घर में रखी तलवार की धार : वृद्ध दंपति की हत्या

4 अप्रैल की सुलगती दुपहरी में राजस्थान के जिला बूंदी के कलेक्ट्रेट में विजय कुमार पहली बार आया था. उस की उम्र तकरीबन 35 साल के आसपास रही होगी. वह सेना में नायब सूबेदार था. फौजी होने के बावजूद कलेक्टर ममता शर्मा के चेंबर में प्रवेश करते ही पता नहीं क्यों उस पर घबराहट हावी होने लगी थी और दिल बैठने लगा था. जिला कलेक्टर के सामने खड़े होते ही उस के पैर कांपने लगे और पूरा बदन पसीने से तरबतर हो गया.

आखिरकार हिम्मत जुटा कर अपना परिचय देने के बाद वह बोला, ‘‘मैडम, 8 जनवरी, 2018 को मेरे मातापिता की निर्दयता से हत्या कर दी गई. पुलिस न तो आज तक उन के शवों को बरामद कर पाई और न ही इस मामले में निष्पक्षता से जांच की गई.

‘‘मैं पुलिस के बड़े अधिकारियों से भी मिल चुका हूं, लेकिन कहीं कोई सुनवाई नहीं हो रही है. हत्यारे छुट्टे घूम रहे हैं. इतना ही नहीं, वे इस कदर बेखौफ हैं कि मुझे ओर मेरे परिवार को भी जान से मारने की धमकी देते हैं.’’ कहतेकहते विजय कुमार की आंखों से आंसू टपकने लगे.

हिचकियां लेते हुए उस ने कहा, ‘‘मैडम, मेरे सैनिक होने पर धिक्कार है. कानून की बेरुखी और जलालत झेलने से तो अच्छा है कि मैं अपने परिवार समेत आत्महत्या कर लूं. ऐसी जिंदगी से तो मौत भली. हम तो बस अब इच्छामृत्यु की अनुमति चाहते हैं.’’

यह कहते हुए उस ने जिला कलेक्टर की तरफ एक दरख्वास्त बढ़ा दी जो महामहिम राष्ट्रपति को लिखी गई थी. उस दरख्वास्त में विजय कुमार ने परिवार सहित इच्छामृत्यु की अनुमति देने की मांग की थी.

जिला कलेक्टर ममता शर्मा ने एक बार सरसरी तौर पर सामने खड़े युवक का जायजा लिया. उन की हैरानी का पारावार नहीं था. लेकिन जिस तरह पस्ती की हालत में वह अटपटी मांग कर रहा था, उस के तेवरों ने एक पल को तो उन्हें हिला कर रख दिया था.

वह बोलीं, ‘‘कैसे फौजी हो तुम? जानते हो इच्छामृत्यु की कामना कायर करते हैं, फौजी नहीं. हौसला रखो और पूरा वाकया मुझे एक कागज पर लिख कर दो. याद रखो कानून से ऊपर कोई नहीं है. तफ्तीश में हजार अड़चनें हो सकती हैं. गुत्थी सुलझाने में वक्त लग सकता है. तुम लिख कर दो, मैं इसे देखती हूं.’’

अब तक सामान्य हो चुके विजय कुमार ने सहमति में सिर हिलाया और कलेक्टर के चेंबर से बाहर निकल गया. आखिर ऐसा क्या हुआ था कि एक फौजी का देश की कानून व्यवस्था से भरोसा उठ गया और वह अपने परिवार समेत इच्छामृत्यु की मांग करने लगा. सब कुछ जानने के लिए हमें एक साल पहले लौटना होगा.

vridh-dampati-ka-beta-vijay

      विजय कुमार

विजय कुमार राजस्थान के बूंदी जिले के लाखेरी कस्बे का रहने वाला है. लाखेरी स्टेशन के नजदीक ही उस का पुश्तैनी मकान है. जहां उस के मातापिता हजारीलाल और कैलाशीबाई स्थाई रूप से रहते थे. हजारीलाल के लाखेरी स्थित मकान में नवलकिशोर नामक किराएदार भी अपने परिवार के साथ रहता था. उस की बाजार में किराने की दुकान थी.

हजारीलाल के 2 मकान कोटा में थे. कोटा के रायपुरा स्थित निधि विहार कालोनी में उन के बेटे विजय कुमार का परिवार रहता था. उस के परिवार में उस की पत्नी ममता और 2 छोटे बच्चों के अलावा उस का छोटा भाई हरिओम था.

विजय सेना में नायब सूबेदार था और उस की तैनाती चाइना बौर्डर पर थी. विजय छुट्टियों में ही घर आ पाता था. हजारीलाल का मझला बेटा विनोद इंदौर की किसी इंडस्ट्री में गार्ड लगा हुआ था. हजारीलाल का एक और मकान रायपुरा से तकरीबन एक किलोमीटर दूर डीसीएम चौराहे पर स्थित था.

इस तिमंजिला मकान में दूसरी मंजिल हजारीलाल ने अपने लिए रख रखी थी. वह अपनी पत्नी के साथ 10-15 दिनों में कोटा आते रहते थे ताकि बेटे के परिवार की खैर खबर ले सकें. अलबत्ता वे रुकते इसी मकान में थे.

उस मकान का नीचे वाला तल उन्होंने बैंक औफ बड़ौदा को किराए पर दिया हुआ था, जहां बैंक का एटीएम भी था. तीसरी मंजिल पर करोली के मानाखोर का घनश्याम मीणा पत्नी राजकुमारी के साथ किराए पर रह रहा था.

हजारीलाल और घनश्याम मीणा का परिवार एकदूसरे से काफी घुलामिला था. घनश्याम पर तो हजारीलाल का अटूट भरोसा था. दंपति जब कोटा में होते थे तो अकसर उन का वक्त बेटे विजय कुमार के परिवार के साथ ही गुजरता था. लेकिन रात को वह अपने डीसीएम चौराहे के पास स्थित घर पर लौट आते थे.

अलबत्ता दोनों के बीच टेलीफोन द्वारा संपर्क बराबर बना रहता था. हजारीलाल वक्त गुजारने के लिए प्रौपर्टी के धंधे से भी जुडे़ हुए थे. इस धंधे में अंगद नामक युवक उन का मददगार बना हुआ था.

अंगद रायपुरा स्थित विजय कुमार के मकान के पीछे ही रहता था. बिहार का रहने वाला अंगद विजय कुमार का अच्छा वाकिफदार था. ट्यूशन से गुजारा करने वाला अंगद विजय के बच्चों को भी ट्यूशन पढ़ाता था. अंगद प्रौपर्टी के कारोबार के मामले में पारखी था इसलिए हजारीलाल भी उस का लोहा मानते थे.

hajarilal-kailashibai-hatyakand-rajasthan

               हजारीलाल और उनकी पत्नी कैलाशीबाई

सब कुछ ठीकठाक चल रहा था. इसी बीच अजीबोगरीब घटना ने ठहरे हुए पानी में जैसे हलचल मचा दी. दरअसल हजारीलाल की पत्नी कैलाशीबाई की अलमारी से उन का मंगलसूत्र गायब हो गया. हीराजडि़त मंगलसूत्र काफी कीमती था.

लिहाजा घर के सभी लोग परेशान हो गए. कैलाशीबाई का रोना भी वाजिब था. घर में बाहर का कोई शख्स आया नहीं था औैर किराएदार घनश्याम पर उन्हें इतना भरोसा था कि उस से पूछना भी हजारीलाल दंपति को ओछापन लगा. आखिर मंगलसूत्र की चोरी का गम खाए हजारीलाल दंपति माहौल बदलने के लिए लाखेरी लौट गए.

इस बाबत उन्होंने अपने बेटे विजय कुमार की पत्नी ममता को भी जानकारी दे दी. लेकिन असमंजस में डूबी बहू भी सास को तसल्ली देने के अलावा क्या कर सकती थी. हजारीलाल तो इस सदमे को पचा गए लेकिन कैलाशीबाई के आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे.

एक स्त्री के सुहाग की निशानी मंगलसूत्र का इस तरह चोेरी चले जाना उन के लिए सब से बड़ा अपशकुन था. उन्होंने एक ही रट लगा रखी थी कि आखिर कौन था जो उन का मंगलसूत्र चुरा ले गया. पत्नी को लाख समझा रहे हजारीलाल की तसल्ली भी कैलाशीबाई के दुख को कम नहीं कर पा रही थी.

5 जनवरी, 2018 को हजारीलाल को अपने किराएदार घनश्याम मीणा का फोन मिला तो उन की आंखें चमक उठीं. उस ने बताया कि करोली के मानाखोर कस्बे में एक भगतजी हैं जिन पर माता की सवारी आती है.

माता की सवारी आने पर भगतजी में अद्भुत शक्ति पैदा हो जाती है और उस समय वह भूत भविष्य के बारे में सब कुछ बता देते हैं. आप का मंगलसूत्र कहां और कैसे गायब हुआ, यह सब भगतजी बता देंगे. आप कहो तो मैं आप को वहां ले चलूंगा ताकि मंगलसूत्र का पता लग सके.

हजारीलाल और उन की पत्नी पुराने विचारों के थे लिहाजा टोनेटोटकों में ज्यादा ही विश्वास करते थे. लिहाजा उन्होंने आननफानन में करोली जाने का प्रोग्राम बना लिया. तय कार्यक्रम के अनुसार घनश्याम और उस की पत्नी राजकुमारी उन्हें ले जाने के लिए लाखेरी पहुंच गए.

हजारीलाल ने तब अपने बड़े बेटे के परिवार को खबर करने और सब से छोटे बेटे हरिओम को भी साथ ले चलने की बात कही तो घनश्याम ने उन्हें समझाते हुए कहा, ‘‘यह बातें गोपनीय रखनी होती हैं. माता की सवारी पर अविश्वास करोगे तो मातारानी कुपित हो सकती हैं. तब अहित हुआ तो हम कुछ नहीं कर पाएंगे.’’ यह कहते हुए घनश्याम ने अपनी पत्नी की तरफ देखा तो उस ने भी सहमति में सिर हिला दिया.

हजारीलाल के मन में संदेह का कीड़ा तो कुलबुलाया लेकिन मौके की नजाकत को देखते हुए वह चुप लगा गए. लेकिन हजारीलाल ने अपने अचानक करोली जाने की बात मौका मिलते ही अपने किराएदार नवलकिशोर को जरूर बता दी. हजारीलाल ने नवलकिशोर को जो कुछ बताया उस ने सुन लिया. इस में उसे एतराज होता भी तो क्यों. घनश्याम को उस ने देखा भी नहीं था तो पूछताछ करता भी तो किस से.’’

लेकिन नवलकिशोर उस वक्त जरूर कुछ अचकचाया, जब सोमवार 8 जनवरी, 2018 को एक शख्स लाखेरी स्थित मकान पर पहुंचा. उस के हाथ में चाबियों का गुच्छा था और वह दरवाजा खोलने की कोशिश कर रहा था.

नवलकिशोर को हजारीलाल की गैरमौजूदगी में किसी अजनबी द्वारा मकान का दरवाजा खोलना अटपटा लगा तो उस ने फौरन टोका, ‘‘अरे भाई आप कौन हो और यह क्या कर रहे हो?’’

इतना सुनते ही वह आदमी कुछ हड़बड़ाया फिर बोला, ‘‘मेरा नाम घनश्याम है और मैं हजारीलालजी के डीसीएम चौराहे के पास वाले मकान में रहता हूं. हजारीलालजी के भेजने पर ही मैं यहां आया हूं. दरअसल करोली में भगतजी का भंडारा हो रहा है. हजारीलालजी ने मुझे यहां अपने कपड़े लेने के लिए भेजा है.’’

नवलकिशोर को यह तो मालूम था कि हजारीलाल पत्नी के साथ करौली गए हुए हैं लेकिन उसे घनश्याम की बातों पर तसल्ली इसलिए नहीं हुई कि हजारीलाल किसी को अपने घर की चाबियां भला कैसे सौंप सकते हैं. अपना शक दूर करने के लिए नवलकिशोर ने कहा, ‘‘ठीक है, आप उन से मोबाइल पर मेरी बात करवा दो.’’

घनश्याम ने यह कह कर नवलकिशोर को निरुत्तर कर दिया कि गांव देहात में नेटवर्क काम नहीं करने से उन से बात नहीं हो सकती. नवलकिशोर की शंका दूर नहीं हुई. उस ने एक पल सोचते हुए कहा, ‘‘तो ठीक है कोटा में हजारीलाल जी के बेटेबेटियां रहते हैं, उन से बात करवा दो?’’

घनश्याम ने यह कह कर टालने की कोशिश की कि उन का बेटा तो चाइना बौर्डर पर तैनात है और कोटा में रह रही उस की पत्नी का मोबाइल नंबर मुझे मालूम नहीं है. लेकिन नवलकिशोर तो जिद ठाने बैठा था. उसे घनश्याम की नानुकर खटक रही थी. वह अपनी शंका दूर करने पर तुला था. उस ने कहा ठीक है उन की पत्नी का नंबर मुझे मालूम है. मैं कर लेता हूं उन से बात.

घनश्याम कोई टोकाटाकी करता, तब तक नवलकिशोर अपने मोबाइल पर विजय कुमार की पत्नी ममता का नंबर मिला चुका था. लेकिन संयोग ही रहा कि ममता का फोन स्विच्ड औफ निकला. आखिर हार कर नवलकिशोर ने घनश्याम से कहा, ‘‘कोटा में हजारीलाल जी के परिवार का कोई तो होगा, जिस का नंबर आप को मालूम हो.’’

‘‘हां, उन की बेटी माया का नंबर मालूम है.’’ घनश्याम ने अचकचाते हुए कहा.

‘‘ठीक है तो फिर उन्हीं से बात करवा दो?’’ कहते हुए नवलकिशोर ने घनश्याम के चेहरे पर नजरें गड़ा दीं.

मोबाइल पर माया इस बात की तसदीक तो नहीं कर सकी कि उस के पिता करोली गए हुए हैं और किसी को उन्होंने कपड़े लाने के लिए भेजा है. अलबत्ता इतना जरूर कह दिया कि घनश्याम हमारे कोटा वाले मकान में किराएदार हैं. मैं इन को जानती हूं. अगर ये मांबाऊजी के कपड़े लेने के लिए आए हैं तो ले जाने देना. लेकिन बाद में चाबी अपने पास ही रख लेना.

नवलकिशोर को अब क्या ऐतराज होना था? घनश्याम रात को वहीं रुक गया और बोला कि सुबह को हजारीलालजी के कपड़े आदि ले कर चला जाएगा. लेकिन अगली सुबह नवलकिशोर की जब आंखें खुलीं तो उस ने देखा कि घनश्याम वहां से जा चुका था.

अब नवलकिशोर के शक का कीड़ा कुलबुलाना लाजिमी था कि  इस तरह घनश्याम का चोरीछिपे जाने का क्या मतलब. नवलकिशोर को ज्यादा हैरानी तो इस बात की थी कि उसे चाबी सौंप कर जाना चाहिए था. लेकिन वो चाबी भी साथ ले गया.

मंगलसूत्र की गुमशुदगी को ले कर कैलाशीबाई किस हद तक सदमे में थीं, इस बात को उन की बहू ममता अच्छी तरह जानती थी. क्योंकि उस की अपनी सास से फोन पर बात होती रहती थी. एक दिन ममता ने अपने देवर हरिओम से कहा कि वह लाखेरी जा कर मां को ले आए ताकि बच्चों के बीच रह कर उन का दुख कुछ कम हो सके.

भाभी के कहने पर हरिओम ने 9 जनवरी को पिता हजारीलाल को फोन लगाया. लेकिन उन का फोन स्विच्ड औफ होने के कारण बात नहीं हो सकी. हरिओम सोच कर चुप्पी साध गया कि शायद फोन बंद कर के वह सो रहे होंगे.

ममता भाभी को भी उस ने यह बता दिया. अगले दिन ममता के कहने पर हरिओम ने फिर पिता को फोन लगाया. उस दिन भी उन का फोन बंद मिला. यह सिलसिला लगातार जारी रहा तो न सिर्फ हरिओम के लिए बल्कि ममता के लिए भी यह हैरानी वाली बात थी.

ममता के मुंह से बरबस निकल पड़ा, ऐसा तो आज तक कभी नहीं हुआ. वह अंदेशा जताते हुए बोली, ‘‘भैया, जरूर अम्माबाऊजी के साथ कोई अनहोनी हो गई है.’’ ममता ने देवर को सहेजते हुए कहा, ‘‘तुम ऐसा करो, नवलकिशोर से बात करो. शायद उसे कुछ मालूम हो.’’

हरिओम ने नवलकिशोर से बात की. उस ने जो कुछ बताया उसे जान कर ममता और हरिओम दोनों सन्न रह गए. नवलकिशोर ने तो यहां तक बताया कि उस ने घनश्याम द्वारा कपड़े ले जाने की बाबत तस्दीक करने के लिए भाभी को फोन भी लगाया था, लेकिन फोन स्विच्ड औफ मिला. लेकिन माया ने बात कराने पर उस की शंका दूर हुई थी.

ममता वहीं सिर थाम कर बैठ गई. उस के मुंह से सिर्फ इतना ही निकला, ‘‘अम्मा बाऊजी हमें बिना बताए करोली कैसे चले गए. घर की चाबी तो अम्मा किसी को देती ही नहीं थीं. घनश्याम चाबी ले कर लाखेरी वाले घर कैसे पहुंच गया.

इस के बाद तो मंगलसूत्र की चोरी को ले कर भी ममता का शक पुख्ता हो गया. उस ने हरिओम से कहा, ‘‘भैया घर से अम्मा का मंगलसूत्र भी जरूर घनश्याम ने ही चुराया होगा. तुम जरा घनश्याम को फोन तो लगाओ.’’

हरिओम ने फोन किया तो उस के मुंह से अस्फुट स्वर ही निकल पाए, ‘‘भाभी घनश्याम का फोन भी स्विच्ड औफ आ रहा है. मैं उसे डीसीएम चौराहे के घर पर जा कर पकड़ता हूं.’’ कहने के साथ ही हरिओम फुरती से बाहर निकल गया.

करीब एक घंटे बाद हरिओम लौट आया. उस का चेहरा फक पड़ा हुआ था. हरिओम का चेहरा देखते ही ममता माजरा समझ गई. अटकते हुए उस ने कहा, ‘‘नहीं मिला ना?’’

हरिओम भी वहीं सिर पकड़ कर बैठ गया, ‘‘भाभी वो तो अपनी पत्नी के साथ सारा सामान ले कर वहां से रफूचक्कर हो चुका है.’’

बहुत कुछ ऐसा घटित हो चुका था. जिस की किसी को उम्मीद नहीं थी. अब ममता के लिए अपने पति को सब कुछ बताना जरूरी हो गया था. ममता ने फोन से बौर्डर पर तैनात पति को पूरा माजरा बता दिया. विजय उस समय सिर्फ इतना ही कह कर रह गया कि तुम थाने में अम्मा बाऊजी के अपहरण की रिपोर्ट दर्ज करा दो. किराएदार घनश्याम की बाबत भी सब कुछ बता देना. फिर मैं छुट्टी ले कर आता हूं.

इस के साथ ही विजय ने इंदौर में रह रहे अपने मंझले भाई विनोद को भी फोन कर पूरी बात बता दी और कहा कि तुम फौरन पहले लाखेरी पहुंचो और पता करो कि उन के साथ क्या हुआ है.

मातापिता जिस तरह रहस्यमय ढंग से लापता हुए, सुन कर विजय अचंभित हुआ. इस से पहले ममता ने उद्योग नगर थाने में अपने ससुर हजारीलाल और सास कैलाशीबाई की गुमशुदगी की सुचना दर्ज करा दी थी.

अपने परिवार समेत करोली के मानाखोर गांव में पहुंचे विजय ने घनश्याम मीणा और कथित भगतजी की तलाश करने की भरपूर कोशिश की ताकि मां बाऊजी का पता चल सके, लेकिन उस के हाथ निराशा ही लगी. छानबीन करने पर उसे पता चला कि भगतजी नामक कोई तांत्रिक वहां था ही नहीं. घनश्याम के बारे में उसे पुख्ता जानकारी नहीं मिल सकी.

विजय ने पुलिस से संपर्क किया उस ने उद्योग नगर पुलिस के जांच अधिकारी सुरेंद्र सिंह से आग्रह किया कि आप एक बार करोली का चक्कर लगा लीजिए. वह वहां गए लेकिन उन की कोशिश निरर्थक रही. फिर जांच अधिकारी सुरेंद्र सिंह ने काल डिटेल्स का हवाला देते हुए कहा कि मामला लाखेरी का है. इसलिए मामले की रिपोर्ट लाखेरी में ही  करानी होगी.

विनोद भी लाखेरी पहुंच चुका था. उस ने भाई विजय को जो कुछ बताया उस से रहेसहे होश भी फाख्ता हो गए. घर की अलमारियों और संदूक के ताले टूटे पड़े थे. उन में रखे हुए अचल संपत्तियों के दस्तावेज, सोनेचांदी के जेवर और नकदी गायब थी. इस से स्पष्ट था कि कपड़े लेने के बहाने आया घनश्याम सब कुछ बटोर कर ले गया.

27 जनवरी, 2018 को विजय ने लाखेरी थाने में मामले की रिपोर्ट दर्ज करवाते हुए घनश्याम मीणा पर ही अपना शक जताया. इस मौके पर विजय के साथ आए उस के भाई विनोद ने चोरी गए सामान का पूरा ब्यौरा पुलिस को दिया. पुलिस ने रिपोर्ट में भादंवि की धारा 365 व 380 और दर्ज कर के जांच एसआई नंदकिशोर के सुपुर्द कर दी. दिन रात की भागदौड़ के बावजूद पुलिस के हाथ कोई ठोस सुराग नहीं लगा.

एसपी योगेश यादव सीओ नरपत सिंह तथा थानाप्रभारी कौशल्या से जांच की प्रगति का ब्यौरा बराबर पूछ रहे थे. लेकिन कोई उम्मीद जगाने वाली बात सामने नहीं आ रही थी.

इस बीच पुलिस ने गुमशुदा हजारीलाल दंपति के फोटोशुदा ईनामी इश्तहार भी बंटवाए और सार्वजनिक स्थानों पर चस्पा करवा दिए. इस के बाद पुलिस ने घनश्याम मीणा के फोन की काल डिटेल्स निकलवाई. इस का नतीजा जल्दी ही सामने आ गया.

काल डिटेल्स से पता चला कि घनश्याम मीणा की ज्यादातर बातचीत करोली जिले के लांगरा कस्बे के मुखराम मीणा से ही हो रही थी. लक्ष्य सामने आ गया तो पुलिस की बांछें खिल गईं. सीओ सुरेंद्र सिंह ने एसपी योगेश यादव को बताया तो उन्होंने करोली के एसपी अनिल कयाल से जांच में सहयोग करने की मांग की.

नतीजतन सीओ सुरेंद्र सिंह और थानाप्रभारी कौशल्या की अगुवाई में गठित पुलिस टीम ने करोली के लांगरा कस्बे से मुखराम मीणा को दबोच लिया. अखबारी सुर्खियों में ढली इस खबर में करोली एसपी अनिल कयाल ने मुखराम मीणा की 4 फरवरी को गिरफ्तारी की तस्दीक कर दी और कहा कि मुखराम के साथियों और गुमशुदा दंपति को तलाशने में पुलिस टीमें पूरी तरह जुटी हुई हैं.

पुलिस पूछताछ में मुखराम बारबार बयान बदल रहा था. उस ने स्वीकार किया कि घनश्याम और उस की पत्नी राजकुमारी के साथ हम हजारीलाल और उस की पत्नी कैलाशीबाई को ले कर टैंपो से साथलपुर के जंगल में पहुंचे थे. वहां उन्होंने दोनों की अंघेरे में हत्या कर दी थी. मुखराम ने बताया कि काम को अंजाम देने के बाद वह साथलपुर गांव चले गए थे.

चूकि पुलिस को उस से और भी पूछताछ करनी थी, इसलिए उसे 5 फरवरी को मुंसिफ न्यायालय लाखेरी में पेश कर 5 दिन के पुलिस रिमांड पर ले लिया.

मुखराम के बताए स्थान तक लाखेरी पुलिस दल के साथ भरतपुर जिले की लागरा पुलिस के एएसआई राजोली सिंह तथा डौग स्क्वायड टीम के कांस्टेबल देवेंद्र, ओमवीर और हिम्मत सिंह भी थे. मुखराम द्वारा बताई गई हत्या वाली जगह से पुलिस को साड़ी के टुकड़े, खून सने पत्थर और एक हड्डी का टुकड़ा तो मिला लेकिन लाशों का कहीं कोई अतापता नहीं था.

मुखराम अपने उसी बयान पर अड़ा था कि महिला की हत्या तो हम ने यहीं पत्थरों से की थी और शव को भी यहीं गाड़ दिया था. इस के बाद शव कहां गया यह पता नहीं. बरामद चीजों को जब खोजी कुत्ते को सुंघाया तो वो पहले वाली जगह पर जा कर ठिठक गया.

पुलिस ने घटनास्थल से हत्या में इस्तेमाल हुए पत्थर भी जब्त कर लिए. पुलिस की सख्ती के बावजूद मुखराम सवालों का जवाब देने से कतराता रहा.

हत्या में सहयोगी रहे घनश्याम और उस की पत्नी राजकुमारी कहां हैं? और हजारीलाल की हत्या कहां की गई? वृद्ध दंपति की हत्या की आखिर क्या वजह थी आदि पूछने पर मुखराम ने बताया कि कोटा में हजारीलाल का तकरीबन 50 लाख रुपए की कीमत का एक प्लौट है. घनश्याम और उस की पत्नी इस पर नजर गड़ाए हुए थे.

उन्होंने हजारीलाल से औनेपौने दामों में इस प्लौट का सौदा करने की कोशिश की लेकिन बात नहीं बनी. उस प्लौट को हड़पने के लिए ही उन के मारने की योजना बनाई थी. उन्होंने मुझे अच्छी रकम देने का वादा कर इस योजना में शामिल किया था.

पुलिस ने आखिर तेवर बदलते तो मुखराम ने मुंह खोलने में देर नहीं की. उस ने बताया कि हजारीलाल की हत्या साथलपुर के पास स्थित धमनिया के जंगल में की थी. धमनियां जंगल में मुखराम की बताई गई जगह पर हजारीलाल के कपड़े और खून सने पत्थर तो मिले लेकिन शव नहीं मिला.

घनश्याम मीणा और उस की पत्नी राजकुमारी के बारे में पूछा तो उस ने बताया कि घनश्याम अपनी पत्नी के साथ केरल के कालीघाट में रह रहा है. मुखराम से विस्तार से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने उसे कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया.

घनश्याम मीणा और राजकुमारी को गिरफ्तार करने के लिए एक पुलिस टीम कालीघाट रवाना हो गई. इत्तफाक से ये दोनों घर पर ही मिल गए. 8 अप्रैल को उन्हें गिरफ्तार कर पुलिस राजस्थान लौट आई.

पूछताछ में घनश्याम मीणा और उस की पत्नी राजकुमारी ने जो बताया उसे सुन कर तो पुलिस अधिकारियों का मुंह खुला का खुला रह गया. क्योंकि हत्या में ट्यूटर और प्रौपर्टी के बिजनैस में हजारीलाल का विश्वसनीय बना रहने वाला अंगद भी शामिल था. पुलिस इधरउधर खाक छान रही थी और अंगद बिना किसी डर के विजय के पड़ोस में बैठ कर चैन की बंसी बजा रहा था.

पता चला कि पूरी घटना का सूत्रधार और ताना बाना बुनने वाला अंगद ही था. उस पर हजारीलाल का जितना अटूट भरोसा था, कमोबेश विजय का भी उतना ही था. घर पर बेरोकटोक आनेजाने और मीठी बातों से रिझाने वाले अंगद पर शंका होती भी तो कैसे. जबकि सच्चाई यह थी कि डीसीएम इलाके में हजारीलाल के लगभग 50 लाख के प्लौट पर अंगद की शुरू से ही निगाहें थीं.

विश्वसनीयता की आड़ में अंगद इस प्लौट को किसी तरह फरजी दस्तावेजों के जरिए हड़पने की ताक में था. लेकिन हजारीलाल पर उस का दांव नहीं चल पा रहा था. आखिरकार उसे एक ही रास्ता सूझा कि हजारीलाल दंपति को मौत के घाट उतार कर ही यह प्लौट कब्जाया जा सकता था.

अपनी योजना का तानाबाना बुनते हुए उस ने पहले घनश्याम मीणा को उन के डीसीएम चौराहे के पास स्थित घर में किराए पर रखवाया. फिर मीणा को उन का विश्वास जीतने में भी मदद की.

आखिरकार जब हजारीलाल का घनश्याम पर अटूट भरोसा हो गया तो पहले उस ने किसी तरह कैलाशीबाई का कीमती मंगलसूत्र चोरी कर लिया. मंगलसूत्र की चोरी से हताश निराश दंपति को जाल में फंसाने के लिए तांत्रिक तक पहुंच बनाने का पासा फेंका.

अंगद ने घनश्याम से कहा कि वह योजना में किसी विश्वसनीय व्यक्ति को मोटे पैसों का लालच दे कर शामिल कर ले. तब घनश्याम ने करोली के रहने वाले अपने एक वाकिफकार मुखराम को योजना में शामिल किया. सारा काम घनश्याम, राजकुमारी और मुखराम ने ही अंजाम दिया. अंगद तो अपनी जगह से हिला भी नहीं.

पुलिस ने कोटा से अंगद को भी गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ में उस ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया. पुलिस ने भले ही हत्या की गुत्थी सुलझा ली. लेकिन लाख सिर पटकने के बाद भी शव बरामद नहीं किए जा सके.

कथा लिखने तक चारों अभियुक्तों की जमानत हो चुकी थी. कानून के जानकारों का कहना है कि जब लाश ही बरामद नहीं होगी तो अभियुक्तों को सजा कैसे मिलेगी. सवाल यह है कि हर तरह से समर्थ पुलिस आखिरकार हजारीलाल दंपति के शव बरामद क्यों नहीं कर सकी.

विजय कुमार तो दोहरे आघात से छटपटा रहा है. एक तो वृद्ध माता पिता की निर्मम हत्या, फिर शवों की बरामदगी तक नहीं हुई. विजय का दुख इन शब्दों में फूट पड़ता है कि कैसा बेटा हूं, मांबाप की हत्या हुई और मैं कुछ नहीं कर पाया. उन की अंत्येष्टि तक नहीं हो सकी.

विजय मंत्रियों से ले कर उच्च अधिकारियों तक से इंसाफ की दुहाई दे चुका है. लेकिन उस की कहीं सुनवाई नहीं हो रही थी. एक तरफ तो विश्वास और इंसाफ की हत्या का दर्द तो दूसरी तरफ हत्यारे बेखौफ घूमते हुए उसे मुंह चिढ़ा रहे हैं. ताज्जुब की बात तो यह है कि क्लेक्टर से गुहार लगाने के बावजूद भी इस केस में कोई प्रगति नहीं हुई.

—कथा पुलिस और पारिवारिक सूत्रों पर आधारित

सोशल मीडिया की जानलेवा दोस्ती

मीनू जैन अपने पति रिटायर्ड विंग कमांडर वी.के. जैन के साथ दिल्ली में द्वारका के सेक्टर-7 स्थित एयरफोर्स ऐंड नेवल औफिसर्स अपार्टमेंट में रहती थीं. उन के परिवार में पति के अलावा एक बेटा आलोक और बेटी नेहा है. आलोक नोएडा स्थित एक मल्टीनैशनल कंपनी में काम करता है, जबकि शादीशुदा नेहा गोवा में डाक्टर है. विंग कमांडर वी.के. जैन एयरफोर्स से रिटायर होने के बाद इन दिनों इंडिगो एयरलाइंस में कमर्शियल पायलट हैं.

25 अप्रैल, 2019 को वी.के. जैन अपनी ड्यूटी पर थे. फ्लैट में मीनू जैन अकेली थीं. शाम को मीनू जैन को उन के पिता एच.पी. गर्ग ने फोन किया तो बातचीत के दौरान मीनू ने उन्हें बताया कि आज उस की तबीयत कुछ ठीक नहीं है, इसलिए वह आराम कर रही है. दरअसल उन के पिता उन से मिलने आना चाहते थे. लेकिन जब मीनू ने उन से आराम करने की बात कही तो उन्होंने वहां से जाने का इरादा स्थगित कर दिया.

अगले दिन सुबह एच.पी. गर्ग ने बेटी की खैरियत जानने के लिए उस के मोबाइल पर फोन किया. काफी देर तक घंटी बजने के बाद भी जब मीनू ने उन का फोन रिसीव नहीं किया तो वे परेशान हो गए. कुछ देर बाद वह अपने बेटे अजीत के साथ बेटी के फ्लैट की ओर रवाना हो गए.

मीनू का फ्लैट तीसरे फ्लोर पर था. उन्होंने वहां पहुंच कर देखा तो दरवाजा अंदर से बंद था. कई बार डोरबेल बजाने के बाद भी जब फ्लैट के अंदर से मीनू ने कोई जवाब नहीं दिया तो वह परेशान हो गए. उन की समझ में नहीं आ रहा था कि मीनू को ऐसा क्या हो गया,जो दरवाजा नहीं खोल रही.

इस के बाद एच.पी. गर्ग ने पड़ोसी योगेश के फ्लैट की घंटी बजाई. योगेश ने दरवाजा खोला तो एच.पी. गर्ग ने उन्हें पूरी बात बताई. स्थिति गंभीर थी, इसलिए उन्होंने अजीत और उस के पिता को अपने फ्लैट में बुला लिया. इस के बाद योगेश की बालकनी में पहुंच कर अजीत अपनी बहन मीनू के फ्लैट की खिड़की के रास्ते अंदर पहुंच गया.

जब वह बैडरूम में पहुंचा तो वहां बैड के नीचे मीनू अचेतावस्था में पड़ी थी. पास में एक तकिया पड़ा था, जिस पर खून लगा हुआ था. यह मंजर देख कर वह घबरा गया. उस ने अंदर से फ्लैट का दरवाजा खोल कर यह जानकारी अपने पिता को दी.

एच.पी. गर्ग और योगेश ने फ्लैट में जा कर मीनू को देखा तो वह भी चौंक गए कि मीनू को यह क्या हो गया. चूंकि वह क्षेत्र थाना द्वारका (दक्षिण) के अंतर्गत आता है, इसलिए पीसीआर की सूचना पर थानाप्रभारी रामनिवास इंसपेक्टर सी.एल. मीणा के साथ मौके पर पहुंच गए.

मौके पर उन्होंने क्राइम इनवैस्टीगेशन टीम को बुलाने के बाद उच्चाधिकारियों को भी सूचना दे दी. डीसीपी एंटो अलफोंस भी घटनास्थल पर पहुंच गए. चूंकि मामला एयरफोर्स के रिटायर्ड अधिकारी के परिवार का था, इसलिए उन्होंने स्पैशल स्टाफ की टीम को भी बुला लिया.

क्राइम इनवैस्टीगेशन टीम का काम निपट जाने के बाद थानाप्रभारी रामनिवास और स्पैशल स्टाफ के इंसपेक्टर नवीन कुमार की टीम ने घटनास्थल का बारीकी से मुआयना किया. मीनू की हालत और तकिए पर लगे खून को देख कर लग रहा था कि मीनू की हत्या तकिए से सांस रोक कर की गई है.

मीनू का मोबाइल फोन और उस की कीमती अंगूठी गायब थी. इस के बाद जब फ्लैट की तलाशी ली गई तो रोशनदान का शीशा टूटा हुआ मिला. फ्लैट के बाकी कमरों का सारा सामान अस्तव्यस्त था. कुछ अलमारियां खुली हुई थीं और उन में रखे सामान बिखरे हुए थे. किचन के वाश बेसिन में चाय के कुछ कप रखे थे. एक कप में थोड़ी चाय बची हुई थी.

यह सब देख कर पुलिस इस नतीजे पर पहुंची कि हत्यारे जो कोई भी हैं, मीनू जैन उन से न केवल अच्छी तरह परिचित थीं, बल्कि हत्यारों के साथ उन के आत्मीय संबंध भी रहे होंगे. क्योंकि किचन में रखे चाय के कप इस ओर इशारा कर रहे थे. थाना पुलिस ने मौके की जरूरी काररवाई करने के बाद लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी. फिर एच.पी. गर्ग की शिकायत पर हत्या तथा लूटपाट का मामला दर्ज कर लिया गया.

ये क्राइम स्टोरी भी पढ़ें – खूनी नशा : एक गलती ने खोला दोहरे हत्याकांड का राज

द्वारका जिले के डीसीपी एंटो अलफोंस ने इस सनसनीखेज हाईप्रोफाइल मामले की तफ्तीश के लिए एसीपी राजेंद्र सिंह के नेतृत्व में एक पुलिस टीम गठित की. इस टीम में इंसपेक्टर नवीन कुमार, इंसपेक्टर रामनिवास तथा इंसपेक्टर सी.एल. मीणा, एसआई अरविंद कुमार आदि को शामिल किया गया.

अगले दिन मृतका मीनू के पति वी.के. जैन ड्यूटी से वापस लौटे तो पत्नी की हत्या की बात सुन कर आश्चर्यचकित रह गए. उन्होंने फ्लैट में रखी सेफ आदि का मुआयना किया तो उस में रखी ज्वैलरी और कैश गायब था. उन्होंने पुलिस को बताया कि उन के फ्लैट से करीब 35 लाख रुपए के कीमती जेवर और कुछ कैश गायब है. इस के अलावा मीनू के दोनों मोबाइल फोन भी गायब थे.

स्पैशल स्टाफ के इंसपेक्टर नवीन कुमार ने एसीपी राजेंद्र सिंह के निर्देशन में काम करना शुरू कर दिया. उन्होंने मीनू के दोनों मोबाइल नंबरों की काल डिटेल्स निकलवाई. इस के अलावा एयरफोर्स ऐंड नेवल औफिसर्स अपार्टमेंट सोसायटी के गेट पर लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज भी खंगाली.

सीसीटीवी फुटेज में 2 कारें संदिग्ध नजर आईं, जिन में एक स्विफ्ट डिजायर थी. दोनों कारों की जांच की गई तो पता चला स्विफ्ट डिजायर कार का नंबर फरजी है. टीम को इसी कार पर शक हो गया.

जब गेट पर मौजूद गार्ड से स्विफ्ट डिजायर कार के बारे में पूछताछ की गई तो उस ने बताया कि 25 अप्रैल, 2019 की दोपहर को करीब 2 बजे एक अधेड़ आदमी मीनू जैन से मिलने आया था. जब उस से रजिस्टर में एंट्री करने के लिए कहा गया तो उस ने तुरंत मीनू जैन को फोन मिला दिया. मीनू ने बिना एंट्री किए उसे अंदर भेजने को कहा.

इस पर गार्ड ने उस व्यक्ति को मीनू के फ्लैट का पता बता कर उन के पास भेज दिया. शाम को दोनों घूमने के लिए सोसायटी से बाहर भी गए थे. यह सुन कर उन्होंने अनुमान लगाया कि मीनू जैन की हत्या में इसी आदमी का हाथ रहा होगा.

फोन की लोकेशन जयपुर की आ रही थी

मीनू जैन के दोनों मोबाइल फोन की काल डिटेल्स से पता चला कि उन का एक फोन घटना वाली रात की सुबह तक चालू था, उस के बाद उसे स्विच्ड औफ कर दिया गया था. जबकि दूसरा फोन चालू था, जिस की लोकेशन जयपुर की आ रही थी.

पुलिस के लिए यह अच्छी बात थी. पुलिस टीम गूगल मैप की मदद से 29 अप्रैल को जयपुर पहुंच गई. फिर दिल्ली पुलिस ने स्थानीय पुलिस की मदद से जयपुर के मुरलीपुरा इलाके में स्थित स्काइवे अपार्टमेंट में छापा मारा. वहां से दिनेश दीक्षित नाम के एक शख्स को हिरासत में ले लिया. उस के पास से सफेद रंग की वह स्विफ्ट डिजायर कार भी बरामद हो गई जो उस अपार्टमेंट के बाहर खड़ी थी.

जब उस से सख्ती से पूछताछ की गई तो उस ने 25 अप्रैल, 2019 की देर रात दिल्ली में मीनू जैन की हत्या और उस के फ्लैट में लूटपाट करने की बात स्वीकार कर ली.

ये क्राइम स्टोरी भी पढ़ें – प्यार में भटका पुजारी

पुलिस की तहकीकात और आरोपी दिनेश दीक्षित के बयान के अनुसार, मीनू जैन की हत्या के पीछे जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी—

52 वर्षीय मीनू जैन के पति वी.के. जैन एयरफोर्स में विंग कमांडर पद से रिटायर होने के बाद इंडिगो एयरलाइंस में बतौर पायलट तैनात थे. वह कामकाज के सिलसिले में ज्यादातर बाहर ही रहते थे. उन के दोनों बच्चे बड़े हो चुके थे.

बेटा नोएडा में एक मल्टीनैशनल कंपनी में जौब करता था, जो वीकेंड में अपने मम्मीपापा से मिलने द्वारका आ जाता था. बेटी मोना (काल्पनिक नाम) डाक्टर थी, जो गोवा में रहती थी. ऐसे में मीनू जैन घर पर अकेली रहती थीं. वह अपना समय बिताने के लिए सोशल मीडिया पर बहुत एक्टिव रहती थीं.

सोशल मीडिया में बने प्रोफाइल पसंद आने पर बड़ी आसानी से नए दोस्त बन जाते हैं. बाद में दोस्ती बढ़ जाने के बाद आप उन से अपने विचार शेयर कर सकते हैं. अगर बात बन जाती है तो चैटिंग करने वाले आपस में अपने पर्सनल मोबाइल नंबर का आदानप्रदान भी कर लेते हैं. इस प्रकार दोस्ती का सिलसिला आगे बढ़ जाता है. मीनू जैन और दिनेश दीक्षित के मामले में भी ऐसा ही हुआ.

खिलाड़ी था दिनेश दीक्षित

जयपुर निवासी 56 वर्षीय दिनेश दीक्षित बेहद रंगीनमिजाज व्यक्ति था. उस ने 2 शादियां कर रखी थीं. उस की एक बीवी अपने 2 बेटों के साथ गांव में रहती थी, जबकि दूसरी बीवी के साथ वह जयपुर में किराए के एक फ्लैट में रहता था. बताया जाता है कि सन 2015 में ठगी के एक मामले में वह जेल भी जा चुका है. 2 साल जेल में रहने के बाद वह सन 2017 में जेल से बाहर आया था. इस के बाद वह अच्छी नस्ल के कुत्ते बेचने का बिजनैस करने लगा था.

इसी दौरान उस की मुलाकात दिल्ली के एक सट्टेबाज से हुई, जिस की बातों से प्रभावित हो कर वह क्रिकेट के आईपीएल मैचों में सट्टा लगाने लगा. इस धंधे की शुरुआत में उसे कुछ फायदा तो हुआ लेकिन बाद में उसे काफी नुकसान हुआ. वह कई लोगों का कर्जदार हो गया. इस कर्ज से उबरने के लिए उस ने अमीर औरतों को अपने जाल में फंसा कर उन से रुपए ऐंठने की योजना बनाई.

इस के बाद उस ने एक सोशल साइट के माध्यम से खूबसूरत और मालदार शादीशुदा औरतों से दोस्ती करनी शुरू कर दी. जल्द ही उस की दोस्ती कई ऐसी औरतों से हो गई, जो खाली समय में सोशल साइट पर दोस्तों के साथ अपना टाइमपास किया करती थीं.

करीब 5 महीने पहले सोशल साइट पर दिनेश दीक्षित और मीनू जैन दोस्त बन गए. अब जब भी खाली वक्त मिलता, दोनों सोशल साइट पर चैटिंग करते रहते थे. इस से उन का मन बहल जाता था और बोरियत महसूस नहीं होती थी. शीघ्र ही उन की दोस्ती गहरी हो गई.

मीनू जैन के पति चूंकि इंडिगो एयरलाइंस में पायलट थे, इसलिए वह घर से अकसर बाहर ही रहते थे. इस बात का फायदा उठा कर मीनू जैन ने पति की अनुपस्थिति में दिनेश दीक्षित को अपने फ्लैट में बुलाना शुरू कर दिया.

ये क्राइम स्टोरी भी पढ़ें – वासना की कब्र पर : पत्नी ने क्यों की बेवफाई

भोलीभाली मीनू जैन फंस गईं दिनेश दीक्षित के जाल में

दिनेश ने देखा कि मीनू जैन साफ दिल की भोली भाली औरत हैं तो वह मन ही मन उन्हें लूटने की योजना बनाने लगा. करीब 5 महीने की दोस्ती के दौरान मीनू जैन को दिनेश दीक्षित पर इस कदर विश्वास हो गया कि जब भी उन के पति और बच्चे घर पर नहीं रहते, वह उसे मैसेज कर के अपने पास बुला लेतीं और फिर दोनों अपने दिल की तमाम हसरतें पूरी कर लिया करते थे.

25 अप्रैल, 2019 को भी वी.के. जैन अपने फ्लैट पर नहीं थे. पति की अनुपस्थिति का फायदा उठाते हुए मीनू जैन ने दिनेश दीक्षित को फ्लैट पर आने का मैसेज भेजा तो वह अपनी सफेद रंग की स्विफ्ट डिजायर कार से दोपहर के वक्त सोसायटी के गेट पर पहुंच गया.

जब सोसायटी के गेट पर मौजूद गार्ड ने उस का पता पूछा तो उस ने मीनू जैन को फोन कर गार्ड से उन की बात करा दी. मीनू जैन के कहने पर गार्ड ने उस की कार का नंबर रजिस्टर में नोट करने के बाद उसे अंदर जाने को कह दिया.

दिनेश दीक्षित मीनू जैन के फ्लैट में पहुंचा तो उसे सामने देख कर वह बहुत खुश हुईं. चाय और नमकीन लेने के बाद दोनों ही बातों में मशगूल हो गए. लगभग पौने 9 बजे मीनू और दिनेश दोनों डिनर के लिए कार से सोसायटी के बाहर निकले.

करीब आधे घंटे के बाद लौटते समय दिनेश ने मूड बनाने के लिए वोदका की एक बोतल और कुछ स्नैक्स खरीद लिए. सोसायटी में पहुंच कर दोनों ने ड्रिंक करनी शुरू कर दी. अपनी योजना को अंजाम देने के लिए दिनेश दीक्षित ने मीनू जैन को अधिक मात्रा में वोदका पिलाई और खुद कम पी.

रात करीब 2 बजे मीनू जैन शराब के नशे में धुत हो कर शिथिल पड़ गईं तो दिनेश दीक्षित ने मौका देख कर तकिए से उन का मुंह दबा दिया. जब मीनू ने छटपटा कर दम तोड़ दिया तो उस ने बड़े इत्मीनान से उन की सेफ में रखे करीब 50 लाख रुपए के आभूषण और नकदी निकाल ली.

मीनू जैन की अंगुली में एक बेशकीमती अंगूठी थी. उस ने वह अंगूठी भी उतार कर अपने पास रख ली. इस के अलावा उन के दोनों मोबाइल फोन भी उठा लिए. रात भर वह मीनू की लाश के पास बैठ कर शराब पीता रहा और तड़के 5 बजे फ्लैट से सारा लूट का सामान ले कर रोशनदान से बाहर निकल गया. फिर अपनी स्विफ्ट कार से जयपुर के लिए रवाना हो गया.

गुड़गांव के टोल टैक्स से आगे निकलने के बाद उस ने मीनू जैन के एक मोबाइल फोन को स्विच्ड औफ कर दिया. जबकि दूसरे फोन को वह स्विच्ड औफ करना भूल गया. जयपुर पहुंचने के बाद वह पूरी तरह निश्चिंत था कि पुलिस उस तक नहीं पहुंच सकेगी. लेकिन 29 अप्रैल, 2019 को इंसपेक्टर नवीन कुमार की टीम ने उसे गिरफ्तार कर लिया. उस के पास से मीनू जैन के यहां से लूटा गया सारा सामान बरामद कर लिया गया.

दिनेश दीक्षित से पूछताछ के बाद पुलिस ने उसे द्वारका (साउथ) थाने के थानाप्रभारी रामनिवास को सौंप दिया. थाना पुलिस ने दिनेश दीक्षित से पूछताछ के बाद उसे द्वारका कोर्ट में पेश कर 2 दिन के रिमांड पर ले लिया.

रिमांड अवधि पूरी होने के बाद उसे फिर से द्वारका कोर्ट में पेश कर 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. कथा लिखने तक दिनेश दीक्षित जेल में बंद था. केस की विवेचना थानाप्रभारी रामनिवास कर रहे थे.

—घटना में शामिल कुछ पात्रों के नाम बदल दिए गए हैं.

ये क्राइम स्टोरी भी पढ़ें – विकट की वासना का ऐसा था खूनी अंजाम

हमीरपुर सामूहिक हत्याकांड : क्या ये वाकई इंसाफ है?

उस दिन अप्रैल, 2019 की 19 तारीख थी. वैसे तो रविवार को छोड़ कर इलाहाबाद उच्च न्यायालय में हर रोज चहलपहल रहती है लेकिन उस दिन न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा व न्यायमूर्ति दिनेश कुमार सिंह की स्पैशल डबल बैंच में कुछ ज्यादा ही गहमागहमी थी. पूरा कक्ष लोगों से भरा था. पीडि़त व आरोपी पक्ष के दरजनों लोग भी कक्ष में मौजूद थे.

दरअसल, उस दिन एक ऐसे मुकदमे का फैसला सुनाया जाना था, जिस ने पूरे 22 साल पहले बुंदेलखंड क्षेत्र में सनसनी फैला दी थी. आरोपी पक्ष के लोग कयास लगा रहे थे कि इस मामले में सभी आरोपी बरी हो जाएंगे, जबकि पीडि़त पक्ष के लोगों को अदालत पर पूरा भरोसा था और उन्हें उम्मीद थी कि आरोपियों को सजा जरूर मिलेगी.

दरअसल, निचली अदालत से सभी आरोपी बरी कर दिए गए थे. इलाहाबाद उच्च न्यायालय में निचली अदालत के फैसले के खिलाफ सुनवाई हो रही थी. सब से दिलचस्प बात यह थी कि इस मामले में एक पूर्व सांसद व वर्तमान में बाहुबली विधायक अशोक सिंह चंदेल आरोपी था.

उस ने साम दाम दंड भेद से इस मुकदमे को प्रभावित करने का प्रयास भी किया था. काफी हद तक वह सफल भी हो गया था, लेकिन अब यह मामला उच्च न्यायालय में था और फैसले की घड़ी आ गई थी, जिस ने उस की धड़कनें तेज कर दी थीं. लोग फैसला सुनने के लिए उतावले थे.

स्पैशल डबल बैंच के न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा व न्यायमूर्ति दिनेश कुमार सिंह ने ठीक साढ़े 10 बजे न्यायालय कक्ष में प्रवेश किया और अपनीअपनी कुरसियों पर विराजमान हो गए. उन्होंने अभियोजन व बचाव पक्ष के वकीलों पर नजर डाली.

फिर अंतिम बार उन्होंने मुकदमे की फाइल का निरीक्षण किया. वकीलों की बहस पहले ही पूरी हो चुकी थी, इसलिए उन्होंने ठीक 11 बजे फैसला सुना दिया. फैसले की यह घड़ी आने में 22 साल 2 महीने का समय लग गया था.

आखिर ऐसा क्या मामला था, जिस का फैसला जानने के लिए लोगों में इतनी उत्सुकता थी. इस के लिए हमें 2 दशक पुरानी घटना को जानना होगा जो बेहद लोमहर्षक थी.

अशोक सिंह चंदेल मूलरूप से हमीरपुर जिले के थाना भरूआ सुमेरपुर के टिकरौली गांव का रहने वाला था. लेकिन उस की शिक्षादीक्षा कानपुर में हुई थी. छात्र जीवन में ही उस ने राजनीति का ककहरा सीख लिया था.

कानपुर शहर के किदवईनगर के एम ब्लौक में पिता का पुराना मकान था. इसी मकान में रह कर उस ने पढ़ाई पूरी की थी. अशोक सिंह चंदेल तेजतर्रार था. अपनी बातों से सामने वाले व्यक्ति को प्रभावित कर लेना उस की विशेषता थी. पढ़ाई के दौरान उस ने डीवीएस कालेज से छात्र संघ के कई चुनाव लड़े, किंतु सफलता नहीं मिली. वह जिद्दी और गुस्सैल स्वभाव का था, वह विरोधियों को मात देने में भी माहिर था.

सन 1985 में अशोक सिंह का रुझान व्यापार की तरफ हुआ. काफी सोचविचार के बाद उस ने एम ब्लौक, किदवई नगर में पंजाब नैशनल बैंक वाली बिल्डिंग में शालीमार फुटवियर के नाम से जूतेचप्पल की दुकान खोली. 14 नवंबर, 1985 को धनतेरस का त्यौहार था. इसी दिन दुकान का उद्घाटन था. उद्घाटन के बाद उस की दुकान पर ग्राहकों का आनाजाना शुरू हो गया था और बिक्री होने लगी थी.

शाम 5 बजे बाबूपुरवा कालोनी निवासी कांग्रेस नेता रणधीर गुप्ता उर्फ मामाजी अशोक चंदेल की दुकान पर चप्पल लेने पहुंचे. चूंकि दोनों एकदूसरे से परिचित थे, अत: बातचीत के दौरान रणधीर गुप्ता ने जूतेचप्पल की दुकान खोलने को ले कर अशोक पर कटाक्ष कर दिया. अशोक ने उस समय रणधीर से कुछ नहीं कहा. चप्पल खरीद कर वह अपने घर चले गए.

रात 10 बजे रणधीर गुप्ता किसी काम से थाना बाबूपुरवा गए थे. जब वह वहां से लौट रहे थे तो अशोक की दुकान के सामने उन के स्कूटर का पैट्रोल खत्म हो गया. अशोक नशे में धुत बंदूक लिए दुकान से बाहर खड़ा था. दिन में किए गए रणधीर के कटाक्ष को ले कर दोनों में कहासुनी होने लगी.

इस कहासुनी में अशोक सिंह चंदेल ने कांग्रेस नेता रणधीर गुप्ता को गोली मार दी. गोली पेट में लगी और वह गिर पड़े. गोली मारने के बाद अशोक सिंह चंदेल वहां से फरार हो गया.

यह जानकारी रणधीर गुप्ता के घर वालों को हुई तो उन की पत्नी कमलेश गुप्ता रोतेपीटते परिजनों के साथ मौके पर पहुंची और पति को उर्सला अस्पताल ले गई. लेकिन डाक्टरों के प्रयास के बावजूद रणधीर गुप्ता की जान नहीं बच सकी.

थाना बाबूपुरवा में अशोक सिंह चंदेल के खिलाफ हत्या का मुकदमा कायम हुआ. पुलिस ने अशोक को पकड़ने के लिए एड़ीचोटी का जोर लगाया लेकिन वह पकड़ा नहीं गया. आखिर में तत्कालीन एसएसपी ए.के. मित्रा की अगुवाई में एसपी (सिटी) राजगोपाल ने कोर्ट के आदेश पर अशोक सिंह चंदेल के एम ब्लौक किदवईनगर स्थित पुराने घर की कुर्की कर ली.

बाद में एक साल बाद अशोक ने अदालत में सरेंडर कर दिया. कुछ ही दिनों में उस की जमानत हो गई. बाद में अशोक सिंह चंदेल ने कानपुर शहर छोड़ दिया और अपने गृह जिला हमीरपुर में रहने लगा. बहुत कम समय में अशोक सिंह चंदेल ने ठाकुरों में अपनी पैठ बना ली.

वह गरीब तबके के लोगों की मदद में जुट गया और राजनीतिक मंच पर बढ़चढ़ कर हिस्सा लेने लगा. अशोक सिंह चंदेल ने अपनी राजनीतिक गतिविधियां हमीरपुर तक ही सीमित नहीं रखीं, बल्कि पूरे चित्रकूट मंडल में बढ़ा दीं. उस ने अपने समर्थकों की पूरी फौज खड़ी कर ली.

सन 1989 में उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव हुए. यह चुनाव अशोक सिंह चंदेल ने निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर हमीरपुर सदर से लड़ा और दूसरी राजनीतिक पार्टियों के प्रत्याशियों को धूल चटाते हुए उस ने जीत हासिल की.

इस अप्रत्याशित जीत से अशोक सिंह चंदेल का राजनीतिक कद बढ़ गया. उस ने हमीरपुर में मकान खरीद लिया और इस मकान में दरबार लगाने लगा. वह गरीबों का मसीहा बन गया था. धीरेधीरे अशोक सिंह चंदेल की क्षेत्र में प्रतिष्ठा बढ़ने लगी.

अशोक सिंह का राजनीतिक कद बढ़ा तो उस के राजनीतिक प्रतिद्वंदी भी सक्रिय हो गए. इन प्रतिद्वंदियों में सब से अधिक सक्रिय थे राजीव शुक्ला. वह मूलरूप से हमीरपुर शहर के रमेडी मोहल्ला के रहने वाले थे. उन के पिता भीष्म प्रसाद शुक्ला प्रतिष्ठित व्यक्ति थे. गरीबों और असहाय लोगों की मदद करना वह अपना फर्ज समझते थे. रमेडी तथा आसपास के लोग उन्हें लंबरदार कहते थे.

भीष्म प्रसाद शुक्ला के 3 बेटे थे राकेश शुक्ला, राजेश शुक्ला और राजीव शुक्ला. भीष्म प्रसाद भाजपा के समर्थक थे. उन की मृत्यु के बाद तीनों बेटे भी भाजपा के समर्थक बन गए. तीनों भाइयों में राजीव शुक्ला सब से ज्यादा पढ़ेलिखे थे. वह व्यापार के साथसाथ वकालत के पेशे से भी जुड़े थे. पिता की तरह राजीव शुक्ला और उन के भाई भी विधायक अशोक सिंह चंदेल के धुर विरोधी थे.

सन 1993 के विधानसभा चुनाव में अशोक सिंह चंदेल जनता दल में शामिल हो गया. पार्टी ने उसे टिकट दिया और वह चुनाव जीत गया. यह चुनाव जीतने के बाद उस के विरोधियों के हौसले पस्त पड़ गए थे. विरोधियों को धूल चटाने के लिए अशोक सिंह चंदेल अब और ज्यादा सक्रिय रहने लगा.

चंदेल और शुक्ला परिवार में राजीतिक दुश्मनी सन 1996 के विधानसभा चुनाव में खुल कर सामने आ गई. इस चुनाव में राजीव शुक्ला गुट ने अशोक सिंह चंदेल का खुल कर विरोध किया. नतीजतन अशोक सिंह चंदेल चुनाव हार गया.

हार का ठीकरा चंदेल ने राजीव शुक्ला पर फोड़ा. अब दोनों के बीच प्रतिद्वंदिता बढ़ गई और दोनों एकदूसरे के दुश्मन बन गए. दोनों गुट जब भी आमनेसामने होते तो उन में तनातनी बढ़ जाती थी.

शुरू हुई राजनीति की खूनी दुश्मनी

अशोक सिंह चंदेल के पास दरजनों सिपहसालार थे, जो उस की सुरक्षा में लगे रहते थे. राजीव शुक्ला ने भी 2 सुरक्षागार्डों वेदप्रकाश नायक व श्रीकांत पांडेय को रख लिया था.

शुक्ला बंधु जहां भी जाते थे, ये दोनों सुरक्षा गार्ड उन के साथ रहते थे. अशोक सिंह चंदेल के मन में हार की ऐसी फांस चुभी थी जो उसे रातदिन सोने नहीं देती थी. आखिर उस ने इस फांस को निकालने का निश्चय किया.

26 जनवरी, 1997 की शाम करीब 7 बजे अपने एक दरजन सिपहसालारों के साथ अशोक सिंह चंदेल अपने दोस्त नसीम बंदूक वाले के घर पहुंचा. नसीम बंदूक वाला हमीरपुर शहर के सुभाष बाजार सब्जीमंडी के पास रहता था. बहाना था रमजान पर मिलने का. सड़क पर अशोक चंदेल व उस के समर्थकों की कारें खड़ी थीं तभी दूसरी ओर से राजीव शुक्ला की कारें आईं.

कार में राजीव शुक्ला के अलावा उन के बड़े भाई राकेश शुक्ला, राजेश शुक्ला, भतीजा अंबुज तथा दोनों निजी गार्ड थे. दरअसल राकेश शुक्ला अपने भतीजे को ले कर उस के जन्मदिन के लिए कुछ सामान खरीदने जा रहे थे.

चूंकि अशोक चंदेल और उस के समर्थकों की कारें सड़क पर आड़ीतिरछी खड़ी थीं, ऐसे में राजीव शुक्ला ने कारें ठीक से लगाने को कहा ताकि उन की कारें निकल सकें. अशोक चंदेल के गुर्गे जानते थे कि राजीव शुक्ला उन के आका का दुश्मन है, इसलिए गुर्गों ने कारें हटाने से मना कर दिया.

इसी बात पर विवाद शुरू हो गया. विवाद बढ़ता देख नसीम और अशोक चंदेल घर से बाहर आ गए. राजीव शुक्ला व उन के भाइयों से विवाद होता देख अशोक चंदेल का पारा सातवें आसमान पर चढ़ गया. फिर क्या था, तड़ातड़ गोलियां चलने लगीं.

चौतरफा गोलियों की तड़तड़ाहट से सुभाष बाजार गूंज उठा. कुछ देर बाद फायरिंग का शोर थमा तो चीत्कारों से लोगों के दिल दहलने लगे. सड़क खून से लाल थी और थोड़ीथोड़ी दूर पर मासूम बच्चे सहित 5 लोगों की खून से लथपथ लाशें पड़ी थीं.

मरने वालों में राजेश शुक्ला, राकेश शुक्ला, राजेश का बेटा अंबुज शुक्ला तथा उन के सुरक्षा गार्ड वेदप्रकाश नायक व श्रीकांत पांडेय थे. हमलावर दोनों सुरक्षा गार्डों की बंदूकें भी लूट कर ले गए थे.

इस सामूहिक नरसंहार से हमीरपुर शहर में सनसनी फैल गई. घटना की सूचना मिलते ही एसपी एस.के. माथुर भारी पुलिस बल के साथ घटनास्थल पर पहुंचे. उन्होंने घायल राजीव शुक्ला व अन्य को जिला अस्पताल भेजा और उन की सुरक्षा में फोर्स लगा दी. इस के बाद माथुर ने नसीम बंदूक वाले के मकान पर छापा मारा. छापा पड़ते ही वहां छिपे हत्यारों ने पुलिस पर भी फायरिंग शुरू कर दी.

पुलिस ने भी मोर्चा संभाला, लेकिन हत्यारे चकमा दे कर भाग गए थे. इस के बाद एसपी माथुर ने मृतकों के शवों को पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दिया.

इधर राजीव शुक्ला अस्पताल में भरती थे. वह रात में ही घायलावस्था में पुलिस सुरक्षा के बीच थाना हमीरपुर कोतवाली पहुंचे और पूर्व विधायक अशोक सिंह चंदेल, सुमेरपुर निवासी श्याम सिंह, पचखुरा खुर्द के साहब सिंह, झंडू सिंह, हाथी दरवाजा के डब्बू सिंह, सुभाष बाजार निवासी नसीम, सब्जीमंडी निवासी प्रदीप सिंह, उत्तम सिंह, भान सिंह एडवोकेट तथा एक सरकारी गनर के खिलाफ इस मामले की रिपोर्ट दर्ज करा दी. यह रिपोर्ट भादंवि की धारा 147, 148, 149, 307, 302, 395, 34 के तहत दर्ज की गई.

आरोपियों को गिरफ्तार करने के लिए पुलिस जगहजगह छापेमारी करने लगी. पुलिस की पकड़ से बचने के लिए ज्यादातर नामजद आरोपियों ने हमीरपुर की अदालत में आत्मसमर्पण कर दिया था. वहां से उन्हें जेल भेज दिया गया था.

लेकिन पूर्व विधायक अशोक सिंह चंदेल राजनीतिक आकाओं की छत्रछाया में एक साल तक छिपता रहा. उस के बाद जज से सांठगांठ कर के एक दिन वह कोर्ट में हाजिर हो गया. गंभीर केस में भी जज आर.वी. लाल ने उसे उसी दिन जमानत दे दी.

न्यायालय पर हावी रहा अशोक चंदेल

न्यायिक अधिकारी के इस फैसले से राजीव शुक्ला को अचरज हुआ. उन्होंने पैरवी करते हुए हाईकोर्ट से अशोक सिंह चंदेल की जमानत निरस्त करवा दी, जिस से उसे जेल जाना पड़ा.

यही नहीं, राजीव शुक्ला ने जमानत देने वाले जज आर.वी. लाल की भी हाईकोर्ट में शिकायत की. शिकायत सही पाए जाने पर हाईकोर्ट ने जज आर.वी. लाल को निलंबित कर दिया और उन के खिलाफ जांच बैठा दी. जांच रिपोर्ट आने के बाद जज आर.वी. लाल को बर्खास्त कर दिया गया.

इधर हाईकोर्ट से जमानत खारिज होने के बाद सामूहिक नरसंहार के मुख्य आरोपी अशोक चंदेल ने सुप्रीम कोर्ट की शरण ली. सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के बाद हाईकोर्ट के जमानत निरस्त वाले फैसले पर रोक लगा दी, जिस से अशोक चंदेल जेल से बाहर तो नहीं आ सका लेकिन उसे राहत जरूर मिल गई.

इस के बाद उस ने अपने खास लोगों के मार्फत बहुजन समाज पार्टी की प्रमुख सुश्री मायावती से संपर्क साधा और सन 1999 में होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए टिकट मांगा. मायावती ने अशोक सिंह चंदेल की हिस्ट्री खंगाली और फिर बाहुबली मान कर उसे टिकट दे दिया.

सन 1999 के लोकसभा चुनाव में चंदेल को टिकट मिला तो उस ने चुनाव का संचालन जेल से ही किया और पूरी ताकत झोंक दी. परिणामस्वरूप वह जेल से ही चुनाव जीत गया.

अब तक कोतवाली हमीरपुर पुलिस अशोक सिंह चंदेल समेत 11 आरोपियों की चार्जशीट कोर्ट में दाखिल कर चुकी थी. सामूहिक नरसंहार का यह मामला अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश अश्वनी कुमार की अदालत में विचाराधीन था. इसी दौरान एक आरोपी झंडू सिंह की बीमारी की वजह से मौत हो चुकी थी.

न्यायिक अधिकारी अश्वनी कुमार ने 17 जुलाई, 2002 को इस बहुचर्चित हत्याकांड का फैसला सुनाया. उन्होंने मुख्य आरोपी अशोक सिंह चंदेल सहित सभी 10 आरोपियों को दोषमुक्त कर दिया.

अदालत के इस फैसले से राजीव शुक्ला को तगड़ा झटका लगा. लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी. वह समझ गए कि अशोक सिंह चंदेल ने करोड़ों का खेल खेल कर जज को अपने पक्ष में कर लिया है. अत: राजीव शुक्ला ने इस निर्णय के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील की. साथ ही न्यायिक अधिकारी पर मनमाना फैसला सुनाने का आरोप लगाया.

पीडि़त राजीव शुक्ला की शिकायत पर हाईकोर्ट ने विजिलेंस और जुडीशियल जांच कराई, जिस में न्यायिक अधिकारी अश्वनी कुमार को मुकदमे में जानबूझ कर कपट व कदाचार से ऐसा निर्णय देने का आरोप सिद्ध हुआ. जांच अधिकारी की आख्या और हाईकोर्ट की संस्तुति पर तत्कालीन गवर्नर ने न्यायिक अधिकारी अश्वनी कुमार को बर्खास्त करने की मंजूरी दे दी.

वादी राजीव शुक्ला की आंखों के सामने उन के 2 भाइयों व भतीजे को गोलियों से छलनी किया गया था. जब भी वह दृश्य उन की आंखों के सामने आता तो उन का कलेजा कांप उठता था. यही कारण था कि राजीव ने न्याय पाने के लिए सब कुछ दांव पर लगा दिया था.

जब घटना घटी थी तब उन का खुद का व्यवसाय था, लेकिन घटना के बाद वह दिनरात आरोपियों को सजा दिलाने में जुट गए थे. हालांकि उन्हें सुरक्षा मिली थी, फिर भी पूरा परिवार दहशत में रहता था.

राजनीति की गोटियां बिछाता रहा अशोक चंदेल

राजीव शुक्ला जहां न्याय के लिए भटक रहे थे, वहीं अशोक सिंह चंदेल अपनी राजनीतिक गोटियां बिछा रहा था. चूंकि चंदेल सहित सभी आरोपी दोषमुक्त करार दिए गए थे, अत: अशोक चंदेल खुला घूम कर अपनी राजनीतिक जमीन मजबूत करने में जुटा था.

अशोक सिंह चंदेल दलबदलू था. वह जिस पार्टी का पलड़ा भारी देखता, उसी पार्टी का दामन थाम लेता था. 2007 के विधानसभा चुनाव में उस ने बसपा से भी नाता तोड़ कर सपा का दामन थाम लिया. सपा ने उसे टिकट दिया और वह जीत हासिल कर तीसरी बार हमीरपुर सदर से विधायक बन गया.

अगले 5 साल तक उस ने पार्टी के लिए कोई खास काम नहीं किया. इस से नाराज हो कर सन 2012 के विधानसभा चुनाव में सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने उसे टिकट नहीं दिया. तब उस ने सपा छोड़ कर बसपा व भाजपा से टिकट पाने की कोशिश की लेकिन दोनों पार्टियों ने उसे टिकट देने से साफ इनकार कर दिया. इस के बाद उस ने मजबूर हो कर पीस पार्टी से चुनाव लड़ा और हार गया.

अशोक सिंह चंदेल राजनीति का शातिर खिलाड़ी बन चुका था. वह हार मानने वालों में से नहीं था. अत: सन 2017 के विधानसभा चुनाव में उस ने फिर से जुगत लगाई और संघ के एक उच्च पदाधिकारी की मदद से भाजपा से नजदीकियां बढ़ाईं.

परिणामस्वरूप अशोक चंदेल भाजपा से हमीरपुर सदर से टिकट पाने में सफल हो गया. राजीव शुक्ला भी भाजपा समर्थक थे. भाजपा पदाधिकारियों में उन की भी पैठ थी. पार्टी द्वारा अशोक चंदेल को टिकट देने का उन्होंने विरोध भी किया.

इतना ही नहीं, समर्थकों के साथ लखनऊ जा कर धरनाप्रदर्शन भी किया. केंद्रीय मंत्री उमा भारती ने भी चंदेल को टिकट देने का विरोध किया. फिर भी उस का टिकट नहीं कटा. मोदी लहर में चंदेल ने इस सीट पर विजय हासिल की और चौथी बार हमीरपुर सदर से विधायक बना.

इधर कई सालों से सामूहिक हत्या का मामला हाईकोर्ट में चल रहा था. तारीखों पर तारीखें मिल रही थीं. लेकिन निर्णय नहीं हो पा रहा था. देरी होने पर राजीव शुक्ला ने सुप्रीम कोर्ट में जल्द सुनवाई की गुहार लगाई. सुप्रीम कोर्ट ने सामूहिक हत्याकांड की परिस्थितियों को देखते हुए निर्देश दिया कि वह मुख्य न्यायाधीश इलाहाबाद को प्रार्थनापत्र दें.

इस के बाद राजीव शुक्ला ने सर्वोच्च न्यायालय के दिशानिर्देशों के तहत इलाहाबाद हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को प्रार्थनापत्र दिया और जल्द सुनवाई की गुहार लगाई. मुख्य न्यायाधीश के निर्देश पर एक स्पैशल डबल बैंच का गठन हुआ, जिस में न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा तथा न्यायमूर्ति दिनेश कुमार सिंह ने सुनवाई शुरू की. सुनवाई शुरू हुई तो राजीव शुक्ला को जल्द न्याय पाने की आस जगी.

सामूहिक हत्याकांड मामले में अभियोजन पक्ष की ओर से विशेष अधिवक्ता ओंकारनाथ दुबे ने बहस की और बचावपक्ष की ओर से अधिवक्ता फूल सिंह ने. राज्य सरकार की ओर से महाधिवक्ता कृष्ण पहल भी इस बहस में शामिल थे. वकीलों की बहस और गवाहों की जिरह पूरी होने के बाद उच्च न्यायालय की स्पैशल डबल बैंच ने सभी आरोपियों को दोषी माना और अपना फैसला सुरक्षित कर लिया.

आखिर मिल ही गया न्याय

19 अप्रैल, 2019 को हाईकोर्ट की स्पैशल डबल बैंच के न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति दिनेश कुमार ने इस मामले में फैसला सुनाया. खंडपीठ ने निचली अदालत के फैसले को निरस्त करते हुए सभी आरोपियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई.

सजा पाने वालों में विधायक अशोक सिंह चंदेल तथा उस के सहयोगी रघुवीर सिंह, डब्बू सिंह, उत्तम सिंह, प्रदीप सिंह, साहब सिंह, श्याम सिंह, भान सिंह, रूक्कू तथा नसीम थे. कोर्ट ने सभी दोषियों को सीजेएम हमीरपुर की अदालत में सरेंडर करने के आदेश दिए.

इलाहाबाद हाईकोर्ट के इस फैसले से जहां विधायक खेमे में मायूसी छा गई, वहीं पीडि़त परिवारों में खुशी के आंसू छलक आए. साथ ही 22 साल पहले हुआ वीभत्स हत्याकांड फिर से जेहन में ताजा हो गया.

पीडि़त परिवार को मिली तसल्ली

राजीव शुक्ला के आवास पर मोमबत्तियां जला कर खुशी मनाई गई तथा दिवंगत सभी 5 लोगों को श्रद्धांजलि दी गई. देर शाम उन के घर की महिलाओं ने घर की रेलिंग व चबूतरे पर मोमबत्तियां जलाईं.

उधर कांग्रेस नेता रणधीर गुप्ता की पत्नी कमलेश गुप्ता ने कहा कि उसे इस बात की तसल्ली हुई कि भले ही उस के पति की हत्या के मामले में न सही, पर दूसरे केस में बाहुबली विधायक अशोक चंदेल और उस के गुर्गों को सजा तो मिली.

बेवा कमलेश गुप्ता ने बताया कि पति रणधीर गुप्ता की हत्या के बाद उन का परिवार आर्थिक रूप से टूट गया था. हालात यह हैं कि आज दोजून की रोटी के भी लाले हैं. उन्होंने बताया कि पति किदवईनगर के ई-ब्लौक में एक हार्डवेयर की दुकान चलाते थे. साथ ही प्लंबिंग के काम की ठेकेदारी भी करते थे.

घर पर विश्व शिक्षा निकेतन के नाम से स्कूल भी चलता था. उन की हत्या के बाद बुजुर्ग ससुर ने दुकान संभाली पर वह नहीं चली और बंद हो गई. आर्थिक रूप से कमर टूटी तो बिजली का बिल भी बकाया होता चला गया. आखिर में बिजली कट गई. तब से आज तक परिवार अंधेरे में ही रहता है.

विधवा कमलेश कुछ देर शून्य में ताकती रही फिर बोली कि 40 साल की बड़ी बेटी नमन अविवाहित है. बीए तक पढ़ाई करने के बाद भी उसे नौकरी नहीं मिली. एक बेटा अखिल नौबस्ता में रह कर कार ड्राइवर की नौकरी करता है. सब से छोटा बेटा नवीन नौबस्ता की एक ट्रांसपोर्ट कंपनी में काम करता है. उसे 5 हजार रुपया वेतन मिलता है.

नवीन की नौकरी से ही घर चलता है. जेठ बी.एल. गुप्ता जो वडोदरा में रहते हैं, तथा पीलीभीत में रहने वाली ननद मीरा गुप्ता उन की आर्थिक मदद करती हैं, जिस से परिवार का भरणपोषण होता रहता है.

उन्होंने बताया कि आर्थिक परेशानी के कारण ही वह पति की हत्या के मुकदमे में पैरवी नहीं कर सकीं, जिस से मामला अभी भी अदालत में विचाराधीन है. अशोक सिंह चंदेल बाहुबली विधायक है. उस के आगे मुझ जैसी विधवा भला कैसे टिक सकती है. फिर भी सुकून है कि उसे दूसरे मामले में उम्रकैद की सजा तो मिली.

4 बार विधायक और एक बार सांसद रहे अशोक सिंह चंदेल ने अकूत संपत्ति अर्जित की थी. राजनीति में आने के बाद उस ने विवादित प्रौपर्टी खरीदने का खेल शुरू किया. कानपुर किदवईनगर के एम ब्लौक में उस का तिमंजिला मकान पहले से था. उस के बाद उस ने जूही थाने के सामने एक वृद्ध महिला का मकान औनेपौने दाम में खरीदा और फिर तीन मंजिला कोठी बनाई.

इसी तरह उस ने ई-ब्लौक किदवई नगर में गुप्ता बंधुओं का विवादित मकान खरीदा. इस समय इस मकान में पहली मंजिल पर देना बैंक है. अशोक सिंह चंदेल ने जिस पीएनबी बैंक वाली बिल्डिंग में जूतेचप्पल की दुकान खोली थी, उस पर भी उस का कब्जा है.

अशोक सिंह चंदेल ने विधायक कोटे से भी 2 मकान आवंटित करा लिए थे. एक मकान गाजियाबाद में आवंटित कराया तथा दूसरा जूही कला कानपुर में. बाद में एक कोटे से 2 मकानों का आवंटन सामने आने पर मामला फंस गया. जब यह मामला कोर्ट गया तो कोर्ट ने उस का एक मकान निरस्त कर दिया. इन सब के अलावा भी हमीरपुर, बांदा, चित्रकूट आदि शहरों में उस की करोड़ों की प्रौपर्टी है.

संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप ने इस बारे में बताया कि उच्च न्यायालय से आजीवन सजा मिलने के बाद अशोक सिंह चंदेल की विधानसभा की सदस्यता रद्द हो जाएगी. जनप्रतिनिधित्व अधिनियम के अनुसार 2 वर्ष से अधिक सजा मिलने पर संबंधित व्यक्ति जनप्रतिनिधित्व के अयोग्य हो जाता है.

इस नियम के तहत हमीरपुर सदर विधानसभा क्षेत्र में उपचुनाव निश्चित है. इस के लिए हाईकोर्ट से सूचना सचिवालय को जाएगी. इस के बाद सचिवालय इस सीट को रिक्त कर इस की सूचना चुनाव आयोग को देगा और चुनाव आयोग इस सीट पर उपचुनाव का कार्यक्रम तय करेगा.

जिस समय उच्च न्यायालय द्वारा यह फैसला सुनाया गया, विधायक अशोक सिंह चंदेल हमीरपुर स्थित अपनी कोठी में था. पत्रकारों ने जब उसे उम्रकैद की सजा सुनाए जाने की जानकारी दी तो वह बोला कि उस ने हमेशा गरीबों के आंसू पोंछने का काम किया है. कोई भी ऐसा काम नहीं किया कि उसे सजा मिले. फिर भी अदालत का फैसला स्वीकार्य है. वह न्याय के लिए सुप्रीम कोर्ट जाएगा.

बहरहाल कथा संकलन तक विधायक अशोक सिंह चंदेल के अलावा सभी दोषियों ने हमीरपुर की सीजेएम कोर्ट में सरेंडर कर दिया था, जहां से सजा भुगतने को उन्हें जिला जेल भेज दिया गया था.

—कथा कोर्ट के फैसले तथा लेखक द्वारा एकत्र की गई जानकारी पर आधारित

श्रेयांश-प्रियांश हत्याकांड : मासूमियत बनी मौत

50 करोड़ का खेल : भीलवाड़ा का बिल्डर अपहरण कांड

अंजाम-ए-साजिश : एक निर्दोष लड़की की हत्या

 रेलवे लाइनों के किनारे पड़ी बोरी को लोग आश्चर्य से देख रहे थे. बोरी को देख कर सभी अंदाजा लगा रहे थे कि बोरी में शायद किसी की लाश होगी. मामला संदिग्ध था, इसलिए वहां मौजूद किसी शख्स ने फोन से यह सूचना दिल्ली पुलिस के कंट्रोलरूम को दे दी.

कुछ ही देर में पुलिस कंट्रोलरूम की गाड़ी मौके पर पहुंच गई. पुलिस ने जब बोरी खोली तो उस में एक युवती की लाश निकली. लड़की की लाश देख कर लोग तरहतरह की चर्चाएं करने लगे.

जिस जगह लाश वाली बोरी पड़ी मिली, वह इलाका दक्षिणपूर्वी दिल्ली के थाना सरिता विहार क्षेत्र में आता है. लिहाजा पुलिस कंट्रोलरूम से यह जानकारी सरिता विहार थाने को दे दी गई. सूचना मिलते ही एसएचओ अजब सिंह, इंसपेक्टर सुमन कुमार के साथ मौके पर पहुंच गए.

एसएचओ अजब सिंह ने लाश बोरी से बाहर निकलवाने से पहले क्राइम इनवैस्टीगेशन टीम को मौके पर बुला लिया और आला अधिकारियों को भी इस की जानकारी दे दी. कुछ ही देर में डीसीपी चिन्मय बिस्वाल और एसीपी ढाल सिंह भी वहां पहुंच गए. फोरैंसिक टीम का काम निपट जाने के बाद डीसीपी और एसीपी ने भी लाश का मुआयना किया.

मृतका की उम्र करीब 24-25 साल थी. वहां मौजूद लोगों में से कोई भी उस की शिनाख्त नहीं कर सका तो यही लगा कि लड़की इस क्षेत्र की नहीं है. पुलिस ने जब उस के कपड़ों की तलाशी ली तो उस के ट्राउजर की जेब से एक नोट मिला.

उस नोट पर लिखा था, ‘मेरे साथ अश्लील हरकत हुई और न्यूड वीडियो भी बनाया गया. यह काम आरुष और उस के 2 दोस्तों ने किया है.’

नोट पर एक मोबाइल नंबर भी लिखा था. पुलिस ने नोट जाब्जे में ले कर लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी.

पुलिस के सामने पहली समस्या लाश की शिनाख्त की थी. उधर बरामद किए गए नोट पर जो फोन नंबर लिखा था, पुलिस ने उस नंबर पर काल की तो वह उत्तरी दिल्ली के बुराड़ी में रहने वाले आरुष का निकला. नोट पर भी आरुष का नाम लिखा हुआ था.

सरिता विहार एसएचओ अजब सिंह ने आरुष को थाने बुलवा लिया. उन्होंने मृतका का फोटो दिखाते हुए उस से संबंधों के बारे में पूछा तो आरुष ने युवती को पहचानने से इनकार कर दिया. उस ने कहा कि वह उसे जानता तक नहीं है. किसी ने उसे फंसाने के लिए यह साजिश रची है.

आरुष के हावभाव से भी पुलिस को लग रहा था कि वह बेकसूर है. फिर भी अगली जांच तक उन्होंने उसे थाने में बिठाए रखा. उधर डीसीपी ने जिले के समस्त बीट औफिसरों को युवती की लाश के फोटो देते हुए शिनाख्त कराने की कोशिश करने के निर्देश दे दिए. डीसीपी चिन्मय बिस्वाल की यह कोशिश रंग लाई.

पता चला कि मरने वाली युवती दक्षिणपूर्वी जिले के अंबेडकर नगर थानाक्षेत्र के दक्षिणपुरी की रहने वाली सुरभि (परिवर्तित नाम) थी. उस के पिता सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी करते हैं. पुलिस ने सुरभि के घर वालों से बात की. उन्होंने बताया कि नौकरी के लिए किसी का फोन आया था. उस के बाद वह इंटरव्यू के सिलसिले में घर से गई थी.

पुलिस ने सुरभि के घर वालों से उस की हैंडराइटिंग के सैंपल लिए और उस हैंडराइटिंग का मिलान नोट पर लिखी राइटिंग से किया तो दोनों समान पाई गईं. यानी दोनों राइटिंग सुरभि की ही पाई गईं.

पुलिस ने आरुष को थाने में बैठा रखा था. सुरभि के घर वालों से आरुष का सामना कराते हुए उस के बारे में पूछा तो घर वालों ने आरुष को पहचानने से इनकार कर दिया.

नौकरी के लिए फोन किस ने किया था, यह जानने के लिए एसएचओ अजब सिंह ने मृतका के फोन की काल डिटेल्स निकलवाई. उस में एक नंबर ऐसा मिला, जिस से सुरभि के फोन पर कई बार काल की गई थीं और उस से बात भी हुई थी. जांच में वह फोन नंबर संगम विहार के रहने वाले दिनेश नाम के शख्स का निकला. पुलिस काल डिटेल्स के सहारे दिनेश तक पहुंच गई.

थाने में दिनेश से सुरभि की हत्या के संबंध में सख्ती से पूछताछ की गई तो उस ने कबूल कर लिया कि अपने दोस्तों के साथ मिल कर उस ने पहले सुरभि के साथ सामूहिक बलात्कार किया. इस के बाद उन लोगों ने उस की हत्या कर लाश ठिकाने लगा दी.

उस ने बताया कि वह सुरभि को नहीं जानता था. फिर भी उस ने उस की हत्या एक ऐसी साजिश के तहत की थी, जिस का खामियाजा जेल में बंद एक बदमाश को उठाना पड़े. उस ने सुरभि की हत्या की जो कहानी बताई, वह किसी फिल्मी कहानी की तरह थी—

दिल्ली के भलस्वा क्षेत्र में हुए एक मर्डर के आरोप में धनंजय को जेल जाना पड़ा. जेल में बंटी नाम के एक कैदी से धनंजय का झगड़ा हो गया था. बंटी उत्तरी दिल्ली के बुराड़ी क्षेत्र का रहने वाला था.

बंटी भी एक नामी बदमाश था. दूसरे कैदियों ने दोनों का बीचबचाव करा दिया. दोनों ही बदमाश जिद्दी स्वभाव के थे, लिहाजा किसी न किसी बात को ले कर वे आपस में झगड़ते रहते थे. इस तरह उन के बीच पक्की दुश्मनी हो गई.

उसी दौरान दिनेश झपटमारी के मामले में जेल गया. वहां उस की दोस्ती धीरेंद्र नाम के एक बदमाश से हुई. जेल में ही धीरेंद्र की दुश्मनी बुराड़ी के रहने वाले बंटी से हो गई. धीरेंद्र ने जेल में ही तय कर लिया कि वह बंटी को सबक सिखा कर रहेगा.

करीब 2 महीने पहले दिनेश और धीरेंद्र जमानत पर जेल से बाहर आ गए. जेल से छूटने के बाद दिनेश और धीरेंद्र एक कमरे में साथसाथ संगम विहार इलाके में रहने लगे.

उन्होंने बंटी के परिवार आदि के बारे में जानकारी जुटानी शुरू कर दी. उन्हें पता चला कि बंटी के पास 200 वर्गगज का एक प्लौट है. उस प्लौट की देखभाल बंटी का भाई आरुष करता है. कोशिश कर के उन्होंने आरुष का फोन नंबर भी हासिल कर लिया.

इस के बाद दिनेश और धीरेंद्र एक गहरी साजिश का तानाबाना बुनने लगे. उन्होंने सोचा कि बंटी के भाई आरुष को किसी गंभीर केस में फंसा कर जेल भिजवा दिया जाए. उस के जेल जाने के बाद उस के 200 वर्गगज के प्लौट पर कब्जा कर लेंगे. यह फूलप्रूफ प्लान बनाने के बाद वह उसे अंजाम देने की रूपरेखा बनाने लगे.

दिनेश और धीरेंद्र ने इस योजना में अपने दोस्त सौरभ भारद्वाज को भी शामिल कर लिया. पहले से तय योजना के अनुसार दिनेश ने अपनी गर्लफ्रैंड के माध्यम से उस की सहेली सुरभि को नौकरी के बहाने बुलवाया. सुरभि अंबेडकर नगर में रहती थी.

गर्लफ्रैंड ने सुरभि को नौकरी के लिए दिनेश के ही मोबाइल से फोन किया. सुरभि को नौकरी की जरूरत थी, इसलिए सहेली के कहने पर वह 25 फरवरी, 2019 को संगम विहार स्थित एक मकान पर पहुंच गई.

उसी मकान में दिनेश और धीरेंद्र रहते थे. नौकरी मिलने की उम्मीद में सुरभि खुश थी, लेकिन उसे क्या पता था कि उस की सहेली ने विश्वासघात करते हुए उसे बलि का बकरा बनाने के लिए बुलाया है.

सुरभि उस फ्लैट पर पहुंची तो वहां दिनेश, धीरेंद्र और सौरभ भारद्वाज मिले. उन्होंने सुरभि को बंधक बना लिया. इस के बाद उन तीनों युवकों ने सुरभि के साथ गैंपरेप किया. नौकरी की लालसा में आई सुरभि उन के आगे गिड़गिड़ाती रही, लेकिन उन दरिंदों को उस पर जरा भी दया नहीं आई.

चूंकि इन बदमाशों का मकसद जेल में बंद बंटी को सबक सिखाना और उस के भाई आरुष को फंसाना था, इसलिए उन्होंने सुरभि के मोबाइल से आरुष के मोबाइल नंबर पर कई बार फोन किया. लेकिन किन्हीं कारणों से आरुष ने उस की काल रिसीव नहीं की थी.

इस के बाद तीनों बदमाशों ने हथियार के बल पर सुरभि से एक नोट पर ऐसा मैसेज लिखवाया जिस से आरुष झूठे केस में फंस जाए. उस नोट पर इन लोगों ने आरुष का फोन नंबर भी लिखवा दिया था.

फिर वह नोट सुरभि के ट्राउजर की जेब में रख दिया. सुरभि उन के अगले इरादों से अनभिज्ञ थी. वह बारबार खुद को छोड़ देने की बात कहते हुए गिड़गिड़ा रही थी. लेकिन उन लोगों ने कुछ और ही इरादा कर रखा था.

तीनों बदमाशों ने सुरभि की गला घोंट कर हत्या कर दी. बेकसूर सुरभि सहेली की बातों पर विश्वास कर के मारी जा चुकी थी. इस के बाद वे उस की लाश ठिकाने लगाने के बारे में सोचने लगे. उन्होंने उस की लाश एक बोरी में भर दी.

इस के बाद इन लोगों ने अपने परिचित रहीमुद्दीन उर्फ रहीम और चंद्रकेश उर्फ बंटी को बुलाया. दोनों को 4 हजार रुपए का लालच दे कर इन लोगों ने वह बोरी कहीं रेलवे लाइनों के किनारे फेंकने को कहा.

पैसों के लालच में दोनों उस लाश को ठिकाने लगाने के लिए तैयार हो गए तो दिनेश ने 7800 रुपए में एक टैक्सी हायर की. रात के अंधेरे में उन्होंने वह लाश उस टैक्सी में रखी और रहीमुद्दीन और चंद्रकेश उसे सरिता विहार थाना क्षेत्र में रेलवे लाइनों के किनारे डाल कर अपने घर लौट गए.

लाश ठिकाने लगाने के बाद साजिशकर्ता इस बात पर खुश थे कि फूलप्रूफ प्लानिंग की वजह से पुलिस उन तक नहीं पहुंच सकेगी, लेकिन दिनेश द्वारा सुरभि को की गई काल ने सभी को पुलिस के चंगुल में पहुंचा दिया. मामले का खुलासा हो जाने के बाद एसएचओ अजब सिंह ने हिरासत में लिए गए आरुष को छोड़ दिया.

दिनेश से की गई पूछताछ के बाद पुलिस ने उस की निशानदेही पर उस के अन्य साथियों सौरभ भारद्वाज, चंद्रकेश उर्फ बंटी और रहीमुद्दीन उर्फ रहीम को भी गिरफ्तार कर लिया. पांचवां बदमाश धीरेंद्र पुलिस के हत्थे नहीं चढ़ सका, वह फरार हो गया था. गिरफ्तार किए गए बदमाशों से पूछताछ के बाद पुलिस ने उन्हें न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया.

पुलिस को इस मामले में दिनेश की प्रेमिका को भी हिरासत में ले कर पूछताछ करनी चाहिए थी, क्योंकि सुरभि की हत्या की असली जिम्मेदार तो वही थी. उसी ने ही सुरभि को नौकरी के बहाने दिनेश के किराए के कमरे पर बुलाया था.

बहरहाल, दूसरे को फांसने के लिए जाल बिछाने वाला दिनेश खुद अपने बिछाए जाल में फंस गया. पहले वह झपटमारी के आरोप में जेल गया था, जबकि इस बार वह सामूहिक बलात्कार और हत्या के आरोप में जेल गया. पुलिस मामले की जांच कर रही है.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

थानागाजी की निर्भया : सहानुभूति या राजनीति?

लोकसभा चुनाव की प्रक्रिया चल रही थी. राजस्थान में 2 चरणों में मतदान होना था. पहले चरण में13 सीटों के लिए 29 अप्रैल को वोट डाले जाने थे, जबकि दूसरे चरण में 12 सीटों के लिए 6 मई को मतदान होना था. पूरे प्रदेश में चुनाव प्रचार जोरों पर था. एक तरफ सूरज आग उगल रहा था और दूसरी तरफ सियासत की गरमी थी.

अलवर जिले में एक तहसील है थानागाजी. अलवरजयपुर स्टेट हाइवे पर विश्व प्रसिद्ध सरिस्का बाघ अभयारण्य थानागाजी तहसील मुख्यालय से करीब 8 किलोमीटर दूर है.

बीती 26 अप्रैल की बात है, दोपहर के करीब 3 बजे थे. आसमान में कुछ बादल घिर आने से सूरज के तेवर कम हो गए थे. थानागाजी इलाके में एक नवदंपति मोटरसाइकिल पर तालवृक्ष की तरफ जा रहे थे. पति मोटरसाइकिल चला रहा था और पत्नी निर्भया उस के पीछे बैठी थी. निर्भया 19 साल की थी और उस का पति 20 साल का. दोनों की कुछ ही दिन पहले शादी हुई थी.

थानागाजी अलवर बाइपास पर दुहार चौगान वाले रास्ते से कुछ दूर अचानक 2 मोटरसाइकिलों पर सवार 5 युवक तेजी से उन के पास आए. इन युवकों ने नवदंपति की बाइक के आगे अपनी मोटरसाइकिलें लगा कर उन्हें रोक लिया. पतिपत्नी समझ ही नहीं पाए कि क्या बात हो गई, उन्हें क्यों रोका गया.

वे कुछ सवाल करते, इस से पहले ही पांचों युवक उन्हें धमकाते और अश्लील शब्द कहते हुए वहां से सड़क के एक तरफ कुछ दूर बने रेत के बड़ेबडे़ टीलों की तरफ ले गए. रेत के ये टीले इतने ऊंचेऊंचे थे कि उन के पीछे क्या हो रहा है, सड़क से गुजरते लोगों को पता नहीं लग सकता था. टीलों के पीछे से सड़क तक आवाज भी नहीं पहुंच सकती थी.

पतिपत्नी को रेत के टीलों के पीछे ले जा कर पांचों युवकों ने उन से मारपीट की. पति को अधमरा कर एक तरफ बैठा दिया गया. फिर पांचों युवकों ने 19 साल की उस निर्भया से दरिंदगी की. पति ने पत्नी को बचाने की काफी कोशिश की, लेकिन वह दरिंदों का मुकाबला नहीं कर सका.

पांचों दरिंदे निर्भया को नोचते रहे. वह हाथ जोड़ कर छोड़ने की भीख मांगती रही, लेकिन दरिंदे अपने साथियों की मर्दानगी पर हंसते और अट्टहास लगाते रहे. निर्भया चीखती रही, लेकिन उस की आवाज उस जंगली इलाके के रेतीले टीबों में ही गूंज कर रह गई.

दरिंदों ने निर्भया के कपड़े फाड़ कर दूर फेंक दिए. इस दौरान वे हैवान अपने मोबाइल से दरिंदगी का वीडियो भी बनाते रहे. इस दौरान युवक आपस में छोटेलाल, जीतू और अशोक के नाम ले रहे थे. जब दरिंदों का मन भर गया तो उन्होंने निर्भया के पति का मोबाइल नंबर लिया. फिर उसे जान से मारने और वीडियो वायरल करने की धमकी दे कर पांचों मोटरसाइकिलों पर सवार हो कर भाग गए.

उन के जाने के काफी देर बाद तक लुटेपिटे पतिपत्नी एकदूसरे को ढांढस बंधाते हुए अपनी दुर्दशा पर आंसू बहाते रहे. कुछ देर बाद जब उन के होशहवास ठीक हुए तो वे फटे कपड़े लपेट कर मोटरसाइकिल से अपने गांव गए.

गांव पहुंच कर उन्होंने घर वालों को इस घटना के बारे में बताया. निर्भया और उस का पति अनुसूचित जाति से होने के साथ गरीब भी थे. दरिंदगी का वीडियो वायरल करने, पति को मारने की धमकी दिए जाने के कारण निर्भया ने उस समय पुलिस में रिपोर्ट भी दर्ज नहीं कराई. घटना के दूसरे दिन निर्भया अपने मायके चली गई और उस का पति जयपुर चला गया, जहां वह पढ़ रहा था.

तीसरे दिन 28 अप्रैल की सुबह निर्भया के पति के मोबाइल पर छोटेलाल का फोन आया. वह मिलने के लिए कह रहा था. निर्भया के पति ने मना किया तो उस ने कहा, ‘‘बेटा, मिलना तो तुझे पड़ेगा वरना वीडियो वायरल कर देंगे.’’

निर्भया के पति ने कहा कि तुम से मेरा भाई मिल लेगा. उस ने छोटेलाल को चचेरे भाई का मोबाइल नंबर दे दिया. इस के बाद पति ने यह बात अपने चचेरे भाई को बता दी. उस ने यह सच्चाई निर्भया के पति के सगे भाई को बता दी. छोटेलाल उसे कभी कराणा बुलाता तो कभी थानागाजी आने की बात कहता.

दोपहर में छोटेलाल का फिर फोन आया और उस ने 10 हजार रुपए की डिमांड की. निर्भया के पति ने कहा कि मैं पढ़ता हूं, 10 हजार कहां से दूंगा. इस पर उस ने कहा, ‘‘देने तो पड़ेंगे चाहे एक हजार रुपए कम दे देना.’’

वीडियो वायरल के डर से निर्भया के पति ने उसे कुछ हजार रुपए भिजवा भी दिए. पति के भाई ने यह बात पिता को बताई तो उन्होंने अपने बेटे को जयपुर से बुलवा लिया.

रुपए ऐंठने के बाद भी दरिंदों ने निर्भया के पति को काल कर के फिर पैसे मांगे तो निर्भया का परिवार अपने परिचितों के माध्यम से थानागाजी के विधायक कांती मीणा के पास पहुंचा. उन्होंने विधायक को सारी बात बताई. विधायक ने उन की रिपोर्ट दर्ज करवाने और आरोपियों के खिलाफ काररवाई कराने का आश्वासन दिया, लेकिन चुनाव के बाद.

30 अप्रैल को निर्भया और उस का पति अलवर जा कर एसपी राजीव पचार से मिले. निर्भया ने रोतेरोते एसपी को पति के सामने हुए सामूहिक दुष्कर्म की आपबीती बताई. एसपी ने थानागाजी के थानाप्रभारी सरदार सिंह को वाट्सऐप पर पीडि़ता की रिपोर्ट भेज कर मुकदमा दर्ज करने को कहा.

पुलिस को गैंगरेप भी मामूली सी घटना लगा

पुलिस ने इस शर्मनाक वारदात को भी साधारण तरीके से लिया. थानागाजी थानाप्रभारी ने 2 मई को दोपहर 2.31 बजे इस मामले में धारा 147, 149, 323, 341, 354बी, 376डी, 506 आईपीसी और एससी/एसटी ऐक्ट की धाराओं में मुकदमा दर्ज कर लिया. रिपोर्ट में छोटेलाल गुर्जर निवासी कराणा बानसूर और जीतू व अशोक के नाम थे, जबकि 2 आरोपी अज्ञात थे.

भले ही पुलिस ने घटना के 7वें दिन मुकदमा दर्ज कर लिया, लेकिन मीडिया से इसे छिपा लिया. पुलिस ने मामले की जांच में भी लापरवाही बरती. उस दिन पीडि़ता का मैडिकल भी नहीं कराया गया. न ही अभियुक्तों को पकड़ने की कोई काररवाई की गई.

पुलिस को यह बात भी बता दी गई थी कि दरिंदे बारबार फोन कर के वीडियो वायरल करने की धमकी दे रहे हैं, लेकिन पुलिस ने न तो इसे गंभीरता से लिया और न ही इस के दूरगामी परिणामों के बारे में सोचा.

रिपोर्ट दर्ज होने के दूसरे दिन 3 मई को पुलिस ने अलवर में पीडि़ता का मैडिकल कराया. पुलिस ने उसी दिन पीडि़ता, उस के पति, पिता और ससुर के बयान दर्ज किए. उसी दिन पुलिस ने पीडि़ता को साथ ले जा कर मौका नक्शा बनाया.

लापरवाही इतनी रही कि एक आरोपी का नामपता और मोबाइल नंबर होने के बावजूद पुलिस ने उसे पकड़ना तो दूर, उसे थाने बुलाने की जहमत तक नहीं उठाई. इस से उन दरिंदों के हौसले बढ़ गए. इस बीच फोन पर बारबार धमकाने के बावजूद जब दोबारा पैसे नहीं मिले तो दरिंदों ने 4 मई को सोशल मीडिया पर वे वीडियो वायरल कर दिए, जो उन्होंने निर्भया से दरिंदगी करते हुए बनाए थे.

6 मई तक ये वीडियो असंख्य मोबाइलों तक पहुंच चुके थे. 6 मई को ही राजस्थान में अलवर सहित 12 लोकसभा सीटों के लिए मतदान था. मतदान के बाद पुलिस ने इस घटना को मीडिया में उजागर किया. तब तक सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो बम बन चुका था, जो किसी भी गैरतमंद आदमी को हिला देने के लिए काफी था.

7 मई को राजस्थान के मीडिया में थानागाजी गैंगरेप की सुर्खियों ने लोकसभा चुनाव की गरमी को भी ठंडा कर दिया. मीडिया ने पुलिस की कार्यप्रणाली पर सवालिया निशान लगाते हुए सवाल उठाए कि चुनाव के कारण इस घटना का खुलासा नहीं कर पुलिस क्या किसी को सियासी फायदा देना चाहती थी? या फिर समझौता कर इस मामले को रफादफा करना चाहती थी? पुलिस कहीं आरोपियों के पक्ष में तो नहीं थी? अगर ऐसा नहीं था तो वीडियो वायरल होने के बाद ही पुलिस ने यह घटना उजागर क्यों की?

वीडियो वायरल होने से यह घटना पूरे देश में चर्चा का विषय बन गई. इस के बाद सरकार और पुलिस अफसरों की नींद खुली. सरकार ने आननफानन में अलवर के एसपी आईपीएस अधिकारी राजीव पचार को हटा कर पदस्थापन की प्रतीक्षा में रख दिया. थानागाजी के थानाप्रभारी सरदार सिंह को निलंबित कर दिया गया. इसी थाने के एएसआई रूपनारायण, कांस्टेबल रामरतन, महेश कुमार और राजेंद्र को लाइन हाजिर कर दिया गया.

मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने घटना की कड़ी निंदा करते हुए इसे दुर्भाग्यपूर्ण बताया. उन्होंने कहा कि पुलिस की ओर से अगर किसी भी स्तर पर लापरवाही हुई है तो सख्त काररवाई होगी. महिला सुरक्षा के प्रति सरकार पूरी तरह प्रतिबद्ध है. पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने भी सामूहिक दुष्कर्म की इस घटना को बेहद शर्मनाक बताया.

डीजीपी कपिल गर्ग ने जयपुर में प्रैस कौन्फ्रैंस कर कहा कि थानागाजी थाने के सभी पुलिसकर्मियों की भूमिका की जांच की जाएगी. रिपोर्ट दर्ज होने के 5 दिन तक निष्क्रिय बैठी पुलिस ने आननफानन में अभियुक्तों को पकड़ने के लिए 14 टीमों का गठन कर दिया. अलवर से ले कर दिल्ली, गुड़गांव और बीकानेर तक पुलिस टीमें भेजी गईं.

पुलिस ने भागदौड़ कर एक 22 वर्षीय अभियुक्त इंदराज गुर्जर को गिरफ्तार कर लिया. वह जयपुर जिले के प्रागपुरा का रहने वाला था. इस के अलावा वीडियो वायरल करने के आरोप में काली खोहरा निवासी मुकेश गुर्जर को सरिस्का के जंगल से पकड़ा गया.

गैंगरेप में भी राजनीति

सामूहिक दुष्कर्म की घटना सामने आने पर एक ओर जहां लोगों में गुस्सा था, वहीं राजनीति भी शुरू हो गई थी. थानागाजी कस्बे में सर्वसमाज की विशाल पंचायत हुई. इस में राज्यसभा सांसद डा. किरोड़ीलाल मीणा और थानागाजी विधायक कांती मीणा भी शामिल हुए.

पंचायत में फैसला लिया गया कि 24 घंटे में सभी आरोपियों की गिरफ्तारी नहीं होने पर कस्बे के बाजार बंद कर आंदोलन किया जाएगा. डा. किरोड़ीलाल मीणा ने 8 मई को हजारों कार्यकर्ताओं के साथ जयपुर में मुख्यमंत्री कार्यालय का घेराव करने की भी चेतावनी दी. राजनीति में ऐसा ही होता है.

जिला कलेक्टर इंद्रजीत सिंह ने तुरतफुरत पीडि़ता को 4 लाख 12 हजार 500 रुपए की आर्थिक सहायता राशि मंजूर कर दी. दरअसल एससी/एसटी की महिला से दुष्कर्म का मुकदमा होने पर सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग की ओर से प्रथम किस्त के रूप में इतनी राशि देने का प्रावधान है.

8 मई को इस घटना के विरोध में अलवर से ले कर जयपुर तक धरनाप्रदर्शन होते रहे. थानागाजी में हजारों लोगों ने अलवरजयपुर सड़क मार्ग जाम कर दिया और प्रशासन के खिलाफ नारेबाजी की. विभिन्न राजनीतिक दलों के नेता, मंत्री और अधिकारी पीडि़ता से मिलने के लिए थानागाजी से 7 किलोमीटर दूर उस के गांव पहुंच गए.

लोगों ने कहा कि पुलिस प्रशासन के साथ नेता भी कम जिम्मेदार नहीं हैं. हम ने घटना की जानकारी देने के लिए कई नेताओं को फोन किए लेकिन किसी ने मदद नहीं की.

पीडि़त परिवार ने राजस्थान सरकार के श्रम राज्यमंत्री और अलवर ग्रामीण के विधायक टीकाराम जूली को 30 अप्रैल को फोन किया तो उन्होंने कहा कि अभी चुनाव में व्यस्त हैं. बाद में जूली ने माना कि फोन आया था, लेकिन यह नहीं पता था कि मामला इतना गंभीर है.

जयपुर में राज्यसभा सांसद डा. किराड़ीलाल मीणा एवं पूर्व मंत्री राजेंद्र सिंह राठौड़ के नेतृत्व में भाजपा कार्यकर्ताओं ने मुख्यमंत्री आवास के पास सिविललाइन फाटक पर प्रदर्शन किया. इस दौरान प्रदर्शनकारी और पुलिस आपस में गुत्थमगुत्था हो गए. आधे घंटे तक हंगामा होता रहा.

बाद में प्रदर्शनकारियों ने राजभवन जा कर राज्यपाल के नाम ज्ञापन दिया. राजस्थान यूनिवर्सिटी में एबीवीपी कार्यकर्ताओं ने मुख्यमंत्री के पुतले के साथ प्रदर्शन किया. अलवर में विभिन्न संगठनों के अलावा महिलाओं ने भी जुलूस निकाले और अधिकारियों को ज्ञापन दिए.

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने इस मामले में प्रसंज्ञान ले कर राजस्थान सरकार को नोटिस जारी किया. साथ ही मुख्य सचिव और महानिदेशक से 6 सप्ताह में रिपोर्ट मांगी.

इस मामले में उस समय नया मोड़ आ गया, जब पीडि़ता के पति ने राज्य के पूर्वमंत्री और थानागाजी के पूर्व विधायक हेमसिंह भड़ाना पर समझौते का दबाव बनाने का आरोप लगाया. हालांकि भड़ाना ने इन आरोपों को राजनीति से प्रेरित बता कर सिरे से नकार दिया.

पुलिस ने 8 मई की रात तक 3 अन्य आरोपियों अशोक गुर्जर, महेश गुर्जर और हंसराज गुर्जर को भी गिरफ्तार कर लिया. मुख्य आरोपी छोटेलाल गुर्जर अभी तक पुलिस के हाथ नहीं लगा था.

9 मई को भी अलवर और जयपुर सहित पूरे प्रदेश में विरोध प्रदर्शन होता रहा. इस के बावजूद सरकार की लापरवाही रही कि वायरल वीडियो ब्लौक करने के लिए सोशल मीडिया कंपनियों को निर्देश तक नहीं दिए. यह वीडियो गूगल, यूट्यूब और अन्य सोशल मीडिया पर 9 मई तक पीडि़तों की इज्जत तारतार करता रहा. भाजपा ने अलवर में धरना दे कर मामले की जांच सीबीआई से कराने, पीडि़ता को 50 लाख रुपए मुआवजा देने, एसपी व थानाप्रभारी पर मुकदमा दर्ज करने की मांग की.

महिला आयोग भी आया आगे

राष्ट्रीय महिला आयोग के दल ने थानागाजी पहुंच कर पीडि़ता से मुलाकात की. आयोग की सदस्य डा. राहुल बेन देसाई और नेहा महाजन ने इस दौरान मौजूद अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक विजिलेंस गोविंद गुप्ता और आईजी एस. सेंगाथिर को सोशल मीडिया पर वीडियो फोटो अपलोड करने वालों पर तुरंत एक्शन लेने के निर्देश दिए. देश भर से विभिन्न जनसंगठनों के पदाधिकारी भी थानागाजी पहुंचे और पीडि़त परिवार से मिले.

पुलिस ने घटना के 13 दिन बाद मुख्य आरोपी छोटेलाल गुर्जर को गिरफ्तार कर लिया. उसे सीकर जिले के अजीतगढ़ से पकड़ा गया, जहां वह एक ट्रक में छिपा हुआ था. छोटेलाल इस ट्रक में सवार हो कर गुजरात भागने की फिराक में था. छोटे शराब की दुकान पर सेल्समैन का काम करता था. बानसूर के रतनपुरा गांव निवासी छोटेलाल के खिलाफ 2 आपराधिक मामले पहले से दर्ज हैं.

दूसरी ओर, पुलिस ने अलवर की अदालत में पीडि़ता के धारा 164 के तहत बयान दर्ज कराए. वहीं, राज्य सरकार ने मामले की प्रशासनिक जांच के लिए जयपुर के संभागीय आयुक्त को नियुक्त किया. इस के अलावा चुनाव आचार संहिता लगी होने के कारण निर्वाचन आयोग से अनुमति मिलने के बाद आईपीएस औफिसर देशमुख पारिस अनिल को अलवर का एसपी नियुक्त किया गया.

पूरे देश में चर्चा का विषय बन जाने पर 10 मई को राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग के उपाध्यक्ष एल. मुरुगन इस घटना की जांच करने थानागाजी पहुंचे. वे पीडि़ता और उस के परिवार से भी मिले. इस दौरान राजस्थान के मुख्य सचिव डी.बी. गुप्ता और पुलिस महानिदेशक कपिल गर्ग मौजूद रहे.

आयोग के उपाध्यक्ष ने पीडि़ता से मुलाकात के बाद कहा कि 30 अप्रैल को एसपी को परिवाद देने के बाद भी पुलिस ने 2 मई को मुकदमा दर्ज किया और 7 मई को ऐक्शन में आई, यह साफतौर पर सरकार की लापरवाही है. हम राज्य सरकार की रिपोर्ट का इंतजार कर रहे हैं.

फिलहाल प्रशासन को पीडि़ता के परिवार की नौकरी की मांग और सरकारी सहायता देने के लिए कहा गया है. इस के अलावा केस दर्ज करने में लापरवाह पुलिसकर्मियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने और और पीडि़त परिवार की स्थाई सुरक्षा की व्यवस्था करने को भी कहा गया है.

मुरुगन ने कहा कि आयोग के निर्देश पर यूट्यूब से घटना के वीडियो हटवाए गए हैं. पीडि़ता को न्याय दिलाने के लिए हर जरूरी कदम उठा रहे हैं.

जयपुर में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने उच्चस्तरीय बैठक कर ऐसे मामलों में कड़े कदम उठाने का फैसला किया. उन्होंने कहा कि अगर कोई थानेदार थाने में एफआईआर दर्ज नहीं करेगा तो एसपी को दर्ज करनी होगी. ऐसे थानेदार के खिलाफ सख्त काररवाई होगी. महिला अत्याचार की घटनाओं की मौनिटरिंग के लिए हर जिले में महिला सुरक्षा डीएसपी का नया पद सृजित किया जाएगा.

यह सिर्फ महिलाओं के अपहरण, दुष्कर्म, गैंगरेप आदि मामलों की जांच करेगा. यह डीएसपी महिला थानों की मौनिटरिंग के साथ सामाजिक न्याय व महिला बाल विकास विभाग से समन्वय स्थापित करेगा और महिलाओं व बच्चों पर होने वाले अत्याचार के मामलों में काररवाई करेगा. गहलोत ने कहा कि थानागाजी के मामले को केस औफिसर स्कीम में ले कर आरोपियों को कड़ी से कड़ी सजा दिलाई जाएगी.

11 मई को थानागाजी गैंगरेप मामले में देश की सियासत गरमा गई. लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बसपा सुप्रीमो मायावती ने राजस्थान सरकार को सीधे निशाने पर लिया.

पीडि़त से हमदर्दी सिर्फ नाम की

मायावती ने लखनऊ में आयोजित चुनावी रैली में इसे अतिघृणित घटना बताते हुए कहा कि मुझे नहीं लगता कि कांग्रेस सरकार के चलते उस दलित महिला को इंसाफ मिलेगा.

पुलिस ने इस मामले में अलवर जेल में न्यायिक अभिरक्षा भुगत रहे 3 आरोपियों हंसराज गुर्जर, महेश गुर्जर व इंदरराज गुर्जर की शिनाख्त परेड कराई. इस के बाद इन्हें 13 मई तक रिमांड पर लिया गया. 3 आरोपी पहले ही 13 मई तक रिमांड पर थे. बाद में अदालत से सभी 6 आरोपियों की रिमांड अवधि 16 मई तक बढ़वा ली गई.

14 मई को इस मामले में जयपुर कूच करने निकले सांसद डा. किरोड़ीलाल और उन के समर्थकों ने दौसा में जयपुरदिल्ली रेलवे ट्रैक जाम करने का प्रयास किया. पुलिस ने खदेड़ा तो किरोड़ी समर्थकों ने पथराव किया. पथराव के कारण कई ट्रेनें बीच रास्ते में रोक दी गईं. काफी देर तक लाठीभाटा जंग होती रही.

इस जंग में 5 पुलिसकर्मियों सहित 8 लोग घायल हो गए. एसपी व एडीएम सहित कई अधिकारियों को भी चोटें आईं. बाद में पुलिस ने किरोड़ी के साथ पूर्व मंत्री राजेंद्र राठौड़, विधायक हनुमान बेनीवाल व गोपीचंद को गिरफ्तार कर लिया. हालांकि बाद में उन्हें रिहा कर दिया गया.

दूसरी ओर, पीडि़ता के पिता ने कहा कि उन का परिवार इस घटना के बाद लोगों के आनेजाने और इस से हुई बदनामी से परेशान है. उन्होंने सरकार से मांग की कि पीडि़त दंपति को सरकारी नौकरी दे कर किसी ऐसी जगह भेज दिया जाए, जहां उन्हें कोई न पहचान सके. 7 दिन में इतने नेता और लोग घर पहुंचे कि पूरे देश और समाज को पता चल गया कि वीडियो में दिखे पतिपत्नी का मकान यह है.

15 मई को भी अलवर व जयपुर सहित प्रदेश के कई हिस्सों में आंदोलन होते रहे. थानागाजी में सर्वसमाज ने आक्रोश रैली निकाली. इस दिन कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी का थानागाजी आने का कार्यक्रम था लेकिन मौसम खराब होने से उन का हेलीकौप्टर दिल्ली से उड़ान नहीं भर सका.

16 मई को राहुल गांधी थानागाजी क्षेत्र में पीडि़ता से मिलने उस के घर पहुंचे. राहुल ने पीडि़ता, उस के पति और उस के परिवार के लोगों से करीब 15 मिनट तक अकेले में बात कर घटना की जानकारी ली. घटना के बारे में बताते हुए पीडि़ता व उस का पति रो पड़े तो राहुल भी भावुक हो गए.

राजनीति के लिए नेताओं के घडि़याली आंसू

राहुल ने पीडि़ता के पति को गले लगाया अैर कहा कि यह राजनीति नहीं है, आप को न्याय जरूर मिलेगा. परिवार ने पीडि़ता व उस के पति के पुनर्वास, सरकारी नौकरी व आरोपियों को कठोर सजा दिलाने की मांग रखी.

इस दौरान मौजूद मुख्यमंत्री गहलोत ने कहा कि पीडि़ता के लिए सरकारी नौकरी का इंतजाम किया जाएगा. अलवर जिले में अपराध के आंकड़ों को देखते हुए 2 एसपी लगाए जाएंगे. इस केस में 7 दिनों में चालान पेश कर दिया जाएगा.

पुलिस ने सभी आरोपियों को रिमांड अवधि पूरी होने पर अलवर की अदालत में पेश कर जेल भेज दिया. पुलिस ने अदालत में अर्जी पेश कर पीडि़ता के पति को मोबाइल पर धमकी दे कर 10 हजार रुपए मांगने के आरोपी छोटेलाल की आवाज के नमूने लेने की अनुमति मांगी.

17 मई को इस मामले की प्रशासनिक जांच कर रहे जयपुर के संभागीय आयुक्त के.सी. वर्मा ने अलवर में जनसुनवाई कर घटना से संबंधित तथ्य जुटाए. दूसरी ओर राजस्थान हाईकोर्ट की जोधपुर पीठ ने राजस्थान में बढ़ रहे यौन अपराधों के मामले में स्वप्रेरणा से प्रसंज्ञान लेते हुए पुलिस महानिदेशक और सरकार से जवाब तलब किया है.

यह विडंबना ही है कि चुनाव के दौरान थानागाजी का यह मामला पूरे देश में चर्चा में आ गया. इस से राजनीति में भी उबाल आया. सभी प्रमुख दलों के नेता बयानबाजी करते रहे. कुछ लोग राजनीतिक रोटियां भी सेकते रहे. जबकि जरूरत थी पीडि़ता का दर्द कम करने की. इस के लिए जरूरी था कि राजनीति बंद होती.

पीडि़ता का पुनर्वास होना जरूरी है. सरकारी नौकरी से उसे कुछ सहारा मिलेगा तो शायद वह अपने कामकाज में व्यस्त हो कर दिल दहलाने वाली इस घटना को भुलाने की कोशिश कर सके. साथ ही ऐसे दरिंदों को कठोर सजा मिलनी चाहिए, ताकि ऐसी मानसिकता के लोगों को सबक मिल सके.

थानागाजी गैंगरेप मामले में पुलिस ने एफआईआर दर्ज होने के 16 दिन बाद 18 मई को अलवर की अदालत में चार्जशीट दाखिल कर दी. 500 पेज की चार्जशीट में 6 आरोपी हैं. इनमें 5 मुलजिमों के खिलाफ गैंगरेप, अपहरण, रास्ता रोकने, मारपीट, निर्वस्त्र करने, जातिसूचक शब्द बोलने, मानसम्मान को ठेस पहुंचाने, डकैती व धमकी देने सहित प्रताडि़त करने और एक अभियुक्त पर वीडियो वायरल करने का आरोप है.

पुलिस ने मामले की त्वरित सुनवाई के लिए केस औफिसर नियुक्त किया है. अदालत में दिनप्रतिदिन सुनवाई के लिए अरजी दी गई है, ताकि आरोपियों को जल्द सजा मिल सके. पुलिस ने आरोपियों के खिलाफ जिन धाराओं में चालान पेश किया है, उन में आरोप साबित होने पर इन दरिंदों को मरते दम तक उम्रकैद की सजा हो सकती है.

मामले का वीडियो फोटो सोशल मीडिया पर वायरल करने पर पुलिस ने यूट्यूब पर बने एक चैनल टौप न्यूज 24 के खिलाफ अलवर शहर कोतवाली में मुकदमा दर्ज किया है. यह मुकदमा कोतवाली थानाप्रभारी कन्हैयालाल ने खुद दर्ज कराया है.

दूसरी ओर, सरकार ने पीडि़ता को सरकारी नौकरी देने की तैयारी शुरू कर दी है. सरकार ने उसे राजस्थान पुलिस या जेल पुलिस में से कोई एक कांस्टेबल पद चुनने का विकल्प दिया है. इस में पीडि़ता ने राजस्थान के जयपुर सिटी में पोस्टिंग मांगी.

—पीडि़ता का निर्भया नाम काल्पनिक है

विश्वास का खून : मोमिता अभिजीत हत्याकांड

श्रेयांश-प्रियांश हत्याकांड : मासूमियत बनी मौत – भाग 3

सौदा तय हो जाने के बाद ब्रजेश रावत को उम्मीद थी कि आरोपी बच्चों को छोड़ देंगे. इधर चित्रकूट सतना और बांदा सहित पूरे मध्य प्रदेश में लोग सड़कों पर आ कर पुलिसिया लापरवाही के खिलाफ धरने प्रदर्शन दे रहे थे, जिस से कुछ और हुआ न हुआ हो लेकिन इन छहों पर बाहरी दबाव बनने लगा था.

20 लाख रुपए देने से ब्रजेश रावत को इकलौता सुकून इस बात का मिला था कि आरोपियों ने 19 फरवरी को उन से फोन पर बच्चों की बात करा दी थी. बेटों की आवाज सुन कर उन्हें आस बंधी थी कि वे सलामत हैं और आरोपी अगर वादे पर खरे उतरे तो बेटे जल्द घर होंगे और उन की किलकारियों से घर फिर गूंजेगा.

आरोपियों ने बच्चों के साथ कोई खास बुरा बर्ताव नहीं किया था लेकिन उन्हें सुलाने के लिए जरूर नींद की गोलियां खिलाई थीं. बच्चों को व्यस्त रखने के लिए वे उन्हें मोबाइल पर वीडियो गेम खेलने देते थे. अब तक सब कुछ उन की योजना के मुताबिक हो रहा था और इन्होंने फिरौती में मिले 20 लाख रुपयों का बंटवारा भी कर लिया था, जिस का सब से बड़ा हिस्सा पदम शुक्ला को मिला था. एक आरोपी ने तो पैसे मिलते ही बाइक लेने का अपना सपना भी पूरा कर लिया था.

पुलिस अभी भी हवा में हाथपैर मार रही थी. इस मामले की एक हैरत वाली बात यह थी कि ब्रजेश शुक्ला का सेल फोन सर्विलांस पर रखा था लेकिन आरोपियों की पहचान उन के पास आ रहे फोन काल्स से नहीं हो पा रही थी. फिरौती के पैसे भी ब्रजेश रावत ने उत्तर प्रदेश पुलिस के जरिए दिए थे, जिस की भनक मध्य प्रदेश पुलिस को नहीं लगी थी.

नवगठित इस गैंग के सदस्य कितने शातिर थे इस का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि रामकेश पहले की तरह ही रावत परिवार के दूसरे बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने के लिए जाता रहा था.

इसी बहाने वह घर के सदस्यों से प्रियांश और श्रेयांश के बारे में पूछ कर ताजा अपडेट हासिल कर लेता था और साथियों को बता देता था. उस की हकीकत से बेखबर रावत परिवार उस की खातिरदारी पहले की तरह करता रहा था.

होहल्ले के चलते इन छहों को अब पकड़े जाने का डर सताने लगा था और ब्रजेश रावत की जेब से और पैसा निकालने की उम्मीदें भी खत्म हो चली थीं. इसलिए इन्होंने शायद बच्चों को छोड़ने का फैसला कर लिया था.

जब फैसला हो गया तो बच्चों को छोड़ने का मन बना चुके आरोपियों को यह खटका लगा कि कहीं ऐसा न हो कि बच्चे जा कर उन की पहचान उजागर कर दें. इन लोगों ने अब तक जिस जुर्म को छिपा रखा था, बच्चों के छोड़ने पर वह खुल सकता था. इसलिए दोनों के कत्ल का इरादा बन गया.

लेकिन इस से पहले मन में आ गए डर को दूर करने की गरज से इन लोगों ने श्रेयांश और प्रियांश से पूछा कि छूट कर वे पुलिस को उन की पहचान यानी नाम वगैरह तो नहीं बता देंगे.

मासूमियत की यह इंतहा ही थी कि दोनों बच्चों ने ईमानदारी से जवाब दे दिया कि वे उन्हें  पहचान लेंगे. यह जवाब सुनना था कि हथकडि़यां इन की आंखों के आगे झूलती नजर आने लगीं. जिस से अब तक के किए धरे पर तो पानी फिरता ही साथ ही हाथ आए 20 लाख रुपयों का लुत्फ भी जाता रहता.

अपना जुर्म छिपाने के लिए इन्होंने दोनों मासूमों के हाथपैर जंजीर से बांधे, फिर उन्हें क्लोरोफार्म सुंघा कर बेहोश किया. इस के बाद पत्थर बांध कर उन्हें यमुना नदी के उगासी घाट पर पानी में फेंक दिया. यह 21 फरवरी की बात है.

साथ पैदा हुए साथ पले बढ़े और पढ़ेलिखे जुड़वां श्रेयांश और प्रियांश की लाशें भी साथसाथ 3 दिन पानी में तैरती रहीं और वे मरे भी साथ में. दोनों के शरीर पर वही स्कूल यूनिफार्म थी जो उन्होंने 12 फरवरी को स्कूल जाते वक्त पहनी थी.

लाशें बरामद हुईं तो इन मासूमों की हत्या को ले कर ऐसा बवाल मचा कि पूरा बुंदेलखंड इलाका त्राहित्राहि कर उठा. राजनेताओं ने भी चित्रकूट में बहती मंदाकिनी नदी में खूब हाथ धोए. भाजपाई और कांग्रेसी बच्चों की मौतों पर अफसोस जताते एकदूसरे को कोसते रहे.

ये क्राइम स्टोरी भी पढ़ें – पालनहार बना हैवान : संबंधों को किया शर्मसार

पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने मुख्यमंत्री कमलनाथ को निशाने पर रखा तो कांग्रेसी भी यह कहने से नहीं चूके कि यह सब भाजपाइयों का कियाधरा है.

राजनीतिक बवंडर से परे यह हुआ था कि आईटी से इंजीनियरिंग कर रहे 2 आरोपी बेहतर समझ रहे थे कि अगर वे अपने सेल फोन से ब्रजेश रावत से बात करेंगे तो फौरन धर लिए जाएंगे, इसलिए वे फोन काल के लिए या तो इंटरनेट का सहारा ले रहे थे या फिर बहाने बना कर राहगीरों का फोन इस्तेमाल कर रहे थे जिस से पता नहीं चल रहा था कि अपराधी हैं कौन और कहां से फोन कर रहे हैं.

कहावत पुरानी लेकिन सटीक है कि अपराधी कितना भी चालाक क्यों हो कोई न कोई भूल कर ही देता है ऐसा ही इस मामले में हुआ.

एक राहगीर से फोन मांग कर उन्होंने ब्रजेश रावत को फोन किया था तो उस राहगीर को बातचीत का मसौदा सुन इन पर शक हुआ था. हर किसी की तरह उसे भी श्रेयांश और प्रियांश के अपहरण के बारे में मालूम था.

ये लोग जिस का भी फोन लेते थे उसे यह कहना नहीं भूलते थे कि जिस नंबर पर फोन किया है उसे डिलीट कर देना. लेकिन इस समझदार और भले आदमी ने ऐसा नहीं किया और चुपचाप बिना इन की जानकारी के उन की बाइक का फोटो भी खींच लिया.

तब पुलिस ने इस राहगीर के नंबर पर फोन किया तो उस ने बाइक के फोटो पुलिस को दे दिए. इस बाइक के नंबर की बिना पर छानबीन की गई तो वह रोहित द्विवेदी की निकली. पुलिस ने उस की गरदन दबोच कर सख्ती की तो उस ने श्रेयांश और प्रियांश की हत्या का राज खोल दिया और पुलिस ने एक के बाद एक छहों हत्यारों को गिरफ्तार कर लिया.

हत्यारों की गिरफ्तारी की खबर भी आग की तरह फैली और लोगों ने चित्रकूट में बेकाबू हो कर सदगुरु ट्रस्ट पर पत्थर फेंके, वाहन जलाए, तोड़फोड़ की. इस के बाद पूरे मध्य प्रदेश में इन मासूमों को श्रद्धांजलियां दी गईं और हर किसी ने इन हैवानों के लिए मौत की सजा की मांग की.

ये क्राइम स्टोरी भी पढ़ें – 12 लाख के पैकेज वाले बाल चोर

श्रेयांश और प्रियांश के शवों का पोस्टमार्टम बांदा में किया गया, जिस के बाद दोनों के शव रावत परिवार को सौंप दिए गए.

इन पंक्तियों के लिखे जाने तक कई बातें स्पष्ट नहीं हुई थीं, जिन के कोई खास माने भी नहीं वजह आरोपी अपना जुर्म स्वीकार चुके हैं. पिस्टल, बाइक, 17 लाख रुपए के अलावा वह बोलेरो कार भी बरामद की जा चुकी है. जिस में इन दोनों को चित्रकूट से बाहर ले जाया गया था.

चूंकि इस पर भी भाजपा का झंडा लहरा रहा था इसलिए पुलिस वालों ने उसे नहीं रोका. ब्रजेश रावत लगातार शक जताते रहे कि पकड़े गए लड़के तो मोहरे थे असल अपराधी और कोई है इसलिए मामले की सीबीआई जांच होनी चाहिए. छानबीन में यह बात भी सामने आई थी कि आरोपियों के संबंध उत्तर प्रदेश के बाहुबली नेता राजा भैया से थे. सीबीआई जांच होगी या नहीं यह तो नहीं पता, लेकिन मध्य प्रदेश सरकार ने जरूर एक जांच कमेटी गठित कर दी है जो कई बिंदुओं पर जांच कर रही है.

मुमकिन है कुछ हैरान कर देने वाली बातें सामने आएं, लेकिन यह सच है कि चित्रकूट में लाखों की भीड़ जमा रहती है, इसलिए यहां अपराधों की दर बढ़ रही है. सच यह भी है कि निकम्मे और गुंडे किस्म के युवकों ने शार्टकट से पैसा कमाने के लिए एक हंसतेखेलते घर के जुड़वां चिराग बुझा दिए, जिस की भरपाई कोई जांच पूरी नहीं कर सकती.

श्रेयांश-प्रियांश हत्याकांड : मासूमियत बनी मौत – भाग 2

श्रेयांश और प्रियांश कहां और किस हाल में हैं इस का अंदाजा कोई नहीं लगा पा रहा था. सदमे में डूबे रावत परिवार के सदस्य बच्चों की खैरियत को लेकर चिंतित थे. हर किसी का रोरो कर बुरा हाल था खासतौर से ब्रजेश रावत की पत्नी बबीता रावत का जो बच्चों की जुदाई के गम में होश खो बैठी थी.

पुलिस भागादौड़ी करती रही, दावे करती रही लेकिन 20 लाख रुपए देने के बाद भी बच्चे वापस नहीं लौटे तो रावत परिवार किसी अनहोनी की आशंका से कांपने लगा.

आशंका गलत नहीं निकली. 24 फरवरी को पुलिस ने उत्तर प्रदेश के बांदा जिले के बबेरू के पास यमुना नदी से प्रियांश और श्रेयांश की लाशें बरामद कीं. इन दोनों मासूमों के शव जंजीर से बंधे हुए थे.

आस और उम्मीदें तो पहले ही टूट चुकी थीं, जिन पर मोहर लगने के बाद 12 फरवरी से ज्यादा हाहाकार मचा. अब हर कोई यह जानने को बेताब था कि अपहरणकर्ता कौन थे, कैसे पकड़े गए और इन्होंने कैसे हैवानियत दिखाते हुए फिरौती की रकम लेने के बाद भी मासूमों पर कोई रहम नहीं किया. प्रदेश भर में पुलिसिया प्रणाली के खिलाफ फिर जम कर हल्ला मचा, धरनेप्रदर्शन हुए और उम्मीद के मुताबिक फिर सियासत गरमाई.

पूरे घटनाक्रम में सुकून देने वाली इकलौती बात यह थी कि हत्यारे पकड़े गए थे, जिन की तादाद 6 थी. हत्यारों को पकड़ने में पुलिस की भूमिका कोई खास नहीं थी, क्योंकि वे इत्तफाकन धरे गए थे. 24 फरवरी को फिर एक बार सनसनी मची और इतनी मची कि पुलिस वालों और सरकार को जवाब देना मुश्किल हो गया.

श्रेयांश और प्रियांश के शव इस दिन उत्तर प्रदेश के बांदा जिले में यमुना नदी के बबेरू घाट पर मिले थे. दोनों शव के हाथ पैर बंधे हुए थे.

हैवानों ने इन मासूमों की कैसे जान ली होगी, इस के पहले यह जानना जरूरी है कि हत्यारे थे कौन और इतने शातिराना ढंग से उन्होंने कैसे इस वारदात को अंजाम दिया था. जब एक एक कर 6 हत्यारे पकड़े गए तो दिल को दहला देने वाली कहानी कुछ इस तरह सामने आई, जिस ने साबित भी कर दिया कि लोग बेवजह पुलिस को नहीं कोस रहे थे.

ये क्राइम स्टोरी भी पढ़ें – एक क्रूर औरत की काली करतूत

इस वारदात का मास्टरमाइंड पदम शुक्ला निकला, जिस के पिता रामकरण शुक्ला, पुरोहित और सद्गुरु सेवा संघ ट्रस्ट में संस्कृत के प्राचार्य हैं. पदम शुक्ला का छोटा भाई विष्णुकांत शुक्ला भाजपा और बजरंग दल से जुड़ा है. जानकीकुंड में रहने वाला शुक्ला परिवार भी चित्रकूट में किसी पहचान का मोहताज नहीं है, लेकिन इस की वजह इन के कुकर्म ज्यादा हैं.

अपहरण और हत्या का दूसरा अहम किरदार रामकेश यादव है जो मूलरूप से बिहार का रहने वाला है और पढ़ाई पूरी करने के बाद चित्रकूट में किराए का मकान ले कर रहता था. रामकेश रावत परिवार के बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने जाता था.

उस का रावत परिवार में वही मान सम्मान था जो आमतौर पर ट्यूटर्स का होता है, रामकेश के दिल में अपराध का बीज यहीं से अंकुरित हुआ और इस से पेड़ बना पदम शुक्ला के दिमाग में.

इसमें कोई शक नहीं कि ब्रजेश रावत के पास पैसों की कमी नहीं थी, जिस का गुरुर उन्हें कभी नहीं रहा. संभ्रांत और संस्कारित रावत परिवार का वैभव रामकेश ने देखा तो इस रामनगरी में एक और रावण आकार लेने लगा.

पैसों की तंगी तो रामकेश को भी नहीं थी लेकिन रावत परिवार की दौलत देख उसके दिल में खयाल आया था कि अगर श्रेयांश और प्रियांश को अगुवा कर लिया जाए तो फिरौती में इतनी रकम तो मिल ही जाएगी कि फिर जिंदगी ऐशोआराम से कटेगी.

पाप का पौधा कितनी जल्दी वृक्ष बन जाता है, यह इस हत्याकांड से भी उजागर होता है. रामकेश ने जब यह आइडिया पदम से साझा किया तो उस की बांछें खिल उठीं. फिर क्या था देखते ही देखते योजना बन गई और उस का पूर्वाभ्यास भी होने लगा. अपनी नापाक मुहिम को सहूलियत से पूरा करने के लिए इन दोनों ने अपने जैसे 4 और राक्षसों को साथ मिला लिया.

रातों रात मालामाल हो जाने के लालच के चलते इस नवगठित गिरोह में बहलपुर का रहने वाला विक्रमजीत, हमीरपुर का अपूर्व उर्फ पिंटू उर्फ पिंटा यादव, बांदा का लक्की सिंह तोमर और राजू द्विवेदी भी शामिल हो गए.

22 से 24 साल की उम्र के ये सभी अपराधी अभी पढ़ रहे थे. पदम आईटी सब्जेक्ट से इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहा था. लकी तोमर उस का सहपाठी था. राजू द्विवेदी एग्रीकल्चर फैकल्टी के एग्रोनामी विषय से एमएससी कर रहा था और पिंटू यादव उस का सहपाठी था. ये पांचों ग्रामोदय विश्वविद्यालय के छात्र थे.

ये क्राइम स्टोरी भी पढ़ें – शैतान का कारनामा : इंसानियत हुई शर्मसार

जब गिरोह बन गया तो इन शातिरों ने अपहरण की योजना बनाई. इस बाबत इन के बीच दरजनों मीटिंगें हुईं जिन में संभावित खतरों पर विचार कर उन से बचने के उपाय खोजे गए. पदम का घर घटनास्थल से पैदल दूरी पर है, वह उस इलाके के चप्पेचप्पे से वाकिफ था.

12 फरवरी को श्रेयांश और प्रियांश का अपहरण करने के बाद ये लोग कहीं ज्यादा दूर नहीं भागे थे, जैसा कि हर कोई अंदाजा लगा रहा था. बबुली कौल गिरोह का नाम भी इन्होंने जानबूझ कर अपहरण के वक्त लिया था जिस के चलते पुलिस ने मान लिया था कि हो न हो इस कांड में इसी गिरोह का हाथ है.

श्रेयांश और प्रियांश को इन्होंने 3 दिन चित्रकूट के ही एक मकान में रखा जो लक्की सिंह से किराए पर लिया गया था. आमतौर पर ऐसे हादसों में होता यह है कि अपराधी घटनास्थल से दूर जा कर फिरौती मांगते हैं, जिस से किसी की भी, खासतौर से पुलिस की निगाह में न आएं. जिस मकान में दोनों मासूमों को रखा गया था वह एसपीएस के नजदीक ही है. इस चालाकी की तरफ पुलिस का ध्यान ही नहीं गया.

जिस बाइक से अपहरण किया गया था उस पर कोई नंबर प्लेट नहीं थी, बल्कि नंबर प्लेट पर रामराज्य लिखा हुआ था. बाइक पर भाजपा का झंडा लगा होने के कारण पुलिस वाले उसे रोकने की हिमाकत नहीं कर पाए थे.

चूंकि पदम का भाई बजरंग दल का संयोजक था, इसलिए पुलिस वालों ने रामराज्य को ही बाइक का नंबर मान लिया था. चित्रकूट और बांदा का हर एक पुलिसकर्मी पदम के भाई विष्णुकांत और उस की बाइक तक को पहचानता है, जिस के छोटे बड़े भाजपा नेताओं से अच्छे संबंध हैं. कई बड़े नेताओं के साथ खिंचाए फोटो उस ने फेसबुक पर श्ेयर भी कर रखे हैं.

ये क्राइम स्टोरी भी पढ़ें – तलाक के डर से बच्चे की बलि

वारदात के तीसरे दिन ही इन्होंने ब्रजेश रावत से फिरौती के 2 करोड़ रुपए मांगे थे लेकिन सौदा 20 लाख रुपए में पट गया था जो ब्रजेश रावत ने इन्हें दे भी दिए थे. जब चित्रकूट में बच्चों को रखना इन्हें जोखिम का काम लगने लगा तो उन्हें वे रोहित द्विवेदी गांव बबेरू ले गए. उस ने ही श्रेयांस और प्रियांश के यहां रहने का इंतजाम किया था. रोहित का पिता ब्रह्मदत्त द्विवेदी सिक्योरिटी गार्ड है.