Madhya Pradesh Crime : दोस्‍त के शराब में नींद की गोली मिला कर किया मर्डर

Madhya Pradesh Crime : शराब और शबाब तब घातक बन जाते हैं, जब आदमी उन का आदी बन जाए. अगर अवैध रिश्ते के साथ कोई शराब को भी प्रेमिका बना ले तो उसे अपनी उलटी गिनती शुरू कर देनी चाहिए. मयंक के मामले में भी यही हुआ…  

टना 25 सितंबर, 2019 की है. शाम के करीब 4 बजे थे. मध्य प्रदेश के टीकमगढ़ क्षेत्र का रहने वाला मयंक जब रात 10 बजे तक घर नहीं पहुंचा तो उस के पिता सुभाष खरे ने उसे खोजना शुरू कर दिया. मयंक शाम को कार ले कर घर से निकला थामयंक खरे के छोटे भाई प्रियंक खरे ने जब मयंक के मोबाइल पर फोन लगाया तो उस का फोन स्विच्ड औफ था. मयंक अविवाहित और बेरोजगार था. कोई काम करने के बजाए वह अपने पिता की कार ले कर दिन भर इधरउधर घूमता रहता था, जिस से उस के पिता परेशान थे.

मयंक के पिता सुभाष खरे शिक्षा विभाग में क्लर्क थे. उस समय टीकमगढ़ में भारी बारिश हो रही थी. समस्या यह थी कि ऐसे मौसम में उसे खोजने जाएं भी तो कहां जाएं. पिता सुभाष ने यह सोच कर मयंक के खास दोस्त इशाक खान को फोन लगाया कि हो हो उसे मयंक के बारे में कोई जानकारी हो. लेकिन उस के फोन की घंटी बजती रही, उस ने काल रिसीव नहीं की. इस से सुभाष खरे का माथा ठनका कि इशाक ने फोन क्यों नहीं उठाया

रात भर परिवार के सभी लोग मयंक की चिंता करते रहे. अगले दिन पिता सुभाष ने टीकमगढ़ थाने में मयंक की गुमशुदगी दर्ज करवा दी. टीआई अनिल मौर्य ने इस घटना को गंभीरता से लेते हुए यह जानकारी टीकमगढ़ के एसपी अनुराग सुजनिया को दे दी. साथ ही मयंक का मोबाइल नंबर सर्विलांस पर लगवा दिया. मयंक का परिवार उस की खोज में लगा हुआ था. परिवार वालों की दूसरी चिंता यह थी कि मयंक के दोस्त इशाक खान ने उन का फोन क्यों रिसीव नहीं किया, उस की दुकान भी बंद थी. इशाक का भी कोई अतापता नहीं था. उस के घर वालों से जब उस के बारे में पूछा गया तो उन्होंने भी अनभिज्ञता जताई

दरअसल, इशाक और मयंक के बीच कुछ कहासुनी हुई थी. वजह यह थी कि मयंक और इशाक की पत्नी शबाना के बीच नजदीकी संबंध थे. इस बात की जानकारी उस के परिवार वालों को भी थी. इसलिए पूरा संदेह इशाक पर जा रहा था. इशाक के इस तरह लापता होने मयंक के परिवार वालों का फोन नहीं उठाने से उन की चिंता बढ़ने लगी थी. मयंक के परिवार वालों ने इशाक और मयंक के बीच हुई कहासुनी की सारी जानकारी टीआई अनिल मौर्य को दी. टीआई मौर्य को घटना में अवैध संबंधों की बात पता लगी तो उन्हें मामला गंभीर नजर आया

उन्होंने इस नई सूचना से एसपी अनुराग सुजनिया को अवगत करा दिया. एसपी ने इस केस को सुलझाने की जिम्मेदारी एडिशनल एसपी एम.एल.चौरसिया को सौंप दी. उन्होंने एसडीपीओ सुरेश सेजवार की अध्यक्षता में एक पुलिस टीम बनाई, जिस में टीआई अनिल मौर्य, टीआई (जतारा) आनंद सिंह परिहार, टीआई (बमोरी कलां) एसआई बीरेंद्र सिंह पंवार आदि तेजतर्रार पुलिस अधिकारियों को शामिल किया गया. इस पुलिस टीम ने तेजी से जांचपड़ताल शुरू कर दी. पुलिस जांच में एक महत्त्वपूर्ण जानकारी यह मिली कि इस घटना में मयंक खरे के पड़ोसी इशाक के अलावा उस का एक रिश्तेदार इकबाल नूरखान भी शामिल है. पुलिस ने दोनों के घर दबिश दी, लेकिन दोनों ही घर से फरार मिले.

4-5 दिन कोशिश करने के बाद भी जब ये लोग नहीं मिले तो पुलिस ने पहली अक्तूबर को दोनों के खिलाफ मयंक खरे के अपहरण का मामला दर्ज कर लियाकई दिन बीत जाने के बाद भी जब पुलिस मयंक खरे के बारे में कोई जानकारी नहीं जुटा सकी तो कायस्थ समाज ने विरोध प्रदर्शन कर आरोपियों की गिरफ्तारी की मांग की. यह प्रदर्शन पूरे जिले में व्यापक स्तर पर किया था, जिस की गूंज आईजी सतीश सक्सेना के कानों तक पहुंची. आईजी ने मामले को गंभीरता से लेते हुए एसपी अनुराग सुजनिया को निर्देश दिए कि केस का जल्द से जल्द परदाफाश किया जाए. उन्होंने अभियुक्तों की गिरफ्तारी पर 25-25 हजार रुपए का ईनाम भी घोषित कर दिया. उच्चाधिकारियों के दबाव में जांच टीम रातदिन काम करने लगी.

आखिर पता चल ही गया मयंक का मयंक के लापता होने के एक हफ्ता के बाद पुलिस को पहली सफलता उस समय मिली, जब उस ने 4 अक्तूबर को मयंक के अपहरण के मामले में इशाक खान, इकबाल और इन का साथ देने वाले रहीम खान, मजीद खान, रहमान खान को गिरफ्तार कर लियापुलिस ने उन से मयंक के बारे में पूछताछ की तो आरोपियों ने स्वीकार कर लिया कि वे मयंक की हत्या कर चुके हैं और उस की लाश घसान नदी में फेंक दी थी. हत्या की बात सुन कर पुलिस चौंकी. लाश बरामद करने के लिए पुलिस पांचों आरोपियों को ले कर उस जगह पहुंची, जहां उन्होंने मयंक खरे की लाश घसान नदी में फेंकी थी. पुलिस ने नदी में गोताखोरों से लाश तलाश कराई, लेकिन लाश वहां नहीं मिली.

घटना की रात तेज बारिश की वजह से नदी में बाढ़ जैसी स्थिति थी. इस से लाश दूर बह जाने की आशंका थी. एक आशंका यह भी थी कि लाश बरामद हो, इस के लिए आरोपी झूठ बोल रहे हों, इसलिए टीकमगढ़ के आसपास नदी तालाबों में लाश की तलाश तेज कर दी गई. आरोपियों से पूछताछ के बाद मयंक खरे की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह नाजायज संबंधों की बुनियाद पर टिकी थी. मध्य प्रदेश के टीकमगढ़ शहर के चकरा तिराहा इलाके में एक आवासीय इलाका है शिवशक्ति नगर. सुभाष खरे अपने परिवार के साथ शिवशक्ति नगर में रहते थे. उन के परिवार में पत्नी के अलावा 2 बेटे थे, जिन में मयंक बड़ा था. सुभाष खरे के घर के ठीक बगल में रहमान खान का घर था. इशाक रहमान का ही बेटा था. इशाक की शादी हो चुकी थी, उस की बीवी शबाना बहुत खूबसूरत थी.

मयंक और इशाक की उम्र में ज्यादा अंतर नहीं था. दोनों की बचपन से अच्छी दोस्ती थी. इशाक ड्राइवर था, जिस की वजह से वह अधिकांश समय घर से बाहर रहता था. छोटीमोटी आमदनी घर बैठे होती रहे, इस के लिए उस ने परचून की दुकान खोल ली थी, जिस पर उस की पत्नी शबाना बैठती थी. मयंक के घर में जरूरत का सामान शबाना की दुकान से ही आता था. मयंक खाली घूमता था, इसलिए शबाना की दुकान पर खड़े हो कर उस से बातें करता रहता था. शबाना खूबसूरत और चंचल स्वभाव की थी, इसलिए मयंक उसे चाहने लगा. शबाना को भी मयंक की बातों में रस आता था, इसलिए उस का झुकाव मयंक खरे की तरफ हो गया

मयंक ने खुद डाला आग में हाथ कुछ ही दिनों में मयंक शबाना का ऐसा दीवाना हो गया कि उसे दिनरात उस के अलावा कुछ सूझता ही नहीं था. इशाक से दोस्ती होने के कारण वह शबाना को भाभीजान कहता था. शबाना का दिल भी मयंक के लिए धड़कने लगा. आग दोनों तरफ लगी थी, इसलिए उन के बीच जल्द ही अवैध संबंध बन गए. इशाक जब कभी शहर से बाहर जाता तो मयंक और शबाना को वासना का खुला खेल खेलने का मौका मिल जाता था. जिस के चलते शबाना को मयंक अपने शौहर से ज्यादा अच्छा लगने लगा. लेकिन यह बात इशाक से ज्यादा दिनों तक छिपी रह सकी

धीरेधीरे इशाक को अपनी पत्नी और मयंक के बीच पक रही अवैध रिश्तों की खिचड़ी की महक महसूस हुई. फिर भी उस ने इस बात पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया. लेकिन जब पानी सिर के ऊपर जाने लगा तो वह दोनों पर कड़ी नजर रखने लगा. आखिर एक दिन उस ने शबाना को मयंक के साथ नैनमटक्का करते देख लिया. उस दिन उस ने शबाना की खासी पिटाई की. साथ ही उस ने मयंक से भी दूरी बनानी शुरू कर दी. लेकिन एक बार पास आने के बाद दूर जाने की बात तो मयंक को सुहाई और शबाना इस के लिए राजी थी, इसलिए शौहर के विरोध के बावजूद शबाना ने मयंक के साथ रिश्ते खत्म नहीं किए. इस के चलते इशाक और मयंक के बीच एकदो बार विवाद भी हुआ. इशाक के मना करने के बावजूद शबाना और मयंक अपनी इश्कबाजी से बाज नहीं रहे थे.

यही नहीं, इस बीच इशाक के घर में कुछ दिनों के लिए उस के रिश्तेदार की एक नाबालिग लड़की आई तो मयंक ने उस किशोरी से भी संबंध बना लिए. इस बात की खबर इशाक को लगी तो उस का खून खौल उठा. लिहाजा इशाक ने ऐसे दगाबाज दोस्त को ठिकाने लगाने की ठान ली. इशाक की मयंक से अनबन हो चुकी थी, जबकि अपनी योजना को अंजाम देने के लिए इशाक की मयंक से नजदीकी जरूरी थी. उस स्थिति में योजना को आसानी से अंजाम दिया जा सकता था. मयंक से फिर से दोस्ती बढ़ाने के लिए इशाक ने अपने चचेरे भाई इकबाल का सहारा लिया. इकबाल के सहयोग से उस ने मयंक से बात की.

मयंक वैसे तो काफी चालाक था. इशाक से वह सतर्क भी रहता था. लेकिन इशाक ने उसे समझाया कि देख भाई जो हुआ, सो हुआ अब आगे से ध्यान रखना कि ऐसा हो. रही हमारी दोस्ती की बात तो वह पहले की तरह चलती रहेगी. क्योंकि हमारे झगड़े में दूसरों को हंसने का मौका मिल जाता है. इशाक की बात सुन कर मयंक खुश हो गया. उसे लगा कि इस से वह अपनी भाभीजान शबाना से पुरानी नजदीकी पा लेगा. लिहाजा उस का फिर से इशाक के यहां आनाजाना शुरू हो गया. लेकिन उसे यह पता नहीं था कि इशाक के रूप में मौत उस की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ा रही है.

इशाक ने मयंक को ठिकाने लगाने के लिए अपने चचेरे भाई इकबाल, पत्नी शबाना और दोस्त पन्नालाल कल्लू के साथ योजना बना ली. शराब का घातक दौर योजना के अनुसार 25 सितंबर, 2019 को इशाक ने फोन कर के मयंक को शराब की पार्टी के लिए बीलगाय कलां बुलाया. शाम के समय मयंक अपनी कार से 30 किलोमीटर दूर बीलगाय कलां पहुंच गया. वहां पर इशाक, इकबाल, कल्लू और पन्नालाल उस का इंतजार कर रहे थे. इशाक का एक घर बीलगाय कलां में भी था. सब उसी घर में बैठ कर सब शराब पीने लगे.

इशाक के दोस्त इकबाल ने मौका मिलते ही मयंक के शराब के गिलास में नींद की गोलियां डाल दीं. शराब पीने के बाद वे सभी मयंक की कार में बैठ गए. कार इशाक चला रहा था और मयंक उस के बराबर में बैठा था. एक जगह कार रोक कर इशाक ने अपने साथ लाई लाइसेंसी दोनाली बंदूक से मयंक पर गोली चलाई जो उस के कंधे में लगी. मयंक घबरा गया. डर की वजह से उस का नशा उतर चुका था. इशाक ने उस पर दूसरी गोली चलाई तो मयंक झुक गया, जिस से गोली कार का शीशा तोड़ कर निकल गई. इशाक केवल 2 गोलियां लोड कर के लाया था जो इस्तेमाल हो चुकी थीं.

मयंक को बचा देख इशाक ने इकबाल की मदद से मयंक का गला घोंट दिया. फिर वे लाश को ठिकाने लगाने के लिए निकल पड़े. कार ले कर वे वहां से 7-8 किलोमीटर दूर इटाली गांव पहुंचे, जहां कार खराब हो गई. इस से सभी परेशान हो गए, क्योंकि कार में लाश थी. वहां से 3-4 किलोमीटर दूर बाबई गांव था, जहां इकबाल के रिश्तेदार रहते थे, जो कार मैकेनिक थे. इकबाल ने फोन किया तो सईद, रईस और मजीद वहां पहुंच गए. उन्होंने कार ठीक कर दी तो वे लाश को नौगांवा ले गए और लाश चादर में लपेट कर घसान नदी में फेंक दी. इस के बाद इशाक बाबई गांव में अपने दूल्हाभाई रहमान के यहां गया. रात को  सभी वहां रुके और अगले दिन अपने घर गए.

हत्यारोपियों से पूछताछ के बाद पुलिस ने रईस, शबाना, पन्नालाल को भी गिरफ्तार कर लिया. एक आरोपी कल्लू फरार था. पुलिस ने उस की गिरफ्तारी पर 10 हजार रुपए का ईनाम घोषित कर दिया. अभियुक्तों की निशानदेही पर पुलिस ने लाइसेंसी बंदूक, मयंक की कार, चप्पल, खून सना कार सीट कवर बरामद कर लिया. सीट कवर के खून को पुलिस ने जांच के लिए प्रयोगशाला भेज दिया. साथ ही मयंक के पिता का खून का सैंपल भी ले लिया ताकि डीएनए जांच से यह पता चल सके कि कार के सीट कवर पर लगा खून मयंक का था.

 

Murder story : बेटी ने ही सुपारी देकर कराई मां की हत्‍या

Murder story : पैसा और जमीनजायदाद इंसान को अपनों से अलग कर के ऐसे मुकाम तक ले जाते हैं, जहां उन्हें अपराध करने में भी कोई संकोच नहीं होता. तभी तो इंदरराज कौर उर्फ विक्की को अपनी मां का कत्ल करवाते हुए जरा भी दर्द नहीं हुआ…   

दिन अमृतसर के जिला एवं सत्र न्यायाधीश कर्मजीत सिंह की अदालात में सुबह से ही बहुत गहमागहमी थी. वकील और मीडियाकर्मियों के अलावा तमाम लोग भी वहां मौजूद थे. सभी के दिमाग में एक ही सवाल घूम रहा था कि पता नहीं अदालत आज विक्की और उस के प्रेमी गणेश को क्या सजा सुनाएगी. इन दोनों पर आरोप यह था कि विक्की ने अपने प्रेमी गणेश से अपनी मां राजिंदर कौर की हत्या कराई थी. दोनों पर यह केस करीब 3 साल से चल रहा था. पूरा मामला क्या था, जानने के लिए हमें 3 साल पीछे जाना पड़ेगा.

21 जनवरी, 2015 की बात है. नरेश नाम के एक व्यक्ति ने अमृतसर के थाना मकबूलपुरा में फोन द्वारा सूचना दी थी कि दीदार गैस एजेंसी की मालकिन 67 वर्षीय राजिंदर कौर की किसी से उन की गोल्डन एवेन्यू स्थित कोठी नंबर 5 में हत्या कर दी है. सूचना मिलते ही थानाप्रभारी अमरीक सिंह, एसआई कुलदीप सिंह, एएसआई बलजिंदर सिंह, सुरजीत सिंह, हवलदार प्रेम सिंह, मुख्तियार सिंह और लेडी हवलदार गुरविंदर कौर को साथ ले कर घटनास्थल पर पहुंच गएपता चला कि घटना वाली रात राजिंदर कौर अपनी कोठी में अकेली थीं. उन का बेटा तजिंदर सिंह 2 दिन पहले ही डलहौजी गया था और बेटी इंदरराज कौर उर्फ विक्की किसी रिश्तेदारी में दिल्ली गई हुई थी.

राजिंदर कौर की हत्या बहुत ही सुनियोजित तरीके से की गई थी. हत्या के वक्त वे शायद कोठी की दूसरी मंजिल पर थीं, क्योंकि उन का खून दूसरी मंजिल से बह कर घर की पहली मंजिल पर वहां तक गया था, जहां खून से लथपथ उन की लाश पड़ी थी. घटनास्थल को देख कर यह साफ लग रहा था कि हत्यारों को इस बात की पूरी जानकारी रही होगी कि राजिंदर कौर घर में अकेली हैं. इतना ही नहीं वो इस घर के चप्पेचप्पे से वाकिफ रहे होंगे. क्योंकि हत्यारे गेट के पास लगे सीसीटीवी कैमरों को तोड़ कर बड़ी सावधानी से घर में घुसे थे और अपना काम कर के चुपचाप वहां से निकल गए थे.

मौका वारदात पर बिखरा हुआ सामान इस बात की गवाही दे रहा था कि मरने से पहले मृतका की हत्यारों से काफी हाथापाई हुई होगी. प्राथमिक तफ्तीश में पता चला कि राजिंदर कौर की नौकरानी सुबह के लगभग 11 बजे घर में काम करने के लिए आई थी. उस ने देखा कि घर की मालकिन राजिंदर कौर की लाश जमीन पर खून से लथपथ पड़ी थी. उस ने घबरा कर गैस एजेंसी फोन कर के यह बात नरेश को बताई और नरेश ने कर पुलिस के अलावा इस घटना की सूचना राजिंदर कौर की बेटी इंदरराज कौर उर्फ विक्की को भी दी जो किसी रिश्तेदारी में दिल्ली गई हुई थी

मां की मौत की खबर मिलते ही विक्की भी उसी दिन पंजाब लौट आई. नरेश ने पुलिस को बताया कि गैस एजेंसी का 2 दिन का कैश कोठी में ही था. छुट्टी होने के कारण कैश बैंक में जमा नहीं करवाया गया था. पुलिस को यह मामला लूट और हत्या का लग रहा था. घटना की सूचना मिलने पर डीसीपी विक्रमपाल भट्टी, डीसीपी (क्राइम) जगजीत सिंह वालिया, एडीसीपी परमपाल सिंह, एसीपी बालकिशन सिंगला, एसीपी गौरव गर्ग, फोरैंसिक टीम सहित घटनास्थल पर पहुंच गए. फोरेंसिक टीम ने घटनास्थल से फिंगरप्रिंट और खून के सैंपल लिए.

हत्यारे कोठी से कितना कैश और जेवर ले गए थे इस बात का कोई पता नहीं लग सका. बहरहाल पुलिस ने 21 जनवरी, 2015 इंदरराज कौर उर्फ विक्की के बयान पर राजिंदर कौर की हत्या का मुकदमा अज्ञात हत्यारों के खिलाफ दर्ज कर के लाश पोस्टमार्टम के लिए सिविल अस्पताल भेज दी. अमृतसर के न्यू गोल्डन एवेन्यू की कोठी नंबर-5 में मेजर दीदार सिंह औजला का परिवार रहता था. उन के परिवार में पत्नी राजिंदर कौर के अलावा बेटी इंदरराज कौर उर्फ विक्की और बेटा तजिंदर सिंह उर्फ लाली थे. सन 1981 में मेजर साहब की मौत के बाद सरकार ने अनुकंपा के आधार पर फौजियों की विधवाओं को पेट्रौल पंप और गैस एजेंसियां वितरित की थीं. तभी राजिंदर कौर को भी एक गैस एजेंसी आवंटित हुई थी

राजिंदर कौर ने गैस एजेंसी का गोदाम और शोरूम सुल्तानभिंड रोड के अजीत नगर में खोला था. गैस एजेंसी को वह स्वयं ही संभालती थीं. कालेज की पढ़ाई पूरी करने के बाद बेटी विक्की भी एजेंसी पर जाने लगी थी. लाली अभी पढ़ रहा था. पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार राजिंदर कौर की हत्या दम घुटने से हुई थी. हालांकि उन के सिर पर चोटों के गहरे घाव थे पर उन की मौत गला घोंटे जाने के कारण ही हुई थी

2 दिन तक पुलिस को इस केस का कोई सिरा हाथ नहीं आया था. पुलिस इस बात को मान कर चल रही थी कि हत्यारा राजिंदर कौर के परिवार का परिचित रहा होगा. लेकिन 2 दिन बाद पुलिस ने अपनी जांच की दिशा बदल दीपुलिस ने राजिंदर कौर, उन के बेटे तजिंदर उर्फ लाली, इंदरराज कौर उर्फ विक्की के मोबाइल नंबरों की काल डिटेल्स निकलवाई तो विक्की की काल डिटेल से पुलिस को कई चौंकाने वाली बातें पता चलीं. विक्की की काल डिटेल्स में एक ऐसा नंबर आया जिस पर विक्की की दिनरात कईकई घंटे बातें होती थीं. वह नंबर किसी गणेश नाम के व्यक्ति का था.

इस बार पुलिस के हाथ कुछ ऐसा क्लू लगा था, जिस के सहारे वह अपनी जांच को आगे बढ़ा सकती थी. इस के पहले पुलिस अंधेरी गलियों में ही भटक रही थी. पुलिस ने राजिंदर कौर के पड़ोसियों और गैस एजेंसी पर काम करने वालों से भी पूछताछ की थी.  इस पूछताछ में पुलिस को कई अहम सुराग हाथ लगे थे, यह बात तय थी कि जो कुछ भी हुआ था. वह कोठी के अंदर से ही हुआ था. बाहर के किसी व्यक्ति का इस हत्याकांड से कोई लेनादेना नहीं था. हत्यारे एक रहे हों या 2 इस से अभी कोई फर्क नहीं पड़ना था. समझने वाली बात यह थी कि आखिर राजिंदर कौर की ही हत्या क्यों की गई थी. उन की हत्या से किसे फायदा पहुंचने वाला था. आखिर घटना के चौथे दिन 2 ऐसे गवाह खुद पुलिस के सामने आए, जिन्होंने इस केस का रुख पलट कर हत्यारों का चेहरा पुलिस के सामने रख दिया था.

28 जनवरी, 2015 को पुलिस ने राजिंदर कौर की हत्या के आरोप में 2 लोगों को गिरफ्तार कर लिया. उन में से एक खुद मृतका की बेटी इंदरराज कौर उर्फ विक्की थी और दूसरा उस का प्रेमी गणेश था, जो स्थानीय भुल्लर अस्पताल में कंपाउंडर थागणेश गुंदली चौगान, नूरपुर, हिमाचल प्रदेश का निवासी था और पिछले कई सालों से उस के विक्की के साथ नाजायज संबंध थे. गणेश विक्की के बीमार भाई तजिंदर की देखभाल के लिए उस के घर आता था और इसी बीच विक्की के साथ उस के अवैध संबंध बन गए थे. बेटी ने ही सुपारी दे कर अपनी मां की हत्या करवाई थी यह बात सुन कर सभी रिश्तेदारों के होश उड़ गए. विक्की को उस के मांबाप ने बड़े लाड़प्यार से पाला था. अपनी मां की मौत का दिल दहलाने वाला मंजर देख कर उस ने घडि़याली आंसू भी बहाए थे.

इतना ही नहीं पुलिस को भी इस असमंजस में डाले रखा था कि उसे अपनी मां की मौत का बहुत दुख है. जबकि हकीकत यह थी कि विक्की शुरू से ही पुलिस को झूठ बोल कर गुमराह करती रही थी. जब असलियत का खुलासा हुआ तो पुलिस के साथ उस के सगे संबंधियों के भी होश उड़ गए. अकसर देखा गया है कि जायदाद की खातिर इंसान अपने सभी रिश्ते भुला कर आपराधिक घटनाओं को अंजाम दे देता है, मगर विक्की ने तो दरिंदगी की सारी हदें पार कर दी थीं. उस ने अपने प्रेमी को 5 लाख की सुपारी दे कर जन्म देने वाली मां को ही मरवा डाला था. पुलिस ने दोनों को अदालत में पेश कर रिमांड पर लिया. रिमांड के दौरान पुलिस ने गणेश की निशानदेही पर लोहे की रौड, खून सने कपड़े आदि बरामद कर लिए. बाद में दोनों को जेल भेज दिया गया.

पुलिस को राजिंदर कौर की हत्या की जो कहानी पता चली और जिस के आधार पर उस ने अदालत में चार्जशीट दाखिल की, उस में बताया गया था कि इस हत्याकांड की मूल वजह वो जायदाद थी जो मृतका राजिंदर कौर ने विक्की के नाम कर के अपने बेटे तजिंदर उर्फ लाली के नाम कर दी थीदरअसल लाड़प्यार से पली विक्की बचपन से ही अपनी मनमरजी करने वाली जिद्दी और अडि़यल स्वभाव की लड़की थी. उम्र के साथ उस का यह पागलपन और भी बढ़ता गया था. पिता की मृत्यु के समय वह मात्र 4-5 साल की रही होगी. पिता की मृत्यु के बाद मां राजिंदर कौर का सारा वक्त गैस एजेंसी संभालने में गुजरता था. ऐसे में विक्की बेलगाम होती चली गई.

यहां यह कहना भी गलत होगा कि बच्चों को सुविधाओं के साथ मातापिता के दिशानिर्देशों की भी सख्त जरूरत होती है. अन्यथा परिणाम भयानक ही निकलते हैं. इस मामले में भी यही हुआ था. कालेज तक पहुंचतेपहुंचते वह दिशाहीन, भटकी हुई युवती बन चुकी थी. शराब के नशे और क्लबों में खुशी तलाशना उस की आदत बन चुकी थी. दूसरे सहपाठियों को नीचा दिखाना उस का मनपसंद शौक था. मां के द्वारा मेहनत से कमाया पैसा वह पानी की तरह बहाने लगी थी. उस के दोस्तों में लड़कियां कम लड़के अधिक थे. कपड़ों की तरह बौयफ्रैंड बदलना उस का स्वभाव बन गया था

मां की किसी बात का जवाब देना, आधीआधी रात को घर लौटना विक्की की आदतों में शुमार हो गया था. पढ़ाई पूरी कर उस ने मां के साथ गैस एजेंसी पर बैठना शुरू कर दिया, वह भी अपने स्वार्थ की खातिर. गैस एजेंसी से पैसे उड़ा कर वह अपनी अय्याशियों में उड़ा देती थी. उस की इन हरकतों से राजिंदर कौर बहुत दुखी थीं. वह मन ही मन घुटती रहती थीं. वे यह सोच कर मन पर पत्थर रख लेती थीं कि शादी के बाद जब वह अपनी ससुराल चली जाएगी. तभी वह चैन की सांस ले पाएंगी. पर यह उन की भूल थी. 37 साल की हो जाने के बाद भी विक्की शादी करने को तैयार नहीं थी. ऐसे में आपसी रिश्तों में जहर घुल गया था

राजिंदर कौर विक्की को समझासमझा कर हार चुकी थीं. लेकिन विक्की की नादानियां दिन पर दिन बढ़ती जा रही थीं. इसी बीच उस के गणेश से संबंध बन गए थे. राजिंदर कौर को जब इस बात का पता चला तो उन्होंने हंगामा करते हुए विक्की को बहुत कुछ समझाया पर विक्की ने इस सब की जरा भी परवाह नहीं की. वह घर में ही गणेश के साथ अय्याशी करती रही. घटना से कुछ दिन पहले विक्की और राजिंदर कौर के बीच पैसों को ले कर जबरदस्त झगड़ा हुआ था. विक्की को सुधरता देख राजिंदर कौर ने उस का गैस एजेंसी पर आना बंद करवा दिया. साथ ही उस के जेब खर्च पर भी पाबंदी लगा दी थी. यह सब देख विक्की तिलमिला उठी थी

उस ने मां से इस विषय में बात की तो उन्होंने कहा कि जब तक वह अपने आप को नहीं सुधारती और घर में एक शरीफ घर की बच्ची की तरह पेश नहीं आती तब तक उस का उन से कोई संबंध नहीं रहेगा. राजिंदर कौर ने यह कदम उठाया था विक्की को सुधारने के लिए, मगर इस का उलटा ही परिणाम निकला. विक्की यारदोस्तों और अपनी जानपहचान वालों से पैसे उधार ले कर अपने शौक पूरे करने लगी. इस बात का राजिंदर कौर को और ज्यादा दुख पहुंचा. बेटी के कर्ज को ले कर उन की बड़ी बदनामी भी हो रही थी.

अंत में राजिंदर कौर ने एक और सख्त कदम उठाया जो आगे चल कर उन की जान का दुश्मन बन गया. राजिंदर कौर ने अपनी सारी चलअचल संपत्ति, बिजनैस आदि अपने बेटे तजिंदर सिंह के नाम कर दिया. विक्की के नाम उन्होंने एक पैसा भी नहीं छोड़ा थाइस बात का पता लगने पर विक्की आगबबूला हो उठी. उसे यह उम्मीद नहीं थी कि उस की मां ऐसा भी कुछ कर सकती है. घटना से कुछ दिन पहले इसी बात को ले कर मांबेटी में जम कर झगड़ा भी हुआ था. राजिंदर कौर अब किसी भी कीमत पर विक्की को आजादी नहीं देना चाहती थीं  गणेश और विक्की के बीच लगभग ढाई सालों से अवैध संबंध थे. गणेश पूरी तरह से विक्की के चंगुल में फंस कर उस का गुलाम बना हुआ था. दोनों को ही पैसों की सख्त जरूरत थी

विक्की इतनी शातिर दिमाग थी कि जहां वह खुद अपनी जरूरतें पूरी करने के लिए गणेश का इस्तेमाल कर रही थी, वहीं उस का खुराफाती दिमाग गणेश के हाथों अपनी ही मां की हत्या करवाने की साजिश रचने में लगा था. जब से विक्की को पता चला था कि मां ने करोड़ों की जायदाद छोटे भाई तजिंदर सिंह के नाम कर दी है, उसी दिन से विक्की ने राजिंदर कौर की हत्या करने का मन बना लिया था. अपनी मां के खिलाफ उस के मन में जहर भर गया था. योजना बनाने के बाद उस ने अपने प्रेमी गणेश शर्मा को 5 लाख रुपए की सुपारी दे कर मां का कत्ल कराने के लिए तैयार कर लिया.

अपनी योजना के तहत विक्की ने सब से पहले अपने भाई तजिंदर को 3 दिन पहले घूमनेफिरने के लिए मनाली डलहौजी भेज दिया. इस के बाद 21 जनवरी को वह खुद भी दिल्ली जाने का बहाना कर के घर से निकल गई. इस से गणेश का रास्ता साफ हो गया था. तसल्ली करने के लिए हत्या से एक दिन पहले विक्की ने भाई को फोन कर के पूछा कि वह घर वापस कब लौट रहा है. तजिंदर ने बताया था कि वह अभी कुछ दिन और मनाली में रहेगा. गणेश के लिए राजिंदर कौर की हत्या करने के लिए रास्ता साफ था. 20-21 जनवरी की आधी रात को वह सीसीटीवी कैमरों को तोड़ कर कोठी में दाखिल हुआ और उस ने कमरे में सो रही राजिंदर कौर के सिर पर पहले लोहे की रौड से वार कर के उन्हें गंभीर रूप से घायल कर दिया

उस के बाद गणेश ने बिजली की तार से उन का गला घोंट कर मौत के घाट उतार दिया. चुपचाप अपना काम खत्म कर के वह वहां से कुछ दूरी पर स्थित अपने कमरे पर लौट गया और फोन कर के विक्की को काम हो जाने की खबर दे दी. राजिंदर कौर की हत्या के समय विक्की ने पुलिस को गुमराह करने के लिए यह बयान दिया था कि उस का भाई मनाली गया हुआ था और वह किसी काम से दिल्ली गई थी. जबकि वह अमृतसर के ही एक होटल में ठहरी हुई थी. हत्या के 2 दिन बाद गणेश शर्मा गायब हो गया थाविक्की और गणेश की काल डिटेल्स देखने के बाद और गणेश के गायब हो जाने के बाद हत्या की सीधी सुई इन दोनों पर चली गई थी. इस बीच वहां के पूर्व पार्षद तरसेम भोला ने मामले को नया मोड़ दे दिया था.

हत्या के इस मामले की तहकीकात के बीच पुलिस को पूर्व पार्षद तरसेम सिंह भोला ने 27 जनवरी, 2015 को यह जानकारी दी थी कि इंदरराज कौर उर्फ विक्की उस के पास आई थी और उस ने बताया था कि उस की मम्मी ने अपनी सारी जायदाद की वसीयत उस के भाई तेजिंदर सिंह लाली के नाम कर दी है. उस की मम्मी द्वारा उसे कोई भी जायदाद दिए जाने के कारण वह बहुत ही गुस्से में थीइसलिए उस ने भुल्लर अस्पताल में काम करने वाले गणेश कुमार को 5 लाख रुपए का लालच दे कर अपनी मम्मी राजिंदर कौर की हत्या करवा दी है. उस से बहुत बड़ी गलती हो गई है. किसी किसी तरह वह उस का बचाव करवा दें.

इसी तरह मकबूलपुरा निवासी एक स्वतंत्र गवाह कश्मीर सिंह ने भी उसी दिन पुलिस को जानकारी दी थी कि भुल्लर अस्पताल में काम करने वाले गणेश कुमार ने उसे बताया था कि वह अपनी प्रेमिका इंदरराज उर्फ विक्की के कहने पर उस की मां राजिंदर कौर की हत्या कर बैठा हैइस मामले में पुलिस उसे कभी भी गिरफ्तार कर सकती है. इसलिए वह किसी भी तरह उस का बचाव करवा दे. इन दोनों गवाहों के सामने आने पर हत्या डकैती माने जा रहे इस मामले में एकदम नया मोड़ गया था. इस केस में पुलिस ने जितने भी गवाह बनाए थे उन में से अहम गवाह पूर्व पार्षद तरसेम सिंह भोला और एक अन्य व्यक्ति था. पुलिस ने इस केस की तफ्तीश में अपनी तरफ से कोई कोरकसर नहीं छोड़ी थी और पुख्ता सबूतों के आधार पर चार्जशीट बना कर अदालत में पेश की थी.

लेकिन गवाहियों के दौरान इस केस में काफी उठापटक हुई थी. जिस कारण कई गवाह अपनी बात से मुकर गए थे. फिर भी पुलिस के पास गणेश शर्मा के खिलाफ पक्के सबूत थे, जिसे लाख कोशिशों के बाद भी अदालत में झुठलाया नहीं जा सकता था. गवाहों के बयान और मौके से मिले साक्ष्यों के आधार पर माननीय जिला एवं सत्र न्यायाधीश कर्मजीत सिंह की अदालत ने 25 मई, 2018 को मृतका की जिस बेटी इंदरराज कौर उर्फ विक्की पर सुपारी दे कर अपनी मां की हत्या करवाने के आरोप लगाए गए थे, अदालत ने उसे साक्ष्यों के अभाव में संदेह का लाभ दे कर बरी कर दिया था

लेकिन हत्यारोपी गणेश शर्मा पर लगाए गए आरोप सही पाए जाने पर अदालत ने उसे भादंवि की धारा 302 के तहत उम्रकैद की सजा के साथसाथ 10 हजार रुपए जुरमाने की भी सजा सुनाई.

 

Kanpur crime : देवर को मोहरा बनाकर कराया बड़ी बहन का मर्डर

Kanpur crime : कभीकभी इंसान इश्क में इतना अंधा हो जाता है कि वह अच्छेबुरे का फर्क भी नहीं समझता. बबीता ने बड़ी बहन बबली के सुहाग पर डाका डाल कर उसे अपने कब्जे में कर लिया था. इस का अंजाम इतना खतरनाक निकला कि…   

11 सितंबर, 2018 की सुबह करीब 8 बजे कानपुर शहर के थाना कैंट के थानाप्रभारी ललितमणि त्रिपाठी थाने में पहुंचे ही थे कि उसी समय एक व्यक्ति बदहवास हालत में उन के पास पहुंचा. उस ने थानाप्रभारी को सैल्यूट किया फिर बताया, ‘‘सर, मेरा नाम दिलीप कुमार है. मैं सिपाही पद पर पुलिस लाइन में तैनात हूं और कैंट थाने के पुलिस आवास ब्लौक 3, कालोनी नंबर 29 में रहता हूं. बीती रात मेरी दूसरी पत्नी बबीता ने पंखे से फांसी लगा कर आत्महत्या कर ली है. आप को सूचना देने थाने आया हूं.’’

चूंकि विभागीय मामला था. अत: थानाप्रभारी ललितमणि त्रिपाठी ने दिलीप की सूचना से अपने वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को अवगत कराया फिर सहयोगियों के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. पुलिस टीम जब दिलीप के आवास पर पहुंची तो बबीता का शव पलंग पर पड़ा था. उस की उम्र करीब 23 साल थी. उस के गले में खरोंच का निशान था. वहां एक दुपट्टा भी पड़ा था. शायद उस ने दुपट्टे से फांसी का फंदा बनाया था. थानाप्रभारी अभी जांच कर ही रहे थे कि एसएसपी अनंत देव, एसपी राजेश कुमार यादव तथा सीओ (कैंट) अजीत प्रताप सिंह फोरैंसिक टीम के साथ वहां गए. पुलिस अधिकारियों ने बारीकी से घटनास्थल का निरीक्षण किया फिर सिपाही दिलीप कुमार उस की पत्नी बबली से पूछताछ की.

 दिलीप ने बताया कि उस की ब्याहता पत्नी बबली है. बाद में उस ने साली बबीता से दूसरा ब्याह रचा लिया था. दोनों पत्नियां साथ रहती थीं. बीती रात बबीता ने पंखे से लटक कर आत्महत्या कर ली जबकि बबली ने बताया कि बबीता को मिरगी का दौरा पड़ता था. वह बीमार रहती थी, जिस से परेशान हो कर उस ने आत्महत्या कर ली. पुलिस अधिकारियों ने पूछताछ के बाद मृतका के परिवार वालों को भी सूचना भिजवा दी. फोरैंसिक टीम ने जांच की तो पंखे, छत के कुंडे रौड पर धूल लगी थी. अगर पंखे से लटक कर बबीता ने जान दी होती तो धूल हटनी चाहिए थी. मौके से बरामद दुपट्टे पर भी किसी तरह की धूल नहीं लगी थी

गले पर मिला निशान भी फांसी के फंदे जैसा नहीं था. टीम को यह मामला आत्महत्या जैसा नहीं लगा. फोरैंसिक टीम ने वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को अपने शक से अवगत कराया और शव का पोस्टमार्टम डाक्टरों के पैनल से कराने का अनुरोध किया. इस के बाद लाश पोस्टमार्टम के लिए लाला लाजपतराय चिकित्सालय भिजवा दी. एसएसपी अनंत देव ने तब मृतका बबीता के शव का पोस्टमार्टम डाक्टरों के पैनल से कराने को कहा. डाक्टरों के पैनल ने बबीता का पोस्टमार्टम किया और अपनी रिपोर्ट पुलिस अधिकारियों को भेज दी.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट को पढ़ कर थानाप्रभारी चौंक पड़े, क्योंकि उस में साफ कहा गया था कि बबीता की मौत गला दबा कर हुई थी. यानी वह आत्महत्या नहीं बल्कि हत्या का मामला निकला. श्री त्रिपाठी ने अपने अधिकारियों को भी बबीता की हत्या के बारे में अवगत करा दिया. फिर उन के आदेश पर सिपाही दिलीप कुमार को पूछताछ के लिए हिरासत में ले लिया. अब तक मृतका बबीता के मातापिता भी कानपुर गए थे. आते ही बबीता के पिता डा. बृजपाल सिंह ने थानाप्रभारी ललितमणि त्रिपाठी सीओ अजीत प्रताप सिंह चौहान से मुलाकात की. उन्होंने आरोप लगाया कि सिपाही दिलीप उस के परिवार वालों ने दहेज के लिए उन की बेटी बबीता को मार डाला. उन्होंने रिपोर्ट दर्ज कर आरोपियों को तुरंत गिरफ्तार करने की मांग की.

चूंकि बबीता की मौत गला घोंटने से हुई थी और सिपाही दिलीप कुमार शक के घेरे में था. अत: थानाप्रभारी ललितमणि त्रिपाठी ने मृतका के पिता डा. बृजपाल सिंह की तहरीर पर सिपाही दिलीप कुमार उस के पिता सोनेलाल मां मालती के खिलाफ दहेज उत्पीड़न गैर इरादतन हत्या की रिपोर्ट दर्ज कर के जांच शुरू कर दी. बबीता की मौत की बारीकी से जांच शुरू की तो उन्होंने सब से पहले हिरासत में लिए गए सिपाही दिलीप कुमार से पूछताछ की. दिलीप कुमार ने हत्या से साफ इनकार कर दिया. उस की ब्याहता बबली से पूछताछ की गई तो वह भी साफ मुकर गई. पासपड़ोस के लोगों से भी जानकारी जुटाई गई, पर हत्या का कोई क्लू नहीं मिला.

सिपाही दिलीप के पिता सोनेलाल भी यूपी पुलिस में एसआई हैं. वह पुलिस लाइन कानपुर में तैनात हैं. सोनेलाल भी इस केस में आरोपी थे. फिर भी उन्होंने पुलिस अधिकारियों से मुलाकात की और बताया कि बबीता की हत्या उन के बेटे दिलीप ने नहीं की है. उन्होंने कहा कि बबीता के पिता बृजपाल ने झूठा आरोप लगा कर पूरे परिवार को फंसाया है. पुलिस जिस तरह चाहे जांच कर ले, वह जांच में पूरा सहयोग करने को तैयार हैं. उन्होंने यहां तक कहा कि यदि जांच में मेरा बेटा और मैं दोषी पाया जाऊं तो कतई बख्शा जाए. एसपी राजेश कुमार यादव सीओ प्रताप सिंह भी चाहते थे कि हत्या जैसे गंभीर मामले में कोई निर्दोष व्यक्ति जेल जाए, अत: उन्होंने एसआई सोनेलाल की बात को गंभीरता से लिया और थानाप्रभारी ललितमणि त्रिपाठी को आदेश दिया कि वह निष्पक्ष जांच कर जल्द से जल्द हत्या का खुलासा कर दोषी के खिलाफ काररवाई करें.

अधिकारियों के आदेश पर थानाप्रभारी ने केस की सिरे से जांच शुरू की. उन्होंने मामले का क्राइम सीन दोहराया. इस से एक बात तो स्पष्ट हो गई कि बबीता का हत्यारा कोई अपना ही है. क्योंकि घर में उस रात 4 सदस्य थे. सिपाही दिलीप कुमार, उस की ब्याहता बबली, 3 वर्षीय बेटा और दूसरी पत्नी बबीता. अब रात में बबीता की हत्या या तो दिलीप ने की या फिर बबली ने या फिर दोनों ने मिल कर की या किसी को सुपारी दे कर कराई. दिलीप कुमार बबीता की हत्या से साफ मुकर रहा था. उस का दरोगा पिता सोनेलाल भी उस की बात का समर्थन कर रहा था. यदि दिलीप ने हत्या नहीं की तो बबली जरूर हत्या के राज से वाकिफ होगी. अब तक कई राउंड में पुलिस अधिकारी दिलीप तथा उस की ब्याहता बबली से पूछताछ कर चुके थे. पर किसी ने मुंह नहीं खोला था.

इस पूछताछ में बबली शक के घेरे में रही थी. पुष्टि करने के लिए पुलिस ने बबली के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकलवाई. उस से पता चला कि उस ने घटना वाली शाम को अपने देवर शिवम से बात की थी. अत: 14 सितंबर को बबली को पूछताछ के लिए थाने बुलवा लियामहिला पुलिसकर्मियों ने जब उस से उस की छोटी बहन बबीता की हत्या के संबंध में पूछा तो वह साफ मुकर गई. लेकिन मनोवैज्ञानिक तरीके से की गई पूछताछ से बबली टूट गई. उस ने बबीता की हत्या का जुर्म कबूल कर लिया. बबली ने बताया कि उस की सगी छोटी बहन बबीता उस की सौतन बन गई थी. पति बबीता के चक्कर में उस की उपेक्षा करने लगा था. इतना ही नहीं, वह शारीरिक और मानसिक रूप से भी उसे प्रताडि़त करता था. पति की उपेक्षा से उस का झुकाव सगे देवर शिवम की तरफ हो गया. फिर शिवम की मदद से ही रात में बबीता की रस्सी से गला कस कर हत्या कर दी.

बबली के बयानों के आधार पर पुलिस ने शिवम को चकेरी से गिरफ्तार कर लिया. शिवम चकेरी में कमरा ले कर रह रहा था और पढ़ाई तथा प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहा था. थाने में भाभी बबली को देख कर उस के चेहरे का रंग उड़ गया. फिर उस ने भी हत्या का जुर्म कबूल कर लिया. शिवम ने बताया कि बबली भाभी उस के बीच प्रेम संबंध थे. भाभी उस से मिलने चकेरी आती थी. किसी तरह बबीता को यह बात पता लग गई थी तो वह शिकायत दिलीप भैया से कर देती थी. फिर दिलीप भैया हम दोनों को पीटते थे. इसी खुन्नस में हम दोनों ने गला घोट कर बबीता को मार डाला. शिवम ने हत्या में प्रयुक्त रस्सी भी पुलिस को बरामद करा दी जो उस ने झाडि़यों में फेंक दी थी.

चूंकि बबीता की हत्या की वजह साफ हो गई थी, इसलिए थानाप्रभारी ललितमणि त्रिपाठी ने दहेज हत्या की रिपोर्ट को खारिज कर बबली शिवम के खिलाफ भादंवि की धारा 302 के तहत रिपोर्ट दर्ज कर ली और दोनों को गिरफ्तार कर सिपाही दिलीप उस के मातापिता को क्लीन चिट दे दी. पुलिस द्वारा की गई जांच, आरोपियों के बयानों और अन्य सूत्रों से मिली जानकारी के आधार पर नाजायज रिश्तों एवं सौतिया डाह की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार निकली

उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले का एक छोटा सा गांव है रूपापुर. इसी गांव में डा. बृजपाल सिंह अपने परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में पत्नी ममता के अलावा 2 बेटियां बबली और बबीता थीं. बृजपाल सिंह गांव के सम्मानित व्यक्ति थे. वह डाक्टरी पेशे से जुड़े थे. उन के पास उपजाऊ जमीन भी थी. कुल मिला कर वह हर तरह से साधनसंपन्न और प्रतिष्ठित व्यक्ति थे. उन्होंने बड़ी बेटी बबली की शादी फर्रुखाबाद जिले के गंज (फतेहगढ़) निवासी सोनेलाल के बेटे दिलीप कुमार के साथ तय कर दी. दिलीप कुमार उत्तर प्रदेश पुलिस में सिपाही था. सोनेलाल भी उत्तर प्रदेश पुलिस में एसआई थे. उन का छोटा बेटा शिवम पढ़ रहा था. सोनेलाल का परिवार भी खुशहाल था.

दोनों ही परिवार पढ़ेलिखे थे, इसलिए सगाई से पहले ही परिजनों ने एकांत में बबली और दिलीप की मुलाकात करा दी थी. क्योंकि जिंदगी भर दोनों को साथ रहना है तो वे पहले ही एकदूसरे को देखसमझ लें. दोनों ने एकदूसरे को पसंद कर लिया तो 11 दिसंबर, 2012 को सामाजिक रीतिरिवाज से दोनों की शादी हो गई. शादी के बाद बबली कुछ महीने ससुराल में रही फिर दिलीप को कानपुर के कैंट थाने में क्वार्टर मिल गया. क्वार्टर आवंटित होने के बाद दिलीप अपनी पत्नी को भी गांव से ले आया. वहां दोनों हंसीखुशी से जिंदगी व्यतीत करने लगे.

दिलीप जब ससुराल जाता तो उस की निगाहें अपनी खूबसूरत साली बबीता पर ही टिकी रहती थीं. वह महसूस करने लगा कि बबली से शादी कर के उस ने गलती की. उस की शादी तो बबीता से होनी चाहिए थी. ऐसा नहीं था कि बबली में किसी तरह की कमी थी. वह सुंदर, सुशील के साथ घर के सभी कामों में दक्ष थी. लेकिन बबीता अपनी बड़ी बहन से ज्यादा सुंदर और चंचल थी, इसलिए दिलीप का मन साली पर इतना डोल गया कि उस ने फैसला कर लिया कि वह बबीता को अपने प्यार के जाल में फंसा कर उस से दूसरा विवाह करने की कोशिश करेगा.

रिश्ता जीजासाली का था सो दिलीप और बबीता के बीच हंसीमजाक होता रहता था. एक दिन दिलीप ससुराल में सोफे पर बैठा था तभी बबीता उसी के पास सोफे पर बैठ कर उस की शादी का एलबम देखने लगी. दोनों के बीच बातों के साथ हंसीमजाक हो रहा था. अचानक दिलीप ने एलबम में लगे एक फोटो की ओर संकेत किया, ‘‘देखो बबीता, मेरे बुरे वक्त में कितने लोग साथ खड़े हैं.’’

बबीता ने गौर से उस फोटो को देखा, जिस में दिलीप दूल्हा बना हुआ था और कई लोग उस के साथ खड़े थे. फिर वह खिलखिला कर हंसने लगी, ‘‘शादी और आप का बुरा वक्त. जीजाजी, बहुत अच्छा मजाक कर लेते हैं आप.’’

‘‘बबीता, मैं मजाक नहीं कर रहा हूं सच बोल रहा हूं.’’ चौंकन्नी निगाहों से इधरउधर देखने के बाद दिलीप फुसफुसा कर बोला, ‘‘बबली से शादी कर के मैं तो फंस गया यार.’’

‘‘पापा ने दहेज में कोई कसर छोड़ी है और दीदी में किसी तरह की कमी है.’’ हंसतेहंसते बबीता गंभीर हो गई, ‘‘फिर आप दिल दुखाने वाली ऐसी बात क्यों कर रहे हैं.’’

‘‘बबली को जीवनसाथी चुन कर मैं ने गलती की थी.’’ कह कर दिलीप बबीता की आंखों में देखने लगा फिर बोला, ‘‘सच कहूं, मेरी पत्नी के काबिल तो तुम थी.’’

गंभीरता का मुखौटा उतार कर बबीता फिर खिलखिलाने लगी, ‘‘जीजाजी, आप भी खूब हैं.’’

‘‘अच्छा, एक बात बताओ. अगर बबली से मेरा रिश्ता हुआ होता और मैं तुम्हें प्रपोज करता तो क्या तुम मुझ से शादी करने को राजी हो जाती.’’ कह कर दिलीप ने उस के मन की टोह लेनी चाही.

बबीता से कोई जवाब देते बना, वह गहरी सोच में डूब गई.

‘‘सच बोलूं?’’ बबीता ने कहा, ‘‘आप बुरा तो नहीं मानेंगे.’’

दिलीप का दिल डूबने सा लगा, ‘‘बिलकुल नहीं, लेकिन सच बोलना.’’

‘‘सच ही बोलूंगी जीजाजी,’’ शर्म से बबीता के गालों पर गुलाबी छा गई, ‘‘और सच यह है कि मैं आप से शादी करने को फौरन राजी हो जाती.’’

यह सुन कर दिलीप का दिल बल्लियों उछलने लगा किंतु मन में एक संशय भी था, सो उस ने तुरंत पूछ लिया, ‘‘कहीं मेरा मन रखने के लिए तो तुम यह जवाब नहीं दे रही.’’

‘‘हरगिज नहीं, बहुत सोचसमझ कर ही मैं ने आप को यह जवाब दिया है.’’ बबीता आहिस्ता से निगाहें उठा कर बोली, ‘‘आप हैं ही इतने हैंडसम और स्मार्ट कि किसी भी लड़की के आइडियल हो सकते हैं.’’

दिलीप ने अपनी आंखें उस की आंखों में डाल दीं, ‘‘तुम्हारा भी…’’

‘‘मैं कैसे शामिल हो सकती हूं.’’ बबीता बौखलाई सी थी, ‘‘आप तो मेरे जीजाजी हैं.’’

बबीता ने मुंह खोला ही था कि तभी उस की मां ममता वहां गईं. अत: दोनों की बातों पर वहीं विराम लग गया. दिलीप से हुई बातों को बबीता ने सामान्य रूप से लिया, मगर दिलीप का दिमाग दूसरी ही दिशा में सोच रहा था. उसे विश्वास हो गया कि बबीता भी उस पर फिदा है. लिहाजा वह बबीता पर डोरे डालने लगा. शादी के ढाई साल बाद बबली गर्भवती हुई तो उस की खुशी का ठिकाना रहा. दिलीप को भी बाप बनने की खुशी थी. एक रोज बबली ने पति से कहा कि उसे अब घरेलू काम खाना बनाने में दिक्कत होने लगी है. अत: वह बबीता को घर की देखरेख के लिए लिवा लाए. कम से कम वह घर का काम तो कर लिया करेगी.

पत्नी की बात सुन कर दिलीप खुशी से झूम उठा. उस ने बबली से कहा कि वह अपने मातापिता से बबीता को भेजने की बात कर ले. कहीं ऐसा हो कि वह उसे भेजने से इनकार कर देंबबली ने मां से बात की तो वह बबीता को दिलीप के साथ भेजने को राजी हो गईं. इस के बाद दिलीप ससुराल गया और बबीता को साथ ले आया. बबीता ने आते ही घर का कामकाज संभाल लिया. साली घर गई तो दिलीप के जीवन में भी बहार गई. वह उसे रिझाने के लिए उस पर डोरे डालने लगा. पहले दोनों में मौखिक छेड़छाड़ शुरू हुई. फिर धीरेधीरे मगर चालाकी से दिलीप ने उस से शारीरिक छेड़छाड़ भी शुरू कर दी.

उन दिनों बबीता की उम्र 19-20 साल थी. उस के तनमन में यौवन का हाहाकारी सैलाब थमा हुआ था. दिलीप की कामुक हरकतों से उसे भी आनंद की अनुभूति होने लगी. दिलीप को छेड़ने पर वह उस का विरोध करने के बजाय मुसकरा देती. इस से दिलीप का हौसला बढ़ता गया. बबीता भी दिलीप में रुचि लेने लगी. फिर एक दिन मौका मिलने पर दोनों ने अपनी हसरतें भी पूरी कर लीं. साली के शरीर को पा कर जहां दिलीप की प्रसन्नता का पारावार था, वहीं बबीता को प्रसन्नता के साथ ग्लानि भी थी. उस ने कहा, ‘‘जीजाजी, यह अच्छा नहीं हुआ. तुम्हारे साथ मैं भी बहक गई.’’

‘‘तो इस में बुरा क्या है?’’

‘‘बुरा यह है कि मैं ने बड़ी बहन के हक पर अपना हक जमा लिया. यह पाप है.’’ वह बोली.

‘‘प्यार में पापपुण्य नहीं देखा जाता. भूल जाओ कि तुम ने कुछ गलत किया है. बबली का जो हक है, वह उसे मिलता रहेगा.’’ कहते हुए दिलीप ने बबीता को फिर से बांहों में समेटा तो वह भी अच्छाबुरा भूल कर उस से लिपट गईउसी दिन से दोनों के पतन की राह खुल गई. देर रात जब बबली सो जाती तो बबीता दिलीप के बिस्तर पर पहुंच जाती फिर दोनों हसरतें पूरी करते. बबली ने बेटे को जन्म दिया तो घर में खुशी छा गई. पति के अलावा सासससुर सभी खुश थे. कुछ समय बाद बबली ने महसूस किया कि छोटी बहन बबीता उस के पति से कुछ ज्यादा ही नजदीकियां बढ़ा रही है. उस ने उस पर नजर रखनी शुरू की तो सच सामने गया

उस ने नाजायज रिश्तों का विरोध किया तो दिलीप बबीता दोनों ही उस पर हावी हो गए. तब बबली ने बबीता को घर वापस भेजने का प्रयास किया लेकिन दिलीप ने उसे नहीं जाने दिया. एक रात जब बबली ने पति को छोटी बहन के साथ बिस्तर पर रंगेहाथ पकड़ा तो दिलीप बोला कि वे एकदूसरे को प्यार करते हैं और जल्द ही शादी भी कर लेंगे. यदि उस ने विरोध किया तो वह उसे घर से निकाल देगाइस धमकी से बबली डर गई. अब वह डरसहमी रहने लगी. बबली का विरोध कम हुआ तो दिलीप और बबीता खुल्लमखुल्ला रासलीला रचाने लगे. इसी बीच चोरीछिपे दिलीप ने बबीता के साथ आर्यसमाज मंदिर में शादी कर ली और उसे पत्नी का दरजा दे दिया.

डा. बृजलाल सिंह को जब दामाद की इस नापाक हरकत का पता चला तो वह किसी तरह बबीता को घर ले आए. घर पर मां ने उसे समझाया और बहन का घर उजाड़ने की नसीहत दी. लेकिन बबीता जीजा के प्यार में इस कदर डूब चुकी थी कि उसे मां की नसीहत अच्छी नहीं लगी. उस ने मां से साफ कह दिया कि चाहे कुछ भी हो जाए, वह दिलीप का साथ नहीं छोड़ेगी. डा. बृजपाल सिंह ने बड़ी बेटी बबली का घर टूटने से बचाने के लिए पुलिस में दिलीप की शिकायत की. जांच के दौरान पुलिस ने बबीता का बयान दर्ज किया

बबीता ने तब हलफनामा दे कर कहा कि उस ने दिलीप से आर्यसमाज में शादी कर ली है. अब वह उस की पत्नी है और उसी के साथ रहना चाहती है. मांबाप उसे बंधक बनाए हैं. बबीता के इस बयान के बाद डा. बृजपाल मायूस हो गए. इस के बाद बबीता दिलीप के साथ चली गई. दिलीप ने अब बबीता को पत्नी का दरजा दे दिया था और उसे सुखपूर्वक रखने लगा था. बबली और बबीता दोनों सगी बहनें अब एक ही छत के नीचे रहने लगी थींबबीता ने बहन के सुहाग पर कब्जा भले ही कर लिया था लेकिन बबली ने मन से बबीता को स्वीकार नहीं किया था. बल्कि यह उस की मजबूरी थी. दोनों एकदूसरे से मन ही मन जलती थीं लेकिन दिखावे में साथ रहती थीं और हंसतीबतियाती थीं.

बबीता सौतन बन कर घर में रहने लगी तो दिलीप बबली की उपेक्षा करने लगा. वह बबीता की हर बात सुनता था, जबकि बबली को झिड़क देता था. ब्याहता की उपेक्षा कर वह बबीता के साथ घूमने और शौपिंग के लिए जाता. कभीकभी किसी बात को ले कर दोनों बहनों में झगड़ा हो जाता तो दिलीप बबीता का पक्ष ले कर बबली को ही बेइज्जत कर देता. बिस्तर पर भी बबीता ही दिलीप के साथ होती, जबकि बबली रात भर करवटें बदलती रहती थी. बबली का एक देवर था शिवम. शिवम चकेरी में रहता था और पढ़ाई के साथ प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहा था. शिवम बबली भाभी से मिलने आताजाता रहता था. शिवम को बबली से तो लगाव था लेकिन बबीता उसे फूटी आंख भी नहीं सुहाती थी

उस का मानना था कि बबीता ने दिलीप से शादी कर के अपनी बड़ी बहन के हक को छीन लिया है. उसे बहन की सौतन बन कर नहीं आना चाहिए था. बबली की उपेक्षा जब घर में होने लगी तो उस की नजर अपने देवर शिवम पर पड़ी. उस ने अपने हावभाव से शिवम से दोस्ती कर ली. दोस्ती प्यार में बदली और फिर उन के बीच शारीरिक संबंध भी बन गए. बबली अकसर देवर शिवम से मिलने जाने लगी. देवरभाभी के मिलन की शिकायत बबीता ने बढ़ाचढ़ा कर दिलीप से कर दीदिलीप ने निगरानी शुरू की तो बबली को छोटे भाई शिवम के साथ घूमते पकड़ लिया. इस के बाद उस ने बीच सड़क पर गिरा कर शिवम को पीटा तथा बबली की पिटाई घर पहुंच कर की. फिर तो यह सिलसिला ही चल पड़ा. बबीता की शिकायत पर बबली शिवम की जबतब पिटाई होती रहती थी.

देवरभाभी के मिलन में बबीता बाधक बनने लगी तो बबली ने शिवम के साथ मिल कर उसे रास्ते से हटाने का फैसला ले लिया. बबली जानती थी कि जब तक बबीता जिंदा है, वह उस की छाती पर मूंग दलती रहेगी और तब तक उसे तो घर में इज्जत मिलेगी और ही पति का प्यार.  उसे यह भी शक था कि बबीता ने उस से उस का पति तो छीन ही लिया है, अब वह धन और गहने भी छीन लेगी इसलिए उस ने शिवम को अपनी चिकनीचुपड़ी बातों के जाल में उलझा कर ऐसा उकसाया कि वह बबीता की हत्या करने को राजी हो गया. 10 सितंबर, 2018 की शाम बबली बबीता में किसी बात को ले कर झगड़ा हुआ. इस झगड़े ने बबली के मन में नफरत की आग भड़का दी.

उस ने एकांत में जा कर शिवम से बात की और उसे घर बुला लिया. शिवम घर आया तो बबली ने उसे बाहर वाले कमरे में पलंग के नीचे छिपने को कहा. शिवम तब पलंग के नीचे छिप गया. बबीता को शिवम के आने की भनक नहीं लगी. देर शाम दिलीप जब घर आया तो बबीता ने उस के साथ खाना खाया फिर दोनों कमरे में कूलर चला कर पलंग पर लेट गए. आधी रात के बाद बबीता लघुशंका के लिए कमरे से निकली तभी घात लगाए बैठे शिवम बबली ने उसे दबोच लिया और घसीट कर वह उसे कमरे में ले आए इस के बाद शिवम ने बबीता का मुंह दबोच लिया ताकि वह चिल्ला सके और बबली ने रस्सी से उस का गला घोट दिया. हत्या करने के बाद शिवम रस्सी का टुकड़ा ले कर भाग गया और बबली अपने मासूम बच्चे के साथ कर कमरे में लेट गई.

इधर सुबह को दिलीप की आंखें खुलीं तो बिस्तर पर बबीता को पा कर कमरे से बाहर निकला. दूसरे कमरे में बबली बच्चे के साथ पलंग पर लेटी थी. बबीता को खोजते हुए दिलीप जब बाहर वाले कमरे में पहुंचा तो पलंग पर बबीता की लाश पड़ी थी. लाश देख कर दिलीप चीखा तो बबली भी कमरे से बाहर गई. बबीता की लाश देख कर बबली रोने लगी. उस के रोने की आवाज सुन कर पासपड़ोस के लोग गए. फिर तो पुलिस कालोनी में हड़कंप मच गया. इसी बीच दिलीप कुमार थाने पहुंचा और पुलिस को पत्नी बबीता द्वारा आत्महत्या करने की सूचना दी. सूचना पा कर थानाप्रभारी ललितमणि त्रिपाठी पुलिस बल के साथ पहुंचे और फिर आगे की काररवाई हुई.

15 सितंबर, 2018 को पुलिस ने अभियुक्त शिवम और बबली को कानपुर कोर्ट में रिमांड मजिस्ट्रैट की अदालत में पेश किया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया गया. कथा संकलन तक उन की जमानत नहीं हुई थी.   

   —कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Uttar Pradesh Crime : दरोगा ने 2 लाख देकर बेटे की प्रेमिका की हत्या कराई

Uttar Pradesh Crime : उत्तर प्रदेश पुलिस में दरोगा बच्चू सिंह के बेटे तरुण की दोस्ती प्रियंका से हो गई थी. दोनों शादी करना चाहते थे, लेकिन जब पिता के कहने पर तरुण ने शादी से इनकार कर दिया तो प्रियंका ने अपने हक की लड़ाई लड़ने की सोची. उसे क्या पता था कि इस लड़ाई में…   

प्रियंका को जल्दीजल्दी तैयार होता देख उस की मां चित्रा ने पूछा, ‘‘क्या बात है, आज कहीं जल्दी जाना है क्या, जो इतनी जल्दी उठ कर तैयार हो गई?’’

‘‘हां मम्मी, परसों जो मैडम आई थीं, जिन्हें मैं ने अपने फोटो, आई कार्ड और सीवी दिया था, उन्होंने बुलाया है. कह रही थीं कि उन्होंने अपने अखबार में मेरी नौकरी की बात कर रखी है. इसलिए मुझे टाइम से पहुंचना है.’’ 

प्रियंका ने कहा तो चित्रा ने टिफिन में खाना पैक कर के उसे दे दिया. प्रियंका ने टिफिन अपने बैग में रखा और शाम को जल्दी लौट आने की बात कह कर बाहर निकल गई. कुछ देर बाद प्रियंका के पापा जगवीर भी अपने क्लीनिक पर चले गए तो चित्रा घर के कामों में व्यस्त हो गई. उस दिन शाम को करीब साढ़े 5 बजे जगवीर सिंह के मोबाइल पर उन के साले ओमदत्त का फोन आयाओमदत्त ने उन्हें बताया, ‘‘जीजाजी, मेरे फोन पर कुछ देर पहले प्रियंका का फोन आया था. वह कह रही थी कि बच्चू सिंह ने अपने बेटे राहुल और कुछ बदमाशों की मदद से उस का अपहरण करवा लिया है और वह अलीगढ़ के पास खैर इलाके के वरौला गांव में है.’’

ओमदत्त की बात सुन कर जगवीर सिंह की आंखों के आगे अंधेरा छा गया. उन्होंने जैसेतैसे अपने आप को संभाला और क्लीनिक बंद कर के घर गए. तब तक उन का साला ओमदत्त भी उन के घर पहुंच गया था. मामला गंभीर था. विचारविमर्श के बाद दोनों गाजियाबाद के थाना कविनगर पहुंचे और लिखित तहरीर दे कर 25 वर्षीया प्रियंका के अपहरण की नामजद रिपोर्ट दर्ज करा दी. जगवीर सिंह सपरिवार गोविंदपुरम गाजियाबाद में किराए के मकान में रहते थे. उन के परिवार में पत्नी चित्रा के अलावा 3 बच्चे थेबेटी प्रियंका और 2 बेटे पंकज तितेंद्र. उन का बड़ा बेटा पंकज एक टूर ऐंड ट्रैवल कंपनी की गाड़ी चलाता था, जबकि छोटा तितेंद्र सरकारी स्कूल में 10वीं कक्षा में पढ़ाई कर रहा था

जगवीर सिंह ने 7 साल पहले प्रियंका की शादी गुलावठी के धर्मेंद्र चौधरी के साथ कर दी थी. धर्मेंद्र एक ट्रैवल एजेंसी में काम करता था. शादी के 1 साल बाद प्रियंका एक बेटे की मां बन गई थी, जो अब 6 साल का है. आर्थिक स्थिति कमजोर होने की वजह से जगवीर अपने बच्चों को अधिक पढ़ालिखा नहीं सके. उन का छोटा सा क्लीनिक था, जहां वह बतौर आरएमपी प्रैक्टिस करते थे. यही क्लीनिक उन की आय का एकमात्र साधन थाप्रियंका शहर में पलीबढ़ी महत्त्वाकांक्षी लड़की थी. शादी के बाद गांव उसे कभी भी अच्छा नहीं लगा.

इसी को ले कर जब पतिपत्नी में अनबन रहने लगी तो प्रियंका ने पति से अलग रहने का निर्णय ले लिया और बेटे सहित धर्मेंद्र का घर छोड़ कर मातापिता के पास गाजियाबाद गई. जगवीर सिंह की आर्थिक स्थिति पहले से ही खराब थी. बेटे सहित प्रियंका के मायके जाने से उन के पारिवारिक खर्चे और भी बढ़ गएकिसी भी मांबाप के लिए यह किसी विडंबना से कम नहीं होता कि उन की बेटी शादी के बाद भी उन के साथ रहे. इस बात को प्रियंका अच्छी तरह समझती थी. इसलिए वह अपने स्तर पर नौकरी की तलाश में लग गई. काफी खोजबीन के बाद भी जब उसे कोई अच्छी नौकरी नहीं मिली तो उस ने एक मोबाइल शौप पर सेल्सगर्ल की नौकरी कर ली.

मोबाइल शौप पर काम करते हुए प्रियंका की मुलाकात तरुण से हुई. तरुण चढ़ती उम्र का अच्छे परिवार का लड़का था. पहली ही मुलाकात में तरुण आंखों के रास्ते प्रियंका के दिल में उतर गया. बातचीत हुई तो दोनों ने अपनाअपना मोबाइल नंबर एकदूसरे को दे दिया. इस के बाद दोनों प्राय: रोज ही एकदूसरे से फोन पर बातें करने लगेजल्दी ही मिलनेमिलाने का सिलसिला भी शुरू हो गया. दोनों एकदूसरे को दिन में कई बार फोन और एसएमएस करने लगे. जब समय मिलता तो दोनों साथसाथ घूमते और रेस्टोरेंट वगैरह में जाते. धीरेधीरे दोनों के बीच नजदीकियां बढ़ती गईं

तरुण के पिता बच्चू सिंह उत्तर प्रदेश पुलिस में सबइंसपेक्टर थे और गाजियाबाद के थाना मसूरी में तैनात थे. जब तरुण और प्रियंका के संबंध गहराए तो उन दोनों की प्रेम कहानी का पता बच्चू सिंह को भी लग गया. उन्होंने जब इस बारे में तरुण से पूछा तो उस ने बेहिचक सारी बातें पिता को बता दीं. प्रियंका के बारे में भी सब कुछ और यह भी कि वह उस से शादी की इच्छा रखता है. उधर प्रियंका भी तरुण से शादी का सपना देखने लगी थी. बेटे की प्रेमकहानी सुन कर बच्चू सिंह बहुत नाराज हुए. उन्होंने तरुण से साफसाफ कह दिया कि वह प्रियंका से दूर रहे, क्योंकि एक तलाकशुदा और एक बच्चे की मां कभी भी उन के परिवार की बहू नहीं बन सकती. इतना ही नहीं, उन्होंने प्रियंका को भी आगे बढ़ने की सख्त चेतावनी दी. प्रियंका और अपने बेटे की प्रेम कहानी को ले कर वह तनाव में रहने लगे.

बच्चू सिंह ने प्रियंका और तरुण को चेतावनी भले ही दे दी थी, पर वे जानते थे कि ऐसी स्थिति में लड़का समझेगा लड़की. इसी वजह से उन्हें इस समस्या का कोई आसान हल नहीं सूझ रहा था. आखिर काफी सोचविचार कर उन्होंने प्रियंका को समझाने का फैसला किया. बच्चू सिंह ने प्रियंका को समझाया भी, लेकिन वह शादी की जिद पर अड़ी रही. इतना ही नहीं, ऐसा होने पर उस ने बच्चू सिंह को परिवार सहित अंजाम भुगतने की धमकी तक दे डाली. अपनी इस धमकी को उस ने सच भी कर दिखाया

1 मार्च, 2013 को उस ने थाना कविनगर में बच्चू सिंह, उन की पत्नी, बेटे राहुल, नरेंद्र, प्रशांत और रोबिन के खिलाफ धारा 376, 452, 323, 506 406 के तहत मुकदमा दर्ज करा दिया, जिस में उस ने घर में घुस कर मारपीट, बलात्कार और 70 हजार रुपए लूटने का आरोप लगायाबलात्कार का आरोप लगने से बच्चू सिंह के परिवार की बड़ी बदनामी हुई. इस मामले में बच्चू सिंह का नाम आने पर उन का तबादला मेरठ के जिला बागपत कर दिया गया. मामला चूंकि एक पुलिसकर्मी से संबंधित था, सो इस सिलसिले में गंभीर जांच करने के बजाय विभागीय जांच के नाम पर इसे लंबे समय तक लटकाए रखा गया

जबकि दूसरे आरोपियों के खिलाफ कानूनी काररवाई की गई. उधर बच्चू सिंह के खिलाफ कोई विशेष काररवाई होते देख प्रियंका ने उन के बड़े बेटे राहुल और उस के दोस्त के खिलाफ 17 जून, 2013 को छेड़खानी मारपीट का एक और मुकदमा दर्ज करा दिया. इस से बच्चू सिंह का परिवार काफी दबाव में गया. 2-2 मुकदमों में फंसने से बच्चू सिंह और उन के परिवार को रोजरोज कोर्ट के चक्कर लगाने पड़ रहे थे. इसी सब के चलते 31 नवंबर, 2013 को प्रियंका घर से गायब हो गई.

प्रियंका के अपहरण की रिपोर्ट दर्ज होने पर थानाप्रभारी कविनगर ने इस मामले की जांच की जिम्मेदारी सबइंसपेक्टर शिवराज सिंह को सौंप दी. शिवराज सिंह प्रियंका द्वारा दर्ज कराए गए पिछले 2 केसों की भी जांच कर रहे थे. उन्होंने पिछले दोनों केसों की तरह इस मामले में भी कोई विशेष दिलचस्पी नहीं ली. दूसरी ओर प्रियंका के मातापिता लगातार थाने के चक्कर लगाते रहे. उन्होंने डीआईजी, आईजी और गाजियाबाद के एसपी, एसएसपी तक सभी अधिकारियों को अपनी परेशानी बताई . लेकिन किसी भी स्तर पर उन की कोई सुनवाई नहीं हुई. इसी बीच अचानक थानाप्रभारी कविनगर का तबादला हो गया. उन की जगह नए थानाप्रभारी आए अरुण कुमार सिंह.

अरुण कुमार सिंह ने प्रियंका के अपहरण के मामले में विशेष दिलचस्पी लेते हुए इस की जांच का जिम्मा बरेली से तबादला हो कर आए तेजतर्रार एसएसआई पवन चौधरी को सौंप कर कड़ी जांच के आदेश दिए. पवन चौधरी ने जांच में तेजी लाते हुए इस मामले में उस अज्ञात नामजद महिला पत्रकार के बारे में पता किया, जिस ने लापता होने वाले दिन प्रियंका को नौकरी दिलाने के लिए बुलाया था. छानबीन में यह भी पता चला कि उस महिला का नाम रश्मि है और वह अपने पति के साथ केशवपुरम में किराए के मकान में रहती है. यह भी पता चला कि वह खुद को किसी अखबार की पत्रकार बताती है.

पवन चौधरी ने रश्मि का मोबाइल नंबर हासिल कर के उस की काल डिटेल्स निकलवाई. काल डिटेल्स से यह बात साफ हो गई कि 31 नवंबर को उसी ने प्रियंका को फोन किया था. यह जानकारी मिलते ही पुलिस ने 18 फरवरी, 2014 को रात साढ़े 12 बजे रश्मि और उस के पति अमरपाल को उन के घर से गिरफ्तार कर लिया. थाने पर जब दोनों से पूछताछ की गई तो पहले तो पतिपत्नी ने पुलिस को बरगलाने की कोशिश की, लेकिन जब उन के साथ थोड़ी सख्ती की गई तो वे टूट गए. मजबूर हो कर उन दोनों ने सारा राज खोल दिया. पता चला कि प्रियंका की हत्या हो चुकी है.

रश्मि और उस के पति अमरपाल के बयानों के आधार पर 19 फरवरी को सब से पहले सिपाही विनेश कुमार को गाजियाबाद पुलिस लाइन से गिरफ्तार किया गया. इस के बाद उसी दिन इस हत्याकांड के मास्टरमाइंड बच्चू सिंह को टटीरी पुलिस चौकी, बागपत से गिरफ्तार कर गाजियाबाद लाया गया. थाने पर जब सब से पूछताछ की गई तो पता चला कि बच्चू सिंह प्रियंका द्वारा दर्ज कराए गए मुकदमों से बहुत परेशान रहने लगे थे. इसी चक्कर में उन का तबादला भी बागपत कर दिया गया था. यहीं पर बच्चू सिंह की मुलाकात उन के साथ काम करने वाले सिपाही राहुल से हुई

राहुल अलीगढ़ का रहने वाला था. बच्चू सिंह ने अपनी समस्या के बारे में उसे बताया. राहुल पर भी अलीगढ़ में एक मुकदमा चल रहा था, जिस के सिलसिले में वह पेशी पर अलीगढ़ आताजाता रहता था. राहुल का एक दोस्त विनेश कुमार भी पुलिस में था और गाजियाबाद में तैनात था. विनेश जब एक मामले में अलीगढ़ जेल में था तो उस की मुलाकात एक बदमाश अमरपाल से हुई थी. विनेश ने अमरपाल की जमानत में मदद की थी. इस के लिए वह विनेश का एहसान मानता था. बच्चू सिंह ने राहुल और विनेश कुमार के माध्यम से अमरपाल से प्रियंका की हत्या का सौदा 2 लाख रुपए में तय कर लिया. योजना के अनुसार अमरपाल ने इस काम के लिए अपनी पत्नी रश्मि की मदद ली. उस ने रश्मि को प्रियंका से दोस्ती करने को कहाउस ने प्रियंका से दोस्ती गांठ कर उसे विश्वास में ले लिया

रश्मि को जब यह पता चला कि प्रियंका को नौकरी की जरूरत है तो उस ने खुद को एक अखबार की पत्रकार बता कर प्रियंका को 30 नवंबर, 2013 की सुबह फोन कर के घर से बाहर बुलाया और बसअड्डे ले जा कर उसे अमरपाल को यह कह कर सौंप दिया कि वह अखबार का सीनियर रिपोर्टर है और अब आगे उस की मदद वही करेगा. अमरपाल प्रियंका को बस से लालकुआं तक लाया, जहां पर रितेश नाम का एक और व्यक्ति मोटरसाइकिल लिए उस का इंतजार कर रहा था. तीनों उसी बाइक से ले कर देर शाम अलीगढ़ पहुंचेवहां से वे लोग खैर के पास गांव बरौला गए. तब तक प्रियंका को शक हो गया था कि वह गलत हाथों में पहुंच गई है. जब एक जगह बाइक रुकी तो प्रियंका ने बाथरूम जाने के बहाने अलग जा कर अपने मामा को फोन कर के अपनी स्थिति बता दी.

बाद में जब इन लोगों ने एक नहर के पास बाइक रोकी तो प्रियंका ने भागने की कोशिश भी की. लेकिन वह गिर पड़ी. यह देख अमरपाल और रितेश ने उसे पकड़ लिया और उस की गला घोंट कर हत्या कर दी. हत्या के बाद इन लोगों ने प्रियंका की लाश नहर में फेंक दी और अलीगढ़ स्थित अपने घर चले गए. इस हत्याकांड में बच्चू सिंह के बेटे राहुल की भी संलिप्तता पाए जाने पर पुलिस ने अगले दिन उसे भी गिरफ्तार कर लियाइस हत्याकांड में नाम आने पर सिपाही राहुल फरार हो गया था, जिसे पुलिस गिरफ्तार करने की कोशिश कर रही थी. पूछताछ के बाद सभी गिरफ्तार अभियुक्तों को अगले दिन गाजियाबाद अदालत में पेश किया गया, जहां से रश्मि, बच्चू सिंह, विनेश कुमार और तरुण को जेल भेज दिया गया. जबकि अमरपाल को रिमांड पर ले कर प्रियंका की लाश की तलाश में खैर इलाके का चक्कर लगाया गया

लेकिन वहां पर लाश का कोई अवशेष नहीं मिला. पुलिस ने उस इलाके की पूरी नहर छान मारी, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला. रिमांड अवधि पूरी होने पर अमरपाल को भी डासना जेल भेज दिया गया. फिलहाल सभी अभियुक्त डासना जेल में बंद हैं.

   —कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

                                               

Punjab Crime : चचेरी बहन से संबंध बनाता और ब्लैकमेल करके पैसे वसूलता

Punjab Crime : आस्ट्रेलिया जाते समय राहुल ने अपने चाचा के बेटे रिशु ग्रोवर पर विश्वास कर के अपनी मां ऊषा और बहन हिना की देखभाल की जिम्मेदारी उसे सौंप दी थी. रिशु इतना बदकार निकलेगा, राहुल ने सोचा तक नहीं था. उस का विश्वास तो टूटा ही, मां और बहन भी…  

10 सितंबर, 2018 को लुधियाना के जिला एडिशनल सेशन जज अरुणवीर वशिष्ठ की अदालत में अन्य दिनों की अपेक्षा कुछ ज्यादा भीड़ थी. वजह यह थी कि उस दिन लुधियाना शहर के एक ऐसे दोहरे मर्डर केस का फैसला सुनाया जाना था, जिस ने पूरे शहर में सनसनी फैला दी थी. इस में हतप्रभ कर देने वाली बात यह थी कि आरोपी रिशु ग्रोवर मृतकों के परिवार का ही सदस्य था और उस परिवार की हर तरह से देखरेख करता थाइस के बावजूद उस ने मां और बेटी की इतनी वीभत्स तरीके से हत्या की थी कि उन की लाशें देख कर पुलिस तक का कलेजा कांप उठा था. यह केस लगभग 5 सालों तक न्यायालय में चला, जिस में 23 गवाहों ने अपने बयान दर्ज कराए.

इन गवाहों में एक गवाह ऐसा भी था, जिस ने आरोपी को घटनास्थल से फरार होते देखा था. अभियोजन पक्ष ने इस केस में पुलिस वालों, फोटोग्राफर, फिंगरप्रिंट एक्सर्ट्स, पोस्टमार्टम करने वाले डाक्टरों आदि के बयान भी अदालत में दर्ज कराए थे. निर्धारित समय पर जिला एडिशनल सेशन जज अरुणवीर वशिष्ठ के अदालत में बैठने के बाद जिला अटौर्नी रविंदर कुमार अबरोल ने कहा कि आरोपी रिशु ग्रोवर ने अपनी ताई और उन की बेटी की खंजर से बेहद क्रूरतम तरीके से हत्या की थी. लिहाजा ऐसे आरोपी को फांसी की सजा मिलनी चाहिए. वहीं बचाव पक्ष के वकील ने कहा कि ये दोनों मर्डर किसी और ने किए हैं. हत्याएं करने के बाद हत्यारा खून से दीवार पर एक नाम भी लिख कर गया था.

खून से दीवार पर जिस का नाम लिखा गया था, पुलिस को उस शख्स से सख्ती से पूछताछ करनी चाहिए थी. लेकिन पुलिस ने उस शख्स को बचा कर सीधेसादे रिशु ग्रोवर को फंसा कर जेल में डाल दिया. रिशु पर लगाए गए सारे आरोप निराधार हैं. लिहाजा उसे इस केस से बाइज्जत बरी किया जाना चाहिए. जिला एडिशनल सेशन जज ने तमाम गवाहों के बयान, सबूतों और वकीलों की जिरह के बाद आरोपी रिशु ग्रोवर को दोषी करार दिया और सजा सुनाने के लिए 13 सितंबर, 2018 का दिन नियत कर दिया. आखिर ऐसा क्या हुआ था कि इस हत्याकांड के फैसले पर लुधियाना के लोगों के अलावा वकीलों और मीडिया तक की निगाहें जमी थीं. सनसनी फैला देने वाले इस केस को समझने के लिए हमें घटना की पृष्ठभूमि में जाना होगा.

लुधियाना के बाबा थानसिंह चौक के निकट मोहल्ला फतेहगंज में बलदेव राज अपने परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में पत्नी ऊषा के अलावा 2 बेटियां आशना हिना के अलावा एक बेटा राहुल था. बड़ी बेटी आशना की वह शादी कर चुके थे. शादी के लिए 2 बच्चे और बचे थे. वह उन की शादी की भी तैयारी कर रहे थे, लेकिन इस से पहले ही उन की मृत्यु हो गई. बलदेव राज की मृत्यु के बाद घर की जिम्मेदारी ऊषा के ऊपर गई थी. खेती की जमीन से वह परिवार का गुजरबसर करने लगीं. पंजाब के तमाम लोग विदेशों में काम कर के अच्छा पैसा कमा रहे हैं. ज्यादा पैसे कमाने की चाह में राहुल भी अपने एक जानकार की मदद से आस्ट्रेलिया चला गया. वहां उसे अच्छा काम मिल गया था.

राहुल समझ नहीं पाया चचेरे भाई को  राहुल के आस्ट्रेलिया जाने के बाद लुधियाना में उस के घर में 55 वर्षीय मां ऊषा और 21 वर्षीय बहन हिना ही रह गई थीं. उन का ध्यान रखने के लिए राहुल अपनी बहन आशना और बहनोई विकास मल्होत्रा को कह गया था. इस के अलावा उस ने अपने चाचा के बेटे रिशु ग्रोवर से भी मांबहन का ध्यान रखने को कहा थारिशु टिब्बा रोड के इकबाल नगर में रहता था. वैसे भी ऊषा का घर बाबा थानसिंह चौक पर ऐसी जगह रास्ते में था कि रिशु आतेजाते अपनी ताई ऊषा का हालचाल जान लिया करता था. जब रिशु ऊषा के यहां आनेजाने लगा तो ऊषा उस से घर के छोटेमोटे काम करा लिया करती थीं.

इस में रिशु के मातापिता को भी कोई ऐतराज नहीं था. कुछ समय और बीता तो ताई के कहने पर रिशु कभीकभी रात को भी उन के घर रुकने लगा था. इसी बीच एक यह परेशानी सामने आई कि बाबू नाम का एक लड़का हिना के पीछे पड़ गया. बाबू का सेनेटरी का काम था. हिना जब भी घर से बाहर निकलती, बाबू उस का रास्ता रोक कर उस से छेड़छाड़ करता था. इस से परेशान हो कर हिना ने इस की शिकायत पहले रिशु से की और बाद में यह बात अपनी बहन और जीजा को भी बता दीरिशु ने अपने तरीके से बाबू को समझाने की कोशिश की, लेकिन वह नहीं माना.

कोई हल निकलता देख हिना के बहनोई विकास ने इस की शिकायत थाना डिवीजन नंबर-3 में कर दी. पुलिस ने बाबू को थाने बुला कर धमका दिया. इस के बावजूद वह अपनी हरकतों से बाज नहीं आया. यह सन 2012 की बात है. इस बीच राहुल आस्ट्रेलिया से लुधियाना लौटा तो यह बात उसे भी पता चली. लगभग 2 महीने लुधियाना में रहने के बाद जब वह वापस आस्ट्रेलिया लौटा तो अपनी मां ऊषा और बहन हिना की जिम्मेदारी वह रिशु को सौंप गया. आगे चल कर यही राहुल की सब से बड़ी भूल साबित हुई. रिशु एक आवारा, बदचलन और बेहद गिरा हुआ इंसान था. सिगरेट, शराब, जुए से ले कर कोई ऐसा गलत ऐब नहीं बचा था, जो रिशु में नहीं था.

ऊषा और हिना का ध्यान रखने की आड़ में वह ऊषा के घर पर ही अपना डेरा जमाए बैठा था. दरअसल, रिशु के खुराफाती दिमाग में एक भयानक षड्यंत्र ने जन्म ले लिया था. उस का सीधा निशाना हिना थी जो इस बात से बिलकुल अनजान थी. नाजायज रिश्ते, नाजायज तरीके. कब किसी इंसान को गुनाह के रास्ते पर ला कर खड़ा कर दें, कोई अंदाजा नहीं लगाया जा सकता. जिस भाई को राहुल मां और बहन की देखभाल की जिम्मेदारी सौंप गया था, उसी भाई के मन में एक अपराध ने जन्म ले लिया था.

अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए रिशु ने अपनी ताई की बेटी हिना को अपने जाल में फंसाना शुरू कर दिया. जल्दी ही वह अपने मकसद में कामयाब भी हो गया. उस ने हिना के साथ नाजायज रिश्ता कायम कर लिया. बाद में वह इसी नाजायज रिश्ते की आड़ ले कर उसे ब्लैकमेल कर पैसे ऐंठने लगा. उस से मिले पैसों का इस्तेमाल वह अपने सपने पूरे करने में खर्च करता था. ताज्जुब की बात यह थी कि उसी घर में रहते हुए भी ऊषा को इस सब की भनक तक नहीं लग पाई थी. इस की वजह यह थी कि रिशु अपनी ताई को खाने में नींद की गोलियां दे देता था. गोलियों के नशे को ऊषा अपनी उम्र का रोग समझती थीं.

शुरूशुरू में तो हिना रिशु के आकर्षण में फंस गई थी पर जब तक उसे उस की नीयत का पता चला, तब तक बहुत देर हो चुकी थी. लेकिन अब पछताने से कोई फायदा नहीं था. क्योंकि वह सिर से ले कर पांव तक रिशु के चंगुल में फंसी हुई थी, जहां से अकेले बाहर निकलना उस के बूते की बात नहीं थी. अंत में हार कर हिना ने अपने भाई राहुल को आस्ट्रेलिया में फोन कर के यह बात बता दिया. यहां हिना ने एक बार फिर बड़ी गलती की. वह राहुल से अपने और रिशु के शारीरिक संबंधों और रिशु द्वारा ब्लैकमेल करने की बात छिपा गई थी. यह बात फरवरी 2013 की है.

अपनी बहन की बात सुन राहुल आस्ट्रेलिया से लुधियाना आया और उस ने रिशु को आड़े हाथों लिया. रिशु के मातापिता ने भी उस की अच्छी खबर ली. आखिर अपनी करनी से शर्मिंदा हो कर रिशु ने राहुल के अलावा अन्य सभी रिश्तेदारों से माफी मांग ली थी. रिशु बुनता रहा तानाबाना  बात तो यहीं खत्म हो गई थी पर राहुल कोई रिस्क नहीं लेना चाहता था. उस ने हिना की शादी करने के लिए लड़के की तलाश शुरू कर दी और लुधियाना के पखोवाल रोड निवासी सौरव के साथ हिना की मंगनी कर के शादी पक्की कर दी. शादी की तारीख 20 नवंबर, 2013 तय कर दी गई. इस बार राहुल ने बहन की शादी की जिम्मेदारी अपनी बहन आशमा और जीजा विकास मल्होत्रा को सौंपी

यह सब कर के वह 24 अप्रैल, 2013 को आस्ट्रेलिया लौट गया. आस्ट्रेलिया जा कर उस ने वहां से 4 लाख रुपए और करीब 100 डौलर अपनी मां को भेजे. मां ने शादी की तैयारियां शुरू कर दी थीं. राहुल समयसमय पर अपनी मां को फोन कर के बात करता रहता था. 21 मई, 2013 को राहुल ने आस्ट्रेलिया से अपनी मां को फोन कर के हालचाल पूछना चाहा तो मां का फोन बंद मिला. उस ने 2-3 बार मां को फोन मिलाया, पर हर बार फोन बंद ही मिला. उस ने 22 मई को फिर से मां को फोन किया. उस दिन भी उन का फोन स्विच्ड औफ था. बहन हिना का फोन भी बंद रहा था. राहुल परेशान था कि दोनों के फोन क्यों नहीं मिल रहे.

फिर उस ने अपने जीजा विकास मल्होत्रा को फोन कर कहा, ‘‘जीजाजी, पता नहीं क्यों मां और हिना का फोन नहीं मिल रहा है. मैं कल से कोशिश कर रहा हूं. आप वहां जा कर पता तो करें, क्या बात है?’’

‘‘ऐसी तो कोई बात नहीं है. मैं और आशमा कल रात को वहीं थे. हो सकता है वे लोग सो रहे हों या कोई सामान खरीदने बाजार गए हों. फिर भी मैं जा कर देखता हूं.’’ विकास ने कहा. उस के बाद विकास अपनी पत्नी आशमा को ले कर ससुराल गया. दोनों ने वहां जा कर देखा तो मकान का मुख्य दरवाजा बंद जरूर था पर उस में कुंडी नहीं लगी थी. असमंजस की हालत में विकास ने अंदर जा कर देखा तो नीचे वाले कमरे में बैड पर सास ऊषा की खून से लथपथ लाश पड़ी थीमां की लाश देख कर आशमा की चीख निकल गई. विकास भी घबरा गया और सोचने लगा कि हिना कहां है. इस के बाद उस ने ऊपर के फ्लोर पर जा कर देखा तो बाथरूम के बाहर हिना की भी खून सनी लाश पड़ी थी. उस की लाश के पास दीवार पर खून सेबाबलिखा हुआ था. बाब यानी बाबू.

शक के दायरे में आया बाबू विकास को यह समझते देर नहीं लगी थी कि ये दोनों हत्याएं बाबू सेनेटरी वाले ने ही की है. क्योंकि वह हिना को अकसर परेशान करता था. विकास ने इस की सूचना थाना डिवीजन-3 को दे दी. साथ ही उस ने फोन द्वारा राहुल को भी बता दिया. सूचना मिलते ही इंसपेक्टर बृजमोहन, एसआई प्रीतपाल सिंह, एएसआई राजवंत पाल, हवलदार वरिंदर पाल सिंह, सरजीत सिंह और सिपाही राजिंदर सिंह के साथ बताए गए पते की तरफ रवाना हो गएघटनास्थल पर पहुंच कर उन्होंने लाशों का मुआयना किया तो पता चला कि उन की हत्या किसी धारदार हथियार से की गई थी. मौके पर उन्होंने क्राइम टीम को बुलवाया. कई जगह से फिंगरप्रिंट और खून के सैंपल लिए और दोनों लाशों को पोस्टमार्टम के लिए सिविल अस्पताल भेज दिया.

प्राथमिक पूछताछ में विकास मल्होत्रा से यह बात भी पता चली थी कि वारदात को अंजाम देने के बाद हत्यारे घर में रखे 4 लाख रुपए, 100 डौलर और सोने की एक चेन भी ले गए थे. विकास के बयानों के आधार पर पुलिस ने इस दोहरे हत्याकांड का मुकदमा आईपीसी की धारा 302, 460 के तहत दर्ज कर के तफ्तीश शुरू कर दी. विकास ने इस हत्याकांड का शक बाबू पर जाहिर किया था और दीवार पर भी खून सेबाबलिखा हुआ था, इसलिए इंसपेक्टर बृजमोहन ने बाबू को हिरासत में ले कर पूछताछ शुरू कर दी.

सख्ती से पूछताछ करने पर भी बाबू इस हत्याकांड के बारे में कुछ नहीं बता पाया था. उस का कहना था कि वह हिना का पीछा जरूर करता था पर इन हत्याओं में दूरदूर तक भी उस का कोई हाथ नहीं है. अचानक पुलिस को यह शक हुआ कि कहीं पैसों के लालच में विकास ने ही तो इस घटना को अंजाम नहीं दिया क्योंकि उसे भी पता था कि घर में इतना कैश रखा है. फोरेंसिक रिपोर्ट में यह बताया गया था कि घटनास्थल से मिले खून के सैंपल के साथ एक किसी तीसरे आदमी का भी खून था, जो शायद हत्यारे का थाइन्हीं आशंकाओं को देखते हुए पुलिस ने विकास से पूछताछ की. विकास ने भी खुद को बेकसूर बताया. उस से की गई पूछताछ के बाद भी पुलिस को हत्यारों से संबंधित कोई सुराग नहीं मिला.

संभावनाओं का पिटारा पुलिस के सामने खुला हुआ था. लेकिन अभी तक कोई ठोस लीड नहीं मिल रही थी. तफ्तीश के दौरान पुलिस को एक ऐसा शख्स मिला, जिस ने हत्यारे को घर से निकलते देखा था और वह उसे अच्छी तरह से पहचानता भी थाइस के बाद पुलिस ने अन्य सबूत जुटाने के लिए हिना के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकलवा कर खंगाली. उस में कई संदिग्ध नंबर थे. उन सभी नंबरों में एक नंबर ऐसा भी था जिस पर हिना की सब से ज्यादा बातें होती थीं. वह नंबर हिना के चचेरे भाई रिशु ग्रोवर का थाफोन की काल डिटेल्स से सामने आया रिशु का नाम इस हत्याकांड के 2 दिन बाद राहुल भी आस्ट्रेलिया से गया.

25 मई को ही वह इंसपेक्टर बृजमोहन से मिला. राहुल ने बताया कि रिशु ने उस की बहन हिना से नाजायज संबंध बना लिए थे. इतना ही नहीं वह हिना को ब्लैकमेल कर उस से पैसे भी ऐंठता रहता था. राहुल के बयानों ने इस केस का पासा पलट दिया और कातिल सामने गया. पता चला कि हिना और ऊषा का हत्यारा कोई और नहीं बल्कि रिशु ग्रोवर था. पुलिस ने रिशु को हिरासत में ले लिया. रिशु के खून की जांच कराई गई तो वह उसी खून से मैच कर गया जो घटनास्थल पर मृतकों के अलावा मिला था. रिशु से सख्ती से पूछताछ की गई तो उस ने अपना जुर्म कबूल कर लिया. उस की निशानदेही पर इंसपेक्टर बृजमोहन ने नाले से हत्या में इस्तेमाल खंजर, प्लास्टिक के दस्ताने और एक रूमाल बरामद किया.

पुलिस ने हत्या के बाद लूटे हुए पैसों में से 2 लाख 11 हजार रुपए और 100 डौलर भी बरामद कर लिए. काररवाई पूरी करने के बाद रिशु को न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया था. तफ्तीश पूरी करने के बाद इंसपेक्टर बृजमोहन ने एक महीने बाद इस केस की चार्जशीट अदालत में दाखिल कर दी थी. पुलिस ने अदालत में तमाम गवाह पेश किए. उन में एक ऐसी महिला गवाह थी जिस ने इस हत्याकांड को अंजाम देने के बाद रिशु को घटनास्थल से फरार होते देखा था. दरअसल वह महिला रोज तड़के ढाई बजे सेवा करने के लिए गुरुद्वारा साहिब जाती थी. उसी समय उस ने रिशु को ऊषा के घर से निकलते देखा था.

अदालत ने उस महिला की गवाही को अहम माना. तमाम गवाहों और सबूतों के आधार पर एडिशनल सेशन जज अरुणवीर वशिष्ठ ने रिशु ग्रोवर को दोषी ठहरायारिशु को दोषी ठहराने के बाद लोगों के जेहन में एक ही सवाल घूम रहा था कि पता नहीं 13 सितंबर को जज साहब उसे कौन सी सजा सुनाएंगे. लोगों के 3 दिन इसी ऊहापोह की स्थिति में गुजरे. आखिर वो दिन भी गया जो माननीय जज ने सजा सुनाने के लिए मुकर्रर किया थाआखिर गया फैसले का दिन13 सितंबर को तमाम लोग बड़ी बेताबी के साथ कोर्टरूम में पहुंच गए थे. सुबह ठीक 10 बजे माननीय जज अदालत में बैठे.

उन्होंने केस फाइल पर नजर डालते हुए कहा कि जिला अटौर्नी रविंदर कुमार अबरोल की दलीलों, गवाहों के बयानों और मौके पर मिले अन्य साक्ष्यों से यह बात पूरी तरह साबित हो जाती है कि रिशु ग्रोवर ने अपनी ताई और हिना को खंजर से ताबड़तोड़ वार कर के बेरहमी से मार डाला थारिशु चचेरी बहन से अवैध संबंध बना कर उसे ब्लैकमेल कर पैसे वसूलता था, जबकि 6 महीने बाद उस की शादी तय थी. लिहाजा ब्लैकमेलिंग का धंधा पैसा मिलना बंद होने की रंजिश में ही उस ने दोहरे हत्याकांड को अंजाम दिया था और हिना की शादी के लिए घर में रखा सारा पैसा लूट लिया था.

रिशु इतना शातिरदिमाग था कि दोहरे हत्याकांड को अंजाम देने के बाद उस ने पुलिस को गुमराह करने के लिए घर में रखे गहने कैश भी गायब कर दिए थे. साथ ही दीवार पर खून सेबाबलिख दिया था, जिस से पुलिस उस तक पहुंच सके. दोषी की घृणित मानसिकता से यह बात भी स्पष्ट हो जाती है कि उस ने जघन्यतम अपराध किया है. ऐसे आदमी को समाज में रहने का कोई अधिकार नहीं है. अभियोजन पक्ष ने अपनी चार्जशीट में आरोपी पर जो आरोप लगाए हैं, वह उन्हें पूरी तरह से साबित करने में सक्षम रहा है.

आरोपी का दोष पूरी तरह से साबित होता है, लिहाजा भारतीय दंड संहिता की धारा 302 के अंतर्गत दोषी रिशु ग्रोवर को अदालत मृत्युदंड की सजा सुनाती है. अपना फैसला सुनाने के बाद न्यायाधीश अरुणवीर वशिष्ठ ने अपनी कलम की निब तोड़ दी और उठ कर अपने चैंबर में चले गए. रिशु ग्रोवर को फांसी की सजा सुनाए जाने पर आशमा और उस के पति विकास ने संतोष व्यक्त किया.

  

Family dispute : पत्नी की आंखों में मिर्ची झोंक कर किया कत्ल

Family dispute : कौशल किशोर जैसे लोगों की समाज में कमी नहीं है, जो खुद की जिंदगी को तो नरक बनाए ही रहते हैं, पत्नी और बच्चों को भी नहीं छोड़ते. कौशल किशोर अगर चाहता तो लेक्चरर राजकंवर के साथ चैन की जिंदगी गुजार सकता था, लेकिन..

गभग 40-45 साल की थुलथुल जिस्म की सुमित्रा पिछले 15-20 मिनट से राजकंवर के फ्लैट की कालबेल बजा रही थी. जब दरवाजा नहीं खुला तो वह परेशान हो गई. फिर थकहार कर वहीं बैठ गई. वह झल्लाते हुए आश्चर्य से दरवाजे की तरफ देख रही थी. उसे समझ नहीं रहा था कि एक बार कालबेल बजाने पर दरवाजा खोल देने वाली राजकंवर मेमसाहब दरवाजा क्यों नहीं खोल रहीं. जबकि फ्लैट के अंदर गूंजती कालबेल की आवाज उसे बाहर भी सुनाई दे रही थी. बमुश्किल कमर पर हाथ रख कर खड़ी हुई सुमित्रा ने एक बार फिर दरवाजा खुलवाने की कोशिश में दरवाजे को हाथ से जोर से पीटा. इतना ही नहीं, उस ने मेमसाहब का नाम ले कर भी दरवाजा खोलने को कहा. लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला. सुमित्रा राजकंवर नागर के यहां खाना बनाने, कपड़े धोने से ले कर सभी घरेलू कामकाज करती थी.

जिस फ्लैट की हम बात कर रहे हैं, वह कोटा से लगभग 100 किलोमीटर दूर शहरनुमा कस्बे इटावा की सरोवर कालोनी में स्थित स्थानीय राजकीय सीनियर सेकेंडरी स्कूल की व्याख्याता राजकंवर नागर का था, जहां वह अपने पति कौशल किशोर और 6 वर्षीय बेटे उदित के साथ किराए पर रह रही थीं. उस दिन मंगलवार था और तारीख थी 4 सितंबर. सुबह के करीब 8 बज चुके थे. जब सुमित्रा रोजाना की तरह राजकंवर के फ्लैट पर पहुंची थी. उस तिमंजिला इमारत में राजकंवर दूसरी मंजिल के आखिरी ब्लौक में रहती थीं. सुमित्रा राजकंवर की रोजमर्रा की दिनचर्या से भलीभांति वाकिफ थी.

सुबह जिस समय सुमित्रा काम करने के लिए फ्लैट पर पहुंचती थी, राजकंवर ब्रेकफास्ट कर चुकी होती थीं और स्कूल जाने के लिए तैयार मिलती थीं. बेटे उदित को भी स्कूल जाना होता था, इसलिए वह भी उन के साथ जाने को तैयार हो चुका होता था. आमतौर पर दरवाजा राजकंवर ही खोलती थीं. कभीकभार ही ऐसा हुआ होगा कि उबासियां और अंगड़ाइयां लेते हुए उन के पति ने दरवाजा खोला हो. जब फ्लैट का दरवाजा नहीं खुला तो सुमित्रा को किसी अनहोनी का अंदेशा सताने लगा था. इतनी देर तक राजकंवर मेमसाहब के सोते रहने का तो कोई सवाल ही नहीं था.

राजकंवर के बगल वाले फ्लैट में रहने वाले कुंदनलाल रहेजा (परिवर्तित नाम) को सिर्फ घंटी की आवाज सुनाई दे रही थी, बल्कि वह कामवाली बाई सुमित्रा की आवाजें भी सुन रहे थे. सब कुछ इतना संदेहास्पद था कि उन से रहा नहीं गया. रहेजा कारोबारी थे. लिहाजा उस समय वह दुकान पर जाने की तैयारी में थे. उन्हें भी समझ नहीं रहा था कि राजकंवर या उन के पति दरवाजा क्यों नहीं खोल रहे. आखिरकार जब रहेजा से रहा नहीं गया तो वह अपने फ्लैट का दरवाजा खोल कर बाहर आए, जहां उन की नजरें सामने खड़ी सुमित्रा पर पड़ीं.

रहेजा ने सुमित्रा से पूछा, ‘‘क्या बात है सुमित्रा?’’

खून से लथपथ मिलीं राजकंवर अब तक अनहोनी के अंदेशे से सांस ऊपरनीचे करती सुमित्रा को जैसे राहत मिल गई. उस ने शिकायती लहजे में कहा, ‘‘देखिए सेठजी, कितनी देर से मैं घंटी बजा रही हूं, दरवाजा भी खटखटा चुकी हूं, लेकिन कोई दरवाजा खोल ही नहीं रहा.’’

अनहोनी की आशंका में डूबतेउतराते रहेजा ने भी कालबेल बजाई, लेकिन कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई. उन्होंने सुमित्रा से पूछा, ‘‘मैडम का बेटा उदित भी तो होगा अंदर, उसे दरवाजा खोल देना चाहिए था.’’

‘‘साहबजी, वो तो 3-4 दिन से अपने नाना के घर गया है. वह 6 साल का ही तो है, यहां होता भी तो दरवाजा खोलना उस के वश की बात नहीं थी.’’ सुमित्रा ने बताया.

आखिर थकहार कर रहेजा ने मोबाइल पर राजकंवर का मोबाइल नंबर डायल किया. लेकिन कुछ देर रिंग जाने के बाद एक घिसीपिटी रिकौर्डिंग सुनाने के साथ ही मोबाइल बंद हो गया. रहेजा के कानों में जैसे खतरे की घंटियां बजने लगीं. कुछ सोच कर उन्होंने सुमित्रा को वहीं रुकने को कहा और फिर अपने फ्लैट के पिछवाड़े की बालकनी की तरफ बढ़े. तब तक आवाज सुन कर इमारत के कुछ और लोग भी वहां गए थे. रहेजा ने अपने नेपाली नौकर को बालकनी की परछत्ती पर चढ़ कर राजकंवर के कमरे में झांकने को कहा. बहादुर सब कुछ सुन चुका था, इसलिए वह भी घबराया हुआ था. लेकिन लोगों के हौसला दिलाने पर ऊपर चढ़ कर उस ने जो कुछ देखा, बुरी तरह सहम कर रह गया. वह घबरा कर नीचे कूदा और हांफते हुए बोला, ‘‘शाबशाबमेमशाब नीचे फर्श पर पड़ा है. आसपास खून फैला है.’’

बहादुर ने जो कुछ बताया, उस से वहां के माहौल में सन्नाटा खिंच गया. आगे की काररवाई की पहल भी रहेजा ने ही की. उन्होंने तुरंत पुलिस को फोन कर दिया. आधे घंटे के अंदर थानाप्रभारी संजय राय की अगुवाई में पुलिस टीम वहां पहुंच गई. पुलिस ने वहां मौजूद रहेजा और अन्य लोगों से पूछताछ की. चूंकि फ्लैट का दरवाजा बंद था, इसलिए लोगों की मौजूदगी में दरवाजा तोड़ कर थानाप्रभारी फ्लैट में घुसे तो सामने का दृश्य देख कर भौंचक रह गए. राजकंवर जमीन पर बेसुध पड़ी हुई थीं और उन के कपड़े खून से सने हुए थे

एक बार जान बचाई पुलिस ने थानाप्रभारी ने चैक किया तो राजकंवर की सांस फंसफंस कर रही थीं. यानी कि वह जीवित थीं, लेकिन जिस तरह उन की कनपटी और कलाइयों से खून रिस रहा था और साड़ीब्लाउज खून से सने थे, लगता था उन के साथ बड़ी निर्दयता से मारपीट की गई थी. संजय राय ने राजकंवर को अस्पताल भेजने का बंदोबस्त कियाइस के बाद उन्होंने पूरे कमरे का निरीक्षण किया. सब कुछ उलटापुलटा पड़ा था. लगता था, हमलावर ने कमरे में रखे सामान पर भी अपना गुस्सा उतारा था. थानाप्रभारी ने पूछा, ‘‘क्या राजकंवर यहां अकेली रहती थीं?’’

‘‘नहीं सर,’’ रहेजा ने बताया, ‘‘इन का पति कौशल किशोर और करीब 6 साल का बेटा उदित भी रहता है.’’

‘‘…तो वे दोनों कहां हैं?’’ राय ने रहेजा से ही पूछा.

‘‘सर, बेटा तो 3-4 दिन पहले ही ननिहाल गया है. लेकिन पति कौशल किशोर को तो यहीं होना चाहिए था.’’ इस के साथ ही रहेजा ने इधरउधर नजरें दौड़ाने के बाद कहा, ‘‘वह तो कहीं नजर नहीं रहे. पता नहीं कहां हैं?’’

थानाप्रभारी ने रहेजा से ही पूछा, ‘‘आप के पड़ोस के फ्लैट में इतना घमासान मचा और आप को भनक तक नहीं लगी.’’

पति नहीं, कसाई था वो त्रहेजा ने कुछ पल चुप्पी साधे रहने के बाद कहना शुरू किया, ‘‘साहब, पतिपत्नी के बीच झगड़ाफसाद होना रोज की बात थी. मैडम के पति का तो स्वभाव ही बेसुरा था. किसी से बोलचाल तक नहीं थी. कोई बात करता भी और समझाता भी तो कैसे, वह तो बातबात पर खाने को दौड़ता था

‘‘पता नहीं कोई काम करता भी था या नहीं. हम ने तो उसे कभी काम पर जाते नहीं देखा. अगर वह गायब है तो सीधा मतलब है कि मैडम की ऐसी दुर्गति उसी ने की होगी.’’

थानाप्रभारी घटनास्थल की जरूरी काररवाई कर के थाने लौट आए. फिर वह अस्पताल में राजकंवर को देखने पहुंचे. उन की हालत में सुधार हो रहा था. घटना के 2 दिन बाद यानी 6 सितंबर को राजकंवर बयान देने लायक हो गईं. उन्होंने बताया कि उन पर जानलेवा हमला किसी और ने नहीं, उन के पति ने ही किया था. राजकंवर ने पति के खिलाफ शारीरिक और मानसिक उत्पीड़न की रिपोर्ट दर्ज कराई. उन्होंने अपनी जो कहानी थानाप्रभारी संजय राय को सुनाई, उस का एकएक शब्द चौंकाने वाला था.

राजस्थान के जिला कोटा के कस्बा दीगोद के रमेशचंद नागर संपन्न व्यक्ति हैं. उन के पास अच्छीखासी खेतीबाड़ी है. करीब 8 साल पहले सन 2010 में उन्होंने अपनी इकलौती बेटी राजकंवर का विवाह करीबी कस्बे अयाना के कौशल किशोर नागर से कर दिया था. कौशल किशोर के पिता भी किसान थे. राजकंवर पढ़ाईलिखाई में काफी होशियार थी, उस ने शादी के बाद भी अपनी पढ़ाई जारी रखी और एमएड की डिग्री हासिल कर ली. नतीजतन उन्हें लेक्चरर की प्रतिष्ठित नौकरी मिल गई. राजकंवर की पोस्टिंग नजदीक के कस्बा इटावा के राजकीय सीनियर सैकेंडरी स्कूल में हुई थी. वह पिछले डेढ़ साल से इटावा में तैनात थीं, इसलिए घर से स्कूल आनेजाने में कोई दिक्कत नहीं थी.

शादी के 2 साल बाद ही राजकंवर को बेटा हुआ, जिस का नाम उन्होंने उदित रखा. उदित अब 6 साल का हो गया था. उन्होंने अपने बेटे का दाखिला इटावा के एक निजी स्कूल में करा दिया था. राजकंवर के जीवन की सब से दुर्भाग्यपूर्ण त्रासदी यह थी कि विवाह के कुछ ही सालों में पति कौशल किशोर और उन के दांपत्य संबंधों में तनाव गया था. यह तनाव दिनोंदिन बढ़ता जा रहा था. पूरा परिवार खेती पर आश्रित था, इसलिए नियमित आमदनी के लिए कौशल किशोर क्या करता है, उस ने कभी पत्नी को नहीं बताया. उस के स्वभाव को देखते हुए राजकंवर ने उस से पूछताछ नहीं की.

बेटे के जन्म पर तो लोग खुशी से दोहरे हो जाते हैं, लेकिन उदित के पैदा होने पर कौशल के चेहरे पर खुशी नहीं दिखी. इतना ही नहीं, पत्नी के प्रति कौशल की नफरत में इजाफा होता रहा. राजकंवर तीन पाटों में फंसी हुई थी. एक तरफ पति की रोजरोज की मार और दुत्कार थी तो दूसरी तरफ पारिवारिक मर्यादा और अपने पिता से सब कुछ छिपाए रखने की मजबूरी थी. और तीसरी थी पति के तौरतरीके देख कर अपने भविष्य की चिंता. पति के जुल्म पर ससुर की खामोशी भी उसे हैरान करती थी. रोजरोज की कलह तब और ज्यादा बढ़ गई, जब कौशल ने राजकंवर के चरित्र पर लांछन लगाना शुरू कर दिया. पढ़ाई के दौरान वह किसी व्यक्ति या टीचर से बात कर लेतीं तो राजकंवर पर कौशल के लातघूंसों का कहर टूट पड़ता था.

राजकंवर जब कभी मायके में अपने मातापिता से मिलने जातीं तो चुपचाप ही रहती थीं. उन के चेहरे पर हमेशा उदासी छाई रहती थी. पिता रमेशचंद  को उड़तेउड़ते कुछ भनक लगी थी, इसलिए उन्होंने ससुरालियों के व्यवहार को ले कर बेटी से पूछताछ भी की, लेकिन राजकंवर ने उन्हें अपने दिल का दर्द कभी नहीं बताया. पत्नी पर लगाता था निराधार आरोप शराब के नशे में धुत पत्नी से मारपीट पर उतारू होते कौशल का यह रटारटाया इलजाम होता था कि पढ़ाई के बहाने जाने किसकिस से पेंच लड़ाती है. राजकंवर के दिल पर ये गंदे आरोप तीर की तरह चुभते थे. नतीजतन कलह की कड़वाहट का परनाला पूरे गलीमोहल्ले में फूट पड़ता था. यह राजकंवर का दुर्भाग्य था कि उसे जुल्म से बचाने के लिए ससुर खड़े हुए और ही पासपड़ोस के लोग.

राजकंवर चुप्पी साधे रहीं, लेकिन जब सहनशक्ति जवाब दे गई तो रहने के लिए वह इटावा गईं. पति को वह साथ नहीं रखना चाहती थीं, लेकिन यह सोच कर साथ रखा कि लोगों के तानों से भी बची रहेंगी और यहां रह कर पति भी शायद सुधर जाए. लेकिन सुधरना तो दूर, पति और दरिंदा हो गया. वह यहां भी उन्हें मानसिक और शारीरिक रूप से प्रताडि़त करता. थानाप्रभारी ने राजकंवर के पति कौशल किशोर नागर को उसी दिन गिरफ्तार कर लिया. उसे सबडिवीजनल मजिस्ट्रैट के समक्ष पेश किया गया तो उस ने अपनी गलती की क्षमा मांगी

मामला पारिवारिक था, इसलिए अदालत ने उसे पत्नी से अलग रहने की ताकीद करते हुए कहा कि अगर भविष्य में वह पत्नी राजकंवर के पास गया, उसे धमकाया, मारपीट या अभद्रता की तो उस के खिलाफ सख्त कानूनी काररवाई की जाएगी. कौशल किशोर के लिए यह फैसला अंगारों पर लोटने जैसा था. कानूनी ताकीद के बावजूद अपमान से तिलमिलाता कौशल घर छोड़ कर जाती राजकंवर को धमकाने से बाज नहीं आया. उस ने कहा, ‘‘देखता हूं, तुझे मेरे पंजों से कौन सा कानून बचाता है.’’

इस घटना के बाद राजकंवर पति कौशल किशोर से अपना रिश्ता खत्म कर के अपने बेटे उदित को ले कर कोटा गईं और किराए का मकान ले कर रहना शुरू कर दिया. वह कोटा से ही रोजाना ड्यूटी के लिए अपडाउन करती थीं. लेकिन राजकंवर के सिर से दुर्भाग्य की छाया अभी छंटी नहीं थीसंजय राय अनुभवी पुलिस अधिकारी थे. राजकंवर के पति कौशल किशोर को जिस समय मजिस्ट्रैट के सामने पाबंद किया जा रहा था, संजय राय ने उस की अंगार सी सुलगती आंखों में छिपा लावा देख लिया था. वह अपने सहयोगी से अपने मन की बात कहे बिना नहीं रहे, ‘इस की आंखों में भेडि़ए की सी मक्कारी है. मैं दावे से कह सकता हूं कि इस में इंसानी जज्बा कतई नहीं है. यह शख्स कब क्या कर जाए, कुछ नहीं कहा जा सकता.’

राय का सहयोगी पता नहीं उन की बात की गहराई समझा या नहीं, यह तो पता नहीं लेकिन राय ने जो अंदेशा जताया था, घटना के ठीक 10 दिन बाद 17 सितंबर को हो गया. सोमवार की दोपहर जिस समय थानाप्रभारी संजय राय अपने औफिस में बैठे थे, तभी फोन की घंटी बजी. उन्होंने अनमने मन से फोन उठाया, ‘‘यस, इटावा पुलिस स्टेशन.’’

दूसरी तरफ से हड़बड़ाती सी आवाज सुनाई दी, ‘‘साहब, पीपल्दा रोड पर स्थित एक निजी स्कूल के गेट पर अभीअभी एक टीचर की गला रेत कर हत्या कर दी गई है.’’

‘‘कौन? किस की?’’ पूछते हुए थानाप्रभारी चिल्लाते ही रह गए. लेकिन दूसरी से फोट कट चुका था. काल बन गया कौशल किशोर थानाप्रभारी तुरंत बताए गए पते की ओर रवाना हो गए. साथ ही उन्होंने एसपी (ग्रामीण) राजीव पचार को भी घटना की जानकारी दे दी. घटनास्थल पर खासी भीड़ जुटी हुई थी. स्कूल का पूरा स्टाफ वहां मौजूद था. उन्हें जब बताया गया कि मरने वाली सीनियर सैकेंडरी स्कूल की व्याख्याता राजकंवर थीं तो संजय राय सन्न रह गए. राय ने पूछा, ‘‘लेकिन राजकंवर का इस स्कूल में क्या काम?’’

स्कूल स्टाफ ने पूरा वाकया बयान करते हुए कहा, ‘‘राजकंवर का बेटा उदित यहीं पढ़ता था. अब वह कोटा रहने लगी थीं तो बेटे का दाखिला कोटा के किसी स्कूल में कराने के लिए बेटे की टीसी लेने आई थीं.’’

‘‘…फिर?’’ राय ने बेसब्री से पूछा.

‘‘दोपहर करीब 12 बजे राजकंवर अपने स्कूल के छात्र गोलू बैरवा की मोटरसाइकिल पर यहां पहुंची थीं.’’ स्टाफ के एक व्यक्ति ने बताया.

गोलू बैरवा वहीं मौजूद था. उस ने बात पूरी करते हुए कहा, ‘‘मैडम, टीसी लेने स्कूल के भीतर चली गई थीं. लेकिन मैं ने बाहर ही इंतजार करना ठीक समझा. जैसे ही बाहर कर वह मेरे पास पहुंची, अचानक कोई पीछे से आया और मेरी और मैडम की आंखों में मिर्ची झोंक दी. मैं ने आंखें मलते हुए मैडम की तरफ देखा तो वह खून से लथपथ नीचे पड़ी थीं. लगता था उन का गला काट दिया गया था. गले और सीने से खून बह रहा था. मैं जोर से चिल्लाया तो लोग इकट्ठा हो गए.’’

‘‘तुम ने देखा, कौन था वो?’’ राय ने पूछा.

‘‘नहीं साहब, मिर्ची की जलन और दर्द के मारे चेहरा तो दूर आदमी को ही नहीं देख पाया.’’ गोलू ने बताया.

थानाप्रभारी राय ने तुरंत घायल राजकंवर को अस्पताल पहुंचाया. तब तक एसपी राजीव पचार भी मौके पर गए थे. छात्र गोलू बैरवा से की गई पूछताछ की बाबत राय ने एसपी साहब को जानकारी दी तो उन्होंने भी गोलू से पूछताछ की. एसपी पचार ने गोलू को भी तुरंत अस्पताल भिजवा दिया. उसी समय उन की नजर धूप से चमकते चाकू पर पड़ी. उन्होंने राय की तरफ देख कर कहा, ‘‘यह मर्डर वेपन लगता है. जल्दी में हमलावर इसे यहीं छोड़ कर भाग गया होगा. कोटा के एसपी भार्गव को घटना की जानकारी दे कर एफएसएल टीम भिजवाने का आग्रह किया. साथ ही उन्होंने सीओ भोपाल सिंह और थानाप्रभारी राय को निर्देश दिया कि अभी हमलावर ज्यादा दूर नहीं जा पाया होगा, शहर की नाकेबंदी का बंदोबस्त करो.’’

राजकंवर ने अस्पताल पहुंचने से पहले ही दम तोड़ दिया था. चिकित्सा प्रभारी डा. के.सी. शर्मा ने पोस्टमार्टम रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि मृतका के शरीर पर एक दरजन से ज्यादा घाव थे, जो किसी नुकीले हथियार से किए गए थे. लगता था ताबड़तोड़ वार किए गए थेपिता ने बताई हकीकत बेटी की नृशंस हत्या की खबर पा कर इटावा पहुंचे पिता रमेशचंद नागर ने इस मामले में राजकंवर के पति कौशल किशोर के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करवाई. थानाप्रभारी राय उस समय हैरान रह गए, जब रमेशचंद नागर ने बिलखते हुए बताया कि अदालत के पाबंद करने के बावजूद कौशल किशोर राजकंवर के पीछे पड़ा हुआ था. वह मोबाइल पर उसे जान से मारने की धमकियां देता था.

केस दर्ज होने के बाद पुलिस आरोपी की तलाश में जुट गई. मुखबिर से मिली सूचना पर कौशल किशोर को तीसरे दिन इटावा के गणेशगंज चौराहे से गिरफ्तार कर लिया गया. पुलिस पूछताछ में वह जल्दी ही टूट गया. एसपी (देहात) राजीव पचार, सीओ भोपाल सिंह की मौजूदगी में थानाप्रभारी राय द्वारा की गई पूछताछ में उस ने बताया कि उस ने पत्नी की आवाजाही पर नजर रखने के लिए 2 दिन तक रेकी की थी. बेटे उदित को स्कूल ले जाने वाले वैन ड्राइवर से भी जानकारी जुटाई थी. घटना वाले दिन उस ने नकाब पहन कर उस का पीछा किया था. फिर मौका पा कर उस की आंखों में मिर्ची झोंक कर उस पर चाकू से हमला कर दिया. उस ने बताया कि पत्नी ने पुलिस से पाबंद करा कर उस का अपमान किया था, इसलिए उस ने उस के साथ ऐसा किया

पुलिस ने कौशल किशोर नागर से पूछताछ के बाद उसे न्यायालय में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.                 

   —कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

UP Crime : बहनोई के बड़े भाई ने ही छोटे भाई के साले की हत्या कराई

UP Crime : सीधीसादी खूबसूरत रश्मि का विवाह एक ऐसे आदमी से हो गया, जिसे इंसान से कम, शराब से ज्यादा प्यार था. उत्तर प्रदेश (UP Crime) के जिला गोरखपुर के थाना कैंट का सब से व्यवस्ततम है इलाका अग्रसेन चौराहा. फर्नीचर व्यवसायियों की सब से बड़ी मार्केट होने की वजह से यहां पूरे दिन भीड़ लगी रहती है. इस मार्केट की दुकानगीता फर्नीचरकाफी बड़ी और प्रतिष्ठित मानी जाती है. फर्नीचर व्यवसायी अभिषेक रंजन अग्रवाल की यह दुकान उन की पत्नी गीता के नाम पर है. दुकान के पीछे ही उन का मकान भी है.

18 जून, 2013 की रात साढ़े 8 बजे अभिषेक अग्रवाल ने दुकान के कर्मचारियों सनी प्रजापति और राजेंद्र साहनी से दुकान बढ़ाने को कह कर खुद दुकान से बाहर कर अपने परिचित रवि अग्रवाल के साथ खड़े हो कर बातें करने लगे. इसी बीच बैंक रोड की ओर से एक मोटरसाइकिल उन के करीब कर रुक गईउस पर 2 युवक सवार थे. वे कौन हैं, यह देखने के लिए जैसे ही अभिषेक पलटे, पीछे बैठे युवक ने रिवाल्वर निकाल कर उन पर 2 गोलियां दाग दीं. दोनों ही गोलियां उन के सिर में लगीं. गोलियां लगते ही अभिषेक जहां जमीन पर गिर गए, वहीं मोटरसाइकिल युवक भाग निकले. उन के हाथों में रिवाल्वर थे, इसलिए कोई भी उन्हें रोकने की हिम्मत नहीं कर सका.

अप्रत्याशित घटी इस घटना से जहां सभी हैरान थे, वहीं पूरी बाजार में हड़कंप सा मच गया था. दोनों नौकर पहले तो भाग कर घायल हो कर गिरे अभिषेक के पास आए. उन्हें तड़पता देख कर सनी जहां रवि अग्रवाल की मदद से उन्हें संभालने लगा, वहीं रवींद्र घर के अंदर की ओर घटना की सूचना देने के लिए भागा. घर के सदस्य सूचना पा कर बाहर आते, उस के पहले ही पड़ोस के दुकानदारों ने अभिषेक को एक रिक्शे पर बैठाया और पास के विंध्यवासिनीनगर स्थित स्टार नर्सिंगहोम के लिए रवाना हो गए. पीछेपीछे अभिषेक के घर वाले भी अस्पताल की ओर भागे. लेकिन अभिषेक को अस्पताल ले जाने का कोई फायदा नहीं हुआ. क्योंकि अस्पताल पहुंचने के पहले ही उस की मौत हो चुकी थी. डाक्टरों ने देखते ही उसे मृत घोषित कर दिया था. मौत की जानकारी होते ही घरवाले बिलखबिलख कर रोने लगे.

सूचना पा कर अभिषेक के तमाम परिचित भी अस्पताल पहुंच चुके थे. किसी ने घटना की सूचना फोन द्वारा पुलिस कंट्रोलरूम को दे दी थी, जहां से सूचना पा कर थाना कैंट के इंस्पेक्टर टी.पी. श्रीवास्तव सिपाहियों को साथ ले कर घटनास्थल पर पहुंच गए थे. वहीं से उन्होंने इस घटना की सूचना अधिकारियों को दे कर खुद अस्पताल जा पहुंचे. इस के बाद वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक शलभ माथुर, पुलिस अधीक्षक (नगर) परेश पांडेय, क्षेत्राधिकारी (कैंट) वी.के. पांडेय, कोतवाली के इंसपेक्टर बृजेंद्र कुमार सिंह भी वहां पहुंच गए.

पुलिस ने लाश कब्जे में ले कर औपचारिक काररवाई निपटाने के बाद पोस्टमार्टम के लिए मेडिकल कालेज भिजवा दी. पुलिस ने घटनास्थल से 9 एमएम के 2 खोखे बरामद किए थे. सारी काररवाई निपटाने के बाद थाने लौट कर पुलिस ने मृतक अभिषेक के पिता अर्जुन कुमार अग्रवाल द्वारा दी गई तहरीर के आधार पर अभिषेक के बहनोई विवेक कुमार लाट, उस के मंझले भाई विनय कुमार लाट तथा 2 अज्ञात बदमाशों के खिलाफ अपराध संख्या 513/2013 पर भादंवि की धारा 302/120 बी/34 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया.

मुकदमा दर्ज होने के बाद थाना कैंट पुलिस ने उसी दिन विनय कुमार लाट को उस के घर से गिरफ्तार कर लिया. थाने ला कर उस से पूछताछ की गई. पहले तो वह पुलिस को बरगलाता रहा, लेकिन वह कोई पेशेवर अपराधी तो था नहीं, इसलिए पुलिस ने जब उस के साथ थोड़ी सख्ती की तो उसे टूटते देर नहीं लगी. उस ने स्वीकार कर लिया कि उसी ने सुपारी दे कर किराए के हत्यारों से अभिषेक की हत्या कराई थी. विनय द्वारा अपराध स्वीकार कर लेने और हत्यारों के नाम बता देने के बाद पुलिस ने उसे अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

इस मामले में नामजद दूसरा अभियुक्त विनय का भाई विवेक पहले से ही जेल में बंद था. पुलिस अन्य अभियुक्तों की तलाश में जुट गई. इस मामले में सोचने वाली बात यह थी कि आखिर बहनोई के बड़े भाई ने ही छोटे भाई के साले की हत्या क्यों कराई? अभिषेक का बहनोई जेल में क्यों बंद था? यह सब जानने के लिए हमें थोड़ा पीछे चलना होगा. गोरखपुर के थाना कैंट के रहने वाले 72 वर्षीय अर्जुन कुमार अग्रवाल ढुनमुनदास बालमुकुंददास इंटर कालेज से 30 जून, 2003 को रिटायर होने के बाद अपने एकलौते बेटे अभिषेक रंजन के साथ उस के व्यवसाय में हाथ बंटाने लगे थे. उन के परिवार में पत्नी के अलावा 4 बच्चों में 3 बेटियां रश्मि, शालिनी, दिवीता और एकलौता बेटा अभिषेक रंजन था. उन का यह बेटा तीसरे नंबर पर था.

अध्यापक होने की वजह से अर्जुन कुमार खुद तो संस्कारी थे ही, उन के चारों बच्चे भी उन्हीं की तरह संस्कारी थे. अर्जुन की बड़ी बेटी रश्मि सीधीसादी, बेहद सुशील थी. उस ने पंडित दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर (UP Crime) विश्वविद्यालय से संस्कृत से एमए करने के बाद नेट परीक्षा भी पास कर ली थी. अर्जुन कुमार अग्रवाल के सभी बच्चे इसी तरह पढ़ेलिखे थे. बायोलौजी से प्रथम श्रेणी में बीएससी करने के बाद अभिषेक रंजन अग्रवाल ने पढ़ाई छोड़ कर व्यवसाय की ओर कदम बढ़ाया था. अपने घर के आगे पड़ी जमीन में दुकान बनवा कर उस ने फर्नीचर और हार्डवेयर का काम शुरू कर दिया था. जल्दी ही उस का यह व्यवसाय चल निकला.

घर में हर तरह से खुशहाली थी. रश्मि शादी लायक हुई तो अर्जुन कुमार उस के लिए लड़का ढूंढ़ने लगे. एक दिन अर्जुन कुमार अग्रवाल की नजर स्थानीय अखबार के शहनाई कालम मेंवधु चाहिएमें छपे एक विज्ञापन पर पड़ी तो उन्हें लगा कि यहां बात बन सकती है. यह विज्ञापन रामस्वरूप लाट ने अपने बेटे के विवाह के लिए छपवाया था. उस  में फोन नंबर भी दिया था, इसलिए अर्जुन कुमार अग्रवाल ने तुरंत फोन कर के बात कर लीआखिर वहां बात बन गई. जल्दी गोदभराई कर के कुल 15 दिनों में अर्जुन कुमार ने अपनी बड़ी बेटी रश्मि का विवाह रामस्वरूप लाट के बेटे विवेक कुमार से कर दिया था. पहली और बड़ी बेटी का विवाह था, इसलिए अर्जुन कुमार ने अपनी हैसियत से कहीं ज्यादा इस शादी में खर्च किया था.

रामस्वरूप लाट ने यह विवाह इतनी जल्दी में कराया था कि अर्जुन कुमार को मौका ही नहीं मिला था कि वह लड़के या उस के घर वालों के बारे में ठीक से पता कर पाते. बाद में जो पता चला, उस के अनुसार गोरखपुर की कोतवाली के आर्यनगर के दक्षिणी हुमायूंपुर मोहल्ले के राज नर्सिंग होम के पास रहने वाले रामस्वरूप लाट ठेकेदारी करते थे. उन के परिवार में पत्नी के अलावा 4 बेटे, कमलेश कुमार लाट, विनय कुमार लाट, विवेक कुमार लाट, विकास कुमार लाट तथा 3 बेटियां, कमला, वंदना और एप्पुल थीं

कमलेश प्रौपर्टी डीलिंग का काम करता था. उस से छोटे विनय, विवेक और विकास विजय चौक स्थित फोटो विजन स्टूडियो को संभालते थे. रामस्वरूप लाट सुखी और संपन्न थे, इसलिए उन की समाज में एक हैसियत थी. रामस्वरूप की बड़ी बेटी कमला की शादी कोलकाता में हुई थी. बेटों में भी कमलेश और विनय की शादी हो चुकी थी. अब उन्हें 2 बेटों और 2 बेटियों की शादी करनी थी. उसी बीच उन का बड़ा बेटा कमलेश अपने परिवार के साथ कैंट स्थित हरिओमनगर कालोनी में रहने चला गया. बाद में उस ने अपने लिए लखनऊ में मकान बनवा लिया तो अपना वह मकान सब से छोटे भाई विकास को दे कर परिवार के साथ लखनऊ चला गया.

विकास उस में रहने लगा तो विनय ने कोतवाली के विष्णु मंदिर स्थित बशारतपुर मोहल्ले में अपने लिए मकान बनवा लिया. विवेक उस की दोनों, बहनें वंदना और एप्पुल तथा मांबाप आर्यनगर स्थित पुश्तैनी मकान में एक साथ रहते थे. रहते भले ही सभी भाई अलगअलग थे, लेकिन एकदूसरे से दिल से जुड़े थे. अभिषेक को जब भी मौका मिलता, बहन का हालचाल लेने उस के घर जाता रहता था. इस के अलावा विवेक का स्टूडियो अभिषेक के घर के नजदीक ही था, इसलिए सालेबहनोई की मुलाकात अकसर होती रहती थी. रश्मि जब भी मायके आती, खुश नजर आती. इसलिए मायके वालों को यही लगता था कि वह ससुराल में खुश है.

लेकिन रश्मि की यह खुशी ऊपरी तौर पर थी, जबकि अंदर से वह बहुत दुखी थी. इस की वजह थी पति का शराबी होना. इस में दुख देने वाली बात यह थी कि शराब का घूंट हलक के नीचे उतरते ही विवेक किसी को भी नहीं पहचानता था, वह उस की पत्नी की क्यों हो. उस स्थिति में अगर रश्मि कुछ कह देती तो विवेक उसे भद्दीभद्दी गालियां तो देता ही था, पिटाई करने में भी पीछे नहीं रहता थाइस की एक वजह यह भी थी कि विवेक की कल्पना के अनुरूप रश्मि खूबसूरत नहीं थी, इसलिए वह उसे पत्नी नहीं मानता था.पति के इस उपेक्षित व्यवहार को रश्मि ने अपना भाग्य मान लिया था और ससुराल में उस के साथ क्या होता है, मायके वालों से नहीं बताया

बात उन दिनों की है कि जब रश्मि को 7 माह का गर्भ था. नवरात्र चल रहे थे. विवेक स्टूडियो बंद कर के घर पहुंचा ही था कि उस की मां का फोन गया. मां उन दिनों लखनऊ में थी. विवेक ने फोन रिसीव किया तो मां ने बिना हालचाल पूछे ही कहा, ‘‘कैसे कहूं, समझ में नहीं रहा है. कहूंगी तो कहोगे कि मेरे पत्नी के पीछे हाथ धो कर पड़ी हूं.’’

‘‘कहो तो बात क्या है?’’ विवेक ने कहा.

‘‘तेरी पत्नी कह रही थी कि बहुओं को पीटना इस घर का रिवाज है. अब तुम्हीं बताओ, मैं ने कब किस के साथ मारपीट की है, जो मुझ पर इस तरह के आरोप लग रहे हैं. जब से सुना है, कलेजे में आग लगी है. पूछ तो अपनी लुगाई से, आखिर वह चाहती क्या है? मांबेटे के बीच दरार क्यों डाल रही है?’’

मां ने ये बातें जिस तरह कही थीं, सुनते ही विवेक की देह में आग लग गई. उस ने आव देखा ताव, रश्मि पर पिल पड़ा. उस के हाथ में जो भी आया वह उसी से उसे मारता रहा. उस समय उस ने यह भी नहीं सोचा कि रश्मि गर्भवती है. कहीं उल्टासीधा चोट लग गई तो क्या होगा. आखिर इस पिटाई से रश्मि की हालत बिगड़ गई. वह चलनेफिरने लायक नहीं रही. तब विवेक उसे रिक्शे पर बैठा कर ससुराल छोड़ आया. मांबाप और अभिषेक उस की हालत देख कर दंग रह गए. यह सब कैसे हुआ, सभी पूछते रह गए. लेकिन रश्मि ने बताया नहीं. उस ने झूठ बोल दिया कि पीरियड नजदीक होने की वजह से उसे कुछ तकलीफ हो गई है

जिस की वजह से इतनी रात को यहां गई. मांबाप ने उस की बातों पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया. इस की वजह यह थी कि उस के साथ यह सब जो हुआ था, उस के बारे में उन्होंने कभी सोचा ही नहीं था. उन्होंने उसे आराम करने के लिए कह दिया. विवेक उसे छोड़ कर उसी समय अपने घर लौट गया. पति ने इतना मारापीटा था, इस के बावजूद रश्मि ने इस बात को दिल से नहीं लिया. शायद यही वजह थी कि उस ने मायके वालों से सच्चाई छिपा ली थी. उसे यह भी पता था कि अगर भाई को सच्चाई का पता चल गया तो हंगामा हो जाएगा. इसलिए चुप रहने में ही सब की भलाई है.

यही सोच कर रश्मि ने इस बात को भुला दिया. 3 दिनों बाद विवेक ने फोन किया. माफी मांगते हुए उस ने कहा कि उसे अपने किए पर काफी पछतावा है. इतने में ही रश्मि का दिल पसीज गया और उस ने विवेक को माफ कर दिया. यही नहीं, उस के साथ वह ससुराल भी गई.

रश्मि के ससुराल आने के बाद 2-4 दिनों तक घर का माहौल ठीक रहा. उस के बाद फिर पहले जैसे ही हालात हो गए. छोटीछोटी बातों को ले कर तूफान खड़ा होने लगा. विवेक पहले की तरह फिर रश्मि के साथ बदसलूकी और मारपीट करने लगा. जबकि उसे मना कर लाते समय उस ने वादा किया था कि अब वह उस के साथ बदसलूकी करेगा मारपीट. लेकिन घर आते ही वह अपना वादा भूल गया. धीरेधीरे रोज की यही नियति बन गई. समय पर रश्मि ने बेटी को जन्म दिया, जिस का नाम श्रद्धा रखा गया. विवेक बेटी को पा कर निहाल था. उस की एप्पुल बुआ उस पर जान छिड़कती थी. वैसे तो सब कुछ ठीक रहता था, लेकिन विवेक की मां के आते ही घर का माहौल खराब हो जाता.

वह उलटासीधा पढ़ाती तो मां के प्रेम में अंधा विवेक वही करता, जो मां उसे करने को कहती. जब तक वह घर में नहीं रहती, घर में सुखचैन रहता. वैसे वह ज्यादातर बड़े बेटेबहू के साथ लखनऊ में रहती थी. श्रद्धा 2-3 महीने की थी, तभी एक दिन विवेक की बहन वंदना ने विवेक और रश्मि को अपने घर खाने पर बुलाया. बेटी को साथ ले कर रश्मि पति के साथ ननद के यहां पहुंची. हंसीठिठोली के बीच विवेक बातबात में रश्मि को जलील करने लगा. रश्मि वहां तो कुछ नहीं बोली, लेकिन घर कर वह विवेक से जलील करने की वजह पूछने लगी. विवेक ने ठीक से जवाब नहीं दिया तो इसी बात पर दोनों में नोकझोंक हो गई. विवेक दूसरे कमरे में जा कर सो गया और रश्मि अपने कमरे में सुबह रश्मि ने विवेक से कुछ कहा तो रात की खुन्नस निकालने के लिए वह उस की पिटाई करने लगा.

पति की इस हरकत से क्षुब्ध हो कर उसी समय रश्मि बेटी को ले कर मायके गई. रश्मि के अकेली आने पर मांबाप को समझते देर नहीं लगी कि बेटीदामाद में ऐसा कुछ जरूर हुआ है, जिस की वजह से रश्मि को घर छोड़ कर अकेली आना पड़ा. जब उन्होंने ध्यान से देखा तो उस के जिस्म पर उभरे नीले निशान दामाद की दरिंदगी की कहानी कह रहे थे. पहली बार उन्हें अहसास हुआ कि उन्होंने बेटी को गलत हाथों में सौंप दिया है. आगे से ऐसा हो, इस के लिए अर्जुन कुमार ने बेटी का मेडिकल करवाया और उसे ले कर महिला थाने पहुंच गए. महिला थाने की थानाप्रभारी से रश्मि के साथ हुए अत्याचार के बारे में बता कर कानूनी काररवाई करने को कहा, ताकि भविष्य में बेटी के साथ कोई अनहोनी हो तो इस के लिए उस के दामाद विवेक को जिम्मेदार माना जाए.

रश्मि नहीं चाहती थी कि उस के पिता कोई ऐसा काम करें, जिस से ससुराल जाने पर उसे परेशानी हो. इसलिए थानाप्रभारी से उस ने कोई भी काररवाई करने से मना कर दिया. इस के बावजूद रश्मि के लिए परेशानी खड़ी हो गई. विवेक को पता चल ही गया था कि रश्मि पिता के साथ महिला थाने गई थी. इस बात से रश्मि के प्रति उस का व्यवहार और बदल गया. अब वह पहले से ज्यादा शराब पी कर आने लगा और रश्मि को परेशान करने लगा. इसी तरह 3 साल बीत गए. इन 3 सालों में रश्मि ने ससुराल में एक दिन भी सुख का अनुभव नहीं किया. कोई भी ऐसा दिन नहीं बीता, जिस दिन पतिपत्नी के बीच लड़ाईझगड़ा या मारपीट हुई हो. शारीरिक उत्पीड़न और प्रताड़ना उस की जिंदगी का हिस्सा बन गई थी. एक तरह से उस की जिंदगी नरक बन कर रह गई थी.

शारीरिक और मानसिक उत्पीड़न सहतेसहते रश्मि पूरी तरह से टूट गई थी. जब उस की सहनशक्ति खत्म हो गई तो ससुराल में उस के साथ क्याक्या हुआ, उस ने एकएक बात मांबाप को बता दी. बेटी की दुखद कहानी सुन कर मांबाप के पैरों तले से जमीन खिसक गई. वे हैरानी से बेटी का मुंह ताकते रह गए कि इतना सब कुछ हो जाने के बाद भी उस ने उफ तक नहीं की. उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा था कि नाजों से पलीबढ़ी बेटी ससुराल में दुख के अंगारों पर झुलस रही है. वह ऐसे गुनाह की सजा वह काट रही है, जिसे उस ने कभी किया ही नहीं है. बिना वजह रश्मि को परेशान किए जाने की बात से अर्जुन कुमार और अभिषेक बहुत दुखी हुए. अब उन के पास कानून का सहारा लेने के अलावा कोई दूसरा उपाय नहीं था. इसलिए उन्होंने बेटी से दामाद द्वारा मारपीट करने की तहरीर महिला थाने में दिलवा दी.

रश्मि द्वारा दी गई तहरीर ने आग में घी का काम किया. महिला थाने की थानाप्रभारी ने विवेक को थाने बुलवा कर सब के सामने उसे इस तरह जलील किया कि वह भीगी बिल्ली बन कर रह गया. उस ने सब के सामने माफी मांगी और वादा किया कि भविष्य में वह फिर कभी किसी तरह की शिकायत का मौका नहीं देगा. विवेक के घडि़याली आंसू पर रश्मि तो पिघल गई, लेकिन उस के इस नाटक पर तो अर्जुन और अभिषेक को यकीन हुआ, ही थानाप्रभारी को. रश्मि के कहने पर उस के घर वाले और पुलिस उसे इस शर्त पर विवेक के साथ भेजने को राजी हुई कि भविष्य में अगर रश्मि के साथ किसी भी तरह की कोई अनहोनी होती है तो इस के लिए वही जिम्मेदार होगा. विवेक ने यह शर्त मान ली तो रश्मि को उस के साथ भेज दिया गया.

रश्मि पति के साथ ससुराल तो गई, लेकिन इस के बाद उसे मायके वालों का मुंह देखना नसीब नहीं हुआ. विवेक का सख्त आदेश था कि वह तो मायके जाएगी और ही वहां फोन करेगी. यही नहीं, मायके वालों का फोन आता है, तब भी वह बात नहीं करेगी. इस तरह विवेक ने ससुराल वालों से संबंध लगभग तोड़ लिए. उसे नाराजगी इस बात की थी कि ससुर और साले ने दूसरी बार पत्नी से उस की शिकायत करा दी थी, जिस की वजह से उसे थाने में सब के साने जलील किया गया था. यह अपमान वह भूल नहीं पा रहा था.

रश्मि ने सब कुछ भाग्य के भरोसे छोड़ दिया था. अब बेटी ही उस के लिए एकमात्र जीने का सहारा रह गई थी. उसे ही देख कर वह जी रही थी. सासससुर, ननददेवर सभी ने मुंह मोड़ लिया था. शायद उस ने भी ठान लिया था कि वह वही करेगी, जो भारतीय नारियां करती आई हैं. जिस इज्जत के साथ वह ब्याह कर ससुराल आई है, उसी इज्जत के साथ उस की अर्थी ससुराल से ही उठेगी. इसी तरह 5 साल बीत गए. सन 2008 में रश्मि की छोटी बहन दिवीता की शादी तय हुई. बेटी की शादी तय होने की बात अर्जुन कुमार ने बेटी रश्मि और दामाद विवेक को भी बताई. बहन की शादी तय होने की बात सुन कर रश्मि बहुत खुश हुई. जाने क्या सोच कर विवेक ने रश्मि को शादी में जाने की अनुमति दे दी. यही नहीं, वह खुद भी उस शादी में शामिल हुआ.

बेटीदामाद के आने से सभी को खुशी हुई. अर्जुन कुमार और उन की पत्नी को लगा, शायद अब सब ठीक हो जाएगा. इस के बाद विवेक खुद भी ससुराल आनेजाने लगा और रश्मि को भी साथ ले जाने लगा. 2 बार वह रश्मि को ले कर सिंगापुर भी घूमने गया. विवेक भले ही ससुराल आनेजाने लगा था और रश्मि को देश के बाहर घुमाने भी ले गया था, लेकिन रश्मि के साथ वह जो व्यवहार करता आया था, उस में कोई बदलाव नहीं आया थावह अभी भी रश्मि को जलील करने से चूकता था, उस के साथ मारपीट करने में पीछे रहता था. उस में सब से बड़ी कमी यह थी कि वह यह भी नहीं देखता था कि पत्नी से कहां और कैसा व्यवहार किया जाए. बाप के इस व्यवहार से श्रद्धा भी दुखी रहती थी. कहने का मतलब यह था कि विवेक ने शराफत का जो चोला ओढ़ रखा था, वह मात्र दिखावा था, जबकि उस की आदत में कोई सुधार नहीं आया था.

विवेक का जब मन होता, वह गंदीगंदी गालियां देते हुए रश्मि की पिटाई करने लगता. जबकि रश्मि को गालियों से बहुत चिढ़ थी. ऐसे में रश्मि विरोध करती तो घर का माहौल बिगड़ जाता. मजबूरन समझदारी का परिचय देते हुए रश्मि को ही चुप होना पड़ता. मार्च महीने की बात है. रश्मि मायके आई हुई थी. उसी बीच एक दिन उस ने देवर विकास और उस की पत्नी को खाने पर अपने घर बुलाया. रात में विवेक भी गया. खाना खा कर विकास तो पत्नी के साथ चला गया, लेकिन विवेक ससुराल में ही रुक गया. सब के जाने के बाद विवेक सोने के लिए लेटा तो पत्नी से लाइट बंद करने को कहा. काम में व्यस्त होने की वजह से रश्मि सुन नहीं पाई. इसलिए लाइट औफ नहीं की. विवेक गुस्से में उठा तो शराब की खाली पड़ी बोतल उस के पैर से टकरा गई.

फिर तो विवेक का गुस्सा इस कदर बढ़ा कि उस ने चप्पल निकाली और रश्मि के घर में ही उस की पिटाई करने लगा, साथ ही गंदीगंदी गालियां भी दे रहा था. हद तो तब हो गई, जब गिलास में रखी शराब उस ने उस के मुंह पर उड़ेल दी. इस पर रश्मि को भी गुस्सा गया. उस ने आवाज दे कर मांबाप को बुला लिया. इस के बाद उस रात विवेक से खूब झगड़ा हुआ. विवेक अकेला था, जबकि रश्मि का पूरा परिवार था. अंत में रश्मि ने ही बीचबचाव कर के मामला शांत कराया. इस के बाद एक बार फिर विवेक के संबंध ससुराल वालों से खराब हो गए. इतना सब होने के बावजूद रश्मि बेटी को ले कर पति के साथ ससुराल गई.

3 अप्रैल, 2013 की शाम 4 बजे के आसपास रश्मि ने अभिषेक को फोन कर के बताया कि विवेक ने उसे और श्रद्धा को खाने की चीज में जहर मिला कर खिला दिया है. इस के आगे वह कुछ नहीं कह पाई, क्योंकि दूसरी ओर से फोन कट गया था. शायद किसी ने फोन छीन कर काट दिया था. अभिषेक के पास सोचने का भी समय नहीं था. उस ने जल्दी से गाड़ी निकाली और पिता को साथ ले कर रश्मि की ससुराल जा पहुंचाविवेक घर में ही था. लेकिन उस से कोई बात किए बगैर बापबेटे सीधे रश्मि के कमरे में पहुंचे. श्रद्धा और रश्मि बिस्तर पर पड़ी तड़प रही थीं. बापबेटे ने मिल कर दोनों को गाड़ी में लिटाया और विंध्यवासिनीनगर स्थित स्टार नर्सिंग होम ले गए. दोनों का इलाज शुरू हुआ. इस बीच ससुराल का कोई भी सदस्य उन्हें देखने नहीं आया. रात करीब 11 बजे रश्मि की ननद वंदना जरूर आई. थोड़ी देर रुक कर वह भी चली गई.

श्रद्धा की हालत तो स्थिर रही, लेकिन रश्मि की हालत बिगड़ती गई. तब अर्जुन कुमार और अभिषेक, दोनों को वहां से डिस्चार्ज करा कर डा. मल्ल नर्सिंगहोम ले गए. श्रद्धा तो जैसेतैसे बच गई, लेकिन 2 दिनों तक जिंदगी और मौत से संघर्ष करते हुए 5 अप्रैल की शाम 6 बजे रश्मि मौत से हार गई और यह दुनिया छोड़ कर चली गई. रश्मि की मौत की सूचना पा कर कोतवाली पुलिस अस्पताल पहुंची और लाश को कब्जे में ले कर पोस्टमार्टम के लिए मेडिकल कालेज भिजवा दिया. इस के बाद श्रद्धा के बताए अनुसार अभिषेक ने कोतवाली पुलिस को जो तहरीर दी, उस के आधार पर कोतवाली पुलिस ने अपराध संख्या 139/2013 पर भादंवि की धारा 302, 307, 498 के तहत विवेक कुमार लाट के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया. इस मामले की जांच कोतवाल प्रभारी इंसपेक्टर बृजेंद्र सिंह ने स्वयं संभाली.

6 अप्रैल, 2013 की सुबह बृजेंद्र सिंह ने विवेक कुमार को आर्यनगर स्थित उस के घर से गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ के बाद उसी दिन उसे अदालत में पेश किया गया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. जांच के दौरान इंस्पेक्टर बृजेंद्र सिंह को अभिषेक ने रश्मि के हाथों के लिखी 13 बिंदुओं में 7 पृष्ठों की मर्मस्पर्शी एक चिट्ठी सौंपी. उस चिट्ठी में रश्मि ने पति के हर जुर्म को विस्तार से लिखा था. जांच के दौरान कोतवाली प्रभारी ने उस में लिखा एकएक शब्द सच पाया. इस मामले में पुलिस ने 29 जून, 2013 को विवेक कुमार लाट के खिलाफ आरोप पत्र भी दाखिल कर दिया.

श्रद्धा ने अपने बयान में पुलिस को बताया था कि उस के पापा ने ही उसे और उस की मां को खाने के चीज में जहर मिला कर जबरदस्ती खिलाया था. जिसे खाने के कुछ देर बाद दोनों की हालत बिगड़ने लगी थी. अभिषेक ने पुलिस को बताया था कि उस की बहन बहुत ज्यादा सुंदर नहीं थी. वह निहायत सीधीसादी और परंपराओं में जीने वाली नारी थी. उस की यही बातें विवेक की पसंद नहीं थीं. वह अय्याश था. उस के कई औरतों से नाजायज संबंध थे. रश्मि ने इस का विरोध किया तो वह उस के साथ मारपीट करने लगा. 15 सालों तक वह तिलतिल मरती रही.

अभिषेक बहन की मौत का बदला लेना चाहता था. इसी वजह से वह बहन की हत्या के मामले की पैरवी ठीक से कर रहा था. विवेक के घर वालों ने जब उस की जमानत के लिए अदालत में याचिका दायर की तो अभिषेक की पैरवी की वजह से उस की जमानत याचिका खारिज हो गई. विवेक का मंझला भाई विनय कुमार लाट अभिषेक पर दबाव बना रहा था कि इस मामले से धारा 302 हटवा दे. अभिषेक इस के लिए तैयार नहीं था. अभिषेक और अर्जुन कुमार रश्मि की ससुराल वालों की धमकियों की परवाह किए बगैर मामले की पैरवी करते रहे. आखिरकार वही हुआ, जिस की उन्होंने परवाह नहीं थी. 18 जून, 2013 को भाड़े के शूटरों से विनय कुमार लाट ने अभिषेक रंजन अग्रवाल की हत्या करवा दी. मृतक अभिषेक के पिता अर्जुन कुमार अग्रवाल ने बेटे की हत्या की नामजद रिपोर्ट विवेक, उस के मंझले भाई विनय कुमार और 2 अज्ञात शूटरों के खिलाफ थाना कैंट में दर्ज कराई थी.

मुकदमा दर्ज होने के बाद थाना कैंट के इंस्पेक्टर टी.पी. श्रीवास्तव ने जांच के दौरान पाया कि यह हत्या पूर्व में हुए झगड़े की वजह से जेल में बंद एक बाहुबली सफेदपोश अपराधी को सुपारी दे कर कराई गई थी. विनय ने पुलिस के सामने अपना अपराध स्वीकार भी किया था. लेकिन हत्यारे कौन थे, कहां से आए थे? पुलिस इस का पता नहीं लगा सकी. जबकि इस मामले में नामजद अभियुक्त विनय और विवेक के बड़े भाई और प्रौपर्टी डीलर कमलेश कुमार लाट का कहना था कि रश्मि ने पारिवारिक कारणों से आजिज कर खुद ही जहर खा लिया था और श्रद्धा को भी खिलाया था. अस्पताल में उस ने सब के सामने यही कहा भी था. लेकिन अर्जुन कुमार और अभिषेक ने जबरदस्ती उस के निर्दोष भाई को जेल भिजवा दिया. उस की जमानत तक नहीं होने दी. अभिषेक की हत्या में भी उन का कोई हाथ नहीं है.

इस लड़ाई में एकमात्र गवाह 14 वर्षीया श्रद्धा लाट की जान खतरे में है. शूटरों के पकड़े जाने से अर्जुन कुमार का परिवार दहशत में है. उन की सुरक्षा के लिए पुलिस तैनात है. पुलिस ने विवेक कुमार और विनय कुमार पर 8 नवंबर, 2013 को गैंगस्टर एक्ट भी लगा दिया है. कथा लिखे जाने तक दोनों अभियुक्तों विवेक और विनय की जमानत नहीं हुई थी.

   —कथा परिजनों और पुलिस सूत्रों पर आधारित

Crime stories : सिपाही का बेटा बना कातिल

Crime stories : सिपाही का बेटा होने की वजह से सूरज का मन काफी बढ़ा हुआ था. बाप भी उसे नहीं रोकता था. उसी का परिणाम था कि उस ने पूरे गांव से दुश्मनी तो मोल ली ही, एक निर्दोष को मार भी डाला. ढलते सूरज से वातावरण की गरमी जरूर कम हो गई थी, लेकिन गांव बिलासपुर का तापमान अचानक तब बढ़ गया, जब सिपाही रामनाथ रावत के बेटे सूरज रावत और रामानंद की पत्नी लक्ष्मी के बीच घंटों से चल रही तूतूमैंमैं मारपीट तक पहुंच गई. यह कहासुनी शुरू तो सूरज के मौसेरे भाई हृदयनाथ रावत से हुई थी, लेकिन जैस ही बात बढ़ी सूरज भी छोटे भाई गुड्डू के साथ वहां पहुंच गया था.

लड़ाईझगड़ा शुरू होते ही तमाशा देखने वाले इकट्ठा हो ही जाते हैं, वैसा ही यहां भी हुआ था. लगभग पूरा गांव तमाशा देखने के लिए लक्ष्मी के घर के सामने इकट्ठा हो गया था. गांव वालों ने बीचबचाव कर के मामला जरूर शांत करा दिया, लेकिन सूरज मारपीट नहीं कर पाया था, इसलिए उस का गुस्सा शांत नहीं हुआ था. वह सब के साथ अपने घर गया. गुस्से में होने की वजह से उस ने आव देखा ताव खूंटी पर टंगी पिता की लाइसेंसी राइफल उतारी और छत पर जा कर लक्ष्मी को निशाना बना कर गोलियां चलाने लगासंयोग से उस का हर निशाना चूक गया और गोलियां लक्ष्मी को लगने के बजाय तमाशा देखने वालों को लगीं, जिन में 13 साल के अमरनाथ की मौत हो गई.

इस के अलावा परमशीला, प्रीति, सुधा, सीमा, उमेश, पवन कुमार और रोशन घायल हुए. उस की इस हरकत से गांव में भगदड़ मच गई. किसी ने इस घटना की सूचना फोन द्वारा थाना उरुवा पुलिस को दी तो सूचना मिलते ही थानाप्रभारी अरुण कुमार राय के हाथपांव फूल गए. थोड़ी ही देर में वह पुलिस बल के साथ गांव बिलासपुर जा पहुंचे. पुलिस कोई काररवाई कर पाती, नाराज गांव वालों ने थानाप्रभारी सहित सभी पुलिसकर्मियों को एक कमरे में बंद कर के बंधक बना लिया. इस के बाद उन्होंने पुलिस की जीप में आग लगा दी.

बंधक बने अरुण कुमार राय ने मोबाइल फोन द्वारा घटना और बंधक बनाए जाने की सूचना उच्च अधिकारियों को दी तो थोड़ी ही देर में पूरा गांव पुलिस छावनी में तब्दील हो गया. सूचना पा कर आईजी जकी अहमद, डीआईजी नवीन अरोड़ा, एसएसपी शलभ माथुर, एसपी (ग्रामीण) यस चेन्नपा, क्षेत्राधिकारी विजय शंकर 4 थानों के थानाप्रभारी तथा भारी मात्रा में पीएसी पहुंच गई थी. अधिकारियों ने आते ही सब से पहले बंधक बनाए थानाप्रभारी अरुण कुमार राय एवं उन के सहोगियों को मुक्त कराया. इस के बाद मृतक अमरनाथ के शव को अपने कब्जे में ले कर पोस्टमार्टम के लिए बाबा राघवदास मेडिकल कालेज भिजवाने के साथ घायलों को इलाज के लिए नेताजी सुभाषचंद्र बोस जिला अस्पताल भिजवा दिया.

घटनास्थल की औपचारिक काररवाई से फारिग हो कर पुलिस ने सूरज द्वारा चलाई गई गोली से मारे गए अमरनाथ के पिता बलिकरन यादव से एक तहरीर ले कर थाना उरुवा में अपराध संख्या 76/2013 पर भादंवि की धाराओं 302/504/506 7 क्रिमिनल एमेंडमेंट एक्ट के तहत सूरज रावत, उस के छोटे भाई गुड्डू, मौसेरे भाई हृदयनाथ और चंदन के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया. मुकदमा दर्ज होते ही पुलिस ने नामजद चारों अभियुक्तों को गिरफ्तार कर लिया

इस के तुरंत बाद पुलिस ने एक अन्य मुकदमा अपराध संख्या 77/2013 पर भादंवि की धाराओं 147, 148, 323, 504, 506, 307, 353, 332, 427, 435 7 क्रिमिनल एमेंडमेंट एक्ट तथा 2/3 के तहत ग्रामप्रधान असलम, आजम, पूर्व ब्लाकप्रमुख मुख्तार अहमद, विनोद, पप्पू, प्रवीण, मोतीलाल, उमेश, सागर तथा 200 अज्ञात लोगों के खिलाफ दर्ज कर के सभी की धरपकड़ शुरू कर दी. ग्रामप्रधान असलम को छोड़ कर बाकी सभी नामजद लोगों को पुलिस ने गिरफ्तार भी कर लिया. पुलिस ने गिरफ्तार अभियुक्तों को अगले दिन अदालत में पेश किया, जहां से सभी को 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.

इसी के साथ आइए अब यह जानते हैं कि ऐसा क्या हुआ था, जिस की वजह से एक नाबालिग मारा गया तो 7 लोग घायल हुए. यही नहीं, गांव के इतने लोग जेल भेजे गए. यह पूरी कहानी कुछ इस तरह की पृष्ठभूमि पर तैयार हुई है, जिस में पुलिस की लापरवाही साफ नजर आती है. जिला मुख्यालय गोरखपुर से दक्षिण में 60 किलोमीटर की दूरी पर है थाना उरुवा. इसी थाने का एक गांव है बिलासपुर. यादव बाहुल्य इस गांव में ज्यादातर लोग खेतीकिसानी करते हैं. कुछ लोग सरकारी नौकरियों में भी हैं. मेहनती होने की वजह से गांव के ज्यादातर लोग साधनसंपन्न और आर्थिक रूप से मजबूत हैं. 50 वर्षीय रामानंद यादव उर्फ नंदू भी अपने परिवार के साथ इसी गांव में रहता था. उस के परिवार में पत्नी लक्ष्मी के अलावा तीन बच्चे, जिन में 2 बेटे और 1 बेटी राखी थी. रामानंद मेहनती था, जिस की वजह से खेती से ही उस के दिन मजे से कट रहे थे.

रामानंद की एकलौती बेटी राखी कुछ ज्यादा ही समझदार थी. दोनों भाई पढ़ाई छोड़ कर पिता के काम में हाथ बंटाने लगे थे, लेकिन राखी पूरी लगन के साथ पढ़ रही थी. यही वजह थी कि मातापिता ही नहीं, भाई भी उसे पढ़ालिखा कर किसी लायक बनाना चाहते थे. घर में छोटी होने की वजह से वह सब की लाडली भी थी. बलिया के रहने वाले रामनाथ रावत भी इसी गांव में कर रहने लगे थे. वह उत्तर प्रदेश पुलिस में थे. उन की तैनाती थाना उरुवा में हुई थी, तभी उन्होंने गांव बिलासपुर में अपना मकान बनवा लिया था और उसी में परिवार के साथ रहने लगे थे. उन के परिवार में पत्नी के अलावा 2 बेटे सूरज और चंदन थे. उन्हीं के साथ उन की साली का बेटा हृदयनाथ भी रहता था. वह होमगार्ड था और थाना उरुवा में ही तैनात था.

रामनाथ का बड़ा बेटा सूरज कोचिंग चलाता था, जिस में गांव के बच्चों के साथ रामानंद की बेटी राखी भी पढ़ने जाती थी. बात तब की है, जब वह छठवीं में पढ़ती थी. राखी साथ पढ़ने वाली अन्य लड़कियों से खूबसूरत तो थी ही, हृष्टपुष्ट होने की वजह से अपनी उम्र से अधिक की भी लगती थी. चुलबुली होने की वजह से वह हर किसी का मन मोह लेती थी. यही वजह थी कि वह सूरज को भी अच्छी लगने लगी थी. जब भी वह उसे देखता, उस की आंखों में एक अजीब सी चमक जाती. उम्र में भले ही राखी छोटी थी, लेकिन सूरज की नीयत को भांप गई थी. जिन कातिल नजरों से सूरज उसे घूरता था, उस से वह समझ गई थी कि गुरु क्या चाहता है

इसलिए राखी सूरज से सतर्क और होशियार रहने लगी थी. क्लास खत्म होते ही वह अन्य सहपाठियों के साथ निकल जाती थी. पिछले साल मार्च की बात है. राखी घर से कोचिंग पढ़ने गई थी. बच्चों के साथ वह क्लास में भी थी. लेकिन शाम को वह घर नहीं पहुंची. घर वालों को चिंता हुई. उन्होंने उस की तलाश शुरू की. तलाश में सूरज से भी पूछा गया. उस ने बताया कि राखी तो क्लास खत्म होते ही चली गई थी. सूरज के जवाब से रामानंद परेशान हो उठा. 2 दिनों तक रामानंद और उस का परिवार राखी की तलाश में भटकता रहा. लेकिन उस का कहीं कुछ पता नहीं चला. तीसरे दिन सुबह विक्षिप्त हालत में राखी घर पहुंची तो उस की हालत देख कर कोहराम मच गया. राखी बुरी तरह डरी हुई थी.

उस की हालत देख कर मां लक्ष्मी का तो बुरा हाल था. उस के आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे. किसी तरह खुद पर काबू पा कर बेटी को नहलायाधुलाया और भोजन कराया. मां की ममता और अपनों के बीच आने के बाद राखी का डर थोड़ा कम हुआ तो घर वालों के पूछने पर 2 दिनों तक गायब रहने की उस ने जो वजह बताई, वह कलेजा चीर देने वाली थी. राखी ने बताया था कि वह कोचिंग से घर के निकली तो रास्ते में सूरज ने अपने दोस्तों, चंदन, अमित, नागेंद्र और बृजेश के साथ मिल कर उस का अपहरण कर लिया था और उसे ले जा कर एक कमरे में बंद कर दिया था. उस के बाद 2 दिनों तक लगातार उस के साथ जबरदस्ती करते रहे. उस की हालत खराब हो गई तो उसे गांव के बाहर छोड़ कर भाग गए.

बेटी की करुण कहानी सुन कर मांबाप का दिल खून के आंसू रो पड़ा. कोई छोटीमोटी बात नहीं थी. सीधासीधा सामूहिक दुष्कर्म का मामला था. रामानंद ने गांव वालों को जमा किया और बेटी को साथ ले कर थाना उरुवा जा पहुंचा. बेटी के साथ घटी घटना की नामजद तहरीर थानाप्रभारी को सौंपी. थानाप्रभारी ने काररवाई का भरोसा दे कर सभी को घर भेज दिया. रामानंद को तहरीर दिए धीरेधीरे 3 महीने बीत गए, लेकिन पुलिस ने उस की तहरीर पर कोई काररवाई नहीं की. बाद में पता चला कि उसी थाने में आरोपी सूरज का बाप रामनाथ रावत तैनात था, इसीलिए रामानंद की तहरीर दबा दी गई थी.

थाने से रामानंद को न्याय नहीं मिला तो उस ने अदालत का दरवाजा खटखटाया. आखिर 8 जून, 2012 को अदालत के आदेश पर पुलिस ने पांचों आरोपियों सूरज, चंदन, अमित, नागेंद्र और बृजेश के खिलाफ दुष्कर्म का मुकदमा दर्ज किया और गिरफ्तार कर के जेल भेज दिया. इसी के साथ होहल्ला होने पर रामनाथ को थाना उरुवा से हटा कर थाना कैंपियरगंज में तैनात कर दिया गया. बेटे के जेल जाने से रामनाथ रावत तिलमिला उठा. रामानंद और उस का साथ देने वाले ग्रामप्रधान असलम, दिनेश, विजीत और लक्ष्मण को उस ने सबक सिखाने का निश्चय कर लिया. ग्रामप्रधान असलम की पहल पर सूरज और उस के साथियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज हुआ था, इसलिए रामनाथ ने उसे अपना सब से बड़ा दुश्मन माना और सब से पहले उसे ही सबक सिखाने के लिए मौके की तलाश में जुट गया.

आखिर उसे मौका मिल ही गया. उसे कहीं से पता चला कि गांव की एक जमीन को ले कर रामकृपाल की पत्नी बिंदू देवी और ग्रामप्रधान असलम के बीच झगड़ा चल रहा हैपुलिस सूत्रों की मानें तो गांव की उस जमीन पर बिंदू जबरन कब्जा करना चाहती थी. इस बात की जानकारी ग्रामप्रधान असलम को हुई तो उस ने बिंदू के मंसूबों पर पानी फेरते हुए जमीन पर सरकारी कब्जा करवा दिया. ग्रामप्रधान के इस रवैये से बिंदू ने उसे अपना दुश्मन मान लिया. कहते हैं, दुश्मन का दुश्मन दोस्त होता है. यही सोच कर रामनाथ बिंदू तक पहुंच गया. वह कानून का मंझा हुआ खिलाड़ी था. उस ने बिंदू को ग्रामप्रधान असलम के खिलाफ इतना उकसाया कि अपने फायदे के लिए बिंदू नैतिकअनैतिक किसी भी हद तक जाने को तैयार हो गई.

रामनाथ के कहने पर 21 सितंबर, 2012 को बिंदू अदालत के माध्यम से उरुवा थाना में दुष्कर्म की रिपोर्ट दर्ज करवा दी. न्यायालय के आदेश पर यह रिपोर्ट रामानंद यादव उर्फ नंदू, ग्रामप्रधान असलम, रामानंद के बेटों श्याम, सुंदर, दिनेश, विजीत और लक्ष्मण के खिलाफ दर्ज हुई थी. मुकदमा दर्ज होते ही पुलिस ने नामजद आरोपियों को गिरफ्तार कर के जेल भेज दिया. लेकिन ग्रामप्रधान असलम फरार होने में कामयाब रहा. बाद में उस ने अग्रिम जमानत करा ली, जिस से वह जेल जाने से बच गया. इस तरह एक बार रामनाथ की फिर विजय हो गई. 6 महीने बाद सूरज और उस के चारों दोस्तों की जमानत हो गई. जेल से बाहर आने के बाद शरम करने के बजाय सूरज की अकड़ और बढ़ गई. दूसरी ओर रामानंद यादव उर्फ नंदू को छोड़ कर बाकी अन्य 5 लोगों को भी सेशन कोर्ट से जमानत मिल गई. इस तरह वे भी जेल से बाहर गए.

लक्ष्मी पति की जमानत के लिए एड़ीचोटी का जोर लगाए थी. 5 जुलाई, 2013 को रामानंद की जमानत पर सुनवाई थी, जिस के लिए कुछ जरूरी कागजात उरुवा थाने को अदालत भेजने थे. रामनाथ का रिश्तेदार हृदयनाथ वहीं तैनात था. कहा जाता है कि उस ने वे कागजात इधरउधर करवा दिए, जिस से उस दिन कागजात अदालत देर से पहुंचे और रामानंद की जमानत नहीं हो सकी. लक्ष्मी के घर का रास्ता रामनाथ रावत के घर के सामने से ही था. पति की जमानत होने से दुखी लक्ष्मी अपने घर जा रही थी, तभी सूरज के मौसेरे भाई हृदयनाथ ने दरवाजे से उस पर गंदीगंदी फब्तियां कसीं तो दुखी और परेशान 

लक्ष्मी को उस पर गुस्सा गया. उस ने उसे उसी तरह जवाब दे दिया. लक्ष्मी की बातें हृदयनाथ को इतनी बुरी लगीं कि वह उस से लड़ने लगा. दोनों के बीच तूतू मैंमैं होने लगी तो घर के अंदर बैठा सूरज भी बाहर गया. उस के पीछेपीछे उस का छोटा भाई गुड्डू भी था. भाइयों को देख कर हृदयनाथ को ताव गया और उस ने आव देखा ताव, लक्ष्मी के गाल पर दो थप्पड़ लगा दिए.

लक्ष्मी अकेली थी, इसलिए वह उस समय चुपचाप घर चली गई. बड़ा बेटा श्याम घर पर ही था. उस ने बेटे से पूरी बात बताई तो उस का खून खौल उठा. वह रोजरोज की इस किचकिच से ऊब चुका था. अब वह इस किस्से को हमेशाहमेशा के लिए खत्म करना चाहता था. मजे की बात यह थी कि रामनाथ के परिवार से गांव के किसी भी आदमी से नहीं पटती थी. गांव का हर आदमी उस के व्यवहार से परेशान था. उस के बेटे गांव वालों से जबतब बिना मतलब पंगा लेते रहते थे.

यही वजह थी कि पूरा गांव रामनाथ और उस के बेटों के खिलाफ था. लक्ष्मी के साथ मारपीट की जानकारी गांव वालों को हुई तो वे श्याम को ले कर थाने जा पहुंचे. थानाप्रभारी छोटेलाल छुट्टी पर थे. उन की जगह सबइंस्पेक्टर अरुण कुमार राय ने थाने की जिम्मेदारी संभाल रखी थी. संयोग से वह भी उस समय थाने में नहीं थे. श्याम ने मां के साथ हुई मारपीट की जानकारी थाना पुलिस को दी तो उन्होंने काररवाई करने के बजाय उसे थाने से भगा दिया. श्याम, मां और गांव वालों के साथ थाने से लौट आया. किसी तरह इस बात की जानकारी अरुण कुमार राय को हुई तो उन्होने सूरज, गुड्डू और हृदयनाथ को थाने बुलाया. पूछताछ कर के उन्होंने कोई काररवाई किए बगैर उन्हें वापस भेज दिया.

सूरज, गुड्डू और हृदयनाथ को थाने से छोड़ दिए जाने की जानकारी गांव वालों को हुई तो उन्हें पुलिस पर बहुत गुस्सा आया. वे बीच गांव में इकट्ठा हो कर आगे की रणनीति पर विचार करने लगे. सूरज के दोस्त चंदन को लक्ष्मी के साथ मारपीट और थाने जाने की बात की जानकारी हुई तो मित्र की मदद के लिए वह भी उस के घर जा पहुंचा. सूरज का वह खास दोस्त था. उसी समय सीनाजोरी दिखाते हुए हृदयनाथ वहां जा पहुंचा, जहां गांव वाले इकट्ठा थे. उस के पीछेपीछे सूरज, गुड्डू और चंदन भी वहां जा पहुंचे. उन्हें पता था कि माहौल अभी गरम है, फिर भी वे वहां चले गए. हृदयनाथ के वहां पहुंचते ही गांववालों ने उसे घेर लिया.

स्थिति मारपीट तक पहुंच गई. हृदयनाथ के साथी पिट सकते थे, इसलिए सभी वापस गए. लेकिन सभी गुस्से में थे. इसी का नतीजा था कि कमरे में खूंटी पर टंगी पिता की लाइसेंसी राइफल सूरज ने उतारी और छत पर जा कर गोलियां चलाने लगा. घटना के समय सूरज का बाप रामनाथ रावत थाना कैंपियरगंज में अपनी ड्यूटी पर था. उस का इस कांड से कोई लेनादेना नहीं था. लेकिन पुत्रमोह में उस ने उसे जो अनुचित बढ़ावा दिया, यह उसी का परिणाम था, जिस में एक निर्दोष मारा गया तो 7 लोग घायल हुए. कथा लिखे जाने तक फरार ग्रामप्रधान असलम की गिरफ्तारी नहीं हुई थी. पुलिस ने अदालत से 82/83 की काररवाई कर के उस के घर की कुर्की कर ली थी. इस के बावजूद वह हाजिर नहीं हुआ था. गोली कांड में भी गिरफ्तार अभियुक्तों में से किसी की जमानत नहीं हुई थी. पुलिस ने अपनी जांच पूरी कर के अदालत में आरोप पत्र दाखिल कर दिया है.

   —कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. कथा में राखी बदला हुआ नाम है.

   

Punjab Crime : टेलीफोन के तार से बेटी के प्रेमी का घोंटा गला

Punjab Crime : ठंडे बस्ते में पड़ी गुरदीप सिंह की हत्या की फाइल धूल फांक रही थी. मेरे आदेश पर गुरदीप की हत्या के मामले की फिर से जांच की गई तो हत्या की चौंकाने वाली ऐसी कहानी सामने आई कि…  

पूरे मामले को पढ़ने के बाद एक बात मेरी समझ में नहीं रही थी कि जब गुरदीप सिंह 18 तारीख को अपने काम पर लुधियाना चला गया था तो फिर 2 दिन बाद उस की लाश अपने ही घर के सामने कैसे मिली. इस का मतलब यह है कि या तो गुरदीप लुधियाना गया ही नहीं या फिर किसी के बुलावे पर वह 2 दिन बाद ही गांव वापस गया था. पर वह शख्स कौन था, जिस के साथ वह शहर से 2 दिन बाद ही गांव गया था. इन्हीं सब बातों का मुझे पता लगाना था.

साल 2018 के जुलाई महीने में मेरी नियुक्ति पंजाब के खन्ना जिले में बतौर एसएसपी हुई थी. इस के पहले मैं होशियारपुर, दसूहा में रहा था. 2011 बैच से आईपीएस करने के बाद मेरी पहली नियुक्ति 2014 में लुधियाना में एसीपी के पद पर हुई थी. जब मैं ने वहां अपना काम शुरू किया, तब शहर की कानूनव्यवस्था चरमराई हुई थी. यातायात का तो बहुत बुरा हाल था. सब से पहले मैं ने शहरवासियों से मिलमिल कर अपना परिचय बढ़ाया और जगहजगह सभाएं कर पुलिस और जनता के बीच की दूरी खत्म करने की कोशिश की. उन्हें कानून के दायरे में रह कर एक अच्छा नागरिक बनने की सलाह दी.

यातायात को सुचारू रूप से चलाने के लिए मैं ने अपने स्टाफ को कड़े आदेश दे रखे थे कि यातायात नियमों का उल्लंघन करने वाला कोई नेता हो या कोई अधिकारी, उसे बख्शा नहीं जाए. इसी कड़ी में अपनी नौकरी के मात्र 3 महीने बाद ही दिसंबर माह में पंजाब ऐंड हरियाणा हाईकोर्ट के एक जस्टिस की गाड़ी का नो पार्किंग का चालान काटने के बदले में मुझे ट्रांसफर झेलना पड़ा था.

लुधियाना से जालंधर, दसूहा, होशियारपुर आदि होते हुए जब मैं ने खन्ना पहुंच कर एसएसपी का कार्यभार संभाला तो अपनी आदत के अनुसार मैं ने अपने अधीनस्थ अधिकारियों को यह सख्त आदेश दिया कि किसी भी मामले में लापरवाही नहीं बरती जाएगी. कार्यभार संभालने के बाद सब से पहले मैं ने उन फाइलों को अपना निशाना बनाया जो पिछले 3-4 सालों से बंद पड़ी हुई थीं और उन पर अब तक कोई काररवाई नहीं हुई थी.

इन ढेरों फाइलों में एक फाइल सरवन कौर की थी. शिकायतकर्ता 50 वर्षीय सरवन कौर के 23 वर्षीय शादीशुदा बेटे गुरदीप की किसी ने हत्या कर के उस की लाश उसी के ही घर के सामने डंगरों वाले बाड़े में फेंक दी थी. मैं ने सरवन कौर के बयान पढ़े. उस का बयान पढ़ने के बाद पता चला कि वह समराला थाने के गांव लोपो के रहने वाले लक्ष्मण सिंह की पत्नी थी. वह अपने पति के साथ खेतों पर मेहनतमजदूरी करती थी. उस के 2 बेटे और 2 बेटियां थीं. सभी शादीशुदा थे और अपनेअपने घरों में खुश थे. बेटों में पवित्र सिंह बड़ा था और गुरदीप उर्फ निका छोटा

गुरदीप ने किसी लड़की से लवमैरिज की थी और वह उसी के साथ लुधियाना में रहता था. गुरदीप जेसीबी चलाता था. जब भी मौका मिलता, अपनी मां से मिलने वह गांव चला आता था16 नवंबर, 2015 को भी गुरदीप अपनी मां से मिलने के लिए घर आया था और 2 दिन रहने के बाद 18 तारीख को अपने काम पर लुधियाना लौट गया. 22 तारीख की सुबह 6 बजे गुरदीप का पिता लक्ष्मण सिंह अपने घर के सामने डंगरों के बाड़े में पशुओं को चारा डालने गया तो वहां पर बेटे गुरदीप की लाश देख कर गश खा कर गिर गया

देखने से लग रहा था कि किसी ने गुरदीप की गला घोंट कर हत्या कर दी थी. उस के गले में केसरी रंग का पटका बंधा हुआ था. बेटे की लाश देख कर लक्ष्मण ने जोरजोर से रोना शुरू कर दिया. रोने की आवाज सुन कर उस के परिवार के साथसाथ गांव वाले भी वहां जमा हो गए. गांव के किसी आदमी ने इस घटना की सूचना थाना समराला को दे दी. थाना समराला के तत्कालीन प्रभारी मंजीत सिंह एसआई नछत्तर सिंह के साथ मौके पर पहुंचे थे. घटनास्थल का मौकामुआयना करने के बाद उन्होंने मृतक के परिवार वालों और ग्रामीणों के बयान दर्ज करने के बाद गुरदीप की हत्या का मुकदमा भादंवि की धारा 302, 34 के तहत दर्ज कर के लाश पोस्टमार्टम के लिए सरकारी अस्पताल भेज दी थी.

आगे की काररवाई के नाम पर तफ्तीश जारी है, लिख कर फाइल बंद कर दी गई थी. थानाप्रभारी मंजीत सिंह का तबादला हो जाने के बाद शायद नए थानाप्रभारी ने उक्त फाइल को खोल कर देखने की जहमत भी नहीं उठाई थी. उस के बाद कई थानाप्रभारी आए और गए, गुरदीप की हत्या की फाइल नीचे दब कर रह गई थी. इस घटना को लगभग ढाई साल गुजर गए थे. फाइल का पूरी तरह से अध्ययन करने के बाद मैं ने तत्कालीन डीएसपी समराला हरसिमरत सिंह शेतरा और थानाप्रभारी भूपिंदर सिंह को अपने औफिस बुलाया. मैं ने उक्त फाइल उन्हें सौंपते हुए कहा कि मुझे जल्द से जल्द गुरदीप के हत्यारों का पता चाहिए. साथ ही केस की प्रोग्रैस रिपोर्ट रोज शाम को मेरी टेबल पर होनी चाहिए.

इस के बाद थानाप्रभारी भूपिंदर सिंह ने लोपा गांव में अपना नेटवर्क फैला दिया. गांव में ज्यादातर मेहनतमजदूरी करने वाले लोग थे. किसी को फुरसत नहीं थी. सभी अपने कामों में व्यस्त थे. फिर इतनी पुरानी बात लोग भूल से गए थे. उन्हें सिर्फ इतना याद था कि सरवन के बेटे गुरदीप की हत्या हुई थी. मृतक की मां बेटे के हत्यारों को पकड़ने के लिए समयसमय पर अधिकारियों के यहां चक्कर काटती रहती थी. सरवन ने पुलिस को 4 संदिग्ध लोगों के नाम पुलिस को देते हुए उन पर शक जताया था, पर उस की बातों की ओर किसी ने ध्यान नहीं दिया था.

मैं ने उन चारों लोगों के नाम अपने खास मुखबिर को सौंपते हुए कहा था कि इन चारों की पूरी कुंडली का पता लगाओ और साथ में इस बात का भी पता लगाओ कि उस दिन गुरदीप अपने गांव किस के बुलावे पर लुधियाना से आया थाअगले 2 दिन में मुझे इस पूरे मामले की तह तक की जानकारी मिल गई. और तो और, इस हत्या की योजना का एक चश्मदीद गवाह भी मेरे हाथ लग चुका था. सारी बातें मैं ने थानाप्रभारी भूपिंदर सिंह को बताईं. मैं ने उन चारों लोगों के नाम देते हुए कहा, ‘‘इन्हें बुलवा कर पूछताछ करो.’’

भूपिंदर सिंह ने उसी दिन गांव लोपो के मोहन सिंह, गुरमुख सिंह, दविंदर सिंह और बब्बू सिंह को थाने बुलवा लिया. इन चारों में मोहन सिंह के अलावा उस का एक बेटा, एक भाई और एक भतीजा था. मैं भी थाने पहुंच गया. ढाई साल बाद जब गुरदीप की हत्या की जांच शुरू हुई तो सब चौंक गए. काफी देर याद करने का नाटक करने के बाद मोहन सिंह ने बताया था कि लक्ष्मण के बेटे की मौत हुई तो थी पर उस की मौत से उस का या उस के परिवार का कोई वास्ता नहीं था. लेकिन मेरे पास इस बात का पुख्ता सबूत था कि गुरदीप की हत्या के पीछे सिर्फ और सिर्फ मोहन सिंह का ही वास्ता है.

मैं ने काफी कोशिश की थी कि वह प्यार से अपने आप जुर्म कबूल कर के सब कुछ बता दे पर वह अपनी बातों से मुझे गुमराह करने की कोशिश करता. अंत में मैं ने चंद सिंह नाम के उस आदमी को ला कर मोहन सिंह के सामने खड़ा कर दिया, जिस के सामने उस ने अपने बेटे और भाई के साथ मिल कर गुरदीप की हत्या की योजना बनाई थी. चंद सिंह भी लोपो गांव का एक जाट जमींदार था. चंद सिंह को अपने सामने देख कर मोहन की घिग्घी बंध गई. वह बगलें झांकने लगा. अंत में उस ने और अन्य तीनों ने अपना अपराध स्वीकार करते हुए बताया था कि उन्होंने ही योजना बना कर गुरदीप की हत्या की थी.

चारों आरोपियों को उसी दिन 5 अगस्त, 2018 को अदालत में पेश कर पुलिस रिमांड पर लिया गया. विस्तार से की गई पूछताछ के बाद गुरदीप की हत्या की जो कहानी सामने आई, उस में दोष गुरदीप का अधिक था. गुरदीप के पड़ोस में मोहन सिंह का घर था. मोहन सिंह मजदूर किसान था. मोहन की एक बेटी थी हरमनदीप कौर जो पास के रोपलो गांव में स्थित स्कूल में पढ़ती थी. गुरदीप गांव का बांका नौजवान था. पड़ोसी होने के नाते बचपन से ही हरमन और गुरदीप साथसाथ खेले थे और दोनों परिवारों का एक दूजे के घर काफी आनाजाना था.

हरमन जब जवान हुई तो उस का झुकाव गुरदीप की ओर हो गया था, जबकि गुरदीप ने लुधियाना काम करना शुरू कर दिया था. लेकिन वह जब भी गांव आता तो हरमन को अपने आसपास मंडराते पाता था. फिर मौका देख कर दोनों एकदूसरे से मिलने लगे. हरमन के लिए गुरदीप से मिलने में कोई परेशानी नहीं थी क्योंकि दोनों के परिवार में घनिष्ठ संबंध थे. वह स्कूल से छुट्टी मार कर गुरदीप के साथ सैरसपाटे पर चली जाया करती थी. धीरेधीरे उन के याराने के चर्चे गांव में भी होने लगे थे. उड़तेउड़ते यह बात मोहन सिंह को भी पता चल गई थी. उस ने जब अपनी बेटी की निगरानी की तो असलियत सामने गई थी.

फिर एक दिन मोहन सिंह को स्कूल से खबर मिली कि हरमनदीप कौर कई दिनों से स्कूल से गैरहाजिर है. यह सुन कर मोहन समझ गया कि वह गुरदीप के साथ ही घूमफिर रही होगी. उस दिन मोहन ने बेटी हरमन को खूब डांटाफटकारा. साथ ही उस ने गुरदीप के घर जा कर उस की मां और बाप को खूब खरीखोटी सुनाई. इतना ही नहीं उन्हें धमकी भी दी कि अगर गुरदीप ने अपनी आदत नहीं बदली तो गंभीर परिणाम भुगतना पड़ेगा.

गलती गुरदीप की थी, इसलिए बात को खत्म करने के लिए सरवन कौर और उस के पति लक्ष्मण ने मोहन सिंह के पैर पकड़ कर माफी मांग ली. कुछ दिन के लिए मामला ठंडा पड़ गया था. एक दिन मोहन को गांव वालों से पता चला कि गुरदीप के पास हरमन की अश्लील फोटो हैं. वह गांव में लोगों को बताता फिर रहा है कि अगर मोहन ने उसे हरमन से मिलने से रोका तो ये फोटो इंटरनेट पर डाल कर उन्हें बदनाम कर देगा.  यह बात सुन कर मोहन के पैरों तले से जमीन खिसक गई. मोहन सिंह ने उसी दिन गुरदीप के घर जा कर उस के मांबाप से बात की. उन्होंने मोहन को आश्वासन दिया कि यदि ऐसी कोई फोटो गुरदीप के पास है तो वह उस से फोटो ले कर उन्हें सौंप देंगे. गुरदीप ने वे फोटो किसी को नहीं दिए. इस बात को ले कर मोहन और लक्ष्मण के परिवार में कई बार झगड़ा भी हुआ पर गुरदीप ने वह फोटो नहीं दीं.

गुरदीप को किसी भी तरह मानता देख कर मोहन सिंह को अपनी इज्जत बचाने का एक ही रास्ता दिखाई दिया. वह रास्ता था गुरदीप की हत्या कर देने का. रहेगा बांस, बजेगी बांसुरी. अपने भाई और बेटे के साथ मिल कर मोहन ने गुरदीप की हत्या की योजना बनाई. इस बारे में मोहन सिंह ने चंद सिंह से भी मशविरा किया. अपनी योजना के अनुसार 21 नवंबर, 2015 की शाम को मोहन ने हरमन से गुरदीप का फोन नंबर ले कर उसे फोन कर गांव के बाहर मिलने के लिए बुलाया था. मोहन ने गुरदीप को कहा था कि अगर तुम फोटो वापस नहीं लौटाना चाहते तो हरमन से शादी कर लो. अगर हरमन से शादी करनी है तो आज रात 9 बजे तक गांव के अड्डे पर मिलो. यह बात सुन कर गुरदीप झट से तैयार हो गया. वह ठीक 9 बजे अड्डे पर पहुंच गया.

नवंबर महीने में हलकीहलकी ठंड पड़ रही थी. वैसे भी गांवों में दिन छिपने के बाद लोग अपनेअपने घरों में दुबक जाते हैं. जिस समय गुरदीप अड्डे पर पहुंचा तो उस समय चारों ओर सन्नाटा पसरा पड़ा था. बात करने के बहाने वे चारों उसे सुनसान खेत में ले गए. मोहन सिंह ने एक बार फिर गुरदीप को अपनी इज्जत का वास्ता देते हुए फोटो लौटाने के लिए कहा. गुरदीप ने शराब पी रखी थी. फोटो लौटाने की बात सुन कर गुरदीप भड़क गया. इतना ही नहीं, वह धमकी देने लगा तो मोहन सिंह को गुस्सा गया. चारों ने पकड़ कर उसे जमीन पर पटक दिया और अपने साथ लाए टेलीफोन के तार से उस का गला घोंट दिया

इस के बाद उसी के सिर पर बंधे पटके को उतार कर उस के गले में डाला और कस दिया. गुरदीप की हत्या करने के बाद चारों ने उस की लाश खेत से उठा कर उस के घर के सामने डाल दी. इस मुकदमे की जांच पूरी गहराई, तकनीकी ढंग और खुफिया सूत्रों के साथ की गई थी. इसी कारण इस ब्लाइंड मर्डर की गुत्थी को ढाई साल बाद सुलझाया जा सका था. रिमांड के बाद 6 अगस्त, 2018 को गुरदीप की हत्या के आरोप में मोहन सिंह, गुरमुख सिंह, दविंदर सिंह और बब्बू को अदालत में पेश कर जेल भेज दिया गया.

स्टोरी में दी गई फोटो काल्पनिक है.

  — प्रस्तुति: हरमिंदर कपूर

 

Murder story : बहन के प्रेमी को भाई ने उतारा मौत के घाट

Murder story : जोबन और पम्मी एक ही गांव के थे. दोनों यह बात अच्छी तरह से जानते थे कि एक ही गांव के लड़केलड़की की शादी नहीं हो सकती. इसके बावजूद भी वह एकदूसरे से प्यार कर बैठे. फिर उन के प्यार का भी वही अंजाम हुआ, जैसा कि ऐसे मामलों में होता है…

जुलाई का महीना था. अन्य महीनों की अपेक्षा उस दिन गरमी कुछ अधिक थी. जतिंदर उर्फ जोबन ने चाटी से लस्सी निकाल उस में बर्फ मिलाया. फिर एक गिलास भर कर अपने पिता तरसेम सिंह को देते हुए कहा, ‘‘ले बापू, लस्सी पी ले. आज बड़ी गरमी है.’’

20 वर्षीय जोबन अपने 60 वर्षीय पिता के साथ घर के आंगन में बैठा गपशप कर रहा था. लस्सी का गिलास अपने हाथ में लेते हुए तरसेम सिंह बोले, ‘‘बेटा, गरमी हो या सर्दी, हम जट्ट किसानों को तो खेतों में ही रहना पड़ता है. हम एसी में तो नहीं बैठ सकते न.’’

जोबन ने पिता से मजाक करते हुए कहा, ‘‘बापू क्यों न हम अपने खेतों में एसी लगवा लें.’’

‘‘क्या ये बिना सिरपैर की बातें कर रहा है.’’ तरसेम बेटे की बात पर हंसते हुए बोले, ‘‘कहीं खेतों में भी एसी लगते हैं.’’

यूं ही फिजूल की इधरउधर की बातें कर के बापबेटा अपना मन बहला रहे थे कि जोबन के मोबाइल फोन की घंटी बजी. अचानक फोन की घंटी ने उन की बातों पर विराम लगा दिया. जोबन पिता के पास से उठ कर एक तरफ चला गया और फोन पर किसी से बातें करने लगा. तरसेम सिंह अपनी जगह ही बैठे रहे. जोबन फोन पर बातें करते हुए जब घर से बाहर जाने लगा तो तरसेम सिंह ने उसे टोका, ‘‘ओए पुत्तर, खाने के वक्त कहां जा रहा है?’’

‘‘अभी आया पापाजी,’’ जोबन ने फोन सुनते हुए ही पिता को आवाज दे कर कहा और बातें करते हुए घर से बाहर निकल गया. यह बात 17 जुलाई, 2018 रात 9 बजे की है. जोबन के चले जाने के बाद तरसेम सिंह पोतेपोतियों से बातें करने लगे. तरसेम सिंह पंजाब के जिला अमृतसर देहात के कस्बा ब्यास के पास वाले गांव शेरों निगाह के रहने वाले थे. गांव में उन का बहुत बड़ा कुनबा था. उन के पिता मोहन सिंह गांव के नामी जमींदार थे. उन की मृत्यु के बाद तरसेम सिंह ने भी अपने पुरखों की जागीर को संभाल कर रखा था. तरसेम सिंह ने 2 शादियां की थीं. दोनों ही पत्नियों की मृत्यु हो चुकी थी.

पहली पत्नी से उन की 2 बेटियां और 2 बेटे थे. पहली पत्नी की मृत्यु के बाद बच्चों की परवरिश के लिए उन्होंने दूसरी शादी की थी. दूसरी पत्नी से उन्हें 2 बेटियां और एक बेटा जतिंदर उर्फ जोबन था. पूरे परिवार में जोबन ही सब से छोटा था और इसी वजह से सब का प्यारा था. तरसेम सिंह के सभी बेटे शादीशुदा थे और गांव में पासपास बने घरों में रहते थे. जोबन को घर से निकले काफी देर हो चुकी थी. जबकि अपने पिता से वह यह कह कर गया था कि अभी लौट आएगा. तरसेम सिंह के पोतेपोतियां भी सोने चले गए थे. उन्होंने समय देखा तो रात के 11 बज चुके थे. उन का चिंतित होना स्वाभाविक ही था. उन्होंने जोबन को फोन मिलाया तो उस का फोन बंद मिला. बारबार फोन मिलाने पर भी जब हर बार फोन बंद मिला तो वह अकेले ही गांव में उस की तलाश के लिए निकल पड़े.

उन्होंने पूरा गांव छान मारा पर जोबन का कहीं कोई पता नहीं चला. अंत में उन्होंने घर लौट कर अपने दूसरे बेटों को जगा कर सारी बात बताई. बेटे की तलाश के लिए उन्होंने अपने भाई सुखविंदर सिंह और शादीशुदा दोनों बेटियों को भी फोन कर के अपने यहां बुला लिया था. सभी लोग एक बार फिर से जोबन को ढूंढने के लिए निकल पड़े. तरसेम के बेटों के साथ गांव के कुछ और लोग भी थे. पूरा कुनबा सारी रात ढूंढता रहा पर जोबन का पता नहीं चला. उसे हर उस संभावित जगह पर तलाशा गया था, जहां उस के मिलने की उम्मीद थी.

अगली सुबह जोबन के लापता होने की खबर थाना ब्यास में दे दी गई. उस की गुमशुदगी दर्ज करने के बाद पुलिस ने भी उस की तलाश शुरू कर दी. अपने घर फोन पर किसी से बात करतेकरते जोबन अचानक कहां गायब हो गया, यह बात किसी की समझ में नहीं आ रही थी. जोबन को लापता हुए 24 घंटे से भी अधिक का समय बीत चुका था. उस का फोन अब भी बंद था. शाम के समय गांव जोधा निवासी जोबन के एक दोस्त तरसपाल सिंह ने तरसेम सिंह को फोन पर बताया कि उस ने पहली जुलाई की रात जोबन को सुखबीर सिंह के साथ गांव से बाहर जाते देखा था.

उस वक्त सुखबीर के साथ 2 लड़के और भी थे. वह उन्हें पहचान नहीं पाया, क्योंकि उन दोनों ने अपने चेहरे कपड़े से ढक रखे थे. इस से पहले रात करीब 8 बजे सुखबीर उस के घर आया था और बहुत घबराया हुआ था. बता रहा था कि उस का स्कूल के ग्राउंड में किसी से झगड़ा हो गया था. विस्तार से बात समझने के लिए तरसेम सिंह ने तरसपाल को अपने पास बुलवा लिया और उस से पूरी बात पूछी. उस के बाद तरसेम सिंह को पूरा विश्वास हो गया कि उन के बेटे के लापता होने में सुखबीर का ही हाथ हो सकता है. वह जानते थे कि जोबन का सुखबीर की बहन के साथ चक्कर चल रहा था. उन के दिमाग में यह बात भी आई कि कहीं इस रंजिश की वजह से सुखबीर ने जोबन को सबक सिखाने के लिए गायब तो नहीं करवा दिया.

बहरहाल, तरसेम ने इन सब बातों से अपने रिश्तेदारों को अवगत करवाया और तरसपाल को अपने साथ ले कर थाने पहुंच गया. थानाप्रभारी किरणदीप सिंह को उन्होंने जोबन के लापता होने से ले कर अब तक की पूरी बात विस्तार से बता दी. थानाप्रभारी के पूछने पर तरसपाल ने बताया कि जोबन को फोन कर के सुखबीर सिंह उर्फ हीरा ने ही बुलाया था. सुखबीर के साथ 2 और युवक भी थे, जिन्होंने मुंह पर कपड़ा बांध रखा था. वे तीनों जोबन को गांव शेरो बागा के स्कूल के ग्राउंड में ले गए थे, जहां पर झगड़े के दौरान सुखबीर ने जोबन के सिर पर ईंट से वार किया. इस से जोबन की मौके पर ही मौत हो गई थी. इस के बाद सुखबीर ने अपने साथियों के साथ मिल कर जोबन की लाश ब्यास नदी में फेंक दी.

तरसपाल का बयान दर्ज करने के बाद थानाप्रभारी किरणदीप सिंह ने 3 जुलाई, 2018 को भादंवि की धारा 302 के तहत सुखबीर सिंह और 2 अन्य लोगों के खिलाफ जोबन की हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया. इस के बाद पुलिस ने सुखबीर के घर दबिश दे कर उसे गिरफ्तार कर लिया. सुखबीर से प्रारंभिक पूछताछ के बाद पुलिस ने उस की निशानदेही पर जोबन की हत्या में शामिल दूसरे युवक लवप्रीत सिंह को भी गांव के बाहर से गिरफ्तार कर लिया. 4 जुलाई, 2018 को पुलिस ने सुखबीर और लवप्रीत को अदालत में पेश कर 2 दिन के पुलिस रिमांड पर ले लिया. रिमांड के दौरान हुई पूछताछ के दौरान सुखबीर सिंह ने जोबन की हत्या का जुर्म कबूल कर लिया था. विस्तार से की गई पूछताछ के बाद इस हत्या की जो कहानी सामने आई, वह कुछ इस प्रकार से थी. कह सकते हैं कि यह मामला औनर किलिंग का था.

सुखबीर सिंह उर्फ हीरा अमृतसर के गांव अर्क के एक मध्यवर्गीय परिवार से था. उस के पिता बलबीर सिंह इतना कमा लेते थे जिस से घर खर्च और अन्य जरूरतें आराम से पूरी हो जाती थीं. सुखबीर 2 भाईबहन थे. किसी कारणवश सुखबीर ने अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी थी. अब सुखबीर और उस के मातापिता का एक ही सपना था कि वे किसी तरह अपनी बेटी पम्मी को उच्चशिक्षा दिलाएं. इस के लिए सुखबीर भी जीतोड़ मेहनत कर रहा था. एक कहावत है कि जब इंसान के जीवन में 16वां साल तूफान बन कर आता है तो कोई विरला ही अपने आप को इस तूफान से बचा पाता है, ज्यादातर लोग तूफान की चपेट में आ जाते हैं. जोबन और पम्मी के साथ भी ऐसा ही कुछ हुआ था. जोबन करीब 20 साल का  था और पम्मी 16 पार कर चुकी थी. दोनों एक ही गांव के और एक ही जाति के थे.

आग और घी जब आसपास हों तो आंच पा कर घी पिघल ही जाता है. दुनिया और समाज के अंजाम की परवाह किए बिना जोबन और पम्मी प्रेम अग्नि के कुंड में कूद पड़े थे. लगभग एक साल तक तो किसी को उन की प्रेम कहानी का पता नहीं चला था. क्योंकि मिलनेजुलने में दोनों बड़ी ऐहतियात बरतते थे. पर ये बात जगजाहिर है कि इश्क और मुश्क कभी छिपाए नहीं छिपते. एक न एक दिन किसी न किसी को तो खबर लग ही जाती है. किसी माध्यम से सुखबीर को जब अपनी बहन के प्रेम प्रसंग के बारे में पता चला तो जैसे घर में तूफान आ गया. सुखबीर को ज्यादा गुस्सा इस बात पर था कि वह बहन पम्मी को ऊंचाई तक पहुंचाना चाहता था और वह गलत रास्ते पर जा रही थी. गुस्सा या मारपीट करने से कोई लाभ नहीं था. उस ने पम्मी को प्यार से काफी समझाया.

पम्मी ने भी भाई को साफसाफ बता दिया कि वह जोबन के बिना नहीं रह सकती. सुखबीर अपनी बहन की खुशियों के लिए शायद उस की बात मान भी लेता, पर समस्या यह थी कि जोबन पर अदालत में एक आपराधिक मुकदमा चल रहा था. सुखबीर नहीं चाहता था कि उस की बहन ऐसे आदमी से शादी करे जो अपराधी किस्म का हो. बहन को समझाने के बाद उस ने जोबन के पास जा कर उस के सामने हाथ जोड़ कर उसे समझाया, ‘‘जोबन, हम एक ही गांव के हैं और एक साथ खेलकूद कर बड़े हुए हैं. मैं तुम्हारे हाथ जोड़ता हूं कि मेरी बहन का पीछा छोड़ दो और हमें और हमारे सपनों को बरबाद न करो.’’

जोबन ने आश्वासन तो दे दिया कि वह आइंदा पम्मी से नहीं मिलेगा पर ऐसा हुआ नहीं. वह पम्मी से मिलता रहा. घटना से एक दिन पहले सुखबीर ने जोबन को पम्मी के साथ गांव के बाहर खेतों में देख लिया. उस समय वह खून का घूंट पी कर खामोश रह गया. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह इस समस्या का समाधान कैसे करे. काफी सोचने के बाद उस ने जोबन को अपनी बहन की जिंदगी से हमेशा के लिए दूर करने का फैसला कर लिया. पर यह काम वह अकेले नहीं कर सकता था, इसलिए इस काम के लिए उस ने अपने दोस्त लवप्रीत और सुरजीत को भी अपनी योजना में शामिल कर लिया. जोबन सहित ये सभी लोग एकदूसरे के दोस्त थे.

अगले दिन पहली जुलाई की रात में सुखबीर ने जोबन को फोन कर के मिलने के लिए गांव के स्कूल के ग्राउंड में बुलाया. उस ने कहा था कि पम्मी के बारे में जरूरी बात करनी है. उस वक्त लवप्रीत और सुरजीत उस के साथ थे. सुखबीर ने पहले से ही तय कर लिया था कि पहले वह जोबन को समझाएगा. अगर वह नहीं माना तो उसे अंत में ठिकाने लगा देगा. पर ऐसा नहीं हुआ. बातोंबातों में उन के बीच बात इतनी बढ़ गई कि दोनों का आपस में झगड़ा हो गया. इसी दौरान सुखबीर ने पास पड़ी ईंट उठा कर पूरी ताकत से जोबन के सिर पर दे मारी, जिस से जोबन लुढ़क गया और मौके पर ही उस की मौत हो गई.

जोबन की मौत के बाद तीनों घबरा गए. अपना अपराध छिपाने के लिए उन्होंने मिल कर उस की लाश पास में बह रही ब्यास नदी में बहा दी और अपनेअपने घर चले गए. चूंकि नदी से जोबन की लाश बरामद करनी थी, इसलिए पुलिस ने गोताखोरों की टीम बुलवा कर काफी खोजबीन की. 4-5 दिनों की कड़ी मेहनत के बाद भी जोबन की लाश नहीं मिल सकी. जिन थाना क्षेत्रों से नदी गुजरती थी, थानाप्रभारी ने वहां की पुलिस से भी संपर्क किया कि उन के क्षेत्र में कोई लाश तो बरामद नहीं हुई है. कथा लिखे जाने तक जोबन की लाश पुलिस को नहीं मिली थी.

रिमांड अवधि खत्म होने के बाद पुलिस ने सुखबीर और लवप्रीत को अदालत में पेश कर जिला जेल भेज दिया. इस हत्या में शामिल तीसरे अभियुक्त सुरजीत की पुलिस तलाश कर रही है.

—पुलिस सूत्रों पर आधारित. कथा में पम्मी परिवर्तित नाम है.