Uttar Pradesh News : किस पारिवारिक दबाव से परेशान हो कर सिपाही ने किया सुसाइड

Uttar Pradesh News : उत्तर प्रदेश पुलिस में सिपाही के पद पर नौकरी लग जाने के बाद मनीत के घर वालों ने तय कर लिया था कि वह उस की शादी किसी अच्छे परिवार में करेंगे. लेकिन मनीत संध्या से प्यार करता था और उसी से शादी करना चाहता था. मनीत के समझाने के बाद भी उस के घर वाले जब संध्या से शादी कराने को राजी नहीं हुए तो मनीत ने ऐसा कदम उठाया कि…

4 जून, 2020 की शाम 7 बजे 24 वर्षीय सिपाही मनीत प्रताप सिंह ड्यूटी कर के जब वापस अपने कमरे पर लौटा तो वह अकेला नहीं था, बल्कि उस के साथ उस की खूबसूरत और कमसिन प्रेमिका संध्या भी थी. उस के साथ संध्या को देख कर मनीत के दोनों दोस्त सिपाही जमील खान और सिपाही अनिल कुमार गौतम हौले से मुस्कराए तो वह भी मुसकरा दिया और संध्या को ले कर कमरे में चला गया. वे तीनों दोस्त मुरादाबाद के कटघर थाने की आदर्श नगर कालोनी में स्थित कमल गुलशन के मकान में किराए पर रहते थे. वे तीनों रूम पार्टनर थे और एक ही कमरे में रहते थे. जिन में जमील खान और अनिल गौतम कटघर थाने में तैनात थे और मनीत पुलिस लाइन में आमद था.

वैसे मनीत सिंह मूलरूप से बुलंदशहर के कोतवाली थाने के रसूलपुर का रहने वाला था. उस की जौइनिंग 2018 बैच की थी. हालफिलहाल उस की ड्यूटी मुरादाबाद (देहात) विधानसभा से विधायक हाजी इकराम कुरैशी की सुरक्षा में चल रही थी. बहरहाल, संध्या को ले कर पहुंचे मनीत ने वर्दी बदल कर सादे कपड़े पहन लिए और दोनों दोस्तों से कहा कि वह संध्या को ले कर शहर घूमने जा रहा है. लौटने में उसे देर हो सकती है. आप दोनों अपना खाना बना कर खा लेना. हम घूम कर वापस लौटने के बाद अपना खाना बना लेंगे. इतना कह कर उस ने बरामदे में खड़ी बाइक बाहर निकाली और संध्या को पीछे बिठा कर निकल गया.

करीब 3 घंटे दोनों बाहर घूमे और रात 10 बजे के करीब कमरे पर लौटे. चूंकि कमरा एक ही था. वहां संध्या रुकी हुई थी इसलिए मनीत के दोनों दोस्त उन्हें कमरे में छोड़ कर छत पर सोने चले गए. मनीत घर आ कर दुकान से 2 बड़े पैकेट मैगी और 1 लीटर वाली कोल्डड्रिंक की एक बोतल ले आया. संध्या ने मैगी बनाई और 2 कटोरियों में मैगी ले कर कमरे में आई, जहां मनीत उस का बेसब्री से इंतजार कर रहा था. फिर मनीत ने पहले से ला कर रखी कोल्डड्रिंक स्टील के 2 खाली गिलासों में भर कर एक गिलास संध्या की ओर बढ़ा दिया और दूसरा गिलास खुद लिया.

दोनों ने मैगी खा कर कोल्डड्रिंक पी. थोड़ी भूख शांत हुई. मनीत और संध्या दोनों एकदूसरे के हाथों को थामे और आंखों में आंखें डाले नीचे फर्श पर चादर बिछा कर बैठे थे. एकदूसरे को करीब पा कर वे दोनों बेहद खुश थे. खुश होते भी क्यों नहीं, एक होने में उन के बीच में बस एक रात की दूरी थी. अगले दिन यानी 5 जून, 2020 को दोनों कोर्टमैरिज करने वाले थे. मैरिज के बाद दोनों जनमजनम के लिए एकदूसरे के हो जाने वाले थे. कहते हैं, आग और फूस पासपास हो, तो वहां अकसर आग लग ही जाती है. मनीत और संध्या सामाजिक मानमर्यादाओं की सीमाएं लांघते हुए जिस्मानी रिश्तों से एक हो चुके थे, इसीलिए संध्या प्रेमी मनीत पर शादी के लिए दबाव बनाए हुए थी.

दबाव में आ कर ही उस ने संध्या से शादी के लिए हामी भरी थी और उसे कमरे पर बुलाया था. खानेपीने के बाद नीचे फर्श पर बिछे चादर पर दोनों बैठे हुए थे. मनीत संध्या की हथेली थामे उस की झील सी गहरी आंखों में डूबता जा रहा था. संध्या के मखमली स्पर्श से मनीत का रोमरोम खिल उठा था. वे दोनों मर्यादाओं में बंधे थे, भविष्य के सपनों को ले कर दोनों देर तक बातें करते रहे. इस बीच मनीत फोन पर अपने घर वालों से अपनी शादी के सिलसिले में बात भी करता रहा. फोन पर बात करतेकरते मनीत अचानक से गंभीर हो गया और नीचे फर्श से उठ कर बैड पर बैठ गया. तो संध्या भी नीचे से उठ कर बैड पर बैठ गई और उस की गोद में अपना सिर रख कर बिस्तर पर पसर गई.

‘‘क्या हुआ? अचानक से गंभीर क्यों हो गए?’’ संध्या ने मनीत की आंखो में आंखें डाल कर सवाल किया.

‘‘कुछ नहीं, बस ऐसे ही…’’ कहतेकहते मनीत रुक गया.

‘‘मुझ से कोई भूल हो गई है क्या या मैं ने कुछ ऐसावैसा कह दिया, जिस से तुम्हें बुरा लग गया. अगर ऐसा है तो मुझे माफ कर दो. सौरी बाबा आइ एम वैरी सौरी.’’ दोनों कान पकड़ते हुए संध्या बोली.

‘‘तुम क्यों सौरी कह रही हो?’’ कान से संध्या का हाथ हटाते हुए उस ने आगे कहा, ‘‘मुझे तुम से कोई शिकायत नहीं है और न ही तुम ने कुछ कहा है. सौरी तो उन्हें बोलना चाहिए जो हमारे प्यार के दुश्मन हैं. माफी तो उन्हें मांगनी चाहिए, जो हमें एक होने से रोकते हैं. लेकिन संध्या तुम चिंता मत करना, हमें एक होने से कोई नहीं रोक सकता. चाहे हमें जमाने से ही क्यों न लड़ना पडे. हम लड़ेंगे और एक भी होंगे. मनीत ने कभी हारना नहीं सीखा है. दुश्मन चाहे हमारे अपने ही क्यों न हों, मोहब्बत की जंग हम उन से जीत के रहेंगे.’’

‘‘घर वालों से तुम्हारी बात हुई है क्या? उन्होंने तुम्हें कुछ कहा है?’’

‘‘वे हमारी शादी के खिलाफ हैं. कहते हैं ये शादी नहीं होने देंगे.’’

‘‘तो फिर क्या होगा?’’

‘‘होगा क्या, मैं ने जो निश्चय किया है, वही होगा. मेरा निश्चय पत्थर पर खींची लकीर जैसा है, उसे कोई भी नहीं मिटा सकता.’’

कहते हुए मनीत ने बैड पर पड़ी कारबाइन दोनों हाथों से उठाई, उसे देखा. संध्या कुछ समझ पाती इस से पहले मनीत ने कारबाइन अपने सीने से सटा कर उस का ट्रिगर दबा दिया. कारबाइन से निकली गोली मनीत के दिल और फेफड़े को चीरती हुई शरीर के पार निकल गई. मनीत बिस्तर से नीचे फर्श पर धड़ाम से जा गिरा. मनीत ने आत्महत्या कर ली थी. गोलियों की तड़तड़ाहट सुन कर मकान की छत पर सो रहे जमील और अनिल दौड़ेभागे नीचे कमरे में पहुंचे. कमरे का दृश्य देख कर दोनों हैरान रह गए. मनीत खून में डूबा बिलकुल शांत पड़ा था. उस से 2 कदम दूर खड़ी संध्या थरथर कांप रही थी. उस के चेहरे का रंग उड़ा हुआ था.

उस के मुंह से कोई बोल नहीं फूट रहा था. जिस यार की बांहों में थोड़ी देर पहले वह झूल रही थी. जिन हाथों से अपने मांग में सिंदूर भरने के ख्वाब देख रही थी, वह सब रेत के मकान की तरह भरभरा कर ढह गया था. बदहवास संध्या मनीत को देखे जा रही थी. जमील और अनिल कमरे के अंदर दाखिल हुए तो संध्या डर गई, ‘‘मैं ने नहीं मारा इन्हें…मैं ने नहीं मारा.’’ कहती चली गई.

‘‘ये सब कैसे हुआ संध्या?’’ अनिल ने सवाल किया.

‘‘थोड़ी देर पहले मनीत ने फोन पर अपने घर वालों से बात की. उस के बाद न जाने ऐसा क्या हुआ, वह एकदम से गंभीर हो गया. जब मैं ने पूछा कि क्या बात है, तुम अचानक से क्यों गंभीर हो गए तो उस ने बताया उस के घर वाले शादी के खिलाफ हैं, वे शादी करने पर ऐतराज जता रहे हैं. उस के बाद मैं कुछ समझ पाती कि मनीत ने खुद को गोली मार ली.’’ कह कर संध्या बिलखबिलख कर रोने लगी. संध्या के कथनानुसार, मनीत ने खुद को गोली मार कर आत्महत्या कर ली थी. उसी वक्त जमील ने फोन कर के थानेदार (कटघर) विकास कुमार, सीओ (कटघर) पूनम सिरोही, एसपी (सिटी) अमित कुमार आनंद, एसएसपी अमित पाठक और आईजी रमित शर्मा को घटना की सूचना दी थी.

चूंकि मामला विभाग से जुड़ा हुआ था, इसलिए सूचना मिलते ही कुछ ही देर में एसओ (कटघर) विकास कुमार, सीओ (कटघर) पूनम सिरोही और एसपी (सिटी) अमित कुमार आनंद घटनास्थल पहुंच गए थे. मौके पर पहुंचे एसपी (सिटी) अमित आनंद और सीओ पूनम सिरोही ने दोनों सिपाहियों जमील खान, अनिल कुमार गौतम और युवती संध्या से पूछताछ करना शुरू किया. दोनों सिपाहियों जमील और अनिल ने अधिकारियों को बताया कि रात खाना खाने के बाद दोनों छत पर सोने चले गए थे.

कमरे में रात भर मनीत और संध्या ही थे. गोलियों की आवाज सुन क र नींद खुली तो उठ कर बैठ गए. मोबाइल औन किया तो उस समय रात के 2 बज रहे थे.  हम दोनों भागेभागे नीचे कमरे में आए तो देखा मनीत खून में डूबा नीचे फर्श पर पड़ा था. उस की कारबाइन बिस्तर पर पड़ी हुई थी. उस पर खून लगा था. एक किनारे दूर खड़ी बदहवास सी संध्या मनीत को देखे जा रही थी.

उस के बाद अधिकारियों ने संध्या से पूछताछ की तो उस ने भी वही बताया जो दोनों सिपाहियों ने कुछ देर पहले पुलिस अधिकारियों को बताया था. पूछताछ करने के बाद पुलिस ने घटनास्थल का निरीक्षण किया. खून से सनी कारबाइन बिस्तर पर एक ओर पड़ी थी. प्रथमदृष्टया यह मामला आत्महत्या का लग रहा था. मामला हत्या का होता तो मौके पर संघर्ष के निशान जरूर मिलते, लेकिन ऐसा नहीं था. फिर क्या था, पुलिस अधिकारियों ने मनीत के घर वालों को बुलंदशहर फोन कर के घटना की जानकारी दी. सूचना मिलते ही उस के घर में कोहराम मच गया. घर में रोनापीटना जारी था. परिवार का कमाऊ बेटा था मनीत. मौत की खबर से उस की मां और भाई बुरी तरह टूट गए.

खैर, सूचना मिलते ही मां और बड़ा भाई बीरू सिंह बुलंदशहर से मुरादाबाद के लिए रवाना हो गए थे. करीब 2 घंटे बाद वे मुरादाबाद की आदर्श कालोनी पहुंच गए, जहां घटना घटी थी. तब तक सुबह का उजाला फैल चुका था. घटना की सूचना पा कर पासपड़ोस के लोग धीरेधीरे वहां एकत्र होने लगे थे. बेटे की लाश देख कर मांबेटे का कलेजा मुंह को आ गया था. मनीत द्वारा उठाए गए आत्मघाती कदम के बारे में जिस ने भी सुना अवाक रह गया. वह अपने उत्तम व्यवहार और शानदार व्यक्तित्व के लिए कालोनी में मशहूर था. अपने काम से काम रखने वाला युवक था वह. बहरहाल, पुलिस ने लाश का पंचनामा भर कर उसे पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भेजवा दिया.

बीरू सिंह भाई की आत्महत्या के लिए संध्या को दोषी ठहराने लगा कि उस ने शादी के लिए उस पर दबाव बना रखा था. वह उसे झूठे मुकदमे में फंसाने की धमकी दे रही थी. इसी के दबाव में आ कर भाई ने आत्महत्या की है. बीरू के बयान को पुलिस ने गंभीरता से लिया और पूछताछ के लिए संध्या को हिरासत में ले लिया. संध्या से की गई पूछताछ के आधार पर कहानी कुछ इस तरह सामने आई—

24 वर्षीय मनीत प्रताप सिंह मूलरूप से बुलंदशहर के कोतवाली देहात थाना क्षेत्र के रसूलपुर का रहने वाला था. उस के परिवार में मांबाप, 2 भाई और एक बहन थी. बहन बड़ी थी. उस की शादी हो चुकी थी. दूसरे नंबर पर बीरू सिंह और सब से छोटा मनीत प्रताप सिंह था. अमूमन परिवार के सब से छोटे बच्चे मांबाप और भाईबहनों के दुलारे होते हैं, मनीत भी पूरे परिवार का दुलारा था. कहते हैं पूत के पांव पालने में ही दिख जाते हैं. ऐसा ही कुछ मनीत के साथ भी हुआ था. छरहरे बदन वाले मनीत को बचपन से ही खाकी वर्दी से बेहद प्रेम था. बालपन से ही वह मांबाप से पुलिस में जाने को कहता था. वह कहता था बड़ा हो कर पुलिस बनेगा और पीडि़तों के साथ न्याय करेगा.

ईश्वर ने उस के दिल की बात सुन ली थी. 22 साल की उम्र में पहुंचते ही मनीत की मुराद पूरी हो गई थी. साल 2018 में उस ने अपनी मेहनत और काबिलियत के चलते पुलिस की नौकरी हासिल कर ली. खुली आंखों से उस ने अपने लिए जो सपने देखे थे, वह पूरे हो गए थे. वह बेहद खुश था. ट्रेनिंग पूरी होने के बाद मनीत की पहली पोस्टिंग मुरादाबाद में हुई थी. मनीत मुरादाबाद के कटघर थाने की आदर्श नगर कालोनी में कमल गुलशन के यहां किराए का कमरा ले कर रहता था. उस के साथ कटघर थाने के 2 और सिपाही जमील खान और अनिल कुमार गौतम भी रहते थे. तीनों एक ही कमरे में रहते थे. इन दिनों मनीत की ड्यूटी पुलिस लाइन में चल रही थी. वहीं से उस की तैनाती मुरादाबाद देहात के विधायक हाजी इकराम कुरैशी की सुरक्षा में लगाई थी.

बात घटना से करीब डेढ़ साल पहले की है. रात का खाना खा कर मनीत बिस्तर पर गया तो उसे नींद नहीं आ रही थी. सोचा थोड़ा मोबाइल चला लूं और फेसबुक वाले दोस्तों को मैसेज कर दूं. हो सकता है, नींद आ जाए. यही सोच कर वह फोन ले कर बिस्तर पर लेट गया और फेसबुक औन कर लिया. उस के कई दोस्तों के मैसेज आए थे. उस में कई लोगों के फ्रैंड रिक्वेस्ट भी थे. उन रिक्वेस्ट में एक नाम संध्या का भी था. संध्या की खूबसूरत तसवीर पर मनीत की नजर पड़ी तो कुछ पल के लिए उस की नजर ठहर गई. उस की तसवीर पर से नजर हट ही नहीं रही थी. फिर क्या था. मनीत ने संध्या के रिक्वेस्ट को स्वीकार कर लिया. एकदो दिनों बाद उस ने ‘हाय’ लिख कर मैसेज किया तो मनीत ने भी उस के मैसेज का जवाब दे दिया.

धीरेधीरे दोनों के बीच बातचीत का सिलसिला शुरू हो गया. बातचीत के जरिए मनीत ने संध्या का पता और मोबाइल नंबर लिया और अपना पता तथा मोबाइल नंबर उसे दे दिया. संध्या पुत्री सुरेंद्र कुमार मुरादाबाद के गलशहीद इलाके के रुद्रपुर में रहती थी. मध्यमवर्गीय परिवार की संध्या 3 भाईबहनों में सब से बड़ी थी. उस के पिता दिल्ली में रह कर एक प्राइवेट फर्म में नौकरी करते थे. बीचबीच में वह घर आ कर परिवार को देख जाते. वैसे भी पिता सुरेंद्र ने परिवार की देखरेख की जिम्मेदारी संध्या के कंधों पर डाल दी थी ताकि वह अपनी जिम्मेदारियों को निभा सके. संध्या पिता के विश्वास पर पूरी तरह से खरी उतर रही थी. घर के राशन से ले कर भाईबहन के स्कूल की फीस, किताब तक का वह हिसाब रखती थी. मतलब संध्या समय से पहले समझदार और सयानी हो चुकी थी. उस के लिए क्या अच्छा है और क्या बुरा है, सब समझती थी.

बातचीत के जरिए संध्या और मनीत के बीच दोस्ती हुई और फिर यह दोस्ती प्यार में बदल गई थी. दोनों एकदूसरे से प्यार करने लगे थे. आगे चल कर दोनों ने एकदूसरे से शादी करने का फैसला कर लिया था. चूंकि संध्या और मनीत एक ही शहर में रहते थे. एक दिन संध्या ने मनीत को मिलने के लिए अपने घर बुलाया. इत्तफाक की बात यह थी कि उस दिन न तो उस की मां घर पर थी और न ही भाईबहन. मनीत सादे कपड़ों में अनिल को साथ ले कर संध्या के घर रुद्रपुर पहुंचा. दोपहर का समय हो रहा था. प्यार होने के बाद पहली बार दोनों आमनेसामने बैठे थे. संध्या ने दोनों का स्वागत किया. फिर बातों का सिलसिला शुरू हुआ. सामने बैठी संध्या को देख कर मनीत का दिल जोरजोर से धड़क रहा था.

वह आधुनिक विचारों वाली स्वच्छंद युवती थी. उस ने मनीत के साथ आए दूसरे युवक के बारे में पूछा तो मनीत ने उस का परिचय अपने रूम पार्टनर के रूप में दिया. फिर मनीत ने नजर उठा कर कमरे के चारों ओर दौड़ाया. जिस कमरे में वे बैठे थे, वह उन की बैठक थी. एकएक सामान औसत दर्जे वाले कमरे में अपनीअपनी जगह बड़े कायदे से सजा कर रखा हुआ था, जहां उसे होना चाहिए था. घर में कोई हलचल होती न देख मनीत से रहा नहीं गया. उस ने संध्या से पूछा, ‘‘घर में सन्नाटा फैला है. अंकलआंटी या कोई और नहीं है क्या?’’

‘‘फिलहाल, घर में सभी हैं लेकिन इस वक्त मम्मी किसी काम से बाहर गई हैं. उन्हीं के साथ भाईबहन भी गए हैं. और मैं आप के सामने बैठी हूं.’’ संध्या ने बिंदास हो कर जवाब दी.

‘‘ओह, तभी तो घर सूनासूना लग रहा है वरना हलचल तो जरूर रहती यहां.’’

‘‘जी, हलचल की बात कर रहे हैं. घर में भूचाल मची रहती है जब छोटी बहन यहां होती है.’’

‘‘वो कोई अफलातून है क्या?’’

‘‘नहीं, पर उस से कम भी नहीं है.’’

कुछ देर तक दोनों इधरउधर की बातें करते रहे. फिर वे अपने मुद्दे पर आ गए. संध्या ने ही बात आगे बढ़ाई, ‘‘जिंदगी के दोराहे पर ला कर मुझे तुम अकेला छोड़ तो नहीं दोगे?’’

‘‘ऐसे क्यों कह रही हो संध्या. क्या मैं तुम्हें छिछोरा दिखता हूं?’’

‘‘नहीं, बात छिछोरेपन वाली नहीं है मनीत. जमाना बहुत खराब चल रहा है और फिर किसी के चेहरे पर तो कुछ लिखा नहीं है.’’ संध्या ने आशंका जताई.

‘‘ऐसी बात नहीं है संध्या. मुझे ऐसा ही करना होता तो मैं तुम्हारा इतना इंतजार नहीं करता. और न मैं ऐसावैसा हूं. मैं तुम से बहुत प्यार करता हूं संध्या. तुम्हारे बिना जी नहीं सकता. तुम्हारे लिए जमाने से लड़ना भी पड़ा तो मैं उस में पीछे हटने वालों में से नहीं हूं. तुम्हारे लिए जमाने से भी लड़ जाऊंगा. लेकिन मुझे गलत मत समझना, प्लीज.’’ मनीत ने सफाई दी.

‘‘तुम तो बुरा मान गए.’’

‘‘इस में बुरा मानने वाली क्या बात है. जो सवाल तुम ने किया, उस का जवाब मैं ने दिया.’’

‘‘मेरी बातों को दिल पर मत लेना प्लीज. मेरे मन में जो आया, सो मैं ने कह दिया.’’

‘‘अब मुझे चलना चाहिए.’’ कलाई पर नजर डालते मनीत ने आगे कहा, ‘‘काफी देर हो गई है मुझे आए हुए.’’

‘‘अरे अभी तो आए हो और अभी जाने के लिए कह रहे हो. मैं अपने दिल के शहजादे को जाने के लिए कैसे कह दूं. अभी तो नजर भर आप को देखा तक नहीं.

कुछ देर और बैठो, तो मेरे दिल को सुकून मिल जाए. फिर चले जाइएगा.’’ ऐसी अनोखी अदा से संध्या ने मनीत के सामने बातों को परोसा कि मनीत चाह कर भी अपनी जगह से हिल नहीं सका. प्यार के निवेदन पर मनीत कुछ देर और बैठा रहा. थोड़ी देर दोनों प्यार भरी बातें करते रहे फिर मनीत अपने कमरे पर लौट आया. संध्या से विदा लेते वक्त उस ने उसे भी अपने कमरे पर आने के लिए कहा. मनीत के आग्रह पर एक दिन शाम के समय संध्या मनीत के कमरे पर उस के साथ पहुंची. उस समय कमरे पर उस के दोनों दोस्त अनिल और जमील थे. दोनों उन के प्यार के बारे में जानते थे. कुछ देर रुकने के बाद संध्या घर लौट गई थी. इस के बाद संध्या को जब भी मौका मिलता था, वह मनीत से मिलने उस के किराए के कमरे पर आ जाती थी. इसी दौरान दोनों सामाजिक मर्यादा तोड़ कर एक हो गए थे. उन के बीच में जिस्मानी संबंध बन चुके थे.

धीरेधीरे उन का प्यार दोनों के घर वालों तक पहुंच चुका था. संध्या और मनीत दोनों के घर वालों ने उन्हें चेतावनी दे दी थी कि वे एकदूसरे से मिलना बंद कर दें. मनीत के घर वालों ने साफ शब्दों में कह दिया था उस की शादी वहीं होगी, जहां वे लोग चाहेंगे. संध्या हरगिज इस घर की बहू नहीं बन सकती है. वह न तो हमारी जातिबिरादरी की है और न ही हमारे हैसियत की. मनीत और संध्या के बीच के रिश्ते इतने आगे बढ़ चुके थे कि वहां से वापस लौटना नामुमकिन था. संध्या मनीत से कह चुकी थी कि वह उसे धोखा नहीं देगा. अगर उस ने धोखा देने की कोशिश की तो इस का परिणाम भयानक हो सकता है, क्योंकि वह आज की नारी है. अपने हक के लिए वह कुछ भी कर सकती है.

मनीत रिश्तों के मकड़जाल में बुरी तरह उलझ कर रह गया था. वह समझ नहीं पा रहा था कि किस ओर जाए. संध्या को अपनाता है तो उस के घर वाले नाराज होते हैं और संध्या को छोड़ता है तो वह नाराज होती है. मनीत न तो घर वालों को नाराज करना चाहता था और न ही संध्या को. कई दिनों से वह इसी उलझन में जकड़ा हुआ था. मोहब्बत करना कोई गुनाह नहीं होता है, मोहब्बत में मर्यादा लांघना गुनाह होता है जो दोनों कर चुके थे. संध्या मनीत पर जल्द से जल्द शादी करने के लिए दबाव बनाने लगी थी. दोनों ने जो गुनाह किया था उस का बीज संध्या की कोख में पल रहा था. सामाजिक मर्यादा को बचाने के लिए उस के पास एक ही विकल्प था जल्द से जल्द शादी कर के गुनाह को छिपा लेना.

घर वालों के दबाव में आ कर मनीत संध्या से पीछा छुड़ाने के लिए उस से कट कर रहने लगा. संध्या मनीत के भाव समझ गई थी. संध्या ने मनीत को समझा दिया कि आसानी से पीछा छूटने वाला नहीं है. फिर क्या था 3 जून, 2020 को संध्या ने कटघर थाने में प्रेमी मनीत के खिलाफ शादी का झांसा दे कर दुष्कर्म करने की शिकायत दर्ज करा दी. मनीत के खिलाफ थाने में शिकायत दर्ज होते ही हड़कंप मच गया. संध्या के उठाए कदम से मनीत डर गया था. उस ने जैसेतैसे कर के संध्या को मना लिया. उस ने उस से अपनी शिकायत वापस लेने को कहा. वह जानता था कि अगर ऐसा नहीं हुआ तो उसे जेल की हवा खानी पड़ सकती है. जिस से उस के कैरियर पर एक बड़ा धब्बा लग जाएगा.

काफी मानमनौव्वल के बाद संध्या अपनी शिकायत वापस लेने के लिए तैयार हो गई. मनीत ने उस से वादा किया कि अगले 5 जून को दोनों कोर्टमैरिज कर लेंगे. शादी की बात सुन कर संध्या की खुशियों का ठिकाना नहीं रहा. वह बहुत खुश थी. 4 जून की शाम मनीत ने फोन कर के संध्या को अपने कमरे पर बुला लिया. संध्या घर वालों से यह झूठ बोल कर आई थी कि वह अपनी एक सहेली के घर जा रही है. रात वहीं रुकेगी, अगली सुबह घर वापस लौटेगी. शाम को जब संध्या कमरे पर आई तो दोनों शहर घूमने गए. रात को घर लौटे और मैगी बना कर खाई और कोल्डड्रिंक पी. पूरी रात बातें करते रहे. रात 2 बजे के करीब मनीत ने शादी के सिलसिले में बात करने के लिए घर फोन किया था.

घर वालों ने शादी करने से साफ मना कर दिया. इस बात को ले क र मनीत बुरी तरह नरवस हो गया और सरकारी कारबाइन से गोली मार कर आत्महत्या कर ली. बहरहाल, जांचपड़ताल में यह बात सिद्ध हो गई थी कि पारिवारिक दबाव और प्रेम उलझन में परेशान हो कर मनीत प्रताप सिंह ने सरकारी कारबाइन से गोली मार कर आत्महत्या की है. कटघर थाने में पुलिस ने आत्महत्या का मुकदमा दर्ज कर जांच की काररवाई बंद कर दी थी. संध्या की जिंदगी एक चक्रव्यूह में उलझ कर रह गई है, जिसे सुलझाने की कोशिश में वह जुटी हुई है.

—कथा में संध्या नाम और स्थान परिवर्तित किया गया है. कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

Family Dispute : बहू ने सास को लोहे की पाइप से पीट पीट कर मार डाला

Family Dispute : निकिता और रेखाबेन का आए दिन का झगड़ा आम सास बहू के झगड़ों और कहासुनी से अलग नहीं था. लेकिन यह झगड़ा तब सीमाएं लांघ गया जब सास रेखाबेन ने गर्भवती बहू के गर्भ में ससुर का बच्चा होने का इलजाम लगाया. जाहिर है कोई भी औरत ऐसा झूठा आरोप नहीं सह सकती. निकिता भी नहीं…

परिवार में सासबहू के झगड़े सैकड़ों सालों से चले आ रहे हैं. ये विवाद कभी खत्म नहीं हुए और न ही हो सकते हैं. सासबहू की लड़ाई को टीवी की महारानी एकता कपूर ने सीरियल के रूप में घरघर तक नए रूप में पहुंचाया. संपन्न परिवारों में सास और बहू एकदूसरे को मात देने के लिए कुटिल चालों का तानाबाना बुनती रहती थीं, जिस के चलते टीवी सीरियल की कहानियां लंबी खिंचती जाती थीं. अब इन सीरियलों का दौर भले ही खत्म हो गया, लेकिन वास्तविक जीवन में सासबहू के झगड़े जारी हैं. आज भी कोई इक्कादुक्का परिवार ही ऐसे होंगे, जहां सास और बहू में आपस में प्रेमप्यार बना हुआ हो. आमतौर पर सास अपनी बहू पर मनमर्जी थोपना चाहती है और बहू आजादी चाहती है.

विवाद यहीं से शुरू होता है. यह विवाद कभीकभी इतना बढ़ जाता है कि या तो परिवार टूटने की नौबत आ जाती है या फिर अपराध की. कई बार ऐसे किस्से भी सुनने को मिलते हैं जब सास ने अपनी बहू को मार डाला. कभी इस के उलट कहानी भी सामने आती है. यह कहानी गुजरात की राजधानी अहमदाबाद शहर की है. अहमदाबाद के गोता इलाके में स्थित पौश आवासीय सोसायटी रौयल होम्स में फर्स्ट फ्लोर पर बने फ्लैट में रामनिवास अग्रवाल का परिवार रहता है. उन का शहर में पत्थर, टाइल्स का बड़ा कारोबार है. बेटा दीपक भी उनके साथ व्यापार में हाथ बंटाता है.

घरपरिवार में मौज थी. केवल 4 सदस्यों के इस परिवार में किसी चीज की कोई कमी नहीं थी. खुद रामनिवास अग्रवाल, उन की पत्नी रेखा बेन, बेटा दीपक और बहू निकिता उर्फ नायरा. रामनिवास की उम्र कोई 55 साल है. उन की पत्नी रेखा करीब 52 साल की थी. बेटा दीपक लगभग 30-32 साल का और बहू निकिता करीब 29 साल की. दीपक की शादी इसी साल 16 जनवरी को निकिता से हुई थी. निकिता राजस्थान के जिला अजमेर के ब्यावर निवासी सुरेशचंद्र अग्रवाल की बेटी है. रामनिवास भी मूलरूप से राजस्थान के रहने वाले हैं. उन का परिवार पहले पाली जिले में सुमेरपुर के पास जवाई बांध इलाके में रहता था. बाद में रामनिवास व्यापार के सिलसिले में अहमदाबाद चले गए. वहां उन का कारोबार अच्छा चल गया.

रामनिवास भले ही गुजरात में बस गए थे, लेकिन राजस्थान की माटी से उन का मोह नहीं छूटा था. इसलिए बेटे दीपक के लिए जब राजस्थान के ब्यावर से निकिता का रिश्ता आया, तो उन्होंने घरपरिवार देख कर हामी भर दी. वैसे भी ब्यावर के रहने वाले सुरेशचंद्र अग्रवाल साधन संपन्न थे. उन का भी अच्छा कारोबार था. पैसों की कोई कमी नहीं थी. निकिता में भी कोई कमी नहीं थी. तीखे नाकनक्श वाली निकिता ने राजस्थान यूनिवर्सिटी से एमकौम तक की पढ़ाई करने के बाद सिक्किम यूनिवर्सिटी से फायनेंस में एमबीए की डिगरी भी हासिल की थी. दीपक और निकिता की शादी हो गई. शादी में सुरेशचंद्र अग्रवाल ने दिल खोल कर पैसा खर्च किया. किसी बात की कमी नहीं छोड़ी. पत्नी के रूप में सुंदर और पढ़ीलिखी निकिता को पा कर दीपक भी निहाल हो गया.

दीपक भी हैंडसम था. निकिता भी पति के रूप में दीपक को पा कर खुद पर अभिमान करती थी. दोनों का दांपत्य जीवन खुशी से चलने लगा. निकिता की भले ही शादी हो गई थी, लेकिन पीहर से उस का मोह नहीं छूटा था. वह पीहर जाती, तो महीनेबीस दिन में आती. हालांकि इस बीच मार्च में लौकडाउन हो गया था. लौकडाउन के दौरान निकिता को करीब 3-4 महीने पीहर में ही गुजारने पड़े. उस का कहना था कि ट्रेन और बसें बंद होने तथा एक से दूसरे राज्य में लोगों की आवाजाही पर रोक होने से वह अहमदाबाद नहीं जा सकी थी. पढ़ीलिखी बहू और गृहिणी सास की नोंकझोंक बहू निकिता के ज्यादा समय पीहर में रहने से सास रेखा बेन को कोई सुख नहीं मिल पा रहा था. वैसे तो घर में कामकाज के लिए बाई आती थी. फिर भी रेखा बेन चाहती थी कि कोई उस की भी देखभाल करने वाला हो.

बहू उस के कामकाज में हाथ बंटाए. इस बात को ले कर रेखा और निकिता में कई बार खटपट हो जाती थी. दहेज को ले कर भी रेखा उसे ताने मारती और उस के कामकाज में मीनमेख निकालती रहती थी. वैसे भी आमतौर पर बढ़ती उम्र के लिहाज से हर महिला चाहती है कि जैसे उस ने घर को संवारा है, वैसे ही बहू भी घरपरिवार की जिम्मेदारी संभाले, लेकिन निकिता शादी के बाद आधे से ज्यादा समय पीहर में ही रही थी. ऐसी हालत में रेखा बेन को ही घरपरिवार में खटना पड़ता था. उसी पर पति की जिम्मेदारी थी और बेटे की भी. इसी बीच, अक्तूबर के महीने में निकिता के दादा का निधन हो गया, तो वह फिर अपने मायके चली गई. इस बार भी वह मायके में कुछ ज्यादा दिन रुक गई. ससुर और पति ने कई बार फोन किए, तो वह 21 अक्तूबर को अहमदाबाद लौट आई.

ससुराल आ कर निकिता ने पति और सास को अपने गर्भवती होने की बात बताई. यह सुन कर दीपक तो खुशी से झूम उठा, लेकिन रेखा बेन के माथे पर सिलवटें पड़ गई. रेखा बेन को बहू के गर्भवती होने से कोई खुशी नहीं हुई. उसे शक था कि निकिता के पेट में बेटे दीपक का नहीं बल्कि ससुर रामनिवास का गर्भ है. रेखा बेन को अपने पति पर भी शक था. उस का शक इसलिए भी था कि ससुर और बहू खूब हंसबोल कर बातें करते थे. मोबाइल पर चैटिंग भी करते थे. हालांकि रेखा बेन ने कभी ससुर और बहू को गलत हरकत करते हुए नहीं देखा, लेकिन उस के दिमाग में शक का कीड़ा कुलबुलाता रहता था. रेखा पहले से ही बहू से खुश नहीं थी. अब उसे उस के चरित्र पर भी शक होने लगा था.

शक ऐसा कीड़ा है, जिस का कोई इलाज नहीं है. रेखा पहले तो दहेज को ले कर और उस के कामकाज तथा पीहर में ज्यादा समय रहने पर ऐतराज उठाती थी. अब वह उस के चरित्र पर भी अंगुली उठाने लगी. इस से सासबहू के झगड़े बढ़ गए. रेखा को जब भी मौका मिलता, वह निकिता को ताने मारने से नहीं चूकती. रोजाना दिन में 2-4 बार किसी न किसी बात पर रेखा और निकिता में कहासुनी हो ही जाती थी. रेखा बहू की शिकायत अपने बेटे और पति से करती, तो वह हंस कर टाल देते थे. इस बीच, रामनिवास कोरोना से संक्रमित हो गया. उसे 24 अक्तूबर को निजी अस्पताल में भरती करा दिया गया. पति के कोरोना संक्रमित होने से रेखा बेन चिड़चिड़ी हो गई.

इस के बाद 27 अक्तूबर की रात करीब 8 बजे की बात है. घर पर केवल रेखा और निकिता ही थी. दीपक अपने टाइल्स, पत्थर के औफिस गया हुआ था. रेखा उस समय रसोई में रात के भोजन की तैयारी कर रही थी. इसी दौरान रेखा अपनी बहू को ताने मारने लगी. रेखा के हाथ में लोहे का एक पाइप था. वह उस पाइप को निकिता के पेट पर धंसा कर कहने लगी, तेरे पेट में ये जो बच्चा है, वह मेरे बेटे का नहीं बल्कि मेरे पति का है. निकिता बर्दाश्त नहीं कर पाई सास के मुंह से ऐसी बातें सुन कर निकिता को गुस्सा आ गया. उस ने रेखा के हाथ से वह पाइप छीन लिया और बिना सोचेसमझे उस के सिर में दे मारा.

50-52 साल की रेखा बेन जवान बहू का विरोध नहीं कर सकी. उस के सिर से खून बहने लगा. वह फर्श पर गिर पड़ी. इस के बाद भी निकिता का गुस्सा शांत नहीं हुआ. उस ने पाइप से सास के सीने, पेट और चेहरे पर कई वार किए. पाइप के लगातार हमलों को रेखा सहन नहीं कर सकी. उस के शरीर से कई जगह से खून रिसने लगा और थोड़ी ही देर में उस के प्राण निकल गए. जब निकिता का गुस्सा शांत हुआ, तो वह घबरा गई. उस की सोचनेसमझने की शक्ति जवाब दे गई थी. कुछ देर बैठ कर वह सोचती रही कि अब क्या करे? कुछ देर विचार करने के बाद उस ने सास की हत्या को आत्महत्या का रूप देने की योजना बनाई.

उस ने फ्लैट में ही रेखा के शव पर चादर डाल कर उसे जलाने का प्रयास किया. उसे यह नहीं पता था कि इंसान का शव इतनी आसानी से नहीं जलता. शव नहीं जला, तो वह हताश हो कर अपना सिर पकड़ कर बैडरूम में जा बैठी. इस बीच, पड़ोसियों ने सासबहू के बीच झगड़े और मारपीट की तेज आवाजें सुनीं, तो उन्होंने रामनिवास के फ्लैट का दरवाजा खटखटाया, लेकिन निकिता ने दरवाजा नहीं खोला. कई बार घंटी बजाने और कुंडी खटखटाने के बाद भी जब दरवाजा नहीं खुला, तो पड़ोसियों ने रामनिवास को फोन किया. रामनिवास अस्पताल में थे. पड़ोसी की बात सुन कर वे चिंतित हो उठे. उन्होंने बेटे दीपक को तुरंत घर जाने को कहा. दीपक उस समय अपना औफिस बंद कर चाणक्यपुरी ब्रिज स्थित मंदिर में हनुमानजी के दर्शन करने गया हुआ था. वह रात करीब साढ़े 9 बजे फ्लैट पर पहुंचा.

उस ने घंटी बजाई, लेकिन निकिता ने गेट नहीं खोला. उस ने गेट की कुंडी भी खटखटाई, लेकिन फिर भी दरवाजा नहीं खुला, तो उस ने मां और बीवी के मोबाइल पर फोन किया, लेकिन दोनों ने ही फोन नहीं उठाया. उसे लगा कि निकिता ने मां से झगड़े के बाद गेट बंद कर लिया होगा और अब वह गुस्से में गेट नहीं खोल रही है. मां की लाश देख होश उड़े थकहार कर उस ने पड़ोसियों की सीढि़यों के रास्ते अपने फ्लैट में जाने की कोशिश की, लेकिन उसे कामयाबी नहीं मिली. बाद में उस ने पड़ोसियों से पाइप की बनी सीढ़ी का इंतजाम किया. इस सीढ़ी पर चढ़ कर वह रसोई के रास्ते अपने फ्लैट में पहुंचा. उस की मां का कमरा बंद था. उस ने कमरा खोला, तो मां की खून से लथपथ अधजली लाश देख कर दीपक सहम गया.

मां की लाश के पास ही खून से सना लोहे का एक पाइप पड़ा था. निकिता अपने बैडरूम में चुपचाप बैठी थी. उस ने उस से पूछा कि यह सब क्या और कैसे हुआ?  निकिता ने दीपक को बताया कि मम्मीजी ने पहले उस से झगड़ा किया. फिर वे अपने कमरे में चली गईं. पता नहीं उन्होंने खुद कैसे अपना यह हाल बना लिया? शायद उन्होंने सुसाइड कर लिया. दीपक को निकिता की बातें गले नहीं उतर रही थीं. अगर रेखा बेन सुसाइड करतीं, तो खून से लथपथ कैसे हो जातीं और फिर उन का शव कैसे जलता? दीपक ने निकिता से पूछा कि घर में कोई और आदमी आया था क्या? निकिता ने मना कर दिया.

दीपक ने रात को ही फोन नंबर 108 पर एंबुलेंस सेवा को फोन किया. एंबुलेंस के साथ आए डाक्टर और चिकित्साकर्मियों ने रेखा बेन की जांच कर उसे मृत घोषित कर दिया. इस के बाद दीपक ने पुलिस को फोन किया. पुलिस उस के फ्लैट में पहुंच गई. पुलिस ने दीपक से पूछताछ की. दीपक ने पिता का फोन आने से ले कर सीढ़ी के रास्ते फ्लैट में चढ़ने और मां का लहूलुहान शव पड़ा होने की सारे बातें बता दीं. पुलिस ने निकिता से पूछताछ की, तो उस ने वही बातें कहीं, जो दीपक को बताई थीं. मौके के हालात देख कर पुलिस को भी निकिता की कहानी पर भरोसा नहीं हुआ. रात ज्यादा हो गई थी. फिर भी पुलिस ने रात को ही घर के बाहर लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज देखी.

फुटेज में इस बात के कोई सबूत नहीं मिले कि दीपक के फ्लैट में बाहर से कोई आदमी आया था. पुलिस ने पंचनामा बना कर शव पोस्टमार्टम के लिए अस्पताल भिजवा दिया. मामला संदिग्ध था. इस के लिए निकिता से पूछताछ जरूरी थी. पुलिस उसे थाने ले गई. दीपक की शिकायत पर सोला थाना पुलिस ने मुकदमा दर्ज कर लिया. पुलिस ने मौके से खून से सना लोहे का पाइप बरामद कर लिया था. पुलिस ने थाने में निकिता से पूछताछ की. वह कहती रही कि सास और उस का झगड़ा हुआ था. इस के बाद सास अपने कमरे में चली गई और अंदर से कमरा बंद कर लिया. बाद में कैसे और क्या हुआ, इस का उसे कुछ पता नहीं है.

निकिता ने पुलिस को बताया कि उस की सास पिछले कुछ सालों से ऐसी बीमारी से पीडि़त थी कि कोई उसे छू ले, तो वह तुरंत नहाती थीं. मैडिकल की भाषा में इस बीमारी को औब्सेसिव कंपजिव डिसऔर्डर (ओसीडी) कहा जाता है. दीपक ने भी अपनी मां के ऐसी बीमारी से ग्रस्त होने की बात मानी. पुलिस ने दीपक से उस के घरपरिवार और सासबहू के रिश्तों के बारे में पूछा. इस में पता चला कि रेखा बेन और निकिता में दहेज और घरेलू कामकाज को ले कर झगड़े होते रहते थे. इस पर पुलिस अधिकारियों ने निकिता से मनोवैज्ञानिक तरीके से पूछताछ की.

आखिर दूसरे दिन 28 अक्तूबर को सुबह निकिता ने जो बताया, उसे सुन कर पुलिस के अधिकारी भी हैरान रह गए. निकिता ने बताया कि उस की सास पुराने खयालों की थी. वह उसे कभी दहेज पर तो कभी किसी दूसरी बात पर ताने मारती थी. शादी के बाद से ही सास से उस की पटरी नहीं बैठी थी. अभी जब वह पीहर से ससुराल आई और मम्मीजी को अपने गर्भवती होने की बात बताई, तो उन की त्यौरियां चढ़ गईं. उस दिन तो उन्होंने कुछ नहीं कहा. ससुरजी के अस्पताल में भरती होने के बाद मम्मीजी मेरे गर्भ को ले कर अनापशनाप बातें कहने लगीं. उस दिन जब उन्होंने उस से गर्भ ससुर का होने की बात कही, तो गुस्से में वह अपना आपा खो बैठी और उन के हाथ से पाइप छीन कर ताबड़तोड़ हमले किए. इस से उन की मौत हो गई. निकिता ने सास की हत्या करने की बात कबूल कर ली थी.

उस ने पुलिस को बताया कि सास की हत्या को आत्महत्या का रूप देने के लिए उस ने वहां फैले खून को चादर से साफ किया. फिर शव पर चादर डाल कर आग लगा दी ताकि शव जल जाए, लेकिन शव नहीं जला. इस के बाद उस ने अपने मोबाइल से ससुर के वाट्सएप चैट और मैसेज डिलीट किए. मोबाइल से मैसेज डिलीट करने की बात सामने आने पर पुलिस ने निकिता के साथ परिवार के चारों लोगों के मोबाइल जब्त कर लिए. इन की जांच की, तो निकिता के मोबाइल में एक मैसेज मिला. 24 अक्तूबर के इस मैसेज में ससुर रामनिवास ने लिखा था कि तुम अभी दीपक से दूर ही रहना.

स्वीकारोक्ति के बाद निकिता की स्वीकारोक्ति के बाद पुलिस ने निकिता और उस की सास के खून से सने कपड़े भी जब्त कर लिए. मोबाइल फोन के साथ इन कपड़ों को भी जांच के लिए विधिविज्ञान प्रयोगशाला भेज दिया गया. एफएसएल टीम ने भी मौके से साक्ष्य जुटाए. पुलिस ने दूसरे दिन डाक्टरों के मैडिकल बोर्ड से रेखा बेन के शव का पोस्टमार्टम कराया. बाद में दीपक को शव सौंप दिया गया. घर वालों ने रेखा बेन का अंतिम संस्कार कर दिया. कोरोना जांच में निकिता निगेटिव मिली. इस के बाद पुलिस ने उसे अदालत में पेश कर रिमांड पर लिया. पुलिस ने निकिता को उस के फ्लैट पर ले जा कर वारदात का सीन रिक्रिएट किया.

इस दौरान पुलिस ने यह पता लगाने की कोशिश की कि निकिता और रेखा बेन के बीच झगड़ा कैसे शुरू हुआ होगा. इस के बाद निकिता ने कैसे उस की हत्या की होगी. सीन रिक्रिएट के जरिए पुलिस ने यह बात जानने की भी कोशिश की कि क्या निकिता ने अकेले ही सास की हत्या की या इस में किसी दूसरे आदमी ने भी उस की मदद की? हालांकि पुलिस को इस बात का कोई सबूत नहीं मिला. बेटी के हाथों सास की हत्या की सूचना मिलने पर राजस्थान के ब्यावर शहर से निकिता के मातापिता अहमदाबाद पहुंचे. पहले वे समधन रेखा बेन की अंतिम क्रिया में शरीक हुए. बाद में वे सोला पुलिस स्टेशन जा कर हत्या आरोपी बेटी निकिता से मिले.

उसे पुलिस हिरासत में देख कर मांबाप के आंसू बह निकले. निकिता भी रो पड़ी. सुबकते हुए उस ने अपने मातापिता से केवल इतना ही कहा, ‘मुझ से बहुत बड़ी गलती हो गई.’ पुलिस ने जांचपड़ताल के दौरान पड़ोसियों से भी पूछताछ की. उन्होंने बताया कि रेखा और निकिता के बीच आमतौर पर रोजाना ही किसी ना किसी बात पर झगड़ा होता था. उस दिन भी उन्होंने दोनों के बीच झगड़े और मारपीट की तेज आवाजें सुनी थीं. इस के बाद ही रामनिवास को फोन किया था.

कथा लिखे जाने तक पुलिस ने निकिता को जेल भिजवा दिया था. पुलिस यह जानने का प्रयास कर रही थी कि क्या निकिता के अपने ससुर से किसी तरह के संबंध थे? हालांकि पुलिस को एक मोबाइल चैटिंग के अलावा इस बारे में दूसरा कोई प्रमाण नहीं मिला. मोबाइल चैटिंग से भी यह बात साफ नहीं होती कि निकिता के ससुर से किसी तरह के संबंध थे. बहरहाल, 2 महीने की गर्भवती निकिता अपनी सास की हत्या के आरोप में जेल पहुंच गई. ससुर रामनिवास पर बहू से संबंधों का आरोप लग गया. पति दीपक बीच मंझधार में फंस गया.

उस के सामने संकट आ खड़ा हुआ कि वह पिता पर शक करे या पत्नी पर. निकिता के पेट में किस का गर्भ है, यह तो वही जाने. शक की बुनियाद पर एक खातेपीते संपन्न परिवार के रिश्तों में ऐसी दरार आ गई, जो जिंदगी भर नहीं पाटी जा सकती.

 

Best Hindi Story : अधूरी मौत की कहानी

Best Hindi Story : एक मामूली परिवार की होते हुए भी अनल ने शीतल से न केवल शादी की, बल्कि उसे अपने करोड़ों का व्यवसाय संभालने के काबिल भी बना दिया. लेकिन शीतल ने अनल के साथ जो खतरनाक खेल खेला, उस से उस का सब कुछ छिन गया. लेकिन उस ने भी शीतल से… ‘‘मे रे दिल ने जो मांगा मिल गया, जो कुछ भी चाहा मिला.’’ शीतल उस हिल स्टेशन के होटल के कमरे में खुदबखुद गुनगुना रही थी.

‘‘क्या बात है शीतू, बहुत खुश नजर आ रही हो.’’ अनल उस के पास आ कर कंधे पर हाथ रखता हुआ बोला.

‘‘हां अनल, मैं आज बहुत खुश हूं. तुम मुझे मेरे मनपसंद के हिल स्टेशन पर जो ले आए हो. मेरे लिए तो यह सब एक सपने के जैसा था.

‘‘पिताजी एक फैक्ट्री में छोटामोटा काम करते थे. ऊपर से हम 6 भाईबहन. ना खाने का अतापता होता था ना पहनने के लिए ढंग के कपड़े थे. किसी तरह सरकारी स्कूल में इंटर तक पढ़ पाई. हम लोगों को स्कूल में वजीफे के पैसे मिल जाते थे, उन्हीं पैसों से कपड़े वगैरह खरीद लेते थे.

‘‘एक बार पिताजी कोई सामान लाए थे, जिस कागज में सामान था, उसी में इस पर्वतीय स्थल के बारे में लिखा था. तभी से यहां आने की दिली इच्छा थी मेरी. और आज यहां पर आ गई.’’ शीतल होटल के कमरे की बड़ी सी खिड़की के कांच से बाहर बनते बादलों को देखते हुए बोली.

‘‘क्यों पिछली बातों को याद कर के अपने दिल को छोटा करती हो शीतू. जो बीत गया वह भूत था. आज के बारे में सोचो और भविष्य की योजना बनाओ. वर्तमान में जियो.’’ अनल शीतल के गालों को थपथपाते हुए बोला.

‘‘बिलकुल ठीक है अनल. हमारी शादी को 9 महीने हो गए हैं. और इन 9 महीनों में तुम ने अपने बिजनैस के बारे में इतना सिखापढ़ा दिया है कि मैं तुम्हारे मैनेजर्स से सारी रिपोर्ट्स भी लेती हूं और उन्हें इंसट्रक्शंस भी देती हूं. हिसाबकिताब भी देख लेती हूं.’’ शीतल बोली.

‘‘हां शीतू यह सब तो तुम्हें संभालना ही था. 5 साल पहले मां की मौत के बाद पिताजी इतने टूट गए कि उन्हें पैरालिसिस हो गया. कंपनी से जुड़े सौ परिवारों को सहारा देने वाले खुद दूसरे के सहारे के मोहताज हो गए.

‘‘नौकरों के भरोसे पिताजी की सेहत गिरती ही जा रही थी. तुम नई थीं, इसीलिए पिताजी का बोझ तुम पर न डाल कर तुम्हें बिजनैस में ट्रेंड करना ज्यादा उचित समझा. पिताजी के साथ मेरे लगातार रहने के कारण उन की सेहत भी काफी अच्छी हो गई है. हालांकि बोल अब भी नहीं पाते हैं.

‘‘मैं चाहता हूं कि इस हिल स्टेशन से हम एक निशानी ले कर जाएं जो हमारे अपने लिए और उस के दादाजी के लिए जीने का सहारा बने.’’ अनल शीतल के पीछे खड़ा था. वह दोनों हाथों का हार बना कर गले में डालते हुए बोला.

‘‘वह सब बातें बाद में करेंगे. अभी तो सफर में बहुत थक गए हैं. खाना और्डर करो, खा कर आराम से सो जाएंगे. अभी तो 7 दिन हैं, खूब मौके मिलेंगे.’’ शीतल बोली.

‘‘वाह क्या नजारा है इस हिल स्टेशन का. कितना सुंदर लग रहा है उगता हुआ सुरज  होटल की इस 5वीं मंजिल से.’’ सुबह उठ कर उसी खिड़की के पास खड़ी हो कर शीतल बोली.

‘‘रात तो तुम बहुत जल्दी बहुत गहरी नींद सो गई थीं. मैं तुम्हें जगाने की कोशिशें ही करता रह गया.’’ अनल शीतल के साथ खड़े होते हुए बोला.

‘‘मैं बहुत थक गई थी. बिस्तर पर गिरते ही गहरी नींद आ गई.’’

‘‘चलो कोई बात नहीं, आज पूरा मजा उठा लेंगे. देखो, आज 5 विजिटिंग पौइंट्स पर चलना है. 9 बजे टैक्सी आ जाएगी. हम यहां से नाश्ता कर के निकलते हैं. लंच किसी सूटेबल पौइंट पर ले लेंगे.’’ अनल बोला.

‘‘हां, मैं तैयार होती हूं.’’ शीतल बोली.

‘‘सर, आप की टैक्सी आ गई है.’’ नाश्ते के बाद होटल के रिसैप्शन से फोन आया.

‘‘ठीक है हम नीचे पहुंचते हैं.’’ अनल बोला.

‘‘क्यों भैया, 7 दिन आप हमारे साथ रह सकोगे? हम चाहते हैं, पूरा हिल स्टेशन हमें आप ही घुमाओ.’’ शीतल टैक्सी में बैठते हुए बोली.

‘‘जी मैडम, मैं आप को सारी जगह दिखाऊंगा.’’ ड्राइवर बड़े अदब से बोला.

‘‘देखो भैया, सब जगह आराम से और अच्छे से घुमाना. आप की मनमाफिक बख्शीश दे कर जाऊंगी.’’ शीतल चहकते हुए बोली.

‘‘जी मैडम, टूरिस्ट की खुशी ही हमारे लिए सब से बड़ा ईनाम है.’’

‘‘आज तो तुम ने खूब अच्छा घुमाया.’’ शाम को टैक्सी से उतरते हुए अनल बोला.

‘‘घुमाया तो खूब, पर पैदल कितना चला दिया. पर्वतों पर हर स्पौट पर आधा किलोमीटर चढ़ना और उतरना अपने आप में बेहद थकाऊ काम है.’’ शीतल अनल के कंधे का सहारा ले कर टैक्सी से निकलते हुए बोली.

‘‘वैसे चलने का अपना ही मजा है.’’ अनल ने कहा.

‘‘जी साहब. मैं चलता हूं. सुबह जल्दी आ जाऊंगा, आप तैयार रहें.’’ कहते हुए ड्राइवर चला गया.

‘‘अनल, जब हम घूम कर लौट रहे थे तब उस संकरे रास्ते पर क्या एक्सीडेंट हो गया था? सारा ट्रैफिक जाम था. तुम देखने भी तो उतरे थे.’’ होटल के कमरे में घुसते हुए शीतल ने पूछा.

‘‘एक टैक्सी वाले से एक बुजुर्ग को हलकी सी टक्कर लग गई. बस उसी का झगड़ा चल रहा था. बुजुर्ग इलाज के लिए पैसे मांग रहा था. इसीलिए पूरा रास्ता जाम था.’’ अनल ने बताया. ‘‘ऐसा ही एक एक्सीडेंट हमारी जिंदगी में भी हुआ था, जिस से हमारी जिंदगी ही बदल गई.’’ अनल ने आगे जोड़ा.

‘‘हां मुझे याद है. उस दिन पापा मेरे रिश्ते की बात करने कहीं जा रहे थे. तभी सड़क पार करते समय तुम्हारे खास दोस्त वीर की स्पीड से आती हुई कार ने उन्हें टक्कर मार दी. जिस से उन के पैर की हड्डी टूट गई और वह चलने से लाचार हो गए.’’ शीतल बोली.

‘‘हां, और तुम्हारे पिताजी ने हरजाने के तौर पर तुम्हारी शादी वीर से करने की मांग रखी. इस से कम पर वह और कोई समझौता नहीं चाहते थे.’’

‘‘मेरा रिश्ते टूटने की सारी जवाबदारी वीर की ही थी. इसलिए हरजाना तो उसी को देना था ना.’’ शीतल अपने पिता की मांग को जायज ठहराते हुए बोली.

‘‘वीर तो बेचारा पहले से ही शादीशुदा था, वह कैसे शादी कर सकता था? मेरी मम्मी की मौत के बाद वीर की मां ने मुझे बहुत संभाला और पिताजी को पैरालिसिस होने के बाद तो वह मेरे लिए मां से भी बढ़ कर हो गईं.

‘‘कई मौकों पर उन्होंने मुझे वीर से भी ज्यादा प्राथमिकता दी. उस परिवार को मुसीबत से बचाने के लिए ही मैं ने तुम से शादी की. क्योंकि एक बिजनैसमैन के लिए बिना वजह कोर्टकचहरी के चक्कर लगाना संभव नहीं था.

‘‘मेरे बिजनैस की पोजीशन को देखते हुए कोई भी पैसे वाली लड़की मुझे मिल जाती. मगर मेरे मन में यह संदेह हमेशा से था कि शायद वह पिताजी की देखभाल उस तरह से न कर पाए जैसा मैं चाहता हूं. मैं खुद किसी गरीब घर की लड़की से शादी करने के पक्ष में था.

‘‘वीर के परिवार का एहसान तो मैं ताजिंदगी नहीं उतार सकता था. मगर तुम से शादी कर के उस का बोझ कुछ कम जरूर कर सकता था.’’ अनल बोला.

‘‘मतलब तुम्हें एक नौकरानी चाहिए थी जो बीवी की तरह रह सके.‘‘शीतल के स्वर में कुछ कड़वापन था.

‘‘बड़े सयानों के मुंह से सुना था जोडि़यां स्वर्ग में बनती हैं. मगर हमारी जोड़ी सड़क पर बनी. यू आर जस्ट ऐन एक्सीडेंटल वाइफ. लेकिन मुझे तुम से कोई शिकायत नहीं हैं. मैं ने पिछले 9 महीनों में एक नई शीतल गढ़ दी है, जो मेरा बिजनैस हैंडल कर सकती है. बस एक ही ख्वाहिश और है जिसे तुम पूरा कर सकती हो.’’ अनल हसरतभरी निगाहों से शीतल की तरफ देखते हुए बोला.

‘‘अनल, पहाड़ों पर चढ़नेउतरने के कारण बदन दर्द से टूट रहा है. कोई पेनकिलर ले कर आराम से सोते हैं. वैसे भी सुबह 4 बजे उठना पड़ेगा सनराइज पौइंट जाने के लिए. यहां सूर्योदय साढ़े 5 बजे तक हो ही जाता है.’’ शीतल सपाट मगर चुभने वाले लहजे में बोली. अनल अपना सा मुंह ले कर बिस्तर में दुबक गया.

‘‘वाह क्या सुंदर सीन है सनराइज का, मजा आ गया.’’ अनल सनराइज देख कर चहकता हुआ बोला. दरअसल वह माहौल को हलका करना चाहता था.

‘‘हां सचमुच ऐसा लगता है, जैसे कुदरत ने सिंदूरी रंग की कलाकारी कर शानदार पेंटिंग बनाई है.’’ ऐसा लगा शीतल भी रात की बातों को भुला कर आगे की यात्रा सुखद बनाना  चाहती थी.

‘‘वाह, ड्राइवर भैया धन्यवाद. इस सनराइज ने तो जिंदगी को अवस्मरणीय दृश्य दे दिया.’’ शीतल अपनी ही रौ में बोलती चली गई. आज ऐसी जगह ले चलो जो एकदम से अलग सा एहसास देती हो.’’

‘‘जी मैडम, यहां से 20 किलोमीटर दूर है. इस टूरिस्ट प्लेस की सब से ऊंची जगह. वहां से आप सारा शहर देख सकती हैं, करीब एक हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित है.

‘‘वहां पर आप टेंट लगा कर कैंपिंग भी कर सकते है. यहां टेंट में रात को रुकने का अपना ही रोमांच है. वहां आप को डिस्टर्ब करने के लिए कोई नहीं होगा.’’ ड्राइवर ने उस जगह के बारे में बताया.

‘‘चलो ना अनल वहां पर. कितना मजा आएगा पहाड़ की सब से ऊंची चोटी पर हम अकेले एक टेंट में. कभी न भूल पाने वाला अनुभव होगा यह.’’ शीतल जिद करते हुए बोली.

‘‘और लोग भी तो होते होंगे वहां पर?’’ अनल ने पूछा.

‘‘सामान्यत: भीड़ वाले समय में 2 टेंटों के बीच लगभग सौ मीटर की दूरी रखी जाती है. लेकिन इस समय भीड़ कम है. चढ़ाई करते समय आप बोल देंगे तो वहां के लोग आप की इच्छानुसार आप का टेंट नो डिस्टर्ब वाले जोन में लगा देंगे. आप उन वादियों का अकेले में लुत्फ उठा पाएंगे.’’ ड्राइवर ने बताया.

‘‘चलो ना अनल. ऐसी जगह पर तुम्हारी इच्छा भी पूरी हो जाएगी.’’ शीतल जोर देते हुए बोली.

‘‘चलो भैया आज उसी टेंट में रुकते हैं.’’ अनल खुश होते हुए बोला. लगभग एक घंटे के बाद वह लोग उस जगह पर पहुंच गए.

‘‘साहब, यहां से लगभग एक किलोमीटर आप को संकरे रास्ते से चढ़ाई करनी है.’’ ड्राइवर गाड़ी पार्किंग में लगाते हुए बोला.

‘‘अच्छा होता तुम भी हमारे साथ ऊपर चलते. एक टेंट तुम्हारे लिए भी लगवा देते.’’ अनल गाड़ी से उतरते हुए बोला.

‘‘नहीं साहब, मैं नहीं चल सकता. मैं आज अपने परिवार के साथ रहूंगा. यहां आप को टेंट 24 घंटे के लिए दिया जाएगा. उस में सभी सुविधाएं होती हैं. आप खाना बनाना चाहें तो सामान की पूरी व्यवस्था कर दी जाती है और मंगवाना चाहें तो ये लोग बताए समय पर खाना डिलीवर भी कर देते हैं. यहां कैंप फायर का अपना ही  मजा है. आप रात में कैंप फायर अवश्य जलाएं, इस से जंगली जानवरों का खतरा भी कम रहता है.’’ ड्राइवर ने बताया.

‘‘चलो शीतू ऊपर चढ़ते हैं.’’ अनल बोला.

‘‘कितना सुंदर लग रहा है. ऊपर की तो बात ही कुछ और होगी. यहां से जो निशानी ले कर जाएंगे, वह बेमिसाल होगी.’’ शीतल कनखियों से अनल की तरफ देखते हुए शरारत से बोली. जाते समय दोनों ने टेंट वाले को नो डिस्टर्ब जोन में टेंट लगाने के निर्देश दे दिए. दोपहर और रात के खाने के और्डर भी दे दिए. लगभग एक घंटे की चढ़ाई के बाद दोनों पहाड़ी की सब से ऊंची चोटी पर थे.

‘‘हाय कितना सुंदर लग रहा है. यहां से घर, पेड़, लोग कितने छोटेछोटे दिखाई पड़ रहे हैं. ऐसा लगता है जैसे नीचे बौनों की बस्ती हो. मन नाचने को कर रहा है,’’ शीतल खुश हो कर बोली, ‘‘दूर तक कोई नहीं है यहां पर.’’

‘‘अरे शीतू, संभालो अपने आप को ज्यादा आगे मत बढ़ो. टेंट वाले ने बताया है ना नीचे बहुत गहरी खाई है.’’ अनल ने चेतावनी दी.

‘‘यहां आओ अनल, एक सेल्फी इस पौइंट पर हो जाए.’’ शीतल बोली.

‘‘लो आ गया, ले लो सेल्फी.’’ अनल शीतल के नजदीक आता हुआ बोला.

‘‘वाह क्या शानदार फोटो आए हैं.’’ शीतल मोबाइल में फोटो देखते हुए बोली.

‘‘चलो तुम्हारी कुछ स्टाइलिश फोटो लेते हैं. फिर तुम मेरी लेना.’’

‘‘अरे कुछ देर टेंट में आराम कर लो. चढ़ कर आई हो, थक गई होगी.’’ अनल बोला.

‘‘नहीं, पहले फोटो.’’ शीतल ने जिद की, ‘‘तुम यह गौगल लगाओ. दोनों हथेलियों को सिर के पीछे रखो. हां और एक कोहनी को आसमान और दूसरी कोहनी को जमीन की तरफ रखो. वाह क्या शानदार पोज बनाया है.’’ शीतल ने अनल के कई कई एंगल्स से फोटो लिए.

‘‘अरे भाई अब तो बस करो कुछ शाम के लिए भी तो छोड़ दो.’’ अनल ने शीतल से अनुरोध किया.

‘‘बस, एक और शानदार मर्दाना फोटो हो जाए. अब तुम उस आखिरी सिरे पर रखे उस बड़े से पत्थर पर अपना पैर रखो. और मुसकराओ. वाह मजा आ गया एकदम से मौडल जैसे दिख रहे हो.

‘‘अब उसी चट्टान पर जूते के तस्मे बांधते हुए एक फोटो लेते हैं. अरे ऐसे नहीं. मुंह थोड़ा नीचे रखो. फोटो में फीचर्स अच्छे आने चाहिए. ओफ्फो…ऐसे नहीं बाबा. मैं आ कर बताती हूं. थोड़ा झुको और नीचे देखो.’’ शीतल ने निर्देश दिए. तस्मे बांधने के चक्कर में अनल कब अनबैलेंस हो गया पता ही नहीं चला. अनल का पैर चट्टान से फिसला और वह पलक झपकते ही नीचे गहरी खाई में गिर गया. एक अनहोनी जो नहीं होनी थी हो गई.

‘‘अनल…अनल…अनल…’’ शीतल जोरजोर से चीखने लगी. दूसरा टेंट लगभग 5 सौ मीटर दूर लगा था. वह सहायता के लिए उधर भागी. मगर उस टेंट वाले शायद पहले ही छोड़ कर जा चुके थे. टेंट वाले का नंबर उस के पास नहीं था. मगर उस के पास ड्राइवर का नंबर जरूर था. उस ने ड्राइवर को फोन लगाया.

‘‘भैया, अनल पैर फिसलने के कारण खाई में गिर गए हैं. कुछ मदद करो.’’ शीतल जोर से रोते हुए बोली.

‘‘क्या..?’’ ड्राइवर आश्चर्य से बोला, ‘‘यह तो पुलिस केस है. मैं पुलिस को ले कर आता हूं.’’

‘‘आप वहीं रुकिए, मैं नीचे आती हूं फिर पुलिस के पास चलते हैं.’’ शीतल बोली.

‘‘नहीं मैडम, इस में काफी टाइम लग जाएगा. आप वहीं रुकिए, मैं पुलिस को ले कर वहीं आता हूं इस से जल्दी मदद मिल जाएगी.’’ ड्राइवर बोला. लगभग 2 घंटे बाद ड्राइवर पुलिस को ले कर वहां पहुंच गया.

‘‘ओह तो यहां से पैर फिसला है उन का.’’ इंसपेक्टर ने जगह देखते हुए शीतल से पूछा.

‘‘जी.’’ शीतल ने जवाब दिया.

‘‘आप दोनों ही आए थे, इस टूर पर या साथ में और भी कोई है?’’ इंसपेक्टर ने प्रश्न किया.

‘‘जी, हम दोनों ही थे. वास्तव में यह हमारा डिलेड हनीमून शेड्यूल था.’’ शीतल ने बताया.

‘‘देखिए मैडम, यह खाई बहुत गहरी है. इस में गिरने के बाद किसी के भी बचने की संभावनाएं शून्य रहती हैं. हमें आज तक किसी के भी जिंदा रहने की सूचना नहीं मिली है. सुना है, इस खाई के बाद एक बस्ती है, जिस में जंगली आदिवासी रहते हैं, जो लोगों को देखते ही उन पर आक्रमण कर उन्हें मार डालते हैं.

‘‘इस खाई के अंतिम छोर तक तो किसी भी आदमी का पहुंचना नामुमकिन है. फिर भी हम जिस ऊंचाई तक आदमी के जीवित होने की संभावना होती है उतनी ऊंचाई तक रस्सों की मदद से अपनी सहायता टीम को पहुंचाते हैं.’’ इंसपेक्टर ने कहा.

‘‘जल्दी कीजिए सर, यहां पर सूर्यास्त भी जल्दी होता है.’’ लगातार रोती हुई शीतल ने अनुरोध किया.

‘‘आप के घर में और कौनकौन हैं?’’ इंसपेक्टर ने पूछा.

‘‘अनल के पिताजी हैं सिर्फ. जोकि पैरालिसिस से पीडि़त हैं और बोलने में असमर्थ.’’ शीतल ने बताया, ‘‘इन का कोई भी भाई या बहन नहीं हैं. 5 साल पहले माताजी का स्वर्गवास हो गया था.’’

‘‘तब आप के पिताजी या भाई को यहां आना पड़ेगा.’’ इंसपेक्टर बोला

‘‘मेरे परिवार से कोई भी इस स्थिति में नहीं है कि इतनी दूर आ सके.’’ शीतल बोली.

‘‘आप के हसबैंड का कोई दोस्त भी है या नहीं.’’ इंसपेक्टर ने झुंझला कर पूछा.

‘‘हां, अनल का एक खास दोस्त है वीर है. उन्हीं ने हमारी शादी करवाई थी.’’ शीतल ने जवाब दिया.

‘‘मुझे उन का नंबर दीजिए, मैं उन से बात करता हूं.’’ इंसपेक्टर ने कहा.

शीतल ने मोबाइल स्क्रीन पर नंबर डिसप्ले कर के इंसपेक्टर को दे दिया.

‘‘हैलो, मिस्टर वीर,’’ कहते हुए इंसपेक्टर दूर निकल गया.

‘‘सर लगभग 60 मीटर तक सर्च कर लिया मगर कोई दिखाई नहीं पड़ा. अब अंधेरा हो चला है, सर्चिंग बंद करनी पड़ेगी.’’ सर्च टीम के सदस्यों ने ऊपर आ कर बताया.

‘‘ठीक है मैडम, आप थाने चलिए और रिपोर्ट लिखवाइए. कल सुबह सर्च टीम एक बार फिर भेजेंगे.’’ इंसपेक्टर ने कहा, ‘‘वैसे कल शाम तक मिस्टर वीर भी आ जाएंगे.’’

दूसरे दिन शाम के लगभग 4 बजे वीर पहुंच गया. बोला, ‘‘सर मेरा नाम वीर है. मुझे आप का फोन मिला था, अनल के एक्सीडेंट के बारे में.’’ वीर ने इंसपेक्टर साहब को अपना परिचय दिया.

‘‘जी मिस्टर वीर, मैं ने ही आप को फोन किया था. हमारे थाने में आप के दोस्त अनल की पहाड़ी से गिरने की रिपोर्ट दर्ज हुई है. फ्रैंकली स्पीकिंग इतनी ऊंचाई से गिरने के बाद जिंदा रहने की संभावना कम है. अगर कोई चमत्कार हो जाए तो अलग बात है.

‘‘हम ने 2 बार एप्रोचेबल फाल तक सर्च टीमें भेजी हैं, मगर अब तक कुछ पता नहीं चला.’’ इंसपेक्टर ने बता कर पूछा, ‘‘वैसे आप के दोस्त के और उन की पत्नी के आपसी संबंध कैसे हैं?’’

‘‘अनल और शीतल की शादी को 9 महीने हो चुके हैं और अनल ने मुझ से आज तक ऐसी कोई बात नहीं कही, जिस से लगे कि दोनों के बीच कुछ एब्नार्मल है.’’ वीर ने इंसपेक्टर को बताया.

‘‘मतलब उन के बीच सब कुछ सामान्य था और अनल कम से कम आत्महत्या नहीं कर सकता था.’’ इंसपेक्टर ने निष्कर्ष निकाला.

‘‘जी, अनल किसी भी कीमत पर आत्महत्या नहीं कर सकता था. उस का बिजनैस 2 साल के बाद एक बार फिर काफी अच्छा चलने लगा था. सब से बड़ी बात वह इस का श्रेय अपने लेडी लक मतलब शीतल को दिया करता था.’’ वीर ने बताया.

‘‘और आप की भाभीजी मतलब शीतलजी के बारे में क्या खयाल है आपका?’’ इंसपेक्टर ने अगला प्रश्न किया.

‘‘जी, वो एक गरीब घर से जरूर हैं मगर उन की बुद्धि काफी तीक्ष्ण है. अनल की इच्छानुसार शादी के मात्र 9 महीने के अंदर ही उन्होंने बिजनैस की बारीकियों पर अच्छी पकड़ बना ली है. उन की त्वरित निर्णय क्षमता के तो सब मुरीद हैं. अनल भी अपने आप को चिंतामुक्त एवं हलका महसूस करता था.’’ वीर ने बताया.

‘‘आप के कहने का आशय यह है कि हत्या या आत्महत्या का कोई कारण नहीं बनता. यह एक महज दुर्घटना ही है.’’ इंसपेक्टर ने कहा.

‘‘जी मेरे खयाल से ऐसा ही है.’’ वीर ने अपने विचार व्यक्त किए.

‘‘देखिए, आप के बयानों के आधार पर हम इस केस को दुर्घटना मान कर समाप्त कर रहे हैं. यदि भविष्य में कभी लाश से संबंधित कोई सामान मिलता है तो शिनाख्त के लिए आप को बुलाया जा सकता है. उम्मीद है, आप सहयोग करेंगे.’’ इंसपेक्टर ने कहा.

‘‘जी बिलकुल.’’

‘‘वीर भैया, अनल की आत्मा की शांति के लिए सभी पूजापाठ पूरे विधिविधान से करवाइए. मैं नहीं चाहती अनल की आत्मा को किसी तरह का कष्ट पहुंचे.’’ शहर पहुंचने पर भीगी आंखों के साथ शीतल ने हाथ जोड़ कर कहा.

‘‘जी भाभीजी आप निश्चिंत रहिए, उत्तर कार्य के सभी काम वैसे ही होंगे जैसा कि आप चाहती हैं.’’ वीर शोक सभा में उपस्थित लोगों के सामने बोला, ‘‘अनल न सिर्फ मेरा दोस्त था बल्कि मेरे भाई से भी बढ़ कर था. मुझे बचाने के लिए उस ने जो बलिदान दिया, उसे मैं भूला नहीं हूं.’’

‘‘आज अनल के उत्तर कार्य भी पूरे हो गए भाभीजी. मैं आप को एक बात बताना चाहता था. दरअसल, करीब 6 महीने पहले अनल ने एक बीमा पौलिसी ली थी. उस पौलिसी की शर्तों के अनुसार अनल की प्राकृतिक मौत होने पर 5 करोड़ और दुर्घटना में मृत्यु होने पर 10 करोड़ रुपए मिलने वाले हैं. यदि आप कहें तो इस संदर्भ में काररवाई करें.’’ वीर विवरण देते हुए बोला.

‘‘वीर भाई साहब, अनल इतना अच्छा और चलता हुआ बिजनैस छोड़ गए हैं. उसी से काफी अच्छी आय हो जाती है. और आप जिस बीमे के बारे में बात कर रहे हैं, उस के विषय में मैं पहले से जानती हूं और अपने वकीलों से इस बारे में बातें भी कर रही हूं.’’ शीतल ने रहस्योद्घाटन किया.

‘‘जी बहुत अच्छा. फिर भी कोई जरूरत पड़े तो मुझे बोलिएगा.’’ वीर चलतेचलते बोला.

शीतल ने बताया कि पिताजी की देखभाल करने वाला नौकर अपने काम पर ठीक से ध्यान नहीं दे रहा है. पिताजी को न समय पर खाना देता है न दवाइयां. उन की हालत गिरती जा रही है. ऐसे में वह महीने 2 महीने से ज्यादा जीवित रह पाएंगे. इसलिए वह चाहती है कि अंतिम समय में पिताजी की देखभाल खुद करे. शीतल ने यह बात कार्यक्रम के लगभग 10 दिन बाद वीर से कही जो पिताजी की कुशलक्षेम पूछने आया था.

‘‘मैं चाहती हूं कि पिताजी के अंतिम समय में मैं ही उन की देखभाल करूं.’’ शीतल ने आंखों में आंसू लिए भावनात्मक संवाद जोड़ा.

‘‘मगर भाभीजी नौकर पिछले 5 सालों से अंकलजी की बहुत अच्छे से सेवा कर रहा है.’’ वीर ने आश्चर्य से कहा.

‘‘हां, पर परिवार वाले होते हुए एक नौकर सेवा करे, यह तो उचित नहीं होगा ना.’’ शीतल ने तर्क दिया.

‘‘ठीक है भाभीजी, जैसा आप उचित समझें.’’

‘‘और भाईसाहब, आप अनल की बीमा पौलिसी के बारे में बता रहे थे, उस के क्लेम के लिए क्या कंडीशन रहेगी?’’ शीतल ने पूछा.

‘‘भाभीजी, चूंकि अभी तक अनल की बौडी नहीं मिली है, अत: कानूनी प्रक्रिया के अनुसार हमें कुछ समय इंतजार करना होगा. शायद कम से कम 2 साल. उस के बाद उस पर्वतीय क्षेत्र के थाने से केस समाप्त होने के प्रमाणपत्र के बाद ही हम क्लेम कर पाएंगे.’’ वीर ने अपनी जानकारी के हिसाब से बताया.

‘‘ओह किसी गरीब के साथ ऐसी दुर्घटना घट जाए तो बेचारा बिना सहायता के ही मर जाए. आप बीमा कंपनी में जा कर कुछ लेदे कर क्लेम सेटल करवाइए न.’’ शीतल ने वीर से अनुरोध किया.

‘‘जी ठीक है, मैं कोशिश करता हूं.’’ वीर ने जवाब दिया.

‘‘और आप उस नौकर को समझा कर हटा दीजिए.’’ शीतल जोर देते हुए बोली.

‘‘ठीक है, आप उसे मेरे घर पर भेज दीजिए. मैं वहीं उस का हिसाब कर दूंगा.’’ वीर ने जवाब दिया.

अनल का स्वर्गवास हुए 45 दिन बीत चुके थे. अब तक शीतल की जिंदगी सामान्य हो गई थी. धीरेधीरे उस ने घर के सभी पुराने नौकरों को निकाल कर नए नौकर रख लिए थे. हटाने के पीछे तर्क यह था कि वे लोग उस से अनल की तरह नरम व पारिवारिक व्यवहार की अपेक्षा करते थे. जबकि शीतल का व्यवहार सभी के प्रति नौकरों जैसा व कड़ा था. नए सभी नौकर शीतल के पूर्व परिचित थे. इस बीच शीतल लगातार वीर के संपर्क में थी तथा बीमे की पौलिसी को जल्द से जल्द इनकैश करवाने के लिए जोर दे रही थी. शीतल की जिंदगी में बदलाव अब स्पष्ट दिखाई देने लगा था. अनल के साथ हफ्ते दस दिन में मनोरंजन क्लब जाने वाली शीतल अब समय काटने के लिए नियमित क्लब जाने लगी थी. उस ने कई किटी क्लब भी इसी उद्देश्य के साथ जौइन कर लिए थे.

ऐसे ही एक दिन क्लब से वह रात 12 बजे लौटी. कार से उतरते हुए उसे घर की दूसरी मंजिल पर किसी के खड़े होने का अहसास हुआ. उस ने ध्यान से देखने की कोशिश की मगर धुंधले चेहरे के कारण कुछ समझ में नहीं आ रहा था. आश्चर्य की बात यह थी कि जिस गैलरी में वह शख्स खड़ा था, वह उस के ही बैडरूम की गैलरी थी. और वह ऊपर खड़ा हो कर बाहें फैलाए शीतल को अपनी तरफ आने का इशारा कर रहा था. शीतल अपने बैडरूम की तरफ भागी, मगर वह बाहर से उसी प्रकार बंद था जैसे वह कर के गई थी. दरवाजा बाहर से बंद होने के बावजूद कोई अंदर कैसे जा सकता है, यह सोच कर वह गैलरी की तरफ गई. गैलरी की तरफ जाने वाला दरवाजा भी अंदर से लौक था.

शीतल ने सोचा शायद कोई चोर होगा, अत: वह सुरक्षा के नजरिए से अपने साथ बैडरूम में रखी अनल की रिवौल्वर ले कर गैलरी में गई. मगर वहां कोई नहीं था. शीतल को अपनी आंखों पर भरोसा नहीं हो रहा था. उस ने खुद अपनी आंखों से उस व्यक्ति को देखा था, जो बाहें फैलाए उसे अपनी तरफ बुला रहा था. इतनी जल्दी कोई कैसे गायब हो सकता है. उसे ऊपर आते समय रास्ते में कोई मिला भी नहीं, क्योंकि आनेजाने के लिए सिर्फ एक ही सीढियां थीं. इस के साथ ही बैडरूम उसी तरह से लौक था जैसे वह छोड़ गई थी. फिर कैसे कोई गैलरी तक आ सकता है? उस ने चौकीदार को आवाज दी.

‘‘ऊपर कौन आया था?’’ चौकीदार से पूछा.

‘‘नहीं मैडम, ऊपर तो क्या आप के जाने के बाद बंगले में कोई नहीं आया.’’ चौकीदार ने जवाब दिया.

सुबह जैसे ही शीतल की नींद खुली, उसे रात की घटना याद आ गई. वह तुरंत उठ कर गैलरी में गई. उस ने अनुमान लगाया गैलरी में 2 संभावित रास्तों से आया जा सकता है. एक या तो नीचे से कोई अतिरिक्त सीढ़ी लगाए या छत पर से रस्सा डाल कर कोई नीचे आए. अगर कोई सीढि़यां लगा कर ऊपर आया, तो गैलरी के नीचे की कच्ची जमीन पर उस के निशान जरूर आए होंगे. और अगर छत के द्वारा नीचे आया है तब भी रस्से के कुछ सबूत मौजूद होंगे. शीतल उठ कर दोनों प्रमाण ढूंढने गई. मगर उसे निराशा ही हाथ लगी. उस ने क्लब में उतनी ही ड्रिंक ली थी जितना वह रोज लेती थी. हो सकता है ड्रिंक की स्ट्रौंगनैस कुछ ज्यादा रही हो और इसी वजह से उसे कुछ अतिरिक्त खुमार हो गया हो और उसी कारण यह गलतफहमी हुई हो. इस तरह की बातें सोच कर वह अपने रोज के कामों में लग गई और मैनेजर्स से रिपोर्ट लेने लगी.

शाम को शीतल पूरी तरह चौकन्नी थी. वह कल जैसी गलती दोहराना नहीं चाहती थी. बंगले से निकलते समय उस ने खुद अपने बैडरूम को लौक किया और चौकीदार को लगातार राउंड लेने की हिदायत दी. लौटने में उसे कल जितना ही समय हो गया. हालांकि वह जल्दी लौटना चाहती थी, लेकिन फ्रैंड्स के अनुरोध के कारण उसे देरी हो गई. उस ने ड्रिंक भी आज रोजाना की अपेक्षा कम ही ली. आज क्लब से निकलते समय उसे न जाने क्यों अंदर ही अंदर एक अनजाना सा डर लग रहा था. उस का दिल बहुत जोरों से धड़क रहा था. मगर ऊपर से वह कुछ भी जाहिर न होने देने का प्रयास कर रही थी. कार से उतरते ही उस ने नजरें उठा कर अपने बैडरूम की गैलरी में देखा. पर आज वहां कोई नहीं था.

ओह तो कल सचमुच वह मेरा वहम था. सोच कर वह मन ही मन मुसकराते हुए बंगले के अंदर घुसी. वह आगे कदम बढ़ा ही रही थी कि उस के मोबाइल की घंटी बज उठी.

‘‘हैलो..’’

‘‘मेरे दिल ने जो मांगा मिल गया, मैं ने जो भी चाहा मिल गया…’’ दूसरी तरफ से किसी पुरुष के गुनगुनाने की आवाज आ रही थी.

‘‘कौन है?’’ शीतल ने तिलमिला कर पूछा.

जवाब में वह व्यक्ति वही गीत गुनगुनाता रहा. शीतल ने झुंझला कर फोन काट दिया और आए हुए नंबर की जांच करने लगी. मगर स्क्रीन पर नंबर डिसप्ले नहीं हो रहा था. उसे याद आया यह तो वही पंक्तियां थीं, जो वह उस हिल स्टेशन पर होटल में अनल के सामने बुदबुदा रही थी. कौन हो सकता है यह व्यक्ति? मतलब होटल के कमरे में कहीं गुप्त कैमरा लगा था जो उस होटल में रुकने वाले जोड़ों की अंतरंग तसवीरें कैद कर उन्हें ब्लैकमेल करने के काम में लिया जाता होगा. लेकिन जब उन्हें उस की और अनल की ऐसी कोई तसवीर नहीं मिली तो इन पंक्तियों के माध्यम से उस का भावनात्मक शोषण कर ब्लैकमेल कर रुपए ऐंठना चाहते होंगे.

शीतल बैडरूम में जाने के लिए सीढि़यां चढ़ ही रही थी कि एक बार फिर से मोबाइल की घंटी बज उठी. इस बार उस ने रिकौर्ड करने की दृष्टि से फोन उठा लिया. फिर वही आवाज और फिर वही पंक्तियां. उस ने फोन काट दिया. मगर फोन काटते ही फिर घंटी बजने लगती. बैडरूम का लौक खोलने तक 4-5 बार ऐसा हुआ. झुंझला कर शीतल ने मोबाइल ही स्विच्ड औफ कर दिया. उसे डर था कि यह फोन उसे रात भर परेशान करेगा और वह चैन से सोना चाहती थी. शीतल कपड़े चेंज कर के आई और लाइट्स औफ कर के लेटी ही थी कि उस के बैडरूम में लगे लैंडलाइन फोन पर आई घंटी से वह चौंक गई. यह तो प्राइवेट नंबर है और बहुत ही चुनिंदा और नजदीकी लोगों के पास थी. क्या किसी परिचित के यहां कुछ अनहोनी हो गई. यही सोचते हुए उस ने फोन उठा लिया.

फोन उठाने पर फिर वही पंक्तियां कानों में पड़ने लगीं. शीतल बुरी तरह से घबरा गई. एसी के चलते रहने के बावजूद उस के माथे पर पसीना उभर आया. नहीं यह होटल वाले की नहीं, बल्कि निकाले गए किसी नौकर की शरारत है. उस ने निश्चय किया कि वह सुबह उठ कर पुलिस में शिकायत करेगी. मगर प्रश्न यह है कि होटल में अनल के सामने बोली गईं पंक्तियां किसी नौकर को कैसे पता चलीं. फोन रख कर वह सोच ही रही थी की एक बार फिर लैंडलाइन की कर्कश घंटी बजी. उसी का फोन होगा और यह रात भर इसी तरह परेशान करेगा, सोच कर उस ने लैंडलाइन फोन का भी प्लग निकाल कर डिसकनेक्ट कर दिया. फोन डिसकनेक्ट कर के वह मुड़ी ही थी कि उस की नजर बैडरूम की खिड़की पर लगे शीशे की तरफ गई. शीशे पर किसी पुरुष की परछाई दिख रही थी, जो कल की ही तरह बाहें फैलाए उसे अपनी तरफ बुला रहा था.

वह जोरों से चीखी और बैडरूम से निकल कर नीचे की तरफ भागी. चेहरे पर पानी के छीटें पड़ने से शीतल की आंखें खुलीं.

‘‘क्या हुआ?’’ उस ने हलके से बुदबुदाते हुए पूछा.

घर के सारे नौकर और चौकीदार शीतल को घेर कर खड़े थे और उस का सिर एक महिला की गोद में था.

‘‘शायद आप ने कोई डरावना सपना देखा और चीखते हुए नीचे आ गईं और यहां गिर कर बेहोश हो गईं.’’ चौकीदार ने बताया.

‘‘सपना…? हां शायद,’’ कुछ सोचते हुए शीतल बोली, ‘‘ऐसा करो, वह नीचे वाला गेस्टरूम खोल दो, मैं वहीं आराम करूंगी.’’

दरअसल, शीतल इतना डर चुकी थी कि वह वापस अपने बैडरूम में जाना नहीं चाहती थी.

सुबह उठ कर शीतल पुलिस में शिकायत करने के बारे में सोच ही रही थी कि एक नौकर ने आ कर सूचना दी.

‘‘मैडम, वीर सर आप से मिलाना चाहते हैं.’’

‘‘वीर? अचानक? इस समय?’’ शीतल मन ही मन बुदबुदाते हुई बोली.

‘‘अरे भैया, अचानक बिना सूचना के इस समय…’’ ड्राइंगरूम में प्रवेश करते हुए शीतल बोली.

‘‘नमस्ते भाभीजी. क्या बात है आप की तबीयत ठीक नहीं है क्या? मैं आप को फोन लगा रहा था, मगर आप का फोन बंद आ रहा था. आप का हाल जानने चला आया.’’ वीर बिना किसी औपचारिकता के बोला.

‘‘ओह शायद रात में उस की बैटरी खत्म हो गई हो.’’ शीतल बैठते हुए बोली.

उसे याद आया कि मोबाइल तो उस ने स्वयं ही बंद किया हुआ है. मगर वह असली बात वीर को बताना नहीं चाहती थी.

‘‘भाभीजी जैसा कि आप ने कहा था मैं ने इंश्योरेंस कंपनी के औफिसर्स से बात की है. चूंकि यह केस कुछ पेचीदा है फिर भी वह कुछ लेदे कर केस निपटा सकते हैं.’’ वीर ने कहा.

‘‘कितना क्या और कैसे देना पड़ेगा? हमारी तरफ से कौनकौन से पेपर्स लगेंगे?’’ शीतल ने शांत भाव से पूछा.

‘‘हमें उस हिल स्टेशन वाले थाने से पिछले तीन केस की ऐसी रिपोर्ट निकलवानी होगी, जिस में लिखा होगा उस खाई में गिरने के बाद उन लोगों की लाशें नहीं मिलीं. यही हमारे केस सेटलमेंट का सब से बड़ा आधार होगा, जो यह सिद्ध करेगा कि बौडी मिलने की संभावनाएं नहीं है.

‘‘इस काम के लिए अधिकारियों को मिलने वाली राशि का 25 परसेंट मतलब ढाई करोड़ रुपए देना होगा. यह रुपए उन्हें नगद देने होंगे. कुछ पैसा अभी पेशगी देना होगा बाकी क्लेम सेटल होने के बाद. चूंकि बात मेरे माध्यम से चल रही है अत: पेमेंट भी मेरे द्वारा ही होगा.’’ वीर ने बताया.

‘‘ढाई करोड़ऽऽ..’’ शीतल की आंखें चौड़ी हो गईं, ‘‘यह कुछ ज्यादा नहीं हो जाएगा?’’ वह बोली.

‘‘देखिए भाभीजी, अगर हम वास्तविक क्लेम पर जाएंगे तो सालों का इंतजार करना होगा. शायद कम से कम 7 साल. फिर उस के बाद कोर्ट का अप्रूवल. फिर भी कह नहीं सकते उस समय इस कंपनी के अधिकारियों की पोजीशन क्या रहे. सब कुछ खोने से बेहतर है, थोड़ा कुछ दे कर ज्यादा पा लिया जाए.’’ वीर ने अपना मत रखा.

‘‘आप क्या चाहते हैं, इस डील को स्वीकार कर लिया जाए?’’ शीतल ने पूछा.

‘‘जी मेरे विचार से बुद्धिमानी इसी में है.’’ वीर बोला, ‘‘अभी हमें सिर्फ 25 लाख रुपए देने हैं. ये 25 लाख लेने के बाद इंश्योरेंस औफिस एक लेटर जारी करेगा, जिस के आधार पर हम उस हिल स्टेशन वाले थाने से पिछले 3 केस की केस हिस्ट्री देंगे.

‘‘इस हिस्ट्री के आधार पर कंपनी हमारे क्लेम को सेटल करेगी और 10 करोड़ का चैक जारी करेगी. उस चैक की फोटोकौपी देख कर हम अधिकारियों को बाकी अमाउंट का बेयरर चैक जारी करेंगे और हमारे अकाउंट में इंश्योरेंस कंपनी का चैक डिपोजिट होने के बाद हम उन्हें नगद पैसा दे कर अपना चैक वापस ले लेंगे.’’ वीर ने पूरी योजना विस्तार से समझाई.

‘‘ठीक है 1-2 दिन में सोच कर बताती हूं. 25 लाख का इंतजाम करना भी आसान नहीं होगा.’’ शीतल बोली.

‘‘अच्छा भाभीजी, मैं चलता हूं.’’ वीर उठते हुए नमस्कार की मुद्रा बना कर बोला.

शीतल की तीक्ष्ण बुद्धि यह समझ गई की वीर दोस्ती के नाम पर धोखा दे रहा है. और हो न हो, यह वही शख्स है जो उसे रातों में डरा रहा है. यह मुझे डरा कर सारा पैसा हड़पना चाहता है. मैं ऐसा नहीं होने दूंगी और इसे रंगेहाथों पुलिस को पकड़वाऊंगी. बहुत ही कमीना है. शीतल मन ही मन बुदबुदाते हुए बोली. उस ने तत्काल पुलिस से शिकायत करने का इरादा त्याग दिया. रोजाना की तरह आज भी लगभग 8 बजे शाम को वह क्लब जाने के लिए निकली. आज शीतल बेफिक्र थी, क्योंकि उसे पता चल चुका था कि पिछले दिनों हो रही घटनाओं के पीछे किस का हाथ है. अब उस का डर निकल चुका था. उस ने वीर को सबक सिखाने की योजना पर भी काम चालू कर दिया था.

बंगले की गली से निकल कर जैसे ही वह मुख्य सड़क पर आने को हुई तो कार की हैडलाइट सामने खड़े बाइक सवार पर पड़ी. उस बाइक सवार की शक्ल हूबहू अनल के जैसी थी. अनल…अनल कैसे हो सकता है. ओहो तो वीर ने उसे डराने के लिए यहां तक रच डाला कि अनल का हमशक्ल रास्ते में खड़ा कर दिया. अपने आप से बात करते हुए शीतल बोली,  ‘‘हद है कमीनेपन की.’’

‘‘जी मैडम, कुछ बोला आप ने?’’ ड्राइवर ने पूछा.

‘‘नहीं कुछ नहीं. चलते रहो.’’ शीतल बोली.

‘‘मैडम, मैं कल की छुट्टी लूंगा.’’ ड्राइवर बोला.

‘‘क्यों?’’ शीतल ने पूछा.

‘‘मेरी पत्नी को झाड़फूंक करवाने ले जाना है.’’ ड्राइवर बोला, ‘‘उस पर ऊपर की हवा का असर है.’’

‘‘अरे भूतप्रेत, चुड़ैल वगैरह कुछ नहीं होता. फालतू पैसा मत बरबाद करो.’’ शीतल ने सीख दी.

‘‘नहीं मैडम, अगर मरने वाले की कोई इच्छा अधूरी रह जाए तो वह इच्छापूर्ति के लिए भटकती रहती है. और भटकने वाली आत्मा भी किसी अपने की ही रहती है. जितनी परेशानी हमें होती है, उतनी ही परेशानी उन्हें भी होती है. अत: उन को भी मुक्त करा दिया जाना चाहिए.’’ ड्राइवर बोला.

‘‘अधूरी इच्छा?’’ बोलने के साथ ही शीतल को याद आया कि अनल की मौत भी तो एक अधूरी इच्छा के साथ हुई है. तो अभी जो दिखाई पड़ा, वह अनल ही था? अनल ही साए के माध्यम से उसे अपने पास बुला रहा था? उस के प्राइवेट नंबर पर काल कर रहा था? पिछले 12 घंटों से जीने की हिम्मत बटोरने वाली शीतल पर एक बार फिर डर का साया छाने लगा था. क्लब की किसी भी एक्टिविटी में उस का दिल नहीं लगा. आज वह इस डर से क्लब से जल्दी निकल गई कि दिखाई देने वाला व्यक्ति कहीं सचमुच अनल तो नहीं. अभी कार क्लब के गेट के बाहर निकली ही थी कि शीतल की नजर एक बार फिर बाइक पर बैठे अनल पर पड़ी, जो उसे बायबाय करते हुए जा रहा था. लेकिन इस बार उस ने रंगीन नहीं एकदम सफेद कपड़े पहने थे.

‘‘ड्राइवर उस बाइक का पीछा करो.’’ पसीने में नहाई शीतल बोली. उस की आवाज अटक रही थी घबराहट के मारे.

‘‘बाइक? कौन सी बाइक मैडम?’’ ड्राइवर ने पूछा.

‘‘अरे, वही बाइक जो वह सफेद कपड़े पहने आदमी चला रहा है.’’ शीतल कुछ साहस बटोर कर बोली.

‘‘मैडम मुझे न तो कोई बाइक दिखाई पड़ रही है, न कोई इस तरह का आदमी. और जिस तरफ आप जाने का बोल रही हैं, वह रास्ता तो श्मशान की तरफ जाता है. आप तो जानती ही हैं, मैं अपने घर में इस तरह की एक परेशानी से जूझ रहा हूं. इसीलिए इस वक्त इतनी रात को मैं उधर जाने की हिम्मत नहीं कर सकता.’’ ड्राइवर ने जवाब दिया.

‘‘क्या सचमुच तुम को कोई आदमी, कोई बाइक दिखाई नहीं दी.’’ शीतल ने पूछा.

‘‘जी मैडम, मैं सच कह रहा हूं.’’ ड्राइवर ने जवाब दिया.

अब शीतल का डर और भी अधिक बढ़ गया. वह समझ चुकी थी, उसे जो दिखाई दे रहा है वह अनल का साया ही है. अब उसे ऐसा लग रहा था जैसे वह पंक्तियों की आवाज भी अनल की ही थी. क्या चाहता है अनल का साया उस से? क्या वह उस के माध्यम से अपनी अपूरित इच्छा पूरी करना चाहता है? या यह काम वीर ही उस की दौलत हथियाने के लिए कर रहा है. लेकिन वीर को उस होटल वाली पंक्तियों के बारे में कैसे पता चला? शीतल अभी यह सब सोच ही रही थी कि कार बंगले के उस मोड़ पर आ गई, जहां उस ने जाते समय अनल को बाइक पर देखा था. उस ने गौर से देखा उस मोड़ पर अभी भी एक बाइक पर कोई खड़ा है. अबकी बार कार की हैडलाइट सीधे खड़े हुए आदमी के चेहरे पर पड़ी.

उसे देख कर शीतल का चेहरा पीला पड़ गया. उसे लगा जैसे उस का खून पानी हो गया है, शरीर ठंडा पड़ गया है. वह अनल ही था. वही सफेद कपड़े पहने हुए था.

‘‘देखो भैया, उस मोड़ पर बाइक पर एक आदमी खड़ा है सफेद कपड़े पहन कर.’’ डर से कांपती हुई शीतल बोली.

‘‘नहीं मैडम, जिसे आप सफेद कपड़ों में आदमी बता रहीं हैं वो वास्तव में एक बाइक वाली कंपनी के विज्ञापन का साइन बोर्ड है जो आज ही लगा है.’’ ड्राइवर ने कहा और गाड़ी बंगले की तरफ मोड़ दी.

ड्राइवर की बात सुन कर फुल स्पीड में चल रहे एयर कंडीशन के बावजूद शीतल को इतना पसीना आया कि उस के पैरों में कस कर बंधी सैंडल में से उस के पंजे फिसलने लगे, कदम लड़खड़ाने लगे. वह लड़खड़ाते कदमों से ड्राइवर के सहारे बंगले में दाखिल हुई. और ड्राइंगरूम के सोफे  पर बैठ गई. वह सोच ही रही थी कि अपने बैडरूम में जाए या नहीं. तभी शीतल अचानक बजी डोरबेल की आवाज से डर गई. रात के समय चौकीदार मेन गेट का ताला अंदर से लगा देता है. ऐसे में यदि किसी को बंगले में प्रवेश करना हो तो उसे डोरबेल बजा कर गेट खुलवाना पड़ता था. शीतल के तो बंगले का माहौल तो वैसे ही डरावना था, उस का डरना और चौंकना स्वाभाविक था.

कुछ सामान्य हुआ दिल फिर से जोरों से धड़कने लगा. बदन में सनसनी की एक लहर दौड़ गई. वह किसी अनहोनी की आशंका से पसीनेपसीने होने लगी. शीतल उठ कर बाहर जाना नहीं चाहती थी. वैसे भी अनहोनी की आशंका से उस की हिम्मत भी जवाब दे चुकी थी. वह ड्राइंगरूम की खिड़की से देखने लगी. चौकीदार ने मेन गेट पर बने स्लाइडिंग विंडो से देखने की कोशिश की, मगर उसे कोई दिखाई नहीं दिया. अत: वह छोटा गेट खोल कर बाहर देखने लगा. ज्यों ही उस ने गेट खोला शीतल को सामने के लैंपपोस्ट के नीचे खड़ा अनल दिखाई दिया. इस बार उस ने काले रंग के कपड़े पहने हुए थे और वह दोनों बाहें फैलाए हुए था. चौकीदार उसे देखे बिना ही सड़क पर अपनी लाठी फटकारने लगा और जोरों से विसलिंग करने लगा.

इस का मतलब था कि चौकीदार को अनल दिखाई नहीं पड़ा. इसीलिए वह उस से बात न कर के जमीन पर लाठी फटकार कर अपनी ड्यूटी की खानापूर्ति कर रहा था. ड्राइवर अनल के दिखाई न देने की बात का झूठ बोल सकता है, मगर चौकीदार तो इस घटना के बारे में कुछ जानता ही नहीं था. उसे भी अनल दिखाई नहीं पड़ा. मतलब अनल सचमुच भूत…ओह नो. शीतल सोचने लगी उस दिन अगर उस की इच्छापूर्ति कर देती तो शायद अनल इस रूप में नहीं आता और उसे इस तरह डर कर नहीं रहना पड़ता. कल ड्राइवर के साथ वह भी उस झाड़फूंक करने वाले ओझा के पास जाएगी. पुलिस से शिकायत करने से कुछ नहीं होगा. क्योंकि पुलिस तो जिंदा लोगों को पकड़ सकती है. भूतप्रेत और आत्माओं को नहीं.

शीतल अभी पूरी तरह से निर्णय ले भी नहीं पाई थी कि मोबाइल पर आई इनकमिंग काल की रिंग से डर कर वह दोहरी हो गई. उस के हाथपैर कांपने लगे. बदन एक बार फिर पसीने से नहा गया. वह जानती थी की इस समय फोन करने वाला कौन होगा. उस ने हिम्मत कर के मोबाइल की स्क्रीन पर देखा. इस बार किसी का नंबर डिसप्ले हो रहा था. नंबर अनजाना जरूर था, मगर यह नंबर उस के लिए एक प्रमाण बन सकता है. यही सोच कर उस ने फोन उठा लिया. उसे विश्वास था कि उसे फिर वही पंक्तियां सुनने को मिलेंगी.

लेकिन उस का अनुमान गलत निकला.

‘‘हैलो शीतू?’’ उधर से आवाज आई.

‘‘क..क..कौन हो तुम?’’ शीतल बहुत हिम्मत कर के अपनी घबराहट पर नियंत्रण रखते हुए बोली.

‘‘तुम्हें शीतू कौन बुला सकता है. कमाल हो गया, तुम अपने पति की आवाज तक नहीं पहचान पा रही हो. अरे भई, मैं तुम्हारा पति अनल बोल रहा हूं.’’ उधर से आवाज आई.

‘‘तु..तु…तुम तो मर गए थे न?’’ शीतल ने हकलाते हुए पूछा.

‘‘हां, मगर मेरी वह अधूरी मौत थी, इट वाज जस्ट ऐन इनकंपलीट डेथ. क्योंकि मैं अपनी एक अधूरी इच्छा के साथ मर गया था. इस कारण मुझे तुम से मिलने वापस आना पड़ा.’’ अनल बोला.

‘‘तुम अपनी इच्छापूर्ति के लिए सीधे घर पर भी आ सकते थे. मुझे इस तरह परेशान करने की क्या जरूरत है?’’ शीतल सहमे हुए स्वर में बोली.

‘‘देखो शीतू, मैं अब आत्मा बन चुका हूं और आत्मा कभी भी उस जगह पर नहीं जाती, जहां पर भगवान रहते हैं. पिताजी ने बंगला बनवाते समय हर कमरे में भगवान की एकएक मूर्ति लगाई थी. यही मूर्तियां मुझे तुम से मिलने से रोकती हैं. लेकिन मैं तुम से आखिरी बार मिल कर जाना चाहता हूं. बस मेरी आखिरी इच्छा पूरी कर दो.’’ उधर से अनल अनुरोध करता हुआ बोला.

‘‘मगर एक आत्मा और शरीर का मिलन कैसे होगा?’’ शीतल ने पूछा.

‘‘मैं एक शरीर धारण करूंगा, जो सिर्फ तुम को दिखाई देगा और किसी को नहीं. जैसे आज ड्राइवर व चौकीदार को दिखाई नहीं दिया.’’ अनल ने जवाब दिया.

‘‘इस बात की क्या गारंटी है कि तुम अपनी इच्छा पूरी होने के बाद चले जाओगे, मुझे कोई नुकसान नहीं पहुंचाओगे.’’ शीतल ने अपनी बात रखी.

‘‘मैं वादा करता हूं शीतू…कि मुझे जो चाहिए वह मिल जाएगा तो तुम्हारी जिंदगी से सदासदा के लिए चला जाऊंगा.’’ अनल ने शीतल को आश्वस्त किया.

‘‘ठीक है, बताओ कहां मिलना है?’’ शीतल ने पूछा, ‘‘मैं भी इस डरडर के जीने वाली जिंदगी से परेशान हो गई हूं.’’ शीतल ने कहा.

‘‘शहर के बाहर सुनसान पहाड़ी पर जो टीला है, उसी पर मिलते हैं, आखिरी बार.’’ अनल बोला,  ‘‘दोपहर 12 बजे.’’

‘‘ठीक है मैं आती हूं.’’ शीतल बोली, ‘‘लेकिन वादा करो आज की रात मुझे चैन से सोने दोगे.’’

‘‘मैं वादा करता हूं.’’ उधर से आवाज आई.

शीतल अब निश्चिंत हो गई. वह सोचने लगी, इस स्थिति से कैसे निपटा जाए. अगर वह सचमुच एक आत्मा हुई तो..? अरे उस ने खुद ने ही तो बता दिया है कि जहां भगवान होते हैं, वहां वह ठहर ही नहीं सकता. मतलब भगवान को साथ ले जाना होगा. और अगर वह खुद कोई फ्रौड हुआ, ब्लैकमेलर हुआ तो? तभी उसे याद आया अनल के पास एक लाइसेंसी रिवौल्वर है. अनल ने उसे चलाने का तरीका भी बताया था. उसी रिवौल्वर को मैं अपनी आत्मरक्षा के लिए साथ ले जाऊंगी. शीतल ने निर्णय लिया. आज शीतल भरपूर गहरी नींद सोई.

सुबह उठ कर उस ने अपने दोनों हाथों की कलाइयों, बाजुओं, गले यहां तक कि कमर में भी भगवान के फोटो वाली लौकेट पहन लिए, ताकि वह आत्मा उसे छूने से पहले ही समाप्त हो जाए. साथ ही उस ने अपनी भौतिक सुरक्षा के लिए रिवौल्वर भी अपने पर्स में रख ली. ड्राइवर आज छुट्टी पर था. उस ने खुद गाड़ी चलाने का निर्णय लिया. वह निर्धारित समय से 15 मिनट पहले ही सुनसान पहाड़ी पर पहुंच गई. नाम के अनुरूप जगह वाकई सुनसान थी. लेकिन अनल उस से भी पहले से वहां पहुंचा हुआ था.

‘‘ऐसा लगता है, तुम सुबह से ही यहां आ गए हो.’’ शीतल अनल की तरफ देखते हुए बोली.

‘‘शीतू, मैं तो रात से ही तुम्हारे इंतजार में बैठा हूं.’’ अनल बोला, ‘‘आखिर हूं तो आत्मा ही न?’’

अनल के इस जवाब से शीतल के शरीर में सिहरन सी दौड़ गई.

‘‘कौन सी इच्छा पूरी करना चाहते हो अनल?’’ शीतल अपने आप को संभालती हुई बोली.

‘‘बस एक ही इच्छा है, जो मैं मर कर भी नहीं जान पाया…’’ अनल थोड़ा रुकता हुआ बड़ी संजीदगी से बोला, ‘‘…कि तुम ने मुझे उस ऊंची पहाड़ी से धक्का क्यों दिया? इस का जवाब दो, इस के बाद मैं सदासदा के लिए तुम्हारी जिंदगी से दूर चला जाऊंगा.’’

‘‘हां, तुम्हें यह जवाब जानने का पूरा हक है. और यह सुनसान जगह उस के लिए उपयुक्त भी है. अनल तुम तो मेरी पारिवारिक स्थिति अच्छी तरह से जानते ही हो. मैं बचपन से बहनों के उतारे हुए पुराने कपड़े और बचीखुची रोटियों के दम पर ही जीवित रही हूं. लेकिन किस्मत ने मुझे उस मोड़ पर ला कर खड़ा कर दिया, जहां मेरे चारों और खानेपीने और पहनने ओढ़ने की बेशुमार चीजें बिखरी पड़ी थीं.

‘‘यह सब वे खुशियां थीं जिस का इंतजार मैं पिछले 23 साल से कर रही थी. एक तुम थे कि मुझे मां बनाने पर तुले थे. और मैं जानती थी, एक बार मां बनाने के बाद मेरी सारी इच्छाएं बच्चे के नाम पर कुरबान हो जातीं. और यह भी संभव था कि एक बच्चे के 3-4 साल का होने के बाद मुझ से दूसरे बच्चे की मांग की जाती.

‘‘अब तुम ही बताओ मेरी अपनी सारी इच्छाओं का क्या होता? क्या बच्चे और परिवार के नाम पर मेरी ख्वाहिशें अधूरी नहीं रह जातीं?

‘‘मैं अपनी इच्छाओं को किसी के साथ भी बांटना नहीं चाहती थी. न तुम्हारे साथ न बच्चों के साथ. मैं भरपूर जिंदगी जीना चाहती हूं सिर्फ अपने और अपने लिए.

‘‘उस पहाड़ी को देखते ही मैं ने मन ही मन योजना बना ली थी. इसी कारण स्टाइलिश फोटो के नाम पर ऐसा पोज बनवाया, जिस से मुझे धक्का देने में आसानी हो.’’

शीतल ने अपनी योजना का खुलासा किया, ‘‘मैं अब तक इस बात को भी अच्छी तरह से समझ चुकी हूं कि तुम कोई आत्मा नहीं हो. लेकिन मैं तुम्हें इसी पल आत्मा में तब्दील कर दूंगी.’’ कहते हुए शीतल ने अपने पर्स में से रिवौल्वर निकाल ली. और हां तुम्हारी लाश पुलिस को मिल जाएगी, तो मुझे बीमे का क्लेम भी आसानी से मिल जाएगा.’’ शीतल ने आगे जोड़ा.

‘‘देखो शीतल, दोबारा ऐसी गलती मत करो. तुम्हारे पीछे पुलिस यहां पर पहुंच ही चुकी है.’’ अनल शीतल को चेताते हुए बोला.

‘‘मूर्ख, मुझे छोटा बच्चा समझ रखा है क्या? तुम कहोगे पीछे देखो और मैं पीछे देखूंगी तो मेरी पिस्तौल छीन लोगे.’’ शीतल कातिल हंसी हंसते हुए बोली. शीतल गोली चलाती, इस से पहले ही उस के पैर के निचले हिस्से पर किसी भारी चीज से प्रहार हुआ.

‘‘आ आ आ मर गई… ’’ कहते हुए शीतल जमीन पर गिर गई और हाथों से रिवौल्वर छूट गई. उस ने पीछे पलट कर देखा तो सचमुच में पुलिस खड़ी थी और साथ में वीर भी था.

‘‘आप का कंफेशन लेने के लिए ही यह ड्रामा रचा गया था मैडम. इस सारे घटनाक्रम की वीडियोग्राफी कर ली गई है. अनल ने कपड़ों में 3-4 स्पाइ कैमरे लगा रखे थे.’’ इंसपेक्टर बोला, ‘‘आप को कुछ जानना है?’’

‘‘हां इंसपेक्टर, मैं यह जानना चाहती हूं कि अनल का भूत कैसे पैदा किया गया? वह मेरी गैलरी में कैसे चढ़ा और उतरा? वह मेरे अलावा किसी और को दिखाई क्यों नहीं दिया?’’ शीतल ने अपनी जिज्ञासा रखी.

‘‘यह वास्तव में ठीक उसी तरह का शो था जैसा कि कई शहरों में होता है. लाइट एंड साउंड शो के जैसा लेजर लाइट से चलने वाला. इस की वीडियो अनल व वीर ने ही बनाई थी और इस का संचालन आप के बंगले के सामने बन रही एक निर्माणाधीन बिल्डिंग से किया जाता था.’’ इंसपेक्टर ने बताया, ‘‘और आप के ड्राइवर और चौकीदार तो बेचारे इस योजना में शामिल हो कर आप के साथ नमकहरामी नहीं करना चाहते थे. लेकिन जब उन्हें पुलिस थाने बुलाया और पूरा मामला समझाया गया तो वह साथ देने को तैयार हो गए. ड्राइवर की आज की छुट्टी भी इसी पटकथा का एक हिस्सा है.’’

‘‘पहाड़ी पर इतनी ऊंचाई से गिरने के बाद भी अनल बच कैसे गया?’’ शीतल ने हैरानी से पूछा.

‘‘यह सारी कहानी तो मिस्टर अनल ही बेहतर बता सकेंगे.’’ इंसपेक्टर ने कहा.

‘‘शीतल, तुम ने अपनी योजना को बखूबी अंजाम दिया, मगर तुम से एक गलती हो गई. तेजी से नीचे गिरने के लिए जितने प्रेशर की जरूरत पड़ती है, लड़की होने के कारण तुम उतना प्रेशर लगा नहीं पाई. इस का परिणाम यह निकला कि मुझे जिस तेजी से नीचे गिरना चाहिए था, मैं गिरा नहीं.

‘‘बस ढलान होने के कारण लेटी कंडीशन में लुढ़कता रहा. और लगभग 50 मीटर लुढ़कने के बाद खाई में उगे एक पेड़ पर अटक गया. इतना लुढ़कने और कई छोटेबड़े पत्थरों से टकराने के कारण मैं बेहोश हो गया .

‘‘दूसरी चालाकी या मूर्खता तुम ने यह की कि तुम ने मुझे जिस स्थान से धक्का दिया था, उस से लगभग 100 मीटर दूर तुम ने पुलिस को घटनास्थल बताया. तुम चाहती थी कि मेरी लाश किसी भी स्थिति में न मिले.

‘‘पहले दिन पुलिस तुम्हारे बताए स्थान पर ढूंढती रही, मगर अंधेरा होने के कारण चली गई. लेकिन दूसरे दिन पुलिस ने उस पूरे इलाके में सर्चिंग के लिए 6 सर्चिंग पार्टियां लगा दीं. उन्हें मैं एक पेड़ पर अटका हुआ बेहोश हालत में दिखाई दिया. चूंकि यह स्थान तुम्हारे बताए गए स्थान से काफी दूर और अलग था, अत: पुलिस को तुम पर शक पहले दिन से ही हो गया था. और वह मेरे बयान लेना चाहती थी. पुलिस ने तुम्हें बताए बिना मुझे अस्पताल में भरती करवा दिया. कुछ समय बेहोश रहने के बाद मैं कोमा में चला गया.

‘‘वीर के बयानों के आधार पर और पिताजी की जवाबदारी देखते हुए तुम्हें वहां से जाने दिया गया. लगभग एक महीने के बाद मुझे होश आया और मैं ने अपना बयान दिया. तुम से गुनाह कबूल करवाना मुश्किल था, इसीलिए पुलिस से मिल कर यह नाटक करना पड़ा.’’ अनल ने बताया.

‘‘चलो, अब समझ में आ गया भूत जैसी कोई चीज नहीं होती. मुझे इस बात की तो खुशी होगी कि मैं जेल में कम से कम उन  अभावों में तो नहीं रहूंगी, जिन अभावों से मैं बचपन से गुजरी हूं.’’ शीतल बोली.

‘‘मैं ने तुम से वायदा किया था कि आज के बाद हम कभी नहीं मिलेंगे तो यह हमारी आखिरी मुलाकात होगी. मेरी अनुपस्थिति में  पिताजी का खयाल रखने के लिए बहुतबहुत धन्यवाद.’’ अनल हाथ जोड़ते हुए बोला.

 

Rajasthan Crime : तीन बहुओं ने मिलकर सास की गला दबाकर की हत्या

Rajasthan Crime : एक जमाना था जब सास बहू पर रौब दिखाना अपना अधिकार समझती थी. इतना ही नहीं, वह उसे अपनी अंगुलियों पर नचाती थी. लेकिन आज की बहुएं पहले जैसी नहीं हैं. वह अपने जीवन में किसी की दखलअंदाजी पसंद नहीं करतीं. इस बात को कमला देवी समझ पाती तो शायद उस की 3 बहुओं को हत्या के आरोप में जेल नहीं जाना पड़ता. समाज में सास और बहू के संबंधों पर कई टीवी धारावाहिक बने हैं. सास बहू का रिश्ता हर परिवार में देखने  को मिलता है. ज्यादातर सास की अपनी बहुओं से कोई न कोई शिकायत रहती ही है. बहू भले ही कितनी भी सुघड़ और समझदार हो.

भले ही वह सास को अपनी जन्मदात्री मां के बराबर दर्जा दे कर उन के इशारों पर दिनरात काम करती रहे. मगर सास नामक प्राणी को बहू से इस के बाद भी शिकायत ही रहती है. कुछ ही सास होती हैं जो बहू को बेटी समझ कर लाड़प्यार से रखती हैं वरना तो अधिकांश सास अपनी बहू के काम में कोई न कोई मीनमेख निकालती ही रहती हैं. कहने का मतलब है कि ऐसी सास कभी भी अपनी आदत से बाज नहीं आती.  लेकिन अब जमाना काफी बदल गया है. आज की बहुओं को सास द्वारा उन के काम में मीनमेख निकालना पसंद नहीं है. वह अपनी लाइफ में पति के अलावा किसी और का हस्तक्षेप पसंद नहीं करतीं. इतने पर भी सास यदि तानाशाही दिखाती रहे तो परिणाम भयानक सामने आते हैं.

राजस्थान के जोधपुर जिले के थाना मतोड़ा के अंतर्गत एक गांव आता है हरलाया रामदेव नगर. इस में दमाराम मेघवाल अपने परिवार के साथ रहते हैं. उन के परिवार में पत्नी कमलादेवी के अलावा 5 बेटे हैं. उस ने अपने पांचों बेटों की शादियां कर दी थी. सभी बेटे अपने परिवार के साथ अलगअलग मकान बनवा कर रह रहे थे. दमाराम की बीवी कमलादेवी भी कड़क स्वभाव की सास थी. वह अपनी बहुओं को दबाव में रखना चाहती थी. उस ने ऐसा ही किया. बड़े और मंझले बेटे की शादी हुई तो इन दोनों बहुओं को उस ने अपने नियंत्रण में रखा. उन से सास कुछ भी कहती तो बहुओं की हिम्मत नहीं होती थी कि वे सास को पलट कर जवाब दें. सास द्वारा काम में टोकाटाकी व हायतौबा मचाने पर भी वे चुप रहती थीं.

जब छोटे 3 बेटों पुखराज, मिश्रीलाल व मदनराम के विवाह हो गए तब दोनों बड़े बेटे अलग हो गए. पुखराज व मिश्रीलाल की बीवियां प्रेमा एवं पिंटू सगी बहनें थीं. वहीं मदनराम की पत्नी ओमा इन की चचेरी बहन थी. तीनों बहनें एक ही परिवार के सगे भाइयों में ब्याही थीं.  पुखराज, मिश्रीलाल एवं मदनराम राजमिस्त्री का काम करते थे. ज्यादातर वे अपने गांव या आसपास के गांवों में काम करते थे. वे सुबह नाश्ता कर के अपने काम पर चले जाते और दोपहर में घर आ कर खाना खा कर थोड़ा सा आराम कर के पुन: काम पर चले जाते थे. दैनिक मजदूरी 7-8 सौ रुपए थी. इस से परिवार का भरणपोषण आराम से हो रहा था. इन तीनों भाइयों के घर आसपास ही थे जबकि बड़े भाइयों के घर थोड़े दूर थे.

तीनों बहनें ब्याही एक ही परिवार में तीनों बहनें प्रेमा, पिंटू व ओमा मिलजुल कर रहती थीं. ससुराल में अगर सगी बहन या चचेरी बहन ब्याही होती है तो उन में कुछ ज्यादा ही बनती है. इन तीनों के पति काम पर चले जाते, तो तीनों बहनें घर का काम निबटा कर एक जगह पर इकट्ठा हो कर बतियाती रहती थीं. जिस से इन का टाइम पास हो जाता था. मगर इन के टाइम पास में सास अकसर खलल डाल देती थी. सास कमला देवी उन को ताने देती कि घर के काम में मन नहीं लगता. जब देखो तब बैठ कर गप्पे मारती रहती हो. जब बहुएं कहतीं कि घर का सारा काम कर लिया है, तो सास उन पर चढ़ दौड़ती. वह उन्हें 10 काम और बता देती कि यह नहीं किया, वो नहीं किया. तीनों बहनों को सास गालीगलौज देने लगती तो रुकती ही नहीं.

वह पूरा घर सिर पर उठा लेती थी. तीनों बहनें परेशान हो जातीं. मगर कमला देवी को कोई फर्क नहीं पड़ता. उस के सामने प्रेमा पड़ती तो उसे गाली एवं काम में मीनमेख व टोकाटाकी. पिंटू पड़ती तो वही मीनमेख और हायतौबा. ओमा पड़ती तो उसे भी सास की बेवजह हायहाय सुननी पड़ती थी. अगर ये बहुएं अपनी सास से कुछ कहतीं तो वह उन पर बिफर जाती और अपने बेटों के घर आने पर बहुओं की शिकायत करती कि यह तीनों बैठ कर दिन भर गप्पें मारती रहती हैं. कामधाम कुछ नहीं करतीं. अगर मैं कुछ कहती हूं तो यह मुझे आंखें दिखाती हैं और जुबान लड़ाती हैं. मुझ से इस तरह बात करती हैं जैसे मैं इन की बहू हूं.

बेटे मां की बात सुन कर अपनी बीवियों को समझाते कि मां जो कुछ कहती है. उन के भले के लिए कहती है. वह बूढ़ी हो गई हैं अब कितने दिन की मेहमान हैं. उन का सम्मान किया करो. जुबान बंद रखा करो.  बेटे अपनी बीवियों को समझा कर जाते और मां से भी कहते कि वह भी क्यों बेवजह परेशान होती हैं. अगर बहुएं काम नहीं करें तो मत करने दो. उन का बिगड़ेगा, तुम्हारे ऊपर क्या फर्क पड़ेगा. तुम रामनाम की माला जपो. मगर बेटों के समझाने का भी कमला देवी पर कोई असर नहीं पड़ता. लिहाजा उस के और तीनों बहुओं के बीच हर रोज कलह और विवाद होता था. कलह के कारण सब परेशान थे. मगर कलह करने वाले अपनी आदत से बाज नहीं आ रहे थे.

कमलादेवी 62 साल की थी फिर भी वह अपनी बकरियां ले कर जंगल में चराने के लिए हर रोज जाती थी. दोपहर तक बकरियां चरा कर वह घर आ जाती थी. घर आ कर बकरियों को बाड़े में बांध कर फिर वह आराम करती थी. बेटे जब दोपहर में खाने घर आते थे तो मां घर पर आराम करते मिलती थी. लेकिन 28 अगस्त, 2020 को दयाराम के तीनों बेटे पुखराज, मदन एवं मिश्रीलाल मेघवाल दोपहर को खाना खाने घर आए तो बकरियां घर के बाहर खुले में खड़ी थीं.

यह देख कर वे चौंके कि बकरियां आज खुली कैसे हैं. क्योंकि मां पहले बकरियां बाड़े में बांधती थी. मदन व पुखराज ने मां को आवाज लगाई. मगर कोई जवाब नहीं मिला. घर में देखा मां वहां भी नहीं थी. मा कहां चली गई. यह उन्होंने अपनी बीवियों से पूछा. बीवियों ने कहा कि हमें पता नहीं. वे कहां गईं. तब मदन, पुखराज मां को देखने घर के बाहर बने कमरे में गए. कमरे में देखते ही उन की चीख निकल गई. मां गले में फंदा डाल कर छत पर पंखे से लटकी हुई मरी पड़ी थी. यह नजारा देख कर बेटों के हाथपैर कांपने लगे. वे रोने लगे. दोपहर में रोने की आवाज सुन कर आसपड़ोस के लोग भी वहां आ गए. गांव वाले समझ नहीं पा रहे थे कि कमला देवी ने इस उम्र में आत्महत्या क्यों की? बहुएं तो बुक्का फाड़ कर रो रही थीं.

किसी ने मृतका के पीहर (मायके) हरिओमनगर भीकमकोर में सूचना दे दी. भीकमकोर से मृतका के पीहर से भाईभतीजे शाम होतेहोते हरलाया रामदेव नगर आ गए. पीहर वालों ने जब कमला देवी को पंखे से लटके देखा तो उन्हें लगा कि कमला देवी की हत्या कर के शव फंदे पर लटकाया गया है. मृतका के बेटे और बहुएं यह मानने को तैयार नहीं थे. मृतका के पीहर वालों के संदेह करने का कारण था फंदा पंखे के हुक से न बांध कर पंखे के पाइप से बांधना. प्लास्टिक का पाइप वजन से पंखे सहित सुसाइड करने की स्थिति में झटका लगने से टूट सकता था. मगर वह टूटा नहीं था. इस पर पीहर वालों ने शक जताया. उन्होंने मृतका की बहुओं प्रेमा, पिंटू, ओमा से पूछा तो वे कहती रहीं कि सास ने आत्महत्या की है.

जबकि मृतका कमला देवी के भतीजे प्रभुराम ने बताया कि वह 25 अगस्त, 20 को जब बुआ कमला से मिलने आया था. तब बुआ ने रोते हुए उसे बताया था कि पुखराज की पत्नी प्रेमा उर्फ प्रेमी उस की हत्या कर सकती है. वह मारने की धमकियां दे रही है. तब भतीजे प्रभुराम ने बुआ को दिलासा दिया था कि वह वापस आ कर बात उस के बेटों से करेगा. इसी बीच 28 अगस्त, 2020 की शाम को प्रभुराम को करनाणियों ढाणी के रिश्तेदार उस के पास हरिओमनगर भीकमकोर आए. उन्होंने बताया कि तुम्हारी बुआ कमला देवी का शायद काम तमाम कर दिया है. प्रभुराम ने अपनी बुआ के बेटों पर आरोप लगाया कि उन्होंने उन्हें घटना की जानकारी तक नहीं दी. रिश्तेदारों से सुन कर प्रभुराम अपने भाईभतीजों के साथ हरलाया रामदेवनगर आए.

प्रभुराम ने बुआ कमला देवी की हत्या कर के शव पंखे पर लटकाने का आरोप लगाया. रात भर इस हत्याकांड पर घर में चर्चा होती रही. मृतका की बहुओं से भी पूछताछ की गई और झांसा दिया गया कि वे सच बता दें. तब प्रेमा, पिंटू और ओमा ने सभी के सामने स्वीकार कर लिया कि उन तीनों ने ही अपनी सास की गला दबा कर हत्या करने के बाद शव पंखे से लटकाया था. अब सच सामने आ चुका था. 3 बहुओं ने मिल कर सास की सांस रोक दी थी. लिहाजा 29 अगस्त, 2020 को प्रभुराम मेघवाल ने थाना मतोड़ा जा कर थानाप्रभारी नेमाराम इनाणिया को अपनी बुआ कमला देवी की हत्या की सूचना दे कर मुकदमा दर्ज करा दिया. इस के बाद थानाप्रभारी प्रभुराम को ले कर पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर जा पहुंचे.

कमला देवी का शव जिस स्थिति में था. देख कर संदेह स्वाभाविक था कि मारने के बाद शव फांसी पर लटकाया गया है. उन्होंने सूचना उच्चाधिकारियों को भी दे दी. एसपी (जोधपुर ग्रामीण) राहुल बारहठ से निर्देश प्राप्त कर थानाप्रभारी नेमाराम ने काररवाई शुरू कर मृतका का शव पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. मैडिकल बोर्ड बना कर मृतका का पोस्टमार्टम कराया गया. जब तक पोस्टमार्टम रिपोर्ट नहीं मिलती तब तक पुलिस जांच आगे नहीं बढ़ सकती थी. पुलिस पूछताछ में मृतका के बेटे और बहुएं आदि कह रहे थे कि मां ने आत्महत्या की है. जबकि मृतका के पीहर वाले सीधे तौर पर हत्या का आरोप लगा रहे थे.

पोस्टमार्टम के बाद कमला देवी का शव उस के परिजनों को सौंप दिया. उसी रोज मृतका का दाह संस्कार कर दिया गया. पुलिस को मृतका कमला देवी की पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिल गई. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में गला दबा कर हत्या की बात सामने आई. पोस्टमार्टम में हुआ हत्या का खुलासा  मामला अब एकदम साफ हो चुका था. पुलिस का मकसद अब हत्यारे तक पहुंचना था. इस के बाद थानाप्रभारी ने मृतका कमला देवी के घर जा कर कड़ी पूछताछ की. पूछताछ में प्रेमा उर्फ पेमी पत्नी पुखराज, पिंटू पत्नी मिश्रीलाल, ओमा पत्नी मदनराम मेघवाल ने सास कमला देवी का गला दबा कर हत्या करने का जुर्म कबूल कर लिया. तब पुलिस ने पहली सितंबर, 2020 को प्रेमा, पिंटू आर ओमा को गिरफ्तार कर लिया. इन्हें थाने मतोड़ा ला कर पूछताछ की गई.

पूछताछ में उन्होंने बताया कि सास उन के हर काम में टांग अड़ाती थी, हर काम में किचकिच करने और बेवजह लड़ाईझगड़ा करने के कारण वे बहुत परेशान हो गई थीं. इस के बाद उन्होंने सास की हत्या की योजना बना ली. फिर 28 अगस्त 2020 को दोपहर में सास जब बकरियां चरा कर घर लौटी तो आते ही उस ने तीनों बहुओं से झगड़ना शुरू कर दिया. तब तीनों ने पकड़ कर सास को गिरा दिया और गला दबा कर मार डाला. इस के बाद उन्होंने उस के गले में रस्सी का फंदा डाल कर उस का शव कमरे में लगे छत के पंखें पर लटका दिया. ताकि मामला आत्महत्या का लगे. लेकिन किसी के देख लेने के डर से जल्दबाजी में शव पंखे के ऊपर लगे हुक से बांधने के बजाय प्लास्टिक पाइप से बांध दी. शव जमीन को भी छू रहा था. उन्होंने बहुत कोशिश की मगर खून करने के बाद तीनों डर के मारे कुछ कर नहीं पा रही थीं.

इस कारण जब मृतका के पीहर वालों एवं पुलिस ने शव लटके देखा तो संदेह हो गया था. मगर बगैर किसी सबूत के किसी पर आरोप लगाना भी ठीक नहीं था. ऐसे में पुलिस ने रिपोर्ट दर्ज होने के बाद एवं पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिलने तक गुप्त रूप से इस घटना की तहकीकात की. इस जांच में सामने आया कि बहुओं ने सास की हर रोज की किचकिच से परेशान हो कर साजिश रच कर हत्या की थी.  वृद्ध सास अगर अपनी बहुओं को बेटियां मान कर हर काम में मीनमेख नहीं निकालती और बहुओं के साथ प्यार का बर्ताव करती तो शायद बहुएं उस का काल नहीं बनतीं. तीनों बहुओं प्रेमा उर्फ पेमी, पिंटू और ओमा से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने उन्हें पहली सितंबर 2020 को कोर्ट में पेश किया, जहां से उन तीनों बहुओं को अजमेर जेल भेजने के कोर्ट ने आदेश दिए.

अजमेर जेल भेजने से पहले इन तीनों हत्यारोपी बहुओं की कोरोना जांच करवाई गई. अगर कमला देवी अपनी आदत सुधार लेती या फिर उन की तीनों बहुएं सास की आदत है कह कर या सुन कर आवेश में न आतीं तो उन्हें आज यह दिन नहीं देखना पड़ता. सास की हत्या कर की आरोपी तीनों बहुएं सैकड़ों किलोमीटर दूर अजमेर जेल में बंद हैं. इन तीनों के पति और बच्चे अपने हाल पर हैं. समाज में घरपरिवार की इज्जत गई सो अलग. कलह के कारण पूरा परिवार बिखर चुका है. गलत राह पकड़ने से पहले एक बार सोच लें तो कभी परिवार नहीं बिखरेगा. वरना गृहकलेश में ऐसा ही होता है.

 

Family Dispute : सास ने 10 लाख की सुपारी देकर कराई दामाद की हत्या

Family Dispute : यशवीर उर्फ कपिल ने पुलिस अधिकारी ममता पवार से अंतरजातीय विवाह किया था. लेकिन एक दिन अचानक ममता की मृत्यु हो गई. इस के बाद ममता की अकूत संपत्ति को ले कर कपिल और उस की सास शिमला पवार के बीच विवाद इतना बढ़ गया कि…

उत्तर प्रदेश के जनपद हापुड़ के असोड़ा गांव में बालकिशन सैनी रहते थे. वह खेतीकिसानी करते थे. परिवार में पत्नी निर्मला और 3 बेटे बिरजू, सुखबीर और यशवीर के अलावा 3 बेटियां थीं. सब से छोटा यशवीर था. यश पड़ने में काफी तेज था. उस का पढ़ाई में मन देख कर पिता बालकिशन और मां निर्मला काफी खुश होते थे कि कम से कम एक बेटा तो पढ़ कर अपनी जिंदगी संवार लेगा. आर्थिक स्थिति अच्छी न होने के बावजूद बालकिशन ने बेटे की पढ़ाई में कोई रुकावट नहीं आने दी. यश ग्रैजुएशन की पढ़ाई पूरी करने के बाद दिल्ली में रह कर सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी करने लगा. बाद में उस ने वहां प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कराने के लिए कोचिंग देनी शुरू कर दी. दिल्ली में रहते यशवीर ने एलएलबी की और वकील बन गया.

कुछ ही दिनों में उस के कोचिंग सेंटर में काफी छात्रछात्राएं प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए आने लगे. यश का पढ़ाने का तरीका काफी अच्छा था, जिस से छात्रछात्राएं उस से पढ़ने में रुचि लेते थे. उस के कोचिंग सेंटर में पढ़ने आने वाली छात्राओं में ममता पवार नाम की भी एक छात्रा भी थी. वह भी सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी में लगी थी. ममता का परिवार बागपत जिले में रहता था. उस के पिता का नाम लक्ष्मीचंद्र पवार और मां का नाम शिमला पवार था. ममता 3 भाईबहनों में सब से बड़ी थी. पिता बड़े बिजनेसमैन थे. आगरा में उन की काफी संपत्ति थी, जिस वजह से ममता की मां शिमला आगरा में ही रहती थीं. उन का घर आगरा के थाना छत्ता अंतर्गत जाटनी के बाग के एक अपार्टमेंट में था. यह फ्लैट ममता और शिमला के संयुक्त नाम पर था.

ममता पढ़ने में काफी तेज थी. किसी भी प्रश्न के जवाब से जब तक वह संतुष्ट नहीं हो जाती, तब तक उस का पीछा नहीं छोड़ती थी. इस में यश उस की मदद करता था. यश भी उस की उत्सुकता और पढ़ाई के प्रति अच्छा रुख देख कर खुश होता था. इसलिए वह उसे किसी भी प्रश्न का जवाब समझाने के लिए अतिरिक्त समय दे देता था. इस अतिरिक्त समय में वे दोनों ही होते थे. पढ़नेपढ़ाने के दौरान दोनों काफी खुल गए थे, इसलिए बेझिझक एकदूसरे से बातें करते थे. पढ़ाई के अलावा भी उन के बीच इधरउधर की बातें होने लगीं. दोनों को एक साथ रहना और बातें करना अच्छा लगने लगा. दोनों की उम्र में कोई खास अंतर नहीं था. इसलिए दोनों एकदूसरे से दोस्तों की तरह व्यवहार करने लगे. साथ समय बिताते, घूमने जाते और साथ खातेपीते.

दिल की बात की जाहिर इस सब के चलते दोनों के दिल काफी करीब आ गए. दोस्ती से वे कब प्यार में पड़ गए, उन्हें पता ही न चला. जब दिल की धड़कनें और निगाहें उन के प्यार को जताने लगीं तब उन्हें एहसास हुआ कि वे प्यार में आकंठ डूब गए हैं. दिल की बात जुबां पर लाने के लिए दोनों की जुबान कुछ कहने से पहले ही लड़खड़ा जाती थी. एक दिन एकांत के क्षणों में ममता मेज पर कोहनियों के बल दोनों हाथ टिकाए यश के सामने बैठी थी तो कपिल ने उस की मेज पर रखे दोनों हाथों के पंजे अपने हाथों में लिए और अपने होंठों से उन्हें चूमते हुए बोला, ‘‘ममता, मैं तुम से बेहद प्यार करता हूं. यह प्यार काफी दिनों से अपने दिल में छिपाए बैठा था, लेकिन तुम से इजहार करने की हिम्मत नहीं कर पा रहा था.

तुम भी मुझ से प्यार करती हो कि नहीं, बस इसी ऊहापोह में हर पल गुजारता था. अब रहा नहीं गया तो तुम से अपने दिल की बात कह दी. अब तुम मेरे प्यार को ठुकराओ या स्वीकार करो, यह फैसला तुम्हारा होगा. तुम जो भी फैसला करोगी, मुझे मंजूर होगा.’’

ममता तो जैसे इसी पल के इंतजार में थी. यश ने जब उस का हाथ चूमा था, तभी समझ गई थी कि आज यश उस से अपने दिल की बात कहने वाला है. वह जान गई थी कि यश भी उस से प्यार करता है. इसलिए मुसकराते हुए बोली, ‘‘सच कहूं, मैं तो कब से इसी इंतजार में थी कि कब तुम मुझ से अपने प्यार का इजहार करोगे. आज आखिर वह शुभ घड़ी आ गई. मैं भी तुम से बहुत प्यार करती हूं.’’ कहते हुए ममता ने यश की आंखों में झांका तो यश ने उसे झट अपने सीने से लगा लिया. यश ने उसे सीने से लगा कर सुकून की सांस ली तो ममता भी अपनी आंखें बंद कर यश के सीने में कैद दिल की धड़कनें सुनने लगी. यश की हर धड़कन में उसे अपने लिए प्यार महसूस हुआ, जिस की वजह से उस के होंठों पर प्यारी सी मुसकराहट तैरने लगी.

उन का प्यार समय के साथ और प्रगाढ़ होता गया. इस दौरान यश की नौकरी लग गई. वह मेरठ की कोर्ट में पेशकार हो गया. उधर ममता भी उत्तर प्रदेश पुलिस में सबइंस्पेक्टर के पद पर भरती हो गई. नौकरी करते हुए भी उन की बातचीत होती रहती थी. दोनों शादी करने का फैसला कर चुके थे. लेकिन इस में जाति आड़े आ रही थी. क्योंकि यश सैनी समाज से था और ममता जाट समाज की. ममता ने अपने घर वालों से बात की तो वे यश से अंतरजातीय विवाह करने की बात पर विरोध में आ गए. ममता ने घर वालों के विरोध के बावजूद यश से विवाह करने की ठान ली. लेकिन उसे और उस के परिवार को इस विवाह से परेशानी न उठानी पड़े, इस के लिए ममता ने यश के सामने शर्त रख दी कि उसे अपना सरनेम बदल कर पवार करना पड़ेगा और विवाह के बाद यश अपने परिवार से कोई संबंध नहीं रखेगा.

यश ने उस की शर्त मान ली और उस ने अपना नाम बदल कर कपिल पवार रख लिया. उस ने सरनेम के साथ नाम भी बदल लिया. 15 साल पहले दोनों ने विवाह कर लिया. ममता की पोस्टिंग आगरा में हो गई. दोनों के अलगअलग शहर में रहने पर परेशानी होने लगी तो कपिल अपनी नौकरी छोड़ कर आगरा आ गया. आगरा के जाटनी के बाग के जिस अपार्टमेंट में ममता की मां शिमला रहती थी, ममता कपिल उर्फ यश के साथ अपनी मां के फ्लैट से ऊपर वाली मंजिल पर स्थित फ्लैट में रहने लगी. यह फ्लैट ममता के नाम पर था. आगरा आ कर कपिल वकालत करने लगा. इस के अलावा वह प्रौपर्टी डीलिंग का काम भी करता था. समय के साथ 8 साल पहले ममता ने एक बेटी को जन्म दिया, जिस का नाम उन्होंने कन्नू रखा. इस समय कन्नू सेंट पैट्रिक्स स्कूल में पहली कक्षा की छात्रा थी.

कपिल कुछ ही समय में वकालत के क्षेत्र में आगरा में छा गया. कई बड़े केस उस के हाथ में आ गए. उन में आगरा का बहुचर्चित जोंस मिल कंपाउंड भूमि घोटाले का मुकदमा भी था. जोंस मिल कंपाउंड की आखिरी महिला वारिस मौरिस जोन ने उसे अपना वकील बनाया था. वह कपिल को बेटे की तरह मानती थीं. दूसरी ओर कपिल का प्रौपर्टी डीलिंग का धंधा भी खूब फलफूल रहा था. जमीन का सौदा करवाने में कपिल को जबरदस्त महारत हासिल थी. उस ने कई ऐसे सौदे करवाए थे जो विवादित थे. ममता बन गई पुलिस इंसपेक्टर अब तक ममता इंसपेक्टर के पद पर प्रोन्नत हो चुकी थी. किसी ने कपिल से ईर्ष्या कर पुलिस विभाग के अधिकारियों से शिकायत कर दी कि कपिल की पत्नी ममता आगरा में इंसपेक्टर है.

पत्नी के पुलिस इंसपेक्टर होने के बलबूते पर कपिल ने कई विवादित जमीन की खरीदफरोख्त की है. इस पर पुलिस अधिकारियों ने ममता पवार का स्थानांतरण आगरा से प्रयागराज कर दिया. ममता को अपने विभागीय अधिकारियों का आदेश तो मानना ही था, लिहाजा उसे मजबूरन प्रयागराज जाना पड़ा. प्रयागराज में तैनाती के दौरान 24 सितंबर, 2019 को ममता की तबियत खराब हुई. उस की गंभीर हालत को देखते हुए उसे पीजीआई लखनऊ में भरती कराया गया. लेकिन 27 सितंबर, 2019 को ब्रेन हैमरेज के कारण उस की मृत्यु हो गई. ममता की मौत के बाद उस की मां शिमला कपिल से और बैर रखने लगी. अभी तक ममता के कारण वह कुछ नहीं कहती थी. लेकिन ममता की मौत के बाद शिमला का कपिल से विवाद रहने लगा. विवाद का कारण था ममता के नाम कई प्रौपर्टीज का होना.

ममता के नाम मेरठ के अंसल टाउन में एक प्लौट, आगरा के जाटनी के बाग में एक फ्लैट जिस में शिमला खुद रह रही थी, आस्था सिटी सेंटर के सामने एक प्लौट और एक बेकरी की दुकान थी. बेकरी की दुकान के किराएनामे में शिमला का नाम था. कपिल ने उस का बैनामा अपने नाम करा लिया था. प्लौट भी कपिल अपने नाम कराने की कोशिश कर रहा था. शिमला ने ममता को यह संपत्ति खरीदने के लिए अपनी जमापूंजी दी थी. अब उसे डर था कि उस का दामाद कपिल सारी संपत्ति पर कब्जा कर के उसे घर से बेदखल न कर दे. इसे ले कर उन के बीच बहुत गहरा विवाद था.

ममता की मौत के बाद कपिल के सामने उस की रखी शर्त की कोई बंदिश नहीं थी. वैसे भी कपिल अकेलापन महसूस करता था. इसलिए कपिल ने अपने परिवार से संपर्क रखना शुरू कर दिया. हालांकि फोन पर कपिल पहले भी जबतब बात कर लेता था, लेकिन ममता की वजह से न घर वालों को घर बुला पाता था और न ही उन से मिलने घर जाता था. बंदिश हटी तो कपिल के घर वाले उस के पास आनेजाने लगे. 26 अक्तूबर, 2020 की शाम कपिल अपने फ्लैट में था. 10 दिन पहले उस ने अपनी 90 वर्षीया मां निर्मला को अपने पास रहने के लिए बुला लिया था. वह शाम को अपनी मां से प्लौट पर जाने की बात कह कर घर से निकल गया. अपनी मारुति वैगनआर कार से वह आस्था सिटी सेंटर के पास वाले प्लौट पर गया था. लेकिन पूरी रात बीत गई, वह वापस नहीं लौटा.

सुबह निर्मला ने पड़ोसियों से कहा तो उन्होंने फोन मिलाने को कहा. निर्मला फोन मिलाना नहीं जानती थी, न ही उन के पास बेटे का नंबर था. पड़ोसियों ने नीचे की मंजिल पर रह रही कपिल की सास शिमला से कहा कि वह कपिल के बारे में पता करे. इस पर शिमला कपिल के फ्लैट में आई और निर्मला पर बरस पड़ी, ‘‘ड्रामा मत करो. यहां मजाक बनेगा. वह आ जाएगा, उसे कौन ले जाएगा. तुम चुप रहो बस.’’ कह कर शिमला चली गई. बाद में पड़ोसियों के दबाव में 27 अक्तूबर की शाम को ही शिमला ने स्थानीय छत्ता थाना पुलिस को कपिल के लापता होने की सूचना दी. जिस के बाद छत्ता थाने के इंसपेक्टर सुनील दत्त मय टीम के कपिल के फ्लैट पर पहुंचे.

वहां उन्होंने निर्मला से कपिल के संबंध में पूछताछ की. इस के बाद इंसपेक्टर दत्त ने कपिल पवार उर्फ यश की थाने में गुमशुदगी दर्ज करा दी. कपिल की मिली लाश बाद में कपिल का कोई सुराग न लगने पर गुमशुदगी को भादंवि की धारा 364 में तरमीम कर दिया गया. इसी बीच इंसपेक्टर सुनील दत्त को 27 अक्तूबर की शाम को इटावा जिले के भरथना थाना क्षेत्र के मल्हौली नहर में एक लाश मिलने की सूचना मिली. उन्होंने इटावा पुलिस से संपर्क कर के लाश की फोटो मंगवाई. वह फोटो कपिल की मां और उस के दोनों भाइयों को दिखाई गई तो उन्होंने लाश की पहचान कपिल के रूप में कर दी. इस के बाद इंसपेक्टर दत्त ने दोनों भाइयों को एसआई योगेश कुमार के साथ इटावा भेज दिया. दोनों भाइयों ने लाश की शिनाख्त अपने भाई यश उर्फ कपिल के रूप में की. इटावा पुलिस ने पोस्टमार्टम के बाद लाश दोनों भाइयों के सुपुर्द कर दी.

इंसपेक्टर दत्त ने कपिल के फोन नंबर की काल डिटेल्स की जांच की तो उस में एक नंबर पर उन की नजर टिक गई. उस नंबर की जानकारी की गई तो वह नंबर कपिल के दोस्त जीतू उर्फ हर्ष यादव का निकला. जीतू के नंबर की लोकेशन ट्रेस की गई तो 26 अक्तूबर की शाम को कपिल के प्लौट, फिर उस के घर से होती हुई इटावा तक मिली. इस के बाद उन्होंने अपार्टमेंट में लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज की जांच की तो उस में घटना की रात जीतू कपिल की कार के साथ आया दिखा. साथ में एक जाइलो कार भी थी, जिस में 2 व्यक्ति सवार थे. जीतू ने वहां कुछ देर रुक कर कपिल की सास शिमला से बात की. उस के बाद चला गया.

इस के बाद 30 अक्तूबर, 2020 को इंसपेक्टर दत्त ने कपिल की सास शिमला को हिरासत में ले कर पूछताछ की. पूछताछ में शिमला ने कपिल की हत्या जीतू और उस के 2 साथियों राहुल और अनवर से करवाने की बात स्वीकार कर ली. जिस के बाद इंसपेक्टर दत्त ने अपने मुखबिरों को राहुल और अनवर की तलाश के लिए लगा दिया. जल्द ही एक मुखबिर ने सूचना दी कि राहुल और अनवर एत्मादपुर से मथुरा की ओर जाइलो कार नंबर यूपी75एन 0021 से जा रहे हैं. जिस के बाद इंसपेक्टर दत्त ने अपनी टीम के साथ जा कर वाटर वर्क्स पुल के ऊपर से दोनों को गिरफ्तार कर लिया. थाने ला कर जब उन से कड़ाई से पूछताछ की गई तो सारी कहानी सामने आ गई.

प्रौपर्टी के धंधे में काम करते हुए कपिल की जानपहचान जीतू उर्फ हर्ष यादव से हो गई थी, जोकि आगरा के एत्माद्दौला थाना क्षेत्र में टेढ़ी बगिया में रहता था. दोनों में दोस्ती भी हो गई. जीतू का कपिल के घर आनाजाना हुआ. धीरेधीरे दोस्ती इतनी गहरी हो गई कि कपिल ने उसे अपनी पत्नी ममता की सारी संपत्तियों की जानकारी उसे दे दी. उस ने यह भी बता दिया कि कई संपत्ति पत्नी ममता और सास शिमला के संयुक्त नाम से भी हैं. जीतू कहने को कपिल का दोस्त था, लेकिन वह मन ही मन उस से जलता था. कई जमीन के सौदे करवाने में दोनों लगे होते थे लेकिन हर बार कपिल बाजी मार ले जाता था. इस से जीतू को नुकसान उठाना पड़ता था.

कपिल से जीतू मानने लगा रंजिश करीब डेढ़ साल पहले जोंस मिल कंपाउंड में यमुना किनारे जीतू का डेढ़ हजार वर्ग मीटर से ज्यादा जमीन का इकरारनामा कपिल के माध्यम से हुआ था. मगर बाद में मौरिस जौन ने जमीन का बैनामा उस के नाम न कर के दूसरे किसी कारोबारी को कर दिया. मौरिस ने यह कदम जीतू के खिलाफ छत्ता थाने में रंगदारी का मुकदमा दर्ज होने के बाद उठाया था. इस मामले में जीतू ने कपिल से जमीन उस के नाम कराने को कहा लेकिन कपिल ने उस का इस मामले में कोई साथ नहीं दिया. लिहाजा दर्ज मुकदमे में जीतू को जेल जाना पड़ा. इस से वह कपिल से रंजिश मानने लगा. जीतू वैसे भी आपराधिक प्रवृत्ति का था. उस पर विभिन्न धाराओं में 5 मुकदमे दर्ज हैं.

जेल से छूटने के बाद वह कपिल को ठिकाने लगाने की सोचने लगा. लेकिन उस ने कपिल के साथ मिलनाजुलना, बातें करना पहले की तरह ही चालू रखा. जिस से कपिल को उस पर शक न हो. लौकडाउन के दौरान उस ने कपिल की हत्या करने की सोची लेकिन फिर यह सोच कर रह गया कि इस लौकडाउन में वह शहर से बाहर भाग कर कहीं नहीं जा सकेगा. लेकिन उस ने लौकडाउन खुलने के बाद किसी भी तरीके से कपिल की हत्या करने की ठान ली. इस के लिए उस ने हत्या के बाद अपने बचाव की भी तैयारी करनी शुरू कर दी. फिरोजाबाद के एक लूट के मामले में वह कई तारीखों पर कोर्ट नहीं गया तो उस के खिलाफ वारंट जारी हो गया. कपिल और शिमला के बीच विवाद किस हद तक पहुंच गया है, यह भी जीतू बखूबी जानता था.

घटना से 10 दिन पहले संपत्ति विवाद के चलते दोनों की पंचायत हुई. इस में कपिल की तरफ से जीतू और उस के दोस्त थे. शिमला ने अपने घर के लोगों को बुला लिया जोकि बागपत जिले में रहते थे. पंचायत में कोई नतीजा नहीं निकला. लेकिन जीतू ने भांप लिया कि कपिल की सास शिमला संपत्ति के लिए किसी भी हद तक जा सकती है. इस के लिए उस ने शिमला से बात करने की सोच ली. जीतू ने शिमला से पहले से ही काफी मेलजोल बढ़ा रखा था. जीतू कपिल के उठाए गए कदमों की जानकारी शिमला को देता रहता था. इसलिए शिमला उस पर विश्वास करने लगी थी. सास ने दी 10 लाख की सुपारी दुश्मन का दुश्मन दोस्त होता है, इसी तर्ज पर जीतू ने अकेले में शिमला से बात की और कहा, ‘‘आंटीजी जिस संपत्ति के लिए आप परेशान हो रही हैं, वह तभी आप के हाथ आएगी, जब कपिल दुनिया में नहीं रहेगा.’’

इस पर शिमला ने बिना देर किए बोल दिया, ‘‘जो भी खर्चा आएगा, वह दे देगी लेकिन कपिल को रास्ते से हटा दो.’’

‘‘खर्चा 10 लाख रुपए आएगा. 2 सुपारी किलर हायर करने पड़ेंगे.’’ जीतू ने बताया.

‘‘ठीक है, शाम को आ कर मुझ से एक लाख रुपए ले जाना. बाकी 9 लाख रुपए मैं काम होने के बाद दूंगी.’’ शिमला ने कहा.

शिमला की बात सुन कर जीतू ने सहमति दे दी, फिर वहां से चला आया. जीतू तो वैसे भी कपिल को मारना चाहता था. ऐसे में शिमला के कहने पर हत्या करने पर सुपारी की रकम मिल रही थी. शाम को फिर वापस आ कर उस ने शिमला से एक लाख रुपए ले लिए. रकम मिलने के बाद उस ने टेढ़ी बगिया में ही रहने वाले अपने दोस्त अनवर और कालिंद्री विहार के राहुल को कपिल की हत्या करने के लिए तैयार कर लिया. उस ने उन दोनों को शिमला से मिलवा भी दिया. 26 अक्तूबर, 2020 की शाम को जीतू अपनी जाइलो कार में राहुल और अनवर को बैठा कर कपिल के प्लौट पर पहुंचा. वह जानता था कि इस समय कपिल अपने प्लौट पर बैठा शराब पी रहा होगा.

उस का सोचना सही था. कपिल प्लौट पर बैठा शराब पी रहा था. जीतू भी अपने साथियों के साथ उस के पास बैठ गया. जीतू ने कपिल के खाने के लिए अनवर से अंडे की भुजिया मंगवाई, जिस में अनवर ने योजनानुसार नशीला पदार्थ मिला दिया. कपिल ने वह भुजिया खाई तो कुछ ही देर में वह नशे से बेसुध हो गया. जीतू ने राहुल और अनवर की मदद से उसे कार में पिछली सीट पर डाला. इस के बाद राहुल और अनवर जीतू की कार और जीतू कपिल की वैगनआर कार से शिमला से मिलने अपार्टमेंट पहुंचे. वहां शिमला को पूरी बात बताई और बाकी पैसे मांगे. शिमला ने बाकी पैसे पूरा काम होने के बाद ही देने की बात कही.

इस के बाद जीतू अपने साथियों के साथ वहां से निकल आया. फिर तीनों ने कार की सीट बेल्ट से गला घोंट कर कपिल की हत्या कर दी और उस की लाश जाइलो कार से निकाल कर वैगनआर में रख ली. लाश को ले कर तीनों चल दिए. जीतू ने अनवर को रामबाग में छोड़ दिया. जीतू राहुल के साथ कपिल की लाश को इटावा के भरथना थाना क्षेत्र में मल्हौली नहर के पास ले कर गया. वहां नहर में कपिल की लाश डालने के बाद जीतू राहुल के साथ वापस लौट आया. फिरोजाबाद के पास उस ने राहुल को उतार दिया और घर चला गया. राहुल, अनवर और शिमला के गिरफ्तार होने का पता लगते ही जीतू ने फिरोजाबाद की कोर्ट में लूट के उसी मामले में आत्मसमर्पण कर दिया, जिन की तारीखों की पेशी में वह पहले से नहीं जा रहा था. उस के खिलाफ वारंट तक निकल गया था.

वह जानता था कि बडे़ मामलों में पुलिस गिरफ्तारी ऐसे ही नहीं दिखाती, पैर में गोली मार कर मुठभेड़ की बात कह कर दिखाती है. वह गोली नहीं खाना चाहता था, इसलिए उस ने अपने बचाव में यह रास्ता अपनाया था. राहुल और अनवर के पास से 2 तमंचे और 4 जिंदा कारतूस बरामद हुए. इंसपेक्टर सुनील दत्त ने मुकदमे में भादंवि धारा 302/201/120बी और बढ़ा दी. फिर आवश्यक कागजी खानापूर्ति करने के बाद तीनों अभियुक्तों को न्यायालय में पेश करने के बाद जेल भेज दिया. कथा लिखे जाने तक पुलिस जीतू को रिमांड पर लेने की बात कह रही थी. पुलिस कपिल की वैगनआर कार बरामद करने का भी प्रयास कर रही थी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधार

Rajasthan Crime News : गहनों के लालच में दोस्तों ने वकील की कर दी गला घोंटकर हत्या

Rajasthan Crime News : वकील नारायण सिंह राठौड़ को सोने के आभूषण पहनने का शौक था, लेकिन उन लोगों की तरह नहीं जो सोने की चेन, कड़ा या ब्रैसलेट पहनते हैं. वह सवाडेढ़ किलो सोने के आभूषण पहनते थे. इतना ही नहीं, वकील साहब पैसे ले कर इच्छुक लोगों के साथ फोटो भी खिंचाते थे. लेकिन उन का दिखावे का यही शौक…

इसी साल मई की बात है. तारीख थी 28. जगह राजस्थान के पाली जिले का सोजत सिटी. सोजत सिटी की मेहंदी पूरे देश में प्रसिद्ध है. इसी सोजत सिटी थाना क्षेत्र में चंडावल के पास एक गांव है छितरिया. इस गांव की सरहद में मुख्य सड़क मार्ग से सटी हुई एक बावड़ी है. गरमी का मौसम होने के कारण आसपास के गांवों के लोग सुबह इस बावड़ी की तरफ टहलने चले जाते हैं. उस दिन टहलने आए लोगों ने बावड़ी के पानी में एक इंसान की लाश तैरती देखी. लोगों ने लाश को पहचानने की कोशिश की, लेकिन आसपास के गांवों का कोई भी व्यक्ति उस की शिनाख्त नहीं कर सका. लोगों ने इस की सूचना पुलिस को दे दी.

सूचना मिलने पर सोजत सिटी थाना पुलिस मौके पर पहुंच गई. पुलिस ने गांव वालों की मदद से बावड़ी से लाश निकलवाई. मृतक के सिर और गले में चोटों के गंभीर घाव थे. पुलिस ने वहां मौजूद लोगों से लाश के बारे में पूछा. कुछ पता नहीं चलने पर आसपास के गांवों के लोगों को बुला कर लाश की शिनाख्त कराने का प्रयास किया गया, लेकिन कामयाबी नहीं मिली. इस पर सोजत सिटी थानाप्रभारी रामेश्वरलाल भाटी ने उच्चाधिकारियों को इस घटना की सूचना दे दी. इस से पहले 27 मई की रात को करीब 9-साढ़े 9 बजे पाली जिले में ही जैतारण थाना इलाके के चांवडिया कलां, अगेवा के पास मेगा हाइवे पर एक जलती हुई कार मिली थी. इस जलती हुई कार का वीडियो रात को ही सोशल मीडिया पर वायरल हो गया था.

पुलिस को सूचना मिली, तो मौके पर पहुंची. वहां पुलिस ने आसपास पता करने का प्रयास किया, लेकिन न तो यह पता चला कि कार किस की है और न ही इस बात की जानकारी मिली कि कार में किस ने आग लगाई थी. पुलिस को कार के आसपास कोई आदमी भी नहीं मिला. रात ज्यादा हो गई थी. इसलिए एक कांस्टेबल को मौके पर छोड़ कर जैतारण थाना पुलिस थाने लौट गई थी. जलती हुई कार मिलने के दूसरे दिन सुबह ही बावड़ी में लाश मिलने की सूचना पर सोजत सिटी डीएसपी डां. हेमंत जाखड़ और एसपी राहुल कोटोकी मौके पर पहुंचे. उन्होंने भी मौकामुआयना किया, लोगों से पूछताछ की. लाश के कपड़ों की तलाशी ली गई, लेकिन ऐसी कोई चीज नहीं मिली जिस से उस शख्स की पहचान हो पाती. अंतत: पुलिस ने लाश को सोजत अस्पताल भिजवा दिया.

पुलिस अधिकारियों को संदेह हुआ कि जलती हुई मिली कार और बावड़ी में मिली लाश का आपस में कोई संबंध हो सकता है. हालांकि इन दोनों जगहों के बीच करीब 15 किलोमीटर का फासला था. फिर भी संदेह की अपनी वजह थी. पाली जिले के पुलिस अफसर दोनों मामलों की कडि़यां जोड़ने के प्रयास में जुटे थे, इसी बीच सूचना मिली कि जोधपुर जिले के बिलाड़ा में रहने वाले वकील नारायण सिंह राठौड़ 27 मई की दोपहर से लापता हैं. इस सूचना से पुलिस को संदेह हुआ कि लाश कहीं वकील साहब की ही तो नहीं है. पाली जिले की पुलिस ने जोधपुर जिले की पुलिस को इत्तला कर वकील नारायणसिंह के परिवार वालों को सोजत सिटी बुलवाया.

दोपहर में वकील साहब के परिवार वाले सोजत सिटी पहुंच गए. पुलिस ने उन्हें सुबह चंडावल के पास छितरिया गांव की सरहद में बावड़ी में मिली लाश दिखाई. लाश देखते ही परिवार वालों ने रोनापीटना शुरू कर दिया. लाश वकील साहब की ही थी. लाश की शिनाख्त होने के बाद पुलिस ने वकील साहब के परिवार वालों को जैतारण ले जा कर वह कार दिखाई, जो एक दिन पहले रात को चांवडि़या कलां की अगेवा सरहद में मेगा हाइवे पर जलती हुई हालत में मिली थी. कार वकील साहब की ही निकली. पाली पुलिस ने जोधपुर के बिलाड़ा से आए वकील साहब के बेटे सतपाल सिंह राठौड़ से वकील साहब के लापता होने के बारे में सारा किस्सा पूछा.

सतपाल सिंह राठौड़ ने रोतेबिलखते बताया कि उन के 68 वर्षीय पिता नारायण सिंह बिलाड़ा के जानेमाने वकील रहे हैं. वकील साहब सोने का हार और अन्य भारीभरकम आभूषण पहनने के शौकीन थे. वे करीब सवा, डेढ़ किलो सोने के आभूषण पहनते थे. इसलिए उन्हें बिलाड़ा और आसपास ही नहीं जोधपुर तक के लोग ‘गोल्डन मैन’ के नाम से जानते थे.  सोने के आभूषण पहन कर वे लोगों के साथ फोटो सेशन भी कराते थे. वे फोटो सेशन का 2-4 हजार रुपया भी लेते थे.

कहां गए, वकील साहब बेटे सतपाल सिंह ने पुलिस को बताया कि उन के पिता नारायण सिंह 27 मई को दोपहर करीब एक बजे किसी पार्टी में जाने की बात कह कर घर से गए थे. वे दोपहर ढाई बजे वापस घर लौट आए थे. इस के कुछ ही देर बाद उन के पास किसी का फोन आया था. फोन आने के बाद वकील नारायण सिंह ने घर पर करीब एक किलो वजनी सोने का हार, साफे पर लगने वाली सोने की कलंगी सहित सोने के अन्य आभूषण पहने. इस के बाद दोपहर करीब 3-पौने 3 बजे वह परिवार वालों को यह कह कर घर से निकले कि किसी ने फोटो खिंचवाने के लिए बुलाया है. फोटो खिंचवा कर वापस लौट आऊंगा. वे घर से अपनी नैनो कार में गए थे.

दोपहर करीब 3 बजे घर से निकले वकील साहब जब रात तक वापस घर नहीं पहुंचे, तो परिवार वालों को चिंता हुई. चिंता होना स्वाभाविक था. ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था कि वकील साहब बिना बताए घर से बाहर रहे हों. अगर उन्हें बाहर रहना भी पड़ता था, तो परिवार वालों को इस की सूचना जरूर देते थे. उस दिन न तो वकील साहब ने कोई सूचना दी और न ही यह बता कर गए कि कहां जा रहे हैं. परिवार वालों ने उन के मोबाइल पर बात करने का प्रयास किया, लेकिन काफी प्रयासों के बाद भी बात नहीं हो सकी. वकील साहब की चिंता में परिवार वालों ने पूरी रात सोतेजागते गुजारी. चिंता इस बात की थी कि वकील साहब ने सवा-डेढ़ किलो सोने के आभूषण पहने हुए थे.

रात तो जैसेतैसे निकल गई. दूसरे दिन 28 मई को सुबह भी घर वालों को वकील साहब की कोई खैरखबर नहीं मिली. न ही उन से मोबाइल पर बात हुई. थकहार कर परिवार वालों ने सुबह ही बिलाड़ा पुलिस थाने में वकील साहब की गुमशुदगी दर्ज करा दी. इस बीच, पाली जिले से पुलिस की सूचना मिलने के बाद वकील साहब के परिवार वाले सोजत आ गए थे. लाश और कार की पहचान होने के बाद वकील साहब के बेटे सतपाल सिंह राठौड़ ने उसी दिन सोजत सिटी थाने में रिपोर्ट दर्ज करा दी. उन्होंने रिपोर्ट में कहा कि उन के पिता नारायण सिंह की हत्या लूट के मकसद से की गई थी. वे करीब सवा किलो सोने के आभूषण पहने हुए थे.

पुलिस ने सतपाल सिंह से उन के पिता की हत्या में किसी पर शक के बारे में पूछा. चूंकि सतपाल सिंह को यह पता ही नहीं था कि उन के पिता किस के बुलावे पर फोटो खिंचवाने गए थे, इसलिए उन्होंने किसी पर सीधा शक नहीं जताया, लेकिन यह जरूर बताया कि उन के पिता ने एक व्यक्ति के खिलाफ जोधपुर के बिलाड़ा थाने में जमीन को ले कर धोखाधड़ी के 2 मामले दर्ज कराए थे. सोजत पुलिस ने सतपाल सिंह से वकील साहब के बारे में और जरूरी बातें पूछीं. इस के बाद अस्पताल में शव का पोस्टमार्टम कराने के बाद उन को सौंप दिया. दोनों जगह मौके के हालात और सतपाल सिंह की ओर से सोजत थाने में दर्ज कराई गई रिपोर्ट के आधार पर यह बात साफ हो गई कि वकील साहब की हत्या उन के कीमती आभूषण लूटने के लिए की गई है.

परिचित ने ही फंसाया जाल में लूटपाट के लिए वकील की हत्या का मामला गंभीर था. इसलिए पाली के एसपी राहुल कोटोकी ने एडिशनल एसपी तेजपाल, सोजत सिटी डीएसपी डा. हेमंत जाखड़ और जैतारण डीएसपी सुरेश कुमार के नेतृत्व में एक टीम बनाई, जिस में सोजत सिटी थानाप्रभारी रामेश्वर लाल भाटी, जैतारण थानाप्रभारी सुरेश चौधरी, सायबर तथा स्पैशल टीम के साथसाथ 25 पुलिसकर्मियों को शामिल किया गया. पाली पुलिस को वकील साहब का मोबाइल न तो लाश के साथ मिला और न ही जली हुई कार में. उन के मोबाइल से हत्या का खुलासा हो सकता था. पुलिस ने सब से पहले वकील नारायण सिंह के मोबाइल की काल डिटेल्स निकलवाई. काल डिटेल्स के आधार पर पता लगाया गया कि 27 मई को वकील साहब की किनकिन लोगों से बात हुई थी.

पुलिस ने उन लोगों से पूछताछ की. इस के अलावा जोधपुर के बिलाड़ा में वकील साहब के परिचितों से भी कई महत्त्वपूर्ण जानकारियां जुटाई गईं. लोगों से की गई पूछताछ और तकनीकी सहायता से पुलिस ने दूसरे ही दिन यानी 29 मई को 3 लोगों उमेश सोनी, प्रभु पटेल और अर्जुन देवासी को गिरफ्तार कर लिया. इन में उमेश सोनी बिलाड़ा का ही रहने वाला था, जबकि प्रभु पटेल बिलाड़ा के पास हांगरों की ढीमड़ी का और अर्जुन देवासी बिलाड़ा के पास हर्ष गांव का रहने वाला था. ये तीनों दोस्त थे. इन तीनों से पुलिस की पूछताछ के बाद गोल्डनमैन वकील की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह इन के लालच के साथ विश्वासघात की भी कहानी थी.

बिलाड़ा का रहने वाला उमेश सोनी वकील नारायण सिंह का अच्छा परिचित था. अदालतों में उमेश के कुछ मुकदमे चल रहे थे, नारायण सिंह ही उस के मुकदमों की पैरवी करते थे. उमेश को वकील साहब के सोने के आभूषण पहनने के शौक से ले कर घरपरिवार की तमाम बातों की जानकारी थी. उसे यह भी पता था कि वकील साहब 4-5 हजार रुपए ले कर सोने के आभूषण पहन कर फोटो खिंचवाते हैं. ऐसे फोटो सेशन करवाने के लिए एकदो बार वह भी वकील साहब के साथ गया था. वकील साहब को सवा-डेढ़ किलो सोने के आभूषण पहने देख कर उस के मन में लालच आ गया था. सोने के उन आभूषणों की कीमत करीब 60 लाख रुपए थी. वकील साहब को सोने के आभूषण पहने देख कर उमेश भी सपने में खुद आभूषण पहने हुए देखने लगा.

अपने सपनों को पूरा करने के लिए उमेश ने अपने दोस्त प्रभु पटेल को वकील साहब के सोने के आभूषण के शौक के बारे में बताया. बिलाड़ा के पास के ही रहने वाले प्रभु पटेल को पहले से ही वकील साहब के इस शौक का पता था. टैक्सी चलाने वाला प्रभु भी वकील साहब के सोने के आभूषणों के सपने में खोया रहता था. अर्जुन इन दोनों का दोस्त था और इन के साथ ही रहता था. तीनों दोस्तों ने मिल कर वकील साहब के सोने के आभूषण हथियाने की योजना बनाई. लेकिन आभूषण हथियाना आसान काम नहीं था. कई दिन विचार करने के बाद तीनों दोस्तों ने वकील साहब को फोटो खिंचवाने के बहाने बुलाने और उन की हत्या कर सोने के आभूषण हथियाने का फैसला किया.

योजना के अनुसार, 27 मई को दोपहर में उमेश सोनी ने नारायण सिंह को फोन किया. उस ने वकील साहब से कहा कि एक आदमी उन के साथ सोना पहन कर सेल्फी लेना चाहता है. इस के बदले में वह ढाई हजार रुपए देगा. पहले से अच्छी तरह परिचित उमेश की बात पर भरोसा कर वकील नारायण सिंह ने घर से निकलवा कर 940 ग्राम सोने का बड़ा हार, 250 ग्राम वजनी सोने का दूसरा हार और 140 ग्राम वजनी सोने का पट्टा पहना. सोने के ये आभूषण पहन कर वे दोपहर करीब पौने 3 बजे घर से अपनी नैनो कार में निकले. उमेश ने फोन पर कहा था कि वह उन के घर से कुछ दूर रास्ते में मिल जाएगा. फिर साथ चलेंगे. वकील साहब के घर से निकलने के बाद कुछ ही दूरी पर उमेश सोनी मिल गया.

उस के साथ प्रभु पटेल के अलावा एक युवक और था. प्रभु पटेल को भी वकील साहब पहले से जानते थे. उमेश ने तीसरे युवक का परिचय कराते हुए वकील साहब को बताया कि यह अर्जुन देवासी है. अर्जुन का एक जानकार आदमी आप के साथ सेल्फी लेना चाहता है. परिचय कराने के बाद उमेश, प्रभु और अर्जुन वकील साहब की ही कार में बैठ गए. उमेश ने बिलाड़ा से अटबड़ा सड़क मार्ग पर रास्ते में बीयर की बोतलें खरीद ली. वकील साहब सहित चारों ने कार में बैठ कर बीयर पी. इस के बाद उमेश ने नशा होने की बात कह कर वकील साहब को कार की ड्राइविंग सीट से उठाया और खुद कार चलाने लगा. उस ने वकील साहब को आगे की सीट पर अपने पास बैठा लिया. पीछे की सीट पर प्रभु पटेल और अर्जुन देवासी बैठे थे.

बिलाड़ा से करीब 10 किलोमीटर दूर अटबड़ा के पास सड़क पर सुनसान जगह देख कर कार में पीछे बैठे प्रभु और अर्जुन ने गमछे से वकील साहब का गला दबा दिया. आगे ड्राइविंग सीट पर बैठे उमेश ने उन के दोनों हाथ पकड़ लिए. गमछे से दबा होने के कारण वकील साहब के मुंह से आवाज भी नहीं निकल सकी. कुछ देर छटपटाने के बाद उन के प्राण निकल गए. यह दोपहर करीब साढ़े 3-4 बजे के बीच की बात थी. जब तीनों को विश्वास हो गया कि वकील साहब जीवित नहीं हैं, तब उन्होंने उन के गले में पहना हार और साफे पर लगी कलंगी सहित सोने का पट्टा उतार कर अपने पास रख लिए.

अभी दिन का समय था, इसलिए लाश को ठिकाने लगाना भी मुश्किल था. इसलिए तीनों दोस्त वकील साहब की कार में उन की लाश को ले कर सड़क के किनारे पेड़ों की ओट में छिप कर खड़े रहे. शाम को जब अंधेरा होने लगा, तब कार में पड़ी वकील साहब की लाश की निगरानी के लिए अर्जुन को छोड़ कर उमेश और प्रभु किसी वाहन से बिलाड़ा आ गए. वजह यह थी कि नैनो कार में पैट्रोल कम था. बिलाड़ा से उमेश ने अपनी इंडिका कार ली. साथ ही एक जरीकेन में 5 लीटर पैट्रोल भी रख लिया. लौट कर उमेश और प्रभु वापस वहां पहुंच गए, जहां अर्जुन को छोड़ा था. तब तक शाम के करीब साढ़े 7 बज गए थे. इन लोगों ने जरीकेन से वकील साहब की कार में पैट्रोल भरा.

लाश ठिकाने लगा कर कार भी फूंकी अब उन के पास वकील साहब की कार के अलावा उमेश की कार भी थी. एक कार उमेश ने चलाई और दूसरी प्रभु ने. तीनों लोग 2 कारों से छितरिया गांव के पास बावड़ी पर पहुंचे. वहां उन्होंने वकील साहब की लाश कार से निकाल कर बावड़ी में फेंक दी. इस के बाद वे वकील साहब की कार साथ ले कर चांवडि़या-अगेवा सरहद में मेगा हाइवे पर पहुंचे. हाइवे पर सुनसान जगह देख कर उन्होंने वकील साहब की कार एक साइड रोकी और जरीकेन से पैट्रोल छिड़क कर उस में आग लगा दी. पैट्रोल की तेज लपटों से अर्जुन देवासी का मुंह और एक हाथ भी जल गया. यह बात रात करीब साढ़े 8-9 बजे की है. वकील साहब की लाश ठिकाने लगाने और उन की कार जलाने के बाद उमेश, प्रभु और अर्जुन अपने घरों के लिए चल दिए.

रास्ते में तीनों ने तय किया कि फिलहाल प्रभु इन आभूषणों को अपने घर पर रख लेगा. एकदो दिन बाद बंटवारा कर लेंगे. सारी बातें तय कर के उमेश और प्रभु ने अर्जुन को उस के गांव के बाहर छोड़ दिया. उमेश को बिलाड़ा में छोड़ कर प्रभु पटेल ने सोने के आभूषण अपने फार्म पर बने कमरे के रोशनदान में छिपा कर रख दिए. प्रभु पटेल ने दूसरे दिन सुबह उमेश सोनी की मदद से वकील साहब से लूटे 140 ग्राम वजनी सोने के पट्टे में से एक टुकड़ा तोड़ कर गला दिया. सोने का यह 46 ग्राम का टुकड़ा उस ने 29 मई को जोधपुर में एक ज्वैलर को सवा लाख रुपए में बेच दिया. पाली के सोजत सिटी थाने में वकील साहब की हत्या की रिपोर्ट दर्ज होने के बाद पुलिस ने जांचपड़ताल शुरू की, तो काल डिटेल्स के आधार पर सब से पहले उमेश सोनी को पकड़ कर पूछताछ की.

सख्ती से पूछताछ में उमेश ने सारा राज उगल दिया. बाद में उसी दिन प्रभु पटेल और अर्जुन देवासी को भी पकड़ लिया गया. पुलिस ने बाद में इन से पूछताछ के आधार पर वकील साहब से लूटे गए सारे आभूषण और उमेश सोनी की इंडिका कार बरामद कर ली. इस के अलावा प्रभु पटेल से सोना खरीदने वाले जोधपुर के बनाड़ इलाके के लक्ष्मण नगर निवासी ज्वैलर धर्मेश सोनी को भी गिरफ्तार किया गया. आरोपियों की गिरफ्तारी के बाद पुलिस ने उन के कोरोना जांच सैंपल दिलवाए. दूसरे दिन 30 मई को जांच रिपोर्ट मिली. इस में एक आरोपी उमेश सोनी पौजिटिव निकला. उस के पौजिटिव निकलने से जोधपुर के बिलाड़ा और पाली की जैतारण व सोजत सिटी थाना पुलिस सहित अधिकारियों में हड़कंप मच गया.

इस का कारण यह था कि आरोपियों को पकड़ने में तीनों ही थानों की पुलिस ने आपस में समन्वय बनाए रखा था. अधिकारियों ने भी इन से पूछताछ की थी. डाक्टरों की सलाह पर जैतारण और सोजत सिटी के डीएसपी सहित दोनों थानों के प्रभारी और करीब 20 पुलिसकर्मियों को होम क्वारेंटाइन कर दिया गया. सतर्कता के तौर पर बिलाड़ा में 49 लोगों के सैंपल लिए गए. मृतक वकील नारायण सिंह के परिवार सहित हत्या के तीनों आरोपियों के परिवारजनों को भी होम आइसोलेट कर दिया गया. बहरहाल, वकील के कातिल पकड़े गए. उन की निशानदेही पर आभूषणों की बरामदगी भी हो गई. खास बात यह रही कि वकील के बेटे ने पुलिस में दर्ज कराई रिपोर्ट में एक किलो 330 ग्राम सोने के आभूषण लूटे जाने की बात कही थी, लेकिन बरामद हुए आभूषणों का वजन करीब डेढ़ किलो निकला.

इस का कारण यह था कि वकील के बेटे को भी पिता के पहने आभूषणों का सही वजन पता नहीं था. आमतौर पर जेवर, नकदी की लूट में सारे माल की बरामदगी पुलिस के लिए टेड़ी खीर होती है, क्योंकि मुलजिम सब से पहले लूटी हुई कीमती चीजों को खुदबुर्द करते हैं. इस मामले में आरोपी 24 घंटे में ही पकड़े गए. इसलिए उन को आभूषण ठिकाने लगाने का समय नहीं मिल सका. इसी कारण सारी ज्वैलरी बरामद हो गई. सोने का जो टुकड़ा ज्वैलर को बेचा था, वह भी बरामद हो गया. सोने के आभूषणों के लालच में उमेश, प्रभु और अर्जुन ने वकील की हत्या का जो जघन्य अपराध किया, उस की सजा उन्हें कानून देगा. गोल्डनमैन की हत्या दिखावा करने वालों के लिए एक सबक है.

Murder Stories : पत्नी ने पति को थप्पड़ मारा तो गुस्साए पति ने पत्नी और उसके मामा की कर दी हत्या

Murder Stories : लगातार होने वाला अत्याचार पति का हो या पत्नी का, जीवनसाथी कब तक बरदाश्त कर सकता है. उस के अंदर पलने वाला क्रोध का ज्वालामुखी कभी न कभी फटता ही है. जयवंत नाटेकर के साथ…

6फरवरी, 2020 की बात है. दिन के करीब 11 बजे थे. महाराष्ट्र की उप राजधानी नागपुर शहर के सक्करदारा पुलिस थाने के सीनियर इंसपेक्टर अजीत सीद को एक अहम सूचना मिली. सूचना देने वाले ने फोन पर उन्हें बताया कि सुपर बाजार के दत्तात्रेय नगर स्थित देशमुख अपार्टमेंट की पहली मंजिल के फ्लैट नंबर 40 में कोई हादसा हो गया है. फ्लैट के अंदर से दुर्गंध आ रही है. सीनियर इंसपेक्टर अजीत सीद ने इस सूचना को गंभीरता से लिया और अपने सहायक सबइंसपेक्टर प्रवीण बड़े, विनोद म्हात्रे और विजय मसराम को साथ ले कर तुरंत घटनास्थल की ओर रवाना हो गए.

घटनास्थल सक्करदारा थाने से करीब एक किलोमीटर दूर था. पुलिस टीम को वहां पहुंचने में 10 मिनट का समय लगा. इस बीच यह खबर उस इलाके में आग की तरह फैल गई थी, भीड़ देख कर पुलिस टीम को समझते देर नहीं लगी कि उसे किस अपार्टमेंट में जाना है. पुलिस टीम भीड़ को हटा कर फ्लैट नंबर 40 के सामने जा पहुंची. फ्लैट के दरवाजे पर ताला लटक रहा था. पड़ोसियों ने बताया कि फ्लैट भारतीय ज्ञानपीठ प्राइमरी स्कूल की हेडमिस्ट्रेस मंजूषा नाटेकर का है, जिस में वह अपने छोटे मामा अशोक काटे के साथ रहती थीं. मंजूषा और जयवंत नाटेकर का एक बेटा है सुजय नाटेकर, जो अपनी पत्नी के साथ चंद्रपुर में रहता है.

मंजूषा नाटेकर का एक भाई राजेश खड़खड़े पास ही के मानवेड़ा परिसर के एक अपार्टमेंट में किराए पर रहता है और नौकरी करता है. फ्लैट की एक चाबी उस के पास रहती है. सूचना दे दी गई है, वह आता ही होगा. दुर्गंध चूंकि काफी तेजी थी, इसलिए पुलिस टीम ने नाक पर रूमाल बांध कर दरवाजा खोला तो अंदर का दृश्य दिल दहला देने वाला था. फ्लैट के अंदर एक नहीं 2 शव पड़े थे. एक शव मंजूषा के मामा अशोक काटे का था, जो हौल में था, जबकि दूसरा शव फ्लैट की किचन में रक्त में डूबा मंजूषा नाटेकर का था. उस का बड़ी बेरहमी से कत्ल किया गया था. कत्ल संभवत: 2 दिन पहले हुए थे. शवों में सड़न पैदा हो गई थी और दुर्गंध फैल रही थी.

सीद ने घटना की सूचना अपने वरिष्ठ अधिकारियों को दे दी. साथ ही फोरैंसिक टीम को भी मौकाएवारदात पर बुला लिया. सूचना मिलते ही पुलिस कमिश्नर डा. भूषण कुमार उपाध्याय, एडिशनल सीपी शशिकांत महावरकर, डीसीपी चिन्मय पंडित और डीसीपी (क्राइम) गजानन राजमने भी वहां आ गए. फौरेंसिक टीम का काम खत्म होने के बाद वरिष्ठ अधिकारियों ने घटनास्थल की बारीकी से जांचपड़ताल की. पड़ोसियों के बयान दर्ज किए. घटनास्थल की सारी कानूनी औपचारिकताएं पूरी कर के शवों को पोस्टमार्टम के लिए नागपुर मैडिकल कालेज भेज दिया गया. मंजूषा नाटेकर के भाई राजेश खड़खडे़ को ले कर पुलिस थाने लौट आई.

पूछताछ में राजेश खडखड़े ने दोनों हत्याओं का आरोप सीधेसीधे अपने बहनोई जयवंत नाटेकर पर लगाया. उस का कहना था कि उस के बहनोई और बहन में अकसर लड़ाईझगड़े होते थे. मंजूषा नाटेकर के पड़ोसियों ने भी पूछताछ के दौरान यही बात पुलिस को बताई थी. पड़ोसियों के अनुसार उस दिन पहले फ्लैट से तेजतेज आवाजें आती सुनाई दीं. हालांकि टीवी की तेज आवाज में बातें स्पष्ट नहीं सुनी जा सकीं. कुछ देर बाद जब टीवी की आवाज बंद हुई तो उन्होंने जयवंत नाटेकर को फ्लैट में ताला लगा कर बाहर जाते हुए देखा. शुरूआती जांचपड़ताल के बाद मंजूषा नाटेकर के पति जयवंत नाटेकर की गिरफ्तारी के बाद ही सामने आ सकती थीं.

जयवंत नाटेकर कहां होगा, इस की जानकारी किसी को नहीं थी. एक तरफ जहां इंसपेक्टर अजीत सीद अपने सहायकों के साथ मामले पर विचारविमर्श कर तफ्तीश की रूपरेखा तैयार कर रहे थे. वहीं दूसरी तरफ मामले की गंभीरता को देखते हुए सीपी डा. भूषण कुमार उपाध्याय ने तफ्तीश की जिम्मेदारी क्राइम ब्रांच के सबइंसपेक्टर राठौर, हेडकांस्टेबल आनंद जांमुले, गोविंद देशमुख्र कांस्टेबल राशिद, रोहन और संजय सोनपणे की टीम बना कर जांच शुरू कर दी. क्राइम ब्रांच की टीम ने तफ्तीश का केंद्रबिंदु उन लोगों को बनाया, जिन से जयवंत के करीबी संबंध थे. इस का नतीजा भी जल्द सामने आ गया. उस के एक दोस्त ने बताया कि जयवंत नाटेकर के पास एक मोबाइल और 2 सिम थे.

इन में से एक सिम का इस्तेमाल वह अपनी पत्नी मंजूषा से छिपा कर करता था. वह अपने बेटे और बहू के साथ अपना दुखदर्द साझा करता था. जबकि दूसरे सिम से अपना दिल बहलाने के लिए खास दोस्तों से बात कर लिया करता था. क्राइम ब्रांच को दूसरे सिम कार्ड से कामयाबी मिली, क्योंकि पहला सिम कार्ड बंद था. दूसरे सिम से जब जयवंत नाटेकर से संपर्क हुआ तो क्राइम ब्रांच की टीम ने अपना परिचय छिपा कर उस से इधरउधर की बात की. इस से उस की लोकेशन मिल गई. मोबाइल लोकेशन के आधार पर क्राइम ब्रांच ने जयवंत नाटेकर को रात 8 बजे उस समय दबोच लिया, जब वह नागपुर रेलवे स्टेशन पर ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह पर जाने के लिए अजमेर शरीफ की टिकट ले रहा था.

क्राइम ब्रांच की टीम ने जयवंत नाटेकर को गिरफ्तार कर अपने वरिष्ठ अधिकारियों के सामने खड़ा कर दिया. उस से विस्तार से पूछताछ की गई तो पता चला वह एक ऐसा पीडि़त पति था, जिस के अंदर का मर्द अचानक जाग गया था और वह उसी मर्दानगी में 2 कत्ल कर बैठा. जयवंत ने बिना किसी दबाव के अपना अपराध स्वीकार कर के पुलिस को अपने उत्पीड़न की पूरी कहानी बता दी, जो कुछ इस तरह थी—

चंद्रपुर निवासी 50 वर्षीय जयवंत नाटेकर सरल स्वभाव का व्यक्ति था. गांव के स्कूल से 10वीं जमात पास करने के बाद उसे चंद्रपुर की रेफ्रीजरेटर बनाने वाली एक कंपनी में वाहन चालक की नौकरी मिल गई. अच्छी नौकरी और वेतन होने के बाद परिवार वालों ने 1980 में उस की शादी नागपुर के भंडारा जवाहर नगर की मंजूषा खड़खड़े से कर दी. 45 वर्षीय मंजूषा खड़खड़े संपन्न परिवार की एकलौती बेटी थी. उस के 2 भाई थे संजय खड़खड़े और राजेश खड़खड़े. मंजूषा सब से छोटी थी. उस का बड़ा भाई संजय खड़खड़े अपने गांव में रह कर काश्तकारी करता था.

जबकि छोटा भाई राजेश खड़खड़े नागपुर की एक प्राइवेट कंपनी में सर्विस कर रहा था और दत्तात्रेय नगर, मानवेड़ा के एक अपार्टमेंट में किराए का फ्लैट ले कर रहता था. मंजूषा खड़खड़े जितनी स्वस्थ और सुंदर थी, उतनी ही स्मार्ट और महत्त्वाकांक्षी भी थी. जयवंत नाटेकर से शादी होने के बाद उसे अपने सारे सपने बिखरते नजर आए. यह बात जब जयवंत नाटेकर को पता चली तो उस ने मंजूषा के सपनों को मरने नहीं दिया. उस ने मंजूषा की इच्छाओं को पूरा किया और उसे वह मुकाम दिलवाया जो वह चाहती थी. लेकिन उस के मन में पति के इस सहयोग की कोई कीमत नहीं थी.

वह वैसे भी अपनी पसंद और कल्पना के अनुसार पति न पा कर दुखी थी. प्रतिष्ठित स्कूल की नौकरी पाने के बाद वह गांव छोड़ कर नागपुर के दत्तात्रेय नगर जैसे पौश इलाके में आ कर रहने लगी. मंजूषा नाटेकर और जयवंत का एक बेटा था सुजय. सरल स्वभाव का जयवंत मंजूषा की ज्यादतियों पर भी कुछ नहीं कहता था. नतीजा यह हुआ कि मंजूषा का हौसला बढ़ता गया और वह अपनी नारी मर्यादा को ही भूल गई. इस का एहसास नाटेकर को तब हुआ जब एक हादसे के चलते दिसंबर, 2000 में उस की नौकरी चली गई. पेंशन के रूप में उसे सिर्फ 2000 रुपए मिलते थे, जिस की मंजूषा की नजर में कोई अहमियत नहीं थी. मंजूषा स्कूल की हेडमास्टर थी. मानसम्मान, अच्छा वेतन और समाज में उस की काफी इज्जत थी.

लेकिन घर में वह अपने पति नाटेकर के साथ नौकरों जैसा व्यवहार करती थी. घर के सारे काम झाड़ू, बर्तन, कपड़े धोने वगैरह के काम तो जयवंत को करने ही पड़ते थे, कभीकभी वह पति से अपनी मालिश तक करवाती थी. जयवंत के न करने पर वह उसे थप्पड़ तक जड़ देती थी. इस के बावजूद भी मंजूषा का मन नहीं भरता तो वह अपने मायके वालों को बुला कर उन के सामने पति को अपमानित करती थी. मायके वाले उसी का पक्ष लेते और जयवंत को डांटतेफटकारते थे. पिता के प्रति अपनी मां और उस के मायके वालों का बर्ताव देख बेटा सुजय नाटेकर दुखी हो जाता था. वह पिता के साथ हमदर्दी रखते हुए मां को समझाने की कोशिश करता, लेकिन मां पर इस का कोई असर नहीं होता था.

इस की जगह मंजूषा कभीकभी उसे भी आडे़ हाथों लेती थी. सुजय नाटेकर जवान हो गया था. पिता के प्रति मां का व्यवहार उस से देखा नहीं जाता था. वह जिस कालेज में पढ़ता था, उसी कालेज की एक लड़की से लवमैरिज कर के अपने पुश्तैनी घर चंद्रपुर चला गया. जब कभी पिता की याद आती तो वह आ कर मिल लेता था. जब इस पर भी मां मंजूषा ने ऐतराज किया तो उस ने मां से छिपा कर पिता जयवंत को एक मोबाइल और 2 सिम ला कर दे दिए थे. जिस से चोरीछिपे पितापुत्र की बातें हो जाया करती थीं. समय अपनी गति से दौड़ रहा था. 2019 में जब मंजूषा की मां का देहांत हुआ तो वह अपने मायके गई और लौटते समय अपने मामा अशोक काटे को साथ ले आई.

पहले तो जयवंत पत्नी मंजूषा से ही परेशान था, अब उसे मंजूषा के मामा अशोक काटे से भी कोई राहत नहीं मिली. वह भी बहन के सुर से सुर मिलाने लगा. मामाभांजी के रोज के बर्ताव से जयवंत की सहनशक्ति जवाब दे गई. उस के अंदर इतना गुबार भर गया था, जो कभी भी ज्वालामुखी की तरह फट सकता था. घटना के 2 दिन पहले 3 फरवरी, 2020 को सुबहसुबह स्कूल जाते समय मंजूषा ने अपनी 4 साडि़यां अलमारी से निकाल कर जयवंत के सामने डाल दीं और धो कर प्रेस करने को कहा. जयवंत पहले से ही त्रस्त था, उस ने इस काम के लिए इनकार कर दिया.

इस पर मंजूषा ने पति के गाल पर इतने जोर से थप्पड़ मारा कि उस का पूरा शरीर झन्ना कर रह गया. थप्पड़ जड़ कर मंजूषा बड़बड़ाती हुई किचन में चली गई. जयवंत कुछ देर गाल पर हाथ रखे खड़ा रहा. जयवंत को बरदाश्त नहीं हुआ. अचानक उस का पुरुषत्व जाग उठा. टीवी की आवाज तेज कर के वह मंजूषा के पीछेपीछे किचन में गया और बदले में उस ने मंजूषा के गाल पर वैसा ही थप्पड़ जड़ दिया, जिस से मंजूषा तिलमिला कर रह गई. वह जयवंत का कालर पकड़ कर उस से उलझ गई. इसी बीच जयवंत नाटेकर ने किचन में रखा सब्जी काटने वाला चाकू उठाया और मंजूषा पर कई वार कर दिए. मंजूषा की चीख सुन कर अशोक काटे उसे बचाने के लिए जब बैडरूम से बाहर आया तो जयवंत ने उस का भी वही हाल कर दिया जो मंजूषा का किया.

दोनों बचाव के लिए चीखेचिल्लाए लेकिन उन दोनों की चीखें टीवी की तेज आवाज में दब कर रह गई थी. मंजूषा और अशोक काटे को मौत की नींद सुलाने के बाद जयवंत ने राहत की सांस ली. कपड़े बदले और फ्लैट में ताला लगा कर 2 दिनों तक अपने एक पुराने दोस्त के पास रहा. उस के बाद उस ने अपने पाप का प्रायश्चित करने के लिए अजमेर जाने का फैसला किया. लेकिन जाने से पहले वह पकड़ा गया. क्राइम ब्रांच की टीम ने अपनी तफ्तीश पूरी कर अभियुक्त जयवंत नाटेकर को थाना सक्करदारा को सौंप दिया. जहां की पुलिस ने उसे अदालत पर पेश कर के जेल भेज दिया. औरत अगर अपने ही घर में कांटे बिखेर दे तो उस के पांव कब तक सुरक्षित रह सकते हैं.

करनाल में खौफनाक वारदात : बेटे ने ड्रिल मशीन से मां बाप को मारा

Haryana Crime : एक बेटे ने इंसानियत की सभी हदें पार कर अपने ही मम्मीपापा की बेरहमी से हत्या कर दी. यह खबर जिस ने भी सुनी वह हैरान रह गया.

घटना हरियाणा (Haryana Crime) के करनाल जिले की है, जिस में एक बेटे ने प्रौपर्टी के लालच में आ कर अपने ही मम्मीपापा की ड्रिल मशीन से हत्या कर दी. बेटे ने ड्रिल मशीन से पाप के सिर और गले में सुराख कर दिए और जब इस खौफनाक मंजर को देख मम्मी चिल्लाई तो उस ने पहले मम्मी का गला दबाया और फिर ड्रिल मशीन से मम्मी के गले में भी सुराख कर दिया. मम्मी और पापा की हत्या करने के बाद उस ने दोनों लाशों को नहर में फेंक दिया.

तफ्तीश में हुआ खुलासा

पुलिस ने जब जांच की तो एक बड़ा खुलासा हुआ जिस में पता चला कि मम्मीपापा की हत्या करने से पहले बेटे क्राइम पेट्रोल और मर्डर की वैब सीरीज भी देखी थी. बेटे ने वैब सीरीज से कत्ल से ले कर बचने तक का उपाय तलाशा. हालांकि जब मम्मी इस के प्लान में शामिल नहीं हुई तो बेटे की सारी पोल खुल गई.

पुलिस तक कैसे पहुंचा मामला

हरियाणा (Haryana Crime) के करनाल जिले के गांव मेंकमालपुर रोड़ान में महेंद्र अपनी पत्नी राजबाला के साथ रहता था. 13 मार्च, से ले कर 15 मार्च, 2025 तक जब महेंद्र का घर बंद दिखा तो परिजनों को शक हुआ.

इस के बाद जब परिजनों ने दीवार पर चढ़ कर घर के अंदर देखा तो लोगों के रौंगटे खड़े हो गए. चारों तरफ खून फैला हुआ था. इस के तुरंत बाद ही पुलिस को सूचना दी गई.

पुलिस पहले तो इस मामले को लूट से जोड़ कर देख रही थी, लेकिन बाद में अंदर लाश को देख कर मामला उलझ गया. करनाल पुलिस जब जांच में लगी तो पाया कि पानीपत में 16 मार्च, 2025 को एक महिला की लाश मिली है. पुलिस को पता चला कि यह तो करनाल से गायब हुई राजबाला है.

इकबालिया बयान

बेटे हिम्मत ने पुलिस को बताया कि मैं और पापा कोर्ट में पेश हुए थे. कोर्ट में उस ने पापा को समझाने की कोशिश की, लेकिन पापा अपनी बात पर अड़े रहे. पापा ने मुझ से कहा कि मैं तुझे अपनी प्रौपर्टी में से बिलकुल हिस्सा नहीं दूंगा. इसी बात से नाराज हिम्मत ने तय कर लिया कि अब पापा को रास्ते से हटाना ही होगा.

कोर्ट से लौटने के बाद हिम्मत पेशी स्कूल चला गया और वहां से एक मिस्त्री के पास पहुंच कर एक ड्रिल मशीन ले आया. उस ने उस से कहा कि यह मशीन कल वापस कर दूंगा, आज कुछ काम है.

वारदात की रात

रात को हिम्मत दीवार फांद कर घर के अंदर घुस आया. उस ने देखा कि पापा फर्राटा पंखा लगा कर सोए हुए हैं. महेंद्र ने पंखे का तार हटाया और ड्रिल मशीन के तार बिजली बोर्ड के शाकेट में लगा दिए. इस के बाद पापा के पास जा कर उस ने पहले उन का मुंह दबाया जिस से वह चिल्ला न सकें. इस के बाद उस ने ड्रिल मशीन से पापा के सिर और गले में सुराख कर दिए.

ड्रिल मशीन की आवाज सुन कर मम्मी राजबाला की आंखें खुल गईं और जब वह कमरे में पहुंची तो देखा कि बेटे के हाथ में ड्रिल मशीन है और वह उसे अपने पापा के गले पर चला रहा है.

हैरान रह गई मां

यह सब देख राजबाला हैरान रह गई और जोर से चिल्लाने लगी. लेकिन हिम्मत ने मम्मी का मुंह दबा दिया, जिस से कि वह जोर से चिल्ला न सके. हिम्मत ने मम्मी से कहा कि मेरा पाप गंदा था इसलिए मैं ने उन का कत्ल कर दिया.

इसी बात को ले कर राजबाला जोरजोर से चिल्लाने लगी. इस से हिम्मत डर गया और सोचने लगा कि मम्मी ऐसे जोरजोर से चिल्लाएगी तो आसपड़ोस में सभी को पता चल जाएगा.

इस के बाद हिम्मत ने मम्मी का भी गला घोंट दिया और जब वह बेहोश हो गई, तो ड्रिल मशीन से उस के सिर में सुराख कर दिया.

हत्या के बाद

मम्मी और पापा की हत्या करने बाद हिम्मत ने घर का मेन गेट अंदर से खोला और बाहर खङी कार को ले आया. इस के बाद उस ने लाश को दरी में लपेट दिया.

कार को अंदर ला कर उस ने पहले कार में रजाई बिछा दी जिस से खून न टपके. इस के बाद कार में पापा महेंद्र की लाश को रखा और उस के ऊपर मम्मी की लाश को भी रख दिया.
इस के बाद हिम्मत ने घर के गेट पर ताला लगा दिया जिस से सभी को लगे कि पतिपत्नी घर से बाहर गए हुए हैं. फिर उस ने मम्मी और पाप की लाश नहर में ठिकाने लगा दीं.

साजिश में मम्मी को शामिल करना चाहता था हिम्मत

हिम्मत ने पापा का कत्ल करने से पहले क्राइम पैट्रोल और मर्डर से जुड़ी वैब सीरीज को देखा, जिस से कि वह पकड़ा न जाए. जब हिम्मत पापा का कत्ल करने के लिए गया, तब उस ने अपना मोबाइल किराए के मकान पर ही छोड़ दिया था ताकि उस की लोकेशन ट्रेस न हो.

कैसे पकड़ा गया कातिल बेटा

पुलिस ने जांच करते हुए सीसीटीवी फुटेज खंगालनी शुरू की. इसी दौरान हिम्मत घर के आसपास नजर आया, जिस से पुलिस को लगा कि कातिल बेटा ही है.

पुलिस ने जब हिम्मत से सख्ती से पूछताछ की तो उस ने अपना जुर्म कुबूल कर लिया. (Haryana Crime) खबर लिखे जाने तक आरोपी हिम्मत से पूछताछ जारी थी.पुलिस के द्वारा अभी और मां के कातिल बेटे से पूछताछ जारी थी. पुलिस महेंद्र की लाश वरामद नहीं कर पाई थी.

Aligarh News : पत्नी के समलैंगिक संबंधों के कारण में मारा गया पति

Aligarh News : 4 बच्चों की मां रूबी ने रजनी से बने समलैंगिक संबंधों के लिए अपने पति भूरी सिंह को रजनी के साथ मिल कर ठिकाने लगा दिया. बच्चों की तो छोडि़ए, अगर वह अपने और रजनी के भविष्य के बारे में सोचती तो…

जिला अलीगढ़, उत्तर प्रदेश. तारीख 10 मार्च, 2020. अलीगढ़ के थाना गांधीपार्क क्षेत्र की कुंवरनगर कालोनी. उस दिन होली थी. कुंवरनगर कालोनी के भूरी सिंह ने दोस्तों और परिचितों के साथ जम कर होली खेली. होली खेलने के बाद वह नहाधो कर सो गया. भूरी सिंह सटरिंग का काम करता था. शाम को सो कर उठने के बाद वह अपनी पत्नी रूबी से यह कह कर कि ठेकेदार से अपने रुपए लेने जा रहा है, घर से निकल गया. जब वह देर रात तक घर वापस नहीं आया तो पत्नी को उस की चिंता हुई. रात गहराने लगी तो रूबी ने किराएदार हरिओम की पत्नी रितू के मोबाइल से पति को फोन किया, लेकिन उस का फोन रिसीव नहीं हुआ.

दूसरे दिन 11 मार्च की सुबह 7 बजे लोगों ने कालोनी से निकलने वाले नाले में एक लाश उल्टी पड़ी देखी. इस जानकारी से कालोनी में सनसनी फैल गई. आसपास के लोग जमा हो गए. इसी बीच किसी ने पुलिस को सूचना दे दी. कुछ ही देर में थाना गांधी पार्क के थानाप्रभारी सुधीर धामा पुलिस टीम के साथ वहां पहुंच गए. इसी बीच भूरी सिंह की पत्नी रूबी को किसी ने नाले में लाश मिलने की जानकारी दी. रूबी तत्काल वहां पहुंच गई. थानाप्रभारी ने लाश को नाले से बाहर निकलवाया. मृतक की शिनाख्त घटनास्थल पर पहुंची उस की पत्नी रूबी व छोटे भाई किशन लाल गोस्वामी ने भूरी सिंह गोस्वामी के रूप में की.

थानाप्रभारी ने इस घटना की जानकारी अपने उच्चाधिकारियों को दे दी थी. कुछ ही देर में एसपी (सिटी) अभिषेक कुमार फोरैंसिक टीम के साथ मौकाएवारदात पर पहुंच गए. पति की लाश देख रूबी बिलखबिलख कर रो रही थी. मोहल्ले की महिलाओं ने उसे किसी तरह संभाला. पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया, फिर फोरैंसिक टीम ने भी जांच कर साक्ष्य जुटाए.  मृतक के मुंह पर टेप लगा था और उस के हाथपैर रस्सी से बंधे हुए थे. जांच के दौरान फोरैंसिक टीम ने देखा कि मृतक भूरी की गरदन पर चोट का निशान है. भूरी सिंह की हत्या किस ने और क्यों की, इस का जवाब किसी के पास नहीं था. सवाल यह भी था कि हत्यारे हत्या कर लाश को मृतक के छोटे भाई के घर के पास नाले में क्यों फेंक गए थे?

पुलिस का अनुमान था कि हत्यारे भूरी सिंह की हत्या किसी अन्य स्थान पर करने के बाद लाश को उस के छोटे भाई किशन गोस्वामी के घर के पास फेंक गए होंगे. होली का त्यौहार होने के कारण आवागमन कम होने से हत्यारों को लाश फेंकते किसी ने नहीं देखा होगा. पुलिस को मृतक की जेब से उस का मोबाइल भी मिल गया था. थानाप्रभारी ने रूबी से उस के पति के बारे में पूछताछ की. रूबी ने बताया, ‘मंगलवार रात 9 बजे पति के मोबाइल पर पेमेंट ले जाने के लिए ठेकेदार का फोन आया था. इस के बाद वह घर से निकल गए और फिर नहीं लौटे. काफी रात होने पर उन्हें फोन किया, लेकिन काल रिसीव नहीं हुई थी.’ परिवार वालों को यह जानकारी नहीं थी कि भूरी सिंह किस ठेकेदार के पास रुपए लेने गया था. पुलिस ने मौके की काररवाई निपटाने के बाद लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया.

दूसरे दिन पोस्टमार्टम की रिपोर्ट आई तो पता चला कि भूरी सिंह की हत्या तार अथवा रस्सी से गला घोटने से हुई थी. मृतक के भाई किशनलाल गोस्वामी की तहरीर पर पुलिस ने मृतक भूरी सिंह की पत्नी रूबी, उस के किराएदार डब्बू, डब्बू की पत्नी रजनी और दूसरे किराएदार हरिओम और डब्बू के एक दोस्त आसिफ के विरुद्ध हत्या का केस दर्ज कर लिया. रिपोर्ट में आरोप लगाया गया कि मृतक भूरी सिंह की पत्नी रूबी के किराएदार डब्बू से अवैध संबंध थे. इस का भूरी सिंह विरोध करता था. इस बात को ले कर रूबी और भूरी सिंह में आए दिन झगड़ा होता रहता था. घटना से 10 दिन पहले भी रूबी व किराएदार डब्बू ने मिल कर भूरी सिंह को पीटा था.

घटना वाली रात डब्बू ने अपने दोस्त आसिफ को घर बुलाया और पांचों नामजदों ने मिल कर भूरी की हत्या कर दी. हत्या के बाद लाश को मकान से कुछ दूर नाले में फेंक दिया. सुबह रूबी ने अपने आप को साफसुथरा दिखाने के लिए पुलिस को कपोलकल्पित कहानी सुनाई थी कि भूरी सिंह ठेकेदार से पेमेंट लेने गया था, जो लौट कर घर नहीं आया. पुलिस ने हत्या का मुकदमा दर्ज करने के बाद जांच शुरू कर दी. सीओ (द्वितीय) पंकज श्रीवास्तव ने बताया कि मृतक की लाश से उस का मोबाइल बरामद हुआ था, जिस की मदद से कुछ तथ्य सामने आए. पुलिस केस की गहनता से जांच कर रही थी. नतीजतन पुलिस ने घटना के दूसरे दिन ही इस हत्या की गुत्थी सुलझा ली.

दरअसल, पुलिस ने भूरी सिंह की हत्या के आरोप में मृतक की पत्नी रूबी व उस के किराएदार डब्बू की पत्नी रजनी को हिरासत में ले कर पूछताछ की. शुरुआती पूछताछ में दोनों पुलिस को बरगलाने की कोशिश करने लगीं. लेकिन जब सख्ती हुई तो दोनों एकदूसरे को देख कर टूट गईं और अपना जुर्म कुबूल कर लिया. 12 मार्च को एसपी (सिटी) अभिषेक कुमार ने पुलिस लाइन में प्रैसवार्ता के दौरान जो कुछ बताया, वह चौंकाने वाला था. दरअसल, सभी समझ रहे थे कि भूरी सिंह की हत्या उस की पत्नी रूबी के किराएदार डब्बू से अवैध संबंधों के बीच रोड़ा बनने के चलते की गई थी, लेकिन हकीकत कुछ और ही थी, जिसे सुन कर पुलिस ही नहीं सभी हक्केबक्के रह गए.

भूरी सिंह की हत्या का कारण था 2 महिलाओं के समलैंगिक संबंध. रूबी और रजनी ने अपना जुर्म कबूल कर लिया. दोनों ने इस हत्याकांड के पीछे जो कहानी बताई, वह चौंकाने वाली थी—

भूरी सिंह की हत्या पूरी प्लानिंग के तहत की गई थी. इन दोनों महिलाओं ने ही उस की हत्या की पटकथा एक माह पहले लिख दी थी, जिसे अंजाम तक पहुंचाया होली के दिन गया. भूरी सिंह की पहली पत्नी की मृत्यु के बाद उस का विवाह पत्नी की बहन यानी साली रूबी से करा दिया गया था. भूरी सिंह दूसरी पत्नी रूबी से उम्र में 11 साल बड़ा था. भूरी सिंह के पहली पत्नी से 3 बेटे व 1 बेटी थी. भूरी सिंह सीधेसरल स्वभाव का था. वह केवल अपने काम से काम रखता था. ऐसे व्यक्ति का सीधापन कभीकभी उस के लिए ही घातक साबित हो जाता है. भूरी सिंह जैसा था, उस की पत्नी रूबी ठीक उस के विपरीत थी. वह काफी तेज और चंचल स्वभाव की थी.

घर वालों ने उस की शादी भूरी सिंह से इसलिए की थी ताकि बहन के बच्चों की देखभाल ठीक से हो जाए. वह मजबूरी में भूरी सिंह का साथ निभा रही थी. अपनी ओर भूरी सिंह द्वारा ध्यान न देने से जवान रूबी की रातें करवटें बदलते कटती थीं. भूरी सिंह अपने बड़े भाई के मकान में किराए पर रहता था. पड़ोस में ही रजनी भी किराए के मकान में रहती थी. दोनों हमउम्र थीं. एकदूसरे के यहां आनेजाने के दौरान जानेअनजाने सोशल मीडिया पर अश्लील फोटो, वीडियो देखतेदेखते दोनों में नजदीकियां हो गईं, फिर दोस्ती गहरा गई.

दोनों के बीच समलैंगिक संबंध बन गए और एकदूसरे से पतिपत्नी की तरह प्यार करने लगीं. रूबी पत्नी तो रजनी पति का रिश्ता निभाने लगी. दोनों सोशल मीडिया की इस कदर मुरीद थीं कि अपना ज्यादातर समय मोबाइल पर बिताती थीं. दोनों अपने इस रिश्ते के वीडियो तैयार कर के टिकटौक पर भी अपलोड करती थीं. उन के कई वीडियो वायरल हो चुके थे. डब्बू और रजनी की शादी को 5 साल हो गए थे. उन का कोई बच्चा नहीं था. इसलिए भी दोनों महिलाओं के रिश्ते और गहरे हो गए. बाद में दोनों ने साथ रहने की कसमें खाते हुए कभी जुदा न होने का फैसला लिया.

इस बीच भूरी सिंह ने अपना मकान बनवा लिया था. रूबी और रजनी के बीच बने संबंध इस कदर प्रगाढ़ हो चुके थे कि घटना से एक साल पहले पति भूरी सिंह से जिद कर के रूबी ने अपने मकान की ऊपरी मंजिल पर एक कमरा और बनवा लिया था. फिर रजनी को उस के पति डब्बू के साथ किराएदार बना कर रख लिया, ताकि उन के संबंधों के बारे में किसी को पता न चल सके. एक ही मकान में रहने से अब दोनों महिलाएं बिना किसी डर के आपस में मिल लेती थीं. भूरी सिंह सटरिंग के काम के लिए सुबह ही निकल जाता था और देर शाम लौटता था. इस के चलते दोनों सहेलियों में पिछले 2 सालों में गहरे समलैंगिक संबंध बन गए थे. दोनों एकदूसरे से बिना मिले नहीं रह पाती थीं.

इन अनैतिक संबंधों को बनाए रखने के लिए दोनों काफी गोपनीयता बरतती थीं. फिर भी उन की पोल खुल ही गई. एक माह पहले ही भूरी सिंह को अपनी पत्नी रूबी  और किराएदार रजनी के बीच चल रहे अनैतिक संबंधों का पता चल गया. दोनों महिलाओं के बीच चल रहे प्रेम संबंधों का पता चलने के बाद भूरी सिंह के होश उड़ गए. वह परेशान रहने लगा. उस ने इन अनैतिक संबंधों को गलत बताते हुए विरोध किया. उस ने पत्नी रूबी को समझाया और रजनी से दूर रहने को कहा. इन्हीं संबंधों को ले कर दोनों में विवाद होने लगा. भूरी सिंह ने रूबी को सुधर जाने की हिदायत देते हुए कहा कि वह अपने मकान में रजनी को किराएदार नहीं रखेगा.

दूसरे दिन भूरी सिंह के काम पर जाने के बाद रूबी ने यह बात रजनी को बताई. भूरी सिंह उन के प्रेम संबंधों में बाधक बन रहा था, इस से दोनों परेशान हो गईं. काफी विचारविमर्श के बाद दोनों ने राह के रोड़े भूरी सिंह को रास्ते से हटाने का फैसला कर लिया. इस के बाद भी दोनों के संबंध चलते रहे. हां, अब दोनों थोड़ी होशियारी से मिलती थीं. होली वाले दिन शाम को रूबी और रजनी ने भूरी सिंह को जम कर शराब पिलाई. इस के चलते भूरी सिंह नशे में बेसुध हो गया, तो दोनों ने उस के हाथपैर रस्सी से बांधे और मुंह पर टेप लगाने के बाद रस्सी से गला घोंट कर हत्या कर दी.

रात होने पर दोनों ने लाश को पड़ोस में रहने वाले छोटे भाई किशनलाल के घर के पास नाले में फेंक दिया ताकि शक भाई  के ऊपर जाए. बुधवार को कुंवर नगर कालोनी में नाले में उस का शव मिला. पुलिस द्वारा पूछताछ करने पर रूबी ने अफवाह फैला दी कि उस का पति भूरी सिंह ठेकेदार से रुपए लेने की बात कह कर घर से निकला था, लेकिन देर रात तक जब घर वापस नहीं आया, तब उस ने किराएदार हरिओम की पत्नी रितू के फोन से काल थी. जबकि हकीकत वह स्वयं जानती थी. पुलिस ने इस हत्याकांड का खुलासा करने के साथ ही दोनों महिलाओं की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त रस्सी व टेप बरामद कर लिया. दोनों महिलाओं को न्यायालय में पेश करने के बाद जेल भेज दिया गया.

हालांकि भारतीय दंड संहिता की धारा-377 को वैध कर दिया गया है यानी समलैंगिकता अब हमारे देश में कानूनन अपराध नहीं है, अर्थात आपसी सहमति से 2 व्यस्कों के बीच समलैंगिक संबंध अब अपराध नहीं रहा. लेकिन हमारे देश में अभी तक इसे पूरी तरह अपनाया नहीं गया है. इसी के चलते लोग अपने संबंधों को समाज में स्थापित करने के लिए अपराध की राह पर चल पड़ते हैं. भूरी सिंह हत्याकांड के पीछे भी यही कारण प्रमुख रहा. दोनों महिलाओं के अनैतिक संबंधों के चलते उन के परिवार उजड़ गए. भूरी सिंह की मौत के बाद उस के चारों अबोध बच्चे अनाथ हो गए.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Suicide Stories : पति के शक के कारण महिला सिपाही ने की आत्महत्या

शकरूपी फांस बड़ी ही खतरनाक होती है. अगर समय रहते इस का समाधान न किया जाए तो यह हंसतीखेलती गृहस्थी को तबाह कर देती है. सिपाही शालू गिरि का पति राहुल अगर इस बात को समझ जाता तो शालू को यह खतरनाक कदम उठाने के लिए मजबूर न होना पड़ता…

उस दिन जून 2020 की 2 तारीख थी. सुबह के 8 बज रहे थे. औरैया जिले की विधूना कोतवाली के प्रभारी निरीक्षक विनोद कुमार शुक्ला अपने कक्ष में आ कर बैठे ही थे कि उन के फोन पर काल आई. उन्होंने काल रिसीव की और बोले, ‘‘मैं विधूना कोतवाली से इंसपेक्टर वी.के. शुक्ला बोल रहा हूं. बताइए, आप ने फोन क्यों किया?’’

‘‘जय हिंद सर, मैं लखनऊ के कैसर बाग थाने से सिपाही सपना गिरि बोल रही हूं. मुझे आप की मदद चाहिए.’’

‘‘कैसी मदद? बताइए, मैं आप की हरसंभव मदद को तैयार हूं.’’ इंसपेक्टर विनोद कुमार शुक्ला ने आश्वासन दिया.

‘‘सर, आप के थाने में हमारी छोटी बहन शालू गिरि सिपाही पद पर तैनात है. बीती रात 11 बजे हमारी उस से बात हुई थी. तब वह परेशान लग रही थी और बहकीबहकी बातें कर रही थी. तब मैं ने उसे समझाया था और सो जाने को कहा था. आज मैं सुबह से उस का फोन ट्राई कर रही हूं. लेकिन वह फोेन उठा ही नहीं रही है. सर, किसी तरह आप उस से मेरी बात करा दीजिए.’’

‘‘ठीक है सपना, मैं जल्द ही शालू से तुम्हारी बात कराता हूं.’’ श्री शुक्ला ने सपना को आश्वस्त किया. शालू गिरि नई रंगरूट महिला सिपाही थी. उस की तैनाती 5 महीने पहले ही विधूना थाने में हुई थी. वह तेजतर्रार थी और मुस्तैदी से ड्यूटी करती थी. बीती रात 8 बजे वह ड्यूटी समाप्त कर अपने रूम पर गई थी. इंसपेक्टर विनोद कुमार शुक्ल ने शालू से बात करने के लिए कई बार उसे फोन किया, लेकिन वह काल रिसीव ही नहीं कर रही थी. अत: उन की चिंता बढ़ गई. उन्होंने थाने में तैनात दूसरी महिला सिपाही जीतू कुमारी को बुलाया और पूछा, ‘‘क्या तुम्हें पता है कि शालू गिरि कहां रहती है?’’

‘‘हां सर, पता है. वह विधूना कस्बे के किशोरगंज मोहल्ले में तरुण सिंह के मकान में किराए पर रहती है.’’

‘‘तुम किसी सिपाही के साथ उस के रूम पर जा कर देखो कि वह फोन रिसीव क्यों नहीं कर रही है. कहीं वह बीमार तो नही है?’’ इंसपेक्टर शुक्ला ने कहा.

‘‘ठीक है, सर.’’ कह कर जीतू कुमारी सिपाही अजय सिंह के साथ शालू के रूम पर पहुंची. उस के रूम का दरवाजा अंदर से बंद था और कूलर चल रहा था. कमरे के अंदर की लाइट भी जल रही थी. जीतू कुमारी ने दरवाजा पीटना शुरू किया तथा शालू…शालू कह कर आवाज भी लगाई. लेकिन अंदर से कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई. घबराई जीतू कुमारी ने थानाप्रभारी विनोद कुमार शुक्ला को सूचना दी तो वह पुलिस टीम के साथ मौके पर आ गए. फंदे पर झूलती मिली शालू श्री शुक्ला ने भी दरवाजा थपथपाया तथा शालू को पुकारा. पर अंदर से कोई हलचल नहीं हुई. किसी अनहोनी की आशंका को भांप कर थानाप्रभारी विनोद कुमार शुक्ला ने सिपाहियों को शालू के रूम का दरवाजा तोड़ने का आदेश दिया.

आदेश पाते ही 2 सिपाहियों ने दरवाजा तोड़ दिया. इस के बाद थानाप्रभारी रूम में गए तो वह चौंक गए. रूम के अंदर महिला सिपाही शालू का शव फांसी के फंदे पर झूल रहा था. उस ने दुपट्टे का फंदा गले में डाल कर पंखे से लटक कर मौत को गले लगाया था. थानाप्रभारी विनोद कुमार शुक्ल ने सब से पहले मृतका की बड़ी बहन सपना को खबर दी और उसे तत्काल विधूना थाने आने को कहा. इस के बाद उन्होंने पुलिस अधिकारियों को सूचना दी और फिर घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण करने लगे. कमरे के अंदर एक प्लास्टिक का स्टूल गिरा पड़ा था. शायद इसी स्टूल पर चढ़ कर शालू ने फांसी का फंदा तैयार किया था और गले में फंदा डाल कर स्टूल को पैर से गिरा दिया था. रूम का बाकी सब सामान अपनी जगह था. रूम के एक ओर पड़ी छोटी टेबल पर पैक खाना रखा था, जिसे उलझन के कारण शायद उस ने नहीं खाया था.

निरीक्षण के दौरान थानाप्रभारी विनोद कुमार शुक्ला को कमरे के अंदर से एक डायरी तथा मोबाइल फोन बरामद हुआ, जिसे उन्होंने सुरक्षित कर लिया. इस के बाद उन्होेंने शालू के शव को फांसी के फंदे से नीचे उतरवाया. चूंकि विभागीय मामला था और अतिसंवेदनशील भी, अत: सूचना मिलते ही औरैया की एसपी सुश्री सुनीति, एएसपी कमलेश कुमार दीक्षित तथा सीओ (विधूना) मुकेश प्रताप सिंह घटनास्थल पर आ गए. पुलिस अधिकारियों ने मौके पर फोरैंसिक टीम को भी बुलवा लिया. पुलिस अधिकारियों ने जहां घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया, वहीं फोरैंसिक टीम ने भी जांच कर साक्ष्य जुटाए.

घटनास्थल से बरामद शालू की डायरी की पुलिस अधिकारियों ने जांच की तो उन्हें डायरी में 3 पन्ने का सुसाइड नोट मिला. डायरी के एक पन्ने पर शालू ने लिखा था, ‘मेरे प्यारे मांपिताजी, आप ने पालपोस कर मुझे बड़ा किया. पढ़ायालिखाया और प्रदेश सुरक्षा को समर्पित किया. आप के इस बड़प्पन को मैं कभी नहीं भुला सकती. लेकिन मैं अपनी ही जिंदगी से हार गई. मैं ने बहुत कोशिश की कि परेशानियों से उबर जाऊं, पर कामयाब नहीं हुई. इसलिए अपनी जिंदगी से परेशान हो कर आत्महत्या कर रही हूं. प्लीज किसी को परेशान न किया जाए.’

डायरी के दूसरे पन्ने पर शालू गिरी ने प्रभु (ईश्वर) को संबोधित करते हुए पत्र लिखा था और रास्ता सुझाने की बात लिखी थी. उस ने लिखा—

‘हे प्रभु, मुझे रास्ता दिखाओ. बचपन से ले कर आज तक मैं कभी फेल नहीं हुई. फिर मुझे वहां फेल क्यों कर रहे हो, जहां पास होने की सब से ज्यादा जरूरत है. मैं लाइफ में कभी खुश नहीं रह पाऊंगी. मुझे अपने पास बुला लो.’ पुलिस तलाशने लगी आत्महत्या की वजह डायरी के तीसरे पन्ने पर शालू गिरि ने मरने से पहले घर वालों के नाम एक अन्य पत्र लिखा था, जिस में उस ने सिपाही आकाश का जिक्र किया था. उस ने लिखा था— मेरे मरने का दोषी आकाश को न ठहराया जाए. वह सिर्फ मेरा दोस्त था. दोस्ती के नाते हम एकदूसरे को पसंद करते थे. उस की बातों में जादू था. जिस से मुझे सुकून मिलता था. उस ने मुझे समझाने की भरपूर कोशिश की. लेकिन मैं अपनी परेशानियों से हार गई, इसलिए हताश जिंदगी का अंत कर रही हूं.’

पुलिस अधिकारी सुसाइड नोट पढ़ कर इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि सिपाही शालू गिरि ने परेशानियों के चलते आत्महत्या की है. पर वे परेशानियां क्या थीं, जिस से उसे इतना बड़ा कदम उठाना पड़ा. इस का खुलासा उस ने पत्रों में नहीं किया था. इस का खुलासा तभी हो सकता था, जब उस के घर वाले मौके पर आते. पुलिस रिकौर्ड के अनुसार शालू गिरि बागपत जिले के बालौनी थानांतर्गत लतीफपुर दत्त नगर गांव की रहने वाली थी. विधूना थाने में उस की पोेस्टिंग दिसंबर माह में हुई थी. एक माह पहले ही उस की शादी हुई थी. विधूना कस्बे में वह किराए के रूम में रहती थी.

एएसपी कमलेश कुमार दीक्षित ने मृतका शालू का मोबाइल फोन खंगाला तो उस में स्वीट होम, हसबैंड, सिस्टर तथा आकाश के नाम से फोन नंबर सेव थे, जो उस के घर वालों के थे. इन नंबरों पर काल कर केश्री दीक्षित ने घर वालों को घटना की जानकारी दी तथा शीघ्र ही विधूना थाने आने को कहा. शालू ने मौत से पहले अपनी बहन सपना से बात की थी. घटनास्थल पर मकान मालिक तरुण सिंह भी मौजूद था. सीओ मुकेश प्रताप सिंह ने जब उस से पूछताछ की तो उस ने बताया कि सिपाही शालू गिरि ने 2 हफ्ते पहले ही रूम किराए पर लिया था.

दूसरे रूम में पब्लिक डिग्री कालेज विधूना के निदेशक मनोज कुमार सिंह चौहान रहते हैं. उन का परिवार कानपुर में रहता है. कल वह परिवार से मिलने कानपुर चले गए थे. मकान मालिक ने बताया कि शालू गिरि बातचीत में सरल तथा हंसमुख स्वभाव की थी. उस ने आत्महत्या किन परिस्थितियों में की, उसे इस की जानकारी नहीं है. पति करता था शक चूंकि आत्महत्या का यह मामला एक सिपाही का था. अत: पुलिस अधिकारियों ने नायब तहसीलदार को भी सूचना भेज दी थी. सूचना पा कर नायब तहसीलदार वंदना कुशवाहा घटनास्थल पर आ गई थीं. उन्होंने घटनास्थल का निरीक्षण किया फिर पुलिस अधिकारियों से घटना के संबंध में जानकारी हासिल की.

उस के बाद उन्हीं की मौजूदगी में इंस्पेक्टर विनोद कुमार शुक्ला ने सिपाही शालू गिरि के शव का पंचनामा भरा. पंचनामे पर नायब तहसीलदार वंदना कुशवाहा ने हस्ताक्षर किए. उस के बाद शव पोस्टमार्टम हेतु औरैया के जिला अस्पताल भिजवा दिया. देर शाम मृतका शालू गिरि के मांबाप, भाईबहन तथा पति थाना विधूना आ गए. उस के बाद तो थाने में कोहराम मच गया. मां सुमित्रा देवी, पिता राजेंद्र गिरि तथा बहन स्वाति व सपना दहाड़ मार कर रो रही थीं. थानाप्रभारी ने उन्हें धैर्य बंधाया. फिर थानाप्रभारी उन सब को उस रूम में ले गए, जहां शालू ने आत्महत्या की थी.

वहां एक बार फिर कोहराम मच गया. थानाप्रभारी विनोद कुमार शुक्ला ने आत्महत्या का कारण जानने के लिए सब से पहले मृतका शालू की मां सुमित्रा देवी से पूछताछ की. सुमित्रा देवी ने बताया कि शालू उन की लाडली बेटी थी. वह बेहद खुशमिजाज थी. अभी एक महीना पहले ही उस की शादी पड़ोस में रहने वाले इलम चंद्र के बेटे राहुल से हुई थी. राहुल शालू को खुश नहीं रखता था, जिस से वह परेशान रहने लगी थी. राहुल, शालू पर शक भी करता था. वह उसे मानसिक तौर पर भी टौर्चर करता था. उस के कारण ही शालू ने आत्महत्या की है.

पिता राजेंद्र गिरि ने बताया कि वह किसान हैं. बेटियों को पढ़ाने व उन का भविष्य बनाने के लिए उन्होंने सब कुछ दांव पर लगाया. शालू सिपाही बनी तो बेहद खुशी हुई. इस के बाद शालू की मरजी से उस का विवाह राहुल के साथ कर दिया. लेकिन शादी के बाद उस की खुशी गायब हो गई थी. पहली जून सोमवार को शालू की बात उस की मां सुमित्रा से दिन में ढाई बजे हुई थी. तब वह परेशान थी और जिंदगी से ऊबने की बात कर रही थी. तब हम दोनों ने उसे समझाया था, और जिंदगी को निराशा से आशा में बदलने की बात कही थी. लेकिन उस ने रात में आत्महत्या कर ली.

शालू की बड़ी बहन सपना, जो लखनऊ के कैसर बाग थाने में सिपाही है, ने बताया कि ट्रेनिंग के बाद जब शालू की पहली पोस्टिंग विधूना थाने में हुई तो वह बेहद खुश थी. सप्ताह में एकदो बार उस की उस से बात जरूर होती थी. शादी के पहले वह बेहद खुश रहती थी. हंसहंस कर बतियाती थी और चुहलबाजी भी करती थी. लेकिन शादी के बाद वह गुमसुम रहने लगी थी. उस ने फोन पर बात करना भी बंद कर दिया था. जब कभी बात होती तो कहती कि वह अपनी जिंदगी से खुश नहीं है. जी चाहता है जिंदगी खत्म कर लूं. शायद शालू अपने पति राहुल से खुश नहीं थी. क्योंकि वह शालू पर शक करता था. सिपाही आकाश को ले कर राहुल के मन में गलत धारणा घर कर गई थी.

आकाश को ले कर ही राहुल उसे मानसिक तौर पर परेशान करता था. जबकि शालू और सिपाही आकाश के बीच सिर्फ दोस्ती थी. दोनों एकदूसरे के व्यक्तित्व से प्रभावित थे और आमनासामना होने पर हंसबोल लेते थे. सपना ने बताया कि बीती रात 11 बजे कई बार नंबर मिलाने के बाद उस की शालू से बात हुई थी. तब वह बहकीबहकी बातें कर रही थी. बात करतेकरते उस ने फोन डिसकनेक्ट कर दिया था. उस के बाद जब सुबह उस ने फोन मिलाया तो शालू फोन रिसीव ही नहीं कर रही थी. तब घबरा कर मैं ने आप को फोन किया था और शालू से बात कराने को कहा था. लेकिन कुछ देर बाद आप ने सूचना दी थी कि शालू ने आत्महत्या कर ली है.

पत्नी की मौत की खबर पा कर राहुल भी अपने पिता इलम चंद्र के साथ थाना विधूना पहुंचा था. थानाप्रभारी विनोद कुमार शुक्ला ने जब राहुल से पूछताछ की तो उस ने बताया कि उस ने शालू की रजामंदी से उस के साथ प्रेमविवाह किया था. शादी के बाद उसे पता चला कि शालू की दोस्ती किसी आकाश नाम के सिपाही से है. वह मोबाइल फोन पर उस से बतियाती है. आकाश को ले कर उस ने शालू से टोकाटाकी की थी. इस से वह उस से नाराज रहने लगी थी. पर वह आत्महत्या जैसा कदम उठा लेगी, ऐसा तो उस ने कभी सोचा नहीं था.

शालू कौन थी? उस ने आत्महत्या क्यों और किन परिस्थितियों में की? यह सब जानने के लिए हम पाठकों को उस के अतीत की ओर ले चलते हैं. उत्तर प्रदेश के बागपत जिले के बालौनी थाना अंतर्गत एक गांव है- लतीफपुर दत्त नगर. इसी गांव में राजेंद्र गिरि अपने परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में पत्नी सुमित्रा गिरि के अलावा 3 बेटियां सपना, शालू, स्वाति तथा एक बेटा राजीव था. राजेंद्र गिरि किसान थे. कृषि उपज से ही वह अपने परिवार का भरणपोषण करते थे. खेती के काम में उन का बेटा राजीव भी मदद करता था. उन्होंने अपने सभी बच्चों को उन की इच्छा के अनुसार पढ़ाया.

राजेंद्र की बड़ी बेटी सपना पुलिस विभाग में नौकरी करना चाहती थी. उन्हीं दिनों पुलिस विभाग में महिला सिपाही के पद पर भरती हो रही थी. सपना ने प्रयास किया तो उस का चयन हो गया. उस की ट्रेनिंग सीतापुर में हुई. बाद में उस की पोस्टिंग लखनऊ के कैसर बाग थाने में हो गई. सपना से छोटी शालू थी. अपनी बड़ी बहन सपना की तरह वह भी पुलिस में भरती होना चाहती थी. इस के लिए उस ने पढ़ाई के अलावा अपने शरीर को चुस्तदुरूस्त बनाने के लिए सुबहशाम दौड़ लगानी शुरू कर दी. राजेंद्र गिरि अपनी लाडली बेटी का सपना पूरा करना चाहते थे, सो वह उसे भरपूर सहयोग कर रहे थे. शालू खूबसूरत थी. उस ने जब 17 बसंत पार किए तो उस की सुंदरता में और भी निखार आ गया था.

इसी दौरान राहुल गिरि से उस की दोस्ती हो गई. राहुल शालू के पड़ोस में ही रहता था और किसान इलम चंद्र का बेटा था. शालू के पिता राजेंद्र गिरि तथा राहुल के पिता इलम चंद्र की आपस में खूब पटती थी. राजेंद्र जहां अपनी बेटियों का भविष्य बनाने में जुटे थे, वही इलम चंद्र अपने बेटे राहुल का भविष्य बनाने को प्रयासरत थे. राहुल उन का होनहार बेटा था. उस ने चौधरी चरण सिंह यूनिवर्सिटी से बीए की डिग्री हासिल करने के बाद बीएड की परीक्षा पास कर ली थी और शिक्षक पात्रता परीक्षा (टीईटी) पास कर शिक्षक बनना चाहता था.

शालू और राहुल एक ही गली में खेलकूद कर जवान हुए थे. दोनों में एकदूसरे के प्रति आकर्षण था. यह आकर्षण धीरेधीरे प्यार में बदल गया था. प्यार परवान चढ़ा तो एक रोज राहुल ने प्यार का इजहार कर दिया, ‘‘शालू, मैं तुम से बहुत प्यार करता हूं. मैं ने तुम्हें अपना बनाने का सपना संजोया है. क्या मेरा यह सपना पूरा होगा?’’

‘‘तुम्हारा सपना जरूर पूरा होगा. पर अभी नहीं. अभी समय है अपना कैरियर बनाने का. तुम्हारा सपना है शिक्षक बनने का और मेरा सपना है पुलिस में नौकरी करने का. अपनाअपना सपना पूरा करो फिर हम जीवनसाथी बन जाएंगे. हम दोनों मजे से जीवन गुजारेंगे.’’

शालू की यह बात राहुल को पसंद आ गई. इस के बाद दोनों अपना कैरियर बनाने में जुट गए. कालांतर मे राहुल ने टीईटी की परीक्षा पास की, उस के बाद उस का चयन शिक्षक पद पर हो गया. वह फैजाबाद के प्राथमिक विद्यालय में पढ़ाने लगा. इधर शालू का भी चयन पुलिस विभाग में महिला सिपाही के पद पर जनवरी 2019 में हो गया. उस की ट्रेनिंग इटावा में हुई. उस के बाद 16 दिसंबर, 2019 को शालू की पहली पोस्टिंग औरैया जिले के विधूना कोतवाली में हो गई. थाने में ड्यूटी के दौरान शालू की मुलाकात सिपाही आकाश से हुई. कुछ दिनों बाद ही दोनों गहरे दोस्त बन गए.

आकाश हर तरह से शालू की मदद करने लगा. दोनों के मन में एकदूसरे के प्रति चाहत बढ़ गई. 20 मार्च, 2020 को शालू गिरि एक सप्ताह की छुट्टी पर अपने गांव लतीफपुर दत्त नगर आई. पर 24 मार्च की रात से देश में लौकडाउन घोषित हो गया, जिस से शालू भी लौकडाउन में फंस गई. शालू का प्रेमी शिक्षक राहुल भी फैजाबाद से घर आया था. वह भी लौकडाउन में गांव में ही फंस गया था. सादगी से हुई लवमैरिज  गांव में रहते शालू और राहुल का आमनासामना हुआ तो दोनों का प्यार उमड़ पड़ा. अब तक दोनों अपना कैरियर बना चुके थे. अत: जब राहुल ने शालू के समक्ष शादी का प्रस्ताव रखा तो शालू ने सहर्ष स्वीकार कर लिया. इधर शालू जब लौकडाउन में फंस गई तो पुलिस विभाग ने उसे बालौनी थाने में जौइन करा दिया.

गांव से थाना 9 किलोमीटर दूर था और घर से रोज थाने आनाजाना मुश्किल था. अत: शालू ने बालौनी थाने के पास ही कमरा किराए पर ले लिया और वहीं रह कर ड्यूटी करने लगी. इसी कमरे में आ कर राहुल उस से मिलने लगा. कुछ दिन बाद शालू और राहुल ने अपने घर वालों से शादी की इच्छा जताई तो दोनों के घर वालों ने उन की बात मान ली. दरअसल शालू की मां सुमित्रा देवी को शालू और सिपाही आकाश के बीच बढ़ती दोस्ती की बात पता चल गई थी. वह शालू की शादी गैर बिरादरी में नहीं करना चाहती थीं, सो वह जातिबिरादरी के युवक राहुल से शादी को राजी हो गई थीं.

दोनों परिवारों की रजामंदी के बाद 26 अप्रैल, 2020 को लौकडाउन के दौरान ही शालू और राहुल ने एकदूसरे के गले में वर माला पहना कर प्रेम विवाह कर लिया. दोनों परिवारों की मौजूदगी में प्रेम विवाह बालौनी के उसी कमरे में संपन्न हुआ, जिस में शालू रहती थी. शादी के बाद राहुल और शालू पतिपत्नी की तरह उसी कमरे में रहने लगे. पतिपत्नी के बीच दरार तब पड़ी जब सिपाही आकाश का नाम शालू की जुबान पर आया. दरअसल शालू देर रात तक सिपाही आकाश से बतियाती थी. पूछने पर वह आकाश को अपना दोस्त बताती थी. आकाश को ले कर राहुल के मन में शंका पैदा हो गई, जिस से वह उस के चरित्र पर शक करने लगा. शक के कारण दोनों के बीच तनाव की स्थिति रहने लगी.

3 मई, 2020 को बालौनी थाने से शालू को रिलीव कर दिया गया और 5 मई को उस ने वापस विधूना कोतवाली में ड्यूटी जौइन कर ली. इस के बाद उस ने विधूना कस्बे के किशोरगंज मोहल्ले में तरुण सिंह के मकान में किराए पर रूम ले लिया और रहने लगी. शालू शादी कर जब से वापस थाने आई थी तब से वह गुमसुम रहने लगी थी. लेकिन वह अपना दर्द किसी से बयां नहीं करती थी. इस दर्द का कारण उस का पति राहुल ही था. वह जब भी शालू से फोन पर बात करता था. उस के चरित्र पर उंगली उठाता था. इधर जब से शालू ब्याह रचा कर वापस लौटी थी, तब से उस का सिपाही दोस्त आकाश भी उस से कतराने लगा था. उस में अब न पहले जैसी दोस्ती थी और न ही प्यारसम्मान. वह अब दोजख में फंस गई थी.

एक ओर उस का पति मानसिक चोट पहुंचा रहा था, उस के चरित्र पर शक कर रहा था, तो दूसरी ओर सिपाही दोस्त आकाश भी उसे पीड़ा पहुंचा रहा था. ऐसे में शालू परेशान हो उठी. आखिर में उस ने हताश जिंदगी का अंत करने का निश्चय कर लिया. पहली जून, 2020 को शालू ड्यूटी गई और रात 9 बजे वापस अपने रूम पर आई. उस रोज भी वह परेशान थी और निराशा उसे घेरे थी. रात 11 बजे बड़ी बहन सपना का फोन आया तो उस ने उस से बहकीबहकी बातें कीं. फिर फोन डिसकनेक्ट कर दिया.  उस के बाद उस ने सिपाही आकाश को फोन किया, लेकिन उस ने फोन रिसीव ही नहीं किया. इस के बाद शालू ने अपनी डायरी के 3 पन्नों पर सुसाइड नोट लिखा, फिर रात लगभग 12 बजे फांसी के फंदे पर झूल गई.

घटना की जानकारी तब हुई जब सपना ने सुबह विधूना थानाप्रभारी विनोद कुमार शुक्ला के मोबाइल पर जानकारी दी और शालू से बात कराने का आग्रह किया. इस के बाद विनोद कुमार शुक्ला जब शालू के रूम पर पहुंचे, तब शालू फांसी के फंदे पर झूलती मिली. उन्होंने शव को कब्जे में ले कर जांच शुरू की तो शालू की हताश जिंदगी की व्यथा सामने आई. चूकि शालू के पति राहुल के खिलाफ शालू के घर वालों ने कोई रिपोर्ट दर्ज नहीं कराई थी, अत: विधूना पुलिस ने इस प्रकरण को बंद कर दिया था.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित