Short Stories : पिता ने शादी की शर्त रखी – बेटी से शादी करनी है तो सैनिक पठान से लड़ना होगा

Short Stories : जैसलमेर रियासत के मंत्री महबूब खान की बेटी रेशमा ठाकुर विजय सिंह से इतनी प्रभावित हुई कि उस ने उन से शादी करने का फैसला कर लिया. लेकिन महबूब खान ने रेशमा से शादी के लिए सैनिक पठान खान और ठाकुर विजय सिंह के बीच युद्ध कराने की ऐसी शर्त रखी कि…

उन दिनों रेगिस्तान में पानी कुंओं से निकाल कर पीया जाता था. उसी पानी से पशुधन के साथ गांव, कस्बों एवं नगरों के लोगों की भी प्यास बुझती थी. युवतियां एवं बहुएं कुएं से पानी भर कर घर ले जाती थीं. दिनरात लोग पानी के जुगाड़ में रहते थे. शाहगढ़ के कुंए के पनघट पर बारात रुकी थी. बारात दीनगढ़ के जागीरदार ठाकुर मोहन सिंह की थी. मोहन सिंह 500 बारातियों के साथ शाहगढ़ के ठाकुर खेतसिंह की बेटी दरियाकंवर से ब्याह रचाने आए थे. जानी डेरा (बारात के रुकने का स्थान) कुंए के पनघट के पास था. पनघट पर गांव की महिलाएं सिर पर मटके रख कर पानी ले जा रही थीं.

बारात में तमाम गांवों के ठाकुर, जागीरदार आए हुए थे. इस बारात में जैसलमेर रियासत के तमाम गांवों के ठाकुर शामिल हुए थे. ठाकुर मोहन सिंह ने अपनी शादी में तिजौरियों के मुंह खोल दिए थे. दीनगढ़ में 7 दिन तक लगातार खुला रसोड़ा चला. गलीगली में खातिरदारी हुई. सारा दीनगढ़ नाचगाना, रागरंग में डूब गया था. प्रभावशाली और अत्यधिक धनी व्यक्ति ऐसे अवसर पर धन बहाने में अपनी शानोशौकत समझता है. मोहनसिंह ने भी यही किया था. दीनगढ़ दुर्ग से बारात शाहगढ़ के लिए रवाना हुई. सोने की मोहरे उछाली गईं. मार्ग के दोनों ओर भीड उमड़ पड़ी. सब से आगे रियासत के नामीगिरामी मांग ठाहार शहनाई नौबत बाजे बजाते निकले. फिर मंगल कलश ले कर बालिकाएं.

पीछे मंगल गीत गाती महिलाएं. उन के बाद सजेधजे घोड़ों पर राज्य के हाकिम, ठाकुर, अमीर उमराव चल रहे थे. उन के पीछे तमाम बाराती ऊंटों पर सवार थे. बारात के पड़ावों की जगह पहले से तय थीं. वहीं खानेपीने और रागरंग का पूरा इंतजाम था. सारे रास्ते बाराती हो या कोई और सब के लिए रसोड़ा खुला था. रास्ते के गांवों में जबरदस्त हलचल थी. दूरदूर से लोग बारात देखने आ रहे थे. दोपहर बाद बारात शाहगढ़ पहुंची तो उस का भव्य स्वागत हुआ. बारातियों, घोड़ों और ऊंटों को पानी की परेशानी न हो इसलिए उसे पनघट के पास ठहराया गया. खानेपीने की अच्छी व्यवस्था थी. ऊंटघोड़ों के लिए कोठाखेली भर दी गई थीं. जितना पानी कम पड़ता उतना ही कुएं से खींच कर भर दिया जाता था.

दिन अस्त होने को था. बारात में हमीरगढ़ के ठाकुर विजय सिंह भी पधारे थे. विजय सिंह की उम्र यही कोई 22-23 बरस थी. विजय सिंह के पिता सुल्तान सिंह का थोड़े समय पूर्व निधन हो चुका था. पिता के निधन के बाद विजय सिंह को हमीरगढ़ का ठाकुर घोषित किया गया था. गौर वर्ण विजय सिंह का बलिष्ठ सुंदर साहसी युवक था. वह अस्त्रशस्त्र चलाने के साथ मल्लयुद्ध में भी निपुण था. हमीरगढ़ के आसपास बीस कोस में विजय सिंह जैसा कोई योद्धा नहीं था. ऐसा योद्धा बारात में हो और उस की चर्चा न हो यह संभव नहीं था. विजय सिंह की वीरता और ताकत की जो बातें शाहगढ़ के जानी डेरे में हो रही थीं. वह शाहगढ़ के लोगों ने भी सुनी.

उन्होंने यह बातें अपने घर जा कर भी सुनाई. तब बलिष्ठ ठाकुर विजय सिंह की शाहगढ़ में भी चर्चा होने लगी. यह चर्चा रेशमा ने भी सुनी. रेशमा शाहगढ़ के ठाकुर खेतसिंह की पुत्री दरियाकंवर की सहेली थी. रेशमा के पिता महबूब खान जैसलमेर रियासत में मंत्री थे. महबूब खान भी दिलेर व ताकतवर व्यक्ति थे. वह शाहगढ़ के रहने वाले थे और रियासत के उन गिनेचुने व्यक्तियों में थे, जो राजा के करीबी थे. रेशमा और दरियाकंवर हमउम्र थीं, साथ ही खास सहेलियां भी. दोनों अलगअलग जातिधर्म की जरूर थीं मगर दोनों धर्म से ऊपर इंसान को महत्त्व देती थीं. रेशमा मानती थी कि जब जीव जन्म लेता है, उस समय वह किसी धर्म का नहीं होता.

जीव का जन्म जिस घर में होता है उसे उसी धर्म से जोड़ दिया जाता है. राजपूत के घर पैदा हुआ तो राजपूत कहलाता है, मुसलमान के घर पैदा हुआ तो मुसलिम कहलाएगा. रेशमा ने ठाकुर विजय सिंह की बहादुरी के चर्चे सुने तो उस का मन उन्हें देखने को व्याकुल हो उठा. रेशमा का घर ‘जानी डेरे’ के पास ही था. उस के दिलोदिमाग पर विजय सिंह से मिलने का भूत सवार हो गया. वह अपनी 2-3 सहेलियों के साथ दरियाकंवर के घर से अपने घर आ गई. वहां रेशमा और उस की सखियों के अलावा कोई नहीं था. रेशमा ने अपने छोटे भाई के हाथ एक पत्र विजय सिंह के पास भेजा. विजय सिंह ने पत्र पढ़ा और जानी डेरे से बाहर आ कर पास वाले घर की ओर देखा, तो उन्हें झरोखे में एक खूबसूरत नवयौवना बैठी दिखाई दी.

वह बला की खूबसूरत थी. गोरी अप्सरा सी सुंदरी, पीली चुनर ओढे़ केशर की बेटी जैसी. अस्त होते सूरज की किरणों ने उस पर अपनी आभा बिखेर कर पीला रंग चढ़ा दिया था. ठाकुरसा ने आंखें मलीं. फिर देखा. सच! एकदम सच! ठाकुर विजय सिंह की आंखों से रेशमा की आंखें चार हुईं, तो दोनों का निगाहें हटाने का मन नहीं हो रहा था. विजय सिंह के रूपयौवन एवं बलिष्ठ शरीर पर रेशमा पहली नजर में ही मर मिटी. रेशमा ने मन ही मन तय कर लिया कि यही उस के सपनों का राजकुमार है. शादी करूंगी तो इसी से वरना ताउम्र कुंवारी रह लूंगी. किसी और से ब्याह नहीं करूंगी.

रेशमा ने हाथ से इशारा किया तो ठाकुरसा उस के आकर्षण में बंधे उस के पास चले आए. रेशमा की सखियां दूसरे कक्ष में छिप गई थीं. रेशमा ने विजय सिंह को बिठाया. दोनों आमनेसामने बैठे थे. मगर बोल किसी के मुंह से फूट नहीं रहे थे. काफी देर तक दोनों अपलक एकदूसरे को निहारते रहे. फिर हिम्मत कर के रेशमा के मुंह से कोयल सी मीठी वाणी निकली, ‘‘आप का स्वागत है, हुकुम.’’

‘‘जी, धन्यवाद.’’ विजय सिंह ने कहा.

‘‘आज शाहगढ़ में तो आप के ही चर्चे हैं. दोपहर में जब से बारात आई है, तब से सब के मुंह पर आप की वीरता के ही किस्से हैं. ऐसे में मैं भी आप से मिलने को व्याकुल हो गई. तभी छोटे भाई के साथ संदेश भिजवाया था मिलने को?’’ रेशमा बोली.

‘‘आप ने बुलाया और हम चले आए. अब बताएं क्या कुछ कहना है?’’ ठाकुर सा ने कहा.

‘‘मेरी बचपन से एक ही तमन्ना है कि मैं अपना जीवनसाथी स्वयं चुनूं. मैं आप से ब्याह करना चाहती हूं…’’ एक ही सांस में कह गई रेशमा. विजय सिंह उसे देखते रह गए. उन से कुछ कहते नहीं बन रहा था. तभी रेशमा बोली, ‘‘आप राजपूत हैं और मैं मुसलमान. मगर प्यार करने वाले जातिधर्म नहीं देखते. मैं ने मन से आप को पति मान लिया है. अब आप को जो फैसला लेना हो लीजिए. मगर इतना जरूर ध्यान रखना कि मैं शादी करूंगी तो सिर्फ आप से. वरना जीवनभर कुंवारी रहना पसंद करूंगी. दुनिया के बाकी सब मर्द आज से मेरे भाई बंधु?’’ रेशमा ने लरजते होठों से कहा.

रेशमा की बात सुन कर विजय सिंह अजमंजस में पड़ गए. वह तय नहीं कर पा रहे थे कि क्या जवाब दें रेशमा को. वह तो मन से उन्हें पति मान चुकी है. मृगनयनी रेशमा की सुंदरता पर वह भी मर मिटे थे. ऐसी सुंदरी उन्होंने अब तक नहीं देखी थी. ठाकुर सा चकित थे, इस छोटे से गांव शाहगढ़ में इतनी सुंदर लड़की. वह भी सब से अलग. इस में कुछ तो है. यह मुसलमान और मैं राजपूत ठाकुर. धर्म की दीवार आड़े आ रही थी. इस कारण ठाकुर सा ने अगली सुबह तक जवाब देने को कहा और विदा ले कर जानी डेरे पर आ गए. विजय सिंह के जानी डेरे लौटते ही रेशमा की सहेलियां रेशमा के पास आ गईं. वह उदास सी थी. सोच रही थी कि अगर विजय सिंह ने उस का प्रेम प्रस्ताव ठुकरा दिया तो वह कैसे जिएगी उन के बिना.

रेशमा की यह हालत उस की सहेलियों ने देखी तो धापू बोली, ‘‘रेशमा तुम्हारा हंसता चेहरा ही अच्छा लगता है. तुम्हारे चेहरे पर यह उदासी अच्छी नहीं लगती. भरोसा रखो. सब ठीक ही होगा.’’

‘‘धापू, तुम्हें बता नहीं सकती दिल खोल कर कि मैं आज एक पहर में ही कैसे ठाकुरसा के प्यार में पगला गई. अगर ठाकुर सा ने प्यार स्वीकार न किया तो कल इस समय तक मैं शायद जिंदा नहीं रहूंगी. मैं उन से इतनी मोहब्बत करने लगी हूं कि शायद किसी ने कभी किसी से नहीं की होगी?’’

रेशमा ने दिल की बात कही. तब धापू और अगर सहेलियों ने रेशमा को दिलासा दी कि सब ठीक होगा. उसे उस का सच्चा प्यार जरूर मिलेगा. इस के बाद सहेलियां रेशमा को दिलासा देती हुई शादी वाले घर ले गईं. दूल्हे मोहनसिंह की शादी दरियाकंवर से हो गई. चंवरी में खूब चांदी के सिक्के और सोने की मोहरें उछाली गईं. शादी धूमधाम से संपन्न हो गई. दरियाकंवर को प्रियतम के रूप में मोहन मिल गया. वह खुशी से फूली नहीं समा रही थी. वहीं रेशमा बीतती हर घड़ी के साथ उदास होती जा रही थी. उसे यह सवाल परेशान कर रहा था कि ठाकुर सा विजय सिंह उसे क्या जवाब देंगे. अगर ठाकुर सा ने उस का प्रेम प्रस्ताव ठुकरा दिया तो… रेशमा सारी रात इसी उधेड़बुन में रही.

सुबह का सूरज निकला. रेशमा नहाधो कर तैयार हुई. नहाने के बाद रेशमा का रूप सौंदर्य निखर उठा. वह ताजे गुलाब सा खिल रही थी. सब लोग बारात की विदाई में जुट गए. उधर विजय सिंह ने अपने कुछ खास ठाकुरों से रेशमा के प्रेम प्रस्ताव के बारे में बात की. विजय सिंह ने उन्हें बताया कि वह बहुत सुंदर हैं. उस की सुंदरता पर मैं भी मर मिटा हूं. मगर दोनों के मिलन में बांधा है दोनों का धर्म. वह मुसलिम है. विजय सिंह को ठाकुरों ने कहा कि प्यार करने वाले जातिधर्म की दीवार तोड़ देते हैं. इतिहास गवाह है कि कई राजामहाराजाओं और ठाकुरों ने ऐसे विवाह किए हैं. अगर वह भी रेशमा से प्यार करने लगे हैं तो उस से बेझिझक ब्याह कर सकते हैं. रेशमा शादी के बाद ठकुरानी सा बन जाएगी.

इस के बाद विजय सिंह ने प्रण कर लिया कि वह शादी करेंगे तो सिर्फ रेशमा से वरना किसी से नहीं. बारात के लिए नाश्ता लाया गया. मगर विजय सिंह ने नाश्ता नहीं किया. उन की भूखप्यास मिट गई थी. वह जानी डेरे से निकल कर उसी झरोखे की तरफ देखने लगे. जिस झरोखे से कल उन्हें रेशमा का दीदार हुआ था और फिर उस के इशारे पर उसे मिलने गए थे. विजय सिंह उसी झरोखे की तरफ अपलक देख रहे थे कि झरोखे में रेशमा प्रकट हुई. वह अपने प्रियतम की ‘हां’ या ‘न’ का इंतजार कर रही थी. विजय सिंह को देखते ही रेशमा के दिल को सुकून सा मिला. उस ने इशारा किया कि चले आओ. विजय सिंह मस्तानी चाल से चल कर रेशमा से जा मिले.

दोनों आमनेसामने बैठ गए. रेशमा के सब्र का बांध टूट रहा था. वह बोली, ‘‘क्या सोचा हुकुम?’’

ठाकुरसा रेशमा के चेहरे को पढ़ कर बोले, ‘‘आप जैसी सुंदरी को अपना जीवनसाथी कौन अभागा नहीं बनाएगा. मैं ने बहुत सोचा और अपने समाज के लोगों से रायमशविरा भी किया. अंतिम निर्णय यह है कि मैं तुम्हारा प्रेम निमंत्रण स्वीकार करता हूं.’’

सुन कर रेशमा का दिल बागबाग हो गया. वह अपनी जगह से लगभग उछलते हुए विजय सिंह के सीने से जा लगी. विजय सिंह ने उसे अपने बाहुपाश में जकड़ लिया. काफी देर तक दो दिल एकदूजे से मिल कर धड़कते रहे. ठाकुर सा ने रेशमा का माथा चूम लिया. दोनों बहुत खुश थे. जब दोनों अलग हुए तो विजय सिंह बोले, ‘‘रेशमा तुम्हारे घर वाले यह रिश्ता मंजूर कर तो लेंगे न?’’

‘‘मैं जो करूंगी वही होगा, मेरे अब्बा और अम्मी मेरी खुशी में ही खुश रहने वाले हैं. आज तक मैं ने उन से जो मांगा वह दिया है. वे मेरी पंसद पर नाज करेंगे और खुशीखुशी आप के साथ ब्याह कर विदा कर देंगे.’’ वह बोली.

‘‘तो ठीक है. हम आप से विवाह जरूर करेंगे. हमें चाहे अपने समाज के लोगों का समर्थन मिले न मिले. इस की कीमत हमें भले ही अपनी जान दे कर चुकानी पड़े.’’ विजय सिंह ने कहा.

‘‘ऐसा न कहिए, हुकुम.’’ रेशमा ने अपना कोमल हाथ विजय सिंह के होंठों पर रख दिया. विजय सिंह और रेशमा ने काफी समय साथ गुजारा और फिर अगली बार मिलने के वादे के साथ जुदा हो गए. बारात वापस चली गई. विजय सिंह भी बारात के साथ रवाना हो गए, मगर वह अपना दिल रेशमा के पास छोड़ गए थे.

विजय सिंह आधे रास्ते से ही अपने घर हमीरगढ़ लौट गए. मगर उन का मन हमीरगढ़ में नहीं लग रहा था. उन के मन में तो सिर्फ रेशमा बसी थी. उधर रेशमा का भी कुछ ऐसा ही हाल था. उस की सहेलियां उसे दिलासा देती थीं कि राजपूत वचन के पक्के होते हैं. ठाकुरसा उसे ब्याहने जरूर आएंगे. ऐसे ही समय का पहिया घूमने लगा. रेशमा से बिछुड़े विजय को एक पखवाड़े से ज्यादा हो चुका था. दोनों एकदूसरे को दिन में हजारों बार याद करते थे. मगर कर नहीं सकते थे. एक रोज रेशमा गुमसुम सी बैठी थी कि उस की अम्मी ने उसे पुकारा.

‘‘रेशमा ओ रेशमा…’’ मगर रेशमा को तो जैसे होश ही नहीं था. वह विजय सिंह के खयालों में इस कदर खोई हुई थी कि उसे अम्मी की आवाज सुनाई नहीं पड़ी. अम्मी ने रेशमा को लगभग झिंझोड़ते हुए कहा, ‘‘मैं आवाज पर आवाज दे रही हूं. मगर तुम्हें सुनाई नहीं दे रहा. किस खयाल में खोई हुई हो. बता तो सही बेटी?’’

रेशमा जैसे नींद से जागी. ‘‘कुछ नहीं, ऐसे ही अम्मी जान किसी की याद में खोई थी.’’ रेशमा ने कहा. उस की अम्मी ने पूछा, ‘‘किस की याद में इतना खोई थी कि मां की आवाज तक सुनाई नहीं दी. कुछ दिनों से देख रही हूं कि तुम गुमशुम सी हो. क्या बात है बेटी बताओ तो सही.’’

तब रेशमा ने अपनी मां को सारी बात बता कर कहा, ‘‘मैं विजय सिंह को मन से अपना पति मान चुकी हूं. इस जन्म में तो वो ही मेरे सब कुछ हैं. अम्मी, मेरा प्यार सच्चा है. तुम मुझ से प्यार करती हो तो मेरा ब्याह विजय सिंह से करा दो. इस के बाद मैं तुम से कभी कुछ नहीं मांगूगी?’’ रेशमा ने रोते हुए कहा. मां ने बेटी से यह सब सुना तो वह स्तब्ध रह गईं. बेटी को पुचकारते हुए बोलीं, ‘‘बेटी, यह क्या कह रह हो तुम. जो संभव नहीं, वह कैसे मिलेगा. मैं नहीं जानती. मगर सोचने का वक्त दो. देखती हूं, क्या कुछ हो सकता है.’’

इस के बाद रेशमा की मां ने जैसलमेर से शाहगढ़ लौटे अपने पति महबूब खान से एकांत में इस विषय पर चर्चा की. महबूब बहुत खान समझदार थे. वह जैसलमेर रियासत में मंत्री थे. उन्होंने दुनिया देखी थी. वे जानते थे कि प्यार करने वाले जान तक कुरबान कर सकते हैं. ऐसे में उन्होंने ठंडे दिमाग से काम लेते हुए अपनी बेगम से कहा. ‘‘सुबह इस बारे में हम रेशमा से बात करेंगे.’’

रात भर महबूब खान सोचते रहे. क्योंकि महबूब खान ने पठान को वचन दिया था कि वे अपनी बेटी रेशमा से उस का विवाह करेंगे. पठान ने कई बार अपनी जान पर खेल कर मंत्री महबूब खान की जान बचाई थी. पठान सैनिक था. उस ने महबूब खान की सुरक्षा में कभी कोरकसर नहीं रखी थी. पठान सुंदर बांका जवान था. वह अस्त्रशस्त्र चलाने में माहिर था. साथ ही मल्लयुद्ध में भी निपुण था. महबूब खान करें तो क्या करें वाली पशोपेश में फंसे थे. एक तरफ बेटी का प्यार. वहीं दूसरी तरफ उन का स्वयं का दिया पठान को वचन. वह रात भर सोच कर भी किसी नतीजे पर नहीं पहुंच सके.

सुबह उन्होंने अपनी बेगम और बेटी रेशमा को एकांत कक्ष में बुला कर बात की. महबूब खान ने रेशमा से कहा, ‘‘बेटी, मेरे कई बार प्राण जातेजाते बचे थे. जानती हो, प्राण मेरे अंगरक्षक सैनिक पठान ने अपनी जान पर खेल कर बचाए.

‘‘मैं ने उस के इन वीरता भरे कदमों से खुश हो कर उसे वचन दिया है कि रेशमा से उस का विवाह करूंगा. अब मेरी इज्जत तुम्हारे हाथ में है. तुम चाहो तो मेरा वचन कायम रह सकता है. अगर मैं वचन नहीं निभा सका तो मैं प्राण दे दूंगा?’’ कहतेकहते महबूब खान की आंखें भर आईं. रेशमा कहे भी तो क्या. वह तो मन से विजय सिंह को अपना सर्वस्व मान चुकी थी. ऐसे में वह अपने पिता के वचन का मान कैसे रखती. अगर पिता के वचन का मान रखती तो उस का प्यार विजय सिंह उसे धोखेबाज ही कहता. रेशमा ने विजय सिंह के सामने उन की प्रशंसा सुन कर प्रेम प्रस्ताव रखा था. उस के प्रेम प्रस्ताव को विजय सिंह ने स्वीकार भी कर लिया था और उस से शादी का वादा किया था.

अब यदि वह पिता के वचन को निभाते हुए पठान से ब्याह करती है तो विजय सिंह के दिल पर क्या गुजरेगी. वह गुमसुम बैठी सोचती रही. वह कुछ नहीं बोली. तब महबूब खान ने कहा, ‘‘कुछ तो बोल बेटी. इस धर्मसंकट से निकलना ही पड़ेगा.’’

‘‘मैं विजय सिंह को अपने मन से पति मान चुकी हूं. वह भी मुझ से प्रेम करते हैं और मुझ से विवाह करना चाहते हैं. विजय सिंह के अलावा इस धरती पर जितने मनुष्य हैं वह सब मेरे भाईबंधु हैं. अब आप ही फैसला करें कि बेटी की विजय से शादी करेंगे या उस का मरा मुंह देखेंगे?’’ रोते हुए रेशमा एक ही सांस में कह गई. महबूब खान अपनी पुत्री रेशमा की जिद से भलीभांति वाकिफ थे. वह समझ गए कि रेशमा ने जो मन में ठान लिया, वही करेगी. वह किसी की नहीं सुनेगी. ऐसे में महबूब खान ने बेटी से कहा, ‘‘बेटी, विजय सिंह और पठान में मल्लयुद्ध और अस्त्रशस्त्र से लड़ाई होगी. इस में जो जीतेगा उस से तुझे विवाह करना पड़ेगा.’’

‘‘अब्बू, मैं आप से कह चुकी हूं कि मैं ने अपना प्रियतम चुन लिया है. ऐसे में अब आप क्यों शर्त रख रहे हैं कि मल्लयुद्ध और तलवार से लड़ाई में जो जीतेगा उस से विवाह करना होगा. मैं मन से ठाकुर सा को पति मान चुकी हूं. इस जन्म में तो वहीं मेरे पति होंगे.’’

बेटी की बात सुन कर महबूब खान के तनबदन में आग लग गई. वह गुस्से से आंखें निकालते हुए बोले, ‘‘तेरी बकवास बहुत सुन चुका. तू जानती नहीं कि तू एक खान की बेटी है और अपने इसलाम धर्म में ही शादी कर सकती है. मेरे लाड़प्यार ने तुझे बिगाड़ दिया है. इसलिए तू एक राजपूत से शादी करने पर अड़ी है. अगर तेरा प्रियतम ठाकुर मेरे सैनिक पठान से जीतेगा तभी उस से शादी करूंगा. वरना कभी नहीं…समझी.’’

रेशमा ने अपने अब्बा का गुस्सा आज पहली बार देखा था. वह समझ गई कि अब तो अपनी सच्ची चाहत के बूते ही वह अपने प्रियतम को पा सकती है. महबूब खान ने ऊंट सवार हमीरगढ़ भेज कर ठाकुर विजय सिंह को समाचार भिजवाया कि अगर रेशमा को चाहते हो और शादी करनी है तो अस्त्रशस्त्र ले कर कजली तीज के रोज शाहगढ़ पहुंच जाना. खुले मैदान में पठान खान से मल्लयुद्ध व तलवारबाजी का युद्ध करना होगा.  इस युद्ध में अगर तुम जीते तो रेशमा तुम्हारी और अगर पठान जीता तो रेशमा उस की होगी. समय पर शाहगढ़ पहुंच जाना. अगर नहीं आए तो रेशमा का पठान से विवाह कर दिया जाएगा.

विजय सिंह समाचार मिलते ही अस्त्रशस्त्र से लैस हो कर अपने 2 राजपूत साथियों के साथ शाहगढ़ के लिए रवाना हो गए. कजली तीज में 4 दिन का समय बाकी था. ठाकुर सा घोड़े पर सवार हो कर अपने साथियों के साथ शाहगढ़ की राह चल पड़े. कजली तीज से एक रोज पहले ही वह शाहगढ़ पहुंच गए. महबूब खान ने उन्हें एक तंबू में रोका. पठान भी शाहगढ़ आ गया था. महबूब खान ने विजय सिंह और पठान को मिलाया. दोनों एकदूसरे से इक्कीस थे. रेशमा को जैसे ही पता चला कि ठाकुर सा विजय सिंह आ गए हैं, तो उस ने अम्मी से कहा कि वह एक बार ठाकुर सा से मिलना चाहती है. रेशमा को उस की अम्मी ने ठाकुरसा से एकांत में मिलवाया.

विजय सिंह को देखते ही रेशमा उन के सीने से जा लिपटी और कस कर बांहों में भर कर सुबकते हुए बोली, ‘‘अब्बा हमारे प्यार की यह कैसी परीक्षा ले रहे हैं. अब क्या होगा?’’

‘‘तुम चिंता मत करो रेशमा. अगर हमारा प्यार सच्चा है तो जीत हमारी ही होगी. प्रेमियों को हमेशा से ऐसी परीक्षा से गुजरना पड़ा है?’’ विजय सिंह ने रेशमा को दिलासा दी.

रेशमा बोली, ‘‘आप नहीं मिले तो मैं मर जाऊंगी?’’

‘‘रेशमा, ऐसा न कहो. सब ठीक होगा. मुझ पर विश्वास रखो.’’ ठाकुरसा ने कहा. इस के बाद थोड़ी देर तक दोनों प्रेमालाप करते रहे, फिर अलग हो गए.

रेशमा की आंखें आंसुओं से तर थीं. उस की हिचकियां बंधी थीं. अम्मी ने उसे संभाला और कक्ष में ले गईं. विजय सिंह को पता चल गया था कि पठान ने महबूब खान की कई बार जान बचाई थी. इस कारण उन्होंने पठान को बचन दिया था कि वे उस से अपनी बेटी रेशमा का विवाह कर के एहसानों का बदला चुकाएंगे. रात में जब रेशमा और विजय सिंह के बीच बातें हो रही थी, तब पास के तंबू में सो रहे पठान ने सारी बातें सुन ली थीं. पठान को नींद नहीं आई. खड़का होने पर पठान ने देखा कि रेशमा अपनी अम्मा के साथ विजय सिंह से मिलने आई और उन के बीच का वार्तालाप भी सुन लिया था.

पठान की सब समझ में आ गया. वह जान गया कि रेशमा उस से नहीं ठाकुर सा विजय सिंह से प्रेम करती है. बस, पठान ने मन ही मन एक निर्णय कर लिया कि उसे रेशमा का दिल जीतने के लिए क्या करना है. अगले दिन कजली तीज का त्यौहार था. गांव की सुहागिनें एवं युवतियां सोलह शृंगार कर के झूले पर जाने से पहले उस मैदान में पहुंच गईं. जहां रेशमा को पाने के लिए 2 वीरों के बीच युद्ध होना था. तय समय पर शाहगढ़ के तमाम नरनारी उस मैदान में आ जमे थे. विजय सिंह ने केसरिया वस्त्र धारण किए और कुलदेवी को प्रणाम करने के बाद युद्ध मैदान में कूद गए.

पठान खान भी मैदान में आ गए. नगाड़े पर डंका बजते ही दोनों योद्धा आपस में भिड़ गए. मल्ल युद्ध में दोनों एकदूजे को परास्त करने के लिए एड़ीचोटी का जोर लगाने लगे. मगर ताकत में दोनों बराबर थे. तय समय तक दोनों बराबरी पर छूटे. तब महबूब खान ने कहा कि अब फैसला तलवार करेगी कि कौन रेशमा के लायक है, दोनों ने तलवारें और ढाल उठा लीं. रेशमा दिल थाम कर देख रही थी. तलवारबाजी शुरू होने से पहले दोनों वीरों ने रेशमा की तरफ देखा. रेशमा एकटक ठाकुरसा की तरफ ही देख रही थी. यह पठान से छिप न सका. तलवारबाजी शुरू हुए थोड़ा समय ही गुजरा था कि पठान पस्त होने लगा. महबूब खान की समझ में नहीं आ रहा था कि ये क्या हो रहा है. तभी ठाकुर विजय सिंह की तलवार ने पठान का सीना चीर दिया. पठान गिर पड़ा.

महबूब खान के आदेश पर युद्ध रोक दिया गया. महबूब खान भाग कर रेशमा वगैरह के साथ युद्धस्थल पर रक्त रंजित पड़े पठान खान के पास पहुंचे. पठान ने कहा कि रेशमा के लायक विजय सिंह है. महबूब खान ने पूछा, ‘‘ऐसा तुम क्यों कह रहे हो?’’

तब खून से लथपथ पड़े पठान ने कहा, ‘‘रेशमा और विजय सिंह एकदूसरे से प्रेम करते हैं. यह मैं ने कल रात में जाना. जब यह दोनों थोड़ी देर के लिए मिले. मैं ने इन की बातें सुनीं तो मुझे अहसास हुआ कि रेशमा मेरे साथ कभी खुश नहीं रह सकेगी. क्योंकि वह तो सिर्फ विजय सिंह से प्यार करती है. अगर इस युद्ध में विजय सिंह की हार होती तो रेशमा जी नहीं पाती. मैं ने कल रात इन की बातें सुनने के बाद प्रण कर लिया था कि मुझे युद्ध में क्या करना है. मल्लयुद्ध में आप ने देखा कि हम दोनों ताकत में बराबर हैं, तो तलवारबाजी में भी हम बराबर ही रहते. मगर मुझे रेशमा की खुशी के लिए ठाकुरसा से यह युद्ध हारना जरूरी लगा.

इसीलिए मैं ने ठाकुर सा पर प्राणघातक वार नहीं किया और उन्होंने मुझे कमजोर मान कर तलवार का वार सीने पर कर के मुझे घायल कर दिया. मुझे खुशी है कि ठाकुरसा को रेशमा जैसी प्यार करने वाली जीवनसाथी मिलेगी, जो मेरे नसीब में नहीं है. यदि मैं युद्ध में जीत भी जाता तो रेशमा का दिल कभी नहीं जीत पाता. इसलिए मैं युद्ध में हार गया.’’

इतना सुन कर ठाकुर विजय सिंह, रेशमा और महबूब खान व अन्य लोग एकदूसरे की तरफ देखते रह गए. महबूब खान ने वैद्य को बुला कर पठान का ईलाज करने को कहा. वैद्य ने ईलाज शुरू किया, मगर तलवार ने सीने पर गहरा जख्म किया था. पठान ने मरतेमरते रेशमा के सिर पर हाथ फेरा और कहा, ‘‘तुम मेरी बहन हो. इस भाई को भी इतना प्यार करना जितना विजय सिंह से करती हो. मेरा मरना सार्थक हो जाएगा?’’

कह कर पठान ने जोर की हिचकी ली और प्राण त्याग दिए. रेशमा ही नहीं विजय सिंह और वहां मौजूद सभी लोगों की आंखें नम हो गईं. रेशमा के प्यार के लिए पठान ने कुरबानी दे कर साबित कर दिया कि वह ठाकुर सा विजय सिंह से किसी भी तरह कम नहीं थे. पठान खान को वहीं पर कब्र बना कर दफना दिया गया. बाद में दोनों पठान की कब्र पर गए और फूल चढ़ा कर नवजीवन के लिए हमीरगढ़ प्रस्थान कर गए. रेशमा जब भी शाहगढ़ आती थी, पठान की कब्र पर जरूर जाती थी. फिर एक वक्त वह भी आया जब रेशमा और ठाकुर सा भी अनंत सफर पर चले गए – Short Stories

 

Best Hindi Story : दुनिया की सबसे बेहतरीन जेलों की कहानियां

Best Hindi Story : जेलें दंड देने के लिए बनाई जाती हैं, लेकिन असल मकसद कैदी को सुधारना होता है. सुधार सख्ती से भी हो सकता है और सुविधाओं से भी. इसीलिए दुनिया में कुछ जेलें अलग तरह का सुधारवादी तरीका अपनाने के लिए 5 स्टार होटलों की सुविधाओं जैसी बनाई गई हैं. जानें कुछ ऐसी ही जेलों के बारे में…

हमारे यहां जेलों और सजा काटने वाले कैदियों को अच्छी नजरों से नहीं देखा जाता, लोग डरते हैं जेल जाने से. यह स्वाभाविक भी है क्योंकि न तो जेलों में खाना अच्छा मिलता है और न रहने को जगह. ऊपर से गुंडागर्दी, मारपीट. एक तरह से यह ठीक भी है, क्योंकि जेलें किए गए अपराध का दंड देने के लिए होती हैं. वैसे जेलों को सुधार गृह कहा जाता है, लेकिन ज्यादातर मामलों में ये बिगाड़ गृह ज्यादा साबित होती हैं. इस के अलावा हमारे यहां जेलों का एक पहलू और भी है.

दरअसल, पैसे वालों, पावरफुल लोगों या माफियाओं के लिए ये जेल नहीं आरामगाह होती हैं, जहां पैसे और जेल प्रशासन की घूसखोरी की वजह से उन्हें हर चीज उपलब्ध होती है. लड़कियां औरतें तक. वैसे तो ज्यादातर देशों में जेलों का यही हाल है, लेकिन दुनिया के कुछ देश ऐसे भी हैं जहां की जेलें 5 स्टार होटलों से कम नहीं हैं. इन जेलों में कैदियों को जो सुविधाएं मिलती हैं, उन्हें जान कर आप दंग रह जाएंगे. फिर भी जेल तो जेल ही होती है. आइए सब से पहले बात करते हैं नार्वे की बस्तोय जेल की. इस जेल को दुनिया की सबसे बेहतरीन जेल माना जाता है. इस में करीब 100 कैदी रहते हैं. यहां रहने वाले कैदियों को हौर्स राइडिंग, फिशिंग, टेनिस, सन बाथिंग और प्रिजन कौंप्लैक्स जैसी सुविधाएं मिलती हैं.

केवल इतना ही नहीं, कैदियों को खेती करने और रहने के लिए कौटेज जैसी सुविधाएं भी दी जाती हैं. इस जेल में रहने वाले कैदियों को लगता ही नहीं कि वे जेल में हैं. ओसलोफजौर्ड में बैस्टौय द्वीप पर स्थित इस जेल के कैदी खुली और मनभावन जगह पर धूप ही नहीं सेंक सकते बल्कि गरमी में देवदार के जंगल की छाया में दूरदूर तक सैर भी कर सकते हैं. द्वीप की नौका का भी आनंद ले सकते हैं. यहां आने के लिए कैदियों को आवेदन करना पड़ता है, साथ ही परंपरागत जेलों में सेवा करते हुए बदलने की इच्छा का भी प्रदर्शन करना होता है.

बस्तोय जेल काफी बड़ी है, लेकिन यहां सुरक्षा बहुत कम है. हालांकि यहां हिंसक अपराध करने वाले कैदियों को रखा जाता है. कुछ के तो बहुत गंभीर अपराध होते हैं, लेकिन किसी का यहां से जाने का मन नहीं होता क्योंकि ये कैदी नहीं, एक समुदाय के रूप में रहते हैं. हर चीज साझा करते हैं, बैडरूम तक. खुद लजीज खाना बना सकते हैं. अकेले भी और सामूहिक रूप से भी. एकदूसरे के कपड़े पहन सकते हैं. जेल की दुकान, पुस्तकालय या चर्च में जा सकते हैं. सप्ताह में यहां म्यूजिकल प्रोग्राम और व्याख्यान होते हैं. पाठ्यक्रम चलते हैं जिन में इच्छानुसार बदलाव किया जा सकता है. यानी हर तरह की आजादी. यहां ऐसा लगता है जैसे छुट्टी में पिकनिक मनाने आए हों.

यहां दौरा करने आए नार्वेजियन अधिकारियों के अनुसार, कैदियों के लिए यह नर्म दृष्टिकोण ज्यादा प्रभावी है. जेल के कैदियों और यहां के कर्मियों के बीच सम्मानजनक संबंध हैं. अधिकांश जेल अधिकारी रात में द्वीप छोड़ कर चले जाते हैं. कैदियों से अपेक्षा की जाती है कि वहां की जिम्मेदारी वे खुद उठाएं. नार्वे इस जेल को पारिस्थितिक जेल कहता है. यहां के कैदी आराम के अलावा रोजाना काम करते हैं. भेड़ों और घोड़ों को चराते हैं, खेतों में काम करते हैं. पेड़ों से लकडि़यां काटते हैं. तरहतरह के प्रशिक्षण कार्यक्रमों में भाग लेते हैं. नार्वे मिनिस्ट्री औफ जस्टिस का कहना है, ‘जेल के अंदर के जीवन को बाहर की जिंदगी की जरूरत होती है. कैदियों को भी अपने कार्यों की जिम्मेदारी लेने की आवश्यकता है. अतीत, वर्तमान और भविष्य की आवश्यकता होती है.

हमारा मानना है कि यह किसी व्यक्ति के लिए अपराध से दूर रहने के लिए अधिक प्रभावी है, ताकि सिस्टम उसे डराने की कोशिश न कर सके. वह इन्हें जुड़ना सिखाता है कि उन के पड़ोसी के रूप में कौन और कैसा व्यक्ति होगा और उस के साथ किस तरह व्यवहारिक बना जाएगा. नार्वे में उम्रकैद जैसी कोई सजा नहीं है. सब से लंबी सजा 21 साल है. जबकि नरसंहार जैसे अपराधों के लिए 30 साल की अधिकतम सजा का प्रावधान है. क्योंकि इसे मानवता के प्रति युद्ध माना जाता है. औसत सजा 8 महीने है. बिना शर्त जेल की 60 प्रतिशत से अधिक सजा महज 3 महीने होती है और 90 प्रतिशत एक साल से कम. बड़े मामलों में सजा पूरी होने से पहले 18 महीने नौकरी करनी होती है, जिस में कैदी स्वतंत्र भी होता है और नहीं भी.

गुआंतानमों बे जेल इस के बाद बात करते हैं गुआंतानमो बे जेल की, जो क्यूबा में है. जेल का यह नाम इसलिए है क्योंकि ये गुआंतानमो घाटी के तट पर स्थित है. इस जेल में कुल 40 कैदी हैं और हर कैदी पर सालाना 93 करोड़ रुपए खर्च होते हैं. गुआंतानमो बे जेल में करीब 1800 सैनिक हैं यानी एक कैदी पर 45 सैनिक. सोचने वाली बात यह है कि कैदियों को इतनी सुरक्षा क्यों दी जाती है. दरअसल, यहां कई ऐसे अपराधी कैद हैं जो बेहद खतरनाक हैं. इन में एक 9/11 को अमेरिका के ट्विन टावर पर हुए हमले का मास्टरमाइंड खालिद शेख मोहम्मद भी है. यह हमला अल कायदा ने किया था, जिस में 2971 लोगों की जानें गई थीं और 25 हजार लोग घायल हुए थे.

गुआंतानमो बे जेल में 3 इमारतें, 2 खुफिया विभाग के मुख्यालय और 3 अस्पताल हैं. वकीलों के लिए अलगअलग कंपाउंड बनाए गए हैं, जहां कैदी उन से बात कर सकते हैं. इस जेल में कैदियों और जेल के स्टाफ को होटल जैसी सुविधाएं मिलती हैं. कैदियों के लिए जेल में चर्च, जिम, प्ले स्टेशन और सिनेमाहाल हैं. इस जेल में पहले अमेरिका का नेवी बेस था, लेकिन बाद में इसे डिटेंशन सेंटर (हिरासत केंद्र) बना दिया गया. अमेरिका के भूतपूर्व राष्ट्रपति जौर्ज डब्ल्यू बुश ने यहां एक कंपाउंड बनवाया था, जहां आतंकियों को रखा जाता था. इसे कैंप एक्सरे नाम दिया गया था.

सोलन टूना जेल, स्वीडन स्वीडन की सोलन टूना जेल किसी फाइवस्टार होटल से कम नहीं है. इस जेल से छूट कर आए अपराधियों का कहना है कि इस जेल में उन्हें पूरी आजादी दी जाती है. अपना खाना खुद बनाना होता है, वह भी मनमर्जी से. शानदार सोफे पर बैठ कर किताबें पढ़ सकते हैं. कैदियों के सेल्स में किचन, टीवी, फ्रिज और बाथरूम की सुविधाएं भी दी गई हैं, जो किसी उत्कृष्ट एयरलाइंस की फ्लाइट जैसी हैं. जस्टिस फौर लियोबेन आस्ट्रिया की इस खूबसूरत जेल में कैदियों को उचित सम्मान के साथ रखा जाता है. इस फाइवस्टार जेल में करीब 250 कैदी हैं. यहां सभी कैदियों के लिए इनडोर गेम से ले कर जिम तक की सभी सुविधाएं हैं. यहां रहना शाही जिंदगी जीने जैसा है.

यहां कैदियों को जेल के कपड़े नहीं, बल्कि अपने खुद के कपड़े पहनने की आजादी है. कैदियों के लिए अलगअलग प्राइवेट बाथरूम और किचन है. इस जेल को दुनिया की खूबसूरत जेलों में गिना जाता है. अरेंजबेज जेल ज्यादातर जेलों में बच्चों के पैदा होने के तुरंत बाद उन के परिवार के हवाले कर दिया जाता है और अगर कोई परिवार बच्चे की जिम्मेदारी नहीं लेता तो उसे किसी एनजीओ को सौंप दिया जाता है. लेकिन स्पेन की यह जेल दुनिया की एकलौती जेल है, जहां कैदियों के परिवारों के लिए कमरे मौजूद हैं. यहां 3 साल का होने तक उन के बच्चे उन के साथ रह सकते हैं. बच्चों के लिए खूबसूरत कमरे ही नहीं, हर तरह के खिलौने भी मौजूद हैं, और कमरे की दीवारों पर उन की रुचि की क्रिब्स और डिज्नी के पात्रों की पेंटिंग बनी हैं.

जेवीए फुलस्वटल जेल जर्मनी के हैंबर्ग शहर स्थित यह जेल भी दुनिया की खूबसूरत जेलों में गिनी जाती है. किले की तरह नजर आने वाली इस जेल में कैदियों को काफी बड़े और आरामदायक कमरे दिए जाते हैं, जिन में लिविंग रूम, डेस्क, टीवी और शौवर लगे हुए हैं. प्राइवेट बाथरूम भी हैं. कपड़े धोने की सुविधा के लिए सामूहिक वाशिंग मशीनें हैं. जेल में कौन्फ्रैंस रूम और मनोरंजन कक्ष भी हैं. पोडोंक बंबू जेल, इंडोनेशिया महिलाओं के लिए बनाई गई यह जेल पुनर्वास के उद्देश्य से बनाई गई है, जो पूरी तरह एयरकंडीशंड है.

खूबसूरत बगीचों और मूर्तियों से भरे इस परिसर में ब्यूटीशियन और सौंदर्य उपचार के कोर्स कराए जाते हैं. मनोरंजन के साधनों के साथसाथ यहां जीवन को सुखमय बनाने के सभी साधन हैं.

 

Noida News : प्यार में फंसाया फिर किया अपहरण और मांगी 70 लाख की फिरौती

Noida News : गौरव हलधर डाक्टरी की पढ़ाई करतेकरते प्रीति मेहरा के जाल में ऐसा फंसा कि जान के लाले पड़ गए. डा. प्रीति को गौरव को रंगीन सपने दिखाने की जिम्मेदारी उस के ही साथी डा. अभिषेक ने सौंपी थी. भला हो नोएडा एसटीएफ का जिस ने समय रहते…

एसटीएफ औफिस नोएडा में एसपी कुलदीप नारायण सिंह डीएसपी विनोद सिंह सिरोही के साथ बैठे किसी का बेसब्री से इंतजार कर रहे थे. तभी अचानक दरवाजा खुला और सामने वर्दी पर 3 स्टार लगाए एक इंसपेक्टर प्रकट हुए. उन्होंने अंदर आने की इजाजत लेते हुए पूछा, ‘‘मे आई कम इन सर.’’

‘‘इंसपेक्टर सुधीर…’’ कुलदीप सिंह ने सवालिया नजरों से आगंतुक की तरफ देखते हुए पूछा.

‘‘यस सर.’’

‘‘आओ सुधीर, हम लोग आप का ही इंतजार कर रहे थे.’’ एसपी कुलदीप सिंह ने सामने बैठे विनोद सिरोही का परिचय कराते हुए कहा,  ‘‘ये हैं हमारे डीएसपी विनोद सिरोही. आप के केस को यही लीड करेंगे. जो भी इनपुट है आप इन से शेयर करो फिर देखते हैं क्या करना है.’’

कुछ देर तक उन सब के बीच बातें होती रहीं. उस के बाद कुलदीप सिंह अपनी कुरसी से खड़े होते हुए बोले, ‘‘विनोद, मैं एक जरूरी मीटिंग के लिए मेरठ जा रहा हूं. आप दोनों केस के बारे में डिस्कस करो. हम लोग लेट नाइट मिलते हैं.’’

इस बीच उन्होंने एसटीएफ के एएसपी राजकुमार मिश्रा को भी बुलवा लिया था. कुलदीप सिंह ने उन्हें निर्देश दिया कि गौरव अपहरण कांड में अपहर्त्ताओं को पकड़ने में वह इस टीम का मार्गदर्शन करें. एसपी के जाते ही वे एक बार फिर बातों में मशगूल हो गए. सुधीर कुमार सिंह डीएसपी विनोद सिरोही और एएसपी मिश्रा को उस केस के बारे में हर छोटीबड़ी बात बताने लगे, जिस के कारण उन्हें पिछले 24 घंटे में यूपी के गोंडा से ले कर दिल्ली के बाद नोएडा में स्पैशल टास्क फोर्स के औफिस का रुख करना पड़ा था. इस से 2 दिन पहले 19 जनवरी, 2021 की बात है. उत्तर प्रदेश के गोंडा जिले के एसपी शैलेश पांडे के औफिस में सन्नाटा पसरा हुआ था. क्योंकि मामला बेहद गंभीर था और पेचीदा भी.

पड़ोसी जिले बहराइच के पयागपुर थाना क्षेत्र के काशीजोत की सत्संग नगर कालोनी के रहने वाले डा. निखिल हलधर का बेटा गौरव हलधर गोंडा के हारीपुर स्थित एससीपीएम कालेज में बीएएमएस प्रथम वर्ष का छात्र था. वह कालेज के हौस्टल में रहता था. गौरव 18 जनवरी की शाम तकरीबन 4 बजे से गायब था. इस के बाद गौरव को न तो हौस्टल में देखा गया न ही कालेज में. 18 जनवरी की रात को गौरव के पिता डा. निखिल हलधर के मोबाइल फोन पर रात करीब 10 बजे एक काल आई. काल उन्हीं के बेटे के फोन से थी, लेकिन फोन पर उन का बेटा गौरव नहीं था.

फोन करने वाले ने बताया कि उस ने गौरव का अपहरण कर लिया है. गौरव की रिहाई के लिए आप को 70 लाख रुपए की फिरौती देनी होगी. जल्द पैसों का इंतजाम कर लें, वह उन्हें बाद में फोन करेगा. डा. निखिल हलधर ने कालबैक किया तो फोन गौरव ने नहीं, बल्कि उसी शख्स ने उठाया, जिस ने थोड़ी देर पहले बात की थी. डा. निखिल ने बेटे से बात कराने के लिए कहा तो उस ने उन्हें डांटते हुए कहा, ‘‘डाक्टर, लगता है सीधी तरह से कही गई बात तेरी समझ में नहीं आती. तू क्या समझ रहा है कि हम तुझ से मजाक कर रहे हैं? अभी तेरे बेटे की लेटेस्ट फोटो वाट्सऐप कर रहा हूं देख लेना उस की क्या हालत है.

और हां, एक बात कान खोल कर सुन ले, यकीन करना है या नहीं ये तुझे देखना है. यह समझ लेना कि पैसे का इंतजाम जल्द नहीं किया तो बेटा गया तेरे हाथ से. ज्यादा टाइम नहीं है अपने पास.’’

अभी तक इस बात को मजाक समझ रहे निखिल हलधर समझ गए कि उस ने जो कुछ कहा, सच है. कुछ देर बाद उन के वाट्सऐप पर गौरव की फोटो आ गई, जिस में वह बेहोशी की हालत में था. जैसे ही परिवार को इस बात का पता चला कि गौरव का अपहरण हो गया है तो सब हतप्रभ रह गए. निखिल हलधर संयुक्त परिवार में रहते थे. उन के पूरे घर में चिंता का माहौल बन गया. बात फैली तो डा. निखिल के घर उन के रिश्तेदारों और परिचितों का हुजूम लगना शुरू हो गया. डा. निखिल हलधर शहर के जानेमाने फिजिशियन थे, शहर के तमाम प्रभावशाली लोग उन्हें जानते थे. उन्होंने शहर के एसपी डा. विपिन कुमार मिश्रा से बात की.

उन्होंने बताया कि गौरव गोंडा में पढ़ता था और घटना वहीं घटी है, इसलिए वह तुरंत गोंडा जा कर वहां के एसपी से मिलें. डा. निखिल हलधर रात को ही अपने कुछ परिचितों के साथ गोंडा रवाना हो गए. 19 जनवरी की सुबह वह गोंडा के एसपी शैलेश पांडे से मिले. शैलेश पांडे को पहले ही डा. निखिल हलधर के बेटे गौरव के अपहरण की जानकारी एसपी बहराइच से मिल चुकी थी. डा. निखिल हलधर ने शैलेश पांडे को शुरू से अब तक की पूरी बात बता दी. एसपी पांडे ने परसपुर थाने के इंचार्ज सुधीर कुमार सिंह को अपने औफिस में बुलवा लिया था. क्योंकि गौरव जिस एससीपीएम मैडिकल कालेज में पढ़ता था, वह परसपुर थाना क्षेत्र में था.

सारी बात जानने के बाद एसपी शैलेश पांडे ने कोतवाली प्रभारी आलोक राव, सर्विलांस टीम के इंचार्ज हृदय दीक्षित तथा स्वाट टीम के प्रभारी अतुल चतुर्वेदी के साथ हैडकांस्टेबल श्रीनाथ शुक्ल, अजीत सिंह, राजेंद्र , कांस्टेबल अमित, राजेंद्र, अरविंद व राजू सिंह की एक टीम गठित कर के उन्हें जल्द से गौरव हलधर को बरामद करने के काम पर लगा दिया. एसपी पांडे ने टीम का नेतृत्व एएसपी को सौंप दिया. पुलिस टीम तत्काल सुरागरसी में लग गई. पुलिस टीमें सब से पहले गौरव के कालेज पहुंची, जहां उस के सहपाठियों तथा हौस्टल में छात्रों के अलावा कर्मचारियों से जानकारी हासिल की गई. नहीं मिली कोई जानकारी मगर गौरव के बारे में पुलिस को कालेज से कोई खास जानकारी नहीं मिल सकी.

इंसपेक्टर सुधीर सिंह डा. निखिल हलधर के साथ परसपुर थाने पहुंचे और उन्होंने निखिल हलधर की शिकायत के आधार पर 19 जनवरी, 2021 की सुबह भादंसं की धारा 364ए के तहत फिरौती के लिए अपहरण का मामला दर्ज कर लिया. एसपी शैलेश पांडे के निर्देश पर इंसपेक्टर सुधीर कुमार सिंह ने खुद ही जांच की जिम्मेदारी संभाली. साथ ही उन की मदद के लिए बनी 6 पुलिस टीमों ने भी अपने स्तर से काम शुरू कर दिया. चूंकि मामला एक छात्र के अपहरण का था, वह भी फिरौती की मोटी रकम वसूलने के लिए. इसलिए सर्विलांस टीम को गौरव हलधर के मोबाइल की काल डिटेल निकालने के काम पर लगा दिया गया.

मोबाइल की सर्विलांस में उस की पिछले कुछ घंटों की लोकेशन निकाली गई तो पता चला कि इस वक्त उस की लोकेशन दिल्ली में है. पुलिस टीमें यह पता करने की कोशिश में जुट गईं कि गौरव का किसी से विवाद या दुश्मनी तो नहीं थी. लेकिन ऐसी कोई जानकारी नहीं मिली. गौरव और उस से जुड़े लोगों के मोबाइल नंबर को सर्विलांस पर ले लिया गया था. पुलिस की टीमें लगातार एकएक नंबर की डिटेल्स खंगाल रही थीं. गौरव के फोन की लोकेशन संतकबीर नगर के खलीलाबाद में भी मिली थी. पुलिस की एक टीम बहराइच तो 2 टीमें खलीलाबाद व गोरखपुर रवाना कर दी गईं. खुद इंसपेक्टर सुधीर सिंह एक पुलिस टीम ले कर दिल्ली रवाना हो गए.

20 जनवरी की सुबह दिल्ली पहुंचने के बाद उन्होंने सर्विलांस टीम की मदद से उस इलाके में छानबीन शुरू कर दी, जहां गौरव के फोन की लोकेशन थी. लेकिन अब उस का फोन बंद हो चुका था इसलिए इंसपेक्टर सुधीर सिंह को सही जगह तक पहुंचने में कोई मदद नहीं मिली. इस दौरान गोंडा में मौजूद गौरव के पिता डा. निखिल हलधर को अपहर्त्ता ने एक और फोन कर दिया था. उस ने अब फिरौती की रकम बढ़ा कर 80 लाख कर दी थी और चेतावनी दी थी कि अगर 22 जनवरी तक रकम का इंतजाम नहीं किया गया तो गौरव की हत्या कर दी जाएगी.

दूसरी तरफ जब गोंडा एसपी शैलेश पांडे को पता चला कि दिल्ली पहुंची पुलिस टीम को बहुत ज्यादा कामयाबी नहीं मिल रही है तो उन की चिंता बढ़ गई. अंतत: उन्होंने एसटीएफ के एडीजी अमिताभ यश को लखनऊ फोन कर के गौरव अपहरण कांड की सारी जानकारी दी और इस काम में एसटीएफ की मदद मांगी. अमिताभ यश ने एसपी शैलेश पांडे से कहा कि वे अपनी टीम को नोएडा में एसटीएफ के औफिस भेज दें. एसटीएफ के एसपी कुलदीप नारायण गोंडा पुलिस की पूरी मदद करेंगे.

पांडे ने दिल्ली में मौजूद इंसपेक्टर सुधीर सिंह को एसटीएफ के एसपी कुलदीप नारायण से बात कर के उन के पास पहुंचने की हिदायत दी तो दूसरी तरफ एडीजी अमिताभ यश ने नोएडा फोन कर के एसपी कुलदीप नारायण सिंह को गौरव हलधर अपहरण केस की जानकारी दे कर गोंडा पुलिस की मदद करने के निर्देश दिए. यह बात 20 जनवरी की दोपहर की थी. गोंडा कोतवाली के इंसपेक्टर सुधीर सिंह नोएडा में एसटीएफ औफिस पहुंच कर एसपी एसटीएफ कुलदीप नारायण सिंह तथा डीएसपी विनोद सिरोही से मिले.

विनोद सिरोही बेहद सुलझे हुए अधिकारी हैं. उन्होंने अपनी सूझबूझ से कितने ही अपहरण करने वालों और गैंगस्टरों को पकड़ा है. उन्होंने उसी समय अपहर्त्ताओं को दबोचने के लिए इंसपेक्टर सौरभ विक्रम सिंह, एसआई राकेश कुमार सिंह तथा ब्रह्म प्रकाश के साथ एक टीम का गठन कर दिया. काल डिटेल्स से मिले सुराग अपराधियों तक पहुंचने का सब से बड़ा हथियार इन दिनों इलैक्ट्रौनिक सर्विलांस है. एसटीएफ की टीम ने उसी समय गौरव के फोन की सर्विलांस के साथ उस की सीडीआर खंगालने का काम शुरू कर दिया. गौरव के फोन की काल डिटेल्स खंगाली तो उस में एक ऐसा नंबर मिला, जिस में उस के फोन पर कुछ दिनों से एक नए नंबर से न सिर्फ काल की जा रही थी, बल्कि यह नंबर गौरव की कौन्टैक्ट लिस्ट में ‘माई लव’ के नाम से सेव था.

दोनों नंबरों पर 5 से 18 जनवरी तक 40 बार बात हुई थी और हर काल का औसत समय 10 से 40 मिनट था. इस नंबर से गौरव के वाट्सऐप पर अनेकों काल, फोटो, वीडियो का भी आदानप्रदान हुआ था. इस नंबर के बारे में जानकारी एकत्र की गई तो यह नंबर दिल्ली के एक पते पर पंजीकृत पाया गया. लेकिन जब पुलिस की टीम उस पते पर पहुंची तो पता फरजी निकला. जब इस नंबर की लोकेशन खंगाली गई तो पुलिस टीम यह जान कर हैरान रह गई कि 18 जनवरी की दोपहर से शाम तक इस नंबर की लोकेशन गोंडा में हर उस जगह थी, जहां गौरव के मोबाइल की लोकेशन थी.

पुलिस टीम समझ गई कि जिस के पास भी यह नंबर है, उसी ने गौरव का अपहरण किया है. पुलिस टीमों ने इसी नंबर की सीडीआर खंगालनी शुरू कर दी. पता चला कि यह नंबर करीब एक महीना पहले ही एक्टिव हुआ था और इस से बमुश्किल 4 या 5 नंबरों पर ही फोन काल्स की गई थीं या वाट्सऐप मैसेज आएगए थे.   एसटीएफ के पास ऐसे तमाम संसाधन और नेटवर्क होते हैं, जिन से वह इलैक्ट्रौनिक सर्विलांस के माध्यम से अपराधियों की सटीक जानकारी एकत्र करने के साथ उन की लोकेशन का भी सुराग लगा लेती है. एसटीएफ ने रात भर मेहनत की. जो भी फोन नंबर इस फोन के संपर्क में थे, उन सभी की कडि़यां जोड़ कर उन की मूवमेंट पर नजर रखी जाने लगी.

रात होतेहोते यह बात साफ हो गई कि अपहर्त्ता नोएडा इलाके में मूवमेंट करने वाले हैं. वे अपहृत गौरव को छिपाने के लिए दिल्ली से किसी दूसरे ठिकाने पर शिफ्ट करना चाहते हैं. बस इस के बाद सर्विलांस टीमों ने अपराधियों की सटीक लोकेशन तक पहुंचने का काम शुरू कर दिया और गोंडा पुलिस के साथ एसटीएफ की टीम ने औपरेशन की तैयारी शुरू कर दी. 21 जनवरी की देर रात गोंडा पुलिस व एसटीएफ की टीमों ने ग्रेटर नोएडा में यमुना एक्सप्रेसवे जीरो पौइंट के पास अपना जाल बिछा दिया. पुलिस टीमें आनेजाने वाले हर वाहन पर कड़ी नजर रख रही थीं. किसी वाहन पर जरा भी संदेह होता तो उसे रोक कर तलाशी ली जाती. इसी बीच एक सफेद रंग की स्विफ्ट डिजायर कार पुलिस की चैकिंग देख कर दूर ही रुक गई.

उस गाड़ी ने जैसे ही रुकने के बाद बैक गियर डाल कर पीछे हटना और यूटर्न लेना शुरू किया तो पुलिस टीम को शक हो गया. एसटीएफ की टीम एक गाड़ी में पहले से तैयार थी. पुलिस की गाड़ी उस कार का पीछा करने लगी जो यूटर्न ले कर तेजी से वापस दौड़ने लगी थी. देखते ही पहचान लिया गौरव को मुश्किल से एक किलोमीटर तक दौड़भाग होती रही. आखिरकार नालेज पार्क थाना क्षेत्र में एसटीएफ की टीम ने डिजायर कार को ओवरटेक कर के रुकने पर मजबूर कर दिया. खुद को फंसा देख कार में सवार 3 लोग तेजी से उतरे और अलगअलग दिशाओं में भागने लगे. एसटीएफ को ऐसे अपराधियों को पकड़ने का तजुर्बा होता है. पीछा करते हुए एसटीएफ तथा गोंडा पुलिस की दूसरी टीम भी वहां पहुंच चुकी थी.

पुलिस टीमों ने जैसे ही हवाई फायर किए, कार से उतर कर भागे तीनों लोगों के कदम वहीं ठिठक गए. पुलिस टीमों ने तीनों को दबोच लिया. उन्हें दबोचने के बाद जब पुलिस टीमों ने स्विफ्ट डिजायर कार की तलाशी ली तो एक युवक कार की पिछली सीट पर बेहोशी की हालत में पड़ा था. इंसपेक्टर सुधीर सिंह युवक की फोटो को इतनी बार देख चुके थे कि बेहोश होने के बावजूद उन्होेंने उसे पहचान लिया. वह गौरव ही था. पुलिस टीमों की खुशी का ठिकाना न रहा, क्योंकि अभियान सफल हो गया था. पुलिस टीमें तीनों युवकों के साथ गौरव व कार को ले कर एसटीएफ औफिस आ गईं.

इंसपेक्टर सुधीर सिंह ने गौरव के पिता डा. निखिल व एसपी गोंडा शैलेश पांडे को गौरव की रिहाई की सूचना दे दी. वे भी तत्काल नोएडा के लिए रवाना हो गए. गौरव के अपहरण में पुलिस ने जिन 3 लोगों को गिरफ्तार किया था, उन में से एक की पहचान डा. अभिषेक सिंह निवासी अचलपुर वजीरगंज, जिला गोंडा के रूप में हुई. वही इस गिरोह का सरगना था और फिलहाल बाहरी दिल्ली के बक्करवाला में डीडीए के ग्लोरिया अपार्टमेंट के फ्लैट नंबर 310 में किराए पर रहता था. डा. अभिषेक सिंह पेशे से चिकित्सक था और नांगलोई-नजफगढ़ रोड पर स्थित राठी अस्पताल में काम करता था.

उस के साथ पुलिस ने जिन 2 अन्य लोगों को गिरफ्तार किया, उन में नीतेश निवासी थाना निहारगंज, धौलपुर, राजस्थान तथा मोहित निवासी परौली, थाना करनलगंज गोंडा शामिल थे. जब उन तीनों से पूछताछ की गई, तो अपहरण की जो कहानी सामने आई, वह काफी दिलचस्प थी.  डा. अभिषेक सिंह ने गौरव का अपहरण करने के लिए हनीट्रैप का इस्तेमाल किया था. यानी गौरव को पहले एक खूबसूरत लड़की के जाल में फंसाया गया था. जब गौरव खूबसूरती के जाल में फंस गया तो उस का फिरौती वसूलने के लिए अपहरण कर लिया गया.

मूलरूप से गोंडा के अचलपुर का रहने वाला डा. अभिषेक सिंह 2013-2014 में बेंगलुरु के राजीव गांधी यूनिवर्सिटी औफ हेल्थ साइंस से बीएएमएस की पढ़ाई करने के बाद जब अपने शहर लौटा तो उस के दिल में बड़े अरमान थे. डाक्टरी के पेशे से बहुत सारी कमाई करने और बड़ा सा बंगला बनाने के सपने देखे थे. लेकिन कुछ समय बाद ही ये सपने चकनाचूर होने लगे. अच्छी नौकरी नहीं मिली तो बन गया अपराधीउसे गोंडा के किसी भी अस्पताल में ऐसी नौकरी नहीं मिली, जिस से अच्छे से गुजरबसर हो सके. छोटेछोटे अस्पतालों में नौकरी करने के बाद तंग आ कर डा. अभिषेक 2018 में दिल्ली आ गया. यहां कई अस्पतालों में नौकरी करने के बाद वह सन 2019 में नजफगढ़ के राठी अस्पताल में नौकरी करने लगा.

हालांकि इस अस्पताल में उसे पहले के मुकाबले तो अच्छी तनख्वाह मिलती थी, लेकिन इस के बावजूद वह अपनी जिंदगी से संतुष्ट नहीं था. इसी दौरान डा. अभिषेक की दोस्ती उसी अस्पताल में काम करने वाली एक लेडी डाक्टर प्रीति मेहरा से हो गई. प्रीति भी बीएएमएस डाक्टर थी. खूबसूरत और जवान प्रीति प्रतिभाशाली थी. उस के दिल में भी अपना अस्पताल बनाने की महत्त्वाकांक्षा पल रही थी. लेकिन इस सपने को पूरा करने में समर्थ नहीं होने के कारण अक्सर मानसिक परेशानी से घिरी रहती थी. जब अभिषेक से उस की दोस्ती हुई तो लगा कि वे दोनों एक ही मंजिल के मुसाफिर हैं. दोनों की दोस्ती जल्द ही प्यार में बदल गई.

दोनों के सपने भी एक जैसे थे, लाचारी भी एक जैसी थी. लेकिन सपनों को पूरा करने की धुन दोनों पर सवार थी. पिछली दीपावली पर नवंबर, 2019 में जब अभिषेक अपने घर गोंडा गया तो उस की मुलाकात अपनी बुआ के बेटे रोहित से हुई. बुआ की शादी बहराइच के पयागपुर इलाके में हुई थी. रोहित भी पयागपुर में ही रहता था. रोहित की जानपहचान मोहित सिंह से भी थी. मोहित सिंह गोंडा में रहने वाले अभिषेक के दोस्त राकेश सिंह का साला था. मोहित दिल्ली के करोलबाग की एक दुकान में काम करता है. रोहित भी मोहित को जानता है. रोहित व मोहित दोनों की जानपहचान एससीपीएम कालेज गोंडा से आयुर्वेदिक चिकित्सा की पढ़ाई कर रहे गौरव हलधर से थी.

दोनों ही गौरव के अलावा उस के परिवार के बारे में भी अच्छी तरह से जानते थे. अभिषेक जब दीपावली पर अपने घर गया तो पयागपुर से बुआ का बेटा रोहित उस के घर आया हुआ था. रोहित के सामने अभिषेक का दर्द छलक गया. शराब पीने के बाद उस ने रोहित से यहां तक कह दिया कि अगर उसे चोरी, डाका या किसी का अपहरण भी करना पड़े तो वह पीछे नहीं हटेगा. अभिषेक की बात सुनते ही रोहित का माथा ठनक गया. पहले तो उस ने अभिषेक को समझाना चाहा. लेकिन अभिषेक नहीं माना और बोला भाई बस तू एक बार किसी ऐसे शिकार के बारे में बता दे, जिस से मेरा सपना पूरा करने के लिए रकम मिल सकती हो.

अभिषेक नहीं माना तो रोहित ने उसे गौरव हलधर के बारे में बताया और उस के पूरे परिवार की जानकारी भी दे दी. रोहित ने अभिषेक को बताया कि डा. निखिल हलधर का बेटा गौरव गोंडा में ही फर्स्ट ईयर की पढ़ाई कर रहा है. अगर किसी तरीके से उस का अपहरण कर लिया जाए तो फिरौती के रूप में बड़ी रकम मिल सकती है. डा. अभिषेक ने जब डा. प्रीति मेहरा को गौरव का अपहरण करने की अपनी योजना के बारे में बताया तो उस ने नाराजगी नहीं जताई बल्कि खुश हुई और उस ने ही अपनी तरफ से सुझाव दिया कि गौरव का अपहरण करने में वह खुद उस की मदद करेगी.

प्रीति ने अभिषेक को बताया कि एक जवान लड़के का अगर अपहरण करना हो तो किसी जवान लड़की को उस के सामने चारा बना कर डाल दो, वह खुदबखुद उस जाल में फंस जाएगा. अभिषेक से उस ने गौरव का नंबर देने के लिए कहा तो अभिषेक ने उसे रोहित से गौरव का नंबर ले कर दे दिया. इस के बाद डा. प्रीति मेहरा ने एक रौंग नंबर के बहाने गौरव को काल कर बातचीत का सिलसिला शुरू कर दिया. पहली ही बार में बात करने के बाद गौरव उस के जाल में फंस गया और दोनों का एकदूसरे से परिचय कुछ ऐसा हुआ कि उस दिन के बाद वे दोनों एकदूसरे से बात करने लगे.

प्रीति मेहरा वीडियो काल के जरिए जब गौरव से बात करती तो कई बार गौरव को अपने नाजुक अंग दिखा कर अपने लिए उसे बेचैन कर देती. दरअसल, साजिश के इस मुकाम तक पहुंचने से पहले डा. अभिषेक ने इसे अंजाम देने के लिए कुछ लोगों को भी अपने साथ जोड़ लिया था. करोलबाग में कपड़े की दुकान पर काम करने वाले मोहित को जब अभिषेक ने गौरव का अपहरण करने की योजना बताई और उस से मदद मांगी तो मोहित ने अभिषेक को अपने एक दोस्त  नितेश से मिलवाया. दरअसल, नितेश व मोहित एक ही जिम में व्यायाम करने के लिए जाते थे. इसीलिए दोनों के बीच दोस्ती थी. नितेश इंश्योरेंस कराने का काम करता था.

इंश्योरेंस के साथ वह लोगों के बैंक में खाते खुलवाने से ले कर उन्हें लोन दिलाने का काम करता था. इसीलिए फरजी आईडी से ले कर जाली आधार कार्ड व पैन कार्ड बनाने में उसे महारथ हासिल थी. मोहित ने उसे मोटी रकम मिलने का सब्जबाग दिखा कर अपहरण की इस वारदात में अपने साथ मिला लिया. इस के बाद नितेश ने 3 आईडी तैयार कीं और उन्हीं आईडी के आधार पर उस ने 3 सिमकार्ड खरीदे. फरजी आईडी से खरीदे गए तीनों सिम कार्ड डा. प्रीति मेहरा, डा. अभिषेक व मोहित ने अपने पास रख लिए. डा. प्रीति ने तो अपने सिम कार्ड का इस्तेमाल गौरव हलधर से दोस्ती करने के लिए शुरू कर दिया. लेकिन अभिषेक व मोहित ने अपहरण करने से चंद रोज पहले ही अपने सिम कार्ड का इस्तेमाल किया था.

प्रीति मेहरा ने गौरव को अपने प्रेमजाल में इस तरह फंसा लिया कि वह उस के एक इशारे पर कुछ भी करने को तैयार था. जब सब ने यह देख लिया कि शिकार जाल में फंसने का तैयार है तो प्रीति ने गौरव को वाट्सऐप मैसेज दिया कि वह 18 जनवरी को उस से मिलने गोंडा आ रही है. रोहित भी उस समय दिल्ली आया हुआ था. दिल्ली से स्विफ्ट डिजायर कार ले कर डा. अभिषेक, डा. प्रीति मेहरा, मोहित, रोहित व नितेश गोंडा पहुंच गए. गोंडा पहुंचने से पहले रोहित बहराइच में ही उतर गया. इधर गोंडा पहुंच कर डा. प्रीति ने एक राहगीर से किसी बहाने फोन ले कर गौरव को मिलने के लिए फोन किया और उस के कालेज से एक किलोमीटर दूर एक जगह पर बुलाया.

प्रीति मेहरा का रंगीन वार प्रीति के मोहपाश में फंसा गौरव वहां चला आया. गौरव को प्रीति ने अपने साथ कार में बैठा लिया, जहां बैठे बाकी अन्य लोगों ने उसे दबोच कर नशे का इंजेक्शन दे दिया. इस के बाद वे गोंडा से चल दिए. उन की योजना गौरव को संतकबीर नगर के खलीलाबाद में रहने वाले सतीश के घर पर छिपाने की थी. वे वहां पहुंच भी गए, लेकिन बाद में इरादा बदल दिया और कुछ ही देर में कार से दिल्ली के लिए रवाना हो गए. 18 जनवरी की रात को ही दिल्ली पहुंच गए. रास्ते में गाजियाबाद के पास उन्होंने गौरव के फोन से गौरव के पिता निखिल को फिरौती के लिए पहला फोन कर 70 लाख की फिरौती की मांग की.

इसके बाद उन्होंने गौरव को अभिषेक के बक्करवाला स्थित डीडीए फ्लैट में छिपा दिया. नितेश या मोहित उसे खाना देने जाते थे और डा. अभिषेक व प्रीति उसे लगातार नशे के इंजेक्शन देते थे ताकि वह होश में आ कर शोर न मचा दे. उन लोगों ने कई बार गौरव के साथ मारपीट भी की. इधर रोहित ने जब गोंडा व बहराइच में गौरव के अपहरण कांड को ले कर छप रही खबरों के बारे में अभिषेक को बताया कि पुलिस की एक टीम दिल्ली में गौरव की तलाश कर रही है तो अभिषेक ने गौरव को अपने फ्लैट से कहीं दूसरी जगह रखने की योजना बनाई.

इसीलिए डा. अभिषेक मोहित व नितेश के साथ 21 जनवरी की रात को गौरव को बेहोशी का इंजेक्शन दे कर उसे कार से ले कर ग्रेटर नोएडा जा रहा था, तभी पुलिस ने सर्विलांस के जरिए उन की लोकेशन का पता लगा कर उन्हें दबोच लिया. नितेश के पिता व गोंडा पुलिस के नोएडा पहुंचने के बाद एसटीएफ ने उन्हें  गोंडा पुलिस के हवाले कर दिया. इधर पुलिस को जब इस में रोहित व सतीश नाम के 2 और लोगों के शामिल होने की खबर लगी तो गोंडा पुलिस की टीम ने दबिश दे कर उसी रात रोहित व सतीश को भी गिरफ्तार कर लिया.

लेकिन इस पूरे घटनाक्रम की खबर पा कर डा. प्रीति फरार हो चुकी थी. उस की तलाश में एसटीएफ और गोंडा पुलिस ने कई जगह छापे मारे, लेकिन वह पुलिस की पकड़ में नहीं आई. गोंडा पुलिस ने प्रीति की गिरफ्तारी पर 25 हजार के इनाम की घोषणा की थी. जिस के बाद गोंडा पुलिस ने 1 फरवरी को प्रीति को उस के गांव धौर जिला झज्जर, हरियाणा से गिरफ्तार कर लिया. मूलरूप से हरियाणा की प्रीति मेहरा वर्तमान में दिल्ली के प्रेमनगर में रहती थी. फिलहाल सभी आरोपी न्यायिक हिरासत में जेल में हैं. कैसी विडंबना है कि सालों की मेहनत के बाद डाक्टर बनने वाले अभिषेक व प्रीति अपने अधूरे ख्वाब को पूरा करने के लिए शार्टकट से पैसा कमाने के चक्कर में जेल की सलाखों के पीछे पहुंच गए.

डीजीपी ने फिरौती के लिए हुए अपहरण कांड का खुलासा कर आरोपियों को गिरफ्तार करने वाली गोंडा पुलिस की टीम को पुरस्कृत करने की घोषणा की है.

—कथा पुलिस की जांच, पीडि़त व अभियुक्तों के बयान पर आधारित

 

Crime News : जंगल में ले जाकर किया कत्ल फिर पहचान मिटाने को शव जलाया

Crime News : किसी भी महिला के जब पैर बहक जाते हैं तो वह बेहया हो जाती है. केशरबाई तो जवानी की दहलीज पर चढ़ते ही बहक गई थी. मांबाप ने उस की शादी भी कर दी, लेकिन शादी के बाद केशरबाई ने जो गुल खिलाए, उन का यह नतीजा निकला कि…

26 नवंबर, 2020 की दोपहर का समय था. धार क्राइम ब्रांच एवं साइबर सेल प्रभारी संतोष पांडेय कुछ पुराने मामलों के आरोपियों तक पहुंचने के लिए धूल चढ़ी फाइलों से जूझ रहे थे, तभी उन के मोबाइल पर एक खास मुखबिर के नंबर से घंटी बज उठी. इस मुखबिर को उन्होंने बेहद खास जिम्मेदारी सौंप रखी थी. इसलिए उस मुखबिर की फोन काल को उन्होंने तुरंत रिसीव किया. मुखबिर ने उन्हें एक खास सूचना दी थी. सूचना पाते ही संतोष पांडेय के चेहरे पर मुसकान तैर गई, उस के बाद उन्होंने मुखबिर से मिली खबर के बारे में पूरी जानकारी एसपी (धार) आदित्य प्रताप सिंह और दूसरे अधिकारियों को दी. फिर उन से मिले निर्देश के बाद कुछ ही देर में अपनी टीम ले कर मागौद चौराहे पर जा कर डट गए.

दरअसल, धार पुलिस को लंबे समय से गंधवानी थाना इलाके में हुई एक हत्या के आरोपी गोविंद की तलाश थी. एसपी ने गोविंद की गिरफ्तारी पर 10 हजार रुपए का ईनाम भी घोषित कर रखा था. गोविंद को पकड़ने की जिम्मेदारी जिस टीम को सौंपी गई थी, उस में धार साइबर सेल के प्रमुख संतोष पांडेय और उन का स्टाफ भी शामिल था. इसलिए उस रोज जब मुखबिर ने गोविंद के मोटरसाइकिल से मागौद आने की जानकारी पांडेयजी को दी तो उन्होंने इस ईनामी आरोपी को पकड़ने मागौद चौराहे पर अपना जाल बिछा दिया. मुखबिर की सूचना गलत नहीं थी. कुछ ही घंटों के बाद पांडेय ने एक बिना नंबर की मोटरसाइकिल पर सवार युवक को तेजी से मागौद की तरफ आते देखा तो उन्होंने उसे घेरने के लिए अपनी टीम को इशारा किया, लेकिन संयोग से मोटरसाइकिल सवार की नजर पुलिस पर पड़ गई.

इसलिए खतरा भांप कर उस ने तेजी से मोटरसाइकिल राजगढ़ की तरफ मोड़ दी. संतोष पांडेय इस स्थिति के लिए पहले से ही तैयार थे सो गोविंद के वापस मुड़ कर भागते ही वे अपनी टीम के साथ उस के पीछे लग गए. दूसरी तरफ इस स्थिति की जानकारी एसपी आदित्य प्रताप सिंह को दी गई तो उन के निर्देश पर एसडीपीओ (सरदारपुर) ऐश्वर्य शास्त्री और राजगढ़ टीआई मगन सिंह वास्केल ने रोड पर आगे की तरफ से घेराबंदी कर दी थी. इसलिए दोनों तरफ से पुलिस से घिर जाने पर गोविंद ने मोटरसाइकिल खेतों की तरफ मोड़ कर भागने की कोशिश की, मगर साइबर सेल प्रभारी संतोष पांडेय और उन की टीम उसे दबोचने में कामयाब हो ही गई. पुलिस ने उस की तलाशी ली गई तो उस के पास से एक कट्टा, जिंदा कारतूस और चोरी की मोटरसाइकिल भी बरामद कर ली.

चूंकि केशरबाई भील नाम की जिस महिला की हत्या के आरोप में गोविंद को गिरफ्तार किया गया था, उस में केशरबाई की हत्या में शामिल गोविंद का साथी सोहन वास्केल निवासी उदियापुर को पुलिस पहले ही गिरफ्तार कर चुकी थी. इसलिए पूछताछ के दौरान गोविंद ने बिना किसी हीलहुज्जत के अपनी प्रेमिका और रखैल केशरबाई की हत्या करने की बात स्वीकार करते हुए पूरी कहानी सुना दी, जो इस प्रकार निकली—

कुक्षी थाना इलाके के एक गांव की रहने वाली केशरबाई को सिगरेट, शराब और सैक्स की लत किशोर उम्र में ही लग गई थी. संयोग से उस का रूप भी कुछ ऐसा दिया था कि उसे नजर भर कर देखने वाले घायल हो ही जाते थे. इसलिए शौक पूरा करने के लिए उसे अपने रूप का उपयोग करने में भी कोई गुरेज नहीं थी. केशरबाई की हरकतों से चिंतित उस के मातापिता ने छोटी उम्र में ही उस की शादी कर दी, लेकिन एक पुरुष से केशरबाई का मन भरने वाला नहीं था. इसलिए शादी के बाद भी उस ने अपने शौक पर लगाम लगाने की कोई जरूरत नहीं समझी. जिस के चलते पति से होने वाले विवादों से तंग आ कर उस ने पति का घर छोड़ कर बच्चों के साथ अलग दुनिया बसा ली.

केशरबाई जानती थी की उस की सुंदरता उसे कभी भूखा नहीं मरने देगी. ऐसा हुआ भी, केशरबाई पति को छोड़ कर भी अपने सभी शौक पूरे करते हुए आराम से जिंदगी बसर करने लगी. पति से अलग रहते हुए केशरबाई को इस बात का अनुभव हो चुका था कि मर्द की पहली जरूरत एक जवान औरत ही होती है. इसलिए उस ने ऐसे लोगों की तलाश कर उन्हें बड़ी रकम के बदले शादी के नाम पर दुलहन उपलब्ध करवाने का काम शुरू कर दिया, जिन की किसी कारण से शादी नहीं हो पा रही थी. उस ने आसपास के गांव में रहने वाली गरीब परिवार की जरूरतमंद युवतियों के अलावा विधवा और तलाकशुदा महिलाओं से दोस्ती कर ली थी जो केशरबाई के कहने पर कुछ पैसों के बदले में चंद दिनों के लिए किसी भी युवक की नकली दुलहन बनने को तैयार हो जाती थीं.

केशरबाई जरूरतमंद लोगों से बड़ी रकम ले कर उस में से कुछ पैसे संबंधित युवती को दे कर उस की शादी युवक से करवा देती, जिस के बाद युवती कुछ रातों तक युवक को दुलहन का सुख देने के बाद किसी बहाने से मायके वापस आ कर गायब हो जाती थी. इस पर लोग यदि केशरबाई से शिकायत करते या अपना पैसा वापस मांगते तो वह उन्हें बलात्कार के आरोप में फंसाने की धमकी दे कर चुप करा देती. कहना नहीं होगा कि इन्हीं सब के चलते केशरबाई ने इस काम में खूब नाम और दाम कमाया. गांव उदियापुर निवासी सोहन वास्केल की केशरबाई से अच्छी पटती थी. उस का केशरबाई के यहां अकसर आनाजाना था जिस से वह केशरबाई के सभी कामों से परिचित भी था. सोहन की दोस्ती गांव सनावदा के रहने वाले गोविंद बागरी से थी.

गोविंद आपराधिक और अय्याशी प्रवृत्ति का था. उस ने भी इलाके में रहने वाली केशरबाई के चर्चे सुन रखे थे, इसलिए जब उसे पता चला कि सोहन की केशरबाई के संग अच्छी दोस्ती है तो उस ने सोहन से अपनी दोस्ती भी केशरबाई से करवा देने के लिए कहा. सोहन को भला क्या ऐतराज हो सकता था, इसलिए उस ने एक रोज गोविंद की मुलाकात केशरबाई से करवा दी. गोविंद केशरबाई की खूबसूरती देखते ही उस का दीवाना हो गया. इस पर जब उसे पता चला कि केशरबाई शराब पीने की भी शौकीन है तो वह 2 दिन बाद ही शराब की दरजन भर बोतलें ले कर केशरबाई के पास पहुंच गया. मर्द की नजर भांपने में केशरबाई कभी गलती नहीं करती थी. वह समझ गई कि गोविंद उस से क्या चाहता है, इसलिए उस ने उस रात गोविंद को शराब के साथ अपने रूप के नशे में भी गले तक डुबो दिया.

वास्तव में केशरबाई ने यह सब एक योजना के तहत किया था. केशरबाई को इस बात की जानकारी लग गई थी कि गोविंद न केवल पैसे वाला आदमी है बल्कि हेकड़ भी है. उस के खिलाफ कई थानों में अनेक मामले भी दर्ज हैं. इसलिए केशरबाई गोविंद से दोस्ती कर उस का उपयोग अपनी नकली दुलहन के कारोबार में करना चाहती थी. ताकि गोविंद ऐसे लोगों से उसे बचा सके जो शादी के नाम पर ठगे जाने के बाद केशरबाई से विवाद करने उस के दरवाजे पर भीड़ लगाए रहते थे. केशरबाई के रूप का दीवाना हो कर गोविंद उस के इस काम में मदद करने लगा तो इस का एक कारण यह भी था कि इस काम में केशरबाई के हाथ बड़ी रकम आती थी और गोविंद का सोचना था कि वह केशरबाई की मदद कर के उस की नजदीकी तो हासिल करता ही रहेगा.

साथ ही साथ इस रकम में से भी वह अपनी हिस्सेदारी तय कर लेगा. इसलिए उस ने केशरबाई के सामने दीवाना होने का नाटक किया और अपनी पत्नी एवं बच्चों को छोड़ कर केशरबाई के संग जा कर सेंधवा में रहने लगा. लेकिन केशरबाई के पैसों पर ऐश करने का गोविंद का सपना चकनाचूर हो गया. केशरबाई फरजी शादी में ठगे पैसों में गोविंद को हाथ भी लगाने नहीं देती थी, उलटे घर का खर्च भी गोविंद से मांगती थी. गोविंद फंस गया था. केशरबाई के रूप का नशा उस के दिमाग से उतर गया. वह समझ गया कि केशरबाई बड़ी शातिर है. इतना नहीं, केशरबाई परिवार का खर्च तो गोविंद से मांगती थी, ऊपर से अपनी अय्याशी के लिए दूसरे युवकों को खुलेआम घर बुलाती थी.

गोविंद इस पर ऐतराज करता तो वह साफ बोल देती कि मैं तुम्हारी बीवी नहीं हूं, जो अकेले तुम्हारे बिस्तर पर सोऊं. मेरा अपना बिस्तर है और मैं जिसे चाहूं उसे अपने साथ सुला सकती हूं. गोविंद ने उसे अपनी ताकत से दबाना चाहा तो केशरबाई ने जल्द ही उसे इस बात का अहसास भी करवा दिया कि केशरबाई को वह अपनी ताकत से नहीं दबा सकता. कहना नहीं होगा कि सब मिला कर गोविंद केशरबाई नाम की इस खूबसूरत बला के कांटों में उलझ कर रह गया था. इसी बीच एक और घटना घटी. हुआ यह कि गंधवानी थाना सीमा के बोरडाबरा गांव में सोहन के एक परिचित दिनेश भिलाला को शादी के लिए एक लड़की की जरूरत थी.

चूंकि बोरडाबरा गांव अपनी आपराधिक गतिविधियों के लिए पूरे इलाके में कुख्यात है, इसलिए कोई भी भला आदमी अपनी बेटी को बोरडाबरा में रहने वाले युवक से ब्याहना पसंद नहीं करता. दिनेश भिलाला भी यहां रहने वाले खूंखार आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों में से एक था, इसलिए उम्र गुजर जाने के बाद भी उसे शादी के लिए लड़की नहीं मिल रही थी. उस ने अपनी यह समस्या सोहन के सामने रखी तो सोहन ने केशरबाई के माध्यम से उस की शादी करवा देने का भरोसा दिलाया. सोहन जानता था कि केशरबाई शादी के नाम पर ठगी का खेल करती है. उस की लड़कियां शादी के कुछ दिन बाद पति के घर से मालपैसा समेट कर फरार हो जाती हैं.

लेकिन उसे भरोसा था कि चूंकि केशरबाई उस की परिचित है, इसलिए वह उस के कहने पर ईमानदारी से दिनेश के लिए किसी अच्छी लड़की का इंतजाम करवा देगी. केशरबाई ने ऐसा किया भी. सोहन के कहने पर उस ने 80 हजार रुपए के बदले में दिनेश भिलाला की शादी एक बेहद खूबसूरत युवती से करवा दी. लेकिन सोहन का यह सोचना कि केशरबाई उसे धोखा नहीं देगी, गलत साबित हुआ. शादी के बाद वह युवती 15 दिन तक तो दिनेश भिलाला के साथ उस की पत्नी बन कर रही, उस के बाद केशरबाई  के इशारे पर वह दिनेश के बिस्तर से उतर कर वापस आने के बाद कहीं गायब हो गई. पत्नी के भाग जाने की बात दिनेश को पता चली तो उस ने सीधे जा कर सोहन का गला पकड़ लिया. उस का कहना था कि या तो पत्नी को उस के पास भेजो या फिर शादी के नाम पर उस से लिया गया पैसा 80 हजार मय खर्च के वापस करो.

सोहन ने इस बारे में केशरबाई से बात की तो उस ने साफ  मना कर दिया. उस का कहना था कि मेरी जिम्मेदारी शादी करवाने की थी, लड़की को दिनेश के गले बांध कर रखने की नहीं. लड़की कहां गई, इस का उसे पता नहीं और न ही वह दिनेश को उस का पैसा वापस करेगी. लेकिन दिनेश इतनी जल्दी हार मानने वाला नहीं था. उस ने सोहन के साथसाथ केशरबाई और उस के आशिक गोविंद को भी धमकी दी कि अगर 10 दिन में उस की पत्नी वापस नहीं आई तो 11वें दिन उस का पैसा वापस कर देना. और अगर यह भी नहीं कर सकते तो फिर तीनों मरने के लिए तैयार रहना. बोरडाबरा का आदमी खालीपीली धमकी नहीं देता. वह सचमुच ऐसा कर सकता है, यह सोच कर सोहन और गोविंद दोनों के प्राण गले में अटक गए.

केशरबाई के संग अय्याशी के चक्कर में जान पर बन आई तो सोहन और गोविंद दोनों उस से बचने का रास्ता सोचने लगे. पहली अक्तूबर, 2020 को गंधवानी थाना इलाके के अवल्दमान गांव निवासी एक आदमी ने थाने आ कर गांव में प्राथमिक स्कूल के पास किसी महिला की अधजली लाश पड़ी होने की खबर दी. अवल्दामान गांव अपराध के लिए कुख्यात बोरडाबरा गांव के नजदीक है, इसलिए गंधवानी टीआई को लगा कि यह बोरडाबरा के बदमाशों का ही काम होगा. लगभग 30 वर्षीय महिला के शरीर पर धारदार हथियार के घाव भी थे, इसलिए मामला सीधेसीधे हत्या का प्रतीक होने पर टीआई गंधवानी ने इस बात की जानकारी एसपी आदित्य प्रताप सिंह को देने के बाद शव पोस्टमार्टम के लिए इंदौर भेज दिया.

मामला गंभीर था क्योंकि आमतौर पर लोग पहचान छिपाने के लिए शव को जलाते हैं, ताकि उस की पहचान न हो सके. लेकिन इस मामले में अजीब बात यह थी कि हत्यारों ने युवती का धड़ तो जला दिया था लेकिन चेहरा पूरी तरह से सुरक्षित था. ऐसा प्रतीक होता था मानो हत्यारे खुद यह चाहते हों कि  शव की शिनाख्त आसानी से हो जाए. ऐसा हुआ भी. मृतका के चेहरे और हाथ पर बने एक निशान ने उस की पहचान केशरबाई भील के रूप में हो गई जो पति को छोड़ कर अपने प्रेमी गोविंद के साथ रह रही थी. मामला रहस्यमयी था, इसलिए एसपी (धार) ने एडीशनल एसपी देवेंद्र पाटीदार के नेतृत्व में एक टीम गठित कर दी.

जिस में पता चला कि मृतका को घटना से 1-2 दिन पहले सोहन के साथ मोटरसाइकिल पर घूमते देखा गया था. सोहन अपने घर से गायब था, इसलिए उस पर शक गहराने के बाद पुलिस ने उस की घेराबंदी कर लाश मिलने के 3 दिन बाद उसे गिरफ्तार कर लिया. जिस में पहले तो वह खुद को निर्दोष बताता रहा, लेकिन बाद में गोविंद के साथ मिल कर केशरबाई की हत्या करने की बात स्वीकार कर ली. सोहन को पुलिस उठा कर ले गई है, इस बात की जानकारी लगते ही गोविंद भी गांव से गायब हो गया था. इसलिए जब काफी प्रयास के बाद उसे पकड़ने में सफलता नहीं मिली, तब टीम में साइबर सेल को शामिल किया गया.

कहना नहीं होगा कि जिम्मेदारी मिलते ही प्रभारी संतोष पांडेय की टीम सक्रिय हो गई और हत्या के 2 महीने बाद आखिर साइबर सेल टीम ने फरार आरोपी गोविंद को गिरफ्तार करने में सफलता हासिल कर ली. सलाखों के पीछे पहुंचा ही दिया. आरोपियों ने बताया कि उन्होंने केशरबाई की हत्या खेरवा के जगंल में ले जा कर की थी. जहां से उन्होंने लाश को अवल्दामान गांव में ला कर इस तरह जलाया था कि उस की पहचान हो जाए. अवल्दामान गांव बोरडाबरा के नजदीक है. बोरडाबरा में रहने वाले दिनेश ने केशरबाई को जान से मारने की धमकी दी है यह बात कई लोगों को मालूम थी. इसलिए आरोपियों का सोचना था कि अवल्दामान में लाश मिलने से पुलिस दिनेश भिलाला को हत्यारा मान कर उसे जेल भेज देगी, जिस से सोहन और गोविंद आराम से रह सकेंगे. लेकिन ऐसा नहीं हुआ और असली गुनहगार पकड़े गए.

 

Gujarat News : एक ही घर में तीन कत्ल करने वाले कातिल की स्टोरी

Gujarat News : हत्या के जुर्म में सुनाई गई सजा काटते वक्त पैरोल जंप कर गुजरात से आ कर रतलाम में बसा हत्यारा गैंगस्टर दिलीप देवले इसलिए हत्या कर देता था ताकि पुलिस को उस के खिलाफ कोई सबूत न मिल सके. देव दिवाली की रात भी उस ने 3 लोगों को इसीलिए मौत की नींद सुला दिया था  कि…

25 नंवबर, 2020 को देव दिवाली का त्यौहार होने के कारण एक ओर जहां रतलाम के लोग अपने आंगन में गन्ने से बने मंडप तले शालिग्राम और माता तुलसीजी का विवाह उत्सव मना रहे थे, वहीं दूसरी ओर शहर भर के बच्चे दीवाली की बची आतिशबाजी को खत्म करने के जतन में लगे हुए थे. चारों तरफ भक्ति के साथ धूमधड़ाके का माहौल था. लेकिन इस से अलग औद्योगिक थाना इलाके में कब्रिस्तान के पास बसे राजीव नगर में 4 युवक बेवजह ही सड़क पर यहां से वहां चक्कर लगाते हुए कालोनी के एक तिमंजिला मकान पर नजर लगाए हुए थे. यह मकान गोविंद सेन का था. लगभग 50 वर्षीय गोविंद सेन का स्टेशन रोड पर अपना सैलून था.

उन का रिश्ता ऐसे परिवार से रहा जिस के पास पुश्तैनी संपत्ति रही है इसलिए पारिवारिक बंटवारे में मिली बड़ी संपत्ति के कारण उन्होंने राजीव नगर में यह आलीशान मकान बनवा लिया था. इस की पहली मंजिल पर वह स्वयं 45 वर्षीय पत्नी शारदा और 21 साल की बेहद खूबसूरत बेटी दिव्या के साथ रहते थे. जबकि बाकी 5 मंजिल पर किराएदार रहते थे. उन की एक बड़ी बेटी भी थी, जिस की शादी हो चुकी थी. इस परिवार के बारे में आसपास के लोग जितना जानते थे, उस के हिसाब से गोविंद सिंह की पत्नी घर पर अवैध शराब बेचने का काम करती थी. जबकि उन की बेटी को काफी खुले विचारों के तौर पर जाना जाता था. लोगों का मानना था कि दिव्या एक ऐसी लड़की है जो जवानी में ही दुनिया जीत लेना चाहती थी.

उस की कई युवकों से दोस्ती की बात भी लोगों ने अपनी आंखों से देखी और सुनी थी. फिर हाथ कंगन को आरसी क्या, पिता के सैलून चले जाने के बाद दिन भर ही तो घर में अकेली रह जाती. मां शारदा और बेटी दिव्या से मिलने के लिए आने वालों की कतार लगी रहती थी. मोहल्ले वाले यह सब देख कर कानाफूसी करने के बाद ‘हमें क्या करना’ कह कर अनदेखी करते रहते थे. इसलिए 25 नवंबर की रात जब चारों ओर देव दिवाली की धूम मची हुई थी. राजीव नगर की इस गली मे घूम रहे युवक कोई साढे़ 7 बजे के आसपास गोविंद के घर के सामने से गुजरते हुए सीढ़ी चढ़ कर ऊपर चले गए तो सामने के मकान से देख रहे युवक ने इस बात पर खास ध्यान नहीं दिया.

जबकि उन का चौथा साथी गोविंद के घर जाने के बजाय कुछ दूरी पर जा कर खड़ा हो गया. रात कोई सवा 9 बजे गोविंद दूध की थैली लिए हुए थकाहारा सा घर की ओर लौटा. गोविंद सीढि़यां चढ़ कर ऊपर पहुंचे, जिस के कुछ देर बाद वे तीनों युवक उन के घर से निकल कर नीचे आ गए. जिस पड़ोसी ने इन को ऊपर जाते देखा था, संयोग से इन तीनों को वापस उतरते भी देखा तो यह सोच कर उस के चेहरे पर मुसकराहट तैर गई कि घर लौटने पर इन युवकों को अपने घर में पहले से मौजूद देख कर गोविंद सेन की मन:स्थिति क्या रही होगी. तीनों युवकों ने नीचे खड़ी दिव्या की एक्टिवा स्कूटी में चाबी लगाने की कोशिश की, लेकिन संभवत: वे गलत चाबी लाए थे.

इसलिए उन में से एक वापस ऊपर जा कर दूसरी चाबी ले आया, जिस के बाद वे दिव्या की एक्टिवा पर बैठ कर चले गए. 26 नवंबर की सुबह के 8 बजे रतलाम में रोज की तरह सड़कों पर आवाजाही थी. लेकिन गोविंद सेन के घर में अभी भी सन्नाटा पसरा हुआ था. कुछ देर में उन के मकान में किराए पर रहने वाली युवती ज्वालिका अपने कमरे से बाहर निकल कर दिव्या के घर की तरफ बढ़ गई. गोविंद के मकान में किराए पर रहने वाली दिव्या की हमउम्र ज्वालिका एक प्राइवेट अस्पताल में नौकरी करती है. गोविंद की बेटी भी एक निजी कालेज से बीएससी की पढ़ाई के साथ नर्सिंग का कोर्स कर रही थी. महामारी के कारण आजकल क्लासेस बंद पड़ी थीं, इसलिए वह अपनी बड़ी बहन की कंपनी में नौकरी करने लगी.

ज्वालिका और दिव्या एक ही एक्टिवा का उपयोग करती थीं. जब जिस को जरूरत होती, वही एक्टिवा ले जाती थी. लेकिन इस की चाबी हमेशा गोविंद के घर में रहती थी. सो काम पर जाने के लिए एक्टिवा की चाबी लेने के लिए ज्वालिका जैसे ही गोविंद के घर में दाखिल हुई, चीखते हुए वापस बाहर आ गई. उस की चीख सुन कर दूसरे किराएदार बाहर आ गए और उन्हें पता चला कि गोविंद के घर के अंदर गोविंद, उस की पत्नी और बेटी की लाश पड़ी है. घबराए लोगों ने यह खबर नगर थाना टीआई रेवल सिंह बरडे को दे दी. जिस से कुछ ही देर में वह अपनी टीम के साथ मौके पर पहुंच गए और मामले की गंभीरता को देखते हुए इस तिहरे हत्याकांड की खबर तुरंत एसपी गौरव तिवारी को दे दी.

चंद मिनट बाद ही एसपी गौरव तिवारी एएसपी सुनील पाटीदार, एफएसएल अधिकारी अतुल मित्तल एवं एसपी के निर्देश पर माणकचौक के थानाप्रभारी अयूब खान भी मौके पर पहुंच गए. तिहरे हत्याकांड की खबर पूरे रतलाम में फैल गई, जिस से मौके पर जमा भारी भीड़ के बीच मौकाएवारदात की जांच में एसपी गौरव तिवारी ने पाया कि शारदा का शव बिस्तर पर पड़ा था, जिस के सिर में गोली लगी थी. उन की बेटी दिव्या की लाश किचन के बाहर दरवाजे पर पड़ी थी. दिव्या के हाथ में आटा लगा हुआ था और आधे मांडे हुए आटे की परात किचन में पड़ी हुई थी. इस से साफ हुआ कि पहले बिस्तर पर लेटी हुई शारदा की हत्या हुई होगी. गोली की आवाज सुन कर दिव्या बाहर आई होगी तो हत्यारों ने उसे भी गोली मार दी होगी.

जांच में स्पष्ट हुआ कि दरवाजे के पास पड़ी गोविंद की लाश की हत्या सब से बाद में हुई थी. उन के पैर में जूते थे और हाथ में दूध की थैली. जिस से पुलिस ने अनुमान लगाया कि हत्यारे 2 हत्या करने के बाद भागना चाहते होंगे, लेकिन भागते समय ही गोविंद घर लौट आए, जिस से उन की भी हत्या कर दी होगी. पड़ोसियों ने गोविंद को 9 बजे घर आते देखा था. उस के बाद 3 लोगों को घर से बाहर जाते देखा. इस से यह साफ हो गया कि हत्या 9 बजे के पहले की गई होगी. पुलिस ने जांच शुरू की तो गोविंद सेन के परिवार के बारे में जो जानकरी निकल कर सामने आई, उस से पुलिस को शक था कि हत्याएं प्रेम प्रसंग या अवैध संबंध को ले कर की गई होंगी.

लेकिन गोविंद के एक रिश्तेदार ने इस बात को पूरी तरह गलत करार देते हुए बताया कि गोविंद ने कुछ ही समय पहले गांव की अपनी जमीन 30 लाख रुपए में बेची थी. दूसरा घटना के दिन ही शारदा और दिव्या ने डेढ़ लाख रुपए की ज्वैलरी की खरीदारी की थी, जो घर में नहीं मिली. इस कारण पुलिस लूट के एंगल से भी जांच करने में जुट गई. चूंकि मौके पर संघर्ष के निशान नहीं थे और हत्यारे गोविंद की बेटी की एक्टिवा भी साथ ले गए थे. इस से यह साफ हो गया कि वे जो भी रहे होंगे, परिवार के परिचित रहे होंगे एवं उन्हें गाड़ी की चाबी आदि रखने की जगह भी मालूम थी. हत्यारों ने वारदात का दिन देव दिवाली का सोचसमझ कर चुना. इसलिए आतिशबाजी के शोर में किसी ने भी पड़ोस में चलने वाली गोलियों की आवाज पर ध्यान नहीं दिया था.

मामला गंभीर था इसलिए आईजी राकेश गुप्ता ने भी मौके का निरीक्षण करने के बाद हत्यारों की गिरफ्तारी पर 30 हजार रुपए के ईनाम की घोषणा कर दी. वहीं एसीपी गौरव तिवारी ने 10 थानों के टीआई और लगभग 60 पुलिसकर्मियों की एक टीम गठित कर दी, जिस की कमान  थानाप्रभारी अयूब खान को सौंपी गई. इस टीम ने इलाके के पूरे सीसीटीवी कैमरे खंगाल दिए, इस के अलावा घटना के समय राजीव नगर में स्थित मोबाइल टावर के क्षेत्र में सक्रिय 70 हजार से अधिक फोन नंबरों की जांच शुरू की. दिव्या को एक बोल्ड लड़की के रूप में जाना जाता था. उस की कई लड़कों से दोस्ती थी. कुछ दिन पहले उस ने एक अलबम ‘मैनूं छोड़ के…’ में काम किया था.

इस अलबम में भी उस की एक दुर्घटना में मौत हो जाती है. पुलिस ने उस के साथ काम करने वाले युवक अभिजीत बैरागी से पूछताछ की लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला. घटना से ले कर चंद रोज पहले तक दिव्या ने जिन युवकों से फोन पर बात की थी, उन सभी से पुलिस ने पूछताछ की गई. गोविंद सेन की एक्टिवा देवनारायण नगर में लावारिस खड़ी मिली. तब पुलिस ने वहां भी चारों ओर लगे सीसीटीवी कैमरों के फुटेज जमा कर हत्यारों का पता लगाने की कोशिश शुरू कर दी. जिस में दोनों जगहों के फुटेज से 2 संदिग्ध युवकों की पहचान कर ली गई. जिन्हें घटना से पहले इलाके में पैदल घूमते देखा गया था. और बाद में वही युवक गोविंद की एक्टिवा पर जाते हुए सीसीटीवी कैमरे में कैद हुए.

जाहिर है कि हर बड़ी घटना के आरोपी भले ही कितनी भी दूर क्यों न भाग जाएं, वे घटना वाले शहर में पुलिस क्या कर रही है. इस बात की जानकारी जरूर रखते हैं, यह बात एसपी गौरव तिवारी जानते थे. इसलिए उन्होंने जानबूझ कर जांच के दौरान मिले महत्त्वपूर्ण सुराग को मीडिया के सामने नहीं रखा था. दरअसल, जब पुलिस सीसीटीवी के माध्यम से हत्यारों के भागने के रूट का पीछा कर रही थी कि देवनारायण नगर में आ कर दोनों संदिग्धों ने गोविंद की एक्टिवा छोड़ दी थी. वहां पहले से एक युवक स्कूटर ले कर खड़ा था, जिसे ले कर वे वहां से चले गए. जबकि स्कूटर वाला युवक पैदल ही वहां से गया था.

इस से एसपी का शक था कि तीसरा युवक स्थानीय हो सकता है, जो आसपास ही रहता होगा. बात सही थी, वह अनुराग परमार उर्फ बौबी था, जो विनोबा नगर में रहता था. इंदौर से बीटेक करने के बाद भी उस के पास कोई काम नहीं था. वह इस घटना में शामिल था और पुलिस की गतिविधियों पर नजर रखे हुए था. इसलिए जब उसे पता चला कि पुलिस को उस का कोई फुटेज नहीं मिला तो वह लापरवाही से घर से बाहर घूमने लगा. जिस के चलते नजर गड़ा कर बैठी पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर उस से पूछताछ की. उस से मिली जानकारी के 4 दिन बाद ही पुलिस ने दाहोद (गुजरात) से लाला देवल निवासी खरेड़ी गोहदा और यहीं से रेलवे कालोनी रतलाम निवासी गोलू उर्फ गौरव को गिरफ्तार कर लिया.

उन से पता चला कि पूरी घटना का मास्टरमांइड दिलीप देवले है, जो खरेड़ी गोहद का रहने वाला है. यही नहीं पूछताछ में यह भी साफ हो गया कि जून 20 में दिलीप देवल ने ही अपने ताऊ के बेटे सुनीत उर्फ सुमीत चौहान निवासी गांधीनगर, रतलाम और हिम्मत सिंह देवल निवासी देवरादेनारायण के साथ मिल कर डा. प्रेमकुंवर की हत्या की थी. जिस से पुलिस ने सुनीत और हिम्मत को भी गिरफ्तार कर लिया. इन से पता चला कि तीनों हत्याएं लूट के इरादे से की गई थीं. दिलीप के बारे में पता चला कि वह रतलाम में ही छिप कर बैठा है. पुलिस को यह भी पता चला कि वह मिडटाउन कालोनी में किराए के एक मकान में रह रहा है और पुलिस तथा सीसीटीवी कैमरे से बचने के लिए पीछे की तरफ टूटी बाउंड्री से आताजाता है.

यह जानकारी मिलने के बाद पुलिस ने पीछे की तरफ खाचरौद रोड पर उसे घेरने की योजना बनाई, जिस के चलते 2 दिसंबर, 2020 को वह पुलिस को दिख गया. पुलिस टीम ने उसे ललकारा तो दिलीप ने पुलिस पर गोलियां चलानी शुरू कर दीं, जवाबी काररवाई में पुलिस ने भी गोलियां चलाईं. कुछ ही देर में मास्टरमाइंड दिलीप मारा गया. इस प्रकार से असंभव से लगने वाले तिहरे हत्याकांड के सभी आरोपियों को पुलिस ने महज 5 दिन में सलाखों के पीछे पहुंचा दिया. इस में टीम प्रभारी अयूब खान और 2 एसआई सहित 5 पुलिसकर्मी भी घायल हुए.

 

सिस्टर अभया हत्याकांड : 28 साल पुराने मामले के लिए दोषियों को कैसी सजा मिली

Kerala Crime News : 28 साल का समय बहुत होता है. इस बीच इस केस को खत्म कराने, बंद कराने, अदालत को गुमराह करने के हरसंभव प्रयास हुए. पुलिस, क्राइम ब्रांच यहां तक कि सीबीआई ने भी कातिलों का साथ दिया. लेकिन आखिरकार सिस्टर अभया को…

केरल के तिरुवनंतपुरम की सीबीआई कोर्ट में चल रहे सिस्टर अभया की हत्या के मुकदमे में पूरे 28 साल बाद सीबीआई के स्पैशल न्यायाधीश के. सनिल कुमार ने बुधवार 23 दिसंबर, 2020 को अपना फैसला सुनाया. इतनी देर से फैसला आने की वजह यह थी कि इस मामले की जांच बहुत लंबी चली. मामले की जांच पहले स्थानीय थाना पुलिस ने की. उस के बाद क्राइम ब्रांच ने की और जब मामला नहीं सुलझा तो जांच सीबीआई को सौंपी गई थी. सीबीआई की भी 4 अलगअलग टीमों ने जांच की. इस तरह कुल मिला कर 6 जांच एजेंसियों ने इस केस की जांच की. इस बीच कई सीबीआई अफसर भी बदले गए.

सीबीआई ने 3 बार क्लोजर रिपोर्ट लगाने की कोशिश की, पर कोर्ट ने उसे स्वीकर नहीं किया. सीबीआई की चौथी टीम ने इस मामले में एक चोर की गवाही पर जो चार्जशीट दाखिल की, उसी चोर की गवाही पर कोर्ट इस मामले में अंतिम नतीजे पर पहुंचा और हत्यारों को सजा सुनाई. इतनी लंबी जांच होने की वजह से ही हत्या के इस मामले को केरल की हत्या की सब से लंबी जांच का मामला कहा जा सकता है. सिस्टर अभया हत्याकांड में क्या फैसला आया, यह जानने से पहले आइए यह जान लें कि सिस्टर अभया कौन थी, उन की हत्या क्यों हुई और हत्या के इस मामले में इतनी लंबी जांच क्यों करनी पड़ी. 19 साल की सिस्टर अभया कोट्टायम के पायस टेन कौन्वेंट में प्री कोर्स की पढ़ाई कर रही थीं.

पिता थौमस और मां लीला ने उन का नाम बीना थौमस रखा था. पढ़ाई के लिए जब वह नन बनीं तो उन का नाम बदल कर अभया रख दिया गया. वह सेंट जोसेफ कौन्ग्रीगेशन औफ रिलीजियस सिस्टर्स की सदस्य थीं. 27 मार्च, 1992 की सुबह 4 बजे सिस्टर अभया पढ़ने के लिए उठीं. क्योंकि उस दिन उन की परीक्षा थी, जिस की तैयारी करनी थी. उन्होंने 4 बजे का अलार्म लगा रखा था. उन्हें प्यास लगी थी. वह पानी लेने के लिए किचन में गईं. लेकिन वापस अपने कमरे में नहीं आईं. किचन में गईं सिस्टर अभया कमरे में नहीं लौटीं. उन के साथ रहने वाली अन्य ननें भी पढ़ने के लिए उठीं तो सिस्टर अभया कमरे में नहीं थीं. जबकि उस समय उन्हें कमरे में ही होना चाहिए था.

उन लोगों को अभया की चिंता हुई. उन्होंने उन की तलाश शुरू की. सिस्टर अभया को ढूंढते हुए वे किचन में पहुंची तो देखा फ्रिज का दरवाजा खुला हुआ था. उसी के पास पानी की एक बोतल खुली पड़ी थी और बोतल का पानी फर्श पर फैला था. उसी के पास अभया की एक चप्पल पड़ी थी. सिस्टर अभया की काफी तलाश की गई, पर उन का कुछ पता नहीं चला. जल्दी ही यह बात पूरे कंपाउंड में फैल गई कि सिस्टर अभया गायब हैं. सवेरा हो चुका था. उजाला होने पर किसी की नजर कौन्वेंट के ही कंपाउंड में बने कुएं के पास पड़ी अभया की दूसरी चप्पल पर पड़ी. कुएं के पास चप्पल पड़ी होने से अंदाजा लगाया गया कि कहीं सिस्टर अभया कुएं में तो नहीं गिर गईं.

इस के बाद स्कूल प्रशासन ने पुलिस और फायर ब्रिगेड को सूचना दी. पुलिस और फायर ब्रिगेड ने कुएं को खंगाला तो सिस्टर अभया की लाश मिली. अब तक सुबह के लगभग 10 बज चुके थे. पुलिस ने लाश कब्जे में ले कर पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दी. जांच में सिस्टर अभया की एक चप्पल फ्रिज के पास पड़ी मिली. फ्रिज का दरवाजा खुला था. पानी की खुली बोतल फर्श पर पड़ी थी और उस के पास पानी फैला था, जो यह बताता था कि फ्रिज से पानी की बोतल निकाली गई थी. सिस्टर अभया की दूसरी चप्पल कुएं के पास पड़ी मिली थी. सोचने की बात यह थी कि सिस्टर अभया कुएं के पास कैसे पहुंचीं? पुलिस ने कुछ लोगोें से पूछताछ भी की, पर कोई नतीजा नहीं निकला.

अंत में सब ने यही सोचा कि सिस्टर अभया ने आत्महत्या की होगी. क्योंकि वहां हत्या करने वाला कोई नहीं आ सकता था. पोस्टमार्टम रिपोर्ट आई तो उस में स्पष्ट लिखा था कि सिस्टर अभया की मौत पानी में डूबने से हुई है. उन के शरीर पर जो चोट लगी थी, उस के बारे में कहा गया कि वह चोट उन के कुएं में गिरने पर लगी है. स्थानीय पुलिस ने पोस्टमार्टम रिपोर्ट को सबूत मान कर अपनी फाइनल रिपोर्ट लगा दी कि सिस्टर अभया ने आत्महत्या की है. पुलिस और स्कूल प्रशासन ने पोस्टमार्टम रिपोर्ट को सच मान कर बात खत्म कर दी. पर स्कूल के हौस्टल में रहने वाली अन्य ननों को न तो पुलिस जांच पर भरोसा था और न ही पोस्टमार्टम रिपोर्ट पर.

इस की एक वजह यह थी कि एक नन ने उसी सुबह किचन के पास हौस्टल की प्रभारी सिस्टर सेफी, फादर थौमस कोट्टूर और एक अन्य फादर जोस पुथुरुक्कयिल को देखा था. वह ननों का हौस्टल था, इसलिए वहां फादर का जाना वर्जित था. इस के अलावा सिस्टर अभया की एक चप्पल किचन में मिली थी तो दूसरी कुएं के पास. फ्रिज खोल कर उन्होंने पीने के लिए पानी की बोतल निकाल कर खोली तो थी, पर शायद पानी पी नहीं पाई थीं. क्योंकि अगर वह पानी पीतीं तो बोतल का ढक्कन लगा कर उसे साथ ले जातीं या फिर फ्रिज में रख देतीं. फ्रिज का दरवाजा भी खुला पड़ा था. अगर उन्हें कुएं में कूद कर आत्महत्या ही करनी थी तो वह फ्रिज का दरवाजा बंद कर के जा सकती थीं.

एक चप्पल किचन में और दूसरी कुएं के पास क्यों छोड़तीं. चप्पल पहन कर भी तो कुएं में कूद सकती थीं. इस के अलावा किचन का कुछ सामान भी अस्तव्यस्त था. उसे देख कर लग रहा था कि जैसे वहां हाथापाई हुई थी. इन्हीं वजहों से हौस्टल में रहने वाली अन्य ननों को पुलिस जांच और पोस्टमार्टम रिपोर्ट पर भरोसा नहीं हुआ. घटनास्थल की स्थिति देख कर उन्हें लगता था कि उस रात वहां कुछ तो गड़बड़ हुई थी, जिस ने सिस्टर अभया के साथ कुछ उल्टासीधा किया था. परिणामस्वरूप हौस्टल की 67 ननोें ने केरल के तत्कालीन मुख्यमंत्री के. करुणाकरन को एक पत्र लिख कर अपील की कि उन्हें पुलिस जांच पर भरोसा नहीं है, इसलिए सिस्टर अभया की मौत के मामले की जांच सीबीआई से कराई जाए.

ननों की इस अपील के बावजूद केरल सरकार ने इस मामले की जांच सीबीआई को देने के बजाय केरल पुलिस की क्राइम ब्रांच को सौंप दी. क्राइम ब्रांच ने पूछताछ शुरू की तो उस नन ने बताया कि उस रात उस रात उस ने हौस्टल के किचन में सिस्टर सेफी के अलावा 2 फादर, थौमस कोट्टूर और जोस पुथुरुक्कयिल को देखा था. इस के अलावा क्राइम ब्रांच को एक गवाह भी मिल गया था. वह गवाह था एक चोर, जिस का नाम था अदक्का राजा. उस रात वह कौन्वेंट में चोरी करने आया था. दरअसल वह चोर आकाशीय बिजली को रोकने के लिए छत पर लगे तांबे के तार को चुराने आया था. चोर अदक्का राजा छत पर चढ़ कर जब तार चोरी करने जा रहा था, उसी समय उस ने सिस्टर सेफी, फादर थौमस कोट्टूर और फादर जोस पुथुरुक्कयिल को टार्च लिए किचन के दरवाजे पर देखा था.

जब उस ने सिस्टर अभया की पूरी कहानी अखबारों में पढ़ी तो उसे समझते देर नहीं लगी कि उस रात सिस्टर अभया ने आत्महत्या नहीं की थी, बल्कि इन्हीं तीनों ने उस की हत्या की थी. उस ने खुद क्राइम ब्रांच के औफिस जा कर यह बात क्राइम ब्रांच के अधिकारियों से बताई. लेकिन पुलिस ने उस की गवाही मानने के बजाय उसे चोरी के आरोप में जेल भेज दिया और क्राइम ब्रांच पुलिस ने भी वही रिपोर्ट दी, जो स्थानीय थाना पुलिस ने दी थी. क्राइम ब्रांच का कहना था कि सिस्टर अभया की मौत कुएं में डूबने से हुई थी यानी उन्होंने आत्महत्या की थी. पर कोई भी इस बात को मानने को तैयार नहीं था. यही वजह थी कि जेमोन पुथेनपुरक्कल जैसे कई मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने इस जांच के खिलाफ न्याय की मांग करते हुए विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया. इस मामले को ले कर विधानसभा में भी काफी हंगामा हुआ.

अंतत: जब यह मामला केरल हाईकोर्ट पहुंचा तो हाईकोर्ट ने इस मामले की जांच सीबीआई को सौंप दी. यह सन 1993 की बात है. जांच का आदेश मिलते ही सीबीआई की टीम सिस्टर अभया की मौत के रहस्य का पता लगाने में लग गई. सीबीआई ने भी अपनी जांच के बाद वही कहा, जो पुलिस और क्राइम ब्रांच ने अपनी रिपोर्ट में कहा था. उस का कहना था कि उसे इस तरह का कोई पुख्ता सबूत नहीं मिला कि वह इसे हत्या का मामला माने. सीबीआई की इस टीम का ध्यान न तो उस नन की बात पर गया था, न चोर अदक्का राजा की बात पर. सीबीआई ने यह रिपोर्ट सन 1996 में दी थी. लेकिन हाईकोर्ट ने सीबीआई की इस रिपोर्ट को खारिज कर फिर से जांच के आदेश दिए. इस के बाद सीबीआई की दूसरी टीम इस मामले की जांच में लगाई गई.

दूसरी टीम ने भी जांच कर के सन 1999 में रिपोर्ट दी कि उन्हें पता ही नहीं चल पा रहा है कि सिस्टर अभया की हत्या हुई या उन्होंने आत्महत्या की है. पर इस टीम ने इस मामले को संदिग्ध जरूर माना था. इस टीम का कहना था कि मामला है तो संदिग्ध, पर सबूत के अभाव में वह निश्चित रूप से कुछ कह नहीं सकती. हाईकोर्ट ने सीबीआई को फटकार लगा कर फिर से ईमानदारी और ढंग से जांच करने के आदेश दिए. इस के बाद सीबीआई की तीसरी टीम जांच में लगाई गई. इस तीसरी टीम ने जांच करने के बाद कोर्ट को बताया कि जांच में यह तो पता चल गया है कि मामला आत्महत्या का नहीं, बल्कि हत्या का है. लेकिन उन के पास ऐसा कोई पुख्ता सबूत नहीं है कि वह किसी को दोषी मान कर जांच आगे बढ़ाए. उस का कहना था कि इस मामले में अब तक सारे सबूत मिटाए जा चुके हैं.

कोर्ट ने सीबीआई की इस रिपोर्ट को भी खारिज कर दिया और एक बार फिर से डांट कर ईमानदारी और ढंग से जांच करने के आदेश दिए. इस बार सीबीआई ने किसी भी तरह का सबूत या सुराग देने वाले को 3 लाख रुपए ईनाम देने की घोषणा भी की थी. फिर भी सीबीआई के हाथ ऐसा कोई सबूत या सुराग नहीं लगा कि वह कोर्ट में यह साबित कर सके कि यह हत्या का मामला है. इसी बीच सीबीआई के एक अफसर वर्गीज पी. थौमस, जो इस मामले की जांच कर रहे थे और काफी तेजतर्रार अफसर माने जाते थे, ने एक दिन अचानक उन्होंने प्रैस कौन्फ्रैंस बुलाई. 19 जनवरी, 1994 को जब यह रिपोर्ट आई थी, तब उन्होंने कहा था कि वह समय से पहले अपनी नौकरी से इस्तीफा दे रहे हैं, क्योंकि उन्हें इस मामले में ईमानदारी से जांच करने की इजाजत नहीं दी जा रही है.

केरल के कोच्चि स्थित सीबीआई औफिस के सुपरिटेंडेंट वी. त्यागराजन उन पर दबाव डाल रहे हैं कि वह सिस्टर अभया के मामले में अपनी जांच रिपोर्ट को सुसाइड में तब्दील कर के कोर्ट में सुसाइड ही दिखाएं. यह खुलासा होने के बाद तो हंगामा मच गया. सीबीआई पर काफी दबाव पड़ा तो वी. त्यागराजन को कोच्चि से हटा दिया गया. इस के बाद कोर्ट के आदेश पर सीबीआई की चौथी टीम को जांच पर लगाया गया. यह टीम केरल के कोच्चि स्थित सीबीआई औफिस के अफसरों की थी. सीबीआई की टीम ने इस केस में फादर कोट्टूर, फादर जोस पुथुरुक्कयिल और नन सिस्टर सेफी को संदिग्ध माना. साथ ही उन लोगों का नारको टेस्ट कराने का फैसला किया.

जब इस बात की जानकारी कौन्वेंट को हुई तो उस ने हौस्टल की रसोइया की ओर से सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर करा कर नारको टेस्ट रोकवाने का भी प्रयास किया. पर सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में रोक लगाने से मना कर दिया. इस के बाद बेंगलुरु में इन तीनों का नारको टेस्ट कराया गया. तीनों का नारको टेस्ट डा. मालिनी ने किया. नारको टेस्ट के दौरान इन तीनों का जो इकबालिया बयान था, वह एक सीडी के तौर पर सीबीआई को सौंप दिया गया, जिसे सीबीआई ने कोर्ट में पेश किया. लेकिन बाद में पता चला कि सीबीआई ने तीनों के नारको टेस्ट की जो सीडी अदालत में पेश की थी, उस के साथ छेड़छाड़ की गई थी. इस का मतलब यह था कि फादर और नन सेफी ने नारको टेस्ट के दौरान जो कुछ भी कहा था, छेड़छाड़ कर के उसे बदल दिया गया था.

इस के बाद कोर्ट ने सीधे डा. मालिनी से संपर्क कर उन से कहा कि इस मामले की जो ओरिजनल रिकौर्डिंग है, वह उन्हें भेजें. पर डा. मालिनी ने अपने बर्थ सार्टिफिकेट को ले कर कुछ गलत काम किया था, इसलिए उसी समय उन्हें नौकरी से हटा दिया गया. इस के बाद यह मामला यहीं लटक गया. अब वह सीडी सही है या गलत, कोई जानकारी देने वाला नहीं था. लेकिन एक दिन अचानक वही सीडी केरल के एक लोकल चैनल पर चल गई. वह सीडी चैनल को कहां से और कैसे मिली, यह तो पता नहीं चल सका. जबकि कोर्ट ने कहा कि यह सीडी सीलबंद लिफाफे में हमें दो. उस सीडी में दोनों फादर और नन अपनी पूरी कहानी सुना रहे थे, जो नारको टेस्ट के दौरान उन्होंने बताई थी. इस के बाद सीबीआई की इस चौथी टीम का ध्यान चोर अदक्का राजा पर गया.

पहली बार सन 2008 में सीबीआई ने उसी अदक्का राजा की गवाही के आधार पर चार्जशीट दाखिल की. जिस के बाद पहली बार सन 2008 में सिस्टर अभया की हत्या के आरोप में दोनों फादर थौमस कोट्टूर, जोस पुथुरुक्कयिल और नन सेफी को गिरफ्तार किया गया. हालांकि गिरफ्तारी के बाद ये तीनों साल भर भी जेल में नहीं रहे और 2009 में हाईकोर्ट ने इन्हें जमानत पर छोड़ दिया था. इस के बाद यह मामला फिर रुक गया. सीबीआई ने जो चार्जशीट दाखिल की थी और सीडी में तीनों ने जो कहानी सुनाई थी, वह कुल मिला कर कुछ इस तरह थी. उस रात सुबह 4 बजे सिस्टर अभया पानी पीने के लिए किचन में गईं और पानी पीने के लिए फ्रिज से बोतल निकाल कर जैसे ही बोतल का ढक्कन खोल कर पानी पीना चाहा, तभी उन्हें किसी की आवाज सुनाई दी.

उन्होंने पलट कर देखा तो दोनों फादर थौमस कोट्टूर, जोस पुथरुक्कयिल, जिन्हें कोर्ट ने 2 साल पहले सबूतों के अभाव में बरी कर दिया था और सिस्टर सेफी आपत्तिजनक स्थिति में दिखाई दिए. उन लोगों को उस स्थिति में देख कर सिस्टर अभया सन्न रह गईं. इसी के साथ दोनों फादर और सिस्टर सेफी ने भी सिस्टर अभया को देख लिया था. अभया को देख कर तीनों घबरा गए. क्योंकि उन की चोरी पकड़ी गई थी. चोरी भी ऐसी कि अगर बात खुल जाती तो तीनों की बदनामी तो होती ही, उन्हें वहां से निकाल भी दिया जाता. इस के बाद वे कहीं के न रहते. इसलिए उन्होंने तुरंत निर्णय लिया कि क्यों न सिस्टर अभया की हत्या कर उन का मुंह हमेशाहमेशा के लिए बंद कर दिया जाए.

यह निर्णय लेते ही फादर थौमस कोट्टूर ने आगे बढ़ कर हैरानपरेशान खड़ी सिस्टर अभया का एक हाथ से गला और दूसरे हाथ से उन का मुंह दबोच लिया तो सिस्टर सेफी ने किचन में रखी कुल्हाड़ी उठा कर पूरी ताकत से सिस्टर अभया के सिर पर वार कर दिया. उसी एक वार में सिस्टर अभया बेहोश हो कर गिर पड़ीं तो उन्हें लगा कि वह मर चुकी हैं. और यही सोच कर फादर थौमस और सिस्टर सेफी ने बेहोश पड़ी अभया को घसीट कर कौन्वेंट के कंपाउंड में बने कुएं में ले जा कर डाल दिया. उस समय यह किसी को पता नहीं था कि सिस्टर अभया जिंदा थीं या मर चुकी थीं. इस के बाद किचन में आ कर वहां फैले खून को साफ कर दिया. लेकिन सिस्टर अभया की चप्पल, फ्रिज के दरवाजे, फर्श पर पड़ी बोतल और वहां अस्तव्यस्त हुए सामान की ओर उन का ध्यान नहीं गया.

बाद में इन्हीं चीजों से लोगों कोे अभया के साथ कोई हादसा होने का शक हुआ. उसी समय चोर अदक्का राजा चोरी करने के इरादे से छत पर चढ़ा था. तभी उस ने इन तीनों को वहां देख लिया था. उस समय उस ने फादर थौमस कोट्टूर और सिस्टर सेफी को पहचान भी लिया था. बाद में उस ने दोनों की शिनाख्त भी कर दी थी. फादर जोस अंधेरे में थे, इसलिए वह उन्हें पहचान नहीं पाया था. यह पूरी बातें नारको टेस्ट में सामने आई थीं. कोर्ट नारको टेस्ट को सबूत नहीं मानता, क्योंकि इस में आदमी जो भी बताता है, वह नशे की हालत में यानी अर्द्धबेहोशी की हालत में बताता है, इसलिए कोर्ट इसे पुख्ता सबूत नहीं मानता. ऐसा ही इस मामले में भी हुआ.

कोर्ट ने नारको टेस्ट में दिए गए बयान को सही नहीं माना और तीनों को सन 2009 में जमानत पर रिहा कर दिया था. इस मामले की जिस पुलिस अधिकारी ने जांच की थी, उस पर भी संदेह था. बाद में पता चला कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट में भी छेड़छाड़ की गई थी. उस रात सिस्टर अभया ने जो कपड़े पहने थे, वे भी गायब कर दिए गए थे. उन के  शरीर पर जो चोट के निशान थे, वे भी छिपाए गए थे. इस तरह इस मामले में हर कदम पर साक्ष्य और सबूत छिपाए और नष्ट किए गए. शायद इसीलिए सीबीआई ने इस मामले में एक पुलिस अधिकारी को भी साक्ष्य मिटाने के आरोप में आरोपी बनाया था, लेकिन बाद में वह हाईकोर्ट से बरी हो गए थे.

सन 2018 में फादर जोस पुथुरुक्कयिल इस केस में सबूतों के अभाव में बरी कर दिए गए. इस के बाद सन 2019 में हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति वी.जी. अरुण की बेंच ने इस मामले में हो रही देरी की ओर ध्यान दिया. उन्होंने निर्देश दिया कि इस केस को जल्द से जल्द निपटाया जाए. इस के बाद सीबीआई कोर्ट में इस केस मामले की रोजाना सुनवाई शुरू हुई, जिस की वजह से घटना के 28 साल बाद कोर्ट किसी नतीजे पर पहुंच सका और न्यायाधीश के. सनिल कुमार के फैसले के साथ इस मामले का पटाक्षेप हुआ. श्री सनिल कुमार ने अपने फैसले में न्यायमूर्ति वी.आर. कृष्णा अय्यर को उद्धृत करते हुए अपना जो फैसला सुनाया वह इस प्रकार था.

उन का कहना था कि सिस्टर अभया की मौत का मामला निश्चय ही ऐसा था, जिस पर मलयाली भाषी केरल की पूरी एक पीढ़ी ने अपने जीवनकाल के दौरान घरघर खूब चर्चा सुनी. झूठ, फरेब, अपराध को छिपाना, राजनीतिक प्रभाव, अदालती काररवाई और बीचबीच में मामला बंद करने की रिपोर्ट सहित सब कुछ देखासुना था. न्यायाधीश जाते रहे, पर मुकदमा जस का तस रहा. रिकौर्ड में उपलब्ध साक्ष्य इस निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए इतने अधिक हैं कि परिस्थितियों की तारतम्यता की कड़ी कुल मिला कर आरोपियों के अपराध की ओर इशारा करती है और इस नतीजे पर पहुंचाती है कि आरोपियोें ने इस जघन्य अपराध को अंजाम दिया है.

गवाहोें और प्राप्त सबूतों से साबित होता है कि सिस्टर अभया की मौत सिर में लगी चोट और पानी में डूबने से हुई. अभया के शव परीक्षण से पता चला कि उस की गरदन के दोनों ओर नाखूनों की खरोंच के निशान थे, उन की गरदन पर जख्म भी था और सिर के पिछले हिस्से में भी जख्म था, मैडिकल विशेषज्ञों के अनुसार ये जख्म मौत से पहले के थे. गवाहों के बयानों और प्राप्त सबूतों के आधार पता चला कि अभया ने फादर थौमस कोट्टूर, सिस्टर सेफी और संभवत: एक दूसरे आरोपी को आपत्तिजनक स्थिति में देख लिया था. अपने बचाव के लिए उन्होंने उस के सिर पर कुल्हाड़ी से हमला किया और उस की हत्या कर अपनी करतूतों पर परदा डालने के इरादे से उसे कुएं में फेंक दिया.

अदालत ने अपने फैसले में यह भी कहा कि अपना जीवन खत्म करने पर तुला व्यक्ति जो अपना जीवन तत्काल खत्म कर रहा हो, वह अपने साथी छात्रों के साथ मिल कर पढ़ाई करने की बात तो दूर वह अपने भविष्य को ले कर क्यों चिंता करेगा? अपनी परीक्षा को अच्छी तरह देने के बारे में सोच कर अच्छी नींद भी नहीं लेगा और न मन लगा कर पढ़ाई करेगा. ये सारी बातें आत्महत्या करने की बात को झुठलाती हैं. अदालत का कहना था कि अभया एक बुद्धिमान, धर्मनिष्ठ, ईमानदार, सादगी पसंद, दृढ़निश्चयी और अति शिष्टाचारी लड़की थी, जो हर तरह से कुशल थी और परोपकारी जीवन व्यतीत कर रही थी. उस के लिए खुद ही अपने जीवन का अंत कर लेना पूरी तरह से असंभव था, जैसी दलीलें बचाव पक्ष पेश कर रहा है.

इस मामले में गवाही देने वाला अदक्का राजू या अंडासू राजू जिसे ज्यादातर लोग इसी नाम से बुलाते थे, एक मामूली चोर था, वह आकाशीय बिजली रोकने के लिए कौन्वेंट की छत में लगी तांबे की छड़ की चोरी किया करता था. न्यायाधीश ने इस तथ्य का भी जिक्र किया है कि वह अपने बयान पर अडिग रहा कि उस ने फादर थौमस कोट्टूर और एक अन्य व्यक्ति को टौर्च के साथ किचन के पास खड़े देखा था. जबकि बचाव पक्ष ने राजू की पृष्ठभूमि के आधार पर उस की गवाही पर ही सवाल खड़े किए. लेकिन 2 वकीलों द्वारा जिरह करने के बावजूद वह अपनी बात पर कायम रहा. फैसले में इस बात का भी जिक्र किया गया है कि किस तरह से गवाह राजू को अपने बयान से मुकरने और सिस्टर अभया की हत्या कबूल करने के लिए धमकियां मिलीं, यातना दी गई और मोटी रकम देने का प्रलोभन दिया गया, पर वह अपने बयान से टस से मस नहीं हुआ.

अदालत ने इस तथ्य को रिकौर्ड किया कि सिस्टर अभया की मौत वाली रात सिस्टर सेफी अकेली थीं. क्योंकि उन की साथिन रिट्रीट सेंटर गई थीं. उस रात और सवेरे रसोई घर में सामान्य स्थिति नहीं थी, जिस के बारे में अदालत को कौन्वेंट में रहने वाले अन्य लोगों ने, जो बाद में मुकर गए थे, की गवाही से पता चला था. एक महत्त्वपूर्ण जानकारी यह भी मिली थी कि सिस्टर सेफी ने अपने यौनाचार में लिप्त रहने के तथ्य को छिपाने के लिए स्त्रीरोग विशेषज्ञ से अपनी हाईमेनोप्लास्टी कराई थी. अदालत ने पाया कि सेफी ने यह प्रक्रिया सीबीआई द्वारा गिरफ्तार करने के बाद कराई थी. अदालत ने इस मामले के गवाहों में से एक गवाह कलारकोडे वेणुगोपाल को दिए गए फादर थौमस कोट्टूर के बयान का संज्ञान लिया. इस मामले में वेणुगोपाल ने कोट्टूर का नारको टेस्ट कराए जाने की संभावना के बारे में जानकारी मिलने पर थौमस कोट्टूर से संपर्क किया था.

तब उन्होंने भावावेश में वेणुगोपाल से कहा था कि वह लोहे या पत्थर से नहीं बने, वह भी मनुष्य हैं, जो एक समय पर सिस्टर सेफी के साथ पतिपत्नी की तरह रहे थे, अब उन्हें क्यों सूली पर चढ़ाया जा रहा है. बचाव पक्ष ने अदालत से वेणुगोपाल के बयान को भरोसेमंद न मानने का आग्रह किया था. पर अदालत ने कहा कि आरोपी का बर्ताव, उस की गवाही के दौरान उस की भावभंगिमाएं औैर अपनी गवाही के बुनियादी तथ्यों से टस से मस नहीं होने का तथ्य गवाह की विश्वसनीयता बता रहा था. अदालत ने अपने फैसले में कहा कि अचानक बगैर किसी वजह से पूरा कौन्वेंट सामूहिक रूप से मुकर गया, सबूत भी गायब हो गए और कौन्वेंट की रसोइया अचम्मा ने नारको टेस्ट को चुनौती देते हुए उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर कर दी.

अदालत ने यह टिप्पणी भी की कि उस ने स्वीकार किया कि उच्चतम न्यायालय में देश के महानतम वकीलों में शामिल वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे उस की ओर से पेश हुए थे. अदालत ने फैसले में कहा कि उस ने यह भी स्वीकार किया कि उस के मुकदमे का खर्च कौन्वेंट ने उठाया था. जबकि उसे मुकदमे के बारे में बिलकुल जानकारी नहीं थी. अदालत ने कहा कि इस से यह साबित होता है कि इस मुकदमे को किस अंतिम नतीजे पर पहुंचने से रोकने तथा अभियोजन के मामले की सुनवाई को पटरी से उतारने के लिए प्रभावशाली लोगों ने व्यवस्थित और संगठित तरीके से प्रयास किए.

न्यायाधीश श्री के. सनिल कुमार ने इस मामले के जांच अधिकारियों, डीएसपी के. सैमुअल और तत्कालीन एसपी केटी माइकल की तीखी आलोचना करते हुए कहा कि इन की इस मामले में दिलचस्पी की वजह से साक्ष्य नष्ट हुए, मनगढ़ंत सबूत तैयार किए गए. यहां तक कि मुख्य गवाह अदक्का राजू को सिखायापढ़ाया गया और अन्य गवाहों पर दबाव डाले गए. अदालत ने भविष्य में इस तरह से हस्तक्षेप के खिलाफ सख्त चेतावनी देते हुए इस फैसले की प्रति राज्य पुलिस के मुखिया को भी देने का आदेश दिया. अंत में न्यायाधीश सनिल कुमार ने फादर थौमस कोट्टूर और सिस्टर सेफी को सिस्टर अभया की हत्या, अपराध छिपाने और सबूत मिटाने का दोषी मानते हुए आजीवन कारावास यानी जीवित रहने तक जेल में रहने की सजा सुनाई. साथ ही 5-5 लाख रुपए का जुर्माना भी लगाया.

थौमस कोट्टूर पर घर में बिना अनुमति घुस जाने का भी आरोप लगा. सिस्टर सेफी अब नन वाले कपड़े नहीं पहन सकेंगी. सिस्टर अभया को न्याय दिलाने की लड़ाई लड़ रहे लोगों में अकेले जीवित बचे मानवाधिकार कार्यकर्ता जोमोन पुथेनपुराकल ने कहा कि आखिर सिस्टर अभया को न्याय मिल ही गया. यह इस बात का उदाहरण है कि किसी को यह नहीं सोचना चाहिए कि उस के पास पैसा और बाहुबल है तो वह न्याय से खिलवाड़ कर लेगा. जिस चोर अदक्का राजा की गवाही पर दोनों को सजा हुई, फैसला आने के बाद उस ने कहा कि उसे मुकरने के लिए बहुत प्रताडि़त किया गया. उस पर दबाव डाला गया, 3 करोड़ रुपए का लालच दिया गया. पर वह अपनी बात पर अडिग रहा. आखिर उस की भी तो बेटियां हैं. इस मामले में कुल 167 गवाह थे, जिन में से लगभग सब मुकर गए थे.

 

Social Crime : राजनीति की आड़ में सेक्स रैकेट चला रही प्रीति की कहानी

Social Crime : खिलाड़ी औरतों के लिए हनीट्रैप कमाई का सब से अच्छा माध्यम है. लेकिन यह जरूरी नहीं कि इस में कामयाबी मिलेगी ही, क्योंकि पुलिस भी अपराधों की गंध सूंघती रहती है. प्रीति ने नेताओं और पुलिस के कंधों पर हाथ रख कर करोड़ों कमाए, लेकिन…

लौकडाउन से अनलौक की ओर कदम बढ़ते ही महाराष्ट्र की उपराजधानी नागपुर में यूं तो अपराध की जबरदस्त ताक धिना धिन सुनी जा रही थी. हत्याओं का सिलसिला सा बन गया था. राज्य के गृहमंत्री के गृहनगर की इस हालत पर राजनीतिक तीरतलवार चलाने वाले तरकश कसने लगे थे. पुलिस और प्रशासन पर तोहमत लगाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे थे. कोरोना योद्धा के तौर पर शाबासी लूट चुकी शहर पुलिस ऐसी किसी तोहमत को तवज्जो नहीं देना चाहती थी. दावा यही कि प्रत्यक्ष को प्रमाण की न जरूरत थी न ही होनी चाहिए. शहर पुलिस ने बड़ेबड़े अपराधियों के अपराध के आशियानों को कुछ समय में ही बड़े स्तर पर ध्वस्त कर दिया था. ऐसे में एक मामला अचानक चर्चा में हौट हुआ. यह मामला चार सौ बीसी के खेल में पकड़ी गई प्रीति का.

राजनीति के गलियारे में चहलकदमी के साथ समाजसेवा का नया मौडल बनी घूमती उस महिला के बारे में बड़ी चर्चा ये थी कि कई पुलिस वाले साहब उस के दबेल यानी उस के दबाव में थे. लिहाजा उस ने शहर व शहर के आसपास के क्षेत्र में बड़े पैमाने पर दबावतंत्र बना कर कइयों की जिंदगी में जहर घोल दिया. पुलिस कभी उस का सत्कार करती थी तो कभी उस से सत्कार कराती थी. समाजसेवा के चोले में हनी ट्रैपर घटना 5 जून, 2020 की है. एक शिकायतकर्ता पांचपावली पुलिस स्टेशन में बेबस मुद्रा में मदद की याचना ले कर पहुंचा. शिकायतकर्ता का नाम था उमेश उर्फ गुड्डू तिवारी. पांचपावली क्षेत्र में ही रहने वाले गुड्डू ने बताया कि उस का जीवन एकदम सामान्य था.

वह एक स्कूल का कर्मचारी है. हर माह मिलने वाले वेतन से उस के परिवार का हंसीखुशी गुजारा हो रहा था. लेकिन जब से वह प्रीति की सोहबत में आया, उस की दुनिया लुटने लगी. उमेश उर्फ गुड्डू ने उस वक्त को कोसा है, जब वह फेसबुक पर प्रीति से जुड़ा था. प्रीति का आकर्षक फोटो देख गुड्डू ने उस पर सहज कमेंट किया था. उस कमेंट के जवाब में प्रीति ने फेसबुक पर ही गुड्डू को पर्सनल मैसेज भेज कर मोबाइल फोन नंबर का आदानप्रदान कर लिया. गुड्डू इस बात को ले कर भी खुद को दोष देता है कि एकदो बार फोन पर बात के बाद वह उस अनजानी महिला के सामने पूरी तरह से खुल गया. उस ने अपने घरपरिवार की बातें साझा कर दीं. यहां तक कि वैवाहिक जीवन में भी उस ने अरमानों के सूखे कंठ की वेदना को स्वर दे दिया.

प्रीति ने गुड्डू को बताया कि नागपुर के जिस इलाके में वह रहता है, उस के पास ही वह भी रहती है. उस ने अपनी पहचान के दायरे के ट्रेलर के तौर पर कुछ लोगों के नाम गिनाए. कुछ दिनों बाद दोनों के मिलने का सिलसिला मोहब्बत की परवाज भरने लगा. कभी प्रीति मिलने पहुंचती तो कभी गुड्डू को बुला लेती थी. एक दिन प्रीति ने गुड्डू से साफ कह दिया कि वह उस के साथ जीवन गुजारने को तैयार है. बशर्ते उसे अपनी पत्नी को तलाक देना होगा. भविष्य की योजना भी उस ने गुड्डू से साझा की. 50 वर्षीय गुड्डू जिंदगी के नए सफर पर चलने के लिए न केवल राजी हुआ बल्कि अति उत्साहित भी था.माल मिलते ही बदला रंग गुड्डू की शिकायत का लब्बोलुआब यह था कि प्रीति मनचाहा धन मिलते ही तेवर बदलने लगती थी.

बतौर गुड्डू प्रीति ने उस से फ्लैट खरीदने के लिए रुपयों की मांग की थी. उस का कहना था कि जब तक गुड्डू की पत्नी का तलाक नहीं हो जाता, तब तक दोनों उस फ्लैट में मिलतेजुलते रहेंगे. गुड्डू ने अग्रिम के तौर पर प्रीति को फ्लैट के लिए 2.60 लाख रुपए दे दिए. तय समय पर फ्लैट नहीं लिया गया तो गुड्डू ने रुपए वापस मांगे. बस यहीं से गुड्डू पर दबाव का नया सिलसिला चल पड़ा. फ्लैट के नाम पर लिए गए रुपए वापस लौटाना तो दूर प्रीति ने रुपयों की नई पेशकश रख दी. उस ने कहा कि सोशल मीडिया पर जितनी भी हौट बातें हुई हैं और फोन पर लाइव चैटिंग हुई है, उन का सारा हिसाब उस के पास है. अगर वह उस रिकौर्डिंग को पुलिस को सौंप दे तो कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं रहेगा.

प्रीति की सीधी धमकी यह भी थी कि ज्यादा चूंचपड़ मत करना. मेरे हाथ काफी लंबे हैं. चुटकी बजा कर ऐसी जगह पर घुसेड़वा दूंगी, जहां से जीवन भर नहीं निकल पाएगा. और हां, अपनी इज्जत बचानी हो तो 5 लाख रुपए तैयार रखना. प्रीति के ठग अंदाज का जिक्र करते हुए गुड्डू ने बताया कि उस ने डर के मारे प्रीति को 2.42 लाख रुपए और दिए, जिस से वह कहीं मुंह न खोले. लेकिन माल पाने के बाद तो वह और भी रंग बदलने लगी. रुपए और गिफ्ट ले कर यहांवहां बुलाने लगी. उस से दूर होने का प्रयास किया तो वह घर में आ कर पिटवा देने की धमकी देने लगी. कुछ ही दिनों में उस ने नकदी और गिफ्ट के रूप में 14.87 लाख रुपए ऐंठ लिए. आखिरकार उसे अपने बचाव में पुलिस की शरण लेनी पड़ी.

पुलिस ने उस की शिकायत की शुरुआती पड़ताल करने के बाद प्रीति के खिलाफ भादंवि की धारा 420 व धारा 384 हफ्तावसूली के तहत केस दर्ज कर लिया. मामला दर्ज करने के बाद पुलिस ने प्रीति के कामठी रोड स्थित प्रियदर्शिनी अपार्टमेंट के घर पर छापेमारी की. प्रीति वहां से चंपत हो गई थी. पुलिस ने उस के घर से काफी सामान और दस्तावेज बरामद किए. खुला भेद तो पुलिस भी रह गई दंग जिस पांचपावली पुलिस स्टेशन में प्रीति का आनाजाना लगा रहता था, उसी थाने की पुलिस उस के कारनामों की फेहरिस्त देख कर दंग रह गई. रिकौर्ड खंगालने पर पता चला कि प्रीति धोखाधड़ी के मामले में जेल की यात्रा कर चुकी है. उस के आपराधिक क्षेत्र के छोटेबड़े लोगों से भी करीबी संबंध है. उस के खिलाफ शहर के सीताबर्डी पुलिस स्टेशन में भादंवि की धारा 420, 406, 468, 467, 506, 507, 34 के  तहत प्रकरण दर्ज है.

धोखाधड़ी का वह प्रकरण शहर में काफी चर्चित हुआ था. इस के अलावा भंडारा के पुलिस स्टेशन में भी भादंवि की धारा 420 के तहत मुकदमा दर्ज था. शहर पुलिस के बड़े अधिकारियों के लिए यह जानकारी काफी चौंकाने वाली थी कि जिस महिला को वे केवल सामाजिक कार्यकर्ता समझ रहे थे वह ब्लैकमैलर है. यही नहीं वह पुलिस से संबंधों का नाजायज फायदा उठाती रहती है. शहर पुलिस की ओर से प्रीति के अपराधों की जानकारी जुटानी शुरू कर दी गई. बाकायदा प्रैस नोट जारी कर आह्वान किया गया कि इस महिला ने किसी से धोखाधड़ी की हो, तो तत्काल पुलिस से संपर्क करे. इस बीच प्रीति फरार हो गई थी. पुलिस उसे ढूंढती रही. करीब हफ्ते भर प्रीति बचाव का रास्ता खोजती रही.

उस ने वकील के माध्यम से जिला सत्र न्यायालय का दरवाजा खटखटाया. कोशिश यही थी कि पुलिस गिरफ्तारी से बचते हुए उसे न्यायालय से जमानत मिल जाए. लेकिन उस की कोशिशों पर पानी फिर गया. न्यायालय ने उस की अरजी खारिज कर दी. लिहाजा उस ने 13 जून को पांचपावली पुलिस स्टेशन में आत्मसमर्पण किया. उसे पुलिस तक पहुंचाने वालों में राजनीतिक कार्यकर्ताओं के अलावा पुलिस के कुछ नुमाइंदे भी शामिल थे. गिरफ्तारी के बाद प्रीति को पुलिस रिमांड पर लिया गया. उस के खिलाफ पुलिस ने सबूत जुटाने शुरू किए. जांच में जुटी पुलिस यह जान कर दंग रह गई कि कुछ समय पहले तक मामूली मोपेड पर घूमने वाली प्रीति अब करोड़पति हो गई है. वह महंगी कारों से घूमती है. उस ने अपने करीबियों व रिश्तेदारों के नाम पर बेनामी संपत्ति खरीद रखी है.

बंगला, खेती की जमीन के अलावा वह एक कंपनी की भी संचालक भी थी. अवैध वसूली के लिए उस ने बाकायदा एक संस्था रजिस्टर्ड करा रखी थी. लिहाजा पुलिस ने धर्मदाय आयुक्तालय, विजिलैंस विभाग के अलावा अन्य विभागों को पत्र लिख कर उस के बारे में आवश्यक जानकारी मांगी. घर में हुआ अपमान तो कर लिया सुसाइड प्रीति के कारनामों की जानकारी जुटाई ही जा रही थी कि पुलिस अधिकारियों तक एक गुहार और पहुंची. गुहार यह कि एक व्यक्ति ने प्रीति और उस के साथियों के डर से सुसाइड कर लिया था. मृतक के परिवार को न्याय दिलाने के लिए यह शिकायत जूनी मंगलवारी निवासी वैशाली पौनीकर की थी. शिकायत के अनुसार वैशाली के पति सुनील पौनीकर ने अक्तूबर 2019 में सतीश सोनकुसरे से कुछ रकम कर्ज ली थी. सुनील पौनीकर मेस संचालक था.

काम में घाटे के कारण उसे कर्ज लेना पड़ा था. सतीश सोनकुसरे ने कर्ज वापसी के लिए सुनील पर दबाव बनाया. लेकिन समय पर रुपए नहीं लौटा पाने पर उस ने प्रीति की मदद ली. प्रीति यह भी दावा करती थी कि वह कर्ज वसूली का काम भी करती है. शहर के सारे बड़े पुलिस अफसर व नेता उस के पहचान के हैं. बतौर वैशाली पौनीकर, प्रीति ने सतीश सोनकुसरे से कर्ज वसूली की सुपारी ली थी. वह कुछ पुलिस कर्मचारियों की मदद से सुनील को प्रताडि़त करती थी. प्रीति की धमकी से किया सुसाइड  एक दिन प्रीति सतीश सोनकुसरे और मंगेश पौनीकर को साथ ले कर सुनील के घर पर पहुंच गई. प्रीति ने सुनील को कर्ज नहीं लौटाने पर धमकी दी.

उस के साथ कुछ पुलिस वाले भी थे, जो घर में आ कर मांबहन की गालियां दे गए. यहीं नहीं, वह बस्ती में नंगा घुमाने की धमकी दे रहे थे. धमकी और घिनौनी बातों से सुनील बुरी तरह आहत हुआ. लिहाजा उस ने 27 नवंबर, 2019 की दोपहर ढाई बजे लकड़गंज थाना क्षेत्र के बाबुलवन प्राथमिक शाला के मैदान में जहर पी लिया. मेयो अस्पताल में उपचार के दौरान 30 नवंबर, 2019 को सुनील ने दम तोड़ दिया था. पुलिस ने आकस्मिक मौत का मामला दर्ज कर जांच जारी रखी. अब वैशाली पौनीकर की शिकायत पर वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों के निर्देश पर लकड़गंज थाने की पुलिस ने प्रीति व उस के साथियों के खिलाफ सुनील आत्महत्या मामले में आत्महत्या के लिए उकसाने का प्रकरण दर्ज कर तलाश शुरू कर दी.

मेस संचालक को आत्महत्या के लिए उकसाने का प्रकरण लकड़गंज थाने में दर्ज हो ही रहा था कि जरीपटका थाने में एक और शिकायत पहुंची. शिकायत यह थी कि आरोपी प्रीति ने धौंस दिखा कर 25 हजार रुपए ऐंठ लिए. शिकायतकर्ता पूर्णाबाई सडमाके का बेटा नीतेश वायुसेना में लिपिक था. 8 मार्च, 2019 को उस की प्रणिता से शादी हुई थी. शादी के 2 माह बाद ही प्रणिता की अपनी सास पूर्णाबाई से अनबन होने लगी. प्रणिता अपना सामान ले कर मायके चली गई. समझाने पर भी वह नहीं मानी. उस ने पुलिस के भरोसा सेल में पूर्णाबाई की शिकायत दर्ज करा दी. भरोसा सेल में पूर्णाबाई की प्रीति से भेंट हुई.

प्रीति भरोसा सेल की एजेंट बन कर घूमती थी. उस ने विवाद निपटाने का झांसा दे कर पूर्णाबाई से 25 हजार रुपए मांगे. रुपए नहीं देने पर उस के बेटे की नौकरी जाने का भय बताया. लिहाजा 17 अक्तूबर, 2019 को पूर्णाबाई ने प्रीति को 25 हजार रुपए दे दिए. पूर्णाबाई ने प्रीति को फोन कर पूछताछ की. प्रीति ने बताया कि तुम्हारे बेटे का काम हो गया है. मैं ने मैडम को पैसे दे दिए हैं. बेटे से जुड़े मामले को ले कर एक बार पूर्णाबाई को भरोसा सेल की इंचार्ज इंसपेक्टर शुभदा शंखे ने पूछताछ के लिए बुलाया. उस दौरान पूर्णाबाई ने इंसपेक्टर शुभदा से सहज ही कह दिया कि मैं ने तो आप को 25 हजार रुपए दिए थे, फिर आप मुझ से इस तरह घुमावदार सवाल क्यों कर रही हो. इंसपेक्टर शुभदा चौंकी.

वह यह जान कर हैरान थी कि जिस प्रीति दास को वह सामाजिक कार्यकर्ता के तौर पर सम्मान देती रही, वह तो उस के नाम पर ही अवैध वसूलियां करने लगी है. लिहाजा, इंसपेक्टर शंखे ने पूर्णाबाई को शहर पुलिस के जोन-5 के उपायुक्त नीलोत्पल के पास भेजा. पूर्णाबाई की शिकायत पर जरीपटका पुलिस ने आरोपी प्रीति के खिलाफ हफ्ता वसूली का मामला दर्ज कर लिया. 2 दिन बाद शहर पुलिस के पास एक और शिकायत पहुंची. शिकायतकर्ता युवती उच्चशिक्षित थी. उस के अनुसार उस के साथ एक युवक ने विवाह का झांसा दे कर दुष्कर्म किया था. प्रीति दास ने युवती को यह कह कर मदद का आश्वासन दिया था कि उस की पुलिस के बड़े अधिकारियों से खासी पहचान है. वह दुष्कर्म के आरोपी को सजा दिलाएगी.

इस कार्य के लिए उस ने युवती से 25 हजार रुपए मांगे. रुपए मिलने के बाद प्रीति उस युवती से मिलती भी नहीं थी. ऐसे में एक रोज युवती ने प्रीति से तल्खी के साथ सवाल किया तो वह उसे धमकाने लगी. साथ ही यह औफर देने लगी कि उस की गैंग में शामिल हो जाए. उस युवती का आरोप था कि प्रीति अकसर खूबसूरत युवतियों की मजबूरियों का फायदा उठाती है. युवतियों को पेश कर के वह रसूखदारों से मनचाहा माल वसूलती रहती है. 2 से 3 पुलिस कर्मचारी व अधिकारी को हनीट्रैप में फंसा देने का डर दिखा कर उसने कथित तौर पर लाखों की वसूली की है. उस ने यह भी बताया कि नागपुर में पश्चिम महाराष्ट्र के कई पुलिस अधिकारी बैचलर रहते हैं. उन का परिवार उन के गांव या शहर में है. लिहाजा उन्हें रात रंगीन कराने के एवज में प्रीति लगातार ब्लैकमेल करती रही है.

भंडारा पुलिस थाने में प्रीति के विरुद्ध दर्ज धोखाधड़ी के मामले में बताया गया कि वह नागपुर के बाहर के जिलों में खुद को बैंकर के तौर पर प्रचारित करती रही है. जरूरतमंदों को आसानी से लाखों का कर्ज दिलाने का झांसा देती रही है. उस के इस चक्रव्यूह में कुछ बैंक कर्मचारी व अधिकारी भी शामिल रहे हैं. दीवाने ही दीवाने प्रीति अपना पूरा नाम प्रीति ज्योतिर्मय दास लिखती है. 40 की उम्र की हो चली इस महिला के चेहरे से ही सादगी व शिष्टता झलकती है. लेकिन उस के शिकायतकर्ताओं की मानें, तो वह जैसी दिखती है वैसी है नहीं. उस की मित्रमंडली की फेहरिस्त में दीवाने ही दीवाने हैं. उस के कारनामों के तराने न जाने कहांकहां गूंज रहे हैं. शिकायतकर्ता गुड्डू तिवारी की सुनें तो प्रीति कपड़ों की तरह रिश्ते बदलती है. लिबास ही नहीं, जरूरत हो तो वह जाति और धर्म भी बदल लेती है.

कभी वह मसजिदों के इर्दगिर्द नजर आती है तो कभी गुरुद्वारे के आसपास. फर्राटेदार अंगरेजी तो बोलती ही है , मराठी और हिंदी में भी उस के तेवर तने रहते हैं. उस के जीवन में 4 लोगों के नाम प्रमुखता से जुड़े हैं. इन में एक मराठी, दूसरे कारोबारी हैं तो 2 मुसलिम हैं. चर्चा है कि अपना उल्लू सीधा करने के लिए उस ने संदीप दुधे, महेश गुप्ता, रफीक अहमद व मकसूद शेख से अलगअलग शादी रचाई. फिर उन को उस ने छोड़ दिया. शिकायतकर्ता गुड्डू की शिकायत में इन नामों का जिक्र है. फिलहाल यह साफ नहीं हो पाया है कि प्रीति अपने पति से क्यों और कैसे दूर हुई. परिवार में उस की बुजुर्ग मां व बेटा है. खबर है कि प्रीति के पिता सेना में थे. पिता की मृत्यु के बाद उस की मां को अब पेंशन मिलती है.

घर में अनुशासन व शिष्टाचार का पाठ तो मिलता रहा, लेकिन कहा जाता है कि प्रीति की हसरतों ने उसे नई राह पर ला दिया. उस की सोशल मीडिया पर साझा की गई एक तसवीर पर लिखा है, ‘मेरी सादगी ही गुमनाम रखती है मुझे, जरा सा बिगड़ जाऊं तो मशहूर हो जाऊं.’ उसे करीब से जानने वालों का कहना है कि वह आपराधिक प्रवृत्ति की नहीं थी. लेकिन शोहरत और दौलत पाने का जुनून कुछ ऐसा सवार है कि वह हर हद से गुजर जाने का दंभ भरती है. वह अपनी सोशल इमेज चमकाने का निरंतर प्रयास करती रही. हालत यह है कि अब भी कुछ लोग उसे धोखेबाज मानने को तैयार नहीं है.

प्रीति एक भाजपा पार्षद की सामाजिक संस्था से भी जुड़ी थी. लौकडाउन में जरूरतमंदों को राहत सामग्री देने के अभियान में वह पूरी ताकत के साथ जुटी रही. लिहाजा उस संस्था से जुड़े नेता ने तो उसे निर्दोष ठहराने का अभियान ही शुरू कर दिया है. दावे के साथ सोशल मीडिया पर लिखा जा रहा है— हमारी ताई को फंसाया जा रहा है. उस ने कोई अपराध नहीं किया है. यह भी सुना जा रहा है कि प्रीति स्वयं को बैंकर बताती रही है. वह खुद को एक राजनीतिक दल के पदाधिकारियों द्वारा संचालित एक बैंक की संचालक के रूप में भी प्रचारित करती रही है. सदर क्षेत्र में उस बैंक के कार्यालय में उस के कारनामों के किस्से हैं.

बैंक का मैनेजर भी सिर पर हाथ धरे रहता है. बैंक अधिकारी बताते हुए सीज किए हुए वाहन सस्ते में दिलाने के दावे के साथ धोखाधड़ी करने के उस के किस्से भी सुने जा रहे हैं. खास बात है कि प्रीति अकसर सादे लिबास में रहती है. उस का बर्ताव उच्चशिक्षित सा आकर्षक है. हमपेशेवर सहेलियों ने की चुगली यह चर्चा भी जोरों पर है कि प्रीति के कारनामों की चुगली उस की हमपेशेवर सहेलियों ने की. राजनीति से ले कर सामाजिक कार्यों में ऐसी कई नईपुरानी कार्यकर्ता हैं, जिन की पहचान वसूली एजेंट के तौर पर है. अब सब के काम और सोच के तरीके अलगअलग हो गए हैं. इन में से कुछ को केवल यह बात खटक रही है कि प्रीति कम समय में बहुतों की चहेती बन गई. नेता, पुलिस से ले कर अन्य क्षेत्र के बड़े लोग भी उस के साथ उठनेबैठने लगे. प्रीति का सोशल मीडिया पर इमेज चमकाने का तरीका भी कइयों की आंखों में चुभने लगा था.

लिहाजा प्रीति की चुगली भी होने लगी थी. कभी वह इंसपेक्टर स्तर के अफसर के साथ बदनाम होती तो कभी नेता के घर उस के नाम पर पारिवारिक झगड़ा होता था. बताते हैं कि चुगली के चक्कर में एक पुलिस वाले ने प्रीति से कुछ बातों को ले कर सवाल किए थे, जिस पर वह थाने में ही भड़क गई थी. उस ने उस अफसर को भी खरीखोटी सुनाते हुए ज्यादा चूंचपड़ नहीं करने को कहा था. थाने में सिपाहियों के सामने हुए उस अपमान को अफसर भूल नहीं पाया. शहर में हनीट्रैप के कारनामों में लिप्त कुछ महिलाओं के लिए भी प्रीति आंख का कांटा बनी है. उन्हें लगता है कि यह कल की आई महिला सब को पीछे छोड़ कर काफी आगे निकल चुकी है.

सैक्स रैकेट, भोजनालयों, अवैध धंधों के अड्डों से पुलिस के नाम पर वसूली कर गुजारा करने वालों के लिए यह बात और भी खटकने वाली है कि प्रीति तो सीधे पुलिस अफसरों की गाडि़यों में ही घूमने लगी. आइडियाज क्वीन प्रीति को पहचानने वाले उसे अवैध वसूली की आइडियाज क्वीन भी कहते हैं. अपनी सोशल इमेज बनाते हुए वह सत्कार कार्यक्रम का आयोजन करती रही है. चर्चा के अनुसार वह सत्कार के लिए ऐसे लोगों की तलाश करती रहती है जो कार्यक्रम में  शौल, श्रीफल मिलने के बदले 10 से 20 हजार रुपए खर्च कर सकें. कार्यक्रम आयोजन के नाम पर सहयोग के तौर पर वह हजारों रुपए जमा कर लेती है. उन कार्यक्रमों में पुलिस के बड़े अधिकारी या अन्य क्षेत्र के सम्मानित लोगों को आमंत्रित करती रही है.

सत्कार कराने के इस खेल में भी वह मोटी रकम बटोरती है. बड़े पुलिस अफसरों के लिए मुखबिरी कर के भी वह अपने स्वार्थ साधती रही है. इस के अलावा विविध मामलों को ले कर वह अफसरों व नेता, मंत्री को निवेदन सौंपने में भी आगे रही है. पुलिस मित्र के तौर पर शहर के सभी 33 पुलिस थानों में उस की खास पहचान है. अफसरों की निजी पार्टी के अलावा नेताओं की पर्सनल बैठकों में वह शामिल होती रही है. खुशियों के मौकों पर मनपा के बड़े नेता भी उस के साथ ठुमके लगाते दिखे. लिहाजा कइयों को यही लगता है कि प्रीति की प्रीत केवल उस से है. उसे होनहार कार्यकर्ता मानने वालों की भी कमी नहीं है. सत्कार करनेकराने का दौर कुछ ऐसा चला है कि शहर में जिम्मेदार वर्ग कहलाने वाले सभी क्षेत्रों के प्रतिष्ठितों के साथ वह मंच साझा कर चुकी है. नगर सेवक, महापौर, विधायक स्तर के जनप्रतिनिधि उस की खास मित्रमंडली में शामिल हैं.

वह सब से पहले अपने शिकार के बारे में जानकारी लेती है. मनचाही खुशियों का दाना फेंक कर शिकार फांसने का गुर वह जान चुकी है. हनीट्रैप के मामलों में उत्तर नागपुर में ही एक गिरोह चर्चा में रहा है. प्रीति का नाम आते ही वह हवा हो गया था. इस के अलावा कुछ आपराधिक मामलों में उस का नाम थानों तक पहुंचा, लेकिन पुलिस के रिकौर्ड में दर्ज नहीं हो पाया. बहरहाल कहा जा रहा है कि प्रीति के चक्कर में दास बने लोगों की लंबी कतार है. इन में कई सफेदपोश लोग भी हैं. उम्मीद की जा रही है कि जल्द ही सारी हकीकत सामने आने लगेगी.

 

Chhattisgarh Crime : शराब पिला कर दोस्तों को क्यों मारी गोली

Chhattisgarh Crime : लौकडाउन सब से बड़ी मुसीबत बना पीनेपिलाने वालों के लिए. लेकिन पैसे वाले अपने लिए कोई न कोई राह निकाल ही लेते हैं. आकाश गुप्ता ने शराब का जुगाड़ कर के अपने दोस्तों सौरभ और सुनील को पिलाने के लिए बुलाया. दोनों आ भी गए लेकिन…

छत्तीसगढ़ के सरगुजा का शहर अंबिकापुर.रात के लगभग 8 बजे थे, कोरोना महामारी के चलते देशभर में लौकडाउन चल रहा था. जिधर देखो, उधर ही सन्नाटा. छत्तीसगढ़़ सरगुजा संभाग के ब्रह्म रोड, अंबिकापुर स्थित अपने आवास के बाहर खड़े सौरभ अग्रवाल ने मोबाइल से अपने चचेरे भाई सुनील अग्रवाल को काल लगाई. काल रिसीव हुई तो उस ने पूछा, ‘‘क्या कर रहे हो भाई? वैसे कर ही क्या सकते हो, चारों ओर तो सन्नाटा पसरा है.’’

हैलो के साथ सुनील ने दूसरी ओर से कहा, ‘‘घर पर बैठा हूं, टीवी पर कोरोना की खबरों के अलावा कुछ है ही नहीं. देखदेख कर बोर हो रहा हूं. कभी मौतों के आंकड़े आते हैं तो कभी मरीजों के. देख कर लगता है, जैसे अगला नंबर मेरा ही है.’’

हलकी हंसी के साथ सौरभ बोला, ‘‘आओ, आकाश के यहां चलते हैं. कह रहा था, टाइम पास नहीं हो रहा, सारी व्यवस्था कर रखी है उस ने.’’

सौरभ ने इशारे में सुनील को बता दिया. लेकिन वह तल्ख स्वर में बोला, ‘‘तू आकाश के चक्कर में मत रहा कर. उस क ी जुबान की कोई कीमत नहीं है. पिछले डेढ़ साल से चक्कर पर चक्कर कटवा रहा है, एक नंबर का बदमाश है.’’

‘‘भाई, समयसमय की बात है, कभी करोड़ों का आसामी था, उस के पिता की तूती बोलती थी सरगुजा में… समय का मारा है बेचारा. रही बात मकान की तो चिंता क्यों करते हो, पक्की लिखापढ़ी है, मकान तो उस के पुरखे भी खाली करेंगे.’’ सौरभ ने आकाश का पक्ष रखने की कोशिश की.

‘‘ठीक है, मैं आता हूं.’’ सुनील अग्रवाल ने बात बंद कर दी. सुनील उस का चचेरा भाई था, उम्र लगभग 40 वर्ष. दोनों में खूब छनती थी. दोनों मिलजुल कर अंबिकापुर में बिल्डिंग वर्क और प्रौपर्टी डीलिंग का काम करते थे. सौरभ अपनी इनोवा सीजी 15डी एच8949 पर आ कर बैठ गया. थोड़ी देर में सुनील अग्रवाल आ गया .

दोनों कार से शहर का चक्कर लगा कर आकाश गुप्ता के घर पहुंच गए. हमेशा की तरह आकाश ने मुसकरा कर दोनों का स्वागत किया. तीनों के आपस में मित्रवत संबंध थे, एक ही शहर एक ही मोहल्ले में रहने के कारण एकदूसरे के काफी करीब थे. आपस में लेनदेन भी चलता था. वह आकाश का पुश्तैनी घर था, जो अकसर खाली रहता था. जब पीनेपिलाने का प्रोग्राम बनता था तो सब दोस्त अक्सर यहीं एकत्र होते थे. फिर कैरम खेलने और पीनेपिलाने का दौर चलता था, इसी के चलते आकाश ने यह मकान 2. 30 करोड़ में सौरभ को बेच दिया था और पैसे भी ले लिए थे, मगर वह मकान को सुपुर्द करने में आनाकानी कर रहा था.

बहरहाल, इन सब बातों को दरकिनार कर सुनील और सौरभ आकाश गुप्ता के घर पहुंचे और महफिल सज गई. आकाश ने बेशकीमती शराब, मुर्गमुसल्लम वगैरह मंगा रखा था. लौकडाउन के समय में ऐसी बेहतरीन व्यवस्था देख कर सौरभ अग्रवाल चहका, ‘‘अरे भाई क्या इंतजाम किया है, लग ही नहीं रहा लौकडाउन चल रहा है.’’ इस पर आकाश गुप्ता और सुनील अग्रवाल दोनों हंसने लगे. बातचीत और पीनेपिलाने का दौर शुरू हुआ. इसी बीच अपने उग्र स्वभाव के मुताबिक सुनील अग्रवाल ने आकाश की ओर मुखातिब हो कर कहा, ‘‘यार, ये सब तो ठीक है मगर तू यह बता… सौरभ को मकान कब दे रहा है, 6 महीने हो गए.’’

यह सुन कर आकाश गुप्ता मुसकराते हुए बोला, ‘‘यार, तुम मौजमजा करने आए हो. मजे करो. कोरोना पर बात करो. ये मकान कहां जाएगा.’’

इस पर सौरभ बोला, ‘‘बात बिलकुल ठीक है. आज कोरोना की वजह से हुए लौकडाउन को 17वां दिन है. त्राहित्राहि मची है.’’

सौरभ की बात पर सुनील गंभीर हो गया और चुपचाप शराब का गिलास हाथों में उठा लिया. आकाश ने अपने एक साथी सिद्धार्थ यादव को भी बुला रखा था जो उन की सेवा में तैनात था, साथ ही हमप्याला भी बना हुआ था. हंसतेमुसकराते तीनों शराब पी रहे थे. तभी एकाएक सुनील अग्रवाल ने कहा, ‘‘यार, तूने यह आदमी कहां से ढूंढ निकाला, पहले तो तेरे यहां कभी नहीं देखा.’’

कुछ सकुचाते हुए आकाश गुप्ता ने कहा,

‘‘हां, नयानया रखा है  तुम्हारी सेवाटहल के लिए.’’

‘‘इसे कहीं देखा है…’’ सुनील ने शराब का घूंट गले से नीचे उतारते हुए कहा

‘‘हां देखा होगा. मैं यहीं का हूं भैया, पास में ही मेरा घर है.’’

‘‘नाम  क्या  है  तेरा?’’

‘‘सिद्धार्थ… सिद्धार्थ यादव.’’

‘‘हूं, तू जेल गया था न, कब छूटा?’’ सुनील ने उस पर तीखी नजर डालते हुए कहा

‘‘मैं…अभी एक महीना हुआ है.’’ सिद्धार्थ ने हकलाते हुए दोनों की ओर देख कर कहा.

‘‘अरे, तुम भी यार… सिद्धार्थ बहुत काम का लड़का है. अब सुधर गया है.’’ कहते हुए आकाश गुप्ता ने दोनों के खाली गिलास फिर से भर दिए. दोनों पीते रहे. जब नशा तारी हुआ तो अचानक आकाश गुप्ता जेब से पिस्तौल निकालते हुए बोला, ‘‘आज तुम दोनों खल्लास, मेरा… मेरा मकान चाहिए. ब्याज  पर ब्याज …ब्याज पर ब्याज… आज तुम दोनों को मार कर यहीं दफन कर दूंगा.’

आकाश का रौद्र रूप देख सौरभ और सुनील दोनों के होश उड़ गए. वे कुछ कहते समझते, इस से पहले ही आकाश ने गोली चला दी जो सीधे सुनील अग्रवाल के सिर में लगी. वह चीखता हुआ वहीं ढेर हो गया. सुनील को गोली लगते देख सौरभ कांप  उठा और वहां से भागने लगा. यह देख पास खड़े सिद्धार्थ यादव ने गुप्ती निकाली और सौरभ अग्रवाल के पेट में घुसेड़ दी. उस के पेट से खून का फव्वारा फूट पड़ा और वह वहीं गिर गया. आकाश ने उस पर भी एक गोली दाग दी. सुनील और सौरभ फर्श पर गिर कर थोड़ी देर तड़पते रहे और फिर मौत के आगोश में चले गए.

आकाश गुप्ता ने पिस्तौल जेब में रख ली. फिर उस ने सिद्धार्थ के साथ मिल कर सौरभ और सुनील की लाशों को घर में पहले से ही खोद कर रखे गए गड्ढे में डाल कर ऊपर से मिट्टी डाल दी. इस से पहले सिद्धार्थ यादव ने सौरभ और सुनील की जेब से पर्स, हाथ से अंगूठी, चेन, इनोवा गाड़ी की चाबी अपने कब्जे में ले ली थी. आकाश के निर्देशानुसार वह घर से निकला और इनोवा को चला कर आकाशवाणी मार्ग पर पहुंचा. उस ने इनोवा वहीं खड़ी कर उस में पर्स, मोबाइल रख दिया. लेकिन वह यह नहीं देख सका कि उस का चेहरा कैमरे की जद में आ गया है.

10 अप्रैल, 2020 शुक्रवार को देर रात तक जब सौरभ अग्रवाल और सुनील अग्रवाल घर नहीं पहुंचे तो घर वालों को चिंता हुई. देश के साथसाथ अंबिकापुर में भी लौकडाउन का असर था. सड़कें सूनी थीं. सौरभ के भाई सुमित अग्रवाल ने सौरभ व सुनील के कुछ मित्रों को उन के मोबाइल पर काल कर के दोनों के बारे में पूछताछ की, लेकिन कोई जानकारी नहीं मिली. दोनों के मोबाइल भी स्विच्ड औफ थे. इस से घर वाले चिंतातुर थे. अगले दिन सुबह सुमित अग्रवाल ने सौरभ के पिता बलराज अग्रवाल से आकाश गुप्ता का मोबाइल नंबर ले कर उसे काल की और सौरभ व सुनील के बारे में पूछा. आकाश गुप्ता ने इस बारे में अनभिज्ञता जाहिर करते हुए पूछा, ‘‘क्या बात है?’’

यह बताने पर कि सौरभ व सुनील भैया दोनों रात भर घर नहीं आए तो आकाश ने नाटकीयता पूर्वक कहा, ‘‘अरे, यह तो चिंता की बात है… रुको, मैं पता लगाता हूं.’’

सभी को यह जानकारी थी कि आकाश गुप्ता से सौरभ के घनिष्ठ संबंध थे. ऐसे में आकाश ने उस के परिजनों का विश्वास जीतने का प्रयास किया. थोड़ी देर बाद वह स्वयं सौरभ अग्रवाल के घर आ पहुंचा और बातचीत में शामिल हो गया. जब सुबह भी सौरभ व सुनील का पता नहीं चल पाया तो तय हुआ कि इस बात की जानकारी पुलिस को दे दी जाए. सुनील और सौरभ के भाई सुमित थाने पहुंचे. उन्हें कोतवाल विलियम टोप्पो से मिल कर उन्हें पूरी बात बता दी.

कोतवाल टोप्पो ने पूछा, ‘‘पहले कभी ऐसा हुआ था?’’

‘‘नहीं…सर, ऐसा कभी नहीं हुआ, दोनों रात 11 बजे तक घर आ जाया करते थे. दोनों के मोबाइल भी औफ हैं. हम ने सारे परिचितों से भी पूछताछ कर ली है.’’ सुमित अग्रवाल यह सब बताते हुए रुआंसा हो गया.

‘‘देखो, चिंता मत करो, तुम्हारी तहरीर पर रिपोर्ट दर्ज कर हम खोजबीन शुरू करते हैं.’’ कोतवाल  विलियम टोप्पो ने आश्वासन दिया. कोतवाल दोनों के घर पहुंचे और जरूरी बातें पूछने के बाद उच्चाधिकारियों एसपी आशुतोष सिंह, एडीशनल एसपी ओम चंदेल और एसपी (सिटी) एस.एस. पैकरा को इस घटना की जानकारी दे दी. मामला अंबिकापुर के धनाढ्य परिवार से जुड़ा था. सौरभ और सुनील के गायब होने की खबर बहुत तेजी से फैली. पुलिस पर सम्मानित लोगों का प्रेशर बढ़ने लगा. दोपहर होते होते एसपी आशुतोष सिंह और सभी अधिकारी व डीएसपी फोरैंसिक टीम के साथ सौरभ अग्रवाल व सुनील के घर पहुंच गए. इस के साथ ही जांच तेजी से शुरू हो गई.

इसी बीच खबर मिली कि सौरभ व सुनील जिस इनोवा कार में घर से निकले थे, वह अंबिकापुर के आकाशवाणी चौक के पास खड़ी है. यह सूचना मिलते ही कोतवाल विलियम टोप्पो आकाशवाणी चौक पहुंचे और गाड़ी की सूक्ष्मता से जांच की. गाड़ी में सुनील और सौरभ के पर्स व मोबाइल मिल गए. इस से मामला और भी संदिग्ध हो गया. पुलिस ने आसपास के सीसीटीवी कैमरों की जांच की तो एक शख्स गाड़ी पार्क करते और उस में से निकलते दिखाई दे गया. पुलिस ने तफ्तीश की तो पता चला वह शातिर अपराधी  सिद्धार्थ यादव उर्फ श्रवण है, जो फरवरी 2020 में ही एक अपराध में जेल से बाहर आया है. पुलिस ने उसे उस के घर से हिरासत में ले लिया और पूछताछ शुरू कर दी.

पहले तो सिद्धार्थ एकदम भोला बन कर कहने लगा, ‘‘मैं तो घर पर था, कहीं गया ही नहीं.’’

मगर जब उसे सीसीटीवी में कैद उस की फुटेज दिखाई गई तो उस का चेहरा स्याह पड़ गया. उस के कसबल ढीले पड़ गए. आखिर उस ने पुलिस को चौंकाने वाली बात बताई. उस ने कहा कि सौरभ व सुनील अग्रवाल की गोली मार कर हत्या कर दी गई है. सिद्धार्थ यादव के बयान के आधार पर पुलिस ने आकाश गुप्ता के यहां दबिश दी. वह शराब में डूबा घर पर बैठा था. पुलिस ने उसे गिरफ्त मे ले कर पूछताछ शुरू की. साथ ही सिद्धार्थ यादव की निशानदेही पर आकाश गुप्ता के घर में खोदे गए गड्ढे से सौरभ व सुनील की लाशें भी बरामद कर ली.

हत्या में इस्तेमाल की गई पिस्तौल भी जब्त कर ली गई. तब तक यह खबर अंबिकापुर के कोनेकोने तक पहुंच गई थी. लौकडाउन के बावजूद आकाश गुप्ता के घर के बाहर लोगों का हुजूम जुट गया. पुलिस हिरासत में आ कर आकाश गुप्ता का नशा हिरन हो गया था. थरथर कांपते हुए उस ने अपनी गलती स्वीकार कर ली और पुलिस को सब कुछ बता दिया. आकाश के पिता काशी प्रसाद गुप्ता कभी शहर के बहुत बड़े आसामी थे, पांच बहनों में अकेले भाई आकाश को पिता की अर्जित धनसंपत्ति शौक में उड़ाने  के अलावा कोई काम नहीं था.

धीरेधीरे वह करोड़ों की जमीनजायदाद बेचता रहा. उस ने अपना पुश्तैनी मकान भी सौरभ को 2 करोड़ 30 लाख रुपए में बेच दिया था. वह उस से रुपए भी ले चुका था, लेकिन उस की नीयत खराब हो गई थी. वह चाहता था किसी तरह मकान उस के कब्जे में रह जाए. दूसरी तरफ 2016 में आकाश गुप्ता ने सौरभ के पिता बलराज अग्रवाल से 20  लाख रुपए का कर्ज  लिया था और इन 4 वर्षों में 50 लाख रुपए अदा करने के बावजूद उस से ब्याज के 50 लाख रुपए मांगे जा रहे थे. परेशान आकाश गुप्ता ने सिद्धार्थ को विश्वास में लिया. उसे सिद्धार्थ की आपराधिक पृष्ठभूमि पता थी. आकाश ने धीरेधीरे सिद्धार्थ से घनिष्ठ संबंध बनाए और उसे बताया कि वह किस तरह करोड़पति से बरबादी की ओर जा रहा है.

इस पर सिद्धार्थ यादव ने आकाश गुप्ता के साथ हमदर्दी जताते हुए कहा, ‘‘ऐसा है तो क्यों ना सौरभ को रास्ते से हटा दिया जाए. आकाश को सिद्धार्थ की कही बात जम गई. दोनों ने साथ मिल कर पहले सौरभ के अपहरण की योजना बनाई. लेकिन उस में बड़े पेंच देख कर तय किया कि हत्या ज्यादा आसान है. दोनों ने इसी योजना पर काम किया. सौरभ की हत्या की योजना बनने लगी तो सिद्धार्थ ने आकाश को पास के उपनगर  गंगापुर के रमेश अग्रवाल से मिलवाया. रमेश ने बरगीडीह निवासी शिव पटेल से 90 हजार रुपए में एक पिस्तौल व गोलियां दिला दीं.

हत्या की योजना बना कर पहले ही यह तय कर लिया गया था कि सौरभ व सुनील को मार कर उन की लाशें घर में ही दफन कर दी जाएंगी. सिद्धार्थ और आकाश ने 4 अप्रैल से धीरेधीरे गड्ढा खोदने का काम शुरू कर दिया था. आकाश गुप्ता ने सिद्धार्थ को मोटी रकम देने का लालच दे कर अपने साथ मिला लिया. सिद्धार्थ भी आकाश गुप्ता की रईसी से प्रभावित था और धारणा बना चुका था कि इस काम में उस की मदद कर के उस का जिंदगी भर का राजदार बन जाएगा और आगे की जिंदगी मौजमजे से गुजारेगा.

11 अप्रैल 2020 की देर शाम तक आकाश गुप्ता और सिद्धार्थ को गिरफ्तार कर लिया गया. पुलिस ने सौरभ अग्रवाल, सुनील अग्रवाल की हत्या के आरोप में आकाश और सिद्धार्थ के विरुद्ध भारतीय दंड विधान की धारा 302, 201, 120बी 34,25, 27 आर्म्स एक्ट  के तहत मामला दर्ज कर के आरोपियों को मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी की अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें अंबिकापुर कारागार भेज दिया गया.

महिलाओं ने रची साजिश : ब्याज देने वाली सिंघम चाची की कराई हत्या

MP Crime News : राधा यादव ब्याज पर पैसे देने का धंधा करती थी. इस धंधे में उस ने 50 लाख रुपए से ज्यादा की रकम बांट रखी थी. इसलिए क्षेत्र के लोग उसे सिंघम चाची कहते थे. आखिर ऐसा क्या हुआ कि यही पैसा उस की जान का दुश्मन बन बैठा?

घटना मध्य प्रदेश के भोपाल जिले की है. शाम के कोई 7 साढ़े 7 का समय था. भोपाल के चूना भट्ठी थाने की ट्रेनी एसडीपीओ रिचा जैन अपने चैंबर में किसी केस की फाइल देख रही थीं, तभी उन्हें कोलार सोसायटी में किसी महिला का कत्ल कर दिए जाने की सूचना मिली. महिला की हत्या का मामला गंभीर होने से एसडीपीओ रिचा जैन सीएसपी भूपेंद्र सिंह को ले कर तुरंत ही मौके पर पहुंच गईं. कोलार सोसायटी की एक संकरी गली में लगभग 45-50 साल की एक महिला का खून से सना शव पड़ा हुआ था. उक्त महिला के कपड़े और पहने हुए जेवर से यह साफ लग रहा था कि महिला का संबंध किसी अच्छे परिवार से है.

महिला के जेवर देख कर एसडीपीओ जैन ने अंदाजा लगाया कि हत्या लूट की गरज से नहीं की गई है. वहां मौजूद लोगों से पूछताछ की तो पता चला कि मृतका का नाम राधा यादव है, जो करोद क्षेत्र की रहने वाली है. पता चला कि राधा ने कोलार कालोनी की गरीब बस्ती में रहने वाले सैकड़ों लोगों को कर्ज दे रखा था, इसलिए वह अपने कर्ज व ब्याज की वसूली के लिए अकसर वहां आतीजाती रहती थीं. सीएसपी भूपेंद्र सिंह ने अनुमान लगा लिया कि राधा के कत्ल के पीछे लेनदेन का मामला हो सकता है. यह बात 18 मार्च, 2020 की है.

लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवाने के बाद एसडीपीओ एक टीम को कालोनी में रहने वाले राधा के कर्जदारों की सूची बनाने के काम में लगा दिया. जिस से अगले ही दिन यह बात सामने आई कि लगभग पूरी बस्ती राधा की कर्जदार थी. राधा यादव ने यहां 20 लाख रुपए से अधिक की रकम ब्याज पर दे रखी थी. साथ ही यह भी पता चला कि राधा काफी दबंग किस्म की महिला थी. वह अपना पैसा वसूलने के लिए कर्जदार की सार्वजनिक बेइज्जती करने से भी पीछे नहीं हटती थी, जबकि अधिकांश लोगों का कहना था कि कितना भी चुकाओ मगर राधा का कर्ज हनुमान की पूंछ की तरह बढ़ता ही जाता था.

इन सब बातों के सामने आने से पुलिस के सामने यह बात तो लगभग तय हो गई थी कि राधा की हत्या लेनदेन के विवाद में ही हुई थी, इसलिए राधा के मोबाइल फोन के रिकौर्ड के आधार पर पुलिस ने उन लोगों से पूछताछ शुरू कर दी, जिन्होंने घटना वाले दिन राधा से फोन पर बात की थी. लेकिन इस से कोई खास जानकारी पुलिस के सामने नहीं आई. हां, यह जरूर पता चला कि राधा की हत्या में 2 युवक शामिल थे, जो घटना के बाद अलगअलग दिशा में भागे थे. इन में से एक बदमाश का स्थानीय लोगों ने पीछा भी किया था, मगर वह चारइमली की तरफ भागते हुए एकांत पार्क के पास बहने वाले नाले में कूद कर फरार हो गया था.

पुलिस की जांच चल ही रही थी कि इसी बीच 21 मार्च, 2020 को जनता कर्फ्यू लगा दिया गया. जबकि लौकडाउन से ठीक पहले 23 मार्च को एक कबाड़ का व्यापार करने वाले व्यक्ति ने हबीबगंज पुलिस को एकांत पार्क के पास नाले में लाश पड़ी होने की खबर दी थी. एकांत पार्क के पास बहने वाला नाला चूना भट्ठी और हबीबगंज थाने की सीमा बांटता है. ऐसे में हबीबगंज पुलिस ने जा कर नाले से लाश बरामद की, जिस के पास एक मोबाइल फोन भी मिला. लाश कीचड़ में सनी हुई थी और वह लगभग सड़ने की स्थिति में आ चुकी थी. इसलिए जब पुलिस ने उस के मोबाइल में पड़ी सिम के आधार पर पहचान करने की कोशिश की तो जल्द ही उस की पहचान अभिषेक पुत्र कालू कौशल के रूप में हो गई.

बाबानगर शाहपुरा का रहने वाला अभिषेक हिस्ट्रीशीटर बदमाश था, इसलिए पुलिस को लगा कि उस की हत्या की गई होगी. शव की कलाई पर धारदार हथियार के चोट के निशान भी थे. साथ ही जहां लाश मिली थी, वहां नाले की दीवार के पास चूनाभट्ठी थाने की सीमा में खून भी गिरा था. इस से पुलिस ने अनुमान लगाया कि नाले में अभिषेक चूनाभट्ठी की तरफ से गिरा है. इसलिए जब चूनाभट्ठी थाने से संपर्क किया गया तो एसडीपीओ रिचा जैन को 18 मार्च की वह घटना याद आ गई, जिस में लोगों ने बताया था कि राधा यादव का एक हत्यारा पीछा कर रही भीड़ से बचने के लिए नाले में कूद गया था.

कहीं अभिषेक कौशल ही तो राधा का हत्यारा नहीं? यही सोच कर सीएसपी भूपेंद्र सिंह ने नाले के पास मिले खून के नमूनों को घटनास्थल के पास गली में मिले खून से मिलान के लिए भेज दिया. जिस में पता चला कि गली में मिला खून और नाले के पास गिरा खून एक ही व्यक्ति का है. इस से यह साफ हो गया कि 18 मार्च की रात राधा यादव की हत्या कर फरार होने के लिए नाले में कूदने वाला बदमाश कोई और नहीं, बल्कि अभिषेक ही था जो दलदल में फंस कर मर गया था. इसलिए पुलिस ने अभिषेक के मोबाइल की कालडिटेल्स निकाली, जिस में पता चला कि घटना वाले दिन उस की कई बार कोलार कालोनी निवासी अजय निरगुडे से बात हुई थी.

यही नहीं, घटना के समय अजय और अभिषेक दोनों के फोन की लोकेशन एक साथ उसी स्थान की थी, जहां राधा यादव का कत्ल हुआ था. अजय की तलाश की गई तो पता चला कि अजय 18 मार्च, 2020 से लापता है. 18 मार्च को ही राधा की हत्या हुई थी. इस से पुलिस को पूरा भरोसा हो गया कि अजय ही अभिषेक के साथ राधा की हत्या में शामिल था. चूंकि घटना के 4 दिन बाद से ही देश में लौकडाउन लग गया था, इस से पुलिस का काम थोड़ा मुश्किल हो गया. लेकिन एसपी (साउथ) साई कृष्णा के निर्देश पर चूनाभट्ठी पुलिस दूसरी जिम्मेदारियों के साथ अजय की तलाश में जुटी रही.

क्योंकि उसे भरोसा था कि जब तक नाले में अभिषेक की लाश बरामद नहीं हुई थी, तब तक अजय ने भोपाल से भागने की कोई जरूरत ही नहीं समझी होगी. फिर अभिषेक की लाश मिलने के साथ ही देश में ट्रेन बस सब बंद हो गई थी, इसलिए अजय कहीं बाहर नहीं गया होगा, शायद वह भोपाल के आसपास ही कहीं छिपा होगा. उस का पता लगाने के लिए पुलिस ने अपने मुखबिरों को भी लगा दिया. इस कवायद का नतीजा यह निकला कि घटना के 7 हफ्ते बाद पुलिस को खबर मिली कि अजय ईदगाह हिल्स पर अपनी ससुराल पक्ष के एक रिश्तेदार के घर पर छिपा है.

पुलिस टीम ने वहां छापामारी कर आराम से सो रहे अजय को गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ में अजय पहले तो इस मामले में कुछ भी जानने से इंकार करता रहा लेकिन जब पुलिस ने थोड़ी सी ही सख्ती दिखाई तो उस ने सुपारी ले कर राधा की हत्या करने की बात कबूल कर ली. उस ने बताया कि 4 महिलाओं रेखा हरियाले, सुनीता प्रजापति, गुलाबबाई प्रजापति और सुलोचना ने राधा की हत्या के लिए उसे एक लाख 80 हजार रुपए की सुपारी देने के साथ 20 हजार रुपए एडवांस में भी दिए थे. पूरे मामले में कोलार कालोनी में राधा के एजेंट के तौर पर काम करने वाला ताराचंद मेहरा एवं उस का भतीजा मनोज भी शामिल था,

सो पुलिस ने तत्काल छापामारी कर सभी को गिरफ्तार कर लिया. जिस के बाद राधा हत्याकांड की कहानी इस प्रकार सामने आई. पंचवटी कालोनी करोंद निवासी राधा यादव कई साल से भोपाल की गरीब बस्तियों में ब्याज पर पैसा देने का काम करती थी. उस का पति एलआईसी में नौकरी करता था. लेकिन किसी वजह से उस की नौकरी छूट गई. राधा के 2 बेटे हैं, जिन की उम्र इस समय 16 और 18 साल है. राधा का पति शराब था, जिस की वजह से पति का उस से झगड़ा होता रहता था. फिर एक दिन ऐसा आया कि पति उसे छोड़ कर कहीं चला गया तो अब तक नहीं लौटा. अपने एकलौते बेटे के घर छोड़ कर चले जाने पर ताराचंद को गहरा सदमा लगा जिस से उन की भी मृत्यु हो गई.

ससुर ताराचंद की मृत्यु के बाद राधा ने उन की खेती की 10-12 बीघा जमीन बेच कर ब्याज पर पैसे देने शुरू कर दिए. लोगों की मानें तो राधा का पूरे भोपाल में 50 लाख से अधिक और अकेली कोलार कालोनी में 20 लाख से अधिक रुपया ब्याज पर चल रहा था. इलाके के लोग राधा को सिंघम चाची कहते थे. राधा अपने दिए पैसों पर मोटा ब्याज वसूलती थी. उसे अपना पैसा वसूल करना भी अच्छी तरह से आता था. लोगों का कहना है कि जो एक बार राधा का कर्जदार हो गया, वह फिर उस कर्ज से नहीं उबर पाया. कर्ज वसूलने का उस का अपना हिसाब था, जिस के अनुसार आदमी का कर्ज कभी पूरा नहीं हो पाता था. इस पर कोई अगर उस का विरोध करता तो राधा गुंडई करने से भी बाज नहीं आती थी.

कर्जदार की कार, आटो भी वह खड़ेखड़े नीलाम कर देती थी और कोई उस का कुछ नहीं कर पाता था. पकड़े गए आरोपियों में से ताराचंद मेहरा कोलार कालोनी में राधा के एजेंट के तौर पर काम करता था. जानकारी के अनुसार राधा ने अकेले उस के माध्यम से ही इस कालोनी में 8 लाख से ज्यादा का कर्ज बांट रखा था. बाकी सभी आरोपी राधा के कर्जदार हैं, जो उस के हाथ कई बार जलील भी किए जा चुके थे. आरोपी महिलाओं ने बताया कि राधा से उन्होंने जितना पैसा कर्ज में लिया था, उस का कई गुना अधिक वे ब्याज के तौर पर वापस कर चुकी थीं.

लेकिन इस के बाद भी राधा आए दिन पैसे वसूलने उन के दरवाजे पर आ कर गालीगलौज करती थी. इस से वे तंग आ चुकी थीं. उन्होंने जब तक राधा जिंदा है, तब तक उस का कर्ज कभी नहीं चुका सकतीं. यही सोच कर उन्होंने राधा की हत्या करवाने की सोच कर अजय से बात की. शाहपुरा का नामी बदमाश अभिषेक अजय निरगुड़े का मुंहबोला साला था. अजय ने अभिषेक से बात की, जिस से एक लाख 80 हजार रुपए में राधा की हत्या का सौदा तय कर दिया. इस काम में राधा का एजेंट ताराचंद और उस का भतीजा मनोज भी साथ देने को राजी हो गए.

योजनानुसार घटना वाले दिन रेखा ने राधा को फोन कर चाय पीने के लिए अपने घर बुलाया. राधा लगभग रोज ही ब्याज की वसूली करने के लिए कालोनी में आती थी, सो रेखा का फोन सुन कर वह उस के घर पहुंच गई, जहां चाय पीने के दौरान ताराचंद ने रेखा को फोन कर ब्याज का पैसा लेने के लिए बुलाया. इसलिए रेखा के घर से उठ कर राधा ताराचंद के घर की तरफ जाने लगी. वास्तव में आरोपियों को मालूम था कि राधा, रेखा के घर से ताराचंद के घर जाने के लिए संकरी गलियों से हो कर गुजरेगी. इसलिए रास्ते में अजय और अभिषेक घात लगा कर बैठ गए और रेखा के वहां आते ही दोनों ने मिल कर चाकू से उस की हत्या कर दी.

रेखा की चीखपुकार सुन कर कालोनी के लोग बाहर निकल आए, लेकिन गलियों से परिचित होने के कारण अजय तो आसानी से मौके से फरार हो गया, जबकि अभिषेक को पकड़ने के लिए भीड़ उस के पीछे पड़ गई. भीड़ ने अभिषेक को पकड़ लिया. भीड़ में मौजूद किसी व्यक्ति ने उस पर धारदार हथियार से हमला किया, जिस से उस की कलाई कट गई. उसी दौरान किसी तरह अभिषेक भीड़ से भाग गया और नाले के पास एक पेड़ के पीछे छिप गया. जब भीड़ उस की तरफ आई तो वह पकड़े जाने से बचने के लिए नाले में कूद गया, जहां नाले के दलदल मे फंस कर उस की मौत हो गई. बाद में पुलिस को मिली अभिषेक की लाश ही राधा यादव के हत्यारों तक पहुंचने की सीढ़ी बनी.

 

सीवर का ढक्कन : क्या हुआ उन मासूमों के साथ

Kahaniyan Crime Story in Hindi : आज तीसरे दिन कर्फ्यू में 4 घंटे की छूट दी गई थी. इंस्पैक्टर राकेश अपनी पुलिस टीम के साथ हालात पर काबू पाने के लिए गश्त पर निकले हुए थे. रास्ते में आम लोगों से ज्यादा रैपिड ऐक्शन फोर्स के जवान नजर आ रहे थे. सड़कों के किनारे लगे अधजले, अधफटे बैनरपोस्टर दंगों की निशानदेही कर रहे थे.

अपनी गाड़ी से आगे बढ़ते हुए इंस्पैक्टर राकेश ने देखा कि एक सीवर का ढक्कन ऊपरनीचे हो रहा था. उन्होंने फौरन गाड़ी रुकवाई. सीवर के करीब पहुंचने पर मालूम हुआ कि अंदर से कोई सीवर के ढक्कन को खोलने की कोशिश कर रहा था. इंस्पैक्टर राकेश ने जवानों से ढक्कन हटाने को कहा.

सीवर का ढक्कन खुलने के बाद जब पुलिस का एक सिपाही अंदर झांका तो दंग रह गया. वहां 2 नौजवान गंदे पानी में उकड़ू बैठे हुए थे. उन के कपड़े कीचड़ में सने हुए थे. उन के चेहरे पर मौत का खौफ साफ नजर आ रहा था.

ढक्कन खुलते ही वे दोनों नौजवान हाथ जोड़ कर रोने लगे. उन के गले से ठीक ढंग से आवाज भी नही निकल पा रही थी. उन में से एक ने किसी तरह हिम्मत कर के कहा, “सर… हमें बाहर निकालें…”

बहरहाल, कीचड़ से लथपथ और बदबू में सने हुए उन दोनों लड़कों को बाहर निकाला गया. इस बीच एंबुलैंस भी वहां आ चुकी थी.

बाहर निकलने के बाद वे दोनों लड़के गहरी गहरी सांसें लेने लगे. दोनों के पैरों को कीड़े मकोड़ों ने काट खाया था, जिन से अभी भी खून बह रहा था. उन के शरीर के कई हिस्सों पर जोंक चिपकी हुई खून पी रही थीं और तिलचट्टे व कीड़े रेंग रहे थे. उन्हें झाड़ने या हटाने की भी ताकत उन में नहीं बची थी.

उन दोनों को जल्दीजल्दी एंबुलैंस में लिटाया गया. एंबुलैंस चलने के पहले ही एक नौजवान बोल पड़ा, “अंदर 2 जने और हैं सर…”

पुलिस टीम को यह समझते देर नहीं लगी कि सीवर में 2 और लोग फंसे हुए हैं. पुलिस का एक जवान सीवर में झांकते हुए बोला, “सर, अंदर 2 डैड बौडी नजर आ रही हैं.”

इंस्पैक्टर राकेश के मुंह से अचानक निकला, “उफ…”

बड़ी मशक्कत से उन दोनों लाशों को बाहर निकाला गया, जो पानी में फूल कर सड़ने लगी थीं. बदबू के मारे नाक में दम हो गया था.

अगले दिन जिंदा बचे उन दोनों लड़कों के बयान से मालूम हुआ कि उन में से एक का नाम महेश और दूसरे का नाम मकबूल है. मरने वाले माजिद और मनोहर थे.

उन में से एक ने बताया, “हम लोग नेताजी का भाषण सुनने आए थे. अभी भाषण शुरू भी नहीं हुआ था कि सभा स्थल के बाहर कहीं से धमाके की आवाज सुनाई पड़ी. पलक झपकते ही अफवाहों का बाजार गरम हो गया और लोगों में भगदड़ मच गई. ‘आतंकवादी हमला’ का शोर सुन कर हम लोग भी भागने लगे.

“लोग अपनी जान बचाने के लिए जिधर सुझाई दे रहा था, उधर भागे जा रहे थे. उसी भगदड़ में कुछ लोग मौके का फायदा उठा कर लूटपाट करने में मसरूफ हो गए. हालात की गंभीरता को देखते हुए घंटेभर में कर्फ्यू का ऐलान होने लगा. पुलिस की गाड़ियों के सायरन चीखने लगे. साथ छूटने के डर से हम चारों ने एकदूसरे का हाथ पकड़ रखा था.

घरों और दुकानों के दरवाजे बंद हो चुके थे. कहां जाएं, किस के घर में घुसें… कौन इस आफत में हमें पनाह देगा, यह समझ में नही आ रहा था. यह सोचते हुए हम चारों दोस्त भागे जा रहे थे कि तभी पीछे गली से गुजर रही पुलिस की गाड़ी से फायरिंग की आवाज आई. ऐसा लगा जैसे वह फायरिंग हम लोगों पर की गई थी.

“हम लोग हांफ भी रहे थे और कांप भी रहे थे. दौड़ने के चक्कर में हम में से किसी एक का पैर सीवर के अधखुले ढक्कन से टकराया. वह लड़खड़ा कर गिरने लगा. हाथ पकड़े होने के चलते हम चारों ही एकसाथ गिर पड़े.

“हम लोगों को तत्काल छिपने के लिए सीवर ही महफूज जगह लगा. इस तरह एक के बाद एक हम चारों लोग सीवर में उतरते चले गए और उस का ढक्कन किसी तरह से बंद कर लिया… और फिर…” इतना कह कर वह लड़का रोने लगा. देखते ही देखते वही सीवर 2 नौजवानों की कब्रगाह जो बन गया था.