Family Crime : दामाद ने संपत्ति हड़पने के लिए सास, ससुर और सालियों की डंडे से पीट कर की हत्या

Family Crime : नरेंद्र गंगवार बेहद शातिर इंसान था. सब से पहले उस ने हीरालाल की बड़ी बेटी लीलावती को फांस कर उस से लवमैरिज की. फिर ससुर की संपत्ति हड़पने के लिए ससुराल के सभी लोगों की हत्या कर उन्हें घर में ही दफना दिया. 15 महीने बाद जब इस सनसनीखेज राज से परदा…

25 अगस्त, 2020 को नरेंद्र गंगवार अपने ससुर हीरालाल के पैतृक गांव पैगानगरी पहुंचा. यह गांव बरेली जिले की तहसील मीरगंज के अंतर्गत आता है. गांव पहुंचते ही वह हीरालाल के नाती दुर्गा प्रसाद से मिला. उस ने दुर्गा प्रसाद को बताया कि वह अपने ससुर की जमीन की पैदावार की बंटाई का हिस्सा लेने आया है. दरअसल, इस गांव में हीरालाल की 16 बीघा जमीन थी जो उन्होंने बंटाई पर दे रखी थी. वह खेती की पैदावार का हिस्सा लेने गांव आते रहते थे. दुर्गा प्रसाद नरेंद्र को अच्छी तरह जानते थे. हीरालाल दुर्गा प्रसाद के रिश्ते के नाना लगते थे. नरेंद्र कई बार अपने ससुर के साथ गांव आया था. दुर्गा प्रसाद ने उस से नाना की कुशलक्षेम पूछी.

इस पर नरेंद्र ने कहा, ‘‘दुर्गा प्रसादजी, बहुत ही दुखद खबर है. आप के नाना हीरालालजी अब इस दुनिया में नहीं रहे. 22 अप्रैल, 2020 को उन की मंझली बेटी दुर्गा और हीरालालजी ने जहर खा कर आत्महत्या कर ली थी. लौकडाउन के चलते हम किसी को उन की मृत्यु की खबर तक नहीं दे पाए. कोरोना महामारी के चलते मैं ने अपनी बीवी लीलावती, किराएदार विजय व कुछ अन्य लोगों के सहयोग से नारायण नंगला किचा नदी में उन का दाहसंस्कार करा दिया था. पति के वियोग में उन की पत्नी हेमवती भी अपनी बेटी पार्वती को ले कर अचानक कहीं चली गईं. मैं ने और लीलावती ने उन्हें सब जगह ढूंढा, लेकिन उन का भी कहीं पता न चल सका.’’

हीरालाल की मृत्यु की खबर सुन कर दुर्गा प्रसाद को झटका लगा. वहां बैठे गांव के कई लोग भी हैरत में पड़ गए. उन्हें विश्वास नहीं हो रहा था कि जो इंसान अपनी औलाद के सुनहरे भविष्य का सपना ले कर गांव छोड़ शहर जा बसा था, उस का परिवार इस तरह टूट कर बिखर जाएगा. हीरालाल के मरने की खबर सुन कर गांव के लोग तरहतरह की बातें करने लगे. दुर्गा प्रसाद को बहुत दुख हुआ. लेकिन एक बात उन की समझ में नहीं आ रही थी कि जब पति और बेटी खत्म हो गए तो हेमवती को अपनी बेटी को साथ ले कर कहीं चली गई. अगर उसे वहां से जाना था तो गांव में उस के पति की 16 बीघा जमीन पड़ी थी, जिस के सहारे हीरालाल के घर का खर्च चलता था. गांव में उस का मकान भी था. वह गांव आ कर रह सकती थी.

उसी समय नरेंद्र ने दुर्गाप्रसाद को बताया कि ससुर के घर के पास ही मेरा भी मकान है. जिस पर एकमात्र बची बेटी लीलावती का मालिकाना हक कराने के लिए मुझे हीरालालजी के मृत्यु प्रमाण पत्र की जरूरत है. आप लोग उन के परिवार के लोग हो, यह काम आप ही करा सकते हो. दुर्गा प्रसाद को विश्वास नहीं हुआ नरेंद्र की बात सुनते ही दुर्गा प्रसाद का दिमाग घूम गया. उन्हें उस की बात में कुछ झोल नजर आया. दुर्गा प्रसाद ने यह बात हीरालाल के बटाईदार कुंवर सैन के घर जा कर उन्हें बताई. साथ ही नरेंद्र की बातों पर कुछ शक भी जाहिर किया. यह बात सुन कर कुंवर सैन ने उसे बंटाई का हिस्सा देने से भी साफ मना कर दिया तो नरेंद्र वापस अपने घर चला आया.

नरेंद्र की बातों पर शक हुआ तो 27 अगस्त, 2020 को दुर्गा प्रसाद हीरालाल के बटाईदार कुंवर सैन को साथ ले कर उन की मौत की सच्चाई जानने के लिए रुद्रपुर ट्रांजिट कैंप पहुंचे. हीरालाल के घर पर ताला लगा हुआ था. यह देख कर उन्होंने पड़ोसियों से उन के बारे में जानकारी लेनी चाही तो पता चला कि हीरालाल के घर पर पिछले 15 महीने से ताला लटका हुआ है. इस दौरान उन्होंने कभी भी हीरालाल और उन के परिवार वालों को यहां आतेजाते नहीं देखा. यह बात सामने आते ही दुर्गा प्रसाद और कुंवर सैन को हैरानी हुई, क्योंकि नरेंद्र ने उन्हें बताया था कि हीरालाल ने जहर खा कर आत्महत्या कर ली थी. लेकिन उस के पड़ोसियों को इस बात की जानकारी तक नहीं थी.

नरेंद्र का झूठ सामने आते ही दुर्गा प्रसाद और कुंवर सैन समझ गए कि हीरालाल की संपत्ति हड़पने की मंशा से उन के दामाद नरेंद्र ने कोई चक्रव्यूह रच कर उन्हें मौत Family Crime के घाट उतार दिया. हीरालाल के परिवार के साथ किसी अनहोनी की आशंका को देखते हुए दुर्गा प्रसाद और कुंवर सैन उसी दिन ट्रांजिट कैंप थाने पहुंच गए. यह बात उन्होंने थानाप्रभारी ललित मोहन जोशी को बताई. मामला एक ही परिवार के 4 लोगों के लापता होने का था, इसलिए उन्होंने इसे गंभीरता से लिया. दुर्गाप्रसाद और कुंवर सैन से जरूरी जानकारी लेने के बाद उन्हें घर भेज दिया गया. फिर थानाप्रभारी जोशी ने इस मामले की सच्चाई जानने के लिए गुप्तरूप से जांचपड़ताल करानी शुरू की. सादे वेश में जा कर पुलिस ने नरेंद्र गंगवार को अपने कब्जे में लिया, ताकि वह फरार न हो सके.

थानाप्रभारी ललित मोहन जोशी ने नरेंद्र से हीरालाल और उन के परिवार के सदस्यों के बारे में कड़ी पूछताछ की. पुलिस पूछताछ के दौरान नरेंद्र शुरू में तो इधरउधर की कहानी गढ़ता रहा. लेकिन जैसे ही पुलिस की सख्ती बढ़ी तो उस का धैर्य जवाब दे गया. उस के बाद उस ने अपने ससुराल वालों की हत्या अपने किराएदार विजय के सहयोग से करने की बात स्वीकार कर ली. पूछताछ के दौरान नरेंद्र गंगवार ने बताया कि 20 अप्रैल, 2019 को सुबह साढ़े 5 बजे उस ने अपने किराएदार विजय के साथ मिल कर सासससुर और 2 सालियों को डंडे से पीट कर मौत के घाट उतारा. फिर उन की लाशों को उन्हीं के मकान में गड्ढा खोद कर दफन कर दिया.

नरेंद्र द्वारा 4 लोगों की हत्या कर घर में ही दफनाने वाली बात सामने आते ही थानाप्रभारी भी आश्चर्यचकित रह गए. उन्होंने इस बात की जानकारी अपने उच्चाधिकारियों को दी. थानाप्रभारी ने आननफानन में तत्परता से नरेंद्र के सहयोगी रहे उस के किराएदार विजय को भी हिरासत में ले लिया. यह जानकारी मिलते ही ट्रांजिट कैंप के साथसाथ थाना पंतनगर, थाना रुद्रपुर और थाना किच्छा से भी पुलिस टीमें हीरालाल के मकान पर पहुंच गईं. देखते ही देखते आजादनगर की मुख्य सड़क पुलिस छावनी में तब्दील हो गई. आजादनगर के आसपास यह नजारा देख लोग हैरत में पड़ गए. घटना की जानकारी मिलते ही एसएसपी दिलीप सिंह व आईजी (कुमाऊं) अजय कुमार रौतेला भी घटनास्थल पर पहुंचे.

पुलिस द्वारा हीरालाल के घर का दरवाजा खोलने से पहले ही वहां तमाशबीनों का जमावड़ा लग गया. पुलिस ने नरेंद्र की निशानदेही पर मजिस्ट्रैट की मौजूदगी में दिन के 3 बजे 4 मजदूरों को लगा कर खुदाई शुरू कराई. लगभग 2 घंटे के अथक प्रयास के बाद पुलिस लाशों तक पहुंची. लगभग साढ़े 4 फीट की गहराई में एक के ऊपर एक 4 लाशें पड़ी मिलीं, जो प्लास्टिक की थैलियों में पैक थीं. इस हृदयविदारक दृश्य को देख कर लोगों के होश उड़ गए. लोगों को विश्वास ही नहीं हो रहा था कि जो उन के सामने है वह सच है या सपना. पुलिस ने थैलियों को खोल कर लाशों की जांचपड़ताल की. लाशों को देख कर पुलिस हैरान थी कि सभी लाशें अभी तक अच्छी हालत में थीं. पुलिस को उम्मीद थी कि 15 महीनों के लंबे अंतराल के दौरान लाशें कंकाल में बदल चुकी होंगी. लेकिन ऐसा कुछ नहीं था. उसी गड्ढे से पुलिस ने लकड़ी के डंडे के आकार की एक फंटी बरामद की. नरेंद्र ने उसी फंटी से चारों को मारने की बात स्वीकार की थी.

घटनास्थल पर पहुंची फोरैंसिक टीम ने सैंपल एकत्र किए. फिर उन्हें जांच के लिए सुरक्षित रख लिया. पुलिस ने चारों लाशें पोस्टमार्टम के लिए भेज दीं और इस मामले को गंभीरता से लेते हुए 4 डाक्टरों के पैनल द्वारा वीडियोग्राफी के साथ पोस्टमार्टम कराया. यह कुमाऊं का पहला ऐसा सनसनीखेज  मामला था, जिस ने तहलका मचा दिया था. हीरालाल का अपना कोई बेटा नहीं था तो उन्होंने बेटियों का ही पालनपोषण अच्छे से किया था. बड़ी बेटी लीलावती ने गलत कदम उठाया तो उसे भी सहन करते हुए उन्होंने उस के पति नरेंद्र को बेटे का दरजा दे कर उसे अपने घर में शरण दी. इस के बावजूद उस ने ऐसा कदम उठाया कि ससुराल का वजूद ही खत्म कर डाला. यह कहानी जितनी सनसनीखेज थी, उस से कहीं ज्यादा हृदयविदारक भी थी.

हीरालाल का परिवार उत्तर प्रदेश के जिला बरेली, तहसील मीरगंज के गांव पैगानगरी में रहता था गांव में उन का परिवार सुखीसंपन्न माना जाता था. गांव में उन की जुतासे की करीब 60 बीघा जमीन थी. औलाद के नाम पर 3 बेटियां थीं लीलावती उर्फ लवली, पार्वती और सब से छोटी दुर्गा. उन की पत्नी हेमवती सहित घर में कुल 5 सदस्य थे. घर में सब कुछ ठीकठाक चल रहा था. हीरालाल की बस एक ही परेशानी थी कि उन का कोई बेटा नहीं था. जो घर धनधान्य से भरपूर हो और घर में उस का कोई वारिस न हो तो चिंतित रहना स्वभाविक ही है. हीरालाल ने बेटे की चाह के चलते इधरउधर काफी हाथपांव मारे. कई डाक्टरों और तांत्रिकों से मिले लेकिन उन की बेटे की इच्छा पूरी न हो सकी.

बाद में इस सोच को बदल कर उन्होंने अपना पूरा ध्यान बेटियों की परवरिश में लगा दिया. समय के साथ बेटियां समझदार हुईं तो हीरालाल ने सोचा कि उन्हें अपनी बेटियों को गांव के माहौल से बचा कर शहर में अच्छी शिक्षा दिलानी चाहिए. जिस से वे पढ़लिख कर कुछ बन जाएं. इसी सोच के चलते हीरालाल ने सन 2007 में अपनी खेती की जमीन में से 44 बीघा जमीन बेच दी. उस पैसे को ले कर हीरालाल अपने परिवार के साथ गांव से रुद्रपुर के ट्रांजिट कैंप थानांतर्गत राजा कालोनी में आ कर रहने लगे. उन्होेंने अपना मकान बना लिया था. रुद्रपुर आ कर हीरालाल ने अपनी तीनों बेटियों को अच्छी शिक्षा दिलाने के लिए अच्छे स्कूल में दाखिला दिला दिया था.

बेटियों की तरफ से निश्चिंत हो कर हीरालाल ने बाकी बचे पैसों से प्रौपर्टी डीलिंग का काम शुरू कर दिया. जमीन के पैसे से ही उन्होंने आसपास कई प्लौट खरीद कर डाल दिए थे. उसी दौरान हीरालाल की मुलाकात नरेंद्र गंगवार से हुई. राहु बन कर कुंडली में बैठा नरेंद्र नरेंद्र गंगवार रामपुर जिले के थाना ऐरो बिलासपुर के गांव खेड़ासराय का रहने वाला था. वह उसी मोहल्ले में किराए के मकान में रहता था. नरेंद्र गंगवार सिडकुल की एक फैक्ट्री में काम करता था. उस ने हीरालाल से एक प्लौट खरीदने की इच्छा जताई. इस पर हीरालाल ने उसे अपने घर के सामने पड़ा प्लौट दिखाया तो वह नरेंद्र को पसंद आ गया. उस ने हीरालाल से वह प्लौट खरीद कर उस की रजिस्ट्री अपने नाम करा ली.

प्लौट के चक्कर में नरेंद्र की हीरालाल से जानपहचान हुई तो वह उन के संपर्क में रहने लगा था. इसी बहाने वह हीरालाल के घर भी आनेजाने लगा था. घर आनेजाने के दौरान ही नरेंद्र की नजर हीरालाल की बड़ी बेटी लीलावती पर पड़ी. लीलावती देखनेभालने में सुंदर थी और उस समय पढ़ भी रही थी. उस की सुंदरता को देखते ही नरेंद्र उसे पाने के लिए लालायित हो उठा. वह जब भी हीरालाल के घर जाता तो उस की निगाहें उसी पर टिकी रहती थीं. लीलावती नरेंद्र के बारे में पहले ही सब कुछ जान चुकी थी. जब उस ने नरेंद्र को अपनी ओर आकर्षित होते देखा तो उस के दिल में भी चाहत पैदा हो गई.

दोनों के दिलों में एकदूसरे के प्रति प्यार उमड़ा तो वे प्रेम की राह पर बढ़ चले.  लीलावती स्कूल जाती तो नरेंद्र घंटों तक उस की राह तकता रहता. उस के स्कूल जाने का फायदा उठाते हुए वह घर से बाहर ही उस से मुलाकात करने लगा. प्रेम बेल फलीफूली तो मोहल्ले वालों की नजरों में किरकरी बन कर चुभने लगी. कुछ ही समय बाद दोनों की प्रेम कहानी हीरालाल के सामने जा पहुंची. अपनी बेटी की करतूत सुन कर हीरालाल को बहुत दुख हुआ. वह अपनी बेटियों को बेटा समझ पढ़ालिखा रहे थे, ताकि वे किसी काबिल बन जाएं. लेकिन बड़ी बेटी की करतूत सुन कर उसे गहरा सदमा पहुंचा. यह जानकारी मिलने पर उस ने लीलावती को समझाया और नरेंद्र के घर आने पर पाबंदी लगा दी. इस पर दोनों मोबाइल पर बात कर अपने दिल की पीड़ा एकदूसरे से साझा करने लगे.

इस प्रेम कहानी के चलते लीलावती ने सन 2008 में घर वालों को बिना बताए नरेंद्र से लव मैरिज कर ली. शादी के बाद लीलावती उस के साथ किराए के मकान में रहने लगी. लीलावती की इस करतूत से हीरालाल और उन की पत्नी हेमवती दोनों को जबरदस्त आघात पहुंचा. बेटी के कारण मियांबीवी मोहल्ले में सिर उठा कर चलने लायक नहीं रहे. इसी वजह से हीरालाल ने अपनी बेटी लीलावती से संबंध खत्म कर दिए. लेकिन हेमवती मां थी. मां का दिल तो वैसे भी बहुत कोमल होता है. भले ही लीलावती ने नरेंद्र के साथ शादी कर अपनी दुनिया बसा ली थी, लेकिन मां होने के नाते हेमवती उस के लिए परेशान रहने लगी थी. जब बेटी के बिना उस से नहीं रहा गया तो वह पति को बिना बताए उस से मिलने लगी.

हेमवती जब कभी घर में कुछ अच्छा बनाती, चुपके से लीलावती को पहुंचा आती. साथ ही वह उस की आर्थिक मदद भी करने लगी थी. धीरेधीरे यह बात हीरालाल को भी पता चल गई. शुरूशुरू में तो इस बात को ले कर दोनों में विवाद हो गया. लेकिन हीरालाल भी दिल के कमजोर इंसान थे. बेटी की परेशानी को देखते हुए उन का दिल भी पसीज गया. नरेंद्र बना घरजंवाई शादी के कुछ समय बाद ही हीरालाल ने नरेंद्र को अपने दामाद के रूप में स्वीकार कर लिया और बेटीदामाद दोनों को घर ले आए. नरेंद्र घरजंवाई की हैसियत से ससुर हीरालाल के मकान में ही रहने लगा. उसी दौरान नरेंद्र कई बार हीरालाल के साथ उन के गांव पैगानगरी भी गया था. हीरालाल का गांव में मकान था, जो खाली पड़ा था.

साथ ही उन की बची हुई 16 बीघा जमीन भी थी, जिसे उन्होंने बंटाई पर दे रखा था. इस जमीन से उन्हें हर साल इतना रुपया मिल जाता था कि उन के परिवार की गुजरबसर ठीक चल रही थी. वह प्रौपर्टी खरीदबेच कर जो कमाते थे वह अलग था. ससुर के साथ रह कर नरेंद्र उन की एकएक बात अपने दिमाग में उतारने लगा. मम्मीपापा के घर पर रहते हुए ही लीलावती 4 बच्चों, 2 बेटियों और 2 बेटों की मां बनी. हीरालाल के घर पर रहते हुए नरेंद्र नौकरी करने के साथसाथ उन के काम में भी हाथ बंटाने लगा था. हालांकि नरेंद्र के चारों बच्चों का खर्च भी हीरालाल स्वयं ही वहन कर रहे थे. इस के बावजूद नरेंद्र अपने खर्च के लिए हीरालाल से पैसे ऐंठता रहता था.

हीरालाल की अभी 2 बेटियां शादी के लिए बाकी थीं. वह समय से उन की शादी करना चाहते थे. लेकिन जब से नरेंद्र इस घर में आया था, अपनी सालियों को फूटी आंख नहीं देखना चाहता था. नरेंद्र तेजतर्रार और चालाक था. लीलावती से शादी करने के बाद उस की निगाह हीरालाल की संपत्ति पर जम गई थी. जिसे देख वह भविष्य के सुनहरे सपनों में खोया रहता था. उसी दौरान उस ने हीरालाल पर उस के हिस्से की संपत्ति उस के नाम कराने का दबाव बनाना शुरू किया. लेकिन हीरालाल का कहना था कि जब तक उन की दोनों बेटियां विदा नहीं हो जातीं, वह अपनी किसी भी संपत्ति का बंटवारा नहीं करेंगे. हीरालाल जब नरेंद्र की हरकतों से परेशान हो उठे तो उन्होंने नरेंद्र के प्लौट पर मकान बनवा दिया. बाद में नरेंद्र अपने बीवीबच्चों को साथ ले कर नए मकान में चला गया.

हीरालाल ने सोचा था कि नरेंद्र अपने घर में जाने के बाद सुधर जाएगा. लेकिन घर आमनेसामने होने के कारण उस के बीवीबच्चे हीरालाल के घर पर ही पड़े रहते थे. बच्चों के सहारे आ कर वह फिर से बदतमीजी पर उतर आता था. लेकिन ससुर होने के नाते हीरालाल सब कुछ सहन करते रहे. उसी दौरान नरेंद्र ने अपने मकान में विजय नाम का एक किराएदार रख लिया. विजय गंगवार जिला बरेली के थाना देवरनियां के गांव दमखोदा का रहने वाला था. विजय गंगवार से नरेंद्र पहले से ही परिचित था. दोनों में खूब पटती थी. विजय गंगवार अभी कुंवारा था. नरेंद्र ने विजय गंगवार के सामने अपने ससुर की सारी संपत्ति की पोल खोल कर दी, जिस की वजह से उस के मन में भी लालच जाग उठा. उस ने भी नरेंद्र की तरह हीरालाल की मंझली बेटी पार्वती पर निगाहें गड़ा दीं. लेकिन पार्वती समझदार थी. विजय के लाख कोशिश करने के बाद भी वह उस के प्रेम जाल में नहीं फंसी.

जम गई नजर ससुर की संपत्ति पर मन में संपत्ति का लालच आते ही वह अपने ससुर के साथसाथ बाकी लोगों को भी मौत के घाट उतारने के लिए षडयंत्र रचने लगा. लेकिन वह अपनी किसी भी योजना में सफल नहीं हो पा रहा था. नरेंद्र को यह भी पता लग गया था कि विजय उस की साली के पीछे पड़ा है. तभी उस के दिमाग में एक आइडिया आया. उस ने वह बात विजय को बताते हुए धमकाया कि जो वह कर रहा है वह ठीक नहीं है. अगर इस बात का पता उस के ससुर को चल गया तो परिणाम बहुत गलत होगा. नरेंद्र की बात सुन कर विजय घबरा गया. इस के बाद विजय नरेंद्र की हां में हां मिलाने लगा. फिर आए दिन नरेंद्र अपने घर पर विजय की दावत करने लगा. उस समय तक हीरालाल का परिवार हंसीखुशी से रह रहा था. लेकिन नरेंद्र को उन के परिवार की खुशियां कचोटती थीं.

वह मन ही मन अपने ससुराल वालों से खार खाने लगा था. उसी दौरान उस ने विजय को अपने ससुर की संपत्ति Family Crime से कुछ हिस्सा देने की बात कहते हुए अपनी षडयंत्रकारी योजना में शामिल कर लिया. फिर 17 अप्रैल, 2019 को नरेंद्र ने अपने किराएदार विजय के साथ मिल कर ससुराल वालों की हत्या की योजना को अंतिम रूप दे दिया. इस योजना के बनते ही नरेंद्र ने अपने बीवीबच्चों को देवरनियां बरेली में अपने फूफा के घर भेज दिया ताकि उन्हें उस की साजिश का पता न चल सके. बीवीबच्चों को बरेली भेजने के बाद वह विजय के साथ मिल कर इस घटना को अंजाम देने के लिए मौके की तलाश में लग गया. लेकिन उसे मौका नहीं मिल पा रहा था. नरेंद्र और विजय को यह भी डर था कि अगर इस योजना में वे किसी तरह से फेल हो गए तो न घर के रहेंगे न घाट के.

नरेंद्र जानता था कि उस की सास सुबह दूध लेने जाती है. उस वक्त उस का ससुर और दोनों सालियां सोई रहती हैं. घर का गेट खुला रहता है. उस वक्त तक पड़ोसी भी सोए होते हैं. घटना को अंजाम देने के लिए नरेंद्र को यह समय सही लगा. 20 अप्रैल, 2019 को नरेंद्र गंगवार और विजय गंगवार सुबह जल्दी उठ गए थे. दोनों हेमवती के दूध लेने जाने का इंतजार करने लगे. हेमवती उस दिन सुबह के साढ़े 5 बजे अपनी बेटी पार्वती को साथ ले कर दूध लाने के लिए घर से निकली. उन के घर से निकलते ही नरेंद्र विजय को साथ ले कर ससुर हीरालाल के घर में घुस गया. उस समय तक हीरालाल सो कर उठ गए थे. सुबहसुबह दोनों को अपने घर में आया देख हीरालाल ने नरेंद्र से आने का कारण पूछा तो उस ने कहा कि आज मैं आखिरी बार आप से पूछने आया हूं कि आप मेरे हिस्से की संपत्ति मुझे देते हो या नहीं.

पूरे परिवार की हत्या सुबहसुबह दामाद के मुंह से इस तरह की बात सुन हीरालाल का पारा चढ़ गया. दोनों के बीच विवाद बढ़ा तो पूर्व योजनानुसार नरेंद्र ने वहां रखी लकड़ी की फंटी से पीटपीट कर बड़ी ही बेरहमी से हीरालाल की हत्या कर दी. अपने पापा के चीखने की आवाज सुन कर बेटी दुर्गा उन के बचाव में आई तो दोनों ने उसे भी फंटी से पीटपीट कर मार डाला. दोनों को मौत की नींद सुलाने के बाद नरेंद्र और विजय हेमवती और पार्वती के आने का इंतजार करने लगे. जैसे ही उन दोनों ने घर में प्रवेश किया दरवाजे के पीछे खड़े नरेंद्र और विजय ने उन्हें भी पीटपीट कर मार डाला. सासससुर और दोनों सालियों को खत्म करने के बाद नरेंद्र और विजय ने चारों को घसीट कर एक कमरे में ले जा कर डाल दिया.

कमरे में ले जाने के बाद भी नरेंद्र और विजय को उन की मौत पर विश्वास नहीं हुआ तो दोनों ने एकएक कर सब की नब्ज चैक की. जब उन्हें पूरा यकीन हो गया कि चारों मौत की नींद सो चुके हैं, तो दोनों ने मकान में फैले खून को धो कर साफ किया और घर के बाहर ताला लगा कर अपने घर आ गए. इस खूनी वारदात को अमलीजामा पहनाने के बाद दोनों ने उन लाशों को ठिकाने लगाने की योजना बनाई. नरेंद्र जानता था कि उन की लाश को घर से बाहर ले जा कर ठिकाने लगाना उन के लिए खतरे से खाली नहीं है. इसलिए दोनों ने तय किया कि बाजार से प्लास्टिक शीट ला कर लाशों को उस में लपेटा घर में ही गड्ढा खोद कर दफन कर दिया जाए. लाशों पर प्लास्टिक शीट लिपटी होने के कारण उन के सड़ने के बाद भी बदबू बाहर नहीं निकल पाएगी.

20 अप्रैल, 2019 को ही नरेंद्र बाजार से प्लास्टिक शीट खरीद लाया. उसी रात दोनों ने ससुर हीरालाल के मकान में जा कर चारों लाशों को प्लास्टिक शीट में पैक कर दिया. अगले दिन 21 अप्रैल, 2019 की सुबह नरेंद्र विजय को साथ ले कर ससुर के घर में गया. फिर दोनों ने अपनी योजना के मुताबिक जीने के नीचे गड्ढा खोदना शुरू किया. कुछ पड़ोसियों ने नरेंद्र से हीरालाल के घर में अचानक काम कराने के बारे में पूछा तो नरेंद्र ने कहा कि वह मकान बेच कर कहीं दूसरी जगह चले गए. घर में रिपेयरिंग का काम चल रहा है. वैसे भी उस मोहल्ले में नरेंद्र से कोई ज्यादा मतलब नहीं रखता था. यही कारण था कि हीरालाल के परिवार के बारे में किसी ने भी नरेंद्र से ज्यादा पूछताछ नहीं की. नरेंद्र ने विजय के साथ मिल कर लगभग 6 घंटे में एक गहरा गड्ढा खोदा. उस के बाद दोनों ने प्लास्टिक में पैक चारों लाशें गड्ढे में डाल दीं.

चारों लाशों को गड्ढे में दफन कर के उन्होंने वहां पर पक्का फर्श बना दिया. चारों लाशों को ठिकाने लगाने के बाद नरेंद्र ने हीरालाल के घर के मुख्य दरवाजे पर ताला डाल दिया. घर के अंदर कब्रिस्तान हीरालाल के घर पर अचानक ताला देख लोगों को हैरत तो जरूर हुई. लोग समझ नहीं पा रहे थे कि हीरालाल रात ही रात में अपने परिवार को ले कर अचानक कहां गायब हो गए. लेकिन नरेंद्र से किसी ने पूछने की हिम्मत नहीं की. ससुराल वालों को ठिकाने लगा कर नरेंद्र अपने बीवीबच्चों को बरेली से घर ले आया. घर आते ही लीलावती की नजर पिता के मकान की ओर गई, जहां पर ताला लगा था.

लीलावती ने उन के बारे में पति से पूछा, तो उस ने बताया कि उस के पापा अपना मकान बेच कर हल्द्वानी चले गए हैं. उन्होंने वहां पर ही अपना प्रौपर्टी का काम शुरू कर दिया है. यह सुन कर लीलावती चुप हो गई. इस के आगे उसे नरेंद्र से ज्यादा पूछने की हिम्मत नहीं थी. उसे पता था कि उस के पिता और नरेंद्र की आपस में नहीं बनती है. नरेंद्र ने हीरालाल के पूरे परिवार को मौत की नींद सुला दिया था, इस के बाद भी उस के मन में किसी तरह का खौफ नहीं था. इस घटना को अंजाम देने के बाद नरेंद्र ने हीरालाल के मकान को किराए पर उठा दिया. लेकिन कुछ समय बाद किराएदार मकान छोड़ कर चला गया तो उस ने मकान पर फिर से ताला लगा दिया.

उस दिन के बाद उस ने कभी भी उस मकान का ताला नहीं खोला था. अगर नरेंद्र संपत्ति हड़पने के लिए मृत्यु प्रमाण पत्र बनवाने में जल्दबाजी न करता तो यह राज शायद राज ही बन कर रह जाता. इस केस के खुलते ही पुलिस ने आरोपी नरेंद्र गंगवार और विजय गंगवार को भादंवि की धारा 302/201/120बी के तहत गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया गया. चारों शवों के पोस्टमार्टम के बाद पुलिस ने शव उन के रिश्तेदार दुर्गा प्रसाद को सौंप दिए थे. उन का दाह संस्कार बरेली के मीरगंज गांव पैगानगरी के पास भाखड़ा नदी किनारे किया गया. नरेंद्र गंगवार इतना शातिर इंसान था कि उस ने दुर्गा प्रसाद को इस केस में फंसाने की कोशिश की. लेकिन सच्चाई सामने आते ही पुलिस ने उन्हें छोड़ दिया.

हालांकि इस केस की रिपोर्ट दुर्गा प्रसाद की ओर से ही दर्ज कराई गई थी. फिर भी इस केस के खुल जाने के बाद पुलिस दुर्गा प्रसाद और अन्य के मोबाइल नंबरों की काल डिटेल्स निकलवा कर जांच में जुटी थी. पुलिस ने लीलावती से पूछताछ करने के बाद उसे छोड़ दिया था. वह नरेंद्र के फूफा के साथ बहेड़ी चली गई थी. केस की जांच थानाप्रभारी ललित मोहन जोशी कर रहे थे.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधार

Gujarat News : सहेली की गला दबाकर हत्या की, फिर शव को कंबल में लपेटकर लाइटर से जला दिया

Gujarat News : थाइलैंड की रहने वाली सहेलियां आईडा और वनिडा बुसोन सूरत के अलगअलग स्पा सेंटरों में नौकरी करती थीं. भारत के स्पा और मसाज सेंटरों में थाई लड़कियों की अच्छी डिमांड रहती है. जिस से दोनों सहेलियां अच्छी कमाई कर रही थीं. इसी दौरान ऐसा क्या हुआ कि आईडा ने वनिडा बुसोन के खून से अपने हाथ रंग लिए…

गुजरात का सूरत शहर साडि़यों और हीरों के काम के लिए दुनियाभर में मशहूर है. इसी शहर के मगदल्ला गांव में 6 सितंबर 2020 को सुबह करीब 7 बजे एक मकान में किराए पर रहने वाली थाईलैंड की युवती वनिडा बुर्सोन उर्फ मिम्मी के कमरे से धुआं निकलता हुआ दिखाई दिया. धुआं देख कर आसपास के लोग वहां एकत्र हो गए. कमरे के बाहर ताला लगा हुआ था. लोगों ने समझा कि कमरा बंद है, तो वनिडा कहीं गई होगी. उस के पीछे से कमरे में  किसी कारण से आग लग गई है. लोग कयास लगाने लगे कि आग कैसे लग गई? आग किसी भी कारण से लग सकती है. या तो शौर्ट सर्किट हो गया होगा या फिर वनिडा रसोई गैस खुली छोड़ गई होगी.

वहां मौजूद लोग आपस में आग लगने के कारणों पर कयास लगा रहे थे. इतनी देर में एक पड़ोसी ने मकान मालिक नगीन भाई प्रभुभाई पटेल को फोन कर के आग लगने की सूचना दे दी. कुछ ही देर में मकान मालिक का दामाद हितेश भाई वहां पहुंच गया. हितेश ने लोगों से वनिडा के बारे में पूछा, लेकिन किसी को कुछ पता होता तो वह बताता. तब हितेश ने जल्द ही कमरे का ताला तोड़ दिया. कमरे के अंदर धुआं भरा हुआ था. जमीन पर पड़े गद्दे पर आग जल रही थी. उस ने आसपड़ोस से पानी मंगा कर आग पर फेंका. जलते हुए गद्दे पर एक चादर भी जलती हुई नजर आई. हितेश ने चादर खींची, तो उस के नीचे किसी इंसान के पैर नजर आए.

जलते हुए गद्दे पर किसी इंसान के पैर होने की बात सुन कर वहां मौजूद लोगों में दहशत फैल गई. दहशत इसलिए भी फैली कि कमरे के बाहर से ताला लगा हुआ था. वनिडा अगर कमरे में थी, तो बाहर ताला कैसे लगा हुआ था. डरेसहमे लोगों ने इस की सूचना पुलिस को दी. कुछ ही देर में उमरा थाना पुलिस मौके पर पहुंच गई. पुलिस जिस समय उस कमरे में घुसी, उस समय भी गद्दा जल रहा था. पुलिस ने पानी डाल कर आग बुझाई. गद्दे पर देखा, तो एक युवती की लाश थी. लाश पूरी तरह जल चुकी थी. चेहरा भी जल गया था. फिर भी आसपड़ोस के लोगों ने कदकाठी और बाकी चीजों से उस की शिनाख्त कर बताया कि लाश वनिडा की है.

जली हालत में मिली लाश पुलिस ने आसपड़ोस के लोगों से पूछताछ की तो पता चला कि थाईलैंड की रहने वाली वनिडा किराए के इस कमरे में 3-4 महीने पहले ही आई थी. उस के साथ थाईलैंड की ही रहने वाली एक और सहेली रूंघटीथा म्याऊ भी रहती थी, लेकिन उस समय वह गुजरात के ही भरूच शहर गई हुई थी. पुलिस को मौके पर वनिडा के मोबाइल भी नहीं मिले, जबकि वह 2-3 कीमती मोबाइल रखती थी. घटनास्थल पर ऐसा कोई सुराग नहीं मिला, जिस से वनिडा की मौत के कारणों का पता चल पाता. मोबाइल नहीं मिलने पर पुलिस ने यह माना कि शायद वह आग में जल गए होंगे, लेकिन उन के अवशेष भी नहीं मिले थे.

घर में कोई भी सामान बिखरा हुआ नहीं मिला. इसलिए लूटपाट या चोरी का संदेह भी नहीं हुआ. मौके पर खानेपीने का कुछ सामान, शराब की बोतलें, गिलास और कोल्ड ड्रिंक की बोतलें जरूर मिली. पड़ोसियों ने बताया कि वनिडा सूरत के इस्कान मौल में एक स्पा में काम करती थी. वह पिछली रात को करीब साढ़े 8 बजे आटोरिक्शा से घर आई थी. रात को उस के कमरे पर उस की सहेली मिलने आई थी. रात को संभवत: सहेली के साथ वनिडा ने पार्टी की थी, क्योंकि पहले उन की मौजमस्ती की सी आवाजें आ रही थीं. बाद में वनिडा के कमरे से झगड़ा होने की आवाज भी आई थी. कुछ लोगों ने बताया कि रात को एक कार में वनिडा के 3 बौयफ्रैंड भी आए थे. रात में एक बाइक पर भी अज्ञात युवक घूमता हुआ देखा गया था. कुछ लोगों ने वनिडा के पूर्व प्रेमी लालू पर शक जताया.

ताज्जुब की बात यह थी कि वनिडा की मौत जलने से हुई थी, लेकिन किसी ने उस की चीखपुकार नहीं सुनी. मैडिकल साइंस में माना जाता है कि होशोहवास वाला कोई भी व्यक्ति जलता है, तो चीखताचिल्लाता जरूर है. ऐसा भी कारण सामने नहीं आया कि वनिडा ने खुदकुशी करने के मकसद से खुद को आग के हवाले किया हो. मामला बड़ा संदेहास्पद था. यह साफ नहीं हो रहा था कि वनिडा की हत्या हुई है या यह कोई हादसा है. उमरा थाना प्रभारी ने उच्चाधिकारियों को सूचना दे कर एफएसएल की टीम और क्राइम ब्रांच की टीम को मौके पर बुलवा लिया. फोरैंसिक टीम और क्राइम ब्रांच की टीम ने मौके से कुछ साक्ष्य एकत्र किए. फोरैंसिक टीम के विशेषज्ञों ने हत्या की आशंका जताते हुए कुछ सैंपल भी लिए.

उमरा थाना पुलिस ने शव को कब्जे में ले कर एक्सीडेंटल डैथ मानते हुए मामला दर्ज कर जांच शुरू कर दी. सूरत के गांव मगदल्ला और आसपास के इलाकों में थाईलैंड की कई युवतियां अकेली और अन्य परिवार भी रहते हैं. पुलिस ने उन से भी वनिडा के बारे में पूछताछ की, लेकिन ऐसी कोई बात पता नहीं चली जिस से कि उस की मौत का राज खुल पाता. शादीशुदा वनिडा सूरत में अकेली रहती थी. उस का पति व बेटा थाईलैंड में रहते हैं. पुलिस ने लोगों से वनिडा का थाईलैंड का पता हासिल किया ताकि दूतावास के जरिए उस के परिजनों को सूचना भेजी जा सके. बाद में पुलिस ने थाईलैंड हाई कमीशन को मामले की सूचना दे दी.

पूछताछ में कोई सुराग नहीं मिलने पर पुलिस ने सीसीटीवी कैमरों के फुटेज के सहारे जांच आगे बढ़ाने का फैसला किया. आसपास लगे सीसीटीवी कैमरों के फुटेज देखने के बाद पुलिस हालांकि किसी नतीजे पर तो नहीं पहुंची, लेकिन कुछ लोगों को चिन्हित कर उन से पूछताछ करने का निर्णय लिया. इस के लिए दूसरे दिन 7 सितंबर को पुलिस की स्पेशल जांच टीम (एसआईटी) का गठन किया गया. डीसीपी विधि चौधरी के नेतृत्व में इस टीम में उमरा थाने के इंसपेक्टर के अलावा क्राइम ब्रांच को भी शामिल किया गया. एसआईटी के अधिकारियों ने मौकामुआयना करने वाली फोरैंसिक टीम से राय ली. फोरैंसिक विशेषज्ञों ने कहा कि शव को देखने के बाद ऐसा नहीं कहा जा सकता कि यह आकस्मिक मौत है. अगर घर में शार्ट सर्किट भी होता तो शव इतना नहीं जलता. शव फर्श पर पड़ा था. आग लगने के बाद आदमी छटपटाता है. इधरउधर भाग कर आग बुझाने की कोशिश करता है.

फोरैंसिक विशेषज्ञों ने कहा कि मौके के हालात से लगता है कि इस में कोई और शामिल हो सकता है, जिस ने युवती को जलाया. युवती ने खुद ऐसा नहीं किया होगा. जलाने में संभवत: ज्वलनशील पदार्थ का इस्तेमाल किया गया होगा. शव को जलने में 2 से 3 घंटे का समय भी लगा होगा. वनिडा का शव जिस गद्दे पर मिला, वह रुई का था. आग केवल गद्दे तक ही लगी थी, पूरे कमरे में नहीं फैली थी. फोरैंसिक एक्सपर्ट ने दी चौंकाने वाली रिपोर्ट कमरे के बाहर से ताला लगा होना भी संदेह पैदा कर रहा था. कोई भी व्यक्ति बाहर से ताला लगा कर केवल तभी सोता है, जब या तो उस का कोई साथी उसी के सामने बाहर गया हो और उसे वापस आना हो.

अथवा ऐसा तब होता है जब अंदर वाले को किसी से डर या खतरा हो, तब वह किसी से बाहर का ताला लगवा सकता है. लेकिन पुलिस को ऐसा भी कोई आदमी नहीं मिला, जिस से वनिडा ने कमरे का बाहर का ताला लगवाया हो. विशेषज्ञों ने माना कि जलते समय युवती होश में नहीं थी. संभवत: वह गहरे नशे में रही होगी. इसीलिए वह जलने पर न तो चीखीचिल्लाई और न किसी ने उस की कोई आवाज सुनी थी. फोरैंसिक विशेषज्ञ हत्या की आशंका जताते हुए अपने तर्क दे रहे थे, लेकिन हत्या का मामला दर्ज करने से पहले पुलिस सबूत जुटाना चाहती थी. इसलिए पुलिस ने दक्षिण गुजरात विज कंपनी लिमिटेड (डीजीवीसीएल) के बिजली अधिकारियों से भी मौका निरीक्षण कराया, ताकि पता चल सके कि शार्ट सर्किट तो नहीं हुआ था. जांच पड़ताल के बाद बिजली अधिकारियों ने साफ कर दिया कि कमरे में शार्ट सर्किट नहीं हुआ था.

शव मिलने के तीसरे दिन पुलिस ने 16 लोगों से अलगअलग पूछताछ की. इन में वनिडा की रूममेट, उसे घर और स्पा ले जाने वाले आटो चालक, सहेलियों और सीसीटीवी फुटेज में नजर आए संदिग्ध लोग शामिल थे. पुलिस ने वनिडा के मोबाइल नंबरों की काल डिटेल्स भी निकलवाई. इस बीच, पुलिस ने वनिडा के शव का पोस्टमार्टम कराने के बाद अंतिम संस्कार कर दिया. पुलिस ने विसरा और अन्य सैंपल जांच के लिए एफएसएल भिजवा दिए. पुलिस की जांचपड़ताल में पता चला कि करीब 27 साल की वनिडा एक साल पहले टूरिस्ट वीजा पर सूरत आई थी. वह 3-4 महीने से नगीन भाई पटेल के मकान में किराए के कमरे में रहती थी. उस के साथ थाईलैंड की ही निवासी रूंघटीथा म्याऊ नाम की युवती भी रहती थी.

फोरैंसिक विभाग ने प्राथमिक जांच रिपोर्ट पुलिस को दी. इस में मौत का कारण तो नहीं बताया गया, लेकिन यह जरूर कहा गया कि जलाते समय युवती जीवित थी. उस की श्वास नली में कार्बन मिला है. कोई व्यक्ति जिंदा जलता है, तो उस की सांस की नली में कार्बन पाया जाता है. यह हो सकता है कि युवती को बेहोश कर या कोई मादक पदार्थ पिला कर जलाया गया हो. मामला विदेशी युवती की मौत का था. इसलिए पुलिस सभी एंगल से मामले की जांच कर रही थी. लोगों से पूछताछ में पुलिस को कुछ ऐसी बातें पता चलीं, जिस से पुलिस ने माना कि वनिडा की हत्या हुई होगी. हत्या के एंगल से जांच की गई, तो यह माना गया कि कातिल बहुत शातिर है.

उस ने वनिडा को जलाने के लिए पैट्रोल या केरोसिन के बजाय शराब, नेल पेंट, डिओड्रेंट या किसी अन्य बिना गंध वाले ज्वलनशील पदार्थ का इस्तेमाल किया होगा, क्योंकि पैट्रोल व केरोसिन की गंध दूर तक फैलती है. 11 सितंबर को उमरा थाना पुलिस ने अज्ञात व्यक्ति के खिलाफ वनिडा की हत्या का मामला दर्ज कर लिया. हत्या का मामला एफएसएल की प्राथमिक रिपोर्ट व डीजीवीसीएल के बिजली अधिकारियों की रिपोर्ट और अन्य सबूतों के आधार पर दर्ज किया गया. 80 से ज्यादा लोगों से की पूछताछ लगभग 80 से ज्यादा लोगों से की गई पूछताछ और 50 से अधिक सीसीटीवी कैमरों की फुटेज देखने के बाद पुलिस ने 2 लोगों पर शक की सुई टिका दी. इन में एक आईडा थी और दूसरा चेतन. थाईलैंड की ही रहने वाली आईडा मृतका वनिडा की अच्छी दोस्त थी.

वह भी वनिडा की ही तरह एक स्पा सैंटर में काम करती थी. वहीं, चेतन वनिडा के मकान के पास ही रहता था. चेतन ने ही वनिडा को 5 सितंबर को आखिरी काल की थी. चेतन सूरत के ही एक स्पा में मैनेजर की नौकरी करता है. पुलिस ने अपने मुखबिर लगाए और इन दोनों की गतिविधियों पर नजर रखनी शुरू कर दी. निगरानी रखने के बाद पुलिस ने चेतन को शक के दायरे से बाहर कर आईडा पर सारा ध्यान केंद्रित कर दिया. पुलिस की ओर से जरूरी सबूत जुटाने के बाद सूरत के पुलिस कमिश्नर अजय तोमर ने 14 सितंबर, 2020 को वनिडा की हत्या का खुलासा कर दिया. पुलिस ने आईडा को गिरफ्तार कर लिया.

पुलिस की जांचपड़ताल और आईडा से की गई पूछताछ में वनिडा की हत्या की जो कहानी उभरकर सामने आई, वह इस प्रकार है—

थाईलैंड की रहने वाली वनिडा और आईडा अच्छी दोस्त थीं. दोनों लगभग हमउम्र थीं. दोनों की ही शादी हो चुकी थी. वनिडा का एक बेटा है. पति और बेटा थाईलैंड में रहते हैं. वनिडा पैसा कमाने के मकसद से टूरिस्ट वीजा पर भारत आई थी. वह स्पा का काम जानती थी. भारत में स्पा सेंटरों में विदेशी युवतियों की सब से ज्यादा मांग रहती है. परिचित थाई युवतियों के माध्यम से वह सूरत आ गई. सूरत में उसे एक स्पा सेंटर में काम मिल गया. स्पा में वह अच्छा पैसा कमा रही थी. उसे किसी तरह की कोई परेशानी नहीं थी. आईडा भी थाईलैंड से टूरिस्ट वीजा पर सूरत आई थी. वह भी शादीशुदा थी लेकिन वह करीब एक साल से अपने पति से अलग रहती थी. उस का पति थाईलैंड में रहता है.

एक देश की होने और एक ही काम करने के कारण वनिडा और आईडा में अच्छी दोस्ती हो गई. आईडा भी मगदल्ला गांव में ही किराए के मकान में थी. वनिडा व आईडा के मकान के बीच 10 मिनट का पैदल का रास्ता है. दोनों सहेलियों को एकदूसरे की सारी बातें पता थीं. वे कभीकभी अपने कमरे पर पार्टी कर लेती थीं. थाईलैंड के खानपान के लिहाज और स्पा मसाज के पेशे से जुड़ी होने के कारण सिगरेट पीना, वोदका, बीयर, और शराब पीने के अलावा हुक्के के कश लगाना तथा झींगा मछली वगैरह खाना इन का शौक था. इन की पार्टी करीब 11-12 बजे शुरू हो कर भोर होने तक चलती थी. सहेली आईडा को आया लालच आईडा का टूरिस्ट वीजा 26 सितंबर को खत्म हो रहा था.

उसे वीजा की अवधि बढ़वानी थी. इस के लिए उस ने किसी एजेंट से भी बात कर ली थी. वीजा बढ़वाने के लिए उसे पैसों की जरूरत थी. इस के अलावा थाईलैंड के बानपाको में रहने वाले उस के भाई ने गाड़ी का एक्सीडेंट कर दिया था. उस की गाड़ी पुलिस ने जब्त कर ली. भाई की गाड़ी छुड़वाने के लिए भी आईडा को पैसे चाहिए थे. आईडा ने अपने 2-4 परिचितों से पैसे उधार मांगे, लेकिन उसे कहीं से मदद नहीं मिली. उसे पता था कि वनिडा अच्छा पैसा कमाती है. वह ठाठ से रहती और खूब खर्च करती है. थाईलैंड में अपने घर भी पैसा भेजती है. उसे पता था कि वनिडा का वीजा 20 सितंबर को खत्म हो रहा है और वह वापस थाईलैंड जाना चाहती है. इस से आईडा को अनुमान था कि वनिडा के पास अभी काफी पैसा होगा. इसलिए उस ने वनिडा को शराब पिला कर उसे लूटने की योजना बनाई.

आईडा ने वनिडा से 5 सितंबर की रात को पार्टी करने की बात तय कर ली. योजना के तहत आईडा रात करीब साढ़े 9 बजे वनिडा के घर पहुंची. दोनों ने शराब व वोदका पी. नशीले पदार्थ वाले हुक्के के भी कश लगाए. इस बीच वे मछली वगैरह भी खाती रहीं. आईडा ने जानबूझ कर वनिडा को ज्यादा शराब पिलाई. वनिडा जब बेसुध हो गई, तो आईडा वनिडा का कीमती माल तलाश करने लगी. इस बीच, उसे खयाल आया कि अगर वनिडा को होश आ गया, तो वह चिल्लाएगी. इस से वह पकड़ी जाएगी. अगर उसे अभी होश नहीं आया, तो सुबह कीमती सामान नहीं मिलने पर वह सीधा उस पर चोरी का आरोप लगाएगी. इस से बचने के लिए आईडा ने वनिडा का काम तमाम करने का फैसला किया.

उस ने कमरे में गद्दे पर बेसुध पड़ी वनिडा का कंबल से गला दबा दिया. इस के बाद उस पर टिश्यू पेपर और नायलोन का कंबल डाल कर लाइटर से आग लगा दी. ज्यादा नशे में होने से बेसुध होने के कारण वनिडा चीखपुकार भी नहीं सकी. वह जिंदा ही जल गई. वनिडा को जला कर आईडा ने उस के 3 आईफोन और सोने की चेन सहित करीब 2 लाख रुपए का कीमती सामान बटोरा और तड़के अपने कमरे पर आ गई. अपने कमरे में उस ने वनिडा की सोने की चेन चावल के डब्बे में छिपा कर रख दी. आईडा इतनी शातिर थी कि 6 सितंबर को सुबह जब कमरे में वनिडा का जला हुआ शव मिला, तो पुलिस की काररवाई के दौरान वह थाईलैंड की अन्य महिलाओं के साथ मृतका को श्रद्धांजलि देने के लिए हाथ जोड़े वहां कई घंटे तक खड़ी रही. इस दौरान उस ने किसी को भी शक नहीं होने दिया.

वनिडा की मर्डर मिस्ट्री का रहस्य उस की रूममेट रूंघटीथा म्याऊ से पूछताछ के बाद सुलझा. म्याऊ ने पुलिस को बताया कि वह वनिडा की मृत्यु के बाद भरूच से सूरत आई थी. भरूच से वह काफी सामान लाई थी. वनिडा के कमरे में आग लगने के कारण वहां सामान नहीं रख सकी, तो वह आईडा के कमरे पर सामान रखने गई. आईडा के मकान मालिक ने ज्यादा सामान कमरे में रखने से मना कर दिया. आईडा ने स्वीकारा अपराध इस पर म्याऊ ने अपना कुछ गैरजरूरी सामान अपने आटोचालक को दे दिया. इस दौरान आईडा ने भी आटो चालक को एक बैग दे कर कहा कि वह बाद में ले लेगी. आटोचालक ने आईडा का दिया बैग और म्याऊ का दिया सामान ला कर अपने घर पर रख दिया.

स्पा में काम करने वाली थाईलैंड की युवतियों ने अपने आटोचालक तय कर रखे हैं. उन्हें जब भी कहीं आनाजाना होता है, तो फोन कर के उन्हें बुला लेती हैं. म्याऊ ने पुलिस को यह भी बताया कि वनिडा के पास 3 मोबाइल फोन और सोने की चेन थी, जो गायब हैं. रुपएपैसे और अन्य कीमती सामान के बारे में म्याऊ को ज्यादा पता नहीं था. म्याऊ से पूछताछ के बाद पुलिस ने आटो चालक से पूछताछ की. उस ने म्याऊ और आईडा की ओर से दिए गए सामान के बारे में बता दिया. पुलिस ने उस के घर जा कर सामान चेक किया, तो उस बैग में वनिडा का मोबाइल मिला, जो आईडा ने उसे दिया था. पहले से ही शक के दायरे में चल रही आईडा पर पुलिस का संदेह पुख्ता हो गया. पुलिस को आईडा से पूछताछ में काफी पापड़ बेलने पड़े. उस ने हिंदी, गुजराती या अंग्रेजी भाषा समझने से इनकार कर दिया. वह केवल थाई भाषा ही बोलती रही.

उस से पूछताछ के लिए दुभाषिए की मदद लेनी पड़ी. वह बारबार वनिडा की हत्या से साफ इनकार करते हुए पुलिस से सबूत बताने की बात कहती रही. विदेशी युवती का मामला होने के कारण पुलिस उस से सख्ती भी नहीं कर पा रही थी. पुलिस ने उस के घर की तलाशी ली, तो चावल के डब्बे से वनिडा की सोने की चेन बरामद हो गई. कुछ अन्य सामान भी मिल गया. पुलिस ने उसे रात साढ़े 9 बजे वनिडा के घर आने और तड़के करीब साढ़े 4 बजे मुंह ढक कर जाने के सीसीटीवी फुटेज दिखाए. इस के बाद उस ने वनिडा की हत्या करने की बात कबूल कर ली. आईडा से उस ताले की चाबी भी बरामद हो गई, जो वह वनिडा की हत्या के बाद उस के कमरे के बाहर लगा कर आई थी.

पुलिस ने आईडा को गिरफ्तार कर लिया. पुलिस को अन्य लोगों से पता चला कि आईडा के खिलाफ मलेशिया और जापान में जुआ का अड्डा चलाने के आपराधिक मामले दर्ज हैं. पुलिस इन मामलों का पता लगाने का प्रयास कर रही है. बहरहाल, आईडा ने छोटे से लालच में अपनी ही सहेली का खून कर दिया. पैसे कमाने आई आईडा को अब भारत में अपने किए की सजा भुगतनी होगी.

 

Love Crime : प्रेमी जोड़े का गला घोंटा, चेहरे पर तेजाब डाला फिर लाशों को लटका दिया

Love Crime : बंटी और सुखदेवी चचेरेतहेरे भाईबहन जरूर थे लेकिन वे एकदूसरे से दिली मोहब्बत करते थे. दोनों के घर वालों ने शादी करने से मना कर दिया तो अपनी शादी से एक दिन पहले दोनों घर से भाग गए. इस के बाद जो हुआ, उस की किसी ने कल्पना तक नहीं की थी…

बंटी की अजीब सी स्थिति थी. उस का दिमाग तो चेतनाशून्य हो चला था. साथ ही उस के दिमाग में एक तूफान सा मचा हुआ था. यही तूफान उसे चैन नहीं लेने दे रहा था. बेचैनी का आलम यह था कि वह कभी बैठ जाता तो कभी उठ कर चहलकदमी करने लगता. अचानक उस का चेहरा कठोर होता चला गया, जैसे वह किसीफैसले पर पहुंच गया था, उस फैसले के बिना जैसे और कुछ हो नहीं सकता था. बंटी पश्चिमी उत्तर प्रदेश के संभल जिले के थाना धनारी के गांव गढ़ा में रहता था. उस के पिता का नाम बिन्नामी और माता का नाम शीला था. बिन्नामी खेतीकिसानी का काम करते थे.

22 वर्षीय बंटी इंटर पास था. उस के बड़े भाई 25 वर्षीय संदीप का विवाह हो चुका था. बंटी से छोटे 2 भाई तेजपाल (14 वर्ष) और भोलेशंकर (9 वर्ष) के अलावा छोटी बहनें कश्मीरा, सोमवती और राजवती थीं, जोकि क्रमश: 17 वर्ष, 7 वर्ष और 5 वर्ष की थीं. उस के पड़ोस में उस के ताऊ तुलसीदास रहते थे. परिवार में उन की पत्नी रमा देवी और उन के 6 बेटै रामपाल, विनीत उर्फ लाला, किशोरी, गोपाल उर्फ रामगोपाल, धर्मेंद्र और कुलदीप उर्फ सूखा थे. इस के अलावा इकलौती बेटी थी 21 वर्षीय सुखदेवी, जोकि सब भाइयों से छोटी थी. रिश्ते में बंटी और सुखदेवी तहेरे भाईबहन थे. बचपन से दोनों साथ खेलेघूमे. हर समय एकदूसरे का साथ दोनों को खूब भाता था. समय के साथ ही बचपन का यह खेल कब जवानी के प्यार की तरफ बढ़ने लगा, उन को एहसास भी नहीं हुआ.

जवान होती सुखदेवी के सौंदर्य को देखदेख कर बंटी आश्चर्यचकित हो गया था. सुखदेवी पर छाए यौवन ने उसे एक आकर्षक युवती बना दिया था. उस के नयननक्श में अब गजब का आकर्षण पैदा हो गया था.  हिरनी जैसे नयन, गुलाब की पंखुडि़यों जैसे होंठ, जिन का रसपान करना हर नौजवान की हसरत होती है. उस के गालों पर आई लाली ने उसे इतना आकर्षक बना दिया था कि बंटी खुद पर काबू न रख सका और उसे देख कर उसे पाने को लालायित हो उठा. सुखदेवी के यौवन में वह इस कदर खो गया कि उस के बदन को ऊपर से नीचे तक निहारता रह गया. उस के छरहरे बदन में यौवन की ताजगी, कसक और मादकता की साफसाफ झलक दिखती थी.

बंटी अपनी तहेरी बहन के मादक सौंदर्य को बस देखता रह गया और उस की चाहत में डूबता चला गया. वह इस बात को भी भूल गया कि वह उस की तहेरी ही सही, लेकिन बहन तो है. बंटी जब सुखदेवी के घर गया तो उसे एकटक देखने लगा. उधर सुखदेवी इस बात से बेखबर अपने काम में व्यस्त थी. जब उस की मां रमा ने उसे आवाज दी, ‘‘ऐ सुखिया, देख बंटी आया है.’’ तो उस का ध्यान बंटी की तरफ गया. चाहने लगा था सुखदेवी को सुखदेवी को भी बंटी पसंद था, मगर उस रूप में नहीं जिस रूप में उसे बंटी देख रहा था और उसे पाने की चाह में तड़पने लगा था.

रमा देवी ने फिर आवाज लगाई. सुखदेवी ने तुरंत एक गिलास पानी और थोड़ा मीठा ला कर बंटी के सामने रख दिया. पानी का गिलास हाथ में पकड़ाते हुए बोली, ‘‘क्या हाल हैं जनाब के?’’

जब बंटी ने उस से पानी का गिलास लिया तो उस का स्पर्श पा कर वह पहले से अधिक व्याकुल हो उठा. उस के साथ सुंदर सपनों में खो गया. इधर सुखदेवी ने उस के गालों को खींच कर कहा, ‘‘कहां खो गए जनाब?’’

इस के बाद वह चाय बनाने चली गई. बंटी का सारा ध्यान तो सुखदेवी की तरफ ही था, जो किचन में उस के लिए चाय बना रही थी. वह तो इस कदर व्याकुल था कि दिल हुआ किचन में जा कर खड़ा हो जाए. उधर जब सुखदेवी चाय ले कर आई तो बंटी की बेचैनी थोड़ी कम हुई. सुखदेवी ने जब बंटी को चाय दी तो उस ने पुन: उसे छूना चाहा, मगर नाकाम रहा. तभी उस की ताई को कुछ काम याद आ गया और वह उठ कर बाहर चली गईं. इधर बंटी की धड़कनें रेल के इंजन की तरह दौड़ने लगीं. वह घबराने लगा. मगर एक खुशी भी थी कि उस तनहाई में वह सुखदेवी को देख सकता है. फिर सुखदेवी अपने काम में लग गई, मगर बंटी के कहने पर वह उस के करीब ही चारपाई पर बैठ गई. उस के शरीर के स्पर्श ने उसे गुमशुदा कर दिया.

उस का दिल तो चाह रहा था कि वह उसे अपनी बांहों में भर ले और प्यार करे, मगर न जाने कैसी झिझक उसे रोक देती और वह अपने जज्बातों पर काबू किए उस की बातें सुनता जा रहा था. वह बारबार हंसती तो बंटी के मन में फूल खिल उठते थे. थोड़ी ही देर में बंटी को न जाने क्या हुआ, वह उठा और जाने लगा. तभी सुखदेवी ने उस का हाथ पकड़ कर पूछा, ‘‘कहां जा रहे हो?’’

मगर बंटी ने बिना कुछ कहे अपना हाथ छुड़ाया और वहां से चला गया. सुखदेवी उस से बारबार पूछती रही. मगर वह रुका नहीं और बिना पीछे देखे चला गया. प्यार के इजहार का नहीं मिला मौका बंटी को उस दिन के बाद कुछ अच्छा न लगता, वह तो बस सुखदेवी के खयालों में ही खोया रहता था, मगर चाह कर भी वह उस से मन की जता नहीं पाता था. उस के मन में पैदा हुई दुविधा ने उसे अत्यंत उलझा रखा था. तहेरी बहन से प्रेम की इच्छा ने उस के दिलोदिमाग को हिला रखा था. मगर सुखदेवी के यौवन का रंग बंटी पर खूब चढ़ चुका था. उस के यौवन की किसी एक बात को भी वह भुला नहीं पा रहा था.

एक दिन बंटी घर पर अकेला था और सुखदेवी के खयालों में खोया हुआ था. वह चारपाई पर लेटा था, तभी सुखदेवी उस के घर पहुंची और बिना कुछ कहे सीधे अंदर चली गई. बंटी उसे देख कर आश्चर्यचकित रह गया. कुछ देर तक वह उसे देखता ही रहा था. तभी सुखदेवी ने सन्नाटा भंग करते हुए कहा, ‘‘क्या हाल है? क्या मुझे बैठने तक को नहीं कहोगे?’’

‘‘कैसी बात कर रही हो, आओ तुम्हारा ही घर है.’’ बंटी ने कहा तो सुखदेवी वहीं पड़ी चारपाई पर बैठ गई.

सुखदेवी ने बैठते ही बंटी को देखा और कहने लगी, ‘‘क्या बात है आजकल तुम घर नहीं आते? मुझ से कोई गलती हो गई है कि उस दिन तुम बिना कुछ कहे घर से चले आए.’’

बंटी मूक बैठा बस सुखदेवी को निहारे जा रहा था. सुखदेवी ने जब उसे चुप देखा तो बंटी के करीब पहुंच कर वह बैठ गई और उस के हाथों को अपने हाथों में ले कर बोली, ‘‘बोलो न क्या हुआ? तुम इतने चुपचुप क्यों हो, क्या कोई बात है जो तुम्हें बुरी लग गई है. मुझे बताओ न, तुम तो हमेशा हंसते थे, मुझ से ढेर सारी बातें करते थे. मगर अब क्या हुआ है तुम्हें, तुम इतने खामोश क्यों हो?’’

मगर उधर बंटी तो एक अलग ही दुविधा में फंसा हुआ था. सुखदेवी की बातों को सुन कर अचानक ही बंटी उस की ओर घूमा और उसे बड़े गौर से देखने लगा. तभी सुखदेवी ने उस से पूछा कि वह क्या देख रहा है, मगर बंटी जड़वत हुआ उसे घूरता ही जा रहा था. सुखदेवी भी उस की निगाह के एहसास को महसूस कर रही थी, शायद इसलिए वह भी खामोश नजरें झुकाए वहीं बैठी रही थी. बंटी उस से प्रेम का इजहार करना चाहता था, मगर इस दुविधा में उलझा हुआ था कि वह मेरी तहेरी बहन है. मगर अंत में प्रेम की विजय हुई. उस ने सुखदेवी के चेहरे को अपने हाथों में ले लिया. बंटी के इस व्यवहार से सुखदेवी थोड़ा घबरा गई. मगर अपनी धड़कनों पर काबू पा कर उस ने अपनी दोनों मुट्ठियों को बहुत जोर से भींचा और अपनी आंखें बंद कर लीं.

तभी बंटी ने उस से आंखें खोलने को कहा, मगर सुखदेवी हिम्मत न कर सकी. फिर दोबारा कहने पर सुखदेवी ने अपनी पलकें उठाईं और फिर तुरंत झुका लीं. तभी बंटी ने उस की आंखों को चूम लिया. सुखदेवी घबरा गई’ उस ने वहां से उठना चाहा. मगर बंटी ने उसे उठने नहीं दिया. वह शर्म के मारे कांपने लगी. उस के होंठों की कंपकंपाहट से बंटी अच्छी तरह वाकिफ था. मगर वह तो उस दिन अपने प्यार का इजहार कर देना चाहता था. तभी उस ने सुखदेवी की कलाई पकड़ कर कहा, ‘‘मैं तुम से बहुत प्यार करता हूं, मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकता, मैं सचमुच तुम से बहुत प्यार करता हूं.’’

बंटी की इन बातों को सुन कर सुखदेवी आश्चर्यचकित हो गई और उस ने बंटी को समझाना चाहा, मगर बंटी तो अपनी जिद पर ही अड़ा रहा. सुखदेवी ने कहा, ‘‘बंटी, मैं तुम्हारी बहन हूं. हमारा प्यार कोई कैसे स्वीकार करेगा.’’

मगर बंटी ने इन सब बातों को खारिज करते हुए सुखदेवी को अपनी बांहों में समेट लिया और बड़े प्यार से उस के होंठों पर अपने प्यार की मोहर लगा दी. सुखदेवी के लिए यह किसी पुरुष का पहला स्पर्श था, जिस ने उसे मदहोश होने पर मजबूर कर दिया और बंटी की बांहों में कसमसाने लगी. सुखदेवी चाह कर भी अपने आप को उस से अलग नहीं कर पा रही थी. लगातार कुछ क्षणों तक चले इस प्रेमालाप से सुखदेवी मदमस्त हो गई, तभी अचानक बंटी उस से अलग हो गया. प्यार को लग गई हवा सुखदेवी तड़प उठी. बंटी के स्पर्श से छाया खुमार जल्दी ही उतरने लगा. वह बिना कुछ कहे घर के दरवाजे की तरफ बढ़ी तो पीछे से बंटी ने उसे कई आवाजें लगाईं, मगर सुखदेवी नजरें झुकाए चुपचाप बाहर चली गई.

बंटी घबरा सा गया. उस के दिल में हजारों सवाल सिर उठाने लगे और इसी दुविधा में फंसा रहा कि सुखदेवी उस का प्यार ठुकरा न दे या कहीं ताऊताई को उस की इस हरकत के बारे में न बता दे. इसी सोच में बंटी परेशान रहा और पूरी रात सो न सका, बस बिस्तर पर करवटें बदलता रहा. उधर सुखदेवी का हाल भी बंटी से जुदा न था. वह भी पूरे रास्ते बंटी द्वारा कहे हर लफ्ज के बारे में सोचती गई. घर पहुंच कर बिना कुछ खाएपीए वह अपने बिस्तर पर लेट गई. मगर उस की आंखों में नींद भी कहां थी. वह भी इसी सोच में डूबी रही. बंटी का प्यार दस्तक दे चुका था. वह भी बिस्तर पर पड़ीपड़ी करवटें बदलती जा रही थी. सुखदेवी भी अपनी भावनाओं पर काबू न रख पाई और वह भी बंटी से प्यार कर बैठी. अपने इस फैसले को दिल में लिए सुखदेवी बहुत बेकरारी से सुबह का इंतजार करने में लगी रही.

पूरी रात आंखोंआंखों में कटने के बाद सुखदेवी सुबह जल्दीजल्दी घर का सारा काम कर के अपनी मां को बता कर बंटी के घर चली गई. सुखदेवी के कदम खुदबखुद आगे बढ़ते जा रहे थे. वह बस कभी बंटी के प्रेम स्नेह के बारे में सोचती तो कभी समाज व लोकलाज के बारे में, रास्ते में जाते वक्त कई बार वापस होने को सोचा, मगर हिम्मत न जुटा सकी. क्योंकि बंटी के उस जुनून को भी भुला नहीं पा रही थी. लेकिन कहीं न कहीं उस के दिल में भी बंटी के लिए प्रेम की भावना उछाल मार रही थी. इन्हीं सोचविचार में वह बंटी के घर के दरवाजे पर पहुंच गई लेकिन अंदर जाने की हिम्मत न जुटा सकी. तभी बंटी की नजर उस पर पड़ गई और फिर उसे अंदर जाना ही पड़ा.

उधर बंटी का चेहरा एकदम पीला पड़ा हुआ था. बस एक रात में ही ऐसा लग रहा था कि वह कई दिनों से बिना कुछ खाएपीए हो. उस की आंखें लाल थीं, जिस से साफ पता चल रहा था कि वह न तो रात भर सोया है और न ही कुछ खायापीया है. उस की आंखों को देख कर सुखदेवी समझ चुकी थी कि वह बहुत रोया है. सुखदेवी को इस का आभास हो चुका था कि बंटी उस से अटूट प्रेम करता है. उस ने आते ही बंटी से पूछ लिया कि वह रोया क्यों था? बस फिर क्या था, इतना सुनते ही बंटी की आंखें फिर छलक आईं. उस की आंखों से छलके आसुंओं ने सुखदेवी को इस दुविधा में उतार दिया कि अब उसे न समाज की सोच, न अपने परिजनों का भय रह गया, वह उस से लिपट गई और उस के चेहरे को चूमने लगी.

उस के बाद उस ने अपने हाथों से बंटी को खाना खिलाया. फिर दोनों तन्हाई में एक कमरे मे बैठ गए. तन्हाई के आलम में बंटी से रहा न गया और उस ने सुखदेवी को अपनी बांहों में भर लिया, सुखदेवी ने विरोध नहीं किया. दोनों ने लांघ दी सीमाएं सुखदेवी ने इस से पहले कभी ऐसे एहसास का अनुभव नहीं किया था. बंटी का हर स्पर्श सुखदेवी की मादकता को और भड़का रहा था. उस दिन बंटी ने सुखदेवी को पूरी तरह पा लिया. सुखदेवी को भी यह अनुभव आनन्दमई लग रहा था. उसे वह सुख प्राप्त हुआ जो पहले कभी नहीं हुआ था. उस दिन के बाद सुखदेवी के मन में भी बंटी के लिए प्यार और बढ़ गया. अब उस के लिए बंटी सब कुछ था.

एक बार जब उस पर जिस्मानी ताल्लुकात कायम हुआ तो बस यह सिलसिला चलता ही रहा. दोनों घंटोंघंटों बातें करते. एकदूसरे के बगैर दोनों के लिए रहना अब मुश्किल होता जा रहा था. लेकिन एक दिन उन के प्यार का भेद उन के परिजनों के सामने खुल गया तो कोहराम सा मच गया. उन को समझाया गया कि उन के बीच खून का संबंध होने के कारण उन की शादी नहीं हो सकती लेकिन वे प्रेम दीवाने कुछ भी सुनने को तैयार नहीं थे. आखिर रिश्ते में दोनों भाईबहन थे, ऐसे में समाज उन की शादी पर अंगुलियां उठाता और उन का जीना मुहाल हो जाता. परिजनों के विरोध से दोनों परेशान रहने लगे. इसी बीच बंटी के परिजनों ने उस की शादी बदायूं जनपद के गांव तिमरुवा निवासी एक युवती से तय कर दी.

शादी की तारीख तय हुई 26 जून, 2020. इस से सुखदेवी तो परेशान हुई ही बंटी भी बेचैन हो उठा. बेचैनी में काफी देर तक वह सोचता रहा, फिर उस ने फैसला कर लिया कि वह अब अपने प्यार को ले कर कहीं और चला जाएगा, जहां प्यार के दुश्मन उन को रोक न सकें. अपने फैसले से उस ने सुखदेवी को भी अवगत करा दिया. सुखदेवी भी उस के साथ घर छोड़ कर दूर जाने को तैयार हो गई. शादी की तारीख से एक दिन पहले 25 जून, 2020 को बंटी सुखदेवी को घर से ले कर भाग गया. उन के भाग जाने की भनक दोनों के घर वालों को लग गई. उन्होंने तलाशा लेकिन कोई पता नहीं चला. प्रेमी युगल के मिले शव पहली जुलाई को गढ़ा गांव के जंगल में देवराज उर्फ दानवीर के यूकेलिप्टस के बाग में बंटी और सुखदेवी की लाशें शीशम के एक पतले  से पेड़ पर लटकी मिलीं.

गांव के कुछ लड़के उधर आए तो उन्होंने यह देखी थीं. दोनों के घर वालों को उन लड़कों ने जानकारी दे दी. सूचना पा कर बंटी के घर वाले और गांव के लोग तो पहुंच गए, लेकिन सुखदेवी के घर वाले वहां नहीं पहुंचे. संबंधित थाना धनारी को घटना की सूचना दे दी गई. सूचना पा कर इंसपेक्टर सतेंद्र भड़ाना कुछ पुलिसकर्मियों के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. थानाप्रभारी की सूचना पर एएसपी आलोक जायसवाल और सीओ (गुन्नौर) डा. के.के. सरोज भी वहां पहुंच गए. सुखदेवी और बंटी की लाशें एक ही पेड़ से लटकी हुई थीं. सुखदेवी के गले में हरे रंग के दुपट्टे का फंदा था तो बंटी के गले में प्लास्टिक की रस्सी का. दोनों के चेहरे किसी तेजाब जैसे पदार्थ से झुलसे हुए थे. प्रथमदृष्टया मामला आत्महत्या का था, लेकिन दोनों के चेहरे झुलसे होने से हत्या का शक भी जताया जा रहा था.

फिलहाल मौके पर मौजूद मृतक बंटी के पिता बिन्नामी से पुलिस अधिकारियों ने आवश्यक पूछताछ की. फिर इंसपेक्टर सतेंद्र भड़ाना को दिशानिर्देश दे कर दोनों अधिकारी चले गए. इस के बाद पुलिस ने जरूरी काररवाई कर भड़ाना ने दोनों लाशों को पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भेज दिया. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मौत का सही कारण नहीं आ पाया. 7 जुलाई, 2020 को सुखदेवी के भाई 25 वर्षीय कुलदीप उर्फ सूखा का गढ़ा के जंगल में नीम के पेड़ से लटका शव मिला. जहां सुखदेवी और बंटी के शव मिले थे, उस से कुछ दूरी पर ही कुलदीप का शव मिला. थानाप्रभारी सतेंद्र भड़ाना  पुलिस टीम के साथ वहां पहुंचे. सीओ के.के. सरोज भी फोरैंसिक टीम के साथ पहुंच गए.

कुलदीप का शव प्लास्टिक की रस्सी से लटका हुआ था और उस का चेहरा भी तेजाब से झुलसा हुआ प्रतीत हो रहा था. लाश का निरीक्षण करने पर पता चला कि तीनों की मौत का तरीका एक जैसा ही था. मुआयना करने के बाद पुलिस को इस मामले में भी हत्या की साजिश नजर आ रही थी. पहले बंटी व सुखदेवी की मौत और अब सुखदेवी के भाई कुलदीप की मौत सिर्फ आत्महत्या नहीं हो सकती थी. हां, आत्महत्या का रूप दे कर हत्यारों ने गुमराह करने का प्रयास जरूर किया था. कुलदीप के घर वालों से पूछताछ की तो पता चला कि कुलदीप 25 जून से ही लापता था. लेकिन सुखदेवी और बंटी की मौत के बाद घर वाले पुलिस के पास जाने से डर रहे थे, इसलिए पुलिस तक सूचना नहीं पहुंची.

गढ़ा गांव में 3 हत्याओं के बाद एसपी यमुना प्रसाद एक्शन में आए. उन्होंने शीघ्र ही केस का खुलासा करने के निर्देश इंसपेक्टर सतेंद्र भड़ाना को दिए. मृतक बंटी के पिता बिन्नामी की तहरीर पर इंसपेक्टर भड़ाना ने अज्ञात के खिलाफ भादंवि की धाराओं 302/201/34 के तहत मुकदमा थाने में दर्ज करा दिया. इस के बाद थानाप्रभारी ने सुखदेवी के घर वालों से पूछताछ की तो सुखदेवी का भाई विनीत उर्फ लाला और किशोरी घर से गायब मिले. पुलिस ने दोनों की तलाश की तो गढ़ा के जंगल से दोनों को हिरासत में ले लिया. उन से पूछताछ की गई तो इन 3 हत्याओं का परदाफाश हो गया. उन से पूछताछ में कई और लोगों के शामिल होने का पता चला.

इस के बाद पुलिस ने गढ़ा गांव के ही जगपाल यादव उर्फ मुल्लाजी और श्योराज को गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ में सभी ने अपना जुर्म स्वीकार कर लिया और घटना के बारे में विस्तार से बता दिया. पता चला कि सुखदेवी और बंटी के घर से लापता हो जाने के बाद उन के घर वाले काफी परेशान हो गए थे. जबकि बंटी सुखदेवी के साथ अपने गन्ने के खेत में छिप गया था. गांव के जगपाल यादव उर्फ मुल्लाजी ने 26 जून को उन्हें देख लिया. उस ने दोनों के खेत में छिपे होने की बात जा कर सुखदेवी के भाई विनीत उर्फ लाला को बता दी. विनीत ने यह बात अपने भाई किशोरी और गांव के श्योराज को बताई. समाज में बदनामी के डर से विनीत ने जगपाल से अपनी बहन सुखदेवी और बंटी को मारने की बात कही और बदले में ढाई लाख रुपया देने को कहा. जगपाल पेशे से अपराधी था, इसलिए वह हत्या करने को तैयार हो गया.

विनीत ने उसे ढाई लाख रुपए ला कर दे दिए. इस के बाद योजना बना कर रात 11 बजे चारों बंटी के खेत में पहुंचे. वे शराब और तेजाब की बोतल साथ ले गए थे. वहां पहुंच कर चारों ने बंटी और सुखदेवी को दबोच लिया. श्योराज ने बंटी को जबरदस्ती शराब पिलाई. फिर श्योराज पास में ही जगपाल के ट्यूबवेल पर पड़े छप्पर में लगी प्लास्टिक की रस्सी निकाल लाया. इस के बाद सुखदेवी के गले को उसी के हरे रंग के दुपट्टे से और बंटी के गले को प्लास्टिक की रस्सी से घोंट कर मार डाला. इसी बीच विनीत का छोटा भाई 25 वर्षीय कुलदीप उर्फ सूखा वहां आ गया. उस ने दोनों हत्याएं करते उन लोगों को देख लिया. विनीत ने उसे समझाबुझा कर वहां से वापस घर भेज दिया. इस के बाद वे लोग दोनों की लाशों को कुछ दूरी पर देवराज यादव उर्फ दानवीर के यूकेलिप्टस के बाग में ले गए.

वहां शीशम के पेड़ से दोनों की लाशों को दुपट्टे व रस्सी की मदद से लटका दिया. इस के बाद उन की पहचान मिटाने के लिए दोनों के चेहरों पर तेजाब डाल दिया. फिर वापस अपने घरों को लौट गए. कुलदीप को दौरे पड़ते थे, उन दौरों की वजह से उस का दिमाग भी सही नहीं था, उस पर भरोसा करना ठीक नहीं था. वह घटना का लगातार विरोध भी कर रहा था. इस पर चारों लोगों ने योजना बनाई कि कुलदीप को भी मार दिया जाए, नहीं तो वह उन लोगों का भेद खोल देगा. 2 जुलाई, 2020 को विनीत और उस के तीनों साथी कुलदीप को बहाने से रात को जंगल में ले गए. वहां गांव के नेकपाल यादव के खेत में कुलदीप का गला पीले रंग के दुपट्टे से घोंट कर उस की हत्या कर दी और उस की लाश को नीम के पेड़ से दुपट्टे से बांध कर लटका दिया.

और उस के चेहरे पर भी तेजाब डाल दिया. फिर निश्चिंत हो कर घरों को लौट गए. कुलदीप की हत्या उन के लिए बड़ी गलती साबित हुई. थानाप्रभारी सतेंद्र भड़ाना ने अभियुक्तों की निशानदेही पर हत्या के एवज में दिए गए ढाई लाख रुपए, शराब के खाली पव्वे और तेजाब की खाली बोतल बरामद कर ली. फिर आवश्यक कानूनी लिखापढ़ी करने के बाद चारों अभियुक्तों विनीत उर्फ लाला, किशोरी, जगपाल और श्यौराज को न्यायालय में पेश किया गया, वहां से उन्हें न्यायिक अभिरक्षा में भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

Love Crime : इश्क में अंधी बेटी ने प्रेमी के संग मिलकर मां को डंडे से पीट कर मार डाला

Love Crime : जावेद से शादी हो जाने के बाद भी सबीना ने शादी से पहले के प्रेमी मोइन से संबंध बनाए रखे. यही उस की सब से बड़ी भूल साबित हुई. फिर एक दिन…

10 अगस्त, 2020 की सुबह. जिला कौशांबी के गांव चपहुआ के लोग अपने खेतों की ओर जा रहे थे. तभी कुछ लोगों की नजर नाले के पास उगी झाडि़यों की तरफ गई. वहां कुछ था. उन लोगों ने करीब जा कर देखा तो किसी महिला की लाश पड़ी थी. ध्यान से देखने पर पता चला कि लाश उन के गांव की रहने वाली 45 वर्षीय गुडि़या की है. गुडि़या बब्बू हसन की पत्नी थी, जो पिछले 2 दिनों से घर से गायब थी. काफी खोजबीन के बाद भी जब उस का पता नहीं चल पाया था तो बब्बू के साले यानी गुडि़या के भाई आफताब ने चरवा कोतवाली में उस की गुमशुदगी दर्ज करा दी थी.

गुडि़या की गुमशुदगी दर्ज होते ही चरवा थाने की पुलिस उस की खोजबीन में जुट गई थी. पुलिस तो उस का पता नहीं लगा पाई, लेकिन 10 अगस्त को नाले के पास झाडि़यों में उस की लाश मिल गई. लाश मिलने की सूचना किसी ने चरवा थाने को दे दी. सूचना मिलते ही थानाप्रभारी संतशरण सिंह पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए और इस बात से एएसपी समरबहादुर को भी अवगत करा दिया. थानाप्रभारी ने लाश की बारीकी से जांचपड़ताल की तो पाया कि मृतका के सिर पर किसी भारी चीज से प्रहार कर उसे मौत के घाट उतारा गया था. मौके की काररवाई पूरी करने के बाद पुलिस ने गुडि़या की लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी.

इस के बाद पुलिस ने मृतका के भाई आफताब की तहरीर पर भादंवि की धारा 302, 201 के तहत अज्ञात के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया. मृतका गुडि़या की हत्या की रिपोर्ट दर्ज होने के बाद एएसपी समरबहादुर के नेतृत्व में एक पुलिस टीम बनाई गई, जिस में थानाप्रभारी संतशरण सिंह, एसआई शिवशरण, हेडकांस्टेबल शिवसागर, कांस्टेबल श्रवण कुमार, छाया शर्मा आदि को शामिल किया गया. इंसपेक्टर संतशरण सिंह ने सब से पहले मृतका की शादीशुदा बेटी सबीना से पूछताछ की, लेकिन उस का रोरो कर बुरा हाल था.  वह ठीक से कुछ नहीं बता पाई.पता चला कि सबीना अपनी बहनों रुबीना, गुलिस्ता और छोटे भाई हसनैन में दूसरे नंबर की थी.

करीब 4 साल पहले उस की शादी कौशांबी के ही दारानगर निवासी जावेद अहमद से हुई थी. पुलिस ने काफी कोशिश की, लेकिन हत्या को एक सप्ताह बीत जाने के बाद भी कुछ पता नहीं चल सका. एएसपी समरबहादुर मामले की प्रगति की बराबर रिपोर्ट ले रहे थे. थानाप्रभारी संतशरण सिंह ने इस बात का पता लगाना शुरू किया कि सबीना अपने पति को छोड़ कर मायके में क्यों रह रही थी, जबकि उस का अपने पति से तलाक भी नहीं हुआ था. पता चला कि सबीना का पति जावेद उम्रदराज था, जिसे वह पसंद नहीं करती थी, इसी वजह से वह अपने बच्चों को ले कर मायके में मां के पास रहती थी.

मुखबिरों का जाल बिछाया गया तो परतें खुलने लगीं, जिस में पुलिस को सबीना संदिग्ध नजर आई. पता चला कि सबीना का आए दिन अपनी मां गुडि़या के साथ विवाद होता था. मांबेटी के बीच विवाद की क्या वजह थी, इस दिशा में पड़ताल की गई तो जानकारी मिली कि शादी के बाद भी सबीना का अपने ही गांव के मोइन से इश्क चल रहा था. अपनी मां की आंखों में धूल झोंक कर वह मोइन से खेतों में मिला करती थी. पुलिस के लिए इतनी जानकारी पर्याप्त थी. चूंकि सबीना शुरू से ही संदेह के दायरे में थी, इसलिए आगे की काररवाई के लिए सबीना और उस के प्रेमी मोइन को पूछताछ के लिए थाने लाया गया और दोनों से पूछताछ की गई.

संदेह पर पुलिस की नजर पूछताछ के दौरान शुरू में सबीना और उस का प्रेमी मोइन अपने आप को निर्दोष बताते रहे. मोइन ने तो यहां तक कहा कि हम दोनों एक ही गांव के रहने वाले हैं, इस लिहाज से हमारा रिश्ता भाईबहन जैसा है. हां, पड़ोसी होने के नाते मेरा इस के घर में शुरू से ही आनाजाना था. लेकिन इस का मतलब यह नहीं है कि यह मेरी माशूका है. मैं इसे अपनी बहन मानता हूं. किसी ने आप को गलत सूचना दे कर हमें फंसाने और बदनाम करने की साजिश की है. सबीना भी पीछे रहने वाली नहीं थी. उस ने भी मोइन की हां में हां मिलाते हुए कहा, ‘‘साहब, मृतका मेरी सौतेली नहीं, सगी मां थी, जिस ने मुझे जन्म दिया था. मैं भला अपनी मां की हत्यारिन कैसे हो सकती हूं.’’

सबीना आवाज में थोड़ा तीखापन लाते हुए आगे बोली, ‘‘मोइन भाई से मेरा कोई ऐसावैसा संबंध नहीं है. आप लोग सुनीसुनाई बातों में आ कर नाहक हमें रुसवा करने पर तुले हैं. मैं आप की इस हरकत की शिकायत बड़े अधिकारियों से करूंगी.’’

थाने के अंदर मोइन और सबीना का यह ड्रामा काफी देर तक चला. लेकिन पुलिस के पास दोनों के अवैध संबंधों की पुख्ता जानकारी थी. इसलिए पुलिस ने जब अपना हथकंडा अपनाया तो दोनों थोड़ी ही देर में टूट गए और अपना गुनाह कबूल कर लिया. दोनों से पूछताछ के बाद गुडि़या की हत्या की जो कहानी सामने आई, इस प्रकार थी. जवानी की दहलीज पर कदम रखते ही सबीना मोइन को चाहने लगी थी, मोइन उस का हमउम्र और पड़ोसी था. प्यार की छलांग में दोनों काफी आगे निकल चुके थे. उन्हें किसी की परवाह नहीं थी न गांव वालों की और न ही अपनेअपने घर वालों की. दोनों एकदूसरे से प्यार करते थे, उन का प्यार आंखों की बेकरारी से उतर कर शारीरिक संबंधों तक पहुंच गया था.

जिस की जानकारी सबीना की मां गुडि़या को हुई तो उस ने बेटी को काफी समझाया पर सबीना कहां मानने वाली थी. उस पर तो मोइन के प्यार का नशा चढ़ा था, जिस की वह कोई भी कीमत अदा करने को तैयार थी. जब वह नहीं मानी तो घर वालों ने उस की शादी कौशांबी जिले के दारानगर निवासी जावेद से तय कर दी. जावेद उम्र में उस से काफी बड़ा था. सबीना ने इस शादी का विरोध किया लेकिन मांबाप, बहनोंबहनोइयों, नातेरिश्तेदारों के आगे उस की एक न चली और आननफानन में जावेद अहमद के साथ उस का निकाह हो गया. सबीना के सारे अरमान धरे रह गए. समय अपनी गति से आगे बढ़ता रहा. देखतेदेखते सबीना 3 बच्चों की मां बन गई. लेकिन उस के दिल को मोइन की मोहब्बत और साथ हमेशा सालता रहा.

अब उसे पति जावेद बूढ़ा नजर आने लगा था. किसी न किसी बात पर सबीना उस से झगड़ती रहती थी. फिर एक दिन वह भी आया जब पति से उस की कुछ ज्यादा ही कहासुनी हो गई. वह पति से नाराज हो कर अपने मायके आ गई. करीब साल भर से वह मायके में ही रह रही थी. सबीना के मायके लौट आने से मोइन की तो जैसे लाटरी लग गई. फिर से दोनों का मिलन होने लगा. अब दोनों बेखौफ हो कर एकदूसरे से मिलते, सबीना की मां गुडि़या इस का पुरजोर विरोध करती थी. लेकिन सबीना के आगे उस की एक नहीं चलती थी. सबीना मां को सफाई दे कर मोइन के साथ मौजमस्ती करती रही.

एक दिन गुडि़या ने सबीना को मोइन के साथ रंगरलियां मनाते रंगेहाथों पकड़ लिया. खेतों से लौट कर उस ने सबीना को अपने पति के पास लौट जाने को कहा, लेकिन सबीना मोइन के प्रेम में दीवानी थी. उस पर मां की बातों का कोई असर नहीं हुआ. उलटे वह मां से लड़नेझगड़ने लगी.

फिर तो आए दिन मांबेटी के बीच झगड़ा होने लगा. मां उसे बारबार अपनी ससुराल जाने को कहती लेकिन वह ससुराल जाने से मना कर देती थी. हत्या की योजना आखिरकार रोजरोज की चिकचिक से आजिज सबीना ने एक कठोर निर्णय ले लिया. मोइन के प्यार में पागल, दीवानी बेटी ने अपनी मां की हत्या की साजिश रच डाली. उसे प्रेमी का प्रेम या हवस के आगे मां सब से बड़ी दुश्मन नजर आने लगी. सबीना ने मां गुडि़या की हत्या की योजना प्रेमी मोइन को बता दी. पहले तो उस ने ऐसा करने से मना किया, लेकिन बाद में हत्या की योजना में शामिल हो गया. सबीना की तरह प्यार में अंधा मोइन प्रेमिका के लिए कुछ भी करने को तैयार था. मोइन ने अपनी योजना में अपने दोस्तों मोनू और मोहम्मद सद्दाम से बात की तो वे उस का साथ देने को तैयार हो गए थे.

तय योजना के अनुसार 8 अगस्त, 2020 को मोइन और उस के साथियों मोनू और मोहम्मद सद्दाम ने मिल कर गुडि़या को उस समय मौत के घाट उतार दिया, जब वह घूमने के लिए खेतों की तरफ निकली थी, उस की हत्या डंडे से पीटपीट कर की गई थी. सिर में भी डंडा मारा गया था जो जानलेवा साबित हुआ. अभियुक्तों की निशानदेही पर पुलिस ने हत्या के लिए प्रयुक्त डंडा, मृतका की एक जोड़ी चप्पलें बरामद कीं. गुडि़या की हत्या के आरोप में उस की बेटी सबीना, उस के आशिक मोइन मोनू उर्फ निहाल और मोहम्मद सद्दाम को जिला न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया गया.

Punjab News : आप नेता की डिनर डैथ साजिश

Punjab News : आम आदमी पार्टी के नेता अनोख मित्तल ने 34 वर्षीय पत्नी मानवी मित्तल उर्फ लिप्सी के साथ एक रिसौर्ट में पहुंच कर एकदूसरे की बांहों में बांहें डाल कर खूब डांस किया, फिर वहीं डिनर किया. इस के ठीक एक घंटे बाद लिप्सी का मर्डर हो गया. किस ने किया उस का मर्डर? लुधियाना पुलिस ने जब हत्या के राज से परदा हटाया तो ऐसी चौंकाने वाली कहानी सामने आई कि…

15 फरवरी, 2025 को लुधियाना निवासी अनोख मित्तल और उस की पत्नी ने बाहर डिनर करने का प्लान बनाया. इस के लिए उन्हें मैक्स रिसौर्ट पसंद आया, जो लुधियाना से करीब 25 किलोमीटर दूर था. चूंकि उन के पास कार थी, इसलिए उन के लिए यह दूरी ज्यादा नहीं थी. वैसे भी अनोख मित्तल आम आदमी पार्टी का नेता था. अनोख मित्तल पत्नी मानवी मित्तल उर्फ लिप्सी को ले कर रात करीब 10 बजे रिसौर्ट पहुंच गया. रिसौर्ट में डीजे की तेज धुन पर मस्त हो कर दोनों ने काफी देर तक डांस किया. पतिपत्नी दोनों बेहद खुश थे. उस दिन अनोख मित्तल ने अपने मोबाइल से डांस के कई वीडियो बनाए, जिन्हें उस ने अपने वाट्सऐप के स्टेटस पर भी लगाया.

इस के बाद डिनर कर दोनों खुशीखुशी अपनी कार से रात करीब 12 बजे वापस घर के लिए चल दिए.  रास्ते में अनोख मित्तल ने पेशाब के लिए अपनी कार को सड़क किनारे रोका और कार से उतर कर सड़क किनारे गया ही था कि इसी बीच पीछे से कार में आए अज्ञात लोगों ने हमला कर कार में बैठी उस की पत्नी लिप्सी को घायल कर दिया.  पत्नी की चीख सुन कर अनोख मित्तल उसे बचाने कार की तरफ दौड़ा तो उस के ऊपर भी हमलावरों ने चाकुओं से हमला कर घायल कर दिया.  हमलावरों ने अनोख मित्तल के चेहरे पर कुछ नशीला कैमिकल फेंका, जिस से वह बेहोश हो कर कार के पास गिर गया. इस बीच हमलावरों ने लिप्सी को कार के बाहर खींच लिया और उस के आभूषण लूट कर अनोख की कार ले क र भाग गए.

वहीं कुछ दूरी पर स्थित एक ढाबे का मालिक जब ढाबा बंद कर उधर से गुजर रहा था तो उस ने कार के बाहर सड़क पर घायल एक महिला व पुरुष को देख कर पुलिस को सूचना दी. सूचना मिलते ही पुलिस घटनास्थल पर पहुंच गई और दोनों घायलों को अस्पताल में उपचार के लिए भरती कराया. अनोख मित्तल ने पुलिस को सारी कहानी बता दी. तब पुलिस को पता चला कि घायल व्यक्ति आम आदमी पार्टी का नेता था.  डाक्टरों के अथक प्रयास के बावजूद उस की पत्नी लिप्सी को नहीं बचाया जा सका. जबकि अनोख मित्तल के हाथ व पैर में चोट आई थी. उस का प्राथमिक इलाज कर दिया गया.

16 फरवरी की सुबह होतेहोते इस घटना से पूरे लुधियाना में सनसनी फैल गई. लुटेरों द्वारा आम आदमी पार्टी (आप) के नेता अनोख मित्तल की पत्नी का कत्ल और लूटपाट की घटना अचानक एक राजनीतिक मुद्दा बन गई.  बड़ी संख्या में पार्टी के कार्यकत्र्ता उस हौस्पिटल के बाहर धरने पर बैठ गए, जिस में लिप्सी का शव रखा हुुआ था. धरना दे रहे लोगों की मांग थी कि लुटरों को जल्द पकड़ा जाए. जानकारी होते ही मीडियाकर्मी भी हौस्पिटल पहुंच गए.  उधर पुलिस घटना के बाद लुटेरों की तलाश में जुट गई. आप नेता अनोख मित्तल व उस के परिवार के लोग भी धरने में शामिल थे. पत्नी की हत्या से अनोख मानसिक रूप से परेशान दिखाई दे रहा था. मीडिया ने उस से पूरे घटनाक्रम की जानकारी ली. 

उस ने मीडिया को बताया, ”हत्यारों ने मेरे ऊपर चाकू से हमला किया और मुंह पर कोई नशीला पदार्थ डाल दिया, जिस के बाद मुझे चक्कर आ गया और मंै गिर गया. इस के बाद मुझे नहींं पता, मैं कब उठा हूं. उठने के बाद आसपास देखा, सब सुनसान था. मैं ने अपनी वाइफ को आवाज लगाई, उस ने जवाब दिया, ‘हां जी.मैं ने 2-3 बार आवाज लगाई. इस के बाद मैं फालो करता हुआ उस तक पहुंचा. एक घंटा मैं वहां चीखताचिल्लाता रहा. वहां से गुजर रहे बंंदों (लोगों) को मदद के लिए आवाज लगाई, लेकिन कोई नहीं रुका. मुझे बताया गया कि वहां से किसी ने पुलिस को फोन किया. यहां कोई आदमी चीख रहा है. उस के बाद पुलिस करीब एक घंटे बाद आई.’’

अनोख ने मीडिया को बताया कि वे लोग रात सवा 10 साढ़े 10 बजे के करीब रिसौर्ट पहुंचे थे. यह पूछने पर कि आप पुलिस से क्या मांग करते हो? तब अनोख मित्तल ने कहा कि मेरा सब कुछ बरबाद हो गया. मेरी तो दुनिया ही उजड़ गई. उन का (हत्यारों) भी कुछ बचेगा नहीं, जिन्होंने ये काम किया है. 

मामला हाईप्रोफाइल पुलिस हुई सक्रिय

देहलों थाने के एसएचओ सुखजिंदर सिंह ने मीडिया को बताया कि 5 हथियारबंद लुटेरों ने सिधवान नहर पुल के पास अनोख मित्तल पर धारदार हथियारों से हमला कर दिया. हमले में पत्नी की मौत हो गई, जबकि पति घायल हो गया. लुटेरे पत्नी के आभूषण व कार लूट कर फरार हो गए. हमलावरों की पहचान के लिए सीसीटीवी कैमरों की जांच की जा रही है. लिप्सी के शव का पोस्टमार्टम 4 डाक्टरों के पैनल ने किया. इस पैनल में डा. अंकुर उप्पल, डा. अजय पाल, डा. सुचेता और डा. सौरव सिंगला शामिल थे. पोस्टमार्टम में खुलासा हुआ कि लिप्सी के सिर के बाईं तरफ, बाजू, कंधे और दाएं बाजू और दोनों हाथों पर तेजधार हथियार से हमला किया गया था. बाईं तरफ सिर पर तेजधार हथियार से किए गए हमले के कारण और खून बहने से ही लिप्सी की मौत हुई थी. 

मामला हाईप्रोफाइल होने के कारण हमलावरों तक पहुंचने के लिए पुलिस तत्परता से जांच में जुट गई. पुलिस ने निर्णय लिया कि अनोख पर डाले गए कैमिकल, जिस से वह बेहोश हो गया था, की पहचान कराई जाए. इस के लिए पुलिस धरनास्थल पर पहुंची और अनोख मित्तल से कहा कि आप का मैडिकल चैकअप कराना है, क्योंकि आप के चेहरे पर लुटेरों ने कोई नशीला पदार्थ डाला था. उस का टेस्ट कराना है. चैकअप के बहाने पुलिस अनोख को अपनी गाड़ी में बैठा कर धरनास्थल से अपने साथ ले गई. हुआ यह था कि जांच के दौरान पुलिस की जब डाक्टरों से बात हुुई, तब डाक्टरों ने बताया कि इलाज के दौरान जब चैक किया गया तो घायल अनोख के चेहरे पर उन्हें कोई कैमिकल नहीं मिला था. इस से पुलिस का शक और बढ़ गया. पुलिस ने तुरंत ऐक्शन लेने का निर्णय लिया.

उधर लुधियाना पुलिस के दिमाग में कुछ और चल रहा था. पुलिस का यह भी मानना था कि लुटेरों ने जब लिप्सी के आभूषण लूट ही लिए थे, फिर उन्होंने उस का कत्ल क्यों किया? लिप्सी की बांह व गले पर चाकुओं से प्रहार कर उस की हत्या की गई थी. पति अनोख ने विरोध किया था, लेकिन लुटेरों  ने उसे मामूली रूप से ही घायल किया. उस के पैर की चोट भी संदेह के घेरे में थी.  इसी के साथ पुलिस ने खामोशी के साथ घटना वाली रात अनोख की लोकेशन खंगाली. जांच के दौरान पुलिस को पता चला कि अनोख द्वारा घटना के तुरंत बाद किसी को मैसेज किया गया था, जिस में केवल एक शब्द डनलिखा था. 

छानबीन में पता चला कि उस ने अपनी गर्लफ्रेंड को यह मैसेज भेजा था. उस ने अपने मोबाइल से रिसौर्ट में पत्नी के साथ किए डांस का वीडियो बना कर अपने वाट्सऐप के स्टेटस पर भी लगाया था. पुलिस की पारखी नजर इसी स्टेटस पर पड़ी. ऐसा उस ने क्यों किया? क्योंकि इस से पहले उस ने कभी अपनी पत्नी के साथ कोई फोटो या वीडियो नहीं बनाया था, न अपलोड किया था. यह बात पुलिस को लिप्सी के मायके वालों ने पूछताछ के दौरान बताई थी.  ये सभी सबूत पुलिस को अनोख की ओर इशारा कर रहे थे. शक की सुई पूरी तरह अनोख पर रुक रही थी. लेकिन पुलिस उसे हिरासत में ले कर पूछताछ करने से बच रही थी. क्योंकि वह पार्टी के समर्थकों व रिश्तेदारों के साथ धरने पर बैठा था. सभी की हमदर्दी उस के साथ थी. 

धरने से उठा कर उसे कैसे गिरफ्तार करें? पुलिस नहीं चाहती थी कि उस की किसी काररवाई से कोई बवाल हो. क्योंकि पंजाब में आप की सरकार थी. कुछ गड़बड़ होने पर पुलिस के ऊपर गाज गिरते देर नहीं लगती. तब पुलिस ने यह योजना बनाई थी.  पुलिस उसे धरनास्थल से हौस्पिटल न ले जा कर सीधे थाने ले गई. थाने में पुलिस ने सभी सबूतों को दिखाते हुए अनोख मित्तल से सच्चाई बताने को कहा. पुलिस के रंगढंग देख कर अनोख मित्तल की सिट्टीपिट्टी गुम हो गई. वह ज्यादा देर नहीं ठहर सका. उस ने पुलिस के सामने सच्चाई उगल दी और अपना जुर्म कुबूल कर लिया. अनोख मित्तल ने बताया कि उस ने अवैध संबंधों के चलते ही पत्नी की हत्या सुपारी दे कर कराई थी. 

इस मामले में चौंकाने वाले खुलासे हुए. रिसौर्ट में पार्टी के नाम पर उस ने पत्नी के साथ विश्वासघात किया. हत्या वाली रात उस ने पत्नी को शातिराना तरीके से षडयंत्र रच कर सुपारी किलरों के हाथों अपने सामने ही मौत के घाट उतरवाया. पुलिस कमिश्नर कुलदीप चहल ने बताया कि वह काफी समय से पत्नी की हत्या कराना चाहता था. पिछले एक साल से उसे इस काम के लिए आदमी नहीं मिल रहे थे. अपनी गर्लफ्रेंड की मदद से वह हत्या में शामिल गुरदीप सिंह उर्फ मान से मिला, जिस ने इस हत्याकांड के लिए आदमी उपलब्ध कराए. 2 प्रयास विफल होने के बाद वह तीसरे प्रयास में सफल हो गया था.

इस के बाद से थाना डेहलों, सीआईए-3 की टीमों ने आरोपी पति अनोख व उस की गर्लफ्रेंड प्रतीक्षा को हिरासत में ले लिया. दिन भर एक के बाद एक आरोपियों को पकड़ते हुए इस हत्याकांड का परदाफाश 24 घंटे के अंदर ही पुलिस ने कर दिया. दरअसल, गर्लफ्रेंड की वजह से ही यह हत्याकांड हुआ था. अनोख मित्तल अपने वार्ड का आप पार्टी का अध्यक्ष था. करीब 3 महीने पहले वह आप पार्टी में शामिल हुआ था. अनोख को पार्टी में एक विधायक ने शामिल कराया था. इस से पहले वह कांग्रेस पार्टी में था. पुलिस ने इस हत्याकांड के 6 आरोपियों गुरदीप सिंह उर्फ मान, सोनू सिंह, अमृतपाल सिंह उर्फ बल्ली निवासी नंदपुर साहनेवाल, सागरदीप सिंह उर्फ तेजी निवासी ढंडारी कलां, अनोख मित्तल, प्रेमिका प्रतीक्षा निवासी जमालपुर को गिरफ्तार कर लिया,

जबकि सातवां आरोपी कौन्ट्रैक्ट किलर गिरोह का सरगना गुरप्रीत सिंह उर्फ गोपी निवासी ढंडारी कलां फरार है. पुलिस ने अनोख व हमलावरों की कारें भी बरामद कर लीं. धरने पर बैठे लोग उस समय सन्न रह गए, जब उन के सामने हत्यारे का चेहरा सामने आया. 15 घंटे पहले उस की पत्नी की हत्या हो चुुकी थी. वह कातिलों को पकडऩे की पुलिस से मांग कर रहा था. उस की हमदर्दी में आप पार्टी के सैकड़ों कार्यकर्ता उस के साथ धरने पर बैठे थे. लेकिन पत्नी के हत्यारे के रूप में अनोख मित्तल का नाम सामने आते ही धरना समाप्त कर आंदोलनकारी उसे ही कोसने लगे.

अनोख और प्रेमिका की थी खूनी साजिश

उस के सिर प्रेमिका प्रतीक्षा का जादू इस कदर पर चढ़ा था कि उसे न तो पत्नी लिप्सी के साथ 12 साल बिताया समय दिखा और न ही अपने बच्चे नजर आए. जब लिप्सी पूरी तरह से घायल हो गई और मौत के करीब पहुंच गई, तब हमलावर उसे मरा समझ कर फरार हो गए. पुलिस के अनुसार, घटना के 45 मिनट बाद अनोख ने पुलिस को फोन किया. 10 मिनट में पुलिस घटनास्थल पर पहुंच गई और दोनों घायलों को डीएमसी अस्पताल में भरती कराया. अस्पताल में भी अनोख फूटफूट कर रोता रहा कि उस का परिवारय लुट गया और वह बरबाद हो गया. 

इस हत्या में बराबर की भागीदार अनोख की प्रेमिका प्रतीक्षा पुलिस और परिवार वालों की आंखों में धूल झोंकने के लिए लिप्सी की ससुराल पहुंची और परिवार के साथ सांत्वना प्रकट की. अनोख मित्तल का उस की कार बैटरी की दुकान पर काम करने वाली 24 वर्षीय प्रतीक्षा से लव अफेयर पिछले 2 सालों से चल रहा था. धीरेधीरे दोनों के शारीरिक संबंध हो गए. दोनों ही दीनदुनिया से बेफिक्र अपनी ही दुनिया में मस्त रहने लगे. अब अनोख मित्तल एक पल भी प्रतीक्षा के बिना नहीं रह पाता था. एक साल पहले पति के व्यवहार में आए बदलाव से पत्नी लिप्सी को शक हुआ कि जरूर दाल में कुछ काला है. किसी तरह लिप्सी को अपने पति व उस की दुकान में काम करने वाली प्रतीक्षा के नाजायज संबंधों की जानकारी हो गई. जानकारी होते ही लिप्सी ने विरोध शुरू कर दिया. 

इस के बाद तो आए दिन पतिपत्नी के बीच इसी बात को ले कर झगड़ा होने लगा. अनोख मित्तल ने पत्नी को सफाई देते हुए कहा, ”तुम बेकार में शक कर रही हो. वह कर्मचारी है और मेरे कारोबार को अच्छी तरह से चला रही है. इस से कुछ लोगों ने तुम्हारे कान भर दिए हैं. तुम बेकार ही शक कर रही हो.’’ कुछ दिन सब कुछ ठीक रहा. लेकिन लिप्सी को कुछ दिन बाद ही पता चल गया कि प्रतीक्षा और उस के बीच नाजायज संबंध अभी भी बने हुए हैं. रोजरोज के झगड़ों से परेशान हो कर अनोख ने पत्नी से तलाक लेना चाहा. लेकिन लिप्सी तलाक देने को तैयार नहीं हुई. 

लिप्सी ने पति अनोख से साफसाफ कह दिया, ”प्रतीक्षा को नौकरी से तुरंत हटा दो.’’ 

लेकिन अनोख ने पत्नी से स्पष्ट कह दिया कि प्रतीक्षा उस के कारोबार की अच्छी तरह देखभाल कर रही है. उसे हटाने से कारोबार में भारी घाटा हो जाएगा, इसलिए वह उसे नहीं हटा सकता. अनोख चाहता था कि लिप्सी से उस का किसी भी तरह तलाक हो जाए, ताकि वह अपनी जिंदगी अपनी तरह से जी सके. इस की भनक लिप्सी के मायके वालों को भी लग गई थी. लेकिन वे लिप्सी के परिवार में किसी प्रकार के हस्तक्षेप से इसलिए बच रहे थे, ताकि बेटी का परिवार न बिखरे. अनोख के काफी जोर डालने के बावजूद लिप्सी किसी भी कीमत पर तलाक के लिए राजी नहीं हुई. तब अनोख मित्तल और प्रतीक्षा ने अपने प्यार के रास्ते के रोड़े को हटाने के लिए एक खौफनाक साजिश रची.

शक न हो, इसलिए वीकेंड पर डिनर का प्रोग्राम बनाया. उस ने जानबूझ कर शहर से बाहर के रिसौर्ट को चुना, क्योंकि वहां के रास्ते में सन्नाटा रहता है. आने वाले पल से पूरी तरह अंजान लिप्सी पति के कहने पर डिनर के लिए खुशीखुशी तैयार हो गई थी. रिसौर्ट में अनोख व लिप्सी ने डिनर से पहले एकदूसरे की बांहों में बांहें डाल कर देर तक डांस किया. यह अनोख की साजिश का पहला पड़ाव था. इस के बाद दोनों ने डिनर किया. अनोख जानता था कि जिस पत्नी के साथ वह डिनर कर रहा है, अब से ठीक एक घंटे बाद वह मौत की नींद सो चुकी होगी. उस ने डांस के वीडियो अपने वाट्सऐप की स्टेटस पर लगाए थे, ताकि लोगों को यकीन हो सके कि पतिपत्नी कितने खुश थे. जबकि इस से पहले कभी उस ने एक भी तसवीर या वीडियो स्टेटस पर नहीं लगाई थी. यह उस की चाल थी. वह चाहता था कि कत्ल इस अंदाज में हो कि किसी को शक न हो.  

अनोख ने पत्नी लिप्सी की हत्या के लिए इस से पहले 2 बार प्लानिंग की थी. दोनों ही बार प्लान नाकाम होने के बाद उस ने फुलप्रूफ प्लान बनाया था. उस ने शातिर अपराधी की तरह प्लानिंग की, फिर सोचसमझ कर लिप्सी को मरवा दिया. उस ने स्टोरी के रूप में पूरी घटना को अंजाम दिया.

पति ने ऐसे दिया मौत का सिगनल

घटना वाली रात 12 बजे के आसपास  रिट्ज कार से पतिपत्नी हंसीखुशी अपने घर के लिए रवाना हुए थे. रिसौर्ट से लगभग 200 मीटर की दूरी पर रास्ते में एक सुनसान जगह पर पेशाब जाने के बहाने उस ने कार रोक दी और कार से निकल कर चला गया. लेकिन काफी देर तक इंतजार करने के बाद भी सुपारी किलर नहीं आया. जबकि इस के लिए उस ने व प्रतीक्षा ने सुपारी किलर से संपर्क किया था. यह सुपारी किलर गुरदीप सिंह उर्फ मान, अनोख के यहां पहले काम कर चुका था. हत्या का ढाई लाख रुपए में सौदा तय हो जाने के बाद अनोख ने उसे 50 हजार रुपए एडवांस भी दे दिए थे. शेष 2 लाख रुपए काम होने के बाद देना तय हुआ था. 

अनोख और प्रतीक्षा की योजना यह थी कि लिप्सी को रास्ते से हटाने के बाद दोनों शादी कर लेंगे. जब सुपारी किलर गुरदीप सिंह अनोख के बताए अनुसार घटना को अंजाम देने नहीं पहुंचा तो अनोख ने समझा कि गुरदीप की नीयत खराब हो गई है. अनोख तब कार में आ कर बैठ गया और कार फिर से चल दी. लेकिन यह अनोख मित्तल की भूल थी. अचानक उसे याद आया कि गुरदीप से जो प्लान तय हुआ था, उस के अनुसार वह उसे सिगनल देना भूल गया था. अनोख और गुरदीप के बीच तय हुआ था कि जब वह वाशरूम के लिए कार को सड़क की साइड में रोक कर जाएगा, तब वह सिगनल के रूप में पार्किंग लाइट जलाएगा. इस पार्किंग लाइट का मतलब था कि अब सुपारी किलर अपने काम को अंजाम दे दे. 

अपनी इस भूल के सुधार के लिए अनोख ने कुछ दूर जाने के बाद कार साइड में फिर रोक दी. 6 मिनट के दौरान अनोख ने दूसरी बार कार रोकी थी. इस पर लिप्सी ने पूछा, ”अब कार क्यों रोक दी?’’ 

अनोख ने कहा, ”जी कुछ अजीब सा हो रहा है. वोमिटिंग (उल्टी) आ रही है.’’ 

कार रोकते ही उस ने कार की पार्किंग लाइट जला दी और कार से उतर कर सड़क किनारे चला गया.  पार्किंग लाइट का सिगनल मिलते ही अनोख की कार के पीछे आ रही सुपारी किलर की कार उस की कार के पास आ कर रुकी और कार में बैठी लिप्सी को बाल पकड़ कर 4-5 हमलावरों ने बाहर खींच लिया और चाकू से वार कर उस की हत्या कर उस के पहने आभूषण लूट लिए. लूटपाट की घटना वास्तविक लगे, इस के लिए अनोख ने अपने हाथ और पैर पर चाकू से हल्के वार करा लिए. घटना को अंजाम देने के बाद हमलावर अनोख की कार ले कर भाग गए, ताकि सीन परफेक्ट लगे.

कहते हैं कि क्रिमिनल चाहे जितना चालाक हो, लेकिन खुशी के अतिरेक में कोई न कोई भूल कर ही जाता है. यही बात अनोख के साथ हुई. एक चीज ने उसे पूरे तौर पर हत्यारा साबित कर दिया. हुआ यह कि सुपारी किलर द्वारा घटना को अंजाम दे कर जाने के बाद अनोख ने उत्साह में अपने मोबाइल से प्रेमिका को वाट्सऐप से एक मैसेज किया डन’. बस उस की यही भूल उस के गले की फांस बन गई. पुलिस ने जब अनोख के मोबाइल को चैक किया तो पता चल गया कि उस ने मैसेज अपनी प्रेमिका प्रतीक्षा को किया था. भले ही उस ने शातिराना तरीके से षडयंत्र रच कर घटना को अंजाम दिया था, लेकिन घटना के 24 घंटे में ही वह कानून के शिंकजे में पूरी तरह से आ चुका था.

लिप्सी के फेमिली वालों ने रिसौर्ट में जो वीडियो रिकौर्ड हुआ था, उसे भी देखा. इस से पहले अनोख द्वारा अपने मोबाइल के स्टेटस पर लगाए फोटो और वीडियो देख कर मायके वाले भी हैरान थे. वे सोच रहे थे कि अचानक से इतना प्रेम कैसे पैदा हो गया, जो डांस करते हुए वीडियो स्टेटस पर लगा रहा है? अनोख लिप्सी से प्यार नहीं करता था, उस दिन उस ने दिखावा किया था. मायके वालों ने सोचा कि चलो कुछ तो अच्छा हो रहा है. लेकिन इस दिखावे के पीछे अनोख की क्या मंशा है, वे नहीं समझ पाए. पतिपत्नी बहुत खुश थे. लिप्सी के कत्ल से पहले बेहद खूबसूरत लम्हे इस खूबसूरत जोड़े ने गुजारे. यह अनोख की खूनी साजिश थी, उस के दिमाग में तो कुछ और ही चल रहा था. उसे मालूम था कि अगले एक घंटे के बाद उस के साथ डांस कर रही उस की खूबसूरत पत्नी लिप्सी का कत्ल हो जाएगा और वह उस की कैद से हमेशाहमेशा के लिए मुक्त हो जाएगा. लिप्सी पति के इस षडयंत्र से पूरी तरह अंजान थी.

पतिपत्नी के जिस रिश्ते को 7 जन्मों का बंधन माना जाता है, वही रिश्ते एक जन्म भी नहीं चल पा रहे हैं. इस मामले में भी अवैध संबंधों की बात सामने आई है. अवैध संबंधों की परिणति क्या होती है, इस स्टोरी से भलीभांति समझा जा सकता है. अपनी पत्नी का कत्ल कराने के बाद अनोख को प्रेमिका प्रतीक्षा भी नहीं मिली, जबकि उस ने अपनी बसीबसाई गृहस्थी  को उजाड़ लिया. हत्या के जुर्म में गिरफ्तार सभी आरोपियों को न्यायालय के समक्ष पेश कर जेल भेज दिया गया.

 

 

Crime News : दो प्रेमियों के साथ मिलकर किया पति का कत्ल

Crime News : अपने 2 बच्चों और पति सुखपाल की परवाह करने के बजाए मंजू अपने ननदोई राजीव और दूसरे प्रेमी राजकुमार के साथ इश्क लड़ा रही थी. फिर एक दिन अपने लालची प्रेमियों के साथ मिल कर मंजू ने ऐसी योजना बनाई कि…

15 जुलाई, 2020 की सुबह करीब 9 बजे मंजू नाम की महिला गांव के कुछ लोगों के साथ जनपद मुरादाबाद के थाना मूंडा पांडे पहुंची. उस ने थानाप्रभारी नवाब सिंह को बताया कि वह 4 दिन पहले अपने पति सुखपाल के साथ ननद ऊषा की ससुराल खाईखेड़ा आई थी. कल 14 जुलाई, 2020 की रात को उस का पति वहीं से अचानक गायब हो गया. पुलिस पूछताछ में मंजू ने यह भी बताया कि उस का पति देर रात अपने बहनोई राजीव के साथ घर से निकला था. लेकिन उस के बाद उस का बहनोई तो घर वापस आ गया लेकिन उस के पति का कोई अतापता नहीं है.

किसी मामले में अगर किसी आरोपी का नाम पहले ही सामने आ जाता है तो पुलिस की सिरदर्दी काफी कम हो जाती है. इस मामले में भी पुलिस ने कुछ राहत की सांस ली और सब से पहले इस आरोपी राजीव कुमार को हिरासत में लेना जरूरी समझा. थानाप्रभारी उसी वक्त राजीव के गांव खाईखेड़ा पहुंचे तो राजीव तो घर पर नहीं मिला. लेकिन उस की पत्नी ऊषा ने जो बताया, उस ने इस केस को और भी उलझा दिया. ऊषा ने बताया कि उस की भाभी के साथ मुरादाबाद निवासी राजकुमार भी था, जिसे वह भैया बता रही थी. 14 जुलाई की देर रात वह सभी मेहमानों को खाना खिलाने के बाद घर का काम खत्म कर अपने बच्चों को ले कर छत पर सोने चली गई थी. उस के बाद उस का भाई सुखपाल अचानक कहां गायब हो गया उसे कुछ नहीं मालूम.

उस रात उस के भाई सुखपाल, राजकुमार ने उस के पति के साथ शराब भी पी थी. जिस के बाद तीनों पर ज्यादा नशा हावी हो गया तो गांव के पास बगीचे में आम खाने की बात कह कर घर से निकल गए थे. वहां पर आम खाने के बाद राजीव और राजकुमार तो घर वापस आ गए, लेकिन सुखपाल अचानक गायब हो गया था. पुलिस जिस केस को आसान समझ रही थी, इस जानकारी के बाद वह पुलिस के लिए काफी जटिल बन गया. क्योंकि ऊषा ने पुलिस को जो जानकारी दी थी, वह सुखपाल की बीवी मंजू ने ही उस के पूछने पर बताई थी. इस मामले में पुलिस को सब से पहले सुखपाल की बीवी मंजू की बातों में झोल नजर आ रहा था. लेकिन पुलिस को लिखित तहरीर मंजू ने दी थी.

इसलिए पुलिस पहले इस मामले में जानकारी जुटाना चाहती थी. पुलिस ने सब से पहले राजीव कुमार से पूछताछ करना ठीक समझा. उस की तलाश की गई तो वह जल्दी ही पुलिस के हत्थे चढ़ गया. राजीव ने पुलिस को गुमराह करते हुए बताया कि उस रात वह उन सभी के साथ आम खाने बाग में गया जरूर था, लेकिन आते समय सुखपाल न जाने अचानक कहां गायब हो गया. राजीव ने पुलिस को यह भी बताया कि उस की बीवी मंजू भी उस के साथ थी. उस के बाद उन्होंने उसे काफी ढूंढने की कोशिश की, लेकिन उस का कहीं पता न चला. उन्होंने सोचा कि उसे शायद कुछ ज्यादा ही नशा हो गया था. जिस के कारण वह पीछे आतेआते कहीं बैठ गया होगा.

उन्हें उम्मीद थी कि वह खुद ही घर चला आएगा. लेकिन हम सब देर रात तक उस का इंतजार करते रहे, वह नहीं आया. उस के बाद उसे सुबह में भी सब जगह पर तलाशा लेकिन उस का कहीं भी अतापता न चल सका. इस मामले की पूछताछ की हर कड़ी में एक नई जानकारी जुड़ रही थी. जिस से पुलिस को लगने लगा था कि सुखपाल इस दुनिया में नहीं रहा. राजीव कुमार की बातों से पुलिस को सारी कहानी समझ आ गई थी. पुलिस यह भी जानती थी कि यह मामला इतनी जल्दी खुलने वाला नहीं है. तभी थानाप्रभारी ने अपनी चाल चलते हुए राजीव कुमार से प्रश्न किया, ‘‘लेकिन उस की बीवी मंजू का कहना है कि तुम ने उस की हत्या कर डाली है.’’

यह सुनते ही राजीव बोला, ‘‘वो सरासर झूठ बोल रही है, सर. सुखपाल की हत्या की पूरी योजना तो उसी की थी. इस में वह खुद शामिल थी.’’

इस के बाद पुलिस ने सुखपाल की पत्नी मंजू को भी हिरासत में ले लिया. इस केस के खुलते ही पुलिस ने मंजू और उस के ननदोई राजीव कुमार की निशानदेही पर कुएं से सुखपाल का शव बरामद कर लिया. शव मिलने के बाद पुलिस ने काररवाई कर के उस की लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी. पोस्टमार्टम हो जाने के बाद पुलिस ने उस की डैडबौडी सुखपाल के परिवार वालों को सौंप दी. पुलिस पूछताछ में राजीव, मंजू और उस के प्रेमी राजकुमार के जुर्म की जो दास्तान उभर कर सामने आई. वह इस प्रकार थी—

उत्तर प्रदेश के मुरादाबादरामपुर हाईवे से उत्तर दिशा में एक छोटा सा गांव है हरसैनपुर. इस गांव में ठाकुर जाति के लोग रहते हैं. आज भी सरकार द्वारा उपलब्ध कराई जा रही आधुनिक सुखसुविधा प्रदान करने के बाद भी यह गांव पिछड़ा हुआ सा लगता है. यहां के घरों में आज तक बाथरूम और शौचालय तक नहीं है. इसी गांव में रहता था, रतन सिंह का परिवार. रतन सिंह के पास गांव में लगभग 8 बीघा खेती की जमीन थी, जिस के सहारे उस के परिवार का पालनपोषण होता था. रतन सिंह का सीमित परिवार था. उस के घर में उस की बीवी और 3 बच्चों को मिला कर 5 सदस्य थे.

3 बच्चों में सब से बड़ी बेटी ऊषा थी. उस के बाद राजबाला तथा सुखपाल थे. दोनों बेटियों की शादी हो चुकी था. सुखपाल ने बड़े होते ही घर की जिम्मेदारी संभाल ली. सुखपाल राजगीर का काम करता था. अब से लगभग 6 साल पहले उस का विवाह गांव कनौबी निवासी राजेंद्र की बेटी मंजू के साथ हो गया था. शुरू से मंजू का सपना किसी शहरी युवक से शादी करने का था. जो सुखपाल के साथ शादी होने के बाद एक छोटे से घर में आ कर बिखर गया था. मंजू सुखपाल को कभी भी अपने दिल में जगह नहीं दे पाई थी. दूसरी तरफ सुखपाल उस के लिए कुछ भी करने को तैयार रहता था. मांबाप की मौत के बाद सुखपाल अकेला पड़ गया था. उस के घरेलू खर्च भी बढ़ गए थे. लेकिन खेती से सीमित आय ही होती थी.

जिस के कारण उसे गांव में राजगीरी करनी पड़ती थी. वह सारे दिन काम करने के बाद शाम को थकाहारा घर लौटता और रात का खाना खा कर जल्दी सो जाता. यह बात मंजू को बिलकुल पसंद नहीं थी. उस के बावजूद भी वह सुखपाल से तरहतरह की फरमाइशें पूरी कराती रहती थी, जिन्हें वह किसी न किसी तरह से पूरी करता था. लेकिन मंजू को इतने से भी तसल्ली नहीं होती थी. वह जानती थी कि सुखपाल उसे बहुत प्यार करता है. इसी का लाभ उठाते हुए वह उस पर हावी होती गई. इसी बीच मंजू ने एक बेटे को जन्म दिया. जिस का नाम अभिमन्यु रखा गया. लेकिन प्यार से सब उसे अभि कह कर पुकारते थे. सुखपाल को उम्मीद थी कि बच्चा हो जाने के बाद पत्नी के व्यवहार में बदलाव आ जाएगा, लेकिन उस का दिमाग और भी सातवें आसमान पर चढ़ गया था.

घर में तकरार बढ़ी तो सुखपाल शराब का आदी हो गया. एक बच्चे की मां बन जाने के बाद मंजू की खूबसूरती में चार चांद लग गए थे. इस वह और भी ज्यादा सजसंवर कर रहने लगी थी. राजीव का गांव सुखपाल के गांव के पास ही था. वह वक्तबेवक्त ससुराल आताजाता रहता था. मंजू के बच्चा होने के समय राजीव काफी समय तक अपनी बीवी ऊषा के साथ वहीं पर रहा था. सुखपाल दिन निकलते ही अपने काम पर चला जाता, लेकिन राजीव दामाद होने के नाते घर पर ही पड़ा रहता था. मौके का फायदा उठाते हुए वह मंजू के साथ लच्छेदार बातें करने लगा. जो उस के मन को भी भाने लगी थीं.

राजीव मंजू से कभीकभी मजाक भी कर लेता था. मंजू उस की बात का बुरा नहीं मानती थी. उसी दौरान राजीव मंजू के सौंदर्य को देख विचलित हो उठा. यही हाल मंजू का भी था. उस के दिल पर ननदोई हावी हुआ तो उस की खुशी चेहरे पर नजर आने लगी. वैसे भी वह अपने पति के साथ अनचाहा रिश्ता रख रही थी. मंजू पहले से ही खुले गले का कुरता पहनती थी, जिस में से उस के वक्ष झांकते दिखाई देते थे. मंजू जब कभी घर के कामकाज करती तो वह बिना चुन्नी गले में डाले काम पर लग जाती थी. राजीव घर में अकेला होता तो उस की निगाहें उसी के गले पर टिकी रहतीं. मंजू इतनी अंजान नहीं थी कि कुछ समझ न सके. चूंकि वह भी राजीव की भावनाओं से खेलना चाह रही थी, इसलिए हवा देती रही.

एक दिन मंजू घर में अकेली थी. सुखपाल किसी काम से बाहर गया हुआ था. उस का बेटा अभि सोया था. घर में बाथरूम न होने के कारण मंजू घर का दरवाजा बंद कर अंदर चारपाई खड़ी कर नहाने लगी. उस वक्त राजीव घर में मौजूद था. मंजू को नहाते देख उस का दिल बेकाबू हो उठा. मंजू का वह सैक्सी रूप देख राजीव मदहोश सा हो गया. उस के बाद मंजू पेटीकोट और ब्लाज में ही कमरे के अंदर आ गई. राजीव मंजू के आमंत्रण को समझ चुका था. मौका पाते ही राजीव ने मंजू को अपनी आगोश में समेट लिया. राजीव की बाहों में आ कर मंजू का शरीर ढीला पड़ गया. वह रोमांचित हो कर राजीव के शरीर से चिपक गई. राजीव ने मंजू को कमरे में पड़ी चारपाई पर लिटा दिया और अपने होंठ उस के होठों पर रख दिए. मंजू जिस प्यार के लिए सालों से छटपटा रही थी, राजीव ने उसे पल भर में दे दिया था.

इस के बाद मंजू दूसरे बच्चे की मां भी बन गई थी. इस बार उस ने एक बच्ची को जन्म दिया था. दोनों के बीच अवैध संबंधों का सिलसिला अनवरत चलता रहा. अपनी पत्नी को भुला कर राजीव ससुराल में पड़ा रहता था. सुखपाल काम में व्यस्त रहता था. इस के बावजूद उसे अपनी बीवी के कारनामों की जानकारी हो गई थी. सुखपाल ने मंजू को समझाने की काफी कोशिश की, लेकिन वह उस की एक भी सुनने को तैयार नहीं थी. इस का नतीजा यह हुआ कि दोनों में आए दिन मनमुटाव रहने लगा. मनमुटाव के चलते मंजू एक दिन सुखपाल से झगड़ा कर के मुरादाबाद शहर के गोविंद नगर में रहने वाली अपनी मौसी के घर चली गई. उस के बाद वह काफी समय तक मौसी के घर ही रही.

इसी दौरान उस की मुलाकात राजकुमार से हुई. राजकुमार उस की मौसी का पड़ोसी था. उस का मौसी के घर पर पहले से ही आनाजाना था. राजकुमार ने मंजू को देखा तो वह उस की खूबसूरती पर मोहित हो गया. एक दिन उस की मौसी ने राजकुमार को उस के पति द्वारा प्रताडि़त करने की सारी दास्तान सुना दी. राजकुमार के हाथों में मंजू की कमजोर नस आई, तो वह उस का फायदा उठाने की सोचने लगा. एक दिन राजकुमार ने मंजू के सामने सहानुभूति दिखाते हुए कहा कि उसे कभी भी कोई मदद चाहिए तो वह हर समय तैयार है. राजकुमार भी सुंदरसजीला युवक था. वह भी मंजू के दिल को भाने लगा था. जब मंजू को अपनी मौसी के घर गए हुए काफी समय हो गया तो सुखपाल उस से मिलने के लिए गोविंद नगर चला गया. काफी दिन बाद सुखपाल के आने से नाराज मंजू उस से सीधे मुंह नहीं बोली.

दोनों के मनमुटाव को देख मंजू की मौसी ने दोनों को आमनेसामने बिठा कर बात की, ताकि उन की समस्या का समाधान हो सके. लेकिन मंजू ने उस के साथ गांव जाने से साफ मना कर दिया. मंजू ने सुखपाल को सलाह दी कि अगर वह उसे साथ रखना चाहता है तो गांव छोड़ कर मुरादाबाद आ कर बस जाए. मंजू की बात सुनते ही सुखपाल का पारा हाई हो गया. लेकिन वह अपने बच्चों को बहुत ही प्यार करता था. इसलिए कुछ नहीं बोला. उसी दौरान राजकुमार भी वहां आ गया. राजकुमार ने भी मंजू की हां में हां मिलाते हुए सुखपाल को मुरादाबाद आने की सलाह दे डाली. राजकुमार ने सुखपाल को यह बात भी बता दी थी कि उस की मौसी के पास एक प्लौट बिक रहा है.

अगर वह चाहे तो उसे खरीद कर वहां मकान बना कर रह सकता है. राजकुमार जानता था कि सुखपाल राजगीरी का काम जानता है. उस ने सुखपाल को बताया कि गांव में राजगीरी में काफी कम पैसा मिलता है. अगर शहर में काम करेगा तो अच्छी आमदनी होगी. अपने बच्चों के भविष्य को देखते हुए सुखपाल का मन बदल गया. बीवी की चाहत और बच्चों के प्यार को देखते हुए उस ने गांव जाते ही अपने खेत की 6 बीघा जमीन बेच दी. उस ने राजकुमार के घर के पास ही गोविंद नगर में 12 लाख रुपए का बनाबनाया मकान खरीद लिया. फिर वह गांव छोड़ कर बीवीबच्चों के साथ मुरादाबाद के गोविंद नगर में रहने लगा था. सुखपाल के हाथ में जो हुनर था, वह उस के सहारे कहीं भी पैसा कमा सकता था.

मुरादाबाद जाने के बाद वह वहीं पर राजगिरि का काम करने लगा. सुखपाल सुबह काम पर निकल जाता और देर रात तक घर लौटता था. राजकुमार ने मंजू के साथ मौज मस्ती करने के लिए जो जाल फैलाया था, वह उस में कामयाब हो गया था. सुखपाल की गैरमौजूदगी में वह मंजू के पास जाने लगा. मंजू यह तो पहले ही जानती थी कि उस का पति उस की देह को पढ़ने में पूरी तरह नाकाबिल है. गांव में रहते हुए उस ने अपने शरीर का सुख अपने ननदोई के साथ भोगा था. शहर आ कर उस की मुलाकात राजकुमार से हुई तो उस ने उस के साथ भी अवैध संबंध बना लिए. राजकुमार से अवैध संबंध बनने के बाद वह दुनियादारी को भूल गई.

राजकुमार चालाक युवक था. उस ने अपनी चालाकी से मंजू को फंसा कर उस की गांव की जमीन बिकवा कर मकान भी खरीदवा दिया था. उस का अगला कदम सुखपाल को अपने रास्ते से हटा कर मंजू को पूरी तरह से अपने कब्जे में करना था. अपनी इस चाहत को पूरा करने के लिए उस ने सुखपाल और मंजू के बीच मतभेद बढ़ाने का काम किया. राजकुमार ने मंजू को चढ़ा कर सुखपाल के नाम की बाकी जमीन बेचने के लिए उस पर दबाव बनाने को कहा. जिसे सुन कर सुखपाल बिगड़ गया. इसे ले कर मियांबीवी के बीच काफी समय तक मनमुटाव रहा. सुखपाल पत्नी के चरित्र को पूरी तरह से समझ चुका था. लेकिन बच्चों की वजह से वह उस से कुछ नहीं कहता था.

एक दिन सुखपाल सुबहसुबह काम के लिए घर से निकला. लेकिन काम नहीं मिला तो वह जल्दी घर लौट आया. उस वक्त मंजू और राजकुमार दोनों एक ही चारपाई पर पड़े हुए थे. घर पर राजकुमार को देख कर सुखपाल का गुस्सा सातवें आसमान पर चढ़ गया. उसे आया देख राजकुमार चुपचाप घर से निकल गया. तब उस ने मंजू को काफी खरीखोटी सुनाई. उस दिन पहली बार सुखपाल को शहर में मकान खरीदने का मतलब समझ आया था. अपनी बीवी की हकीकत सामने आते ही सुखपाल ने गोविंद नगर, मुरादाबाद का मकान बेचने की बात चलाई. यह बात जब मंजू को पता चली तो उस ने राजकुमार के साथ मिल कर उसे काफी मारापीटा. बीवी के इस व्यवहार से तंग आ कर सुखपाल अपने दोनों बच्चों को साथ ले कर अपने गांव आ गया.

बच्चों के चले जाने के बाद मंजू अकेली पड़ गई. वह बच्चों से मिलने के लिए परेशान रहने लगी. लेकिन बच्चों को वापस लाने का उसे कोई भी रास्ता नहीं सूझ रहा था. गांव से उस की बेटी को उस का मामा अपने साथ अपने गांव ले गया. लेकिन उस का बेटा अभि सुखपाल के पास ही था. बेटे अभि को अपने पास बुलाने के लिए उस ने अपने ननदोई राजीव से संपर्क किया. उस ने राजीव को 30 हजार रुपए का लालच देते हुए कहा कि अगर वह उस के बेटे को सुखपाल के पास से ले आए तो उसे 30 हजार रुपए देगी. लौकडाउन में 30 हजार रुपए मिलने वाली बात सुनते ही राजीव ने सुखपाल को अपने विश्वास में ले कर अभि को साथ लिया और उसे मुरादाबाद पहुंचा दिया.

देश में लौकडाउन लगते ही सभी अपने घरों में कैद हो कर रह गए थे. शहर या गांव सभी जगह कामकाज मिलना बंद हुआ तो सुखपाल खर्च के लिए पैसेपैसे को तरसने लगा. उस ने गांव की जो जमीन बेची थी उस का बाकी पैसा भी मंजू के पास ही था. मंजू से कुछ खर्च के लिए पैसे मिल जाएं यह सोच कर वह हिम्मत कर के गोविंद नगर जा पहुंचा. सुखपाल को अचानक घर आया देख पहले तो मंजू उस से बोलने तक को तैयार न थी. लेकिन पता नहीं उस के दिमाग में ऐसा क्या चल रहा था कि जल्द ही वह मोम की तरह पिघल गई. उस ने पति को खाना बना कर दिया. फिर वह उस के साथ गांव आ गई.

गांव आ कर वह सुखपाल के साथ हंसीखुशी से रहने लगी. जब राजीव को सुखपाल के गांव आने वाली बात पता चली तो वह भी उस के घर के चक्कर लगाने लगा. मंजू और राजीव के बीच पहले से ही अवैध संबंध थे. राजीव से मंजू का पुनर्मिलन हुआ तो उस का दिल बागबाग हो उठा. लौकडाउन के चलते राजीव भी अपनी ससुराल में आ कर पड़ा रहने लगा. उसी दौरान मंजू ने अपने ननदोई को विश्वास में लेते हुए कहा कि अगर वह सुखपाल को अपने बीच से हटाने में उस का साथ दे तो उस की 2 बीघा जमीन बेच कर वह सारे पैसे उसे देगी. तब दोनों के मिलने को रोकनेटोकने वाला कोई नहीं होगा.

मंजू की बात सुनते ही राजीव लालच में आ कर अपने साले को ही मौत की नींद सुलाने के लिए साजिश में शामिल हो गया. राजीव को साथ देने के लिए पक्का कर के मंजू फिर से मुरादाबाद पहुंची. मुरादाबाद जाते ही उस ने राजकुमार को भी अपने लटकेझटके दिखाने के बाद उसे भी मकान का लालच दे कर साजिश में शामिल होने को कहा. राजकुमार तो पहले ही उस मकान पर निगाहें गड़ाए बैठा था. जिस राह की खोज में वह काफी समय से भटक रहा था, वह राह उसे मंजू ने स्वयं दिखा दी. मंजू ने राजकुमार को गोविंद नगर का मकान और उस के साथ सदा के लिए जीवनयापन करने की पट्टी पढ़ा कर अपनी योजना में शामिल कर लिया.

जब मंजू को पूरा यकीन हो गया कि उस के दोनों दीवाने उस की हर तरफ से सहायता करने को तैयार हैं तो उस ने सुखपाल को ठिकाने लगाने की योजना बना डाली. राजकुमार से बात करने के बाद वह फिर से सुखपाल के पास गांव आ गई. पति के पास आ कर उस ने प्रेम का नाटक करना शुरू किया. सुखपाल उस की मंशा को जाने बिना उस की मीठीमीठी बातों में फंस कर उस के साथ बिताए बुरे दिनों को पल भर में भुला बैठा. इस घटना को अंजाम देने से 5 दिन पहले मंजू ने सुखपाल से अपनी ननद ऊषा देवी के पास जाने की मंशा जाहिर की. सुखपाल अब किसी भी तरह उस के दिल को कोई ठेस नहीं पहुंचाना चाहता था. इसीलिए वह उसे साथ ले कर अपनी बहन ऊषा के गांव खाईखेड़ा पहुंच गया.

अपनी ननद के पास 4 दिन तक मेहमाननवाजी करते हुए वह सुखपाल को मौत की नींद सुलाने की योजना बनाती रही. लेकिन वह योजना को अंतिम रूप नहीं दे पा रही थी. अपनी ननद के घर से ही उस ने राजकुमार को फोन कर के वहीं पर बुला लिया. राजकुमार के आते ही ऊषा के घर पर हर रोज दावत होने लगी. राजकुमार ने अपनी शानशौकत दिखाते हुए वहां पर शराब और मीट मछली बनाने खाने में काफी पैसा खर्च कर दिया. खाना खाने के बाद राजकुमार, राजीव और मंजू को एकांत में ले जा कर सुखपाल को मौत के घाट उतारने की योजना बनाते रहे. उसी योजनानुसार मंगलवार 14 जुलाई की रात फिर से राजीव के घर पर दावत का प्रोग्राम बना.

उस शाम राजकुमार और राजीव ने सुखपाल को जम कर शराब पिलाई. काफी देर तक खानेपीने का प्रोग्राम चलता रहा. जब रात काफी हो गई तो सारे दिन की थकीहारी ऊषा अपने दोनों बच्चों को साथ ले कर मकान की छत पर चली गई. ऊषा के छत पर जाते ही मौका पा कर मंजू ने राजीव, राजकुमार व सुखपाल से गांव के पास ही बाग में आम खाने की बात कही और रात 11 बजे उन को साथ ले कर घर से निकल गई. आम खाने की बात सुनते ही सुखपाल नशे में धुत होने के बावजूद उन के साथ जाने को तैयार हो गया था. चारों एक साथ गांव से लगभग एक किलोमीटर दूर हसनगंज गांव की सीमा में ईट भट्ठे के पास पीपल के पेड़ से लगे कुएं के पास पहुंचे. कुएं की दीवार पर बैठते ही नशे में डूबा सुखपाल फैल गया.

उस के नशे से बेहोश होते ही मंजू अपना आपा खो बैठी. उस ने बड़ी ही फुरती से पति के पैर पकड़े और अपने ननदोई राजीव और राजकुमार से धारदार हथियार से बार करने को कहा. उस समय वैसे भी रात का अंधेरा छाया हुआ था, ऊपर से राजीव और राजकुमार बुरी तरह नशे में धुत थे. मंजू के कहते ही राजीव और राजकुमार कसाई बन सामने बेहोश पड़े सुखपाल पर ताबड़तोड़ प्रहार करने लगे. सुखपाल पर पहला प्रहार होते ही वह उठ बैठा था. लेकिन उस के बाद तीनों ने उसे दबोच लिया और तेजधार वाले हथियार से उसे काट कर मार डाला. सुखपाल को मौत की नींद सुलाने के बाद तीनों ने उस की गरदन भी काट दी. फिर उस की लाश कुएं में फेंक दी.

लाश को छिपाने के लिए उन्होंने बाग में से पत्ते इकट्ठे किए और उस की लाश के ऊपर डाल दिए. सुखपाल की हत्या करने के बाद तीनों चोरीछिपे घर पर आ कर सो गए. उस समय तक सुखपाल की बहन ऊषा गहरी नींद में सो चुकी थी. उसे कुछ पता नहीं चल पाया था. सुबह होने पर उस ने मंजू और अपने पति राजीव से भाई सुखपाल के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि रात सुखपाल ने कुछ ज्यादा ही पी ली थी. उस के बाद वह सो गया था. लेकिन वह रात में पता नहीं कहां गायब हो गया था. यह सुनते ही ऊषा ने अपने भाई के साथ किसी अनहोनी होने की आशंका के चलते मंजू से थाने जा कर रिपोर्ट दर्ज कराने को कहा.

इस केस के खुलते ही पुलिस ने मृतक की बीवी मंजू उस के ननदोई प्रेमी राजीव पर भादंवि की धारा 364/302/201 के अंतर्गत केस दर्ज कर कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया. कहानी लिखे जाने तक इस मामले का तीसरा अभियुक्त राजकुमार पुलिस की पकड़ से बाहर था. मंजू ने अपने पति की जिंदगी के साथ जो खेल खेला उस से उस पर कोई फर्क नहीं पड़ा. पति की हत्या में गिरफ्तार हुई मंजू के चेहरे पर गम की कोई शिकन तक नहीं थी. उस का कहना था कि उसे पति की हत्या का कोई पछतावा नहीं है.

मंजू ने पुलिस को दोटूक जबाव दिया कि वह जेल से आने के बाद भी दोनों प्रेमियों के साथ रहेगी. उसे अपने बच्चों के भविष्य को ले कर किसी तरह की चिंता नहीं थी, जो अनाथ हो गए थे. उस का बेटा अभि उस की तहेरी दादी गंगा देवी के पास रह रहा था. जबकि उस की बेटी उस की नानी के साथ चली गई थी.

 

Crime Story : बीवी पर था शक पर ले ली 2 साल की बेटी की जान

Crime Story : सुदर्शन पत्नी प्रीति पर शक ही नहीं करता था बल्कि वह अपनी बेटी देविका को भी नाजायज समझता था. इसी के चलते एक दिन उस ने अपनी 2 साल की बेटी की हत्या कर दी और फिर…

कहा जाता है कि शक का कोई इलाज नहीं है. पतिपत्नी के संबंध विश्वास की बुनियाद पर ही कायम रहते हैं. यदि इन संबंधों से भरोसा उठा कर बेवजह शक का कीड़ा मन में बैठा लिया जाए तो जिंदगी दुश्वार हो जाती है. ये कहानी भी ऐसे ही एक शक्की पति सुदर्शन वाल्मीकि की है, जिस ने अपनी पत्नी पर किए गए शक की वजह से अपनी गृहस्थी खुद उजाड़ दी. मध्य प्रदेश के जबलपुर के तिलवारा थाना क्षेत्र के अंतर्गत मदनमहल की पहाडि़यों के पास के एक इलाके का नाम भैरों नगर है,  इस जगह पर गिट्टी क्रेशर लगे होने के कारण इसे क्रेशर बस्ती के नाम से भी जाना जाता है. इसी बस्ती में दशरथ वाल्मीकि का परिवार रहता है.

दशरथ के परिवार में उस की पत्नी के अलावा उस का 39 साल का बेटा सुदर्शन उर्फ मोनू वाल्मीकि, उस की पत्नी प्रीति और 22 माह की बेटी देविका भी रहती थी. दशरथ के परिवार के सभी वयस्क सदस्य जबलपुर के नेताजी सुभाषचंद्र बोस मैडिकल कालेज में साफसफाई का काम करते थे. सुदर्शन मैडिकल कालेज में सुरक्षा गार्ड के रूप में काम करता था. परिवार के सदस्यों के कामधंधा करने से अच्छीखासी आमदनी हो जाती है और परिवार हंसीखुशी से अपनी जिंदगी गुजार रहा था. 17 जनवरी, 2020 की सुबह सभी लोग अभी बिस्तर से सो कर उठे भी नहीं थे कि सुदर्शन और उस की पत्नी ने घर में यह कह कर कोहराम मचा दिया कि उन की बेटी देविका बिस्तर पर नहीं है.

उन्होंने अपने मातापिता को बताया कि शायद किसी ने देविका का अपहरण कर लिया है. देविका के दादादादी का तो यह खबर सुन कर बुरा हाल हो गया था. देविका को वे बहुत लाड़प्यार करते थे. जैसे ही बस्ती में देविका के कमरे के भीतर से गायब होने की खबर फैली तो आसपास के लोगों की भीड़ सुदर्शन के घर पर जमा हो गई. लोगों को यह यकीन ही नहीं हो रहा था कि कैसे कोई व्यक्ति इतनी छोटी सी बच्ची का अपहरण कर सकता है. चूंकि कुछ दिनों पहले ही जबलपुर नगर निगम के अतिक्रमण विरोधी दस्ते ने सुदर्शन के मकान का पिछला हिस्सा तोड़ दिया था, जिस की वजह से पीछे की ओर ईंटें जमा कर उस हिस्से को बंद कर दिया था. लोगों ने अनुमान लगाया कि इसी दीवार की ईंटों को हटा कर अपहर्त्ता शायद अंदर घुसे होंगे.

देविका की मां प्रीति लोगों को रोरो कर बता रही थी कि 16 जनवरी की रात वे अपनी बेटी देविका को बीच में लिटा कर ही सोए थे, पर अपहर्त्ताओं ने देविका के अपहरण को इतनी चालाकी से अंजाम दिया कि उन्हें इस की आहट तक नहीं हुई. लोग यह समझ नहीं पा रहे थे कि आखिर कौन ऐसा दुस्साहस कर सकता है कि अपने मां बाप के बीच सो रही बच्ची का अपहरण कर के ले जाए. मासूम बच्ची देविका की खोजबीन आसपास के इलाकों में लोगों द्वारा करने के बाद भी उस का कोई अतापता नहीं चला तो उस के गायब होने की रिपोर्ट जबलपुर के तिलवारा पुलिस थाने में दर्ज करा दी.

रहस्यमय ढंग से गायब हुई पुलिस थाने में सुदर्शन ने उस के लापता होने की रिपोर्ट दर्ज कराते हुए बताया कि रात को 11 बजे वह खाना खा कर पत्नी और बच्ची के साथ सो गया था, रात लगभग 2 बजे देविका ने उठने की कोशिश की तो उसे दोबारा सुला दिया गया. सुबह 8 बजे वह सो कर उठे तो विस्तर से देविका गायब थी. तिलवारा थाने की टीआई रीना पांडेय ने आईपीसी की धारा 363 के तहत रिपोर्ट दर्ज कर जानकारी तुरंत ही पुलिस के आला अधिकारियों को दे दी और वह घटनास्थल की ओर निकल पड़ीं. जैसे ही रीना पांडेय भैरों नगर पहुंचीं, वहां तब तक भारी भीड़ जमा हो चुकी थी. उन्होंने एफएसएल टीम और डौग स्क्वायड को भी वहां बुला कर मौका मुआयना करवाया. खोजी कुत्ता सुदर्शन के घर के आसपास ही चक्कर लगाता रहा.

घटना की गंभीरता को देखते हुए जबलपुर के एसपी अमित सिंह ने एडीशनल एसपी (ग्रामीण) शिवेश सिंह बघेल एवं एसपी (सिटी) रवि सिंह चौहान के मार्गदर्शन में थानाप्रभारी तिलवारा रीना पांडेय के नेतृत्व में एक टीम गठित की. टीम में क्राइम ब्रांच के एएसआई राजेश शुक्ला, विनोद द्विवेदी आदि को शामिल किया गया. पुलिस ने भैरों नगर के तमाम लोगों से जानकारी ले कर कुछ संदिग्ध लोगों को पुलिस थाने में बुला कर पूछताछ भी की, मगर किसी से भी देविका का कोई सुराग हासिल नहीं हो सका. इस घटनाक्रम से भैरों नगर में रहने वाले वाल्मीकि समाज के लोगों की पुलिस के प्रति नाराजगी बढ़ती जा रही थी. उन्होंने प्रशासन के खिलाफ धरना देना शुरू कर दिया था. वे पुलिस प्रशासन से मांग कर रहे थे कि जल्द ही मासूम बच्ची देविका को खोज निकाला जाए.

इधर पुलिस प्रशासन की नींद हराम हो चुकी थी. देविका को गायब हुए एक माह से अधिक का समय बीत चुका था, पर पुलिस को यह समझ नहीं आ रहा था कि देविका का अपहरण आखिर किसलिए किया गया है. यदि फिरोती के लिए अपहरण हुआ है तो अभी तक किसी ने फिरोती की रकम के लिए सुदर्शन के परिवार से संपर्क क्यों नहीं किया. पुलिस टीम को जांच करते एक माह से अधिक समय हो गया था, लेकिन वह किसी नतीजे पर नहीं पहुंच पाई थी. कुएं से मिली लाश  26 फरवरी 2020 को भैरों नगर की नई बस्ती इलाके में बने एक कुएं के इर्दगिर्द बच्चे खेल रहे थे.

खेल के दौरान कुएं में अंदर झांकने पर उन्हें कोई चीज तैरती दिखाई दी, तो बच्चों ने चिल्ला कर आसपास के लोगों को इकट्ठा कर लिया. बस्ती के लोगों ने कुएं में उतराते शव को देखा तो इस की सूचना तिलवारा पुलिस को दे दी. सूचना पा कर पुलिस दल मौके पर पहुंचा और शव को कुएं से बाहर निकलवाया गया. शव की हालत इतनी खराब हो चुकी थी, कि उसे पहचान पाना मुश्किल था. शव के सिर की ओर से रस्सी से लगभग 15 किलोग्राम वजन का पत्थर बंधा हुआ था. पुलिस की मौजूदगी में आसपास के लोगों ने मोटरपंप लगा कर कुएं का पानी खाली किया तो कुएं की निचली सतह पर कपड़े मिले, जिस के आधार पर सुदर्शन के परिजनों द्वारा उस की पहचान देविका के रूप में की गई.

पुलिस ने काररवाई कर लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में डाक्टर द्वारा देविका की मृत्यु पानी में डूबने के कारण होनी बताई. परिस्थितिजन्य साक्ष्य के आधार पर पुलिस ने प्रकरण में धारा 364, 302 और इजाफा कर दी. अब पुलिस के सामने बड़ी चुनौती यही थी कि देविका के हत्यारे तक कैसे पहुंचा जाए. 40 दिनों तक चली तफ्तीश में टीआई रीना पांडेय को बस्ती के लोगों ने बताया था कि सुदर्शन और उस की पत्नी में अकसर विवाद होता रहता था. सुदर्शन अपनी पत्नी के चरित्र पर शक करता था. जब सुदर्शन के शक का कीड़ा कुलबुलाता तो उन के बीच विवाद हो जाता.

इसी आधार पर पुलिस टीम को यह संदेह भी हो रहा था कि कहीं इसी वजह से सुदर्शन ने ही तो देविका की हत्या नहीं की? जांच टीम ने जब देविका की मां प्रीति और पिता सुदर्शन से अलगअलग पूछताछ की तो दोनों के बयानों में विरोधाभास नजर आया. पूछताछ के दौरान प्रीति ने जब यह बताया कि कुछ माह पहले सुदर्शन देविका को जान से मारने का प्रयास कर चुका है, तो पुलिस को पूरा यकीन हो गया कि देविका का कातिल उस का पिता ही है. जब पुलिस ने सुदर्शन से सख्ती से पूछताछ की तो उस ने जल्द ही अपना गुनाह कबूल कर लिया. अपनी फूल सी नाजुक बेटी की हत्या करने का गुनाह करने वाले सुदर्शन उर्फ मोनू ने पुलिस को जो कहानी बताई उस ने तो बस यही साबित कर दिया कि अपने दिमाग में शक का कीड़ा पालने वाला मोनू देविका को अपनी बेटी ही नहीं मानता था.

सुदर्शन की शादी अब से 3 साल पहले बड़े धूमधाम से रांझी, जबलपुर निवासी प्रीति से हुई थी. शादी के पहले से सुदर्शन रंगीनमिजाज नौजवान था और उस की आशिकमिजाजी शादी के बाद भी जारी रही. इसी के चलते भेड़ाघाट में एक लड़की के बलात्कार के मामले में शादी के 2 माह बाद ही उसे जेल की हवा खानी पड़ी थी. जैसेतैसे वह कुछ माह बाद जमानत पर आया तो उसे मालूम हुआ कि उस की पत्नी गर्भ से है. बस उसी समय से सुदर्शन के दिमाग के अंदर शक का कीड़ा बैठ गया. वह बारबार यही बात सोचता कि मेरे जेल के अंदर रहने पर प्रीति गर्भवती कैसे हो गई. देविका के जन्म के बाद तो अकसर पतिपत्नी में इसी बात को ले कर विवाद होता रहता. सुदर्शन प्रीति को हर समय यही ताने देता कि यह लड़की न जाने किस की औलाद  है. इसी तरह लड़तेझगड़ते जिंदगी गुजारते प्रीति फिर से गर्भवती हो गई.

पत्नी के चरित्र पर हरदम शक करने वाले सुदर्शन को लगता था कि देविका उस की बेटी नहीं है. उस का मन करता कि देविका का काम तमाम कर दे. एक बार तो उस ने देविका को मारने की कोशिश भी की थी, मगर वह कामयाब न हो सका. पतिपत्नी के विवाद की वजह से देविका की देखभाल भी ठीक ढंग से नहीं हो पा रही थी, जिस की वजह से वह अकसर बीमार रहती थी. बेटी को समझता था नाजायज 16 जनवरी, 2020 की रात 10 बजे सुदर्शन मैडिकल कालेज के बाहर बैठा अपने दोस्तों के साथ शराब पी रहा था. तभी उस की पत्नी प्रीति का फोन आया कि जल्दी से घर आ जाओ, देविका की तबीयत ठीक नहीं है. सुदर्शन को तो देविका की कोई फिक्र ही नहीं थी. वह तो चाहता था कि उस की मौत हो जाए.

इधर प्रीति देविका की तबीयत को ले कर परेशान थी. वह बारबार पति को फोन लगाती और वह जल्दी आने की कह कर शराब पीने में मस्त था. प्रीति के बारबार फोन आने पर वह तकरीबन 11 बजे अपने घर पहुंचा तब तक उस के मातापिता दूसरे कमरे में सो चुके थे. देविका की तबीयत के हालचाल लेने की बजाय वह बारबार फोन लगाने की बात पर पत्नी से विवाद करने लगा, जिसे देख कर मासूम देविका रोने लगी. सुदर्शन ने गुस्से में देविका का गला दबा दिया, जिस के कारण उस की मौत हो गई. देविका की हालत देख कर प्रीति जोरजोर से रोने लगी तो सुदर्शन ने उसे डराधमका कर चुप करा दिया.

सुदर्शन ने प्रीति को धमकाया कि यदि इस के बारे में किसी को कुछ बताया तो वह उस के गर्भ में पल रहे बच्चे के साथ उसे भी खत्म कर देगा. बेचारी प्रीति अपने होने वाले बच्चे की खातिर इस दर्द को चुपचाप सह कर रह गई. सुदर्शन ने प्रीति को पाठ पढ़ाया कि सुबह लोगों को देविका के अपहरण की कहानी बता कर मामले को शांत कर देंगे. इस के लिए उस ने घर के पिछले हिस्से में रखी कुछ ईंटों को हटा दिया, जिस से लोग यह अनुमान लगा सकें कि यहीं से घुस कर देविका का अपहरण किया गया है. रात के लगभग 2 बजे सुदर्शन एक रस्सी ले कर देविका के शव को कंधे पर रख कर घर के बाहर कुछ दूरी पर बने एक कुएं के पास ले गया.

वहां पर उस ने रस्सी के सहारे शव को एक पत्थर से बांध कर कुएं में फेंक दिया और वापस आ कर चुपचाप सो गया. सुबह उठते ही उस ने अपनी बेटी देविका के गायब होने की खबर फैला दी.  6 मार्च 2010 को जबलपुर के पुलिस कप्तान अमित सिंह, एसपी (सिटी) रवि सिंह चौहान, एडीशनल एसपी (ग्रामीण) शिवेश सिंह बघेल, टीआई तिलवारा रीना पांडेय की मौजूदगी में प्रैस कौन्फ्रैंस कर हत्याकांड के राज से परदा उठाते हुए आरोपी को प्रेस के समक्ष पेश किया. सुदर्शन को देविका की हत्या के अपराध में धारा 363, 364, 302, 201 आईपीसी के तहत गिरफ्तार कर अदालत में पेश किया गया, जहां से उसे जबलपुर जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Love Story : होटल में बुलाकर ले ली प्रेमिका की जान

Love Story : तनु ने भावनाओं में बह कर सुभाष से शादी तो कर ली, लेकिन जब साथ रहने की बात आई तो उस की भावनाओं पर मां की ममता भारी पड़ी. पिता थे नहीं, मां ने अभावों में खूनपसीना बहा कर उसे और उस के भाईबहन को पाला, पढ़ाया- लिखाया था. मां के त्याग तपस्या की सोच कर उस ने सुभाष के साथ रहने से मना कर दिया. परिणामस्वरूप…

कई बार घंटी बजाने पर भी न दरवाजा खुला, न अंदर कोई आहट हुई. अमूमन ऐसा होता नहीं है, लेकिन
ऐसा ही हो रहा था. अबकी बार वेटर ने दरवाजा खटखटाया, एक नहीं कई बार. लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला. वेटर रिसैप्शन पर बैठे मैनेजर दुर्गेश पटेल के पास पहुंचा. वह रिसैप्शनिस्ट से बातें कर रहे थे. वेटर ने तेजी से आ कर कहा, ‘‘सर, कमरा नंबर 303 का दरवाजा नहीं खुल रहा. मैं ने घंटी बजाई, दरवाजा थपथपाया, पर कोई नतीजा नहीं निकला.’’

‘‘कमरे में कोई है भी या यूं ही…’’

मैनेजर ने कहा तो वेटर की जगह रिसैप्शनिस्ट ने जवाब दिया, ‘‘हां, मैडम हैं कमरे में. उन का साथी बाहर गया है. कह रहा था थोड़ी देर में आता हूं, पर आया नहीं. मैं उसे फोन करता हूं.’’

रिसैप्शनिस्ट ने विजिटर्स रजिस्टर खोल कर कमरा नंबर 303 के कस्टमर का फोन नंबर देखा और उसे फोन मिला दिया. लेकिन फोन स्विच्ड औफ था. इस से वह घबराया. उस ने यह बात दुर्गेश पटेल को बताई. साथ ही यह भी कि चायनाश्ते के बरतन अंदर हैं. वेटर को मैं ने ही भेजा था. बात चिंता की थी. वेटर, रिसैप्शनिस्ट और मैनेजर दुर्गेश पटेल तुरंत खड़े हो गए. कमरा नंबर 303 के सामने पहुंच कर मैनेजर दुर्गेश पटेल ने भी वही किया, जो वेटर कर चुका था. काफी प्रयास के बाद भी जब दरवाजा नहीं खुला और न ही कमरे के अंदर कोई हलचल हुई तो उन के मन में तरहतरह की शंकाएं जन्म लेने लगीं. उन्हें लगा कमरे के अंदर जरूर कोई गड़बड़ है. कमरे में ठहरा युवक थोड़ी देर में आने को कह कर गया था, लेकिन आया नहीं. उस ने अपना फोन भी बंद कर लिया था. कहीं उस ने ही तो कुछ नहीं किया.

कोई और रास्ता न देख मैनेजर दुर्गेश पटेल ने कमरे की दूसरी चाबी मंगा कर कमरा खोला तो अंदर का दृश्य देख कर होश उड़ गए. कमरे के बैड पर कस्टमर के साथ आई युवती चित पड़ी हुई थी. उस का चेहरा खून में डूबा हुआ था. मतलब उस के साथ आया युवक उस की हत्या कर के फरार हो गया था.
होटल नटराज उज्जैन का जानामाना होटल था, जिस के प्रबंधक और मालिक इंदौर के एक रिटायर्ड पुलिस अधिकारी थे. उन के होटल में इस तरह की घटना पहली बार घटी थी, इसलिए होटल के सभी कर्मचारी परेशान हो गए. होटल के अन्य ग्राहकों को जब इसबात की जानकारी मिली तो सब घबरा गए. जरा सी देर में होटल के कमरा नंबर 303 के सामने कस्टमर्स की भीड़ एकत्र हो गई.

मामला हत्या का था. होटल के प्रबंधक मालिक और पुलिस को खबर देना जरूरी था. मैनेजर दुर्गेश पटेल ने फोन से इस मामले की जानकारी थाना नानाखेड़ा के साथ होटल के मालिक को दे दी. सूचना पाते ही थाना नानाखेड़ा के प्रभारी ओ.पी. अहीर पुलिस टीम के साथ होटल नटराज पहुंच गए. उन्होंने सरसरी तौर पर घटनास्थल का निरीक्षण किया. मामले की गंभीरता को देखते हुए उन्होंने इस वारदात की जानकारी वरिष्ठ अधिकारियों के साथसाथ पुलिस कंट्रोल रूम को दे दी. कमरा नंबर 303 होटल की तीसरी मंजिल पर था. थानाप्रभारी ओ.पी. अहीर ने देखा, जिस युवती का शव बैड पर खून से सराबोर पड़ा था, उस की उम्र 20-22 साल के आसपास थी. उस की हत्या बड़ी बेरहमी से की गई थी. चेहरेमोहरे से वह किसी सामान्य और शरीफ घर की दिख रही थी.

पुलिस समझ नहीं पाई मंजर खौफनाक भी था और मार्मिक भी. जिसे देख पुलिस टीम भी स्तब्ध थी. पूछताछ में होटल मैनेजर दुर्गेश पटेल ने ओ.पी. अहीर को बताया कि मृतका जिस युवक के साथ आई थी, उस की उम्र 23 साल के आसपास रही होगी. उस की साथी युवती के कंधों पर एक कैरीबैग था. देखने में वह किसी कालेज की छात्रा लगती थी. उन्होंने शाम तक के लिए कमरा बुक करवाया था. कमरा बुक करवाते समय उन्होंने खुद को पतिपत्नी बताया था. कमरा बुक करवाने के डेढ़ घंटे बाद युवक यह कह कर बाहर निकला था कि मैडम अंदर आराम कर रही हैं, उन का ध्यान रखना. वह किसी काम से बाहर जा रहा है. उस के जाने के कुछ समय बाद वेटर नाश्ते और चाय की प्लेट लेने गया तो मैडम ने दरवाजा नहीं खोला. काफी कोशिशों के बाद हम ने कमरे की दूसरी चाबी मंगा कर दरवाजा खोला. मैनेजर दुर्गेश पटेल ने बताया.

‘‘मृतका के साथी के बारे में कोई जानकारी है?’’ पुलिस टीम ने पूछा.

‘‘जी हां सर, उस का पूरा ब्यौरा विजिटर रजिस्टर में दर्ज है.’’ कहते हुए मैनेजर दुर्गेश पटेल ने रजिस्टर ला कर पुलिस के सामने रख दिया. पुलिस टीम ने विजिटर्स रजिस्टर देख कर उस युवक का नामपता हासिल कर लिया. आमतौर पर ऐसे लोग अपना नाम पता सही नहीं देते, लेकिन यहां ऐसा नहीं था. आगंतुक द्वारा दी गई जानकारी सही निकली.

युवक का नाम सुभाष पोरवाल था और युवती का नाम तनु परिहार. दोनों के परिवार वालों को मामले की जानकारी दे कर उन्हें होटल नटराज बुला लिया गया. खबर मिलते ही दोनों के परिवार वाले जिस स्थिति में थे, उसी में होटल पहुंच गए. तनु परिहार के परिवार वालों की स्थिति काफी दयनीय थी. पुलिस टीम ने उन्हें सांत्वना दे कर संभाला. थानाप्रभारी ओ.पी. अहीर अपनी टीम के साथ अभी होटल कर्मचारियों और मृतकों के परिवार वालों से पूछताछ कर ही रहे थे कि एसपी मनोज सिंह, एसपी (सिटी) रूपेश द्विवेदी, सीएसपी एच.एम. बाथम और अरविंद नायक फोरैंसिक टीम के साथ मौकाएवारदात पर पहुंच गए.

फोरैंसिक टीम का काम खत्म हो गया तो वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण कर थानाप्रभारी ओ.पी. अहीर को आवश्यक निर्देश दिए और अपने औफिस लौट गए. वरिष्ठ अधिकारियों के जाने के बाद थानाप्रभारी ओ.पी. अहीर ने अपने सहायकों के साथ मृतका तनु परिहार के शव का निरीक्षण किया. तनु का शरीर बुरी तरह जख्मी था. उस के गले पर एक और पेट में 3 गहरे घाव थे, जो किसी तेजधार हथियार से वार करने से आए थे. मृतका के शव का बारीकी से निरीक्षण कर के पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भेज दिया गया. प्राथमिक काररवाई से निपट कर थानाप्रभारी थाने लौट आए. तनु परिहार की मां को वह अपने साथ ले आए थे.

उस की मां की तहरीर पर सुभाष पोरवाल के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर जांच शुरू कर दी गई. परिवार से पूछताछ करने के साथसाथ सुभाष के मोबाइल नंबर को सर्विलांस पर लगा दिया गया. साइबर सेल की सक्रियता से 24 घंटे में सुभाष को आगरा में खोज निकाला गया. आगरा गई पुलिस टीम सुभाष पोरवाल को गिरफ्तार कर उज्जैन ले आई. थानाप्रभारी ओ.पी. अहीर के सामने आते ही सुभाष पोरवाल ने बिना किसी हीलाहवाली के अपना अपराध स्वीकार कर लिया. पुलिस जांच और सुभाष पोरवाल के बयानों के अनुसार तनु परिहार हत्याकांड की दिल दहला देने वाली कहानी सामने आई, वह कुछ इस तरह थी.
23 वर्षीय सुभाष साधारण लेकिन भरेपूरे स्वस्थ शरीर का युवक था. उस के पिता का नाम आत्माराम पोरवाल था, जो मूलरूप से गुजरात के पोरबंदर का रहने वाला था.

सालों पहले आत्माराम रोजीरोटी की तलाश में उज्जैन आया था. बाद में वह अपने परिवार को भी उज्जैन ले आया और नानाखेड़ा इलाके में बस गया. वह आटोरिक्शा चलाता था. आटोरिक्शा की कमाई से इस परिवार की गाड़ी आराम से चल जाती थी. सुभाष आत्माराम का एकलौता बेटा था. वह कुछ जिद्दी स्वभाव का था. वह जिस चीज की हठ कर लेता था, उसे हासिल कर के छोड़ता था. सुभाष पोरवाल हट्टाकट्टा जवान था, फैशनपरस्त और दिलफेंक भी. पढ़ाईलिखाई में कभी उस का मन नहीं लगा. उस ने बड़ी मुश्किल से 10वीं पास की थी. पढ़ाई बंद हो जाने के बाद उस ने पिता की तरह ही आटोरिक्शा चलाना शुरू कर दिया था.
सुभाष पोरवाल जहां रहता था, उसी के सामने वाले मकान में ऋषि परिहार का परिवार रहता था. उन का अपना 5 सदस्यों का परिवार था. आय के लिए उन की छोटी सी किराने की दुकान थी. घर की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी.

दुकान से किसी तरह दालरोटी चल जाती थी. अपने 3 भाईबहनों में तनु सब से बड़ी थी. पिता ऋषि परिहार की मृत्यु तभी हो गई थी, जब तनु बहुत छोटी थी. पति के निधन के बाद बच्चों के पालनपोषण की जिम्मेदारी मां आशा देवी के कंधों पर आ गई थी, जिसे उन्होंने बखूबी निभाया. आशा का छोटा बेटा 7वीं में और दूसरा 9वीं कक्षा में पढ़ता था. बेटी तनु बीकौम सेकेंड ईयर की छात्रा थी. तनु जितनी स्वस्थ, सुंदर और चंचल थी, उतनी ही सुशील, सभ्य और सरल स्वभाव की थी. वह किसी से भी ऐसी कोई बात नहीं करती थी, जिस से किसी का दिल दुखे. तनु के मधुर व्यवहार की वजह से आसपास के लोग उसे प्यार करते थे. यही वजह थी कि जैसे ही उस की हत्या की खबर इलाके में फैली, लोग थाना नानाखेड़ा के सामने इकट्ठा होने लगे. उन की मांग थी कि आरोपी सुभाष पोरवाल को जल्दी गिरफ्तार किया जाए.

स्थिति बिगड़ती देख एसपी (सिटी) रूपेश द्विवेदी ने इस आश्वासन पर लोगों को शांत कराया कि अभियुक्त को शीघ्र गिरफ्तार कर लिया जाएगा. वैसे तो आमनेसामने रहने के कारण तनु और सुभाष शुरू से एकदूसरे को देखते आए थे लेकिन दोनों के दिलों में प्यार के अंकुर 5 साल पहले 17-18 साल की उम्र में फूटे थे. तनु परिहार के उभरते यौवन और सौंदर्य को देख सुभाष उस का दीवाना हो गया था. यही हाल तनु का भी था. शुरूशुरू में तो तनु का ध्यान उस की ओर नहीं था, लेकिन धीरेधीरे उस का झुकाव भी सुभाष की ओर हो गया. इस की अहम कड़ी थी उस का आटोरिक्शा. तनु के करीब आने के लिए सुभाष ने अपने आटोरिक्शा का इस्तेमाल किया था.

जब तनु कालेज जाने के लिए निकलती, सुभाष अपना आटो ले कर उस की राह में आ खड़ा होता था. तनु को अपने आटो में बैठा कर वह उस के कालेज ले जाता और फिर उसे कालेज से ले कर उस के घर के करीब छोड़ देता था. बीच के समय में वह सवारियां ढोता था लेकिन तनु के कालेज के समय पर वह सवारियां नहीं लेता था. बीचबीच में जब भी मौका मिलता, दोनों साथसाथ घूमनेफिरने भी निकल जाते थे. जैसेजेसे समय आगे बढ़ रहा था, वैसेवैसे दोनों का प्यार परिपक्व होता जा रहा था. दोनों एकदूसरे को अपने जीवनसाथी के रूप में देखने लगे थे. जब भी दोनों साथ होते थे, अपने भविष्य को ले कर तानेबाने बुनते थे. इस में आगे सुभाष रहता था. वह तनु को सपने दिखाता और तनु उन सपनों में खो जाती थी. दोनों शादी कर के अपना अलग संसार बसाना चाहते थे. घटना के एक महीने पहले दोनों ने सात फेरे भी ले लिए थे.

9 जुलाई, 2020 को दोनों ने उज्जैन कोर्ट में कोर्टमैरिज कर ली थी. इस के बाद 13 जुलाई को चिंतामणि गणेश मंदिर जा कर दोनों विधिविधान से शादी के बंधन में बंध गए थे. सुभाष ने इस बात की जानकारी अपने परिवार को दे दी थी. परिवार वालों ने उस का यह रिश्ता स्वीकार भी कर लिया था. लेकिन तनु ऐसा नहीं कर पाई. भावनाओं में बह कर उस ने सुभाष से शादी तो कर ली थी लेकिन इस पर उस की मां की ममता और प्यार भारी पड़ रहा था. मां ने जिन कठिनाइयों में खूनपसीना बहा कर उन्हें पालापोसा था, उसे देख वह मां से धोखा नहीं करना चाहती थी. उसे जब पता चला कि मां उस के योग्य लड़का तलाश कर रही है तो उसे लगा कि मां का दिल दुखाना ठीक नहीं है. इसलिए उस ने अपनी शादी का राज छिपाए रखना ही ठीक समझा.

जब सुभाष को पता चला कि तनु की मां उस के लिए वर ढूंढ रही है तो वह पत्नी होने के नाते तनु पर साथ रहने का दबाव बनाने लगा. लेकिन जब तनु इस के लिए तैयार नहीं हुई तो सुभाष का धैर्य टूट गया और उस ने तनु के प्रति एक खतरनाक निर्णय ले लिया. उस की सोच थी कि तनु उस की दुलहन है और उसी की रहेगी. इस के लिए उस ने एक तेजधार वाला चाकू खरीद कर अपने पास रख लिया था. घटना वाले दिन सुभाष का मन बहुत उदास था. वह एक बार तनु से मिल कर उस का आखिरी फैसला जान लेना चाहता था. इस के लिए उस ने होटल नटराज को चुना था. होटल में कमरा खाली है या नहीं, यह जानने के लिए उस ने विकास के नाम से होटल मैनेजर दुर्गेश पटेल से बात की.

होटल से हरी झंडी मिलने के बाद सुभाष ने तनु को मैसेज भेज कर कुछ जरूरी बात करने के लिए बुलाया. सुभाष के इरादों से अनभिज्ञ तनु ने अपना कोचिंग बैग और पानी की बोतल उठाई और मां से कोचिंग के लिए कह कर सुभाष से मिलने पहुंच गई. सुभाष उसे अपने आटो से होटल नटराज ले गया. होटल में कमरा बुक कर के दोनों कमरा नंबर 303 में चले गए. कमरे में आ कर सुभाष ने पहले चायनाश्ता मंगवाया, फिर तनु से साथ रहने वाली बात छेड़ दी. जिसे ले कर दोनों में बहस हो गई. सुभाष ने तनु को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि जब हमारी शादी दोदो बार हो चुकी है तो तीसरी बार शादी की जरूरत क्यों और किसलिए?

‘‘वह हमारी भूल थी, गुजरे कल की बात. अब हमें आज का सोचना है. मैं अपने परिवार के खिलाफ नहीं जा सकती. मैं अपनी मां को धोखा नहीं दूंगी. मां पहले से बहुत दुखी हैं. मैं उन्हें और दुखी नहीं देख सकती.

इसलिए मैं मां के देखे हुए लड़के के साथ शादी करूंगी.’’

‘‘और मैं क्या करूं?’’ सुभाष का चेहरा लाल हो गया. क्रोध में उठ कर उस ने कमरे में टहलते हुए कहा,

‘‘हम दोनों एकदूसरे को भूल जाएं?’’

तनु ने गरदन झुकाते हुए कहा, ‘‘हां.’’

रक्त में डूब गई प्रेम कहानी

‘‘ऐसा नहीं होगा, तुम मेरी थी मेरी ही रहोगी,’’ कहते हुए सुभाष ने छिपा कर लाए चाकू को बाहर निकाला और तनु की गरदन पर सीधा वार कर दिया. वार इतना तेज था कि तनु की आधी गरदन कट गई. तनु चीख कर बैड पर गिर गई. उस के बैड पर गिरने के बाद क्रोधित सुभाष ने उस के पेट में 3 वार और किए.

कुछ मिनट तड़पने के बाद जब तनु के प्राणपखेरू उड़ गए तब सुभाष ने उस का फोन उठाया और बहाना बना कर होटल से निकल गया. वहां से निकल कर वह अपने आटो से शाजापुर बसअड्डा पहुंचा. फिर वहां से बस पकड़ कर अपनी मौसी के यहां आगरा चला गया. सुभाष पोरवाल से विस्तृत पूछताछ करने के बाद पुलिस टीम ने तनु परिहार हत्याकांड से संबंधित चाकू, तनु का मोबाइल फोन और आटोरिक्शा को अपने कब्जे में ले लिया. सुभाष को जिला सत्र न्यायालय के जज के सामने पेश किया गया, जहां से उसे न्यायिक हिरासत में जिला जेल भेज दिया गया. द्य

Social Crime : पाखंडी पुजारी ने प्रेमिका के पति और बच्चे का किया कत्ल

Social Crime : आस्थावान लोग पुजारी और साधुओं पर आंख मूंद कर विश्वास करते हैं. लेकिन दुख तब होता है जब कुछ पाखंडी अपने यजमान की थाली में छेद करने लगते हैं. पुजारी पंडित रविशंकर शुक्ला यशवंत साहू की पत्नी माहेश्वरी के पीछे हाथ धो कर पड़ा था. इसी चक्कर में वह इतना बड़ा अपराध कर बैठा कि…

छत्तीसगढ़ के जिला बलौदा बाजार भाटापारा के पलारी थाने के अंतर्गत एक गांव है छेरकाडीह. यशवंत साहू इसी गांव में अपनी पत्नी, छोटे भाई जितेंद्र साहू व मातापिता के साथ संयुक्त परिवार में रहता था. यह परिवार धार्मिक आस्थावान था. घर में अकसर पूजापाठ, कथा का आयोजन होता रहता था. यह पूजापाठ के ये कार्यक्रम पंडित रविशंकर शुक्ला संपन्न कराता था. पंडित रविशंकर पास के ही गांव जारा में रहता था. आसपास के कई गांवों के लोग उसी के यजमान थे. रविशंकर शुक्ला ने होश संभालने के साथ ही पुरोहित का काम करना शुरू कर दिया था.

एक बार की बात है. सुबह के 10 बजे यशवंत साहू के यहां सत्यनारायण की कथा का आयोजन था. उस दिन 32 वर्षीय रविशंकर शुक्ला यशवंत साहू के घर पहुंचा. यशवंत साहू ने उस का स्वागत किया. रविशंकर शुक्ला ने घर में इधरउधर नजरें दौड़ाने के बाद पूछा, ‘‘यजमान, देवी माहेश्वरी कहां हैं, दिखाई नहीं दे रहीं.’’

‘‘रसोई में है महराज, अभी आ जाएगी. आप बैठिए, मैं पूजा की कुछ सामग्री लाना भूल गया हूं, बाजार से ले कर आता हूं, तब तक आप चाय आदि ग्रहण करें.’’ यशवंत साहू ने कहा. यशवंत साहू मोटरसाइकिल ले कर बाजार के लिए रवाना हुआ तो पंडित रविशंकर उठ खड़ा हुआ और रसोई की ओर दबे पांव आगे बढ़ा. रसोई में माहेश्वरी साहू पूजा के लिए प्रसाद बना रही थी. तभी पंडित रविशंकर ने किचन में पहुंच कर पीछे से माहेश्वरी के गले में बांहें डाल दीं.

‘‘अरे! कौन.’’ माहेश्वरी ने घबरा कर देखा तो पीछे पंडितजी थे. वह बोली, ‘‘अरे महाराज आप?’’

‘‘हां, साहूजी को मैं ने बाजार भेजा है. घबराने की जरूरत नहीं है.’’ कह कर पंडित रविशंकर रहस्यमय भाव से  मुसकराया .

‘‘अरे, घर में  पूजा है ,बच्चे हैं और तुम…’’

‘‘अरेअरे, क्या कहती हो… चलो.’’ पंडित अपने रंग में आने लगा.

‘‘नहीं… नहीं तुम आज पूजा कराने आए हो… तुम्हें थोड़ी भी समझ नहीं है क्या.’’ माहेश्वरी ने मीठी झिड़की दी.

‘‘मुझे तुम्हारे अलावा कुछ दिखाई नहीं देता… सच कहूं तो तुम ही मेरी भगवान हो.’’ वह बेशरमी से बोला.

‘‘छि…छि… यह क्या कह रहे हो. थोड़ी तो शर्म करो, मैं तुम्हें कितना अच्छा समझती थी.’’

‘‘क्यों, मुझे क्या हो गया है… मैं तो तुम्हें अभी भी उसी तरह चाहता हूं जैसा कि ठीक 2 साल पहले… जब तुम्हारीहमारी पहली मुलाकात हुई थी.’’

‘‘अच्छा, सब याद है,’’ अचरज से माहेश्वरी का मुंह खुला का खुला रह गया.

‘‘हां तारीख, दिन, समय… सब कुछ… वह दिन मैं भला कैसे भूल सकता हूं. क्या तुम भूल गई हो?’’ रविशंकर शुक्ला ने पूछा .

‘‘अच्छा, अभी तुम बैठक मैं पहुंचो… मैं 2 मिनट में आती हूं…’’ कह कर माहेश्वरी ने रविशंकर को जाने को कहा तो रविशंकर इठला कर बोला, ‘‘मैं चाय पीऊंगा तुम्हारे हाथों की. इस के बाद ही यहां से टलूंगा.’’

‘‘हां, मैं बनाती हूं महाराज,’’ कह कर माहेश्वरी मुसकराई और बोली, ‘‘अब तुम मुझ से दूर रहा करो. बच्चे बड़े हैं, अच्छा नहीं लगता. कहीं किसी ने देख लिया तो मुझे जहर खा कर मरना पड़ेगा.’’

रविशंकर और माहेश्वरी अभी बातें कर ही रहे थे कि यशवंत साहू पूजा की सामग्री ले कर आ गया. पंडितजी को बैठक में न पा कर वह स्वाभाविक रूप से रसोई की ओर बढ़ा तो पंडित रविशंकर की आवाज सुन वह ठिठक कर रुक गया. यशवंत साहू ने रविशंकर और माहेश्वरी की बातें सुनी तो उस के पैरों तले की जमीन खिसक गई. वह गुस्से के मारे चिल्ला कर बोला, ‘‘पंडित, यह क्या हो रहा है?’’

‘‘अरे, यजमान… भाभीजी चाय बना रही थीं, तो हम ने सोचा कि यहीं बैठ कर पी लें.’’ मीठी वाणी में रविशंकर शुक्ला ने बात बनानी चाही.

‘‘मगर तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई यहां तक घुसने की… और सुनो, मैं ने सब सुन लिया है. मुझे  तुम  पर बहुत  दिनों से  शक था, आज तू पकड़ा गया. तू पंडित नहीं, राक्षस है. चला जा, मेरे घर से.’’ यशवंत साहू ने आंखें दिखाईं तो पंडित घबराया मगर हिम्मत कर के बोला, ‘‘यजमान, तुम कहना क्या चाहते हो? तुम्हें जरूर कोई गलतफहमी हुई है. तुम ने मुझे  सत्यनारायण की कथा के लिए बुलाया है.’’

‘‘देखो, मैं तुम से साफसाफ कह रहा हूं… मेरे घर से अभी चले जाओ.’’

‘‘मगर मैं तो पूजा करने आया था… तुम नाराज क्यों हो रहे हो भाई?’’ रविशंकर ने बात बनाने की पूरी कोशिश की मगर यशवंत साहू की आंखों के सामने से मानो परदा उठ चुका था. यशवंत साहू ने जलती हुई आंखों से देखते हुए कहा, ‘‘भाग जाओ, यहां से. अब तुम्हारी पोल खुल गई है.’’

मामले की गंभीरता को देखते हुए रविशंकर वहां से चले जाने में ही भलाई समझी. इस घटना के बाद यशवंत और माहेश्वरी के वैवाहिक जीवन पर मानो ग्रहण लग गया. माहेश्वरी ने यशवंत के पैरों पर गिर कर सब कुछ स्वीकार कर लिया और फिर कभी दोबारा गलती नहीं करने की कसम खाई. परिवार की इज्जत बचाए रखने और बच्चों के भविष्य को देखते हुए यशवंत साहू ने उसे एक तरह से खून का घूंट पी कर माफ कर दिया. पुजारी ने दी धमकी मगर पंडित रविशंकर शुक्ला जब कभी गांव छेरकाडीह आता और कहीं अचानक से उसे माहेश्वरी दिख जाती तो वह उस से बात करने की कोशिश करता. लेकिन माहेश्वरी उसे देख मुंह फेर लेती तो रविशंकर मनुहार करता.

जब कई बार के प्रयासों से भी महेश्वरी नहीं पिघली तो अंतत: एक दिन गुस्से में आ कर उस ने कहा, ‘‘माहेश्वरी, मैं तुम्हें आसपास के सभी गांव में बदनाम कर दूंगा… तुम कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं रहोगी.’’

माहेश्वरी यह सुन कर घबराई फिर बोली, ‘‘तुम क्या चाहते हो, क्या यह चाहते हो कि मेरा पति और परिवार वाले मुझे अहिल्या की तरह त्याग दें. नहीं… मैं ऐसा नहीं होने दूंगी. तुम चले जाओ…’’

मगर पंडित रविशंकर शुक्ला धमकी दे कर चला गया. जब यह बात यशवंत को मालूम हुई तो वह चिंता में पड़ गया. एक दिन वह अपने मित्र और गांव जारा के सरपंच नारायण दास से मिला. सरपंच को सारी बात बताते हुए यशवंत ने उस से मदद मांगी तो सरपंच ने कहा, ‘‘साहूजी, मामला घरेलू है, मगर मैं इस में तुम्हारी पूरी मदद करूंगा.’’

एक दिन सरपंच ने चुनिंदा लोगों की सभा बुलाई. वहां पुजारी रविशंकर शुक्ला को बुला कर सरपंच ने सब के सामने साफसाफ कहा, ‘‘पंडितजी, अगर तुम ने दोबारा माहेश्वरी भाभी को देखने, धमकाने की कोशिश की तो मामला पुलिस तक पहुंच जाएगा और तुम्हारी पुरोहिती सभी  गांवों  में बंद करा दी जाएगी.’’

मामला हाथ से निकलता देख कर पुजारी रविशंकर शुक्ला ने उस दिन हाथ जोड़ कर माफी मांगी और वहां से चला गया. यशवंत साहू और माहेश्वरी को लगा कि मामले का पटाक्षेप हो गया है, मगर ऐसा हुआ नहीं था. यशवंत साहू का परिवार मूलत: किसान था. छेरकाडीह में रह रहे उस के संयुक्त परिवार में पिता दानसाय साहू, मां लक्ष्मी, भाई  जितेंद्र साहू जो शिक्षक थे, उन की पत्नी मीना, बेटा शशिमणि व बेटी तनिशा थे. यह गांव का धनाढ्य परिवार था. यही कारण था कि हाल ही में घर के पास पिछवाड़े में आलीशान घर बनवाया था, जिस में छोटा भाई  जितेंद्र साहू अपने परिवार व पिता और मां के साथ रहता था. जबकि यशवंत साहू पत्नी व बेटे देवेंद्र के साथ पुराने मकान में ही रह रहा था. बेटी पूनम ज्यादातर दादादादी और चाचा की लड़की तनिशा के साथ रहना पसंद करती थी, वह रहती भी वहीं थी.

जब यशवंत साहू ने पंडित रविशंकर को भलाबुरा कह कर घर से निकाला था तो उस समय यशवंत का बेटा देवेंद्र साहू भी मौजूद था. बाद में जब एक बार पंडित रविशंकर गांव छेरकाडीह आया तो उस की देवेंद्र साहू से मुठभेड़ हो गई थी. इस पर पंडित रविशंकर ने धान काटने के हंसिए से देवेंद्र को मार फेंकने की धमकी दी थी. मगर यशवंत साहू ने इसे  गंभीरता से लेते हुए बेटे देवेंद्र को समझाया कि पंडित रविशंकर से मुंह न लगा करे. चाह कर भी रविशंकर शुक्ला माहेश्वरी को भुला नहीं पा रहा था. गांव में सभा हो जाने के बाद कुछ समय वह शरीफ बना रहा, फिर उस के भीतर का प्रेमी जागृत हो उठा. उस ने सोचा, जरूर माहेश्वरी पति के दबाव में उसे नकार रही है. वह उस से अभी भी प्यार करती है. उस ने सोचा कि क्यों न माहेश्वरी से बात करे… मिले… अंतिम बार.

यही सोच कर रविशंकर शुक्ला ने माहेश्वरी को मोबाइल पर काल की लेकिन माहेश्वरी ने उस की काल रिसीव नहीं की. कई बार काल करने पर भी काल रिसीव नहीं हो रही थी, ऐसे में पंडित के मन में कई शंकाएं जन्म ले रही थीं. वह सोच में डूबा था कि उस का मोबाइल घनघना उठा. उस ने देखा काल माहेश्वरी की तरफ से आ रही थी, वह खुश हो कर काल रिसीव करते हुए वह बोला, ‘‘माहेश्वरी, मैं जानता था कि तुम मुझे नहीं छोड़ सकतीं… मुझे विश्वास था कि तुम्हारा फोन आएगा. सुनो, तुम मेरे पास आ जाओ.’’

तभी माहेश्वरी गुस्से में बोली, ‘‘देखो पंडितजी, पंचायत में तुम्हें हिदायत दे दी थी, अब तुम मर्यादा में रहो.’’

‘‘मैं…मैं जानता हूं, तुम दबाव, पति के प्रभाव में हो, सचसच कहो.’’ पंडित ने पूछा .

‘‘नहीं, मैं किसी दबाव में नहीं हूं. मैं ने विवाह किया है, मेरे 2 बच्चे हैं. और तुम भी शादीशुदा हो. इसलिए आगे से फोन किया तो ठीक नहीं होगा.’’ कह कर माहेश्वरी ने गुस्से से फोन बंद कर दिया. रविशंकर शुक्ला के माथे में बल पड़ गए. वह सोचने लगा कि यह तो अलग ही सुर निकाल रही है, मैं इस को ऐसा सबक सिखाऊंगा कि इस की सात पुश्तें भी याद रखेंगी. पुजारी ने रची खूनी साजिश रविशंकर शुक्ला माहेश्वरी को सबक सिखाने की योजना बनाने में जुट गया. उस ने अपनी ससुराल के एक दोस्त दुर्गेश वर्मा से बात की. फिर गांव के तालाब किनारे ले जा कर उसे अपनपा दर्द बताया और सहयोग मांगा.

जब वह साथ देने और मरनेमारने पर उतारू हो गया तो रविशंकर शुक्ला बहुत खुश हुआ और बोला, ‘‘मैं माहेश्वरी को सबक सिखाना चाहता हूं. उस के बेटे देवेंद्र व पति का काम तमाम करते ही वह मजबूर  हो कर मेरे आगोश मे आ जाएगी.’’

दुर्गेश ने पंडित रविशंकर की दोस्ती के कारण शनिवार 11-12 अप्रैल 2020 की रात यशवंत साहू के घर में घुस कर यशवंत साहू की हत्या की योजना बनाई. दोनों रविशंकर शुक्ला की बाइक सीजी22 एसी 7453 पर गांव गातापारा से छेरकाडीह के लिए रवाना हुए. इसी दौरान दुर्गेश वर्मा को अपने  घर के पास एक मित्र नेमीचंद धु्रव दिखाई दिया. उस ने उसे भी बाइक पर बैठा लिया और कहा, ‘‘चल, तुझे भी एक मिशन पर ले चलते  हैं.’’

रात लगभग 11 बजे छेरकाडीह पहुंच कर इन लोगों ने एक जगह बाइक खड़ी कर के नेमीचंद को वहीं खड़ा छोड़ दिया और एक टंगिया, एक फरसी ले कर दोनों  यशवंत साहू के घर की ओर बढ़े. पंडित रविशंकर जानता था कि पिछवाड़े से यशवंत के घर में आसानी से दाखिल हुआ जा सकता है. वह दुर्गेश के साथ भीतर गया. एक कमरे में यशवंत साहू अपने बेटे देवेंद्र के साथ सोया था. रविशंकर ने नींद में सोए देवेंद्र पर ताबड़तोड़ हमला कर दिया. फरसे  की चोट लगते ही देवेंद्र उठ खड़ा हुआ तो दोनों ने मिल कर उसे वहीं ढेर कर दिया. इस बीच यशवंत की नींद टूट गई. वह डर से कांप रहा था. दोनों ने हमला कर के उस भी मार डाला.

दूसरे कमरे में माहेश्वरी अकेली सो रही थी. चीखपुकार सुन वह जब घटनास्थल पर पहुंची तो पति यशवंत व बेटे देवेंद्र की लाश देख कर चीख पड़ी. इस पर पंडित रविशंकर शुक्ला ने पोल खुल जाने के डर से वहां रखे  सब्बल से उस के सिर पर वार कर उसे भी मार डाला. उसी समय  घर के पिछवाड़े में नए घर में बैठी यशवंत की बेटी पूनम ने मां के चीखने की आवाज सुनी और घबरा कर चार कदम आगे बढ़ी. मगर यह सोच कर खामोश बैठ गई कि मां का पिताजी के साथ झगड़ा हो रहा होगा. उधर चारों तरफ खून फैला हुआ था, जिसे देख कर दुर्गेश और रविशंकर शुक्ला घबराए और वहां से भाग खड़े हुए. बाहर थोड़ी दूरी पर नेमीचंद धु्रव उन का इंतजार कर रहा था. तीनों बाइक से गातापार की तरफ चले गए.

सुबह 6 बजे यशवंत के पिता दानसाय साहू उठे और टहलते हुए जब यशवंत के घर की ओर बढ़े तो परछी में बहू माहेश्वरी को खून से लथपथ पडे़ देख घबरा कर उलटे पांव वापस लौटे और पत्नी लक्ष्मी को वहां की यह बात बताई. सुनते ही पास बैठी पूनम दौड़ कर घटनास्थल पर पहुंची. वह मां को मृत देख रोने लगी. जब उस ने कमरे में लाइट जलाई तो वहां पिता और भाई की खून से लथपथ लाशें पड़ी थीं. यह देख कर वह फूटफूट कर रोने लगी. उसे समझ में नहीं आ रहा था कि यह सब कैसे और क्या हो गया. पूनम के रोने की आवाज सुन चाचा जितेंद्र व सारा परिवार वहां आ गया. ग्राम पंचायत छेरकाडीह के सरपंच रामलखन भी घटनास्थल पर पहुंचे और थाना पलारी फोन कर के घटना की जानकारी दी.

12 अप्रैल, 2020 को लगभग 8 बजे पलारी थानाप्रभारी प्रमोद कुमार सिंह डौग स्क्वायड टीम व स्टाफ के साथ छेरकाडीह पहुंचे और घटनास्थल का मुआयना किया. चारों तरफ खून फैला हुआ था. उन्हें यह समझते देर नहीं लगी कि किसी ने दुश्मनी के कारण यह नृशंस हत्याकांड किया है. पुलिस ने जरूरी काररवाई कर तीनों लाशें पोस्टमार्टम के लिए भेज दीं. इसी दरम्यान थानाप्रभारी को यह खबर मिली कि हाल ही में यशवंत साहू ने सरपंच से कह कर सभा बुलाई थी, जिस में सरपंच ने पुजारी रविशंकर को हिदायत दी थी कि वह माहेश्वरी के पीछे न पड़े. पुलिस के हत्थे चढ़े आरोपी थानाप्रभारी प्रमोद कुमार सिंह को पूरा मामला शीशे की तरह साफ नजर आ रहा था. शक की सुई पुजारी रविशंकर की ओर घूम चुकी थी. उन्होंने एसपी प्रशांत ठाकुर बलोदाबाजार, भाटापारा  को संपूर्ण जानकारी दे कर मार्गदर्शन मांगा.

तब एसपी ने इस केस को खोलने के लिए थाना गिधौरी के थानाप्रभारी ओमप्रकाश त्रिपाठी और थाना सुहेला के थानाप्रभारी रोशन सिंह को भी उन के साथ लगा दिया. पुलिस टीम ने रविशंकर शुक्ला को शाम को ही धर दबोचा. उसे पलारी थाना ला कर पूछताछ शुरू की गई, लेकिन वह शातिराना ढंग से स्वयं को पंडित बता कर  बचना चाह रहा था मगर जब पुलिस ने कड़ाई से पूछताछ की तो वह टूट गया और तिहरे हत्याकांड को अंजाम देने की कहानी बता दी. उस ने बताया कि उस के इस काम में दुर्गेश व नेमीचंद भी साथ थे. पुजारी रविशंकर शुक्ला ने बताया कि वह 5 वर्षों से गांवगांव घूम कर यज्ञ आदि धार्मिक अनुष्ठान संपन्न कराता था, 2 साल पहले यशवंत साहू ने उसे पहली बार सत्यनारायण की कथा के लिए बुलाया था, जहां उस का परिचय उस की पत्नी माहेश्वरी से हुआ और बहुत जल्द दोनों के अंतरंग संबंध बन गए.

मगर बाद में माहेश्वरी उस से दूर छिटकने की कोशिश करने लगी और वह एक बार रंगेहाथों पकड़ा भी गया था. पंचायत में बात जाने के बाद वह माहेश्वरी से बातचीत कर उसे भगा ले जाने को तैयार था मगर जब माहेश्वरी ने साफ इंकार कर दिया तो उस ने दुर्गेश को विश्वास में ले कर यशवंत साहू को सबक सिखाने की सोची. फिर माहेश्वरी सहित उस के बेटे देवेंद्र साहू को मार डाला. आरोपी रविशंकर शुक्ला ने जांच अधिकारी प्रमोद कुमार सिंह को अपने इकबालिया  बयान में  बताया कि वह माहेश्वरी से दिलोजान से प्रेम करता था, इसलिए प्रेम में अंधे हो कर उस के हाथों यह हत्याकांड हो गया. पुलिस ने आरोपी पंडित रविशंकर शुक्ला और दुर्गेश वर्मा से हत्या में इस्तेमाल हथियार  टंगिया, फरसा व खून से सने कपड़े जब्त कर लिए.

प्राथमिक विवेचना के बाद पुलिस ने पलारी थाने में धारा 302 भादंवि के तहत केस दर्ज किया और मुख्य आरोपी पंडित रविशंकर शुक्ला, सहआरोपी दुर्गेश और नेमीचंद को गिरफ्तार कर के मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी कृष्णकुमार सूर्यवंशी की अदालत में पेश किया, जहां से तीनों को जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों से बातचीत पर आधारित

Love Story : भागकर शादी करने पर लड़की के घरवालों ने दामाद की कर दी हत्या

Love Story : घर वालों की मरजी के खिलाफ पढ़ीलिखी ज्योति ने रोहित से अंतरजातीय विवाह किया था. रोहित सरकारी नौकरी करता था, इसलिए ज्योति उस के साथ हंसीखुशी से रह रही थी. इस के 2 साल बाद इन के जीवन में ऐसा वाकया हुआ, जिस की किसी ने कल्पना तक नहीं की थी.

उत्तर प्रदेश के मैनपुरी जिले का एक गांव है बृजपुरा. इसी गांव के निवासी महेश सिंह यादव पेशे से किसान थे. उन का बड़ा बेटा रोहित पशु पालन विभाग में नौकरी करता था. 9 जुलाई, 2020 की बात है. रोहित की पत्नी ज्योति की तबियत अचानक खराब हो गई थी. बुखार के साथ उस के पेट में दर्द भी हो रहा था. इस से रोहित बहुत परेशान हो रहा था. ज्योति की तबियत खराब होने से रोहित परेशान हो उठा. शाम का वक्त हो गया था. जब घरेलू उपायों से भी कोई लाभ नहीं हुआ. घर वालों ने रोहित से ज्योति को कीरतपुर के किसी डाक्टर को दिखाने को कहा. क्योंकि बृजपुरा में कोई अच्छा डाक्टर नहीं था.

घर वालों की बात मान कर रोहित ने ज्योति से कहा, ‘‘चलो डाक्टर को दिखा आते हैं. कहीं रात में ज्यादा तबियत खराब हो गई तो किसे दिखाएंगे.’’

पति की बात मान कर ज्योति डाक्टर के पास चलने के लिए तैयार हो गई. गांव ब्रजपुरा से कीरतपुर लगभग 5 किलोमीटर दूर था. इसलिए रोहित अपनी मोटरसाइकिल से ज्योति को कीरतपुर में स्थित एक डाक्टर के क्लीनिक पर ले गया. ज्योति का चैकअप करने के बाद डाक्टर ने दवा दे दी और 2 दिन बाद फिर से आने को कहा. डाक्टर से दवा लेने के बाद रोहित पत्नी को ले कर अपने घर की तरफ चल दिया. लौटते समय रात हो गई थी. जब उस की मोटरसाइकिल सिंहपुर नहर पुल स्थित हुर्रइया पुलिया के पास पहुंची. उस समय रात के सवा 8 बज रहे थे. सड़क पर सन्नाटा था. ज्योति रोहित को पकड़े बाइक पर बैठी थी. उस ने कहा, ‘‘अंधेरे में मुझे डर लग रहा है. तुम गाड़ी कुछ तेज चलाओ जिस से हम घर जल्दी पहुंच जाएं.’’

रोहित कुछ कह पाता, तभी वहां घात लगाए हमलावरों ने उन दोनों पर हमला कर दिया. दोनों को जिस बात का डर था वही हो गई. ऐसा लग रहा था बदमाश जैसे उन दोनों का ही इंतजार कर रहे थे. अचानक हुए हमले से दोनों घबरा गए. रोहित ने मोटरसाइकिल तेज कर वहां से भागने का प्रयास किया. लेकिन बदमाशों ने ताबड़तोड़ फायरिंग शुरू कर दी थी. तभी एक गोली रोहित के पेट में लगी और बाइक सहित दोनों सड़क पर जा गिरे. कई गोली लगने से ज्योति गंभीर रूप से घायल हो गई थी. हमलावर 2 मोटरसाइकिलों पर सवार हो कर आए थे. रात के सन्नाटे में गोलियों की आवाज सुन कर आसपास के ग्रामीण घटनास्थल पर पहुंच गए. ग्रामीणों के वहां पहुंचने से पहले ही बदमाश घटनास्थल से फरार हो चुके थे. कुछ ग्रामीणों ने घायल दंपति को पहचान लिया और उन्होंने बृजपुरा उन के घर फोन कर घटना की जानकारी दे दी.

घटना की जानकारी होते ही रोहित के घर में कोहराम मच गया. छोटा भाई मोहित, पिता महेश व अन्य घर वाले गांव वालों के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. ज्योति और रोहित सड़क किनारे बिजली के खंभे के पास लहूलुहान पड़े हुए थे. इसी बीच किसी ने थाना मैनपुरी पुलिस को भी घटना की सूचना दे दी. सड़क पर बाइक सवार दंपति को गोली मारने की सूचना पर थाने में हड़कंप मच गया. घटनास्थल थाने से लगभग 7-8 किलोमीटर दूर था. कुछ ही देर में इंसपेक्टर भानुप्रताप सिंह पुलिस टीम व एंबुलेंस के साथ मौके पर पहुंच गए. उन्होंने गंभीर रूप से घायल दंपति को एंबुलेंस से जिला अस्पताल में उपचार के लिए भिजवाया.

दंपति पर जानलेवा हमले की वारदात से ग्रामीणों में रोष फैल गया था. गांव वालों के रोष को भांप कर थानाप्रभारी ने घटना की जानकारी उच्चाधिकारियों को दे कर स्थिति से अवगत कराया. खबर मिलते ही एएसपी मधुबन सिंह, सीओ अभय नारायण राय भी घटनास्थल पर पहुंच गए. अधिकारियों ने घटनास्थल का निरीक्षण किया. घटनास्थल से पुलिस को जहां 2 खोखे मिले, वहीं घटनास्थल से लगभग 150 मीटर की दूरी पर भी एक खोखा मिला. पुलिस ने घटनास्थल से जरूरी सबूत जुटा कर मौके की जरूरी काररवाई निपटाई. वहीं सीओ ने गुस्साए ग्रामीणों को भरोसा दिया कि पुलिस हमलावरों को जल्द गिरफ्तार कर लेगी. उन के आश्वासन के बाद ही ग्रामीण शांत हुए.

पुलिस बदमाशों की तलाश में जुट गई. लेकिन रात का समय होने के कारण बदमाशों के बारे में कोई जानकारी नहीं मिल सकी. बदमाशों ने दंपति को घायल करने के बाद उन की बाइक, नकदी व आभूषण की लूट नहीं की थी. इस से पुलिस को भी आशंका हुई कि बदमाशों ने हमला लूटपाट के लिए नहीं किया, इस के पीछे जरूर कोई रंजिश रही होगी. घटनास्थल से अधिकारी सीधे जिला चिकित्सालय पहुंचे. उन्होंने घायलों के बारे में चिकित्सकों से जानकारी ली. चिकित्सकों ने बताया कि रोहित के पेट में एक गोली तथा ज्योति के शरीर में 6 गोलियां लगी थीं. घायल रोहित ने अधिकारियों को हमलावरों के नाम भी बता दिए.

अस्पताल में मौजूद रोहित के छोटे भाई मोहित ने रंजिश के चलते अंगौथा निवासी बृजेश मिश्रा उस के बेटे गुलशन व हिमांशु मिश्रा, बृजेश के छोटे भाई अशोक मिश्रा व उस के 2 बेटों राघवेंद्र उर्फ टेंटा व रघुराई पर वारदात को अंजाम देने का आरोप लगाया था. घायल दंपति का जिला अस्पताल मैनपुरी में उपचार शुरू किया गया. उपचार के दौरान दोनों की गंभीर हालत को देखते हुए डाक्टरों ने उन्हें मैडिकल कालेज सैफई रैफर कर दिया. पुलिस व घर वाले जब एंबुलेंस से घायल दंपति को सैफई ले जा रहे थे तो रास्ते में ज्योति की मौत हो गई. जबकि रोहित का सैफई पहुंचते ही इलाज शुरू हो गया था. गोली उस के पेट में लगी थी जो पार हो गई थी.

औपरेशन के बाद चिकित्सकों ने रोहित को आईसीयू में भरती कर दिया था. रोहित की सुरक्षा के लिए थानाप्रभारी ने 2 सिपाही भी तैनात कर दिए गए थे. रोहित के भाई मोहित ने रिपोर्ट में आरोप लगाया था कि ज्योति मिश्रा ने उस के भाई रोहित यादव के साथ करीब 2 साल पहले अंतरजातीय प्रेम विवाह किया था, जिस से ज्योति के घर वाले उस के भाई रोहित व भाभी ज्योति से बहुत नफरत करते थे, उन्होंने कई बार धमकियां भी दी थीं. इसी के चलते इन लोगों ने घटना को अंजाम दिया. रिपोर्ट दर्ज होने के बाद पुलिस ने नामजद आरोपियों की गिरफ्तारी के लिए उन के गांव में दबिश दी. लेकिन कोई भी आरोपी घर नहीं मिला. पुलिस ने बृजेश मिश्रा के परिवार के कुछ लोगों के साथ ही कई संदिग्धों को हिरासत में ले लिया था. उन्हें कोतवाली ला कर पूछताछ की गई.

2 गांव के बीच प्रेम विवाह को ले कर हुई इस खूनी घटना के बाद खुफिया विभाग भी सतर्क हो गया था. लगातार दोनों गांव की स्थिति पर पुलिस नजर बनाए हुए थी. जहां रोहित के घर पर मातम पसरा हुआ था, वहीं अंगौथा में आरोपी के घरों पर कोई नहीं था. दोनों गांवों में इस घटना के बाद से सन्नाटा पसरा हुआ था. इस सनसनीखेज हत्याकांड के एक हफ्ते बाद भी पुलिस के हाथ खाली थे. पुलिस अब तक नामजद आरोपियों में से एक भी आरोपी को गिरफ्तार नहीं कर सकी थी. हत्यारों द्वारा ज्योति पर ताबड़तोड़ गोलियां बरसा कर मार देने की खबर इलैक्ट्रौनिक और प्रिंट मीडिया में प्रमुखता से छाने लगी, जिस से पुलिस पर दबाव बढ़ता जा रहा था, लेकिन पुलिस अपने काम में जुटी रही. पुलिस की जांच सही दिशा में आगे बढ़ रही थी.

पुलिस के अलावा सर्विलांस टीम, स्वाट टीम को भी आरोपियों की गिरफ्तारी के काम में लगाया गया. पुलिस की मेहनत रंग लाई और हत्याकांड के 3 नामजद आरोपियों को पुलिस ने दबिश के बाद उन के गांव के पास से गिरफ्तार कर लिया. 16 जुलाई, 2020 को पुलिस ने 10 दिन पहले हुए ज्योति हत्याकांड का परदाफाश कर दिया. एसपी अजय कुमार पांडेय ने प्रैसवार्ता आयोजित कर इस हत्याकांड का खुलासा किया. पता चला कि इस हत्याकांड को सम्मान की खातिर सगे भाई और 2 चचेरे भाइयों ने अंजाम दिया था. घटना में नामजद 5 आरोपियों में से पुलिस ने ज्योति के सगे भाई गुलशन मिश्रा तथा 2 चचेरे भाइयों राघवेंद्र मिश्रा व रघुराई मिश्रा को गिरफ्तार कर उन के कब्जे से 2 तमंचे व 5 कारतूस बरामद किए थे. तीनों हत्यारोपियों ने अपना जुर्म कुबूल कर लिया. इस हत्याकांड की जो कहानी बताई, वह कुछ इस तरह थी—

थाना मैनपुरी के बृजपुरा और अंगौथा गांव अगलबगल थे. बृजपुरा निवासी महेश सिंह के 2 बेटे व एक बेटी थी. बड़ा बेटा 25 वर्षीय रोहित यादव पशु पालन विभाग में नौकरी करता था. जबकि छोटा बेटा मोहित अभी बीएससी फर्स्ट ईयर में पड़ रहा था. छोटी बहन प्रियंका चौथी क्लास में पढ़ती थी. वहीं अंगौथा निवासी बृजेश मिश्रा खेतीकिसानी करता था. गांव में उस की आटा चक्की भी थी. उस के 4 बेटे बेटियों में गुलशन व हिमांशु के अलावा ज्योति तीसरे नंबर की थी. ज्योति की एक छोटी बहन और थी. गुलशन पिता के साथ आटा चक्की के काम में हाथ बंटाता था जबकि दूसरे नंबर का बेटा हिमांशु पुणे में नौकरी करता था.

रोहित यादव पशुपालन विभाग में अंगौथा मौजा (मझरा) में स्थित पशु चिकित्सालय व कृत्रिम गर्भाधान केंद्र में कार्य करता था. इसी सिलसिले में उस का आसपास के गांवों में आनाजाना लगा रहता था. वह पड़ोसी गांव अंगौथा भी पशुओं के इलाज के सिलसिले में जाता था. एक दिन जिस घर के पशुओं के इलाज के संबंध में रोहित आया था, उसी घर में पड़ोस में रहने वाली ज्योति आई हुई थी. रोहित की नजर उस पर पड़ी. ज्योति सुंदर लड़की थी. वह उस का अनगढ़ सौंदर्य देख ठगा सा रह गया. उस ने उसी क्षण उसे दिल में बसा लिया. ज्योति को भी अहसास हो गया कि रोहित उसे चाहत की नजरों से देख रहा है. रोहित कसी हुई कदकाठी का जवान युवक था. उसे देख कर 22 वर्षीय ज्योति का दिल भी तेजी से धड़कने लगा था.

रोहित जब भी ज्योति के गांव जाता उस की मुलाकात ज्योति से हो जाती. दोनों ही एकदूसरे को देख कर मुसकरा देते थे. जब दो युवा मिलते हैं तो जिंदगी में नया रंग घुलने लगता है. दोनों एकदूसरे से प्यार का इजहार करना चाहते थे. एक दिन ज्योति को मौका मिल ही गया. भाई और पिता आटा चक्की पर थे, मां घर के कामों में व्यस्त थी. ज्योति ने जैसे ही रोहित को देखा वह उस के पास से निकली और चुपचाप से एक पर्ची उस के पास गिरा दी. रोहित ने वह पर्ची झट से उठा कर अपने पास रख ली. काम निपटाने के बाद रास्ते में उस पर्ची को खोला तो उस पर एक मोबाइल नंबर लिखा था. बिना देर किए रोहित ने वह नंबर डायल किया.

दूसरी ओर से आवाज आई, ‘‘मैं ज्योति मिश्रा बोल रही हूं, आप कौन?’’

इस पर उस ने जवाब दिया, ‘‘मैं रोहित यादव बोल रहा हूं. आप के गांव के मवेशियों के इलाज के लिए आताजाता रहता हूं.’’

‘‘जनाब, आप इलाज जानवरों का करते हैं और घायल इंसानों को कर देते हैं,’’ कह कर ज्योति खिलखिला कर हंस पड़ी.

‘‘आप चिंता न करें, अब मुझे आप का फोन नंबर मिल गया है. अब आप बिलकुल ठीक हो जाओगी.’’ रोहित ने भी उसी अंदाज में जवाब दिया. एकदूसरे के मोबाइल नंबर मिलने के बाद दोनों के बीच धीरेधीरे बातचीत का सिलसिला शुरू हो गया. यह काफी दिनों तक चलता रहा. जब भी रोहित ज्योति के गांव में आता दोनों चोरीछिपे मिल कर एकदूसरे की दिल की बात जान लेते.

दोनों की जातियां भले ही अलगअलग थीं. लेकिन प्यार के दीवानों को इस की परवाह नहीं थी. दोनों का मानना था कि समाज और जाति सब अपनी जगह हैं, लेकिन हमारा प्यार इन सब से ऊपर है. यह सोच कर दोनों ने एकदूसरे का हमसफर बनने का निर्णय ले लिया था. इश्क की खुशबू कभी छिपती नहीं है. ज्योति के घर वालों को जब दोनों के बीच चल रहे प्रेमप्रसंग का पता चला तो उन्होंने ज्योति को कड़ी चेतावनी दी और रोहित से न मिलने की हिदायत दे दी. लेकिन रोहित की प्रेम दीवानी ज्योति पर इस चेतावनी का कोई असर नहीं हुआ था. उस ने घर वालों से बगावत कर दी और एक दिन मौका मिलते ही ज्योति रोहित के साथ घर से भाग गई.

इस बात की जानकारी होने पर ज्योति के घर वालों ने दोनों को बहुत तलाशा. उन के न मिलने पर उन्होंने रोहित के खिलाफ कोतवाली मैनपुरी में ज्योति को बहलाफुसला कर भगा ले जाने की रिपोर्ट दर्ज करा दी. 17 सितंबर, 2018 को दोनों ने घर वालों की मरजी के बिना प्रयागराज में कोर्ट मैरिज कर ली. कोर्ट मैरिज के बाद रोहित और ज्योति कुछ दिन दिल्ली जा कर रहे. दोनों बाद में गांव बृजपुरा आ गए थे. ज्योति के घर वालों ने यह जानकारी  पुलिस को दे दी. तब पुलिस ने ज्योति और रोहित को हिरासत में ले लिया. पुलिस ज्योति को जब न्यायालय में बयान दर्ज कराने के लिए ले जा रही थी, तब ज्योति के घर वालों ने उस से कहा कि वह उन के साथ चलने की बात कोर्ट में कहे.

इस बात के लिए ज्योति ने हामी तो भर दी थी, लेकिन जब कोर्ट में ज्योति के बयान दर्ज हुए तो उस ने पति रोहित के साथ ही जाने के बयान दिए थे. लिहाजा ज्योति को उस के पति रोहित के साथ भेज दिया गया. बेटी के इस फैसले के बाद वृद्ध पिता ब्रजेश मिश्रा व मां चुपचाप घर चले गए थे. उस समय उन्होंने खुदको बहुत अपमानित महसूस किया था. अंतरजातीय प्रेम विवाह ज्योति के घर वालों को मंजूर नहीं था. खासकर ज्योति के भाई गुलशन व चचेरे भाइयों राघवेंद्र व रघुराई को. इस वजह से वह ज्योति और रोहित से रंजिश मानने लगे थे. वे लोग दोनों की हत्या करना चाहते थे, लेकिन घर के बड़ेबुजुर्गों ने उन्हें समझाया कि हत्या करने से गई हुई इज्जत वापस तो आ नहीं जाएगी. यदि तुम लोग हत्या करोगे तो पुलिस का शक तुम्हीं लोगों पर जाएगा और पकड़े जाओगे.

उस समय तो वे लोग खून का घूंट पी कर रह गए थे. लगभग 2 साल बीतने के बाद घर वाले भी यह मान बैठे थे कि अब ये लड़के कोई घटना नहीं करेंगे. ज्योति के गैर जाति में शादी कर लेने की वजह से गांव में भी लोग आए दिन घर वालों पर छींटाकशी करते रहते थे. इस के साथ ही अविवाहित चचेरे भाई राघवेंद्र की शादी के लिए रिश्ते तो आते थे, लेकिन जब उन्हें सारी बातों की जानकारी होती, तो वे शादी से इंकार कर देते थे. चचेरी बहन के यादव जाति में शादी कर लेने से राघवेंद्र की शादी भी नहीं हो पा रही थी. इस से राघवेंद्र परेशान रहने लगा था. एक बार राघवेंद्र अकेला ज्योति की ससुराल जा पहुंचा और उस ने ज्योति से घर चलने के लिए दवाब डाला. लेकिन ज्योति ने साफ मना कर दिया. इस पर राघवेंद्र मुंह लटका कर घर लौट आया था.

यह बात गुलशन व रघुराई को नागवार लगी थी. इस घटना के बाद एक बार उन्होंने 50 हजार में भाड़े के एक शूटर से ज्योति व रोहित की हत्या कराने की योजना भी तैयार की गई थी, लेकिन वे सफल नहीं हुए थे. समय बीतने के साथ ही तीनों आरोपियों के मन में ज्योति के प्रति नफरत बढ़ती गई. इन्हें डर था कि कहीं ज्योति मां बन गई तो इस रिश्ते की डोर और भी मजबूत हो जाएगी. फिर दोनों परिवार कभी एक भी हो सकते हैं. सब तरफ से हताश होने के बाद गुलशन और उस के चचेरे भाइयों ने दोनों की हत्या करने की प्लानिंग की. वे पिछले एक महीने से इस की तैयारी कर रहे थे. उन्होंने तय कर लिया था कि ज्योति और रोहित जिस दिन एक साथ मिलेंगे, वह उन की हत्या कर देंगे. इसी वजह से वे घर वालों को अंधेरे में रख कर हत्या की योजना बना रहे थे.

उन्होंने असलहों का इंतजाम भी कर लिया था. फिर तीनों ने उन की रेकी करने का काम शुरू कर दिया. 7 जुलाई, 2020 को उन को मौका मिल भी गया. उस दिन राघवेंद्र ने मोटरसाइकिल से शाम के समय रोहित और ज्योति को जाते देख लिया था. उस ने गुलशन और रघुराई को बताया कि आज दोनों को निपटा देने का अच्छा मौका है. उसी समय उन लोगों ने योजना को अंजाम देने की ठान ली थी. तीनों ने तमंचों व कारतूसों का इंतजाम पहले ही कर लिया था. वे सिंहपुर नहर पुल के बंबे के पास मोटरसाइकिलों से जा कर उन का इंतजार करने लगे. रात सवा 8 बजे जैसे ही उन्हें रोहित की मोटरसाइकिल आती दिखी, उन लोगों ने दोनों पर घात लगा कर हमला कर दिया. उन्होंने दोनों पर ताबड़तोड़ फायरिंग  कर दी.

घटना के दौरान गुलशन मार्ग से आनेजाने वाले लोगों पर नजर भी रख रहा था, जबकि ज्योति को 6 गोलियां राघवेंद्र व रघुराई ने मारीं थीं, जिस से उस के बचने की कोई गुंजाइश न रहे. वहीं योजना थी कि रोहित के घुटने में गोली मार कर उसे जिंदगी भर के लिए अपाहिज कर दिया जाए. ताकि वह सारी जिंदगी अपने किए पर पछताता रहे. इसीलिए उन्होंने रोहित के एक गोली मारी. लेकिन हड़बड़ी में गोली रोहित के घुटने के बजाय पेट में जा लगी. अपनी योजना को अमलीजामा पहनाने के बाद आरोपी घटनास्थल से फरार हो गए थे.

रिपोर्ट 5 लोगों के खिलाफ दर्ज कराई गई थी. इन में 3 नामजदों को पुलिस द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया था. जबकि पिता बृजेश मिश्रा के खिलाफ जांच में कोई सबूत नहीं मिला था. इसी तरह पांचवें आरोपी की लोकेशन घटना के समय पुलिस को पुणे में मिली थी. इस संबंध में कहानी लिखे जाने तक विवेचना जारी थी. हत्या के लिए 2 तमंचे व 10 कारतूस का इंतजाम आरोपियों ने किया था. कारतूस व तमंचा कहां से जुटाए गए थे, पुलिस इस की भी जांच कर रही थी, ताकि दोषियों के विरुद्ध काररवाई की जा सके. इस हत्याकांड के खुलासे में एएसपी मधुबन सिंह, सीओ अभय नारायण राय, इंसपेक्टर भानुप्रताप सिंह, सर्विलांस सेल प्रभारी जोगिंदर सिंह, स्वाट टीम प्रभारी रामनरेश यादव का विशेष सहयोग रहा. एसपी अजय कुमार पांडेय ने पुलिस टीम को इस हत्याकांड का खुलासा करने पर 20 हजार का इनाम देने की घोषणा की.

पुलिस ने गिरफ्तार आरोपियों को 18 जुलाई, 2020 को ही न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया गया. मामले की जांच इंसपेक्टर भानुप्रताप सिंह कर रहे थे.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित