Real Crime Story : प्रेमी संग साजिश रच कर पत्नी ने रस्सी से गला घोंटकर पति को मार डाला

Real Crime Story : 3 बच्चों की मां बनने के बाद भी प्रियंका की हसरतें उफान पर थीं. उसी दौरान उस के संपर्क में महावीर मीणा नाम का युवक आया. इस के संपर्क में आते ही प्रियंका की गृहस्थी में ऐसा जहर घुला कि…

तकरीबन 26-27 साल की उस युवती ने अपना नाम प्रियंका बताया था. हलका सा घूंघट होने के बावजूद उस का आंसुओं से भीगा चेहरा साफ नजर आ रहा था. उस का रंग गेहुंआ था. बड़ीबड़ी आंखें और सुतवां नाक घूंघट की ओट से साफ नजर आ रही थी. थानाप्रभारी बदन सिंह के सामने आते ही वह फफक पड़ी, ‘‘साब मेरा तो सुहाग ही उजड़ गया. बच्चों को भी अनाथ कर गया.’’

फिर चेहरा हाथों में छिपा कर रोने लगी, ‘‘साहब, एक तो मेरा मरद खुदकुशी कर मुझे बेसहारा छोड़ गया. अब घरपरिवार वाले कह रहे हैं कि उस की हत्या हो गई. कोई क्यों करेगा उन की हत्या? हमारा तो किसी से बैर भी नहीं था.’’

इतना कहतेकहते उस ने हिचकियां लेनी शुरू कर दीं. थानाप्रभारी बदन सिंह  ने उसे शांत रहने का संकेत करते हुए कहा, ‘‘आप रोएं नहीं. हम हकीकत का खुलासा कर के रहेंगे. आप पूरी बात को सिलसिलेवार बताइए ताकि हमें अपराधी को गिरफ्तार करने में मदद मिल सके.’’

कुछ पलों के लिए गला भर आने के कारण प्रियंका चुप हो गई. फिर उस ने कहना शुरू किया, ‘‘सच्ची बात तो यह है साब कि हमारा मर्द कुछ दिनों से पैसों की देनदारी और तगादों से परेशान था. उधारी चुकाने की कोई सूरत कहीं से नजर नहीं आ रही थी. दिनरात शराब में डूबा रहता था. कल तो सुबह से ही शराब पी रहा था. शायद दारू के नशे की झोंक में ही जान दे बैठा…’’ प्रियंका की रुलाई फिर फूट पड़ी, ‘‘तगादों से परेशान हो कर जान देने की क्या जरूरत थी?’’

थानाप्रभारी बदन सिंह ने उसे ढाढस बंधाते हुए कहा, ‘‘आप को किसी पर शक है? मेरा मतलब है जिस के तगादे से परेशान हो कर आप के पति ने आत्महत्या की या उस की हत्या हो गई?’’

‘‘हत्या की बात कौन कह रहा है साब!’’ प्रियंका ने प्रतिवाद करते हुए कहा.

तभी वहां खड़े कुछ लोगों में से एक युवक बोल पड़ा, ‘‘हम कहते हैं साब.’’

इस के साथ ही वह शख्स बुरी तरह उबल पड़ा, ‘‘हमें तो इस कुलच्छिनी पर ही शक है. साहब, इस ने ही मरवाया है अपने पति को… यह आत्महत्या का नहीं बल्कि हत्या का मामला है.’’

इस से पहले कि थानाप्रभारी बदन सिंह उस युवक को तवज्जो देते, प्रियंका चिल्ला पड़ी, ‘‘नहीं… यह झूठ है, हम से दुश्मनी निकालने के लिए यह झूठे इल्जाम लगा रहा है.’’

थानाप्रभारी बदन सिंह ने युवक की तरफ देखा, ‘‘कौन हो तुम? तुम कैसे कह सकते हो कि इस की हत्या हुई है और इस के पीछे प्रियंका का हाथ है?’’

‘‘मेरा नाम रामदीन है साहब, रिश्ते में मृतक बुद्धि प्रकाश मेरा चचेरा भाई था.’’ उस के चेहरे की तमतमाहट कम नहीं हुई थी. वह बुरी तरह फट पड़ा, ‘‘साहब बुद्धि प्रकाश का किसी से कोई लेनदेन था ही नहीं. फिर तगादे की बात कहां से आ गई? मेरा भाई मजबूत दिल गुर्दे वाला आदमी था, कायर नहीं था कि आत्महत्या कर लेता. जरूर उस की हत्या हुई है.’’

‘‘तो इस में प्रियंका कहां से आ गई?’’ थानाप्रभारी बदन सिंह ने सवाल दागा.

‘‘आप पूरी जांच कर लो साहब. दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा.’’ वहीं मौजूद परिजनों और बस्ती के लोगों ने एक स्वर में कहा, ‘‘साहब, घर में प्रियंका के अलावा और कौन रहता है? बुद्धि प्रकाश ने जिंदगी में कभी शराब नहीं पी, लेकिन पिछले 2 सालों से तो जैसे दारू में डुबकी मार रहा था. अगर उस ने आत्महत्या जैसा कदम उठाया है तो हमारी समझ से बाहर है.’’

इस बीच पड़ोस के कुछ लोग भी बोल पड़े, ‘‘पतिपत्नी के संबंध भी अच्छे नहीं थे. दिनरात झगड़े की आवाज सुनाई देती थी. पड़ोस के नाते हम ने प्रियंका से पूछा भी, लेकिन इस ने मुंह बिचका दिया. कहती थी, नशेड़ी को न घर की चिंता होती है और न ही घरवाली की. दारू पी कर खेतखलिहान में पड़ा रहेगा तो घर में झगड़े ही होंगे.’’

थानाप्रभारी बदन सिंह ने गहरी नजरों से मृतक के परिजनों और पड़ोसियों की तरफ देखा फिर कहा, ‘‘दिनरात दारू में डुबकी मारने की नौबत तो तब आती है जब कोई गहरे तनाव में हो? पतिपत्नी के बीच रोज की खटपट भी इस की वजह हो सकती है? लेकिन आत्महत्या तो बहुत बड़ा कदम होता है.’’

लेकिन इस सवाल पर परिजनों की खामोशी ने रहस्य का कुहासा और गहरा कर दिया. थानाप्रभारी बदन सिंह के दिमाग में एक सवाल हथौड़े की तरह टकरा रहा था, आखिर मृतक की पत्नी प्रियंका क्यों इस बात पर अड़ी हुई है कि यह आत्महत्या का मामला है.

उन्होंने थोड़े सख्त स्वर मे प्रियंका से पूछा, ‘‘तुम्हें कब और कैसे पता चला कि तुम्हारे पति ने आत्महत्या कर ली है?’’

प्रियंका की रुलाई फिर फूट पड़ी, ‘‘साहब हम तो रोज की तरह तड़के दिशामैदान के लिए चले गए थे. तब भी हमारा मरद ऐसे ही सो रहा था. लौट कर आए तब भी ऐसे ही सोता मिला. हमें बड़ा अटपटा लगा. ऐसा तो पहले कभी नहीं हुआ. हम ने हिलायाडुलाया, कोई हरकत नहीं हुई. दिल की धड़कन भी गायब थी. हमारा दिल धक से रह गया. लगा जरूर कुछ गड़बड़ है… हम ने फौरन पड़ोसियों को पुकार लगाई.’’

बुद्धि प्रकाश घर के बाहर बरामदे में तख्त पर मृत पड़ा था. थानाप्रभारी बदन सिंह शव का निरीक्षण करने लगे. वह कुछ अनुमान लगा पाते तब तक सीओ विजय शंकर शर्मा वहां पहुंच गए. उन्होंने शव का निरीक्षण किया तो उन के चेहरे पर हैरानी के भाव आए बिना नहीं रहे. गले पर पड़े निशानों ने कौतूहल जगा दिया था. सीओ शर्मा ने झुक कर गौर किया तो वह चौंक पड़े. चेहरे पर ऐंठन और गले के निशान बहुत कुछ कह रहे थे. चेहरे पर ऐसी ऐंठन तो बेरहमी से गला दबाए जाने पर ही होती है.  स्वाभाविक प्रश्न था कि क्या किसी ने बुद्धि प्रकाश का गला दबाने की कोशिश की थी?

मामला पूरी तरह संदिग्ध लग रहा था. काले निशान भी रस्सी से गला दबाए जाने पर होते हैं. उन्होंने आसपास नजर दौड़ाई. ऐसी कोई रस्सी नजर नहीं आई. फोरैंसिक टीम को बुलाना अब जरूरी हो गया था. छानबीन और मौके से सबूत जुटाने के लिए क्राइम इनवैस्टीगेशन टीम के साथ फोरैंसिक टीम भी पहुंच गई थी. फोरैंसिक टीम की जांच में चौंकाने वाले रहस्य उजागर हुए. बुद्धि प्रकाश के गले के दोनों ओर तथा पीछे की तरफ काले निशान बने हुए थे. लगता था कि रस्सी से गले को पूरी ताकत से कसा गया था. इस के अलावा चोट का कोई और निशान शरीर पर कहीं नहीं पाया गया.

लेकिन स्थितियां पूरी तरह संदेहास्पद थीं. घटनास्थल पर सीसीटीवी कैमरे नहीं लगे होने के कारण किसी के वहां आनेजाने का साक्ष्य मिलना भी संभव नहीं था. सीओ विजय शंकर शर्मा ने घटनास्थल का बड़ी बारीकी से निरीक्षण किया. उन्होंने प्रियंका से दरजनों सवाल किए. लेकिन अपने मतलब की कोई बात नहीं उगलवा सके. बिना किसी सबूत के प्रियंका पर हाथ डालने का कोई मतलब भी नहीं था. हालांकि पूछताछ के दौरान प्रियंका पूरी तरह सामान्य लग रही थी. उस के चेहरे पर भय या घबराहट की कोई रेखा तक नहीं थी. लेकिन उस के जवाब अटपटे थे.

मृतक करवट की स्थिति में था, जबकि प्रियंका का कहना था कि उस ने दिशामैदान से लौट कर उसे हिलायाडुलाया था. दिल की धड़कन टटोलने के लिए शरीर को पीठ के बल कर दिया था. लेकिन प्रियंका और पड़ोसियों के बयानों में कोई तालमेल नहीं था. उन का कहना था हम ने बुद्धिप्रकाश को करवट स्थिति में देखा था. पुलिस के सामने अच्छेअच्छे के हौंसले पस्त पड़ जाते हैं. लेकिन प्रियंका चाहे अटकअटक कर ही सही, पूरे हौसले से हर सवाल का जवाब दे रही थी. बेशक बुद्धि प्रकाश शराब में धुत रहा होगा. लेकिन आखिर था तो हट्टाकट्टा मर्द. उसे अकेली प्रियंका के द्वारा काबू करना आसान नहीं था.

सीओ हत्या के हर संभावित कोण को समझ रहे थे. इसलिए एक बात पर तो उन्हें यकीन हो चला था कि अगर हत्या में प्रियंका शामिल थी तो उस का कोई मजबूत साथी जरूर रहा होगा. हत्या सुनियोजित ढंग से की गई थी. लेकिन सवाल यह था कि योजना किस ने बनाई और उसे कैसे अंजाम दिया? पोस्टमार्टम के बाद पुलिस ने शव परिजनों को सौंप दिया. पोस्टमार्टम में प्रथमदृष्टया मौत का कारण दम घुटना माना गया. थाने लौट कर थानाप्रभारी बदन सिंह ने अज्ञात के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया.

एसपी शरद चौधरी ने इस मामले का खुलासा करने के लिए एडिशनल एसपी पारस जैन की निगरानी में सीओ विजय शंकर शर्मा, थानाप्रभारी बदन सिंह, हैडकांस्टेबल भरत, कांस्टेबल सतपाल, रामराज और महिला कांस्टेबल भारती बाना को शामिल किया. प्रियंका के थाने आने से पहले की गई पूछताछ में पुलिस को कोई ठोस जानकारी नहीं मिल पाई थी. लेकिन थाने लाए जाने के बाद हुई पूछताछ में महावीर मीणा का जिक्र आने के साथ ही घटना की गिरह खुलने लगी. पुलिस का हवा में पूछा गया सवाल ही घटना का तानाबाना खोलता चला गया कि बुद्धि प्रकाश की शराबनोशी में उस का साथी कौन था? प्रियंका जिस भेद को छिपाए थी, वह खुल गया. प्रियंका को बताना पड़ा कि बुद्धि प्रकाश शनिवार 13 मार्च को दिन भर पड़ोसी महावीर मीणा के साथ शराब पी रहा था.

लेकिन पुलिस के इस सवाल पर प्रियंका बिफर पड़ी कि महावीर मीणा के साथ उस के अवैध रिश्ते हैं. उस का कहना था, ‘‘आप सुनीसुनाई बातों को ले कर मेरे चरित्र पर लांछन लगा रहे हैं.’’

लेकिन प्रियंका की काल डिटेल्स खंगाल चुके पुलिस अधिकारी पूरी तरह आश्वस्त थे. उन का एक ही सवाल प्रियंका के होश फाख्ता कर गया, ‘‘क्या तुम्हारे और महावीर के बीच देर रात को 2-2 घंटे तक बातें नहीं होती थीं?’’

प्रियंका के पास अब कोई जवाब नहीं बचा था. उस ने अपना जुर्म कबूल कर लिया. उस का कहना था कि बुद्धि प्रकाश उस के चालचलन पर शक करता था और रोज उस के साथ मारपीट करता था. इसलिए उस ने पति की हत्या कर दी. यह आधा सच था. प्रियंका अपने आप को एक बेबस औरत के रूप में पेश कर रही थी. लेकिन पुलिस को उस की पूरी दास्तान सुनने का इंतजार था कि कैसे उस ने प्रेमी के साथ मिल कर पति को मौत के घाट उतारा? राजस्थान के कोटा जिले में इटावा कस्बे के बूढादीत गांव में रहने वाले बुद्धि प्रकाश मीणा का कोई 12 साल पहले वहीं के निवासी सीताराम की बेटी प्रियंका से विवाह हुआ था. बुद्धि प्रकाश खेतिहर किसान था. प्रियंका का दांपत्य जीवन 10 साल ही ठीकठाक रह पाया. इस के बाद दोनों में खटपट रहने लगी.

इस बीच प्रियंका ने एकएक कर के एक बेटा और 2 बेटियों समेत 3 बच्चों को जन्म दिया. दांपत्य जीवन के 12 साल गुजर जाने और 3 बच्चों की पैदाइश के बाद बुद्धि प्रकाश और प्रियंका के बीच खटास कैसे पैदा हुई? उस की वजह था पड़ोस में आ कर बसने वाला युवक महावीर मीणा. दरअसल कदकाठी की दृष्टि से आकर्षक लगने वाला महावीर मीणा प्रियंका की नजरों में चढ़ गया था. प्रियंका की हर बात महावीर पर जा कर खत्म होती थी कि क्यों तुम अपने आप को महावीर की तरह नहीं ढाल लेते? जबकि बुद्धि प्रकाश का जवाब मुसकराहट में डूबा होता था कि महावीर की अभी शादी नहीं हुई है. इसलिए उसे अभी किसी की फिक्र नहीं है.

प्रियंका जवान थी, खूबसूरत भी. बेशक वह 3 बच्चों की मां बन गई थी, लेकिन उस की देह के कसाव में कोई कमी नहीं आई थी. उस की अपनी भावनाएं थीं. इसलिए मन करता था कि बुद्धि प्रकाश भी सजीले नौजवान की तरह बनठन कर रहे. फिल्मी हीरो की तरह उस से प्यार करे. लेकिन बुद्धि प्रकाश 35 की उम्र पार कर चुका था. मेहनतकश खेतीकिसानी में खटने के कारण उस पर उम्र हावी हो चली थी. इसलिए पत्नी की इच्छाओं की गहराई भांपने का उसे कभी खयाल तक नहीं आया. प्रियंका को अपने मेहनतकश पति के पसीने की गंध सड़ांध मारती लगती थी.

चढ़ती उम्र और बढ़ती आकांक्षाओं के साथ प्रियंका में पति के प्रति नफरत में इजाफा होता चला गया. संयोग ही रहा कि उस के बाजू वाले मकान में रहने के लिए महावीर बैरवा आ गया. महावीर छैलछबीला था और प्रियंका के सपनों के मर्द की तासीर पर खरा उतरता था. प्रियंका अकसर अपने पति बुद्धि प्रकाश को उस का उदाहरण देते हुए कहती थी, तुम भी ऐसे सजधज कर क्यों नहीं रहते. बुद्धि प्रकाश सीधासादा गृहस्थ इंसान था, इसलिए पत्नी की उड़ान को पहचानने की बजाय बात को टालते हुए कह देता, ‘‘अभी महावीर पर गृहस्थी की जिम्मेदारी नहीं पड़ी. जब पड़ेगी तो वह भी सजनासंवरना भूल जाएगा.’’

पड़ोसी के नाते महावीर भी बुद्धि प्रकाश से मेलमुलाकात बढ़ी तो गाहेबगाहे महावीर के यहां उस का आनाजाना भी बढ़ गया. अकसर प्रियंका के आग्रह पर वह वहीं खाना भी खा लेता था. असल में महावीर की नजरें प्रियंका पर थी. उस की पारखी नजरों से यह बात छिपी नहीं रही कि असल में प्रियंका को क्या चाहिए? लेकिन सवाल यह था कि पहल कौन करे. महावीर दोपहर में अकसर वक्त गुजारने के लिए अपने दोस्त की फलसब्जी की दुकान पर बैठ जाता था. दोस्त को सहूलियत थी कि अपने जरूरी काम निपटाने के लिए महावीर के भरोसे दुकान छोड़ जाता था. एक दिन दुकान पर अकेला बैठा था तो प्रियंका सब्जी खरीदने पहुंची. लेकिन महावीर ने फलसब्जी के पैसे नहीं लिए.

प्रियंका ने पैसे देने चाहे तो महावीर मुसकरा कर बोला, ‘‘तुम्हारी मुसकराहट में दाम वसूल हो गए. सारी दुकान ही अपनी समझो…’’

प्रियंका को शायद ऐसे ही मौके की तलाश थी. मुसकरा कर कहा, ‘‘ऐसी दोपहरी में दुकान पर बैठने की बजाय घर आओ.’’ प्रियंका ने मुसकरा कर निमंत्रण दिया तो महावीर बोला, ‘‘खातिरदारी का वादा करो तो आऊं.’’

‘‘मेरी तरफ से मेहमाननवाजी में कोई कमी नहीं रहेगी, तुम अकेले में आ कर देखो तो…’’ प्रियंका ने हंस कर कहा.

इस के बाद एक दिन महावीर प्रियंका के घर दोपहर के समय चला गया. प्रियंका तो जैसे उस का इंतजार कर रही थी. मौके का फायदा उठाते हुए उस दिन दोनों ने अपनी हसरतें पूरी कीं. इस के बाद तो प्रियंका महावीर की मुरीद हो गई. मौका मिलने पर दोपहर के समय वह प्रियंका के घर चला जाता. इस तरह कुछ दिनों तक उन का यह खेल बिना किसी रुकावट के चलता रहा. कहते हैं कि इश्क और मुश्क छिपाए नहीं छिपते.  एक दिन बुद्धि प्रकाश खेत से जल्दी ही लौट आया और उस ने प्रियंका को महावीर के साथ रंगरलियां मनाते देख लिया. फिर तो बुद्धि प्रकाश का खून खौल उठा.

महावीर तो भाग गया, लेकिन उस ने प्रियंका की जम कर धुनाई शुरू कर दी. प्रियंका ने गलती मानी तो बुद्धि प्रकाश ने यह चेतावनी देते हुए उसे छोड़ दिया कि अगली बार ऐसा हुआ तो तुम दोनों जिंदगी से हाथ धो बैठोगे. जिसे पराया घी चाटने की आदत पड़ जाए वह कहां बाज आता है. एक बार कीबात है. पति के सो जाने के बाद प्रियंका अपने प्रेमी से फोन पर बातें कर रही थी. उसी दौरान बुद्धि प्रकाश की नींद खुल गई. उस ने पत्नी की बातें सुनली थीं. फिर क्या था, उसी समय बुद्धि प्रकाश ने प्रियंका पर जम कर लातघूंसों की बरसात कर दी.

प्रियंका किसी भी हालत में महावीर का साथ नहीं छोड़ना चाहती थी. इस की वजह से अकसर ही उसे पति से पिटाई खानी पड़ती थी. रोजरोज की कलह और पिटाई से अधमरी होती जा रही प्रियंका का पोरपोर दुखने लगा था. प्रियंका का सब से ज्यादा आक्रोश तो इस बात को ले कर था कि बुद्धि प्रकाश जम कर शराब पीने लगा था और नशे में धुत हो कर उसे गंदीगंदी गालियों से जलील करता था. प्रियंका ने महावीर पर औरत का आखिरी अस्त्र चला दिया कि तुम्हारे कारण मैं हर रोज रूई की तरह धुनी जाती हूं और तुम कुछ भी नहीं करते. प्रियंका ने महावीर के सामने शर्त रख दी, ‘‘फूल चाहिए तो कांटे को जड़ से खत्म करना पड़ेगा.’’

प्रियंका की खातिर महावीर बुद्धि प्रकाश का कत्ल करने को तैयार हो गया. फिर योजना के तहत अगले दिन महावीर यह कहते हुए बुद्धि प्रकाश के पावोंं में गिर पड़ा, ‘‘दादा, मैं कल गांव छोड़ कर जा रहा हूं ताकि तुम्हारा कलह खत्म हो सके.’’

बुद्धि प्रकाश ने भी महावीर पर यह सोच कर भरोसा जताया कि संकट अपने आप ही जा रहा है. महावीर ने बुद्धि प्रकाश को यह कहते हुए शराब की दावत दे डाली कि भैया आखिरी मुलाकात का जश्न हो जाए. बुद्धि प्रकाश के मन में तो कोई खोट नहीं थी. उस ने सहज भाव से कह दिया, ‘‘ठीक है भैया, अंत भला सो सब भला.’’

महावीर ने तो थोड़ी ही शराब पी, लेकिन बुद्धि प्रकाश को जम कर पिलाई. नशे में बेहोश हो चुके बुद्धि प्रकाश को महावीर ने घर के बरामदे में रखे तख्त पर ला कर पटक दिया. फिर प्रियंका की मदद से रस्सी से उस का गला घोंट दिया. पुलिस द्वारा निकाली गई काल डिटेल्स के मुताबिक महावीर ने रात करीब 12 बजे बुद्धि प्रकाश की हत्या करने के बाद प्रियंका से 20 से 25 मिनट बात की. इस के बाद प्रियंका सो गई थी. प्रियंका से पूछताछ के बाद पुलिस ने उस के प्रेमी महावीर मीणा को भी गिरफ्तार कर लिया. फिर दोनों को कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया. Real Crime Story

—कथा पुलिस सूत्रों और जनचर्चा पर आधारित

 

 

 

 

 

Crime News : अपहर्त्ताओं ने व्यापारी के बेटे को अगवा कर मांगी 2 करोड़ की फिरौती

Crime News : अपहर्त्ताओं ने व्यापारी मुकेश लांबा के एकलौते बेटे आदित्य उर्फ आदि का अपहरण कर 2 करोड़ की मांग की. ताज्जुब की बात यह रही कि पुलिस के मुस्तैद रहते हुए भी अपहर्त्ता फिरौती की रकम ले गए. इसी तरह के और भी अनेक ऐसे सवाल रहे जो पुलिस काररवाई पर अंगुली उठा रहे हैं.

शाम को करीब 6 बजे का समय रहा होगा. सुमन रसोई में शाम का खाना बनाने की तैयारी कर रही थी. सब्जी बनाने के लिए उसे जीरा चाहिए था. जीरा खत्म हो गया था. सुमन ने रसोई से ही बेटे आदित्य को आवाज दी, ‘‘आदि बेटे, किराने वाले की दुकान से जीरा ला दो.’’

13 साल का आदि उस समय मोबाइल पर गेम खेल रहा था. मां की आवाज सुन कर उसे झुंझलाहट हुई. उस ने ड्राइंगरूम से ही मां को आवाज दे कर कहा, ‘‘मम्मी, दीदी को भेज दो. मैं खेल रहा हूं.’’

अपने कमरे में पढ़ रही रितु ने छोटे भाई आदि की आवाज सुन ली. उस ने कहा, ‘‘मम्मी, मैं पढ़ रही हूं. यह मोबाइल में गेम खेल रहा है. इसे ही भेज दो.’’

‘‘बेटे आदि, तुम ही दुकान पर जा कर मुझे जीरा ला दो.‘‘ सुमन ने रसोई से बाहर निकल कर उसे 50 रुपए का नोट देते हुए कहा. आदि मना नहीं कर सका. उस ने मां से पैसे लिए और घर से निकल गया. किराने वाले की दुकान उन के घर के पास ही थी. वे घर के राशन की चीजें उसी से लाते थे. आदि उस किराना की दुकान पर पहुंचा ही था कि उधर से गुजरती एक स्विफ्ट कार वहां रुकी. कार में सवार लोगों ने आदि को इशारे से अपने पास बुला कर कहा, ‘‘बेटे, यहां आसपास ही मुकेश लांबा रहते हैं, क्या आप को पता है, उन का घर कहां है?’’

मुकेश लांबा का नाम सुन कर आदि बोला, ‘‘वे तो मेरे पापा हैं.’’

‘‘अरे तुम मुकेश के बेटे हो.’’ कार में सवार एक आदमी ने आदि की तरफ देखते हुए कहा, ‘‘बेटे हम आप के पापा के दोस्त हैं. हमें अपने घर ले चलो.’’

पापा के दोस्त होने की बात सुन कर आदि ने कहा, ‘‘चलो, मैं आप को घर ले चलता हूं.’’ यह कह कर आदि पैदल ही कार के आगे चलने लगा. आदि को पैदल चलते देख कार में सवार एक आदमी ने खिड़की से बाहर सिर निकाल कर उसे आवाज दे कर कहा, ‘‘बेटे, तुम हमारे साथ कार में ही बैठ जाओ.’’

वैसे तो आदि का मकान वहां से 2-3 सौ मीटर दूर ही था. फिर भी आदि उन के साथ कार में पीछे की सीट पर बैठ गया. कार में कुल 3 लोग थे. इन में एक कार चला रहा था. एक आगे की सीट पर और एक आदमी पीछे की सीट पर बैठा हुआ था. वे तीनों मास्क लगाए हुए थे. इसलिए उन के चेहरे साफ नजर नहीं आ रहे थे. आदि भी पीछे की सीट पर बैठ गया. आदि के बैठते ही आगे बैठे आदमी ने कार चला रहे अपने साथी से कहा, ‘‘यार, मुकेश के घर चल रहे हैं, तो कुछ मिठाई ले चलते हैं.’’ इस बात पर पीछे बैठे उन के साथी ने भी सहमति जताई.

आदि क्या कहता, वह चुप रहा. वे लोग कार में आदि को साथ ले कर काफी देर इधरउधर घूमते रहे. उधर आदी जीरा ले कर घर नहीं पहुंचा तो सुमन बुदबुदाने लगी, ‘‘पता नहीं ये लड़का कहां किस से बातें करने में लग गया. मैं सब्जी बनाने को बैठी हूं और यह नजाने कहां रुक गया. कम से कम जीरा तो मुझे दे कर चला जाता.’’

उधर वह लोग मिठाई की दुकान ढूंढने के बहाने कार को घुमाते रहे. बीच में मिठाइयों की कई दुकानें आईं, लेकिन उन्होंने मिठाई नहीं खरीदी. आखिर आदि ने उन से पूछ ही लिया कि अंकल आप को मिठाई खरीदनी है, तो कहीं से भी खरीद लो. मुझे घर जाना है. मम्मी ने मुझ से घर का कुछ सामान मंगाया है. मम्मी इंतजार कर रही होंगी.

‘‘लड़के, तू ज्यादा चपरचपर मत कर. चुपचाप बैठा रह.’’ कार में आगे की सीट पर बैठे आदमी ने उस से कहा, तो आदि सहम गया. उसे कुछ अनहोनी की आशंका हुई, लेकिन 13 साल का वह बालक क्या कर सकता था. पीछे बैठे आदमी ने उसे आंखें दिखाईं, तो वह सहम गया. कार के शीशे भी बंद थे. रात का अंधेरा भी घिर आया था. कुछ देर बाद कार सुनसान रास्ते पर एक मकान के आगे जा कर रुकी. कार से उतर कर वे तीनों आदमी आदि को भी उस मकान में ले गए. एक आदमी ने आदि से उस की मां और पापा के मोबाइल नंबर पूछे. आदि ने दोनों के नंबर उन्हें बता दिए.

शाम को करीब 7 बजे एक आदमी ने आदि की मां सुमन को मोबाइल पर काल कर कहा, ‘‘हम ने तुम्हारे बेटे का अपहरण कर लिया है. उसे जीवित देखना चाहती हो, तो 2 करोड़ रुपए का इंतजाम कर लो.’’

फोन सुन कर सुमन सन्न रह गई. वह काल करने वाले से बोली, ‘‘तुम कौन हो? मेरा बेटा कहां है?’’

‘‘तुम्हारा बेटा हमारे पास ही है. तुम पैसों का इंतजाम कर लो.’’ यह कह कर उस आदमी ने फोन काट दिया. दूसरी तरफ से सुमन हैलो.. हैलो.. ही करती रह गई. बेटे आदि के अपहरण और 2 करोड़ रुपए मांगने की बात सुन कर सुमन रोने लगी. घर पर आदि के पापा मुकेश लांबा भी नहीं थे. सुमन ने रोतेरोते फोन कर उन्हें बेटे का अपहरण होने की बात बताई. मुकेश तुरंत घर पहुंचे. उन्होंने पत्नी सुमन से सारी बातें पूछीं कि कैसे क्याक्या हुआ? आदि कहां गया था? अपहर्त्ताओं ने क्या कहा है? सुमन ने पति को सारी बातें बता दीं. यह बात 15 अक्तूबर, 2020 की है.

घटना मध्य प्रदेश के जबलपुर शहर की है. शहर के धनवंतरी नगर में दुर्गा मंदिर के पास रहने वाले मुकेश लांबा माइनिंग विस्फोटक का काम करते थे. पहले वह ट्रांसपोर्ट का काम करते थे. मुकेश का कारोबार अब ठीकठाक चल रहा था. जिंदगी मजे से गुजर रही थी. घर में किसी बात की कमी नहीं थी. परिवार में कुल 4 लोग थे. मुकेश, उन की पत्नी सुमन, बड़ी बेटी रितु और छोटा बेटा आदित्य. आदित्य को प्यार से घर के लोग आदी कहते थे. बेटा और बेटी दोनों पढ़ते थे. बेटे आदि के अपहरण की बात जान कर मुकेश परेशान हो गए. अपहर्त्ता कौन थे, यह भी पता नहीं था. वे 2 करोड़ रुपए मांग रहे थे. भले ही मुकेश का कारोबार अच्छा चल रहा था, लेकिन 2 करोड़ की रकम कोई मामूली थोड़े ही थी.

वे सोचने लगे कि क्या करें और क्या नहीं करें. उन्हें कुछ सूझ नहीं रहा था. आदि के अपहरण का पता चलने के बाद से पत्नी और बेटी के आंसू नहीं रुक पा रहे थे. मुकेश इसी बात पर सोचविचार कर रहे थे कि रात करीब 8 बजे उन के मोबाइल की घंटी बजी. उन्होंने तुरंत काल रिसीव कर कहा, ‘‘हैलो.’’

दूसरी तरफ से धमकी भरी आवाज आई, ‘‘मुकेश, हम ने तुम्हारे बेटे का अपहरण कर लिया है. बेटे को जिंदा देखना चाहते हो तो 2 करोड़ रुपए का इंतजाम कर लो. ध्यान रखना पुलिस को सूचना दी, तो तुम्हारा बेटा जिंदा नहीं बचेगा.’’

‘‘तुम कौन हो? मेरा बेटा कहां है और उस से मेरी बात कराओ?’’ मुकेश ने घबराई हुई आवाज में काल करने वाले से एक साथ कई सारे सवाल पूछे.

‘‘हम बहुत खतरनाक लोग हैं. तुम्हारा बेटा हमारे पास ही है, उस से बात भी करा देंगे. लेकिन तुम कल तक पैसों का इंतजाम कर लो.’’ काल करने वाले ने यह कह कर फोन काट दिया. पहले सुमन और इस के बाद मुकेश के पास आए फोन से यह साफ हो गया था कि आदि का अपहरण हो गया है. लेकिन यह पता नहीं चला था अपहर्त्ता कौन हैं? वे 2 करोड़ रुपए की रकम मांग रहे थे, जो मुकेश की हैसियत से बहुत ज्यादा थी. काफी सोचविचार के बाद मुकेश ने पुलिस को सूचना देने का फैसला किया और जबलपुर के संजीवनी नगर पुलिस थाने पहुंच कर उन्होंने रिपोर्ट दर्ज करा दी गई.

बच्चे के अपहरण और 2 करोड़ की फिरौती मांगने का पता चलने पर पुलिस अधिकारी धनवंतरी नगर में मुकेश लांबा के घर पहुंचे और घर वालों से पूछताछ कर बालक आदि की तलाश में जुट गए. दूसरे दिन 16 अक्तूबर को मुकेश के मोबाइल पर अपहर्त्ताओं का फिर फोन आया. उन्होंने उस से रकम के बारे में पूछा. मुकेश ने उन से कहा कि उस के पास 2 करोड़ रुपए नहीं हैं. वह मुश्किल से 8-10 लाख रुपए का इंतजाम कर सकता है. अपहर्त्ताओं ने कहा कि 2 करोड़ नहीं दे सकते, तो कुछ कम दे देना लेकिन 8-10 लाख से कुछ नहीं होगा. हम तुम्हें शाम को दोबारा फोन करेंगे, तब तक पैसों का इंतजाम कर लेना.

मुकेश ने अपहर्त्ताओं से हुई सारी बातें पुलिस को बता दीं. पुलिस ने उस मोबाइल नंबर को सर्विलांस पर लगा दिया, जिस नंबर से मुकेश के पास अपहर्त्ताओं का फोन आया था. अपहर्त्ताओं ने तब तक 3 बार फोन किए थे. ये फोन एक ही नंबर से किए गए थे. उसी दिन शाम को चौथी बार अपहर्त्ताओं का मुकेश के मोबाइल पर फिर फोन आया. मुकेश ने मिन्नतें करते हुए कहा कि मुश्किल से 8 लाख रुपए का इंतजाम हुआ है. ये पैसे तुम ले लो और मेरे बेटे को लौटा दो. मुकेश ने कहा कि बेटे से मेरी एक बार बात तो करा दो. मुकेश के अनुरोध पर अपहर्त्ताओं ने आदि से उस की बात कराई. मोबाइल पर आदि रोतीबिलखती आवाज में कह रहा था, ‘‘पापा, इन की बात मान लो. ये लोग बहुत खतरनाक हैं, मुझे मार डालेंगे.’’

बेटे की आवाज सुन कर मुकेश को कुछ संतोष हुआ. मुकेश के काफी गिड़गिड़ाने पर अपहर्त्ता 8 लाख रुपए ले कर आदि को छोड़ने पर राजी हो गए. अपहर्त्ताओं ने मुकेश को उसी रात जबलपुर में पनागर से सिरोहा मार्ग पर एक जगह नाले के पास पैसों का बैग रख आने को कहा और यह भरोसा दिया कि पैसे मिलने के आधे घंटे बाद बच्चे को तुम्हारे घर के पास छोड़ देंगे. अपहर्त्ताओं के 8 लाख रुपए लेने पर राजी हो जाने पर मुकेश को उम्मीद की कुछ किरण नजर आई. वह सोचने लगे कि यह बात पुलिस को बताए या नहीं. सोचविचार के बाद उन्होंने तय किया कि पुलिस को बताने में ही भलाई है, क्योंकि बेटे की वापसी का पुलिस को बाद में पता चलेगा, तो वे कई तरह के सवाल पूछेंगे. इसलिए मुकेश ने अपहर्त्ताओं से हुई सारी बात पुलिस को बता दी.

पुलिस अधिकारियों ने आपस में बातचीत कर फैसला किया कि मुकेश को 8 लाख रुपए एक बैग में ले कर तय जगह पर भेजा जाए. इस दौरान पुलिस दूर से निगरानी करती रहेगी. अपहर्त्ता जब पैसों का बैग लेने आएंगे, तो उन्हें वहीं से पकड़ लिया जाएगा. उस रात तय समय और तय जगह पर मुकेश ने 8 लाख रुपयों से भरा बैग रख दिया. कहा जाता है कि इस दौरान आसपास पुलिस निगरानी कर रही थी. इस के बावजूद अपहर्त्ता पैसों का वह बैग ले गए और पुलिस को कुछ पता नहीं चल सका. इधर, पैसों का बैग तय जगह पर छोड़ आने के बाद मुकेश और उस के घरवाले आदित्य के घर लौटने का इंतजार करते रहे. हरेक आहट पर उन की नजरें घर के गेट पर टिक जातीं.

घर में मौजूद एक भी आदमी सो नहीं सका. पूरी रात बेचैनी से गुजर गई, लेकिन आदि नहीं आया. मुकेश समझ नहीं पा रहे थे कि बेटा आदि वापस क्यों नहीं आया? अपहर्त्ताओं ने अपना वादा क्यों नहीं निभाया? क्या अपहर्त्ताओं को 8 लाख रुपए कम लगे या उन्होंने आदि को मार डाला? 17 अक्तूबर को आदित्य का अपहरण हुए तीसरा दिन हो गया था. पैसे भी चले गए थे और बेटा भी वापस नहीं आया तो मुकेश अपहर्त्ताओं के मोबाइल नंबर पर काल करने की कोशिश करते रहे, लेकिन वह नंबर नहीं मिल रहा था. मुकेश के साथ उन की पत्नी और बेटी मायूस हो गए. उन की आंखों से आंसू सूखने का नाम ही नहीं ले रहे थे. अब तो केवल अपहर्त्ताओं के फोन पर ही उम्मीद टिकी हुई थी.

पुलिस को भी मोबाइल नंबर सर्विलांस पर लेने के बावजूद अपहर्त्ताओं का पताठिकाना नहीं मिल पाया था. अधिकारियों को इस बात पर भी ताज्जुब हो रहा था कि अपहर्त्ता मौके पर मौजूद पुलिस वालों को चकमा दे कर रकम से भरा बैग ले कर कैसे और कब निकल गए? जांचपड़ताल में मिले कुछ सुराग के आधार पर पुलिस ने 17 अक्तूबर की रात एक शराब की दुकान के पास 3 लोगों को नशे की हालत में पकड़ा. इन में राहुल उर्फ मोनू विश्वकर्मा, मलय राय और करण जग्गी शामिल थे. ये तीनों जबलपुर के अधारताल थाना इलाके के महाराजपुर के रहने वाले थे. पुलिस ने इन से सख्ती से पूछताछ की, तो आदित्य के अपहरण का मामला खुल गया. पूछताछ के दौरान पुलिस अधिकारियों को उस समय गहरा झटका लगा, जब राहुल और मलय ने बताया कि आदि को अपहरण के दूसरे ही दिन यानी 16 अक्तूबर को ही मार दिया था.

आदि को मारने का कारण रहा कि उस ने एक अपहर्त्ता राहुल को मास्क हटने पर पहचान लिया था. राहुल मुकेश लांबा को अच्छी तरह जानता था और उन के घर कई बार आजा चुका था. अपहर्त्ताओं ने 16 अक्तूबर को मुकेश से आदि की जो बात कराई थी, वह मोबाइल में रिकौर्ड की हुई थी. आदि को वे उस से पहले ही मार चुक थे. अपहर्त्ताओं की निशानदेही पर पुलिस ने 18 अक्तूबर, 2020 को पनागर के पास जलगांव नहर से आदि का शव बरामद कर लिया. उस के मुंह पर गमछा बंधा हुआ था. शव बरामद होने के बाद पुलिस ने तीनों आरोपियों का अधारताल इलाके में जुलूस निकाला.

उसी दिन पुलिस हिरासत में मुख्य आरोपी राहुल विश्वकर्मा की तबियत बिगड़ गई. पुलिस ने उसे अस्पताल में भरती कराया, लेकिन कुछ समय बाद ही उस की मौत हो गई. आरोपियों से पुलिस की पूछताछ में जो कहानी उभर कर सामने आई, वह इस प्रकार निकली—

राहुल और मलय दोस्त थे. राहुल मोबाइल इंजीनियर था. वह एक मोबाइल की दुकान पर काम करता था. वह मौका मिलने पर लूट, चोरी आदि भी करता था. मलय भी अपराधी किस्म का युवक था. वह भी चोरीलूट जैसे अपराध करता था. लौकडाउन में कामधंधे बंद होने से इन दोनों के सामने भी पैसों का संकट आ गया. राहुल पर पहले से ही लोगों की उधारी चढ़ी हुई थी. लौकडाउन में कर्ज और बढ़ गया. परेशान राहुल ने मलय के साथ मिल कर कोई बड़ा हाथ मारने की योजना बनाई. राहुल ने उसे बताया कि वह धनवंतरी नगर के रहने वाले माइनिंग कारोबारी मुकेश लांबा को जानता है. उन के पास मोटी दौलत है. वह कई बार उन के घर भी आजा चुका है. उन के बेटे का अपहरण कर मोटी रकम वसूली जा सकती है.

मलय को यह बात जंच गई. दोनों ने सोचविचार के बाद इस योजना में अपने एक अपराधी दोस्त करण जग्गी को भी शामिल कर लिया. तीनों ने योजना बना कर मुकेश लांबा के घर की रैकी करनी शुरू की. इस के लिए राहुल ने अपने दोस्त से जरूरी काम के लिए कार मांग ली थी. 15 अक्तूबर, 2020 की शाम जब वे तीनों स्विफ्ट कार से मुकेश के घर की रैकी करने आए तो राहुल को आदित्य नजर आ गया. उन्होंने उसी समय उन्होंने आदी का अपहरण कर लिया. योजना के तहत ही राहुल व मलय ने आदि के अपहरण से 3 दिन पहले 12 अक्तूबर को बेलखाडू में एक आदमी से मोबाइल लूटा था.

इसी मोबाइल नंबर से वे मुकेश लांबा और उस की पत्नी को फोन कर फिरौती मांगते रहे. चूंकि राहुल मोबाइल इंजीनियर था, इसलिए उस ने उस मोबाइल में ऐसी कारस्तानी कर दी कि पुलिस उस की लोकेशन ट्रेस नहीं कर पा रही थी. 16 अक्तूबर को राहुल के चेहरे से मास्क हट गया तो आदि ने उसे पहचान लिया और कहा कि अंकल आप तो हमारे घर आतेजाते हो. आदि की ये बातें सुन कर राहुल और उस के साथियों ने सोचा कि पैसा ले कर इसे छोड़ दिया तो यह हमें पकड़वा देगा. इसलिए उन्होंने उसी दिन गमछे से गला घोंट कर आदि की हत्या कर दी. इस के बाद जलगांव नहर में उस का शव फेंक आए.

अपराधी इतने शातिर रहे कि आदि की हत्या के बाद भी उस के पिता से फिरौती मांगते रहे. हत्या से पहले उन्होंने आदि की आवाज मोबाइल में रिकौर्ड कर ली थी. यही रिकौर्डिंग अपहर्त्ताओं ने 16 अक्तूबर को मुकेश को सुनवाई थी. राहुल और मलय 16 अक्तूबर की रात पुलिस को चकमा दे कर पनागर मार्ग पर नाले के पास मुकेश की ओर से रखे गए 8 लाख रुपए का बैग भी ले गए. अगले दिन उन्होंने अपने तीसरे साथी करण से कहा कि बच्चा भाग गया. इस कारण पैसा नहीं मिल सका. यह झूठ बोल कर राहुल और मलय ने 8 लाख रुपए का आपस में बंटवारा कर लिया.

आरोपियों की निशानदेही पर पुलिस ने 7 लाख 66 हजार रुपए और अपहरण व शव फेंकने के काम ली गई 2 कार, एक बाइक और एक स्कूटी जब्त कर ली. इस के अलावा 12 अक्तूबर को लूटे गए मोबाइल सहित 2 अन्य मोबाइल भी बरामद कर लिए. मुख्य आरोपी 30 वर्षीय राहुल की पुलिस हिरासत में तबीयत बिगड़ने और बाद में अस्पताल में मौत हो जाने के मामले में सरकार ने न्यायिक जांच के आदेश दिए. 3 डाक्टरों के पैनल ने प्रथम श्रेणी न्यायिक मजिस्ट्रैट उमेश सोनी की मौजूदगी में राहुल के शव का पोस्टमार्टम किया. इस दौरान वीडियोग्राफी भी कराई गई.

पोस्टमार्टम के बाद मजिस्ट्रैट ने राहुल के बड़े भाई सोनू विश्वकर्मा और दूसरे घर वालों के बयान दर्ज किए. राहुल का शव उस के घर वालों को सौंप दिया गया. राहुल के भाई का कहना था कि पुलिस ने कानून अपने हाथ में लिया और पिटाई से उस की मौत हुई. आदि के अपहरण-मौत के मामले में पुलिस पर लापरवाही के आरोप लगे हैं. तमाम सूचनाएं दिए जाने के बावजूद पुलिस अपहर्त्ताओं की लोकेशन ट्रेस नहीं कर सकी. अपराधी पुलिस की मौजूदगी में ही फिरौती के 8 लाख रुपए ले गए. आदि को तलाश करने के बजाय पुलिस उस के अपहरण के दूसरे दिन जबलपुर आए डीजीपी की अगवानी में जुटी रही.

इस वारदात के विरोध में 18 अक्तूबर को धनवंतरी नगर व्यापारी संघ और महाराणा प्रताप मंडल के नेताओं ने मार्केट बंद कर सांकेतिक धरना प्रदर्शन भी किए. मासूम आदि की मौत से उस के घर की सारी खुशियां छिन गई हैं. पिता की भविष्य की उम्मीदें चकनाचूर हो गईं. मां सुमन रात को सोते हुए बैठ जाती है और उसी समय बेटे के लिए दहाड़ें मार कर रोती है. बहन रितु अब किसे राखी बांधेगी? एक अपराधी तो चला गया. हालांकि उस की मौत के कारणों की जांच हो रही है. लेकिन दूसरे अपराधियों को कानून क्या सजा देगा. Crime News

Jharkhand Crime News : पाताललोक वेबसीरीज देख कर किया दोस्त की पत्नी और बच्चों का कत्ल

Jharkhand Crime News : दूसरों की वजह से यदि उग्र स्वभाव का इंसान आंतरिक क्रोध के जाल में फंस जाए तो उसे बुरे करेक्टर याद आते हैं. दीपक के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ. ऐसे में उसे वेबसीरीज ‘पाताल लोक’ का करेक्टर हथौड़ा त्यागी याद आया और उस ने हथौड़ा उठा लिया. फिर तो उस ने…

पारसी व्यवसाई जमशेदजी नौशरवानजी टाटा द्वारा बसाया गया झारखंड का जमशेदपुर भारत के सब से प्रगतिशील औद्योगिक नगरों में एक है. इस शहर की बुनियाद सन 1907 में टाटा आयरन ऐंड स्टील कंपनी (टिस्को) की स्थापना से पड़ी. जमशेदपुर को टाटानगर भी कहते हैं. इस शहर में टिस्को के अलावा टेल्को, टायो, उषा मार्टिन, जेम्को, टेल्कान, बीओसी सहित आधुनिक स्टील ऐंड पावर के कई उद्योग और देश की नामी इकाइयां हैं. दीपक कुमार अपने परिवार के साथ इसी जमशेदपुर शहर में कदमा थाना इलाके में तीस्ता रोड पर क्वार्टर नंबर एन-97 में रहता था. परिवार में कुल 4 लोग थे.

दीपक, उस की पत्नी वीणा और 2 बेटियां. बड़ी बेटी श्रावणी 15 साल की थी और छोटी बेटी दिव्या 10 साल की. दीपक खुद करीब 40 साल का था और उस की पत्नी वीणा 36 साल की. मूलरूप से बिहार के खगडि़या जिले का रहने वाला दीपक टाटा स्टील कंपनी में फायर ब्रिगेड कर्मचारी था. पिछले कुछ सालों से नौकरी के सिलसिले में वह जमशेदपुर में रहता था, वेतन ठीकठाक था. साइड बिजनैस के रूप में वह ट्रांसपोर्ट का काम भी करता था. इसलिए घर में किसी तरह की कोई कमी नहीं थी. लेकिन दोस्तों के धोखा देने और लौकडाउन में ट्रांसपोर्ट से आमदनी घटने से वह आर्थिक संकट में आ गया था.

इसी 12 अप्रैल की बात है. दीपक ने अपने दोस्त रोशन और उस की पत्नी आराध्या को लंच पर घर बुलाया. सुबह करीब साढ़े 9 बजे जब दीपक का फोन आया था, तब रोशन ने तबीयत ठीक न होने की बात कह कर मना कर दिया था, लेकिन दीपक के काफी इसरार करने पर रोशन ने कह दिया कि तबीयत ठीक रही, तो वह दोपहर बारह-एक बजे तक आने या नहीं आने के बारे में बता देगा. रोशन और उस की बीवी आराध्या से दीपक के पारिवारिक संबंध थे. दरअसल, रोशन आराध्या से प्यार करता था, लेकिन दोनों के घर वाले इस रिश्ते के लिए राजी नहीं थे. तब दीपक ने दोनों परिवारों को रजामंद कर के रोशन और आराध्या की शादी कराई थी.

दीपक का छत्तीसगढ़ में ट्रांसपोर्ट का काम था. वहां रोशन का भी ट्रक चलता था. आराध्या दीपक को मामा कहती थी. रोशन और आराध्या कुछ महीने पहले ही जमशेदपुर में शिफ्ट हुए थे. आराध्या या रोशन का फोन नहीं आया, तो दीपक ने दोपहर करीब एक बजे पत्नी वीणा के मोबाइल से आराध्या को फोन कर लंच पर जरूर आने का आग्रह किया. आराध्या मना नहीं कर सकी. उस ने कहा, ‘‘ठीक है. हम जरूर आएंगे.’’

दोपहर करीब ढाई बजे रोशन अपनी पत्नी आराध्या और एक साल की बेटी के साथ कार से कदमा में दीपक के घर पहुंचे. उन के साथ रोशन का साला अंकित भी था. अंकित दिल्ली रहता था. वह बहनबहनोई से मिलने जमशेदपुर आया था. रोशन और आराध्या दीपक के घर लंच पर जा रहे थे, अंकित घर में अकेला बोर होगा. सोच कर वे उसे भी अपने साथ लेते गए. घर पहुंचने पर दीपक ने गेट खोला. उस ने रोशन और उस की बीवी का गर्मजोशी से स्वागत किया. उन के साथ तीसरे युवक को देख कर दीपक ने रोशन की तरफ सवालिया नजरों से देखा. उस की नजरों को भांप कर रोशन ने हंसते हुए कहा, ‘‘यार, ये मेरा साला और मेरी बेगम साहिबा का भाई है. नाम है अंकित. दिल्ली से आया है.’’

रोशन, उस की बीवी और अंकित को ड्राइमरूम में सोफे  पर बैठने का इशारा करते हुए दीपक ने कहा, ‘‘आप लोग बैठो, मैं फ्रिज से ठंडा पानी ले कर आता हूं.’’

दीपक पानी लाने के लिए जाने लगा, तो आराध्या चौंक कर बोली, ‘‘मामा, आप पानी क्यों ला रहे हो? वीणा मामी को कह दो, वह ले आएंगी.’’

‘‘अरे यार, मैं तुम्हें बताना भूल गया. वीणा कुछ देर पहले मेरे भाई के घर रांची चली गई. साथ में दोनों बच्चों को भी ले गई,’’ दीपक ने कुछ सोचते हुए कहा, ‘‘घर में अकेला मैं ही हूं. मुझे ही आप लोगों की आवभगत करनी पड़ेगी.’’

‘‘मामा, हमें शर्मिंदा मत कीजिए. आप ने हमें बेकार ही लंच पर बुलाया,’’ आराध्या ने नाराजगी भरे स्वर में कहा, ‘‘मामीजी घर पर नहीं हैं, तो हम लंच के लिए फिर कभी आ जाएंगे.’’

दीपक ने आराध्या को भरोसा दिलाते हुए कहा, ‘‘आप को लंच पर बुलाया है, तो बाजार से खाना ले आएंगे.’’

दीपक की इस बात पर आराध्या ने पति रोशन की ओर देखा. रोशन क्या कहता, उस ने फ्रिज से पानी लेने जा रहे दीपक को सोफे पर ही बैठा लिया और बातें करने लगे. घरपरिवार और बच्चों की बातें करते हुए वे ठहाके भी लगाते जा रहे थे. उन्हें बातें करते हुए 5-7 मिनट ही हुए थे कि आराध्या की बेटी ने पौटी कर दी. आराध्या बेटी को गोद में ले कर बाथरूम में चली गई. बाथरूम में उस ने बच्ची को साफ किया. पीछेपीछे रोशन भी बीवी की मदद के लिए बाथरूम में आ गया और उस ने बेटी का नैपकिन धोया. बाथरूम से ड्राइंगरूम में आते समय उन्हें चिल्लाने की आवाज सुनाई दी. वे तेज कदमों से ड्राइंगरूम में पहुंचे, तो दीपक हथौड़े से अंकित पर हमला कर रहा था.

रोशन कुछ समझ नहीं पाया कि अचानक ऐसी क्या बात हो गई, जो दीपक अंकित को मार रहा है. वह दीपक से पूछते हुएअंकित को बचाने लगा, तो दीपक ने उस की बच्ची को अपनी ओर खींचते हुए मारने की कोशिश की. रोशन बचाने लगा, तो दीपक ने उस पर भी हथौड़े से हमला कर दिया. इस से रोशन को भी चोटें लगीं. किसी तरह रोशन ने अपनी बेटी, पत्नी और साले को बचा कर वहां से बाहर निकाला. अंकित के सिर से खून बह रहा था. उस के सिर पर रुमाल बांध कर खून रोकने की कोशिश की गई. फिर वे कार से सीधे टाटा मैमोरियल हौस्पिटल पहुंचे. अंकित का तुरंत इलाज जरूरी था. उसे हौस्पिटल में भरती कराया गया. रोशन को भी डाक्टरों ने भरती कर लिया.

बाद में रोशन ने दीपक के साले विनोद को फोन कर पूरी बात बताई. विनोद को दाल में कुछ काला नजर आया. उस ने यह बात अपने छोटे भाई आनंद साहू को बताईं. दीपक की ससुराल जमशेदपुर के ही शास्त्रीनगर में थी. शाम करीब 4 बजे विनोद और उस के घर वाले दीपक के क्वार्टर पर पहुंचे. वहां गेट पर ताला लगा हुआ था, लेकिन अंदर एसी चल रहा था. विनोद और उस के घर वाले सोचविचार कर ही रहे थे कि इसी दौरान रिंकी को ढूंढते हुए उस की मां नीलिमा और मंझली बहन बिपाशा भी वहां पहुंच गईं. उन्होंने बताया कि रिंकी दीपक के बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने आती थी. वह सुबह 11 बजे घर से निकली थी और अभी तक घर नहीं पहुंची.

रोजाना वह दोपहर एक बजे घर वापस आ जाती थी. बहनों की औनलाइन क्लास होने के कारण रिंकी उस दिन मोबाइल नहीं ले गई थी. जब रोजाना के समय पर रिंकी वापस घर नहीं पहुंची, तो घर वालों ने दीपक को फोन किया. दीपक ने कहा कि वह ट्यूशन पढ़ा कर जा चुकी है. इस के बाद भी दोपहर 3 बजे तक जब रिंकी घर नहीं पहुंची, तो नीलिमा और बिपाशा दीपक के क्वार्टर पर पहुंची थीं. चिंता में मांबेटी वहां से कदमा थाने पहुंचीं और पुलिस को पूरी बात बताई. पुलिस ने कोई घटना दुर्घटना होने की आशंका जताते हुए एक बार हौस्पिटल में देख आने की सलाह दी. वे टीएमएच गईं, लेकिन वहां कुछ पता नहीं चला, तो थकहार कर दोनों दोबारा दीपक के क्वार्टर पर आईं. यहां उन्हें विनोद और उस के घर वाले मिले.

विनोद ने रिंकी की मांबहन के साथ सोचविचार कर दीपक के क्वार्टर के दरवाजे पर लगा ताला तोड़ दिया. विनोद अंदर कमरे में गया और चिल्लाते हुए बाहर निकल आया. उस ने बताया कि वीणा और दोनों बेटियां मरी पड़ी हैं. यह सुन कर विनोद के साथ दूसरे लोग कमरे में गए. उन्होंने वीणा और दोनों बच्चियों को हिलायाडुलाया, लेकिन कोई हलचल नहीं हुई. उन की नब्ज भी ठंडी पड़ चुकी थी. वीणा और उस की दोनों बेटियों की लाश देख कर विनोद और उस के घर वाले रोने लगे. दीपक की पत्नी और बेटियों की लाश देख कर रिंकी की मां और बहन को शक हुआ. खोजबीन में रिंकी की एक चप्पल बाहर पड़ी मिल गई.

इस से संदेह और बढ़ गया. वे घर में रिंकी को तलाशने लगीं. उस की स्कूटी तो बालकनी में खड़ी मिली, लेकिन रिंकी नहीं मिली. मंझली बेटी बिपाशा मां को दिलासा देते हुए अलगअलग कमरों में बड़ी चीजें हटा कर देखने लगी. उस ने एक कमरे में पलंग का बौक्स खोला, तो उस में रिंकी की लाश पड़ी थी. उस के हाथ बंधे हुए और कपड़े अस्तव्यस्त थे. रिंकी की लाश देख कर नीलिमा और बिपाशा रोने लगीं. चारों हुईं हथौड़े का शिकार एक क्वार्टर में 4 लोगों की हत्या होने की बात पूरे शहर में फैल गई. सूचना मिलने पर कदमा थानाप्रभारी से ले कर डीएसपी, एसपी (सिटी) सुभाषचंद्र जाट और एसएसपी डा. एम. तमिलवाणन के अलावा फोरैंसिक टीम मौके पर पहुंच गई.

पुलिस अफसरों ने मौकामुआयना किया. एक कमरे की दीवार पर खून के छींटे मिले. तलाशी के दौरान कमरे में खून लगी हथौड़ी और खून से सना तकिया भी मिला. शराब की एक बोतल भी मिली. फोरैंसिक टीम ने फिंगरप्रिंट लिए और जरूरी सबूत जुटाए. मौके के हालात से लग रहा था कि वीणा और उस की दोनों बेटियों की हत्या कई घंटे पहले की गई थी. अनुमान लगाया गया कि सुबह करीब 11 बजे के बाद ट्यूशन टीचर रिंकी जब दीपक की बेटियों को पढ़ाने आई होगी, तो उस ने वीणा और दोनों बच्चियों की लाश देख ली होगी. इस पर दीपक ने भेद खुलने के डर से रिंकी को दूसरे कमरे में ले जा कर मार डाला होगा.

रिंकी की हत्या 11 से दोपहर 1 बजे के बीच की गई होगी, क्योंकि करीब एक बजे दीपक ने रोशन की पत्नी आराध्या को लंच पर बुलाने के लिए फोन किया था. 21 साल की रिंकी के अस्तव्यस्त कपड़े देख कर उस से दुष्कर्म किए जाने का अनुमान भी लगाया गया. पुलिस ने जरूरी जांचपड़ताल और लिखापढ़ी के बाद चारों शव पोस्टमार्टम के लिए अस्पताल भिजवा दिए. पुलिस की कार्रवाई में रात हो गई थी, इसलिए रात में पोस्टमार्टम नहीं हो सके. चारों हत्याओं में सीधा शक दीपक पर था और उस का कुछ अतापता नहीं था. अधिकारियों ने दीपक के ससुराल वालों से उस के बारे में पूछताछ की. पता चला कि वह उस दिन सुबह ही ससुराल गया था.

ससुर पारसनाथ साहू ने दामाद दीपक से जब बेटी और नातिनों के बारे में पूछा, तो उस ने कहा था कि वे रांची में उस के भाई के घर गई हैं. पारसनाथ ने पुलिस अफसरों को बताया कि कदमा तीस्ता रोड पर कुछ दिनों से चोरी की वारदातें हो रही थीं. इसलिए बेटी वीणा ने कुछ दिन पहले करीब 5 लाख रुपए के अपने कीमती जेवर सुरक्षा के लिहाज से उन के घर पर रख दिए थे. दीपक एक दिन पहले 11 अप्रैल की शाम को भी अपनी ससुराल गया था, तब वह बच्चों के साथ खेलता रहा फिर कुछ देर रुक कर चला गया था. इस के बाद दूसरे दिन सुबह वह दोबारा आया, तो उस ने अपने जेवर वापस मांगे. हम ने उसे जेवर दे दिए. जेवर ले कर वह चला गया.

पुलिस ने ससुराल वालों से दीपक का मोबाइल नंबर ले कर उस की लोकेशन पता कराई. करीब 3 बजे की उस की आखिरी लोकेशन जमशेदपुर में ही रमाडा होटल के पास बिष्टुपुर में मिली. फिर उस का मोबाइल बंद हो गया था. दीपक की बुलेट मोटरसाइकिल भी नहीं मिली. इसलिए अनुमान लगाया गया कि ससुराल से गहने ले कर वह बुलेट से फरार हो गया. जांचपड़ताल में पुलिस को रात के 10 बज गए. इसलिए क्वार्टर सील कर बाकी जांच अगले दिन करने का फैसला किया गया. 13 अप्रैल को सुबह से ही पुलिस इस मामले की जांचपड़ताल में जुट गई. दीपक के क्वार्टर की तलाशी में एक कमरे से सीमन लगा एक गमछा और रिंकी के कुछ कपड़े मिले. इसी कमरे में पलंग के बौक्स में रिंकी की लाश मिली थी.

जांचपड़ताल में यह भी पता चला कि 12 अप्रैल की सुबह दीपक ससुराल से जो जेवर ले कर आया था, वे जेवर उस ने सुबह करीब साढ़े 10 बजे कदमा उलियान स्थित आरके ज्वैलर्स पर बेच दिए थे. दीपक ज्वैलर का परिचित था. परिवार के जेवर वह इसी दुकान से बनवाता था. दुकानदार रमेश सोनी से उस ने जमीन खरीदने के लिए जेवर बेचने की बात कही थी. सारे जेवरों का वजन 109 ग्राम था. इन का सौदा 4 लाख 40 हजार रुपए में हुआ. रुपया देने के लिए दुकानदार ने 2-3 घंटे का समय मांगा. पुलिस ने अनुमान लगाया कि इस के बाद दीपक अपने क्वार्टर पर आ गया होगा. कुछ देर बाद ट्यूशन टीचर रिंकी घोष वहां पहुंची होगी. रिंकी ने कमरे में लाशें देख लीं, तो दीपक ने उस को पकड़ लिया होगा और दुष्कर्म करने के बाद उस की हत्या कर लाश पलंग के बौक्स में छिपा दी होगी.

रिंकी की लाश ठिकाने लगाने के बाद दोपहर करीब डेढ़ बजे दीपक वापस ज्वैलर के पास पहुंचा. ज्वैलर ने उसे 3 लाख रुपए नकद दिए. बाकी पैसे एकदो दिन में देने की बात कही, तो दीपक ने बाकी 1.40 लाख रुपए अपने भाई के बैंक खाते में ट्रांसफर करने को कहा. इस के लिए दुकानदार ने हामी भर ली. इस के बाद दीपक वापस अपने क्वार्टर पर आया होगा. कुछ देर बाद रोशन अपनी पत्नी, बेटी और साले के साथ लंच के लिए वहां पहुंच गया. वहां दीपक ने अंकित और रोशन पर जानलेवा हमला किया. इस से बच कर वे भाग गए, तो दीपक दोपहर 3 बजे अपने क्वार्टर पर ताला लगा कर बुलेट से फरार हो गया होगा.

शादी कराने वाला ही बना दुश्मन पुलिस को दीपक के ससुराल वालों से पूछताछ में पता चला कि दीपक का किसी ना किसी बात पर वीणा से झगड़ा होता रहता था. वह अपने पारिवारिक विवाद के लिए रोशन और उस की पत्नी आराध्या को दोषी मानता था. शायद इसीलिए दीपक ने पत्नी और दोनों बेटियों की हत्या करने के बाद रोशन और आराध्या को जान से मारने की नीयत से ही लंच पर बुलाया था, लेकिन रोशन के साथ उस का साला भी पहुंच गया. 2 पुरुषों के बीच दीपक का हमला कमजोर पड़ गया और रोशन के परिवार की जान बच गई. ससुराल वालों से ही पता चला कि दीपक अपने बड़े साले विनोद साहू को भी जान से मारने की फिराक में था.

उस ने फोन कर जमीन संबंधी कोई बात करने के लिए दोपहर में विनोद को अपने घर बुलाया था, लेकिन विनोद काम में व्यस्त होने के कारण नहीं जा सका था. विनोद ने कुछ साल पहले किसी लड़की से अफेयर के मामले में दीपक की पिटाई कर दी थी, तब से दीपक उस से रंजिश रखता था. दीपक के छोटे साले आनंद साहू के बयान पर कदमा थाने में दीपक के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज कर लिया गया. रोशन ने पहले ही दीपक के खिलाफ जानलेवा हमला करने की शिकायत थाने में दे दी थी. कोल्हान के डीआईजी राजीव रंजन सिंह ने जमशेदपुर पहुंच कर मौकामुआयना किया और रोशन सहित दीपक के ससुराल वालों से पूछताछ की. दूसरी ओर, पुलिस ने पोस्टमार्टम कराने के बाद शव परिजनों को सौंप दिए.

सूचना देने और इतनी बड़ी घटना के बाद भी दीपक के परिवार से कोई भी जमशेदपुर नहीं आया. वीणा और उस की बेटियों के शवों का दाह संस्कार मायके वालों ने किया. रिंकी के शव की अंत्येष्टि उस के घर वालों ने की. पुलिस की जांच और पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पता चला कि दीपक ने 12 अप्रैल की सुबह हथौड़े से वार कर पत्नी और बेटियों की हत्या की थी. उस ने वीणा के सिर में 2 जगह और चेहरे पर वार किए थे. फिर तकिए से उस का मुंह दबाया था. बड़ी बेटी श्रावणी के सिर में पीछे से चोट की गई थी. उस का भी गला दबाया गया था. दीपक सब से ज्यादा प्यार छोटी बेटी दिव्या को करता था. उस के सिर के पीछे तेज चोट मारी गई थी. इस से उस की कई हड्डियां टूट गई थीं.

दीपक को तलाशना जरूरी था. दोस्तों और ससुराल वालों से उस के छिपने के ठिकानों का पता लगा कर पुलिस ने अलगअलग टीमें बनाईं और जमशेदपुर व रांची के अलावा बिहार, छत्तीसगढ़ और पश्चिम बंगाल तक उस की तलाश शुरू कर दी. कई जगह छापे मारे गए. इस के साथ ही उस की मोटरसाइकिल की तलाश भी शुरू की गई. पुलिस ने दीपक के भाई और बहनों से बात की और उन के मोबाइल नंबरों की जांच की. ट्यूशन टीचर रिंकी घोष की हत्या के आरोपी को गिरफ्तार करने की मांग को ले कर टाइगर्स क्लब के संस्थापक सदस्य आलोक मुन्ना के नेतृत्व में 15 अप्रैल को कदमा रंकिणी मंदिर से गोल चक्कर तक कैंडल मार्च निकाला गया.

इन लोगों की मांग थी कि हत्यारे को पकड़ कर अदालत में स्पीडी ट्रायल चलाया जाए और उसे फांसी दी जाए. 4-5 दिन की भागदौड़ के बाद 16 अप्रैल को दीपक धनबाद में पकड़ा गया. वह 12 अप्रैल की दोपहर जमशेदपुर से बुलेट ले कर निकला और राउरकेला पहुंचा. बुलेट उस ने राउरकेला में छोड़ दी. वहां से टैक्सी ले कर वह पुरी व रांची हो कर 15 अप्रैल को धनबाद पहुंचा, जहां एक होटल में रुका. दीपक अपने पास रखे पैसों में से डेढ़ लाख रुपए भाई मृत्युंजय के खाते में जमा कराना चाहता था. इस के लिए वह 16 अप्रैल को धनबाद में एक प्राइवेट बैंक में पैसे जमा कराने गया. बैंक में पैसे जमा होते ही दीपक के भाई के मोबाइल पर मैसेज आया.

पुलिस ने दीपक और उस के भाई का मोबाइल पहले ही सर्विलांस पर लगा रखा था. मैसेज आते ही पुलिस को दीपक का सुराग मिल गया. जमशेदपुर पुलिस ने धनबाद पुलिस को सूचना दे दी. धनबाद पुलिस बैंक में पहुंची. इसी दौरान दीपक दोबारा बैंक पहुंचा, तो पुलिस ने उसे पकड़ लिया. पुलिस 16-17 अप्रैल की दरम्यानी रात उसे धनबाद से जमशेदपुर ले आई. जमशेदपुर में पुलिस ने दीपक से पूछताछ की तो उस के हथौड़ीमार नर पिशाच बनने की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार है. पहले दीपक परसुडीह थाना इलाके के गांव सोपोडेरा में मातापिता के साथ रहता था. वहां उन का आलीशान पैतृक मकान था. प्रभु उस का जिगरी दोस्त था साल 2004 में दीपक की शादी वीणा से हो गई.

बाद में 2012 में दीपक की टाटा स्टील में फायरमैन के पद पर नौकरी लग गई. इस के बाद वह जमशेदपुर के कदमा इलाके में रहने लगा. परिवार बढ़ने के साथ जिम्मेदारियां और खर्च भी बढ़ गए थे. एक दिन दीपक ने दोस्त प्रभु से कोई साइड बिजनेस कराने की बात कही. इस पर प्रभु ने उसे ट्रांसपोर्ट का काम करने की सलाह दी. प्रभु ने उसे काम तो बता दिया लेकिन इतना पैसा दीपक के पास नहीं था. इस पर प्रभु ने उस से कहा कि वह सोपोडेरा का अपना पुश्तैनी मकान बेच दे और उस का पैसा ट्रांसपोर्ट में लगा दे, तो अच्छी आमदनी होगी. दीपक को यह बात जंच गई.

दोस्तों ने ही दिया धोखा उस ने अपना मकान 40 लाख रुपए में बेच दिया. इस में से 20 लाख रुपए उस ने अपने भाई मृत्युंजय को दे दिए. बाकी के 20 लाख रुपए दीपक के पास रहे. करीब दो साल पहले प्रभु ने उसे 17 लाख रुपए में एक हाइवा (मालवाहक ट्रक) और एक बुलेट दिलवा दी. यह हाइवा उस ने प्रभु के मार्फत जोजोबेड़ा में चलवा दिया. इस से उसे अच्छी आमदनी होने लगी. पिछले साल कोरोना के कारण लौकडाउन हो जाने से उस की आमदनी कम हो गई. इस बीच, दीपक को पता चला कि प्रभु ने जो ट्रक दिलवाया था, उस पर 5 लाख रुपए रोड टैक्स बकाया है.

परिवहन विभाग का नोटिस आने पर उस ने कर्ज ले कर टैक्स जमा कराया. इस के लिए उस ने टिस्का कोआपरेटिव सोसायटी से साढ़े चार लाख रुपए और अपने पीएफ अकाउंट से डेढ़ लाख रुपए का कर्ज लिया. दीपक की तनख्वाह 34 हजार रुपए महीना थी. सोसायटी से कर्ज लेने के बाद उसे केवल 8 हजार रुपए ही मिलने लगे. ट्रक से भी आमदनी कम हो गई थी. करीब छह महीने पहले प्रभु ने बताया कि उस का भांजा रोशन खुद का और उस का ट्रक पश्चिम बंगाल में खड़गपुर की एक स्टील कंपनी में चलवा रहा है. रोशन पहले से ही उस का दोस्त था.

उस की शादी भी उस ने ही कराई थी. कमाई की उम्मीद में दीपक ने भरोसा कर बिना किसी लिखापढ़ी के अपना ट्रक रोशन को सौंप दिया. रोशन ने दीपक का ट्रक तो कंपनी में लगवा दिया, लेकिन उसे कमाई का हिस्सा नहीं दिया. इस बीच, दीपक लगातार कर्जदार होता गया. दीपक अपनी इस बर्बादी के लिए प्रभु और रोशन को जिम्मेदार मानता था. उस ने उन से बदला लेने की योजना बनाई. दीपक अपने मोबाइल पर वेबसीरीज देखा करता था. पाताल लोक और असुर वेबसीरीज देख कर उस ने उन की हत्या करने का मन बनाया. वह एक वेबसीरीज पाताललोक के कैरेक्टर हथौड़ा त्यागी से काफी प्रभावित था.

इसीलिए उस ने हथौड़े से हत्या करने का फैसला किया. उस ने दोनों दोस्तों को मारने की तो योजना बना ली लेकिन इस बात से परेशान था कि वह पकड़ा गया और जेल चला गया, तो बीवीबच्चों का क्या होगा? काफी सोचविचार के बाद उस ने अपने परिवार को भी खत्म करने का निर्णय लिया. 12 अप्रैल को दीपक सुबह जल्दी उठ गया. देखा कि पत्नी वीणा पानी भर रही थी. वह बिस्तर पर ही बेचैनी से इधरउधर करवटें बदलता रहा. पानी भरने और छोटेमोटे घरेलू काम निपटाने के बाद सुबह करीब 8 बजे वीणा फिर बैड पर लेट गई. दीपक ने उसी दिन अपने परिवार और दोनों दोस्तों का काम तमाम करने का आखिरी फैसला कर लिया.

दीपक ने पहले से ही बैड के पास छिपा कर रखा हथौड़ा निकाला और वीणा के सिर में पीछे से वार कर दिया. वीणा चीखती, इस से पहले ही उस ने तकिए से उस का गला दबा दिया. वीणा की मौत हो गई. इस के बाद दीपक दूसरे कमरे में गया. वहां बैड पर दोनों बेटियां सो रही थीं. दीपक ने एक नजर उन्हें देखा. फिर बेरहमी से पहले बड़ी बेटी के सिर में हथौड़ी से वार कर के उसे मौत के घाट उतारा. फिर इसी तरह छोटी बेटी को भी मौत की नींद सुला दिया. पत्नी और दोनों बेटियों की हत्या के बाद उस ने रोशन को लंच पर आने के लिए फोन किया. इस के बाद दूसरे दोस्त प्रभु को फोन कर शाम 4 बजे जोजोबेड़ा में मिलने की बात कही.

दोनों दोस्तों से बात करने के बाद वह नहाधो कर ससुराल गया और अपने जेवर ले कर ज्वैलर्स के पास पहुंचा. जेवर बेच कर वह वापस घर आया. कुछ देर बाद ही रिंकी घोष उस के बच्चों को पढ़ाने आ गई. रिंकी ने वीणा और बच्चों की लाशें देख लीं, तो दीपक को भेद खुलने का डर हुआ. उस ने उस के भी सिर पर हथौड़ी से हमला कर उसे मार डाला. इस के बाद उस ने उस की लाश से दुष्कर्म किया और शव पलंग के बौक्स में छिपा दिया. रोशन की हत्या की योजना फेल हो जाने पर वह डर गया था. इसलिए अपने क्वार्टर पर ताला लगा कर बुलेट से भाग निकला. उस की प्रभु को मारने की योजना भी अधूरी रह गई.

जल्लाद बने दीपक की सनक में ट्यूशन टीचर रिंकी बेमौत मारी गई. वह जमशेदपुर में कदमा रामजनम नगर की रहने वाली नीलिमा घोष की 3 बेटियों में सब से बड़ी थी और जमशेदपुर वीमंस कालेज में बीए अंतिम वर्ष की छात्रा थी. मंझली बेटी बिपाशा केरला पब्लिक स्कूल में 10वीं और छोटी बेटी विशाखा 5वीं कक्षा में पढ़ती थी. दीपक की बड़ी बेटी श्रावणी बिपाशा की क्लासमेट थी. श्रावणी के कहने पर ही रिंकी 2 साल से दीपक के घर ट्यूशन पढ़ाने जाती थी. दीपक का भाई मृत्युंजय रांची में एसबीआई में ब्रांच मैनेजर था. बाद में वह एक निजी फाइनैंस कंपनी में क्रेडिट इंचार्ज के पद पर काम करने लगा था.

मृत्युंजय अब जमशेदपुर आना चाहता था. इस के लिए उस ने दीपक से कहा भी था. दीपक ने अपने ससुराल वालों को भी यह बात बताई थी. इस घटना से कुछ दिन पहले ही दीपक अपने परिवार के साथ पुरी घूम कर आया था. 11 अप्रैल की रात भी वह परिवार के साथ एक पार्टी में गया था और 10 बजे के बाद लौटा था. दीपक ने अपना परिवार उजाड़ दिया और रिंकी के परिवार की खुशियां छीन लीं. कानून उसे उस के किए की सजा देगा, लेकिन उस के ससुराल वाले और रिंकी के परिवार वाले जीवन भर इस दुख को नहीं भुला पाएंगे. दीपक ने पकड़े जाने पर पुलिस को बताया था कि उस का आत्महत्या करने का प्लान था. इसलिए जेल में अब उस पर कड़ी निगरानी रखी जा रही है. Jharkhand Crime News

 

hindi crime story : रोहतक के अखाड़े में खूनी खेल

hindi crime story : मेहर सिंह अखाड़े में तैनात सुखविंदर न केवल अच्छा पहलवान था बल्कि बेहतरीन कोच भी था. उस की नजर अखाड़े की 17 वर्षीया पहलवान पूजा पर थी. पूजा ने जब उस की हरकतों की शिकायत मुख्य कोच मनोज मलिक से की तो कोच कमेटी ने उसे अखाड़े से हटा दिया. इस पर…

एक पुरानी कहावत है कि हर जुर्म की पृष्ठभूमि में जर, जोरू और जमीन मूल कारण होता है. हरियाणा के रोहतक स्थित जाट कालेज के मेहर सिंह अखाड़े में उस रात जो कुछ हुआ, उस की जड़ में कोई एक नहीं, बल्कि ये तीनों ही कारण छिपे थे. 12 फरवरी, 2021 की रात के करीब 9 बजे जाट कालेज का पूरा प्रांगण सैकड़ों लोगों की भीड़ से खचाखच भरा था. चारों तरफ चीखपुकार मची थी. महिलाओं की मर्मांतक चीखों से पूरा माहौल गमगीन था. कालेज के बाहर पुलिस और प्रशासन की गाडि़यों का हुजूम जमा था. सायरन बजाती पुलिस की गाडि़यों और एंबुलैंस से पूरा इलाका किसी बड़े हादसे की ओर इशारा कर रहा था.

करीब 2 घंटे पहले मेहर सिंह अखाड़े में जो खूनी खेला गया था, उस के बाद वहां सिर्फ तबाही और मौत के निशान बचे थे. जाट कालेज के मेहर सिंह अखाड़े में जो हादसा हुआ था, उस की शुरुआत शाम करीब साढ़े 6 बजे हुई थी. मनोज कुमार मलिक, जो जाट कालेज रोहतक में डीपीई थे, अपनी पत्नी साक्षी मलिक व अपने 3 साल के बेटे सरताज के साथ अखाड़े में मौजूद थे. साक्षी मलिक एथलीट कोटे से रेलवे में कार्यरत थी. मनोज जाट कालेज के मेहर सिंह अखाड़े में हर शाम कुश्ती के खिलाडि़यों को प्रशिक्षण देने आते थे. उस शाम मनोज करीब 6 बजे खिलाडि़यों को अभ्यास कराने के लिए अपनी पत्नी साक्षी व बेटे सरताज को साथ ले कर जाट कालेज के अखाड़े आए थे.

साक्षी मैदान में जा कर अपने गेम की प्रैक्टिस कर रही थीं, बेटा सरताज भी उन के साथ था. अखाड़े वाले मैदान में ऊंची आवाज में स्टीरियो पर वार्मअप म्यूजिक बज रहा था. मनोज मलिक जिस वक्त अखाडे़ में पहुंचे वहां कोच प्रदीप मलिक, सतीश दलाल पहले से ही खिलाडि़यों को प्रशिक्षण दे रहे थे, महिला खिलाड़ी पूजा अखाडे़ में दावपेंच आजमा रही थी. साक्षी मैदान में अपनी एथलीट की प्रैक्टिस करने लगीं. बेटा सरताज उन के पास ही था. कोच सतीश दलाल खिलाड़ी पूजा से कुश्ती के दावपेंच को ले कर बात कर रहे थे. मनोज व प्रदीप मलिक आपस में बात करने लगे. इस के बाद प्रदीप जिम्नेजियम के ऊपर बने रेस्टहाउस में चले गए, जहां एक कमरे में पहले से ही कोच सुखविंदर मौजूद था.

प्रदीप मलिक ने सुखविंदर के कमरे में जा कर उस से बातचीत शुरू कर दी. जिम्नेजियम में भी ऊंची आवाज में म्यूजिक बज रहा था, जहां कई युवा पहलवान वार्मअप कर रहे थे. सुखविंदर से बातचीत के दौरान अचानक प्रदीप मलिक का फोन आ गया. फोन ले कर वह जैसे ही उठे, तभी अचानक सुखविंदर ने उन के सिर में गोली मार दी. गोली लगते ही प्रदीप लहरा कर जमीन पर गिर पड़े. सुखविंदर ने प्रदीप के शव को दरवाजे के सामने से हटा कर एक तरफ डाल दिया. गोली जरूर चली थी, लेकिन मैदान में चल रहे स्टीरियो साउंड के कारण किसी को पता नहीं चला कि गोली कहां चली और किस ने चलाई.

सुखविंदर ने जिम्नेजियम की छत से आवाज दे कर मुख्य कोच मनोज मलिक को, जो नीचे मैदान में थे, को भी उसी कमरे में बुलाया, जिस में उस ने प्रदीप को गोली मारी थी. जैसे ही मनोज मलिक कमरे में घुसे, सुखविंदर ने बिना कोई बात किए सीधे उन के सिर में गोली मार दी. उन की भी मौके पर ही मौत हो गई. सुखविंदर ने उन के शव को भी कमरे में एक तरफ डाल दिया. 2 लोगों को गोली मारने के बाद सुखविंदर ने जिम्नेजियम की बालकनी में जा कर कोच सतीश दलाल को बात करने के लिए आवाज दे कर उसी कमरे में बुला लिया. सतीश दलाल के कमरे में एंट्री करते ही उस ने उन्हें भी गोली मार दी. कुछ ही मिनटों में तीनों की हत्या के बाद भी सुखविंदर का जुनून कम नहीं हुआ.

उस कमरे में शवों को छिपाने के लिए और जगह नहीं बची थी, इसलिए उस ने उस कमरे में ताला लगा दिया. अगला निशाना थी पूजा सुखविंदर का अगला निशाना थी अखाड़े में पहलवानी कर रही महिला पहलवान पूजा. सुखविंदर ने पूजा को फोन किया कि मनोज मलिक और दूसरे कोच कुछ बात करने के लिए उसे जिम्नेजियम में बने कमरे में आने के लिए कह रहे हैं. जिस कमरे में उस ने पूजा को बुलाया, वह दूसरा कमरा था. पूजा जैसे ही उस कमरे में पहुंची सुखविंदर ने उसे भी गोली मार दी. गोली लगते ही उस की भी मौके पर ही मौत हो गई.

मनोज मलिक व पूजा की हत्या के बाद सुखविंदर के टारगेट पर थीं साक्षी मलिक, जो उस वक्त नीचे मैदान में प्रैक्टिस कर रही थी. सुखविंदर ने बालकनी से उन्हें भी आवाज दे कर बुलाया कि मनोज बुला रहे हैं. ऊपर आ जाओ आप से कुछ सलाह लेनी है. उस ने साक्षी को भी उसी कमरे में बुलाया, जिस में पूजा की हत्या कर उस की लाश रखी थी. साक्षी के कमरे में एंट्री करते ही बिना कोई सवालजवाब किए सुखविंदर ने सीधे सिर में गोली मार कर उन की भी हत्या कर दी. सुखविंदर के सिर पर मनोज मलिक के लिए नफरत का जुनून इस कदर हावी था कि वह मनोज के पूरे वंश को मिटाना चाहता था. दरअसल, सुखविंदर ने एक बार अखबार में खबर पढ़ी थी कि बेटे ने अपने पिता की हत्या के 20 साल बाद जवान हो कर हत्यारे को मौत के घाट उतार कर बदला लिया था.

इसलिए सुखविंदर मनोज के बेटे को जिंदा छोड़ना नहीं चाहता था, जिस से बाद में वह अपने पिता की मौत का बदला ले सके. साक्षी की हत्या के बाद वह नीचे गया और मैदान में खेल रहे सरताज को यह कहते हुए उठा लिया कि उस की मम्मी ऊपर बुला रही है. ऊपर लाने के बाद सुखविंदर ने सरताज को भी गोली मार दी. सरताज को मृत समझ कर सुखविंदर ने उस कमरे में भी ताला लगा दिया. दोनों कमरों का ताला लगाने के बाद वह मेनगेट पर तीसरा ताला लगा कर अखाड़े के मैदान में आ गया. अखाड़े में मौजूद सभी लोगों की हत्या के बाद सुखविंदर नीचे आ कर अपनी गाड़ी में बैठ गया. उस समय नीचे कोई नहीं था. वहां से वह सीधे जाट कालेज के सामने पहुंचा, जहां पर मेहर सिंह अखाड़े का एक दूसरा कोच अमरजीत भी पहुंच चुका था.

अमरजीत को उस ने अखाड़े के संबंध में बात करने के लिए बुलाया था. अमरजीत के कार से बाहर निकलते ही सुखविंदर ने सीधे उस के सिर में गोली मारनी चाही, लेकिन गोली चेहरे पर जा लगी. गोली लगते ही अमरजीत लहूलुहान हालत में मैडिकल मोड़ की तरफ भागा. सुखविंदर को लगा कि अब अगर वह वहां रुका तो पकड़ा जाएगा, इसलिए अमरजीत का पीछा करने के बजाय उस ने अपनी गाड़ी का रुख दिल्ली की ओर कर दिया. नफरत व जुनून के बाद अब उस के चेहरे पर सुकून साफ नजर आ रहा था. पहलवानों को हुआ शक जिस समय ये वारदात हुई थी, अखाड़े तथा जिम्नेजियम हाल में कई पहलवान

प्रैक्टिस कर रहे थे. अखाड़े के मुख्य कोच मनोज के चाचा का लड़का टोनी, मामा का लड़का विशाल, उस की 5 साल की बेटी फ्रांसी भी उस वक्त वहां प्रैक्टिस कर रहे थे. उन के साथ अन्य पहलवानों ने देखा कि प्रदीप मलिक के अलावा मनोज, सतीश, साक्षी, पूजा और सरताज ऊपर सुखविंदर के कमरे में गए थे, लेकिन काफी देर बाद भी नीचे नहीं आए. यही सोच कर कुछ लोग जब ऊपर गए तो उन्हें एक कमरे से कोच मनोज के बेटे सरताज के रोने की आवाज सुनाई दी. कुछ पहलवानों को बुला कर जब सब ने कमरे का ताला तोड़ा तो अखाड़े में हुए इस भीषण नरसंहार कर पता चला.

रेस्टरूम के दोनों तालाबंद कमरों के दरवाजे तोड़ने के बाद वहां एक के बाद एक कई लोग लहुलूहान मिले. सुखविंदर का कहीं नामोनिशान नहीं था. माजरा समझ में आते ही कुछ लोगों ने पुलिस को खबर कर दी. चंद मिनटों में पुलिस मौके पर पहुंच गई. पुलिस के आने से पहले ही साक्षी, पूजा, प्रदीप की मौत हो चुकी थी. मनोज, अमरजीत, सरताज और सतीश दलाल की सांसें चल रही थीं. उन्हें तत्काल अस्पताल ले जाया गया, जहां कुछ देर बाद मनोज और सतीश को भी डाक्टरों ने मृत घोषित कर दिया. हरियाणा के रोहतक स्थित इस प्रसिद्ध अखाड़े में हुई गोलीबारी की वारदात की खबर तब तक जंगल की आग की तरह फैल गई थी.

इस गोलीबारी में 7 लोगों को गोली लगी थी, जिस में 5 लोगों की मौत हो गई, जबकि अमरजीत व मासूम सरताज गंभीर रूप से घायल थे. पुलिस काररवाई घटना की जानकारी मिलते ही पीजीआईएमएस थाने के एसएचओ राजू सिंधू  पुलिस टीम के साथ मौके पर पहुंच गए थे. वारदात इतनी संगीन थी कि एसपी (रोहतक) राहुल शर्मा भी खबर मिलते ही फोरैंसिक टीम व दूसरे अधिकारियों को ले कर मौके पर पहुंच गए. मनोज मलिक के बडे़ भाई प्रमोज कुमार व दूसरे परिजन भी अपने परिचितों के साथ खूनी अखाड़े के बाहर जमा हो गए थे. रात के 9 बजतेबजते सभी मरने वालों के परिजन घटनास्थल पर भारी हुजूम के साथ मौजूद थे.

उसी रात पीजीआईएमएस थाने में मनोज मलिक के भाई प्रमोज की शिकायत पर सुखविंदर के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया गया. अमरजीत ने पुलिस को अपना बयान दिया कि उस पर सुखविंदर ने गोली चलाई है. पुलिस की टीमों ने पूरे शहर की घेराबंदी कर दी. लेकिन सुखविंदर पुलिस के हाथ नहीं लगा.  एसपी राहुल शर्मा ने उसी रात जाट कालेज स्थित जिम्नेजियम हाल में चल रहे अखाड़े में हुए गोलीकांड में आरोपी सुखविंदर को पकड़ने के लिए डीएसपी नरेंद्र कादयान व डीएसपी विनोद कुमार के नेतृत्व में विशेष जांच टीम (एसआईटी) का गठन किया, जिस में पीजीआईएमएस थाना, सीआईए यूनिट, एवीटी स्टाफ और साइबर सेल को शामिल किया गया.

हरियाणा के डीजीपी मनोज यादव और एडीशनल डीजीपी व रोहतक रेंज के आईजी संदीप खिरवार ने केस की मौनिटरिंग का काम अपने हाथ में ले लिया. इतना ही नहीं सुखविंदर की गिरफ्तारी पर डीजीपी ने उसी रात एक लाख रुपए के ईनाम की घोषणा भी कर दी. साइबर सेल को सुखविंदर के मोबाइल फोन की सर्विलांस से पता चला कि वह भाग कर दिल्ली पहुंच गया है. उस की तलाश में टीमों को दिल्ली रवाना कर दिया गया. अगली सुबह सभी पांचों मृतकों का पोस्टमार्टम हो गया. मृतकों की पोस्टमार्टम रिपोर्ट से खुलासा हुआ कि सभी को करीब 20-25 फीट की दूरी से गोली मारी गई थी. गोली सभी के सिरों में लगी जरूर थीं, लेकिन पार नहीं हुई थीं.

पोस्टमार्टम में साक्षी के सिर से 2 और बाकी चारों के सिर से एकएक गोली मिली. घायल अमरजीत और सरताज को एकएक गोली लगी थी, जो आरपार हो गई थी. फोरैंसिकटीम ने बताया कि सुखविंदर ने वारदात को .32 बोर की रिवौल्वर से अंजाम दिया था. मृतकों के शरीर में 9 एमएम की गोलियां मिली थीं. चूंकि मासूम सरताज की हालत बेहद  गंभीर थी, इसलिए उसे रोहतक पीजीआई से पंडित भगवत दयाल शर्मा स्नातकोत्तर स्वास्थ्य संस्थान में रेफर कर वेंटिलेटर पर शिफ्ट कर दिया गया. उस की आंखों के बीच में गोली लगी थी जो सिर के पार निकल गई थी. उस का इलाज करने में डाक्टरों की एक विशेष टीम जुट गई थी.

शुरुआती जांच में एक बात साफ हो गई कि अखाडे़ में कई लोगों की मौजूदगी के बावजूद किसी को भी सुखविंदर के कमरे में चलने वाली गोलियों की आवाज इसलिए सुनाई नहीं दी, क्योंकि प्रैक्टिस के समय तेज आवाज में म्यूजिक चल रहा था. हालांकि हल्के धमाके का अंदाजा तो सब को हुआ था, लेकिन उन्हें यही लगा कि किसी शादी में पटाखे बज रहे होंगे. किसी को इस का रत्ती भर भी अंदाजा नहीं था कि सुखविंदर ने ऊपर कमरे में 5 लोगों की हत्या कर दी है. अखाड़े में मौजूद चश्मदीदों से पूछताछ व शुरुआती जांच में यह भी पता कि सुखविंदर का अखाड़े के दूसरे कोचों के साथ कोई विवाद था, जिस के कारण उस ने पूरी वारदात को अंजाम दिया.

जिद्दी और गुस्सैल था सुखविंदर सुखविंदर के बारे में पुलिस ने ज्यादा जानकारियां जुटाईं तो पता चला कि वह मूलरूप से सोनीपत के बरौदा गांव का रहने वाला है. पुलिस की एक टीम तत्काल उस के घर पहुंची. वहां उस के परिजनों से पूछताछ हुई तो पता चला कि उस के पिता मेहर सिंह सेना से रिटायर्ड हैं. सुखविंदर शादीशुदा है. 6 साल पहले उस की शादी उत्तर प्रदेश की तनु के साथ हुई थी और उस का 4 साल का एक बेटा है. सुखविंदर जिद्दी और गुस्सैल स्वभाव का था, इसलिए बेटा होने के बाद पत्नी से उस का झगड़ा होने लगा और 4 साल पहले वह पत्नी को उस के मायके छोड़ आया. तभी से वह मायके में है. जबकि उस का बेटा अपने दादादादी के पास है.

सुखविंदर की मां सरोजनी देवी ने बताया कि पिता मेहर सिंह ने उस की हरकतों के कारण उसे अपनी जायदाद से बेदखल कर दिया था. जिस के बाद से वह कभीकभार ही बेटे से मिलने के लिए घर आता था. पुलिस ने सुखविंदर को गिरफ्तार करने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी. लेकिन संयोग से वारदात के अगले ही दिन 13 फरवरी को दिल्ली पुलिस ने समयपुर बादली इलाके में संदिग्ध अवस्था में कार में घूमते हुए एक व्यक्ति को गिरफ्तार किया था. उस के कब्जे से एक अवैध पिस्तौल तथा 5 कारतूस भी बरामद हुए थे.

उस से पूछताछ करने पर समयपुर बादली पुलिस को पता चला कि सुखविंदर नाम के उस शख्स ने एक दिन पहले रोहतक के मेहर सिंह अखाडे़ में 5 पहलवानों की नृशंस हत्या को अंजाम दिया है तो पुलिस ने उस के खिलाफ शस्त्र अधिनियम का मामला दर्ज कर तत्काल इस की सूचना रोहतक पुलिस को दी. सूचना मिलते ही रोहतक पुलिस दिल्ली पहुंच गई. पीजीआईएमएस थाना पुलिस ने दिल्ली  की अदालत में अरजी दे कर सुखविंदर का ट्रांजिट रिमांड हासिल किया और उसे रोहतक ला कर अदालत में पेश किया. पुलिस ने अदालत से उस का 4 दिन का रिमांड ले लिया.

इस दौरान एसआईटी ने उसे साथ ले जा कर पूरे घटनाक्रम का सीन रिक्रिएट किया. पुलिस ने सुखविंदर के खिलाफ सभी साक्ष्य एकत्र किए और यह पता लगाया कि आखिर उस ने इस जघन्य हत्याकांड को क्यों अंजाम दिया था. उस से पूछताछ के बाद पता चला कि उस ने जर, जोरू और जमीन के लिए एक नहीं, बल्कि 6 हत्याओं को अंजाम दिया था. क्योंकि तब तक मनोज व साक्षी के 3 वर्षीय बेटे सरताज की भी अस्पताल में इलाज के दौरान मौत हो गई थी. सुखविंदर की पिछले कुछ दिनों से मनोज मलिक से एक खास वजह से रंजिश चल रही थी. मनोज मलिक व उन की पत्नी साक्षी नामचीन खिलाड़ी थे. मनोज अपने जमाने के जानेमाने राष्ट्रीय स्तर के पहलवान रहे थे.

उन्होंने कई प्रतियोगिताएं जीती थीं. बाद में रोहतक के जाट कालेज में उन्हें सहायक शिक्षक यानी डीपीई की नौकरी मिल गई. जाट कालेज के पास ही उन्हें रोहतक के सब से प्रतिष्ठित मेहर सिंह अखाडे़ में कोच की नौकरी भी मिल गई. इस अखाडे़ में मनोज मलिक के अलावा कई अन्य कोच थे. उन्हीं में सुखविंदर भी एक था. वे सभी अखाडे़ में कुश्ती के लिए नए पहलवान तैयार करते थे. मनोज मलिक (39) मूलरूप से गांव सरगथल जिला सोनीपत के रहने वाले थे. मनोज मलिक और साक्षी 14 फरवरी, 2013 को शादी के बंधन में बंधे थे. शादी की 8वीं सालगिरह से 2 दिन पहले ही दोनों ने एक साथ इस दुनिया को छोड़ दिया था.

राष्ट्रीय स्तर की एथलीट थी साक्षी साक्षी एथलीट की राष्ट्रीय स्तर की खिलाड़ी थी. बाद में उन्हें भी रेलवे में स्पोर्ट्स कोटे से नौकरी मिल गई थी. मनोज मलिक पिछले कई सालों से अपनी पत्नी साक्षी मलिक व 3 साल के बेटे सरताज के साथ रोहतक में जाट कालेज व अखाड़े के पास देव कालोनी में रहते थे. मनोज मलिक और उन की पत्नी साक्षी चूंकि दोनों ही अच्छे खिलाड़ी थे. इसलिए वे अपने मासूम बेटे सरताज को भी कुश्ती का खिलाड़ी बनाना चाहते थे. ट्रैक और कुश्ती मैट पर अठखेलियां करता सरताज मांबाप के साथ अखाडे़ में जाता था. वह नए पहलवानों की आंखों का तारा बन गया था. कुल मिला कर उन दोनों का वैवाहिक जीवन सुखमय था.

मनोज को कभी सपने में भी गुमान नहीं था कि जिस सुखविंदर को उन्होंने ही 2 साल पहले 15 हजार रुपए महीने पर अखाड़े में कोच की नौकरी पर रखा था, वह अपनी नीच हरकतों के कारण एक दिन न सिर्फ उन की हत्या कर देगा, बल्कि उन के परिवार के खात्मे का सबब बन जाएगा. बाद में खिलाडि़यों की शिकायत पर मनोज ने उसे हटा दिया था. बस इसी बात से गुस्साए सुखविंदर ने इस घटना को अंजाम दिया था. सामूहिक गोली कांड में मारे गए अखाड़े के एक अन्य कोच सतीश दलाल (28) मूलरूप से गांव माडोठी, जिला झज्जर हाल निवासी सांपला के रहने वाले थे. जानेमाने कुश्ती  खिलाड़ी सतीश दलाल इन दिनों मनोज मलिक के अखाड़े में कुश्ती के कोच का काम संभाल रहे थे.

इस हादसे में मारे गए महम चौबीसी के गांव मोखरा निवासी प्रदीप मलिक (28) भी थे. रामकुमार मलिक के 3 बेटों में प्रदीप सब से छोटे थे. प्रदीप का बड़ा भाई विक्रम सीआरपीएफ में तथा बीच वाला भाई संदीप बीएसएफ में नौकरी करता है. प्रदीप खेल कोटे से रेलवे में सीटीआई थे. उन की ड्यूटी रतलाम, मध्य प्रदेश में थी. विवाहित प्रदीप का एक बेटा है अग्निपथ, जो केवल 15 महीने का है. प्रदीप की पत्नी अंजलि गांव मोखरा में ही रहती है. परिवार का मुख्य काम खेतीबाड़ी है. प्रदीप मलिक गजब के पहलवान थे. वह कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय तथा महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय रोहतक के चैंपियन रहे थे. 77 किलोग्राम भार वर्ग में प्रदीप ने आल इंडिया रेलवे चैंपियनशिप भी जीती थी.

प्रदीप ने जाट कालेज रोहतक से बीए पास किया था. उन्हें जालंधर में प्रस्तावित राष्ट्रीय कुश्ती चैंपियनशिप में भाग लेना था, इसी चैंपियनशिप के लिए वह दिल्ली में ट्रेनिंग कैंप में आए हुए थे. वहीं से छुट्टी ले कर रोहतक आए थे ताकि यहां कुश्ती के दावपेंच और अधिक गहरे से सीख सकें. प्रदीप का सुखविंदर के साथ कोई सीधा झगड़ा नहीं था. बस अखाड़े में उस की हरकतों को ले कर एक बार अखाड़े में जा कर उसे समझाया था तथा 2-4 बार वाट्सऐप पर बात हुई थी और उन्होंने सुखविंदर को अपना व्यवहार ठीक करने की सलाह दी थी. इसी से सुखविंदर प्रदीप से भी रंजिश रखने लगा था.

पूजा तोमर पर डालता था डोरे सामूहिक हत्याकांड में मारी गई प्रतिभाशाली युवा महिला पहलवान पूजा तोमर (17) यूपी चैंपियन रह चुकी थीं. पूजा का परिवार मूलरूप से मथुरा के गांव सिहोरा का रहने वाला है, लेकिन फिलहाल वे मथुरा के लक्ष्मीनगर में रहते हैं. पूजा के पिता रामगोपाल और भाई विष्णु कपड़े की दुकान चलाते हैं. पूजा दमदार खिलाड़ी थी और परिवार वालों ने उन्हें करीब डेढ़ साल पहले रोहतक में जाट कालेज के पीछे बने अखाड़े में कोचिंग लेने के लिए भेजा था. पूजा 2014 से 2020 तक 57 किलो भार वर्ग की प्रतियोगिताओं में यूपी चैंपियन रह चुकी थीं. 2019 और 2020 में पूजा नैशनल चैंपियन भी रहीं.

दरअसल, इस हादसे की असल वजह थी सुखविंदर का महिला पहलवानों से अश्लील व्यवहार तथा उन से संबंध बनाने का दबाव. मेहर सिंह अखाडे़ में कुश्ती सीखने वाली पूजा तोमर ने कुछ दिन पहले अपने परिवार व अखाडे़ के मुख्य कोच मनोज मलिक से सुखविंदर की शिकायत की थी. पूजा ने अखाडे़ के कोच व अपने परिवार से सुखविंदर की जो शिकायत की थी, उस में बताया था कि सुखविंदर उसे परेशान कर रहा है और उस पर शादी का दबाव बना रहा है. दरअसल, अपनी पत्नी से दूर हो कर तनहा जीवन जी रहे सुखविंदर में अपोजिट सैक्स के प्रति एक कुंठा भर गई थी. वह किसी भी तरह अखाडे़ पर अपने आधिपत्य के साथ किसी महिला से संबंध बनाना चाहता था.

अखाड़े की महिला पहलवान से संबंध बनाने या शादी करने के उसे 2 फायदे नजर आ रहे थे. एक तो अखाड़े की पहलवान कुश्ती से नाम और पैसा कमा कर कमाई में उस का हाथ बंटाती. दूसरे उस की जिस्मानी जरूरत पूरी करने के लिए एक हृष्टपुष्ट औरत मिल जाती. पूजा चूंकि कम उम्र की आकर्षक युवती थी, इसलिए सुखविंदर को उस पर डोरे डालना आसान लगा. इस के लिए वह काफी दिनों से पूजा पर दबाव बना रहा था. जब पानी सिर से ऊपर पहुंच गया तो पूजा ने अपने परिवार से इस बात की शिकायत कर दी. परिवार वालों ने अखाडे़ के मुख्य कोच मनोज मलिक को इस की सूचना दे कर अपनी बेटी को अखाडे़ से हटाने की बात कही तो मनोज मलिक को लगा कि ऐसा हुआ तो अखाड़े की शान और उन के नाम को बड़ा नुकसान और बदनामी होगी.

मनोज ने यह बात साथी कोचों से बताई तो सब ने एक राय से सुखविंदर को अखाडे़ से हटाने का फैसला कर लिया. इस के लिए उन सभी ने सुखविंदर को बुला कर पहले सामूहिक रूप से जम कर खरीखोटी सुनाई और फिर उस से साफ कह दिया कि वह 14 फरवरी तक अखाड़ा छोड़ दे. साथ ही उसी दिन से सुखविंदर को अखाड़े में आने से मना कर दिया. अपने हाथ से लड़की और अखाड़े की नौकरी निकलती देख सुखविंदर अपमान की आग में जलने लगा. और तभी उस ने फैसला कर लिया कि जो लोग उस की बरबादी का कारण बने हैं, उन सब की जिंदगी छीन लेगा.

वारदात को अंजाम देने के लिए 4 दिन पहले ही उस ने साजिश रच ली थी. उस ने सोचा कि उस का खुद का घर तो उजड़ चुका है, अब वह उन का भी घर उजाड़ देगा, जिन के प्रति उस के मन में रंजिश थी. सुखविंदर से पूछताछ में खुलासा हुआ कि पूजा ही नहीं, उस ने एक अन्य महिला पहलवान से भी ऐसी ही हरकत की थी. इन्हीं कारणों से मुख्य कोच मनोज मलिक, सतीश दलाल, प्रदीप मलिक ने सुखविंदर पर प्रतिबंध लगा दिया था. इस बात को ले कर सुखविंदर की अमरजीत से भी कहासुनी हुई थी. उसे बता दिया गया था कि अब अखाड़े से उस का कोई मतलब नहीं है और न ही उसे यहां से कोई पैसा मिलेगा.

बस यही बात सुखविंदर को नागवार गुजरी. उस का मानना था कि उस ने अखाड़े के लिए काफी मेहनत की थी, लेकिन अब उसे ही बाहर निकाला जा रहा है. इसी वजह से उस ने करीब 4 दिन पहले हत्याकांड की साजिश रच ली थी. हत्याकांड से साफ था कि आरोपित किसी भी सूरत में मनोज के परिवार को जिंदा नहीं छोड़ना चाहता था. पहले से रची गई उस की साजिश का पता इस बात से भी चलता है कि सुखविंदर पिछले कई दिनों से प्रैक्टिस के दौरान बारबार कहता था कि कुछ बड़ा करूंगा. कुछ ऐसा करूंगा कि सब मुझे याद करेंगे. पीजीआईएमएस पुलिस ने आवश्यक पूछताछ के बाद आरोपी सुखविंदर को अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

लेकिन एक मामूली सी बात पर 6 लोगों की जिंदगी छीन लेने वाले सुखविंदर के कारण उस अखाड़े के दामन पर लगे खून के छींटों को शायद ही मिटाया जा सके, जहां से देश को नामचीन पहलवान मिले थे. hindi crime story

—कथा पुलिस की जांच, पीडि़तों के बयान व अभियुक्त के बयान पर आधारित

 

Social Stories in Hindi : तंत्रमंत्र से घर में छिपा करोड़ों का सोना निकालने वाला तांत्रिक की कहानी

Social Stories in Hindi : तथाकथित तांत्रिक रोशन ने किरण को झांसा दिया कि उस के घर में करोड़ों रुपए का सोना दबा हुआ है. पूजापाठ के नाम पर रोशन और उस के चेलों ने किरण से करीब 45 लाख रुपए तो ठगे, साथ ही उस के साथ दुष्कर्म भी करते रहे. इस के बाद जो हुआ…

अकसर हम अखबारों में तंत्रमंत्र, वशीकरण, जमीन में गड़ा धन दिलाने के नाम पर कई तांत्रिक बाबाओं द्वारा लोगों को ठगे जाने के समाचार पढ़तेसुनते रहते हैं. इस के बाद भी कई लोग इन बाबाओं के झांसे में आ कर अपनी गाढ़ी कमाई गंवाते हैं. ठग बाबा भोलीभाली महिलाओं से दुष्कर्म भी करते हैं. कुछ लोग तो इन की बातों और अंधविश्वास में इस कदर वशीभूत हो जाते हैं कि अपनी संतान तक की बलि दे देते हैं. ऐसा ही एक मामला थाना सिरयारी, जिला पाली, राजस्थान में 14 फरवरी, 2021 को तब सामने आया.

जब किरण नाम की एक महिला ने तांत्रिक रोशन बाबा उर्फ साजिद सिद्दीकी और उस के शिष्य राजूराम मेघवाल व फरजी क्राइम ब्रांच इंसपेक्टर आरिफ खान के खिलाफ केस दर्ज कराया. किरण ने आरोप लगाया कि आरापियों ने घर में दबा सोना निकालने का झांसा दे कर उस से पौने 2 साल में करीब 45 लाख रुपए हड़प लिए. खुद को रोशन बाबा कहने वाले आरोपी साजिद सिद्दीकी व राजू मेघवाल ने उस के साथ दुष्कर्म भी किया. केस दर्ज होने के बाद पाली के एसपी कालूराम ने मामले की गंभीरता को देखते हुए सीओ (सोजत) डा. हेमंत कुमार की अगुवाई में एक विशेष पुलिस टीम का गठन कर आरोपियों की जल्द से जल्द गिरफ्तारी का आदेश दिया. जांच में पता चला कि मुख्य आरोपी रोशन बाबा बिहार भाग गया है.

सिरयारी थाने के एएसआई किशनाराम व हैडकांस्टेबल शेरसिंह को रोशन बाबा की गिरफ्तारी के लिए बिहार भेजा गया. रोशन का मोबाइल फोन भी स्विच्ड औफ आ रहा था. वह मूलरूप से बिहार के मुबारकपुर के सलखुआ बाजार, सहरसा का रहने वाला था. स्थानीय पुलिस के सहयोग से आखिर राजस्थान पुलिस ने 47 वर्षीय रोशन बाबा उर्फ साजिद सिद्दीकी को उस घर से धर दबोचा. राजस्थान पुलिस की टीम उसे स्थानीय अदालत में पेश कर के ट्रांजिट रिमांड पर थाना सिरयारी ले आई. उस से पूछताछ के बाद पुलिस ने 2 मार्च, 2021 को अन्य आरोपियों राणावास, पाली निवासी राजूराम मेघवाल एवं हिम्मतनगर खैरवा, पाली निवासी आरिफ गिरफ्तार कर लिया.

तीनों ठगों से पुलिस अधिकारियों ने एक साथ बैठा कर पूछताछ की. पूछताछ के बाद पता चला कि आऊवा के रहने वाले वसील कादरी ने रोशन बाबा को बिना कोई आईडी देखे अपने यहां रहने की जगह दी थी. बदले में रोशन ने उसे अपने पैसों से खरीदा गया हजारों रुपए का सामान दिया था. लिहाजा पुलिस ने वसील को भी गिरफ्तार कर लिया. ठगी के रुपयों से खरीदी जीप रोशन बाबा ने वसील कादरी की बेटी को दी थी. वसील कादरी के घर में फ्रिज, टीवी, कूलर, वाशिंग मशीन, पलंग, सोफे और अन्य तमाम सामान मिला.

वसील कादरी को पता था कि रोशन बाबा ठगी कर के यह सामान उसे फ्री में ला कर दे रहा है. वसील आंखें मूंद कर सामान रखता गया. सारा सामान और जीप पुलिस ने जब्त कर ली. वसील कादरी ने पूछताछ में बताया कि वह रोशन बाबा से घर का किराया नहीं लेता था. उस के घर में वह सन 2014 से 2020 तक रहा. रोशन बाबा उस के यहां पहली मंजिल पर रहता था. जबकि वसील कादरी का परिवार ग्राउंड फ्लोर पर रहता था. रोशन बाबा उर्फ साजिद सिद्दीकी अपने आप को मौलवी और तांत्रिक बताता था. रोशन अपने गांव बिहार के सहरसा के सलखुआ बाजार से सन 2010 में पाली आ गया था.

पाली आने के बाद रोशन सिरयारी गांव की मसजिद में 2010 से 2014 तक मौलवी रहा. लेकिन उस की कारगुजारियां देख कर समाज के सदर अल्लाबख्श समेत अन्य लोगों ने उसे भगा दिया था. तभी से वह आऊवा गांव में वसील कादरी के घर में आ कर रहने लगा था. मसजिद से निकाले जाने के बाद रोशन बाबा ने खुद को तांत्रिक बता कर प्रचार किया. अंधविश्वासी लोग उस के पास आते थे. वह तंत्रमंत्र के नाम पर गंडाताबीज करने लगा. बाद में उस ने यह प्रचारित करना शुरू किया कि वह तंत्रमंत्र से जमीन में गड़ा धन, सोना चांदी निकाल देता है.

रोशन का छोड़ा यह शिगूफा काम कर गया. रोशन बाबा अकसर अकेली और विधवा औरतों को फंसाता था. इस के साथ ही सरकारी नौकरी पाने की लालसा रखने वालों को भी फंसा लेता था. जांच में पता चला कि रोशन बाबा के खिलाफ पाली के जेतारण, मारवाड़ जंक्शन, फालना में भी कई मामले दर्ज हुए थे. वसील न केवल रोशन का रिश्ते में दूर का भाई है, बल्कि उस ने मुख्य आरोपी रोशन को अपने आऊवा स्थित घर में बगैर आईडी ठिकाना दे रखा था. वसील कादरी, राजूराम मेघवाल, आरिफ और मुख्य आरोपी रोशन बाबा उर्फ साजिद सिद्दीकी से पूछताछ में पुलिस को जो जानकारी मिली, उस से कहानी कुछ इस तरह बनी.

किरण की शादी करीब 12 साल पहले राजस्थान के पाली जिले के सोजत क्षेत्र के सिरयारी थाने के अंतर्गत एक गांव में हुई थी. किरण भोलीभाली थी. वह अंधविश्वासी परिवार से आई थी. वह समझती थी कि तंत्रमंत्र से तांत्रिक, बाबा एवं मौलवी कुछ भी कर सकते हैं. उस ने अपने अंधविश्वासी परिवार में भी भूतप्रेत भगाना या टोनाटोटका करने वाले भोपे, तांत्रिक देखे थे. वह नहीं जानती थी कि इन ठगों का काम लोगों में भूतप्रेत का डर दिखा कर अपनी झोली भरना मात्र होता है. किरण को शादी के 2 साल बाद एक बेटा पैदा हुआ, जिस का नाम उस ने गुड्डू रखा. गुड्डू इस समय 10 साल का है.

किरण के ससुर और पति दक्षिण भारत में अपना बिजनैस करते हैं. उन का वहां जमाजमाया धंधा है. वह डेढ़दो बरस में घर आते हैं. किरण यहां पर एकलौते बेटे के साथ रहती थी. किरण ने गांव में एक अच्छा मकान बनवाया था. मकान निर्माण का काम पाली जिले के राणावास निवासी राजूराम मेघवाल ने किया था. राजू ने किरण के घर कई महीने तक काम किया था. वह उसे अच्छी तरह जानता था. किरण भी उसे पहचानती थी. राजू को पता था कि किरण का पति और ससुर परदेस में रहते हैं और उन के पास लाखों रुपए हैं.

राजू की मुलाकात जब रोशन बाबा उर्फ साजिद सिद्दीकी से हुई तब वह उस से बहुत प्रभावित हुआ और उस का शिष्य बन गया. हिम्मतनगर, खैरवा, पाली का रहने वाला आरिफ खान भी रोशन का चेला था. वह पेशे से ड्राइवर था. वह भी रोशन के ठगी के धंधे में शामिल हो गया. रोशन, राजू और आरिफ ने तंत्रमंत्र द्वारा जमीन में गड़ा धन निकालने, पत्थरों को सोना बनाने और सरकारी नौकरी की तलाश करने वाले युवकों से ठगी करनी शुरू की. राजू और आरिफ गांव ढाणी में ऐसी महिलाओं की तलाश करते जो अकेली रहतीं या विधवा होती थीं.

उन अकेली महिलाओं को रोशन के चेले झांसा देते थे कि रोशन बाबा बहुत पहुंचे हुए तांत्रिक हैं. वह घर में दबा धन निकाल देते हैं. बाबा रोशन ने सैकड़ों लोगों के घर से करोड़ों का धन सोना निकाल कर दिया है. जो महिला इस झांसे में फंस जाती. उस के घर में रोशन और उस के चेले रात में तंत्रमंत्र किया करते थे. वे उस महिला पर वशीकरण करते. फिर उस को नग्न कर के उस के साथ दुष्कर्म करते थे. महिला अगर दुष्कर्म के बाद इन से कुछ कहती तो उसे पिस्तौल दिखा कर डराया जाता. नहीं मानने पर फरजी क्राइम इंसपेक्टर बने आरिफ से धमकवाया जाता.

जेल भेजने का डर  दिखाया जाता. इस तरह ये लोग उस से रुपए ऐंठ कर चलते बनते. सरकारी नौकरी की तलाश करने वालों को रोशन बाबा की ऊंची पहुंच का हवाला दे कर लाखों रुपए ठगे जाते. एक युवक से रोशन बाबा और उस के शागिर्दों ने करीब 10 लाख रुपए ठगे थे. इस का मुकदमा फालना थाने में दर्ज हुआ था. बाबा रोशन ने जून, 2019 में राजूराम से कहा, ‘‘राजू, कोई बड़ी मछली फंसाओ, जिस से हमें लाखों रुपए मिलें.’’

‘‘ठीक है, बाबाजी. मैं देखता हूं.’’ राजू ने उस से कहा.

राजूराम ने किरण का मकान बनाया था. वह जानता था कि किरण बहुत पैसे वाली है और उस का पति और ससुर बाहर काम करते हैं. वह घर में एक बच्चे के साथ रहती है. किरण को अपने जाल में फांसने के लिए राजू जून 2019 में एक दिन किरण के घर जा पहुंचा. राजू ने रोशन बाबा की तंत्रविद्या का खूब बखान किया और उसे तंत्रमंत्र से घर में दबा करोड़ों का सोना निकाल कर देने का झांसा दिया. किरण उस के झांसे में आ गई. किरण ने राजू से कहा कि यह बात किसी को पता न चले वरना पुलिस तंग करेगी. किरण ने किसी से जिक्र नहीं किया. वह राजू के साथ जुलाई 2019 में बाबा रोशन से मिली.

रोशन ने किरण को धर्मबेटी बना लिया और कहा, ‘‘हम बेटी को करोड़पति बना देंगे.’’

किरण ने सोचा रोशन बाबा भले आदमी हैं. उन्होंने उसे धर्मबेटी बनाया है. अब घर में गड़ा धन निकाल कर उसे मालामाल कर देंगे. अगली शाम रोशन बाबा और राजू किरण के घर पहुंच गए. घर में आ कर रोशन बाबा ने कहा कि तुम्हारे घर में तो करीब 10 करोड़ का सोना दबा है. तंत्रमंत्र काफी दिन करना पड़ेगा. रोशन की बात सुन कर किरण बहुत खुश हुई. बात करोड़ों रुपए के सोने की थी. वह अपने घर में पूजा कराने को तैयार हो गई. इस के बाद किरण के घर में तंत्रमंत्र का झूठा खेल शुरू हो गया. किरण के बेटे को अलग कमरे में सुला कर इन पाखंडियों ने दूसरे कमरे में किरण की मौजूदगी में तांत्रिक क्रियाएं शुरू की.

किरण पर वशीकरण किया. किरण के होशोहवास ठिकाने नहीं रहे. फिर रोशन और राजू ने किरण को नग्न कर के उस के साथ दुष्कर्म किया. वशीकरण खत्म हुआ तो किरण को होश आया, तब उसे महसूस हुआ कि इन लोगों ने उस के साथ दुष्कर्म किया है. इस की शिकायत उस ने उन दोनों से की और कहा कि मैं सब को आप लोगों की करतूत बताऊंगी. फिर रोशन और राजू ने एयरगन पिस्तौल से किरण को जान से मारने की धमकी दी. इतना ही नहीं, उसने फरजी क्राइम ब्रांच इंसपेक्टर बने अपने चेले आरिफ से फोन पर किरण की बात कराई. आरिफ ने भी उसे चुप रहने की धमकी दी और कहा कि वह उसे किसी मामले में फंसा कर जेल भेज देगा. इन लोगों की धमकी से किरण ने अपना मुंह बंद कर लिया.

बाद में रोशन ने किरण को समझाया कि गड़ा धन निकालने में यह भी एक पूजा का हिस्सा है. इस के बाद अकसर तंत्रमंत्र के नाम पर किरण का वशीकरण कर के दुष्कर्म किया जाने लगा. किरण से रुपए भी ऐंठे जाने लगे. एक रोज उन्होंने किरण की गैरमौजूदगी में कमरे की खुदाई की. खुदाई में निकली मिट्टी और पत्थर वगैरह बोरी में डाल दिए. पत्थरों पर सोने के रंग जैसा कैमिकल लगा कर पत्थर सुनहरे कर दिए गए थे और बोरी गड्ढे में रख कर किरण को बुलाकर पत्थर दिखा कर कहा, ‘‘देखो, इन पत्थरों को. ये सोने के बन रहे हैं.’’

भोली किरण फिर भी नहीं समझी. वह इज्जत और धन लुटाती रही. एक दिन आरिफ आया. रोशन बाबा ने किरण को बताया, ‘‘यह क्राइम ब्रांच इंसपेक्टर हैं. इन्हें पता चल गया है कि इस घर में से गड़ा धन निकला है. पुलिस का झंझट हो जाएगा, इसलिए इन्हें 3 लाख रुपए दे दो. वैसे भी करोड़ों का सोना है. 3 लाख के क्या मायने.’’

तब किरण ने 3 लाख रुपए आरिफ खान को दे दिए. काफी दिन बाद भी जब पत्थर सोना नहीं बने तो किरण ने बाबा से पूछा कि क्या बात है. पत्थर तो वैसे ही हैं, जैसे पहले थे. तब बाबा रोशन बोला, ‘‘तुम्हें अपने बेटे की बलि देनी होगी. तब यह पत्थर सोना बनेंगे. इन पत्थरों के सोने में बदलने के बाद तुम्हें सोना बेचने पर करोड़ों रुपए मिल जाएंगे.’’

बेटे की बलि की बात सुन कर किरण बोली, ‘‘मैं बेटे की बलि नहीं दूंगी. मुझे मेरे अब तक दिए 45 लाख रुपए वापस करो.’’

रोशन बाबा ने उसे फिर पिस्तौल दिखा कर डराया. वह रात में वीडियो काल कर के कहता, ‘‘मैं जन्नत में हूं और वापस आ जाऊंगा. ऐसे ही बलि के बाद तेरा बेटा भी जीवित हो जाएगा.’’

कमरे में लाइट इफैक्ट से वह किरण को बरगलाता था. जन्नत में हूं. झूठा नाटक कर के किसी तरह से बेटे को मरवाना चाहता था. मगर किरण ने बलि देने से इनकार कर दिया और पैसा मांगने लगी. किरण ने ज्यादा दबाव बनाया तब अक्तूबर, 2020 में रोशन बाबा और उस के चेले राजू, आरिफ भाग खड़े हुए. किरण समझ गई कि उस के साथ बहुत बड़ी ठगी हुई है. बारबार अस्मत लूटी गई और 45 लाख रुपए भी ठग लिए. फरवरी, 2021 में जब किरण का पति घर आया. तब किरण ने अपने साथ घटी घटना बताई. पति किरण के साथ सिरयारी थाने पहुंचा और तीनों आरोपियों के खिलाफ मामला दर्ज कराया.

रोशन ने ठगी के रुपयों से अपने नाम कुछ नहीं खरीदा. उस ने दूसरों के नाम से ही प्रौपर्टी खरीदी थी. पूछताछ पूरी होने पर कोर्ट के आदेश पर सभी आरोपियों को न्यायिक अभिरक्षा में भेज दिया गया. इस मामले की जांच सीओ डा. हेमंत जाखड़ कर रहे थे. Social Stories in Hindi

—कथा पुलिस सूत्रों पर. किरण पतिवर्तित नाम है.

 

Social Stories in Hindi : बीवी बनकर ठगने वाली कॉलगर्ल की सच्चाई क्या थी

Social Stories in Hindi : नादिर मोटे ब्याज पर पैसे देता था और वसूलने के लिए गुंडे रखता था. लेकिन अंबर के चक्कर में वह 5 लाख गवां बैठा. अंबर गलत नहीं थी. उस ने तो अपने हिस्से की ईमानदारी निभाई थी जबकि नादिर ने…

नादिर, गुलशन इकबाल के एक शानदार मकान में रहता था. उस के पास बहुत पैसा था. वह कोई काम नहीं करता था. बस, जरूरतमंद लोगों को पैसे ब्याज पर देता था. इस काम से उसे अच्छीखासी आमदनी थी और उस से बहुत आराम से गुजारा होता था. नादिर का कहना था कि यही उस का बिजनैस है और बिजनैस से मुनाफा लेना कोई बुरी बात नहीं है. कर्ज के तौर पर दिए गए पैसों का ब्याज वह हर महीने वसूल करता था. नादिर ने पैसे वसूल करने के लिए कुछ कारिंदे भी रखे हुए थे. अगर कोई आदमी पैसे देने में आनाकानी करता था तो कारिंदे गुंडागर्दी पर उतर आते थे, कर्जदार के हाथपैर तोड़ देते थे और कभीकभी गोलियां भी मार देते थे.

नादिर ने आसपास के थानेदारों को पटा रखा था. एक दिन नादिर का दोस्त अकरम अपने एक परिचित युवक नोमान को ले कर उस के पास आया. नोमान एक शरीफ आदमी लग रहा था. उस के चेहरे से दुख और परेशानी झलक रही थी. अकरम ने नादिर से नोमान का परिचय कराया और कहा, ‘‘नादिर भाई, ये आजकल कुछ परेशानी में फंसे हुए हैं. आप इन की मदद कर दीजिए. नोमान आप का पैसा जल्द वापस कर देंगे. इन का होजरी का कारोबार है.’’

‘अच्छा, कितने पैसों की जरूरत है आप को?’’ नादिर ने पूछा. नोमान ने कहा, ‘‘नादिर भाई, मुझे 5 लाख की जरूरत है. मैं ने आज तक किसी से कर्ज नहीं लिया, लेकिन इस बार मजबूर हो गया हूं.’’

‘‘लेकिन अकरम,’’ नादिर ने अपने दोस्त की तरफ देखते हुए पूछा, ‘‘इस बंदे की जमानत कौन लेगा?’’

‘‘नादिर साहब,’’ नोमान बोला, ‘‘मैं एक शरीफ आदमी हूं. सदर में मेरी दुकान और अल आजम स्क्वायर में मेरा फ्लैट है. मैं आप के पैसे ले कर कहीं भागूंगा नहीं.’’

‘‘आप भाग ही नहीं सकते,’’ नादिर हंसते हुए बोला, ‘‘खैर, 5 लाख के लिए आप को हर महीने 50 हजार ब्याज देना पड़ेगा, आप को मंजूर है?’’

नोमान ने 50 हजार ब्याज देने से इनकार कर दिया. लेकिन अकरम के कहने पर नादिर 30 हजार महीना ब्याज पर राजी हो गया. नादिर ने कहा कि ब्याज की रकम कम करना उस के नियम के खिलाफ है लेकिन नोमान एक अच्छा आदमी लग रहा है, इसलिए इतनी छूट दे दी. नादिर के दोस्त अकरम ने कहा, ‘‘नादिर भाई, मैं ने आप दोनों को मिलवा दिया है. अब जो भी मामला है, वह आप दोनों का है. आप हर तरह से तसल्ली करने के बाद इन्हें पैसा दें. फिर इन्होंने मूल रकम या ब्याज दिया या नहीं या आप ने इन के साथ कोई ज्यादती की, मुझे इस से कोई लेनादेना नहीं. आगे आप दोनों जानें.’’

‘‘ठीक है यार, मैं तुझ पर कोई इलजाम नहीं लगाऊंगा. अब यह मेरा मामला है, लेकिन मैं नोमान का मकान जरूर देखूंगा.’’ नादिर ने अकरम से कहा.

नोमान तुरंत बोला, ‘‘क्यों नहीं नादिर भाई, आप जब चाहें मकान देख लें बल्कि आप शुक्रवार को आ जाएं, मैं घर पर ही रहूंगा. दोनों एक साथ बैठ कर चाय पिएंगे.’’

अपनी संतुष्टि के लिए नादिर शुक्रवार को नोमान का घर देखने पहुंच गया. नोमान का फ्लैट बहुत अच्छा था. नोमान ने नादिर को देख कर फौरन फ्लैट का दरवाजा खोल दिया और कहा, ‘‘वेलकम नादिर भाई, मैं तो समझ रहा था कि शायद आप ने यूं ही कह दिया. आप तशरीफ नहीं लाएंगे.’’

‘‘क्यों नहीं आऊंगा. हमारे धंधे में जबान की बहुत अहमियत होती है. जो कह दिया, सो कह दिया.’’ नादिर बोला.

नोमान ने नादिर को ड्राइंगरूम में बिठा दिया. नादिर को पूरी तरह तसल्ली हो गई कि उस का पैसा कहीं नहीं जाएगा. वैसे भी नोमान शरीफ आदमी दिखाई दे रहा था.

‘‘माफ करना नादिर भाई, आज बेगम घर पर नहीं हैं, इसलिए आप को मेरे हाथ की चाय पीनी पड़ेगी.’’

‘‘अरे, इस की जरूरत नहीं है,’’ नादिर बोला.

‘‘यह तो हो ही नहीं सकता,’’ नोमान ने कहा, ‘‘मैं अभी हाजिर हुआ.’’

नोमान अंदर किचेन की तरफ चला गया. इस दौरान नादिर फ्लैट का निरीक्षण करता रहा. चाय और नमकीन आदि से निपटने के बाद नोमान ने पूछा, ‘‘तो फिर आप ने क्या फैसला किया?’’

‘‘ठीक है,’’ नादिर ने हामी भरी, ‘‘मुझे आप की तरफ से इत्मीनान हो गया है. मैं कल आऊंगा पैसे ले कर.’’

नोमान ने उस का शुक्रिया अदा किया और कहा, ‘‘यकीन करें, अगर इतनी जरूरत न होती तो मैं कभी पैसे नहीं लेता.’’

‘‘कोई बात नहीं,’’ नादिर मुसकरा दिया, ‘‘हम जैसों को जरूरत में ही याद किया जाता है. अब मैं चलता हूं.’’

नादिर अपने घर वापस आ गया. उस ने अपने दोस्त अकरम को फोन कर दिया, जिस ने नोमान का परिचय कराया था, ‘‘हां भाई, मुझे बंदा ठीक लगा. घर भी देख लिया है उस का. उसे कल पैसे दे दूंगा.’’

दूसरे दिन शाम को नादिर 5 लाख रुपए ले कर नोमान के घर पहुंच गया. दस्तक के जवाब में एक युवती ने दरवाजा खोला. वह एक सुंदर औरत थी. नादिर के अंदाज के अनुसार उस की उम्र 28-30 साल थी. वह प्रश्नसूचक नजरों से नादिर को देख रही थी.

‘‘मुझे नोमान से मिलना है,’’ नादिर ने कहा, ‘‘मेरा नाम नादिर है.’’

‘‘ओह! आप नादिर साहब हैं. नोमान ने मुझे आप के बारे में बताया था. मैं उन की मिसेज अंबर हूं. आप अंदर आ जाएं. नोमान शावर ले रहे हैं. मैं उन्हें बता देती हूं.’’

नादिर अंदर जा कर बैठ गया, उसी ड्राइंगरूम में जहां कल बैठा था. नोमान की पत्नी अंदर चली गई. नादिर को वह स्त्री बहुत अच्छी लगी थी. वैसे तो वह बहुत ज्यादा सुंदर नहीं थी, लेकिन उस में एक खास किस्म की कशिश जरूर थी. नादिर ने बहुत कम औरतों में ऐसा आकर्षण देखा था. कुछ देर बाद नोमान की पत्नी अंबर चाय आदि ले कर आई और नादिर से बोली, ‘‘ये लें, चाय पिएं. नोमान आ रहे हैं.’’

वैसे तो अंबर चाय दे कर चली गई थी, लेकिन नादिर के लिए वह अभी तक उसी ड्राइंगरूम में थी. उस के बदन की खुशबू से पूरा कमरा महक रहा था. नादिर उस स्त्री से बहुत प्रभावित हुआ. कुछ देर बाद नोमान नहा कर आ गया. दोनों ने बहुत गर्मजोशी से हाथ मिलाया. नादिर बोला, ‘‘नोमान, मैं तुम्हारे 5 लाख रुपए ले आया हूं.’’

फिर उस ने अपनी जेब से नोटों की गड्डी निकाल कर मेज पर रख दी.

नोमान ने कहा, ‘‘बहुतबहुत शुक्रिया, मैं अभी आया.’’

‘‘तुम कहां चल दिए,’’ नादिर ने पूछा.

‘‘पहचान पत्र की फोटो कौपी लेने,’’ नोमान ने बताया.

‘‘अरे, रहने दो,’’ नादिर बेतकल्लुफी से बोला, ‘‘उस की जरूरत नहीं है.’’

फिर कुछ देर बाद वह चला गया. नादिर लड़कियों और औरतों का शिकारी था. उसे अंदाजा हो गया था कि नोमान की पत्नी अंबर को हासिल करना कोई मुश्किल काम नहीं होगा. उस ने अंबर की आंखों के इशारे देख लिए थे, जो बहुत सामान्य लगते थे, लेकिन नादिर जैसे लोगों के लिए इतना ही बहुत था. नादिर को एक महीने तक इंतजार करना था. उस ने नोमान से कहा था, ‘‘आप मेरे पास आने का कष्ट न करें. मैं स्वयं ही ब्याज की किस्त लेने आ जाया करूंगा. कुछ गपशप भी हो जाएगी और चाय भी चलती रहेगी.’’

ब्याज की किस्त वसूल करने के सिलसिले में नादिर बहुत कठोर था. वह मोहलत देने का विरोधी था. अगर वह मोहलत देता भी था, तो रोजाना के हिसाब से जुरमाना भी वसूल करता था. नादिर के साथ उस के गुंडे भी होते थे, इसलिए कोई इनकार नहीं करता था. नादिर अपने समय पर नोमान के घर ब्याज की रकम लेने के लिए पहुंच गया. नोमान किसी काम से बाहर गया हुआ था. घर पर सिर्फ उस की बीवी थी. उस ने नादिर को प्रेमपूर्वक घर के अंदर बुला लिया. फिर उस के लिए चाय बना कर ले आई और खुद भी उस के सामने बैठ गई. चाय पीने के दौरान उस ने कहा, ‘‘नादिर साहब, अगर इस बार नोमान को पैसे देने में कुछ देर हो जाए तो बुरा तो नहीं मानेंगे.’’

‘‘क्यों, खैरियत तो है?’’ नादिर ने पूछा.

‘‘कहां खैरियत, मेरी अम्मी बीमार हैं. नोमान ने इस बार के पैसे उन के इलाज में लगा दिए,’’ अंबर ने बताया.

‘‘अरे चलें, कोई बात नहीं, उस से कह देना फिक्र न करे.’’

‘‘नोमान कह रहे थे कि आप रोजाना के हिसाब से जुरमाना भी वसूल करते हैं,’’ नोमान की पत्नी बोली.

‘‘अरे, उस की फिक्र न करें. ऐसा होता तो है लेकिन यह उसूल, नियम सब के साथ नहीं होता. अपने लोगों को छूट देनी पड़ती है,’’ नादिर ने अपने लोगों पर खास जोर दिया.

नोमान की पत्नी अंबर मुसकरा दी. उस की मुसकराहट देख कर नादिर का दिल खुश हो गया. फिर चाय की प्याली समेटते हुए अंबर का हाथ नादिर के हाथ से टकरा गया. नादिर के पूरे वजूद में जैसे करंट सा दौड़ गया.

‘‘मुझे पैसों की ऐसी कोई जल्दी नहीं है,’’ नादिर ने चलते हुए कहा, ‘‘और नोमान को जुरमाना देने की भी जरूरत नहीं है.’’

‘‘आप का बहुतबहुत शुक्रिया, हमारा कितना खयाल रखते हैं,’’ अंबर गंभीरता से बोली. नादिर मदहोशी जैसी स्थिति में अपने घर वापस आ गया. शुरुआत हो गई थी. वह सोचने लगा काश! नोमान के पास कभी पैसे न हों और वह इसी तरह उस के घर जाता रहे. 10 दिन गुजर गए. नोमान की तरफ से कोई जवाब नहीं मिला. नादिर सोचने लगा, ‘हो सकता है उस की सास की तबीयत ज्यादा खराब हो गई हो या कुछ इसी तरह की बात हो.’

नादिर स्थिति जानने के बहाने नोमान के फ्लैट पर पहुंच गया. दस्तक के जवाब में एक अजनबी आदमी ने दरवाजा खोला और प्रश्नसूचक नजरों से नादिर को देखने लगा.

‘‘मुझे नोमान से मिलना है,’’ नादिर ने कहा.

‘‘नोमान?’’ उस ने आश्चर्य से दोहराया, फिर तत्काल बोला, ‘‘अच्छा, आप शायद पिछले किराएदार की बात कर रहे हैं.’’

‘‘पिछला किराएदार?’’ नादिर को बड़ा आश्चर्य हुआ.

‘‘जी भाई, वह तो 3 दिन हुए फ्लैट खाली कर के चले गए,’’ उस ने बताया.

‘‘कहां गए हैं?’’ नादिर ने पूछा.

‘‘सौरी, मुझे यह नहीं मालूम,’’ उस ने जवाब दिया. नादिर गुस्से से कांपता हुआ उस बिल्डिंग से बाहर आ गया. यह पहला मौका था कि किसी ने उस को इस तरह धोखा दिया था. उस ने एस्टेट एजेंट से मालूम करने की कोशिश की लेकिन वह भी यह नहीं बता सका कि नोमान ने कहां मकान लिया. नादिर के लिए यह बहुत बड़ा धक्का था. अगर नोमान की बीवी अंबर उस के हाथ लग जाती तो फिर यह कोई नुकसानदायक सौदा नहीं होता. लेकिन कमबख्त नोमान तो अपनी पत्नी और सामान के साथ गायब था. नोमान ने यह भी नहीं बताया था कि सदर में उस की दुकान कहां है. फिर भी वह पूरे सदर में उस को तलाश करेगा. बस, यही एक सहारा था. लेकिन उसे उम्मीद नहीं थी कि वहां नोमान मिल जाएगा.

ऐसा ही हुआ भी, सदर में नोमान नहीं मिला. लेकिन नादिर ने हिम्मत नहीं हारी. उस ने नोमान की तलाश जारी रखी. वह सोच रहा था कि नोमान कभी न कभी तो मिलेगा ही, शहर को छोड़ कर कहां जाएगा. फिर एक दिन आखिर नोमान की पत्नी अंबर मिल ही गई. वह एक स्टोर से कुछ सामान खरीद रही थी. नादिर उस के बराबर में जा कर खड़ा हो गया. अंबर ने चौंक कर नादिर की तरफ देखा, ‘‘आप नादिर हैं न?’’ उस ने पूछा.

‘‘हां, मैं नादिर हूं और तुम्हारा पति कहां है?’’

‘‘पति? कौन पति?’’ अंबर ने आश्चर्य से पूछा.

नादिर बोला, ‘‘मैं नोमान की बात कर रहा हूं.’’

‘‘वह मेरा पति नहीं है,’’ अंबर बोली.

‘‘क्या?’’ नादिर हैरान रह गया, ‘‘तो फिर कौन है?’’

‘‘बाहर आएं, बताती हूं,’’ अंबर बोली.

वह नादिर को ले कर स्टोर से बाहर आ गई.

‘‘हां, अब बताओ, तुम क्या कह रही थीं?’’ नादिर ने कहा.

‘‘मैं कह रही थी कि नोमान मेरा पति नहीं बल्कि कोई भी नहीं है. उस ने मुझे इस नाटक के लिए किराए पर लिया था. मैं एक कालगर्ल हूं. मेरा तो यही काम है. उस ने मुझे 25 हजार रुपए दिए थे. नोमान ने मुझ से कहा था कि मुझे उस की बीवी का रोल करना है. मैं ने अपनी ड्यूटी की. उस से मेहनताना लिया, खेल खत्म. उस का रास्ता अलग, मेरा अलग.’’

‘‘क्या तुम मुझे उस समय नहीं बता सकती थीं कि तुम उस की बीवी होने का नाटक कर रही हो?’’ नादिर ने गुस्से से पूछा.

‘‘नादिर साहब, हर धंधे का अपनाअपना उसूल होता है. मैं ने उसे जबान दी थी, फिर आप को यह सब कैसे बताती?’’ अंबर बोली.

‘‘अब वह कहां है?’’ नादिर बोला.

‘‘यह मैं नहीं जानती. मैं ने उस से अपना मेहनताना ले लिया था, अब वह कहीं भी जाए. मेरा उस से कोई लेनादेना नहीं है. हां, आप भी मेरा मोबाइल नंबर ले लें, अगर कभी आप को मेरी जरूरत पड़ जाए तो मैं हाजिर हो जाऊंगी.’’

नादिर अपने आप पर लानत भेजता हुआ घर वापस चला गया. आज जिंदगी में पहली बार उस ने बुरी तरह धोखा खाया था. और वह भी ऐसा जिस की चोट बरसों महसूस होती रहेगी. आखिर 5 लाख कम तो नहीं होते. Social Stories in Hindi

 

Social Story in Hindi : भारत में छिपकर जी रहा था फांसी की सजा काटने वाला अपराधी

Social Story in Hindi : बंगलादेश में फांसी की सजा पाया मासूम भारत आ गया था. वह अपने दोस्त सरवर और उस के परिवार के साथ रहने लगा. इसी दौरान अचानक सरवर गायब हो गया तो मासूम उस की पत्नी का शौहर बन कर फरजी दस्तावेजों में सरवर बन कर रहने लगा. लेकिन दिल्ली पुलिस…

‘‘ख बर एकदम पक्की  है न.’’ एएसआई अशोक ने फोन डिसकनेक्ट करने से पहले अपनी तसल्ली के लिए उस शख्स से एक बार फिर सवाल किया, जिस से वह फोन पर करीब पौने घंटे से बात कर रहे थे.

‘‘जनाब एकदम सोलह आने पक्की खबर है… आज तक कभी ऐसा हुआ है क्या कि मेरी कोई खबर झूठी निकली हो.’’ दूसरी तरह से सवाल के बदले मिले इस जवाब के बाद अशोक ने ‘‘चल ठीक है… जरूरत पड़ी तो तुझ से फिर बात करूंगा.’’ कहते हुए फोन डिसकनेक्ट कर दिया.

दिल्ली पुलिस की अपराध शाखा के एसटीएफ दस्ते में तैनात सहायक सबइंसपेक्टर अशोक कुमार की अपने सब से खास मुखबिर से एक खास खबर मिली थी. वह कुरसी से खड़े हुए और कमरे से बाहर निकल गए. दिल्ली पुलिस की अपराध शाखा की स्पैशल टास्क  फोर्स यूनिट में तैनात एएसआई अशोक कुमार दिल्ली पुलिस में अकेले ऐसे पुलिस अफसर हैं, जिन का बंगलादेशी अपराधियों को पकड़ने का अनोखा रिकौर्ड है. बंगलादेशी अपराधियों के खिलाफ अशोक कुमार का मुखबिर व सूचना तंत्र देश में ही नहीं, बल्कि बंगलादेश तक में फैला है.

बंगलादेश तक फैले मुखबिरों का नेटवर्क अशोक को फोन या वाट्सऐप से जानकारी दे कर बताता है कि किस बंगलादेशी अपराधी ने किस वारदात को अंजाम दिया है. अशोक कुमार को जो सूचना मिली थी, वह बंगलादेश में उन के एक भरोसेमंद मुखबिर से मिली थी. सूचना यह थी कि बंगलादेश का एक अपराधी, जिस का नाम मासूम है, को हत्या के एक मामले में बंगलादेश की अदालत से फांसी की सजा मिली थी, लेकिन वह भारत भाग आया था. भारत में वह सरवर नाम से पहचान बना कर रहता है. मुखबिर से यह भी पता चला कि सरवर तभी से लापता है, जब से मासूम ने अपनी पहचान सरवर के रूप में बनाई है.

मासूम ने जब से खुद को सरवर की पहचान दी है, तब से वह सरवर नाम के व्यक्ति की पत्नी के साथ रहता है. यह भी पता चला कि सरवर बेंगलुरु में रहता है, लेकिन वह अकसर दिल्ली  आता रहता है.  दिल्ली में उस के कई रिश्तेदार व दोस्त हैं. एएसआई अशोक ने अपने एसीपी पंकज सिंह को मुखबिर की सूचना से अवगत करा दिया. पंकज सिंह को अशोक के सूचना तंत्र पर पूरा भरोसा था. इसलिए उन्होंने एएसआई अशोक कुमार की मदद के लिए इंसपेक्टर दिग्विजय सिंह के नेतृत्व में एसआई राजीव बामल,  विजय हुड्डा, विजय कुमार, वीर सिंह, कांस्टेबल पयार सिंह सोनू और अजीत की टीम गठित कर दी.

चूंकि मामला विदेश से भागे एक अपराधी को पकड़ने से जुड़ा था, इसलिए एसीपी पंकज सिंह ने अपने डीसीपी भीष्म सिंह के अलावा दूसरे उच्चाधिकारियों को भी इस मामले की जानकारी दे दी. क्योंकि वे बखूबी जानते थे कि मामले की जांच आगे बढ़ाने पर उच्चाधिकारियों की मदद के बिना सफलता नहीं मिलेगी. जिस तरह अशोक का मुखबिर नेटवर्क अलग किस्म का है, उसी तरह उन सूचनाओं को वैरीफाई करने का भी उन के पास अपना नेटवर्क है. मासूम उर्फ सरवर के बारे में अशोक को पहली सूचना अक्तूबर, 2020 में मिली थी. मासूम के बारे में मिली सूचनाओं की पुष्टि करने के लिए पूरे 2 महीने का समय लगा. जिस से साबित हो गया कि वह सरवर नहीं, बंगलादेशी अपराधी मासूम है.

अशोक कुमार की टीम को बेंगलुरु के अलावा पश्चिम बंगाल व दिल्ली में कई बंगलादेशी बस्तियों के धक्के खाने पड़े. संयोग से पुलिस टीम ने सरवर का मोबाइल नंबर हासिल कर लिया. नंबर को इलैक्ट्रौनिक सर्विलांस पर लगाया गया तो 4 दिसंबर, 2020 को पता चला कि सरवर उर्फ मासूम 5 दिसंबर को खानपुर टी पौइंट पर आने वाला है. एएसआई अशोक कुमार ने सरवर की तलाश के लिए गठित की गई टीम के साथ इलाके की घेराबंदी कर ली. पुलिस टीम के साथ एक ऐसा बंगलादेशी युवक भी था, जो मासूम उर्फ सरवर को पहचानता था. सरवर जैसे ही बताए गए स्थान पर पहुंचा, पुलिस टीम ने उसे गिरफ्तार कर लिया. तलाशी में उस के कब्जे से एक देसी कट्टा और 2 जिंदा कारतूस बरामद हुए.

पुलिस टीम मासूम उर्फ सरवर को क्राइम ब्रांच के दफ्तर ले आई. पूछताछ में पहले तो सरवर यही बताता रहा कि पुलिस को गलतफहमी हो गई है वह मासूम नहीं बल्कि सरवर है. लेकिन एएसआई अशोक पहले ही इतने साक्ष्य एकत्र कर चुके थे कि सरवर झुठला नहीं सका कि वह सरवर नहीं मासूम है. पुलिस ने थोड़ी सख्ती इस्तेमाल की तो वह टेपरिकौर्डर की तरह बजता चला गया कि उस ने कैसे एक दूसरे आदमी की पहचान हासिल कर खुद को मासूम से सरवर बना लिया था. यह बात चौंकाने वाली थी. पूछताछ के बाद पुलिस ने उस के खिलाफ भादंसं की धारा 25 आर्म्स ऐक्ट और 14 विदेशी अधिनियम के तहत मामला दर्ज कर उसे गिरफ्तार कर लिया.

सरवर उर्फ मासूम से पूछताछ के बाद जो कहानी सामने आई, वह कुछ इस प्रकार है—

मूलरूप से बंगलादेश के जिला बगीरहाट, तहसील खुलना, गांव बहल का रहने वाला मासूम (40) बंगलादेश के उन लाखों लोगों में से एक है, जिन के भरणपोषण का असली सहारा या तो कूड़ा कबाड़ बीन कर उस से मिलने वाली मामूली रकम होती है. ऐसे लोग चोरी, छीनाझपटी और उठाईगिरी कर के अपना पेट पालते हैं. मेहनतमजूदरी करने वाले मातापिता के अलावा परिवार में 3 बड़े भाई व एक बहन में सब से छोटा मासूम गुरबत भरी जिंदगी के कारण पढ़लिख नहीं सका. बचपन से ही बुरी संगत और आवारा लड़कों की सोहबत के कारण वह उठाईगिरी करने लगा.

धीरेधीरे छीनाझपटी के साथ अपराध करने की उस की प्रवृत्ति संगीन होती गई. जेल जाना और जमानत पर छूटने के बाद फिर से अपराध करना उस की फितरत बन चुकी थी. मासूम ने किया अपहरण और कत्ल

साल 2005 में मासूम ने एक ऐसे अपराध को अंजाम दिया, जिस ने उस की जिंदगी पर मौत की लकीर खींच दी. उस ने अपने साथी बच्चू, मोनीर, गफ्फार व जाकिर के साथ मिल कर बांग्लादेश के मध्य नलबुनिया बाजार में मोबाइल विक्रेता जहीदुल इसलाम का अपहरण कर लिया. लूटपाट के लिए अपहरण करने के बाद उस ने साथियों के साथ जहीदुल इसलाम की गला रेत कर हत्या कर दी. शृंखला थाने की पुलिस ने घटना के अगले दिन नलबुनिया इलाके के खाली मैदान से जहीदुल का शव बरामद किया. चश्मदीदों से पूछताछ व सर्विलांस के आधार पर पुलिस ने 2 दिन के भीतर ही मासूम समेत सभी पांचों अपराधियों को गिरफ्तार कर लिया. सब पर मुकदमा चला.

चूंकि पुलिस को मासूम के कब्जे से मृतक जहीदुल का मोबाइल फोन मिला था, इसलिए  2013 में बंगलादेश की संबंधित कोर्ट ने मासूम को दोषी करार दे कर फांसी की सजा सुना दी, जबकि बाकी 4 आरोपितों को कोर्ट ने सुबूतों के अभाव में बरी कर दिया था. लेकिन इस से पहले ही केस के ट्रायल के दौरान सन 2010 में मासूम को अदालत से जमानत मिल गई थी और वह देश छोड़ कर फरार हो गया था. अदालत से सजा मिलने के बाद जब मासूम अदालत में हाजिर नहीं हुआ तो पुलिस ने उसे भगोड़ा घोषित कर उस की गिरफ्तारी पर एक लाख का ईनाम घोषित कर दिया.

इधर जमानत पर बाहर आने के बाद मासूम सरवर नाम के एक व्यक्ति के संपर्क में आया. मासूम जानता था कि उस के गुनाहों की फेहरिस्त काफी बड़ी हो चुकी है और जहीदुल इस्लाम केस में पुलिस को उस के खिलाफ ठोस सबूत मिले हैं. लिहाजा उस ने कानून से बचने के लिए देश को अलविदा कह कर दूसरे देश भाग जाने की योजना बना ली. अपनी इसी मंशा को अंजाम देने के लिए मासूम ने सरवर से मुलाकात की. सरवर से उस की मुलाकात कुछ साल पहले बशीरहाट जेल में हुई थी, जहां वह किसी अपराध में गिरफ्तार हो कर गया था.

सरवर मूलरूप से रहने वाला तो बंगलादेश का ही था, लेकिन वह ज्यादातर भारत में रहता था. जहां उस ने अवैध रूप से रहते हुए न सिर्फ वहां की नागरिकता के सारे दस्तावेज तैयार करा लिए थे, बल्कि वहां अपना परिवार भी बना लिया था. सरवर नाम के लिए तो भारत और बंगलादेश के बीच कारोबार के बहाने आनेजाने का काम करता था, लेकिन असल में सरवर का असली काम था नकली दस्तावेज तैयार कर के बंगलादेशी लोगों का अवैध रूप से भारत में घुसपैठ कराना. मासूम ने जमानत मिलने के बाद सरवर से संपर्क साधा और उसे अपनी दोस्ती का वास्ता दे कर भारत में घुसपैठ करवा कर वहां शरण देने के लिए मदद मांगी. सरवर दोस्ती की खातिर इनकार नहीं कर सका.

सरवर ने 50 हजार रुपए में मासूम से सौदा तय किया कि वह इस के बदले न सिर्फ उसे बंगलादेश से भारत पहुंचा देगा. बल्कि उसे वहां रहने के लिए सुरक्षित ठिकाना भी उपलब्ध करा देगा. सरवर के लिए बंगलादेशी लोगों को सीमा पार करवा कर भारत लाना मामूली सा काम था. 2011 के शुरुआत में सरवर मासूम के साथ सीमा पार कर के भारत आ गया. सरवर उन दिनों बेंगलुरु में अपने परिवार के साथ रहता था, जहां उस ने कबाड़ का गोदाम बना रखा था. इसी गोदाम में उस की पत्नी नजमा व 2 बेटियां साथ रहती थीं.

सरवर ने मासूम को इसी गोदाम पर अपने परिवार के साथ रखवा लिया और उसे कबाड़ का गोदाम संभालने की जिम्मेदारी सौंप दी. कुछ समय भारत में रहने के बाद सरवर फिर से वापस बंगलादेश गया था. बताते हैं कि वह बंगलादेश से भारत तो लौट आया था, लेकिन उस के बाद आज तक अपने परिवार से नहीं मिल पाया. कई महीने बीत गए लेकिन सरवर अपने परिवार के पास वापस नहीं लौटा तो परिवार को चिंता होने लगी. सरवर की पत्नी नजमा ने बंगलादेश में फोन कर के सरवर के मातापिता से बात की. उन्होंने बताया कि सरवर तो भारत चला गया. जब उन्हें नजमा से यह पता चला कि सरवर भारत में अपनी पत्नी और बच्चों के पास नहीं पहुंचा है तो उन्होंने मई 2011 में बंगलादेश में सरवर की गुमशुदगी की सूचना दर्ज करवा दी.

सरवर का परिवार बना मासूम का इधर, बेंगलुरु में सरवर की पत्नी नजमा और दोनों बेटियां कायनात (22) और सिमरन (16) पूरी तरह मासूम पर निर्भर हो गईं. हालांकि सरवर ने 2 साल पहले ही बेटी कायनात की शादी बेंगलुरु में कबाड़ का काम करने वाले एक युवक यूनुस से कर दी थी. मासूम ने सरवर की पत्नी नजमा और छोटी बेटी सिमरन के गुजारे और खाने के खर्चे तो उठाने शुरू कर दिए, लेकिन अब उस के दिमाग में कुछ दूसरी ही खिचड़ी पकने लगी थी. वह सरवर के परिवार को पालने की कीमत वसूलना चाहता था.

मासूम ने सरवर की पत्नी नजमा को धीरेधीरे विश्वास में ले कर उस से आंतरिक संबंध बना लिए. कुछ ही दिन में मासूम का नजमा से पत्नी जैसा रिश्ता कायम हो गया. वैसे नजमा के लिए सरवर हो या मासूम, इस से कोई फर्क नहीं पड़ता था. क्योंकि उसे लगता था कि मर्दों का उस की जिंदगी में आनाजाना उस की नियति बन चुकी है. असल में सरवर से भी उस की दूसरी शादी थी. नजमा के पहले पति असलम की मौत हो चुकी थी. कायनात उस के पहले पति असलम से पैदा हुई बेटी थी. असलम की मौत के बाद जब नजमा बेटी को गोद में लिए आश्रय और पेट पालने के लिए इधरउधर भटक रही थी, तभी वह सरवर के संपर्क में आई थी. सरवर ने उसे आसरा भी दिया और नजमा को उस की बेटी के साथ अपना कर अपनी छत्रछाया भी दी.

सरवर अकसर हिंदुस्तान और बंगलादेश के बीच आवागमन करता रहता था. बेंगलुरु में उस ने कबाड़ का गोदाम बना रखा था, इसी में उस ने अपने रहने का ठिकाना भी बना लिया था. सरवर के अचानक लापता हो जाने के बाद मासूम ने कबाड़ के इस गोदाम को संभालने और सरवर की बीवी और बेटी को पालने का जिम्मा अपने ऊपर ले लिया था. इधर सरवर की छोटी बेटी भी धीरेधीरे जवानी की दहलीज पर कदम रख रही थी. शराब के नशे का आदी मासूम जब सिमरन को देखता तो उस का मन सिमरन का गदराता हुआ जिस्म पाने के लिए मचल उठता.

एक दिन उसे मौका मिल गया. नजमा लोगों के घरों में काम करती थी. एक रात वह अपने किसी मालिक के घर पर होने वाले शादी समारोह के लिए घर से बाहर थी कि उसी रात मासूम ने शराब के नशे में सिमरन को अपने बिस्तर पर खींच कर हवस का शिकार बना डाला. अगली सुबह सिमरन ने अपनी मां को जब यह बात बताई तो उस ने मासूम के साथ खूब झगड़ा किया. 1-2 दिन दोनों के बीच बातचीत भी नहीं हुई. लेकिन उस के बाद सब कुछ सामान्य हो गया. यह बात सिमरन भी जानती थी और नजमा भी कि मासूम ही अब उन का सहारा है. इसीलिए उस के हौसले बुलंद हो गए. इस घटना के बाद वह जब भी उस का मन करता और मौका मिलता, सिमरन को अपनी हवस का शिकार बना लेता.

इधर मासूम को अब लगने लगा था कि अगर बंगलादेश में पुलिस को उस के भारत में होने या भारत की पुलिस को उस के बंगलादेश का सजायाफ्ता अपराधी होने की बात पता चल गई तो उस के लिए बड़ी मुश्किल हो सकती है. इसलिए सितंबर, 2013 के बाद मासूम ने अपनी पहचान मिटा कर सरवर के रूप में अपनी नई पहचान बनाने का फैसला कर लिया. अपने इरादों को पूरा करने के लिए मासूम नजमा व सिमरन को ले कर दिल्ली आ गया और यहां ई ब्लौक सीमापुरी में किराए का मकान ले कर रहने लगा. दरअसल, नजमा से उसे पता चला था कि कुछ समय सरवर भी यहां रहा था. इसी इलाके में सरवर ने अपनी आईडी बनवाई हुई थी. उस का आधार कार्ड भी यहीं बना था.

कुछ समय यहां रहने के बाद मासूम ने दलालों से संपर्क साध कर ऐसी सेटिंग बनाई कि उस ने रिकौर्ड में सरवर की आईडी पर अपना फोटो चढ़वा लिया. अब वह कानून की नजर में पूरी तरह से सरवर बन गया था. बाद में इसी आईडी के आधार पर उस ने बैंक में खाता भी खुलवा लिया और ड्राइविंग लाइसैंस भी हासिल कर लिया. मासूम बन गया सरवर मासूम ने धीरेधीरे सरवर की पहचान से जुड़े हर दस्तावेज को खत्म कर उन सभी में खुद को सरवर के रूप में अंकित करा दिया. अब वह पूरी तरह बेखौफ हो गया.

6 माह के भीतर ये सब करने के बाद पूरी तरह सरवर बन चुका मासूम नजमा व सिमरन को ले कर फिर से बेंगलुरु लौट गया. इस बार उस ने बेंगलुरु के हिंबकुडी को अपना नया ठिकाना बनाया. अब उस ने दिल्ली से बनवाए गए अपने ड्राइविंग लाइसैंस के आधार पर टैक्सी चलाने का नया काम शुरू कर दिया. धीरेधीरे उस ने यहां भी अपनी पहचान सरवर के रूप में स्थापित कर ली. मासूम था तो असल में अपराधी प्रवृत्ति का ही. लिहाजा उस के दिमाग में फिर से अपराध करने का कीड़ा कुलबुलाने लगा. उस ने बंगलादेशी लोगों के बीच अपनी अच्छीखासी पैठ बना ली थी. टैक्सी चलाने के नाम पर वह कुछ अपराधियों के साथ मिल कर छीनाझपटी और ठगी करने लगा.

पुलिस से बचने के लिए उस ने एक शानदार रास्ता भी बना लिया था. वह बेंगलुरु में क्राइम ब्रांच के साथसाथ शहर के चर्चित पुलिस अफसरों के लिए मुखबिरी भी करने लगा. जिस वजह से पुलिस महकमे में उस की अच्छीखासी जानपहचान हो गई. एक तरह से मासूम ने सरवर बन कर अपना पूरा साम्राज्य स्थापित कर लिया था. अपराध की दुनिया से होने वाली काली कमाई से उस ने कई गाडि़यां खरीद लीं, जिन्हें वह दूसरे लोगों को किराए पर दे कर टैक्सी के रूप में चलवाता था. इतना ही नहीं, उसी इलाके में उस ने अब फिर से कबाड़ का काम भी शुरू कर दिया. इस के लिए जमीन खरीद कर गोदाम बना लिया था. पुलिस से बने संबंधों के चलते वह लूट व चोरी का माल भी खरीदने लगा.

बड़े स्तर पर पुलिस के लिए मुखबिरी करने के कारण सरवर उर्फ मासूम के कुछ दुश्मन भी बन गए थे. ज्यादातर दुश्मन वे बंगलादेशी थे, जो भारत में अवैध रूप से रह कर अपराध करते थे और उन का बंगलादेश में लगातार आनाजाना होता था. ऐसे ही कुछ लोगों ने कथित सरवर से दुश्मनी के कारण जब उस की जन्मकुंडली निकाली तो उन्हेें पता चला कि असली सरवर तो सालों से लापता है, उस की जगह मासूम ने ले ली है. बात जब फूटी तो दिल्ली पुलिस की अपराध शाखा के एएसआई अशोक कुमार तक जा पहुंची. एक मुखबिर ने इस सूचना को और पुख्ता करने के बाद वाट्सऐप कर के एएसआई अशोक को बताया.

इस के बाद एएसआई अशोक ने जाल बिछाना शुरू किया और दिसंबर महीने में कथित सरवर उर्फ मासूम दिल्ली पुलिस की अपराध शाखा के हत्थे चढ़ गया. एएसआई अशोक ने उत्तरपूर्वी दिल्ली के निर्वाचन कार्यालय से संपर्क कर वे दस्तावेज भी हासिल कर लिए, जिन में सरवर के रूप में असली सरवर तथा नए सरवर दोनों की फोटो लगी थी. नए सरवर के ड्राइविंग लाइसैंस का रिकौर्ड व अन्य दस्तावेज हासिल करने के बाद  अशोक ने दिल्ली से ले कर बेंगलुरु व कोलकाता में उन तमाम लोगों से संपर्क करना शुरू कर दिया, जिन के नंबरों पर कथित सरवर की अकसर बातचीत होती थी. ऐसे ही लोगों से पूछताछ करतेकरते अशोक इस नतीजे पर पहुंच गए कि जो शख्स सरवर बन कर भारत में रह रहा है, वह असल में बंगलादेश में फांसी की सजा मिलने के बाद फरार हुआ अपराधी मासूम है.

इस के बाद अशोक ने बंगलादेश में अपने मुखबिर तंत्र को सक्रिय कर यह भी पता कर लिया कि मासूम के परिवार वालों को भी यह बात पता थी कि वह भारत में छिप कर रह रहा है. वह अपने परिवार वालों से अलगअलग फोन से संपर्क कर बातचीत करता था. इतना ही नहीं अशोक ने बंगलादेश के बगीरहाट जिले में शृंखला थाने का नंबर हासिल कर वहां के थानाप्रभारी से वाट्सऐप के जरिए अपना परिचय दे कर बात की और उन से मासूम की पूरी क्रिमिनल हिस्ट्री का रिकौर्ड वाट्सऐप के जरिए मंगवा लिया. साथ ही वे दस्तारवेज भी जिन में उस घटना का जिक्र था, जिस में मासूम को फांसी की सजा मिली थी. फरार होने के बाद उस पर पुलिस के ईनाम का नोटिस भी अशोक के पास आ गया, तब जा कर उन्होंने मासूम को दबोचने की रणनीति पर काम किया.

कसने लगा शिकंजा सरवर उर्फ मासूम के इर्दगिर्द घेरा कसते हुए एएसआई अशोक को पता चला था कि सरवर की पत्नी नजमा की एक बहन खातून दिल्ली के खानपुर इलाके में रहती है. अशोक ने खातून को विश्वास में ले कर सरवर के राज उगलवाए. पता चला कि बेंगलुरु का रहने वाला सरवर उर्फ मासूम का दोस्त अल्लासमीन है जो इन दिनों दिल्ली के खानपुर में रहता है. मासूम उर्फ सरवर उस से अकसर मिलने आता रहता है. बस इसी माध्यम से अशोक ने सरवर को दबोचने का प्लान बनाया और 5 दिसंबर, 2020 को जब वह अल्लासमीन से मिलने आया तो पुलिस के हत्थे चढ़ गया.

हालांकि पुलिस ने मासूम को गिरफ्तार करने के बाद उस से सरवर को ले कर कड़ी पूडताछ की. लेकिन मासूम ने सरवर के बारे में कोई जानकारी नहीं दी. शक है कि मासूम ने सरवर की हत्या कर दी होगी. उस के बाद वह सरवर की पत्नी के साथ रहने लगा और अपना नाम उसी के नाम पर सरवर भी रख लिया. इस बात की आशंका इसलिए भी है कि उसे शायद पता था कि सरवर कभी लौट कर नहीं आएगा, इसीलिए उस ने अपनी पहचान सरवर के रूप में गढ़ ली थी. पूछताछ में यह भी खुलासा हुआ कि सरवर उर्फ मासूम से नजमा ने एक और बेटी को जन्म दिया, जिस की उम्र इस वक्त 8 साल है.

दूसरी तरफ नजमा की मंझली बेटी सिमरन मासूम के लगातार शारीरिक शोषण से तंग आ कर अपनी बड़ी बहन के पति यूनुस की तरफ आकर्षित हो गई थी और एक साल पहले अपने बहनोई के साथ घर छोड़ कर भाग गई थी. दिल्ली पुलिस की अपराध शाखा ने मासूम उर्फ सरवर को अदालत में पेश कर जेल भेज दिया और उस की गिरफ्तारी की सूचना बंगलादेश दूतावास के माध्यम से बंगलादेश की पुलिस को दे दी. Social Story in Hindi

—कथा आरोपी के बयान और पुलिस की जांच पर आधारित

 

Crime Story : फिल्म इंडस्ट्री की आड़ में चल रहा था पोर्न फिल्मों का धंधा

Crime Story : बौलीवुड हो या साउथ की फिल्म इंडस्ट्री, फिल्मों में जाने के लिए तमाम युवक युवतियां प्रयास करते हैं. जो असफल रहते हैं, उन में से कई अभिनय के नाम पर पोर्न फिल्म बनाने वालों के चंगुल में फंस जाते हैं. फिल्म इंडस्ट्री की आड़ में पोर्न फिल्में अब भी बन रही हैं. यह भांडा तब फूटा जब..

कोरोना काल में मुसीबतों में फंसा रहा भारतीय फिल्म उद्योग अभी तक नहीं उभर पाया है. कुछ समय पहले अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की मौत के मामले में ड्रग्स एंगल का खुलासा होने के बाद बौलीवुड हिल गया था. नामी अभिनेत्रियों सहित सहित कई दूसरे लोगों की गिरफ्तारी से बौलीवुड में नशीले पदार्थों का काला कारोबार छाया रहा. इसी दौरान सैंडलवुड कहे जाने वाले कन्नड़ फिल्म उद्योग में भी ड्रग्स का जाल फैला होने का मामला सामने आया. कन्नड़ फिल्म उद्योग में ड्रग्स के मामले में कई नामी अभिनेत्रियों सहित दूसरे लोगों की गिरफ्तारियां हुईं.

फिल्म उद्योग में ड्रग्स के मामले अभी ठंडे भी नहीं पड़े थे कि अब बौलीवुड में पोर्न फिल्मों का मामला सामने आ गया है. पोर्न फिल्मों के मामले ने फिल्म उद्योग में फैले काले धंधों को उजागर करने के साथ वेब सीरीज के नाम पर ऐक्टिंग के लिए संघर्षरत युवाओं के शोषण की भी पोल खोल दी है. इसी साल 4 फरवरी की बात है. मुंबई पुलिस की क्राइम ब्रांच के प्रौपर्टी सेल के प्रभारी सीनियर इंसपेक्टर केदारी पवार को पोर्न फिल्में बनाने के बारे में सूचनाएं मिलीं, तो वह चौंके. उन्होंने कोई भी काररवाई करने से पहले अपने उच्चाधिकारियों सहायक पुलिस आयुक्त मिलिंद भारंबे, अपर पुलिस आयुक्त विरेश प्रभु और पुलिस उपायुक्त शशांक सांडभोर को इस बारे में बताना मुनासिब समझा.

उच्चाधिकारियों के निर्देश पर सीनियर इंसपेक्टर केदारी पवार ने इंसपेक्टर धीरज कोली, एपीआई लक्ष्मीकांत सांलुखे, सुनील माने, अमित भोसले, योगेश खानुरे, महिला अधिकारी अर्चना पाटील और सोनाली भारते आदि के अलावा मातहत पुलिस वालों की टीम बनाई. इस पुलिस टीम ने 4 फरवरी की आधी रात मुंबई के मालवणी इलाके में मड आइलैंड स्थित ओल्ड फेरी मार्ग पर बने ग्रीन पार्क बंगले पर छापा मारा. पुलिस अधिकारी अपने वाहनों को बंगले से कुछ दूर खड़ा कर जब पैदल ही बंगले के बाहर पहुंचे, तो वहां न तो कोई सुरक्षा के इंतजाम नजर आए और न ही कोई चहलपहल दिखी. बंगले के कुछ कमरों में रोशनी जरूर थी. कुछ आवाजें भी आ रही थीं.

पुलिस अधिकारी बंगले के एक कमरे में पहुंचे, तो वहां का दृश्य देख कर सन्न रह गए. कमरे में कुल 5 लोग थे. 2 महिला और 3 पुरुष. बिस्तर पर एक महिला और एक पुरुष अर्धनग्न अवस्था में अश्लील हरकतें कर रहे थे. एक महिला उन का वीडियो बना रही थी. मौके के हालात देख कर साफ था कि वहां पोर्न फिल्म की शूटिंग हो रही थी. पुलिस ने मौके से दोनों महिलाओं और तीनों पुरुषों को हिरासत में लिया. इन महिलाओं में 40 साल की फोटोग्राफर यास्मीन खान और 33 साल की ग्राफिक डिजाइनर प्रतिभा नलावडे थी. पकड़े गए पुरुषों में भानु ठाकुर और मोहम्मद नासिर ऐसी फिल्मों में ऐक्टिंग करते थे. वहीं मोनू जोशी कैमरामैन और लाइटमैन का काम करता था.

मौके से पुलिस ने 6 मोबाइल हैंडसेट, एक लैपटौप, कैनन कंपनी का कैमरा, 2 मैमोरी कार्ड, कैमरे का लैंस, एलईडी हैलोजन, स्पौट लाइट स्टैंड, ट्रायपोड स्टैंड सहित करीब 5 लाख 68 हजार रुपए का सामान जब्त किया. इन के अलावा शूटिंग के लिए लिखे गए डायलौग्स और स्क्रिप्ट सहित कुछ इकरारनामे भी बरामद किए. कई केस हुए दर्ज पूछताछ के लिए पांचों लोगों को पुलिस मालवणी पुलिस थाने ले आई. एपीआई लक्ष्मीकांत सांलुखे ने इस मामले में पुलिस थाने में केस दर्ज कराया. पुलिस ने भारतीय दंड संहिता की धारा 292, 293, 420 और 34 के अलावा स्त्री असभ्य प्रतिरूपण प्रतिषेध अधिनियम की विभिन्न धाराओं आदि में 5 फरवरी को मुकदमा दर्ज कर पांचों लोगों को गिरफ्तार कर लिया.

पुलिस ने पांचों लोगों से पूछताछ की, तो चौंकाने वाली बातें सामने आईं. पता चला कि मुंबई में पोर्न फिल्में बनाने वाला रैकेट चल रहा है. इस में कुछ नामी अभिनेता और अभिनेत्री भी शामिल हैं. ये अभिनेता, अभिनेत्री बी और सी ग्रेड की बौलीवुड फिल्मों में काम कर चुके हैं. ऐसी फिल्म प्रोडक्शन कंपनियां ऐक्टिंग के लिए स्ट्रगल कर रही युवतियों को हीरोइन बनाने का ख्वाब दिखातीं और उन से शौर्ट फिल्म में काम करने का एग्रीमेंट करती थी. एग्रीमेंट के बाद शूटिंग के दौरान ये लोग न्यूड सीन देने का दबाव डालते थे. मना करने पर एग्रीमेंट के आधार पर केस करने की धमकी देते थे. पांचों लोगों से पूछताछ के आधार पर पुलिस ने पोर्न फिल्में बनाने और उन्हें ओटीटी प्लेटफार्म पर अपलोड करने के मामले में अभिनेत्री गहना वशिष्ठ को भी 6 फरवरी को गिरफ्तार कर लिया.

गहना वशिष्ठ की गिरफ्तारी से बौलीवुड भी सकते में आ गया. पुलिस का कहना था कि गहना वशिष्ठ के प्रोडक्शन हाउस में पोर्न फिल्मों की शूटिंग होती थी. गहना वशिष्ठ की गिरफ्तारी पर उस की लीगल टीम ने एक बयान में कहा कि वह निर्दोष हैं. बोल्ड फिल्मों और हार्डकोर पोर्न फिल्मों में अंतर होता है. मुंबई पुलिस ने इन दोनों को एक समझ लिया. हमें उम्मीद है कि अदालत दोनों फिल्मों में अंतर समझ कर गहना को न्याय देगी. गहना वशिष्ठ, यास्मीन खान, प्रतिभा नलावडे और बाकी तीनों गिरफ्तार पुरुष आरोपियों मोनू जोशी, भानु ठाकुर व मोहम्मद नासिर से पूछताछ के आधार पर पुलिस ने पोर्न फिल्मों से कमाई गई 36 लाख 60 हजार रुपए की रकम भी बरामद की.

इन सभी से पूछताछ में पता चला कि पोर्न फिल्मों की शूटिंग भारत में मुंबई और दूसरी जगहों पर होती थी, लेकिन कानून की गिरफ्त से बचने के लिए इन फिल्मों के वीडियो विदेश के आईपी एड्रेस और सर्वर से अपलोड किए जाते थे. गहना वशिष्ठ की प्रोडक्शन कंपनी की ओर से ये वीडियो उमेश कामत को वी ट्रांसफर के जरिए भेजे जाते थे. उमेश उस लिंक को लंदन भेजता था. वहां से इन फिल्मों के वीडियो ओटीटी प्लेटफार्म पर अपलोड होते थे. वी ट्रांसफर दुनियाभर में ई फाइल भेजने का सब से सरल तरीका है. इस के जरिए 2 जीबी तक की बड़ी फाइलें भी मुफ्त में भेजी या मंगाई जा सकती हैं. पुलिस जांच में सामने आया कि उमेश कामत इस काम का कोआर्डिनेटर है और उस के जरिए ही पेमेंट मिलता था.

क्राइम ब्रांच को करीब 3 दरजन ऐसी फिल्मों के सबूत मिले, जो उमेश के जरिए लंदन भेजी गईं और वहां से अपलोड की गईं. उमेश कामत बौलीवुड की एक टौप अभिनेत्री के पति की कंपनी में मैनेजिंग डायरेक्टर है. अभिनेत्री का पति इस कंपनी में चेयरमैन और नान एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर है. गिरफ्तार आरोपियों से पूछताछ जरूरी सबूत जुटाने के बाद पुलिस ने इस मामले में 8 फरवरी को उमेश कामत को भी गिरफ्तार कर लिया. उमेश और दूसरे आरोपियों से पूछताछ में पता चला कि प्रत्येक ऐसे वीडियो के एवज में विदेशी अपलोडर्स से उन्हें 2 से ढाई लाख रुपए मिलते थे. इन में से करीब एक लाख रुपए कलाकारों, कैमरामैन और फिल्म एडिटर आदि को दिए जाते थे और बाकी एक से डेढ़ लाख रुपए का मुनाफा होता था.

विवादों की रानी गहना गहना वशिष्ठ से पूछताछ में पुलिस को पता चला कि ऐसी फिल्मों के लिए उस ने ओटीटी के दरजनों ऐप बनाए थे. पुलिस ने जांच की, तो इन में से एक ऐप पर ही उस के 67 हजार से ज्यादा सब्सक्राइबर निकले. कोरोना काल में उस ने 85 से ज्यादा ऐसी फिल्में ओटीटी प्लेटफौर्म पर चलाई थीं. फरवरी में ही उस का 5-6 ऐसी फिल्में रिलीज करने का विचार था. पुलिस जांच में सामने आया कि फिल्म प्रोडक्शन कंपनी ने हौटहिट मूवीज नाम का एक ऐप भी बना रखा है. इस पर वे अपनी पोर्न फिल्म को अपलोड करते थे. इस ऐप के लिए बाकायदा 2 हजार रुपए तक सब्सक्रिप्शन फीस ली जाती थी.

8 फरवरी की रात पुलिस ने इस मामले में एक फोटोग्राफर श्याम बनर्जी उर्फ दिवांकर खासनवीस को गिरफ्तार किया. पोर्न फिल्म केस में यह 8वीं गिरफ्तारी थी. पुलिस का कहना है कि हौटहिट ऐप का संचालन 5 फरवरी को ग्रीन पार्क बंगला से गिरफ्तार महिला फोटोग्राफर यास्मीन खान और बाद में पकड़ा गया उस का पति फोटोग्राफर श्याम बनर्जी मिल कर करते थे. पुलिस की जांचपड़ताल में पोर्न फिल्म रैकेट के तार मुंबई से गुजरात के सूरत तक पहुंच गए. बाद में 10 फरवरी को पुलिस ने इस मामले में बी और सी ग्रेड बौलीवुड फिल्मों के अभिनेता तनवीर हाशमी को सूरत से गिरफ्तार किया.

पोर्न फिल्मों के मामले में गिरफ्तार आरोपियों से पूछताछ में जो कहानी उभर कर सामने आई. वह पैसे कमाने की अंधी दौड़ में युवा पीढ़ी को पतन के रास्ते पर ले जाने की कहानी है. कोरोना काल में जब मार्च 2020 के चौथे सप्ताह में पूरे देश में लौकडाउन हो गया, तब देश की दोतिहाई आबादी अपने घरों में कैद हो कर रह गई.  इस दौरान लोगों के पास मनोरंजन के नाम पर केवल मोबाइल रह गए. मोबाइल पर इस दौरान पोर्न फिल्में देखने वालों की तादाद बढ़ गई. इस का फायदा उठा कर मुंबई के कुछ सी ग्रेड फिल्मकारों ने पोर्न फिल्में बनाने की योजना बनाई.

मई 2020 में जैसे ही अनलौक का पहला चरण शुरू हुआ, तो इन लोगों ने अपनी योजना को क्रियान्वित करने के लिए देसी पोर्न फिल्में बनाने का काम शुरू कर दिया. इन में अभिनेत्री गहना वशिष्ठ, अभिनेता तनवीर हाशमी और फोटोग्राफर यास्मीन खान आदि ने मुंबई में मलाड इलाके में मड आइलैंड के बंगलों को किराए पर लिया. उस समय फिल्मों व टीवी सीरियलों की शूटिंग बंद थी, तब इन बंद बंगलों में ऐसी फिल्मों की शूटिंग होने लगी. उस समय पुलिस और प्रशासन कोरोना से बचाव की जद्दोजहद में जुटा हुआ था. इसलिए पुलिस को इस सब की जानकारी नहीं मिली.

गहना वशिष्ठ पर 85 से ज्यादा पोर्न फिल्में पोर्न वेबसाइट या ऐप्स पर अपलोड करने का आरोप है. इन में कुछ नामी मौडल्स को भी शूट किया गया था. मौडल्स और खूबसूरत चेहरेमोहरे वाली युवतियों को शौर्ट फिल्मों के लिए बुला कर एग्रीमेंट किया जाता था. एग्रीमेंट कुछ सचाई कुछ कुछ मिनट की शूटिंग के बाद एक्टर्स को पोर्न सीन करने के लिए मजबूर किया जाता था. ऐसे सीन नहीं करने पर उन्हें कानूनी नोटिस भेजने की धमकी दी जाती थी. इस का कारण यह था कि 30-40 हजार रुपए मेहनताना का एग्रीमेंट करने वाली मौडल और युवतियां उस एग्रीमेंट को पढ़ती नहीं थी. उन से केवल एकदो दिन की शूटिंग होने के नाम पर जल्दी में दस्तख्त करा लिए जाते थे.

पेशे से फोटोग्राफर यास्मीन उर्फ रोवा खान ने भी 50 से ज्यादा पोर्न फिल्में बनाई हैं. ऐसी फिल्मों की शूटिंग आमतौर पर एक ही दिन में पूरी कर ली जाती थी. एडिटिंग में 2 से 3 दिन का समय लगता था. इस तरह करीब 20 से 30 मिनट की फिल्म तैयार हो जाती थी. इस के बाद ऐसी फिल्मों को विदेश के आईपी एड्रेस और सर्वर के जरिए ओटीटी प्लेटफार्म पर रिलीज कर दिया जाता था. पोर्न फिल्मों के इस मामले में कथा लिखे जाने तक पुलिस में 4 केस दर्ज हुए थे. इन में 2 युवतियों ने मालवणी पुलिस थाने में केस दर्ज कराया. एक ने वसई के अर्नाला पुलिस स्टेशन में शिकायत दी. यह शिकायत लोनावाला पुलिस स्टेशन को ट्रांसफर की गई है. एक केस महाराष्ट्र साइबर सेल में दर्ज हुआ है.

इन में एक मौडल ने शिकायत में कहा कि गहना के प्रोडक्शन हाउस की ओर से शूट किए वीडियो में उसे न्यूड पोज देने के लिए फोर्स किया गया. एक मौडल ने गहना के खिलाफ 3 पुरुषों के साथ सैक्स करने को मजबूर करने का आरोप लगाया है. झारखंड की एक युवती ने मालवणी पुलिस थाने में दी शिकायत में पोर्न फिल्म न करने पर 10 लाख रुपए का हर्जाना देने की धमकी देने का आरोप लगाया है. अभिनेत्री गहना वशिष्ठ को पैसों का लालच ही इस गंदे काम की तरफ खींच लाया. छत्तीसगढ़ के चिरमिरी की रहने वाली गहना का असली नाम वंदना तिवारी है.

16 जून, 1988 को जन्मी वंदना तिवारी ने भोपाल से कंप्यूटर साइंस में बीटेक किया था. सन 2012 में जब उस ने मिस एशिया बिकनी कांटेस्ट जीता, तब वह लोगों की नजर में आई थी. उस ने इस प्रतियोगिता में भारत का प्रतिनिधित्व करते हुए सब से ज्यादा अंक हासिल किए थे.  बाद में उस ने मौडलिंग करते हुए करीब 80 विज्ञापनों में अपने जलवे दिखाए. इन में मोंटे कार्लो, फिलिप्स एरेना, शेवरले क्रूज कार, ड्रीम स्टोन ज्वैलरी, पलक साड़ीज आदि मुख्य थे. बाद में वह स्टार प्लस के सीरियल ‘बहनें’ में लीड रोल में नजर आई. क्रिकेट वर्ल्ड कप 2015 के लिए उस ने योगराज सिंह और अतुल वासन के साथ एक न्यूज चैनल पर ऐंकरिंग भी की.

गहना वशिष्ठ ने अपना फिल्मी कैरियर ‘फिल्मी दुनिया’ नामक हिंदी फिल्म से शुरू किया. बौलीवुड फिल्म इंडियन नेवर अगेन निर्भया, दाल में कुछ काला है, लखनवी इश्क, सविता बार्बी, निर्भया, उन्माद और द प्रौमिस में उस ने अभिनय किया. इस के अलावा गहना ने करीब एक दरजन तेलुगू फिल्मों में भी महत्त्वपूर्ण रोल किए. एक स्पैनिश फिल्म में भी उस ने काम किया. वह साउथ के एक नामी अभिनेता की गर्लफ्रैंड भी रही है. वह अल्ट बालाजी की वेब सीरीज ‘गंदी बात’, उल्लू ऐप के ‘मी टू’, अमेजन प्राइम के ‘मिरर द बिटर’, प्राइम फ्लिक्स के भाभीजी घर पर हैं आदि के अलावा ओटीटी प्लेटफार्म न्यूफ्लिक्स आदि पर भी नजर आई. उस ने कई म्यूजिक वीडियो में भी काम किया.

तिरंगा लपेट कर फोटो शूट कराने और मैरीकाम के ओलिंपिक मैडल जीतने पर न्यूड फोटो खिंचवाने के कारण गहना वशिष्ठ विवादों में रह चुकी है. सन 2018 में वह तब भी चर्चा में आई थी, जब उन्होंने बिग बौस की प्रतिभागी अर्शी खान को ले कर दावा किया था कि वे अपनी उम्र कम बताती हैं. गहना ने दावा किया था कि अर्शी ने 50 साल के आदमी से शादी की है और उन के खिलाफ भारत व पाकिस्तान के झंडों के अपमान सहित 10 आपराधिक मामले दर्ज हैं. गहना की कंपनी जीवी स्टूडियों का खेल गहना वशिष्ठ ने जीवी स्टूडियोज के नाम से अपनी प्रोडक्शन कंपनी बना रखी है.

मुंबई पुलिस गहना वशिष्ठ की कंपनी के सामने आए वीडियो को पोर्न बता रही है. वहीं, गहना की कंपनी का कहना है कि जीवी स्टूडियोज की ओर से निर्मित और निर्देशित वीडियो को इरोटिका के रूप में क्लासीफाइड किया जा सकता है. कंपनी का कहना है कि उन्होंने केवल ऐसी फिल्में बनाई हैं, जो कानूनन बनाई जा सकती हैं. पुलिस ने भारत में हार्ड पोर्न और उन के मेकर्स की बनाई फिल्मों के साथ गहना की इरोटिका फिल्मों को मिक्स कर दिया है जबकि इरोटिका, कामुक या बोल्ड फिल्मों के बीच एक कानूनी अंतर है. बी और सी ग्रेड बौलीवुड फिल्मों का अभिनेता तनवीर हाशमी अब तक 40 से ज्यादा फिल्मों में अभिनय कर चुका है.

गुजरात के सूरत के रहने वाले 40 वर्षीय तनवीर ने 20 साल के अपने फिल्मी कैरियर में ‘रात की बात’, ‘जख्मी नागिन’, ‘द रीयल ड्रीम गर्ल’, ‘भीगा बदन’, ‘बेस्ट पार्टनर’, ‘परदा’, ‘गरम’, ‘नाइट लवर’, ‘रेडलाइट’, ‘कामवाली’, ‘रिक्शावाली’, ‘कुंआरा पेइंग गेस्ट’, ‘दूधवाली’ और  ‘की क्लब’ जैसी सैक्सी फिल्मों में काम किया है. तनवीर सूरत के बारदोली इलाके में बंगला किराए पर ले कर पोर्न फिल्में बनाता था. पिछले 20 साल से फिल्मी परदे पर नजर आने के कारण उस की एक खास दर्शक वर्ग में पहचान थी. अपनी इसी पहचान के दम पर वह वेब सीरीज बनाने के बहाने ऐक्टिंग के शौकीन युवकयुवतियों को अपने जाल में फांस कर पोर्न फिल्में बनाता था.

पहले उस ने मुंबई में ही ऐसी कुछ फिल्में बनाई, लेकिन मुंबई में शूटिंग के लिए बंगलों का किराया ज्यादा था. इसलिए वह सूरत और आसपास के इलाकों में कम किराए के बंगले ले कर ऐसी फिल्में बनाने लगा. इस के लिए वह मुंबई से मौडल और युवतियों को सूरत बुलाता था. तनवीर और गहना न्यूफ्लिक्स ओटीटी के लिए भी ऐसी फिल्में बनाते थे. इस के चार लाख से ज्यादा कस्टमर हैं. ओरल सैक्स का मामला तनवीर हाशमी सन 2015 में मुंबई के साकीनाका में हुए ओरल सैक्स कांड से भी जुड़ा हुआ रहा है. उस समय एक मौडल ने आरोप लगाया था कि उस के साथ साकीनाका पुलिस स्टेशन में एक पुलिस इंसपेक्टर ने ओरल सैक्स किया था.

उस समय इस मामले में तनवीर हाशमी सहित एक नामी टीवी सीरियल का प्रोड्यूसर भी पकड़ा गया था. तनवीर उस समय साकीनाका पुलिस स्टेशन के कुछ अधिकारियों का खबरी हुआ करता था. उस समय तनवीर के क्रेडिट कार्ड से ही अंधेरी के एक पांच सितारा होटल में कमरा बुक कराया गया था. होटल के इसी कमरे में पीडि़त मौडल को 2 लाख रुपए के साइनिंग अमाउंट के लिए बुलाया गया था. ऐन वक्त पर मौडल ने उस कमरे में जाने से इनकार कर दिया और अपने बौयफ्रैंड को फोन कर दिया. आरोप लगा कि मौडल को उस का बौयफ्रैंड जब होटल से बाइक पर ले जा रहा था, तो साकीनाका थाना पुलिस ने उन दोनों को अगवा कर लिया.

बाद में एक पुलिस इंसपेक्टर ने एक पुलिस चौकी में मौडल को ले जा कर ओरल सैक्स किया था. इस मामले में आरोपी पुलिस वालों की भी गिरफ्तारी हुई थी. पोर्न फिल्मों का मामला नया नहीं है. मुंबई पुलिस ने कुछ दिन पहले संदीप इंगले नामक एक कास्टिंग डायरेक्टर को गिरफ्तार किया था. वह खुद को फिल्म प्रोड्यूसर भी बताता था और प्रेम के नाम से सैक्स रैकेट भी चलाता था. उस ने सैक्स रैकेट चलाने के लिए कई वेबसाइट बनाई थीं. इन वेबसाइटों को सर्च करने पर लोग आरोपियों से संपर्क करते थे. इस मामले में मुंबई के पांच सितारा होटल से 8 युवतियां मुक्त कराई गई थीं. इन में कुछ युवतियां नामी मौडल थीं.

मध्य प्रदेश की आर्थिक राजधानी इंदौर में भी पिछले साल जुलाई में पोर्न फिल्में बनाने का मामला सामने आया था. इंदौर पुलिस ने मौडल युवतियों की शिकायत पर मिलिंद डावर, अंकित सिंह चावड़ा, रैकेट के सरगना ब्रजेंद्र सिंह गुर्जर, गजेंद्र उर्फ गज्जू उर्फ गोवर्धन चंद्रावत आदि को गिरफ्तार किया था. ये लोग भी बंगलों और फार्महाउसों में पोर्न फिल्में बनाते और युवतियों का देह शोषण करते थे. मुंबई पोर्न फिल्म मामले में गिरफ्तार अभिनेत्री गहना वशिष्ठ के मकान और प्रोडक्शन हाउस की तलाशी में 3 मोबाइल फोन, 2 लैपटौप, 2 हार्ड डिस्क, 5 मैमोरी कार्ड, एक एडाप्टर, एक पेनड्राइव, प्रोडक्शन हाउस की रबर स्टैंप और एक कंपनी व कुछ कलाकारों के साथ एग्रीमेंट से जुड़े 10 करार पत्र सहित कई दस्तावेज मिले हैं.

गहना के एक बैंक खाते में एक आरोपी की ओर से रकम भेजे जाने के सबूत भी मिले हैं. पुलिस की ओर से इस मामले में गिरफ्तार और फरार आरोपियों के 2019 के बाद के बैंक खातों के लेनदेन के अलावा ईमेल, मोबाइल काल, वाट्सऐप चैट आदि की पड़ताल की जा रही है. गहना वशिष्ठ के कारोबारी पति सहित कई मौडल भी पुलिस जांच के दायरे में हैं. इस मामले में कुछ और गिरफ्तारियां होने के साथ बौलीवुड के चौंकाने वाले नए खुलासे होने की संभावना है. crime story

 

 

 

 

Short Kahani in Hindi : बीटेक छात्र ने रचा बैंक डकैती का प्लान

Short Kahani in Hindi : आदमी सोचता कुछ और है और हो कुछ और जाता है. इकबाल ने कंप्यूटर साइंस में बीटेक अकबर को बैंक डकैती की योजना में शामिल तो इसलिए किया था कि काम का बंदा है, बाद में उस का हिस्सा हड़प कर निपटा देंगे. लेकिन ऐसा हो…

अकबर ने बीटेक (कंप्यूटर साइंस) करने के बाद सोचा था कि उसे जल्दी ही कोई न कोई प्राइवेट जौब मिल जाएगी और उस के परिवार की स्थिति सुधर जाएगी. मगर ऐसा कुछ नहीं हुआ. 10 महीने तक कई औफिसों में इंटरव्यू देने के बाद भी उसे नौकरी नहीं मिली. ऊपर से घर की जमापूंजी भी खर्च हो गई. अकबर के परिवार में उस की मां के अलावा 2 छोटे भाई जावेद और नवेद थे, जिन की उम्र 16 और 12 बरस थी. वे भी सरकारी स्कूल में पढ़ रहे थे. घर का खर्च चलाने के लिए अब मां को अपने जेवर बेचने पड़ रहे थे.

ऐसी स्थिति में अकबर समझ गया कि अब उसे कुछ न कुछ जल्दी ही करना पड़ेगा, वरना परिवार के भूखों मरने की नौबत आ जाएगी. अकबर अपने ही विचारों में डूबा सड़कें नाप रहा था, तभी किसी ने उस का नाम ले कर पुकारा. उस ने पीछे मुड़ कर देखा तो चौंक पड़ा, ‘‘अरे इकबाल, तुम!’’ दोनों गर्मजोशी से गले मिले. इकबाल हाईस्कूल में उस का मित्र बना था और 12वीं कक्षा तक साथ था. उसे पढ़नेलिखने में कोई खास दिलचस्पी नहीं थी. मगर अकबर को अपने पिता के कारण बीटेक में दाखिला लेना पड़ा. मगर जब अकबर बीटेक के तीसरे साल में था, तभी उस के पिता की दिल का दौरा पड़ने से मौत हो गई.

अकबर के पिता एक प्राइवेट औफिस में एकाउंटेंट थे. उन के मरने के बाद जो पैसा मिला, वह अकबर की पढ़ाई में लग गया था. 12वीं कक्षा पास करने के बाद इकबाल कहां चला गया, उसे इस बारे में कोई जानकारी नहीं हो पाई. और आज 5 साल बाद इकबाल उस के सामने था. अकबर के बदन पर जहां मामूली कपड़े थे, वहीं इकबाल ने बढि़या सूट पहन रखा था. उस के रंगढंग बदल गए थे. दोनों एक होटल में बैठ कर बातें करने लगे, एकदूसरे को अपनेअपने बारे में बताने लगे. अकबर ने कहा, ‘‘बीटेक करने के बाद मैं एक औफिस से दूसरे औफिस में धक्के खा रहा हूं. यही नहीं, मेरी मां की तबीयत खराब रहती है, उन्हें शुगर की बीमारी है. मां ने एक कंपनी में 2 लाख रुपए फिक्स करा दिए थे और 4 साल बाद 4 लाख रुपए मिलने थे.

‘‘लेकिन वह कंपनी साल भर बाद ही लोगों से करोड़ों रुपए ले कर चंपत हो गई. इस घटना ने मुझे बड़ा विद्रोही बना दिया है. घर का खर्च बड़ी मुश्किल से चल रहा है. मेरी समझ में नहीं आ रहा है कि क्या करूं?’’

‘‘मैं ने भी तेरी तरह बहुत धक्के खाए हैं. कुछ नहीं मिलता इन नौकरियों में. बस, घर की दालरोटी चल सकती है.’’ इकबाल के स्वर में कठोरता शामिल हो गई थी, ‘‘अगर तुम शान से जिंदगी बिताना चाहते हो तो कल शाम को मुझ से मिलो.’’

फिर उस ने अखबार के एक टुकड़े पर कोई पता लिख कर दे दिया. अकबर ने वह पर्ची ले कर अपनी जेब में रख ली. इकबाल आगे बोला, ‘‘मेरे पास एक औफर है. अगर मंजूर हो तो वहीं बता देना और अगर न हो तो तुम अपने रास्ते मैं अपने रास्ते.’’ उस के बाद अकबर और इकबाल अपनेअपने घरों की ओर चल पड़े. अगले दिन इतवार था. अकबर को कहीं इंटरव्यू नहीं देना था इसलिए उस ने इकबाल को आजमाने का फैसला किया और उस के बताए हुए पते पर जा पहुंचा. मकान का गेट इकबाल ने ही खोला और उसे अंदर ले गया. चाय तैयार थी. चाय का कप अकबर को देने के बाद इकबाल ने अपनी बात शुरू की, ‘‘देखो अकबर, मैं जानता हूं कि तुम एक शरीफ आदमी हो मगर अब शराफत का जमाना नहीं रहा. मैं ने भी बहुत धक्के खाए हैं तुम्हारी तरह.

‘‘शायद जिंदगी भर धक्के ही खाता रहता, अगर मुझे नासिर भाई न मिलते. क्या शानदार दिमाग है उन के पास. यकीन करो, मैं उन के साथ रह कर हर महीने एक लाख रुपए कमाता हूं और कभीकभी उस से भी ज्यादा.’’

इकबाल की बात सुन कर अकबर हैरान रह गया, ‘‘एक लाख…वह कैसे?’’

‘‘हम बड़े काम में हाथ डालते हैं. गाडि़यां, बाइक्स छीनते हैं. बड़ीबड़ी दुकानों में डकैती डालते हैं. बंगलों के अंदर घुस जाते हैं. एक महीने में 2-3 वारदातें भी कर लीं तो एक लाख आसानी से बन जाता है,’’ इकबाल बोला.

अकबर सन्न रह गया. वह जानता था कि बेरोजगारी के इस दौर में अपना हक छीनना ही पड़ता है, मगर इकबाल तो उस से भी ऊपर की चीज था. वह बोला, ‘‘मगर यार, इस में तो बहुत खतरा है. पकड़े जाने का और जान जाने का भी.’’

‘‘मेरी जान, खतरे के बगैर कोई खेल नहीं खेला जाता. वैसे हमारी तरह के लोग इसलिए पकड़े जाते हैं कि पुलिस को मुखबिरी हो जाती है या कोई साथी गद्दारी कर जाता है. लेकिन यहां अपने साथ ऐसा कुछ नहीं होता है. क्योंकि नासिर भाई पुलिस में हैं. वे सब संभाल लेते हैं.

‘‘पहले हम सिर्फ 2 लोग थे मगर अब हर वारदात में एक ऐसा बंदा जरूर रखते हैं जो अपने काम में पारंगत हो. जैसे पिछली बार हमारे साथ तिजोरियों का लौक तोड़ने वाला एक माहिर आदमी था,’’ इकबाल ने कहा.

‘‘तो ऐसा एक बंदा स्थायी रूप से क्यों नहीं रख लेते,’’ अकबर ने सुझाव दिया.

‘‘नहीं, हम ऐसा नहीं करते. हमारे ग्रुप की परंपरा है कि एक बंदा सिर्फ एक वारदात में साथ देता है. इस बार खेल बड़ा है, इसलिए भरोसे के आदमी की जरूरत है. हमें कंप्ूयटर का एक माहिर आदमी चाहिए.

‘‘तुम ने कंप्यूटर साइंस में बीटेक किया है. अगर तुम हमारे साथ मिल जाओ तो हमारा काम बड़ी आसानी से हो सकता है. 3-4 करोड़ का खेल है. अगर कामयाब रहे तो 50 लाख तेरे, 50 लाख मेरे और बाकी नासिर भाई के. अगर मंजूर है तो बताओ.’’ इकबाल बोला. 50 लाख की बात सुन कर अकबर की आंखें फैल गईं. अगर उसे कोई छोटीमोटी नौकरी मिल भी गई तो गुजारा भर ही हो पाएगा. और कहां 50 लाख, वह कुछ सोचता हुआ बोला, ‘‘मुझे कुछ वक्त दो.’’

‘‘हां, अभी काफी वक्त है. यह काम एक महीने बाद करना है और ये पैसे रख लो.’’ इकबाल ने 10-15 हजार रुपए निकाल कर अकबर की जेब में ठूंस दिए. फिर वह अकबर से बोला, ‘‘पैसों की परेशानी से दूर रह और अपना पहनावा ठीक कर. लेकिन बात बाहर न जाने पाए.’’

अकबर उस के स्वर में छिपी धमकी को समझ गया था. उस ने ‘हां’ में सिर हिलाया. कुछ देर बाद वह ढेरों सोचों को दिमाग में समेटे अपने घर की ओर चल पड़ा. घर पहुंच कर अकबर ने एक फैसला कर लिया था. अकबर ने मां को कुछ पैसे देते हुए कहा कि उस ने पार्टटाइम जौब जौइन कर ली है. उस के दिए पैसों से घर के हालात में सुधार हुए. मां के चेहरे पर छाए उदासी के बादल छंटने लगे. 3 दिन तक सोचविचार करने के बाद अकबर ने इकबाल के औफर पर हामी भर दी. इकबाल खुश हो गया. मगर इकबाल का औफर इतना आसान नहीं था. फिर भी भूखों मरने से तो अच्छा ही था. वह इकबाल का साथ दे और अपने हालात को सुधारे.

अगले दिन सबइंसपेक्टर नासिर अकबर से मिलने उसी घर में आया. वह आम पुलिस वालों की तरह हट्टाकट्टा था और उस के माथे पर जख्म का निशान था. नासिर के मिजाज में एक अजीब सी सख्ती थी, मगर बात करने का अंदाज नरम था. उस की बातें सुन कर अकबर के अंदर समाया भय लगभग खत्म हो गया था. नासिर ने पूरी प्लानिंग इकबाल के सामने रखते हुए कहा, ‘‘शहर के मेनरोड पर प्राइवेट बैंक की मेन ब्रांच है. यह ब्रांच इसलिए ज्यादा महत्त्वपूर्ण है कि यहां 3 शुगर मिल्स की पेमेंट जमा होती है. गन्ने के सीजन में यहां हर माह 3 से 5 करोड़ रुपए जमा होते हैं.

रकम के हिसाब से यहां सिक्योरिटी भी काफी सख्त है. शहर की एक एजेंसी उस बैंक को सिक्योरिटी उपलब्ध करा रही है. बैंक में 3 सिक्योरिटी गार्ड हैं, 2 बाहर और एक अंदर. उन पर काबू पाना मुश्किल नहीं है. असल समस्या है उस एजेंसी के सिक्योरिटी कैमरे और अलार्म सिस्टम. उन्होंने बैंक के एक कमरे को विधिवत अपना सिक्योरिटी रूम बना रखा है, जहां एजेंसी की एक कर्मचारी लड़की काम करती है. मैं ने उसे खरीद लिया है,’’ नासिर ने गर्व के साथ कहा और आवाज दी, ‘‘शीजा.’’

थोड़ी ही देर बाद कमरे में एक मौडर्न लड़की दाखिल हुई. उस ने जींस पर एक हलकी सी शर्ट पहन रखी थी, जिस में उस के शरीर की कयामत बड़ी मुश्किल से कैद नजर आती थी. अकबर ने चौंक कर देखा. शीजा ने मुसकराते हुए इकबाल और अकबर से हाथ मिलाया. जब शीजा अपनी कुरसी पर बैठ गई तो अकबर ने पूछा, ‘‘नासिर भाई, मेरा एक सवाल है. जब आप के पास शीजा मौजूद है तो फिर मुझे साथ मिलाने की क्या जरूरत थी? काम तो मेरा भी वही है जो शीजा करेगी.’’

अकबर की बात सुन कर नासिर मुसकरा दिया और बोला, ‘‘यार, तुम्हें हमारे ग्रुप की परंपरा तो बताई होगी इकबाल ने. हमारे साथ हर बार अपने काम का माहिर एक बंदा जरूर रहता है और रही शीजा की बात तो वह सिर्फ तुम्हारी मदद करेगी, असल काम तो तुम्हीं करोगे यानी पूरे सिक्योरिटी सिस्टम को नाकारा बनाओगे.

‘‘अगर शीजा यह काम करती है तो जाहिर है कि पुलिस वाले सब से पहले उसी पर हाथ डालेंगे. घटना के बाद इसे कहां हमारे साथ फरार होना है. तुम लोग रिकौर्डिंग गायब करोगे और सिक्योरिटी सिस्टम को नाकारा बनाओगे. बाकी सिक्योरिटी गार्ड्स के लिए मेरे पास एक प्लान है.’’

तभी इकबाल बोल पड़ा, ‘‘मगर भाई, हम नकाब पहन कर जाएंगे तो फिर सिक्योरिटी कैमरों की क्या समस्या?’’

‘‘यार इकबाल, तुम्हें याद नहीं कि पिछली वारदात में तुम्हारा नकाब एक आदमी ने खींच लिया था. इस के अलावा 2-3 वारदातों के दौरान सिक्योरिटी कैमरों में हमारी चालढाल भी रिकौर्ड हुई. इसलिए यह काम करना पड़ेगा. शीजा, तुम बताओ तुम्हारी सिक्योरिटी एजेंसी अपने गार्ड्स को कितनी तनख्वाह देती है?’’ सबइंसपेक्टर नासिर ने इकबाल की वो बात याद दिलाने के बाद शीजा से पूछा.

‘‘ज्यादा से ज्यादा 20-22 हजार.’’ वह मुंह बना कर बोली.

‘‘…इस का मतलब है कि उन्हें आसानी से खरीदा जा सकता है,’’ नासिर ने कहा.

‘‘बिलकुल, बाहर वाले दोनों गार्ड्स खरीदे जा सकते हैं, क्योंकि वे उस नौकरी से तंग हैं. हां, अंदर वाला गार्ड ईमानदार बंदा है, उसे खरीदना मुश्किल है,’’ शीजा के पास पूरी जानकारी थी.

‘‘उस पर हम लोग काबू पा लेंगे,’’ इकबाल बोला.

यह मीटिंग लगभग एक घंटा चली. उन्होंने अपनी योजना के हर पहलू पर ध्यान दिया. उस के बाद वे इस वादे के साथ अपनेअपने घरों की ओर चल दिए कि वे इस प्लान की पूरी तरह रिहर्सल करेंगे. फिर अगले 20 दिन अकबर, इकबाल, शीजा और नासिर उस घर में इकट्ठे हो कर रोजाना एक घंटा अपने काम में लगे रहते. इस दौरान नासिर ने बैंक के बाहर वाले दोनों गार्डों को अपने साथ मिला लिया था. वह एक चालाक पुलिस वाला था और अपना हर काम बखूबी निकालना जानता था. ठीक एक महीने बाद आखिर वह दिन आ पहुंचा, जिस की तैयारी हो रही थी.

सर्दियों का सूरज अपनी नर्म धूप लिए चमक रहा था. प्राइवेट बैंक की उस मेन ब्रांच में लंच का समय हो गया था लेकिन आज दोनों गार्ड्स गेट पर नहीं थे. थोड़ी देर पहले एक गार्ड खाना लेने के लिए चला गया था जबकि दूसरा गार्ड वाशरूम में था.

ठीक उसी समय एक सुजुकी कार बैंक के गेट पर आ कर रुकी. उस में सवार तीनों लोगों ने अपने चेहरों पर नकाब चढ़ा रखी थी और उन के हाथों में आधुनिक हथियार थे. वे दौड़ते हुए आगे बढ़े. बैंक के अंदर घुसते ही उन्होंने गेट बंद कर लिया. अंदर मौजूद सिक्योरिटी गार्ड्स ने जब उन्हें रोकने की कोशिश की तो नासिर द्वारा चलाई गई गोली उस की गरदन में सुराख कर गई. नासिर मैनेजर के औफिस की ओर बढ़ा जबकि इकबाल कैशियर के काउंटर की तरफ बढ़ गया था. अकबर दौड़ता हुआ कंप्यूटर रूम की ओर बढ़ा. वहां शीजा के साथ एक अन्य आदमी बैठा था. उस ने उस के सिर पर पिस्तौल के दस्ते का वार कर के उसे बेहोश कर दिया.

कुछ देर बाद अकबर और शीजा ने सभी सिक्योरिटी कैमरों और अलार्म को निष्क्रिय कर दिया और उन की रिकौर्डिंग नष्ट कर दी. इस के बाद अकबर ने शीजा के सिर पर पिस्तौल के दस्ते का वार कर के उसे भी बेहोश कर दिया. ठीक 10 मिनट बाद जब तीनों लोग सफलतापूर्वक डकैती डाल कर बाहर निकले तो नासिर के शिकंजे में मैनेजर की गरदन थी जबकि अकबर और इकबाल ने नोटों से भरे बैग उठा रखे थे. नासिर की पिस्टल की नाल मैनेजर की कनपटी से लगी हुई थी. बाहर के सिक्योरिटी गार्डों ने उन्हें देखते ही अपनी बंदूकें फेंक दीं. अगर वे गोली चलाते तो मैनेजर की जान जा सकती थी. तीनों लोग हवाई फायर करते हुए बाहर निकले.

मैनेजर को गाड़ी में बिठा कर इकबाल ने गाड़ी आगे बढ़ा दी फिर 2-3 किलोमीटर का रास्ता तय करने के बाद उन्होंने एक सुनसान जगह पर मैनेजर को गाड़ी से धक्का दे कर गिरा दिया और आगे बढ़ चले. गाड़ी चोरी की थी, जो उन लोगों ने शहर से बाहर पहुंच कर एक जंगल में खड़ी कर दी. फिर आगे का रास्ता तीनों ने अलगअलग तय किया. नोटों के दोनों बैग नासिर अपने साथ ले गया था.

बैंक में पड़ी डकैती का मामला 3 हफ्तों बाद ठंडा पड़ गया. डकैतों के चेहरे पर नकाब होने के कारण कोई भी आदमी उन्हें नहीं पहचान पाया. इस के अलावा डकैतों ने ऐसा कोई सबूत घटनास्थल पर नहीं छोड़ा था कि उन का सुराग लगाया जा सकता. वैसे जांच करने वाले पुलिस इंसपेक्टर ने बाहर के दोनों सिक्योरिटी गार्डों पर शक जाहिर किया था, मगर वह उन से कुछ उगलवा नहीं सका. ठीक एक महीने बाद जाड़े की शुरुआत हो गई थी. ऐसी ही एक शाम  को अकबर उस किराए के मकान में अपना हिस्सा लेने के लिए पहुंचा, जो नासिर और इकबाल का अड्डा था. यह कार्यक्रम भी पहले से तय था. दोनों लोग कमरे में मौजूद थे. उन्होंने अकबर का स्वागत बड़ी गर्मजोशी से किया. वे खूब खापी कर बैंक डकैती की कामयाबी का जश्न मना रहे थे.

उन्होंने अकबर से भी शराब पीने को कहा, लेकिन उस ने इनकार कर दिया. थोड़ी देर बाद नासिर ने इकबाल से कहा, ‘‘अकबर को जल्दी घर जाना होगा. जाओ, अंदर से बैग उठा लाओ.’ इकबाल बैग उठा लाया. तब नासिर ने कहा, ‘‘कुल 2 करोड़ 75 लाख हाथ में आए हैं. दोनों गार्ड्स के हिस्से के 5-5 लाख उन्हें पहुंचा दिए गए हैं. 25 लाख शीजा के और 50 लाख तुम्हारे हैं. बाकी मेरा और इकबाल का हिसाब है.’’

तभी अचानक अकबर की नजर अपने पीछे खड़े इकबाल पर पड़ गई, जिस ने पिस्टल निकाल कर अकबर की ओर तान दिया. यह देख कर अकबर का कलेजा मुंह को आ गया. वह हैरत से बोला, ‘‘यह क्या कर रहे हो इकबाल भाई. नासिर साहब, यह सब क्या है?’’

नासिर और इकबाल मुसकरा उठे.

‘‘हमारे गु्रप की परंपरा है कि हम हर वारदात में अपना साथी बदल देते हैं. तिजोरियों के माहिर की लाश समुद्र में डुबो दी थी. उस से पहले एक अन्य घटना में गाडि़यों का सामान चुराने वाला हमारे साथ था. उस की लाश इसी मकान के आंगन में दफन है.

‘‘अभी हाल में हम ने सरकारी खजाना लूटा था, जिस के लिए राइफल के एक निशानेबाज की जरूरत थी. बाद में हम ने उसे भी यहीं दफना दिया. यहां ऐसे ही कई हुनरमंद लोग दफन हैं. लेकिन अब मैं सोच रहा हूं कि तुम्हारी लाश का क्या किया जाए.

खैर, हम आपस में सलाह कर लेंगे. शीजा तो हमें 2-4 रात जन्नत की सैर कराएगी, फिर उस के बारे में सोचेंगे कि क्या करना है.’’

नासिर की बात सुन कर अकबर के रोंगटे खड़े हो गए. उस ने बारीबारी से नासिर और इकबाल से दया की भीख मांगी. लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. अकबर शीजा के बारे में सोच रहा था. उस ने डर के मारे अपनी आंखें बंद कर लीं. फिर धांय की आवाज के साथ गोली चली. लेकिन अकबर को दर्द का अहसास नहीं हुआ. मगर इकबाल की चीख कमरे में गूंज उठी. उस के दाएं हाथ में गोली लगी थी और पिस्टल उस के हाथ से छूट कर दूर जा गिरी थी. नासिर ने चौंक कर पीछे देखा. वहां रिवौल्वर हाथ में लिए शीजा खड़ी मुसकरा रही थी.

‘‘अकबर सौरी, मुझे कुछ देर हो गई. तुम ठीक तो हो न?’’ वह रिवौल्वर से इकबाल और नासिर को कवर करती हुई बोली.

शीजा को इस रूप में देख कर नासिर बौखला उठा था, जबकि इकबाल अपने जख्मी हाथ का खून रोकने की कोशिश कर रहा था. अकबर बोला, ‘‘हांहां, मैं ठीक हूं.’’

फिर वह आगे बढ़ कर शीजा के गले लग गया. तभी नासिर गुर्रा कर बोला, ‘‘ठीक है, खूब गले मिलो. लेकिन यहां से बच कर नहीं जा पाओगे.’’

‘‘यह बात तुम ने गलत कही, अभी देख लेना. खैर, तुम ने अपनी परंपरा बता दी, अब मेरी भी परंपरा सुन लो. मैं जिन पर शक कर लेता हूं, उन्हें उन की गलती की सजा जरूर मिलती है.’’ अकबर ने कुटिल स्वर में कहा.

नासिर बोला, ‘‘कौन सजा देगा मुझे… तुम?’’

फिर उस ने ठहाका लगाते हुए अपनी जेब की ओर हाथ बढ़ाया, तभी पुलिस कमिश्नर जफर जीलानी तथा कई पुलिस वाले कमरे में घुस आए.

‘‘हैंड्सअप! मैं तुम्हें दूंगा सजा नासिर. कानून तुझे सजा देगा नमकहराम. तूने पुलिस विभाग को बदनाम कर दिया.’’ पुलिस कमिश्नर जफर जीलानी ने गुस्से से कहा.

पुलिस वाले नासिर और इकबाल को गिरफ्तार कर चुके थे. इकबाल और नासिर की समझ में नहीं आ रहा था कि यह क्या हो गया. दरअसल, अकबर और शीजा एक ही कालेज में 12वीं तक साथसाथ पढ़े थे तथा एकदूसरे से प्यार करते थे. लेकिन शीजा के पिता की अचानक मौत हो जाने पर उसे अपने गांव जाना पड़ा और वह वहीं रह कर अपने परिवार का भरणपोषण करने लगी थी जबकि अकबर ने बीटेक कंप्यूटर साइंस में दाखिला ले लिया था. इसी कारण दोनों बिछुड़ गए थे. जब नासिर ने शीजा का अकबर से परिचय कराया तो वे एकदूसरे से अपरिचित बने रहे ताकि इकबाल और नासिर को कोई गलतफहमी न होने पाए. लेकिन वे उस के बाद एकदूसरे से बराबर मिलते रहे. दोनों को पैसों की जरूरत थी, इसलिए वे नासिर और इकबाल का साथ देने को तैयार हो गए.

लेकिन बैंक डकैती के कुछ दिनों बाद जब बैंक के दोनों गार्ड्स की अचानक हत्या हो गई तो शीजा और अकबर को अपने बारे में सोचना पड़ा. नासिर और इकबाल ने अभी पैसों का बंटवारा नहीं किया था और कुछ दिनों बाद उन्हें उसी मकान में बुलाया था लेकिन अकबर को शक हो गया था कि वे लोग उसे और शीजा को नुकसान पहुंचाएंगे. इसलिए अकबर और शीजा पुलिस कमिश्नर जफर जीलानी से मिले जो शीजा के दूर के मामा लगते थे. उन्होंने सारी बात जफर जीलानी को बता दी. फिर शीजा और अकबर ने वैसा ही किया, जैसा जफर जीलानी ने उन से कहा था. इस घटना के बाद कई डकैतियों और लूटपाटों का परदाफाश हो गया तथा काफी मात्रा में रुपए और जेवरात बरामद हुए.

कई लोगों के गायब होने की गुत्थी भी सुलझ गई, जिन्हें नासिर और इकबाल ने मौत के घाट उतार दिया था. पुलिस कमिश्नर जफर जीलानी शीजा और अकबर के व्यवहार तथा हिम्मत से बहुत खुश हुए. उन्होंने दोनों को वादामाफ गवाह बना दिया. जल्दी ही इकबाल और नासिर को सजा सुना दी गई. जबकि शीजा और अकबर को पुलिस के साइबर विभाग में नौकरी मिल गई. Short Kahani in Hindi

Short Story : खुद से शादी करने वाली मेग की अनोखी कहानी

Short Story  : सन 2013 में कंगना रनौत की एक सुपरहिट फिल्म आई थी ‘क्वीन’, जिसे नैशनल अवार्ड भी मिला था. इस फिल्म में कंगना का एक डायलौग था, ‘मैं इंडिया से आई हूं, राजौरी. राजौरी सुना है? अपने हनीमून पर अकेली आई हूं.’ उस समय यह डायलौग कुछ लोगों को अच्छा लगा था, कुछ को अटपटा. फिर भी पसंद किया गया, फिल्म तो पसंद थी ही.

अब इस से भी आगे बढ़ कर एक मामला सामने आया है. अमेरिका के अटलांटा की एक लड़की मेग ने खुद से ही प्यार किया और खुद से ही शादी का फैसला कर लिया. यहां तक की खुद की वेडिंग सेरेमेनी भी अरेंज की. यह फिल्मी नहीं, हकीकत की जिंदगी की कहानी है. दरअसल, मेग 2020 में अपने बौफ्रैंड से हैलोवीन में शादी करने वाली थी, लेकिन अचानक उस का इरादा बदल गया और 35 साल की मेग ने खुद से ही शादी कर ली. उस ने अपनी मैरिज सेनेमनी पर 1000 यूरो (1.02 लाख रुपए) भी खर्च किया.

अपनी शादी में मेग ने अपने दोस्तों और परिवार के लोगों को भी बुलाया. शादी में मेग ने रिंग भी पहनीऔर केक भी काटा. इस के लिए मेग ने सामने एक बड़ा शीशा रखा और खुद को रिंग पहनाई. फिर शीशे में ही खुद को किस किया. मेग का कहना था, ‘खुद से शादी करना लोगों से बहुत आगे बढ़ जाना है. साथ ही यह भी बताना है कि चीजों को एक अलग नजरिए से देखने की जरूरत है. मैं सिर्फ अपनी खुशी के बारे में सोच रही हूं.’ वाकई मेग का फैसला और यह कदम चौंकाने वाला है. Short Story