Love Story in Hindi: अच्छा सिला दिया तू ने मेरे प्यार का

Love Story in Hindi: संगीता जब घर में बता कर गई थी कि वह स्कूल जा रही है तो उस का फोन आने के बाद उस के घर वाले स्कूल में खोजने के बजाय इधरउधर क्यों खोजते रहे? इस में स्कूल मैनेजर और उस का चचेरा भाई तो दोषी है ही, घर वालों की लापरवाही भी है.

संगीता को तैयार होते देख शांति ने पूछा, ‘‘बेटी, कहीं जा रही हो क्या?’’

‘‘हां मां, स्कूल से फोन आया है, शायद कोई जरूरी काम है, इसलिए डेढ़, 2 घंटे के लिए बुलाया है. मैं काम निपटा कर जल्दी ही लौट आऊंगी.’’ तैयार होते हुए संगीता ने कहा. शायद शांति उस के जवाब से संतुष्ट नहीं हुईं, इसलिए उन्होंने आगे कहा, ‘‘आज तो होलिका दहन है, सभी स्कूलकालेज बंद हैं, फिर तुम्हारा स्कूल कैसे खुला है? जबकि तुम ने महीनों पहले वहां से नौकरी छोड़ दी है. ऐसे में स्कूल वालों को तुम्हें बुलाने की क्या जरूरत है?’’

‘‘मां, मुझे भी पता है कि आज छुट्टी है, लेकिन किस लिए बुलाया है? यह तो स्कूल जाने के बाद ही पता चलेगा न. परेशान होने की कोई बात नहीं है. मैं वहां पहुंच कर फोन कर दूंगी.’’ संगीता ने कहा. उस समय सुबह के साढ़े 9 बज रहे थे. तैयार हो कर संगीता ने नाश्ता किया और गुलौरी गांव स्थित ‘न्यू लिटिल फ्लावर चिल्डै्रन कान्वैंट स्कूल’ के लिए निकल पड़ी. 21 वर्षीया संगीता के पिता परमात्मानंद यादव मूलरूप से बलिया जिला के थाना बैरिया के चांदपुर गांव के रहने वाले थे. उन्हें 1982 में जिला मऊ के रतनपुरा (पहसा) स्थित नेहरू इंटर कालेज में अध्यापक की नौकरी मिली तो वह बलिया से मऊ आ गए. वह हाईस्कूल में गणित और विज्ञान पढ़ाते थे. अध्यापक की नौकरी मिलने के कुछ दिनों बाद ही वह अपनी पत्नी शांति को ले आए और रतनपुरा के बिंदु निवास में किराए का मकान ले कर रहने लगे थे.

यहीं रहते हुए उन के 6 बच्चे हुए, जिन में 30 वर्षीया सविता, 25 वर्षीया ममता, 21 वर्षीया संगीता, 18 वर्षीय धीरज कुमार, 16 वर्षीय राजीव रंजन और सब से छोटी ज्योति है, जो 8वीं में पढ़ रही है. वह 4 बेटियों में से 2 बेटियों सविता और ममता की शादी कर चुके हैं. तीसरी बेटी संगीता के लिए वह घरवर की तलाश कर रहे थे. वह अपने मकसद में कामयाब होते, उस के पहले ही एक अनहोनी हो गई. बीएससी करने के बाद संगीता अपने घर वालों के एक शुभचिंतक के कहने पर गुलौरी गांव स्थित न्यू लिटिल फ्लावर चिल्ड्रैन कान्वैंट स्कूल में पढ़ाने लगी थी. संगीता ने उस कान्वैंट स्कूल में लगभग साल भर पढ़ाया होगा कि न जाने क्यों इस साल फरवरी, 2015 से स्कूल में पढ़ाना बंद कर दिया.

संगीता ने यह नौकरी क्यों छोड़ दी, किसी को इस की वजह नहीं बताई. सिर्फ यही कहा कि स्कूल में उस से जितना काम लिया जाता है, उस के हिसाब से उसे वेतन नहीं दिया जाता. इसलिए वह वहां पढ़ाने के बजाय कोई दूसरी नौकरी ढूंढे़गी. नौकरी छोड़ने के बाद संगीता अपना ज्यादातर समय घर पर ही बिताती थी. इस बीच वह घरगृहस्थी के कामों में मां का हाथ बंटाती थी, साथ ही अपने लिए किसी अच्छी नौकरी की तलाश भी कर रही थी. लेकिन ‘न्यू लिटिल फ्लावर चिल्ड्रैन कान्वैंट स्कूल’ की नौकरी छोड़ने के बाद 5 मार्च, 2015 गुरुवार को उस विद्यालय में काम करने वाली किसी महिला ने संगीता को फोन कर के कहा कि स्कूल को मैनेजर ने उसे किसी जरूरी काम से स्कूल बुलाया है तो उसी के बुलाने पर वह तैयार हो कर पौने 10 बजे के आसपास स्कूल जाने के लिए निकली थी.

संगीता को स्कूल गए एक घंटा हुआ होगा कि उस ने मां के मोबाइल पर फोन किया. संगीता उस समय बेहद डरी और घबराई लग रही थी. उस ने मां से कहा था कि कुछ लोगों ने उसे जबरदस्ती एक कमरे में बंद कर दिया है, उस की समझ में कुछ नहीं आ रहा है. संगीता आगे कुछ और कहती, फोन कट गया. संगीता की बातों से शांति को लगा, वह किसी मुसीबत में फंस गई है. वह घबरा गईं कि क्या करें. क्योंकि उस समय घर में कोई मर्द नहीं था. होली का त्योहार होने की वजह से उन की बड़ी बेटी सविता मायके में ही थी. उसे जैसे ही मां से संगीता के बारे में पता चला, उस ने तुरंत संगीता के मोबाइल पर फोन किया. लेकिन अब उस का फोन बंद हो चुका था. वह बेचैन हो उठी.

उस ने कई बार संगीता को फोन किया, लेकिन हर बार फोन बंद मिला. चिंता की बात यह थी कि उस समय घर में न तो पिता परमात्मानंद थे और न ही छोटा भाई धीरज. होली की छुट्टी होने की वजह से वह बेटे धीरज के साथ संगीता के लिए लड़का देखने अपने गांव गए हुए थे. काफी कोशिश के बाद भी जब संगीता से बात नहीं हो पाई तो सविता और शांति परेशान हो उठीं. जब उन्हें कोई राह नहीं सूझी तो उस ने पिता को फोन कर के उन्हें सारी बात बता दी. परमात्मानंद यादव ने भी संगीता के मोबाइल पर फोन किया, लेकिन फोन बंद होने की वजह से बात नहीं हो पाई. वह वापस आने के बारे में सोच रहे थे कि गुलौरी गांव के रहने वाले रामभवन यादव का फोन आया. रामभवन यादव ‘न्यू लिटिल फ्लावर चिल्ड्रैन कान्वैंट स्कूल’ के संचालक-प्रबंधक जितेंद्र कुमार यादव का चचेरा भाई था.

रामभवन ने परमात्मानंद से कहा कि उसे सविता से संगीता के गायब होने के बारे में पता चला है. उस ने उन्हें फोन इसलिए किया है कि उसे पता चला है कि संगीता बलिया के रसड़ा में कहीं देखी गई है. वह रसड़ा पहुंच रहा है. वह उसे रसड़ा में प्यारेलाल चौराहे पर मिलें, उस के बाद दोनों मिल कर संगीता को खोजेंगे. परमात्मानंद की रामभवन से काफी पुरानी जानपहचान थी, दोनों का एकदूसरे के घर भी आनाजाना था. परमात्मानंद के बच्चे रामभवन को चाचा कहते थे. रामभवन से बात होने के बाद परमात्मानंद रसड़ा के प्यारेलाल चौराहे पर पहुंचे तो वहां रामभवन अपने एक साथी के साथ उन्हें खड़ा इंतजार करता मिल गया.

रसड़ा आते समय परमात्मानंद ने अपने चचेरे भाई शारदानंद को भी साथ ले लिया था. प्यारेलाल चौराहे पर सभी लोग मिले तो संगीता की खोज शुरू हुई. सभी घंटों संगीता की यहांवहां खोजबीन करते रहे, लेकिन उस का कहीं पता नहीं चला. जब सूर्यास्त हो गया तो रामभवन ने परमात्मानंद से कहा कि अब उन्हें घर चलना चाहिए. वहीं से संगीता के बारे में पता किया जाएगा. रसड़ा से रतनपुरा आतेआते रात हो गई. संगीता के बारे में अभी तक कुछ पता नहीं चला था. उस का मोबाइल अभी भी बंद था. परमात्मानंद के घर आते ही सविता ने पिता से कहा कि अभी तक संगीता का पता नहीं चला है, इसलिए पुलिस में उस की गुमशुदगी दर्ज करा देनी चाहिए. तब परमात्मानंद के साथ आए रामभवन ने कहा कि ज्यादा जल्दबाजी ठीक नहीं है.

लड़की का मामला है, कुछ उलटासीधा हो गया तो जिंदगी भर का दाग लग जाएगा. इसलिए हमें समझदारी से काम लेना चाहिए. उस के बारे में एक बार और पता कर लेते हैं. अगर कुछ पता नहीं चलता तो अगले दिन पुलिस को सूचना दे दी जाएगी. रामभवन के समझाने पर परमात्मानंद ने संगीता की गुमशुदगी की सूचना पुलिस को नहीं दी. जबकि सविता उन्हें बारबार रतनपुरा पुलिस चौकी जा कर संगीता की गुमशुदगी की सूचना देने को कहती रही. लेकिन परमात्मानंद रामभवन के कहने में आ गए थे, जबकि पुलिस चौकी उन के घर से महज ढाई, 3 सौ मीटर की दूरी पर थी. रामभवन ने एक बार फिर परमात्मानंद और 2-4 अन्य लोगों को साथ ले कर इधरउधर संगीता की खोजखबर और पूछताछ की, लेकिन इस का भी कोई सार्थक परिणाम नहीं निकला.

अगले दिन रामभवन सुबहसुबह परमात्मानंद के घर पहुंचा. सामने सविता पड़ गई तो उस से पूछा, ‘‘तुम्हारे पिताजी कहां हैं? संगीता के बारे में पता चल गया है.’’

‘‘कहां है संगीता?’’ सविता ने पूछा तो रामभवन ने कहा, ‘‘यह मैं तुम्हारे पिता को ही बताऊंगा.’’

रामभवन की आवाज सुन कर परमात्मानंद भी बाहर आ गए. उन्होंने पूछा, ‘‘क्या हुआ रामभवन? संगीता का कुछ पता चला क्या?’’

‘‘जी, संगीता ने स्कूल के कमरे में पंखे से लटक कर फांसी लगा ली है.’’

रामभवन के मुंह से यह बात सुन कर परमात्मानंद सन्न रह गए. उन्हें सहसा विश्वास ही नहीं हुआ. उन्होंने कहा, ‘‘तुम सच कह रहे हो या होली होने की वजह से कहीं मजाक तो नहीं कर रहे?’’

‘‘मजाक नही कर रहा, मैं ने खुद उसे पंखे से लटकी हुई देखा है.’’ रामभवन ने गंभीर हो कर कहा.

इस के बाद परमात्मानंद ने तुरंत 100 नंबर पर फोन कर के पुलिस कंट्रोल रूम को बताया कि गुलौरी गांव स्थित न्यू लिटिल फ्लावर चिल्ड्रैन कान्वैंट स्कूल के एक कमरे में उन की बेटी संगीता की लाश पंखे से लटकी हुई है. कंट्रोल रूम को सूचना देने के बाद वह अपने चचेरे भाई शारदानंद, मकान मालिक के बेटे और कुछ अन्य पड़ोसियों को साथ ले कर न्यू लिटिल फ्लावर चिल्ड्रैन कान्वैंट स्कूल पहुंचे तो वहां स्कूल के किसी कमरे में संगीता पंखे से लटकी हुई नहीं मिली. परमात्मानंद और उन के साथ आए लोग संगीता की पंखे से लटकी लाश ढूंढ ही रहे थे कि थानाप्रभारी आत्मा यादव, रतनपुरा चौकीप्रभारी पारसनाथ सिंह, एसआई उमाशंकर पांडेय पुलिस बल के साथ स्कूल पहुंच गए.

उन्हें पुलिस कंट्रोल रूम से इस बात की सूचना मिल गई थी. आत्मा यादव ने जब परमात्मानंद से संगीता की पंखे से लटकी लाश के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि उन्हें स्कूल के कमरे में उस के पंखे से लटके होने की सूचना मिली थी, लेकिन यहां तो ऐसा कुछ दिखाई नहीं दे रहा है. रामभवन ने जिस कमरे में लाश लटकी देखी थी, उस कमरे का बारीकी से निरीक्षण किया गया तो कमरे की पश्चिमी दीवार से सटा कर एक के ऊपर एक कई बेंचें रखी थीं. थानाप्रभारी को शंका हुई तो उन्होंने सिपाहियों से बेंचों को हटवाया. तब उन्हें जमीन पर संगीता चित्त पड़ी दिखाई दे गई. निरीक्षण में पता चला कि वह मर चुकी है. संगीता जहां मिली थी, वहां की फर्श कच्ची थी. देखने से ही लग रहा था कि साक्ष्य को मिटाने के लिए वहां काफी पानी गिराया गया था. वहीं उस का मोबाइल फोन भी पड़ा था.

थानाप्रभारी ने मोबाइल उठा कर चेक किया तो उस में सिम नहीं था. संगीता की चप्पलें उस से कुछ दूरी पर पड़ी थीं. थानाप्रभारी ने सगीता की लाश का निरीक्षण किया तो उस के बदन पर कई जगहों पर चोट के निशान तथा बाएं पैर की अनामिका अंगुली के जोड़ के पास इंजेक्शन लगाए जाने जैसे 2 छेद नजर आए. थानाप्रभारी आत्मा यादव ने लाश और घटनास्थल का निरीक्षण करने के बाद पूछताछ शुरू की तो पता चला कि मृतका संगीता इसी स्कूल में लगभग एक साल तक अध्यापिका रही थी. लेकिन पिछले एक महीने से उस ने स्कूल आना बंद कर दिया था. क्येंकि उस ने नौकरी छोड़ दी थी. कल स्कूल के मैनेजर जितेंद्र कुमार यादव के बुलाने पर वह यहां आई थी. उस के बाद क्या हुआ, पता नहीं. आज सुबह रामभवन ने आत्महत्या की सूचना दी थी.

आत्मा यादव ने तत्काल एक प्राइवेट वाहन मंगवाया और लाश के साथ परमात्मानंद यादव तथा उन के 2-3 रिश्तेदारों को ले कर थाने आ गए. यहां लाश का पंचनामा तैयार किया गया और उसे पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दिया गया. उस दिन होली का त्योहार था, लेकिन संगीता की मौत हो जाने की वजह से रतनपुरा में होली नहीं मनाई गई. लोगों के मुंह पर सिर्फ एक ही बात थी कि संगीता की मौत कैसे हुई? उसी दिन लाश का पोस्टमार्टम हो गया. पोस्टमार्टम करने वाले डाक्टर ने संगीता की मृत्यु की वजह पता करने के लिए विसरा तथा दुष्कर्म की पुष्टि के लिए शरीर के कई अंगों को जांच के लिए सुरक्षित रख लिया था. पोस्टमार्टम के बाद पुलिस निगरानी में लाश को संगीता के घर वालों को सौंप दिया गया.

घर वालों ने उसी दिन शाम को तमसा नदी के किनारे ढंचा स्थित गोदाम घाट पर उस का अंतिम संस्कार कर दिया. उसी दिन परमात्मानंद ने रिपोर्ट दर्ज करने के लिए थाना हलधरपुर के थानाप्रभारी को एक तहरीर दी. लेकिन थानाप्रभारी ने तत्काल रिपोर्ट दर्ज नहीं की. उन्होंने कहा कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने के बाद ही रिपोर्ट दर्ज की जाएगी. दरअसल पुलिस अपनी शुरुआती जांच में संगीता की मौत को आत्महत्या मान रही थी. अगले दिन 7 मार्च, शनिवार को पुलिस को पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिल गई. पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार, मृतका की मौत दम घुटने से हुई थी. उस के गुप्तांग पर भी चोट के निशान पाए गए थे. इसलिए पोस्टमार्टम करने वाले डाक्टर जफर अंसारी ने मृतका के वैजाइनल स्वाब (सीमेन) की स्लाइड बना कर जांच के लिए सुरक्षित रख लिया था, जिसे बाद में लखनऊ स्थित प्रयोगशाला भेज दिया गया.

अब रिपोर्ट आने के बाद ही पता चलेगा कि संगीता के साथ सामूहिक दुष्कर्म हुआ था या किसी एक ने उस के साथ दुष्कर्म किया था. बहरहाल परमात्मानंद ने पुलिस को जो तहरीर दी थी, उस में किसी को नामजद नहीं किया गया था. लेकिन थाना हलधर के थानाप्रभारी ने अब तक की, की कई जांच और पोस्टमार्टम रिपोर्ट के आधार पर संगीता की मौत के लिए स्कूल के प्रबंधक व संचालक जितेंद्र यादव और उस के चचेरे भाई रामभवन यादव को जिम्मेदार मानते हुए, दोनों के खिलाफ भादंवि की धारा 306 व 201 के तहत मुकदमा दर्ज करा दिया.

इस के बाद एसपी अनिल कुमार सिंह के आदेश पर 7 मार्च, 2015 को एएसपी सुनील कुमार सिंह ने रात 9 बजे के आसपास परमात्मानंद यादव के घर जा कर घर के सभी लोगों से पूछताछ की. अगले दिन 8 मार्च को एसपी अनिल कुमार सिंह और जिलाधिकारी चंद्रकांत पांडेय ने भी गुलौरी जा कर स्कूल के उस कमरे का निरीक्षण किया, जिस में संगीता की लाश मिली थी. उस के बाद दोनों अधिकारी मृतका के घर गए और पूरे परिवार से एकांत में अलगअलग बात की. वहां से लौट कर दोनों अधिकारियों ने रतनपुरा पुलिस चौकी में प्रेसवार्ता के दौरान कहा कि पुलिस की अब तक की जांच से प्रथम दृष्टया संगीता की मौत आत्महत्या है, लेकिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट बताती है कि उस के साथ कुछ गलत हुआ है. इसलिए पुलिस इस मामले की निष्पक्ष जांच कर रही है. आगे जांच में जैसा पता चलेगा, उस के अनुसार काररवाई की जाएगी. इस मामले के दोषियों को सजा जरूर मिलेगी.

9 मार्च, 2015 को जिलाधिकारी चंद्रकांत पांडेय और एसपी अनिल कुमार सिंह ने जिलाधिकारी औफिस में संयुक्त रूप से पत्रकारवार्ता के दौरान कहा कि मृतका संगीता का स्कूल के प्रबंधक जितेंद्र यादव से प्रेमसंबंध था. दोनों के शारीरिक संबंध भी थे. जबकि जितेंद्र शादीशुदा ही नहीं, 2 बच्चों का बाप था. जितेंद्र और संगीता की देर रात मोबाइल फोन पर बातें होती थीं. वह उसे एसएमएस भी करता था. दोनों के प्रेमसंबंधों की जानकारी जितेंद्र की पत्नी को हुई तो वह नाराज हो कर मायके चली गई, जिस की वजह से जितेंद्र काफी परेशान रहने लगा. अपना घर बचाने के लिए वह संगीता से पिंड छुड़ाना चाहता था और संगीता से दूरी बना ली थी.

जबकि संगीता उसे छोड़ने को तैयार नहीं थी और उस पर शादी के लिए दबाव डाल रही थी. घटना वाले दिन संगीता को पता चला कि वह स्कूल पर है तो वह उस से बात करने स्कूल पहुंची, लेकिन जितेंद्र वहां नहीं मिला. इस के बाद पुलिस यह बताने में असमर्थ रही कि संगीता के वहां पहुंचने के बाद क्या हुआ था?पुलिस के बताए अनुसार, स्कूल के प्रबंधक जितेंद्र के पिता विक्रमा यादव स्कूल में ही सोते थे. शुक्रवार 6 मार्च, 2015 को वह सुबह उठे तो कक्ष संख्या 5 में उन्हें संगीता पंखे से लटकी हुई दिखाई दी. उन्होंने तुरंत इस की सूचना बेटे जितेंद्र को दी. उसे जैसे ही संगीता के फांसी पर लटके होने की सूचना मिली, उस ने अपने चचेरे भाई रामभवन को इस की सूचना दे कर स्कूल पहुंचने को कहा.

दोनों ने इस बात की सूचना पुलिस को देने के बजाय खुद शव को उतारा और कमरे के एक कोने में रख कर उसे छिपाने के लिए उस के ऊपर ढेर सारी बेंचें रख दीं. पुलिस के अनुसार, सब से पहले संगीता को फंदे से लटके जितेंद्र के पिता विक्रमा यादव ने देखा था. उन्होंने पुलिस को सूचना नहीं दी, इसलिए उन के खिलाफ भी भादंवि की धारा 201 के तहत मुकदमा दर्ज कर उन्हें भी गिरफ्तार कर लिया गया है. पुलिस की अब तक की जांच के अनुसार, स्कूल प्रबंधक जितेंद्र यादव को भादंवि की धारा 306, 201 व 376 का दोषी पाया गया है और उसे इन्हीं धाराओं के अंतर्गत गिरफ्तार किया गया है. जबकि धारा 306, 201 का आरोपी रामभवन फरार है. पुलिस उस की गिरफ्तारी के लिए जगहजगह छापे मार रही थी.

पत्रकारवार्ता के दौरान पत्रकारों ने जितेंद्र से पूछा कि कहीं उसी ने तो संगीता को फांसी पर नहीं लटकाया था, तब उस ने कहा कि घटना वाले दिन वह गांव में था ही नहीं, संगीता के पंखे से लटकने की सूचना उसे पिता से मिली तो वह अपने चचेरे भाई रामभवन के साथ स्कूल पहुंचा और संगीता को लटकी देख कर रामभवन को उस के पिता को बुलाने भेज कर उस ने लाश को नीचे उतारा और बेंच के पीछे छिपा दिया. उस ने स्वीकार किया उस ने जानबूझ कर पुलिस को सूचना नहीं दी थी. जितेंद्र ने संगीता से अपने प्रेम और शारीरिक संबंधों की बात स्वीकार करते हुए यह भी बताया कि जब उसे गर्भ ठहर गया था तो उस ने गर्भपात की दवा दे कर उस का गर्भपात भी कराया था. जब उस से संगीता के मोबाइल के सिम के बारे में पूछा गया तो उस ने कहा कि उसे सिम के बारे में कोई जानकारी नहीं है.

10 मार्च, 2015 को पुलिस ने जितेंद्र यादव और उस के पिता विक्रमा यादव को न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत में पेश किया, जहां से दोनों को 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. संगीता की रहस्यमय मौत की गूंज 11 मार्च, 2015 को प्रदेश विधान परिषद में गूंजी. विधान परिषद सदस्य चेत नारायण सिंह ने काम रोक कर इस बारे में चर्चा कराने की मांग की. सपा के देवेंद्र प्रताप सिंह ने थानाप्रभारी के खिलाफ काररवाई करने के साथ अभियुक्तों पर गैंगस्टर एक्ट लगाने की मांग की. जवाब में सदन के नेता अहमद हसन ने कहा कि सरकार इस प्रकरण की जांच पुलिस उपमहानिरीक्षक (डीआईजी) स्तर के अधिकारी को सौंपेगी. सभापति गणेशशंकर पांडेय ने कार्य स्थगन को अस्वीकार कर सरकार को जांच रिपोर्ट से सदन को अवगत कराने का निर्देश दिया.

एक अन्य सदस्य राज बहादुर सिंह चंदेल ने सदन को बताया कि 5 मार्च को मऊ के गुलौरी स्थित न्यू फ्लावर चिल्ड्रैन कान्वैंट स्कूल के प्रबंधक ने स्कूल की एक अध्यापिका को सुबह फोन कर के स्कूल बुलाया और साथियों के साथ उस से दुष्कर्म के बाद उस की हत्या कर दी. मृतका के पिता 6 मार्च को इस मामले की रिपोर्ट लिखाने थाने पहुंचे तो वहां उन की रिपोर्ट 3 बार बदलवाई गई. अंत में थानाप्रभारी ने जैसा चाहा, उसी हिसाब से रिपोर्ट लिखाई गई. पुलिस फरार अभियुक्त रामभवन की गिरफ्तारी के लिए संभावित ठिकानों पर छापे मार रही थी, लेकिन पुलिस उसे पकड़ नहीं सकी.

तब थानाप्रभारी आत्मा यादव ने सीजेएम मऊ की अदालत से रामभवन के खिलाफ कुर्कीजब्ती का आदेश हासिल कर सोमवार 16 मार्च को उस के घर पर नोटिस चस्पा करा दी. इस से डर कर रामभवन ने अगले दिन 17 मार्च, मंगलवार को थाना हलधरपुर में आत्मसमर्पण कर दिया. जबकि पुलिस का कहना है कि उस ने रामभवन को गिरफ्तार किया है. अपनी गिरफ्तारी से पहले रामभवन ने मीडिया, सामाजिक संगठनों और राजनीतिक पार्टियों के नाम एक पत्र लिखा है, जिस में उस ने इस मामले की सीबीआई से जांच कराने की मांग करते हुए कहा है कि वह इस पूरे मामले में निर्दोष है और चाहता है कि जो भी दोषी हो, उसे कड़ी से कड़ी सजा मिले.

उस ने लिखा है न उस के मांबाप हैं, न कोई बहन है. वह संगीता को बहन मानता था. जिस बहन को उस ने दिन भर खोजा, सुबह उसी की लाश को पंखे से लटकती देखा तो उसे उतरवा कर उस के पिता को सूचना दी. शायद इसी की उसे इतनी बड़ी सजा मिली है. Love Story in Hindi

—कथा पुलिस सूत्रों एवं घर वालों से मिली जानकारी पर आधारित

 

Agra News: प्यार ने कलंकित किया रिश्ता

Agra News: पंकज और रितु सगे मामाभांजी थे, इसलिए उन्होंने प्यार और शादी कर के जो सामाजिक अपराध किया, उस की सजा उन्हें मौत को गले लगा कर चुकानी पड़ी. उत्तर प्रदेश के जिला शाहजहांपुर का एक छोटा सा कस्बा है खुतार. इसी कस्बे के रहने वाले प्रकाश नारायण श्रीवास्तव अध्यापक थे. उन की संतानों में एक बेटी मीना और 3 बेटे संतोष, राजीव तथा पंकज थे. बच्चों में मीना सब से बड़ी थी. उस के सयानी होते ही प्रकाश नारायण ने उस के विवाह के लिए भागदौड़ शुरू कर दी. काफी भागदौड़ के बाद प्रकाश नारायण को मीना के लिए लखीमपुर खीरी के गांव सैकिया का रहने वाला शांतिस्वरूप पसंद आ गया. वह किसान परिवार से था. इस तरह मीना की शादी शांतिस्वरूप के साथ हो गई.

मीना ससुराल में सुखी थी, इसलिए मांबाप निश्चिंत थे. कालांतर में मीना 1 बेटे बीरू और 3 बेटियों की मां बनी. लगभग 10 साल पहले मीना की बीमारी की वजह से मौत हो गई तो शांतिस्वरूप पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा. बच्चे छोटेछोटे थे, इसलिए पत्नी के बिना वह घर संभाले या बाहर के काम देखें. बड़ी बेटी स्नेहा (बदला हुआ नाम) कुछ समझदार थी, इसलिए उस ने घर संभाल लिया था. सभी बच्चे अभी पढ़ ही रहे थे. सब से छोटी सुधा (बदला हुआ नाम) 6 साल की थी, जबकि मंझली रितु करीब 10 साल की. समय का पहिया अपनी गति से चलता रहा और जख्म धीरेधीरे भरते गए.

शांतिस्वरूप की ससुराल खुतार और उन के गांव सैकिया के बीच 10-12 किलोमीटर की दूरी थी, इसलिए दोनों ओर से लोगों का आनाजाना लगा रहता था. प्रकाश नारायण का बड़ा बेटा यानी शांतिस्वरूप का बड़ा साला संतोष परचून की दुकान करता था, उस से छोटा राजीव पढ़लिख कर एक प्राइवेट स्कूल में पढ़ा रहा था. सब से छोटा पंकज डेकोरेशन का काम करता था. कुल मिला कर प्रकाश नारायण का परिवार व्यवस्थित हो चुका था, लेकिन बेटी की मौत का सदमा उन्हें कुछ ऐसा लगा कि उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया था.

कौन जानता था कि समय के साथ ऐसा जलजला आएगा कि दोनों परिवारों की इज्जत का जनाजा निकल जाएगा. पंकज घर का सब से छोटा बेटा था, इसलिए सभी का लाडला था. मीना अपने इस छोटे भाई से बहुत प्यार करती थी, इसलिए बहन की मौत से पंकज को गहरा आघात लगा था. बहन के जीवित रहने पर वह उस के यहां अकसर जाया करता था, इसलिए बहन के बच्चों को भी अपने छोटे मामा पंकज से काफी लगाव था. रितु को ननिहाल में कुछ ज्यादा ही अच्छा लगता था, क्योंकि उसे लगता था कि तीनों मामा उसे हाथोंहाथ लिए रहते हैं. छोटे मामा तो उस की हर इच्छा पूरी करने को तैयार रहते हैं.

रितु का मामा के यहां आनाजाना लगा रहा. रितु 15 साल की हो गई. इस उम्र में आतेआते वह काफी खूबसूरत लगने लगी थी. ननिहाल में ज्यादातर समय उस का टीवी देखने में गुजरता था. टीवी के छोटे परदे पर नजर आने वाले लड़के उसे बहुत अच्छे लगते थे. कभीकभी उन में कोई लड़का उसे पंकज मामा जैसा लगता था. एक दिन टीवी देखते समय अचानक पंकज आ गया तो उस ने कहा, ‘‘मामा, आप बहुत स्मार्ट हैं, एकदम टीवी सीरियलों में आने वाले हीरो जैसे लगते हैं.’’

रितु, जो पंकज के सामने अभी बच्ची थी, अचानक उसे वह हीरो जैसा लगने लगा था. पंकज ने ध्यान से देखा, तब उसे लगा कि रितु अब बच्ची नहीं रही, वह जवान हो गई है. वह ऐसा क्षण था, जब वह भूल गया कि रितु उस की सगी बहन की बेटी यानी सगी भांजी है. उसी एक क्षण में उस का दिमाग कुछ तरह बदला कि उस की सोच ही बदल गई. पंकज के दिलोदिमाग पर रितु कुछ इस कदर छाई कि वह यह भूल गया कि रितु उस की सगी भांजी है. रितु उम्र में भी उस से बहुत छोटी थी. वह क्षण ऐसा था, जिस ने रिश्तों में ही नहीं, जिदंगी में ही आग लगा दी. आखिर इस की परिणति वही हुई, जैसा ऐसे रिश्तों में होता है. इस रिश्ते ने खुतार के सीने पर एक ऐसी कलंक कथा लिख डाली, जिस ने रिश्तों को ही नहीं, समाज को भी शर्मसार कर दिया.

बड़ेबुजुर्गों ने कहा है कि कदम बढ़ाने से पहले खूब सोचविचार लेना चाहिए. कहीं वह कदम गलत राह पर तो नहीं ले जा रहा. रितु के पास से अपने कमरे में आने के बाद पंकज विचारों में ऐसा खोया कि उसे समय का पता ही नहीं चला. शाम को रितु ने आ कर उस का कंधा पकड़ कर हिलाते हुए कहा, ‘‘उठो मामा, आज खाना नहीं खाना क्या?’’

रितु के मुलायम स्पर्श ने आग में घी का काम किया. पंकज झटके से उठा और रितु को बांहों में भर कर सीने से लगा लिया. रितु हैरान रह गई. वह इतनी बड़ी और समझदार हो चुकी थी कि स्पर्श के मायने पहचानने लगी थी. यह स्पर्श मामा का नहीं, बल्कि एक मर्द का था. उस का तन ही नहीं, मन भी झनझना उठा था. वह एकदम से घबरा गई. उस ने खुद को मामा की बांहों से आजाद किया और हांफती हुई बाहर आ गई. बाहर आते ही सामने नानी पड़ गईं. उस की हालत देख कर उन्होंने पूछा, ‘‘क्या हुआ रितु, हांफ क्यों रही है?’’

‘‘कुछ नहीं नानी, ऐसे ही.’’ कह कर वह नानी के कमरे में चली गई.

रात जैसेतैसे बीती. सुबह होते ही रितु ने कहा, ‘‘नानी, मुझे अपने घर जाना है. आप भिजवा दीजिए.’’

‘‘तू तो कह रही थी कि अभी हफ्ते भर रहूंगी. अचानक जाने का मन कैसे हो गया?’’ नानी ने पूछा.

‘‘मेरा पढ़ाई का नुकसान हो रहा है नानी, इसलिए मैं जाना चाहती हूं.’’ रितु ने कहा.

‘‘ठीक है, पंकज से कह देती हूं, वह तुझे पहुंचा देगा.’’ नानी ने कहा.

‘‘नहीं नानी, मैं पंकज मामा के साथ नहीं, राजीव मामा के साथ जाऊंगी.’’ रितु ने कहा.

पंकज कमरे में बैठा रितु की बातें सुन रहा था. झट से बाहर आ कर बोला, ‘‘अम्मा, मुझे थोड़ा काम है, इसलिए मैं इसे छोड़ने नहीं जा सकता.’’

रितु ने राहत की सांस ली. रितु शरम और डर की वजह से मामा की हरकत के बारे में किसी को कुछ नहीं बता सकी थी. अगर उस दिन रितु जरा भी हिम्मत कर गई होती तो शायद आज यह कलंक कथा न लिखी जाती. रितु चली गई. उस के जाने के बाद पंकज को लगा कि रितु के लिए उस के दिल के किसी कोने में ऐसी जगह बन गई है, जिसे अब कोई दूसरा नहीं भर सकता. हालांकि दिल और दिमाग में भारी कशमकश चल रही थी, पर दिल था कि मान ही नहीं रहा था. रितु 15 साल की थी, जबकि वह 28 साल का था.

आखिर दिल के हाथों मजबूर पंकज एक दिन रितु के घर जा पहुंचा. संयोग से जब वह वहां पहुंचा था, रितु घर में अकेली थी. यह मौका रिश्तों को दलदल में घसीटने के लिए काफी था. मामा को देख कर रितु कांप उठी, लेकिन पंकज ने उसे पास बिठा कर प्यार से समझाया, ‘‘रितु, डरने की कोई बात नहीं है. मैं जो कहने जा रहा हूं, वह तुम्हें सुनना ही पड़ेगा. मैं तुम से प्यार करने लगा हूं. मैं ने इस बात पर बहुत सोचाविचारा, लेकिन आखिर में यही लगा कि अगर तुम मुझे नहीं मिली तो मैं जिंदा नहीं रह पाऊंगा.’’

रितु घबरा गई, ‘‘नहीं मामा, ऐसा मत करना.’’

‘‘अगर तुम कहती हो तो ठीक है. लेकिन सच बताओ, क्या मैं तुम्हें अच्छा नहीं लगता, क्या तुम्हें मुझ से प्यार नहीं है?’’

‘‘मामा, आप मुझे बहुत अच्छे लगते हैं, लेकिन…’’

‘‘लेकिनवेकिन कुछ नहीं, हां या ना में जवाब दो. अभी कोई जल्दी नहीं है, खूब सोचविचार कर फैसला कर लेना. लेकिन फैसला लेने से पहले इस बात का ध्यान रखना कि तुम मेरी यादों के सहारे जीना चाहोगी या साक्षात देखते हुए. जो भी फैसला लेना, फोन कर के बता देना.’’ कह कर पंकज ने उसे बांहों में समेटा, प्यार किया और चला गया.

रितु स्तब्ध बैठी रही. इस बार मामा का स्पर्श उसे भी कुछ अच्छा लगा था. वह जिस उम्र में थी, उस में फिसलने की संभावनाएं बहुत होती हैं. बिना मां की बेटी थी, न कोई रोकनेटोकने वाला था, न कोई राह दिखाने वाला. ऐसे में मामा ही अंगुली पकड़ कर दलदल में खींच रहा था. रितु ने ज्यादा सोचनेविचारने की जहमत नहीं उठाई और जीवन की नाव को तूफान के हवाले कर दिया.

2-3 दिनों बाद पंकज ने फोन किया, ‘‘रितु, मैं तुम से मिलने आना चाहता हूं.’’

‘‘…तो आ जाओ न.’’ रितु ने चहक कर कहा.

पंकज को लगा, जैसे किसी ने कानों में शहद घोल दिया हो. वह तुरंत सैकिया आ गया. इस के बाद वह रितु को उस दलदल में घसीट ले गया, जिस में घुसना तो आसान है, पर निकलना बहुत मुश्किल. मामाभांजी के बीच ऐसा रिश्ता बन गया, जिस की भनक घर वालों को ही नहीं, किसी को भी लग जाती तो हायतौबा मच जाती. इस के बाद रितु और पंकज का एकदूसरे के घर आनाजाना कुछ ज्यादा ही हो गया. उन का रिश्ता ऐसा था कि कोई संदेह भी नहीं कर सकता था. रितु की हर चाहत पंकज पूरी कर रहा था. सब यही समझते थे कि मामा को भांजी से कुछ ज्यादा ही प्यार है.

लेकिन सच कितने दिनों तक छिपा रहता. एक न एक दिन तो उसे उजागर होना ही था. जब पंकज का शांतिस्वरूप के घर आनाजाना कुछ ज्यादा ही हो गया तो उसे लगा, यह ठीक नहीं है. घर में बिना मां की 3 बेटियां थीं, इसलिए उन्होंने टोका, ‘‘पंकज, तुम्हें कुछ कामधाम है या नहीं, जब देखो यहीं डेरा डाले रहते हो. तुम्हारी वजह से रितु भी बेलगाम होती जा रही है. जब देखो, तब नानी के यहां जाने के लिए तैयार रहती है. पढ़ाई पर भी ध्यान नहीं देती.’’

‘‘जीजाजी, दीदी की याद आ जाती है, इसलिए चला आता हूं. अगर आप को मेरा आना अच्छा नहीं लगता तो अब नहीं आऊंगा.’’

‘‘भई, ऐसी कोई बत नहीं है. मेरे कहने का मतलब यह है कि अपने कामधंधे पर भी ध्यान दो. फालतू घूमने से कोई फायदा नहीं है.’’

पंकज समझ गया कि अब लोगों को उस पर शक होने लगा है, इसलिए उसे सतर्क हो जाना चाहिए. घर आ कर वह अपने कमरे में बैठा देर तक सोचता रहा. उस का प्यार जुनूनी होता जा रहा था. लेकिन घरपरिवार और समाज का भी डर सता रहा था. रिश्ता इतना नाजुक था कि वह रितु को अपना भी नहीं सकता था. जबकि दिल उसे छोड़ने को तैयार नहीं था. प्रेम की एकएक सीढ़ी चढ़ते हुए रितु और पंकज जिस शिखर की ओर जा रहे थे, वहां से फिसल कर आने का ही अंदेशा था. उन्हें मंजिल मिलना लगभग असंभव था, पर वे मंजिल पाने के लिए बेताब थे. जबकि मंजिल पाने की कोई राह नहीं थी. पंकज की उम्र 30 साल से अधिक हो चुकी थी. उस का कामकाज भी ठीक चल रहा था. उस की शादी के लिए भी लोग आ रहे थे. लेकिन शादी में वह रुचि नहीं दिखा रहा था. बड़े भाई ने दबाव डाला तो उस ने एक दिन साफसाफ कह दिया, ‘‘भैया, मैं शादी नहीं करूंगा.’’

‘‘तो क्या अकेले ही जिंदगी बिताओगे?’’

‘‘नहीं, अकेला तो नहीं रहूंगा, पर आप लोग मेरे लिए परेशान न हों.’’

पंकज के इस जवाब से घर के सब लोग सोचने को मजबूर हो गए कि पंकज शादी के लिए मना क्यों कर रहा है? उसी बीच शांतिस्वरूप ने संतोष को फोन कर के पंकज की शादी के लिए एक रिश्ता बताया तो उस ने कहा कि पंकज शादी नहीं करना चाहता. संतोष की बात से पंकज को ले कर कुछ आशंका हुई तो उस ने कहा, ‘‘भई पंकज का इरादा मुझे कुछ ठीक नहीं लगता. जब देखो, तब वह मेरे यहां पड़ा रहता है. रितु भी उस के कुछ ज्यादा ही मुंहलगी हो गई है. इधर वह पढ़ाई में भी ध्यान नहीं दे रही है.’’

बहनोई की बात पर संतोष के मन में भी संदेह पैदा हो गया. कहीं उस के इस इरादे के पीछे रितु तो नहीं है. आखिर शादी से मना क्यों कर रहा है? रितु और पंकज की प्रेमकहानी अब तक 5 साल पुरानी हो चुकी थी. इस बेईमान प्यार का अंजाम क्या होगा, कोई नहीं जानता था. रितु भी अपने भविष्य को ले कर परेशान थी, इसलिए एक दिन उस ने पंकज से पूछा, ‘‘अब आगे क्या होगा मामा?’’

‘‘आगे से मतलब..?’’ पंकज बोला.

‘‘मतलब यह कि आखिर इस तरह कब तक चलता रहेगा. तुम्हारा मेरे घर आना पापा को अच्छा नहीं लगता. उन्होंने साफसाफ तो कुछ नहीं कहा, लेकिन उन के मन में हम लोगों को ले कर कुछ संदेह जरूर है.’’

‘‘लगता तो मुझे भी कुछ ऐसा ही है. मैं जल्दी ही कुछ करने की सोचता हूं.’’

‘‘क्या सोचोगे, हमारे सामने एक ओर कुआं है तो दूसरी ओर खाई. हमारे दोनों ओर खतरा है. अभी तो हमारे संबंधों के बारे में कोई कुछ नहीं जानता, लेकिन जिस दिन इस का खुलासा होगा, पहाड़ टूट पड़ेगा.’’

पंकज और रितु की दीवानगी बढ़ती जा रही थी. दोनों ही एकदूसरे को अपने अस्तित्व का हिस्सा मानने लगे थे, इसलिए जिंदगी एक साथ बिताना चाहते थे. पर यह उन के लिए आसान नहीं था. रितु तो उतनी समझदार नहीं थी, पर पंकज समझदार था. वह हमेशा इसी चिंता में डूबा रहता कि घर वालों से कैसे बताए कि वह अपनी सगी भांजी से प्यार करता है और उसी से शादी करना चाहता है. वह जानता था कि घर वालों की छोड़ो, समाज भी उसे इस रिश्ते की अनुमति नहीं देगा. जो भी सुनेगा, वही धिक्कारेगा. कभीकभी उसे लगता कि उसी ने रितु को गुमराह किया है. उस ने उस के साथ शारीरिक संबंध बना कर पवित्र रिश्ते को कलंकित किया है. लेकिन उस दिल का वह क्या करे, जिस ने मजबूर करा कर यह सब कराया है.

पंकज भांजी के साथ प्यार की राह में इतनी दूर आ चुका था कि किसी भी कीमत में वापस नहीं लौट सकता था. प्यार का जुनून सिर चढ़ कर बोल रहा था. आखिर एक दिन संतोष ने रितु को पंकज की बांहों में  देख लिया तो पूछा, ‘‘यह सब क्या हो रहा है?’’

‘‘भैया, मेरी जिंदगी का यही सच है. मैं रितु से प्यार करता हूं और इसी के साथ शादी करना चाहता हूं.’’

‘‘यह हरगिज नहीं हो सकता. हम समाज, अपने बहनोई और स्वर्गवासी बहन को क्या जवाब देंगे. तुम इतना नीचे गिर जाओगे, मैं ने सपने में भी नहीं सोचा था. अभी तो सिर्फ मुझे पता चला है, अगर घर के बाकी के लोगों को इस बारे में पता चलेगा तो वे क्या सोचेंगे. अच्छा होगा, तुम इस मामले को यहीं खत्म कर के हम सभी जिस तरह सिर उठा कर जी रहे हैं, उसी तरह जीने दो.’’ संतोष ने कहा. पंकज ने भाई को समझाने की बहुत कोशिश की कि वह रितु से बहुत प्यार करता है और उस के बिना जीवित नहीं रह सकता. पर वह बिलकुल नहीं माने. उन्होंने पंकज को खूब लताड़ा और उसी वक्त राजीव के साथ रितु को उस के घर भिजवा दिया. संतोष ने रितु को भले ही उस के घर भिजवा दिया, पर पंकज ने साफ कह दिया, ‘‘भले ही पूरी दुनिया उस की दुश्मन हो जाए, पर रितु से उसे कोई अलग नहीं कर सकता.’’

संतोष पंकज की इस धमकी से परेशान था. अगर किसी को भी उस की हरकत के बारे में पता चल गया तो उस का परिवार इस कदर बदनाम हो जाएगा कि कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं रहेगा. लोग थूकेंगे उस के परिवार पर. उस की यह परेशानी उस के चेहरे पर साफ झलक रही थी. आखिर एक दिन पत्नी ने पूछ ही लिया. तब बेचैन संतोष ने मन हलका करने के लिए सारी बात पत्नी को बता दी. वह भी सन्न रह गई. धीरेधीरे घर में इस बात की जानकारी सब को हो गई. लेकिन पंकज का घर में दबदबा था, इसलिए कोई भी उसे इस रिश्ते को खत्म करने के लिए विवश नहीं कर सका. हां, घर वालों का व्यवहार उस के प्रति जरूर बदल गया. इस से पंकज ने इतना जरूर महसूस किया कि अब धीरेधीरे उस की परेशानी बढ़ती ही जाएगी.

उस की जिंदगी पतंग जैसी हो गई थी. पता नहीं कब कट जाए. इसलिए उस ने पक्का इरादा बना लिया कि चाहे कुछ भी हो, वह रितु से शादी करेगा और दूर कहीं जा कर अपनी गृहस्थी बसा लेगा. इस के बाद उस ने फोन कर के रितु को बता भी दिया कि 18 फरवरी को भैया के बेटे के मुंडन के बाद वह उस के साथ घर छोड़ देगा. राजीव के बेटे के मुंडन पर रितु खुतार आई. मुंडन के बाद उस ने नानी से घर भिजवाने को कहा. वहीं खड़े पंकज ने कहा, ‘‘चलो, मैं तुम्हें छोड़ आता हूं.’’

घर के सभी लोग थके थे, इसलिए पंकज को अनुमति मिल गई. किसी को क्या पता था कि उन के मन में क्या है. दोनों घर से बाहर निकले और सीधे बसअड्डे पहुंचे. वहां से बस पकड़ी और शाहजहांपुर आ गए, जहां से ट्रेन द्वारा आगरा पहुंच गए.

पंकज और रितु ने शादी करने के इरादे से घर छोड़ दिया था. ट्रेन से वे सुबह 7 बजे ईदगाह स्टेशन पर उतरे और स्टेशन के पास ही होटल डी-लौरेट में कमरा बुक करा लिया. उन्हें तीसरी मंजिल पर कमरा नंबर 310 मिला था. होटल में पंकज ने रितु को अपनी पत्नी बताया था और आईडी के रूप में अपना ड्राइविंग लाइसेंस की कौपी जमा कराई थी. जब दोनों होटल पहुंचे थे, रिसैप्शन पर मैनेजर संजय कश्यप मौजूद थे. नहाधो कर दोनों ने कपड़े बदले और नाश्ता कर के मोहब्बत की निशानी ताजमहल देखने चले गए. रितु पंकज के साथ ताजमहल के पास पहुंची तो बोली, ‘‘लगता है, शाहजहां मुमताज को बहुत प्यार करता था.’’

‘‘हां, एकदम मेरी तरह रितु. अगर शाहजहां की तरह मैं भी अमीर होता तो अपने प्यार को अमर करने के लिए इसी तरह का रितुमहल बनवाता.’’

यह सुन कर रितु को हंसी आ गई. इस के बाद दोनों ताजमहल के अंदर पहुंचे. शाहजहां और मुमताज की कब्रों को देख कर रितु ने कहा, ‘‘ये तो मर कर भी एक साथ हैं.’’

माहौल गमगीन हो गया. पंकज ने कहा, ‘‘चलो, बाहर चल कर साथसाथ फोटो खिंचवाते हैं, जो जिंदगी भर हमें याद दिलाएंगे.’’

इस के बाद दोनों ने ताज के साए में कुछ फोटो खिंचवाए. वहां से वे बाजार गए, जहां कपडे़ वगैरह खरीदे. रात 9 बजे तक उन के कमरे का दरवाजा खुला रहा. इस के बाद दरवाजा बंद हुआ तो जब सुबह 10 बजे तक उन के कमरे का दरवाजा नहीं खुला तो सर्विस बौय गब्बर ने कई बार दरवाजा खटखटाया. जब अंदर से कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई तो वह मैनेजर संजय कश्यप के पास पहुंचा. गब्बर ने जब मैनेजर संजय कश्यप को बताया कि कमरा नंबर 301 का दरवाजा काफी खटखटाने पर भी अंदर से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिल रही है तो संजय घबरा गए. भाग कर वह ऊपर पहुंचे. उन्होंने दरवाजे के की-होल से झांक कर देखा तो लड़की के पैर लटके दिखाई दिए.

माजरा समझ में आते ही वह सन्न रह गए. उन्होंने तुरंत होटल की मालकिन शारदा रानी को सारी बात बताई. शारदा रानी ने थाना रकाबगंज पुलिस को फोन कर के घटना की सूचना दी. सूचना मिलने के बाद सीओ असीम चौधरी और थाना रकाबगंज के थानाप्रभारी इंसपेक्टर सतीशचंद्र यादव पुलिस बल के साथ होटल पहुंच गए. दूसरी चाबी से दरवाजा खोला गया तो अंदर की स्थिति देख कर सभी स्तब्ध रह गए. हरे रंग की नई रस्सी के दोनों छोरों पर फंदे बना कर पंखे के सहारे एक ओर एक लड़की लटकी हुई थी तो दूसरी ओर एक लड़का.

पुलिस ने कमरे की तलाशी ली. पलंग पर कुछ फोटोग्राफ्स मिले, जो ताजमहल पर खिंचवाए गए थे. बैग से कुछ गहनों के साथ मंगलसूत्र, कुछ रुपए और एक सुसाइड नोट भी मिला. पुलिस ने मामले की वीडियोग्राफी करा कर दोनों लाशों को नीचे उतरवाया. लड़की की मांग में सिंदूर भरा था. वह पैरों में बिछिया भी पहने थी. पुलिस ने सुसाइड नोट देखा तो उस में लिखा था, ‘ये फोटो हमारे प्यार की निशानी हैं, जो हम ने ताजमहल पर साथसाथ खिंचवाए थे. आप ने हमें जिंदगी जीने का जो मौका दिया था, शायद हमारी किस्मत नहीं था.

‘हम लोगों के बारे में कोई नहीं जानता कि हम कहां हैं. फिर भी रितु का यही कहना है कि हम लोग किसी को मुंह नहीं दिखा सकते. जब उस का यही फैसला है तो हम भी उस के साथ हैं.

‘हमें 2 दिन की जो जिंदगी मिली, शायद वही हमारी किस्मत थी. जो भी चुरा के घर से ले गए थे, सब आप को लौटा रहे हैं. हम ने जिंदगी में जो गलत किया, उस की कीमत हम अपनी जान दे कर चुका रहे हैं. जब हम ही नहीं होंगे तो हमें कोई फर्क नहीं पड़ेगा कि कौन जीता है या मरता है. हमें माफ करना या न करना, आप की मरजी.’

उन्होंने अपने इस सुसाइड नोट में साथसाथ दफनाने के लिए भी लिखा था. उन का कहना था कि वे इस जन्म में नहीं मिल सके तो कम से कम साथसाथ मर कर अगले जन्म में तो एक हो सकेंगे. सुसाइड नोट में उन्होंने दस्तखत करने के साथ फोन नंबर भी लिखे थे. पुलिस ने सुसाइड नोट में दिए नंबरों पर फोन कर के पंकज और रितु के आत्महत्या करने की सूचना दी तो कोई कुछ कहने को ही तैयार नहीं हुआ. वे आगरा आने को भी राजी नहीं थे. लेकिन न जाने क्या सोच कर सभी आने को राजी हो गए.

पुलिस ने घटनास्थल की काररवाई निपटा कर लाशों को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया था. शाम तक घर वाले आगरा पहुंचे तो पता चला कि सुसाइड करने वाले दोनों सगे मामाभांजी थे. उन के रिश्ते के बारे में जान कर सभी दंग रह गए. पोस्टमार्टम के बाद पंकज और रितु के शव घर वालों को सौंप दिए गए. घर वालों ने लाशें ले जाने के बजाय आगरा के ही विद्युत शवदाह गृह में दोनों का अंतिम संस्कार करा दिया. पुलिस द्वारा की गई पूछताछ में संतोष ने बताया कि उस ने पंकज को फोन किया था. तब उस ने यह नहीं बताया कि वह आगरा है. उस ने अगले दिन घर आने को कहा था.

दरअसल, उस दिन रितु अपने घर नहीं पहुंची तो शांतिस्वरूप ने ससुराल फोन कर के पूछा. जब उन्हें बताया गया कि रितु तो पंकज के साथ कब का निकल चुकी है, तब उन्हें समझते देर नहीं लगी कि रितु पंकज के साथ भाग चुकी है. दोनों ने जो किया था, उस से दोनों के घर वाले काफी नाराज थे. लेकिन उन्हें यह नहीं मालूम था कि वे इस तरह मौत को गले लगा लेंगे. लेकिन आशंका तो थी ही. फिर वही हुआ भी. बदनामी से बचने के लिए सभी चुप थे, लेकिन पंकज और रितु ने आत्महत्या कर के रिश्ते को कलंकित करने का ढिंढोरा पूरी दुनिया में पीट दिया. दरअसल, पंकज और रितु ने शादी करने का निर्णय ले लिया था. वे शादी कर के घर वालों से इतनी दूर चले जाना चाहते थे, जहां उन्हें जानने वाला कोई न हो और वे खुशीखुशी रह सकें.

पंकज ने रितु की मांग में सिंदूर भर कर शादी भी कर ली. लेकिन शादी करने के बाद दोनों को लगा होगा कि वे चाहे जहां भी रहें, हमेशा अपराधबोध से ग्रसित रहेंगे. यही नहीं, उन के बच्चों को जब उन के असली रिश्ते के बारे में पता चलेगा तो वे भी उन्हें माफ नहीं करेंगे. घर से भागने के बाद उन के घर लौटने का रास्ता पूरी तरह से बंद हो चुका था. आगे भी उन्हें कोई रास्ता नहीं दिखाई दिया. घरपरिवार और समाज से कट कर जीना भी आसान नहीं था. उन्हें अपनी गलती का अहसास हुआ तो वे डरे कि अब क्या होगा? कोई रास्ता न देख उन का जिंदगी से मोह भंग हो गया होगा.

मन में एक ही बात आई होगी कि इस जन्म में साथ नहीं जी सके तो मर कर अगले जन्म में तो मिल सकेंगे. अगले जन्म में मिलने की उम्मीद में उन्होंने फांसी लगा ली. पंकज और रितु ने रिश्तों को कलंकित करने की लक्ष्मणरेखा लांघी तो उस की सजा उन्हें जान दे कर चुकानी पड़ी. उन्होंने तो जान दे कर मुक्ति पा ली, लेकिन घर वालों को तो इस की सजा कम से कम 2 पीढि़यों तक भोगनी पड़ेगी. Agra News

 

Love Story: दिल लगाने का अपराध

Love Story: मारपीट, चोरीडकैती, अपहरण और फिरौती वसूलने जैसे अपराध करने वाले वैभव को शादीशुदा ज्योत्सना से दिल लगा कर जिंदगी से हाथ क्यों धोना पड़ा. 23 अगस्त की रात के यही कोई 8 बजे महानगर मुंबई के व्यस्ततम थाना डोंगरी के चार्जरूम में ड्यूटी पर मौजूद महिला सबइंसपेक्टर गिरिजा मस्के के सामने रोनी सूरत लिए एक चेहरा अपने पूरे परिवार के साथ आ कर खड़ा हो गया. गिरिजा मस्के उस चेहरे और उस के परिवार वालों को अच्छी तरह से पहचानती थीं. वह विशाल आचरेकर था, जो आपराधिक प्रवृत्ति के वैभव आचरेकर का बड़ा भाई था.

भाई के मामलों में वह अकसर थाना डोंगरी आता रहता था, इसलिए सबइंसपेक्टर गिरिजा मस्के उसे और उस के घर वालों को अच्छी तरह से पहचानती थीं. इसी वजह से उन्होंने सीधे पूछा, ‘‘कहिए, क्या बात है, वैभव ने फिर कोई कांड कर दिया क्या?’’

‘‘नहीं मैडम, इस बार उस ने कोई कांड नहीं किया, बल्कि लगता है वह खुद ही किसी कांड का शिकार हो गया है.’’ विशाल आचरेकर ने भर्राई आवाज में कहा, ‘‘मैडम, 20 अगस्त की सुबह वह घर से निकला था, तब से उस का कुछ अतापता नहीं है. उस का मोबाइल फोन भी बंद है.’’

‘‘चिंता करने की कोई बात नहीं है. अपराध कर के कहीं छिपा होगा. 2-4 दिनों में अपने आप ही आ जाएगा.’’ सबइंसपेक्टर गिरिजा मस्के ने उस की शिकायत को हल्के में लेते हुए कहा, ‘‘हो सकता है, यारोंदोस्तों के साथ कहीं चला गया हो. ऐसे लोगों का क्या भरोसा.’’

‘‘नहीं मैडम, हम लोगों ने उसे हर जगह ढूंढ लिया है. पूरी तरह निराश हो कर ही आप के पास आए हैं. वह कहीं छिपा नहीं, उस के साथ जरूर कोई अनहोनी हो गई है. अब आप ही हमारी कुछ मदद कर सकती हैं.’’

विशाल और उस के घर वालों की विनती पर सबइंसपेक्टर गिरिजा मस्के ने वैभव की गुमशुदगी दर्ज करा कर इस बात की जानकारी अपने सीनियर इंसपेक्टर संदीप डाल को दे दी. इस के बाद उन्होंने विशाल और उस के घर वालों को आश्वासन दे कर घर भेज दिया. थाना डोंगरी के सीनियर इंसपेक्टर संदीप डाल ने तत्काल इस मामले की जानकारी अधिकारियों को देने के साथसाथ पुलिस कंट्रोल रूम को भी दे दी थी. इस के बाद अधिकारियों के दिशानिर्देश पर सीनियर इंसपेक्टर संदीप डाल ने सहायक इंसपेक्टर महादेव कदम और अंकुश काटकर के साथ जांच की रूपरेखा तैयार की और फिर उन्हीं को इस मामले की जांच सौंप दी.

जांच की जिम्मेदारी मिलने के बाद इंसपेक्टर महादेव कदम और अंकुश काटकर ने एक टीम बनाई, जिस में असिस्टेंट इंसपेक्टर शशिकांत यादव, सबइंसपेक्टर संतोष कांबले, महिला सबइंसपेक्टर गिरिजा मस्के, पुलिस नायक सैयद सांलुके, कांबले, धार्गे, कनकुटे और वोडरे को शामिल किया. इस टीम ने जांच तो तेजी से शुरू की, लेकिन कोई कामयाबी हासिल नहीं हुई. 31 वर्षीय वैभव आचरेकर अपने मातापिता, भाईभाभी और बहनों के साथ मुंबई के डोंगरी इलाके में स्थित पोद्दार इमारत की दूसरी मंजिल पर रहता था. पिता का नाम देवीदास आचरेकर था. वैभव डोंगरी के जिस इलाके में रहता था, वह इलाका किसी जमाने में जानेमाने कुख्यात तस्कर करीम लाला और हाजी मस्तान का माना जाता था.

उस समय पठान भाइयों की इजाजत के बगैर इस इलाके का एक पत्ता भी नहीं हिलता था. शायद वैभव पर भी इलाके का असर पड़ गया था और वह भी अपराधी प्रवृत्ति का हो गया था. इलाके के सभी छोटेबड़े अपराधियों के बीच उस की अच्छी पैठ थी. उस के खिलाफ मारपीट, चोरीडकैती और अपहरणफिरौती जैसे कई अपराधों के मामले दर्ज थे, इसलिए थाना डोंगरी पुलिस उसे ही नहीं, उस के घर के हर सदस्य को पहचानती थी. शुरू में वैभव की अपराधी प्रवृत्ति को ध्यान में रख कर पुलिस टीम ने उस के बारे में पता लगाना शुरू किया. पुलिस को लगता था, कि अपने कारनामों की वजह से कहीं उसे मार न दिया गया हो. लेकिन इस बारे में कोई सुराग नहीं मिला.

धीरेधीरे दिन बीतते गए. वैभव को गायब हुए 4 महीने बीत गए और उस का कुछ पता नहीं चला. उस की लाश भी नहीं मिली कि मान लिया जाता कि उसे मार दिया गया है. अगर वह कोई अपराध कर के भी छिपा होता तो इतने दिनों तक न उस का अपराध छिपा रह सकता था और न वह खुद. जांच टीम वैभव के बारे में जो सोच कर जांच कर रही थी, उस से कोई फायदा नहीं हुआ, इसलिए जांच अधिकारी इंसपेक्टर महादेव कदम ने जांच की दिशा बदल दी. माना जाता है कि लड़ाईझगड़े या हत्या जैसे अपराधों की वजह जर, जमीन और जोरू होती है. यहां जर, जमीन का कोई कारण नहीं दिख रहा था, इसलिए उन का ध्यान जोरू की तरफ गया. वैभव जवान, सुंदर और अविवाहित युवक था, इसलिए उन्हें लगा कि कहीं वह किसी जोरू की वजह से तो नहीं गायब कर दिया गया.

इस की एक वजह यह भी थी कि जिस दिन वैभव गायब हुआ था, उस दिन की उस के मोबाइल फोन की लोकेशन मुंबई के उपनगर दहिसर की लाभदर्शन इमारत के आसपास की पाई गई थी. वहां उस के जाने की क्या वजह हो सकती थी? जांच टीम यह जानने के लिए उस के घर गई तो घर वाले इस बारे में कुछ खास नहीं बता सके. लेकिन जब इस टीम ने किसी महिला से संबंध के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि इसी इमारत में रहने वाली ज्योत्सना मोरे से वैभव के मधुर संबंध थे. उस के घर भी उस का खूब आनाजाना था.

पुलिस ने जब ज्योत्सना मोरे से पूछताछ की तो उस ने यह तो स्वीकार कर लिया कि पड़ोसी होने के नाते वैभव का उस के घर आनाजाना था. लेकिन न तो उस के उस से कोई गलत संबंध थे, न उसे उस की गुमशुदगी के बारे में कुछ पता है. इमारत में ईर्ष्या करने वाले लोगों ने उसे बदनाम करने के लिए उस का नाम वैभव के साथ जोड़ दिया होगा. पुलिस ने ज्योत्सना मोरे को गिरफ्तार तो नहीं किया, लेकिन वह संदेह के घेरे में आ गई थी, इसलिए उस का मोबाइल अपने पास रखने के साथ इस हिदायत के साथ घर जाने दिया कि वह पुलिस को बताए बिना मुंबई छोड़ कर कहीं नहीं जाएगी. इस के बाद पुलिस ने ज्योत्सना के बारे में पता लगाना शुरू किया.

जुटाई गई जानकारियों के आधार पर पुलिस को ज्योत्सना मोरे के बारे में जो पता चला, वह चौंकाने वाला था. पुलिस को उस के नंबर की काल डिटेल्स में एक ऐसा नंबर मिला, जिस पर उस ने वैभव के गायब होने वाले दिन कई बार बात की थी. उस नंबर वाले फोन की लोकेशन भी उसी जगह की पाई गई थी, जहां की वैभव के मोबाइल फोन की मिली थी. ज्योत्सना के भी मोबाइल फोन की लोकेशन वहां की थी. तीनों मोबाइल फोनों की लोकेशन एक जगह की मिलने की वजह से ज्योत्सना मोरे संदेह के घेरे में आ गई. यह संदेह तब और गहरा गया, जब पुलिस ने उस से उस नंबर के बारे में पूछा तो उस ने साफ कहा कि वह उस नंबर के बारे में बिलकुल नहीं जानती.

जबकि उस नंबर पर उस की लगातार बातें हो रही थीं. पुलिस को अब तक यह भी पता चल चुका था कि दहिसर की लाभदर्शन इमारत में उस का मायका था. साफ था, ज्योत्सना ने ही वैभव को वहां बुलाया होगा. इस के बाद पुलिस ने उसे हिरासत में ले लिया. 20 दिसंबर, 2014 को इंसपेक्टर महादेव कदम ने सीनियर अधिकारियों की उपस्थिति में जब ज्योत्सना से सुबूतों के आधार पर सख्ती से पूछताछ की तो वह टूट गई. उस ने वैभव की हत्या का अपना अपराध तो स्वीकार कर ही लिया, उस मोबाइल नंबर के बारे में भी बता दिया, जिस के बारे में वह अनभिज्ञता प्रकट कर रही थी.

वह मोबाइल नंबर ज्योत्सना के पुराने प्रेमी प्रकाश पाटिल का था. उसी के साथ मिल कर उस ने वैभव आचरेकर को ठिकाने लगा दिया था. इस के बाद उस की निशानदेही पर इंसपेक्टर महादेव कदम ने उसी रात उस के साथी प्रकाश पाटिल को भी गिरफ्तार कर लिया था. थाने में दोनों से की गई पूछताछ में वैभव आचरेकर की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह प्रेम त्रिकोण में की गई हत्या की थी. 34 वर्षीय प्रकाश पाटिल महाराष्ट्र के जनपद पालघर की तहसील वसई के गांव ज्यूचंद्र का रहने वाला था. उस के पिता रामचंद्र  पाटिल गांव के सुखीसंपन्न किसान थे. बीए करने के बाद प्रकाश नगर महापालिका में ठेकेदारी करने लगा था, जिस से उसे ठीकठाक आमदनी हो रही थी.

जिन दिनों वह बीए कर रहा था, उन्हीं दिनों साथ पढ़ने वाली ज्योत्सना से उसे प्यार हो गया था. ज्योत्सना भी उसे प्यार करती थी, इसलिए दोनों शादी करना चाहते थे. लेकिन किन्हीं कारणों से यह शादी नहीं हो पाई. प्रकाश के घर वालों ने उस की शादी कहीं और कर दी थी तो ज्योत्सना के घर वालों ने भी उस उस की शादी मुंबई के रहने वाले अमित मोरे से कर दी थी. दोनों ही अपनेअपने घरसंसार में सुखी थे. प्रकाश जहां 2 बेटियों का बाप बन गया था, वहीं ज्योत्सना भी एक बेटे की मां बन चुकी थी. लेकिन जब कई सालों बाद बिछड़े हुए प्रेमी एक विवाह समारोह में मिले तो इन का प्यार एक बार फिर उमड़ पड़ा.

गिलेशिकवे दूर करने के बाद प्रकाश और ज्योत्सना ने एकदूसरे के मोबाइल नंबर ले लिए थे. फोन पर बातचीत करतेकरते धीरेधीरे दोनों एक बार फिर पुराने रंग में रंग गए. ज्योत्सना पति अमित मोरे और बेटे के साथ मुंबई के डोंगरी में रहती थी. दरअसल वह अपने पति अमित मोरे से खुश नहीं थी. अमित मोरे एक बीमा कंपनी का एजेंट था. वह ज्योत्सना जैसी सुंदर और पढ़ीलिखी पत्नी पा कर खुद को धन्य समझ रहा था. इसीलिए वह उसे खुश रखने और उस की सुखसुविधाओं का पूरा खयाल रखता था. पत्नी और बेटे को किसी तरह की कोई तकलीफ न हो, इस के लिए वह दिनरात मेहनत करता था.

इसी चक्कर में वह यह भूल भी गया था कि सुखसुविधा के अलावा पत्नी को पति का प्यार भी चाहिए. देर रात वह घर लौटता तो बुरी तरह थका होता. खापी कर वह बिस्तर पर पड़ते ही सो जाता. सुबह उठता और चायनाश्ता कर के काम पर निकल जाता. उस के पास ज्योत्सना के लिए समय ही नहीं होता था. पति की इसी उपेक्षा से ज्योत्सना अंदर ही अंदर सुलग रही थी, जिस का फायदा उसी इमारत में रहने वाले वैभव आचरेकर ने उठाया. वैभव आचरेकर और अमित मोरे के बीच अच्छी दोस्ती थी. दोनों बचपन के दोस्त थे. यह अलग बात थी कि अमित मोरे ईमानदारी और मेहनत की कमाई खाता था, जबकि वैभव आचरेकर अपराध की कमाई से मौज कर रहा था. दोनों की दिशाएं अलग थीं, इस के बावजूद उन की दोस्ती में कोई फर्क नहीं पड़ा था.

वैभव कभी अमित मोरे के साथ उस के घर आया तो खूबसूरत ज्योत्सना को देख कर उस पर मर मिटा. कुंवारा होने की वजह से स्त्रीसुख से वंचित वैभव ज्योत्सना को पाने की कोशिश करने लगा. उस के हावभाव से जब उस के मन की बात ज्योत्सना को पता चली तो वह भी उस की ओर आकर्षित हो उठी. क्योंकि वह यही तो चाहती थी. धीरेधीरे ज्योत्सना वैभव की ओर खिंचने लगी. फिर तो वह स्वयं को संभाल नहीं सकी और वैभव की बांहों में समा गई. ज्योत्सना को वैभव की सशक्त बांहों का सुख मिला तो वह अमित मोरे को भूल कर उसी की हो गई. उसे जब भी मौका मिलता, वैभव को अपने फ्लैट पर बुला लेती. पहले तो वैभव ज्योत्सना के बुलाने का इंतजार करता था, लेकिन कुछ दिनों बाद जब भी उस का मन होता, वह खुद ही ज्योत्सना के फ्लैट पर पहुंच जाता.

धीरेधीरे वह ज्योत्सना को प्रेमिका कम, पत्नी ज्यादा समझने लगा. लेकिन जब ज्योत्सना की मुलाकात उस के पुराने प्रेमी प्रकाश से हुई तो वह वैभव से किनारे करने लगी. अपराधी प्रवृत्ति के वैभव को ज्योत्सना का यह व्यवहार पसंद नहीं आया. क्योंकि वह उसे किसी भी कीमत पर छोड़ने को तैयार नहीं था. उसे जब जैसी जरूरत पड़ती थी, वह ज्योत्सना को उसी हिसाब से इस्तेमाल कर लेता था. यह बात ज्योत्सना को पसंद नहीं थी. प्रकाश से मिलने के बाद वह वैभव से संबंध नहीं रखना चाहती थी. ज्योत्सना जब वैभव की मनमानियों से तंग आ गई तो उस से मुक्ति पाने के लिए परेशान रहने लगी. जब उस की परेशानी के बारे में प्रकाश पाटिल को पता चला तो उस ने ज्योत्सना के साथ मिल कर वैभव को अपने बीच से निकाल फेंकने की खतरनाक योजना बना डाली.

लेकिन वैभव मजबूत कदकाठी और अपराधी प्रवृत्ति का युवक था, इसलिए उस से सीधे निपटना ज्योत्सना और प्रकाश के वश की बात नहीं थी. इसलिए प्रकाश ने अपनी योजना में अपने एक दोस्त माइकल को भी शामिल कर लिया. योजना के अनुसार, ज्योत्सना 19 अगस्त, 2014 को अपने मायके दहिसर आ गई. वहीं से उस ने वैभव को फोन कर के मिलने के लिए वसई के रेलवे स्टेशन नायगांव बुलाया. 20 अगस्त, 2014 की सुबह वैभव अपने घर वालों को बताए बगैर ज्योत्सना से मिलने नायगांव पहुंच गया. साढ़े 10 बजे वैभव नायगांव रेलवे स्टेशन पर पहुंचा तो पहले से ही इंतजार कर रहे प्रकाश और माइकल ने उसे पकड़ लिया. दोनों खुद को पालिका इंसपेक्टर बता कर वैभव को पूछताछ के बहाने नायगांव पूर्व मित्तल क्लब हाउस के पास ले गए.

वहां पहुंच कर प्रकाश पाटिल और माइकल ने वैभव की यह कर पिटाई शुरू कर दी कि वह डोंगरी में रहने वाली ज्योत्सना मोरे को परेशान करता है और उसे धमकी दे कर बिना उस की मरजी के उस के साथ शारीरिक संबंध बनाता है. प्रकाश पाटिल और माइकल ने वैभव की इस तरह पिटाई की कि थोड़ी देर में वह बेहोश हो गया. उस के बेहोश होने के बाद प्रकाश पाटिल ने वैभव के गले में रस्सी डाल कर कस दी, जिस से उस की मौत हो गई.

वैभव को मौत के घाट उतार कर उस की लाश एक चादर में लपेटी और रात में ही माइकल की मारुति कार में रख कर उसे ठिकाने लगाने के लिए मुंबई-अहमदाबाद एक्सप्रेस हाइवे पर चल पड़े. रात 12 बजे के आसपास वे मनोर के पास बह रही नदी के पुल पर पहुंचे. उन्होंने लाश कार से निकाली और तलाशी में उस का सारा सामान निकाल कर लाश को नदी में फेंक दिया. लाश ठिकाने लगाने के बाद प्रकाश ने फोन कर के ज्योत्सना को वैभव की हत्या के बारे में बता दिया. अगले दिन वैभव की लाश किसी मछुआरे के जाल में फंस गई तो उस ने इस बात की जानकारी थाना मनोर पुलिस को दी. पुलिस ने शव बरामद कर के शिनाख्त कराने की कोशिश की. शिनाख्त न होने पर पोस्टमार्टम के बाद थाना मनोर पुलिस ने उस का अंतिम संस्कार करा दिया.

वैभव की हत्या से ज्योत्सना तो खुश थी ही, प्रेमिका को खुश कर के प्रकाश भी खुश था. जिस तरह प्रकाश ने वैभव को अपने रास्ते से हटाया था, उस का सोचना था कि पुलिस उस तक कभी नहीं पहुंच पाएगी. 4 महीने बीत गए तो उसे पूरा विश्वास हो गया कि अब वह बच गया. लेकिन पुलिस खोजतेखोजते ज्योत्सना तक पहुंच गई तो वैभव आचरेकर की हत्या का रहस्य खुल गया और वह भी पकड़ा गया. पूछताछ के बाद पुलिस ने प्रकाश के दोस्त माइकल को भी गिरफ्तार कर लिया. इस के बाद वैभव की हत्या का मुकदमा प्रकाश पाटिल, ज्योत्सना और माइकल के खिलाफ दर्ज कर के महानगर मैट्रोपौलिटन मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक तीनों अभियुक्त जेल में ही थे. Love Story

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

UP News: लव के गेम की खिलाड़ी बनी पिंकी

UP News: कहते हैं कि घर की देहरी लांघने के बाद भी यदि किसी महिला के पैर नहीं रुकते हैं तो उस घर की बरबादी निश्चित है. मुरादाबाद की पिंकी ने भी यही किया. अपने ब्याहता को छोड़ कर वह किशनवीर के साथ रहने लगी. इस के बावजूद चाचाभतीजे से उस के अवैध संबंध हो गए. इस के बाद जो हुआ, वह…

पति की रोजरोज की कलह से पिंकी परेशान हो चुकी थी, इसलिए उस ने अपने दोनों प्रेमियों से बात कर किशन को रास्ते से हटाने के लिए खतरनाक योजना बना डाली. किशन को कई दिनों से नशे के लिए शराब की व्यवस्था नहीं हो पाई थी. जेब में कोई पैसा भी नहीं था. योजना के अनुसार पिंकी ने अपने पति किशन से कहा कि इस समय नितिन स्योंडारा में है, उस से बात हो गई है. तुम उस के पास चले जाओ, वह 4 हजार तुम्हें देगा, ले कर आ जाओ.

ग्राम स्योंडारा मिट्ठनपुर मौजा गांव से करीब 2 किलोमीटर की दूरी पर है. किशन स्योंडारा पहुंच गया. वहां पर चमन शर्मा, नितिन शर्मा, अवनेश और रविकांत मौजूद थे. बराबर में ही शराब की दुकान थी. नितिन ने जा कर 2 बोतल शराब खरीदी और एकांत में पांचों जा कर बैठ गए. किशन ने नितिन से कहा कि पिंकी ने पैसों के लिए भेजा है.

”हमें पता है, पहले एक पेग ले ले, फिर चले जाना.’’

योजना के अनुसार, उन्होंने किशन को जम कर शराब पिलाई. किशन नशे में इतना चूर हो गया कि अपने पैरों पर खड़ा भी नहीं हो सकता था. तीनों ने किशन को उठा कर एक बाइक पर बैठाया. नितिन उसे पकड़ कर पीछे बैठ गया. बाकी दोनों लोग बाइक के पीछेपीछे चल दिए. अंधेरा हो चुका था. करीब 15 किलोमीटर दूर गांव ढकिया नरू पहुंचने पर उन्हें धान के खेत में पानी भरा दिखाई दिया. यह एक सुनसान जगह थी. उस समय उधर से किसी का आनाजाना भी नहीं हो रहा था. तीनों ने फिर उसे बाइक से उतारा. उसे खेत में ले जा कर औंधे मुंह गिरा दिया और वे उस के ऊपर खड़े हो गए. वह छटपटाता रहा, हाथपांव मारता रहा, लेकिन जब तक सांसें रुक नहीं गईं, वे उस के ऊपर खड़े रहे.

किशन की मौत होते ही सब घबरा कर वहां से भाग गए. पिंकी शुरू से पूरी लोकेशन मोबाइल से ले रही थी. नितिन लगातार अपने मोबाइल से पिंकी को अपडेट दे रहा था. उस की सांस रुक जाने पर नितिन ने बता दिया कि रास्ते का कांटा हट गया है. जिला मुरादाबाद के थाना बिलारी क्षेत्रांतर्गत ग्राम ढकिया नरू को जाने वाले रोड किनारे प्रेम सिंह का खेत स्थित है. खेत में धान लगे थे. 31 जुलाई, 2025 को उन के धान के खेत में शव पड़े होने की सूचना से गांव में हड़कंप मच गया. वह व्यक्ति कोई अनजान था.

अज्ञात व्यक्ति का शव पड़े होने की सूचना ग्रामप्रधान मनोहर सिंह द्वारा पुलिस को दी गई. ग्रामप्रधान की सूचना पर मौके पर पहुंचे कोतवाल मोहित कुमार मलिक और फोरैंसिक टीम ने बारीकी से शव और मौके की जांच की. वहां मोजूद कोई भी व्यक्ति शव की शिनाख्त नहीं कर सका. घटनास्थल की काररवाई पूरी कर पुलिस ने शव पोस्टमार्टम के लिए जिला मुख्यालय भेज दिया. दूसरे दिन अखबारों में किसी व्यक्ति की लाश मिलने की खबरें छपीं. खबर पढ़ कर महेंद्र नाम का व्यक्ति कोतवाली बिलारी पहुंचा, क्योंकि उस का भाई किशनवीर एक दिन पहले शाम साढ़े 4 बजे से गायब था.

महेंद्र सिंह जिला संभल के थाना कुढफ़तेहगढ़ के गांव मिठनपुर मौजा निवासी पर्वत सिंह का बेटा था. पुलिस उसे मोर्चरी ले गई. पुलिस ने उसे मोर्चरी में रखी लाश दिखाई तो लाश देख कर महेंद्र के होश उड़ गए. उस की चीख निकल गई. उसे चक्कर आने लगा. साथ के लोगों ने उसे संभाला. क्योंकि वह लाश किसी और की नहीं बल्कि उस के 40 वर्षीय भाई किशनवीर की थी. पुलिस उसे दुर्घटना मान रही थी, क्योंकि पुलिस को पता चला कि किशनवीर शराबी था. इसलिए पुलिस ने सोचा कि यह नशे में धुत हो कर खेत की तरफ चला आया होगा और मुंह के बल गिरा होगा.

मुंह और नाक में पानी मिट्टी भर जाने से सांस न आने पर मौत हो गई होगी. किंतु यहां पर एक सवाल यह उठ रहा था कि किशनवीर अपने घर से करीब 15 किलोमीटर दूर एकांत जगह किसी खेत में कैसे आया, क्यों आया? उधर पति के लापता होने के दूसरे दिन पिंकी गांव के लोगों से कहती रही कि उस के पति रात से अभी तक नहीं आए हैं. तीसरे दिन बड़े भाई महेंद्र सिंह ने अखबारों में खबर छपने के बाद बिलारी कोतवाली पुलिस से संपर्क किया और पोस्टमार्टम हाउस में जा कर अपने भाई की लाश की पहचान की. डैडबौडी को ले कर वे लोग अपने गांव आ गए.

12 अगस्त, 2025 को कोतवाली में रिपोर्ट दर्ज हुई. महेंद्र सिंह ने बताया कि ये लोग किशन की मृत्यु के बाद होने वाले धार्मिक अनुष्ठान में लगे हुए थे. इसलिए 12 दिन बाद रिपोर्ट दर्ज कराई. गांव में खूब चर्चा थी कि चाचाभतीजे चमन शर्मा और नितिन शर्मा ने ही किशनवीर की हत्या की है. पुलिस ने पिंकी से जानकारी की तो उस ने कहा कि उस के पति तो शराबी थे. कहीं चले गए होंगे. नशे में होने के कारण उस खेत में गिर गए होंगे, जिस से उन की मौत हो गई होगी. पुलिस को पिंकी से पूछताछ के समय ज्यादा सख्ती की जरूरत नहीं पड़ी. धमकाने पर ही उस ने सारा सच उगल दिया.

कोतवाल मोहित कुमार मलिक के निर्देशन में गठित पुलिस टीम ने अभियुक्त चमन शर्मा नितिन शर्मा निवासी गांव मनकुला, रविकांत निवासी मोहल्ला प्रेम विहार, बिलारी, पिंकी निवासी गांव मिठनपुर मौजा थाना कुढफ़तेहगढ़ जनपद संभल को गिरफ्तार किया गया. आरोपियों से की गई पूछताछ के बाद किशनवीर की हत्या की चौंकाने वाली कहानी सामने आई—

उत्तर प्रदेश के जिला मुरादाबाद की तहसील बिलारी से करीब 13 किलोमीटर दूर एक गांव है मिठनपुर मौजा. इस गांव का थाना कुढ़ फतेहगढ़ लगता है. गांव मिट्ठनपुर मौजा के रहने वाले पर्वत सिंह के 3 बेटे और एक बेटी थी. सब से बड़ा सतपाल सिंह, दूसरे नंबर का महेंद्र सिंह तीसरे नंबर पर किशनवीर उर्फ ऋषिपाल. इस गांव में अधिकांश लोग यादव जाति के ही हैं. सब से बड़े भाई सतपाल की किशनवीर के मर्डर से 27 दिन पहले ही मृत्यु हुई थी. वह बीमार थे. दूसरे नंबर के महेंद्र सिंह ने अभी तक शादी नहीं की है.

महेंद्र सिंह और किशनवीर का मकान संयुक्त रूप से बना हुआ है. सतपाल बराबर में अलग से रहते थे. मातापिता की पहले ही मृत्यु हो चुकी थी. यह परिवार किसान वर्ग में नहीं रखा जा सकता, क्योंकि इतनी कृषि भूमि इन के पास नहीं है कि खेती कर के गुजरबसर कर सकें. तीनों भाइयों के पास मिला कर 8-9 बीघा खेती की जमीन थी, इसलिए मेहनतमजदूरी कर के यह परिवार अपनी गुजरबसर कर रहा था. बड़े भाई सतपाल का विवाह हो गया था. गनीमत तो यह रही कि पर्वत सिंह ने अपने सामने ही अपनी बेटी का विवाह कर दिया था.

पिंकी नाम की एक युवती जो किसी कारणवश शादी के कुछ महीने बाद ससुराल से भाग गई. किशनवीर के बहनोई रघुवीर के वह संपर्क में आ गई. वह ट्रक चलाते हैं. युवती ससुराल जाने को तैयार नहीं थी. रघुवीर का अपना परिवार था, जो ठीकठाक चल रहा था. किसी अज्ञात महिला को अपने साथ रख कर वह अपनी फेमिली में कोई लफड़ा करना नहीं चाहते थे. पिंकी की शादी अभी कुछ ही महीने पहले बड़े धूमधाम से हुई थी, पर ससुराल की चौखट उस के लिए वैसी नहीं निकली, जैसी उस ने सपनों में देखी थी. रोज की तकरार, छोटेछोटे आरोप और दबाव ने उस का मन तोड दिया था.

एक दिन आंसुओं से भीगी आंखों के साथ पिंकी ने तय कर लिया कि वह अब और सहन नहीं करेगी. बिना किसी को बताए वह रात में घर से निकल पड़ी.

किशन की जिंदगी में इस तरह आई पिंकी

सड़क पर भटकतेभटकते उस की मुलाकात ट्रक ड्राइवर रघुवीर से हुई. रघुवीर ने उस की परेशानी देखी और उसे अपने साथ ले गया. पिंकी का कहना था कि वह ससुराल नहीं जाएगी और मायके भी नहीं जाएगी. दोनों जगह ही उसे जान का खतरा है. पिंकी की मजबूरी और हालत को देखते हुए रघुवीर ने सोचा कि इस की शादी अपने किसी साले से करा दी जाए. रघुवीर ने अपने साले महेंद्र और किशन से बात की. दोनों साले अभी कुंवारे थे.

महेंद्र ने किशनवीर के साथ ही पिंकी की शादी कराने का सुझाव दिया. रघुवीर ने किशन से बात की तो वह तैयार हो गया. बड़े भाई और बहनोई के कहने पर किशन पिंकी को साथ रखने को तैयार हो गया. फिर सामाजिक रीतिरिवाज से पिंकी और किशनवीर के साथ सात फेरे करा दिए. किशनवीर के साथ रह कर पिंकी को पहली बार अपनापन और सुकून महसूस हुआ. धीरेधीरे दोनों में विश्वास और लगाव पैदा होता गया.

जब पिंकी के ससुराल वालों को पिंकी के घर से भाग जाने का पता चला तो उन्होंने कोई काररवाई नहीं की. उन के लिए पिंकी का घर से चले जाना कोई बड़ी बात नहीं थी, क्योंकि वे लोग उस से पीछा छुड़ाना ही चाहते थे. अपने बचाव में पिंकी के ससुराल वालों ने दूसरे दिन सुबह को ही फोन कर के बता दिया कि तुम्हारी बेटी पिंकी यहां से रात किसी टाइम चली गई है. मायके वाले बेटी के गायब होने से परेशान थे. खोजबीन करने पर किसी तरह उन्हें पता चल गया कि पिंकी इस समय जिला संभल के एक गांव मिठनपुर मौजा में है. उन्होंने थाने के चक्कर काटे, पुलिस रिपोर्ट दर्ज करवाई और हर जगह गुहार लगाई.

इन सब उथलपुथल के बीच पिंकी ने अपने दिल की सुनने का फैसला किया. उस ने सब के सामने घोषणा कर दी कि अब किशनवीर ही उस का पति है. लोगों ने तरहतरह की बातें कीं. किसी ने इसे पिंकी की गलती बताया, किसी ने उस की हिम्मत की तारीफ की, लेकिन पिंकी के लिए सच यही था कि उस ने अपने जीवन का नया रास्ता चुन लिया था. अब वह बीते कल की कैदी नहीं थी. वह पिंकी नहीं, बल्कि अपनी नई कहानी की नायिका थी. पिंकी के दूसरी बिरादरी में शादी करने पर उस के मायके वालों की बहुत बदनामी हो रही थी. लोग ताने दे रहे थे.

समय पंख लगा कर उड़ रहा था. किशनवीर और पिंकी अपनी जिंदगी को और विशाल बनाने के लिए कोशिश करते रहे. एक दिन किशन अपनी पत्नी पिंकी को ले कर अलीगढ़ चला गया. वहां उस ने एक कारखाने में नौकरी कर ली. दिन भर मेहनत कर के आता, पत्नी उस के स्वागत में तैयार गेट पर ही मिलती. कभी देर हो जाती है तो पिंकी शिकायत करती, ”टाइम से घर आया करो, अकेले मुझे डर लगता है.’’

तब किशन पत्नी पिंकी को बाहों में भर लेता, ”मैं हूं तो तुझे डरने की क्या बात है.’’

गोद न भरने पर अधूरी थी पिंकी की जिंदगी

सब कुछ खुशहाल गुजर रहा था. लेकिन 9 साल बीत जाने के बाद भी इन को संतान सुख नहीं मिला. जब दोनों ने  वैवाहिक जिंदगी की शुरुआत की थी, तब एक दिन किशन ने अपनी पत्नी पिंकी से कहा था कि जल्द ही हमारा घर बच्चों की हंसी से गूंजेगा. लेकिन समय बीतता गया, पर हंसी उन के आंगन में नहीं आई. किशन हर शाम जब काम से लौटता तो आसपास के बच्चों को खेलते देख उस की आंखें भर आतीं. भीतर ही भीतर सोचता कि अगर मेरा भी एक बेटा होता तो थके होने पर मेरी गोद में बैठ जाता. अगर एक बेटी होती तो घर में आते ही मेरे गले में हाथ डाल कर उछल कर मेरी बाहों में समा जाती. उस की हंसी मेरे सारे दर्द भुला देती.

पिंकी की पीड़ा और गहरी थी. गांव की औरतें जब मेले या त्यौहार पर अपने बच्चों का हाथ थामे जातीं तो उस के खाली हाथ और भारी हो जाते. रिश्तेदार और पड़ोसी ताने कसते, ‘संतान नहीं तो जीवन का क्या सुख?’

इन तानों से वह चुप हो जाती, लेकिन रात को आंसू उस के तकिए भिगोते. किशन उस का हाथ पकड़ कर कहता, ”मुझे तेरी हंसी ही सब से बड़ा सहारा है. दुनिया चाहे कुछ भी कहे, तू मेरे साथ है तो मैं सब से अमीर हूं.’’

फिर भी दोनों के भीतर कहीं एक अधूरी चाह थी. उन का प्यार मजबूत था, लेकिन समाज की बातें और भीतर की कसक बारबार दिल चीर देतीं. कभीकभी दोनों बैठ कर सोचते कि क्या हमारा प्यार ही हमारी संतान नहीं? क्या हमारी मेहनत से बनी ये रोटी ही हमारी विरासत नहीं? किशन की अपनी मर्दानगी पर सवाल उठने लगे, पर वह इन्हें मेहनत में डुबो देता. वह खुद को तसल्ली देता. उसे अपनी मर्दानगी में कोई कमी कभी नजर नहीं आई. पिंकी ने इस तरह की शिकायत कभी नहीं की. वह मंदिर जाती, मन्नतें मांगती, व्रत रखती.

किशन भी उस का साथ देता, पर उस का विश्वास धीरेधीरे टूट रहा था. किशन ने कहा, ”क्या हमारा प्यार अधूरा है? क्या हमारी जिंदगी में बस यही कमी रह जाएगी?’’

उस की आवाज में दर्द था, जो पिंकी के सीने में भी उतर गया. पिंकी ने उस का हाथ थामा और बोली, ”हमारा प्यार अधूरा नहीं है, बच्चा नहीं हुआ तो क्या? हम एकदूसरे के लिए तो हैं.’’

लेकिन सच तो यह था कि दोनों के दिल में एक टीस थी. पिंकी को लगता, शायद वह मां बनने के लायक नहीं. किशन को लगता, शायद वह एक पिता बनने का फर्ज नहीं निभा पाया. फिर भी, दोनों एकदूसरे का सहारा बने रहे. दिन भर की मेहनत के बाद, जब वे रात को एकदूसरे के पास बैठते तो सारी दुनिया की थकान और दुख जैसे पलभर के लिए गायब हो जाते. यहां यादव जाति के लोग बहुत पिछड़े हुए हैं. बच्चा पैदा होने के लिए दोनों में से किसी ने कभी किसी डौक्टर की सलाह पाने के लिए अज्ञानतावश जरूरत नहीं समझी.

करीब 3 साल पहले दोनों अलीगढ़ को छोड़ कर अपने घर गांव वापस आ गए. किशनवीर ने एक ईरिक्शा लोन पर ले लिया, जिस से गुजर ठीकठाक हो रही थी. इसी बीच उस की मुलाकात करीब 4-5 किलोमीटर दूर मनकुला गांव निवासी चमन शर्मा से हुई. चमन शर्मा क्षेत्र में पंडिताई करता था. मुरादाबाद जिले के ग्रामीण इलाकों में पंडित (ब्राह्मण) समाज का एक विशेष धार्मिक और सांस्कृतिक स्थान होता है. गांवों में उन की भूमिका सिर्फ धार्मिक कर्मकांड तक सीमित नहीं रहती, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन से भी गहराई से जुड़ी होती है. ब्राह्मïण गांव में धार्मिक परामर्शदाता माने जाते हैं.

पहले ब्राह्मïणों को कृषि पर निर्भर लोगों से दक्षिणा के रूप में धान, गेहूं, अनाज, सब्जी, कपड़ा आदि मिलती थी. अब धीरेधीरे लोग नकद दक्षिणा देने लगे हैं. आधुनिकता के बावजूद गांवों में ब्राह्मïणों का सम्मान और धार्मिक आयोजन में उन की भूमिका लगभग उतनी ही मजबूत है, जितनी पहले थी. परिस्थितियों के चलते 50 वर्षीय चमन शर्मा का आनाजाना किशन के घर हो गया. चमन 3 भाई हैं. चमन का विवाह हो चुका है. एक बच्चा भी है.

पिंकी थी यजमान उसे बना लिया प्रेमिका

चमन दुनियादारी में बड़ा चालाक था. किशनवीर के घर जाते समय वह उस के घर के जरूरत के सामान भी ले जाने लगा. फिर पिंकी उस का बहुत आदरसत्कार करती और उसे खाना खिलाती थी. एक दिन चमन पनीर और उस से संबंधित मसाले व अन्य सामान भी ले कर आया, लेकिन उस दिन थैले में एक शराब की बोतल भी थी. चमन ने बोतल निकाल कर थैला पिंकी को थमाते हुए कहा, ”लो भाभी, आज पनीर बनाओ. लेकिन पहले 2 गिलास और लोटे में पीने का पानी दे दो.’’

चमन ने गिलास में पैग तैयार किया. किशन ने मना किया, ”मैं नशा नहीं करूंगा, मैं शराब नहीं पीता हूं. कभी तीजत्यौहार की बात अलग है.’’

दोस्ती का वास्ता दे कर चमन ने किशन को शराब पीने के लिए राजी कर लिया. चमन ने अपने दोस्त किशन से कहा, ”जाम उठा ले और मुंह से लगा ले, मुंह से लगा कर पी.’

दोस्त के इस शायरी अंदाज पर किशन मुसकराया. पीतेपीते दोनों मस्त हो गए. इतनी देर में खाना तैयार हो चुका था. दोनों ने खाना खाया. अगले दिन फिर मुलाकात हुई तो किशन ने चमन का रात की पार्टी के लिए एहसान व्यक्त किया. चमन ने मुसकराते हुए कहा, ”अरे, दोस्ती किस दिन काम आएगी? और फिर, मैं तेरे दुखदर्द का हल भी लाया हूं.’’

किशन चौंका, ”कौन सा हल?’’

चमन धीरेधीरे अपनी चाल चलने लगा. उस ने पिंकी की ओर देखते हुए कहा, ”भाभी को बच्चा न होने की चिंता है न? मेरे पास ऐसा नुस्खा है जिस से निस्संतान दंपति भी मातापिता बन जाते हैं. अगर भरोसा हो तो मैं मदद कर सकता हूं.’’

यह सुनते ही पिंकी की आंखों में चमक आ गई. 9 साल से उस का यही सपना अधूरा था, लेकिन किशन को कुछ अटपटा लगा. वह बोला, ”क्या वाकई ऐसा संभव है?’’

चमन ने रहस्यमई अंदाज में कहा, ”हां, मगर यह बात नुस्खे तक नहीं है. साथ में धार्मिक अनुष्ठान व खास उपाय करना पड़ता है. वह सब मैं करूंगा और अपने खर्चे पर करूंगा, लेकिन यह राज बाहर न जाए.’’

धीरेधीरे चमन ने पिंकी के मन में झूठे सपनों की डोर बुननी शुरू कर दी. कभी दवाइयों के नाम पर, कभी ताबीजटोने के बहाने, वह उसे समझाने लगा कि बच्चा तभी आएगा, जब वह उस के बताए ‘खास उपायों’ पर भरोसा करेगी. किशन सीधासादा था. उस के दोस्त ने कुछ पुडिय़ा ला कर दीं. कहा संभोग से एक घंटा पहले खा लेना. अवश्य संतान की प्राप्ति होगी. पिंकी मासूम थी, मां बनने की चाहत में उस ने चमन की हर बात पर विश्वास कर लिया. वह सोचती, ‘सच में अब मेरी गोद भर जाएगी.’

इस तरह चमन और पिंकी के बीच देवरभाभी का रिश्ता गहरा होता चला गया. चमन मजाक के साथसाथ मौका लगता तो थोड़ी छेड़छाड़ और चुम्माचाटी भी कर लेता था. इसी लालच और विश्वास के बीच चमन ने उसे अपने जाल में उलझा लिया. किशन को लगा उस का दोस्त मददगार है, जबकि असलियत में वह उस की कमजोरी का फायदा उठा रहा था. जिस दिन चमन शर्मा को दक्षिणा अधिक मिल जाती, वह कुछ न कुछ अच्छे भोजन के लिए सामान ले कर किशन के घर आ जाता.

एक दिन चमन खाने के व्यंजन के साथ में हमेशा की तरह बोतल भी लाया था. उस दिन चमन ने अपने दोस्त को कुछ अधिक शराब पिलाई. मौका लगते ही नशे की गोलियों की पुडिय़ा लाया था, एक पैग में मिला दी. कुछ ही देर बाद किशन चारपाई पर बेसुध हो कर लुढ़क गया.

फिर चमन ने अपनी भाभी पिंकी को बुला कर बाहों में समेट लिया. वह बोली, ”अरे क्या कर रहे हो, वो देख लेंगे.’’

चमन मुसकराता हुआ बोला, ”उस का पूरा इलाज आज कर दिया है. वैसे इसे अब सुबह तक भी होश नहीं आएगा.’’

पिंकी शरमाते हुए बोली, ”ऐसा क्या कर दिया?’’

चमन ने पूरी बात बताई और कहा कि आज हम खुल कर रोमांस करेंगे. इस के बाद कमरे का माहौल अचानक बदल गया.

पिंकी भी चमन की आंखों में अजीब सी मोहब्बत देख रही थी. इतने दिनों से वह समझ रही थी कि चमन सिर्फ पति का दोस्त ही नहीं, बल्कि उस के दिल में कुछ और जगह बना चुका है.

चमन ने कहा,”पिंकी, तुम जानती हो कि मैं तुम्हें बहुत चाहता हूं. आज हालात ने हमें मौका दिया है. अगर तुम चाहो तो यह रात हमारी हो सकती है.’’

पिंकी कुछ पल चुप रही, फिर उस की आंखों में हलकी मुसकान तैर गई.

”देवरजी, शायद किस्मत ने ही यह मौका दिया है. मैं भी अब रुकना नहीं चाहती.’’

इस के बाद दोनों के बीच की दूरी मिट गई. सारी बंदिशें टूट गईं और वो रात उन के लिए इश्क की एक नई दास्तां बन गई.

2 जिस्म जैसे एक जान हो गए. रात का आखिरी पहर था. चमन की अचानक आंखें खुलीं तो सुबह होने वाली थी. पिंकी भी उठ चुकी थी. पिंकी का चेहरा चमक रहा था और चमन की आंखों में संतोष था. दोनों जानते थे कि यह रिश्ता अब सिर्फ एक रात का नहीं, बल्कि उन के जीवन की नई शुरुआत है. पिंकी ने कमरे से बाहर निकल कर देखा, उस के जेठ का कमरा भी बंद था. फिर वह मेनगेट पर आई, बाहर जा कर इधरउधर देखा. कोई नहीं था. पूरा सन्नाटा छाया हुआ था. उस ने चमन को इशारा किया और वह दबेपांव घर से निकल कर अपने घर चला गया.

फिर यह सिलसिला चलता रहा. पिंकी गर्भवती हो गई और उसे एक बेटा पैदा हुआ. किशन बहुत खुश था. समझ रहा था कि उस के दोस्त ने जो दवा दी थी, उस की वजह से संतान हुई है. किशन ने कर्ज ले कर जो ईरिक्शा लिया था, उसे भी बेच दिया. क्योंकि उसे शराब की लत लग चुकी थी. कारोबार कुछ नहीं था. चमन कभीकभी उस के घर आता तो अब वह इतनी मदद नहीं कर पा रहा था, जितनी पहले कर दिया करता था. बड़ी तंगी से दिन गुजर रहे थे. बेटा पैदा होने से खर्चे और भी बढ़ गए थे.

इसी दौरान इस लव स्टोरी में एक और किरदार प्रवेश कर गया. उस का नाम था नितिन. 20 साल का नितिन पिंकी के प्रेमी चमन का सगा भतीजा था. किशन और नितिन के बीच ईरिक्शा चलाते समय दोस्ती हो गई थी. वह किशन के आर्थिक हालात से भलीभांति परिचित था. नितिन अपने पिता की अकेली संतान था. बहुत बड़ा परिवार नहीं है. अपनी सामान्य आर्थिक स्थिति होने के बावजूद नितिन समयसमय पर किशन को कुछ रुपए उधार दे दिया करता था. कई दिनों से किशन से उस की मुलाकात नहीं हुई. एक दिन वह अपने उधार की रकम का तकाजा करने किशन के घर गया.

शाम का समय था. सूर्यास्त हो रहा था. किशन और चमन आंगन में बैठे हुए शराब का दौर चला रहे थे. दोनों ने एक साथ नितिन को आवाज लगाई, ”आओ नितिन, आओ.’’

वह अंदर आया. दोनों ने उसे भी अपनी महफिल में शामिल कर लिया. जाम का दौर खत्म हो जाने पर पिंकी से खाना लाने को कहा. पिंकी 3 थालियों में खाना ले कर आई. पिंकी ने आदतन नितिन से नमस्ते की. नितिन ने सर उठा कर देखा तो देखता ही रह गया. नशे का सुरूर उसे चढ़ ही रहा था. नितिन ने देखा, उस की आंखों में चमक थी, चेहरे पर ऐसा तेज जैसे कोई दीपक जल उठा हो. बच्चा पैदा होने के बाद तो जैसे उस के हुस्न में नया निखार आ गया था. उस के गालों पर हलकी लाली, आंखों की गहराई में शांति और होंठों पर हमेशा रहने वाली

हलकी मुसकान, सब कुछ उसे और भी आकर्षक बना रहे थे. खाना खाते समय भी नितिन की नजरें पिंकी का ही पीछा करती रहीं. नितिन ने अपने कर्ज की कोई बात किशन से नहीं की. जाते समय किशन से कहा कि अगर तुम्हें कोई परेशानी हो तो मुझे जरूर बताना. मैं तुम्हारा दोस्त हमेशा तुम्हारी मदद के लिए तैयार रहूंगा. इस समय भी उस की नजरें टकटकी लगाए पिंकी को ही देख रही थीं. पहली ही मुलाकात में वह पिंकी को दिल दे बैठा. इस के बाद मुलाकातें बढती रहीं. पिंकी भी नितिन को चाहने लगी. नितिन ने भी अपने चाचा की तरह का तरीका अपनाया.

एक दिन वह भी थैला भर कर खानेपीने का अच्छा सामान किशन के घर ले गया. दारू की बोतल और साथ में नशीली गोलियों की पिसी हुई पुडिय़ा भी थी. उस ने भी दारू पीते समय किशन के पैग में नशा की गोलियों का पाउडर मिला दिया. इस के बाद किशन के बेहोशी जैसी हालत में पहुंच जाने पर पिंकी और नितिन ने रात भर एकदूसरे पर जम कर प्यार लुटाया. जवानी से भरपूर नितिन के साथ पिंकी ने भी खूब मौजमस्ती की. इस तरह चाचाभतीजा दोनों ही पिंकी के आशिक हो गए. कभी चाचा तो कभी भतीजा पिंकी की मस्त जवानी का आनंद लेने आ जाते.

पिंकी का नितिन की तरफ ज्यादा झुकाव हो गया था. फिर भी पिंकी उस के चाचा चमन को नाराज करना नहीं चाहती थी. गाहेबगाहे वह चमन को भी खुश कर दिया करती थी. दोनों पिंकी का पूरा खयाल रखते. साथ में किशन की भी समयसमय पर दारू की व्यवस्था कर दिया करते थे. अपनी पत्नी और उस के आशिकों के बीच होने वाली रंगीन रात का किशन को पूरा अहसास था. दिन में नशा उतर जाने पर इधरउधर गांव के लोगों के बीच जाता, तब लोग उस के घर की हालत बयान करते तो वह बहुत शर्मिंदा होता.

मामला पूरे गांव में चर्चा का विषय बना हुआ था. क्योंकि दोनों किशन के दोस्त थे, इसलिए कोई सीधे आरोप नहीं लगा रहा था. वह चाचाभतीजे दोनों से टकराने की स्थिति में नहीं था. उन दोनों से टकराने का मतलब उसे साफ दिख रहा था मौत. इसलिए वह पत्नी पर ही अपना गुस्सा उतार देता था. पिंकी की मुसकान में मासूमियत का मुखौटा था, लेकिन उस की आत्मा में विश्वासघात की आग धधक रही थी. वह प्यार नहीं, बल्कि वासना का खेल खेल रही थी. इसी खेल के चलते उस ने अपने पति किशनवीर उर्फ ऋषिपाल की अपने प्रेमियों के द्वारा हत्या करा दी.

सभी आरोपियों से पूछताछ के बाद पुलिस ने उन्हें अदालत में पेश किया गया, जहां से सभी को जेल भेज दिया गया. पिंकी के साथ उस का 2 साल का बेटा भी जेल चला गया. एक आरोपी अवनीश कुमार निवासी गांव रमपुरा थाना सोनकपुर जिला मुरादाबाद को पुलिस ने 14 सितंबर को गिरफ्तार कर लिया. उसे भी अदालत में पेश कर जेल भेज दिया. केस की जांच कोतवाल मोहित कुमार मलिक कर रहे थे. UP News

 

 

Short love Story in Hindi: जानी जान का दुश्मन – क्या किया उमा के साथ

Short love Story in Hindi: राजवीर देखने में भले ही साधारण व्यक्ति था, लेकिन वह बातों का धनी था. अपनी लच्छेदार बातों से वह किसी का भी मन मोह लेता था. राजवीर मेवाराम की पत्नी उमा के खूबसूरत हुस्न का दीवाना था. उमा भी उस की जवांदिली पर लट्टू थी.

शाम का समय था. राजवीर घर आया तो उमा उस के लिए चाय बना लाई. चाय के साथ गरमागरम पकौड़े भी थे. पकौड़े राजवीर को बहुत पसंद हैं, यह बात उमा जानती थी. राजवीर चहक उठा, ‘‘भई वाह, ये हुई न बात.’’फिर एक पकौड़ा मुंह में रख कर स्वाद लेते हुए पूछ बैठा, ‘‘तुम मेरे दिल की बात कैसे जान गईं?’’
उमा मुसकराते हुए बोली, ‘‘जब हमारे दिल के साथसाथ शरीर भी एक हो चुके हैं तो दिल की बात एकदूसरे से कैसे छिपी रह सकती है.’’

‘‘वाकई तुम्हारी यह बात बिलकुल सही है. देखो, तुम्हारी चाय का रंग भी तुम्हारे रंग जैसा है. लगता है जैसे चाय में तुम ने अपने हुस्न का रंग मिला दिया हो. चाय का स्वाद भी तुम्हारे जैसा मीठा है. पकौड़े भी तुम्हारे जिस्म के अंगों की तरह गर्म और स्वादिष्ट है.’’अपने हुस्न की तारीफ का यह अंदाज उमा को अच्छा लगा. वह राजवीर से सट कर उस की आंखों में आंखें डाल कर बोली, ‘‘जो कुछ मेरे पास है, उस पर तुम्हारा ही तो अधिकार है.’’

राजवीर ने उस की दुखती रग को छेड़ते हुए कहा, ‘‘तुम्हारे खूबसूरत जिस्म पर तो तुम्हारे पति मेवाराम का सर्वाधिकार है. लोग भी उस के ही अधिकार को स्वीकृति देंगे.’’‘‘वह तो सिर्फ नाम का पति है. बीवी की जगह शराब की बोतल को सीने से लगाए घूमता है, मुझे बिस्तर पर तड़पने के लिए छोड़ देता है. वैसे भी शराब ने उस के शरीर को इतना खोखला कर दिया है कि उस में शबाब के उफनते तटबंधों की गरमी शांत करने का माद्दा नहीं बचा.’’‘‘तुम्हारी हसीन चाहतों की कसौटी पर मैं खरा उतरा हूं कि नहीं?’’ कह कर राजवीर ने उमा के दिल की बात जाननी चाही.

मन के भंवर में डूबी उमा के कानों में राजवीर की बात पहुंची तो एकाएक उस के चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ गई, वह बोली, ‘‘तुम ने मेरे हुस्न की बगिया को अपने प्रेम की बरसात से ऐसा सींचा है कि रोमरोम खिल कर महकने लगा है. तुम्हारे जोश की तो मैं कायल हूं. तुम्हारे साथ आनंदलोक की यात्रा करना सुखद अहसास होता है. मैं तो सोचसोच कर ही रोमांचित हो जाती हूं.’’ उमा बेबाकी से कहती चली गई.
‘‘तो फिर चलें आनंदलोक की यात्रा पर…’’ राजवीर ने उमा के गले में हाथ डाल कर उसे अपने बदन से सटाते हुए कहा. इस पर उमा ने मुसकरा कर मूक सहमति दे दी.

राजवीर उमा के कपोलों को चूमने के साथसाथ उस के होंठों का भी रसपान करने लगा. उमा ने शरमा कर अपना मुंह उस के सीने में छिपा लिया. साथ ही उस ने राजवीर के गले में बांहों का हार डाल दिया. फिर दोनों एकदूसरे में समा गए. आनंदलोक की यात्रा पूरी कर के दोनों एकदूसरे से अलग हुए. उन के शरीर पसीने से लथपथ थे, लेकिन चेहरों पर संतुष्टि के भाव थे.

जिला हरदोई के थाना कोतवाली हरपालपुर के अंतर्गत एक गांव है कूड़ा नगरिया. मेवाराम अपने परिवार के साथ इसी गांव में रहता था. परिवार में पत्नी उमा और 5 बेटियों के अलावा 2 बेटे अश्विनी और अंकुर थे. मेवाराम के पास खेती की जमीन थी, जिस की आय से उस के परिवार का गुजारा हो जाता था.

मेवाराम भागवत कथा करने का भी काम करता था. उस के काम में उस के बड़े भाई सेवाराम भी साथ देते थे. धार्मिक कार्यों में रमे रहने की वजह से मेवाराम पत्नी की शारीरिक जरूरतों पर ध्यान नहीं दे पाता था. वैसे भी वह 50 साल से ऊपर का हो गया था. थोड़ाबहुत दमखम था भी तो उसे धीरेधीरे शराब पी रही थी.
दूसरी ओर 7 बच्चे पैदा करने के बाद भी उमा के बदन की आग अभी तक सुलग रही थी. 45 साल की उम्र में उस ने खुद को टिपटौप बना रखा था. उस की खूबसूरती अभी तक कहर ढाती थी.

शरीर की आग ठंडी न हो तो इंसान में चिड़चिड़ापन आ जाता है, उसे कुछ भी अच्छा नहीं लगता. उमा के साथ भी ऐसा ही था. ऐसे में उस ने अपनी शारीरिक जरूरतों को पूरा करने के लिए दूसरा ठौर तलाशना शुरू कर दिया. उसे अपने सुख के साधन की तलाश थी. उस की तलाश खत्म हुई राजवीर पर.

वह भी कूड़ा नगरिया में ही रहता था. उस के पिता रामकुमार चौकीदारी का काम करते थे. 22 साल पहले राजवीर का विवाह कमला से हुआ था. उस से 3 बच्चे हुए. उस की शादी को अभी 6 साल ही बीते थे कि पति की रंगीनमिजाजी से परेशान हो कर कमला अपने 2 छोटे बच्चों को ले कर हमेशा के लिए मायके चली गई.

पत्नी के जाने के बाद राजवीर को शारीरिक सुख मिलना बंद हो गया. उमा की तरह वह भी शारीरिक सुख के लिए दूसरा ठौर ढूंढ रहा था. उस की नजर कई औरतों पर पड़ी, लेकिन उन में से उसे उमा ही मन भाई. उमा की कदकाठी और खूबसूरत देह राजवीर के दिलोदिमाग में उतर गई.

दूसरी ओर उमा भी राजवीर को पसंद करने लगी थी. जब दोनों सामने पड़ते तो एकदूसरे पर नजरें जम जातीं. आग दोनों तरफ लगी थी. दोनों को अपनी अंदरूनी तपिश का अहसास हो गया था.

एक दिन जब मेवाराम घर में नहीं था तो राजवीर उस के घर पहुंच गया. उस के आने का मकसद उमा से नजदीकियां बना कर उस का सान्निध्य पाना था. उमा को उस का आना अच्छा लगा. उस दिन दोनों काफी देर तक बातें करते रहे. न तो उन की बातें खत्म होने का नाम ले रही थीं और न ही उन का मन भर रहा था.
लेकिन जुदा तो होना ही था, दिल पर पत्थर रख कर राजवीर उमा से विदा ले कर घर आ गया. लेकिन दिल की चाहत फिर भी तनमन को बेचैन करती थी. यह ऐसी बेचैनी थी जो दोनों के दिलों को और करीब ला रही थी.

चिंगारी को जब तक हवा नहीं लगती, तब तक वह शोला नहीं बनती. उमा के मन में दबी चिंगारी को अब तक हवा नहीं लगी थी. लेकिन उस दिन राजवीर उस के पास आ कर दबी चिंगारी को एकाएक शोला बना गया था.

मुलाकातों का सिलसिला बढ़ा तो दोनों एकदूसरे से काफी खुल गए. राजवीर हंसीमजाक करते वक्त जानबूझ कर उमा के शरीर के नाजुक अंगों को छू लेता तो उमा के चेहरे पर मादक मुसकराहट उतर आती. राजवीर का शरीर भी झनझना जाता, दिल बेकाबू होने लगता.

आखिर एक दिन मुलाकात रंग ले ही आई. राजवीर के मन की बात होंठों पर आ गई. उस ने उमा के हाथों को अपने हाथ में ले कर कहा, ‘‘तुम बहुत सुंदर हो, उमा.’’

‘‘सचऽऽ’’ उमा ने उस की आंखों में आंखें डाल कर पूछा.

‘‘हां, तुम बहुत सुंदर हो.’’

‘‘कितनी?’’ उमा ने फुसफुसाते हुए पूछा.

‘‘चांद से भी…’’ इस के आगे वह कुछ नहीं कह सका. वह उस के बदन की गरमी से पिघलने लगा था.
राजवीर की बात सुन कर उमा के चेहरे पर चमक आ गई. राजवीर को नशीली मदमस्त निगाहों से देखते हुए वह उस से सट गई और उस के कानों में फुसफुसा कर बोली, ‘‘शादी कर लो, तुम्हें मुझ से भी सुंदर पत्नी मिल जाएगी.’’

उस की बातों ने आग में घी का काम किया. वह बोला ‘‘लेकिन फिर तुम तो नहीं मिलोगी.’’
‘‘अगर मैं मिल जाती तो तुम क्या करते..?’’ उमा ने शरारत में कहा और बदन को मोड़ कर नशीली अदा से अंगड़ाई ली. उसी वक्त राजवीर के हाथ उस के वक्षस्थल से टकरा गए.

उमा की कातिल अदा उसे पागल कर गई. वह बोला, ‘‘मैं तुम्हें जी भर कर प्यार करता.’’

‘‘कितना?’’ उमा ने उसे उकसाया तो राजवीर ने साहस जुटा कर उमा को अपनी बांहों में ले कर जोर से दबाते हुए कहा, ‘‘इतना.’’उमा ने राजवीर के अंदर दबी चिंगारी को हवा दे दी, ‘‘बस, इतना ही.’’

‘‘नहीं, इस से भी ज्यादा…और इतना ज्यादा.’’ कहने के साथ ही राजवीर ने उसे बांहों में लिए लिए पलंग पर लिटा दिया.

अपनी अतृप्त प्यास बुझाने की चाह में उमा ने उस का रत्ती भर विरोध नहीं किया. इस की जगह वह उसे और उकसाती रही. लोहार की धौंकनी की तरह चलती दोनों की तेज सांसें और उन के मिलन की सरगम ने कमरे में तूफान सा ला दिया. राजवीर के सामीप्य से उमा को एक अलौकिक सुख का आनंद मिला.

उमा को अपने पति मेवाराम का सामीप्य बिलकुल नहीं भाता था, लेकिन राजवीर को वह दिल से चाहने लगी. वह राजवीर के बारे में सोचने लगी कि क्यों न हमेशा के लिए उसी की हो कर रह जाए.
उस की यह सोच गलत नहीं थी, क्योंकि उस के भीतर मचलते जिस तूफान को उस का पति एक बार भी शांत नहीं कर पाया था, राजवीर ने उस तूफान को पहली मुलाकात में ही शांत कर दिया था.

फिर एकाएक उमा उसे बेतहाशा प्यार करने लगी. उस की आंखों से आंसुओं की अविरल धारा बह निकली. उसे रोते देख राजवीर घबरा गया. वह बोला, ‘‘यह तुम्हें क्या हो गया उमा? तुम पागल तो नहीं हो गईं?’’

‘‘नहीं राजवीर, आज मैं बहुत खुश हूं. तुम ने आज जो सुख, जो खुशी मुझे दी है, उसे मैं शब्दों में बयान नहीं कर सकती. आज तक इतना सुख, इतनी खुशी मुझे मेरे पति से नहीं मिली.

‘‘सुहागरात से मैं जिस सुख की कल्पना करती आ रही थी, आज तुम से मिल गया. उस रात जब वह कमरे में आए और मैं ने घूंघट की आड़ से देखा तो मंत्रमुग्ध सी देखती रह गई. भरेपूरे शरीर और उन की गहरी नशीली आंखों में मैं डूबती चली गई. मैं उन को और वह मुझे देर तक एकदूसरे को देखते रहे, फिर एकाएक उन के स्पर्श ने मेरी तंद्रा भंग कर दी.’’

थोड़ा रुक कर वह बोली, ‘‘वह आए और मेरी बांहों को पकड़ कर बैठ गए. फिर धीरे से घूंघट उठा दिया. कुछ देर वह सम्मोहित से मुझे देखते रहे. उन के होंठ मेरी ओर बढ़े और उन्होंने मेरे चेहरे को अपने हाथों में समेट लिया, फिर मेरे होंठों पर अपने तपते होंठ रख दिए. उन का स्पर्श पा कर मैं सिहर उठी.‘‘मैं लाज से दोहरी होती गई. मगर मेरा दिल कह रहा था कि वह इसी तरह हरकत करते रहें. उन्होंने बेझिझक मुझे सहलाना शुरू कर दिया, मेरे ऊपर जैसे नशा छा गया. मेरी आंखें धीरेधीरे बंद होती जा रही थीं और बदन अंगारों की तरह दहकने लगा था. फिर मैं भी उन का सहयोग करने लगी.

‘‘बंद कमरे में फूलों की सेज पर जैसे तूफान आ गया था. लेकिन थोड़ी देर में वह तूफान तो शांत हो गया लेकिन मैं फिर भी जलती रही. उस वक्त वह मेरे बदन पर ही नहीं, मेरे दिल पर भी बोझ लग रहे थे. उस का एक ही कारण था कि उन्होंने जो आग मुझ में लगाई थी, उसे बुझाए बिना निढाल हो गए थे.

‘‘पहली रात ही क्या, किसी भी रात वह मुझे सुख नहीं दे पाए. मेरे दुख का कारण वे रातें थीं, जो मैं ने उन के बगल में तड़पते और जलते हुए गुजारी थीं. हमारी जिंदगी जैसेतैसे कट रही थी. देखने वालों को लगता कि मैं बहुत खुश हूं, मगर वास्तविकता ठीक इस के विपरीत थी. मैं ठीक वैसे ही जल रही थी, जैसे राख के नीचे दबी चिंगारी.’’

इतना कह कर उमा ने दुखी मन से अपना चेहरा झुका लिया. राजवीर ने देखा तो उस से रहा न गया, ‘‘दुखी क्यों होती हो उमा, अब तो मैं तुम्हारी जिंदगी में आ गया हूं. मैं तुम्हारी चाहतों को पूरी करूंगा.’’
इस के बाद दोनों के बीच कुछ देर और बातें होती रहीं. फिर राजवीर वहां से चला गया.

उस दिन के बाद से उमा खुश और खिलीखिली सी रहने लगी. दोनों की चाहतें, जरूरतें एकदूसरे से पूरी होने लगीं. किसी को भी इस सब की कानोंकान खबर तक नहीं लगी.अब जब दोनों का मन होता, एक हो जाते. दोनों का यह खेल बेरोकटोक चलने लगा. देखतेदेखते 5 साल गुजर गए. रात में खेतों की रखवाली के लिए उमा खेत में बनी झोपड़ी में रुक जाती थी. उस के खेतों के बराबर में ही पड़ोसी गांव प्रतिपालपुर के राजेश (परिवर्तित नाम) का खेत था.

जब वह खेत पर होती तो राजेश से बातें करती रहती. दोनों एकदूसरे के खेतों में जानवर घुसने पर भगा देते थे. खेतों के मामले में दोनों पड़ोसी थे. पड़ोसी ही पड़ोसी के काम आता है. यह सब राजवीर ने देखा तो वह उमा पर शक करने लगा कि वह अब उस के बजाए राजेश में रुचि ले रही है. जब वह अपने पति के होते हुए उस से संबंध बना सकती है तो राजेश के साथ संबंध बनाने में उसे क्या दिक्कत होगी.

उस ने कई बार उमा को राजेश से काफी नजदीक हो कर बातें करते देखा तो उस ने समझ लिया कि दोनों के बीच नाजायज संबंध बन गए हैं. राजवीर को यह बात नागवार गुजरी. उस की प्रेमिका उस के होते हुए किसी और से संबंध रखे, यह उसे मंजूर नहीं था.

8 जनवरी, 2020 की शाम 4 बजे उमा खेतों की रखवाली के लिए गई. अगले दिन सुबह उस की लाश खेत में पड़ी मिली. गांव वालों के बताने पर उमा के बच्चे खेतों पर पहुंचे. मेवाराम भागवत कथा के लिए कहीं गया हुआ था, किसी ने इस घटना की सूचना हरपालपुर थाना कोतवाली को दे दी थी.

सूचना पा कर इंसपेक्टर भगवान चंद्र वर्मा पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. मृतका के शरीर पर किसी प्रकार की चोट के निशान नहीं थे. लेकिन गले पर दबाए जाने के निशान थे.

निरीक्षण के बाद उन्होंने उमा के बच्चों व ग्रामीणों से पूछताछ की तो उन्होंने उस के प्रेमी राजवीर पर शंका जताई. इस के बाद पुलिस ने लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी और उमा की बेटी मुसकान को ले कर थाने आ गए.

इंसपेक्टर वर्मा ने मुसकान की तरफ से लिखित तहरीर ले कर राजवीर के खिलाफ भादंवि की धारा 302 के तहत मुकदमा दर्ज करा दिया.राजवीर घर से फरार था. 13 जनवरी, 2020 की सुबह 5:20 बजे एक मुखबिर की सूचना पर इंसपेक्टर वर्मा ने राजवीर को गांव अर्जुनपुर के पास से गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ में उस ने उमा की हत्या करने का जुर्म स्वीकार कर लिया.

8 जनवरी को उमा खेतों में खड़ी गेहूं की फसल की रखवाली के लिए गई थी. रात 8 बजे राजवीर उस के पास पहुंचा तो वह अकेली थी. राजेश से संबंध होने की बात कह कर वह उमा से भिड़ गया. वादविवाद होने पर दोनों में गालीगलौज होने लगी. इस पर राजवीर ने उमा को दबोच कर दोनों हाथों से उस का गला दबा दिया, जिस से उमा की मौत हो गई. उस के मरते ही राजवीर वहां से फरार हो गया.राजवीर की गिरफ्तारी के बाद इंसपेक्टर वर्मा ने आवश्यक कानूनी लिखापढ़ी कर के उसे न्यायालय में पेश किया, जहां से उसे न्यायिक अभिरक्षा में जेल भेज दिया गया. Short love Story in Hindi

कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Rajasthan News: वासना की भेंट चढ़ा ससुर

Rajasthan News: अणछी और नाथू सिंह बेरोकटोक मजे से रंगरलियां मना रहे थे. अचानक ऐसा क्या हुआ कि अणछी और नाथू सिंह को हत्या जैसा अपराध करने को मजबूर होना पड़ा. राजस्थान के जिला राजसमंद के थाना खमनेर के एएसआई रामचंद्र औफिस के सामने गुनगुनी धूप में खड़े मौसम का आनंद ले रहे थे, तभी गांव ढीमड़ी से शंभू सिंह ने फोन द्वारा सूचना दी कि ग्रामपंचायत उनवास के गांव ढीमड़ी के एक बाड़े में एक बूढ़े की लाश पड़ी है.

घटना की गंभीरता को देखते हुए एएसआई रामचंद्र ने तत्काल हत्या की यह सूचना थानाप्रभारी रमेश कविया को दी. पुलिस अधिकारियों को सूचना दे कर थानाप्रभारी रमेश कविया पुलिस बल के साथ घटनास्थल की ओर रवाना हो गए. यह 23 जुलाई, 2014 की सुबह की बात थी. पुलिस जीप उनवास पहुंची तो घटनास्थल के बारे में पता लगाने के लिए थानाप्रभारी रमेश कविया ने गायभैंस का झुंड ले कर जा रहे एक बूढ़े से पूछा, ‘‘दादा, ये ढीमड़ी में लाश कहां मिली है?’’

‘‘सीधे चले जाओ, जहां भीड़ दिखाई दे, वहीं बाड़े में लाश पड़ी है.’’ बूढ़े ने कहा.

जीप थोड़ा आगे बढ़ी तो पुलिस को रोने की आवाज सुनाई दी. थानाप्रभारी ने जीप रुकवाई और पैदल ही वहां पहुंच गए, जहां से रोने की आवाज आ रही थी. लाश वहीं एक बाड़े में पड़ी थी. घटनास्थल के निरीक्षण में उन्होंने देखा कि जूते और कपड़े इधरउधर बिखरे पड़े थे. वहीं एक लाश पड़ी थी. पूछने पर पता चला कि मृतक का नाम किशन सिंह था. दीवार पर खून के छींटे पड़े थे. मृतक की उम्र 70 साल के आसपास थी. सिर पर किसी भारी चीज से वार कर के हत्या की गई थी. सिर फट जाने की वजह से उस का चेहरा काफी वीभत्स लग रहा था. थानाप्रभारी ने तुरंत लाश को कंबल से ढक दिया.

एफएसएल टीम अपना काम निपटा रही थी कि डीएसपी सिद्धांत शर्मा आ गए. घटनास्थल और लाश का निरीक्षण करने के बाद डीएसपी और थानाप्रभारी ने औपचारिक काररवाई निपटा कर शव को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. पुलिस ने मृतक किशन सिंह के घरपरिवार के बारे में तहकीकात शुरू की तो पता चला कि उस के बेटे मांगू सिंह की पत्नी अणछी का चरित्र ठीक नहीं था. उस का बगल के गांव के नाथू सिंह से प्रेम संबंध था. इस के बाद पुलिस को अणछी और उस के प्रेमी पर शक हुआ.

आसपड़ोस के लोगों ने भी इस बात का समर्थन किया तो थानाप्रभारी ने मृतक किशन सिंह की पत्नी वृद्धा सवाबाई से पूछताछ की. उस ने बताया कि अणछी का सोलंकियों की भागल (सेमा) निवासी नाथू सिंह राजपूत से अवैध संबंध था. इसी के चलते आए दिन परिवार में क्लेश होता रहता था. थानाप्रभारी ने बीट कांस्टेबल धीरचंद जांगिड़ से सोलंकियों की भागल के नाथू सिंह राजपूत के बारे में पूछा तो उस ने कहा, ‘‘सर, यह वही नाथू सिंह है, जो कुछ दिनों पहले शांतिभंग के आरोप में पकड़ा गया था.’’

‘‘इस समय वह कहां मिलेगा?’’ थानाप्रभारी ने पूछा.

‘‘अभी पता किए लेते हैं सर.’’ कह कर कांस्टेबल धीरचंद ने मोटरसाइकिल उठाई और एक सिपाही को बैठा कर नाथू सिंह की तलाश में निकल पड़ा. वह सीधा बसअड्डे पहुंचा तो नाथू सिंह उसे दिखाई दे गया. बैग लिए वह कहीं जाने की तैयारी में था. कांस्टेबल धीरचंद को देख कर वह कांप उठा. वह भागने की सोच रहा था कि धीरचंद ने अपनी मोटरसाइकिल उस के सामने ला कर खड़ी कर दी. नाथू सिंह ने उस की ओर देखा तो उस ने पूछा, ‘‘इधर कहां?’’

‘‘साहब मुंबई जा रहा हूं. बस के इंतजार में खड़ा हूं.’’

‘‘फिलहाल तो तू मेरे साथ थाने चल, मुंबई जाना बाद में.’’ धीरचंद ने कहा.

‘‘साहब, थाने जाने में मेरी बस चली जाएगी.’’ नाथू सिंह हकलाया.

‘‘अब तुझे मुंबई नहीं, जेल जाना है. तू ने जो किया है, उस के लिए तुझे अब जेल जाना होगा.’’

कह कर धीरचंद ने नाथू सिंह को मोटरसाइकिल पर बैठाया और थाने आ गया. तब तक थानाप्रभारी रमेश कविया भी थाने आ गए थे. नाथू सिंह की हालत देख कर ही थानाप्रभारी समझ गए कि किशन सिंह की हत्या इसी ने की है. उस के सामने आते ही उन्होंने पूछा ‘‘किशन सिंह की हत्या तू ने ही की है न?’’

‘‘नहीं साहब, उस की हत्या मैं क्यों करूंगा?’’ नजरें चुराते हुए नाथू सिंह ने कहा.

‘‘अणछी ने तो कहा है कि किशन सिंह की हत्या तू ने ही की है.’’

अणछी का नाम सामने आते ही नाथू सिंह ढीला पड़ गया. उस ने सच बोलने में ही अपना भला समझा. इसलिए किशन सिंह की हत्या का अपराध स्वीकार करते हुए उस ने कहा, ‘‘साहब, मैं अणछी से प्यार करता था. एक साल से हमारे बीच संबंध थे. किशन सिंह हमारे प्यार में रोड़ा अटका रहा था, इसीलिए मैं ने और अणछी ने पीटपीट कर उस की हत्या कर दी थी.’’

इस के बाद पुलिस ने किशन सिंह की बहू अणछी को भी गिरफ्तार कर लिया. थाने में की गई पूछताछ में दोनों ने किशन सिंह की हत्या की जो कहानी सुनाई, वह इस प्रकार थी. राजस्थान के जिला राजसमंद के थाना खमनेर के गांव ढीमड़ी की रहने वाली अणछी का पति मांगू सिंह राजपूत मुंबई में किसी कबाड़ी के यहां नौकरी करता था. उस का देवर मोहन सिंह भी भाई के साथ मुंबई में ही रहता था. मांगू सिंह मानसिक रूप से थोड़ा कमजोर था. उस की आर्थिक स्थिति भी ठीक नहीं थी. इसलिए अणछी भी इधरउधर मजदूरी कर के कुछ कमा लेती थी. पति और देवर मुंबई में रहते थे, जबकि अणछी ससुर किशन सिंह और सास सवाबाई की देखभाल के लिए उन के साथ गांव में रहती थी. उस की 3 बेटियां, ललिता, हंजा एवं सीता थीं.

अणछी शादीब्याह के मौके पर खाना बनाने वालों के साथ पूडि़यां बेलने भी जाती थी. इस में पैसा तो मिलता ही था, खाना भी मिल जाता था. ऐसे में ही अणछी की मुलाकात सोलंकियों की भागल के रहने वाले नाथू सिंह से हुई तो पहली ही मुलाकात में उस का दिल अणछी पर आ गया. नाथू सिंह खाना बनाने का कारीगर था. नाथू सिंह ने अणछी को चाहतभरी नजरों से देखा तो वह असहज हो गई. धीरेधीरे जानपहचान बढ़ी तो घरपरिवार के साथसाथ मन की बातें भी होने लगीं. ऐसे में नाथू सिंह ने कहा, ‘‘अणछी, तुम चाहो तो हमेशा के लिए मेरे साथ आ सकती हो.’’

‘‘क्या, क्या कहा तुम ने?’’ अनमने और रोबीले स्वर में अणछी बोली.

‘‘मेरा मतलब है कि मैं रसोइया हूं और आए दिन शादीब्याह में खाना बनाने जाता हूं. मुझे पूडि़यां बेलने के लिए औरतों की जरूरत होती ही है, इसलिए कहा कि तुम चाहो तो मेरे साथ हमेशा काम कर सकती हो.’’

‘‘ठीक है, तुम जब भी बुलाओगे, मैं आऊंगी.’’

इस के बाद अक्सर शादीब्याह में नाथू सिंह और अणछी की मुलाकातें होने लगीं. कभी देर हो जाती तो नाथू सिंह खुद ही उसे ढीमड़ी उस के घर पहुंचाने चला जाता. पति के दूर रहने की वजह से अणछी धीरेधीरे नाथू सिंह के नजदीक आती गई.

एक दिन शादी समारोह में खाना बनाने के बाद नाथू सिंह और अणछी बैठे बातें कर रहे थे तो नाथू सिंह ने कहा, ‘‘अणछी, मैं एक बात कहूं, बुरा तो नहीं मानोगी?’’

अणछी हंसते बोली, ‘‘ऐसी क्या बात हो गई, जो कहने के पहले पूछ रहे हो?’’

‘‘मैं तेरे साथ रहना भी चाहता हूं और सोना भी.’’

कुछ देर चुप रहने के बाद अणछी मंदमंद मुसकराते हुए बोली, ‘‘साथ तो रह ही रहे हो, जब मन हो, सो भी जाना.’’

यह सुन कर नाथू खुश हो गया. अब वह अणछी के साथ सोने के बारे में सोचने लगा. मजे की बात यह थी कि नाथू सिंह अणछी से उम्र में छोटा था. अणछी के पास नाथू सिंह के साथ सोने के बहुत मौके थे. घर में सासससुर बूढ़े थे और बच्चे छोटे. पति और देवर बहुत दूर रहते थे. इसलिए अणछी नाथू सिंह को घर पर ही बुलाने लगी. जल्दी ही दोनों वासना के तालाब में इस कदर डूब गए कि न उन्हें घरपरिवार की चिंता रह गई न इज्जत की. नाथू सिंह का जब मन होता, अणछी के घर पहुंच जाता. ढीमड़ी में अणछी के दो मकान थे. पुराने मकान में ससुर किशन सिंह और सास सवाबाई के साथ उस की 2 बड़ी बेटियां रहती थीं. जबकि दूसरे नए मकान में अणछी अपनी 5 साल की सब से छोटी बेटी सीता के साथ रहती थी. इसलिए नाथू सिंह को उस के घर आनेजाने में कोई परेशानी नहीं होती थी.

घर वाले भले ही अलग रहते थे, मगर गलीमोहल्ले के लोग तो दोनों को मिलतेजुलते देख ही रहे थे. उन्होंने ही यह बात किशन सिंह से बताई तो वह बहू पर नजर रखने लगा. एक दिन शाम को किशन सिंह ने नाथू सिंह को अणछी के घर से निकलते देखा तो चिल्लाया, ‘‘अरे नाथू, तेरे पास कोई कामधाम नहीं है क्या, जो दिनभर इधर ही भटकता रहता है?’’

यह सुन कर नाथू सकपकाया तो लेकिन जल्दी ही खुद को संभाल कर बोला, ‘‘मेरे पास बहुत काम है काका. काम के लिए ही तो अणछी को बुलाने आया था.’’

‘‘ठीक है, ऐसा कर तू अणछी की जगह किसी और को बुला ले. अब अणछी तेरे साथ नहीं जाएगी. और हां, अब तू इधर दिखाई भी मत देना, वरना मुझ से बुरा कोई और नहीं होगा.’’

किशन सिंह की इस धमकी से नाथू सिंह घबरा गया. वह समझ गया कि उन के संबंधों की जानकारी बूढे़ को हो गई है. वह उदास हो गया. क्योंकि अणछी से मिलना अब उस के लिए मुश्किल हो गया था. जब अणछी से मिले कई दिन हो गए तो वह परेशान रहने लगा. दूसरी ओर प्रेमी से न मिल पाने की वजह से अणछी भी बेचैन रहने लगी थी. वह समझ नहीं पा रही थी कि प्रेमी से कैसे मिले. एक दिन मायके जाने के बहाने अणछी घर से निकली और सीधे प्रेमी नाथू सिंह के घर जा पहुंची. न जाने कैसे इस बात की भनक उस के ससुर किशन सिंह को लग गई. वह सीधे नाथू सिंह के घर पहुंचा और पूरी बात नाथू सिंह के पिता हिम्मत सिंह को बताई.

हिम्मत सिंह ने नाथू सिंह को डांटाफटाकारा ही नहीं, पिटाई भी की. इस के बाद नाथू सिंह और अणछी का मेलमिलाप एकदम बंद हो गया. लेकिन यह ज्यादा दिनों तक चल नहीं सका, क्योंकि दोनों ही एकदूसरे से मिले बिना रह नहीं सकते थे. मुलाकात को आसान करने के लिए नाथू सिंह ने एक मोबाइल फोन खरीद कर अणछी को दे दिया. इस के बाद उन के बीच रात में घंटोंघंटों बातें होने लगीं. चूंकि बात दोनों के परिवारों के सभी लोगों को पता चल चुकी थी, इसलिए वे जब भी मिलते, काफी चोरीछिपे मिलते थे. ऐसे में अणछी और नाथू सिंह को अपने ही दुश्मन लगने लगे थे. अणछी पर नजर रखने के लिए किशन सिंह उस के मकान के बाहर बाड़े में सोने लगा था.

22 जुलाई, 2014 की शाम किशन सिंह बाड़े में सोने आया तो अणछी और उस के बीच काफी कहासुनी हुई. गुस्से में किशन सिंह ने अणछी के साथ गालीगलौज की. तब गुस्से में अणछी ने नाथू सिंह को फोन कर के किशन सिंह को खत्म करने के लिए कह दिया. अणछी के प्यार में अंधा नाथू सिंह ठीक साढ़े 12 बजे ढीमड़ी पहुंच गया और दबे पांव अणछी के कमरे में जा पहुंचा. इस के बाद दोनों ने सलाहमशविरा कर के रात ठीक 3 बजे गहरी नींद में सो रहे किशन सिंह के सिर पर लाठियां बरसा कर उसे खत्म कर दिया. उस के चेहरे को भी पत्थर से कुचल दिया.

किशन सिंह की हत्या करने के बाद दोनों ने शारीरिक संबंध बनाए, सुबह होने से पहले नाथू सिंह अपने घर चला गया. सवेरा होने पर किशन सिंह की हत्या की जानकारी शंभू सिंह को हुई तो उस ने पुलिस को फोन कर के घटना की सूचना दे दी. पुलिस ने वह लाठी और पत्थर बरामद कर लिया था, जिस से किशन सिंह की हत्या की गई थी. पूछताछ और सुबूत जुटाने के बाद थाना खमनेर पुलिस ने नाथू सिंह और अणछी को राजसमंद की अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. Rajasthan News

—कथा पुलिस सूत्रों पर आध

UP Crime News: ईंट से लगातार प्रहार कर ली पत्नी की जान

UP Crime News: घरपरिवार और समाज की बंदिशें तोड़ कर बबलू ने शादीशुदा रूबी से प्रेमविवाह किया था. 2 बच्चों के मांबाप दोनों के बीच ऐसी कौन सी वजह पैदा हो गई कि बबलू को पत्नी का हत्यारा बनना पड़ा…

थाना बर्रा के रहने वाले विशाल रफूगर ने सीटीआई नहर के करीब से बहने वाले नाले में बोरे में भरी एक युवती की लाश देखी, जिस का सिर बाहर निकल गया था. उस का क्षतविक्षत चेहरा साफ दिखाई दे रहा था, जिसे चीलकौए नोचनोच कर खा रहे थे. विशाल ने शोर मचाया तो देखतेदेखते वहां भीड़ एकत्र हो गई. किसी राहगीर ने सीटीआई के पास वाले नाले में एक महिला की लाश पड़ी होने की सूचना 100 नंबर पर दे दी. पुलिस कंट्रोल रूम से यह सूचना थाना गोविंदनगर को दी गई. थाना गोविंदनगर की पुलिस आई जरूर लेकिन शव थाना बर्रा क्षेत्र में पड़े होने की बात कह कर लौट गई. नतीजतन 2 घंटे तक लाश नाले में पड़ी रही.

मामला पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों की जानकारी में आया तो एसपी (पूर्वी) हरीशचंदर, सीओ (गोविंदनगर) ओमप्रकाश सिंह थाना बर्रा पुलिस के साथ मौके पर पहुंचे. पुलिस ने साक्ष्य एकत्र करने के लिए फोरेंसिक टीम को भी फोन कर के मौके पर बुला लिया था. पुलिस ने लाश वाले बोरे को नाले से बाहर निकाला. बोरे से लाश निकलवा कर निरीक्षण शुरू हुआ. मृतका की उम्र 30-35 साल रही होगी. वह नीले रंग की सलवार, हरे रंग की लैगिग, लाल कुरता, गुलाबी रंग का स्वेटर पहने थी. उस के पैर की अंगुलियों में बिछिया थीं. दाएं हाथ पर बबलू और ॐ गुदा हुआ था. कपड़ों और रूपरंग से लग रहा था कि मृतका किसी अच्छे परिवार से रही होगी.

शव देख कर ही लग रहा था कि किसी धारदार हथियार से उस की गरदन काटी गई थी. पहचान छिपाने के लिए मृतका का चेहरा बुरी तरह कुचला गया था. यही नहीं, उस के चेहरे पर तेजाब भी डाला गया था. हत्यारों ने मृतका के स्तन और अन्य कोमल अंगों पर भी गंभीर चोटें पहुंचाई थीं. इस से यही अंदाजा लगाया गया कि महिला की हत्या घृणा एवं क्रोध में की गई थी. घटनास्थल की काररवाई पूरी करने के बाद पुलिस ने शव को पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दिया.

अज्ञात लोगों के खिलाफ हत्या का केस दर्ज करने के बाद थाना बर्रा के प्रभारी रामबाबू सिंह उसे अज्ञात महिला के शव की शिनाख्त कराने में जुट गए. आननफानन में शहर के सभी थानों से गुमशुदा महिलाओं की दर्ज सूचनाएं एकत्र कराई गईं. लेकिन शहर के थानों में दर्ज अज्ञात महिलाओं की गुमशुदगी की जानकारियों से मृतका का कोई सुराग नहीं मिल सका.  6 फरवरी को अचानक किसी ने पुलिस को फोन कर के सूचना दी कि 3 फरवरी, 2015 को सीटीआई नहर के पास नाले में मिली लाश कानपुर के सीसामऊ के रहने वाले बबलू की पत्नी रूबी की है. उस की हत्या में उस के पति बबलू की मुख्य भूमिका है. इसीलिए उस ने थाने में अपनी पत्नी रूबी की गुमशुदगी दर्ज नहीं करवाई.

इस सूचना की पुष्टि करने के लिए थानाप्रभारी रामबाबू सिंह पुलिस टीम के साथ सीसामऊ स्थित बबलू के घर जा पहुंचे. लेकिन वहां ताला लटका हुआ था. मामले की तह तक पहुंचने के लिए उन्होंने बबलू के पड़ोसियों से पूछताछ की. मोहल्ले वालों ने बताया कि जितेंद्र शुक्ला उर्फ बबलू किसी बैंक में चपरासी है. उस की पत्नी रूबी का चालचलन ठीक नहीं था. बबलू की गैरमौजूदगी में उस के घर कई लोग आतेजाते थे. एक बार बबलू ने रूबी को एक युवक के साथ घर में रंगरलियां मनाते हुए रंगेहाथों पकड़ लिया था. जिस के बाद मारपीट हुई थी और मामला थाने तक जा पहुंचा था. लेकिन रूबी अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रही थी. बबलू से उसे बच्चे थे, जिन के मोह की वजह से वह रूबी को छोड़ना नहीं चाहता था और उसे समझाबुझा कर लाइन पर लाना चाहता था.

लेकिन रूबी पर बबलू की बातों का कोई असर नहीं हो रहा था. वह बबलू के पीछे खुल कर रंगरलियां मनाती थी, जिस से वह काफी परेशान था. अचानक 31 जनवरी की रात को पता नहीं क्या हुआ कि रूबी और उस के बच्चे गायब हो गए. बबलू भी अपने घर पर ताला डाल कर कहीं चला गया. अब उस ने सिर मुड़वा लिया है और कभीकभी चोरीछिपे अपने घर आता है. मोहल्ले वालों से पूछताछ में यह बात भी सामने आई थी कि रूबी के हाथ पर बबलू का नाम और ‘ॐ’ गुदा हुआ था. इस से यह बात साफ हो गई कि सीटीआई नहर के पास नाले में मिली लाश रूबी की ही थी. मोहल्ले वालों से मिली जानकारी से पुलिस को पक्का विश्वास हो गया था कि रूबी की हत्या उस के पति बबलू ने ही करवाई है.

मोहल्ले वालों से मिली जानकारी के आधार पर पुलिस लाश की शिनाख्त करवाने के लिए वनखंडेश्वर मंदिर, पीरोड पहुंची. वहां से पुलिस मंदिर के पुरोहित गणेशशंकर जोशी को हिरासत में ले कर थाना बर्रा लौट आई. थाने ला कर गणेशशंकर जोशी को मृतका की लाश के फोटो और कपड़े दिखाए गए. सारी चीजें देखने के बाद बबलू के पिता गणेशशंकर ने पुलिस को बताया कि लाश उस की बहू रूबी की ही है. लाश की शिनाख्त होने के बाद पुलिस ने गणेशशंकर जोशी से रूबी की हत्या की सच्चाई जानने का प्रयास किया.

जोशी ने बताया कि उस के 2 बेटे हैं, बबलू और धर्मेंद्र. बबलू बैंक औफ बड़ौदा, पनकी में चपरासी था. उस के 2 बच्चे थे 11 वर्षीय बेटा शिवा और 9 साल की बेटी प्रियंका. वह स्वयं वनखंडेश्वर मंदिर, थाना बजरिया से पुरोहितगीरी करते थे और वहीं एक कमरे में रहते थे. करीब 12 वर्ष पहले जितेंद्र उर्फ बबलू ने रूबी से प्रेमविवाह किया था. इसलिए उस ने उस के साथ अपने संबंध तोड़ लिए थे. बबलू अपनी पत्नी रूबी को ले कर 104/313 बड़ा चौराहा, सीसामऊ में रहता था. उस का घर आनाजाना बहुत कम था. 31 जनवरी को बबलू रात 10 बजे के लगभग अपने दोनों बच्चों को ले कर उस के पास आया था और यह कह कर उन्हें रखने को कहा था कि उस के ऊपर एक बड़ी मुसीबत आ पड़ी है.

उस ने बताया कि रूबी बैंक से रुपए निकाल कर घरगृहस्थी का सामान खरीदने के लिए शाम 4 बजे सीसामऊ बाजार के लिए निकली थी. लेकिन इतनी रात होने पर भी वह वापस नहीं आई थी.  उस ने पूरे कानपुर में छानबीन कर डाली, लेकिन उस का कहीं पता नहीं चला. शायद वह चेन्नई चली गई हो. वह अपने छोटे भाई धर्मेंद्र को ले कर उसे ढूंढने चेन्नई गया है. इस के अलावा रूबी की हत्या के बारे में उसे कोई जानकारी नहीं है.

गणेशशंकर से पुलिस को जो भी जानकारी मिली, उस से पुलिस को पक्का विश्वास हो गया कि बबलू रूबी की हत्या के बारे में अच्छी तरह जानता है. यह भी संभव था कि वह खुद भी हत्या में शामिल हो या फिर उस ने हत्या अन्य लोगों से करवाई हो? इसी कारण बबलू पुलिस के सामने आने में डर रहा है. पुलिस मृतका के पति जितेंद्र उर्फ बबलू की तलाश में जगहजगह दबिश देने लगी. पुलिस ने हत्या का खुलासा जल्द से जल्द करने के लिए बबलू के मिलने के संभावित स्थानों पर छापे डाले, लेकिन वह पुलिस की पकड़ में नहीं आया. मजबूर हो कर पुलिस ने बजरिया थाना क्षेत्र में अपने मुखबिरों का जाल बिछा दिया.

9 फरवरी, 2015 की सुबह पुलिस को सूचना मिली कि रूबी का पति बबलू शास्त्री चौक के पास किसी के इंतजार में खड़ा है. सूचना मिलते ही थान बर्रा पुलिस ने बबलू को घेर कर पकड़ लिया और पूछताछ के लिए थाने ले आई. उस से पूछताछ शुरू हुई तो वह काफी देर तक पुलिस को बरगलाता रहा. लेकिन जब उस से कड़ाई से पूछताछ की गई तो वह टूट गया. उस ने जो कुछ बताया, वह इस तरह था.

जितेंद्र उर्फ बबलू 104/312 बड़ा चौराहा, सीसामऊ, थाना बजरिया, कानपुर में रहता था. वह बैंक औफ बड़ौदा में चपरासी था. करीब 12 साल पहले चंद मुलाकातों में ही उसे विजयनगर, कानपुर निवासी छोटे की पत्नी रूबी से प्यार हो गया था. धीरेधीरे जितेंद्र उर्फ बबलू और रूबी का प्यार ऐसे मुकाम पर पहुंच गया कि दोनों को एकदूसरे की दूरी खलने लगी. फलस्वरूप बबलू और रूबी ने घरपरिवार और सामाजिक मानमर्यादाओं को ताक पर रख कर घर से भाग कर प्रेमविवाह कर लिया. कुछ महीने लुकछिप कर रहने के बाद दोनों सीसामऊ मोहल्ले में खुल कर पतिपत्नी बन कर रहने लगे. कालांतर में दोनों के शिवा और प्रियंका 2 बच्चे हुए.

कुछ सालों तक रूबी ईमानदारी से जीवन जीती रही. उस के बाद उस के कदम बहकने लगे. उस ने पति की गैरमौजूदगी का लाभ उठा कर मोहल्ले के कुछ युवकों से अवैध संबंध बना लिए और घर में रंगरलियां मनाने लगी. इस से मोहल्ले में तरहतरह की चर्चाएं होने लगीं. जब पत्नी की चरित्रहीनता और नएनए लड़कों के साथ गुलछर्रे उड़ाने की खबर बबलू को हुई तो सच्चाई जानने के लिए एक दिन वह अपनी बैंक ड्यूटी छोड़ कर घर आ गया. घर में उस ने रूबी को मोहल्ले के एक युवक के साथ रंगरलियां मनाते हुए रंगेहाथों पकड़ लिया.

उस दिन उस ने रूबी को जम कर मारापीटा और भविष्य में ऐसी कोई हरकत न करने की सख्त हिदायत दी, लेकिन इस से रूबी के चालचलन में कोई बदलाव नहीं आया. यह देख कर बबलू को रूबी से नफरत हो गई. बच्चों का भविष्य बरबाद न हो, यह सोच कर बबलू रूबी को हर तरह से समझाबुझा कर रास्ते पर लाने का प्रयास किया कि वह ईमानदारी भरा जीवन गुजारे, लेकिन रूबी पर इस का कोई असर नहीं हुआ. नतीजतन घरपरिवार और रिश्तेदारों के बीच बबलू की बदनामी होने लगी. दूसरी ओर रूबी स्वयं पर अंकुश लगाने को ले कर सख्त होने लगी और पति को मुंह पर जवाब देने लगी, जिस के चलते बबलू और रूबी में 2 बार जम कर मारपीट हुई.

रूबी ने इस की शिकायत थाने में की. लेकिन पुलिस ने इसे पतिपत्नी का मामला मान कर दोनों को समझाबुझा कर लौटा दिया. तीसरी बार बबलू ने बाहरी लड़कों को घर में बैठाने को ले कर रूबी को जम कर पीटा. इस बार भी पुलिस ने रूबी का पक्ष लिया और सही न्याय करने के बजाय दोनों का समझौता करा दिया. इस समझौते में तय हुआ कि रूबी अपने बच्चों के साथ अलग रहेगी और बबलू उसे 4 हजार रुपए महीने खर्च देगा. इस के बाद रूबी बबलू से 4 हजार रुपए प्रति माह लेती रही. इस के बाद रूबी ने बबलू को अपने पास रहने के लिए मजबूर कर दिया. इस तरह रूबी हर महीने बंधीबंधाई रकम ले कर पत्नी की तरह बबलू के साथ रहती भी रही और उसे पुलिस का डर दिखा कर पूरी तरह अपने कब्जे में किए रही. जरा भी कोई बात होती तो वह उसे जेल भिजवाने की धमकी दे देती.

इस सब के चलते बबलू गहरे तनाव में रहने लगा. इस स्थिति का फायदा उठा कर रूबी खुल कर मनमानी करने लगी. इतना ही नहीं, अब वह अपने चाहने वालों से पति के सामने ही मिलनेजुलने लगी. बबलू से जब पत्नी की हरकतें सही नहीं गईं तो उस ने रूबी को अपनी जिंदगी से हटाने का इरादा बना लिया. जितेंद्र शुक्ला उर्फ बबलू ने गोविंदनगर निवासी अपने खास दोस्त राधेश तिवारी से अपनी पत्नी रूबी की अय्याशी के बारे में पूरी बात बता कर कहा कि अब उस से रूबी की हरकतें बरदाश्त नहीं होतीं. घर में मेरी स्थित एक भड़ुए जैसी हो गई है. उस के कारनामे मुझ से देखे नहीं जा रहे हैं. मैं उस से अपना पिंड छुड़ाना चाहता हूं. वह उसे बातबात में जेल भिजवाने की धमकी देती है, अब वह उस की हत्या कर के ही जेल जाना चाहता है. बबलू की बात सुन कर राधेश तिवारी उस की मदद के लिए तैयार हो गया.

राधेश तिवारी समाचार पत्र विके्रता था. उस की काफी दूरदूर तक अच्छी जानपहचान थी. राधेश तिवारी ने गोविंदनगर में रहने वाले पेशेवर हत्यारे शुभम मौर्य से जितेंद्र जोशी उर्फ बबलू की मुलाकात करवा कर बातचीत करवाई. शुभम मौर्य से रूबी की हत्या का सौदा 30 हजार रुपए में तय हो गया. बबलू ने शुभम मौर्य को रूबी की हत्या के लिए 25 हजार रुपए एडवांस दे दिए. शेष 5 हजार रुपए रूबी की हत्या के बाद देना तय हुआ. योजना के मुताबिक, 31 जनवरी, 2015 की रात 10 बजे के लगभग राधेश तिवारी, शुभम मौर्य व उस का साथी विजय उर्फ पुच्ची बबलू के घर आ गए.

चारों ने घर पर ही देर रात तक शराब पी. उसी दौरान शुभम मौर्य के इशारे पर बबलू अपने बेटे शिवा और बेटी प्रियंका को यह कह कर घर के बाहर ले कर चला गया कि ‘आप लोग बैठो, मैं बच्चों को बाजार से नाश्ता दिलवा कर जल्द वापस आता हूं. जैसे ही बबलू बच्चों को ले कर घर से बाहर गया, शुभम मौर्य, राधेश तिवारी और विजय कमरे में बैठी रूबी के पास पहुंच गए और उसे दबोच कर उस का मुंह दबा लिया. विजय उस के सिर पर ईंट से वार करने लगा. विजय रूबी के सिर पर तब तक ईंट मारता रहा, जब तक वह मरणासन्न नहीं हो गई. इस के बाद विजय ने सूजे से रूबी के गले को बुरी तरह से गोद दिया.

बबलू बच्चों को पिता के घर छोड़ कर पुन: लौट आया. तब तक रूबी मर चुकी थी. योजना के मुताबिक रूबी की लाश की शिनाख्त मिटाने के लिए उस के चेहरे पर ईंटें मारमार कर बुरी तरह से कुचल दिया गया. चेहरे की शिनाख्त किसी परिस्थितियों में न हो सके, इस के लिए उस के चेहरे पर तेजाब भी डाला गया. इस के बाद रूबी के क्षतविक्षत शव को आननफानन में वाटरपू्रफ बोरे में भर कर अच्छी तरह सिल दिया गया. लाश को ठिकाने लगाने के लिए रात के अंधेरे में शुभम मौर्य फरजी नंबर की अपनी स्कूटी पर रूबी के लाश वाले बोरे को लाद कर विजय के साथ चला गया और उस बोरे को सीटीआई नहर के पास नाले में फेंक कर अपने घर चला गया.

जितेंद्र उर्फ बबलू ने पुलिस को बताया कि वह रूबी के मोहल्ले के लड़कों के साथ अवैधसंबंधों से त्रस्त था. रूबी तृप्ति इतनी कामांध हो गई थी कि समझाने के बाद भी वह नहीं मानती थी. इसलिए उस के सामने उस की हत्या करने के अलावा और कोई रास्ता नहीं बचा था. इसलिए 30 हजार रुपए की सुपारी दे कर उस ने उस की हत्या करवा दी थी. पुलिस बबलू को अपने साथ गोविंदनगर के ब्लाक नंबर 10 ले गई. उस की निशानदेही पर राधेश तिवारी, विजय उर्फ पुच्ची, शुभम मौर्य को गिरफ्तार कर लिया गया. साथ ही लाश को ठिकाने लगाने में इस्तेमाल की गई स्कूटी, मृतका और उस के पति बबलू के मोबाइल भी बरामद कर लिए गए.

पूछताछ के बाद जांच अधिकारी ने उपर्युक्त चारों अभियुक्तों को भादंवि. की धारा 302, 201, 120बी के अंतर्गत चालान तैयार कर अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. इस तरह रूबी की बदचलनी की वजह से एक परिवार बरबाद हो गया. UP Crime News

— कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

UP News: रिश्तों की कच्ची डोर

UP News: घर वालों ने मनोज की शादी कर के सोचा था कि पत्नी के आने पर वह अपनी भाभी के प्रेमजाल से निकल जाएगा. लेकिन क्या ऐसा हो पाया? त्तर प्रदेश के जिला गाजियाबाद के कस्बा मोदीनगर के निकट गांव सीकरी खुर्द में हर साल चैत महीने की नवरात्र में एक विशाल मेला लगता है. इस मेले में आसपास के लोग तो आते ही हैं, अगलबगल के जिलों के भी काफी लोग आते हैं. उसी मेले में मेरठ के थाना रसूखपुर जाहिद का रहने वाला मनोज भी पत्नी संगीता और बेटी अनुष्का के साथ मेला देखने जाना चाहता था. इसलिए उस ने संगीता से कहा, ‘‘संगीता, कल सुबह जल्दी तैयार हो जाना, हम सीकरी का मेला देखने चलेंगे.’’

मनोज संगीता से अकसर लड़नेझगड़ने के साथ मारपीट करता रहता था, इसलिए संगीता ने कहा, ‘‘मुझे तुम्हारे साथ कहीं नहीं जाना है, मैं ऐसे ही ठीक हूं. मुझे मेलाठेला देखने का शौक नहीं है.’’

‘‘तुम भी जराजरा सी बात का बतंगड़ बना देती हो. अरे रात गई बात गई. रात में जो हुआ, उसे भूल जाओ. एक ओर तो कहती हो कि मैं तुम्हारे लिए कुछ करता नहीं, तुम्हें कहीं ले नहीं जाता. अब चलने को कह रहा हूं तो नखरे दिखा रही हो.’’ मनोज ने संगीता की खुशामद करते हुए कहा. संगीता कुछ कहती, उस के पहले ही मनोज की मां यानी संगीता की सास शकुंतला ने कहा, ‘‘अरे इतने प्यार से कह रहा है तो चली जा , मेला ही दिखाने तो ले जा रहा है. कुएं में धकेलने थोड़े ही ले जा रहा है.’’

‘‘इन का क्या भरोसा. मेला दिखाने के बहाने ले जा कर कहीं कुएं में ही धकेल दें. लेकिन आप कह रही हैं, इसलिए चली जाती हूं. कितने बजे निकलना है?’’ संगीता ने पूछा.

  ‘‘9 बजे तक निकलेंगे. नहाधो कर आराम से तैयार हो जाना.’’ मनोज ने कहा.

 अगले दिन रविवार था. संगीता ने बेटी अनुष्का को भी तैयार किया और खुद भी तैयार हो गई. मनोज तैयार ही बैठा था. पत्नी और बेटी को ले कर वह बस से मोदीनगर के लिए रवाना हो गया. मोदीनगर के सीकरी खुर्द पहुंच कर दिन भर वह संगीता के साथ मेले में घूमता रहा. इस बीच मनोरंजन के साथसाथ घर के लिए कुछ खरीदारी भी की. छुट्टी का दिन होने की वजह से मेले में भीड़भाड़ ज्यादा थी, डेढ़ साल की बेटी अनुष्का को मनोज खुद ही लिए था. अंधेरा होने लगा तो मनोज घर लौटने की तैयारी करने लगा. उस ने संगीता से मेले से बाहर चलने को कहा. वह तो बेटी को ले कर मेले के बाहर गया, लेकिन संगीता नहीं पाई.

कुछ देर बाहर खड़े हो कर मनोज ने संगीता का इंतजार किया. जब काफी देर तक संगीता नहीं आई तो वह उसे तलाशने के लिए फिर मेले में घुस गया. काफी देर तक वह उसे ढूंढ़ता रहा. जब रात ज्यादा होने लगी तो उस ने इस बात की जानकारी घर वालों के साथ ससुराल वालों को दी. रात ज्यादा हो गई थी और बेटी रो रही थी, इसलिए वह पत्नी के मेले में खो जाने की सूचना थाना पुलिस को दिए बगैर ही घर गया. लेकिन अगले दिन सवेरा होते ही वह थाना मोदीनगर पहुंचा और पत्नी की गुमशुदगी दर्ज करा दी.

मनोज ने संगीता के मेले में खो जाने की जानकारी ससुराल वालों को भी दे दी थी. इसलिए अगले दिन संगीता के पिता जयपाल सिंह भी थाना मोदीनगर पहुंच गए थे. लेकिन उन के पहुंचने तक मनोज संगीता की गुमशुदगी दर्ज करा कर जा चुका था. जयपाल सिंह ने थानाप्रभारी दीपक शर्मा से मिल कर बेटी के गायब होने का आरोप उस की ससुराल वालों पर लगाते हुए एक प्रार्थना पत्र दिया, जिस के आधार पर थानाप्रभारी ने संगीता के पति मनोज सिंह तथा उस के घर वालों के खिलाफ अपराध संख्या 237/2014 पर भादंवि की धाराओं 498, 420 एवं 364 के तहत मुकदमा दर्ज करा कर इस मामले की जांच सबइंसपेक्टर रोशन सिंह को सौंप दी. चूंकि रिपोर्ट नामजद दर्ज थी, इसलिए सबइंसपेक्टर रोशन सिंह ने मनोज के घर छापा मारा.

शायद रिपोर्ट दर्ज होने की जानकारी मनोज और उस के घर वालों को हो गई थी, इसलिए घर पर कोई नहीं मिला. पूरा परिवार भूमिगत हो गया था. फिर भी कोशिश कर के किसी तरह उन्होंने मनोज को हिरासत में ले ही लिया. उसे थाने ला कर पूछताछ शुरू हुई. पहले तो मनोज यही कहता रहा कि संगीता मेले में कहीं खो गई है. लेकिन जब पुलिस ने सख्ती के साथ सवालों की झड़ी लगा दी तो पुलिस के सवालों के जाल में फंसे मनोज ने स्वीकार कर लिया कि उस ने संगीता की हत्या कर के उस की लाश नहर में फेंक दी है. इस के बाद उस ने संगीता की हत्या के पीछे की जो कहानी सुनाई, वह कुछ इस प्रकार थी.

उत्तर प्रदेश के जिला मेरठ के थाना सरूरपुर खुर्द के गांव रसूखपुर जाहिद में रहते थे देवकरण सिंह. उन के पास मात्र 5 बीघा खेती की जमीन थी, जिस पर वह परिवार की मदद से मेहनत से खेती करते थे. यही खेती उन की आजीविका का साधन थी. इसी की कमाई से परिवार का गुजरबसर होता था. देवकरण सिंह के परिवार में पत्नी शकुंतला के अलावा 2 बेटे, सुरेश और मनोज थे. सुरेश ज्यादा पढ़लिख नहीं सका तो पिता के साथ खेती के कामों में मदद करने लगा. पढ़ालिखा तो मनोज भी ज्यादा नहीं था, लेकिन खेती के काम में उस का मन नहीं लगा. उस ने भी पढ़ाईलिखाई छोड़ दी तो देवकरण सिंह ने उसे गांव में ही जनरल स्टोर की दुकान खुलवा दी, जिसे वह अकेला ही संभालता था.

 देवकरण सिंह ने मरने से पहले अपने बड़े बेटे सुरेश की शादी बुलंदशहर के कस्बा स्यान के रहने वाले क्षेत्रपाल सिंह की बेटी शशि से कर दी थी. शशि तीखे नैननक्श वाली खूबसूरत लड़की थी. इसलिए आते ही उस ने ससुराल के सभी लोगों का मन मोह लिया था. वह व्यवहारकुशल के साथसाथ घर के कामों में भी निपुण थी, इसलिए घर का हर आदमी उस से खुश रहने लगा था. इस के बाद जल्दी ही गांव में उस के रूप और गुण की चर्चा होने लगी.

शशि के आगे उस का पति सुरेश कहीं नहीं ठहरता था. सुरेश को भी इस बात का अहसास था. शशि और सुरेश को देख कर कोई अंधा भी कह सकता था कि लंगूर के हाथ अंगूर लगने वाली कहावत यहां पूरी तरह चरितार्थ हो रही है. शशि को अपनी सुंदरता पर गुमान था, इसलिए अपनी उसी सुंदरता के बल पर वह पति सुरेश पर पहले ही दिन से हावी हो गई थी. शशि को सुरेश बिलकुल पसंद नहीं था, लेकिन अब वह कर भी क्या सकती थी. घर वालों ने ब्याह दिया था, इसलिए तकदीर मान कर उस ने उसे गले लगा लिया था. उस ने जैसेतैसे उस के साथ निर्वाह करने का मन बना लिया था. जिस दिन उस ने ससुराल में कदम रखा था, उसी दिन से वह देख रही थी कि उस का देवर मनोज उस का कुछ ज्यादा ही खयाल रखता था.

वह जब भी घर में अकेली होती, मनोज उसे चाहत भरी नजरों से ताकते हुए उस के आगेपीछे नाचता रहता. शुरुआत में तो शशि को लगा कि वह नईनई आई है, इसलिए आकर्षणवश मनोज उस के आगेपीछे घूमता है. लेकिन जब मौका मिलने पर मनोज उस से छेड़छाड़ करने लगा तो शशि को समझते देर नहीं लगा कि उस का प्यारा देवर क्या चाहता है. क्योंकि अब वह बच्ची नहीं रही थी कि मनोज के दिल की बात समझती.

सच भी है, जो बातें जुबान नहीं कह पाती, आंखें उन्हें इशारोंइशारों में कह देती हैं. मनोज भी भले ही दिल की बात मुंह से नहीं कह सका था, लेकिन आंखों ने इशारोंइशारों में कह दिया था. शशि को भी मनोज अच्छा लगता था, क्योंकि वह बड़े भाई सुरेश से काफी ठीकठाक था. लेकिन वह मन की बात देवर से कह नहीं सकती थी. इसलिए वह चाहती थी कि पहल देवर ही करे. इस के लिए वह मनोज को देख कर अकसर मुसकराती तो रहती ही थी, उस की हंसीमजाक और छेड़छाड़ का जवाब भी उसी के अंदाज में देती थी.

समझदार के लिए इशारा काफी होता है. मनोज भी जवान हो चुका था. स्त्रीसुख के लिए बेचैन भी रहता था. इसलिए भाभी की ओर से इशारा मिला तो एक दिन दोपहर में जब घर में शशि और उस के अलावा कोई और नहीं था तो उचित मौका देख कर वह शशि के कमरे में घुस गया. उसे अपने कमरे में देख कर शशि ने कहा, ‘‘इस समय तो तुम्हें दुकान पर होना चाहिए, यहां मेरे कमरे में क्या कर रहे हो?’’

‘‘तुम से एक बात कहनी थी, इसलिए दुकान छोड़ कर चला आया.’’

‘‘कहो, क्या कहना है?’’ शशि ने मुसकराते हुए पूछा.

‘‘भाभी, तुम मुझे बहुत अच्छी लगती हो.’’

‘‘सिर्फ अच्छी लगती हूं, और कुछ नहीं?’’

शशि ने यह कहा तो मनोज का हौसला बढ़ा. उस ने कहा, ‘‘भाभी, अच्छा लगने का मतलब है कि मैं तुम से प्यार करता हूं.’’

‘‘तो करो प्यार, मना किस ने किया है. मैं तो कब से तुम्हारे मुंह से यह बात सुनने का इंतजार कर रही हूं. क्योंकि मुझे तो बहुत पहले ही तुम्हारे दिल की बात का पता चल गया था. मैं इशारे भी कर रही थी. इस के बावजूद तुम ने यह बात कहने में इतने दिन लगा दिए.’’

‘‘तुम्हारे इशारों की वजह से ही तो हिम्मत कर सका हूं. नहीं तो किसी की पत्नी से भला यह कहने की हिम्मत कहां थी.’’ कह कर मनोज ने शशि का हाथ पकड़ा तो वह उस की बांहों में समा गई.

 मनोज ने शशि को बांहों में भर लिया. इस के बाद देवरभाभी का पवित्र रिश्ता कलंकित होने से कैसे बच सकता था. रिश्तों की परिभाषा बदली तो आयाम भी बदल गए. एक ही घर में रहने की वजह से मर्यादा तोड़ने में दिक्कत भी नहीं होती थी. घर वालों के खेतों पर जाते ही देवरभाभी पतिपत्नी बन जाते. यह ऐसा काम है, जिसे लोग करते तो बहुत चोरीछिपे हैं, इस के बावजूद लोगों की नजरों में ही जाता है. मनोज और शशि के मामले में भी ऐसा ही हुआ. घर वालों को जब मनोज और शशि के बदले संबंधों की जानकारी हुई तो दोनों को रोकने की कोशिश शुरू कर दी गई. इसी के मद्देनजर फैसला लिया गया कि अब जितनी जल्दी हो सके, मनोज की शादी कर दी जाए. पत्नी के आने से वह शशि से संबंध तोड़ लेगा.

शादी की बात रिश्तेदारों के बीच पहुंची तो दौराला के गांव पनवाड़ी के रहने वाले जयपाल सिंह बड़ी बेटी संगीता का रिश्ता ले कर उस के यहां पहुंच गए. बातचीत के बाद शादी तय हो गई. 25 जनवरी, 2012 को मनोज और संतीगा का विवाह भी हो गया. संगीता दुलहन बन कर रसूलपुर गई. मनोज की शादी पर शशि ने खूब हंगामा किया. लेकिन मनोज ने कहा था कि कुछ ही दिनों की तो बात है, बाद में सब ठीक हो जाएगा तो वह मान गई थी. संगीता के ससुराल आने के बाद कुछ दिनों तक तो सब ठीकठाक रहा, लेकिन अचानक मनोज संगीता में कमियां निकालने लगा. यही नहीं, कम दहेज लाने के ताने मार कर उस के साथ मारपीट भी करने लगा. इस बात में घर वाले भी उस का साथ दे रहे थे, खासकर शशि.

शुरूशुरू में तो संगीता की समझ में नहीं आया कि अचानक मनोज को ऐसा क्या हो गया कि उस में उसे इतनी सारी कमियां नजर आने लगीं. लेकिन जैसे घर वालों को देवरभाभी के रिश्ते की जानकारी हो गई थी, उसी तरह कुछ दिनों में संगीता को भी पति की असलियत का पता चल गया था. दरअसल एक दिन उस ने पति को भाभी के साथ रंगरलियां मनाते देख लिया था. संयोग से अब तक संगीता एक बेटी अनुष्का की मां बन चुकी थी. उसे लग रहा था कि बेटी का मुंह देख कर ही शायद मनोज का व्यवहार बदल जाए, लेकिन जब उस ने देवरभाभी को रंगेहाथों पकड़ लिया तो समझ गई कि अब कुछ नहीं हो सकता.

 मनोज लगातार संगीता पर मायके से 50 हजार रुपए नगद, अंगूठी और फ्रिज लाने की बात कह कर जुल्म ढा रहा था. 1 मार्च, 2013 को मनोज और उस के घर वालों ने संगीता को मायके भेज दिया और साफसाफ कह दिया कि जितना कहा जा रहा है, उतना सामान और रुपए ले कर ही वह ससुराल आएं, तभी उसे रहने दिया जाएगा. जयपाल ने पंचायत में गुहार लगाई. 24 जून, 2013 को गांव में हुई पंचायत ने फैसला किया कि भविष्य में मनोज के घर वाले कोई दानदहेज नहीं मांगेगे और संगीता को ठीक से रखेंगे. उसे परेशान नहीं करेंगे. समझौते के बाद 2-3 महीने तक तो मनोज और उस के घर वालों ने संगीता को कुछ नहीं कहा. उस के बाद वे अपनी पुरानी हरकतों पर उतर आए.

संगीता मायके वालों से शिकायत करती और वे कुछ करते, उस के पहले ही 6 अप्रैल, 2014 को मनोज ने ससुर जयपाल सिंह को फोन कर के बताया कि संगीता सीकरी के मेले से गायब हो गई है. हैरानपरेशान जयपाल सिंह बेटों के साथ थाना मोदीनगर पहुंचे और मनोज तथा उस के घर वालों के खिलाफ दहेज उत्पीड़न, अपहरण और हत्या का आरोप लगा कर रिपोर्ट दर्ज करा दी. थाना मोदीनगर पुलिस द्वारा की गई पूछताछ में मनोज ने बताया कि पहले से बनाई गई योजना के तहत मेला दिखाने के बहाने वह संगीता को सीकरी खुर्द ले गया. पूरे दिन मेला देखते हुए वह खरीदारी करता रहा. शाम का धुंधलका हो गया तो वह उसे साथ ले कर गंगनहर के चित्तौड़ा पुल की ओर चल पड़ा. तब संगीता ने उस से पूछा, ‘‘इधर कहां जा रहे हो, हमारा घर तो उस ओर है.’’

‘‘यहीं पास के गांव में मेरा एक दोस्त रहता है, इधर आया हूं तो चलो उस से भी मिल लेते हैं.’’ मनोज ने कहा.

इस के बाद संगीता ने कोई सवाल नहीं किया और उस के साथ चल पड़ी. जब संगीता पुल पर पहुंची तो उस ने गोद में ली बेटी को उतार कर खड़ी कर दिया और लापरवाह खड़ी संगीता को एकदम से गिरा दिया. संगीता कुछ कह पाती, उस के पहले ही उस के गले में पड़े दुपट्टे को लपेट कर कस दिया. संगीता छटपटा कर मर गई. संगीता की हत्या कर मनोज ने उस की लाश को गंगनहर में फेंक दिया और वापस गया. उस ने फोन कर के संगीता के गायब होने की सूचना ससुराल वालों को भी दे दी थी और अगले दिन थाने में उस की गुमशुदगी भी दर्ज करा दी थी. लेकिन उस की चालाकी चली नहीं और पकड़ा गया.

अगले दिन मनोज को गाजियाबाद की जिला अदालत में पेश कर के लाश बरामद करने के लिए 3 दिनों के लिए पुलिस रिमांड पर लिया गया. घटनास्थल पर मनोज को ले जा कर पुलिस ने संगीता की लाश बरामद करने की बहुत कोशिश की, लेकिन लाश बरामद नहीं हो सकी. रिमांड अवधि खत्म होने पर मनोज को अदालत में पेश किया गया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. इस के बाद पुलिस ने मनोज के घर वालों को भी गिरफ्तार कर के जेल भेज दिया था. कथा लिखे जाने तक सभी अभियुक्त जेल में बंद थे. पुलिस ने आरोप पत्र दाखिल कर दिया था. UP News

Lucknow Crime : लखनऊ का गौरी हत्याकांड – फेसबुक की फांस

Lucknow Crime : फेसबुक के माध्यम से गौरी से दोस्ती हो जाने के बाद हिमांशु उसे प्यार करने लगा था. एक दिन अपने दिल की बात कहने के लिए उस ने गौरी को अपने घर बुलाया. लेकिन दोनों के बीच ऐसा कुछ हुआ कि दोस्ती टुकड़ों में बिखर गई. इंटरमीडिएट की परीक्षा पास करने के बाद हिमांशु प्रजापति राजस्थान के जोधपुर राष्ट्रीय विश्वविद्यालय से बीकौम कर रहा था. उस ने सोचा था कि बीकौम करने के बाद लखनऊ के किसी कोचिंग सेंटर से पढ़ाई कर के बैंक या उत्तर प्रदेश पुलिस में सबइंसपेक्टर की नौकरी पाने की कोशिश करेगा.

युवाओं का सोशल साइट्स की तरफ झुकाव बढ़ता जा रहा है. हिमांशु भी पढ़ाई के दौरान फेसबुक और वाट्सएप का प्रयोग करने लगा था. जाहिर है, कोई भी व्यक्ति सोशल साइट प्रयोग करता है तो उस की दोस्ती अनेक लोगों से हो जाती है. हिमांशु की दोस्ती भी लखनऊ के ही गणेशगंज मोहल्ले में रहने वाली गौरी श्रीवास्तव से हो गई. 19 साल की गौरी लखनऊ के ही अंबेडकर ला कालेज से एलएलबी की पढ़ाई कर रही थी. उस का सपना था कि वह मजिस्ट्रेट बने. गौरी को अपने नएनए फोटो फेसबुक और वाट्सएप पर अपने दोस्तों से शेयर करने का शौक था. वह हिमांशु को भी अपने फोटो और विचार भेजती रहती थी.

गौरी बेहद खूबसूरत थी, इसलिए हिमांशु उसे बहुत पसंद करता था. वह उस से अपनी दोस्ती और गहरी करना चाहता था. उन की दोस्ती को एक साल बीत गया था लेकिन उन की मुलाकात नहीं हो पाई थी. हिमांशु गौरी से मिलने के लिए आतुर था. उस से मिलने की चाहत में एक बार तो वह सेल्समैन बन कर गौरी के घर भी पहुंच गया था. लेकिन इस बात की भनक गौरी की मां तृप्ता श्रीवास्तव को लग गई तो उन्होंने हिमांशु को घर से भगा दिया.

हिमांशु गौरी से एकांत में मिल कर उसे अपने दिल की बात बताना चाहता था. इसलिए वह किसी भी तरह गौरी से मिलने की योजना बनाने लगा. पहली फरवरी, 2015 को हिमांशु के मातापिता अपने एक रिश्तेदार की शादी में शामिल होने के लिए शहर से बाहर गए थे. हिमांशु ने इस मौके का लाभ उठाने के लिए पढ़ाई का बहाना बना कर उन के साथ जाने से मना कर दिया था. घर वालों के जाने के बाद हिमांशु घर पर अकेला रह गया. उस ने गौरी को फोन कर के कहा, ‘‘गौरी, इस समय मेरे घर पर कोई नहीं है. मैं समझता हूं कि साथ बैठ कर बातचीत करने का हमारे पास यह अच्छा मौका है. मैं चाहता हूं कि तुम मेरे घर आ जाओ.’’

गौरी पहले तो उस के यहां आने में आनाकानी करने लगी लेकिन हिमांशु की जिद पर उस ने हां कर दी. वह बोली, ‘‘ठीक है, तुम मुझे बताओ कि कहां आना है? मैं आ जाऊंगी.’’

‘‘मैं तुम्हारे घर के पास मेनरोड पर मिल जाऊंगा. वहां से हम बाइक से घर चले आएंगे. फिर घर पर ही बैठ कर बातें करेंगे.’’

पहली फरवरी, 2015 को दोपहर करीब 1 बजे गौरी अपने घर से निकली. उसे अपने पिता शिशिर श्रीवास्तव के कपड़े लांड्री में देने थे. लांड्री में कपड़े देने के बहाने वह घर निकली. सब से पहले वह लांड्री में कपड़े देने गई और बाद में उस ने हिमांशु को फोन कर के अपने घर के नजदीक मेनरोड पर पहुंचने को कहा. लांड्री में कपड़े देने के बाद गौरी पैदल चल कर मेनरोड पर पहुंच गई. रास्ते में आतेआते उस ने अपने चेहरे पर दुपट्टा बांध लिया था ताकि कोई उसे पहचान न सके. गौरी से बात करने के कुछ देर बाद हिमांशु मेनरोड पर पहुंच गया था. हिमांशु को खड़ा देख वह उस के पास पहुंच कर उस की बाइक पर बैठ गई. उस के बैठते ही हिमांशु ने बाइक स्टार्ट कर दी और उसे अपने घर ले आया.

उधर काफी देर तक गौरी घर नहीं लौटी तो घर वालों ने उसे फोन किया. लेकिन उस का फोन स्विच्ड औफ था. कई बार फोन करने के बाद भी कंप्यूटर द्वारा वही जवाब दिया जाता रहा. इस से घर वाले परेशान हो गए. उस के पिता शिशिर ने फिर से उस का नंबर मिलाया तो इस बार उस के फोन पर घंटी जा रही थी. इस से उन्हें कुछ राहत महसूस हुई कि बेटी से शायद अब बात हो सकती है. लेकिन दूसरी तरफ से गौरी के बजाय किसी लड़के की आवाज आई. उस ने सीधे कहा, ‘‘गौरी की तबीयत खराब है. वह बंगला बाजार रोड पर बने ईको पार्क के पास है.’’ इस के बाद गौरी का मोबाइल फिर स्विच औफ हो गया.

इतना सुनते ही शिशिर घबरा गए कि गौरी ईको पार्क कैसे पहुंची. वह तो लांड्री में कपड़े देने गई थी. खैर, उन के लिए वह समय ज्यादा सोचनेविचारने का नहीं था. गौरी की मां और पिता जल्द ही ईको पार्क के पास पहुंच गए. लेकिन पार्क में और उस के आसपास उन्हें गौरी नहीं दिखी. अब उन्हें बेटी के बारे में कई तरह की आशंकाएं होने लगीं. जब बेटी का कहीं से कोई पता नहीं चला तो शिशिर श्रीवास्तव ने 100 नंबर पर फोन कर के पुलिस को सूचना दे दी. शिकायत करने के काफी देर तक पुलिस उन के पास नहीं पहुंची तो घर वाले परेशान हो गए. वे आधी रात को ही अमीनाबाद कोतवाली पहुंच गए और बेटी की गुमशुदगी की सूचना दी.

पुलिस ने सूचना दर्ज करने में टालमटोल करते हुए गौरी का फोटो ले कर दूसरे दिन आने को कहा. पुलिस उन से कह रही थी कि गौरी किसी के साथ भाग गई होगी. पुलिस की यह बात शिशिर श्रीवास्तव को बहुत बुरी लगी. लेकिन वह बेबस और लाचार थे. बहरहाल, शिशिर की फरियाद पर पुलिस ने गौरी की गुमशुदगी तो दर्ज कर ली लेकिन उस पर कोई एक्शन नहीं लिया. गौरी को ले कर उस के मातापिता ने कई सपने संजो रखे थे. वह पढ़ने में बहुत होशियार थी. उस ने लखनऊ के सब से प्रतिष्ठित लोरेटो कानवेंट कालेज से इंटरमीडिएट की परीक्षा पास की थी. वह पौजिटिव सोच वाली लड़की थी. एलएलबी के बाद वह पीसीएस (जे) करना चाहती थी ताकि सीधे मजिस्ट्रेट बन सके. वह अपने सपने साकार कर सके, इसलिए घर वाले भी उस की पढ़ाई में हर तरह से मदद कर रहे थे.

अपनी एकलौती बेटी की चिंता में गौरी के मातापिता की नींद उड़ चुकी थी. पूरी रात वे सो नहीं पाए. रात भर उन के दिमाग में बेटी के बारे में तरहतरह के खयाल घूमते रहे. वह कामना कर रहे थे कि गौरी जहां भी हो सकुशल हो. 2 फरवरी, 2015 की सुबह लखनऊ के पीजीआई थानाक्षेत्र में शहीदपथ के पास लोगों को जूट का एक बैग दिखा. उस पर खून के धब्बे भी थे. संदिग्ध हालत में पड़े उस बैग की सूचना किसी ने पुलिस को दे दी. सूचना मिलते ही पीजीआई थानाप्रभारी संतोष तिवारी मौके पर पहुंच गए. उन्होंने लोगों की मौजूदगी में जब वह बैग खुलवाया तो उस में एक लड़की के कटे हुए पैर मिले. उन्हें देख वहां पर सनसनी फैल गई. पुलिस जरूरी काररवाई कर ही रही थी कि सूचना मिली कि इसी तरह के 2 संदिग्ध बैग शहीदपथ पर ही और पड़े हैं.

थानाप्रभारी ने वहां जा कर उन बैगों को खुलवाया तो उन में लड़की की लाश के शेष टुकड़े मिले. तीनों बैगों में लड़की की लाश के सारे टुकड़े मिल चुके थे. जिस तरह से शव को ला कर फेंका गया था उसे देख कर साफ लग रहा था कि लड़की का कत्ल कहीं और कर के लाश यहां फेंकी गई है. 3 टुकड़ों में लड़की की लाश मिलने की घटना ने लखनऊ पुलिस को झकझोर कर रख दिया. पीजीआई थाने ने वायरलैस द्वारा इस की सूचना लखनऊ के समस्त थानों को दे दी और लाश के तीनों टुकड़ों को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. लखनऊ के ही अमीनाबाद थाने में एक दिन पहले जवान लड़की गौरी की गुमशुदगी दर्ज हुई थी. वायरलैस से मिली सूचना के बाद भी अमीनाबाद थानापुलिस ने पीजीआई थाना पुलिस से संपर्क नहीं किया और न ही गौरी के परिवार को इस संबंध में कुछ बताया.

अज्ञात लड़की की टुकड़ों में मिली लाश की खबर 3 फरवरी को अखबारों में छपी तो गौरी के पिता शिशिर श्रीवास्तव थाना पीजीआई पहुंच गए. पुलिस ने जब लाश के टुकड़े और कपड़े शिशिर को दिखाए तो कपड़े देखते ही उन की आंखों से आंसू टपकने लगे. उन्होंने उन कपड़ों के आधार पर उस की पहचान अपनी बेटी गौरी के रूप में की. बेटी के कत्ल की बात सुन कर मां तो बेहोश ही हो गई थीं. एलएलबी की पढ़ाई करने वाली 19 साल की लड़की गौरी का शव 3 टुकड़ों में मिलने की जानकारी मिलते ही अदब और तहजीब के शहर लखनऊ में रहने वाले लोग भी आक्रोशित हो गए. लोगों को पुलिस की बेरुखी पर गुस्सा आ रहा था. उन का मानना था कि यदि पुलिस शुरू से ही तत्परता से काम करती तो गौरी की जान बच सकती थी.

लोगों के आक्रोश के बाद भी पुलिस अपनी कछुआ गति से ही गौरी हत्याकांड की छानबीन का दिखावा करती रही. घटना के 4 दिन बाद भी जब पुलिस हत्यारों का पता नहीं लगा पाई तो लोरेटो कानवेंट कालेज की लड़कियों और वहां की टीचरों ने पुलिस के खिलाफ लखनऊ विधानसभा और जीपीओ चौराहे पर प्रदर्शन किया. इस प्रदर्शन की गूंज प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के कानों तक पहुंची तो उन्होंने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए लखनऊ के डीएम राजशेखर और एसएसपी यशस्वी यादव को न केवल तलब किया बल्कि उन्हें कड़ी फटकार भी लगाई. साथ ही उन्होंने एसएसपी से इस मामले की पूरी प्रगति रिपोर्ट मांगी.

मुख्यमंत्री की फटकार के बाद केवल लखनऊ पुलिस ही नहीं जागी बल्कि प्रदेश के डीजीपी ए.के. जैन भी घटनास्थल का मुआयना करने पहुंच गए. डीजीपी ने इस मामले का खुलासा करने के लिए एक पुलिस टीम बनाई जिस में एसएसपी यशस्वी यादव, एसपी क्राइम दिनेश सिंह, इंसपेक्टर अमीनाबाद महंथ यादव, पीजीआई थानाप्रभारी संतोष तिवारी, सर्विलांस सेल प्रभारी अनुराग मिश्र, एसआई अरुण द्विवेदी, आर.बी. सिंह, राहुल राठौर, कांस्टेबल अनिल सिंह, लवकुश, अमित, सुजीत, रामनिवास, रामनरेश कनौजिया, रामजी, सतीश सिंह, देवेश आदि को सम्मिलित किया गया.

पुलिस की जांच में पता चला कि गौरी का फेसबुक एकाउंट था, साथ ही वह वाट्सऐप पर भी दोस्तों के साथ जुड़ी थी. इसलिए पुलिस टीम ने गौरी के घर वालों से बात करने के बाद सोशल साइटों के उस के एकाउंट की जांच शुरू की. साथ ही पुलिस ने गौरी के घर के आसपास लगे सीसीटीवी के फुटेज देखने शुरू किए. फुटेज में पुलिस को लाटूश रोड पर बने होटल पीसी इंटरनेशनल के नजदीक एक युवक स्प्लेंडर बाइक के पास खड़ा दिखा. वह हेलमेट लगाए था.  हेलमेट लगा होने की वजह से उस का चेहरा नहीं पहचाना जा सका. पुलिस को सीसीटीवी कैमरे में बाइक का पूरा नंबर साफ नहीं दिख रहा था. इस के बाद पुलिस ने टेक्नोलौजी का सहारा ले कर उस नंबर की खोजबीन करनी शुरू की तो वह नंबर यूपी32सी आर 5638 दिखा.

पुलिस ने परिवहन कार्यालय से इस नंबर की तहकीकात करनी शुरू की तो पता चला कि यह बाइक शशांक नामक व्यक्ति के नाम पर दर्ज हुई थी. इस में शशांक का पता अधूरा निकला. इस से पुलिस के लिए जांच का यह रास्ता बंद हो गया. पुलिस के पास ऐसा कोई क्लू नहीं था, जिस से जांच आगे बढ़ सके. इस तरह यह केस पुलिस के लिए एक चुनौती बन गया था. गौरी की जब पोस्टमार्टम रिपोर्ट आई तो उस में बताया गया कि उस की लाश किसी दांतेदार औजार से काटी गई थी. पुलिस मान कर चल रही थी कि वह दांतेदार औजार आरी रही होगी. वह आरी किस दुकान से किस व्यक्ति द्वारा खरीदी गई थी? यह जानने के लिए एसएसपी ने कई टीमें बना कर हार्डवेयर की दुकानों पर भेजीं, जिस से यह पता चल सके कि आरी किस आदमी ने खरीदी थी.

हत्या के 7 दिन तक पुलिस तहकीकात करती रहीं. लेकिन कोई सफलता नहीं मिली. 7 फरवरी को किसी तरह पुलिस को शशांक के घर का पता मिल गया. उस का घर लखनऊ के तेलीबाग इलाके में था. उस की जूट के बैग की दुकान थी. चूंकि गौरी की लाश जूट के बैगों में मिली थी, इसलिए पुलिस का शक शशांक की तरफ गया. रात करीब 12 बजे पुलिस उस के घर के नजदीक पहुंच गई. उस के घर के पास ही पुलिस को वह स्प्लेंडर बाइक दिखी जो सीसीटीवी फुटेज में दिखी थी. इस से पुलिस का शक और मजबूत हो गया.

पुलिस ने शशांक को उस के घर से अपनी हिरासत में ले लिया. उस से पूछताछ की तो उस ने बताया कि वह अपनी बाइक अपने पड़ोसी हिमांशु प्रजापति को बेच चुका है. हिमांशु का घर उस के घर के पास में ही था. तब पुलिस ने हिमांशु को उस के घर से पूछताछ के लिए उठा लिया और शशांक को बेकुसूर मान कर छोड़ दिया. थाने ला कर जब हिमांशु से पूछताछ की गई तो गौरी हत्याकांड का परदा उठने में देर नहीं लगी. उस ने स्वीकार कर लिया कि गौरी की हत्या उसी ने की थी. गौरी की हत्या करने से ले कर उस की लाश के टुकड़े करने की उस ने जो कहानी बताई, वह रोंगटे खड़े कर देने वाली निकली.

19 वर्षीय हिमांशु एक मध्यमवर्गीय परिवार से था. उस के पिता रामप्रकाश प्रजापति प्राइवेट नौकरी करते थे. पहली फरवरी, 2015 को जब उस के घर वाले अपने रिश्तेदार की शादी में गए थे, उसी दिन उस ने अपनी दोस्त गौरी को बातचीत के लिए अपने घर आने को राजी कर लिया. गौरी से फोन पर बात होने के बाद वह बाइक से उसे लेने पहुंच गया. गौरी को अपनी बाइक पर बैठा कर वह लखनऊ के तेलीबाग स्थित अपने घर ले आया. घर पहुंच कर उस ने गौरी को खाना खिलाया. इस दौरान दोनों के बीच बातचीत शुरू हुई. हिमांशु गौरी को अपने मन की बात बताने को बेचैन था. दूसरी ओर गौरी हिमांशु की बातों का जवाब देते हुए अपने फोन पर वाट्सएप और फेसबुक चलाने में व्यस्त थी. यह बात हिमांशु को अखर रही थी. उस ने कई बार गौरी को मना किया. जब गौरी नहीं मानी तो हिमांशु ने कहा, ‘‘गौरी, तुम्हारे फोन में ऐसा क्या है, जो तुम इस में खो गई हो और मेरी बात नहीं सुन रही?’’

‘‘कुछ नहीं, अपने फ्रैंड्स के साथ बातचीत कर रही हूं. साथ ही तुम्हारी बातें भी सुन रही हूं.’’ गौरी ने यह बात बहुत ही रूखे मिजाज में कही. इस के बाद हिमांशु को शक होने लगा. उस ने गौरी से कहा, ‘‘गौरी, तुम मुझे अपना फोन दिखाओ. मैं देखना चाहता हूं कि तुम किस से बातें कर रही हो?’’

‘‘देखो, यह गलत बात है. मैं अपना फोन तुम्हें क्यों दिखाऊं?’’ गौरी ने जब फोन देने से मना किया तो हिमांशु को गुस्सा आ गया. उस ने उस का फोन हाथ से ले लिया और प्यार से उस का पासवर्ड हासिल कर लिया.

हिमांशु ने गौरी के फेसबुक और वाट्सएप एकाउंट खोल कर देखे तो वह चौंक गया. उसे पता चला कि गौरी अपने दूसरे दोस्तों के साथ आपत्तिजनक बातें करती है. इतना ही नहीं, इसी तरह के फोटो भी एकदूसरे को शेयर करती है. इस बात पर हिमांशु को गुस्सा आ गया. गौरी उस से अपना फोन छीनने लगी. छीनाझपटी में हिमांशु से गौरी के गरदन की नस दब गई और वह मर गई. उस समय शाम के करीब 4 बज रहे थे. वह गौरी को घर के अंदर बंद कर के उस का फोन अपने साथ ले कर बाहर चला गया.  3-4 घंटे बाद वह घर वापस आया. इस बीच जब गौरी के घर वालों का फोन आया तो एक बार उस ने गौरी की तबीयत खराब होने की बात कही. इस के बाद उस ने गौरी का फोन बंद कर दिया.

वह गौरी की लाश को ठिकाने लगाने की सोचने लगा. अकेले ही उस की लाश उठा कर ठिकाने लगाना उस के बूते में नहीं था इसलिए उस ने तय कर लिया कि वह उस की लाश के टुकड़े कर के बाहर कहीं फेंक आएगा. फिर से कमरा बंद कर के वह अपने दोस्त अनुज के पास चला गया. दोनों ने मिल कर शराब पी.  शराब पीते समय उस ने अनुज को गौरी की हत्या करने की बात बता दी थी. दोस्त के साथ शराब पीने के बाद हिमांशु ने तेलीबाग के ही काका मार्केट जा कर एक दुकान से लकड़ी काटने की आरी और दूसरी दुकान से जूट के 3 बैग खरीदे. ये सामान ले कर वह घर लौट आया और आरी से गौरी के शरीर के कई टुकड़े कर दिए. खून नाली के रास्ते बह कर बाहर न जाए, इस के लिए उस ने उस के कपड़े नाली के मुहाने पर लगा दिए.

लाश के 3 टुकड़े कर के उस ने जूट के 3 बैगों में भर लिए. आधी रात के करीब वह उन बैगों को शहीदपथ के आसपास फेंक आया. गौरी के कपड़े भी उस ने एक बैग में भर दिए थे. लाश ठिकाने लगा कर उस ने घर की सफाई की. अगले दिन पुलिस ने लाश के टुकडे़   बरामद कर लिए. काफी खोजबीन के बाद भी पुलिस जांच में जब हिमांशु का कहीं नाम नहीं आया तो हिमांशु खुश खुश हुआ कि वह पुलिस को चकमा देने में सफल हो गया है. लेकिन पुलिस ने हिमांशु को खोज कर गौरी हत्याकांड का खुलासा कर दिया. हिमांशु ने अपने दोस्त अनुज को गौरी की हत्या करने की बात बताई थी. इस के बावजूद भी उस ने इस बात की जानकारी पुलिस को नहीं दी. इसी कारण पुलिस ने अनुज को भी गौरी हत्याकांड में शामिल मानते हुए गिरफ्तार कर लिया.

उन की निशानदेही पर पुलिस ने गौरी की लाश को काटने में प्रयुक्त हुई आरी, हिमांशु की बाइक, हेलमेट, खून से सने कपड़े आदि बरामद कर लिए. गौरी हत्याकांड लखनऊ पुलिस के लिए बहुत बड़ी चुनौती बन चुका था. इसलिए अभियुक्तों की गिरफ्तारी होने और केस का खुलासा होने पर पुलिस लाइन में एक प्रैस कौन्फ्रैंस का आयोजन किया गया जिस में डीजीपी ए.के. जैन के अलावा जिला स्तर के पुलिस अधिकारी मौजूद थे. वहां गौरी के मातापिता को भी बुलाया गया. अभियुक्त हिमांशु और अनुज ने गौरी की हत्या की पूरी कहानी मीडिया के सामने बयान की.

दूसरी तरफ गौरी के परिजन पुलिस के खुलासे से पूरी तरह से संतुष्ट नहीं थे. उन का कहना था कि पुलिस तुरंत काररवाई करती तो उन की बेटी की जान बच सकती थी. इसी बीच प्रदेश के डीजीपी ए.के. जैन ने कहा कि हिमांशु के खिलाफ पूरे सुबूत मिले हैं, जो कोर्ट में उसे सजा दिलाने में सफल होंगे. पुलिस ने दोनों अभियुक्तों को न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया. पुलिस ने हिमांशु पर हत्या कर लाश ठिकाने लगाने की कोशिश करने की धाराओं के साथसाथ उसे राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत भी निरुद्ध कर दिया. इस हत्याकांड का खुलासा करने वाली पुलिस टीम को पुलिस विभाग की तरफ से 50 हजार रुपए का इनाम देने की घोषणा की गई है. Lucknow Crime

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Hindi Stories Love : प्रेम में दुश्मन बनते भाई

Hindi Stories Love : लड़की के प्यार का जुनून और भाई की जिद में भाईबहन का प्यार और खून का रिश्ता दुश्मनी में बदल रहा है, जो कभीकभी जान पर भी भारी पड़ जाता है. वे एक ही छत के नीचे साथसाथ रह कर, खेलकूद कर, पढ़लिख कर बड़े होते हैं, इस के

बावजूद उम्र के नाजुक पायदान पर कदम पड़ने पर जब कोई लड़की दिल की उमंगों से अपने अंदाज में बेहतर जिंदगी की ख्वाहिश में मोहब्बत का तराना गुनगुनाती है तो उस के खून के रिश्ते का भाई ही उस के प्यार के बीच दीवार बन कर खड़ा हो जाता है. लड़की की मोहब्बत के जुनून और भाई की जिद में प्यार और खून का रिश्ता दुश्मनी में बदल जाता है. यही दुश्मनी एक दिन जान पर भारी पड़ जाती है और सगे भाई ही बहनों का कत्ल कर देते हैं.

मोहब्बत और कत्ल का यह सिलसिला चलता ही रहता है. कानून तो अपना काम करता है, लेकिन समाज खामोशी से देखता रहता है. ऐसा करने वाले यूं तो सलाखों के पीछे होते हैं, लेकिन उन्हें इस का जरा भी मलाल नहीं होता. बात अगर गैरमजहबी युवक से मोहब्बत की हो तो अंजाम और भी दिल दहला देने वाले होते हैं. हापुड़ जनपद के स्याना रोड निवासी इंसाफ अली की 20 साल की बेटी दानिश्ता ने जमाने में देखा, फिल्मों में देखा और कानून की यह बात भी पता चली कि लड़कालड़की बालिग हो जाएं तो अपनी मरजी से जिंदगी जीने के लिए आजाद हैं.

वक्त की बदलती चाल ने दानिश्ता के दिलोदिमाग पर छाप छोड़ी तो वह दूसरे मजहब के सोनू के साथ मोहब्बत का तराना गुनगुनाने लगी. उम्र की दहलीज पर उस ने अपनों से नाफरमानी कर दी. मोहब्बत का जुनून ही था कि उस ने अंजाम की परवाह किए बगैर खूबसूरत भविष्य का ख्वाब संजोया. लेकिन उस के ख्वाबों के महल तब बिखर गए, जब न सिर्फ उस के सगे भाई खलनायक बन कर उभरे, बल्कि परिवार भी उस के खिलाफ हो गया.

29 नवंबर, 2014 की सुबह का वक्त था. दानिश्ता का प्रेमी सोनू किसी काम से जा रहा था कि दानिश्ता के भाइयों तालिब, आसिफ और तसलीम ने उसे घेर लिया और उस के साथ बेरहमी से मारपीट शुरू कर दी. दानिश्ता ने अपनी मोहब्बत को दम तोड़ते देखा तो वह बचाव के लिए आगे बढ़ी और घर वालों से भिड़ गई. इस पर दानिश्ता और उस के प्रेमी सोनू को धारदार हथियारों से बेरहमी से काट कर मौत की नींद सुला दिया गया.

भाइयों में गुस्सा इस कदर था कि कोई उन्हें रोकने की हिम्मत नहीं कर सका. हत्याओं में भाइयों का साथ उन के दोस्तों और मां नूरजहां खातून ने भी दिया. हत्याएं करने के बाद तालिब और नूरजहां खुद ही थाने पहुंच गए और आत्मसमर्पण कर दिया. दानिश्ता और सोनू का प्रेमसंबंध काफी समय से चल रहा था. उन के प्रेमसंबंधों की जानकारी दानिश्ता के घर वालों को हुई तो उन्होंने उसे समझाया कि वह गैरमजहबी लड़के से कोई रिश्ता न रखे. लेकिन प्यार करने वाले ऐसे किसी बंधन को कहां मानते हैं. वे तो जातिधर्म, ऊंचीनीच की दीवारों को गिराने का दम भरते हैं. प्यार के लिए वे जमाने से भी टकराने को तैयार रहते हैं. वे जानते हैं कि प्रेम में ऐसी बाधाएं आएंगी और उन्हें उन का सामना करना पड़ेगा.

लेकिन उन्हें यह उम्मीद होती है कि एक दिन जीत उन के प्यार की ही होगी. यह बात अलग है कि बड़े शहरों की बात छोड़ दें तो ग्रामीण क्षेत्रों में हर कोई ऐसा खुशनसीब नहीं होता. दानिश्ता और सोनू की सोच भी यही थी कि एक दिन उन का प्यार जीत जाएगा. वे विवाह कर के जीवन भर साथ रहने का निर्णय ले चुके थे. जबकि दानिश्ता के भाई इस के लिए तैयार नहीं थे. वह जब भी सोनू से विवाह की बात घर में करती, उस के साथ मारपीट की जाती. दानिश्ता और सोनू दोनों ही समझ गए कि घर वालों की मरजी से वे कभी शादी नहीं कर पाएंगे.

दोनों ने कानून का सहारा लिया और गुपचुप कोर्टमैरिज कर ली. यह बात दोनों ने ही घर वालों से छिपाए रखी और अपनेअपने घर यह सोच कर रहते रहे कि अच्छे वक्त पर घर वालों को मना कर एक हो जाएंगे. जब इस बात का खुलासा हुआ तो हंगामा मच गया. दानिश्ता की शामत आ गई. इस मुद्दे पर हत्या से एक दिन पहले स्थानीय पंचायत भी हुई. दानिश्ता के भाइयों ने ऐलान कर दिया कि वे बहन की मोहब्बत को कुबूल नहीं करेंगे. पंचायत में कथित समाज के ठेकेदारों का भी फरमान था कि दोनों हमेशा अलग ही रहेंगे. जबकि यह फरमान न दानिश्ता को मंजूर था और न सोनू को. नतीजतन मौका पा कर उन की हत्या कर दी गई.

पुलिस गिरफ्त में हत्यारोपी भाई का कहना था, ‘‘बिरादरी में हमारी बदनामी हो रही थी. हमारा घर से बाहर निकलना मुश्किल हो गया था. अब घर वाले समाज में सिर उठा कर जी सकेंगे, क्योंकि हम ने अपनी इज्जत बचा ली है.’’

नूरजहां का बयान भी कुछ ऐसा ही था. उसे भी बेटी की मौत का कोई अफसोस नहीं था. इस दोहरे हत्याकांड के बाद पुलिस ने ऐसे प्रेमी युगलों की सूची बनाई, जिन्होंने अपनी मरजी से विवाह किए थे. पुलिस अधीक्षक आर.पी. पांडे ने कहा, ‘‘हम प्रेमियों को सुरक्षा देने के लिए तत्पर हैं. हमारी कोशिश है कि घृणित कृत्य करने वालों को सख्त सजा मिले.’’

औनर किलिंग की यह पहली वारदात नहीं थी. पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अकसर भाईबहन की मोहब्बत के दुश्मन बन जाते हैं. हैरानी की बात यह है कि अपनों के खून से हाथ रंगने वालों को अपने किए पर अफसोस नहीं होता. शान के लिए लड़कियों और उन के प्रेमियों की हत्या कर दी जाती है. मेरठ की रहने वाली फुरकानी ने भी गैरमजहब के लड़के रविंद्र से मोहब्बत करने का गुनाह किया था. प्रेमसंबंध की जानकारी होने पर जम कर हंगामा हुआ. उस के इस कदम से घर वाले गुस्से में आ गए. दूसरे संप्रदाय के लड़के ने उन की बेटी को दुलहन बना लिया था. उस ने प्रेमी के लिए धर्म ही नहीं, नाम भी बदल लिया था. उस ने अपना नाम निशू रख लिया था.

फुरकानी के घर वालों ने इस बात को आन का सवाल बना लिया. टकराव को टालने के लिए दोनों शहर जा कर रहने लगे. काफी दिनों बाद वे दोनों गांव आ कर रहने लगे तो फुरकानी के घर वाले खफा हो गए. 25 नवंबर को फुरकानी के भाई निजाम और फुरकान उस के घर पहुंचे और उस के सिर में गोली मार कर फरार हो गए.  समय पर उपचार मिलने से निशू की जान तो बच गई, लेकिन उस की एक आंख हमेशा के लिए चली गई. उस के भाइयों को भी गिरफ्तार कर लिया गया. लेकिन निशू के भाई निजाम को उस के जिंदा बच जाने का बहुत अफसोस है.

उस का कहना है कि अगर उसे पता होता कि बहन जिंदा बच जाएगी तो वह उसे एक और गोली मार देता. जब तक वह मरेगी नहीं, उसे चैन नहीं मिलेगा. गैरसमुदाय के लड़के से शादी कर के उस ने उस के परिवार की बहुत बदनामी कराई है, इसलिए उस ने उसे गोली मारी थी. मुजफ्फरनगर के लोई गांव के रहने वाले इलियास की बेटी शाइमा का 2 साल से गांव के ही एक लड़के से प्रेमसंबंध चल रहा था. जब घर वालों को इस बात की खबर हुई तो उन्होंने उस पर बंदिशें लगा दीं. शाइमा लड़के से विवाह करने की जिद पर अड़ गई. बंदिशों को तोड़ कर एक दिन वह घर से भाग गई. शाइमा की इस हरकत से घर वाले आगबबूला हो गए.

कुछ दिनों बाद शाइमा को उन्होंने ढूंढ निकाला और घर ला कर उस के भाई इंतजार ने उसे गोली मार दी. अमित को भी अपनी बहन मोना का प्यार मंजूर नहीं था. वह किसी लड़के से मोबाइल फोन पर बातें किया करती थी. अमित इस बात से बेहद नाराज रहता था. उसे लगता था कि इस से एक दिन परिवार की इज्जत चली जाएगी. एक दिन उस ने बहन को फोन पर बातें करते पकड़ लिया तो उस ने उसे गोली मार दी. मोना किसी तरह बच गई. पश्चिमी उत्तर प्रदेश का सामाजिक परिवेश ऐसा है, जहां प्रेमिल रिश्तों का खुलेआम विरोध है. इस के बावजूद चोरीछिपे रिश्ते पनपते हैं. तेजी से होते शिक्षा और आर्थिक विकास के बीच यह बेहद संवेदनशील मुद्दा है.

प्रेमसंबंधों को आन से जोड़ कर देखा जाता है. घर की बेटी प्रेम संबंध में अपनी मरजी से विवाह जैसा कदम उठाए, यह किसी भी दशा में मंजूर नहीं होता और अपने ही मरनेमारने पर उतारू हो जाते हैं. समाज की टीका टिप्पणियां आग में घी डालने का काम करती हैं. जिस परिवार की लड़की को ले कर इस तरह के मामले सामने आते हैं, उन्हें तरहतरह के ताने दिए जाते हैं. ऐसे में नौजवानों को यह बरदाश्त नहीं होता. मानसिकता ऐसी होती है कि उन्हें लगता है कि हत्या कर देने से उन की इज्जत बच जाएगी और वह शान की जिंदगी जी सकेंगे.

ऐसा करने वाले प्रेम करने वाली लड़की को अपने परिवार के लिए कलंक मानते हैं. कातिल मानते हैं कि सामाजिक तानों व बेइज्जती से बचने के लिए अब यही करना आवश्यक हो गया है. दुखद यह है कि ऐसा कर के भी उन की इज्जत नहीं बचती. समाज भी खुले तौर पर ऐसी हत्याओं का विरोध नहीं करता. कानून का काम लाशों के पंचनामे और हत्यारों की गिरफ्तारी तक सिमट कर रह जाता है. Hindi Stories Love