Best Crime Story: प्यार का अधिकार

Best Crime Story: देवेंद्र को जहां सहानुभूति और आत्मीयता की जरूरत थी, वहीं ममता को धैर्य और विश्वास  की. आखिर  ऐसा क्या हुआ  था कि न उसे सिंपथी मिली   और न वह धैय से काम ले  सकी. कुछ दिनों पहले कानपुर के एक नामीगिरामी इंजीनियरिंग संस्थान के गर्ल्स हौस्टल में कुछ ज्यादा ही चहलपहल थी, क्योंकि अगले दिन रविवार होने की वजह से संस्थान में छुट्टी थी. अधिकतर लड़कियां हौस्टल के बरामदे में बैठी गपशप कर रही थीं तो कुछ अगले दिन पिकनिक मनाने का प्रोग्राम बना रही थीं. अचानक किसी लड़की के चीखने की आवाज ने सभी को चौंका दिया.

लड़कियां यह जानने की कोािशश करने लगीं कि चीख की आवाज आई कहां से. काजोल, ज्योति और निशा अपनेअपने कमरे से निकल कर बाहर आईं. काजोल ने कहा, ‘‘शायद आवाज कमरा नंबर 212 से आई है.’’

वह कमरा एमटेक की छात्रा ममता शुक्ला का था. ज्योति और निशा ने ममता को आवाज दे कर दरवाजा खटखटाया. लेकिन कमरे के अंदर से कोई जवाब नहीं आया. दरवाजा अंदर से बंद था. तब तक कई अन्य लड़कियां वहां आ गई थीं. उन में से एक लड़की ने कहा, ‘‘रोशनदान से झांक कर देखो कि ममता दरवाजा क्यों नहीं खोल रही है.’’

कुछ लड़कियां एक मेज उठा लाईं. मेज पर कुरसी रख कर 2 लड़कियों ने उसे मजबूती से पकड़ लिया. दीप्ति ने कुरसी पर खड़े हो कर दरवाजे के ऊपर लगे रोशनदान से अंदर झांका. लेकिन कमरे के अंदर कुछ दिखाई नहीं पड़ा. तब दीप्ति ने रोशनदान का शीशा तोड़ दिया और अंदर हाथ डाल कर दरवाजे की सिटकनी खोल दी. दरवाजा खुलते ही काजोल और ज्योति कमरे के अंदर गईं. अंदर का दृश्य देख कर वे स्तब्ध रह गईं. तब तक दीप्ति और अन्य कई लड़कियां भी अंदर पहुंच गईं. अंदर का हाल देख कर सभी डर गईं. दीप्ति ने सभी लड़कियों को कमरे से बाहर निकाल कर दरवाजा बाहर से बंद कर दिया. उस ने निशा और ज्योति को दरवाजे के बाहर रुकने को कहा और खुद काजोल के साथ वार्डन को सूचना देने चल पड़ी.

सूचना मिलते ही वार्डन डा. आर.पी. अस्थाना, मुख्य सुरक्षा अधिकारी डी.पी. गोयल, सहायक मुख्य सुरक्षा अधिकारी आर.एन. श्रीवास्तव के साथ कमरे पर आ पहुंचे. वार्डन श्री अस्थाना ने सुरक्षा अधिकारियों के साथ कमरे में प्रवेश किया. कमरे की दक्षिणी दीवार के पास फर्श पर ममता पड़ी थी. उस से थोड़ी दूरी पर एक युवक पड़ा था. फर्श पर ढेर सी उल्टी पड़ी थी. वार्डन श्री अस्थाना ने फौरन सुरक्षा अधिकारी को भेज कर संस्थान के हेल्थ सेंटर से डा. एस.के. तिवारी को बुलवाया. डा. तिवारी ने ममता का परीक्षण कर के उसे मृत घोषित कर दिया. युवक बेहोश था. उसे होश में लाने का प्रयास किया गया तो थोड़ी देर में वह होश में आ गया.

युवक ने अपना नाम देवेंद्र सिंह बताया. उस ने यह भी बताया कि वह ममता से प्रेम करता था. प्रेम में निराश हो कर उस ने ममता को जहर दे दिया था और खुद भी जहर खा लिया था. वार्डन श्री अस्थाना ने आर.एन. श्रीवास्तव के साथ देवेंद्र को अस्पताल भिजवा दिया. फिर एक सिक्योरिटी गार्ड को लिखित सूचना दे कर कोतवाली भेज दिया. सिक्योरिटी गार्ड कोतवाली पहुंचा तो उस समय कोतवाली प्रभारी इंसपेक्टर इंद्रनाथ अपने कक्ष में बैठे थे. गार्ड ने वार्डन द्वारा दी गई लिखित सूचना उन्हें दे दी. सूचना पढ़ कर इंसपेक्टर ने रिपोर्ट लिखने का आदेश दिया. उन्होंने अपने उच्चाधिकारियों को भी घटना की सूचना दे दी और खुद पुलिस दल के साथ घटनास्थल की ओर रवाना हो गए.

घटनास्थल पर पहुंच कर इंसपेक्टर इंद्रनाथ ने ममता के शव का निरीक्षण किया. ममता के कपड़े अस्तव्यस्त थे. उस के चेहरे पर सफेद पाउडर जमा हुआ था. शरीर पर कोई घाव का निशान नहीं था. आसपास का सामान बिखरा पड़ा था. देखने से ही लगता था कि ममता ने जान बचाने के लिए काफी संघर्ष किया था. इसी बीच तमाम पुलिस अधिकारी भी घटनास्थल पर पहुंच गए. इन अधिकारियों ने भी घटनास्थल का निरीक्षण किया. ममता के कमरे की तलाशी लेने पर पुलिस को आर्सेनिक पाउडर 500 ग्राम, आर्सेनिक पाउडर की रसीद, मिठाई, दवा के कुछ कैप्सूल, एक टेप रिकौर्डर, कैसेट, 2 मोबाइल फोन, 3 पोस्टर, जिन पर देवेंद्र ने अपनी प्रेमकथा लिखी थी. एक सीरिंज और देवेंद्र सिंह के नाम की एक चैकबुक मिली. इन सब चीजों को पुलिस ने अपने कब्जे में ले लिया. कमरे में पड़ी उल्टी को भी पुलिस ने सील कर के कब्जे में ले लिया. आवश्यक काररवाई के बाद पुलिस ने ममता के शव को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया.

इंसपेक्टर इंद्रनाथ ने इस मामले की जांच इंसपेक्टर जयकरन को सौंप दी. अभियुक्त देवेंद्र सिंह पुलिस के कब्जे में था. जयकरन ने सब से पहले उसी से पूछताछ की. देवेंद्र का कहना था कि वह ममता से प्रेम करता था. उस ने ममता को मारा नहीं था. जबकि घटनास्थल पर प्राप्त साक्ष्य कुछ और ही कह रहे थे. जांच के दौरान पूरी कहानी कुछ इस तरह प्रकाश में आई. देवेंद्र सिंह के पिता आर.के. सिंह लखनऊ स्थित सचिवालय में मुख्य प्रशासनिक अधिकारी थे. देवेंद्र के अलावा उन की 2 बेटियां थीं. देवेंद्र अकेला बेटा था, इसलिए वह मातापिता का बड़ा दुलारा था. वह देवेंद्र को किसी बात की कमी नहीं होने देते थे. इस प्यारदुलार ने देवेंद्र को जिद्दी बना दिया था. वह जिस चीज के लिए अड़ जाता, उसे ले कर ही मानता था. घर में किसी बात की कमी तो थी नहीं, इसलिए उस की हर ख्वाहिश पूरी हो जाती थी.

देवेंद्र में कई गुण भी थे. वह बहुत महत्त्वाकांक्षी तथा धुन का पक्का था. पिता उसे इंजीनियर बनाना चाहते थे. विज्ञान से पढ़ाई पूरी करने के बाद देवेंद्र इंजीनियरिंग की प्रवेश परीक्षा की तैयारी में जुट गया. वह मेहनती तो था ही. इलाहाबाद के मोतीलाल नेहरू इंजीनियरिंग कालेज में बीटेक के लिए उसे चुन लिया गया. वह लखनऊ से इलाहाबाद चला गया और वहां हौस्टल में रह कर पढ़ाई करने लगा. नया सत्र शुरू हुआ था, इसलिए कालेज में इंट्रोडक्शन चल रहा था. पुराने छात्र नए लड़केलड़कियों की खिंचाई कर रहे थे. ऐसे में देवेंद्र की मुलाकात एक लड़की से हुई, जिस ने उसी साल बीटेक में प्रवेश लिया था. लड़की का नाम था ममता शुक्ला. ममता आकर्षक व्यक्तित्व की स्वामिनी थी. पहली मुलाकात में ही देवेंद्र ममता से बहुत प्रभावित हुआ.

ममता के पिता महिपाल शुक्ला लखनऊ में रेलवे विभाग में अभियंता थे. श्री शुक्ल की 3 बेटियां थीं. उन में ममता दूसरे नंबर पर थी. चूंकि देवेंद्र भी लखनऊ का रहने वाला था, इसलिए ममता और देवेंद्र में मित्रता हो गई. देवेंद्र जब लखनऊ जाता, ममता उसे अपने भी काम सौंप देती. इस तरह वह ममता के घर भी आनेजाने लगा. कुछ ही दिनों में वे अच्छे दोस्त बन गए. उसी बीच ममता बीमार पड़ गई. इलाहाबाद में देवेंद्र के सिवा उस का कोई अन्य आत्मीय नहीं था. उस समय देवेंद्र ने बड़ी लगन से ममता की देखभाल की. कुछ ही दिनों में ममता स्वस्थ हो गई. देवेंद्र की सेवा ने ममता का दिल जीत लिया. वह देवेंद्र से प्रेम करने लगी. देवेंद्र तो मन ही मन ममता को पहले से ही चाहता था.

दोनों प्यार की राह पर चल पड़े. उन की मुलाकातें ही नहीं होने लगीं, बल्कि दोनों की फोन पर लंबीलंबी बातें भी होने लगीं. जल्दी ही उन का प्रेम चर्चा का विषय बन गया. न जाने कैसे  इस बात की खबर ममता के घर वालों तक पहुंच गई. महिपाल शुक्ला को यह बात नागवार गुजरी. ममता किसी अन्य जाति के लड़के से संबंध जोड़े, यह उन्हें पसंद नहीं था. लेकिन जवान बेटी से खुल कर कुछ कह भी नहीं सकते थे. हां, अप्रत्यक्ष रूप से उन्होंने ममता को कई बार अवश्य टोका. लेकिन ममता ने उस पर ध्यान नहीं दिया. ममता जब भी लखनऊ आती, देवेंद्र के घर अवश्य जाती. देवेंद्र के परिवार वाले ममता को बहुत मानते थे, खासतौर पर उस की मां. वह ममता को अपनी बहू बनाने के लिए बहुत लालायित थीं.

देवेंद्र ने बीटेक पूरा कर लिया तो लखनऊ आ गया. उसे ममता से दूर होने का बहुत दुख हुआ. लेकिन मजबूरी थी. लखनऊ और इलाहाबाद के बीच ज्यादा फासला नहीं था. इसलिए वह बीचबीच में इलाहाबाद का चक्कर लगा लेता था. ममता भी छुट्टी मिलते ही लखनऊ अपने घर पहुंच जाती थी. कुछ समय बाद देवेंद्र को भारत इलैक्ट्रौनिक्स लिमिटेड, गाजियाबाद में नौकरी मिल गई. अब देवेंद्र   का ममता से मिलना और कम हो गया. सिर्फ फोन से वह ममता से दिल की बातें कर लेता था. इसी दौरान एक ऐसी घटना घट गई, जिस ने ममता और संजय को बेचैन कर दिया.

उन दिनों ममता की छुट्टियां चल रही थीं. वह लखनऊ में थी. देवेंद्र व्यस्तता के कारण काफी दिनों तक ममता से मिलने नहीं आ सका था. इसलिए एक दिन ममता खुद उस के घर जा पहुंची. ममता को देख कर देवेंद्र की मां बहुत खुश हुईं. उन्होंने ममता को अपने पास बिठा कर कहा, ‘‘बेटी, मुझे तुम से कुछ जरूरी बात करनी है.’’

‘‘कहिए आंटीजी, क्या बात है?’’ ममता ने उत्सुकता से पूछा.

‘‘बेटी, जब तक बच्चा छोटा होता है, मां उसे अपने आंचल तले हर बुराई से दूर रखती है. लेकिन उस के बड़े होने पर मांबाप का नियंत्रण कम हो जाता है. फिर वह अपनी जिंदगी में दखल पसंद नहीं करता.’’

‘‘आंटीजी, मैं समझी नहीं. आप कहना क्या चाहती हैं?’’

‘‘ममता, देवेंद्र में एक बहुत बड़ा अवगुण है, जो शायद तुम्हें नहीं मालूम. वह नशीली दवाएं खाने लगा है. मैं तो उसे समझासमझा कर थक गई. वह मेरी एक नहीं सुनता. लेकिन बेटी, मुझे विश्वास है कि अगर तुम समझाओगी तो वह जरूर मान जाएगा.’’

यह सुन कर ममता सन्न रह गई. देवेंद्र ऐसा होगा, उस ने सपने में भी नहीं सोचा था. उस के निश्छल एवं भावुक हृदय को गहरी ठेस लगी. आंखों में आंसू भर आए. वह उसी वक्त अपने घर लौट आई. दिन भर अपने कमरे में पड़ी रोती रही. शाम को जब महिपाल शुक्ला घर लौटे तो बेटी का उतरा चेहरा देख कर उन्होंने पूछा, ‘‘ममता, बहुत सुस्त हो, तबीयत तो ठीक है न?’’

ममता ने पिता की बात पर कोई जवाब नहीं दिया. बस गुमसुम बैठी रही. श्री शुक्ला दिन भर के थके थे, इसलिए उन्होंने ज्यादा पूछताछ नहीं की. वह अपने कमरे में चले गए. 2 दिनों बाद रविवार को नौकर ने आ कर कहा, ‘‘बिटिया, देवेंद्र बाबू आए हैं.’’

देवेंद्र का नाम सुनते ही ममता उत्तेजित हो गई. भावावेश में वह नौकर को डांटते हुए बोली, ‘‘उन से कह दो, यहां से चले जाएं. मैं उन का मुंह नहीं देखना चाहती.’’ नौकर सिर झुका कर चला गया.

फिर देवेंद्र खुद वहां आ गया. उसे देखते ही ममता उठ कर कमरे से बाहर जाने लगी तो उस ने उस का हाथ पकड़ कर बिठाते हुए कहा, ‘‘क्या बात है, सरकार के तेवर बदलेबदले से हैं?’’

‘‘छोड़ो देवेंद्र, मुझे तुम्हारा मजाक हर समय अच्छा नहीं लगता.’’ ममता उस का हाथ झटक कर बोली.

‘‘लो छोड़ दिया, पर इतना तो बता दो, बंदे से खता क्या हुई है?’’

‘‘गलती तुम से नहीं, मुझ से हुई है, वरना तुम्हारे फरेब को पहले ही समझ लेती.’’

‘‘ममता, तुम्हें गलतफहमी हो गई है.’’

‘‘नहीं देवेंद्र, अब मेरी आंखें खुल गई हैं.’’

‘‘लेकिन मैं ने किया क्या है, पहले यह तो बताओ.’’

‘‘देवेंद्र, तुम ड्रग्स लेते हो. यह बात तुम ने मुझे कभी नहीं बताई.’’ ममता कांपते स्वर में बोली. यह सुन कर देवेंद्र को झटका लगा. अगले क्षण खुद को संभालते हुए बोला, ‘‘यह तुम से किस ने कहा?’’

‘‘तुम्हारी मम्मी ने मुझे बताया है. देवेंद्र, आज से हमारा रिश्ता खत्म. मैं तुम से शादी नहीं कर सकती.’’

‘‘ऐसा न कहो ममता, मैं तुम्हारे बिना जी नहीं सकता.’’ देवेंद्र भावुक हो गया. वह बहुत देर तक ममता को समझाता रहा कि वह सारी बुरी आदतें छोड़ देगा. लेकिन ममता पर उस का कोई असर नहीं हुआ. अंत में देवेंद्र उठ कर चला गया. उस के जाने के बाद ममता ने यह बात घर में सब को बता दी. महिपाल शुक्ला मन ही मन आश्वस्त हुए कि चलो यह कांटा अपने आप ही निकल गया. घर में छुट्टियां बिता कर ममता इलाहाबाद आ गई. इस बीच देवेंद्र ने कई बार ममता से मिलने की कोशिश की. लेकिन ममता उस के सामने नहीं आई. उस के इस तरह रूठ जाने से देवेंद्र बहुत परेशान था. वह ममता को लगातार फोन भी करता रहा, पर उस का नंबर देखते ही ममता फोन काट देती. बाद में उस ने अपना नंबर ही बदल लिया. वह ममता से मिलने कई बार इलाहाबाद भी गया, लेकिन वहां भी ममता ने उस से सीधे मुंह बात नहीं की.

प्यार के बदले उपेक्षा मिलने के बावजूद देवेंद्र ममता को भूल नहीं सका. वह उस के पीछे लगा रहा. उसे समझाता रहा. उसे विश्वास था कि एक न एक दिन ममता का गुस्सा शांत हो जाएगा. फिर वह उसे पहले की तरह चाहने लगेगी. लेकिन उस का सोचना गलत निकला. ममता उस से दूर होती गई. वह पागलों की तरह उस के इर्दगिर्द मंडराता रहा. अब वह नशा भी कुछ ज्यादा ही करने लगा था. कहा जाता है कि उस ने एक बार आत्महत्या करने की भी कोशिश की थी. कुछ दिनों बाद देवेंद्र पर एक और कहर टूटा. उसे कहीं से पता चला कि ममता किसी हरिहर तिवारी नामक लड़के से प्रेम करने लगी थी. ममता ऐसा करेगी, उसे यकीन नहीं हुआ. वह ममता से मिलने इलाहाबाद जा पहुंचा. उसे देखते ही ममता बोली, ‘‘देवेंद्र, मैं ने कितनी बार कहा कि तुम मुझ से मिलने मत आया करो.’’

‘‘ममता, मैं तुम से कुछ पूछने आया हूं.’’ देवेंद्र ने गंभीर स्वर में कहा.

‘‘अब क्या पूछना बाकी है?’’

‘‘ममता, क्या यह सच है कि तुम किसी और को चाहने लगी हो?’’

‘‘क्यों, आप को कोई ऐतराज है क्या?’’

‘‘ममता, तुम ऐसा नहीं कर सकतीं. तुम मेरी हो, मेरी ही रहोगी.’’

ममता चिल्ला कर बोली, ‘‘देवेंद्र, होश की दवा करो. मैं तुम्हारी बांदी नहीं हूं, जो तुम्हारे हुक्म की तामील करूं. फिर तुम मुझे राकेने वाले होते कौन हो? क्या अधिकार है मुझ पर तुम्हारा? सुनना ही चाहते हो तो सुन लो, मैं हरि से प्रेम करती हूं और उसी से शादी भी करूंगी.’’

देवेंद्र का खून खौल उठा. वह गुस्से से आगे बढ़ा, फिर कुछ सोच कर पीछे हट गया. तभी ममता की कुछ सहेलियां वहां आ गईं. देवेंद्र उठ कर चला गया.  इस के बाद से देवेंद्र के विचार बदलने लगे. उसे लगा कि अब वह ममता को कभी नहीं पा सकेगा. धीरेधीरे ममता के प्रति देवेंद्र का प्यार नफरत में बदलने लगा. उसे जब भी ममता के अंतिम शब्द याद आते, वह पागल हो उठता. उस के मन में प्रतिशोध की लहरें उठने लगतीं. उस ने कई बार ममता को धमकी दी कि वह उस से विवाह कर ले, वरना अंजाम अच्छा नहीं होगा. लेकिन ममता ने उस की धमकियों की परवाह नहीं की. अंत में उस ने ममता से बदला लेने के लिए एक खतरनाक योजना बना डाली.

ममता का बीटेक पूरा हो गया था. उस के पिता चाहते थे कि ममता एमटेक करे. इसलिए ममता ने कानपुर के उस संस्थान में प्रवेश ले लिया और वहीं हौस्टल में रहने लगी. चूंकि देवेंद्र हर वक्त ममता की टोह में रहा करता था, इसलिए उसे सारी जानकारी थी. दिसंबर महीने में देवेंद्र ने अपनी योजना के अनुसार, लखनऊ के अमीनाबाद से 5 सौ ग्राम आर्सेनिक पाउडर खरीदा. फिर उसी शाम वह अपनी मारुति आल्टो कार से ममता से मिलने के लिए रवाना हो गया. रास्ते में उस ने मिठाई भी खरीद ली थी. 15 दिसंबर की दोपहर 3 बजे देवेंद्र कानपुर पहुंच गया और अपने एक दोस्त के घर ठहरा. आराम करने के बाद देवेंद्र गर्ल्स हौस्टल पहुंचा. ममता का कमरा ढूंढ़ने में उसे खास दिक्कत नहीं हुई.

लेकिन कमरे में ताला लगा देख कर वह सोच में पड़ गया, आखिर ममता कहां चली गई? उस ने हौस्टल में पूछा तो पता चला कि वह अपनी सहेली के घर गई है. पर वह किस सहेली के घर, कहां गई है, यह कोई नहीं बता सका. वहां से निराश हो कर देवेंद्र ममता के परिचितों के यहां चक्कर काटने लगा. काफी भागदौड़ के बाद उसे ममता के बारे में पता चल गया. ममता अपनी सहेली सुष्मिता के यहां गई थी. सुष्मिता ममता के साथ पढ़ती थी. इसलिए देवेंद्र भी उस से परिचित था. वह उसी दिन सुष्मिता के घर जा पहुंचा. वहां उस की मुलाकात सुष्मिता के पिता डा. डी.एन. मेहरा से हुई. उस ने डा. मेहरा को बताया कि वह ममता का दोस्त है और उस से मिलना चाहता है तो उन्होंने ममता को बुलवा दिया. अचानक उसे देख कर ममता हैरान रह गई. उस ने तीखे स्वर में पूछा, ‘‘यहां क्यों आए हो?’’

उस ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘ममता, मैं तुम्हें लेने आया हूं. मैं ने घूमने का प्रोग्राम बनाया है. बस तुम जल्दी तैयार हो जाओ.’’

‘‘मुझे तुम्हारे साथ कहीं नहीं जाना. तुम्हारी भलाई इसी में है कि तुम इसी वक्त यहां से चले जाओ.’’

‘‘नहीं, तुम को चलना ही पड़ेगा. आज मैं तुम्हें साथ लिए बगैर नहीं जाऊंगा.’’ कह कर देवेंद्र ने ममता का हाथ पकड़ लिया. ममता चिल्ला पड़ी. शोर सुन कर डा. मेहरा आ गए. उन्हें देवेंद्र की बदतमीजी पर बड़ा क्रोध आया. उन्होंने आगे बढ़ कर ममता को छुड़ाया और उसे डांट कर घर से बाहर निकाल दिया.

अगले दिन ममता अपने हौस्टल आ गई. वह पिछले दिन की घटना से काफी परेशान थी. कुछ देर बाद उस की सहेलियां उसे बुलाने आईं. लेकिन ममता ने तबीयत खराब होने का बहाना बना कर क्लास में जाने से इनकार कर दिया. लड़कियों के जाने के बाद वह कमरा बंद कर के बिस्तर पर लेट गई. सोचतेसोचते ही उस की आंख लग गई. करीब साढ़े 11 बजे किसी ने दरवाजा खटखटाया. ममता ने उठ कर दरवाजा खोला तो चौंक पड़ी. सामने देवेंद्र खड़ा था. ममता की भृकुटि तन गई. उस ने गुस्से से पूछा, ‘‘अब यहां क्या लेने आए हो?’’

देवेंद्र ने धीमे से कहा, ‘‘ममता, मैं तुम से कुछ बात करना चाहता हूं.’’

‘‘देवेंद्र प्लीज, तुम यहां से चले जाओ. मैं कुछ सुनना नहीं चाहती हूं.’’

‘‘नहीं ममता, आज तो तुम्हें सुनना ही पड़ेगा.’’ कहते हुए देवेंद्र कमरे के अंदर आ गया. उस की इस जबरदस्ती पर ममता को बड़ा क्रोध आया. लेकिन कुछ बोली नहीं. अपना सामान रखने के बाद देवेंद्र ने भीतर से दरवाजा बंद कर दिया. फिर कुरसी पर बैठ कर बोला, ‘‘तुम ने सुष्मिता के घर मेरे साथ बड़ा बुरा सुलूक किया.’’

ममता ने उस की बात का जवाब देने के बजाय पूछा, ‘‘देवेंद्र, तुम इस तरह मुझे क्यों तंग कर रहे हो? आखिर तुम चाहते क्या हो?’’

‘‘यह तुम अच्छी तरह जानती हो.’’ देवेंद्र ने कहा.

‘‘लेकिन अब वह संभव नहीं है.’’

‘‘मैं नहीं मानता ममता, तुम्हें मैं अपना कर ही रहूंगा. कुछ पा कर खो देना मेरी फितरत में नहीं है.’’

‘‘यह तुम्हारी भूल है देवेंद्र, ऐसा कभी नहीं होगा.’’

‘‘एक बार फिर सोच लो ममता.’’

‘‘मैं ने खूब सोच लिया है. तुम से शादी कर के मैं अपना जीवन नष्ट नहीं कर सकती,’’ ममता उठते हुए बोली, ‘‘अपनी बात कह चुके हो तो जा सकते हो.’’

‘‘अरे तुम तो नाराज हो गई. बैठो तो सही. देखो, मैं तुम्हारे लिए मिठाई लाया हूं.’’ देवेंद्र ने हंसते हुए कहा.

‘‘मुझे नहीं खानी तुम्हारी मिठाई.’’ ममता ने रूखे स्वर में कहा.

लेकिन देवेंद्र नहीं माना. वह खुद ही उठ कर पानी भी ले आया. फिर उस के बहुत जोर देने पर ममता ने मिठाई खा ली. दोनों काफी देर तक बैठे बातें करते रहे. बातों का सिलसिला अंत में फिर शादी पर आ कर अटक गया. देवेंद्र ने ममता को बहुत समझाया, पर वह अपने पर अड़ी रही. तब देवेंद्र उग्र हो उठा. वह बोला, ‘‘ममता, तुम मेरी हो, मेरी ही रहोगी. हमें कोई अलग नहीं कर सकता.’’

इस के बाद उस ने बलपूर्वक ममता के मुंह में आर्सेनिक का घोल उड़ेल दिया. ममता ने बचाव के लिए बहुत हाथपांव मारे, चीखीचिल्लाई. पर देवेंद्र की पकड़ से छूट न सकी. इस हाथापाई में थोड़ा सा घोल ममता के चेहरे पर भी छलक गया. धीरेधीरे ममता पर जहर का असर होने लगा. उस की पलकें बंद होने लगीं. ममता के अचेत होने तक संजय भी होश खो बैठा. वह पागलों की तरह दीवार पर लगे पोस्टरों पर अपनी प्रेमकथा लिखने लगा. कुछ समय बाद उस की भी हालत ममता जैसी होने लगी. वह भी जमीन पर गिर पड़ा. तभी हौस्टल की लड़कियां आ कर दरवाजा पीटने लगी थीं.

कथा लिखे जाने तक देवेंद्र जेल में था. उस की जमानत नहीं हो सकी थी. वह प्यार का अधिकार पाने के लिए बेचैन था. लेकिन यह नहीं समझ पाया कि प्यार कोई वस्तु नहीं, जिसे जबरदस्ती हासिल किया जा सके. Best Crime Story

(कथा सत्य घटना पर आधारित है. कुछ पात्रों एवं स्थान के नाम बदल दिए गए हैं.)

 

Stories in Hindi Love: बहार आई भी तो उदासउदास

लेखक – रुखसाना, Stories in Hindi Love: कागज का पुर्जा मेरे हाथों में फड़फड़ा रहा था. मेरी रगों में भयानक बेचैनी दौड़ने लगी थी. दिल में दहकती हुई आग भर गई थी. बड़े घरों में बसने वाले लोग कितने बेबस और मजबूर होते हैं, यह अब मेरी समझ में अच्छी तरह आ रहा था. आ पी ने खीर की प्लेट अपनी तरफ सरका कर चोर नजरों से बारीबारी सबकी तरफ देखा. मैं अनजान बन गई, लेकिन जिम्मी भाई ने मम्मी से बात करतेकरते तेज नजरों से आपी को घूर कर तल्ख लहजे में कहा, ‘‘ज्यादा खाने ने तुम्हें तबाह कर दिया है आपी जान! पता नहीं तुम वाकई नासमझ हो या जानबूझ कर ऐसा करती हो. अगर तुम्हें अपने पर तरस नहीं आता तो कम से कम हम पर तो तरस खाओ.’’

लेकिन

‘‘तुम ने तो जहां मुआपी ने जिम्मी भाई की तरफ नजर उठा कर भी न देखा. वह उसी तरह अपने दिलबहलाव यानी खाने में यों मगन रहीं, जैसे जिम्मी भाई ने किसी और से कहा हो.

मम्मी ने उन्हें टोका, ‘‘फरजाना, यह जमशेद तुम से कुछ कह रहा है. क्या तुम उस की बात सुन नहीं रही हो?’’झे खाते देखा, टोकना शुरू कर दिया,’’ कह कर खाली प्याली मेज पर पटक कर आपी उठ खड़ी हुईं और धपधप करती खाने के कमरे से बाहर चली गईं. उन के बाहर जाते ही जिम्मी भाई अपना सिर दोनों हाथों में थाम कर बोले, ‘‘इस का क्या होगा मम्मी? मैं तो इसे समझासमझा कर हार गया हूं. अगर यह खुद अपनी जिंदगी संवारना नहीं चाहती तो हम सब क्या कर सकते हैं इस के लिए?’’

‘‘तुम ठीक कह रहे हो जिम्मी.’’ मम्मी ठंडी आह भर कर बोलीं, ‘‘मेरी तो समझ में नहीं आता कि इसे कैसे समझाऊं? किसी नसीहत, किसी डांट का इस पर असर ही नहीं होता. खानदान में तो कोई इस के लिए तैयार नहीं और बाहर से जो रिश्ता आता है, इस का डीलडौल देख कर भाग जाता है. ऊपर से इस की आदतें…’’

मैं बेजार हो कर मेज से उठ गई. रोज खाने पर ऐसी ही बहस छिड़ जाती. मम्मी को आपी की बहुत फिक्र थी. बात भी ठीक थी. उन की उम्र शादी की उम्र को पार कर गई थी. ऊपर से उन के बेपनाह खाने की आदत ने उन का मोटापा हद से ज्यादा बढ़ा दिया था. उन पर मानो गोश्त चढ़ता जा रहा था. थोड़ा-सा चलतीं तो उन की सांस फूलने लगती. उन्हें और किसी चीज में दिलचस्पी नहीं थी. न घर के कामकाज में, न सिलाईकढ़ाई में. वह कहीं आनाजाना भी पसंद नहीं करती थीं. सैरसपाटे का भी उन्हें कोई शौक नहीं था. बस उन के 2 ही शौक थे, खाना और सोना. जाहिर है, मोटी उन्हें होना ही था. कोई भी मेहमान हमारी हवेली में आता, कहीं से भी आता, वह जरा भी किसी को लिफ्ट न देतीं. किसी से कोई मतलब न रखतीं.

आपी का रंग साफ था. नैननक्श भी बुरे नहीं थे. मम्मी का खयाल था कि अगर उन का वजन कम हो जाए तो वह भद्दी नहीं लगेंगी और अल्लाह का कोई बंदा उस के जाल में फंस जाएगा. लेकिन मम्मी और जिम्मी भाई के लाख समझाने का उन पर कोई असर नहीं हो रहा था. यों लगता था, जैसे उन्हें अपनी शादी से भी कोई दिलचस्पी नहीं थी. अगर बड़ी हवेली और कीमती दहेज की कशिश में एकाध रिश्ता आ भी जाता तो रिश्ता लाने वाले आपी को देख कर और उन से मिल कर दोबारा हवेली का रुख न करते. मम्मी को आपी की फिक्र थी, क्योंकि वह मां थीं, लेकिन जिम्मी भाई की फिक्र में उन की अपनी गरज शामिल थी. मैं यह बताना भूल गई कि हमारी हवेली खुदगर्ज लोगों का डेरा थी.

यहां हर इंसान सिर्फ अपने लिए सोचता था. जिम्मी भाई की मोहब्बत बड़े जोरदार तरीके से अपनी फुफेरी बहन नाइला से चल रही थी और वह चाहते थे कि जल्दी से जल्दी नाइला को दुलहन बना कर हवेली में ले आएं. लेकिन हमारे खानदान में रिवाज था कि छोटों की शादी उस वक्त तक नहीं हो सकती थी, जब तक कि बड़ी बहन या बड़े भाई की शादी न हो जाए. अगर ऐसा किया जाता तो खानदान वाले एक तरह से उस घराने का बायकाट कर देते थे. इसलिए उस रिवाज को तोड़ने में सब डरते थे. हमारी मम्मी गैरखानदान से थीं. मेरे वालिद इलाके के बहुत बड़े रईस थे. मम्मी से शादी उन्होंने अपनी मरजी से की थी. आपी मम्मी और डैडी की पहली औलाद थीं. दूसरे नंबर पर जमशेद भाई थे.

सब से छोटी मैं थी. मैं एक साल की थी, जब डैडी का दिल के दौरे से इंतकाल हो गया था. उन के बाद मम्मी ने इतनी बड़ी हवेली में हम तीनों बच्चों और ढेर सारे नौकरों के बीच अपना वक्त गुजारा. वह काफी पढ़ीलिखी थीं. हवेली को उन्होंने अपनी पसंद के मुताबिक ढाला था. वह पुराने रिवाज पसंद नहीं करती थीं. इसलिए आपी की शादी से मायूस हो कर उन्होंने जमशेद भाई के लिए फुफ्फू जानी से नाइला का रिश्ता मांगा. लेकिन फुफ्फू पुराने खयालात की औरत थीं. उन्होंने साफ कह दिया था कि जब तक फरजाना की डोली नहीं उठेगी, जमशेद की शादी नाइला या किसी और से नहीं हो सकती.

फुफ्फू जानी का हमारे यहां बहुत दखल था. वह डैडी की एकलौती बहन थीं और हर काम, हर बात में उन से सलाह ली जाती थी. फिर भी आखिरी कोशिश के तौर पर मम्मी ने उन से कहा कि अगर सारी उम्र फरजाना बिनब्याही बैठी रही तो क्या होगा? इस के जवाब में फुफ्फू ने कहा था, ‘‘अव्वल तो ऐसा होगा नहीं. और अगर ऐसा हुआ भी तो जमशेद और नाइला को भी सारी उम्र क्वांरे रहना होगा.’’

हर तरह से हार कर मम्मी ने आपी की शादी के लिए अपनी कोशिशें फिर से तेज कर दीं. इस से पहले जिम्मी भाई को आपी से कोई सरोकार नहीं था. शायद वह समझते थे कि मम्मी इस मसले को संभाल लेंगी और फूफ्फू को राजी कर लेंगी. लेकिन अब तो आपी के लिए दूल्हा तलाश करना उन का ‘मिशन’ बन गया था. मैं ने एमए पास कर लिया था और हौस्टल छोड़ कर हवेली में आ गई थी. लेकिन हवेली आ कर मैं सख्त बोर हो रही थी. सारासारा दिन किसी बदरूह की तरह सारी हवेली में घूमती रहती या किताबें पढ़पढ़ कर अपना वक्त बिताया करती. आपी और मेरे बीच उम्र का फर्क था. बहनों वाली बेतकल्लुफी भी नहीं थी, हमारी आदतों और खयालों में भी कोई तालमेल नहीं था.

आपी को हर वक्त खाते रहने का शौक था, जबकि मैं दोपहर को फलों का लंच करती और अकसर रात का खाना गोल कर जाती. इसलिए मेरा बदन स्मार्ट था. नैननक्श तीखे थे. बाल लंबे और घने थे. यूनिवर्सिटी में तालीम हासिल कर के मैं खासी सोशल हो गई थी. हर मामले में अच्छा बोल लेती थी और सुनने वाला मेरी आवाज के जादू में खो जाता था. इसलिए जब से मैं घर आई, मेरे लिए तमाम रिश्ते आ रहे थे. लेकिन मम्मी को मेरी तरफ से कोई फिक्र नहीं थी. जिम्मी भाई की जरूरत आपी की शादी से ही पूरी हो सकती थी, मेरी शादी से नहीं. इसलिए मेरे लिए आया हुआ अच्छे से अच्छा रिश्ता भी बेजारी से रद्द कर दिया जाता. मुझे खुद भी अभी शादी में कोई खास दिलचस्पी नहीं थी. इसलिए हर रिश्ते पर मेरी राय भी मम्मी या जिम्मी भाई से अलग न होती.

मैं भी चूंकि खुदगर्जी के इसी माहौल में पलीबढ़ी थी, सो मुझे न तो आपी के मोटापे से सरोकार था, न उन की शादी से. आपी की एक खामी तालीम की कमी भी थी. मम्मी के लाख चाहने के बावजूद वह मैट्रिक से आगे न पढ़ी सकी थीं. मैट्रिक भी उन्होंने 2 साल में किया था. सर्दियों के दिन थे. मौसम बहुत खुशगवार हो रहा था. शाम का समय था. मैं, मम्मी और आपी, तीनों लौन में बैठे शाम की चाय पी रहे थे. आपी गुलाबजामुनों के साथ इंसाफ कर रही थीं. मैं और मम्मी चाय की प्यालियां हाथों में थामे बातों में मशगूल थीं कि अचानक जिम्मी भाई गेट के अंदर दाखिल हुए और बड़ी खुशदिली से करीब आए. उन्हें यों खुश देख कर मम्मी बोलीं, ‘‘कहां से आ रहे हो?’’

‘‘फुफ्फू की तरफ से आ रहा हूं. नाइला ने बुलाया था.’’

हमारे खानदान में मां से ऐसी बातचीत नहीं की जाती थी, लेकिन मम्मी ने हमारी परवरिश अलग तरीके से की थी. उन्होंने हमें अपने खानदान के उसूलों, रस्मों और रिवाजों से दूर रखा था. वह औलाद और मांबाप के बीच फासलों के हक में नहीं थी. औलाद पर बंदिशें लगाना उन्हें पसंद नहीं था. इसलिए हम अपने दिल की बात मम्मी से खुल कर कह सकते थे. इस वक्त भी मम्मी को जिम्मी भाई की बात बुरी नहीं लगी. हंस कर वह बोलीं, ‘‘चलो, तुम्हारी मुलाकात तो हो गई. लेकिन मेरा खयाल है, तुम वह काम फिर भूल गए होगे?’’

‘‘कौन सा काम?’’ जिम्मी भाई मम्मी को देखने लगे. अचानक उन्हें याद आया तो वह शर्मिंदा हो गए, ‘‘ओह मम्मी, मैं तो बिलकुल ही भूल गया. वह चुड़ैल नाइला जब भी बुलाती है, मैं सब कुछ भूल जाता हूं.’’

‘‘जिम्मी डियर, एक जवान और सेहतमंद जेहन को इतना भुलक्कड़ नहीं होना चाहिए. तुम जानते हो, यह कितना अहम काम है? बहरहाल कल तुम जरूर जा कर नए असिस्टैंट कमिश्नर से मिल लो और उसे खाने की दावत दे दो.’’

‘‘कल जरूर याद रखूंगा मम्मी.’’ फिर उन्होंने मुझ से कहा, ‘‘रुखसाना, एक कप चाय बना दो मेरे लिए और खाने को भी कुछ दो. मैं ने अभी तक लंच नहीं किया.’’

मैं ने मेज पर गुलाबजामुनों की तलाश में नजरें दौड़ाईं, लेकिन आपी जिम्मी के टोकने के डर से गुलाबजामुनों समेत नौ दो ग्यारह हो गई थीं. मम्मी ने नौकर को बिस्कुट लाने के लिए कहा और मैं चाय बनाने लगी.

डैडी की जिंदगी में हमारी हवेली का यह रिवाज था कि जो भी सरकारी अफसर किसी सरकारी या निजी दौरे पर इलाके में आता, हमारी हवेली में उस की दावत जरूर होती. डैडी की मौत के बाद मम्मी ने इस रिवाज को जिंदा रखा और हर बार जो भी असफर आता, हमारी हवेली का मेहमान जरूर बनता. इस बार कोई नया असिस्टैंट कमिश्नर दौरे पर आया था और रेस्ट हाउस में ठहरा था. उसे आए हुए दूसरा दिन था. मम्मी रोजाना जिम्मी भाई को याद दिलातीं कि वह उस से मिल कर खाने पर बुला लें. लेकिन जिम्मी भाई भूल जाते.

उस दिन शाम को मैं गुलाबों के कुंज में बैठी ‘रिमूवर’ से अपने नाखूनों का रंग साफ कर रही थी. मम्मी ने बालों में हेयर कलर लगा लिया था और उन्हें खुश्क करने लौन में आ कर मेरे पास बैठ गईं. आपी अपने कमरे में थीं. मैं ने देखा, जिम्मी भाई सीधा रास्ता अपनाने के बजाए मोतियों की बाड़ फलांगते हुए हमारे करीब आ गए. उन का रंग जोश से तमतमा रहा था और वह कुछ कहनेसुनने के लिए बेचैन हो रहे थे. मैं एक निगाह उन पर डाल कर फिर से अपने काम में लग गई. मम्मी ने पूछ लिया, ‘‘क्या बात है, बहुत पुरजोश नजर आ रहे हो?’’

‘‘हां मम्मी, बड़ी अजीब खबर लाया हूं. आप सुनेंगी तो सख्त हैरान होंगी.’’

‘‘अच्छा, ऐसी कौन सी खबर है, जिस ने तुम्हें इतना हैरानपरेशान कर दिया है?’’ मम्मी हंस पड़ीं. मैं ने तीखे अंदाज से जिम्मी भाई की तरफ देखा. उन की खबरें सदा ‘खोदा पहाड़, निकली चुहिया’ वाली कहावत साबित होती थीं, सो मुझे कोई दिलचस्पी नहीं थी उन की खबर सुनने में. वह मुझे नहीं, मम्मी को बता रहे थे.

‘‘आप अंदाजा भी नहीं लगा सकतीं मम्मी कि मैं किस से मिल कर आ रहा हूं.’’

‘‘तुम शायद उस नए असिस्टैंट कमिश्नर से मिलने गए थे?’’

‘‘हां, लेकिन आप को यह जान कर हैरत का शदीद धक्का लगेगा कि वह असिस्टैंट कमिश्नर कौन है?’’

‘‘क्या सनसनी फैला रहे हो जिम्मी? सीधी बात करो न, क्या वह हमारा कोई जानने वाला है?’’ मम्मी ने पूछा.

‘‘आप उसे जानने वाला नहीं कह सकती मम्मी, वह इस हवेली में पल कर बड़ा हुआ है. खैर, बड़ा तो हम नहीं कह सकते, लेकिन अपनी जिंदगी का एक हिस्सा उस ने इसी हवेली में गुजारा है.’’

मम्मी के साथसाथ मैं भी चौंक उठी. मम्मी हैरत से पूछ रही थीं, ‘‘कौन है वह? तुम बताते क्यों नहीं हो जिम्मी? पहेलियां क्यों बुझा रहे हो?’’

‘‘वह जैदा है मम्मी, हमारी आया का बेटा. अब वह जावेद खां बन गया है.’’

‘‘क्या?’’ मम्मी को सचमुच हैरत का झटका लगा. वह जिम्मी भाई को देखते हुए बोलीं, ‘‘तुम्हें यकीनन कोई बड़ी गलतफहमी हुई है. कहां एक बेसहारा लड़का जैदा और कहां असिस्टैंट कमिश्नर.’’

‘‘लेकिन मम्मी, उस ने मुझे खुद बताया है. जब मैं उस से मिला और मैं ने अपना परिचय दिया तो वह बेअख्तियार अपनी कुर्सी से उठ खड़ा हुआ और मुझे गले लगाते हुए बोला, ‘अरे जिम्मी भाई, तुम ने मुझे पहचाना नहीं? मैं जैदा हूं तुम्हारी आया का बेटा. तुम ने यहां आने की तकलीफ क्यों की? मैं तो खुद हवेली आने वाला था.’ फिर उस ने बारीबारी सब के बारे में पूछा. अपने हालात बताते हुए उसे जरा भी शरम नहीं आ रही थी. वहां और भी लोग बैठे थे, लेकिन उन सब के सामने अपनी गरीबी की दास्तान सुना रहा था. वैसे मम्मी, मैं तो उस की हिम्मत की दाद देता हूं. यह मुकाम उस ने अपनी मेहनत, हिम्मत और कोशिश से हासिल किया है. और मम्मी, वह मरियल सा लड़का ऐसा गबरू जवान निकल आया है कि आप देखेंगी तो हैरान रह जाएंगी. अगर वह खुद न बताता तो मैं कयामत तक उसे पहचान नहीं सकता. ऊपर से अपने ओहदे का जरा भी गरूर नहीं.’’

मैं और मम्मी सकते की हालत में जिम्मी भाई की बातें सुन रही थीं. मेरे दिल में बड़े जोर की धड़कन हो रही थी. मैं मुंह फाड़े जिम्मी भाई की तरफ देखे जा रही थी. मम्मी भी सन्न थीं. फिर कुछ दबेदबे लहजे में उन्होंने जिम्मी भाई से पूछा, ‘‘तुम ने खाने की दावत दे दी उसे?’’

‘‘हां, कल रात की दावत दी है. वह तो दावत कबूल ही नहीं कर रहा था. कह रहा था कि खुद आऊंगा और सब से मिलूंगा. लेकिन मैं ने उस से मनवा कर ही छोड़ा.’’

जिम्मी भाई काफी देर तक उस की बातें करते रहे. मम्मी बारबार कह रही थीं कि उन्हें यकीन नहीं आ रहा  कि जैदा इस मुकाम तक पहुंच गया है. मम्मी और जिम्मी भाई वहां से उठ गए लेकिन मैं वहीं बैठी रही. फिजा में ठंडक उतर आई थी. मैं अपने जिस्म के गिर्द चादर लपेटे लगातार उस के बारे में सोच रही थी, जिस का नाम एक अरसे के बाद सुना था. मेरे दिल में उस की यादों के साथ उदासी उतरने लगी. मैं ने कुर्सी की पुश्त के टेक लगा कर आंखें बंद कर लीं. मेरी नजरों के सामने बहुत पहले का जमाना आ गया.

तब हम बहुत छोटे थे. हमारी आया बहुत बूढ़ी हो गई थी. इसलिए आए दिन बीमार रहती थी. जब वह काम के काबिल नहीं रही तो उस ने अपनी बेवा बेटी को बुलवा लिया, जिस के साथ एक बेटा भी था. वह अपने जेठ के साथ रहती थी और जेठानी के जुल्मों से तंग आ गई थी. मम्मी को उस के बेटे पर खासा ऐतराज था. लेकिन आया बहुत मेहनती और ईमानदार औरत थी, इसलिए मम्मी को चुप रहना पड़ा. जैदा का असली नाम जावेद था. आया कभीकभी दुलार से उसे जावेद खां कह कर बुलाती थी. जैदा मेरा हमउम्र था. हम दोनों जब भी एक साथ खेलते, मम्मी को गुस्सा आ जाता. वह डांट कर उसे भगा देतीं और मुझे अपने कमरे में ले आतीं. जैदे को पढ़ाई का बहुत शौक था.

जब मैं पढ़ती तो न जाने कहां से वह निकल आता और हसरतभरी नजरों से मुझे देखता रहता. अक्सर जब मेरी कोर्स की किताबें फट जातीं तो मैं मम्मी से छिपा कर उसे दे देती. वह बहुत खुश होता. फटे हुए पेजों को गोंद से चिपका देता और अकसर मेरे पास बैठ कर उन किताबों को पढ़ने की कोशिश करता रहता. हवेली में मेरे साथ खेलने वाला कोई नहीं था. बच्चों को आम तौर पर अपने हमउम्र बच्चों के साथ खेलने का शौक होता है. आपी और जिम्मी भाई, दोनों मुझ से बड़े थे. मैं जब कीमती खिलौनों से खेलखेल कर उकता जाती तो मम्मी से छिप कर जैदे की तरफ चली जाती और जब तक मम्मी अनजान रहतीं, हम दोनों खेलते रहते.

मम्मी ने सब नौकरों को ताकीद की थी कि मुझे जैदे के साथ न खेलने दिया जाए, सो हर तरफ से मेरी निगरानी की जाती थी, यहां तक कि जैदे की मां और नानी भी मेरी मिन्नत करतीं कि मैं जैदे के साथ न खेलूं. वह कहतीं, ‘‘छोटी बीबी, हवेली में चली जाएं. बेगम साहिबा आप को इधर देखेंगी तो नाराज होंगी. उन का सारा गुस्सा हम पर उतरेगा.’’

लेकिन मुझे मम्मी की परवाह न होती. वक्ती तौर पर उन की डांट से मैं सहम जाती, मगर बाद में हम दोनों सब कुछ भुला कर दोबारा खेलने में लग जाते. मम्मी ने कई बार जैदे के गाल पर थप्पड़ मारे थे. उसे बुराभला कहा था और हवेली में तो उस का घुसना ही मना कर दिया गया था. नौकरों को सख्ती से ताकीद थी कि जैदे को हवेली में आने न दिया जाए. लेकिन इन सारी पाबंदियों ने हमारे इकट्ठे खेलने के शौक को और ज्यादा भड़का दिया था. वह हवेली न आता तो मैं उस के कमरे में चली जाती. मम्मी अक्सर मुझे समझातीं, ‘‘रुखसाना बेटी, छोटे लोगों को ज्यादा मुंह नहीं लगाते. इस तरह तुम्हारी आदतें बिगड़ जाएंगी. तुम जैदे के साथ मत खेला करो. वह छोटा है. हमारा उन का कोई जोड़ नहीं.’’

मम्मी न जाने क्याक्या कहती रहतीं, लेकिन उस छोटी सी उम्र में मम्मी की ‘बड़ीबड़ी’ बातें मेरी समझ में न आतीं और मैं उकता कर वहां से उठ जाती. पढ़ाई के जैदे के बेपनाह शौक को देख कर उस की मां ने उसे प्राइमरी स्कूल में दाखिल करवा दिया था. हम रोजाना अपनी जीप में शहर जाया करती थीं, जहां चोटी के एक स्कूल में हम पढ़ती थीं. जैदे के स्कूल में अंग्रेजी नहीं पढ़ाई जाती थी, लेकिन उसे अंग्रेजी पढ़ने और सीखने का शौक था. इसलिए अपने स्कूल की छुट्टी के बाद वह मेरी पुरानी किताबें पढ़ा करता था. जो उस की समझ में न आता, वह मुझ से पूछ लिया करता. बचपन में टीचर बनने में बहुत मजा आता था. इसी तरह साथसाथ खेलते और पढ़ते हुए हम छठी जमात तक आ गए थे.

उन्हीं दिनों जैदे पर 2 इतने बड़े दुख आ पड़े कि उस का नन्हा वजूद उन दुखों तले दब कर रह गया. हमारे इलाके में हैजे की जबरदस्त बीमारी फैली थी. तब इलाज की सहूलियतें न के बराबर थीं. लोग मर रहे थे. जैदे की मां और नानी भी उस की लपेट में आ गईं. जैदे की नानी बेचारी तो पहले ही झटके में मर गईं. जैदे की मां अलबत्ता कुछ दिन जिंदा रही. मम्मी ने उस की दवादारू का इंतजाम भी किया. लेकिन उस का वक्त पूरा हो चुका था. इसलिए वह जैदे को रोताबिखलता छोड़ कर चल बसी. जैदा बिलकुल अकेला और बेसहारा रह गया. वह सारासारा दिन रोता रहता. मेरे सिवा हवेली में उस का कोई हमदर्द नहीं था. मैं खुद भी नासमझ थी. लेकिन हर मुमकिन तरीके से उस का दुख बांटा करती.

मम्मी को तो शुरू से जैदा नापसंद रहा था. इसलिए उन्होंने एक नौकर को जैदे के ताया का पता करने भेजा, ताकि वह आ कर बकौल मम्मी के, इस मुसीबत से उन्हें छुटकारा दिला दे. लेकिन जैदे का ताया उसे लेने नहीं आया, बल्कि उस ने हवेली के नौकर को अपनी गरीबी की लंबीचौड़ी दास्तान सुनाई, जिस का निचोड़ यही था कि वह अपने बच्चों को ही नहीं पाल सकता तो जैदे को कहां से खिलाएगा? नौकर जब नाकाम लौटा तो मम्मी ने अपना सिर दोनों हाथों में थाम लिया कि वह जैदे का क्या करेंगी? लेकिन खुदा बड़ा कारसाज है. हमारी हवेली का चौकीदार एक बूढ़ा था. मम्मी ने उसे अलग कमरा दे रखा था. वह बिलकुल अकेला रहता था. उस ने मम्मी से कह कर अपना सामान समेटा और जैदे के पास रहने लगा. इस तरह दोनों को एकदूसरे का सहारा मिल गया.

हालांकि जैदा कमउम्र था, फिर भी बेहद सुलझा हुआ था. छोटी सी उम्र में तल्ख तजुर्बों ने उस की दिमागी उम्र बढ़ा दी थी. उस ने स्कूल जाना नहीं छोड़ा. खाली समय में वह किराने की एक दुकान पर काम करता. अपनी पढ़ाई के खर्च के लिए वह रात गए तक बैठा लिफाफे बनाता रहता. छोटी सी उम्र में वह बेहद संजीदा हो गया था. मैं उसे अब भी अपना साथी और दोस्त समझती थी. मम्मी से छिप कर मैं उस के कमरे में चली जाया करती. लेकिन अब हम खेलने से ज्यादा पढ़ा करते थे. मैं जो भी सबक स्कूल में पढ़ती, वह जैदे को जरूर पढ़ाया करती. जैदा मेरे लाख कहने पर भी हवेली में न आता, बल्कि मुझे भी अपने कमरे में आने से मना करता.

उस दिन मेरे सिर में मामूली सा दर्द था. मैं ताजा सबक जैदे को पढ़ाना चाहती थी, लेकिन कमरे में जाने की हिम्मत नहीं पड़ रही थी. सुस्ती सी महसूस हो रही थी. मम्मी किसी जलसे में शरीक होने चली गईं तो मैं ने नौकर को भेज कर जैदे को बुलवा लिया. वह पढ़ने के शौक में आ तो गया, लेकिन बेहद सहमा हुआ था. बारबार कह रहा था, ‘‘रुखसाना, बेगम साहिबा ने देख लिया तो बहुत मारेंगी.’’

‘‘अरे कुछ नहीं होता. मम्मी तो हवेली में मौजूद ही नहीं हैं. वह किसी जलसे में हिस्सा लेने शहर गई हैं. रात गए लौटेंगी.’’

मैं और जैदा गुलाबों के कुंज में बैठ गए. मैं उसे पढ़ाने लगी. वह बहुत मन लगा कर पढ़ रहा था कि न जाने कहां से आपी आ गईं. आपी ने तेज नजरों से हमें घूरा और कुछ कहेसुने बगैर अंदर चली गईं. जैदा बेहद घबरा गया और सहमी आवाज में बोला, ‘‘अब मैं जाता हूं रुखसाना. आपी ने देख लिया है. अब वह बेगम साहिबा से शिकायत करेंगी.’’

‘‘अरे बैठो, मम्मी हवेली में मौजूद ही नहीं, तो किस से शिकायत करेंगी? तुम आराम से पढ़ो.’’

जैदा सहमा सा बैठा पढ़ता रहा. लेकिन उस का शक सही था. मम्मी शहर से आ गई थीं और आपी ने जा कर उन से हमारी शिकायत कर दी थी. कुछ देर बाद मम्मी हमारे सामने खड़ी थीं. गुस्से की शिदद्त से वह हांफ रही थीं. उन्होंने आव देखा न ताव, जैदे को पकड़ कर बेतहाशा मारने लगीं. साथसाथ वह बोल भी रही थीं, ‘‘कमबख्त, जलील, कमीने, सौ बार तुझे मना किया कि हवेली में मत आया कर, पर तू मानता ही नहीं.’’

मैं गुमसुम खड़ी उसे मार खाते देखती रही. मम्मी जब उसे मारमार कर थक गईं तो नौकर को बुला कर हुक्म दिया, ‘‘शैदे, क्वार्टर से इस का सामान निकाल कर फेंक दो. देखती हूं, अब यह यहां कैसे रहता है.’’ फिर वह जैदे से कहने लगीं, ‘‘निकल जा, अभी और इसी वक्त निकल जा. अगर आइंदा तू हवेली के आसपास भी देखा गया तो तेरी लाश किसी गंदे नाले में फेंकवा दूंगी.’’

जैदा रोता हुआ वहां से चला गया. आपी और जिम्मी भाई यह तमाशा देखदेख कर खुश हो रहे थे, जबकि मैं मम्मी का दामन पकड़े रो रही थी, ‘‘जैदे को माफ कर दो मम्मी, इसे क्वार्टर से न निकालो. मम्मी, यह कहां जाएगा? यह तो एकदम अकेला है.’’

मम्मी ने मेरे हाथ झटक कर मुझे नौकरानी के सुपुर्द कर दिया, जो मुझे मेरे कमरे में ले गई. वह जैदे से मेरी आखिरी मुलाकात थी. उस दिन के बाद उस का कोई पता न चल सका. बाद में मैं एक अरसे तक उसे याद करकर के रोती रही. मम्मी ने मुझे और जिम्मी भाई को हौस्टल में दाखिल करवा दिया, क्योंकि अब हमारी क्लासें बड़ी हो गई थीं और घर में पढ़ाई का हर्ज होता था. मैं अक्सर जैदे के बारे में सोचती रहती थी कि वह हवेली से जाने के बाद कहां गया होगा? उस का तो कोई अपना न था, किस ने उसे पनाह दी होगी?

लेकिन आज… आज एक लंबे अरसे के बाद मैं ने उस का नाम सुना भी तो किस अंदाज में? एक इज्जतदार शख्स की शक्ल में, जिस के पास एक बड़ा ओहदा था, इज्जत थी और जिसे मेरा भाई इस बड़ी और आनबान वाली हवेली के मालिक की हैसियत से दावत दे आया था. यह सब क्या था? सब हैरान थे कि यह कैसे हो गया? एक ही छलांग में जैदा जावेद खां कैसे बन गया? जमीन से आसमान तक का यह सफर कैसे तय किया उस ने? लेकिन मुझे कोई हैरानी नहीं थी. उसे तालीम हासिल करने की लगन थी. दीवानगी की हद तक पढ़ने का शौक था और जब शौक जुनून बन जाए तो राह की सारी रुकावटें दूर हो जाती हैं. इसलिए अगर वह कुछ न बनता तो मुझे हैरत होती, लेकिन अब जब वह अपनी मंजिल तक पहुंच गया था, मुझे दूसरों की तरह कोई हैरत नहीं, बल्कि एक इत्मीनान था.

अगले दिन वह हमारे बीच बैठा था. यह वही हवेली थी, जिस में उस का कदम रखना मना था, जहां से उसे मारपीट कर बेइज्जत कर के निकाला गया था. लेकिन आज हालात बदल गए थे. आज मम्मी उस की आवभगत में बिछी जा रही थीं. खाने की मेज पर एकएक चीज उस के सामने रख कर आग्रह से उसे खिला रही थीं, ‘‘खाओ जावेद मियां, तुम तो बराए नाम खा रहे हो. यह शामी कबाब तो तुम ने चखे भी नहीं.’’

‘‘बस बेगम साहिबा, बहुत खा चुका हूं. अब और गुंजाइश नहीं बेगम साहिबा.’’

मैं और जिम्मी भाई बेसाख्ता हंस पड़े. मम्मी बनावटी नाराजगी से कहने लगीं, ‘‘आंटी कहो बेटा.’’

‘‘मैं अपनी औकात नहीं भूला हूं बेगम साहिबा.’’ वह संजीदगी से बोला, ‘‘मैं बहुत छोटा आदमी हूं और इस हवेली के मुझ पर बेशुमार एहसान हैं. खासतौर पर रुखसाना साहिबा का तो मैं बेहद शुक्रगुजार हूं. इन्होंने मेरे मन में पढ़ाई का शौक दोगुना कर दिया था.’’

उस ने गहरी नजरों से मेरी तरफ देखा तो मेरे दिल की धड़कन बढ़ गई. मैं गड़बड़ा गई. बेअख्तियार हो कर मैं ने अपनी नजरें झुका लीं. उसे अब नजर भर कर देखना भी मुमकिन नहीं रहा था. वह बड़ा खूबसूरत जवान निकल आया था. वह बारबार मुझे मुखातिब करता और पिछली बातें याद दिलाता, लेकिन मैं जो हर बात पर जम कर बोला करती थी, बहस कर के उसे हरा दिया करती थी, अब उस के सामने बोलना भूल गई थी. अल्फाज जैसे खो गए थे मुझ से. मैं तो उस की शख्सियत के जादू में डूब कर रह गई थी. वह एक अदा से सिगरेट पी रहा था. चेहरे पर कमतरी के निशान बिलकुल नहीं थे. वह कीमती सूट पहने था. मैं गुमसुम बैठी हां में जवाब देती रही.

आपी खाने में मगन थीं. मेहमानों की मौजूदगी में उन्हें खाने पर टोका नहीं जा सकता था और वह ऐसे मौके का खूब फायदा उठाती थीं. रात गए जब वह वापस जाने लगा तो मम्मी ने बड़ी मोहब्बत से उसे आते रहने को कहा. पूरी रात मैं सो न सकी. जावेद मेरे खयालों में आता रहा. उस की रौबदार शख्सियत बारबार मेरी नजरों के सामने आ जाती. उस की धीमी मुसकराहट मेरे दिल में नई उमंग जगाने लगी. फिर सब से ज्यादा उस का बड़प्पन कि एक बार भी उस ने मम्मी को उन का वह सुलूक याद नहीं दिलाया, जो उन्होंने उस के साथ किया था. हां, अपनी जद्दोजहद और कोशिशों की कहानी उस ने जरूर सुनाई कि किस तरह वह अपनी मंजिल तक पहुंचा. लेकिन उस ने एक बार भी मम्मी से यह नहीं कहा कि मुझ यतीम और बेसहारे के सिर पर अगर आप लोग हाथ रख देते तो आप की दौलत में क्या कमी आ जाती? मम्मी शर्मिंदा सी लग रही थीं.

सुबह नाश्ते पर फिर जावेद का जिक्र छिड़ गया. मम्मी हैरानी से कह रही थीं, ‘‘मुझे कभी उस की काबिलियत का अंदाजा नहीं हो सका था. एक छोटा इंसान इतनी मेहनत भी कर सकता है, यकीन नहीं आता.’’

जिम्मी भाई टोस्ट पर जैम लगाते हुए बोले, ‘‘लेकिन आंखों देखे पर तो यकीन करना ही पड़ता है मम्मी. वैसे आप कल बारबार जावेद को हवेली आने के लिए कह रही थीं. क्या आप भूल गईं कि एक दिन वह इसी हवेली से दुत्कार कर निकाला गया था और उस का छोटामोटा सामान आप ने नौकरों के हाथों बाहर फेंकवा दिया था.’’

‘‘आप भूल गए हैं जिम्मी भाई,’’ मैं तल्खी से बोली, ‘‘जब मम्मी ने ऐसा किया था, तब जावेद ‘जैदा’ था, बिन मांबाप का गरीब बच्चा. लेकिन आज वह एक बहुत बड़े ओहदे पर लगा हुआ है, इज्जतदार बंदा है. मम्मी दरअसल जावेद की नहीं, उस के ओहदे की इज्जत कर रही हैं.’’

मम्मी ने तेज नजरों से मुझे घूरा और बोलीं, ‘‘रुखसाना, बड़ों से ऐसी बात नहीं की जाती. क्या तुम ने बाहर रह कर यही सब कुछ सीखा है? जाओ, अपने कमरे में चली जाओ.’’

मैं मुंह बना कर उठ खड़ी हुई. जिम्मी भाई भी उठने लगे तो मम्मी ने उन से कहा, ‘‘तुम बैठो जिम्मी, तुम से कुछ बात करना है मुझे.’’

मैं कमरे से निकल तो आई, लेकिन मेरे कदम रुक गए. मम्मी यकीनन जावेद के बारे में ही जिम्मी भाई से बात करना चाहती थीं. मैं सांस रोक कर दरवाजे की आड़ में खड़ी हो गई. मम्मी धीमी आवाज में जिम्मी भाई से कह रही थी, ‘‘जिम्मी, जब से मैं ने जावेद को देखा है, एक अनोखा खयाल मेरे दिमाग में आ रहा है.’’

‘‘कैसा खयाल मम्मी?’’ जिम्मी भाई की आवाज में हैरत थी.

‘‘सोचती हूं,’’ मम्मी जरा सा रुक कर बोलीं, ‘‘अगर फरजाना का रिश्ता जावेद से तय हो जाए तो कैसा रहेगा?’’

‘‘लेकिन…’’ जिम्मी भाई हकलाते हुए बोले, ‘‘जावेद तो उम्र में मुझ से भी छोटा है और आपी उम्र में मुझ से बड़ी हैं. यह कैसे हो सकता है?’’

‘‘होने को क्या नहीं हो सकता जिम्मी?’’ मम्मी खुदगर्जी से बोलीं, ‘‘बस जरा चालाकी की जरूरत है. वैसे भी यह तो जावेद के लिए इज्जत की बात है कि हम उसे हवेली का दामाद बना रहे हैं, वरना तालीम और ओहदे को उस की शख्सियत से अलग कर दो तो उस की क्या हैसियत रह जाती है? हवेली की एक नौकरानी का बेटा और बस.’’

‘‘अगर ऐसा हो जाए मम्मी तो हमारी बहुत बड़ी मुश्किल हल हो जाएगी और आपी की जिंदगी सही मायनों में संवर जाएगी. खानदान के जिन लड़कों ने आपी को ठुकराया है, वे मुंह देखते रह जाएंगे. उन में से कोई भी इतने बड़े ओहदे पर नहीं है.’’ जिम्मी भाई जोश से बोल रहे थे और मम्मी शेखी से कह रही थीं, ‘‘यह भी तो कहो न जिम्मी कि तुम्हारे लिए रास्ता साफ हो जाएगा और तुम नाइला को दुलहन बना कर जल्दी ला सकोगे.’’

‘‘अच्छा मम्मी,’’ वह हंस कर बोले, ‘‘आप तो मजाक कर रही हैं.’’

वे दोनों इसी मुद्दे पर बातें करते रहे. लेकिन मेरे सीने में बडे़ जोर का दर्द उठने लगा था. मेरे अंदर जोरदार धमाके होने लगे थे. हाथपांव ठंडे पड़ने लगे. मेरी आंखों में अंधेरा लहरें लेने लगा. मेरा दिल चाहा कि मैं धड़ाम से दरवाजा खोल कर अंदर घुस जाऊं और चिल्लाचिल्ला कर उन से कह दूं, ‘‘ऐ बड़ी हवेली के अंदर बसने वाले छोटे लोगों, जरा अपने गरेबान में झांक कर देखो कि तुम क्या कर रहे हो? क्या जावेद की किस्मत में कूड़ा ही लिखा है? जावेद ने जिस मेहनत और जिस लगन से अपनी जिंदगी बनाई है, तुम लोग आपी को उस की जिंदगी में दाखिल कर के उस की जिंदगी तबाह कर दोगे. यही इंसाफ है तुम्हारा?’’

लेकिन मैं कुछ भी न कर सकी, कुछ भी न कह सकी. बस बेजान कदमों से अपने कमरे में आ गई. यह बात इतनी छोटी नहीं थी कि मैं इस पर चुप रहती. मैं ने जोरशोर से इस पर ऐतराज किया और आपी के सामने कह दिया, ‘‘मम्मी, आप ज्यादती कर रही हैं. आपी और जावेद का कोई जोड़ नहीं है, किसी भी लिहाज से. उम्र में भी आपी जावेद से बहुत बड़ी हैं. खुदा के लिए यह जुल्म न कीजिए, ऐसी शादियां ज्यादा दिन पनप नहीं सकतीं. अंजाम अच्छा नहीं होता ऐसी शादियों का.’’

‘‘तुम बीच में मत बोलो.’’ मम्मी का रंग गुस्से के मारे सुर्ख हो गया.

जिम्मी भाई ने नाराजगी से मुझे घूरा, ‘‘तुम से किस ने राय मांगी है रुखसाना?’’

मैं ने आपी की तरफ देखा. शायद वही ऐतराज कर दे इस बेजोड़ रिश्ते पर, लेकिन उन्हें तो खाने के सिवा किसी बात से कोई सरोकार ही नहीं था. वे सब क्या कर रहे थे? किस के लिए कर रहे थे? उन्हें परवाह ही नहीं थी कोई. थकहार कर मैं चुप हो गई. जावेद 2-3 बार हवेली में आया. सब साथ ही बैठे रहते. वह अक्सर कहता, ‘‘तुम बहुत चुपचुप सी हो गई हो रुखसाना. बचपन में तो तुम ऐसी नहीं थीं. बहुत ही शरारती और बातूनी हुआ करती थीं. तुम्हें याद है जब तुम ने…’’ वह बचपन का कोई किस्सा सुनाने लगा. मैं खोईखोई बैठी रहती….खालीखाली नजरों से उसे देखती रहती. जिम्मी भाई और मम्मी बेमकसद हंसने लगते. मम्मी उस की खूब आवभगत करतीं. आपी को हर रोज बेहतरीन सूट पहनातीं. जावेद जब मेरे बारे में बात करता तो मम्मी घुमाफिरा कर आपी की बात शुरू कर देतीं.

वह जावेद के दौरे का आखिरी दिन था. कल उसे वापस जाना था. उस दिन वह सब से मिलने के लिए हवेली आया तो उस ने सब को दावत दी कि शहर आ कर कुछ दिन उस को मेजबानी का मौका दें. मुझ से वह बारबार कह रहा था, ‘‘रुखसाना, मैं ने अपने लौन में मोतिया के बेशुमार पौधे लगाए हैं. तुम्हें बचपन में मोतिया की खुशबू कितनी पसंद थीं, तुम मेरे घर आना. तुम्हें बेहद भला लगेगा.’’

मेरे बजाय मम्मी ने जवाब दिया, ‘‘हां…हां… जावेद मियां, जरूर आएंगे.’’

वह चला गया. उस के जाने के बाद मुझे यों लगा, जैसे चिरागों में रोशनी न रही हो. मेरे अंदर अंधेरा फैलने लगा. जिम्मी भाई और मम्मी क्या बातें कर रहे थे, मुझे सुनाई नहीं दे रहा था. मैं अपने वजूद को संभालती हुई अपने कमरे में आ गई और बेदम हो कर बिस्तर पर ढह गई. यों सुबह मेरी आंखें देर से खुलीं. रात भर मैं परेशान रही थी. मुझे चाहिए था कि मैं जावेद को खबरदार कर देती कि कहीं वह मम्मी के बिछाए जाल में न फंस जाए. मैं खुद को मुजरिम समझ रही थी, लेकिन कुसूर मेरा भी नहीं था. मम्मी और जिम्मी भाई ने एक मिनट के लिए भी मुझे अकेले नहीं छोड़ा जावेद के पास. शायद वे समझ गए थे कि मैं मौका पा कर जावेद को सारी बात बता दूंगी.

मेरा दिल हौल रहा था. मैं ने जल्दीजल्दी मुंह पर पानी के छपाके मारे और ड्राइंगरूम की तरफ चल दी. लेकिन मुझे ठिठक कर रुकना पड़ गया. वहां तो नजारा ही और था. मम्मी गुस्से के मारे लालपीली हो रही थीं. हमेशा नरम आवाज में बात करने वाली मम्मी बुरी तरह चीख रही थीं, ‘‘कमीना, बदजात, गंदी नाली का कीड़ा, दो टके का आदमी, आज हमारी बराबरी करना चाहता है?’’

उधर जिम्मी भाई मुट्ठियां भींचभींच कर तैश में कह रहे थे, ‘‘मैं उस खबीस के टुकड़ेटुकडे़ कर दूंगा. उस की यह हिम्मत कैसे हुई? जलील इंसान अपनी हैसियत भूल गया. लेकिन मैं उसे अपनी हैसियत याद दिलाऊंगा. समझता क्या है खुद को?’’

‘‘क्या हुआ मम्मी?’’ मैं घबराकर बोली. आपी जो टोस्ट पर मक्खन की तह लगा रही थीं, मुझे देख कर अजीब बेढंगेपन से हंसने लगीं. मैं घबरा कर बारीबारी सब की तरफ देखने लगी, ‘‘आप सब मुझे बताते क्यों नहीं कि आखिर क्या बात हुई है?’’

अजीब ठंडे अंदाज में मम्मी ने एक मुड़ातुड़ा कागज मेरी तरफ बढ़ाते हुए कहा, ‘‘लो, उस खबीस की हिम्मत खुद देख लो.’’ मम्मी कमरे से बाहर चली गईं. उन के पीछेपीछे जिम्मी भाई भी चले गए. आपी अपना नाश्ता खत्म कर चुकी थीं. सो उन के रुकने की भी कोई वजह नहीं थी. वह मुझे देखती और मुसकराती हुई कमरे से बाहर निकल गईं. अजीब बेवकूफी भरी मुसकराहट थी उन के होंठों पर. या खुदा, मैं पागल हो गई हूं या ये सब पागल हो गए हैं? मैं ने झुंझला कर वह मुड़ातुड़ा कागज खोला और मेरी नजरें तेजी से उन सतरों पर दौड़ने लगीं. वह जावेद का खत था मम्मी के नाम. लिखा था : बेगम साहिबा,

आदाब! आप का पैगाम मिला. इज्जतअफजाई का शुक्रिया. मैं यकीनन इस रुतबे और मकाम के काबिल नहीं हूं और आप का जितना भी शुक्रिया अदा करूं, कम होगा. लेकिन गुस्ताखी माफ बेगम साहिबा! आपी को मैं ने हमेशा से अपनी बड़ी बहन का दर्जा दिया है. इस नजर से मैं ने उन्हें कभी नहीं देखा. उन की शख्सियत मेरे लिए काबिलेइज्जत रही है और सारी उम्र काबिलेइज्जत रहेगी.

दरअसल, खुद मैं भी आप से हाथ जोड़ कर दरख्वास्त करना चाहता था, लेकिन हिम्मत नहीं पड़ रही थी. ऐसा लगता था, जैसे छोटे मुंह बड़ी बात कह दी जाए. आप की नाराजगी और कहर का डर था. अपनी कमतरी का अहसास था. इसलिए मैं अपने दिल की सारी ख्वाहिशें दिल में ही छिपा कर यहां से विदा होना चाहता था. लेकिन आज जब आप का पैगाम मिला तो मेरे अंदर भी हिम्मत पैदा हो गई और मैं ने सोचा कि अगर आप मुझे दामाद की हैसियत देना ही चाहती हैं तो रुखसाना का हाथ मेरे हाथ में दे दीजिए. मैं सारी जिंदगी आप का एहसान नहीं भूलूंगा बेगम साहिबा! यह आज की ख्वाहिश नहीं, मुद्दतों पहले की ख्वाहिश है, तब की, जब आप की डांट और मार के बावजूद हम इकट्ठे खेलने और इकट्ठे पढ़ने से बाज नहीं आते थे. तब मैं कुछ भी नहीं था और आज जो कुछ बना हूं, इसी ख्वाहिश की बदौलत बना हूं. मैं जल्दी ही आ कर आप का जवाब लूंगा.

—खैरअंदेश जावेद खां

कागज का पुर्जा मेरे हाथों में फड़फड़ा रहा था. मेरी रगों में भयानक बेचैनी दौड़ने लगी थी. दिल में दहकती हुई आग भर गई थी. बड़े घरों में बसने वाले लोग कितने बेबस और मजबूर होते हैं, यह अब मेरी समझ में अच्छी तरह आ रहा था.

मैं भागीभागी अपने कमरे में आई. मुलायम बिस्तर जहरीले कांटों की सेज लग रहा था. रोती रही… सैलाब आ गया था मेरी आंखों में. …फिर उठी और सोचने लगी.

आखिरकार मेरे दिल ने और मेरे दिमाग ने भी वह फैसला ले लिया, जो कभी मेरे तसव्वुर में भी न आया था. एक दिन सहेली के घर जाने के बहाने निकली तो फिर हवेली लौटी ही नहीं. आज मेरी जिंदगी के गुलशन में बेहद प्यारी खुशबू वाले दो फूल खिले हैं. बताने को कहिए बता दूं कि आपी के लिए एक गरीब दूल्हा खरीद लिया गया और फिर जिम्मी भाई की भी नाइला से शादी हो गई. लेकिन इतना सब होने में इतनी आंधियां चलीं, इतना गुबार उठा कि खुदा न करे, किसी खानदान में वैसा हो. इसीलिए तो कभीकभी शिद्दत से महसूस होता है कि बहार आई भी तो …

 

MP News: रिश्तों की बलिवेदी

MP News: मुकेश रिश्तेनातों को भूल कर अपनी ही सगी बहन पूजा को एकतरफा प्यार करने लगा था. पूजा को उस की हकीकत पता चली तो उसे दुत्कार कर वह उस से कन्नी काटने लगी. उसे क्या पता था कि भाई कसाई भी बन सकता है. एएसआई के.के. दुबे अपनी पत्नी माया व कुछ रिश्तेदारों के साथ शाम लगभग 5 बजे अपने क्वार्टर पहुंचे. उन का क्वार्टर थाना रांझी के प्रांगण में था. दरवाजा खुलवाने के लिए उन्होंने अपनी बेटी पूजा को आवाज दी. लेकिन घर के अंदर से न तो कोई जवाब मिला और न कोई हलचल ही हुई. वह पूजा को अकेली ही छोड़ कर गए थे, इसलिए सोचा कि वह सो रही होगी. उसे जगाने के लिए उन्होंने जोरजोर से दरवाजा पीटा, साथ ही उस का नाम ले कर आवाजें दीं.

क्वार्टर में जाने के लिए एक दरवाजा पीछे से भी था. जब आवाजें देने के बाद भी पूजा ने दरवाजा नहीं खेला तो के.के. दुबे क्वार्टर के पीछे गए. पिछला दरवाजा खुला देख कर उन्हें मामला कुछ गड़बड़ लगा. वह दबे पांव खुले दरवाजे के अंदर घुस कर कमरे में पहुंचे तो फर्श पर पूजा को लहूलुहान अवस्था में देख कर अवाक रह गए. आंखों से आंसू टपकने लगे. जब तक वह कमरे से बाहर निकले, तब तक पत्नी और रिश्तेदार भी पीछे वाले दरवाजे की तरफ आ गए थे. पति की आंखों में आंसू देख कर माया समझ गई कि कुछ न कुछ गड़बड़ है. उन्होंने पति से पूजा के बारे में पूछा तो उन की कुछ भी बताने की हिम्मत नहीं हुई और वह जोरजोर से रोने लगे. यह देख कर माया भी घबरा गई. वह तुरंत कमरे में गई. उस के पीछेपीछे रिश्तेदार भी पहुंच गए.

उन के क्वार्टर से थाने का दफ्तर करीब 100 मीटर दूर था, इसलिए रोने की आवाजें दफ्तर तक पहुंच गईं. रोनेधोने की आवाज सुन कर थानाप्रभारी अनिल सिंह मौर्य के.के. दुबे के क्वार्टर पर पहुंच गए. उन्होंने जब सुना कि दुबे की बेटी की हत्या कर दी गई है तो उन के भी होश उड़ गए. कमरे का मुआयना करने के बाद उन्होंने अपने अधिकारियों को भी घटना से अवगत करा दिया. एएसआई की बेटी की हत्या थाना प्रांगण स्थित उन के क्वार्टर में हुई थी, इसलिए यह खबर हैरान कर देने वाली थी. सूचना पा कर डीएम एस.एन. रूपला, एसपी हरिनारायणचारी मिश्रा, एएसपी अमरेंद्र सिंह, एसपी (सिटी) जे.पी. मिश्रा, एसपी सिटी (ओमती) आजम खान भी मौके पर पहुंच गए. उन्होंने फोरेंसिक और डाग स्क्वायड टीम को भी मौके पर बुला लिया.

पूजा की लाश के पास ही एक टेप कटर और एक ईअर फोन पड़ा था. टेप कटर पर खून के धब्बे लगे थे. फोरेंसिक एक्सपर्ट ने टेप कटर और अन्य सामानों से फिंगर प्रिंट इकट्ठे किए. खोजी कुत्ता लाश सूंघ कर दरवाजे के पास जा कर रुक गया. उस से भी पुलिस को कोई खास सहायता नहीं मिली. बाद में पुलिस ने मौके से सुबूत जब्त कर लिए. पुलिस अधिकारियों ने लाश का मुआयना किया तो उस की गरदन पर 3 घाव थे और उस की दोनों कलाइयों की नसें कटी हुई थी. छानबीन के बाद पुलिस ने मृतका पूजा की लाश पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल जबलपुर भेज दी.

श्वांस नली और दोनों कलाइयों की नसें कटी होने की वजह से कुछ पुलिस वाले इसे आत्महत्या का मामला मान रहे थे. जब कोई पढ़ालिखा व्यक्ति आत्महत्या करता है तो वह सुसाइड नोट लिख कर ऐसी जगह रख देता है, जिस पर सभी की नजर पड़े. पुलिस ने पूरा कमरा छान मारा, लेकिन कहीं भी सुसाइड नोट नहीं मिला. थानाप्रभारी अनिल सिंह मौर्य को यह मामला आत्महत्या का नहीं, बल्कि हत्या का लग रहा था. इस की वजह यह थी कि कोई भी व्यक्ति धारदार हथियार से अपना गला नहीं काट सकता. पूजा के गले पर तो कटने के 3 निशान थे. इस के अलावा उस की कलाइयों की नसें भी काटी थीं.

उन्हें लग रहा था कि हत्यारे ने इस मामले को आत्महत्या का रूप देने की कोशिश की है. घर का कोई सामान भी चोरी नहीं हुआ था. इस से अनुमान लगाया गया कि हत्यारे का मकसद केवल पूजा की हत्या करना था. हत्यारा कौन हो सकता है, इस का पता लगाने के लिए उन्होंने मृतका के पिता एएसआई के.के. दुबे से बात की. के.के. दुबे ने बताया कि उन की 5 बेटियां हैं, जिस में से 4 बेटियों की वह शादी कर चुके हैं. शादी के लिए सब से छोटी बेटी पूजा दुबे ही रह गई थी. वह एमए की पढ़ाई कर रही थी. थाने के सरकारी क्वार्टर में वह पत्नी माया दुबे और छोटी बेटी पूजा के साथ रहते थे. चूंकि पूजा भी शादी योग्य हो चुकी थी.

उस की पढ़ाई भी पूरी होने वाली थी इसलिए उन्होंने उस की शादी पनानगर के एक अच्छे परिवार के लड़के से तय कर दी थी. फरवरी, 2015 में उस की शादी होनी थी. लेकिन इस से पहले ही यह घटना घट गई. बतातेबताते दुबेजी की आंखें भर आईं. थानाप्रभारी ने उन्हें ढांढस बंधाया तो के.के. दुबे ने आगे बताया कि 29 जनवरी, 2015 को उन की सुसराल बूढ़ानगर में तेरहवीं का कार्यक्रम था. उस में भोपाल के रहने वाले उन के साढ़ू मुनेंद्र उपाध्याय को भी शामिल होना था. इसलिए 28 जनवरी को वह अपने बच्चों के साथ हमारे क्वार्टर पर आ गए थे. यहीं से हम सब 29 जनवरी को साढ़े 11 बजे बूढ़ानगर के लिए निकल गए. पूजा से हम ने चलने को कहा तो उस ने पढ़ाई की वजह से जाने से मना कर दिया. क्वार्टर थाने के प्रांगण में था, इसलिए उस के घर रुकने पर वह निश्चिंत थे.

दुबे के अनुसार तेरहवीं का कार्यक्रम खत्म होने के बाद उन्होंने रांझी के लिए वापसी की. शाम करीब 5 बजे वह अपने क्वार्टर पर आए. यहां आ कर दरवाजा खुलवाने के लिए उन्होंने पूजा को कई आवाजें दीं और दरवाजा खटखटाया. लेकिन घर के अंदर से न तो पूजा की कोई आवाज आई और न ही कोई हलचल सुनाई दी. तब वह पीछे के दरवाजे पर पहुंचे. पीछे वाला दरवाजा खुला पड़ा था. उन्होंने कमरे में जा कर देखा तो बैड के करीब फर्श पर पूजा की लहूलुहान लाश पड़ी थी.

के.के. दुबे ने बताया कि पूजा आत्महत्या नहीं कर सकती, क्योंकि वह बहुत हिम्मत वाली लड़की थी. पढ़नेलिखने में भी वह तेज थी. शादी तय हो जाने के बाद से वह काफी खुश थी. जब थानाप्रभारी ने उन से किसी पर शक वगैरह होने की बात पूछी तो उन्होंने अपने साढू मुनेंद्र के बेटे मुकेश उपाध्याय पर हल्का शक जाहिर किया. उन्होंने बताया कि शहपुरा और जबलपुर के थानों में तैनाती के दौरान मुकेश ने उन के यहां कुछ ज्यादा आनाजाना कर दिया था. उस दौरान उस ने पूजा के साथ कुछ ऐसी हरकतें कीं, जो बहनभाई के संबंधों में नहीं होनी चाहिए थीं. पूजा ने जब यह बात उन्हें बताई थी तो वह उस के साथ उपेक्षा भरा बर्ताव कर के उस से बेरुखी से पेश आने लगे. इस के बाद मुकेश पूजा के मोबाइल पर ऐसी बातें करने लगा जो पूजा को पसंद नहीं थीं.

मुकेश के बारबार फोन करने से पूजा परेशान हो उठी. उस ने मुकेश को डांटा और उसे फोन न करने की सख्त हिदायत दी. लेकिन मुकेश ने अपनी हरकतें बंद नहीं कीं. परेशान हो कर अंत में उन्होंने उस के मातापिता से शिकायत की. इस से वह और उग्र हो गया और फोन बदलबदल कर पूजा को धमकियां देने लगा. इसी दौरान दिसंबर, 2014 में उन्होंने पूजा की शादी तय कर दी थी. बाद में जनवरी, 2015 के प्रथम सप्ताह में उन्होंने पूजा की मंगनी भी कर दी थी. जब इस बात की जानकारी मुकेश को हुई तो वह 14 जनवरी को भोपाल से जबलपुर आ गया. वह घर न आ कर सीधे पूजा के कोचिंग सेंटर के बाहर पहुंच गया. जैसे ही वह कोचिंग सेंटर से बाहर निकली तो रास्ते में उस ने पूजा को रोक लिया और उस से विवाह करने की जिद करने लगा.

पूजा ने उसे झिड़क दिया और घर आ कर अपनी मां को मुकेश की हरकतों के बार में बताया. मुकेश की पागलपन की इन हरकतों से वे लोग बेहद परेशान थे, लेकिन लोकलाज के कारण चुप थे. मौसेरे भाई की एकतरफा प्यार की कहानी सुन कर थानाप्रभारी अनिल सिंह मौर्य ने मृतका पूजा व मुकेश के मोबाइल नंबरों की काल डिटेल्स निकलवाई और मुकेश के नंबर को सर्विलांस पर लगा कर केस के खुलासे की कोशिश शुरू कर दी. मुकेश की काल डिटेल्स की समीक्षा से पता चला कि घटना के दौरान उस के फोन की लोकेशन जबलपुर और थाना रांझी के टावरों के पास थी. इस से पुलिस का शक मुकेश पर और गहरा गया.

थानाप्रभारी अनिल मौर्य ने दलबल के साथ पहली फरवरी, 2015 को कोहेफिजा, भोपाल स्थित मुकेश के घर छापा मारा. मुकेश घर पर ही मिल गया. तलाशी लेने पर उस के घर में खून लगी जैकेट मिली. वह पुलिस ने बरामद कर ली. पुलिस ने उसी समय उसे हिरासत में ले लिया और पूछताछ के लिए थाना रांझी ले आई. थाने में मुकेश से सख्ती से पूछताछ की गई तो वह पुलिस के सामने ज्यादा देर तक नहीं टिक सका. उस ने स्वीकार कर लिया कि पूजा की हत्या उसी ने की थी. उस ने उस की हत्या की जो कहानी बताई, इस प्रकार निकली.

मुकेश मध्य प्रदेश के जिला भोपाल के कस्बा कोहेफिजा के रहने वाले मुनेंद्र उपाध्याय का बेटा था. मुनेंद्र उपाध्याय प्राइवेट कंपनी में नौकरी करते थे. मुकेश गलत साथियों की संगत में पड़ जाने की वजह से इंटरमीडिएट से आगे की पढ़ाई नहीं कर सका. वह दिन भर आवारागर्दी करता. मातापिता ने उसे बहुत समझाया, लेकिन वह नहीं सुधरा. करीब 7 साल पहले की बात है. मुकेश पहली बार परिवार वालों के साथ पूजा के घर गया था. जब उस ने पहली बार पूजा को देखा तो वह उसे भा गई. उस की सुंदरता के आकर्षण में वह ऐसा डूबा कि उस का दीवाना हो गया. मुकेश चूंकि पूजा का मौसेरा भाई था, इसलिए वह उस से घुलमिल कर बातें करती थी. पूजा के इसी अपनत्व भरे व्यवहार को मुकेश पूजा की चाहत समझ बैठा. इस तरह उस के दिल में पूजा के प्रति एकतरफा प्यार उमड़ने लगा.

इस के बाद वह अकसर कोई न कोई बहाना बना कर भोपाल से जबलपुर स्थित पूजा के घर आनेजाने लगा. बहन का बेटा होने की वजह से पूजा की मां माया उसे बड़े प्यारदुलार से रखती थी. मानसम्मान पा कर मुकेश अकसर पूजा के घर आने लगा. वह वहां कईकई दिन रुकता था. मुकेश की नजरें पूजा पर ही लगी रहती थीं, इसलिए वह जब भी वहां आता, पूजा के आसपास ही मंडराता रहता था. चूंकि मुकेश सगा रिश्तेदार था, इसलिए परिवार वाले उस पर किसी तरह का शक नहीं करते थे. धीरेधीरे वह पूजा के साथ अजीब तरह की हरकतें करने लगा. फिर भी पूजा मुकेश के अटपटे व्यवहार को उस का भोलापन मान कर नजरअंदाज करती रही. इसे मुकेश पूजा के प्यार करने की मूक सहमति समझने लगा.

समय के साथ मुकेश का प्यार विकृत हो कर भयावह होता जा रहा था. वहीं दूसरी ओर पूजा के दिल में मुकेश के प्रति भाई का प्यार पवित्र और सामान्य स्थिति में था. मुकेश एकतरफा प्यार में अंधा होता जा रहा था. इतना ही नहीं, वह गलतफहमी में पूजा को अपना जीवनसाथी बनाने के सतरंगी सपने देखने लगा. समय गुजरता गया. 6 साल कब गुजर गए, पता तक नहीं चल पाया. इधर पूजा एमए कर रही थी. शादी योग्य समझ कर उस के घर वालों ने उस का विवाह तय कर दिया. यह खबर सुन कर मुकेश की स्थिति कटे हुए वृक्ष जैसी हो गई. वह कई बार पूजा के घर बहाना बना कर आया, लेकिन समय न पा कर मुकेश पूजा से अपने दिल की बात नहीं कह पाया.

जब मुकेश को पता चला कि पूजा की मंगनी नए साल के पहले सप्ताह में होने वाली है तो वह विचलित हो उठा. उस ने मोबाइल से फोन कर के पूजा से पहली बार प्यार का इजहार करते हुए कहा, ‘‘पूजा, मैं तुम से बेहद प्यार करता हूं. मैं तुम से विवाह करना चाहता हूं. अगर तुम ने मुझ से विवाह न किया तो मैं आत्महत्या कर लूंगा.’’

‘‘मुकेश, यह तुम क्या कह रहे हो. लगता है तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है. तुम मेरे मौसेरे भाई हो. आइंदा ऐसी गंदी सोच वाली बात मुझ से न करना.’’ डांटते हुए पूजा बोली.

‘‘पूजा, तुम अच्छी तरह सुन लो कि मैं तुम्हें जान से ज्यादा चाहता हूं और तुम्हें अपना मान चुका हूं. मैं ने तय कर लिया है कि शादी तुम से ही करूंगा. अगर तुम ने मुझे धोखा दिया तो समझ लो परिणाम गंभीर होंगे.’’ चेतावनी देते हुए मुकेश बोला, ‘‘यह याद रखो पूजा, अगर तुम मेरी न हुई तो मैं तुम्हें किसी और की भी नहीं बनने दूंगा. भले ही नतीजा कुछ भी हो.’’

‘‘मुकेश भइया तुम पागल हो चुके हो. कहीं भाईबहन में शादी होती है?’’ कह कर पूजा ने फोन काट दिया.

दूसरी तरफ मुकेश पूजा की बेरुखी को देख कर गहरे तनाव में आ गया. उसे पूरी रात नींद नहीं आई. उस के मनमस्तिष्क में पूजा की ही तस्वीर घूमती रही. सुबह उठा तो उस की आंखें सूजी हुई थीं. तनाव से वह बेहद खामोश एवं गंभीर हो गया. मुकेश की खामोशी को घरपरिवार वाले समझ नहीं पा रहे थे. वह अकसर गुमशुम रहने लगा. उधर मुकेश की बहकीबहकी बातें सुन कर पूजा बहुत परेशान हो उठी. उस ने मुकेश के मोबाइल की काल को रिसीव करना बंद कर दिया, जिस से मुकेश और बेचैन हो गया. पूजा की मंगनी होने की बात सुन कर मुकेश 14 जनवरी, 2015 को भोपाल से जबलपुर आ गया और जब पूजा अपने कोचिंग सेंटर से बाहर निकली तो उस ने पूजा को रोक लिया.

उस ने पूजा के सामने गिड़गिड़ाते हुए कहा, ‘‘पूजा, मैं तुम्हें जान से ज्यादा चाहता हूं. तुम किसी और से विवाह न कर के मुझ से कर लो. हम दोनों के बीच जो भी रोड़े आएंगे, हम उन से निपट लेंगे. लेकिन तुम मेरी चाहत और प्यार को धोखा मत दो.’’

‘‘मुकेश, मैं तुम्हारी भावनाओं को समझ रही हूं, लेकिन हम दोनों के बीच भाईबहन का पवित्र रिश्ता है. बेहतर यही है कि तुम होश में आ जाओ. अगर तुम मुझे ज्यादा परेशान करोगे तो मैं तुम्हारी शिकायत मौसाजी से कर दूंगी.’’ पूजा उसे सख्त हिदायत देते हुए बोली. घर लौट कर पूजा ने यह बात अपनी मां माया दुबे को बताई तो उन्होंने उसी समय अपनी बहन और बहनोई को फोन कर के उन से मुकेश की शिकायत कर दी. उस ने कहा कि मुकेश को समझाओ. उस की हरकतों से पूजा की शादी में व्यवधान पडे़गा और अगर शादी के बाद किसी तरह यह बात उस के ससुराल वालों को मालूम हो गई तो उस का पारिवारिक जीवन नरक हो जाएगा.

मुकेश के घर वालों ने उसे डांटा. इस से वह आगबबूला हो गया. उस ने पूजा की हत्या करने की ठान ली. संयोग से मुकेश को पता चला कि 29 जनवरी, 2015 को उस के मातापिता मौसामौसी के साथ बूढ़ानगर स्थित ननिहाल में तेरहवीं कार्यक्रम में जाएंगे. पूजा की हत्या करने का उस के लिए यह अच्छा मौका था. 28 जरवरी, 2015 को मुकेश के मातापिता भोपाल से पूजा के घर के लिए चल दिए. मुकेश भी उन्हीं के पीछेपीछे रवाना हो गया. उसी दिन देर रात वे लोग पूजा के घर पहुंच गए. जबकि मुकेश जबलपुर स्टेशन पर पहुंच गया. अपनी योजना के मुताबिक वह पूरी रात स्टेशन पर ही रहा. 29 जनवरी की सुबह 10 बजे मुकेश रांझी पहुंच गया और थाना रांझी से कुछ दूर खड़े हो कर अपने और पूजा के मातापिता के घर से निकलने का इंतजार करने लगा.

वे लोग साढे़ 11 बजे के लगभग थाने के क्वार्टर के बाहर आ गए तो कुछ देर बाद वह पूजा के घर पहुंच गया. उन के जाने के बाद उस ने निश्चिंत हो कर दरवाजा खटखटाया. जैसे ही पूजा ने दरवाजा खोला, वह अंदर घुस गया. फुरती से अंदर घुस कर उस ने दरवाजा बंद कर लिया. फिर वह पूजा को पकड़ कर पीछे वाले कमरे में ले गया और उस से शादी करने के लिए उस पर घर से भाग चलने का दबाव बनाने लगा. पूजा मुकेश पर बिगड़ी और पिता को उस की बातें बताने की धमकी दे कर बैड पर पड़े अपना मोबाइल उठाने के लिए लपकी.

पूजा की हरकत देख कर मुकेश ने जेब से टेप कटर निकाला और पूजा की गरदन को 3 बार रेत दिया. वह लहूलुहान हो कर फर्श पर गिर गई. उस के बाद पूजा की हत्या को आत्महत्या के रूप में दर्शाने के लिए उस ने उस के दोनों हाथों की कलाई की नसों को काट दिया और कमरे में उसे तड़पता छोड़ कर चुपचाप पीछे वाले दरवाजे से निकल गया. उस की जैकेट पर खून के छींटे आ गए थे, इसलिए उस ने जैकेट उतार कर हाथ में पकड़ ली थी. फिर वह अपने घर भोपाल आ गया. मुकेश ने थानाप्रभारी अनिल सिंह मौर्य को बताया कि पहले पूजा भी उसे खूब चाहती थी. जब भी उस से मिलताजुलता था, वह उस से बड़े प्यार से बातें करती थी.

लेकिन शादी तय हो जाने के बाद वह पूरी तरह बदल गई और उस से  नफरत करने लगी थी. उस ने पूजा को अपने साथ शादी करने के लिए बहुत समझाया, लेकिन वह नहीं मानी तो मजबूर हो कर उस ने उस की हत्या कर डाली. मुकेश से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने उसे भादंवि की धारा 302, 450 के तहत गिरफ्तार कर 2 फरवरी, 2015 को न्यायालय में पेश किया, जहां से उसे जिला जेल जबलपुर भेज दिया. एसपी हरिनारायणचारी मिश्रा ने इस मामले का खुलासा करने वाली टीम को बधाई देते हुए उन्हें पुरस्कृत किया. MP News

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Love Story in Hindi: अच्छा सिला दिया तू ने मेरे प्यार का

Love Story in Hindi: संगीता जब घर में बता कर गई थी कि वह स्कूल जा रही है तो उस का फोन आने के बाद उस के घर वाले स्कूल में खोजने के बजाय इधरउधर क्यों खोजते रहे? इस में स्कूल मैनेजर और उस का चचेरा भाई तो दोषी है ही, घर वालों की लापरवाही भी है.

संगीता को तैयार होते देख शांति ने पूछा, ‘‘बेटी, कहीं जा रही हो क्या?’’

‘‘हां मां, स्कूल से फोन आया है, शायद कोई जरूरी काम है, इसलिए डेढ़, 2 घंटे के लिए बुलाया है. मैं काम निपटा कर जल्दी ही लौट आऊंगी.’’ तैयार होते हुए संगीता ने कहा. शायद शांति उस के जवाब से संतुष्ट नहीं हुईं, इसलिए उन्होंने आगे कहा, ‘‘आज तो होलिका दहन है, सभी स्कूलकालेज बंद हैं, फिर तुम्हारा स्कूल कैसे खुला है? जबकि तुम ने महीनों पहले वहां से नौकरी छोड़ दी है. ऐसे में स्कूल वालों को तुम्हें बुलाने की क्या जरूरत है?’’

‘‘मां, मुझे भी पता है कि आज छुट्टी है, लेकिन किस लिए बुलाया है? यह तो स्कूल जाने के बाद ही पता चलेगा न. परेशान होने की कोई बात नहीं है. मैं वहां पहुंच कर फोन कर दूंगी.’’ संगीता ने कहा. उस समय सुबह के साढ़े 9 बज रहे थे. तैयार हो कर संगीता ने नाश्ता किया और गुलौरी गांव स्थित ‘न्यू लिटिल फ्लावर चिल्डै्रन कान्वैंट स्कूल’ के लिए निकल पड़ी. 21 वर्षीया संगीता के पिता परमात्मानंद यादव मूलरूप से बलिया जिला के थाना बैरिया के चांदपुर गांव के रहने वाले थे. उन्हें 1982 में जिला मऊ के रतनपुरा (पहसा) स्थित नेहरू इंटर कालेज में अध्यापक की नौकरी मिली तो वह बलिया से मऊ आ गए. वह हाईस्कूल में गणित और विज्ञान पढ़ाते थे. अध्यापक की नौकरी मिलने के कुछ दिनों बाद ही वह अपनी पत्नी शांति को ले आए और रतनपुरा के बिंदु निवास में किराए का मकान ले कर रहने लगे थे.

यहीं रहते हुए उन के 6 बच्चे हुए, जिन में 30 वर्षीया सविता, 25 वर्षीया ममता, 21 वर्षीया संगीता, 18 वर्षीय धीरज कुमार, 16 वर्षीय राजीव रंजन और सब से छोटी ज्योति है, जो 8वीं में पढ़ रही है. वह 4 बेटियों में से 2 बेटियों सविता और ममता की शादी कर चुके हैं. तीसरी बेटी संगीता के लिए वह घरवर की तलाश कर रहे थे. वह अपने मकसद में कामयाब होते, उस के पहले ही एक अनहोनी हो गई. बीएससी करने के बाद संगीता अपने घर वालों के एक शुभचिंतक के कहने पर गुलौरी गांव स्थित न्यू लिटिल फ्लावर चिल्ड्रैन कान्वैंट स्कूल में पढ़ाने लगी थी. संगीता ने उस कान्वैंट स्कूल में लगभग साल भर पढ़ाया होगा कि न जाने क्यों इस साल फरवरी, 2015 से स्कूल में पढ़ाना बंद कर दिया.

संगीता ने यह नौकरी क्यों छोड़ दी, किसी को इस की वजह नहीं बताई. सिर्फ यही कहा कि स्कूल में उस से जितना काम लिया जाता है, उस के हिसाब से उसे वेतन नहीं दिया जाता. इसलिए वह वहां पढ़ाने के बजाय कोई दूसरी नौकरी ढूंढे़गी. नौकरी छोड़ने के बाद संगीता अपना ज्यादातर समय घर पर ही बिताती थी. इस बीच वह घरगृहस्थी के कामों में मां का हाथ बंटाती थी, साथ ही अपने लिए किसी अच्छी नौकरी की तलाश भी कर रही थी. लेकिन ‘न्यू लिटिल फ्लावर चिल्ड्रैन कान्वैंट स्कूल’ की नौकरी छोड़ने के बाद 5 मार्च, 2015 गुरुवार को उस विद्यालय में काम करने वाली किसी महिला ने संगीता को फोन कर के कहा कि स्कूल को मैनेजर ने उसे किसी जरूरी काम से स्कूल बुलाया है तो उसी के बुलाने पर वह तैयार हो कर पौने 10 बजे के आसपास स्कूल जाने के लिए निकली थी.

संगीता को स्कूल गए एक घंटा हुआ होगा कि उस ने मां के मोबाइल पर फोन किया. संगीता उस समय बेहद डरी और घबराई लग रही थी. उस ने मां से कहा था कि कुछ लोगों ने उसे जबरदस्ती एक कमरे में बंद कर दिया है, उस की समझ में कुछ नहीं आ रहा है. संगीता आगे कुछ और कहती, फोन कट गया. संगीता की बातों से शांति को लगा, वह किसी मुसीबत में फंस गई है. वह घबरा गईं कि क्या करें. क्योंकि उस समय घर में कोई मर्द नहीं था. होली का त्योहार होने की वजह से उन की बड़ी बेटी सविता मायके में ही थी. उसे जैसे ही मां से संगीता के बारे में पता चला, उस ने तुरंत संगीता के मोबाइल पर फोन किया. लेकिन अब उस का फोन बंद हो चुका था. वह बेचैन हो उठी.

उस ने कई बार संगीता को फोन किया, लेकिन हर बार फोन बंद मिला. चिंता की बात यह थी कि उस समय घर में न तो पिता परमात्मानंद थे और न ही छोटा भाई धीरज. होली की छुट्टी होने की वजह से वह बेटे धीरज के साथ संगीता के लिए लड़का देखने अपने गांव गए हुए थे. काफी कोशिश के बाद भी जब संगीता से बात नहीं हो पाई तो सविता और शांति परेशान हो उठीं. जब उन्हें कोई राह नहीं सूझी तो उस ने पिता को फोन कर के उन्हें सारी बात बता दी. परमात्मानंद यादव ने भी संगीता के मोबाइल पर फोन किया, लेकिन फोन बंद होने की वजह से बात नहीं हो पाई. वह वापस आने के बारे में सोच रहे थे कि गुलौरी गांव के रहने वाले रामभवन यादव का फोन आया. रामभवन यादव ‘न्यू लिटिल फ्लावर चिल्ड्रैन कान्वैंट स्कूल’ के संचालक-प्रबंधक जितेंद्र कुमार यादव का चचेरा भाई था.

रामभवन ने परमात्मानंद से कहा कि उसे सविता से संगीता के गायब होने के बारे में पता चला है. उस ने उन्हें फोन इसलिए किया है कि उसे पता चला है कि संगीता बलिया के रसड़ा में कहीं देखी गई है. वह रसड़ा पहुंच रहा है. वह उसे रसड़ा में प्यारेलाल चौराहे पर मिलें, उस के बाद दोनों मिल कर संगीता को खोजेंगे. परमात्मानंद की रामभवन से काफी पुरानी जानपहचान थी, दोनों का एकदूसरे के घर भी आनाजाना था. परमात्मानंद के बच्चे रामभवन को चाचा कहते थे. रामभवन से बात होने के बाद परमात्मानंद रसड़ा के प्यारेलाल चौराहे पर पहुंचे तो वहां रामभवन अपने एक साथी के साथ उन्हें खड़ा इंतजार करता मिल गया.

रसड़ा आते समय परमात्मानंद ने अपने चचेरे भाई शारदानंद को भी साथ ले लिया था. प्यारेलाल चौराहे पर सभी लोग मिले तो संगीता की खोज शुरू हुई. सभी घंटों संगीता की यहांवहां खोजबीन करते रहे, लेकिन उस का कहीं पता नहीं चला. जब सूर्यास्त हो गया तो रामभवन ने परमात्मानंद से कहा कि अब उन्हें घर चलना चाहिए. वहीं से संगीता के बारे में पता किया जाएगा. रसड़ा से रतनपुरा आतेआते रात हो गई. संगीता के बारे में अभी तक कुछ पता नहीं चला था. उस का मोबाइल अभी भी बंद था. परमात्मानंद के घर आते ही सविता ने पिता से कहा कि अभी तक संगीता का पता नहीं चला है, इसलिए पुलिस में उस की गुमशुदगी दर्ज करा देनी चाहिए. तब परमात्मानंद के साथ आए रामभवन ने कहा कि ज्यादा जल्दबाजी ठीक नहीं है.

लड़की का मामला है, कुछ उलटासीधा हो गया तो जिंदगी भर का दाग लग जाएगा. इसलिए हमें समझदारी से काम लेना चाहिए. उस के बारे में एक बार और पता कर लेते हैं. अगर कुछ पता नहीं चलता तो अगले दिन पुलिस को सूचना दे दी जाएगी. रामभवन के समझाने पर परमात्मानंद ने संगीता की गुमशुदगी की सूचना पुलिस को नहीं दी. जबकि सविता उन्हें बारबार रतनपुरा पुलिस चौकी जा कर संगीता की गुमशुदगी की सूचना देने को कहती रही. लेकिन परमात्मानंद रामभवन के कहने में आ गए थे, जबकि पुलिस चौकी उन के घर से महज ढाई, 3 सौ मीटर की दूरी पर थी. रामभवन ने एक बार फिर परमात्मानंद और 2-4 अन्य लोगों को साथ ले कर इधरउधर संगीता की खोजखबर और पूछताछ की, लेकिन इस का भी कोई सार्थक परिणाम नहीं निकला.

अगले दिन रामभवन सुबहसुबह परमात्मानंद के घर पहुंचा. सामने सविता पड़ गई तो उस से पूछा, ‘‘तुम्हारे पिताजी कहां हैं? संगीता के बारे में पता चल गया है.’’

‘‘कहां है संगीता?’’ सविता ने पूछा तो रामभवन ने कहा, ‘‘यह मैं तुम्हारे पिता को ही बताऊंगा.’’

रामभवन की आवाज सुन कर परमात्मानंद भी बाहर आ गए. उन्होंने पूछा, ‘‘क्या हुआ रामभवन? संगीता का कुछ पता चला क्या?’’

‘‘जी, संगीता ने स्कूल के कमरे में पंखे से लटक कर फांसी लगा ली है.’’

रामभवन के मुंह से यह बात सुन कर परमात्मानंद सन्न रह गए. उन्हें सहसा विश्वास ही नहीं हुआ. उन्होंने कहा, ‘‘तुम सच कह रहे हो या होली होने की वजह से कहीं मजाक तो नहीं कर रहे?’’

‘‘मजाक नही कर रहा, मैं ने खुद उसे पंखे से लटकी हुई देखा है.’’ रामभवन ने गंभीर हो कर कहा.

इस के बाद परमात्मानंद ने तुरंत 100 नंबर पर फोन कर के पुलिस कंट्रोल रूम को बताया कि गुलौरी गांव स्थित न्यू लिटिल फ्लावर चिल्ड्रैन कान्वैंट स्कूल के एक कमरे में उन की बेटी संगीता की लाश पंखे से लटकी हुई है. कंट्रोल रूम को सूचना देने के बाद वह अपने चचेरे भाई शारदानंद, मकान मालिक के बेटे और कुछ अन्य पड़ोसियों को साथ ले कर न्यू लिटिल फ्लावर चिल्ड्रैन कान्वैंट स्कूल पहुंचे तो वहां स्कूल के किसी कमरे में संगीता पंखे से लटकी हुई नहीं मिली. परमात्मानंद और उन के साथ आए लोग संगीता की पंखे से लटकी लाश ढूंढ ही रहे थे कि थानाप्रभारी आत्मा यादव, रतनपुरा चौकीप्रभारी पारसनाथ सिंह, एसआई उमाशंकर पांडेय पुलिस बल के साथ स्कूल पहुंच गए.

उन्हें पुलिस कंट्रोल रूम से इस बात की सूचना मिल गई थी. आत्मा यादव ने जब परमात्मानंद से संगीता की पंखे से लटकी लाश के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि उन्हें स्कूल के कमरे में उस के पंखे से लटके होने की सूचना मिली थी, लेकिन यहां तो ऐसा कुछ दिखाई नहीं दे रहा है. रामभवन ने जिस कमरे में लाश लटकी देखी थी, उस कमरे का बारीकी से निरीक्षण किया गया तो कमरे की पश्चिमी दीवार से सटा कर एक के ऊपर एक कई बेंचें रखी थीं. थानाप्रभारी को शंका हुई तो उन्होंने सिपाहियों से बेंचों को हटवाया. तब उन्हें जमीन पर संगीता चित्त पड़ी दिखाई दे गई. निरीक्षण में पता चला कि वह मर चुकी है. संगीता जहां मिली थी, वहां की फर्श कच्ची थी. देखने से ही लग रहा था कि साक्ष्य को मिटाने के लिए वहां काफी पानी गिराया गया था. वहीं उस का मोबाइल फोन भी पड़ा था.

थानाप्रभारी ने मोबाइल उठा कर चेक किया तो उस में सिम नहीं था. संगीता की चप्पलें उस से कुछ दूरी पर पड़ी थीं. थानाप्रभारी ने सगीता की लाश का निरीक्षण किया तो उस के बदन पर कई जगहों पर चोट के निशान तथा बाएं पैर की अनामिका अंगुली के जोड़ के पास इंजेक्शन लगाए जाने जैसे 2 छेद नजर आए. थानाप्रभारी आत्मा यादव ने लाश और घटनास्थल का निरीक्षण करने के बाद पूछताछ शुरू की तो पता चला कि मृतका संगीता इसी स्कूल में लगभग एक साल तक अध्यापिका रही थी. लेकिन पिछले एक महीने से उस ने स्कूल आना बंद कर दिया था. क्येंकि उस ने नौकरी छोड़ दी थी. कल स्कूल के मैनेजर जितेंद्र कुमार यादव के बुलाने पर वह यहां आई थी. उस के बाद क्या हुआ, पता नहीं. आज सुबह रामभवन ने आत्महत्या की सूचना दी थी.

आत्मा यादव ने तत्काल एक प्राइवेट वाहन मंगवाया और लाश के साथ परमात्मानंद यादव तथा उन के 2-3 रिश्तेदारों को ले कर थाने आ गए. यहां लाश का पंचनामा तैयार किया गया और उसे पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दिया गया. उस दिन होली का त्योहार था, लेकिन संगीता की मौत हो जाने की वजह से रतनपुरा में होली नहीं मनाई गई. लोगों के मुंह पर सिर्फ एक ही बात थी कि संगीता की मौत कैसे हुई? उसी दिन लाश का पोस्टमार्टम हो गया. पोस्टमार्टम करने वाले डाक्टर ने संगीता की मृत्यु की वजह पता करने के लिए विसरा तथा दुष्कर्म की पुष्टि के लिए शरीर के कई अंगों को जांच के लिए सुरक्षित रख लिया था. पोस्टमार्टम के बाद पुलिस निगरानी में लाश को संगीता के घर वालों को सौंप दिया गया.

घर वालों ने उसी दिन शाम को तमसा नदी के किनारे ढंचा स्थित गोदाम घाट पर उस का अंतिम संस्कार कर दिया. उसी दिन परमात्मानंद ने रिपोर्ट दर्ज करने के लिए थाना हलधरपुर के थानाप्रभारी को एक तहरीर दी. लेकिन थानाप्रभारी ने तत्काल रिपोर्ट दर्ज नहीं की. उन्होंने कहा कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने के बाद ही रिपोर्ट दर्ज की जाएगी. दरअसल पुलिस अपनी शुरुआती जांच में संगीता की मौत को आत्महत्या मान रही थी. अगले दिन 7 मार्च, शनिवार को पुलिस को पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिल गई. पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार, मृतका की मौत दम घुटने से हुई थी. उस के गुप्तांग पर भी चोट के निशान पाए गए थे. इसलिए पोस्टमार्टम करने वाले डाक्टर जफर अंसारी ने मृतका के वैजाइनल स्वाब (सीमेन) की स्लाइड बना कर जांच के लिए सुरक्षित रख लिया था, जिसे बाद में लखनऊ स्थित प्रयोगशाला भेज दिया गया.

अब रिपोर्ट आने के बाद ही पता चलेगा कि संगीता के साथ सामूहिक दुष्कर्म हुआ था या किसी एक ने उस के साथ दुष्कर्म किया था. बहरहाल परमात्मानंद ने पुलिस को जो तहरीर दी थी, उस में किसी को नामजद नहीं किया गया था. लेकिन थाना हलधर के थानाप्रभारी ने अब तक की, की कई जांच और पोस्टमार्टम रिपोर्ट के आधार पर संगीता की मौत के लिए स्कूल के प्रबंधक व संचालक जितेंद्र यादव और उस के चचेरे भाई रामभवन यादव को जिम्मेदार मानते हुए, दोनों के खिलाफ भादंवि की धारा 306 व 201 के तहत मुकदमा दर्ज करा दिया.

इस के बाद एसपी अनिल कुमार सिंह के आदेश पर 7 मार्च, 2015 को एएसपी सुनील कुमार सिंह ने रात 9 बजे के आसपास परमात्मानंद यादव के घर जा कर घर के सभी लोगों से पूछताछ की. अगले दिन 8 मार्च को एसपी अनिल कुमार सिंह और जिलाधिकारी चंद्रकांत पांडेय ने भी गुलौरी जा कर स्कूल के उस कमरे का निरीक्षण किया, जिस में संगीता की लाश मिली थी. उस के बाद दोनों अधिकारी मृतका के घर गए और पूरे परिवार से एकांत में अलगअलग बात की. वहां से लौट कर दोनों अधिकारियों ने रतनपुरा पुलिस चौकी में प्रेसवार्ता के दौरान कहा कि पुलिस की अब तक की जांच से प्रथम दृष्टया संगीता की मौत आत्महत्या है, लेकिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट बताती है कि उस के साथ कुछ गलत हुआ है. इसलिए पुलिस इस मामले की निष्पक्ष जांच कर रही है. आगे जांच में जैसा पता चलेगा, उस के अनुसार काररवाई की जाएगी. इस मामले के दोषियों को सजा जरूर मिलेगी.

9 मार्च, 2015 को जिलाधिकारी चंद्रकांत पांडेय और एसपी अनिल कुमार सिंह ने जिलाधिकारी औफिस में संयुक्त रूप से पत्रकारवार्ता के दौरान कहा कि मृतका संगीता का स्कूल के प्रबंधक जितेंद्र यादव से प्रेमसंबंध था. दोनों के शारीरिक संबंध भी थे. जबकि जितेंद्र शादीशुदा ही नहीं, 2 बच्चों का बाप था. जितेंद्र और संगीता की देर रात मोबाइल फोन पर बातें होती थीं. वह उसे एसएमएस भी करता था. दोनों के प्रेमसंबंधों की जानकारी जितेंद्र की पत्नी को हुई तो वह नाराज हो कर मायके चली गई, जिस की वजह से जितेंद्र काफी परेशान रहने लगा. अपना घर बचाने के लिए वह संगीता से पिंड छुड़ाना चाहता था और संगीता से दूरी बना ली थी.

जबकि संगीता उसे छोड़ने को तैयार नहीं थी और उस पर शादी के लिए दबाव डाल रही थी. घटना वाले दिन संगीता को पता चला कि वह स्कूल पर है तो वह उस से बात करने स्कूल पहुंची, लेकिन जितेंद्र वहां नहीं मिला. इस के बाद पुलिस यह बताने में असमर्थ रही कि संगीता के वहां पहुंचने के बाद क्या हुआ था?पुलिस के बताए अनुसार, स्कूल के प्रबंधक जितेंद्र के पिता विक्रमा यादव स्कूल में ही सोते थे. शुक्रवार 6 मार्च, 2015 को वह सुबह उठे तो कक्ष संख्या 5 में उन्हें संगीता पंखे से लटकी हुई दिखाई दी. उन्होंने तुरंत इस की सूचना बेटे जितेंद्र को दी. उसे जैसे ही संगीता के फांसी पर लटके होने की सूचना मिली, उस ने अपने चचेरे भाई रामभवन को इस की सूचना दे कर स्कूल पहुंचने को कहा.

दोनों ने इस बात की सूचना पुलिस को देने के बजाय खुद शव को उतारा और कमरे के एक कोने में रख कर उसे छिपाने के लिए उस के ऊपर ढेर सारी बेंचें रख दीं. पुलिस के अनुसार, सब से पहले संगीता को फंदे से लटके जितेंद्र के पिता विक्रमा यादव ने देखा था. उन्होंने पुलिस को सूचना नहीं दी, इसलिए उन के खिलाफ भी भादंवि की धारा 201 के तहत मुकदमा दर्ज कर उन्हें भी गिरफ्तार कर लिया गया है. पुलिस की अब तक की जांच के अनुसार, स्कूल प्रबंधक जितेंद्र यादव को भादंवि की धारा 306, 201 व 376 का दोषी पाया गया है और उसे इन्हीं धाराओं के अंतर्गत गिरफ्तार किया गया है. जबकि धारा 306, 201 का आरोपी रामभवन फरार है. पुलिस उस की गिरफ्तारी के लिए जगहजगह छापे मार रही थी.

पत्रकारवार्ता के दौरान पत्रकारों ने जितेंद्र से पूछा कि कहीं उसी ने तो संगीता को फांसी पर नहीं लटकाया था, तब उस ने कहा कि घटना वाले दिन वह गांव में था ही नहीं, संगीता के पंखे से लटकने की सूचना उसे पिता से मिली तो वह अपने चचेरे भाई रामभवन के साथ स्कूल पहुंचा और संगीता को लटकी देख कर रामभवन को उस के पिता को बुलाने भेज कर उस ने लाश को नीचे उतारा और बेंच के पीछे छिपा दिया. उस ने स्वीकार किया उस ने जानबूझ कर पुलिस को सूचना नहीं दी थी. जितेंद्र ने संगीता से अपने प्रेम और शारीरिक संबंधों की बात स्वीकार करते हुए यह भी बताया कि जब उसे गर्भ ठहर गया था तो उस ने गर्भपात की दवा दे कर उस का गर्भपात भी कराया था. जब उस से संगीता के मोबाइल के सिम के बारे में पूछा गया तो उस ने कहा कि उसे सिम के बारे में कोई जानकारी नहीं है.

10 मार्च, 2015 को पुलिस ने जितेंद्र यादव और उस के पिता विक्रमा यादव को न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत में पेश किया, जहां से दोनों को 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. संगीता की रहस्यमय मौत की गूंज 11 मार्च, 2015 को प्रदेश विधान परिषद में गूंजी. विधान परिषद सदस्य चेत नारायण सिंह ने काम रोक कर इस बारे में चर्चा कराने की मांग की. सपा के देवेंद्र प्रताप सिंह ने थानाप्रभारी के खिलाफ काररवाई करने के साथ अभियुक्तों पर गैंगस्टर एक्ट लगाने की मांग की. जवाब में सदन के नेता अहमद हसन ने कहा कि सरकार इस प्रकरण की जांच पुलिस उपमहानिरीक्षक (डीआईजी) स्तर के अधिकारी को सौंपेगी. सभापति गणेशशंकर पांडेय ने कार्य स्थगन को अस्वीकार कर सरकार को जांच रिपोर्ट से सदन को अवगत कराने का निर्देश दिया.

एक अन्य सदस्य राज बहादुर सिंह चंदेल ने सदन को बताया कि 5 मार्च को मऊ के गुलौरी स्थित न्यू फ्लावर चिल्ड्रैन कान्वैंट स्कूल के प्रबंधक ने स्कूल की एक अध्यापिका को सुबह फोन कर के स्कूल बुलाया और साथियों के साथ उस से दुष्कर्म के बाद उस की हत्या कर दी. मृतका के पिता 6 मार्च को इस मामले की रिपोर्ट लिखाने थाने पहुंचे तो वहां उन की रिपोर्ट 3 बार बदलवाई गई. अंत में थानाप्रभारी ने जैसा चाहा, उसी हिसाब से रिपोर्ट लिखाई गई. पुलिस फरार अभियुक्त रामभवन की गिरफ्तारी के लिए संभावित ठिकानों पर छापे मार रही थी, लेकिन पुलिस उसे पकड़ नहीं सकी.

तब थानाप्रभारी आत्मा यादव ने सीजेएम मऊ की अदालत से रामभवन के खिलाफ कुर्कीजब्ती का आदेश हासिल कर सोमवार 16 मार्च को उस के घर पर नोटिस चस्पा करा दी. इस से डर कर रामभवन ने अगले दिन 17 मार्च, मंगलवार को थाना हलधरपुर में आत्मसमर्पण कर दिया. जबकि पुलिस का कहना है कि उस ने रामभवन को गिरफ्तार किया है. अपनी गिरफ्तारी से पहले रामभवन ने मीडिया, सामाजिक संगठनों और राजनीतिक पार्टियों के नाम एक पत्र लिखा है, जिस में उस ने इस मामले की सीबीआई से जांच कराने की मांग करते हुए कहा है कि वह इस पूरे मामले में निर्दोष है और चाहता है कि जो भी दोषी हो, उसे कड़ी से कड़ी सजा मिले.

उस ने लिखा है न उस के मांबाप हैं, न कोई बहन है. वह संगीता को बहन मानता था. जिस बहन को उस ने दिन भर खोजा, सुबह उसी की लाश को पंखे से लटकती देखा तो उसे उतरवा कर उस के पिता को सूचना दी. शायद इसी की उसे इतनी बड़ी सजा मिली है. Love Story in Hindi

—कथा पुलिस सूत्रों एवं घर वालों से मिली जानकारी पर आधारित

 

Agra News: प्यार ने कलंकित किया रिश्ता

Agra News: पंकज और रितु सगे मामाभांजी थे, इसलिए उन्होंने प्यार और शादी कर के जो सामाजिक अपराध किया, उस की सजा उन्हें मौत को गले लगा कर चुकानी पड़ी. उत्तर प्रदेश के जिला शाहजहांपुर का एक छोटा सा कस्बा है खुतार. इसी कस्बे के रहने वाले प्रकाश नारायण श्रीवास्तव अध्यापक थे. उन की संतानों में एक बेटी मीना और 3 बेटे संतोष, राजीव तथा पंकज थे. बच्चों में मीना सब से बड़ी थी. उस के सयानी होते ही प्रकाश नारायण ने उस के विवाह के लिए भागदौड़ शुरू कर दी. काफी भागदौड़ के बाद प्रकाश नारायण को मीना के लिए लखीमपुर खीरी के गांव सैकिया का रहने वाला शांतिस्वरूप पसंद आ गया. वह किसान परिवार से था. इस तरह मीना की शादी शांतिस्वरूप के साथ हो गई.

मीना ससुराल में सुखी थी, इसलिए मांबाप निश्चिंत थे. कालांतर में मीना 1 बेटे बीरू और 3 बेटियों की मां बनी. लगभग 10 साल पहले मीना की बीमारी की वजह से मौत हो गई तो शांतिस्वरूप पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा. बच्चे छोटेछोटे थे, इसलिए पत्नी के बिना वह घर संभाले या बाहर के काम देखें. बड़ी बेटी स्नेहा (बदला हुआ नाम) कुछ समझदार थी, इसलिए उस ने घर संभाल लिया था. सभी बच्चे अभी पढ़ ही रहे थे. सब से छोटी सुधा (बदला हुआ नाम) 6 साल की थी, जबकि मंझली रितु करीब 10 साल की. समय का पहिया अपनी गति से चलता रहा और जख्म धीरेधीरे भरते गए.

शांतिस्वरूप की ससुराल खुतार और उन के गांव सैकिया के बीच 10-12 किलोमीटर की दूरी थी, इसलिए दोनों ओर से लोगों का आनाजाना लगा रहता था. प्रकाश नारायण का बड़ा बेटा यानी शांतिस्वरूप का बड़ा साला संतोष परचून की दुकान करता था, उस से छोटा राजीव पढ़लिख कर एक प्राइवेट स्कूल में पढ़ा रहा था. सब से छोटा पंकज डेकोरेशन का काम करता था. कुल मिला कर प्रकाश नारायण का परिवार व्यवस्थित हो चुका था, लेकिन बेटी की मौत का सदमा उन्हें कुछ ऐसा लगा कि उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया था.

कौन जानता था कि समय के साथ ऐसा जलजला आएगा कि दोनों परिवारों की इज्जत का जनाजा निकल जाएगा. पंकज घर का सब से छोटा बेटा था, इसलिए सभी का लाडला था. मीना अपने इस छोटे भाई से बहुत प्यार करती थी, इसलिए बहन की मौत से पंकज को गहरा आघात लगा था. बहन के जीवित रहने पर वह उस के यहां अकसर जाया करता था, इसलिए बहन के बच्चों को भी अपने छोटे मामा पंकज से काफी लगाव था. रितु को ननिहाल में कुछ ज्यादा ही अच्छा लगता था, क्योंकि उसे लगता था कि तीनों मामा उसे हाथोंहाथ लिए रहते हैं. छोटे मामा तो उस की हर इच्छा पूरी करने को तैयार रहते हैं.

रितु का मामा के यहां आनाजाना लगा रहा. रितु 15 साल की हो गई. इस उम्र में आतेआते वह काफी खूबसूरत लगने लगी थी. ननिहाल में ज्यादातर समय उस का टीवी देखने में गुजरता था. टीवी के छोटे परदे पर नजर आने वाले लड़के उसे बहुत अच्छे लगते थे. कभीकभी उन में कोई लड़का उसे पंकज मामा जैसा लगता था. एक दिन टीवी देखते समय अचानक पंकज आ गया तो उस ने कहा, ‘‘मामा, आप बहुत स्मार्ट हैं, एकदम टीवी सीरियलों में आने वाले हीरो जैसे लगते हैं.’’

रितु, जो पंकज के सामने अभी बच्ची थी, अचानक उसे वह हीरो जैसा लगने लगा था. पंकज ने ध्यान से देखा, तब उसे लगा कि रितु अब बच्ची नहीं रही, वह जवान हो गई है. वह ऐसा क्षण था, जब वह भूल गया कि रितु उस की सगी बहन की बेटी यानी सगी भांजी है. उसी एक क्षण में उस का दिमाग कुछ तरह बदला कि उस की सोच ही बदल गई. पंकज के दिलोदिमाग पर रितु कुछ इस कदर छाई कि वह यह भूल गया कि रितु उस की सगी भांजी है. रितु उम्र में भी उस से बहुत छोटी थी. वह क्षण ऐसा था, जिस ने रिश्तों में ही नहीं, जिदंगी में ही आग लगा दी. आखिर इस की परिणति वही हुई, जैसा ऐसे रिश्तों में होता है. इस रिश्ते ने खुतार के सीने पर एक ऐसी कलंक कथा लिख डाली, जिस ने रिश्तों को ही नहीं, समाज को भी शर्मसार कर दिया.

बड़ेबुजुर्गों ने कहा है कि कदम बढ़ाने से पहले खूब सोचविचार लेना चाहिए. कहीं वह कदम गलत राह पर तो नहीं ले जा रहा. रितु के पास से अपने कमरे में आने के बाद पंकज विचारों में ऐसा खोया कि उसे समय का पता ही नहीं चला. शाम को रितु ने आ कर उस का कंधा पकड़ कर हिलाते हुए कहा, ‘‘उठो मामा, आज खाना नहीं खाना क्या?’’

रितु के मुलायम स्पर्श ने आग में घी का काम किया. पंकज झटके से उठा और रितु को बांहों में भर कर सीने से लगा लिया. रितु हैरान रह गई. वह इतनी बड़ी और समझदार हो चुकी थी कि स्पर्श के मायने पहचानने लगी थी. यह स्पर्श मामा का नहीं, बल्कि एक मर्द का था. उस का तन ही नहीं, मन भी झनझना उठा था. वह एकदम से घबरा गई. उस ने खुद को मामा की बांहों से आजाद किया और हांफती हुई बाहर आ गई. बाहर आते ही सामने नानी पड़ गईं. उस की हालत देख कर उन्होंने पूछा, ‘‘क्या हुआ रितु, हांफ क्यों रही है?’’

‘‘कुछ नहीं नानी, ऐसे ही.’’ कह कर वह नानी के कमरे में चली गई.

रात जैसेतैसे बीती. सुबह होते ही रितु ने कहा, ‘‘नानी, मुझे अपने घर जाना है. आप भिजवा दीजिए.’’

‘‘तू तो कह रही थी कि अभी हफ्ते भर रहूंगी. अचानक जाने का मन कैसे हो गया?’’ नानी ने पूछा.

‘‘मेरा पढ़ाई का नुकसान हो रहा है नानी, इसलिए मैं जाना चाहती हूं.’’ रितु ने कहा.

‘‘ठीक है, पंकज से कह देती हूं, वह तुझे पहुंचा देगा.’’ नानी ने कहा.

‘‘नहीं नानी, मैं पंकज मामा के साथ नहीं, राजीव मामा के साथ जाऊंगी.’’ रितु ने कहा.

पंकज कमरे में बैठा रितु की बातें सुन रहा था. झट से बाहर आ कर बोला, ‘‘अम्मा, मुझे थोड़ा काम है, इसलिए मैं इसे छोड़ने नहीं जा सकता.’’

रितु ने राहत की सांस ली. रितु शरम और डर की वजह से मामा की हरकत के बारे में किसी को कुछ नहीं बता सकी थी. अगर उस दिन रितु जरा भी हिम्मत कर गई होती तो शायद आज यह कलंक कथा न लिखी जाती. रितु चली गई. उस के जाने के बाद पंकज को लगा कि रितु के लिए उस के दिल के किसी कोने में ऐसी जगह बन गई है, जिसे अब कोई दूसरा नहीं भर सकता. हालांकि दिल और दिमाग में भारी कशमकश चल रही थी, पर दिल था कि मान ही नहीं रहा था. रितु 15 साल की थी, जबकि वह 28 साल का था.

आखिर दिल के हाथों मजबूर पंकज एक दिन रितु के घर जा पहुंचा. संयोग से जब वह वहां पहुंचा था, रितु घर में अकेली थी. यह मौका रिश्तों को दलदल में घसीटने के लिए काफी था. मामा को देख कर रितु कांप उठी, लेकिन पंकज ने उसे पास बिठा कर प्यार से समझाया, ‘‘रितु, डरने की कोई बात नहीं है. मैं जो कहने जा रहा हूं, वह तुम्हें सुनना ही पड़ेगा. मैं तुम से प्यार करने लगा हूं. मैं ने इस बात पर बहुत सोचाविचारा, लेकिन आखिर में यही लगा कि अगर तुम मुझे नहीं मिली तो मैं जिंदा नहीं रह पाऊंगा.’’

रितु घबरा गई, ‘‘नहीं मामा, ऐसा मत करना.’’

‘‘अगर तुम कहती हो तो ठीक है. लेकिन सच बताओ, क्या मैं तुम्हें अच्छा नहीं लगता, क्या तुम्हें मुझ से प्यार नहीं है?’’

‘‘मामा, आप मुझे बहुत अच्छे लगते हैं, लेकिन…’’

‘‘लेकिनवेकिन कुछ नहीं, हां या ना में जवाब दो. अभी कोई जल्दी नहीं है, खूब सोचविचार कर फैसला कर लेना. लेकिन फैसला लेने से पहले इस बात का ध्यान रखना कि तुम मेरी यादों के सहारे जीना चाहोगी या साक्षात देखते हुए. जो भी फैसला लेना, फोन कर के बता देना.’’ कह कर पंकज ने उसे बांहों में समेटा, प्यार किया और चला गया.

रितु स्तब्ध बैठी रही. इस बार मामा का स्पर्श उसे भी कुछ अच्छा लगा था. वह जिस उम्र में थी, उस में फिसलने की संभावनाएं बहुत होती हैं. बिना मां की बेटी थी, न कोई रोकनेटोकने वाला था, न कोई राह दिखाने वाला. ऐसे में मामा ही अंगुली पकड़ कर दलदल में खींच रहा था. रितु ने ज्यादा सोचनेविचारने की जहमत नहीं उठाई और जीवन की नाव को तूफान के हवाले कर दिया.

2-3 दिनों बाद पंकज ने फोन किया, ‘‘रितु, मैं तुम से मिलने आना चाहता हूं.’’

‘‘…तो आ जाओ न.’’ रितु ने चहक कर कहा.

पंकज को लगा, जैसे किसी ने कानों में शहद घोल दिया हो. वह तुरंत सैकिया आ गया. इस के बाद वह रितु को उस दलदल में घसीट ले गया, जिस में घुसना तो आसान है, पर निकलना बहुत मुश्किल. मामाभांजी के बीच ऐसा रिश्ता बन गया, जिस की भनक घर वालों को ही नहीं, किसी को भी लग जाती तो हायतौबा मच जाती. इस के बाद रितु और पंकज का एकदूसरे के घर आनाजाना कुछ ज्यादा ही हो गया. उन का रिश्ता ऐसा था कि कोई संदेह भी नहीं कर सकता था. रितु की हर चाहत पंकज पूरी कर रहा था. सब यही समझते थे कि मामा को भांजी से कुछ ज्यादा ही प्यार है.

लेकिन सच कितने दिनों तक छिपा रहता. एक न एक दिन तो उसे उजागर होना ही था. जब पंकज का शांतिस्वरूप के घर आनाजाना कुछ ज्यादा ही हो गया तो उसे लगा, यह ठीक नहीं है. घर में बिना मां की 3 बेटियां थीं, इसलिए उन्होंने टोका, ‘‘पंकज, तुम्हें कुछ कामधाम है या नहीं, जब देखो यहीं डेरा डाले रहते हो. तुम्हारी वजह से रितु भी बेलगाम होती जा रही है. जब देखो, तब नानी के यहां जाने के लिए तैयार रहती है. पढ़ाई पर भी ध्यान नहीं देती.’’

‘‘जीजाजी, दीदी की याद आ जाती है, इसलिए चला आता हूं. अगर आप को मेरा आना अच्छा नहीं लगता तो अब नहीं आऊंगा.’’

‘‘भई, ऐसी कोई बत नहीं है. मेरे कहने का मतलब यह है कि अपने कामधंधे पर भी ध्यान दो. फालतू घूमने से कोई फायदा नहीं है.’’

पंकज समझ गया कि अब लोगों को उस पर शक होने लगा है, इसलिए उसे सतर्क हो जाना चाहिए. घर आ कर वह अपने कमरे में बैठा देर तक सोचता रहा. उस का प्यार जुनूनी होता जा रहा था. लेकिन घरपरिवार और समाज का भी डर सता रहा था. रिश्ता इतना नाजुक था कि वह रितु को अपना भी नहीं सकता था. जबकि दिल उसे छोड़ने को तैयार नहीं था. प्रेम की एकएक सीढ़ी चढ़ते हुए रितु और पंकज जिस शिखर की ओर जा रहे थे, वहां से फिसल कर आने का ही अंदेशा था. उन्हें मंजिल मिलना लगभग असंभव था, पर वे मंजिल पाने के लिए बेताब थे. जबकि मंजिल पाने की कोई राह नहीं थी. पंकज की उम्र 30 साल से अधिक हो चुकी थी. उस का कामकाज भी ठीक चल रहा था. उस की शादी के लिए भी लोग आ रहे थे. लेकिन शादी में वह रुचि नहीं दिखा रहा था. बड़े भाई ने दबाव डाला तो उस ने एक दिन साफसाफ कह दिया, ‘‘भैया, मैं शादी नहीं करूंगा.’’

‘‘तो क्या अकेले ही जिंदगी बिताओगे?’’

‘‘नहीं, अकेला तो नहीं रहूंगा, पर आप लोग मेरे लिए परेशान न हों.’’

पंकज के इस जवाब से घर के सब लोग सोचने को मजबूर हो गए कि पंकज शादी के लिए मना क्यों कर रहा है? उसी बीच शांतिस्वरूप ने संतोष को फोन कर के पंकज की शादी के लिए एक रिश्ता बताया तो उस ने कहा कि पंकज शादी नहीं करना चाहता. संतोष की बात से पंकज को ले कर कुछ आशंका हुई तो उस ने कहा, ‘‘भई पंकज का इरादा मुझे कुछ ठीक नहीं लगता. जब देखो, तब वह मेरे यहां पड़ा रहता है. रितु भी उस के कुछ ज्यादा ही मुंहलगी हो गई है. इधर वह पढ़ाई में भी ध्यान नहीं दे रही है.’’

बहनोई की बात पर संतोष के मन में भी संदेह पैदा हो गया. कहीं उस के इस इरादे के पीछे रितु तो नहीं है. आखिर शादी से मना क्यों कर रहा है? रितु और पंकज की प्रेमकहानी अब तक 5 साल पुरानी हो चुकी थी. इस बेईमान प्यार का अंजाम क्या होगा, कोई नहीं जानता था. रितु भी अपने भविष्य को ले कर परेशान थी, इसलिए एक दिन उस ने पंकज से पूछा, ‘‘अब आगे क्या होगा मामा?’’

‘‘आगे से मतलब..?’’ पंकज बोला.

‘‘मतलब यह कि आखिर इस तरह कब तक चलता रहेगा. तुम्हारा मेरे घर आना पापा को अच्छा नहीं लगता. उन्होंने साफसाफ तो कुछ नहीं कहा, लेकिन उन के मन में हम लोगों को ले कर कुछ संदेह जरूर है.’’

‘‘लगता तो मुझे भी कुछ ऐसा ही है. मैं जल्दी ही कुछ करने की सोचता हूं.’’

‘‘क्या सोचोगे, हमारे सामने एक ओर कुआं है तो दूसरी ओर खाई. हमारे दोनों ओर खतरा है. अभी तो हमारे संबंधों के बारे में कोई कुछ नहीं जानता, लेकिन जिस दिन इस का खुलासा होगा, पहाड़ टूट पड़ेगा.’’

पंकज और रितु की दीवानगी बढ़ती जा रही थी. दोनों ही एकदूसरे को अपने अस्तित्व का हिस्सा मानने लगे थे, इसलिए जिंदगी एक साथ बिताना चाहते थे. पर यह उन के लिए आसान नहीं था. रितु तो उतनी समझदार नहीं थी, पर पंकज समझदार था. वह हमेशा इसी चिंता में डूबा रहता कि घर वालों से कैसे बताए कि वह अपनी सगी भांजी से प्यार करता है और उसी से शादी करना चाहता है. वह जानता था कि घर वालों की छोड़ो, समाज भी उसे इस रिश्ते की अनुमति नहीं देगा. जो भी सुनेगा, वही धिक्कारेगा. कभीकभी उसे लगता कि उसी ने रितु को गुमराह किया है. उस ने उस के साथ शारीरिक संबंध बना कर पवित्र रिश्ते को कलंकित किया है. लेकिन उस दिल का वह क्या करे, जिस ने मजबूर करा कर यह सब कराया है.

पंकज भांजी के साथ प्यार की राह में इतनी दूर आ चुका था कि किसी भी कीमत में वापस नहीं लौट सकता था. प्यार का जुनून सिर चढ़ कर बोल रहा था. आखिर एक दिन संतोष ने रितु को पंकज की बांहों में  देख लिया तो पूछा, ‘‘यह सब क्या हो रहा है?’’

‘‘भैया, मेरी जिंदगी का यही सच है. मैं रितु से प्यार करता हूं और इसी के साथ शादी करना चाहता हूं.’’

‘‘यह हरगिज नहीं हो सकता. हम समाज, अपने बहनोई और स्वर्गवासी बहन को क्या जवाब देंगे. तुम इतना नीचे गिर जाओगे, मैं ने सपने में भी नहीं सोचा था. अभी तो सिर्फ मुझे पता चला है, अगर घर के बाकी के लोगों को इस बारे में पता चलेगा तो वे क्या सोचेंगे. अच्छा होगा, तुम इस मामले को यहीं खत्म कर के हम सभी जिस तरह सिर उठा कर जी रहे हैं, उसी तरह जीने दो.’’ संतोष ने कहा. पंकज ने भाई को समझाने की बहुत कोशिश की कि वह रितु से बहुत प्यार करता है और उस के बिना जीवित नहीं रह सकता. पर वह बिलकुल नहीं माने. उन्होंने पंकज को खूब लताड़ा और उसी वक्त राजीव के साथ रितु को उस के घर भिजवा दिया. संतोष ने रितु को भले ही उस के घर भिजवा दिया, पर पंकज ने साफ कह दिया, ‘‘भले ही पूरी दुनिया उस की दुश्मन हो जाए, पर रितु से उसे कोई अलग नहीं कर सकता.’’

संतोष पंकज की इस धमकी से परेशान था. अगर किसी को भी उस की हरकत के बारे में पता चल गया तो उस का परिवार इस कदर बदनाम हो जाएगा कि कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं रहेगा. लोग थूकेंगे उस के परिवार पर. उस की यह परेशानी उस के चेहरे पर साफ झलक रही थी. आखिर एक दिन पत्नी ने पूछ ही लिया. तब बेचैन संतोष ने मन हलका करने के लिए सारी बात पत्नी को बता दी. वह भी सन्न रह गई. धीरेधीरे घर में इस बात की जानकारी सब को हो गई. लेकिन पंकज का घर में दबदबा था, इसलिए कोई भी उसे इस रिश्ते को खत्म करने के लिए विवश नहीं कर सका. हां, घर वालों का व्यवहार उस के प्रति जरूर बदल गया. इस से पंकज ने इतना जरूर महसूस किया कि अब धीरेधीरे उस की परेशानी बढ़ती ही जाएगी.

उस की जिंदगी पतंग जैसी हो गई थी. पता नहीं कब कट जाए. इसलिए उस ने पक्का इरादा बना लिया कि चाहे कुछ भी हो, वह रितु से शादी करेगा और दूर कहीं जा कर अपनी गृहस्थी बसा लेगा. इस के बाद उस ने फोन कर के रितु को बता भी दिया कि 18 फरवरी को भैया के बेटे के मुंडन के बाद वह उस के साथ घर छोड़ देगा. राजीव के बेटे के मुंडन पर रितु खुतार आई. मुंडन के बाद उस ने नानी से घर भिजवाने को कहा. वहीं खड़े पंकज ने कहा, ‘‘चलो, मैं तुम्हें छोड़ आता हूं.’’

घर के सभी लोग थके थे, इसलिए पंकज को अनुमति मिल गई. किसी को क्या पता था कि उन के मन में क्या है. दोनों घर से बाहर निकले और सीधे बसअड्डे पहुंचे. वहां से बस पकड़ी और शाहजहांपुर आ गए, जहां से ट्रेन द्वारा आगरा पहुंच गए.

पंकज और रितु ने शादी करने के इरादे से घर छोड़ दिया था. ट्रेन से वे सुबह 7 बजे ईदगाह स्टेशन पर उतरे और स्टेशन के पास ही होटल डी-लौरेट में कमरा बुक करा लिया. उन्हें तीसरी मंजिल पर कमरा नंबर 310 मिला था. होटल में पंकज ने रितु को अपनी पत्नी बताया था और आईडी के रूप में अपना ड्राइविंग लाइसेंस की कौपी जमा कराई थी. जब दोनों होटल पहुंचे थे, रिसैप्शन पर मैनेजर संजय कश्यप मौजूद थे. नहाधो कर दोनों ने कपड़े बदले और नाश्ता कर के मोहब्बत की निशानी ताजमहल देखने चले गए. रितु पंकज के साथ ताजमहल के पास पहुंची तो बोली, ‘‘लगता है, शाहजहां मुमताज को बहुत प्यार करता था.’’

‘‘हां, एकदम मेरी तरह रितु. अगर शाहजहां की तरह मैं भी अमीर होता तो अपने प्यार को अमर करने के लिए इसी तरह का रितुमहल बनवाता.’’

यह सुन कर रितु को हंसी आ गई. इस के बाद दोनों ताजमहल के अंदर पहुंचे. शाहजहां और मुमताज की कब्रों को देख कर रितु ने कहा, ‘‘ये तो मर कर भी एक साथ हैं.’’

माहौल गमगीन हो गया. पंकज ने कहा, ‘‘चलो, बाहर चल कर साथसाथ फोटो खिंचवाते हैं, जो जिंदगी भर हमें याद दिलाएंगे.’’

इस के बाद दोनों ने ताज के साए में कुछ फोटो खिंचवाए. वहां से वे बाजार गए, जहां कपडे़ वगैरह खरीदे. रात 9 बजे तक उन के कमरे का दरवाजा खुला रहा. इस के बाद दरवाजा बंद हुआ तो जब सुबह 10 बजे तक उन के कमरे का दरवाजा नहीं खुला तो सर्विस बौय गब्बर ने कई बार दरवाजा खटखटाया. जब अंदर से कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई तो वह मैनेजर संजय कश्यप के पास पहुंचा. गब्बर ने जब मैनेजर संजय कश्यप को बताया कि कमरा नंबर 301 का दरवाजा काफी खटखटाने पर भी अंदर से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिल रही है तो संजय घबरा गए. भाग कर वह ऊपर पहुंचे. उन्होंने दरवाजे के की-होल से झांक कर देखा तो लड़की के पैर लटके दिखाई दिए.

माजरा समझ में आते ही वह सन्न रह गए. उन्होंने तुरंत होटल की मालकिन शारदा रानी को सारी बात बताई. शारदा रानी ने थाना रकाबगंज पुलिस को फोन कर के घटना की सूचना दी. सूचना मिलने के बाद सीओ असीम चौधरी और थाना रकाबगंज के थानाप्रभारी इंसपेक्टर सतीशचंद्र यादव पुलिस बल के साथ होटल पहुंच गए. दूसरी चाबी से दरवाजा खोला गया तो अंदर की स्थिति देख कर सभी स्तब्ध रह गए. हरे रंग की नई रस्सी के दोनों छोरों पर फंदे बना कर पंखे के सहारे एक ओर एक लड़की लटकी हुई थी तो दूसरी ओर एक लड़का.

पुलिस ने कमरे की तलाशी ली. पलंग पर कुछ फोटोग्राफ्स मिले, जो ताजमहल पर खिंचवाए गए थे. बैग से कुछ गहनों के साथ मंगलसूत्र, कुछ रुपए और एक सुसाइड नोट भी मिला. पुलिस ने मामले की वीडियोग्राफी करा कर दोनों लाशों को नीचे उतरवाया. लड़की की मांग में सिंदूर भरा था. वह पैरों में बिछिया भी पहने थी. पुलिस ने सुसाइड नोट देखा तो उस में लिखा था, ‘ये फोटो हमारे प्यार की निशानी हैं, जो हम ने ताजमहल पर साथसाथ खिंचवाए थे. आप ने हमें जिंदगी जीने का जो मौका दिया था, शायद हमारी किस्मत नहीं था.

‘हम लोगों के बारे में कोई नहीं जानता कि हम कहां हैं. फिर भी रितु का यही कहना है कि हम लोग किसी को मुंह नहीं दिखा सकते. जब उस का यही फैसला है तो हम भी उस के साथ हैं.

‘हमें 2 दिन की जो जिंदगी मिली, शायद वही हमारी किस्मत थी. जो भी चुरा के घर से ले गए थे, सब आप को लौटा रहे हैं. हम ने जिंदगी में जो गलत किया, उस की कीमत हम अपनी जान दे कर चुका रहे हैं. जब हम ही नहीं होंगे तो हमें कोई फर्क नहीं पड़ेगा कि कौन जीता है या मरता है. हमें माफ करना या न करना, आप की मरजी.’

उन्होंने अपने इस सुसाइड नोट में साथसाथ दफनाने के लिए भी लिखा था. उन का कहना था कि वे इस जन्म में नहीं मिल सके तो कम से कम साथसाथ मर कर अगले जन्म में तो एक हो सकेंगे. सुसाइड नोट में उन्होंने दस्तखत करने के साथ फोन नंबर भी लिखे थे. पुलिस ने सुसाइड नोट में दिए नंबरों पर फोन कर के पंकज और रितु के आत्महत्या करने की सूचना दी तो कोई कुछ कहने को ही तैयार नहीं हुआ. वे आगरा आने को भी राजी नहीं थे. लेकिन न जाने क्या सोच कर सभी आने को राजी हो गए.

पुलिस ने घटनास्थल की काररवाई निपटा कर लाशों को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया था. शाम तक घर वाले आगरा पहुंचे तो पता चला कि सुसाइड करने वाले दोनों सगे मामाभांजी थे. उन के रिश्ते के बारे में जान कर सभी दंग रह गए. पोस्टमार्टम के बाद पंकज और रितु के शव घर वालों को सौंप दिए गए. घर वालों ने लाशें ले जाने के बजाय आगरा के ही विद्युत शवदाह गृह में दोनों का अंतिम संस्कार करा दिया. पुलिस द्वारा की गई पूछताछ में संतोष ने बताया कि उस ने पंकज को फोन किया था. तब उस ने यह नहीं बताया कि वह आगरा है. उस ने अगले दिन घर आने को कहा था.

दरअसल, उस दिन रितु अपने घर नहीं पहुंची तो शांतिस्वरूप ने ससुराल फोन कर के पूछा. जब उन्हें बताया गया कि रितु तो पंकज के साथ कब का निकल चुकी है, तब उन्हें समझते देर नहीं लगी कि रितु पंकज के साथ भाग चुकी है. दोनों ने जो किया था, उस से दोनों के घर वाले काफी नाराज थे. लेकिन उन्हें यह नहीं मालूम था कि वे इस तरह मौत को गले लगा लेंगे. लेकिन आशंका तो थी ही. फिर वही हुआ भी. बदनामी से बचने के लिए सभी चुप थे, लेकिन पंकज और रितु ने आत्महत्या कर के रिश्ते को कलंकित करने का ढिंढोरा पूरी दुनिया में पीट दिया. दरअसल, पंकज और रितु ने शादी करने का निर्णय ले लिया था. वे शादी कर के घर वालों से इतनी दूर चले जाना चाहते थे, जहां उन्हें जानने वाला कोई न हो और वे खुशीखुशी रह सकें.

पंकज ने रितु की मांग में सिंदूर भर कर शादी भी कर ली. लेकिन शादी करने के बाद दोनों को लगा होगा कि वे चाहे जहां भी रहें, हमेशा अपराधबोध से ग्रसित रहेंगे. यही नहीं, उन के बच्चों को जब उन के असली रिश्ते के बारे में पता चलेगा तो वे भी उन्हें माफ नहीं करेंगे. घर से भागने के बाद उन के घर लौटने का रास्ता पूरी तरह से बंद हो चुका था. आगे भी उन्हें कोई रास्ता नहीं दिखाई दिया. घरपरिवार और समाज से कट कर जीना भी आसान नहीं था. उन्हें अपनी गलती का अहसास हुआ तो वे डरे कि अब क्या होगा? कोई रास्ता न देख उन का जिंदगी से मोह भंग हो गया होगा.

मन में एक ही बात आई होगी कि इस जन्म में साथ नहीं जी सके तो मर कर अगले जन्म में तो मिल सकेंगे. अगले जन्म में मिलने की उम्मीद में उन्होंने फांसी लगा ली. पंकज और रितु ने रिश्तों को कलंकित करने की लक्ष्मणरेखा लांघी तो उस की सजा उन्हें जान दे कर चुकानी पड़ी. उन्होंने तो जान दे कर मुक्ति पा ली, लेकिन घर वालों को तो इस की सजा कम से कम 2 पीढि़यों तक भोगनी पड़ेगी. Agra News

 

Love Story in Hindi: दूसरे की प्रेमिका

Love Story in Hindi: प्राची खूबसूरत भी थी और अल्हड़ भी. वह लंच बौक्स सप्लाई का काम करती थी. इसी बीच उस की मुलाकात समीर रोहितकर से हुई और वह अपने पति से तलाक ले कर उस की हो गई. लेकिन बाद में जब प्राची की जिंदगी में प्रसाद मांडवकर आया तो…

25 वर्षीय प्रसाद प्रकाश मांडवकर मराठी दैनिक अखबारों का फ्रीलांस रिपोर्टर और फोटोग्राफर था. काम की वजह से उस के घर आनेजाने का कोई निश्चित समय नहीं था. लेकिन जब कभी लौटने में देरी होती थी, तो वह फोन कर के अपनी मां राधा को घर लौटने का समय बता देता था. रोजाना की तरह उस दिन सुबह भी वह काम पर जाने के लिए घर से तो निकला लेकिन वापस नहीं लौटा. जब वह न खुद आया और न उस का कोई फोन आया तो उस की मां राधा ने उसे फोन किया. लेकिन उस का फोन स्विच्ड औफ था. प्रसाद प्रकाश जिस पेशे में था, उस में देरसवेर होना या फोन बंद मिलना आम बात थी. इसलिए उस की मां राधा ने उसे दोबारा फोन नहीं किया.

लेकिन जब रात के 12 बज गए तो राधा को चिंता हुई. उस ने दोबारा बेटे का फोन ट्राई किया, लेकिन उस का फोन अब भी बंद था. देरसवेर भले ही हो जाती थी लेकिन ऐसा कभी नहीं होता था कि लगातार फोन बंद रहे. ऐसी स्थिति में राधा की परेशानी स्वाभाविक ही थी. राधा का मन नहीं माना तो वह बेटे की तलाश में घर से निकल पड़ी. उस ने अपनी चाल और बस्ती के रहने वाले प्रसाद प्रकाश के सारे दोस्तों से उस के बारे में पता किया. उस के एक दोस्त समीर ने उसे बताया कि प्रसाद रात 8 बजे के करीब उसे मिला था. लेकिन उस के बाद वह कहां गया, इस की उसे कोई जानकारी नहीं है.

राधा ने अपनी जानपहचान वालों और नातेरिश्तेदारों से भी फोन पर संपर्क कर के बेटे के बारे में पूछताछ की. जब प्रसाद मांडवकर के बारे में कहीं से कोई खबर नहीं मिली तो उस की मां राधा बुरी तरह घबरा गई. उस की चिंता बढ़ गई और भूखप्यास मर गई. किसी अनहोनी की आशंका से राधा के दिमाग में तरहतरह के विचार आने लगे. उस की घबराहट बढ़ती जा रही थी, निगाहें घर के दरवाजे पर टिकी हुई थीं. बाहर जरा सी भी आहट होती तो वह लपक कर घर के दरवाजे पर आ जाती. लेकिन जब कोई दिखाई नहीं देता तो मायूस हो कर अंदर चली जाती.

बेटे के लौटने की आशा लिए प्रसाद की मां राधा ने जैसेतैसे रात बिताई. सुबह होते ही वह अपने घर वालों के साथ थाना ताड़देव पहुंची और वहां मौजूद पुलिस अफसर से सारी बात बता कर प्रसाद मांडवकर की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज करवा दी. यह 7 जनवरी, 2015 की बात है. शिकायत दर्ज करने के बाद पुलिस ने वायरलेस से यह सूचना अन्य थानों को दे दी. 8 जनवरी, 2015 को सुबह लगभग 10 बजे मुंबई के उपनगर घाटकोपर स्थित तिलक नगर पुलिस थाने के सीनियर इंसपेक्टर भगवत सोनावले को किसी राहगीर ने फोन पर जानकारी दी कि घाटकोपर-मानखुर्द रोड स्थित पी.डब्ल्यू.डी. कंपाउंड, तिलक ब्रिज के पास एक अज्ञात युवक की लाश पड़ी है.

सूचना मिलते ही तिलक नगर पुलिस थाने के सीनियर इंसपेक्टर भगवत सोनावले ने अपने वरिष्ठ अधिकारियों को सूचित किया और यह खबर कंट्रोल रूम को देने के बाद पुलिस टीम के साथ घटनास्थल के लिए रवाना हो गए. घटनास्थल थाने से महज एक किलोमीटर दूर था इसलिए पुलिस को वहां पहुंचने में ज्यादा देर नहीं लगी. इस बीच इस घटना की खबर पूरे इलाके में फैल गई थी और घटनास्थल पर काफी लोगों की भीड़ एकत्र हो चुकी थी. पुलिस ने भीड़ को वहां से हटा कर घटनास्थल का निरीक्षण किया. लाश को ठीक से देखने के बाद पुलिस ने वहां मौजूद लोगों से उस की शिनाख्त कराने की कोशिश की, लेकिन कोई भी मृतक को नहीं पहचान सका.

इस से यह बात स्पष्ट हो गई थी कि मृतक उस इलाके का रहने वाला नहीं था. निस्संदेह हत्यारों ने कहीं दूसरी जगह से ला कर वहां उस की हत्या की थी. मृतक के सिर और गले पर किसी तेजधार वाले हथियार के गहरे घाव थे. सीनियर इंसपेक्टर भगवत सोनावले अभी घटना का निरीक्षण और वहां मौजूद लोगों से पूछताछ कर ही रहे थे कि सूचना पा कर क्राइमब्रांच के ज्वाइंट पुलिस कमिश्नर सदानंद दाते, अपर पुलिस कमिश्नर के.एम. प्रसन्ना, एडिशनल पुलिस कमिश्नर धनंजय कुलकर्णी, असिस्टैंट कमिश्नर प्रफुल्ल भोसले और क्राइम ब्रांच यूनिट-7 के सीनियर इंसपेक्टर वांकट पाटील, इंसपेक्टर संजय सुर्वे, असिस्टेंट इंसपेक्टर अनिल ढोले अपने सहायकों के साथ घटना पर पहुंच गए. सभी ने तिलकनगर पुलिस थाने के सीनियर इंसपेक्टर के साथ घटनास्थल का निरीक्षण किया.

इंसपेक्टर भगवत सोनावले ने घटनास्थल की जांच पड़ताल और औपचारिक काररवाई पूरी कर के मृतक के शव को पोस्टमार्टम के लिए घाटकोपर के राजावाड़ी अस्पताल भेज दिया. शव के कपड़ों की तलाशी ले कर उन्होंने सील कर के अपने कब्जे में ले लिया. तत्पश्चात वे थाने लौट आए. थाने लौट कर वह मृतक की शिनाख्त में जुट गए. क्योंकि बिना उस की शिनाख्त के तफ्तीश की दिशा तय करना संभव नहीं था. इधर क्राइम ब्रांच यूनिट-7 के सीनियर इंसपेक्टर व्यंकट पाटील अपने सहायकों के साथ मामले की तफ्तीश और उस के विषय में विचारविमर्श कर रहे थे तो उधर क्राइम ब्रांच के उच्चाधिकारी भी चुप नहीं बैठे थे. एडिशनल कमिश्नर धनंजय कुलकर्णी को जब लगा कि मृतक की शिनाख्त जल्दी होना संभव नहीं है तो उन्होंने उस की लाश की फोटो सोशल मीडिया पर डाल दी.

इस का जल्दी ही नतीजा निकला. मृतक का फोटो सोशल मीडिया पर आते ही दैनिक मराठी सामना के एक रिपोर्टर ने मृतक को पहचान कर क्राइम ब्रांच यूनिट-3 के सीनियर इंसपेक्टर अरविंद सावंत को बताया कि मृतक का नाम प्रसाद प्रकाश मांडवकर है और वह मुंबई सेंट्रल (पश्चिम) का रहने वाला है. रिपोर्टर ने यह भी बताया था कि उस की गुमशुदगी की रिपोर्ट ताड़देव पुलिस थाने में दर्ज कराई गई है. उस रिपोर्टर की सूचना पर क्राइम ब्रांच यूनिट-3 के सीनियर इंसपेक्टर अरविंद सावंत ने मामले को तफ्तीश के लिए इंसपेक्टर अविनाश धर्माधिकारी, इंसपेक्टर दीपक चव्हाण, इंसपेक्टर संजय तिकुंव, सिपाही हसन मुजावर, नंद कुमार आड़ावकर, प्रकाश कोठालकर आदि को नियुक्त कर के इस की जानकारी एडिशनल कमिश्नर धनंजय कुलकर्णी और असिस्टेंट कमिश्नर प्रफुल्ल भोसले को दे दी.

इंसपेक्टर अविनाश धर्माधिकारी ने तुरंत अपने सहायकों को साथ लिया और ताड़देव पुलिस थाने से जानकारी ले कर मृतक प्रसाद मांडवकर के घर पहुंच गए. जब मृतक प्रसाद मांडवकर की फोटो उस की मां राधा को दिखाई गई तो वह सन्न रह गई और छाती पीटपीट कर रोने लगी. जांच अधिकारियों ने उसे सांत्वना दे कर समझाया और प्रसाद मांडवकर का शव लेने के लिए राजाबाड़ी अस्पताल भेज दिया. मृतक की शिनाख्त हो गई तो जांच अधिकारियों का आधा सिरदर्द खत्म हो गया. लेकिन अब जो समस्या सामने थी, वह मृतक प्रसाद मांडवकर के हत्यारों को ले कर थी. लेकिन यह समस्या भी शीघ्र ही हल हो गई. क्राइम ब्रांच ने इस रहस्य को सुलझाने के लिए मृतक की मां राधा से पूछताछ करने का फैसला किया.

इस बारे में राधा से पूछा गया तो उस ने बताया कि प्रसाद प्रकाश का न तो किसी से कोई लड़ाईझगड़ा था और किसी की देनदारी. यहां तक कि उस का कोई दुश्मन भी नहीं था. इस पर क्राइम ब्रांच के अफसरों ने राधा से प्रसाद के दोस्तों और रिश्तेदारों के पते और फोन नंबर लिए. लेकिन इस का कोई नतीजा नहीं निकला. क्राइम ब्रांच के पास अब सिर्फ एक ही रास्ता बचा था कि प्रसाद मांडवकर के मोबाइल की सीडीआर (कौल डिटेल्स रिकौर्ड) चेक करे. जब उस के नंबर की सीडीआर निकलवाई गई तो उस के कई दोस्तों के नंबर सामने आए. जब उन नंबरों की गहराई से जांच की गई तो उन की नजर एक नंबर पर ठहर गई. वह नंबर प्रसाद के पड़ोस में रहने वाले उस के दोस्त समीर का था, जिस से वह गायब होने के कुछ घंटों पहले मिला था. उस ने प्रसाद माडंवकर की मां राधा को भी यही बताया था.

समीर ब्रीच कैंडी अस्पताल के सामने वाली इमारत में कार ड्राइवर की नौकरी करता था. समीर की पूरी कुंडली निकालने के बाद क्राइम ब्रांच ने उसे 10 जनवरी, 2015 को हिरासत में ले लिया. क्राइम ब्रांच के औफिस में ला कर उस से प्रसाद मांडवकर की हत्या के बारे में पूछताछ की गई तो पहले तो वह खुद को प्रसाद की हत्या से अनभिज्ञ बताता रहा. लेकिन वह जांच अधिकारियों के सवालों के आगे ज्यादा देर तक नहीं ठहर सका. अंतत: उस ने अपना अपराध स्वीकार करते हुए प्रसाद मांडवकर की हत्या में सामिल अपने सभी साथियों के नाम पते बता दिए. समीर ने प्रसाद मांडवकर हत्याकांड की जो कहानी बताई, वह काफी चौंकाने वाली थी.

31 वर्षीय समीर रोहितकर मुंबई सेंट्रल (पश्चिम) के जरीवाला चाल में अपने परिवार के साथ रहता था. उस के पिता का नाम वसंत रोहितकर था. परिवार में उस के मातापिता के अलावा 2 बहने थीं. उस के पिता भी कार ड्राइवर थे. परिवार की आर्थिक स्थिति कुछ ठीक नहीं थी. इसलिए समीर रोहितकर कुछ खास पढ़लिख नहीं पाया था. जब समीर जवान हुआ तो पिता वसंत रोहितकर ने उसे भी कार ड्राइवरी का लाइसेंस बनवा कर ब्रीच कैंडी अस्पताल के पास रहने वाले एक व्यापारी के यहां नौकरी पर रखवा दिया.

वह व्यापारी समीर रोहितकर को अपने बेटे की तरह मानता था. जब कभी वह मुंबई के बाहर जाता था, तो अपनी कार समीर रोहितकर की हिफाजत में छोड़ जाता था. समीर रोहितकर जिस चाल में रहता था, उसी चाल में प्रसाद मांडवकर और प्राची के परिवार भी रहते थे. प्राची का परिवार काफी गरीब था. उस के पति की कोई खास आमदनी नहीं थी. विवाह के बाद प्राची जब उस घर में आई थी तो घर की आर्थिक स्थिति काफी खराब थी. लेकिन शादी के बाद प्राची ने अपनी मेहनत और परिश्रम से घर की स्थिति को काफी हद तक संभाल लिया था. अपने परिवार की आर्थिक स्थिति को पटरी पर लाने के लिए वह हाउस कैटरिंग का काम करने लगी थी. वह अपने घर में अच्छा और स्वादिष्ट खाना बनवा कर काम धंधे वालों को पहुंचाने लगी थी.

प्राची जितनी सुंदर थी, उस से कहीं अधिक चंचल थी. उस ने महानगर पालिका के स्कूल से 8वीं पास की थी. उस की सबसे बड़ी खासियत यह थी कि वह बहुत मिलनसार थी. वह जिस से भी बातचीत करती खुल कर करती थी और अपनी बातों से किसी को भी अपनी तरफ आकर्षित कर लेती थी. शादी के बाद जब प्राची अपनी ससुराल आई थी, उस के कुछ दिनों बाद ही समीर का दिल उस पर आ गया था. सोतेजागते वह प्राची को ही सपने में देखने लगा था. वह जब भी कमसिन अल्हड़ प्राची को देखता तो उस के दिल की धड़कनें बढ़ जाती थीं. वह उस की नजदीकी पाने के लिए छटपटा उठता था.

कहते हैं कि जहां चाह होती है, वहां राह निकल ही आती है. समीर रोहितकर के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ था. प्राची एक कर्मठ महिला थी. वह अपने परिवार और घर की स्थिति को सुधारने के लिए हाउस कैटरिंग का काम करती थी, उसी हाउस कैटरिंग के सहारे समीर प्राची के करीब पहुंच गया. दरअसल समीर ने अपने घर का लंचबौक्स लाना बंद कर के प्राची का लंच बौक्स मंगवाना शुरू कर दिया. फिर इसी बहाने वह कभीकभी प्राची के घर भी खाना खाने जाने लगा. जल्दी ही वह उस के परिवार वालों से घुलमिल गया. जरूरत पड़ने पर वह उस के परिवार की आर्थिक मदद भी करने लगा था.

प्राची भी कोई बच्ची नहीं थी. वह समीर रोहितकर के मन की बातों को अच्छी तरह समझने लगी थी. समीर रोहितकर को अपनी तरफ आकर्षित होते देख कर धीरेधीरे वह भी उस की तरफ खिंचती चली गई. दोनों के दिलों में जब एकदूसरे के लिए प्रेम के अंकुर फूटे तो जल्दी ही वह समय भी आ गया, जब दोनों का एकदूसरे के बिना रहना मुश्किल हो गया. यह स्थित आई तो दोनों अपने आप को रोक नहीं पाए और मौका पाते ही एकदूसरे की बांहों में समा गए. दोनों ने एक ही झटके में सारी मर्यादाएं तोड़ डालीं. एक बार जब सीमाएं टूटीं तो फिर दोनों की नजदीकियां बढ़ती ही गईं. अब जब भी प्राची और समीर को मौका मिलता तो दोनों अपने तनमन की प्यास बुझा लेते. दोनों के बीच यह सिलसिला 2 साल तक चुपचाप चलता रहा. इस बीच उन के संबंधों के बारे में कोई नहीं जान सका.

इश्क और मुश्क अधिक दिनों तक छिपाए नहीं छिपता. धीरेधीरे पड़ोसियों में जब इस बात की चर्चा होने लगी तो उड़तेउड़ते यह खबर प्राची के परिवार और उस के पति के कानों तक भी जा पहुंची. हकीकत जान कर उस के पति के होश उड़ गए. प्राची के पति को यह बात तो मालूम थी कि समीर रोहितकर उस की पत्नी के हाथों के बने लंच बौक्स का खाना खाता है और उस के घर भी आताजाता है. लेकिन खाना खाने के बहाने समीर का उस की पत्नी के साथ शारीरिक संबंध हो जाएगा, यह उस ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था. मामला नाजुक था. शोरशराबे से बदनामी हो सकती थी. इसलिए उस ने प्राची को शांति से समझाना चाहा. लेकिन प्राची ने पति की बातों को न समझ कर पूरा घर सिर पर उठा लिया. वह उलटा अपने पति पर ही बरस पड़ी और उसे काफी खरीखोटी सुनाई. प्राची पर जब पति के समझाने का कोई असर नहीं हुआ तो उस के पति ने उसे तलाक दे दिया. यह बात 2005 की थी.

पति से तलाक होने के बाद प्राची भायखाला आ कर रहने लगी. यहां वह समीर रोहितकर से खुल कर मिलती थी. हालांकि समीर प्राची से शादी नहीं की थी, लेकिन दोनों पतिपत्नी की तरह रहने लगे थे. समीर प्राची की सभी जरूरतों को पूरी करता था. उस के अलावा प्राची ने अपना कैटरिंग का काम भी चालू रखा था. समय पंख लगा कर उड़ता रहा. धीरेधीरे प्राची और समीर को साथसाथ रहते और मौजमस्ती करते हुए 8 साल गुजर गए. लेकिन 2013 में इस हवा का रुख बदला और प्राची समीर की बांहों को छोड़ कर प्रसाद मांडवकर की बांहों में आ गई. यह बात जब समीर रोहितकर को पता चली तो उस का खून खौल उठा. वह प्रसाद मांडवकर के खून का प्यासा हो गया.

प्रसाद मांडवकर भी उसी चाल में रहता था, जिस चाल में समीर रोहितकर रहता था. दोनों बचपन के दोस्त थे. दोनों एक साथ खेलेकूदे और जवान हुए थे. प्रसाद मांडवकर के पिता प्रकाश मांडवकर की मृत्यु हो चुकी थी. मां राधा ने उसे मेहनतमशक्कत करके पालापोसा और उसे पढ़ायालिखाया था. प्रसाद मांडवकर महत्त्वाकांक्षी युवक था. वह पढ़लिख कर जवान हुआ तो उस का झुकाव नौकरी या किसी व्यवसाय की तरफ नहीं था. इस की जगह उस ने पत्रकारिता को अपना पेशा बनाया और मराठी दैनिक अखबारों में फ्रीलांस फोटोग्राफी और न्यूज रिपोर्टिंग करने लगा. धीरेधीरे उस की कई मराठी न्यूज रिपोर्टरों और फोटोग्राफरों से जानपहचान हो गई.

प्रसाद मांडवकर ने जब कई बार प्राची और समीर रोहितकर को एकदूसरे से मिलतेजुलते मौजमस्ती करते देखा, तो उस का दिल भी प्राची के लिए धड़कने लगा. न चाहते हुए भी वह धीरेधीरे प्राची की तरफ झुकने लगा. प्राची की सुंदरता और उस के व्यवहार से प्रसाद मांडवकर की भी वही हालत हुई जो कभी समीर रोहितकर की हुई थी. फलस्वरूप प्रसाद मांडवकर का दिल भी प्राची की नजदीकियां पाने के लिए तड़प उठा. उस ने भी प्राची को पाने के लिए वही रास्ता अपनाया जो कभी समीर रोहितकर ने अपनाया था.

उस ने समीर रोहितकर से प्राची का मोबाइल नंबर ले लिया और अगले दिन ही अपने लिए प्राची का लंच बौक्स मंगवाने के बहाने उस से बातचीत शुरू कर दी. शुरूशुरू में प्राची ने प्रसाद मांडवकर को लंच बौक्स भेजने के अलावा उस की और कोई ध्यान नहीं दिया. लेकिन जब प्रसाद उस के लंच बौक्स और उस के रूप सौंदर्य की खुल कर तारीफ करने लगा तो प्राची को भी उस की बातें अच्छी लगने लगीं. नतीजतन वह भी प्रसाद की बातों का जवाब उसी की तरह देने लगी.

औरत हमेशा अपने रूप सौंदर्य और अपनी तारीफों की भूखी होती है. प्रसाद मांडवकर ने इस का लाभ उठाया. प्राची का प्रोत्साहन मिलते ही वह उस के करीब आने की कोशिश करने लगा. धीरेधीरे दोनों की नजदीकियां बढ़ने लगीं. नजदीकियां बढ़ीं तो दोनों फोन पर खूब बातें करने लगे. इतना ही नहीं प्रसाद अब लंच बौक्स मंगाने के बजाए उसी के घर जा कर लंच करने लगा. कभीकभी वह उसे अपने साथ घुमाने भी ले जाने लगा. प्राची जब सुंदर स्वस्थ और मजबूत कदकाठी वाले प्रसाद मांडवकर की तरफ आकर्षित हुई तो समीर रोहितकर को वह नजरअंदाज करने लगी. प्राची को अब समीर रोहितकर की बांहों में वह आनंद नहीं मिलता था, जो प्रसाद मांडवकर की बांहों में मिलता था.

उसे अब समीर रोहितकर की बांहों से मजबूत बांहें प्रसाद मांडवकर की लगने लगी थीं. कुछ दिनों बाद जब समीर रोहितकर को प्रसाद मांडवकर और प्राची के मधुर संबंधों की जानकारी हुई तो वह बौखला उठा. इस बात को ले कर उस ने जब प्राची को आड़े हाथों लिया तो वह उस पर बरस पड़ी. उस ने समीर को बताया कि प्रसाद से उस का रिश्ता भाईबहन जैसा है. लेकिन समीर को प्राची की बातों पर जरा भी विश्वास नहीं हुआ. वह यह बात अच्छी तरह जान चुका था कि प्रसाद मांडवकर और प्राची के बीच कुछ अलग ही तरह के संबंध हैं.

आखिरकार उन दोनों के रिश्तों की सच्चाई जानने के लिए समीर प्रसाद मांडवकर से मिला और उस के व प्राची के संबंधों के बारे में पूछा. साथ ही उस ने उसे अपने और प्राची के बीच से निकल जाने के लिए भी कहा. लेकिन प्रसाद ने उस की बात मानने से इनकार करते हुए कहा कि प्राची अब उस की प्रेमिका है. प्रमाण के लिए प्रसाद ने उसे अपने नजदीकी संबंधों के कुछ फोटोग्राफ्स भी दिखाए जिनमें वे दोनें साथसाथ थे. यह देखकर समीर ने गुस्से में कहा, ‘‘प्रसाद, यह तुम ने ठीक नहीं किया. दोस्त हो कर दोस्त की पीठ में छुरा घोंपना ठीक नहीं है.’’

इस बात पर प्रसाद को भी गुस्सा आ गया. वह बोला, ‘‘यह सब कहने से पहले अपने गिरेबान में झांको. तुम ने कौन अच्छा किया था? एक सीधेसादे आदमी का घरबार बरबाद करने वाले तुम ही थे न? वह कौन सी तुम्हारी पत्नी है जो तुम उस के लिए मरे जा रहे हो. जो तुम कर रहे हो वही मैं भी कर रहा हूं. इस में बुरा मानने वाली बात क्या है?’’

अपने घर लौट कर प्रसाद मांडवकर तो रिलेक्श हो गया लेकिन समीर रोहितकर को रातभर नींद नहीं आई. उसे प्रसाद मांडवकर की कही बातें कांटों की तरह चुभ रही थीं. रातभर सोचने के बाद उस ने प्रसाद को अपने और प्राची के बीच से निकाल फेंकने का खतरनाक फैसला कर लिया. लेकिन यह काम उस के अकेले के बस की बात नहीं थी. इसलिए उस ने इस काम में अपने 2 दोस्तों की मदद लेने की सोची. इस काम के लिए उस ने अपने दोस्त रोहित वंगर और जार्ज फर्नांडीस से बात की. दोनों उस के खास दोस्त थे. उस की बात सुन कर वह खुशीखुशी उस का साथ देने के लिए तैयार हो गए. जार्ज फर्नांडीस मुंबई स्थित ब्रीच कैंडी अस्पताल के पास एक सैंडविच और जूस सेंटर पर नौकरी करता था, जहां समीर अकसर अपने मालिकों के लिए सैंडविच और जूस लेने आताजाता था.

यहीं पर रोहितकर से उस की दोस्ती हुई थी. जार्ज फर्नांडीस के पिता वहीं की एक इमारत में कार ड्राइवरी करते थे. वह अपने पिता के लिए उसी दुकान पर उन का लंच बौक्स ले कर आता था. सैंडविच और जूस सेंटर पर ही तीनों की मुलाकातें होती थीं. तीनों गहरे दोस्त बन गए थे. अब समीर रोहितकर को इंतजार था एक ऐसे मौके का जब वह अपना काम आसानी से कर सके. उसे यह मौका घटना वाले दिन मिल गया. संयोग से उस दिन समीर रोहितकर के मालिक किसी काम से मुंबई से बाहर चले गए थे. उन की कार 24 घंटों के लिए समीर के हाथों मे ंआ गई थी. निस्संदेह उस के लिए यह एक अच्छा मौका था. समीर रोहितकर ने जार्ज फर्नांडीस और रोहित वंगर से फोन पर बात की और प्रसाद मांडवकर को सारे गिले शिकवे भुला कर सैंडविच सेंटर पर आने के लिए कहा.

जिस वक्त प्रसाद मांडवकर सैंडविच सेंटर पर पहुंचा, उस समय समीर रोहितकर अपने मालिक की कार लिए खड़ा था. उस ने प्रसाद मांडवकर को बड़े प्यार से अपनी कार में बैठा लिया और इधरउधर की बातें करने लगा. इसी बीच समीर ने अपने दोस्त जार्ज फर्नांडीस को इशारा किया. जार्ज फर्नांडीस ने प्रसाद मांडवकर को पीने के लिए जूस का गिलास ला कर दिया जिस में योजनानुसार नींद की गोलियां मिली हुई थीं. जूस पीने के थोड़ी देर बाद जब उस पर खुमारी छाने लगी तो अपनी योजना के अनुसार समीर ने कपड़ा धोने वाले डिटर्जेंट के पाउडर और बोरिक ऐसिड से बनाया गया इंजेक्शन अपने दोस्तों की मदद से प्रसाद मांडवकर के गले में लगा दिया. उन का मानना था कि इस इंजेक्शन से प्रसाद मांडवकर की मौत हो जाएगी और किसी को उस की मौत के कारणों का पता भी नहीं चलेगा.

लेकिन जब उन की यह योजना फेल हो गई तो समीर बेहोश प्रसाद को देर रात गए अपने दोस्तों के साथ कार में ले कर चेंबूर, घाटकोपर, तिलक नगर इलाके की तरफ निकल गया. इन लोगों ने तिलक नगर पीडब्ल्यूडी कंपाउंड की सुनसान जगह पर जा कर प्रसाद मांडवकर को कार से बाहर निकाला और कंपाउंड की दीवार के सहारे सीधा खड़ा कर के उस के गले पर चापर से वार कर दिया. इस के बाद उन्होंने प्रसाद के कपड़ों की तलाशी ली. उन्होंने उस की जेब से शिनाख्त के सारे कागजात और उस का मोबाइल निकाल लिया और वहां से लौट आए.

समीर रोहितकर और उस के दोनों दोस्त यह मान कर चल रहे थे कि पहले तो प्रसाद मांडवकर की लाश किसी को मिलेगी ही नहीं और अगर मिल भी गई तो उस की शिनाख्त होनी असंभव थी. मगर यह उन की भूल थी. कुछ ही घंटों बाद किसी राहगीर ने लाश की सूचना तिलकनगर पुलिस थाने को दे दी थी. फलस्वरूप पुलिस ने उस की लाश बरामद कर ली थी. क्राइम ब्रांच ने समीर रोहितकर के साथसाथ उस के दोस्त रोहित वंगर ओर जार्ज फर्नांडीस को अपनी गिरफ्त में ले लिया. यह खबर जब प्राची को मिली तो वह सन्न रह गई. समीर बंसत रोहितकर, रोहित विश्वनाथ और जार्ज अरुण फर्नांडीस से विस्तृत पूछताछ करने के बाद क्राइम ब्रांच ने उन्हें महानगर मेटोपौलिटन मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. इस केस की जांच तिलकनगर पुलिस थाने के सीनियर इंसपेक्टर भगवत सोनावले कर रहे हैं. तीनों अभियुक्त जेल में हैं. Love Story in Hindi

कथा में प्राची का नाम काल्पनिक है और कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित है.

 

Extramarital Affair: पति बदलने की फितरत कहीं नहीं मिला सुकून

Extramarital Affair: सुबह का आगाज होते ही शिवनगर में  लोगों की दिनचर्या शुरू हो गई थी. सड़क पर लोगों की आवाजाही बढ़ने लगी थी. इसी के साथ हत्या की एक सनसनीखेज घटना ने माहौल में गरमाहट पैदा कर दी. इस की सूचना पुलिस को दी गई तो थानाप्रभारी से ले कर एसपी तक हत्या की सूचना पा कर मौके पर पहुंच गए थे. दरअसल, 17 नवंबर, 2021 की सुबह जनकगंज थाने के अतंर्गत आने वाले शिवनगर में खबर फैली कि दुष्कर्म के बाद किसी ने बबली कुशवाहा की गला घोंट कर हत्या कर दी है. इस मामले में अफवाह जंगल की आग की तरह इतनी तेजी से फैली कि थोड़ी ही देर में घटनास्थल पर लोगों की भीड़ लग गई.

इस भीड़ में क्षेत्रीय पार्षद से ले कर राजनैतिक दलों के कार्यकर्ता तक शामिल थे, जो इस हत्या को ले कर आपस में कानाफूसी करने में मशगूल थे. लेकिन उन में से किसी में भी इतनी हिम्मत नहीं थी जो मकान मालिक से पूछता कि अचानक किस ने बबली की हत्या कर दी? इन सभी में इस घटना को ले कर काफी नाराजगी थी. वे सभी बबली के हत्यारे को तत्काल पकड़ने की मांग कर रहे थे.

सूचना मिलते ही मौके पर पहुंचे थानाप्रभारी ने महिला की हत्या के मामले से पुलिस के आला अधिकारियों को अवगत करा दिया. इसी सूचना पर थोड़ी देर में एसपी अमित सांघी, एएसपी सतेंद्र सिंह तोमर, सीएसपी आत्माराम शर्मा भी घटनास्थल पर पहुंच गए. मामला दुष्कर्म की आशंका और हत्या का था, पुलिस अफसरों ने सब से पहले बबली के कमरे के बाहर खड़ी भीड़ को हटाया और उस के बाद घटनास्थल का गहनता से निरीक्षण किया. एएसपी सतेंद्र सिंह तोमर और सीएसपी आत्माराम शर्मा ने जनकगंज थानाप्रभारी संतोष यादव के साथ कमरे के भीतर जा कर सब से पहले चारपाई पर अस्तव्यस्त हालत में पड़े बबली के शव को गौर से देखा तो पता चला कि मृतका की हत्या दुपट्टे से गला घोट कर की गई थी.

मृतका के गले में दुपट्टा कसा हुआ था. कमरे की तलाशी ली तो घटनास्थल पर नमकीन, चिप्स, कंडोम, बीयर की बोतल आदि के खुले पैकेट मिले. संदिग्ध वस्तुओं को देख कर पुलिस को कुछ संदेह हुआ. इसी के मद्देनजर एक महिला कांस्टेबल को बुला कर बबली के सारे शरीर का निरीक्षण कराया गया. पता चला कि मृतका के शरीर से कीमती जेवर गायब थे. घटनास्थल के निरीक्षण में सदिग्ध वस्तुएं मिलने से पुलिस टीम के लिए यह अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं था कि बबली और हत्यारे के मध्य यौन संबंध रहे होंगे और किसी बात पर विवाद होने पर हत्यारे ने उस के दुपट्टे से उस का गला घोट दिया होगा.

बबली की हत्या का दुखद समाचार सुन कर उस की मां और भाई भी वहां पहुंच गए थे, उन्होंने बबली के शव को देखा तो पता चला कि उस के कान के बाले, मंगलसूत्र, मोबाइल और 5 हजार रुपए गायब हैं. चूंकि यह सब कीमती सामान था, इसलिए इस मामले में लूटपाट की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता था. कुल मिला कर यह मामला काफी उलझा हुआ लग रहा था. आगे बढ़ने के लिए थानाप्रभारी संतोष यादव ने बारीकी से घटनास्थल पर पड़ी एकएक चीज का जायजा लेना शुरू किया. बबली का अस्तव्यस्त हालत में शव चारपाई पर पड़ा था. शव के निकट ही संदिग्ध वस्तुएं पड़ी हुई थीं.

मृतका के गले में दुपट्टा लिपटा हुआ था, जिसे देख कर उन्होंने अनुमान लगाया कि हत्यारे ने दुपट्टे से बबली की हत्या की होगी. थानाप्रभारी ने क्राइम टीम को फोन कर के घटनास्थल पर बुला लिया था. इस के बाद बबली के शव को पोस्टमार्टम के लिए अस्पताल की मोर्चरी भेज दिया गया. साथ ही घटनास्थल पर मौजूद संदिग्ध वस्तुओं को अपने कब्जे में ले कर संतोष यादव थाने लौट आए और हत्या के इस मामले के खुलासे के लिए एसपी अमित साहनी ने एसपी (सिटी) लश्कर आत्माराम शर्मा के निर्देशन में एक टीम बनाई. टीम में थानाप्रभारी संतोष यादव, एसआई पप्पू यादव आदि को शामिल किया गया.

थानाप्रभारी संतोष यादव ने हत्या की तह में जाने के लिए बबली की मकान मालकिन गीता से भी गहन पूछताछ की. उस ने बताया कि 13 नवंबर को ही बबली ने कमरा किराए पर लिया था. यहां वह अकेली रहती थी. उस का पति गांव में रहता था. उस से उस की अनबन चल रही थी. बबली की पहली शादी 2003 में लक्ष्मण कुशवाहा से हुई थी. शादी के 8 साल बाद ही उस का पति से तलाक हो गया था. पहले पति से उस के एक बेटी रितिका है. बेटी पहले पति के साथ ही रहती है. इस के बाद बबली ने 2015 में चीनौर के घरसौंदी में रहने वाले धर्मवीर कुशवाहा से दूसरी शादी कर ली थी, लेकिन आजादखयालों की बबली की अपने दूसरे पति से भी नहीं बनी और झगड़े होने लगे. जिस वजह से उस ने दूसरे पति को भी छोड़ दिया था. उस का दूसरा पति बेटे कार्तिक के साथ घरसौदी में रहता है.

गीता ने आगे बताया कि सुबह उठने पर जब उन्हें बबली दिखाई नहीं दी तो उन्हें हैरानी हुई. क्योंकि रोजाना वह उन से पहले उठ कर नल पर पानी भरने आ जाती थी. उन की समझ में नहीं आया कि बबली को क्या हो गया, जो आज वह इतनी देर तक सो रही है? बबली को जगाने के लिए उन्होंने आंगन में खडे़ हो कर कई बार आवाज लगाई. बबली ने जब कोई जवाब नहीं दिया तो वह उसे जगाने के लिए उस के कमरे के दरवाजे को धकेलते हुए जैसे ही कमरे के भीतर दाखिल हुई, वहां का नजारा देख कर उस के होश उड़ गए.

मकान मालकिन ने बताया कि बबली बिस्तर पर मृत पड़ी थी. उस के गले में दुपट्टा कसा हुआ था और मुंह व नाक से खून बह रहा था. यह देख कर वह चीखती हुई बाहर की तरफ दौड़ी. उस की चीख सुन कर आसपड़ोस के लोग आ गए. सभी ने कमरे के भीतर जा कर चारपाई पर बबली का शव पड़ा हुआ देखा. मगर किसी की समझ में नहीं आया कि आखिर हत्या किस ने कर दी. मकान मालकिन के बयान से पुलिस अधिकारियों ने अंदाजा लगाया कि बबली की हत्या करने वाला उस का कोई पूर्व परिचित था. इस की वजह यह थी कि बबली किसी अंजान के लिए दरवाजा नहीं खोलती थी. अत: थानाप्रभारी द्वारा अज्ञात आरोपी के खिलाफ धारा 302 भादंवि के तहत रिपोर्ट दर्ज कर ली.

तहकीकात को गति देने  के लिए संतोष यादव ने सब से पहले साइबर सेल के तकनीकी विशेषज्ञों की मदद से बबली के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकलवा कर जांच की तो पता चला कि एक ही नंबर से बबली के मोबाइल पर बारबार फोन किए गए थे. शक होने पर उस नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई गई तो पता चला वह मोबाइल नंबर डबरा के रहने वाले प्रेम कुशवाहा का था. उस का नाम और पता मिल गया तो संतोष यादव की टीम ने पे्रम के घर पर दबिश दी. लेकिन वह घर से गायब मिला. फिर उस के मोबाइल को सर्विलांस पर लगाया तो उस की लोकेशन मिल गई. पुलिस ने उसे लक्ष्मीगंज सब्जीमंडी के पीछे स्थित संजय नगर से हिरासत में ले लिया.

प्रेम कुशवाहा को जनकगंज थाने ला कर  थानाप्रभारी ने उस से कहा, ‘‘तुम ने सोचा कि तुम से चालाक इस शहर में कोई दूसरा नहीं है. बबली को मार कर इत्मीनान से उस के गहने आदि समेट कर वहां से निकल लिए.’’

सख्ती से पूछताछ की गई तो थोड़ी आनाकानी के बाद उस ने स्वीकार कर लिया कि बबली की गला घोट कर हत्या उसी ने की थी. पे्रम ने हत्या की जो कहानी बताई, वह कुछ इस प्रकार थी—

प्रेम कुशवाहा ने पुलिस को यह भी बताया कि उस की बबली से दोस्ती 5 महीने पहले एक मिस्ड काल के जरिए हुई थी. बबली का मिस्ड काल उस के पास आई तो उस ने पलट कर काल की. इस के बाद हम दोनों में बातचीत का सिलसिला शुरू हो गया. इस तरह उन दोनों के बीच नजदीकियां बढ़ती गईं. फिर जल्दी ही इश्क के मुकाम तक पहुंच कर अवैध संबंधों में बदल गई. उन्हें जब भी मौका मिलता, जिस्म की प्यास बुझा लेते थे. अपने प्रेमी प्रेम कुशवाहा से सहजता से मिलने के मकसद से बबली ने हाल ही में शिवनगर में गीता शर्मा के मकान में एक कमरा किराए पर लिया था.

16 नवंबर की रात को प्रेम बबली से मुलाकात करने उस के कमरे पर गया था. बातों ही बातों में बबली ने उस से कहा, ‘‘अगर तुम मेरे जिस्म का आनंद लेना चाहते हो तो तुम्हें आज ही 10 हजार रुपया देने होंगे.’’

बबली के मुंह से पैसों की बात सुन कर प्रेम चौंक गया. उस ने उस से कहा कि अभी तो उस के पास पैसे नहीं हैं तो वह कहने लगी कि यदि अभी रुपया नहीं दोगे तो वह रेप के आरोप में उसे आज ही जेल भिजवा देगी. उन दोनों में इसी बात को ले कर कुछ ज्यादा ही कहासुनी हो गई. बात इतनी बढ़ गई कि प्रेम को गुस्सा आ गया और उसी के दुपट्टे से उस का गला घोंट कर उसे मौत के घाट उतार दिया. जाते वक्तपुलिस को गुमराह करने के लिए बबली के कान के बाले, मंगलसूत्र, मोबाइल फोन और उस के पर्स से रुपए निकाल कर वहां से फरार हो गया था, जिस से पुलिस लूट के लिए हत्या मान कर पड़ताल करती रहे.

प्रेम कुशवाहा को क्या पता था कि वह  बबली के जेवर बेच कर मौज करने के बजाए जेल चला जाएगा. पुलिस ने बबली के प्रेमी की निशानदेही पर बबली के गहने, मोबाइल फोन बरामद कर उसे अदालत में पेश किया तो जज के सामने भी उसने अपना अपराध बिना किसी पछतावे के स्वीकार कर लिया. प्रेम कुशवाहा को अदालत में पेश करने के बाद उसे जेल भेज दिया गया. भोलाभाला दिखने वाला शातिर हत्यारा प्रेम कुशवाहा अब सलाखों के पीछे है.द्य

Romantic Love Story: एक फूल दो माली – प्रेमियों की कुर्बानी

Romantic Love Story: उत्तर प्रदेश की मोहब्बत की नगरी आगरा का एक थाना है एत्माद्दौला. इसी थाना क्षेत्र के अंतर्गत फाउंड्री नगर स्थित यमुना किनारे सुबह एक युवक का शव पड़ा मिला. देखतेदेखते वहां लोग एकत्र हो गए. इसी बीच किसी ने पुलिस को सूचना दे दी. सूचना मिलते ही थानाप्रभारी देवेंद्र शंकर पांडेय मय पुलिस टीम के घटनास्थल पर पहुंच गए. यह बात 22 नवंबर, 2021 की है. थानाप्रभारी देवेंद्र शंकर पांडेय जिस समय वहां पहुंचे, उस समय वहां लोगों की भीड़ जुट चुकी थी. उन्होंने भीड़ को हटाते हुए शव व घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया.

मृतक युवक की उम्र 25-26 साल के लगभग थी. युवक के शरीर पर चोट के निशान थे. शव देखने से ऐसा लग रहा था कि युवक की मारपीट कर हत्या करने के बाद शव को यहां ला कर फेंका गया था. मृतक की जामातलाशी में उस की जेब से एक लव लैटर (प्रेमपत्र) व डाक्टर की परची मिली. लव लैटर पर मृतक का मोबाइल नंबर भी लिखा था. लेकिन मोबाइल नहीं मिला. मृतक के पास से ऐसा कुछ नहीं मिला, जिस से उस की शिनाख्त हो सके. पुलिस ने लोगों से शव की शिनाख्त कराने का भी प्रयास किया, लेकिन कोई भी शव को पहचान नहीं सका.

थानाप्रभारी ने जानकारी दे कर उच्चाधिकारियों को भी अवगत करा दिया. मौके की काररवाई निपटाने के बाद पुलिस ने शव को मोर्चरी भिजवा दिया. अब पुलिस के सामने सब से बड़ा प्रश्न युवक की शिनाख्त का था. पुलिस की कोशिश थी कि जल्दी से शव की शिनाख्त हो जाए, ताकि हत्या का राज उजागर हो सके और हत्यारे पकड़े जा सकें. पुलिस ने लव लैटर पर अंकित मोबाइल नंबर की कालडिटेल्स निकलवाई. इस में कई नंबर मिले. एक नंबर आगरा निवासी मृतक के चाचा भोला का व एक नंबर जीजा अखिलेश कुमार का भी था. 23 नवंबर को पुलिस ने अखिलेश को फोन किया. इस संबंध में पूछताछ करने के बाद उन्हें थाने बुला लिया.

पुलिस ने उन्हें एक युवक का शव यमुना किनारे मिलने की जानकारी दी. बाद में परिजनों ने मोर्चरी जा कर शव की पहचान शाहगंज के नगला मोहन निवासी 25 वर्षीय सनी के रूप में की. शव की शिनाख्त हो जाने के बाद पुलिस ने 24 नवंबर को शव का पोस्टमार्टम कराया. दूसरे दिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट आ गई. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मौत का कारण गला घोंटना व चोटों से होना आया था. इस से स्पष्ट हो गया कि हत्यारों ने युवक के साथ मारपीट कर गला दबा कर हत्या कर दी थी. इस के बाद सनी के पिता मुकेश ने एत्माद्दौला थाने में 27 नवंबर को हत्या का मुकदमा दर्ज कराया. रिपोर्ट में आरोप लगाया गया था कि बेटे को रेखा नाम की एक महिला ने फोन कर पार्टी के बहाने बुलाया था.

इस के बाद अपने साथी के साथ मिल कर हत्या कर दी. साक्ष्य मिटाने के लिए शव को ला कर यमुना किनारे फेंक दिया. इस संबंध में हत्या, साक्ष्य मिटाने और एससी/एसटी एक्ट में मुकदमा दर्ज किया गया. रिपोर्ट दर्ज होने के बाद पुलिस इस हत्याकांड में साक्ष्य जुटाने के काम में लग गई. पता चला कि मृतक सनी के पिता मुकेश अपनी पत्नी के साथ हरियाणा में रहते हैं. आगरा में उन के बेटे सनी और विक्की रहते थे. सनी के लापता होने की जानकारी मिलने पर वे आगरा आ गए थे.

पुलिस को जांच के दौरान पता चला कि 21 नवंबर की सुबह 11 बजे जब सनी अपने चाचा भोला के साथ बैठा था. तभी उस के मोबाइल पर बोदला निवासी रेखा ने काल की और पार्टी के लिए बोदला बुलाया था. रेखा ने सनी को अपने साथ मुकेश जाट के भी होने की जानकारी दी थी. फोन आने के बाद सनी चला गया था.

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21 नवंबर की शाम 6 बजे सनी ने मुकेश जाट के मोबाइल से अपनी मां से बात की थी. उस ने मां से हालचाल पूछने के बाद बताया था कि वह मुकेश और रेखा के साथ है. कुछ देर में घर आ जाएगा. उस ने मां को बताया कि उस के मोबाइल का बैलेंस खत्म हो गया है. आप भाई व चाचा को यह बात बता देना. दूसरे दिन दोपहर में रेखा सनी के घर पहुंची. उस ने भोला की पत्नी यानी सनी की चाची को सनी का कीपैड वाला मोबाइल दिया. उस मोबाइल में सिम और चिप नहीं थी. रेखा ने बताया कि सनी सिमकार्ड निकाल कर फैक्ट्री चला गया है. उस से यह मोबाइल घर पर देने को कहा.

जब सनी रात में घर नहीं आया तो परिजनों को चिंता हुई. इस पर परिजनों ने फैक्ट्री जा कर सनी को तलाशा. लेकिन उन्हें सनी नहीं मिला. पुलिस ने पूछताछ करने के साथसाथ अपने तौर पर मामले की छानबीन शुरू की. पुलिस को कुछ लोगों ने बताया कि सनी को मुकेश जाट, रेखा व 2 अन्य युवकों के साथ घटना की शाम आटो में बैठे देखा था. इस पर उन्हें टोका भी था. तब मुकेश ने कहा था कि पार्टी करने जा रहे हैं. इस के बाद वे लोग आटो में बैठ कर चले गए थे.

शक की सुई रेखा पर आ कर टिक गई. फोन लोकेशन के आधार पर कई लोगों से पूछताछ की. 3 दिसंबर को पुलिस ने टेढ़ी बगिया स्थित अंबेडकर पार्क से महिला रेखा को हिरासत में ले लिया. पुलिस ने उस के पास से एक मोबाइल बरामद किया. उसे हिरासत में ले कर पुलिस थाने लौट आई. थाने में उस से कड़ाई से पूछताछ की गई. तब रेखा ने सनी की हत्या का जुर्म कुबूल करते हुए हत्या में शामिल 3 अन्य लोगों के नाम बताए. इन में रेखा का प्रेमी मुकेश जाट के अलावा उस के 2 दोस्त विशाल व पवन राठौर भी शामिल थे.

तब इन में से एक आरोपी विशाल को भी पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया. इस हत्याकांड के पीछे की जो कहानी सामने आई, वह इस तरह निकली—

मुकेश जाट मूलरूप से भड़ाका, हाथरस का निवासी है. उस के मातापिता की मौत हो चुकी है. उस की एक बहन है. वह आगरा में नगला जगजीवनराम में रहता है. यहां आ कर आटो चलाने का काम करने लगा. उस की दोस्ती एक साल पहले बोदला निवासी रेखा से हुई थी. हुआ यह कि रेखा एक जूता फैक्ट्री में काम करती थी. मुकेश अपने आटो से रेखा को उस के घर से फैक्ट्री लाने ले जाने का काम करता था. इस के चलते दोनों में दोस्ती हो गई. जो धीरेधीरे प्यार में बदल गई. रेखा के पहले पति की मौत हो चुकी थी. पहले पति से 11 साल का एक बेटा है. पहले पति की मौत के बाद रेखा की दूसरी शादी रमेश से हो गई थी. रेखा अपने बेटे के साथ रमेश के साथ रहने लगी.

रेखा मनमौजी थी. वह रमेश का कहना भी नहीं मानती थी. उस के मन में जो आता, वह करती. रमेश रेखा की आदतों से परेशान रहता था. लेकिन चाह कर भी उस से कुछ कह नहीं पाता था. जिस जूता फैक्ट्री में रेखा काम करती थी, उसी में सनी भी दूसरे विभाग में काम करता था. एक महीने पहले सनी की नजर रेखा पर पड़ गई. चंचल और सुंदर रेखा सनी को भा गई. दोनों एक ही फैक्ट्री में काम करते थे. इसी दौरान दोनों में बातचीत हो जाती थी. इस के बाद दोनों की दोस्ती हो गई. दोनों ने एकदूसरे को अपनेअपने मोबाइल नंबर भी दे दिए. दोनों घंटों मोबाइल पर एकदूसरे से अपने दिल की बात करने लगे.

घटना से कुछ दिन पहले रेखा के प्रेमी मुकेश जाट ने अपनी प्रेमिका को फोन पर हंसहंस कर बात करते देख लिया. उस के तनबदन में आग लग गई. उस की प्रेमिका इतना हंसहंस कर किस के साथ बात कर रही है. उस ने रेखा से इस बारे में जब पूछा तो रेखा अंदर ही अंदर डर गई. बात घुमाते हुए उस ने बताया कि उसी की फैक्ट्री में काम करने वाला सनी था, जो उसे बारबार फोन करता है. वह उस से दोस्ती करना चाहता है. मुकेश रेखा से बहुत प्यार करता था. उस पर पैसा भी बहुत खर्च करता था. उस की हर फरमाइश पूरी करता था. उसे अपनी प्रेमिका के किसी दूसरे व्यक्ति से बात करते देखना बहुत नागवार गुजरा. उस ने रेखा से कहा कि वह सनी से बात करना बंद कर दे. रेखा ने वायदा किया कि वह सनी से बात नहीं करेगी.

कुछ दिन तो सब कुछ ठीक रहा, रेखा ने सनी से बात नहीं की. आग दोनों के दिलों में लगी हुई थी. रेखा और सनी आपस में फिर मिलने और बात करने लगे. इस पर मुकेश ने रेखा के जरिए सनी को पार्टी के बहाने बोदला बुलवाया. मुकेश ने सनी को रेखा से अपने संबंध की जानकारी दी. मुकेश ने सनी से रेखा से दूर रहने की हिदायत दी. इस पर सनी ने रेखा को छोड़ने से मना कर दिया. इस बात को ले कर दोनों में वादविवाद भी हुआ. मुकेश को यह बात बहुत बुरी लगी. लेकिन उस ने यह बात जाहिर नहीं होने दी. उस ने मन ही मन सनी को सबक सिखाने का फैसला ले लिया. इस बीच मुकेश ने अपने दोस्त आटो चालक विशाल और पवन राठौर को फोन कर के वहां बुला लिया.

मुकेश ने सनी की रेखा से दोस्ती कराने व इस खुशी में दारू पार्टी देने का झांसा देते हुए अपने दोस्तों के साथ आटो से गोकुल नगर ले गया. वहां सभी ने बैठ कर शराब पी. सनी को जम कर शराब पिलाई गई. उस समय रात घिर आई थी. इस के बाद आटो से उसे यमुना किनारे सुनसान रास्ते पर ले गए, सनी को ज्यादा नशा हो गया था. इस का फायदा उठाते हुए सनी को आटो से उतार कर मुकेश व उस के दोस्तों ने लातघूंसों से पीटा फिर उस की गला दबा कर हत्या कर दी और लाश यमुना किनारे फेंक कर सभी लोग फरार हो गए.

सनी की हत्या के आरोप में रेखा व विशाल को 3 दिसंबर, 2021 को जेल भेजे जाने के बाद पुलिस ने सभी बिंदुओं पर गहनता से जांच शुरू कर दी और अन्य आरोपियों की तलाश में जुट गई. सनी की हत्या को एक महीना बीत गया था. लेकिन पुलिस के हाथ खाली थे. जबकि नामजद मुख्य हत्यारोपी मुकेश जाट व उस के साथी पवन राठौर को पुलिस अब तक गिरफ्तार नहीं कर सकी थी. इस से मृतक के परिजनों में रोष बढ़ता जा रहा था. पुलिस ने अन्य हत्यारोपियों मुकेश जाट व पवन राठौर की गिरफ्तारी के लिए कई जगहों पर दबिश भी दी. लेकिन मुकेश का कोई सुराग नहीं लग रहा था. इस पर पुलिस ने उसपर 25 हजार रुपए का ईनाम घोषित कर दिया.

25 दिसंबर, 2021 की रात लगभग ढाई बजे पुलिस टेढ़ी बगिया पर चैकिंग कर रही थी. तभी पुलिस को मुखबिर से जानकारी मिली कि सनी हत्याकांड को अंजाम देने वाला मुख्य हत्यारोपी मुकेश जाट शोभा नगर से अपने घर जगजीवनराम नगर बाइक से जा रहा है. इस पर एसओजी टीम को बुला लिया गया. कुछ देर बाद मुकेश जैसे ही वहां से गुजरा पुलिस ने रुकने का इशारा किया, लेकिन उस ने बाइक की स्पीड बढ़ा दी. कच्चे रास्ते पर बाइक फिसल गई. पुलिस के घेरने पर मुकेश फायरिंग करने लगा. जवाबी काररवाई में उस के पैर में गोली लगने पर वह घायल हो गया. पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया. उस के कब्जे से तमंचा, 3 कारतूस, 2 खोखा व बाइक बरामद कर ली. घायल मुकेश को इलाज के लिए सरकारी अस्पताल में भरती कराया गया.

एसपी (सिटी) विकास कुमार ने प्रैस कौन्फ्रैंस में ईनामी मुख्य हत्यारोपी की गिरफ्तारी की जानकारी दी. पता चला कि मुकेश जाट शातिर वाहन चोर है. उस पर विभिन्न थानों में 15 मुकदमे दर्ज हैं. थाना न्यू आगरा में दर्ज गैंगस्टर के मुकदमे में मुकेश वांछित था और 3 साल से पुलिस को चकमा दे रहा था. उस पर 25 हजार का ईनाम भी घोषित था. पुलिस पूछताछ में मुकेश जाट ने अपने साथियों के साथ सनी की हत्या का जुर्म कुबूल कर लिया. उस ने बताया कि उस की दोस्ती एक साल से रेखा से थी. बाद में सनी बीच में आ गया. वह रेखा से दोस्ती करना चाहता था. मुकेश को यह दोस्ती पसंद नहीं थी. उस ने सनी को रेखा से दूर रहने की हिदायत दी लेकिन वह नहीं माना. इस पर अपने 2 दोस्तों की मदद से उस की हत्या कर दी.

फरारी के दौरान मुकेश ने अपने साथी आशीष प्रजापति के साथ एग्रीकल्चर फैक्ट्री फाउंड्री नगर से 16 दिसंबर को बाइक चोरी कर ली थी. रुपए खत्म होने पर वह अपने घर जा रहा था. एसएसपी सुधीर कुमार सिंह ने सनी हत्याकांड का परदाफाश करते हुए बताया कि हत्याकांड में शामिल रेखा, पवन व मुकेश जाट को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया गया है. जबकि मुकेश जाट के साथी पवन राठौर ने अदालत में आत्मसमर्पण कर दिया है. इस प्रकार सनी हत्याकांड के सभी आरोपी जेल जा चुके हैं. सनी अविवाहित था. रेखा चंचल तितली की तरह थी. एक फूल से पराग लेने के बाद दूसरे फूल पर मंडराती थी. इसी के चलते उस ने अपने मोहपाश में सनी को बांध लिया था.

सनी को उस की फितरत की जानकारी नहीं थी. यदि वह दूसरे की प्रेमिका से दोस्ती के चक्कर में पड़ कर उस पर अपना अधिकार नहीं जमाता तो सनी को अपनी जान नहीं गंवानी पड़ती. Romantic Love Story

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Love Crime: झोपड़ी में बुझी तन की आग

Love Crime: बात मध्य प्रदेश के सिंगरौली जिले के चितरंगी थानांतर्गत धवई गांव की है. थानाप्रभारी अपने औफिस में दैनिक कामों में लगे हुए थे. तभी उन्हें चितरंगी-कर्थुआ रोड पर स्थित एक झोपड़ी में किसी महिला की लाश मिलने की सूचना मिली. सूचना मिलते ही पुलिस टीम के साथ वह पर घटनास्थल के लिए रवाना हुए. उन के वहां पहुंचने से पहले ही काफी भीड़ वहां जुट चुकी थी. थानाप्रभारी ने भीड़ में मौजूद एक व्यक्ति से इस बारे में बात की.

उस व्यक्ति ने बताया कि हम गांव वालों को काफी दिनों से आसपास में अजीब सी दुर्गंध आ रही थी. हमें लगा कि कोई जानवर मरा होगा, उसी से बदबू आ रही होगी. किंतु ऐसा नहीं था. यह बदबू तो रसवंती नामक महिला की झोपड़ी से आ रही थी. पुलिस द्वारा तुरंत मौके का बारीकी से निरीक्षण किया गया, वहां चारपाई के नीचे रसवंती की लाश पड़ी थी, जो पूरी तरह से सड़ चुकी थी. मामले की गंभीरता को देखते हुए थानाप्रभारी डी.एन. राज ने इस की सूचना अपने एसडीपीओ राजीव पाठक को दी. सूचना मिलते ही वह तत्काल मौके पर पहुंचे. यह बात 11 नवंबर, 2021 की थी.

लाश को देखने के बाद यह तय कर पाना काफी मुश्किल था कि यह मामला स्वाभाविक मौत का है या हत्या का. पुलिस ने सुराग तलाशने के लिए शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. जिस के बाद गांव वालों से पूछताछ शुरू की, लेकिन कोई खास जानकारी हाथ नहीं लगी. पोस्टमार्टम रिपोर्ट के आने पर पता चला कि रसवंती की मृत्यु गला घोटने से हुई थी. जिस के बाद एसडीपीओ राजीव पाठक के निर्देश पर चितरंगी थाने में अज्ञात के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज कर जांच प्रारंभ कर दी.

चूंकि महिला की सुरक्षा एवं उन से जुड़े मामले शासन के उच्च प्राथमिकता वाले विषयों में से हैं, जिस के कारण एसपी (सिंगरौली) वीरेंद्र कुमार सिंह स्वयं ही इस मामले की जांच को खुद आगे बढ़े. एसडीपीओ राजीव पाठक ने सब से पहले गांव वालों से पूछताछ की, जिस में पता चला कि रसवंती शादीशुदा और एक बच्चे की मां थी, मगर लंबे समय से अपने पति व बच्चे को छोड़ कर धवई गांव में अपने भाई के साथ रहती थी. जिस के बाद पारिवारिक झगड़ों के चलते वह गांव से बाहर चितरंगी और कर्थुआ रोड पर एक झोपड़ी बना कर अकेली ही रहने लगी थी.

चूंकि रसवंती अकेली रहती थी और काफी समय से गांव में ही रहती थी, इस कारण उस के बारे में जो भी जानकारी मिल सकती थी, वह गांव वालों से ही मिलती. लेकिन गांव वालों का सहयोग पुलिस को नहीं मिला. तब थानाप्रभारी ने अपने मुखबिरों को सक्रिय किया और अपने मुखबिरों द्वारा जानकारी हासिल करने का प्रयास शुरू कर दिया था. इस कोशिश में कई महत्त्वपूर्ण जानकारी पुलिस के हाथ लगी थीं. पता चला कि रसवंती कोई काम नहीं करती थी. वह केवल एक छोटी सी किराने की दुकान लगा कर अपना गुजारा करती थी, जोकि काफी नहीं था. पुलिस को पता चला कि वह इस दुकान की आड़ में अपना जिस्म बेच कर गुजारा चलाया करती थी.

इस की जानकारी मिलने पर थानाप्रभारी को यह मामला अवैध संबंधों का लगा. एसडीपीओ के निर्देश पर ऐसे लोगों की जानकारी जुटाने का काम शुरू किया गया जो अकसर रसंवती के संपर्क में रहते थे या उस से मिलने झोपड़ी में आया करते थे. जांच के दौरान पुलिस को इस बात की जानकारी मिली कि रसवंती की झोपड़ी में बिजली नहीं थी. उसे अपने काम के लिए प्राकृतिक रोशनी पर ही निर्भर रहना पड़ता था. जिस वजह से वह अपने पास टौर्च या मोबाइल तो रखती ही होगी, लेकिन पुलिस को ये दोनों की सामान मौके से नहीं मिले. इस से शक हुआ कि शायद मोबाइल और टौर्च दोनों ही हत्यारे अपने साथ ले गए होंगे. एसडीपीओ ने गांव वालों से पूछताछ करतेकरते इतना तो समझ लिया था कि हत्यारा इसी गांव का होगा.

इसलिए उन्होंने जांच के परिणामों को गांव वालों के बीच फैलाना शुरू कर दिया. इस का नतीजा भी जल्द ही सामने आ गया, जब 2 दिनों बाद गांव में एक जगह पर रसवंती की टौर्च पड़ी मिली, जो हत्या के बाद से ही गायब थी. टौर्च जिस स्थान पर मिली, उस के आसपास रहने वालों की सूची तैयार करवाई गई तथा इस बात की जानकारी जुटाई कि इन में से कौन रसवंती से रात में मिलने आया करते थे. इस में से एक नाम सामने आया 22 साल के प्रिंस यादव का.

पुलिस को जानकारी मिली कि भले ही प्रिंस रसंवती से आधे से भी कम उम्र का था, लेकिन रसवंती के पास उस का आनाजाना भी काफी था. यहां तक कि शादी होने के बाद भी प्रिंस ने रसवंती के यहां आनाजाना नहीं छोड़ा था. इस जानकारी के बाद पुलिस ने प्रिंस के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकलवाई, जिस में पता चला कि प्रिंस और रसवंती के बीच अकसर फोन पर काफीकाफी देर तक बातचीत होती रहती थी. इतना ही नहीं, लाश मिलने के 15 दिन पहले जिस रोज रसवंती का फोन बंद हुआ था. तब उस के फोन पर आखिरी बार बात प्रिंस ने ही की थी. इसलिए पुलिस ने प्रिंस यादव को हिरासत में ले कर पूछताछ की, जिस में पहले तो वह पुलिस को गुमराह करने का प्रयास करने लगा.

लेकिन वह ज्यादा देर टिक नहीं पाया और उस ने अपने दोस्त गांव के ही युवक अजीत यादव के साथ मिल कर रसवंती की हत्या करने की बात स्वीकार कर ली. इस के बाद पुलिस ने गांव से अजीत यादव को भी गिरफ्तार कर लिया, जिस के बाद हत्या के पीछे की कहानी इस प्रकार सामने आई—

पति को छोड़ कर मायके लौटी रसवंती कुछ साल तक तो भाई के घर में आराम से रही, लेकिन समय के साथ उसे अपनी जिंदगी में एक पुरुष की कमी खलने लगी थी. पति को छोड़ कर अकेली रह रही रसवंती पर गांव के कुछ युवकों की भी नजर थी और यह बात रसवंती भी जानती थी. फिर उस ने उन्हीं युवकों में से एक को चुन लिया और अपने तन की प्यास बुझाने का रास्ता खोज निकाला. युवक से दोस्ती हुई तो वहां जरूरत पड़ने पर उसे खर्च करने के लिए पैसे भी देने लगा. यहीं से रसवंती को अपनी देह की कीमत का पता चला. उसे लगा कि यदि वह 2-4 युवकों को अपने पास आने का मौका दे तो उस की शारीरिक जरूरत तो पूरी होगी ही, साथ ही कुछ आमदनी भी हो जाया करेगी.

यही सोच कर उस ने गांव के कई युवकों से संबंध बना लिए थे. रसवंती के हरकतों की यह जानकारी जब उस के भाई को हुई तो उस ने उसे टोका तो 10 साल पहले रसवंती ने भाई का घर छोड़ दिया और खुद एक झोपड़ी बना कर रहने लगी. चूंकि यह झोपड़ी रसवंती की अपनी थी तो वह जिसे चाहे उसे वहां मिलने के लिए बुला लिया करती थी. इस के अलावा उस ने दिखावे के लिए वहां एक छोटी सी दुकान भी लगा ली थी. वक्त के साथ रसवंती की उम्र बढ़ने लगी, इसलिए गांव के युवकों ने उस में दिलचस्पी लेनी कम कर दी. जो उस की उम्र के थे, वे घरपरिवार वाले थे सो जब रसवंती के पास आने वाले मर्दों की संख्या घटने लगी तो रसवंती ने नया दांव खेला. उस ने कम उम्र के लड़कों को सैक्स का चस्का लगाना शुरू किया.

प्रिंस यादव भी रसवंती की इस योजना का शिकार 16 साल की उम्र में ही बन गया था. चूंकि उस वक्त तक प्रिंस के मन में सैक्स के प्रति एक नया ही नशा था, सो वह रसवंती को ही सब से बड़ा सुख मान कर उस के पास आने लगा. रसवंती इश्क तो किसी से करती नहीं थी. उस के लिए तो यह काम भी पैसा कमाने का एक जरिया था. इसलिए प्रिंस से भी वह अपनी पूरी कीमत वसूलती थी. वह रसवंती के पास केवल सैक्स का सुख लेने आया था, लेकिन धीरेधीरे वह उस का दीवाना हो गया. वह लगभग रोज ही उस से मिलने आने लगा.

कहना नहीं होगा कि अब रसवंती प्रिंस के लिए प्यार बन गई थी. जबकि प्रिंस, रसवंती के लिए एक सौदा था, इसलिए वह आए दिन उस से पैसों की मांग करती रहती थी. प्रिंस भी उसे यदाकदा खर्च के लिए पैसे देता रहता था. प्रिंस 21 साल का हो गया तो उस के घर वालों ने उस की शादी कर दी. लेकिन पत्नी के आने के बाद भी उस का रसवंती के पास जाना कम नहीं हुआ. दरअसल, रसवंती के लिए सैक्स एक धंधा था, इसलिए वह जानती थी कि उस के पास दूसरों से कुछ अलग नहीं होगा तब तक उस के पास ग्राहक क्यों आएगा. इसलिए प्रिंस जैसे युवकों को वह हर उस तरीके से संतुष्ट करने को राजी रहती थी. जिस की मांग युवा वर्ग में अधिक है.

इस की वह कीमत भी खूब वसूलती थी. लेकिन वह भूल चुकी थी कि प्रिंस के मन में जो पागलपन 16 साल में था, वह इन 6 सालों मे नहीं रह गया. दूसरा प्रिंस की शादी भी हो चुकी थी, इसलिए रसवंती उस की जरूरत भी नहीं रह गई थी. रसंवती द्वारा पैसों की मांग उस के लिए अब भारी पड़ने लगी थी. जबकि उम्र बढ़ने से दीवानों की संख्या कम हो जाने के कारण रसवंती प्रिंस से ज्यादा से ज्यादा पैसा वसूलना चाहती थी. इसलिए दोनों के बीच पैसों को ले कर विवाद होने लगा था. इस से तंग आ कर प्रिंस ने रसवंती के पास जाना बंद कर दिया. रसवंती जवान होती तो दूसरा दीवाना खोज लेती. अब 48 साल की उम्र में उसे कोई प्रिंस के जैसा दीवाना तो मिलने से रहा, इसलिए वह प्रिंस पर मिलने के आने के लिए दबाव बनाने लगी.

उस का कहना था कि अगर प्रिंस उस से मिलने नहीं आएगा तो वह पूरे गांव में पिं्रस के साथ अपने संबंधों का ढिंढोरा पीट देगी. प्रिंस इस बात से परेशान हो गया तो उस ने अपने दोस्त अजीत यादव के साथ मिल कर रसवंती की आवाज हमेशा के लिए खामोश करने की ठान ली. इस के लिए योजना बना कर दोनों दोस्त 27 अक्तूबर, 2021 की शाम रसवंती के पास पहुंचे, जहां उसे कुछ रुपए दे कर दोनों ने बारीबारी से पहले तो रसवंती के साथ संबंध बनाए. फिर साथ में लाई जानवर बांधने की रस्सी से उस का गला दबा कर हत्या कर दी और लाश को वहीं चारपाई के नीचे डाल कर घर आ गए.

चूंकि रसवंती गांव में बदनाम थी, इसलिए उस के गांव में न दिखने पर भी किसी ने न तो उस की चर्चा की और न ही खोजखबर ली. रसवंती की हत्या का पता उस समय चला, जब उस की लाश सड़ जाने के कारण फैल रही बदबू से लोग परेशान हो गए और उन्होंने पुलिस को खबर दी. पुलिस ने आरोपी प्रिंस यादव और अजीत यादव से पूछताछ कर उन्हें कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया. Love Crime

Hindi Stories: संबंधों की कच्ची दीवार : रिश्तें बने बोझ

Hindi Stories: 36 वर्षीया रीता मनचली भी थी और महत्त्वाकांक्षी भी. कस्बे के तमाम लोग उस से नजदीकियां बढ़ाना चाहते थे. मगर पिछले 4 सालों से उस के मन में बसा हुआ था, पड़ोस में रहने वाला 41 वर्षीय राजेंद्र सिंह. वह उस का रिश्तेदार भी था और हर समय उस का ध्यान भी रखता था. शादीशुदा होते हुए भी रीता और राजेंद्र के संबंध बहुत गहरे थे. राजेंद्र 3 बच्चों का बाप था तो रीता भी 2 बच्चों की मां थी. राजेंद्र और रीता का पति मनोज दोनों ईंट भट्ठे पर काम करते थे. वहीं पर दोनों के बीच नजदीकियां बनी थीं.

राजेंद्र व रीता के संबंधों की जानकारी रीता के पति मनोज को भी थी और कस्बे के लोगों को भी. इस बाबत रीता के पति मनोज ने दोनों को समझाने का काफी प्रयास भी किया था, मगर न तो रीता मानी और न ही राजेंद्र. उन दोनों का आपस में मिलनाजुलना चलता रहा. दोनों का लगाव इस स्थिति तक पहुंच गया था कि दोनों एकदूसरे के बगैर नहीं रह सकते थे.

इसी दौरान 16 मार्च, 2021 को रीता गायब हो गई. उस के पति मनोज ने उसे सभी संभावित जगहों पर ढूंढा. वह नहीं मिली तो वह झबरेड़ा थाने जा पहुंचा. थानाप्रभारी रविंद्र कुमार को उस ने बताया, ‘‘साहब, कल मेरी पत्नी रीता काम से अपनी सहेली हुस्नजहां के साथ बैंक गई थी लेकिन आज तक वापस नहीं लौटी है. मैं उसे आसपास व अपनी सभी रिश्तेदारियों में जा कर तलाश कर चुका हूं, मगर उस का कुछ पता नहीं चल सका.’’

थानाप्रभारी रविंद्र कुमार ने रीता की बाबत मनोज से कुछ जानकारी ली. साथ ही उस का मोबाइल नंबर भी नोट कर लिया. पुलिस ने रीता की गुमशुदगी दर्ज कर मनोज को घर भेज दिया. थानाप्रभारी रविंद्र कुमार ने रीता की गुमशुदगी को गंभीरता से लिया. उन्होंने रीता के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई और इस प्रकरण की जांच थाने के तेजतर्रार थानेदार संजय नेगी को सौंप दी. मामला महिला के लापता होने का था, इसलिए रविंद्र कुमार ने इस बाबत सीओ पंकज गैरोला व एसपी (क्राइम) प्रदीप कुमार राय को जानकारी दी.

अगले दिन रीता के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स पुलिस को मिल गई. संजय नेगी ने विवेचना हाथ में आते ही क्षेत्र में लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज खंगाली. सीसीटीवी कैमरों की फुटेज में रीता अपने पड़ोसी राजेंद्र के साथ बाइक पर बैठ कर जाती दिखाई दी.

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इस के बाद शक के आधार पर एसआई संजय नेगी ने राजेंद्र को हिरासत में ले लिया और उस से रीता के लापता होने के बारे में गहन पूछताछ की. पूछताछ के दौरान राजेंद्र पुलिस को बरगलाते हुए कहता रहा कि उस की रीता से रिश्तेदारी है और उस ने 2 दिन पहले रीता को थोड़ी दूर तक बाइक पर लिफ्ट दी थी. लेकिन अब रीता कहां है, उसे इस बाबत कोई जानकारी नहीं है. शाम तक राजेंद्र इसी बात की रट  लगाए रहा. शाम को अचानक ग्रामीणों ने पुलिस को सूचना दी कि सैदपुरा के पास गंगनहर में एक महिला का शव तैर रहा है.

इस सूचना पर थानेदार संजय नेगी अपने साथ रीता के पति मनोज को ले कर वहां पहुंचे. संजय नेगी ने ग्रामीणों की मदद से शव को गंगनहर से बाहर निकलवाया. मनोज ने शव को देखते ही पहचान लिया कि वह शव उस की पत्नी रीता का ही है. शव के गले पर निशान थे. पुलिस ने मौके की काररवाई निपटा कर शव पोस्टमार्टम के लिए राजकीय अस्पताल रुड़की भेज दिया. रीता का शव बरामद होने की सूचना पा कर एसपी (क्राइम) प्रदीप कुमार राय थाना झबरेड़ा पहुंचे.

राय ने जब राजेंद्र से पूछताछ की तो वह अपने को बेगुनाह बताने लगा. राय व थानाप्रभारी रविंद्र कुमार ने जब सख्ती से राजेंद्र से पूछताछ की तो वह टूट गया. उस ने रीता की हत्या करना स्वीकार कर लिया और उस से पिछले कई सालों से चल रहे आंतरिक संबंधों को भी कबूल कर लिया. रीता की हत्या करने की राजेंद्र ने पुलिस को जो जानकारी दी, वह इस तरह थी—

राजेंद्र जिला हरिद्वार के कस्बा झबरेड़ा स्थित एक ईंट भट्ठे पर पिछले 20 साल से काम कर रहा था. उस के परिवार में उस की पत्नी सुनीता, बेटी प्रिया (21), दूसरी बेटी खुशी (15) व बेटा कार्तिक (12) था. ईंट भट्ठे पर काम कर के राजेंद्र को 15 हजार रुपए प्रतिमाह की आमदनी हो जाती थी. इस तरह से राजेंद्र के परिवार की गाड़ी अच्छी से चल रही थी. उसी ईंट भट्ठे पर रीता का पति मनोज भी काम करता था.

साथ काम करतेकरते मनोज और राजेंद्र में दोस्ती हो गई. फिर दोनों का एकदूसरे के घर आनाजाना शुरू हो गया. इस आनेजाने में रीता और राजेंद्र के बीच नाजायज संबंध बन गए. वह दोनों आपस में दूर के रिश्तेदार भी थे. दोनों के संबंधों की खबर उन के घर वालों को ही नहीं बल्कि गांव वालों को भी हो गई थी. इस के बावजूद उन्होंने एकदूसरे का साथ नहीं छोड़ा. उन के संबंध करीब 7 सालों तक बने रहे. पिछले साल अचानक राजेंद्र व रीता के जीवन में एक ऐसा मोड़ आ गया कि दोनों के बीच में दूरियां बढ़ने लगीं. 30 मार्च, 2020 का दिन था. उस समय देश में लौकडाउन चल रहा था. उस दिन जब राजेंद्र से रीता मिली तो उस ने राजेंद्र के सामने शर्त रखी कि वह उस के साथ शादी कर के अलग घर में रहना चाहती है.

रीता की बात सुन कर राजेंद्र सन्न रह गया. उस ने रीता को समझाया कि अब इस उम्र में यह सब करना हम दोनों के लिए ठीक नहीं होगा, क्योंकि हम दोनों पहले से ही शादीशुदा व बड़े बच्चों वाले हैं. अलग रहने से हम दोनों के परिवार वालों की जगहंसाई होगी. हम किसी परेशानी में भी पड़ सकते हैं. राजेंद्र के काफी समझाने पर भी रीता नहीं मानी और राजेंद्र से शादी करने के लिए जिद करने लगी. खैर उस वक्त तो राजेंद्र किसी तरह से रीता को समझाबुझा कर वापस आ गया. इस के बाद उस ने रीता से दूरी  बनानी शुरू कर दी. उस ने उस का मोबाइल अटैंड करना कम कर दिया और उस से कन्नी काटने लगा.

अपनी उपेक्षा से आहत रीता घायल शेरनी की तरह क्रोधित हो गई. उस ने मन ही मन में राजेंद्र से बदला लेने का निश्चय कर लिया. उस दौरान राजेंद्र अपनी बड़ी बेटी प्रिया की शादी के लिए वर की तलाश में था. राजेंद्र अपनी बिरादरी के लोगों से शादी के लिए प्रिया के संबंध में बात करता रहता था. जब इस बात का पता रीता को चला कि राजेंद्र अपनी बेटी के लिए लड़का तलाश रहा है तो उस ने राजेंद्र की बेटी की शादी में अड़ंगा लगाने का निश्चय किया. इस के बाद जो भी लोग प्रिया को शादी के लिए देखने आते रीता उन लोगों से संपर्क करती और उन्हें बताती कि राजेंद्र की बेटी प्रिया का किसी से चक्कर चल रहा है.

रीता के मुंह से यह सुन कर राजेंद्र की बेटी से शादी करने वाले लोग शादी का विचार बदल देते थे. इस तरह रीता ने प्रिया से शादी करने वाले 2 परिवारों को झूठी व भ्रामक जानकारी दे कर प्रिया के रिश्ते तुड़वा दिए थे. जब इस बात की जानकारी राजेंद्र को हुई तो वह तिलमिला कर रह गया. धीरेधीरे समय बीतता गया. वह 28 फरवरी, 2021 का दिन था. उस दिन अचानक एक ऐसी घटना घट गई, जिस से राजेंद्र तड़प उठा और उस ने रीता की हत्या करने की योजना बना डाली. हुआ यूं कि 28 फरवरी, 2021 को कस्बे में रविदास जयंती मनाई जा रही थी. उस समय राजेंद्र की छोटी बेटी खुशी ट्यूशन पढ़ कर वापस घर जा रही थी. तभी रास्ते में उसे रीता का बेटा सौरव खड़ा दिखाई दिया.

खुशी कुछ समझ पाती, इस से पहले ही सौरव ने खुशी के साथ अश्लील हरकतें करनी शुरू कर दीं. इस पर खुशी ने शोर मचा दिया. खुशी के शोर मचाने पर सौरव वहां से भाग गया. खुशी ने घर आ कर इस छेड़खानी की जानकारी अपने पिता राजेंद्र को दी. इस के बाद राजेंद्र ने रीता को रास्ते से हटाने की योजना बनाई. राजेंद्र रीता की हत्या का तानाबाना बुनने लगा. दूसरी ओर रीता राजेंद्र के इस खतरनाक इरादे से बेखबर थी. योजना के तहत राजेंद्र ने 15 मार्च, 2021 को रीता को फोन कर के कहा कि वह उसे 20 हजार रुपए देना चाहता है, इस के लिए उसे मंगलौर आ कर मिलना पड़ेगा.

उस की इस बात पर लालची रीता राजी हो गई. 16 मार्च को रीता उस के साथ बाइक पर बैठ कर मंगलौर के लिए चल पड़ी. जब दोनों सैदपुरा की गंगनहर पटरी पर पहुंचे तो राजेंद्र ने बाइक रोक कर रीता से कहा, ‘‘मैं तुम्हें सरप्राइज दे कर 20 हजार रुपए देना चाहता हूं, तुम जरा मुंह दूसरी ओर घुमा लो.’’

जैसे ही रीता ने मुंह दूसरी ओर घुमाया तो राजेंद्र ने रीता के गले में लिपटी चुन्नी से उस का गला घोंट दिया. रीता की हत्या के सबूत मिटाने के लिए उस ने उस का मोबाइल व चुन्नी गंगनहर के पानी में फेंक दिए. फिर वह बाइक से अपने घर लौट आया.

पुलिस ने राजेंद्र के बयान दर्ज कर लिए और इस प्रकरण में उस के खुलासे के बाद इस मुकदमे में धारा 302 व 201 बढ़ा दी. एसआई संजय नेगी ने अभियुक्त की निशानदेही पर गंगनहर की पटरी से सही झाडि़यों में फंसी रीता की चुन्नी बरामद कर ली. रीता की पोस्टमार्टम रिपोर्ट में उस की मौत का कारण गला घोंटने से दम घुटना बताया गया. राजेंद्र से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने उसे कोर्ट में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. Hindi Stories

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित