बहन के प्रेमी के साथ मिल कर रची अपने ही अपहरण की साजिश

बात 12 दिसंबर, 2018 की है. भोपाल के ऐशबाग के टीआई अजय नायर रात 8 बजे के करीब अपने औफिस में थे तभी ऐशबाग के रहने वाले शील कुमार अपनी 24 वर्षीय बेटी रुचिका चौबे के साथ थाने पहुंचे.

उन्होंने बताया कि उन का 19 वर्षीय बेटा आयुष शाम को किसी से मिलने एक कोचिंग की तरफ घर से निकला था. लेकिन इस के कुछ देर बाद ही बेटे के मोबाइल फोन से किसी ने काल कर के कहा कि आयुष उस के कब्जे में है. बेटे को छोड़ने के बदले उस ने एक करोड़ रुपए की फिरौती मांगी. शील कुमार ने बेटे के अपहरण की रिपोर्ट दर्ज कर उसे बरामद करने की मांग की.

मामला अपहरण का था, इसलिए टीआई ने उसी समय सूचना एसपी राहुल लोढ़ा व एडीशनल एसपी संजय साहू तथा जहांगीरबाद सीएसपी सलीम खान को भी दे दी. सूचना मिलते ही दोनों पुलिस अधिकारी ऐशबाग थाने पहुंच गए.

शील कुमार अपनी बेटी के साथ थाने में ही मौजूद थे. एसपी राहुल लोढा ने बाप बेटी दोनों से गहन पूछताछ की. पर उन की कहानी एसपी साहब के गले नहीं उतरी. इस का कारण यह था कि शील कुमार एक निजी बस कंपनी में ड्राइवर की नौकरी करते थे. उन का वेतन इतना कम था कि घर भी ठीक से नहीं चल सकता था. जबकि उन की बेटी रुचिका एक बीमा कंपनी में 14 हजार रुपए महीने की सैलरी पर नौकरी कर रही थी.

जाहिर है, कोई बदमाश एक करोड़ रुपए की फिरौती के लिए ऐसे साधारण परिवार के बेटे का अपहरण नहीं करेगा. बाप बेटी ने यह भी बताया कि आयुष के घर से निकलने के कुछ ही घंटे बाद बदमाश ने फिरौती की रकम के लिए फोन किया था. जबकि बदमाश किसी का अपहरण कर के 2-4 दिन बाद फिरौती की मांग तब करते हैं जब पीडि़त परिवार टूट चुका होता है.

फिरौती के लिए शील कुमार के घर जो फोन काल आई थी वह भी आयुष के फोन से की गई थी. बाद में फोन स्विच्ड औफ कर दिया गया था. बहरहाल, पुलिस ने शील कुमार और उन की बेटी से जरूरी जानकारी लेने के बाद आयुष के अपहरण की रिपोर्ट दर्ज कर ली और उन्हें यह आश्वासन दे कर घर भेज दिया कि पुलिस जल्द ही आयुष को तलाश लेगी.

इस के बाद एसपी के निर्देशन में थानापुलिस आयुष को तलाशने लगी. पुलिस ने आयुष के फोन नंबर को सर्विलांस पर लगा दिया था. इस के अलावा पुलिस ने जांच कर यह भी पता लगा लिया कि जिस समय आयुष के फोन से फिरौती की काल की गई, उस समय उस की लोकेशन बीना शहर में थी.

इस के बाद फोन बंद कर दिया गया था. कोई और रास्ता मिलते न देख पुलिस अपहर्त्ताओं के फोन आने का इंतजार करने लगी. पुलिस ने शील कुमार को समझा दिया था कि उन्हें फोन पर अपहर्त्ताओं से कैसे बात करनी है.

एक तरफ पुलिस आयुष का पता लगाने में जुटी हुई थी, वहीं दूसरी ओर उस पर आयुष को सुरक्षित बरामद करने का दबाव बढ़ता जा रहा था. आयुष की बहन रुचिका और उसी क्षेत्र में रहने वाला उन के परिवार का पुराना परिचित गौरव जैन थानाप्रभारी से मिलने रोज थाने आते और आयुष के बारे में जल्द पता लगाने की मांग करते थे.

अपहर्त्ता ने बताई जगह

पुलिस ने अपने मुखबिरों का जाल फैला रखा था. आयुष के साथ पढ़ाई कर रहे उस के दोस्तों से भी आयुष के बारे में पूछताछ की कि उस की किसी से कोई दुश्मनी तो नहीं थी या किसी लड़की के साथ प्यार का चक्कर तो नहीं था. दोस्तों ने दोनों ही बातों से इनकार किया. पुलिस को कोई ऐसा ठोस सुराग हाथ नहीं मिला, जिस से जांच की काररवाई आगे बढ़ पाती.

उधर समय बीतने के साथ अपहर्त्ता बारबार फोन कर के आयुष के परिवार पर जल्द से जल्द फिरौती की रकम पहुंचाने का दबाव बना रहे थे. लेकिन समस्या यह थी कि वह हर बार नई जगह से फोन करते थे. 24 दिसंबर को एक बदमाश ने आयुष के पिता को फोन कर के धमकी दी और कहा कि वह कल यानी 25 दिसंबर को दोपहर में सीहोर के क्रिसेन वाटर पार्क पर पैसा ले कर पहुंच जाए. पैसे मिलने के बाद आयुष को रिहा कर दिया जाएगा.

शील कुमार ने यह बात एडीशनल एसपी संजय साहु और टीआई अजय नायर को बता दी. एसपी ने इस बात से अनुमान लगा लिया कि बदमाश बहुत चालाक हैं. क्योंकि 25 दिसंबर को प्रदेश में नई सरकार का शपथ ग्रहण समारोह था और आला अधिकारियों को उस समारोह में व्यस्त रहना था.

लेकिन एडीशनल एसपी संजय साहू यह मौका हाथ से जाने नहीं देना चाहते थे, इसलिए उन्होंने टीआई के अलावा अन्य पुलिस टीमों को सादा कपड़ों में सुबह से ही सिहोर के क्रिसेन वाटर पार्क में तैनात कर दिया ताकि अपहर्त्ता किसी भी हाल में बच न पाएं.

पुलिस को यह पता लग गया था कि 24 दिसंबर को अपहर्त्ता के फोन की लोकेशन विदिशा जिले के गंज वासोदा में थी. बहरहाल पुलिस ने सुबह से ही क्रिसेन वाटर पार्क में घेराबंदी कर दी और शपथ ग्रहण कार्यक्रम से फुरसत होते ही एडीशनल एसपी भी सादा कपड़ों में वहां जा पहुंचे. पुलिस वहां दिनभर नजरें गड़ाए रही लेकिन शील कुमार से रुपयों से भरा बैग लेने कोई नहीं पहुंचा, इसलिए पुलिस टीम निराश हो कर शाम को वापस लौट आई. लेकिन इस बीच टीआई अजय नायर को आशा की एक किरण नजर आने लगी थी.

हुआ यूं कि घर वापस आने के कुछ देर बाद ही शील कुमार के पास अपहर्त्ता की तरफ से फोन आया जिस में उस ने पुलिस को साथ लाने के लिए उन्हें भद्दीभद्दी गालियां दीं. साथ ही धमकी भी दी कि आगे से पुलिस को साथ ले कर आए तो आयुष की लाश तुम्हारे घर भेज दी जाएगी. यह सुन कर शील कुमार घबरा गए. उन्होंने बदमाश की इस नई धमकी के बारे में टीआई अजय नायर को भी बता दिया.

पुलिस को मिली जांच की सही दिशा

अब तक पुलिस बाहरी लोगों पर ही शक कर रही थी. अब वह समझ गई कि आयुष के परिवार के साथ ऐसा व्यक्ति मिला हुआ है जो उन की सारी गतिविधियों की जानकारी बदमाशों तक पहुंचा रहा है. इसीलिए टीआई अजय नायर ने शील कुमार से पूछा कि ‘‘आप के अलावा आप के परिवार में या फिर जानपहचान वालों में से ऐसा कौन व्यक्ति है जिसे पुलिस की एकएक गतिविधि की जानकारी मिल रही है.’’

‘‘सर, मैं अपनी बेटी रुचिका के अलावा और किसी को कुछ नहीं बताता.’’ शील कुमार बोले. टीआई ने सोचा कि सगी बहन भाई का अपहरण करने वाले का साथ क्यों देगी.

एएसपी संजय साहू के निर्देश पर टीआई नायर ने रुचिका चौबे की काल डिटेल्स निकलवाई. साथ ही रुचिका के बारे में और भी जांच कराई. पता चला कि मध्यमवर्गीय परिवार से संबंध रखने वाली रुचिका की न केवल जीवनशैली हाईप्रोफाइल थी, बल्कि उस के सपने भी ऊंचे थे.

पुलिस को यह खबर भी लग गई थी रुचिका का एक बौयफ्रैंड गौरव जैन भी उस आयुष के बारे में काफी रुचि ले रहा था. गौरव जैन रुचिका का पड़ोसी था और दवा कारोबारी था. ऐसे में पुलिस के समाने शक करने के लिए 2 नाम थे. पहला रुचिका जो खुद आयुष की सगी बड़ी बहन थी और दूसरा गौरव जैन जो शहर का बड़ा थोक दवा कारोबारी था.

पुलिस ने रुचिका और गौरव जैन के फोन नंबरों की काल डिटेल्स का अध्ययन किया तो एएसपी साहू के चेहरे पर मुसकान दौड़ गई. उन्होंने देखा कि जितनी बार भी अपहर्त्ता ने शील कुमार के नंबर पर फिरौती के लिए फोन किया था, उस के कुछ देर पहले और कुछ देर बाद रुचिका ने गौरव से फोन पर बात की थी.

घर से ही खेला जा रहा था खेल

इतना ही नहीं रुचिका से बात होने के ठीक बाद गौरव ने हर बार एक दूसरे फोन नंबर पर बात की थी. यह संयोगवश नहीं हो सकता था. क्योंकि संयोग एक बार होता है, बारबार नहीं. पुलिस ने यह जानकारी भी जुटा ली कि रुचिका से बात करने के बाद गौरव जिस फोन नंबर पर बात करता था, वह उस की दुकान पर काम करने वाले नौकर अतुल का है. पुलिस टीम ने अतुल के बारे में पता कराया तो मालूम हुआ कि वह उसी दिन से छुट््टी ले कर गायब है, जिस दिन आयुष लापता हुआ था.

इस जानकारी के बाद एएसपी संजय साहू के सामने पूरी कहानी साफ हो गई. इसलिए उन्होंने पुलिस टीम को गौरव को हिरासत में लेने के निर्देश दे दिए. पता चला कि गौरव भी भोपाल में नहीं है. उस के मोबाइल की लोकेशन आगरा की आ रही थी. इसलिए ऐशबाग थाने की टीम आगरा रवाना हो गई.

लेकिन इस से पहले कि टीम आगरा पहुंचती, गौरव के मोबाइल की लोकेशन आगरा से चल कर भोपाल की तरफ बढ़ने लगी. लोकेशन बदलने के समयानुसार पुलिस ने हिसाब लगाया कि गौरव तमिलनाडु एक्सप्रेस में सवार हो कर भोपाल आ रहा है. इसलिए ट्रेन के भोपाल पहुंचने से पहले ही पुलिस की टीम ने वहां पहुंच कर टे्रन से उतरे गौरव को हिरासत में ले लिया.

जाहिर है इस बात की उम्मीद गौरव के अलावा किसी और को भी नहीं थी. जैसे ही गौरव को पूछताछ के लिए पुलिस हिरासत में थाने लाया गया. उस के पकड़े जाने की बात सुन कर रुचिका भी थाने पहुंच गई. यह देख कर एएसपी श्री साहू समझ गए कि पुलिस ने सही जगह निशाना साधा है.

गौरव आदतन अपराधी तो था नहीं, जो पुलिस को चकमा देने की कोशिश करता, इसलिए जरा सी पूछताछ में ही वह टूट गया. उस ने स्वीकार कर लिया कि अपनी प्रेमिका रुचिका की आर्थिक मदद करने के लिए उस ने आयुष के अपहरण का नाटक रचा था, जिस में रुचिका के साथ खुद आयुष भी शामिल था. गौरव ने यह भी बताया कि इस काम में उस ने अपने नौकर अतुल को भी शामिल कर रखा था.

गौरव ने पुलिस को यह भी बता दिया कि कल तक आयुष और अतुल भी उस के साथ आगरा में थे. वहां से तीनों साथ ही लौटे थे. आयुष अलग डिब्बे में सवार था. आयुष भोपाल स्टेशन पर उतर कर दूसरी ट्रेन में सवार हो कर इंदौर चला गया. जबकि अतुल उस के साथ ही था. चूंकि पुलिस अतुल को नहीं पहचानती थी इसलिए जैसे ही स्टेशन पर पुलिस ने गौरव को दबोचा उस से चंद कदम पीछे चल रहा अतुल वहां से गायब हो गया.

अब आगे की काररवाई से पहले आयुष को गिरफ्तार करना जरूरी था. पुलिस ने गौरव से यह जानकारी ले ली कि आयुष इंदौर में कहां ठहरेगा. इस के बाद भोपाल पुलिस ने यह जानकारी इंदौर पुलिस को दे दी. इंदौर पुलिस ने आयुष को गिरफ्तार कर लिया और उसे लाने के लिए भोपाल पुलिस की एक टीम इंदौर के लिए रवाना हो गई.

भोपाल पुलिस टीम आयुष को इंदौर से ले कर आ गई. पूरे मामले में रुचिका का नाम पहले ही सामने आ चुका था. इसलिए पुलिस ने रुचिका को भी गिरफ्तार कर लिया. इन तीनों की गिरफ्तारी के बाद आयुष के अपहरण की सनसनीखेज कहानी सामने आई.

दवाइयों का थोक कारोबारी गौरव जैन भी ऐशबाग थाना इलाके की उसी गली में रहता था जिस में रुचिका अपने मातापिता और छोटे भाई आयुष के साथ रहती थी. सीमित आय वाले परिवार के पास जो कुछ उल्लेखनीय था वह केवल रुचिका की सुंदरता और गरीबी में भी अच्छे तरीके से रहने का उस का अंदाज था.

रुचिका के सपने भी बड़े थे. वह अपने भाई को बड़ा आदमी बनाना चाहती थी. इसलिए स्वयं की पढ़ाई पूरी करने के बाद उस ने एक निजी बीमा कंपनी में नौकरी कर ली थी. वैसे रुचिका के पिता मूलरूप से जबलपुर के रहने वाले थे.

संयोग से पड़ोस में रहने वाले गौरव जैन का अपनी दुकान पर जाने और रुचिका का औफिस के लिए निकलने का समय एक ही था, सो गली में दोनों का अकसर रोज ही आमनासामना हो जाता था. जिस के चलते पहले आंखों से आंखें टकराईं फिर एकदूसरे को देख कर चेहरे पर मुसकराहटें आनी शुरू हो गईं.

गौरव और रुचिका की प्रेम कहानी

गौरव का दिल रुचिका पर आ गया था. दूसरी ओर रुचिका के मन को भी गौरव भा गया था. आखिर रुचिका ने जल्द ही उस के बढ़े कदमों को दिल तक आने का रास्ता दे दिया. दोनों में प्यार हुआ तो पहले घर से बाहर मुलाकातों का सिलसिला चला, फिर गौरव ने रुचिका के परिवार वालों से भी मिलना शुरू कर दिया.

बाद में गौरव रुचिका के घर भी आनेजाने लगा. रुचिका के परिवार की आर्थिक स्थिति गौरव से छिपी नहीं थी. जबकि गौरव की जेब में कभी पैसों की कमी नहीं रहती थी. वह समयसमय पर रुचिका के कहने पर उस के परिवार की आर्थिक मदद करने लगा.

जाहिर सी बात है ऐसे मददगार के लिए आदमी खुद अपनी आंखें बंद कर लेता है, यह समझते हुए भी कि जवान खूबसूरत बेटी का दोस्त बिना किसी मतलब के यूं मेहरबान नहीं होता. रुचिका के मातापिता सब कुछ जान कर अंजान बने रहे. जिस से रुचिका और गौरव का प्यार दिनबदिन गहराता गया.

इतना ही नहीं गौरव रुचिका को अपने साथ ले कर घूमने जाता तो लौटने पर उस की मां भी बेटी से कोई सवाल नहीं करती. क्योंकि गौरव ने उस समय इस परिवार की मदद की थी जब पैसों के अभाव में रुचिका के छोटे भाई आयुष का दाखिला अटकता दिखाई दे रहा था.

आयुष अब बड़ा हो चुका था. वह अच्छी तरह से जानता था कि गौरव केवल उस की बहन से दोस्ती रखने के लिए ही परिवार की मदद करता है. यह जानने के बाद भी वह गौरव को पसंद करता था. इतना ही नहीं कई बार तो वह गौरव और बहन के साथ घूमने भी चला जाता था. जब उसे लगता कि उसे दोनों के साथ नहीं होना चाहिए तो वह किसी बहाने से दाएं बाएं हो जाता था. इसलिए धीरेधीरे रुचिका और गौरव का प्यार इस हद तक पहुंच गया कि उन्होंने शादी करने का फैसला कर लिया.

रुचिका के परिवार को तो इस शादी से कोई ऐतराज नहीं था. गौरव की जिद के चलते उस के परिवार वाले भी उन दोनों के विवाह के लिए मन बना चुके थे. गौरव रुचिका की लगातार आर्थिक मदद कर रहा था. लेकिन रुचिका की जरूरतें गौरव की मदद से कहीं बड़ी थीं. जरूरतें पूरी करने के लिए रुचिका ने विभिन्न बैंकों से बड़ा कर्ज ले लिया था. वह सोचती थी कि कुछ समय बाद जब गौरव से उस की शादी हो जाएगी तो गौरव उस का कर्ज चुका देगा.

 पिता ने शराब के नशे में बिगाड़ा खेल

लेकिन इसी बीच हालात ने पलटा खाया. हुआ यह कि करीब 2 साल पहले गौरव के घर में आयोजित एक पारिवारिक कार्यक्रम में रुचिका के परिवार को भी आमंत्रित किया गया. रुचिका अपनी मां और भाई के साथ उस कार्यक्रम में शामिल हुई. उस के पिता उस समय कंपनी की बस ले कर खंडवा गए थे.

संयोग से जब रुचिका का परिवार कार्यक्रम में गया हुआ था. तभी उस का पिता शील कुमार शराब पी कर घर लौट आया. घर पर ताला बंद देख कर उसे गुस्से आ गया. जब उसे पता चला कि रुचिका के साथ पूरा परिवार गौरव के यहां गया हुआ है, तो वह नशे की हालत में वहां पहुंच कर गालीगलोच करने लगा. उस ने गौरव के रिश्तेदारों के सामने रुचिका और गौरव के संबंधों को भी उजागर कर दिया.

इस घटना के बाद गौरव के घर वाले इस रिश्ते के खिलाफ हो गए, जिस के चलते गौरव को मजबूरी में रुचिका के बजाए परिवार की पसंद की लड़की से शादी करना पड़ी. इस घटना के बाद गौरव का रुचिका के घर भले ही आनाजाना कम हो गया लेकिन दोनों के प्रेमसंबंध पहले की तरह बने रहे. इस में रुचिका का भाई आयुष भी दोनों की मदद करता था.

इस के बदले गौरव भी दोनों की कुछ न कुछ मदद करता रहता था. लेकिन गौरव से शादी हो जाने के भरोसे रुचिका ने बैंकों से जो लोन लिया था, वह उस के गले की फांस बन गया. क्योंकि रुचिका की आय इतनी नहीं थी कि वह उस लोन की किश्त भी समय पर चुका पाती.

गौरव उस की मदद तो करना चाहता था पर इतनी बड़ी रकम का इंतजाम कर पाना उस के लिए भी संभव नहीं था. इसलिए आयुष, रुचिका और गौरव तीनों मिल कर इस समस्या से निपटने का रास्ता खोजने लगे. इस के लिए रुचिका और आयुष ने अपने पिता पर भी दबाव बनाया कि वह जबलपुर स्थित अपने हिस्से की पुश्तैनी जमीन बेच दे.

दोनों का मानना था कि उस से लगभग एक करोड़ रुपए हाथ आ जाएंगे. लेकिन शील कुमार इस के लिए तैयार नहीं था. गौरव की पत्नी के पेट में इन दिनों 7 महीने का गर्भ था. इसलिए गौरव ज्यादा से ज्यादा वक्त रुचिका के साथ बिताना चाहता था. उस की योजना आयुष की मदद से नए साल पर रुचिका को ले कर भोपाल से बाहर जाने की थी.

उस का विचार था कि आयुष अपनी बहन को साथ ले कर निकलेगा और पीछे से वह उन के साथ हो जाएगा. इस की योजना बनाने के लिए कुछ दिन पहले तीनों एक होटल में मिले. आयुष ने गौरव से कहा कि तुम दीदी को ले कर कहीं चले जाओ. इधर हम उस के अपहरण की बात फैला कर पिताजी से एक करोड़ रुपए की फिरौती मांग लेंगे. इस तरह आप को दीदी के साथ नया साल मनाने का मौका मिल जाएगा और हमें पैसा.

‘‘आइडिया अच्छा है, लेकिन तुम्हारी दीदी और मैं एक साथ गायब हुए तो पल भर में सब को बात समझ में आ जाएगी. हां, एक काम हो सकता है कि तुम गायब हो जाओ. तुम्हारे अपहरण के नाम पर 2-4 दिन में ही तुम्हारे पिता से मैं ओर रुचिका पैसा ले लेंगे. फिर नए साल पर हम तीनों घूमने चलेंगे.’’ गौरव ने कहा.

मिलजुल कर बनाई योजना

गौरव का सुझाया यह आइडिया तीनों को अच्छा लगा. योजना बनी कि आयुष गायब हो जाएगा और इधर बेटे को बचाने के लिए रुचिका के पिता शील कुमार आसानी से जबलपुर की जमीन बेच कर फिरौती में एक करोड़ रुपए दे देंगे. जिस से रुचिका का कर्ज भी चुक जाएगा और बाकी की जिंदगी भी आराम से गुजर जाएगी.

इस काम में फिरौती के लिए फोन करने और फिरौती की रकम लेने जाने के लिए गौरव ने अपनी दुकान के एक नौकर अतुल को पैसों का लालच दे कर शामिल कर लिया. इस के बाद पूरी योजना को फाइनल कर 12 दिसंबर को कोचिंग के नाम पर आयुष घर से निकल कर गौरव से मिला. गौरव ने उसे अतुल के साथ मिसरोद के एक होटल में ठहरा दिया. कुछ ही देर बाद अतुल ने आयुष के घर फिरौती के लिए फोन कर दिया.

एक करोड़ रुपए की फिरौती के लिए फोन आने के बाद पुलिस सक्रिय हो गई तो आयुष को मिसरोद से निकाल कर पहले कुछ दिन छतरपुर में रखा गया और फिर उसे अतुल के साथ आगरा भेज दिया गया. लेकिन इस बीच एसपी अतुल लोढ़ा के निर्देशन और एएसपी संजय साहू के नेतृत्व में आयुष की तलाश में जुटी पुलिस टीम ने एकएक कदम आगे बढ़ाते हुए केस का खुलासा कर दिया.

पुलिस ने रुचिका उस के भाई आयुष और प्रेमी गौरव जैन से विस्तार से पूछताछ के बाद उन्हें कोर्ट में पेश किया जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. जबकि कथा लेखन तक अतुल की तलाश जारी थी.

नाजायज रिश्तों में हक जमाने की भूल

सईद जिस मकान में रह रहा था, वह उस के साले शकील का था. शकील अपनी पत्नी शबनम और बच्चों के साथ मकान के भूतल पर रहता था जबकि सईद प्रथम तल पर रह रहा था. सईद छत पर लगे लोहे के जाल से शबनम और शकील की गतिविधियों नजर रखे रहता था. जैसे ही शकील काम पर जाने के लिए घर से निकलता, सईद झट से शबनम के पास पहुंच जाता था. इस के बाद दोनों जी भर कर अपनी हसरतें पूरी करते थे.

35 वर्षीय शकील लखनऊ के हसनगंज थाना क्षेत्र के रमबगिया खदरा मोहल्ले में रहता था. उस के पिता अहमद हुसैन दरजी थे. पिता से यही काम सीखने के बाद वह भी टेलर बन गया था. करीब 10 साल पहले उस की शादी लखनऊ से सटे हरदोई जिले के संडीला कस्बे के महताब मूसापुर गांव की रहने वाली शबाना अंजुम उर्फ शबनम से हुई थी. एमए तक पढ़ी शबनम खूबसूरत युवती थी.

अपने से 5 साल छोटी, खूबसूरत और पढ़ी लिखी पत्नी घर में आने के बाद शकील की जिम्मेदारियां और भी बढ़ गई थीं. सुबह को दुकान पर गया शकील अब ज्यादा देर तक दुकान पर बैठने लगा. वह पत्नी की सारी जरूरतों का तो खयाल रखता, लेकिन उस के मन की चाहत पर ध्यान नहीं दे पाता था. वह सजी धजी पत्नी की भावना को समझने के बजाय करवट बदल कर जल्दी सो जाता था. शबनम कभी पहल करती तो वह तवज्जो नहीं देता था.

कह सकते हैं कि शबनम वासना की आग में जलती रहती थी. यह भी सच है कि वासना की आग में जलने वाली औरत अकसर गुमराह हो जाती है. ऐसे में वह अपनी और घर की बदनामी के बारे में भी नहीं सोचती.

इसी दौरान शकील का बहनोई सईद अख्तर उर्फ कल्लू उर्फ माटू उस के यहां रहने के लिए आ गया था. कानपुर के थाना अनवरगंज के कुली बाजार में रहने वाले सईद का विवाह शकील की बहन नजमा से हुआ था. शादी के कई साल बीत जाने के बाद भी नजमा मां नहीं बन सकी थी. सईद अकसर शकील के घर आताजाता रहता था.

एक दिन दोनों के बीच बातचीत हुई तो शकील ने सईद से लखनऊ में रह कर अपना कोई काम करने की बात कही. सईद को साले का यह सुझाव अच्छा लगा. उस ने सोचा कि लखनऊ में रह कर काम करने पर उस की आमदनी बढ़ सकती है. बात जब रहने के इंतजाम की आई तो शकील ने उसे अपने मकान की पहली मंजिल पर रहने को कह दिया.

कुछ दिनों बाद शकील अपने सामान के साथ कानपुर से लखनऊ आ गया. पत्नी नजमा को वह कानपुर में ही छोड़ आया था. लखनऊ आ कर उस ने तसला बनाने का काम शुरू कर दिया.

शकील सुबह काम पर जाता तो देर रात ही घर लौटता था. जबकि सईद कुछ घंटे काम कर के कमरे पर लौट आता था. खाली समय होने पर वह शबनम के साथ बैठ कर बातें करता. चूंकि दोनों में ननदोई सलहज का रिश्ता था, इसलिए आपस में हंसीमजाक होता रहता था. सईद शबनम को अपनी बाइक पर बैठा कर घुमाने ले जाता और बाजार में अच्छी से अच्छी चीजें खिलाता पिलाता था.

शबनम भी इतनी नासमझ नहीं थी, जो ननदोई की आंखों की भाषा न पढ़ पाती. इस के बावजूद वह जल्दबाजी में अपने कदम उस की तरफ नहीं बढ़ाना चाहती थी.

एक दिन पति के जाने के बाद शबनम सईद के लिए चाय बना रही थी. उस समय कमरे में बैठा सईद उसे अपलक निहार रहा था. शबनम ने उसे कनखियों से देखा तो मन ही मन खुश हुई. चाय का कप ले कर वह सईद के पास आई और कप उस की ओर बढ़ाते हुए मुसकरा कर बोली, ‘‘तुम्हारे पास कोई काम नहीं है क्या, जो मुझे टकटकी लगा कर देखते रहते हो?’’

सईद ने बेहिचक जवाब दिया, ‘‘शबनम, तुम्हें देखना भी तो काम ही है. वैसे एक बात बताऊं, मैं तुम्हें देखता कम हूं, तुम्हारे बारे में सोचता ज्यादा हूं.’’

यह सुनते ही शबनम की धड़कनें बढ़ गईं. वह उस के सामने बैठ गई. फिर घुटने पर कोहनी रख कर हथेली पर ठोड़ी टिकाते हुए मुसकराई, ‘‘क्या सोचते हो, जरा मुझे भी तो बताओ.’’

‘‘यही कि शकील निरा बुद्धू है. इतनी खूबसूरत बीवी मिली है, लेकिन उस की कद्र तक करना नहीं जानता. देखो न क्या हाल बना कर रखा है.’’ सईद ने शबनम को पैरों से ले कर सिर तक निहारते हुए कहा.

शबनम को लगा कि सईद उस के मन की ही बात कह रहा है. वह बोली, ‘‘क्या करें, उन्हें तो सिर्फ पैसों से प्यार है, मगर पैसे के अलावा घरगृहस्थी की और भी जरूरतें होती हैं, इस बात को वो नहीं समझते.’’

शबनम के इतना कहते ही सईद ने लोहा गर्म देख शब्दों का वार किया, ‘‘शबनम, शकील अपनी जिम्मेदारी पूरी नहीं करता तो न सही. तुम परेशान क्यों होती हो, मैं हूं न.’’

शबनम के लिए यह खुला आमंत्रण था. उस के गालों पर हया की सुर्खी दौड़ी तो लाज से निगाहें झुक गई. वह झिझकते हुए बोली, ‘‘कहते हुए सोच तो लिया करो कि क्या कह रहे हो.’’

‘‘शबनम, यह बात मैं तुम से काफी दिनों से कहना चाह रहा था, लेकिन तुम ने कभी मौका ही नहीं दिया.’’ सईद ने व्याकुल हो कर उस का हाथ पकड़ लिया.

शबनम मन ही मन खुश थी. उस का मन चाह रहा था कि सईद उसे बांहों में भर कर सीने से लगा ले और उसे खूब प्यार करे. इस के बावजूद वह दिखाने के लिए नाटकीय अंदाज में बोली, ‘‘छोड़ो न मुझे, यह क्या कर रहे हो? किसी ने देख लिया तो हमारी शामत आ जाएगी.’’

‘‘इस मकान में हम दोनों के सिवा है कौन, जो हमें देख लेगा. मेन गेट मैं ने पहले से बंद कर रखा है. इसलिए बाहर से कोई अंदर नहीं आ सकता.’’ फिर सईद उस के नजदीक आ कर बोला, ‘‘वैसे भी समझदार मर्द वही है, जो औरत के इनकार को ही उस का इकरार समझे.’’

सईद ने उसे बांहों में उठाया और ले जा कर बेड पर लिटा दिया. वह खुद भी उस के पहलू में लेट गया. इस के बाद दोनों ने अपनी हसरतें पूरी कर लीं.

सईद का प्यार पा कर शबनम बहुत खुश हुई. ननदोई सलहज के बीच एक बार अवैध संबंध क्या बने कि वे रोज रोज यह खेल खेलने लगे. शकील को इस बात की भनक तक नहीं लगी कि उस के जाने के बाद पत्नी और बहनोई क्या गुल खिला रहे हैं. समय के साथ उन के रिश्ते परवान चढ़ने लगे.

लखनऊ की आबोहवा देखने के बाद शबनम भी कहीं नौकरी करना चाहती थी. इस बारे में उस ने पति से बात की तो उस ने उसे नौकरी करने की इजाजत दे दी. एमए पास शबनम अखबारों में छपे नौकरी के विज्ञापन देखने लगी. अपनी योग्यता के अनुसार उस ने कई कंपनियों में आवेदन किया. कई जगह इंटरव्यू भी दिए. आखिर उसे सफलता मिल ही गई.

शबनम को हजरतगंज में शक्ति भवन के पीछे स्थित आइडिया कंपनी के काल सेंटर में नौकरी मिल गई. नौकरी मिलने पर वह बहुत खुश हुई. उसे अलगअलग शिफ्ट में काम पर जाना होता था. सुबह जल्दी जाना होता तो वह टैंपो से चली जाती और शाम को जाना होता तो सईद उसे अपनी बाइक से छोड़ आता था.

शबनम काफी मिलनसार और हंसमुख स्वभाव की थी, इसलिए वह औफिस में काम करने वाले लोगों से जल्दी ही घुलमिल गई. उस के औफिस में संजय नाम का एक युवक काम करता था. चूंकि औफिस के काम के मामले में शबनम एकदम नई थी, इसलिए संजय ही उस की हेल्प करता था. जल्दी ही दोनों के बीच अच्छीभली दोस्ती हो गई.

संजय शबनम की खूबसूरती पर फिदा था. वह उस का पूरी तरह से खयाल रखता था. शबनम को भी उस का साथ अच्छा लगने लगा. इस की एक वजह यह थी कि संजय उस का हमउम्र था जबकि सईद उस से 20 साल बड़ा था. धीरेधीरे दोनों में दूरियां घटती गईं और वे काफी नजदीक आ गए. दोनों के मन में एकदूसरे के प्रति चाहत थी. एक दिन संजय ने शबनम के सामने अपने प्यार का इजहार किया तो शबनम ने सहजता से उस का प्यार कुबूल कर लिया.

संजय से प्यार होने के बावजूद शबनम ने सईद से दूरी नहीं बनाई. वह उस की ख्वाहिशों को पूरा करती रही. वह उसे इसलिए छोड़ना नहीं चाहती थी क्योंकि उस ने उस समय उस का साथ दिया था, जब उसे एक साथी की सख्त जरूरत थी. इस तरह शबनम पति के अलावा 2 नावों की सवारी कर रही थी.

5 मार्च, 2014 को सुबह करीब साढ़े 5 बजे शबनम घर से औफिस जाने के लिए निकली. उस के जाने के बाद शकील कुछ देर के लिए बेड पर यूं ही लेट गया. अभी मुश्किल से 15-20 मिनट ही हुए थे कि घर के बाहर किसी चीज के गिरने की आवाज आई और शोर भी सुनाई दिया. शकील बाहर निकल कर आया तो उस ने शबनम को दरवाजे के बाहर लहूलुहान हालत में पड़े पाया. गिरने के बाद वह बेहोश हो गई थी. पड़ोसी भी उस की हालत देख कर वहां पहुंच गए थे.

पत्नी को इस हाल में देख कर शकील घबरा गया. पड़ोसियों की मदद से वह शबनम को उठा कर बलरामपुर अस्पताल ले गया. लेकिन डाक्टरों ने उसे मृत घेषित कर दिया. चूंकि यह पुलिस केस था, इसलिए अस्पताल से इस की सूचना हसनगंज थाने को दे दी गई.

सूचना पा कर थानाप्रभारी दिनेश सिंह पुलिस टीम के साथ अस्पताल पहुंच गए. उन्होंने लाश का निरीक्षण किया तो पता चला शबनम के गले व पेट पर किसी तेज धारदार हथियार से वार किए गए थे. शबनम के पति से बात करने के बाद थानाप्रभारी ने लाश को पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भेज दिया.

शकील की तहरीर पर पुलिस ने अज्ञात लोगों के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया.

केस दर्ज होने के बाद थानाप्रभारी ने जांच शुरू कर दी. लेकिन 10 दिनों की तफ्तीश के बाद भी उन्हें हत्यारों के बारे में कोई क्लू नहीं मिला. इस सिलसिले में उन्होंने कई मर्तबा शकील और उस के बहनोई सईद से पूछताछ की. पूछताछ के बाद उन्हें सईद पर शक होने लगा.

15 मार्च, 2014 को दोपहर के समय पुलिस ने सईद को थाने बुला कर फिर से पूछताछ की. सख्ती से की गई पूछताछ में उस ने शबनम की हत्या करने का जुर्म स्वीकार कर लिया. उस ने हत्या की जो वजह बताई, वह चौंकने वाली थी.

शबनम जब काल सेंटर में नौकरी करने लगी तो सईद को किसी तरह पता चल गया कि उस की दोस्ती उस के साथ काम करने वाले किसी लड़के के साथ हो गई है. जबकि उसे शबनम का दूसरे पुरुषों से मिलना, बातें करना अच्छा नहीं लगता था. वह बारबार उस पर इस बात का दबाव डालता था कि वह किसी बाहरी मर्द से बात न किया करे.

सईद ने कोशिश की तो उसे यह जानकारी मिल गई कि शबनम औफिस के जिस युवक के साथ ज्यादा मिलतीजुलती है उस का नाम संजय है. इस के बाद वह खुद उस की जासूसी करने लगा. एक दिन सईद ने शबनम को संजय के साथ औफिस के नजदीक एक रेस्टोरेंट में देख लिया. उस समय तो सईद ने शबनम से कुछ नहीं कहा लेकिन घर लौटने पर उस ने शबनम से नाराजगी जताई.

इस के जवाब में शबनम ने कहा कि जब वह नौकरी करने जाएगी तो औफिस के लोगों से बातचीत होगी ही. वह उन से बातचीत न करे, ऐसा मुमकिन नहीं है. इस से सईद को विश्वास हो गया कि शबनम के संजय के साथ नाजायज ताल्लुकात हैं इसलिए वह उसे छोड़ना नहीं चाहती. इस बात को ले कर दोनों में कभीकभी झगड़ा भी हो जाता था. लेकिन शबनम ने कभी इसे गंभीरता से नहीं लिया था.

सईद नहीं चाहता था कि शबनम उस के रहते किसी दूसरे के साथ मौजमस्ती करे. उस ने शबनम को कई बार समझाया. जब वह नहीं मानी तो उस ने शबनम की हत्या करने की ठान ली.

5 मार्च, 2014 को जब शबनम सुबह साढ़े 5 बजे घर से अपने औफिस जाने के लिए निकली तो सईद भी चुपके से उस के पीछे हो लिया. सईद ने अपना चेहरा कपड़े से छिपा लिया था.

शबनम घर से लगभग 200 मीटर दूर ही पहुंची होगी कि सईद उस के सामने जा कर खड़ा हो गया. यह देख कर शबनम ठिठकी लेकिन वह कुछ समझती, उस से पहले ही सईद ने उस के गले व पेट पर साथ लाई कैंची से कई प्रहार किए और वहां से भाग गया. वहां से भाग कर वह पास के कब्रिस्तान में गया और खून से सनी कैंची चारदीवारी के किनारे झाडि़यों में छिपा दी. फिर वह छिपते छिपाते जल्दी ही घर पहुंच गया.

शबनम घायल जरूर हो गई थी लेकिन उस ने भी हिम्मत नहीं हारी थी. पेट पर हाथ रख कर वह लड़खड़ाते हुए अपने घर तक पहुंच गई, लेकिन घर के दरवाजे पर पहुंचते पहुंचते उस की सांसों की डोर टूट गई और धड़ाम की आवाज के साथ जमीन पर गिर गई.

पुलिस ने सईद से पूछताछ के बाद उस की निशानदेही पर कब्रिस्तान के पास छिपा कर रखी कैंची बरामद कर ली. फिर कानूनी औपचारिकताएं पूरी कर उसे कोर्ट में पेश करने के बाद जेल भेज दिया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

वैलेंटाइन डे पर मिली अनोखी सौगात

रूपम के बहके कदमों का नतीजा

9 मई की रात तकरीबन साढ़े 8 बजे का वक्त था. उत्तर प्रदेश के जिला गाजियाबाद के थाना इंदिरापुरम  में किसी ने फोन कर के सूचना दी कि न्याय खंड-3 में एक महिला को किसी ने गोली मार दी है.

इस संवदेनशील सूचना के मिलते ही थानाप्रभारी वीरेंद्र सिंह मय पुलिस बल के सूचना में बताए स्थान पर पहुंच गए. उस इलाके में सैकड़ों की तादाद में जनता फ्लैट बने हुए हैं. जिस जगह यह वारदात हुई, वह गली एकदम सुनसान थी. गली फ्लैटों के पीछे की साइड में होने की वजह से लोग उस का इस्तेमाल कम ही किया करते थे.

थानाप्रभारी ने मौका मुआयना किया तो वहां करीब 28-30 साल की महिला खून से लथपथ पड़ी थी. गोली उस की कनपटी पर मारी गई थी. मौके पर मोबाइल फोन और एक थैला भी पड़ा था, जिस में सब्जियां थीं. महिला शायद जिंदा बच जाए इसलिए आननफानन में पुलिस उसे नजदीक के एक निजी अस्पताल ले गई. लेकिन डाक्टरों ने उस महिला को देख कर मृत घोषित कर दिया.

महिला के पास से ऐसी कोई चीज नहीं मिली थी जिस से तुरंत उस की शिनाख्त हो सके. लिहाजा घटनास्थल के आसपास के फ्लैटों में रहने वाले लोगों से पुलिस उस महिला के बारे में पूछताछ करने लगी.

उसी समय अजय झा नाम का एक युवक पुलिस के पास पहुंचा. उस ने बताया कि उस की पत्नी रूपम काफी देर पहले सब्जी लेने गई थी, वह अभी तक नहीं लौटी है. पुलिस ने अजय को लाश दिखाई तो उस ने तुरंत लाश को पहचान लिया और उस की पुष्टि अपनी पत्नी रूपम के रूप में कर दी.

मामला हत्या का था, इसलिए थानाप्रभारी ने इस की सूचना आला अधिकारियों को भी दे दी. सूचना मिलने पर एसपी सिटी शिवहरि मीणा और सीओ सिटी रणविजय सिंह भी अस्पताल पहुंच गए.  मृतका का पति बुरी तरह बिलख रहा था. पुलिस ने उसे ढांढस बंधा कर शुरुआती पूछताछ की. उस ने बताया कि शाम करीब 7 बजे रूपम बाजार से सब्जी लेने के लिए घर से निकली थी.

पुलिस ने उस समय उस से ज्यादा पूछताछ करना जरूरी नहीं समझा और पंचनामा भर कर लाश पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दी.

अजय झा की तहरीर पर पुलिस ने अज्ञात हत्यारों के खिलाफ भादंवि की धारा 302 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया. थानाप्रभारी ने केस की छानबीन शुरू कर दी. वह इतना तो समझ गए थे कि हमलावर का मकसद केवल रूपम की हत्या करना था और उस के सिर में गोली इसलिए मारी गई थी ताकि वह जिंदा न बच सके.

चूंकि रूपम का पर्स, पहने हुए आभूषण और मोबाइल फोन सलामत था, इसलिए लूट की वजह से हत्या करने की संभावना बिलकुल नहीं थी. एसएसपी शुचि घिल्डियाल ने अगले दिन मृतका के पति को अपने औफिस में बुला कर पूछताछ की. उस ने बताया कि वह प्रौपर्टी डीलिंग का काम करता है. किसी के साथ अपनी रंजिश या झगड़ा होने से भी उस ने इनकार कर दिया.

उस से पूछताछ में यह पता जरूर चला कि कुछ समय पहले उस ने अंतरिक्ष सोसायटी के पास एक प्रौपर्टी खरीदी थी. सीओ रणविजय सिंह ने एसएसपी के आदेश पर जब प्रौपर्टी वाले बिंदु पर जांच की तो आशंका खारिज हो गई.

आगे बढ़ने का कोई और रास्ता न देख पुलिस ने रूपम के मोबाइल फोन की जांच की. उस में अंतिम काल उस के पति की थी. इस बारे में पुलिस ने अजय से पूछा तो उस ने बताया, ‘‘मेरे पास रूपम का फोन करीब 8 बजे आया था. उस ने बताया था कि उस की सहेली मिल गई है इसलिए थोड़ा लेट हो जाएगी.’’

जांच के दौरान यह भी पता लगा कि रूपम एक दूसरा मोबाइल भी इस्तेमाल करती थी. पुलिस ने उस का दूसरा नंबर भी हासिल कर लिया.  उस के नंबरों की काल डिटेल्स निकलवाई गई.

काल डिटेल्स की जांच में एक ऐसा नंबर पुलिस को मिल गया, जिस पर रूपम अकसर बातें किया करती थी. हत्या वाली शाम भी उस की उस नंबर पर बात हुई थी, लेकिन बात करने के बाद उस ने वह नंबर डिलीट कर दिया था. फोन की डायल सूची से रूपम ने वह नंबर डिलीट क्यों किया, इस बात को पुलिस नहीं समझ पा रही थी.

पुलिस ने उस नंबर की पड़ताल की तो वह न्याय खंड-3 के ही फ्लैट नंबर-553जी निवासी रोहित राणा का निकला. एक और चौंकाने वाली बात यह भी थी कि रूपम का जो दूसरा नंबर था, उस का सिम भी रोहित के नाम पर खरीदा गया था.

इन दोनों बातों से रोहित अब पुलिस के शक के दायरे में आ गया. पुलिस ने उस के घर दबिश दी लेकिन वह लापता था. इस से उस पर पुलिस का शक और भी पुख्ता हो गया.

सीओ रणविजय सिंह ने यह पूरी जानकारी एसएसपी को दी तो एसएसपी ने रोहित राणा की तलाश करने के लिए एक पुलिस टीम बनाई जिस में थानाप्रभारी वीरेंद्र सिंह, एसएसआई विशाल, एसआई सुभाष गौतम, अंजनी कुमार, कांस्टेबल विपिन चावला आदि को शामिल किया गया.

सीओ रणविजय सिंह के निर्देशन में पुलिस रोहित की तलाश में संभावित जगहों पर दबिश डालने लगी. इस की भनक शायद रोहित को लग चुकी थी जिस से वह पुलिस से बचने के लिए इधरउधर भागता रहा. अंतत: एक मुखबिर की सूचना पर उसे रात 8 बजे के करीब एक शौपिंग मौल के पास से गिरफ्तार कर लिया गया.

तलाशी में उस के पास से एक .32 बोर की पिस्टल और एक कारतूस भी बरामद हुआ. थाने ला कर उस से सख्ती से पूछताछ की गई तो उस ने रूपम की हत्या से परदा उठा दिया. वही उस का हत्यारा था. हत्या की जो वजह उस ने बताई. उसे सुन कर सभी चौंक गए.

30 वर्षीया रूपम का पति अजय झा मूलरूप से बिहार के दरभंगा जिले के न्यू बलभद्रपुर, भदेरिया सराय के रहने वाले श्यामधर का बेटा था. सालों पहले अजय भी अन्य युवकों की तरह कामधंधे की तलाश में दिल्ली चला आया था. उस ने कई छोटेमोटे काम कर के किसी तरह अपने पैर जमाए. 8 साल पहले उस का विवाह रूपम झा से हुआ.

रूपम खूबसूरत युवती थी. चूंकि अजय भी दिल्ली में काम करता था इसलिए शादी के बाद वह पत्नी को भी अपने साथ दिल्ली ले आया. रूपम वक्त के साथ 2 बच्चों की मां बन गई थी. वह बनसंवर कर रहती थी.

3 साल पहले अजय ने गाजियाबाद में प्रौपर्टी डीलिंग का मामूली सा काम शुरू किया. बाद में वह दिल्ली से गाजियाबाद शिफ्ट हो गया. अपने काम की उलझनों में अजय पत्नी पर ज्यादा ध्यान नहीं दे पाता था.

इस के विपरीत रूपम की हसरतें जवान थीं. उसे देख कर नहीं लगता था कि वह 2 बच्चों की मां है. पति सुबह ही घर से निकल जाता था इसलिए घरेलू कामों के लिए रूपम को ही बाजार जाना पड़ता था. इसी दौरान उस की नजरें रोहित से चार हो गईं.

रोहित मूलत: उत्तर प्रदेश के बागपत जिले के अग्रवाल मंडी, टटीरी कस्बे का रहने वाला था. फिलहाल वह न्याय खंड-3 में ही रहता था. वहीं वह ज्वैलरी की छोटी सी दुकान चलाता था. रोहित नवयुवक था.

एक बार रूपम उस के यहां से बिछुए खरीद कर लाई थी. उस छोटी सी मुलाकात में ही वह रोहित को भा गई. यह करीब 5 महीने पहले की बात है.

रोहित थोड़ा बातूनी स्वभाव का था. उस ने उस समय रूपम की सुंदरता की थोड़ी तारीफ क्या कर दी कि वह गदगद हो गई. इस के कुछ दिनों बाद रूपम की एक सहेली को भी अपने गले की चेन के लिए एक लौकेट खरीदना था, तब रूपम सहेली को रोहित की दुकान पर ले गई. रूपम को अपनी दुकान पर फिर आया देख रोहित बहुत खुश हुआ. उस के हावभाव और आंखों की भाषा से रूपम उस के मन की बात समझ गई थी.

शादी के कई साल बाद भी अजय उस की महत्त्वाकांक्षाओं को पूरा नहीं कर सका था. रोहित की चाहत को देख कर रूपम के दिल की घंटी सी बज उठी. उसे लगा कि रोहित उस के ख्वाबों को हकीकत में बदल सकता है इसलिए मुसकरा कर उस ने रोहित के प्यार को हरी झंडी दे दी. उस दिन रोहित ने रूपम का फोन नंबर ले लिया.

बातों ही बातों में रूपम ने उसे बता दिया कि उस का पति प्रौपर्टी डीलर है जो देर रात को ही घर लौटता है. इसलिए रूपम उस की दुकान से जाने के थोड़ी देर बाद ही रोहित ने उसे फोन कर दिया. इधरउधर की बातें करने के बाद रोहित ने उस से अपने मन की बात खुल कर कह दी. रूपम ने भी बिना कोई देर किए उस के प्यार को स्वीकार कर लिया. प्यार का इजहार कर के दोनों ही खुश थे.

इस के बाद दोनों एकदूसरे से मोबाइल पर अकसर बातें करने लगे. रूपम अपने घर से किसी न किसी बहाने निकलती और रोहित के साथ रेस्टोरेंट व पार्कों में चली जाती. एकांत में होने वाली बातों के जरिए दोनों एकदूसरे के बेहद करीब आ गए.

दिल तो कब के मिल चुके थे. फिर एक दिन एक होटल में उन्होंने अपनी हसरतें भी पूरी कर लीं. जब पति अपने काम पर निकल जाता और बच्चे स्कूल, तभी रूपम रोहित को फोन कर देती. मौका देख कर रोहित उस के घर आ जाता था. इस तरह वे दोनों खूब मौजमस्ती करते रहे.

पति को शक न हो, इस से बचने के लिए रूपम मोबाइल पर बातें कर के प्रेमी रोहित का नंबर डिलीट कर देती थी. बाद में रोहित ने उसे एक मोबाइल और सिमकार्ड भी खरीद कर दे दिया. रोहित से बात करने के लिए वह ज्यादातर उसी नए नंबर का उपयोग करती थी.

प्यार की दीवानगी हदों को लांघने लगी थी. वह पति और बच्चों को छोड़ कर प्रेमी के साथ ही घर बसाने की सोचने लगी. एक दिन उस ने रोहित से अपने मन की बात कह भी दी, ‘‘रोहित, क्यों न हम कहीं जा कर शादी कर लें और फिर एक हो कर रहें.’’

रूपम की बात सुन कर रोहित सकते में आ गया. एकाएक उस से कोई जवाब नहीं बना क्योंकि उस ने कभी सोचा ही नहीं था कि ऐसी नौबत भी आ सकती है. वह रूपम को प्यार तो करता था लेकिन उस से शादी जैसी बात कभी नहीं सोची थी. उसे खामोश देख कर रूपम ने टोका, ‘‘क्या सोच रहे हो, क्या मैं तुम्हें पसंद नहीं?’’

‘‘ऐसी बात नहीं है रूपम. तुम ने जो बात कही है उस पर मुझे सोचने का मौका दो.’’

उस रात रोहित को ठीक से नींद नहीं आई. रूपम उस से उम्र में बड़ी थी. वह उसे इस्तेमाल तो करना चाहता था लेकिन उस के साथ बंध कर रहना नहीं चाहता था. काफी सोचने समझने के बाद उस ने रूपम से पीछा छुड़ाने का फैसला ले लिया और उस से पीछा छुड़ाने की सोचने लगा.

इस के बाद रोहित ने रूपम से दूरियां बनानी शुरू कर दीं. रूपम को जब लगा कि प्रेमी ने उस से मिलना कम कर दिया है तो एक दिन वह बोली, ‘‘रोहित, तुम आजकल कुछ बदलेबदले लगते हो. कहीं तुम मुझे धोखा तो नहीं दे रहे?’’

‘‘ऐसी कोई बात नहीं है रूपम.’’ रोहित ने कहा.

‘‘तो फिर मुझे ऐसा क्यों लग रहा है कि तुम मुझ से दूर होते जा रहे हो. वैसे शादी के बारे में तुम ने क्या सोचा?’’

‘‘मैं हर पल तुम्हारे साथ हूं रूपम. मैं तुम से प्यार भी बहुत करता हूं. मेरा कहना यह है कि शादी के लिए अभी रुक जाओ. वैसे भी शादी की तुम इतनी जल्दी क्यों कर रही हो? हम मिलते तो रहते हैं.’’

‘‘रोहित, तुम्हारी बातों से मुझे यह लग रहा है कि तुम मुझे शादी के लिए टाल रहे हो. लेकिन मैं भी तुम्हें एक बात बताना चाहती हूं.’’

‘‘क्या?’’

‘‘अगर तुम ने मुझ से शादी नहीं की और धोखा दिया तो मैं आत्महत्या कर लूंगी और सुसाइड नोट में तुम्हारा नाम लिख दूंगी.’’

रूपम की इस धमकी से रोहित के पसीने छूट गए. वह बोला, ‘‘मुझे थोड़ा समय तो दो.’’

‘‘बस अब और नहीं. मुझे जल्दी जवाब चाहिए.’’ रूपम के तेवर देख कर रोहित डर गया. उस ने उसे समझाने की बहुत कोशिश की लेकिन वह अपनी जिद पर अड़ी रही.

रोहित समझ गया था कि रूपम किसी भी सूरत में उस का पीछा छोड़ने वाली नहीं है.  उस से पीछा छुड़ाने के लिए उस ने एक खतरनाक योजना बना ली.

रोहित का एक दोस्त था गौरव त्यागी. गौरव को रोहित ने अपनी परेशानी बताई और उस से किसी हथियार का इंतजाम करने को कहा. गौरव ने बहुत जल्द एक पिस्टल का इंतजाम कर के उसे दे दिया.

रोहित ने सोच लिया था कि वह आखिरी बार रूपम को समझाने की कोशिश करेगा. अगर वह फिर भी नहीं मानी तो उसे रास्ते से हटा देगा. योजना बना कर उस ने  शाम को रूपम को फोन किया, ‘‘रूपम, मुझे आज तुम से मिलना है. एक जरूरी बात करनी है.’’

रूपम खुश हुई कि रोहित ने शायद उस की बात मान ली है. वह बोली, ‘‘ठीक है, मैं तुम से 8 बजे के बाद घर के पीछे वाली उसी गली में मिलूंगी, जहां हम पहले मिलते थे.’’

उस गली का चुनाव रूपम ने इसलिए किया था क्योंकि वह सुनसान रहती थी.

उस शाम रूपम बाजार के लिए घर से निकली. उस ने घर के लिए सब्जियां खरीदीं. इसी बीच उस ने अपने पति को फोन भी कर दिया कि वह सहेली के पास जाएगी इसलिए घर थोड़ी देरी से आएगी. वह तय समय पर रोहित से मिलने गली में पहुंच गई. रोहित भी वहां पहुंच गया था. वह रोहित के खतरनाक इरादों से पूरी तरह अनजान थी.

उसे देखते ही रूपम ने पूछा, ‘‘क्या सोचा तुम ने?’’

‘‘रूपम, तुम मेरी मजबूरी समझो. मैं तुम से शादी नहीं कर सकता.’’ यह सुनते ही रूपम के पैरों तले से जमीन खिसक गई. उसे उम्मीद नहीं थी कि रोहित उसे ऐसा जवाब देगा.

‘‘मैं अब तुम्हें छोड़ूंगी नहीं. तुम ने मेरे साथ अच्छा नहीं किया.’’ कहने के साथ ही रूपम ने गुस्से में रोहित के साथ हाथापाई शुरू कर दी. उसे नहीं पता था कि रोहित उस की मौत बनने जा रहा है.

‘‘पीछा तो तुम्हें छोड़ना ही पड़ेगा रूपम.’’ रोहित गुस्से में बोला और पलक झपकते ही पिस्टल निकाल ली. यह देख कर रूपम के होश उड़ गए. वह कुछ कर पाती, उस से पहले ही रोहित ने उस के सिर से पिस्टल सटा कर गोली चला दी. गोली लगते ही रूपम गिर पड़ी. उसे तड़पता छोड़ रोहित वहां से भाग गया.

पुलिस उस तक न पहुंच सके, इसलिए वह घर से भी फरार हो गया. लेकिन पुलिस के जाल में वह फंस ही गया. उस से पूछताछ के बाद पुलिस ने उस की निशानदेही पर हत्या के समय पहनी गई टीशर्ट जिस पर खून के छींटे लगे थे, बरामद कर ली. उस का मोबाइल भी पुलिस ने जब्त कर लिया.

अगले दिन पुलिस ने उसे न्यायालय में पेश किया जहां से उसे 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक उस की जमानत नहीं हो सकी थी. पुलिस उसे पिस्टल मुहैया कराने वाले उस के दोस्त गौरव त्यागी की तलाश कर रही थी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

वैलेंटाइन डे पर मिली अनोखी सौगात – भाग 3

किरण और रामबाबू के बीच एक बार जिस्मानी संबंध बनने के बाद उन का सिलसिला चलता रहा. लेकिन ज्यादा दिनों तक सिलसिला कायम न रह सका. करतार सिंह को पत्नी के हावभाव से उस पर शक होने लगा. उसे रामबाबू का उस के यहां ज्यादा आना अच्छा नहीं लगता था. इस बात का ऐतराज उस ने पत्नी से भी जताया और कहा कि वह रामबाबू को यहां आने से मना कर दे. लेकिन किरण ने ऐसा नहीं किया.

इसी बात को ले कर पत्नी से करतार की नोकझोंक होती रहती थी. उसी दौरान किरण की छोटी बहन सलीना भी उस के पास रहने के लिए आ गई. 22 साल की सलीना खूबसूरत थी. जवान साली को देख कर करतार की भी नीयत डोल गई. वह उस पर डोरे डालने लगा लेकिन घर में अकसर पत्नी के रहने की वजह से उस की दाल नहीं गल पाई.

उधर किरण और रामबाबू के अवैध संबंध का खेल कायम रहा और 7 फरवरी को वह रामबाबू के साथ भाग गई. बदनामी की वजह से करतार ने इस की रिपोर्ट थाने में भी नहीं लिखवाई. करीब एक हफ्ते तक दोनों इधरउधर घूम कर मौजमस्ती कर के घर लौट आए. करतार ने किरण को आडे़ हाथों लिया तो किरण ने पति के पैरों में गिर कर माफी मांग ली. पत्नी के घडि़याली आंसू देख कर करतार का दिल पसीज गया और उस ने पत्नी को माफ कर दिया.

13 फरवरी की शाम को रामबाबू करतार के यहां आया. करतार को पता था कि उस की पत्नी को रामबाबू ही भगा कर ले गया था इसलिए उस के घर आने पर वह मन ही मन कुढ़ रहा था. फिर भी उस ने उस से कुछ कहना जरूरी नहीं समझा.

उस ने उस की खातिरदारी की और उस के साथ शराब भी पी. शराब पीने के दौरान ही बातोंबातों में उन का झगड़ा हो गया. झगड़ा बढ़ने पर रामबाबू वहां से चला गया. किरण ने इसे अपने प्रेमी रामबाबू की बेइज्जती समझा और उलटे वह भी पति से झगड़ने लगी.

अगले दिन 14 फरवरी को वैलेंटाइन डे था. प्यार का इजहार करने के इस दिन का तमाम लोगों को बेसब्री से इंतजार रहता है. 40 साल का करतार भी अपनी 22 साल की साली सलीना को मन ही मन चाहता था. उस दिन सलीना किरण के साथ महिपालपुर में रामबाबू के घर चली गई थी. इस बात की जानकारी करतार सिंह को थी.

करतार सिंह ने भी वैलेंटाइन डे के दिन ही सलीना को अपने प्यार का इजहार करने का फैसला कर लिया. वह दुकान पर अपने बेटे को बिठा कर रामबाबू के कमरे पर पहुंच गया. उस समय वहां रामबाबू नहीं था. वह किरण और सलीना को कमरे पर छोड़ कर किसी काम से घर से बाहर चला गया था और उस की पत्नी प्रभा मायके गई हुई थी.

करतार सलीना के लिए बेचैन हुआ जा रहा था. जिस समय किरण किचन में कोई काम कर रही थी, सलीना कमरे में थी, तभी मौका देख कर करतार ने सलीना का हाथ पकड़ लिया.

सलीना घबरा गई. जब उस ने हाथ छुड़ाने की कोशिश की तो करतार ने उस के सामने प्यार का इजहार करते हुए उसे किस कर दी और वह उस के साथ अश्लील हरकतें करने लगा. सलीना चीखी तो किचन से किरण आ गई. पति की हरकतों को देख कर उसे भी गुस्सा आ गया. तब सलीना ने किसी तरह खुद को उस के चंगुल से छुड़ा लिया और किचन की ओर भाग गई.

उधर किरण पति को डांट ही रही थी तभी सलीना किचन से चाकू ले आई. इस से पहले कि वह कुछ समझ पाता, सलीना ने करतार के पेट में चाकू घोंप दिया.

चाकू लगते ही करतार के पेट से खून का फव्वारा फूट पड़ा. सलीना ने उसी चाकू से एक वार उस के पेट की दूसरी साइड में कर दिया. इस के बाद करतार सिंह फर्श पर गिर गया और बेहोश हो गया.

बहन के इस कदम पर किरण भी हैरान रह गई. जो हो चुका था, उस में अब वह कुछ नहीं कर सकती थी. उस ने छोटी बहन से कुछ नहीं कहा. बल्कि वह यह सोच कर खुश हुई कि करतार के मरने के बाद वह रामबाबू के साथ बिना किसी डर के रहेगी. करतार कहीं जिंदा न रह जाए, इसलिए किरण ने उसी चाकू से उस का गला काट दिया. इस के बाद किरण ने फोन कर के रामबाबू को करतार की हत्या करने की खबर दे दी. उस ने उसे बुला लिया.

दोनों बहनों द्वारा करतार की हत्या करने पर वह भी हैरान रह गया. अब उन तीनों ने उस की लाश को ठिकाने लगाने की योजना बनाई. सब से पहले उन्होंने उस की बौडी के खून को साफ किया फिर लाश को प्लास्टिक के कट्टे में रख लिया.

अंधेरा होने के बाद रामबाबू ने उस की लाश अपने आटोरिक्शा में रख ली. किरण और सलीना भी आटो में बैठ गईं. रामबाबू आटो को वसंत कुंज इलाके की तरफ ले गया. वसंत वाटिका पार्क के पास उन्हें बिना ढक्कन का एक मेनहोल दिखा तो उसी मेनहोल में उन्होंने लाश गिराने का फैसला ले लिया.

आटो से कट्टा उतार कर उस मेनहोल के पास ले गए और कट्टे का मुंह खोल कर लाश उस मेनहोल में गिरा दी और कट्टा वहीं फेंक कर वे उसी कमरे पर चले गए जहां करतार की हत्या की गई थी.

तीनों ने फर्श धो कर खून के धब्बे साफ किए फिर किरण और सलीना वहां से करतार के कमरे पर आ गईं. उन्हें देख कर घर का कोई भी सदस्य यह अनुमान तक नहीं लगा पाया कि वे कोई जघन्य अपराध कर के आई हैं.

जब देर रात तक करतार घर नहीं पहुंचा तो उस के घर वालों ने किरण से उस के बारे में पूछा. तब किरण ने यही जवाब दिया कि उसे करतार के बारे में कुछ नहीं पता. घर वालों के साथ वह भी करतार को इधरउधर ढूंढती रही.

10-12 दिनों तक घर वाले परेशान होते रहे, लेकिन करतार का कहीं पता नहीं चला. करतार के घर वाले जब उस के गुम होने की रिपोर्ट दर्ज कराने की बात करते तो किरण उन्हें यह कह कर मना करती कि वह कहीं गए होंगे. अपने आप लौट आएंगे. घर वालों के दबाव देने पर किरण ने 25 फरवरी को थाना वसंत कुंज (नार्थ) जा कर पति की गुमशुदगी की रिपोर्ट लिखा दी.

उधर करतार सिंह के मातापिता का कहना है कि सलीना ने उन के बेटे पर छेड़खानी का जो आरोप लगाया है वह सरासर गलत है. हकीकत यह है कि सलीना करतार के साथ पहले से ही उस के कमरे में सोती थी. जब किरण रामबाबू के साथ भाग गई थी तब सलीना करतार के साथ ही सोती थी.

हफ्ता भर तक जब जीजासाली बंद कमरे में सोए थे तो उन्होंने भजनकीर्तन तो किया नहीं होगा. जाहिर है उन्होंने सीमाएं भी लांघी होंगी. ऐसे में उस के द्वारा छेड़छाड़ का आरोप लगाने वाली बात एकदम गलत है.

उन्होंने आरोप लगाया कि करतार की हत्या रामबाबू, किरण और सलीना ने साजिश के तहत की है. तीनों के खिलाफ सख्त काररवाई की जानी चाहिए.

बहरहाल अब यह बात अदालत ही तय करेगी कि करतार सिंह का हत्यारा कौन है. किरण और सलीना से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने एक बार फिर रामबाबू के यहां दबिश दी, लेकिन वह नहीं मिला.

पुलिस को पता चला कि करतार की लाश ठिकाने लगाने में रामबाबू ने अपने जिस आटोरिक्शा का प्रयोग किया था, वह किसी के यहां खड़ा है. पुलिस उस जगह पर पहुंच गई जहां उस का आटोरिक्शा खड़ा था. उस आटोरिक्शा को ले कर पुलिस थाने लौट आई.

पुलिस ने किरण और सलीना को भादंवि की धारा 302 (हत्या करना), 201 (हत्या कर के लाश छिपाने की कोशिश) और 120बी (अपराध की साजिश रचने) के तहत गिरफ्तार कर के उन्हें न्यायालय में पेश कर के जेल भेज दिया.

कथा संकलन तक दोनों अभियुक्त जेल में बंद थीं जबकि रामबाबू की तलाश में पुलिस अनेक स्थानों पर दबिश डाल चुकी थी.

—कथा पुलिस सूत्रों और जनचर्चा पर आधारित

वैलेंटाइन डे पर मिली अनोखी सौगात – भाग 2

करतार रंगपुरी पहाड़ी पर रहता था. महिपालपुर से लौटने के बाद पुलिस ने रंगपुरी पहाड़ी पर पहुंच कर वहां के लोगों से करतार के बारे में जानकारी जुटानी शुरू कर दी. इस से पुलिस को कई महत्त्वपूर्ण जानकारियां मिलीं, जिस के बाद किरण और उस की छोटी बहन सलीना भी शक के दायरे में आ गईं.

दोनों बहनों को पुलिस ने उसी दिन पूछताछ के लिए थाने बुलवा लिया. किरण और सलीना को जब अलगअलग कर के पूछताछ की तो करतार के मर्डर की कहानी खुल गई. दोनों बहनों ने स्वीकार कर लिया कि उस की हत्या उन दोनों ने ही की थी और लाश रामबाबू के आटो में रख कर वसंत वाटिका पार्क में लाए और उसे वहां के गटर में डाल कर अपनेअपने घर चले गए थे. पति की हत्या की जो कहानी किरण ने बताई, वह प्रेम से सराबोर निकली.

पिल्लूराम मूलरूप से हरियाणा के गुड़गांव जिले के मेवात क्षेत्र स्थित नूनेरा गांव के रहने वाले थे. अब से तकरीबन 40 साल पहले अपनी पत्नी रतनी और 2 बेटों के साथ वे दिल्ली आए थे और दक्षिणी दिल्ली के वसंत कुंज इलाके में स्थित रंगपुरी पहाड़ी पर रहने लगे. उन से पहले अनेक लोगों ने इसी पहाड़ी पर तमाम झुग्गियां डाल रखी थीं.

दिल्ली की चकाचौंध ने उन्हें इतना प्रभावित किया कि वह यहीं पर बस गए. छोटेमोटे काम कर के वह परिवार को पालने लगे. दिल्ली आने के बाद रतनी 4 और बेटों की मां बनी. अब उन के पास 6 बेटे हो गए थे जिन में करतार सिंह तीसरे नंबर का था.

पिल्लूराम की हैसियत उस समय ऐसी नहीं थी कि वे बच्चों को पढ़ा सकें. फिर भी उन्होंने सरकारी स्कूलों में बच्चों का दाखिला कराया लेकिन सभी ने पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी. कोई भी बच्चा उच्चशिक्षा हासिल नहीं कर सका, तब पिल्लूराम ने उन्हें अलगअलग कामों में लगा दिया.

सभी बच्चे कमाने लगे तो घर के हालात सुधरने लगे. पैसा जमा करने के बाद करतार सिंह ने रंगपुरी पहाड़ी पर ही किराना स्टोर और चाय की दुकान खोल ली. कुछ ही दिनों में करतार सिंह का काम चल निकला तो उसे अच्छी आमदनी होने लगी. तब पिल्लूराम ने उस की शादी सीमा नाम की एक लड़की से कर दी.

शादी के बाद हर किसी के जीवन की एक नई शुरुआत होती है. यहीं से एक नए परिवार की जिम्मेदारी उठाने की कोशिश शुरू हो जाती है. सीमा से शादी करने के बाद करतार ने भी गृहस्थ जीवन की शुरुआत की. वह सीमा से बहुत खुश था. सीमा सपनों के जिस राजकुमार से शादी करना चाहती थी, करतार वैसा ही था. इसलिए उस ने बहुत जल्द ही करतार के दिल को काबू में कर लिया था.

इस दौरान सीमा एक बेटी और एक बेटे की मां बनी. उस का परिवार हंसीखुशी से चल रहा था. इसी बीच परिवार में ऐसा भूचाल आया जिस का दुख उसे सालता रहा.

करीब 4-5 साल पहले सीमा की कैंसर से मौत हो गई. करतार ने उस का काफी इलाज कराया था. लाख कोशिश करने के बाद भी वह ठीक नहीं हो सकी और परिवार को हमेशा हमेशा के लिए छोड़ कर चली गई.

सीमा की मौत पर वैसे तो पूरे परिवार को दुख हुआ था लेकिन सब से ज्यादा दुख करतार ही महसूस कर रहा था. होता भी क्यों न, वह उस की अर्द्धांगिनी जो थी. जीवन के जितने दिन उस ने पत्नी के साथ गुजारे थे, उन्हीं दिनों को याद करकर के उस की आंखों में आंसू भर आते थे.

36 साल का करतार दुकान पर बैठेबैठे खाली समय में अपने वैवाहिक जीवन की यादों में खोया रहता था. उस के मांबाप भी उसे काफी समझाते रहते थे. खैर, जैसेजैसे समय गुजरता गया, करतार सिंह भी सामान्य हो गया.

उसी दौरान उस की मुलाकात किरण नाम की एक युवती से हुई जो झारखंड के केरल गांव की थी. वह भी रंगपुरी पहाड़ी पर रहती थी. किरण वसंत कुंज इलाके में कोठियों में बरतन साफ करने का काम करती थी. करतार एकाकी जीवन गुजार रहा था. किरण को देख कर उस का झुकाव उस की ओर हो गया. किरण भी अकसर उस के पास आने लगी. उसे भी करतार से बातचीत करने में दिलचस्पी होने लगी. दोनों ने एकदूसरे को अपने फोन नंबर दे दिए थे.

फिर तो करतार जब भी फुरसत में होता, किरण को फोन मिला देता. दोनों में बातचीत का सिलसिला शुरू हो जाता और काफी देर तक बातें होती रहतीं. बातों ही बातों में वे एकदूसरे से खुलते गए. यह नजदीकी उन्हें प्यार के मुकाम तक ले गई.

चूंकि किरण भी अकेली ही थी और करतार उस की नजरों में सही था. उस की किराने की दुकान अच्छी चल रही थी इसलिए उस ने काफी सोचनेसमझने के बाद ही उस की तरफ प्यार का हाथ बढ़ाया था. करतार ने उस के सामने पूरी जिंदगी साथ रहने की पेशकश की तो किरण ने सहमति जता दी. इस के बाद किरण करतार के साथ पत्नी की तरह रहने लगी. यह करीब 4 साल पहले की बात है.

करतार की जिंदगी फिर से हरीभरी हो गई थी. किरण के प्यार ने उस के बीते दुखों को भुला दिया था. दोनों की उम्र में करीब 8 साल का अंतर था इस के बाद भी किरण उस से खुश थी.

इन 4 सालों में किरण मां नहीं बन सकी थी. करतार सिंह की पहली पत्नी से 2 बच्चे थे. इसलिए किरण के बच्चा पैदा न होने पर करतार को कोई मलाल नहीं था. लेकिन किरण इस चिंता में घुलती जा रही थी. वह चाहती थी कि उस के भी बच्चा हो. उस की गोद भी भर जाए.

किरण के कहने पर करतार ने उस का इलाज भी कराया. इस के बावजूद भी उस की इच्छा पूरी नहीं हुई तो करतार ने अपने एक संबंधी की एक साल की बेटी गोद ले ली जिस से किरण का मन लगा रहे. किरण उस गोद ली हुई बेटी की परवरिश में लग गई.

किरण के गांव की ही प्रभा नाम की एक लड़की की शादी महिपालपुर में रहने वाले रामबाबू के साथ हुई थी. रामबाबू आटोरिक्शा चलाता था. एक ही गांव की होने की वजह से किरण प्रभा से फोन पर बात भी करती रहती थी. कभी प्रभा उस के यहां तो कभी वह प्रभा के घर जाती रहती थी. एकदूसरे के यहां आनेजाने से करतार और रामबाबू के बीच भी दोस्ती हो गई थी. दोनों साथसाथ खातेपीते थे.

इसी बीच किरण का झुकाव रामबाबू की ओर हो गया. वह उस से हंसीमजाक करती रहती थी. किरण की ओर से मिले खुले औफर को भला रामबाबू कैसे ठुकरा सकता था. शादीशुदा होने के बावजूद भी उस ने अपने कदम किरण की ओर बढ़ा दिए. दोनों ही अनुभवी थे इसलिए उन्हें एकदूसरे के नजदीक आने में झिझक महसूस नहीं हुई.

वैलेंटाइन डे पर मिली अनोखी सौगात – भाग 1

दक्षिणी दिल्ली के वसंत कुंज इलाके में एमसीडी के कर्मचारी गटर की सफाई कर रहे थे. सफाई करते हुए वे सी-2 ब्लौक में वसंत  वाटिका पार्क पहुंचे तो गटर के एक मेनहोल के पास तीक्ष्ण गंध महसूस हुई. वह गंध सीवर की गंध से कुछ अलग थी. जिस मेनहोल से बदबू आ रही थी, उस पर ढक्कन नहीं था. सफाई कर्मचारी उस मेनहोल के पास पहुंचे तो बदबू और ज्यादा आने लगी. अपनी नाक पर कपड़ा रख कर उन्होंने जब मेनहोल में झांक कर देखा तो उन की आंखें फटी की फटी रह गईं. उस में एक आदमी की लाश पड़ी थी.

लाश मिलने की खबर उन्होंने अपने सुपरवाइजर को दी. उधर से गुजरने वालों को जब गटर में लाश पड़ी होने की जानकारी मिली तो वे भी उस लाश को देखने लगे. थोड़ी ही देर में खबर आसपास के तमाम लोगों को मिली तो वे भी वसंत वाटिका पार्क में पहुंचने लगे. थोड़ी ही देर में वहां लोगों का हुजूम लग गया. इसी बीच किसी ने खबर पुलिस कंट्रोलरूम को दे दी. यह 25 फरवरी, 2014 दोपहर 1 बजे की बात है.

यह इलाका दक्षिणी दिल्ली के थाना वसंत कुंज (नार्थ) के अंतर्गत आता है, इसलिए गटर में लाश मिलने की खबर मिलते ही थानाप्रभारी मनमोहन सिंह, एसआई नीरज कुमार यादव, कांस्टेबल संदीप, बलबीर को ले कर वसंत वाटिका पार्क पहुंच गए. थानाप्रभारी ने जब गटर के मेनहोल से झांक कर देखा तो वास्तव में उस में एक आदमी की लाश पड़ी थी. वह सड़ गई थी जिस से वहां तेज बदबू फैली हुई थी.

पुलिस ने लाश बाहर निकाल कर जब उस का निरीक्षण किया तो उस का गला कटा हुआ था और पेट पर दोनों साइडों में गहरे घाव थे. लाश की हालत देख कर लग रहा था कि उस की हत्या कई दिनों पहले की गई होगी. जहां लाश मिली थी, उस से कुछ दूर ही रंगपुरी पहाड़ी थी, जहां झुग्गी बस्ती है.

लाश मिलने की खबर जब इस झुग्गी बस्ती के लोगों को मिली तो वहां से तमाम लोग लाश देखने के लिए वसंत वाटिका पार्क पहुंच गए. उन्हीं में प्रताप सिंह भी था.

प्रताप सिंह का छोटा भाई करतार सिंह भी 14 फरवरी, 2014 से लापता था. जैसे ही उस ने वह लाश देखी, उस की चीख निकल गई. क्योंकि वह लाश उस के भाई करतार सिंह की लग रही थी. अपनी संतुष्टि के लिए उस ने उस लाश का दायां हाथ देखा. उस पर हिंदी में करतार-सीमा गुदा हुआ था. यह देख कर उसे पक्का यकीन हो गया कि लाश उस के भाई की ही है. सीमा करतार की पहली बीवी थी.

करतार सिंह के घर के अन्य लोगों को भी पता चला कि उस की लाश गटर में मिली है तो वे घर से वसंत वाटिका पार्क पहुंच गए. वे भी करतार की लाश देख कर रोने लगे.

कुछ देर बाद पुलिस ने मृतक करतार के पिता पिल्लूराम से पूछा तो उन्होंने बताया, ‘‘यह 14 फरवरी से लापता था. इस की पत्नी किरण ने आज ही इस की गुमशुदगी थाने में लिखवाई थी. इस का यह हाल न जाने किस ने कर दिया?’’

‘‘जब यह 14 फरवरी से गायब था तो गुमशुदगी 12 दिन बाद क्यों कराई?’’ थानाप्रभारी ने पूछा.

‘‘पता नहीं साहब, हम ने तो इसे सब जगह ढूंढा था. इस का मोबाइल फोन भी बंद था.’’ पिल्लूराम ने रोते हुए बताया.

‘‘तुम चिंता मत करो, हम इस बात का जल्दी पता लगा लेंगे कि इस की हत्या किस ने की है.’’

‘‘साहब, हमारा तो बेटा चला गया. हम बरबाद हो गए.’’

थानाप्रभारी ने किसी तरह पिल्लूराम को समझाया और उन्हें भरोसा दिया कि वह हत्यारे के खिलाफ कठोर काररवाई करेंगे.

कोई भी लाश मिलने पर पुलिस का पहला काम उस की शिनाख्त कराना होता है. शिनाख्त के बाद ही पुलिस हत्यारों का पता लगा कर उन तक पहुंचने की काररवाई करती है. गटर में मिली इस लाश की शिनाख्त उस के घर वाले कर चुके थे. इसलिए पुलिस ने लाश का पंचनामा कर के उसे पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया.

मामला मर्डर का था इसलिए दक्षिणी दिल्ली के डीसीपी भोलाशंकर जायसवाल ने थानाप्रभारी मनमोहन सिंह के निर्देशन में एक पुलिस टीम बनाई जिस में सबइंसपेक्टर नीरज कुमार यादव, संदीप शर्मा, कांस्टेबल बलबीर सिंह, संदीप, विनय आदि को शामिल किया गया.

मृतक करतार सिंह की पत्नी किरण ने 25 फरवरी, 2014 को उस की गुमशुदगी की सूचना थाने में लिखाई थी. जिस में उस ने कहा था कि उस का पति 14 फरवरी से लापता है. पुलिस ने उस से मालूम भी किया था कि सूचना इतनी देर से देने की वजह क्या है.

तब किरण ने बताया था कि पति के गायब होने के बाद से ही वह उसे हर संभावित जगह पर तलाशती रही. उस के जानकारों से भी पूछताछ की थी, लेकिन उस का कहीं पता नहीं चला. उस ने सुबह के समय गुमशुदगी लिखाई थी और दोपहर में लाश मिल गई. इसलिए पुलिस ने अज्ञात के खिलाफ हत्या कर लाश छिपाने का मामला दर्ज कर लिया.

पुलिस टीम ने सब से पहले मृतक के घर वालों से पूछताछ की तो पता चला कि करतार अपनी किराने की दुकान पर बैठता था. उस की किसी से कोई दुश्मनी भी नहीं थी इसलिए कहा नहीं जा सकता कि उस की हत्या किस ने की है. पिता पिल्लूराम ने बताया कि करतार के गायब होने के 2 दिन पहले उस का झगड़ा रामबाबू से हुआ था.

‘‘यह रामबाबू कौन है?’’ थानाप्रभारी मनमोहन सिंह ने पिल्लूराम से पूछा.

‘‘साहब, रामबाबू की बीवी और किरण एक ही गांव की हैं. उसी की वजह से रामबाबू करतार के पास आता था. करतार के गायब होने के 2 दिन पहले ही उस की रामबाबू से किसी बात पर कहासुनी हो गई थी.’’ पिल्लूराम ने बताया.

‘‘…और रामबाबू रहता कहां है?’’

‘‘साहब, ये तो मुझे पता नहीं. लेकिन किरण को जरूर पता होगा. क्योंकि वह उस के यहां जाती थी.’’

थानाप्रभारी ने किरण को थाने बुलवाया. पति की लाश मिलने के बाद उस का रोरो कर बुरा हाल था. थानाप्रभारी ने उस से पूछा, ‘‘तुम रामबाबू को जानती हो? वह कहां रहता है और करतार से उस का जो झगड़ा हुआ था, उस की वजह क्या थी?’’

‘‘रामबाबू की बीवी और हम एक ही गांव के हैं, इसलिए वह कभीकभी हमारे यहां आता रहता था. वह महिपालपुर में रहता है. करतार और रामबाबू 12 फरवरी को साथसाथ शराब पी रहे थे, उसी समय किसी बात पर दोनों के बीच झगड़ा हो गया था.’’ किरण ने बताया.

चूंकि करतार का झगड़ा रामबाबू से हुआ था इसलिए पुलिस सब से पहले रामबाबू से ही पूछताछ करना चाहती थी. पुलिस किरण को ले कर महिपालपुर स्थित रामबाबू के कमरे पर पहुंची. लेकिन उस का कमरा बंद मिला. पड़ोसियों से जब उस के बारे में पूछा तो उन्होंने भी उस के बारे में अनभिज्ञता जताई. इस से पुलिस के शक की सुई रामबाबू की तरफ घूम गई.

कहानी कुछ और थी : प्रेमिका का किया अपहरण

दीवार पर लगी घड़ी की ओर देखते हुए संजय गुप्ता ने बेटी को आवाज दी, ‘‘बेटी चेतना जल्दी करो, ट्यूशन के लिए देर हो रही  है.’’ चेतना ने कोई जवाब नहीं दिया तो संजय गुप्ता ने पुन: आवाज लगाई, ‘‘जल्दी करो बेटा, देर हो रही है.’’

पिता के दोबारा आवाज लगाने पर चेतना टोस्ट का टुकड़ा मुंह में ठूंसते हुए बोली, ‘‘बस आई पापा, दो मिनट.’’

कह कर चेतना ने किताबें और नोटबुक समेटीं और जल्दी से संजय गुप्ता के पास आ कर बोली, ‘‘चलिए पापा.’’

‘‘चलो.’’ कह कर संजय गुप्ता बाहर आ गए. उन्होंने स्कूटी निकाल कर स्टार्ट की तो चेतना फुर्ती से उन के पीछे बैठ गई. इस के बाद उन्होंने स्कूटी आगे बढ़ा दी. संजय गुप्ता और चेतना का यह रोज का काम था. चेतना गुप्ता जगराओं के डीएवी कालेज से बीकौम कर रही थी. वह कालेज दोपहर के बाद जाती थी, इसीलिए सुबह साढ़े 8 बजे से साढ़े 11 बजे तक ट्यूशन पढ़ने जाती थी. यही वजह थी कि दुकान पर जाते समय संजय गुप्ता चेतना को साथ लेते जाते थे. उसे ट्यूशन वाले मास्टर की गली के मोड़ पर छोड़ कर वह अपनी दुकान पर चले जाते थे.

संजय गुप्ता शरीफ और नेकदिल इंसान तो थे ही, शहर के जानेमाने व्यवसाई भी थे. जगराओं रामनगर में ‘एस.के. टेक्सटाइल्स’ नाम से उन का कपड़ों का भव्य शोरूम था. उन के परिवार में पत्नी सीमा गुप्ता के अलावा बेटा साहिल गुप्ता और बेटी चेतना गुप्ता थी. साहिल पिता के साथ शोरूम संभालता था, जबकि चेतना अभी पढ़ रही थी. चेतना छोटी थी, इसलिए संजय गुप्ता बेटे से अधिक बेटी को प्यार करते थे.

उस दिन सुबह 8 बजे के आसपास चेतना को वह गली के मोड़ पर ले कर पहुंचे तो वहां उन्हें सफेद रंग की एक मारुति स्विफ्ट कार खड़ी दिखाई दी. ड्राइविंग सीट पर एक लड़का बैठा था, जो अपना चेहरा दूसरी ओर किए था. कार की पिछली सीट पर 2 लड़के बैठे थे और 2 लड़के कार के बाहर दरवाजे के पास खड़े थे. कार के दोनों पिछले दरवाजे खुले थे.

चेतना स्कूटी से उतर कर जैसे ही कार के पास पहुंची, बाहर खड़े दोनों लड़कों ने अचानक उसे पकड़ कर कार के अंदर झोंक दिया. चेतना के कार के अंदर गिरते ही कार में बैठे लड़कों ने उसे खींच कर दबोच लिया. इस के बाद बाहर खड़े लड़के भी फुर्ती से कार में बैठ गए तो कार तेजी से चल पड़ी. यह 29 जनवरी, 2014 की बात है.

यह सब इतनी तेजी से और अचानक हुआ था कि जल्दी न संजय गुप्ता ही समझ पाए और न चेतना ही कि यह क्या हो रहा है. जब दोनों की समझ में आया कि अपहरण हो गया तो कार के अंदर से जहां चेतना चिल्लाई, ‘पापा बचाओ,’ वहीं स्कूटी संभालते हुए संजय गुप्ता भी चिल्लाए, ‘‘अरे कार रुकवाओ भई, मेरी बेटी को बदमाश उठा ले गए.’’

संजय गुप्ता चिल्लाए ही नहीं, बेटी को इस तरह आंखों के सामने उठा कर ले जाते देख चिल्लाते हुए कार के पीछे स्कूटी लगा दी. आगे उन के भाई की दुकान थी. भाई दुकान पर आ गए थे. शोरशराबा सुन कर वह भी बाहर आ गए. भाई को चिल्लाते हुए स्कूटी से कार का पीछा करते देख वह भी अपना एक्टिवा स्कूटर उठा कर कार का पीछा करने लगे. उन्हीं के साथ कुछ अन्य लोगा भी माजरा समझ कर अपने अपने वाहनों को ले कार के पीछे लपके. लेकिन लाख प्रयास के बाद भी कार पकड़ में नहीं आई और देखते देखते आंखों से ओझल हो गई.

जो भी इस तरह सरेआम अपहरण की बात सुनता, वही दौड़ पड़ता. धीरेधीरे पूरा बाजार जमा हो गया. संजय गुप्ता तो बदहवास हो कर सड़क पर ही बैठ गए थे. व्यापारी साथियों ने उन्हें सांत्वना देने के साथ ही इस घटना की सूचना पुलिस कंट्रोल रूम के साथसाथ थाना जगराओं और सिटी पुलिस को भी दे दी थी.

सूचना मिलते ही थाना सिटी के थानाप्रभारी मोहम्मद जमील पुलिस दल के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए और संजय गुप्ता द्वारा की गई शिकायत के आधार पर काररवाई करते हुए उन्होंने वायरलैस द्वारा संदेश दे कर जगराओं शहर से बाहर जाने वाली सभी सीमाओं को सील करवाने के साथ चेतना गुप्ता के अपहरण की रिपोर्ट मनीष मल्होत्रा और उस के 4 अज्ञात दोस्तों के खिलाफ दर्ज करा दी.

संजय गुप्ता ने रिपोर्ट दर्ज कराते समय पुलिस को बताया था कि कार की ड्राइविंग सीट पर बैठे युवक को वह पहचानते थे. उस का नाम मनीष मल्होत्रा था, जबकि उस के साथियों को वह नहीं जानते थे, लेकिन सामने आने पर वह उन्हें पहचान सकते थे. मनीष को वह इसलिए पहचानते थे, क्योंकि वह पहले भी कई बार चेतना से छेड़छाड़ कर चुका था, जिस की उन्होंने पुलिस से शिकायत भी की थी.

संजय गुप्ता ने रिपोर्ट में मनीष और उस के दोस्तों के अलावा इस अपहरण की साजिश में मनीष के पिता जोगिंदर पाल, चाचा राज मल्होत्रा, मां ऊषा रानी, चाची, बुआ के बेटे आकाश धवन उर्फ अभी के नाम भी लिखाए थे. उन का कहना था कि इन सभी लोगों ने साजिश रच कर चेतना का अपहरण करवाया है.

चूंकि अपहरण शहर के एक प्रसिद्ध व्यवसाई के बेटी, जो छात्रा भी थी, का हुआ था, इसलिए इस मामले में छात्र भी हंगामा कर सकते थे. इस बात को ध्यान में रख कर थानाप्रभारी मोहम्मद जमील ने घटना की सूचना एसपी सिटी, डीएसपी सुरेंद्र कुमार, क्राइम टीम और स्पेशल फोर्स को भी दे दी थी.

संजय गुप्ता ने चेतना के अपहर्त्ताओं में से मुख्य अभियुक्त का नाम बता दिया था, इसलिए थानाप्रभारी मोहम्मद जमील ने तुरंत मनीष मल्होत्रा के बारे में पता किया. प्राप्त जानकारी के अनुसार, मनीष मल्होत्रा जगराआें के रायकोटा रोड पर भट्ठा गुरु के नजदीक मकान नंबर 2982 में रहने वाले शहर के प्रसिद्ध व्यवसाई जोगिंदर पाल मल्होत्रा का बेटा था. उन का जगराओं में मल्होत्रा फिल स्टेशन के नाम से पेट्रेल पंप तो था ही, उन के पास कोकपेप्सी की ऐजेंसी भी थी.

जोगिंदर पाल का संयुक्त परिवार था. भाई राज मल्होत्रा भी उन्हीं के साथ रहते थे. उन के 2 बेटे थे. बड़ा बेटा विशाल शादीशुदा था. वह चाचा राज मल्होत्रा के साथ पैट्रोल पंप का कामकाज देखता था. छोटा बेटा मनीष पढ़ाई पूरी करने के बाद मटरगश्ती करता था.

थानाप्रभारी मोहम्मद जमील ने एएसआई जरनैल सिंह के साथ मनीष के घर छापा मारा तो वह घर से फरार मिला. उस के बारे में पता करने के लिए वह जोगिंदर पाल के पेट्रोल पंप और कोकपेप्सी ऐजेंसी के औफिस गए तो पुलिस के डर से वह भी भूमिगत हो गए थे. पुलिस अपनी काररवाई कर रही थी, लेकिन जनता उस से संतुष्ट नहीं थी. इसलिए आम लोगों में पुलिस के प्रति आक्रोश बढ़ता जा रहा था. शहर के व्यवसाई ही नहीं, आम लोग भी एकत्र होने लगे थे.

जब अच्छीखासी भीड़ जमा हो गई तो उन्होंने हाईवे और शहर की प्रमुख सड़कों पर धरना प्रदर्शन शुरू कर दिया. शहर के बाजार और व्यापारिक गतिविधियां बंद करा दी गईं. लोग सड़कों पर ही धरने पर बैठ गए. धरने पर बैठे लोग पुलिसप्रशासन के खिलाफ नारेबाजी कर रहे थे. इस तरह पुलिस के लिए परेशानी खड़ी हो गई. प्रदर्शनकारियों को भी संभालना था और अपहर्त्ताओं की तलाश कर चेतना को सकुशल बरामद भी करना था.

जांच में परेशानी हो रही थी, क्योंकि कहींकहीं पुलिस और जनता के बीच झड़पें हो रही थीं. एक एएसआई जोगा सिंह से जनता काफी नाराज थी, क्योंकि सूचना देने के बावजूद वह घटनास्थल पर काफी देर से पहुंचे थे. धरने पर बैठे लोग अपहर्त्ताओं को जल्द से जल्द गिरफ्तार कर के चेतना को बरामद करने की मांग कर रहे थे.

जनता को धरनाप्रदर्शन करते देख नेता भी अपनी रोटियां सेंकने पहुंच गए. इनकलाबी क्लब पंजाब के नेता कमलजीत खन्ना ने धरना पर बैठे लोगों को संबोधित करते हुए यहां तक कह डाला कि यह घटना भी पंजाब के चर्चित श्रुति अपहरण कांड की ही तरह है. अपहर्त्ताओं ने पुलिस और सत्ता पार्टी में बैठे नेताओं के साथ मिल कर इस घटना को अंजाम दिया है.

विधायक एस.आर. कलेर ने हाथ जोड़ कर प्रदर्शनकारियों और धरना पर बैठे लोगों से शांत रहने की अपील की. लेकिन उन की बातों पर किसी ने ध्यान नहीं दिया. डीएसपी सुरेंद्र कुमार जब धरना पर बैठे लोगों को समझाने पहुंचे तो गुस्साए लोगों ने उन के विरोध में नारे तो लगाए ही, उलझने की भी कोशिश की.

शाम होतेहोते यह आक्रोश इस कदर बढ़ गया कि लोगों ने थाने का घेराव करने के साथ थानाप्रभारी मोहम्मद जमील के औफिस के बाहर चादर बिछा कर भीख मांगते हुए जोरजोर से चिल्ला कर कहने लगे, ‘‘हम जानते हैं, पुलिस बिना पैसा लिए कोई काम नहीं करती, इसलिए हमें भिक्षा में पैसे दो, जिसे दे कर हम चेतना बिटिया को वापस ला सकें.’’

लोग उस चादर में 10, 20, 50 और सौ रुपए डालते हुए कह रहे थे कि ‘चाहे जितने पैसे ले लो, लेकिन चेतना को अपहर्त्ताओं के चंगुल से मुक्त करा दो.’ जनता की इस हरकत से परेशान हो कर एसपी और डीएसपी ने आ कर धरना पर बैठे लोगों से माफी मांगी और अपहर्त्ताओं को शीघ्र गिरफ्तार करने का आश्वासन दिया. इस के बाद भीड़ थोड़ा शांत हुई.

पुलिस ने उस रात अपहर्त्ताओं की तलाश में कई जगह छापे मारे, लेकिन अपहर्त्ता पुलिस के हाथ नहीं लगे. उन के परिजनों और निकट संबंधियों पर शिकंजा कसा गया. मनीष के परिजनों और मित्रों को थाने ला कर पूछताछ की गई. इस तरह मनीष और पुलिस के बीच पूरी रात चूहे बिल्ली का खेल चलता रहा. अंत में 30 जनवरी की सुबह एएसआई जरनैल सिंह से मनीष के ताऊ विजय मल्होत्रा ने फोन कर के कहा कि मनीष पुलिस के सामने आत्मसमर्पण करना चाहता है. इस के लिए वह कचहरी चौक पर आ जाएं. मनीष के आत्मसमर्पण की सिफारिश एक अकाली नेता ने भी की थी.

बहरहाल, पुलिस अधिक झमेले में नहीं पड़ना चाहती थी, क्योंकि वैसे ही इस मामले में अब तक पुलिस की काफी किरकिरी हो चुकी थी. इसलिए थानाप्रभारी मोहम्मद जमील के आदेश पर एएसआई जरनैल सिंह पुलिस टीम के साथ कचहरी चौक पर पहुंच गए. मनीष के कुछ रिश्तेदार वहां पहले से ही मौजूद थे.

पुलिस किसी से कुछ पूछताछ करती, उस के पहले ही वहां मौजूद लोगों में भगदड़ सी मच गई. पुलिस उन्हें संभालती, भगदड़ का फायदा उठा कर एकएक कर के सभी रिश्तेदार खिसक गए. लेकिन मनीष और चेतना पुलिस के हाथ लग गए. इस तरह चेतना सकुशल बरामद हो गई. एएसआई जरनैल सिंह दोनों को ले कर थाने आ गए.

थानाप्रभारी मोहम्मद जमील ने दोनों का सिविल अस्पताल में मैडिकल चेकअप कराया. रिपोर्ट के अनुसार मनीष और चेतना के बीच किसी प्रकार के सैक्स संबंध की पुष्टि नहीं हुई. मैडिकल चैकअप के बाद उसी दिन दोनों को इलाका मजिस्ट्रेट श्री गुरमीत सिंह की अदालत में पेश किया गया. पूछताछ के लिए पुलिस ने मनीष को 2 दिनों के पुलिस रिमांड पर लिया. जबकि चेतना गुप्ता को धारा 164 के अंतर्गत बयान दिला कर उसे उस के पिता संजय गुप्ता को सौंप दिया गया. रिमांड के दौरान मनीष से की गई पूछताछ में जो कहानी प्रकाश में आई, वह अपहरण की न हो कर आपसी प्रेमसंबंधों में आई खटास की थी.

दरअसल, चेतना गुप्ता और मनीष मल्होत्रा के बीच पिछले काफी समय से प्रेमसंबंध थे. पुलिस के अनुसार, मनीष ने चेतना गुप्ता को बड़ेबड़े सपने दिखाए थे. कहने को तो उस के पिता जोगिंदर पाल के पास पेट्रोल पंप ही नहीं, कोकपेप्सी की ऐजेंसी भी थी, लेकिन सच्चाई यह थी कि उन पर काफी कर्ज था.

चूंकि मनीष चेतना को पसंद करता था और उस से शादी करना चाहता था, इसलिए लगातार उस से झूठ बोलता आ रहा था. जबकि हकीकत यह थी कि चेतना को घुमानेफिराने के लिए वह अपने यारोंदोस्तों की गाडि़यां तो मांग कर लाता ही था, उसे गिफ्ट देने के लिए भी उन्हीं से उधार पैसे ले कर खरीद कर लाता था.

चेतना को बिलकुल पता नहीं था कि मनीष और उस के परिवार की आर्थिक स्थिति इतनी डांवाडोल हो चुकी है. हां, अगर मनीष सच्चाई बता कर अपनी स्थिति स्पष्ट कर देता तो शायद बात कुछ और होती. लेकिन वह उस के झूठ के मकड़जाल में फंसती चली गई और उसे दिल से चाहने लगी. जबकि मनीष उसे लगातार धोखा देता आ रहा था.

मनीष और चेतना आपस में शादी करना चाहते थे. लेकिन इस शादी में सब से बड़ी अड़चन चेतना के मातापिता की ओर से थी. क्योंकि दोनों की जाति अलग थी. चेतना गुप्ता जहां बनियों की बेटी थी, वहीं मनीष पंजाबी झांगी जाति से था. चेतना अच्छी तरह जानती थी कि उस के मातापिता इस शादी के लिए हरगिज तैयार नहीं होंगे.

अंत में काफी सोचविचार कर दोनों ने फैसला लिया कि वे चोरी से कोर्टमैरिज कर लेंगे. इस बात का जिक्र वे घर में नहीं करेंगे. अगर उन के मातापिता शादी के लिए राजी हो जाएंगे, तब तो ठीक है, अन्यथा वे मैरिज प्रमाण पत्र दिखा कर बता देंगे कि उन्होंने पहले ही शादी कर ली है. तब मजबूरन उन्हें झुकना होगा.

इस के बाद चेतना और मनीष ने वकील से बात की. वकील ने उन्हें सलाह दी कि अगर वे किसी मंदिर या गुरुद्वारे में शादी कर के वहां से शादी का प्रमाण पत्र प्राप्त कर लेते हैं तो उन्हें कोर्टमैरिज में आसानी होगी. दोनों किसी ऐसे मंदिरगुरुद्वारे की तलाश में लग गए, जहां से विवाह का प्रमाण पत्र मिल जाए. आखिर उन्हें एक ऐसा गुरुद्वारा मिल गया, जो उन के मातापिता की गैरमौजूदगी में उन की शादी करा सकता था. वह जगराओं के शेरपुरा रोड पर डीएवी कालेज के पास स्थिति गुरुद्वारा साहिब बाल खेतारामजी था.

12 सितंबर, 2013 को मनीष चेतना को ले कर गुरुद्वारा साहिब बाल खेतारामजी पहुंचा और शादी कर के कुछ फोटो खिंचवाने के बाद विवाह का प्रमाणपत्र हासिल कर लिया. इस के बाद दोनों ने चंडीगढ़ हाईकोर्ट जा कर किसी वकील के माध्यम से गुरुद्वारा द्वारा दिए गए शादी के प्रमाणपत्र के आधार पर नोटरी से शादी रजिस्टर्ड करवा ली.

अपनेअपने मातापिता से जान का खतरा बता कर उन्होंने सुरक्षा के लिए उच्च न्यायालय में आवेदन भी कर दिया. लेकिन इस के बाद जब चेतना को मनीष की आर्थिक स्थिति का पता चला तो उसे उस से नफरत हो गई. क्योंकि मनीष ने उसे प्रेमजाल में फंसाने के लिए झूठ बोला था. उसे यह भी पता चल गया था कि उसे तोहफे देने के लिए वह दोस्तों से पैसे उधार लेता रहता था.

चेतना ने जब इस बारे में मनीष से पूछा तो वह साफ मुकर गया. उस ने कहा कि यह सब झूठ है. उस के लगातार झूठ पर झूठ बोलने से चेतना को उस से इतनी घृणा हो गई कि उस ने उस से मिलना तक बंद कर दिया. यही नहीं, उस ने अपने पिता से भी कह दिया कि वह उस के लिए कोई अच्छा सा लड़का देख कर उस की शादी कर दें.

दूसरी तरफ मनीष के वे दोस्त, जो उस की शादी में गवाह थे, उसे ताना देने लगे, ‘‘यार! तू कैसा पति है. तू यहां अकेला पड़ा सड़ रहा है और पत्नी मायके में ऐश कर रही है.’’

मनीष चेतना को लाना चाहता था, जबकि वह आने को तैयार नहीं थी. क्षुब्ध हो कर उस ने दोस्तों के साथ मिल कर चेतना के अपहरण की योजना बना डाली. इस में उस ने लुधियाना के शिमला पुरी के रहने वाले अपनी बुआ के बेटे अभी की मदद लेने के साथ अपने 3 दोस्तों कालू, सीता और आकाश को शामिल किया. जिस स्विफ्ट कार से चेतना का अपहरण किया गया था, वह उस की बुआ के बेटे आकाश उर्फ अभी की ही थी. घटना के समय आकाश उर्फ अभी भी साथ था.

चेतना का अपहरण कर के वे उसे ले कर जगराओं से रायकोट पहुंचे. वहां कालू और सीता को उतार कर वे मुल्लापुर होते हुए लुधियाना के शिमलापुरी स्थित अभी के घर पहुंचे. वहां सभी ने चायनाश्ता किया. वहीं से फोन कर के मनीष ने जगराओं के मित्रों से वहां होने वाली गतिविधियों की जानकारी ली.

शाम को जब मनीष को पता चला कि पुलिस को उस के लुधियाना के शिमलापुरी में होने की जानकारी मिल गई है तो उस ने अभी से बात की. अभी ने जालंधर के रहने वाले अपने जीजा ललित मेहता को सारी बात बता कर सहायता मांगी. ललित ने उन्हें फौरन जालंधर आने को कहा.

मनीष और अभी तुरंत चेतना को ले कर जालंधर के लिए निकल पड़े. लेकिन लाडोवाल टोल ब्रिज पर पहुंच कर चेतना शोर मचाने लगी. उस के शोर मचाने पर कई लोगों का ध्यान उस की ओर चला गया. टोलनाका पर लगे कैमरों में भी चेतना का फोटो आ गया था. इसलिए डर के मारे मनीष ने वह कार वहीं छोड़ दी और ललित को फोन से स्थिति बताई तो उन्होंने अपनी टवेरा कार भेज कर उन्हें वापस जगराओं जा कर पुलिस के सामने आत्मसमर्पण करने की सलाह दी. इस के बाद मनीष ने जगराओं आ कर पुलिस के सामने आत्मसमर्पण कर दिया. पुलिस ने ललित की टवेरा भी बरामद कर ली है.

मनीष ने अपना अपराध स्वीकार करते हुए कहा था कि अगर चेतना ने उस के साथ बेवफाई न की होती तो शायद आज उसे यह अपराध न करना पड़ता. भला कौन अपनी पत्नीप्रेमिका का अपहरण करना चाहेगा. रिमांड अवधि समाप्त होने के बाद पुलिस ने मनीष को पुन: अदालत में पेश किया, जहां से उसे न्यायिक हिरासम में भेज दिया गया. फरार अभियुक्तों की पुलिस तलाश कर रही थी.

— कथा पुलिस सूत्रों व जन चर्चा पर आधारित

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