Gujarat Crime : तीन बार प्रेमी संग भागी तो आखिरकार पिता ने जला दिया

Gujarat Crime : फैमिली वालों ने हिना पर जितनी बंदिशें लगाईं, उतना ही उस का प्यार गहरा होता गया. वह कई बार अपने प्रेमी हितेश के साथ घर से भाग भी गई. इस के बाद उस के फैमिली वालों ने क्या किया? क्या हिना को उस का प्यार मिल सका? पढ़ें, फैमिली क्राइम की यह खास कहानी.

हिना को न जाने कितनी बार समझाया गया, पर वह अपनी जिद पर अड़ी रही. बेटी की इस जिद से फैमिली के सभी मेंबर परेशान थे. पिता अरविंद सिंह को लगने लगा था कि अगर बेटी हिना ने भाग कर हितेश के साथ मैरिज कर ली तो उन की समाज के सामने इज्जत मिट्टी में मिल जाएगी. इसलिए उसे अब खत्म करना ही बेहतर होगा. मन में यह विचार आने के बाद अरविंद सिंह ने अगस्त के अंतिम सप्ताह में अपने भतीजे गजेंद्र सिंह को अहमदाबाद के नरोड़ा स्थित अपने घर बुलाया. गजेंद्र सिंह अहमदाबाद के बाकरोल गांव का उपसरपंच था.

अरविंद सिंह ने भतीजे से कहा, ”गजेंद्र, मैं ने हिना को बहुत समझाया, पर वह मान नहीं रही है. वह अपनी बात पर अड़ी है कि विवाह करेगी तो हितेश से ही करेगी. 3 बार उस के साथ भाग भी चुकी है. अब अगर वह फिर से उस के साथ भागती है तो गांव और समाज में हमारी क्या इज्जत रह जाएगी. हम गांव में किसी को मुंह दिखाने लायक नहीं रहेंगे. इसलिए उस का कुछ करना होगा.’’

अरविंद सिंह की बात सुन कर गजेंद्र ने कहा, ”चाचा, मैं हर तरह से आप के साथ हूं.’’

इस तरह गजेंद्र भी अरविंद सिंह का साथ देने को तैयार हो गया था. इस की वजह यह थी कि उपसरपंच होने की वजह से उसे लगता था कि वह समाज का नेता है. इसलिए हिना की वजह से उस की अधिक बदनामी नहीं होनी चाहिए. इस के बाद चाचा भतीजे ने हिना की हत्या का प्लान बना डाला. दोनों ने तय किया कि वे हिना को बड़ौदा के नजदीक स्थित अनगढ़ गांव मेलडी माता का दर्शन कराने के बहाने वहां ले जाएगे और वहीं उस का मर्डर कर देंगे.

यह प्लान बनाने के बाद गजेंद्र सिंह ने गांव के ही भरत चुनारा से बात की और उस से एक आदमी को और तैयार करने को कहा. इस के कुछ दिनों बाद एक दिन अचानक अरविंद सिंह ने बेटी हिना से कहा, ”बड़ौदा के पास अनगढ़ गांव में मेलडी माता का मंदिर है. मैं ने तुम्हारे वापस आने की मनौती मांगी थी. अब तुम वापस आ गई हो तो चलो तुम्हें दर्शन करा लाते हैं.’’

हिना को क्या पता था कि पापा ने उस की हत्या का प्लान बना रखा है. इस बात से अंजान हिना ने पापा के साथ अनगढ़ जाने के लिए हामी भर दी. दूसरी ओर अरविंद सिंह उस के मर्डर करने की तैयारी में लगा था. 5 सितंबर, 2024 की सुबह अरविंद सिंह ने अपने दामाद (हिना से बड़ी बेटी काजल के पति) को फोन कर के कहा, ”हिना की मान्यता पूरी करने के बाद हमें अनगढ़ जाना है. इसलिए तुम काजल को हमारे साथ भेज दो.’’

इस के बाद उसी दिन 11 बजे काजल नरोड़ा स्थित अपने मायके आ गई. काजल के नरोड़ा आने के आधे घंटे बाद यानी साढ़े 11 बजे के आसपास अरविंद सिंह, काजल, उस का 3 साल का बेटा और हिना गजेंद्र सिंह की कार से अनगढ़ के लिए निकल पड़े. यह कार गजेंद्र सिंह की ही थी.

मंदिर के बहाने क्यों दी मौत

रास्ते से फोन कर के गजेंद्र सिंह ने भरत चुनारा और उस के साथी नरेश को रामोल में मिलने के लिए कहा. रामोल पहुंच कर गजेंद्र सिंह ने भरत को 2 हजार रुपए औनलाइन भेज कर अनगढ़ पहुंचने के लिए कहा. इस के बाद अरविंद सिंह और कार में सवार बाकी लोग अहमदाबाद-बड़ौदा हाइवे से अनगढ़ गांव पहुंच गए. इस बीच गजेंद्र सिंह और भरत चुनारा लगातार संपर्क में बने रहे. गजेंद्र सिंह ने एक बार और भरत को 2 हजार रुपए ट्रांसफर किए. अनगढ़ पहुंचने के बाद 3 बजे के आसपास सभी ने मेलडी माता के मंदिर में दर्शन किए. दर्शन करने के बाद सभी अहमदाबाद स्थित नरोड़ा के लिए चल पड़े. लौटते समय गजेंद्र सिंह ने भरत चुनारा को अपनी कार के पीछे आने के लिए कहा. अब केवल कार ही आगे नहीं बढ़ रही थी, बल्कि अरविंद सिंह और गजेंद्र सिंह भी अपने प्लान के अनुसार आगे बढ़ रहे थे.

वापस लौटते समय ये लोग नदेसर से बड़ौदा बाईपास होते हुए हलोल हाइवे पर आ गए थे, जहां एक होटल पर रुक कर चायनाश्ता करते हुए अंधेरा होने का इंतजार करने लगे. क्योंकि अंधेरा होने पर वे आसानी से हिना का मर्डर कर सकते थे. इस के लिए वे नहर के आसपास अंदर के रास्ते पर कार घुमाने लगे. अब तक रात के 8 बज चुके थे और अंधेरा भी हो चुका था. तब अरविंद सिंह और गजेंद्र सिंह को लगा कि अब हिना का मर्डर करने में कोई परेशानी नहीं होगी. मौका देख कर गजेंद्र सिंह ने बड़ी नर्मदा नहर की ओर कार मोड़ दी. भरत और नरेश भी उन के पीछेपीछे चल रहे थे.

नहर के किनारे चलते हुए उन की कार 3 पुल पार कर चुकी थी. चौथा पुल आते ही गजेंद्र सिंह ने यूटर्न ले कर कार रोक दी. संयोग से उस समय पानी बरस रहा था. पीछे आ रहे भरत और नरेश की कार मिट्टी में फंस गई तो उन्होंने अपनी कार वहीं छोड़ दी. दूसरी ओर अरविंद सिंह और गजेंद्र सिंह कार से उतरे और पीछे का दरवाजा खोल कर हिना का हाथ पकड़ कर बाहर खींच लिया. कार में बैठी हिना की बहन Love Story काजल बाहर न आ सके, इस के लिए उन्होंने दरवाजा बंद कर के कार को लौक कर दिया. अब तक भरत और नरेश भी गजेंद्र की कार के पास आ गए थे.

अरविंद सिंह और गजेंद्र सिंह हिना को खींच कर नहर के पास ले गए और धक्का मार कर नहर में धकेल दिया. कार के पास खड़े भरत और नरेश यह सब देख रहे थे. हिना के नहर में गिरते ही नरेश दौड़ कर नहर में कूद गया और हिना का हाथ पकड़ कर बाहर निकाल लाया. इस तरह उस ने हिना को बचा लिया. यह देख कर गजेंद्र सिंह नरेश पर बहुत गुस्सा हुआ. उस ने नरेश को गालियां देते हुए वहां से हट जाने को कहा. तब नरेश और भरत गजेंद्र सिंह की कार के पास आ कर खड़े हो गए. अरविंद सिंह और गजेंद्र सिंह किसी भी हालत में हिना को मौत के घाट उतारना चाहते थे. क्योंकि उन्हें हिना को उसी वक्त मारना ही मारना था. इसलिए गजेंद्र सिंह ने हिना को पीछे से पकड़ लिया तो अरविंद सिंह ने हिना के ही दुपट्टे से उस का गला कस कर उस की हत्या कर दी.

फैमिली ने रात में ही क्यों जलाई चिता

हिना ने अपनी जान बचाने की काफी कोशिश की थी, काफी विरोध किया था, परंतु गजेंद्र सिंह ने उसे पूरी ताकत से पकड़ रखा था, इसलिए लाख कोशिश कर के भी वह खुद को बचा नहीं सकी. थोड़ी ही देर में उस की मौत हो गई. जब अरविंद सिंह और गजेंद्र सिंह को विश्वास हो गया कि हिना मर चुकी है तो उन्होंने भरत और नरेश को पीछे की सीट पर बैठने को कहा. इस के बाद हिना की लाश को उठा कर पीछे की सीट पर रख दिया. बाद में जब अरविंद सिंह भी सीट पर बैठा तो हिना की लाश को उठा कर सभी ने गोद में रख लिया. उस समय काजल आगे की सीट पर बैठी थी.

हिना की लाश कार में रख कर सभी लोग चल पड़े. रास्ते से ही गजेंद्र सिंह ने अपने साले उपेंद्र सिंह को फोन कर के भरत की फंसी हुई कार के बारे में बता कर चाबी ले जाने के लिए कहा. बीच रास्ते में पांच देवड़ा के पास बस स्टैंड पर गजेंद्र सिंह ने भरत की कार की चाबी उपेंद्र सिंह के दोस्त को दे दी थी. दूसरी ओर अरविंद सिंह ने अपने भाइयों पोपट सिंह (गजेंद्र सिंह के पिता) और नटवर सिंह को फोन कर के बता दिया था कि उन्होंने हिना का मर्डर कर दिया है और उस की डैडबौडी ले कर सीधे श्मशान पहुंच रहे हैं. वे लोग उस के अंतिम संस्कार यानी जलाने की पूरी तैयारी कर के रखें.

अरविंद सिंह ने काजल को रास्ते में गगाड़ गांव के पास उतार दिया था. काजल को उतारने के बाद अरविंद सिंह और अन्य लोग हिना की डैडबौडी को ले कर बाकरोल गांव के श्मशान की ओर चल पड़े. गजेंद्र सिंह कार धीरेधीरे चला रहा था. 6 सितंबर की रात लगभग साढ़े 12 बजे ये सभी श्मशान के नजदीक पहुंचे. संयोग से श्मशान जाने वाले रास्ते में पानी भरा था. इसलिए वहां जाने के बजाय सभी हिना की लाश ले कर गजेंद्र सिंह के एस्टेट में आ गए. यहां गजेंद्र सिंह के पिता पोपट सिंह, नटवर सिंह और छोटा भाई राजदीप सिंह सारी तैयारी किए सफेद कार के साथ पहले से ही खड़े थे. हिना की बौडी जल्दी जल जाए, इस के लिए वे लकड़ी के साथ 20 लीटर डीजल भी साथ ले कर आए थे.

यहां पिकअप वैन में लकडिय़ां, डीजल और लाश रख कर सभी उसी में बैठ गए और देर रात को सभी हिना की लाश ले कर बाकरोल गांव के श्मशान पहुंचे. लेकिन भरत और नरेश एस्टेट में ही रुक गए थे. श्मशान पहुंच कर अरविंद सिंह ने भाइयों और भतीजे की मदद से हिना की चिता में आग लगा दी. इस तरह रात 3 बजे तक उन्होंने हिना की डैडबौडी को जला दिया. बौडी जल्दी जल जाए, इस के लिए ये लोग थोड़ीथोड़ी देर में साथ लाया डीजल लाश पर थोड़ाथोड़ा डालते रहे. रात 3 बजे तक डैडबौडी जला कर सभी अपनेअपने घर चले गए.

हिना ने क्यों नहीं मानी फैमिली वालों की बात

6 सितंबर, 2024 की सुबह यही कोई 4 बजे गुजरात के अहमदाबाद के थाना कणभा के अंतर्गत आने वाले बाकरोल गांव के रंजीतभाई चौधरी खेत की ओर जा रहे थे, तभी उन की नजर रास्ते के बगल स्थित गांव के श्मशान पर पड़ी. उन्होंने देखा कि उतनी रात को श्मशान में चिता सुलग रही है. चिता को सुलगते देख उन्हें हैरानी हुई कि इतनी रात को किस का अंतिम संस्कार किया गया है? जबकि आज तो गांव में किसी की भी मौत भी नहीं हुई है, तब श्मशान में यह किस की लाश जलाई गई है? खेत से लौट कर उन्होंने इस बात की चर्चा अन्य लोगों से की तो सभी को आश्चर्य हुआ, क्योंकि गांव में सचमुच किसी की मौत नहीं हुई थी. यह बात जब रंजीत ने गांव के सरपंच रणछोड़ भाई को बताई तो उन्हें इस मामले में कुछ गड़बड़ी दिखाई दी.

एक बार उन्होंने भी अपने हिसाब से पता लगवाया कि गांव में कोई मरा तो नहीं है. जब उन्हें इस बारे में कोई सही जानकारी नहीं मिली तो उन्होंने पुलिस कंट्रोल रूम को इस बात की सूचना दे दी. पुलिस कंट्रोल रूम ने यह सूचना थाना कणभा पुलिस और एलसीबी (लोकल क्राइम ब्रांच) को दी तो थोड़ी ही देर में थाना कणभा के एसएचओ आर.एन. करमटिया और एलसीबी की टीम गांव बाकरोल के श्मशान में पहुंच गई. पुलिस के पहुंचने तक वहां सब जल चुका था. केवल राख और कुछ हड्डियां वहीं पड़ी थीं.

पुलिस ने एफएसएल की टीम और एग्जीक्यूटिव मजिस्ट्रैट को सूचना दे कर श्मशान में बुलवा लिया. उन की मौजूदगी में पुलिस ने चिता पर जल चुकी लाश की हड्डियों के अवशेषों के 3 अलगअलग नमूनों को फोरैंसिक पोस्टमार्टम कराने के लिए एफएसएल लैब में भिजवा दिया. इस के बाद पुलिस ने 11 सितंबर, 2024 को इस मामले की रिपोर्ट दर्ज कर आगे की काररवाई शुरू की. पुलिस के सामने पहला सवाल यह था कि श्मशान में किस ने किस का अंतिम संस्कार किया था? इस सवाल का जवाब पाने के लिए एसएचओ आर.एन. मरकटिया ने सहयोगियों के साथ गांव बाकरोल जा कर पूछताछ शुरू की.

इस पूछताछ में उन्हें पता चला कि गांव के ही रहने वाले अरविंद सिंह सोलंकी की बेटी हिना का गांव के ही हितेश सोलंकी से लव अफेयर (Gujarat Crime) चल रहा था. जिस की वजह से 13 अगस्त, 2024 को हिना हितेश के साथ भाग गई थी. अरविंद सिंह सोलंकी ने थाना कणभा में हितेश के खिलाफ बेटी हिना को भगा ले जाने की रिपोर्ट भी दर्ज कराई थी. तब पुलिस ने हिना और हितेश को खोज कर 19 अगस्त, 2024 को हिना को उस के पिता अरविंद सिंह के हवाले कर दिया था. इस बात से अरविंद सिंह काफी गुस्से में था. क्योंकि बेटी के भाग जाने से समाज में उस के परिवार की काफी बदनामी हुई थी.

पुलिस ने जब हितेश के घर पता किया तो वह अपने घर पर ही था. इस के बाद पुलिस ने हिना के बारे में पता किया तो जानकारी मिली कि इस के पहले भी हिना और हितेश 2 बार भाग चुके थे. हिना हितेश से मिल न सके और उस से उस का प्रेम संबंध न रहे, इस के लिए उस का परिवार नरोड़ा रहने चला गया था.

मनगढंत कहानी की ऐसे निकली हवा

इस के बाद एसएचओ अपनी टीम के साथ नरोड़ा स्थित अरविंद सिंह सोलंकी के घर पहुंचे. पूछताछ में पता चला वहां हिना नहीं है. पुलिस ने जब अरविंद सिंह से हिना के बारे में पूछा तो पहले उस ने गोलमोल जवाब दिए. लेकिन जब पुलिस ने थोड़ी सख्ती की तो उन्होंने कहा, ”उस की डेथ हो गई थी. फिर हम ने उस का गांव के श्मशान में अंतिम संस्कार कर दिया था.’’

”उस की मौत कैसे हुई थी?’’ थानाप्रभारी ने पूछा.

”साहब, उस की तबीयत खराब थी. उसे बुखार था, जिस की वजह से सिर में दर्द था और उल्टियां हो रही थीं. इस के लिए उसे दवा दी गई थी. दवा खा कर वह सो गई. सोते में ही उस की मौत हो गई थी. उस के बाद बाकरोल के श्मशान में उस का अंतिम संस्कार कर दिया.’’ अरविंद सिंह ने बताया.

”हिना को बुखार था तो क्या उसे किसी डाक्टर को दिखाया था?’’ आर.एन. मरकटिया ने सवाल किया.

”इस की जरूरत ही महसूस नहीं हुई साहब. क्योंकि हिना की सांस नहीं चल रही थी.’’ अरविंद सिंह ने कहा.

अरविंद सिंह के इस जवाब से एसएचओ को लगा कि यह कुछ छिपा रहा है. फिर भी उन्होंने उस से कुछ नहीं कहा. वह अपनी टीम के साथ थाने वापस आ गए थे. इस के बाद उन्होंने अपने मुखबिरों को अरविंद सिंह और उस के घर वालों के बारे में पता करने के लिए लगा दिया. मुखबिर ने उन्हें बताया कि हिना का हितेश के साथ भागना उस के फैमिली को अच्छा नहीं लगा था. सभी ने इसे इज्जत का सवाल बना लिया था. यह सूचना मिलने के बाद पुलिस ने सच्चाई का पता करने के लिए तकनीक का सहारा लिया. जिस दिन घटना घटी थी यानी 5 सितंबर की रात हिना का परिवार कहां था?

पुलिस ने जब यह पता किया तो अरविंद सिंह की जो ट्रैवलिंग हिस्ट्री मिली, उस के अनुसार उस दिन हिना का परिवार बड़ौदा और हलोल की ओर था. यही नहीं, पुलिस को अरविंद सिंह की लोकेशन के साथ कुछ अन्य फोन नंबर भी मिले थे. इस से पुलिस को समझते देर नहीं लगी कि जिस दिन यह कांड हुआ, अरविंद सिंह के साथ और भी कई लोग थे. यह जानकारी मिलने के बाद पुलिस को जो शक था, वह और मजबूत हुआ. एसएचओ आर.एन. मरकटिया ने अरविंद सिंह को थाने बुला कर उस से पूछा, ”तुम तो कह रहे थे कि 5 सितंबर की रात तुम घर पर थे. जबकि हमारे पास सबूत हैं कि उस रात तुम बड़ौदा की तरफ थे.’’

अब अरविंद सिंह क्या जवाब देता, इसलिए उस ने स्वीकार कर लिया कि उस की बेटी हिना की मौत तबीयत खराब होने से नहीं हुई थी, बल्कि उन्होंने ही अपने फैमिली वालों की मदद से उस की हत्या की थी. इस के बाद एसपी ओमप्रकाश जाट की मौजूदगी में अरविंद सिंह ने हिना की हत्या की जो कहानी सुनाई, वह कुछ इस प्रकार थी. अरविंद सिंह सोलंकी मूलरूप से अहमदाबाद के बाकरोल गांव का रहने वाला दबंग व्यक्ति था. वह गांव का उपसरपंच भी रह चुका था. उस के परिवार में पत्नी, 2 बेटियां काजल, हिना और एक बेटा था. वह गांव में ही रह कर खेती करता था. चूंकि (Gujarat Crime) उस का गांव शहर से जुड़ा हुआ था, इसलिए खेती से वह अच्छी कमाई कर रहा था.

अरविंद सिंह की बेटी हिना का एक साल से गांव के ही रहने वाले हितेश नाम के युवक से अफेयर चल रहा था. चूंकि दोनों एक ही कास्ट के थे, इसलिए उन का विवाह होना संभव नहीं था. जब फैमिली को हिना के अफेयर का पता चला तो उन्होंने उसे समझाया कि यह मैरिज संभव नहीं है, क्योंकि लड़का उन्हीं की कास्ट का है. फैमिली के समझाने का हिना पर कोई असर नहीं हुआ. तब अरविंद सिंह अपनी फैमिली को ले कर अहमदाबाद के नरोड़ा रहने चला गया था. नरोड़ा आ कर भी फैमिली वाले हिना को हितेश से दूर रहने के लिए समझाते रहे, लेकिन हिना हमेशा यही कहती रही कि वह शादी करेगी तो हितेश से ही करेगी. इस के लिए वह कुछ भी कर सकती है. वह हितेश के अलावा किसी दूसरे से कभी शादी नहीं करेगी.

हिना की इस जिद पर फैमिली वालों को लगा कि इस की जिद की वजह से वह कहीं मुंह दिखाने लायक भी नहीं रहेंगे, इसलिए अरविंद सिंह ने अन्य रिश्तेदारों के साथ एक प्लान बना कर हिना का मर्डर कर उस की डैडबौडी चोरीछिपे श्मशान में जला दी. लेकिन अंधेरे में किए गए इस अपराध का भांडा फूट ही गया. इस के बाद पुलिस ने सभी आरोपियों के खिलाफ हिना की हत्या का मुकदमा दर्ज कर औनर किलिंग के सभी आरोपियों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया.

कथा लिखने तक सारे आरोपी जेल में थे.

Social Crime Stories : 20 लाख के लिए साले ने किया जीजा के भाई का कत्ल

Social Crime Stories : आगरा के संजय पैलेस स्थित आईसीआईसीआई बैंक के कैशियर के सामने जैसे ही एक करोड़ रुपए का चैक आया, उस ने नजरें उठा कर चैक रखने वाले को देखा तो एकदम से उस के मुंह से निकल गया, ‘‘नमस्कार इमरान भाई, कहो कैसे हो?’’

‘‘ठीक हूं भाईजान, आप कैसे हैं?’’ जवाब में इमरान ने कहा.

‘‘मैं भी ठीक हूं्.’’ कैशियर ने कहा.

‘‘भाईजान थोड़ा जल्दी कर देंगे, बड़े भाईजान का फोन आ चुका है. वह मेरा ही इंतजार कर रहे हैं.’’ इमरान ने कहा.

कैशियर अपनी सीट से उठा और मैनेजर के कक्ष में गया. थोड़ी देर बाद लौट कर उस ने कहा, ‘‘इमरानभाई, आज तो बैंक में इतनी रकम नहीं है. जो है वह ले लीजिए, बाकी का भुगतान कल कर दूं तो..?’’

‘‘कोई बात नहीं. आज कितना कर सकते हैं?’’ इमरान ने पूछा.

‘‘20-25 लाख होंगे. ऐसा है, आप को आज 20 लाख दे देता हूं. बाकी कल ले लीजिएगा.’’ कैशियर ने कहा तो इमरान ने एक करोड़ वाला चैक वापस ले कर 20 लाख का दूसरा चैक दे दिया. कैशियर ने उसे 20 लाख रुपए दिए तो उन्हें बैग में डाल कर वह बाहर खड़ी अपनी मारुति 800 से शहर से 15 किलोमीटर दूर कुबेरनगर स्थित अपने ताऊ के बेटे पूर्व विधायक जुल्फिकार अहमद भुट्टो के स्लाटर हाउस (कट्टीखाने) की ओर चल पड़ा.

यह शाम के सवा 4 बजे की बात थी. साढे़ 4 बजे के आसपास इमरान पैसे ले कर वाटर वर्क्स चौराहे पर पहुंचा था कि उस के बड़े भाई इरफान का फोन आ गया. फोन रिसीव कर के उस ने कहा, ‘‘भाईजान, बैंक से 20 लाख रुपए ही मिल सके हैं. मैं उन्हें ले कर 10-15 मिनट में पहुंच रहा हूं.’’

इमरान ने 10-15 मिनट में पहुंचने को कहा था. लेकिन एक घंटे से भी ज्यादा समय हो गया और वह स्लाटर हाउस नहीं पहुंचा तो उस के बड़े भाई इरफान को चिंता हुई. उस ने इमरान को फोन किया तो पता चला कि उस के दोनों फोन बंद हैं. इरफान परेशान हो उठा.  वह बारबार नंबर मिला कर इमरान से संपर्क करने की कोशिश करता रहा, लेकिन फोन बंद होने की वजह से संपर्क नहीं हो पाया. अब तक शाम के 7 बज गए थे. इरफान को हैरानी के साथसाथ चिंता भी होने लगी.

इमरान और इरफान आगरा छावनी से बसपा के विधायक रह चुके जुल्फिकार अहमद भुट्टो के चचेरे भाई थे. दोनों भाई आगरा शहर से यही कोई 15 किलोमीटर दूर कुबेरपुर स्थित जुल्फिकार अहमद भुट्टो के स्लाटर हाउस (कट्टीखाने) का कामकाज देखते थे. इरफान फैक्ट्री का एकाउंट संभालता था तो उस से छोटा इमरान फील्ड का काम देखता था. बैंक में रुपए जमा कराने, निकाल कर लाने आदि का काम वही करता था.

चूंकि उन के चचेरे भाई बसपा के विधायक रह चुके थे, इसलिए यह काम इमरान अकेला ही करता था. अपने साथ वह कोई हथियार भी नहीं रखता था. इस की वजह यह थी कि वह खुद तो साहसी था ही, फिर सिर पर बड़े भाई का हाथ भी था. लेकिन जब से उस के बड़े भाई इरफान का साला भोलू स्लाटर हाउस से जुड़ा था, वह इमरान के साथ रहने लगा था. बड़े भाई का साला होने की वजह से भोलू भरोसे का आदमी था. इसीलिए बैंक आनेजाने में इमरान उसे साथ रखने लगा था.

लेकिन 3 दिसंबर को भोलू ने फोन कर के कहा था कि वह जानवरों की खरीदारी के लिए शमसाबाद जा रहा है, इसलिए आज नहीं आ पाएगा. भोलू ने यह बात इमरान और इरफान दोनों भाइयों को बता दी थी, जिस से वे उस का इंतजार न करें. भोलू नहीं आया तो इमरान अकेला ही बैंक चला गया था. वह चला तो गया था, लेकिन लौट कर नहीं आया था.

7 बजे के आसपास पैसे ले कर इमरान के वापस न आने की बात इरफान ने बड़े भाई जुल्फिकार अहमद भुट्टो को बताई तो वह भी परेशान हो उठे. उन्हें पैसों की उतनी चिंता नहीं थी, जितनी भाई की थी. वह इमरान को बहुत पसंद करते थे. इसीलिए उन्होंने उसे अपने यहां रखा था. उन के यहां काम करते उसे लगभग ढाई साल हो गए थे. इस बीच उस ने एक पैसे की भी हेराफेरी नहीं की थी.

जुल्फिकार अहमद भुट्टो ने भी इमरान के दोनों नंबरों पर फोन किया. जब दोनों नंबर बंद मिले तो वह इरफान के अलावा फैक्ट्री के 20-25 लोगों को 6-7 गाडि़यों से ले कर वाटर वर्क्स चौराहे पर जा पहुंचे, क्योंकि इमरान ने वहीं से बड़े भाई इरफान को आखिरी फोन किया था. इधरउधर तलाश करने के बाद वहां के दुकानदारों से ही नहीं, बीट पर मौजूद सिपाहियों से भी पूछा गया कि यहां कोई हादसा तो नहीं हुआ था.

वाटर वर्क्स चौराहे पर इमरान के बारे में कुछ पता नहीं चला तो वाटर वर्क्स चौराहे से फैक्ट्री तक ही नहीं, पूरे शहर में उस की तलाश की गई. लेकिन उस के बारे में कहीं कुछ पता नहीं चला. सब हैरानपरेशान थे. लोगों की समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर इमरान कहां चला गया. ऐसे में जब कुछ लोगों ने आशंका व्यक्त की कि कहीं पैसे ले कर इमरान भाग तो नहीं गया, तब पूर्व विधायक जुल्फिकार अहमद ने चीख कर कहा था, ‘भूल कर भी ऐसी बात मत करना. वह मेरा भाई है, ऐसा हरगिज नहीं कर सकता.’

सुबह होते ही फिर इमरान की खोज शुरू हो गई थी. उस के इस तरह गायब होने से उस के घर में कोहराम मचा हुआ था. घर के किसी भी सदस्य के आंसू थम नहीं रहे थे. सब को इस बात की आशंका सता रही थी कि कहीं इमरान के साथ कोई अनहोनी तो नहीं घट गई. बैंक जा कर भी इमरान के बारे में पूछा गया. बैंक में लगे सीसीटीवी कैमरे की फुटेज भी देखी गई. पता चला, वह बैंक में अकेला ही आया था और अकेला ही गया था.

अब इमरान के घर वालों के पास इमरान की गुमशुदगी दर्ज कराने के अलावा दूसरा कोई चारा नहीं बचा था. जुल्फिकार अहमद भुट्टो पुलिस अधीक्षक (नगर) पवन कुमार से मिले और उन्हें सारी बात बताई. उन्होंने तुरंत थाना हरिपर्वत के थानाप्रभारी सुरेंद्र कुमार और क्षेत्राधिकारी समीर सौरभ को इस मामले को प्राथमिकता से देखने का आदेश दिया. थाना हरि पर्वत पुलिस ने इमरान की गुमशुदगी दर्ज कर इमरान के दोनों नंबर सर्विलांस सेल को दे कर उन की काल डिटेल्स और आखिरी लोकेशन बताने का आग्रह किया.

पुलिस अधीक्षक (नगर) पवन कुमार ने इस मामले की जानकारी वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक शलभ माथुर को भी दे दी थी. पुलिस इस मामले में तत्परता से लग गई. इमरान के मोबाइल जब बंद हुए थे, तब वे वाटर वर्क्स और रामबाग चौराहे के टावरों की सीमा में थे. काल डिटेल्स में ऐसा कोई भी नंबर नहीं था, जिस पर संदेह किया जाता. जो भी फोन आए थे या किए गए थे, वे अपनों को ही किए गए थे या आए थे. जैसे कि इरफान, पूर्व विधायक के घर के नंबरों व भोलू के नंबरों के थे. एक दिन पहले भी इरफान या भोलू के फोन आए थे या इन्हें ही किए गए थे. चूंकि पुलिस को इन फोनों में कुछ नया या संदेहास्पद नजर नहीं आया, इसलिए पुलिस अन्य बातों पर विचार करने लगी.

इस काल डिटेल्स और लोकेशन की एकएक कौपी वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक शलभ माथुर, पुलिस अधीक्षक पवन कुमार और क्षेत्राधिकारी समीर सौरभ को भी दी गई थी. इन अधिकारियों ने जब काल डिटेल्स और लोकेशन का अध्ययन किया तो उन्हें एक नंबर पर संदेह हुआ. पुलिस ने उस नंबर की लोकेशन निकलवाई तो यह संदेह और बढ़ गया. यह आदमी कोई और नहीं, इरफान का साला भोलू था, जो इमरान के साथ बैंक आता जाता था.

पुलिस ने भोलू को थाने बुलाया तो उस के साथ पूरा परिवार ही चला आया. सभी पुलिस से उस पर शक की वजह पूछने लगे तो क्षेत्राधिकारी समीर सौरभ ने कहा, ‘‘पुलिस शक के आधार पर ही अभियुक्तों तक पहुंचती है. हम किसी पर भी शक कर सकते हैं. वह सगा हो या पराया. आप लोग निश्चिंत रहें, हम किसी निर्दोष व्यक्ति को कतई नहीं फंसाएंगे.’’

क्षेत्राधिकारी के इस आश्वासन पर सभी को विश्वास हो गया कि भोलू को सिर्फ पूछताछ के लिए बुलाया गया है. क्योंकि वही उस के साथ बैंक आताजाता था. पुलिस भोलू से पूछताछ करती रही, जबकि वह स्वयं को निर्दोष बताते हुए पुलिस की इस काररवाई को अपने साथ अन्याय कहता रहा था. इस तरह 4 दिसंबर का दिन भी बीत गया. कोई जानकारी न मिलने से इमरान के घर वालों की चिंता बढ़ती ही जा रही थी. 5 दिसंबर की सुबह आगरा से यही कोई 20 किलोमीटर दूर यमुना एक्सप्रेसवे से सटे गांव चौगान के पंचमुखी महादेव मंदिर के पुजारी ने एक्सप्रेसवे से सटे एक गड्ढे में एक Social Crime Stories युवक की लाश देखी. चूंकि लाश खून से लथपथ थी, इसलिए उसे समझते देर नहीं लगी कि किसी ने इस अभागे को मार कर यहां फेंक दिया है.

पुजारी ने इस घटना की सूचना ग्रामप्रधान को दी तो उस ने इस बात की जानकारी थाना एत्मादपुर पुलिस को दे दी. थाना एत्मादपुर पुलिस तुरंत घटनास्थल पर पहुंची और लाश की शिनाख्त कराने की कोशिश की. लाश की शिनाख्त नहीं हो सकी तो उन्होंने इस बात की सूचना जिले के वरिष्ठ अधिकारियों को दे दी. साथ ही उन्होंने मृतक का हुलिया भी बता दिया था. थाना एत्मादपुर पुलिस ने मृतक का जो हुलिया बताया था, वह 3 दिसंबर की शाम से लापता इमरान से हुबहू मिल रहा था. इसलिए वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक शलभ माथुर पुलिस अधीक्षक (ग्रामीण-पश्चिम) बबीता साहू, क्षेत्राधिकारी अवनीश कुमार, समीर सौरभ के अलावा कई थानों का पुलिस बल एवं इमरान के घर वालों को साथ ले कर गांव चौगान पहुंच गए.

शव इमरान का ही था. हत्यारों ने उसे बड़ी बेरहमी से मारा था. उसे गोली तो मारी ही थी, उस का गला भी काट दिया था. पुलिस ने जहां लाश पड़ी थी, वहीं से थोड़ी दूरी पर पड़े चाकू और पिस्टल को भी बरामद कर लिया था. साफ था, इन्हीं से इमरान की हत्या की गई थी. हत्या करने वाले दोनों चीजें वहीं फेंक गए थे. घटनास्थल की काररवाई निपटा कर पुलिस ने लाश को पोस्टमार्टम के लिए आगरा मैडिकल कालेज भिजवा दिया. लाश बरामद होने से साफ हो गया कि इमरान की हत्या हो चुकी है. लाश के पास उस की कार और पैसे नहीं मिले थे, इस का मतलब यह हत्या उन्हीं पैसों के लिए की गई थी, जो वह बैंक से ले कर चला था. लाश बरामद होने के बाद पुलिस ने भोलू से सख्ती से पूछताछ शुरू की. इस की वजह यह थी कि पुलिस के पास उस के खिलाफ अब तक पुख्ता सुबूत मिल चुके थे.

पुलिस ने उस के मोबाइल फोन की 3 दिसंबर की लोकेशन निकलवाई तो चौगान की मिली थी. पुलिस ने इसी लोकेशन को आधार बना कर भोलू के साथ सख्ती की तो उसे इमरान की हत्या की बात स्वीकार करनी ही पड़ी. इस के बाद उस ने अपने उस साथी का भी नाम बता दिया, जिस के साथ मिल कर उस ने इस घटना को अंजाम दिया था. इमरान की हत्या का राज खुला तो इमरान के घर वाले ही नहीं, रिश्तेदार और दोस्त यार भी हैरान रह गए. हैरान होने वाली बात ही थी. इमरान की हत्या करने वाला भोलू इमरान के बड़े भाई का साला तो था ही, इमरान का पक्का दोस्त भी था. इस के बावजूद उस ने हत्या कर दी थी. आइए, अब यह जानते हैं कि आखिर भोलू ने ऐसा क्यों किया था?

हाजी सलीमुद्दीन और हाजी मोहम्मद आशिक, दोनों सगे भाई आगरा के ताजगंज के कटरा उमर खां में रहते हैं. हाजी मोहम्मद आशिक के बड़े बेटे मोहम्मद जुल्फिकार अहमद भुट्टो उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी के विधायक भी रह चुके हैं. मायावती प्रदेश की मुख्यमंत्री थीं तो भुट्टो की प्रदेश में खासी इज्जत थी. इस की वजह यह थी कि वह मायावती के खासमखास नसीमुद्दीन सिद्दीकी के खासमखास थे. भुट्टो के विधायक रहते हुए आगरा के कुबेरपुर स्थित उन के स्लाटर हाउस ने खासी तरक्की की. इस की खपत एकाएक बढ़ गई. काम बढ़ा तो वर्कर भी बढ़ गए. तभी उन्होंने अपने चाचा सलीमुद्दीन के बड़े बेटे इरफान को अपने स्लाटर हाउस का हिसाबकिताब देखने के लिए रख लिया. इरफान को यह काम पसंद आ गया तो 2 साल पहले उस ने अपने छोटे भाई इमरान को भी अपनी मदद के लिए स्लाटर हाउस में रख लिया.

20 वर्षीय इमरान मेहनती युवक था. स्लाटर हाउस में नौकरी करने से पहले वह ताजमहल में गाइड का काम करता था. वहां वह ठीकठाक कमाई कर रहा था, लेकिन जब भुट्टो ने उस से इरफान की मदद के लिए स्लाटर हाउस में काम करने को कहा तो उस ने गाइड का काम छोड़ दिया और भाई के स्लाटर हाउस का काम देखने लगा. 5 भाइयों में सब से छोटे Social Crime Stories इमरान ने स्लाटर हाउस में आते ही रुपयों के लेनदेन से ले कर बाहर के सारे काम संभाल लिए. इस तरह इमरान ने आते ही इरफान का बोझ आधा कर दिया.

इरफान की शादी हो चुकी थी. उस का विवाह आगरा शहर के ही वजीरपुरा के रहने वाले अहसान की बेटी सीमा के साथ हुआ था. उस के ससुर दरी के अच्छे कारीगर थे, इसलिए उन का दरियों का कारोबार था. उन के इंतकाल के बाद इस पुश्तैनी काम में ज्यादा मुनाफा नहीं दिखाई दिया तो उन के सब से छोटे बेटे भोलू ने जूतों के डिब्बे बनाने का काम शुरू कर दिया. जबकि उस के 3 अन्य भाई और चाचा दरी का पुश्तैनी कारोबार ही करते रहे. भोलू का जूतों के डिब्बे बनाने का काम बढि़या चल निकला. उसी की कमाई से जल्दी ही उस ने मारुति स्विफ्ट कार खरीद ली. भोलू अपनी बहन सीमा के यहां आताजाता ही रहता था. इसी आनेजाने में उस ने महसूस किया कि स्लाटर हाउस में जो लोग जानवर सप्लाई करते हैं, उन की अच्छीखासी कमाई होती है. उस के पास पैसे तो थे ही, उस ने अपने बहनोई इरफान से इस संबंध में बात की तो उस ने भुट्टो से बात कर के भोलू को जानवर खरीद कर लाने के लिए कह दिया.

इस के बाद भोलू आगरा के जानवरों के बाजारों, किरावली, शमसाबाद, बटेश्वर आदि से सस्ते दामों में जानवर खरीद कर बहनोई की मार्फत स्लाटर हाउस में बेचने लगा. इस काम में उसे अच्छीखासी कमाई होने लगी. जूतों के डिब्बों का उस का काम चल ही रहा था. इस तरह महीने में वह एक लाख रुपए से अधिक की कमाई करने लगा. किरावली बाजार में जानवरों की खरीदारी के दौरान भोलू की मुलाकात सलमान से हुई तो उसे यह आदमी भा गया. सलमान भी जानवरों की खरीदफरोख्त करता था. इस की वजह यह थी कि एक तो भोलू को कई काम देखने पड़ते थे, दूसरे सलमान इस काम में काफी तेज था. इसीलिए पहली मुलाकात में ही भोलू ने सलमान को बिजनैस पार्टनर बना लिया था. इस के बाद दोनों मिल कर जानवर खरीदने और बेचने लगे.

भोलू ने सलमान को बिजनैस पार्टनर तो बना लिया, लेकिन उस के बारे में उसे ज्यादा कुछ पता नहीं था. उस के बारे में उसे सिर्फ इतना पता था कि वह किरावली का रहने वाला है और उस का मोबाइल नंबर यह है. भोलू के साथ रहने में सलमान को फायदा दिखाई दिया, इसलिए वह उस के साथ रहने लगा. बड़े भाई का साला होने की वजह से इमरान की भोलू से खूब पटती थी. जिस दिन भोलू पशु मेले या बाजार नहीं गया होता था, सारा दिन इमरान उसे अपने साथ रखता था. उसी के सामने वह बैंक से पैसे भी निकालता था और जमा भी कराता था. 50 लाख से ले कर करोड़ रुपए निकालना उस के लिए आम बात थी.

भोलू ने कभी कोई ऐसी वैसी हरकत नहीं की थी, इसलिए इमरान उस पर पूरा विश्वास करने लगा था. भोलू का काम दोनों ओर से ठीकठाक चल रहा था. उस की कमाई महीने में लाख रुपए से ऊपर थी. लेकिन कमाई बढ़ी तो उस की पैसों की भूख भी बढ़ गई थी. अब वह करोड़पति बनने के सपने देखने लगा.

एक दिन शाम को वह सलमान के साथ बैठा था तो उस के मुंह से निकला, ‘‘यार सलमान, मेरे पास एक ऐसी योजना है, जिस के तहत हमें एक करोड़ रुपए आसानी से मिल सकते हैं.’’

‘‘कैसे?’’ सलमान ने पूछा.

इस के बाद भोलू ने उसे जो योजना बताई, सुन कर सलमान की रूह कांप उठी. लेकिन जब भोलू ने उसे पूरी योजना समझा कर मिलने वाली रकम का लालच दिया तो वह उस की योजना में शामिल हो गया.  3 दिसंबर को उन्होंने अपनी इस योजना को अंजाम देने की तैयारी भी कर ली. 2 दिसंबर यानी सोमवार को भोलू इमरान के साथ ही रहा. उस दिन बैंक का कोई काम नहीं था, इसलिए बैंक जाना नहीं हुआ. लेकिन उस दिन भोलू को पता चल गया कि अगले दिन इमरान को बैंक जाना है और लगभग एक करोड़े रुपए निकाल कर लाना है. शाम को घर जाते समय इमरान ने भोलू को वाटर वर्क्स चौराहे पर छोड़ दिया तो वहां से वह वजीरपुरा स्थित अपने घर चला गया.

इमरान की गाड़ी से उतरते ही भोलू ने सलमान को फोन कर के अगले दिन चाकू और पिस्तौल ले कर तैयार रहने के लिए कह दिया था. अगले दिन यानी 3 दिसंबर, 2013 दिन मंगलवार को योजनानुसार 10 बजे के आसपास भोलू ने अपने बहनोई इरफान को फोन कर के बताया कि आज वह सलमान के साथ जानवरों की खरीदारी करने शमसाबाद जा रहा है. इसलिए वह देर शाम तक ही स्लाटर हाउस आ पाएगा. तब इरफान ने उस से कहा था, ‘‘आज इमरान को बैंक से बड़ी रकम निकाल कर लाना है, हो सके तो तुम यह काम करा कर जाओ.’’

इस पर भोलू ने कहा, ‘‘दरअसल वहां कुछ व्यापारी सस्ते जानवर ले कर आने वाले हैं, अगर उन से सौदा पट गया तो काफी मोटा मुनाफा हो सकता है. इसलिए वहां जाना जरूरी है.’’

इस के बाद भोलू ने इमरान को भी फोन कर के कहा था, ‘‘इमरानभाई, मैं सलमान के साथ शमसाबाद जानवर खरीदने जा रहा हूं. इसलिए तुम अकेले ही बैंक चले जाना. क्योंकि मैं देर शाम तक ही वापस आ पाऊंगा.’’

योजनानुसार न तो भोलू शमसाबाद गया न सलमान. दोनों साए की तरह इमरान के पीछे इस तह लगे रहे कि वह उन्हें देख न पाए. इस बीच इमरान को फोन कर के वह पूछता रहा कि वह क्या कर रहा है? लेकिन उस ने यह नहीं पूछा था कि आज वह कितने रुपए निकाल रहा है?

इमरान जैसे ही रुपए ले कर बैंक से निकला, भोलू और सलमान टूसीटर से उस से पहले वाटर वर्क्स चौराहे पर पहुंच गए और वहीं खड़े हो कर इमरान पर नजर रखने लगे. जब उन्हें लगा कि इमरान वाटर वर्क्स चौराहे पर पहुंच गया होगा तो भोलू ने उसे फोन किया, ‘‘इमरानभाई, मैं शमसाबाद से लौट आया हूं और वाटर वर्क्स चौराहे पर खड़ा हूं. इस समय तुम कहां हो?’’

‘‘मैं यहीं वाटर वर्क्स चौराहे पर जाम में फंसा हूं. जहां से जवाहर पुल शुरू होता है, तुम वहीं पहुंचो. मैं वहीं से तुम्हें ले लूंगा.’’

भोलू सलमान के साथ जवाहर पुल के पास जा कर खड़ा हो गया. 5-7 मिनट बाद इमरान वहां पहुंचा तो भोलू इमरान की बगल वाली सीट पर बैठ गया तो सलमान पीछे वाली सीट पर. गाड़ी आगे बढ़ गई. इमरान को बातों में उलझा कर भोलू ने डैशबोर्ड पर रखे उस के दोनों मोबाइल फोन के स्विच औफ कर दिए. कार जैसे ही कुबेरपुर के पास पहुंची, भोलू ने कहा, ‘‘इमरानभाई, मेरे 2 दोस्त चौगान गांव के पास एक्सप्रेसवे के नीचे मेरा इंतजार कर रहे हैं. अगर तुम मुझे वहां तक छोड़ देते तो अच्छा रहता.’’

इमरान ने नानुकुर की, लेकिन चौगान गांव वहां से कोई बहुत ज्यादा दूर नहीं था. फिर भोलू पर उसे पूरा विश्वास था, इसलिए साथ में इतने रुपए होने के बावजूद इमरान ने कार चौगान गांव की ओर मोड़ दी. चौगान से कोई आधा किलोमीटर पहले ही सुनसान जंगली रास्ते पर लघुशंका के बहाने भोलू ने इमरान से कार रुकवा ली. भोलू नीचे उतरा और इधरउधर देख कर अंदर बैठे सलमान को इशारा किया. जैसे ही सलमान नीचे उतरा, भोलू ने तमंचा निकाल कर ड्राइविंग सीट पर बैठे इमरान के सीने पर गोली मार दी. उस ने दूसरी गोली मारनी चाही, लेकिन तमंचा धोखा दे गया. गोली लगते ही इमरान के मुंह से हलकी सी चीख निकली और वह छटपटाने लगा. भोलू ने सलमान से छुरा ले कर इमरान पर कई वार करने के साथ गला भी काट दिया कि कहीं यह बच न जाए. चाकू चलाने के दौरान भोलू के दोनों हाथ जख्मी हो गए, जिस में उस ने रूमाल बांध ली.

इस के बाद इमरान की लाश घसीट कर दोनों ने हाईवे से सटे एक गड्ढे में फेंक दी. वहीं पास ही उन्होंने चाकू और तमंचा भी फेंक दिया. इस के बाद कार ले कर भाग निकले. रास्ते में एक हैंडपंप पर कार रोक कर थोड़ीबहुत धुलाई की. वहां से थोड़ा आगे आ कर एक्सप्रेसवे पर उन्होंने रकम गिनी तो पता चला कि ये तो सिर्फ 20 लाख रुपए ही हैं. जबकि उन्हें एक करोड़ रुपए होने की उम्मीद थी. दोनों ने ही अपना अपना सिर पीट लिया. बहरहाल अब तो जो होना था, वह हो गया था. दोनों ने आधीआधी रकम ले ली. भोलू ने  सलमान को कार ठिकाने लगाने के लिए दे कर एक जगह रकम छिपाई और खुद स्लाटर हाउस पहुंच गया.

स्लाटर हाउस में इमरान के न आने की वजह से इरफान परेशान था. बहनोई से हालचाल पूछ कर वह इमरान की तलाश करने के बहाने बाहर आ गया. इरफान ने उस के हाथों पर रूमाल बंधी देखी तो उस के बारे में पूछा था. तब उस ने बहाना बना दिया था. स्लाटर हाउस से निकल कर भोलू ने छिपा कर रखे रुपए अपने एक परिचित के पास रखे और वापस जा कर इरफान के साथ इमरान की तलाश करने लगा.

दूसरी ओर इमरान की कार ले कर गया सलमान वहां से 5 किलोमीटर दूर एक ढाबे पर पहुंचा और एक दुर्घटनाग्रस्त ट्रेलर के पीछे कार खड़ी कर के ढाबे के एक कर्मचारी को 5 सौ रुपए का नोट दे कर कहा कि वह दिल्ली जा रहा है, इसलिए एक दिन के लिए अपनी इस कार को यहीं खड़ी कर रहा है. ढाबे के उस कर्मचारी को क्या ऐतराज होता, उस ने कह दिया कि खड़ी कर दो. सलमान ने वहीं अपने फोन का स्विच औफ किया और रुपए ले कर फरार हो गया.

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पुलिस ने मोबाइल फोन की लोकेशन के आधार पर इमरान की हत्या में भोलू को गिरफ्तार किया था. इस की वजह यह थी कि उस ने सब से कहा था कि वह शमसाबाद जा रहा है, जबकि उस के मोबाइल फोन की लोकेशन आईसीआईसीआई बैंक से ले कर जहां से इमरान की लाश बरामद हुई थी, वहां तक मिली थी. मामले का खुलासा होने के बाद पुलिस ने इमरान की कार तो उस ढाबे से बरामद कर ली थी, लेकिन सलमान का मोबाइल बंद होने की वजह से उसे नहीं पकड़ पाई. पूछताछ के बाद पुलिस ने भोलू को अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया था.

सलमान की तलाश में आगरा के कई थानों की पुलिस तो लगी ही है, मृतक इमरान के घर वाले भी उस की खोज में लगे हैं. उन्हें 10 लाख रुपयों से ज्यादा इमरान के हत्यारे को जेल की सलाखों के पीछे पहुंचाने की चिंता है.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Extramarital Affairs : आशिक मिजाज ससुर की कातिल बहू

Extramarital Affairs : गीता पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जिला बरेली के थाना बहेड़ी के गांव फरीदपुर के रहने वाले गंगाराम की दूसरे नंबर की बेटी थी. गंगाराम की गिनती गांव के  संपन्न किसानों में होती थी. उन की 3 शादियां हुई थीं. पहली पत्नी रमा की बीमारी से मौत हो गई तो उन्होंने सुधा से शादी की. पारिवारिक कलह की वजह से उस ने फांसी लगा कर आत्महत्या कर ली तो उन्होंने तीसरी शादी रेशमा से की.

रेशमा से ही उन्हें 4 बेटियां और 2 बेटे थे. बड़ी बेटी ललिता की उन्होंने उम्र होने पर शादी कर दी थी. उस से छोटी गीता का 8वीं पास करने के बाद पढ़ाई में मन नहीं लगा तो उस ने पढ़ाई छोड़ दी. गीता जिस उम्र में थी, अगर उस उम्र ध्यान न दिया जाए तो बच्चों को बहकते देर नहीं लगती. वे सही गलत के फर्क को समझ नहीं पाते. ऐसा ही कुछ गीता के साथ भी हुआ.

गीता गंगाराम के अन्य बच्चों से थोड़ा अलग हट कर थी. वह जिद्दी थी, इसलिए उस के मन में जो आता था, वह हर हाल में वही करती थी. उसे लड़कों की तरह रहना, उन्हीं की तरह दोस्ती करना और बिंदास घूमते हुए मस्ती करना कुछ ज्यादा ही अच्छा लगता था. इसलिए वह लड़कों की तरह कपड़े तो पहनती ही थी, अपने बाल भी लड़कों की ही तरह कटवा रखे थे. वह अकसर गांव के लड़कों के साथ घूमती रहती थी. उम्र के साथ उस के बदन में ही नहीं, सुंदरता में भी निखार आ गया था.

गंगाराम के पास ट्रैक्टर भी था और मोटरसाइकिल भी. गीता दोनों ही चीजें चला लेती थी. इसलिए उस का जब मन होता, वह मोटरसाइकिल ले कर घूमने निकल जाती. उसे लड़कों से कोई परहेज नहीं था, इसलिए गांव के लड़के उस के आसपास मंडराते रहते थे. गीता नादान तो थी नहीं कि उन लड़कों की मंशा न समझती, इसलिए अपने बिंदासपन से वह उन्हें अंगुलियों पर नचाती रहती थी. लेकिन उन लड़कों को इस का फायदा भी मिलता था. वे लड़के गीता से जो चाहते थे, वह उन्हें मिला भी.

फिर तो गांव में गीता को ले कर तरहतरह की चर्चाएं होने लगीं. जब इस सब की जानकारी गीता के पिता गंगाराम को हुई तो उस ने गीता पर बंदिशें लगाईं. लेकिन गीता अब काबू में आने वाली कहां थी. कोई न कोई बहाना बना कर वह घर से निकल जाती. कोई ऊंचनीच न हो जाए, इस डर से गंगाराम गीता के लिए लड़के की तलाश करने लगा. जल्दी ही उस की यह तलाश खत्म हुई और उसे बरेली के ही थाना नवाबगंज के गांव लावाखेड़ा निवासी परमानंद का बेटा मनोज मिल गया.

परमानंद भी किसान थे. उस के पास भी ठीकठाक खेती थी, जिस की वजह से उस के यहां भी गांवदेहात के हिसाब से किसी चीज की कमी नहीं थी. उस के परिवार में पत्नी उर्मिला के अलावा 3 बेटियां और 2 बेटे मनोज तथा चैतन्य स्वरूप थे. बेटियों का वह विवाह कर चुका था. अब मनोज का नंबर था. यही वजह थी कि जब गंगाराम उस के यहां अपने किसी रिश्तेदार के माध्यम से रिश्ता ले कर पहुंचा तो बात बन गई. इस के बाद सारे रस्मोरिवाज पूरे कर के मनोज और गीता को शादी के गठबंधन में बांध दिया गया. यह शादी फरवरी, 2009 में हुई थी.

गीता सुंदर तो थी ही, साथ ही उस में वे सारे गुण विद्यमान थे, जो पुरुषों को दीवाना बना देते हैं. यही वजह थी कि गीता ने अपनी अदाओं से पहली ही रात में मनोज को अपना दीवाना बना दिया था. गीता पहली ही रात में समझ गई कि उसे पति उस के मनमाफिक मिला है. वह जैसा सीधासादा, अंगुलियों पर नाचने वाला पति चाहती थी, मनोज ठीक वैसा ही निकला था.

2-4 दिनों में ही मनोज गीता के हुस्न में इस कदर खो गया कि हर पल, हर जगह उसे गीता ही गीता नजर आने लगी. उस का गीता को छोड़ कर कहीं जाने का मन ही न होता. खेतों पर भी उस का मन न लगता. लेकिन जिम्मेदारी ऐसी चीज है, जो पत्नी तो क्या, मांबाप से भी दूर होने को मजबूर कर देती है. यही हाल मनोज का भी हुआ. साल भर बाद वह एक बेटे का बाप बना तो खर्च बढ़ते ही उसे अपनी जिम्मेदारी का अहसास होने लगा.

इस जिम्मेदारी को निभाने के लिए मनोज को कमाना धमाना जरूरी था, जिस के लिए वह ऊधमसिंहनगर चला गया. वहां उसे टाटा मैजिक के लिए पुर्जे बनाने वाली अल्ट्राटेक कंपनी में नौकरी मिल गई. रहने के लिए उस ने शांति कालोनी रोड स्थित बधईपुरा में जागरलाल के मकान में किराए पर कमरा ले लिया.

कमाईधमाई के लिए मनोज खुद तो ऊधमसिंहनगर चला गया था, लेकिन घरवालों की देखरेख के लिए गीता को गांव में ही मांबाप के पास छोड़ गया था. उस ने एक बार भी नहीं सोचा कि उस के बिना गीता का मन गांव में कैसे लगेगा. शायद उसे लग रहा था कि जिस तरह वह पत्नीबच्चे और परिवार के लिए त्याग कर रहा है, उसी तरह गीता भी कर लेगी.

लेकिन मनोज की यह सोच गलत साबित हुई. क्योंकि गीता को तो शारीरिक संबंधों का चस्का पहले से ही लगा हुआ था. ऐसे में वह बिना पति के कैसे रह सकती थी. उस का दिन तो घर के कामधाम और बच्चे में कट जाता था, लेकिन रातें काटे नहीं कटती थीं. बेचैनी से वह पूरी रात करवटें बदलती रहती थी. शारीरिक सुख के बिना वह बुझीबुझी सी रहती थी. उस की इस बेचैनी और परेशानी को घर का कोई दूसरा सदस्य भले ही नहीं समझ सका, लेकिन पितातुल्य ससुर परमानंद ने जरूर समझ लिया था.

इस की वजह यह थी कि परमानंद लंगोट का कच्चा था. उस के लिए रिश्तों से ज्यादा महत्वपूर्ण स्त्री का शरीर था. शायद यही वजह थी कि गीता को उस ने देखते ही पसंद कर लिया था. परमानंद अपनी बहू पर शुरू से ही फिदा था. लेकिन बेटे के रहते वह बहू के करीब नहीं जा पा रहा था. बहू के नजदीक जाने के लिए ही उस ने बेटे को जिम्मेदारी का अहसास दिला कर उसे घर से बाहर भेज दिया था.

मनोज के जाने के बाद गीता की बेचैनी बढ़ी तो परमानंद गीता के नजदीक जाने की कोशिश करने लगा. वह उस से बातें करने के बहाने ढूंढ़ने लगा. गीता उस से बातें करती तो वह अकसर बातें करते करते अपनी सीमाएं लांघ जाता. वह उसे कोई सामान पकड़ाती तो सामान पकड़ने के बहाने वह उसे छूने (Extramarital Affairs) की कोशिश करता. ससुर की इन हरकतों से अनुभवी गीता को समझते देर नहीं लगी कि वह उस से क्या चाहता है. गीता को शक तो पहले से ही था, लेकिन जब निगाहें बदलीं और परमानंद बातबात में हंसीमजाक करने लगा तो उस का शक यकीन में बदल गया.

परमानंद देखने में ही जवान नहीं था, बल्कि शरीर से भी हृष्टपुष्ट था. इस की वजह यह थी कि वह अपने शरीर और खानपान का विशेष ध्यान रखता था. बच्चे सयाने हो गए हैं, यह कह कर पत्नी उर्मिला उसे पास नहीं फटकने देती थी. जबकि परमानंद अभी खुद को जवान समझता था और स्त्रीसुख की लालसा रखता था.

परमानंद को इस बात की जरा भी चिंता नहीं थी कि गीता उस की बेटी की उम्र की तो है ही, उस की बहू भी है. वह वासना में इस कदर अंधा हो गया था कि मर्यादा ही नहीं, रिश्ते नाते भी भूल गया. गीता अब उसे सिर्फ एक औरत नजर आ रही थी, जो उस की शारीरिक भूख शांत कर सकती थी. यहां परमानंद ही नहीं, गीता भी अपनी मर्यादा भुला चुकी थी. यही वजह थी कि वह परमानंद की किसी अशोभनीय हरकत का विरोध नहीं कर रही थी, जिस से उस की हिम्मत और हसरतें बढ़ती जा रही थीं. फिर तो एक स्थिति यह आ गई कि परमानंद की रात की नींद गायब हो गई. अब वह मौके की तलाश में रहने लगा.

आखिर उसे एक दिन तब मौका मिल गया, जब पत्नी मायके गई हुई थी. गरमी के दिन होने की वजह से बाकी बच्चे अंदर सो रहे थे. गीता घर के काम निपटा कर बाहर दालान में आई तो ससुर को बेचैन हालत में करवट बदलते देखा. उसे लगा ससुर की तबीयत ठीक नहीं है, इसलिए उस ने उस के पास आ कर पूछा, ‘‘लगता है, आप की तबीयत ठीक नहीं है?’’

परमानंद हसरत भरी निगाहों से गीता को ताकते हुए बोला, ‘‘तुम इतनी दूरदूर रहोगी तो तबीयत ठीक कैसे रहेगी.’’

गीता को परमानंद की बीमारी का पहले से ही पता था. बीमार तो वह खुद भी थी. इसीलिए तो मौका देख कर उस के पास आई थी. उस ने चाहतभरी नजरों से परमानंद को ताकते हुए कहा, ‘‘यह आप का भ्रम है. मैं आप से दूर कहां हूं बाबूजी. आप के आगेपीछे ही तो घूमती रहती हूं.’’

अब गीता इस से ज्यादा क्या कहती. परमानंद ने उस का हाथ पकड़ कर अपनी ओर खींचा तो वह खुद ही उस के ऊपर गिर पड़ी. इस तरह एक बार मर्यादा की दीवार गिरी तो उस पर रोजरोज वासना की इमारत खड़ी होने लगी. गीता का तो मर्यादा से कभी कोई नाता ही नहीं रहा था, उसी में उस ने ससुर को भी शामिल कर लिया. परमानंद की संगत में आ कर वह शराब भी पीने लगी. अब वह शराब पी कर ससुर के साथ आनंद उठाने लगी. कुछ दिनों बाद उस ने अपने चचिया ससुर से भी संबंध बना लिए.

ये ऐसा रिश्ता है, जिसे कितना भी छिपाया जाए, छिपता नहीं है. किसी दिन उर्मिला ने गीता को परमानंद के साथ रंगरलियां मनाते रंगेहाथों पकड़ लिया. लेकिन उन दोनों पर इस का कोई असर नहीं पड़ा. जब घर का मुखिया ही पतन के रास्ते पर चल रहा हो तो घर के अन्य लोग चाह कर भी कुछ नहीं कर सकते. उर्मिला भी जब ससुरबहू के इस मिलन को नहीं रोक पाई तो उस ने यह बात अपने बेटे मनोज को बताई.

मनोज जानता था कि उस का बाप और पत्नी बरबादी की राह पर चल रहे हैं, इसलिए वह भाग कर गांव आया. बाप से वह कुछ कह नहीं सकता था, उस ने गीता को समझाने की कोशिश की. लेकिन गीता अब कहां मानने वाली थी. हार कर मनोज उसे अपने साथ ले गया. मनोज का विचार था कि गीता साथ रहेगी तो ठीक रहेगी. लेकिन जिस की आदत बिगड़ चुकी हो, वह कैसे सुधर सकती है. बहुत कम लोग ऐसे मिलेंगे, जो ऐसे मामलों में सुधरने के बारे में सोचते हैं.

मनोज के नौकरी पर जाते ही गीता आजाद हो जाती. वह कमरे में ताला डाल कर घूमने निकल जाती. उस ने वहां भी अपने रंगढ़ंग दिखाने शुरू किए तो वहां भी रंगीनमिजाज लोग उस के पीछे पड़ गए. उन्हीं में रुद्रपुर की आदर्श कालोनी का रहने वाला शेखर और जगतपुरा का रहने वाला मनोज भटनागर भी था. गीता के दोनों से ही प्रेमसंबंध बन गए. शेखर ने बातें करने के लिए गीता को एक मोबाइल फोन भी खरीद कर दे दिया था. यही नहीं, दोनों गीता की हर जरूरत पूरी करने को तैयार रहते थे. गीता उन के साथ घूमतीफिरती, सिनेमा देखती, होटलों और रेस्तरांओं में खाना खाती. बदले में वह उन्हें खुश करती और खुद भी खुश रहती.

मनोज जागरलाल के जिस मकान में किराए पर रहता था, उसी में उस के बगल वाले कमरे में रामचंद्र मौर्य रहता था. वह जिला बरेली के थाना मीरगंज के अंतर्गत आने वाले गांव गौनेरा का रहने वाला था. था तो वह शादीशुदा, लेकिन वहां वह अकेला ही रहता था. वह वहां एक फैक्ट्री में ठेकेदारी करता था. अगलबगल रहने की वजह से मनोज और रामचंद्र के बीच परिचय हुआ तो दोनों एक ही जिले के रहने वाले थे, इसलिए उन में आपस में खास लगाव हो गया था. जल्दी ही रामचंद्र गीता के बारे में सब कुछ जान गया था. मनोज के काम पर जाते ही वह उस के कमरे पर पहुंच जाता और गीता से घंटों बातें करता रहता.

पुरुषों को अपनी ओर आकर्षित करने में माहिर गीता समझ गई कि रामचंद्र उस के कमरे पर क्यों आता है. वह जान गई कि पत्नी से दूर औरत सुख के लिए बेचैन रामचंद्र उसी के लिए उस के आगेपीछे घूमता है. रामचंद्र गीता से दोगुनी उम्र का था. लेकिन गीता के लिए इस का कोई मतलब नहीं था. उसे मतलब था तो सिर्फ देहसुख और पैसों से, जो चाहने वाले उस पर लुटा रहे थे. तरहतरह के मर्दों के साथ मजा लेने वाली गीता को रामचंद्र का आना अच्छा ही लगा. इसलिए गीता उस का मुसकरा कर स्वागत करने लगी.

फिर तो रामचंद्र को उस के करीब आने में देर नहीं लगी. जल्दी ही दोनों के मन ही नहीं, तन भी एक हो गए. लेकिन जितनी जल्दी वे एक हुए, उतनी ही जल्दी उन की पोल भी खुल गई. एक दिन मनोज फैक्ट्री से जल्दी आ गया तो कमरे का दरवाजा अंदर से बंद था. उस ने दरवाजा खटखटाया तो गीता ने दरवाजा काफी देर बाद खोला. वह मनोज को देख कर चौंकी. उस के कपड़े अस्तव्यस्त थे, इसलिए मनोज को लगा, वह सो रही थी. गीता ने सहमे स्वर में पूछा, ‘‘आज तुम इतनी जल्दी कैसे आ गए?’’

‘‘फैक्ट्री का जनरेटर खराब था, इसलिए काम नहीं हुआ.’’ कह कर मनोज कमरे में दाखिल हुआ तो सामने पलंग पर रामचंद्र को बैठे देख कर उसे माजरा समझते देर नहीं लगी. मनोज को देख कर वह तेजी बाहर निकल गया. मनोज ने गुस्से से पूछा, ‘‘यह यहां क्या कर रहा था?’’

‘‘पानी पीने आया था.’’ गीता ने हकलाते हुए कहा.

‘‘कमरा बंद कर के पानी पिला रही थी या उस के साथ गुलछर्रे उड़ा रही थी?’’

‘‘तुम्हें यह कहते शरम नहीं आती?’’ गीता चीखी.

‘‘शरम तो तुम्हें आनी चाहिए, जो एक के बाद एक गलत हरकतें करती आ रही हो. अपने मर्द के होते हुए पराए मर्द के साथ गुलछर्रे उड़ा रही हो. तुम्हें तो शरम से डूब मरना चाहिए.’’

‘‘तुम में है ही क्या? तुम न तो पत्नी को संतुष्ट (Extramarital Affairs)  कर सकते हो, न ही उस के खर्चे उठा सकते हो. अगर तुम को इस सब से परेशानी हो रही है तो मुझे छोड़ दो.’’ गीता ने अपना फैसला सुना दिया.

‘‘तू तो चाहती ही है कि मैं तुझे छोड़ दूं तो तू घूमघूम कर गुलछर्रे उड़ाए. तुझे तो अपनी इज्जत की पड़ी नहीं है, लेकिन मुझे तो अपनी इज्जत की फिक्र है. इसलिए सामान बांध लो और अब हम गांव चलते हैं.’’

अगले दिन मनोज ने नौकरी छोड़ दी और हिसाबकिताब ले कर गांव आ गया. कुछ दिनों गांव में रह कर मनोज अकेला ही दिल्ली चला गया, जहां किसी कंस्ट्रक्शन कंपनी में नौकरी करने लगा. उस के जाते ही गीता फिर आजाद हो गई. अब वह वही करने लगी, जो उस के मन में आता. शेखर और मनोज उस से मिलने उस की ससुराल भी आने लगे. मनोज के पास मोटरसाइकिल थी, गीता का जब मन होता, मोटरसाइकिल ले कर अकेली ही बरेली से रुद्रपुर चली जाती और अपने प्रेमियों से मिल कर वापस आ जाती.

रामचंद्र से गीता को विशेष लगाव था. वह उसी के साथ ज्यादा से ज्यादा समय बिताती थी. जब इस सब की जानकारी परमानंद को हुई तो उस ने गीता को रोका. लेकिन वह मानने वाली कहां थी. उस ने एक दिन गीता को रामचंद्र के साथ आपत्तिजनक स्थिति में देख लिया तो उस ने सरेआम रामचंद्र की पिटाई कर दी. रामचंद्र को यह बुरा तो बहुत लगा, लेकिन वह उस समय कुछ करने की स्थिति में नहीं था.

गीता को भी ससुर की यह हरकत पसंद नहीं आई. क्योंकि वह नहीं चाहती थी कि कोई उसे अपनी जागीर समझे और उस की बेलगाम जिंदगी पर अंकुश लगाए. जब उस ने अपने पति मनोज की बात नहीं मानी तो परमानंद की बात कैसे मानती. यही वजह थी कि परमानंद बारबार उस के रास्ते में रोड़ा बनने लगा तो उस ने इस रोड़े को हमेशा के लिए हटाने की तैयारी कर ली. इस के लिए उस ने रामचंद्र को भी राजी कर लिया. वह राजी भी हो गया, क्योंकि वह भी उस से अपनी बेइज्जती का बदला लेना चाहता था.

गीता ने ससुर को ठिकाने लगाने की जो योजना बनाई थी, उसी के अनुसार 27 जुलाई को वह परमानंद को मोटरसाइकिल से रुद्रपुर रामचंद्र के कमरे पर ले गई. देर रात तक गीता, रामचंद्र और परमानंद बैठ कर शराब पीते रहे. गीता और रामचंद्र ने तो खुद कम पी, जबकि परमानंद को जम कर पिलाई. यही नहीं, उस की शराब में नींद की गोलियां भी मिला दी थीं, जिस से कुछ ही देर में वह बेहोश हो कर लुढ़क गया. उस के बाद गीता और रामचंद्र ने उसी के अंगौछे से उस का गला घोंट दिया.

इस के बाद गीता ने मोटरसाइकिल स्टार्ट की तो रामचंद परमानंद की लाश को बीच में बैठा कर पीछे स्वयं बैठ गया. गीता मोटरसाइकिल ले कर काला डूंगी रोड पर भाखड़ा नदी के किनारे पहुंची, जहां दोनों ने परमानंद की लाश को बोरी में कुछ ईंटों के साथ डाल कर नदी के पानी में फेंक दिया. इस के बाद गीता रुद्रपुर में ही रामचंद्र के कमरे पर कई दिनों तक रुकी रही.

11 अगस्त को गीता मोटरसाइकिल से अपनी ससुराल लावाखेड़ा पहुंची तो परमानंद के छोटे बेटे चैतन्य स्वरूप ने पिता के बारे में पूछा. तब गीता ने किसी रिश्तेदारी में जाने की बात कह कर बात खत्म कर दी. 2 दिन ससुराल में रह कर गीता फिर चली गई. गीता के जाने के बाद कई दिनों तक परमानंद नहीं लौटा तो घर वालों को चिंता हुई.

उन्हें गीता पर शक हुआ कि कहीं उस ने अपने प्रेमियों शेखर और मनोज के साथ मिल कर उस की हत्या तो नहीं करा दी. चैतन्य स्वरूप ने कोतवाली नवाबगंज जा कर अपने पिता के गायब होने की सूचना दी. उस समय इंसपेक्टर अशोक कुमार के पास कोतवाली का भी चार्ज था. उन्हें लगा कि बहू ससुर को क्यों गायब करेगी? यही सोच कर उन्होंने चैतन्य को लौटा दिया. परमानंद का परिवार उस की तलाश में लगा रहा. उसी बीच 21 अगस्त को इंसपेक्टर अशोक कुमार का तबादला हो गया तो उन की जगह आए इंसपेक्टर जे.पी. तिवारी. चैतन्य स्वरूप उन से मिला तो उन्होंने उस से तहरीर ले कर शेखर और मनोज भटनागर के खिलाफ अपराध संख्या-827/13 पर भादंवि की धारा 364 के तहत मुकदमा दर्ज करा कर गीता के मोबाइल नंबर को सर्विलांस पर लगवा दिया.

सर्विलांस सेल के पुलिसकर्मियों की गीता से कई बार बात हुई. गीता उन से कभी गुजरात में होने की बात कहती तो कभी हरियाणा में होने की बात बताती, जबकि उस की लोकेशन बरेली के आसपास की ही थी. पुलिस समझ गई कि गीता बहुत ही शातिर है. गीता के नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई गई तो पता चला कि वह सब से अधिक अपनी बड़ी बहन ललिता से बात करती थी. इंसपेक्टर जे.पी. तिवारी ने ललिता और उस के पति प्रमोद को थाने ला कर पूछताछ की तो उन्होंने गीता का ठिकाना बता दिया. गीता उस समय बरेली के थाना मीरगंज के सामने राजेंद्र सेठ के मकान में किराए का कमरा ले कर रह रही थी. उसी के साथ रामचंद्र मौर्य भी था. पुलिस ने दोनों को गिरफ्तार कर लिया. यह 23 दिसंबर, 2013 की बात है.

पूछताछ में गीता और रामचंद्र ने परमानंद की हत्या का अपराध स्वीकार कर के उस की हत्या की पूरी कहानी सिलसिलेवार बता दी. पुलिस ने दोनों को रुद्रपुर ले जा कर उन की निशानदेही पर भाखड़ा नदी से परमानंद की लाश बरामद करने की कोशिश की, लेकिन लाश बरामद नहीं हो सकी. इस के बाद पुलिस ने दोनों को सीजेएम की अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. लाश की बरामदगी के लिए एक बार फिर पुलिस दोनों को रिमांड पर लेने का प्रयास कर रही थी. लेकिन कथा लिखे जाने तक दोनों का रिमांड मिला नहीं था.

— कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Extramarital Affair : भाभी को लेकर भागा देवर

Extramarital Affair  30 वर्षीय पूनम ने 40 साल के दिनेश अवस्थी से प्रेम विवाह कर जरूर लिया था, लेकिन वह उस से खुश नहीं थी. फिर पूनम ने हमउम्र देवर मनोज अवस्थी को प्यार के जाल में फांस लिया. यह बात जब दिनेश को पता चली तो उस ने क्या किया? क्या पति के सामने पूनम देवर के साथ रहती रहीï? जानने के लिए पढ़ें यह दिलचस्प कहानी.

एक रोज दिनेश ने पत्नी पूनम को अपने छोटे भाई मनोज की बांहों में समाए हुए देख लिया. तब उस ने दोनों को खूब फटकार लगाई. उस समय उन दोनों ने दिनेश से माफी मांग ली. कुछ दिनों बाद पूनम और मनोज दोबारा पकड़े गए, तब दिनेश ने दोनों की जम कर पिटाई की. इस के बाद पूनम और मनोज ने बाधक बन रहे भाई दिनेश को ठिकाने लगाने का निश्चय किया.

भाई का काम तमाम करने के लिए मनोज बिधनू बाजार गया और वहां से डेढ़ सौ रुपए में तेज धार वाला चाकू खरीदा और उसे कमरे में ला कर छिपा दिया. पूनम ने पत्थर पर रगड़ कर उस चाकू की धार तेज कर दी. 23 अप्रैल, 2024 की रात 8 बजे दिनेश घर आया. वह नशे में था और आते ही चारपाई पर लुढ़क गया. दिनेश गहरी नींद सो गया तो उस की पत्नी पूनम देवर मनोज के कमरे में पहुंच गई. उस के बाद वे दोनों मस्ती में डूब गए. आधी रात को मनोज के कमरे का दरवाजा भड़ाक से खुला तो दिनेश सामने खड़ा था.

शायद उस की नींद खुल गई थी और वह पूनम को ढूंढते हुए कमरे में आ पहुंचा था. पत्नी को छोटे भाई मनोज के साथ आपत्तिजनक स्थिति में देख कर उस का खून खौल उठा था. उस ने गुस्से में पत्नी पूनम पर हाथ उठाया तो मनोज से रहा नहीं गया और उस ने बड़े भाई दिनेश का हाथ पकड़ कर मरोड़ दिया. इसी समय पूनम बोली, ”मनोज, देख क्या रहे हो. आज इस बाधा को दूर कर दो. हम दोनों का जीना हराम कर दिया है इस ने.’’

इस के बाद मनोज और पूनम ने मिल कर दिनेश को दबोच लिया और फिर चाकू से गोद कर उस का काम तमाम कर दिया. हत्या करने के बाद उस के हाथपैर रस्सी से बांधे, फिर शव को बोरी में भर कर साइकिल पर लाद कर गांव के बाहर तालाब में फेंक दिया. सुबह उन दोनों ने मिल कर खून के धब्बे साफ किए और खून लगी काटन और कपड़े चारपाई के नीचे छिपा दिए. चाकू उस ने टांड पर छिपा दिया.

26 अप्रैल की सुबह वह तालाब पर गया तो दिनेश की लाश तालाब में उतरा रही थी. उस ने लाश को डंडे से दबाने का प्रयास किया, लेकिन असफल रहा. उसी समय उसे गांव के कुछ लोग तालाब की तरफ आते दिखाई दिए तो वह डर गया और फिर डर की वजह से घर में ताला लगाया और पूनम को साथ ले कर फरार हो गया.

2 दिन दोनों बुआ के घर लखीमपुर रहे. फिर वहां से चित्रकूट पहुंचे, चित्रकूट में कुछ दिन रहे. उस के बाद बागेश्वर धाम आश्रम आ गए. पकड़े जाने के डर से उन दोनों ने अपने मोबाइल फोन बंद कर लिए थे. बागेश्वर धाम आश्रम उन्हे छिपने के लिए उचित लगा, इसलिए वे वहीं रहने लगे. जीवन चलाने के लिए उन दोनों ने आश्रम के बाहर एक चाय स्टाल पर नौकरी खोज ली. दिन भर दोनों चाय स्टाल पर रहते और रात में आश्रम आ कर सो जाते.

दिनेश की क्यों नहीं हो रही थी शादी

उत्तर प्रदेश के कानपुर जिला मुख्यालय से 10 किलोमीटर दूर बिधनू थाना अंतर्गत एक गांव है- खेरसा. बिधनू कस्बा से सटे इस गांव के लोग या तो खेती करते हैं या फिर व्यापार. पढ़ेलिखे लोग सरकारी/प्राइवेट नौकरी भी करते हैं. इस गांव में बिजली पानी जैसी सभी भौतिक सुविधाएं उपलब्ध हैं. गांव के आसपास कई ईंट भट्ठे हैं, जहां सैकड़ों मजदूर काम करते हैं. अन्य प्रदेशों के मजदूर भी यहां काम की तलाश में आते हैं.

इसी खेरसा गांव में स्थित अपनी ननिहाल में दिनेश अवस्थी रहता था. दिनेश अवस्थी के पिता राजकुमार अवस्थी, लखीमपुर जनपद के मूलगांव कुडऱीरूप सेनारूप के मूल निवासी थे. उन के परिवार में पत्नी सावित्री के अलावा 3 बेटे दिनेश, मनोज व मयानंद उर्फ अशनी थे. बड़ा बेटा दिनेश अपने भाई मनोज के साथ ननिहाल (खेरसा गांव) में रहने लगा था, जबकि सब से छोटा मयानंद पिता के साथ गांव में रहता था.

दिनेश अवस्थी ट्रक चलाता था, जबकि मनोज बिधनू के ईंट भट्ठे पर काम करता था. दोनों भाइयों की अभी तक शादी नहीं हुई थी. दिनेश का कहीं रिश्ता तय नहीं हो पा रहा था. उस की शादी के लिए उस के मातापिता भी चिंतित थे. क्योंकि वह 40 वर्ष की उम्र पार कर चुका था. इन्हीं दिनों एक रोज दिनेश की मुलाकात पूनम उर्फ गुडिय़ा से हुई. पूनम के पिता रघुवर सीतापुर जनपद के गांव लहरापुर के रहने वाले थे. पूनम उन की बिगड़ैल बेटी थी. आवारा युवकों के साथ घूमना, उन के साथ मौजमस्ती करना उस का शौक था. इसी बदनामी के कारण उस का रिश्ता नहीं हो पा रहा था. रघुवर बेटी के चालचलन से बहुत दुखी थे.

दिनेश की रिश्तेदारी लहरापुर गांव में थी. रिश्तेदार के घर आतेजाते ही दिनेश की मुलाकात पूनम से हुई थी. 30 वर्षीय पूनम दिनेश को ऐसी भाई कि वह उस के पीछे ही पड़ गया. पूनम भी घर बसाना चाहती थी, इसलिए वह भी दिनेश को लिफ्ट देने लगी. दोनों के बीच मुलाकातें बढ़ीं और बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ तो नजदीकियां भी बढऩे लगीं.

वर्ष 2023 की जनवरी माह में दिनेश ने पूनम उर्फ गुडिय़ा से बारादेवी मंदिर में जयमाला पहना कर प्रेम विवाह कर लिया. इस विवाह की जानकारी न तो दिनेश के घरवालों को हुई और न ही पूनम के घर वालों को. हालांकि बाद में दोनों परिवारों को उन के विवाह की भनक लग गई थी. लेकिन विरोध किसी की तरफ से नहीं किया गया. शादी के वक्त पूनम की उम्र 30 वर्ष थी, जबकि दिनेश अवस्थी 40 वर्ष पार कर चुका था. शादी के बाद दिनेश खेरसा गांव में पूनम के साथ रहने लगा. चूंकि अधेड़ उम्र में दिनेश ने प्रेम विवाह किया था, अत: वह पत्नी पूनम को बेहद प्यार करता था और उस की हर डिमांड पूरी करता था.

विवाह के बाद के दिन मौजमस्ती में बीतते हैं. पूनम दिनेश से मिलने वाले सुख से इस कदर आनंदित होती रही कि किसी दूसरी ओर उस का ध्यान ही नहीं गया. लेकिन एक महीने बाद जब दिनेश काम पर जाने लगा और देर रात घर वापस आने लगा तो पूनम के दिमाग में फितूर समाना शुरू हो गया. वह सोचने लगी कि दिनेश न उसे कहीं सैरसपाटा कराने ले जाता है और न शौपिंग कराने. न कभी कोई उपहार ला कर दिया है. पत्नी को खुश रखने का न तो उसे हुनर आता है, न तमीज है. दिनेश से शादी होते ही उस के अरमानों को घुन लग गया और किस्मत का बेड़ा गर्क हो गया.

बीतते दिनों के साथ पति से पूनम का मन खट्टा होने लगा. उस ने पति की परवाह करनी छोड़ दी. न वह उस की जरूरतों का ध्यान रखती, न उस की कोई बात सुनती. दिनेश अपनी कोई जरूरत बताता तो वह एक कान से सुन कर दूसरे कान से निकाल देती. इस के बावजूद दिनेश उस पर प्यार उड़ेलता. दिनेश ट्रक चलाता था. शराब का भी लती था. अत: वह जब घर लौटता तो नशे में झूमता आता. कभीकभी शराब की बोतल साथ भी ले आता, फिर घर में बैठ कर पीता. शराब पीने को ले कर दोनों के बीच बहस होती, फिर झगड़ा होता.

दिनेश और पूनम में झगड़ा होने लगा तो पूनम सोचने लगी कि उस ने अधेड़ उम्र के शराबी से प्रेम विवाह रचा कर बड़ी भूल की है. वह उसे देह सुख प्रदान नहीं कर सकता. पूनम अपनी हसरतों का गला नही घोंटना चाहती थी. उस ने अपने सुख के साधन की तलाश शुरू की तो नजरें मनोज पर ठहर गईं. मनोज पूनम के पति दिनेश का छोटा भाई था. रिश्ते में वह उस का सगा देवर. दोनों भाई साथ ही रहते थे. मनोज पूनम का हमउम्र था. आखों, चेहरे, Extramarital Affair  जिस्म व बातों से उस का कुंवारापन साफ झलकता था. पूनम जब भी मनोज को देखती, उस की लार टपकने लगती.

वह सोचती, मनोज से उस की शादी हुई होती तो हर दिन होली होती और हर रात दिवाली होती. दिन को चाहत के रंग बिखरते, कहकहों का गुलाल उड़ता और रात को हसरतों की फुलझडिय़ां. पूनम ने जो करना था, तय कर लिया. पूनम के दिल में देवर आया तो मनोज को रिझाने के लिए पूनम ने उसी तरह डोरे डालने शुरू कर दिए, जिस तरह देह सुख की प्यासी औरत डाला करती है. कभी वह वक्षों से आंचल गिरा देती, कभी सिर्फ ब्लाउज और पेटीकोट में ही मनोज के सामने आ जाती. कभी सजधज कर उसे रिझाने की कोशिश करती.

पूनम के खुलेपन और छेड़छाड़ से मनोज का मन गुदगुदाता था. वह यह भी समझ गया था कि भाभी उस से क्या चाहती है? मनोज भी यही चाहने लगा था. मगर उसे बड़े भाई दिनेश का डर सता रहा था. इसलिए पहल करने से डरता था. धीरेधीरे दोनों की नजदीकियां बढऩे लगीं. पूनम देवर मनोज के साथ बिधनू कस्बे के बाजारहाट भी जाने लगी. मनोज अपनी कमाई के कुछ पैसे भाभी के हाथ पर भी रखने लगा. इस से पूनम का लगाव और भी बढऩे लगा. मनोज की अब भाभी से खूब पटती थी. देवरभाभी के बीच हंसीमजाक व ठिठोली भी होती थी. मनोज को भाभी की सुंदरता और अल्हड़पन खूब भाता था. कभीकभी वह उसे एकटक प्यार भरी नजरों से देखा करता था.

अपनी ओर टकटकी लगाए देखते समय जब कभी पूनम की नजर उस से टकरा जाती तो दोनों मुसकरा देते थे. मनोज दिनेश से ज्यादा सुंदर और अच्छी कदकाठी का था, इसलिए पूनम उस पर पूरी तरह से फिदा हो गई थी.

पूनम के देवर की तरफ क्यों बढ़े कदम

मनोज भी पूनम को चाहने लगा था. चूंकि वे देवरभाभी थे, इसलिए दोनों के साथ रहने पर दिनेश को कोई शक नहीं होता था. दिनेश सरल स्वभाव का था. पत्नी पर विश्वास भी करता था. पत्नी और भाई के बीच क्या खिचड़ी पक रही है, इस की दिनेश को कोई जानकारी नहीं थी. वह अपने में ही मस्त रहता था. देह सुख पाने की लालसा दोनों में दिनोंदिन बढ़ती जा रही थी. आखिर जब मनोज से नहीं रहा गया तो उस ने एक रोज मजाकमजाक में भाभी पूनम को बाहों में भर लिया और शारीरिक छेड़छाड़ शुरू कर दी. इस छेड़छाड़ का पूनम Extramarital Affair ने विरोध नहीं किया. उस ने भी दोनों हाथों से मनोज को जकड़ लिया.

मनोज ने इस मूक आमंत्रण का फायदा उठाते हुए उस पर चुंबनों की झड़ी लगा दी. इस के बाद अपनी मर्यादाओं को लांघते हुए दोनों ने अपनी हसरतें पूरी कीं. चूंकि मनोज घर में ही रहता था. इसलिए कुछ दिनों तक दोनों का खेल पूरी तरह से चलता रहा. दिनेश को पता तक नहीं चला कि उस के पीछे घर में क्या हो रहा है. आसपड़ोस के लोग भी यही समझते रहे कि दोनों देवरभाभी हैं. इसलिए उन पर शक नहीं हुआ.

पूनम अब देवर मनोज के साथ खुल कर खेलने लगी थी और देह सुख का भरपूर आनंद उठाने लगी थी. उसे दिन दोपहर शाम जब भी इच्छा होती, वह देवर के कमरे में पहुंच जाती और उस के साथ बिस्तर पर बिछ जाती. कभीकभी तो वह रात में भी पति को बिस्तर पर नशे में धुत सोता छोड़ कर देवर के पास पहुंच जाती और देह की प्यास बुझा कर वापस पति के बिस्तर पर आ जाती.

पूनम देवर के प्यार में इतनी अंधी बन गई थी कि उसे पति नकारा और देवर प्यारा लगने लगा था. वह पति की हर तरह से उपेक्षा भी करने लगी थी. न उस का खानेपीने का ध्यान रखती थी और न ही उस से हमदर्दी जताती थी. जब कभी दिनेश कामसुख की कामना करता तो वह कोई न कोई बहाना बना देती. दिनेश की समझ में नहीं आ रहा था कि पूनम ऐसा बरताव क्यों कर रही है. गलत काम कैसा भी हो, उस की उम्र लंबी नहीं होती. पूनम और मनोज के साथ भी ऐसा ही हुुआ. एक दोपहर पड़ोस में रहने वाली ठकुराइन ने दोनों को आपत्तिजनक हालत में देख लिया.

ठकुराइन ने इस पाप की जानकारी आसपड़ोस की महिलाओं को दी. उस के बाद पहले पड़ोस में चर्चाएं शुरू हुईं, फिर उन के संबंधों की चर्चा पूरे गांव में खुल कर होने लगी. ये चर्चाएं दिनेश के कानों तक पहुंचीं तो उस ने पूनम से जवाब मांगा.

पोल खुली तो पूनम ने बहाए घडिय़ाली आंसू

ऐसे मामलों में जैसा कि होता है, कोई महिला आसानी से अपनी चरित्रहीनता स्वीकार नहीं करती. पूनम भी साफ मुकर गई, ”लोगों ने कह दिया और तुम ने मान लिया. मुझ पर लांछन लगाते हुए तुम्हें जरा भी शरम नहीं आई.’’

”किसी एक ने कहा होता तो मैं उस का मुंह तोड़ देता, लेकिन पूरा गांव कह रहा है कि तूने मेरे भाई को यार बना लिया है.’’ दिनेश ने डंडा उठा लिया, ”सच बोल, वरना तेरी हड्डियां तोड़ दूंगा.’’

पूनम सच बोलती तो शामत, सच न बोलती तो भी शामत. अत: उस ने सच ही बोलने का निश्चय कर लिया. उस ने घडिय़ाली आंसू बहाते हुए दिनेश के पांव पकड़ लिए, ”मुझ से गलती हो गई. माफ कर दो. वायदा करती हूं कि आइंदा मनोज से संबंध नहीं रखूंगी.’’

पहली गलती समझ कर तथा बदनामी के डर से दिनेश ने पत्नी को माफ कर दिया. डर कर पूनम ने पति से वादा तो कर लिया, पर वह उस पर अमल करने को मानसिक रूप से राजी नहीं थी. दरअसल, पूनम के दिल में पति की जगह देवर बस गया था, इसलिए वह उस से नाता तोडऩा नहीं चाहती थी. इधर भेद खुला तो मनोज डर की वजह से गांव चला गया. दिनेश ने फोन पर बात की, तभी वह वापस आया. आते ही उस ने भी दिनेश के पैर पकड़ लिए, ”भैया, मुझे माफ कर दो. बड़ी भूल हो गई. आइंदा ऐसी भूल नहीं होगी.’’

दिनेश ने रहम करते हुए भाई मनोज को माफ कर दिया. इस के कुछ दिनों तक तो पूनम और मनोज ठीक रहे, लेकिन मौका मिलने पर वे अपनीअपनी हसरतें पूरी कर लेते थे.

भाई के सीधेपन की वजह से मनोज की हिम्मत बढ़ गई थी. अब मनोज अपनी भाभी से शादी रचाने के ख्वाब देखने लगा था. उस ने अपने मन की बात भाभी Extramarital Affair से कही तो वह भी देवर से शादी रचाने को राजी हो गई. इधर दिनेश को विश्वास हो गया था कि पूनम को अपने किए का पछतावा है. इसी कारण उस ने मनोज से यारी तोड़ दी है. एक रोज दोपहर को वह बेवक्त घर लौटा तो फिर से एक बार उस की आंखों के आगे अंधेरा सा छा गया.

उस ने देखा कि पूनम मनोज की बांहों में पड़ी है. यह देख कर उस ने मनोज और पूनम की जम कर पिटाई कर डाली. पिटने के बाद मनोज तो भाग निकला, लेकिन पूनम कहां जाती. वह रात भर अपनी चोटों को सहलाती रही और नफरत की आग में जलती रही. दिनेश का विश्वास चकनाचूर हुआ तो वह पूनम पर निगरानी रखने लगा. दिनेश अब हमेशा उसे नजरों के पहरे में रखता था. इस कारण वह देवर से मिल नहीं पाती थी. इस का उपाय उस ने यह निकाला कि जिस रोज दिनेश ज्यादा शराब पी लेता और धुत हो कर सो जाता, वह मनोज के कमरे में पहुंच जाती. फिर सारी रात दोनों जिस्म की आग में तपते रहते.

एक रात मनोज की बांहों में लेटी पूनम ने मन की बात कह डाली, ”मनोज, हम इस तरह कब तक आंखमिचौली खेलते रहेंगे. कोई ऐसा रास्ता नहीं है, जिस से दिनेश हम दोनों के बीच से हमेशा के लिए हट जाए.’’

मनोज को तो जैसे इसी बात का इंतजार था. उस ने पूनम के गालों को सहलाते हुए कहा, ”चिंता मत करो भाभी, तुम्हारी यह इच्छा जरूर पूरी होगी.’’

दरअसल, मनोज पूनम को अपनी जागीर समझने लगा था. वह उसे अपनी पत्नी बनाना चाहता था. लेकिन भाई दिनेश बाधक था. भाई की पिटाई से भी वह आहत था. जब पूनम को अपने मन की बात उसे बताई तो उस ने भाई का काम तमाम करने का मन बना लिया. पूनम भी उस का साथ देने को तैयार थी.

26 अप्रैल, 2024 को खेरसा गांव के लोगों ने गांव के बाहर तालाब में उतराती एक लाश देखी. ग्राम प्रधान राजेश कुमार ने फोन के जरिए सूचना थाना बिधनू पुलिस को दी. सूचना पाते ही एसएचओ जितेंद्र प्रताप सिंह सहयोगी पुलिसकर्मियों के साथ घटनास्थल पर आ गए. उन्होंने गांव के 2 युवकों तथा पुलिसकर्मियों के सहयोग से तालाब में उतराती लाश को बाहर निकलवाया, साथ ही सूचना पुलिस अधिकारियों को दी.

बंद कमरे में मिले खून के निशान

लाश को देखते ही गांव वालों ने उस की पहचान कर ली. ग्राम प्रधान राजेश कुमार ने बताया कि लाश दिनेश अवस्थी की है. वह पत्नी पूनम Extramarital Affair व भाई मनोज के साथ ननिहाल में रहता था. वह मूल निवासी लखीमपुर के मूलगांव कुडऱीरूप सेनारूप का है. मनोज अपनी भाभी पूनम के साथ फरार है. घर में ताला पड़ा है. जबकि उसे सुबह तालाब के पास देखा गया था. पड़ोसी युवक राजू दूबे के पास दिनेश के छोटे भाई मयानंद उर्फ अशनी का मोबाइल नंबर था. पहले वह भी ननिहाल मे ही रहता था. तभी राजू की दोस्ती उस से हो गई थी. लेकिन 2 साल पहले वह गांव चला गया था. राजू की बात उस से फोन पर होती रहती थी.

एसएचओ जितेंद्र प्रताप सिंह ने राजू से मोबाइल नंबर ले कर मयानंद उर्फ अशनी को उस के बड़े भाई दिनेश की हत्या की सूचना दी और तत्काल ननिहाल आने को कहा. इस के बाद जितेंद्र प्रताप सिंह ने शव का बारीकी से निरीक्षण किया. दिनेश की हत्या किसी नुकीले हथियार से की गई थी. उस के गले, सीने व चेहरे पर कई घाव थे. हत्या कर हाथपैर रस्सी से बांध कर शव को बोरी में भर कर तालाब में फेंका गया था. मृतक की उम्र 43 वर्ष के आसपास थी.

एसएचओ जितेंद्र प्रताप सिंह अभी निरीक्षण कर ही रहे थे कि सूचना पा कर डीसीपी (साउथ) अंकिता शर्मा, एडीसीपी विजेंद्र द्विवेदी तथा एसीपी (घाटमपुर) रंजीत कुमार सिंह घटनास्थल आ गए. पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया तथा घटना के संबंध में इंसपेक्टर जितेंद्र प्रताप सिंह तथा गांव वालों से जानकारी जुटाई. गांव वालों से जो जानकारी मिली थी, उस से स्पष्ट था कि दिनेश की हत्या उस की पत्नी पूनम व भाई मनोज ने ही की है. वे फरार भी थे. साक्ष्य की तलाश में पुलिस अधिकारी मृतक दिनेश के घर पहुंचे. घर पर ताला लगा था.

ताला तोड़ कर पुलिस घर के अंदर दाखिल हुई. वहां कमरे में खून से सनी काटन तथा कुछ कपड़े बरामद हुए. बिस्तर व फर्श पर खून के धब्बे मिले. फर्श को साफ किया गया था. पुलिस ने साक्ष्य के तौर पर काटन, कपड़े सुरक्षित कर लिए. स्पष्ट था कि हत्या कमरे के अंदर ही की गई थी. जांचपड़ताल के बाद पुलिस ने दिनेश के शव का पोस्टमार्टम हेतु लाला लाजपत राय अस्पताल, कानपुर भिजवा दिया.

शाम 5 बजे तक मृतक दिनेश का छोटा भाई मयानंद उर्फ अशनी ननिहाल आ गया. वहां से वह थाना बिधनू पहुंचा. उस ने पुलिस के साथ जा कर मोर्चरी में रखे शव को देखा तो फफक पड़ा. उस ने बताया शव उस के भाई दिनेश का है. उस ने एसएचओ जितेंद्र प्रताप सिंह को बताया कि दिनेश की हत्या उस के भाई मनोज व भाभी पूनम ने की है.

मयानंद उर्फ अशनी की तहरीर पर इंसपेक्टर जितेंद्र प्रताप सिंह ने मृतक की पत्नी पूनम व भाई मनोज के खिलाफ हत्या कर लाश छिपाने की दर्ज कर ली तथा उन की गिरफ्तारी के लिए जुट गए.

जितेंद्र प्रताप सिंह ने आरोपियों को पकडऩे के लिए ताबड़तोड़ छापे मारे. लेकिन वे पकड़ में नहीं आए. उन्होंने नातेदारों के घर सीतापुर, विसवां लखीमपुर तथा चित्रकूट में भी छापा मारा, लेकिन उन का पता नहीं चला. पुलिस ने उन की लोकेशन जानने के लिए उन के मोबाइल फोन नंबर सर्विलांस पर लिए. लेकिन उन के मोबाइल फोन बंद थे.

आरोपियों पर घोषित हुआ ईनाम

हत्यारोपियों की तलाश में धीरेधीरे 3 महीने बीत गए. लेकिन उन का कुछ भी पता नहीं चला. पुलिस अधिकारियों ने आरोपियों की गिरफ्तारी के लिए उन पर 25-25 हजार का इनाम भी घोषित कर दिया. पुलिस ने उन की फिर तलाश तेज की साथ ही मुखबिरों का भी सहारा लिया. लेकिन सफलता हाथ नहीं लगी. दरअसल, मनोज व पूनम ने अपनेअपने मोबाइल फोन बंद कर लिए थे. इसलिए उन की कोई जानकारी नहीं मिल पा रही थी. करीब 6 महीने बाद नवंबर, 2024 की 5 तारीख को मनोज का मोबाइल फोन चालू हुआ तो पुलिस को उस की लोकेशन मध्य प्रदेश के छतरपुर (गढ़ा) स्थित बागेश्वर धाम आश्रम की मिली.

इंसपेक्टर जितेंद्र प्रताप सिंह तत्काल अपनी टीम के साथ बागेश्वर धाम आश्रम के लिए रवाना हो गए. पुलिस टीम यहां 3 दिन तक डेरा जमाए रही. उस के बाद टीम को सफलता मिल गई. टीम ने आश्रम के बाहर एक चाय के स्टाल से दोनों को गिरफ्तार कर लिया. मनोज व पूनम को थाना बिधनू लाया गया. इंसपेक्टर जितेंद्र प्रताप सिंह ने मनोज और पूनम से दिनेश की हत्या के बारे में पूछताछ की तो वे साफ मुकर गए. लेकिन सख्ती करने पर टूट गए और हत्या का जुर्म कुबूल कर लिया. यही नहीं, मनोज ने आलाकत्ल चाकू भी बरामद करा दिया, जिसे उस ने घर में ही छिपा दिया था. जानकारी होने पर पुलिस अधिकारियों ने भी उन से विस्तार से पूछताछ की.

दिनेश की हत्या किए हुए 6 महीने बीत गए. अब पूनम और मनोज को लगने लगा था कि शायद मामला ठंडा पड़ गया है. अत: मनोज ने अपना मोबाइल फोन चालू किया और किसी से बात की. उस का फोन पुलिस ने सर्विलांय पर लगा रखा था, इसलिए फोन चालू होते ही उस की लोकेशन बागेश्वर धाम की मिल गई और पुलिस ने दोनों को गिरफ्तार कर लिया.

पुलिस ने उन दोनों के बयान दर्ज कर उन्हें विधिसम्मत गिरफ्तार कर लिया. 10 नवंबर, 2024 को पुलिस ने आरोपी मनोज व पूनम को कानपुर कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हे जिला जेल भेज दिया गया.

-कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

Murder Story : जेठानी ने कर डाला देवर के बेटे का कत्ल

विधवा मंजीत कौर ने अपने विवाहित देवर को न सिर्फ अपने जाल में फांसा बल्कि उस की गृहस्थी उजाड़ कर शादी भी कर ली. इस के बाद उस का ऐसा कौन सा स्वार्थ रह गया जिस के चलते उस ने अपने सौतेले बेटे को भी ठिकाने लगा दिया

‘‘दखो सरदारजी, एक बात सचसच बताना, झूठ मत बोलना. मैं पिछले कई दिनों से देख रही हूं कि आजकल तुम अपनी भरजाई पर कुछ ज्यादा ही प्यार लुटा रहे हो. क्या मैं इस की वजह जान सकती हूं?’’ राजबीर कौर ने यह बात अपने पति हरदीप सिंह से जब पूछी तो वह उस से आंखें चुराने लगा. पत्नी की बात का हरदीप को जवाब भी देना था, इसलिए अपने होंठों पर हलकी मुसकान बिखेरते हुए उस ने राजबीर कौर से कहा, ‘‘तुम भी कमाल करती हो राजी. तुम तो जानती ही हो कि बड़े भाई काबल की मौत हुए अभी कुछ ही समय हुआ है. भाईसाहब की मौत से भाभीजी को कितना सदमा पहुंचा है. यह बात तुम भी समझ सकती हो. मैं बस उन्हें उस सदमे से बाहर निकालने की कोशिश कर रहा हूं. और फिर भाईसाहब के दोनों बच्चे मनप्रीत सिंह और गुरप्रीत सिंह भी अभी काफी छोटे हैं.’’

हरदीप अपनी पत्नी को प्यार से राजी कह कर बुलाता था.

‘‘हां, यह बात तो मैं अच्छी तरह समझ सकती हूं पर कोई ऐसे तो नहीं करता, जैसे तुम कर रहे हो. तुम्हें यह भी याद रखना चाहिए कि अपना भी एक बेटा किरनजोत है. तुम अपनी बीवीबच्चे छोड़ कर हर समय अपनी विधवा भाभी और उन के बच्चों का ही खयाल रखोगे तो अपना घर कैसे चलेगा.’’ राजबीर कौर बोली.

‘‘मैं समझ सकता हूं और यह बात भी अच्छी तरह से जानता हूं कि मेरी लापरवाही में तुम घर को अच्छी तरह संभाल सकती हो. फिर अब कुछ ही दिनों की तो बात है, सब ठीक हो जाएगा.’’ पति ने समझाया. कहने को तो यह बात यहीं खत्म हो गई थी पर राजबीर कौर अच्छी तरह जानती थी कि अब आगे कुछ ठीक होने वाला नहीं है. इसलिए उस ने मन ही मन फैसला कर लिया कि जहां तक संभव होगा, वह अपने घर को बचाने की पूरी कोशिश करेगी. पंजाब के अमृतसर देहात क्षेत्र के थाना रमदास के गांव कोटरजदा के मूल निवासी थे बलदेव सिंह. पत्नी के अलावा उन के 3 बेटे थे परगट सिंह, काबल सिंह और हरदीप सिंह. बलदेव सिंह ने समय रहते सभी बेटों की शादियां कर दी थीं और तीनों भाइयों में जमीन का बंटवारा भी कर के अपने फर्ज से मुक्ति पा ली थी.

अपने हिस्से की जमीन ले कर परगट सिंह ने अपना अलग मकान बना लिया था. काबल और हरदीप अपने पुश्तैनी घर में मातापिता के साथ रहते थे. काबल सिंह की शादी मनजीत कौर के साथ हुई थी. उस के 2 बच्चे थे 13 वर्षीय मनप्रीत सिंह और 12 वर्षीय गुरप्रीत सिंह.  सन 2003 में हरदीप सिंह की शादी खतराये निवासी राजबीर कौर के साथ हुई थी. शादी के बाद उन के घर किरनजोत सिंह ने जन्म लिया था. बच्चे के जन्म से दोनों पतिपत्नी बड़े खुश थे. तीनों भाइयों की अपनी अलगअलग जमीनें थीं. सब अपनेअपने कामों और परिवारों में मस्त थे. सब कुछ ठीकठाक चल रहा था कि 24 जून, 2008 को काबल सिंह की दिल का दौरा पड़ने से मृत्यु हो गई. इस के बाद तो उस घर पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा था. उस की खेती आदि के काम कोई करने वाला नहीं था क्योंकि उस समय बच्चे भी छोटे थे. तब भाई के खेतों के काम से ले कर उस के दोनों बच्चों की देखभाल का जिम्मा हरदीप सिंह ने संभाल लिया था.

अपनी विधवा भाभी मनजीत कौर से सहानुभूति रखने और उस की मदद करतेकरते हरदीप सिंह का झुकाव धीरेधीरे अपनी विधवा भाभी की ओर होने लगा. हरदीप की पत्नी राजबीर कौर इन सब बातों से बेखबर नहीं थी.  वह समयसमय पर पति हरदीप सिंह को उस की अपनी घरेलू जिम्मेदारियों का अहसास दिलाती रहती थी. पर उस ने इन बातों को ले कर कभी पति से क्लेश या लड़ाईझगड़ा नहीं किया था. वह हर मसले को प्यार और समझदारी से निपटाने के पक्ष में थी और यही बात उस के हक में नहीं रही. उसे जब इन सब बातों की समझ आई तब पानी सिर से ऊपर गुजर चुका था. उस का पति हरदीप अब उस का नहीं रहा. वह कभी का अपनी विधवा भाभी मंजीत कौर की आगोश में जा चुका था. राजबीर कौर ने जब अपना घर उजड़ता देखा तब उस की नींद टूटी और उस ने इस रिश्ते का जम कर विरोध किया था.

बाद में उस ने इस मसले पर रिश्तेदारों से शिकायत भी की पर कोई नतीजा नहीं निकला. इस पूरे मामले में राजबीर कौर की यह गलती रही कि उस ने अपने पति पर विश्वास करते हुए समय रहते इन सब बातों का विरोध नहीं किया था. शायद उसे पति की वफादारी और अपनी समझ पर भरोसा था. बहरहाल उस का बसाबसाया घर टूट गया था. हरदीप सिंह और राजबीर कौर के बीच तलाक हो गया था. यह सन 2013 की बात है. राजबीर कौर का हरदीप सिंह से तलाक भले ही हो गया था, पर वह वहीं रहती रही. हरदीप सिंह अपने 9 वर्षीय बेटे किरनजोत सिंह और अपने दोनों भतीजों मनप्रीत सिंह और गुरप्रीत सिंह के साथ मंजीत कौर के साथ रहने लगा था. भाभी के साथ रहने पर लोगों ने कुछ दिनों तक चर्चा जरूर की पर बाद में सब शांत हो गए.

समय का पहिया अपनी गति से घूमता रहा. सब अपनेअपने कामों में व्यस्त हो गए थे. हरदीप तीनों बच्चों और दूसरी पत्नी मंजीत कौर के साथ खुशी से रह रहा था.  बात 28 जून, 2018 की है. तीनों बच्चों सहित हरदीप और मंजीत कौर रात का खाना खा कर सो गए थे. हरदीप और मंजीत कौर कमरे के अंदर और तीनों बच्चे बाहर बरामदे में सो रहे थे. बिस्तर पर लेटते ही हरदीप को तो नींद आ गई थी पर मंजीत कौर अपने बिस्तर पर लेटेलेटे ही टीवी पर कोई कार्यक्रम देख रही थी. कमरे की लाइट बंद थी पर टीवी चलने के कारण उस कमरे में पर्याप्त रोशनी थी. रात के करीब 12 बजे का समय होगा कि मंजीत कौर ने अपने कमरे में एक साया देखा. साया कमरे से बाहर की ओर निकल गया था. फिर अचानक मंजीत कौर की नजर कमरे में रखी हुई अलमारी पर पड़ी. अलमारी खुली हुई थी और पास ही सामान बिखरा पड़ा था. यह देख कर वह चौंक गई. घबरा कर उस ने पास में सोए पति हरदीप को जगाया और अलमारी की ओर इशारा किया.

कमरे में चल रहे टीवी की रोशनी में उसे भी खुली अलमारी के आसपास कपड़े आदि बिखरे दिखे. इस के बाद हरदीप ने तुरंत उठ कर घर की लाइट जला दी. वह समझ गया कि घर में चोरी हो गई है. कमरे से निकल कर जब वह बरामदे में पहुंचा तो उस की नजर बरामदे में सोए बच्चों पर गई. वहां मनप्रीत और गुरप्रीत तो सो रहे थे, लेकिन उस का अपना 9 वर्षीय बेटा किरनजोत सिंह गायब था. यह सब देख कर हरदीप ने चोरचोर का शोर मचाना शुरू कर दिया था. रात के सन्नाटे में उस की आवाज सुन कर पड़ोसी उस के घर आ गए और जब सब को पता चला कि 9 वर्षीय किरनजोत को भी चोर अपने साथ उठा कर ले गए हैं तो सब हैरान रह गए. किसी की समझ में कुछ नहीं आ रहा था. ऐसे में किरनजोत को कहां और कैसे ढूंढा जाए. फिर भी समय व्यर्थ न करते हुए सभी लोग रात में ही किरनजोत की तलाश में अलगअलग दिशाओं में निकल पड़े.

पूरी रात किरनजोत की तलाश होती रही. लोगों ने गांव से ले कर मुख्य मार्ग तक भी छान मारा पर वह नहीं मिला. पूरी रात बीत गई थी पर किरनजोत का कुछ पता नहीं चला था. हरदीप सिंह की पहली बीवी यानी किरनजोत को जन्म देने वाली मां राजबीर कौर को जब अपने बेटे के चोरी होने का पता चला तो रोरो कर उस ने अपना बुरा हाल कर लिया था. किरनजोत को तलाश करतेकरते दिन निकल आया था. बच्चे के न मिलने पर सभी लोग निराश थे. कुछ देर बाद गांव के एक आदमी ने हरदीप सिंह को आ कर यह खबर दी कि किरनजोत की लाश नहर किनारे पड़ी है.  यह सुनते ही हरदीप व अन्य लोग नहर किनारे पहुंचे तो वास्तव में वहां किरनजोत की लाश मिली. कुछ ही देर में गांव के तमाम लोग नहर किनारे जमा हो गए. किसी ने पुलिस को भी खबर कर दी.

सूचना मिलते ही थाना रमदास के थानाप्रभारी मनतेज सिंह पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. पुलिस ने बच्चे की लाश को अपने कब्जे में ले कर जरूरी काररवाई कर के पोस्टमार्टम के लिए सिविल अस्पताल भेज दी और भादंवि की धारा 302 के तहत अज्ञात लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया. मुकदमा दर्ज होने के बाद मनतेज सिंह ने हरदीप सिंह के घर का मुआयना किया. हरदीप सिंह से बात करने के बाद पता चला कि उस के घर का कोई सामान चोरी नहीं हुआ था. इस से यही पता लगा कि वारदात को चोरी का रूप देने की कोशिश की गई है. पुलिस को यह भी पता चला कि कमरे में कोई साया होने की बात सब से पहले हरदीप सिंह की पत्नी मंजीत कौर ने बताई थी, इसलिए थानाप्रभारी ने मंजीत कौर के ही बयान लिए.

थानाप्रभारी मनतेज सिंह को मंजीत के बयानों में काफी झोल दिखाई दे रहे थे. यह बात भी उन्हें हजम नहीं हो रही थी कि कमरे में जागते और टीवी देखते हुए कैसे चोर की हिम्मत हो गई कि वह चोरी करने के साथसाथ बच्चे को भी उठा कर अपने साथ ले गया. भला उस बच्चे से उसे क्या मतलब था और किस मकसद से उस ने बच्चे को अगवा किया था. लाख सोचने पर भी मनतेज सिंह को यह बात समझ नहीं आ रही थी. तब थानाप्रभारी ने अपने कुछ विश्वासपात्र लोगों को सच्चाई का पता करने पर लगाया. इस बीच अस्पताल में किरनजोत के पोस्टमार्टम के समय उस की मां राजबीर कौर ने खूब हंगामा खड़ा किया. उस ने अपनी जेठानी मंजीत कौर पर आरोप लगाते हुए कहा कि किरनजोत की हत्या के पीछे मंजीत कौर का ही हाथ है क्योंकि वह उसे अपना सौतेला बेटा मानती थी.

राजबीर कौर के आरोप को मद्देनजर रखते हुए पुलिस ने अपने मुखबिरों को सच्चाई का पता लगाने के लिए लगाया. इस के बाद थानाप्रभारी को मंजीत कौर के बारे में जो खबर मिली, वह चौंकाने वाली थी. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में किरनजोत की मौत के बारे में बताया कि उस की मौत गला घोंटने से हुई थी. सोचने वाली बात यह थी कि मारने वाले ने बच्चे को घर से उठाया और हत्या के बाद वह उसे नहर के किनारे फेंक आया. इस में इकट्ठे सो रहे तीनों बच्चों में से उस ने किरनजोत सिंह को ही क्यों उठाया. थानाप्रभारी मनतेज सिंह ने मृतक किरनजोत की मां राजबीर कौर से भी पूछताछ की. राजबीर कौर ने बताया कि 10 साल पहले उस का विवाह हरदीप सिंह के साथ हुआ था. उस के जेठ काबल सिंह की मौत हो जाने के बाद उस के पति हरदीप सिंह के उस की जेठानी मंजीत कौर से अवैध संबंध हो गए थे. इस कारण उस ने अपने पति को तलाक दे दिया और दूसरा विवाह कर लिया.

उस के पति हरदीप सिंह ने भी उस की जेठानी के साथ शादी कर ली थी. शादी के बाद न तो उस की जेठानी उसे उस के बेटे किरनजोत से मिलने देती थी और न ही वह उसे पसंद करती थी. उसे पूरा यकीन है कि उस के बेटे की हत्या मंजीत कौर ने ही करवाई है. थानाप्रभारी ने महिला हवलदार सुरजीत कौर को भेज कर मंजीत कौर को पूछताछ के लिए थाने बुला लिया. शुरुआती दौर में वह अपने आप को निर्दोष बताते हुए चोरी की कहानी पर डटी रही पर जब उस से पूछा गया कि क्याक्या सामान चोरी हुआ है तो यह सुन कर वह बगलें झांकने लगी.  थोड़ी सख्ती करने पर उस ने अपना अपराध स्वीकार करते हुए कहा कि उसी ने किरनजोत की गला घोंट कर हत्या की थी और लाश को गोद में उठा कर नहर किनारे फेंक आई. फिर आधी रात को अपने पति हरदीप को जगा कर चोरी वाली कहानी सुनाई थी.

इस की वजह यह थी कि मंजीत कौर को हरदीप और किरनजोत के बीच का प्यार खलता था. वह नहीं चाहती थी कि उस के दोनों बेटों के अलावा उस का पति हरदीप अपनी पहली बीवी से हुए बेटे किरनजोत के साथ कोई भी रिश्ता रखे. पिता का यही प्यार बेटे की मौत का कारण बन गया. दरअसल हरदीप सिंह तीनों बच्चों से तो प्यार करता था पर वह सब से अधिक अपने किरनजोत को चाहता था. पति के इस प्यार की वजह से मंजीत कौर को यह भ्रम हो गया था कि हरदीप सिंह किरनजोत के बड़े होने पर अपनी सारी जायदाद उसी के नाम कर देगा.

ऐसे में उस के पैदा किए बच्चे दानेदाने को मोहताज हो जाएंगे, जबकि ऐसी कोई बात नहीं थी. हरदीप ने सपने में भी कभी यह नहीं सोचा था कि मंजीत कौर ऐसा भी कुछ सोच सकती है. मंजीत कौर के बयान दर्ज करने के बाद किरनजोत सिंह की हत्या के आरोप में उसे गिरफ्तार कर अदालत में पेश किया गया. अदालत के आदेश पर उसे जिला जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारिते

Extramarital Affair : चचेरे देवर के साथ मिलकर कर दी पति की हत्या

जब कोई पूरी योजना बना कर किसी की हत्या करता है, उस की सोच यह होती है कि वह पकड़ा नहीं जाएगा. लेकिन कानून के शिकंजे से बचना आसान नहीं होता. सरिता और बलराम ने भी…

उत्तर प्रदेश के मीरजापुर जिले में मीरजापुरइलाहाबाद मार्ग से सटा एक गांव है-महड़ौरा. विंध्यक्षेत्र की पहाड़ी से लगा यह गांव हरियाली के साथसाथ बहुत शांतिप्रिय गांवों में गिना जाता है. इसी गांव के रहने वाले बंसीलाल सरोज ने रेलवे की नौकरी से रिटायर होने के बाद बड़ा सा पक्का मकान बनवाया, जिस में वह अपने पूरे परिवार के साथ रहते थे. उन के भरेपूरे परिवार में पत्नी, 2 बेटे, एक बेटी और बहू थी. गांव में बंसीलाल सरोज के पास खेती की जमीन थी, जिस पर उन का बड़ा बेटा रणजीत कुमार सरोज उर्फ बुलबुल सब्जी की खेती करता था. खेती के साथसाथ रणजीत अपने मामा के साथ मिल कर होटल भी चलाता था.

जबकि छोटा राकेश सरोज कानपुर में बिजली विभाग में नौकरी करता था. वह कानपुर में ही रहता था. महड़ौरा में 9-10 कमरों का अपना शानदार मकान होने के साथसाथ बंसीलाल के पास गांव से कुछ दूर सरोह भटेवरा में दूसरा मकान भी था. रात में वह उसी मकान में सोया करते थे. बंसीलाल के परिवार की गाड़ी जिंदगी रूपी पटरी पर हंसीखुशी से चल रही थी. घर में किसी चीज की कमी नहीं थी. दोनों बेटे अपनेअपने पैरों पर खड़े हो चुके थे, जबकि वह खुद इतनी पेंशन पाते थे कि अकेले अपने दम पर पूरे परिवार का खर्च उठा सकते थे.

बड़ा बेटा रणजीत कुमार सुबह होने पर खेतों पर चला जाता था, फिर दोपहर में उसे वहां से होटल पर जाना होता था. जहां से वह रात में वापस लौटता था और खापी कर सो जाता था. यह उस की रोज की दिनचर्या थी. रणजीत की 3 बेटियां थीं. 10 साल की माया, 7 साल की क्षमा और 3 साल की स्वाति. वह अपनी बेटियों को दिलोजान से चाहता था और उन्हें बेटों की तरह प्यार करता था. उस की बेटियां भी अपनी मां से ज्यादा पिता को चाहती थीं. व्यवहारकुशल, मृदुभाषी रणजीत गांव में सभी को अच्छा लगता था. वह जिस से भी मिलता, हंस कर ही बोलता था. खेतीकिसानी और होटल के काम से उसे फुर्सत ही नहीं मिलती थी. उसे थोड़ाबहुत जो समय मिलता था, उसे वह अपने बीवीबच्चों के साथ गुजारता था.

सोमवार 19 मार्च, 2018 का दिन था. रात होने पर रणजीत कुमार रोज की तरह होटल से घर आया तो उस की पत्नी सरिता उसे खाने का टिफिन पकड़ाते हुए बोली, ‘‘लो जी, दूसरे मकान पर बाबूजी को खाना दे आओ. आज काफी देर हो गई है, बाबूजी इंतजार कर रहे होंगे. आप खाना दे कर आओ तब तक मैं आप के लिए खाने की थाली लगा देती हूं.’’

पत्नी के हाथ से खाने का टिफिन ले कर रणजीत दूसरे मकान पर चला गया, जहां उस के पिता बंसीलाल रात में सोने जाया करते थे. उन का रात का खाना अकसर उसी मकान पर जाता था. रणजीत उन्हें खाना दे कर जल्दी ही लौट आया और घर आ कर खाना खाने बैठ गया. खाना खाने के बाद वह अपने कमरे में सोने चला गया. रणजीत की मां, पत्नी सरिता, बहन सोनी और रणजीत की तीनों बेटियां बरांडे में सो गईं. रणजीत बना निशाना रणजीत सोते समय अपने कमरे का दरवाजा खुला रखता था. उस दिन भी वह अपने कमरे का दरवाजा खुला छोड़ कर सोया था. देर रात पीछे से चारदीवारी फांद कर किसी ने रणजीत के कमरे में प्रवेश किया और पेट पर धारदार हथियार से वार कर के उसे मौत की नींद सुला दिया.

उस पर इतने वार किए गए थे कि उस की आंतें तक बाहर आ गई थीं. रणजीत की मौके पर ही मौत हो गई थी. आननफानन में घर वाले उसे अस्पताल ले कर भागे, लेकिन वहां डाक्टरों ने रणजीत को देखते ही मृत घोषित कर दिया. भोर में जैसे ही इस घटना की सूचना पुलिस को मिली वैसे ही विंध्याचल कोतवाली प्रभारी अशोक कुमार सिंह पुलिस टीम के साथ गांव पहुंच गए. वहां गांव वालों का हुजूम लगा हुआ था. अशोक कुमार सिंह ने इस घटना की सूचना अपने उच्चाधिकारियों को भी दे दी. इस के बाद उन्होंने घटनास्थल का निरीक्षण किया. घर के उस कमरे में जहां रणजीत सोया हुआ था, काफी मात्रा में खून पड़ा हुआ था. मौकाएवारदात को देखने से यह साफ हो गई कि जिस बेदर्दी के साथ रणजीत की हत्या की गई थी, संभवत: वारदात में कई लोग शामिल रहे होंगे.

यह भी लग रहा था कि या तो हत्यारों की रणजीत से कोई अदावत रही होगी या किसी बात को ले कर वह उस से खार खाए होंगे. इसी वजह से उसे बड़ी बेरहमी से किसी धारदार हथियार से गोदा गया था. खून के छींटे कमरे के साथसाथ बाहर सीढि़यों तक फैले थे. इंसपेक्टर अशोक कुमार सिंह ने आसपास नजरें दौड़ा कर जायजा लिया तो देखा, जिस कमरे में वारदात को अंजाम  दिया गया था, वह कमरा घर के पीछे था. संभवत हत्यारे पीछे की दीवार फांद कर अंदर आए होंगे और हत्या कर के उसी तरह भाग गए होंगे. इसी के साथ उन्हें एक बात यह भी खटक रही थी कि हो न हो इस वारदात में किसी करीबी का हाथ रहा हो. घटनास्थल की वस्तुस्थिति और हालात इसी ओर इशारा कर रहे थे. ताज्जुब की बात यह थी कि इतनी बड़ी घटना होने के बाद भी घर के किसी मेंबर को कानोंकान खबर नहीं हुई थी.

बहरहाल, अशोक कुमार सिंह ने लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा कर मृतक रणजीत के बारे में जानकारी एकत्र की और थाने लौट आए. उन्होंने रणजीत के पिता बंसीलाल सरोज की लिखित तहरीर के आधार पर अज्ञात के खिलाफ भादंवि की धारा 302 के तहत केस दर्ज कर के जांच शुरू कर दी. रणजीत की हत्या होने की खबर आसपास के गांवों तक पहुंची तो तमाम लोग महड़ौरा में एकत्र हो गए. हत्या को ले कर लोगों में आक्रोश था. आक्रोश के साथसाथ भीड़ भी बढ़ती गई. महिलाएं और बच्चे भी भीड़ में शामिल थे. आक्रोशित भीड़ ने गांव के बाहर मेन रोड पर पहुंच कर इलाहाबाद मीरजापुर मार्ग जाम कर दिया. दोनों तरफ का आवागमन बुरी तरह ठप्प हो गया. गुस्से के मारे लोग पुलिस के विरोध में नारे लगाने के साथ मृतक के हत्यारों को गिरफ्तार करने और उस की बीवी को मुआवजा दिलाने की मांग कर रहे थे.

धरना बना जी का जंजाल इस की जानकारी मिलने पर विंध्याचल कोतवाली की पुलिस वहां पहुंच गई, जहां भीड़ जाम लगाए हुए थी. जाम के चलते इंसपेक्टर अशोक कुमार सिंह ने धरने पर बैठे गांव वालों को समझाने का प्रयास किया, लेकिन वे किसी भी सूरत में पीछे हटने को तैयार नहीं थे. अपना प्रयास विफल होता देख उन्होंने अपने उच्चाधिकारियों को वहां की स्थिति बता कर पुलिस फोर्स भेजने को कहा, ताकि कोई अप्रिय घटना न घट सके. वायरलैस पर सड़क जाम की सूचना प्रसारित होते ही पड़ोसी थानों जिगना, गैपुरा और अष्टभुजा पुलिस चौकी के अलावा जिला मुख्यालय से पहुंची पुलिस और पीएसी ने मौके पर पहुंच कर मोर्चा संभाल लिया. कुछ ही देर में पुलिस अधीक्षक आशीष तिवारी सहित अन्य पुलिस और प्रशासन के अधिकारी भी मौके पर पहुंच गए.

अधिकारियों ने ग्रामीणों को विश्वास दिलाया कि रणजीत के हत्यारों को जल्द से जल्द गिरफ्तार कर लिया जाएगा. काफी समझाने के बाद ग्रामीण मान गए और उन्होंने धरना समाप्त कर दिया. इस के साथ ही धीरेधीरे जाम भी खत्म हो गया. जाम समाप्त होने के बाद विंध्याचल कोतवाली पहुंचे पुलिस अधीक्षक आशीष तिवारी ने रणजीत के हत्यारों को हर हाल में जल्दी से जल्दी गिरफ्तार कर के इस केस को खोलने का सख्त निर्देश दिया. पुलिस अधीक्षक के सख्त तेवरों को देख कोतवाली प्रभारी अशोक कुमार और उन के मातहत अफसर जीजान से जांच में जुट गए. अशोक कुमार सिंह ने इस केस की नए सिरे से छानबीन करते हुए मृतक रणजीत के पिता बंसीलाल से पूछताछ करनी जरूरी समझी. इस के लिए वह महड़ौरा स्थित बंसीलाल के घर पहुंचे, जहां उन्होंने बंसीलाल से एकांत में बात की.

इस बातचीत में उन्होंने रणजीत से जुड़ी छोटी से छोटी जानकारी जुटाई. बंसीलाल से हुई बातों में एक बात चौंकाने वाली थी जो रणजीत की पत्नी सरिता से संबंधित थी. पता चला उस का चालचलन ठीक नहीं था. इस संबंध में रणजीत के पिता बंसीलाल ने इशारोंइशारों में काफी कुछ कह दिया था. पिता से मिला क्लू बना जांच का आधार इस जानकारी से इंसपेक्टर अशोक कुमार सिंह की आंखों में चमक आ गई. उन्होंने पूछताछ के लिए मृतक रणजीत की पत्नी सरिता और उस के चचेरे भाई बलराम सरोज को थाने बुलाया. लेकिन इन दोनों ने कुछ खास नहीं बताया. दोनों बारबार खुद को बेगुनाह बताते रहे.

बलराम रणजीत का भाई होने का तो सरिता पति होने का वास्ता देती रही. दोनों के घडि़याली आंसुओं को देख कर इंसपेक्टर अशोक कुमार ने उस दिन उन्हें छोड़ दिया, लेकिन उन पर नजर रखने लगे. इसी बीच उन के एक खास मुखबिर ने सूचना दी कि सरिता और बलराम भागने के चक्कर में हैं. मुखबिर की बात सुन कर अशोक कुमार सिंह ने बिना समय गंवाए 29 मार्च को महड़ौरा से सरिता को थाने बुलवा लिया. साथ ही उस के चचेरे देवर बलराम को भी उठवा लिया. थाने लाने के बाद दोनों से अलगअलग पूछताछ की गई. पूछताछ के लिए पहला नंबर सरिता का आया. वह पुलिस को घुमाने का प्रयास करते हुए अपने सुहाग का वास्ता दे कर बोली, ‘‘साहब, आप कैसी बातें कर रहे हैं, भला कोई अपने ही हाथों से अपने सुहाग को उजाड़ेगा? साहब, जरूर किसी ने आप को बहकाया है. आखिरकार मुझे कमी क्या थी, जो मैं ऐसा करती?’’

उस की बात अभी पूरी भी नहीं हुई थी कि इंसपेक्टर अशोक कुमार सिंह बोले, ‘‘देखो सरिता, तुम ज्यादा सती सावित्री बनने की कोशिश मत करो, तुम्हारी भलाई इसी में है कि सब कुछ सचसच बता दो वरना मुझे दूसरा रास्ता अख्तियार करना पड़ेगा.’’ लेकिन सरिता पर उन की बातों का जरा भी असर नहीं पड़ा. वह अपनी ही रट लगाए हुई थी. अशोक कुमार सिंह सरिता के बाद उस के चचेरे देवर बलराम से मुखातिब हुए, ‘‘हां तो बलराम, तुम कुछ बोलोगे या तुम से भी बुलवाना पड़ेगा.’’

‘‘म…मम…मतलब. मैं कुछ समझा नहीं साहब.’’

‘‘नहीं समझे तो समझ आओ. मुझे यह बताओ कि तुम ने रणजीत को क्यों मारा?’’

‘‘साहब, आप यह क्या कह रहे हैं, रणजीत मेरा भाई था, भला कोई अपने भाई की हत्या क्यों करेगा? मेरी उस से खूब पटती थी. उस के मरने का सब से ज्यादा गम मुझे ही है. और आप मुझे ही दोषी ठहराने पर तुले हैं.’’

उस की बात अभी पूरी भी नहीं हुई थी कि अचानक इंसपेक्टर अशोक कुमार का झन्नाटेदार थप्पड़ उस के गाल पर पड़ा. वह अपना चेहरा छिपा कर बैठ गया. अभी वह कुछ सोच ही रहा था कि इंसपेक्टर अशोक कुमार सिंह बोले, ‘‘बलराम, भाई प्रेम को ले कर तुम्हारी जो सक्रियता थी, वह मैं देख रहा था. तुम्हारा प्रेम किस से और कितना था, यह सब भी मुझे पता चल चुका है. तुम ने रणजीत को क्यों और किस के लिए मारा, वह भी तुम्हारे सामने है.’’

उन्होंने सरिता की ओर इशारा करते हुए कहा तो बलराम की नजरें झुक गईं. उसे इस बात का जरा भी अंदाजा नहीं था कि उस की बनाई कहानी का अंत इतनी आसानी से हो जाएगा और पुलिस उस से सच उगलवा लेगी. तीर निशाने पर लगता देख इंसपेक्टर अशोक कुमार सिह ने बिना देर किए तपाक से कहा, ‘‘अब तुम्हारी भलाई इसी में है, दोनों साफसाफ बता दो कि रणजीत की हत्या क्यों और किसलिए की, वरना मुझे दूसरा तरीका अपनाना पड़ेगा.’’

खुल गया रणजीत की हत्या का राज सरिता और बलराम ने खुद को चारों ओर से घिरा देख कर सच्चाई उगलने में ही भलाई समझी. पुलिस ने दोनों को विधिवत गिरफ्तार कर के पूछताछ की तो रणजीत के कत्ल की कहानी परत दर परत खुलती गई. बलराम ने अपना जुर्म कबूल करते हुए बताया कि न जाने कैसे रणजीत को उस के और सरिता के प्रेम संबंधों की जानकारी मिल गई थी. फलस्वरूप वह उन दोनों के संबंधों में बाधक बनने लगा. यहां तक कि उस ने बलराम को अपनी पत्नी से मिलने के लिए मना कर दिया था. इसी के मद्देनजर सरिता और बलराम ने योजनाबद्ध तरीके से रणजीत की हत्या की योजना बनाई. योजना के मुताबिक बलराम ने घर में घुस कर बरामदे में सोए रणजीत की चाकू घोंप कर हत्या कर दी.

बलराम की निशानदेही पर पुलिस ने हत्या में इस्तेमाल किया गया चाकू घर से 2 सौ मीटर दूर गेहूं के खेत से बरामद कर लिया. सरिता और बलराम ने स्वीकार किया कि जिस चाकू से रणजीत की हत्या की गई थी, उसे बलराम ने हत्या से एक दिन पहले ही गांव के एक लोहार से बनवाया था. पुलिस ने उस लोहार से भी पूछताछ की. उस ने इस की पुष्टि की. पुलिस लाइन में आयोजित पत्रकार वार्ता के दौरान पुलिस अधीक्षक आशीष तिवारी ने खुलासा करते हुए बताया कि रणजीत सरोज की पत्नी के अवैध संबंध उस के चचेरे भाई बलराम से पिछले 5 वर्षों से थे. रणजीत ने दोनों को एक बार रंगेहाथों पकड़ा था. उस वक्त घर वालों ने गांव में परिवार की बदनामी की वजह से इस मामले को घर में ही दबा दिया था. साथ ही दोनों को डांटाफटकारा भी था.

रणजीत ने बलराम को घर में आने से मना भी कर दिया था. इस से सरिता अंदर ही अंदर जलने लगी थी. उसे चचेरे देवर से मिलने की कोई राह नहीं सूझी तो उस ने बलराम के साथ मिल कर पति की हत्या की योजना तैयार की ताकि पिछले 5 सालों से चल रहे प्रेम संबंध चलते रहें. पकड़े जाने पर दोनों ने पुलिस और मीडिया के सामने अपना जुर्म कबूल करते हुए अवैध संबंधों में हत्या की बात मानी. दोनों ने पूरी घटना के बारे में विस्तार से बताया. रणजीत हत्याकांड की गुत्थी सुलझाने के बाद पुलिस ने पूर्व  में दर्ज मुकदमे में अज्ञात की जगह सरिता और बलराम का नाम शामिल कर के दोनों को जेल भेज दिया.

 

Double Murder की सूचना पाकर पुलिस के उड़े होश

कुछ लोग पत्नी में कमियां निकाल कर उस से पीछा छुड़ाने के लिए अपराध का रास्ता चुनते हैं. इस में वे कामयाब भी हो जाते हैं लेकिन उस वक्त वे भूल जाते हैं कि हर अपराध की एक सजा भी होती है. थाना बनियाठेर के थानाप्रभारी प्रवीण सोलंकी रात भर गश्त कर के सुबह 5 बजे अपने कमरे पर पहुंचे. वह आराम करने के लिए लेटे ही थे कि मोबाइल की घंटी बज उठी. उन्होंने काल रिसीव की तो फोन करने वाले अज्ञात व्यक्ति ने बताया कि रसूलपुर के पास कैली गांव में मांबेटी की हत्या कर दी गई है.

डबल मर्डर की सूचना से उन की नींद काफूर हो गई. वह अपने मातहतों को ले कर घटनास्थल की ओर रवाना हो गए. यह बात 19 जून, 2018 की है. थानाप्रभारी ने यह जानकारी उच्च अधिकारियों को भी दे दी. गांव कैली थाने से करीब एक किलोमीटर दूर है, इसलिए प्रवीण सोलंकी करीब 10 मिनट में कैली गांव पहुंच गए. गांव जा कर उन्हें पता चला कि घटना भारत सिंह के घर में घटी है. थानाप्रभारी ने वहां जा कर देखा तो एक कमरे में एक ही चारपाई पर बेटी पूनम और उस के ऊपर उस की मां शांति की लाशें पड़ी थीं. मां के गले में उसी की साड़ी का फंदा कसा हुआ था, साथ ही उस का गला भी कटा हुआ था. चारपाई के पास जमीन पर काफी खून पड़ा था.

शुरुआती जांच में यही लगा कि दोनों को गला घोंट कर मारा गया है और बाद में गला काटा गया है. चारपाई से दूर एक कोने में कुछ टूटी हुई चूडि़यां पड़ी थीं. पूनम के शरीर पर खरोंचों के भी निशान थे, जिस से लग रहा था कि उस ने हत्यारों से अपने बचाव का प्रयास किया था. कुछ ही देर में घटनास्थल पर कप्तान राधेमोहन भारद्वाज, एडीशनल एसपी पंकज कुमार मिश्र और सीओ ओमकार सिंह यादव भी पहुंच गए. उन्होंने थानाप्रभारी को निर्देश दिए. इस के बाद थानाप्रभारी ने लाशें पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भेज दीं.

कैली गांव उत्तर प्रदेश के जिला संभल की तहसील मुख्यालय से करीब 8 किलोमीटर दूर है. करीब 3 हजार की आबादी वाले इस गांव में चंद्रपाल का परिवार रहता था. उस के 4 बेटे और 2 बेटियां थीं. करीब 30 वर्ष पूर्व चंद्रपाल की दर्दनाक मौत हो गई थी. उस की मौत के पीछे की भी एक अलग कहानी थी. दरअसल गांव में पेयजल का संकट था. चंद्रपाल के घर के सामने कुएं की खुदाई चल रही थी. चंद्रपाल भी खुदाई कर रहा था. काफी गहराई तक मिट्टी निकाली जा चुकी थी. तभी अचानक ऊपर से मिट्टी की ढांग गिर कई और चंद्रपाल जिंदा ही दफन हो गया.

उस समय इतने संसाधन नहीं थे कि चंद्रपाल को जल्दी निकाला जा सके. फिर भी गांव वालों ने जैसेतैसे उसे बाहर निकाला लेकिन तब तक उस की मौत हो चुकी थी. इस के बाद गांव वालों ने वह कुआं फिर से मिट्टी से भर दिया. बाद में जब चंद्रपाल के बेटे जवान हुए तो उन्होंने गांव वालों के सहयोग से पिता के मिशन को पूरा किया. कुआं तैयार हो जाने के बाद गांव में पेयजल की समस्या दूर हो गई. जिस समय चंद्रपाल की मौत हुई थी, उस समय उस के सभी बच्चे छोटे थे यानी शांति भरी जवानी में विधवा हो गई थी. उस के सामने 6 बच्चों के पालनपोषण की समस्या थी. ऐसे में एक रिश्तेदार भारत सिंह ने शांति के सामने विवाह का प्रस्ताव रखा.

भारत सिंह मुरादाबाद जिले की पुलिस चौकी जरगांव के अंतर्गत आने वाले भूड़ी गांव का निवासी था. उस की पत्नी की मौत भी एक हृदयविदारक घटना में हुई थी. भारत सिंह का विवाह करीब 32 साल पहले गांव नानपुर की मिलक, जिला रामपुर की महेंद्री नाम की युवती से हुआ था. एक दिन अचानक रात में डाकुओं ने भूड़ी गांव पर धावा बोल दिया. गांव वालों ने भी मोर्चा संभाला. डाकू लगातार फायरिंग कर रहे थे. ग्रामीण फायरिंग का जवाब ईंटपत्थरों से दे रहे थे. लेकिन उन का मुकाबला करने में वे नाकाम रहे. तब अधिकांश लोग जान बचाने के लिए जंगलों की ओर भागने लगे.

भारत सिंह भी अपने भाइयों राधेश्याम व सूरज सिंह के साथ जंगल में भाग गया. भारत सिंह की पत्नी महेंद्री गहरी नींद में सो रही थी. वह घर में अकेली रह गई. उस समय उस की कोख में 6 महीने का बच्चा था. महेंद्री की जब आंख खुली तो खुद को घर में अकेला देख वह घबरा गई. फायरिंग की आवाज सुन कर वह माजरा समझ गई. बदहवास महेंद्री ने भी जान बचाने की खातिर घर से जंगल की ओर दौड़ लगा दी. भागते वक्त वह ठोकर खा कर गिर गई. जब डाकू गांव में लूटपाट कर के चले गए, तब गांव के लोग घर वापस आए. रास्ते में लोगों ने महेंद्री को तड़पते हुए देखा. भारत सिंह भी पत्नी के पास पहुंच गया. उस की हालत देख कर उस के होश उड़ गए.

घर वाले महेंद्री को उठा कर घर ले आए. खून बहता देख वे लोग समझ गए कि पेट में पल रहे नवजात को हानि पहुंची है. महेंद्री भी बेहोशी की हालत में थी. आधी रात का समय था. इलाज के लिए शहर में ले जाने का कोई साधन नहीं था. घरों में लूटपाट होने की वजह से गांव में वैसे ही कोहराम मचा था. कोई भी गाड़ी ले कर जाने का साहस नहीं जुटा पा रहा था. फलस्वरूप सुबह होने से पहले ही महेंद्री की मौत हो गई. भारत सिंह की शादी हुए केवल 4 साल हुए थे. पत्नी की मौत के बाद वह खोयाखोया सा रहने लगा था. फिर एक रिश्तेदार के सुझाव पर उस ने 6 बच्चों की मां, विधवा शांति देवी के साथ कराव कर लिया. दरअसल हिंदू विवाह संस्कार के अनुसार अग्नि के सात फेरे और कन्यादान एक बार ही किया जाता है. चूंकि शादी के समय शांति सात फेरे ले चुकी थी और उस का कन्यादान भी हो चुका था, इसलिए भारत के साथ वह दूसरी बार अग्नि के फेरे नहीं ले सकती थी, इसलिए उस का कराव करा दिया गया.

इस के बाद भारत सिंह व शांति का दांपत्य जीवन हंसीखुशी से गुजरने लगा. कुछ दिनों बाद ही भारत सिंह अपने हिस्से की डेढ़ बीघा जमीन बेच कर और घर अपने भाइयों को दे कर कैली में आ कर रहने लगा. वह मेहनतमजदूरी कर के बच्चों का पालनपोषण करने लगा. इस बीच उस के 3 बच्चे और हुए. जैसेजैसे बच्चे बड़े हुए, भारत सिंह ने उन की शादी कर दी. उस ने सब से छोटी बेटी पूनम का विवाह इसी साल 18 फरवरी को अनिल के साथ कर दिया था. अनिल चंदौसी शहर के हनुमानगढ़ी मोहल्ले में रहता था. पूनम देहाती माहौल में पलीबढ़ी थी जबकि उस की शादी शहर के लड़के से हुई थी. कई महीने तक शहर में रहने के बावजूद  वह खुद को शहरी माहौल में नहीं ढाल पाई. ससुराल वाले उसे लाख समझाते पर वह खुद को बदलने के लिए तैयार नहीं थी.

अनिल विवाह आदि समारोहों में फोटोग्राफी व वीडियोग्राफी का काम करता था. रात को देर से आना उस की पेशेगत मजबूरी थी. जब वह कहीं बुकिंग पर नहीं जाता, तब भी वह शराब के नशे में देर से घर आता था. पूनम को उस का शराब पीना पसंद नहीं था. वैचारिक मतभेद के साथ दोनों के बीच मनभेद भी बढ़ता चला गया. अनिल और पूनम के 4 महीने के वैवाहिक जीवन में घरेलू कलह रहने लगी थी. विवाद बढ़ने पर कई बार अनिल ने पूनम की पिटाई भी कर दी थी, जिस से उस के कान में चोट आई थी. ससुराल में पूनम की उपेक्षा बढ़ती जा रही थी. एक बार पूनम को बुखार आया तो अनिल उसे उस के मायके छोड़ आया. मायके वालों ने पूनम का इलाज कराया.

चोट की वजह से उस के कान में दर्द रहने लगा था. मायके वालों ने उस के कान का भी इलाज कराया. पूनम के मायके वाले  उस के दांपत्य जीवन को सुखी बनाए रखने के प्रयास में लगे रहे. 25 मई, 2018 को कैली गांव में किसी की शादी थी. शादी की दावत में पूनम व उस के पति अनिल को भी आमंत्रित किया गया था. अनिल ससुराल से पत्नी को साथ ला कर विवाह समारोह में शामिल हुआ. इस के बाद अनिल अपनी पत्नी पूनम को मायके में छोड़ कर रात में ही अपने गांव चला गया. ससुराल वालों ने उस से रात में वहीं रुकने का आग्रह करते हुए कहा कि सुबह पूनम को भी साथ ले कर चला जाए. इस पर अनिल ने कहा कि 2-4 दिन बाद आ कर उसे ले आएगा. लेकिन 15 दिन बीत गए और अनिल पूनम को लेने नहीं आया. पूनम उस से मोबाइल पर बात करना चाहती तो वह कोई न कोई बहाना बना कर उस से बात नहीं करता था. वह कहता था कि 2-4 दिन में उसे लेने आ जाएगा. इस तरह वह उसे टालता रहा.

19 जून को पूनम व उस की मां की हत्या से घर में कोहराम मच गया था. पूरा गांव शोक में डूबा था. भारत सिंह का रोरो कर बुरा हाल था. मांबेटी की अर्थी जब एक साथ उठी तो शवयात्रा में शामिल ग्रामीणों की आंखें नम हो गईं.  उधर पुलिस ने अपनी जांच भारत सिंह से शुरू की. भारत ने पुलिस को बताया कि 18 जून की रात अनिल के पिता फूल सिंह का फोन आया था. उन्होंने बताया था कि अनिल पूनम को लेने गांव गया हुआ है. उस समय वह खेतों पर लगी मेंथा की टंकी पर था. वहां वह किसानों का मेंथा औयल निकालता था. इस काम से उसे अच्छीखासी आमदनी हो जाती थी. उस रात वह घर नहीं आ सका था.

पुलिस को अन्य सूत्रों से भी पता चला कि अनिल उस रात गांव में देखा गया था. पुलिस ने अनिल के घर दबिश दी तो वह घर पर ही मौजूद था. पुलिस उसे पूछताछ के लिए थाने ले आई. जब उस से पूनम और उस की मां की हत्या के बारे में पूछताछ की गई तो वह काफी देर तक पुलिस को गुमराह करता रहा. पुलिस ने थोड़ी सख्ती की तो वह टूट गया और उस ने अपने जुर्म का इकबाल कर लिया. फिर डबल मर्डर की कहानी कुछ इस तरह सामने आई. अनिल ने बताया कि गंवार संस्कृति की पूनम से वह पीछा छुड़ाना चाहता था. वह उस के दिल से पूरी तरह उतर चुकी थी, इसलिए वह उसे मायके छोड़ गया था. लेकिन उस के घर वाले उसे साथ ले जाने के लिए दबाव बना रहे थे. उधर पूनम भी बारबार उसे आने के लिए फोन करती रहती थी. किसी भी तरह वह उस से पीछा छुड़ाना चाहता था.

18 जून, 2018 की शाम को उस के पास पूनम का फोन आया. तब अनिल ने अपनी ससुराल के लोगों के बारे में जानकारी की. पता चला कि उस के पिता व भाई घर पर नहीं हैं. पिता मेंथा टंकी पर हैं और भाई खेत पर. कुछ अपनी रिश्तेदारियों में गए हुए हैं. घर पर पूनम और उस की मां ही है. उसे ऐसे ही मौके की तलाश थी. पूनम अपनी मां के साथ गांव की हवेली से दूर अंतिम सिरे पर स्थित घेर कहे जाने वाले मकान में थी. सुनील जानता था कि पूनम के पांचों भाई अपने परिवार के साथ अंदर वाली हवेली में रहते हैं. पूनम की मां धार्मिक प्रवृत्ति की थी. वह ज्यादातर अपने हाथ का ही बना सादा भोजन करती थी. कभीकभी वह बहुओं द्वारा बनाया गया सादा भोजन भी खा लेती थी.

अनिल अपने दोस्त कौशल के साथ बाइक से घेर वाले उस मकान पर पहुंच गया. वह हाइवे से गांव को जाने वाली सड़क से न जा कर मकान के उत्तर में खाली प्लौटों से होता हुआ गया. उस ने बाइक भी कुछ दूर मकान की दीवार से सटा कर खड़ी कर दी थी. वहां से वह योजनानुसार पैदल ही घर पहुंचे, जिस से आसपड़ोस वालों को पता न चल सके कि पूनम के घर कोई आया है. पूनम अपनी मां शांति के साथ छत पर लेटी हुई थी. अनिल को देख पूनम की खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा. मांबेटी ने दोनों का आदरसत्कार किया. चायनाश्ते के बाद अनिल ने अपनी सास व अपने दोस्त को यह कह कर ऊपर छत पर भेज दिया कि पूनम से कुछ बात करनी है. अनिल ने पूनम से कह कर चारपाई बरामदे से उठा कर कमरे में डलवाई. उस समय लाइट भी नहीं थी. पूनम समझ नहीं पा रही थी कि इतनी गरमी में अंदर बैठ कर वह क्या खास बात करेंगे.

अनिल चारपाई पर बैठी पत्नी से औपचारिक बातें करने लगा, तभी अचानक उस ने अपने दोनों हाथों से पूनम का गला पकड़ लिया. पूनम समझ नहीं पाई कि वह क्या कर रहा है. गले पर हाथों का दबाव बढ़ने पर पूनम ने अपने बचाव में हाथपैर चलाने शुरू कर दिए, जिस से उस की चूडि़यां भी टूट गईं और शरीर पर खरोचों के निशान भी पड़ गए. पति के सामने पूनम का संघर्ष असफल रहा. कुछ ही देर में वह चारपाई पर लुढ़क गई. जब अनिल को यकीन हो गया कि पूनम की सांसें थम गई हैं, तब उस ने अपने दोस्त कौशल को नीचे बुलाया. उस के साथ पूनम की मां शांति भी नीचे आ गई.

शांति जब नीचे आई तो पूनम उसे बरामदे में दिखाई नहीं दी. उस ने अनिल से पूनम के बारे में पूछा. अनिल ने इशारा करते हुए कहा कि वह अंदर कमरे में है. शांति जैसे ही कमरे की तरफ बढ़ी, अनिल ने उसे पीछे से दबोच लिया. दोस्त के सहयोग से उस ने सास को भी जमीन पर गिरा कर पहले उस के मुंह में कपड़ा ठूंसा, जिस से उस की आवाज न निकल सके. फिर कौशल ने पैर जकड़े और अनिल ने उसी की साड़ी से उस का गला घोंट दिया. शांति को मारने के बाद दोनों ने उसे जमीन से उठा कर पूनम की लाश के ऊपर डाल दिया. अनिल को यह अहसास हुआ कि सास शांति देवी की सांसें अभी थमी नहीं हैं, तब उस ने उस की गरदन चारपाई से नीचे की ओर लटकाई. कौशल ने लटकती गरदन को पकड़ा और अनिल ने सब्जी काटने के चाकू से गरदन रेत दी.

इस के बाद दोनों वहां से निकल गए. इस मकान से आगे केवल 2 मकान और हैं. उस के बाद आबादी नहीं है. उन्होंने वहां आड़ में खड़ी बाइक उठाई और चले गए. सामने व पड़ोस में रहने वाले किसी भी व्यक्ति को इस दोहरे हत्याकांड की भनक तक नहीं लग सकी. पूनम का एक विकलांग भाई कुंवरपाल 5-6 मकान पहले गली के नुक्कड़ पर स्थित पशुशाला में सोने के लिए आया था. 4 साल की उम्र में उसे पोलियो हो गया था. उस की शादी भी एक विकलांग लड़की से हुई थी. वह बैसाखी के सहारे चलती है. कुंवरपाल रात 10 बजे सोने के लिए पशुशाला में चला जाता था. करीब 25 सदस्यों का इन का संयुक्त परिवार है. सभी का भोजन एक साथ बनता है. सभी भाइयों एवं उन की बहुओं में गजब का सामंजस्य है. कुंवरपाल को भी घटना की जानकारी नहीं लगी.

अनिल से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने उस के और उस के दोस्त कौशल के खिलाफ हत्या का केस दर्ज कर के अनिल को सीजेएम रवि कुमार के समक्ष पेश कर न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया. पुलिस ने दूसरे अभियुक्त कौशल की तलाश में इधरउधर छापे मारे तो उस ने 28 जून, 2018 को अदालत में आत्मसमर्पण कर दिया. अनिल ने हत्या का कारण यह भी बताया कि पूनम मानसिक रोगी थी और यह बात उस के घर वालों ने उस से छिपाई थी. जबकि परिजनों का कहना है कि उस के इस आरोप के कारण पूनम का सीटी स्कैन कराया था, जिस में वह पूर्ण स्वस्थ पाई गई.

मामले की जांच थानाप्रभारी प्रवीण सोलंकी कर रहे हैं.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

भाभी के प्यार में पागल देवर ने ली साले की जान

फौजी सुरेंद्र के संबंध अपनी भाभी से थे. भाई की मौत के बाद वह उसे अपने साथ रखना चाहता था, जबकि सुरेंद्र की पत्नी ममता ने इस का विरोध किया तब इस सनकी फौजी ने जो किया, उस से 2 घर बरबाद हो गए. कानपुर महानगर के थाना चकेरी के अंतर्गत आने वाले गांव घाऊखेड़ा में बालकृष्ण यादव अपने परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में पत्नी वीरवती के अलावा 2 बेटियां गीता, ममता और 3 बेटे मोहन, राजेश और श्यामसुंदर थे. बालकृष्ण सेना में थे, इसलिए उन्होंने अपने सभी बच्चों की परवरिश बहुत ही अच्छे ढंग से की थी. उन की पढ़ाईलिखाई भी का भी विशेष ध्यान रखा था.

नौकरी के दौरान ही उन्होंने अपने बड़े बेटे मोहन और बड़ी बेटी गीता की शादी कर दी थी. सन 2004 में बालकृष्ण सेना से रिटायर्ड हो गए थे. अब तक उन के अन्य बच्चे भी सयाने हो गए थे. इसलिए वह एकएक की शादी कर के इस जिम्मेदारी से मुक्ति पाना चाहते थे. इसलिए घर आते ही उन्होंने ममता के लिए अच्छे घरवर की तलाश शुरू कर दी. इसी तलाश में उन्हें अपने दोस्त लक्ष्मण सिंह की याद आई. क्योंकि उन का छोटा बेटा सुरेंद्र सिंह शादी लायक था.

लक्ष्मण सिंह भी उन्हीं के साथ सेना में थे. उन के परिवार में पत्नी लक्ष्मी देवी के अलावा 2 बेटे वीरेंद्र और सुरेंद्र थे. वीरेंद्र प्रौपर्टी डीलिंग का काम करता था, जबकि सुरेंद्र की नौकरी सेना में लग गई थी. वीरेंद्र की शादी कानपुर के ही मोहल्ला श्यामनगर के रहने वाले रामबहादुर की बहन निर्मला से हुई थी. सुरेंद्र की नौकरी लग गई थी, इसलिए लक्ष्मण सिंह भी उस के लिए लड़की देख रहे थे. सुरेंद्र का ख्याल आते ही बालकृष्ण अपने दोस्त के यहां जा पहुंचे. उन्होंने उन से आने का कारण बताया तो दोनों दोस्तों ने दोस्ती को रिश्तेदारी में बदलने का निश्चय कर लिया.

इस के बाद सारी औपचारिकताएं पूरी कर के ममता और सुरेंद्र की शादी हो गई. ममता सतरंगी सपने लिए अपनी ससुराल गांधीग्राम आ गई. यह सन 2005 की बात है. शादी के बाद ममता के दिन हंसीखुशी से गुजरने लगे. लेकिन जल्दी ही ममता की यह खुशी दुखों में बदलने लगी. इस की वजह यह थी कि सुरेंद्र पक्का शराबी था. वह शराब का ही नहीं, शबाब का भी शौकीन था. इस के अलावा उस में सभ्यता और शिष्टता भी नहीं थी. शादी होते ही हर लड़की मां बनने का सपना देखने लगती है. ममता भी मां बनना चाहती थी.

लेकिन जब ममता कई सालों तक मां नहीं बन सकी तो वह इस विषय पर गहराई से विचार करने लगी. जब इस बात पर उस ने गहराई से विचार किया तो उसे लगा कि एक पति जिस तरह पत्नी से व्यवहार करता है, उस तरह का व्यवहार सुरेंद्र उस से नहीं करता. उसी बीच ममता ने महसूस किया कि सुरेंद्र उस के बजाय अपनी भाभी के ज्यादा करीब है. लेकिन वह इस बारे में किसी से कुछ कह नहीं सकी. इस की वजह यह थी कि उस ने कभी दोनों को रंगेहाथों नहीं पकड़ा था. फिर भी उसे संदेह हो गया था कि कहीं कुछ गड़बड़ जरूर है.

एक तो वैसे ही ममता को सुरेंद्र के साथ ज्यादा रहने का मौका नहीं मिलता था, दूसरे जब वह घर आता था तो उस से खिंचाखिंचा रहता था. सुरेंद्र ममता को साथ भी नहीं ले जाता था, इसलिए ज्यादातर वह मायके में ही रहती थी. आखिर शादी के 5 सालों बाद ममता का मां बनने का सपना पूरा ही हो गया. उस ने एक बेटे को जन्म दिया, जिस का नाम रखा गया सौम्य. ममता को लगा कि बेटे के पैदा होने से सुरेंद्र बहुत खुश होगा. उन के बीच की जो हलकीफुलकी दरार है, वह भर जाएगी. उस के जीवन में भी खुशियों की बहार आ जाएगी.

लेकिन ऐसा हुआ नहीं, क्योंकि ममता को जैसे ही बेटा पैदा हुआ, उस के कुछ दिनों बाद ही सुरेंद्र के बड़े भाई वीरेंद्र की मौत हो गई. वीरेंद्र की यह मौत कुदरती नहीं थी. वह थोड़ा दबंग किस्म का आदमी था. उस का किसी से झगड़ा हो गया तो सामने वाले ने अपने साथियों के साथ उसे इस तरह मारापीटा कि अस्पताल पहुंचने से पहले ही उस की मौत हो गई. वीरेंद्र की मौत के बाद सुरेंद्र और उस की भाभी के जो नजायज संबंध लुकछिप कर बन रहे थे, अब घरपरिवार और समाज की परवाह किए बगैर बनने लगे. ममता का जो संदेह था, अब सच साबित हो गया. भाभी को हमारे यहां मां का दरजा दिया जाता है, लेकिन सुरेंद्र और निर्मला को इस की कोई परवाह नहीं थी. जेठ के रहते ममता ने इस बात पर खास ध्यान नहीं दिया था. लेकिन जेठ की मौत के बाद सुरेंद्र खुलेआम भाभी के पास आनेजाने लगा.

ममता ने इस का विरोध किया तो उस के ससुर ने कहा, ‘‘ममता, इस मामले में तुम्हारा चुप रहना ही ठीक है. दरअसल मैं ने अपनी सारी प्रौपर्टी पहले ही वीरेंद्र और सुरेंद्र के नाम कर दी थी. निर्मला अभी जवान है. अगर वह कहीं चली गई तो उस के हिस्से की प्रौपर्टी भी उस के साथ चली जाएगी. इसलिए अगर तुम बखेड़ा न करो तो सुरेंद्र उस से शादी कर ले. इस तरह घर की बहू भी घर में ही रह जाएगी और प्रौपर्टी भी.’’

सौतन भला किसे पसंद होती है. इसलिए ससुर की बातें सुन कर ममता तड़प उठी. वह समझ गई कि यहां सब अपने मतलब के साथी हैं. उस का कोई हमदर्द नहीं है. पति गलत रास्ते पर चल रहा है तो ससुर को चाहिए कि वह उसे सही रास्ता दिखाएं और समझाएं. जबकि वह खुद ही उस का समर्थन कर रहे हैं. बल्कि उस से यह कह रहे हैं कि वह सौतन स्वीकार कर ले. उस का पति तो वैसे ही उसे वह मानसम्मान नहीं देता, जिस की वह हकदार है. अगर उस ने भाभी से शादी कर ली तो शायद वह उसे दिल से ही नहीं, घर से भी निकाल दे. यही सब सोच कर ममता ने उस समय इस बात को टालते हुए कहा, ‘‘बाबूजी, यह मेरी ही नहीं, मेरे बच्चे की भी जिंदगी से जुड़ा मामला है. इसलिए मुझे थोड़ा सोचने का समय दीजिए.’’

इस के बाद ममता मायके गई और घरवालों को पूरी बात बताई. ममता की बात सुन कर सभी हैरान रह गए. एकबारगी तो किसी को इस बात पर विश्वास ही नहीं हुआ, क्योंकि निर्मला 3 बच्चों की मां थी. उस समय उस की बड़ी बेटी लगभग 20 साल की थी, उस से छोटा बेटा 16 साल का था तो सब से छोटा बेटा 12 साल का. इस उम्र में निर्मला को अपने बच्चों के भविष्य के बारे में सोचना चाहिए था, जबकि वह अपने बारे में सोच रही थी. उस की बेटी ब्याहने लायक हो गई थी, जबकि वह खुद अपनी शादी की तैयारी कर रही थी. ममता के घर वालों ने उस से साफसाफ कह दिया कि वह इस बात के लिए कतई न राजी हो. जेठानी को जेठानी ही बने रहने दे, उसे सौतन कतई न बनने दे.

मायके वालों का सहयोग मिला तो सीधीसादी ममता ने अपने ससुर से साफसाफ कह दिया कि वह कतई नहीं चाहती कि उस  का पति उस के रहते दूसरी शादी करे. ममता का यह विद्रोह न सुरेंद्र को पसंद आया, न उस के बाप लक्ष्मण सिंह को. इसलिए बापबेटे दोनों को ही ममता से नफरत हो गई. परिणामस्वरूप दोनों के बीच दरार बढ़ने लगी. ममता सुरेंद्र की परछाई बन कर उस के साथ रहना चाहती थी, जबकि सुरेंद्र उस से दूर भाग रहा था. अब वह छोटीछोटी बातों पर ममता की पिटाई करने लगा. ससुराल के अन्य लोग भी उसे परेशान करने लगे. इस के बावजूद ममता न पति को छोड़ रही थी, न ससुराल को. इतना परेशान करने पर भी ममता न सुरेंद्र को छोड़ रही थी, न उस का घर तो एक दिन सुरेंद्र ने खुद ही मारपीट कर उसे घर से निकाल दिया.

सुरेंद्र ने जिस समय ममता को घर से निकाला था, उस समय उस की पोस्टिंग लखनऊ के कमांड हौस्पिटल में थी. ममता के पिता बालकृष्ण और भाई श्यामसुंदर ने सुरेंद्र के अफसरों से उस की इस हरकत की लिखित शिकायत कर दी. तब अधिकारियों ने सुरेंद्र और ममता को बुला कर दोनों की बात सुनी. चूंकि गलती सुरेंद्र की थी, इसलिए अधिकारियों ने उसे डांटाफटकारा ही नहीं, बल्कि आदेश दिया कि वह ममता को 10 हजार रुपए महीने खर्च के लिए देने के साथ बच्चों को ठीक से पढ़ाएलिखाए. इस के बाद अधिकारियों ने कमांड हौस्पिटल परिसर में ही सुरेंद्र को मकान दिला दिया, जिस से वह पत्नी और बच्चों के साथ रह सके.

अधिकारियों के कहने पर सुरेंद्र ममता को साथ ले कर उसी सरकारी क्वार्टर में रहने तो लगा, लेकिन उस की आदतों में कोई सुधार नहीं आया. उसे जब भी मौका मिलता, वह भाभी से मिलने कानपुर चला जाता. अगर ममता कुछ कहती तो वह उस से लड़नेझगड़ने लगता. साथ रहने पर सुरेंद्र से जितना भी हो सकता था, वह ममता को परेशान करता रहा, इस के बावजूद ममता उस का पीछा छोड़ने को तैयार नहीं थी. अगर सुरेंद्र ज्यादा परेशान करता तो वह उस की ज्यादतियों की शिकायत उस के अधिकारियों से कर देती, जिस से उसे डांटाफटकारा जाता. लखनऊ में रहते हुए ममता ने एक बेटी को जन्म दिया. बेटी के पैदा होने के समय वह मायके आ गई थी. लेकिन 2 महीने के बाद वह अकेली ही लखनऊ चली गई.

धीरेधीरे सुरेंद्र सेना के नियमों का उल्लंघन करने लगा. एक दिन वह शराब पी कर बिना हेलमेट के सैन्य क्षेत्र में मोटरसाइकिल चलाते पकड़ा गया तो उसे दंडित किया गया. लेकिन उस पर इस का कोई असर नहीं पड़ा. दंडित किए जाने के बाद भी उस में कोई सुधार नहीं आया. इसी तरह दोबारा शराब पी कर बिना हेलमेट के सैन्य क्षेत्र में मोटरसाइकिल चलाने पर सेना के गार्ड ने उसे रोका तो उस ने गार्ड को जान से मारने की धमकी दी. गार्ड ने इस बात की रिपोर्ट कर दी. निश्चित था, इस मामले में उसे सजा हो जाती. इसलिए सजा से बचने के लिए वह भाग कर कानपुर चला गया.

सुरेंद्र को लगता था कि इस सब के पीछे उस के साले श्यामसुंदर का हाथ है. यह बात दिमाग में आते ही श्यामसुंदर उस की आंखों में कांटे की तरह चुभने लगा. क्योंकि श्यामसुंदर काफी पढ़ालिखा और समझदार था. वह कानपुर में ही एयरफोर्स में नौकरी कर रहा था. बात भी सही थी. उसी ने अधिकारियों से उस की शिकायत कर के ममता को साथ रखने के लिए उसे मजबूर किया था. सुरेंद्र को लग रहा था कि जब तक श्यामसुंदर रहेगा, उसे चैन से नहीं रहने देगा. इसलिए उस ने सोचा कि अगर उसे चैन से रहना है तो उसे खत्म करना जरूरी है. इसी बात को दिमाग में बैठा कर सुरेंद्र 29 सितंबर को चकेरी के विराटनगर स्थित अपने ससुर की दुकान पर जा पहुंचा. उस समय शाम के सात बज रहे थे.

श्यामसुंदर ड्यूटी से आ कर दुकान पर बैठ कर पिता की मदद करता था. संयोग से उस दिन श्यामसुंदर दुकान पर अकेला ही था. सुरेंद्र ने पहुंचते ही अपने लाइसेंसी रिवाल्वर से श्यामसुंदर पर गोली चला दी. गोली लगते ही श्यामसुंदर गिर कर छटपटाने लगा. गोली की आवाज सुन कर आसपास के लोग दौड़े तो सुरेंद्र ने हवाई फायर करते हुए कहा, ‘‘अगर किसी ने रोकने या पकड़ने की कोशिश की तो उस का भी यही हाल होगा.’’

डर के मारे किसी ने सुरेंद्र को पकड़ने की हिम्मत नहीं की. सुरेंद्र आसानी से वहां से भाग निकला. पड़ोसियों की मदद से बालकृष्ण बेटे को एयरफोर्स हौस्पिटल ले गए, जहां निरीक्षण के बाद डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया. श्यामसुंदर की मौत से उस के घर में कोहराम मच गया. श्यामसुंदर की पत्नी सीमा देवी, जिस की शादी अभी 3 साल पहले ही हुई थी, उस का रोरो कर बुरा हाल था. अपने 2 साल के बेटे कार्तिक को सीने से लगाए कह रही थी, ‘‘बेटा तू अनाथ हो गया. तुझे किसी और ने नहीं, तेरे फूफा ने ही अनाथ कर दिया.’’

इस घटना की सूचना ममता को मिली तो उस का बुरा हाल हो गया. वह दोनों बच्चों को ले कर रोतीपीटती किसी तरह लखनऊ से कानपुर पहुंची. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह अपनी भाभी को कैसे सांत्वना दे. वह तो यही सोच रही थी कि वह स्वयं विधवा हो गई होती तो इस से अच्छा रहता. घटना की सूचना पा कर अहिरवां चौकी प्रभारी विक्रम सिंह चौहान सिपाही रूप सिंह यादव, सीमांत सिकरवार, विनोद कुमार तथा योंगेंद्र को साथ ले कर घटनास्थल पर पहुंचे. घटना गंभीर थी, इसलिए उन्होंने घटना की सूचना थानाप्रभारी संगमलाल सिंह को दी. इस तरह सूचना पा कर थानाप्रभारी संगमलाल सिंह, पुलिस अधीक्षक (पूर्वी) राहुल कुमार और क्षेत्राधिकारी कैंट भी घटनास्थल पर पहुंच गए.

इस के बाद श्यामसुंदर के भाई राजेश यादव द्वारा दी गई तहरीर के आधार पर हत्या का यह मुकदमा थाना चकेरी में सुरेंद्र सिंह यादव पुत्र लक्ष्मण सिंह यादव निवासी गांधीग्राम, चकेरी के खिलाफ दर्ज कर लिया गया. दूसरी ओर घटनास्थल और लाश का निरीक्षण करने पुलिस ने उसे पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया था. इस के बाद मामले की जांच की जिम्मेदारी थानाप्रभारी संगमलाल सिंह ने संभाल ली. अगले दिन पोस्टमार्टम के बाद श्यामसुंदर का शव मिला तो घरवालों ने सुरेंद्र की गिरफ्तारी न होने तक अंतिम संस्कार करने से मना कर दिया. मृतक के घर वालों की इस घोषणा से पुलिस प्रशासन सकते में आ गया. इस के बाद पुलिस सुरेंद्र की गिरफ्तारी के लिए दौड़धूप करने लगी. परिणामस्वरूप अगले दिन यानी 1 अक्तूबर, 2013 को रामादेवी चौराहे से सुबह 4 बजे अभियुक्त सुरेंद्र सिंह यादव को गिरफ्तार कर लिया गया.

इस के बाद पुलिस ने सुरेंद्र की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त उस की लाइसेंसी रिवाल्वर बरामद कर ली. पूछताछ में सुरेंद्र ने बताया, ‘‘मेरे अपनी भाभी निर्मला से अवैध संबंध थे. भाई के मरने के बाद मैं उसे अपने साथ रखना चाहता था, जबकि ममता और उस के घर वाले इस बात का विरोध कर रहे थे. श्यामसुंदर इस मामले में सब से ज्यादा टांग अड़ा रहा था, इसलिए मैं ने उसे खत्म कर दिया.’’

सुरेंद्र की गिरफ्तारी के बाद उसी दिन शाम को श्यामसुंदर को घर वालों ने उस का अंतिमसंस्कार कर दिया. इस तरह एक सनकी फौजी ने अपनी सनक की वजह से 2 घर बरबाद कर दिए. साले के बच्चे को तो अनाथ किया ही, अपने भी बच्चों को अनाथ कर दिया.

ममता भी पति के रहते न सुहागिन रही न विधवा. उस के लिए विडंबना यह है कि वह मायके में भी रहे तो कैसे? अब उस की और उस के बच्चों की परवरिश कौन करेगा? सुरेंद्र को सजा हो गई तो उस के मासूम बच्चों का क्या होगा?

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Murder Story : चारपाई के नीचे पति को दफनाया और प्रेमी संग बनाई रंगरलियां

आदमी हो या औरत, जवानी में अगर उस के पैर बहक जाएं तो फिर दिल्लगी दिल की लगी बन कर ऐसा कहर ढाती है कि खून भी पानी सा लगने लगता है. माया और टुल्लू के बीच…

चित्रकूट जिले के गांव लोहदा का रहने वाला फूलचंद विश्वकर्मा कानपुर की एक ट्रांसपोर्ट कंपनी में ट्रक ड्राइवर की नौकरी करता था. उस की मां और बड़े भाई का परिवार गांव में रहते थे. ट्रक ड्राइवर का पेशा ऐसा है, जिस में कई बार आदमी को लौटने में महीनोंमहीनों लग जाते हैं. इसी वजह से फूलचंद पिछले एक साल से गांव में रह रही बूढ़ी मां और भाई के परिवार से नहीं मिल सका था. समय मिला तो उस ने 5 जुलाई, 2018 को गांव जाने का फैसला किया.

फूलचंद तहसील राजापुर स्थित अपने गांव लोहदा पहुंचा तो उस की वृद्धा मां तो पुश्तैनी घर में मिल गई, लेकिन अलग रह रहा बड़ा भाई शिवलोचन और उस का परिवार घर में नहीं था. वह मां से मिला तो उस की आंखें भर आईं और वह उस के गले लग कर रो पड़ी. फूलचंद को लगा कि मां से एक साल बाद मिला है, इसलिए वह भावुक हो गई है. उस ने जैसेतैसे सांत्वना दे कर मां को चुप कराया और बड़े भाई शिवलोचन और उस के परिवार के बारे में पूछा.

उस की मां चुनकी देवी ने रोते हुए बताया कि पिछले 8 महीने से शिवलोचन का कोई पता नहीं है. बहू माया भी 7-8 महीने पहले दोनों बच्चों को ले कर अपने मायके चली गई थी. तब से वापस नहीं लौटी. मां की बात सुन कर फूलचंद परेशान हो गया. उस ने इस बारे में मां से विस्तार से पूछा तो उस ने बताया कि 8 महीने पहले जब कई दिनों तक शिवलोचन  दिखाई नहीं दिया तो उस ने और गांव वालों ने बहू माया से उस के बारे में पूछा. माया ने बताया कि शिवलोचन अपनी नौकरी पर कर्वी चला गया है. इस के कुछ दिन बाद माया भी यह कह कर दोनों बच्चों के साथ मायके चली गई कि घर में राशन खत्म हो गया है. जब शिवलोचन लौट आएं तो खबर भिजवा देना, मैं आ जाऊंगी.

फूलचंद को मालूम था कि उस का भाई शिवलोचन कर्वी के एक जमींदार तेजपाल सिंह के खेतों में टै्रक्टर चलाने का काम करता था. जमींदार की गाडि़यां भी वही ड्राइव करता था. मां ने बताया कि उस ने शिवलोचन को कई बार फोन भी कराया था, लेकिन उस का फोन बंद था. मां ने आशंका व्यक्त करते हुए यह भी कहा कि शिवलोचन इतने महीनों तक कभी भी कर्वी में नहीं रहा, बीचबीच में वह आता रहता था.

फूलचंद इस बात को समझता था कि आदमी भले ही कितना भी व्यस्त क्यों न रहे, ऐसा नहीं हो सकता कि अपने परिवार की सुध ही न ले. संदेह की एक वजह यह भी थी कि भाई का हालचाल जानने के लिए फूलचंद ने खुद भी भाई के मोबाइल पर फोन किए थे, लेकिन उस का फोन हर बार बंद मिला था. उस वक्त उस ने यही सोचा था कि संभव है, भाई किसी ऐसी जगह पर हो, जहां नेटवर्क न मिलता हो. संदेह पैदा हुआ तो फूलचंद उसी दिन गांव के 2 आदमियों को साथ ले कर कर्वी के जमींदार तेजपाल सिंह के पास गया. वहां उसे जो जानकारी मिली, उस ने फूलचंद की चिंता और बढ़ा दी. तेजपाल सिंह ने बताया कि शिवलोचन नवंबर 2017 में दीपावली के बाद से काम पर नहीं आया है.

उस के कई दिनों तक काम पर न आने की वजह से उन्होंने उस के मोबाइल पर फोन किया तो उस की बीवी माया ने फोन उठाया. उस ने कहा कि शिवलोचन ने उन की नौकरी छोड़ दी है, उसे कहीं दूसरी जगह ज्यादा पगार की नौकरी मिल गई है. तेजपाल सिंह ने आगे बताया कि उन्होंने इस के बाद यह सोच कर फोन नहीं किया कि जब वह अपना बकाया वेतन लेने के लिए आएगा तो पूछेंगे कि अचानक नौकरी क्यों छोड़ दी. तेजपाल सिंह के यहां से मिली जानकारी के बाद चिंता में डूबा फूलचंद उदास चेहरा लिए अपने गांव लौट आया. फूलचंद ने घर लौट कर भाई के बारे में गहराई से सोचा तो यह बात उस की समझ में नहीं आई कि भाई ने जब दूसरी जगह नौकरी कर ली थी तो माया भाभी ने गांव वालों और मां से यह क्यों कहा था कि वह कर्वी में अपने काम पर गया है.

फूलचंद ने शिवलोचन के साथसाथ अपनी भाभी माया को भी कई बार फोन किया था, लेकिन शिवलोचन की तरह माया का भी फोन बंद मिला था. फूलचंद की समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर शिवलोचन कहां चला गया और 8 महीने से घर क्यों नहीं लौटा. ऊपर से उस का फोन भी बंद था. आश्चर्य की बात यह थी कि उस की भाभी माया जब से अपने मायके गई थी, वापस नहीं लौटी थी. न ही उस ने किसी को फोन कर के कभी कुशलक्षेम पूछी थी. ऊपर से उस का फोन नहीं लग रहा था. फूलचंद को अपने भाई शिवलोचन की चिंता सताने लगी तो वह भाई की खोजबीन  में जुट गया. फूलचंद की एक बड़ी बहन थी, सावित्री. उस की शादी चित्रकूट की मऊ तहसील में हुई थी. उस के पास शिवलोचन की ससुराल वालों का नंबर था.

फूलचंद ने फोन कर के बहन को बताया कि शिवलोचन पिछले कई महीनों से लापता है और माया अपने मायके गई है. दोनों में से किसी का फोन भी नहीं लग रहा. शिवलोचन के बारे में पता लगाने की सोच कर फूलचंद ने सावित्री से माया के पिता का नंबर ले लिया. उस ने वह नंबर लगा कर जब माया के पिता से बात की तो उस ने बताया कि माया अपने दोनों बच्चों को ले कर 8 महीने पहले दीपावली के बाद उन के पास आई थी. लेकिन वह 2 महीना पहले दोनों बच्चों को उन के घर छोड़ कर यह कह कर गई थी कि शिवलोचन के बारे में जानकारी लेने लोहदा जा रही है, 2-4 दिन में आ जाएगी. लेकिन उस के बाद ना तो वह घर लौटी, न ही उस ने फोन कर के बच्चों की कुशलक्षेम पूछी.

माया के पिता ने जो कुछ बताया, वह चौंकाने वाला था. क्योंकि अभी तक तो फूलचंद इस भ्रम में था कि उस की भाभी माया अपने मायके में है, लेकिन जब पता चला कि माया अपने मायके से 2 महीना पहले ही कहीं चली गई है तो फूलचंद के माथे पर परेशानी की लकीरें और गहरा गईं. गांव में जहां शिवलोचन का मकान था, फूलचंद की मां उस से कुछ दूर अपने पैतृक मकान में रहती थी. वहीं पर वह अपनी गुजरबसर के लिए चाय का ढाबा चलाती थी. शिवलोचन की पत्नी माया जब 7-8 महीने पहले बच्चों को ले कर मायके गई थी तो जाते वक्त घर का ताला लगा कर चाभी अपनी सास चुनकी देवी को दे गई थी. तभी से शिवलोचन का मकान बंद पड़ा था.

इसी दौरान शिवलोचन के पड़ोसी हुकुम सिंह ने उस से कहा कि 8 महीने पहले शिवलोचन ने उस का सेकेंड हैंड टीवी यह कह कर लिया था कि कुछ दिन में पैसे दे देगा. लेकिन टीवी लेने के कुछ दिन बाद ही शिवलोचन और उस की पत्नी पता नहीं कहां चले गए. उन्होंने न तो पैसे दिए, न टीवी लौटाया. हुकुम सिंह ने फूलचंद से कहा कि शिवलोचन तो पता नहीं कब आएगा, इसलिए वह उस का टीवी निकाल कर उसे दे दे. फूलचंद ने अपनी मां चुनकी देवी से शिवलोचन के घर की चाभी ले कर ताला खोला तो अंदर के दोनों कमरों से तेज बदबू का झोंका आया. बंद कमरों के खुलने के कुछ देर बाद जब बदबू कम हुई तो फूलचंद ने हुकुम सिंह का टीवी उठा कर उसे दे दिया.

फूलचंद को लगा कि लंबे समय से मकान बंद था, जिस से सीलन और गंदगी की वजह से बदबू आ रही होगी. उस ने सोचा कि क्यों न दोनों कमरों की सफाई कर दी जाए. लेकिन जब वह उस कमरे की सफाई करने लगा, जिस में शिवलोचन और माया रहते थे तो कमरे के फर्श की कच्ची जमीन थोड़ी धंसी हुई दिखाई दी. यह देख कर फूलचंद का मन शंका से भर उठा. क्योंकि वहां की जमीन को देख कर ऐसा लग रहा था, मानो कच्चे फर्श का वह हिस्सा अलग हो. उस जगह को गौर से देखने पर लगा, जैसे वहां कोई चीज दबाई गई हो.

पांव से दबाने पर वहां की जमीन नीचे की तरफ दब रही थी. गांव के कुछ लोगों को बुला कर फूलचंद के जमीन का वह हिस्सा दिखाया तो सब ने राय दी कि क्यों न जमीन खोद कर देख लिया जाए. लेकिन जमीन में ऐसीवैसी किसी चीज के दबे होने की आशंका से फूलचंद खुदाई करने से हिचक रहा था. लिहाजा उस ने सब से राय ली कि क्यों न पहले पुलिस को खबर कर दी जाए.

‘‘अरे भैया, तुम तो ऐसे डर रहे हो जैसे जमीन में खजाना गड़ा हो. अरे तुम्हारा घर है, तुम्हारी जमीन है. खोद कर देखो, जो कुछ भी होगा सामने आ जाएगा और अगर ऐसावैसा कुछ हुआ भी तो पुलिस को खबर कर देना.’’ कई लोगों ने एक राय हो कर कहा. बात फूलचंद की समझ में आ गई. लिहाजा उस ने कमरे के उस हिस्से की फावड़े से खुदाई शुरू कर दी. 3 फुट गहरा गड्ढा खुद चुका था मगर कुछ भी नहीं निकला. लेकिन एक बात ऐसी थी, जिस की वजह से केवल फूलचंद ही नहीं, बल्कि गांव वालों का मन भी आशंका से भर उठा.

बात यह थी कि उस जगह की मिट्टी काफी नरम थी. मिट्टी की सतह वैसे नहीं चिपकी थी, जैसे आमतौर पर चिपकी होती है. इतना ही नहीं जैसेजैसे जमीन खोदी जा रही थी, गड्ढे में से बदबू आनी शुरू हो गई थी. छह इंच जमीन और खोदते ही फूलचंद की आशंका सच साबित हुई. जमीन के उस गड्ढे से कुछ हड्डियां मिली. इस के बाद दहशत में आ कर फूलचंद ने खुदाई रोक दी. गांव वालों से बातचीत के बाद फूलचंद अपनी मां चुनकी देवी, पड़ोसी हुकुम सिंह, गांव के प्रधान, चौकीदार और कुछ अन्य लोगों को साथ ले कर थाना पहाड़ी पहुंचा. यह 7 जुलाई, 2018 की दोपहर की बात है. पहाड़ी थाने के एसएचओ इंसपेक्टर अरुण पाठक थाने में ही मौजूद थे.

एक साथ इतने सारे लोगों को आया देख पाठक ने उन से आने की वजह पूछी तो फूलचंद ने अपने भाई और भाभी के घर से गायब होने के बारे में बता कर घर में हुई खुदाई के दौरान मानव हड्डियों के निकलने की बात उन्हें बता दी. इंसपेक्टर अरुण पाठक बोले, ‘‘अरे भाई, जब तुम ने इतना गड्ढा खोद ही दिया था तो थोड़ा सा और खोद लेते. कम से कम यह पता तो चल जाता कि वहां किसी जानवर की हड्डियां दबी हैं या इंसान की.’’

‘‘दरअसल, मेरे भाईभाभी का कुछ पता नहीं है, इसलिए हमें बड़ा डर लग रहा है. आप चल कर देख लीजिए.’’ फूलचंद ने इंसपेक्टर पाठक के सामने हाथ जोड़ते हुए कहा.

इंसपेक्टर अरुण पाठक पुलिस टीम ले कर फूलचंद और उस के साथ आए गांव वालों के साथ लोहदा गांव में शिवलोचन के घर पहुंच गए. घर के बाहर पहले से ही काफी भीड़ जमा थी. इंसपेक्टर अरुण पाठक ने पहले से 2-3 फीट खुदे गड्ढे की थोड़ी और खुदाई कराई. पहले से करीब साढे़ 3 फीट खुदे गड्ढे की थोड़ी और खुदाई कराई. करीब साढ़े 3 फीट खुदे गड्ढे की एक फीट और खुदाई हुई तो पूरा नरकंकाल निकला. नरकंकाल की गर्दन में रस्सी बंधी हुई थी, जो गली नहीं थी. ऐसा लग रहा था जैसे रस्सी से उस का गला दबाया गया हो.

चूंकि शव पूरी तरह कंकाल में तब्दील हो चुका था, इसलिए लग रहा था कि शव को कई महीने पहले दफनाया गया था. मामले की गंभीरता को समझते हुए इंसपेक्टर अरुण पाठक ने इलाके के क्षेत्राधिकारी शिवबचन सिंह और नायब तहसीलदार को मौके पर बुलवा लिया. दोनों अधिकारियों ने बात जानने के बाद नरकंकाल को सावधानीपूर्वक गड्ढे से बाहर निकलवा लिया. इस दौरान चित्रकूट जिले के पुलिस अधीक्षक मनोज कुमार झा भी फोरेंसिक टीम को ले कर लोहदा पहुंच गए. कंकाल किसी आदमी का था, यह ढांचे से साबित हो रहा था. कंकाल की पहचान के लिए गड्ढे से कोई ऐसी चीज नहीं निकली थी, जिसे पहचान कर कोई यह बता पाता कि कंकाल किस का है.

अलबत्ता फूलचंद व उस की मां चुनकी देवी ने कंकाल को गौर से देखने के बाद आशंका जताई कि कंकाल शिवलोचन का हो सकता है. इंसपेक्टर अरुण पाठक ने फूलचंद से पूछा, ‘‘तुम यह बात इतने विश्वास से कह रहे हो कि कंकाल शिवलोचन का ही है?’’

‘‘सर, मेरे भाई के बाए हाथ के पंजे में अंगूठा नहीं था. इस कंकाल के भी बाएं हाथ में सिर्फ चार अंगुलियों की हड्डियां हैं. अंगूठे की हड्डी गायब है. मेरे भाई के बाएं हाथ का अंगूठा एक दुर्घटना में पूरी तरह कट गया था.’’

फूलचंद ने विश्वास का कारण बताया तो इंसपेक्टर पाठक को भी लगा कि संभव है, कंकाल फूलचंद के भाई शिवलोचन का ही हो. वजह यह थी कि शिवलोचन काफी दिनों से गायब था. लेकिन कंकाल शिवलोचन का ही है, इस की वैज्ञानिक रूप से पुष्टि डीएनए टेस्ट होने पर ही हो सकती थी. पुलिस अधीक्षक मनोज कुमार झा के आदेश पर पुलिस ने नरकंकाल का पंचनामा भरवा कर उसे डीएनए टेस्ट के लिए भिजवाने की औपचारिकता पूरी की. डीएनए मिलान के लिए फोरेंसिक टीम के डाक्टरों ने शिवलोचन की मां चुनकी देवी का ब्लड सैंपल ले लिया.

पुलिस अधीक्षक मनोज कुमार झा ने सीओ शिववचन सिंह को निर्देश दिया कि वह चुनकी देवी और उन के बेटे फूलचंद से शिवलोचन के गायब होने की शिकायत ले कर मुकदमा दर्ज करें. साथ ही शिवलोचन की लापता पत्नी माया और उस के दोनों बच्चों का भी पता लगाए. पहाड़ी थाने के प्रभारी इंसपेक्टर अरुण पाठक ने शुरू में इस मामले को जितने सहज ढंग से लिया था, केस उतना ही पेचीदा निकला. यह जानकर उन्हें और भी ज्यादा आश्चर्य हुआ कि 2 महीने पहले माया अपने बच्चों को मां के पास छोड़ कर कहीं चली गई थी. इंसपेक्टर अरुण पाठक ने शिवलोचन और माया के संबंधों के बारे में गहराई से पता लगाने के लिए गांव के लोगों और शिवलोचन के परिवार के सभी सदस्यों से एकएक कर के पूछताछ करनी शुरू कर दी.

उन लोगों से मिली जानकारी के बाद यह साफ हो गया कि शिवलोचन के घर में जो नरकंकाल मिला वह शिवलोचन का ही है. शिवलोचन के घर वालों और लोहदा गांव के लोगों से पूछताछ के बाद इंसपेक्टर अरुण पाठक की समझ में  आ गया कि शिवलोचन के रहस्यमय ढंग से गायब होने और उस की पत्नी के लापता हो जाने के पीछे क्या राज है. अरुण पाठक ने फूलचंद से तहरीर ले कर 7 जुलाई की रात को ही पहाड़ी थाने में भारतीय दंड संहिता की धारा 302 के तहत शिवलोचन की पत्नी माया और लोहदा गांव के टुल्लू लोध, जिसे रज्जन भी कहते थे, के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज करवा दिया.

पुलिस अधीक्षक मनोज कुमार झा के निर्देश पर एसएचओ अरुण पाठक ने मुकदमे की जांच का काम खुद ही शुरू कर दिया. सहयोग के लिए उन्होंने एक पुलिस टीम का गठन किया, जिस में सिपाही मुकद्दर सिंह, वीरेंद्र सिंह, रामअजोर सरोज और महिला सिपाही रुचि सिंह को शामिल किया गया. पुलिस अधीक्षक के आदेश पर क्राइम व साइबर सेल की टीम भी थाना पहाड़ी पुलिस की मदद में लग गई. थानाप्रभारी अरुण पाठक ने सब से पहले टुल्लू लोध उर्फ रज्जन के पिता लिसुरवा और भाई लल्लन को हिरासत में ले कर उन से यह जानने का प्रयास किया कि टुल्लू इन दिनों कहां है. पूछताछ में पता चला कि वह मुंबई में है. पुलिस ने जब कड़ी पूछताछ की तो उस के घर वालों ने टुल्लू का मोबाइल नंबर भी दे दिया. अरुण पाठक ने टुल्लू तक पहुंचने के लिए उस के पिता की उस से बात कराई.

बात से पहले ही मोबाइल फोन का स्पीकर औन करवा दिया गया था. उन्होंने लिसुरवा को हिदायत दे दी थी कि वह सामान्य ढंग से बात करे और टुल्लू को जरा भी अहसास न होने दे कि बात पुलिस की मौजूदगी में हो रही है. इंसपेक्टर अरुण पाठक की टुल्लू के पिता की उस से बातचीत कराने की तरकीब काम कर गई. उन्हें पता चल गया कि टुल्लू मुंबई में है और माया भी उसी के साथ है. टुल्लू से हुई बातचीत में अरुण पाठक को यह भी पता चला कि टुल्लू अपने पिता से मिलने और उन की आर्थिक मदद के लिए आना चाहता है. उस ने अपने पिता से कहा था कि 15 जुलाई को वह कर्वी बस अड्डे पर पहुंच जाएं.

अरुण पाठक ने लिसुरवा तथा उस के परिवार के सदस्यों को 15 जुलाई तक पुलिस की निगरानी में रहने का निर्देश दिया. उन के मोबाइल फोन भी इंसपेक्टर पाठक ने अपने कब्जे में ले लिए, जिस से वे लोग टुल्लू को सतर्क न कर सकें. इस के बाद इंसपेक्टर पाठक और उन की पुलिस टीम बेसब्री से 15 जुलाई का इंतजार करने लगे. 15 जुलाई की सुबह टुल्लू ने अपने भाई लल्लन के मोबाइल पर फोन किया. पुलिस ने अपनी निगरानी में उस की बात कराई. टुल्लू ने लल्लन को फोन पर बताया कि वह माया के साथ चित्रकूट रेलवे स्टेशन पर है और दोपहर एक बजे तक कर्वी बसअड्डे पर पहुंचेगा. पाठक ने लल्लन व उस के पिता लिसुरवा को साथ लिया और पुलिस टीम के साथ कर्वी बस अड्डे के आसपास पुलिस का जाल बिछा दिया.

पुलिस ने लल्लन व उस के पिता को बस अड्डे के पास अकेले छोड़ दिया. सादे कपड़ों में 2 पुलिस वाले दोनों के आसपास मंडराते रहे. करीब एक बजे कर्वी बस अड्डे के टिकट काउंटर के पास बेसब्री से बेटे का इंतजार कर रहे लिसुरवा के पास एक युवक व महिला पहुंचे. आगंतुक युवक ने जब लिसुरवा के पैर छुए तो इंसपेक्टर पाठक समझ गए कि वही टुल्लू है. नजरें गड़ाए बैठी पुलिस टीम ने उन लोगों को चारों ओर से घेर लिया. पूछताछ में पता चला कि युवक टुल्लू लोध उर्फ रज्जन राजपूत ही है और उस के साथ जो खूबसूरत सी महिला है, वह माया है. पुलिस टुल्लू और माया को उस के घर वालों के साथ थाना पहाड़ी ले आई. टुल्लू लोध और माया को हिरासत में लिए जाने की खबर उच्चाधिकारियों को भी मिल चुकी थी.

टुल्लू तथा मायादेवी से पुलिस अधीक्षक मनोज कुमार झा और क्षेत्राधिकारी शिवबचन सिंह के समक्ष पूछताछ की गई. दोनों से पूछताछ में शिवलोचन हत्याकांड की हैरान करने और दिल दहलाने वाली कहानी सामने आई. पूछताछ में यह बात साफ हो गई कि शिवलोचन के घर से जो नरकंकाल बरामद हुआ था, वह शिवलोचन का ही था. एक रात माया और टुल्लू ने उस की हत्या कर के लाश को घर में ही जमीन में गाड़ दिया था. लोहदा गांव में रहने वाला 27 वर्षीय टुल्लू लोध उर्फ रज्जन राजपूत मकानों में टाइल्स लगाने का काम करता था. उस के परिवार में मातापिता के अलावा एक भाई व दो बहनें थीं. बहनों की शादी हो चुकी थी. जबकि छोटा भाई लल्लन अभी कुंवारा था. कई साल पहले टुल्लू की दोस्ती गांव के ही शिवलोचन से हो गई थी.

दोनों ही शराब पीने के शौकीन थे. सो दोस्ती की शुरुआत भी शराब के ठेके से हुई. टुल्लू और शिवलोचन ने एक बार साथ बैठ कर शराब पी तो जल्द ही उन की दोस्ती पारिवारिक संबंधों में तब्दील हो गई. दोनों एकदूसरे के घर आनेजाने लगे. कई बार दोनों का खानापीना भी साथसाथ होता था. दरअसल, टुल्लू की शिवलोचन से गहरी दोस्ती की असली वजह उस की खूबसूरत और जवान पत्नी माया थी, जिसे वह भाभी कह कर बुलाता था. माया अल्हड़ और चंचल स्वभाव की औरत थी. टुल्लू को माया पहली ही नजर में भा गई थी. उस ने माया की नजरों में दिखाई देने वाली प्यास को पढ़ लिया था. टुल्लू का शिवलोचन के घर आनाजाना शुरू हुआ तो जल्दी ही यह सिलसिला शिवलोचन की अनुपस्थिति में भी चलने लगा.

एक तरफ माया की जवानी उफान मार रही थी, जबकि दूसरी ओर उस का पति शिवलोचन काफीकाफी दिनों तक घर से दूर रहता था. माया उम्र के उस दौर से गुजर रही थी जब औरत को हर रात मर्द के साथ की जरूरत होती है. टुल्लू ने पति से दूर रह रही और पुरुष संसर्ग के लिए तरसती माया के आंचल में अपने प्यार और हमदर्दी की बूंदें उडे़ली तो माया निहाल हो गई. जल्दी ही दोनों के बीच नाजायज रिश्ते बन गए. माया, टुल्लू के प्यार में ऐसी दीवानी हुई कि दोनों के बीच रोज शारीरिक संबंध बनने लगे. शिवलोचन काफीकाफी दिनों तक घर के बाहर रहता था. रोकटोक करने वाला कोई नहीं था.

लेदे कर घर में एक सास थी जो अकसर माया के पास आ कर रहने लगती थी. लेकिन टुल्लू से संबंध बनने के बाद माया ने सास चुनकी देवी से भी लड़ाईझगड़ा शुरू कर दिया था, फलस्वरूप सास उस के मकान पर न आ कर ज्यादातर अपने पैतृक घर में रहती थी. माया ने ऐसा इसलिए किया था ताकि टुल्लू रात में उस के पास बेरोकटोक आ जा सके. मूलरूप से ग्राम देवरी पंधी, जिला बिलासपुर छत्तीसगढ़ की रहने वाली माया की पहली शादी 13 साल पहले उस के मायके में ही एक युवक से हुई थी. लेकिन शादी के एक साल बाद ही पति ने गलत चालचलन का आरोप लगा कर उसे छोड़ दिया था. 2008 में शिवलोचन अपने एक परिचित के साथ किसी काम से माया के गांव देवरी पंधी गया था.

वहां बातोंबातों में किसी ने जब उस से पूछा कि उस ने शादी क्यों नहीं की तो शिवलोचन ने बता दिया कि अभी तक कोई अच्छी लड़की नहीं मिली. उस परिचित ने शिवलोचन से कहा कि अगर वह कुछ रुपए खर्च करे तो वह अपने गांव की एक तलाकशुदा लड़की से उस की शादी करा देगा. शिवलोचन की उम्र बढ़ रही थी. उसे भी एक जीवनसाथी की जरूरत थी. वह पैसा खर्चने को तैयार हो गया तो उस परिचित ने शिवलोचन को माया के घर ले जा कर उस के परिवार व माया से मिलवा दिया. शिवलोचन को माया पसंद आ गई. माया के घर और परिवार की माली हालत ठीक नहीं थी.

लिहाजा बिचौलिया बने परिचित ने माया के पिता को कुछ रकम दे कर जब शिवलोचन का माया से विवाह करने की बात चलाई तो  वह तुरंत राजी हो गया. इस के बाद चट मंगनी पट विवाह की रस्म अदा कर के शिवलोचन माया को पत्नी बना कर अपने घर ले आया. वक्त हंसीखुशी गुजरने लगा. माया से उसे 2 बेटे हुए प्रमांशु (6) और 8 वर्षीय हिमांशु. शिवलोचन काफीकाफी दिनों तक परिवार से दूर रह कर इसलिए जी तोड़ मेहनत करता था ताकि पत्नी व बच्चों का भविष्य संवार सके. उसे क्या पता था कि उस की गैरहाजिरी में माया उसी के दोस्त के साथ रंगरेलियां मनाती है.

बात पिछले साल दीवाली के बाद तब बिगड़ी, जब नवंबर में शिवलोचन छुट्टी ले कर घर आया. घर में उस के हाथ एक ऐसा फोटो लगा, जिसे देख कर उस का माथा ठनक गया. दरअसल, फोटो माया और टुल्लू का था, जिस में दोनों एक साथ थे. शिवलोचन ने उस फोटो को देखने के बाद पहली बार माया पर हाथ उठाया. उसी शाम जब टुल्लू उस के घर आया तो उस ने उस की भी पिटाई कर दी.  बात इतनी बढ़ी कि मामला थाने तक जा पहुंचा. गांव के बड़े बुजुर्ग और समझदार लोग भी थाने पहुंचे. दरअसल, काफी दिनों से लोग शिवलोचन से शिकायत कर रहे थे कि उस की गैरमौजूदगी में टुल्लू उस के घर आताजाता है और वह अकसर रात को भी उस के घर में ही रहता है. शिवलोचन ने जब यह बात माया से पूछी तो उस ने ऐसे आरोपों को गलत बताया.

लेकिन जब शिवलोचन ने दोनों की एक साथ फोटो देखी तो वह समझ गया कि गांव के लोग जो कहते हैं, वह गलत नहीं है. बहरहाल, उस समय पुलिस ने बड़े बुजुर्गों के बीच बचाव के बाद शिवलोचन और टुल्लू में समझौता करा दिया. साथ ही टुल्लू को माया से न मिलने और उस के घर न जाने की हिदायत भी दी. लेकिन इस के बावजूद टुल्लू और माया का मिलना बदस्तूर जारी रहा. काम के सिलसिले में शिवलोचन को अकसर घर से बाहर रहना पड़ता था जबकि माया को टुल्लू के संग साथ की जो लत लग चुकी थी, उस ने दोनों को एकदूसरे से दूर नहीं होने दिया. दूसरी ओर शिवलोचन ने माया और टुल्लू की निगरानी शुरू कर दी थी. उस ने गांव के अपने एक दो हम उम्र दोस्तों से कह दिया था कि वे माया और टुल्लू पर नजर रखें.

जब उसे पता चला कि दोनों के बीच मिलनाजुलना अब भी बदस्तूर जारी है तो उस ने माया से मिल कर इस समस्या को खत्म करने का फैसला किया. इस के लिए वह 4 नवंबर को अपने घर आया. उस ने माया और टुल्लू के मेलजोल की बात को ले कर पत्नी की पिटाई कर दी. शाम को वह घर में ही शराब पी कर सो गया. माया उसी दिन से शिवलोचन ने नफरत करने लगी थी, जब उस ने पहली बार दोनों का फोटो देखने के बाद तमाशा किया था और उस की पिटाई भी कर दी थी. तभी से गांव भर की औरतें माया को बदचलन औरत की नजर से देखने लगी थी. उस दिन शिवलोचन की मार ने आग में घी का काम किया. उस ने शिवलोचन के शराब पी कर गहरी नींद में सोते ही टुल्लू को फोन कर के अपने घर बुला लिया.

उस ने टुल्लू से कहा कि अगर वह उसे सचमुच प्यार करता है तो आज रात ही शिवलोचन से उस के अपमान का बदला लेने के लिए उसे जान से मार दे. टुल्लू तो माया का दीवाना था. उस ने सोचा कि शिवलोचन मर जाएगा तो माया सदा के लिए उस की हो जाएगी. यही सोच कर उस ने घर में पड़ी लाठी से सोते हुए शिवलोचन के सिर पर एक के बाद एक कई प्रहार किए, जिस से वह चारपाई पर ही ढेर हो गया. इस काम में माया ने भी उस का साथ दिया. इस के बावजूद माया इत्मीनान कर लेना चाहती थी कि शिवलोचन मरा है या नहीं. उस ने टुल्लू के साथ मिल कर कमरे में पड़ी जूट की रस्सी का फंदा बनाया और शिवलोचन के गले में डाल कर काफी देर तक खींचा. शिवलोचन के मरने के बाद समस्या थी लाश को ठिकाने लगाने की. क्योंकि लाश को घर से बाहर ले जाने से पकडे़ जाने का डर था.

माया ने सुझाव दिया कि शिवलोचन के शव को कमरे में ही जमीन खोद कर गाड़ दिया जाए. इस के बाद उन्होंने ऐसा ही किया. टुल्लू ने फावड़े से कमरे के एक हिस्से के कच्चे फर्श को 5 फुट गहरा खोदा और शिवलोचन के गले में बंधी रस्सी समेत लाश को गड्ढे में धकेल दिया. टुल्लू ने खून से सने कपड़े लाश के ऊपर ही डाल दिए. लाश को गड्ढे में डालने के बाद माया और टुल्लू ने उस पर मिट्टी डाल दी. रात में ही माया ने उस जगह को अच्छी तरह से लीप दिया, ताकि किसी को गड्ढा खोदे जाने की बात का पता न चल सके. उस रात शिवलोचन की हत्या करने से पहले माया और टुल्लू ने कुछ खायापीया नहीं था. लिहाजा लाश को घर में ही दफनाने के बाद माया ने चूल्हा जला कर खाना बनाया. जिस लाठी से शिवलोचन की हत्या की गई थी, माया ने उसे चूल्हे में जला कर रोटियां सेंकी.

इस के बाद दोनों ने चारपाई उसी जगह बिछाई, जहां शिवलोचन के शव को दफनाया था. उस रात शिवलोचन ने जिस बोतल से शराब पी थी, उस में कुछ शराब बची थी. टुल्लू और माया ने बची हुई शराब बराबरबराबर पी, फिर दोनों ने साथसाथ खाना खाया. खाना खाने के बाद दोनों लाश दफनाने वाली जगह पर बिछी चारपाई पर सो गए. सोने से पहले दोनों ने एकदूसरे के जिस्म की प्यास बुझा कर शिवलोचन के मरने का जश्न मनाया. शिवलोचन की हत्या को अंजाम देने के बाद माया करीब 15 दिन तक उसी घर में रही. इस दौरान टुल्लू हर रात उस के पास आता. दोनों एक साथ खाना खाते और उसी चारपाई पर रंगरेलियां मनाते, जो उन्होंने शिवलोचन की लाश दफनाने के बाद फर्श की जमीन लीप कर उस के ऊपर डाली थी.

शिवलोचन की हत्या के बाद जब गांव के लोग या माया की सास चुनकी देवी माया से शिवलोचन के बारे में पूछते तो वह कहती कि कर्वी में काम चल रहा है, वहीं रहते हैं. करीब 15 दिन बाद जब घर का सारा राशन खत्म हो गया तो माया के पास वहां रहने की कोई वजह नहीं बची. इस दौरान माया और टुल्लू ने आपस में तय कर लिया था कि उन्हें आगे की जिंदगी किस तरह बितानी है. इसलिए 15 दिन बाद माया अपने दोनों बच्चों को ले कर मायके चली गई. जाने से पहले उस ने अपनी सास से खूब लड़ाई की और ताना दिया कि उस का बेटा परिवार का ख्याल नहीं रखता. घर में राशन तक नहीं है इसलिए अपनी मां के घर जा रही हूं. जब शिवलोचन घर आए तो मुझे लेने आ जाएं.

उसी दिन माया ने घर की चाभी भी अपनी सास को दे दी थी. दरअसल, वह अच्छी तरह से जानती थी कि सास चुनकी देवी ढाबे वाले अपने पैतृक घर को छोड़ कर उस के घर में रहने के लिए नहीं जाएगी. वजह यह थी कि एक तो वह गांव में काफी पीछे और सुनसान जगह पर था, दूसरे वहां उस की देखभाल करने वाला भी कोई नहीं था. माया जानती थी कि शिवलोचन तो अब किसी को मिलेगा नहीं, उस का शव भी गल जाएगा. समय के साथ शिवलोचन की मौत भी रहस्यमय गुमशुदगी बन कर रह जाएगी. माया के गांव से जाने के एक 2 दिन बाद टुल्लू भी मुंबई चला गया था और वहां बिल्डिंगों में टाइल्स लगाने का काम करने लगा था.

अपनी ससुराल लोहदा से जाने के बाद माया मई के महीने तक अपने मातापिता के पास रही. उस ने परिवार वालों को बताया कि बिना बताए शिवलोचन कहीं चला गया है. अपने गांव पहुंच कर माया ने अपना मोबाइल नंबर भी बदल दिया था. शिवलोचन के मोबाइल को उस ने उस की हत्या के बाद ही तोड़ कर फेंक दिया था. उस का नया नंबर सिर्फ टुल्लू के पास था, जिस पर दोनों की रोज बातें होती थीं. टुल्लू अकसर अपने गांव में फोन कर के शिवलोचन को ले कर हो रही गतिविधियों की जानकारी लेता रहता था. जब कई महीने बीत गए और माया को लगा कि अब मामला ठंडा हो गया है तो उस ने मई महीने में अपने पिता से कहा कि वह पति के बारे में जानकारी करने के लिए चित्रकूट जा रही है, जल्दी ही लौट आएगी.

अपने बच्चों को छोड़ कर माया कर्वी आ गई, जहां पहले से ही टुल्लू उसे लेने के लिए आया हुआ था. वहां से वे दोनों मुंबई चले गए और पतिपत्नी की तरह साथ रहने लगे. माया की योजना थी कि एक दो महीने का वक्त और गुजरने के बाद अपने दोनों बच्चों को भी ले आएगी. लेकिन उस से पहले ही माया व टुल्लू पुलिस के हत्थे चढ़ गए. पुलिस ने माया व टुल्लू से पूछताछ के बाद वह फावड़ा भी बरामद कर लिया, जिस से शिवलोचन की हत्या के बाद उस का शव दफनाने के लिए गड्ढा खोदा था. चूंकि महीनों गुजर जाने के बाद भी किसी को कोई शक नहीं हुआ था, इसलिए माया और टुल्लू को उम्मीद थी कि अब शिवलोचन की हत्या का भेद नहीं खुल पाएगा.

दरअसल शिवलोचन के घर वालों और गांव के लोगों से पूछताछ के बाद जब इंसपेक्टर अरुण पाठक को पता चला था कि माया और गांव के टुल्लू के बीच लंबे अर्से से न केवल अवैध संबंध थे बल्कि इन्हीं संबंधों के चलते शिवलोचन और टुल्लू में मारपीट भी हुई थी, तभी पाठक को शक हो गया था कि हो न हो शिवलोचन की हत्या में माया व टुल्लू का ही हाथ हो. क्योंकि माया तो गांव से चली ही गई थी, कुछ दिन बाद टुल्लू भी गांव से गायब हो गया था. इंसपेक्टर अरुण पाठक ने माया व टुल्लू से पूछताछ के बाद दोनों को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया. इसी दौरान पुलिस को शिवलोचन की डीएनए रिपोर्ट भी मिल गई, जिस से स्पष्ट हो गया कि शिवलोचन के घर में मिला नरकंकाल उसी का था.

— कथा अभियुक्तों से पूछताछ, परिजनों द्वारा पुलिस को दी गई जानकारी पर आधारित

 

300 करोड़ के लिए अफसर बहू बनी कातिल

उस समय सुबह के करीब 11 बज रहे थे, तारीख थी 22 मई, 2024. डा. मनीष पुत्तेवार अपने हौस्पिटल में वार्ड का दौरा कर रहे थे, तभी उन के फोन की घंटी बजी. उन्होंने फोन में देखा तो काल चंद्रपुर में रहने वाले उन के बड़े भाई डा. हेमंत की थी.

”हां बड़े भैया, आज सुबह सुबह कैसे फोन किया?’’ डा. मनीष ने काल रिसीव करते हुए पूछा.

”मनीष एक दुखद सूचना है. मुझे अभीअभी अजनी थाने से फोन आया है कि पापा का बालाजी नगर में एक कार से ऐक्सीडेंट हो गया है. मैं नागपुर के लिए निकल रहा हंू. तुम भी सीधे अजनी थाने पर पहुंचो,’’ डा. मनीष के बड़े भाई हेमंत ने रोते हुए कहा.

”भैया, आप रो क्यों रहे हैं? मैं अभी वहां पर जा कर देखता हूं. अभी थोड़ी देर पहले ही तो पापा यहां पर मम्मी से मिल कर गए हैं. आप बिलकुल भी चिंता मत करो, मैं उन्हें अभी अपने हौस्पिटल ले कर आता हंू.’’ डा. मनीष ने कहा.

”भाई, मनीष हमारे पापा अब नहीं रहे. मुझे अभी अभी थाने से यही खबर मिली है. भाई, मैं आप मम्मी के बारे में, पापा से उन की तबीयत के बारे में पूछ रहा था, तभी दूसरी ओर से मुझे पुलिस द्वारा यह दुखद समाचार मिला है. कोई कार वाला पापा को कुचल कर भाग गया.’’ कह कर हेमंत फिर से फूटफूट कर रोने लगे.

”भाईसाहब, मुझे तो कभी ऐसी सपने में भी उम्मीद नहीं थी कि हमारे पापा हम सब को ऐसे छोड़ कर चले जाएंगे. आप फिक्र मत कीजिए, अपना ध्यान रखिएगा. मैं तुरंत अजनी थाने पहुंच रहा हंू,’’ कहते हुए मनीष ने काल डिसकनेक्ट कर दी.

डा. मनीष पी. पुत्तेवार अजनी पुलिस स्टेशन पहुंचे तो अब तक पुलिस राहगीरों की मदद से पुरुषोत्तम को सरकारी अस्पताल ले गई थी, परंतु चोट इतनी घातक थी कि अस्पताल ले जाते हुए उन्होंने रास्ते में ही दम तोड़ दिया था. अजनी थाने के सीनियर इंसपेक्टर अशोक भंडारे डा. मनीष को अपने साथ ले कर घटनास्थल पर भी गए.

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    मृतक पुरुषोत्तम पुत्तेवार

वहां सड़क पर चारों तरफ खून ही खून बिखरा हुआ था. डा. मनीष पुत्तेवार की तहरीर पर अजनी थाने में भादंवि की धारा 304 (ए) के तहत ऐक्सीडेंट का मामला दर्ज कर लिया गया और अज्ञात हत्यारे और अज्ञात कार की तलाश में पुलिस जुट गई.

उधर पुलिस ने लाश का पंचनामा बना कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया और पोस्टमार्टम के बाद पुरुषोत्तम के शव को उन के परिजनों को सौंप दिया. 23 मई, 2024 को उन का अंतिम संस्कार भी कर दिया.

बड़े बेटे को क्यों आई षडयंत्र की बू

मृतक पुरुषोत्तम पुत्तेवार (82 वर्ष), नागपुर के शुभ नगर निवासी थे. उन के पास करोड़ों की प्रौपर्टी थी. उन के परिवार में पत्नी शकुंतला के अलावा 2 बेटे हेमंत पुत्तेवार, मनीष पुत्तेवार व एक बेटी योगिता थी. इन दिनों पुरुषोत्तम पुत्तेवार की पत्नी शकुंतला का औपरेशन हुआ था, जो एलेक्सिस मल्टीस्पेशलिटी हौस्पिटल, मनकापुर में भरती थीं. यह हौस्पिटल उन के छोटे बेटे डा. मनीष पुत्तेवार का था.

पुरुषोत्तम सुबह शाम अपनी पत्नी शकुंतला के लिए खाना खुद ही ले जाते थे. हौस्पिटल उन की बेटी योगिता के घर के नजदीक था, इसलिए वह अपनी बेटी योगिता के घर पर ही रह रहे थे.

22 मई, 2024 को भी सुबह पुरुषोत्तम अपनी पत्नी को नाश्ता दे कर वापस लौट रहे थे, तभी पीछे से तेज रफ्तार कार ने उन्हें टक्कर मार दी थी, जिस के कारण घटनास्थल पर ही उन की दर्दनाक मौत हो गई थी.

इन दिनों पुरुषोत्तम पुत्तेवार के बड़े बेटे डा. हेमंत भी चंद्रपुर से सपरिवार नागपुर आ गए थे. उन का चंद्रपुर में अपना निजी क्लीनिक था, वह जनरल फिजिशियन थे. मृतक पुरुषोत्तम पुत्तेवार की शोकसभा का तीसरा दिन था, तभी वहां पर डा. हेमंत का बचपन का दोस्त पंकज पंवार आ गया.

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            डा. मनीष पुत्तेवार                                                                      डा. हेमंत पुत्तेवार 

दोनों काफी देर तक बातचीत करते रहे. दोनों बचपन से जवानी तक एक साथ खेल कर पढ़ कर बड़े हुए थे. बाद में फिर हेमंत मैडिकल लाइन में चले गए और पंकज ने एमबीए करने के बाद अपनी फैक्ट्री संभाल ली थी.

”यार हेमंत, मुझे तुम काफी बुझेबुझे और परेशान से लग रहे हो. तुम्हारे दिल के भीतर जरूर कुछ न कुछ बात है. देखो, मैं तुम्हारा बचपन का दोस्त हूं. तुम किसी भी बात को काफी अधिक समय दिल में रख लेते हो. मुझे खुल कर बताओ, शायद हम दोनों मिलबैठ कर कुछ समाधान निकाल सकें.’’ पंकज ने यह बात कही और दोनों फिर एक अलग कमरे में बैठ गए.

”यार पंकज, मुझे लग रहा है कि पापा का किसी ने कत्ल किया है, पर वारदात ऐसी दिखाई गई है कि यह ऐक्सीडेंट का केस लगे.’’ यह कहते हुए डा. हेमंत फूटफूट कर रोने लगे थे.

”देख भाई हेमंत, मेरे साथ तू अभी चल, मेरे एक अच्छे मित्र हैं जो डीसीपी हैं. उन का नाम निमिष गोयल है. मैं तुझे उन के पास ले कर चलता हूं.’’ कहते हुए पंकज ने डीसीपी (क्राइम) निमिष गोयल को फोन कर दिया.

DCP NIMISH GOYAL

     डीसीपी निमिष गोयल

थोड़ी ही देर के बाद पंकज अपने दोस्त हेमंत को ले कर डीसीपी निमिष गोयल के औफिस में पहुंच चुका था. पंकज ने कुछ बातें तो फोन पर ही निमिष गोयल को बता दी थीं. बाकी सारी जानकारी भी उस ने औफिस पहुंच कर निमिष गोयल को दे दी थी. डीसीपी निमिष गोयल पंकज के एक अच्छे मित्र थे, इसलिए उन्होंने सारी बातें तसल्ली से सुनीं.

”डा. हेमंत, आप को ऐसा क्यों लगता है कि आप के पापाजी का किसी ने मर्डर किया है. आप को किसी पर संदेह है?’’ डीसीपी ने सीधा प्रश्न हेमंत से किया.

”डीसीपी साहब, मेरे पापाजी का इस हादसे से पहले भी 2 बार खतरनाक ऐक्सीडेंट हुआ है. उस समय तो मेरी समझ में कुछ नहीं आया, मगर मुझे उन दोनों हमलों में भी किसी खतरनाक षडयंत्र की बू आ रही थी. इस बार तो मुझे पूरा यकीन है कि किसी गहरी साजिश के तहत मेरे पापाजी का प्रीप्लांड मर्डर किया गया है.’’

इस के बाद डा. हेमंत ने कई अन्य जानकारियां भी डीसीपी (क्राइम) निमिष गोयल से साझा कीं, ”डा. हेमंत, आप अब बेफिक्र हो कर यहां से जा सकते हैं. मैं इस बारे में सारी जांचपड़ताल करूंगा और मैं आप को विश्वास दिलाता हूं कि आप को पूरापूरा न्याय अवश्य मिलेगा.’’ डीसीपी (क्राइम) निमिष गोयल ने डा. हेमंत को आश्वस्त करते हुए अपने औफिस से विदा करते हुए कहा.

पुलिस ने क्यों समझा इसे सामान्य दुर्घटना

डीसीपी (क्राइम) निमिष गोयल ने अजनी थाने से संपर्क कर के जब जानकारी ली तो मामला संदिग्ध लगा. उन्होंने यह केस फिर नागपुर के कमिश्नर रवींद्र सिंघल को बताया तो मामले की गंभीरता को देखते हुए नागपुर कमिश्नर ने यह केस नागपुर क्राइम ब्रांच यूनिट- 4 को विस्तृत जांच के लिए सौंप दिया.

Comissioner RAVINDER SINGAL

        कमिश्नर रवींद्र सिंघल

22 मई की सुबह ये वारदात तब हुई थी, जब 82 साल के बुजुर्ग पुरुषोत्तम पुत्तेवार अस्पताल से पैदल ही अपनी बेटी के घर लौट रहे थे. अस्पताल में उन की पत्नी का औपरेशन होने के कारण वह वहां पर भरती थीं.

पिछले कुछ दिनों से पुरुषोत्तम पुत्तेवार का यही रुटीन चल रहा था, लेकिन पुरुषोतम अपनी बेटी घर पहुंच पाते, तभी नागपुर के बालाजी नगर इलाके में एक तेज रफ्तार कार ने उन्हें पीछे से टक्कर मार दी और कार उन्हें घसीटते हुए काफी दूर तक ले गई थी, जिस के कारण उन की जान चली गई. लेकिन कार चालक वहां से तुरंत फरार हो गया था.

पहले तो सभी को यह मामला ऐक्सीडेंट का लगा था. इसीलिए पुलिस ने भी आईपीसी की धारा 304-ए के तहत ऐक्सीडेंट का केस दर्ज किया था. उस के बाद अजनी पुलिस कार की नंबर प्लेट, सीसीटीवी फुटेज व आसपास के प्रत्यक्षदर्शियों के माध्यम से कार ड्राइवर नीरज ईश्वर निमजे तक पहुंची और उसे गिरफ्तार कर लिया.

पूछताछ में ड्राइवर नीरज ने इसे गलती से हुआ ऐक्सीडेंट बताया और बाद में पुलिस ने नीरज निमजे को जमानत पर रिहा भी कर दिया.

सीसीटीवी फुटेज और प्रत्यक्षदर्शियों के बयान के बाद जब आरोपी ड्राइवर नीरज निमजे को गिरफ्तार करने के बाद जब जमानत पर छोड़ दिया गया तो उस के तुरंत बाद नागपुर शहर में इस सनसनीखेज रोड एक्सीडेंट को ले कर तरह तरह की बातें होने लगी थीं. लोग पुलिस की कार्यप्रणाली को ले कर प्रश्नचिह्न लगाने लगे थे.

मृतक पुरुषोत्तम के बेटे और अन्य रिश्तेदारों व परिचितों के माध्यम से पुलिस के उच्च अधिकारियों को कत्ल की साजिश से अवगत कराया गया. चूंकि मृतक पुरुषोत्तम पुत्तेवार नागपुर में करोड़ों की प्रौपर्टी के मालिक भी थे और उन का इन प्रौपर्टीज को ले कर अपने रिश्तेदारों से कई सालों से विवाद भी चला आ रहा था.

उन के परिचित व रिश्तेदारों को लगता था कि शायद इस ऐक्सीडेंट के पीछे कोई गहरी साजिश छिपी हो सकती है. यह बात पुलिस के कानों तक भी पहुंच चुकी थी.

खुद मृतक पुरुषोत्तम के कुछ रिश्तेदारों ने इस सनसनीखेज केस को ले कर नागपुर के पुलिस कमिश्नर से व्यक्तिगत तौर पर मुलाकात भी की थी, जिस के बाद मामला संदिग्ध पाए जाने पर पुलिस कमिश्नर डा. रवींद्र सिंघल ने इस मामले की जांच अजनी पुलिस से ले कर क्राइम ब्रांच के हवाले कर दी थी और फिर यहीं से मामले में ऐसा चौंकाने वाला ट्विस्ट सामने आया, जिस ने पूरे नागपुर शहर व महाराष्ट्र को ही नहीं, बल्कि समूचे देश को चौंका कर रख दिया.

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 आरोपी  नीरज ईश्वर निमजे

शराब पार्टियों ने कैसे खोला मर्डर का राज

नीरज ईश्वर निमजे जो एक छोटामोटा अपराधी था, जिस ने कभी भी अपने दोस्तों को एक पार्टी तक नहीं दी थी. उस ने हमेशा दोस्तों, परिचतों और लोगों से पैसे उधार लिए मगर उस ने उधार कभी चुकाया तक नहीं था. अचानक जब उस ने अपने दोस्तों को पार्टियां देनी शुरू कर दीं, महंगी महंगी ब्रांड की शराब दोस्तों को पेश की तो इस वजह से लोगों को उस पर शक हुआ.

मुखबिरों के माध्यम से यह खबर उड़ते उड़ते पुलिस के कानों भी जा पहुंची थी कि नीरज निमजे जो एक चिल्लर अपराधी है, उस के पास अचानक इतना सारा पैसा आखिर कहां से आ गया? कुबेर का खजाना उसे अचानक कब और कैसे मिल गया?

बुजुर्ग पुरुषोत्तम पुत्तेवार की बहू अर्चना निकली मास्टरमाइंड

पुलिस की क्राइम ब्रांच ने जब इन रहस्यों को खंगालना शुरू किया और नीरज निमजे को एक बार फिर गिरफ्तार कर सख्ती से पूछताछ की तो उस ने कुबूल किया कि पुरुषोत्तम पुत्तेवार की मौत कोई हादसा नहीं थी, बल्कि एक सोचीसमझी साजिश के चलते इस हत्या को अंजाम दिया गया था.

नागपुर के रहने वाले एक बुजुर्ग शख्स के कत्ल की साजिश इतनी भयानक होगी, यह किसी ने कभी सोचा तक नहीं था. सीसीटीवी कैमरे में कैद हुई वे तसवीरें बहुत साफ तो नहीं थीं, लेकिन इन्हें देख कर फौरी तौर पर इतना तो कहा ही जा सकता था कि यह मामला महज एक ऐक्सीडेंट का नहीं था.

22 मई, 2024 की सुबह हुई इस वारदात की तसवीरों को देख कर शुरू में नागपुर पुलिस को भी कुछ ऐसा ही लगा था. क्योंकि सीसीटीवी की उन फुटेजों में जो दिखा था, वो असल सच नहीं था और जो हकीकत थी वह उन तसवीरों में दिखी नहीं.

पुलिस की पूरी जांच में पूरा केस हिट एंड रन का नहीं, बल्कि इरादतन की गई हत्या की एक बड़ी साजिश का निकला, पुलिस के मुताबिक इस खूनी साजिश की पूरी स्क्रिप्ट लिखने वाली मास्टरमाइंड मृतक की बहू अर्चना निकली, जिस ने करीब 300 करोड़ रुपए की संपत्ति के लालच में अपने ससुर के मर्डर का प्लान बनाया था.

पुरुषोत्तम पुत्तेवार के कत्ल के मास्टरमाइंड के तौर पर जिस महिला का नाम सामने आया, वह मृतक की बहू होने के साथसाथ महाराष्ट्र के ही गढ़चिरौली और चंद्रपुर के टाउन प्लानिंग डिपार्टमेंट की वर्तमान में असिस्टेंट डायरेक्टर है, यानी कि सरकारी महकमे की वह क्लास वन औफिसर भी है. जबकि इस साजिश में अर्चना का साथ उस के भाई प्रशांत पार्लेवार ने दिया, जोकि नागपुर के ही माइक्रो स्माल ऐंड मीडियम इंटरप्राइजेज के डायरेक्टर है.

2 क्लास वन अफसरों ने कैसे रची खूनी खौफनाक साजिश

प्रशांत अर्चना पुत्तेवार का सगा भाई है. असल में पुलिस की गिरफ्त में आए कातिलों ने कुबूल किया था कि पुरुषोत्तम पुत्तेवार का मर्डर करने के लिए अर्चना ने ही उन्हें पूरे एक करोड़ रुपए की सुपारी दी थी.

जब पुलिस ने इस खुलासे के बाद अर्चना को गिरफ्तार कर उस से विस्तृत पूछताछ की तो मास्टरमाइंड अर्चना के पीछे एक और मास्टरमाइंड प्रशांत पार्लेवार का नाम सामने आया. यानी एक ऐसा शख्स जो एक बड़ा सरकारी अफसर तो है ही, जो सत्ताधारी दल के नेताओं का भी बेहद करीबी माना जाता है.

अपने ही ससुर की हत्या की सुपारी देने वाली क्लास वन अधिकारी अर्चना ने अपने ससुर को अपने पिता के खिलाफ गवाही देने से रोकने और ससुर की संपत्ति हड़पने के लिए ससुर पुरुषोत्तम पुत्तेवार का मर्डर कराया था.

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मृतक की बहू आरोपी अर्चना

अर्चना के परिवार में 2 भाई एक बहन थे. बड़ा भाई प्रशांत पार्लेवार, उस से छोटा प्रवीण पार्लेवार व अर्चना, जबकि पुरुषोत्तम पुत्तेवार के परिवार में पत्नी शकुंतला, बेटे हेमंत, मनीष व एक बेटी योगिता थी. इन में अर्चना की शादी डा. मनीष पुत्तेवार से व अर्चना के भाई प्रवीण की शादी पुरुषोत्तम पुत्तेवार की बेटी योगिता के साथ हुई थी.

पुलिस को दिए गए अपने बयान में अर्चना ने कहा कि उस के भाई प्रवीण की मौत अकस्मात हो गई थी. प्रवीण की मृत्यु के बाद योगिता अपने पिता पुरुषोत्तम पुत्तेवार की संपत्ति में हिस्सा चाहती थी. इस के लिए योगिता ने कोर्ट में केस भी दाखिल किया था. इस मामले में अर्चना के ससुर पुरुषोत्तम पुत्तेवार गवाह थे.

वहीं दूसरी ओर अर्चना के पिता अपनी संपत्ति अपने दूसरे बेटे प्रशांत पार्लेवार और बेटी अर्चना को देना चाहते थे. अर्चना अपने पिता की ओर से योगिता को बेदखल तो करना ही चाहती थी, साथ ही वह यह भी चाहती थी कि योगिता को उस के पिता पुरुषोत्तम पुत्तेवार की संपत्ति से भी कुछ न मिले.

इस मामले में अर्चना ने अपने ससुर पुरुषोत्तम पुत्तेवार को कई बार गवाही न देने के लिए कहा भी था, लेकिन जब पुरुषोत्तम ने इंकार कर दिया तो फिर अर्चना ने अपने भाई प्रशांत पार्लेवार के साथ मिल कर ससुर को हमेशा हमेशा के लिए रास्ते से हटाने की योजना बना डाली.

अर्चना ने अपने बयान में पुलिस को बताया कि उस के पिता के पास भी करोड़ों की संपत्ति है. इस में नागपुर के ऊंटखाना इलाके में 6 हजार वर्ग फीट जमीन शामिल है. अर्चना और प्रशांत इसी जमीन पर माल बनाना चाहते थे. अगर योगिता इस जमीन में अपना हिस्सा ले लेती तो माल बनाने के लिए बहुत कम जमीन बच रही थी.

अपने ससुर पुरुषोत्तम पुत्तेवार की हत्या की साजिश अर्चना ने काफी योजनाबद्ध ढंग से रची थी. इस खूनी साजिश में उस ने अपने पति डा. मनीष पुत्तेवार के ड्राइवर सार्थक साहेबराव बागड़े, अपने भाई प्रशांत पार्लेवार और अपनी पीए पायल नागेश्वर को भी शामिल किया था. अर्चना ने इन को हत्या करने के लिए एक करोड़ रुपए का लालच भी दिया.

ड्राइवर सार्थक ने अपने प्लान में अपने 3 साथियों नीरज निमजे, सचिन धार्मिक और संकेत घोड़मारे को शामिल किया था. अर्चना ने जिन लोगों को अपने ससुर की सुपारी दी थी, उन्हें शुरुआत में 17 लाख रुपए और कुछ गोल्ड ज्वैलरी एडवांस में दी थी. बाकी पैसे काम होने पर देने की बात कही गई थी.

इस मामले में बहू अर्चना ने एक लाख 76 हजार में एक पुरानी आई20 कार खरीदी. इसी कार से टक्कर मारने के बाद पुरुषोत्तम पुत्तेवार की मौके पर ही मौत हो गई थी.

खास बात तो यह थी कि बहू ने अपने ससुर को मरवाने की एक ही महीने में 3 बार कोशिश की थी. 2 बार तो पुरुषोत्तम बच गए, मगर तीसरी बार वह उन का शिकार बन गए.

नागपुर के पुलिस कमिश्नर रवींद्र सिंघल ने मीडिया से बातचीत करते हुए बताया, ”पुरुषोत्तम पुत्तेवार को मारने के 2 अन्य प्रयास 8 मई, 2024 और 16 मई, 2024 को किए गए थे. 8 मई को सचिन धार्मिक ने उन्हें कार से कुचलने की कोशिश की थी, जबकि 16 मई को सचिन धार्मिक और नीरज निमजे ने पुरुषोत्तम के सिर पर लोहे की रौड से वार किया और फिर स्कूटर से भाग गए.

”चूंकि उन्हें ज्यादा चोटें नहीं आई थीं, इसलिए उन के बेटे डा. मनीष ने इसे दुर्घटना मानते हुए पुलिस में कोई शिकायत दर्ज नहीं कराई थी.’’

इस संबंध में डीसीपी निमिष गोयल ने कहा, ”सीसीटीवी फुटेज से हमें पता चला कि यह महज दुर्घटना नहीं थी, क्योंकि पुरुषोत्तम सड़क के एकदम किनारे पर चल रहे थे और ड्राइवर ने जानबूझ कर उन्हें कार से कुचल कर नीचे गिरा दिया. साथ ही उन्हें काफी दूर तक घसीटा भी गया ताकि उन्हें गंभीर चोटें लगें और बचने की कोई उम्मीद न रहे.’’

डीसीपी ने आगे बताया, ”जांच के दौरान हमें पता चला कि एक एक्टिवा स्कूटी लगातार पुरुषोत्तम पुत्तेवार का पीछा कर रही थी. एक्टिवा भी घटनास्थल पर मिली थी. और दुर्घटना के तुरंत बाद एक्टिवा पर सवार 2 लोग वहां से भाग गए थे.

इस के आधार पर फिर से जांच की गई तब नीरज निमजे ने अपने साथी सचिन धार्मिक की भूमिका का खुलासा किया. इस के बाद भारतीय दंड संहिता और मोटर वाहन अधिनियम की हत्या, साजिश और सबूत नष्ट करने की संबंधित धाराओं के तहत प्राथमिकी दर्ज की गई, फिर नीरज निमजे और सचिन धार्मिक को 4 जून, 2024 को गिरफ्तार कर लिया गया.

सचिन धार्मिक की काल डिटेल्स से पता चला कि वह लगातार अर्चना के संपर्क में था. उस के बाद जब गिरफ्तारी के बाद उस से पुलिस द्वारा कड़ी पूछताछ की गई तो उस ने अपना अपराध कुबूल कर लिया और फिर उस ने ड्राइवर सार्थक बागड़े की भूमिका का भी खुलासा कर दिया.

पुलिस ने बताया कि अर्चना ने पुलिस को गुमराह करने के लिए काफी कोशिशें की थीं और यह दावा भी किया था कि उस ने 6 महीने पहले सार्थक बागड़े को नौकरी से निकाल दिया था. इसलिए उस ने हमारे परिवार से बदला लेने के लिए यह अपराध बदले की भावना से किया था.

हालांकि पुलिस जांच में यह तथ्य सामने आया कि सार्थक बागड़े ने 20 मई, 2024 तक उन के साथ काम किया था और जिस के बाद अर्चना और सार्थक बागड़े की नागपुर पुलिस द्वारा 6 जून और 10 जून, 2024 को गिरफ्तार कर लिया गया था.

बहन द्वारा रची गई कत्ल की साजिश में भाई कैसे बना मददगार

इस कत्ल की मास्टरमाइंड अर्चना पत्नी डा. मनीष पुत्तेवार ने पहले अपने ड्राइवर सार्थक बागड़े को इस काम के लिए राजी किया, उसे पूरे एक करोड़ रुपए की सुपारी का लालच दिया. सार्थक बागड़े के साथसाथ नीरज निमजे, सचिन धार्मिक और संकेत घोड़मारे से विस्तृत बातचीत की गई, जिन्होंने पुरुषोत्तम का कत्ल करने के लिए हामी भर दी.

सचिन धार्मिक को एक बीयर बार लाइसेंस का लालच भी दिया गया. अर्चना ने ये काम पूरा कर देने पर अपने भाई एमएसएमई के डायरेक्टर प्रशांत पार्लेवार से लाइसेंस दिलाने में मदद करने का वादा किया.

प्रशांत पार्लेवार लगातार अपनी बहन अर्चना को इस कत्ल की साजिश को पूरा करने के लिए गाइड कर रहा था. क्राइम ब्रांच ने ऐक्सीडेंट वाली जगह के आसपास के कई किलोमीटर के सीसीटीवी फुटेज निकाल कर चैक किए तो इस कोशिश में पुलिस को कुछ अहम सुराग मिले.

पुलिस को यह पता चला कि उस दिन 22 मई, 2024 को जब आई20 कार ने पुरुषोत्तम पुत्तेवार को कुचला था, तब कार ड्राइवर नीरज निमजे के साथ उस का एक साथी सार्थक बागड़े भी मौजूद था. इस आई 20 कार के पीछे एक एक्टिवा भी आगेपीछे चल रही थी. अब पुलिस इन लोगों की पहचान करना चाहती थी.

दूसरी बार जब क्राइम ब्रांच ने नीरज निमजे और सार्थक बागड़े को हिरासत में ले कर जब नए सिरे से पुलिसिया ढंग से पूछताछ की तो पता चला कि उस दिन उन की कार के पीछे एक्टिवा पर चल रहे 2 लोग सचिन धार्मिक और संकेत घोड़मारे थे, जोकि पुरुषोत्तम पुत्तेवार की और उन की पहचान कराने के लिए बालाजी नगर पहुंचे थे, ताकि नीरज निमजे अपनी कार से पुरुषोत्तम पुत्तेवार को कुचल कर आसानी से वहां से भाग सकें.

आरोपी अर्चना पहले से है करोड़ों की मालकिन

ससुर पुरुषोत्तम पुत्तेवार मर्डर की मुख्य आरोपी अर्चना ने पुलिस पूछताछ में अपनी अकूत संपत्ति का भी खुलासा किया है. उस ने बताया कि नियोजन विभाग में काम करते हुए उस ने काफी संपत्ति अर्जित की थी. वह खुद बैरमजी टाउन में अपने एक आलीशान फ्लैट में रहती है. इस के अलावा उस के पास 2 और भी फ्लैट हैं और एक आलीशान फार्महाउस भी है.

उस ने पुलिस को दिए अपने बयान में स्वीकार किया कि उस ने अपने ससुर की हत्या करने के लिए एक करोड़ रुपए की सुपारी दी थी. इस में से उस ने 17 लाख रुपए नकद, 40 ग्राम सोने के कंगन और 100 ग्राम सोने के बिसकुट एडवांस के तौर पर हत्यारों को दिए थे. पुलिस ने हत्यारों से रुपए, सोने के बिसकुट गहने बरामद भी कर लिए हैं

पुलिस के अनुसार अर्चना ने सरकारी विभाग में काम करते हुए करोड़ों रुपए की संपत्ति बनाई है. वहीं पुलिस को बड़सा के एक व्यापारी के माध्यम से अर्चना द्वारा बेनामी संपत्ति खरीदे जाने का भी पता चला है. काली कमाई से बनाई गई संपत्ति की जांच एंटी करप्शन ब्यूरो द्वारा कराई जाएगी. पुलिस जल्द ही इस संबंध में एसीबी को पत्र भेजने वाली है.

इस के अलावा पुलिस जांच में अर्चना मनीष पुत्तेवार के कार्यस्थल पर कई अनियमितताएं भी उजागर हुई हैं. अर्चना पुत्तेवार अपने पद का इस्तेमाल काफी गलत ढंग से कर रही थी. उस के खिलाफ लोगों द्वारा कई शिकायतें भी दर्ज कराई गई थीं. अर्चना पर नियमों को तोडऩे और अनधिकृत लेआउट को मंजूरी देने जैसे कई गंभीर आरोप लगाए गए थे, हालांकि अर्चना के राजनीतिक संबंधों के कारण किसी भी आरोप को कभी भी गंभीरता से नहीं लिया गया था.

कुछ साल पहले कोर्ट ने फैसला सुनाया था कि बेटी का पिता की संपत्ति पर अधिकार होता है, इसे ले कर तमाम जगहों पर काफी होहल्ला भी हुआ था.

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         पायल नागेश्वर

अर्चना की 3 दिन की पुलिस रिमांड के दौरान पायल अर्चना के बैरमजी टाउन के आलीशान अपार्टमेंट में चली गई और उस ने अपने मोबाइल फोन से आपत्तिजनक संदेश और काल रिकौर्ड डिलीट कर दिए. पुलिस के अनुसार गिरफ्तारी के बाद पायल नागेश्वर ने अपने और अर्चना के मोबाइल से काल, चैट, मैसेज और तसवीरें मिटाने की बात स्वीकार की है.

पुलिस अब साइबर विशेषज्ञों के माध्यम से मिटाए गए सबूतों को वापस लाने और गैजेट को फोरैंसिक प्रयोगशाला में भेजने की तैयारी कर रही थी. पुलिस जांच दल का मानना है कि काल, चैट, संदेशों और तसवीरों से हत्या के कई सबूत सामने आ सकते हैं, जिस में प्रत्येक आरोपी की भूमिका और आपसी संबंध उजागर किए जा सकेंगे. पायल नागेश्वर ने मर्डर की सरगना अर्चना की ओर से हत्यारों के बीच सुपारी की रकम बांटने में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.

कहानी लिखे जाने तक नागपुर पुलिस पुरुषोत्तम पुत्तेवार मर्डर के आरोपी अर्चना पुत्तेवार (53 वर्ष) पत्नी डा. मनीष पुत्तेवार, प्रशांत एम. पार्लेवार (58 वर्ष) महाराष्ट्र के मध्यम एवं लघु उद्योग डायरेक्टर, अर्चना की पीए पायल नागेश्वर (28 वर्ष) निवासी बैरमजी टाउन नागपुर, सार्थक साहेबराव बागड़े (29 वर्ष) निवासी चैतन्येश्वर नगर वाथोडा नागपुर, नीरज ईश्वर निमजे (30 वर्ष) निवासी शक्ति माता नगर खरबी रोड नागपुर, सचिन मोहन धार्मिक (29 वर्ष) निवासी बगडग़ंज नागपुर और सातवें आरोपी संकेत घोड़मारे (23 वर्ष) निवासी नागपुर को गिरफ्तार कर जेल भेज चुकी थी.

—कथा पुलिस सूत्रों व जनचर्चा पर आधारित है. तथ्यों का नाट्य रूपांतरण किया गया है. कथा में पंकज पवार नाम काल्पनिक है.