Film ‘दृश्सम’ की तर्ज पर प्रेमिका को तड़पा कर मारा

Film पति से तलाक होने के बाद 32 वर्षीय ज्योत्सना प्रकाश आकरे फौजी अजय वानखेड़े के संपर्क में आई. होटल में हसरतें पूरी करने के बाद फौजी ने उस से शादी करने का वायदा किया, लेकिन इस दौरान इन के बीच ऐसा क्या हो गया कि फौजी अजय ने न सिर्फ ज्योत्सना की हत्या कर दी, बल्कि घटना को फिल्म ‘दृश्यम’ की कहानी का रूप देने की कोशिश की?

28 अगस्त, 2024 को अजय वानखेड़े ने अपनी प्लानिंग के मुताबिक एक दूसरे फोन से ज्योत्सना से बात करने के बाद उसे नागपुर के वर्धा रोड पर आने के लिए कहा. उस ने ज्योत्सना को कहा कि वह उस से शादी करने को बिलकुल तैयार है, मगर उस से पहले वह शादी की कुछ जरूरी बातचीत अकेले में करना चाहता है.

इस बारे में वह अपने घर वालों को अभी कुछ न बताए, क्योंकि इस मामले में कुछ अड़चन सामने आ गई है, जोकि दोनों की आपसी बातचीत से ही सुलझ सकती है. ज्योत्सना ने प्रेमी अजय की बातों पर विश्वास कर लिया और उस ने प्रेमी से मिलने के लिए हामी भर दी. फिर ज्योत्सना ने अपने पिता और भाई को झूठ बोलते हुए यही बताया कि वह अपनी दोस्त अमृता उगे के घर किसी काम से जा रही है और वह रात को उसी के घर पर रुकेगी.

अजय ने होटल में कमरा पहले से ही बुक कर रखा था. जैसे ही ज्योत्सना वहां पहुंची तो अजय उसे पहले होटल में ले गया, फिर वह होटल में सामान रख कर घूमने के बहाने ज्योत्सना को अपनी कार में ले कर होटल से बाहर निकल गया. अजय ने रास्ते में टोल प्लाजा के पास ज्योत्सना को नशीली कोल्डड्रिंक पिला दी और फिर ज्योत्सना के बेहोश होते ही उस ने पहले ज्योत्सना की गला घोंट कर हत्या कर दी. इस के बाद उस ने आधी रात को न सिर्फ जंगल में गड्ढा खोदा, बल्कि उस में ज्योत्सना की लाश को दफन करने के बाद अपने साथ लाए सीमेंट से लाश वाले गड्ढे को पूरी तरह से बंद कर दिया.

इस के बाद कातिल प्रेमी अजय वानखेड़े ने ‘दृश्यम’ फिल्म की तर्ज पर सभी को उलझाने के लिए एक और काम किया. उस ने कत्ल करने के बाद ज्योत्सना के मोबाइल को एक चलते ट्रक में फेंक दिया, ताकि पुलिस इस कत्ल की साजिश का कभी भी परदाफाश न कर सके. इस के बाद उस ने एक और शातिराना चाल चली और इस वारदात को अंजाम देने के बाद वह तुरंत पुणे के आर्मी अस्पताल में भरती हो गया, ताकि कोई भी उस पर वारदात में शामिल होने को ले कर शक न कर सके.

फौजी के बायोडाटा से क्यों इंप्रैस हुई ज्योत्सना

 

32 वर्षीय ज्योत्सना प्रकाश आकरे तीखे नाकनक्श की खूबसूरत युवती थी. वह हुडको कालोनी कमलेश्वर नागपुर की रहने वाली थी. ज्योत्सना के घर पर उस के पापा कमल आकरे व एक छोटा भाई सिद्धेश्वर आकरे था. उस की मम्मी की काफी पहले मृत्यु हो चुकी थी. ज्योत्सना ने ग्रैजुएशन करने के बाद कंप्यूटर में भी 3 साल का कोर्स कर रखा था. पढ़ीलिखी थी तो उसे नागपुर में ही एक आटोमोबाइल कंपनी में जौब मिल गई थी. वर्ष 2019 में ज्योत्सना का विवाह अनूप नामक युवक से हुआ था, लेकिन पति से अनबन के कारण एक साल बाद ही दोनों में तलाक हो गया था.

उस के बाद ज्योत्सना ने विवाह करने का विचार लगभग छोड़ ही दिया था, लेकिन दूसरी ओर उस के पापा की उम्र बढ़ती जा रही थी इसलिए उस के पापा और भाई ज्योत्सना से विवाह करने के लिए अकसर कहते रहते थे. ज्योत्सना के पापा कमल आकरे ने तो एक दिन उस से कह ही दिया, ”देख बेटी ज्योत्सना, घर में तेरी मम्मी भी अब जीवित नहीं रहीं. एक तेरा छोटा भाई सिद्धेश्वर है, जिस की नौकरी लग चुकी है. एक दिन उस का विवाह भी हो जाएगा. मेरी उम्र अब इतनी अधिक हो चुकी है कि न जाने कब ऊपर वाले का बुलावा आ जाए. मेरे मरने के बाद तेरा क्या होगा, यही सोचसोच कर मैं चिंता में रहता हूं. मांबाप के बाद बेटी को भाई, बहन या भाभी या दूसरे रिश्तेदार कोई भी नहीं पूछते. अब तू बता कि तुझे शादी करनी है या नहीं?’’

इस के बाद ज्योत्सना ने भी अपने पापा से कह ही दिया, ”पापा, आप इतने दुखी व परेशान न रहा करें. मैं अपना बायोडाटा शादी डौटकौम पर डाल देती हूं, अगर मुझे कोई लड़का पसंद आ गया तो आप की सहमति से उस के साथ विवाह कर लूंगी. अब तो आप थोड़ा मुसकरा दीजिए.’’ और यह कहते हुए अपने पापा के गले लग गई थी. उस के बाद हंसमुख ज्योत्सना ने शादी डौटकौम पर अपनी फोटो और अपना पूरा विवरण अपलोड कर दिया और फिर इसी के जरिए अप्रैल 2024 में अजय वानखेड़े ने उस से संपर्क किया. अजय वानखेड़े न्यू कैलाश नगर, मानेवाड़ा, नागपुर का ही रहने वाला था. मैट्रीमोनियल साइट से अब दोनों की बातचीत होने लगी थी. ज्योत्सना को अजय वानखेड़े की बातचीत काफी अच्छी लगने लगी थी.

अजय और ज्योत्सना आकरे के बीच अब काफी बातचीत भी होने लगी थी. एक दिन कुरिअर से ज्योत्सना को एक पत्र मिला, भेजने वाले का नाम अजय वानखेड़े था और पता नागालैंड का था. ज्योत्सना को बड़ा आश्चर्य हुआ कि अजय वानखेड़े ने तो बातचीत में कभी नागालैंड का जिक्र तक नहीं किया था. उत्सुकतावश उस ने लिफाफा फाड़ा और पत्र गौर से पढऩे लगी. अजय ने पत्र में लिखा था, ‘मेरी प्रिय ज्योत्सनाजी, आप की फोटो और आप की बातें दिनरात सताती रहती हैं. ऐसा कोई भी पल नहीं होता, जब तुम्हारी याद मेरे ऊपर हावी नहीं होती, अगर आप मेरी इस सूनी जिंदगी में नहीं आतीं तो मेरा क्या होता? इस कल्पना से ही मेरा कलेजा मुंह को आ जाता है.

‘ज्योत्सना मैं ने तुम से अपनी कुछ बातें छिपाई हैं, जो मैं तुम्हें अपने पत्र मैं खुल कर बताना चाहता हूं, ताकि कल तुम मेरे ऊपर कोई तोहमत न लगा सको. पहली बात तो यह है कि भले ही मैं पोस्ट ग्रैजुएट हूं, लेकिन मैं भारतीय सेना में फार्मेसिस्ट हूं. फौज की नौकरी में मैं आप को सारे सुख दे भी पाऊंगा या नहीं, मैं कह नहीं सकता.

‘दूसरा, मैं एक बार शादी भी कर चुका हूं और मेरा पत्नी से तलाक हो गया. अब इस मुकाम पर आ कर कभीकभी मेरे दिलोदिमाग में यह विचार आता है कि मेरी इस सूनी जिंदगी के इस नाजुक मोड़ पर अगर तुम भी मुझे छोड़ दोगी तो फिर मेरा क्या होगा? मैं तो जीते जी मर जाऊंगा. तुम मुझे छोड़ोगी तो नहीं न?

‘सौरी ज्योत्सना, मैं आप से तो अब तुम पर भी आ गया. इसलिए कि मैं तुम्हें काफी अपना समझने लगा हूं और तुम्हें तो अब अपने दिल के काफी करीब भी मानने लगा हूं. देखो, मैं अगले महीने की 10 तारीख को एक महीने की छुट्टी पर नागपुर आ रहा हूं. एक बार तुम से मिलना चाहता हूं. मुझ से मिलोगी न तुम?

तुम्हारा अजय’

अजय का पत्र पढ़ कर ज्योत्सना भावविभोर हो उठी थी. उसे सब से अच्छी बात तो अजय की यह लगी कि उस ने अपने अतीत की सारी बातें सचसच पत्र में लिख डाली थीं. दूसरा वह उस की फोटो देख कर ही ज्योत्सना से इतना अधिक प्यार करने और चाहने लगा था. इसलिए उसी दिन शाम को ज्योत्सना ने अजय को फोन कर के बता दिया कि वह भी उसे पसंद करने लगी है. बाकी सारी बातें मिलने पर एकदूसरे को देख कर आपस में बातचीत कर के हो जाएंगी. उस ने अजय से ये भी कह दिया कि उसे फौजी बहुत पसंद हैं और वह अजय से मिलने के लिए बेसब्री से प्रतीक्षा कर रही है.

होटल में मिला नजदीक से जानने का मौका

10 जनवरी, 2024 को पहली बार अजय और ज्योत्सना की मुलाकात एक होटल में हुई. दोनों एकदूसरे से बातचीत करते और कुछ ही देर के बाद उन्हें ऐसा लगा कि वे दोनों तो वर्षों एकदूसरे को जानते हैं. इस के बाद एक दिन अजय ने ज्योत्सना से कहा कि एक दिन एक होटल में कमरा ले कर रुकते हैं. इस से हमें एकदूसरे को नजदीक से जानने का मौका भी मिल सकेगा. ज्योत्सना ने अजय की बात बात मान ली.

”हां अजयजी, यहां पर आप क्या बात कहना चाहते हैं. यहां पर आ कर भला हमारे बीच नजदीकियां कैसे बढ़ सकती हैं?’’ होटल में आ कर ज्योत्सना ने अजय से पूछा.

”ज्योत्सनाजी, आज आप को अपने सामने देख कर मैं अपने आप को दुनिया का सब से बड़ा भाग्यशाली व्यक्ति समझ रहा हूं. तुम्हारे सौंदर्य के सामने तो स्वर्ग की अप्सराएं भी कुछ नहीं हैं. कभीकभी तो मुझे विश्वास ही नहीं हो पा रहा है कि दुनिया की सब से सुंदर नारी मेरी बांहों में है.’’ यह कहतेकहते अजय ने ज्योत्सना को अपनी दोनों बांहों में ले लिया.

यह सुन कर और अजय की एकाएक बांहों में आ कर ज्योत्सना के गालों पर गुलाबी सुर्खी छा गई थी. भावावेश में आ कर ज्योत्सना ने अपना सिर अजय के कंधों पर रख दिया था. तभी उन के कमरे में बैरा कोल्डड्रिंक्स और स्नैक्स ले कर आ गया तो अजय ने फुरती से एक गिलास में नशे की गोली मिला दी थी. अजय की यह एक शातिराना चाल थी. अगले ही पल उस ने वह गिलास ज्योत्सना के हाथों में थमा दिया और कहा, ”ज्योत्सना, आज की हमारी पहली मुलाकात का एक छोटा सा जाम!’’

”अरे अजयजी, आप जाम की बात कहां करने लगे, मैं तो इस से दूर रहती हूं.’’ कहते हुए ज्योत्सना ने गिलास थाम लिया और उसे धीरेधीरे पीने लगी.

थोड़ी ही देर के बाद उसे एक अजीब सा नशा छाने लगा था और फिर वह अचेत हो गई. अजय ने इस का भरपूर फायदा उठाते हुए ज्योत्सना के साथ बेहोशी की अवस्था में संबंध स्थापित कर लिए. ज्योत्सना की बेहोशी पूरे 2 घंटे के बाद टूटी तो उस ने अपने आप को निर्वस्त्र अजय की बांहों में पाया. अजय उस समय चैन की नींद सो रहा था. ज्योत्सना ने उसे झिंझोड़ कर उठा दिया और जब अजय की आंखें खुलीं तो ज्योत्सना उस के ऊपर बुरी तरह से भड़क गई थी.

”अजय, तुम इतने गिरे हुए इंसान निकलोगे, ऐसा कभी मैं ने सपने में भी नहीं सोचा था. तुम ने तो मुझे कहीं पर भी मुंह दिखाने लायक नहीं छोड़ा. शादी से पहले ही तुम ने मेरे साथ इतना बड़ा धोखा आखिर क्यों किया?’’ ज्योत्सना ने गुस्से से कहा.

”ज्योत्सना, मैं सचमुच तुम्हारे सौंदर्य को देख कर बहक गया था. अपने आप पर बिलकुल ही काबू नहीं रख सका. इस के लिए मैं तुम से दिल से माफी मांगता हूं. मैं तुम्हें वचन देता हूं कि मैं केवल तुम्हारे साथ ही शादी करूंगा.’’ अजय ने गिड़गिड़ाते हुए कहा.

सब कुछ लुटाने के बाद भी ज्योत्सना ने फौजी को क्यों किया माफ

उस के बाद दोनों मिलते रहे. ज्योत्सना उसे हर बार अपने घर में आने के लिए कह चुकी थी, मगर अजय कुछ न कुछ बहाना कर के उसे टालता रहता था. एक दिन ज्योत्सना उसे जबरदस्ती अपने घर ले कर आ गई. उस समय ज्योत्सना के घर पर उस के पापा और भाई सिद्धेश्वर भी था. ज्योत्सना ने अजय की तारीफों के पुल बांधते हुए अपने पापा से उस का परिचय कराते हुए कहा, ”पापा, यही अजय वानखेड़े है. अजय भारतीय सेना में फार्मेसिस्ट हैं. मैं ने इन के बारे में पहले भी आप को बताया था. अजय बहुत ही अच्छे इंसान हैं. मुझ से बहुत प्यार करते हैं और शादी करना चाहते हैं.’’

उस के बाद ज्योत्सना चाय बना कर ले आई. अजय से ज्योत्सना के भाई और पापा ने काफी देर बातचीत भी की. कुछ देर के बाद अजय अपने घर चला गया. उस के बाद ज्योत्सना के पापा ने उस से कहा, ”बेटी, आजकल किसी पर इतनी जल्दी विश्वास करना ठीक नहीं है. तुम ने उस के बारे में पता किया है कि वह कौन है, उस के परिवार में कौनकौन लोग हैं, उस के परिवार का और उस का क्या इतिहास रहा है?’’

”पापा, मैं ने अजय के बारे में सब कुछ जान लिया है. मुझे तो वह हर तरह से योग्य लगता है, उस का भविष्य भी मुझे काफी उज्जवल दिखता है,’’ ज्योत्सना ने कहा.

”देख बेटी, मेरा अनुभव तो यह कहता है कि वह ठीक इंसान नहीं है, पहली ही नजर में वह मुझ से नजरें चुराने लगा था. इसलिए मैं तो कहता हूं कि जरा सोचसमझ कर फैसला लेना. एक बार शादी कर के तुम देख चुकी हो, इस बार कहीं धोखा मत खा जाना.’’ कमल आकरे ने उसे समझाते हुए कहा. उधर ज्योत्सना ने अजय को अपना तन समर्पित कर दिया तो वह उस पर शादी का दबाव बनाने लगी. सच्चाई यह थी कि अजय उस से शादी नहीं करना चाहता था. वह तो केवल उसे मौजमस्ती का साधन समझ रहा था. इसलिए उस ने ज्योत्सना से दूरी बनानी शुरू कर दी.

ज्योत्सना जब कभी उसे फोन करती तो वह उस की काल रिसीव नहीं करता. ज्योत्सना बहुत परेशान रहने लगी. वह वह वाट्सऐप पर भी चैटिंग का जवाब नहीं देता. एक दिन ज्योत्सना ने अपनी एक परिचित महिला, जो अजय की भी रिश्तेदार थी, से उसे मैसेज भिजवाया कि अजय उस से जल्द बातचीत करे नहीं तो वह उस की सारी करतूतें नागालैंड में अजय के कमांड अधिकारी को बता कर उस के खिलाफ कानूनी काररवाई करवा देगी. इस से अजय वानखेड़े घबरा गया और वह ज्योत्सना से पीछा छुड़ाने के उपाय तलाशने लगा. फिर उस ने ‘दृश्यम’ फिल्म की तरह ज्योत्सना को खत्म करने की प्लानिंग तैयार कर ली. और 28 अगस्त को उसे मिलने के बहाने बुला कर उस की हत्या कर दी.

29 अगस्त, 2024 को बेलतरोड़ी थाने के सीनियर पुलिस इंसपेक्टर मुकुंदा कावड़े सुबहसुबह अपने औफिस में बैठे ही थे कि तभी एक युवक बदहवास सा उन के कार्यालय में आ गया. उस ने अपना नाम सिद्धेश्वर आकरे निवासी हुडको कालोनी कमलेश्वर, नागपुर बताया. उस ने बताया कि उस की बड़ी बहन ज्योत्सना आकरे बेसा में रहने वाली अपनी सहेली अमृता उगे के घर में रात को रुकने को कह कर कल दोपहर में निकली थी. आज सुबह अमृता उगे का फोन मेरे मोबाइल पर आया और उस ने ज्योत्सना के बारे में पूछा. इस पर मैं ने उसे बताया कि ज्योत्सना तो कल रात तुम्हारे घर पर रहने को कह कर घर से निकली थी.

अमृता ने बताया कि ज्योत्सना तो कल उस के घर आई ही नहीं थी, उस का फोन भी नहीं लग रहा था. अमृता ने सिद्धेश्वर से कहा कि ज्योत्सना कभी झूठ नहीं बोलती, इसलिए वह जरूर किसी मुसीबत में फंस गई होगी, तुम उस को अपने रिश्तेदारों में और पुलिस में रिपोर्ट कर दो. सिद्धेश्वर ने एसएचओ को बताया कि वह अपने सारे नातेरिश्तेदारों व जानपहचान वाले लोगों से संपर्क कर चुका है, मगर मेरी बहन का कहीं कुछ पता नहीं चला. यह कह कर वह जोरजोर से रोने लगा.

सीनियर पुलिस इंसपेक्टर मुकुंदा कावड़े ने रोते हुए सिद्धेश्वर आकरे को ढांढस बंधाया और तुरंत उस की तरफ से लिखित रिपोर्ट दर्ज कर ली. बेल्तारोड़ी पुलिस ही 29 अगस्त, 2024 को ज्योत्सना की गुमशुदगी की सूचना दर्ज कर ली. इस के बाद ज्योत्सना आकरे को ढूंढने से जुट गई. इधर दूसरी तरफ ज्योत्सना के पिता, भाई, रिश्तेदार और दोस्त भी उसे अपनेअपने स्तर पर ढूंढ रहे थे.

पुलिस ने ज्योत्सना का मोबाइल ट्रैकिंग पर लगा दिया था, उस का मोबाइल फोन तो औन था, मगर फोन कोई रिसीव नहीं कर रहा था. दूसरी तरफ फोन की लोकेशन लगातार बदलती जा रही थी. ऐसे में पुलिस कुछ भी अनुमान नहीं लगा पा रही थी. इस तरह 2 हफ्ते से ज्यादा का समय गुजर गया.

मोबाइल की लोकेशन से क्यों उलझी पुलिस

18 सितंबर, 2024 को सिद्धेश्वर आकरे फिर थाने पहुंचा. उस पर नजर पड़ते ही एसएचओ ने उसे पास बैठने को कहा.

”देखो, हम लोग ज्योत्सना को दिनरात ढूंढने में व्यस्त हैं. मगर अभी तक हमें कोई सफलता नहीं मिल सकी है. आप फिर भी निश्चिंत रहें, हम जरूर कामयाब होंगे.’’ एसएचओ मुकुंदा कावड़े ने कहा.

”इंसपेक्टर साहब, हमें यह मामला किडनैपिंग का लग रहा है. मेरी दीदी बालिग लड़की है, पढ़ीलिखी आत्मनिर्भर भी. इसलिए आप अपहरण का केस दर्ज कर लीजिए.’’ कहते हुए सिद्धेश्वर ने अपने दोनों हाथ जोड़ दिए थे.

पुलिस को भी यह मामला कुछ अजीब सा ही लग रहा था, क्योंकि ज्योत्सना आटोमोबाइल के एक शोरूम में काम करती थी और दूसरी बात यह थी कि वह हमेशा अपने घर वालों के संपर्क में रहती थी, ऐसी स्थिति में उस का अचानक से गायब हो जाना और पिछले 20 दिनों से किसी से भी फोन पर बात न करना पुलिस को भी अखर रहा था. इंसपेक्टर मुकुंदा कावड़े ने इस बात की सूचना तुरंत अपने उच्च अधिकारियों को दे दी. बेलतरोड़ी पुलिस थाने में 18 सितंबर, 2024 को ज्योत्सना की गुमशुदगी का मामला अपहरण के रूप में दर्ज कर लिया गया और नागपुर पुलिस कमिश्नर रविंद्र सिंघल के आदेश पर तुरंत एक विशेष पुलिस टीम का गठन कर दिया गया.

नागपुर पुलिस की विशेष टीम ने सीसीटीवी फुटेज, काल डिटेल्स और मोबाइल फोन का डंप डाटा निकाल कर ये समझने की कोशिश की कि ज्योत्सना की आखिरी बार किस से बातचीत हुई थी और उस की लास्ट लोकेशन कहां थी. काफी छानबीन के बाद भी पुलिस को कोई सुराग नहीं मिल सका. पुलिस ने मोबाइल की लोकेशन ट्रैस की तो उस की लोकेशन अलगअलग जगहों की आ रही थी. लोकेशन के अनुसार पुलिस महाराष्ट्र से ले कर हैदराबाद और छत्तीसगढ़ तक ढूंढती रही, लेकिन उसे सफलता नहीं मिली.

नागपुर पुलिस ज्योत्सना के मोबाइल की लोकेशन का पता लगाते हुए एक ट्रक ड्राइवर के पास पहुंची तो पता चला कि उस ने ज्योत्सना के मोबाइल सिम कार्ड निकाल कर अपना सिम लगा लिया था और काम के सिलसिले में वह देश भर में घूम रहा था. ड्राइवर ने उसे बताया कि यह मोबाइल उसे उस के ट्रक में पड़ा मिला था. पुलिस ने ड्राइवर से ज्योत्सना का सिम कार्ड ले कर जब उस की जांच की तो पता चला कि ज्योत्सना ने अंतिम काल अजय वानखेड़े को की थी. पुलिस ने अजय वानखेड़े के बारे में जांच की तो पता चला कि वह सेना में फार्मेसिस्ट है और उस की पोस्टिंग नागालैंड में है. पुलिस को उस पर 3 वजहों से शक हुआ, जो बाद में सही भी निकला.

पहली वजह तो यह कि अजय उन्हीं दिनों पुणे के सेना अस्पताल में भरती हुआ था, जिन दिनों ज्योत्सना गायब हुई थी. हालांकि वह नागालैंड में पोस्टेड था, परंतु सेना का अधिकारी या जवान जो सेना में वर्तमान में कार्य कर रहा है, वह छुट्टी के दौरान भी किसी एक्सीडेंट या किसी अन्य कारण से अस्वस्थ महसूस करता है तो वह अपने नजदीकी किसी भी सेना के अस्पताल में भरती हो कर अपना इलाज करा सकता है. अजय वानखेड़े अपनी शुगर की बीमारी को दिखा कर दक्षिणी कमान के सेना के अस्पताल जोकि पुणे में स्थित था, वहां पर भरती हो गया था.

दूसरी वजह यह थी कि गुमशुदगी के दिन यानी कि 28 अगस्त, 2024 को ज्योत्सना और अजय वानखेड़े की लोकेशन एक जगह पर थी और तीसरी वजह यह थी कि अजय वानखेड़े की ज्योत्सना के अलावा और भी कई अन्य गर्लफ्रैंड थीं. ऐसे में पुलिस को उस की हरकतों पर शक होने लगा था. नागपुर की विशेष टीम ने जब विस्तृत जांच की तो पता चला कि सेना में फार्मेसिस्ट की नौकरी करने वाला अजय वानखेड़े की असल में पहले भी 2 शादियां हो चुकी थीं और वह अब तीसरी बीवी की तलाश में था. उस का उस का दोनों पत्नियों से तलाक हो चुका था, जबकि ज्योत्सना आकरे का भी पहले एक बार तलाक हो चुका था.

ज्योत्सना के परिजनों से भी पुलिस को यह मालूम हो चुका था कि ज्योत्सना और अजय एकदूसरे के संपर्क में काफी समय से थे और शादी भी करना चाहते थे. अब नागपुर पुलिस अजय वानखेड़े के पीछे पड़ गई थी. अजय वानखेड़े की तलाश करते हुए नागपुर पुलिस को पता चला कि अजय डाइबिटीज की शिकायत को ले कर पुणे के आर्मी अस्पताल में भरती है. चूंकि अब अजय पुलिस की रडार पर आ चुका था, इसलिए नागपुर पुलिस ने सेना अस्पताल से रिक्वेस्ट की कि हमें इस जवान पर शक है, इसलिए इस के ऊपर कड़ी निगरानी रखी जाए और जैसे ही यह अस्पताल से डिस्चार्ज हो, उसे तुरंत नागपुर पुलिस के हवाले कर दिया जाए.

मगर अजय वानखेड़े इतना शातिर निकला कि वह सेना के अस्पताल से ही फरार हो गया और नागपुर पुलिस और सेना भी भौचक्की हो कर रह गई पुलिस अब पूरी तरह से अजय वानखेड़े के पीछे पड़ चुकी थी. इसी बीच पुलिस का शक तब और भी गहरा हो गया, जब अजय वानखेड़े ने नागपुर के सत्र न्यायालय में अग्रिम जमानत के लिए आवेदन किया, लेकिन उस की याचिका खारिज कर दी गई. उस के बाद अजय वानखेड़े ने उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया.

एडवोकेट श्रीरंग भंडारकर और एडवोकेट एस.पी. सोनवाने ने अजय वानखेड़े की ओर से उच्च न्यायालय में पैरवी की, लेकिन न्यायमूर्ति उर्मिला जोशी फाल्के ने 15 सितंबर, 2024 को अजय वानखेड़े की ओर से दायर याचिका को खारिज कर दिया.

अजय ने किया पुलिस के सामने सरेंडर और फिर खुला ज्योत्सना मर्डर का राज

तब आखिरकार उस ने खुद ही नागपुर पुलिस के सामने सरेंडर कर दिया. इस के बाद पुलिस ने उस से पुलिसिया अंदाज में पूछताछ की. दरअसल, ज्योत्सना कहीं गायब नहीं हुई थी बल्कि उस की नृशंस हत्या की गई थी और हत्या करने वाला भी कोई और नहीं बल्कि खुद अजय वानखेड़े ही था. अजय ने ज्योत्सना की हत्या की बात कुबूल करने के साथ ही उस की लाश को जंगल में दफनाने की बात भी कही.

उस के बाद पुलिस ने अजय की निशानदेही पर नागपुर के बाहरी इलाके में मौजूद एक सुनसान जगह से ज्योत्सना की जमीन में दफन सड़ीगली लाश बरामद की. फौजी अजय वानखेड़े ने ज्योत्सना की लाश जहां पर दफनाई थी, उस जगह को उस ने सीमेंट डाल कर सील कर दिया था, ताकि किसी भी कीमत पर लाश का राज कभी भी न खुल सके. बस यूं समझ लीजिए कि अजय देवगन और तब्बू द्वारा अभिनीत Film फिल्म ‘दृश्यम’ की तर्ज पर ही अजय वानखेड़े ने इस कत्ल की साजिश और प्लानिंग की थी. मगर इतनी सारी कोशिशें करने के बावजूद आखिरकार पुलिस ने उस की हरकतों, उस के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स, उस की लोकेशन और ज्योत्सना के भाई के बयान के आधार पर उसे पकड़ ही लिया. और इस मर्डर मिस्ट्री का परदाफाश हो गया.

यह घटना एक बार फिर साबित करती है कि अपराध चाहे कितनी भी चतुराई से क्यों न किया जाए, कानून से बच पाना असंभव है. कहानी लिखे जाने तक पुलिस आरोपी फौजी अजय वानखेड़े को जेल भेज चुकी थी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित है

 

 

Extramarital Afaair : 4 साल बाद मिले कंकाल ने बयां की इश्क की कहानी

Extramarital Afaair गाजियाबाद के थाना नंदग्राम के गांव सिकरोड का रहने वाला चंद्रवीर बहुत खुश था. क्योंकि उस ने अपनी पैतृक जमीन का छोटा सा टुकड़ा अच्छे दामों में एक बनिए को जो बेच डाला था. बनिया वहां अपनी दुकान बनाना चाहता था. अब बनिया वहां दुकान खोले या कुछ और बनवाए, चंद्रवीर को इस से कोई मतलब नहीं रह गया था. वह तो नोटों को अपने अंगौछे में बांध कर घर की ओर लौट पड़ा था. रास्ते से उस ने देशी दारू की बोतल भी खरीद कर अंटी में खोंस ली थी.

घर के पास पहुंच कर उस ने अपने पास वाले घर के दरवाजे पर जोर से आवाज लगाई, ‘‘अरुण…ओ अरुण.’’

कुछ ही देर में दरवाजा खोल कर दुबलापतला गोरे रंग का युवक सामने आया. चंद्रवीर के चेहरे की चमक और खुशी देख कर ही वह ताड़ गया कि चंद्रवीर ने बेकार पड़ा जमीन का वह टुकड़ा बेच डाला है, जिसे बेचने की वह पिछले एक महीने से कोशिश कर रहा था. फिर भी अरुण उर्फ अनिल ने पूछा, ‘‘क्या बात है भैया, काहे पुकार रहे थे मुझे? और इतने खुश काहे हो आप?’’

‘‘अरुण, मैं ने अपनी जमीन का बलुआ रेत वाला वह टुकड़ा बनिए को एक लाख रुपए में बेच डाला है. आज मैं बहुत खुश हूं.यह लो 2 सौ रुपए, दौड़ कर चिकन ले आओ. तुम्हारी भाभी से चिकन बनवाएंगे. जब तक चिकन पकेगा, हमारी महफिल में जाम छलकते रहेंगे, आज जी भर कर पीएंगे.’’

अरुण हंस पड़ा, ‘‘होश में रहने तक ही पीनी होगी भैया. ज्यादा पी ली तो भाभी बाहर चौराहे पर चारपाई लगा देंगी.’’

ही..ही..ही.. चंद्रवीर ने खींसें निपोरी, ‘‘होश में ही रहूंगा अरुण, तुम्हारी भाभी के गुस्से का शिकार थोड़े ही होना है. अब तुम देर मत करो, जल्दी चिकन खरीद लाओ.’’

‘‘यूं गया और यूं आया भैया.’’ अरुण ने हाथ नचा कर कहा और भीतर घुस गया.

कुछ ही देर में वह थैला ले कर बाहर आया, ‘‘भैया, आप पानी गिलास तैयार करिए, मैं दौड़ कर चिकन ले आता हूं.’’

अरुण तेजी से मुरगा मंडी की तरफ चला गया तो चंद्रवीर ने अपने घर में प्रवेश किया.

बैठक में पहुंच कर उस ने पत्नी को आवाज लगाई, ‘‘सविता…’’

नहाते समय देख लिया था सविता को

उस की पत्नी चुन्नी के पल्लू से हाथ पोंछती हुई बैठक में आ गई. वह सुंदर और गेहुंए रंग की थी. चेहरे पर अब उम्र की रेखाएं उभरने लगी थीं लेकिन उस के भरे हुए मांसल जिस्म की बनावट के कारण वह प्रौढ़ावस्था में भी जवान ही दिखाई पड़ती थी.

‘‘यह एक लाख रुपया है, संभाल लो. अपने लिए कान के झुमके बनवा लेना. एक अच्छा सा सूट, स्वेटर और शाल भी खरीद लाना. इस में से 500 रुपए मैं ने अपने शौक के लिए लिया है. अरुण को चिकन लेने बाजार भेजा है.’’

‘‘अरुण!’’ सविता ने मुंह बिगाड़ा, ‘‘उसे काहे भेजा बाजार?’’

‘‘भाई है मेरा, वो काम नहीं करेगा तो कौन करेगा?’’ चंद्रवीर ने कहा, ‘‘वैसे तुम काहे इस बात पर नाराज हो रही हो. कुछ कहा क्या उस ने?’’

‘‘आज…’’ सविता कुछ कहतेकहते रुक गई और पति की ओर देखने लगी.

‘‘क्या हुआ आज?’’ चंद्रवीर ने उस की ओर प्रश्नसूचक नजरों से देखा.

‘‘आज मैं ने बालों में डालने के लिए तेल की शीशी उठाई तो उस में तेल खत्म था. मैं ने अरुण को बुला कर तेल लाने के लिए कहा तो वह मना कर के चला गया. कह रहा था कि उसे नींद आ रही है.’’

चंद्रवीर हंस पड़ा, ‘‘अरे नींद आ ही रही होगी उसे, तभी तो मना कर दिया होगा. इस में नाराज क्या होना, जाओ यह रुपए बक्से में रख दो और ताला लगा देना. हां, मिर्चमसाला भी पीस लो, चिकन पकेगा आज.’’

सविता ने रुपए लिए और अंदर के हिस्से में बने उस बैडरूम में आ गई, जिस में वे लोग सोते थे. उस में एक संदूक रखा था. सविता ने रुपए संदूक में संभाल कर रख दिए. इस के बाद सविता किचन में आ गई. उस ने आज पति चंद्रवीर से झूठ बोला था, बात को वह बड़ी सफाई से घुमा गई थी जबकि मामला दूसरा ही था. बात यह थी कि आज जब वह दोपहर में घर के आंगन में लगे हैंडपंप पर नहाने बैठी थी तो उस ने अपने अंगवस्त्र तक उतार कर धोने के लिए डाल दिए थे. वह अपनी देह को मल रही थी. कड़क धूप में बाहर बैठ कर नहाना उसे अच्छा लगता था. उस की पीठ चारदीवारी के दरवाजे की तरफ थी.

उस का देवर अरुण न जाने कब आंगन में आ गया था और उसे बड़ी ललचाई नजरों से नहाते हुए देख रहा था. वह उस के नग्न जिस्म को घूर रहा था. सविता को इस की भनक तक नहीं लगी थी, नहाने के बाद वह तौलिया उठाने के लिए खड़ी हो कर घूमी तो उस की नजर अरुण पर चली गई. वह घबरा गई. उस ने जल्दी से तौलिया उठाया और शरीर पर लपेट कर कमरे की ओर भागी. अरुण उस की बदहवासी देख कर खिलखिला कर हंस पड़ा. सविता ने कमरे में आ कर किवाड़ बंद कर लिए. तौलिया उस के हाथों से नीचे गिर पड़ा. उस ने अपने बदन को देखा तो खुद ही लजा गई. उस की सांसें अभी भी धौंकनी की तरह चल रही थीं.

वह यह सोच कर ही शर्म से जमीन में गड़ी जा रही थी कि उस के इसी नग्न जिस्म को अरुण ने बड़ी बेशर्मी से देखा है. अरुण की आंखों में वासना और चेहरे पर वहशी चमक थी. सविता को उस समय लगा था कि यदि वह क्षण भर भी और आंगन में रह जाती तो अरुण लपक कर उसे बांहों में भर लेता. अरुण उर्फ अनिल था तो चचिया ससुर का लड़का, लेकिन था तो मर्द और यह सविता की जिंदगी का पहला वाकया था कि उस के पति चंद्रवीर के अलावा किसी दूसरे मर्द ने उस की नग्न देह को देखा था.

कमरे में वह काफी देर तक अपनी उखड़ी सांसों को दुरुस्त करती रही, उस के बाद अपने कपड़े पहन कर उस ने दरवाजा खोल कर बाहर झांका था. अरुण आंगन से जा चुका था. सविता ने राहत की सांस ली और बाहर आई थी. फिर वह अपने कपड़े धोने बैठ गई थी. सारा दिन यही सोच कर वह शरम महसूस करती रही कि अब अरुण से वह नजरें कैसे मिलाएगी.

कुसूर इस में अरुण का नहीं था. वह नहाने बैठी थी तो उसे दरवाजा अंदर से बंद कर लेना चाहिए था. अरुण अचानक आ गया तो इस में दोष उस का कैसे हुआ? हां, यदि वह नग्न नहा रही थी तो अरुण को तुरंत वापस चले जाना चाहिए था.

अरुण से नहीं मिलाना चाहती थी नजरें

सविता यह सोच कर सारा दिन पशोपेश में रही कि अरुण से वह नजरें कैसे मिलाएगी. कम से कम दोचार दिन वह अरुण के सामने नहीं जाएगी, सविता ने सोच कर दिल को समझा लिया था, लेकिन चंद्रवीर ने अरुण को शराब की दावत दे कर चिकन लाने बाजार भेज रखा था. अब अरुण घर जरूर आएगा, उस से उस का सामना भी होगा. उफ! सविता का वह दिल फिर तेजी से धड़कने लगा था, जिसे दोपहर में उस ने बड़ी कोशिश कर के काबू में किया था.

रसोई में आ कर वह काम तो कर रही थी, लेकिन सामान्य नहीं थी.

‘‘सविता…’’ उस के कानों में पति की आवाज पड़ी. चंद्रवीर उसे पुकार रहा था, इस का मतलब था अरुण चिकन ले आया था. सविता अरुण के सामने नहीं आना चाहती थी. सविता ने किचन से आवाज लगाई, ‘‘क्या है, क्यों आवाज लगा रहे हो?’’

‘‘अरुण चिकन ले आया है, ले जाओ.’’ चंद्रवीर ने बताया.

‘‘आप ही यहां ला दो, मैं ने मसाला तवे पर डाला है, जल जाएगा.’’

चंद्रवीर थैला ले कर आ गया. थैला रख कर उस ने 2 कांच के गिलास, पानी का लोटा व प्लेट उठाई और चला गया.

सविता ने जैसेतैसे खाना तैयार किया और चंद्रवीर को आवाज लगाई, ‘‘खाना बन गया है, मैं थाली लगा रही हूं. आ कर ले जाओ.’’

‘‘तुम ही ले आओ.’’ चंद्रवीर ने कहा तो सविता को थाली में भोजन रख कर खुद ही बैठक में लाना पड़ा. उस ने उस वक्त चुन्नी को अपने सिर पर इतना खींच लिया था कि अरुण की नजरें उस की नजरों से न मिल सकें.

थालियां पति और अरुण के सामने रखते हुए उस के हाथ कांप रहे थे, उस का दिल बुरी तरह धड़क रहा था और सांसें धौंकनी सी चल रही थीं. उस ने चोर नजरों से देखा. अरुण उसे देख कर बेशर्मी से मुसकरा रहा था.

खाना परोस कर वह तेजी से बैठक से बाहर आ गई. जैसेतैसे चंद्रवीर और अरुण की वह दावत रात के 10 बजे तक खत्म हुई. अरुण चला गया तो सविता की जान में जान आई. दूसरे दिन चंद्रवीर किसी काम से चला गया तो सविता ने कुछ सोच कर अरुण के घर की तरफ कदम बढ़ा दिए. वह रात को ही इस बात का फैसला कर चुकी थी कि अरुण से कल की बेशर्मी भरी हरकत पर सख्ती से बात करेगी. अगर वह चुप रहेगी तो अरुण फिर से वैसी हरकत कर सकता है.

अरुण का दरवाजा ढुलका हुआ था. सविता ने दरवाजा धकेला तो वह अंदर की तरफ खुल गया. सविता सीधा अरुण के कमरे में आ गई. अरुण उस वक्त बिस्तर में लेटा टीवी देख रहा था. आहट पा कर उस ने नजरें घुमाईं तो सविता को देख कर हड़बड़ा कर चारपाई पर उठ बैठा, ‘‘भाभी आप?’’ उस ने हैरानी से कहा.

‘‘हां, मैं.’’ सविता रूखे स्वर में बोली.

‘‘बैठो.’’ अरुण जल्दी से चारपाई से उतर गया.

‘‘मैं बैठने नहीं आई हूं. तुम से कुछ पूछने आई हूं.’’ सविता तीखे स्वर में बोली, ‘‘मुझे यह बताओ, तुम ने वह बेहूदा हरकत क्यों की थी?’’

‘‘कैसी बेहूदा हरकत भाभी?’’ अरुण ने खुद को संभाल कर संयत स्वर में पूछा.

‘‘कल मैं जब नहा रही थी तो तुम अंदर घुस आए और मुझे आंखें फाड़ कर देखते रहे… क्यों?’’

‘‘भाभी,’’ अरुण बेशरमी से मुसकराया, ‘‘आप हो ही इतनी हसीन कि मैं चाह कर भी अपनी नजरें नहीं हटा सका.’’

सविता उस की बात पर अचकचा गई. उसे कुछ नहीं सूझा कि वह क्या कहे.

अरुण अपनी ही धुन में बोलता चला गया, ‘‘भाभी, आप का गदराया यौवन है ही इतना हसीन कि उस पर से कोई मूर्ख ही अपनी नजरें हटाएगा. मैं बेवकूफ और मूर्ख नहीं हूं, कसम ले लो भाभी मैं ने आप की पीठ के तिल भी गिने हैं…’’

सविता शरम से जमीन में जैसे गड़ गई. उस के मुंह से धीरे से निकला, ‘‘चुप हो जाओ अरुण. प्लीज, अब आगे कुछ मत कहना.’’

अरुण ने गहरी सांस ली, ‘‘हकीकत बयां कर रहा हूं भाभी. भले ही आप की शादी हुए 14 साल हो गए, लेकिन आप की सुंदरता एक बेटी की मां बनने के बाद भी कम नहीं हुई है. आप रूप की देवी हो. चंद्रवीर भैया आप की पूजा नहीं करते होंगे. कसम ले लो यदि आप मेरी किस्मत में लिखी होती तो मैं आप को सिंहासन पर बिठा कर पूजता.’’

सविता अपनी तारीफ सुन कर मंत्रमुग्ध हो गई थी. अरुण की एकएक बात उस के रोमरोम को पुलकित कर रही थी. उस के मन में अजीब सी हलचल मच गई थी. उसे अरुण की अंतिम बात ने रोमांच से भर दिया. उसे लगा अरुण उसे शिद्दत से प्यार करता है. उस के यौवन का वह प्यासा भंवरा है, तभी तो उस की चाहत शब्दों के रूप में उस के होंठों पर आ गई है.

शिकायत करतेकरते हो गई शिकार

वह अरुण को डांटने आई थी. अब उस की बातों ने उसे मोह में बांध लिया. सविता से कुछ कहते नहीं बना तो अरुण ने उस की कलाई पकड़ ली और हथेली अपने सीने पर रख कर दीवानों की तरह आह भरते हुए बोला, ‘‘इस सीने में जो दिल है भाभी, वह सिर्फ तुम्हें चाहता है. आज से नहीं बरसों से मैं तुम्हें मन ही मन प्यार करता आ रहा हूं.’’

‘‘तो कहा क्यों नहीं…’’ सविता आंखें बंद कर के धीरे से फुसफुसाई.

‘‘डरता था भाभी, कहीं तुम बुरा न मान जाओ. तुम चंद्रवीर भैया की अमानत हो. मैं अमानत में खयानत करना नहीं चाहता था.’’

‘‘अब क्या कर रहे हो?’’ सविता मदहोशी के आलम में बोली, ‘‘तुम मेरी हथेली सहला रहे हो, यह भी तो गुनाह है न.’’

‘‘आज हिम्मत बटोर ली है भाभी. देखता रहूंगा तो जी जलता रहेगा. आज तुम्हें संपूर्ण पा लेने की इच्छा है, तभी मन में ठंडक पड़ेगी.’’

सविता 35 वर्षीय अरुण की बातों और उस के प्यार भरे स्पर्श से अपना होश गंवा चुकी थी. उस ने आंखें बंद कर के फुसफुसा कर कहा, ‘‘लो कर लो अपने दिल की, तुम्हारे दिल में जो आग भड़क रही है, उसे शांत कर लो.’’

सविता की इजाजत मिली तो अरुण ने उसे बांहों में समेट लिया. देवरभाभी के पवित्र रिश्ते की दीवार को ढहने में फिर वक्त नहीं लगा. सविता जब अरुण के कमरे से निकली तो उस का गुस्सा कपूर की गंध की तरह उड़ चुका था. जिस अरुण ने उसे नहाते हुए नग्न हालत में देखा था, वही अरुण अब उस के तनमन पर छा गया था. सविता बहुत खुश थी. उस ने अपने पति चंद्रवीर के साथ देवर अरुण को भी दिल में जगह दे दी थी. यह बात सन 2017 की है.

42 वर्षीय चंद्रवीर को पैतृक संपत्ति का काफी बड़ा हिस्सा बंटवारे में मिला था. वह उसी संपत्ति का थोड़ाथोड़ा हिस्सा बेच कर अपने परिवार का गुजरबसर कर रहा था. परिवार में 3 ही प्राणी थे— वह, उस की पत्नी सविता और बेटी दीपा (काल्पनिक नाम). चंद्रवीर घर में  किसी चीज की कमी नहीं होने देता था. उस की गृहस्थी की गाड़ी बड़े आराम से चल रही थी.

28 सितंबर, 2018 को चंद्रवीर लापता हो गया. सविता के बताने के अनुसार चंद्रवीर अपने खेत का एक बड़ा हिस्सा बेचने के इरादे से घर से निकला था. शाम ढल गई और अंधेरा जमीन पर उतर आया तो सविता के माथे पर चिंता की लकीरें उभर आईं. उस ने अपनी बेटी दीपा को साथ लिया और पति चंद्रवीर को उन जगहों पर तलाश करने निकल गई, जहांजहां वह उठताबैठता था.

सविता और दीपा ने हर संभावित जगहों पर पति की तलाश की, उस के विषय में पूछताछ की लेकिन हर जगह से उन्हें निराशा मिली. चंद्रवीर आज उन जगहों पर नहीं आया था. दोनों घर आ गईं. जैसेतैसे रात गुजर गई. सुबह सविता ने अरुण को बुला कर बताया कि चंद्रवीर कल सुबह से घर से निकला है, अभी तक वापस नहीं लौटा है. उसे रिश्तेदारी में तलाश करो.

अचानक लापता हो गया चंद्रवीर

अरुण अपने साथ 2-3 लोगों को ले कर उन रिश्तेदारियों में गया, जहांजहां चंद्रवीर आनाजाना करता था. उस ने कितनी ही रिश्तेदारियों में मालूम किया, लेकिन चंद्रवीर कई दिनों से उन लोगों से मिलने नहीं आया था. 2 दिन की तलाश करने के बाद अरुण वापस आ गया. उसे मालूम हुआ कि 3 दिन बीत जाने पर भी चंद्रवीर घर नहीं लौटा है. उस ने सविता को बताया कि चंद्रवीर किसी रिश्तेदारी में भी नहीं पहुंचा है. सुन कर सविता दहाड़े मार कर रोने लगी.

अब तक पूरे गांव में यह बात फैल चुकी थी कि चंद्रवीर 3 दिनों से लापता है. गांव वाले चंद्रवीर की तलाश में सविता की मदद के लिए इकट्ठे हो गए. पूरे गांव में चंद्रवीर को ढूंढा जाने लगा. नदी तालाब, खेत खलिहान हर जगह चंद्रवीर को खोजा गया, लेकिन वह नहीं मिला. इन लोगों में चंद्रवीर का भाई भूरे भी था. भूरे से चंद्रवीर की बनती नहीं थी, वह चंद्रवीर के घर आताजाता नहीं था लेकिन चंद्रवीर था तो सगा भाई, इसलिए उस की तलाश में वह भी जान लड़ा रहा था.

चंद्रवीर जब 5 दिन की खोजखबर के बाद भी नहीं मिला तो 5 अक्तूबर, 2018 को भूरे ने गाजियाबाद के नंदग्राम थाने में चंद्रवीर के लापता होने की सूचना दर्ज करवा दी. नंदग्राम थाने के तत्कालीन एसएचओ पुलिस टीम के साथ सिकरोड गांव में स्थित सविता के घर पहुंच गए. सविता 5 दिनों से आंसू बहा रही थी. दीपा भी पिता की याद में सिसक रही थी. वह एकदम बेसुध और बेहाल सी नजर आ रही थी.

एसएचओ ने सविता के सामने पहुंच कर उसे ढांढस बंधाते हुए कहा, ‘‘देखो रोओ मत, चंद्रवीर की तलाश करने में हम लोग पूरी जान लड़ा देंगे. तुम हमें यह बताओ कि चंद्रवीर के घर से जाने से पहले तुम्हारा क्या चंद्रवीर से झगड़ा हुआ था?’’

‘‘नहीं, मैं उन से आज तक नहीं लड़ी, वह भी मुझ से नहीं लड़ते थे. वह दिल के बहुत अच्छे और नेक इंसान थे. मुझे और अपनी बेटी को बहुत प्यार करते थे.’’ सविता ने आंसू पोंछते हुए कहा.

‘‘चंद्रवीर ने जाने से पहले तुम्हें बताया था कि वह कहां और क्यों जा रहा है?’’ एसएचओ ने दूसरा प्रश्न किया.

‘‘कहां जा रहे हैं, यह भी नहीं बताया था. मेरे सामने वह घर से नहीं निकले थे साहब, वह अंधेरे में ही निकल कर चले गए थे. हम मांबेटी तब सोई हुई थीं.’’

‘‘तुम्हें किसी पर संदेह है?’’

‘‘मेरे पति का अपने भाई भूरे से संपत्ति विवाद रहता था. मुझे लगता है कि वो अंधेरे में घर से नहीं गए, बल्कि उन्हें अंधेरे में गायब कर दिया गया है. यह काम भूरे ने किया है साहब. उस ने शायद मेरे पति की हत्या कर दी है.’’

‘‘यह पक्का हो, ऐसा तो नहीं कह सकते. जांच के बाद ही पता चलेगा कि क्या भूरे ने संपत्ति विवाद के कारण चंद्रवीर को लापता करने की हिमाकत की है.’’ एसएचओ ने कहा और उठ कर उन्होंने एसआई को भूरे को पकड़ कर थाने लाने का आदेश दे दिया.

चंद्रवीर के भाई से की पूछताछ

आवश्यक जानकारी जुटा लेने के बाद एसएचओ अकेले ही थाने लौट आए. एसआई अपने साथ 2 कांस्टेबल ले कर भूरे को हिरासत में लेने के लिए निकल गए थे. थोड़ी देर में ही भूरे को ले कर एसआई और कांस्टेबल थाने आ गए. भूरे ने कभी थाना कचहरी नहीं देखा था. वह काफी डरा हुआ था. आते ही उस ने एसएचओ के पांव पकड़ लिए, ‘‘साहब, मुझे क्यों पकड़ा है आप ने? मैं ने ऐसा क्या अपराध किया है?’’

‘‘तुम ने अपने भाई चंद्रवीर को कहां लापता किया है भूरे?’’ एसएचओ ने उसे खुद से परे कर सख्त स्वर में पूछा.

‘‘मैं चंद्रवीर को कहां लापता करूंगा साहब, वह मेरा भाई है.’’

‘‘तुम्हारा अपने भाई से संपत्ति का विवाद था?’’

‘‘नहीं साहब,’’ भूरे तुरंत बोला, ‘‘हमारा आपस में संपत्ति का बंटवारा बहुत प्रेम से हुआ था. कौन कहता है कि हमारा संपत्ति का विवाद था?’’

‘‘सविता कह रही है,’’ एसएचओ ने भूरे को घूरते हुए कहा, ‘‘सविता का कहना है कि संपत्ति विवाद में तुम ने उस के पति को लापता किया है और उस की हत्या कर दी है.’’

यह सुनते ही भूरे ने सिर थाम लिया. कुछ देर तक वह स्तब्ध सा बैठा रहा फिर तैश में आ कर बोला, ‘‘सविता मुझ से जलती है साहब, वह मुझ पर झूठा आरोप लगा रही है. आप ही बताइए, मैं ने यह काम किया होता तो थाने में आ कर खुद उस की गुमशुदगी की रिपोर्ट क्यों लिखवाता?’’

‘‘रिपोर्ट लिखवाने से तुम निर्दोष थोड़ी हो गए. हम तुम्हारे घर की तलाशी लेंगे.’’

‘‘बेशक तलाशी लीजिए साहब, मैं अपने मांबाप की कसम खा कर कहता हूं कि मैं निर्दोष हूं. चंद्रवीर कहां गया, मैं नहीं जानता.’’

एसएचओ को लगा भूरे सच कह रहा है लेकिन वह पूरी तसल्ली कर लेना चाहते थे. उन्होंने भूरे को साथ लिया और उस के घर की तलाशी ली. उन्हें उस के घर में ऐसा कुछ भी नहीं मिला, जिस से यह साबित होता कि भूरे ने चंद्रवीर की हत्या की है या उसे लापता किया है. उन्होंने भूरे को छोड़ दिया. पुलिस कई दिनों तक चंद्रवीर को अपने तरीके से तलाश करती रही. सविता ने इस बीच यह शक भी व्यक्त किया कि उस के पति की हत्या कर के भूरे ने शव उस के घर में या अपने घर में गाड़ दिया है.

अपना शक दूर करने के लिए पुलिस ने भूरे और चंद्रवीर का आंगन और कमरों को खुदवा कर भी देख डाला लेकिन तब भी कोई ऐसा सूत्र नहीं हाथ आया, जिस से समझा जाता कि चंद्रवीर की हत्या कर के उस का शव जमीन में दबा दिया गया है. पुलिस ने चंद्रवीर के मामले में काफी माथापच्ची की, जब कोई सुराग हाथ नहीं आया तो पुलिस ने चंद्रवीर के लापता होने वाली फाइल वर्ष 2021 में बंद कर दी गई. सविता ने दिल पर पत्थर रख लिया. पहले चोरीछिपे अरुण से उस की आशनाई चलती थी अब तो अरुण का ज्यादा समय उसी के घर में बीतने लगा. सविता अपनी बेटी की गैरमौजूदगी में अरुण के साथ रास रचाती.

उस ने यह आसपड़ोस में जाहिर करना शुरू कर दिया था कि चंद्रवीर के बाद अरुण उस के परिवार का सच्चे मन से साथ दे रहा है. लोगों को क्या लेनादेना था. वैसे भी लोगों की नजर में अरुण सविता का चचेरा देवर था, कोई गैर नहीं था.

4 साल बाद फिर खुली फाइल

समय तेजी से सरकता रहा. चंद्रवीर को लापता हुए पूरे 4 साल बीत गए, तब 2021 में बंद हुई एकाएक उस की बंद धूल चाट रही फाइल दोबारा से खुल गई. दरअसल, 4 अप्रैल, 2022 को गाजियाबाद के नए नियुक्त हुए एसएसपी मुनिराज जी. ने वह तमाम फाइलें खुलवाईं, जिन के केस अनसुलझे थे. इन्हीं में एक फाइल चंद्रवीर की भी थी. एसएसपी मुनिराज जी. ने यह फाइल थाना नंदग्राम गेट से ले कर क्राइम ब्रांच की एसपी दीक्षा शर्मा के हवाले कर दी.

दीक्षा शर्मा ने इस केस की जांच इंसपेक्टर (क्राइम ब्रांच) अब्दुर रहमान सिद्दीकी को सौंप दी. क्राइम ब्रांच के इंसपेक्टर ने पूरी फाइल का गहराई से अध्ययन किया तो उन्हें लगा कि चंद्रवीर कोई बच्चा नहीं था जिसे चुपचाप गोद में उठा कर लापता कर दिया गया हो. यह काम 2 या उस से अधिक लोग कर सकते हैं. वह लोग जब चंद्रवीर के घर में आए होंगे तो कुछ शोरशराबा होना चाहिए था. चंद्रवीर को खामोशी से गायब नहीं किया जा सकता. अगर कुछ आहट वगैरह हुई तो सविता और उस की बेटी ने जरूर सुनी होगी. पूछताछ इन्हीं से शुरू की जाए तो कुछ सूत्र हाथ आ सकता है.

इंसपेक्टर अपने साथ पुलिस टीम को ले कर सविता के घर पहुंच गए.

तब सविता घर पर नहीं थी. उस की 16 वर्षीय बेटी दीपा घर में ही थी. इंसपेक्टर ने उस से ही पूछताछ शुरू की. दीपा को सामने बिठा कर उन्होंने गंभीरता से पूछा, ‘‘तुम्हारा नाम दीपा है न बेटी?’’

‘‘जी,’’ दीपा ने सिर हिलाया.

‘‘तुम्हारे पापा रात के अंधेरे में लापता हुए, क्या यह बात ठीक है?’’

‘‘सर…’’ दीपा गहरी सांस भर कर एकाएक रोने लगी.

इंसपेक्टर ने उस के सिर पर प्यार से हाथ फेरा, ‘‘मुझे इतना अनुभव तो है बेटी कि कोई बात तुम्हारे सीने में दफन है, जो बाहर आना चाहती है. लेकिन तुम्हारी हिचक उसे बाहर आने से रोक रही है. क्यों, मैं ठीक कह रहा हूं न दीपा?’’

दीपा ने आंसू पोंछे और सिर हिलाया, ‘‘हां सर, मेरे दिल में एक बात 4 साल से दबी पड़ी है. मैं बताती तो किसे, मां को बताने का मतलब होता मेरी भी मौत. चाचा को भी नहीं बता सकती थी, वह मां से मिले हुए हैं. आसपड़ोस में बताती तो मेरे पिता की बदनामी होती…’’

बेटी ने बयां कर दी हकीकत

इंसपेक्टर की आंखों में चमक आ गई. चंद्रवीर के लापता होने का राज दीपा के दिल में छिपा हुआ है, यह समझते ही वह पूरे उत्साह से भर गए. सहानुभूति से उन्होंने दीपा के सिर पर फिर हाथ घुमाया, ‘‘देखो दीपा, मैं चाहता हूं कि तुम्हारे पापा के साथ न्याय हो. मुझे बताओ तुम्हारे मन में कौन सी बात दबी हुई है. डरो मत, अब तुम्हारी सुरक्षा हम करेंगे.’’

‘‘सर, मेरे पिता की हत्या हो चुकी है. मेरी मां और चाचा अरुण ने उन्हें मारा है.’’ दीपा ने बताया, ‘‘यह हत्या मेरी मां के चाचा से अवैध संबंधों के कारण हुई है.’’

‘‘ओह, क्या तुम ने अपनी आंखों से देखा था पिता की हत्या होते हुए?’’ इंसपेक्टर ने पूछा.

‘‘जी हां, उस दिन 28 सितंबर, 2018 की रात थी. अरुण चाचा को मां ने आधी रात को घर बुलाया. पापा गहरी नींद में थे. अरुण चाचा ने साथ लाए तमंचे से मेरे पापा के सिर में गोली मार दी. मैं बहुत डर गई. मैं कंबल में दुबक गई. मुझे नहीं पता कि दोनों ने पापा की लाश का क्या किया. सुबह मां ने पापा के रात में कहीं चले जाने की बात उड़ा दी और उन्हें तलाश करने का नाटक करने लगी.’’

‘‘हूं, मैं तुम्हें सरकारी गवाह बनाऊंगा. तुम्हारी सुरक्षा अब हमारी जिम्मेदारी है बेटी.’’ इंसपेक्टर ने कहा और उठ कर खड़े हो गए.

उन्होंने यह बात तुरंत एसपी (क्राइम ब्रांच) दीक्षा शर्मा को बता कर उन से आदेश मांगा. एसपी दीक्षा शर्मा ने सविता और अरुण को गिरफ्तार करने के आदेश दे दिए. क्राइम ब्रांच टीम ने 13 नवंबर, 2022 को सविता को अरुण के घर से अरुण के साथ ही हिरासत में ले लिया. दोनों को क्राइम ब्रांच के औफिस में लाया गया और उन से सख्ती से पूछताछ की गई तो दोनों टूट गए. सविता ने अपने पति की हत्या अरुण के साथ मिल कर करने की बात कुबूल करते हुए बताया, ‘‘साहब, मेरे अपने देवर अरुण से अवैध संबंध हो गए थे. एक दिन चंद्रवीर ने हमें आपत्तिजनक हालत में देख लिया था. उसी दिन से वह मुझे बातबात पर गाली देता और मारता था.

‘‘मैं कब तक मार खाती. मैं ने अरुण को उकसाया तो उस ने चंद्रवीर की हत्या करने के लिए 28 सितंबर, 2018 का दिन तय किया. वह पहले अपने मांबाप को मेरठ में अपने दूसरे घर में छोड़ आया फिर उस ने अपने घर में गहरा गड्ढा खोदा.

‘‘28 सितंबर की रात को वह तमंचा ले कर मेरे इशारे पर घर में आया. चंद्रवीर तब खापी कर चारपाई पर गहरी नींद सो गया था. अरुण ने उस के सिर में गोली मार दी. मैं ने चंद्रवीर के सिर से निकलने वाले खून को एक बाल्टी में भरने के लिए चारपाई के नीचे बाल्टी रख दी. ऐसा इसलिए किया कि खून से फर्श खराब न हो.’’

‘‘तुम लोगों ने लाश क्या उसी गड्ढे में छिपाई है, जिसे अरुण ने खोद कर तैयार किया था?’’ इंसपेक्टर ने प्रश्न किया.

‘‘जी सर,’’ अरुण ने मुंह खोला, ‘‘मैं ने 7 फुट गहरा गड्ढा अपने घर में खोदा था. लाश और खून सना तकिया उसी में डाल कर मिट्टी भर दी, फिर उस पर पहले की तरह फर्श बनवा दिया.’’

पति की हत्या कर शव ठिकाने लगाने के बाद भी सविता नंदग्राम थाने में हर सप्ताह चक्कर लगा कर पति को ढूंढने की गुहार लगाती थी.

हत्या की बात कुबूल करने के बाद अरुण उर्फ अनिल और सविता को विधिवत हिरासत में ले कर उन पर भादंवि की धारा 302, 201 व 120बी के तहत केस दर्ज कर लिया गया.

पुलिस ने निकलवाया 4 साल पहले दफन किया शव

मजिस्ट्रैट, क्राइम ब्रांच की टीम और एसपी (क्राइम ब्रांच) दीक्षा शर्मा की मौजूदगी में अरुण के कमरे में गड्ढा खुदवाया गया तो उस में तकिया और चंद्रवीर की सड़ीगली लाश मिली गई, जिसे बाहर निकाल कर कब्जे में ले लिया गया. अरुण और सविता को न्यायालय में पेश कर के 2 दिन की पुलिस रिमांड पर ले लिया गया. क्राइम ब्रांच ने रिमांड अवधि के दौरान अरुण से तमंचा और एक कुल्हाड़ी भी बरामद कर ली. वह बाल्टी भी कब्जे में ले ली गई, जिस में चंद्रवीर को गोली मारने के बार सिर से निकलने वाला खून इकट्ठा किया गया था.

खून बाथरूम में बहा कर पानी चला दिया गया था. बाल्टी का इस्तेमाल सविता ने नहीं किया था, उस ने बाल्टी धो कर कोलकी में रख दी थी. कुल्हाड़ी के बारे में पूछने पर अरुण ने बताया, ‘‘सर, चंद्रवीर के हाथ में चांदी का कड़ा था, जिस पर उस का नाम खुदा हुआ था. इस कुल्हाड़ी से मैं ने उस का हाथ काट कर कैमिकल फैक्ट्री के पीछे गड्ढा खोद कर दबा दिया था.’’

‘‘हाथ इसलिए काटा होगा कि कड़े से लाश पहचान ली जाती, क्यों?’’ इंसपेक्टर ने पूछा.

‘‘जी हां, अगर लाश पुलिस के हाथ आती तो तब तक वह सड़ चुकी होती लेकिन इस कड़े से यह पता चल जाता कि लाश चंद्रवीर की है.’’ अरुण ने कुबूल करते हुए बताया.

क्राइम ब्रांच की टीम अरुण को कैमिकल फैक्ट्री के पीछे ले कर गई. वहां अरुण ने एक जगह बताई, जहां पुलिस ने खुदाई कर के हाथ का पिंजर बरामद कर लिया. सभी चीजें सीलमोहर कर कब्जे में ले ली गईं. सविता और अरुण को 2 दिन बाद न्यायालय में पेश किया गया तो वहां से दोनों को जेल की सलाखों के पीछे पहुंचाने का आदेश दे दिया. पुलिस टीम अब चंद्रवीर की लाश जो अस्थिपंजर के रूप में थी, का डीएनए टेस्ट करवाने के प्रयास में थी ताकि यह साबित किया जा सके कि 7 फुट गहरे गड्ढे से बरामद लाश चंद्रवीर की ही है.

जिस औरत की खुशियों के लिए चंद्रवीर हमेशा एक पांव पर खड़ा रहता था, उसी औरत ने क्षणिक सुख पाने के लिए अपने देवर पर खुद को न्यौछावर कर दिया और उसी के साथ मिल कर अपने पति चंद्रवीर की जघन्य हत्या कर दी.

बहन के प्रेमी के साथ मिल कर रची अपने ही अपहरण की साजिश

बात 12 दिसंबर, 2018 की है. भोपाल के ऐशबाग के टीआई अजय नायर रात 8 बजे के करीब अपने औफिस में थे तभी ऐशबाग के रहने वाले शील कुमार अपनी 24 वर्षीय बेटी रुचिका चौबे के साथ थाने पहुंचे.

उन्होंने बताया कि उन का 19 वर्षीय बेटा आयुष शाम को किसी से मिलने एक कोचिंग की तरफ घर से निकला था. लेकिन इस के कुछ देर बाद ही बेटे के मोबाइल फोन से किसी ने काल कर के कहा कि आयुष उस के कब्जे में है. बेटे को छोड़ने के बदले उस ने एक करोड़ रुपए की फिरौती मांगी. शील कुमार ने बेटे के अपहरण की रिपोर्ट दर्ज कर उसे बरामद करने की मांग की.

मामला अपहरण का था, इसलिए टीआई ने उसी समय सूचना एसपी राहुल लोढ़ा व एडीशनल एसपी संजय साहू तथा जहांगीरबाद सीएसपी सलीम खान को भी दे दी. सूचना मिलते ही दोनों पुलिस अधिकारी ऐशबाग थाने पहुंच गए.

शील कुमार अपनी बेटी के साथ थाने में ही मौजूद थे. एसपी राहुल लोढा ने बाप बेटी दोनों से गहन पूछताछ की. पर उन की कहानी एसपी साहब के गले नहीं उतरी. इस का कारण यह था कि शील कुमार एक निजी बस कंपनी में ड्राइवर की नौकरी करते थे. उन का वेतन इतना कम था कि घर भी ठीक से नहीं चल सकता था. जबकि उन की बेटी रुचिका एक बीमा कंपनी में 14 हजार रुपए महीने की सैलरी पर नौकरी कर रही थी.

जाहिर है, कोई बदमाश एक करोड़ रुपए की फिरौती के लिए ऐसे साधारण परिवार के बेटे का अपहरण नहीं करेगा. बाप बेटी ने यह भी बताया कि आयुष के घर से निकलने के कुछ ही घंटे बाद बदमाश ने फिरौती की रकम के लिए फोन किया था. जबकि बदमाश किसी का अपहरण कर के 2-4 दिन बाद फिरौती की मांग तब करते हैं जब पीडि़त परिवार टूट चुका होता है.

फिरौती के लिए शील कुमार के घर जो फोन काल आई थी वह भी आयुष के फोन से की गई थी. बाद में फोन स्विच्ड औफ कर दिया गया था. बहरहाल, पुलिस ने शील कुमार और उन की बेटी से जरूरी जानकारी लेने के बाद आयुष के अपहरण की रिपोर्ट दर्ज कर ली और उन्हें यह आश्वासन दे कर घर भेज दिया कि पुलिस जल्द ही आयुष को तलाश लेगी.

इस के बाद एसपी के निर्देशन में थानापुलिस आयुष को तलाशने लगी. पुलिस ने आयुष के फोन नंबर को सर्विलांस पर लगा दिया था. इस के अलावा पुलिस ने जांच कर यह भी पता लगा लिया कि जिस समय आयुष के फोन से फिरौती की काल की गई, उस समय उस की लोकेशन बीना शहर में थी.

इस के बाद फोन बंद कर दिया गया था. कोई और रास्ता मिलते न देख पुलिस अपहर्त्ताओं के फोन आने का इंतजार करने लगी. पुलिस ने शील कुमार को समझा दिया था कि उन्हें फोन पर अपहर्त्ताओं से कैसे बात करनी है.

एक तरफ पुलिस आयुष का पता लगाने में जुटी हुई थी, वहीं दूसरी ओर उस पर आयुष को सुरक्षित बरामद करने का दबाव बढ़ता जा रहा था. आयुष की बहन रुचिका और उसी क्षेत्र में रहने वाला उन के परिवार का पुराना परिचित गौरव जैन थानाप्रभारी से मिलने रोज थाने आते और आयुष के बारे में जल्द पता लगाने की मांग करते थे.

अपहर्त्ता ने बताई जगह

पुलिस ने अपने मुखबिरों का जाल फैला रखा था. आयुष के साथ पढ़ाई कर रहे उस के दोस्तों से भी आयुष के बारे में पूछताछ की कि उस की किसी से कोई दुश्मनी तो नहीं थी या किसी लड़की के साथ प्यार का चक्कर तो नहीं था. दोस्तों ने दोनों ही बातों से इनकार किया. पुलिस को कोई ऐसा ठोस सुराग हाथ नहीं मिला, जिस से जांच की काररवाई आगे बढ़ पाती.

उधर समय बीतने के साथ अपहर्त्ता बारबार फोन कर के आयुष के परिवार पर जल्द से जल्द फिरौती की रकम पहुंचाने का दबाव बना रहे थे. लेकिन समस्या यह थी कि वह हर बार नई जगह से फोन करते थे. 24 दिसंबर को एक बदमाश ने आयुष के पिता को फोन कर के धमकी दी और कहा कि वह कल यानी 25 दिसंबर को दोपहर में सीहोर के क्रिसेन वाटर पार्क पर पैसा ले कर पहुंच जाए. पैसे मिलने के बाद आयुष को रिहा कर दिया जाएगा.

शील कुमार ने यह बात एडीशनल एसपी संजय साहु और टीआई अजय नायर को बता दी. एसपी ने इस बात से अनुमान लगा लिया कि बदमाश बहुत चालाक हैं. क्योंकि 25 दिसंबर को प्रदेश में नई सरकार का शपथ ग्रहण समारोह था और आला अधिकारियों को उस समारोह में व्यस्त रहना था.

लेकिन एडीशनल एसपी संजय साहू यह मौका हाथ से जाने नहीं देना चाहते थे, इसलिए उन्होंने टीआई के अलावा अन्य पुलिस टीमों को सादा कपड़ों में सुबह से ही सिहोर के क्रिसेन वाटर पार्क में तैनात कर दिया ताकि अपहर्त्ता किसी भी हाल में बच न पाएं.

पुलिस को यह पता लग गया था कि 24 दिसंबर को अपहर्त्ता के फोन की लोकेशन विदिशा जिले के गंज वासोदा में थी. बहरहाल पुलिस ने सुबह से ही क्रिसेन वाटर पार्क में घेराबंदी कर दी और शपथ ग्रहण कार्यक्रम से फुरसत होते ही एडीशनल एसपी भी सादा कपड़ों में वहां जा पहुंचे. पुलिस वहां दिनभर नजरें गड़ाए रही लेकिन शील कुमार से रुपयों से भरा बैग लेने कोई नहीं पहुंचा, इसलिए पुलिस टीम निराश हो कर शाम को वापस लौट आई. लेकिन इस बीच टीआई अजय नायर को आशा की एक किरण नजर आने लगी थी.

हुआ यूं कि घर वापस आने के कुछ देर बाद ही शील कुमार के पास अपहर्त्ता की तरफ से फोन आया जिस में उस ने पुलिस को साथ लाने के लिए उन्हें भद्दीभद्दी गालियां दीं. साथ ही धमकी भी दी कि आगे से पुलिस को साथ ले कर आए तो आयुष की लाश तुम्हारे घर भेज दी जाएगी. यह सुन कर शील कुमार घबरा गए. उन्होंने बदमाश की इस नई धमकी के बारे में टीआई अजय नायर को भी बता दिया.

पुलिस को मिली जांच की सही दिशा

अब तक पुलिस बाहरी लोगों पर ही शक कर रही थी. अब वह समझ गई कि आयुष के परिवार के साथ ऐसा व्यक्ति मिला हुआ है जो उन की सारी गतिविधियों की जानकारी बदमाशों तक पहुंचा रहा है. इसीलिए टीआई अजय नायर ने शील कुमार से पूछा कि ‘‘आप के अलावा आप के परिवार में या फिर जानपहचान वालों में से ऐसा कौन व्यक्ति है जिसे पुलिस की एकएक गतिविधि की जानकारी मिल रही है.’’

‘‘सर, मैं अपनी बेटी रुचिका के अलावा और किसी को कुछ नहीं बताता.’’ शील कुमार बोले. टीआई ने सोचा कि सगी बहन भाई का अपहरण करने वाले का साथ क्यों देगी.

एएसपी संजय साहू के निर्देश पर टीआई नायर ने रुचिका चौबे की काल डिटेल्स निकलवाई. साथ ही रुचिका के बारे में और भी जांच कराई. पता चला कि मध्यमवर्गीय परिवार से संबंध रखने वाली रुचिका की न केवल जीवनशैली हाईप्रोफाइल थी, बल्कि उस के सपने भी ऊंचे थे.

पुलिस को यह खबर भी लग गई थी रुचिका का एक बौयफ्रैंड गौरव जैन भी उस आयुष के बारे में काफी रुचि ले रहा था. गौरव जैन रुचिका का पड़ोसी था और दवा कारोबारी था. ऐसे में पुलिस के समाने शक करने के लिए 2 नाम थे. पहला रुचिका जो खुद आयुष की सगी बड़ी बहन थी और दूसरा गौरव जैन जो शहर का बड़ा थोक दवा कारोबारी था.

पुलिस ने रुचिका और गौरव जैन के फोन नंबरों की काल डिटेल्स का अध्ययन किया तो एएसपी साहू के चेहरे पर मुसकान दौड़ गई. उन्होंने देखा कि जितनी बार भी अपहर्त्ता ने शील कुमार के नंबर पर फिरौती के लिए फोन किया था, उस के कुछ देर पहले और कुछ देर बाद रुचिका ने गौरव से फोन पर बात की थी.

घर से ही खेला जा रहा था खेल

इतना ही नहीं रुचिका से बात होने के ठीक बाद गौरव ने हर बार एक दूसरे फोन नंबर पर बात की थी. यह संयोगवश नहीं हो सकता था. क्योंकि संयोग एक बार होता है, बारबार नहीं. पुलिस ने यह जानकारी भी जुटा ली कि रुचिका से बात करने के बाद गौरव जिस फोन नंबर पर बात करता था, वह उस की दुकान पर काम करने वाले नौकर अतुल का है. पुलिस टीम ने अतुल के बारे में पता कराया तो मालूम हुआ कि वह उसी दिन से छुट््टी ले कर गायब है, जिस दिन आयुष लापता हुआ था.

इस जानकारी के बाद एएसपी संजय साहू के सामने पूरी कहानी साफ हो गई. इसलिए उन्होंने पुलिस टीम को गौरव को हिरासत में लेने के निर्देश दे दिए. पता चला कि गौरव भी भोपाल में नहीं है. उस के मोबाइल की लोकेशन आगरा की आ रही थी. इसलिए ऐशबाग थाने की टीम आगरा रवाना हो गई.

लेकिन इस से पहले कि टीम आगरा पहुंचती, गौरव के मोबाइल की लोकेशन आगरा से चल कर भोपाल की तरफ बढ़ने लगी. लोकेशन बदलने के समयानुसार पुलिस ने हिसाब लगाया कि गौरव तमिलनाडु एक्सप्रेस में सवार हो कर भोपाल आ रहा है. इसलिए ट्रेन के भोपाल पहुंचने से पहले ही पुलिस की टीम ने वहां पहुंच कर टे्रन से उतरे गौरव को हिरासत में ले लिया.

जाहिर है इस बात की उम्मीद गौरव के अलावा किसी और को भी नहीं थी. जैसे ही गौरव को पूछताछ के लिए पुलिस हिरासत में थाने लाया गया. उस के पकड़े जाने की बात सुन कर रुचिका भी थाने पहुंच गई. यह देख कर एएसपी श्री साहू समझ गए कि पुलिस ने सही जगह निशाना साधा है.

गौरव आदतन अपराधी तो था नहीं, जो पुलिस को चकमा देने की कोशिश करता, इसलिए जरा सी पूछताछ में ही वह टूट गया. उस ने स्वीकार कर लिया कि अपनी प्रेमिका रुचिका की आर्थिक मदद करने के लिए उस ने आयुष के अपहरण का नाटक रचा था, जिस में रुचिका के साथ खुद आयुष भी शामिल था. गौरव ने यह भी बताया कि इस काम में उस ने अपने नौकर अतुल को भी शामिल कर रखा था.

गौरव ने पुलिस को यह भी बता दिया कि कल तक आयुष और अतुल भी उस के साथ आगरा में थे. वहां से तीनों साथ ही लौटे थे. आयुष अलग डिब्बे में सवार था. आयुष भोपाल स्टेशन पर उतर कर दूसरी ट्रेन में सवार हो कर इंदौर चला गया. जबकि अतुल उस के साथ ही था. चूंकि पुलिस अतुल को नहीं पहचानती थी इसलिए जैसे ही स्टेशन पर पुलिस ने गौरव को दबोचा उस से चंद कदम पीछे चल रहा अतुल वहां से गायब हो गया.

अब आगे की काररवाई से पहले आयुष को गिरफ्तार करना जरूरी था. पुलिस ने गौरव से यह जानकारी ले ली कि आयुष इंदौर में कहां ठहरेगा. इस के बाद भोपाल पुलिस ने यह जानकारी इंदौर पुलिस को दे दी. इंदौर पुलिस ने आयुष को गिरफ्तार कर लिया और उसे लाने के लिए भोपाल पुलिस की एक टीम इंदौर के लिए रवाना हो गई.

भोपाल पुलिस टीम आयुष को इंदौर से ले कर आ गई. पूरे मामले में रुचिका का नाम पहले ही सामने आ चुका था. इसलिए पुलिस ने रुचिका को भी गिरफ्तार कर लिया. इन तीनों की गिरफ्तारी के बाद आयुष के अपहरण की सनसनीखेज कहानी सामने आई.

दवाइयों का थोक कारोबारी गौरव जैन भी ऐशबाग थाना इलाके की उसी गली में रहता था जिस में रुचिका अपने मातापिता और छोटे भाई आयुष के साथ रहती थी. सीमित आय वाले परिवार के पास जो कुछ उल्लेखनीय था वह केवल रुचिका की सुंदरता और गरीबी में भी अच्छे तरीके से रहने का उस का अंदाज था.

रुचिका के सपने भी बड़े थे. वह अपने भाई को बड़ा आदमी बनाना चाहती थी. इसलिए स्वयं की पढ़ाई पूरी करने के बाद उस ने एक निजी बीमा कंपनी में नौकरी कर ली थी. वैसे रुचिका के पिता मूलरूप से जबलपुर के रहने वाले थे.

संयोग से पड़ोस में रहने वाले गौरव जैन का अपनी दुकान पर जाने और रुचिका का औफिस के लिए निकलने का समय एक ही था, सो गली में दोनों का अकसर रोज ही आमनासामना हो जाता था. जिस के चलते पहले आंखों से आंखें टकराईं फिर एकदूसरे को देख कर चेहरे पर मुसकराहटें आनी शुरू हो गईं.

गौरव और रुचिका की प्रेम कहानी

गौरव का दिल रुचिका पर आ गया था. दूसरी ओर रुचिका के मन को भी गौरव भा गया था. आखिर रुचिका ने जल्द ही उस के बढ़े कदमों को दिल तक आने का रास्ता दे दिया. दोनों में प्यार हुआ तो पहले घर से बाहर मुलाकातों का सिलसिला चला, फिर गौरव ने रुचिका के परिवार वालों से भी मिलना शुरू कर दिया.

बाद में गौरव रुचिका के घर भी आनेजाने लगा. रुचिका के परिवार की आर्थिक स्थिति गौरव से छिपी नहीं थी. जबकि गौरव की जेब में कभी पैसों की कमी नहीं रहती थी. वह समयसमय पर रुचिका के कहने पर उस के परिवार की आर्थिक मदद करने लगा.

जाहिर सी बात है ऐसे मददगार के लिए आदमी खुद अपनी आंखें बंद कर लेता है, यह समझते हुए भी कि जवान खूबसूरत बेटी का दोस्त बिना किसी मतलब के यूं मेहरबान नहीं होता. रुचिका के मातापिता सब कुछ जान कर अंजान बने रहे. जिस से रुचिका और गौरव का प्यार दिनबदिन गहराता गया.

इतना ही नहीं गौरव रुचिका को अपने साथ ले कर घूमने जाता तो लौटने पर उस की मां भी बेटी से कोई सवाल नहीं करती. क्योंकि गौरव ने उस समय इस परिवार की मदद की थी जब पैसों के अभाव में रुचिका के छोटे भाई आयुष का दाखिला अटकता दिखाई दे रहा था.

आयुष अब बड़ा हो चुका था. वह अच्छी तरह से जानता था कि गौरव केवल उस की बहन से दोस्ती रखने के लिए ही परिवार की मदद करता है. यह जानने के बाद भी वह गौरव को पसंद करता था. इतना ही नहीं कई बार तो वह गौरव और बहन के साथ घूमने भी चला जाता था. जब उसे लगता कि उसे दोनों के साथ नहीं होना चाहिए तो वह किसी बहाने से दाएं बाएं हो जाता था. इसलिए धीरेधीरे रुचिका और गौरव का प्यार इस हद तक पहुंच गया कि उन्होंने शादी करने का फैसला कर लिया.

रुचिका के परिवार को तो इस शादी से कोई ऐतराज नहीं था. गौरव की जिद के चलते उस के परिवार वाले भी उन दोनों के विवाह के लिए मन बना चुके थे. गौरव रुचिका की लगातार आर्थिक मदद कर रहा था. लेकिन रुचिका की जरूरतें गौरव की मदद से कहीं बड़ी थीं. जरूरतें पूरी करने के लिए रुचिका ने विभिन्न बैंकों से बड़ा कर्ज ले लिया था. वह सोचती थी कि कुछ समय बाद जब गौरव से उस की शादी हो जाएगी तो गौरव उस का कर्ज चुका देगा.

 पिता ने शराब के नशे में बिगाड़ा खेल

लेकिन इसी बीच हालात ने पलटा खाया. हुआ यह कि करीब 2 साल पहले गौरव के घर में आयोजित एक पारिवारिक कार्यक्रम में रुचिका के परिवार को भी आमंत्रित किया गया. रुचिका अपनी मां और भाई के साथ उस कार्यक्रम में शामिल हुई. उस के पिता उस समय कंपनी की बस ले कर खंडवा गए थे.

संयोग से जब रुचिका का परिवार कार्यक्रम में गया हुआ था. तभी उस का पिता शील कुमार शराब पी कर घर लौट आया. घर पर ताला बंद देख कर उसे गुस्से आ गया. जब उसे पता चला कि रुचिका के साथ पूरा परिवार गौरव के यहां गया हुआ है, तो वह नशे की हालत में वहां पहुंच कर गालीगलोच करने लगा. उस ने गौरव के रिश्तेदारों के सामने रुचिका और गौरव के संबंधों को भी उजागर कर दिया.

इस घटना के बाद गौरव के घर वाले इस रिश्ते के खिलाफ हो गए, जिस के चलते गौरव को मजबूरी में रुचिका के बजाए परिवार की पसंद की लड़की से शादी करना पड़ी. इस घटना के बाद गौरव का रुचिका के घर भले ही आनाजाना कम हो गया लेकिन दोनों के प्रेमसंबंध पहले की तरह बने रहे. इस में रुचिका का भाई आयुष भी दोनों की मदद करता था.

इस के बदले गौरव भी दोनों की कुछ न कुछ मदद करता रहता था. लेकिन गौरव से शादी हो जाने के भरोसे रुचिका ने बैंकों से जो लोन लिया था, वह उस के गले की फांस बन गया. क्योंकि रुचिका की आय इतनी नहीं थी कि वह उस लोन की किश्त भी समय पर चुका पाती.

गौरव उस की मदद तो करना चाहता था पर इतनी बड़ी रकम का इंतजाम कर पाना उस के लिए भी संभव नहीं था. इसलिए आयुष, रुचिका और गौरव तीनों मिल कर इस समस्या से निपटने का रास्ता खोजने लगे. इस के लिए रुचिका और आयुष ने अपने पिता पर भी दबाव बनाया कि वह जबलपुर स्थित अपने हिस्से की पुश्तैनी जमीन बेच दे.

दोनों का मानना था कि उस से लगभग एक करोड़ रुपए हाथ आ जाएंगे. लेकिन शील कुमार इस के लिए तैयार नहीं था. गौरव की पत्नी के पेट में इन दिनों 7 महीने का गर्भ था. इसलिए गौरव ज्यादा से ज्यादा वक्त रुचिका के साथ बिताना चाहता था. उस की योजना आयुष की मदद से नए साल पर रुचिका को ले कर भोपाल से बाहर जाने की थी.

उस का विचार था कि आयुष अपनी बहन को साथ ले कर निकलेगा और पीछे से वह उन के साथ हो जाएगा. इस की योजना बनाने के लिए कुछ दिन पहले तीनों एक होटल में मिले. आयुष ने गौरव से कहा कि तुम दीदी को ले कर कहीं चले जाओ. इधर हम उस के अपहरण की बात फैला कर पिताजी से एक करोड़ रुपए की फिरौती मांग लेंगे. इस तरह आप को दीदी के साथ नया साल मनाने का मौका मिल जाएगा और हमें पैसा.

‘‘आइडिया अच्छा है, लेकिन तुम्हारी दीदी और मैं एक साथ गायब हुए तो पल भर में सब को बात समझ में आ जाएगी. हां, एक काम हो सकता है कि तुम गायब हो जाओ. तुम्हारे अपहरण के नाम पर 2-4 दिन में ही तुम्हारे पिता से मैं ओर रुचिका पैसा ले लेंगे. फिर नए साल पर हम तीनों घूमने चलेंगे.’’ गौरव ने कहा.

मिलजुल कर बनाई योजना

गौरव का सुझाया यह आइडिया तीनों को अच्छा लगा. योजना बनी कि आयुष गायब हो जाएगा और इधर बेटे को बचाने के लिए रुचिका के पिता शील कुमार आसानी से जबलपुर की जमीन बेच कर फिरौती में एक करोड़ रुपए दे देंगे. जिस से रुचिका का कर्ज भी चुक जाएगा और बाकी की जिंदगी भी आराम से गुजर जाएगी.

इस काम में फिरौती के लिए फोन करने और फिरौती की रकम लेने जाने के लिए गौरव ने अपनी दुकान के एक नौकर अतुल को पैसों का लालच दे कर शामिल कर लिया. इस के बाद पूरी योजना को फाइनल कर 12 दिसंबर को कोचिंग के नाम पर आयुष घर से निकल कर गौरव से मिला. गौरव ने उसे अतुल के साथ मिसरोद के एक होटल में ठहरा दिया. कुछ ही देर बाद अतुल ने आयुष के घर फिरौती के लिए फोन कर दिया.

एक करोड़ रुपए की फिरौती के लिए फोन आने के बाद पुलिस सक्रिय हो गई तो आयुष को मिसरोद से निकाल कर पहले कुछ दिन छतरपुर में रखा गया और फिर उसे अतुल के साथ आगरा भेज दिया गया. लेकिन इस बीच एसपी अतुल लोढ़ा के निर्देशन और एएसपी संजय साहू के नेतृत्व में आयुष की तलाश में जुटी पुलिस टीम ने एकएक कदम आगे बढ़ाते हुए केस का खुलासा कर दिया.

पुलिस ने रुचिका उस के भाई आयुष और प्रेमी गौरव जैन से विस्तार से पूछताछ के बाद उन्हें कोर्ट में पेश किया जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. जबकि कथा लेखन तक अतुल की तलाश जारी थी.

नाजायज रिश्तों में हक जमाने की भूल

सईद जिस मकान में रह रहा था, वह उस के साले शकील का था. शकील अपनी पत्नी शबनम और बच्चों के साथ मकान के भूतल पर रहता था जबकि सईद प्रथम तल पर रह रहा था. सईद छत पर लगे लोहे के जाल से शबनम और शकील की गतिविधियों नजर रखे रहता था. जैसे ही शकील काम पर जाने के लिए घर से निकलता, सईद झट से शबनम के पास पहुंच जाता था. इस के बाद दोनों जी भर कर अपनी हसरतें पूरी करते थे.

35 वर्षीय शकील लखनऊ के हसनगंज थाना क्षेत्र के रमबगिया खदरा मोहल्ले में रहता था. उस के पिता अहमद हुसैन दरजी थे. पिता से यही काम सीखने के बाद वह भी टेलर बन गया था. करीब 10 साल पहले उस की शादी लखनऊ से सटे हरदोई जिले के संडीला कस्बे के महताब मूसापुर गांव की रहने वाली शबाना अंजुम उर्फ शबनम से हुई थी. एमए तक पढ़ी शबनम खूबसूरत युवती थी.

अपने से 5 साल छोटी, खूबसूरत और पढ़ी लिखी पत्नी घर में आने के बाद शकील की जिम्मेदारियां और भी बढ़ गई थीं. सुबह को दुकान पर गया शकील अब ज्यादा देर तक दुकान पर बैठने लगा. वह पत्नी की सारी जरूरतों का तो खयाल रखता, लेकिन उस के मन की चाहत पर ध्यान नहीं दे पाता था. वह सजी धजी पत्नी की भावना को समझने के बजाय करवट बदल कर जल्दी सो जाता था. शबनम कभी पहल करती तो वह तवज्जो नहीं देता था.

कह सकते हैं कि शबनम वासना की आग में जलती रहती थी. यह भी सच है कि वासना की आग में जलने वाली औरत अकसर गुमराह हो जाती है. ऐसे में वह अपनी और घर की बदनामी के बारे में भी नहीं सोचती.

इसी दौरान शकील का बहनोई सईद अख्तर उर्फ कल्लू उर्फ माटू उस के यहां रहने के लिए आ गया था. कानपुर के थाना अनवरगंज के कुली बाजार में रहने वाले सईद का विवाह शकील की बहन नजमा से हुआ था. शादी के कई साल बीत जाने के बाद भी नजमा मां नहीं बन सकी थी. सईद अकसर शकील के घर आताजाता रहता था.

एक दिन दोनों के बीच बातचीत हुई तो शकील ने सईद से लखनऊ में रह कर अपना कोई काम करने की बात कही. सईद को साले का यह सुझाव अच्छा लगा. उस ने सोचा कि लखनऊ में रह कर काम करने पर उस की आमदनी बढ़ सकती है. बात जब रहने के इंतजाम की आई तो शकील ने उसे अपने मकान की पहली मंजिल पर रहने को कह दिया.

कुछ दिनों बाद शकील अपने सामान के साथ कानपुर से लखनऊ आ गया. पत्नी नजमा को वह कानपुर में ही छोड़ आया था. लखनऊ आ कर उस ने तसला बनाने का काम शुरू कर दिया.

शकील सुबह काम पर जाता तो देर रात ही घर लौटता था. जबकि सईद कुछ घंटे काम कर के कमरे पर लौट आता था. खाली समय होने पर वह शबनम के साथ बैठ कर बातें करता. चूंकि दोनों में ननदोई सलहज का रिश्ता था, इसलिए आपस में हंसीमजाक होता रहता था. सईद शबनम को अपनी बाइक पर बैठा कर घुमाने ले जाता और बाजार में अच्छी से अच्छी चीजें खिलाता पिलाता था.

शबनम भी इतनी नासमझ नहीं थी, जो ननदोई की आंखों की भाषा न पढ़ पाती. इस के बावजूद वह जल्दबाजी में अपने कदम उस की तरफ नहीं बढ़ाना चाहती थी.

एक दिन पति के जाने के बाद शबनम सईद के लिए चाय बना रही थी. उस समय कमरे में बैठा सईद उसे अपलक निहार रहा था. शबनम ने उसे कनखियों से देखा तो मन ही मन खुश हुई. चाय का कप ले कर वह सईद के पास आई और कप उस की ओर बढ़ाते हुए मुसकरा कर बोली, ‘‘तुम्हारे पास कोई काम नहीं है क्या, जो मुझे टकटकी लगा कर देखते रहते हो?’’

सईद ने बेहिचक जवाब दिया, ‘‘शबनम, तुम्हें देखना भी तो काम ही है. वैसे एक बात बताऊं, मैं तुम्हें देखता कम हूं, तुम्हारे बारे में सोचता ज्यादा हूं.’’

यह सुनते ही शबनम की धड़कनें बढ़ गईं. वह उस के सामने बैठ गई. फिर घुटने पर कोहनी रख कर हथेली पर ठोड़ी टिकाते हुए मुसकराई, ‘‘क्या सोचते हो, जरा मुझे भी तो बताओ.’’

‘‘यही कि शकील निरा बुद्धू है. इतनी खूबसूरत बीवी मिली है, लेकिन उस की कद्र तक करना नहीं जानता. देखो न क्या हाल बना कर रखा है.’’ सईद ने शबनम को पैरों से ले कर सिर तक निहारते हुए कहा.

शबनम को लगा कि सईद उस के मन की ही बात कह रहा है. वह बोली, ‘‘क्या करें, उन्हें तो सिर्फ पैसों से प्यार है, मगर पैसे के अलावा घरगृहस्थी की और भी जरूरतें होती हैं, इस बात को वो नहीं समझते.’’

शबनम के इतना कहते ही सईद ने लोहा गर्म देख शब्दों का वार किया, ‘‘शबनम, शकील अपनी जिम्मेदारी पूरी नहीं करता तो न सही. तुम परेशान क्यों होती हो, मैं हूं न.’’

शबनम के लिए यह खुला आमंत्रण था. उस के गालों पर हया की सुर्खी दौड़ी तो लाज से निगाहें झुक गई. वह झिझकते हुए बोली, ‘‘कहते हुए सोच तो लिया करो कि क्या कह रहे हो.’’

‘‘शबनम, यह बात मैं तुम से काफी दिनों से कहना चाह रहा था, लेकिन तुम ने कभी मौका ही नहीं दिया.’’ सईद ने व्याकुल हो कर उस का हाथ पकड़ लिया.

शबनम मन ही मन खुश थी. उस का मन चाह रहा था कि सईद उसे बांहों में भर कर सीने से लगा ले और उसे खूब प्यार करे. इस के बावजूद वह दिखाने के लिए नाटकीय अंदाज में बोली, ‘‘छोड़ो न मुझे, यह क्या कर रहे हो? किसी ने देख लिया तो हमारी शामत आ जाएगी.’’

‘‘इस मकान में हम दोनों के सिवा है कौन, जो हमें देख लेगा. मेन गेट मैं ने पहले से बंद कर रखा है. इसलिए बाहर से कोई अंदर नहीं आ सकता.’’ फिर सईद उस के नजदीक आ कर बोला, ‘‘वैसे भी समझदार मर्द वही है, जो औरत के इनकार को ही उस का इकरार समझे.’’

सईद ने उसे बांहों में उठाया और ले जा कर बेड पर लिटा दिया. वह खुद भी उस के पहलू में लेट गया. इस के बाद दोनों ने अपनी हसरतें पूरी कर लीं.

सईद का प्यार पा कर शबनम बहुत खुश हुई. ननदोई सलहज के बीच एक बार अवैध संबंध क्या बने कि वे रोज रोज यह खेल खेलने लगे. शकील को इस बात की भनक तक नहीं लगी कि उस के जाने के बाद पत्नी और बहनोई क्या गुल खिला रहे हैं. समय के साथ उन के रिश्ते परवान चढ़ने लगे.

लखनऊ की आबोहवा देखने के बाद शबनम भी कहीं नौकरी करना चाहती थी. इस बारे में उस ने पति से बात की तो उस ने उसे नौकरी करने की इजाजत दे दी. एमए पास शबनम अखबारों में छपे नौकरी के विज्ञापन देखने लगी. अपनी योग्यता के अनुसार उस ने कई कंपनियों में आवेदन किया. कई जगह इंटरव्यू भी दिए. आखिर उसे सफलता मिल ही गई.

शबनम को हजरतगंज में शक्ति भवन के पीछे स्थित आइडिया कंपनी के काल सेंटर में नौकरी मिल गई. नौकरी मिलने पर वह बहुत खुश हुई. उसे अलगअलग शिफ्ट में काम पर जाना होता था. सुबह जल्दी जाना होता तो वह टैंपो से चली जाती और शाम को जाना होता तो सईद उसे अपनी बाइक से छोड़ आता था.

शबनम काफी मिलनसार और हंसमुख स्वभाव की थी, इसलिए वह औफिस में काम करने वाले लोगों से जल्दी ही घुलमिल गई. उस के औफिस में संजय नाम का एक युवक काम करता था. चूंकि औफिस के काम के मामले में शबनम एकदम नई थी, इसलिए संजय ही उस की हेल्प करता था. जल्दी ही दोनों के बीच अच्छीभली दोस्ती हो गई.

संजय शबनम की खूबसूरती पर फिदा था. वह उस का पूरी तरह से खयाल रखता था. शबनम को भी उस का साथ अच्छा लगने लगा. इस की एक वजह यह थी कि संजय उस का हमउम्र था जबकि सईद उस से 20 साल बड़ा था. धीरेधीरे दोनों में दूरियां घटती गईं और वे काफी नजदीक आ गए. दोनों के मन में एकदूसरे के प्रति चाहत थी. एक दिन संजय ने शबनम के सामने अपने प्यार का इजहार किया तो शबनम ने सहजता से उस का प्यार कुबूल कर लिया.

संजय से प्यार होने के बावजूद शबनम ने सईद से दूरी नहीं बनाई. वह उस की ख्वाहिशों को पूरा करती रही. वह उसे इसलिए छोड़ना नहीं चाहती थी क्योंकि उस ने उस समय उस का साथ दिया था, जब उसे एक साथी की सख्त जरूरत थी. इस तरह शबनम पति के अलावा 2 नावों की सवारी कर रही थी.

5 मार्च, 2014 को सुबह करीब साढ़े 5 बजे शबनम घर से औफिस जाने के लिए निकली. उस के जाने के बाद शकील कुछ देर के लिए बेड पर यूं ही लेट गया. अभी मुश्किल से 15-20 मिनट ही हुए थे कि घर के बाहर किसी चीज के गिरने की आवाज आई और शोर भी सुनाई दिया. शकील बाहर निकल कर आया तो उस ने शबनम को दरवाजे के बाहर लहूलुहान हालत में पड़े पाया. गिरने के बाद वह बेहोश हो गई थी. पड़ोसी भी उस की हालत देख कर वहां पहुंच गए थे.

पत्नी को इस हाल में देख कर शकील घबरा गया. पड़ोसियों की मदद से वह शबनम को उठा कर बलरामपुर अस्पताल ले गया. लेकिन डाक्टरों ने उसे मृत घेषित कर दिया. चूंकि यह पुलिस केस था, इसलिए अस्पताल से इस की सूचना हसनगंज थाने को दे दी गई.

सूचना पा कर थानाप्रभारी दिनेश सिंह पुलिस टीम के साथ अस्पताल पहुंच गए. उन्होंने लाश का निरीक्षण किया तो पता चला शबनम के गले व पेट पर किसी तेज धारदार हथियार से वार किए गए थे. शबनम के पति से बात करने के बाद थानाप्रभारी ने लाश को पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भेज दिया.

शकील की तहरीर पर पुलिस ने अज्ञात लोगों के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया.

केस दर्ज होने के बाद थानाप्रभारी ने जांच शुरू कर दी. लेकिन 10 दिनों की तफ्तीश के बाद भी उन्हें हत्यारों के बारे में कोई क्लू नहीं मिला. इस सिलसिले में उन्होंने कई मर्तबा शकील और उस के बहनोई सईद से पूछताछ की. पूछताछ के बाद उन्हें सईद पर शक होने लगा.

15 मार्च, 2014 को दोपहर के समय पुलिस ने सईद को थाने बुला कर फिर से पूछताछ की. सख्ती से की गई पूछताछ में उस ने शबनम की हत्या करने का जुर्म स्वीकार कर लिया. उस ने हत्या की जो वजह बताई, वह चौंकने वाली थी.

शबनम जब काल सेंटर में नौकरी करने लगी तो सईद को किसी तरह पता चल गया कि उस की दोस्ती उस के साथ काम करने वाले किसी लड़के के साथ हो गई है. जबकि उसे शबनम का दूसरे पुरुषों से मिलना, बातें करना अच्छा नहीं लगता था. वह बारबार उस पर इस बात का दबाव डालता था कि वह किसी बाहरी मर्द से बात न किया करे.

सईद ने कोशिश की तो उसे यह जानकारी मिल गई कि शबनम औफिस के जिस युवक के साथ ज्यादा मिलतीजुलती है उस का नाम संजय है. इस के बाद वह खुद उस की जासूसी करने लगा. एक दिन सईद ने शबनम को संजय के साथ औफिस के नजदीक एक रेस्टोरेंट में देख लिया. उस समय तो सईद ने शबनम से कुछ नहीं कहा लेकिन घर लौटने पर उस ने शबनम से नाराजगी जताई.

इस के जवाब में शबनम ने कहा कि जब वह नौकरी करने जाएगी तो औफिस के लोगों से बातचीत होगी ही. वह उन से बातचीत न करे, ऐसा मुमकिन नहीं है. इस से सईद को विश्वास हो गया कि शबनम के संजय के साथ नाजायज ताल्लुकात हैं इसलिए वह उसे छोड़ना नहीं चाहती. इस बात को ले कर दोनों में कभीकभी झगड़ा भी हो जाता था. लेकिन शबनम ने कभी इसे गंभीरता से नहीं लिया था.

सईद नहीं चाहता था कि शबनम उस के रहते किसी दूसरे के साथ मौजमस्ती करे. उस ने शबनम को कई बार समझाया. जब वह नहीं मानी तो उस ने शबनम की हत्या करने की ठान ली.

5 मार्च, 2014 को जब शबनम सुबह साढ़े 5 बजे घर से अपने औफिस जाने के लिए निकली तो सईद भी चुपके से उस के पीछे हो लिया. सईद ने अपना चेहरा कपड़े से छिपा लिया था.

शबनम घर से लगभग 200 मीटर दूर ही पहुंची होगी कि सईद उस के सामने जा कर खड़ा हो गया. यह देख कर शबनम ठिठकी लेकिन वह कुछ समझती, उस से पहले ही सईद ने उस के गले व पेट पर साथ लाई कैंची से कई प्रहार किए और वहां से भाग गया. वहां से भाग कर वह पास के कब्रिस्तान में गया और खून से सनी कैंची चारदीवारी के किनारे झाडि़यों में छिपा दी. फिर वह छिपते छिपाते जल्दी ही घर पहुंच गया.

शबनम घायल जरूर हो गई थी लेकिन उस ने भी हिम्मत नहीं हारी थी. पेट पर हाथ रख कर वह लड़खड़ाते हुए अपने घर तक पहुंच गई, लेकिन घर के दरवाजे पर पहुंचते पहुंचते उस की सांसों की डोर टूट गई और धड़ाम की आवाज के साथ जमीन पर गिर गई.

पुलिस ने सईद से पूछताछ के बाद उस की निशानदेही पर कब्रिस्तान के पास छिपा कर रखी कैंची बरामद कर ली. फिर कानूनी औपचारिकताएं पूरी कर उसे कोर्ट में पेश करने के बाद जेल भेज दिया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

डीपफेक : टेक्नोलॉजी का गलत इस्तेमाल

जब से प्रो. वरिंदर कालेज के मास कम्युनिकेशन विभाग में आए थे, तब से इस विभाग में स्टूडेंट्स काफी बढ़ गए थे. हर स्टूडेंट प्रो. वरिंदर के पढ़ाने के तरीके से प्रभावित था. यह हिमाचल के रहने वाले थे और कालेज के हौस्टल में ही रहते थे. सभी स्टूडेंट्स उन के दीवाने थे, क्योंकि वह काफी हैंडसम थे.

किसी को भी अंदाजा नहीं था कि प्रो. वरिंदर का अश्लील वीडियो वायरल हो जाएगा. सभी तरफ इस वीडियो की ही चर्चा हो रही थी. प्रो. वरिंदर खुद हैरान थे कि यह कैसे हो सकता है.

कालेज, शहर, देशविदेश में यह वीडियो जंगल की आग की तरह फैल गया था. प्रिंसिपल गुरदयाल सिंह ने प्रो. वरिंदर को अपनी केबिन में बुलाया और उस वायरल वीडियो के बारे में पूछा.

”सर, यह वीडियो मेरा नहीं है.’’ प्रो. वङ्क्षरदर ने प्रिंसिपल साहब को सफाई दी.

”लेकिन वीडियो में तो आप ही हैं. वरिंदरजी, आप खुद देखो न, आप खुद हो, साथ में लड़की नैना है, जो बार बार आप से कई टौपिक पर पूछती रहती थी. यह कमरा, बैडरूम, दीवार अपने ही हैं. दीवार पर अलगअलग स्टिकर लगे हुए हैं. यह कमरा तो अपने ही हौस्टल का ही है. सौरी वरिंदरजी, हम कालेज की बदनामी नहीं करा सकते. जब तक यह वीडियो वाली बात साफ नहीं हो जाती, सच्चाई पता नहीं चल जाती, प्लीज आप कालेज मत आना. मुझे इस की जानकारी पुलिस को देनी पड़ेगी.’’

”पर सर, मैं नहीं हूं. जो लड़की है वह मेरी स्टूडेंट है, फिर मैं यह कैसे कर सकता हूं.’’ प्रो. वङ्क्षरदर ने कहा.

प्रिंसिपल गुरदयाल सिंह ने खुद ही इंसपेक्टर को फोन मिलाया और कहा, ”मलकीतजी, कालेज जल्दी आना.’’

इंसपेक्टर मलकीत सिंह पिं्रसिपल का दोस्त था.

”कोई खास वजह?’’ इंसपेक्टर मलकीत ने पूछा.

”मेरे कालेज के प्रो. वरिंदर हैं, उन का एक वीडियो काफी वायरल हो रहा है.’’

”अच्छा…. वो वाला वीडियो… यह तो काफी वायरल है. मैं आता हूं.’’ इंसपेक्टर ने कहा.

प्रो. वरिंदर काफी उदास थे. उन का एक स्टूडेंट रमन उन्हें काफी हौसला दे रहा था. रमन मास कम्युनिकेशन का स्टूडेंट था. उसे तकनीकी जानकारी बहुत थी. अच्छे वीडियो बनाता था. उसे फोटोग्राफी का भी शौक था. मौडलिंग भी करता था. कालेज के स्टूडेंट्स को ले कर वह शार्ट मूवीज भी बनाता रहता था.

उस ने प्रो. वङ्क्षरदर से कहा, ”सर,  आप चिंता न करें. हम इस का हल ढूंढ निकालेंगे.’’

प्रो. वरिंदर को रमन की बातें सुन कर हौसला मिलता था कि मेरा यह कितना खयाल रख रहा है.

इंसपेक्टर मलकीत सिंह पुलिस टीम के साथ कालेज पहुंच गए. कालेज में छुट्टी होने के कारण स्टूडेंट्स नहीं थे. पुलिस ने प्रिंसिपल गुरदयाल के साथ काफी लंबी बातचीत की. प्रो. वरिंदर को भी बुलाया.

”प्रो. साहब, यह वीडियो आप की है?’’ इंसपेक्टर मलकीत सिंह ने पूछा.

”नहीं सर, मेरी नहीं है.’’ प्रो. वङ्क्षरदर ने बताया.

”पर लग तो आप ही रहे हैं.’’

”नहीं सर, यह मेरी वीडियो नहीं है.’’

”यह लड़की कौन है?’’

”सर, यह लड़की नैना है. पर सर, मैं तो इस लड़की से मिला ही नहीं. बस यह किसी टौपिक के बारे में मुझ से पूछती और चली जाती थी. वह हमेशा अपनी सहेलियों के साथ ही आती थी.

“पर प्रोफेसर साहब, यह वीडियो तो आप की ही लगती है.’’

”नहीं इंसपेक्टर साहब, यह मैं नहीं हूं. आप मेरा रिकौर्ड चैक करवा सकते हैं.’’

”रिकौर्ड तो सामने ही है,’’ इंसपेक्टर मलकीत ने हंसते हुए कहा.

”नहीं सर, सच मानो मैं नहीं हूं.’’

वीडियो देख कर प्रिंसिपल को क्यों आया पसीना

इस मौके पर लड़की नैना को भी बुलाया गया, जो काफी रो रही थी. वह भी बोली, ”सर, यह मैं नहीं हूं. मैं तो अकेली सर को मिली ही नहीं. जब भी मिली हूं तो मेरी सहेलियां नमिता, नीतिका साथ में ही होती थीं.’’

”बेटा हम समझते हैं, पर आप हमारा साथ दोगे तो अच्छा रहेगा.’’ इंसपेक्टर ने समझाया.

”सर, मैं सच कहती हूं, यह मैं नहीं हूं. मैं तो अकेले कभी सर से मिली ही नहीं.’’

वे बात ही कर रहे थे कि प्रिंसिपल गुरदयाल के चेहरे पर पसीना छलक आया था. वह कोई वीडियो मोबाइल पर देख रहे थे, जिस में 2 निर्वस्त्र लड़कियां थीं…

इंसपेक्टर मलकीत सिंह ने कहा, ”गुरदयाल सिंहजी क्या हुआ..?’’

प्रिंसिपल ने साइड में इंसपेक्टर मलकीत को ले जा कर वीडियो दिखाते हुए कहा, ”यह भी कालेज की लड़कियों का है जो बिलकुल नंगी हैं और एकदूसरे के साथ चिपक रही हैं.’’

नीचे एक मैसेज भी लिखा था ‘आप देखते जाओ, मेरे पास आप के कालेज के काफी वीडियो हैं. जो एक के बाद एक बाहर आऐंगे. हां प्रिंसिपल साहब, आप के वीडियो भी हैं मेरे पास… जितने मरजी एक्सपर्ट बुला लें, आप को नहीं पता चलेगा कि वीडियो कहां से लोड हो रही है.’

इंसपेक्टर मलकीत ने प्रो. वरिंदर और नैना को जाने को कहा.

”गुरदयालजी, यह मामला सिर्फ प्रो. वरिंदर और नैना का नहीं है. यह तो आप के कालेज का मामला लगता है. ये दोनों लड़कियां कौन हैं?’’

”ये हमारे कालेज की ही रानी और मोना हैं. ये इतनी घटिया हरकत कर सकती हैं, मैं ने सोचा नहीं था.’’

इंसपेक्टर ने प्रिंसिपल गुरदयाल, प्रो. वरिंदर, नैना, रानी, मोना सभी के मोबाइल नंबर लिए और कालेज से चले गए. उन को थाने से फोन आया था कि गांव के सरपंच ने अपनी बुजुर्ग मां को घर से बाहर निकाल दिया है, सारा गांव ही थाने आया है.

प्रिंसिपल की हालत बहुत खराब थी. प्रो. वरिंदर का मामला सुलझा नहीं था कि एक और वीडियो सामने आ गया. प्रिंसिपल सोच में डूबे थे कि स्टूडेंट रमन उन के पास आया, ”सर, मेरे कई दोस्त एक्सपर्ट हैं, जो पता लगा सकते हैं कि वीडियो कहां से अपलोड हो रहे हैं. ये साइबर एक्सपर्ट हैं.’’

रमन की बात प्रिंसिपल गुरदयाल को अच्छी लगी. रमन ने प्रिंसिपल के कहने पर अपने एक्सपर्ट दोस्तों को कालेज के बाहर ही रूम ले कर दे दिया. वे खोज खबर में लग गए. रमन अपने दोस्तों के साथ रात को जाम भी छलकाने लगा.

प्रिंसिपल गुरदयाल को उम्मीद थी कि बहुत जल्दी ही दोषी पकड़ा जाएगा.

शाम 5 बजे कालेज से सभी स्टूडैंट्स चले जाते थे. इंसपेक्टर मलकीत अपनी टीम के साथ आए और काफी बातें कीं.

”आप की पत्नी डा. नीता कहां है?’’ इंसपेक्टर मलकीत ने प्रिंसिपल से पूछा.

पत्नी का नाम सुन कर प्रिंसिपल हैरान हो गए.

प्रिंसिपल का चेहरा पढ़ते हुए वह बोले, ”जी हां, आप की पत्नी डा. नीता जी…’’

”मेरी पत्नी से कई साल से बोलचाल बंद है. हमारे संबंध ठीक नहीं हैं. क्या यह मेरी पत्नी ने..?

”नहीं, नहीं… मैं ने ऐसा नहीं कहा. दरअसल, हम ने कालेज के कई पुराने लोगों से बात की तो पता चला कि आप की पत्नी के साथ आप के संबंध ठीक नहीं हैं.’’ इंसपेक्टर ने कहा.

डा. नीता क्यों हुई पति के खिलाफ

इंसपेक्टर मलकीत ने उन से डा. नीता का मोबाइल नंबर लिया. उन्होंने डा. नीता को थाने बुलाया. पूछताछ करने पर डा. नीता ने कहा, ”इस प्रिंसिपल ने तो मेरी जिंदगी ही बरबाद कर दी. मैं पछता रही हूं इन से शादी कर के.’’

”डा. नीताजी, आप यह बताएं कि आप के पति प्रिंसिपल गुरदयाल कैसे आदमी हैं?

”बहुत ही घटिया हैं,’’ डा. नीता ने बिंदास कहा, ”मैं तो शादी कर के पछता रही हूं. मुझे पता है कि मैं ने अपनी बेटी को कैसे पाला. फिर विदेश भेजा, इन को तो पूरी जिंदगी कालेज से ही फुरसत नहीं मिली. मैं तो डाक्टर थी, काम अच्छा था तो मैं ठीक रही, नहीं तो मैं भी इन के साथ किताबों में गुम हो जाती.’’

”डा. नीता, कालेज के एक प्रोफेसर का वीडियो काफी वायरल हुआ है. इसी के लिए मैं ने आप को बुलाया है.’’ इंसपेक्टर ने कहा.

”आप का मतलब यह मैं ने किया…’’

”नहीं, हम यह नहीं कह रहे हैं कि आप ने किया, हमें तो सिर्फ यह जानना था कि आप के पास भी कारण है कि प्रिंसिपल साहब को बदनाम करने का…’’

”क्या फालतू सवाल है? मुझे इन को बदनाम करना होता तो 12 साल पहले ही कर देती, जब मैं इन से अलग हुई थी. नहीं, यह सब झूठ है. आप मेरा मोबाइल चैक कर सकते हैं… मेरा नंबर तो आप के पास है ही, मेरी बेटी का यह नंबर है.

आप के पास तो अडवांस टैक्निक है, आप पता कर सकते हैं. हमारे रिश्ते बेशक ठीक नहीं हैं, मैं एक डाक्टर के नाते ऐसा नहीं कर सकती. मेरी भी सोशल इमेज है. मेरे अस्पताल जा कर भी आप मेरे बारे में पूछ सकते हैं.’’ डा. नीता ने सफाई दी.

”वह हम पता लगा लेंगे, लेकिन जब तक यह केस हल नहीं हो जाता, आप शहर के बाहर हमें बता कर जाना.’’

रमन और उस की टीम कोई न कोई खबर बना कर प्रिंसिपल गुरदयाल से काफी पैसे ले चुकी थी. रमन और दोस्तों का शाम का दारू और लेट नाइट बार डांस अच्छा चल रहा था.

इंसपेक्टर ने प्रो. वरिंदर को फिर थाने बुलाया. उन्होंने पूछा, ”आप के प्रिंसिपल सर कैसे हैं?’’

”सर अच्छे हैं.’’

”उन के पत्नी के साथ रिलेशन कैसे हैं?’’ इंसपेक्टर मलकीत ने पूछा.

”इतना ही पता है कि पत्नी अलग रहती है और बेटी विदेश में है.’’

रमन प्रिंसिपल से जब भी मिलता तो कुछ न कुछ पैसे ले लेता.

”सर, ये वीडियो विदेश की आईडी से लोड किए गए हैं.’’ सीआईए स्टाफ के रणजीत सिंह की टीम ने जांच कर इंसपेक्टर मलकीत से कहा.

इंसपेक्टर मलकीत ने प्रो. वरिंदर को फिर बुलाया और उन से पूछा, ”आप की यहां पर कोई दुश्मनी, कालेज स्टडी समय हिमाचल में कोई दुश्मनी आदि तो नहीं थी?’’

”दुश्मनी तो मेरी किसी से नहीं… लेकिन एक बार रमन के साथ झगड़ा हुआ था, जब इस ने एक लड़की की कुछ अश्लील तसवीरें खींची थीं. मैं ने रमन को मना किया था तो उस ने सौरी भी बोला था कि आगे से ऐसा नहीं करेगा… यह बात जब प्रिंसिपल सर को पता चली तो उन्होंने रमन को थप्पड़ मारा था. यह मामला तो 2 साल पहले का है. पर रमन तो अब काफी बदल चुका है.’’ प्रो. वरिंदर ने बताया.

पुलिस ने कई ऐंगल से इस को ध्यान से देखा. अपने खबरी भी अलर्ट किए. हर छोटी से छोटी जानकारी हासिल की.

छात्रों ने प्रिंसिपल से किस बात का लिया बदला

संडे का दिन था, प्रिंसिपल गुरदयाल सिंह नाश्ता कर रहे थे. तभी इंसपेक्टर मलकीत पुलिस टीम के साथ कालेज के हौस्टल में पहुंच गए. गुरदयाल ने उन से नाश्ता करने को कहा.

तभी इंसपेक्टर ने कहा, ”नहीं सर, पहले काम बाकी बातें और नाश्ता बाद में. प्रिंसिपल साहब, आप यह बताएं कि पिछले कुछ दिनों से आप एक नंबर पर पैसे ट्रांसफर कर रहे हैं. वह बैंक खाता यूपी का है, लेकिन पैसे कालेज के एटीएम से निकाले जा रहे हैं.’’

”पैसे… कौन से पैसे…’’ प्रिंसिपल ने अनजान बनते हुए कहा.

”प्रिंसिपल साहब, झूठ न बोलो, असल मुद्दे पर आओ.’’

प्रिंसिपल को पता चल गया था कि अब झूठ बोल कर कोई फायदा नहीं, इसलिए उन्होंने हकीकत बयां कर दी.

उन्होंने कहा, ”दरअसल, हमारे कालेज के स्टूडेंट रमन ने मुझ से कहा था कि उस के कई दोस्त साइबर एक्सपर्ट हैं. वह पता कर लेंगे कि वीडियो कहां से अपलोड हुई है.’’

”फिर पता चला?’’ इंसपेक्टर मलकीत ने पूछा.

”नहीं…’’

”प्रिंसिपल साहब, यह सब फ्रौड है. यह तो यूपी बिहार के टौप के क्रिमिनल हैं, जो आप को लाखों का चूना लगा रहे हैं.’’

प्रिंसिपल ने अपनी गलती मानी. कालेज के नजदीक नया बाजार में रमन को, जो घर किराए पर ले कर दिया था, पुलिस ने वहां रेड की तो सभी फरार हो चुके थे.

रमन के कई मोबाइल नंबर थे. पुलिस ने अलगअलग स्थानों पर रेड कर के रमन को रेलवे स्टेशन से पकड़ लिया, लेकिन उस के साथी फरार हो गए.

थाने पहुंचते ही रमन ने सारे राज उगल दिए. उस ने कहा, ”मैं ने प्रिंसिपल साहब से बदला लेने के लिए यह सब किया. प्रिंसिपल साहब ने सब स्टूडैंट्स के सामने मुझे थप्पड़ मारे थे, वह भी प्रो. वरिंदर की वजह से. फिर मैं ने डीपफेक तकनीक से चेहरे बदल कर यह सब किया.’’

रमन ने आगे बताया, ”सर, इस वीडियो में वरिंदर सर नहीं हैं, न ही वह लड़की… यह सब मैं ने तैयार करवाए. जो 2 लड़कियों का वीडियो था, वह किसी विदेश की साइट से लिया वीडियो था. मेरे पास मौडलिंग की काफी फोटो थीं, उन्हीं से मैं ने आसानी से वीडियो तैयार कर लिया. वीडियो के पीछे जो बैकग्राऊंड है, वह हमारे कालेज की है.

रमन की स्टोरी सुन कर पुलिस हैरान थी.

पुलिस ने रमन के महंगे मोबाइल को जब देखा तो उस में और भी वीडियो मिले, जिन्हें देख कर इंसपेक्टर मलकीत हैरान रह गए. लड़कियों के नहाने के कई असल वीडियो भी थे. पुलिस ने रमन के कमरे की तलाशी ली तो वहां से ढेर सारी अश्लील मैगजीन, कई लड़कियों के नग्न फोटो, विदेशी अश्लील फिल्में, क्राइम पर लिखी गई कई किताबें मिलीं.

पुलिस यह भी देख कर दंग रह गई कि प्रिंसिपल गुरदयाल का वीडियो तैयार किया जा रहा था. वहां से पुलिस ने कंप्यूटर, सीडी, हार्डडिस्क, टूटा लैपटाप अपने कब्जे में ले लिया.

हकीकत सामने आने के बाद प्रिंसिपल साहब को विश्वास हो गया कि प्रो. वरिंदर बेकुसूर हैं, इसलिए उन्होंने प्रो. वरिंदर को फिर कालेज में रख लिया. इस के बाद उन्होंने कालेज में मोबाइल लाने पर सख्त पाबंदी लगा दी. डीपफेक का राज उजागर कर पुलिस ने रमन के साथियों को भी गिरफ्तार कर लिया.

आखिरी गुनाह करने की ख्वाहिश

वैलेंटाइन डे पर मिली अनोखी सौगात

आखिरी गुनाह करने की ख्वाहिश – भाग 4

2 दिनों तक दोनों आपस में खिंचे खिंचे रहे. तीसरे दिन चुनन शाह ने कहा, ‘‘भावल, मैं मानता हूं कि मैं ने गलती की है. लेकिन वादा करता हूं कि अब आगे कभी इस तरह का घटिया काम नहीं करूंगा.’’

चुनन शाह की इस बात से भावल खान खुश हो गया. सुगरा छिपछिप कर दोनों की बातें सुनती रहती थी. उस ने भावल से कई बार कहा था कि चुनन शाह से पीछा छुड़ा ले. वह कहती थी कि चुनन शाह अच्छा आदमी नही है. तब वह जवाब में कहता, ‘‘सुगरा, मैं भी अच्छा आदमी नहीं हूं.’’

एक दिन अचानक चुनन शाह ने भावल खान से कहा, ‘‘भावल, इस बार तुम्हारी पसंद का काम मिला है. लेकिन काम थोड़ा जटिल है.’’

भावल खान को ऐसे ही काम करने में मजा आता था. वह तैयार हो गया. चुनन शाह ने अपने किसी पुराने साथी के साथ डकैती की योजना बनाई थी. बहुत बड़ी रकम हाथ लगने वाली थी. लेकिन काम सचमुच जटिल था.

उन्हें करेंसी से भरी वैन को लूटना था. उस वैन का ड्राइवर उन की पहचान का था, जो उन की मदद कर रहा था. योजना के अनुसार, वैन से नोटों के बैग उतार कर एक कार से फरार होना था. चुनन शाह ने कार की भी व्यवस्था कर ली थी. भावल खान सुगरा से 2 दिन बाद लौटने की बात कह कर चुनन शाह के साथ चला गया.

अगले दिन सुबह योजना को अंजाम देना था. लेकिन रात को जिस होटल में वे ठहरे थे, वहां पुलिस ने छापा मार कर उन्हें पकड़ लिया. थाने पहुंचने पर पता चला कि उन का तीसरा साथी, जो पहले से ही किसी मामले में वांछित था, उसे दोपहर में ही आते समय पुलिस ने रास्ते से पकड़ लिया था. उसी ने अगले दिन वैन लूटने के बारे में बता कर बाकी लोगों को गिरफ्तार करवा दिया था.

पकड़े जाने के बाद भावल खान को अपने मरहूम बाप की वह बात याद आ गई कि चोर हमेशा अकेला ही कामयाब होता है. लेकिन इस बार भावल खान शहरी लोगों के चक्कर में फंस गया था. उस ने कहा था कि वह इन लोगों को जानता ही नहीं. पुलिस ने जिस आदमी को गिरफ्तार किया था, वह उसे आज ही मिला था.

पुलिस वाले 7 दिनों का रिमांड ले कर भावल खान की धुनाई करते रहे, लेकिन उस से कुछ नहीं उगलवा सके. हार कर उन्होंने उस पर आवारागर्दी का मुकदमा कायम कर जेल भेज दिया. वहां उस की कोई जमानत लेने वाला नहीं था. उसे सुगरा की चिंता थी, लेकिन वह मन को तसल्ली देता कि चुनन शाह तो है ही.

6 महीने बाद भावल खान जेल से बाहर आया. जेल में उस से मिलने न चुनन शाह आया था, न सुगरा. इसलिए उसे चिंता हो रही थी कि कहीं कोई गड़बड़ तो नहीं हो गई. इसलिए जेल से बाहर आते ही वह सीधे उस मकान पर जा पहुंचा, जहां वह रहता था. वहां दोनों नहीं थे. पड़ोसियों से पूछने पर पता चला कि चुनन शाह पंजाब जाने की बात कर रहा था.

भावल खान पंजाब जा पहुंचा. बुआ के घर गया तो पता चला कि सुगरा वहां भी नहीं आई थी. भावल का दिल धक से रह गया. वह समझ गया कि चुनन शाह अपना काम कर गया.

बुआ से पैसे ले कर भावल खान चल पड़ा. शकल सूरत काफी हद तक बदल गई थी, इसलिए वह आसानी से पहचाना नहीं जा सकता था. वह सुगरा और चुनन शाह को गली गली ढूंढ़ता रहा, लेकिन दोनों में से कोई नहीं मिला. इस तरह उसे 5 साल बीत गए.

एक दिन वह शहर के रेडलाइट एरिया से गुजर रहा था तो एक दलाल उस से टकरा गया. उस के लिए यह दुनिया नई नहीं थी. दलाल उसे उस कोठे पर ले गया, जहां उस के जीवन की सब से दर्दनाक स्थिति उस का इंतजार कर रही थी.

भावल खान के सामने बहुत सारी लड़कियां खड़ी थीं, उन में एक सुगरा भी थी. वह हड्डियों का ढांचा बन चुकी थी. उसे देख कर भावल की आंखें फटी की फटी रह गईं. भावल उस की ओर लपका तो वह पागलों की तरह भागी. उस ने लपक कर उस का बाजू पकड़ लिया. उस के मुंह से मुश्किल से निकला, ‘‘सुगरा, तुम यहां?’’

‘‘भावल, खुदा के लिए मेरा नाम मत लो. मुझे छुओ भी मत. सुगरा मर चुकी है.’’

पता नहीं सुगरा क्याक्या बकती रही. भावल उस के साथ एक कमरे में बैठा था. दलाल अपना काम कर के चला गया था. सुगरा ने रोरो कर उसे बताया कि चुनन शाह ने आ कर उस से कहा था कि वह पुलिस मुठभेड़ में मारा गया. अब पुलिस यहां छापा मारने वाली है.

इस के बाद चुनन शाह घर पहुंचाने के बहाने सुगरा को कार से इस अड्डे पर पहुंचा गया था. यहां आने पर उसे पता चला कि वह औरतों का पुराना दलाल था और मुद्दत से औरतों का अपहरण कर के बेचने का धंधा कर रहा था.

सुगरा की कहानी उन बदनसीब लड़कियों से मिलती जुलती थी, जो ऐसे अड्डों तक पहुंचा दी जाती थीं. उस ने भावल को यह भी बताया था कि उस ने 3 बार आत्महत्या करने की कोशिश की थी, लेकिन यहां के लोगों ने उसे मरने भी नहीं दिया था.

भावल ने जब सुगरा से साथ चलने को कहा तो वह बोली, ‘‘भावल, यहां बहादुरी से काम नहीं चल सकता. ये बड़े असरदार लोग हैं. तुम कल दोपहर को गली के अगले वाले चौराहे पर जो डाक्टर है, उस के यहां मिलना. मैं वहां दवा लेने के बहाने जाती हूं. वहां से हम निकल चलेंगे.’’

मजबूर हो कर भावल खान वापस आ गया. रात उस ने करवटों में काटी. योजना के मुताबिक वह डाक्टर के यहां पहुंच गया. लेकिन सुगरा नहीं आई. शाम तक वह उस का इंतजार करता रहा. रात में वह उस के अड्डे पर पहुंचा तो पता चला कि उस ने रात को ही नींद की गोलियां खा कर आत्महत्या कर ली थी. उसे एक लावारिस के रूप में दफना दिया गया था.

इस खबर ने भावल खान को बेचैन कर दिया था. उस की समझ में आ गया था कि उस हालत में सुगरा उस के साथ जाना नहीं चाहती थी. इस के बाद भावल के जीवन का एक ही मकसद रह गया था कि कैसे भी हो, वह उन लोगों को चुनचुन कर मार दे, जिन्होंने उस की सुगरा को और उसे जीतेजी मार डाला था. इस के बाद वह अपने मकसद को पूरा करने के लिए निकल पड़ा.

एक हफ्ते के अंदर भावल ने 10 लोगों को मार दिया था. ये सब वे लोग थे, जिन का सुगरा की बरबादी में किसी न किसी रूप में हाथ था. चुनन शाह न जाने कहां गायब हो गया था. भावल उसे ढूंढ़ता रहा. पुलिस उस के पीछे हाथ धो कर पड़ी थी.

अचानक भावल खान ने रूप बदल कर अपराधों से तौबा कर के दुकान खोल ली. अब वह एक आखिरी गुनाह करने के लिए खुदा से दुआ मांग रहा था कि किसी तरह चुनन शाह मिल जाए और वह उस दुष्ट से इस दुनिया को छुटकारा दिला दे.

भावल ने जो पाप किए थे, उन की माफी मांगने और मन की शांति के लिए कभीकभी वह धर्मगुरुओं के यहां भी चला जाता था. यही उस के लिए फायदेमंद साबित हुआ. एक दिन उसे एक धर्मगुरू के गांव में आने के बारे में पता चला तो वह उन से मिलने पहुंच गया. वहीं भावल को मंजिल मिल गई. उसी पीर के चेलों में चुनन शाह भी था. वह अपना रूप बदले हुए था.

लोग उसे बाबा चुनन शाह के नाम से पुकार रहे थे. भावल समझ गया कि उस ने यह रूप भी अपने धंधे को आगे बढ़ाने के लिए बना रखा है. भावल ने पीछा कर के उस के ठिकाने का पता लगा लिया. फिर एक दिन उस ने उस के साथियों के सामने ही उसे कुत्ते की मौत मार दिया.

भावल ने उस की हत्या कुल्हाड़ी से काट कर की थी. उसे काटते हुए वह चिल्ला चिल्ला कर कह भी रहा था, ‘‘सुगरा का बदला ले रहा हूं. मैं बहराम खान का बेटा भावल खान हूं, जिस ने भी मेरी इज्जत से खेला है, उसे जिंदा रहने का कोई अधिकार नहीं है.’’

भावल खान को रोकने की कोई हिम्मत नहीं कर सका था. वहां से वह सीधे अपने गांव गया. पिता की कब्र पर हाजिरी दी. कानूनी दस्तावेज तैयार करा कर अपनी सारी जमीन बुआ के बेटों को दे दी.

इस के बाद वहां पहुंचा, जहां नियाज अली के रूप में रह रहा था. वहीं से उसे पुलिस ने पकड़ लिया. उस का कहना था कि अगर वह चाहता तो पुलिस उसे कभी न पकड़ पाती. लेकिन अब उस की जिंदगी का कोई मकसद नहीं रह गया था, क्योंकि उस की आखिरी गुनाह करने की जो ख्वाहिश थी, वह पूरी हो गई थी.

आखिरी गुनाह करने की ख्वाहिश – भाग 3

2 हथियारबंद लोगों ने बहराम खान का पीछा किया और वहां से लगभग एक फरलांग की दूरी पर उसे घेर लिया. निहत्था और घायल होने के बावजूद बहराम ने कायर की मौत मरने के बजाय एक पर छलांग लगा दी. उस की गरदन उस के कब्जे में आ गई. बहराम कुछ कर पाता, उस के पहले ही उस के साथी ने बहराम के सिर में एक के बाद एक कर के 6 गोलियां उतार कर अपने साथी को बचा लिया.

इस हमले में भावल खान के पिता तथा उम्मीदवार के साथ 2 अन्य लोग मारे गए. बाकी लोग गंभीर रूप से घायल हुए. विरोधी उम्मीदवार पुलिस की मिलीभगत से पहले ही जेल जा चुका था, इसलिए उस का इस मामले में बाल भी बांका नहीं हो सका.

भावल खान ने अपने पिता को दफनाते समय कसम खाई थी कि वह बाप की मौत का बदला जरूर लेगा. इस के लिए उसे कितनी ही कीमत क्यों न चुकानी पड़े.

बहराम खान ने उसे सिखाया था कि चोर हमेशा अकेला ही कामयाब होता है. लेकिन उस ने बाप का यह नियम चुनन शाह पर विश्वास कर के तोड़ दिया था.

चुनन शाह से भावल खान की दोस्ती हो गई थी. था तो वह भी अपराधी, लेकिन वह दूसरे तरह के अपराध करता था. वह औरतों को बहला फुसला कर ले जाता और कोठों पर बेच देता था. लेकिन उस ने भावल खान को कभी इस की भनक नहीं लगने दी थी. उस ने उस से बताया था कि वह तसकरी करता है.

जिस आदमी ने बहराम खान को मारा था, उसे पता था कि इस इलाके में भावल खान के अलावा कोई दूसरा उस का कुछ नहीं बिगाड़ सकता. शायद इसीलिए उस ने भावल से दोस्ती करने के लिए खूब कोशिश की. लेकिन भावल को तो उस से बदला लेना था. वह दोस्ती कर के उस से बदला नहीं ले सकता था. क्योंकि किसी के साथ धोखेबाजी करना उसे पसंद नहीं था.

चुनन शाह बहुत ही कमीना आदमी था. समय के साथ वह अपने रूप बदलता रहता था. भावल खान के साथ वह इसलिए लगा रहता था, क्योंकि उसे उस के विरोधियों से भावल के अलावा और कोई नहीं बचा सकता था. भावल भी उसे इसलिए साथ रखता था, क्योंकि उस ने उसे नएनए हथियार दिलाए थे. फिर दूसरे इलाकों में भी चुनन शाह की अच्छी जानपहचान थी, इसलिए जरूरत पड़ने पर वह छिपने की व्यवस्था करा सकता था.

आखिर वह मौका आ गया, जिस का भावल खान को बेचैनी से इंतजार था. मध्यावधि चुनाव की घोषणा हो गई. चुनाव प्रचार भी शुरू हो गया. विरोधी उम्मीदवार एक गांव से चुनाव सभा कर के लौट रहा था तो रात हो गई. भावल चुनन शाह के साथ रास्ते में घात लगा कर बैठा था. जैसे ही उस उम्मीदवार की जीप उन के सामने आई, उन्होंने गोलियों की बौछार कर दी, साथ ही हथगोले भी फेंके.

किराए के लोग ऐसे मौकों पर मरना नहीं चाहते. उस विरोधी उम्मीदवार के साथी भी अपनी जान बचाने के लिए गाडि़यों से कूदकूद कर भागे. उम्मीदवार और उस के 2 साथी मारे गए. उन की मौत की पुष्टि हो गई तो भावल चुनन शाह के साथ भाग निकला. भागने की तैयारी उन्होंने पहले से ही कर रखी थी.

अगले दिन भावल चुनन शाह के साथ एक सुरक्षित स्थान पर पहुंच गया. वहां चुनन शाह की जानपहचान काम आई. उस ने वहां रहने के लिए एक कमरा किराए पर ले लिया. चुनन शाह के साथ भावल वहां 3 महीने तक रहा. एक दिन चुनन शाह को बिना बताए ही भावल अपनी बुआ के यहां चला गया. उस के पिता ने बचपन में ही उस की शादी बुआ की बेटी से तय कर दी थी. बुआ उसे देख कर हैरान रह गई.

‘‘बुआजी, आप को घबराने की जरूरत नहीं है.’’ भावल खान ने कहा, ‘‘मैं पिताजी की बात का मान रखने आया हूं, क्योंकि वह चाहते थे कि मेरी शादी सुगरा से हो. मेरे बारे में आप को सब पता ही है. अगर तुम मना भी कर दोगी तो मुझे कोई ऐतराज नहीं होगा. फिर भी मैं चाहता हूं कि पिताजी की आत्मा को दुख न हो.’’

‘‘तू मेरे भाई की निशानी है,’’ बुआ ने भावल के गालों को चूमते हुए कहा, ‘‘तू अच्छा हो या बुरा, बेटियों का भाग्य ईश्वर लिखता है. सुगरा तेरी अमानत है, तू इसे ले जा.’’

तीसरे दिन एक साधारण से समारोह में सुगरा और भावल खान की शादी हो गई. चुनन शाह ने हर काम में एक सगे भाई की तरह बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया. चुनन शाह की सलाह पर भावल सुगरा को ले कर कराची आ गया.

कराची की भीड़भाड़ में भावल खान समा गया. उस ने अपना नाम नियाज अली रख लिया. इसी नाम से उस ने अपना पहचान पत्र भी बनवा लिया और 3 कमरों का बड़ा सा मकान ले लिया था. आगे वाले कमरे में चुनन शाह रहता था, बाकी के पीछे के 2 कमरों में नियाज अली सुगरा के साथ रहता था. यहां उन की जिंदगी आराम से कट रही थी.

समय के साथ बड़ेबड़े खजाने खाली हो जाते हैं. यही भावल खान के साथ भी हुआ. कुछ दिनों में उस की जमापूंजी खत्म हो गई. इस बीच सुगरा उस से कहती रही कि वह पुरानी जिंदगी भूल कर कोई छोटामोटा काम कर ले. लेकिन उसे जो चस्का लग चुका था, वह जल्दी छूटने वाला नहीं था. उस ने कभी भी मामूली चोरी तक नहीं की थी.

चुनन शाह बहुत ही कमीना आदमी था. उस ने देखा कि भावल खान परेशान है तो एक दिन बोला, ‘‘भाईसाहब, इस तरह कब तक काम चलेगा. कहीं न कहीं हाथ मारना ही पड़ेगा.’’

‘‘मैं तैयार हूं. लेकिन शहर वाले काम मैं ने कभी किए नहीं, हम ने तो मर्दों वाले काम किए हैं.’’ भावल खान ने कहा.

‘‘ठीक है, मैं ही बाहर निकलता हूं. शायद कोई पुरानी जानपहचान काम आ जाए.’’ चुनन शाह ने कहा.

‘‘जैसी तुम्हारी इच्छा. मैं तुम्हारे साथ हूं.’’ भावल खान ने कहा.

चुनन शाह चला गया. 3 दिनों बाद वह लौटा तो अकेला नहीं था. उस के साथ एक जवान लड़की थी. भावल खान ने हैरानी से पूछा, ‘‘यह कौन है?’’

चुनन शाह ने आंख से गंदा सा इशारा किया. भावल को गुस्सा आ गया. उस का हाथ उठता, उस के पहले ही चुनन शाह बोल पड़ा, ‘‘भावल यह तुम्हारा गांव नहीं, कराची शहर है. तुम जानते हो, हम दोनों फरार हत्यारे हैं. दिमाग को ठंडा रखो और हां, अगर होशियारी दिखाई तो हम दोनों मारे जाएंगे.’’

भावल खान ने खुद को कभी इतना बेबस और मजबूर नहीं महसूस किया था. शायद सुगरा से शादी कर के वह डरपोक हो गया था. उस ने चुनन शाह की इस बात का कोई जवाब नहीं दिया. अगले दिन चुनन शाह उस लड़की को ले कर गया तो शाम तक वापस आया. भावल ने अंदाजा लगाया कि उस ने उसे ठिकाने लगा दिया है.

आखिरी गुनाह करने की ख्वाहिश – भाग 2

भावल का बाप उसूलों वाला डाकू था. एक दिन उस ने कहा, ‘‘बेटा, इधर के लोग तो हमें पहचानते हैं, इसलिए हम अपना काम सरहद पार करेंगे.’’

बहराम खान जानवरों की चोरी का उस्ताद माना जाता था. उस ने कभी मामूली जानवर पर हाथ नहीं डाला था. उस ने कभी भी सैकड़ों रुपए से कम की घोड़ी नहीं खोली थी. मजे की बात यह थी कि खोजी उस का खुरा तक नहीं उठा पाते थे. इस की वजह यह थी कि वह खुरा छोड़ता ही नहीं था.

भावल बाप के साथ मिल कर सरहद पार चोरियां करता था. जल्दी ही बाप बेटे का नाम दोनों ओर गूंजने लगा. उन दिनों गाय भैसों की चोरी आम बात थी. पुलिस वालों ने कई बार बहराम खान को गिरफ्तार किया था, लेकिन पुलिस कभी कोई चोरी उस से कुबूल नहीं करवा पाई थी.

भावल खान उस समय 15 साल का था, जब पहली बार पुलिस ने उसे गिरफ्तार किया था. पुलिस उसे ले कर जाने लगी तो बहराम ने कहा, ‘‘बेटा, तू पहली बार पुलिस के चक्कर में फंसा है. मर्द बन कर हालात का मुकाबला करना. पुलिस को भी पता चल जाए कि तू बहराम खान का बेटा है.’’

भावल ने कहा था, ‘‘बाबा, तेरा यह बेटा जीतेजी ताना देने लायक कोई काम नहीं करेगा.’’

भावल 15 दिनों तक रिमांड पर रहा. थाने में घुसते ही पुलिस वाले उस पर पिल पड़े थे. लेकिन जल्दी ही उन की समझ में आ गया था कि उन का वास्ता किसी ऐरेगैरे से नहीं, बल्कि बहराम के बेटे भावल से पड़ा है.

15 दिनों तक पुलिस भावल को सूली पर लटकाए रही. कोई भी ऐसा अत्याचार बाकी नहीं रहा, जो पुलिस ने उस के ऊपर नहीं किया. रिमांड खत्म होने वाले दिन थानेदार ने उस की पीठ थपथपा कर कहा था, ‘‘तू ने साबित कर दिया कि तू बहराम का बेटा है.’’

पुलिस वालों ने मजिस्ट्रेट से और रिमांड की मांग की तो मजिस्ट्रेट ने भावल की ओर ध्यान से देखते हुए कहा, ‘‘15 साल के इस बच्चे से तुम लोग 15 दिनों में कुछ नहीं उगलवा सके तो अब 15 साल में भी कुछ नहीं उगलवा सकते.’’

मजिस्ट्रेट ने रिमांड देने से मना कर दिया था और उसे न्यायिक हिरासत में भेज दिया था. जेल में उस का इस तरह स्वागत हुआ, जैसे वह कोई बड़ा नेता हो. उस जेल के तमाम कैदी उस के पिता को अच्छी तरह जानते थे.

अगले दिन भावल को जमानत मिल गई थी, क्योंकि पुलिस उस से कुछ भी बरामद नहीं कर सकी थी. वह जेल से बाहर आया तो बहराम ने उसे गले लगा कर कहा था, ‘‘बेटा, तू ने मेरा सिर गर्व से ऊंचा कर दिया. पूरी बिरादरी को तुझ पर नाज है.’’

बाप के नाम के साथ भावल के नाम की भी चर्चा होने लगी थी. जहां बापबेटे रहते थे, वहां का बच्चाबच्चा उन्हें जान गया था. भावल की मां बचपन में ही मर गई थी. बाप ही उस का सब कुछ था.

बहराम ने गांव में अच्छीखासी जमीन कब्जा रखी थी. लेकिन ढंग से खेती न होने की वजह से खास पैदावार नहीं होती थी. जबकि आमदनी का स्रोत वही मानी जाती थी. गांव में ऐसा कोई नहीं था, जिस की मदद बहराम खान ने न की हो. गांव की हर लड़की की शादी में वह दिल खोल कर मदद करता था.

उम्र ढलने के साथ बहराम खान की सत्ता का सूरज चढ़ने लगा था. भावल अब तक 30-32 साल का गबरू जवान हो गया था. उस इलाके के नेता और सरकारी अधिकारी बापबेटे की मुट्ठी में थे. चुनाव के दौरान उन के घर के सामने लंबीलंबी कारें और जीपें आ कर खड़ी होती थीं. क्योंकि आसपास के लोग उसी को वोट देते थे, जिसे बहराम कहता था. इस की वजह यह थी कि वह सब की मदद करता था.

चुनाव की घोषणा हुई तो इलाके के एक नेता ने बहराम खान से संपर्क कर के कहा कि वह उन के लिए काम करे. चुनाव में दौड़धूप के लिए वह मोटी रकम भी दे गया था. अंधे को क्या चाहिए, 2 आंखें. बापबेटों को यह काम आसान लगा. उन के लिए एक जीप भी भिजवा दी गई थी.

भावल खान जीप पर सवार हो कर हथियारबंद गार्डों के साथ राजाओं की तरह घूमता और अपने उम्मीदवार के लिए प्रचार करता. हर दूसरे तीसरे दिन खर्च के लिए उस के पास नोटों के बंडल पहुंच जाते थे.

चुनन शाह से भावल की मुलाकात इसी चुनाव प्रचार के दौरान हुई थी. वह उम्मीदवार का खास आदमी था. वह अपने इलाके का जानामाना गुंडा था. लेकिन चुनन शाह जो अपराध करता था, उस से भावल घृणा करता था.

भावल का उम्मीदवार काफी पैसे वाला था. लेकिन वह जिस के खिलाफ चुनाव लड़ रहा था, वह पैसे वाला तो था ही, जानामाना गुंडा भी था. इस के अलावा वह पहले से ही असेंबली का मेंबर था. लोग उस से काफी परेशान थे, इसलिए भावल खान का प्रत्याशी जीत गया था.

यह सीट पुराने प्रत्याशी की खानदानी सीट थी. इसलिए उस की हार से लोग हैरान थे. जीत की खुशी में भावल खान के प्रत्याशी ने रैली निकाली और हारे हुए उम्मीदवार के घर के सामने बमपटाखे फोड़े.

उस समय तो हारने वाला प्रत्याशी चुप रहा. लेकिन वह भी कोई साधारण आदमी नहीं था. जिस दिन भावल खान के उम्मीदवार को शपथ लेने जाना था, विरोधियों ने उसी दिन बदला लेने का निर्णय लिया.

विजयी उम्मीदवार बहराम खान तथा दो बौडीगार्ड के साथ एक जीप में था, जबकि बाकी लोग दूसरी जीप में बैठे थे. जैसे ही जीप उस जगह पहुंची, जहां वे घात लगाए बैठे थे, उन्होंने फायरिंग शुरू कर दी.

किसी को संभलने का मौका नहीं मिला. बहराम खान आसानी से मरने वालों में नहीं था. उसे जैसे ही गोली लगी, उस ने जीप से छलांग लगा दी और दूर तक लुढ़कता चला गया. विरोधियों को पता था कि अगर बहराम जिंदा बच गया तो एक एक को चुनचुन कर मारेगा.