Crime Stories : डेरा सच्चा सौदा के पाखंडी को मिली सजा

Crime Stories : डेरा सच्चा सौदा के संत राम रहीम ने अपनी व्यक्तिगत महत्त्वाकांक्षा के लिए डेरे को अनैतिक कार्यों का केंद्र और अकूत संपत्ति हासिल करने का माध्यम बना लिया था. सब कुछ जानने के बाद उस के डर से डेरे में कोई मुंह तक नहीं खोल पाता था. लेकिन उस के काले कारनामों की जिस तरह कोर्ट द्वारा सजा सुनाई जा रही है, उस से तो यही लगता है कि…

18 अक्तूबर, 2021 को सुबह से ही पंचकूला की विशेष सीबीआई अदालत के बाहर सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए गए थे. अदालत के आसपास धारा 144 लागू कर दी गई थी. हत्या के जिस मामले में विशेष सीबीआई कोर्ट के जज सुशील कुमार गर्ग सजा का ऐलान करने वाले थे, उस में 5 आरोपी उन के सामने कठघरे में खडे़ थे. जबकि एक आरोपी पिछले कई घंटों से रोहतक की सुनारिया जेल से वीडियो कौन्फ्रैंसिंग के जरिए जुड़ा था. इसी शख्स के कारण सुरक्षा के तमाम इंतजाम किए गए थे. क्योंकि प्रशासन को आशंका थी कि उस के खिलाफ सजा का ऐलान होने से कहीं उस के भक्त भड़क कर हिंसा पर उतारू न हो जाएं. यह शख्स कोई छोटामोटा व्यक्ति नहीं, बल्कि डेरा सच्चा सौदा का मुखिया संत गुरमीत राम रहीम था, जिस के देशविदेश में लाखों समर्थक थे.

सरकारी वकील और बचाव पक्ष के वकीलों की कई घंटे दलील चली. आखिरकार कई घंटों की बहस के बाद सीबीआई जज सुशील कुमार ने अपना फैसला देते हुए डेरे के सेवादार रणजीत कुमार की हत्या के आरोप में डेरा सच्चा सौदा प्रमुख संत गुरमीत राम रहीम, अवतार सिंह, जसबीर सिंह, सर्बदिल सिंह और कृष्णलाल को धारा 120बी, 302 एवं 506 के साथ उम्रकैद की सजा सुनाई. इस मामले में आरोपित इंद्रसेन की सुनवाई के दौरान 8 अक्तूबर, 2020 को मौत हो गई थी. जज ने गुरमीत राम रहीम को 32 लाख रुपए का जुरमाना अदा करने की सजा भी सुनाई. यह रकम पीडि़त परिवार को देने का आदेश दिया. सजा का ऐलान होते ही रोहतक की सुनारिया जेल से वीडियो कौन्फ्रैंसिंग के जरिए कोर्ट के साथ जुड़े राम रहीम ने अपना सिर पकड़ लिया और वहीं जमीन पर बैठ गया.

ये वही गुरमीत राम रहीम था, जिस के आगेपीछे कुछ साल पहले तक लाखों अनुयायियों की भीड़ जुटी रहती थी. लेकिन अपने कर्मों के कारण आज वह सलाखों के पीछे एक नहीं बल्कि 3 आपराधिक मामलों में सजा भोग रहा है. रणजीत सिंह हत्याकांड की कहानी को समझने के लिए हमें पहले राम रहीम और उस के उस साम्राज्य की बात करनी होगी, जिस के गुमान में वह अपराध दर अपराध करते हुए आज सलाखों के पीछे है. गुरमीत सिंह के डेरा प्रमुख राम रहीम बनने की कहानी  गुरमीत सिंह अपने मातापिता की इकलौती संतान था. उस का जन्म 15 अगस्त, 1967 को राजस्थान के श्रीगंगानगर जिले के गुरुसर मोदिया में जट सिख परिवार में हुआ था. उस के पिता का नाम मघर सिंह व मां का नाम नसीब कौर है. मातापिता हरियाणा के सिरसा स्थित डेरा सच्चा सौदा के अनुयायी थे.

महज 7 साल की उम्र में मातापिता ने 31 मार्च, 1974 को अपने बेटे गुरमीत सिंह को तत्कालीन डेरा प्रमुख शाह सतनाम सिंह के चरणों में समर्पित कर दिया था. जिस के बाद डेरे में ही उस की शिक्षादीक्षा शुरू हुई. 23 सितंबर, 1990 को शाह सतनाम सिंह ने देशभर से अनुयायियों का सत्संग बुलाया. उसी समय उन्होंने गुरमीत सिंह को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया. गुरमीत सिंह हरियाणा के सिरसा में स्थित आध्यात्मिक संस्था डेरा सच्चा सौदा के तीसरे प्रमुख बने. जिस की स्थापना 1969 में शाह सतनाम सिंह के गुरु शाह मस्तानाजी ने की थी.

डेरा प्रमुख बनने से पहले ही गुरमीत सिंह का गृहस्थ जीवन शुरू हो चुका था. गुरमीत सिंह की 2 बेटियां और एक बेटा है. बड़ी बेटी चरणप्रीत और छोटी का नाम अमरप्रीत है. उस ने इन 2 बेटियों के अलावा एक बेटी हनीप्रीत को गोद लिया हुआ था. इस की बड़ी बेटी चरणप्रीत कौर के पति का नाम डा. शान-ए-मीत इंसां जबकि छोटी बेटी अमरप्रीत के पति का नाम रूह-ए-मीत इंसां है. गुरमीत सिंह के बेटे जसमीत की शादी बठिंडा के पूर्व एमएलए हरमिंदर सिंह जस्सी की बेटी हुस्नमीत इंसां से हुई थी. डेरा सच्चा सौदा का साम्राज्य विदेशों तक फैला हुआ है. अमेरिका, कनाडा और इंग्लैंड से ले कर आस्ट्रेलिया और यूएई तक उन के आश्रम व अनुयायी हैं. डेरे की तरफ से दावा किया जाता है कि दुनिया भर में उन के करीब 5 करोड़ अनुयायी हैं, जिन में से 25 लाख अनुयायी अकेले हरियाणा में ही मौजूद हैं.

बहरहाल, गद्दी संभालने के बाद गुरमीत सिंह ने सर्वधर्म समभाव का संदेश देने के लिए अपने नाम में सभी धर्मों के नाम शामिल किए और अपना नाम गुरमीत सिंह से बदल कर गुरमीत राम रहीम सिंह रख लिया. जिस कारण चौतरफा उन की प्रशंसा हुई. उन्होंने जाति प्रथा की समाप्ति का आह्वान किया तथा अपने भक्तों से जातिवाचक नाम हटा कर ‘इंसां’ नाम लगाने को प्रेरित किया. गुरमीत राम रहीम ने कई वेश्याओं को अपनी पुत्री का दरजा दे कर अपनाया व अनुयायियों से आह्वान कर उन के घर बसाए. उन्होंने सफाई के कई अभियान चलाए. ऐसे कई काम थे, जिस कारण संत गुरमीत राम रहीम की शोहरत दुनिया भर में फैलने लगी और उन के भक्तों की संख्या तेजी से बढ़ने लगी.

लेकिन इंसान चाहे साधारण हो या कोई संत, अगर अपनी इच्छाओं और कामनाओं पर अंकुश न रख सके तो शोहरत को कलंक लगने में देर नहीं लगती. गुरमीत राम रहीम के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ. गुरमीत राम रहीम सन 2002 में पहली बार सुर्खियों में तब आए, जब उन के ऊपर डेरे की साध्वियों के यौनशोषण के आरोप लगे. उसी साल उन के खिलाफ यौन शोषण की खबर छापने वाले सिरसा के एक स्थानीय पत्रकार रामचंद्र छत्रपति की हत्या हो गई. इस के आरोप भी डेरामुखी पर ही लगे. अचानक शोहरत की बुलंदियां छूते राम रहीम अपने किसी न किसी कारनामे के कारण आए दिन मीडिया की सुर्खियां बनने लगे. डेरामुखी राम रहीम ने अपने ऊपर लगे आरोपों से निकलने के लिए एक के बाद ऐसी गलतियां कीं, जिस से वह अपराध की दलदल में गहरे तक फंसते चले गए.

जब हुआ बेनकाब डेरे में चल रही अय्याशगाह का खेल  28 अगस्त, 2017 को सीबीआई कोर्ट ने पहली बार गुरमीत राम रहीम को 4 साध्वियों के बलात्कार मामले में 20 साल की जेल व 30 लाख रुपए जुरमाने की सजा सुनाई थी. जिस मामले में उन्हें सजा सुनाई गई थी. डेरे में चल रहे साध्वियों के यौन उत्पीड़न के खुलासे की कहानी बेहद रोचक है. हुआ यूं कि साल 2002 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को एक गुमनाम पत्र मिला. इस में एक गुमनाम साध्वी ने लिखा कि वह पंजाब की रहने वाली है और सिरसा के डेरा सच्चा सौदा में 5 साल से रह रही है. डेरे में साध्वियों का यौन शोषण किया जा रहा है. लेटर में बठिंडा, कुरुक्षेत्र की कुछ साध्वियों के यौन शोषण किए जाने की बात भी लिखी थी.

साध्वी के पत्र में लिखी बातों का कुछ हिस्सा बेहद आपत्तिजनक था. इस गुमनाम पत्र के बाद से ही बवाल शुरू हो गया था.  2002 में गुमनाम साध्वी की लिखी चिट्ठी की गोपनीय जांच शुरू हो गई, लेकिन इसी बीच ये चिट्ठी मीडिया के जरिए सार्वजनिक हो गई, जिस पर संज्ञान लेते हुए पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने सीबीआई को मामले की जांच सौंप दी. सीबीआई ने डेरे के मैनेजर इंद्रसेन से 1999 से 2001 तक की साध्वियों की लिस्ट मांगी तो 2005 में सीबीआई को 3 लिस्ट मिलीं. पहली लिस्ट में 53, दूसरी में 80 और तीसरी लिस्ट में 24 साध्वियों के नाम थे.

राम रहीम के खिलाफ सबूत जुटाने के लिए सीबीआई ने 1997 से 2002 के बीच डेरा छोड़ चुकी 24 साध्वियों पर फोकस किया. इन में से 18 को ही सीबीआई ट्रेस कर पूछताछ कर पाई. इन में भी सिर्फ 2 ही साध्वियां अदालत तक पहुंचीं और और अपने बयान दर्ज कराए. इन शादीशुदा साध्वियों के बच्चे भी हैं. जो साध्वी सीबीआई के सामने आईं, उस में से फतेहाबाद की एक पूर्व साध्वी ने 4 मई, 2006 को सीबीआई के सामने बयान दर्ज कराया. उस ने बताया कि 1998 में डेरा में बतौर साध्वी जौइन किया था. वह शाह सतनामजी स्कूल में पढ़ाती थी. 6 महीने बाद उस की बहन भी साध्वी बन गई. बाबा ने उस का नाम नाजम और बहन का तसलीम रखा.

बाबा गर्ल्स हौस्टल के पास बनी अपनी गुफा में रहता था और गुफा के बाहर साध्वियों को ही संतरी रखता था. जिन की ड्यूटी रात 8 बजे से 12 और 12 बजे से 4 बजे 2 शिफ्टों में होती थी. एक दिन उसे रात को 10 बजे गुफा में बुलाया गया, जहां बाबा ने उस के साथ जबरन रेप किया. वह रोती हुई गुफा से निकली और हौस्टल चली गई. वहां पर उस ने किसी को कुछ नहीं बताया. मगर उस दिन उस की बहन ने बताया कि बाबा उस के साथ भी रेप कर चुका है. रेप होने के एक साल बाद उसे डेरे के मैनेजर ने बुलाया और कहा कि बाबा ने उसे गुफा में बुलाया है. मगर पहले हुई घटना के कारण उस ने गुफा में जाने से मना कर दिया. इस के बाद मैनेजर ने उसे ऐसा करने पर भूखा रखने की धमकी दी. मजबूर हो कर उसे गुफा में दोबारा जाना पड़ा और बाबा ने उस के साथ फिर रेप किया.

दोनों बहनों ने हौस्टल की दूसरी साध्वियों को भी बाबा की गुफा से कई बार रोते हुए निकलते देखा था. एक बहन ने तो अपने साथ हुई घटना के तुरंत बाद डेरा छोड़ दिया. दूसरी साध्वी बहन भी डेरा छोड़ना चाहती थी, मगर उस के भाई की बेटियां डेरे में बीए की पढ़ाई कर रही थीं. इस कारण उसे वहां रुकने के लिए मजबूर होना पड़ा. फिर अप्रैल, 2001 में उस ने अपने भाई और उस की दोनों बेटियों समेत डेरा छोड़ दिया. दोनों बहनों के डेरा छोड़ने के बाद ही प्रधानमंत्री कार्यालय को गुमनाम चिट्ठी मिली थी. बहरहाल, साध्वी के बयान कोर्ट में दर्ज कराने के बाद सीबीआई ने बाबा के साथ एक आरोपी अवतार सिंह, डेरा मैनेजर इंद्रसेन और मैनेजर कृष्णलाल को आरोपी बना कर उन का चंडीगढ़ और दिल्ली में लाई डिटेक्टर टेस्ट कराया.

जहां झूठ पकड़ने वाली मशीन से खुलासा हुआ कि डेरा प्रमुख गुरमीत राम रहीम साध्वियों का यौन शोषण करता था. दोनों साध्वियों ने सीबीआई और अदालत को अपनी जो आपबीती सुनाई, उस में कहा था कि बाबा हर रोज साध्वियों को गुफा में बुलाता था और रेप करता था. उस के शीश महल जिसे वह गुफा कहता था, वहां से साध्वियां हर रोज रोते हुए बाहर निकलती थीं. गुफा के आसपास बने हौस्टलों में 200 से ज्यादा सुंदर साध्वियों को रखा गया था.  बाबा की गुफा के आसपास रात के वक्त महिला साध्वियों को गार्ड के रूप में तैनात किया जाता था.  साध्वियों से दुष्कर्म का यही वो केस था, जिस के बाद गुरमीत राम रहीम नायक से खलनायक और संत से अपराधी बन गया था.

प्रधानमंत्री कार्यालय में भेजे गए गुमनाम साध्वी के इस पत्र को पहले गृह मंत्रालय को सौंपा गया था. जहां से बाद में पत्र की जांच का जिम्मा सिरसा के सेशन जज को सौंपा गया. इसी दौरान हाईकोर्ट ने भी इस पर संज्ञान ले लिया था. दिसंबर 2002 में  राम रहीम के खिलाफ धारा 376, 506 और 509 आईपीसी के तहत केस दर्ज किया गया था. दिसंबर 2003 में  इस केस की जांच सीबीआई को सौंपी दी गई. जांच अधिकारी सतीश डागर ने केस की जांच शुरू की और आखिर साल 2005-2006 में उस साध्वी को ढूंढ निकाला, जिस का यौन शोषण हुआ था.

जुलाई 2007 में  सीबीआई ने केस की जांच पूरी कर अंबाला सीबीआई कोर्ट में चार्जशीट दाखिल कर दी. अंबाला से केस की सुनवाई पंचकूला शिफ्ट कर दी गई. चार्जशीट के मुताबिक, डेरे में 1999 और 2001 में कुछ और साध्वियों का भी यौन शोषण हुआ, लेकिन वे मिल नहीं सकीं. अगस्त 2008 में साध्वियों से दुष्कर्म  केस का ट्रायल शुरू हुआ और डेरा प्रमुख राम रहीम के खिलाफ आरोप तय कर दिए गए. साल 2011 से 2016 तक  केस का ट्रायल चला और डेरा प्रमुख राम रहीम की ओर से बड़ेबड़े वकील लगातार जिरह करते नजर आए. जुलाई 2016 तक चली केस की सुनवाई के दौरान कुल 52 गवाह पेश किए गए, इन में 15 प्रौसिक्यूशन और 37 डिफेंस के थे. और फिर वह दिन आ गया, जब राम रहीम की गरदन इस केस में पूरी तरह फंसी नजर आई और जून 2017 में कोर्ट ने डेरा प्रमुख के विदेश जाने पर रोक लगा दी.

17 अगस्त, 2017 को दोनों पक्षों की ओर से चल रही जिरह खत्म हो गई और फैसले के लिए 25 अगस्त की तारीख तय की गई. 25 अगस्त, 2017 को पंचकूला सीबीआई कोर्ट के जज जगदीप सिंह ने राम रहीम को उम्र कैद की सजा सुनाई. राम रहीम के खिलाफ सजा दिए जाने के आदेश के बाद डेरा सर्मथकों ने पंचकूला और सिरसा में जम कर उत्पात मचाया और हिंसा की, जिस में करीब 41 लोगों की मौत हुई. अदालत के फैसले के खिलाफ सिरसा व पंचकूला में हुई हिंसा के बाद गुरमीत राम रहीम के डेरा सच्चा सौदा पर पुलिस के छापे पडे़ तो वहां से हथियारों का जखीरा बरामद हुआ.

हरियाणा पुलिस ने हिंसा फैलाने के आरोप में राम रहीम की गोद ली बेटी और उस की कथित प्रेयसी कहीं जाने वाली हनीप्रीत को भी चंडीगढ़ से गिरफ्तार कर लिया. हनीप्रीत हिंसा होने के बाद से ही फरार थी. फ्रीज हुए डेरा के 90 बैंक एकाउंट साध्वियों से बलात्कार मामले में गुरमीत राम रहीम का सजा होने व गिरफ्तारी के बाद से ही डेरा सच्चा सौदा के रहस्य लोक की कहानियां सार्वजनिक होने लगीं. इधर, डेरा सर्मथकों की हिंसा के बाद डेरा के 90 बैंक खाते फ्रीज कर दिए गए. गुरमीत राम रहीम के खिलाफ एन्फोर्समेंट डायरेक्टोरेट (ईडी) ने भी जांच शुरू कर दी. क्योंकि डेरा की 700 करोड़ की संपत्ति में मनी लांड्रिंग की आशंका नजर आ रही थी.

गुरमीत राम रहीम को रेप मामले में सजा होने के बाद पंचकूला और सिरसा के अलावा करीब 5 राज्यों में हिंसक प्रर्दशन हुए थे. इस मामले में दरजनों केस दर्ज हुए. चंडीगढ़ व पंचकूला में हिंसा फैलाने के मामले में डेरा प्रवक्ता दिलावर सिंह को भी देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार किया गया. दिलावर सिंह एमएसजी ग्लोरियस इंटरनैशनल स्कूल सिरसा का एडमिनिस्ट्रेटर था. उस ने डेरामुखी के गनमैन ओमप्रकाश सिंह, डेरा सर्मथक दान सिंह व चमकौर सिंह के साथ मिल कर पंचकूला में आगजनी की घटनाओं को अंजाम दिया था. करीब 177 से अधिक मामले दर्ज किए गए और 1137 आरोपियों को अरेस्ट किया गया था.

बहरहाल, गुरमीत राम रहीम के पापों की कलई खुलनी शुरू हो चुकी थी और कानून ने सख्त रुख अपना लिया था. उस के खिलाफ मुंह न खोलने वाले लोग भी अब अदालत में सच बयां कर रहे थे. एक तरफ राम रहीम साध्वियों से बलात्कार के मामले में जेल से बाहर आने के लिए एड़ीचोटी का जोर लगा रहा था कि 17 जनवरी, 2019 को पंचकूला की विशेष सीबीआई के जज जगदीप सिंह  ने सिरसा के स्थानीय पत्रकार रामचंद्र छत्रपति हत्या के मामले में भी गुरमीत राम रहीम को उम्रकैद की सजा सुना दी. इस मामले में डेरा प्रमुख के साथ 3 अन्य लोगों कुलदीप सिंह, निर्मल सिंह और कृष्ण लाल को भी दोषी ठहराया गया था. इन्हें भी उम्रकैद की सजा सुनाई गई.

दरअसल, सिरसा के स्थानीय पत्रकार रामचंद्र छत्रपति वकालत छोड़ कर ‘पूरा सच’ नाम से एक अखबार निकालते थे. रामचंद्र अपने अखबार के नाम की तरह ही पत्रकारिता के लिए जाने जाते थे. निर्भीक छवि के रामचंद्र छत्रपति की हत्या का मामला कहीं न कहीं साध्वियों के दुष्कर्म से ही जुड़ा था.  2002 में रामचंद्र छत्रपति के हाथ वह चिट्ठी लग गई, जो गुमनाम साध्वी ने लिखी थी. रामचंद्र ने उस चिट्ठी को अपने अखबार में छाप दिया. इसी अखबार में छपी खबर के बाद लोगों को डेरा सच्चा सौदा के प्रमुख राम रहीम द्वारा डेरे में साध्वियों के साथ दुष्कर्म करने की जानकारी मिली थी. इस खबर के छपने के बाद छत्रपति को जान से मारने की धमकियां मिलने लगीं.

आखिरकार 19 अक्तूबर, 2002 की रात छत्रपति को घर के बाहर गोली मारी गई. इस के बाद 21 अक्तूबर को दिल्ली के अपोलो अस्पताल में उन की मौत हो गई. हालांकि इस दौरान छत्रपति होश में आए लेकिन राजनीतिक दबाव के कारण छत्रपति का बयान तक दर्ज नहीं किया गया. दरअसल, छत्रपति अपने अखबार में डेरा सच्चा सौदा की अच्छी और बुरी खबरों को छापते थे, जिस कारण उन्हें जान से मारने की धमकियां मिलती रहती थीं. यह बात सिरसा के सभी पत्रकार जानते थे. मृतक पत्रकार के बेटे अंशुल ने हाईकोर्ट में दायर की थी याचिका जनवरी, 2003 में मृतक के बेटे अंशुल ने हाईकोर्ट में एक याचिका दायर कर मामले को सीबीआई को सौंपने की मांग की. इस याचिका में डेरा प्रमुख गुरमीत राम रहीम के भी इस में संलिप्त होने के आरोप लगाए.

सोशल मीडिया में रामचंद्र छत्रपति को इंसाफ दिए जाने की मांग जोर पकड़ने लगी. इसी दौरान डेरामुखी पर डेरे के एक पूर्व मैनेजर रंजीत सिंह की हत्या के भी आरोप लगने लगे. इस मामले में भी पीडि़तों की तरफ से अदालत का दरवाजा खटखटाया गया. हाईकोर्ट ने पत्रकार छत्रपति और डेरा मैनेजर रंजीत सिंह की हत्या के मामलों को जोड़ते हुए 10 नवंबर, 2003 को सीबीआई को एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया. सीबीआई ने दिसंबर, 2003 में मामला दर्ज कर जांच शुरू कर दी. मामला दर्ज होते ही डेरा की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर कर जांच पर रोक लगाने की अपील की गई, जिस के बाद उस याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई की और मामले की जांच पर उस वक्त रोक लगा दी गई.

लेकिन नवंबर, 2004 में दूसरे पक्ष की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने डेरा की याचिका को खारिज कर दिया और सीबीआई जांच को जारी रखने के आदेश दिए. सीबीआई ने दोबारा दोनों मामलों की जांच शुरू की और डेरा प्रमुख समेत कइयों को अभियुक्त बनाया. इसी मामले में सीबीआई कोर्ट ने गुरमीत राम रहीम समेत 4 आरोपियों को उम्रकैद की सजा सुनाई. साध्वी रेप केस मामले और पत्रकार छत्रपति हत्याकांड की सजा काट रहे डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत राम रहीम के जेल जाने के बाद से उस की खास राजदार हनीप्रीत सब से ज्यादा सुर्खियों में रही है. उस पर भी पंचकूला में दंगा भड़काने, राजद्रोह और राम रहीम को पुलिस कस्टडी से भगाने की साजिश रचने के आरोप लगे और बाद में उसे गिरफ्तार किया गया.

हालांकि कुछ महीने बाद हनीप्रीत को अदालत से जमानत मिल गई और उस के बाद हनीप्रीत ने डेरा सच्चा सौदा की कमान अपने हाथों में ले ली. लेकिन सवाल उठता है कि आखिर हनीप्रीत कौन है, जो गुरमीत राम रहीम के बाद डेरा सच्चा सौदा की सब से ताकतवर बनी है. आखिर इतना बड़ा परिवार होते हुए राम रहीम क्यों हर वक्त हनीप्रीत को याद करता रहा और हनीप्रीत से उस का क्या खास रिश्ता है. हनीप्रीत इंसां का जन्म 21 जुलाई, 1980 को हरियाणा के फतेहाबाद में हुआ था. उस का स्कूली नाम प्रियंका तनेजा है.  प्रियंका तनेजा का पूरा परिवार करीब ढाई दशक से डेरे का अनुयायी था. हनीप्रीत के दादा ने पाकिस्तान से आ कर हरियाणा के सिरसा में कपड़े की दुकान खोली थी. जहां गुरमीत राम रहीम के गुरु शाह मस्तानाजी आते रहते थे. तभी से उन की फैमिली डेरे की अनुयायी हो गई.

कुछ ही दिनों में हनीप्रीत के दादा डेरे के प्रशासक बन गए और वहां खजाने से संबंधित काम देखने लगे थे. 1996 में प्रियंका के दसवीं पास करते ही दादा ने उस का एडमिशन डेरे के ही स्कूल में करवा दिया. हनीप्रीत के पिता रामानंद तनेजा पहले पुरानी दिल्ली एमआरएफ टायर्स का ‘सर्च टायर्स’ नाम से शोरूम चलाते थे. लेकिन बाद में उन्होंने डेरे में ही एक बड़ा सीड प्लांट डाल लिया. बाद में गुरमीत राम रहीम ने उस के पिता रामानंद तनेजा को डेरा की पर्चेजिंग कमेटी का हेड बना दिया, जो डेरे के सारे सामान की खरीदफरोख्त का काम देखने लगे.

प्रियंका के भाई साहिल तनेजा को भी गुरमीत का आशीर्वाद मिल गया और वह भी डेरे में बड़े स्तर पर कारोबार करने लगा. बाद में प्रियंका की छोटी बहन नीशू तनेजा की गुरुग्राम में जो शादी हुई, उस में भी बाबा का खास योगदान रहा. हनीप्रीत के चाचा और मामा समेत दूसरे कई रिश्तेदार सिरसा के मुख्य मार्गों पर टायरों का कारोबार करते हैं. आज भी डेरे में कई बड़े प्रोजेक्ट हनीप्रीत के नाम से चल रहे हैं. बताते हैं कि गुरमीत राम रहीम 1996 में डेरे के स्कूल में जब छात्राओं को आशीर्वाद देने गया था तो वहां उस की नजर पहली बार प्रियंका तनेजा पर पड़ी थी. बस उसी के बाद बाबा ने कुछ ऐसा चक्कर चलाया कि वह प्रियंका को अपना खास आशीर्वाद देने के लिए डेरे में अपने निजी कक्ष में बुलाने लगा.

बाबा की खासमखास बन गई हनीप्रीत कुछ ही दिनों में प्रिंयका पूरी तरह बाबा के वश में हो गई. कुछ समय बाद बाबा ने उस का नया नामकरण किया और उस का नाम हनीप्रीत इंसां रख दिया. क्योंकि डेरे में सभी राजदारों व साधुसाध्वियों को ‘इंसां’ सरनेम दिया जाता है. उम्र का काफी फासला होने के बावजूद धीरेधीरे गुरमीत राम रहीम और हनीप्रीत इंसा के बीच नजदीकियां बढ़ने लगीं. जल्द ही हनीप्रीत बाबा की खास बन गई और उस की पहुंच बेरोकटोक बाबा के बैडरूम तक होने लगी. हनीप्रीत ने 12वीं तक की पढ़ाई डेरे के स्कूल में ही की. बाबा ने उस का डेरे से बाहर आनाजाना बंद करा दिया. डेरे में उस के लिए एक खास आवास की व्यवस्था कर दी गई और वहीं पर उस के टीचर उसे पढ़ाने के लिए आते.

इतना ही नहीं, बाबा ने हनीप्रीत के लिए एक विशेष जिम बनवा दिया. हनीप्रीत के नाम पर डेरे के अंदर एक बुटीक भी खोल दिया गया. बताते हैं कि धीरेधीरे हनीप्रीत और राम रहीम की नजदीकियां कुछ इस तरह बढ़ गईं कि हनीप्रीत बाबा के हर राज की राजदार हो गई. हनीप्रीत अब गुरमीत की सब से करीबी बन गई थी. गुरमीत उस पर इतना मेहरबान था कि उस ने हनीप्रीत के नाम पर डेरे में कई बड़े कारोबार शुरू किए.  बताते हैं कि डेरे के अंदर बाबा और हनीप्रीत के रिश्ते को ले कर हमेशा लोगों के मन में सवाल रहते थे. लेकिन बाबा के डर से कोई अपनी जबान नहीं खोलता था, क्योंकि बाबा राम रहीम उसे लोगों के सामने अपनी बेटी, अपनी ‘परी’ कहता था. लेकिन हकीकत यह थी कि वो बाबा की ‘परी’ नहीं बल्कि बाबा की ‘हनी’ थी.

बताते हैं कि जब बाबा को लगा कि एक अविवाहित लड़की इस तरह उस की सेवा में रहेगी तो इस से उस की छवि और प्रतिष्ठा पर सवाल खड़े हो सकते हैं. इसलिए उस ने 14 फरवरी, 1999 वैलेनटाइंस डे के दिन हनीप्रीत की शादी विश्वास गुप्ता से करा दी. हनीप्रीत के परिवार की तरह करनाल के रहने वाले विश्वास गुप्ता का परिवार भी बाबा का अनुयायी था. बाबा ने ही शादी की सारी व्यवस्थाएं कराई थीं. राम रहीम ने हनीप्रीत की शादी तो गुप्ता से करा तो दी, लेकिन दोनों को आदेश दिया कि वे बच्चा पैदा न करें.

हनीप्रीत के पूर्व पति विश्वास गुप्ता ने बाबा की गिरफ्तारी के बाद मीडिया को बताया था कि शादी के 2 या 3 दिन बाद बाबा राम रहीम ने उसे हनीप्रीत के साथ डेरे में मुलाकात के लिए बुलाया था. तब बाबा ने कहा था कि तुम हमारे साथ बाहर यात्राओं पर जाती हो, अगर बच्चा हुआ तो उस के स्कूल जाने और लालनपालन के चलते हमारी सेवा नहीं कर पाओगी, इसलिए बच्चा पैदा न करो. बाबा ने कहा था कि हम तुम्हें बेटा मानते हैं, उसी तरह हनीप्रीत भी हमारी बेटी है. हम उसे भी उतना ही प्यार देंगे. विश्वास गुप्ता ने आरोप लगाया था कि बाबा हर सप्ताह हनीप्रीत और उसे डेरे में बुलाने लगा. वह गुफा के अंदर बने बैडरूम में हनीप्रीत को बुलाता था और उसे लिविंग रूम में ही बैठने को कहता था.

पूछने पर बाबा कहता था कि बेटी अकेले में ससुराल के हर सुखदुख बता सके, इसलिए उस से अकेले में हालचाल पूछता हूं. विश्वास गुप्ता ने आरोप लगाए थे कि राम रहीम और हनीप्रीत की सभी मुलाकातें हर बार एक से डेढ़ घंटे तक होती थीं. इस दौरान बाबा के चेले और दूसरे सेवादार विश्वास गुप्ता को बातों और कुछ कामों में उलझाए रखते थे. बाद में बाबा ने विश्वास गुप्ता को सप्ताह में 2 दिन पत्नी के साथ गुफा में रहने का आदेश दिया. बताते हैं कि उसी दौरान एक रात जब  विश्वास गुप्ता डेरे में बाबा की गुफा के लिविंग रूम में सो रहा था तो उस ने रात के वक्त बाबा के बैडरूम में अपनी पत्नी हनीप्रीत व बाबा को कामक्रीड़ा करते देखा. बस इसी के बाद से बाबा और हनीप्रीत से उस का मोहभंग हो गया.

बाद में हनीप्रीत और विश्वास गुप्ता के संबध बिगड़ने लगे तथा दोनों में अकसर तकरार होने लगी. विश्वास गुप्ता और हनीप्रीत का रिश्ता केवल 11 साल चला. बाबा राम रहीम ने साल 2009 में हनीप्रीत को बेटी के रूप में गोद ले लिया. जिस के बाद हनीप्रीत बाबा के साथ डेरे की गुफा में ही रहने लगी. हनीप्रीत को गोद लेने के बाद गुप्ता से हनी के मतभेद और गहरे हो गए. गुप्ता ने जब हनीप्रीत पर घर वापस चलने का दबाव डाला तो उस के खिलाफ दहेज उत्पीड़न का मामला दर्ज करवा दिया गया, जिस में उसे जेल की हवा खानी पड़ी. बाद में जेल से रिहा होने पर  साल 2011 में विश्वास गुप्ता ने पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट में मुकदमा दायर कर राम रहीम के कब्जे से अपनी पत्नी यानी हनीप्रीत को मुक्त कराने की मांग की थी. अदालत में दी गई याचिका में विश्वास गुप्ता ने राम रहीम पर हनीप्रीत के साथ अवैध संबंध होने का भी आरोप लगाया था.

डेरे के सारे फैसले लेने लगी हनीप्रीत बताते हैं कि बाद में डेरे के कुछ प्रभावशाली लोगों के दबाव के कारण विश्वास गुप्ता के परिवार वालों ने हनीप्रीत से उस का तलाक करवा दिया. लेकिन इस दौरान गुप्ता परिवार को बाबा के ऊंचे रसूख के कारण कई तरह की प्रताड़नाओं का शिकार होना पड़ा. विश्वास गुप्ता से तलाक के बाद हनीप्रीत पूरी तरह बाबा के लिए समर्पित हो गई. हनीप्रीत डेरा के हर महत्त्वपूर्ण फैसले लेने लगी. बाबा राम रहीम के साथ वह साए की तरह चौबीसों घंटे रहने लगी. बाबा हर फैसला हनीप्रीत से सलाह ले कर ही करता था.

इतना ही नहीं, बाबा ने हनीप्रीत की फिल्मों में काम करने की ख्वाहिश को देखते हुए ‘एमएसजी’ नाम से एक फिल्म कंपनी बनाई जिस के तहत बनी फिल्म ‘एमएसजी’, ‘जट्टू इंजीनियर’, ‘द वारियर लायन हार्ट’ समेत दूसरी और भी फिल्मों का निर्देशन हनीप्रीत ने ही किया. एमएसजी नाम की फिल्म में तो बाबा ने खुद हीरो के रूप में काम भी किया. बाबा की बेबी हनीप्रीत इतनी ताकतवर हो चुकी थी कि उसी के हाथ में डेरे की सभी चाबियां रहती थीं. पैसे से ले कर हर वो फैसला जो डेरे से संबंधित होता था, वह हनीप्रीत ही करती थी. हनीप्रीत भले ही दिखावे के लिए बाबा की बेबी रही हो, लेकिन लोग अब खुली जुबान से कहते हैं कि वह बाबा की हनी थी. शायद यही वजह थी कि गुरमीत राम रहीम की अपनी बीवी और बेटेबहू से दूरियां रहती थीं.

राम रहीम को अपने तौरतरीकों से चलाने वाली हनीप्रीत जेल जाने तक उस के साथ नजर आई थी और बाद में उसी ने डेरे का प्रबंध अपने हाथों में लिया. गुरमीत राम रहीम की गिरफ्तारी के बाद 600 करोड़ रुपए के टर्नओवर वाले उस के एमएसजी प्रोडक्ट्स की कमान भी बाद में हनीप्रीत के हाथों में आ गई. एमएसजी के सिरसा में 5 बड़े शोरूम थे, जिन में करीब 150 से ज्यादा प्रोडक्ट्स बेचे जाते थे. हालांकि बाबा की गिरफ्तारी के बाद एमएसजी का यह कारोबार आर्थिक संकट का शिकार हो कर बंद हो गया, जिस से इस में निवेश करने वाले लगभग 10 हजार लोगों की रकम भी डूब गई. साध्वियों के साथ रामचंद्र छत्रपति के परिवार को इंसाफ मिल चुका था, लेकिन राम रहीम के दामन पर लगे डेरा प्रेमी रणजीत सिंह की हत्या के दागों का इंसाफ होना अभी बाकी था.

18 अक्तूबर, 2021 को रणजीत सिंह हत्याकांड में पंचकूला की विशेष सीबीआई अदालत के जज सुशील कुमार ने राम रहीम समेत 5 लोगों को दोषी ठहरा कर उम्रकैद की सजा सुनाई. 19 साल तक अदालत में चले इस मामले की 250 पेशी हुई और 61 गवाही के बाद अदालत ने 5 आरोपियों को दोषी माना. रणजीत सिंह एक समय राम रहीम के डेरे का मैनेजर और उस का भक्त हुआ करता था, लेकिन 10 जुलाई, 2002 को अचानक रणजीत सिंह की गोली मार कर हत्या कर दी गई थी. हत्या का रहस्य बहुत गहरा था. हत्या के आरोप में राम रहीम के साथ उस का सहयोगी कृष्ण लाल भी फंसा था.

रणजीत सिंह हत्याकांड में 3 गवाह महत्त्वपूर्ण थे. इन में 2 चश्मदीद गवाह सुखदेव सिंह और जोगिंद्र सिंह थे. इन का कहना था कि उन्होंने आरोपियों को रंजीत सिंह पर गोली चलाते हुए देखा था. तीसरा गवाह गुरमीत का ड्राइवर खट्टा सिंह था, जिस के सामने रंजीत को मारने की साजिश रची गई थी. हालांकि बाद में खट्टा सिंह अदालत के सामने बयान से मुकर गया था. कई साल बाद खट्टा सिंह फिर से कोर्ट में पेश हो गया और गवाही दी. रणजीत का साला परमजीत सिंह भी इस मामले में गवाह था, जिस ने सीबीआई के स्पैशल मजिस्ट्रैट के सामने बयान दर्ज कराए थे. परमजीत ने अदालत को बताया था कि रणजीत की बहन भी जुलाई, 1999 में साध्वी बनी थी.

परमजीत ने कोर्ट के सामने डेरे से जुड़ी घटनाओं की कड़ी से कड़ी जोड़ते हुए बताया कि रणजीत सिंह की साध्वी बहन डेरा प्रमुख की गुफा के बाहर पहरेदारी का काम करती थी. उसी ने अपने भाई को डेरा प्रमुख की गुफा में साध्वियों के साथ होने वाले दुष्कर्म की बात बताई थी. जिस के बाद रणजीत सिंह ने डेरा छोड़ दिया और अपने गांव कुरुक्षेत्र चला गया. डेरा प्रमुख को शक था कि साध्वियों को डेरे से भगाने और उन के खिलाफ प्रधानमंत्री और सुप्रीम कोर्ट में चिट्ठी लिखवा कर उसे बदनाम करने का काम रणजीत सिंह ने अपनी साध्वी बहन के जरिए किया है, इसीलिए रणजीत सिंह की हत्या करा दी गई.

चूंकि डेरे में 20 साल तक सेवादार रहे रणजीत सिंह की 2002 में गुमनाम साध्वी का पत्र सामने आने के बाद ही हत्या हुई थी. इसीलिए परिस्थितिजन्य साक्ष्यों की कडि़यां जोड़ते हुए अदालत ने बाबा को उस की हत्या का दोषी माना. वैसे साध्वियों से दुष्कर्म, पत्रकार रामचंद्र छत्रपति और डेरे के मैनेजर रणजीत सिंह की हत्या के अलावा भी डेरामुखी राम रहीम के खिलाफ कई संगीन आरोप हैं. 2010 में डेरा के ही एक पूर्व साधु रामकुमार बिश्नोई ने उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर डेराप्रमुख पर डेरे के पूर्व मैनेजर फकीर चंद की हत्या कराने का आरोप लगाया था. 400 साधुओं को बनाया नपुंसक फकीरचंद की गुमशुदगी की सीबीआई जांच की मांग पर अदालत ने सीबीआई को जांच के आदेश तो दिए लेकिन जांच एजेंसी मामले में सबूत नहीं जुटा पाई और क्लोजर रिपोर्ट फाइल कर दी. हालांकि बिश्नोई ने क्लोजर रिपोर्ट को उच्च न्यायालय में चुनौती दे रखी है.

इस के अलावा फतेहाबाद जिले के कस्बा टोहाना के रहने वाले डेरे के एक पूर्व साधु हंसराज चौहान ने जुलाई 2012 में उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर राम रहीम पर डेरा के 400 साधुओं को नपुंसक बनाए जाने का गंभीर आरोप लगाया था. अदालत के सामने उन्होंने 166 साधुओं का नाम सहित विवरण प्रस्तुत करते हुए गुरमीत राम रहीम की करतूतों की पोल खोली थी. अदालत ने इस शिकायत की जांच का काम भी सीबीआई को सौंपा, जिस के बाद ये मामला भी अब अदालत में विचाराधीन है. साधु हंसराज ने बताया कि उस के मातापिता डेरे के अनुयायी थे, इसलिए वह भी साल 1996 में 17 साल की उम्र में डेरे के अनुयायी बन गए थे. जहां डेरामुखी ने यह कहते हुए अनुयायियों को नपुंसक बनाया कि वे अगर खुद नपुंसक बनते हैं तो भगवान को पाने में सफल होंगे.

उन्हें साल 2002 में श्रीगंगानगर स्थित डेरे के अस्पताल में नपुंसक बनने के लिए मजबूर किया गया, जहां उन के अलावा कई अन्य साधु (डेरा अनुयायी) भी थे. डेरामुखी का मानना था कि नपुंसक बनने के बाद अनुयायी डेरा छोड़ कर नहीं जा सकेंगे. डेरामुखी ऐसे अनुयायियों से खाली कागज पर दस्तखत भी करवा लेता था. उस के बाद उन के नामों पर डेरामुखी को दान की गई जमीन ट्रांसफर करवाता और कुछ समय बाद उस जमीन को डेरा ट्रस्ट के नाम पर ट्रांसफर करवा लिया जाता. दरअसल, गुरमीत राम रहीम के गलत कामों की कुंडलियां खुलने के बाद ही पता चला कि डेरे का आकार बढ़ाने के लिए उस ने डेरे के आसपास की जमीन हथियाने के लिए अनोखा तरीका अपनाया हुआ था.

गुरमीत राम रहीम ने 1990 में गद्दीनशीं होने के बाद डेरे के चारों ओर की जमीन हासिल करने के लिए कई तरह के हथकंडे अपनाए. लोगों को डराधमका कर औनेपौने दामों पर 700 एकड़ जमीन हासिल की. इसी वजह से महज कुछ एकड़ में फैला डेरा आज बड़े शहर में तब्दील हो चुका है. गांव शाहपुर बेगू, नेजियाखेड़ा और फूलकां बाजेकां के जिन लोगों ने बाबा को जमीन देने का विरोध किया, उन्हें परेशान करने के लिए बाबा के गुंडों ने पहले उन्हें धमकाया फिर समझाया और जो इस के बाद भी नहीं माना, उस की जमीन को रातोंरात ओपन टौयलेट बना दिया जाता था.

डेरे पर आने वाले हजारों लोग ऐसे लोगों के खेतों और फसल की ऐसी दुर्दशा कर देते थे कि गंदगी की वजह से खेतों के आसपास जाना भी मुश्किल हो जाता था. परेशान हो कर लोग उस जमीन को जमीन बेचने में ही भलाई समझते थे. अदालत से जिन मामलों में गुरमीत राम रहीम को अपने कुकर्मों की सजा मिल चुकी है, वे तो महज उदाहरण हैं. लेकिन यौन उत्पीड़न से ले कर हत्या और लोगों की संपत्ति हड़पने के ऐसे सैकड़ों गुनाह हैं, जिन की पीडि़तों ने शिकायत ही नहीं की. लेकिन ऐसे तमाम लोग आज इस बात से खुश हैं कि सच्चे डेरे की आस्था को कलंकित करने वाला संत अब सलाखों के पीछे है. Crime Stories

 

Chhattisgarh Crime News : बीमा रकम पाने को भाई ने भाई की ली जान

Chhattisgarh Crime News : 11 मई, 2024 को सुबह घाघरा जंगल की सड़क पर 24 वर्षीय उत्तम जंघेल का शव क्षतविक्षत स्थिति में पड़ा हुआ था. लोगों ने देखा तो किसी ने यह खबर पुलिस को दे दी. कुछ लोगों ने लाश के फोटो खींच कर वाट्सऐप ग्रुप में डाल दिए.

एसपी (खैरागढ़) त्रिलोक बंसल के निर्देश पर सुश्री प्रतिभा लहरे (प्रशिक्षु एसपी) घटनास्थल पर पहुंच गईं. थाना पुलिस ने काररवाई शुरू कर दी. मौके पर डौग स्क्वायड को बुलवाया गया. युवक के शव को एकबारगी देखने के बाद प्रशिक्षु एसपी प्रतिभा लहरे ने यह पाया कि मृतक के गले पर निशान हैं, जिस से यह अनुमान लगाया गया कि शायद मृतक का गला दबा कर हत्या की गई है.

एसपी त्रिलोक बंसल को घटना के संदर्भ में जानकारी दी और उन से निर्देश मिलने के बाद मामले पर से परदा उठाने के लिए छुई खदान खैरागढ़ पुलिस मुस्तैदी से लग गई.

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उत्तम जंघेल घर पर ही बैठा था कि उस के मोबाइल पर गोंदिया (महाराष्ट्र) में रहने वाले उस के मामा के बेटे हेमंत ढेकवार की काल आई, ”अरे भाई उत्तम, तुम कहां हो, बुआजी कैसी हैं, सब ठीकठाक है न! सुनो, मैं डोंगरगढ़ पहुंच रहा हूं, बहुत जरूरी काम है, तुम भी आ जाना.’’

”भैया, यहां पर सब ठीकठाक है और मैं तो आज घर पर ही हूं. कहेंगे तो आ जाऊंगा, वैसे क्या खास बात हो गई?’’ उत्तम बोला.

”मिलोगे तो सब बताऊंगा, सच कहूं तो तुम मिलोगे तो खुश हो जाओगे.’’ हेमंत ने कहा.

”फिर भी कुछ तो बताओ भैया, आखिर बात क्या है?’’ उत्तम जंघेल ने हंसते हुए ममेरे भाई हेमंत से कहा.

”अरे भाई, तुम्हारे लिए एक गाड़ी लेनी है, यह एक जो ली है उसे तो मैं चला रहा हूं, सोच रहा हूं कि एक स्कौर्पियो तुम्हारे लिए भी खरीदवा दूं. बस, कुछ ऐसी ही प्लानिंग है. इसलिए तुम शनिवार को सुबह डोंगरगढ़ पहुंच जाना.’’

”ठीक है, मैं राजन से बात करता हूं, हम दोनों कल सुबह जल्दी पहुंच जाएंगे.’’ उत्तम ने कहा.

”अरे भाई, तुम किसी और को मत लाना, अकेले आओ, हर बात हर किसी को नहीं बताई जाती…’’ हेमंत ढेकवार ने कहा, ”हार्वेस्टर और स्कौर्पियो के बारे में भी किसी को नहीं बताना कि ये मैं ने तुम्हारे नाम पर लिए हैं. यह दुनिया बड़ी अजीब है भाई, किसी की तरक्की पसंद नहीं करती.’’

”कोई बात नहीं भैया, मैं अकेला ही सुबह डोंगरगढ़ पहुंच जाऊंगा.’’ उत्तम जंघेल ने हंसते हुए कहा.

हेमंत ढेकवार महाराष्ट्र के गोंदिया जिले का निवासी था और उत्तम जंघेल का रिश्ते में वह ममेरा भाई था. दोनों ममेरे फुफेरे भाई थे. दोनों में उम्र का फासला था, मगर उन में अच्छी बनती थी. वे अपने दुखसुख की बातें एकदूसरे से खुल कर करते थे.

दूसरे दिन शनिवार को हेमंत के कहे अनुसार उत्तम जंघेल ने आननफानन में डोंगरगढ़ जाने की तैयारी कर बाइक से निकल पड़ा.

उत्तम जंघेल पुत्र अमृत लाल उर्फ बल्ला वर्मा निवासी आमापारा, खैरागढ़ का बेटा था. अमृत लाल सरपंच रहे हैं, मां रेखा वर्मा भी उदयपुर क्षेत्र से जिला पंचायत की सदस्य रह चुकी थीं. कांग्रेस पार्टी की राजनीति में होने के कारण शहर की राजनीति में अच्छा खासा दबदबा था. उसे डोंगरगढ़ पहुंचते पहुंचते शाम के 5 बज गए थे.

निर्धारित होटल में जब वह पहुंचा तो ममेरा भाई हेमंत ढेकवार 2 अनजान लोगों के साथ वहां मौजूद था. सामने शराब की बोतल खुली हुई थी. उस ने दोनों से परिचय करवाया, ”इन से मिलो, यह है सुरेश मच्छिरके और प्रेमचंद लिलहारे मेरे खास दोस्त.’’

उत्तम जंघेल ने दोनों से हाथ मिलाया और सामने की कुरसी पर बैठ कर शराब पीने लग गया.

”भाई उत्तम, तुम्हारे नाम पर एक स्कौर्पियो लेनी है, मैं ने सारी व्यवस्था कर ली है.’’ आगे हेमंत ढेकवार ने मानो रहस्य पर से परदा उठाते हुए कहा, ”चलो, जल्दी चलते हैं और औपचारिकताएं पूरी कर लेंगे.’’

फिर थोड़ा रुक कर हेमंत ढेकवार ने कहा, ”मगर सुनो, यह जो तुम मोबाइल ले कर आए हो, उसे कहीं छोड़ देते हैं.’’

”क्यों भला?’’ उत्तम चौंकते हुए बोला.

”अरे! थोड़ा समझा करो, जिस शोरूम से हम गाड़ी लेंगे, वहां तुम्हारे पास मोबाइल नहीं होना चाहिए, ताकि सारी फौर्मेलिटी मेरे मोबाइल नंबर से हो जाए.’’

”अच्छा यह बात है,’’ उत्तम मुसकरा कर  बोला, ”यहां पास ही पिताजी के दोस्त रहते हैं, उन के पास मोबाइल छोड़ देता हूं.’’

”हां, यह ठीक रहेगा, तुम अकेले चले जाओ और कुछ भी बोल कर मोबाइल छोड़ कर आ जाओ.’’ हेमंत ढेकवार ने कहा.

शराब पी कर चारों वहां से झूमते हुए स्कौर्पियो गाड़ी से रवाना हो गए.

आगे थाने के पास से स्कौर्पियो गतापारा घाघरा मार्ग पर आगे बढ़ गई. जबकि एजेंसी तो राजनांदगांव में थी. उधर गाड़ी मुड़ते ही उत्तम बोला, ”अरे, किधर जा रहे हो?’’

”अरे भाई चलते हैं चिंता मत करो.’’ कह कर हेमंत ने उत्तम के कंधे पर धीरे से हाथ मारा.

जब गाड़ी दूसरी दिशा में आगे बढऩे लगी तो उत्तम जंघेल परेशान हो गया. उसे समझ नहीं आ रहा था कि जब स्कौर्पियो लेनी है तो ये लोग राजनांदगांव के बजाय इधर जंगल में क्यों जा रहे हैं.

थोड़ा आगे जा कर के उन्होंने गाड़ी रोक दी. जैसे ही उत्तम नीचे आया, हेमंत ढेकवार ने तत्काल अपना गमछा उस के गले में डाल दिया और गला दबाने लगा. यह सब अचानक से घटित हो गया और उत्तम एकदम घबरा गया. उस के मुंह से कोई आवाज तक नहीं निकली.

इसी बीच हेमंत के दोनों साथी सुरेश और प्रेमचंद ने उसे जोर से पकड़ लिया. हेमंत उस का गला दबाता चला गया और थोड़ी ही देर में उत्तम जंघेल की मौत हो गई. इस के बाद उन्होंने उत्तम को स्कौर्पियो में ही डाल दिया फिर वे घाघरा जंगल की ओर आगे बढ़ गए.

आगे जा कर के सुनसान जगह पर तीनों ने उत्तम के शव को सड़क पर डाल दिया और किसी को यह पता न चले कि इसे गला दबा मारा है, इसलिए उत्तम के शरीर पर स्कौर्पियो 2-3 बार चढ़ा दी, ताकि देखने वाले को ऐसा लगे कि सड़क दुर्घटना से उत्तम जंघेल की मौत हुई है.

लाश की कैसे हुई शिनाख्त

दोपहर होतेहोते यह स्पष्ट हो गया कि घाघरा कुम्हीं रोड पर मिला शव उत्तम जंघेल पुत्र अमृतलाल वर्मा (उम्र 24 साल) का है.

शहर में लोग तरहतरह के कयास लगा रहे थे कि आखिरकार उत्तम जंघेल खैरागढ़ से डोंगरगढ़ कैसे पहुंच गया. यह बात भी चर्चा का विषय बन गई कि यह एक्सीडेंट नहीं हत्या का मामला हो सकता है.

पुलिस ने मृतक के पिता और पूर्व सरपंच अमृत वर्मा से पूछताछ की तो उन्होंने बताया कि उत्तम एक दिन पहले 10 मई, 2024 की सुबह घर से निकला था. घर से निकलने के बाद कहां गया, उस की जानकारी परिवार के किसी भी सदस्य को नहीं थी.

वह अपने गांव और घर से लगभग 40 किलोमीटर दूर किस के साथ और क्यों गया होगा, यह सवाल भी खड़ा था. मृतक उत्तम की मौत को ले कर कई सवाल खड़े हो गए थे और स्थानीय मीडिया में कई तरह की बातें प्रकाशित हो रही थीं, जो पुलिस के लिए चिंता का सबब थी.

पुलिस को घटनास्थल के आसपास कोई भी वाहन नहीं मिला था और न ही ऐसी कोई वजह सामने आ रही थी जिस से कि इसे सड़क दुर्घटना या कोई हादसा माना जा सके. इसी के चलते लोगों में चर्चा थी कि मृतक उत्तम जंघेल की लाश यहां कैसे और कहां से आई और उस की मौत कैसे हुई.

पुलिस के सामने चुनौती यह थी कि इस केस को कैसे सौल्व करे.

बहरहाल, पुलिस ने मौके की काररवाई पूरी कर के शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. शव का पोस्टमार्टम जिला सिविल अस्पताल के वरिष्ठ डा. पी.एस. परिहार ने किया था. पोस्टमार्टम रिपोर्ट आई तो पुलिस के शक की पुष्टि हो गई और स्पष्ट हो गया किसी ने गला दबा कर उत्तम की हत्या की थी.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिलने के बाद एसडीपीओ सुश्री प्रतिभा लहरे ने उसी दिन एक पुलिस टीम बना कर जांच शुरू कर दी.

टीम में एसडीओपी सुश्री प्रतिभा लहरे, साइबर सेल प्रभारी अनिल शर्मा,  इंसपेक्टर शक्ति सिंह, एसआई बिलकीस खान, वीरेंद्र चंद्राकर, एएसआई टैलेश सिंह,  हैडकांस्टेबल कमलेश श्रीवास्तव, कांस्टेबल चंद्रविजय सिंह, त्रिभुवन यदु, जयपाल कैवर्त, कमलकांत साहू, सत्यनारायण साहू, अख्तर मिर्जा की टीम बनाई.

सब से पहले उत्तम जंघेल के घर वालों से फिर से पूछताछ कर उन के बयान लिए गए. एकएक कड़ी मिलने से स्पष्ट होता चला गया कि उत्तम जघेल के नाम पर हेमंत ढेकवार ने गोंदिया शहर की एक बैंक से लोन लिया है और उत्तम जंघेल का मोटी धनराशि का जीवन बीमा भी करवा रखा है.

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         आरोपी हेमंत ढेकवार

इस के बाद शक की सूई ममेरे भाई हेमंत की ओर घूमती चली गई. पुलिस ने जाल बिछा कर के हेमंत के बारे में जानकारी निकालनी शुरू कर दी. पता चला कि हेमंत एक अपराधी किस्म का व्यक्ति है.

बैंक और बीमा कंपनी से भी पुलिस ने सारी जानकारी निकाली तो यह स्पष्ट होता चला गया कि 80 लाख रुपए का खेल उत्तम जंघेल के नाम से हेमंत ढेकवार कर चुका है.

अब पुलिस को यह समझते देर नहीं लगी कि रुपयों की खातिर ही हेमंत ने अपराध किया है. जांचपड़ताल कर के आखिर 13 मई, 2024 को खैरागढ़ पुलिस टीम ने हेमंत  ढेकवार को उस के घर से गिरफ्तार कर लिया और उस से पूछताछ की.

पहले तो वह रोने लगा जैसे कि उत्तम जंघेल की मौत से उसे काफी दुख हुआ है. वह कुछ भी बताने से आनाकानी करता रहा, मगर कड़ी पूछताछ से पुलिस को सफलता मिलती चली गई.

एसडीपीओ प्रतिभा लहरे ने हेमंत से दोटूक शब्दों में पूछा, ”आखिर तुम ने स्कौर्पियो और हार्वेस्टर उत्तम जंघेल के नाम पर क्यों लिया? अपने नाम पर या अपने किसी स्थानीय रिश्तेदार के नाम पर क्यों नहीं लिया?’’

इस बात का हेमंत गोलमोल जवाब देने लगा. पुलिस ने फिर पूछा, ”स्कौर्पियो और हार्वेस्टर का बीमा करवा कर तुम ने उत्तम की हत्या की योजना क्यों बनाई थी?’’

और जब पुलिस ने यह पूछा कि तुम शनिवार को 10 मई को कहां थे? तो हेमंत ढेकवार की पोल खुलती चली गई. कुछ सीसीटीवी कैमरों में चारों डोंगरगढ़ में दिखाई दिए थे. इस सच्चाई के खुलासे के बाद हेमंत असहाय हो गया और उस ने आखिरकार पुलिस के सामने सारा सच स्वीकार कर लिया. उस ने जो कुछ बताया, वह इस तरह था—

10 मई को सुरेश और प्रेमचंद के साथ डोंगरगढ़ आ कर के तीनों ने उत्तम के साथ शराब पी और उसे जाल में फंसाया. फिर जंगल में ले जा कर गमछे से उस की हत्या कर के सड़क पर डाल उस के ऊपर स्कौर्पियो चढ़ा दी, ताकि देखने वाले यह समझें कि उत्तम जंघेल की दुर्घटना में मौत हुई है.

जांच अधिकारी सुश्री प्रतिभा लहरे और सायबर टीम प्रभारी अनिल शर्मा ने जांच के दौरान सैकड़ों सीसीटीवी फुटेज चैक किए और तकनीकी साक्ष्य के आधार पर जानकारी हासिल कर ली. पता चला कि मृतक के नाम पर कुछ माह पहले हार्वेस्टर और एक स्कौर्पियो खरीदी और बीमा की राशि हत्या का कारण थी.

आखिरकार, हेमंत ढेकवार टूट गया और बताता चला गया कि उस ने लाखों रुपए के लालच में सुनियोजित योजना के तहत अपनी सगे बुआ के बेटे उत्तम जंघेल के नाम पर एक स्कौर्पियो जनवरी 2024 में एवं एक हार्वेस्टर फरवरी 2024 में खरीद कर दोनों गाडिय़ों का करीब 30 लाख रुपए का फाइनेंस करवा लिया था.

साथ ही उसे यह भी पता लग गया था कि यदि फाइनेंस अवधि में उत्तम जंघेल की सामान्य या किसी दुर्घटना में मौत हो जाती है तो उस के नाम पर लिए गए संपूर्ण ऋण की रकम इंश्योरेंस कंपनी द्वारा भुगतान की जाएगी.

यह जानकारी होने के बाद उस के मन में लालच आ गया था. उस ने इसी लालच में  उत्तम जंघेल का भारतीय जीवन बीमा निगम से 40 लाख रुपए का दुर्घटना बीमा एवं एक्सिस बैंक आमगांव से 40 लाख का दुर्घटना बीमा करा दिया था, जिस की किस्तों का भुगतान भी हेमंत स्वयं करता था.

हेमंत घर का रहा न घाट का

उक्त रकम के लालच में आ कर 10 मई, 2024 को हेमंत ने योजना के मुताबिक उत्तम को कार दिलाने के नाम पर फोन कर डोगरगढ़ बुलाया और अपने साथी सुरेश मच्छिरके निवासी कंवराबंध एवं प्रेमचंद लिल्हारे निवासी खेड़ेपार दोनों को पैसों का लालच दे कर उत्तम की हत्या की योजना में शामिल कर लिया.

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                    आरोपी सुरेश एवं प्रेमचंद

फिर तीनों योजना के मुताबिक उत्तम के नाम पर ली गई स्कौर्पियो में बैठ कर आए और डोंगरगढ़ में उत्तम को साथ में गाड़ी में बैठा कर होटल में चारों ने शराब पी. फिर तीनों आरोपियों ने मृतक को गाड़ी में बैठा कर खैरागढ़ होते गातापार थाने से आगे ले जा कर सुनसान सड़क किनारे उत्तम की गला घोंट कर हत्या कर दी और महाराष्ट्र लौट गए.

आरोपियों की निशानदेही पर पुलिस ने हत्या में प्रयुक्त गमछा घाघरा पुल से एवं घटना में प्रयुक्त स्कौर्पियो हेमंत के यहां से बरामद कर ली.

छुई खदान पुलिस ने भादंवि की धारा 302 के तहत मामला दर्ज कर के आरोपी हेमंत ढेकवार (38 साल) और सुरेश कुमार मच्छिरके (55 साल), प्रेमचंद लिलहरे (52 साल) को गिरफ्तार कर के मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी के समक्ष प्रस्तुत किया गया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. ­­Chhattisgarh Crime News

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Crime News : कंकाल से आखिर किस तरह सामने आया हत्या का सच

Crime News : कोतवाल नरेंद्र बिष्ट ने सब से पहले कंकाल का निरीक्षण किया. इस के बाद उन्होंने आसपास की झाडिय़ों पर नजर दौड़ाई. पास में एक फटा सलवारसूट पड़ा था, जिसे देख कर लग रहा था कि यह कंकाल किसी युवती का रहा होगा. इस के बाद उन्होंने आसपास पड़ी किसी अन्य वस्तु को भी खोजना शुरू किया जिस से उन्हें इस कंकाल के बारे में और जानकारी प्राप्त हो सके.

3 दिन बीत गए थे. मगर युवती के कंकाल की शिनाख्त नहीं हो सकी थी. इस के बाद एसएसपी अजय सिंह ने इस कंकाल की शिनाख्त के लिए एसओजी प्रभारी विजय सिंह तथा थाना सिडकुल के एसएचओ नरेश राठौर को लगा दिया था. साथ ही पुलिस टीम कंकाल मिलने वाली जगह के आसपास चलने वाले मोबाइल फोनों की डिटेल भी जुटा रही थी.

हरिद्वार के रानीपुर क्षेत्र में स्थित शिवालिक पर्वत की निचली सतह की ओर घनी झाडिय़ां फैली हुई थीं. कई दिनों से क्षेत्र में हो रही मूसलाधार बारिश के कारण ये झाडिय़ां काफी घनी हो गई थीं. इन्हीं झाडिय़ों के पास से हो कर गांवों से एक रास्ता जिला मुख्यालय की ओर जाता है. सैकड़ों लोग अकसर सुबहशाम इसी रास्ते से हो कर अपने घर आतेजाते थे.

कई दिनों से कुछ लोग यह महसूस कर रहे थे कि झाडिय़ों के एक कोने से काफी बदबू आ रही है. पहले तो लोगों को यह लग रहा था कि यह बदबू किसी कुत्ते या बिल्ली की लाश से आ रही होगी, मगर जब यह बदबू ज्यादा हो गई थी और इसे सहन करना भी असहनीय हो गया था तो कुछ लोगों ने नाक पर रुमाल रख इसे देखने का फैसला किया था.

उधर से गुजरने वाले कई लोग उत्सुकता से जब झाडिय़ों से लगभग 100 मीटर अंदर की ओर पहुंचे तो वहां का दृश्य देख कर उन सब की चीख निकल गई थी. वहां पर एक मानव कंकाल पड़ा हुआ था.

कंकाल के पास ही किसी युवती के कपड़े भी पड़े थे, जो बारिश के कारण भीगे हुए थे. तब सभी लोग सहम कर वापस सड़क पर आ गए थे और उन्होंने झाडिय़ों में कंकाल पड़ा होने की जानकारी पुलिस को देने का विचार बनाया था.

यह स्थान उत्तराखंड के हरिद्वार जिले के रोशनाबाद मुख्यालय के निकट कोतवाली रानीपुर के क्षेत्र टिबड़ी में पड़ता है. घटनास्थल कोतवाली रानीपुर से मात्र 3 किलोमीटर तथा एसएसपी कार्यालय से केवल 5 किलोमीटर दूर है. इस के बाद राहगीरों ने टिबड़ी क्षेत्र में कंकाल पड़े होने की सूचना कोतवाल रानीपुर नरेंद्र बिष्ट को दे दी. अपने क्षेत्र में कंकाल मिलने की सूचना पा कर नरेंद्र बिष्ट चौंक पड़े थे.

सब से पहले उन्होंने यह सूचना एसपी (क्राइम) रेखा यादव, सीओ (ज्वालापुर) निहारिका सेमवाल व एसएसपी अजय सिंह को दी. इस के बाद नरेंद्र बिष्ट अपने साथ कोतवाली के एसएसआई नितिन चौहान तथा अन्य पुलिसकर्मियों को ले कर घटनास्थल की ओर चल पड़े. घटनास्थल वहां से ज्यादा दूर नहीं था, इसलिए पुलिस टीम 10 मिनट में ही मौके पर पहुंच गई थी.

जब पुलिस टीम मौके पर पहुंची थी तो उस वक्त कुछ लोग उस कंकाल के आसपास खड़े थे. जिस स्थान पर कंकाल मिला था, वह स्थान सुनसान होने के साथसाथ वन्य क्षेत्र से लगा हुआ है. हिंसक पशु गुलदार व जंगली हाथी अकसर इस क्षेत्र में घूमते हुए देखे जा सकते हैं.

आखिर किस का था वह कंकाल

कोतवाल नरेंद्र बिष्ट अभी घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण कर ही रहे थे कि तभी वहां एसएसपी अजय सिंह, एसपी (क्राइम) रेखा यादव तथा (सीओ) ज्वालापुर निहारिका सेमवाल सहित कुछ मीडियाकर्मी भी पहुंच गए थे. इस के बाद पुलिसकर्मियों ने कंकाल के अलगअलग कोणों से फोटो लिए थे.

कंकाल की शिनाख्त करने के लिए अजय सिंह ने कोतवाल नरेंद्र बिष्ट को निर्देश दिए कि वह आसपास के पुलिस स्टेशनों से यह जानकारी करे कि इस हुलिए की कोई युवती उन के क्षेत्र से कहीं लापता तो नहीं है. शिनाख्त न होने पर इस बाबत अखबारों में कंकाल के इश्तहार छपवाने को कहा था. यह बात 26 जुलाई, 2023 की है.

पुलिस ने कंकाल का पंचनामा भर कर उसे पोस्टमार्टम के लिए हरमिलापी अस्पताल हरिद्वार भेज दिया था. अब सब से पहले कोतवाल नरेंद्र बिष्ट के सामने युवती की शिनाख्त न होने की समस्या थी. यदि युवती की शिनाख्त हो जाती तो पुलिस उस की काल डिटेल्स आदि के आधार पर जांच में जुट जाती. अगले दिन जब कंकाल के फोटो अखबारों में छपे तो कोई भी व्यक्ति उसे पहचानने वाला पुलिस के पास नहीं आया था.

इस के अलावा पुलिस स्टेशनों से भी कोई खास जानकारी नहीं मिली. एक बार तो नरेंद्र बिष्ट के दिमाग में यह भी आया कि युवती को कहीं किसी नरभक्षी गुलदार ने निवाला न बना लिया हो. मगर बाद में उन्हें ऐसा नहीं लगा था.

युवती के कंकाल की पोस्टमार्टम रिपोर्ट में भी पुलिस को ऐसी कोई जानकारी नहीं मिली जिस से कि पुलिस कातिल तक पहुंच पाती.

वह 30 जुलाई, 2023 का दिन था. थाना सिडकुल के एसएचओ नरेश राठौर के पास करीब 55 वर्षीय राम प्रसाद निवासी कस्बा किरतपुर बिजनौर उत्तर प्रदेश अपनी बेटी प्रवीना के साथ वहां पहुंचा था. राम प्रसाद ने नरेश राठौर को बताया कि उस की 21 वर्षीया बेटी रवीना इसी महीने की 11 जुलाई से लापता है.

राम प्रसाद ने बताया कि रवीना सिडकुल की एक कंपनी में नौकरी करती थी तथा उस के बाद से ही वह लापता हो गई थी.

इस के बाद राठौर ने राम प्रसाद को कोतवाली रानीपुर भेज दिया था. राम प्रसाद व उन की बेटी रवीना कोतवाल नरेंद्र बिष्ट से मिले और उन्हें 11 जुलाई से रवीना के लापता होने की बात बता दी. जब बिष्ट ने राम प्रसाद को गत 26 जुलाई को उन के क्षेत्र में रवीना जैसी युवती का कंकाल मिलने की जानकारी दी थी तो राम प्रसाद ने कंकाल के पास मिले कपड़े देखने की इच्छा जताई.

जब कोतवाल ने कंकाल के पास मिले कपड़े ला कर दिखाने को कहा तो मुंशी कपड़े ले आया. राम प्रसाद व उन की बेटी प्रवीना उन कपड़ों को देखते ही फफक कर रो पड़े थे.

इस से पुष्टि हो गई कि टिबड़ी क्षेत्र में मिला कंकाल रवीना का ही था. खैर, किसी तरह बिष्ट ने दोनों बापबेटी को चुप कराया था और उन से रवीना के बारे में जानकारी हासिल की.

पुनीत से रवीना की कैसे हुई दोस्ती

राम प्रसाद ने बिष्ट को बताया कि पिछले 2 साल से रवीना की धामपुर बिजनौर निवासी पुनीत धीमान से खासी दोस्ती थी तथा उन की आपस में शादी करने की योजना भी थी. मगर बीच में कुछ गड़बड़ हो गई थी. कुछ समय पहले पुनीत ने किसी अन्य युवती से शादी कर ली थी. पुनीत व रवीना सिडकुल की कंपनी ऋषिवेदा में साथसाथ काम करते थे. पुनीत कंपनी में सुपरवाइजर था.

यह जानकारी मिलते ही नरेंद्र बिष्ट ने तुरंत पुनीत धीमान व रवीना के मोबाइल की काल डिटेल्स खंगालने के लिए एसओजी प्रभारी विजय सिंह को कहा था. उसी दिन शाम को ही पुलिस को दोनों के नंबरों की काल डिटेल्स मिल गई थी.

दोनों की काल डिटेल्स जब पुलिस ने देखी तो उस से पुनीत खुद ही संदेह के दायरे में आ गया. इस के बाद पुलिस ने पुनीत से पूछताछ करने की योजना बनाई.

उसी दिन रात को ही पुलिस टीम ने पुनीत को पूछताछ के लिए सिडकुल से हिरासत में ले लिया था. इस के बाद पुलिस उसे पूछताछ करने के लिए कोतवाली रानीपुर ले आई. पुनीत से पूछताछ करने के लिए एसपी (क्राइम) रेखा यादव व एसएसपी अजय सिंह भी वहां पहुंच गए.

पहले तो पुलिस ने पुनीत से रवीना के उस के साथ प्रेम संबंधों व उस की हत्या की बाबत पूछताछ की थी, मगर पुनीत पुलिस को गच्चा देते हुए बोला कि मेरा तो रवीना से या उस की हत्या से कोई लेनादेना नहीं है.

पुनीत के मुंह से यह बात सुन कर वहां खड़े कोतवाल नरेंद्र बिष्ट को गुस्सा आ गया और उन्होंने पुनीत को डांटते हुए कहा, ”पुनीत, या तो तुम सीधी तरह से रवीना की मौत का सच बता दो अन्यथा याद रखो, पुलिस के सामने मुर्दे भी सच बोलने लगते हैं.’’

बिष्ट के इस वाक्य का पुनीत पर जादू की तरह असर हुआ था. पुनीत ने रवीना की हत्या की बात कुबूल करते हुए पुलिस को जो जानकारी दी, वह इस प्रकार है—

क्यों नहीं हो सकी प्रेमी युगल की शादी

बात 4 साल पुरानी है. पुनीत और रवीना सिडकुल की कंपनी ऋषिवेदा में साथसाथ काम करते थे. हम दोनों में पहले दोस्ती हुई थी, जो बाद में प्यार में बदल गई थी. फिर दोनों ने भविष्य में शादी करने की भी योजना बना ली थी. यह अंतरजातीय प्यार गहरा हो गया. इस बाबत जब पुनीत ने अपने घर वालों से बात की तो दोनों की जातियां अलगअलग होने के कारण घर वालों ने शादी करने से साफ मना कर दिया था.

इस के बाद पुनीत के घर वाले किसी और सजातीय लड़की से उस की शादी कराने के प्रयास में जुट गए. उन्होंने फरवरी 2023 में उस की शादी कर दी थी. दूसरी ओर रवीना के पिता राम प्रसाद ने भी उस की सगाई कहीं और कर दी थी. इस के बाद पुनीत ने रवीना पर अपनी सगाई तोडऩे के लिए दबाव बनाना शुरू कर दिया. रवीना ने ऐसा करने से साफ मना कर दिया.

रवीना के मना करने से पुनीत तिलमिला गया. इस के बाद रवीना ने उस का फोन अटैंड करना भी बंद कर दिया था और अपना फोन नंबर भी बदल लिया. यह बात पुनीत को बहुत बुरी लगी. वह गुस्से में पागल हो गया था. तभी उस ने रवीना की हत्या की योजना बनाई.

योजना के अनुसार, पुनीत 11 जुलाई, 2023 को रवीना से मिला था और उसे घुमाने के लिए टिबड़ी रोड पर ले गया था. वहां सुनसान होने के कारण उस ने रवीना की गला घोंट कर हत्या कर दी और धामपुर आ कर रहने लगा था.

इस के बाद कोतवाल नरेंद्र बिष्ट ने पुनीत के ये बयान दर्ज कर लिए थे. फिर बिष्ट ने रवीना की गुमशुदगी को हत्या की धाराओं 302 व 201 में तरमीम कर दिया था. अगले दिन रोशनाबाद स्थित पुलिस कार्यालय में एसएसपी अजय सिंह ने प्रैसवार्ता का आयोजन कर के इस ब्लाइंड मर्डर केस का परदाफाश कर दिया.

अजय सिंह ने इस केस को सुलझाने वाली पुलिस टीम में शामिल कोतवाल नरेंद्र बिष्ट, एसओजी प्रभारी विजय सिंह, एसएचओ (सिडकुल) नरेश राठौर की पीठ थपथपाई.

इस के बाद पुलिस ने हत्या के आरोपी पुनीत धीमान को कोर्ट में पेश कर के जेल भेज दिया. इस हत्याकांड की विवेचना कोतवाल नरेंद्र बिष्ट द्वारा की जा रही थी. वह शीघ्र ही इस केस की विवेचना पूरी कर के पुनीत के खिलाफ चार्जशीट अदालत में भेजने की तैयारी कर रहे थे. Crime News

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Crime News : Driver के साथ मिलकर किया आम आदमी पार्टी के नेता कत्ल

Crime News : किरनदीप कौर का पति हरविंदर कबड्डी का राष्ट्रीय स्तर का खिलाड़ी ही नहीं, बल्कि आम आदमी पार्टी का नेता भी था. हर तरह से साधनसंपन्न होने के बाद भी उस की पत्नी किरनदीप कौर को जाने क्या सूझा कि उस ने अपने ड्राइवर (Driver) संदीप कुमार के साथ अवैध संबंध बना लिए. इस के बाद…

जिला परिषद चुनाव में बठिंडा के जोन गिल कलां से आम आदमी पार्टी के प्रत्याशी हरविंदर सिंह उर्फ हिंदा की हत्या ने पूरे राजनीतिक क्षेत्र में तहलका मचा दिया था. हिंदा की हत्या उसी के घर पर की गई थी. 10 सितंबर की सुबह जो खबर आई थी, वह यह थी कि हिंदा की हत्या किन्हीं अज्ञात व्यक्तियों ने गोली मार कर कर दी है. पर बाद में पुलिस ने स्पष्ट किया कि हिंदा की हत्या गोली से नहीं, बल्कि तेजधार हथियार से की गई थी. पंजाब में जिला परिषद और पंचायत समितियों के चुनाव 19 सितंबर, 2018 को कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के बीच होने थे. मतदान सुबह 8 बजे शुरू हो कर शाम 4 बजे तक चलना था. जबकि मतगणना 22 सितंबर, 2018 को होनी थी.

Aam Aadmi Party leader was murdered with the help of the driver

पूरे राज्य में कड़ी सुरक्षा व्यवस्था थी. इस के बावजूद दिनांक 9-10 सितंबर की आधी रात को सदर रामपुर क्षेत्र के गांव जेठूके में हिंदा को उसी के घर पर मौत के घाट उतार दिया गया था. हिंदा की लाश सब से पहले उस की पत्नी किरनदीप कौर ने सुबह 6 बजे उस समय देखी थी, जब वह उठ कर पति के कमरे की तरफ आई थी. उस की खून से लथपथ लाश उस के कमरे में बैड पर पड़ी थी. लाश देखते ही किरनदीप ने अपने देवर जसविंदर सिंह और पड़ोस में रहने वाले गांव के सरपंच धर्म सिंह को बुलाया, फिर उन्होंने ही पुलिस को सूचना दी.

सूचना मिलते ही थाना सदर रामपुर प्रभारी निर्मल सिंह, एएसआई अमृतपाल सिंह, मनजिंदर सिंह, हवलदार शेर सिंह, गुरसेवक सिंह, सिपाही गुरप्रीत और गुरप्रीत सिंह तथा लेडी सिपाही अमनदीप कौर के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए थे. चुनाव से मात्र 10 दिन पहले किसी प्रत्याशी की हत्या होने से बहुत बड़ा बवाल मच सकता था, इसलिए प्रभारी निर्मल सिंह ने इस घटना की सूचना तुरंत अपने उच्चाधिकारियों को दे दी. सूचना मिलते ही आईजी (बठिंडा जोन) एम.एफ. फारुकी, एसएसपी डा. नानक सिंह और कई आला अफसर मौके पर पहुंच गए.

मामले की जांच के दौरान पुलिस को हरविंदर सिंह के बैड के पास से शराब की एक बोतल बरामद हुई थी. मृतक की पत्नी किरनदीप कौर ने पुलिस को बताया कि हरविंदर सिंह रात 3 लोगों के साथ सफेद कार में बैठ कर कहीं गए थे. वे सभी लोग देर रात घर लौटे. चारों ने शराब पी हुई थी. पहले तीनों युवक हरविंदर को घर छोड़ कर चले गए थे, लेकिन रात 11 बजे वे लोग दोबारा वापस आए थे. पति ने उसे और बेटे मनदीप सिंह को ऊपर वाले कमरे में भेज दिया था. यह उन का रोज का ही काम था और इन दिनों तो चुनाव की तैयारियां चल रही थीं, सो नएनए लोगों का घर में आनाजाना लगा रहता था. इसलिए उस ने अधिक ध्यान नहीं दिया.

वह ऊपर के कमरे में जा कर बेटे के साथ सो गई थी. फिर उन चारों ने मिल कर दोबारा शराब पी थी. अगली सुबह हरविंदर का शव खून से लथपथ हालत में बैड पर मिला था. वे 3 लोग कौन थे, कहां से आए थे, इस बारे में किरनदीप कौर कुछ नहीं बता सकी थी. कौन थे वो 3 लोग किरन ने बताया था कि इस के पहले उस ने उन युवकों को कभी नहीं देखा था. दोबारा सामने आने पर वह उन्हें पहचान सकती है. पुलिस ने इस मामले में 3 अज्ञात लोगों के खिलाफ हत्या की धारा 302 के तहत केस दर्ज कर लिया. फिर लाश कब्जे में ले कर पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भेज दी.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट में हरविंदर सिंह उर्फ हिंदा की हत्या का कारण दम घुटना बताया गया था. हरविंदर की हत्या गला दबाने से हुई थी. हालांकि उस के सिर पर चोटों के गहरे जख्म थे, पर हत्या दम घुटने से हुई थी. इस का मतलब यह था कि हत्यारों ने पहले उस की गला घोंट कर हत्या की होगी और बाद में किसी तेजधार हथियार से उस पर वार किए होंगे. इस वारदात की सूचना मिलते ही मृतक के घर आम आदमी पार्टी के वरिष्ठ नेताओं का जमावड़ा लग गया. हरविंदर की हत्या से गुस्साए आम आदमी पार्टी के नेताओं और ग्रामीणों ने बठिंडा-बरनाला नैशनल हाईवे पर धरना दे कर जाम लगा दिया. प्रदर्शनकारियों का कहना था कि हरविंदर की हत्या के तीनों आरोपियों को जल्द से जल्द गिरफ्तार किया जाए. जब तक आरोपियों को गिरफ्तार नहीं किया जाएगा, शव का अंतिम संस्कार नहीं होगा.

बता दें कि गिल कलां जोन आप के गढ़ मौड़ विधानसभा क्षेत्र में पड़ता है. यह सीट आप विधायक जगदेव सिंह कमालू ने जीती थी. राजनीतिक दलों के लिए यह क्षेत्र काफी महत्त्वपूर्ण माना जाता है. इसलिए चुनाव से ठीक पहले हुई हरविंदर की हत्या ने राजनीतिज्ञों को हिला कर रख दिया. धरनेप्रदर्शनों में बेकाबू होती जनता को देख कर पुलिस की अतिरिक्त टुकडि़यां बुलाई गईं. जब आईजी (बठिंडा जोन) एम.एफ. फारुकी ने भीड़ को आश्वासन दिया कि हत्यारों को जल्दी ही पकड़ लिया जाएगा, तब जा कर भीड़ का आक्रोश कम हुआ. पुलिस पर हरविंदर की हत्या का दबाव था, इसलिए वह फूंकफूंक कर कदम रख रही थी. जरा सी लापरवाही कोई बड़ा बवाल खड़ा कर सकती थी. पुलिस ने इस मामले को सुलझाने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी. पूरे इलाके में खबरियों का जाल फैला दिया गया था.

क्राइम सीन किया रीक्रिएट क्राइम सीन को कई बार रीक्रिएट किया गया. हरविंदर के परिवार में मात्र 4 लोग थे. खुद हरविंदर, पत्नी किरनदीप कौर, 14 वर्षीय बेटा मनदीप सिंह और 76 वर्षीय पिता कुलदीप सिंह. पिता कुलदीप सिंह को कम सुनाई और कम दिखाई देता था. हरविंदर सिंह का छोटा भाई जसविंदर सिंह कोठी के पीछे बने पशुओं के बाड़े में रहता था. घर का कोई भी सदस्य हरविंदर के काम और उस की बातों में दखलंदाजी नहीं करता था. पुलिस ने हरविंदर के फोन की काल डिटेल्स भी खंगाली, पर उस में कोई संदिग्ध बात दिखाई नहीं दी. क्षेत्र के हिस्ट्रीशीटरों और सुपारी किलर्स से भी पूछताछ की गई, पर इस हत्याकांड के 2 दिन गुजर जाने के बाद भी पुलिस के हाथ कोई सुराग नहीं लगा.

ज्योंज्यों चुनाव के दिन नजदीक आ रहे थे, पुलिस पर जनता और राजनैतिक पार्टियों का आक्रोश बढ़ता जा रहा था. पुलिस अभी तक यह पता नहीं लगा पाई थी कि हरविंदर के साथ शराब पीने वाले 3 लोग कौन थे. पुलिस बारबार किरनदीप कौर के बयानों में सचझूठ तलाशने में लगी हुई थी. किरनदीप के बयान पुलिस को संदेहास्पद लग रहे थे. लेकिन समय की नजाकत को देखते हुए पुलिस उस पर कोई सख्ती नहीं कर सकती थी. हरविंदर की हत्या का मामला पुलिस के लिए बड़ी चुनौती बन गया था. इस केस को ट्रेस करने के लिए पुलिस की 12 टीमें लगी हुई थीं. एसएसपी डा. नानक सिंह खुद इस केस का सुपरविजन कर रहे थे. अचानक पुलिस को आशा की एक किरण दिखाई दी.

दरअसल, पुलिस को पता चला कि मृतक हरविंदर की पत्नी किरनदीप और मानसा निवासी संदीप के पिछले कई सालों से अवैध संबंध हैं. वैसे भी पुलिस को शुरू से ही यह मामला राजनीति से अलग लग रहा था. संदीप का नाम सामने आने से अब यह बात भी स्पष्ट हो गई कि हरविंदर की हत्या में कहीं न कहीं उसी की पत्नी का हाथ होना संभव है. किरनदीप ने अपने एक बयान में कहा था कि 3 लोग उस के घर आए थे और हरविंदर उन के साथ शराब पीने ढाबे पर गया था. लेकिन सीसीटीवी फुटेज में ऐसी कोई बात सामने नहीं आई थी. यहीं से यह बयान संदेह के दायरे में आ गया था. वैसे भी किरनदीप के बयानों में काफी झोल था और वह बारबार अपना बयान बदल भी रही थी.

किरनदीप ने खोला हत्या का राज आखिर 13 सितंबर को पुलिस ने किरनदीप कौर को हिरासत में ले कर जब सख्ती से पूछताछ की तो उस ने हत्या का खुलासा करते हुए बताया कि उस ने अपने प्रेमी संदीप के साथ मिल कर अपने पति हरविंदर की हत्या को अंजाम दिया था. किरनदीप के अपराध स्वीकार करने के बाद पुलिस ने आननफानन में उसी दिन उसे अदालत में पेश कर आगामी पूछताछ के लिए रिमांड पर ले लिया. किरनदीप की निशानदेही पर पुलिस ने मारी गांव से 37 वर्षीय माखन राम, 26 वर्षीय चमकौर सिंह और भैनी गांव से 26 वर्षीय जेमल सिंह को गिरफ्तार कर लिया.

इस हत्याकांड का मुख्य आरोपी यानी किरनदीप कौर का प्रेमी संदीप पुलिस से बच निकला था. उसे किरनदीप और बाकी लोगों के पकड़े जाने की खबर लग गई थी. 4 लोगों की गिरफ्तारी के बाद आईजी एम.एफ. फारुकी और एसएसपी डा. नानक सिंह ने एक प्रैसवार्ता कर इस बात को स्पष्ट किया कि हरविंदर हत्याकांड में कोई भी राजनीतिक ऐंगल नहीं था. बता दें कि सीनियर आप नेताओं ने हिंदा की हत्या के मामले में पुलिस पर सवालिया निशान लगाते हुए कहा था कि यह सोचीसमझी राजनीतिक साजिश के तहत की गई हत्या है. आप ने इसी के साथ राज्य में निकाय चुनाव रद्द कराने की मांग भी की थी और धरनेप्रदर्शन कर के माहौल खराब करने का भी प्रयास किया था.

पुलिस ने यह भी खुलासा किया कि किरनदीप ने 6 महीने पहले भी अपने पति की हत्या की कोशिश की थी. लेकिन जिन लोगों से उस ने मदद मांगी थी, उन्होंने हत्या करने से इनकार कर दिया था. पुलिस ने इस बात का भी खुलासा किया था कि किरनदीप के ड्राइवर संदीप कुमार के साथ अवैध संबंध थे और वह उस से शादी करना चाहती थी, इसलिए उस ने 3 कौन्ट्रैक्ट किलर्स को पति की हत्या के लिए 50-50 हजार रुपए दिए थे. तांत्रिक से भी बनाए संबंध किरनदीप ने बताया कि पति को उस के अवैध संबंधों के बारे में पता चल गया था. जिस की वजह से घर में झगड़ा रहने लगा था. घर में क्लेश दूर करने के लिए वह माड़ी निवासी तांत्रिक बाबा मक्खन राम के पास जाने लगी थी. इस दौरान उस के बाबा मक्खन राम से भी संबंध बन गए थे.

उस ने संदीप के कहने पर मक्खन बाबा से हरविंदर को मरवाने की बात की थी. बाबा ने अपने चेले चमकौर सिंह कोरी, निवासी माड़ी व जैमल सिंह, निवासी भैणी को 50-50 हजार रुपए का लालच दे कर हरविंदर की हत्या करने के लिए तैयार कर लिया था. साजिश के तहत किरनदीप कौर ने पति को अंडे के आमलेट में नशीली दवा मिला कर खिला दी थी. खाना खाने के बाद शराब और गोलियों के नशे से वह बेसुध हो गया था. उस के बेहोश होने पर किरनदीप कौर ने तीनों को फोन कर के घर बुला लिया था. उन्होंने तकिए से मुंह बंद कर के हरविंदर की हत्या कर दी और बाद में हौकी स्टिक से वार कर के उसे घायल कर दिया था.

हत्या करने के बाद तीनों हत्यारे चुपचाप घर से निकल गए थे. योजना के अनुसार सुबह उठ कर किरनदीप ने पति की हत्या की बात कह कर शोर मचा दिया था. आरोपियों की निशानदेही पर मोटरसाइकिल व हौकी भी पुलिस ने बरामद कर ली थी. प्रैसवार्ता के दौरान ही एसएसपी डा. नानक सिंह ने बताया था कि पुलिस को शुरू से ही यह बात हजम नहीं हो रही थी कि मात्र 3 लोगों ने हरविंदर जैसे आदमी की हत्या की होगी. क्योंकि हरविंदर कबड्डी का नैशनल लेवल का खिलाड़ी था, इसलिए वह आधा दरजन लोगों पर भी भारी पड़ सकता था. पुलिस को गुमराह करने के लिए उस की पत्नी ने पुलिस को झूठा बयान दिया और पुलिस ने प्रत्येक ऐंगल से इस की जांच शुरू कर दी. इसी दौरान पुलिस के हाथ कुछ ऐसे ठोस सुराग मिले, जिस से शक की सुई पूरी तरह से उस की पत्नी किरनदीप कौर की ओर घूम गई थी.

किरनदीप और उस के प्रेमी संदीप ने हरविंदर की हत्या के लिए बड़ा उचित समय चुना था. उन्हें इस बात की पूरी उम्मीद थी कि चुनाव के दिनों में हरविंदर की हत्या को राजनीतिक हत्या कहा जाएगा और उन की ओर किसी का ध्यान नहीं जा पाएगा. पर किरनदीप के बारबार बयान बदलने से पूरा मामला सामने आ गया. रिमांड अवधि समाप्त होने के बाद इस हत्याकांड से जुड़े चारों आरोपियों को अदालत में पेश किया गया, जहां से अदालत के आदेश पर सभी को जिला जेल भेज दिया गया.

कथा लिखे जाने तक इस हत्याकांड का मुख्य आरोपी और किरनदीप कौर का प्रेमी ड्राइवर संदीप कुमार गिरफ्तार नहीं हो सका था. पुलिस उसे बड़ी सरगर्मी से तलाश कर रही थी. Crime News

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

Crime Stories : 20 साल में एक-एक कर 5 कत्ल करने वाला कातिल

Crime Stories : उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद जिले के मुरादनगर से सटा गांव है बसंतपुर सैंथली. यहां भी तेजी से शहरीकरण के चलते जमीनों के दाम आसमान छूने लगे हैं. बिल्डर आते हैं, किसानों को लुभाते हैं और उस भाव में खेतीकिसानी की जमीनों के सौदे करते हैं, जिस की उम्मीद किसानों ने कभी सपने में भी नहीं की होती. एक बीघा के 50 लाख से ले कर एक करोड़ रुपए सुन कर किसानों का मुंह खुला का खुला रह जाता है कि इतना तो वे सौ साल खेती कर के भी नहीं कमा पाएंगे. और वैसे भी आजकल खेतीकिसानी खासतौर से छोटी जोत के किसानों के लिए घाटे का सौदा साबित होने लगी है.

लिहाजा वे एकमुश्त मिलने वाले मुंहमांगे दाम का लालच छोड़ नहीं पाते और जमीन बेच कर पास के किसी कसबे में बस जाते हैं. इसी गांव का एक ऐसा ही किसान है 48 वर्षीय लीलू त्यागी, जिस के हिस्से में पुश्तैनी 15 बीघा जमीन में से 5 बीघा जमीन आई थी. बाकी 10 बीघा 2 बड़े भाइयों सुधीर त्यागी और ब्रजेश त्यागी के हिस्से में चली गई थी. जमीन बंटबारे के बाद तीनों भाई अपनीअपनी घरगृहस्थी देखने लगे और जैसे भी हो खींचतान कर अपने घर चलाते बच्चों की परवरिश करने लगे. बंटवारे के समय लीलू की शादी नहीं हुई थी, लिहाजा उस पर घरगृहस्थी के खर्चों का भार कम था.

गांव के संयुक्त परिवारों में जैसा कि आमतौर पर होता है, दुनियादारी और रिश्तेदारी निभाने की जिम्मेदारी बड़ों पर होती है, इसलिए भी लीलू बेफिक्र रहता था और मनमरजी से जिंदगी जीता था. साल 2001 का वह दिन त्यागी परिवार पर कहर बन कर टूटा, जब सुधीर अचानक लापता हो गए. उन्हें बहुत ढूंढा गया पर पता नहीं चला कि उन्हें जमीन निगल गई या आसमान खा गया. कुछ दिनों की खोजबीन के बाद त्यागी परिवार ने तय किया कि उन की गुमशुदगी की रिपोर्ट पुलिस में दर्ज करा दी जाए. लेकिन इस पर लीलू बड़ेबूढ़ों के से अंदाज में बोला, ‘‘इस से क्या होगा. उलटे हम एक नई झंझट में और फंस जाएंगे.

पुलिस तरहतरह के सवाल कर हमें परेशान करेगी. हजार तरह की बातें समाज और रिश्तेदारी में होंगी. उस से तो अच्छा है कि उन का इंतजार किया जाए. हालांकि वह किसी बात को ले कर गुस्से में थे और मुझ से यह कह कर गए थे कि अब कभी नहीं आऊंगा.’’

परिवार वालों को लीलू की सलाह में दम लगा. वैसे भी अगर सुधीर के साथ कोई अनहोनी या हादसा हुआ होता तो उन की लाश या खबर मिल जानी चाहिए थी और वाकई पुलिस क्या कर लेती. वह कोई दूध पीते बच्चे तो थे नहीं, जो घर का रास्ता भूल जाएं.  यह सोच कर सभी ने मामला भगवान भरोसे छोड़ दिया.  उन्हें चिंता थी तो बस उन की पत्नी अनीता और 2 नन्हीं बेटियों पायल और पारुल की, जिन के सामने पहाड़ सी जिंदगी पड़ी थी. यह परेशानी भी वक्त रहते दूर हो गई, जब गांव में यह चर्चा शुरू हुई कि अब सुधीर के आने की तो कोई उम्मीद रही नहीं, अनीता कब तक उस की राह ताकती रहेगी. इसलिए अगर लीलू उस से शादी कर ले तो उन्हें सहारा और बेटियों को पिता मिल जाएगा. घर की खेती भी घर में रहेगी.

गांव और रिश्ते के बड़ेबूढ़ों का सोचना ऐसे मामले में बहुत व्यावहारिक यह रहता है कि जवान औरत कब तक बिना मर्द के रहेगी. आज नहीं तो कल उस का बहकना तय है इसलिए बेहतर है कि अगर देवरभाभी दोनों राजी हों तो उन की शादी कर दी जाए. बात निकली तो जल्द उस पर अमल भी हो गया. एक सादे समारोह में लीलू और अनीता की शादी हो गई जो कोई नई बात भी नहीं थी. क्योंकि गांवों में ऐसी शादियां होना आम बात है, जहां देवर ने विधवा भाभी से शादी की हो. इतिहास भी ऐसी शादियों से भरा पड़ा है. देखते ही देखते अपने देवर की पत्नी बन अनीता विधवा से फिर सुहागन हो गई और वाकई में पारुल और पायल को चाचा के रूप में पिता मिल गया.

इस के बाद तो बड़े भाई सुधीर की जमीन भी लीलू की हो गई. जल्द ही लीलू और अनीता के यहां बेटा पैदा हुआ, जिस का नाम विभोर रखा गया. घर में सब उसे प्यार से शैंकी कहते थे. कभीकभार जरूर गांव के कुछ लोगों में यह चर्चा हो जाती थी कि चलो जो हुआ सो अच्छा  हुआ, लेकिन कभी सुधीर अगर वापस आ गया तो क्या होगा. मुमकिन है जी उचट जाने से वह साधुसंन्यासियों की टोली में शामिल हो गया हो और वहां से भी जी उचटने के कारण कभी घर आ जाए. फिर अनीता किस की पत्नी कहलाएगी? सवाल दिलचस्प था, जिस का मुकम्मल जबाब किसी के पास नहीं था. पर एक शख्स था जो बेहतर जानता था कि सुधीर अब कभी वापस नहीं आएगा. वह शख्स था लीलू.

5 साल गुजर गए. अब सब कुछ सामान्य हो गया था, लेकिन कुछ दिनों बाद ही साल 2006 में पारुल की मृत्यु हो गई. घर और गांव वाले कुछ सोचसमझ पाते, इस के पहले ही लीलू ने कहा कि उसे किसी जहरीले कीड़े ने काट लिया था और आननफानन में उस का अंतिम संस्कार भी कर दिया. गांवों में ऐसे यानी सांप वगैरह के काटे जाने के हादसे भी आम होते हैं, इसलिए कोई यह नहीं सोच पाया कि यह कोई सामान्य मौत नहीं, बल्कि सोचसमझ कर की गई हत्या है. और आगे भी त्यागी परिवार में ऐसी हत्याएं होती रहेंगी, जो सामान्य या हादसे में हुई मौत लगेंगी और हैरानी की बात यह भी रहेगी किसी भी मामले में न तो लाश मिलेगी और न ही किसी थाने में रिपोर्ट दर्ज होगी.

इस के 3 साल बाद ही पायल भी रहस्यमय ढंग से गायब हो गई तो मानने वाले इसे होनी मानते रहे. लेकिन अनीता अपनी दोनों बेटियों की मौत का सदमा झेल नहीं पाई और बीमार रहने लगी, जिस का इलाज भी लीलू ने कराया. अब सुधीर की जमीन का कोई वारिस नहीं बचा था, सिवाय अनीता के जो अब हर तरह से लीलू और बड़े होते शैंकी की मोहताज रहने लगी थी. लीलू की तो जान ही अपने बेटे में बसती थी और वह उसे चाहता भी बहुत था. लेकिन यह नहीं देख पा रहा था कि उस के लाड़प्यार के चलते शैंकी गलत राह पर निकल पड़ा है. और देख भी कैसे पाता क्योंकि वह खुद ही एक ऐसे रास्ते पर चल रहा था, जिसे कलयुग का महाभारत कहा जा सकता है और वह उस का धृतराष्ट्र है, जो पुत्र मोह में अंधा हो गया था.

इसी अंधेपन का नतीजा था कि बीती 9  जुलाई को लीलू गाजियाबाद के सिहानी गेट थाने में पुलिस वालों के सामने खड़ा गिड़गिड़ा रहा था कि शैंकी मेरा इकलौता बेटा है, आप जितने चाहो पैसे ले लो लेकिन उसे छोड़ दो. बेटा छूट जाए, इस के लिए वह 10 लाख रुपए देने को तैयार था. लेकिन जुर्म की दुनिया में दाखिल हो चुके बिगड़ैल शैंकी ने जुर्म भी मामूली नहीं किया था, लिहाजा उस का यू छूटना तो नामुमकिन बात थी. दरअसल, शैंकी ने केन्या की एक लड़की, जिस का नाम रोजमेरी वाजनीरू है, से 7 जुलाई को 12 हजार रुपए नकद और एक मोबाइल फोन लूटा था. रोजमेरी से उस का संपर्क सोशल मीडिया के जरिए हुआ था.

जब वह दिल्ली आई तो शैंकी बहाने से उसे अपनी कार में बैठा कर गाजियाबाद ले गया और हथियार दिखा कर लूट की इस वारदात को अंजाम दिया. दूसरे दिन सुबह रोजमेरी ने सिहानी गेट थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई तो शैंकी पकड़ा गया. वारदात में उस का साथ देने वाला शुभम भी गिरफ्तार किया गया था. वह भी मुरादनगर का रहने वाला है. दोनों से वारदात में इस्तेमाल किए गए हथियार, 11 हजार रुपए नकद और वह कार भी बरामद की गई थी, जिस में बैठा कर रोजमेरी से लूट की गई थी. कुछ दिनों बाद दोनों को अदालत से जमानत मिल गई थी. लेकिन अब खुद जेल में बंद लीलू को जमानत मिल पाएगी, इस में शक है. क्योंकि उस के गुनाहों के आगे तो बेटे का गुनाह कुछ भी नहीं.

बीती 24 सितंबर को लीलू को गाजियाबाद पुलिस ने अपने भतीजे रेशू की हत्या के आरोप में गिरफ्तार किया तो सख्ती से पूछताछ में उस ने खुलासा किया कि उस ने कोई एकदो नहीं बल्कि 20 साल में एकएक कर 5 हत्याएं की हैं. और ये पांचों ही उस के खून के रिश्तेदार हैं. यह सुन कर पुलिस वालों के मुंह तो खुले के खुले रह गए, साथ ही जिस ने भी सुना उस के भी होश उड़ गए कि कैसा कलयुग आ गया है, जिस में जमीन के लालच में एक सगे भाई ने दूसरे सगे बड़े भाई और 2 भतीजियों जो अनीता से शादी के बाद उस की बेटियां हो गई थीं, सहित 2 सगे भतीजों को भी इतनी साजिशाना और शातिराना तरीके से मारा कि किसी को उस पर शक भी नहीं हुआ.

रेशू की हत्या के आरोप में वह कैसे पकड़ा गया, इस से पहले यह जान लेना जरूरी है कि इस के पहले की 4 हत्याएं उस ने कैसे की थीं. इन में से 2 का जिक्र ऊपर किया जा चुका है. अपने बड़े भाई सुधीर की हत्या लीलू ने एक लाख की सुपारी दे कर मेरठ में करवाई थी और लाश को नदी में बहा दिया था. इसलिए अनीता से शादी करने के बाद वह बेफिक्र था कि सुधीर आएगा कहां से, उसे तो मौत की नींद में वह सुला चुका है  यह कातिल कितना खुराफाती है, इस का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वह 20 साल पहले ही अपने गुनाहों की स्क्रिप्ट लिख चुका था और हरेक कत्ल के बाद किसी को शक न होने पर उस के हौसले बढ़ते जा रहे थे.

जब शैंकी पैदा हुआ तो उसे लगा कि सुधीर की जमीन उस की बेटियों के नाम हो जाएगी, लिहाजा पहले उस ने पारुल को खाने में जहर दे कर मारा और फिर पायल की भी हत्या कर उस की लाश को नदी में बहा दिया. इस दौरान जमीनजायदाद का धंधा करने के लिए उस ने अपने हिस्से की जमीन बेच दी और मुरादनगर थाने के सामने एक आलीशान मकान भी बनवा लिया. जब इस निकम्मे और लालची से दलाली का धंधा नहीं चला तो उस की नजर दूसरे भाई ब्रजेश की जमीन पर जा टिकी. उसे लगा कि अगर ब्रजेश और उस के बेटों व पत्नी को भी इसी तरह ठिकाने लगा दिया जाए तो उस की ढाई करोड़ की जमीन भी उस की हो जाएगी.

नेकी तो नहीं बल्कि बदी और पूछपूछ की तर्ज पर उस ने साल 2013 में  ब्रजेश के छोटे बेटे 16 वर्षीय नीशू की भी हत्या कर लाश नदी में बहा दी और अपनी गोलमोल बातों से पुलिस में रिपोर्ट लिखाने से ब्रजेश को रोक लिया था. यह उस के द्वारा की गई चौथी हत्या थी. अब तक उसे समझ आ गया था कि और साल, 2 साल या 4 साल लगेंगे, लेकिन जमीन तो उस की हो ही जाएगी. असल में वह चाहता था कि पूरे कुटुंब की जमीन उस के बेटे शैंकी को मिल जाए, जिस से उसे जिंदगी में मेहनत ही न करनी पड़े जैसे कि उसे नहीं करनी पड़ी थी. जाहिर है रेशू की हत्या के बाद वह ब्रजेश और उन की पत्नी को भी ऊपर पहुंचा देने का मन बना चुका था.

ब्रजेश का बेटा 24 वर्षीय रेशू बीती 8 अगस्त को गायब हो गया था. यह उन के लिए एक और सदमे वाली बात थी. क्योंकि नीशू को गुजरे 8 साल बीत गए थे, अब रेशू ही उन का आखिरी सहारा बचा था जिस की सलामती के लिए वे दिनरात दुआएं मांगा करते थे. लेकिन यह अंदाजा दूसरों की तरह उन्हें भी नहीं था कि परिवार को डसने वाला सांप आस्तीन में ही है. लीलू ने इस बाबत और लोगों को भी अपनी साजिश में शामिल कर लिया था. उस ने योजना के मुताबिक रेशू को फोन कर गांव के बाहर मिलने बुलाया और घूमने चलने के बहाने कार में बैठा लिया. इस आई ट्वेंटी कार में इन दोनों के अलावा विक्रांत, सुरेंद्र त्यागी, राहुल और लीलू का भांजा मुकेश भी मौजूद थे.

चलती कार में ही इन लोगों ने रेशू की हत्या रस्सी और लोहे की जंजीर से गला घोंट कर दी और उसे सीट पर जिंदा लोगों की तरह बिठा कर बुलंदशहर की तरफ चल पड़े. कहीं किसी को शक न हो जाए, इसलिए कुछ दूर जंगल में इन्होंने रेशू की लाश को कार की डिक्की में डाल दिया. असल काम हो चुका था, बस लाश और ठिकाने लगाना बाकी था. इस के लिए मूड बनाने इन लोगों ने बुलंदशहर में विक्रांत के ट्यूबवैल पर जोरदार पार्टी की. जब रात गहराने लगी तो इन वहशियों ने रेशू की लाश को एक बोरे में ठूंसा और पहासू इलाके में ले जा कर गंगनहर में बहा दिया. इस के बाद सभी अपनेअपने रास्ते हो लिए. आरोपियों में से सुरेंद्र त्यागी हापुड़ का रहने वाला है और पुलिस में दरोगा पद से रिटायर हुआ है जबकि राहुल उस का नौकर था.

लीलू ने सुरेंद्र को रेशू की हत्या की सुपारी दी थी, जिस ने बुलंदशहर के आदतन अपराधी विक्रांत को भी इस वारदात में शामिल कर लिया था.  इन दोनों का याराना विक्रांत के एक जुर्म में जेल में बंद रहने के दौरान हुआ था. लीलू ने हत्या के एवज में 4 लाख रुपए नकद दिए थे और बाकी बाद में एक बीघा जमीन बेचने के बाद देने का वादा किया था. रेशू के लापता होने के बाद ब्रजेश ने बेटे को काफी खोजा और फिर थकहार कर 15 अगस्त को मुरादनगर थाने में रिपोर्ट दर्ज करा दी. हालांकि लीलू ने इस बार भी उन्हें यह कह कर रोकने की कोशिश की थी कि पुलिस में रिपोर्ट लिखाने से क्या फायदा होगा. लेकिन फायदा हुआ. 24 सितंबर को वह पकड़ा गया और अपने साथियों सहित जेल में है. लीलू इत्तफाकन पकड़ा गया, नहीं तो पुलिस भी हार मान चुकी थी कि अब रेशू नहीं मिलने वाला.

पुलिस के पास रेशू को ढूंढने का कोई सूत्र नहीं था, सिवाय इस के कि उस के और लीलू के फोन की लोकेशन एक ही जगह की मिल रही थी, जो उसे हत्यारा मानने के लिए पर्याप्त नहीं था. लेकिन इनवैस्टीगेशन के दौरान एक औडियो रिकौर्डिंग पुलिस के हत्थे लग गई, जिस में लीलू रेशू की हत्या का प्लान बाकी चारों में से किसी को बता और समझा रहा था. फिर उस ने 5 हत्याओं की बात कुबूली. हत्याओं में 2-3 साल का गैप वह इसीलिए रखता था कि हल्ला न मचे और लोग पिछली हत्या का दुख भूल जाएं. पुलिस हिरासत में लीलू कभी यह कहता रहा कि उसे उन हत्याओं का कोई मलाल नहीं. तो कभी यह कहता रहा कि सजा भुगतने के बाद वह भाईभाभी की सेवा कर प्रायश्चित करना चाहता है.

हैरानी की बात सिर्फ यह है कि 5 हत्याओं का यह गुनहगार लीलू जेल से छूट जाने की उम्मीद पाले बैठा है. वह शायद इसलिए कि 5 में से एक भी लाश बरामद नहीं कर सकी. लेकिन अब लोगों की मांग है कि ऐसे आस्तीन के सांप का जिंदा रहना ठीक नहीं है, लिहाजा उसे फांसी की सजा मिलनी चहिए. यदि ऐसा नहीं हुआ तो यह जरूर एक बड़ी कानूनी खामी साबित होगी. Crime Stories

 

Love Crime : गर्लफ्रेंड ने लोहे की रौड से किया बॉयफ्रेंड का कत्ल

Love Crime : कहा जाता है कि कई रोगों में कड़वी दवाई ज्यादा असरकारक होती है. रूमाना और अफजल को भी अपनी शादीशुदा जिंदगी को पटरी पर लाने के लिए कड़वा घूंट पीना पड़ा, मुझे भी. पढ़ें कैसे…

उस दिन जो क्लायंट मुझ से मिला, वह कुछ अजब किस्म का था. उस ने अपना नाम अफजल बताया. वह फ्रूट का धंधा करता था. उस की परेशानी यह थी कि वह अपनी बीवी रूमाना को तलाक दे चुका था और उस की एकलौती बेटी को उस की बीवी रूमाना साथ ले गई थी. वह अपनी बेटी को वापस लेना चाहता था. मांबेटी अपने घर में रह रहे थे. अफजल को घर से निकलना पड़ा, क्योंकि घर रूमाना के नाम पर था. यह मकान महमूदाबाद बाजार के सिरे पर था. मकान के बाहरी हिस्से में एक दुकान थी, मकान का रास्ता बाजू वाली गली से था. 3 कमरों के इस घर में अफजल की छोटी सी फैमिली आराम से रह रही थी कि फरीद की नजर लग गई.

फरीद हसन 45 साल का हैंडसम आदमी था, लेकिन बेहद चालाक. वह इन लोगों का किराएदार था. बाहरी हिस्से वाली दुकान में उस ने एस्टेट एजेंसी खोल रखी थी. मकान रूमाना के नाम था इसलिए उस ने फरीद को अपनी मरजी से दुकान दी थी, जबकि अफजल इस के खिलाफ था. रूमाना सरकारी नौकरी में थी, ऊपर की आमदनी भी अच्छी थी. यह घर उसी ने बनाया था. थोड़ा पैसा अफजल का भी लगा था. वैसे उस की ज्यादा आमदनी नहीं थी. वह मंडी से माल उठाता और घरों में पहुंचा देता. ज्यादातर ग्राहक फिल्म इंडस्ट्री के थे और अफजल को जुनून की हद तक फिल्मों में काम करने का शौक था. कोई छोटा एक्टर भी उसे फिल्मों में काम दिलाने की उम्मीद दिखाता, तो उसे वह फ्री में फल सब्जी पहुंचा कर फिल्म में काम मिलने की उम्मीद में उस की खिदमत करता रहता.

अभी तक उसे कोई चांस नहीं मिला था, क्योंकि अफजल के पास न हुनर था न कोई सोर्स और न किसी डायरेक्टर से पहचान. अफजल के इस शौक से उस की बीवी रूमाना नाराज रहती थी क्योंकि फायदा कुछ नहीं था, उलटा नुकसान होता था. इस बात पर दोनों में तकरार भी होती. वह समझाता, ‘‘देखना रूमाना, मैं जल्द टीवी के ड्रामों में नजर आऊंगा. फिर मेरे पास कार बंगला सब कुछ होगा.’’

इस लड़ाई में कभी बेटी फरजाना मां का साथ देती थी. 16-17 साल की फरजाना मैट्रिक की स्टूडेंट थी. कभी झुंझला कर कह देती, ‘‘आप दोनों कभी नहीं सुधरेंगे. इसी तरह लड़तेलड़ते जिंदगी गुजर जाएगी.’’

बेटी को बहलाने के लिए अफजल ने वादा किया, ‘‘अब ये सब छोड़ कर मैं काम में दिल लगाऊंगा.’’

कुछ दिन तो सुकून से गुजरे. फिर एक नया किस्सा शुरू हो गया. दुकान का किराएदार फरीद अकसर रूमाना से मिलने आने लगा. पहले तो वह महीने में 2-4 बार आता था, अब उस की आमद बढ़ गई थी. अफजल को उस का आनाजाना पसंद नहीं था. उस की आवाजाही बढ़ी तो अफजल ने ऐतराज किया, जिस से मेलमुलाकात रुक गई थी, फिर वह अफजल की गैरमौजूदगी में भी आने लगा. अब रूमाना ने बाहर मिलना भी शुरू कर दिया. यह बात भी अफजल को पता चल गई. अभी तकरार चल ही रही थी कि अचानक एक दिन अफजल बेटाइम घर पहुंच गया, उस ने दोनों को घर में ही रंगेहाथों पकड़ लिया.

अफजल गुस्से से पागल हो गया. फरीद भाग निकला. पतिपत्नी की जोरदार लड़ाई हुई. अफजल बोला, ‘‘बेगैरती और बेशर्मी की हद हो गई, एक जवान लड़की के होते हुए पराए मर्द से ताल्लुक रखती हो. ये मैं बरदाश्त नहीं कर सकता.’’

रूमाना भी चीख कर बोली, ‘‘बेगैरत तुम हो, तुम अपनी बीवी पर इलजाम लगा रहे हो मेरी उस की दोस्ती है, हम अपना दुखसुख बांट लेते हैं.’’

तकरार गालीगलौज पर पहुंच गई और तलाक पर खत्म हुई. घर रूमाना के नाम पर था. अफजल को बोरियाबिस्तर बांध कर घर छोड़ना पड़ा. बेटी फरजाना मां के पास रह गई. अब अफजल कोर्ट में केस करने के लिए मेरे पास आया था कि मैं मुकदमा लड़ कर उस की बेटी उस के हवाले कर दूं. मैं ने उसे कहा, ‘‘देखो अफजल, तुम ने रूमाना को तलाक दे दी है. अगर तुम तलाक न देते तो वह खुला (औरत तलाक मांग लेती है) ले लेती. तुम्हारे साथ हरगिज न रहती. अब तुम चाहते हो कि कोर्ट के जरिए फरजाना को रूमाना की कस्टडी से निकाल कर तुम्हारे हवाले कर दूं.’’

‘‘हां वकील साहब, मैं हर कीमत पर अपनी बेटी को अपने पास लाना चाहता हूं. उस बेशर्म औरत की संगत में वह बिगड़ जाएगी. आप सारी बातें छोड़ें और मुकदमा लड़ कर मुझे मेरी बेटी दिला दें, मैं उस से बहुत प्यार करता हूं. मैं महीने में एक बार मिलने पर तसल्ली नहीं कर सकता. आप केस लड़ें.’’

‘‘केस लड़ने के लिए 3 बातों पर गौर करना जरूरी है, तभी मैं आप का केस ले सकता हूं.’’

‘‘कौन सी 3 बातें…जल्द बताइए.’’

‘‘पहली बात तो यह कि क्या आप के पास अपना घर है?’’

‘‘नहीं, मेरे पास अपनी रिहाइश नहीं है. मेरे दोस्त बशीर का एक होटल है, उस की ऊपरी मंजिल पर स्टाफ की रिहाइश के लिए कुछ कमरे बने हैं, उन्हीं में से एक में मैं रहता हूं.’’

‘‘अगर आप के पास घर नहीं है तो यह पौइंट आप के मुखालिफ जाता है. कोर्ट लड़की को होटल में स्टाफ के लिए बने कमरों में रखने की इजाजत नहीं देगी, जबकि मां के पास खुद का घर है. दूसरा मुद्दा यह है कि क्या आप इतना कमा लेते हैं कि बेटी व उस के महंगे स्कूल का खर्च उठा सकें?’’

‘‘मैं कमा तो लेता हूं पर आमदनी रेग्युलर नहीं है. उस का स्कूल काफी महंगा है.’’

‘‘तीसरा सवाल जो सब से जरूरी है, आप की बेटी मैट्रिक में पढ़ रही है, समझदार है. क्या वह आप के पास रहने को राजी है या मां के पास रहना चाहती है?’’

‘‘ये तो जाहिर सी बात है कि वह अपनी मां के साथ रहना पसंद करती है.’’

‘‘देखिए अफजल साहब, कोर्ट औलाद की कस्टडी के लिए इन्हीं 3 बातों पर गौर करती है. इन 3 खास मुद्दों पर आप का जवाब नेगेटिव है, कोर्ट कभी भी आप को लड़की की कस्टडी नहीं देगी और आप को साफ बात बता दूं, मैं भी आप का केस नहीं लड़ सकता. मैं बेवजह आप से पैसे झटकना नहीं चाहता. हकीकत में आप का केस बहुत कमजोर है. जीतने का कोई चांस नहीं है.’’

उस दिन अफजल मेरे पास से बेहद मायूस हो कर गया. अब दोबारा आने की उम्मीद नहीं थी, पर कुछ दिनों बाद होटल के मालिक बशीर भाई मेरे सामने आ खड़े हुए. पहले मैं उन का एक केस लड़ चुका था और वह मुकदमा जीत गए थे. उन्होंने ही अफजल को मेरे पास भेजा था. आज वह फिर मेरे सामने खड़े थे. बोले, ‘‘बेग साहब, अफजल बड़ी मुसीबत में फंस गया है. वह जेल में बंद है. पुलिस ने उसे फरीद के कत्ल के इलजाम में गिरफ्तार किया है.’’

‘‘फरीद वही न, एस्टेट एजेंट, जिस की वजह से अफजल ने अपनी बीवी को तलाक दी थी.’’

‘‘जी हां, वही अफजल और वही एस्टेट एजेंट फरीद. उसी के कत्ल के इलजाम में पुलिस ने कल सुबह उसे अदालत में पेश किया और 7 दिन का रिमांड हासिल कर लिया.’’

‘‘कब हुआ ये कत्ल?’’

‘‘कत्ल 15 मई को हुआ था. उसी दिन दोपहर को मेरे होटल से उसे गिरफ्तार कर लिया गया. वह सीधा, कुछ बेवकूफ जरूर है पर वह कत्ल नहीं कर सकता. बहुत डरपोक आदमी है. मैं उसे सालों से जानता हूं, उस के खिलाफ साजिश की गई है. मेरा शक तो रूमाना पर जाता है.’’

‘‘ठीक है, मैं आज थाने जा कर अफजल से मिलता हूं. आप को पक्का यकीन है न कि वह बेकुसूर है? आप केस के बारे में और मालूमात करें. उस ने मेरी फीस अदा कर दी.’’

उसी दिन शाम को मैं उस थाने पहुंच गया, जहां अफजल बंद था. मुझे देख कर उस के चेहरे पर रौनक आ गई. वह दुखी हो कर बोला, ‘‘देखिए सर, मुझे बेवजह इस केस में फंसा दिया गया है.’’

‘‘इसीलिए तो मैं ने तुम्हारा केस हाथ में लिया है. चलो, मुझे सब कुछ सचसच बता दो.’’

वह बोला, ‘‘आप पूरी कोशिश कर के मुझे मौत से बचा लीजिए, भले ही मुझे थोड़ी सजा हो जाए. मैं फरजाना की शादी अपने हाथों से करना चाहता हूं.’’

मुझे थोड़ा ताज्जुब हुआ. मैं ने उसे तसल्ली दी, ‘‘तुम जल्द रिहा हो जाओगे, पर सच बोलना.’’

उस ने जो किस्सा सुनाया, उस का खुलासा यह है कि वह मेरा पहला मुलजिम था, जो थोड़ी सजा पर राजी था. जेहन में खयाल भी आया कि कहीं ये मुजरिम तो नहीं है जो कुछ उस ने कहा, मैं आप को बताता रहूंगा. रिमांड पूरी होने पर पुलिस ने अदालत में चालान पेश कर दिया. इस मौके पर मैं ने जमानत की कोशिश की पर मंजूर नहीं हुई. उसे जेल भेज दिया गया. पोस्टमार्टम की रिपोर्ट के मुताबिक कत्ल 15 मई को दिन के 11 बजे हुआ था. एक लोहे की रौड फरीद के सिर पर मारी गई थी, जिस से खोपड़ी चटक गई थी. मौत की जगह रूमाना का ड्राइंगरूम था. दूसरी पेशी 15 दिन बाद थी. मेरे पास तैयारी के लिए काफी टाइम था. बशीर जानकारी जुटाने में लगा था. वह अफजल का पक्का दोस्त था.

जब अदालत शुरू हुई तो जज ने अफजल को उस का जुर्म बताया. उस ने कत्ल से साफ इनकार कर दिया. इस्तगासा की तरफ से 6 गवाहों को पेश किया गया था, जिस में अफजल की एक्स वाइफ रूमाना भी थी. अफजल का बयान नोट कराया गया जो काफी सटीक था. अदालत की इजाजत से इस्तगासा के वकील ने पूछताछ शुरू की. उस ने पूछा, ‘‘क्या तुम इस बात से इनकार करते हो कि तुम मकतूल से नफरत करते थे और उसी नफरत में तुम ने फरीद का खून कर दिया?’’

‘‘मैं ने फरीद का कत्ल नहीं किया.’’ उस ने दोटूक कहा.

‘‘आलाए कत्ल पर तुम्हारे फिंगरप्रिंट्स मिले हैं.’’

‘‘मुझे नहीं मालूम रौड पर मेरे फिंगरप्रिंट्स कैसे आए?’’

‘‘क्या फरीद तुम्हारा किराएदार रहा था?’’

‘‘नहीं, वह मेरा नहीं मेरी एक्स वाइफ का किराएदार था.’’

‘‘क्या तुम ने फरीद की वजह से रूमाना को तलाक नहीं दी थी, तुम उस पर झूठा शक करते थे?’’

‘‘मैं ने कोई झूठा शक नहीं किया, जो हकीकत थी वह बरदाश्त से बाहर थी. मुझे तलाक देनी पड़ी.’’

वकील इस्तगासा कोई खास बात मालूम नहीं कर सका. बारी आने पर मैं ने बौक्स में खड़े हो कर पूछा, ‘‘इस्तगासा के 3 गवाहों ने दावा किया है कि तुम्हें कत्ल के दिन मौकाएवारदात पर देखा गया. तुम 15 मई को वहां क्या कर रहे थे?’’

वह मुझे हवालात में बता चुका था. बात मेरे पक्ष में थी, इसलिए मैं ने पूछा तो अफजल ने जवाब दिया, ‘‘मैं अपनी बेटी फरजाना से मिलने गया था.’’

‘‘तुम्हारी मुलाकात पार्क या बाहर होती थी, उस दिन तुम घर क्यों गए थे?’’

‘‘यह चेंज रूमाना के कहने पर हुआ था. हर महीने की 15 तारीख को मैं अपनी बेटी से पार्क में मिलता था. रूमाना उसे ले कर आती थी. पर इस बार 14 मई की शाम उस ने मुझे कहलवाया कि फरजाना की तबीयत ठीक नहीं है. वह पार्क नहीं आएगी. इस बार साढ़े 11 बजे उस से मिलने घर आ जाओ. फरजाना घर पर अकेली होगी, मुझे शौपिंग के लिए बाहर जाना है. वापसी लगभग एक बजे होगी. इस बीच मैं अपनी बेटी से मिल सकता हूं. मेरी कोई गलती नहीं, उस के कहने पर मैं घर गया था.’’

‘‘अच्छा, सोच कर बताओ, तुम कितने बजे रूमाना के घर पहुंचे थे?’’

‘‘मैं ठीक 12 बजे उस के घर पहुंचा था.’’

मैं ने जज से कहा, ‘‘जनाबेआली, पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार कत्ल 10 से 11 बजे के बीच हुआ. मुलजिम वहां 12 बजे पहुंचा था. यह पौइंट नोट किया जाए.’’

जज ने सिर हिला कर सहमति जताई. वकील इस्तगासा बोला, ‘‘टाइम गलत भी बताया जा सकता है, जान बचाने की खातिर. मिसेज रूमाना ने भी इस बात से इनकार किया है कि उस ने अफजल को ऐसा कोई मैसेज दे कर 12 बजे घर बुलाया था. ये बनाई हुई कहानी है.’’

‘‘यह बात मिसेज रूमाना से गवाही के समय पूछी जा सकती है.’’

‘‘जनाबेआली सब से बड़ा सबूत यह है कि आलाए कत्ल पर मुलजिम की अंगुलियों के निशान पाए गए. जब वह 12 बजे पहुंचा था तो आलाए कत्ल पर उस की अंगुलियों के निशान क्यों पाए गए?’’

‘‘आप परेशान न हों, इस का जवाब भी मिल जाएगा. हां, अफजल जब तुम रूमाना के घर पहुंचे तो तुम ने वहां क्या देखा?’’

‘‘मुझ से कहा गया था कि फरजाना घर पर अकेली होगी.’’

‘‘तो क्या फरजाना से तुम्हारी मुलाकात हुई?’’

‘‘दरवाजे के दोनों पट भिड़े हुए थे. मैं अंदर पहुंचा तो फरजाना नहीं, वहां फरीद की लाश पड़ी थी. वह सोफे पर उलटा पड़ा था और उस की खोपड़ी चटकी हुई थी. खून से कपड़े व सोफा गीला हो गया था. मैं वहां से उलटे पांव निकल गया, पर दोपहर को मुझे पुलिस ने होटल के कमरे से गिरफ्तार कर लिया. बशीर भाई ने लाख दलीलें दीं पर कुछ नहीं हुआ.’’

‘‘क्या तुम ने मौकाएवारदात पर लोहे की रौड को पकड़ा था?’’

‘‘वकील साहब, मैं ने किसी चीज को हाथ नहीं लगाया. इतना भी बेवकूफ नहीं हूं मैं.’’

‘‘पर आलाए कत्ल पर तुम्हारी अंगुलियों के निशान हैं.’’

‘‘यह बात मेरी समझ से बाहर है, ये कैसे हुआ?’’

‘‘उस आदमी का नाम क्या है जो 14 मई को रूमाना का संदेश ले कर तुम्हारे पास आया था?’’

‘‘वकील साहब, मैं उस बंदे के नाम से वाकिफ नहीं हूं. उस दिन मैं ने उसे पहली बार देखा था.’’

फिर उस दिन अदालत का वक्त खत्म हो गया. जिस तरह अफजल ने अदालत में जवाब दिए, उस से वह जरा भी नर्वस नहीं लग रहा था. ऐेसे केस लड़ने का एक अलग ही मजा है. अगली 2 पेशियों में इस्तगासा के 5 गवाह पेश हुए, उन में से एक खुरशीद था, अख्तर कालोनी में रहता था. उस ने हलफ ले कर अपना बयान दिया. वकील ने उस से अफजल के बारे में पूछा तो उस ने कहा, ‘‘जब अफजल और रूमाना का तलाक नहीं हुआ था, मैं भी उन का किराएदार था. अफजल अकसर दुकान पर आता था पर तलाक के बाद उसे घर छोड़ना पड़ा.’’

‘‘उस के बाद तुम्हारी उस से कभी मुलाकात हुई थी?’’

‘‘एकदो बार राह चलते सलामदुआ हुई. 15 मई को वाकए के दिन वह मेरी दुकान के सामने वाली गली में गया था, जिस के अंदर रूमाना का घर है.’’

‘‘अफजल तुम से रूमाना के बारे में क्या कहता था?’’

‘‘वह रूमाना के बारे में कुछ नहीं कहता था, इधरउधर की बातें होती थीं. उस की बातों से पता लगता था कि वह फरीद को पसंद नहीं करता. वह बहुत चालाक व फितना आदमी था, जो हुआ अच्छा हुआ. अफजल उस से परेशान था.’’

‘‘अफजल उस से किस वजह से नफरत करता था कि उस की बातें सुन कर तुम भी फरीद को नापसंद करने लगे.’’

‘‘जनाब, उस ने एक हंसताखेलता घर तोड़ डाला. दोनों के बीच फरीद ने ही आग लगाई थी.’’

‘‘क्या आप को लगता है कि तलाक का जिम्मेदार फरीद था? क्या अफजल का रूमाना पर शक सही था?’’

‘‘ये मुझे नहीं मालूम पर अफजल ने जो कुछ कहा, उस से यही लगता है कि वह फरीद से नफरत करता था.’’

वकील ने कहा, ‘‘जनाबेआली, 15 मई को उसे अपनी नफरत निकालने का मौका मिल गया. उस ने फरीद को ठिकाने लगा दिया.’’

उस की जिरह खत्म होने पर मैं खड़ा हुआ, ‘‘खुरशीद साहब, आप किस चीज का बिजनैस करते हैं? आप की टाइमिंग क्या है?’’

‘‘मैं कपड़े का कारोबार करता हूं. साढ़े 12 बजे तक अपनी दुकान खोलता हूं. 15 मई को मैं ने 12 बजे दुकान खोली थी.’’

‘‘आप ने 15 मई को मुलजिम को रूमाना के घर वाली गली में जाते देखा था?’’

‘‘जनाब उस वक्त 12 बजे थे. अफजल मेरी दुकान के सामने से निकल कर उस के घर वाली गली में गया था.’’

मैं जज से मुखातिब हुआ, ‘‘सर, पोस्टमार्टम की रिपोर्ट में मौत का टाइम 10 से 11 बजे है, मुलजिम 12 बजे उस तरफ जाते देखा गया, इसलिए कातिल कोई और है.’’

वकील इस्तगासा जल्दी से बोला, ‘‘हो सकता है उस दिन खुरशीद भाई ने दुकान जल्दी खोल ली हो.’’

‘‘होने को तो बहुत कुछ हो सकता है. खुरशीद भाई झूठ क्यों बोलेंगे? और फिर उन्होंने मुलजिम को गली की तरफ जाते देखा है, घर में घुसते हुए नहीं देखा.’’

इस के बाद पड़ोसन जकिया आपा की गवाही हुई. जकिया आपा को हर आएगए पर निगाह रखने का शौक था. जकिया आपा से पूछताछ में वकीले इस्तगासा नहीं मिसेज रूमाना का तलाक का मामला भी उठा. उस की गवाही से यह साबित हुआ कि अफजल 15 मई को 12 बजे के आसपास मिसेज रूमाना के घर गया था. मेरी बारी आने पर मैं ने कहा, ‘‘जकिया, आप की क्या हर आनेजाने वाले पर नजर रहती है?’’

‘‘मेरा घर रूमाना के घर के सामने है. गली का रास्ता साफ दिखता है. मैं ने अफजल को जाते देखा था. तलाक के पहले फरीद को भी आतेजाते देखती थी. उसे मैं ने समझाया भी था कि पराए मर्द से मेलजोल रखना गलत है पर उस पर असर नहीं हुआ. मैं ने तो तलाक के बाद भी रूमाना को समझाने का फैसला किया था, पर एक ऐसी बात सुनने में आई कि मैं पीछे हट गई.’’

‘‘आप ने ऐसी क्या बात सुन ली कि रूमाना को सही राह पर लाने का इरादा ही छोड़ दिया?’’

जकिया आपा मायूसी से बोली, ‘‘मैं ने सुना कि रूमाना ने फरीद से निकाह कर लिया है, अब समझाने को कुछ नहीं बचा था.’’

‘‘दैट्स आल योर औनर,’’ कह कर मैं ने जिरह खत्म कर दी. अगली पेशी पर मेरे सामने मिसेज रूमाना खड़ी थी. मैं ने इस पेशी के लिए अच्छाखासा होमवर्क किया था. यह खास गवाह थी. उसे पछाड़ने के लिए मैं ने 2-3 लोग तैयार कर रखे थे. रूमाना 35-40 साल की होगी. काफी खूबसूरत, कपड़े भी मौडर्न और कीमती पहने थी. मैं ने एक खास अंदाज में अपनी जिरह शुरू की, ‘‘मिसेज रूमाना, मैं आप की नाखुश जिंदगी के बारे में कुछ नहीं पूछूंगा, वह सब को मालूम है पर इतना जरूर कहूंगा कि अफजल बदकिस्मत है कि उस ने आप जैसा नायाब हीरा खो दिया.’’

मेरी बात सुन कर वह गुरूर से मुसकराई, फिर कहा, ‘‘मैं यह सोच कर परेशान थी कि माज़ी व अफजल की बातें कर के मुझे बोर किया जाएगा.’’

‘‘जहां जरूरी है वहां तो कहना पड़ेगा. आप ये बताइए कि मेरे क्लायंट अफजल का दावा है कि आप ने उसे 15 मई को 12 बजे फरजाना से मिलने अपने घर बुलाया था. आप का इस बारे में क्या कहना है?’’

‘‘फरजाना 8 बजे स्कूल जाती है और 2 बजे वापस आती है. क्या मैं पागल हूं जो खाली घर में उसे बेटी से मिलने बुलाऊंगी. मैं ने उसे नहीं बुलाया था.’’

‘‘यानी आप ने 14 मई को उसे कोई मैसेज नहीं भेजा था?’’

‘‘जी हां, मैं ने उसे कोई मैसेज नहीं भेजा था. उसे अदाकारी का बहुत शौक है, ये सारी ड्रामेबाजी है.’’

मैं ने आलाए कत्ल उठा लिया और उस से पूछा, ‘‘क्या आप इसे पहचानती हैं?’’

लोहे की रौड को देखते हुए वह ऐतेमाद से बोली, ‘‘ये वही रौड है, जिस से आप के क्लायंट ने फरीद का खून किया था. इस के एक सिरे पर खून व बाल चिपके हुए हैं. दूसरे सिरे पर अफजल के फिंगरप्रिंट्स हैं. स्टोरी इज वेरी क्लियर.. आप अपने क्लायंट को बहुत मासूम समझते हैं. एम आई राइट?’’

‘‘राइट. पर अगर मेरी नजर में क्लायंट खूनी होता तो मैं ये केस ही नहीं लेता. खैर, ये बताइए आप ने ये खतरनाक रौड अपने घर में क्यों रख रखा था?’’

‘‘इस रौड से मेरा कोई ताल्लुक नहीं है. हो सकता है आप का क्लायंट ही इसे छिपा कर साथ लाया हो.’’

‘‘क्या वह मकतूल को भी अपने साथ लाया था?’’

‘‘हो सकता है लाया हो, बहलानेफुसलाने में वह एक्सपर्ट है. संभव है, ड्रामेबाजी कर के ले आया हो.’’

‘‘पर मुझे तो पता लगा है कि फरीद आप से मिलने आप के घर आता था.’’

‘‘सौ फीसदी सच. वह मुझ से मिलने आता था.’’

‘‘मैं ने सुना है आप ने उस से निकाह कर लिया था,’’ मैं ने उस के सिर पर बम गिराते हुए पूछा.

वह टस से मस न हुई. ऐतमाद से बोली, ‘‘ये गंदे जहनों की गंदी सोच है. दरअसल मैं घर बदलना चाहती थी. फरीद की एस्टेट एजेंसी थी. मैं उस से सलाह कर के डिफेंस में एक फ्लैट लेना चाह रही थी, इसलिए वह मेरे पास आता रहता था. यह बात इसलिए बता रही हूं कि गंदे जहनों की गंदगी भी साफ हो जाए.’’ वह ताने के अंदाज में बोली.

‘‘यह भी तो हकीकत है कि वह हमेशा आप की बेटी की गैरमौजूदगी में आता था. जब आप अकेली होती थीं.’’

‘‘ये सच है. उसे मैं फरजाना की गैरमौजूदगी में बुलाती थी, क्योंकि उसे फरीद का घर आना कतई पसंद न था और वह अपने घर से बहुत मोहब्बत करती थी.

‘‘इसे बेचने के लिए राजी नहीं थी. इसलिए फरीद को मैं उस की गैरमौजूदगी में ही बुलाती थी. मैं ने सोचा था कि उस की जानकारी में लाए बिना डिफेंस में घर फाइनल कर लूं, बाद में उसे मना लूंगी. अब तो आप को व अदालत दोनों को तसल्ली हो गई होगी.’’

वह अल्लाह की बंदी मेरे हर बाउंसर को बड़ी खूबसूरती से हुक कर के बाउंडरी के बाहर फेंक रही थी. पर मैं भी हथियार फेंकने को राजी न था, मैं ने पूछा, ‘‘क्या 15 मई को सुबह भी मकतूल को आप से मिलने आना था?’’

‘‘नहीं, ऐसा कोई प्रोग्राम नहीं था. अगर उसे आना होता तो मैं घर पर होती.’’

‘‘वाकए के दिन आप कितने बजे घर से निकली थीं?’’

‘‘मैं करीब साढ़े 9 बजे घर से रवाना हुई थी और करीब साढ़े 12 बजे वापसी हुई थी. उस दिन मुझे टेलर के पास जाना था और किचन के लिए ग्रोसरी लेनी थी.’’ उस ने तीखे लहजे में कहा.

‘‘अगर मैं गलत नहीं हूं तो आप के टेलर का नाम तारिक है. उस की दुकान मेन रोड पर है जबकि आप ग्रोसरी बड़े बाजार के अलीबख्श से खरीदती हैं.’’

‘‘हां, आप सही फरमा रहे हैं.’’ वह अचरज से बोली. पहली बार उस के चेहरे पर उलझन नजर आई. पर लहजे का ऐतमाद वैसा ही था.

‘‘मिसेज रूमाना, वारदात के दिन पहले आप टेलर के पास गई थीं फिर ग्रोसरी लेने गई थीं?’’

‘‘मैं पहले टेलर के पास गई थी,’’ वह सोच कर बोली.

‘‘मैडम, पहले आप सामान लेने गई थीं, आप भूल रही हैं.’’ मैं ने सिक्सर मारते हुए कहा.

वह चौंक कर बोली, ‘‘आप यह बात इतने विश्वास से कैसे कह सकते हैं?’’

‘‘मेनरोड की कोई भी दुकान 12-साढे़ 12 बजे से पहले नहीं खुलती, जबकि बड़ा बाजार में 9 बजे से रौनक लग जाती है.’’

‘‘वकील साहब, आप काफी स्मार्ट और इंटेलिजेंट हैं. मैं आप की इस बात को मानती हूं कि मैं पहले बड़ा बाजार अलीबख्श की दुकान पर गई थी, उस के बाद टेलर के पास गई थी.’’

‘‘मैडम, आखिरी सवाल. क्या 15 मई को आप अलीबख्श से ग्रोसरी ले कर अपने टेलर से अपना काम करवाने में कामयाब हो गई थीं?’’

‘‘हां, हंडरेड परसेंट.’’ वह ढिठाई से बोली.

‘‘एकदम बकवास. एकदम गलत. तुम झूठ बोल रही हो. अदालत की आंख में धूल झोंक रही हो.’’ मैं ने तेज लहजे में कहा.

‘‘योर ओनर,’’ इस्तगासा के वकील ने आवाज उठाई, ‘‘वकील साहब मेरे क्लायंट से बदतमीजी कर रहे हैं. ये ज्यादती है.’’

जज ने मुझ से कहा, ‘‘ये क्या है बेग साहब?’’

मैं ने ठहरे हुए लहजे में कहा, ‘‘जनाबे आली, ये तो कुछ भी नहीं है. असल माल तो बाहर इंतजार कर रहा है. मैं अदालत की इजाजत से 2 गवाह किराना मर्चेंट अलीबख्श और टेलर तारिक को गवाही के लिए बुलाना चाहता हूं.

‘‘टेलर तारिक आप को बताएंगे कि 15 मई के दिन उन की शौप सारा दिन बंद रही थी, क्योंकि किसी की मौत की वजह से वह अपने गांव गए थे और दूसरे दिन आए. साथ ही अलीबख्श सबूत के साथ अदालत को हकीकत बताएंगे कि मैडम रूमाना ने 14 मई को उन की दुकान से ग्रोसरी खरीदी थी. बिल बुक में रसीद मौजूद है.’’

मेरे दोनों गवाहों ने सबूत के साथ गवाही दे कर यह साबित कर दिया कि रूमाना सरासर झूठ बोल रही थी. इस के बाद अदालत में जो कुछ हुआ, आप अंदाजा नहीं लगा सकते. इस गवाही से रूमाना को बुरी तरह बौखला जाना चाहिए था, पर ऐसा नहीं हुआ. वह आराम से विटनेस बौक्स में खड़ी रही. जज ने कड़े लहजे में रूमाना से कहा, ‘‘मिसेज रूमाना आप ने अदालत से झूठ क्यों बोला?’’

रूमाना के बजाए अफजल ने हथकड़ी वाला हाथ ऊपर कर के कहा, ‘‘जनाबेआली, मैं कुछ कहना चाहता हूं.’’

जज ने इजाजत दे दी. मेरा क्लायंट बोला और ऐसा बोला कि उस ने मेरी मेहनत की धज्जियां बिखेर दीं. मैं उस कलाकार की अदाकारी देखता रह गया. वह बड़े भावुक अंदाज में बोल रहा था, ‘‘जनाबेआली, मेरा जमीर मुझ पर थूक रहा था, अब मैं खामोश नहीं रह सकता. मैं लगातार अदालत से, वकील साहब से और अपने दोस्त बशीर भाई से झूठ बोलता रहा. हकीकत यह है कि मैं काफी दिनों से मकतूल का पीछा कर रहा था.

‘‘वारदात के दिन मैं उसे बहलाफुसला कर अपनी एक्स वाइफ के घर ले कर गया. उस दिन रूमाना घर पर मौजूद नहीं थी. मकतूल मेरी चाल में आ गया. ड्राइंग रूम में मैं ने उसे मौत के घाट उतारा लेकिन मेरे जाने के पहले रूमाना आ गई.

‘‘फिर हम ने मिल कर एक स्कीम बनाई, जिस में फरीद के कत्ल का इलजाम मुझ पर आए. रूमाना पर किसी का शक न जाए, फिर सब कुछ वैसा ही होता चला गया जैसा हम ने चाहा था. पर मेरे होशियार वकील ने मुझे शक के दायरे से निकाल कर रूमाना के लिए फांसी का फंदा तैयार कर दिया. हालांकि मैं ने अपने वकील साहब से कहा था कि भले ही अगर बाइजज्जत बरी न करा सकें तो कोई बात नहीं, मुझे थोड़ी सजा दिलवा दें, पर जहीन वकील ने हकीकत खोल दी. जैसा मैं ने सोचा था उस का उलटा हो गया.

‘‘मजबूरन अपने जमीर की आवाज पर मुझे अपनी जुबान खोलनी पड़ी. मैं खुदा को हाजिरनाजिर जान कर इस बात का इकरार करता हूं कि मैं मुजरिम हूं, खून मैं ने किया है. उम्मीद है मेरे इकबाली बयान के एवज में अदालत मुझ पर रहम खा कर कम से कम सजा देगी. फरीद ने मेरा घर उजाड़ दिया था, मुझे दरबदर कर दिया था.’’

जज ने मेरी तरफ देखते हुए पूछा, ‘‘बेग साहब, अब आप क्या कहते हैं?’’

मेरे क्लायंट ने मुझे कुछ कहने लायक नहीं छोड़ा था. मैं तल्खी से बोला, ‘‘सबूतों के व गवाहों के बयान की रोशनी में मैं ने अपनी पेशेवराना जिम्मेदारी बहुत अच्छे से निभाई. आगे जो इस का नसीब. मेरे क्लायंट के इकबाले बयान के बाद और जुर्म मान लेने के बाद जाहिर है इस केस से मेरा कोई ताल्लुक नहीं रहा. मैं इसे एक कड़वा घूंट समझ कर हलक से उतार लूंगा.’’

जज हां में गरदन हिला कर रह गया. लेकिन कहानी यहां खत्म नहीं होती. अफजल ने अपने फन की जो अदाकारी दिखाई थी, उसे मैं भूल न सका. लगभग 6 साल बाद अफजल और रूमाना मेरे पास आए और एक कार्ड मेरी तरफ बढ़ाते हुए कहा, ‘‘अगले थर्सडे को हमारी बेटी फरजाना की शादी है. आप जरूर तशरीफ लाएं, हमें बहुत खुशी होगी.’’

‘‘क्या मैं ये समझूं कि आप दोनों फिर से एक बंधन में बंधन गए हैं? अफजल से शादी कर के एक नई जिंदगी शुरू कर दी है? शायद मैं गलत कह गया…’’

‘‘आप बिलकुल ठीक समझे, वकील साहब.’’

‘‘फिर तो मैडम रूमाना फरीद की बेवा कहने के बजाए फरीद की कातिल कहना ज्यादा ठीक है. है न?’’

वह सिर झुका कर बोली, ‘‘बेग साहब, इस के अलावा मेरे पास कोई और रास्ता नहीं था. मैं ने फरीद की खातिर अफजल की जिंदगी खराब की. अपनी बेटी का दिल दुखाया और फरीद से शादी कर ली. पर वह कमीना बेहद घटिया इंसान था. उस की नीयत मेरी मासूम बच्ची पर खराब हो गई, उस की इज्जत लूटने की फिराक में रहने लगा था. उस का यही इलाज था.’’

पता नहीं रूमाना और क्या कहती रही, पर मैं सोच रहा था, ‘रूमाना ने मेरे मुकाबले कहीं बड़ा कड़वा घूंट हलक से उतारा था.’

 

 

 

Love Crime : गर्लफ्रेड ने ली बॉयफ़्रेंड की जान

Love Crime :  एसचओ ने ग्रामीणों की मदद से शव को तालाब से बाहर निकलवाया. शव पूरी तरह नग्न अवस्था में था. शव का बारीकी से निरीक्षण किया तो पाया कि मृतक की उम्र लगभग 30 साल थी और उस के शरीर पर धारदार हथियार से गोदे जाने के कई निशान थे.

उसी दौरान एक युवक ने लाश की शिनाख्त पिडरुआ निवासी तुलसीराम प्रजापति के रूप में की. उस की हत्या किस ने और क्यों की, यह बात कोई भी व्यक्ति नहीं समझ पा रहा था. 26 वर्षीय सविता और 28 वर्षीय तुलसीराम पहली मुलाकात में ही एकदूसरे को दिल दे बैठे थे, सविता को पाने की अभिलाषा तुलसीराम के दिल में हिलोरें मारने लगी थी, इसलिए वह किसी न किसी बहाने से सविता से मिलने उस के खेत पर बनी टपरिया में अकसर आने लगा था.

तुलसीराम प्रजापति के टपरिया में आने पर सविता गर्मजोशी से उस की खातिरदारी करती, चायपानी के दौरान तुलसीराम जानबूझ कर बड़ी होशियारी के साथ सविता के गठीले जिस्म का स्पर्श कर लेता तो वह नानुकुर करने के बजाय मुसकरा देती. इस से तुलसीराम की हिम्मत बढ़ती चली गई और वह सविता के खूबसूरत जिस्म को जल्द से जल्द पाने की जुगत में लग गया. एक दिन दोपहर के समय तुलसीराम सविता की टपरिया में आया तो इत्तफाक से सविता उस वक्त अकेली चक्की से दलिया बनाने में मशगूल थी. उस का पति पुन्नूलाल कहीं गया हुआ था. इसी दौरान तुलसीराम को देखा तो उस ने साड़ी के पल्लू से अपने आंचल को करीने से ढंका.

तुलसीराम ने उस का हाथ पकड़ कर कहा, ”सविता, तुम यह आंचल क्यों ढंक रही हो? ऊपर वाले ने तुम्हारी देह देखने के लिए बनाई है. मेरा बस चले तो तुम को कभी आंचल साड़ी के पल्लू से ढंकने ही न दूं.’’

”तुम्हें तो हमेशा शरारत सूझती रहती है, किसी दिन तुम्हें मेरे टपरिया में किसी ने देख लिया तो मेरी बदनामी हो जाएगी.’’

”ठीक है, आगे से जब भी तेरे से मिलने तेरी टपरिया में आऊंगा तो इस बात का खासतौर पर ध्यान रखूंगा.’’

सविता मुसकराते हुए बोली, ”अच्छा एक बात बताओ, कहीं तुम चिकनीचुपड़ी बातें कर के मुझ पर डोरे डालने की कोशिश तो नहीं कर रहे?’’

”लगता है, तुम ने मेरे दिल की बात जान ली. मैं तुम्हें दिलोजान से चाहता हूं, अब तो जानेमन मेरी हालत ऐसी हो गई है कि जब तक दिन में एक बार तुम्हें देख नहीं लेता, तब तक चैन नहीं मिलता है. बेचैनी महसूस होती रहती है, इसलिए किसी न किसी बहाने से यहां चला आता हूं. तुम्हारी चाहत कहीं मुझे पागल न कर दे…’’

तुलसीराम प्रजापति की बात अभी खत्म भी नहीं हुई थी कि सविता बोली, ”पागल तो तुम हो चुके हो, तुम ने कभी मेरी आंखों में झांक कर देखा है कि उन में तुम्हारे लिए कितनी चाहत है. मुझे तो ऐसा लगता है कि दिल की भाषा को आंखों से पढऩे में भी तुम अनाड़ी हो.’’

”सच कहा तुम ने, लेकिन आज यह अनाड़ी तुम से बहुत कुछ सीखना चाहता है. क्या तुम मुझे सिखाना चाहोगी?’’ इतना कह कर तुलसीराम ने सविता के चेहरे को अपनी हथेलियों में भर लिया.

सविता ने भी अपनी आंखें बंद कर के अपना सिर तुलसीराम के सीने से टिका दिया. दोनों के जिस्म एकदूसरे से चिपके तो सर्दी के मौसम में भी उन के शरीर दहकने लगे. जब उन के जिस्म मिले तो हाथों ने भी हरकतें करनी शुरू कर दीं और कुछ ही देर में उन्होंने अपनी हसरतें पूरी कर लीं.

सविता के पति पुन्नूलाल के शरीर में वह बात नहीं थी, जो उसे तुलसीराम से मिली. इसलिए उस के कदम तुलसीराम की तरफ बढ़ते चले गए. इस तरह उन का अनैतिकता का खेल चलता रहा.

सविता के क्यों बहके कदम

मध्य प्रदेश के सागर जिले में एक गांव है पिडरुआ. इसी गांव में 26 वर्षीय सविता आदिवासी अपने पति पुन्नूलाल के साथ रहती थी. पुन्नूलाल किसी विश्वकर्मा नाम के व्यक्ति की 10 बीघा जमीन बंटाई पर ले कर खेत पर ही टपरिया बना कर अपनी पत्नी सविता के साथ रहता था. उसी खेत पर खेती कर के वह अपने परिवार की गुजरबसर करता था. उस की गृहस्थी ठीकठाक चल रही थी.

उस के पड़ोस में ही तुलसीराम प्रजापति का भी खेत था, इस वजह से कभीकभार वह सविता के पति से खेतीबाड़ी के गुर सीखने आ जाया करता था. करीब डेढ़ साल पहले तुलसीराम ने ओडिशा की एक युवती से शादी की थी, लेकिन वह उस के साथ कुछ समय तक साथ रहने के बाद अचानक उसे छोड़ कर चली गई थी.

सविता को देख कर तुलसीराम की नीयत डोल गई. उस की चाहतभरी नजरें सविता के गदराए जिस्म पर टिक गईं.  उसी क्षण सविता भी उस की नजरों को भांप गई थी. तुलसीराम हट्टाकट्टा नौजवान था. सविता पहली नजर में ही उस की आंखों के रास्ते दिल में उतर गई. सविता के पति से बातचीत करते वक्त उस की नजरें अकसर सविता के जिस्म पर टिक जाती थीं.

सविता को भी तुलसीराम अच्छा लगा. उस की प्यासी नजरों की चुभन उस की देह को सुकून पहुंचाती थी. उधर अपनी लच्छेदार बातों से तुलसीराम ने सविता के पति से दोस्ती कर ली. तुलसीराम को जब भी मौका मिलता, वह सविता के सौंदर्य की तारीफ करने में लग जाता. सविता को भी तुलसीराम के मुंह से अपनी तारीफ सुनना अच्छा लगता था. वह पति की मौजूदगी में जब कभी भी उसे चायपानी देने आती, मौका देख कर वह उस के हाथों को छू लेता. इस का सविता ने जब विरोध नहीं किया तो तुलसीराम की हिम्मत बढ़ती चली गई.

धीरेधीरे उस की सविता से होने वाली बातों का दायरा भी बढऩे लगा. सविता का भी तुलसीराम की तरफ झुकाव होने लगा था. तुलसीराम को पता था कि सविता अपने पति से संतुष्ट नहीं है. कहते हैं कि जहां चाह होती है, वहां राह निकल ही आती है. आखिर एक दिन तुलसीराम को सविता के सामने अपने दिल की बात कहने का मौका मिल गया और उस के बाद दोनों के बीच वह रिश्ता बन गया, जो दुनिया की नजरों में अनैतिक कहलाता है. दोनों ने इस रास्ते पर कदम बढ़ा तो दिए, लेकिन सविता ने इस बात पर गौर नहीं किया कि वह अपने पति के साथ कितना बड़ा विश्वासघात कर रही है.

जिस्म से जिस्म का रिश्ता कायम हो जाने के बाद सविता और तुलसीराम उसे बारबार बिना किसी हिचकिचाहट के दोहराने लगे. सविता का पति जब भी गांव से बाहर जाने के लिए निकलता, तभी सविता तुलसीराम को काल कर अपने पास बुला लेती थी. अनैतिक संबंधों को कोई लाख छिपाने की कोशिश करे, एक न एक दिन उस की असलियत सब के सामने आ ही जाती है. एक दिन ऐसा ही हुआ. सविता का पति पुन्नूलाल शहर जाने के लिए घर से जैसे ही निकला, वैसे ही सविता ने अपने प्रेमी तुलसीराम को फोन कर दिया.

अवैध संबंधों का सच आया सामने

सविता जानती थी कि शहर से घर का सामान लेने के लिए गया पति शाम तक ही लौटेगा, इस दौरान वह गबरू जवान प्रेमी के साथ मौजमस्ती कर लेगी. सविता की काल आते ही तुलसीराम बाइक से सविता के टपरेनुमा घर पर पहुंच गया. उस ने आते ही सविता के गले में अपनी बाहों का हार डाल दिया, तभी सविता इठलाते हुए बोली, ”अरे, यह क्या कर रहे हो, थोड़ी तसल्ली तो रखो.’’

”कुआं जब सामने हो तो प्यासे व्यक्ति को कतई धैर्य नहीं होता है,’’ इतना कहते हुए तुलसीराम ने सविता का गाल चूम लिया.

”तुम्हारी इन नशीली बातों ने ही तो मुझे दीवाना बना रखा है. न दिन को चैन मिलता है और न रात को. सच कहूं जब मैं अपने पति के साथ होती हूं तो सिर्फ तुम्हारा ही चेहरा मेरे सामने होता है,’’ सविता ने भी इतना कह कर तुलसी के गालों को चूम लिया.

तुलसीराम से भी रहा नहीं गया. वह सविता को बाहों में उठा कर चारपाई पर ले गया. इस से पहले कि वे दोनों कुछ कर पाते, दरवाजा खटखटाने की आवाज आई. इस आवाज को सुनते ही दोनों के दिमाग से वासना का बुखार उतर गया. सविता ने जल्दी से अपने अस्तव्यस्त कपड़ों को ठीक किया और दरवाजा खोलने भागी. जैसे ही उस ने दरवाजा खोला, सामने पति को देख कर उस के चेहरे का रंग उड़ गया, ”तुम तो घर से शहर से सौदा लाने के लिए निकले थे, फिर इतनी जल्दी कैसे लौट आए?’’ सविता हकलाते हुए बोली.

”क्यों? क्या मुझे अब अपने घर आने के लिए भी तुम से परमिशन लेनी पड़ेगी? तुम दरवाजे पर ही खड़ी रहोगी या मुझे भीतर भी आने दोगी,’’ कहते हुए पुन्नूलाल ने सविता को एक तरफ किया और जैसे ही वह भीतर घुसा तो सामने तुलसीराम को देख कर उस का माथा ठनका.

”अरे, आप कब आए?’’ तुलसीराम ने पूछा तो पुन्नूलाल ने कहा, ”बस, अभीअभी आया हूं.’’

सविता के हावभाव पुन्नूलाल को कुछ अजीब से लगे, उस ने सविता की तरफ देखा, वह बुरी तरह से घबरा रही थी. उस के बाल बिखरे हुए थे. माथे की बिंदिया उस के हाथ पर चिपकी हुई थी.

यह सब देख कर पुन्नूलाल को शक होना लाजिमी था. डर के मारे तुलसीराम भी उस से ठीक से नजरें नहीं मिला पा रहा था. ठंड के मौसम में भी उस के माथे पर पसीना छलक रहा था. पुन्नूलाल तुलसीराम से कुछ कहता, उस से पहले ही वह अपनी बाइक पर सवार हो कर वहां से भाग गया.

उस के जाते ही पुन्नूलाल ने सविता से पूछा, ”तुलसीराम तुम्हारे पास क्यों आया था और तुम दोनों दरवाजा बंद कर क्या गुल खिला रहे थे?’’

”वह तो तुम से मिलने आया था और कुंडी इसलिए लगाई थी कि आज पड़ोसी की बिल्ली बहुत परेशान कर रही थी.’’ असहज होते हुए सविता बोली.

”लेकिन मेरे अचानक आ जाने से तुम दोनों की घबराहट क्यों बढ़ गई थी?’’

”अब मैं क्या जानूं, यह तो तुम्हें ही पता होगा.’’ सविता ने कहा तो पुन्नूलाल तिलमिला कर रह गया. उस के मन में पत्नी को ले कर संदेह पैदा हो गया था.

पुन्नूलाल ने कड़ा रुख अख्तियार करते हुए पति पर निगाह रखनी शुरू कर दी और हिदायत दे दी कि तुलसीराम से वह आइंदा से मेलमिलाप न करे. पति की सख्ती के बावजूद सविता मौका मिलते ही तुलसीराम से मिलती रहती थी.

सविता और उस के प्रेमी को चोरीछिपे मिलना अच्छा नहीं लगता था. उधर तुलसीराम चाहता था कि सविता जीवन भर उस के साथ रहे, लेकिन सविता के लिए यह संभव नहीं था.

सविता क्यों बनी प्रेमी की कातिल

वैसे भी जब से पुन्नूलाल और गांव वालों को सविता और तुलसीराम प्रजापति के अवैध संबंधों का पता लगा था, तब से सविता घर टूटने के डर से तुलसीराम से छुटकारा पाना चाह रही थी, लेकिन समझाने के बावजूद तुलसीराम उस का पीछा नहीं छोड़ रहा था. तब अंत में सविता ने अपने छोटे भाई हल्के आदिवासी के साथ मिल कर अपने प्रेमी तुलसीराम को मौत के घाट उतारने की योजना बना डाली.

अपनी योजना को अमलीजामा पहनाने के लिए 8 जनवरी, 2024 को सविता अपने मायके साईंखेडा चली गई, जिस से किसी को उस पर शक न हो. वहां से वह 11 जनवरी की दोपहर अपनी ससुराल पिडरुआ वापस लौट आई. उसी दिन शाम के वक्त उस ने तुलसीराम को फोन करके मिलने के लिए मोतियाहार के जंगल में बुला लिया.

अपनी प्रेमिका के बुलावे पर उस की योजना से अनजान तुलसीराम खुशी खुशी मोतियाहार के जंगल में पहुंचा. तभी मौका मिलते ही सविता ने अपने मायके से साथ लाए चाकू का पूरी ताकत के साथ तुलसीराम के गले पर वार कर दिया. अपनी जान बचाने के लिए खून से लथपथ तुलसीराम ने वहां से बच कर भाग निकलने की कोशिश की तो सविता ने चाकू उस के पेट में घोंप दिया. पेट में चाकू घोंपे जाने से उस की आंतें तक बाहर निकल आईं. कुछ देर छटपटाने के बाद ही उस के शरीर में हलचल बंद हो गई.

इस के बाद सविता के भाई हल्के आदिवासी ने तुलसीराम की पहचान मिटाने के लिए उस के सिर को पत्थर से बुरी तरह से कुचल दिया. फिर सविता ने अपने प्रेमी की नाक के पास अपनी हथेली ले जा कर चैक किया कि कहीं वह जिंदा तो नहीं है. दोनों को पूरी तरह तसल्ली हो गई कि तुलसीराम मर चुका है, तब उन्होंने तुलसीराम के सारे कपड़े उतार कर उस के कपड़े, जूते एक थैले में रख कर तालाब में फेंक दिए. लाश को ठिकाने लगाने के लिए सविता और उस का भाई हल्के तुलसी की लाश को कंधे पर रख कर हरा वाले तालाब के करीब ले गए. वहां बोरी में पत्थर भर कर रस्सी को उस की कमर में बांध कर शव को तालाब में फेंक दिया.

नग्नावस्था में मिली थी तुलसी की लाश

12 जनवरी, 2024 की सुबह उजाला फैला तो पिडरुआ गांव के लोगों ने तालाब में युवक की लाश तैरती देखी. थोड़ी देर में वहां लोगों की भीड़ जुट गई. भीड़ में से किसी ने तालाब में लाश पड़ी होने की सूचना बहरोल थाने के एसएचओ सेवनराज पिल्लई को दी.

सूचना मिलते ही एसएचओ कुछ पुलिसकर्मियों को ले कर मौके पर पहुंच गए. लाश तालाब से बाहर निकलवाने के बाद उन्होंने उस की जांच की. उस की शिनाख्त पिडरुआ निवासी तुलसीराम प्रजापति के रूप में की. वहीं पर पुलिस को यह भी पता चला कि तुलसीराम के पिछले डेढ़ साल से गांव की शादीशुदा महिला सविता आदिवासी से अवैध संबंध थे. इसी बात को ले कर पतिपत्नी में तकरार होती रहती थी.

लेकिन तुलसीराम की हत्या इस तरह गोद कर क्यों की गई, यह बात पुलिस और लोगों को अचंभे में डाल रही थी. मामला गंभीर था. एसएचओ ने घटना की सूचना एसडीओपी (बंडा) शिखा सोनी को भी दे दी थी. वह भी मौके पर आ गईं. इस के बाद उन्होंने भी लाश का निरीक्षण कर एसएचओ को सारी काररवाई कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेजने के निर्देश दिए. एसएचओ पिल्लई ने सारी काररवाई निपटा कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. फिर थाने लौट कर हत्या का मुकदमा दर्ज कर जांच शुरू कर दी.

एसडीओपी शिखा सोनी ने इस केस को सुलझाने के लिए एक पुलिस टीम गठित की. टीम में बहरोल थाने के एसएचओ सेवनराज पिल्लई, बरायथा थाने के एसएचओ मकसूद खान, एएसआई नाथूराम दोहरे, हैडकांस्टेबल जयपाल सिंह, तूफान सिंह, वीरेंद्र कुर्मी, कांस्टेबल देवेंद्र रैकवार, नीरज पटेल, अमित शुक्ला, सौरभ रैकवार, महिला कांस्टेबल प्राची त्रिपाठी आदि को शामिल किया गया.

चूंकि पुलिस को सविता आदिवासी और मृतक की लव स्टोरी की जानकारी पहले ही मिल चुकी थी, इसलिए पुलिस टीम ने गांव के अन्य लोगों से जानकारी जुटाने के बाद सविता आदिवासी को पूछताछ के लिए थाने बुला लिया.

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सविता से तुलसीराम की हत्या के बारे में जब सख्ती से पूछताछ की गई तो उस ने पुलिस को गुमराह करने की भरसक कोशिश की, लेकिन एसएचओ सेवनराज पिल्लई के आगे उस की एक न चली और उसे सच बताना ही पड़ा. सविता के खुलासे के बाद पुलिस ने सविता के भाई हल्के आदिवासी को भी साईंखेड़ा गांव से गिरफ्तार कर लिया. उस ने भी अपना जुर्म कुबूल कर लिया सविता और उस के भाई हल्के आदिवसी से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने दोनों अभियुक्तों को कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

सविता और उस के भाई हल्के ने सोचा था कि तुलसीराम को मौत के घाट उतार देने से बदनामी से छुटकारा और बसा बसाया घर टूटने से बच जाएगा, लेकिन पुलिस ने उन के मंसूबों पर पानी फेर कर उन्हें जेल की सलाखों के पीछे पहुंचा दिया. तुलसीराम की हत्या कर के सविता और उस का भाई हल्के आदिवासी जेल चले गए. सविता ने अपनी आपराधिक योजना में भाई को भी शामिल कर के अपने साथ भाई का भी घर बरबाद कर दिया. Love Crime

Stories in Hindi : वो काली मनहूस रात

Stories in Hindi : युवा उद्योगपति रोहित अग्रवाल हर अमावस की रात को फाइवस्टार होटल से एक लड़की ले कर अपने बंगले पर लौटता था. फिर उस लड़की को निर्वस्त्र कर हाथपैर बांध कर घुटने के बल बैठा देता था. इस के बाद चाकू की नोक से उस की पीठ पर लिख देता था ‘बेवफा’. आखिर वह ऐसा क्यों करता था?

एक पेशेंट के चेहरे की ड्राफ्टिंग तैयार कर के मैं वार्ड में आया तो वार्डबौय विनोद ने मुझे एक लिफाफा ला कर दिया. यह डाक से मेरे नाम आया एक पत्र था. पत्र लंदन से भेजा गया था. मुझे बेहद हैरानी हुई, लंदन में मेरा कोई पहचान वाला नहीं रहता था. पत्र किस ने भेजा है? सोचते हुए मैं ने भेजने वाले का नाम पढ़ा तो खुशी के कारण मेरे मुंह से चीख निकल गई. वार्ड में मौजूद पेशेंट और स्टाफ के लोग मेरी चीख सुन कर मुझे आश्चर्य से देखने लगे तो मैं झेंप गया. मैं तुरंत वहां से अपने रेस्टरूम में आ गया. यह पत्र लंदन से रोहित ने भेजा था. रोहित अग्रवाल! मेरा दोस्त रोहित, जिसे मैं एक साल से पागलों की तरह तलाश कर रहा था.

रोहित मुंबई से अचानक ही गायब हो गया था. मैं ने उसे हर संभावित जगह पर ढूंढा था, उस के लिए मुंबई के हर छोटेबड़े अखबारों में उस की गुमशुदगी का इश्तहार छपवाए थे, लेकिन उस का कोई अतापता नहीं चला था. चलता भी कैसे, वह तो भारत से सैकड़ों मील दूर लंदन में बैठा हुआ था. आज उसे मेरी याद आई थी. मैं ने आराम कुरसी पर बैठने के बाद पत्र लिफाफे से बाहर निकाला और पढऩे लगा—

‘प्रिय दोस्त अभय! लंदन के होटल शार्क में एक हिंदुस्तानी व्यक्ति के पास मुंबई से निकलने वाले न्यूजपेपर ‘लोकमत’ में अपनी गुमशुदगी का इश्तहार देख कर दिल को बहुत सुकून मिला कि तुम आज भी मुझे अपना मानते हो. मेरी तलाश में भटक रहे हो और तुम ने मेरी दोस्ती को भुलाया नहीं है.

‘दोस्त, मैं भी तुम्हें नहीं भूला हूं. किसी मजबूरीवश मुझे अचानक मुंबई छोडऩी पड़ी थी. अब में लंदन में हूं. यहां मैं ने ‘अग्रवाल फेब्रिक इंडिया’ नाम से एक कंपनी खोल ली है. तुम्हें हर रोज याद करता हूं. तुम पत्र पाते ही तुरंत लंदन चले आओ, फिर बैठ कर ढेर सारी बातें करेंगे. आने से पहले मेरे मोबाइल पर सूचना देना, मेरा मोबाइल नंबर यह है 993333333 तुम्हारा दोस्त रोहित अग्रवाल.’

रोहित का पत्र पढ़ कर मैं उस की यादों में खो गया. रोहित मुंबई के मशहूर उद्योगपति धीरेन अग्रवाल का इकलौता बेटा था. धीरेन अग्रवाल की मुंबई में कपड़ा मिल थी, जिस में सैकड़ों मजदूर काम करते थे. धीरज अग्रवाल की पत्नी की असमय ही कैंसर से मृत्यु हो गई थी, उस वक्त रोहित 11 साल का था. धीरेन अग्रवाल ने मां और बाप की जिम्मेदारी निभाते हुए रोहित की परवरिश की थी. उन के पास धनदौलत की कोई कमी नहीं थी. उन के बाद सब कुछ रोहित का ही था, फिर भी उन्होंने रोहित को पढ़ानेलिखाने में कोई कंजूसी नहीं की.

रोहित की पहचान मुझ से सेंट पीटर्स स्कूल में हुई थी. यहां मैं दसवीं कक्षा में पढ़ रहा था. रोहित भी इसी स्कूल में मेरी क्लास का छात्र था. यहां ऊंचे घराने के बच्चे पढ़ते थे. चूंकि मेरे पापा का एक रोड एक्सीडेंट में निधन हो गया था, मैं अपने चाचाचाची के पास रह कर जीवनयापन कर रहा था. मेरे चाचाजी इसी स्कूल में चपरासी थे, उन्होंने स्कूल प्रशासन के हाथपैर जोड़ कर मेरा एडमिशन इस स्कूल में करवा दिया था. रोहित अमीर बाप का बेटा था, लेकिन उस में इस बात का जरा सा भी घमंड नहीं था. उस ने मुझे अपना दोस्त बनाया तो अपनी खानेपीने की चीजें मुझ से शेयर करने लगा. मेरी छोटीमोटी जरूरतों का वह पूरा खयाल रखने लगा था. हम ने हाईस्कूल इसी स्कूल से पास किया. बाद में रोहित ने अपना एडमिशन सोमैय्या आर्ट ऐंड कमर्शियल कालेज में करवा लिया था.

मेरी रुचि साइंस में थी, लेकिन इस की पढ़ाई के लिए मेरे चाचा के पास पैसे नहीं थे. रोहित ने मेरी इच्छा को देखते हुए मेरा एडमिशन सेंट जेवियर्स कालेज में अपने खर्चे से करवा दिया. उस दिन मैं रोहित के गले लग कर खूब रोया. रोहित मेरी पीठ सहलाता रहा, जब मैं ढेरों आंसू बहा लेने के बाद उस के कंधे से हटा तो रोहित ने मुसकरा कर कहा था, ”तुम बड़े डाक्टर बन कर मुंबई में अपना हौस्पिटल खोलो, मेरी यही इच्छा है अभय.’’

मैं ने सिर हिला कर उसे आश्वासन दिया कि तुम्हारी इच्छा का मैं खयाल रखूंगा मेरे दोस्त. यहां से हम दोस्त अलग हुए थे. रोहित अपने कालेज जाता, मैं अपने. यहां की पढ़ाई पूरी कर के मैं प्लास्टिक सर्जरी का कोर्स करने के लिए अमरीका चला गया. इस का भी पूरा खर्च रोहित ने ही उठाया था. अब हम दोनों के बीच बातचीत का जरिया फोन ही था. मैं रोहित का सपना साकार करने के लिए जी जान से मेहनत कर रहा था, अभी मेरे कोर्स का एक साल और बचा था कि रोहित के डैडी वीरेन अग्रवाल का हार्ट अटैक से देहांत हो गया. रोहित को अपना कालेज छोड़ कर डैडी का कारोबार संभालना पड़ा. वह मेरी मदद करने में तब भी पीछे नहीं हटा.

मैं अमरीका में था, रोहित मुंबई में. हमारे बीच फोन से बातें होती थीं. रोहित रोज शाम को मुझ से फोन पर बातें करता था. अचानक रोहित के फोन आने बंद हो गए. मैं ने बहुत कोशिश की थी कि किसी तरह रोहित से संपर्क हो जाए, लेकिन रोहित का नंबर नाट रिचेबल आता रहा. मैं रोहित के बगैर छटपटाता रहा. मजबूर था, मैं पढ़ाई छोड़ कर मुंबई नहीं लौट सकता था. एक साल बाद मैं प्लास्टिक सर्जन बन कर भारत लौटा. मुंबई एयरपोर्ट से मैं सीधा टैक्सी ले कर धीरेन अग्रवाल के बंगले पर गया तो मुझे जबरदस्त धक्का लगा. रोहित वह बंगला और अपना मिल मैनेजर को सौंप कर कहीं चला गया था. वह कहां गया, यह बात मैनेजर भी नहीं जानता था.

मैं समझ नहीं पाया कि अचानक रोहित को यह क्या सूझी कि वह अपने डैडी की जमीनजायदाद मैनेजर के हवाले कर के मुंबई से क्यों चला गया. ऐसी क्या समस्या आ गई उस के जीवन में. मैं ने उसे हर मुमकिन जगह तलाश किया. इस दौरान मैं ने स्मार्ट ब्यूटीकेयर हौस्पिटल में हैड प्लास्टिक सर्जन की जौब जौइन कर ली थी. रोहित को तलाश करने के लिए मैं ने अखबारों में इश्तहार भी छपवाए, लेकिन उस का कुछ पता नहीं चला. आज अचानक ही रोहित का मेरे नाम से पत्र आया तो मैं ने चैन की सांस ली. वह लंदन में था और मैं उस से मिलने लंदन जाने को उतावला हो उठा था. मैं ने हौस्पिटल से 15 दिन की छुट्टी ली और दूसरे दिन ही लंदन के लिए हवाई जहाज में बैठ गया.

लंदन के हीथ्रो एयरपोर्ट पर मैं सुबह उतरा तो पीली चटक धूप खिली हुई थी. मैं ने रोहित के मोबाइल पर लंदन आने की पहले ही सूचना दे दी थी. वह एयरपोर्ट पर मुझे लेने आया था. मुझे देख कर उस ने गैलरी से हाथ हिलाया तो मैं दौड़ कर उस के गले से जा लगा. उस वक्त उस में पहले जैसा ही जोश और उत्साह मैं ने महसूस किया. एकदूसरे के गले लग कर हम यूं मिले, जैसे बरसों से बिछुड़े हुए अब जुदा नहीं होंगे. हमारी आंखों में आंसू थे.

”तुम ने अचानक से मुंबई छोड़ दी रोहित और यहां इतनी दूर आ कर बसेरा कर लिया, जान सकता हूं तुम ने ऐसा क्यों किया?’’

”लंबी कहानी है अभय, वक्त आएगा तो बता दूंगा. आओ घर चलें.’’ एक हलकी सी मुसकराहट चेहरे पर ला कर रोहित बोला और मुझे ले कर कार पार्किंग में आ गया.

पार्किंग में उस की शानदार कार खड़ी थी. मुझे अपने पास सीट पर बिठा कर उस ने खुद ड्राइविंग सीट संभाल ली. हमारा सफर शुरू हुआ. भव्य ऊंची इमारतों को पीछे छोड़ती हुई कार उस ओर बढ़ी, जिधर वीरान जंगल और पहाड़ों की लंबी शृंखला फैली हुई थी. शहर से दूर पहाड़ों के बीच में एक अकेला बंगला खड़ा था. कार उसी बंगले के पोर्च में आ कर रुकी. एक बूढ़ा नौकर दौड़ कर कार के पास आ गया.

”यह डेविड अंकल हैं. मेरे साथ यहीं रहते हैं. हम इस बंगले में सिर्फ 2 ही लोग हैं अभय. अब तुम आ गए हो तो हम 3 हो गए.’’ रोहित ने हंसते हुए कहा और कार से नीचे उतर गया.

”मैं यहां हमेशा थोड़ी रहूंगा दोस्त, तुम्हारे लिए 15 दिन की छुट्टी ले कर आया हूं.’’ मैं ने कहा और अपना सूटकेस उठाने लगा.

”रहने दो, यह सूटकेस डेविड अंकल तुम्हारे कमरे में पहुंचा देंगे.’’

मैं रोहित के साथ अंदर ड्राइंगरूम में आया तो वह बोला, ”अभय, तुम फ्रेश हो जाओ. हम साथ में बैठ कर नाश्ता करेंगे.’’

फे्रश होने के बाद मैं ने रोहित के साथ बैठ कर नाश्ता किया. नाश्ते के दौरान रोहित ने बताया, ”मैं ने अचानक मुंबई छोड़ी थी अभय, उस वक्त तुम अमरीका में थे, मैं तुम से संपर्क नहीं कर पाया, यहां आने के बाद मैं काम में उलझ गया. एक दिन जब शार्क होटल में एक हिंदुस्तानी के पास ‘लोकमत’ न्यूजपेपर में अपनी गुमशुदगी का तुम्हारी ओर से छपवाया गया इश्तहार पढ़ा तो मुझे तुम्हारी याद हो आई.

”मुझे मालूम था तुम कोर्स पूरा कर के मुंबई लौट आए होगे और किसी बड़े हौस्पिटल में प्लास्टिक सर्जन का पद जौइन कर लिया होगा तो मैं ने मुंबई के हर बड़े हौस्पिटल में तुम्हारे बारे में मालूम किया. मुझे स्मार्ट ब्यूटी केयर हौस्पिटल में तुम्हारे बड़ा सर्जन होने की जानकारी मिली तो मैं ने तुम्हारे नाम पत्र लिखा. इस प्रकार आज फिर मैं अपने अजीज दोस्त से मिल पाया हूं. अच्छा अभय, तुम अपना हौस्पिटल कब खोलने वाले हो?’’ रोहित ने पूछा.

”बहुत जल्द रोहित, मैं उस के लिए पैसा इकट्ठा कर रहा हूं.’’ मैं ने मुसकरा कर बताया, ”और हां, मैं अपने हौस्पिटल का नाम ‘पार्थ ब्यूटी होम’ रखने वाला हूं.’’

”पार्थ क्यों?’’

”तुम्हारी बदौलत ही मैं इस मुकाम पर पहुंचा हूं दोस्त, तुम मेरे लिए सब कुछ हो और मैं तुम्हारा पार्थ यानी सेवक हूं.’’

मैं ने नाश्ता खत्म किया और डेविड अंकल के साथ एक रूम में चला आया. मेरा सामान डेविड ने इसी कमरे में ला कर रख दिया था. इस में बैडरूम कम स्टडीरूम जैसी सुविधा थी. मैं नर्म बिस्तर पर लेटा तो जल्दी ही मुझे नींद ने अपनी आगोश में ले लिया.

मेरी नींद खुली तो शाम ढलने को आ गई थी. मैं खूब सोया था. मुझे जगा देख कर डेविड मेरे लिए कड़क चाय और बिसकुट ले कर आए. मैं ने उन से रोहित के विषय में पूछा तो वह गंभीर स्वर में बोले, ”आज अमावस है न बेटा, रोहित हर अमावस को शहर जाता है.’’

”क्यों?’’ मैं ने हैरानी से पूछा.

”जाता होगा क्लबों और बार में, जब रात को लौटता है तो उस के साथ एक जवान और सुंदर लड़की होती है.’’

रोहित के विषय में यह जानकारी काफी चौंकाने वाली थी. मैं उसे अच्छे से जानता था, उसे न बार, क्लबों में जाने का शौक था, न कभी उस ने किसी लड़की के साथ दोस्ती की थी. वह लड़कियों से दस कदम दूर रहता था. फिर यहां लंदन में आ कर उस ने यह शौक कैसे पाल लिए. मेरी समझ में नहीं आ रहा था.

”मैं अपने मालिक के लिए झूठ क्यों बोलूंगा. फिर रोहित तो मेरे बेटे जैसा है, मैं उसे बदनाम क्यों करूंगा. मैं ने 3 अमावस की रातों को रोहित को नशे में लडख़ड़ाते देखा है. उस के साथ लड़की भी यहां आते देखी है. लेकिन…’’

”लेकिन क्या अंकल?’’

”जो लड़की रोहित के साथ यहां आईं, वह मैं ने वापस जाते नहीं देखीं. तलाश करने पर वह लड़की मुझे बंगले में नहीं मिली.’’

मैं चाय पी कर टहलने के इरादे से बंगले के लौन में आ गया. रोहित का एक नया रूप मेरे सामने उजागर हुआ था. मैं यह मानने को तैयार नहीं था कि मेरा दोस्त एक ऐसा नकाब पहने हुए है, जिस के पीछे एक बुरा इंसान छिपा हुआ है. मैं इस की असलियत खुद जानने को उत्सुक हो गया. लौन में रंगबिरंगे फूल लगे हुए थे. उन्हें निहारते हुए मैं लौन को पार कर के बंगले के पीछे निकल आया. पीछे एक बड़ा सा तालाब था. वह शांत दिखाई दे रहा था, लेकिन मैं जैसे ही उस तालाब के किनारे गया, उस में से बड़ीबड़ी मछलियां उछलती हुई किनारे पर आ गईं. शाम पूरी तरह ढल गई थी. मैं बंगले में लौट आया और अपने कमरे में आ कर लेट गया. रोहित अभी तक शहर से वापस नहीं लौटा था.

8 बजे डेविड अंकल ने मुझे आ कर बताया कि रोहित ने फोन कर के कहा है कि मैं खाना खा लूं, वह देर से लौटेगा. मैं ने डेविड अंकल से खाना अपने कमरे में ही मंगवा लिया. खाना खा लेने के बाद मैं फिर से बिस्तर पर लेटा तो मेरी आंख लग गई. अचानक मेरी नींद किसी आहट से टूटी. मैं ने देखा रात के 12 बज रहे थे. आहट मेरे दरवाजे पर हुई थी. मैं उठ कर दबेपांव दरवाजे पर आया और दरवाजे से कान लगा दिए. बाहर बरामदे में कोई खड़ा था. मैं ने कीहोल से आंख लगा कर देखा तो मुझे रोहित नजर आया. शायद मेरे दरवाजे पर मेरी स्थिति भांपने आया था.

कुछ क्षण बाद वह मेरे दरवाजे से हट कर बरामदे में जाता नजर आया तो मैं ने धीरे से दरवाजा खोल दिया. रोहित बंगले के पीछे के भाग की तरफ जा रहा था. कुछ सोच कर मैं दबे कदम रोहित के पीछे लग गया. रोहित गैलरी पार कर के बंगले के अंतिम छोर पर आ कर रुक गया, यहां से आगे रास्ता नहीं था, समतल दीवार थी. रोहित ने दीवार पर लगी एक खूंटी को पकड़ कर घुमाया तो दीवार में एक दरवाजा खुल गया. मैं हैरान रह गया. इस दीवार में बड़ी सफाई से चोर दरवाजा भी बनाया जा सकता है, यह आश्चर्य की बात थी. रोहित उस दरवाजे से अंदर चला गया तो दरवाजा बंद हो गया. मैं लपक कर वहां आया और मैं ने वही खूंटी घुमा कर दरवाजा खोल लिया और अंदर घुस गया. सामने शीशे का हाल था. उस हाल में नजर पड़ते ही मैं बुरी तरह चौंक गया.

हाल में एक खूबसूरत लड़की घुटने के बल बैठी हुई थी. उस लड़की के हाथपांव पीछे की तरफ रस्सियों से बांध दिए गए थे. उस के तन पर एक भी कपड़ा नहीं था. वह बेहद डरी हुई दिखाई दे रही थी. रोहित उस के सामने खड़ा था. चूंकि रोहित की पीठ मेरी तरफ थी, वह मुझे नहीं देख पाया था. रोहित के हाथ में चाकू था. वह क्या करने वाला था, मैं नहीं समझ पाया. मैं दम साधे देख रहा था. रोहित उस भय से सहमी लड़की से कुछ कह रहा था. क्या, यह मैं नहीं सुन सकता था. शायद शीशे का वह हाल साउंडप्रूफ था. मैं उस के बाहर था, इसलिए मुझे कोई भी आवाज सुनाई नहीं दे रही थी.

इस लड़की से कुछ कहने के बाद रोहित उस की तरफ बढ़ा तो मैं ने महसूस किया कि लड़की उस से दया की भीख मांग रही है, किंतु रोहित पूरा वहशी बना हुआ था. उस ने आगे बढ़ कर लड़की के बाल मुट्ठी में पकड़े और लड़की की पीठ पर चाकू से खुरचखुरच कर कुछ लिखने लगा. लड़की को मैं ने तड़पते और गला फाड़ कर चीखता महसूस किया तो मेरी आंखों में आंसू छलक आए. मेरा दोस्त, जिसे मैं क्या समझता था, आज मुझे किसी राक्षस से कम नहीं लग रहा था. लड़की असहनीय पीड़ा से चीखती हुई फर्श पर औंधी गिरी तो मैं ने पढ़ा, रोहित ने उस की पीठ पर चाकू से ‘बेवफा’ शब्द खुरचा था.

‘उफ!’ मैं ने आंखें बंद कर लीं. रोहित ने अब उस लड़की को सीधा कर के उस के सीने में चाकू उतार दिया था. लड़की बुरी तरह तड़प रही थी, उस के शरीर से खून निकल कर फर्श को लाल करने लगा था. रोहित ने उसे उसी हालत में उठाया और शीशे की दीवार के पास ले आया. वहां कोई लीवर था, उसे दबाने से शीशे में बड़ी सी खिड़की खुल गई. रोहित ने तड़पती हुई लड़की को उस खिड़की से बाहर उछाल दिया. अब मेरी समझ में आ गया था कि वह लड़की वापस क्यों नहीं जाती. रोहित उस का बेरहमी से कत्ल कर उस की लाश तालाब में फेंक देता है, मछलियां लड़की को चट कर हैं. मेरा मन रोहित के प्रति उस वक्त घृणा से भर गया. मैं चुपचाप वहां से बाहर निकला और भारी कदमों से अपने कमरे में आ गया. मुझे रात भर नींद नहीं आई. मैं बिस्तर पर पड़ा रोहित के विषय में सोचता रहा.

सुबह मैं फ्रेश हुआ तो डेविड अंकल ने आ कर कहा, ”मालिक तुम्हारा ब्रेकफास्ट के लिए इंतजार कर रहे हैं बेटा अभय.’’

”हां. चलता हूं अंकल.’’ मैं ने पैरों में स्लीपर पहनते हुए कहा.

मैं डेविड अंकल के साथ ड्राइंगरूम की तरफ बढ़ा तो रोहित ने मुसकरा कर मेरा स्वागत किया, ”माफ करना अभय, कल मुझे अचानक एक जरूरी काम से शहर जाना पड़ गया था. मैं तुम्हें पहाड़ पर नहीं ले जा सका. आज…’’

मैं ने बात काट दी, ”आज नहीं रोहित, फिर किसी रोज चलेंगे.’’

”जैसा तुम्हें ठीक लगे, हम बाद में चल लेंगे.’’ रोहित ने कहा और मेरे लिए टोस्ट पर मक्खन लगाने लगा.

”रोहित, मैं ने कल तुम से पूछा था कि तुम ने अचानक से मुंबई क्यों छोड़ दी? तुम ने कहा कि लंबी कहानी है, बाद में बताऊंगा. आज तुम्हें बताना होगा कि ऐसी क्या बात हुई कि तुम मुंबई छोड़ कर लंदन में आ बसे?’’

”तुम जानने की जिद कर रहे हो तो सुनो,’’ रोहित ने गहरी सांस ले कर बताना शुरू किया, ”तुम डाक्टरी कोर्स करने अमरीका चले गए तो मेरे साथ बहुत कुछ घटा. दिल का दौरा पडऩे से अचानक डैडी चल बसे. मुझे अपनी पढ़ाई बीच में छोड़ कर डैडी का कारोबार संभालना पड़ा. मैं अब रोज कंपनी के औफिस में जाने लगा था.

”एक दिन मेरे औफिस में एक लड़की आई. वह जवान और खूबसूरत थी. बहुत गरीब घर से थी. उस के बाप का साया सिर पर नहीं था, मां थी, लेकिन बीमार रहती थी. घर में

कोई कमाने वाला नहीं था. 12 क्लास पढ़ी हुई थी, उसे काम चाहिए था. मुझे उस पर न जाने क्यों तरस आ गया. मैं ने उसे स्टेनो के पद पर रख लिया.

”मैं धीरेधीरे उस की तरफ आकर्षित होने लगा. वक्तबेवक्त मैं उस की खुले मन से मदद करने लगा. वह मेरे दिल की आवाज को पहचान गई. उस ने मेरी तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाते हुए एक बात कही थी, ‘रोहित बाबू, मैं बेशक गरीब घर की हूं, लेकिन एक इज्जतदार बाप की बेटी हूं. मुझ से प्यार के नाम पर ऐसा छल मत करना कि मुझे शर्मिंदा हो कर किसी कुएंतालाब में जगह ढूंढनी पड़े.’

”मैं ने उसे विश्वास दिलाया कि मैं मर जाऊंगा, लेकिन तुम्हारे साथ कभी छल नहीं करूंगा.’’ एक क्षण को रोहित रुका, फिर कहने लगा, ”अभय, मैं ने उसे दिल से चाहा, वह यह मेरा पहला और आखिरी प्यार थी. उस के कहने पर मैं ने उस के साथ सात फेरे लेने का मन बना लिया था. इस के लिए मैं ने 15 मई का दिन तय किया.

”उस दिन अमावस थी. मुझे कुछ लोगों ने कहा कि अमावस की रात को दुलहन के साथ फेरे लेना शुभ नहीं होते, लेकिन मैं इन बातों पर विश्वास नहीं करता था. मैं ने लोगों से कहा कि मेरी होने वाली दुलहन पूनम का चांद है, उस की रोशनी से अमावस का अंधेरा भी जगमगा उठेगा.

”कार्ड छपे. शादी की तैयारियां जोरशोर से शुरू हुईं और फिर वह अमावस की रात भी आ गई, जिस दिन मुझे मेरी प्रियतमा के साथ अग्नि के सात फेरे लेने थे.

”मुंबई के वरसोवा वाले बंगले को दुलहन की तरह सजाया गया था. मुंबई शहर के जानेमाने उद्योगपति, मेरे मित्र और अन्य प्रतिष्ठित

व्यक्ति हमारी एंगेजमेंट और शादी में शामिल होने के लिए बंगले में आने शुरू हो गए थे. एंगेजमेट और शादी का समय रात 11 बजे रखा गया था.

”मैं दूल्हा बन कर मित्र मंडली में बैठा हंसीठिठोली कर रहा था. मेरी दुलहन, जिसे मैं पूनम के नाम से पुकार रहा हूं, वह भी एक कमरे में दुलहन के लिबास में सजसंवर रही होगी, मैं यही सोचे बैठा था, लेकिन मुहूर्त पर जब वह स्टेज पर नहीं आई तो मैं उसे बुलाने उस कमरे में गया, जहां वह मेकअप करवा रही थी. वह कमरा खाली था. मैं हैरानपरेशान पूनम को बंगले में तलाश करने लगा.

”मुझे टूटे हुए गजरे के फूल नीचे बेसमेंट में जाने वाली सीढिय़ों पर दिखाई दिए तो मैं बेसमेंट में उतर राया. उफ!’’ रोहित के मुंह से सर्द आह निकली. वह थके से स्वर में बोला, ”अभय, मेरी पूनम कपड़ा उद्योगपति पीयूष गिडवानी की बांहों में मुझे मिली तो मेरे सारे अरमान ताश के पत्तों की तरह बिखर गए. मैं पूनम की बेवफाई पर रो पड़ा. क्या नहीं था मेरे पास कि उस बेवफा ने मुझे पीयूष की नजरों में बौना बना दिया. उस ने मुझे धोखा दिया था अभय. मेरे दिल पर उस ने गहरी चोट की थी.’’ रोहित कहतेकहते बच्चों की तरह रोने लगा.

मुझे रोहित के ऊपर तरस हो आया, मैं ने रोहित का कंधा थपथपा कर उसे ढांढस बंधाने के बाद कहा, ”मुझे उस का सही नाम बताओ रोहित, मैं उस से मिलूंगा और…’’

”अब कोई जरूरत नहीं है अभय. मैं ने उस बेवफा को भुला दिया है. मेरे लिए वह उसी दिन मर गई थी, जब उस ने मुझ से शादी वाले दिन बेवफाई की थी. मैं ने उसे और मुंबई शहर को भुला देने के लिए वहां से दूरी बना ली. फिर मैं लंदन आ गया. अब मैं उसे याद नहीं करता.’’

मुझे रोहित के दिलोदिमाग से लड़की जात के प्रति पैदा हुई नफरत को समाप्त करना था. सब से पहले मुझे उस नागिन का पता लगाना था, जिस ने रोहित को डसा था और इस अंजाम तक पहुंचाया था. उस का पता मुझे रोहित के कमरे से चल सकता था. मैं रोहित के बैडरूम में घुस गया और उस की अलमारियों की तलाशी लेने लगा. मैं ने वहां रखे सामान को उलटपलट डाला. मेज की ड्राअर, सेफ आदि देख लेने के बाद मैं ने रोहित के पलंग का बिस्तर पलटा तो मुझे गद्दे के नीचे एक लड़की की तसवीर नजर आ गई. मैं ने जैसे ही वह तसवीर उठा कर देखी, मुझे जबरदस्त झटका लगा. यह तसवीर शालू की थी.

शालू, जो रजनी बन चुकी थी. वह अब मेरी प्रेमिका थी, मैं उसे बहुत प्यार करता था. मेरी आंखों के आगे शालू से हुई पहली मुलाकात का एकएक दृश्य उजागर होने लगा.

मैं ने अमरीका से लौट कर मुंबई में स्मार्ट ब्यूटीकेयर हौस्पिटल में प्लास्टिक सर्जन का पद जौइन कर लिया था और मुझे रहने के लिए हौस्पिटल की तरफ से एक फ्लैट मिल गया था. एक दिन मेरे फ्लैट पर एक लड़की साफसफाई का काम मांगने आई. मैं ने देखा उस ने अपना चेहरा दुपट्टे से छिपा रखा था. वह 2 दिन से भूखी थी, उस की आंखों में याचना थी, वह बहुत मायूस और मजबूर लगी मुझे. मैं ने उस पर तरस खा कर उसे काम पर रख लिया. 2-3 दिन में ही मैं ने पहचान लिया कि वह मेहनती है. मैं ने उस से 3 दिन बाद उस के बारे में पूछा तो उस ने बताया कि वह दुनिया में अकेली है. वह 2 वक्त की रोटी के लिए दरदर भटक रही थी, उस के सिर पर छत भी नहीं थी. आप के यहां मुझे काम मिला है तो अब मैं पेट भर कर खा लेती हूं और फ्लैट के बाहर सो जाती हूं.

”आज से तुम बाहर नहीं सोओगी, स्टोर रूम खाली है, उस में अपना बिस्तर लगा लो. और हां, तुम यह अपना चेहरा क्यों छिपा कर रखती हो?’’

उस ने गहरी सांस भर कर उदास स्वर में कहा, ”मेरी भी हसरतें जवान हुई थीं साहब, मैं ने भी एक स्मार्ट युवक से दिल लगा लिया था. वह अमीर घर से था, उस ने मुझे अपने दिल की रानी बना कर महलों में रखने की कसमें खाई थीं, लेकिन न जाने क्यों उस ने मुझे ‘बेवफा’ घोषित कर दिया और मेरे चेहरे पर तेजाब डाल कर इस शहर से ही गायब हो गया. अब मैं अपना झुलसा हुआ यह कुरूप चेहरा किसी को नहीं दिखा सकती, इसलिए ढक कर रखती हूं.’’

”ओह!’’ मैं ने तड़प कर कहा, ”मुझे अपना चेहरा दिखाओ, मैं प्लास्टिक सर्जन हूं, तुम्हारे चेहरे की कुरूपता खत्म कर सकता हूं.’’

उस ने अपना चेहरा मुझे दिखाया. उस के बाएं चेहरे को तेजाब ने बुरी तरह झुलसा दिया था. जख्म सूख चुका था, लेकिन जला हुआ वह हिस्सा इस लड़की को बहुत बदसूरत बना रहा था.

मैं ने उसे आश्वासन दिया कि मैं इस जले हुए चेहरे को नई सुंदरता दूंगा.

वादे के मुताबिक मैं ने शालू के चेहरे की प्लास्टिक सर्जरी की और उस के कहने पर उस को एक नया चेहरा और नया नाम दे दिया रजनी. रजनी मेरे अहसान तले दब गई थी, लेकिन मैं ने इस का कोई गलत फायदा नहीं उठाया. मैं उसे दिल की गहराई से प्यार करने लगा. वह भी मुझे चाहने लगी. हमारे प्यार में निर्मलता थी, पवित्रता थी. उस अमावस की मनहूस रात की सच्चाई क्या थी, मुझे अब यह मालूम करना था. इस के लिए मुझे मुंबई लौटना जरूरी था.

मैं ने अचानक अपना सामान पैक किया. रोहित औफिस से नहीं लौटा था. मैं ने डेविड अंकल से झूठ बोला कि मुंबई से काल आई है, मेरा एक पेशेंट बहुत सीरियस है, मुझे तुरंत बुलाया गया है. रोहित से मैं फोन पर बात कर लूंगा. मैं चुपचाप एयरपोर्ट आया और मुंबई जाने वाली फ्लाइट ले कर मुंबई के लिए रवाना हो गया.

मुंबई में आ कर मैं ने एक होटल में कमरा लिया. शालू से पहले मैं पीयूष गिडवानी को टटोलना चाहता था. शालू मेरे साथ एक साल से रह रही थी, मुझे उस के प्यार में कोई मदारी और फरेब जैसी बात देखने को नहीं मिली थी. एक कपड़ा उद्योगपति मेरा मित्र था. उस से मुझे पीयूष गिडवानी का पता मिल गया. मुझे मालूम हुआ कि रईस उद्योगपति पीयूष अब लोखंडवाला की झुग्गी बस्ती में रहता है. हैरानी की बात थी, मैं उसे ढूंढता हुआ लोखंडवाला की झुग्गी बस्ती में उस के पास पहुंच गया.

पिता हरीश गिडवानी की गिनती उद्योग जगत में रईसों में होती थी, उस का बेटा पीयूष एक छोटी सी झुग्गी में रह रहा था. उस ने मुझे हैरत भरी नजरों से देखा और बोला, ”यदि मैं भूला नहीं हूं तो आप रोहित अग्रवाल के दोस्त अभय वर्मा हैं.’’

”ठीक पहचान रहे हो पीयूष.’’ उस के पास स्टूल पर बैठते हुए मैं विषभरे स्वर में बोला, ”फिर तो तुम यह भी समझ गए होगे कि मैं तुम्हें तलाश करता हुआ इस झुग्गी तक क्यों आया हूं.’’

”आप बताइए, मैं भला बगैर बताए कैसे समझ सकता हूं?’’

”पीयूष, तुम ने रोहित और शालू की एंगेजमेट और मैरिज पार्टी में शालू के साथ जो हरकत की थी, क्या उस में शालू की रजामंदी थी?’’

”नहीं.’’ गहरी सांस भर कर पीयूष बोला, ”शालू बेचारी तो बिलकुल बेकुसूर थी. वह सिर्फ मेरी हरकत थी, उसी की सजा मैं आज भुगत रहा हूं. मैं ने पिता की मौत के बाद उन की सारी संपत्ति जुए और शराब की भेंट चढ़ा दी और मैं इस झुग्गी में आ गया. आज मैं किडनी रोगी हूं, जिंदगी की अंतिम घडिय़ां गिन रहा हूं. यह शालू के दिल से निकली बददुआ का असर हो सकता है. मैं ने ओछी हरकत कर के रोहित और शालू को जुदा कर दिया था. वह बेदाग और बेगुनाह थी. मैं आप को उस की बेगुनाही का सबूत देता हूं.’’

पीयूष उठा और कोने में रखे टूटे से संदूक में से एक कैसेट निकाल कर उस ने वह कैसेट मुझे दे दी.

”इस वीडियो कैसेट में मेरी वह तमाम हरकतें कैद हैं, जो उस अमावस की रात को पार्टी में मैं ने शालू के साथ की थीं.’’ पीयूष ने रुक कर लंबी सांस ली, ”मैं और रोहित एक ही बिजनैस कपड़ा उद्योग से जुड़े हुए थे, रोहित अकसर मुझ से आगे रहता था, इसलिए मैं उसे अपना प्रतिद्वंदी मानने लगा था. मैं ने उस से दोस्ती जरूर कर रखी थी, लेकिन मन ही मन में उस से जलता था.

”जब मुझे रोहित का एंगेजमेंट और मैरिज का कार्ड मिला तो मैं ने मन ही मन रोहित से बदला लेने का प्लान बना लिया. मैं ने पार्टी में पहुंच कर शालू को तलाश किया. वह तैयार हो कर कमरे से निकल रही थी. मैं ने उसे कोल्ड ड्रिंक औफर की. उस में मैं ने बेहोशी का पाउडर मिला दिया था. शालू ने वह ड्रिंक पी ली.

”वह बेहोश हो कर गिरने को हुई तो मैं उसे कमर से थाम कर बेसमेंट में ले आया. मैं ने एक वीडियोग्राफर को इस काम के लिए बुक कर रखा था कि वह मेरी और शालू की गंदी वीडियो बनाएगा. उस ने यह काम किया, लेकिन उस बेवकूफ ने वह दृश्य भी कैमरे में कैद कर लिए, जब मैं शालू के लिए कोल्ड ड्रिंक में बेहोशी का पाउडर डाल रहा था.

”मैं ने बेहोश शालू को बेसमेंट में लाने के बाद उस के साथ ऐसे पोज बनाया, जैसे शालू मुझे चिपक कर प्यार कर रही हो. मैं कोई हरकत करता कि शालू को तलाश करता हुआ रोहित बेसमेंट में आ गया. मैं वहां से भाग निकला. यदि कैसेट मेरे हिसाब से बनती तो मैं जिंदगी भर रोहित को ब्लैकमेल करता, लेकिन मेरा खेल बिगड़ गया था.’’ पीयूष खामोश हो कर हांफने लगा था. मैं ने अब वहां रुकना बेकार समझा. मैं वीडियो कैसेट ले कर उस की झुग्गी से बाहर निकल आया.

होटल छोड़ कर मैं अपने फ्लैट पर पहुंचा तो शालू उर्फ रजनी ने उठ कर मुझे अभिवादन किया. मैं ने उस के सामने बैठ कर बहुत गंभीर स्वर में कहा, ”रजनी, मैं 10 दिन बाद फिर लंदन जाऊंगा, इस बार तुम भी मेरे साथ चलोगी.’’

उस ने मुझे हैरानी से देखा और तरहतरह के सवाल करने लगी. मैं ने उस की किसी बात का उत्तर नहीं दिया. मैं उठ कर हौस्पिटल चला गया. दसवें दिन मैं ने रजनी को साथ लिया और रात को लंदन को लिए फ्लाइट पकड़ ली. दूसरे दिन जब मैं उसे ले कर एयरपोर्ट पर उतरा तो रजनी ने मेरी कलाई कस कर पकड़ ली और गंभीर स्वर में बोली, ”यदि आप मुझे रोहित के पास ले कर जा रहे हैं तो सुन लीजिए. मेरे मन में अब रोहित के लिए कोई जगह नहीं है, मैं अब आप से प्यार करती हूं. यदि आप मुझे सहारा नहीं दे सकते तो हाथ छुड़ा लीजिए. मैं यहां की भीड़ में खो जाऊंगी.’’

”ऐसा मत कहो रजनी, मुझ से पहले

तुम रोहित का प्यार थी, उसे आज तुम्हारी जरूरत है.’’

”रोहित कभी मेरा प्यार था डाक्टर बाबू, उस ने मुझ पर शक कर के अपने प्यार का अधिकार खो दिया है.’’

”रजनी, मेरी बात को समझो. रोहित उस रात धोखे का शिकार हुआ था, वह तुम्हें सच्चा प्यार करता था. तुम्हें पीयूष की बांहों में देख कर वह होश खो बैठा था, उस ने इसीलिए तुम्हारे चेहरे पर तेजाब फेंका था और मुंबई छोड़ कर यहां वीराने में आ बसा. अमावस की रात को वह शहर से एक लड़की बहलाफुसला कर लाता है और अपने बंगले में बड़ी बेरहमी से उस का कत्ल कर देता है. वह मानसिक रोगी बन चुका है रजनी. मैं उसे इस मानसिक विकृति से बाहर निकालना चाहता हूं, तुम मेरी मदद करोगी तो रोहित की जान बच जाएगी, वरना किसी दिन वह खुद अपनी जान ले लेगा.’’

शालू उर्फ रजनी ने गहरी सांस ली, ”अपने से जुदा करने के अलावा आप मुझ से जो कहेंगे, मैं करूंगी डाक्टर बाबू. कहिए, मुझे क्या करना है?’’

मैं ने रजनी को अपनी योजना समझा दी. मैं जो कुछ करने जा रहा था, वह बहुत जोखिम भरा था, लेकिन रोहित को मानसिक रोग से बाहर लाने के लिए इस के अलावा कोई दूसरी राह मुझे दिखाई नहीं दे रही थी.

सुबह जब रोहित अपने औफिस के लिए चला गया, मैं उस के बंगले पर पहुंच गया. मुझे अचानक सामने देख कर डेविड अंकल हैरान रह गए, ”अरे तुम डाक्टर बेटा, तुम अचानक गए और आज अचानक से आ गए, सब ठीक तो है न?’’

मैं ने डेविड अंकल का प्यार से हाथ पकड़ कर कहा, ”आप मुझे बेटा मानते हैं न?’’

”हां,’’ डेविड अंकल ने आत्मीयता से कहा, ”जैसे रोहित मेरा बेटा है, वैसे तुम भी मेरे बेटे ही हो.’’

मैं ने डेविड अंकल को कुरसी पर बिठाया और वह सब कुछ सस्पेंस उन्हें बता दिया, जो मैं ने पिछली अमावस वाली रात को उस साउंडप्रूफ हाल में देखा था. मेरे कहने पर डेविड अंकल रोहित की इस मानसिक विकृति से उसे बाहर लाने के लिए मेरा साथ देने को तैयार हो गए थे.

उन की मदद से मैं ने साउंडप्रूफ हाल के कोने में एक एलईडी स्क्रीन लगा कर उस में एक पैन ड्राइव सैट कर दिया. मुंबई में ही मैं ने पीयूष से मिली विडियो कैसेट को पैनड्राइव में ट्रांसफर कर ली थी. यह काम कर के मैं शहर के लिए निकल गया. मैं ने शालू उर्फ रजनी को शहर के उस शार्क होटल में ठहरा दिया, जहां रोहित अपना शिकार तलाश करने हर अमावस की रात जाता था. कल अमावस की रात थी. मैं होटल पहुंच कर शालू से मिला और पूरी रात और दूसरे दिन शाम तक शालू के साथ कमरे में रहा. मैं उसे समझाता रहा कि उसे रोहित का सामना कैसे करना है और उसे कैसे अपनी मीठी बातों में फंसा कर उस के फ्लैट तक पहुंचना है.

शाम को शार्क होटल के बार ऐंड डांसिंग फ्लोर पर अमीर लोगों का आना शुरू हुआ. मैं ने शालू उर्फ रजनी को तैयार कर के नीचे भेज दिया. मैं खुद बड़ा सा हैट सिर पर रख कर अपने को छिपाता हुआ नीचे बार रूम में एक टेबल पर आ कर बैठ गया. शालू क्रिश्चियन परिवेश में थी. शार्ट टौप, जींस और सिर पर सफेद दुपट्टा. दुपट्टे से उस ने अपना आधा चेहरा ढक लिया था. वह इस ड्रेस में बड़ी आकर्षक लग रही थी. वह एक टेबल पर बैठ गई. 7 बजे जब बार की महफिल जवां हुई, रोहित ने बार में कदम रखा. उस ने पूरे हाल में नजरें दौड़ाईं. फिर अकेली बैठी शालू की तरफ बढ़ गया. शालू संभल कर बैठ गई.

”हैलो हसीना!’’ वह शालू के पास झुक कर मुसकराया, ”आप अकेली हैं, क्या मैं आप का पार्टनर बन सकता हूं?’’

”मैं आप जैसे हैंडसम साथी की तलाश में थी. बैठिए.’’ शालू अदा से मुसकरा कर उस की तरफ हाथ बढ़ाया.

रोहित ने जैसे ही उस का हाथ थामा तो वह एक क्षण को चौंका और शालू को देखने लगा.

”क्या हुआ?’’ शालू ने चौंक कर पूछा.

”मुझे ऐसा लगा जैसे यह हाथ मैं ने पहले भी थामा है.’’ रोहित डूबती आवाज में बोला. फिर सिर झटक कर उस ने शालू की कमर में हाथ डाल दिया, ”चलो.’’

वह शालू को ले कर बार से निकला तो मैं उस के पीछे झपटा. रोहित मुझे शालू के साथ अपनी कार में नजर आया. मैं ने एक टैक्सी रुकवाई और टैक्सी वाले को समझा दिया कि वह सावधानी से रेड रंग की उस कार का पीछा करे. आगे पीछे रोहित की कार और टैक्सी उस वीराने में स्थित फ्लैट तक पहुंच गई. मैं ने दूर ही टैक्सी रुकवा कर किराया दिया और पैदल ही फ्लैट तक पहुंच गया. आधी रात से पहले ही मैं डेविड अंकल को ले कर साउंडप्रूफ हाल में आ गया. रोहित ने शालू को उसी तरह रस्सियों से बांध कर घुटने के बल बिठा दिया था, जैसा वह दूसरी लड़कियों के साथ करता था.

मुझे ताज्जुब हुआ कि उस ने शालू को निर्वस्त्र नहीं किया था. शालू बुरी तरह डरी हुई थी. मैं ने पास पहुंच कर उस का गाल थपथपाया, ”हिम्मत रखो रजनी, तुम्हें मैं कुछ नहीं होने दूंगा. मैं और डेविड अंकल उधर एलईडी स्क्रीन के पीछे छिप रहे हैं.’’

शालू ने फीकी मुसकान के साथ सिर हिलाया. मैं डेविड अंकल को ले कर एलईडी स्क्रीन के पीछे छिप कर बैठ गया.

ठीक 12 बजे रोहित ने हाल में कदम रखा. मैं और डेविड अंकल सावधान हो गए. रोहित लडख़ड़ाती चाल से शालू की तरफ बढ़ा और उस के सामने आ कर रुक गया. वह शालू को घूरते हुए बोला, ”ऐ हसीन बला, तुम पहली लड़की हो, जिसे निर्वस्त्र करने में मेरे हाथों ने इंकार किया है. पता नहीं मुझे ऐसा क्यों लग रहा है कि तुम्हारी इन शरबती आंखों को मैं ने पहले भी कहीं देखा है, तुम्हारी दिल को मोह लेने वाली मधुर आवाज मेरे कानों ने पहले भी सुनी है. कौन हो तुम?’’

”मैं शालू हूं मिस्टर रोहित अग्रवाल.’’ शालू बड़ी लापरवाह अंदाज में बोली, ”वही शालू जिसे तुम बेइंतहा प्यार करते थे.’’

”नहींऽऽ’’ रोहित गला फाड़ कर गुस्से से चीख पड़ा, ”तुम शालू नहीं हो, उस बेवफा का तो मैं ने तेजाब से चेहरा बिगाड़ दिया था. यह चेहरा शालू का नहीं है.’’

”यह शालू का ही चेहरा है मिस्टर रोहित. डा. अभय ने तेजाब से जले इस चेहरे को नया लुक दिया है अब मैं शालू नहीं, रजनी बन गई हूं.’’ शालू शुष्क स्वर में बोली.

”ओह!’’ रोहित एकाएक हिंसक हो गया, ”अब मैं समझ गया, तुम शालू ही हो… तुम बेवफा हो. उस दिन मैं ने तुम्हारा चेहरा जलाया था. तुझे आज मैं तेरी बेवफाई की इतनी भयानक सजा दूंगा कि देखने वालों की रुह भी कांप जाएगी.’’ रोहित ने जेब से चमचमाता हुआ चाकू निकाला.

उस की आंखों में नफरत के शोले दहकने लगे. चेहरा क्रोध के कारण भयानक हो गया.

जैसे ही उस ने चाकू वाला हाथ ऊपर उठाया, मेरे इशारे पर डेविड अंकल ने हाल की बत्ती बुझा दी.

मैं ने तुरंत एलईडी स्क्रीन औन कर दी. स्क्रीन पर रोहित और शालू की एंगेजमेंट ऐंड मैरिज फंक्शन के दृश्य उभरने लगे. पार्टी इंजौय कर रहे मेहमानों से होता हुआ कैमरा उस दरवाजे पर आ कर रुका, जहां से शालू दुलहन के लिबास में सजीधजी बाहर निकल रही थी. फिर कैमरे में पीयूष गिडवानी नजर आया. वह एक कोल्ड ड्रिंक का गिलास टेबल पर रख कर उस में एक पुडिय़ा का पाउडर डाल रहा था. कोल्ड ड्रिंक चम्मच से हिला कर वह गिलास ले कर शालू के पास आता नजर आया, फिर उस ने मुसकरा कर कहा, ”हाय! शालूजी, आप बहुत खूबसूरत लग रही हैं, लीजिए मेरे हाथ से यह कोल्ड ड्रिंक पीएं, मुझे अच्छा लगेगा.’’

शालू ने मुसकरा कर कोल्ड ड्रिंक लिया और पीने लगी. कुछ ही देर बाद वह लडख़ड़ाती नजर आई. पीयूष गिडवानी ने उसे कमर से थाम लिया और बेसमेंट की तरफ बढ़ गया. बेसमेंट में ला कर उस ने उसे सोफे पर लिटा दिया और उस की साड़ी उतारने लगा. अद्र्धमूर्छित शालू उस का विरोध करती नजर आ रही थी. साड़ी उतारने के बाद उस ने शालू को जैसे ही बांहों में भरा, वहां रोहित आता दिखा. पीयूष उसे देख कर घबराया हुआ उठा और सीढिय़ों की तरफ भागा. इस के बाद स्क्रीन से वीडियो गायब हो गई.

”देख लिया रोहित शालू की बेगुनाही का सबूत.’’ मैं ने ऊंची आवाज में कहा और डेविड अंकल से बोला, ”लाइट्स जला दीजिए अंकल.’’

डेविड अंकल ने लाइट्स औन की तो हाल का दृश्य देख कर हमारे मुंह से चीखें निकल गईं. रोहित ने अपने दोनों कलाइयों की नसें काट ली थीं. वह बुत बना स्क्रीन को देख रहा था. उस की कलाइयों से निकले खून ने फर्श को रंग दिया था.

मैं घबरा कर रोहित की तरफ झपटा. डेविड ने शायद अंधेरे में ही शालू को बंधनमुक्त कर दिया था. वह भी रोहित की तरफ दौड़ी. डेविड अपनी जगह जड़ बना खड़ा रह गया था, उसे कुछ सूझ नहीं रहा था.

”यह तुम ने क्या किया रोहित?’’ रोहित को बाहों में ले कर मैं चीख पड़ा.

”अंकल एंबुलेंस बुलाओ.’’

”नहीं दोस्त.’’ रोहित हाथ उठा कर शुष्क स्वर में बोला, ”मैं ने अपने प्यार पर शक कर के उस का अपमान किया है. मुझे सजा मिलनी चाहिए. वैसे भी मैं शालू को बेवफा मान कर इतने गुनाह कर चुका हूं कि कानून मुझे मौत की ही सजा देगा.

मैं कानून और शालू का गुनहगार हूं. मेरे मरने से भी इन गुनाहों का प्रायश्चित नहीं हो सकता, मुझे माफ कर देना शालू.’’ रोहित की आवाज अब डूबने लगी थी. मैं डाक्टर था, किंतु उस वक्त बेबस था. रोहित को कटी हुई कलाइयों से तेजी से खून बह कर रोहित को मौत की तरफ धकेल रहा था. मैं रोने लगा.

”नहीं अभय, मेरे दोस्त, मुझे रो कर विदा मत कर. तू तो मेरा सब से अच्छा दोस्त है, मेरे मरने के बाद तू शालू से शादी कर लेना, मेरी प्रौपर्टी का तू नौमिनी है. इस में शालू को भी भागीदार बनाना. इस फ्लैट में डेविड अंकल रहेंगे. शालू, प्लीज मेरे दोस्त अभय का खयाल रखना…’’ अंतिम शब्द बहुत मुश्किल से कह पाया था रोहित. उस की गरदन एक तरफ लुढ़क गई. मैं और शालू फूटफूट कर रोने लगे. डेविड अंकल फर्श पर बैठ कर सुबकने लगे. सुबह तक हम तीनों रोहित की लाश के पास बैठ कर रोते रहे. हम ने सुबह बड़ी सावधानी से रोहित का अंतिम संस्कार कर दिया. मैं नहीं चाहता था कि रोहित मरने के बाद किसी कानूनी लफड़े में फंस कर इस बात के लिए बदनाम हो कि उस ने कई लड़कियों को मौत के घाट उतारा है.

दूसरे दिन डेविड अंकल से हम ने विदा ली. हम अपने साथ रोहित की अस्थियां ले कर मुंबई आए. यहां से हम ने हरिद्वार आ कर रोहित की अस्थियों को गंगा में प्रवाहित कर दिया. मैं ने एक महीने बाद शालू उर्फ रजनी के साथ शादी कर ली और रोहित की लंदन वाली संपत्ति बेच कर मुंबई में ‘पार्थ ब्यूटी केयर’ नाम से हौस्पिटल खोल लिया. डेविड अंकल उस वीराने में बने फ्लैट में रह कर रोहित की यादों के सहारे जी रहे थे. Stories in Hindi

 

 

Online Crime Story : लव ट्राएंगल में ली गैंती से जान, मारते समय खून के छींटे दीवार पर फैल गए

Online Crime Story : छत्तीसगढ़ में एक प्रेमी ने अपनी प्रेमिका के पति को गैंती से मार डाला. जब लोगों ने इस सनसनीखेज वारदात के बारे में सुना तो हैरान रह गए. प्रेमी को प्रेमिका के हसबैंड से किस तरह का खतरा महसूस हुआ कि वह उसे मार डाला, आइए जानते हैं पूरी घटना को विस्तार से

यह घटना छत्तीसगढ़ के जांजगीर जिले की है. जहां 25 जुलाई, 2025 को एक प्रेमी ने अपनी प्रेमिका ईश्वरी केवट के पति अमरनाथ का गैंती से मार कर कत्ल कर दिया. मृतक अमरनाथ कोटमीसानोर का रहने वाला था. ईश्वरी केवट का पिछले कई सालों से युवराज नामक शख्स के साथ प्रेम संबंध चल रहा था. युवराज और कोई नही हैं ईश्वरी का ही रिश्तेदार था और बिहार के मुंगेर जिले के महुआकापा गांव में रहता था.
युवराज एक मिस्त्री का काम करता था. ईश्वरी युवराज के प्रेम प्रसंग में ऐसे पागल थी कि 22 जुलाई, 2025 को अपने प्रेमी के घर भी चली गई, लेकिन 5 दिन बाद वापस पति के पास लौट आई और उसी के साथ रहने लगी.

मीडिया रिर्पोट के मुताबिक, 25 जुलाई को शुक्रवार के दिन अमरनाथ केवट और ईश्वरी घर ही मौजूद थे. तभी युवराज स्कूटी से अमरनाथ के घर पहुंचा और आते ही उस ने घर में रखी गैंती उठाकर अमरनाथ पर हमला कर दिया. युवराज ने अमरनाथ के सीने और चेहरे पर कई वार किए, जिस के खून के छींटे दीवार पर फैल गए. अमरनाथ चिल्लाता रहा और खून से लथपथ हो कर जमीन पर जा गिरा. वारदात के वक्त ईश्वरी घर ही मौजूद थी, लेकिन उस ने अपने पति को नही बचाया. इसके बाद घटना को अंजाम देकर युवराज फरार हो गया.

अस्पताल में तोड़ा दम

जब अमरनाथ की मां को पता चला कि उस का बेटा घायल अवस्था में घर में पड़ा हुआ है तो उन्होंने तुरंत आसपड़ोस के लोगों को बुलाया. उन की मदद से अमरनाथ को नजदीकी अस्पताल ले जाया गया, लेकिन इलाज के दौरान अस्पताल में ही उस ने दम तोड़ दिया.
वारदात की सूचना मिलते ही अकलतरा पुलिस मौके पर पहुंची और घटना की छानबीन करने लगी. पुलिस ने शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया.

अलकतरा के सीएसपी कविता ठाकुर ने बताया कि अमरनाथ की हत्या के बाद आरोपी युवराज बिलासपुर के लिए भाग गया था, लेकिन पुलिस ने जांच के बाद उसे 27 जुलाई, 2025 रविवार को अरेस्ट कर लिया. पुलिस ने युवराज से पूछताछ के बाद उस की प्रेमिका ईश्वरी को भी हिरासत में ले लिया. पुलिस दोनों आरोपियों से पूछताछ कर पूरे मामले की गहनता से जांच कर रही है.

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Short Story in Hindi love : पति की मौत के बाद शैली ने 14 साल छोटे राजकुमार उर्फ राज वर्मा से शादी कर ली. लेकिन कुछ दिनों में ही राज का मन शैली से ऊब गया तो फेसबुक के माध्यम से वह भारती के संपर्क में आ गया. इस के बाद शैली के बिगड़ैल राजकुमार ने जो किया वह…

आज के समय में सोशल मीडिया का बुखार लोगों के सिर चढ़ कर बोल रहा है. अपनी फोटो, अपनी दिनचर्या, अपनी खुशी अपना गम, सब कुछ इस आभासी दुनिया में शेयर करते हैं. यहां तक कि सच्चे दोस्त और हमसफर की तलाश भी इसी आभासी दुनिया की भीड़ में हो रही है. शैली भी फेसबुक पर अपने लिए हमसफर की तलाश कर रही थी. इसी तलाश में उस की दोस्ती राजकुमार उर्फ राज वर्मा से हुई, जिस ने फेसबुक पर अपनी आईडी राज वर्मा नाम से बना रखी थी. दोस्ती हुई तो उन के बीच बातें होने लगीं. बातों ही बातों में पता चला कि राजकुमार शैली से करीब 14 साल छोटा है. फिर भी उन के बीच दोस्ती बरकरार रही, जो धीरेधीरे प्यार का रूप ले रही थी.

शैली को भी पति की मौत के बाद एक सहारे की जरूरत थी. राजकुमार काफी स्मार्ट था और व्यवहार व बातें करने में भी काफी अच्छा था. समय के साथ दोनों काफी नजदीक आने लगे, एकदूसरे से रूबरू मिलने की इच्छा हुई तो बात कर के मिलने को तैयार हो गए. शैली हरियाणा के करनाल शहर की थी, राजकुमार भी करनाल का था. लेकिन वह गुड़गांव में प्राइवेट जौब कर रहा था. कहां मिलना है, कितने बजे मिलना है, यह सब उन दोनों ने तय कर लिया था. फिर निश्चित तिथि पर शाम 6 बजे करनाल के एक पार्क में शैली पहुंच गई. शैली वहां जिस राज वर्मा नाम के युवक से मिलने आई थी, उसे पहले उस ने कभी नहीं देखा था. फेसबुक पर दोनों ने एकदूसरे के फोटो देखे थे, वीडियो कालिंग भी उन में होती थी.

इसी के आधार पर दोनों को यकीन था कि सैकड़ों की भीड़ में वे अपने दिलबर को पहचान लेंगे. शैली पार्क में होने वाली भीड़ से थोड़ा अलग खड़ी हो गई. वहां खड़े हो कर वह राज वर्मा की तलाश में चारों ओर नजरें दौड़ाने लगी. तभी एक युवक अचानक उस के सामने आ खड़ा हुआ, ‘‘हैलो शैली!’’

शैली ने चौंक कर उसे देखा. मन में बसी हुई राज वर्मा की तसवीर से उस के चेहरे का मिलान किया तो सुखद आश्चर्य से चीख पड़ी, ‘‘राज, तुम.’’

‘‘हां मैं,’’ राज वर्मा मुसकराया,‘‘शैली, मैं कहता था न कि मैं सैकड़ों में भी तुम्हें पहचान लूंगा. देखो पहचान लिया न.’’

‘‘हां, मैं भी तो तुम्हें पहचान गई,’’ राज से मिलने का उत्साह और उल्लास शैली के चेहरे से छलक रहा था, ‘‘तुम तो समय से पहले आ गए.’’

‘‘तुम भी तो आधे घंटा पहले आई हो.’’

‘‘दिल जिसे चाहता हो, पहली बार उस से रूबरू मिलने का जोश ही अलग होता है.’’ शैली बोली.

‘‘शैली, सही कहा तुम ने,’’ राज की मुसकान खिली, ‘‘समय पास करना मुश्किल हो रहा था. एकएक लम्हा सदियों की तरह बीत रहा था. इसीलिए मैं 40 मिनट पहले ही पार्क में आ गया.’’

‘‘इसी को कहते हैं दोनों तरफ बराबर आग लगी होना,’’ शैली हंसती हुई बोली, ‘‘हम कब तक यहां खड़े हो कर बात करेंगे. चलो, कहीं सुकून से बैठ कर बातें करें.’’

‘‘मैं जानता था कि जब हम पहली बार मिलेंगे तो बातें खत्म होने का नाम नहीं लेंगी. किसी तरह का डिस्टरबेंस भी हमें मंजूर नहीं होगा.’’ राज चहक कर बोला, ‘‘इसीलिए मैं ने ऐसी जगह का बंदोबस्त कर लिया है, जहां बेफिक्र हो कर बातें करें.’’

‘‘राज, यह काम तुम ने बहुत सही किया,’’ शैली ने खुशी जाहिर की.

राजकुमार के कदम बढ़े तो शैली भी उस के साथ कदम मिलाने लगी. एक के बाद एक परेशानियों ने घेरा शैली को हरियाणा के करनाल जिले के गांव असम की रहने वाली थी शैली. शैली सुशिक्षित व संस्कारी युवती थी. शैली के पिता का नाम खैरातीलाल बल्ला और मां का नाम उषा रानी था. शैली के पिता खैरातीलाल का बैटरियां बेचने का कामधंधा था. उन का यह काम बहुत अच्छा चलता था. जिस वजह से वह आर्थिक रूप से काफी सुदृढ़ थे. शैली की एक बहन मोनिका और एक भाई करन था. करन जब 13 साल का था, तभी पेट का संक्रमण होने के कारण उस की मृत्यु हो गई थी. वर्ष 1997 में शैली का विवाह दिल्ली निवासी अनिल वर्मा से कर दिया.

कालांतर में शैली ने एक बेटी को जन्म दिया, जिस का नाम उन्होंने तान्या रखा. समय का पहिया घूमता रहा. एक समय वह आया जब अनिल को अपने बिजनैस में काफी घाटा हुआ तो वह परेशान हो गया. वह तनाव में रहने लगा. शैली भी पति को परेशान देख कर दुखी रहने लगी. शैली ने अपने पिता को बात बताई तो उन्होंने दोनों को अपने पास आ कर रहने को कहा. शैली ने अपने पति अनिल से बात की तो मजबूर अनिल को अपनी ससुराल में रहने के लिए हां कहना पड़ा. शैली पति अनिल और बेटी तान्या के साथ अपने पिता के घर शिफ्ट हो गई. खैरातीलाल ने दामाद अनिल को अपने बैटरी के बिजनैस में जोड़ लिया. वैसे भी उन का एक ही बेटा था, जोकि अब इस दुनिया में नहीं था.

दामाद भी एक तरह से बेटा ही होता है, यही सोच कर खैरातीलाल ने यह कदम उठाया था. एक बार फिर से शैली की जिंदगी में सब अच्छा चलने लगा. साल दर साल गुजरने लगे. फिर अचानक समय ने अपना रुख बदला. 2014 में शैली की मां का देहांत हो गया. मां की मौत से वह उबर पाती कि 2016 में पति अनिल की भी बीमारी के कारण मौत हो गई. शैली की राज से बनीं नजदीकियां पति के बिना जिंदगी गुजारना बहुत कठिन होता है. शैली के आगे अभी पूरी जिंदगी पड़ी थी और उस के सिर पर बेटी तान्या की भी जिम्मेदारी थी. ऐसे में शैली ने दूसरी शादी करने का फैसला कर लिया. उस ने तमाम माध्यमों से अपने नए हमसफर की तलाश करनी शुरू कर दी.

शैली ने फेसबुक पर अपना एकाउंट बना रखा था. फेसबुक पर वह रोज नए लोगों से मिलती, उन की फ्रैंड रिक्वेस्ट को स्वीकार करती. इन में से ही एक युवक था राजकुमार वर्मा उर्फ राज. राज करनाल के गांव निगदू का निवासी था. उस के परिवार में मातापिता और एक भाई व 3 बहनें थीं. राज की उम्र शैली से करीब 14 साल कम थी. फेसबुक पर शैली के मित्रों की सूची में उस ने भी जगह बना ली. राज शैली के मित्रों की सूची में जुड़ने वाला सिर्फ एक नाम बन कर नहीं जुड़ने आया था, वह तो शैली के दिल तक अपनी पहुंच बना कर उसे अपना बनाने आया था. उस ने शैली को मैसेज पर मैसेज करने शुरू कर दिए.

पहले तो वह जानपहचान बढ़ाने के उद्देश्य से शैली को मैसेज कर रहा था. शैली जब उस से मैसेंजर पर बातें करने लगी तो वह एक  सच्चा दोस्त बन कर उस से दोस्ती की बातें करने लगा. शैली को भी उस की बातों में मजा आता था. राज स्मार्ट था और बातों का धनी था. शैली भी उस से प्रभावित हो कर उस से खुलने लगी. शैली ने राज को अपने बारे में सब बता दिया था. उस के बावजूद राज उसे पटाने में लगा था. राज युवा था और अविवाहित था. उसे कोई भी खूबसूरत युवती मिल जाती और शादी करने को तैयार हो जाती. लेकिन राज को शैली में न जाने क्या दिखा, जो वह अपने से 14 साल बड़ी विधवा औरत, जिस के एक जवान बेटी भी थी, उस के प्यार में पड़ने को आतुर था.

यह प्यार था या एक जाल, जिस में वह शैली को फांसने की तैयारी कर रहा था. यह तो वक्त के गर्त में छिपा था. लेकिन इतना सब शैली ने नहीं सोचा. वह तो राज जैसे युवा को अपनी तरफ आकर्षित देख कर फूली नहीं समा रही थी. शादी तक पहुंचा प्यार दोस्ती की अगली सीढ़ी प्यार होता है. दोनों प्यार की सीढ़ी पर चढ़ने को आतुर थे. उन के बीच वीडियो काल पर बातें होने लगीं. ऐसी ही एक वीडियो काल के दौरान राज ने शैली से कहा, ‘‘हम दोनों को फेसबुक पर जुड़े काफी समय हो गया. लेकिन मैं इधर काफी दिनों से महसूस करने लगा हूं कि हमारा रिश्ता दोस्ती के रिश्ते से भी आगे बढ़ गया है.

‘‘जिस रिश्ते की दहलीज पर हम ने कदम रखा है वह रिश्ता है प्यार का रिश्ता. मुझे तुम से प्यार हो गया है शैली. यह कब हुआ कैसे हुआ, इस बात का मुझे भी पता न चला. जब इस को मैं ने महसूस किया तो दिल की खुशी का ठिकाना न रहा. मुझे लगता है कि तुम भी मुझ से प्यार करती हो. एम आई राइट शैली?’’

शैली यह सुन कर मन ही मन खुश हो रही थी, उस ने अपनी यह खुशी राज पर जाहिर नहीं होने दी और बोली, ‘‘राज, हम दोस्त ही रहें तो अच्छा है, प्यार के चक्कर से दूर रहें, वही ठीक है.’’

शैली के गोलमोल जवाब से राज जान गया कि शैली के दिल में भी वही है, जो वह चाहता है. वह भी उसे प्यार करती है लेकिन कहने से कतरा रही है. हो सकता है इस के पीछे बड़ा कारण हो. लेकिन उस ने भी ठान लिया कि वह शैली को मना कर ही रहेगा.

‘‘शैली, ऐसा क्यों कह रही हो. जब प्यार करती हो तो उसे स्वीकार भी करो. दिल में छिपा कर मत रखो.’’ राज ने बेचैन हो कर शैली से कहा.

‘‘राज हम दोनों में उम्र का बहुत बड़ा फासला है. तुम से कुछ साल छोटी मेरी एक बेटी है. ऐसे में हम प्यार के रिश्ते में नहीं पड़ सकते, दोस्ती का रिश्ता ही ठीक है. वैसे भी हमारे समाज में यह स्वीकार्य नहीं है.’’

‘‘तुम मुझ से बड़ी हो फिर भी नासमझी वाली बातें कर रही हो. प्यार कभी उम्र नहीं देखता, कभी जातपात, ऊंचनीच नहीं देखता और न किसी की परवाह करता है. जिस से होता है तो बस हो जाता है. हमारी जिंदगी है तो जिंदगी के फैसले हम ही लेंगे, खासतौर पर उन फैसलों को जिन पर हमारी जिंदगी की खुशियां टिकी हैं.

‘‘वैसे भी समाज में कई उदाहरण हैं जिस में महिला पुरुष से बड़ी थी, लेकिन उन्होंने किसी की परवाह नहीं की और एक बंधन में बंध कर खुशहाल जिंदगी गुजार रहे हैं. जब वे एक साथ अच्छी जिंदगी गुजार सकते हैं तो हम क्यों नहीं.’’ राज ने समझाया.

कुछ सोच कर शैली बोली, ‘‘बात तो तुम्हारी सही है, हमें अपनी जिंदगी के फैसले लेने का खुद हक है. किसी को परेशानी हो तो उस से हमें क्या करना. मैं भी तुम्हें बहुत दिनों से चाह रही थी. लेकिन दुविधा में पड़ी थी. तुम ने आज मुझे निश्चिंत कर दिया कि तुम मेरे जीवनसाथी बनने के लिए ही बने हो. लव यू राज.’’

‘‘लव यू टू शैली.’’ राज ने भी शैली के प्यार का जवाब प्यार से दिया. इस के बाद उन के बीच काफी देर तक बातें होती रहीं. राज शैली को मनाने में सफल हो गया.

उन में प्यार हो गया वह भी बिना एकदूसरे से मिले. अब दोनों ने एकदूसरे से मिलने का फैसला किया.

निश्चित तिथि पर पार्क में दोनों मिले. एकदूसरे को सामने देख कर दोनों खुश हुए. पार्क में बात करने में दिक्कत हुई तो वे सुरक्षित और शांत ठिकाने पर बातें करने चले गए. इस के बाद उन के बीच मुलाकातों का सिलसिला बढ़ता ही गया. बाद में दोनों ने शादी करने का फैसला लिया तो अपने घर वालों को बताया. शैली ने अपनी छोटी बहन मोनिका को इस बारे में बताया तो मोनिका ने अपनी बड़ी बहन से कहा कि उन्होंने राज के बारे में सब पता कर लिया है कि नहीं. इस पर शैली ने उसे आश्वस्त किया कि उस ने राज के बारे में सब पता कर लिया है. जबकि शैली को उतना ही पता था, जितना राज ने उसे बताया था.

ससुराल में होने लगी अनबन वर्ष 2017 में शैली ने राज से विवाह कर लिया. विवाह के बाद बेटी तान्या के साथ ससुराल गांव निगदू आ गई. कुछ समय तक सब ठीकठाक चलता रहा. उस के बाद शैली की राज के घर वालों से तकरार होने लगी. उस की वजह यह थी कि वे सब शैली और उस की बेटी तान्या को परेशान करते थे. राज या तो चुप रहता या अपने घर वालों का ही पक्ष लेता. जब पानी सिर के ऊपर से गुजरने लगा तो शैली ने अलग रहने का इरादा कर लिया. शैली ने करनाल शहर के न्यू प्रेमनगर मोहल्ले में मकान किराए पर ले लिया. शैली ने जहां मकान किराए पर लिया था, वहीं 2 गली छोड़ कर उस की छोटी बहन मोनिका किराए पर रहती थी.

मोनिका का पति अमनदीप वासी अमेरिका में जौब करता था और वहां की उसे स्थाई नागरिकता मिली हुई थी. मोनिका कुछ समय के अंतराल पर पति से मिलने अमेरिका जाती रहती थी. मोनिका के 14 साल की एक बेटी और 9 साल का एक बेटा था, जोकि उस के साथ ही रहते थे. शैली शहर में आ कर रही तो उस ने अपना और अपनी बेटी का खर्चा उठाने के लिए करनाल की मुगल मार्केट में सोलर एनर्जी से जुड़ी एक कंपनी के औफिस में नौकरी कर ली थी. कुछ दिन में राज भी उस के पास वहां आ कर रहने लगा. राज काम करना चाहता था. उस के पास पैसे नहीं थे. वह शैली से पैसों का इंतजाम करने को कहता था. राज को पता था कि शैली के पास काफी पैसा है और दिल्ली में पहले पति का फ्लैट भी उस के नाम है.

राज ने जब काफी जिद की तो शैली ने पिछले साल 10 लाख रुपयों का इंतजाम कर के उसे पैसा कमाने के लिए पुर्तगाल भेजा. भारती के प्यार ने बदल दी सोच पुर्तगाल में राज किसी कंपनी में लग गया. इसी दौरान फेसबुक पर राज की मुलाकात 21 वर्षीय भारती से हुई. भारती करनाल के कौल गांव की रहने वाली थी. उस के पिता एक ज्वैलर थे. भारती से फेसबुक पर दोस्ती हुई तो उन में बातचीत होने लगी. दोनों एकदूसरे को पसंद करने लगे. भारती और राज एकदूसरे के बारे में जानने को उत्सुक थे. राज ने भारती को बताया कि वह शादीशुदा है लेकिन वह अपनी पत्नी से तलाक लेने वाला है.

पत्नी उम्र में बड़ी है और उस की एक बेटी है जिस की उम्र 21 साल है, जितनी उस की (भारती) उम्र है. शैली ने साजिश के तहत उस पर दबाव बना कर उस से शादी की थी. अब वह उस से पीछा छुड़ाना चाहता है. वैसे भी ऐसे बेमेल रिश्ते का खत्म हो जाना अच्छा है. राज की बात सुन कर भारती खुश हुई. उस ने राज से बिना सोचेसमझे अपने प्यार का इजहार कर दिया. राज उस की हिम्मत की दाद देने लगा. राज भी यही चाहता था. उसे लगा था कि भारती को लाइन पर लाने में काफी समय लगेगा, लेकिन यहां तो वह खुद ही बिना देर किए उस की गोद में आ गिरी. राज ने भी उस से अपने प्यार का इजहार किया. फिर दोनों का प्यार परवान चढ़ने लगा.

12 मार्च, 2021 को राज पुर्तगाल से वापस करनाल आ गया. वह भारती से मिला. दोनों मिल कर बहुत खुश हुए. इस के बाद उन की बराबर मुलाकातें होने लगीं. पुर्तगाल से वापस आते ही राज ने अपने रंग दिखाने शुरू कर दिए. वह शैली से दिल्ली वाला फ्लैट बेचने का दबाव बनाने लगा. फ्लैट बेच कर मिलने वाले पैसों से वह अमेरिका जाना चाहता था. शैली को हटाने की बनाई योजना शैली ने साफ मना कर दिया. भारती से शादी करने के लिए वह शैली से तलाक देने की बात करने लगा. तलाक की वजह उस ने शैली को बताई कि उस के कोई बच्चा नहीं हो रहा, इसलिए वह तलाक लेना चाहता है.

जबकि शैली ने शादी से पहले ही उस से कह दिया था कि वह बच्चा नहीं चाहती. फिर भी अब राज उस से बच्चा न होने का उलाहना दे कर तलाक चाहता था. राज को शैली से तलाक पाने का यही सही तरीका लगा था. लेकिन शैली तलाक देने को तैयार नहीं हुई. राज ने भारती को बताया तो भारती ने उस से कहा कि कैसे भी कर के उसे रास्ते से हटाओ, उस की हत्या करनी पड़े तो वह भी करो. शैली ने राज के लिए सारे रास्ते बंद कर रखे थे. इसलिए उस ने भी निश्चय कर लिया कि शैली से हर हाल में छुटकारा पाना है. इस के लिए राज और भारती ने योजना बनाई. योजना ऐसी कि जिस से मामला हत्या का नहीं, हादसे का लगे.

19 मई, 2021 को राज शैली और तान्या को बठिंडा में रहने वाले दादा से मिलवाने के लिए बाइक पर बैठा कर करनाल से चला. किरमिच के पास भाखड़ा नदी में जानबूझ कर उस ने अपनी बाइक गिरा दी. बाइक के साथ ही तीनों नदी में गिर गए. शैली और तान्या को तैरना नहीं आता था. राज यह जानता था, इसीलिए यह योजना बनाई थी. नदी में गिरने पर राज ने लात मार कर शैली व तान्या को नदी के बीच में कर दिया, जिस से वे डूब कर मर जाएं. जब डूबने से दोनों की मौत हो गई, तब वह तैर कर नदी से बाहर निकला. फिर जेब में पन्नी में लिपटा मोबाइल निकाला और भारती को काल कर के दोनों का काम हो जाने की बात बताई.

योजना में हुए सफल बात करने के बाद फोन को नदी में फेंक दिया. वह चिल्ला कर लोगों को हादसा बताने का ड्रामा करने लगा. वहां लोगों से पत्नी और सौतेली बेटी के नदी में गिरने की बात कहने लगा, दोनों को तैरना नहीं आता, ये भी बात बताई. पास में ही ईंट भट्ठे पर मजदूर काम करते थे. वे दोनों को बचाने के लिए नदी में कूद गए. काफी तलाशने पर शैली मृत अवस्था में मिली, जिसे वे मजदूर नहर से बाहर निकाल लाए. तान्या का कुछ पता नहीं चला. राज ने अपने परिवार वालों को घटनास्थल पर बुलवा लिया. घटनास्थल कुरुक्षेत्र जिले के केयूके थाना क्षेत्र में आता था. पुलिस को घटना की सूचना दे दी गई. सूचना पा कर केयूके थाने के एसएचओ राकेश राणा अपनी टीम के साथ मौके पर पहुंच गए.

राज वर्मा ने उन्हें घटना के बारे में बताया. थानाप्रभारी राणा ने गोताखोरों को नदी में उतार कर तान्या की खोजबीन की, लेकिन तान्या का कुछ पता नहीं चला. इस पर उन्होंने शैली की लाश का निरीक्षण करने के बाद पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भेज दिया. राज ने मोनिका को शाम 4 बज कर 20 मिनट पर फोन कर के हादसा होने की जानकारी दी थी. जबकि घटना अपराह्न 3 बजे की थी. राज ने जो बताया, उस से मोनिका समझ गई कि राज ने दोनों को मारने का प्लान बनाया था, जिसे हादसा होना बता रहा है. मोनिका ने केयूके थाने जा कर एक तहरीर दी, जिस में उस ने राज की हरकतों का ब्यौरा देते हुए अपनी बहन और उस की बेटी की हत्या का आरोप उस पर लगाया था. उस साजिश में राज के मातापिता, भाई और 3 बहनों पर आरोप लगाया था.

थानाप्रभारी राकेश राणा को पहले ही राज वर्मा की बातों पर शक था. मोनिका की तहरीर के बाद वह शक और भी पुख्ता हो गया. उन्होंने मोनिका को वादी बना कर राज वर्मा और उस के 6 पारिवारिक सदस्यों के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 201, 34, 120बी के तहत मुकदमा दर्ज करा दिया. इस के बाद थानाप्रभारी राणा ने राज वर्मा को गिरफ्तार कर उस से पूछताछ की तो वह गुमराह करता रहा. 21 मई, 2021 को उसे कोर्ट में पेश कर के एक दिन की रिमांड पर लिया गया. राज वर्मा के फोन नंबर की काल डिटेल्स की जांच करने के बाद 22 मई को भारती को भी उस के गांव कौल से गिरफ्तार कर लिया गया. 22 मई को नया ऐंगल सामने आने के बाद कोर्ट से राज वर्मा की एक दिन की रिमांड और ली गई.

राज और भारती का आमनासामना करा कर पूछताछ की गई तो सारा भेद खुल कर सामने आ गया. पुलिस ने गोताखोरों की मदद से नदी से राज की बाइक बरामद कर ली. 23 मई, 2021 को जांबा गांव के पास नदी से तान्या की लाश भी बरामद हो गई. 23 मई को राजकुमार वर्मा और भारती को कोर्ट में पेश करने के बाद जेल भेज दिया गया. Short Story in Hindi love

—कथा पुलिस सूत्रों और मोनिका से पूछताछ पर आधार