई लग्जरी कारें हैं. वह कछुए सहित कई पालतू जानवर रखने का भी शौकीन है. बंगले पर गनमैन तैनात रहता है. घोटाला उजागर होने पर वन विभाग ने वीरेंद्र मोदी के सिरोही स्थित बंगले से दुर्लभ प्रजाति के 21 स्टार कछुए बरामद किए. वन विभाग ने वीरेंद्र के खिलाफ केस भी दर्ज कर लिया था.

आदर्श क्रेडिट कोऔपरेटिव सोसायटी का पूरा काम मुकेश मोदी संभालता था, जबकि रियल एस्टेट का काम वीरेंद्र मोदी देखता था. मुकेश मोदी ने अपनी बेटी प्रियंका मोदी और दामाद वैभव लोढ़ा के अलावा भाईभतीजों और निकटस्थ लोगों को इस सोसायटी में पदाधिकारी बना रखा था.

राजस्थान में 2017 में उजागर हुए जम्मूकश्मीर के फरजी हथियार लाइसैंस मामले में भी मुकेश मोदी और उस का बेटा राहुल मोदी आरोपी हैं. दोनों को एटीएस मुख्यालय जयपुर बुला कर फरजी हथियार लाइसैंस मामले में पूछताछ की गई थी. बाद में इन्होंने अग्रिम जमानत करा ली थी.

दिल्ली में मुकेश मोदी और उन के बेटे की गिरफ्तारी के बाद से वीरेंद्र मोदी ही सोसायटी का मुख्य कर्ताधर्ता था. एसओजी की ओर से गिरफ्तार किया गया आदर्श क्रेडिट सोसायटी का चेयरमैन ईश्वर सिंह पहले कभी वीरेंद्र मोदी के साथ ही टैक्सी चलाता था.

पहली जून को एसओजी ने 4 आरोपियों को अदालत से 5 दिन के रिमांड पर दोबारा लिया. इन में वीरेंद्र मोदी, रोहित मोदी, विवेक पुरोहित और भरत वैष्णव शामिल थे. एक आरोपी ईश्वर सिंह को अदालत ने न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया था. इस से एक दिन पहले वैभव लोढ़ा को भी अदालत से पुलिस रिमांड पर लिया गया.

रिमांड के दौरान एसओजी की टीम वीरेंद्र मोदी और भरत वैष्णव को ले कर सिरोही पहुंची. इन के आवासों की तलाशी में जमीनों और निवेश से जुड़े दस्तावेज जब्त किए गए. वीरेंद्र मोदी के बंगले से करीब डेढ़ हजार प्लौटों के पट्टे मिले. ये पट्टे अलगअलग नाम से थे और सिरोही व आसपास के इलाकों में काटी गई कालोनियों के थे. इन पट्टों की कीमत करीब 300 करोड़ रुपए के आसपास आंकी गई.

एसओजी की जांच में यह भी पता चला कि आदर्श क्रेडिट कोऔपरेटिव सोसायटी के संचालक की बेटी प्रियंका मोदी और दामाद वैभव मोदी का हर महीने वेतन डेढ़ करोड़ रुपए था. शादी होने से पहले प्रियंका मोदी 5 साल के दौरान करीब 75 करोड़ रुपए तो वेतन के एवज में ही ले चुकी थी.

शादी के बाद प्रियंका के पति वैभव मोदी को डेढ़ करोड़ रुपए महीने के हिसाब से वेतन दिया जा रहा था. वह करीब 45 करोड़ रुपए सैलरी ले चुका था. प्रियंका और वैभव मुंबई में रहते थे, लेकिन उन्हें गुरुग्राम स्थित कंपनी में काम करना बता रखा था.

दरअसल, आदर्श सोसायटी के देश भर में विस्तार के बाद इस के संचालकों ने निवेशकों के पैसे का घोटाला करने के लिए शैल कंपनियां यानी फरजी कंपनियां बना लीं. गुड़गांव के सुशांत लोक फेज-1 की एक बिल्डिंग में मुकेश मोदी, उस के परिवार के सदस्यों और सहयोगियों के नाम पर कुल 33 कंपनियां रजिस्टर्ड हैं.

असल में इस पते पर 12×15 की एक छोटी सी दुकान है. एसओजी ने जब इस पते पर छापा मारा तो यहां बंगाल का रहने वाला मोती उल मलिक मिला. उस ने बताया कि वह सुबह 10 बजे से शाम 6 बजे तक यहां बैठता है. वह इस पते पर आने वाली सारी डाक एकत्र कर गुड़गांव में ही दूसरे औफिस पर पहुंचा देता है. एसओजी को जांच में पता चला कि इस दुकान की मालिक मुकेश मोदी की बेटी प्रियंका मोदी है.

जांच में यह भी पता चला कि मुकेश मोदी महावीर कंसलटेंसी नामक कंपनी में नौकरी कर एक करोड़ रुपए मासिक वेतन लेता था. महावीर कंसलटेंसी को आदर्श सोसायटी ने कंसलटेंसी का काम सौंप रखा था. इस कंसलटेंसी कंपनी में मुकेश मोदी की पत्नी मीनाक्षी मोदी और दामाद वैभव लोढ़ा साझीदार थे.

आदर्श सोसायटी की बैलेंसशीट के मुताबिक सोसायटी ने महावीर कंसलटेंसी को 3 साल के दौरान ही 6 अरब 60 करोड़ 73 लाख 68 हजार 938 रुपए का भुगतान किया था. इस में वर्ष 2015-16 में 59 करोड़ 36 लाख रुपए, वर्ष 2016-17 में एक अरब 94 करोड़ रुपए और वर्ष 2017-18 में 4 अरब 6 करोड़ रुपए का भुगतान किया गया.

इस कंपनी का रजिस्ट्रेशन वर्ष 2013-14 में कराया गया था. उस समय इस कंपनी का टर्नओवर शून्य था. यानी एक रुपए का भी व्यापार नहीं हुआ था, लेकिन 3 साल बाद ही सन 2017 में इस कंपनी का टर्नओवर 500 करोड़ रुपए पहुंच गया.

नोटबंदी के दौरान मोदी परिवार ने 223 करोड़ 77 लाख रुपए कैश इन हैंड बताए थे. इस राशि को खपाने के लिए भी कई फरजीवाड़े किए गए. इस में परिचितों व परिवार के लोगों को फरजी कंपनियों के शेयर होल्डर बना कर उन के खातों में आरटीजीएस के माध्यम से लेनदेन किया गया. बाद में इस राशि से कपड़ों की खरीदारी बताई गई. यह कपड़ा कहां से आया और कहां गया, इस की कोई जानकारी एसओजी को नहीं मिली.

इस के अलावा मोदी बंधुओं ने सोसायटी में बिना किसी मोर्टगेज (गिरवी/रेहन) प्रक्रिया के लोन के नाम पर अपने रिश्तेदारों और जानकारों को अरबों रुपए बांट दिए. गिरवी के नाम पर कोई चलअचल संपत्ति के दस्तावेज नहीं होने से लोन लेने वालों ने यह राशि सोसायटी को नहीं लौटाई.

पुलिस रिमांड पर चल रहे आदर्श सोसायटी घोटाले के पांचों आरोपियों वीरेंद्र मोदी, वैभव लोढ़ा, रोहित मोदी, विवेक पुरोहित और भरत वैष्णव को एसओजी ने 5 जून को जयपुर में अदालत में पेश किया. अदालत ने इन्हें न्यायिक अभिरक्षा में जेल भेज दिया. इस से पहले इस मामले में गिरफ्तार अन्य 7 आरोपियों को भी जेल भेजा जा चुका था.

इस के बाद एसओजी ने आदर्श सोसायटी घोटाले के मुख्य सूत्रधार मुकेश मोदी और उस के भतीजे राहुल मोदी पर शिकंजा कसा. इन दोनों को सीरियस फ्राड इनवैस्टीगेशन सेल (एसएफ.आईओ) ने दिल्ली में दिसंबर 2018 में गिरफ्तार किया था.

एसएफआईओ ने मुकेश और राहुल मोदी के अलावा इन के सहयोगी को आदर्श सोसायटी में गड़बडि़यां कर निवेशकों से करोड़ों रुपए की धोखाधड़ी करने तथा फरजी कंपनियां बना कर उन को ऋण दे कर हेराफेरी करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था. बाद में एक बार छूटने के बाद इन्हें दोबारा गिरफ्तार किया गया. ये दोनों हरियाणा की गुड़गांव जेल में बंद थे.

एसओजी 10 जून को मुकेश और राहुल मोदी को प्रोडक्शन वारंट पर गिरफ्तार कर जयपुर ले आई. इन्हें अगले दिन जयपुर की अदालत में पेश कर 5 दिन के रिमांड पर लिया गया. मुकेश मोदी ही आदर्श सोसायटी का संस्थापक अध्यक्ष है.

मुकेश और राहुल मोदी से एसओजी ने 5 दिन तक पूछताछ की, लेकिन घोटाले और निवेशकों की रकम के बारे में कोई खास जानकारी नहीं मिल सकी. इस पर एसओजी ने इन्हें दोबारा रिमांड पर लिया.

इस दौरान उन्हें जयपुर से अहमदाबाद भी ले जाया गया. रास्ते में पाली जिले के बर चौराहे पर एसओजी के पुलिसकर्मियों ने दोनों आरोपियों की खातिरदारी भी की. सड़क पर कराए गए चायनाश्ते की तसवीरें वायरल होने पर एसओजी को बदनामी भी झेलनी पड़ी थी. अहमदाबाद में आदर्श सोसायटी के मुख्यालय पर दस्तावेजों की जांच की गई.

रिमांड अवधि पूरी होने पर एसओजी ने मुकेश और राहुल मोदी को 22 जून, 2019 को जयपुर में अदालत में पेश किया. अदालत ने उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया.

एसओजी अभी इस मामले की जांचपड़ताल में जुटी हुई है. आदर्श सोसायटी के खिलाफ  राजस्थान, गुजरात और मध्य प्रदेश के पीडि़त निवेशकों ने 50 से अधिक एफआईआर दर्ज कराई है. इस के अलावा इसी सोसायटी के खिलाफ  दायर करीब 300 परिवादों की जांच की जा रही है. गुजरात व मध्य प्रदेश में भी इस सोसायटी के खिलाफ पुलिस में मामले दर्ज हुए हैं.

आदर्श सोसायटी का घोटाला सामने आने के बाद मुकेश मोदी के भतीजे राहुल मोदी की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ एक फोटो भी खूब वायरल हो रही है. इस फोटो में राहुल प्रधानमंत्री से बातचीत करते नजर आ रहा है. फोटो महाराष्ट्र के नासिक की है. इस में प्रधानमंत्री मोदी आदर्श सोसायटी की नासिक शाखा पर मौजूद हैं. प्रधानमंत्री के साथ केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी भी दिखाई दे रहे हैं.

आदर्श सोसायटी के जरिए अरबों रुपए में खेलने वाले मुकेश मोदी और उन के भाई वीरेंद्र मोदी की महत्त्वाकांक्षा राजनीति में आने की भी रही है. सन 2004 के लोकसभा चुनाव में मुकेश मोदी ने सिरोही से भाजपा टिकट हासिल करने के प्रयास किए थे, लेकिन तब उन के विरोधियों ने माधव सहकारी नागरिक बैंक में वित्तीय गड़बडि़यों का पुलिंदा भाजपा आलाकमान तक पहुंचा दिया था. इस से मुकेश मोदी हाथ मलता रह गया था.

बाद में 2014 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले सिरोही में मुकेश मोदी के पोस्टर और होर्डिंग लगाए गए थे. उस समय मुकेश ने भाजपा से लोकसभा टिकट हासिल करने की पूरी कोशिशें की थीं, लेकिन विरोधियों ने इस बार भी कई तरह के दस्तावेज आलाकमान को भेज कर उन के अरमानों पर पानी फेर दिया था.

आयकर विभाग 2009-10 और 2018 में आदर्श सोसायटी के ठिकानों पर छापे मार कर काररवाई कर चुका है. आयकर विभाग को पहली बार के छापे में यह लग गया था कि सोसायटी में कालेधन के लेनदेन को ले कर गलत तरीके से निवेश हो रहा है. उस समय आदर्श सोसायटी के अनेक लौकर्स से भारी मात्रा में कालाधन बरामद किया गया था.

जून 2018 में आदर्श सोसायटी के अहमदाबाद, जोधपुर, सिरोही सहित 15 ठिकानों पर 100 से ज्यादा अफसरों ने करीब 10 दिन तक छापे की काररवाई की थी. एसओजी ने भले ही आदर्श सोसायटी के घोटाले का भंडाफोड़ कर इन के कर्ताधर्ताओं को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया है, लेकिन सोसायटी में अपनी मेहनत की जमापूंजी लगाने वाले निवेशकों को उन का पैसा वापस मिलता नजर नहीं आ रहा है. इस का कारण कानून की कमियां हैं.

आयकर विभाग ने भी मोदी बंधुओं की काफी संपत्तियां जब्त कर रखी हैं. आदर्श सोसायटी के 187 ऋण खातों में 31 मार्च 2019 को 146 अरब 82 करोड़ 24 लाख 42 हजार 239 रुपए बकाया चल रहे थे.

जादूगर का आखिरी जादू

बीते 16 जून की बात है. उस दिन पश्चिम बंगाल के हावड़ा शहर में हुगली नदी के किनारे सुबह से ही लोगों का हुजूम जुटने लगा था. इन लोगों को इंतजार था जादूगर चंचल लाहिड़ी के आने का. कोलकाता के मशहूर जादूगर चंचल ने उस दिन हैरतअंगेज कारनामा दिखाने की घोषणा की थी. चंचल पश्चिम बंगाल में जादूगर ‘मैंडे्रक’ के नाम से मशहूर थे.

जादूगर चंचल जो नायाब कारनामा दिखाने जा रहे थे, वह जादुई करतब दुनिया के महान अमेरिकी जादूगर हैरी हुडिनी से मशहूर हुआ था. करीब सौ साल पहले जादूगर हुडिनी ने खुद को एक पिंजरे में बंद कर ताले लगवा दिए थे. यह पिंजरा गहरे पानी में डुबो दिया गया. इस के बाद हुडिनी अपने जादू की कला से पिंजरे के ताले खोल कर कुछ ही देर में पानी की सतह पर आ गए. यह खेल दिखा कर जादूगर हुडिनी ने अपना नाम पूरी दुनिया में अमर कर लिया था.

कोलकाता के मशहूर जादूगर चंचल ने जादूगर हुडिनी के इसी करतब को दिखाने की तैयारी की थी. चंचल यह कारनामा तीसरी बार दिखाने जा रहे थे. सब से पहले मैंड्रेक यानी चंचल ने यह कारनामा 1998 में दिखाया था. इस के बाद दूसरी बार 2013 में भी उन्होंने यह करतब दिखा कर पूरे देश में अच्छी खासी लोकप्रियता हासिल कर ली थी. अपनी लोकप्रियता के चलते जादूगर चंचल विभिन्न राज्यों में अपने जादू का प्रदर्शन करने लगे थे.

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जादूगर चंचल ने पानी की सतह पर चलने का करतब दिखाने की भी घोषणा कर रखी थी. जब वे प्रचार के लिए निकलते थे, तो गाड़ी के साथ करीब 10 फुट ऊंचाई पर हवा में चलते थे. भीड़ भरी सड़कों पर जादूगर का इस तरह का लाइव कारनामा देख कर दर्शक रोमांचित हो जाते थे.

इस से पहले 2013 में यही करतब दिखाते समय जादूगर चंचल की बचने की कला को दर्शकों ने पकड़ लिया था. उस समय चंचल को शीशे के पारदर्शी बौक्स में तालों से बंद कर हुगली नदी में फेंका गया था. तब वे 29 सेकंड में पानी से बाहर आ गए थे. दरसअल  जादूगर चंचल ने पानी में बौक्स फेंके जाने के बाद उसे अपने तरीके से खोला और बाहर आ गए थे.

यह बौक्स इस तरह से बना हुआ था कि आम दर्शक को इस बात का पता नहीं चल सकता था कि ताले लगाने के बाद बौक्स का एक गेट खुल जाता है. जादूगर ने पानी के अंदर इसी गेट से खुद को बाहर निकाल कर दर्शकों को जादू का अहसास कराया था.

पता नहीं कहां गलती हुई कि दर्शकों को इस बौक्स के गेट से जादूगर के निकलने का पता चल गया और बाहर निकलने पर उन्होंने चंचल को घेर लिया. दर्शकों की भीड़ ने चंचल की सुनहरी विग भी खींच ली थी. उस समय बड़ी मुश्किल से दर्शकों को समझा कर शांत किया गया था.

अब तीसरी बार यही कारनामा दिखाने के लिए जादूगर चंचल के सहयोगियों ने पूरी तैयारी कर ली थी. सारे आवश्यक साजोसामान भी जुटा लिए गए थे. इस के लिए पुलिस और प्रशासन को आवश्यक पत्र भी दिया गया था.

निर्धारित दिन 16 जून को जादूगर के सहयोगियों का दल हावड़ा ब्रिज के पास पहुंच गया. सुबह करीब 10 बजे के आसपास जादूगर चंचल भी वहां आ गए. तब तक जादूगर का अनूठा कारनामा देखने के लिए वहां हजारों लोगों की भीड़ एकत्र हो चुकी थी.

चंचल ने हाथ हिला कर दर्शकों की भीड़ का अभिवादन किया. जादूगर चंचल ने इस दौरान दर्शकों को संबोधित करते हुए कहा कि अगर मैं यह खतरनाक करतब दिखाते हुए नदी से सफलतापूर्वक बाहर आ गया, तो यह जादू होगा और अगर नहीं आ सका तो दुखांत होगा.

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हावड़ा ब्रिज के नीचे पहले से ही 2 जलयान तैयार खड़े थे. जादूगर चंचल इन में से एक जलयान पर चढ़ गए. दूसरे पर उन के सहयोगियों की दूसरी टीम सवार थी, जो पूरे दृश्य को कैमरे में कैद कर रही थी.

हजारों लोगों की मौजूदगी में एक जलयान पर सवार सहयोगियों ने चंचल के हाथपैर मोटी रस्सी और जंजीरों से बांध दिए. जंजीर को 2 तालों से जड़ दिया गया ताकि जादूगर आसानी से न तो अपने हाथपैर हिला सके और न ही ताले खोल सकें. इस के बाद जादूगर की आंखों पर पट्टी बांध दी गई.

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पूरी तैयारी के बाद दोपहर करीब 12.30 बजे रस्सी और जंजीरों से बंधे जादूगर को क्रेन में लंबी रस्सी लटका कर हुबली व गंगा नदी के बीच पानी की तेज धारा में फेंक दिया गया. नदी में फेंके जाने से पहले जादूगर चंचल ने हाथपैर बंधे होने और आंखों पर पट्टी होने के बावजूद एक बार फिर दर्शकों का अभिवादन करने का प्रयास किया. इस पर दर्शकों ने तालियां बजा कर, जयकारे लगा कर जादूगर की हौसला अफजाई की.

जादूगर को नदी के गहरे पानी में फेंके जाने के बाद वहां खड़ी हजारों की भीड़ बिना पलक झपकाए नदी के पानी की सतह पर जादूगर के दिखने का इंतजार करने लगी, दर्शकों को कुछ सेकंड के लिए एक बार जादूगर नदी की सतह पर नजर जरूर आए लेकिन फिर अचानक गायब हो गए और फिर दिखाई नहीं दिए.

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जादूगर को 5-7 मिनट के दरम्यान अपनी कला के बल पर रस्सी, जंजीरों और तालों से मुक्त हो कर नदी की सतह पर आ जाना था. लेकिन ऐसा नहीं हुआ.

लोग टकटकी लगाए जादूगर चंचल के फिर से दिखाई देने का इंतजार कर रहे थे. दर्शकों को एकएक पल मुश्किल लग रहा था. 5 मिनट क्या, जादूगर चंचल को नदी में डाले 15 मिनट से ज्यादा का समय हो चुका था. लेकिन वे नजर नहीं आए.

इस से हजारों दर्शकों के साथ उन के सहयोगियों की बेचैनी भी बढ़ गई. काफी देर इंतजार के बाद अधिकांश दर्शक निराश हो कर लौट गए. सैकड़ों दर्शक वहां रुक कर अगले समाचार का इंतजार करते रहे.

इसी बीच, जादूगर के सहयोगियों ने चंचल की तलाशी के लिए अपने कुछ साथियों को नदी में उतार दिया था. लेकिन जादूगर का कुछ पता नहीं चला. इस के बाद पुलिस को सूचना दे दी गई. सूचना मिलने पर रिवर ट्रैफिक पुलिस जादूगर की तलाश में जुट गई.

बाद में आपदा प्रबंधन टीम और गोताखोर भी आ गए. जिस पिंजड़े में जादूगर को नदी की धारा में फेंका गया था, वह तो मिल गया लेकिन चंचल का कोई पता नहीं चला. इस का मतलब चंचल हाथपैर खोल कर पिंजरे से बाहर तो निकल गए थे, लेकिन किन्हीं कारणों से पानी के सतह से ऊपर नहीं आ सके थे.

इस का मतलब था कि जादूगर के साथ कोई दुर्घटना हो गई थी. फिर भी शाम तक नदी में जादूगर की तलाश होती रही, लेकिन कोई सफलता नहीं मिली. रात को अंधेरा हो जाने के कारण बचाव अभियान रोक दिया गया.

इस बीच, जादूगर के सहयोगियों को कुछ लोगों से पता चला कि घटनास्थल से दूर उन्होंने नदी की तेज धारा में पीले कपड़े पहने हुए एक आदमी को हाथ मारते और बचाव की कोशिश करते देखा था. इन परिस्थितियों में बचाव दल और चंचल के सहयोगियों को जादूगर के जीवित होने की उम्मीद कम ही रह गई थी.

दूसरे दिन 17 जून को रिवर ट्रैफिक पुलिस और आपदा प्रबंधन की टीम के साथ गोताखोर हुगली नदी में जादूगर चंचल की तलाश में फिर से जुट गए. दिनभर तलाशी का काम चलता रहा. इस दौरान वहां हजारों लोग आतेजाते रहे. अधिकारी भी आए गए.

जादूगर के सहयोगियों का दल तो 16 जून की सुबह से ही बिना कुछ खाए पिए वहीं डटा हुआ था. उन की तो जैसे दुनिया ही उजड़ गई थी. वे समझ नहीं पा रहे थे कि ऐसा क्या हुआ, जो जादूगर वापस नहीं आ सके. यह तय था कि जादूगर की कला में कोई कमी रह गई थी.

लगभग 30 घंटे तक चले खोज अभियान के बाद 17 जून की शाम को जादूगर मैंड्रेक का शव हावड़ा के रामकृष्णपुर घाट के पास बरामद हुआ. उन का शव नाव से कदमतल्ला घाट पर लाया गया.

चंचल की पहचान उन के पहने कपड़ों से की गई. करतब दिखाने के लिए वे पीले रंग की शर्ट, लाल पैंट और पीले रंग के नकली बाल पहन कर नदी में कूदे थे. उन का शव देख कर उन के सहयोगी फूटफूट कर रोने लगे. वहां मौजूद चंचल के शुभचिंतकों की आंखों से भी आंसू आ गए.

पुलिस ने आवश्यक काररवाई के बाद इस मामले को धारा 304 के तहत नौर्थ पोर्ट थाने में दर्ज कर लिया. पुलिस का कहना था कि जादूगर ने करतब दिखाने और उस से होने वाले जोखिम की आवश्यक अनुमति नहीं ली थी. जिस जलयान से जादूगर नदी में उतरे थे, उस में जीवनरक्षक व्यवस्था नहीं थी.

जिस क्रेन के सहारे जादूगर को हाथपैर बंधी हालत में नदी में फेंका गया, उस क्रेन के लिए पोर्ट ट्रस्ट से अनुमति नहीं ली गई थी. पुलिस ने 18 जून को जादूगर के शव का पोस्टमार्टम कराने के बाद उन के घर वालों को सौंप दिया.

इस बीच, जादूगर चंचल के सहायक और भतीजे रुद्रप्रसाद लाहिड़ी ने दावा किया कि जादूगर चंचल यानी मैंड्रेक अपनी जादू की कला से सारे बंधन खोल कर नदी की सतह पर आ गए थे और उन्होंने हाथ भी हिलाया था. लेकिन फिर अचानक गायब हो गए. पुलिस इस बात की जांच कर रही है कि कहीं ऐसा तो नहीं कि जादूगर ने करतब दिखाने की अनुमति लेते समय नियमों की कमी का फायदा उठाया हो और अपनी जान से हाथ धो बैठे हों.

कहा जा रहा है कि जादूगर ने पुलिस को अनुमति देने के लिए दिए पत्र में यह नहीं लिखा था कि वे पानी में छलांग लगाएंगे. डीसी पोर्ट सैयद वकार रजा का कहना था कि चंचल लाहिड़ी ने पत्र में लिखा था कि पूरा करतब किसी नाव पर दिखाया जाएगा. इसी आधार पर उन को अनुमति दी गई थी.

अधिकारियों का कहना है कि नदी में फेंके जाने के बाद जादूगर रस्सी और लोहे की जंजीर से बंधे हाथपैर कैसे खोलेगा, इस की जानकारी चंचल के सहयोगी नहीं दे सके. हो सकता है जादूगर ने अपने बंधन खोलने का राज सहयोगियों को बताया ही नहीं हो.

विशेषज्ञों का मानना है कि जादूगर चंचल के शरीर पर भारी भरकम कपड़े और दूसरी चीजें थीं, संभवत: इसी कारण वे नदी के तेज बहाव में तैर नहीं पाए होंगे और मौत के मुंह में समा गए. माना जा रहा है कि जादूगर के टाइम मैनेजमेंट में कुछ कमियों और गलतियों की कीमत उन्हें अपनी जान दे कर चुकानी पड़ी.

इस के अलावा जादूगर को नदी में फेंके जाते समय मौके पर सुरक्षा के इंतजाम नहीं थे. अगर सुरक्षा के इंतजाम होते, तो तुरंत खोजने का अभियान शुरू कर दिया जाता और संभवत: उन की जान बच जाती.

41 साल के जादूगर चंचल लाहिड़ी पश्चिम बंगाल के दक्षिण 24 परगना जिले के सोनारपुर स्थित सुभाष ग्राम के रहने वाले थे. परिवार में उन की मां उमा लाहिड़ी, पत्नी और 10वीं में पढ़ रहा एक बेटा है.

मां उमा लाहिड़ी अपने बेटे को याद करती हुई कहती है कि उसे बचपन से ही जादूगरी के करतब सीखने और दिखाने का शौक था. वह छोटी सी उम्र में ही जादूगरी के बल पर मशहूर हो गया था.

यह दुखद रहा कि जादूगर चंचल उर्फ मैंड्रेक का आखिरी कारनामा उन के जीवन का अंत साबित हुआ. लाहिड़ी की असमय मौत से जादूगर समुदाय में शोक छा गया. देश के मशहूर जादूगर पी.सी. सरकार का कहना है कि शायद लाहिड़ी को ऐसे करतब के लिए और ज्यादा प्रैक्टिस की जरूरत थी.

भारत में करतब दिखाते समय जादूगर की मौत का यह पहला मामला बताया जा रहा है. इस से पहले किसी नामी या चर्चित जादूगर के इस तरह दुखद अंत की कोई बात सामने नहीं आई.

जादू कला भारत में सैकड़ों साल से प्रचलित है. जादूगरों के मामले में बंगाल का नाम मुख्य रहा है. राजा महाराजाओं के काल में जादू कला खूब फली फूली थी. जादू मुख्य रूप से आधुनिक तकनीक, समय प्रबंधन, विज्ञान के सहारे हाथ की सफाई और सम्मोहन पर निर्भर होता है.

कुछ लोग तंत्र विद्या को भी जादू से जोड़ते हैं, लेकिन ऐसा है नहीं. आजकल जादूगरी मनोरंजन के साथ लोगों को साधु-बाबाओं के अंधविश्वास से बचने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है.

हमारे देश में कई मशहूर जादूगर हुए हैं. इन जादूगरों ने भारत के साथ विदेशों में भी अपने करतबों से काफी नाम कमाया है. इन में पीसी सरकार, ओपी शर्मा, अशोक भंडारी, जादूगर आनंद, के. लाल, प्रह्लाद आचार्य, गोपीनाथ मुथुकाड, नकुल शेनौय, यमुनाथ पालिनाथ, गणपति चक्रवर्ती आदि के नाम प्रमुख हैं.

इस से पहले जादूगरी में गोगिया पाशा का पूरी दुनिया में नाम रहा था. भारतीय जादूगरों ने आजकल पुराने और परंपरागत जादू के कारनामों के स्थान पर विज्ञान और तकनीक के सहारे नई नई प्रस्तुतियां शुरू की हैं.

आंखों पर पट्टी पर बांध कर भीड़ भरी सड़कों पर मोटरसाइकिल चलाना, वाटर औफ इंडिया, हैट में से कबूतर निकालना, हथकड़ी लगाना और खोल देना, मंच से गायब हो जाना, आरा मशीन से लड़की के 2 टुकड़े करना, इंद्रजाल आदि कारनामे लोगों को जादू कला देखने के लिए आकर्षित करते हैं.

कुछ जादूगर स्टेज शो के अलावा खुले आसमान तले भी अपनी कला दिखाते हैं. इन में हाथी, बस या ट्रेन गायब करने के करतब भी शामिल हैं. कुछ जादूगर ताजमहल को गायब कर दिखाने का दावा भी करते हैं.

करतब दिखाते समय हुआ यह हादसा कोई पहला नहीं है. इस से पहले भी दुनिया के कई नामी जादूगर अपना करतब दिखाते समय मौत की नींद सो गए. वे करतब उन के लिए आखिरी स्टंट साबित हुए. इस में अमेजिंग जौय के नाम से जाने जाते रहे जौय बुरस एक ताबूत में अपना करतब दिखाते समय मौत के मुंह में समा गए थे. इस करतब में जादूगर को ताबूत में बंद कर सीमेंट से चिन दिया गया था, बाद में जादूगर को अपनी कला से जीवित बाहर निकल आना था. लेकिन अमेजिंग जौय के साथ ऐसा नहीं हुआ.

जादूगरनी प्रिंसेज टेनको अपनी पोशाकों के बल पर जादू दिखाती थीं. एक कारनामा दिखाते हुए उन के पहने कपड़ों पर 10 तलवारें घोंपी गईं. यह कारनामा उन की जिंदगी का आखिरी सफर बन गया. चार्लिस रोवन की कार स्टंट के दौरान मौत हो गई थी. उन्हें यह कारनामा दिखाते हुए कार से भी तेज गति से भागना था.

जादूगर जेनेस्टा को पानी से भरे टैंक में कारनामा दिखाना था. लेकिन वे सफल नहीं हो सके और उन की मौत हो गई. बालाब्रेगा की मौत आग का स्टंट दिखाने के दौरान हुई थी. सन 1934 में नामी जादूगर बेजामिन खुद को जमीन में गाड़ने के बाद भी जीवित बाहर निकल आए थे. लेकिन इस के तुरंत बाद उन की हार्ट अटैक से मौत हो गई थी.

स्टेज पर जादू के कारनामे दिखाते जादूगरों की लोकप्रियता सोशल मीडिया के इस युग में लगातार कम हो रही है, इसलिए जादूगर भी खुद को समय के साथ अपडेट कर रहे हैं. लोगों में जादू के प्रति आकर्षण बनाए रखने के लिए जादूगर नईनई ट्रिक सीख कर उन का प्रदर्शन कर रहे हैं.

कहा जाता है कि बीसवीं सदी में ‘रोप ट्रिक’ नाम के जादू का कारनामा सब से हैरतअंगेज हुआ करता था. इस कारनामे के सफल प्रदर्शन में एकदो जादूगर ही कामयाब हो सके थे. इस कला में जादूगर एक रस्सी को जादू के सहारे आसमान में सीधी खड़ी कर उस पर सीढ़ी की तरह चढ़ कर गायब हो जाता है. इस के बाद उस जादूगर के एकएक अंग नीचे जमीन पर गिरते थे. बाद में वह जादूगर प्रकट हो जाता था. आज भी जादूगरों की नई पीढ़ी इस हैरतअंगेज कारनामे को सीखने को लालायित हैं.

उस्तादों के उस्ताद : अजीबोगरीब चोरी का राज

7 मार्च 2019 की बात है. राजस्थान के सीकर जिले के नीमकाथाना शहर के पुलिस थाने में नागौर जिले के शेरानी आबाद के रहने वाले सुलतान खां ने एक रिपोर्ट दर्ज कराई. इस रिपोर्ट में कहा गया था कि वह अपने भाई इरफान के साथ दिल्ली एयरपोर्ट से सऊदी अरब से आए अपने परिचित इरफान और वली मोहम्मद को ले कर अपनी स्कौर्पियो गाड़ी से नागौर जिले के डीडवाना शहर जा रहा था.

शाम करीब 4 बजे नीमकाथाना बाईपास पर बने रेलवे अंडरपास के नीचे उन की स्कौर्पियो गाड़ी के आगे एक कैंपर गाड़ी और पीछे स्विफ्ट कार आ कर रुकीं. दोनों कारों से उतरे लोगों ने हमारी कार रोक ली और हथियार दिखा कर हमें गाड़ी से उतार दिया.

दोनों गाडि़यों से आए बदमाशों ने हम से 30 हजार रुपए नकद, कपड़े, प्रैस, थर्मस, स्पीकर और काजूबादाम वगैरह लूट लिए. इस के बाद बदमाश अपनी कैंपर कार में मेरे भाई इरफान का अपहरण कर ले गए. साथ ही हमें सड़क पर छोड़ कर हमारी स्कौर्पियो भी ले भागे.

पुलिस ने सुलतान खां की रिपोर्ट दर्ज कर ली. हालांकि रिपोर्ट में ऐसी कोई बड़ी बात नहीं थी. कोई बड़ी लूटपाट भी नहीं हुई थी, लेकिन अपहरण का मामला गंभीर था. पुलिस ने तुरंत काररवाई करते हुए इलाके में चारों तरफ नाकेबंदी करवा दी. पुलिस ने अपहृत इरफान की तलाश शुरू की, तो रात को सीकर जिले में ही हांसनाला मंदिर के पास इरफान और लूटी गई स्कौर्पियो गाड़ी मिल गई.

स्कौर्पियो गाड़ी में इरफान और वली मोहम्मद से लूटी गई रकम, प्रैस, स्पीकर और थर्मस आदि सामान नहीं मिले. फिर भी लूटी गई गाड़ी और अपहृत युवक के मिल जाने से पुलिस ने राहत की सांस ली. बदमाशों ने इरफान को कोई नुकसान नहीं पहुंचाया था. न तो उस से कोई मारपीट की गई थी और न कोई धमकी वगैरह दी गई थी.

हालांकि लूटी गई रकम और अन्य सामान बहुत ज्यादा नहीं था, फिर भी यह गंभीर बात थी कि दिनदहाड़े लूट हुई थी. अगर पुलिस साधारण मामला समझ कर कोई काररवाई नहीं करती, तो हो सकता था भविष्य में कोई बड़ी वारदात हो जाती. नीमकाथाना के थाना प्रभारी राजेंद्र यादव ने इसी बात को ध्यान में रखते हुए लूटपाट की जांच शुरू की.

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पुलिस ने जांच शुरू की, तो पता चला लूटपाट करने वाले बदमाशों की दोनों गाडि़यां सुलतान और उस के साथियों की स्कौर्पियो का पीछा करती हुई नीमकाथाना तक आई थीं. सवाल यह था कि सुलतान की स्कौर्पियो का पीछा कहां से किया गया था.

थानाप्रभारी राजेंद्र यादव के दिमाग में एक सवाल बारबार कौंध रहा था कि 2 गाडि़यों में सवार बदमाश केवल 30 हजार रुपए, कपड़े, प्रैस व स्पीकर जैसे छोटेमोटे सामान के लिए दिनदहाड़े लूट की वारदात को क्यों अंजाम देंगे? या तो बदमाशों को सुलतान और उस के साथियों के पास मोटी रकम होने की सूचना थी, जिस की वजह से उन्होंने लूटपाट की.

दूसरी बात यह थी कि अगर बदमाशों का मकसद इरफान का अपहरण ही था, तो वे उसे छोड़ क्यों गए? बदमाशों ने इरफान को कोई नुकसान भी नहीं पहुंचाया था. ये सवाल थानाप्रभारी को बारबार परेशान कर रहे थे.

समझ से परे थी लूट की वारदात

इन सवालों का सही जवाब या तो बदमाशों के पकड़े जाने पर मिल सकता था या फिर इस बारे में पीडि़त ही कुछ बता सकते थे. इसलिए थानाप्रभारी ने रिपोर्ट दर्ज कराने वाले सुलतान खां और उस के साथी इरफान खां से पूछताछ की. लेकिन उन से ऐसी कोई बात पता नहीं चली जिस से बदमाशों और उन के असल मकसद का पता चल सकता.

सुलतान और इरफान ने लूटपाट करने वाले बदमाशों के बारे में कोई भी जानकारी होने से साफ इनकार कर दिया. उन्होंने सीधे तौर पर किसी पर शक भी जाहिर नहीं किया. ऐसी स्थिति में लूटपाट करने वाले बदमाशों को तलाशना पुलिस के लिए चुनौती से कम नहीं था.

नीमकाथाना के थानाप्रभारी राजेंद्र यादव ने सीकर के एसपी डा. अमनदीप सिंह कपूर के सामने हाजिर हो कर अपने दिमाग में उठ रहे सारे सवाल बताए. एसपी साहब भी थानाप्रभारी की बातों से सहमत थे. उन्होंने थानाप्रभारी से इस मामले की फाइल ले कर एफआईआर और इस के बाद की पुलिस की काररवाई पर सरसरी नजर दौड़ाई. उन्हें लगा कि राजेंद्र यादव की बातों में दम है.

एसपी ने थानाप्रभारी से पूछा, ‘‘राजेंद्र, तुम इस केस को कैसे सौल्व करना चाहते हो?’’

‘‘सर, यह केस सौल्व तो तभी होगा जब बदमाश पकड़े जाएंगे.’’ थानाप्रभारी ने एसपी साहब से कहा, ‘‘सर, सब से पहले हमें यह पता लगाना होगा कि सुलतान और उस के साथियों की स्कौर्पियो गाड़ी का पीछा कहां से शुरू किया गया था.’’

अपनी बात जारी रखते हुए थानाप्रभारी ने एसपी साहब से कहा, ‘‘सर, इस के लिए हमें दिल्ली एयरपोर्ट तक जाना पड़ेगा. इस के साथ हमें दिल्ली से नीमकाथाना तक रास्ते में जहांजहां भी सीसीटीवी कैमरे लगे हैं, वहां पर 7 मार्च की दोपहर की फुटेज देखनी पड़ेगी. इसी से हमे बदमाशों का सुराग मिल सकता है.’’

‘‘राजेंद्र, तुम्हारा आइडिया अच्छा है.’’ एसपी डा. अमनदीप सिंह कपूर ने थानाप्रभारी की हौसलाअफजाई करते हुए कहा, ‘‘तुम जल्दी से जल्दी यह काम पूरा करो. उम्मीद है तुम्हें कामयाबी जरूर मिलेगी.’’

‘‘थैंक यू सर.’’ थानाप्रभारी राजेंद्र यादव ने एसपी साहब को सैल्यूट किया और वहां से निकल गए.

थानाप्रभारी ने नीमकाथाना पहुंचते ही दिल्ली जाने की तैयारी शुरू कर दी. कुछ देर बाद वे अपने 2 मातहतों को ले कर गाड़ी से दिल्ली के लिए रवाना हो गए.

मिली एक बड़ी सफलता

दिल्ली के इंदिरा गांधी एयरपोर्ट पहुंच कर उन्होंने एयरपोर्ट के बाहर लगे सीसीटीवी कैमरों की 7 मार्च की फुटेज निकलवा कर देखी. इस में सुलतान खां और उस के साथियों की स्कौर्पियो के पीछे एक ब्रेजा गाड़ी नजर आई.

इस के बाद पुलिस ने दिल्ली से नीमकाथाना तक के रास्ते में टोल नाके और अन्य जगहों पर लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज निकलवा कर देखी. इन में भी वह ब्रेजा गाड़ी इरफान व वली मोहम्मद की स्कौर्पियो के पीछे पीछे आती हुई नजर आई.

इस ब्रेजा गाड़ी के नंबर के आधार पर पुलिस ने नागौर जिले के लाडनूं थाना इलाके के तितरी गांव के रहने वाले चैन सिंह राजपूत को पकड़ा. चैन सिंह से पूछताछ की गई, तो सुलतान खान के साथियों से की गई लूट की वारदात की गुत्थी सुलझ गई. लेकिन उस ने जो कुछ बताया, उसे सुन कर पुलिस भी हैरान रह गई.

थानाप्रभारी राजेंद्र यादव ने एसपी साहब को सारी बातें बताई. एसपी साहब ने राजेंद्र को शाबासी देते हुए चैन सिंह के बताए बाकी अपराधियों को पकड़ने और माल बरामद करने के निर्देश दिए. साथ ही जिले के कुछ अन्य पुलिस अफसरों को सदर थानाप्रभारी के साथ सहयोग करने के लिए लगा दिया.

पुलिस टीमों ने भागदौड़ कर नागौर जिले के डीडवाना थाना इलाके के कोलिया गांव के रहने वाले इकबाल उर्फ भाणू खां, सीकर जिले के रानोली के रहने वाले विजय कुमार उर्फ बिज्जू भाट, नीम का थाना सदर थाना इलाके के चला गांव निवासी बलराम मील और ढाणी खुड़ालिया तन डहरा जोहड़ी गुहाला के रहने वाले जवान सिंह उर्फ रामस्वरूप जाट को गिरफ्तार कर लिया.

पुलिस ने गिरफ्तार पांचों आरोपियों की निशानदेही पर डेढ़ करोड़ रुपए की कीमत का 4 किलो 300 ग्राम सोना, वारदात में इस्तेमाल की गईं 3 गाडि़यां ब्रेजा, कैंपर और स्विफ्ट के अलावा 315 बोर का एक कट्टा बरामद किया.

सिर्फ  30 हजार रुपए की लूट का करोड़ों रुपए की लूट में खुलासा होने पर जयपुर रेंज के आईजी एस. सेंगाथिर भी सीकर आ गए. उन्होंने आरोपियों से पूछताछ की और एसपी डा. अमनदीप सिंह कपूर और अन्य मातहत अधिकारियों को बधाई दी.

आरोपियों से पूछताछ में जो कहानी उभर कर सामने आई, वह सोने के तस्करों की आपसी रंजिश की कहानी है. उस्तादों के उस्ताद बनने की यह कहानी सरकारी सिस्टम को भी अंगूठा दिखाती है कि किस तरह विदेशों से तस्करी कर सोना भारत में लाया जा रहा है. इस के अलावा विदेशों में बैठे तस्कर ही अपने सहयोगियों से सोने की लूट भी करवा रहे हैं.

यह बात किसी से छिपी नहीं है कि विदेशों से रोजाना चोरी छिपे बड़ी मात्रा में सोना भारत लाया जाता है. विदेशों से अधिकांश सोना हवाई मार्ग से ही आता है. तस्करी से जुड़े लोग सोना लाने और कस्टम से बचने के नएनए तरीके अपनाते हैं. कुछ तस्करों की एयरपोर्ट पर सुरक्षा अधिकारियों या एयरलाइंस के कर्मचारियों से मिलीभगत भी होती है. इस से वे सुरक्षित बाहर निकल आते हैं.

राजस्थान में भी सोने की तस्करी करने वाले कई गिरोह सक्रिय हैं. इन गिरोहों के लोग दिल्ली या जयपुर एयरपोर्ट पर सोना ले कर आते हैं. इन में कभीकभी कुछ लोग पकड़े भी जाते हैं, जबकि अधिकांश तस्कर सुरक्षा व्यवस्थाओं को धता बता कर सोना लाने में सफल हो जाते हैं.

सोने की ऐसे होती है तस्करी

सीकर, चूरू व झुंझुनूं जिले के शेखावटी इलाके के करीब 5 लाख लोग खाड़ी देशों में काम करते हैं. इन में अधिकतर कामगार हैं, जो भवन निर्माण कार्यों से जुड़े हैं. कोई आरसीसी लेंटर डालने का काम करता है, तो कोई टाइल्स लगाने का काम. ये लोग साल छह महीने में एक बार अपने घर आते रहते हैं.

खाड़ी देशों में सक्रिय सोने के तस्कर शेखावटी के इन लोगों को लालच दे कर अपने कैरियर के रूप में इस्तेमाल करते हैं. बदले में इन कैरियर को हवाई टिकट का पैसा और कुछ खर्चा दे दिया जाता है. एयरपोर्ट से बाहर निकलने पर तस्कर गिरोह के लोग इन कैरियरों से सोना ले लेते हैं. एयरपोर्ट पर पकड़े जाने पर कैरियर अगर फंस जाता है, तो बाहर बैठे तस्कर गिरोह के सदस्य अपनी कोशिशें करते हैं. कोशिश कामयाब हो जाती है तो ठीक, वरना ये लोग उस कैरियर से पल्ला झाड़ लेते हैं.

नागौर जिले के खुनखुना थाना इलाके के शेरानी आबाद के रहने वाले शेर मोहम्मद और लाल मोहम्मद सऊदी अरब से कैरियर के माध्यम से तस्करी का सोना मंगवाते हैं. इन में लाल मोहम्मद अब सऊदी अरब में रहता है. जबकि शेर मोहम्मद और लाल मोहम्मद में आजकल रंजिश चल रही है.

रंजिश का कारण यह है कि करीब डेढ़ साल पहले लाल मोहम्मद की ओर से सऊदी अरब से मंगाए गए सोने की लूट हो गई थी. लाल मोहम्मद को इस लूट में शेर मोहम्मद का हाथ होने का शक था. इस के बाद लाल मोहम्मद के साथ एक बार फिर धोखा हो गया. लाल मोहम्मद के लिए सऊदी अरब से तस्करी का सोना ले कर आया एक कैरियर दिल्ली से निर्धारित गाड़ी में न आ कर दूसरी गाड़ी में बैठ कर चला गया था.

बाद में लाल मोहम्मद ने उस का अपहरण कर अपना सोना वसूल किया था. इस मामले में नागौर जिले के खुनखुना थाने में मुकदमा दर्ज हुआ था. इस में पुलिस ने लाल मोहम्मद, चैन सिंह, मोहम्मद अली, अली मोहम्मद, अब्दुल हकीम आदि के खिलाफ चालान पेश किया था.

आजकल सऊदी अरब में रह कर भी लाल मोहम्मद अपने विरोधी शेर मोहम्मद की गतिविधियों की सारी जानकारियां रखता था. चूरू जिले के बीदासर गांव का रहने वाला वली मोहम्मद 3 साल से सऊदी अरब में रह रहा था. वह वहां आरसीसी लेंटर डालने का काम करता था. बीदासर गांव का ही रहने वाला इरफान करीब 9 महीने से सऊदी अरब में रह कर टाइल्स लगाने का काम करता था.

तस्कर देते हैं लालच

वली मोहम्मद और इरफान भारत में अपने घर आना चाहते थे. सोने के तस्कर शेर मोहम्मद को यह बात पता चली, तो उस ने सऊदी अरब में सक्रिय अपने लोगों के माध्यम से इन दोनों को सोना लाने के लिए राजी कर लिया. उस ने दोनों को सऊदी अरब से दिल्ली तक का हवाई जहाज का फ्री टिकट और दिल्ली से गांव तक जाने के लिए टैक्सी कराने का वादा किया था.

दूसरी तरफ सऊदी अरब में रह रहे शेर मोहम्मद के विरोधी लाल मोहम्मद को यह बात पता चल गई कि बीदासर के इरफान और वली मोहम्मद नाम के 2 युवक शेर मोहम्मद के लिए सोना ले जाएंगे. इस पर लाल मोहम्मद ने योजना बना कर इन दोनों से संपर्क कर उन्हें लालच दिया और अपनी योजना में शामिल कर लिया.

सऊदी अरब में तस्करी के लिए सोने को पिघला कर अलगअलग रूपों में ढाल दिया जाता है. फिर उस सोने को पारे की परत चढ़ा कर ऐसा रंग दे दिया जाता है कि वह एल्युमीनियम नजर आता है. इस एल्युमीनियम रूपी सोने को इलैक्ट्रौनिक सामान का पार्ट बना दिया जाता है. इस तरह इलैक्ट्रौनिक उपकरण के रूप में तस्करी का सोना भारत आता है.

निश्चित दिन सऊदी अरब में शेर मोहम्मद के लोगों ने बीदासर के इरफान और वली मोहम्मद को भारत ले जाने के लिए 7 स्पीकर और एक प्रैस में छिपा कर 5 किलो सोना सौंप दिया. इस के बाद शेर मोहम्मद के लोग इन दोनों से मोबाइल के माध्यम से लगातार संपर्क में रहे. वहीं, लाल मोहम्मद भी इरफान और वली मोहम्मद से संपर्क बनाए हुआ था. इन से लाल मोहम्मद को पता चल गया था कि वे किस दिन कौन सी फ्लाइट से दिल्ली पहुंचेंगे.

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स्पीकर में पारे से एल्युमीनियम के रंग में रंगी सोने की प्लेटों को चिपकाया गया था जबकि इलैक्ट्रिक प्रैस में सोने की प्लेट को सिल्वर रंग दे कर नट से कस दिया गया था. इरफान और वली मोहम्मद हवाई जहाज से दिल्ली एयरपोर्ट पर उतर कर बाहर आ गए. कहा जाता है कि सोने के तस्कर शेर मोहम्मद की दिल्ली एयरपोर्ट पर कस्टम व सुरक्षा अधिकारियों से मिलीभगत थी, इसलिए इरफान और वली मोहम्मद को न तो किसी ने रोका और ना ही उन के सामान की जांच की.

सऊदी अरब से सोना ले कर आ रहे इरफान और वली मोहम्मद को दिल्ली से लाने के लिए शेर मोहम्मद ने सुलतान खां और उस के भाई इरफान को स्कौर्पियो गाड़ी ले कर भेजा.

लूटने की बना ली योजना

दूसरी तरफ लाल मोहम्मद ने सऊदी अरब से ईमो कालिंग के जरिए अपने ड्राइवर नागौर जिले के लाडनूं के तितरी निवासी चैन सिंह राजपूत को सोना ले कर आ रहे इरफान और वली मोहम्मद से माल लूटने को कहा.

उस ने चैन सिंह को इरफान और वली मोहम्मद की फोटो सहित फ्लाइट नंबर वगैरह की सारी जानकारी दे दी. इस पर चैन सिंह ने अपने परिचित बदमाशों इकबाल, विजय कुमार उर्फ बिज्जू, जवान सिंह उर्फ रामस्वरूप, बलराम और 3 अन्य लोगों को साथ ले कर सोना लूटने की योजना बनाई.

योजना के मुताबिक चैन सिंह और उस का एक साथी नरेंद्र सिंह ब्रेजा गाड़ी ले कर 7 मार्च को फ्लाइट आने के समय से काफी पहले ही दिल्ली एयरपोर्ट पहुंच गए. उन्होंने फ्लाइट आने के बाद एयरपोर्ट से बाहर निकल रहे यात्रियों में फोटो के आधार पर इरफान और वली मोहम्मद को पहचान लिया. चैन सिंह व उस का साथी नरेंद्र उन पर नजर रखते रहे.

इरफान और वली मोहम्मद जब सुलतान खां व उस के भाई इरफान के साथ उन की स्कौर्पियो में बैठ गए, तो चैन सिंह व उस का साथी अपनी ब्रेजा गाड़ी से उन के पीछे पीछे चलते रहे. बीच बीच में ये लोग अपने साथियों को सूचना भी देते रहे.

दिल्ली से जयपुर वाले नैशनल हाइवे नंबर 8 पर गुड़गांव, धारूहेड़ा, शाहजहांपुर, नीमराना, बहरोड़ हो कर ये लोग कोटपुतली पहुंच गए. कोटपुतली से नीमकाथाना जाने के लिए हाइवे से अलग रास्ता है. नीमकाथाना में बाइपास पर चैन सिंह के बाकी साथी एक कैंपर और एक स्विफ्ट कार में सोना ला रहे इरफान और वली मोहम्मद की स्कौर्पियो गाड़ी का इंतजार कर रहे थे.

दोनों कैरियरों के साथ सुलतान और उस के भाई की स्कौर्पियो गाड़ी जब नीमकाथाना में रेलवे अंडरपास पर पहुंची, तो चैन सिंह के साथियों ने अपनी दोनों गाडि़यां उन की स्कौर्पियो के आगे पीछे लगा कर सुलतान, उस  के भाई इरफान और दोनों कैरियर वली मोहम्मद व इरफान को गाड़ी से नीचे उतार लिया.

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                                  वली मोहम्मद व इरफान

बदमाशों ने इन चारों को अपनी कैंपर गाड़ी में बैठा लिया. इन लोगों ने सुलतान की स्कौर्पियो अपने कब्जे में ले ली. रेलवे अंडरपास से ऊपर चढ़ाई पर सुलतान और उस का भाई इरफान बदमाशों से संघर्ष करने लगे, लेकिन दोनों कैरियर चुपचाप बैठे रहे. इस दौरान बदमाशों की गाड़ी की गति धीमी हो गई, तो दोनों कैरियर इरफान व वली मोहम्मद कूद कर भाग निकले. मौका मिलने पर सुलतान भी किसी तरह बच कर भाग निकला.

बदमाशों ने गाड़ी रोक कर उन्हें पकड़ने का प्रयास किया, लेकिन शहर के बीच और दिन का समय होने के कारण उन्हें फंसने का डर हुआ. इस पर वे सुलतान के भाई इरफान और उन की स्कौर्पियो को ले कर भाग गए.

बाद में सुलतान ने पुलिस को 30 हजार रुपए नकद और इलैक्ट्रौनिक सामान लूटने और इरफान का अपहरण होने की सूचना दी, तो पुलिस ने नाकेबंदी करा दी. नाकेबंदी के दौरान बदमाश हांसनाला मंदिर के पास इरफान और स्कौर्पियो को छोड़ कर भाग गए.

लेकिन स्कौर्पियो में से वह सारा इलैक्ट्रौनिक सामान ले गए, जो इरफान और वली मोहम्मद सऊदी अरब से लाए थे. इसी इलैक्ट्रौनिक सामान में 5 किलोग्राम सोना छिपा कर रखा हुआ था. सुलतान ने पुलिस में जो रिपोर्ट दर्ज कराई, उस में केवल इलैक्ट्रौनिक सामान लूटने की बात कही थी, सोने का जिक्र नहीं किया था.

बाद में चैन सिंह सहित 5 बदमाशों की गिरफ्तारी से 5 किलोग्राम सोने की लूट का भंडाफोड़ हुआ. बाद में पुलिस ने सऊदी अरब से सोना लाने वाले चूरू के बीदासर निवासी इरफान और वली मोहम्मद को भी गिरफ्तार कर लिया. नागौर जिले के मकराना निवासी एक आरोपी नरेंद्र सिंह को भी पुलिस ने बाद में गिरफ्तार किया.

वह दिल्ली एयरपोर्ट से चैन सिंह के साथ ब्रेजा गाड़ी से सुलतान और दोनों कैरियरों का पीछा कर रहा था. इस वारदात में चैन सिंह के साथ मिल कर लूट व अपहरण की वारदात करने वाले कुछ बदमाश कथा लिखे जाने तक फरार थे. पुलिस उन की तलाश कर रही थी.

सभी पुलिस वालों को मिली पदोन्नति

इस के साथ ही 700 ग्राम सोने के बारे में भी पता किया जा रहा है. पुलिस ने 6 स्पीकर और एक प्रैस में भरा 4 किलो 300 ग्राम सोना ही बरामद किया है. एक स्पीकर खाली मिला था. पुलिस को अंदेशा है कि आरोपियों ने एक स्पीकर में भरा सोना खुर्दबुर्द कर दिया होगा.

पुलिस का कहना है कि गिरफ्तार आरोपी विजय कुमार उर्फ बिज्जू भाट राजस्थान के कुख्यात अपराधी आनंद पाल के गिरोह से जुड़ा हुआ था. आनंद पाल के एनकाउंटर के बाद वह राजू ठेहठ गैंग से जुड़ गया. वह अवैध हथियारों की सप्लाई भी करता है. बिज्जू के खिलाफ फायरिंग व लूट के 7 मामले दर्ज हैं. वह 5 हजार रुपए का इनामी बदमाश है.

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                         गिरफ्तार आरोपियों के साथ सीकर पुलिस टीम

इकबाल उर्फ भाणू खां नागौर जिले के कुचामन थाने का हिस्ट्रीशीटर है. कुचामन और डीडवाना में उस के खिलाफ  9 मुकदमे दर्ज हैं. चैन सिंह के खिलाफ  खुनखुना व लाडनूं थाने में अपहरण, मारपीट व शराब तस्करी के 8 मामले दर्ज हैं. जवान सिंह उर्फ रामस्वरूप चर्चित भढाढर हत्याकांड का मुख्य आरोपी है. वह लूट व डकैती की कई वारदातों में भी शामिल रहा है.

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                आईजी एस. सेंगाथिर और एसपी डा. अमनदीप सिंह कपूर

एसपी डा. अमनदीप सिंह कपूर का दावा है कि शेर मोहम्मद हर साल 5 से 7 बार कैरियरों के माध्यम से सऊदी अरब से सोना मंगवाता है. सोने की तस्करी से जुड़े इस मामले की सीबीआई और फेरा को भी जानकारी दी जाएगी. सोना लूट की यह योजना लाल मोहम्मद ने सऊदी अरब में बैठ कर ही बनाई थी, इसलिए उस के खिलाफ  भी काररवाई की जाएगी.

जयपुर रेंज के आईजी एस. सेंगाथिर ने शेखावटी की अब तक की सब से बड़ी सोने की तस्करी का खुलासा करने वाली पुलिस टीम में शामिल नीमकाथाना के डीएसपी रामावतार सोनी, थानाप्रभारी राजेंद्र यादव, साइबर सेल के सबइंसपेक्टर मनीष शर्मा, हैड कांस्टेबल सुभाषचंद, कांस्टेबल कर्मवीर यादव व मुकेश कुमार की पदोन्नति की सिफारिश करने की बात कही है.

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कुत्ते वाली मैडम के काले कारनामे

कानपुर के साकेत नगर के डब्ल्यू ब्लौक के रहने वाले लोग कुत्ते वाली मैडम से  बहुत परेशान थे. सीमा तिवारी नाम की वह महिला संदीप अग्रवाल के मकान में किराए पर रहती थी. उस ने विदेशी नस्ल का कुत्ता पाल रखा था. वह कुत्ता था तो छोटा सा, लेकिन अकसर भौंकता रहता था. जिस से मोहल्ले वाले डिस्टर्ब होते थे.

इस के अलावा सीमा तिवारी के घर शाम ढलते ही लड़के और लड़कियों की आवाजाही शुरू हो जाती थी. कालोनी के लागों को शक था कि सीमा के घर जरूर कोई गैरकानूनी काम होता है. कुछ लोगों को लगता था कि सीमा चकला घर चलाती है. इस मामले में पुलिस ने काररवाई कराने के लिए कुछ लोग एसपी (साउथ) रवीना त्यागी से मिले.

रवीना त्यागी ने आगंतुकों की बात गौर से सुनी और आश्वासन दिया कि यदि जांच में यह सूचना सही पाई गई तो सीमा तिवारी व अन्य दोषियों के खिलाफ जरूरी काररवाई की जाएगी.

उन के जाने के बाद रवीना त्यागी ने तत्काल किदवई नगर के थानाप्रभारी कुंज बिहारी मिश्रा को अपने कार्यालय बुलवा लिया. उन्होंने मिश्रा से कहा कि तुम्हारे थाना क्षेत्र के डब्ल्यू ब्लौक, साकेत नगर में कालगर्ल का धंधा होने की जानकारी मिली है. जांच कर इस मामले में जरूरी काररवाई करो.

कप्तान साहिबा को मिलने के बाद थानाप्रभारी सीधे साकेत नगर पुलिस चौकी पहुंचे. उन्होंने चौकी इंचार्ज डी.के. सिंह से इस बारे में बात की और इस शिकायत की गोपनीय जांच करने को कहा.

चूंकि मामला कप्तान साहिबा ने सौंपा था इसलिए थानाप्रभारी और चौकी प्रभारी ने अपने मुखबिरों को लगा दिया. इस के 2 दिन बाद ही एक खास मुखबिर ने आ कर बताया कि डब्ल्यू ब्लौक साकेत नगर में टेलीफोन एक्सचेंज के पास वाले मकान में जिस्मफरोशी का धंधा होता है. इस रैकेट की संचालिका सीमा तिवारी है, जो कुत्ते वाली मैडम के नाम से जानी जाती है. सीमा का पति भी इस धंधे में दलाली करता है.

थानाप्रभारी ने इस जानकारी से एसपी (साउथ) रवीना त्यागी को अवगत करा दिया. चूंकि दबिश के दौरान सीओ स्तर के पुलिस अधिकारी की मौजूदगी जरूरी होती है, इसलिए एसपी ने सीओ मनोज कुमार के नेतृत्व में एक टीम गठित की. इस टीम में थानाप्रभारी कुंज बिहारी मिश्रा, चौकी इंचार्ज डी.के. सिंह के साथसाथ कुछ हैडकांस्टेबल और सिपाहियों को शामिल किया गया.

11 अप्रैल, 2019 की रात 8 बजे पुलिस टीम ने सीमा तिवारी के अड्डे पर छापा मारा. मकान के अंदर एक कमरे का दृश्य देख कर पुलिस चौंकी. कमरे में 2 अर्धनग्न महिलाएं बिस्तर पर चित पड़ी थीं. उन के साथ 2 युवक कामक्रीड़ा में लीन थे.

पुलिस पर निगाह पड़ते ही दोनों युवकों ने दरवाजे से भागने का प्रयास किया पर दरवाजे पर खडे़ पुलिसकर्मियों ने उन्हें दबोच लिया. दूसरे कमरे में एक युवती सजी संवरी बैठी थी. शायद उसे ग्राहक के आने का इंतजार था.

महिला सिपाही ने उसे भी हिरासत में ले लिया. कमरे में तलाशी के दौरान सैक्सवर्धक दवाएं तथा कई आपत्तिजनक सामग्री बरामद हुई. पुलिस ने ऐसी सभी चीजें अपने कब्जे में ले लीं. छापे में सरगना के अलावा 3 युवतियां, 2 ग्राहक तथा एक दलाल पकड़ा गया. इन सभी को गिरफ्तार कर पुलिस थाने ले आई.

जिस मकान में सैक्स रैकेट चल रहा था, वह संदीप अग्रवाल का था. संदेह के आधार पर पुलिस ने उसे भी हिरासत में ले लिया. संदीप अग्रवाल के पकड़े जाने से हड़कंप मच गया. कई रसूखदार लोगों ने थानाप्रभारी कुंज बिहारी मिश्रा को फोन किया और संदीप अग्रवाल को निर्दोष बताते हुए उसे छोड़ने के लिए दबाव डाला.

लेकिन मिश्राजी ने जांच में दोषी न पाए जाने के बाद ही रिहा करने की बात कही. पूछताछ में संदीप अग्रवाल ने भी स्वयं को निर्दोष बताया और कहा कि वह व्यापारी है. हर साल हजारों रुपया टैक्स देता है. उस ने तो मकान किराए पर दिया था. उसे सैक्स रैकेट की जानकारी नहीं थी. हर पहलू से जांच के बाद जब संदीप अग्रवाल बेकसूर लगा तो पुलिस ने 2 दिन बाद उसे क्लीन चिट दे दी.

सीओ मनोज कुमार ने जिस्मफरोशी के आरोप में पकड़े गए युवक, युवतियों से पूछताछ की तो युवतियों ने अपने नाम सीमा तिवारी, खुशी, विविता तथा मंतसा बताए. इन में सीमा तिवारी सैक्स रैकेट की संचालिका थी. युवकों ने अपने नाम महेश, शैलेंद्र तथा चंद्रेश तिवारी बताए. इन में चंद्रेश तिवारी सीमा का पति था और वह दलाल भी था.

चूंकि सभी आरोपियों ने अपना जुर्म कबूल कर लिया था, इसलिए सीओ मनोज कुमार ने वादी बन कर अनैतिक देह व्यापार अधिनियम 1956 की धारा 3, 4, 5, 6, 7, 8 और 9 के तहत रिपोर्ट दर्ज करा दी. पूछताछ में देह व्यापार में लिप्त युवतियों ने इस धंधे में आने की अपनीअपनी अलगअलग मजबूरी बताई.

सैक्स रैकेट की संचालिका सीमा मूलरूप से उत्तर प्रदेश के कानपुर जिले के कुमऊपुर गांव की रहने वाली थी. उस के पिता बाबूराम तिवारी किसान थे. उन के 3 बच्चों में सीमा सब से छोटी थी.

बाबूराम के पास मात्र 2 बीघा खेती की जमीन थी. कृषि उपज से ही वह अपने परिवार का भरणपोषण करते थे. वह एक बेटे तथा एक बेटी की शादी कर चुके थे. सीमा भी शादी योग्य थी, इसलिए वह उस की शादी के लिए प्रयासरत थे.

सीमा तिवारी साधारण परिवार में पलीबढ़ी जरूर थी लेकिन वह थी खूबसूरत. सीमा ने जब जवानी की दहलीज पर कदम रखा तो उस के रूप में निखार आ गया. कालेज में कई लड़कों से उस की दोस्ती हो गई थी. उन के साथ वह घूमती और मौजमस्ती करती थी. घर वाले देर से घर आने को टोकाटाकी करते तो सीमा कोई न कोई बहाना बना देती थी.

जवान बेटी कहीं बहक न जाए इसलिए उन्होंने उस के लिए लड़का देखने के प्रयास तेज कर दिए. थोड़ी दौड़धूप करने के बाद घाटपुरम का चंद्रेश तिवारी उन्हें पसंद आ गया. उन्होंने सीमा का विवाह चंद्रेश तिवारी के साथ कर दिया.

सीमा ससुराल में कुछ समय तक ठीक रही, फिर धीरेधीरे वह खुलने लगी. दरअसल सीमा ने जैसे सजीले युवक से शादी का रंगीन सपना देखा था, चंद्रेश वैसा नहीं था. चंद्रेश एक पैट्रोल पंप पर काम करता था. उस की आमदनी भी सीमित थी. सीमा न तो पति से संतुष्ट थी और न ही उस की आमदनी से. उस की जरूरतें पूरी नहीं होती थीं. इसे ले कर घर में आए दिन कलह होने लगी.

चंद्रेश चाहता था कि सीमा मर्यादा में रहे और देहरी न लांघे. लेकिन सीमा को बंधन मंजूर नहीं था. वह चंचल हिरणी की तरह विचरण करना चाहती थी. उसे घर का चूल्हाचौका, सासससुर और पति का कठोर बंधन पसंद नहीं था. बस इन्हीं सब बातों को ले कर चंद्रेश व सीमा के बीच झगड़ा बढ़ने लगा. आजिज आ कर सीमा पति का साथ छोड़ कर मायके में आ कर रहने लगी.

सीमा को मनाने चंद्रेश कई बार ससुराल आया लेकिन सीमा उसे हर बार दुत्कार कर भगा देती थी. यद्यपि सीमा के मातापिता चाहते थे कि वह  उन की छाती पर मूंग न दले और पति के साथ चली जाए. मांबाप ने सीमा को बहुत समझाया लेकिन जिद्दी सीमा ने उन की बात नहीं मानी. सीमा मायके में पड़ीपड़ी जब बोर होने लगी तो उस ने कानपुर शहर में नौकरी करने की सोची.

कानपुर शहर के जवाहर नगर मोहल्ले में सीमा की मौसी रहती थी. एक रोज वह सीमा से मिलने गई. सीमा पढ़ीलिखी भी थी और खूबसूरत भी. उसे विश्वास था कि जल्द ही कहीं न कहीं नौकरी मिल जाएगी और उस का जीवनयापन मजे से होने लगेगा. सीमा ने नौकरी के बाबत मौसी से राय मांगी तो मौसी ने भी उसे नौकरी की इजाजत दे दी.

सीमा नौकरी की तलाश में जुट गई. वह जहां भी नौकरी के लिए जाती वहां उसे नौकरी तो नहीं मिलती, लेकिन उस के शरीर को पाने की चाहत जरूर दिखती. सीमा को लगा कि उस का नौकरी का सपना पूरा नहीं होगा.

लेकिन उस ने हिम्मत नहीं हारी. आखिर उस का सपना पूरा हुआ. उसे कपड़े की एक फर्म में नौकरी मिल गई. सीमा का काम था सजसंवर कर काउंटर पर बैठना और बिक्री का लेनदेन करना. सीमा अब नोटों की चकाचौंध में रहने लगी थी.

मौसी को जब पता चला कि सीमा और उस के पति चंद्रेश के बीच विवाद है तो विवाद को सुलझाने के लिए मौसी ने पहले सीमा से बात की. फिर उस के पति चंद्रेश को अपने घर बुलवाया. इस के बाद दोनों को आमनेसामने बैठा कर विवाद को सुलझा दिया. फलस्वरूप दोनों साथसाथ रहने को राजी हो गए.

विवाद सुलझाने के बाद सीमा तिवारी पति चंद्रेश के साथ बर्रा 2 में रहने लगी. दोनों की जिंदगी एक बार फिर ठीक से व्यतीत होने लगी. इधर सीमा को फर्म में नौकरी करते  3 महीने ही बीते थे कि उस पर फर्म के मालिक की नीयत खराब हो गई. वह उसे ललचाई नजरों से देखने लगा और एकांत में बुला कर छेड़छाड़ भी करने लगा.

सीमा ने उस की हरकतों का विरोध करना बंद कर दिया तो फर्म मालिक का हौसला बढ़ गया. आखिर एक रोज उस ने सीमा को अपनी हवस का शिकार बना लिया. सीमा रोती रही, गिड़गिड़ाती रही, लेकिन उस हवस के दरिंदे को जरा भी दया नहीं आई.

सीमा का मुंह बंद करने के लिए उस ने 2 हजार रुपए उस के हाथ में थमा दिए. इस के बाद तो यह सिलसिला सा बन गया. जब भी उसे मौका मिलता सीमा से भूख मिटा लेता. आखिर सीमा ने सोचा कि जब जिस्म ही बेचना है तो नौकरी करने की क्या जरूरत है.

इन्हीं दिनों सीमा की मुलाकात अंजलि से हुई. अंजलि बर्रा 2 में रहती थी और सैक्स रैकेट चलाती थी. वह खूबसूरत मजबूर लड़कियों को अपने जाल में फंसाती थी और उन्हें जिस्मफरोशी के धंधे में उतार देती थी. सीमा ने अपनी व्यथा अंजलि को बताई तो उस ने सीमा को जिस्मफरोशी का धंधा अपनाने की सलाह दी.

सीमा ने अंजलि की बात मान ली और उस के धंधे से जुड़ गई. सीमा खूबसूरत और जवान थी. ऐसी लड़कियों या औरतों को ग्राहकों की कोई कमी नहीं रहती थी. शुरूशुरू में सीमा को इस धंधे से झिझक हुई. लेकिन कुछ समय बाद वह खुल गई.

सीमा जब जिस्मफरोशी करने लगी और खूब पैसा कमाने लगी तो उसके पति चंद्रश्े को उस पर शक हुआ. क्योंकि वह देर रात घर आती तो कभी पूरी रात नहीं आती थी. चंद्रेश पूछता तो अंजलि सहेली के घर रुकने का बहाना बना देती. लेकिन एक रोज जब चंद्रेश ने सख्ती से पूछा तो उस ने सब सचसच बता दिया. उस ने चंद्रेश से भी अनुरोध किया कि वह भी उस के धंधे में सहयोग करे.

सीमा की बात सुन कर चंद्रेश हक्काबक्का रह गया. उस ने कभी सोचा भी नहीं था कि सीमा इतना गिर सकती है. उसे लगा कि अब सीमा को समझाना व्यर्थ है. क्योंकि उसे नोटों और परपुरुष की लत लग चुकी है. चंद्रेश की पैट्रोल पंप वाली नौकरी छूट गई थी. वह बेरोजगार हो गया था.

पत्नी की कमाई से उसे खाना और पीने को शराब मिल रही थी. सो सीमा के अनैतिक काम का विरोध करने के बजाए वह उस के धंधे का सहयोगी बन गया. अब चंद्रेश भी ग्राहक ढूंढ कर लाने लगा. कह सकते हैं कि वह बीवी का दलाल बन गया.

सीमा तिवारी ने सैक्स रैकेट संचालिका अंजलि के साथ जुड़ कर जिस्मफरोशी के सारे गुर सीख लिए थे. अब वह खुद ही रैकेट चलाने लगी. उस ने अपने जाल में कई और लड़कियां फंसा लीं और जिस्म का सौदा करने लगी.

इस ध्ांधे में उसे अच्छी आमदनी होने लगी तो उस ने अपना कद और दायरा भी बढ़ा लिया. अब वह मकान किराए पर लेती और खूबसूरत व जमान युवतियों को सब्ज बाग दिखा कर अपने जाल में फांसती फिर उन्हें देह व्यापार में उतार देती. वह ज्यादातर साधारण परिवार की उन युवतियों को फंसाती जो अभावों में जिंदगी गुजार रही होती थीं.

सीमा तिवारी खूबसूरत के साथसाथ मृदुभाषी भी थी. अपनी भाषाशैली से वह सामने वाले को जल्दी ही प्रभावित कर लेती थी. यही कारण था कि ग्राहक एक बार उस के अड्डे पर आता तो वह बारबार आने लगता था.

सीमा वाट्सऐप के जरिए युवतियों की फोटो अपने ग्राहकों को भेजती. फिर पसंद आने पर उन के जिस्म की कीमत तय करती. उस के यहां 500 से 5 हजार रुपए तक की कीमत तय होती. वह टूर बुकिंग भी करती थी, लेकिन उस की कीमत ज्यादा होती थी. उस का पुराना ग्राहक ही नए ग्राहक लाता था.

अलग सैक्स रैकेट चलाने के बावजूद सीमा, अंजलि के संपर्क में रहती थी. वह सीमा के अड्डे पर लड़कियां व ग्राहक भेजती रहती थी. इस के बदले में वह उस से कमीशन लेती थी. सीमा का पति चंद्रेश भी दलाल बन गया था, वह भी ग्राहक लाता था.

सीमा अब बेहद चालाक हो चुकी थी. वह एक क्षेत्र में कुछ माह ही अपना धंधा चलाती थी. जैसे ही क्षेत्र के लोगों को उस के धंधे की सुगबुगाहट होने लगती, वह जगह बदल देती थी. अंजलि अकसर ऐसा मकान या फ्लैट किराए पर लेती थी, जिस में कोई दूसरा किराएदार न रहता हो.

पहले वह बर्रा क्षेत्र में धंधा करती थी. फिर उस ने क्षेत्र बदल दिया और पनकी क्षेत्र में देहव्यापार चलाने लगी. वहां उस का टकराव एक स्थानीय गुंडे से हो गया था. दरअसल वह गुंडा सीमा से टैक्स वसूलना चाहता था. इस के अलावा वह अय्याशी भी करना चाहता था. सीमा इस गुंडे से परेशान थी और अड्डा बदलना चाहती थी.

मार्च 2019 में सीमा ने किदवई नगर थाना क्षेत्र के डब्लू ब्लौक साकेत नगर में 15 हजार रुपए महीना किराए पर एक मकान ले लिया. यह मकान व्यापारी संदीप अग्रवाल का था, जो किदवई नगर स्थित अपने दूसरे मकान में रहते थे. इस मकान में रह कर सीमा अपने पति चंद्रेश की मदद से सैक्स रैकेट चलाने लगी. उस के अड्डे पर नए पुराने ग्राहक तथा युवतियों आने जाने लगीं. बर्रा की अंजलि भी उस के अड्डे पर युवतियां और ग्राहक भेजने लगी.

सीमा के पास एक विदेशी नस्ल का कुत्ता था. छोटे कद का वह कुत्ता बहुत तेज था. इस कुत्ते को उस ने प्रशिक्षित कर रखा था. वह पूरे मकान में रेकी करता था.

जैसे ही कोई मकान के गेट पर आता, वह तेज आवाज में भौंकने लगता था. कुत्ते की आवाज सुन कर सीमा सतर्क हो जाती और छिप कर देखती थी कि गेट पर कौन आया है. कुछ ही समय में सीमा तिवारी उस ब्लौक में कुत्ते वाली मैडम के नाम से मशहूर हो गई.

सीमा के घर युवक युवतियों का देर रात आनाजाना शुरू हुआ तो पासपड़ोस के लोगों का माथा ठनका. वह आपस में चर्चा करने लगे कि कुत्ते वाली मैडम के यहां युवक युवतियां क्यों आते हैं. उन्होंने निगरानी रखनी शुरू कर दी तो उन्हें शक हो गया कि मैडम सैक्स रैकेट चलाती है. इन्हीं संभ्रांत लोगों ने एसपी (साउथ) रवीना त्यागी के कार्यालय में शिकायत की थी.

देहव्यापार अड्डे से पकड़ी गई 22-23 साल की खुशी बर्रा 4 की कच्ची बस्ती में रहती थी. गरीब परिवार में पली खुशी बेहद खूबसूरत थी. उस की सहेलियां महंगे कपड़े पहनती थीं और ठाठबाट से रहती थीं. उन के पास एक नहीं 2-2 मोबाइल होते थे. वह मोबाइल पर बात करतीं और खूब हंसतीबतियातीं. खुशी जब उन्हें देखती तो सोचती काश ऐसे ठाटबाट उस के नसीब में भी होते.

एक रोज बर्रा सब्जी मंडी से लौटते समय खुशी की मुलाकात अंजलि से हुई. दोनों की बातचीत हुई तो अंजलि समझ गई कि खुशी महत्त्वाकांक्षी है. यदि उसे रंगीन सपने दिखाए जाएं तो वह उस के जाल में आसानी से फंस सकती है.

इस के बाद अंजलि उसे अपने घर बुलाने लगी और उस की आर्थिक मदद भी करने लगी. धीरेधीरे अंजलि ने खुशी को अपने जाल में फंसा लिया और उसे देह व्यापार के धंधे में उतार दिया. छापे वाली रात अंजलि ने ही सौदा कर खुशी को सीमा के घर भेजा था. जहां वह पकड़ी गई. उस समय वह कमरे में ग्राहक के इंतजार में बैठी थी.

पुलिस छापे के दौरान पकड़ी गई विविता भी बर्रा 4 में रहती थी. उस का शौहर साजिद अली शराबी था. वह विविता को मारतापीटता था. विविता पति से परेशान थी और कहीं नौकरी कर अपना गुजरबसर करना चाहती थी. एक रोज सीटीआई टैंपो स्टैंड पर विविता की बातचीत अंजलि से हुई तो उस ने उसे नौकरी दिलाने का भरोसा दिलाया.

एक सप्ताह बाद अंजलि उसे नौकरी दिलाने के बहाने लखनऊ ले गई. वहां उसने एक जानेमाने सफेदपोश नेता के साथ विविता का सौदा कर दिया. विविता को जिस्म के बदले नोट मिले तो वह इसी धंधे में रम गई. पुलिस छापे वाली रात अंजलि ने ही विविता के जिस्म का सौदा तय कर ग्राहक महेश के साथ सीमा के मकान पर भेजा था, जहां दोनों रंगे हाथों पकड़े गए थे.

देह व्यापार के अड्डे से पकड़ी गई मंतसा जवाहर नगर निवासी अली अहमद की पत्नी थी. उस के शौहर ने उसे तलाक दे कर दूसरा निकाह कर लिया था. मंतसा ने कुछ रुपए जोड़ कर सब्जी बेचने का काम शुरू कर दिया, लेकिन उसे यह काम रास नहीं आया. उस ने एक रिश्तेदार से कर्ज लिया तो वह रिश्तेदार उस के पीछे पड़ गया. कर्ज के बदले उस ने मंतसा को अपनी हवस का शिकार बनाया.

वह रिश्तेदार बड़ा चलाक निकला. उस ने खुद तो हवस पूरी कर ली, अब वह उस का सौदा दोस्तों से भी करने लगा. मंतसा जवान और खूबसूरत थी. उसे ग्राहकों की कमी नहीं थी, पर उस के पास जगह नहीं थी. इसी बीच उसे पता चला कि साकेत नगर में रहने वाली सीमा तिवारी सैक्स रैकेट चलाती है.

मंतसा ने सीमा से मुलाकात की और अपनी मजबूरी बताई. मजबूरी का फायदा उठा कर सीमा तिवारी ने मंतसा को अपने रैकेट में शामिल कर लिया. छापे वाली रात सीमा ने मंतसा के जिस्म का सौदा व्यापारी शैलेंद्र के साथ किया था. पुलिस रेड में वे दोनों रंगेहाथों पकड़े गए थे.

पुलिस छापे में पकड़ा गया महेश व्यापारी है. उस का प्लास्टिक का व्यवसाय है. वह अपनी कमाई का आधे से ज्यादा भाग अय्याशी और शराब में खर्च कर देता था. शादीशुदा होते हुए भी वह दूसरी औरतों की बाहों में सुख खोजता था. उस की अय्याशी से उस की पत्नी बेहद परेशान थी. उस ने पति को बहुत समझाया, लेकिन पति सुधरने के बजाय उलटे उस की पिटाई कर देता था.

एक रोज महेश को पता चला कि बर्रा-2 में रहने वाली अंजलि लड़कियां भी उपलब्ध कराती है और जगह भी. यह पता चलते ही महेश ने अंजलि से मुलाकात की और अच्छी लड़की के बदले मुंहमांगी रकम देने को कहा. अंजलि ने उसे जगह और युवती उपलब्ध करा दी.

इस के बाद वह अंजलि का ग्राहक बन गया. छापे वाली रात अंजलि ने ही महेश से रकम तय करने के लिए विविता को उस के साथ सीमा तिवारी के अड्डे पर भेजा था. जहां महेश, विविता के साथ रंगेहाथ पकड़ा गया था.

देह व्यापार के अड्डे से पकड़ा गया शैलेंद्र भी बर्रा में ही रहता था और महेश का दोस्त था. दोनों का व्यापार भी एक था. दोनों साथसाथ शराब पीते थे और अय्याशी करते थे. छापे वाली रात महेश ही शैलेंद्र को सीमा के अड्डे पर ले गया था. सीमा ने मंतसा को दिखा कर उस का सौदा शैलेंद्र से किया था. चंद्रेश तिवारी को पुलिस ने निगरानी करते पकड़ा था.

सीमा की सहयोगी अंजलि को पकड़ने के लिए पुलिस ने बर्रा स्थित उस के किराए वाले मकान पर छापा मारा लेकिन वह पकड़ी नहीं जा सकी. पुलिस का कहना है कि जब वह पकड़ी जाएगी, तब उस के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर काररवाई की जाएगी.

12 अप्रैल, 2019 को थाना किदवई नगर पुलिस ने देह व्यापार में पकड़ी गई सीमा तिवारी, विविता, मंतसा, खुशी तथा ग्राहक महेश, शैलेंद्र व दलाल चंद्रेश तिवारी को गिरफ्तार कर कानपुर कोर्ट में रिमांड मजिस्ट्रैट के समक्ष पेश किया, जहां से सभी को जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

रेनू जिंदा है तो वो कौन थी?

23 नवंबर, 2018 को कार्तिक पूर्णिमा थी. उस रोज उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले के करमैनी घाट पर मेला लगा हुआ था. यहां पर यह मेला हर साल कार्तिक पूर्णिमा के दिन लगता है. इस दिन दूरदूर से लोग नदी में नहाने आते हैं. मेले में भारी भीड़ जुटती है. इसी जिले के पीपीगंज इलाके के रामूघाट की रहने वाली 18 वर्षीया रेनू साहनी भी अपने दोनों भांजों के साथ मेला देखने आई थी.

रेनू अपनी बड़ी बहन लीलावती के साथ उस की ससुराल मूसाबार (पीपीगंज) में रहती थी. जबकि उस की मां चंद्रावती और पिता ब्रह्मदेव रामूघाट गांव में ही रहते थे. उस का एक भाई था जो कानपुर में रह कर वहीं नौकरी करता था.

बहरहाल, रेनू कई दिन पहले से मेला देखने की तैयारी कर रही थी. चूंकि मूसाबार से करमैनी घाट की दूरी ज्यादा नहीं थी, इसलिए वह अपनी बहन लीलावती के दोनों बेटों को साथ ले घर से खुशी खुशी पैदल ही मेला देखने चली गई थी.

रेनू को घर से निकले करीब 6 घंटे बीत चुके थे, लेकिन वह वापस नहीं लौटी थी. लीलावती को बेटों को ले कर फिक्र हो रही थी. जब दोपहर के 2 बज गए और रेनू घर नहीं लौटी तो लीलावती ने पति इंद्रजीत से पता लगाने को कहा. उस दिन इंद्रजीत घर पर ही था. वैसे इंद्रजीत ने रेनू से कहा भी था कि अकेले जाने के बजाए वह उस के साथ मेला देखने चले. लेकिन रेनू ने बहन और बहनोई से कहा कि वह मेला देख कर थोड़ी देर में घर लौट आएगी. इसलिए वह दोनों भांजों को अपने साथ ले कर चली गई थी.

रेनू की बात मान कर लीलावती और इंद्रजीत ने उसे मना नहीं किया और बच्चों के साथ जाने की अनुमति दे दी. जब काफी देर बाद भी वह घर नहीं आई तो इंद्रजीत बाइक ले कर साली रेनू और बच्चों को ढूंढने करमैनी घाट जा पहुंचा. इंद्रजीत ने अपनी बाइक खड़ी कर के बच्चों और साली को ढूंढने के लिए पूरा मेला छान मारा लेकिन न बच्चे मिले और न रेनू.

रहस्यमय ढंग से गायब हुई रेनू

इंद्रजीत परेशान हो गया. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करे. कुछ नहीं सूझा तो वह घाट से थोड़ी दूर स्थित करमैनी पुलिस चौकी जा पहुंचा. वहां पहुंचते ही वह चौंक गया. क्योंकि वहां उस के दोनों बच्चे कुरसी पर बैठे रो रहे थे. पुलिस वाले उन्हें चुप कराने की कोशिश कर रहे थे. बच्चों ने जब अपने पिता को देखा तो भावावेश में और जोर जोर से रोने लगे.

इंद्रजीत ने झट से दोनों बच्चों को सीने से लगा लिया. जब वे चुप हुए तो उन से उन की रेनू मौसी के बारे में पूछा. बच्चों ने बताया कि रेनू मौसी मेले में कहीं गायब हो गईं. नहीं मिलीं तो हम रोने लगे. पुलिस वालों ने इंद्रजीत से पूछा कि बात क्या है? मेले में बच्चे रोते हुए दिखे तो हम यहां ले आए. इस के बाद इंद्रजीत ने पुलिस वालों को पूरी बात बता दी और उन से रेनू को ढूंढने में मदद मांगी.

चूंकि मामला एक अविवाहित लड़की से जुड़ा हुआ था इसलिए पुलिस वालों ने उसे समझाया कि पहले घर जा कर देख लें. हो सकता है कि वह घर पहुंच गई हो. अगर वह घर पर नहीं मिले तो गुमशुदगी की सूचना कैंपियरगंज थाने में लिखवा दे. बच्चों के मिल जाने से इंद्रजीत को थोड़ी तसल्ली तो हुई लेकिन साली के न मिलने पर वह परेशान था. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि घर जा कर वह पत्नी और फिर सासससुर को क्या जवाब देगा.

इंद्रजीत बच्चों को बाइक पर बैठा कर घर पहुंचा. घर पहुंच कर उस ने सब से पहले पत्नी से रेनू के बारे में पूछा. लीलावती ने मना कर दिया तो वह और परेशान हो गया. उस ने पत्नी से बता दिया कि रेनू मेले से गायब हो गई है. उस का कहीं पता नहीं चल रहा.

छोटी बहन के रहस्यमय तरीके से गायब होने की जानकारी मिलते ही लीलावती रोने लगी. वह बारबार एक ही बात दोहरा रही थी कि मां जब रेनू के बारे में पूछेगी तो उन्हें क्या जवाब देगी.

इंद्रजीत पत्नी के साथ उसी शाम अपनी ससुराल रामूघाट पहुंचा और उस ने सासससुर को रेनू के गायब होने की पूरी बात बता दी. बेटी के गायब होने की जानकारी मिलते ही वे दोनों परेशान हो गए. उन्होंने अपनी रिश्तेदारियों में कई जगह फोन कर के रेनू के बारे में पूछा पर वह किसी भी रिश्तेदारी में नहीं पहुंची थी.

धीरेधीरे शाम ढल गई और रात पांव पसारने लगी. फिर धीरेधीरे रात पूरी बीत गई. न रेनू घर लौटी और न ही उस की कोई खबर मिली. जवान बेटी के घर से गायब होने की पीड़ा क्या होती है, चंद्रावती महसूस कर रही थी. उस ने बेटी की चिंता में पूरी रात आंखोंआंखों में काट दी थी.

दूसरा दिन भी रेनू की तलाश में बीत गया, लेकिन उस की कोई खबर नहीं मिली. 25 नवंबर को चंद्रावती दामाद इंद्रजीत के साथ कैंपियरगंज थाने पहुंची और बेटी की गुमशुदगी की सूचना दे दी. रेनू की गुमशुदगी दर्ज करने के बाद पुलिस हरकत में आई. 3 दिन बाद 28 नवंबर, 2018 को कैंपियरगंज थाने के माधोपुर बांध के पास झाड़ी से एक युवती की लाश बरामद हुई.

उस के गले में रस्सी कसी हुई थी. स्थानीय समाचारपत्रों ने इस समाचार को प्रमुखता से प्रकाशित किया. अखबार में प्रकाशित खबर इंद्रजीत साहनी ने भी पढ़ी. युवती की लाश उसी इलाके से बरामद हुई थी, जहां से रेनू गायब हुई थी. उस के मन में बुरेबुरे खयाल आने लगे थे.

30 नवंबर को इंद्रजीत सास चंद्रावती को साथ ले कर कैंपियरगंज थाने जा कर विक्रम सिंह से मिला. उस ने मेले से रेनू के गायब होने की बात उन्हें बताई. थानेदार साहब ने मालखाने से युवती के कपड़े और फोटो मंगवाए.

फोटो देखते ही चंद्रावती और इंद्रजीत फफक फफक कर रोने लगे. उन्होंने युवती की लाश की शिनाख्त रेनू के रूप में कर दी. लाश की शिनाख्त होने के बाद पुलिस ने थोड़ी राहत की सांस ली और मोर्चरी में रखी लाश पोस्टमार्टम के बाद घर वालों के सुपुर्द कर दी. इस के बाद घर वालों ने रेनू का अंतिम संस्कार कर दिया.

बेटी के दाह संस्कार के 2 दिनों बाद चंद्रावती दामाद इंद्रजीत के साथ कैंपियरगंज थाने पहुंची और बेटी की हत्या की नामजद तहरीर थानेदार को सौंप दी. तहरीर में उस ने बताया कि उस की बेटी रेनू की हत्या उस के पट्टीदार रेलकर्मी रामसजन साहनी और उस के फौजी बेटे ज्ञानेंद्र साहनी ने मिल कर की है. पुलिस ने तहरीर के आधार पर रामसजन और उस के बेटे ज्ञानेंद्र साहनी के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर के आवश्यक काररवाई शुरू कर दी.

रिपोर्ट दर्ज करने के बाद पुलिस आरोपियों की गिरफ्तारी के लिए रामूघाट स्थित उन के घर पहुंची तो दोनों ही घर पर नहीं मिले. घर वालों से पता चला कि दोनों अपनी ड्यूटी पर गए हैं. रामसजन रोज सुबह नौकरी पर निकल जाते हैं और बेटा सीमा पर तैनात है. यह बात पुलिस को बड़ी अजीब सी लगी कि फौज में सीमा पर तैनात ज्ञानेंद्र ने यहां आ कर हत्या कैसे कर दी?

थानेदार ने यह जानकारी एसएसपी डा. सुनील गुप्ता, एसपी (नौर्थ) अरविंद कुमार पांडेय और सीओ (कैंपियरगंज) रोहन प्रमोद बोत्रे को दी. एसएसपी डा. सुनील गुप्ता ने एसपी (नौर्थ) अरविंद पांडेय को आरोपियों को गिरफ्तार करने के निर्देश दिए.

इस के बाद एसपी (नौर्थ) अरविंद पांडेय और सीओ रोहन प्रमोद बोत्रे ने पहले घटनास्थल का दौरा किया, जहां से रेनू गायब हुई थी और उस स्थान का भी मुआयना किया, जहां उस की लाश पाई गई थी.

जांच के दौरान अधिकारियों के गले से एक बात नहीं उतर रही थी कि जब मेले में रेनू दोनों भांजों को साथ ले कर गई थी, तो भीड़भाड़ वाली जगह से रेनू का अपहरण करने वालों ने बच्चों का अपहरण क्यों नहीं किया?

उधर थानेदार को एक चौंकाने वाली बात पता चली. घटना वाले दिन रामसजन और उस का बेटा ज्ञानेंद्र सचमुच गांव में नहीं थे. दोनों अपनी अपनी ड्यूटी पर थे. इस से पुलिस को लगा कि उन दोनों को रंजिश के तहत फंसाया जा रहा है. इधर चंद्रावती आरोपियों को गिरफ्तार करने के लिए पुलिस अधिकारियों पर दबाव बनाए हुई थी.

एसएसपी डा. सुनील गुप्ता ने अपने औफिस में एक जरूरी बैठक बुलाई. बैठक में एसपी (नौर्थ) अरविंद पांडेय, सीओ रोहन प्रमोद बोत्रे और थानेदार विक्रम सिंह शामिल थे. मीटिंग में जांच के उन सभी पहलुओं पर चर्चा हुई जो विवेचना के दौरान प्रकाश में आए थे. इन बिंदुओं में बच्चों का अपहरण न होना प्रमुख था.

पुलिस को लग रहा था जैसे चंद्रावती और उस का दामाद इंद्रजीत कुछ छिपा रहे हों. जिस घर में एक जवान बेटी की मौत हुई हो, उस घर में पुलिस को मातम जैसी कोई बात नहीं दिख रही थी. बेटी की मौत का गम न तो मां चंद्रावती के चेहरे पर था और न ही लीलावती या इंद्रजीत के चेहरे पर.

यह बात पुलिस को बुरी तरह उलझा रही थी, इसीलिए  एसएसपी गुप्ता ने अपने मातहतों से चंद्रावती और उस के परिवार पर नजर रखने के लिए कह दिया था. धीरेधीरे 6 महीने का समय बीत गया.

बात अप्रैल, 2019 की है. मुखबिर ने पुलिस को एक बेहद चौंका देने वाली सूचना दी. उस ने पुलिस को बताया कि चंद्रावती और उस का परिवार एक अनजान व्यक्ति से बराबर बातें करते हैं. रात के अंधेरे में एक औरत और मर्द आते हैं और फिर रात में ही वे लौट जाते हैं.

मुखबिर की यह बात पुलिस को हैरान कर देने वाली लगी. थानेदार ने यह बात सीओ बोत्रे से बताई तो उन्होंने एसपी साहब से बात कर के चंद्रावती का मोबाइल फोन सर्विलांस पर लगवा दिया. सर्विलांस के जरिए पुलिस को एक ऐसे नंबर का पता चला, जिस की लोकेशन 23 नवंबर को करमैनी घाट की मिली. इस का मतलब यह हुआ कि उस दिन रेनू मेले से जब गायब हुई थी तो वह व्यक्ति भी मेले में मौजूद था.

जांच करने पर वह नंबर जिला अयोध्या के थाना इनायतनगर के गांव पलिया रोहानी निवासी आनंद यादव का निकला. फिलहाल उस की लोकेशन कानपुर के काकादेव इलाके में आ रही थी.

रेनू निकली जीवित

जांचपड़ताल में एक बेहद चौंकाने वाली सूचना मिली. जिस रेनू की हत्या किए जाने की बात कही जा रही थी दरअसल वह जिंदा थी. रेनू के जिंदा होने वाली बात जैसे ही पुलिस अधिकारियों को पता चली तो वे आश्चर्यचकित रह गए. पुलिस ने यह बात अपने तक गुप्त रखी क्योंकि वह रेनू को किसी भी हालत में जिंदा ही पकड़ना चाहती थी.

पुलिस की एक टीम आनंद यादव को पकड़ने के लिए कानपुर रवाना कर दी गई. पता नहीं कैसे आनंद को पुलिस के आने की भनक मिल गई. वह काकादेव इलाका छोड़ कर कहीं और जा कर छिप गया.

पुलिस कई दिनों तक आनंद की तलाश में कानपुर की गलियों की खाक छानती रही. लेकिन वह पुलिस के हत्थे नहीं चढ़ा, लिहाजा पुलिस खाली हाथ गोरखपुर लौट आई.

बहरहाल 14 मई, 2019 की रात करीब 9 बजे मुखबिर ने थानेदार विक्रम सिंह को रेनू के बारे में एक महत्त्वपूर्ण सूचना दी. सूचना मिलते ही थानेदार पुलिस टीम के साथ कैंपियरगंज रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म नंबर-1 पर पहुंच गए.

वहां एक कोने में समीज सलवार पहने रेनू एक युवक के साथ बैठी मिली. पुलिस ने दोनों को हिरासत में ले लिया. पूछताछ करने पर रेनू ने बताया कि जिस युवक के साथ है, वह उस का पति आनंद यादव है. पुलिस दोनों को थाने ले आई.

थाने ला कर दोनों से कड़ाई से पूछताछ की गई तो दोनों ने जो जानकारी पुलिस को दी, वह वाकई हैरान कर देने वाली थी.

कैंपियरगंज पुलिस के हाथ बड़ी कामयाबी लगी थी. जिस रेनू की परिवार वालों ने हत्या किए जाने का दावा किया था, वह जिंदा मिल गई थी. रेनू हत्याकांड की गुत्थी सुलझा कर पुलिस की बांछें खिल उठीं. बाद में थानेदार ने अधिकारियों को सूचना दे दी.

अगले दिन 15 मई, 2019 को एसपी (नौर्थ) अरविंद कुमार पांडेय और सीओ रोहन प्रमोद बोत्रे ने पत्रकारवार्ता आयोजित की. इस पत्रकारवार्ता में रेनू के घर वालों को भी बुलाया गया था. वे वहां उपस्थित थे.

पत्रकारों के सामने पुलिस ने रेनू और आनंद को पेश किया तो गोरखपुर के 2 पुराने मामलों शिखा दूबे और वैशाली श्रीवास्तव उर्फ ब्यूटी कांड की यादें ताजा हो गई थीं. उस के बाद रेनू ने खुद पूरी घटना पत्रकारों के सामने बयान कर दी, जिसे सुन कर मीडियाकर्मी भी चौंक गए. रेनू के घर वालों ने जब वहां रेनू को देखा तो उन के चेहरे का रंग उड़ गया.

पत्रकारवार्ता के बाद पुलिस ने दोनों प्रेमी युगल रेनू साहनी उर्फ कनक मिश्रा और आनंद यादव उर्फ आनंद मिश्रा को हिरासत में ले कर जेल भेज दिया.

रेनू के साथसाथ उस की मां चंद्रावती, बड़ी बहन लीलावती और जीजा इंद्रजीत साहनी को भी गिरफ्तार कर लिया गया. तीनों ने मिल कर एक बड़ी साजिश रची थी. अपनी कुटिलता से वे पुलिस को नाहक परेशान करते रहे. आखिर उन्होंने इतनी बड़ी साजिश क्यों रची, पूछने पर एक रोमांचक कहानी सामने आई—

18 वर्षीय रेनू साहनी मूलरूप से उत्तर प्रदेश के जिला गोरखपुर के पीपीगंज इलाके के रामूघाट की रहने वाली थी. उस के पिता का नाम ब्रह्मदेव साहनी था. ब्रह्मदेव के 3 बच्चों में रेनू सब से छोटी थी. रेनू से बड़ा एक भाई और बहन लीलावती थी. ब्रह्मदेव दोनों बच्चों की शादी कर चुके थे. अब केवल रेनू की शादी करनी बाकी थी.

ब्रह्मदेव कानपुर में नौकरी करते थे और परिवार के साथ रहते थे. वह जिस मोहल्ले में किराए पर रहते थे, वहीं पर पड़ोस में आनंद यादव अकेला रहता था. वह अयोध्या जिले के इनायतनगर के पलिया रोहानी का रहने वाला था. आनंद के परिवार वाले अयोध्या में रहते थे. जबकि वह कानपुर में रह कर प्राइवेट नौकरी करता था. दोनों के मकान ठीक आमने सामने थे.

स्मार्ट और कसरती बदन वाले आनंद की नजरें घर से निकलते हुए कभीकभार बालकनी में खड़ी खूबसूरत रेनू से टकरा जाती थीं. नजर पड़ते ही वह हौले से मुसकराते हुए आगे बढ़ जाता था. बदले में रेनू भी उसी अंदाज में मुसकरा कर जवाब दे दिया करती थी. बात आई गई हो गई, न तो आनंद ने इसे दिल से लिया था और न ही रेनू ने.

लेकिन पड़ोसी होने के नाते आनंद कभीकभार रेनू के घर चला जाया करता था. दरअसल रेनू का एक भाई आनंद की उम्र का था. उस से आनंद की अच्छी निभती थी. रेनू के भाई की वजह से ही आनंद का उस के घर में आनाजाना शुरू हुआ था. यह बात सन 2016 की है.

घर आनेजाने से आनंद की नजर रेनू पर पड़ जाती थी. नजदीक से जब उस ने रेनू को देखा तो उस के दिल में चाहत पैदा हो गई. गजब की खूबसूरत रेनू उस के दिल में उतरती चली गई. उसे रेनू से प्यार हो गया था. ऐसा नहीं था कि यह प्यार एकतरफा था. रेनू भी आनंद में आनंद लेने लगी थी. वह भी उस से प्यार करने लगी थी.

मौका देख कर दोनों ने एकदूसरे से प्यार का इजहार कर लिया था. इस के बाद आनंद का रेनू के घर आनेजाने का सिलसिला बढ़ गया था. अचानक आनंद का घर में ज्यादा आनाजाना शुरू हुआ तो ब्रह्मदेव को कुछ अजीब लगा. अनुभवी ब्रह्मदेव ने पत्नी से कह दिया कि आनंद घर में जब भी आए, तो उस पर नजर रखना. मामला कुछ गड़बड़ लगता है. मुझे उस के लक्षण कुछ अच्छे नहीं दिख रहे.

पति की बातों को चंद्रावती ने भी गंभीरता से लिया. जल्द ही सब कुछ सामने आ गया था. पति का शक नाहक नहीं था. रेनू और आनंद के बीच में कुछ खिचड़ी जरूर पक रही थी. बेटी की हरकतें देख कर चंद्रावती का पारा सातवें आसमान को छू गया. फिर उस ने सोचा कि गुस्से से नहीं, ठंडे दिमाग से काम लेना चाहिए. क्योंकि बेटी सयानी है, कहीं कुछ ऊंचनीच हो गया तो समाजबिरादरी को क्या मुंह दिखाएंगे.

मां ने समझाया रेनू को

एक दिन चंद्रावती ने बेटी को समझाने के लिए अपने पास बुला कर कहा, ‘‘बेटी, मैं एक बात पूछती हूं. सच बताएगी क्या?’’

‘‘पूछो मां, क्या बात है?’’ रेनू बोली.

‘‘रेनू, मैं देख रही हूं कि आजकल तुम्हारे पांव कुछ ज्यादा ही बहक रहे हैं.’’ चंद्रावती बोली.

‘‘तुम कहना क्या चाहती हो मां, मैं कुछ समझी नहीं.’’ रेनू ने उत्तर दिया.

‘‘नहीं समझ रही तो मैं समझाए देती हूं. मैं यह कह रही हूं कि तुम्हारे पापा को तुम्हारी करतूतों के बारे में सब पता चल चुका है. आनंद से मेलजोल बढ़ाने की जरूरत नहीं है. अभी भी वक्त है, अपने बहके हुए कदमों को रोक लो वरना कयामत आ जाएगी.’’ मां की बातें सुनते ही रेनू सन्न रह गई और सोचने लगी कि मां को उस के प्यार के बारे में कैसे पता चल गया.

‘‘क…कौन आनंद?’’ हकलाती हुई रेनू मां के पास से उठ खड़ी हुई और आगे बोली, ‘‘मेरा आनंद से कोई लेनादेना नहीं है मां. फिर तुम ने यह कैसे सोच लिया कि मेरा आनंद के साथ कोई चक्कर है. क्या तुम्हें अपनी बेटी पर भरोसा नहीं है?’’

‘‘भरोसा ही तो टूटता हुआ दिखाई दे रहा है बेटी, तभी तो तुम्हें आगाह कर रही हूं कि अभी भी वक्त है. तुम खुद को संभाल लो, नहीं तो आगे तुम खुद ही भुगतोगी.’’ मां ने एक तरह से चेतावनी भी दी.

मां की बात अनसुनी करते हुए रेनू कमरे में चली गई. वह ये सोच कर हैरान थी कि मां को उस के रिश्तों के बारे में आखिर कैसे पता चला. रेनू ने यह बात आनंद से बता कर उसे सावधान कर दिया कि उन के प्यार के बारे में उस के घर वालों को पता चल चुका है, इसलिए सतर्क हो जाए नहीं तो हमारा मिलना बहुत मुश्किल हो जाएगा.

रेनू के समझाने पर आनंद मान गया था. इस के बाद उस ने उस के घर आनाजाना कम कर दिया. वह कभी जाता भी था तो केवल रेनू के भाई से बातचीत कर के थोड़ी देर में अपने कमरे पर वापस लौट आता था. इसी बीच आनंद ने सब से नजरें बचाते हुए एक एंड्रायड मोबाइल फोन खरीद कर रेनू को गिफ्ट कर दिया था ताकि घर वालों के पाबंदी लगाए जाने पर उस से उस की लगातार बातें होती रहें.

रेनू पर लगा दी गई पाबंदी

रेनू के मांबाप ने उस पर सख्त पाबंदी लगा दी थी. इस के बावजूद भी उन्हें महसूस हो गया था कि लाख मना करने के बावजूद रेनू ने आनंद से मिलनाजुलना बंद नहीं किया है. अब तो पानी सिर से ऊपर गुजरने लगा था. क्योंकि वह खुलेआम आनंद से मिलती और बातें करती थी.

रेनू की ये हरकतें उन से सहन नहीं हो रही थीं. वे अपनी मानमर्यादा को बचाने में लगे हुए थे. उन्हें इस बात का डर था कि बेटी के साथ कहीं ऊंचनीच हो गई तो वे समाज में क्या मुंह दिखाएंगे.

आखिर बेटी की हरकतों से परेशान हो कर ब्रह्मदेव ने कानपुर छोड़ गोरखपुर लौटने का फैसला कर लिया. सन 2018 के अक्तूबर के पहले हफ्ते में नौकरी छोड़ कर ब्रह्मदेव बच्चों के साथ गोरखपुर वापस आ गया.

गोरखपुर आने के बाद चंद्रावती ने रेनू को अपनी बड़ी बेटी लीलावती के पास उस की ससुराल मूसावार, कैंपियरगंज भेज दिया. सोचा कि वह बड़ी बहन के पास रहेगी तो उस का मन भी लगा रहेगा और निगरानी भी करती रहेगी.

जैसेतैसे एक सप्ताह बीता. रेनू अपने प्रेमी आनंद से मिलने के लिए बेताब हो रही थी. वह जानती थी कि ऐसा कदापि संभव नहीं है लेकिन वह उस की यादों में तिलतिल कर तड़प रही थी. वह फोन से बातें कर के अपने मन को समझाबुझा लेती थी. रेनू जानती थी कार्तिक पूर्णिमा के दिन कैंपियरगंज के करमैनी घाट पर बड़ा मेला लगता है. घर से भागने के लिए उसे वही उचित समय लगा. सोचा कि मेला देखने के बहाने वह घर से निकल जाएगी.

महीनों इंतजार के बाद आखिरकार वह दिन भी आ गया. 23 नवंबर, 2018 को करमैनी घाट पर कार्तिक पूर्णिमा का मेला लगा हुआ था. मेला के एक दिन पहले 22 नवंबर, 2018 को रेनू ने प्रेमी आनंद को फोन कर के साथ भागने के लिए गोरखपुर करमैनी घाट में पहुंचने के लिए कह दिया था.

प्रेमिका का फोन आते ही आनंद उसी रात ट्रेन द्वारा कानपुर से गोरखपुर पहुंच गया. फिर वहां से बस द्वारा कैंपियरगंज चला गया. वहां से सवारी कर के करमैनी घाट मेला पहुंचा और निर्धारित जगह पर रेनू का इंतजार करने लगा. बहाने से रेनू दोनों भांजों को साथ ले कर मेला देखने के बहाने करमैनी घाट पहुंच गई.

भांजों को थोड़ी देर मेला घुमाने के बाद उन्हें खाने के सामान दिलवा दिए और थोड़ी देर में लौट आने को कह कर वह बच्चों को मेले में एक जगह छोड़ कर प्रेमी आनंद से मिलने चली गई, जो करमैनी पुलिस चौकी से कुछ दूर खड़ा उसी का इंतजार कर रहा था.

रेनू जैसे ही प्रेमी आनंद के पास पहुंची तो वह खुश हो गया. फिर वे दोनों वहां से टैंपो में सवार हुए और सीधे कैंपियरगंज बस स्टाप पहुंचे. वहां से बस में सवार हो कर गोरखपुर आए. गोरखपुर से ट्रेन से अगले दिन कानपुर पहुंच गए.

इधर रेनू को घर से निकले करीब 5-6 घंटे बीत चुके थे. जब रेनू घर नहीं लौटी तो घर वाले परेशान हो गए थे. बाद में उन्होंने गुमशुदगी की सूचना थाने में लिखवा दी.

रेनू के गायब होने के चौथे दिन 27 नवंबर, 2018 को चंद्रावती के पास एक अनजान नंबर से फोन आया. फोन आनंद यादव ने किया था. उस ने रेनू की मां को बता दिया कि उस की बेटी रेनू उस के पास सुरक्षित है. उस ने यह भी कहा कि हम दोनों ने कानपुर के बारादेई मंदिर में आर्यसमाज विधि से विवाह कर लिया है.

यह सुन कर चंद्रावती के होश उड़ गए. उस ने कोई जवाब नहीं दिया. आनंद खुद को आनंद मिश्रा और रेनू को कनक मिश्रा के रूप में लोगों को परिचय देता था. अगले दिन 28 नवंबर को कैंपियरगंज के करमैनी घाट के माधोपुर बांध की झाड़ी से एक 18 वर्षीया युवती की लाश पाई गई.

इस खबर के बाद चंद्रावती के दिमाग में एक कपोलकल्पित कहानी उपज गई. उस ने सोचा कि रेनू घर वालों के मुंह पर कालिख पोत कर भागी है, तो क्यों न उसे सदा के लिए मरा मान लिया जाए. दामाद इंद्रजीत से पूरी बात बता कर उस से ऐसा ही करने को कहा तो इंद्रजीत सास की बात टाल न सका. उस ने वही किया जो उसे सास ने करने के लिए कहा था.

फिर 30 नवंबर को चंद्रावती दामाद इंद्रजीत को साथ ले कर कैंपियरगंज थाने पहुंची. 2 दिन पहले माधोपुर बांध से पाई गई लाश को अपनी बेटी की लाश बता उस का अंतिम संस्कार कर दिया.

बेटी का अपहरण और अपहरण के बाद हत्या का आरोप चंद्रावती ने अपने पट्टीदार रामसजन और उस के बेटे ज्ञानेंद्र पर लगाया. दरअसल चंद्रावती और रामसजन के बीच जमीन को ले कर काफी दिनों से विवाद चल रहा था. इसी विवाद का लाभ चंद्रावती उठाना चाहती थी.

रामसजन पर झूठा मुकदमा दर्ज करा कर वह उस से पैसे ऐंठने की फिराक में भी थी. लेकिन उस की दाल नहीं गली. फिर अंत में 7 महीने बाद 14 मई, 2019 को रेनू की हत्या की झूठी कहानी से राजफाश हो गया. पुलिस ने चंद्रावती सहित पांचों अभियुक्तों को गिरफ्तार कर के जेल भेज दिया.

अब सवाल यह उठ रहा था कि जिस युवती को रेनू की लाश समझा जा रहा था, वह तो जिंदा निकली तो फिर वह कौन थी जिस की लाश का चंद्रावती ने अंतिम संस्कार किया था. पुलिस इस रहस्यमय गुत्थी को सुलझाने में लगी हुई है. देखना यह है कि क्या पुलिस उस युवती की हत्या के मामले को सुलझाने में कामयाब हो सकेगी या यूं ही यह मामला रहस्य की चादर में लिपटा रह जाएगा.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

जीजा का अजीज साला : पैसों के लिए किया डबल मर्डर

8 मार्च, 2019 को सुबह के यही कोई 9 बजे थे. गोरखपुर के थाना सहजनवा के एसओ वी.के. सिंह को गणेश नाम के एक युवक ने फोन पर सूचना दी कि भकसा गांव के बाहर एक खेत में एक पुरुष और एक महिला की लाशें पड़ी हैं, किसी ने उन की गला रेत कर हत्या की है. उस समय एसओ साहब अपने सरकारी क्वार्टर में थे, जो थाना परिसर में ही था.

एसओ साहब तुरंत थाने पहुंचे और पुलिस टीम के साथ उसी समय भकसा गांव के लिए निकल गए. यह गांव थाने से लगभग 10 किलोमीटर दूर उत्तर दिशा में था. इसलिए वहां पहुंचने में पुलिस को 15 से 20 मिनट लगे.

जहां लाशें पड़ी थीं, वहां भारी संख्या में तमाशबीन जमा थे. पुलिस के पहुंचते ही वे सब इधरउधर हो गए. वहां पर 2 लाशें पड़ी थीं, एक आदमी की दूसरी औरत की. दोनों लाशों के बीच 200 मीटर का अंतर था. दोनों की ही हत्या किसी धारदार हथियार से गला काट कर की गई थी.

घटनास्थल का मुआयना कर के एसओ वी.के. सिंह ने उच्चाधिकारियों को फोन कर के सूचना दे दी. कुछ ही देर में एसपी (साउथ) विपुल कुमार श्रीवास्तव और एसपी (सिटी) विनय कुमार सिंह घटनास्थल पर पहुंच गए.

पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का निरीक्षण किया तो वहां पर एक सर्जिकल ब्लेड और एक जोड़ी ग्लव्स मिले. इस आधार पर पुलिस ने अनुमान लगाया कि हत्यारे शायद मैडिकल पेशे से जुड़े रहे होंगे या फिर उन में से कोई ऐसा होगा जिसे मैडिकल के सामान की बखूबी जानकारी हो. पुलिस ने वहां मौजूद लोगों से लाशों के बारे में शिनाख्त करानी चाही लेकिन कोई भी उन्हें नहीं पहचान सका.

स्थानीय लोगों से पता चला कि रात में एक एंबुलेंस गांव के बाहर खड़ी देखी गई थी. इस से पुलिस ने अनुमान लगाया कि घटना में कम से कम 5-6 लोग शामिल रहे होंगे, क्योंकि मृतकों की कद काठी के हिसाब से वे दोनों 4-5 लोगों के कब्जे में आने वाले नहीं थे. परिस्थितियों को देखते हुए अनुमान लगाया जा रहा था कि मृतक शायद पतिपत्नी  होंगे.

पुलिस ने जरूरी काररवाई कर दोनों लाशें पोस्टमार्टम के लिए बाबा राघवदास मैडिकल कालेज, गुलरिहा भेजवा दीं. फिर भकसा के चौकीदार रामसमुझ की तरफ से अज्ञात हत्यारों के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 201, 120बी के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया गया. पुलिस के सामने पहली समस्या मृतकों की शिनाख्त की थी. शिनाख्त हो जाने के बाद ही हत्यारों तक पहुंचा जा सकता था.

उधर घटनास्थल पर जुटे अनेक लोगों ने अपने अपने मोबाइल फोन में घटनास्थल पर पड़ी लाशों के फोटो खींच लिए थे. उन्होंने वह फोटो वाट्सऐप पर वायरल करने शुरू कर दिए. अगले दिन 9 मार्च को वह फोटो वायरल होतेहोते खोरबार थाने के महुलीसुधरपुर के रहने वाले वीरेंद्र निषाद के मोबाइल पर भी पहुंचे.

फोटो देख कर वीरेंद्र बुरी तरह चौंका. क्योंकि वह फोटो उस के भाई रविंद्र निषाद और भाभी संगम देवी के थे. भाई 7 मार्च को रोजाना की तरह घर से अपने काम पर निकला था और भाभी उसी दिन शाम को घर से दवा लेने के लिए डाक्टर के पास गई थी. फोटो देख कर वीरेंद्र की आंखों से आंसू बहने लगे.

9 मार्च के अखबारों में फोटो सहित 2 अज्ञात लाशें मिलने की खबर छपी. वह खबर किसी ने वीरेंद्र को दिखाई. इस से उसे यह जानकारी मिल गई कि भाई और भाभी की लाशें जिस जगह मिली हैं वह इलाका थाना सहजनवा के अंतर्गत आता है. जो उस के गांव से काफी दूर था. इसलिए गांव के कुछ लोगों के साथ वह थाना सहजनवा की तरफ चल दिया. वह सभी मोटरसाइकिलों पर सवार थे.

वीरेंद्र थाने पहुंच कर एसओ वी.के. सिंह से मिला और अखबार में छपी खबर और वाट्सएप के फोटो दिखाते हुए कहा कि मृतक उस के भाई रविंद्र निषाद और भाभी संगम देवी है. यह कहते कहते वीरेंद्र रोने लगा. लाशों की शिनाख्त होने के बाद एसओ ने राहत की सांस ली.

वीरेंद्र ने एसओ वी.के. सिंह को बताया कि रविंद्र ठेकेदार था. वह ठेके पर प्लंबिंग का बड़ा काम करता था. फिलवक्त उस का काम सहजनवा के गांव सरैया में चल रहा था. घर से वह बुलेट मोटरसाइकिल ले कर निकला था. वह अपने पास 2 मोबाइल रखता था लेकिन पुलिस को घटनास्थल से न तो बुलेट मिली थी और न कोई मोबाइल. इस का मतलब यह था कि हत्यारे साक्ष्य मिटाने के लिए उस का मोबाइल और मोटरसाइकिल अपने साथ ले गए थे.

पुलिस ने वीरेंद्र से दोनों की हत्या की वजह पूछी तो उस ने आशंका जताई कि कूड़ाघाट की रहने वाली सरिता से रविंद्र की जमीन के सौदे के ले कर काफी समय से विवाद चल रहा था. कहीं ऐसा तो नहीं कि रुपए हड़पने के लिए सरिता ने भाई और भाभी की हत्या करवा दी हो. पुलिस ने वीरेंद्र के बयान को आधार बना कर जांच की दिशा इसी ओर मोड़ दी.

पुलिस इस दोहरे हत्याकांड की गुत्थी सुलझाने में जुटी हुई थी, तभी 9 मार्च को दोपहर के वक्त एसओ वी.के. सिंह के मोबाइल पर एक मुखबिर की काल आई. मुखबिर ने बताया कि पीपीगंज थानाक्षेत्र के जरहद गांव के बाहर 2 दिनों से एक लावारिस बुलेट मोटरसाइकिल खड़ी है.

मुखबिर की सूचना पर सहजनवा पुलिस जरहद गांव पहुंच गई और उस बुलेट को थाना सहजनवा ले आई. बुलेट वीरेंद्र को दिखाई तो उस ने बाइक पहचान ली. बुलेट उस के भाई रविंद्र की ही थी.

इस दोहरे हत्याकांड की गुत्थी काफी उलझी हुई थी. पहली बात तो यह कि मृतक गोरखपुर के थाना खोराबार के महुली सुधरपुर के रहने वाले थे. जबकि उन की हत्या सहजहनवा थाने के भकसा गांव में हुई थी. तीसरे मृतक की बुलेट मोटरसाइकिल मिली पीपीगंज थाने के जरहद गांव में. इस तरह यह घटना 3 थानों से जुड़ गई थी.

घटना के फैले हुए तथ्यों से लग रहा था कि हत्यारा बहुत चालाक और शातिर किस्म का है. क्योंकि उस ने पुलिस को इस तरह उलझा दिया था कि हत्या की कोई कड़ी नजर नहीं आ रही थी. एक बात यह भी थी कि हत्यारे या हत्यारों को वहां के भौगोलिक परिवेश की अच्छी जानकारी थी.

दोहरे हत्याकांड की गुत्थी सुलझाने के लिए एसएसपी डा. सुनील गुप्ता ने 3 टीमें बनाईं. तीनों टीमों के साथ मीटिंग कर के उन्होंने कुछ दिशानिर्देश भी दिए. तीनों टीमें अपनेअपने काम में जुट गईं. इसी क्रम में पुलिस ने  कई संदिग्ध लोगों के ठिकानों पर ताबड़तोड़ दबिश दीं. कुछ लोगों को हिरासत में ले कर उन से पूछताछ की गई. लेकिन हत्यारों का कोई सुराग नहीं मिला.

वीरेंद्र ने जिस महिला सरिता पर शक जताया था पुलिस ने उसे भी हिरासत में ले कर कड़ी पूछताछ की. लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. सरिता दोहरे मर्डर में कहीं से दोषी नजर नहीं आई तो पुलिस ने उसे भी पूछताछ के बाद कुछ हिदायत दे कर छोड़ दिया.

हफ्ता भर बीत जाने के बाद भी पुलिस जहां से चली थी, वहीं खड़ी नजर आ रही थी. पुलिस ने एक बार फिर से मौके पर जा कर क्राइम सीन को समझने की कोशिश की. साथ ही आसपास के लोगों से पूछताछ की. पूछताछ से पुलिस को कुछ सफलता हाथ लगी.

पता चला कि घटना वाली रात 10-साढ़े 10 बजे गांव के बाहर जो फोरव्हीलर खड़ा हुआ था वह एंबुलेंस नहीं, बल्कि लाल रंग की एक मारुति कार थी. उस कार में 4-5 लोग देखे गए थे. कार आधे घंटे के बाद वापस चली गई थी. उस के बाद क्या हुआ, किसी को कुछ पता नहीं था.

इस बीच पुलिस ने मृतक रविंद्र निषाद और उस की पत्नी संगम देवी के फोन नंबरों की काल डिटेल्स निकलवा कर अध्ययन किया. पता चला कि घटना वाले दिन सुबह 11 बजे के आसपास रविंद्र के मोबाइल पर एक काल आई थी. उसी नंबर से शाम करीब 4 बजे फिर काल की गई थी. फिर साढ़े 7 बजे रविंद्र और संगम देवी का मोबाइल फोन स्विच्ड औफ हो गए थे.

संगम देवी के फोन की काल डिटेल्स से पता चला कि शाम करीब साढ़े 4 बजे उस के फोन पर रविंद्र निषाद की काल आई थी. दोनों के बीच करीब 5 मिनट बातचीत भी हुई थी.

फिर 7 बजे दोनों की लोकेशन पीपीगंज इलाके में मिली. काल डिटेल्स के अध्ययन से यह बात साफ हो गई थी कि 7 बजे के करीब रविंद्र और संगम दोनों एक साथ पीपीगंज के किसी एक स्थान पर मौजूद थे. उस के बाद दोनों के मोबाइल फोन एक साथ स्विच्ड औफ हो गए.

मतलब साफ था, दोनों के साथ जो कुछ भी हुआ वह 7 साढ़े 7 बजे के बीच में ही हुआ था. हत्यारों की सुरागरसी के लिए पुलिस ने चारों ओर मुखबिरों का जाल फैला दिया था. जिस मोबाइल नंबर से रविंद्र निषाद के फोन पर आखिरी बार काल आई थी, पुलिस ने उस नंबर का पता लगा लिया था. वह नंबर  अजीज के नाम से लिया गया था. अजीज गोरखपुर के चिलुआताल थाना क्षेत्र के काजीपुर डोहरिया का रहने वाला था. इतने सुराग का मिल जाना पुलिस के लिए काफी था.

15 मार्च, 2019 को सुराग मिलते ही पुलिस काजीपुर डोहरिया में अजीज के घर पहुंच गई. संयोग से अजीज घर पर ही मिल गया. पुलिस को देख कर अजीज का पसीना छूटने लगा. उस से पूछताछ करने पर पता चला कि वह एक तांत्रिक है और घर पर ही झाड़फूंक का काम करता है.

अजीत को हिरासत में ले कर पुलिस लौट आई. उस से सख्ती से पूछताछ की गई तो 2 मिनट में ही उस ने घुटने टेक दिए. अपना जुर्म कबूल करते हुए उस ने बताया कि उस ने उन दोनों की हत्या अपने छोटे भाई नफीस और दोस्त गुलाम सरवर के साथ मिल कर की थी.

घटना के बाद से नफीस फरार है, जबकि गुलाम सरवर सहजनवा के कालेसर गांव में छिपा है. अजीज की निशान देही पर पुलिस ने गुलाम सरवर को गिरफ्तार कर लिया. जैसे ही उस की नजर पुलिस की जीप में बैठे अजीज पर पड़ी तो वह समझ गया कि पुलिस को सब कुछ पता चल गया है.

थाने में पुलिस ने गुलाम सरवर से भी सख्ती से पूछताछ की. सरवर ने अपना जुर्म कबूल करते हुए पूरी घटना सिलसिलेवार बता दी. पुलिसिया पूछताछ में दोहरे हत्याकांड के पीछे विश्वासघात और रुपए हड़पने की कहानी सामने आई. कभी जीजा कहने वाले तांत्रिक अजीज ने अपनी ही मुंहबोली बहन को विधवा बना दिया.

बहुचर्चित रविंद्र निषाद और संगम देवी हत्याकांड की गुत्थी पुलिस ने सुलझा ली थी. 16 मार्च, 2019 को एसएसपी डा. सुनील गुप्ता ने पत्रकार वार्ता का आयोजन कर के पत्रकारों के सामने दोहरे हत्याकांड का सिलसिलेवार तरीके से खुलासा किया. इस दोहरे हत्याकांड की जो कहानी सामने आई, इस प्रकार निकली—

35 वर्षीय रविंद्र निषाद उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले के महुलीसुधरपुर का रहने वाला था. रविंद्र अपने बड़े भाई वीरेंद्र के साथ एक ही मकान में संयुक्त रूप से रहता था. दोनों भाइयों में गजब का आपसी मेलजोल था. दोनों एकदूसरे के सुखदुख में बराबर खड़े रहते थे.

रविंद्र ठेकेदार था. वह दूरदूर तक प्लंबिंग का ठेका लेता था. ठेकेदारी के काम से उस ने खूब पैसा कमाया. उस ने अपना आलीशान मकान बनवाया. बच्चों के सुखसुविधा की सारी भौतिक वस्तुओं का प्रबंध किया. अपने दोनों बेटों आदित्य और अभय को अच्छे स्कूल में दाखिल कराया. उन की शिक्षा पर वह खूब पैसा खर्च कर रहा था.

इस बीच रविंद्र ने कूड़ाघाट की रहने वाली सरिता से इसी इलाके में एक बड़ा प्लौट खरीदा. उस ने जो प्लौट खरीदा था, बाद में पता चला कि वह विवादित है. सरिता ने वही प्लौट एक और व्यक्ति को भी बेच दिया था. रविंद्र को जब इस सच्चाई का पता चला तो उसे अपने साथ हुए धोखे का अहसास हुआ.

रविंद्र समझदार इंसान था. उस ने बड़ी ही सूझबूझ से काम लिया और सरिता से अपना पैसा लौटाने का आग्रह किया. लेकिन सरिता की नीयत बिगड़ चुकी थी. उस ने पैसे देने से इनकार कर दिया. बात लाखों रुपए की थी. रविंद्र यूं ही अपना पैसा आसानी से नहीं जाने देना चाहता था. जब उस ने देखा कि बात आसानी से नहीं बनेगी तो उस ने अदालत का सहारा लिया.

रविंद्र की पत्नी संगम का मायका कुशीनगर में था. जिस गांव में उस का मायका था, उसी गांव में तांत्रिक अजीज का भी पुश्तैनी मकान था. वह संगम को अच्छी तरह जानता पहचानता था. अजीज संगम को बहन कहता था. अजीज का गोरखपुर के चिलुआताल के काजीपुर डोहरिया में भी मकान था. अजीज अपने परिवार के साथ अधिकतर काजीपुर डोहरिया में ही रहता था.

पुलिस के अनुसार, काफी पहले आरोपी अजीज की जिंदगी बड़ी तंगहाली से गुजरी थी. तब वह तंत्रमंत्र नहीं जानता था, बल्कि मेहनतकश इंसान था. बात करीब 8 साल पहले की है. अजीज हैदराबाद में पेंट पौलिश का काम करता था. पेंट पौलिश के काम से इतनी कमाई नहीं होती थी, जितनी उस की ख्वाहिश थी. इसलिए उस ने वह काम छोड़ दिया.

जहां अजीज किराए के कमरे में रहता था, उसी के पड़ोस में एक झाड़फूंक करने वाला आदमी रहता था. अजीज देखता था कि वह बिना मेहनत किए झाड़फूंक से रोज हजारों रुपए कमा लेता है. अजीज के दिमाग में यह बात घर कर गई कि वह भी तंत्र विद्या सीखेगा. फिर क्या था, उस ने चतुराई से उस व्यक्ति को अपना गुरु बना लिया और उस से लोगों को बेवकूफ बनाने के लिए तथाकथित तंत्र विद्या सीख ली.

तंत्रमंत्र का पाखंड सीखने के बाद वह हैदराबाद से गोरखपुर आ कर यही काम करने लगा. सन 2014 से वह झाड़फूंक कर के लोगों को ठग रहा था. उस की ढंग की दुकान चल निकली. उस के पास दूरदराज से भी बड़ी संख्या में लोग आते थे.

रविंद्र की ससुराल से अजीज का पुराना संपर्क था. रविंद्र के शरीर पर सफेद दाग हो गए थे. ससुराल के लोगों के कहने पर इलाज के लिए वह अजीज से डोहरिया जा कर मिला.

अजीज के झाड़फूंक करने पर रविंद्र के सफेद दागों में थोड़ा फायदा होने लगा. यह देख कर रविंद्र खुश हो गया और अजीज का मुरीद बन गया. इस के बाद से रविंद्र और उस के परिवार के लोगों का उस के पास आनेजाने का सिलसिला शुरू हो गया. अजीज रविंद्र को संगम की वजह से जीजा कहता था.

घर आनेजाने से तांत्रिक अजीज रविंद्र के घर के कोनेकोने से वाकिफ था. वह यह भी जानता था कि रविंद्र मालदार पार्टी है. रविंद्र उस का मुरीद है, यह बात तांत्रिक अजीज भलीभांति जानता था. उस ने सोचा क्यों न इस संबंध का लाभ उठाया जाए. संयोग की बात यह थी कि रविंद्र के पास 5 लाख रुपए घर में रखे थे. यह रकम उस ने जमीन खरीदने के लिए रखी थी.

अजीज को इस की जानकारी हो गई थी. उस ने मकान बनवाने की बात कहते हुए उस से 5 लाख रुपए उधार मांगे. अजीज ने उस से वायदा किया कि जब उसे कहीं जमीन मिल जाएगी तब वह लौटा देगा. रविंद्र इनकार नहीं कर सका और 5 लाख रुपए उसे दे दिए. यह जून 2018 की बात है.

इसी बीच अजीज के छोटे भाई नफीस की शादी पक्की हो गई थी. शादी 17 फरवरी, 2019 को होनी तय हुई. अजीज की मंशा थी कि शादी से पहले घर बनवाया जाए ताकि नई दुलहन आराम से रह सके. रविंद्र से लिए 5 लाख रुपए थे ही. अजीज को 5 लाख रुपए दिए हुए धीरेधीरे 6 महीने बीत गए. रुपए लेने के बाद अजीज ने डकार तक नहीं ली. वह चुप्पी साध कर बैठ गया.

फिर क्या था? रविंद्र ने रुपए वापस करने के लिए अजीज से तगादा करना शुरू कर दिया. रुपए को ले कर दोनों के संबंधों में दरार आ गई. इसी बीच नफीस की शादी भी कैंसिल हो गई. भाई की शादी टूट जाने और रविंद्र के बारबार तगादा करने से अजीज रविंद्र से चिढ़ गया. वैसे भी लौटाने के लिए उस के पास रुपए नहीं थे. वह सब मकान बनवाने में खर्च हो गए थे. अब वह रुपए लौटाता तो कहां से. उस की समझ में कुछ नहीं आ रहा था.

अजीज की नीयत में खोट आ गई थी. वह रविंद्र के रुपए हड़पना चाहता था. उधर, रविंद्र और उस की पत्नी संगम के बारबार के तगादे से अजीज परेशान हो गया था. उस ने उसे कई बार समय दिया लेकिन रुपए नहीं लौटा सका.  परेशानी की इस हालत में अजीज के दिमाग में एक खतरनाक विचार आया. उस ने सोचा कि क्यों न रविंद्र को ही रास्ते से हटा दिया जाए. न वह जिंदा रहेगा और न रुपए के लिए बारबार तगादा करेगा.

गुलाम सरवर तांत्रिक अजीज का परम भक्त था, जो कुशीनगर जिले के पड़रौना के गायत्रीनगर में रहता था. वह बिहार के मुजफ्फरपुर स्थित एक आयुर्वेदिक मैडिकल कालेज से बीएमएस की पढ़ाई कर रहा था. तीसरे सेमेस्टर में 2 बार फेल होने के कारण वह पढ़ाई छोड़ कर महाराजगंज में जनसेवा नामक हास्पिटल चलाने लगा था. रोजीरोटी के लिए गुलाम सरवर बेल्डिंग का काम करता था.

परेशान अजीज ने गुलाम सरवर के सामने अपना दुखड़ा रोया और रविंद्र को रास्ते से हटाने में उस से मदद मांगी तो वह बिना सोचेसमझे अजीज का साथ देने के लिए तैयार हो गया. सरवर के साथ आ जाने के बाद उस ने छोटे भाई नफीस को भी साथ मिला लिया.

तीनों ने मिल कर योजना बनाई कि रुपए लौटाने के बहाने रविंद्र को घर बुलाएंगे और उस का काम तमाम कर के लाश को कहीं ठिकाने लगा देंगे. इस बीच नफीस और गुलाम सरवर स्थान की भी रेकी कर आए. गुलाम सरवर पडरौना से सर्जिकल ब्लेड और ग्लव्स खरीद लाया.

सब कुछ तय योजना के मुताबिक चल रहा था. योजना के मुताबिक, 6 मार्च, 2019 को अजीज ने रविंद्र को फोन कर कहा कि तुम 7 मार्च, 2019 को घर आ कर रकम ले जाओ. गुलाम सरवर और नफीस 7 मार्च की सुबह ही अजीज के घर आ गए थे. पिछली रात नफीस पडरौना स्थित गुलाम सरवर के घर रुक गया था. दोपहर में सरवर व नफीस कार से 8 किलोमीटर दूर सहजनवा के भकसा गांव गए. उन्हें वारदात को अंजाम देना था.

रेकी करने के बाद दोनों वापस आए. शाम 4 बजे अजीज ने रविंद्र को फोन कर के पूछा कि कब तक आ रहे हो. रविंद्र ने कुछ समय बाद पहुंचने को कहा. फिर रविंद्र ने उसी समय पत्नी संगम को फोन किया कि तुम तैयार हो जाओ, पैसे लेने अजीज के यहां पहुंचना है.

संगम को डाक्टर के पास चेकअप के लिए भी जाना था सो वह तैयार हो गई. संगम तैयार हो कर कैंट इलाके के रुस्तमपुर पहुंची तब तक रविंद्र भी बुलेट मोटरसाइकिल से सहजनवा की सरैया साइट से वहां पहुंच गया.  पत्नी संगम को साथ ले कर रविंद्र शाम 5 बजे अजीज के घर डोहरिया पहुंच गया.

रविंद्र के साथ उस की पत्नी संगम को देख कर तीनों चौंक गए. अजीज ने मन ही मन सोचा कि शिकार तो एक होना था, यहां तो दोनों ही शिकार होने चले आए. फिर क्या था, अजीज दोनों से कुछ देर इधरउधर की बातें करता रहा. तब तक नफीस दोनों की खातिरदारी के लिए प्लेट में नाश्ता और पीने के लिए पानी ले आया. अजीज ने पानी में पहले ही नशीली गोली डाल दी थी. वही पानी नफीस ने दोनों को पिला दिया.

पानी पीने के कुछ देर बाद दोनों अचेत हो गए. दोनों के बेहोश होने के बाद नफीस और गुलाम सरवर लाल रंग की मारुति कार में डाल कर उन्हें सहजनवा के भकसा गांव ले गए. कार से काजीपुर डोहरिया से भकसा पहुंचने में उन्हें करीब डेढ़ घंटा लगा. कार खुद गुलाम सरवर चला रहा था. उस समय रात के 10 बज रहे थे.

कार उन्होंने गांव के बाहर खड़ी कर दी. नफीस और सरवर ने कार से रविंद्र और संगम को बारीबारी से बाहर निकाला और खेत में ले जा कर लेटा दिया. सरवर ने हाथों में ग्लव्स पहने और सर्जिकल ब्लेड से रविंद्र की गला रेत कर हत्या कर दी.

इत्तफाक से उसी समय संगम को होश आ गया और उस ने पति की हत्या होते देख ली. वह लड़खड़ाती हुई वहां से भागी. लेकिन उन के हाथों से नहीं बच सकी. करीब 200 मीटर दूर दौड़ा कर उस की भी उसी ब्लेड से हत्या कर दी गई.

पुलिस को गुमराह करने के लिए सर्जिकल ब्लेड और ग्लव्स उन्होंने घटनास्थल पर ही छोड़ दिए. रविंद्र की मोटरसाइकिल और दोनों मोबाइल फोन ले कर वे वहां से चले गए. रास्ते में राप्ती नदी थी, अजीज ने दोनों मोबाइल फोन नदी में फेंक दिए और घर जा कर आराम से सो गया. अगले दिन नफीस और सरवर पडरौना चले गए. नफीस पडरौना से फरार हो गया. कथा लिखे जाने तक वह गिरफ्तार नहीं हुआ था.

आरोपी अजीज और गुलाम सरवर जेल में बंद हैं. पुलिस ने रविंद्र की बुलेट मोटरसाइकिल बरामद कर ली थी. नदी में फेंके जाने से मोबाइल बरामद नहीं हो सके. तांत्रिक का नाम था तो अजीज लेकिन वह किसी का भी अजीज नहीं हुआ.

—कथा में सरिता परिवर्तित नाम है. कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

घर में रखी तलवार की धार : वृद्ध दंपति की हत्या

4 अप्रैल की सुलगती दुपहरी में राजस्थान के जिला बूंदी के कलेक्ट्रेट में विजय कुमार पहली बार आया था. उस की उम्र तकरीबन 35 साल के आसपास रही होगी. वह सेना में नायब सूबेदार था. फौजी होने के बावजूद कलेक्टर ममता शर्मा के चेंबर में प्रवेश करते ही पता नहीं क्यों उस पर घबराहट हावी होने लगी थी और दिल बैठने लगा था. जिला कलेक्टर के सामने खड़े होते ही उस के पैर कांपने लगे और पूरा बदन पसीने से तरबतर हो गया.

आखिरकार हिम्मत जुटा कर अपना परिचय देने के बाद वह बोला, ‘‘मैडम, 8 जनवरी, 2018 को मेरे मातापिता की निर्दयता से हत्या कर दी गई. पुलिस न तो आज तक उन के शवों को बरामद कर पाई और न ही इस मामले में निष्पक्षता से जांच की गई.

‘‘मैं पुलिस के बड़े अधिकारियों से भी मिल चुका हूं, लेकिन कहीं कोई सुनवाई नहीं हो रही है. हत्यारे छुट्टे घूम रहे हैं. इतना ही नहीं, वे इस कदर बेखौफ हैं कि मुझे ओर मेरे परिवार को भी जान से मारने की धमकी देते हैं.’’ कहतेकहते विजय कुमार की आंखों से आंसू टपकने लगे.

हिचकियां लेते हुए उस ने कहा, ‘‘मैडम, मेरे सैनिक होने पर धिक्कार है. कानून की बेरुखी और जलालत झेलने से तो अच्छा है कि मैं अपने परिवार समेत आत्महत्या कर लूं. ऐसी जिंदगी से तो मौत भली. हम तो बस अब इच्छामृत्यु की अनुमति चाहते हैं.’’

यह कहते हुए उस ने जिला कलेक्टर की तरफ एक दरख्वास्त बढ़ा दी जो महामहिम राष्ट्रपति को लिखी गई थी. उस दरख्वास्त में विजय कुमार ने परिवार सहित इच्छामृत्यु की अनुमति देने की मांग की थी.

जिला कलेक्टर ममता शर्मा ने एक बार सरसरी तौर पर सामने खड़े युवक का जायजा लिया. उन की हैरानी का पारावार नहीं था. लेकिन जिस तरह पस्ती की हालत में वह अटपटी मांग कर रहा था, उस के तेवरों ने एक पल को तो उन्हें हिला कर रख दिया था.

वह बोलीं, ‘‘कैसे फौजी हो तुम? जानते हो इच्छामृत्यु की कामना कायर करते हैं, फौजी नहीं. हौसला रखो और पूरा वाकया मुझे एक कागज पर लिख कर दो. याद रखो कानून से ऊपर कोई नहीं है. तफ्तीश में हजार अड़चनें हो सकती हैं. गुत्थी सुलझाने में वक्त लग सकता है. तुम लिख कर दो, मैं इसे देखती हूं.’’

अब तक सामान्य हो चुके विजय कुमार ने सहमति में सिर हिलाया और कलेक्टर के चेंबर से बाहर निकल गया. आखिर ऐसा क्या हुआ था कि एक फौजी का देश की कानून व्यवस्था से भरोसा उठ गया और वह अपने परिवार समेत इच्छामृत्यु की मांग करने लगा. सब कुछ जानने के लिए हमें एक साल पहले लौटना होगा.

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      विजय कुमार

विजय कुमार राजस्थान के बूंदी जिले के लाखेरी कस्बे का रहने वाला है. लाखेरी स्टेशन के नजदीक ही उस का पुश्तैनी मकान है. जहां उस के मातापिता हजारीलाल और कैलाशीबाई स्थाई रूप से रहते थे. हजारीलाल के लाखेरी स्थित मकान में नवलकिशोर नामक किराएदार भी अपने परिवार के साथ रहता था. उस की बाजार में किराने की दुकान थी.

हजारीलाल के 2 मकान कोटा में थे. कोटा के रायपुरा स्थित निधि विहार कालोनी में उन के बेटे विजय कुमार का परिवार रहता था. उस के परिवार में उस की पत्नी ममता और 2 छोटे बच्चों के अलावा उस का छोटा भाई हरिओम था.

विजय सेना में नायब सूबेदार था और उस की तैनाती चाइना बौर्डर पर थी. विजय छुट्टियों में ही घर आ पाता था. हजारीलाल का मझला बेटा विनोद इंदौर की किसी इंडस्ट्री में गार्ड लगा हुआ था. हजारीलाल का एक और मकान रायपुरा से तकरीबन एक किलोमीटर दूर डीसीएम चौराहे पर स्थित था.

इस तिमंजिला मकान में दूसरी मंजिल हजारीलाल ने अपने लिए रख रखी थी. वह अपनी पत्नी के साथ 10-15 दिनों में कोटा आते रहते थे ताकि बेटे के परिवार की खैर खबर ले सकें. अलबत्ता वे रुकते इसी मकान में थे.

उस मकान का नीचे वाला तल उन्होंने बैंक औफ बड़ौदा को किराए पर दिया हुआ था, जहां बैंक का एटीएम भी था. तीसरी मंजिल पर करोली के मानाखोर का घनश्याम मीणा पत्नी राजकुमारी के साथ किराए पर रह रहा था.

हजारीलाल और घनश्याम मीणा का परिवार एकदूसरे से काफी घुलामिला था. घनश्याम पर तो हजारीलाल का अटूट भरोसा था. दंपति जब कोटा में होते थे तो अकसर उन का वक्त बेटे विजय कुमार के परिवार के साथ ही गुजरता था. लेकिन रात को वह अपने डीसीएम चौराहे के पास स्थित घर पर लौट आते थे.

अलबत्ता दोनों के बीच टेलीफोन द्वारा संपर्क बराबर बना रहता था. हजारीलाल वक्त गुजारने के लिए प्रौपर्टी के धंधे से भी जुडे़ हुए थे. इस धंधे में अंगद नामक युवक उन का मददगार बना हुआ था.

अंगद रायपुरा स्थित विजय कुमार के मकान के पीछे ही रहता था. बिहार का रहने वाला अंगद विजय कुमार का अच्छा वाकिफदार था. ट्यूशन से गुजारा करने वाला अंगद विजय के बच्चों को भी ट्यूशन पढ़ाता था. अंगद प्रौपर्टी के कारोबार के मामले में पारखी था इसलिए हजारीलाल भी उस का लोहा मानते थे.

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               हजारीलाल और उनकी पत्नी कैलाशीबाई

सब कुछ ठीकठाक चल रहा था. इसी बीच अजीबोगरीब घटना ने ठहरे हुए पानी में जैसे हलचल मचा दी. दरअसल हजारीलाल की पत्नी कैलाशीबाई की अलमारी से उन का मंगलसूत्र गायब हो गया. हीराजडि़त मंगलसूत्र काफी कीमती था.

लिहाजा घर के सभी लोग परेशान हो गए. कैलाशीबाई का रोना भी वाजिब था. घर में बाहर का कोई शख्स आया नहीं था औैर किराएदार घनश्याम पर उन्हें इतना भरोसा था कि उस से पूछना भी हजारीलाल दंपति को ओछापन लगा. आखिर मंगलसूत्र की चोरी का गम खाए हजारीलाल दंपति माहौल बदलने के लिए लाखेरी लौट गए.

इस बाबत उन्होंने अपने बेटे विजय कुमार की पत्नी ममता को भी जानकारी दे दी. लेकिन असमंजस में डूबी बहू भी सास को तसल्ली देने के अलावा क्या कर सकती थी. हजारीलाल तो इस सदमे को पचा गए लेकिन कैलाशीबाई के आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे.

एक स्त्री के सुहाग की निशानी मंगलसूत्र का इस तरह चोेरी चले जाना उन के लिए सब से बड़ा अपशकुन था. उन्होंने एक ही रट लगा रखी थी कि आखिर कौन था जो उन का मंगलसूत्र चुरा ले गया. पत्नी को लाख समझा रहे हजारीलाल की तसल्ली भी कैलाशीबाई के दुख को कम नहीं कर पा रही थी.

5 जनवरी, 2018 को हजारीलाल को अपने किराएदार घनश्याम मीणा का फोन मिला तो उन की आंखें चमक उठीं. उस ने बताया कि करोली के मानाखोर कस्बे में एक भगतजी हैं जिन पर माता की सवारी आती है.

माता की सवारी आने पर भगतजी में अद्भुत शक्ति पैदा हो जाती है और उस समय वह भूत भविष्य के बारे में सब कुछ बता देते हैं. आप का मंगलसूत्र कहां और कैसे गायब हुआ, यह सब भगतजी बता देंगे. आप कहो तो मैं आप को वहां ले चलूंगा ताकि मंगलसूत्र का पता लग सके.

हजारीलाल और उन की पत्नी पुराने विचारों के थे लिहाजा टोनेटोटकों में ज्यादा ही विश्वास करते थे. लिहाजा उन्होंने आननफानन में करोली जाने का प्रोग्राम बना लिया. तय कार्यक्रम के अनुसार घनश्याम और उस की पत्नी राजकुमारी उन्हें ले जाने के लिए लाखेरी पहुंच गए.

हजारीलाल ने तब अपने बड़े बेटे के परिवार को खबर करने और सब से छोटे बेटे हरिओम को भी साथ ले चलने की बात कही तो घनश्याम ने उन्हें समझाते हुए कहा, ‘‘यह बातें गोपनीय रखनी होती हैं. माता की सवारी पर अविश्वास करोगे तो मातारानी कुपित हो सकती हैं. तब अहित हुआ तो हम कुछ नहीं कर पाएंगे.’’ यह कहते हुए घनश्याम ने अपनी पत्नी की तरफ देखा तो उस ने भी सहमति में सिर हिला दिया.

हजारीलाल के मन में संदेह का कीड़ा तो कुलबुलाया लेकिन मौके की नजाकत को देखते हुए वह चुप लगा गए. लेकिन हजारीलाल ने अपने अचानक करोली जाने की बात मौका मिलते ही अपने किराएदार नवलकिशोर को जरूर बता दी. हजारीलाल ने नवलकिशोर को जो कुछ बताया उस ने सुन लिया. इस में उसे एतराज होता भी तो क्यों. घनश्याम को उस ने देखा भी नहीं था तो पूछताछ करता भी तो किस से.’’

लेकिन नवलकिशोर उस वक्त जरूर कुछ अचकचाया, जब सोमवार 8 जनवरी, 2018 को एक शख्स लाखेरी स्थित मकान पर पहुंचा. उस के हाथ में चाबियों का गुच्छा था और वह दरवाजा खोलने की कोशिश कर रहा था.

नवलकिशोर को हजारीलाल की गैरमौजूदगी में किसी अजनबी द्वारा मकान का दरवाजा खोलना अटपटा लगा तो उस ने फौरन टोका, ‘‘अरे भाई आप कौन हो और यह क्या कर रहे हो?’’

इतना सुनते ही वह आदमी कुछ हड़बड़ाया फिर बोला, ‘‘मेरा नाम घनश्याम है और मैं हजारीलालजी के डीसीएम चौराहे के पास वाले मकान में रहता हूं. हजारीलालजी के भेजने पर ही मैं यहां आया हूं. दरअसल करोली में भगतजी का भंडारा हो रहा है. हजारीलालजी ने मुझे यहां अपने कपड़े लेने के लिए भेजा है.’’

नवलकिशोर को यह तो मालूम था कि हजारीलाल पत्नी के साथ करौली गए हुए हैं लेकिन उसे घनश्याम की बातों पर तसल्ली इसलिए नहीं हुई कि हजारीलाल किसी को अपने घर की चाबियां भला कैसे सौंप सकते हैं. अपना शक दूर करने के लिए नवलकिशोर ने कहा, ‘‘ठीक है, आप उन से मोबाइल पर मेरी बात करवा दो.’’

घनश्याम ने यह कह कर नवलकिशोर को निरुत्तर कर दिया कि गांव देहात में नेटवर्क काम नहीं करने से उन से बात नहीं हो सकती. नवलकिशोर की शंका दूर नहीं हुई. उस ने एक पल सोचते हुए कहा, ‘‘तो ठीक है कोटा में हजारीलाल जी के बेटेबेटियां रहते हैं, उन से बात करवा दो?’’

घनश्याम ने यह कह कर टालने की कोशिश की कि उन का बेटा तो चाइना बौर्डर पर तैनात है और कोटा में रह रही उस की पत्नी का मोबाइल नंबर मुझे मालूम नहीं है. लेकिन नवलकिशोर तो जिद ठाने बैठा था. उसे घनश्याम की नानुकर खटक रही थी. वह अपनी शंका दूर करने पर तुला था. उस ने कहा ठीक है उन की पत्नी का नंबर मुझे मालूम है. मैं कर लेता हूं उन से बात.

घनश्याम कोई टोकाटाकी करता, तब तक नवलकिशोर अपने मोबाइल पर विजय कुमार की पत्नी ममता का नंबर मिला चुका था. लेकिन संयोग ही रहा कि ममता का फोन स्विच्ड औफ निकला. आखिर हार कर नवलकिशोर ने घनश्याम से कहा, ‘‘कोटा में हजारीलाल जी के परिवार का कोई तो होगा, जिस का नंबर आप को मालूम हो.’’

‘‘हां, उन की बेटी माया का नंबर मालूम है.’’ घनश्याम ने अचकचाते हुए कहा.

‘‘ठीक है तो फिर उन्हीं से बात करवा दो?’’ कहते हुए नवलकिशोर ने घनश्याम के चेहरे पर नजरें गड़ा दीं.

मोबाइल पर माया इस बात की तसदीक तो नहीं कर सकी कि उस के पिता करोली गए हुए हैं और किसी को उन्होंने कपड़े लाने के लिए भेजा है. अलबत्ता इतना जरूर कह दिया कि घनश्याम हमारे कोटा वाले मकान में किराएदार हैं. मैं इन को जानती हूं. अगर ये मांबाऊजी के कपड़े लेने के लिए आए हैं तो ले जाने देना. लेकिन बाद में चाबी अपने पास ही रख लेना.

नवलकिशोर को अब क्या ऐतराज होना था? घनश्याम रात को वहीं रुक गया और बोला कि सुबह को हजारीलालजी के कपड़े आदि ले कर चला जाएगा. लेकिन अगली सुबह नवलकिशोर की जब आंखें खुलीं तो उस ने देखा कि घनश्याम वहां से जा चुका था.

अब नवलकिशोर के शक का कीड़ा कुलबुलाना लाजिमी था कि  इस तरह घनश्याम का चोरीछिपे जाने का क्या मतलब. नवलकिशोर को ज्यादा हैरानी तो इस बात की थी कि उसे चाबी सौंप कर जाना चाहिए था. लेकिन वो चाबी भी साथ ले गया.

मंगलसूत्र की गुमशुदगी को ले कर कैलाशीबाई किस हद तक सदमे में थीं, इस बात को उन की बहू ममता अच्छी तरह जानती थी. क्योंकि उस की अपनी सास से फोन पर बात होती रहती थी. एक दिन ममता ने अपने देवर हरिओम से कहा कि वह लाखेरी जा कर मां को ले आए ताकि बच्चों के बीच रह कर उन का दुख कुछ कम हो सके.

भाभी के कहने पर हरिओम ने 9 जनवरी को पिता हजारीलाल को फोन लगाया. लेकिन उन का फोन स्विच्ड औफ होने के कारण बात नहीं हो सकी. हरिओम सोच कर चुप्पी साध गया कि शायद फोन बंद कर के वह सो रहे होंगे.

ममता भाभी को भी उस ने यह बता दिया. अगले दिन ममता के कहने पर हरिओम ने फिर पिता को फोन लगाया. उस दिन भी उन का फोन बंद मिला. यह सिलसिला लगातार जारी रहा तो न सिर्फ हरिओम के लिए बल्कि ममता के लिए भी यह हैरानी वाली बात थी.

ममता के मुंह से बरबस निकल पड़ा, ऐसा तो आज तक कभी नहीं हुआ. वह अंदेशा जताते हुए बोली, ‘‘भैया, जरूर अम्माबाऊजी के साथ कोई अनहोनी हो गई है.’’ ममता ने देवर को सहेजते हुए कहा, ‘‘तुम ऐसा करो, नवलकिशोर से बात करो. शायद उसे कुछ मालूम हो.’’

हरिओम ने नवलकिशोर से बात की. उस ने जो कुछ बताया उसे जान कर ममता और हरिओम दोनों सन्न रह गए. नवलकिशोर ने तो यहां तक बताया कि उस ने घनश्याम द्वारा कपड़े ले जाने की बाबत तस्दीक करने के लिए भाभी को फोन भी लगाया था, लेकिन फोन स्विच्ड औफ मिला. लेकिन माया ने बात कराने पर उस की शंका दूर हुई थी.

ममता वहीं सिर थाम कर बैठ गई. उस के मुंह से सिर्फ इतना ही निकला, ‘‘अम्मा बाऊजी हमें बिना बताए करोली कैसे चले गए. घर की चाबी तो अम्मा किसी को देती ही नहीं थीं. घनश्याम चाबी ले कर लाखेरी वाले घर कैसे पहुंच गया.

इस के बाद तो मंगलसूत्र की चोरी को ले कर भी ममता का शक पुख्ता हो गया. उस ने हरिओम से कहा, ‘‘भैया घर से अम्मा का मंगलसूत्र भी जरूर घनश्याम ने ही चुराया होगा. तुम जरा घनश्याम को फोन तो लगाओ.’’

हरिओम ने फोन किया तो उस के मुंह से अस्फुट स्वर ही निकल पाए, ‘‘भाभी घनश्याम का फोन भी स्विच्ड औफ आ रहा है. मैं उसे डीसीएम चौराहे के घर पर जा कर पकड़ता हूं.’’ कहने के साथ ही हरिओम फुरती से बाहर निकल गया.

करीब एक घंटे बाद हरिओम लौट आया. उस का चेहरा फक पड़ा हुआ था. हरिओम का चेहरा देखते ही ममता माजरा समझ गई. अटकते हुए उस ने कहा, ‘‘नहीं मिला ना?’’

हरिओम भी वहीं सिर पकड़ कर बैठ गया, ‘‘भाभी वो तो अपनी पत्नी के साथ सारा सामान ले कर वहां से रफूचक्कर हो चुका है.’’

बहुत कुछ ऐसा घटित हो चुका था. जिस की किसी को उम्मीद नहीं थी. अब ममता के लिए अपने पति को सब कुछ बताना जरूरी हो गया था. ममता ने फोन से बौर्डर पर तैनात पति को पूरा माजरा बता दिया. विजय उस समय सिर्फ इतना ही कह कर रह गया कि तुम थाने में अम्मा बाऊजी के अपहरण की रिपोर्ट दर्ज करा दो. किराएदार घनश्याम की बाबत भी सब कुछ बता देना. फिर मैं छुट्टी ले कर आता हूं.

इस के साथ ही विजय ने इंदौर में रह रहे अपने मंझले भाई विनोद को भी फोन कर पूरी बात बता दी और कहा कि तुम फौरन पहले लाखेरी पहुंचो और पता करो कि उन के साथ क्या हुआ है.

मातापिता जिस तरह रहस्यमय ढंग से लापता हुए, सुन कर विजय अचंभित हुआ. इस से पहले ममता ने उद्योग नगर थाने में अपने ससुर हजारीलाल और सास कैलाशीबाई की गुमशुदगी की सुचना दर्ज करा दी थी.

अपने परिवार समेत करोली के मानाखोर गांव में पहुंचे विजय ने घनश्याम मीणा और कथित भगतजी की तलाश करने की भरपूर कोशिश की ताकि मां बाऊजी का पता चल सके, लेकिन उस के हाथ निराशा ही लगी. छानबीन करने पर उसे पता चला कि भगतजी नामक कोई तांत्रिक वहां था ही नहीं. घनश्याम के बारे में उसे पुख्ता जानकारी नहीं मिल सकी.

विजय ने पुलिस से संपर्क किया उस ने उद्योग नगर पुलिस के जांच अधिकारी सुरेंद्र सिंह से आग्रह किया कि आप एक बार करोली का चक्कर लगा लीजिए. वह वहां गए लेकिन उन की कोशिश निरर्थक रही. फिर जांच अधिकारी सुरेंद्र सिंह ने काल डिटेल्स का हवाला देते हुए कहा कि मामला लाखेरी का है. इसलिए मामले की रिपोर्ट लाखेरी में ही  करानी होगी.

विनोद भी लाखेरी पहुंच चुका था. उस ने भाई विजय को जो कुछ बताया उस से रहेसहे होश भी फाख्ता हो गए. घर की अलमारियों और संदूक के ताले टूटे पड़े थे. उन में रखे हुए अचल संपत्तियों के दस्तावेज, सोनेचांदी के जेवर और नकदी गायब थी. इस से स्पष्ट था कि कपड़े लेने के बहाने आया घनश्याम सब कुछ बटोर कर ले गया.

27 जनवरी, 2018 को विजय ने लाखेरी थाने में मामले की रिपोर्ट दर्ज करवाते हुए घनश्याम मीणा पर ही अपना शक जताया. इस मौके पर विजय के साथ आए उस के भाई विनोद ने चोरी गए सामान का पूरा ब्यौरा पुलिस को दिया. पुलिस ने रिपोर्ट में भादंवि की धारा 365 व 380 और दर्ज कर के जांच एसआई नंदकिशोर के सुपुर्द कर दी. दिन रात की भागदौड़ के बावजूद पुलिस के हाथ कोई ठोस सुराग नहीं लगा.

एसपी योगेश यादव सीओ नरपत सिंह तथा थानाप्रभारी कौशल्या से जांच की प्रगति का ब्यौरा बराबर पूछ रहे थे. लेकिन कोई उम्मीद जगाने वाली बात सामने नहीं आ रही थी.

इस बीच पुलिस ने गुमशुदा हजारीलाल दंपति के फोटोशुदा ईनामी इश्तहार भी बंटवाए और सार्वजनिक स्थानों पर चस्पा करवा दिए. इस के बाद पुलिस ने घनश्याम मीणा के फोन की काल डिटेल्स निकलवाई. इस का नतीजा जल्दी ही सामने आ गया.

काल डिटेल्स से पता चला कि घनश्याम मीणा की ज्यादातर बातचीत करोली जिले के लांगरा कस्बे के मुखराम मीणा से ही हो रही थी. लक्ष्य सामने आ गया तो पुलिस की बांछें खिल गईं. सीओ सुरेंद्र सिंह ने एसपी योगेश यादव को बताया तो उन्होंने करोली के एसपी अनिल कयाल से जांच में सहयोग करने की मांग की.

नतीजतन सीओ सुरेंद्र सिंह और थानाप्रभारी कौशल्या की अगुवाई में गठित पुलिस टीम ने करोली के लांगरा कस्बे से मुखराम मीणा को दबोच लिया. अखबारी सुर्खियों में ढली इस खबर में करोली एसपी अनिल कयाल ने मुखराम मीणा की 4 फरवरी को गिरफ्तारी की तस्दीक कर दी और कहा कि मुखराम के साथियों और गुमशुदा दंपति को तलाशने में पुलिस टीमें पूरी तरह जुटी हुई हैं.

पुलिस पूछताछ में मुखराम बारबार बयान बदल रहा था. उस ने स्वीकार किया कि घनश्याम और उस की पत्नी राजकुमारी के साथ हम हजारीलाल और उस की पत्नी कैलाशीबाई को ले कर टैंपो से साथलपुर के जंगल में पहुंचे थे. वहां उन्होंने दोनों की अंघेरे में हत्या कर दी थी. मुखराम ने बताया कि काम को अंजाम देने के बाद वह साथलपुर गांव चले गए थे.

चूकि पुलिस को उस से और भी पूछताछ करनी थी, इसलिए उसे 5 फरवरी को मुंसिफ न्यायालय लाखेरी में पेश कर 5 दिन के पुलिस रिमांड पर ले लिया.

मुखराम के बताए स्थान तक लाखेरी पुलिस दल के साथ भरतपुर जिले की लागरा पुलिस के एएसआई राजोली सिंह तथा डौग स्क्वायड टीम के कांस्टेबल देवेंद्र, ओमवीर और हिम्मत सिंह भी थे. मुखराम द्वारा बताई गई हत्या वाली जगह से पुलिस को साड़ी के टुकड़े, खून सने पत्थर और एक हड्डी का टुकड़ा तो मिला लेकिन लाशों का कहीं कोई अतापता नहीं था.

मुखराम अपने उसी बयान पर अड़ा था कि महिला की हत्या तो हम ने यहीं पत्थरों से की थी और शव को भी यहीं गाड़ दिया था. इस के बाद शव कहां गया यह पता नहीं. बरामद चीजों को जब खोजी कुत्ते को सुंघाया तो वो पहले वाली जगह पर जा कर ठिठक गया.

पुलिस ने घटनास्थल से हत्या में इस्तेमाल हुए पत्थर भी जब्त कर लिए. पुलिस की सख्ती के बावजूद मुखराम सवालों का जवाब देने से कतराता रहा.

हत्या में सहयोगी रहे घनश्याम और उस की पत्नी राजकुमारी कहां हैं? और हजारीलाल की हत्या कहां की गई? वृद्ध दंपति की हत्या की आखिर क्या वजह थी आदि पूछने पर मुखराम ने बताया कि कोटा में हजारीलाल का तकरीबन 50 लाख रुपए की कीमत का एक प्लौट है. घनश्याम और उस की पत्नी इस पर नजर गड़ाए हुए थे.

उन्होंने हजारीलाल से औनेपौने दामों में इस प्लौट का सौदा करने की कोशिश की लेकिन बात नहीं बनी. उस प्लौट को हड़पने के लिए ही उन के मारने की योजना बनाई थी. उन्होंने मुझे अच्छी रकम देने का वादा कर इस योजना में शामिल किया था.

पुलिस ने आखिर तेवर बदलते तो मुखराम ने मुंह खोलने में देर नहीं की. उस ने बताया कि हजारीलाल की हत्या साथलपुर के पास स्थित धमनिया के जंगल में की थी. धमनियां जंगल में मुखराम की बताई गई जगह पर हजारीलाल के कपड़े और खून सने पत्थर तो मिले लेकिन शव नहीं मिला.

घनश्याम मीणा और उस की पत्नी राजकुमारी के बारे में पूछा तो उस ने बताया कि घनश्याम अपनी पत्नी के साथ केरल के कालीघाट में रह रहा है. मुखराम से विस्तार से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने उसे कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया.

घनश्याम मीणा और राजकुमारी को गिरफ्तार करने के लिए एक पुलिस टीम कालीघाट रवाना हो गई. इत्तफाक से ये दोनों घर पर ही मिल गए. 8 अप्रैल को उन्हें गिरफ्तार कर पुलिस राजस्थान लौट आई.

पूछताछ में घनश्याम मीणा और उस की पत्नी राजकुमारी ने जो बताया उसे सुन कर तो पुलिस अधिकारियों का मुंह खुला का खुला रह गया. क्योंकि हत्या में ट्यूटर और प्रौपर्टी के बिजनैस में हजारीलाल का विश्वसनीय बना रहने वाला अंगद भी शामिल था. पुलिस इधरउधर खाक छान रही थी और अंगद बिना किसी डर के विजय के पड़ोस में बैठ कर चैन की बंसी बजा रहा था.

पता चला कि पूरी घटना का सूत्रधार और ताना बाना बुनने वाला अंगद ही था. उस पर हजारीलाल का जितना अटूट भरोसा था, कमोबेश विजय का भी उतना ही था. घर पर बेरोकटोक आनेजाने और मीठी बातों से रिझाने वाले अंगद पर शंका होती भी तो कैसे. जबकि सच्चाई यह थी कि डीसीएम इलाके में हजारीलाल के लगभग 50 लाख के प्लौट पर अंगद की शुरू से ही निगाहें थीं.

विश्वसनीयता की आड़ में अंगद इस प्लौट को किसी तरह फरजी दस्तावेजों के जरिए हड़पने की ताक में था. लेकिन हजारीलाल पर उस का दांव नहीं चल पा रहा था. आखिरकार उसे एक ही रास्ता सूझा कि हजारीलाल दंपति को मौत के घाट उतार कर ही यह प्लौट कब्जाया जा सकता था.

अपनी योजना का तानाबाना बुनते हुए उस ने पहले घनश्याम मीणा को उन के डीसीएम चौराहे के पास स्थित घर में किराए पर रखवाया. फिर मीणा को उन का विश्वास जीतने में भी मदद की.

आखिरकार जब हजारीलाल का घनश्याम पर अटूट भरोसा हो गया तो पहले उस ने किसी तरह कैलाशीबाई का कीमती मंगलसूत्र चोरी कर लिया. मंगलसूत्र की चोरी से हताश निराश दंपति को जाल में फंसाने के लिए तांत्रिक तक पहुंच बनाने का पासा फेंका.

अंगद ने घनश्याम से कहा कि वह योजना में किसी विश्वसनीय व्यक्ति को मोटे पैसों का लालच दे कर शामिल कर ले. तब घनश्याम ने करोली के रहने वाले अपने एक वाकिफकार मुखराम को योजना में शामिल किया. सारा काम घनश्याम, राजकुमारी और मुखराम ने ही अंजाम दिया. अंगद तो अपनी जगह से हिला भी नहीं.

पुलिस ने कोटा से अंगद को भी गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ में उस ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया. पुलिस ने भले ही हत्या की गुत्थी सुलझा ली. लेकिन लाख सिर पटकने के बाद भी शव बरामद नहीं किए जा सके.

कथा लिखने तक चारों अभियुक्तों की जमानत हो चुकी थी. कानून के जानकारों का कहना है कि जब लाश ही बरामद नहीं होगी तो अभियुक्तों को सजा कैसे मिलेगी. सवाल यह है कि हर तरह से समर्थ पुलिस आखिरकार हजारीलाल दंपति के शव बरामद क्यों नहीं कर सकी.

विजय कुमार तो दोहरे आघात से छटपटा रहा है. एक तो वृद्ध माता पिता की निर्मम हत्या, फिर शवों की बरामदगी तक नहीं हुई. विजय का दुख इन शब्दों में फूट पड़ता है कि कैसा बेटा हूं, मांबाप की हत्या हुई और मैं कुछ नहीं कर पाया. उन की अंत्येष्टि तक नहीं हो सकी.

विजय मंत्रियों से ले कर उच्च अधिकारियों तक से इंसाफ की दुहाई दे चुका है. लेकिन उस की कहीं सुनवाई नहीं हो रही थी. एक तरफ तो विश्वास और इंसाफ की हत्या का दर्द तो दूसरी तरफ हत्यारे बेखौफ घूमते हुए उसे मुंह चिढ़ा रहे हैं. ताज्जुब की बात तो यह है कि क्लेक्टर से गुहार लगाने के बावजूद भी इस केस में कोई प्रगति नहीं हुई.

—कथा पुलिस और पारिवारिक सूत्रों पर आधारित

पहले पति से तलाक दूसरे से मर्डर

झाड़ी के पीछे लगभग 30-35 साल की एक महिला हरे रंग का फूलदार सलवार सूट पहने खून में लथपथ पड़ी थी तथा दर्द से कराह रही थी. उस में चलने फिरने की भी हिम्मत नहीं थी. उस के शरीर पर धारदार हथियार के घाव थे और लग रहा था कि शायद वह महिला अपने जीवन की अंतिम घड़ियां ही गिन रही थी.

वह रात के 8 बजे का समय था. जेठ के महीने की भीषण गरमी के बाद उस समय ठंडी ठंडी हवा चल रही थी. आसपास के क्षेत्रों के किसान व मजदूर भी अपनेअपने खेतों में धान की बुवाई के लिए खेतों को तैयार करने के बाद, पैदल ही अपने घरों की ओर वापस लौट रहे थे. खेत में काम कर के कुछ किसान थके हुए थे, इसलिए वे जल्दी में अपने घरों की ओर बढ़ रहे थे.

तभी एक किसान प्रवीण सैनी को पास में बह रहे पानी के रजवाहे के पास से किसी महिला के कराहने की चीख सुनाई दी थी. वैसे तो वह जल्दी में था, मगर महिला के कराहने की आवाज सुन कर प्रवीण सैनी के कदम ठिठक गए थे. उस ने सोचा था कि यह महिला के कराहने व चीखने की आवाज कहां से आ रही है, इस का पता करना चाहिए.

इस के बाद प्रवीण सैनी ने वहां से गुजर रहे कुछ किसानों व मजदूरों को रोका और उन्हें भी रजवाहे के पास से आ रही महिला के चीखने की आवाज से अवगत कराया. इस के बाद सब ने मिल कर जहां से महिला के चीखने व कराहने की आवाज आ रही थी, वहां पर जाने का मन बनाया. फिर सभी लोग उधर ही एक झाड़ी की ओर बढ़ गए, जहां से महिला की आवाज आ रही थी.

शुरू में तो प्रवीण सैनी को कुछ डर भी लग रहा था कि वहां कहीं कोई बदमाश या लुटेरे आदि न मिल जाएं, मगर वे हिम्मत कर के अंधेरे में ही उस झाड़ी की ओर चल पड़े, जहां से महिला की चीख सुनाई दे रही थी. थोड़ी देर में ही वे सभी लोग झाड़ी के पास पहुंच गए थे.

प्रवीण सैनी ने जब अपने मोबाइल की टौर्च जलाई तो झाड़ी के पीछे का दृश्य देख कर उस की व उस के सभी साथियों की रूह कांप गई थी.

प्रवीण सैनी ने उसी वक्त इस घटना की बाबत पुलिस कंट्रोल रूम को 112 नंबर पर सूचना दे दी. जहां पर महिला घायलावस्था में पड़ी थी, वह स्थान हरिद्वार जिले के थाना पिरान कलियर अंतर्गत बावनदरा कहलाता है. जंगल व गंगनहर होने के कारण यह काफी सुनसान क्षेत्र है. गुलदार आदि कुछ जंगली जानवर भी अकसर वहां घूमते रहते हैं.

पुलिस टीमें जुटीं जांच में

लगभग 10 मिनट बाद ही प्रवीण सैनी व उस के साथियों को पुलिस की गाड़ी का सायरन साफ साफ सुनाई देने लगा था. 2 मिनट बाद थाना कलियर के एसएचओ जहांगीर अली वहां पहुंच गए थे.

रुंधे गले से महिला बस केवल इतना ही बता पाई थी कि उस का नाम तसगिरा उर्फ सकीना है तथा वह सहारनपुर के कस्बा गंगोह में अपने दूसरे पति सुहेल के साथ रहती है. आज वह अपने शौहर सुहेल व अपनी 9 महीने की बच्ची के साथ दरगाह पिरान कलियर घूमने आई थी. दरगाह घूमने के बाद शौहर ने इस सुनसान स्थान पर उस के ऊपर चाकुओं से हमला कर दिया.

पुलिस तुरंत ही उसे अस्पताल ले गई, लेकिन रास्ते में ही उस ने दम तोड़ दिया. इस के बाद एसएचओ जहांगीर अली ने इस घटना से सीओ पल्लवी त्यागी व हरिद्वार के एसएसपी अजय सिंह को अवगत करा दिया. अजय सिंह ने तुरंत ही इस संगीन वारदात की गंभीरता को समझते हुए तत्काल ही कलियर क्षेत्र में सघन तलाशी अभियान चलाने के आदेश कलियर थाना पुलिस व सीआईयू टीम को दिए.

सीआईयू टीम व कलियर पुलिस द्वारा सकीना के शौहर सुहेल की गिरफ्तारी के लिए एक सघन तलाशी अभियान चलाया, लेकिन सुहेल का कुछ भी पता नहीं चल सका था. इस के बाद सीओ (रुड़की) पल्लवी त्यागी ने पुलिस की एक टीम को सुहेल के सहारनपुर के कस्बा गंगोह में स्थित घर भेजा, मगर यहां भी पुलिस को सुहेल की कोई जानकारी नहीं मिली.

सुहेल के घर वालों ने पुलिस को बताया था कि वह हरिद्वार के सिडकुल क्षेत्र में स्थित एक फैक्ट्री में काम करता है तथा वह अब अपनी बीवी सकीना के साथ सहारनपुर के गांव दाबकी में रह रहा है.

इस के बाद पुलिस टीम सुहेल की तलाश में गांव दाबकी के लिए चल पड़ी थी, मगर यहां भी पुलिस को सुहेल के मकान पर ताला लगा दिखाई दिया था. वहां से निराश हो कर सुहैल को पकडऩे गई पुलिस टीम वापस कलियर आ गई थी.

सुहेल को पकडऩे के लिए जब सीआईयू टीम ने उस के मोबाइल फोन की लोकेशन चैक की तो वह लोकेशन सहारनपुर में मिली थी. इस के बाद कलियर पुलिस व सीआईयू की टीम वापस सहारनपुर पहुंच गई. यहां पर पुलिस टीम ने सुहेल को ढंूढा तो वह नहीं मिला. काफी तलाश करने पर आखिर सुहेल को पुलिस टीम ने सहारनपुर के गंगोह रोड पर स्थित एक ढाबे से पकड़ लिया.

सुहेल को गिरफ्तार करने की सूचना एसएचओ जहांगीर अली ने सीओ पल्लवी त्यागी व एसएसपी अजय सिंह को दे दी.

लगभग एक घंटे में पुलिस सुहेल को ले कर थाना कलियर आ गई थी. वहां पर सीओ पल्लवी त्यागी व एसएचओ जहांगीर अली ने सुहेल से सकीना की हत्या के बारे में सिलिसिलेवार पूछताछ की और उस के बयानों को रिकौर्ड कर लिया. सुहेल ने बीवी की हत्या के बारे में जो जानकारी दी, वह इस प्रकार निकली—

पहले पत्नी ने क्यों दिया तलाक

सुहेल मूलरूप से उत्तर प्रदेश के जिला सहारनपुर के कस्बा गंगोह का रहने वाला था. 5 साल पहले वह हरिद्वार के सिडकुल क्षेत्र की एक फैक्ट्री में काम करने के लिए आया था.

इसी फैक्ट्री में एक तलाकशुदा महिला सकीना उर्फ तसगिरा भी उस के साथ काम करती थी. दोनों साथ काम करते हुए अपने दुखदर्द की बातें करते थे. कुछ समय बाद उस की सकीना से दोस्ती हो गई, जो बाद में प्यार में बदल गई.

सकीना का परिवार मूलरूप से पश्चिम बंगाल का रहने वाला था, मगर अब उस का परिवार उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में रह रहा है. 12 साल पहले उस का निकाह गोलाघाट प्रयागराज के हकीम से हुआ था. हकीम से वह 2 बेटियों व एक बेटे की मां बनी.

सकीना के पति हकीम को नशा करने और जुआ खेलने की आदत थी. सकीना उस से यह करने को मना करती थी, लेकिन वह नहीं माना, जिस से उन के बीच कलह शुरू हो गई. शौहर की बुरी आदत से वह तंग आ गई थी. इस के बाद वर्ष 2017 में उस का हकीम से तलाक हो गया था.

2018 में सकीना अपने तीनों बच्चों को हकीम के पास छोड़ कर सिडकुल हरिद्वार आ गई थी और एक फैक्ट्री में नौकरी करने लगी थी. सुहेल और सकीना का प्यार गहरा हो गया था. वह सकीना से निकाह करना चाहता था. जब सुहेल ने सकीना के बारे में अपने घर वालों से कहा तो उन्होंने उसे सकीना के साथ निकाह करने के लिए साफ मना कर दिया.

सुहेल तो उस वक्त सकीना के प्यार में अंधा था और उस से निकाह करना चाहता था, इसलिए उस ने अपने घर वालों के विरोध के बावजूद सकीना के साथ निकाह कर लिया और अपने गंगोह स्थित घर को छोड़ कर सहारनपुर के गांव दाबकी में रहने लगा था. इस के बाद सुहेल से सकीना के 3 बच्चे हुए, जिन में सब से छोटी बेटी 9 महीने की थी. सुहेल सकीना को प्यार से तसगिरा कहता था.

कुछ समय तक उन का दांपत्य जीवन ठीकठाक चला, मगर शादी के 3 साल बाद उन दोनों में मनमुटाव शुरू हो गया था. इस के बाद दोनों में अकसर झगड़े होने लगे थे. इस कारण वह काफी परेशान रहने लगा था, क्योंकि सुहैल ने सकीना के लिए अपने घर वालों तक को छोड़ दिया था. घर आने पर सकीना उस से झगड़ती थी. इस कारण परेशान हो कर उस ने सकीना को तलाक दे दिया.

तलाक से सकीना काफी भड़क गई और अकसर सुहेल से मारपीट करने लगी. तलाक के बाद वह उस से गुजारे के लिए रुपए की मांग करने लगी थी और जैसे ही वह घर जाता तो वह उस पर हमला करने लगी थी.

सकीना की इन हरकतों से वह टूट चुका था. उस ने इस झगड़े से परेशान हो कर सकीना की हत्या की योजना बनाई डाली. अपनी इस योजना को अमलीजामा पहनाने के लिए वह 21 अप्रैल, 2023 को गंगोह स्थित अपने घर गया था.

वहां से सुहेल ने सकीना की हत्या के लिए एक छुरा खरीदा था. इस के बाद उस ने सकीना को कलियर दरगाह घूमने के लिए चलने को कहा था. सकीना कलियर घूमने के लिए तैयार हो गई थी.

दोपहर 3 बजे सकीना अपनी 9 माह की बेटी आयत के साथ बाइक पर बैठ गई थी और तीनों कलियर आ कर शाम तक खूब घूमे थे और वहां की दरगाहों पर जियारत भी की.

दूसरे शौहर ने क्यों की हत्या

उस वक्त शाम के 7 बज गए थे. अंधेरा भी हो चला था. तभी सकीना ने सुहेल से वापस सहारनपुर चलने को कहा. सुहेल बेटी के साथ बाइक पर बैठी सकीना को ले कर कलियर धनौरी रोड पर पानी के रजवाहे बावनदरे की ओर चल दिया. वहां पर जब सुहेल ने बाइक रोकी थी तो सकीना कहने लगी कि मुझे यहां पानी के शोर और अंधेरे से काफी डर लग रहा है.

तभी सुहेल ने फुरती से सकीना की गोद से 9 महीने की बच्ची ले ली और उसे पास ही घास पर लिटा दिया. इस के बाद उस ने पैंट की जेब से छुरा निकाल कर सकीना की छाती, गले व पेट पर ताबड़तोड़ कई वार कर दिए. फिर वह बेटी को ले कर वापस सहारनपुर के कस्बा गंगोह लौट गया.

देखभाल के लिए उस ने बेटी अपने घर वालों को दे दी. पुलिस से बचने के लिए वह इधरउधर छिपता घूम रहा था, लेकिन पुलिस की पकड़ में आ ही गया. एसएचओ जहांगीर अली ने सुहेल की निशानदेही पर सकीना की हत्या में प्रयुक्त छुरा व सकीना को मौके तक ले जाने वाली बाइक भी कस्बा गंगोह से बरामद कर ली थी.

अगले दिन 22 मई, 2023 को सीओ रुड़की पल्लवी त्यागी ने कलियर थाने में आयोजित प्रैसवार्ता में हत्यारोपी सुहेल को मीडिया के सामने पेश कर के सकीना हत्याकांड का परदाफाश कर दिया.

उसी दिन पुलिस ने सुहेल को कोर्ट में पेश कर के जेल भेज दिया था. सकीना की पोस्टमार्टम रिपोर्ट में उस की मौत का कारण धारदार हथियार से घायल होने पर ज्यादा खून निकलना बताया. कथा लिखे जाने तक जहांगीर अली द्वारा सकीना हत्याकांड की विवेचना पूरी होने के बाद सुहेल के खिलाफ चार्जशीट अदालत में भेजने की तैयारी की जा रही थी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित