Love Crime News : ईंट से कई वार करके शादीशुदा प्रेमिका का किया कत्ल

Love Crime News : 2 बच्चों की मां बनने के बावजूद भी सरिता का शारीरिक आकर्षण बरकरार था. तभी तो जब उस का पति अरविंद दोहरे काम करने कुछ दिनों के लिए घर से बाहर गया तो वह पति के दोस्त दलबीर सिंह की बांहों में चली गई. इस का खामियाजा सरिता को ही इस तरह भुगतना पड़ा कि…

अरविंद दोहरे अपने काम से शाम को घर लौटा तो उस की पत्नी सरिता के साथ दलबीर सिंह घर में मौजूद था. उस समय दोनों हंसीठिठोली कर रहे थे. उन दोनों को इस तरह करीब देख कर अरविंद का खून खौल उठा. अरविंद को देखते ही दलबीर सिंह तुरंत बाहर चला गया. उस के जाते ही अरविंद पत्नी पर बरस पड़ा, ‘‘तुम्हारे बारे में जो कुछ सुनने को मिल रहा है, उसे सुन कर अपने आप पर शरम आती है मुझे. मेरी नहीं तो कम से कम परिवार की इज्जत का तो ख्याल करो.’’

‘‘तुम्हें तो लड़ने का बस बहाना चाहिए, जब भी घर आते हो, लड़ने लगते हो. मैं ने भला ऐसा क्या गलत कर दिया, जो मेरे बारे में सुनने को मिल गया.’’ सरिता ने तुनकते हुए कहा तो अरविंद ताव में बोला, ‘‘तुम्हारे और दलबीर के नाजायज रिश्तों की चर्चा पूरे गांव में हो रही है. लोग मुझे अजीब नजरों से देखते हैं. मेरा भाई मुकुंद भी कहता है कि अपनी बीवी को संभालो. सुन कर मेरा सिर शरम से झुक जाता है. आखिर मेरी जिंदगी को तुम क्यों नरक बना रही हो?’’

‘‘नरक तो तुम ने मेरी जिंदगी बना रखी है. पत्नी को जो सुख चाहिए, तुम ने कभी दिया है मुझे? अपनी कमाई जुआ और शराब में लुटाते हो और बदनाम मुझे कर रहे हो.’’ सरिता  तुनक कर बोली. पत्नी की बात सुन कर अरविंद का गुस्सा सातवें आसमान पर जा पहुंचा. उस ने उस की पिटाई करनी शुरू कर दी. वह उसे पीटते हुए बोला, ‘‘साली, बदजात एक तो गलती करती है, ऊपर से मुझ से ही जुबान लड़ाती है.’’

सरिता चीखतीचिल्लाती रही, लेकिन अरविंद के हाथ तभी रुके जब वह पिटतेपिटते बेहाल हो गई. पत्नी की जम कर धुनाई करने के बाद अरविंद बिस्तर पर जा लेटा. सरिता और अरविंद के बीच लड़ाईझगड़ा और मारपीट कोई नई बात नहीं थी. दोनों के बीच आए दिन ऐसा होता रहता था. उन के झगड़े की वजह था अरविंद का दोस्त दलबीर सिंह. अरविंद के घर दलबीर सिंह का आनाजाना था. अरविंद को शक था कि सरिता और दलबीर सिंह के बीच नाजायज संबंध हैं. इस बात को ले कर गांव वालों ने भी उस के कान भरे थे. बीवी की किसी भी पुरुष से दोस्ती चाहे जायज हो या नाजायज, कोई भी पति बरदाश्त नहीं कर सकता.

अरविंद भी नहीं कर पा रहा था. जब भी उस के दिमाग में शक का कीड़ा कुलबुलाता, वह बेचैन हो जाता था. उत्तर प्रदेश के औरैया जिले के फफूंद थाना क्षेत्र में एक गांव है लालपुर. अरविंद दोहरे अपने परिवार के साथ इसी गांव में रहता था. उस के परिवार में पत्नी सरिता के अलावा 2 बच्चे थे. अरविंद के पास मामूली सी खेती की जमीन थी. वह जमीन इतनी नहीं थी कि मौजमजे से गुजर हो पाती. फिर भी वह सालों तक हालात से उबरने की जद्दोजहद करता रहा. सरिता अकसर अरविंद को कोई और काम करने की सलाह देती थी. लेकिन अरविंद पत्नी की बात को नजरअंदाज करते हुए अपनी खेतीकिसानी में ही खुश था.

पत्नी की बात न मानने के कारण ही दोनों में अकसर झगड़ा होता रहता था. अरविंद अपनी जमीन पर खेती करने के साथसाथ गांव के दूसरे लोगों की जमीन भी बंटाई पर ले लेता था. फिर भी परिवार के भरणपोषण के अलावा वह कुछ नहीं कर पाता था. अगर बाढ़ या सूखे से फसल चौपट हो जाती, तो उसे हाथ मलने के अलावा कुछ नहीं मिल पाता था. इसी सब के चलते जब अरविंद पर कर्ज हो गया तो वह खेती की देखभाल के साथ फफूंद कस्बे में एक ठेकेदार के पास मजदूरी करने लगा. वहां से उस का रोजाना घर आना संभव नहीं था, इसलिए वह फफूंद कस्बे में ही किराए का कमरा ले कर रहने लगा.

अब वह हफ्ता-15 दिन में ही घर आता और पत्नी के साथ 1-2 रातें बिता कर वापस चला जाता. 30 वर्षीय सरिता उन दिनों उम्र के उस दौर से गुजर रही थी, जब औरत को पुरुष की नजदीकियों की ज्यादा चाहत होती है. जैसेतैसे कुछ वक्त तो गुजर गया. लेकिन फिर सरिता का जिस्म अंगड़ाइयां लेने लगा. एक रोज उस की नजर दलबीर सिंह पर पड़ी तो उस ने बहाने से उसे घर बुला लिया. दलबीर सिंह गांव के दबंग छोटे सिंह का बड़ा बेटा था. उस की आर्थिक स्थिति मजबूत थी. दूध के व्यवसाय से वह खूब कमाता था. दलबीर सिंह और उस के पति अरविंद हमउम्र थे. दोनों में खूब पटती थी.

अरविंद जब गांव आता था, तो शाम को दोनों बैठ कर शराब पीते थे. सरिता को वह भाभी कहता था. घर के अंदर आते ही सरिता ने पूछा, ‘‘देवरजी, हम से नजरें चुरा कर कहां जा रहे थे?’’

‘‘भाभी, अभीअभी तो घर से आ रहा हूं. खेत की ओर जा रहा था कि आप ने बुला लिया.’’ दलबीर सिंह ने मुसकरा कर जवाब दिया. उस दिन दलबीर सिंह को सरिता ज्यादा खूबसूरत लगी. उस की निगाहें सरिता के चेहरे पर जम गईं. यही हाल सरिता का भी था. दलबीर सिंह को इस तरह देखते सरिता बोली, ‘‘ऐसे क्या देख रहे हो मुझे. क्या पहली बार देखा है? बोलो, किस सोच में डूबे हो?’’

‘‘नहीं भाभी, ऐसी कोई बात नहीं है, मैं तो यह देख रहा था कि साधारण मेकअप में भी तुम कितनी सुंदर लग रही हो. अड़ोसपड़ोस में तुम्हारे अलावा और भी हैं, पर तुम जैसी सुंदर कोई नहीं है.’’

‘‘बस… बस रहने दो, बहुत बातें बनाने लगे हो. तुम्हारे भैया तो कभी तारीफ नहीं करते. महीना-15 दिन में आते हैं, वह भी किसी न किसी बात पर झगड़ते रहते हैं.’’

‘‘अरे भाभी, औरत की खूबसूरती सब को रास थोड़े ही आती है. अरविंद भैया तो अनाड़ी हैं. शराब में डूबे रहते हैं. इसलिए तुम्हारी कद्र नहीं करते.’’

‘‘और तुम?’’ सरिता ने आंखें नचाते हुए पूछा.

‘‘मुझे सचमुच तुम्हारी कद्र है भाभी. यकीन न हो तो परख लो. अब मैं तुम्हारी खैरखबर लेने आता रहूंगा. छोटाबड़ा जो भी काम कहोगी, करूंगा.’’ दलबीर सिंह ने सरिता की चिरौरी सी की. दलबीर सिंह की यह बात सुन कर सरिता खिलखिला कर हंस पड़ी. फिर बोली, ‘‘तुम आराम से चारपाई पर बैठो. मैं तुम्हारे लिए चाय बनाती हूं.’’

थोड़ी देर में सरिता 2 कप चाय ले आई. दोनों पासपास बैठ कर गपशप लड़ाते हुए चाय पीते रहे और चोरीछिपे एकदूसरे को देखते रहे. दोनों के दिलोदिमाग में हलचल सी मची हुई थी. सच तो यह था कि सरिता दलबीर पर फिदा हो गई थी. वह ही नहीं, दलबीर सिंह भी सरिता का दीवाना बन गया था. दोनों के दिल एकदूसरे के लिए धड़के तो नजदीकियां खुदबखुद बन गईं. इस के बाद दलबीर सिंह अकसर सरिता से मिलने आने लगा. सरिता को दलबीर सिंह का आना अच्छा लगता था. जल्द ही वे एकदूसरे से खुल गए और दोनों के बीच हंसीमजाक होने लगा. सरिता चाहती थी कि पहल दलबीर सिंह करे, जबकि दलबीर चाहता था कि जिस्म की भूखी सरिता स्वयं उसे उकसाए.

आखिर जब सरिता से नहीं रहा गया तो एक रोज रात में उस ने दलबीर सिंह को अपने घर रोक लिया. फिर तो उस रात दोनों ने अपनी हसरतें पूरी कीं. हर रिश्ता टूट कर बिखर गया और एक नए रिश्ते ने जन्म लिया, जिस का नाम है अवैध संबंधों का रिश्ता. उस दिन के बाद सरिता और दलबीर सिंह अकसर एकांत में मिलने लगे. लेकिन यह सच है कि ऐसे संबंध ज्यादा दिनों तक छिपते नहीं हैं. उन का भांडा एक न एक दिन फूट ही जाता है. सरिता और दलबीर के साथ भी ऐसा ही हुआ. एक रात जब सरिता और दलबीर सिंह देह मिलन कर रहे थे तो सरिता की देवरानी आरती ने छत से दोनों को देख लिया.

उस ने यह बात अपने पति मुकुंद को बताई. फिर तो यह बात गांव में फैल गई. और उन के नाजायज रिश्तों की चर्चा पूरे गांव में होने लगी. सरिता के पति अरविंद दोहरे को जब सरिता और दलबीर सिंह के संबंधों का पता चला तो उस के पैरों तले से जैसे जमीन खिसक गई. उस ने इस बारे में पत्नी व दोस्त दलबीर से बात की तो दोनों मुकर गए और साफसाफ कह दिया कि ऐसी कोई बात नहीं है. गांव के लोग उन्हें बेवजह बदनाम कर रहे हैं. लेकिन एक रोज अरविंद ने जब दोनों को हंसीठिठोली करते अचानक देख लिया तो उस ने सरिता की पिटाई की तथा दलबीर सिंह को भी फटकारा. लेकिन उन दोनों पर इस का कोई असर नहीं हुआ. दोनों पहले की तरह ही मिलते रहे.

पत्नी की इस बेवफाई से अरविंद टूट चुका था. महीना-15 दिन में जब वह घर आता था तो दलबीर को ले कर सरिता से उस की जम कर तकरार होती थी. कई बार नौबत मारपीट तक आ जाती थी. अरविंद का पूरा परिवार और गांव वाले इस बात को जान गए थे कि दोनों के बीच तनाव सरिता और दलबीर सिंह के नाजायज संबंधों को ले कर है. अरविंद की जब गांव में ज्यादा बदनामी होने लगी तो उस ने फफूंद कस्बे में रहना जरूरी नहीं समझा और अपने गांव आ कर रहने लगा. पर सरिता तो दलबीर सिंह की दीवानी थी. उसे न तो पति की परवाह थी और न ही परिवार की इज्जत की. वह किसी न किसी बहाने दलबीर से मिल ही लेती थी.

हां, इतना जरूर था कि अब वह उस से घर के बजाय बाहर मिल लेती थी. दरअसल घर से कुछ दूरी पर अरविंद का प्लौट था. इस प्लौट में एक झोपड़ी बनी हुई थी. इसी झोपड़ी में दोनों का मिल लेते थे. जुलाई, 2020 में सरिता का छोटा बेटा नीरज उर्फ जानू बीमार पड़ गया. उस के इलाज के लिए सरिता ने अपने प्रेमी दलबीर सिंह से पैसे मांगे, लेकिन उस ने धंधे में घाटा होने का बहाना बना कर सरिता को पैसे देने से इनकार कर दिया. उचित इलाज न मिल पाने से एक महीने बाद सरिता के बेटे जानू की मौत हो गई. बेटे की मौत का सरिता को बेहद दुख हुआ.

विपत्ति के समय आर्थिक मदद न करने के कारण सरिता दलबीर सिंह से नाराज रहने लगी थी. वह न तो स्वयं उस से मिलती और न ही दलबीर को पास फटकने देती. सरिता सोचती, ‘जिस प्रेमी के लिए उस ने पति से विश्वासघात किया. परिवार की मर्यादाओं को ताक पर रख दिया, उसी ने बुरे वक्त पर धोखा दे दिया. समय रहते यदि उस ने आर्थिक मदद की होती, तो आज उस का बेटा जीवित होता.’

सरिता ने प्रेमी से दूरियां बनाईं तो दलबीर सिंह परेशान हो उठा. वह उसे मनाने की कोशिश करता, लेकिन सरिता उसे दुत्कार देती. दलबीर सरिता को भोगने का आदी बन चुका था. उसे सरिता के बिना कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा था. आखिर जब उस से नहीं रहा गया तो उस ने सरिता को मनाने के लिए उसे प्लौट में बनी झोपड़ी में बुलाया. सरिता वहां पहुंची तो दलबीर ने उस से पूछा, ‘‘सरिता, तुम मुझ से दूरदूर क्यों भागती हो. मैं तुम्हें बेइंतहा प्यार करता हूं.’’

‘‘तुम मुझ से नहीं, मेरे शरीर से प्यार करते हो. तुम्हारा प्यार स्वार्थ का है. सच्चे प्रेमी सुखदुख में एकदूसरे का साथ देते हैं. लेकिन तुम ने हमारे दुख में साथ नहीं दिया. जब तुम स्वार्थी हो, तो अब मैं भी स्वार्थी बन गई हूं. अब मुझे भी तन के बदले धन चाहिए.’’

‘‘क्या तुम प्यार की जगह अपने तन का सौदा करना चाहती हो?’’ दलबीर ने पूछा.

‘‘जब प्यार की जगह स्वार्थ पनप गया हो तो समझ लो कि मैं भी तन का सौदा करना चाहती हूं. अब तुम मेरे शरीर से तभी खेल पाओगे, जब एक लाख रुपया मेरे हाथ में थमाओगे.’’

‘‘यदि रुपयों का इंतजाम न हो पाया तो..?’’ दलबीर ने पूछा.

‘‘…तो मुझे भूल जाना.’’

दलबीर को सपने में भी उम्मीद न थी कि सरिता तन के सौदे की बात करेगी. उसे उम्मीद थी कि वह उस से माफी मांग कर तथा कुछ आर्थिक मदद कर उसे मना लेगा. पर ऐसा नहीं हुआ बल्कि सरिता ने उस से बड़ी रकम की मांग कर दी. इस के बाद सरिता और दलबीर में दूरियां और बढ़ गईं. जब कभी दोनों का आमनासामना होता और दलबीर सरिता को मनाने की कोशिश करता तो वह एक ही जवाब देती, ‘‘मुझे तन के बदले धन चाहिए.’’

13 जनवरी, 2021 की सुबह 5 बजे दलबीर सिंह ने सरिता को फोन कर के अपने प्लौट में बनी झोपड़ी में बुलाया. सरिता को लगा कि शायद दलबीर ने रुपयों का इंतजाम कर लिया है. सो वह वहां जा पहुंच गई. सरिता के वहां पहुंचते ही दलबीर उस के शरीर से छेड़छाड़ तथा प्रणय निवेदन करने लगा. सरिता ने छेड़छाड़ का विरोध किया और कहा कि वह तभी राजी होगी, जब उस के हाथ पर एक लाख रुपया होगा. सरिता के इनकार पर दलबीर सिंह जबरदस्ती करने लगा. सरिता ने तब गुस्से में उस की नाक पर घूंसा जड़ दिया. नाक पर घूंसा पड़ते ही दलबीर तिलमिला उठा. उस ने पास पड़ी ईंट उठाई और सरिता के सिर पर दे मारी.

सरिता का सिर फट गया और खून की धार बह निकली. इस के बाद उस ने उस के सिर पर ईंट से कई प्रहार किए. कुछ देर छटपटाने के बाद सरिता ने दम तोड़ दिया. सरिता की हत्या के बाद दलबीर सिंह फरार हो गया. इधर कुछ देर बाद सरिता की देवरानी आरती किसी काम से प्लौट पर गई तो वहां उस ने झोपड़ी में सरिता की खून से सनी लाश देखी. वह वहां से चीखती हुई घर आई और जानकारी अपने पति मुकुंद तथा जेठ अरविंद को दी. दोनों भाई प्लौट पर पहुंचे और सरिता का शव देख कर अवाक रह गए. इस के बाद तो पूरे गांव में सनसनी फैल गई और मौके पर भीड़ जुटने लगी.

इसी बीच परिवार के किसी सदस्य ने थाना फफूंद पुलिस को सरिता की हत्या की सूचना दे दी. सूचना पाते ही थानाप्रभारी राजेश कुमार सिंह पुलिस फोर्स के साथ लालपुर गांव की ओर रवाना हो लिए. रवाना होने से पहले उन्होंने पुलिस अधिकारियों को भी सूचित कर दिया था. कुछ देर बाद ही एसपी अपर्णा गौतम, एएसपी कमलेश कुमार दीक्षित तथा सीओ (अजीतमल) कमलेश नारायण पांडेय भी लालपुर गांव पहुंच गए. पुलिस अधिकारियों ने मौके पर फोरैंसिक टीम को भी बुलवा लिया. पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया तथा मृतका सरिता के पति अरविंद दोहरे तथा अन्य लोगों से पूछताछ की. फोरैंसिक टीम ने भी जांच कर साक्ष्य जुटाए तथा फिंगरप्रिंट लिए.

एसपी अपर्णा गौतम ने जब मृतका के पति अरविंद दोहरे से हत्या के संबंध में पूछताछ की तो उस ने बताया कि उस की पत्नी सरिता के दलबीर सिंह से नाजायज संबंध थे, जिस का वह विरोध करता था. इसी नाजायज रिश्तों की वजह से सरिता की हत्या उस के प्रेमी दलबीर सिंह ने की है. दलबीर और सरिता के बीच किसी बात को ले कर मनमुटाव चल रहा था. अवैध रिश्तों में हुई हत्या का पता चलते ही एसपी अपर्णा गौतम ने थानाप्रभारी राजेश कुमार सिंह को आदेश दिया कि वह आरोपी के विरुद्ध मुकदमा दर्ज कर उसे गिरफ्तार करें. आदेश पाते ही राजेश कुमार सिंह ने मृतका के पति अरविंद दोहरे की तहरीर पर भादंवि की धारा 302 तथा (3) (2) अ, एससी/एसटी ऐक्ट के तहत दलबीर सिंह के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया तथा उस की तलाश में जुट गए.

15 जनवरी, 2021 की शाम चैकिंग के दौरान थानाप्रभारी राजेश कुमार सिंह को मुखबिर से सूचना मिली कि हत्यारोपी दलबीर सिंह आरटीओ औफिस की नई बिल्डिंग के अंदर मौजूद है. मुखबिर की सूचना पर थानाप्रभारी ने आरटीओ औफिस की नई बिल्डिंग से दलबीर सिंह को गिरफ्तार कर लिया. उस की निशानदेही पर पुलिस ने हत्या में प्रयुक्त खून सनी ईंट तथा खून सने कपड़े बरामद कर लिए. दलबीर सिंह ने बताया कि सरिता से उस का नाजायज रिश्ता था. सरिता उस से एक लाख रुपए मांग रही थी. इसी विवाद में उस ने सरिता की हत्या कर दी.

राजेश कुमार सिंह ने सरिता की हत्या का खुलासा करने तथा आरोपी दलबीर सिंह को गिरफ्तार करने की जानकारी एसपी अपर्णा गौतम को दी, तो उन्होंने पुलिस लाइन सभागार में प्रैसवार्ता की और आरोपी दलबीर सिंह को मीडिया के समक्ष पेश कर हत्या का खुलासा किया. 16 जनवरी, 2021 को पुलिस ने अभियुक्त दलबीर सिंह को औरैया कोर्ट में पेश किया, जहां से उसे जिला जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

UP News : शराब की बोतल तोड़ी, नुकीले हिस्से से पति पर वार कर किया कत्ल

UP News : यह सच्चाई है कि अवैध संबंधों को ज्यादा दिनों तक छिपाए नहीं रखा जा सकता. खुलासा होने पर ये आपराधिक वारदात को जन्म देते हैं. काश! इस बात को पेशे से अध्यापक रहे इंद्रपाल और उस की पत्नी सीमा समझ पाती तो शायद…

कन्नौज जिले का एक बड़ा कस्बा है सौरिख. इसी कस्बे के नगरिया तालपार में शिक्षक इंद्रपाल रहते थे. उन के पिता श्रीकृष्ण मुर्रा गांव के निवासी थे. वहां उन का पुश्तैनी मकान तथा खेती की जमीन है. उन के बेटे इंद्रपाल ने सौरिख कस्बे में दोमंजिला मकान बनवा लिया था. इंद्रपाल की आर्थिक स्थिति मजबूत थी. वह शिक्षक संघ का अध्यक्ष भी था. वर्ष 2001 में इंद्रपाल का विवाह फर्रुखाबाद (गदराना) निवासी सरयू प्रसाद की बेटी सुधा के साथ हुआ था. सुधा साधारण रंगरूप वाली युवती थी. लगभग 2 साल तक दोनों का दांपत्य जीवन हंसीखुशी से बीता, उस के बाद कड़वाहट घुलने लगी.

कड़वाहट का पहला कारण था, इंद्रपाल का शराब पी कर घर आना तथा दूसरा कारण था झगड़ा और मारपीट करना. सुधा शराब पीने को मना करती तो वह उसे ही दोषी ठहराता और उस के चरित्र पर अंगुली उठाता, सुधा तब परेशान हो कर मायके चली जाती. सुधा जब पहले मायके आती थी तो उल्लास से भरे उस के पैर एक स्थान पर नहीं टिकते थे. लेकिन अब जब भी आती थी तो वह गुमसुम और उदास रहती थी. उस की मां तारावती ने कई बार उस से पूछा भी कि बेटी, क्या ससुराल में तुम्हें किसी तरह का दुख या परेशानी है?

‘‘नहीं मां सब ठीक है. ऐसा कुछ भी गलत नहीं है कि उसे सही करने के लिए तुम्हें दखल देने की जरूरत हो.’’ कह कर सुधा हर बार टाल देती.

तारावती के सीने में मां का दिल था. वह खूब समझ रही थी कि सुधा असल बात बता नहीं रही, कुछ छिपाए हुए है. इस बारे में उस ने पति से राय ली तो सरयू प्रसाद ने कहा कि उन लोगों का कोई घरेलू और आपसी मामला होगा. उन्हें ही सुलझाने दो. हमें दखल देने की जरूरत नहीं है. हम दखल देंगे, तो बात बनने के बजाय बिगड़ने का अंदेशा है. लेकिन तारावती का मन बेटी की उदासी को स्वाभाविक मतभेद मानने को तैयार नहीं था. उसे लग रहा था कि कोई तो बात है, जो सुधा को घुन की तरह खाए जा रही है. उस ने तय कर लिया कि अब की बार सुधा आई, तो वह उस से जान कर रहेगी कि उस की उदासी का कारण क्या है?

कुछ दिनों बाद सुधा मायके आई तो उस के चेहरे पर पहले की तरह उदासी की परछाइयां कायम थीं. उचित समय पर तारावती ने सुधा को पास बिठा कर स्नेह से उस के सिर पर हाथ फेरा, ‘‘बेटी मां से बड़ी शुभचिंतक और हितैषी कोई दूसरी नहीं होती. न ही मां से बेहतर कोई सहेली होती है.’’

सुधा ने सिर उठा कर मां को सूनीसूनी आंखों से देखा, लेकिन कुछ बोली नहीं. तारावती ने अपनी रौ में बोलना जारी रखा, ‘‘सुधा, मैं तुम्हें दुखी और उदास नहीं देख सकती. मां न सही सहेली ही समझ कर आज तुम अपना दुख कह दो.’’

संभवत: उस दिन सुधा का अंतस कुछ अधिक भरा हुआ था. ममता की आंच से वह पिघल गई. उस की आंखों से आंसुओं की धारा बह निकली. कुछ देर बाद सुधा के आंसू थमे तो वह बोली, ‘‘मां मेरा दुख यह है कि कुछ महीनों से इंद्रपाल पहले जैसे नहीं रहे, वह बहुत बदल गए हैं.’’

सुधा ने रुंधे कंठ से बताया, ‘‘न वह सीधे मुंह बात करते है. न प्यार से पेश आते हैं. शराब पी कर झगड़ा भी करते हैं. मैं थाली परोसती हूं तो, वह उस पर नजर तक नहीं डालते. मेरे साथ सोते जरूर हैं, पर पीठ कर के.’’

सुधा की बात सुन कर तारावती की आंखें हैरत से फैल गईं. वह जान गई कि बेटी का जीवन अंधकारमय है. तारावती ने इस बाबत इंद्रपाल से बात की तो वह झगड़े पर उतारू हो गया. उस ने साफ कह दिया कि वह सुधा को पसंद नहीं करता. वह उस से तलाक चाहता है. दामाद की बात सुन कर तारावती सन्न रह गई. उस ने दोनों के बीच तनाव खत्म करने के लिए अनेक उपाय किए. रिश्तेदारों के बीच समझौते का प्रयास किया. लेकिन जब बात नहीं बनी तो मामला कोर्टकचहरी तक जा पहुंचा. आखिर में दोनों की रजामंदी से इंद्रपाल और सुधा का तलाक हो गया. फिर सुधा मायके में रहने लगी.

सुधा से तलाक होने के बाद इंद्रपाल दूसरी शादी के लिए प्रयास करने लगा. परिवार के लोग भी चाहते थे कि इंद्रपाल का दूसरा विवाह हो जाए, तो वह भी प्रयास करने लगे. घर वालों को कई रिश्ते पसंद भी आए, लेकिन इंद्रपाल ने रिश्ता नकार दिया. परिवार के लोग भी समझ गए कि इंद्रपाल अपनी मनपसंद युवती से ही शादी करेगा. इंद्रपाल फर्रूखाबाद शहर के आरबीआरडी इंटर कालेज में पढ़ाता था. वह प्राइवेट शिक्षक था. इसी कालेज में सीमा पाल नाम की लड़की पढ़ती थी. इंटरमीडिएट में पढ़ाई के दौरान सीमा और इंद्रपाल एकदूसरे की ओर आकर्षित हुए. कुछ दिनों बाद दोनों की मुलाकातें कालेज के बाहर भी होने लगीं.

सीमा पाल के पिता अवध पाल, हुसैनपुर के रहने वाले थे. परिवार में पत्नी के अलावा बेटा मनोज तथा बेटी सीमा थी. अवध पाल किसान थे. सीमा उन की होनहार बेटी थी. पढ़ने में भी तेज थी, सो वह उसे पढ़ालिखा कर अपने पैरों पर खड़ा करना चाहते थे. सीमा, छरहरी काया और तीखे नाकनक्श वाली लड़की थी. उस की मुसकान सामने वाले पर गहरा असर करती थी. सीमा की खूबसूरती और मुसकान इंद्रपाल के दिल पर भी असर कर गई थी. एक दिन इंद्रपाल ने उस से अपने मन की बात भी कह दी, ‘‘सीमा हंसते हुए तुम बहुत अच्छी लगती हो. इसी तरह हंसती रहा करो. यदि तुम मेरा प्यार कबूल कर लोगी तो मैं खुद को दुनिया का सब से खुशनसीब आदमी समझूंगा.’’

सीमा उम्र के जिस पायदान पर थी, उस में लड़कियों को ऐसी बातें गुदगुदा देती हैं. सीमा का भी दिलोदिमाग सुखद सनसनी से भर गया. उस ने इंद्रपाल की आंखों में देखा. उन आंखों में प्यार का सागर ठाठे मार रहा था. उस की आंखों में देखते हुए कुछ देर तक वह सोच में डूबी रही, उस के बाद बोली, ‘‘अगर मैं तुम्हारा प्यार कबूल कर लूं तो तुम्हारा अगला कदम क्या होगा?’’

‘‘शादी.’’ इंद्रपाल ने तपाक से जवाब दिया.

‘‘लेकिन मेरे घर वाले राजी नहीं हुए तो..?’’ सीमा ने पूछा.

‘‘…तो हम दोनों प्रेम विवाह कर लेंगे.’’

सीमा मुसकराई और फिर नजरें झुका कर स्वीकृति में सिर हिला दिया. इंद्रपाल का दिल बल्लियां उछल पड़ा. उस ने तो एक मुट्ठी आसमान की तमन्ना की थी, लेकिन यहां तो पूरा का पूरा आसमान उस का हो गया था. कुछ दिनों बाद इंद्रपाल के कहने पर सीमा ने घर वालों को अपने प्रेम से अवगत कराया और विवाह की इच्छा प्रकट की तो उन्होंने सीमा को समझाया, ‘‘बेटी, इंद्रपाल पहली पत्नी को धोखा दे चुका है. तुम्हें भी धोखा दे सकता है. बेहतर यही होगा कि उस का खयाल अपने मन से निकाल दो.’’

सीमा ने मुलाकात कर ये सारी बातें इंद्रपाल को बताईं, तो उस ने पूछा, ‘‘तुम क्या चाहती हो? तुम्हारे जवाब पर ही सब कुछ निर्भर है.’’

‘‘मैं तुम्हें पाना चाहती हूं.’’ सीमा ने जवाब दिया. इस के बाद वर्ष 2007 में सीमा पाल ने अपने घर वालों की मरजी के बिना इंद्रपाल के साथ प्रेम विवाह कर लिया और उस की दुलहन बन कर इंद्रपाल के साथ रहने लगी. इंद्रपाल के घर वालों ने भी सीमा को बहू के रूप में स्वीकार कर लिया. चूंकि सीमा और इंद्रपाल ने प्रेम विवाह किया था. अत: दोनों खुश थे. वैसे भी संपन्न घर और शिक्षक पति पा कर सीमा फूली नहीं समा रही थी. सौरिख कस्बे के नगरिया तालपार स्थित 2 मंजिला मकान की ऊपरी मंजिल पर वह पति इंद्रपाल के साथ रहती थी, भूतल और प्रथम तल पर किराएदार रहते थे. हंसीखुशी से 3 साल कब बीत गए, दोनों को पता ही न चला.

इन 3 सालों में सीमा ने एक बेटी रक्षा को जन्म दिया. रक्षा के जन्म के 3 साल बाद सीमा ने एक और बेटी दीक्षा को जन्म दिया. दोनों बेटियों को सीमा और इंद्रपाल बेहद प्यार करते थे. सीमा पाल की इच्छा टीचर बनने की थी. अत: उस ने इंद्रपाल से प्रेम विवाह करने के बावजूद पढ़ाई जारी रखी. इस में इंद्रपाल ने भी उस का सहयोग किया. बीए पास करने के बाद उस ने बीएड किया. फिर जब शिक्षकों की भरती निकली तो उस ने भी आवेदन किया. सीमा पाल के भाग्य ने साथ दिया और उस का चयन प्राथमिक पाठशाला की शिक्षिका के लिए हो गया. चयन होने के बाद सीमा पाल प्राथमिक पाठशाला, चिकनपुर में सहायक अध्यापिका के तौर पर पढ़ाने लगी.

सीमा पाल को सरकारी नौकरी मिली तो उस की खुशी का ठिकाना न रहा. अब वह मायके भी जाने लगी थी. उस का भाई मनोज पाल भी उस के घर आनेजाने लगा था. इंद्रपाल का भी ससुराल आनाजाना शुरू हो गया था. मनोज की शादी में सीमा और इंद्रपाल ने मनोज की हरसंभव मदद भी की थी. वैसे भी मनोज को जब भी आर्थिक परेशानी होती थी, इंद्रपाल उस की मदद कर देता था. सीमा और इंद्रपाल की जिंदगी खुशियों से भरी थी. दोनों खूब कमाते थे. सीमा सरकारी टीचर थी, तो इंद्रपाल ने भाउलपुर में अपना निजी विद्यालय खोल लिया था. दोनों की खुशियों में ग्रहण तब लगा, जब एक रोज मनोज अपने जीजा इंद्रपाल की शिकायत करने बहन के घर आया.

उस ने सीमा को बताया कि जीजाजी ने उस के घर आतेजाते उस की पत्नी शिखा को अपने प्रेम जाल में फंसा कर उस से नाजायज रिश्ता बना लिया है. बहन आप उन को समझाओ कि वह उस का घर बरबाद न करें. भाई की बात सुन कर सीमा के तनबदन में आग लग गई. शाम को इंद्रपाल जब विद्यालय से घर आया तो सीमा ने शिखा को ले कर सवालजवाब किया. इस पर इंद्रपाल हंस कर बोला, ‘‘शिखा हमारी सलहज है. उस से मैं हंसबोल कर अपना मन बहला लेता हूं. उस से हमारा कोई नाजायज रिश्ता नहीं है. किसी ने जरूर तुम्हारे कान भरे हैं.’’

लेकिन सीमा को पति की बात पर यकीन नहीं हुआ. उसे पता था कि उस का भाई झूठ नहीं बोल सकता. इस के बाद तो शिखा को ले कर अकसर सीमा और इंद्रपाल में झगड़ा होने लगा. कभीकभी झगड़ा इतना ज्यादा बढ़ जाता कि दोनों के बीच मारपीट हो जाती. इंद्रपाल शराब तो पहले से ही पीता था, लेकिन अब वह कुछ ज्यादा ही पीने लगा और सीमा से झगड़ा करने लगा. इसी लड़ाईझगड़े के बीच सीमा ने तीसरी बेटी दिशा को जन्म दिया. सीमा और इंद्रपाल के बीच में अब गहरी दरार पड़ गई थी. वह दोनों रहते जरूर एक छत के नीचे थे, लेकिन दोनों के बिस्तर अलग हो गए थे.

सीमा अपने बच्चों के साथ अलग कमरें में रहने लगी थी. इंद्रपाल दूसरे कमरे में बिस्तर पर करवटें बदलता रहता था. कईकई दिनों तक दोनों में बातचीत भी नहीं होती थी. पतिपत्नी के बीच तनाव चल ही रहा था कि इसी बीच अशोक ने सीमा के घर आनाजाना शुरू किया. अशोक, सौरिख में ही रहता था और रिश्ते में इंद्रपाल का भाई लगता था. वह कार चलाता था और खूब सजसंवर कर रहता था. अशोक को सीमा और इंद्रपाल के बीच तनाव की बात पता चली तो वह सीमा को रिझाने की कोशिश करने लगा. वह जब भी आता, सीमा से मीठीमीठी बातें करता तथा उस के रूप की प्रशंसा भी करता. सीमा पति की उपेक्षा की शिकार थी.

इस कारण धीरेधीरे सीमा, अशोक की ओर आकर्षित होने लगी. दोनों के बीच देवरभाभी का रिश्ता था, सो हंसीमजाक भी होने लगी. सीमा और अशोक के बीच चाहत बढ़ी तो अवैध रिश्ता कायम होने में भी देर नहीं लगी. अशोक का सीमा से मिलनाजुलना बढ़ा तो इंद्रपाल के कान खड़े हो गए. उस ने दोनों पर नजर रखनी शुरू की तो एक रोज दोनों को रंगे हाथ पकड़ लिया. फिर तो उस रोज इंद्रपाल ने सीमा की जम कर पिटाई की और सारा गुबार निकाला. इस के बाद तो यह रवैया ही चल पड़ा. जिस रोज इंद्रपाल को पता चल जाता कि अशोक आया था, वह सीमा की जम कर पिटाई करता. कई बार उस का अशोक से भी झगड़ा हुआ.

सीमा, अशोक की इतनी दीवानी बन गई थी कि वह पति की पिटाई के बावजूद उस का साथ छोड़ने को तैयार नहीं थी. एक दिन तो सीमा ने हद ही कर दी. उस ने अपनी तीनों बेटियों को बहाने से अपनी सास माया के पास छोड़ा और प्रेमी अशोक के साथ भाग गई. इंद्रपाल और उस के घरवालों को जानकारी हुई तो वह सब दंग रह गए. उन्होंने थाना सौरिख में शिकायत दर्ज कराई. तब पुलिस ने कई रोज बाद सीमा को अशोक के एक रिश्तेदार के घर से बरामद किया. घरवालों के मनाने व समझाने के बाद सीमा, इंद्रपाल के साथ रहने को राजी हुई. सीमा और इंद्रपाल में समझौता तो हो गया था, लेकिन उन के दिलों में गांठ पड़ गई थी. दोनों एक दूसरे पर शक भी करते थे.

उन के बीच तूतू मैंमैं अब भी होती रहती थी. कभीकभी मारपीट भी हो जाती थी. सीमा ने अशोक से संबंध अब भी खत्म नहीं किए थे. वह उस से चोरीछिपे मिलती रहती थी. 28 नवंबर, 2020 की सुबह 4 बजे सीमा चीखनेचिल्लाने लगी कि उस के पति इंद्रपाल की किसी ने हत्या कर दी. उस की चीख सुन कर उस के मकान में रहने वाले किराएदर आ गए. इन्हीं में से किसी ने इंद्रपाल के घर वालोें को सूचना दे दी. उस के बाद तो घर में सनसनी फैल गई. इंद्रपाल के पिता श्रीकृष्ण, मां माया देवी, चाचा लंकुश तथा चचेरा भाई राजू आ गया. इंद्रपाल का शव देख कर वह सब हैरान रह गए. कुछ देर बाद श्रीकृष्ण ने बेटे की हत्या की सूचना थाना सौरिख पुलिस को दी.

सूचना पाते ही थानाप्रभारी विजय बहादुर वर्मा पुलिस दल के साथ रवाना हो लिए. रवाना होने से पहले उन्होंने शिक्षक इंद्रपाल की हत्या की सूचना पुलिस अधिकारियों को भी दे दी थी. थानाप्रभारी विजय बहादुर वर्मा जिस समय इंद्रपाल के नगरिया तालपार स्थित मकान पर पहुंचे. उस समय वहां भारी भीड़ जुटी थी. श्री वर्मा पुलिसकर्मियों के साथ मकान के द्वितीय तल स्थित उस कमरे में पहुंचे जहां इंद्रपाल की लाश पड़ी थी. श्री वर्मा ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया. इंद्रपाल की हत्या बड़ी बेरहमी से की गई थी. उस के शरीर पर चोटों के कई निशान थे. शरीर को किसी नुकीली चीज से गोदा गया था. शव के पास ही शराब की टूटी बोतल पड़ी थी. संभवत: इसी टूटी बोतल से उस के शरीर को गोदा गया था.

हत्या संभवत: मुंह नाक दबा कर की गई थी. कमरे में खून फैला था. मृतक की उम्र लगभग 45 वर्ष के आसपास थी. पुलिस ने शराब की टूटी बोतल को साक्ष्य के तौर पर सुरक्षित कर लिया. थानाप्रभारी विजय बहादुर वर्मा अभी निरीक्षण कर ही रहे थे कि सूचना पा कर एसपी अमरेंद्र प्रसाद सिंह तथा डीएसपी शिवकुमार थापा मौका ए वारदात आ गए. उन्होंने मौके पर फौरेंसिक टीम को भी बुलवा लिया. पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का निरीक्षण किया तथा मृतक की पत्नी व घर वालों से पूछताछ की. फोरैंसिक टीम ने भी जांच कर साक्ष्य जुटाए. उस के बाद शव को पोस्टमार्टम के लिए कन्नौज के जिला अस्पताल भेज दिया गया.

हत्या का खुलासा करने के लिए एसपी अमरेंद्र प्रसाद सिंह ने डीएसपी शिवकुमार थापा के निर्देशन में पुलिस टीम का गठन कर दिया. इस टीम में थानाप्रभारी विजय बहादुर वर्मा, स्वाट टीम प्रभारी राकेश कुमार सिंह तथा सर्विलांस प्रभारी शैलेंद्र सिंह को शामिल किया गया. गठित टीम ने सब से पहले घटनास्थल का निरीक्षण किया फिर मृतक की पत्नी सीमा पाल से पूछताछ की. सीमा ने बताया कि पति की हत्या उस के मकान में रहने वाले किराएदार प्रवीण उर्फ विक्की ने की है. उस का पति से झगड़ा हुआ था. टीम ने प्रवीण को हिरासत में ले कर पूछताछ की तो उस ने बताया कि इंद्रपाल ने प्लौट खरीदने के लिये डेढ़ लाख रुपए उस से उधार लिया था, जिस में 70 हजार रुपए वह लौटा चुका था.

उस का इंद्रपाल से कोई झगड़ा न था. सीमा उसे गलत फंसा रही है. जबकि सच्चाई यह है कि इंद्रपाल की हत्या का रहस्य सीमा के ही पेट में छिपा है. प्रवीण से पूछताछ के बाद पुलिस टीम ने मृतक के पिता श्रीकृष्ण, चाचा लंकुश, मां माया देवी तथा चचेरे भाई राजू से पूछताछ की. उन सब ने बताया कि सीमा बदचलन है. उस ने अपने प्रेमी अशोक के साथ मिल कर इंद्रपाल की हत्या की है. यदि उस से सख्ती से पूछताछ की जाए तो आज ही हत्या का भेद खुल सकता है. सीमा संदेह के घेरे में आई तो पुलिस टीम ने उसे घर से गिरफ्तार कर लिया तथा उस का मोबाइल कब्जे में ले लिया. सर्विलांस प्रभारी शैलेंद्र सिंह ने उस के मोबाइल को खंगाला तो 27 नवंबर की रात 11 बजे उस ने 2 मोबाइल नंबरों पर बात की थी.

इन नंबरों को खंगाला गया तो पता चला कि एक मोबाइल नंबर सीमा के भाई मनोज पाल का है तथा दूसरा सीमा के प्रेमी अशोक का है. पुलिस टीम ने इन फोन नंबरों के आधार पर सीमा से कड़ाई से पूछताछ की तो वह टूट गई और पति इंद्रपाल की हत्या का जुर्म कबूल कर लिया. सीमा ने बताया कि अशोक के साथ उस के नाजायज संबंध थे, जिस का विरोध इंद्रपाल करता था और उस के साथ मारपीट करता था. इस मारपीट से वह आजिज आ गई थी और पति से छुटकारा पाना चाहती थी. 27 नवंबर की रात 10 बजे इंद्रपाल शराब पी कर घर आया और अशोक को ले कर झगड़ा करने लगा. उस ने उसे खूब पीटा. तब उस ने फोन कर अपने भाई मनोज पाल व प्रेमी अशोक को बुलवा लिया. अशोक अपने भाई राजेश को भी साथ लाया था.

उन चारों ने मिल कर इंद्रपाल की हत्या की योजना बनाई. इंद्रपाल उस समय अपने कमरे में नशे में धुत पड़ा था. उन चारों ने मिल कर पहले इंद्रपाल की पिटाई की फिर शराब की बोतल जो कमरे में लुढ़की पड़ी थी, अशोक ने उसी बोतल को तोड़ कर उस के नुकीले भाग से उस के शरीर को गोदा. उस के बाद नाकमुंह दबा कर उस की हत्या कर दी. फिर अशोक, राजेश व मनोज फरार हो गए. उन के जाने के बाद वह रोनेधोने का ड्रामा करने लगी. सीमा से पूछताछ करने के बाद पुलिस टीम ने अन्य आरोपियों को पकड़ने के लिए मुखबिरों को लगाया. दूसरे ही दिन एक मुखबिर की सूचना पर मनोज पाल को सौरिख विधूना मार्ग स्थित बिजलीघर के पास से गिरफ्तार कर लिया.

थाने ला कर जब उस से पूछताछ की गई तो उस ने सहज ही हत्या का जुर्म कबूल कर लिया. अशोक व राजेश पुलिस की गिरफ्त में न आ सके. चूंकि सीमा व मनोज पाल ने हत्या का जुर्म कबूल कर लिया था. अत: थानाप्रभारी विजय बहादुर वर्मा ने मृतक के पिता श्रीकृष्ण की तरफ से भादंवि की धारा 302 के तहत सीमा, मनोज, अशोक तथा राजेश के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली तथा सीमा व मनोज को विधि सम्मत गिरफ्तार कर लिया. 2 दिसंबर 2020 को पुलिस ने अभियुक्त सीमा व मनोज पाल को कन्नौज कोर्ट में पेश किया. जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. अशोक व राजेश फरार थे. आरोपी सीमा की बेटियां बाबा श्रीकृष्ण के संरक्षण में पल रही थीं.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Rajasthan News : शादीशुदा प्रेमिका को प्यार में फंसाया फिर हत्या कर सरसों के खेत में फेंका

Rajasthan News : कभीकभी इंसान छोटी सी समस्या से निजात पाने के लिए अपराध कर बैठता है, जिस से उस की जिंदगी बरबाद हो जाती है. प्रेमिका कमला से निजात पाने के लिए हरिराम मीणा भी ऐसा ही एक अपराध कर बैठा. इस का नतीजा यह हुआ कि…

राजस्थान के टोंक जिले की देवली तहसील के थाना घाड़ के अंतर्गत एक गांव बड़ोली आता है. इसी गांव के रहने वाले गोकुल के खेत पर सरसों की फसल की कटाई का काम मजदूरों द्वारा किया जा रहा था. यह बात 10 फरवरी, 2021 की है. सरसों काटते हुए मजदूरों की निगाह एक मानव कंकाल पर पड़ी. इस कंकाल के पास महिला की शृंगार सामग्री यानी चूडि़यां, बिछिया, नीली साड़ी वगैरह पड़ी थी. कंकाल साड़ी में लिपटा था. देखने पर लग रहा था कि कंकाल किसी महिला का है. यह बात मजदूरों ने खेत के मालिक गोकुल को बताई. गोकुल ने भी मौके पर आ कर देखा. बात सही थी.

गोकुल ने फोन कर के गांव के सरपंच धनपत माली को खेत में कंकाल मिलने की बात बताई. कुछ ही देर में सरपंच भी खेत पर पहुंच गए. फिर उन्होंने फोन कर के धाड़ थाने में इस की सूचना दी. सूचना पा कर धाड़ थानाप्रभारी इंसपेक्टर रामेश्वर प्रसाद पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंचे. घटनास्थल का मुआयना किया. वहां पर नीले रंग की साड़ी में लिपटा कंकाल मिला. थानाप्रभारी रामेश्वर प्रसाद ने इस घटना की सूचना सीओ (देवली) दीपक कुमार, एएसपी राकेश कुमार और एसपी ओमप्रकाश को दे दी. सूचना मिलने पर सीओ दीपक कुमार एवं एफएसएल टीम मौके पर पहुंच गई.

एफएसएल टीम द्वारा साक्ष्य उठाए गए, साथ ही 11 फरवरी को महिला के कंकाल को पोस्टमार्टम एवं डीएनए जांच के लिए अजमेर मैडिकल कालेज भेजा गया. मामले की गंभीरता को देखते हुए एसपी (टोंक) ने अपने निर्देशन में एक टीम का गठन किया. इस टीम को जल्द से जल्द अज्ञात महिला कंकाल के बारे में पता लगाने की जिम्मेदारी दी गई. इस टीम में एएसपी (मालपुरा) राकेश कुमार, सीओ दीपक कुमार, थानाप्रभारी (धाड़) रामेश्वर प्रसाद, हैडकांस्टेबल हरफूल, भैरूलाल, कांस्टेबल भागचंद, बजरंग, मेघराज, रामराज, कन्हैयालाल, महिला कांस्टेबल ज्योति और साइबर सेल के हैडकांस्टेबल सुरेशचंद शामिल थे.

पुलिस टीम ने सब से पहले महिला कंकाल से लिपटी हुई नीली साड़ी के पल्लू से बंधी मिली एक परची पर लिखे मोबाइल नंबर  की काल डिटेल्स निकाली. यह मोबाइल नंबर हरिराम मीणा पुत्र रामलाल मीणा, निवासी गांव भरनी का था. इस नंबर से सब से आखिर में महावीर मीणा से बात हुई थी. महावीर और हरिराम मीणा काल डिटेल्स में संदिग्ध लगे तो पुलिस टीम ने 13 फरवरी को हरिराम को उठा लिया और उस से पूछताछ की. थोड़ी देर तक तो वह आनाकानी करता रहा. मगर फिर जब पुलिसिया तेवर दिखाए तो वह तोते की तरह बोलने लगा. उस ने अपना जुर्म कबूल कर लिया.

पता चला कि वह लाश टोंक जिले के गांव जगनतन ढिकला निवासी कमला मोग्या की थी. वह राजू मोग्या की बेटी थी. इस के बाद दूसरे आरोपी महावीर मीणा को भी पुलिस ने हिरासत में ले लिया. उस से पूछताछ की गई तो उस ने भी अपना जुर्म स्वीकार कर लिया. तब पुलिस ने महिला कंकाल के पास मिले सामान को देखने के लिए राजू मोग्या, उस की पत्नी रतनीबाई और मृतका कमला मोग्या की छोटी बहन को धाड़ थाने पर बुलाया. इन्होंने महिला कंकाल के पास मिले सामान को देख कर अपनी बेटी कमला मोग्या पत्नी कालूलाल मोग्या के रूप में शिनाख्त कर ली.

लाश की शिनाख्त हो जाने और आरोपियों के गिरफ्तार होने पर पुलिस ने चैन की सांस ली. कमला की हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया गया. मैडिकल कालेज में कंकाल की जांच हो जाने के बाद वह मृतका के पिता राजू मोग्या को सौंप दिया. उन्होंने कंकाल का अंतिम संस्कार कर दिया. पुलिस ने मृतका के मातापिता राजू एवं रतनीबाई का डीएनए टेस्ट भी कराया ताकि सच सामने आ सके. पुलिस अधिकारियों ने कमला के खून से हाथ रंगने वाले आरोपी महावीर मीणा और हरिराम मीणा से कड़ी पूछताछ की. पूछताछ में जो कहानी प्रकाश में आई, वह कुछ इस प्रकार से है—

कमला मोग्या की शादी आज से करीब 10 साल पहले कालूलाल मोग्या से हुई थी. कमला के मातापिता ने गरीबी में जीवन गुजारा था. मगर अपनी बेटी कमला की हर ख्वाहिश पूरी की थी. कमला सांवले रंग की आकर्षक नैननक्श की नवयौवना थी. शादी के बाद उसे कालूलाल जैसा मेहनतकश इंसान पति के रूप में मिला था. वक्त के साथ कमला 3 बच्चों की मां बनी. ये तीनों बेटे हैं. इस समय इन की उम्र 7 साल, 5 और 3 साल है. कालूलाल मेहनतमजदूरी में दिनरात खटता था. इस कारण वह थकामांदा रात को घर लौट कर खाना खा कर बिस्तर पर पड़ता और सो जाता था. कालू की पत्नी कमला की हसरतें अभी जवान थीं. वह चाहती थी कि उस का पति उसे बांहों में ले कर आनंदलोक की सैर कराए.

मगर कालू की हाड़तोड़ मेहनत ने उसे थका दिया था. अगर इंसान के तन की ज्वाला ठंडी नहीं हो तो वह बहकने लगता है. अपने सुख के लिए उस के कदम बहकने लगते हैं. कालू तो अपनी बीवी और बच्चों के भरणपोषण के लिए रातदिन मेहनतमजदूरी कर रहा था. वहीं कमला अपने देहसुख के लिए अपने जुगाड़ में लगी थी. आज से करीब 10 महीने पहले कालू ने ढिकला निवासी दिव्यांग युवक महावीर मीणा का खेत बटाई (हिस्सेदारी) पर ले लिया. इस के बाद कालू अपनी पत्नी कमला एवं तीनों बेटों के साथ जंगलतन से ढिकला स्थित महावीर के खेत में झोपड़ी बना कर रहने लगा.

खेत में रहते हुए कुछ दिन ही हुए थे कि एक रोज महावीर खेत देखने आया. उस समय कालू खेत में काम कर रहा था. कालू की बीवी कमला झोपड़ी में बैठी खाना बना रही थी. महावीर सीधे झोपड़ी में चला गया. उस समय कमला घुटनों तक साड़ी उठा कर बैठी थी. महावीर की नजर कमला की गोरी पिंडलियों पर पड़ी. उस की कामवासना जाग उठी. महावीर ने कहा, ‘‘क्या पका रही है कालू भाई के लिए?’’

सुन कर कमला चौंकी. उस ने आगंतुक पर नजर डाली. वह उस की गोरी पिंडलियों की तरफ ताक रहा था. कमला ने झट से साड़ी नीचे की. इसी हड़बड़ाहट में उस के उभारों पर से साड़ी हट गई. उन्नत उभार देख कर तो महावीर बावला ही हो गया. कमला ने साड़ी को ठीक किया और बोली, ‘‘आप को पहचाना नहीं.’’

‘‘मैं महावीर हूं. यह खेत मेरा ही है.’’ सुन कर कमला बोली, ‘‘अच्छा, तो आप महावीरजी हैं. आइए, बैठिए. मैं चाय बनाती हूं.’’

महावीर खटिया पर बैठ गया. कमला चाय बनाने लगी. तभी कालू भी आ गया. महावीर और कालू बातें करने लगे. कमला चाय बना लाई. सभी ने चाय पी. इस के बाद महावीर ने कहा कि कोई चीज चाहिए तो बोल देना. परेशान मत होना. मुझे अपना ही समझना. इस के बाद महावीर खेत में फसल देख कर गांव चला गया. महावीर की आंखों में 3 बच्चों की मां कमला का मादक बदन बस गया. वह सारी रात उसे पाने का षडयंत्र मन ही मन करता रहा. महावीर 2 दिन बाद फिर खेत जा पहुंचा. खेत तो बहाना था. उसे तो कमला को रिझाना था. इस कारण वह दुकान से बच्चों के लिए खानेपीने की चीजें भी लाया था.

कमला से महावीर हंसीठिठोली करने लगा. वह उस की सुंदरता की तारीफ भी करता था. कमला द्वारा बनी चाय का बखान भी करता था. महावीर इस के बाद अकसर 2-4 दिन बाद खेत जाने लगा. वह कमला को ललचाई नजर से देखता. उस रोज कालू काम से कहीं गया हुआ था. महावीर आ गया खेत पर. कमला से पता चला कि कालू शाम तक घर लौटेगा. बस उस रोज महावीर ने बिसकुट, भुजिया दे कर बच्चों को झोपड़ी से बाहर खेलने भेज दिया. उस के बाद महावीर ने कमला से पूछा, ‘‘लगता है, मेरा आना तुम्हें अच्छा नहीं लगता.’’

‘‘नहींनहीं, ऐसी कोई बात नहीं. मुझे तो तुम बहुत अच्छे लगते हो.’’ कमला ने कहा.

सुन कर महावीर ने आव देखा न ताव, कमला को बांहों में भर लिया. थोड़ी सी नानुकुर के बाद कमला ने अपना तन महावीर के हवाले कर दिया. महावीर और कमला वासना के दरिया में गोते लगाने लगे. कमला को महावीर ने ऐसा शारीरिक सुख दिया कि वह उस की दीवानी हो गई. कमला भूल गई कि वह शादीशुदा और 3 बेटों की मां है. उस के ये बहके कदम उसे कहीं का नहीं छोडेंगे अवैध संबंधों का परिणाम बहुत खतरनाक होता है. कमला को जो शारीरिक सुख महावीर ने कई बरसों बाद दिया था, उस सुख की खातिर वह अपने पति और बच्चों तक को ताक पर रख कर महावीर के साथ भाग जाने को तैयार हो गई थी.

कालू शरीफ था. उसे पता नहीं था कि उस की गैरमौजूदगी में उस की बीवी गैरमर्द के साथ रंगरलियां मनाती है. वह तो सोचता था कि महावीर अपनी खेती देखने आता है. जबकि महावीर तो कमला से मिलने आता था. कालू वहीं खेत पर रहता था. इस कारण कमला और महावीर का मिलन नहीं हो पाता था. ऐसे में वासना की आग में जल रहे महावीर और कमला ने योजना बनाई कि वे दोनों चुपके से भाग जाएंगे. महावीर ने कमला से कहा, ‘‘मैं ने देवली में कमरा किराए पर ले लिया है. तुम वहीं रहना. मैं भी आताजाता रहूंगा. बाद में जब सब कुछ ठीक हो जाएगा, तब मैं तुम से शादी कर लूंगा और बच्चों को भी अपना लूंगा.’’

सुन कर कमला बहुत खुश हुई. करीब 7 महीने पहले एक रोज कमला बिना कुछ बताए कहीं चली गई. महावीर योजनानुसार कमला को ले कर देवली कस्बे पहुंचा और किराए के कमरे में कमला को छोड़ कर वापस गांव ढिकला आ गया ताकि उस पर कोई शक न करे. उधर पत्नी के अचानक गायब हो जाने पर कालू को कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था कि उस की पत्नी गई तो गई कहां. कालू ने उस की बहुत खोजबीन की. रिश्तेदारी में ढूंढा. मगर कमला का कोई पता नहीं चल सका. उसे जमीन खा गई थी या आसमान निगल गया था. थकहार कर कालू ने थाना दूनी में कमला की गुमशुदगी दर्ज करा दी.

पुलिस ने उस की कोई खोजबीन नहीं की. पुलिस वालों ने कहा कि कहीं गई होगी. अपने आप आ जाएगी. गरीब की भला कौन सुनता है. कालू बीवी की खोजबीन कर के थक गया. वह अपने तीनों बच्चों की परवरिश करने लगा. कालूलाल अब बच्चों की देखभाल करने लगा. उस का कामधंधा छूट गया था. कालू काम पर जाए तो बच्चों की देखरेख कौन करे. इस कारण कालू अपनी बीवी के वियोग में मासूम बच्चों को जैसेतैसे पालने लगा. उधर महावीर का जब मन होता तो वह देवली जाता और कमला के साथ रंगरलियां मनाता. वह कभी गांव तो कभी देवली में प्रेमिका कमला के साथ रातें रंगीन कर रहा था. कुछ समय बाद महावीर ने कमला को देवली से निवाई कस्बे में किराए के कमरे में शिफ्ट कर दिया.

महावीर अब निवाई में कमला के साथ मौजमस्ती करने लगा. कमरे का किराया और कमला के खानेपीने का सारा खर्च महावीर मीणा उठाता था. महावीर निवाई में 2 दिन रहता. फिर गांव ढिकलाआ जाता. गांव में 2-3 दिन रहता फिर निवाई कमला के पास चला जाता. महावीर के निवाई से वापस गांव जाने के बाद कमला अकेली रह जाती थी. वह बमुश्किल समय अकेले काटती थी. ऐसे में कमला ने तय कर लिया कि वह अब महावीर के साथ ढिकला जा कर रहेगी. उसे अपने बच्चों की भी याद सता रही थी. महावीर जब जनवरी के दूसरे हफ्ते में निवाई कमला से मिलने आया तब कमला ने उस से कहा कि अब वह यहां अकेली नहीं रहेगी.

कमला ने दबाव बनाया कि वह अपने साथ उसे गांव ढिकला में रखे और बच्चों को भी अपनाए. सुन कर महावीर मीणा के हाथों के तोते उड़ गए. महावीर और कमला के अवैध संबंधों की खबर उस के गांव ढिकला में भी पता चल चुकी थी. महावीर के अकसर देवली और बाद में निवाई जा कर रहने का राज गांव में उजागर हो गया था. अब कमला उस के साथ ढिकला चलने की जिद करने लगी थी. ऐसे में अब तक महावीर गांव के लोगों से कहता रहा था कि कमला के बारे में जो बातें कही जा रही हैं, वह गलत हैं. उसे तो पता तक नहीं कि कमला है कहां.

ऐसे में जब उस के साथ कमला को लोग देखेंगे तो उस की समाज और गांव में बदनामी होगी. तब महावीर ने बदनामी के डर से कमला को ही रास्ते से हटाने का निर्णय ले लिया. महावीर ने कमला को झूठा विश्वास दिलाया कि वह एकदो दिन में उसे गांव ढिकला ले जाएगा. उस की बात सुन कर कमला खुश हो गई. महावीर ने भरनी निवासी अपने ममेरे भाई हरिराम मीणा से इस बारे में बात की और अपने पास बुलाया. इस के बाद योजनानुसार 11 जनवरी, 2021 को महावीर और हरिराम मीणा बाइक द्वारा निवाई कमला के पास पहुंचे. रात वहीं कमला के पास रुके.

अगले दिन कमरे का हिसाब वगैरह कर के कमला के साथ मोटरसाइकिल पर टोंक पहुंचे. टोंक घूमने के बाद 12 जनवरी, 2021 को चौथ का बरवाड़ा घुमाते रहे. फिर शाम हो जाने के बाद केरली कुंड आए. वहां महावीर और हरिराम ने शराब पी. इस के बाद बड़ोली के जंगल में पहुंचे और वहां एक नीम के पेड़ के नीचे बैठ गए. वहीं पर उन्होंने मौका पा कर कमला को गला दबा कर मार डाला और उस के शव को सरसों के खेत में डाल कर ढिकला में अपने घर आधी रात को आ कर सो गए. कमला ने हरिराम के मोबाइल नंबर की परची अपनी साड़ी के पल्लू में बांध रखी थी ताकि कभी उस से बात करेगी. इसी परची ने पुलिस को हत्यारों तक पहुंचा दिया.

सरसों के खेत में कमला की लाश पड़ी रही. 12 जनवरी, 2021 की रात 11 बजे कमला की हत्या कर शव गोकुल जाट के खेत में सरसों की फसल के बीच फेंका गया था. लाश सरसों के बीच खेत में पड़ी रही. करीब एक महीने तक पड़ी यह लाश सड़गल कर कंकाल बन गई. जब 10 फरवरी, 2021 को हत्याकांड से करीब महीने भर बाद सरसों की कटाई मजदूरों द्वारा की जा रही थी, तब उन की नजर कंकाल पर पड़ी. इस के बाद खेत मालिक गोकुल जाट ने सरपंच धनपत माली को कंकाल मिलने की खबर दी. सरपंच ने धाड़ थाने के थानाप्रभारी रामेश्वर प्रसाद को सूचना दी. पुलिस ने पूछताछ पूरी होने पर दोनों आरोपियों महावीर मीणा और हरिराम मीणा को कोर्ट में पेश कर न्यायिक अभिरक्षा में भेज दिया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

UP News : पत्रकार आशु यादव हत्याकांड – बेवफा प्रेमिका निकली कातिल की मास्टरमाइंड

UP News : बहकी हुई महिला के कदम अकसर किसी अपराध को जन्म देते हैं. एक पुलिसकर्मी की बेटी दीपिका शुक्ला ने पति बल्ली शुक्ला और 2 बेटियों को छोड़ कर अवनीश शर्मा से शादी कर ली. इस के बाद हिस्ट्रीशीटर और कथित पत्रकार आशू यादव से उस के अनैतिक संबंध हो गए. फिर वह अमित के संपर्क में आई. इस का नतीजा यह हुआ कि…

2 जनवरी, 2021 की सुबह धर्मेंद्र नगर, कच्ची बस्ती के कुछ लोग मार्निंग वाक पर निकले तो उन्होंने सीटीआई नहर किनारे सरस्वती शिशु मंदिर स्कूल की बाउंड्री वाल के पास एक लावारिस कार खड़ी देखी. स्थानीय लोगों में चर्चा शुरू हुई, तो लोगों की भीड़ जुट गई. इसी बीच किसी ने फोन कर के थाना बर्रा पुलिस को सूचना दे दी. सूचना मिलते ही थानाप्रभारी हरमीत सिंह पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर आ गए. उन्होंने कार का बारीकी से निरीक्षण किया. कार के शीशों पर काली फिल्म चढ़ी थी, जिस से अंदर का कुछ भी दिखाई नहीं पड़ रहा था.

कार के पिछले शीशे पर एक स्टिकर चिपका था, जिस पर लिखा था ‘अमर स्तंभ हिंदी दैनिक समाचार पत्र’ आशू यादव संवाददाता. स्टिकर पर ‘पुलिस’ और मोबाइल नंबर भी लिखा था. हरमीत सिंह ने अनुमान लगाया कि कार किसी पत्रकार की हो सकती है. उन्होंने स्टिकर पर लिखा मोबाइल नंबर मिलाया, लेकिन वह बंद था. कार के अंदर की स्थिति को जानने के लिए हरमीत सिंह ने कार का पिछला दरवाजा खोला, तो वह सहम गए. पिछली सीट पर एक युवक की लाश पड़ी थी. हरमीत सिंह ने लावारिस कार से शव बरामद होने की सूचना पुलिस अधिकारियों को दी तो मौके पर एसएसपी प्रीतिंदर सिंह, एसपी (पूर्वी) राजकुमार अग्रवाल, एसपी (साउथ) दीपक भूकर तथा सीओ (गोविंद नगर) विकास कुमार पांडेय आ गए.

पुलिस अधिकारियोें ने मौके पर फोरैंसिक टीम को भी बुला लिया. पुलिस अधिकारियों ने बारीकी से कार तथा शव का निरीक्षण किया. मृतक की उम्र 30 वर्ष के आसपास थी. उस के शरीर पर चोटों के निशान थे और गले पर रगड़ का निशान था. इस से अनुमान लगाया कि युवक की हत्या रस्सी से गला घोंट कर की गई होगी. हत्या से पहले संभवत: उस के साथ मारपीट भी की गई थी. फोरैंसिक टीम ने कार से फिंगरप्रिंट लिए तथा अन्य साक्ष्य जुटाए. कार की तलाशी में शराब की एक खाली बोतल, 4 शिकायती पत्र, 2 माइक, आगे की सीट के नीचे प्लास्टिक बैग में 2 टेडीबियर, कोटी, फोटो लगे कई स्टिकर तथा मृतक की जेब से 300 रुपए बरामद हुए. इस सामान को पुलिस ने जाब्ते में ले लिया.

अब तक शव को सैकड़ों लोग देख चुके थे, लेकिन कोई उस की पहचान नहीं कर पाया था. जिस से पुलिस अधिकारियों ने अनुमान लगाया कि मृतक आसपास का नहीं है. अत: उन्होंने शव की पहचान कराने के लिए कानपुर शहर के सभी थानों को कंट्रोलरूम से अज्ञात लाश मिलने के संबंध में सूचना प्रसारित करा दी. कुछ देर बाद ही थाना रेलबाजार के थानाप्रभारी दधिबल तिवारी ने एसपी (पूर्वी) राजकुमार अग्रवाल को सूचना दी कि उन के थाने में आशू यादव नाम के युवक की गुमशुदगी दर्ज है, जो कथित पत्रकार तथा हिस्ट्रीशीटर है. चूंकि कार में लगे पोस्टर में भी आशू यादव का नाम छपा था, अत: एसपी अग्रवाल ने दधिबल तिवारी को आदेश दिया कि वह आशू के घरवालों को साथ ले कर जल्द ही धर्मेंद्र नगर कच्ची बस्ती स्थित नहर की पटरी पर पहुंचें.

आदेश पाते ही दधिबल तिवारी ने आशू यादव के घरवालों को सूचना दी, फिर उन्हें साथ ले कर वहां पहुंच गए. घरवालों ने कार में पड़े शव को देखा तो वे फफक कर रो पड़े. कंचन, शानू, धर्मेंद्र तथा जितेंद्र ने बताया कि शव उन के भाई आशू यादव का है. कार भी उसी की है. रात से लापता था मृतक की बहन शानू व कंचन ने पुलिस अधिकारियों को बताया कि 31 दिसंबर की रात डेढ़ बजे किसी का फोन आने पर आशू अपनी कार ले कर घर से निकला था, फिर रात को वापस नहीं आया. आशू अपने पास 3 मोबाइल फोन रखता था. सुबह हम लोगों ने उस के तीनों नंबरों पर संपर्क करने की कोशिश की, लेकिन तीनों नंबर बंद थे.

इस के बाद हम लोग उस की खोज में जुट गए. चिंता इसलिए भी बढ़ गई थी कि पहली जनवरी को उस का जन्मदिन था. अपना जन्मदिन वह धूमधाम से मनाता था और दोस्तों को बुलाता था. लेकिन उस का कुछ पता नहीं चल रहा था. दिन भर खोजने के बाद जब उस का कुछ भी पता नहीं चला तो उन्होंने शाम को थाना रेलबाजार जा कर उस की गुमशुदगी दर्ज करा दी थी. बहन कंचन ने यह भी बताया कि आशू गले में सोने की चेन तथा दोनों हाथों में सोने की 6 अंगूठियां पहने हुआ था. हत्यारों ने उस के तीनों मोबाइल, चेन तथा अंगूठियां लूट ली हैं. चूंकि शव की शिनाख्त हो गई थी. अत: पुलिस ने घटनास्थल की काररवाई निपटाने के बाद शव को पोस्टमार्टम के लिए लाला लाजपतराय अस्पताल भिजवा दिया.

आशू यादव की गुमशुदगी थाना रेलबाजार में दर्ज थी, अत: थानाप्रभारी दधिबल तिवारी ने मृतक की बहन कंचन की ओर से भादंवि की धारा 364/302/201/120बी के तहत अज्ञात हत्यारों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली. रिपोर्ट दर्ज होने के बाद एसएसपी प्रीतिंदर सिंह ने मृतक आशू यादव के भाई धर्मेंद्र यादव से घटना के संबंध में पूछताछ की. पूछताछ में धर्मेंद्र ने बताया कि उस का भाई आशू हिंदी दैनिक समाचार पत्र ‘अमर स्तंभ’ में काम करता था. कुछ समय पहले उस ने क्षेत्रीय पार्षद मधु के पति राजू सोनकर व उन के बेटों के कारनामोें के खिलाफ समाचार छापा था, जिस पर राजू ने झगड़ा किया था और उस के बेटे अति व सोनू सोनकर ने आशू को जान से मारने की घमकी दी थी. आशू की हत्या में इन्हीं लोगों का हाथ है.

संदेह के आधार पर पुलिस ने राजू व उस के बेटों से पूछताछ की. लेकिन कुछ हाथ नहीं लगा. अत: पूछताछ के बाद उन्हें थाने से घर भेज दिया गया. चूंकि मामला एक कथित पत्रकार व हिस्ट्रीशीटर की हत्या का था. अत: एसएसपी प्रीतिंदर सिंह ने इस ब्लाइंड मर्डर की गुत्थी सुलझाने के लिए तीन टीमों का गठन किया. इन तीनों टीमों को एसपी (पूर्वी) राजकुमार अग्रवाल व एसपी (साउथ) दीपक भूकर के निर्देशन में काम करना था. इन टीमों में इंसपेक्टर (नौबस्ता) सतीश कुमार सिंह, इंसपेक्टर (बर्रा) हरमीत सिंह, इंसपेक्टर (रेलबाजार) दधिबल तिवारी, सीओ (गोविंदनगर) विकास कुमार पांडेय तथा सर्विलांस टीम को शामिल किया गया.

पुलिस की तीनों टीमों ने अलगअलग जांच शुरू की. आशू यादव 31 दिसंबर की रात डेढ़ बजे अपने घर खपरा मोहाल से निकला था और उस के मोबाइल फोन की आखिरी लोकेशन 31 दिसंबर की रात 2:37 बजे मसवानपुर की मिली थी. मिलने लगे सबूत पुलिस की एक टीम ने खपरा मोहाल से घंटाघर, जरीब चौकी, विजय नगर व मसवानपुर तक रोड पर लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज खंगाली तथा दूसरी टीम ने दूसरे रोड की फुटेज को खंगाला, जिस में आशू की कार मसवानपुर जाते समय फजलगंज व विजयनगर चौराहे पर जाते समय तो दिखी पर लौटते समय दिखाई नहीं दी.

जाहिर था कि हत्या के बाद हत्यारे आशू की कार को किसी दूसरे रूट से लाए थे और धर्मेंद्र नगर स्थित नहर पटरी पर कार को खड़ा कर दिया था. सर्विलांस टीम ने मृतक आशू के तीनों मोबाइल नंबरों की काल डिटेल्स निकलवाई तो पता चला कि 31 दिसंबर की देर रात आशू के मोबाइल फोन पर आखिरी काल एक महिला की आई थी. वह महिला सीतापुर में रहने वाली शालिनी थी. पुलिस जब उस के पते पर पहुंची तो पता चला कि उस फोन नंबर का इस्तेमाल मसवानपुर निवासी दीपिका शुक्ला कर रही थी.

टीम ने दीपिका के संबंध में जानकारी जुटाई तो पता चला कि वह शातिर अपराधी है. शिवली, सचेंडी व कोहना थाने में उस के खिलाफ कई मुकदमे दर्ज हैं. नकली शराब बनाने व बेचने के जुर्म में वह पति के साथ जेल गई थी और अब जमानत पर थी. सर्विलांस टीम ने उस के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकलवाई तो हिस्ट्रीशीटर अमित गुप्ता के बारे में जानकारी मिली. अमित गुप्ता के फोन की डिटेल्स के जरिए टीम को उस के 2 साथियों जूहीलाल कालोनी निवासी किशन वर्मा व सचिन वर्मा की जानकारी मिली. अमित के मोबाइल फोन पर 31 दिसंबर की रात 2:08 बजे एक मैसेज भेजा गया था, जिस में लिखा था- ‘बुला लो भाई उस को, आज हो जाएगा काम.’ जांच से पता चला कि जिस नंबर से मैसेज भेजा गया था, वह किशन का था.

पुख्ता सबूत मिलने के बाद पुलिस की संयुक्त टीमों ने 3 जनवरी, 2021 की रात 11 बजे किशन वर्मा व सचिन वर्मा के जूही लाल कालोनी स्थित घर से दोनों को गिरफ्तार कर लिया. उन दोनों को थाना रेलबाजार लाया गया. थाने में जब किशन व सचिन वर्मा से आशू यादव की हत्या के संबंध में सख्ती से पूछताछ की गई तो वे टूट गए और हत्या का जुर्म कबूल कर लिया. उन दोनों की निशानदेही पर पुलिस टीमों ने मसवानपुर स्थित दीपिका के घर छापा मारा. लेकिन दीपिका और अमित फरार हो चुके थे. दीपिका के घर से पुलिस ने वह रस्सी बरामद कर ली, जिस से आशू का गला घोंटा गया था.

पूछताछ में आरोपी किशन वर्मा व सचिन ने बताया कि आशू की हत्या प्रेम त्रिकोण में की गई थी. आशू व अमित दोनों का दीपिका से नाजायज रिश्ता था. अमित को आशू और दीपिका की नजदीकियां पसंद नहीं थीं, इसलिए उस ने दीपिका के साथ मिल कर आशू को मौत की नींद सुला दिया. रुपयों के लालच में उन दोनों ने भी अमित का साथ दिया. हत्या मसवानपुर स्थित दीपिका के घर की गई थी. 4 जनवरी, 2021 को रेलबाजार थाना प्रभारी दधिबल तिवारी ने आशू यादव की हत्या का खुलासा करने की जानकारी पुलिस अधिकारियों को दी तो एसएसपी प्रीतिंदर सिंह, एसपी (पूर्वी) राजकुमार अग्रवाल, एसपी (साउथ) दीपक भूकर ने पुलिस लाइन सभागार में प्रैसवार्ता की. एसएसपी ने केस का खुलासा करने वाली टीम को 25 हजार रुपया ईनाम देने की भी घोषणा की.

चूंकि आशू यादव की हत्या का मुकदमा रेलबाजार थाने में पहले से अज्ञात में दर्ज था. अत: खुलासा होने के बाद थानाप्रभारी दधिबल तिवारी ने इस मामले में 4 आरोपी दीपिका शुक्ला, अमित गुप्ता, किशन वर्मा व सचिन वर्मा को नामजद कर दिया. 2 आरोपी दीपिका व अमित फरार थे. आरोपियों से पूछताछ में प्रेम त्रिकोण में हुई हत्या का सनसनीखेज खुलासा हुआ. उत्तर प्रदेश के कानपुर शहर के थाना रेलबाजार के अंतर्गत एक मोहल्ला है-खपरा मोहाल. इसी मोहल्ले के मकान नंबर डी-19 में छोटे सिंह यादव रहते थे. उन के परिवार में पत्नी मालती के अलावा 3 बेटे धर्मेंद्र, जितेंद्र, आशू तथा 2 बेटियां शानू व कंचन थीं. छोटे सिंह की जनरल स्टोर की दुकान थी. उसी की आमदनी से परिवार का भरणपोषण होता था.

3 भाइयों में आशू यादव मंझला था. छोटे सिंह का पूरा परिवार आपराधिक प्रवृत्ति का था. आशू का भाई धर्मेंद्र व चाचा बड़े यादव रेलबाजार थाने के हिस्ट्रीशीटर थे. आशू भी अपने घरवालों की राह पर चल पड़ा. यद्यपि वह पढ़ालिखा व तेजतर्रार था. आशू ने अपराध जगत से नाता जोड़ा तो उस ने अपने चाचा व भाइयों को भी पीछे छोड़ दिया. कुछ समय बाद ही उस पर थाना रेलबाजार, छावनी, फीलखाना समेत अन्य थानों में एनडीपीएस ऐक्ट, शस्त्र अधिनियम, गुंडा अधिनियम, रंगदारी, अपहरण समेत अन्य संगीन धाराओं के 10 मुकदमे दर्ज हो गए. वह रेलबाजार थाने का हिस्ट्रीशीटर बन गया.

आशू यादव ने पुलिसकर्मी राकेश कुमार की बेटी ज्योति से लवमैरिज की थी. राकेश कुमार उन दिनों कानपुर शहर के हरवंश मोहाल थाने में तैनात थे. उन का परिवार भी साथ रहता था. इसी दौरान आशू की मुलाकात ज्योति से हुई. दोनों में प्रेम संबंध बने, फिर ज्योति ने घरवालोें की मरजी के खिलाफ आशू से प्रेम विवाह कर लिया. ज्योति के 7 वर्षीय बेटा शुभ तथा 5 वर्षीया बेटी सोनाक्षी हैं. हिस्ट्रीशीटर बन गया पत्रकार आशू यादव बड़ी ही शानोशौकत से रहता था. अवैध कमाई से उस ने कार भी खरीद ली थी. वह शातिर दिमाग था.

पुलिस से बचने के लिए उस ने हिंदी दैनिक समाचार पत्र ‘अमर स्तंभ’ में काम करना शुरू कर दिया था. उस ने अपनी कार पर भी अमर स्तंभ का स्टिकर लगा लिया था. शासनप्रशासन के अधिकारियों से वह पत्रकार के रूप में ही मिलता था. पत्रकारिता की आड़ में वह जायजनाजायज काम करने लगा था. लोगों से धन वसूली भी करता था. सन 2019 में आशू यादव किसी मामले में जेल गया तो वहां उस की मुलाकात मोती मोहाल निवासी अमित गुप्ता व कल्याणपुर निवासी अवनीश कुमार शर्मा से हुई. तीनों एक ही बैरक में थे. अमित शातिर अपराधी था. उस ने रुपए व जेवर हड़पने के लिए कल्याणपुर निवासी बुआ बिट्टो, फूफा पवन गुप्ता तथा बिट्टो की सास रानी की हत्या कर दी थी.

पकड़े जाने के बाद अदालत ने उसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी. अवनीश कुमार शर्मा नकली शराब बनाने व बेचने के जुर्म में जेल में था. चूंकि तीनों शातिर अपराधी थे, अत: उन के बीच दोस्ती हो गई. अवनीश शर्मा की ही पत्नी का नाम दीपिका शुक्ला था. वह भी पति के अवैध कारोबार में हाथ बंटाती थी. दीपिका मूलरूप से शिवली थाने के गांव भीखर की रहने वाली थी. उस के पिता अशोक चतुर्वेदी मुंबई पुलिस में हवलदार थे. रिटायर होने के बाद उन की मुजफ्फरनगर में हत्या कर दी गई थी. कुछ दिनों बाद मां की भी मौत हो गई. उस के बाद सन 2002 में दीपिका ने शिवली थाने के बैरी सवाई गांव निवासी बल्ली शुक्ला उर्फ हरीराम शुक्ला से शादी कर ली.

बल्ली शुक्ला से दीपिका ने 2 बेटियों को जन्म दिया. बल्ली शुक्ला के पड़ोस में अवनीश शर्मा रहता था. उस का बल्ली शुक्ला के घर आनाजाना था. घर आतेजाते अवनीश शर्मा ने दीपिका को अपने प्यार के जाल में फंसा लिया. वर्ष 2016 में अवनीश की दीवानी दीपिका 2 बेटियों को छोड़ कर अवनीश के साथ भाग गई. अवनीश कल्याणपुर में रहता था और नकली शराब बनाता व बेचता था. दीपिका भी अवनीश के साथ नकली शराब बनाने व बेचने का काम करने लगी. उस ने कई शराब तस्करों से अपने संबंध मजबूत कर लिए और उन के मार्फत शिवली, सचेंडी, घाटमपुर तथा कानपुर में नकली शराब बेचने लगी थी.

सन 2017 में नकली व जहरीली शराब पीने से घाटमपुर व सचेंडी में 17 लोगों की मौत हो गई थी. इस मामले में वह अवनीश के साथ पहली बार जेल गई. उस के बाद सन 2019 में कोहना तथा शिवली थाने से भी नकली शराब बनाने व बेचने के जुर्म में जेल गई. कोहना थाने से उसे गैंगस्टर ऐक्ट में जेल भेजा गया था. इस मामले में उसे जून 2020 में जमानत मिली और वह बाहर आ गई. आशू यादव जब जेल से बाहर आया तो उस ने दीपिका से मुलाकात की. मुलाकातें प्यार में बदलीं, फिर दोनों के बीच नाजायज रिश्ता बन गया. दीपिका उस की कार में घूमने लगी तथा उस के घर भी जाने लगी. आशू उस की आर्थिक मदद भी करने लगा.

इधर आजीवन कारावास की सजा भुगत रहे अमित गुप्ता को सितंबर 2020 में पैरोल मिल गई. अमित पैरोल पर बाहर आ रहा था, तो अवनीश ने उस से कहा कि वह उस की पत्नी दीपिका का खयाल रखे तथा उसे भी जेल से बाहर निकलवाने की कोशिश करे. कपड़ों की तरह बदलती रही प्रेमी अमित ने जेल से बाहर आ कर दीपिका से संपर्क किया. कुछ दिनों में ही दोनों के बीच अवैध संबंध बन गए. वह दीपिका को ले कर अपने घर मोतीमोहाल पहुंचा. अमित के घरवालों ने दीपिका को घर में रखने की इजाजत नहीं दी. इस पर वह दीपिका को ले कर मसवानपुर में अनिल शुक्ला के मकान में किराए पर रहने लगा. दिखावे के लिए उस ने बाजार में कपड़े की दुकान खोल ली.

दीपिका के साथ रहते अमित को पता चला कि दीपिका के उस के दोस्त आशू यादव से पहले से ही नाजायज संबंध हैं. यह बात अमित को नागवार लगी और उस ने आशू को मिटाने की ठान ली. उस ने दीपिका से साथ देने को कहा तो वह आनाकानी करने लगी. इस पर अमित ने दीपिका को धमकी दी कि वह साथ नहीं देगी तो वह आशू और उस के नाजायज रिश्तों की बात उस के पति अवनीश को बता देगा. इस धमकी से दीपिका डर गई और वह अमित का साथ देने को राजी हो गई. इस के बाद अमित ने दीपिका के साथ मिल कर आशू के कत्ल की योजना बनाई और अपनी योजना में दोस्त किशन वर्मा व सचिन वर्मा को भी पैसों का लालच दे कर शामिल कर लिया.

योेजना के तहत 31 दिसंबर की रात डेढ़ बजे दीपिका ने आशू के मोबाइल फोन पर काल की और जन्मदिन की बधाई दी. साथ ही घर आने तथा मौजमस्ती करने का आमंत्रण भी दिया. इस के बाद आशू सजसंवर कर अपनी कार से दीपिका के घर मसवानपुर पहुंच गया. जन्मदिन की खुशी में दीपिका ने उसे खूब शराब पिलाई. आशू जब नशे में धुत हो गया तभी अमित अपने साथियों किशन व सचिन के साथ घर आ गया. दोनों ने आशू को दबोच लिया और खूब पिटाई की. फिर अमित व दीपिका ने मिल कर रस्सी से आशू का गला घोंट दिया. इस बीच दीपिका ने आशू के 3 मोबाइल फोन कब्जे में ले कर स्विच्ड औफ कर दिए तथा आशू के गले से सोने की चेन तथा दोनों हाथों से सोने की 6 अंगूठियां उतार लीं.

इस के बाद सब ने मिल कर आशू के शव को उस की कार में रखा और कार बर्रा थाना क्षेत्र के धर्मेंद्र नगर कच्ची बस्ती ला कर नहर की पटरी पर खड़ी कर दी. उस के बाद वे सब फरार हो गए. थाना रेलबाजार पुलिस ने अभियुक्त किशन वर्मा व सचिन वर्मा से पूछताछ के बाद उन्हें 4 जनवरी, 2021 को कानपुर कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. मुख्य आरोपी अमित गुप्ता तथा दीपिका शुक्ला फरार थीं. पुलिस सरगरमी से उन की तलाश में जुटी थी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Rajasthan News : लव जिहाद मामला, जिसने सभी को कर डाला हैरान

Rajasthan News : सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन है कि यदि विपरीत धर्म के बालिग युवकयुवती स्वेच्छा से शादी करते हैं तो इसे लव जिहाद का नाम न दिया जाए. लेकिन पिछले दिनों बीकानेर में जो हुआ, वह आरोपोंप्रत्यारोपों का लव जिहाद ज्यादा नजर आता है, क्योंकि शादी करने वाली लड़की मनीषा जो कह रही है वह…

राजस्थान का बीकानेर वैसे तो भुजिया पापड़ के लिए मशहूर है. लेकिन पिछले दिनों बीकानेर का कथित लव जिहाद का मामला सुर्खियों में है. हाल ही में युवती मनीषा डूडी के पिता और दादा ने हिंदू समाज से न्याय के लिए गुहार लगाई. उन का आरोप था कि उन की बच्ची मनीषा डूडी का अपहरण किया गया और इस के बाद मुसलिम लड़के मुख्तयार खान पुत्र मुन्ने खान ने उस के साथ शादी कर ली. मामला बीकानेर जिले की कोलायत तहसील के बज्जू क्षेत्र का है. वहीं के रहने वाले मनीषा डूडी के दादा हरीराम और पिता सत्यनारायण का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ, जिस में उन्होंने समाज के लोगों से बेटी मनीषा को छुड़वाने की अपील की थी.

साथ ही यह भी धमकी दी कि अगर उन की बेटी नहीं आएगी तो वह आत्महत्या कर लेंगे. वीडियो वायरल होने के बाद पुलिस ने इस मामले की जांच की और उसे लव जिहाद का मामला नहीं माना. सोशल मीडिया पर वीडियो वार छिड़ गई. प्रेम विवाह करने वाली युवती मनीषा डूडी जहां अपनी मरजी से किसी के दबाव में नहीं आ कर मुख्तयार खान से शादी करने की बात कह रही थी, वहीं बीकानेर पुलिस मनीषा के प्रेम विवाह करने की बात का समर्थन कर रही थी. तथाकथित लव जिहाद के मामले ने तूल पकड़ा तो 17 जनवरी, 2021 रविवार को केसरिया हिंदू वाहिनी संगठन सहित सर्वसमाज के संगठनों ने लव जिहाद के मामले का विरोध किया. बीकानेर कलेक्ट्रेट पर हजारों लोगों ने प्रदर्शन कर मामले की निष्पक्ष जांच कराने की मांग की.

तथाकथित लव जिहाद का मामला सोशल मीडिया में आने और इसे बढ़ावा देने पर सामाजिक कार्यकर्ता अंबेडकर कालोनी निवासी अकबर अली ने दर्ज कराया. सत्यनारायण डूडी और उस के पिता हरीराम डूडी निवासी मुक्ता प्रसाद कालोनी, बीकानेर के खिलाफ 17 जनवरी, 2021 को नया शहर थाने में रिपोर्ट दर्ज करा दी. अकबर अली की शिकायत पर पुलिस ने समाज में आपसी शत्रुता बढ़ाने, 4 वर्गों में वैमनस्यता पैदा करने और अशांति का माहौल बनाने का मामला दर्ज करा लिया. अब जानते हैं कि यह मुख्तयार कौन है, जिस पर मनीषा के साथ जबरन शादी करने के आरोप लग रहे हैं.

22 वर्षीय मुख्तयार खान पुत्र मुन्ने खान, निवासी गांव बीठनोक, तहसील कोलायत, जिला बीकानेर का था. वहीं 18 वर्षीय युवती मनीषा डूडी गांव आरडी-860 बांगड़सर, जिला बीकानेर के रहने वाले सत्यनारायण डूडी की बेटी थी. मुख्तयार खान और मनीषा ने प्रेम विवाह किया था. इस अंतरधार्मिक शादी को ले कर बीकानेर में खूब बवाल मचा कट्टरपंथी इसे लव जिहाद बनाने पर तुले थे. थाने में दिए गए सर्टिफिकेट के अनुसार दोनों ने बीकानेर के एफसीआई गोदाम के पास स्थित बंगला नगर में 10 दिसंबर, 2020 को शादी की. जांच में पुलिस को पता चला कि मुख्तयार खान और मनीषा के परिवार के घनिष्ठ संबंध थे.

दोनों के पिता मुन्ने खान और सत्यनारायण बिजनैस पार्टनर थे. इस वजह से मुख्तयार का मनीषा के घर आनाजाना था. इसी दौरान दोनों करीब आए और फिर शादी का निर्णय लिया. मनीषा ने अपील की कि उस के प्रेम के नाम पर राजनीति न की जाए. उस ने कहा कि उस से पहले क्या किसी हिंदू लड़की ने मुसलिम युवक से शादी नहीं की. ऐसी बहुत शादियां हुई हैं तो हमारा विरोध क्यों?

एसपी बीकानेर प्रीति चंद्रा ने कहा, ‘यह मामला लव जिहाद का नहीं है. युवकयुवती ने अपनी शादी के कागजात भी दिखाए. इस में कहीं भी लव जिहाद नहीं है. हम मामले पर नजर रखे हुए हैं. मनीषा के पास हमारा कौन्टैक्ट नंबर है, अगर वह हम से सुरक्षा की मांग करेगी तो हम आगे की काररवाई करेंगे.’

लड़की और लड़का प्रेम विवाह बता रहे थे. पुलिस भी यही कह रही थी. जबकि लड़की के परिजन इसे लव जिहाद बता रहे थे. इस घटना ने बीकानेर में सर्दी के मौसम में भी गरमी पैदा कर दी. सोशल मीडिया पर लोग अपनाअपना राग अलाप रहे थे. जाट जाति के हरीराम डूडी का परिवार काफी समय पहले बांगड़सर से बीकानेर शहर में आ बसा था. बीकानेर में आ कर सत्यनारायण ने कामधंधे की तलाश शुरू की. उन्हीं दिनों सत्यनारायण की जानपहचान प्रौपर्टी का धंधा करने वाले मुन्ने खान से हो गई. वह गांव बीठनोक, जिला बीकानेर का रहने वाला था. मुन्ने खान जाति से मांगणहार था. वह बीकानेर में रहता था. उन दिनों सत्यनारायण का परिवार बीकानेर की मुक्ताप्रसाद कालोनी में रह रहा था.

मुन्ने खान से दोस्ती गाढ़ी हुई तो मुन्ने खान के साथ सत्यनारायण ने पार्टनरशिप में धंधा शुरू किया. वैसे मांगणहार जाति के लोगों का पेशा गायनवादन है. मांगणहार जाति के लोग अपने यजमानों के घर पर बच्चे के जन्म, शादी एवं तीजत्यौहार पर जा कर गानाबजाना करते हैं.  यजमानों द्वारा दिए गए रुपएपैसों, अनाज, कपड़े वगैरह से इन के परिवारों का पालनपोषण होता है. मगर मुन्ने खान ने अपने पुश्तैनी काम की जगह गांव बीठनोक से बीकानेर आ कर प्रौपर्टी डीलिंग का काम शुरू किया और उस का काम चल निकला. प्रौपर्टी डीलिंग में अच्छी आमदनी थी. सत्यनारायण को भी उस ने अपना पार्टनर बना लिया. दोनों ने पार्टनरशिप में एक होटल भी खोला और साथ में काम करने लगे.

सत्यनारायण जहां सीधासादा था, उस के उलट मुन्ने खान दबंग प्रवृति का व्यक्ति था. सत्यनारायण को यह पता नहीं था. खैर, दोनों साथ काम करते थे और दोस्ती भी पक्की थी तो मुन्ने खान का सत्यनारायण के घर आनाजाना शुरू हो गया. थोड़े ही दिनों में मुन्ने खान ने सत्यनारायण की पत्नी को अपनी धर्मबहन बना लिया. मुन्ने का बेटा मुख्तयार खां अकसर सत्यनारायण के घर आता और ज्यादा से ज्यादा समय मनीषा के इर्दगिर्द मंडराता रहता था.  मुख्तयार ने 17 साल की उम्र से ही मनीषा पर डोरे डालने शुरू कर दिए थे. मनीषा उस समय नाबालिग थी. मुख्तयार ने उस का ब्रेनवाश कर के अपने रंग में रंग लिया. उम्र बढ़ने के साथ ही दोनों प्यार के रंग में रंगते चले गए.

दोनों की प्रेम कहानी का मनीषा के घर वालों को पता तक नहीं था. सत्यनारायण और उस के परिजन समझते थे कि धर्म के रिश्ते की वजह से मनीषा व मुख्तयार भाईबहन हैं. बाद में किसी वजह से मुन्ने के और सत्यनारायण के बीच थोड़ी खटास आई तो होटल की पार्टनरशिप का धंधा अलग कर लिया. सत्यनारायण ने मुन्ने खान से पार्टनरशिप तोड़ी और अपना धंधा अलग कर लिया. मुन्ने खान को गुस्सा तो बहुत आया, मगर वह कुछ कर नहीं सका. सत्यनारायण ने सुमेरराम पूनिया, जो बीकानेर में ही खाद, बीज का काम करते थे, के साथ धंधा शुरू कर दिया. सुमेर पूनिया जाति से जाट थे और दबंग प्रवृत्ति के थे. वह शादीशुदा और 4 बेटियों के पिता भी थे.

मुन्ने जानता था कि सुमेर पूनिया से वह पार नहीं पा सकता, मगर उस ने अपनी योजनानुसार एक दिन सत्यनारायण पर अज्ञात बदमाशों से हमला करवा दिया. इस हमले में सत्यनारायण के हाथपैर तोड़ दिए गए. वह अस्पताल में कई महीने इलाज कराने के बाद ठीक हुए. मुन्ने खान ने सत्यनारायण की देखभाल भी की ताकि उस पर कोई शक न करे. हुआ भी यही. मुन्ने खान पर किसी ने शक नहीं किया. सत्यनारायण के पिता हरीराम डूडी की बांगड़सर गांव में खेतीबाड़ी थी और बीकानेर में सत्यनारायण का खाद बीज का कारोबार था. पूनिया सत्यनारायण के कंधे से कंधा मिला कर चलते थे. पूनिया का उन के घर आनाजाना था.

मुन्ने सुमेर पूनिया से इस कारण रंजिश रखता था क्योंकि वह सत्यनारायण के साथ काम करते थे. इन दोनों को पता नहीं था कि मुन्ने खान उन्हें बरबाद करने का तानाबाना बुन रहा है. मनीषा डूडी अब तक मुख्तयार के प्रेमजाल में फंस चुकी थी. मनीषा 18 साल की बालिग हो चुकी थी. उसे पता था कि उस के परिजन उस की शादी मुख्तयार से कभी नहीं करेंगे. ऐसे में मुख्तयार और मनीषा ने बालिग होने पर 10 दिसंबर, 2020 को कोर्ट में विवाह कर लिया. मनीषा के परिजनों को इस की भनक तक नहीं लगी थी. नववर्ष 2021 का आगमन हो चुका था. मनीषा की मां बीमार हुईं तो उन्हें अस्पताल में भरती कराया गया.

अस्पताल में सत्यनारायण, हरीराम, सुमेर पूनिया, मनीषा और सारे परिजन थे. सत्यनारायण के लिए खाना बना कर लाने के लिए दोपहर में मनीषा और सुमेर पूनिया घर गए. मनीषा ने खाना बना कर सुमेर पूनिया को टिफिन दिया. टिफिन ले कर सुमेर पूनिया अस्पताल चले आए. उन्हें आए एकाध घंटा ही हुआ था कि नयाशहर थाने की पुलिस आई और सुमेर पूनिया को गिरफ्तार कर लिया. पुलिस ने गिरफ्तारी का कारण बताया कि थोड़ी देर पहले मनीषा ने दुष्कर्म की रिपोर्ट दर्ज कराई है. यह बात 4 जनवरी, 2021 की है. यह सुन कर डूडी परिवार सकते में आ गया. मनीषा के पिता, दादा और अन्य परिजन नयाशहर थाने पहुंचे और मनीषा से बात की.

मनीषा को समझाया कि उस ने गलत रिपोर्ट क्यों दर्ज कराई. तब मनीषा ने कहा कि ऐसे ही रिपोर्ट दर्ज करा दी है. चूंकि रिपोर्ट दर्ज हो चुकी थी, इसलिए पुलिस ने सुमेर पूनिया को नहीं छोड़ा. अगले दिन मनीषा के कोर्ट में बयान कराए गए. बयान दे कर मनीषा कोर्ट से बाहर आई तो करीब 100-150 लोगों की भीड़ ने एक राय हो कर मनीषा का एक गाड़ी में अपहरण कर लिया. हरीराम ने पोती को छुड़ाने की कोशिश की तो आरोपियों ने गाड़ी उन पर चढ़ाने की कोशिश की. इस में हरीराम के पैर में चोट लगी. होहल्ला करने पर पुलिस ने भी अपहरण कर के ले जा रही गाड़ी का पीछा किया और पुलिस सब को पकड़ कर थाने ले आई.

वहां पर मुख्तयार खान और मनीषा डूडी ने विवाह के कागज दिखा कर कहा कि वे बालिग हैं और उन्होंने 10 दिसंबर, 2020 को कोर्ट में शादी कर ली है. तब पुलिस ने मुख्तयार खान और मनीषा को जाने दिया. तब मनीषा के घर वाले माथा पीट कर रह गए. मुन्ने खान ने एक योजना के तहत सुमेर पूनिया को बलात्कार के मुकदमे में फंसा दिया था ताकि सत्यनारायण को वह सपोर्ट न कर सके. थाने में विवाह के कागजात दिखा कर बेटेबहू को घर ले आया. हरीराम डूडी और सत्यनारायण की इज्जत पर आन पड़ी थी. उन की समझ में अब सारी कहानी आ गई थी. मगर बहुत देर हो चुकी थी. बेटी ने उन्हें धोखे में रख कर मुख्तयार खान के साथ साजिश की शिकार हो कर उस की बहू बन गई थी.

इन्होंने एसपी प्रीति चंद्रा, नयाशहर थानाप्रभारी गोविंददान चारण और अन्य से मिल कर बेटी मनीषा को वापस दिलाने की गुहार की मगर मनीषा बालिग थी और उस ने मुख्तयार खान के साथ कोर्ट में शादी कर ली थी. इसलिए पुलिस ने इन की मदद नहीं की. तब बापबेटे ने सोशल मीडिया पर वीडियो में सर्वसमाज से बेटी मनीषा के लव जिहाद का शिकार बनाने और अब बेटी वापस दिलाने की गुहार लगाई. तब सर्वसमाज ने 17 जनवरी को बीकानेर में प्रदर्शन कर पीडि़त परिवार को न्याय दिलाने की मांग की. इस के बाद 18 जनवरी, 2021 को नयाशहर थाने में मनीषा की मां ने अपने साथ दुष्कर्म, सामूहिक दुष्कर्म का मामला दर्ज करा दिया.

पुलिस को दी गई रिपोर्ट में उस ने बताया कि 2015 में वह अपने परिवार के साथ मुक्ताप्रसाद कालोनी में रहती थी. वहीं पर उस के पति का बिजनैस पार्टनर मुन्ने खान आता था. मुन्ने खान जब भी घर आता तो कोल्डड्रिंक ले कर आता. जुलाई 2015 में उस के पति व बच्चे घर पर नहीं थे. तब मुन्ने घर आया. उस ने कोल्डड्रिंक पिलाई, जिस से वह बेहोश हो गई. तब मुन्ने खान ने उस के साथ दुष्कर्म किया और वीडियो बना लिया. बाद में वीडियो वायरल करने की धमकी दे कर बारबार दुष्कर्म किया. जब पीडि़ता ने किराए का मकान बदल लिया तब भी आरोपी उस के पास आता रहा. पीडि़ता ने आरोप लगाया कि आरोपी अपने दोस्तों को साथ ले कर आने लगा और उन्होंने भी उस के साथ दुष्कर्म किया.

मुन्ने खान का साथी गडि़याला के मोटासर निवासी शेरू खान और एक अन्य ने उस के साथ दुष्कर्म किया.  वीडियो वायरल करने और परिजनों को जान से मारने की धमकी दे कर आरोपी मुन्ने खां उस के साथ लगातार दुष्कर्म करता रहा. पीडि़ता ने आरोप लगाया कि मुन्ने खान ने बेटे मुख्तयार को उस की बेटी के पीछे लगाया और प्रेम में फंसा लिया. पुलिस ने सामूहिक दुष्कर्म का मामला थाना नयाशहर में दर्ज कर लिया. मामला संदिग्ध था, इसलिए इस की जांच सीओ सिटी सुभाष शर्मा को सौंप दी गई. इसी मामले को ले कर सर्वसमाज ने बीकानेर में कलेक्ट्रैट पर प्रदर्शन किया था. उसी समय मनीषा ने एक वीडियो सोशल मीडिया पर और डाला. इस वीडियो में मनीषा ने जो कुछ कहा, उसे सुन कर लोग आश्चर्यचकित रह गए.

मनीषा ने एक वीडियो वायरल कर कहा कि मैं ने 4 जनवरी, 2021 को जिस सुमेर पूनिया पर दुष्कर्म का मुकदमा दर्ज कराया, उस सुमेर पूनिया के साथ मेरी मां के अवैध संबंध हैं. सुमेर पूनिया दूर के रिश्तेदार हैं और पिता के कामधंधे में पार्टनर. सुमेर पूनिया अकसर हमारे घर आते थे और मुझ से गलत हरकतें करते थे. मनीषा ने आगे कहा कि उस की और मुख्तयार की शादी का मेरे घर वालों को पता था. वे हमारी शादी से खुश थे. मगर बाद में वे किसी के कहने में आ कर लव जिहाद का राग अलापने लगे. अगर मनीषा के ये आरोप सही हैं तो सुमेर पूनिया को उस के परिजन क्यों बचा रहे हैं? क्या उन पर किसी का दबाव है? या फिर मनीषा ने झूठे आरोप लगाए.

सवाल यह भी है कि मनीषा ने सुमेरराम पूनिया के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराई तो उस के परिजनों ने बेटी की बातों के बजाए उस व्यक्ति की पैरवी क्यों की, जिस पर उन की बच्ची छेड़छाड़, दुष्कर्म का आरोप लगा रही थी. वहीं मनीषा ने यह भी कहा कि अगर घर वाले बाहरी लोगों को घर के अंदर आने की छूट नहीं देते तो आज डूडी परिवार की इज्जतआबरू मिट्टी में नहीं मिलती. अब तो पुलिस जांच के बाद दूध का दूध और पानी का पानी होगा. तभी पता चलेगा कि कौन सच्चा है और कौन झूठा.

—कथा पुलिस सूत्रों, मीडिया रिपोर्ट्स और लेखक की जांच पर आधारित है

 

Bijnor News : चाची के इश्क में भतीजे ने उतारा चाचा को मौत के घाट

Bijnor News :  2 बच्चों की मां सुशीला की घरगृहस्थी ठीकठाक चल रही थी. उस का पति वीर सिंह उस का हर तरह से खयाल रखता था. इस के बावजूद भी उस के पैर अपने भतीजे सोमपाल की तरफ बहक गए. इन बहके कदमों का जो अंजाम हुआ, वो…

शाम के 5 बज रहे थे. सुशीला ने घड़ी देखी तो वह खाना बनाने की तैयारी करने लगी. उस का पति वीर सिंह 6 बजे तक काम से लौट आता था. यह रोज की दिनचर्या थी. उस ने सब्जी काटी और उसे पकाने के लिए गैस चूल्हा जलाना चाहा तो माचिस ही नहीं मिली. उसे याद आया कि माचिस तो आज सुबह ही खत्म हो गई थी. वह घर के मेनगेट पर जा कर खड़ी हो गई. उस ने सोचा कि वह किसी को बुला कर  दुकान से माचिस मंगवा लेगी. तभी उसे सोमपाल दिखा. सोमपाल उस के पति का भतीजा था. इस नाते वह उस का भी भतीजा हुआ. वह भी उसी गांव में रहता था.

सुशीला ने उसे आवाज दे कर पुकारा, ‘‘सोम, जरा इधर आओ.’’

सोमपाल फौरन उस के पास आ गया, ‘‘हां चाची, बोलो मुझे क्यों पुकार रही थीं?’’

‘‘सोम, जरा जल्दी जा कर दुकान से एक माचिस खरीद कर ले आओ. तुम्हारे चाचा आते होंगे, उन के लिए खाना बनाना है.’’

‘‘चाची, माचिस तो मैं ला दूंगा, पर इस के बदले में तुम्हें भी मेरा एक काम करना होगा.’’

‘‘कर दूंगी,’’ सुशीला ने उस की बात को गंभीरता से नहीं लिया, सोचा चाय पीने को मांगेगा, बना कर दे देगी. इसीलिए वह लापरवाही से बोली, ‘‘लेकिन पहले जा कर माचिस ले आओ, नहीं तो देर हो जाएगी.’’

‘‘चाची, मेरे रहते हुए तुम्हें चिंता करने की जरूरत नहीं है, माचिस ले कर अभी आया.’’ कह कर सोमपाल तेजी से वहां से चला गया. 5 मिनट में ही उस ने माचिस ला कर सुशीला के हाथ पर रख दी. सुशीला का पूरा ध्यान खाना बनाने पर था, इसलिए माचिस ले कर वह किचन में चली गई. किचन में सुशीला ने चूल्हा जला कर उस पर कड़ाही रख दी. उस के बाद तेल का डिब्बा उठाने के लिए घूमी तो उस ने अपने पीछे सोमपाल को खड़े पाया. सुशीला को आश्चर्य हुआ, ‘‘अरे, तुम यहां क्या कर रहे हो, जा कर कमरे में बैठो.’’

‘‘चाची, माचिस लाने लाने से पहले मैं ने तुम से कुछ कहा था…’’ सोमपाल ने सुशीला को गौर से देखा.

सुशीला की भी नजरें सोमपाल के चेहरे पर जम गईं, ‘‘मुझ से ऐसा कौन सा काम है तुम्हें?’’

‘‘मैं वही तो बताने जा रहा हूं.’’ सोमपाल ने फिर सुशीला की आंखोें में आंखें डाल दीं, ‘‘मैं ने इस शर्त पर माचिस ला कर दी थी कि तुम्हें भी मेरा एक काम करना होगा. अपने वादे से मुकरो मत. मैं ने तुम्हारा काम कर दिया, अब तुम मेरा काम करो.’’

सोमपाल अकसर सुशीला से चाय की फरमाइश करता था. लिहाजा सुशीला के मन में यही बात थी कि वह चाय के लिए कहेगा. सुशीला खाना पकाने की जल्दी में थी, इसलिए वह सोमपाल के कुछ बोलने से पहले ही वह बोल पड़ी, ‘‘तुम्हारा काम मैं अच्छी तरह जानती हूं, लेकिन मुझे अभी खाना पकाना है, इसलिए तुम्हें चाय बना कर नहीं दे सकती. खाना बन जाए तो मैं खुद तुम्हें बुला कर चाय पिला दूंगी.’’

सोमपाल मुसकराया, ‘‘चाची, चाय के अलावा दूसरा काम भी तो हो सकता है.’’

‘‘तुम देख रहे हो न,’’ डिब्बे से कड़ाही में तेल उड़ेलते हुए सुशीला बोली, ‘‘मैं बिजी हूं, जो बात करनी हो, बाद में कर लेना.’’

‘‘मेरी बात तुम सब्जी पकाते हुए भी तो सुन सकती हो!’’ सोमपाल ने कहा.

‘‘अच्छा जल्दी बोलो, क्या बात है?’’ वह बोली.

सोमपाल अर्थपूर्ण अंदाज से मुसकराते हुए बोला, ‘‘चाची तुम अकसर कहती हो न कि सोमपाल तुम बड़े हो गए हो.’’

सुशीला ने प्रश्नवाचक दृष्टि से उस की तरफ देखा, ‘‘हां, कह देती हूं तो?’’

‘‘चाची, तुम्हारी बातों से मुझे भी लग रहा है कि मैं अब बच्चा नहीं रहा, वास्तव में बड़ा हो गया हूं.’’

सुशीला हंसने लगी, ‘‘यही तुम्हारा वह जरूरी काम था.’’

‘‘नहीं, यह तो उस की भूमिका थी, असली बात तो बाकी है.’’

कड़ाही में गरम होते तेल पर नजरें जमाए हुए सुशीला बोली, ‘‘हां, चलो अच्छा हुआ कि तुम ने भी मान लिया कि तुम बड़े हो गए हो.’’

‘‘इसीलिए मैं ने सोचा कि बड़ा हो गया हूं तो बड़ों वाले काम भी करने चाहिए.’’

सुशीला को उस की बातों में रस आने लगा, ‘‘अब यह तो बता दो कि बड़ों वाला कौन सा काम करने जा रहे हो?’’

सोमपाल ने नजरें झुका लीं, मानो शरमा रहा हो.

सुशीला ने उस का हौसला बढ़ाया, ‘‘शरमाओ मत, बता दो.’’

‘‘चाची, डांटोगी तो नहीं?’’

‘‘बिलकुल नहीं डांटूंगी, बोलो.’’

‘‘किसी से मेरी शिकायत भी नहीं करोगी?’’ वह झिझकते हुए बोला.

‘‘नहीं करूंगी बाबा,’’ सुशीला के होंठों पर गहरी मुसकान पसर गई, ‘‘काम बताओ, समय बरबाद मत करो.’’

‘‘अच्छा तो सुनो,’’ सोमपाल सुशीला के और नजदीक आ गया. उस के बाद अपने लहजे को रहस्यमय बना कर बोला, ‘‘मुझे प्यार हो गया है.’’

‘‘वाह क्या बात है.’’ सुशीला की आंखें आश्चर्य से फैल गईं, ‘‘यानी कि तुम इतने बड़े हो गए हो कि खुद को प्यार के लायक समझने लगे.’’

‘‘और नहीं तो क्या, अब मैं बच्चा थोड़े ही हूं, 22 साल का जवान हो गया हूं. इस उम्र में तो गांव के आम लड़के 2 बच्चों के बाप बन जाते हैं. मेरे भी कुछ दोस्त 2 बच्चों के बाप बन गए हैं. इस उम्र के लोग जब बाप बन जाते हैं तो मैं तो केवल प्यार करने की बात कर रहा हूं.’’ सोमपाल ने एक ही सांस में अपनी बात कह दी. सुशीला दिलचस्पी से उस की आंखों में देखने लगी, ‘‘किस से दिल लगा बैठे हो, जरा मुझे भी तो बताओ.’’

‘‘बता दूंगा, फिलहाल राज को राज रहने दो.’’

‘‘अच्छा सोम, यह बताओ, जिस से तुम प्यार करते हो, वह भी तुम्हें चाहती है न?’’

‘‘पता नहीं.’’

‘‘यह क्या बात हुई,’’ कड़ाही में कटी हुई सब्जी डालते हुए  सुशीला बोली, ‘‘दिल लगा बैठे और यह तक पता नहीं कि उस के दिल में तुम्हारे लिए प्यार है या नहीं.’’

‘‘मैं कहूंगा, तब तो उसे पता चल जाएगा और तभी वह अपने दिल की बात मुझ तक पहुंचा देगी.’’

‘‘तो कह दो न.’’

‘‘चाची, कहने की हिम्मत नहीं है,’’ सोमपाल ने बेचैनी से पहलू बदला, ‘‘इसलिए अपनी बात कहने के लिए यह प्रेम पत्र लिखा है.’’

सोमपाल ने जेब से एक पत्र निकाल कर सुशीला की ओर बढ़ाया, ‘‘लो, खुद ही पढ़ लो.’’

सुशीला ने तह किया हुआ पत्र खोल कर पढ़ा. बिना किसी को संबोधित करते हुए उस में लिखा था—

प्रिय प्राणेश्वरी,  मुझे तुम से प्यार हो गया है. दिन हो या रात, तुम्हारे ही खयालों में खोया रहता हूं. मुश्किल से नींद आती है तो तुम्हारे ही सपने देखता रहता हूं. सपने में तुम आती हो तो मैं अपने पर काबू नहीं रख पाता और तुम्हारे साथ अंतरंग क्षणों में खो जाता हूं. उस समय का प्यार मुझे भूले नहीं भूलता. इस पत्र के जरिए अपने दिल की हालत तो मैं ने बयान कर दी. कह दो न कि तुम भी मुझे प्यार करती हो. —तुम्हारा सोम

पत्र पढ़ कर सुशीला मुसकराई, ‘‘सोम, प्यार का इजहार करने के साथसाथ तुम ने अंतरंग क्षणों का जिक्र कर दिया.’’

‘‘चाची, जो सच है, मैं ने वही लिखा है. सच यह है कि मैं उस के साथ अंतरंग क्षणों का दीवाना हूं.’’

सुशीला का विवाह हुए केवल 12 साल हुए थे और वह 2 बच्चों की मां थी. वह जानती  थी कि अंतरंग क्षणों में इंसान कैसे पेश आता है. इस पर सुशीला उस की हिम्मत बढ़ाने के उद्देश्य से बोली, ‘‘हिचको मत, जिस के लिए पत्र लिखा है उसे दे आओ.’’

सोमपाल मुसकराया, ‘‘मेरी बात उस के दिल पर असर तो करेगी?’’

‘‘जरूर असर करेगी.’’

‘‘वह प्यार का जबाव प्यार से देगी न, सिर पर जूते पड़ने की नौबत तो नहीं आएगी?’’

‘‘इस बारे में तुम बेहतर बता सकते हो कि प्यार मिलेगा या फटकार!’’

‘‘चाची, तुम बताओ क्या मिलेगा?’’

‘‘सोम, तुम दिमाग बहुत चाट चुके, अब तुम जाओ, मुझे खाना पकाना है. तुम्हारे चाचा आते ही होंगे, आते ही वह खाना मांगेंगे.’’

‘‘चला जाऊंगा, बस तुम एक सवाल का जबाव दे दो…’’ सोमपाल उस की आंखों में झांकते हुए बोला, ‘‘मुझे प्यार ही मिलेगा न?’’

सुशीला ने पीछा छुड़ाने के उद्देश्य से कहा, ‘‘हां, प्यार ही मिलेगा.’’

‘‘तो प्यार दो न चाची!’’ सोमपाल फंसी हुई सी आवाज में बोला, ‘‘मुझे तुम से प्यार हो गया है और यह पत्र मैं ने तुम्हारे लिए ही लिखा था.’’

पलक झपकते ही सुशीला सन्नाटे से घिर गई. ऐसा सन्नाटा जिस में वह अपना अस्तित्व शून्य जैसा महसूस कर रही थी. जनपद बिजनौर के थाना रेहड़ के अंतर्गत ग्राम फाजलपुर निवासी वीर सिंह से सुशीला का विवाह 12 साल पहले हुआ था. कालांतर में सुशीला ने एक बेटी सोनम (7 वर्ष) और एक बेटा मनीष (5 वर्ष) को जन्म दिया. वीर सिंह पशुओं के पैरों में नाल लगाने का काम करता था. फाजलपुर गांव में ही सोमपाल रहता था. वह भी चाचा वीर सिंह की तरह पशुओं के पैरों में नाल लगाने का काम करता था. सोमपाल की उम्र 22 साल थी और वह अविवाहित था. उस के 2 बहन और एक भाई था. वह तीनों से छोटा था. उम्र के जिस पड़ाव पर सोमपाल था, वह सपने देखने और उन में नित नएनए रंग भरने की होती है.

सोमपाल का मन भी रंगीन कल्पना किया करता था और आंखें तन को रोमांचित करने वाले सपने देखा करती थीं. सोमपाल सुशीला से उम्र में 11 साल छोटा था. गोरे रंग की सुशीला का बदन उम्र बढ़ने के साथ ही और खिलता जा रहा था. 2 बच्चों की मां बनने के बाद भी उस के यौवन में कोई कमी नहीं आई थी. सुशीला का बिंदास बोलना और उठनाबैठना सोमपाल के दिल में घर कर गया. सुशीला कब उस के सपनों की शहजादी बन गई, स्वयं उसे भी पता नहीं चला. सोमपाल के मन में सुशीला एक बार बसी तो वह चाह कर भी उसे दिल से निकाल नहीं सका. सुशीला को वह चाची कहता था, इस के बावजूद वह उस के सपनों की रानी बनी हुई थी.

मन ही मन सोमपाल उसे चाहता ही नहीं था, बल्कि उस से शादी करने के सपने भी देखा करता था. बहुत दिनों से सोमपाल इस जुगत में था कि सुशीला को वह अपने मन की बात बता सके. लेकिन उसे कभी मौका नहीं मिलता तो कभी उस की हिम्मत उस का साथ नहीं देती थी. लिहाजा उस ने एक प्रेमपत्र लिख कर यह सोच कर अपनी जेब में रख लिया था कि मौका मिलते ही चाची को दे देगा. उस दिन मौका मिला तो सोमपाल ने प्रेमपत्र देने के बाद अपने मन की बात भी उसे बता दी, ‘‘सुशीला चाची, मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूं.’’

सोमपाल का प्रेम निवेदन सुन कर सुशीला सन्नाटे में आ गई. उस की तंद्रा तब टूटी, जब कड़ाही की तली में सब्जी जलने की बदबू आई. सुशीला तुरंत सब्जी चलाने लगी. सोमपाल के प्रेम निवेदन से सुशीला को गुस्सा नहीं आया, अपितु उस की सोच को नई दिशा मिल गई. दरअसल वीर सिंह के साथ वह खुश तो थी लेकिन वह उस के सपनों का राजकुमार नहीं था. विवाह से पहले सुशीला ने कल्पना की तूलिका से अपने मन में अपने जीवनसाथी की जो छवि बनाई थी, वह वीर सिंह जैसी नहीं, बल्कि सोमपाल जैसी थी. सुशीला भी उसे बहुत पसंद करती थी. पहली बार सोमपाल को उस ने देखा था तो मन में यही खयाल आया था, ‘सोमपाल इस दुनिया में पहले क्यों नहीं आया.

यदि पहले आ जाता तो सोमपाल से मेरी शादी हो जाती, कसम से मजा आ जाता. जीवन में फिर कोई तमन्ना नहीं रह जाती.’

अब सोमपाल ने अपने प्रेम का इजहार किया तो वह सोचने लगी, ‘शायद नियति ने मेरे मन की बात सुन ली है और वह इसे पूरी करना भी चाहता है. इसलिए उस ने सोमपाल का दिल मेरी चाहत से रोशन कर दिया है. देर से ही सही, लेकिन सोमपाल से इश्क लड़ा कर देखा जाए कि मोहब्बत कैसा मजा देती है.’

उस दिन सुशीला का मन किसी काम में नहीं लगा. उस का दिमाग बस सोमपाल के बारे में सोचता रहा. उस का दिया प्रेम पत्र उस ने कई बार पढ़ा और फिर मुसकरा कर चूम लिया. कोई उस के चरित्र पर अंगुली उठाए, ऐसा सुबूत वह अपने पास रखना नहीं चाहती थी, इसलिए सोमपाल का वह प्रेम पत्र चूल्हे की आग में जला दिया. वीर सिंह के घर आने के बाद उस ने उसे खाना परोसा. वीर सिंह ने जैसे ही पहला निवाला मुंह में डाला, उस के बाद उस ने सुशीला को अजीब नजरों से देखा और बोला, ‘‘सुशीला, आज तुम ने खाना पकाया है या मजाक किया है. सब्जी में नमक नहीं है और जलने की गंध आ रही है. रोटी भी कहीं कच्ची है तो कहीं जली है. खाना पकाते समय ध्यान कहां था तुम्हारा.’’

सुशीला कैसे बताती कि वह सोमपाल के खयालों में खोई रही थी, इसलिए उस ने बेमन से खाना पकाया था. अपनी बात संभालने के लिए उस ने सिर भारी होने और चक्कर आने का बहाना किया और उस के सामने से थाली खींचने लगी, ‘‘तबियत ठीक न होने की वजह से खाना खराब हो गया. आधा घंटा लगेगा, अभी दूसरी रोटीसब्जी पका लाती हूं.’’

‘‘रहने दो. जैसा है, भोजन है और भोजन का अपमान नहीं करना चाहिए. रोज अच्छा खाता था, आज थोड़ा खराब खा लूंगा. बस थोड़ा नमक दे दो.’’ इस पर सुशीला ने उसे नमक दे दिया. सब्जी में नमक मिला कर वीर सिंह ने वही खाना खा लिया. रात को सभी लोग सो गए लेकिन सुशीला सोमपाल के खयालों में ही खोई रही. सोमपाल और अपने बारे में सोचतेसोचते सुशीला ने अंतत: निर्णय कर लिया कि वह सोमपाल के प्यार का जबाव प्यार से देगी. बस, उस के मन का तनाव जाता रहा और वह चैन से सो गई. दूसरी तरफ कहने को सोमपाल सो रहा था, जबकि वह जाग रहा था और इसी सोच में था कि सुशीला उस के प्यार को स्वीकार करेगी कि नहीं.

अगले दिन सुबह वीर सिंह काम पर चला गया. सोमपाल काम पर नहीं गया, अपने घर पर ही रहा. असल में वह सहमा भी था कि कहीं सुशीला चाची का जबाव उस के मन के विपरीत हुआ तो सब गुड़ गोबर हो जाएगा. जब वह सुशीला के सामने पहुंचा तो सुशीला ने उस की आंखों में आंखें डाल कर पूछा, ‘‘कल मैं खाना पकाने की उलझन में थी, इसलिए तुम्हारी बातों पर तवज्जो नहीं दे पाई. अब बोलो, कल क्या कह रहे थे?’’

सोमपाल के भीतर के भय ने और भी लंबे पांव पसार लिए. नजरें झुका कर वह धीरे से बोला, ‘‘मुझे जो कहना था, कल ही कह दिया था.’’

‘‘क्या यह सच है कि तुम्हें मुझ से प्यार हो गया है?’’ वह बोली.

सोमपाल ने नजरें झुकाए हुए ही धीरे से सिर हिला दिया, ‘‘हां.’’

‘‘प्यार भी करते हो और डरते भी हो,’’ सुशीला ने अपनी बांहें उस के गले में डाल दी, ‘‘बुद्धू, प्यार करने वाले डरा नहीं करते.’’

सोमपाल हैरान रह गया. सुशीला प्यार का जबाव इस शिद्दत से देगी, यह उस की सोच से परे बात थी.

‘‘विश्वास नहीं हो रहा है!’’ सुशीला मुसकराई, ‘‘अच्छा, मैं तुम्हारा मुंह मीठा करा देती हूं, तब यकीन होगा कि यह सुशीला भी तुम्हें चाहती है.’’

इस के बाद वह अपना मुंह सोमपाल के मुंह के पास ले गई. इतने पास कि सांसें सांसों से टकराने लगीं. सोमपाल ने उस के होंठों से अपने होंठों का मिलाप करा कर उस के होंठों को चूम लिया.

कुछ देर चूमने के बाद सुशीला ने अपना मुंह हटा लिया और उस की आंखों में देखते हुए पूछा, ‘‘हुआ मुंह मीठा?’’

सोमपाल ने होंठों पर अपनी जीभ फेरी, उस के बाद सुशीला की कमर को अपनी बांहों में समेट लिया, मुसकरा कर बोला, ‘‘मुंह भी मीठा हुआ और यकीन भी हो गया. जिस तरह मुंह मीठा किया है, उसी तरह पूरा बदन मीठा कर दो तो मजा आ जाए.’’

सुशीला ने बांकी चितवन से उसे देखा, ‘‘सब कुछ आज ही कर गुजरने का इरादा है क्या?’’

‘‘प्यार में जो होना है, वह फौरन हो जाना चाहिए.’’ कह कर सोमपाल ने सुशीला के होंठों को चूम लिया.

सुशीला के मन में अनार की आतिशबाजी सी होने लगी. उस का मन भी सोमपाल के जोश और जवानी को परखने का हो गया, मुसकरा कर बोली, ‘‘सोम, तुम भी क्या याद करोगे. प्यार के इजहार के बाद पहली मुलाकात में ही तुम्हें सब कुछ मिल जाएगा, जोकि आम प्रेमियों को महीनों बाद मिलता है और कइयों को तो मिलता ही नहीं है.’’

सोमपाल ने बांहों का घेरा और तंग कर लिया, ‘‘थैंक यू चाची.’’

‘‘चाची, दूसरों के सामने बोलना, अकेले में मुझे मेरे नाम से पुकारा करो,’’ सुशीला इठला कर बोली, ‘‘अब कमर छोड़ो, तो मैं दरवाजा बंद कर आऊं.’’

सोमपाल ने सुशीला की कमर को बांहों की गिरफ्त से आजाद कर दिया. सुशीला ने झट से दरवाजा बंद कर दिया और सोमपाल की बांहों में समा गई. फिर उन के जिस्म मर्यादाओं की दीवार तोड़ कर एक हो गए. कुछ देर बाद दोनों अलग हुए तो दोनों ही आनंद से अभिभूत थे. सोमपाल को पहली बार नारी देह का सुख मिला था, यह सर्वथा अनूठा और आनंददायक अनुभव था. सुशीला इसलिए आनंद के महासागर में डुबकियां लगा रही थी क्योंकि उस का पति वीर सिंह उसे ऐसा कभी सुख नहीं दे पाया था. बस, उस दिन से दोनों एकदूसरे के पूरक बन गए. 13 जनवरी, 2021 को वीर सिंह अपनी बाइक से सुआवाला बाजार गया लेकिन देर शाम तक वह वापस नहीं लौटा तो घर वालों ने उस की तलाश की लेकिन कहीं पता नहीं चला.

इस पर वीर सिंह के छोटे भाई रामगोपाल सिंह ने रेहड़ थाने में वीर सिंह की गुमशुदगी दर्ज करा दी. सुबह वीर सिंह के घर वालों और गांव के लोगों ने फिर से वीर सिंह की तलाश शुरू की तो सुआवाला और मच्छमार मार्ग के बीच हरहरपुर गांव के पास वीर सिंह की लाश पड़ी मिली. लाश मिलते ही वीर सिंह के घर वाले रोनेचिल्लाने लगे. घटनास्थल अफजलगढ़ थाना क्षेत्र में आता था, इसलिए घटना की सूचना अफजलगढ़ थाने को दे दी गई. सूचना पा कर इंसपेक्टर नरेश कुमार पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. मृतक वीर सिंह के सिर पर घाव के निशान थे, जिस से अंदाजा यह लगाया गया कि किसी ठोस वस्तु से सिर पर प्रहार कर के वीर सिंह को मौत के घाट उतारा गया है.

इंसपेक्टर नरेश कुमार ने लाश का निरीक्षण करने के बाद घटनास्थल का निरीक्षण किया, लेकिन घटना से संबंधित कोई सुबूत हाथ नहीं लगा. उस के घर वालों से पूछताछ की तो वीर सिंह के छोटे भाई रामगोपाल ने थानाप्रभारी को बताया कि 2 जनवरी को वीर सिंह का गांव के ही अंकुश, रवि, शकील और ब्रह्मपाल से पैसों के लेनदेन को ले कर विवाद हुआ था. पूछताछ के बाद इंसपेक्टर कुमार ने लाश पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भिजवा दी. थाने आ कर इंसपेक्टर कुमार ने रामगोपाल की तरफ से अंकुश, रवि, शकील और ब्रह्मपाल के खिलाफ भादंवि की धारा 304 के तहत मुकदमा दर्ज करा दिया. केस की जांच शुरू हुई तो नामजद आरोपियों की लोकेशन घटनास्थल पर या उस के आसपास नहीं मिली. सभी आरोपी अपनेअपने घरों में ही मौजूद थे.

वह सवालों के जवाब भी बेखटक दे रहे थे. किसी तरह का शक न होने पर इंसपेक्टर कुमार ने अपनी जांच की दिशा को मोड़ा. उन की समझ में आ गया था कि घटना में नामजदगी गलत है, घटना किसी और ने अंजाम दी है. सर्विलांस टीम का सहारा लिया गया. घटना वाली शाम घटनास्थल पर मौजूद नंबरों की जांचपड़ताल की गई, तो उस में से 3 नंबर संदिग्ध लगे. एक नंबर सोमपाल का था. सोमपाल के बारे में इंसपेक्टर कुमार ने पता किया तो वह मृतक का भतीजा निकला. सोमपाल के साथ 2 फोन नंबर और भी एक्टिव थे. उन नंबरों की लोकेशन भी काफी समय तक एक साथ रही थी. वह नंबर ऊधमसिंह नगर के जसपुर थाना क्षेत्र के रायपुर गांव के 2 युवकों के थे. उन की लोकेशन घटना वाली शाम घटनास्थल से रायपुर तक रही थी.

इस के बाद इंसपेक्टर कुमार ने 16 जनवरी की रात सोमपाल और उस के साथियों लवकुश और सलीम (परिवर्तित नाम) को गिरफ्तार कर लिया. उन्होंने वीर सिंह की हत्या करने की बात स्वीकार कर ली. थाने में उन से पूछताछ के बाद 17 जनवरी को उन्होंने सुशीला को भी गिरफ्तार कर लिया. पुलिसिया पूछताछ के बाद हत्या की जो वजह निकल कर सामने आई, वह कुछ इस तरह थी—

सोमपाल और सुशीला के संबंध बने महीनों बीत गए. इस दौरान सुशीला और सोमपाल का प्यार बेहद बढ़ गया था. अलग होने की कल्पना से ही दोनों का कलेजा मुंह को आने लगता था. सोमपाल शादी करने की बात करता तो सुशीला उस की हां में हां मिलाने लगती थी. असल में सुशीला ने पति वीर सिंह को दिल से निकाल दिया था और मन से सोमपाल को अपना पति मान चुकी थी. वह उस के साथ ही अपना जीवन बिताने की इच्छुक थी. लेकिन घटना से करीब 2 महीने पहले उन के इस नाजायज रिश्ते का भेद खुल गया. एक दिन रात में सोते समय वीर सिंह की आंखें खुलीं तो वह लघुशंका के लिए उठा तो उस ने सुशीला को अपने बिस्तर से गायब पाया.

वह कमरे से बाहर निकला तो रसोई से उसे कुछ आवाजें आती सुनाई दीं,वह उस तरफ बढ़ गया. जैसे ही वह रसोई के अंदर पहुंचा तो अंदर का दृश्य देख कर उस की आंखें हैरत से फट गईं. सुशीला भतीजे सोमपाल के साथ आपत्तिजनक हालत में थी. उसे एकबारगी तो विश्वास नहीं हुआ, पर अगले ही पल वह चिल्लाया, ‘‘सुशीला…’’

वीर सिंह की आवाज सुन कर दोनों हड़बड़ा कर अलग हो गए और मुजरिम की भांति नजरें झुका कर खड़े हो गए. वीर सिंह ने दोनों को काफी लताड़ा और सुशीला के साथ मारपीट की. लेकिन तब तक सोमपाल वहां से खिसक लिया था. सुशीला को वीर सिंह ने हिदायत दी कि आगे से ऐसी हरकत न करे, नहीं तो अच्छा नहीं होगा. लेकिन कहते हैं कि ये ऐसी चाहत है, जिस का नशा इंसान के सिर चढ़ कर बोलता है, तमाम पाबंदियों के बावजूद इंसान बेचैन हो कर फिर उसी नशे की तरफ भागता है. ऐसा ही सोमपाल और सुशीला के साथ हुआ. वह भी इस चाहत के नशे के आदी हो गए थे.

जब पाबंदी लगी तो बरदाश्त नहीं कर सके और बेचैन हो कर फिर दोनों एकदूसरे के नशे की चाहत में डूबने लगे. लेकिन बंदिशों के कारण खुल कर न मिल पाने की कसक दोनों को सालती थी. वैसे भी दोनों एक साथ रहने का मन बना चुके थे, इसलिए वीर सिंह को अपने रास्ते से हटाने की सोचने लगे, उस को हटाए बिना दोनों एक नहीं हो सकते थे. इसलिए सोमपाल ने अपने 2 साथियों ऊधमसिंह नगर के थाना जसपुर के रायपुर गांव निवासी लवकुश और सलीम (परिवर्तित नाम) से हत्या में साथ देने के लिए बात की. दोनों सोमपाल का साथ देने को तैयार हो गए. लवकुश तो बालिग था, उस की उम्र 22 साल थी, लेकिन सलीम नाबालिग था उस की उम्र 16 वर्ष थी.

वीर सिंह की हत्या की योजना बनी, योजना से सुशीला को भी अवगत कराया गया. 13 जनवरी, 2021 को वीर सिंह सुआवाला बाजार जाने के लिए बाइक से निकला. उस के निकलने से पहले ही सुशीला ने फोन कर के सोमपाल को बता दिया था. सोमपाल लवकुश और सलीम के साथ सुआवाला मच्छमार मार्ग के रास्ते में जा कर खड़ा हो गया. जैसे ही वीर सिंह बाइक पर बैठ कर उधर आया, तो उस ने डंडा मार कर उसे बाइक से गिरा दिया. वीर सिंह के गिरते ही तीनों ने उसे दबोच लिया और सिर पर डंडा मारमार कर उस की हत्या कर दी. इस के बाद नहर के दोनों तरफ बनी पक्की दीवारों के बीच में लाश डाल दी. डंडे को एक गन्ने के खेत में छिपा दिया तथा वीर सिंह का मोबाइल मय सिम तालाब में फेंक दिया.

इस के बाद वीर सिंह की बाइक से सोमपाल लवकुश और सलीम को रायपुर तक छोड़ने गया. वहां से वापस आ कर एक जगह बाइक छिपा दी और घर चला गया. लेकिन गुनाह कभी किसी का छिपता नहीं तो इन का कैसे छिप जाता. चारों आरोपी पुलिस की गिरफ्त में आ गए. इंसपेक्टर कुमार ने आईपीसी की धारा 304 को धारा 302/120बी में तरमीम कर दिया. फिर कानूनी औपचारिकताएं पूरी कर चारों आरोपियों को न्यायालय में पेश करने के बाद जेल दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

Uttar Pradesh Crime : बेटी ने मां के साथ मिलकर क्यों किया प्रेमी का कत्ल, वजह चौंकाने वाली

Uttar Pradesh Crime : सेजल मिश्रा और हिमांशु एकदूसरे को इतना चाहते थे कि उन्होंने शादी करने का फैसला कर लिया था. इसी दौरान सेजल की मां प्रतिभा उपाध्याय ने सेजल के ऐसे कान भरे कि वह प्रेमी की जान लेने को आमादा हो गई. इस के बाद जो हुआ..

21 वर्षीय हिमांशु सिंह सुलतानपुर पीडब्लूडी कालोनी में अपनी मां प्रतिमा सिंह और बड़े भाई शिवेंद्र के साथ रहता था. 3 दिसंबर, 2020 की शाम साढ़े 6 बजे किसी का फोन आया तो वह घर से निकल गया. देर रात तक जब वह नहीं लौटा तो शिवेंद्र ने उस का फोन लगाया, लेकिन उस का फोन स्विच्ड औफ मिला. हर बार फोन बंद ही मिला तो वह परेशान हो गया. मां प्रतिमा सिंह भी चिंतित हो गईं कि पता नहीं वह कहां है जो उस का फोन भी नहीं लग रहा. अगले दिन भी हिमांशु की तलाश की गई, लेकिन उस का कुछ पता न चला. मोबाइल भी लगातार बंद आ रहा था. जब कुछ पता न चला तो 5 दिसंबर को शिवेंद्र अपने मामा विवेक सिंह के साथ शहर कोतवाली पहुंचा.

कोतवाली में मौजूद इंसपेक्टर भूपेंद्र सिंह को उन्होंने हिमांशु के लापता होने की बात बताई. पूरी  बात जानने के बाद इंसपेक्टर सिंह ने हिमांशु की गुमशुदगी दर्ज कर ली. इस के बाद पुलिस अपने स्तर से हिमांशु को खोजने लगी. 8 दिसंबर को इंसपेक्टर भूपेंद्र सिंह को जानकारी मिली कि बाराबंकी के लोनी कटरा थाना पुलिस ने 4 दिसंबर को अखैयापुर गांव के पास नाले से एक युवक की नग्न लाश बरामद की थी. जिस की शिनाख्त नहीं हो पाई थी. इंसपेक्टर सिंह ने कटरा थाने से लाश के फोटो मंगवा कर हिमांशु के भाई व मामा को दिखाए तो उन्होंने लाश की शिनाख्त हिमांशु के रूप में कर दी.

इंसपेक्टर भूपेंद्र सिंह ने हिमांशु के भाई शिवेंद्र से पूछताछ की गई तो उस ने बताया कि हिमांशु की किसी से दुश्मनी नहीं थी, लेकिन उस के प्रेम संबंध 18 वर्षीय सेजल मिश्रा नाम की युवती से थे. वह डा. प्रदीप मिश्रा और प्रतिभा उपाध्याय की बेटी है और शास्त्रीनगर मोहल्ले में रहती है. प्रतिभा का तलाक हो चुका है. इसलिए वह पति से अलग रह रही है. इस से हिमांशु की हत्या का शक सेजल के परिजनों पर गया. लिहाजा पुलिस ने प्रतिभा के घर के आसपास लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज देखी. इस से पता चला कि डा. प्रदीप घटना के दिन शाम 6 बजे से ले कर रात साढे़ 8 बजे तक प्रतिभा के घर पर थे.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट में भी उसी समय के बीच हत्या किए जाने की पुष्टि हुई थी. हिमांशु के नंबर की काल डिटेल्स और लोकेशन की जांच की गई तो शक और पुख्ता हो गया. हिमांशु की आखिरी लोकेशन प्रतिभा के घर की थी. असरोगा टोल प्लाजा पर लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज में घटना की रात 12:05 बजे महाराष्ट्र नंबर की एक स्कोडा कार जाते हुए दिखी. पुलिस ने हिमांशु के दोस्तों से पूछताछ की तो पता चला कि हिमांशु अपने एक दोस्त के साथ घटना की शाम प्रतिभा के घर गया था. हिमांशु दोस्त को बाहर छोड़ कर अंदर चला गया था. हिमांशु काफी समय तक वापस नहीं लौटा तो दोस्त उस के मोबाइल पर मैसेज भेज कर वापस आ गया. हिमांशु 6:40 बजे प्रतिभा के घर में घुसा था. 8:22 बजे वह प्रतिभा के घर से निकलते देखा गया.

हिमांशु के परिजनों ने भी उस के हिमांशु के आने की पुष्टि कर दी. अब यह बात समझ नहीं आ रही थी कि जब हिमांशु प्रतिभा के घर से निकल आया तो गया कहां. लेकिन शक की गुंजाइश अभी थी कि फोटो में निकलते समय हिमांशु का चेहरा नहीं दिख रहा था. हिमांशु के साथ  गए दोस्त और अन्य दोस्तों को युवक का फोटो दिखाया गया तो उन्होंने फोटो में दिख रहे युवक की पहचान हिमांशु के रूप में नहीं की. वह युवक कपड़े जरूर हिमांशु के पहने था, लेकिन चालढाल उस की अलग थी. इस का मतलब यह था कि किसी और को हिमांशु के कपड़े पहना कर गुमराह करने के लिए घर से निकाला गया था. तमाम सुबूत प्रदीप मिश्रा और उन की तलाकशुदा पत्नी प्रतिभा की ओर इशारा कर रहे थे.

इंसपेक्टर भूपेंद्र सिंह ने 14 दिसंबर को डा. प्रदीप मिश्रा को हिरासत में ले कर पूछताछ की तो थोड़ी सख्ती में ही वह टूट गए और उन्होंने घटना के पीछे की पूरी कहानी बयां कर दी. हिमांशु की हत्या करने में प्रदीप के अलावा प्रतिभा, उस की बेटी सेजल और उन का नौकर सद्दाम शामिल थे. हत्या के लिए बाकायदा एक प्रौपर्टी डीलर गुफरान अख्तर के जरिए 50 हजार रुपए की सुपारी दी गई थी. गुफरान ने अपने हिस्ट्रीशीटर दोस्त वाहिद खान को हत्या के लिए तैयार किया था. वाहिद ने सब के सामने घटना को अंजाम दिया था. पूछताछ के बाद इंसपेक्टर भूपेंद्र सिंह ने शिवेंद्र सिंह की तरफ से प्रदीप मिश्रा, प्रतिभा उपाध्याय, सेजल मिश्रा, गुफरान अख्तर, वाहिद खान और सद्दाम के खिलाफ भादंवि की धारा 364/302/201/34/120बी के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया.

आरोपियों से पूछताछ के बाद हिमांशु की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह अवैध संबंधों की बुनियाद पर रचीबसी निकली—

उत्तर प्रदेश के जिला सुलतानपुर की शहर कोतवाली के शास्त्रीनगर मोहल्ले में रहती थी प्रतिभा उपाध्याय. प्रतिभा का विवाह 19 साल पहले बडि़यावीर में रहने वाले प्रदीप मिश्रा से हुआ था. प्रदीप मिश्रा होम्योपैथी के डाक्टर थे. विवाह के साल भर बाद ही प्रतिभा ने एक खूबसूरत बेटी सेजल को जन्म दिया. समय अपनी गति से आगे बढ़ता गया. सन 2007 में प्रतिभा ने प्रदीप से किसी बात से खफा हो कर तलाक ले लिया और बेटी सेजल के साथ शास्त्रीनगर मोहल्ले में रहने लगी. प्रतिभा ब्याज पर पैसे देने का काम करती थी. इस पर उसे अच्छी कमाई होती थी. मांबेटी का रहनसहन काफी अच्छा था. प्रतिभा हाई सोसायटी की महिलाओं की तरह ही जींस टीशर्ट पहनती थी, हाथ में महंगा मोबाइल होता था.

रहनसहन और काम के चलते प्रतिभा का हर तरह के लोगों से संपर्क रहता था. वह किसी के दबाव में नहीं आती थी. समय के साथ सेजल जवान हो गई. उस ने इंटर तक पढ़ाई कर ली थी और आगे पढ़ने की तैयारी कर रही थी. गोरे रंग की सेजल बेहद खूबसूरत थी. गलीमोहल्ले का हर युवक उस से नजदीकी बढ़ाने को बेकरार रहता था. पिता के बिना मां के साथ रहते हुए सेजल भी काफी खुले मिजाज की हो गई थी. मां के तौरतरीके और रंगढंग देख कर वह भी उसी रंग में ढल गई थी. उस के जो मन में आता, करती. वह अपने सपनों के राजकुमार के इंतजार में पलकें बिछाए बैठी थी. हिमांशु सिंह बाराबंकी के गांव जंगरा बसावनपुर का रहने वाला था.

उस का एक बड़ा भाई था शिवेंद्र. हिमांशु के पिता का नाम प्रदीप सिंह और मां का नाम प्रतिभा सिंह था. प्रदीप खेतीकिसानी का काम करते थे. लेकिन किसी वजह से उन की मानसिक स्थिति ठीक नहीं रही. भाई बना सहारा पति की मानसिक स्थिति ठीक न होने पर प्रतिभा सिंह अपने दोनों बेटों को साथ ले कर सुलतानपुर अपने भाई विवेक सिंह के पास आ गई. विवेक सिंह सरकारी नौकरी करते थे और गोलाघाट क्षेत्र में रहते थे. उन्होंने अपनी बहन और भांजों को सहारा दिया. उन की परवरिश में मदद की. शिवेंद्र ने मुरादाबाद स्थित एक इंस्टीट्यूट से सिविल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा किया था. वह काफी स्मार्ट था. खूबसूरत युवतियों में उस का काफी लगाव था.

जब हिमांशु और उस का भाई शिवेंद्र अपने दम पर कुछ करने के काबिल हुए तो विवेक सिंह ने उन्हें पीडब्लूडी कालोनी में एक मकान रहने के लिए दिला दिया. उन का सारा खर्चा विवेक सिंह ही उठा रहे थे. हिमांशु की सेजल से मुलाकात मार्केट में शौपिंग करते समय हुई थी. पहली ही नजर में सेजल उसे दिल दे बैठी. उधर हिमांशु भी उसे देखते ही उस पर फिदा हो गया था. उस पहली मुलाकात में दोनों के बीच कोई संवाद शुरू नहीं हो सका. मगर सेजल मार्केट से घर लौट कर भी हिमांशु को भुला नहीं पाई. उस रात वह हिमांशु के बारे में ही सोचती रही. हिमांशु से हुई उस पहली मुलाकात के बाद सेजल खोईखोई सी रहने लगी थी. अब उसे बेसब्री से इंतजार था हिमांशु से अपनी मुलाकात होने का, ताकि वह अपना हाले दिल बयां कर सके.

पहली मुलाकात के 2 हफ्ते बाद एक दिन उसी मार्केट में उसे हिमांशु दिखाई दे गया. हिमांशु को देखते ही उस के दिल के तार झनझना उठे, चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ गई. अब तक हिमांशु की निगाह भी उस पर पड़ चुकी थी. वह धड़कते दिल से बस सेजल को ही घूरे जा रहा था. कुछ पलों तक यह घूरने का सिलसिला चलता रहा. फिर हिमांशु सेजल के पास आया और बेहद मीठे लहजे में झिझकते हुए बोला, ‘‘माफ कीजिए, क्या मैं आप से कुछ बातें कर सकता हूं?’’

‘‘जी हां कीजिए, क्या बात करना चाहते हैं?’’

‘‘सामने रेस्टोरेंट में चल कर एकएक कप चाय पीते हैं, वहीं बातें भी हो जाएंगी.’’

‘‘अच्छा आइडिया है, चलिए.’’ सेजल ने उतावले मन से कहा.

दोनों कुछ कदमों की दूरी पर स्थित रेस्टोरेंट में दाखिल हो गए. उस दिन दोनों ने एकदूसरे के बारे में बहुत कुछ जान लिया. दोस्ती हुई तो फोन पर बात करने का सिलसिला शुरू हो गया. सेजल के मोबाइल पर हिमांशु के फोन काल्स आने लगे. दोनों कईकई घंटे बात करते, मगर फिर भी दिल नहीं भरता. अब हिमांशु प्रतिभा की गैरमौजूदगी में सेजल के घर भी आनेजाने लगा. एक दिन जब हिमांशु सेजल के घर आया तो हिमांशु ने सेजल को बांहों में भर कर उस के होंठोें को चूम लिया, ‘‘अब ये दूरियां बरदाश्त नहीं होतीं, तुम से एक पल भी अलग होने को दिल नहीं करता.’’

‘‘तो फिर मुझ से शादी क्यों नहीं कर

लेते हो?’’

‘‘वह तो मैं करूंगा ही यार, मगर शादी के बाद रोमांस का मजा किरकिरा हो जाता है. इसलिए सोचता हूं कि पहले जी भर कर सैरसपाटा और मस्ती कर ली जाए. फिर शादी की बात सोचेंगे.’’

प्रेमी हिमांशु के मनोभावों को जान कर सेजल प्रसन्नता से खिल उठी. उसे हिमांशु दुनिया का सब से अच्छा इंसान नजर आने लगा. कुछ दिनों बाद सेजल का जन्मदिन था. उस दिन सेजल ने हिमांशु के सिवाय किसी को इनवाइट नहीं किया. यहां तक कि अपनी खास सहेली हिमानी को भी नहीं बुलाया. मिल गए हिमांशु और सेजल तन्हा कमरे में दो जवां दिल, कोई रोकनेटोकने वाला भी नहीं था, ऐसे में मन भटकते कितनी देर लगती है. फिर हिमांशु ने सेजल को बांहों में भींच कर प्यार करना शुरू कर दिया. लेकिन सेजल ने किसी तरह खुद पर काबू किया और हिमांशु को भी बेकाबू होने से रोक लिया.

दोनों ही सोशल मीडिया पर काफी एक्टिव रहते थे. सोशल मीडिया ऐप ‘इंस्टाग्राम’ पर सेजल ने हिमांशु के साथ अपनी रिलेशनशिप को ले कर एक पोस्ट डाली, जिस में वह हिमांशु के साथ एक सेल्फी में  दिख रही थी. उस में उस ने हिमांशु से अपने प्यार का इजहार किया था और अपने रिलेशनशिप के 2 साल 7 महीने पूरे होने पर खुशी जताई थी. ये पोस्ट सेजल के मित्रों के अलावा और अन्य लोगों ने भी देखी. यह बात सेजल की मां प्रतिभा तक भी पहुंच गई. प्रतिभा ने सेजल से बात की और उसे गुस्से में डांटा भी. लेकिन कुछ सोचने के बाद प्रतिभा ने सेजल को समझाया,

‘‘मानती हूं कि तू उम्र के उस दौर से गुजर रही है, जहां किसी भी लड़के के प्रति आकर्षित हो सकती है. लेकिन एक सच यह भी है कि उम्र के इस दौर में दिमाग से ज्यादा दिल से काम लिया जाता है. जैसे तूने सिर्फ अपने दिल की सुनी, दिमाग की नहीं. दिमाग की सुनती तो तू उसे अपने लिए नहीं चुनती.’’

‘‘मौम, हिमांशु में क्या खराबी है. गुड लुकिंग है, हैंडसम है, मेरी उस की जोड़ी बहुत अच्छी लगती है.’’ सेजल ने खुश होते हुए अपने दिल की बात बता दी.

‘‘बेटा, केवल खूबसूरती और प्यार से जिंदगी में काम नहीं चलता. अच्छी तरह से जिंदगी गुजारने के लिए आमदनी का अच्छा जरिया होना चाहिए, जो उस के पास नहीं है. न नौकरी न कामधंधा और न ही रहने का खुद का कोई ठिकाना. ऐसे में वह तुझे क्या खुश रखेगा.’’

पहले नहीं सोचा था मां की बात सुन कर सेजल सोच में पड़ गई. वह सोचने लगी कि उस की मां कह तो सही रही हैं. प्यार के रंग और जोश में वह यह कुछ सोच ही न सकी कि आगे कैसे उस के साथ जिंदगी कटेगी. ऐसे में उस ने हिमांशु से दूर होने का फैसला कर लिया. अब वह हिमांशु से कटने लगी. जबकि हिमांशु उस से शादी करने का दबाव बना रहा था. सेजल उस से दूर होने की कोशिश कर रही थी, लेकिन हिमांशु उस का पीछा छोड़ने को ही तैयार न था. तब प्रतिभा एक दिन हिमांशु के घर पहुंच गई. उस ने हिमांशु की मां को न सिर्फ अपने बेटे को समझाने की हिदायत दी बल्कि काफी भलाबुरा भी कहा. इसी दिन हिमांशु के घर वालों को उस के प्रेम संबंधों का पता चला.

मां ने हिमांशु को समझाया भी कि वह सेजल से दूर रहे. लेकिन प्यार में आकंठ डूबा हिमांशु सेजल से दूर होने की सपने में भी नहीं सोच सकता था. हिमांशु के पीछा न छोड़ने पर मांबेटी उस से छुटकारा पाने का उपाय सोचने को मजबूर हो गईं. डा. प्रदीप ने प्रतिभा से तलाक के बाद दूसरी शादी कर ली थी, एक बेटा भी था. लेकिन इधर कुछ समय से वह फिर से प्रतिभा से मिलने उस के घर आने लगा था. रोजाना एकडेढ़ घंटे वह प्रतिभा के घर रुकता था. प्रदीप को भी हिमांशु के बारे में पता था, वह भी उस से काफी गुस्सा था. प्रदीप और प्रतिभा का एक प्रौपर्टी डीलर काफी करीबी था. उस का नाम गुफरान अख्तर था और शहर कोतवाली के चौक मोहल्ले में रहता था.

दोनों ने गुफरान से बात की और उस से हिमांशु को ठिकाने लगाने में मदद मांगी. गुफरान का एक साथी था वाहिद खान. वाहिद चांदा थाने के अंतर्गत कोथरा गांव में रहता था. वह चांदा थाने का हिस्ट्रीशीटर था. गुफरान ने वाहिद से बात की और उसे प्रदीप और प्रतिभा से मिला कर पूरी डील फाइनल करा दी. हत्या की सुपारी की रकम 50 हजार रुपए तय हुई जो काम होने के बाद दी जानी थी. हिमांशु की हत्या करने का पूरा तानाबाना बुना गया. इस में प्रतिभा ने अपने नौकर सद्दाम को भी शामिल कर लिया. 3 दिसंबर, 2020 की शाम सेजल ने फोन कर के हिमांशु को अपने घर बुलाया कि उस के मम्मीपापा उस से बात करना चाहते हैं. हिमांशु अपने दोस्त के साथ प्रतिभा के घर पहुंचा.

करीब पौने 7 बजे वह दोस्त को बाहर खड़ा कर के अंदर चला गया. वहां प्रदीप, प्रतिभा, सेजल, नौकर सद्दाम के साथ गुफरान और वाहिद मौजूद थे. बातचीत शुरू हुई. बातचीत के दौरान ही वाहिद ने पीछे से लोहे के पाइप से हिमांशु के सिर पर प्रहार किया. प्रहार इतना तेज था कि हिमांशु के मुंह से चीख भी न निकल सकी. फिर ताबड़तोड़ सिर व शरीर पर कई प्रहार कर के वाहिद ने हिमांशु की हत्या कर दी. बाकी सभी उस की हत्या अपनी आंखों के सामने होते देखते रहे. हिमांशु को मारने के बाद उस के कपड़े उतार कर सद्दाम को पहनाए गए. हिमांशु की तरह ही वेशभूषा बना कर उस की ही तरह सद्दाम रात 8:22 बजे घर से निकला, जिस से लगे कि हिमांशु घर से निकला है.

सभी को पता था कि बाहर सीसीटीवी कैमरे लगे हैं. उन में हिमांशु की घर में आते हुए फोटो कैद हुई होगी. ऐसे में उन पर ही पुलिस का शक जाएगा. इस से बचने के लिए ही यह रास्ता अपनाया गया. देर रात वाहिद ने अपनी स्कोडा कार में हिमांशु की नग्न लाश डाली. फिर गुफरान के साथ कार से बाराबंकी के लोनी कटरा थाना क्षेत्र के अखैयापुर गांव के पास एक नाले में हिमांशु की लाश फेंक दी और वापस आ गए. वाहिद को मिल गई रकम अगले दिन वाहिद को अपनी तय सुपारी की रकम भी मिल गई. लेकिन तमाम होशियारी के बाद भी उन सब का गुनाह कानून की नजर में आ ही गया. आवश्यक पूछताछ के बाद पुलिस ने डा. प्रदीप को न्यायालय में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

19 दिसंबर को इंसपेक्टर भूपेंद्र सिंह ने गुफरान अख्तर और वाहिद खान को नगर कोतवाली के पयागीपुर चौराहे से उस समय गिरफ्तार कर लिया, जब दोनों स्कोडा कार से कहीं भागने की फिराक में थे. उन के पास से हत्या में प्रयुक्त लोहे का पाइप और स्कोडा कार बरामद हो गई. उन दोनों ने हत्या का जुर्म स्वीकार कर लिया. आवश्यक पूछताछ के बाद गुफरान और वाहिद को न्यायालय में पेश करने के बाद जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक प्रतिभा, सेजल और नौकर सद्दाम पुलिस की पकड़ से दूर थे. पुलिस सरगर्मी से उन की तलाश कर रही थी. उन तीनों पर पुलिस ने ईंनाम भी घोषित कर दिया था.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

UP Crime News : कैंची से कत्ल – दूसरे प्रेमी से करवाया पहले का मर्डर

UP Crime News : सोनू जानती थी कि अमीन के पद पर कार्यरत आशीष शुक्ला शादीशुदा ही नहीं बल्कि 2 बच्चों का पिता है. इस के बावजूद लालची सोनू ने उसे अपने प्यार के जाल में फांस लिया. इसी दौरान महत्त्वाकांक्षी सोनू ने ऐसी चाल चली कि…

नवंबर 2020 माह की 28 तारीख थी. जनपद अंबेडकरनगर के मालीपुर थाना क्षेत्र में मझुई नदी के नेमपुर घाट पर किसी अज्ञात व्यक्ति की लाश पड़ी हुई थी. सुबहसवेरे घाट पर पहुंचे लोगों ने लाश देखी तो कुछ देर में वहां देखने वालों का तांता लग गया. उसी दौरान किसी ने इस की सूचना मालीपुर थाने में फोन कर के दे दी. सूचना पा कर थानाप्रभारी विवेक वर्मा पुलिस टीम के साथ मौके पर पहुंच गए. लाश पौलिथिन में लिपटी हुई थी. मृतक की उम्र लगभग 43-44 साल थी. उस के गले पर किसी तेज धारदार हथियार से वार किए जाने के निशान मौजूद थे. आसपास का निरीक्षण करने पर कोई सुबूत हाथ नहीं लगा. अनुमान लगाया गया कि हत्या कहीं और कर के लाश वहां फेंकी गई है.

वहां मौजूद लोगों में से कोई भी लाश की शिनाख्त नहीं कर सका. मौके की काररवाई निपटाने के बाद थानाप्रभारी वर्मा ने लाश पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भेज दी. यह बात 28 नवंबर, 2020 की है. थाने आ कर थानाप्रभारी विवेक वर्मा ने जिले के समस्त थानों में दर्ज गुमशुदगी के बारे में पता किया तो अकबरपुर थाने में 45 वर्षीय आशीष शुक्ला नाम के व्यक्ति की गुमशुदगी दर्ज होने की बात पता चली. गुमशुदगी आशीष के साथ लिवइन में रहने वाली सोनू नाम की युवती ने दर्ज कराई थी. सोनू को बुला कर लाश की शिनाख्त कराई गई तो उस ने उस की शिनाख्त आशीष के रूप में की. सोनू ने पूछताछ में बताया कि एक दिन पहले देर रात किसी का फोन आया था, जिस के बाद आशीष घर से चले गए थे. आज उन की लाश मिली.

पता चला कि आशीष लखीमपुर जिले की कोतवाली सदर अंतर्गत कनौजिया कालोनी में रहता था. आशीष अंबेडकरनगर में अमीन पद पर कार्यरत था और कोतवाली शहर के मुरादाबाद मोहल्ले में किराए के मकान में रहता था. उस के साथ उस की कथित पत्नी सोनू शुक्ला रहती थी. लखीमपुर में आशीष की पत्नी राखी और बच्चे रहते थे. राखी को पति की लाश मिलने की सूचना मिली तो वह तुरंत अंबेडकरनगर पहुंच गई. मालीपुर थाने में उस ने दी तहरीर में पति की हत्या का आरोप सोनू शुक्ला और उस के 3 साथियों विवेक, विकास पर लगाया. राखी की तहरीर के आधार पर थानाप्रभारी विवेक वर्मा ने सोनू और उस के साथियों के खिलाफ भादंवि की धारा 302/201 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया.

30 नवंबर को थानाप्रभारी ने सोनू को हिरासत में ले कर पूछताछ की तो थोड़ी सख्ती करने पर वह टूट गई और आशीष की हत्या का जुर्म स्वीकार कर लिया. उस ने बताया कि आशीष की हत्या में उस के प्रेमी आनंद तिवारी, उस के साथी मूलसजीवन पांडेय और राजीव कुमार तिवारी उर्फ राजू ने साथ दिया था. पूछताछ के बाद पुलिस ने उसी दिन आनंद और मूल सजीवन को गिरफ्तार कर लिया गया.  उन सभी से पूछताछ के बाद आशीष की हत्या की जो कहानी सामने आई, इस प्रकार थी—

आशीष शुक्ला लखीमपुर खीरी क्षेत्र में एलआरपी रोड पर स्थित कनौजिया कालोनी में रहते थे. 18 वर्ष पहले उन का विवाह राखी से हुआ था. राखी काफी सरल स्वभाव की थी. उस ने आते ही आशीष की जिंदगी को महका दिया था. आशीष भी सरल स्वभाव की राखी को हमसफर के रूप में पा कर काफी खुश हुआ. कालांतर में राखी ने एक बेटे आयुष (17 वर्ष) और बेटी अर्चिता (12 वर्ष) को जन्म दे दिया. आयुष के जन्म के बाद 2006 में आशीष की नौकरी अमीन के पद पर लग गई. वह अंबेडकरनगर में ही कोतवाली शहर के मुरादाबाद मोहल्ले में किराए पर कमरा ले कर रह रहा था. जब सब कुछ अच्छा चल रहा होता है, कभीकभी तभी अचानक से जिंदगी में ऐसा खतरनाक मोड़ आ जाता है कि इंसान न संभले तो सब कुछ तहसनहस हो जाता है.

आशीष की जिंदगी में भी सब कुछ अच्छा चल रहा था कि जिंदगी में एक ऐसा मोड़ आया कि उस की जिंदगी दूसरे रास्ते पर चल पड़ी. वह रास्ता उस के और उस के परिवार के लिए कितना खतरनाक होने वाला था, आशीष को इस का बिलकुल आभास नहीं था. अंबेडकरनगर में काम के दौरान उस की मुलाकात सोनू नाम की युवती से हुई. 27 वर्षीय सोनू इब्राहिमपुर थाना क्षेत्र के बड़ा गांव की रहने वाली थी. उस के पिता विजय कुमार तिवारी की मृत्यु हो चुकी थी. सोनू 2 भाई व 3 बहनें थीं. सोनू काफी महत्त्वाकांक्षी थी. पिता के न रहने पर उस के विवाह होने में भी अड़चन आ रही थी. इसलिए उस ने अपने लिए खुद ही अच्छा हमसफर तलाश करने की ठान ली. इसी तलाश ने उसे आशीष शुक्ला तक पहुंचा दिया. आशीष एक तो सरकारी नौकरी करता था, साथ ही काफी स्मार्ट भी था.

सोनू ने उस की तरफ अपने कदम बढ़ाने शुरू कर दिए. सोनू ने आशीष के बारे में पूरी जानकारी जुटा ली. उसे यह भी पता था कि आशीष शादीशुदा है और 2 बच्चों का पिता है. लेकिन सोनू के लिए अच्छी बात यह थी कि उस की पत्नी और बच्चे लखीमपुर में रहते थे. आशीष को सोनू ने अपने रूपजाल में फांसना शुरू कर दिया. आशीष के साथ वह अधिक से अधिक समय बिताने लगी. उस के लिए खाना बना देती. घर में बना उस के हाथ का खाना खा कर आशीष को बड़ा अच्छा लगता था. वैसे आशीष कभी खुद खाना बना लेता था या होटल पर खा लेता था. सोनू अच्छी तरह जानती थी कि किसी भी मर्द के दिल तक पहुंचने का रास्ता उस के पेट से हो कर जाता है. भरपेट मनपसंद खाना मिलता तो आशीष सोनू की जम कर तारीफ करता. समय के साथ दोनों काफी नजदीक आने लगे.

आशीष अपनी पत्नी राखी को धोखा नहीं देना चाहता था, लेकिन सोनू का साथ पा कर वह दिल के हाथों ऐसा मजबूर हुआ कि वह अपने आप को रोक नहीं पाया और अपनी जिंदगी को दूसरे रास्ते पर ले गया. उस रास्ते पर सोनू बांहें फैलाए उस का इंतजार कर रही थी. अब सोनू हर दूसरेतीसरे दिन आशीष के कमरे पर ही रुकने लगी. रुकती तो खाना बनाने के साथ ही बाकी काम भी वह कर देती थी. सोनू उस के साथ ऐसा व्यवहार करती जैसे उस की पत्नी हो. आशीष को यह सब काफी अच्छा लगता. एक रात जब दोनों बैठे बातें कर रहे थे तो आशीष ने उस से कह दिया, ‘‘सोनू तुम मेरा बहुत खयाल रखती हो. इतना खयाल तो सिर्फ पत्नी ही रख सकती है. तुम मेरी पत्नी न होते हुए भी पत्नी जैसा खयाल रख रही हो.’’

‘‘तारीफ के लिए शुक्रिया जनाब. आप को इस बात का पता तो चला कि मैं आप का कितना खयाल रखती हूं. मैं तो अभी तक यही सोचती थी कि न जाने कब आप को पता चलेगा और कब मैं अपने दिल का हाल बयां कर पाऊंगी.’’ कह कर सोनू ने अपनी नजरें झुका लीं.

‘‘क्या मतलब…’’ आशीष ने उस के चेहरे पर नजरें गड़ा कर पूछा, ‘‘कहना क्या चाहती हो?’’

‘‘अब इतने भी अंजान नहीं हो तुम कि इस का क्या मतलब ही न जानते हो. जो मैं तुम्हारा हर समय हरदम खयाल रखती हूं, वह भी एक पत्नी की तरह, तो क्यों रखती हूं.’’

‘‘तो तुम ही खुल कर बता दो कि तुम्हें मेरा इतना खयाल क्यों है.’’ उस ने पूछा.

‘‘मैं तुम को पसंद करती हूं तुम से प्यार करती हूं, इसीलिए मुझे तुम्हारा इतना खयाल रहता है. मुझे तुम्हारा साथ पसंद है इसीलिए हमेशा तुम्हारे पास ही बनी रहती हूं, लेकिन तुम हो कि मेरे जज्बातों की फिक्र ही नहीं है.’’ सोनू ने यह कह कर एक बार फिर अपनी नजरें झुका लीं और मायूसी का लबादा ओढ़ लिया. आशीष उस की बात पर मंदमंद मुसकराते हुए बोला, ‘‘मैं जानता था लेकिन जानबूझ कर अंजान बना था. तुम्हारे इतना सब करने पर कोई मूर्ख व्यक्ति भी समझ जाएगा कि तुम्हारे दिल में क्या है तो मैं तो पढ़ालिखा हूं. तुम्हारी जुबां से सुनना चाहता था, इसलिए अंजान बनने का नाटक कर रहा था.’’

यह सुनते ही सोनू की खुशी का पारावार न रहा, ‘‘मतलब मुझे इतने दिनों से बना रहे थे कि कुछ नहीं जानते हो. मुझे बता तो देते मैं तो वैसे भी तुम पर वारी जा रही थी.’’ कह कर सोनू आशीष के सीने से लग गई. उस की आंखों में अपनी जीत की खुशी चमक रही थी.

‘‘तुम पत्नी जैसे सब काम कर रही थीं लेकिन एक काम छोड़ कर…’’ शरारती अंदाज में तिरछी नजरों से आशीष ने सोनू को देख कर कहा. सोनू ने एक पल के लिए दिमाग पर जोर दे कर सोचा, फिर अगले ही पल आशीष की बात का मतलब समझते ही वह शरमा गई और उस के सीने में अपना मुंह छिपा लिया. उस के बाद उन के बीच शारीरिक रिश्ता भी कायम हो गया. आशीष और सोनू के बीच उम्र में 18 साल का अंतर था. सोनू 27 साल की थी तो आशीष 45 वर्ष का. सोनू आशीष के साथ उस की पत्नी बन कर रहने लगी. अपने नाम के आगे शुक्ला लगाने लगी. जिस से भी मिलती, बातें करती तो अपने आप को आशीष की पत्नी ही बताती. समय के साथ ब्याहता राखी को पता चल गया कि उस का पति आशीष सोनू नाम की किसी महिला के साथ रह रहा है.

पति आशीष से राखी ने बात की तो उस ने कह दिया कि जैसा वह सोच रही है वैसा कुछ नहीं है. काम के सिलसिले में वह उस के पास रह रही है. आशीष के साथ रहते सोनू उसे अपने वश में करने की पूरी कोशिश करती थी. मसलन किसी भी कागज/दस्तावेज में पत्नी के नाम की जगह आशीष उस का ही नाम डाले. कोई संपत्ति खरीदे तो उस के नाम से ही खरीदे. इस के लिए वह आशीष पर दबाव बनाती थी. आशीष उस की बात को नजरअंदाज कर देता था. सोनू के कहने पर ऐसा वह कर भी नहीं सकता था. लेकिन आशीष को अपनी बात न मानते देख कर सोनू नाराज हो जाती थी. अब उन दोनों में अकसर विवाद होने लगा. सोनू अपने भविष्य को ले कर चिंतित रहने लगी. आशीष से उस ने जिस वजह से रिश्ता बनाया, वह वजह उसे पूरी होती नहीं दिख रही थी.

आशीष का एक दोस्त था 23 वर्षीय आनंद तिवारी. आनंद अकबरपुर थाना क्षेत्र के सिंहमई कारीरात गांव में रहता था. उस के पिता रमेश तिवारी किसान थे. 3 भाइयों में वह सब से बड़ा था और अविवाहित था. आनंद तिवारी आशीष से मिलने उस के कमरे पर आता रहता था. आनंद भी काफी स्मार्ट और जवान था. सोनू से 4 साल छोटा था. आशीष तो दोनों से उम्र में काफी बड़ा था. आनंद से कुछ छिपा नहीं था, वह जानता था कि सोनू आशीष की पत्नी नहीं है, उसे केवल अपने पास रखे हुए है. उस से अपना स्वार्थ सिद्ध कर रहा है. ऐसे में वह भी सोनू के नजदीक आने की जुगत में लग गया.

सोनू आशीष के द्वारा बात न मानने पर तनाव में रहती थी. ऐसे में आनंद उस के पास आता, उस से बातें करता, बातों के दौरान ही हलकाफुलका मजाक भी कर देता तो सोनू का मन बहल जाता. कुछ समय के लिए वह अपना सारा तनाव भूल जाती थी. सोनू भी उस से घुलनेमिलने लगी. दोनों एकदूसरे की चाहत को अपने प्रति समझ रहे थे. चाहत दिल में पैदा हुई तो अधिक समय साथ बिताने लगे. एक दिन आनंद आया तो सोनू चाय बनाने लगी. आनंद को शरारत सूझी तो वह चुपके से सोनू के पीछे पहुंच गया और अचानक चिल्ला दिया. सोनू हड़बड़ा गई. हड़बड़ाहट में वह पीछे मुड़ी तो आनंद को खडे़ पाया, वह मुसकरा रहा था.

सोनू उस की शरारत समझ गई. वह उसे मारने दौड़ी तो वह वापस हुआ तो आगे पलंग था. वह उस से टकराने से बचने के लिए रुका तो पीछे भागी सोनू उस से टकरा गई. दोनों आपस में टकराए तो एक साथ पलंग पर गिर गए. दोनों की सांसें एकदूसरे के चेहरे से टकरा रही थी तो दिल भी आपस में मिल गए. उस समय दोनों के दिल की धड़कनें काफी तेज थीं. तन सटे होने के कारण एकदूसरे के दिल की तेज धड़कनों को दोनों ही महसूस कर रहे थे. दोनों जुबां से तो कुछ नहीं कह रहे थे लेकिन आंखें बहुत कुछ कह रही थीं. आनंद सोनू को इतने नजदीक पा कर खुशी से भर उठा और बेसाख्ता बोला, ‘‘आई लव यू…आई लव यू, सोनू.’’

आनंद के इन मीठे बोलों ने सोनू के कानों को सुखद अनुभूति कराई. उस ने आंखें बंद कीं तो होंठ थिरक उठे, ‘‘आई लव यू टू आनंद.’’

इस के बाद उन के बीच शारीरिक रिश्ता कायम हो गया. सोनू को आनंद के साथ आनंद का सुखद एहसास हुआ. उस दिन के बाद उन के बीच संबंधों का सिलसिला अनवरत चलने लगा. अब सोनू आनंद के साथ जिंदगी बिताने के सपने देखने लगी थी. क्योंकि आशीष से अब उसे किसी प्रकार की उम्मीद नहीं रह गई थी. लेकिन आशीष की सरकारी नौकरी और संपत्ति का लालच उसे जरूर था. आनंद के साथ जिंदगी बिताने के लिए उसे आशीष की नौकरी और संपत्ति की जरूरत थी. वैसे भी इन चीजों को पाने के लिए सोनू ने काफी प्रयास किया था और समय भी बर्बाद किया था. वह ऐसे आसानी से सब छोड़ नहीं छोड़ सकती थी.

इसलिए उस ने आनंद से बात की तो आनंद के मन में भी लालच पैदा हो गया. सरकारी नौकरी और संपत्ति तभी हाथ लग सकती थी, जब आशीष जिंदा न रहे. इसलिए दोनों ने आशीष की हत्या करने का फैसला कर लिया. आशीष की हत्या में साथ देने के लिए आनंद तिवारी ने अपने 2 साथियों मूलसजीवन पांडेय निवासी गांव गंगापुर भुलिया जिला सुलतानपुर और राजीव कुमार तिवारी उर्फ राजू निवासी गांव भारीडीहा अंबेडकरनगर को तैयार कर लिया. मूलसजीवन और राजू दोनों ही अकबरपुर के आरडी लौज में काम करते थे और इस समय वहीं रह रहे थे.  27 नवंबर की रात 11 बजे के करीब सोनू और आशीष का विवाद हुआ. विवाद के बाद आशीष सो गया. सोनू ने आनंद को उस के साथियों के साथ बुला लिया.

आनंद अपनी बजाज पल्सर बाइक से दोनों साथियों को ले कर आशीष के कमरे पर पहुंचा. उन लोगों को आया देख कर सोनू ने धीरे से दरवाजा खोल दिया. तीनों अंदर आ गए. सोते समय आशीष के गले पर तेज धारदार चाकू व कैंची से कई प्रहार किए गए. आशीष चीख भी न सका और उस की सांसों की डोर टूट गई. आशीष को मारने के बाद उन्होंने उस की लाश एक पौलिथिन में लपेट कर उस की ही हुंडई इयान इरा कार में डाल दी और उसे मालीपुर थाना क्षेत्र में मझुई नदी के नेमपुर घाट पर फेंक आए. आने के बाद कार सुलतानपुर के दोस्तपुर थाना क्षेत्र में लावारिस हालत में छोड़ दी. अगले दिन सोनू ने अकबरपुर थाने जा कर आशीष की गुमशुदगी लिखाई.

लेकिन चारों का गुनाह छिप न सका. गिरफ्तार तीनों अभियुक्तों की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त चाकू, कैंची, 5 मोबाइल फोन, पल्सर बाइक और आशीष की इयान कार बरामद कर ली. कानूनी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद तीनों को न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक 23 दिसंबर को थानाप्रभारी विवेक वर्मा ने चौथे अभियुक्त राजीव तिवारी उर्फ राजू को भी गिरफ्तार कर लिया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

MP Crime News : हत्यारे ने पहचान छिपाने के लिए शव के साथ कौन सी घिनौनी करतूत की

MP Crime News : ममता तोमर एक साथ 2 प्रेमियों सुरेश उइके और सईद के साथ प्यार की पींगें बढ़ा रही थी. बाद में उस ने सुरेश के साथ लवमैरिज कर ली. लेकिन शादी के बाद भी उस का सईद के साथ चक्कर चलता रहा. इस का नतीजा…

30 सितंबर, 2020 की सुबह का वक्त था. होशंगाबाद जिले के थाना पथरोड़ा की थानाप्रभारी सुश्री प्रज्ञा शर्मा पुराने मामलों की फाइल पलट रही थीं. तभी डंडे का सहारा ले कर लगभग 90 वर्षीय एक बुजुर्ग धीरेधीरे उन के औफिस में दाखिल हुए. थानाप्रभारी ने बुजुर्ग को कुरसी पर बैठने का इशारा किया. बुजुर्ग ने अपना नाम रामदास बताते हुए कहा कि वह डोव गांव में रहता है और उस का 40 साल का बेटा सुरेश उइके गांव नानपुरा पंडरी में पत्नी ममता और 2 बच्चों के साथ रहता है. सुरेश रेलवे में वेल्डर है. वह रोज सुबह नौकरी पर अपनी मोटरसाइकिल से भौरा स्टेशन आताजाता था. लेकिन कल रात में वह काम से वापस नहीं लौटा और उस का मोबाइल भी बंद था.

वह उसे खोजने के लिए जब भौरा जा रहा था तो जंगल के रास्ते में उसे अपने बेटे की मोटरसाइकिल पड़ी दिखाई दी. जिस के पास कुछ दूरी पर एक पेड़ के नीचे उस की लाश पड़ी है. रामदास ने बताया कि किसी ने उन के बेटे का सिर कुचल कर उस की हत्या कर दी है. थानाप्रभारी प्रज्ञा शर्मा के सामने कई ऐसे सवाल थे जिन के उत्तर रामदास दे सकता था. लेकिन पहली जरूरत मौके पर पहुंचने की थी. इसलिए उन्होंने सब से पहले एसपी होशंगाबाद संतोष सिंह गौर और एसडीपीओ महेंद्र मालवीय को घटना की जानकारी दी. फिर वह पुलिस टीम ले कर मौके पर पहुंच गई. भौरा मार्ग से कुछ हट कर जंगल के अंदर सागौन के पेड़ के नीचे सुरेश की सिर कुचली लाश पड़ी थी.

लाश के पास ही खून से सना भारी पत्थर पड़ा था, जिस से जाहिर था कि उसी पत्थर को सुरेश के सिर पर मारा गया था, जिस से उस का पूरा भेजा बाहर निकल कर चारों तरफ बिखर गया था. सड़क पर पड़ी मोटरसाइकिल के पास भी खून के निशान थे. इस से पुलिस ने अनुमान लगाया कि संभवत: मोटरसाइकिल से घर लौट रहे सुरेश को हमलावरों ने पहले चलती बाइक पर हमला कर रोका होगा और फिर बाद में अंदर जंगल में ले जा कर उस की हत्या कर दी होगी. पुलिस ने शव को पोस्टमार्टम के लिए भेजने के साथ ही रामदास की रिपोर्ट पर हत्या का केस दर्ज कर जांच शुरू कर दी. दूसरी तरफ मामले की गंभीरता देखते हुए एसपी संतोष सिंह गौर ने एसडीपीओ महेंद्र मालवीय के निर्देशन और पथरोड़ा थानाप्रभारी प्रज्ञा शर्मा के नेतृत्व में एक टीम गठित कर दी.

टीम में एएसआई भोजरात बरबडे, हेडकांस्टेबल सुरेंद्र मालवीय, अनिल ठाकुर, कांस्टेबल हेमंत, टिल्लू, विनोद, संजय आदि को शामिल किया गया. इस टीम ने मृतक सुरेश के बारे में गहन छानबीन की, जिस में पता चला कि सुरेश ने करीब 13 साल पहले कांदई कलां की रहने वाली ममता तोमर से प्रेम विवाह किया था. जबकि ममता के बारे में जानकारी मिली कि वह अपने एक रिश्तेदार के घर ड्राइवर की नौकरी करने वाले सईद खां से प्यार करती थी. मृतक सुरेश के पिता रामदास आर्डिनैंस फैक्ट्री में गार्ड की नौकरी करते थे. शादी के कुछ समय बाद सुरेश को रेलवे में वेल्डर की नौकरी मिल गई, जिस के बाद वह अपनी पत्नी ममता के साथ नानपुरा पंडरी में मकान बना कर रहने लगा था.

सुरेश की ड्यूटी भौरा और कीरतगढ़ रेल सेक्शन के बीच रहती थी, इसलिए वह रोज मोटरसाइकिल से भौरा आ कर रात लगभग 8 बजे ड्यूटी खत्म कर के घर लौट जाता था. सुरेश के साथियों से भी पूछताछ की गई, लेकिन उन्होंने बताया कि सुरेश सीधासच्चा आदमी था और उस की किसी से कोई रंजिश भी नहीं थी. कहानी में मोड़ तब आया, जब पुलिस ने मृतक के पिता रामदास से पूछताछ की. उन्होंने उस की हत्या का शक अपने बेटे की पत्नी ममता पर जाहिर किया. ससुर अपनी ही बहू पर खुद उसी के पति की हत्या करने का आरोप लगा रहा था. इसलिए उन के आरोप को हलके में नहीं लिया जा सकता था. थानाप्रभारी प्रज्ञा शर्मा ने मृतक की पत्नी ममता को पूछताछ के लिए थाने बुलाने के बजाए खुद गांव जा कर उस के बयान दर्ज करने की सोची.

दरअसल इस के पीछे थानाप्रभारी का इरादा गांव में ममता के बारे में लोगों से और जानकारी हासिल करना था. इस के लिए जब वह ममता के घर पहुंचीं तो वहां पहुंचते ही यह देख कर चौंकी कि ममता के घर के मुख्य दरवाजे के अलावा घर में कई जगहों पर सीसीटीवी कैमरे लगे थे. सुरेश रेलवे मे मामूली सी नौकरी करता था. उस के पास करोड़ों की पुश्तैनी संपत्ति भी नहीं थी और न ही उस की किसी से कोई रंजिश की बात सामने आई थी. तो उस ने घर में कई सीसीटीवी कैमरे क्यों लगवाए. उन्होंने सोचा कि कहीं ऐसा तो नहीं कि सुरेश की हत्या का संबंध उस के घर में लगाए गए सीसीटीवी कैमरों से जुड़ा हो.

उन का यह शक उस वक्त और भी गहरा गया, जब उन्हें पता चला कि सुरेश ने ये कैमरे 10-12 दिन पहले ही लगवाए थे. इसलिए ममता के बयान दर्ज करने के बाद थानाप्रभारी प्रज्ञा शर्मा ने टीम के कुछ सदस्यों को गांव में ममता के बारे में जानकारी जुटाने की जिम्मेदारी दे दी. पता चला कि ममता के मायके में रहने वाला सईद अक्सर उस समय ममता के घर आता था, जब सुरेश घर पर नहीं होता था. पुलिस को यह जानकारी भी मिली कि सुरेश के घर में कैमरे लगने के बाद से सईद को गांव में नहीं देखा गया. दूसरी जो सब से बड़ी बात सुनने में आई, वह यह कि कोई 4 महीने पहले ममता अचानक घर से लापता हो गई थी. वह करीब एक महीने बाद घर लौटी थी, जिस के कुछ दिन बाद सुरेश ने अपने घर में कैमरे लगवाए थे.

सुनने में आया था कि लापता रहने के दौरान ममता सईद खान के साथ सिवनी मालवा में रही थी. इस जानकारी के बाद ममता के साथ सईद भी शक के घेरे में आ गया, जो ममता के मायके का रहने वाला था. पुलिस टीम ने कांदई कलां में सईद की तलाश की तो वह गांव से गायब मिला. जब सईद के मोबाइल की काल डिटेल्स निकाली गई तो पता चला कि मृतक सुरेश की पत्नी ममता के साथ उस की लगातार लंबी बातें होती थीं. जिस दिन सुरेश की हत्या हुई उस दिन भी उस ने कई बार ममता से बात की थी.

दूसरी सब से बड़ी बात जो उस की काल डिटेल्स में निकल कर सामने आई, वह यह कि जिस समय सुरेश का कत्ल हुआ उस समय तक सईद का मोबाइल उसी लोकेशन पर था, जहां सुरेश की लाश मिली थी. इस से थानाप्रभारी प्रज्ञा शर्मा के सामने पूरी कहानी साफ हो गई. सईद की काल डिटेल्स से यह भी पता चला कि घटना के पहले कुछ दिनों तक सईद ने लगातार नया बस स्टैंड नंदूबाड़ा रोड सिवनी मालवा निवासी आशू उर्फ हसरत और अरबाज के साथ न केवल कई बार फोन पर बात की थी, बल्कि घटना के समय इन दोनों के मोबाइल भी सईद के साथ घटनास्थल पर ही मौजूद थे. इसलिए एसडीपीओ महेंद्र मालवीय के निर्देश पर पुलिस टीम ने इन तीनों की तलाश शुरू कर दी.

आरोपी फंसे शिकंजे में जिस से जल्द ही सईद को बैतूल के चिचोली थाना इलाके के मउपानी से और अरबाज आशू को सिवनी मालवा से हिरासत में ले लिया. पुलिस ने इन तीनों से सख्ती से पूछताछ की. पूछताछ में तीनों ने न केवल सुरेश की हत्या की बात स्वीकार की बल्कि इस में उस की पत्नी ममता के भी शामिल होने की बात बताई. पुलिस ने उन की निशानदेही पर घटना के समय पहने तीनों के रक्तरंजित कपड़े तथा उपयोग में लाई गई कुदाल, गला घोंटने में प्रयुक्त तार आदि भी बरामद कर सुरेश की पत्नी ममता को भी उस के गांव से गिरफ्तार कर लिया. इस के बाद प्रेमी और पति को एक साथ खुश रखने वाली ममता द्वारा सुरेश की हत्या करवा देने की कहानी इस प्रकार सामने आई—

कांदई कला में रहने वाली ममता बचपन से ही अपने चंचल स्वभाव के लिए जानी जाती थी. बताते हैं कि मिडिल में पढ़ते समय ही उस का रंगरूप कुछ ऐसा निखार आया था कि देखने वाले उसे देख रीझ जाते थे. ममता के साथ स्कूल में गांव का रहने वाला सईद भी पढ़ता था. सईद ममता का दीवाना था. वह उस से दोस्ती कर उसे पाने के सपने देखता था. फिर नादान उम्र में ही ममता सईद के साथ प्रेम और देह के पाठ पढ़ने लगी थी. स्कूली पढ़ाई के बाद ममता ने आगे की पढ़ाई बंद कर दी. वह घर पर ही रहने लगी. उसी दौरान सुरेश उइके से उस के प्रेम संबंध हो गए. यह जानकारी जब सईद को हुई तो उसे झटका लगा. ममता के पिता गांव के बडे़ किसान थे.

गांव में रहने वाले ममता के रिश्ते के एक भाई ने खेतीकिसानी के काम के लिए सईद को बतौर टै्रक्टर ड्राइवर नौकरी पर रख लिया था. इस से सईद को ममता के आसपास रहने का मौका मिलने लगा. सईद बहुत शातिर था. उस का मकसद नौकरी के बहाने ममता से नजदीकियां बढ़ाना था, क्योंकि ममता उन दिनों सुरेश उइके से प्रेम की पींगें बढ़ा रही थी. सईद ने तिकड़म से जल्द ही ममता के पूरे परिवार का दिल जीत लिया. जिस से उस का उस के घर में बेरोकटोक आनाजाना शुरू हो गया. जब ममता को पता चला कि सईद उस की दीवानगी के चलते ही ड्राइवर की नौकरी करने आया है तो उस ने सईद की दीवानगी को भी हवा देनी शुरू कर दी.

वह पहले से ही प्यार के मामले में काफी अनुभवी थी. उस ने सईद को पूरी तरह से अपना दीवाना बना लिया. ममता एक ही समय में 2 प्रेमियों सईद और सुरेश को अपनी बांहों में प्रेम का झूला झुलाने लगी. इतना ही नहीं, उस ने सईद के संग निकाह और सुरेश के संग शादी करने का वादा भी कर रखा था जबकि वह जानती थी कि ये दोनों काम एक साथ नहीं हो सकते. बहरहाल, सईद के साथ उस का निकाह होना सुरेश के साथ शादी होने से ज्यादा मुश्किल था. इसलिए उस ने सईद को छोड़ कर सुरेश के साथ लवमैरिज कर ली.

संयोग से शादी के ठीक बाद सुरेश को रेलवे में नौकरी मिल गई, जिस के बाद वह नानपुर पंडरी में मकान बना कर अपनी पत्नी के साथ रहने लगा. बाद में ममता 2 बेटियों की मां बनी. उस की घरगृहस्थी ठीकठाक चल रही थी. सुरेश की ड्यूटी भौंरा और कीरतगढ़ के बीच थी, इसलिए वह गांव से रोज सुबह मोटरसाइकिल से आ कर शाम को वापस घर लौट आता था. दिन भर ममता घर में अकेली रहती थी. उस ने अपने इस खाली समय का उपयोग पुराने प्रेमी सईद को खुश करने के लिए करना शुरू कर दिया. वह पति के काम पर चले जाने के बाद सईद को अपने घर बुलाने लगी, जहां दोनों दिन भर वासना का खेल खेलते.

शाम को सुरेश के आने से पहले सईद अपने घर चला जाता. इस दौरान सईद ममता से किसी न किसी बहाने पैसा भी लेता रहता था. ममता ने रची गहरी साजिश ममता को सईद का आना अच्छा लगता था, इसलिए सईद के आते ही वह घर का दरवाजा बंद कर उस के साथ कमरे में कैद हो जाती थी. जल्द ही इस बात की चर्चा गांव में होने से बात सुरेश तक भी पहुंच गई. सुरेश ने एकाध बार इशारे में ममता से  इस बारे में बात की, जिस से ममता समझ गई कि अब सईद को घर बुलाने में खतरा है. इसलिए जब उस ने इस बारे में सईद से बात की तो उस ने उसे साथ भाग चलने को कहा. ममता सईद के साथ भागने को तैयार हो गई.

फिर 8 अगस्त, 2020 के दिन ममता को ले कर सईद सिवनी मालवा आ गया, जहां उस के दोस्त और रिश्तेदार अरबाज तथा आशू ने दोनों के रहने की व्यवस्था पहले से ही कर दी थी. ममता के भाग जाने से सुरेश पागल सा हो गया. उसे जरा भी भरोसा नहीं था कि उस के साथ प्रेम विवाह करने वाली ममता उसे और बच्चों को इस तरह से धोखा देगी. इस से सुरेश का दिल टूट गया. इधर एक महीने तक ममता द्वारा घर से लाए गए पैसों पर ऐश करने के बाद सईद ने उसे वापस सुरेश के पास भेज दिया. एक महीने बाद घर लौटी पत्नी को सुरेश अपनाना तो नहीं चाहता था, लेकिन बच्चों की खातिर उस ने ममता को माफ कर दिया. आगे ऐसा न हो, इसलिए सुरेश ने घर में कई सीसीटीवी कैमरे लगवा दिए. वह ड्यूटी पर रहते हुए मोबाइल के माध्यम से घर पर नजर रखने लगा.

इस से सईद और ममता समझ गए कि अब उन का वासना का खेल खत्म हो गया है. इसलिए उन्होंने फोन पर चर्चा कर सुरेश का ही खेल खत्म करने की योजना बना ली, जिस में सईद ने अपने दोनों दोस्त अरबाज और आशू को भी शामिल कर लिया. फिर तीनों ने मिल कर 30 सितंबर, 2020 की रात ड्यूटी से लौट रहे सुरेश को रोक लिया और साथ लाए तार से गला घोंट दिया. फिर भारी पत्थर से उस का सिर कुचल दिया. सईद और उस की प्रेमिका ममता का सोचना था कि मामला शांत हो जाने के बाद वे दोनों फिर पहले की तरह अय्याशी कर सकेंगे. लेकिन पथरोड़ा थानाप्रभारी प्रज्ञा शर्मा ने 4 दिन में ही सभी आरोपियों को सलाखों के पीछे पहुंचा दिया.

Bihar News : प्यार की सजा – प्रेमिका के भाइयों ने ले ली बहन के प्रेमी की जान

Bihar News : अंशू साहनी उर्फ लक्की किंग और खुशबू एकदूसरे को दिलोजान से प्यार करते थे. वे शादी भी करना चाहते थे. उन की शादी तो नहीं हो सकी लेकिन इसी दौरान ऐसा कुछ हुआ कि खुशबू को अपने भाइयों के साथ जेल की सलाखों के पीछे जाना पड़ा..

‘‘मां आज खाने में क्याक्या है?’’ किचन में मां आरती देवी से लिपटते हुए बेटे अंशू साहनी उर्फ लक्की ने पूछा.

‘‘तेरे पसंद की मछली करी और भात बनाया है.’’ बेटे के सिर पर हाथ फेरते हुए मां ने कहा.

‘‘वाह! मछली करी और भात.’’ कह कर लक्की चहक उठा और लंबी सांसें भरते हुए बोला, ‘‘कढ़ाई में से कितनी अच्छी खुशबू आ रही है. आज तो खाने में मजा आ जाएगा मां.’’

‘‘पगला कहीं का, ऐसा क्यों कह रहा है जैसे आज के पहले तूने कभी मछली करी और भात खाया ही नहीं.’’

‘‘नहीं, मां. बस ऐसे ही… अब तो खाना परोस दो. बड़े जोरों की भूख लगी है.’’ पेट पर हाथ फेरते हुए लक्की बोला.

‘‘ठीक है, बाबा ठीक है, हाथमुंह धो कर कमरे में बैठो, तब तक मैं खाना परोस कर लाती हूं.’’ कह कर आरती देवी ने 3 कटोरीदार थालियां निकालीं. तीनों थालियों में खाना परोस कर कमरे में ले गईं, जहां लक्की के साथसाथ उस के 2 भाई रीतेश और पिशु बैठे खाने का इंतजार कर रहे थे. खाना खाने के बाद लक्की अपने कमरे में सोने चला गया और दोनों भाई भी वहीं कमरे में चौकी पर ही सो गए. उस के बाद आरती भी अपने कमरे में सोने चली गईं. उस समय रात के करीब 11 बज रहे थे. ये बात 12 दिसंबर, 2020 की थी. रोजमर्रा की तरह अगली सुबह भी आरती देवी करीब 6 बजे उठ गईं. रोज की तरह वह मझले बेटे लक्की के कमरे में झाड़ू लगाने पहुंचीं तो देखा लक्की अपने बिस्तर पर नहीं था.

यह देख कर उन्हें बड़ा अजीब लगा कि इतनी सुबह वह कहां गया होगा? जबकि वह इतनी जल्दी सो कर उठता ही नहीं था. तभी उन्हें याद आया कि वह अकसर बिना किसी को बताए अपने दोस्त जीतू के यहां चला जाता था सोने के लिए. हो सकता है बिना बताए रात वहीं सोने चला गया हो. यह सोच कर आरती देवी लापरवाह हो गईं और अपने कामों में जुट गईं. घर की साफसफाई से जब वह फारिग हुईं और दीवार घड़ी पर नजर डाली तो घड़ी में 8 बज रहे थे. पता नहीं क्यों लक्की को ले कर उस के मन में एक संशय सा उठ रहा था. आरती के दोनों बेटे रीतेश और पिशु भी सो कर उठ चुके थे. बेटों के उठते ही आरती ने बड़े बेटे रीतेश से कहा,

‘‘देखो न, लक्की अपने कमरे में नहीं है. उस का फोन भी बंद आ रहा है. पता नहीं क्यों उसे ले कर मेरे मन में अजीब सा कुछ हो रहा है. देखो न कहां है?’’

‘‘मां, उसे ले कर तुम खामखा परेशान हो रही हो, उस की आदत को तरह जानती तो हो कि कितना लापरवाह है. कितनी बार बिना बताए घर से चला जाता है. और तो और अपना फोन भी बंद रखता है. कहांकहां तलाशता फिरूं? आ जाएगा घर. तुम उस की फिक्र मत करो.’’ रीतेश बोला. आरती देवी समझ रही थीं कि रीतेश जो कह रहा है वह सच है. क्योंकि लक्की कई बार ऐसा कर चुका था. इसलिए घर वाले यही सोच कर निश्ंिचत हो गए कि लक्की रात भी वहीं गया होगा. घड़ी में 9 बज गए, उस का फोन अभी भी बंद आ रहा था और वह घर भी नहीं लौटा तो आरती परेशान हो गई और रीतेश को उस के बारे में पता करने को कहा. मां को परेशान देख रीतेश ने लक्की के फोन पर काल की लेकिन फोन बंद था.

यह देख कर रीतेश भी परेशान हो गया. उस ने लक्की के दोस्त जीतू को फोन कर के लक्की के बारे में पूछा तो जीतेश ने बताया कि लक्की तो उस के पास आया ही नहीं था. जीतू की बात सुन रीतेश के पैरों तले से जैसे जमीन खिसक गई. उस ने जीतू से पूछा, ‘‘अगर लक्की तुम्हारे पास नहीं आया तो वह कहां गया?’’

‘‘मुझे नहीं पता वह कहां गया भैया,’’ जीतू ने सामान्य तरीके से जबाव दिया, ‘‘यहां आया होता तो मैं जरूर बताता. मैं और दोस्तों को फोन कर के पता करता हूं कि वह कहीं किसी और के पास तो नहीं रुका है?’’

‘‘ठीक, जल्द पता कर के बताओ तब तक मैं उसे तलाशता हूं.’’ कह कर रीतेश ने फोन काट दिया. रीतेश ने मां को लक्की के जीतू के घर न पहुंचने की बात बताई. तब वह और ज्यादा परेशान हो गईं और उन्होंने उसे उस का पता लगाने के लिए भेज दिया. रीतेश सीधा अपने चाचा कृष्णदेव साहनी के घर पहुंच गया. उस के चाचा 2 घर छोड़ कर अपने परिवार के साथ नए घर में रहते थे. उस ने चाचा से पूरी बात बता दी. लक्की के गायब होने की बात सुन कर कृष्णदेव भी चौंके. लक्की की खोज में वह उस के साथ हो लिए. चाचाभतीजा घर से जैसे ही थोड़ी दूर पहुंचे तभी मछली बेचने वाले कुछ दुकानदार उन के पास पहुंचे और उन्होंने जो बताया उसे सुन कर दोनों के होश उड़ गए.

दुखद खबर से उड़े होश दरअसल, पिशु की वजह से मछली दुकानदार उन्हें अच्छी तरह पहचानते थे. पिशु भी मछली बेचने का धंधा करता था. बहरहाल, दुकानदारों ने बताया कि इसी इलाके की अजीमाबाद सड़क के किनारे लक्की की खून सनी लाश पड़ी है. किसी ने गला रेत कर उस की हत्या कर दी है. भाई की हत्या की बात सुनते ही रीतेश एकदम से बदहवास सा हो गया. ऐसा लगा जैसे गश खा कर वहीं गिर जाएगा. उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या करे? बदहवास और दौड़ता हुआ वह उस जगह पहुंचा, जहां लक्की की लाश पड़ी थी. खून से सनी लक्की की लाश देख कर रीतेश दहाड़ मार कर रोने लगा. चाचा कृष्णदेव साहनी भी भावुक हो काठ बन गए थे. जैसे काटो तो खून नहीं. इन्होंने भतीजे को संभालते हुए जमीन पर बैठा दिया. थोड़ी देर में लक्की की हत्या की खबर घर तक पहुंच गई.

बेटे की हत्या की खबर मिलते ही आरती देवी गश खा कर गिर पड़ीं. घर में मौजूद पिशु ने मां को संभाला. भाई की मौत की खबर सुन कर वह भी हतप्रभ था. देखते ही देखते लक्की की मौत की खबर पूरे मोहल्ले में फैल गई थी. मोहल्ले के सैकड़ों लोग आरती के घर के बाहर जमा हो गए. आरती और उन के दोनों बेटों को शक था कि लक्की की हत्या फिरोज मलिक और उस के घरवालों ने ही की होगी. यह बात आरती ने मोहल्ले वालों को भी बता दी. इंतकाम की आग में जलते हुए मोहल्ले के लोग घटनास्थल पहुंच गए थे. हत्यारों ने बड़ी बेरहमी से चाकू से गला रेत कर लक्की की हत्या की थी. लाश देख कर लोग गुस्से से भर गए.

गुस्साए लोग लाश वहीं छोड़ कर आरोपियों के घर की ओर चल दिए. इस बीच मौके की स्थिति को भांप कर किसी ने बहादुरपुर थाने में फोन कर घटना के बारे में जानकारी दे दी थी. सूचना मिलते ही बहादुरपुर थाने के थानाप्रभारी सनोवर खान फोर्स के साथ अजीमाबाद पहुंच गए जहां लक्की की लाश पड़ी हुई थी. वह घटना की जांच में जुट गए. आरोपी घटनास्थल से थोड़ी दूरी पर स्थित सेक्टर-डी, अजीमाबाद कालोनी में रहते थे. गुस्साए लोगों ने आरोपियों के घर पर पत्थरबाजी शुरू कर दी. यह जानकारी थानाप्रभारी को मिली तो वह घटनास्थल से अजीमाबाद कालोनी पहुंच गए. उन्होंने भीड़ को समझाने की कोशिश की. लेकिन भीड़ नियंत्रित नहीं हो पा रही थी. यह देख उन्होंने उच्चाधिकारियों को सूचित कर दिया.

घटना की सूचना पा कर डीएसपी अमित शरण और एसपी (सिटी पूर्वी) जितेंद्र कुमार बगैर समय गंवाए मौके पर पहुंच गए. फिर फोर्स ने मोर्चा संभाल लिया. लोगों ने की आगजनी पुलिस सेक्टर-डी में आक्रोशित लोगों को संभालने में जुटी हुई थी, तभी घटनास्थल से करीब 3 किलोमीटर दूर कुम्हरार बाईपास के पास गुस्साए लोगों की भीड़ भड़क उठी. हत्या से नाराज भीड़ बाईपास पर आगजनी कर बवाल कर रही थी और हत्यारों को फांसी देने तथा मृतक की मां आरती देवी की आर्थिक सहायता करने की मांग कर रही थी. धीरेधीरे घटना दंगे का रूप ले रही थी. एसपी जितेंद्र कुमार ने हालात की संवेदनशीलता को देखते हुए थानाप्रभारी (सुल्तानगंज) शेर सिंह राणा, थानाप्रभारी (आलमगंज) सुधीर कुमार और बीएमपी के जवानों को कुम्हरार बाईपास पर तैनात कर दिया ताकि हिंसा को काबू किया जा सके क्योंकि मामला 2 समुदायों से जुड़ा हुआ था और धीरेधीरे दंगे का रूप ले चुका था.

घंटों चला उपद्रव एसपी जितेंद्र कुमार के आने और समझाने के बाद समाप्त हो सका. एसपी के निर्देश पर डीएसपी अमित शरण ने आरोपी अरमान मलिक, उस की बहन खुशबू और फुफेरे भाई अजहर को गिरफ्तार कर लिया. आरोपितों के गिरफ्तार होने के बाद हालात पर काबू पा लिया गया था. गिरफ्तार किए तीनों आरोपितों को थाने ला कर उन से अलगअलग पूछताछ की गई. पूछताछ के दौरान खुशबू ने सच कबूल लिया. उस ने बताया कि लक्की से उस के प्रेम संबंध थे. लेकिन इन संबंधों की वजह से उसे थाने आना पड़ेगा, इस की उस ने कल्पना तक नहीं की थी. इस के बाद पुलिस ने अरमान और अजहर से पूछताछ की तो लक्की हत्याकांड की कहानी कुछ इस तरह सामने आई—

19 वर्षीय अंशु साहनी उर्फ लक्की किंग मूलरूप से पटना के बहादुरपुर थाने के अजीमाबाद संदलपुर का रहने वाला था. 3 भाइयों रीतेश, लक्की और पिशु में वह दूसरे नंबर का था. पिता संजय साहनी की बीमारी से मौत हो चुकी थी. पिता की मौत के बाद मां आरती देवी ने तीनों बेटों का पालनपोषण किया. आरती देवी का साथ दिया उन के देवर कृष्णदेव साहनी ने, सच्चा सारथी बन कर. भाई की मौत के बाद उन्होंने भाभी को कभी भी अकेला नहीं छोड़ा. उन की मदद के लिए वह हमेशा तत्पर रहे एक देवर की तरह नहीं, बल्कि एक बेटे की तरह. रीतेश, लक्की और पिशु तीनों चाचा कृष्णदेव का दिल से सम्मान करते थे. चाचा का एकएक शब्द उन के लिए पत्थर की लकीर होती थी, वह जो कहते थे तीनों उन की बात मानते थे.

ठाटबाट से रहता था लक्की तीनों भाई धीरेधीरे बड़े हो चले थे. तीनों भाइयों में से लक्की सब से अलग सोच का था. शरीर से चुस्तदुरुस्त और दिमाग से चंचल लक्की खुद को किसी राजा से कम नहीं समझता था. इसीलिए वह अपने नाम के आगे किंग लगाता था. लक्की औनलाइन कंपनी अमेजन का डिलीवर बौय था. हालांकि उस का सपना, सिर्फ सपना ही था. सपने को हकीकत में बदलने के लिए ढेर सारे पैसे चाहिए थे जो उस के पास नहीं थे. बड़ा भाई रीतेश मोटर मैकेनिक था, वह खुद डिलीवरी बौय का काम करता था जबकि छोटा भाई पिशु मछली बेचता था. अपनी कमाई का सारा पैसा वह खुद पर खर्च करता था.

अपनी कमाई के पैसे से महंगे और अच्छे कपड़े खरीदना, महंगा मोबाइल फोन रखना, काम से निपटने के बाद दोस्तों के साथ पार्टी करना लक्की की दिनचर्या में शामिल था. बात करीब एक साल पहले की है. एक दिन अरमान मलिक के नाम से अमेजान कंपनी से एक पार्सल आया. लक्की दोपहर करीब एक बजे डिलीवरी देने अरमान के घर पहुंचा. उस दिन अरमान घर पर नहीं था. वह किसी काम से बाहर गया हुआ था. उस की छोटी बहन खुशबू डिलीवरी लेने घर से बाहर निकली. 16 साल की खुशबू बला की खूबसूरत थी. खुशबू को देख कर वह अपलक उसे निहारता रह गया. उसे देख कर लक्की पहली ही नजर में उस पर लट्टू हो गया था.

खुशबू पार्सल रिसीव कर के बलखाती हुई घर के भीतर चली गई. लक्की उसे निहारता रह गया. रात ड्यूटी से घर लौटने के बाद जब लक्की खाना खाने बैठा तो उस की आंखों के सामने खुशबू की खूबसूरती थिरकने लगी. खाना खातेखाते उस के खयालों में खो गया. दोनों भाई खाना खा कर कब उठ गए, उसे पता ही नहीं चला. उस रात जब घर के सभी लोग सोने के लिए अपनेअपने कमरे में चले गए तो लक्की बिना घर वालों को बताए चुपके से रात 12 बजे के करीब अपने जिगरी दोस्त जीतू के घर जा पहुंचा. जीतू किराए का कमरा ले कर अकेला ही रहता था. पूरी रात लक्की उस से खुशबू के बारे में बातें करता रहा. दिल में बसा ली थी खुशबू अगले दिन लक्की जब डिलीवरी के लिए सामान ले कर घर से निकला तो वह सीधे ग्राहक के घर न जा कर अरमान के घर के रास्ते हो कर निकला ताकि खुशबू का दीदार हो जाए.

लेकिन वह कहीं नहीं दिखी तो लक्की काम पर निकल गया. रात में घर लौटते समय भी वह उसी के घर के सामने से हो कर निकला ताकि खुशबू को एक नजर देख सके. लेकिन निराशा ही हाथ लगी. मायूस हो कर लक्की घर लौट आया. अगले दिन काम पर जाते हुए लक्की फिर उसी के घर के सामने से निकला तो दरवाजे पर खुशबू खड़ी मिल गई. उसे देखते ही लक्की के चेहरे पर खुशी उमड़ पड़ी. उसे देख वह मुसकराता हुआ बाइक से आगे बढ़ गया. लक्की खुशबू से बात करना चाहता था लेकिन उसे इस का जरिया नहीं मिला. इसी दौरान उसे उस फोन नंबर का ध्यान आया जो खुशबू ने पार्सल रिसीव करते समय लिखा था. उसी फोन नंबर पर बात कर के लक्की खुशबू के करीब पहुंच ही गया.

खुशबू के भी दिल में लक्की के लिए चाहत पैदा होने लगी थी. वह भी लक्की से प्यार करने लगी थी. दो जवां दिलों में एकदूजे के लिए प्यार की इबारत लिखी जा रही थी. मौका मिलने पर वे घर से बाहर भी मुलाकातें करने लगे. मोहब्बत का इजहार और इकरार करने के बाद दोनों चोरीछिपे यहांवहां मिलते और प्यार की बातें करते. लक्की खुशबू को खुश रखने के लिए खूब पैसे खर्च करता और मंहगे तोहफे देता था. लक्की से प्यार होने के बाद खुशबू के पांव जमीन पर नहीं पड़ रहे थे. पहली बार घर वालों ने खुशबू के बदले हावभाव देखे तो उन्हें उस पर शक हो गया कि मामला कुछ गड़बड़ है. उस दिन के बाद से उस का बड़ा भाई अरमान बहन पर नजर रखने लगा. वैसे भी अरमान को कहीं से उड़ती हुई खबर मिल चुकी थी कि खुशबू का किसी अंजान लड़के के साथ चक्कर चल रहा है.

अरमान ने धमकाया लक्की को उस दिन के बाद से अरमान बहन के प्रेमी को ढूंढने में जुट गया. आखिरकार अरमान ने एक दिन लक्की को बहन से बातें करते देखा तो उसे धमकाया, ‘‘2 टके के डिलीवरी बौय, तेरी हिम्मत कैसे हुई मेरी बहन पर बुरी नजर डालने की. आज के बाद तूने फिर से उस की तरफ नजर उठा कर देखा तो तेरी आंखें निकाल लूंगा.’’

लक्की को धमकाने के बाद अरमान खुशबू को ले कर घर चला गया और लक्की अपने काम पर निकल गया. घर पहुंच कर अरमान ने खुशबू की करतूतें मांबाप से बताईं. घर वाले बेटी की करतूत जान क र शर्मसार हो गए और उन्हें उस पर गुस्सा भी खूब आया. उन्होंने बेटी पर हाथ भर नहीं उठाया, पर उसे खूब जलील किया. मां ने उसे समझाया, ‘‘बेटी, जो किया सो किया. कम से कम घर की इज्जत तो बाजार में मत उछाल. तू पढ़लिख. वक्त आने पर तेरे अब्बू अच्छा लड़का देख कर तेरा निकाह धूमधाम से कर देंगे. तू ऐसे छिछोरों के साथ गलबहियां जोड़ कर घर की इज्जत मत बेच. समझी.’’

सिर झुकाए खुशबू मां की बातें चुपचाप सुन रही थी. उस समय उस ने मां से झूठ बोल कर मामला वहीं खत्म कर दिया और वादा किया कि अब वह लक्की से कभी नहीं मिलेगी और न ही बात करेगी. बेटी के किए वादे पर उन्हें यकीन हो गया था कि अब वह कोई ऐसी हरकत नहीं करेगी, जिस से घर वालों को शर्मिंदा होना पड़े. पर बात यहीं खत्म नहीं हुई. अरमान ने फुफेरे भाई अजहर के साथ मिल कर लक्की के घर का पता लगा लिया था. एक दिन वह उस के घर पहुंच गया. उस ने उस की मां को धमकी भरे अंदाज में कहा, ‘‘आंटी, तू अपने बेटे लक्की को समझा देना, वह मेरी बहन से दूर ही रहे तो उस के लिए अच्छा है, नहीं तो इस का नतीजा बहुत बुरा होगा.’’

अरमान और अजहर चले गए. लेकिन आरती देवी एकदम से सन्न रह गई थीं. बेटे को ले कर उन्हें चिंता सताने लगी थी कि कहीं उस के साथ कोई ऊंचनीच न हो जाए. वह लक्की के घर लौटने की राह देखने लगी. रात में जब लक्की ड्यूटी से घर लौटा तो खाना खिलाने के बाद मां ने उसे समझाया और बताया कि दूसरों की इज्जत से खेलने का अंजाम बहुत बुरा होता है. तू संभल जा बेटा. आज 2 लड़के घर आ कर मुझे धमका गए हैं. बेटा, मेरे जीने का तुम्हीं सब सहारा हो, अगर तुम्हें कुछ हुआ तो मैं किस के सहारे जीऊंगी? मेरी बात मान बेटा, तू उस लड़की का चक्कर छोड़ कर अपने काम में मन लगा. समय आने पर अच्छी लड़की देख कर तेरी शादी करा दूंगी.

मां की बात सुन कर लक्की सकपका गया कि उस के प्यार का राज खुल गया है. वह उलटा मां को ही समझाने लगा, ‘‘मां, खुशबू बहुत अच्छी लड़की है. मैं उसे बहुत प्यार करता हूं, वह भी मुझे बहुत चाहती है. हम दोनों शादी करना चाहते हैं, मां. हमें बस तुम्हारे आशीर्वाद की जरूरत है.’’

लक्की मां के सामने फिल्मी डायलौग मारने लगा. बेटे की बात आरती को तनिक भी अच्छी नहीं लगी. तभी उस ने उस के कान के नीचे एक झन्नाटेदार थप्पड़ रसीद किया. वह तिलमिला कर रह गया. आरती को बेटे की चिंता सताने लगी थी क्योंकि उन्होंने उन दोनों लड़कों के तेवर देखे थे. कितने गुस्से में थे वे. फिलहाल मां के समझाने का लक्की पर कोई असर नहीं हुआ. वह खुशबू से अब भी छिपछिप कर मिल रहा था. लक्की के बिना जी पाना खुशबू के लिए भी मुश्किल होता जा रहा था. दोनों ने फैसला किया कि चाहे जो कुछ हो जाए, वे कभी जुदा नहीं होंगे. जमाने से लड़ कर अपने प्यार को हासिल करेंगे. इधर, भले ही खुशबू मांबाप को यकीन दिलाने में कामयाब हो गई थी लेकिन भाई अरमान की नजर बहन पर ही टिकी थी.

उसे पता चल गया था कि खुशबू मांबाप की आंखों में धूल झोंक कर छिपछिप कर लक्की से मिलती है. उस के दिमाग में एक खतरनाक प्लान ने जन्म लिया. उस ने अपनी योजना में फुफेरे भाई अजहर को भी शामिल कर लिया था. लिख डाली खूनी इबारत अजहर कोई छोटामोटा आदमी नहीं था. वह बहादुरपुर थाने का हिस्ट्रीशीटर था. उस पर कई आपराधिक मुकदमे दर्ज थे. अजहर के षडयंत्र में शामिल होने से अरमान को बल मिल गया था. योजना को अंजाम देने के लिए अरमान और अजहर ने खुशबू को धमका कर अपने षडयंत्र में शामिल कर लिया था. क्योंकि खुशबू के बिना उन की यह योजना पूरी नहीं हो सकती थी. प्लान के मुताबिक 12/13 दिसंबर, 2020 की रात एक बजे खुशबू ने लक्की को फोन किया और उसे मिलने के लिए उसी समय घर के पीछे बुलाया.

खुशबू का फोन आते ही लक्की कपड़े पहन कर मोबाइल साथ ले कर चुपके से घर से निकल गया. उस समय घर के सभी लोग गहरी नींद में सो रहे थे. वह घर से थोड़ी दूर पहुंचा तो रास्ते में उसे अरमान और अजहर मिल गए. दोनों को देखते ही लक्की समझ गया था कि खुशबू ने धोखे से उसे यहां बुलाया है. इन से बचना कठिन है. वह खतरे को भांप चुका था. जैसे ही उस ने वहां से भागने की कोशिश की दोनों ने दौड़ कर उसे पकड़ लिया. कसरती बदन वाले अजहर ने अपना मजबूत हाथ लक्की के मुंह पर रख दिया ताकि वह चिल्ला न सके. उस के हाथों के दबाव से लक्की की आवाज गले में घुट कर रह गई.

तब तक दोनों ने उसे जमीन पर पटक दिया. अरमान ने लक्की के दोनों पैर पकड़ लिए. अजहर ने कमर में खोंसा धारदार चाकू निकाला और लक्की का गला रेत दिया. थोड़ी देर में लक्की की मौत हो गई. इतने पर भी उसे यकीन नहीं हुआ तो उस के सीने पर चाकू से ताबड़तोड़ वार किए. फिर दोनों वहां से फरार हो गए और साथ में उस का फोन भी ले गए. भागते हुए उन्होंने खून से सना चाकू झाड़ी में फेंक दिया ताकि पुलिस उन तक कभी न पहुंच पाए. लेकिन कातिल कितना ही चालाक क्यों न हो, कानून की गिरफ्त से ज्यादा दिन दूर नहीं रह सकता.

मृतक की मां आरती देवी की नामजद तहरीर पर लक्की की हत्या के आरोप में पुलिस ने खुशबू, अरमान मलिक और अजहर को गिरफ्तार कर लिया. आरती देवी ने अरमान के पिता फिरोज मलिक को भी नामजद किया था, लेकिन मुकदमा दर्ज होने के बाद वह घर से फरार हो गया था. पुलिस ने आरोपियों की निशानदेही पर लक्की की हत्या में प्रयुक्त चाकू भी बरामद कर लिया. कथा लिखे जाने तक 3 आरोपी जेल में बंद थे. काश! लक्की ने अपनी मां का कहना मान लिया होता तो आज वह जिंदा रहता.

—कथा में खुशबू परिवर्तित नाम है. कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित