UP News : 10 लाख रुपए के लिए बचपन के दोस्त का किया कत्ल

UP News :  दोस्ती में एक विश्वास होता है, भरोसा होता है. लेकिन शैलेश प्रजापति और अर्श गुप्ता ने पैसे के लिए उस विश्वास की धज्जियां उड़ा दीं, जिस की वजह से विनय…

19 मार्च, 2021 की रात 10 बजे शीला देवी अपने देवर आनंद प्रजापति के साथ जनता नगर चौकी पहुंचीं. उस समय इंचार्ज ए.के. सिंह चौकी पर मौजूद थे. उन्होंने शीला देवी को बदहवास देखा, तो पूछा, ‘‘क्या बात है, तुम घबराई हुई क्यों हो? कोई गंभीर बात है क्या?’’

‘‘हां सर. हमें किसी अनहोनी की आशंका है.’’

‘‘कैसी अनहोनी? साफसाफ पूरी बात बताओ.’’

‘‘सर, दरअसल बात यह है कि रात 8 बजे मेरा बेटा शैलेश, उस का दोस्त अर्श गुप्ता व विनय घर पर नीचे कमरे में शराब पी रहे थे. कुछ देर बाद कमरे से चीखनेचिल्लाने की आवाजें आईं. फिर वे लोग बाइक से कहीं चले गए.

‘‘उन के जाने के बाद मैं कमरे में गई, तो वहां खून से सनी चादर देखी. अनहोनी की आशंका से मैं घबरा गई. मैं ने इस की जानकारी पड़ोस में रहने वाले अपने देवर आनंद को दी, फिर उन के साथ सूचना देने आप के पास आ गई. आप मेरी मदद करें.’’

शीला देवी की बात सुनकर ए.के. सिंह को लगा कि जरूर कोई अनहोनी घटना घटित हुई है. उन्होंने यह सूचना बर्रा थानाप्रभारी हरमीत सिंह को दी फिर 2 सिपाहियों के साथ शीला देवी के बर्रा भाग 8 स्थित मकान पर पहुंच गए. उन के पहुंचने के चंद मिनट बाद ही थानाप्रभारी हरमीत सिंह भी आ गए. हरमीत सिंह ने ए.के. सिंह के साथ कमरे का निरीक्षण किया तो सन्न रह गए. कमरे के फर्श पर खून पड़ा था और पलंग पर बिछी चादर खून से तरबतर थी. कमरे का सामान भी अस्तव्यस्त था. खून की बूंदें कमरे के बाहर गली तक टपकती गई थीं.

निरीक्षण के बाद हरमीत सिंह ने अनुमान लगाया कि कमरे के अंदर कत्ल जैसी वारदात हुई है या फिर गंभीर रूप से कोई घायल हुआ है. शैलेश और उस का दोस्त या तो लाश को ठिकाने लगाने गए हैं या फिर अस्पताल गए हैं. कहीं भी गए हों, वे लौट कर घर जरूर आएंगे. अत: उन्होंने घर के आसपास पुलिस का पहरा लगा दिया तथा खुद भी निगरानी में लग गए. रात लगभग डेढ़ बजे शैलेश और उस का दोस्त अर्श गुप्ता वापस घर आए तो पुिलस ने उन्हें दबोच लिया और थाना बर्रा ले आए. दोनों के हाथ और कपड़ों पर खून लगा था. इंसपेक्टर हरमीत सिंह ने पूछा, ‘‘तुम दोनों ने किस का कत्ल किया है और लाश कहां है?’’

शैलेश कुछ क्षण मौन रहा फिर बोला, ‘‘साहब, मैं ने अपने बचपन के दोस्त विनय प्रभाकर का कत्ल किया है. वह बर्रा भाग दो के मनोहर नगर में रामजानकी मंदिर के पास रहता था. उस की लाश को मैं ने अर्श की मदद से रिंद नदी में फेंक दिया है. पैट्रोल खत्म हो जाने की वजह से हम ने विनय की मोटरसाइकिल खाड़ेपुर-फत्तेपुर मोड़ पर खड़ा कर दी और वापस लौट आए.’’

‘‘तुम ने अपने दोस्त का कत्ल क्यों किया?’’ थानाप्रभारी हरमीत सिंह ने शैलेश से पूछा. इस सवाल पर शैलेश काफी देर तक हरमीत सिंह को गुमराह करता रहा. पहले वह बोला, ‘‘साहब, नशे में गलती हो गई. हम ने उस का कत्ल कर दिया.’’

फिर बताया कि उस के मोबाइल फोन में उस की महिला मित्र की कुछ आपत्तिजनक फोटो थीं. उन फोटो को विनय ने धोखे से अपने मोबाइल फोन में ट्रांसफर कर लिया था. वह उन फोटो को सोशल मीडिया पर वायरल करने की धमकी दे कर ब्लैकमेल कर रहा था, इसलिए हम ने उसे मार डाला. लेकिन थानाप्रभारी हरमीत सिंह को उस की इन दोनों बातों पर यकीन नहीं हुआ. सच्चाई उगलवाने के लिए उन्होंने सख्ती की तो दोनों टूट गए. फिर उन्होंने बताया कि उन्होंने 10 लाख रुपए की फिरौती मांगने के लिए विनय की हत्या की योजना बनाई थी. कुछ माह पहले संजीत हत्याकांड की तरह शव को ठिकाने लगाने के बाद उसी के मोबाइल फोन से उस के घर वालों को फोन कर फिरौती मांगने की योजना थी.

उस ने दौलत की चाहत में दोस्त की हत्या की थी. लेकिन फिरौती मांगने के पहले ही वे पकड़े गए. शैलेश व अर्श की जामातलाशी में उन के पास से 3 मोबाइल फोन मिले, जिस में एक मृतक विनय का था तथा बाकी 2 शैलेश व अर्श के थे. उन के पास एक पर्स भी बरामद हुआ जिस में मृतक का फोटो, आधार कार्ड तथा कुछ रुपए थे. बरामद पर्स मृतक विनय प्रभाकर का था. शैलेश व अर्श गुप्ता की निशानदेही पर पुलिस ने हत्या में प्रयुक्त आलाकत्ल बांका तथा लाश ठिकाने लगाने में इस्तेमाल मोटरसाइकिल बरामद कर ली. बांका उस ने अपने कमरे में छिपा दिया था और पैट्रोल खत्म होने से उस ने मोटरसाइकिल खाड़ेपुर मोड़ पर खड़ी कर दी थी.

फिरौती और हत्या के इस मामले में थानाप्रभारी हरमीत सिंह कोई कोताही नहीं बरतना चाहते थे. क्योंकि इस के पहले संजीत अपहरण कांड में बर्रा पुलिस गच्चा खा चुकी थी. अपहर्त्ताओं ने फिरौती की रकम भी ले ली थी और उस की हत्या भी कर दी थी. इस मामले में लापरवाही बरतने में एसपी व डीएसपी सहित 5 पुलिसकर्मियों को बर्खास्त कर दिया गया था. अत: उन्होंने घटना की जानकारी पुलिस अधिकारियों को दी. सूचना पा कर रात 3 बजे एसपी (साउथ) दीपक भूकर तथा डीएसपी विकास पांडेय थाना बर्रा पहुंच गए. उन्होंने घटना के संबंध में गिरफ्तार किए गए शैलेश व अर्श गुप्ता से विस्तार से पूछताछ की.

फिर दोनों को साथ ले कर रिंद नदी के पुल पर पहुंचे. इस के बाद कातिलों की निशानदेही पर नदी किनारे पड़ा विनय प्रभाकर का शव बरामद कर लिया. विनय की हत्या बड़ी निर्दयतापूर्वक की गई थी. उस का गला धारदार हथियार से काटा गया था, जिस से सांस की नली कट गई थी और उस की मौत हो गई थी. मृतक विनय की उम्र 26 वर्ष के आसपास थी और उस का शरीर हृष्टपुष्ट था. 20 मार्च की सुबह 5 बजे बर्रा थाने के 2 सिपाही मृतक विनय के घर पहुंचे और उस की हत्या की खबर घर वालों को दी. खबर पाते ही घर व मोहल्ले में सनसनी फैल गई. घर वाले रिंद नदी के पुल पर पहुंचे.

वहां विनय का शव देख कर मां विमला तथा बहन रीता बिलख पड़ीं. पिता रामऔतार प्रभाकर तथा भाई पवन की आंखों से भी अश्रुधारा बह निकली. पुलिस अधिकारियों ने उन्हे धैर्य बंधाया. पवन ने एसपी दीपक भूकर को बताया कल शाम साढ़े 7 बजे किसी का फोन आने पर उस का भाई विनय यह कह कर अपनी पल्सर मोटरसाइकिल से घर से निकला था कि अपने दोस्त से मिलने जा रहा है. उस के बाद वह घर नहीं लौटा. रात भर हम लोग उस के घर वापस आने का इंतजार करते रहे. उस का फोन भी बंद था. सुबह 2 सिपाही घर आए. उन्होंने विनय की हत्या की सूचना दी. तब हम लोग यहां आए. लेकिन समझ में नहीं आ रहा कि विनय की हत्या किस ने और क्यों की?

‘‘तुम्हारे भाई की हत्या किसी और ने नहीं, उस के बचपन के दोस्त शैलेश प्रजापति व उस के साथी अर्श गुप्ता ने की है. वह तुम लोगों से फिरौती के 10 लाख रुपए वसूलना चाहते थे. लेकिन शैलेश की मां ने ही उस का भांडा फोड़ दिया और दोनों पकड़े गए.’’

यह जानकारी पा कर पवन व उस के घर वाले अवाक रह गए. क्योंकि वे सपने में भी नहीं सोच सकते थे कि शैलेश ऐसा विश्वासघात कर सकता है. निरीक्षण व पूछताछ के बाद पुलिस अधिकारियों ने शव को पोस्टमार्टम हाउस हैलट अस्पताल भिजवा दिया. इस के बाद वह शैलेश के उस कमरे में पहुंचे, जहां विनय का कत्ल किया गया था. पुलिस अधिकारियों ने मौके पर फोरैंसिक टीम को भी बुलवा लिया. पुलिस अधिकारियों ने जहां घटनास्थल का निरीक्षण किया, वहीं फोरैंसिक टीम ने भी बेंजाडीन टेस्ट कर साक्ष्य जुटाए. चूंकि आरोपियों ने हत्या का जुर्म कबूल कर लिया था और आलाकत्ल बांका भी बरामद करा दिया था, अत: थानाप्रभारी हरमीत सिंह ने मृतक के भाई पवन को वादी बना कर भादंवि की धारा 302/201 तथा एससी/एसटी ऐक्ट के तहत शैलेश प्रजापति तथा अर्श गुप्ता के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली.

उन्हें न्यायसम्मत गिरफ्तार कर लिया गया. पुलिस पूछताछ में दौलत की चाहत में दोस्त की हत्या की सनसनीखेज घटना का खुलासा हुआ. कानपुर शहर का एक बड़ी आबादी वाला क्षेत्र है-बर्रा. इस क्षेत्र के बड़ा होने से इसे कई भागों में बांटा गया है. रामऔतार प्रभाकर अपने परिवार के साथ इसी बर्रा क्षेत्र के भाग 2 में मनोहरनगर में जानकी मंदिर के पास रहते थे. उन के परिवार में पत्नी विमला के अलावा 2 बेटे पवन कुमार, विनय कुमार तथा बेटी रीता कुमारी थी. रामऔतार प्रभाकर आर्डिनैंस फैक्ट्री में काम करते थे. किंतु अब रिटायर हो चुके थे. उन की आर्थिक स्थिति मजबूत थी.

फैक्ट्री में रामऔतार प्रभाकर के साथ सोमनाथ प्रजापति काम करते थे. सोमनाथ भी बर्रा भाग 8 में रहते थे. उन के परिवार में पत्नी शीला देवी के अलावा एकलौता बेटा शैलेश था. सोमनाथ भी रिटायर हो चुके थे. सोमनाथ बीमार रहते थे. उन्हें सुनाई भी कम देता था और दिखाई भी. उन की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी. रामऔतार और सोमनाथ इस के पहले अर्मापुर स्थित फैक्ट्री की कालोनी में रहते थे. 3 साल पहले दोनों ने बर्रा क्षेत्र में जमीन खरीद ली थी और अपनेअपने मकान बना कर रहने लगे थे. मकान बदलने के बावजूद दोनों की दोस्ती में कमी नहीं आई थी. दोनों परिवार के लोगों का एकदूसरे के घर आनाजाना था.

रामऔतार का बेटा विनय और सोमनाथ का बेटा शैलेश बचपन के दोस्त थे. दोनों एकदूसरे के घर आतेजाते थे. विनय ने हाईस्कूल पास करने के बाद आईटीआई से मशीनिस्ट का कोर्स किया था. वह नौकरी की तलाश में था. जबकि शैलेश ड्राइवर बन गया था. वह बुकिंग की कार चलाता था. शैलेश का एक अन्य दोस्त अर्श गुप्ता था. वह फरनीचर कारीगर था और गुजैनी गांव में रहता था. अर्श और शैलेश शराब के शौकीन थे. अकसर दोनों साथ पीते थे और लंबीलंबी डींग हांकते थे. उन दोनों ने विनय को भी शराब पीना सिखा दिया था. अब हर रविवार को शैलेश के घर शराब पार्टी होती थी. तीनों बारीबारी से पार्टी का खर्चा उठाते थे.

एक शाम खानेपीने के दौरान विनय ने शैलेश व अर्श को बताया कि उस की बहन रीता की शादी तय हो गई है. 27 अप्रैल को बारात आएगी. शादी में लगभग 10-12 लाख रुपया खर्च होगा. पिता व भाई ने रुपयों का इंतजाम कर लिया है. शादी की तैयारियां भी शुरू हो गई हैं. शैलेश व अर्श मामूली कमाने वाले युवक थे. वह शार्टकट से लखपति बनना चाहते थे. इस के लिए शैलेश उरई में पान मसाला का कारोबार करना चाहता था. उरई में वह जगह भी देख आया था. लेकिन कारोबार के लिए उस के पास पैसा नहीं था. पैसा कहां से और कैसे आए, इस के लिए शैलेश और अर्श ने सिर से सिर जोड़ कर विचारविमर्श किया तो उन्हें विनय याद आया.

विनय ने बताया था कि उस के यहां बहन की शादी है और घर वालों ने 10-12 लाख रुपए का इंतजाम किया है. दौलत की चाहत में शैलेश व अर्श ने दोस्त के साथ छल करने और फिरौती के रूप में 10 लाख रुपया वसूलने की योजना बनाई. संजीत हत्याकांड दोनों के जेहन में था. उसी तर्ज पर उन दोनों ने विनय की हत्या कर के उस के घर वालों से फिरौती वसूलने की योजना बनाई. योजना के तहत 19 मार्च, 2021 की रात पौने 8 बजे शैलेश ने अर्श के मोबाइल से विनय प्रभाकर के मोबाइल पर काल की और पार्टी के लिए घर बुलाया. विनय की 5 दिन पहले ही लोहिया फैक्ट्री में नौकरी लगी थी. फैक्ट्री से वह साढ़े 7 बजे घर लौटा था कि 15 मिनट बाद शैलेश का फोन आ गया. पार्टी की बात सुन कर वह शैलेश के घर जाने को राजी हो गया.

रात 8 बजे विनय अपनी पल्सर मोटरसाइकिल से बर्रा भाग 8 स्थित शैलेश के घर पहुंच गया. उस समय कमरे में शैलेश व अर्श गुप्ता थे और पार्टी का पूरा इंतजाम था. इस के बाद तीनों ने मिल कर खूब शराब पी. विनय जब नशे में हो गया तो योजना के तहत अर्श व शैलेश ने उसे दबोच लिया और उस की पिटाई करने लगे. विनय ने जब खुद को जाल में फंसा देखा तो वह भी भिड़ गया. कमरे से चीखनेचिल्लाने की आवाजें आने लगीं. इसी बीच शैलेश ने कमरे में छिपा कर रखा बांका निकाला और विनय की गरदन पर वार कर दिया. विनय का गला कट गया और वह फर्श पर गिर पड़ा.

इस के बाद अर्श ने विनय को दबोचा और शैलेश ने उस की गरदन पर 2-3 वार और किए. जिस से विनय की गरदन आधी से ज्यादा कट गई और उस की मौत हो गई. हत्या करने के बाद उन दोनों ने शव को तोड़मरोड़ कर चादर व कंबल में लपेटा और फिर विनय की मोटरसाइकिल पर रख कर रिंद नदी में फेंक आए. वापस लौटते समय उन की बाइक का पैट्रोल खत्म हो गया, इसलिए उन्होंने बाइक को खाड़ेपुर मोड़ पर खड़ा कर दिया. फिर पैदल ही घर आ गए. घर पर उन के स्वागत के लिए बर्रा पुलिस खड़ी थी, जिस से वे पकड़े गए. दरअसल, शैलेश की मां शीला ने ही कमरे में खून देख कर पुलिस को सूचना दी थी, जिस से पुलिस आ गई थी.

21 मार्च, 2021 को थाना बर्रा पुलिस ने आरोपी शैलेश प्रजापति व अर्श गुप्ता को कानपुर कोर्ट में मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया, जहां से उन दोनों को जिला जेल भेज दिया गया. UP News

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Noida News : प्यार में फंसाया फिर किया अपहरण और मांगी 70 लाख की फिरौती

Noida News : गौरव हलधर डाक्टरी की पढ़ाई करतेकरते प्रीति मेहरा के जाल में ऐसा फंसा कि जान के लाले पड़ गए. डा. प्रीति को गौरव को रंगीन सपने दिखाने की जिम्मेदारी उस के ही साथी डा. अभिषेक ने सौंपी थी. भला हो नोएडा एसटीएफ का जिस ने समय रहते…

एसटीएफ औफिस नोएडा में एसपी कुलदीप नारायण सिंह डीएसपी विनोद सिंह सिरोही के साथ बैठे किसी का बेसब्री से इंतजार कर रहे थे. तभी अचानक दरवाजा खुला और सामने वर्दी पर 3 स्टार लगाए एक इंसपेक्टर प्रकट हुए. उन्होंने अंदर आने की इजाजत लेते हुए पूछा, ‘‘मे आई कम इन सर.’’

‘‘इंसपेक्टर सुधीर…’’ कुलदीप सिंह ने सवालिया नजरों से आगंतुक की तरफ देखते हुए पूछा.

‘‘यस सर.’’

‘‘आओ सुधीर, हम लोग आप का ही इंतजार कर रहे थे.’’ एसपी कुलदीप सिंह ने सामने बैठे विनोद सिरोही का परिचय कराते हुए कहा,  ‘‘ये हैं हमारे डीएसपी विनोद सिरोही. आप के केस को यही लीड करेंगे. जो भी इनपुट है आप इन से शेयर करो फिर देखते हैं क्या करना है.’’

कुछ देर तक उन सब के बीच बातें होती रहीं. उस के बाद कुलदीप सिंह अपनी कुरसी से खड़े होते हुए बोले, ‘‘विनोद, मैं एक जरूरी मीटिंग के लिए मेरठ जा रहा हूं. आप दोनों केस के बारे में डिस्कस करो. हम लोग लेट नाइट मिलते हैं.’’

इस बीच उन्होंने एसटीएफ के एएसपी राजकुमार मिश्रा को भी बुलवा लिया था. कुलदीप सिंह ने उन्हें निर्देश दिया कि गौरव अपहरण कांड में अपहर्त्ताओं को पकड़ने में वह इस टीम का मार्गदर्शन करें. एसपी के जाते ही वे एक बार फिर बातों में मशगूल हो गए. सुधीर कुमार सिंह डीएसपी विनोद सिरोही और एएसपी मिश्रा को उस केस के बारे में हर छोटीबड़ी बात बताने लगे, जिस के कारण उन्हें पिछले 24 घंटे में यूपी के गोंडा से ले कर दिल्ली के बाद नोएडा में स्पैशल टास्क फोर्स के औफिस का रुख करना पड़ा था. इस से 2 दिन पहले 19 जनवरी, 2021 की बात है. उत्तर प्रदेश के गोंडा जिले के एसपी शैलेश पांडे के औफिस में सन्नाटा पसरा हुआ था. क्योंकि मामला बेहद गंभीर था और पेचीदा भी.

पड़ोसी जिले बहराइच के पयागपुर थाना क्षेत्र के काशीजोत की सत्संग नगर कालोनी के रहने वाले डा. निखिल हलधर का बेटा गौरव हलधर गोंडा के हारीपुर स्थित एससीपीएम कालेज में बीएएमएस प्रथम वर्ष का छात्र था. वह कालेज के हौस्टल में रहता था. गौरव 18 जनवरी की शाम तकरीबन 4 बजे से गायब था. इस के बाद गौरव को न तो हौस्टल में देखा गया न ही कालेज में. 18 जनवरी की रात को गौरव के पिता डा. निखिल हलधर के मोबाइल फोन पर रात करीब 10 बजे एक काल आई. काल उन्हीं के बेटे के फोन से थी, लेकिन फोन पर उन का बेटा गौरव नहीं था.

फोन करने वाले ने बताया कि उस ने गौरव का अपहरण कर लिया है. गौरव की रिहाई के लिए आप को 70 लाख रुपए की फिरौती देनी होगी. जल्द पैसों का इंतजाम कर लें, वह उन्हें बाद में फोन करेगा. डा. निखिल हलधर ने कालबैक किया तो फोन गौरव ने नहीं, बल्कि उसी शख्स ने उठाया, जिस ने थोड़ी देर पहले बात की थी. डा. निखिल ने बेटे से बात कराने के लिए कहा तो उस ने उन्हें डांटते हुए कहा, ‘‘डाक्टर, लगता है सीधी तरह से कही गई बात तेरी समझ में नहीं आती. तू क्या समझ रहा है कि हम तुझ से मजाक कर रहे हैं? अभी तेरे बेटे की लेटेस्ट फोटो वाट्सऐप कर रहा हूं देख लेना उस की क्या हालत है.

और हां, एक बात कान खोल कर सुन ले, यकीन करना है या नहीं ये तुझे देखना है. यह समझ लेना कि पैसे का इंतजाम जल्द नहीं किया तो बेटा गया तेरे हाथ से. ज्यादा टाइम नहीं है अपने पास.’’

अभी तक इस बात को मजाक समझ रहे निखिल हलधर समझ गए कि उस ने जो कुछ कहा, सच है. कुछ देर बाद उन के वाट्सऐप पर गौरव की फोटो आ गई, जिस में वह बेहोशी की हालत में था. जैसे ही परिवार को इस बात का पता चला कि गौरव का अपहरण हो गया है तो सब हतप्रभ रह गए. निखिल हलधर संयुक्त परिवार में रहते थे. उन के पूरे घर में चिंता का माहौल बन गया. बात फैली तो डा. निखिल के घर उन के रिश्तेदारों और परिचितों का हुजूम लगना शुरू हो गया. डा. निखिल हलधर शहर के जानेमाने फिजिशियन थे, शहर के तमाम प्रभावशाली लोग उन्हें जानते थे. उन्होंने शहर के एसपी डा. विपिन कुमार मिश्रा से बात की.

उन्होंने बताया कि गौरव गोंडा में पढ़ता था और घटना वहीं घटी है, इसलिए वह तुरंत गोंडा जा कर वहां के एसपी से मिलें. डा. निखिल हलधर रात को ही अपने कुछ परिचितों के साथ गोंडा रवाना हो गए. 19 जनवरी की सुबह वह गोंडा के एसपी शैलेश पांडे से मिले. शैलेश पांडे को पहले ही डा. निखिल हलधर के बेटे गौरव के अपहरण की जानकारी एसपी बहराइच से मिल चुकी थी. डा. निखिल हलधर ने शैलेश पांडे को शुरू से अब तक की पूरी बात बता दी. एसपी पांडे ने परसपुर थाने के इंचार्ज सुधीर कुमार सिंह को अपने औफिस में बुलवा लिया था. क्योंकि गौरव जिस एससीपीएम मैडिकल कालेज में पढ़ता था, वह परसपुर थाना क्षेत्र में था.

सारी बात जानने के बाद एसपी शैलेश पांडे ने कोतवाली प्रभारी आलोक राव, सर्विलांस टीम के इंचार्ज हृदय दीक्षित तथा स्वाट टीम के प्रभारी अतुल चतुर्वेदी के साथ हैडकांस्टेबल श्रीनाथ शुक्ल, अजीत सिंह, राजेंद्र , कांस्टेबल अमित, राजेंद्र, अरविंद व राजू सिंह की एक टीम गठित कर के उन्हें जल्द से गौरव हलधर को बरामद करने के काम पर लगा दिया. एसपी पांडे ने टीम का नेतृत्व एएसपी को सौंप दिया. पुलिस टीम तत्काल सुरागरसी में लग गई. पुलिस टीमें सब से पहले गौरव के कालेज पहुंची, जहां उस के सहपाठियों तथा हौस्टल में छात्रों के अलावा कर्मचारियों से जानकारी हासिल की गई. नहीं मिली कोई जानकारी मगर गौरव के बारे में पुलिस को कालेज से कोई खास जानकारी नहीं मिल सकी.

इंसपेक्टर सुधीर सिंह डा. निखिल हलधर के साथ परसपुर थाने पहुंचे और उन्होंने निखिल हलधर की शिकायत के आधार पर 19 जनवरी, 2021 की सुबह भादंसं की धारा 364ए के तहत फिरौती के लिए अपहरण का मामला दर्ज कर लिया. एसपी शैलेश पांडे के निर्देश पर इंसपेक्टर सुधीर कुमार सिंह ने खुद ही जांच की जिम्मेदारी संभाली. साथ ही उन की मदद के लिए बनी 6 पुलिस टीमों ने भी अपने स्तर से काम शुरू कर दिया. चूंकि मामला एक छात्र के अपहरण का था, वह भी फिरौती की मोटी रकम वसूलने के लिए. इसलिए सर्विलांस टीम को गौरव हलधर के मोबाइल की काल डिटेल निकालने के काम पर लगा दिया गया.

मोबाइल की सर्विलांस में उस की पिछले कुछ घंटों की लोकेशन निकाली गई तो पता चला कि इस वक्त उस की लोकेशन दिल्ली में है. पुलिस टीमें यह पता करने की कोशिश में जुट गईं कि गौरव का किसी से विवाद या दुश्मनी तो नहीं थी. लेकिन ऐसी कोई जानकारी नहीं मिली. गौरव और उस से जुड़े लोगों के मोबाइल नंबर को सर्विलांस पर ले लिया गया था. पुलिस की टीमें लगातार एकएक नंबर की डिटेल्स खंगाल रही थीं. गौरव के फोन की लोकेशन संतकबीर नगर के खलीलाबाद में भी मिली थी. पुलिस की एक टीम बहराइच तो 2 टीमें खलीलाबाद व गोरखपुर रवाना कर दी गईं. खुद इंसपेक्टर सुधीर सिंह एक पुलिस टीम ले कर दिल्ली रवाना हो गए.

20 जनवरी की सुबह दिल्ली पहुंचने के बाद उन्होंने सर्विलांस टीम की मदद से उस इलाके में छानबीन शुरू कर दी, जहां गौरव के फोन की लोकेशन थी. लेकिन अब उस का फोन बंद हो चुका था इसलिए इंसपेक्टर सुधीर सिंह को सही जगह तक पहुंचने में कोई मदद नहीं मिली. इस दौरान गोंडा में मौजूद गौरव के पिता डा. निखिल हलधर को अपहर्त्ता ने एक और फोन कर दिया था. उस ने अब फिरौती की रकम बढ़ा कर 80 लाख कर दी थी और चेतावनी दी थी कि अगर 22 जनवरी तक रकम का इंतजाम नहीं किया गया तो गौरव की हत्या कर दी जाएगी.

दूसरी तरफ जब गोंडा एसपी शैलेश पांडे को पता चला कि दिल्ली पहुंची पुलिस टीम को बहुत ज्यादा कामयाबी नहीं मिल रही है तो उन की चिंता बढ़ गई. अंतत: उन्होंने एसटीएफ के एडीजी अमिताभ यश को लखनऊ फोन कर के गौरव अपहरण कांड की सारी जानकारी दी और इस काम में एसटीएफ की मदद मांगी. अमिताभ यश ने एसपी शैलेश पांडे से कहा कि वे अपनी टीम को नोएडा में एसटीएफ के औफिस भेज दें. एसटीएफ के एसपी कुलदीप नारायण गोंडा पुलिस की पूरी मदद करेंगे.

पांडे ने दिल्ली में मौजूद इंसपेक्टर सुधीर सिंह को एसटीएफ के एसपी कुलदीप नारायण से बात कर के उन के पास पहुंचने की हिदायत दी तो दूसरी तरफ एडीजी अमिताभ यश ने नोएडा फोन कर के एसपी कुलदीप नारायण सिंह को गौरव हलधर अपहरण केस की जानकारी दे कर गोंडा पुलिस की मदद करने के निर्देश दिए. यह बात 20 जनवरी की दोपहर की थी. गोंडा कोतवाली के इंसपेक्टर सुधीर सिंह नोएडा में एसटीएफ औफिस पहुंच कर एसपी एसटीएफ कुलदीप नारायण सिंह तथा डीएसपी विनोद सिरोही से मिले.

विनोद सिरोही बेहद सुलझे हुए अधिकारी हैं. उन्होंने अपनी सूझबूझ से कितने ही अपहरण करने वालों और गैंगस्टरों को पकड़ा है. उन्होंने उसी समय अपहर्त्ताओं को दबोचने के लिए इंसपेक्टर सौरभ विक्रम सिंह, एसआई राकेश कुमार सिंह तथा ब्रह्म प्रकाश के साथ एक टीम का गठन कर दिया. काल डिटेल्स से मिले सुराग अपराधियों तक पहुंचने का सब से बड़ा हथियार इन दिनों इलैक्ट्रौनिक सर्विलांस है. एसटीएफ की टीम ने उसी समय गौरव के फोन की सर्विलांस के साथ उस की सीडीआर खंगालने का काम शुरू कर दिया. गौरव के फोन की काल डिटेल्स खंगाली तो उस में एक ऐसा नंबर मिला, जिस में उस के फोन पर कुछ दिनों से एक नए नंबर से न सिर्फ काल की जा रही थी, बल्कि यह नंबर गौरव की कौन्टैक्ट लिस्ट में ‘माई लव’ के नाम से सेव था.

दोनों नंबरों पर 5 से 18 जनवरी तक 40 बार बात हुई थी और हर काल का औसत समय 10 से 40 मिनट था. इस नंबर से गौरव के वाट्सऐप पर अनेकों काल, फोटो, वीडियो का भी आदानप्रदान हुआ था. इस नंबर के बारे में जानकारी एकत्र की गई तो यह नंबर दिल्ली के एक पते पर पंजीकृत पाया गया. लेकिन जब पुलिस की टीम उस पते पर पहुंची तो पता फरजी निकला. जब इस नंबर की लोकेशन खंगाली गई तो पुलिस टीम यह जान कर हैरान रह गई कि 18 जनवरी की दोपहर से शाम तक इस नंबर की लोकेशन गोंडा में हर उस जगह थी, जहां गौरव के मोबाइल की लोकेशन थी.

पुलिस टीम समझ गई कि जिस के पास भी यह नंबर है, उसी ने गौरव का अपहरण किया है. पुलिस टीमों ने इसी नंबर की सीडीआर खंगालनी शुरू कर दी. पता चला कि यह नंबर करीब एक महीना पहले ही एक्टिव हुआ था और इस से बमुश्किल 4 या 5 नंबरों पर ही फोन काल्स की गई थीं या वाट्सऐप मैसेज आएगए थे.   एसटीएफ के पास ऐसे तमाम संसाधन और नेटवर्क होते हैं, जिन से वह इलैक्ट्रौनिक सर्विलांस के माध्यम से अपराधियों की सटीक जानकारी एकत्र करने के साथ उन की लोकेशन का भी सुराग लगा लेती है. एसटीएफ ने रात भर मेहनत की. जो भी फोन नंबर इस फोन के संपर्क में थे, उन सभी की कडि़यां जोड़ कर उन की मूवमेंट पर नजर रखी जाने लगी.

रात होतेहोते यह बात साफ हो गई कि अपहर्त्ता नोएडा इलाके में मूवमेंट करने वाले हैं. वे अपहृत गौरव को छिपाने के लिए दिल्ली से किसी दूसरे ठिकाने पर शिफ्ट करना चाहते हैं. बस इस के बाद सर्विलांस टीमों ने अपराधियों की सटीक लोकेशन तक पहुंचने का काम शुरू कर दिया और गोंडा पुलिस के साथ एसटीएफ की टीम ने औपरेशन की तैयारी शुरू कर दी. 21 जनवरी की देर रात गोंडा पुलिस व एसटीएफ की टीमों ने ग्रेटर नोएडा में यमुना एक्सप्रेसवे जीरो पौइंट के पास अपना जाल बिछा दिया. पुलिस टीमें आनेजाने वाले हर वाहन पर कड़ी नजर रख रही थीं. किसी वाहन पर जरा भी संदेह होता तो उसे रोक कर तलाशी ली जाती. इसी बीच एक सफेद रंग की स्विफ्ट डिजायर कार पुलिस की चैकिंग देख कर दूर ही रुक गई.

उस गाड़ी ने जैसे ही रुकने के बाद बैक गियर डाल कर पीछे हटना और यूटर्न लेना शुरू किया तो पुलिस टीम को शक हो गया. एसटीएफ की टीम एक गाड़ी में पहले से तैयार थी. पुलिस की गाड़ी उस कार का पीछा करने लगी जो यूटर्न ले कर तेजी से वापस दौड़ने लगी थी. देखते ही पहचान लिया गौरव को मुश्किल से एक किलोमीटर तक दौड़भाग होती रही. आखिरकार नालेज पार्क थाना क्षेत्र में एसटीएफ की टीम ने डिजायर कार को ओवरटेक कर के रुकने पर मजबूर कर दिया. खुद को फंसा देख कार में सवार 3 लोग तेजी से उतरे और अलगअलग दिशाओं में भागने लगे. एसटीएफ को ऐसे अपराधियों को पकड़ने का तजुर्बा होता है. पीछा करते हुए एसटीएफ तथा गोंडा पुलिस की दूसरी टीम भी वहां पहुंच चुकी थी.

पुलिस टीमों ने जैसे ही हवाई फायर किए, कार से उतर कर भागे तीनों लोगों के कदम वहीं ठिठक गए. पुलिस टीमों ने तीनों को दबोच लिया. उन्हें दबोचने के बाद जब पुलिस टीमों ने स्विफ्ट डिजायर कार की तलाशी ली तो एक युवक कार की पिछली सीट पर बेहोशी की हालत में पड़ा था. इंसपेक्टर सुधीर सिंह युवक की फोटो को इतनी बार देख चुके थे कि बेहोश होने के बावजूद उन्होेंने उसे पहचान लिया. वह गौरव ही था. पुलिस टीमों की खुशी का ठिकाना न रहा, क्योंकि अभियान सफल हो गया था. पुलिस टीमें तीनों युवकों के साथ गौरव व कार को ले कर एसटीएफ औफिस आ गईं.

इंसपेक्टर सुधीर सिंह ने गौरव के पिता डा. निखिल व एसपी गोंडा शैलेश पांडे को गौरव की रिहाई की सूचना दे दी. वे भी तत्काल नोएडा के लिए रवाना हो गए. गौरव के अपहरण में पुलिस ने जिन 3 लोगों को गिरफ्तार किया था, उन में से एक की पहचान डा. अभिषेक सिंह निवासी अचलपुर वजीरगंज, जिला गोंडा के रूप में हुई. वही इस गिरोह का सरगना था और फिलहाल बाहरी दिल्ली के बक्करवाला में डीडीए के ग्लोरिया अपार्टमेंट के फ्लैट नंबर 310 में किराए पर रहता था. डा. अभिषेक सिंह पेशे से चिकित्सक था और नांगलोई-नजफगढ़ रोड पर स्थित राठी अस्पताल में काम करता था.

उस के साथ पुलिस ने जिन 2 अन्य लोगों को गिरफ्तार किया, उन में नीतेश निवासी थाना निहारगंज, धौलपुर, राजस्थान तथा मोहित निवासी परौली, थाना करनलगंज गोंडा शामिल थे. जब उन तीनों से पूछताछ की गई, तो अपहरण की जो कहानी सामने आई, वह काफी दिलचस्प थी.  डा. अभिषेक सिंह ने गौरव का अपहरण करने के लिए हनीट्रैप का इस्तेमाल किया था. यानी गौरव को पहले एक खूबसूरत लड़की के जाल में फंसाया गया था. जब गौरव खूबसूरती के जाल में फंस गया तो उस का फिरौती वसूलने के लिए अपहरण कर लिया गया.

मूलरूप से गोंडा के अचलपुर का रहने वाला डा. अभिषेक सिंह 2013-2014 में बेंगलुरु के राजीव गांधी यूनिवर्सिटी औफ हेल्थ साइंस से बीएएमएस की पढ़ाई करने के बाद जब अपने शहर लौटा तो उस के दिल में बड़े अरमान थे. डाक्टरी के पेशे से बहुत सारी कमाई करने और बड़ा सा बंगला बनाने के सपने देखे थे. लेकिन कुछ समय बाद ही ये सपने चकनाचूर होने लगे. अच्छी नौकरी नहीं मिली तो बन गया अपराधीउसे गोंडा के किसी भी अस्पताल में ऐसी नौकरी नहीं मिली, जिस से अच्छे से गुजरबसर हो सके. छोटेछोटे अस्पतालों में नौकरी करने के बाद तंग आ कर डा. अभिषेक 2018 में दिल्ली आ गया. यहां कई अस्पतालों में नौकरी करने के बाद वह सन 2019 में नजफगढ़ के राठी अस्पताल में नौकरी करने लगा.

हालांकि इस अस्पताल में उसे पहले के मुकाबले तो अच्छी तनख्वाह मिलती थी, लेकिन इस के बावजूद वह अपनी जिंदगी से संतुष्ट नहीं था. इसी दौरान डा. अभिषेक की दोस्ती उसी अस्पताल में काम करने वाली एक लेडी डाक्टर प्रीति मेहरा से हो गई. प्रीति भी बीएएमएस डाक्टर थी. खूबसूरत और जवान प्रीति प्रतिभाशाली थी. उस के दिल में भी अपना अस्पताल बनाने की महत्त्वाकांक्षा पल रही थी. लेकिन इस सपने को पूरा करने में समर्थ नहीं होने के कारण अक्सर मानसिक परेशानी से घिरी रहती थी. जब अभिषेक से उस की दोस्ती हुई तो लगा कि वे दोनों एक ही मंजिल के मुसाफिर हैं. दोनों की दोस्ती जल्द ही प्यार में बदल गई.

दोनों के सपने भी एक जैसे थे, लाचारी भी एक जैसी थी. लेकिन सपनों को पूरा करने की धुन दोनों पर सवार थी. पिछली दीपावली पर नवंबर, 2019 में जब अभिषेक अपने घर गोंडा गया तो उस की मुलाकात अपनी बुआ के बेटे रोहित से हुई. बुआ की शादी बहराइच के पयागपुर इलाके में हुई थी. रोहित भी पयागपुर में ही रहता था. रोहित की जानपहचान मोहित सिंह से भी थी. मोहित सिंह गोंडा में रहने वाले अभिषेक के दोस्त राकेश सिंह का साला था. मोहित दिल्ली के करोलबाग की एक दुकान में काम करता है. रोहित भी मोहित को जानता है. रोहित व मोहित दोनों की जानपहचान एससीपीएम कालेज गोंडा से आयुर्वेदिक चिकित्सा की पढ़ाई कर रहे गौरव हलधर से थी.

दोनों ही गौरव के अलावा उस के परिवार के बारे में भी अच्छी तरह से जानते थे. अभिषेक जब दीपावली पर अपने घर गया तो पयागपुर से बुआ का बेटा रोहित उस के घर आया हुआ था. रोहित के सामने अभिषेक का दर्द छलक गया. शराब पीने के बाद उस ने रोहित से यहां तक कह दिया कि अगर उसे चोरी, डाका या किसी का अपहरण भी करना पड़े तो वह पीछे नहीं हटेगा. अभिषेक की बात सुनते ही रोहित का माथा ठनक गया. पहले तो उस ने अभिषेक को समझाना चाहा. लेकिन अभिषेक नहीं माना और बोला भाई बस तू एक बार किसी ऐसे शिकार के बारे में बता दे, जिस से मेरा सपना पूरा करने के लिए रकम मिल सकती हो.

अभिषेक नहीं माना तो रोहित ने उसे गौरव हलधर के बारे में बताया और उस के पूरे परिवार की जानकारी भी दे दी. रोहित ने अभिषेक को बताया कि डा. निखिल हलधर का बेटा गौरव गोंडा में ही फर्स्ट ईयर की पढ़ाई कर रहा है. अगर किसी तरीके से उस का अपहरण कर लिया जाए तो फिरौती के रूप में बड़ी रकम मिल सकती है. डा. अभिषेक ने जब डा. प्रीति मेहरा को गौरव का अपहरण करने की अपनी योजना के बारे में बताया तो उस ने नाराजगी नहीं जताई बल्कि खुश हुई और उस ने ही अपनी तरफ से सुझाव दिया कि गौरव का अपहरण करने में वह खुद उस की मदद करेगी.

प्रीति ने अभिषेक को बताया कि एक जवान लड़के का अगर अपहरण करना हो तो किसी जवान लड़की को उस के सामने चारा बना कर डाल दो, वह खुदबखुद उस जाल में फंस जाएगा. अभिषेक से उस ने गौरव का नंबर देने के लिए कहा तो अभिषेक ने उसे रोहित से गौरव का नंबर ले कर दे दिया. इस के बाद डा. प्रीति मेहरा ने एक रौंग नंबर के बहाने गौरव को काल कर बातचीत का सिलसिला शुरू कर दिया. पहली ही बार में बात करने के बाद गौरव उस के जाल में फंस गया और दोनों का एकदूसरे से परिचय कुछ ऐसा हुआ कि उस दिन के बाद वे दोनों एकदूसरे से बात करने लगे.

प्रीति मेहरा वीडियो काल के जरिए जब गौरव से बात करती तो कई बार गौरव को अपने नाजुक अंग दिखा कर अपने लिए उसे बेचैन कर देती. दरअसल, साजिश के इस मुकाम तक पहुंचने से पहले डा. अभिषेक ने इसे अंजाम देने के लिए कुछ लोगों को भी अपने साथ जोड़ लिया था. करोलबाग में कपड़े की दुकान पर काम करने वाले मोहित को जब अभिषेक ने गौरव का अपहरण करने की योजना बताई और उस से मदद मांगी तो मोहित ने अभिषेक को अपने एक दोस्त  नितेश से मिलवाया. दरअसल, नितेश व मोहित एक ही जिम में व्यायाम करने के लिए जाते थे. इसीलिए दोनों के बीच दोस्ती थी. नितेश इंश्योरेंस कराने का काम करता था.

इंश्योरेंस के साथ वह लोगों के बैंक में खाते खुलवाने से ले कर उन्हें लोन दिलाने का काम करता था. इसीलिए फरजी आईडी से ले कर जाली आधार कार्ड व पैन कार्ड बनाने में उसे महारथ हासिल थी. मोहित ने उसे मोटी रकम मिलने का सब्जबाग दिखा कर अपहरण की इस वारदात में अपने साथ मिला लिया. इस के बाद नितेश ने 3 आईडी तैयार कीं और उन्हीं आईडी के आधार पर उस ने 3 सिमकार्ड खरीदे. फरजी आईडी से खरीदे गए तीनों सिम कार्ड डा. प्रीति मेहरा, डा. अभिषेक व मोहित ने अपने पास रख लिए. डा. प्रीति ने तो अपने सिम कार्ड का इस्तेमाल गौरव हलधर से दोस्ती करने के लिए शुरू कर दिया. लेकिन अभिषेक व मोहित ने अपहरण करने से चंद रोज पहले ही अपने सिम कार्ड का इस्तेमाल किया था.

प्रीति मेहरा ने गौरव को अपने प्रेमजाल में इस तरह फंसा लिया कि वह उस के एक इशारे पर कुछ भी करने को तैयार था. जब सब ने यह देख लिया कि शिकार जाल में फंसने का तैयार है तो प्रीति ने गौरव को वाट्सऐप मैसेज दिया कि वह 18 जनवरी को उस से मिलने गोंडा आ रही है. रोहित भी उस समय दिल्ली आया हुआ था. दिल्ली से स्विफ्ट डिजायर कार ले कर डा. अभिषेक, डा. प्रीति मेहरा, मोहित, रोहित व नितेश गोंडा पहुंच गए. गोंडा पहुंचने से पहले रोहित बहराइच में ही उतर गया. इधर गोंडा पहुंच कर डा. प्रीति ने एक राहगीर से किसी बहाने फोन ले कर गौरव को मिलने के लिए फोन किया और उस के कालेज से एक किलोमीटर दूर एक जगह पर बुलाया.

प्रीति मेहरा का रंगीन वार प्रीति के मोहपाश में फंसा गौरव वहां चला आया. गौरव को प्रीति ने अपने साथ कार में बैठा लिया, जहां बैठे बाकी अन्य लोगों ने उसे दबोच कर नशे का इंजेक्शन दे दिया. इस के बाद वे गोंडा से चल दिए. उन की योजना गौरव को संतकबीर नगर के खलीलाबाद में रहने वाले सतीश के घर पर छिपाने की थी. वे वहां पहुंच भी गए, लेकिन बाद में इरादा बदल दिया और कुछ ही देर में कार से दिल्ली के लिए रवाना हो गए. 18 जनवरी की रात को ही दिल्ली पहुंच गए. रास्ते में गाजियाबाद के पास उन्होंने गौरव के फोन से गौरव के पिता निखिल को फिरौती के लिए पहला फोन कर 70 लाख की फिरौती की मांग की.

इसके बाद उन्होंने गौरव को अभिषेक के बक्करवाला स्थित डीडीए फ्लैट में छिपा दिया. नितेश या मोहित उसे खाना देने जाते थे और डा. अभिषेक व प्रीति उसे लगातार नशे के इंजेक्शन देते थे ताकि वह होश में आ कर शोर न मचा दे. उन लोगों ने कई बार गौरव के साथ मारपीट भी की. इधर रोहित ने जब गोंडा व बहराइच में गौरव के अपहरण कांड को ले कर छप रही खबरों के बारे में अभिषेक को बताया कि पुलिस की एक टीम दिल्ली में गौरव की तलाश कर रही है तो अभिषेक ने गौरव को अपने फ्लैट से कहीं दूसरी जगह रखने की योजना बनाई.

इसीलिए डा. अभिषेक मोहित व नितेश के साथ 21 जनवरी की रात को गौरव को बेहोशी का इंजेक्शन दे कर उसे कार से ले कर ग्रेटर नोएडा जा रहा था, तभी पुलिस ने सर्विलांस के जरिए उन की लोकेशन का पता लगा कर उन्हें दबोच लिया. नितेश के पिता व गोंडा पुलिस के नोएडा पहुंचने के बाद एसटीएफ ने उन्हें  गोंडा पुलिस के हवाले कर दिया. इधर पुलिस को जब इस में रोहित व सतीश नाम के 2 और लोगों के शामिल होने की खबर लगी तो गोंडा पुलिस की टीम ने दबिश दे कर उसी रात रोहित व सतीश को भी गिरफ्तार कर लिया.

लेकिन इस पूरे घटनाक्रम की खबर पा कर डा. प्रीति फरार हो चुकी थी. उस की तलाश में एसटीएफ और गोंडा पुलिस ने कई जगह छापे मारे, लेकिन वह पुलिस की पकड़ में नहीं आई. गोंडा पुलिस ने प्रीति की गिरफ्तारी पर 25 हजार के इनाम की घोषणा की थी. जिस के बाद गोंडा पुलिस ने 1 फरवरी को प्रीति को उस के गांव धौर जिला झज्जर, हरियाणा से गिरफ्तार कर लिया. मूलरूप से हरियाणा की प्रीति मेहरा वर्तमान में दिल्ली के प्रेमनगर में रहती थी. फिलहाल सभी आरोपी न्यायिक हिरासत में जेल में हैं. कैसी विडंबना है कि सालों की मेहनत के बाद डाक्टर बनने वाले अभिषेक व प्रीति अपने अधूरे ख्वाब को पूरा करने के लिए शार्टकट से पैसा कमाने के चक्कर में जेल की सलाखों के पीछे पहुंच गए.

डीजीपी ने फिरौती के लिए हुए अपहरण कांड का खुलासा कर आरोपियों को गिरफ्तार करने वाली गोंडा पुलिस की टीम को पुरस्कृत करने की घोषणा की है.

—कथा पुलिस की जांच, पीडि़त व अभियुक्तों के बयान पर आधारित

 

Agra News : अवैध संबंध का खौफनाक अंजाम – प्रेमी से करवाया पति का मफलर से गला घोंटकर कत्ल

Agra News : कमाऊ पति प्रमोद को छोड़ कर शिखा ने 5 बच्चों के पिता अतिराज से शादी कर ली. इसी दौरान अतिराज का दिल एक दूसरी औरत से लग गया. शिखा भी कम नहीं थी. उस ने पड़ोसी युवक ऋषिकेश को फांस लिया. बिस्तर की तरह औरत बदलने का परिणाम यह निकला कि…

ताज नगरी आगरा की तहसील बाह का एक थाना है बासौनी. इसी थाने के गांव लखनपुरा के बाहर स्थित घूरे पर मायाराम की 15 वर्षीय बेटी स्नेहा सुबह करीब 7 बजे कूड़ा डालने आई  थी.  अचानक उस की नजर कुछ दूरी पर खेत के किनारे कंटीले तारों के पास संदिग्ध अवस्था में पड़े एक व्यक्ति पर गई. वह उसे देखते ही पहचान गई. वह उसी के गांव का अतिराज सिंह था. स्नेहा ने वहां से लौट कर इस की जानकारी अतिराज की पत्नी शिखा के साथ ही गांव वालों को दी. जानकारी मिलते ही वहां अतिराज के घर वाले पहुंच गए. अतिराज को गांव वालों ने हिलायाडुलाया लेकिन वह मर चुका था. घटना की जानकारी होते ही गांव में हड़कंप मच गया. बड़ी संख्या में गांव वालों की भीड़ जुट गई. इसी बीच किसी ने पुलिस को सूचना दे दी. यह बात 4 जनवरी, 2021 की है.

घटना की जानकारी मिलते ही मौके पर थानाप्रभारी दीपकचंद्र दीक्षित अपनी टीम के साथ पहुंच गए. 42 वर्षीय मृतक अतिराज सिंह बघेल किसान था. मामले की गंभीरता को देखते हुए थानाप्रभारी ने अपने उच्चाधिकारियों को घटना की जानकारी दी. इस पर एसपी (पूर्वी) अशोक वैंकट, सीओ (बाह) प्रदीप कुमार फोरैंसिक टीम के साथ मौके पर पहुंच गए. पुलिस ने जांचपड़ताल शुरू कर दी. मृतक के गले व सीने पर चोट के निशान दिखाई दे रहे थे. इस से अनुमान लगाया गया कि युवक की हत्या गला दबा कर की गई है. वहीं फोरैंसिक टीम ने घटनास्थल से साक्ष्य जुटाए. शव के पास ही पुलिस को शराब का एक खाली पव्वा भी मिला. पुलिस ने मौके की काररवाई निपटाने के बाद शव मोर्चरी भिजवा दिया.

तब तक मृतक के बेटे नोएडा से आ गए थे. बड़े बेटे विक्रम सिंह बघेल ने पुलिस को बताया कि पिताजी रात को खेत की रखवाली को गए थे. सुबह उन की लाश दूसरे खेत में मिली. उस ने बताया कि हमारी रंजिश गांव की राधा देवी व उस के देवर फौरन सिंह से चल रही है. उन्होंने एक साल पहले पिताजी को हत्या की धमकी दी थी. उन्होंने ही पिताजी की हत्या की है. पति की हत्या की जानकारी मिलते ही पत्नी शिखा का रोरो कर बुरा हाल था. पुलिस का खोजी कुत्ता भी राधा के घर वाली गली तक जा कर रुक गया था. राधा का परिवार घर पर न मिलने से पुलिस का शक गहरा गया.

इस संबंध में विक्रम बघेल ने 38 वर्षीय विधवा राधा देवी, उस के देवर फौरन सिंह तथा राधा देवी के भाई सोहन (काल्पनिक) निवासी दिमनी, मुरैना, मध्य प्रदेश के खिलाफ हत्या की रिपोर्ट दर्ज कराई. एसएसपी (आगरा) बबलू कुमार ने इस घटना के शीघ्र परदाफाश के लिए एसपी (पूर्वी) अशोक वैंकट, सीओ प्रदीप कुमार व थानाप्रभारी बासौनी की टीम गठित कर आवश्यक दिशानिर्देश दिए. ग्रामीणों से पुलिस ने इस संबंध में पूछताछ की. जानकारी में आया कि मृतक अतिराज की राधा देवी से दोस्ती थी. राधा के पति करन सिंह की मौत हो चुकी थी. करन सिंह और अतिराज दोनों मित्र थे. इस के चलते राधा और अतिराज के बीच प्रेमसंबंध हो गए. राधा के घर वाले इस का विरोध करते थे. इसी के चलते उस पर हत्या का शक गया.

पुलिस ने राधा, उस के देवर फौरन सिंह व भाई सोहन को हिरासत में ले लिया. पुलिस तीनों को ले कर थाने आई. यहां पर तीनों से इस संबंध में गहनता से पूछताछ की गई. लेकिन तीनों ने अपने को निर्दोष बताया. जांच में भी अतिराज की हत्या में उन की कोई भूमिका नहीं दिखाई दी. इस बीच पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी आ गई. रिपोर्ट में गला दबा कर हत्या करना बताया गया था. इस दौरान पुलिस को पता चला कि अतिराज की हत्या में उस की दूसरी पत्नी शिखा व उस के प्रेमी का हाथ है. इस के बाद पुलिस ने अभियोग में भादंवि की धारा 120बी की बढ़ोत्तरी कर दी. सही खुलासे के लिए जांच में जुटी पुलिस टीम ने सर्विलांस सैल की भी मदद ली.

पुलिस ने 7 जनवरी, 2021 को अतिराज की दूसरी पत्नी शिखा, उस के प्रेमी ऋषिकेश तथा प्रेमी के दोस्त सुशील उर्फ भूरा को गांव से गिरफ्तार कर लिया. ऋषिकेश का घर लखनपुरा में शिखा के घर के पास ही है, जबकि सुशील बाह के गांव खोडन का निवासी है तथा वर्तमान में पश्चिमी दिल्ली के थाना निहाल विहार के गांव निलौठी में रहता है. हत्यारोपियों को गिरफ्तार करने वाली टीम में थानाप्रभारी दीपकचंद्र दीक्षित, एसआई सुमित कुमार, हैडकांस्टेबल सुनील कुमार,गजेंद्र सिंह, अमित कुमार, कांस्टेबल सूरज कुमार, रनवीर सिंह, कपिल कुमार, महिला कांस्टेबल ज्योति व शांति सिंह शामिल थीं.

तीनों हत्यारोपियों ने अपना जुर्म कबूल कर लिया. मृतक के बेटे ने जिन 3 लोगों को रिपोर्ट में नामजद किया था, वे जांच में निर्दोष पाए गए. इस तरह 3 निर्दोष जेल जाने से बच गए. हकीकत यह थी कि अतिराज की हत्या दूसरी पत्नी ने अपने पड़ोसी युवक से प्रेमसंबंधों के चलते की थी. एसएसपी बबलू कुमार ने प्रैस कौन्फ्रैंस में हत्याकांड का खुलासा करते हुए वास्तविक हत्यारोपियों की गिरफ्तारी की जानकारी दी. इस सनसनीखेज हत्याकांड के पीछे की जो कहानी सामने आई, वह चौंकाने वाली निकली—

शिखा विश्वकर्मा कानपुर देहात की रहने वाली थी. उस की पहली शादी सन 2002 में औरैया जिले के गांव सराय निवासी प्रमोद विश्वकर्मा के साथ हुई थी. प्रमोद से शिखा के 3 बेटे हुए, इन में रोहित, मोहित व निक्की शामिल हैं. शिखा का पति प्रमोद पंजाब में स्थित एक सरिया मिल में काम करता था. एक दिन शिखा पति को फोन लगा रही थी कि गलती से उस का रौंग नंबर अतिराज को लग गया. दूसरी ओर से अंजान व्यक्ति की आवाज सुनते ही शिखा ने फोन काट दिया. रौंग नंबर लगने के बाद अतिराज ने उसे काल बैक किया. शिखा ने कहा, गलती से आप का नंबर लग गया था. अतिराज ने कहा, ‘‘कोई बात नहीं, क्या मैं जान सकता हूं कि आप कहां रहती हैं और क्या करती हैं?’’

इस पर शिखा ने कहा, ‘‘हम तो कानपुर (देहात) में रहते हैं. पति पंजाब में काम करते हैं.’’ फिर दोनों ने एकदूसरे के बारे में जानकारी की. धीरेधीरे बातों का सिलसिला आगे बढ़ता गया. बाद में हाल यह हो गया कि दोनों दिन में जब तक कई बार बात नहीं कर लेते, दोनों को चैन नहीं मिलता था. अतिराज ने उसे बताया, ‘‘मेरी पत्नी की मृत्यु हो चुकी है. अब मुझ से अकेला नहीं रहा जाता.’’

पति के पंजाब में काम करने से शिखा भी अकेली हो गई थी. दोनों के दिलों में धधक रही प्यार की आग की गरमी बढ़ती जा रही थी. दिल में लगी आग जब बुझाए नहीं बुझी तब सन 2010 में शिखा ने भाग कर अतिराज से कोर्टमैरिज कर ली. अतिराज सिंह की पहली पत्नी से 5 बच्चे थे. दोनों बेटियों की शादी हो चुकी थी. तीनों बेटे नोएडा में टेंट आदि का काम करते थे. शिखा से दूसरी शादी करने के बाद दोनों पतिपत्नी गांव में ही रहने लगे. सन 2012 में शिखा और अतिराज के घर एक बेटी अंशिका पैदा हुई. इस बीच अतिराज के गांव की 38 वर्षीय एक विधवा राधा देवी से अवैध संबंध हो गए. जब राधा से प्रेमसंबंधों की जानकारी शिखा को हुई तो उस ने इस का विरोध किया.

वह पति को राधा से संबंध तोड़ने की कहती तो वह उस के साथ मारपीट करता. खर्चे के लिए रुपए भी नहीं देता था. इस से शिखा परेशान रहने लगी. घटना से करीब एक साल पहले शिखा की पड़ोस में ही रहने वाले 32 वर्षीय ऋषिकेश से नजरें टकरा गईं. इस के बाद रोज ही शिखा उसे अपने घर से टकटकी लगाए देखती रहती थी. इस का आभास ऋषिकेश को भी हो गया. पति की बेरुखी के चलते उस का झुकाव ऋषिकेश की तरफ होने लगा. लेकिन समाज के डर से वह उस से बात नहीं कर पाती थी. इस पर ऋषिकेश ने एक छोटा मोबाइल फोन ला कर उसे दे दिया. अब पति के काम पर चले जाने के बाद शिखा ऋषिकेश को फोन मिला लेती.

दोनों मोबाइल पर बातें करते और एकदूसरे से बातें करते और अपने दिल का हाल बताते. बात करने के बाद शिखा मोबाइल को स्विच औफ कर एक पाइप में छिपा देती थी. ऋषिकेश अतिराज का पड़ोसी था. अतिराज शराब पीने का आदी था. ऋषिकेश के साथ भी उस की दिल्ली से आने पर शराब पार्टी हो जाती थी. ऋषिकेश दिल्ली में ऊबर कंपनी में टैक्सी चलाता था. शिखा और ऋषिकेश में घटना से एक साल पहले से प्रेम संबंध चल रहे थे. शिखा फोन पर अपने प्रेमी ऋषि को बताती थी कि उस का पति अतिराज शराब पी कर घर आता है और मारपीट करता है. इस बात पर ऋषिकेश ने कहा कि वह उसे दिल्ली ले जाएगा.

तब शिखा ने कहा, पहले रास्ता साफ करो तब तुम्हारे साथ दिल्ली चल कर रहूंगी, क्योंकि अतिराज के जिंदा रहते मैं तुम्हारे साथ नहीं जा सकती. वह मुझे ढूंढ कर मार डालेगा. शिखा की इस बात पर ऋषिकेश सोच में पड़ गया. उस ने अपने दूर के रिश्ते की मौसी के बेटे सुशील उर्फ भूरा से संपर्क किया, उसे सारी बात बताई और लखनपुरा के अतिराज की हत्या करने की बात की. सुशील हत्या के लिए तैयार हो गया, उस ने इस की एवज में 50 हजार रुपए की मांग की. ऋषिकेश ने शिखा के दिल्ली आने पर उस के जेवर बेच कर देने की बात कही. सुशील के राजी हो जाने के बाद 2 जनवरी, 2021 की रात को वैगनआर कार से दोनों 3 जनवरी की सुबह लखनपुरा पहुंच गए. दोपहर में अतिराज को फोन कर उस के घर पहुंच गए. शिखा व अतिराज घर पर मिले.

दोस्त के घर आने पर उस ने शिखा से दाल, रोटी बनवाई. उसी समय अतिराज किसी काम से चला गया. तब तीनों में अतिराज को मारने की योजना बनी. दोपहर डेढ़ बजे जब अतिराज घर आया उसे ऋषिकेश और सुशील शराब पीने के लिए वैगनआर कार से जरार ले गए. गाड़ी में शराब पहले से ही रखी थी. सभी ने गाड़ी में शराब पी. अतिराज को ज्यादा शराब पिलाई. इस के बाद बाह में माधव सिंह के ढाबे पर पहुंचे, जहां तीनों ने चिकन खाया. शाम को ढाबे से सभी लोग गांव के लिए वापस चल दिए. ऋषिकेश ने अपनी बगल वाली सीट पर आगे अतिराज को बैठाया. पीछे की सीट पर सुशील बैठ गया. अतिराज को मारने के लिए गाड़ी को आगरा-बाह रोड पर गुगावली जाने वाले सुनसान मार्ग पर ले गए.

सर्दियों के चलते जल्दी ही अंधेरा घिरने लगा था. अतिराज शराब के नशे में बेसुध था. दोनों को इसी का इंतजार था. इस बीच ऋषिकेश और शिखा की मोबाइल पर कई बार बात हुई. शिखा ने कहा, नशा रहते उसे जल्दी मार दो, होश में आने के बाद उसे नहीं मार पाओगे. लेकिन जब वे लोग आगे नहर के किनारे चल कर खेतों की तरफ पहुंचे. यहां गांव वाले खेतों की रखवाली कर रहे थे. इसलिए गाड़ी नहीं रोकी. आगे चल कर खिल्ला पड़कौली पहुंचे तथा गांव लखनपुरा की तरफ कार मोड़ दी. तब तक रात के 9 बज गए थे. रास्ते में अच्छा मौका देख कर गाड़ी रोक ली. ऋषिकेश के इशारे पर सुशील ने सीट बेल्ट जो पहले से ही काट ली थी, का फंदा अतिराज के गले में डाल कर गला दबा कर जान से मारने का प्रयास किया, लेकिन सफलता नहीं मिली.

तब सुशील ने अपने मफलर का फंदा उस के गले में डाल दिया और दोनों ने एकएक सिरा खींच कर अतिराज की हत्या कर दी. हत्या के बाद लाश पीछे की सीटों के बीच लिटा दी. इस के बाद षडयंत्र के तहत अतिराज के मोबाइल से उस की प्रेमिका राधा के मोबाइल पर काल की थी. उधर से राधा हैलोहैलो करती रही, लेकिन हत्यारों ने कोई जवाब नहीं दिया. अतिराज के मोबाइल से काल राधा को फंसाने के लिए की गई थी. अतिराज की हत्या के बाद लाश को गाड़ी में ही ले कर दोनों लखनपुरा अतिराज के घर के पास पहुंचे. गाड़ी कुछ दूरी पर खड़ी कर तथा सुशील को गाड़ी में ही बैठा कर ऋषिकेश रात में ही शिखा के घर पहुंचा. उस समय उस की बेटी अंशिका सोई हुई थी. ऋषिकेश ने पूरी जानकारी शिखा को दी.

दोनों ने लाश ठिकाने लगाने के लिए आपस में बातचीत की. ऋषिकेश ने कहा, तुम कहो तो अतिराज की लाश चंबल नदी में फेंक दें, मगरमच्छ खा जाएंगे. किसी को कुछ पता नहीं चलेगा. इस पर शिखा ने कहा, नहीं लाश को राधा के घर की तरफ गांव के किनारे फेंक दो. सभी का शक उसी पर जाएगा. रास्ते के रोड़े को हटाने की खुशी का जश्न दोनों ने रात में ही अपने शरीर की भूख मिटा कर मनाया. जश्न के बाद ऋषिकेश कार ले कर गांव से करीब 100 मीटर दूर पहुंचा. दोनों ने महेश भदौरिया के खेत के बीच कूड़े के ढेर के पास अतिराज की लाश लिटा दी और उस के पास शराब का एक खाली पव्वा भी रख दिया. इस के बाद दोनों कार से दिल्ली निकल गए.

ऋषिकेश व सुशील अतिराज के परिवार वालों के बुलाने व पड़ोसी होने के नाते कार द्वारा दिल्ली से गांव आ गए थे. ऋषिकेश ने आगरा-बाह रोड पर हनुमान नगर के पास अपनी रिश्तेदारी में कार खड़ी की और दोनों गांव पहुंच गए. उन्होंने अतिराज की मौत पर दुख जताते हुए उस के घर वालों को सांत्वना भी दी. पुलिस ने हत्यारों की निशानदेही पर आलाकत्ल मफलर, शीट बेल्ट, वैगनआर कार तथा शिखा, ऋषिकेश व अतिराज के मोबाइल फोन बरामद कर लिए. पुलिस ने हत्यारोपियों को न्यायालय में पेश किया, जहां से तीनों को जेल भेज दिया गया. घटना का परदाफाश करने वाली पुलिस टीम को एसएसपी बबलू कुमार ने ईनाम के साथ प्रशस्ति पत्र देने की घोषणा की.

कहते हैं कि दूसरी औरत से शादी कर लो, लेकिन दूसरे की औरत से नहीं. अतिराज ने दूसरे की औरत से शादी कर के जो भूल की उसे उस का परिणाम अपनी जान दे कर भुगतना पड़ा.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Jharkhand News : 10 दिन तक सिर कटी लाश बनी रही रहस्य, आखिर किसकी थी

Jharkhand News : युवावस्था में किसी लड़की के कदम बहक जाएं तो उसे सही रास्ते पर लाना कोई आसान नहीं होता. मोहम्मद जमशेद ने बहकी हुई बेटी सुफिया को सही रास्ते पर लाने की लाख कोशिश की, लेकिन वह नहीं मानी. इस का नतीजा जो निकला वह…

झारखंड की राजधानी रांची के थाना ओरमांझी स्थित साई यूनिवर्सिटी के परिसर में छात्र चहलकदमी कर रहे थे. घूमते हुए कुछ छात्र विश्वविद्यालय के पीछे स्थित जीराबेर जंगल में मस्ती करने पहुंच गए थे. जंगल में वे इधरउधर घूमते हुए जब इस के बीचोबीच पहुंचे तो वहां एक महिला की सिरकटी नग्न लाश देख कर चौंक गए. वे उसी क्षण उलटे पांव दौड़ते हुए विश्वविद्यालय के कैंपस पहुंचे. धौंकनी के समान उन की सांसें तेजतेज चल रही थीं. थोड़ी देर बाद जब वे सामान्य हुए तो उन्होंने लाश वाली बात अपने दोस्तों को बता दी.

जिस ने भी यह खबर सुनी, वह चौंके बिना नहीं रह पाया था. मुंहमुंह होते हुए यह खबर विश्वविद्यालय प्रशासन तक पहुंच गई थी. कैंपस के पीछे लाश की सूचना मिलते ही प्रशासनिक भवन में हड़कंप मच गया. सूझबूझ का परिचय देते हुए विश्वविद्यालय प्रशासन ने घटना की जानकारी ओरमांझी थाने के थानाप्रभारी श्याम किशोर महतो को दे दी. विश्वविद्यालय कैंपस के पीछे जीराबेर जंगल में सिरकटी लाश की सूचना मिलते ही थानाप्रभारी श्याम किशोर महतो चौंक गए. फिर वह कुछ पुलिसकर्मियों के साथ घटनास्थल की ओर रवाना हो गए.

उन के साथ एसआई जयप्रकाश दास, संजय दास और 3 सिपाही थे. मौके पर पहुंच कर महिला की सिर कटी नग्न लाश का निरीक्षण किया. हत्यारों ने युवती की बर्बरतापूर्वक हत्या की थी. गहनतापूर्वक छानबीन करने पर पता चला कि हत्यारों ने युवती के गुप्तांग पर धारदार हथियार से कई वार किए थे और सिर भी काट कर साथ लेता गया था. क्योंकि पुलिस ने जंगल की छानबीन की थी, लेकिन मृतका का सिर कहीं नहीं मिला था. थानाप्रभारी श्यामकिशोर महतो ने दिल दहला देने वाली इस घटना की सूचना एसएसपी सुरेंद्र कुमार झा, एसपी (ग्रामीण) नौशाद अली और डीएसपी चंद्रशेखर आजाद को भी दे दी थी.

सूचना पा कर पुलिस अधिकारी घटनास्थल पर पहुंच चुके थे. अधिकारियों ने भी मौके का मुआयना किया. लाश के पास से शराब की कुछ शीशियां भी पाई गई थीं. इस से यही अनुमान लगाया जा रहा था हत्यारों ने युवती के साथ दुष्कर्म करने के पश्चात अपनी पहचान छिपाने के लिए हत्या कर दी होगी और सिर काट कर अपने साथ ले गया होगा और कहीं छिपा दिया होगा. इसलिए लाश की पहचान नहीं हो पाई थी. थानाप्रभारी श्यामकिशोर महतो ने मौके की काररवाई निपटा कर लाश पोस्टमार्टम के लिए रिम्स अस्पताल भिजवा दी और अज्ञात हत्यारों के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 324, 201, 120बी भादंसं के तहत मुकदमा दर्ज कर के जांच शुरू कर दी. यह बात 3 जनवरी, 2021 की है.

अगले दिन रांची के सभी स्थानीय अखबारों ने इस घटना को प्रमुखता से छापा. अखबार में छपी खबर पढ़ कर एक दंपति ने ओरमांझी थाने पहुंच कर थानाप्रभारी से मुलाकात की. थानाप्रभारी ने जब दंपति को अस्पताल ले जा कर वह सिरकटी लाश दिखाई तो दंपति ने उस की शिनाख्त अपनी बेटी के रूप में कर ली. तब पुलिस ने थोड़ी राहत की सांस ली. सोचा कि मृतका की शिनाख्त हो गई है तो हत्या की वजह भी सामने आ ही जाएगी. लेकिन अगले दिन हैरान करने वाली बात सामने आई. जिस दंपति ने सिरकटी लाश को अपनी बेटी के रूप में पहचाना था, उन की बेटी जिंदा घर लौट आई थी.

पता चला कि वह अपने घर से भाग कर शहर में छिप कर अपने प्रेमी के साथ कई दिनों से रह रही थी. जब मामला बिगड़ता देखा तो वह मांबाप के सामने आ गई थी. मतलब साफ था कि मृतका उस दंपति की बेटी नहीं थी तो वह कौन थी? यह पुलिस के लिए अबूझ पहेली बन गई. उसी दिन लाश की शिनाख्त के लिए एसएसपी सुरेंद्र कुमार झा ने 25 हजार रुपए का ईनाम रख दिया. यह भी ऐलान कर दिया था पता बताने वाले की पहचान छिपा कर रखी जाएगी. 2 दिन बीत जाने के बावजूद भी न तो मृतका की शिनाख्त हो सकी थी और न ही उस के बारे में कोई सूचना ही मिली. जबकि एसएसपी ने इस केस के खुलासे के लिए 2 टीमें गठित कर दी थीं और मुखबिर भी लगा दिए थे. बावजूद इस के पुलिस के हाथ खाली थे.

तो आईजी (रांची) ने ईनाम की रकम 25 हजार रुपए से बढ़ा कर 50 हजार कर दी. फिर 2 दिनों बाद 8 जनवरी को शासन स्तर से ईनाम की यह रकम 50 हजार से बढ़ा कर सीधे 5 लाख रुपए कर दी गई. लाश की पहचान के लिए ओरमांझी पुलिस ने जिले के सभी शहरी और ग्रामीण इलाके के थानों से पता करा लिया था कि 2 जनवरी के पहले किसी थाने में किसी युवती के गुम होने की कोई रिपोर्ट तो नहीं दर्ज है? लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. किसी थाने में किसी युवती की गुमशुदगी की कोई रिपोर्ट दर्ज नहीं थी. पुलिस जहां से चली थी वहीं आ कर खड़ी हो गई.

कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था कि लाश की पहचान कैसे कराई जाए. 10 जनवरी, 2021 की दोपहर में चान्हों थाने के चटवल के रहने वाली राबिया परवीन और मोहम्मद जमशेद नाम के एक वृद्ध दंपति रिम्स अस्पताल पहुंचे. अखबारों के माध्यम से उन्हें पता चला था कि 2 जनवरी को जीराबेर जंगल में 18 से 22 साल के बीच एक युवती की सिर कटी लाश बरामद हुई थी. जिस दिन लाश बरामद हुई थी, उस के 2 दिन पहले से उन की ब्याहता बेटी सुफिया परवीन अपनी ससुराल चंदवे, थाना पिठौरिया से रहस्यमय तरीके से गायब थी. अपने दामाद शेख बिलाल से जमशेद ने कई बार फोन कर के बेटी के बारे में पूछा भी, लेकिन उस ने कोई ठोस जवाब नहीं दिया.

मोहम्मद जमशेद और उस की पत्नी राबिया परवीन ने अपने स्तर से संबंधियों और रिश्तेदारों सभी से पता लगा लिया. न तो सुफिया वहां गई थी और न ही उस का फोन काम कर रहा था. सुफिया का फोन लगातार बंद आ रहा था. जमशेद ने अखबारों में जब से सिरकटी लाश के बारे में पढ़ा था, तब से उसे देखने के लिए परेशान और बेचैन था. यही सोच कर वह पत्नी को ले कर 10 जनवरी के दोपहर में रिम्स अस्पताल पहुंचे थे. मोहम्मद जमशेद और राबिया परवीन लाश को देखते ही पहचान गए. लाश उन की बेटी सुफिया परवीन की ही थी, जो पिछले 14 दिनों से अपनी ससुराल चंदवे से गायब थी. राबिया परवीन ने लाश के दाईं पैर पर जले के निशान से उस की पहचान की थी.

दरअसल, सुफिया बचपन में आग से बुरी तरह झुलस गई थी. इलाज के बाद सुफिया के जख्म तो भर गए थे लेकिन दाग अभी भी मौजूद थे. लाश की पहचान होते ही थानेदार श्याम किशोर महतो ने दंपति को थाने बुलाया और दोनों से जानकारी हासिल की. मोहम्मद जमशेद के बयान के आधार पर पुलिस की नजरों में दोषी के रूप में उन का दामाद शेख बिलाल चढ़ गया. पुलिस ने मोहम्मद जमशेद से शेख बिलाल की तसवीर मांगी. अगले दिन मोस्टवांटेड के रूप में शेख बिलाल की तसवीर जिले के हर थाने में चस्पा करा दी और अखबारों में भी प्रकाशित करा दी. पता बताने वालों को ईनाम देने की भी घोषणा कर दी थी.

11 जनवरी को मोहम्मद जमशेद ने दामाद शेख बिलाल के बारे में पुलिस को जो जानकारी दी थी, उसी आधार पर पुलिस ने चंदवे स्थित गांव उस के मकान पर जा कर दबिश दी. घर पर शेख बिलाल की पत्नी शब्बो खातून और उस का नाबालिग बेटा मिला. दोनों से पूछताछ करने पर पुलिस को पता चला कि शेख बिलाल 2 जनवरी से ही घर से गायब है. इस पर पुलिस का शक पुख्ता हो गया कि सुफिया का कत्ल उसी ने किया है, तभी वह घर से फरार है. शब्बो खातून और उस के बेटे से पूछताछ में पुलिस को उन दोनों पर शक हो गया था कि जरूर सुफिया की हत्या की जानकारी दोनों को थी, लेकिन वे कुछ भी नहीं बता रहे थे.

इसी शक के आधार पर पुलिस सिर्फ शब्बो को हिरासत में ले कर थाने ले आई और वहां उस से गहन पूछताछ की. शब्बो पहले नानुकुर करती रही. अंतत: पुलिस के बारबार पूछने पर वह टूट गई और कबूल कर लिया कि उसे अपनी सौतन सुफिया परवीन की हत्या की जानकारी पहले से थी. उस का पति शेख बिलाल ही सुफिया परवीन का कातिल है, उसी ने उस का सिर काट कर घर से 2 किलोमीटर दूर अपने खेत में गड्ढा खोद कर दफना दिया था. शब्बो खातून के मुंह से इतना सुनते ही थानाप्रभारी श्यामकिशोर चौंक गए. फिर तो वह रट्टू तोते की तरह पूरी कहानी उगलती गई. पूरी कहानी सुनने के बाद वह अपना चेहरा हथेलियों बीच छिपा कर सुबकने लगी और पुलिस अधिकारियों से माफी मांगने लगी.

इस के बाद मजिस्ट्रैट की उपस्थिति में पुलिस शब्बो खातून को ले कर चंदवे गांव में स्थित उस खेत में गई जहां सुफिया का कटा सिर दफनाया गया था. पुलिस के पैरों तले से जमीन तब खिसक गई थी जब सिर के इर्दगिर्द बड़ी मात्रा में नमक मिला. हत्यारे शेख बिलाल का तर्क था कि पुलिस उस के गुनाहों से कभी परदा नहीं उठा पाएगी. जब तक उस के गिरेहबान पर हाथ डालेगी तब तक वारदात का नामोनिशान मिट चुका होगा. लेकिन पुलिस ने उस के मंसूबों पर पानी फेर दिया. 10 दिनों से रहस्य बनी सिर कटी लाश की शिनाख्त सुफिया परवीन के रूप में हो गई थी.

सौतन सुफिया की हत्या का राज छिपाने के जुर्म में पुलिस ने शब्बो खातून को गिरफ्तार कर लिया और उस के पति शेख बिलाल की तलाश में उस के ठिकानों पर दबिश दी. 2 दिनों की मेहनत ने अपना रंग दिखाया. आखिरकार 14 जनवरी, 2021 को शेख बिलाल अपने इलाके से उस समय गिरफ्तार कर लिया गया, जब वह भागने की फिराक में रोड पर खड़ा हुआ बस का इंतजार कर रहा था. गिरफ्तार कर पुलिस उसे थाने ले आई. सुफिया हत्याकांड के मुख्य आरोपी शेख बिलाल के गिरफ्तार होते ही थानाप्रभारी श्यामकिशोर ने पुलिस अधिकारियों को सूचना दे दी थी.

एसपी (ग्रामीण) नौशाद अली थोड़ी देर में ओरमांझी थाने पहुंच गए और हत्या के संबंध में आरोपी शेख बिलाल से कड़ाई से पूछताछ शुरू की. बिना हीलाहवाली के शेख बिलाल ने अपना जुर्म कबूल कर लिया कि उसी ने प्रेमिका से दूसरी पत्नी बनी सुफिया परवीन की हालात के हाथों मजबूर हो कर हत्या की थी. फिर उस ने सुफिया से प्यार से ले कर हत्या तक की पूरी कहानी पुलिस को बता दी. उस के बाद पुलिस उसे हिरासत में ले कर वहां गई, जहां सुफिया परवीन की हत्या कर के लाश फेंकी थी. फिर पुलिस उसे वहां ले कर गई, जहां सुफिया का सिर काट कर जमीन के भीतर दफनाया था.

उस के बाद उसी दिन घर ले जा कर शेख बिलाल ने हत्या में प्रयुक्त धारदार हथियार खून में सना दाउली बरामद करा दिया. पुलिस ने दाउली अपने कब्जे में ले लिया और आरोपी को अदालत में पेश कर जेल भेज दिया. क्रूर हत्यारा शेख बिलाल ने सुफिया परवीन की हत्या की जो कहानी पुलिस को बताई, वह कुछ ऐसे सामने आई है—

21 वर्षीय सुफिया परवीन मूलरूप से राजधानी रांची के थाना चान्हों के चटवल इलाके की रहने वाली थी. उस के पिता का नाम मोहम्मद जमशेद और मां का नाम राबिया परवीन था. जमशेद और राबिया की 6 बेटियों और 3 बेटों में वह पांचवें नंबर की थी. प्राइवेट नौकरी कर के जमशेद इतना कमा लेता था जिस से वह अपना और अपने परिवार का भरणपोषण कर लेता था. बच्चों में बेटियां सब से बड़ी थीं. पुराने खयालातों वाला जमशेद बेटियों को नौकरी के लिए कहीं बाहर जाने नहीं देता था. वह एक मध्यमवर्गीय परिवार से ताल्लुक रखता है. समाज में इज्जत ही बेटियों का गहना होती है, जिसे जितना ढक कर रखा जाए वह उतनी पाकीजा रहती है.

इसलिए वह अपनी छोटी सी कमाई में परिवार को खुश रखने की हरसंभव कोशिश करता था, ताकि आधुनिक भौतिक वस्तुओं की चकाचौंध में वे बहकने न पाएं. मोहम्मद जमशेद की सभी संतानों में सुफिया परवीन अलग किस्म की लड़की थी. औसत कदकाठी और गोरे रंग की सुंदर सुफिया चंचल मन और स्वच्छंद खयालातों वाली लड़की थी. सुफिया ने इंटरमीडिएट की पढ़ाई के बाद आगे की पढ़ाई छोड़ दी थी, क्योंकि उस का मन पढ़ाई में नहीं लग रहा था. जमशेद ने 4 बेटियों के हाथ पीले कर दिए थे. मजे से उस की गृहस्थी चल रही थी. अब अच्छा सा घरवर देख कर सुफिया के हाथ पीले करा दे तो एक और बेटी की जिम्मेदारी में रह जाएगी.

जमशेद बेटी की शादी के बारे में पत्नी से विचारविमर्श कर रहा था कि सुफिया के कोरे मन पर मोहब्बत की सुनहरी स्याही से खालिद ने अपनी मोहब्बत की दास्तान लिख दी. अब सुफिया के अस्तित्व पर खालिद का पूरा कब्जा था. दोनों ही एकदूसरे से बेपनाह प्यार करते थे. सुफिया और खालिद के दिलों में मोहब्बत की मीठी उमंग उस समय पनपी थी, जब दोनों की आंखें चार हुई थीं. बलसोकरा गांव निवासी खालिद की शादी सुफिया के घर के बगल में रहने वाली फातिमा से हुई थी. पड़ोसी होने के नाते प्यारी सहेली फातिमा से मिलने सुफिया उस के घर जाती थी. आतेजाते फातिमा के पति खालिद की नजरें सुफिया के हुस्न से टकराईं तो वह उस की जवानी की तीखी तलवार से घायल हो गया था.

उसी दिन उसे पाने की हसरत अपने मन में ठान ली. फातिमा की अजीज सहेली होने के नाते सुफिया से खालिद ने मजाकमजाक में साली का रिश्ता जोड़ लिया था. उसी रिश्ते की आड़ में वह उस से अश्लील मजाक करने लगा. खालिद का मजाक करना सुफिया को अच्छा लगता था. खालिद की चिकनीचुपड़ी और मीठी बातों से उस रोमरोम खिल उठता था. उस के मन को गहराई तक गुदगुदाता था. धीरेधीरे सुफिया खालिद की ओर खिंचती गई और उस की मोहब्बत में गिरफ्तार हो गई थी. यह जानते हुए भी कि खालिद उस की प्यारी सहेली फातिमा का शौहर है, फिर भी सुफिया ने सहेली के पति पर बुरी नजर डाल कर उसे अपने हुस्न के मकड़जाल में कैद कर लिया था.

मोहब्बत की आग में जलते दीवानों ने एकदूसरे के साथ सात जन्मों तक साथ निभाने की कसमें खाईं और एकदूसरे के साथ अपने घरौंदे बसाने के हसीन ख्वाब देखे. खालिद के बिना जीवन अधूरा समझने वाली सुफिया घटना से 10 महीने पहले फरवरी, 2020 में घर छोड़ कर खालिद के साथ भाग गई और दिल्ली जा कर उस के साथ निकाह कर लिया. न जाने सुफिया की हंसतीखेलती गृहस्थी में किस की बुरी नजर लगी कि उस के प्यार का घरौंदा रेत के महल की तरह भरभरा कर ढह गया. खालिद और सुफिया के बीच 2 महीने तक सब कुछ इसी तरह चलता रहा. धीरेधीरे सुफिया के सिर से खालिद की मोहब्बत का जूनुन पूरी तरह उतर गया था.

उन दोनों के बीच में कड़वाहट ने अपना कब्जा जमा लिया था. नए जमाने के खयालातों में जीने वाली सुफिया को पति की बंदिशें अखरने लगीं तो उन के बीच में टकराहट ने पांव जमा लिए थे. अब खालिद के साथ रहना उसे एक पल गवारा नहीं था, लिहाजा सुफिया खालिद को छोड़ कर दिल्ली से अपने मायके चटवल (रांची) आ गई थी. सुफिया ने जो किया था, वह माफी के लायक नहीं था, लेकिन उसे बुरा सपना समझ कर उस के नेकदिल मांबाप ने बेटी को माफ कर घर में जगह दे दी थी. उन का सोचना था सुबह का भूला अगर शाम को घर लौट आए तो उसे भूला नहीं कहते, फिर वह तो उस का अपना खून है, लड़की है, कहां जाएगी.

बेटी के बातव्यवहार और विचारों में बदलाव देख कर मांबाप धीरेधीरे सब कुछ भूलते गए. सुफिया भी खुद को बदलने में जुट गई थी. लेकिन यह सब उस का सिर्फ दिखावा था. मोहब्बत के जिस भंवर से वह अभीअभी बाहर निकली थी, फिर उस के पांव उसी भंवर में जा फंसे थे. सुफिया दिल के हाथों एक बार फिर मजबूर हो गई थी. इस बार उस का दिल खालिद के मामू के शादीशुदा बेटे शेख बिलाल पर आ गया था. कसरती और सुडौल बदन वाले साधारण शक्लसूरत के शेख बिलाल को जब से देखा था, उस दिन से ही उस पर मर मिटी थी.

शेख बिलाल भी सुफिया को देख कर उस पर फिदा था. किसी का भी दिल उस पर आ सकता था. सुफिया को देख कर शेख बिलाल अपने होशोहवास खो बैठा था और उस से प्यार करने लगा था, हालांकि दोनों के दरमियान करीब 14-15 साल का फासला था. कहते हैं प्यार अंधा होता है, न उम्र देखता है न जातपात, बस हो जाता है. सुफिया के साथ भी ऐसा हुआ था. 40 वर्षीय शेख बिलाल मूलरूप से रांची जिले के चंदवे गांव का रहने वाला था. वह पहले से शादीशुदा था. उस की पत्नी शब्बो खातून उर्फ अफसाना थी और एक 14 साल का बेटा भी. शेख बिलाल अपराधी किस्म का था. जिले के कई थानों में उस के खिलाफ मुकदमे दर्ज थे. वह कई मामलों में वांछित भी था.

खैर, धीरेधीरे सुफिया और शेख बिलाल का प्यार जवां हो रहा था. बेटी के दोबारा फिसलते कदम की जानकारी जब सुफिया के मांबाप को हुई तो उन्हें उस की करतूत पर यकीन नहीं हुआ. फिर भी मांबाप ने उसे समझाने की कोशिश की. सुफिया के सिर पर शेख बिलाल के इश्क का भूत सवार था. उस के प्यार में इस कदर डूब चुकी थी कि शेख के अलावा उसे कुछ दिखाई नहीं दे रहा था, मांबाप की तो बात ही छोड़ दीजिए. मांबाप ने जब देखा कि बेटी को समझाने का उस पर कोई असर नहीं हो रहा है तो उसे उस के हाल पर छोड़ दिया. इधर शेख बिलाल ने सुफिया से अपनी शादीशुदा जिंदगी की कहानी छिपा रखी थी और यह भी छिपा रखा था कि वह एक बेटे का बाप है.

बहरहाल, सितंबर, 2020 में दोनों ने निकाह कर लिया. निकाह के बाद शेख बिलाल सुफिया को अपने घर लाया और जब उसे उस की शादीशुदा जिंदगी के बारे में पता चला तो उस ने घर में तूफान खड़ा कर दिया. उस ने पति से कह दिया कि घर में या तो वह रहेगी या उस की सौतन शब्बो. उसे दोनों में से किसी एक को चुनना होगा. असमंजस के भंवर में डूबा शेख बिलाल फैसला नहीं कर पा रहा था कि वह क्या करे. क्योंकि सुफिया का रौद्र रूप देख कर वह डर गया था. वह दोनों में से किसी को भी छोड़ने के लिए तैयार नहीं था इसलिए सब कुछ हालात पर छोड़ दिया.

इधर सुफिया सौतन शब्बो को घर से निकालने की अपनी जिद पर अड़ी हुई थी. सुफिया की जिद ने शेख बिलाल की हंसतीखेलती गृहस्थी को अखाड़ा बना दिया था. शब्बो को ले कर दोनों के बीच घर में रोज झगड़े होने लगे थे. पति के सामने सुफिया ने एक शर्त रख दी. वह शर्त यह थी कि शब्बो को नहीं छोड़ सकते तो मेरे रहने का कहीं और इंतजाम कर दो या तो मुझे पैसे दे दो, जिस से मैं कहीं अलग रह लूं. शेख बिलाल सुफिया की किसी भी शर्त को मानने के लिए तैयार नहीं हुआ. जब सुफिया ने जिद की तो गुस्से में उस ने सुफिया को लातघूंसों से खूब मारा.

पति की पिटाई से सुफिया अंदर तक हिल गई. दोनों के बीच का प्रेम अब नफरत का रूप ले चुका था और नौबत मरनेमारने की आ गई थी. पति की पिटाई से आहत सुफिया ने पति को सबक सिखाने के लिए पिठौरिया थाने में दहेज उत्पीड़न और मारपीट का मुकदमा दर्ज करा दिया. उस की लिखित शिकायत पर पुलिस ने शेख बिलाल को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया. शेख बिलाल ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि उस की ही पत्नी उस के साथ ऐसा कर सकती है. उस के इस दुस्साहस से बिलाल नफरत से बिलबिला उठा और उस ने सुफिया को सजा देने की ठान ली. इधर सुफिया पति को जेल भिजवाने के बावजूद उसी के घर में सीना ताने डटी रही, तनिक भी डरी नहीं.

उस के डर से सौतन शब्बो खातून और नाबालिग बेटे की घिग्घी बंध गई थी. मांबेटे दोनों घर में डरडर कर रहते रहे और शब्बो पति की जमानत की तैयारी में जुट गई थी. महीना भर जेल में रहने के बाद शेख बिलाल जमानत पर छूट कर घर आया तो सुफिया को देख कर उस का खून खौल उठा. वह उसे अपने घर में एक पल के लिए बरदाश्त नहीं कर पा रहा था. उस का चेहरा देखते ही उसे जेल की सलाखें याद आ रही थी. उस ने सोच लिया था कि उसे अब क्या करना है. शेख बिलाल ने पहली पत्नी शब्बो खातून के साथ मिल कर एक खतरनाक योजना बनाई. योजना सुफिया को रास्ते से हटाने की थी.

पति का साथ देने के लिए वह तैयार हो गई. पहले उसे रास्ते से हटाने के लिए गोली मार कर हत्या करने की योजना बनाई. इस के लिए उस ने एक कट्टा भी खरीद लिया था लेकिन बाद में उस ने अपनी योजना बदल दी. वह कुछ ऐसा करना चाहता था कि न तो लाश को पुलिस पहचान सके और न ही पुलिस कभी उस तक पहुंच सके, एकदम फूलप्रूफ योजना बनाना चाहता था और ऐसी ही योजना बनाई भी. योजना के अनुसार, शेख बिलाल भले ही सुफिया से नफरत करता था लेकिन जानता था कि जब तक वह सुफिया का भरोसा नहीं जीतेगा, तब तक उस की योजना सफल नहीं हो सकती है. षडयंत्र सफल बनाने के लिए उस ने एक चाल चली.

बिलाल ने सुफिया से माफी मांग कर उस का दिल जीत लिया. उस ने उसे भरोसा दिलाया कि वह जो चाहती है, वह वही करेगा. इस के लिए उसे उस का साथ देना होगा. इस पर खुश हो कर सुफिया साथ देने के लिए तैयार हो गई. वह चाहती थी कि उस की सौतन शब्बो जल्दी से जल्दी उस के रास्ते से हट जाए ताकि पति पर उस का पूरा अधिकार हो जाए. चिडि़या को फंसाने के लिए जाल पर शेख बिलाल ने जो दाना डाला था, उस का निशाना एकदम सही जगह पर बैठ गया था. उस ने पत्नी को धीरे से इशारा कर दिया कि शिकार जाल में पूरी तरह से फंस चुकी है, उसे रास्ते से हटाने की देरी है.

तय योजना के मुताबिक, 2 जनवरी, 2021 को शेख बिलाल ने विश्वास में ले कर सुफिया से यह कहा कि आज रात शब्बो का काम तमाम करना है तो सुफिया ने अपनी ओर से हरी झंडी दे दी और खुश भी थी. उस के बाद वह पूरी तैयारी के साथ रात साढ़े 10 बजे के करीब शब्बो खातून और सुफिया परवीन को मोटरसाइकिल पर बैठा कर जीराबेर जंगल की ओर ले गया. बीच में सुफिया बैठी थी, पीछे शब्बो और शेख बिलाल मोटरसाइकिल चला रहा था. जंगल में जैसे ही तीनों बाइक से नीचे उतरे और शेख बिलाल ने बाइक स्टैंड के सहारे खड़ी की, तब तक शब्बो सुफिया पर भेडि़ए की तरह झपटी तो पलट कर शेख भी उस पर झपट पड़ा और उसे जमीन पर पटक दिया.

फिर गला दबा कर सुफिया को मौत के घाट उतार दिया. उस के बाद साथ लाए धारदार हथियार से सिर काट कर धड़ से अलग कर दिया. इस से भी जब उस का मन नहीं भरा तो उस ने सुफिया के सारे कपड़े उतार लिए ताकि उस की पहचान न हो सके. फिर उसी धारदार हथियार से उस के गुप्तांग पर कई वार किए और अपने मन की भड़ास निकाली. सुफिया को मौत के उतारने के बाद शेख बिलाल शब्बो को बाइक पर बिठा कर कपड़े और कटा सिर साथ लेता गया. करीब ढाई किलोमीटर दूर जा कर अपने खेत पर रुका और खेत में 4 फीट गहरा गड्ढा खोद कर सिर दफना दिया और उस पर बड़ी मात्रा में नमक डाल दिया ताकि सिर मिट्टी में गल जाए और पुलिस के हाथों कोई सबूत न लगे.

उस के बाद सुफिया के सारे कपड़े जला दिए और आखिरी सबूत भी नष्ट कर दिया. यह सब करने के बाद घर जा कर दोनों पतिपत्नी आराम से सो गए. उस ने सोचा था कि सबूत के बिना पुलिस उस तक पहुंच नहीं सकेगी, लेकिन उस की यह सोच गलत साबित हुई. शेख बिलाल ने फूलप्रूफ योजना बनाई थी. लेकिन सुफिया के मांबाप ने बेटी की लाश पहचान कर उस की योजना पर पानी फेर दिया और उस के असल ठिकाने पहुंच गया. सुफिया की हत्या में पति के साथ शब्बो खातून भी थी, इसलिए उसे भी गिरफ्तार कर जेल भेज दिया. कथा लिखे जाने तक दोनों जेल में बंद थे. सुफिया की हत्या का जेल में बंद शेख बिलाल को तनिक भी मलाल नहीं था.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Faridabad Crime News : भाभी संग मिलकर क्यों रचा भाई के कत्ल का खौफनाक खेल

Faridabad Crime News : दिनेश धवन से प्रेम विवाह करने के बाद अनु जब मां नहीं बनी तो उस ने पहले हरजीत से फिर नितिन से नजदीकियां बढ़ाईं. उस के रास्ते में पति बाधक बना तो उस के अगले कदम ने एक ऐसे अपराध को जन्म दिया कि…

28 जनवरी, 2021 को फरीदाबाद के डबुआ कालोनी थाने की पुलिस को सूचना मिली कि गहरे नाले में एक लाश पड़ी है. इस बात की जानकारी मिलते ही वहां के थानाप्रभारी संदीप कुमार अतिरिक्त थानाप्रभारी यासीन खान और कुछ पुलिसकर्मियों को साथ ले कर घटनास्थल की ओर रवाना हो गए. वहां पहुंचने पर उन्होंने देखा कि नाले की कीचड़ में एक लाश पड़ी थी, जिस से काफी दुर्गंध आ रही थी. लाश पुरानी थी, जिसे देख कर पहचानना काफी मुश्किल था. लगता था हत्यारों ने वह कई दिन पहले नाले में फेंकी होगी.

थानाप्रभारी संदीप कुमार ने पुलिसकर्मियों की मदद से लाश बाहर निकलवाई. क्राइम टीम द्वारा लाश की विभिन्न ऐंगल से फोटो लेने के बाद उस की शिनाख्त के प्रयास किए गए. लेकिन उस की शिनाख्त नहीं हो सकी तो उसे फरीदाबाद के बी.के. अस्पताल में सुरक्षित रखवा दिया गया. उसी दिन थानाप्रभारी संदीप कुमार ने अज्ञात व्यक्ति के खिलाफ आईपीसी की धारा 302, 201 के तहत रिपोर्ट दर्ज कर के जांच अतिरिक्त थानाप्रभारी यासीन खान को सौंप दी. इस केस को सुलझाने के लिए डबुआ थाने की एक पुलिस टीम गठित की गई, जिस में थानाप्रभारी संदीप कुमार, एसआई यासीन खान, एएसआई कुलदीप और कांस्टेबल पवन शामिल थे.

जांच अपने हाथ में लेने के बाद विवेचनाधारी अतिरिक्त थानाप्रभारी यासीन खान अपने आसपास के इलाके से इस बात का पता लगाने का प्रयास किया कि पिछले कुछ दिनों में शहर का कोई व्यक्ति गायब तो नहीं है. कई लोगों से पूछताछ करने के बाद उन्हें जानकारी मिली कि दिनेश धवन नाम का एक व्यक्ति सैनिक कालोनी से लापता है. उस का मोबाइल भी इन दिनों स्विच्ड औफ चल रहा है. कहीं मरने वाला वही तो नहीं, ऐसा विचार करते हुए अतिरिक्त थानाप्रभारी यासीन खान सैनिक कालोनी स्थित दिनेश धवन के घर पहुंचे.

वहां उस की पत्नी अनु मिली. अनु के साथ एक व्यक्ति और था. उस का नाम पूछने पर उस ने अपना नाम हरजीत बताया. उन्होंने अनु को नाले से मिली लाश की फोटो दिखाई तो अनु और उस के साथ बैठे हरजीत ने उसे देखने के बाद लाश पहचानने से इनकार कर दी. सैनिक कालोनी से वापस लौट कर अतिरिक्त थानाप्रभारी यासीन खान ने थानाप्रभारी संदीप कुमार को मृतक की पत्नी अनु से हुई पूछताछ के बारे में जानकारी दी तो थानाप्रभारी ने मृतक की फोटो को सोशल मीडिया के अतिरिक्त उस के पोस्टर बनवा कर फरीदाबाद के प्रमुख चौकचौराहों पर चस्पा करने की सलाह दी.

यासीन खान ने ऐसा ही किया. ऐसा करने पर अगले दिन यानी 29 जनवरी को दीपा नाम की औरत डबुआ थाने में आई और उस ने लाश को देखने की इच्छा जाहिर की. तब पुलिस ने उसे फरीदाबाद के बी.के. अस्पताल में रखी लाश दिखाई. लाश काफी बदतर अवस्था में थी, उसे देख कर उस की शिनाख्त करना मुश्किल था लेकिन लाश की दाहिनी कलाई पर एक ब्रेसलेट था, जिसे देख कर दीपा ने बताया कि उस ने यह ब्रेसलेट रक्षाबंधन पर अपने मुंहबोले भाई दिनेश धवन को पहनाया था. इस ब्रेसलेट पर धवन गुदा हुआ था.  दिनेश धवन के कुछ और दोस्तों को बुला कर जब यह लाश दिखाई गई तो उन लोगों ने भी बे्रसलेट देखने के बाद उस की शिनाख्त दिनेश धवन के रूप में की.

यह सब जानने के बाद अतिरिक्त थानाप्रभारी यासीन खान को दिनेश धवन की पत्नी अनु पर शक हो गया. क्योंकि वह लाश की फोटो देखने के बाद उसे पहचानने से साफ इनकार कर चुकी थी. जबकि दूसरी तरफ दिनेश धवन की मुंहबोली बहन दीपा और दोस्त अस्पताल में रखी लाश को दिनेश धवन का होने का दावा कर रहे थे. यासीन खान ने एएसआई कुलदीप को दिनेश धवन के घर भेज कर उस की पत्नी अनु को पूछताछ के लिए थाने बुलवा लिया. पहली फरवरी, 2021 को अनु थाने में पहुंची. पूछताछ के दौरान उस के पति के बारे में पूछा गया तो उस ने बताया कि करीब 20 दिन पहले वह नौकरी करने झारखंड चला गया है जिस से उस की वाट्सऐप पर रोज चैटिंग होती है.

लेकिन जब अनु से दिनेश धवन का मोबाइल नंबर ले कर उस की लोकेशन निकाली गई तो मोबाइल की लोकेशन फरीदाबाद में ही मिली. यह देख कर यासीन खान ने अनु से दोबारा सख्तीपूर्वक पूछताछ की तो वह टूट गई और उस ने अपने प्रेमी नितिन और उस के साथियों के साथ मिल कर अपने पति दिनेश धवन की हत्या की बात स्वीकार कर ली.

पूछताछ के दौरान अनु ने अपने बयान में जो कुछ बताया और पुलिस की जांच के दौरान दिनेश की हत्या के पीछे जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार है—

35 वर्षीय दिनेश धवन पेशे से प्रौपर्टी डीलर था. वह पत्नी अनु के साथ फरीदाबाद की सैनिक कालोनी में रहता था. घर से कुछ ही दूरी पर उस का औफिस था, जहां बैठ कर वह मकान की खरीदफरोख्त और लोगों को दुकान आदि किराए पर दिलवाने का काम करता था. इस काम में उसे अच्छाखासा कमीशन मिल जाता था, जिस से वह बड़े आराम की जिंदगी गुजार रहा था. दिनेश ने लगभग 10 साल पहले अनु से प्रेम विवाह किया था. अनु का मायका भी सैनिक कालोनी में ही था, जहां उस के पिता भाई और अन्य रिश्तेदार रहते थे.

दिनेश धवन और अनु दोनों एकदूसरे को जीजान से प्यार करते थे. वह अनु के सभी नाजनखरे उठाता तो अनु भी दिनेश के मूड का खयाल रखती थी. वह कभी कोई ऐसा काम नहीं करती, जो दिनेश को नागवार गुजरे. धीरेधीरे वक्त गुजरता गया. जिंदगी के खुशनुमा लम्हों को गुजरने में पता कहां चलता है. देखते ही देखते कई साल गुजर गए, लेकिन अनु की गोद हरी नहीं हुई. संतान नहीं होने के कारण उन के जीवन में नीरसता घुलने लगी तो अनु को चिंता हुई. उस ने दिनेश के सामने अपनी चिंता जाहिर की तो उस ने शहर के कई अच्छे डाक्टरों से अपना इलाज करवाया मगर कोई नतीजा नहीं निकला. आखिर में रिश्तेदारों के कहने पर दिनेश धवन और अनु ने बाल आश्रम से एक बच्ची गोद ले ली और उस की परवरिश करने लगे.

दिनेश धवन के औफिस में मिलने के लिए तरहतरह के लोग आते थे. कभीकभार पीनेपिलाने का दौर भी चलता था. वह खुद भी पीने का शौकीन था. पहले तो इतना ही पीता था, जितना पीने के बाद वह अपना होश कायम रख सके. लेकिन बाद में उस के पीने की लिमिट ज्यादा बढ़ गई तो अनु के साथ उस के संबंधों में कड़वाहट आने लगी. अनु दिनेश को पीने से मना करती तो दिनेश एक कान से उस की बात सुनता दूसरे से बाहर निकाल देता था. वह रोज अनु के सामने नहीं पीने की कसम खा कर घर से औफिस निकलता था, लेकिन जब वह वापस लौटता तो उस के कदम लड़खड़ा रहे होते थे.

पति की पीने की आदत से परेशान अनु अपना दुखड़ा लोगों को सुनाती रहती थी. उस की इस परेशानी का फायदा पड़ोस में रहने वाले हरजीत ने उठाया. उस की नजर अनु के खूबसूरत बदन पर टिकी थी. अनु की दुखती रग पर हाथ रख कर वह धीरेधीरे अनु के दिल के करीब आ गया. अनु को भी लगा एक हरजीत ही उस का दुख समझता है. वह कोई भी काम उसे कहती तो वह सब से पहले अनु का कहा काम पूरा करता फिर बाद में अपना काम करता था. दिनेश की शराब की लत के कारण हर रात अनु का उस से विवाद हो जाता था.

सुबह उस के औफिस चले जाने के बाद अनु अपना अपना दुखड़ा हरजीत को सुनाती थी.  हरजीत पहले से अनु को पाने की फिराक में था. वह अनु की हां में हां मिला कर उस के जख्मों पर मरहम लगा कर उस के कोमल दिल में अपनी जगह बनाने की कोशिश करता था. कुछ ही महीनों में अनु के दिल में इस का असर हुआ और हरजीत मौका देख कर उस के साथ जिस्मानी संबंध बनाने में कामयाब हो गया. हरजीत और अनु के इन संबंधों की जानकारी काफी दिनों तक दिनेश धवन को नहीं हुई, मगर जब आसपड़ोस में उस की पत्नी और हरजीत के अवैध संबंधों के बारे में तरहतरह के चर्चे होने लगे तो दिनेश ने अनु से पूछा कि उस के औफिस जाने के बाद हरजीत यहां क्यों आता है.

अनु ने पति के आरोप सिरे से खारिज करते हुए कहा कि हरजीत उम्र में उस से काफी बड़ा है, जिसे वह चाचा कह कर पुकारती है. वह कभीकभार जरूरत पड़ने पर घर का कोई काम उस से करवाती है. जिसे देख कर लोग बेवजह उस से जलते हैं और तुम्हें मेरे खिलाफ भड़काने का काम कर रहे हैं. लेकिन दिनेश ने अपनी गैरमौजूदगी में हरजीत के घर आने पर रोक लगा दी और उसे अपना काम खुद ही निबटाने के लिए कहा. पति की बात सुन कर अनु ने अपनी गलती स्वीकार करते हुए हरजीत को भविष्य में कभी नहीं बुलाने की कसम खाई.

अनु की गलती मानने पर दिनेश ने उसे माफ कर दिया. लेकिन हरजीत और अनु का रिश्ता खत्म नहीं हुआ. पति की नजरों में धूल झोंक कर अनु ने हरजीत से मिलना जारी रखा. दिनेश घवन के दोस्तों में एक नाम नितिन पंडित का था. दिनेश धवन से उम्र में करीब 10 साल छोटा नितिन बल्लभगढ़ की एक कैमिकल फैक्ट्री में नौकरी करता था. छोटा होने के बावजूद उस की दिनेश के साथ खूब छनती थी. दोनों साथ दारू पीते और लंबीलंबी डींगे हांका करते थे. दिनेश धवन जब शराब के नशे में टल्ली हो जाता तो नितिन उसे संभाल कर उस के घर सैनिक कालोनी पहुंचा आता था. नितिन दिनेश की पत्नी अनु को भाभी कहता था. भाभीदेवर का रिश्ता होने के कारण दोनों अकसर हंसीमजाक करते रहते थे. नितिन अनु की खूबसूरती की जी भर कर तारीफ करता था.

धीरेधीरे दोनों एकदूसरे के करीब आ गए और उन के बीच मधुर संबंध कायम हो गए. इस के बाद अनु और नितिन को जब भी मौका मिलता, वे अपनी हसरतें पूरी कर लेते थे. पिछले साल जब पूरे देश में लौकडाउन शुरू हुआ तो सारी दुनिया जैसे ठहर सी गई. लोगों के कामधंधे बंद हो गए. दिनेश घवन की आमदनी बंद हो गई तो वह परेशान रहने लगा. अनु को ऐसी हालत में पति की मदद करनी चाहिए थी, लेकिन हुआ एकदम उलटा. वह दिनेश को अपने जरूरत की चीजें नहीं देने पर उसे ताना मारने लगी. एक तो आमदनी बंद दूसरे अनु के व्यवहार ने उसे अंदर से तोड़ दिया. परेशान हो कर वह हर वक्त नशा करने लगा. इस प्रकार अनु और दिनेश के बीच की दूरी बढ़ती चली गई.

दूसरी तरफ पति के हमेशा घर में रहने से उस के और नितिन के प्यार की कहानी में ब्रेक लग गया. वे दोनों मोबाइल पर बातें कर अपने प्यार का इजहार करते, लेकिन अकेले में मिल कर अपने दिल की प्यास नहीं बुझा पाते थे. घटना से करीब 2 महीने पहले अनु धवन ने नितिन के साथ मिल कर पति को हमेशा के लिए रास्ते से हटा देने की योजना तैयार की. इस काम में मदद के लिए उस का पुराना प्रेमी हरजीत भी राजी हो गया. नितिन ने अपने दोस्त विनीत और विष्णु को इस योजना में शामिल कर लिया. 11 जनवरी, 2021 की शाम को नितिन, विष्णु और विनीत दिनेश के औफिस से घर लौटने के पहले ही अनु के घर में आ कर छिप गए. रोज की तरह उस दिन भी दिनेश धवन नशे में धुत हो कर घर लौटा था.

वह खाना खा कर सो गया. रात के लगभग एक बजे अनु ने अपने प्रेमी नितिन से कहा कि दिनेश नशे में बेसुध है उस का जल्दी से काम तमाम कर दो. अनु का इशारा पा कर नितिन, विनीत और विष्णु दबे पांव गहरी नींद में सो रहे दिनेश धवन के पास पहुंचे और गला दबा कर उसे मौत की नींद सुला दिया. कहीं वह जिंदा न रह जाए, इसलिए उन्होंने उस के सिर परभी डंडे मारे. सुबह लगभग 4 बजे हरजीत अनु के घर पहुंचा तो नितिन ने उस से कहा कि वह अपना काम कर चुका है. वह दिनेश की लाश को अच्छी तरह पैक कर घर में ही छिपा दे. मौका मिलते ही वे लाश को कहीं ठिकाने लगा देंगे.

इतना कह कर नितिन अपने दोस्तों के साथ अनु के घर से निकल गया. हरजीत ने दिनेश धवन की लाश बैडशीट और प्लास्टिक में पैक कर घर के बाथरूम में छिपा दी. 4-5 दिन बाद जब लाश से बदबू आने लगी तब अनु ने घबरा कर नितिन तथा हरजीत से उसे जल्दी ठिकाने लगाने के लिए कहा. तब 18 जनवरी, 2021 को नितिन, हरजीत, विष्णु और दीपक अनु के घर पहुंचे और लाश बैड के अंदर छिपा दी. फिर बैड सहित लाश को एक रेहड़ी के ऊपर डाल कर गहरे नाले के पास ले गए और ठिकाने लगा दी. जब रास्ते में लोगों ने बैड के बारे में पूछा तो हरजीत ने बताया कि वह बैड को रिपेयर कराने के लिए ले जा रहा है. लाश उन्होंने नाले में डाल दी.

लाश ठिकाने लगाने के बाद हरजीत बैड को वापस अनु के घर ले आया, जिसे अनु ने घर की छत पर रखवा दिया. नितिन ने विष्णु को दिनेश धवन की हत्या करने के बदले 41 हजार रुपए देने का वादा किया था, जो अनु ने अपने अकाउंट से विष्णु को ट्रांसफर कर दिए. दिनेश धवन की हत्या करने के बाद अनु और नितिन अपनी आने वाली नई जिंदगी गुजारने के हसीन सपने देख रहे थे, लेकिन पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर उन के सपनों को चकनाचूर कर दिया. अनु को पहली फरवरी, 2021 को गिरफ्तार  करने के बाद अगले दिन पुलिस ने पहले अनु के प्रेमी नितिन तथा उस के दोस्तों विनीत, विष्णु, हरजीत और दीपक को भी गिरफ्तार कर लिया.

पुलिस ने सभी आरोपियों को कोर्ट में पेश किया, जहां से सभी को 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेज दिया.

UP Crime News : कैंची से कत्ल – दूसरे प्रेमी से करवाया पहले का मर्डर

UP Crime News : सोनू जानती थी कि अमीन के पद पर कार्यरत आशीष शुक्ला शादीशुदा ही नहीं बल्कि 2 बच्चों का पिता है. इस के बावजूद लालची सोनू ने उसे अपने प्यार के जाल में फांस लिया. इसी दौरान महत्त्वाकांक्षी सोनू ने ऐसी चाल चली कि…

नवंबर 2020 माह की 28 तारीख थी. जनपद अंबेडकरनगर के मालीपुर थाना क्षेत्र में मझुई नदी के नेमपुर घाट पर किसी अज्ञात व्यक्ति की लाश पड़ी हुई थी. सुबहसवेरे घाट पर पहुंचे लोगों ने लाश देखी तो कुछ देर में वहां देखने वालों का तांता लग गया. उसी दौरान किसी ने इस की सूचना मालीपुर थाने में फोन कर के दे दी. सूचना पा कर थानाप्रभारी विवेक वर्मा पुलिस टीम के साथ मौके पर पहुंच गए. लाश पौलिथिन में लिपटी हुई थी. मृतक की उम्र लगभग 43-44 साल थी. उस के गले पर किसी तेज धारदार हथियार से वार किए जाने के निशान मौजूद थे. आसपास का निरीक्षण करने पर कोई सुबूत हाथ नहीं लगा. अनुमान लगाया गया कि हत्या कहीं और कर के लाश वहां फेंकी गई है.

वहां मौजूद लोगों में से कोई भी लाश की शिनाख्त नहीं कर सका. मौके की काररवाई निपटाने के बाद थानाप्रभारी वर्मा ने लाश पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भेज दी. यह बात 28 नवंबर, 2020 की है. थाने आ कर थानाप्रभारी विवेक वर्मा ने जिले के समस्त थानों में दर्ज गुमशुदगी के बारे में पता किया तो अकबरपुर थाने में 45 वर्षीय आशीष शुक्ला नाम के व्यक्ति की गुमशुदगी दर्ज होने की बात पता चली. गुमशुदगी आशीष के साथ लिवइन में रहने वाली सोनू नाम की युवती ने दर्ज कराई थी. सोनू को बुला कर लाश की शिनाख्त कराई गई तो उस ने उस की शिनाख्त आशीष के रूप में की. सोनू ने पूछताछ में बताया कि एक दिन पहले देर रात किसी का फोन आया था, जिस के बाद आशीष घर से चले गए थे. आज उन की लाश मिली.

पता चला कि आशीष लखीमपुर जिले की कोतवाली सदर अंतर्गत कनौजिया कालोनी में रहता था. आशीष अंबेडकरनगर में अमीन पद पर कार्यरत था और कोतवाली शहर के मुरादाबाद मोहल्ले में किराए के मकान में रहता था. उस के साथ उस की कथित पत्नी सोनू शुक्ला रहती थी. लखीमपुर में आशीष की पत्नी राखी और बच्चे रहते थे. राखी को पति की लाश मिलने की सूचना मिली तो वह तुरंत अंबेडकरनगर पहुंच गई. मालीपुर थाने में उस ने दी तहरीर में पति की हत्या का आरोप सोनू शुक्ला और उस के 3 साथियों विवेक, विकास पर लगाया. राखी की तहरीर के आधार पर थानाप्रभारी विवेक वर्मा ने सोनू और उस के साथियों के खिलाफ भादंवि की धारा 302/201 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया.

30 नवंबर को थानाप्रभारी ने सोनू को हिरासत में ले कर पूछताछ की तो थोड़ी सख्ती करने पर वह टूट गई और आशीष की हत्या का जुर्म स्वीकार कर लिया. उस ने बताया कि आशीष की हत्या में उस के प्रेमी आनंद तिवारी, उस के साथी मूलसजीवन पांडेय और राजीव कुमार तिवारी उर्फ राजू ने साथ दिया था. पूछताछ के बाद पुलिस ने उसी दिन आनंद और मूल सजीवन को गिरफ्तार कर लिया गया.  उन सभी से पूछताछ के बाद आशीष की हत्या की जो कहानी सामने आई, इस प्रकार थी—

आशीष शुक्ला लखीमपुर खीरी क्षेत्र में एलआरपी रोड पर स्थित कनौजिया कालोनी में रहते थे. 18 वर्ष पहले उन का विवाह राखी से हुआ था. राखी काफी सरल स्वभाव की थी. उस ने आते ही आशीष की जिंदगी को महका दिया था. आशीष भी सरल स्वभाव की राखी को हमसफर के रूप में पा कर काफी खुश हुआ. कालांतर में राखी ने एक बेटे आयुष (17 वर्ष) और बेटी अर्चिता (12 वर्ष) को जन्म दे दिया. आयुष के जन्म के बाद 2006 में आशीष की नौकरी अमीन के पद पर लग गई. वह अंबेडकरनगर में ही कोतवाली शहर के मुरादाबाद मोहल्ले में किराए पर कमरा ले कर रह रहा था. जब सब कुछ अच्छा चल रहा होता है, कभीकभी तभी अचानक से जिंदगी में ऐसा खतरनाक मोड़ आ जाता है कि इंसान न संभले तो सब कुछ तहसनहस हो जाता है.

आशीष की जिंदगी में भी सब कुछ अच्छा चल रहा था कि जिंदगी में एक ऐसा मोड़ आया कि उस की जिंदगी दूसरे रास्ते पर चल पड़ी. वह रास्ता उस के और उस के परिवार के लिए कितना खतरनाक होने वाला था, आशीष को इस का बिलकुल आभास नहीं था. अंबेडकरनगर में काम के दौरान उस की मुलाकात सोनू नाम की युवती से हुई. 27 वर्षीय सोनू इब्राहिमपुर थाना क्षेत्र के बड़ा गांव की रहने वाली थी. उस के पिता विजय कुमार तिवारी की मृत्यु हो चुकी थी. सोनू 2 भाई व 3 बहनें थीं. सोनू काफी महत्त्वाकांक्षी थी. पिता के न रहने पर उस के विवाह होने में भी अड़चन आ रही थी. इसलिए उस ने अपने लिए खुद ही अच्छा हमसफर तलाश करने की ठान ली. इसी तलाश ने उसे आशीष शुक्ला तक पहुंचा दिया. आशीष एक तो सरकारी नौकरी करता था, साथ ही काफी स्मार्ट भी था.

सोनू ने उस की तरफ अपने कदम बढ़ाने शुरू कर दिए. सोनू ने आशीष के बारे में पूरी जानकारी जुटा ली. उसे यह भी पता था कि आशीष शादीशुदा है और 2 बच्चों का पिता है. लेकिन सोनू के लिए अच्छी बात यह थी कि उस की पत्नी और बच्चे लखीमपुर में रहते थे. आशीष को सोनू ने अपने रूपजाल में फांसना शुरू कर दिया. आशीष के साथ वह अधिक से अधिक समय बिताने लगी. उस के लिए खाना बना देती. घर में बना उस के हाथ का खाना खा कर आशीष को बड़ा अच्छा लगता था. वैसे आशीष कभी खुद खाना बना लेता था या होटल पर खा लेता था. सोनू अच्छी तरह जानती थी कि किसी भी मर्द के दिल तक पहुंचने का रास्ता उस के पेट से हो कर जाता है. भरपेट मनपसंद खाना मिलता तो आशीष सोनू की जम कर तारीफ करता. समय के साथ दोनों काफी नजदीक आने लगे.

आशीष अपनी पत्नी राखी को धोखा नहीं देना चाहता था, लेकिन सोनू का साथ पा कर वह दिल के हाथों ऐसा मजबूर हुआ कि वह अपने आप को रोक नहीं पाया और अपनी जिंदगी को दूसरे रास्ते पर ले गया. उस रास्ते पर सोनू बांहें फैलाए उस का इंतजार कर रही थी. अब सोनू हर दूसरेतीसरे दिन आशीष के कमरे पर ही रुकने लगी. रुकती तो खाना बनाने के साथ ही बाकी काम भी वह कर देती थी. सोनू उस के साथ ऐसा व्यवहार करती जैसे उस की पत्नी हो. आशीष को यह सब काफी अच्छा लगता. एक रात जब दोनों बैठे बातें कर रहे थे तो आशीष ने उस से कह दिया, ‘‘सोनू तुम मेरा बहुत खयाल रखती हो. इतना खयाल तो सिर्फ पत्नी ही रख सकती है. तुम मेरी पत्नी न होते हुए भी पत्नी जैसा खयाल रख रही हो.’’

‘‘तारीफ के लिए शुक्रिया जनाब. आप को इस बात का पता तो चला कि मैं आप का कितना खयाल रखती हूं. मैं तो अभी तक यही सोचती थी कि न जाने कब आप को पता चलेगा और कब मैं अपने दिल का हाल बयां कर पाऊंगी.’’ कह कर सोनू ने अपनी नजरें झुका लीं.

‘‘क्या मतलब…’’ आशीष ने उस के चेहरे पर नजरें गड़ा कर पूछा, ‘‘कहना क्या चाहती हो?’’

‘‘अब इतने भी अंजान नहीं हो तुम कि इस का क्या मतलब ही न जानते हो. जो मैं तुम्हारा हर समय हरदम खयाल रखती हूं, वह भी एक पत्नी की तरह, तो क्यों रखती हूं.’’

‘‘तो तुम ही खुल कर बता दो कि तुम्हें मेरा इतना खयाल क्यों है.’’ उस ने पूछा.

‘‘मैं तुम को पसंद करती हूं तुम से प्यार करती हूं, इसीलिए मुझे तुम्हारा इतना खयाल रहता है. मुझे तुम्हारा साथ पसंद है इसीलिए हमेशा तुम्हारे पास ही बनी रहती हूं, लेकिन तुम हो कि मेरे जज्बातों की फिक्र ही नहीं है.’’ सोनू ने यह कह कर एक बार फिर अपनी नजरें झुका लीं और मायूसी का लबादा ओढ़ लिया. आशीष उस की बात पर मंदमंद मुसकराते हुए बोला, ‘‘मैं जानता था लेकिन जानबूझ कर अंजान बना था. तुम्हारे इतना सब करने पर कोई मूर्ख व्यक्ति भी समझ जाएगा कि तुम्हारे दिल में क्या है तो मैं तो पढ़ालिखा हूं. तुम्हारी जुबां से सुनना चाहता था, इसलिए अंजान बनने का नाटक कर रहा था.’’

यह सुनते ही सोनू की खुशी का पारावार न रहा, ‘‘मतलब मुझे इतने दिनों से बना रहे थे कि कुछ नहीं जानते हो. मुझे बता तो देते मैं तो वैसे भी तुम पर वारी जा रही थी.’’ कह कर सोनू आशीष के सीने से लग गई. उस की आंखों में अपनी जीत की खुशी चमक रही थी.

‘‘तुम पत्नी जैसे सब काम कर रही थीं लेकिन एक काम छोड़ कर…’’ शरारती अंदाज में तिरछी नजरों से आशीष ने सोनू को देख कर कहा. सोनू ने एक पल के लिए दिमाग पर जोर दे कर सोचा, फिर अगले ही पल आशीष की बात का मतलब समझते ही वह शरमा गई और उस के सीने में अपना मुंह छिपा लिया. उस के बाद उन के बीच शारीरिक रिश्ता भी कायम हो गया. आशीष और सोनू के बीच उम्र में 18 साल का अंतर था. सोनू 27 साल की थी तो आशीष 45 वर्ष का. सोनू आशीष के साथ उस की पत्नी बन कर रहने लगी. अपने नाम के आगे शुक्ला लगाने लगी. जिस से भी मिलती, बातें करती तो अपने आप को आशीष की पत्नी ही बताती. समय के साथ ब्याहता राखी को पता चल गया कि उस का पति आशीष सोनू नाम की किसी महिला के साथ रह रहा है.

पति आशीष से राखी ने बात की तो उस ने कह दिया कि जैसा वह सोच रही है वैसा कुछ नहीं है. काम के सिलसिले में वह उस के पास रह रही है. आशीष के साथ रहते सोनू उसे अपने वश में करने की पूरी कोशिश करती थी. मसलन किसी भी कागज/दस्तावेज में पत्नी के नाम की जगह आशीष उस का ही नाम डाले. कोई संपत्ति खरीदे तो उस के नाम से ही खरीदे. इस के लिए वह आशीष पर दबाव बनाती थी. आशीष उस की बात को नजरअंदाज कर देता था. सोनू के कहने पर ऐसा वह कर भी नहीं सकता था. लेकिन आशीष को अपनी बात न मानते देख कर सोनू नाराज हो जाती थी. अब उन दोनों में अकसर विवाद होने लगा. सोनू अपने भविष्य को ले कर चिंतित रहने लगी. आशीष से उस ने जिस वजह से रिश्ता बनाया, वह वजह उसे पूरी होती नहीं दिख रही थी.

आशीष का एक दोस्त था 23 वर्षीय आनंद तिवारी. आनंद अकबरपुर थाना क्षेत्र के सिंहमई कारीरात गांव में रहता था. उस के पिता रमेश तिवारी किसान थे. 3 भाइयों में वह सब से बड़ा था और अविवाहित था. आनंद तिवारी आशीष से मिलने उस के कमरे पर आता रहता था. आनंद भी काफी स्मार्ट और जवान था. सोनू से 4 साल छोटा था. आशीष तो दोनों से उम्र में काफी बड़ा था. आनंद से कुछ छिपा नहीं था, वह जानता था कि सोनू आशीष की पत्नी नहीं है, उसे केवल अपने पास रखे हुए है. उस से अपना स्वार्थ सिद्ध कर रहा है. ऐसे में वह भी सोनू के नजदीक आने की जुगत में लग गया.

सोनू आशीष के द्वारा बात न मानने पर तनाव में रहती थी. ऐसे में आनंद उस के पास आता, उस से बातें करता, बातों के दौरान ही हलकाफुलका मजाक भी कर देता तो सोनू का मन बहल जाता. कुछ समय के लिए वह अपना सारा तनाव भूल जाती थी. सोनू भी उस से घुलनेमिलने लगी. दोनों एकदूसरे की चाहत को अपने प्रति समझ रहे थे. चाहत दिल में पैदा हुई तो अधिक समय साथ बिताने लगे. एक दिन आनंद आया तो सोनू चाय बनाने लगी. आनंद को शरारत सूझी तो वह चुपके से सोनू के पीछे पहुंच गया और अचानक चिल्ला दिया. सोनू हड़बड़ा गई. हड़बड़ाहट में वह पीछे मुड़ी तो आनंद को खडे़ पाया, वह मुसकरा रहा था.

सोनू उस की शरारत समझ गई. वह उसे मारने दौड़ी तो वह वापस हुआ तो आगे पलंग था. वह उस से टकराने से बचने के लिए रुका तो पीछे भागी सोनू उस से टकरा गई. दोनों आपस में टकराए तो एक साथ पलंग पर गिर गए. दोनों की सांसें एकदूसरे के चेहरे से टकरा रही थी तो दिल भी आपस में मिल गए. उस समय दोनों के दिल की धड़कनें काफी तेज थीं. तन सटे होने के कारण एकदूसरे के दिल की तेज धड़कनों को दोनों ही महसूस कर रहे थे. दोनों जुबां से तो कुछ नहीं कह रहे थे लेकिन आंखें बहुत कुछ कह रही थीं. आनंद सोनू को इतने नजदीक पा कर खुशी से भर उठा और बेसाख्ता बोला, ‘‘आई लव यू…आई लव यू, सोनू.’’

आनंद के इन मीठे बोलों ने सोनू के कानों को सुखद अनुभूति कराई. उस ने आंखें बंद कीं तो होंठ थिरक उठे, ‘‘आई लव यू टू आनंद.’’

इस के बाद उन के बीच शारीरिक रिश्ता कायम हो गया. सोनू को आनंद के साथ आनंद का सुखद एहसास हुआ. उस दिन के बाद उन के बीच संबंधों का सिलसिला अनवरत चलने लगा. अब सोनू आनंद के साथ जिंदगी बिताने के सपने देखने लगी थी. क्योंकि आशीष से अब उसे किसी प्रकार की उम्मीद नहीं रह गई थी. लेकिन आशीष की सरकारी नौकरी और संपत्ति का लालच उसे जरूर था. आनंद के साथ जिंदगी बिताने के लिए उसे आशीष की नौकरी और संपत्ति की जरूरत थी. वैसे भी इन चीजों को पाने के लिए सोनू ने काफी प्रयास किया था और समय भी बर्बाद किया था. वह ऐसे आसानी से सब छोड़ नहीं छोड़ सकती थी.

इसलिए उस ने आनंद से बात की तो आनंद के मन में भी लालच पैदा हो गया. सरकारी नौकरी और संपत्ति तभी हाथ लग सकती थी, जब आशीष जिंदा न रहे. इसलिए दोनों ने आशीष की हत्या करने का फैसला कर लिया. आशीष की हत्या में साथ देने के लिए आनंद तिवारी ने अपने 2 साथियों मूलसजीवन पांडेय निवासी गांव गंगापुर भुलिया जिला सुलतानपुर और राजीव कुमार तिवारी उर्फ राजू निवासी गांव भारीडीहा अंबेडकरनगर को तैयार कर लिया. मूलसजीवन और राजू दोनों ही अकबरपुर के आरडी लौज में काम करते थे और इस समय वहीं रह रहे थे.  27 नवंबर की रात 11 बजे के करीब सोनू और आशीष का विवाद हुआ. विवाद के बाद आशीष सो गया. सोनू ने आनंद को उस के साथियों के साथ बुला लिया.

आनंद अपनी बजाज पल्सर बाइक से दोनों साथियों को ले कर आशीष के कमरे पर पहुंचा. उन लोगों को आया देख कर सोनू ने धीरे से दरवाजा खोल दिया. तीनों अंदर आ गए. सोते समय आशीष के गले पर तेज धारदार चाकू व कैंची से कई प्रहार किए गए. आशीष चीख भी न सका और उस की सांसों की डोर टूट गई. आशीष को मारने के बाद उन्होंने उस की लाश एक पौलिथिन में लपेट कर उस की ही हुंडई इयान इरा कार में डाल दी और उसे मालीपुर थाना क्षेत्र में मझुई नदी के नेमपुर घाट पर फेंक आए. आने के बाद कार सुलतानपुर के दोस्तपुर थाना क्षेत्र में लावारिस हालत में छोड़ दी. अगले दिन सोनू ने अकबरपुर थाने जा कर आशीष की गुमशुदगी लिखाई.

लेकिन चारों का गुनाह छिप न सका. गिरफ्तार तीनों अभियुक्तों की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त चाकू, कैंची, 5 मोबाइल फोन, पल्सर बाइक और आशीष की इयान कार बरामद कर ली. कानूनी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद तीनों को न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक 23 दिसंबर को थानाप्रभारी विवेक वर्मा ने चौथे अभियुक्त राजीव तिवारी उर्फ राजू को भी गिरफ्तार कर लिया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Bihar News : प्यार की सजा – प्रेमिका के भाइयों ने ले ली बहन के प्रेमी की जान

Bihar News : अंशू साहनी उर्फ लक्की किंग और खुशबू एकदूसरे को दिलोजान से प्यार करते थे. वे शादी भी करना चाहते थे. उन की शादी तो नहीं हो सकी लेकिन इसी दौरान ऐसा कुछ हुआ कि खुशबू को अपने भाइयों के साथ जेल की सलाखों के पीछे जाना पड़ा..

‘‘मां आज खाने में क्याक्या है?’’ किचन में मां आरती देवी से लिपटते हुए बेटे अंशू साहनी उर्फ लक्की ने पूछा.

‘‘तेरे पसंद की मछली करी और भात बनाया है.’’ बेटे के सिर पर हाथ फेरते हुए मां ने कहा.

‘‘वाह! मछली करी और भात.’’ कह कर लक्की चहक उठा और लंबी सांसें भरते हुए बोला, ‘‘कढ़ाई में से कितनी अच्छी खुशबू आ रही है. आज तो खाने में मजा आ जाएगा मां.’’

‘‘पगला कहीं का, ऐसा क्यों कह रहा है जैसे आज के पहले तूने कभी मछली करी और भात खाया ही नहीं.’’

‘‘नहीं, मां. बस ऐसे ही… अब तो खाना परोस दो. बड़े जोरों की भूख लगी है.’’ पेट पर हाथ फेरते हुए लक्की बोला.

‘‘ठीक है, बाबा ठीक है, हाथमुंह धो कर कमरे में बैठो, तब तक मैं खाना परोस कर लाती हूं.’’ कह कर आरती देवी ने 3 कटोरीदार थालियां निकालीं. तीनों थालियों में खाना परोस कर कमरे में ले गईं, जहां लक्की के साथसाथ उस के 2 भाई रीतेश और पिशु बैठे खाने का इंतजार कर रहे थे. खाना खाने के बाद लक्की अपने कमरे में सोने चला गया और दोनों भाई भी वहीं कमरे में चौकी पर ही सो गए. उस के बाद आरती भी अपने कमरे में सोने चली गईं. उस समय रात के करीब 11 बज रहे थे. ये बात 12 दिसंबर, 2020 की थी. रोजमर्रा की तरह अगली सुबह भी आरती देवी करीब 6 बजे उठ गईं. रोज की तरह वह मझले बेटे लक्की के कमरे में झाड़ू लगाने पहुंचीं तो देखा लक्की अपने बिस्तर पर नहीं था.

यह देख कर उन्हें बड़ा अजीब लगा कि इतनी सुबह वह कहां गया होगा? जबकि वह इतनी जल्दी सो कर उठता ही नहीं था. तभी उन्हें याद आया कि वह अकसर बिना किसी को बताए अपने दोस्त जीतू के यहां चला जाता था सोने के लिए. हो सकता है बिना बताए रात वहीं सोने चला गया हो. यह सोच कर आरती देवी लापरवाह हो गईं और अपने कामों में जुट गईं. घर की साफसफाई से जब वह फारिग हुईं और दीवार घड़ी पर नजर डाली तो घड़ी में 8 बज रहे थे. पता नहीं क्यों लक्की को ले कर उस के मन में एक संशय सा उठ रहा था. आरती के दोनों बेटे रीतेश और पिशु भी सो कर उठ चुके थे. बेटों के उठते ही आरती ने बड़े बेटे रीतेश से कहा,

‘‘देखो न, लक्की अपने कमरे में नहीं है. उस का फोन भी बंद आ रहा है. पता नहीं क्यों उसे ले कर मेरे मन में अजीब सा कुछ हो रहा है. देखो न कहां है?’’

‘‘मां, उसे ले कर तुम खामखा परेशान हो रही हो, उस की आदत को तरह जानती तो हो कि कितना लापरवाह है. कितनी बार बिना बताए घर से चला जाता है. और तो और अपना फोन भी बंद रखता है. कहांकहां तलाशता फिरूं? आ जाएगा घर. तुम उस की फिक्र मत करो.’’ रीतेश बोला. आरती देवी समझ रही थीं कि रीतेश जो कह रहा है वह सच है. क्योंकि लक्की कई बार ऐसा कर चुका था. इसलिए घर वाले यही सोच कर निश्ंिचत हो गए कि लक्की रात भी वहीं गया होगा. घड़ी में 9 बज गए, उस का फोन अभी भी बंद आ रहा था और वह घर भी नहीं लौटा तो आरती परेशान हो गई और रीतेश को उस के बारे में पता करने को कहा. मां को परेशान देख रीतेश ने लक्की के फोन पर काल की लेकिन फोन बंद था.

यह देख कर रीतेश भी परेशान हो गया. उस ने लक्की के दोस्त जीतू को फोन कर के लक्की के बारे में पूछा तो जीतेश ने बताया कि लक्की तो उस के पास आया ही नहीं था. जीतू की बात सुन रीतेश के पैरों तले से जैसे जमीन खिसक गई. उस ने जीतू से पूछा, ‘‘अगर लक्की तुम्हारे पास नहीं आया तो वह कहां गया?’’

‘‘मुझे नहीं पता वह कहां गया भैया,’’ जीतू ने सामान्य तरीके से जबाव दिया, ‘‘यहां आया होता तो मैं जरूर बताता. मैं और दोस्तों को फोन कर के पता करता हूं कि वह कहीं किसी और के पास तो नहीं रुका है?’’

‘‘ठीक, जल्द पता कर के बताओ तब तक मैं उसे तलाशता हूं.’’ कह कर रीतेश ने फोन काट दिया. रीतेश ने मां को लक्की के जीतू के घर न पहुंचने की बात बताई. तब वह और ज्यादा परेशान हो गईं और उन्होंने उसे उस का पता लगाने के लिए भेज दिया. रीतेश सीधा अपने चाचा कृष्णदेव साहनी के घर पहुंच गया. उस के चाचा 2 घर छोड़ कर अपने परिवार के साथ नए घर में रहते थे. उस ने चाचा से पूरी बात बता दी. लक्की के गायब होने की बात सुन कर कृष्णदेव भी चौंके. लक्की की खोज में वह उस के साथ हो लिए. चाचाभतीजा घर से जैसे ही थोड़ी दूर पहुंचे तभी मछली बेचने वाले कुछ दुकानदार उन के पास पहुंचे और उन्होंने जो बताया उसे सुन कर दोनों के होश उड़ गए.

दुखद खबर से उड़े होश दरअसल, पिशु की वजह से मछली दुकानदार उन्हें अच्छी तरह पहचानते थे. पिशु भी मछली बेचने का धंधा करता था. बहरहाल, दुकानदारों ने बताया कि इसी इलाके की अजीमाबाद सड़क के किनारे लक्की की खून सनी लाश पड़ी है. किसी ने गला रेत कर उस की हत्या कर दी है. भाई की हत्या की बात सुनते ही रीतेश एकदम से बदहवास सा हो गया. ऐसा लगा जैसे गश खा कर वहीं गिर जाएगा. उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या करे? बदहवास और दौड़ता हुआ वह उस जगह पहुंचा, जहां लक्की की लाश पड़ी थी. खून से सनी लक्की की लाश देख कर रीतेश दहाड़ मार कर रोने लगा. चाचा कृष्णदेव साहनी भी भावुक हो काठ बन गए थे. जैसे काटो तो खून नहीं. इन्होंने भतीजे को संभालते हुए जमीन पर बैठा दिया. थोड़ी देर में लक्की की हत्या की खबर घर तक पहुंच गई.

बेटे की हत्या की खबर मिलते ही आरती देवी गश खा कर गिर पड़ीं. घर में मौजूद पिशु ने मां को संभाला. भाई की मौत की खबर सुन कर वह भी हतप्रभ था. देखते ही देखते लक्की की मौत की खबर पूरे मोहल्ले में फैल गई थी. मोहल्ले के सैकड़ों लोग आरती के घर के बाहर जमा हो गए. आरती और उन के दोनों बेटों को शक था कि लक्की की हत्या फिरोज मलिक और उस के घरवालों ने ही की होगी. यह बात आरती ने मोहल्ले वालों को भी बता दी. इंतकाम की आग में जलते हुए मोहल्ले के लोग घटनास्थल पहुंच गए थे. हत्यारों ने बड़ी बेरहमी से चाकू से गला रेत कर लक्की की हत्या की थी. लाश देख कर लोग गुस्से से भर गए.

गुस्साए लोग लाश वहीं छोड़ कर आरोपियों के घर की ओर चल दिए. इस बीच मौके की स्थिति को भांप कर किसी ने बहादुरपुर थाने में फोन कर घटना के बारे में जानकारी दे दी थी. सूचना मिलते ही बहादुरपुर थाने के थानाप्रभारी सनोवर खान फोर्स के साथ अजीमाबाद पहुंच गए जहां लक्की की लाश पड़ी हुई थी. वह घटना की जांच में जुट गए. आरोपी घटनास्थल से थोड़ी दूरी पर स्थित सेक्टर-डी, अजीमाबाद कालोनी में रहते थे. गुस्साए लोगों ने आरोपियों के घर पर पत्थरबाजी शुरू कर दी. यह जानकारी थानाप्रभारी को मिली तो वह घटनास्थल से अजीमाबाद कालोनी पहुंच गए. उन्होंने भीड़ को समझाने की कोशिश की. लेकिन भीड़ नियंत्रित नहीं हो पा रही थी. यह देख उन्होंने उच्चाधिकारियों को सूचित कर दिया.

घटना की सूचना पा कर डीएसपी अमित शरण और एसपी (सिटी पूर्वी) जितेंद्र कुमार बगैर समय गंवाए मौके पर पहुंच गए. फिर फोर्स ने मोर्चा संभाल लिया. लोगों ने की आगजनी पुलिस सेक्टर-डी में आक्रोशित लोगों को संभालने में जुटी हुई थी, तभी घटनास्थल से करीब 3 किलोमीटर दूर कुम्हरार बाईपास के पास गुस्साए लोगों की भीड़ भड़क उठी. हत्या से नाराज भीड़ बाईपास पर आगजनी कर बवाल कर रही थी और हत्यारों को फांसी देने तथा मृतक की मां आरती देवी की आर्थिक सहायता करने की मांग कर रही थी. धीरेधीरे घटना दंगे का रूप ले रही थी. एसपी जितेंद्र कुमार ने हालात की संवेदनशीलता को देखते हुए थानाप्रभारी (सुल्तानगंज) शेर सिंह राणा, थानाप्रभारी (आलमगंज) सुधीर कुमार और बीएमपी के जवानों को कुम्हरार बाईपास पर तैनात कर दिया ताकि हिंसा को काबू किया जा सके क्योंकि मामला 2 समुदायों से जुड़ा हुआ था और धीरेधीरे दंगे का रूप ले चुका था.

घंटों चला उपद्रव एसपी जितेंद्र कुमार के आने और समझाने के बाद समाप्त हो सका. एसपी के निर्देश पर डीएसपी अमित शरण ने आरोपी अरमान मलिक, उस की बहन खुशबू और फुफेरे भाई अजहर को गिरफ्तार कर लिया. आरोपितों के गिरफ्तार होने के बाद हालात पर काबू पा लिया गया था. गिरफ्तार किए तीनों आरोपितों को थाने ला कर उन से अलगअलग पूछताछ की गई. पूछताछ के दौरान खुशबू ने सच कबूल लिया. उस ने बताया कि लक्की से उस के प्रेम संबंध थे. लेकिन इन संबंधों की वजह से उसे थाने आना पड़ेगा, इस की उस ने कल्पना तक नहीं की थी. इस के बाद पुलिस ने अरमान और अजहर से पूछताछ की तो लक्की हत्याकांड की कहानी कुछ इस तरह सामने आई—

19 वर्षीय अंशु साहनी उर्फ लक्की किंग मूलरूप से पटना के बहादुरपुर थाने के अजीमाबाद संदलपुर का रहने वाला था. 3 भाइयों रीतेश, लक्की और पिशु में वह दूसरे नंबर का था. पिता संजय साहनी की बीमारी से मौत हो चुकी थी. पिता की मौत के बाद मां आरती देवी ने तीनों बेटों का पालनपोषण किया. आरती देवी का साथ दिया उन के देवर कृष्णदेव साहनी ने, सच्चा सारथी बन कर. भाई की मौत के बाद उन्होंने भाभी को कभी भी अकेला नहीं छोड़ा. उन की मदद के लिए वह हमेशा तत्पर रहे एक देवर की तरह नहीं, बल्कि एक बेटे की तरह. रीतेश, लक्की और पिशु तीनों चाचा कृष्णदेव का दिल से सम्मान करते थे. चाचा का एकएक शब्द उन के लिए पत्थर की लकीर होती थी, वह जो कहते थे तीनों उन की बात मानते थे.

ठाटबाट से रहता था लक्की तीनों भाई धीरेधीरे बड़े हो चले थे. तीनों भाइयों में से लक्की सब से अलग सोच का था. शरीर से चुस्तदुरुस्त और दिमाग से चंचल लक्की खुद को किसी राजा से कम नहीं समझता था. इसीलिए वह अपने नाम के आगे किंग लगाता था. लक्की औनलाइन कंपनी अमेजन का डिलीवर बौय था. हालांकि उस का सपना, सिर्फ सपना ही था. सपने को हकीकत में बदलने के लिए ढेर सारे पैसे चाहिए थे जो उस के पास नहीं थे. बड़ा भाई रीतेश मोटर मैकेनिक था, वह खुद डिलीवरी बौय का काम करता था जबकि छोटा भाई पिशु मछली बेचता था. अपनी कमाई का सारा पैसा वह खुद पर खर्च करता था.

अपनी कमाई के पैसे से महंगे और अच्छे कपड़े खरीदना, महंगा मोबाइल फोन रखना, काम से निपटने के बाद दोस्तों के साथ पार्टी करना लक्की की दिनचर्या में शामिल था. बात करीब एक साल पहले की है. एक दिन अरमान मलिक के नाम से अमेजान कंपनी से एक पार्सल आया. लक्की दोपहर करीब एक बजे डिलीवरी देने अरमान के घर पहुंचा. उस दिन अरमान घर पर नहीं था. वह किसी काम से बाहर गया हुआ था. उस की छोटी बहन खुशबू डिलीवरी लेने घर से बाहर निकली. 16 साल की खुशबू बला की खूबसूरत थी. खुशबू को देख कर वह अपलक उसे निहारता रह गया. उसे देख कर लक्की पहली ही नजर में उस पर लट्टू हो गया था.

खुशबू पार्सल रिसीव कर के बलखाती हुई घर के भीतर चली गई. लक्की उसे निहारता रह गया. रात ड्यूटी से घर लौटने के बाद जब लक्की खाना खाने बैठा तो उस की आंखों के सामने खुशबू की खूबसूरती थिरकने लगी. खाना खातेखाते उस के खयालों में खो गया. दोनों भाई खाना खा कर कब उठ गए, उसे पता ही नहीं चला. उस रात जब घर के सभी लोग सोने के लिए अपनेअपने कमरे में चले गए तो लक्की बिना घर वालों को बताए चुपके से रात 12 बजे के करीब अपने जिगरी दोस्त जीतू के घर जा पहुंचा. जीतू किराए का कमरा ले कर अकेला ही रहता था. पूरी रात लक्की उस से खुशबू के बारे में बातें करता रहा. दिल में बसा ली थी खुशबू अगले दिन लक्की जब डिलीवरी के लिए सामान ले कर घर से निकला तो वह सीधे ग्राहक के घर न जा कर अरमान के घर के रास्ते हो कर निकला ताकि खुशबू का दीदार हो जाए.

लेकिन वह कहीं नहीं दिखी तो लक्की काम पर निकल गया. रात में घर लौटते समय भी वह उसी के घर के सामने से हो कर निकला ताकि खुशबू को एक नजर देख सके. लेकिन निराशा ही हाथ लगी. मायूस हो कर लक्की घर लौट आया. अगले दिन काम पर जाते हुए लक्की फिर उसी के घर के सामने से निकला तो दरवाजे पर खुशबू खड़ी मिल गई. उसे देखते ही लक्की के चेहरे पर खुशी उमड़ पड़ी. उसे देख वह मुसकराता हुआ बाइक से आगे बढ़ गया. लक्की खुशबू से बात करना चाहता था लेकिन उसे इस का जरिया नहीं मिला. इसी दौरान उसे उस फोन नंबर का ध्यान आया जो खुशबू ने पार्सल रिसीव करते समय लिखा था. उसी फोन नंबर पर बात कर के लक्की खुशबू के करीब पहुंच ही गया.

खुशबू के भी दिल में लक्की के लिए चाहत पैदा होने लगी थी. वह भी लक्की से प्यार करने लगी थी. दो जवां दिलों में एकदूजे के लिए प्यार की इबारत लिखी जा रही थी. मौका मिलने पर वे घर से बाहर भी मुलाकातें करने लगे. मोहब्बत का इजहार और इकरार करने के बाद दोनों चोरीछिपे यहांवहां मिलते और प्यार की बातें करते. लक्की खुशबू को खुश रखने के लिए खूब पैसे खर्च करता और मंहगे तोहफे देता था. लक्की से प्यार होने के बाद खुशबू के पांव जमीन पर नहीं पड़ रहे थे. पहली बार घर वालों ने खुशबू के बदले हावभाव देखे तो उन्हें उस पर शक हो गया कि मामला कुछ गड़बड़ है. उस दिन के बाद से उस का बड़ा भाई अरमान बहन पर नजर रखने लगा. वैसे भी अरमान को कहीं से उड़ती हुई खबर मिल चुकी थी कि खुशबू का किसी अंजान लड़के के साथ चक्कर चल रहा है.

अरमान ने धमकाया लक्की को उस दिन के बाद से अरमान बहन के प्रेमी को ढूंढने में जुट गया. आखिरकार अरमान ने एक दिन लक्की को बहन से बातें करते देखा तो उसे धमकाया, ‘‘2 टके के डिलीवरी बौय, तेरी हिम्मत कैसे हुई मेरी बहन पर बुरी नजर डालने की. आज के बाद तूने फिर से उस की तरफ नजर उठा कर देखा तो तेरी आंखें निकाल लूंगा.’’

लक्की को धमकाने के बाद अरमान खुशबू को ले कर घर चला गया और लक्की अपने काम पर निकल गया. घर पहुंच कर अरमान ने खुशबू की करतूतें मांबाप से बताईं. घर वाले बेटी की करतूत जान क र शर्मसार हो गए और उन्हें उस पर गुस्सा भी खूब आया. उन्होंने बेटी पर हाथ भर नहीं उठाया, पर उसे खूब जलील किया. मां ने उसे समझाया, ‘‘बेटी, जो किया सो किया. कम से कम घर की इज्जत तो बाजार में मत उछाल. तू पढ़लिख. वक्त आने पर तेरे अब्बू अच्छा लड़का देख कर तेरा निकाह धूमधाम से कर देंगे. तू ऐसे छिछोरों के साथ गलबहियां जोड़ कर घर की इज्जत मत बेच. समझी.’’

सिर झुकाए खुशबू मां की बातें चुपचाप सुन रही थी. उस समय उस ने मां से झूठ बोल कर मामला वहीं खत्म कर दिया और वादा किया कि अब वह लक्की से कभी नहीं मिलेगी और न ही बात करेगी. बेटी के किए वादे पर उन्हें यकीन हो गया था कि अब वह कोई ऐसी हरकत नहीं करेगी, जिस से घर वालों को शर्मिंदा होना पड़े. पर बात यहीं खत्म नहीं हुई. अरमान ने फुफेरे भाई अजहर के साथ मिल कर लक्की के घर का पता लगा लिया था. एक दिन वह उस के घर पहुंच गया. उस ने उस की मां को धमकी भरे अंदाज में कहा, ‘‘आंटी, तू अपने बेटे लक्की को समझा देना, वह मेरी बहन से दूर ही रहे तो उस के लिए अच्छा है, नहीं तो इस का नतीजा बहुत बुरा होगा.’’

अरमान और अजहर चले गए. लेकिन आरती देवी एकदम से सन्न रह गई थीं. बेटे को ले कर उन्हें चिंता सताने लगी थी कि कहीं उस के साथ कोई ऊंचनीच न हो जाए. वह लक्की के घर लौटने की राह देखने लगी. रात में जब लक्की ड्यूटी से घर लौटा तो खाना खिलाने के बाद मां ने उसे समझाया और बताया कि दूसरों की इज्जत से खेलने का अंजाम बहुत बुरा होता है. तू संभल जा बेटा. आज 2 लड़के घर आ कर मुझे धमका गए हैं. बेटा, मेरे जीने का तुम्हीं सब सहारा हो, अगर तुम्हें कुछ हुआ तो मैं किस के सहारे जीऊंगी? मेरी बात मान बेटा, तू उस लड़की का चक्कर छोड़ कर अपने काम में मन लगा. समय आने पर अच्छी लड़की देख कर तेरी शादी करा दूंगी.

मां की बात सुन कर लक्की सकपका गया कि उस के प्यार का राज खुल गया है. वह उलटा मां को ही समझाने लगा, ‘‘मां, खुशबू बहुत अच्छी लड़की है. मैं उसे बहुत प्यार करता हूं, वह भी मुझे बहुत चाहती है. हम दोनों शादी करना चाहते हैं, मां. हमें बस तुम्हारे आशीर्वाद की जरूरत है.’’

लक्की मां के सामने फिल्मी डायलौग मारने लगा. बेटे की बात आरती को तनिक भी अच्छी नहीं लगी. तभी उस ने उस के कान के नीचे एक झन्नाटेदार थप्पड़ रसीद किया. वह तिलमिला कर रह गया. आरती को बेटे की चिंता सताने लगी थी क्योंकि उन्होंने उन दोनों लड़कों के तेवर देखे थे. कितने गुस्से में थे वे. फिलहाल मां के समझाने का लक्की पर कोई असर नहीं हुआ. वह खुशबू से अब भी छिपछिप कर मिल रहा था. लक्की के बिना जी पाना खुशबू के लिए भी मुश्किल होता जा रहा था. दोनों ने फैसला किया कि चाहे जो कुछ हो जाए, वे कभी जुदा नहीं होंगे. जमाने से लड़ कर अपने प्यार को हासिल करेंगे. इधर, भले ही खुशबू मांबाप को यकीन दिलाने में कामयाब हो गई थी लेकिन भाई अरमान की नजर बहन पर ही टिकी थी.

उसे पता चल गया था कि खुशबू मांबाप की आंखों में धूल झोंक कर छिपछिप कर लक्की से मिलती है. उस के दिमाग में एक खतरनाक प्लान ने जन्म लिया. उस ने अपनी योजना में फुफेरे भाई अजहर को भी शामिल कर लिया था. लिख डाली खूनी इबारत अजहर कोई छोटामोटा आदमी नहीं था. वह बहादुरपुर थाने का हिस्ट्रीशीटर था. उस पर कई आपराधिक मुकदमे दर्ज थे. अजहर के षडयंत्र में शामिल होने से अरमान को बल मिल गया था. योजना को अंजाम देने के लिए अरमान और अजहर ने खुशबू को धमका कर अपने षडयंत्र में शामिल कर लिया था. क्योंकि खुशबू के बिना उन की यह योजना पूरी नहीं हो सकती थी. प्लान के मुताबिक 12/13 दिसंबर, 2020 की रात एक बजे खुशबू ने लक्की को फोन किया और उसे मिलने के लिए उसी समय घर के पीछे बुलाया.

खुशबू का फोन आते ही लक्की कपड़े पहन कर मोबाइल साथ ले कर चुपके से घर से निकल गया. उस समय घर के सभी लोग गहरी नींद में सो रहे थे. वह घर से थोड़ी दूर पहुंचा तो रास्ते में उसे अरमान और अजहर मिल गए. दोनों को देखते ही लक्की समझ गया था कि खुशबू ने धोखे से उसे यहां बुलाया है. इन से बचना कठिन है. वह खतरे को भांप चुका था. जैसे ही उस ने वहां से भागने की कोशिश की दोनों ने दौड़ कर उसे पकड़ लिया. कसरती बदन वाले अजहर ने अपना मजबूत हाथ लक्की के मुंह पर रख दिया ताकि वह चिल्ला न सके. उस के हाथों के दबाव से लक्की की आवाज गले में घुट कर रह गई.

तब तक दोनों ने उसे जमीन पर पटक दिया. अरमान ने लक्की के दोनों पैर पकड़ लिए. अजहर ने कमर में खोंसा धारदार चाकू निकाला और लक्की का गला रेत दिया. थोड़ी देर में लक्की की मौत हो गई. इतने पर भी उसे यकीन नहीं हुआ तो उस के सीने पर चाकू से ताबड़तोड़ वार किए. फिर दोनों वहां से फरार हो गए और साथ में उस का फोन भी ले गए. भागते हुए उन्होंने खून से सना चाकू झाड़ी में फेंक दिया ताकि पुलिस उन तक कभी न पहुंच पाए. लेकिन कातिल कितना ही चालाक क्यों न हो, कानून की गिरफ्त से ज्यादा दिन दूर नहीं रह सकता.

मृतक की मां आरती देवी की नामजद तहरीर पर लक्की की हत्या के आरोप में पुलिस ने खुशबू, अरमान मलिक और अजहर को गिरफ्तार कर लिया. आरती देवी ने अरमान के पिता फिरोज मलिक को भी नामजद किया था, लेकिन मुकदमा दर्ज होने के बाद वह घर से फरार हो गया था. पुलिस ने आरोपियों की निशानदेही पर लक्की की हत्या में प्रयुक्त चाकू भी बरामद कर लिया. कथा लिखे जाने तक 3 आरोपी जेल में बंद थे. काश! लक्की ने अपनी मां का कहना मान लिया होता तो आज वह जिंदा रहता.

—कथा में खुशबू परिवर्तित नाम है. कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

अवैध संबंध का नतीजा : भांजे संग मिलकर कर डाला पति का कत्ल

Rajasthan Crime News :  कभीकभी औरतें मौजमजे के चक्कर में अपनी गृहस्थी खुद ही उजाड़ लेती हैं. 4 बच्चों की मां किरण की घरगृहस्थी अच्छीखासी चल रही थी, लेकिन उस ने 18 वर्षीय भांजे शंभूदास को अपने प्रेमजाल में फांस लिया. इस का जो नतीजा निकला वह…

मंगलवार, 5 जनवरी 2021 का सूरज उदय ही हुआ था कि मूंडवा थाने में फोन द्वारा सूचना मिली के मूंडवा गांव के सरोवर के पास मंदिर से सटे घर में चारपाई पर सुरेश की लाश पड़ी है. सुरेश की रात में अज्ञात हत्यारों ने सोते समय धारदार हथियार से हत्या कर दी है. सूचना मिलते ही मूंडवा थानाप्रभारी बलदेवराम पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर जा पहुंचे. घटनास्थल पास में ही था, इसलिए वह वहां 10 मिनट में ही पहुंच गए. वहां आसपास के लोगों की भीड़ जमा हो गई थी. उन्हें हटा कर पुलिस मकान के अंदर पहुंची, जहां चारपाई पर मृतक सुरेश साद (35 वर्ष) की खून से लथपथ लाश पड़ी थी. मृतक पुजारी परिवार से था.

खून के छींटे फर्श और दीवारों पर भी लगे थे. थानाप्रभारी बलदेवराम ने जांचपड़ताल और मौकामुआयना किया. घर की दीवारें काफी ऊंची थीं, इस कारण प्रथमदृष्टया ऐसा लग रहा था कि जिस ने भी हत्या की थी, वह दीवार फांद कर घर में नहीं आया था. तो क्या हत्या में घर के किसी सदस्य का हाथ है? अगर हाथ है तो वह कौन है और उस ने हत्या क्यों की? ये तमाम सवाल थानाप्रभारी के जेहन में आजा रहे थे. थानाप्रभारी बलदेवराम ने सुरेश साद हत्याकांड की जानकारी अपने उच्चाधिकारियों को दी. मामला मंदिर के पुजारी से जुड़ा था. ऐसे मामले में राजनीति बहुत जल्द शुरू हो जाती है.

इस कारण घटना की खबर मिलते ही एएसपी राजेश मीणा, सीओ विजय कुमार सांखला और एसपी (नागौर) श्वेता धनखड़ घटनास्थल पर आ पहुंचे. घटनास्थल पर पुलिस अधिकारियों ने मौकामुआयना किया और नागौर से एफएसएल की टीम और एमओबी टीम को मौके पर बुला कर साक्ष्य इकट्ठा किए. पुलिस टीम ने मृतक के घर वालों से पूछताछ की. पूछताछ में घर वालों ने बताया कि सुरेश रात में पशुओं को चारा खिलाने गया था. रात में वह चारा खिलाने के बाद बरामदे में चारपाई पर आ कर सो गया. अगली सुबह 5 जनवरी को जब मृतक सुरेश की पत्नी किरण ने आ कर पति को आवाज दी तो कोई जवाब नहीं मिला.

फिर वह किरण बरामदे में आई और जैसे ही चारपाई पर खून से लथपथ पति की लाश देखी तो वह रोनेचिल्लाने लगी. तब घर के अन्य सदस्य दौड़ कर आए. उन्होंने देखा कि सुरेश की खून से लथपथ लाश बिस्तर पर पड़ी थी. तब उन्होंने थाना मूंडवा में फोन कर खबर दी. इस के बाद मूंडवा थाना पुलिस घटनास्थल पर आई और जांच शुरू की. मृतक मंदिर में बने घर में रहता था. सुरेश के परिवार में उस की पत्नी किरण (30 साल) के अलावा 4 बच्चे थे. घटना वाली रात किरण कमरे में बच्चों के साथ सो रही थी जबकि सुरेश बाहर बरामदे में ही सोता था. एसपी श्वेता धनखड़ ने मृतक की पत्नी किरण से पूछा, ‘‘आप ने रात में क्या कोई चीख सुनी थी?’’

‘‘नहीं, मैं ने कुछ भी नहीं सुना.’’ किरण बोली.

मृतक के अन्य परिजनों से भी पूछताछ की गई. मगर सभी ने यही कहा कि उन्होंने कोई आवाज या खटका वगैरह नहीं सुना था. तब एसपी श्वेता धनखड़ ने पूछा, ‘‘किसी से कोई दुश्मनी थी क्या सुरेश की? किसी से कोई लड़ाईझगड़ा हुआ हो या किसी पर शक हो तो बताएं.’’

मृतक के परिजनों ने कहा कि मृतक शांत स्वभाव का था. उस की किसी से दुश्मनी नहीं थी. न ही किसी से उस का लड़ाईझगड़ा हुआ था. मृतक के परिजनों का कहना था कि उन्हें किसी पर शक नहीं है. कोई घर में आ कर सोते व्यक्ति को धारदार हथियार से मार कर चला गया और मृतक के बीवीबच्चे और भाई तथा अन्य सदस्यों को भनक तक नहीं लगी. घर की दीवार इतनी ऊंची थी कि उस पर चढ़ कर अंदर आना संभव नहीं था. न ही घर के चारों ओर की दीवारों के पास किसी के पैरों के निशान थे. अगर कोई दीवार पर चढ़ता तो उस के पदचिह्न जरूर होते. मगर पैरों के निशान नहीं थे. ऐसे में पुलिस अधिकारियों को मृतक के परिवार के लोगों पर शक हुआ कि हो न हो इस हत्याकांड में परिवार का कोई व्यक्ति शामिल है.

पुलिस टीम ने शव पोस्टमार्टम के लिए अस्पताल भिजवा दिया. एफएसएल टीम ने साक्ष्य एकत्र किए. शव पर धारदार हथियार के 3-4 गहरे जख्म थे. हालांकि पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने तक का इंतजार करना था. पुलिस टीम ने मृतक के परिजनों सहित ग्रामीणों से भी पूछताछ की. हालांकि उस समय तक इस मामले में कोई सुराग हाथ नहीं लगा था. फिर भी पुलिस अधिकारी हत्याकांड के परदाफाश के लिए जीजान से जुटे थे. एसपी श्वेता धनखड़ ने एएसपी राजेश मीणा, डिप्टी विजय कुमार सांखला और मूंडवा थानाप्रभारी बलदेवराम को दिशानिर्देश दे कर कहा कि जल्द से जल्द हत्याकांड का परदाफाश कर हत्यारों को गिरफ्तार किया जाए.

एसपी श्वेता धनखड़ दिशानिर्देश दे कर नागौर लौट गईं. पुलिस अधिकारियों का शक मृतक की पत्नी किरण पर था. इस का कारण था कि बरामदे के पास के कमरे में वह अपने चारों बच्चों के साथ सोई थी. सुरेश का मकान सुनसान इलाके में था, जहां शोरशराबा नहीं था. ऐसे में कोई आ कर हत्या कर दे और बरामदे से सटे कमरे में पता नहीं चले, यह असंभव था. इस कारण एकबार किरण पुलिस की निगाहों में आई तो उस की कुंडली खंगाली जाने लगी. सुरेश का शव पोस्टमार्टम के बाद उस के परिजनों को सौंप दिया गया. परिजनों ने उस का अंतिम संस्कार कर दिया. एसपी के निर्देश पर सुरेश साद हत्याकांड का परदाफाश करने के लिए एएसपी राजेश मीणा, सीओ विजय कुमार सांखला के नेतृत्व में थानाप्रभारी बलदेवराम सहित अन्य पुलिसकर्मियों ने जांच शुरू की.

मृतक की पत्नी किरण साद के मोबाइल की काल डिटेल्स निकलवाई गई. साथ ही पुलिस ने अपने मुखबिरों को भी सक्रिय कर दिया. काल डिटेल्स से पता चला कि जोधपुर जिले के बनाड़ थाने के गांव दईकड़ा निवासी शंभूदास साद से किरण की दिन में कईकई बार घंटों तक बातें होती थीं. शंभूदास मृतक का भांजा था. पुलिस अधिकारियों को मुखबिर से भी सूचना मिल चुकी थी कि शंभूदास और किरण के अवैध संबंध हैं. बस फिर क्या था, पुलिस ने मृतक सुरेश के 21 साल के भांजे शंभूदास को पूछताछ के लिए दबोच लिया. पुलिस ने उस से पूछताछ की तो पहले तो वह टालमटोल करता रहा मगर पुलिस ने सख्ती की तो वह टूट गया और अपना जुर्म कबूल कर लिया कि मामी किरण से उस के अवैध संबंध हैं.

मामा सुरेश को उन के संबंधों पर शक हो गया था. इस कारण वह मामीभांजे के संबंधों के बीच रोड़ा बनने लगा था. इस कारण उन दोनों ने योजनानुसार उस की हत्या कर दी. जुर्म कबूल करते ही पुलिस ने किरण को भी हिरासत में ले लिया और पूछताछ की. किरण पहले तो मना करती रही मगर जब उसे बताया गया कि शंभूदास ने सब कुछ बता दिया है तो वह टूट गई और उस ने भी अपना जुर्म कबूल लिया कि नाणदे (भांजे) के साथ उस के अवैध संबंध थे. तब पुलिस ने मृतक सुरेश साद के भाई की रिपोर्ट पर सुरेश की हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया और हत्यारोपी शंभूदास और किरण को गिरफ्तार कर लिया. पुलिस टीम ने शंभूदास और किरण को 8 जनवरी, 2020 को कोर्ट में पेश कर रिमांड पर लिया और कड़ी पूछताछ की. पूछताछ में जो कहानी प्रकाश में आई वह इस प्रकार से है—

राजस्थान के नागौर जिले के अंतर्गत एक कस्बा मूंडवा आता है. मूंडवा के छोर पर तालाब है, जहां मंदिर बना है. इस मंदिर के पुजारी साद परिवार के लोग हैं. इस साद परिवार में सुरेश साद थे. सुरेश साद की शादी करीब 12 साल पहले किरण से हुई थी. सुरेश मंदिर में पुजारी का काम करने के अलावा पशुधन भी रखता था. पशुधन के अलावा वह गांव में यजमानों के घर से अनाज व आटा भी लाता था. इस से उस के परिवार की गुजरबसर आराम से होती थी. सुरेश साद सीधासादा व सरल स्वभाव का व्यक्ति था. वह अपनी पूजापाठ व गृहस्थी में मस्त था. समय के साथ सुरेश की पत्नी किरण 4 बच्चों की मां बन गई थी. 4 बच्चे पैदा करने के बाद भी 30 साल की किरण की आकांक्षाएं अब भी जवान थीं.

सुरेश की उम्र 35 साल के आसपास थी. वह दिन भर पूजापाठ के अलावा पशुओं में खटता था और थकामांदा रात को आ कर बिस्तर पर सो जाता और खर्राटे भरने लगता. जबकि किरण शारीरिक सुख के लिए तड़प कर रह जाती थी. ऐसे में करीब ढाईतीन साल पहले जब शंभूदास अपनी ननिहाल मूंडवा आया तो वह मामी किरण की आंखों को भा गया. शंभूदास भी 18 साल का था. वह इंटरनेट पर अश्लील फिल्में देख कर औरत का सामीप्य पाने को आतुर था. ऐसे में जब उस की निगाह सांवलीसलोनी मामी किरण पर पड़ी तो वह उस का दीवाना हो गया. वह मामी पर लार टपकाने लगा.

मामी भी कोई नादान नहीं थी कि नाणदा (भांजे) के व्यवहार को न समझती. शंभूदास मामी के शरीर को छूने की कोशिश करता. सुरेश एक रोज बाहर गया था. उस रोज रात में एक ही कमरे में सो रहे शंभूदास और किरण मामी के बीच शारीरिक संबंधों की नींव पड़ गई. उस रात शंभूदास और किरण ने जी भर कर हसरतें पूरी कीं. किरण को कई साल बाद उस रात शारीरिक सुख की तृप्ति मिली थी. वह शंभूदास के पौरुष की कायल हो गई. वे दोनों अपना मामीभांजे का पवित्र रिश्ता शर्मसार कर बैठे थे. एक बार वासना के गर्त में डूबे तो उस में वक्त के साथ डूबते ही चले गए. शंभूदास अकसर ननिहाल के चक्कर काटने लगा. ननिहाल आने का मकसद सिर्फ मामी किरण थी. दोनों मौका मिलते ही हसरतें पूरी कर लेते.

शंभूदास का ननिहाल था. मगर जब वह महीने में 3-4 बार आने लगा तो सुरेश को थोड़ा अजीब लगा. एक दिन उस ने कहा, ‘‘शंभू, कुछ कामधंधा करो. अब तुम बच्चे नहीं हो, जो गाहेबगाहे यहां चले आते हो. बहन और बहनोई सा को कुछ कमा कर दो. वे कितने दिन तक तुम सब का पेट भरेंगे.’’ मामा सुरेश की बात शंभू को कांटे की तरह चुभ गई. मगर वह कुछ बोला नहीं. इस के बाद शंभूदास महीने में एक बार आने लगा. किरण उसे फोन कर के कहती कि मामा की बात का बुरा नहीं मानो, वह ऐसे ही हैं. तुम्हारे बगैर मैं जल बिन मछली की तरह तड़पती हूं. आ कर मेरी तड़प शांत तो किया करो. यह तनमन सब तुम्हारा है. ऐसे में शंभूदास को आना ही पड़ता था. उस का मन तो मामी को छोड़ने का होता ही नहीं था. मगर बिछुड़ने की मजबूरी थी.

इस कारण मन मार कर दोनों को जुदाई सहनी पड़ती थी. सुरेश सीधासादा जरूर था मगर वह नासमझ नहीं था. वह अपने भांजे शंभू के आने पर पत्नी के चेहरे पर खुशी की लकीरें देखता था. शंभू के जाने पर किरण का चेहरा मुरझा जाता था. तब सुरेश को इन के संबंधों पर शक होने लगा. अगली बार जब शंभूदास ननिहाल आया तो सुरेश साद ने वह सब अपनी आंखों से देख लिया जिस का उसे शक था. सुरेश ने किरण और भांजे शंभूदास को रंगरलियां मनाते देख लिया. पत्नी के इस रूप को देख कर सुरेश हतप्रभ रह गया. शंभू के आने पर पत्नी के चेहरे की खुशी का यह राज है, जान कर वह परेशान हो गया. वह करे तो क्या? अगर बात खुली तो जगहंसाई होगी.

सोचविचार कर सुरेश ने किरण से एकांत में कहा, ‘‘अपने जैसा शंभू को भी बना दिया. वह तेरे बेटे जैसा है. उस के साथ रंगरलियां मनाने से पहले तू मर क्यों नहीं गई. अगर आज के बाद तू शंभू से मिली तो मैं तुझे जान से मार दूंगा.’’

सुन कर किरण के पैरों तले से जमीन सरक गई. वह नजरें नीची किए जमीन कुरेदती रही. उस ने पति से अपने किए की माफी मांगी और कहा कि वह अब शंभू से कभी नहीं मिलेगी. उस का यहां आना बंद करा देगी. किरण ने त्रियाचरित्र दिखाया तो भोलाभाला सुरेश समझा कि वह सुधर जाएगी. उस ने बीवी को माफ कर दिया. मगर यह सुरेश की गलतफहमी थी. किरण ने शंभू को बता दिया कि उस के मामा ने उन दोनों को आपत्तिजनक स्थिति में देख लिया है. वह सचेत रहे. शंभू और किरण एकदूसरे के सामीप्य को तरस उठे. सुरेश उन्हें राह का कांटा लगा. उसे हटाए बिना वे मिल नहीं सकते थे. ऐसे में दोनों ने योजना बना ली. योजना यह थी कि शंभूदास छिप कर कुल्हाड़ी ले कर किरण के घर आ कर नीचे वाले कमरे में छिप जाएगा.

रात में सुरेश बरामदे में ही सोता था. सुरेश को नींद आने पर किरण खाली गिलास जमीन पर गिराएगी. यह इशारा मिलते ही शंभूदास सो रहे मामा सुरेश साद को कुल्हाड़ी से मार देगा और रात के अंधेरे में वापस चला जाएगा. मामा के रास्ते से हटने के बाद उन दोनों का मिलन रोकने वाला कोई नहीं होगा. साजिश के तहत शंभूदास 4 जनवरी, 2021 को शाम होते ही कुल्हाड़ी ले कर किरण के घर पहुंच गया. किरण ने उसे सारी योजना समझा कर नीचे कमरे में छिपा दिया. उस समय सुरेश पशुओं को चारा डालने गया हुआ था. चारा डाल कर सुरेश घर लौटा और फिर खाना खा कर फिर से पशु देखने गया. उस के बाद आ कर बरामदे में सो गया.

रात के 12 बजे किरण ने खाली गिलास नीचे पटका. शंभूदास के लिए यह एक इशारा था. इशारा मिलते ही सधे कदमों से शंभू कमरे से निकला और बरामदे में आ गया. उस समय सुरेश गहरी नींद में था. पलक झपकने की देर में शंभूदास ने कुल्हाड़ी का वार सो रहे मामा सुरेश पर किया. उस ने एक के बाद एक 4 वार सुरेश पर किए. खून का फव्वारा फूट पड़ा. वह मौत की नींद सो गया. शंभूदास अपना काम कर के चला गया. सुबह होने पर किरण ने योजना के अनुसार उठ कर बरामदे में जा कर रोनाधोना शुरू किया. तब घर के अन्य लोग वहां आए. फिर मूंडवा थाने में सूचना दी गई. पुलिस घटनास्थल पर पहुंची व मौका मुआयना किया.

रिमांड अवधि के दौरान शंभूदास से हत्या में प्रयुक्त कुल्हाड़ी, खून सने कपड़े और मोबाइल भी बरामद कर लिया गया. एसपी श्वेता धनखड़ ने सुरेश साद हत्याकांड का खुलासा करते हुए प्रैसवार्ता की. रिमांड अवधि पूरी होने पर शंभूदास व किरण को पुलिस ने कोर्ट में पेश कर न्यायिक हिरासत में भेज दिया.

 

MP News : पत्नी ने पति के पैर पकड़े, प्रेमी छाती पर बैठा और रेता गला

MP News : अपनी आमदनी बढ़ाने के लिए सोनू सिंह पत्नी नीतू को गांव से ले जा कर जबलपुर शहर में रहने लगा था. शहर आ कर उस के हालात सुधरने लगे थे. इसी बीच 2 बच्चों की मां नीतू को रौंग काल के जरिए राजू नाम के युवक से प्यार हो गया. यह प्यार बाद में इतना परवान चढ़ा कि…

मध्य प्रदेश की संस्कारधानी कहे जाने वाले जबलपुर का उपनगरीय इलाका रांझी रक्षा मंत्रालय की फैक्ट्रियों के लिए जाना जाता है. यहां पर गन कैरेज, आर्डिनैंस, व्हीकल और ग्रे आयरन फाउंडी में सेना के उपयोग में आने वाले गोलाबारूद, टैंक और भारी वाहन बनाए जाते हैं. ग्रे आयरन फाउंडी के गेट नंबर 2 के पास ही रांझी के रिछाई अखाड़ा मोहल्ले में 40 साल का सोनू ठाकुर अपनी 28 साल की पत्नी नीतू और 2 बेटियों के साथ रहता था. मूलरूप से दामोह जिले के हिनौता गांव का रहने वाला सोनू परिवार में 4 भाईबहनों में सब से बड़ा था. शादी के पहले सोनू अपने खर्च के लिए अपने मातापिता की कमाई पर आश्रित था. लेकिन शादी होते ही उसे अहसास हो गया था कि उसे जल्द ही कोई कामधंधा शुरू कर देना चाहिए.

अपनी और पत्नी की जरूरतों को पूरा करने के लिए वह गांव में मेहनतमजदूरी का काम करने लगा, मगर गांव में मिलने वाले मेहनताने से वह पत्नी को खुश नहीं रख पा रहा था. गांव में एक छोटे से घर में उस का पूरा परिवार रहता था. जहां पर वे एकदूसरे से ढंग से बात भी नहीं कर पाते थे. रात को एक छोटी सी कोठरी में सोते समय दोनों अपने मन की बातें एकदूजे से नहीं कर पाते थे. यह बात नीतू को बहुत अखरती थी. रात को जब घर के सभी लोग सो जाते, तब उन्हें एकदूसरे का साथ मिलता था. इस बात का उलाहना दे कर अकसर ही नीतू सोनू से कहती थी कि वह कहीं अलग घर ले कर क्यों नहीं रहते. तब सोनू उसे समझा देता कि अभी हमारी नईनई शादी हुई है. अभी परिवार से अलग रहेंगे तो घर वालों को अच्छा नहीं लगेगा. कुछ महीनों के बाद वह अपना कामधंधा जमा कर अलग रहने लगेगा. जब शादी को साल भर का समय हो गया तो एक रात नीतू ने ही सोनू को सलाह देते हुए कहा, ‘‘क्यों न हम लोग गांव से दूर शहर जा कर कुछ कामधंधा कर लें.’’

सोनू को पत्नी की सलाह पसंद आई. सोनू भी सोचने लगा कि घर के लोगों की कमाई से कब तक अपना और बीवी का पेट भरेगा. जबलपुर शहर में हिनौता गांव के कुछ लड़के काम करते थे. सोनू ने उन के घर वालों से मोबाइल नंबर ले कर बातचीत की तो उन्होंने बताया कि उसे भी जबलपुर में आसानी से काम मिल जाएगा. शादी होने के साल भर बाद ही सोनू बीवी के साथ काम की तलाश में जबलपुर आ गया था. रांझी के अखाड़ा मोहल्ले में वे एक किराए की कोठरी में रहने लगे. नीतू सिलाईकढ़ाई का काम करने लगी और सोनू को यहां के बड़ा फुहारा में घमंडी चौक पर एक कपड़े की दुकान में सेल्समैन का काम मिल गया. जबलपुर आए हुए सोनू को करीब 5 साल हो गए थे. उन्होंने धीरेधीरे तिनकातिनका जोड़ कर एक छोटा सा घर बना लिया था.

इन सालों में नीतू 2 बेटियों की मां बन चुकी थी. सोनू और नीतू की गृहस्थी की गाड़ी हंसीखुशी पटरी पर चल रही थी, मगर एक रौंग नंबर की काल ने उन के जीवन में जहर घोल दिया. 2020 के जनवरी महीने की बात है. दोपहर का वक्त था. घर के कामकाज से फुरसत पा कर नीतू मोबाइल फोन में यूट्यूब पर वीडियो देख रही थी. तभी उस के मोबाइल फोन की रिंग बज उठी. नीतू ने जैसे ही काल रिसीव की तो दूसरी तरफ से आवाज आई, ‘‘हैलो, मैं राजू बोल रहा हूं.’’

‘‘कौन राजू? मैं ने आप को पहचाना नहीं.’’

‘‘जी, मैं गाजीपुर से राजू राजभर बोल रहा हूं. कंप्यूटर ट्रेडिंग का काम करता हूं. क्या मेरी बात निशा वर्मा से हो रही है?’’

‘‘जी नहीं, आप ने गलत नंबर लगाया है.’’ नीतू ने बेतकल्लुफी से जबाब देते हुए कहा.

‘‘जी सौरी, मुझे निशा वर्मा के घर प्रिंटर भिजवाना था. गलती से आप का नंबर लग गया. वैसे आप कहां से बोल रही हैं?’’ राजू ने विनम्रता के साथ पूछा.

‘‘मैं तो जबलपुर से बोल रही हूं.’’

‘‘आप की आवाज तो बड़ी प्यारी है. क्या मैं आप का नाम जान सकता हूं?’’ वह बोला.

‘‘मेरा नाम नीतू ठाकुर है.’’ नीतू ने कहा.

‘‘नीतूजी, आप से बात कर के बहुत अच्छा लगा.’’

‘‘जी शुक्रिया.’’

इतना कह कर नीतू ने फोन डिसकनेक्ट कर दिया, मगर नीतू को भी राजू नाम के इस लड़के का इस तरह से बात करना अच्छा लगा. कुछ ही दिनों के बाद राजू नीतू के मोबाइल पर काल करने लगा. रौंग नंबर से शुरू हुआ बातचीत का सिललिला धीरेधीरे दोस्ती में बदल गया. अब तो नीतू भी हर दिन राजू के फोन आने का इंतजार करने लगी. एकदूसरे को वीडियो काल कर के घंटों उन की बातचीत होने लगी. तीखे नैननक्श वाली नीतू ने हायर सेकेंडरी तक पढ़ाई की थी. घूमनेफिरने और मौजमस्ती करने का उसे बड़ा शौक था. उस ने शादी के पहले जो रंगीन ख्वाब देखे थे, वे सोनू से शादी कर के बिखर चुके थे. थोड़ी सी पगार में घरगृहस्थी चलाने वाला उस का पति सोनू दिन भर काम में लगा रहता और नीतू घर की चारदीवारी में कैद हो कर रह गई थी.

यही वजह रही कि नीतू हर समय मोबाइल फोन की दुनिया में अपने सपनों की उड़ान भरती रहती. पति के काम पर जाने के बाद अकसर वह खाली समय में मोबाइल में सोशल मीडिया साइट पर व्यस्त रहती थी. मोबाइल फोन के जरिए राजू और नीतू का प्यार जब परवान चढ़ने लगा तो वे दोनों एकदूसरे से मिलने को बेताब रहने लगे. नीतू राजू के प्यार में इस कदर खो चुकी थी कि बारबार राजू से जबलपुर आ कर मिलने की बात करती. प्यार की आग राजू के सीने में भी धधक रही थी. राजू नीतू को भरोसा दिलाता कि वह जल्द ही जबलपुर आ कर उस से मिलेगा. इसी बीच मार्च महीने में कोरोना महामारी के कारण 25 मार्च को लौकडाउन लग गया. लौकडाउन में भी मोबाइल फोन पर नीतू और राजू की बातें होती रहीं.

नीतू का पति सोनू घर के बाहर गली में जब भी टहलने जाता, नीतू राजू को काल कर लेती. जैसेजैसे लौकडाउन में ढील मिल रही थी, राजू जबलपुर जाने की प्लानिंग करने लगा था. राजू जिस कंपनी के लिए कंप्यूटर ट्रेडिंग का काम करता था, उस का कारोबार जबलपुर शहर में भी था. किसी तरह कंपनी के मार्केटिंग मैनेजर से बात कर के उस ने जबलपुर की कंपनी में काम करने का जुगाड़ कर लिया. जैसे ही कंपनी की तरफ से उसे जबलपुर में काम करने का मौका मिला तो उस के मन की मुराद पूरी हो गई. एक ही शहर में कामधंधा और प्यार उसे आम के आम और गुठलियों के दाम जैसे लगा. इसी हसरत में 25 साल का कुंवारा राजू नीतू की चाहत में सितंबर 2020 में अपने गांव जफरपुर, गाजीपुर से जबलपुर आ गया .

जिस दिन राजू जबलपुर आ कर नीतू से मिला तो नीतू की खुशी का ठिकाना न रहा. राजू ने जैसे ही नीतू को करीब से देखा तो बस देखता ही रह गया.

‘‘वाकई तुम बहुत खूबसूरत हो,’’ जैसे ही राजू ने नीतू से कहा तो वह शरमा कर बोली, ‘‘मेरी तारीफ बाद में करना. मैं चाय बना कर लाती हूं.’’

इतना कह कर नीतू राजू के लिए चाय बनाने जैसे ही किचन में गई, राजू अपने आप को रोक नहीं सका. पीछे से वह भी किचन में पहुंच गया और नीतू को अपनी बांहों में भर लिया. उस के गालों पर चुंबन देते हुए बोला, ‘‘तुम्हें पाने को कितना इंतजार करना पड़ा.’’

नीतू ने अपने आप को छुड़ाते हुए नखरे दिखा कर कहा, ‘‘थोड़ा सब्र और करो, धीरज का फल मीठा होता है.’’

नीतू राजू को चाय का कप पकड़ा कर बाहर आ गई. उस ने बाहर आ कर देखा उस की दोनों बेटियां आंगन में किसी खेल में मस्त थीं. इसी मौके का फायदा उठा कर नीतू ने राजू के पास जा कर कमरे का दरवाजा बंद कर लिया और राजू के सीने से लग गई. राजू ने नीतू की कमर में हाथ डाला और उसे बिस्तर पर ले गया. 8 महीने से मोबाइल पर चल रहे उन के प्यार के हसीन ख्वाब साकार हो रहे थे. उस दिन दिल खोल कर दोनों ने अपनी हसरतें पूरी कर लीं. नीतू ने उस की खूब खातिरदारी कर ढेर सारी बातें कीं. राजू ने जब उसे बताया कि उस ने अपना ट्रांसफर जबलपुर करा लिया है. इसलिए अब यहीं रहेगा. तब नीतू बड़ी खुश हुई.

इतना ही नहीं, उस ने राजू को अपना रिश्तेदार बताते हुए अपने मोहल्ले में रहने वाले एक मकान मालिक के खाली कमरे को भाड़े पर उसे दिला दिया. उस के खानेपीने की जिम्मेदारी वह खुद ही करने लगी. नीतू ने राजू से मिलने का एक तरीका खोज लिया था. उस ने पति सोनू से बात कर उसे इस बात के लिए राजी कर लिया था कि ढाई हजार रुपए महीने में राजू को दोनों टाइम खाना बना कर देगी. सोनू ने यह सोच कर हामी भर दी कि थोड़ी सी मेहनत से बैठे ठाले ढाई हजार रुपए महीने की आमदनी बढ़ जाएगी, जो उस की बेटियों की पढ़ाईलिखाई के काम आएगी. सोनू का यही निर्णय उस के लिए घातक साबित हुआ. नीतू को तो बस अपने प्रेमी से मिलने का बहाना चाहिए था. अब वह बेरोकटोक राजू के लिए खाने का टिफिन देने के बहाने उस से मिलनेजुलने लगी थी.

सोनू सुबह 9 बजे ही घर से निकल जाता और दिन भर कपड़े की दुकान में काम कर के थकाहारा रात 9 बजे के बाद ही अपने घर पहुंचता था. नीतू और उस के पति सोनू की उम्र में 12 साल का फासला था. शायद यही वजह थी कि नीतू की शारीरिक जरूरतों को वह पूरा नहीं कर पाता था. इसी का फायदा उठाते हुए नीतू अपने से कम उम्र के गठीले नौजवान राजू के प्यार में पागल हो गई. दोनों का प्यार जिस्मानी तौर पर भी एकदूसरे की जरूरतों को पूरा करने लगा था. सोनू की गैरमौजूदगी में राजू नीतू को घुमानेफिराने, रेस्टोरेंट ले जा कर खूब पैसा लुटाता था. जब भी राजू को मौका मिलता वह नीतू के घर भी आ धमकता. नीतू भी अपनी बेटियों तनु और गुड्डी को काम के बहाने घर से बाहर भेज देती और दोनों जी भर कर अपनी हसरतें पूरी करते.

पति के होते गैरमर्द से संबंध बनाने वाली नीतू को न तो अपनी बेटियों और पति की सुध थी और न ही समाज का डर. प्यार और वासना का यह खेल रोज ही खेला जाने लगा था. कभी राजू के घर तो कभी नीतू के घर. 29 नवंबर, 2020 की सुबह के साढ़े 7 बजे का समय था. जबलपुर के रांझी थाने में फोन पर सूचना मिली कि ग्रे आयरन फाउंडी जीआईएफ के गेट नंबर 2 के पास की नाली में कंबल में लिपटी एक लाश पड़ी है. खबर मिलते ही टीआई आर.के. मालवीय ने पुलिस के आला अधिकारियों को सूचना दी और वह पुलिस टीम के साथ घटनास्थल की ओर रवाना हो गए. घटनास्थल पर आसपास के लोगों की भीड़ मौजूद थी. लोगों ने लाश की शिनाख्त कर बताया कि यह पास में ही रहने वाले सोनू ठाकुर की है.

सोनू की गरदन और बाएं हाथ की नस कटी हुई थी. घटनास्थल के पास ही सोनू की पत्नी अपनी दोनों बेटियों को सीने से चिपकाए चीखचीख कर रो रही थी. जब पुलिस ने सोनू के बारे में नीतू से पूछताछ की तो उस ने बताया कि रात को साढ़े 10 बजे यह घर से घूमने की बात कह कर निकले थे. जब देर रात तक नहीं लौटे तो इन्हें फोन किया. फोन स्विच्ड औफ बता रहा था. नीतू से प्रारंभिक पूछताछ करने के बाद पुलिस ने लाश पोस्टमार्टम के लिए मैडिकल कालेज भेज दी और आसपास रहने वाले लोगों से पूछताछ कर मामले की जांच शुरू कर दी. जांच के दौरान पुलिस टीम के ट्रेनी आईपीएस सिटी अमित कुमार, टीआई आर.के. मालवीय और फोरैंसिक टीम ने घटनास्थल का बारीकी से मुआयना किया और पाया कि जीआईएफ गेट नंबर 2 के पास की जिस नाली में सोनू की लाश मिली थी, वहां खून के धब्बों के निशान थे.

सड़क पर मिले खून के निशान का मुआयना करतेकरते पुलिस नाले से ले कर सोनू के घर तक पहुंच गई. जांच टीम को सोनू के घर में भी खून के धब्बे मिले. जबकि नीतू सोनू के रात साढ़े 10 बजे घर से बाहर जाने की बात कर रही थी. पुलिस को जांच में यह भी पता चला कि नीतू के मोहल्ले में रहने वाले एक युवक राजू से संबंध थे. पुलिस के इसी संदेह की सुई नीतू की तरफ घूमी तो पुलिस ने नीतू को हिरासत में ले कर सख्ती से पूछताछ की. पहले नीतू पुलिस को गोलमोल जबाब दे कर पल्ला झाड़ती रही. लेकिन जब पुलिस टीम की महिला आरक्षक ने उस से सख्ती के साथ पूछताछ की तो जल्द ही उस ने अपना गुनाह कबूल कर लिया.

नीतू के बयान के आधार पर रांझी पुलिस ने राजू को भी हिरासत में ले कर पूछताछ की. पुलिस पूछताछ में नीतू और राजू ने पुलिस को जो कहानी बताई, वह नाजायज संबंधों की ऐसी कहानी निकली जो दोनों को गुनाह के रास्ते पर ले जाने को मजबूर कर गई. कहते हैं कि इश्क और मुश्क छिपाए नहीं छिपते. रौंग नंबर फोन काल से शुरू हुए नीतू और राजू के प्रेम संबंधों की जानकारी धीरेधीरे पूरे मोहल्ले में चर्चा का विषय बन चुकी थी. नीतू के द्वारा फोन पर की जाने वाली लंबी बातें सोनू के मन में शक की जड़ें जमा चुकी थीं. मगर उसे यह उम्मीद नहीं थी कि जिस्मानी भूख मिटाने के लिए उस की बीवी नीतू किसी गैरमर्द से नाजायज संबधों की कहानी लिख रही थी.

शक होने पर सोनू नीतू पर नजर रखने लगा. एक दिन सोनू ने नीतू को मोबाइल फोन पर किसी से अमर्यादित बातें करते हुए देख लिया तो इस बात को ले कर दोनों में विवाद हो गया. अपनी कमजोरी छिपाने के लिए अकसर नीतू रोनेधोने का नाटक करने लगती और सोनू से कहती कि वह उस के चरित्र पर शक कर रहा है. कहते हैं कि चालाक औरतों के आंसू भी किसी हथियार से कम नहीं होते. सोनू नीतू के आंसुओं के आगे हार मान जाता था. राजू नीतू को रोजरोज पैसे और तोहफे ला कर देता और सोनू की गैरमौजूदगी में उसे और उस की बच्चियों को घुमाने ले जाता. नीतू और राजू के नाजायज संबंधों का यह खेल ज्यादा दिनों तक समाज की नजरों से छिप नहीं सका.

दोनों के प्रेम संबंधों की चर्चा मोहल्ले में खुलेआम होने लगी थी. मोहल्ले के कुछ लोगों ने भी सोनू को बताया कि उस की गैरमौजूदगी में राजू अकसर उस के घर आताजाता है. सोनू को अब इस बात का पक्का यकीन हो गया था कि पत्नी उस के साथ बेवफाई कर रही है. इस बात से सोनू मानसिक रूप से परेशान रहने लगा था. पतिपत्नी के रिश्ते में विश्वासरूपी डोर टूट जाए तो जिंदगी नरक बन जाती है. एक दिन सोनू को अपनी तबीयत कुछ ठीक नहीं लग रही थी. इसलिए अपने सेठ से बोल कर वह दोपहर के वक्त अपने घर आ गया. उस की बेटियां खिलौनों के साथ खेल रही थीं. उस ने कमरे के पास जा कर धीरे से जैसे ही दरवाजा खोला, अंदर का दृश्य देखते ही उस के होश उड़ गए. बिस्तर पर नीतू अपने प्रेमी के साथ रंगरलियां मना रही थी.

यह देखते ही उस की आंखों में खून सवार हो गया. वह जोर से पत्नी पर चीखा, ‘‘हरामजादी, मेरी गैरमौजूदगी में आशिक के साथ ये गुल खिला रही है.’’

सोनू की चीख सुन कर दोनों हड़बड़ा कर कर अलग हो गए. राजू अपने कपड़े समेट कर भाग खड़ा हुआ और नीतू अपराधबोध से नजरें नीची किए खड़ी थी. उस ने पति से माफी मांगी और भविष्य में ऐसी गलती न दोहराने का वादा किया. सोनू ने भी उसे माफ कर दिया. नीतू कुछ दिन तो ठीक रही, लेकिन उस से प्रेमी की जुदाई बरदाश्त नहीं हो रही थी. इसलिए वह उस से फिर मिलनेजुलने लगी. कहा जाता है कि आंखों देखी मक्खी खाई नहीं जाती मगर सोनू सब कुछ जान कर भी पत्नी की वेवफाई को बरदाश्त कर रहा था. कई बार उस के मन में विचार आता कि वेवफा पत्नी को हमेशाहमेशा के लिए छोड़ कर कहीं चला जाए, परंतु अपनी मासूम बेटियों के भविष्य की खातिर वह चुप हो कर बैठ जाता.

नीतू भी अपने पति की चुप्पी और मजबूरियों का जम कर फायदा उठा रही थी. सोनू नीतू को जितना समझाता, उतना ही वह राजू से दूरियां बनाने की बजाय नजदीकियां बढ़ा रही थी. इस बात को ले कर पतिपत्नी के बीच रोज ही विवाद होने लगा था. रोजरोज पत्नी से विवाद होने पर सोनू को कुछ नहीं सूझ रहा था. वैसे तो सोनू ने जीआईएफ गेट नंबर 2 के सामने खुद का घर बना लिया था. मगर नीतू के बहके कदमों को रोकने के लिए सोनू ने बहुत सोचविचार के बाद यह फैसला कर लिया था कि इसी रविवार कुछ दिनों के लिए वह बीवीबच्चों को ले कर अपने गांव चला जाएगा और गांव में ही कुछ कामधंधा करेगा. उसे भरोसा था कि कुछ दिन नीतू राजू से दूर रहेगी तो प्यार का यह रोग भी दूर हो जाएगा. और नीतू अपनी बेटियों की परवरिश में सब कुछ भूल कर सही रास्ते पर आ जाएगी. वापस गांव लौटने के अपने इस फैसले की जानकारी उस ने नीतू को भी दे दी थी.

इधर नीतू सोनू के गांव लौटने के फैसले से परेशान रहने लगी थी. नीतू को लगने लगा था कि यदि गांव चले गए तो फिर अपने प्रेमी राजू से मिलने को तरस जाएगी. जब नीतू ने राजू से परिवार सहित गांव वापस लौटने की बात कही तो राजू के माथे पर भी चिंता की लकीरें उभर आईं. उसे लगा कि जिस नीतू की खातिर वह अपने गांव से इतनी दूर आ गया, वही अब उस की नजरों से दूर चली जाएगी. राजू की प्लानिंग नीतू के साथ शादी कर के घर बसाने की थी और राजू के इस निर्णय में नीतू की भी सहमति थी. पहले दोनों के मन में विचार आया कि घर से भाग कर शादी कर लें और सुकून से अपनी जिंदगी गुजारें, मगर अपनी मासूम बेटियों की खातिर नीतू कोई ठोस निर्णय नहीं ले पाई.

राजू का भी जबलपुर शहर में कामधंधा ठीकठाक चल रहा था. उसे पता था कि नई जगह कामधंधा जमाने में कितनी मुश्किल होती है. वह अपने गांव भी नहीं लौटना चाहता था, क्योंकि उसे पता था घर वाले बालबच्चों वाली विवाहिता नीतू को इतनी आसानी से नहीं अपनाएंगे. जैसेजैसे रविवार का दिन नजदीक आ रहा था, नीतू और राजू की चिंता बढ़ती जा रही थी. राजू को पता था कि रविवार के पहले यदि इस समस्या का कोई हल नहीं निकला तो सोनू नीतू को ले कर अपने गांव चला जाएगा. राजू नीतू को किसी भी कीमत पर खोना नहीं चाहता था. सोनू उन के प्यार के रास्ते में कांटा बन कर चुभ रहा था. इसी ऊहापोह में दोनों ने सोनू को अपने प्यार की राह से दूर करने का निर्णय ले लिया था.

एकदूसरे के लिए मर मिटने की कसमें खाने वाला यह प्रेमी जोड़ा जुदा होने से बचने के लिए कुछ भी कर गुजरने पर आमादा हो गया था. वासना के इस घिनौने खेल में अंधे हो चुके ये प्रेमी अपने प्यार को अंजाम तक पहुंचाने के लिए बड़ी से बड़ी कुरबानी देने का मन बना चुके थे. आखिरकार उन्होंने तय कर लिया कि अपनी राह के कांटे को वे निकाल फेंकेंगे. राजू और नीतू ने सोनू को हमेशा के लिए उन की जिंदगी से दूर करने का खौफनाक प्लान तैयार कर लिया था. उन्होंने सोच लिया लिया था कि किसी भी तरह सोनू को जान से मार कर सदासदा के लिए एकदूसरे के हो जाएंगे. घटना के दिन सोनू दिन भर घर से बाहर नहीं निकला. वह सोनू की हत्या कर लाश को ठिकाने लगाने की योजना बनाता रहा.

नीतू पूरे दिन सब्जी काटने वाले चाकू की धार तेज करने में लगी रही. नीतू ने तेज धार वाले चाकू को अपने तकिए के नीचे छिपा कर रख लिया था. 28 नवंबर, 2020 की रात रोज की तरह सोनू अपने घर आया तो उस ने दूसरे दिन बस से अपने गांव वापस लौटने की चर्चा नीतू से की तो नीतू ने भी हामी भर दी. यह देख कर सोनू खुश हो गया. उसे लगा कि नीतू को अपने किए पर पछतावा है और गांव चल कर उन की जिंदगी फिर से खुशहाल हो जाएगी. खाना खाने के बाद कुछ समय वह अपने बेटियों को दुलारता रहा और उस के बाद टहलने के लिए घर से बाहर आ गया. साढ़े 10 बजे वापस आ कर वह बिस्तर पर लेटेलेटे नीतू से प्यारभरी बातें करता रहा.

अपनी दोनों बेटियों को सुलाने के बाद नीतू भी सोनू के बिस्तर पर आ कर प्यार का नाटक करने लगी. दोनों एकदूसरे के आगोश में समा गए और जैसे ही सोनू निढाल हो कर सो गया नीतू आगे की योजना बनाने में लग गई. नीतू की आंखों से उस रात नींद कोसों दूर थी. उस के दिमाग में कुछ और ही चल रहा था. उस ने रात करीब एक बजे राजू को फोन कर के अपने घर बुला लिया. राजू के आते ही योजना के मुताबिक नीतू ने गहरी नींद सो रहे सोनू के दोनों पैर पकड़ लिए और राजू ने उस की छाती पर बैठ कर चाकू से उस का गला रेत दिया और एक हाथ की कलाई भी काट दी. कुछ देर छटपटाने के बाद सोनू निढाल हो कर एक तरफ लुढ़क गया. अब दोनों ही सोनू की लाश को ठिकाने लगाने की सोचने लगे. उन्होंने बिस्तर पर गिरे खून के दागधब्बों को पोंछा. फिर लाश एक कंबल में लपेट ली.

इसी बीच नीतू ने घर का दरवाजा खोल कर बाहर का मुआयना किया और मौका देखते ही वे दोनों लाश को ग्रे आयरन फाउंडी के गेट नंबर 2 के पास बनी नाली में फेंक आए. लाश को ठिकाने लगाने के बाद दोनों अपनेअपने घर चले गए और अपने कपड़ों पर लगे खून के दाग साफ करते रहे. दूसरे दिन सुबह नीतू ने घर पर रोनापीटना शुरू कर दिया. चीखपुकार सुन कर मोहल्ले के लोग उस के घर जमा होने लगे तो नीतू ने बताया कि उस के पति रात से घर नहीं लौटे हैं और उन का मोबाइल भी बंद है. सोनू के गायब होने की बात सुन कर मोहल्ले के लोग उस की खोज में लगे हुए थे, तभी किसी ने आ कर बताया कि ग्रे आयरन फाउंडी गेट नंबर 2 के पास सोनू की लाश एक कंबल में लिपटी पड़ी है.

मोहल्ले के लोगों के साथ नीतू भी नाले के पास पहुंच गई. सोनू की लाश देख कर चीखचीख कर घडि़याली आंसू बहाने लगी थी. सोनू की लाश मिलने की खबर से नीतू का प्रेमी राजू भी वहां आ गया था. सोनू की मौत को लेकर मोहल्ले के लोग नीतू के प्रेमी राजू पर भी शक कर रहे थे. इसी बीच वहां पर रांझी थाने की पुलिस ने आ कर कुछ ही घंटों में हत्या की गुत्थी सुलझा दी. रांझी थाना पुलिस ने 24 घंटे में ही सेल्समैन सोनू सिंह हत्याकांड का खुलासा कर आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया. एसपी सिद्धार्थ बहुगुणा और ट्रेनी आईपीएस अमित कुमार ने प्रैस कौन्फ्रैंस कर मामले का खुलासा किया. दोनों की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त चाकू, खून से सने कपड़े, मृतक सोनू और आरोपी नीतू और राजू के 3 मोबाइल, एटीएम कार्ड आदि जब्त कर लिए गए.

मृतक सोनू के घर वालों के जबलपुर पहुंचने से पहले नीतू हवालात के अंदर थी, इस वजह से दोनों बेटियों तनु और गुड्डी को पड़ोसियों की देखरेख में रखवाया गया. बाद में गांव से उस के परिजनों के आते ही उन के सुपुर्द किया गया. कथा लिखे जाने तक नीतू और उस का प्रेमी राजू जेल में थे. अपने पति से वेवफाई कर मौजमस्ती की खातिर बनाए गए नाजायज संबंधों की वजह से नीतू ने अपनी जिंदगी के साथ मासूम बेटियों की जिंदगी भी बेनूर कर दी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

Maharashtra Crime News : पत्नी के प्रेमी के किए 12 टुकड़े, आखिर क्यों

Maharashtra Crime News : सुशील सरनाइक ने शराब के नशे में अपनी करीबी दोस्त सलोमी के साथ जो अमर्यादित हरकत, वह भी उस के पति के सामने की, बरदाश्त करने लायक नहीं थी. ऐसा ही हुआ भी. लेकिन अब सुशील की मां और बहन…

15 दिसंबर, 2020. महाराष्ट्र की आर्थिक राजधानी थाणे से सटे जिला रायगढ़ के नेरल रेलवे स्टेशन (पूर्व) के पास से बहने वाले नाले पर सुबहसुबह काफी लोगों की अचानक भीड़ एकत्र हो गई. वजह यह थी कि गहरे नाले में 2 बड़ेबड़े सूटकेस पड़े होने की खबर थी. नए सूटकेस और उस में से उठने वाली दुर्गंध लोगों के लिए कौतूहल का विषय थी. निस्संदेह उन सूटकेसों में अवश्य कोई ऐसी चीज थी, जो संदिग्ध थी. किसी व्यक्ति ने नाले में पड़े सूटकेसों की जानकारी जिला पुलिस कंट्रोल रूम को दे दी. पुलिस कंट्रोल रूम ने बिना किसी विलंब के इस मामले की जानकारी वायरलैस द्वारा प्रसारित कर दी. इस से घटना की जानकारी जिले के सभी पुलिस थानों और अधिकारियों को मिल गई.

चूंकि मामला नेरल पुलिस थाने के अंतर्गत आता था, इसलिए नेरल थानाप्रभारी तानाजी नारनवर ने सूचना के आधार पर थाने के ड्यूटी अफसर को मामले की डायरी तैयार कर घटनास्थल पर पहुंचने का आदेश दिया. ड्यूटी अफसर डायरी बना कर अपने सहायकों के साथ घटनास्थल की ओर रवाना हो गए. घटनास्थल थाने से करीब 15-20 मिनट की दूरी पर था, वह पुलिस वैन से जल्द ही वहां पहुंच गए. घटनास्थल पर पहुंच कर पुलिस टीम ने पहले वहां पर इकट्ठा भीड़ को दूर हटाया और फिर वहां के 5 व्यक्तियों से नाले से उन दोनों सूटकेसों को बाहर निकलवाया. उन्हें खोल कर देखा गया तो भीड़ और पुलिस के होश उड़ गए.

सूटकेसों में किसी व्यक्ति का 12 टुकड़ों में कटा शव भरा था, जो पूरी तरह सड़ गया था. शव का दाहिना हाथ गायब था जो काफी खोजबीन के बाद भी नहीं मिला. यह वही नाला है, जहां बीब्लंट सैलून कंपनी की फाइनैंस मैनेजर कीर्ति व्यास का शव पाया गया था. (देखें मनोहर कहानियां जुलाई, 2018) मृतक की उम्र 30-31 साल के आसपास रही होगी. सांवला रंग, हृष्टपुष्ट शरीर. शक्लसूरत से वह किसी मध्यमवर्गीय परिवार का लग रहा था. नेरल पुलिस टीम अभी वहां एकत्र भीड़ से शव की शिनाख्त करवा ही रही थी कि एसपी अशोक दुधे, करजात एसडीपीओ अनिल घेर्डीकर, थानाप्रभारी तानाजी नारनवर, अलीबाग एलसीबी (लोकल क्राइम ब्रांच) और फोटोग्राफर के अलावा फिंगरप्रिंट ब्यूरो की टीमें भी आ गईं.

फोटोग्राफर और फिंगरप्रिंट का काम खत्म हो जाने के बाद वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया और मामले की गंभीरता को देखते हुए जांच की जिम्मेदारी करजात एसडीपीओ अनिल घेर्डीकर ने स्वयं संभाल ली. थानाप्रभारी तानाजी नारनवर को आवश्यक निर्देश दे कर घेर्डीकर अपने औफिस चले गए. वरिष्ठ अधिकारियों के जाने के बाद थानाप्रभारी तानाजी नारनवर ने शव को पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल रायगढ़ भेज दिया. शिनाख्त न होने से पुलिस टीम समझ गई थी कि मृतक वहां का रहने वाला नहीं था. उस की हत्या कहीं और कर के शव को नाले में डाला गया था. ऐसी स्थिति में आगे की जांच काफी जटिल थी.

लेकिन पुलिस टीम इस से निराश नहीं थी. घटनास्थल की सारी औपचारिकताएं पूरी हो जाने के बाद एसडीपीओ अनिल घेर्डीकर के निर्देशन में इस हत्याकांड के खुलासे के लिए एक अन्य टीम का गठन किया. उन्होंने नेरल थाने के अलावा कर्जत माथेरान और क्राइम ब्रांच के अफसरों और पुलिसकर्मियों को शामिल कर के मामले की समानांतर जांच का निर्देश दिया. उस इलाके का नहीं था मृतक वरिष्ठ अधिकारियों के निर्देश पर सभी ने अपनीअपनी जिम्मेदारियां संभाल लीं. अब मामले की जांच के लिए सब से जरूरी था मृतक की शिनाख्त, जो जांच टीम के लिए एक चुनौती थी.

जैसा कि ऐसे मामलों में होता है, उसी तरह से पुलिस ने वायरलैस मैसेज शहर और जिले के सभी पुलिस थानों में भेज कर यह पता लगाने की कोशिश की कि कहीं किसी थाने में उस व्यक्ति की गुमशुदगी तो दर्ज नहीं करवाई गई है. लेकिन इस से उन्हें तत्काल कोई कामयाबी नहीं मिली. अब जांच टीम के पास एक ही रास्ता बचा था बारीकी से जांच. घटनास्थल और वह दोनों सूटकेस जो घटनास्थल पर शवों के टुकड़ों से भरे मिले थे. जब उन सूटकेसों की दोबारा जांच की गई तो सूटकेसों में मिले स्टिकरों ने पुलिस टीम को उस दुकान तक पहुंचा दिया, जहां से वे खरीदे गए थे. पता चला 13 दिसंबर, 2020 की सुबह करीब 10 बजे एक दंपति ने सूटकेस खरीदे थे.

उस दुकानदार के बयान और उस की दुकान के सीसीटीवी कैमरों की फुटेज और मुखबिरों के सहारे पुलिस टीम उस दंपति तक पहुंचने में कामयाब हो गई और फिर उन 12 टुकड़ों के रहस्य का मामला 24 घंटों में ही पूरी तरह सामने आ गया. पुलिस गिरफ्त में आए अभियुक्त दंपति ने पूछताछ में अपना नाम चार्ल्स नाडर और सलोमी नाडर बताया. मृतक का नाम सुशील कुमार सरनाइक था जो मुंबई के वर्ली इलाके का रहने वाला था और प्राइवेट बैंक का अधिकारी था. यह जानकारी मिलते ही नेरल पुलिस ने वर्ली पुलिस थाने से संपर्क कर शव की शिनाख्त के लिए मृतक के परिवार वालों को थाने बुला लिया और उन्हें ले कर रायगढ़ जिला अस्पताल गए, जहां मृतक सुशील कुमार सरनाइक को देखते ही उस के परिवार वाले दहाड़ें मार कर रोने लगे.

पुलिस टीम ने सांत्वना दे कर उन्हें शांत कराया और कानूनी खानापूर्ति कर मृतक का शव उन्हें सौंप दिया. पुलिस जांच और अभियुक्त नाडर दंपति के बयानों के मुताबिक इस क्रूर अपराध की जो कहानी उभर कर सामने आई, उस की पृष्ठभूमि कुछ इस तरह से थी—

31 वर्षीय सुशील कुमार मारुति सरनाइक सांवले रंग का स्वस्थ और हृष्टपुष्ट युवक था. वह दक्षिणी मुंबई स्थित वर्ली के गांधीनगर परिसर की  एसआरए द्वारा निर्मित बहुमंजिला इमारत तक्षशिला की पांचवीं मंजिल के फ्लैट में अपने परिवार के साथ रहता था. परिवार में उस की मां के अलावा एक बहन रेखा थी, जिस की शादी हो चुकी थी. लेकिन वह अधिकतर अपनी बेटी के साथ सुशील और मां के साथ ही रहती थी. परिवार का एकलौता बेटा होने के कारण सुशील के परिवार को उस से काफी प्यार था. यह मध्यवर्गीय परिवार काफी खुशहाल था. सुशील महत्त्वाकांक्षी युवक था. इस के साथ वह दिलफेंक और रंगीनमिजाज भी था. वह एक बार जिस किसी के संपर्क में आता था, उसे अपना मित्र बना लेता था. हर कोई उस के व्यवहार से प्रभावित हो जाता था.

ग्रैजुएशन पूरा करने के बाद उस ने अपने कैरियर की शुरुआत बीपीओ से शुरू की थी. जहां उस के साथ कई युवक, युवतियां काम करते थे. इन्हीं युवतियों में एक सलोमी भी थी जो ईसाई परिवार से थी. सुशील पड़ा सलोमी के चक्कर में 28 वर्षीय सलोमी पेडराई जितनी स्वस्थ और सुंदर थी, उतनी ही चंचल भी थी. वह किसी के भी दिल को ठेस पहुंचाने वाली बातें नहीं करती थी. उस के दिल में सभी के प्रति आदर सम्मान था. उस के मधुर व्यवहार के कारण संपर्क में आने वाले लोग उस की तरफ आकर्षित जाते थे. औफिस में सलोमी सुशील की बगल वाली सीट पर बैठती थी. काम के संबंध में दोनों एकदूसरे की मदद भी किया करते थे.

यही कारण था कि धीरेधीरे दोनों एकदूसरे के काफी करीब आ गए और अच्छी दोस्ती हो गई. खाली समय में दोनों एक साथ कौफी हाउस, मूवी, मौलों में शौपिंग कर मौजमस्ती किया करते थे. यह सिलसिला शायद चलता ही रहता, लेकिन दोनों को अलग होना पड़ा. सुशील सरनाइक को एक बैंक का अच्छा औफर मिल गया, जहां उसे वेतन के साथसाथ बहुत सारी सुविधाएं भी मिल रही थीं. 2018 में सुशील सरनाइक की नियुक्ति आईसीआईसीआई बैंक की ग्रांट रोड, मुंबई शाखा में रिलेशनशिप मैनेजर की पोस्ट पर हो गई. सुशील सरनाइक ने बीपीओ की नौकरी छोड़ कर बैंक की नौकरी जौइन कर ली. दूसरी तरफ सलोमी का झुकाव बीपीओ के ओनर चार्ल्स नाडर की तरफ हो गया.

35 वर्षीय चार्ल्स नाडर अफ्रीकी नागरिक था. उस का पूरा परिवार अफ्रीका में रहता था. उस के पिता अफ्रीका के एक बड़े अस्पताल में डाक्टर थे. उस की शिक्षादीक्षा भी अफ्रीका में ही हुई थी. अस्थमा का मरीज होने के कारण उस का स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता था. कुछ साल पहले जब वह भारत आया तो उसे यहां के पर्यावरण से काफी राहत मिली, इसलिए वह भारत का ही हो कर रह गया. उस ने थाणे जिले के विरार में बीपीओ खोल लिया, जहां सलोमी और सुशील सरनाइक जैसे और कई युवकयुवतियां काम करते थे. सलोमी का झुकाव अपनी तरफ देख कर चार्ल्स नाडर ने भी उस की तरफ अपना हाथ बढ़ा दिया और दोनों लवमैरिज कर मीरा रोड के राजबाग की सोसायटी में किराए पर रहने लगे.

सुशील सरनाइक और सलोमी के रास्ते अलग तो हो गए थे मगर उन के दिलों की धड़कन अलग नहीं हुई थी. दोनों फोन पर तो अकसर हंसीमजाक करते ही थे, मौका मिलने पर सुशील सलोमी के घर भी आनेजाने लगा. दोनों नाडर के साथ पार्टी वगैरह कर के जम कर शराब का मजा लेते थे. ऐसी ही एक पार्टी उन्होंने उस रात भी की थी. मगर उस पार्टी का नशा सुशील सरनाइक पर कुछ इस तरह चढ़ा कि वह अपनी जिंदगी से हाथ धो बैठा. शराब के नशे में वह अपनी मर्यादा लांघ गया. उस ने अपनी और सलोमी की दोस्ती को जो मोड़ दिया, वह बेहद आपत्तिजनक था. उस के पति के लिए तो और भी शर्मनाक.

सलोमी के पति चार्ल्स नाडर को बरदाश्त नहीं हुआ और किचन से चाकू ला कर उस ने एक झटके में सुशील का गला काट दिया. कमरे में सुशील सरनाइक की चीख गूंज उठी. उधर सुशील सरनाइक 12 दिसंबर, 2020 की सुबह अपनी मां और बहन से यह कह कर घर से निकला था कि वह अपने बैंक के कुछ दोस्तों के साथ पिकनिक पर जा रहा है. 13 दिसंबर को शाम तक घर लौट आएगा. मगर ऐसा नहीं हुआ. न वह घर आया और न उस का फोन आया. काफी कोशिशों के बाद भी उस से फोन पर संपर्क नहीं हुआ तो उस की मां और बहन को उस की चिंता हुई. रात तो किसी तरह बीत गई, लेकिन दिन उन के लिए पहाड़ जैसा हो गया था.

14 दिसंबर, 2020 की सुबह सुशील सरनाइक के नातेरिश्तेदार और जानपहचान वालों ने पुलिस से मदद लेने की सलाह दी. उन की सलाह पर सुशील सरनाइक की मां और बहन वर्ली पुलिस थाने की शरण में गईं. रात 11 बजे उन्होंने थानाप्रभारी सुखलाल बर्पे से मुलाकात कर उन्हें सुशील के बारे में सारी बातें बता कर मदद की विनती की और गुमशुदगी की शिकायत दर्ज करवा दी. शिकायज दर्ज करने के बाद थानाप्रभारी ने उन से सुशील का हुलिया और फोटो लिया और जांच का आश्वासन दे कर घर भेज दिया. शिकायत दर्ज होने के12 घंटे बाद ही सुशील के परिवार वालों को जो खबर मिली थी, उस से उन के पैरों तले से जमीन खिसक गई थी.

सुशील सरनाइक की हत्या करने के बाद जब नाडर दंपति को होश आया तो उन्हें कानून और सजा का भय सताने लगा. इस से बचने के लिए क्या करें, उन की समझ में नहीं आ रहा था. काफी सोचविचार के बाद वे इस नतीजे पर पहुंचे कि उस के शव को किसी गुप्त जगह पर डंप करने में ही भलाई है. इस के लिए उन्होंने सुशील सरनाइक का मोबाइल और उस के बैंक एटीएम का सहारा लिया. उस का मोबाइल फिंगरप्रिंट से खुलता था और उस में एटीएम पिन था, यह बात वे अच्छी तरह जानते थे. 12 टुकड़ों में सिमटी जिंदगीउन्होंने उस का मोबाइल ले कर उस के अंगूठे से मोबाइल का लौक खोला और उस के एटीएम का पिन ले कर बदलापुर जा कर कार्ड से 80 हजार रुपए निकाले, जिस में से उन्होंने शव के टुकड़े करने के लिए एक कटर मशीन और 2 बड़े सूटकेस खरीदे.

उन्होंने शव के 12 टुकड़े कर दोनों सूटकेसों में भरे. शव का दाहिना हाथ सूटकेस में नहीं आया तो उसे अलग से एक थैली में पैक किया. इस के बाद दोनों ने 14 दिसंबर की रात सूटकेस ले जा कर नेरल रेलवे स्टेशन के पास गहरे नाले में डाल दिए और घर आ गए. अब पतिपत्नी उस की तरफ से निश्चिंत हो गए. उन का मानना था कि उस नाले से दोनों सूटकेस बह कर खाड़ी में चले जाएंगे, जहां सुशील सरनाइक का अस्तित्व मिट जाएगा. मगर ऐसा नहीं हुआ. दोनों सूटकेस नेरल पुलिस के हाथ लग गए और सारा मामला खुल गया. नाडर दंपति नेरल पुलिस के शिकंजे में आ गए. नाडर के घर की तलाशी में कटर मशीन के साथ 30 हजार रुपए में 28 हजार रुपए भी पुलिस टीम ने बरामद कर लिए.

थाने ला कर सख्ती से पूछताछ करने पर उन्होंने अपना गुनाह स्वीकार करते हुए हत्या का सच उगल दिया. पुलिस टीम ने चार्ल्स नाडर और सलोमी नाडर से विस्तृत पूछताछ करने के बाद उन के विरुद्ध सुशील सरनाइक की हत्या का मुकदमा दर्ज कर उन्हें रायगढ़ जिला जेल भेज दिया. कथा लिखे जाने तक पुलिस जांच टीम सुशील सरनाइक के कटे दाहिने की तलाश कर रही थी.