Love Crime Story : सगाई वाले दिन ही प्रेमिका का किया मर्डर

Love Crime Story : शादीशुदा युवराज उर्फ जुगराज सिंह ने हरप्रीत को प्यार के जाल में फांस तो लिया, लेकिन जब बात शादी तक पहुंची तो वह परेशान हो गया. गले में अटकी इस हड्डी को निकालने के लिए युवराज ने अपने दोस्तों सुखचैन सिंह व सुखविंदर के साथ ऐसी योजना बनाई कि…

कानपुर के जवाहर नगर निवासी सरदार गुरुवचन सिंह की 22 वर्षीय बेटी हरप्रीत कौर श्रमशक्ति एक्सप्रेस से दिल्ली जाने के लिए रात 9 बजे घर से निकली. रात 10 बजे कानपुर सेंट्रल पहुंचने पर हरप्रीत ने अपनी मां गुरप्रीत को फोन पर बताया कि उस का टिकट कंफर्म हो गया है, उसे आसानी से सीट मिल जाएगी. बेटी की बात से संतुष्ट हो कर गुरप्रीत कौर निश्चिंत हो गई. दरअसल, 13 दिसंबर को कानपुर में हरप्रीत कौर की रिंग सेरेमनी थी. उस का मंगेतर युवराज सिंह दिल्ली के बंगला साहिब गुरुद्वारे में रहता था. हरप्रीत कौर की भाभी व भाई सुरेंद्र सिंह भी दिल्ली में ही रहते थे. हरप्रीत भाई से मिलने तथा अपनी सगाई का सामान खरीदने के लिए 9 दिसंबर, 2019 की रात घर से निकली थी.

बेटी सफर में अकेली हो तो मांबाप की चिंता स्वाभाविक है. गुरुवचन सिंह को भी बेटी की चिंता थी. अत: हालचाल जानने के लिए उन्होंने रात 12 बजे बेटी को काल लगाई, पर उस का फोन स्विच्ड औफ था. उन्होंने सोचा कि वह सो गई होगी. लेकिन मन में शक का बीज पड़ गया था, जिस ने सवेरा होतेहोते वृक्ष का रूप ले लिया. सुबह 7 बजे उन्होंने फिर से हरप्रीत को काल लगाई, पर फोन अब भी बंद था. इस से गुरुवचन सिंह की चिंता और बढ़ गई. उन्होंने दिल्ली में रहने वाले बेटे सुरेंद्र सिंह को फोन पर सारी बात बताई. सुरेंद्र सिंह ने उन्हें बताया कि हरप्रीत कौर अभी तक यहां नहीं पहुंची है. इस के बाद सुरेंद्र सिंह बहन की खोज में निकल पड़ा.

सुरेंद्र सिंह नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पहुंचा क्योंकि श्रमशक्ति एक्सप्रैस नई दिल्ली तक ही आती है. वहां उस ने स्टेशन का हर प्लेटफार्म छान मारा लेकिन उसे हरप्रीत कौर नहीं दिखी. उस ने वेटिंग रूम में भी चेक किया, पर हरप्रीत कौर वहां भी नहीं थी. सुरेंद्र सिंह ने सोचा कि हो न हो, हरप्रीत अपने मंगेतर युवराज सिंह के पास चली गई हो? मन में यह विचार आते ही सुरेंद्र सिंह ने हरप्रीत के मंगेतर युवराज से फोन पर बात की, ‘‘युवराज, हरप्रीत तेरे पास तो नहीं आई?’’

‘‘नहीं तो,’’ युवराज ने जवाब दिया. फिर उस ने पूछा, ‘‘सुरेंद्र बात क्या है, हरप्रीत को ले कर तू इतना परेशान क्यों है?’’

‘‘क्या बताऊं… हरप्रीत कल रात कानपुर से दिल्ली आने को निकली थी, पर वह अभी तक यहां नहीं पहुंची. स्टेशन पर आ कर मैं ने चप्पाचप्पा छान मारा पर वह कहीं नहीं दिख रही. मैं बहुत परेशान हूं. समझ में नहीं आ रहा कि हरप्रीत गई तो कहां गई?’’

‘‘तुम परेशान न हो. मैं तुम्हारे पास आ रहा हूं.’’ युवराज बोला और कुछ देर बाद वह नई दिल्ली स्टेशन पहुंच गया. वह भी सुरेंद्र सिंह के साथ हरप्रीत की खोज करने लगा. दोनों ने नई दिल्ली स्टेशन का कोनाकोना छान मारा, लेकिन हरप्रीत का कुछ पता न चला. दिल्ली में सुरेंद्र व युवराज के कुछ परिचित थे. हरप्रीत भी उन्हें जानती थी. उन परिचितों के यहां भी सुरेंद्र सिंह ने बहन की खोज की, पर उस के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली. सुरेंद्र सिंह के पिता गुरुवचन सिंह मोबाइल पर उस के संपर्क में थे. सुरेंद्र पिता को पलपल की जानकारी दे रहा था. जब सुबह से शाम हो गई और हरप्रीत का कुछ भी पता नहीं चला तो गुरुवचन सिंह चिंतित हो उठे. तब वह कानपुर रेलवे स्टेशन पर स्थित जीआरपी (राजकीय रेलवे पुलिस) थाना पहुंच गए.

उन्होंने थानाप्रभारी को बेटी के लापता होने की बात बताते हुए बेटी की गुमशुदगी दर्ज करने की मांग की. लेकिन थानाप्रभारी ने गुरुवचन सिंह की बात को तवज्जो नहीं दी. उन्होंने यह कह कर उन्हें वापस भेज दिया कि बेटी जवान है हो सकता है किसी के साथ सैरसपाटा के लिए निकल गई हो, 1-2 रोज इंतजार कर लो. उस के बाद न लौटे तो हम गुमशुदगी दर्ज कर लेंगे. गुरुवचन सिंह बुझे मन से वापस घर आ गए. गुरुवचन सिंह और उन की पत्नी गुरप्रीत कौर ने वह रात आंखों ही आंखों में काटी. दोनों के मन में तरहतरह की आशंकाएं उमड़नेघुमड़ने लगी थीं. अब तक गुरुवचन सिंह की युवा बेटी के गायब होने की खबर कई गुरुदारों तथा सिख समुदाय में फैल गई थी. लोगों की भीड़ उन के घर पर जुटने लगी थी.

गुरुद्वारे के जत्थे की महिलाएं भी आ गई थीं. सभी तरहतरह के कयास लगा रही थीं. गुरुवचन सिंह ने अपने खास लोगों से बंद कमरे में विचारविमर्श किया और जीआरपी थाने जा कर हरप्रीत की गुमशुदगी दर्ज कराने का निश्चय किया. 11 दिसंबर, 2019 की दोपहर गुरुवचन सिंह अपने परिचितों के साथ एक बार फिर कानपुर जीआरपी थाने पहुंचे. इस बार दबाव में बिना नानुकुर के थाना पुलिस ने हरप्रीत कौर की गुमशुदगी दर्ज कर ली. गुरुवचन सिंह एवं उन के परिचितों ने पुलिस से सीसीटीवी की फुटेज दिखाने का अनुरोध किया. इस पर पुलिस ने व्यस्तता का हवाला दे कर फुटेज दिखाने को इनकार कर दिया लेकिन जब दवाब बनाया गया तो फुटेज दिखाई.

फुटेज में हरप्रीत कौर स्टेशन की कैंट साइड से बाहर निकलते दिखाई दी. उस के बाद पता नहीं चला कि वह कहां गई. गुरुवचन सिंह जवाहर नगर में रहते थे. यह मोहल्ला थाना नजीराबाद के अंतर्गत आता है. शाम 5 बजे वह परिचितों के साथ थाना नजीराबाद जा पहुंचे. उस समय थानाप्रभारी मनोज रघुवंशी थाने पर ही मौजूद थे. गुरुवचन सिंह ने उन्हें अपनी व्यथा बताई और बेटी की गुमशुदगी दर्ज करने की गुहार लगाई. थानाप्रभारी ने तत्काल गुरुवचन सिंह की बेटी हरप्रीत कौर की गुमशुदगी दर्ज कर ली. उन्होंने बेटी को तलाशने में हर संभव कोशिश करने का आश्वासन दिया. इधर 12 दिसंबर की अपराह्न 3 बजे कानपुर के ही थाना महाराजपुर की पुलिस को हाइवे के किनारे झाडि़यों में एक युवती की लाश पड़ी होने की सूचना मिली. सूचना पाते ही थानाप्रभारी ए.के. सिंह कुछ पुलिसकर्मियों के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए.

लाश तिवारीपुर स्थित राधाकृष्ण मुन्नीदेवी महाविद्यालय के समीप हाइवे किनारे झाडि़यों में पड़ी थी. उन्होंने घटनास्थल और लाश का निरीक्षण किया. मृतका की उम्र 22 साल के आसपास थी. उसे देखने से लग रहा था कि उस की हत्या 2-3 दिन पहले कहीं और कर के लाश वहां डाली गई थी. मृतका के शरीर पर कोई जख्म वगैरह नहीं था जिस से प्रतीत हो रहा था कि उस की हत्या गला दबा कर की गई होगी. उस के पास ऐसी कोई चीज नहीं मिली जिस से उस की शिनाख्त हो सके. थानाप्रभारी ने हुलिए सहित एक युवती की लाश पाए जाने की सूचना वायरलेस द्वारा कानपुर नगर तथा देहात के थानों को प्रसारित कराई ताकि मृतका की पहचान हो सके. इस सूचना को जब नजीराबाद थानाप्रभारी मनोज रघुवंशी ने सुना तो उन का माथा ठनका. क्योंकि उन के यहां भी एक दिन पहले 22 वर्षीय युवती हरप्रीत कौर की गुमशुदगी दर्ज हुई थी.

उन्होंने आननफानन में हरप्रीत कौर के पिता गुरुवचन सिंह को थाने बुलवा लिया. फिर उन्हें साथ ले कर वह महाराजपुर में मौके पर पहुंच गए. गुरवचन सिंह उस लाश को देखते ही फफक पड़े, ‘‘सर, यह शव हमारी बेटी हरप्रीत का ही है. इसे किस ने और क्यों मार डाला?’’

हरप्रीत की लाश पाए जाने की सूचना जब अन्य घरवालों को मिली तो घर में कोहराम मच गया. मां, बहन, भाई व परिजन घटनास्थल पर पहुच गए. हरप्रीत का शव देख कर सभी बिलख पड़े. थानाप्रभारी ने हरप्रीत कौर की हत्या की सूचना अपने वरिष्ठ अधिकारियों को दी. कुछ ही देर बाद एसएसपी अनंतदेव तिवारी, एसपी (साउथ) अपर्णा गुप्ता तथा सीओ (नजीराबाद) गीतांजलि सिंह भी मौके पर पहुंच गईं. मौके से साक्ष्य जुटाए गए. खोजी कुत्ता शव को सूंघ कर राधाकृष्ण मुन्नीदेवी महाविद्यालय की ओर भौंकता हुआ आगे बढ़ा फिर कुछ दूर जा कर वापस आ गया.

खोजी कुत्ता हत्या से संबंधित कोई साक्ष्य नहीं जुटा पाया. घटना स्थल से न तो मृतका का मोबाइल फोन बरामद हुआ और न उस का बैग. निरीक्षण के बाद पुलिस ने शव पोस्टमार्टम हेतु लाला लाजपत राय अस्पताल भेज दिया. 13 दिसंबर, 2019 को हरप्रीत हत्याकांड की खबर समाचारपत्रों में सुर्खियों में छपी तो सिख समुदाय के लोगों में रोष छा गया. सुबह से ही लोग पोस्टमार्टम हाउस पहुंचने लगे. दोपहर 12 बजे तक पोस्टमार्टम हाउस पर भारी भीड़ जुट गई. सपा विधायक इरफान सोलंकी तथा अमिताभ बाजपेई भी वहां पहुंच गए. विधायकों के आने से भीड़ ज्यादा उत्तेजित हो उठी. लोगों में पुलिस की लापरवाही के प्रति गुस्सा था.

अत: पुलिस विरोधी नारेबाजी शुरू हो गई. यह देख कर थानाप्रभारी मनोज रघुवंशी के हाथपांव फूल गए. उन्होंने घटना की जानकारी आला अधिकारियों को दी तो एडीजी प्रेम प्रकाश, आईजी मोहित अग्रवाल, एसएसपी अनंतदेव तिवारी, एसपी (साउथ) अपर्णा गुप्ता, तथा सीओ गीतांजलि सिंह लाला लाजपतराय अस्पताल आ गईं. वहां जुटी भीड़ को देखते हुए एसएसपी ने मौके पर नजीराबाद, स्वरूप नगर, फजलगंज, काकादेव थाने की फोर्स भी बुला ली. बवाल की जानकारी पा कर जिलाधिकारी विजय विश्वास पंत भी मौके पर आ गए. सपा विधायक माहौल को बिगाड़ न दें, इसलिए पुलिस अधिकारियों ने भाजपा विधायक सुरेंद्र मैथानी तथा गुरु सिंह सभा, कानपुर के नगर अध्यक्ष सिमरन जीत सिंह को वहां बुलवा लिया. भाजपा विधायक व पुलिस अधिकारियों ने मृतका के परिजनों से बातचीत शुरू की.

मृतका के पिता गुरुवचन सिंह ने आरोप लगाया कि पुलिस ने बेहद लापरवाही की. पुलिस यदि सक्रिय होती, तो शायद आज उन की बेटी जिंदा होती. वह थानों के चक्कर लगाते रहे, कहते रहे कि जल्द से जल्द उन की बेटी के हत्यारों को गिरफ्तार किया जाए. उन्होंने जिलाधिकारी के समक्ष तीसरी मांग यह रखी कि उन्हें कम से कम 5 लाख रुपए की आर्थिक मदद दी जाए. गुरुवचन सिंह की इन मांगों के संबंध में विधायक सुरेंद्र मैथानी तथा गुरु सिंह सभा नगर अध्यक्ष सिमरन जीत सिंह ने जिलाधिकारी तथा पुलिस अधिकारियों से विचारविमर्श किया. अंतत: उन की सभी मांगें मान ली गईं. अधिकारियों के आश्वासन के बाद माहौल शांत हो गया.

3 डाक्टरों के एक पैनल ने हरप्रीत कौर के शव का पोस्टमार्टम किया. पैनल में डिप्टी सीएमओ डा. ए.बी. मिश्रा, डा. कृष्ण कुमार तथा डा. एस.पी. गुप्ता को शामिल किया गया. पोस्टमार्टम के दौरान वीडियोग्राफी भी की गई. डाक्टरों ने विसरा के साथ ही स्लाइड बना कर डीएनए सैंपल जांच के लिए सुरक्षित रख लिए. पोस्टमार्टम के बाद हरप्रीत के शव को जवाहर नगर गुरुद्वारा लाया गया. यहां जत्थे की महिलाओं की पुलिस से झड़प हो गई. सीओ गीतांजलि सिंह ने किसी तरह महिलाओं को समझाया. उस के बाद मृतका के शव को कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के बीच बर्रा स्थित स्वर्गआश्रम लाया गया. जहां परिजनों ने उसे नम आंखों से अंतिम विदाई दी.

दरअसल हरप्रीत कौर की 13 दिसंबर को कानपुर में रिंग सेरेमनी थी. सगाई वाले दिन ही उस की अर्थी उठी. इसलिए जिस ने भी मौत की खबर सुनी, उस की आंखें आंसू से भर आईं. यही कारण था कि उस की शवयात्रा में भारी भीड़ उमड़ी. भीड़ में गम और गुस्सा दोनों था. गम का आलम यह रहा कि सिख समुदाय के अनेक घरों तथा गुरुद्वारे में खाना तक नहीं बना. एसएसपी अनंतदेव तिवारी ने हरप्रीत हत्याकांड को बेहद गंभीरता से लिया. उन्होंने हत्या के खुलासे की जिम्मेदारी एसपी (साउथ) अपर्णा गुप्ता को सौंपी. अपर्णा गुप्ता ने खुलासे के लिए एक स्पैशल टीम गठित की.

इस टीम में नजीराबाद थानाप्रभारी मनोज रघुवंशी, सीओ गीतांजलि सिंह, कई थानों के तेजतर्रार दरोगाओं तथा कांस्टेबलों को सम्मिलित किया गया. अब तक थानाप्रभारी ने गुमशुदगी के इस मामले को भा.द.वि. की धारा 302, 201 के तहत अज्ञात हत्यारों के विरूद्ध तरमीम कर दिया था. एसपी (साउथ) अपर्णा गुप्ता द्वारा गठित टीम ने सब से पहले घटनास्थल का निरीक्षण किया, फिर पोस्टमार्टम रिपोर्ट का अध्ययन किया. रिपोर्ट के मुताबिक हरप्रीत की हत्या गला दबा कर की गई थी. दुष्कर्म की आशंका के चलते स्लाइड बनाई गई थी तथा जहर की आशंका को देखते हुए विसरा भी सुरक्षित कर लिया गया था. स्लाइड व विसरा को परीक्षण हेतु लखनऊ लैब भेजा गया.

टीम ने मृतका के पिता गुरुवचन सिंह का बयान दर्ज किया. उन्होंने बताया कि उन्होंने अपनी बेटी हरप्रीत कौर का रिश्ता दिल्ली के बंगला साहिब गुरुद्वारा में क्लर्क के पद पर सेवारत युवराज सिंह के साथ तय हुआ था. 13 दिसंबर को उस की सगाई थी. वह सामान की खरीदारी करने 9 दिसंबर को दिल्ली जाने के लिए कानपुर रेलवे स्टेशन पहुंची थी. बेटी तो दिल्ली नहीं पहुंची, अपितु उस की मौत की खबर जरूर मिल गई.

‘‘हरप्रीत का मंगेतर युवराज कहां है? क्या वह तुम से मिलने तुम्हारे घर आया है?’’ थानाप्रभारी ने गुरुवचन सिंह से पूछा.

‘‘नहीं, वह मौत की खबर पा कर भी कानपुर नहीं आया. 12 दिसंबर को उस से बात जरूर हुई थी. उस के बाद उस से संपर्क नहीं हो पाया. युवराज का मोबाइल फोन भी बंद है.’’ गुरुवचन सिंह ने पुलिस को जानकारी दी. गुरुवचन सिंह की बात सुन कर मनोज रघुवंशी का माथा ठनका, इस की वजह यह थी कि जिस की होने वाली पत्नी की हत्या हो गई हो, वह खबर पा कर भी न आए, यह थोड़ा अजीब था. ऊपर से उस ने अपना मोबाइल भी बंद कर लिया था. इन सब वजहों से उन्हें लगा कि कुछ तो गड़बड़ है. हरप्रीत कौर घर से कानपुर सेंट्रल स्टेशन पहुंची थी. स्टेशन से ही वह गायब हुई थी. पुलिस टीम जांच करने स्टेशन पहुंची.

कानपुर रेलवे स्टेशन की जीआरपी पुलिस की मदद से सीसीटीवी फुटेज देखे गए तो हरप्रीत कौर स्टेशन से कैंट साइड में बाहर जाते दिखी. इस के बाद पुलिस ने रेल बाजार के हैरिशगंज क्षेत्र के एक सीसीटीवी फुटेज की जांच की तो इस फुटेज में 9 दिसंबर की रात 10 बजे हरप्रीत के अलावा 3 अन्य लोग कार में बैठे दिखे. पुलिस ने उन की पहचान कराने के लिए यह फुटेज गुरुवचन सिंह को दिखाई तो उन्होंने उन में से एक युवक की तत्काल पहचान कर ली. यह कोई और नहीं बल्कि हरप्रीत का मंगेतर युवराज सिंह था. 2 अन्य युवकों को वह नहीं पहचान पाए. युवराज सिंह पुलिस की रडार पर आया तो पुलिस ने युवराज तथा हरप्रीत के मोबाइल नंबरों की काल डिटेल्स निकलवाई. इस से पता चला कि 9 दिसंबर को युवराज और हरप्रीत के बीच कई बार बात हुई थी.

हरप्रीत ने अपने मोबाइल फोन से उसे आखिरी मैसेज भी भेजा था. लेकिन उस ने हरप्रीत से अपने एक दूसरे फोन नंबर से बात की थी. उस के पहले उस के फोन की लोकेशन 9 दिसंबर की रात दिल्ली की ही मिल रही थी. पुलिस टीम को समझते देर नहीं लगी कि युवराज सिंह शातिर दिमाग है. उस ने ही अपने साथियों के साथ मिल कर अपनी मंगेतर हरप्रीत की हत्या की है. पुलिस को उस पर शक न हो इसलिए वह अपना एक मोबाइल फोन दिल्ली में ही छोड़ आया था. हत्या में कार का प्रयोग भी हुआ था. इस का पता लगाने पुलिस टीम बारा टोल प्लाजा पहुंची. क्योंकि इसी टोल प्लाजा से कानपुर शहर का आवागमन दिल्ली आगरा की ओर होता है.

पुलिस टीम ने बारा टोल प्लाजा के सीसीटीवी फुटेज देखे तो हैरान रह गई. दिल्ली नंबर की टैक्सी वैगन आर कार 7 घंटे में 4 बार टोल से इधर से उधर क्रास हुई थी. 9 दिसंबर की रात साढ़े 8 बजे वह टैक्सी कानपुर शहर आई. रात 12.36 बजे वह वापस दिल्ली की तरफ गई. फिर 45 मिनट बाद रात 1.19 बजे कार वापस कानपुर की तरफ आई. इस के बाद रात 3.36 बजे वापस बारा टोल प्लाजा क्रास कर दिल्ली की ओर चली गई. इस बीच पुलिस ने डाटा डंप करा कर कई संदिग्ध नंबर निकाले तथा इन नंबरों की जानकारी जुटाई. कार पर अंकित नंबर डीएल1आरटीए 5238 की आरटीओ कार्यालय से जानकारी जुटाई गई तो पता चला कि कार का रजिस्ट्रैशन तरसिक्का (अमृतसर) निवासी सुखविंदर सिंह के नाम है.

एक अन्य संदिग्ध मोबाइल नंबर की जानकारी जुटाई गई तो पता चला कि वह नंबर अमृतसर (पंजाब) जिले के जुगावा गांव निवासी सुखचैन सिंह का है. हरप्रीत का मंगेतर युवराज सिंह भी इसी जुगावा गांव का रहने वाला था. पुलिस टीम जांच के आधार पर अब तक हरप्रीत कौर हत्याकांड के खुलासे के करीब पहुंच चुकी थी. अत: टीम ने जांच रिपोर्ट से एसपी (साउथ) अपर्णा गुप्ता को अवगत कराया तथा युवराज सिंह तथा उस के साथियों की गिरफ्तारी की अनुमति मांगी. अपर्णा गुप्ता ने जांच रिपोर्ट के आधार पर गिरफ्तारी का आदेश दे दिया. इस के बाद पुलिस पार्टी हत्यारों की गिरफ्तारी के लिए दिल्ली व पंजाब रवाना हो गई.

15 दिसंबर, 2019 को पुलिस टीम युवराज सिंह की तलाश में दिल्ली स्थित बंगला साहिब गुरुद्वारा पहुंची. पता चला कि युवराज सिंह का असली नाम जुगराज सिंह है. 5 दिसंबर से वह ड्यूटी पर नहीं आ रहा है. गुरुद्वारे में वह क्लर्क के पद पर तैनात था. युवराज सिंह जब गुरुद्वारे में नहीं मिला तब पुलिस टीम ने युवराज सिंह व उस के दोस्त सुखचैन सिंह की तलाश में उस के गांव जुगावा (अमृतसर) में छापा मारा. लेकिन वह दोनों अपनेअपने घरों से फरार थे. उन का मोबाइल फोन भी बंद था, जिस से उन की लोकेशन नहीं मिल पा रही थी. युवराज सिंह तथा सुखचैन सिंह जब पुलिस के हत्थे नहीं चढ़े तो पुलिस टीम को निराशा हुई लेकिन टीम ने हिम्मत नहीं हारी. इस के बाद टीम ने रात में तरसिक्का (अमृतसर) निवासी सुखविंदर सिंह के घर दबिश दी.

सुखविंदर सिंह घर में ही था और चैन की नींद सो रहा था. पुलिस टीम ने उसे दबोच लिया और उस की कार भी अपने कब्जे में ले ली. पुलिस टीम कार सहित सुखविंदर सिंह को कानपुर ले आई. एसपी (साउथ) अपर्णा गुप्ता तथा सीओ (नजीराबाद) गीतांजलि सिंह ने थाना नजीराबाद में सुखविंदर सिंह से हरप्रीत कौर की हत्या के संबंध में सख्ती से पूछताछ की तो वह टूट गया. उस ने हत्या में शामिल होना कबूल कर लिया. कार की डिक्की से उस ने मृतका हरप्रीत का ट्रौली बैग तथा मोबाइल फोन भी बरामद करा दिया. सुखविंदर सिंह ने बताया कि हरप्रीत कौर की हत्या उस के मंगेतर जुगराज सिंह उर्फ युवराज सिंह ने अपने गांव के दोस्त सुखचैन सिंह के साथ मिल कर रची थी. हत्या में वह भी सहयोगी था.

हत्या के बाद शव को ठिकाने लगाने के बाद वह तीनों रात में ही दिल्ली के लिए रवाना हो गए थे. कार उस की खुद की थी. दिल्ली में वह उस कार को टैक्सी के रूप में चलाता था. सुखविंदर सिंह ने बताया कि वह हत्या करना नहीं चाहता था, लेकिन दोस्त जुगराज सिंह की शादीशुदा जिंदगी तबाह होने से बचाने के लिए वह हत्या जैसे जघन्य अपराध में शामिल हो गया. चूंकि सुखविंदर सिंह ने हत्या का परदाफाश कर दिया था और हत्या में प्रयुक्त कार भी बरामद करा दी थी. साथ ही मृतका का ट्रौली बैग तथा मोबाइल फोन भी बरामद करा दिया था. अत: एसपी (साउथ) अपर्णा गुप्ता ने सीओ गीतांजलि सिंह के कार्यालय परिसर में आननफानन में प्रैस वार्ता की.

पुलिस ने कातिल सुखविंदर सिंह को मीडिया के समक्ष पेश कर घटना का खुलासा कर दिया. पुलिस पूछताछ में प्यार में धोखा खाई एक युवती की मौत की सनसनीखेज कहानी प्रकाश में आई. उत्तर प्रदेश के कानपुर महानगर के नजीराबाद थाना अंतर्गत एक मोहल्ला है जवाहर नगर. इसी मोहल्ले में स्थित गुरुद्वारे में गुरुवचन सिंह अपने परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में पत्नी गुरप्रीत कौर के अलावा 2 बेटे सुरेंद्र सिंह, महेंद्र सिंह तथा 2 बेटियां जगप्रीत व हरप्रीत कौर थीं. गुरुवचन सिंह गुरुद्वारा में ग्रंथी व सेवादार थे. उन की अर्थिक स्थिति भले ही कमजोर थी पर मानसम्मान बहुत था. भाईबहनों में हरप्रीत कौर सब से छोटी थी. हरप्रीत जितनी सुंदर थी, पढ़ने में वह उतनी ही तेज थी.

उस ने ग्रैजुएशन तक पढ़ाई की थी. शारीरिक सौंदर्य बनाए रखने हेतु वह गतिका सीखती थी. गुरुद्वारे में वह सेवादार भी थी. जत्थे की महिलाओं का उस पर स्नेह था. हरप्रीत कौर का एक भाई सुरेंद्र सिंह दिल्ली के चांदनी चौक में अपने परिवार के साथ रहता था. हरप्रीत का अपने भैयाभाभी के घर आनाजाना बना रहता था. भाई के घर रहने के दौरान कभीकभी वह मत्था टेकने बंगला साहिब गुरुद्वारा भी चली जाती थी. हरप्रीत कौर धार्मिक प्रवृत्ति की थी. धर्मकर्म में उस की विशेष रुचि थी. गुरुनानक जयंती व गुरु गोविंद सिंह के जन्म पर्व पर वह बढ़चढ़ कर हिस्सा लेती थी.

एक बार हरप्रीत अपने मातापिता के साथ बंगला साहिब गुरुद्वारा अपने भाई महिंद्र सिंह के लिए लड़की देखने गई. यहीं उस की मुलाकात एक खूबसूरत सिख युवक युवराज सिंह से हुई. पहली ही नजर में दोनों एकदूसरे के प्रति आकर्षित हो गए थे. इस के बाद दोनों की अकसर मुलाकातें होने लगीं. बाद में मुलाकातें प्यार में तब्दील हो गईं. दोनों एकदूसरे को टूट कर चाहने लगे. प्यार परवान चढ़ा तो दोनों एकदूजे का होने के लिए उतावले हो उठे. युवराज सिंह मूलरूप से पंजाब प्रांत के अमृतसर जिले के गांव जुगावा का रहने वाला था. वह शादीशुदा तथा एक बच्चे का पिता था. उस का परिवार तो गांव में रहता था, जबकि वह स्वयं दिल्ली स्थित बंगला साहिब गुरुद्वारे में रहता था. उस के मांबाप भी गुरुद्वारे में सेवादार थे. वह महीनोंमहीनों गुरुद्वारे में रहते थे.

युवराज सिंह छलिया आशिक था. उस का असली नाम जुगराज सिंह था. उस ने जानबूझ कर हरप्रीत कौर से अपनी पहचान, नाम व शादी वाली बात छिपा रखी थी. युवराज सिंह के प्यार में हरप्रीत ऐसी अंधी हो गई थी कि वह उस से ब्याह रचाने के सपने संजोने लगी. युवराज सिंह भी हरप्रीत से प्यार का ऐसा दिखावा करता था कि उस से बढ़ कर कोई आशिक हो ही नहीं सकता. उस ने हरप्रीत को कभी आभास ही नहीं होने दिया कि वह शादीशुदा और एक बच्चे का बाप है. हरप्रीत जब तक भाई के घर रहती, युवराज के साथ प्यार की पींगें बढ़ाती, जब वापस कानपुर आती तब मोबाइल फोन द्वारा दोनों घंटों तक बतियाते. हरप्रीत ने अपने मातापिता को भी अपने और युवराज के प्यार के संबंध में जानकारी दे दी थी. भाई सुरेंद्र सिंह को भी दोनों का प्यार पनपने की जानकारी थी.

एक रोज जब सुरेंद्र सिंह का दिल्ली में एक्सीडेंट हो गया, तब हरप्रीत अपने मांबाप के साथ भाई को देखने दिल्ली आ गई. हरप्रीत के दिल्ली आने की जानकारी पा कर युवराज भी सुरेंद्र सिंह को देखने आया. यहां भाई के घर पर हरप्रीत ने युवराज सिंह की मुलाकात अपने मांबाप से कराई. चूंकि युवराज सिंह देखने में स्मार्ट था, सो गुरुवचन सिंह ने उसे बेटी के लिए पसंद कर लिया. उन्होंने उसी समय युवराज सिंह को शगुन भी दे दिया. किंतु इन्हीं दिनों युवराज सिंह के छलावे की बात खुल गई. हरप्रीत को पता चला कि युवराज सिंह शादीशुदा और एक बच्चे का बाप है. इस छलावे को ले कर हरप्रीत और युवराज सिंह के बीच जम कर झगड़ा हुआ. उस ने शिकवाशिकायत की, लेकिन युवराज  सिंह ने उस से माफी मांग ली.

हरप्रीत कौर, युवराज सिंह के प्यार में अंधी हो चुकी थी. वह प्यार की सब से ऊंची सीढ़ी पर पहुंच चुकी थी, जहां से नीचे उतरना उस के लिए संभव नहीं था. अत: शादीशुदा वाली बात जानने के बावजूद भी वह उस से शादी करने को अडिग रही. यद्यपि उस ने युवराज के शादीशुदा होने वाली बात अपने मातापिता से छिपा ली. हरप्रीत को शक था कि भेद खुल जाने से कहीं युवराज सिंह सगाई से मुकर न जाए. अत: वह युवराज सिंह पर जल्द सगाई करने का दबाव डालने लगी. उस ने अपने मांबाप पर भी सगाई की तारीख तय करने का दबाव बनाया.

दबाव के चलते युवराज सिंह सगाई करने को राजी हो गया. हरप्रीत के मांबाप ने सगाई की तारीख 13 दिसंबर, 2019 नियत कर दी. इस के बाद वह बेटी की सगाई की तैयारी में जुट गए. तय हुआ कि जवाहर नगर, कानपुर गुरुद्वारे में दोनों की सगाई होगी. युवराज सिंह हरप्रीत कौर से प्यार तो करता था, लेकिन सगाई नहीं करना चाहता था. क्योंकि सगाई से उस की खुशहाल जिंदगी तबाह हो सकती थी. उस ने हरप्रीत से 1-2 बार सगाई का विरोध भी किया था, लेकिन हरप्रीत ने उसे यह धमकी दे कर उस का मुंह बंद कर दिया कि वह सारी बात बंगला साहिब गुरुद्वारा तथा उस के परिवार में सार्वजनिक कर देगी. तब उस की नौकरी भी चली जाएगी और परिवार में कलह भी होगी. हरप्रीत की इसी धमकी के चलते वह उस से सगाई को राजी हो गया था.

युवराज ने हामी तो भर दी लेकिन वह किसी भी कीमत पर हरप्रीत से सगाई नहीं करना चाहता था, अत: जैसेजैसे सगाई की तारीख नजदीक आती जा रही थी, वैसेवैसे युवराज की चिंता बढ़ती जा रही थी. आखिर उस ने इस समस्या से निजात पाने के लिए अपनी प्रेमिका हरप्रीत कौर को शातिराना दिमाग से ठिकाने लगाने की योजना बनाई. इस योजना में उस ने अपने गांव के दोस्त सुखचैन सिंह तथा दिल्ली के दोस्त सुखविंदर सिंह को एकएक लाख रुपए का लालच दे कर शामिल कर लिया. सुखविंदर सिंह मूलरूप से तरसिक्का (अमृतसर) का रहने वाला था. दिल्ली में वह पांडव नगर के पास गणेश नगर में रहता था. उस के पास वैगनआर कार थी, जिसे वह दिल्ली में टैक्सी के रूप में चलाता था.

हत्या की योजना बनाने के बाद युवराज सिंह हरप्रीत कौर व उस के मातापिता से मनलुभावन बातें करने लगा, ताकि उन्हें किसी प्रकार का शक न हो. बातचीत के दौरान युवराज सिंह को पता चला कि हरप्रीत 9 दिसंबर को भाई से मिलने तथा खरीदारी करने घर से दिल्ली को रवाना होगी. अत: युवराज सिंह ने 9 दिसंबर की रात ही उसे ठिकाने लगाने का निश्चय किया. उस ने इस की जानकारी अपने दोस्तों को भी दे दी. 9 दिसंबर, 2019 की सुबह 11 बजे युवराज सिंह व सुखचैन सिंह, सुखविंदर सिंह की कार से दिल्ली से कानपुर को रवाना हुआ. युवराज सिंह ने अपना एक मोबाइल घर पर ही छोड़ दिया ताकि उस की लोकेशन ट्रेस न हो सके. रास्ते में सुखचैन सिंह के मोबाइल से हरप्रीत व उस की मां से बतियाता रहा.

हालांकि उस ने यह जानकारी नहीं दी कि वह कानपुर आ रहा है. रात 8 बज कर 31 मिनट पर उस की कार ने बारा टोल प्लाजा पार किया, फिर साढ़े 9 बजे वह रेलवे स्टेशन से कैंट साइड में पहुंच गया. इधर हरप्रीत कौर भी दिल्ली जाने को कानपुर सेंट्रल स्टेशन पहुंच गई थी. यह बात युवराज सिंह को पता थी. उस ने फोन कर के हरप्रीत को स्टेशन के बाहर कैंट साइड में बुलवा लिया. हरप्रीत उसे देख कर चौंकी तो उस ने कहा कि वह उसे ही लेने आया है. इस के बाद हरप्रीत ने मां को झूठी जानकारी दी कि उस का टिकट कंफर्म हो गया है.

रात 10 बजे युवराज सिंह ने हरप्रीत को कार में बिठा लिया. फिर चारों गोविंदनगर आए. यहां सभी ने अनिल मीट वाले के यहां खाना खाया और कोल्डड्रिंक पी. युवराज सिंह ने चुपके से हरप्रीत की कोल्डड्रिंक में नशीली दवा मिला दी थी. हरप्रीत ने कोल्डड्रिंक पी तो वह कार में बेहोश हो गई. कार इटावा हाइवे की तरफ बढ़ी और उस ने रात 12:36 बजे बारा टोल प्लाजा पार किया. चलती कार में युवराज सिंह व सुखचैन सिंह ने शराब पी. युवराज सिंह ने दोस्तों को हरप्रीत के साथ दुष्कर्म करने को कहा लेकिन सुखचैन सिंह व सुखविंदर सिंह ने इस औफर को ठुकरा दिया. लगभग 45 मिनट बाद कार फिर कानपुर की तरफ वापस हुई और उस ने रात 1 बज कर 19 मिनट पर टोल प्लाजा को पार किया. फिर कार कानपुर हाइवे पार कर महराजपुर थाना क्षेत्र के तिवारीपुर गांव के समीप पहुंची. यहां युवराज सिंह ने सुनसान जगह पर हाइवे किनारे कार रुकवा ली.

इस के बाद बेहोशी की हालत में कार में बैठी हरप्रीत को युवराज सिंह ने दबोच लिया. सुखचैन सिंह तथा सुखविंदर सिंह ने हरप्रीत के पैर पकड़े तथा युवराज सिंह ने उस का गला घोंट दिया. हत्या करने के बाद तीनों ने मिल शव को हाइवे किनारे झाडि़यों में फेंक दिया. इस के बाद ये लोग कार से दिल्ली की ओर चल पड़े. उन की कार ने रात 3:36 बजे बारा टोल प्लाजा को पार किया. दिल्ली पहुंच कर युवराज सिंह हरप्रीत के भाई सुरेंद्र सिंह के साथ हरप्रीत की तलाश का नाटक करता रहा. 12 दिसंबर को वह पकड़े जाने के डर से फरार हो गया. उस ने अपना मोबाइल फोन भी बंद कर लिया था.

सुखविंदर सिंह को गिरफ्तार कर पुलिस ने उसे 17 दिसंबर, 2019 को कानपुर कोर्ट में रिमांड मजिस्ट्रैट बी.के. पांडेय की अदालत में पेश किया, जहां से उसे जिला कारागार भेज दिया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

 

Superstition : लाखों रुपए से करोड़ों रुपए बनाने वाला तांत्रिक का हुआ पर्दाफाश

Superstition : कुछ लोग लालच में आ कर न सिर्फ अपना आर्थिक नुकसान करते हैं, बल्कि अपनी जान भी गंवा बैठते हैं. काश! ठेकेदार सुभाषचंद तांत्रिक अरशद के झांसे में न आता तो…

3 दिसंबर, 2019 का दिन था. उस वक्त सुबह के 8 बज रहे थे. उत्तर प्रदेश के जिला सहारनपुर के थाना फतेहपुर के थानाप्रभारी अमित शर्मा को किसी ने फोन कर के सूचना दी कि सहारनपुर-देहरादून हाइवे पर गांव नानका के पास सड़क किनारे एक एक्सयूवी 500 कार के अंदर किसी आदमी की लाश पड़ी है. सुबहसुबह लाश मिलने की बात सुन कर थानाप्रभारी चौंक गए. उसी समय वह एसएसआई अजय प्रताप गौड़, एसआई रघुनाथ सिंह, दीपचंद, बिजेंद्र, हैडकांस्टेबल संजय, सचिन और महिला सिपाहियों ऊषा व अल्पना के साथ घटनास्थल की तरफ चल दिए.

घटनास्थल वहां से 3-4 किलोमीटर दूर था, इसलिए वह 10 मिनट में ही वहां पहुंच गए. मौके पर काफी लोग जमा थे. वहां खड़ी एक्सयूवी500 कार नंबर यूके17सी 6808 की ड्राइविंग सीट पर एक व्यक्ति की लाश पड़ी थी. कार के पायदान पर भी खून पड़ा था. मृतक की उम्र करीब 40 साल थी. उस का गला कटा हुआ था. मृतक शायद आसपास के क्षेत्र का रहने वाला नहीं था, इसलिए कोई भी उसे पहचान नहीं सका. चेहरेमोहरे से मृतक किसी संपन्न परिवार का लग रहा था. लोगों ने बताया कि उन्होंने यह कार आज सुबह तब देखी थी, जब वे अपने खेतों की ओर जा रहे थे. लोगों ने यह भी बताया कि यह कार सुबह लगभग 4-5 बजे से यहां खड़ी है. उस वक्त अंधेरा था.

कार की ड्राइविंग सीट की ओर की खिड़की खुली हुई थी व कार का इंजन स्टार्ट था. पहले तो उधर से गुजरने वाले लोग कार को नजरअंदाज करते रहे, मगर जब 7 बजे सूरज की रोशनी बढ़ी तब ग्रामीणों ने कार के अंदर पड़े लहूलुहान शव को देखा था. थानाप्रभारी ने इस मामले की सूचना सीओ रजनीश कुमार उपाध्याय, एसपी (देहात) विद्यासागर मिश्रा तथा एसएसपी दिनेश कुमार पी. को दी. थानाप्रभारी अमित शर्मा ने जरूरी काररवाई करने के बाद कुछ ग्रामीणों की सहायता से शव को कार से बाहर निकाला और उस का निरीक्षण किया. कुछ ही देर में एसएसपी दिनेश कुमार पी., एसपी (देहात) विद्यासागर मिश्र और सीओ रजनीश कुमार भी वहां फोरैंसिक टीम के साथ आ गए.

तीनों अधिकारियों ने भी लाश का मुआयना कर इस हत्याकांड के बारे में वहां खड़े लोगों से बात की. इस के बाद एसएसपी ने थानाप्रभारी शर्मा को आरटीओ से कार मालिक का पता लगाने व केस को खोलने के निर्देश दिए. पुलिस ने जब मृतक की तलाशी ली तो जेब से कुछ कागजात, मोबाइल फोन तथा पर्स में रखी नकदी मिली. पर्स में मिली नकदी और मोबाइल फोन से इस बात की तो पुष्टि हो ही गई कि उस की हत्या लूट के इरादे से नहीं की गई थी. पुलिस ने प्रारंभिक जांच का काम निपटा कर लाश पोस्टमार्टम के लिए सहारनपुर के जिला अस्पताल भेज दी. इस के बाद पुलिस ने कार मालिक की जानकारी करने के लिए परिवहन विभाग से संपर्क किया. परिवहन विभाग से पता चला कि उक्त नंबर की कार सुभाषचंद पुत्र ओमपाल, निवासी गांव महेश्वरी, थाना भगवानपुर, जिला हरिद्वार के नाम पर रजिस्टर्ड है.

कार मालिक के नाम की जानकारी मिलने के बाद थानाप्रभारी ने थाना भगवानपुर के एसओ से संपर्क कर इस मामले की जानकारी दी. भगवानपुर थाने की पुलिस ने जब गांव महेश्वरी में सुभाषचंद के घर पहुंच कर जब एक्सयूवी500 कार में शव मिलने की जानकारी दी तो सुभाष के भाई विश्वास ने बताया कि वह कल ही अपनी कार ले कर घर से निकले थे. इसलिए कार में शव मिलने की बात सुन कर विश्वास घबरा गया. वह अपने कुछ रिश्तेदारों के साथ जिला अस्पताल सहारनपुर पहुंच गया. विश्वास और उस के रिश्तेदारों को जब मोर्चरी में रखी लाश दिखाई तो विश्वास वहीं बिलख पड़ा. उस ने स्वीकार किया कि यह लाश उस के भाई सुभाषचंद की ही है. इस के बाद तो सुभाषचंद के घर में भी कोहराम मच गया.

पूछताछ करने पर विश्वास ने पुलिस को बताया कि सुभाषचंद काफी समय से लोक निर्माण विभाग, रुड़की में ठेकेदारी कर रहे थे. पिछले दिन वह सुबह 9 बजे किसी काम से देहरादून जाने के लिए अपनी कार ले कर घर से निकले थे. शाम 4 बजे तक वह परिजनों से मोबाइल पर बात करते रहे. इस के बाद उन का मोबाइल स्विच्ड औफ हो गया. रात भर घर वाले बहुत परेशान रहे. सुभाषचंद के लापता होने पर घर वालों ने उन्हें आसपास रहने वाले रिश्तेदारों व उन के मित्रों के यहां तलाश किया. विश्वास से पूछताछ के बाद पुलिस ने सुभाषचंद के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई और सुभाषचंद के बेटे दीपक चौधरी की तहरीर पर अज्ञात हत्यारों के खिलाफ आईपीसी की धारा 302 के अंतर्गत मुकदमा दर्ज कर लिया. इस हत्याकांड की विवेचना स्वयं थानाप्रभारी ने ही संभाली.

थानाप्रभारी अमित शर्मा ने परिजनों से पूछा कि सुभाषचंद की किसी से कोई रंजिश तो नहीं थी. इस सवाल के जवाब में परिजनों का कहना था कि वह काफी मिलनसार थे तथा वह सहकारिता की राजनीति में सक्रिय थे. वह इकबालपुर गन्ना समिति में निदेशक भी रह चुके थे. पुलिस को सुभाषचंद की पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी मिल गई थी, जिस में उन की मौत का कारण गला कटना व गला कटने से ज्यादा खून निकलना बताया गया. काल डिटेल्स मिलने पर पुलिस ने जब सुभाषचंद के मोबाइल पर आए नंबरों की जांच की तो पुलिस को एक मोबाइल नंबर पर संदेह हुआ. वह नंबर सहारनपुर के थाना सदर अंतर्गत मोहल्ला गणेश विहार निवासी अरशद का था.

जब पुलिस ने अरशद के विषय में जानकारी जुटाई तो पुलिस को संदेह हो गया कि सुभाषचंद की हत्या में इस का हाथ हो सकता है. पुलिस के एक मुखबिर ने जानकारी दी कि 2 दिसंबर, 2019 को सुभाषचंद्र की एक्सयूवी-500 कार अरशद के घर के बाहर देखी गई थी. इस के अलावा मुखबिर ने पुलिस को यह भी जानकारी दी कि अरशद तंत्रमंत्र का काम करता है. यह जानकारी मिलने पर एसएसपी ने थानाप्रभारी अमित शर्मा को अरशद से पूछताछ के निर्देश दिए. अगले दिन 5 दिसंबर, 2019 को थानाप्रभारी ने अरशद के गणेश विहार स्थित मकान पर पहुंच कर दरवाजे पर दस्तक दी. तभी एक युवक ने दरवाजा खोला. वह युवक पुलिस देख कर सकपका गया और घबरा कर अंदर की ओर भागा.

उसे भागता देख कर पुलिस वालों ने उसे पकड़ लिया और उस से पूछा कि तू कौन है तथा अरशद कहां है. युवक ने घबराते हुए बताया कि मेरा नाम वकील उर्फ सोनू है तथा अरशद यहीं दूसरे कमरे में बैठा हुआ है. जब पुलिस टीम के साथ वकील नाम का वह युवक अरशद के कमरे में पहुंचा तो वहां बैठे अरशद को माजरा समझते देर न लगी. अरशद पुलिस को देख कर थरथर कांपने लगा था. उन्होंने अरशद को हिरासत में ले लिया. थानाप्रभारी शर्मा ने उसी समय अरशद से पूछा, ‘‘2 दिसंबर को सुभाषचंद की कार तुम्हारे घर के पास देखी गई थी, उसी रात तुम सुभाष के साथ गांव नानका के पास गए थे और वहां उसी की कार में तुम ने उस की हत्या कर दी.’’

थानाप्रभारी के इस सवाल का अरशद कोई उत्तर नहीं दे सका और चुप हो गया. थोड़ी देर चुप होने के बाद अरशद बोला, ‘‘सर, आप को जब इस बारे में पता चल ही गया है तो आप से कुछ छिपाने से कोई फायदा नहीं है. मैं आप को इस बारे में सब कुछ बताता हूं.’’

इस के बाद अरशद ने पुलिस को जो जानकारी दी, वह इस प्रकार थी—

सुभाषचंद लोक निर्माण विभाग, रुड़की में ठेकेदार थे. वह अपने परिवार के साथ हरिद्वार के महेश्वरी गांव में रहते थे. उन के परिवार में पत्नी के अलावा एक बेटा दीपक और एक बेटी थी. करीब 2 साल पहले सुभाष के ही एक दोस्त अतीत कटारिया, निवासी गांव झबीरन, हरिद्वार ने उन की मुलाकात सहारनपुर के ही मोहल्ला गणेश विहार निवासी अरशद से कराई थी. अरशद तंत्रमंत्र का काम करता था. अतीत कटारिया ने उन्हें बताया कि यह पहुंचे हुए तांत्रिक हैं. उस ने बताया कि यह तंत्रमंत्र द्वारा रकम को कई गुना बना सकते हैं. लालची स्वभाव के सुभाषचंद को इस बात पर विश्वास हो गया तो उन्होंने अरशद को साढ़े 3 लाख रुपए दिए थे और इस रकम को एक करोड़ रुपयों में बदलने को कहा था.

2 महीनों तक सुभाषचंद की रकम नहीं बढ़ी तो उन्होंने तांत्रिक अरशद से अपने पैसे मांगे. अरशद पैसे दैने में आनाकानी करने लगा तो ठेकेदार ने उस पर दबाव बनाया. इतना ही नहीं, उस ने उस तांत्रिक को पैसे देने के लिए धमका भी दिया. इस से तांत्रिक अरशद बहुत चिंतित रहने लगा. इसलिए तांत्रिक अरशद ने अपने दोस्तों टीलू और वकील उर्फ सोनू के साथ मिल कर सुभाष ठेकेदार को ठिकाने लगाने की योजना बना ली. योजना के अनुसार, अरशद ने पहली दिसंबर, 2019 को सुभाषचंद को एक करोड़ रुपए ले जाने के लिए 2 बड़े थैले ले कर अपने घर बुलाया. 2 दिसंबर को सुभाषचंद खुश होते हुए अरशद के यहां पहुंचा. उसे उम्मीद थी कि आज अरशद उसे एक करोड़ रुपए दे देगा.

योजना के मुताबिक अरशद ने अपने घर पहुंचे सुभाष को अपनी बीवी फिरदौस से चाय बनवाई. अरशद की बेटियों आजमा व नगमा ने उस चाय में नशे की गोलियां मिला दीं. वह चाय सुभाषचंद को पीने को दी. चाय पीने के थोड़ी देर बाद सुभाष को बेहोशी सी छाने लगी तो उन्हें बिस्तर पर लिटा दिया. रात होने पर अरशद के दोस्त वकील तथा टीलू भी वहां पहुंच गए. फिर सभी ने सुभाष को उठा कर उन की कार में डाला. अरशद और वकील कार ले कर सहारनपुर-देहरादून हाइवे पर गांव नानका के पास पहुंचे थे. टीलू भी बाइक से उन के पीछेपीछे पहुंच गया. सड़क किनारे कार खड़ी कर के उन्होंने सुभाषचंद को ड्राइविंग सीट पर बैठा दिया.

फिर टीलू ने गाड़ी के अंदर जा कर सुभाषचंद के हाथ पकड़ लिए और वकील ने सिर पकड़ कर पीछे की तरफ कर दिया. तभी अरशद ने ड्राइवर साइड की खिड़की खोल कर सुभाष का गला रेत दिया और चाकू से 3-4 प्रहार गरदन पर किए. सुभाषचंद को ठिकाने लगाने के बाद वे बाइक से घर लौट आए. अरशद से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने वकील से भी पूछताछ की तो उस ने भी अरशद के बयान की पुष्टि कर दी. अरशद व वकील की निशानदेही पर पुलिस ने सुभाषचंद की हत्या में प्रयुक्त चाकू, सुभाष के चाय में दी गई नशे की गोलियों का रैपर तथा अरशद के रक्तरंजित कपड़े अरशद के घर से ही बरामद कर लिए.

पुलिस ने इस केस में धारा 120बी व आर्म्स एक्ट की धारा 251/4 और बढ़ा दी. इस के बाद एसएसपी दिनेश कुमार पी. व एसपी (देहात) विद्यासागर मिश्रा ने उसी दिन पुलिस लाइंस सभागार में प्रैसवार्ता आयोजित कर ठेकेदार सुभाषचंद की हत्या का खुलासा किया और दोनों आरोपियों को मीडिया के सामने प्रस्तुत किया था. दूसरे दिन ही पुलिस ने इस हत्याकांड में आरोपी अरशद की पत्नी फिरदौस के अलावा उस की बेटियों अजमा व नगमा को भी गिरफ्तार कर जेल भेज दिया था. छठा आरोपी टीलू, निवासी नवादा फरार हो चुका था. पुलिस उसे सरगरमी से तलाश रही थी.  कथा लिखे जाने तक थानाप्रभारी अमित शर्मा केस की विवेचना पूरी करने के बाद सभी आरोपियों के खिलाफ अदालत में चार्जशीट भेजने की तैयारी कर रहे थे.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

Agra News : वकील का अपहरण करके मांगी 50 लाख रुपए की फिरौती

Agra News : एडवोकेट अकरम अंसारी का अपहरण फिल्मी अंदाज में किया था. बदमाश 50 लाख रुपए की फिरौती मांग रहे थे. पुलिस ने उन्हें फिरौती भी दे दी लेकिन बाद में अपहर्त्ता पुलिस के चंगुल में ऐसे फंसे कि…

फिरोजाबाद जिले के थाना दक्षिण के अंतर्गत एक मोहल्ला है राजपूताना. यहीं के निवासी 35 वर्षीय मोहम्मद अकरम अंसारी पेशे से वकील हैं. वह 3 फरवरी, 2020 को आगरा के बोदला निवासी अपने रिश्तेदार की बीमार बेटी को देखने के लिए आगरा के श्रीराम अस्पताल गए थे. बीमार बेटी को देखने के बाद वकील अकरम अंसारी घर जाने के लिए शाम के समय अस्पताल से निकले. चूंकि उन्हें बस अड्डे से बस पकड़नी थी, इसलिए बस अड्डा तक जाने के लिए उन के साढ़ू फैज अंसारी ने उन्हें कारगिल चौराहे से एक आटो में बैठा दिया था, लेकिन वह घर नहीं पहुंचे.

परिजन सारी रात बेचैनी से अकरम अंसारी का इंतजार करते रहे. बारबार वह अकरम को फोन मिला रहे थे, लेकिन उन का फोन स्विच्ड औफ आ रहा था. इस से घरवालों की चिंता बढ़ रही थी. अगली सुबह अकरम के भाई असलम उन्हें तलाशने के लिए आगरा पहुंचे. वहां पता चला कि साढ़ू फैज अंसारी ने उन्हें बस अड्डा जाने वाले एक आटो में बैठा दिया था. वहां से वह कहां गए, किसी को पता नहीं. इस के बाद असलम ने भाई को रिश्तेदारी व अन्य परिचितों के यहां तलाशा. लेकिन अकरम कहीं नहीं मिले. तब असलम ने आगरा के थाना सिकंदरा में भाई की गुमशुदगी दर्ज करा दी.

दूसरे दिन बुधवार को दोपहर डेढ़ बजे वकील अकरम के छोटे भाई असलम के पास एक फोन आया. फोन करने वाले ने कहा, ‘‘अकरम हमारे कब्जे में है. अगर उस की सलामती चाहते हो तो 50 लाख रुपए का इंतजाम कर लो. फिरौती की रकम कहां पहुंचानी है, इस बारे में फिर से फोन कर के बताएंगे और अगर, पुलिस को बताया तो ठीक नहीं होगा.’’

इस पर असलम ने कहा, ‘‘इतनी बड़ी रकम उन के पास नहीं है.’’

इस पर अपहर्त्ताओं ने कहा, ‘‘हमें पता है कि तुम्हारे 4 मकान हैं. इसलिए रुपयों का इंतजाम कर लो.’’ इस के बाद फोन कट गया. फिरौती मांगने से असलम का परिवार दहशत में आ गया. असलम ने पूरे घटनाक्रम की जानकारी पुलिस को दी. इस पर सिकंदरा के थानाप्रभारी ने तुरंत अपहरण का मुकदमा दर्ज कर लिया. इस के बाद उन्होंने एक पुलिस टीम को अकरम की बरामदगी के लिए लगा दिया. वकील अकरम अंसारी का फिरौती के लिए आगरा से अपहरण करने का समाचार जब समाचारपत्रों के अलावा न्यूज चैनलों पर आया तो अधिवक्ताओं ने उन की बरामदगी के लिए पुलिस प्रशासन पर दबाव बनाना शुरू कर दिया.

मामला एक वकील का था, इसलिए पुलिस की 10 टीमें जांच में जुट गईं. इन टीमों का निर्देशन एसएसपी बबलू कुमार स्वयं कर रहे थे. जिस मोबाइल नंबर से असलम के पास फोन आया था सर्विलांस टीम उस की भी जांच में जुट गई. कई दिन बाद भी जब पुलिस एडवोकेट अकरम के बारे में कोई सुराग नहीं लगा पाई तो 7 फरवरी को फिरोजाबाद सदर तहसील के अधिवक्ताओं ने विरोध प्रदर्शन करते हुए वकील अकरम अंसारी की शीघ्र बरामदगी की मांग की. धीरेधीरे यह आग जनपद की तहसील शिकोहाबाद, जसराना, सिरसागंज के साथ ही आगरा के अधिवक्ताओं में भी फैल गई.

अकरम की बरामदगी न होने से परिजनों में दिनप्रतिदिन बेचैनी बढ़ रही थी. पिता आरिफ अंसारी और मां सरकरा बेगम सीने पर पत्थर रख कर बच्चों को तसल्ली दे रहे थे. अकरम की पत्नी रूबी उर्फ रुकैया अपने दोनों बच्चों के पूछने पर कहती कि पापा दिल्ली रिश्तेदारी में गए हैं, जल्दी आ जाएंगे. पुराने किडनैपरों की हुई तलाश उधर पुलिस ने 100 ऐसे बदमाशों की सूची बनाई जो अपहरण के मामलों में पिछले 5 सालों में जेल जा चुके थे. यह बदमाश आगरा, धालपुर, भरतपुर, फिरोजाबाद और इटावा के थे. इन पर काम करने के बाद 10 गिरोह चुने गए. इन के मोबाइल नंबर हासिल किए गए. 3 गिरोह पर पुलिस का शक था लेकिन तीनों ही उस समय मोबाइल फोन इस्तेमाल नहीं कर रहे थे.

इस पर पुलिस पूरी तरह अपने मुखबिरों पर आश्रित हो गई. एसएसपी बबलू कुमार और एसपी (सिटी) बोत्रे रोहन प्रमोद लगातार पुलिस टीमों से संपर्क बनाए हुए थे. शासन से भी इस मामले में पुलिस से लगातार अपडेट लिया जा रहा था. पुलिस के आला अधिकारी भी पत्रकारों को कुछ बता पाने की स्थिति में नहीं थे. सिर्फ यही जवाब दिया जा रहा था कि जल्द ही कोई न कोई ठोस सुराग मिलने की उम्मीद है. अपहृत वकील अकरम के छोटे भाई असलम और मुकर्रम घटना के बाद से ही आगरा में डेरा डाले थे. जैसेजैसे एकएक कर दिन बीत रहे थे परिवार की दहशत बढ़ती जा रही थी.

उग्र हो गया आंदोलन उधर, अधिवक्ताओं का आंदोलन जोर पकड़ रहा था. आगरा व फिरोजाबाद जनपद के अधिवक्ताओं में अपहृत वकील के 12वें दिन भी बरामद न होने से आक्रोश बढ़ गया था. उन्होंने विरोध में हड़ताल शुरू कर दी थी. पुलिस दिनरात अपहृत वकील की तलाश में जुटी थी. आगरा में 24 फरवरी, 2020 को अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ताजमहल देखने आने वाले थे. उन के आगमन से पूर्व तैयारियों का जायजा लेने के लिए प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ आगरा के दौरे पर आ रहे थे. पुलिस जानती थी कि अधिवक्ता मुख्यमंत्री से मिल कर इस मामले को जरूर उठाएंगे. इसलिए पुलिस के हाथपैर फूल रहे थे. इस बीच पुलिस टीमों ने बाह और धौलपुर के बीहड़ों में डेरा डाल रखा था.

उधर अपहृत वकील के भाई असलम के मोबाइल पर अपहर्त्ताओं ने अलगअलग नंबरों व स्थानों से 4 बार फिरौती की काल कर के संपर्क किया. इस दौरान परिजन पुलिस के संपर्क में रहे. काल आने से पुलिस को बदमाशों की पहचान सुनिश्चित हो गई. लेकिन अपहृत की सकुशल बरामदगी को ले कर पुलिस फूंकफूंक कर कदम रख रही थी. बदमाशों ने जो 50 लाख फिरौती मांगी, उसे कम कर के वह 15 लाख पर आ गए. उन्होंने परिजनों से कह दिया कि इतनी भी रकम नहीं मिली तो वह अकरम को मार देंगे. अपहृत अकरम को सकुशल छुड़वाने के लिए पुलिस ने परिजनों के साथ मजबूत योजना बनाई. 16 फरवरी को अपहर्त्ताओं का फोन आने के बाद अकरम के परिजन बदमाशों के बताए गए स्थान आगरा में सिकंदरा स्थित गुरुद्वारे के पास पैसे ले कर पहुंच गए.

बदमाशों ने उन से पहचान के लिए अपनी गाड़ी पर झंडा लगाने को कहा था. भाई असलम अपने दोस्त के साथ किराए की गाड़ी पर झंडा लगा कर पहुंचा. तभी बदमाशों ने कहा कि बाड़ी कस्बा आ जाओ. वहां पहुंचे तो बदमाश लगातार काल कर के अलगअलग जगह बुलाते गए. करौली मार्ग पर आने के बाद उन्होंने कहा कि सिगरेट के 2 पैकेट ले कर आना. इस के बाद उन्होंने भरतपुर जनपद के गढ़ी भासला क्षेत्र के जंगल में स्थित भैरों बाबा के मंदिर पर रुपयों का बैग रखने को कहा. साथ ही उन्होंने चेतावनी दी कि यदि जरा सी भी चालाकी की या पुलिस को बताया तो अपने भाई को जिंदा नहीं देख सकोगे. वह लोग शाम 6 बजे बताए गए स्थान पर रुपयों से भरा बैग रख कर वापस आ गए. इस बीच पुलिस योजनाबद्ध तरीके से वहां मौजूद रही. बदमाशों ने परिजनों से सोमवार, 17 फरवरी को अधिवक्ता अकरम को गुरुद्वारा पर छोड़ने का वादा किया.

जंजीरों से बांध रखा था अकरम को फिरौती देने के बाद पुलिस टीम सक्रिय हो गई. पुलिस बैग उठाने वाले के पीछे लग गई. इतना ही नहीं, पुलिस ने कस्बा बाड़ी स्थित वह मकान भी पहचान लिया, जिस में अपहर्त्ता नोटों से भरा बैग ले कर गया था. मकान चिह्नित करने के बाद पुलिस ने रात लगभग 8 बजे उस मकान पर दबिश दे कर अपहृत अधिवक्ता अकरम को सकुशल बरामद कर लिया. अपहर्त्ताओं ने उन्हें जंजीरों से बांध कर रखा था. पुलिस ने मकान से 3 अपहर्त्ताओं 56 वर्षीय गैंग लीडर उग्रसैन निवासी कस्बा बाड़ी, धौलपुर, लाखन गुर्जर निवासी सूखे का पुरा, थाना कंचनपुरा, धौलपुर के अलावा सुरेंद्र गुर्जर निवासी कुआंखेड़ा, बिहारी का पुरा, थाना सदर, धौलपुर शामिल को हिरासत में ले लिया.

उन की निशानदेही पर पुलिस ने राकेश व उस के भाई मुकेश निवासी जमूहरा, थाना बाड़ी, धौलपुर के साथ उग्रसैन की पत्नी उर्मिला को भी गिरफ्तार कर लिया. राकेश व मुकेश दोनों उग्रसैन के साले हैं. फिरौती के लिए फोन लाखन करता था. लाखन पर 7-8 मुकदमे चल रहे हैं. उग्रसेन व सुरेंद्र गुर्जर पर भी कई मुकदमे हैं. इन में अपहरण व जानलेवा हमले शामिल हैं. सुरेंद्र गुर्जर पूर्व में राजस्थान के केशव और हनुमंत गिरोह में काम कर चुका है. उस के साथ उग्रसैन और लाखन भी थे. यह मध्य प्रदेश और आगरा में अपहरण कर फिरौती वसूल चुके हैं. गिरोह ने पहले आगरा के सदर क्षेत्र में दंत चिकित्सक का अपहरण कर मोटी फिरौती वसूली थी.

अधिवक्ता अकरम अंसारी की सकुशल बरामदगी की जानकारी जैसे ही उन के परिजनों को मिली तो पूरे परिवार की आंखें खुशी से छलछला उठीं. उन के आवास पर लोगों ने खुशी में आतिशबाजी की. पुलिस अधिकारी पूरे दिन अकरम से पूरे घटनाक्रम की जानकारी लेते रहे. 25 फरवरी को अकरम के घर आते ही मां ने उन्हें गले से लगा लिया. बच्चे भी उन से लिपट गए. अकरम ने बताया कि वह मौत के मुंह से निकल कर आए हैं. 26 फरवरी, 2020 को पुलिस लाइन में एडीजी अजय आनंद ने प्रैसवार्ता आयोजित कर इस सनसनीखेज अपहरण कांड का परदाफाश किया. उन्होंने बताया कि एसएसपी बबलू कुमार के निर्देशन में फूलप्रूफ औपरेशन चला कर पुलिसकर्मियों की 10 टीमें बनाई गई थीं.

जिस में सीओ (कोतवाली) चमन सिंह चावड़ा, सर्विलांस टीम प्रभारी नरेंद्र कुमार, इंसपेक्टर कमलेश सिंह, अरविंद कुमार, अनुज कुमार, अजय कौशल, राजकमल, बैजनाथ सिंह, उमेश त्रिपाठी, एसआई राजकुमार गिरि, कुलदीप दीक्षित अरुण कुमार बालियान, सुशील कुमार, हैड कांस्टेबल आदेश त्रिपाठी, कांस्टेबल अजीत, प्रशांत, करन, विवेक, राजकुमार, अरुण कुमार, आशुतोष त्रिपाठी, रविंद्र, प्रमेश आदि शामिल थे. पुलिस ने अधिवक्ता को सकुशल बरामद करने के साथ 5 अपहर्त्ताओं व एक महिला को गिरफ्तार कर फिरौती की रकम, जो 15 लाख बता कर केवल साढ़े 12 लाख बैग में रखी थी, भी बरामद कर ली. एडीजी ने बताया कि अपहृत को 2-3 दिन पहले बरामद कर सकते थे. लेकिन उन की सकुशल बरामदगी के लिए इंतजार करना पड़ा.

अलगअलग हुलिया बनाए पुलिस ने टीमों के साथ सीओ, एसपी, एसएसपी, तक ने बीहड़ में डेरा डाला. अपहर्त्ताओं की नजर से बचने के लिए पुलिसकर्मियों ने न सिर्फ अपना हुलिया बदला, बल्कि बकरी चराने से ले कर खेतों में मजदूर बन कर काम किया. पुलिस ने फिरौती के लिए फोन करने वाले की आवाज भी रिकौर्ड की. वह आवाज मुखबिरों को सुनाई गई. इस के बाद ही पुलिस को सुराग मिला. पुलिस ने 40 घंटे के औपरेशन के बाद अधिवक्ता अकरम अंसारी को मुक्त करा लिया. इस औपरेशन का नाम ‘अकरम मुक्ति’ रखा गया था. पुलिसकर्मी कोड वर्ड बांकेबिहारी और वंदेमातरम में एकदूसरे से बात करते थे.

बदमाशों ने फिरौती के लिए 4 बार फोन किया था. पहली काल 5 फरवरी को भरतपुर के रूपवास से की गई, इस के लिए सिम खेरागढ़ से ली गई थी. दूसरी काल 8 फरवरी को की गई, जबकि 12 व 15 फरवरी की काल कस्बा बाड़ी से की गई थीं. काल करने के लिए हर बार नया मोबाइल और नया सिम खरीदा गया था. इस के साथ ही हर बार अपहर्त्ता लोकेशन भी बदलते रहे थे. उन्होंने कहा कि पुलिस ने न सिर्फ अधिवक्ता अकरम अंसारी को सकुशल बरामद किया बल्कि 5 अपहर्त्ताओं और एक महिला को गिरफ्तार कर उन से फिरौती की वसूली गई रकम साढ़े 12 लाख भी बरामद कर ली. पुलिस ने बैग में रखी यह रकम 15 लाख बताई थी. डीजीपी ने टीम के इस कार्य की सराहना की. इस संबंध में अपहरण की जो कहानी सामने आई वह इस प्रकार थी—

राजस्थान के गुर्जर गैंग ने बीच आगरा शहर से अधिवक्ता अकरम अंसारी का अपहरण किया था. दरअसल 3 फरवरी, 2020 को अकरम को उन के साढ़ू ने फिरोजाबाद जाने के लिए एक आटो में बैठा दिया था. अकरम सिकंदरा स्थित आईएसबीटी पर उतरे लेकिन वहां फिरोजाबाद जाने के लिए कोई बस नहीं मिली. जब बस नहीं मिली तब अकरम दूसरे आटो से भगवान टाकीज पहुंच कर बस का इंतजार करने लगे. वहां पर आगरा आने व जाने वाली बसें रुकती हैं. शाम 7.20  बजे एक बोलेरो उन के पास आ कर रुकी और ड्राइवर ने पूछा, ‘‘कहां जाओगे?’’

अकरम ने फिरोजाबाद जाने की बात कही तो ड्राइवर ने कहा, ‘‘हां, फिरोजाबाद ही जा रहे हैं.’’ उस समय उस बोलेरो में चालक के अलावा 3 लोग और बैठे थे. उस गाड़ी में अकरम के बैठते ही ड्राइवर चलने लगा तो अकरम ने कहा कि और सवारियां ले लो तो चालक ने कहा कि आगे से ले लेंगे. 10-12 मिनट गाड़ी चलने के बाद अचानक बगल में यात्री के रूप में बैठे बदमाश ने अकरम को सीट के नीचे गिरा कर दबोच लिया और धमकी दी कि यदि चिल्लाया तो गोली मार देंगे. इस के साथ ही उन के ऊपर कपड़ा डाल दिया. बदमाश कह रहे थे यदि तू वीरेंद्र नहीं हुआ तो हम तुझे छोड़ देंगे. अपहर्त्ता ये बात इसलिए कह रहे थे ताकि वह शोर न मचाए. उन्होंने अकरम की आंखों पर पट्टी भी बांध दी.

गाड़ी चलती रही. रात 11 बजे अपहर्त्ता अधिवक्ता अकरम को एक सुनसान जगह पर ले गए. वहां एक घर में उन्हें रखा गया. यह घर धौलपुर के बाड़ी कस्बे में था. वहां 2-3 कमरे थे. पैरों में जंजीर बांध कर उन्हें एक कमरे में बंद कर दिया. आंखों पर पट्टी बांधने के साथ ही अकरम के मुंह पर टेप भी लगा दिया. उन का मोबाइल उन लोगों ने गाड़ी में ही छीन लिया था. कमरे पर ही बदमाशों ने अकरम से उस के बारे में पूरी जानकारी लेने के बाद दूसरे दिन फिरौती के लिए परिजनों को फोन किया था. कमरे में ही चटाई पर अकरम सोते थे. रात में सोने के लिए एक हलकी रजाई दी गई थी. 24 घंटे 2 युवक पहरेदारी पर रहते थे. रात में एक बदमाश भी पास में ही दूसरी चटाई पर सोता था. कई दिन बीत गए. बदमाश बीचबीच में आ कर उन्हें धमका जाते थे. कहते कि तेरे परिवार के लोग फिरौती की रकम नहीं दे पा रहे हैं, हम तुझे मार देंगे.

हालात देख कर बचना था मुश्किल वहां जिस तरह का माहौल चल रहा था इस से अकरम को लग रहा था कि वह अपहर्त्ताओं के चंगुल से मुक्त नहीं हो पाएंगे. उन्हें डर था कि परिजन अपहर्त्ताओं की मांग पूरी नहीं कर पाएंगे. उन का अब घर जाना मुश्किल होगा. बदमाश खाने के लिए कभी रोटी सब्जी तो कभी रोटी दाल देते थे. अकरम रात को ही खाना खाते थे. 15 दिन तक अकरम को नहाने नहीं दिया गया. मकान में एक महिला और उस का पति था. मकान में आगे व पीछे दरवाजे थे. आगे के दरवाजे पर ताला लगा रहता था. अन्य लोग मकान के पीछे के दरवाजे से आतेजाते थे. अकरम ने बताया कि बदमाशों ने उन के साथ मारपीट नहीं की.

अकरम हर दिन यही दुआ करते थे कि पुलिस उन्हें कब छुड़ाएगी? दहशत की वजह से नींद भी नहीं आती थी. जैसेजैसे दिन निकलते जा रहे थे, उम्मीद भी कम होती जा रही थी. मगर, रविवार 23 फरवरी की रात को पुलिस आई और अकरम को मुक्त करा लिया. अपनी दास्ता बयां करतेकरते अकरम की आंखें भर आई थीं. पुलिस लाइन में अकरम के भाई मोउज्जम, असलम, मोहम्मद सोहेल, मुकर्रम और पिता आरिफ अंसारी आए थे. भाइयों ने अकरम को गले लगा लिया. परिवार से मिल कर अकरम की खुशी का ठिकाना नहीं था. पुलिस लाइन में प्रैसवार्ता के दौरान अकरम ने पुलिस अधिकारियों को मिठाई खिलाई और उन को धन्यवाद दिया.

पुलिस ने बताया कि धौलपुर के बीहड़ में अपहर्त्ताओं के 25 गैंग सक्रिय हैं. यह गैंग शिकार को बीहड़ में पकड़ कर ले जाने के बाद फिरौती वसूलते हैं. पुलिस ने सौ से ज्यादा गैंग के बारे में पड़ताल की. इन में 25 गैंग के सक्रिय होने के बारे में पता चला. इन में गब्बर, केशव, रामविलास, भरत, धर्मेंद्र, लुक्का, मुकेश ठाकुर गैंग विशेष रूप से सक्रिय हैं. यह गैंग अलगअलग तरीके से फिरौती के लिए अपहरण की वारदात को अंजाम देते हैं. इन के खिलाफ उत्तर प्रदेश, राजस्थान और मध्य प्रदेश में अनेक मुकदमे दर्ज हैं.

अपहृत वकील को अपहर्त्ताओं के चंगुल से मुक्त कराने वाली पुलिस टीम को एडीजी अजय आनंद ने पुरस्कृत कर सम्मानित किया. पुलिस ने सारी काररवाई पूरी कर गिरफ्तार अपहर्त्ताओं को अदालत में पेश किया, जहां से सभी को जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित है

 

 

Uttar Pradesh Crime : शराब में जहरीला पदार्थ मिलाकर प्रेमी को मार डाला

Uttar Pradesh Crime : बेटी मानसी चौरसिया के कदम बहकने के बाद पिता रोहित चौरसिया को किसी भी तरह उस के कदमों को रोकना चाहिए था. लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया बल्कि वह बेटी के कहने पर बेटे के साथ मिल कर ऐसा  कुछ कर बैठा कि …

25 नवंबर, 2019 की बात है. उत्तर प्रदेश के गोंडा का रहने वाला रमेश गुप्ता घर में बिस्तर पर लेटा आराम कर रहा था. तभी अचानक उस के फोन की घंटी बजी. उस ने फोन उठा कर काल रिसीव की, बात होने के बाद उस ने कपडे़ बदले और छोटे भाई सुरेश से यह कह कर चला गया कि मनोज के घर जा रहा है. अगर जरूरत हुई तो वह उन के घर पर रुक जाएगा. दरअसल, मनोज गुप्ता के ससुर बीमार थे, सुरेश उन की देखभाल के लिए उन के घर जाता रहता था. दोनों परिवारों के घ्निष्ठ संबंध थे. रमेश को गए काफी देर हो गई. जब वह नहीं लौटा तो सुरेश ने समझा कि वह मनोज के घर रुक गए होंगे. रमेश जब 26 नवंबर की सुबह तक भी नहीं लौटा तो सुरेश ने मनोज गुप्ता को फोन किया तो उन्होंने बताया कि रमेश कल रात को उन के यहां आया ही नहीं था.

यह जान कर सुरेश को चिंता हुई. रमेश जहांजहां जा सकता था, सुरेश ने उन सभी जगहों पर उस की खोज की, लेकिन उस का कहीं पता नहीं चला. 30 वर्षीय रमेश गुप्ता अपने परिवार के साथ जिला गोंडा के थाना कोतवाली क्षेत्र में स्थित विष्णुपुरी कालोनी में रहता था. जब सुरेश रिश्तेदारों, मित्रों और परिचितों से पूछपूछ कर परेशान हो गया तो उस ने 29 नवंबर को थाना कोतवाली जा कर भाई रमेश गुप्ता की गुमशुदगी दर्ज करा दी. कोतवाल आलोक राव ने सुरेश की तहरीर पर रमेश गुप्ता की गुमशुदगी दर्ज कर ली. इस के बाद उन्होंने उस की तलाश के लिए आवश्यक काररवाई शुरू कर दी. गोंडा शहर के ही सिविल लाइंस क्षेत्र में अफीम कोठी मोहल्ले में एक खाली मैदान है, जिस में तमाम झाडि़यां थीं. इस खाली मैदान में 2 दिसंबर को कुछ लोग गए तो वहां बदबू के तेज भभके उठ रहे थे.

लोगों ने खोजबीन शुरू की तो वहां एक सूखे कुएं में क्षतविक्षत अवस्था में लाश पड़ी देखी. वह कुआं मिट्टी से आधा पट चुका था, इसलिए चित अवस्था में पड़ी उस लाश का चेहरा स्पष्ट दिख रहा था. उन लोगों ने वह लाश पहचान ली. वह लाश विष्णुपुरी कालोनी के रहने वाले रमेश गुप्ता की थी. रमेश के मकान से उस जगह की दूरी महज 200 मीटर थी. उन में से ही एक आदमी ने जा कर रमेश के भाई सुरेश गुप्ता को रमेश की लाश मिलने की सूचना दे दी. सुरेश तुरंत मौके पर पहुंचा तो उस ने कुएं में पड़ी भाई की लाश पहचान ली. सुरेश ने कोतवाल आलोक राव को भाई की लाश मिलने की सूचना दे दी.

सूचना पा कर इंसपेक्टर आलोक राव, एसएसआई राजेश मिश्रा आदि के साथ मौके पर पहुंच गए. मौके पर लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा था. इंसपेक्टर राव ने लाश कुएं से निकलवाई. लाश काफी सड़गल चुकी थी, इसलिए लाश का निरीक्षण करने पर मौत की वजह पता नहीं चल रही थी. इसी बीच एसपी राजकरन नैयर और एएसपी महेंद्र कुमार भी मौके पर पहुंच गए. लाश का मुआयना करने के बाद उन्होंने रमेश के भाई सुरेश से पूछताछ की. सुरेश ने भाई की हत्या में उस की प्रेमिका मानसी का हाथ होने का शक जताया. वैसे भी अफीम कोठी मोहल्ले में ही 100 मीटर की दूरी पर मानसी चौरसिया का मकान था.

सुरेश से पूछताछ के बाद पुलिस ने मौके की काररवाई निपटा कर लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी. फिर सुरेश की तहरीर पर मानसी चौरसिया के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 201 के तहत मुकदमा पंजीकृत कर लिया. इंसपेक्टर राव ने मृतक रमेश गुप्ता के फोन नंबर की काल डिटेल्स निकलवा कर जांच की तो पता चला कि 25 नवंबर की रात को उस के मोबाइल पर जो काल आई थी, वह मानसी चौरसिया के फोन नंबर से ही की गई थी. अब मानसी से पूछताछ करनी जरूरी थी. लिहाजा 3 दिसंबर को इंसपेक्टर आलोक राव ओर एसएसआई राजेश मिश्रा ने महिला कांस्टेबल की मदद से मानसी को घर से पूछताछ के लिए हिरासत में ले लिया. कोतवाली ला कर जब मानसी से सख्ती से पूछताछ की गई तो उस ने आसानी से अपना जुर्म कबूल कर लिया.

उस ने बताया कि रमेश की हत्या करने में उस के दूसरे प्रेमी अंकित सिंह, पिता रोहित चौरसिया और भाई दीपू चौरसिया ने साथ दिया था. पूछताछ के बाद मानसी ने रमेश की हत्या की जो कहानी बताई, इस प्रकार निकली—

उत्तर प्रदेश के जिला गोंडा की नगर कोतवाली अंतर्गत रामचंद्र गुप्ता अपने परिवार के साथ रहते थे. रामचंद्र के परिवार में उन की पत्नी राजकुमारी और 2 बेटियों के अलावा 3 बेटे दिनेश, रमेश और सुरेश थे. रामचंद्र प्राइवेट नौकरी करते थे. उन्होंने दिनेश का विवाह कर दिया था. दिनेश को विवाह के कुछ समय बाद ही चालचलन ठीक न होने पर रामचंद्र ने उसे घर से निकाल दिया. यह लगभग 8 साल पहले की बात है. इस समय दिनेश परिवार के साथ बस्ती जिले में रहता है. रामचंद्र ने अपनी दोनों बेटियों का विवाह कर दिया था. रमेश और सुरेश अभी अविवाहित थे. रमेश ने बीए तक पढ़ाई की थी. रामचंद्र के कूल्हे में रौड पड़ी थी. उस रौड की वजह से उन्हें इंफेक्शन हो गया था, जो कि किडनी और उस के आसपास फैल गया था. वह काफी समय से बीमार थे.

इस की वजह से उन की देखभाल बड़ा बेटा रमेश किया करता था. देखभाल करने के कारण रमेश कोई काम नहीं करता था. घर पर ही रहता था. जबकि सुरेश एक बैंक में मैनेजर के रहमोकरम पर काम करने लगा था. विष्णुपुरी कालोनी से सटा अफीम कोठी मोहल्ला था. इसी मोहल्ले में रोहित चौरसिया परिवार के साथ रहता था. रोहित रेलवे में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी था. उस की पत्नी जगदेवी का देहांत हो चुका था. रोहित के 2 बेटे दीपू चौरसिया और सूरज चौरसिया और एकलौती बेटी मानसी थी. दीपक का रीमा नाम की युवती से विवाह हो चुका था. सूरज अविवाहित था और मुंबई में रहता था. मानसी ने इंटरमीडिएट तक शिक्षा ग्रहण की थी, इस के बाद उस का पढ़ाई में मन नहीं लगा तो वह घर के रोजमर्रा के काम करने लगी.

रमेश और मानसी के मकान के बीच महज 200 मीटर की दूरी थी. दोनों एकदूसरे से परिचित थे. मानसी काफी महत्त्वाकांक्षी थी. छरहरी काया वाली मानसी को लड़कों से दोस्ती करना बहुत अच्छा लगता था. उस की वजह थी कि उस के नाजनखरे उठाने में लड़कों की लाइन लगी रहती थी. उन के साथ घूमने, मौजमस्ती के उसे खूब मौके मिलते थे. रमेश मोहल्ले में ही घूमता रहता था, इसलिए वह मानसी के चालचलन से बखूबी वाकिफ था. उस ने भी मानसी की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाया तो मानसी ने सहर्ष स्वीकार कर लिया. दोनों की दोस्ती धीरेधीरे रंग दिखाने लगी. वैसे भी दोस्ती प्यार की पहली सीढ़ी होती है. रमेश और मानसी दोनों यह सीढ़ी चढ़ चुके थे.

दोनों साथ में काफी समय बिताने लगे. उन के बीच मोबाइल पर भी बातें होती रहती थीं. जैसेजैसे समय गुजरने लगा, दोनों को अहसास होने लगा कि दोनों दोस्ती की सीमाओं को पार कर उस से भी आगे निकल चुके हैं. उन के दिलों में प्यार की उमंगें हिलारें मार रही थीं. दोनों का प्यार दिनोंदिन परवान चढ़ने लगा. यह भी तय कर लिया कि जीवन भर दोनों पतिपत्नी के रूप में साथसाथ रहेंगे. दोनों ने विवाह करने की बात अपने घरों में की तो रमेश के घर वालों को तो शादी से कोई ऐतराज नहीं था, लेकिन मानसी के पिता रोहित और भाई दीपू ने मना कर दिया. उन्होंने मानसी से कहा कि रमेश एक तो उन की जातिबिरादरी का नहीं और दूसरे वह निठल्ला है. कुछ कामधाम नहीं करता. ऐसे में शादी के बाद वह उसे कैसे रख पाएगा.

बाप की नसीहत बेटी के दिमाग में घर कर गई. मानसी ने अभी तक इस बारे में सोचा ही नहीं था. वह तो प्यार में इतनी डूब गई थी कि और कुछ सोचसमझ ही नहीं पा रही थी. बाप की नसीहत ने जैसे उस की आंखें खोल दी थीं. अब उस ने रमेश से दूरी बनानी शुरू कर दी. लेकिन रमेश था कि उस का पीछा छोड़ने को तैयार ही नहीं था. इसी बीच मानसी की मुलाकात कुछ दूर जानकीनगर मोहल्ला निवासी अंकित से हो गई. अंकित अच्छा कमाता था. रमेश के मुकाबले हर लिहाज से अंकित मानसी को अच्छा लगा था. दोनों की मुलाकातें दिनोंदिन बढ़ने लगीं. दोनों के बीच की दूरियां कम होती गईं. मानसी अंकित के साथ बहुत खुश थी. रमेश ने मानसी चौरसिया को अपने से दूरी बनाते देखा तो उसे अच्छा नहीं लगा. वह ऐसा क्यों कर रही है, यह जानने की उस ने कोशिश की तो उस के सामने हकीकत आते देर नहीं लगी.

रमेश को लगा कि दूसरा प्रेमी मिलते ही मानसी ने उस से किनारा कर लिया है. यह बात रमेश के दिमाग में बारबार कौंध रही थी. वह इसे बरदाश्त नहीं कर पा रहा था. वह मानसी को हर हाल में पाना चाहता था. एक दिन रमेश ने मानसी से मिल कर उसे समझाया लेकिन मानसी नहीं मानी. मानसी ने उसे बताया कि परिवार वाले उस से विवाह करने को तैयार नहीं हैं और वह अपने परिवार के खिलाफ नहीं जा सकती. इस पर रमेश ने सीधे कहा कि ऐसे में तुम्हें अपने घर वालों को मनाना चाहिए. लेकिन तुम ने तो दूसरा प्रेमी ही ढूंढ लिया. तुम्हें ऐसा नहीं करना चाहिए था.

मानसी को न मानते देख रमेश ने उसे धमकाया कि अगर उस ने उसे छोड़ कर किसी दूसरे को चुना तो उस के जो अश्लील फोटो उस के पास हैं, वह उन्हें वायरल कर देगा. रमेश के इतना कहने पर मानसी डर गई लेकिन उस ने हिम्मत कर के कह दिया कि वह अब उस की नहीं हो सकती. इस के बाद मानसी के दिमाग में यही चलता रहता था कि कहीं रमेश उस के अश्लील फोटो को वायरल न कर दे. वह इसी डर में जी रही थी. ऐसे में उस ने रमेश को सबक सिखाने का फैसला कर लिया. उस ने अपने दूसरी प्रेमी अंकित से कहा कि कुछ दिनों पहले रमेश ने धोखे से उस के कुछ अश्लील फोटो खींच लिए थे, उन के बल पर वह उसे ब्लैकमेल कर फोटो वायरल करने की धमकी दे रहा है.

मानसी ने अंकित से कहा कि उसे रोकने का एक ही तरीका है कि उसे मार दिया जाए. अंकित इस काम में उस का साथ देने को तैयार हो गया. उसे कहां और कैसे मारना है, इस पर दोनों ने विचार कर लिया. इस के बाद दोनों को लगा कि वे दोनों इस काम को ठीक से अंजाम नहीं दे पाएंगे. इस पर मानसी ने रमेश को ठिकाने लगाने के लिए अपने पिता और भाई को राजी करने का उपाय सोचा. योजनानुसार मानसी ने रोते हुए अपने पिता रोहित चौरसिया और भाई दीपू को बताया कि रमेश के पास उस के कुछ अश्लील फोटो हैं. उन को वायरल कर के वह उस की जिंदगी बरबाद करना चाहता है. यह सुन कर दोनों को मानसी और रमेश पर गुस्सा आया. पर पहले तो उन्हें रमेश को देखना था, क्योंकि उन के लिए मानसी की इज्जत यानी परिवार की इज्जत पहले थी. इज्जत बचाने की खातिर उस के पिता व भाई रमेश को सबक सिखाने को तैयार हो गए.

तब मानसी ने दोनों को बता दिया था कि इस सब में उस का एक दोस्त अंकित भी मदद करने को तैयार है. इस के बाद एक दिन मानसी ने अंकित को घर बुला लिया. फिर सब ने मिल कर रमेश को ठिकाने लगाने की योजना बनाई. 25 नवंबर को मानसी के भाई दीपू की पत्नी रीमा अपने मायके गई हुई थी. योजनानुसार रात साढ़े 10 बजे मानसी ने फोन कर के रमेश को अपने घर बुलाया. रमेश अपने भाई सुरेश से घर के सामने रहने वाले मनोज गुप्ता के यहां जाने की बात कह कर निकला और सीधे मानसी के घर पहुंच गया.  वहां मानसी, उस के पिता रोहित, भाई दीपू के अलावा अंकित भी मौजूद था. रमेश के पहुंचने पर सब ने पहले उसे शराब पिलाई. शराब में पहले से ही जहरीला पदार्थ मिला दिया गया था. शराब में मिले जहर ने अपना असर दिखाना शुरू किया तो रमेश की हालत बिगड़ने लगी. वह उठ कर जाने की कोशिश करने लगा तो सब ने मिल कर उसे दबोच लिया और गला दबा कर उसे मार डाला.

रमेश को मौत की नींद सुलाने के बाद रात एक बजे उस की लाश अपने घर के पीछे झाडि़यों से पटे खाली मैदान में बने सूखे कुएं में डाल दी. इस के बाद अंकित अपने घर चला गया. लेकिन उन का गुनाह छिप न सका. मानसी चौरसिया ने सभी के नाम खोले तो इंसपेक्टर आलोक राव ने अंकित, रोहित चौरसिया और दीपू चौरसिया की गिरफ्तारी के लिए दबिश देनी शुरू कर दी. मानसी के हिरासत में लिए जाने के बाद ही तीनों अपने घरों से फरार हो गए थे. पुलिस के बढ़ते दबाव के चलते अंकित ने 6 दिसंबर, 2019 को न्यायालय में आत्मसमर्पण कर दिया. 8 दिसंबर को इंसपेक्टर राव ने दीपू चौरसिया को गिरफ्तार कर लिया. आवश्यक लिखापढ़ी के बाद अभियुक्तों को न्यायालय में पेश करने के बाद जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक रोहित चौरसिया फरार चल रहा था.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. मनोज गुप्ता परिवर्तित नाम है.

 

Delhi News : बच्चों की हत्या कर पत्नी व प्रेमिका संग इमारत से कूदा कपड़ा व्यापारी

Delhi News : गुलशन वासुदेवा एक अच्छे व्यवसाई थे. दिल्ली की गांधीनगर मार्केट में उन का जींस का कारोबार था. फिर अचानक ऐसा क्या हुआ, जो उन्हें अपने 2 बच्चों की हत्या करने के बाद अपनी पत्नी और प्रेमिका संजना के साथ 8वीं मंजिल से कूद कर आत्महत्या करनी पड़ी…

गुलशन वासुदेवा उर्फ हरीश यूं तो मूलरूप से पूर्वी दिल्ली की झिलमिल कालोनी के रहने वाले थे. लेकिन अक्तूबर 2019 से वे इंदिरापुरम की कृष्णा अपरा सफायर सोसायटी की आठवीं मंजिल पर स्थित फ्लैट संख्या ए-806 में किराए पर आ कर रहने लगे थे. उन के साथ उन का बेटा रितिक (13), बेटी कृतिका (18), पत्नी परमीना (43) और उन की मैनेजर संजना (26) भी साथ रहती थी. गुलशन का दिल्ली के गांधीनगर की रेडीमेड कपड़ों की मार्केट में जींस का कारोबार था. कृतिका और रितिक दिल्ली के श्रेष्ठ विहार स्थित डीएवी पब्लिक स्कूल में क्रमश: 12वीं और 9वीं कक्षा में पढते थे. कृतिका की फैशन में बहुत रुचि थी. इसलिए वह 12वीं के बाद फैशन इंस्टीट्यूट में एडमिशन लेने की की भी तैयारी कर रही थी.

उस का सपना एक कामयाब फैशन डिजाइनर बनने का था. इस के लिए वह काफी मेहनत भी करती थी. गुलशन को भी अपने दोनों बच्चोें से बेहद प्यार था. इसलिए वह उन की हर ख्वाहिश पूरी करते थे. जींस के कारोबार के साथ गुलशन के कई और भी कारोबार थे. उन्होंने प्रौपर्टी के काम में काफी पैसा निवेश किया हुआ था. कोलकाता में एक बड़े बिजनेसमैन के साथ भी उन्होंने लाखों का निवेश किया हुआ था. लेकिन पिछले कुछ समय से उन का करीब 2 करोड़ से अधिक का ये निवेश बुरी तरह फंस गया था. देश में जब से नोटबंदी हुई थी उन का पैसा वापस मिलना बंद हो गया था. लेकिन इस के बावजूद गुलशन के परिवार में सब एकदूसरे से बहुत ज्यादा प्यार करते थे. गुलशन को जब भी फुरसत मिलती तो परिवार को ले कर अकसर घूमने निकल जाते थे.

जिस अपरा सफायर सोसाइटी में गुलशन 2 महीने पहले रहने के लिए आए थे, उस से पहले वह करीब 4 सालों तक पास की ही एटीएस सोसायटी में रहे थे. उस वक्त उन के साथ में 80 वर्षीय पिता नारायण दास वासुदेवा भी रहते थे. गुलशन की पत्नी परमीना बहुत समझदार महिला थीं. वह अपने बीमार ससुर की बहुत सेवा करती थीं. नारायण दास अपने बेटे से ज्यादा बहू परमीना को मानते थे. लेकिन अचानक खराब होती आर्थिक परिस्थितियों के कारण गुलशन ने जब मकान बदला तो उन्होंने पिता को बड़े भाई सतपाल के घर रहने के लिए छोड़ दिया था. वे नहीं चाहते थे कि उन की आर्थिक बदहाली से पिता की सेहत पर बुरा असर पड़े.

गुलशन वासुदेवा 3 भाई व एक बहन में सब से छोटे थे. सब से बड़ी बहन विधवा है और अपने बच्चों के साथ रहती है. जबकि उन के दोनों बड़े भाई देवेंद्र और सतपाल भी विवाहित हैं. दोनों भाई अपने परिवार के साथ दिल्ली की झिलमिल कालोनी में ही रहते हैं. उन का भी गांधीनगर में रेडीमेड गारमेंट का कारोबार है. पिता नारायण दास रेलवे से सेवानिवृत्त  हुए थे. चूंकि पिता की देखभाल गुलशन ही करता था, लिहाजा पिता अपनी सारी पेंशन विधवा बेटी को भेज देते थे. हालांकि उन के दोनों बड़े भाई काफी समृद्ध हैं. इधर कई सालों से कारोबार में घाटे के बाद दोनों भाइयों ने शुरूशुरू में तो गुलशन व उस के परिवार की काफी मदद की, लेकिन बाद में अपनी खुद की आर्थिक स्थिति ठीक न होने के कारण उन्होंने भी सहयोग देना बंद कर दिया. यही कारण रहा कि परिवार के लोगों से गुलशन की दूरी बनने लगी थी.

एटीएस सोसाइटी में गुलशन के पास 2 बैडरूम वाला फ्लैट था, जबकि कृष्णा अपरा सोसाइटी में उन्होंने 3 बैडरूम का फ्लैट लिया था. इसी कारण उन की मैनेजर संजना भी उन के साथ आ कर रहने लगी थी. 3 दिसंबर, 2019 की सुबह के करीब पौने 5 बजे का वक्त था. कृष्णा अपरा सोसाइटी के गेट पर तैनात तीनों सुरक्षा गार्ड कुर्सियों पर बैठे अलाव से हाथ सेंकते हुए ठंड दूर करने का प्रयास कर रहे थे. अचानक उन्हें सोसाइटी के टावर-ए के पास से धड़ाम की ऐसी आवाज आई जैसे ऊपर की किसी मंजिल से कोई भारी चीज सड़क पर आ कर गिरी हो.

एक सिक्योरिटी गार्ड वहीं रुक गया, बाकी 2 गार्ड देखने के लिए उस तरफ चले गए, जहां से आवाज आई थी. दोनों गार्ड जैसे ही टावर-ए के पास पहुंचे तो बिजली की रोशनी में उन्होंने देखा कि सड़क पर 3 लोग खून से लथपथ पडे़ हैं. उन में एक पुरुष व 2 महिलाएं थीं. ऐसा लगता था जैसे ऊपर की मंजिल के किसी फ्लैट से या तो वे गिर पड़े थे या किसी ने उन्हें धक्का दिया था. गिरने के कारण आसपास काफी खून फैल चुका था. एक पुरुष व एक महिला के शरीर लगभग निर्जीव हो चुके थे, जबकि एक महिला के मुंह से दर्दभरी आह सुनाई पड़ रही थी और शरीर में हल्की हरकत भी थी. दोनों गार्डों ने तत्काल आवाज दे कर तीसरे गार्ड को भी अपने पास बुला लिया.

तीनों गार्डों ने सड़क पर खून से लथपथ तीनों लोगों को जब गौर से देखा तो वे देखते ही पहचान गए कि खून से लथपथ पडे़ वे तीनों लोग गुलशन वासुदेवा, उन की पत्नी परमीना और उन के साथ रहने वाली संजना थी. गार्डों ने दी सूचना सोसाइटी के तीनों गार्डों ने तत्काल सोसाइटी के प्रेसीडेंट व सेक्रेटरी को सूचना दी तो वे भी मौके पर आ गए. चंद मिनटों में ही सोसाइटी के अन्य लोग भी इस घटना की एकदूसरे से मिली जानकारी पा कर वहां पहुंच गए थे. दयानंद नाम के एक गार्ड ने तब तक पुलिस कंट्रोल रूम को इस हादसे की जानकारी दे दी थी.

पुलिस कंट्रोल रूम से यह सूचना उसी समय स्थानीय इंदिरापुरम थाने को दी गई. एसएचओ इंदिरापुरम इंसपेक्टर महेंद्र सिंह पूरी रात गश्त के बाद थाने में अपने कार्यालय में आ कर बैठे थे और थकान उतारने के लिए चाय की चुस्की ले ही रहे थे कि उसी वक्त मुंशी ने आ कर उन्हें कंट्रोलरूम से अपरा सोसाइटी में हुई घटना के बारे में बताया. खबर ऐसी थी जिसे सुन कर चाय का घूंट इंसपेक्टर महेंद्र सिंह के गले से नीचे उतरना भारी हो गया उन्होंने एसआई शिशुपाल सिंह, धीरेंद्र सिंह, हैडकांस्टेबल धर्मेंद्र कुमार, कांस्टेबल विकासवीर, श्यामलाल को साथ लिया और अगले 10 मिनट के भीतर कृष्णा अपरा सोसाइटी पुहंच गए.

पुलिस के वहां पहुंचने से पहले ही सोसाइटी के लोगों ने समीप के शांति गोपाल अस्पताल में फोन कर के एंबुलेंस बुलवा ली थी. इंसपेक्टर महेंद्र सिंह जब घटनास्थल पर पहुंचे तो खून से लथपथ तीनों लोगों की नब्ज टटोलने के बाद उन के सामने ये बात साफ हो चुकी थी कि गुलशन सचदेवा और उन की पत्नी परमीना दम तोड़ चुके हैं. जबकि उन के परिवार की एक दूसरी महिला सदस्य संजना की सांसें चल रही थीं. लिहाजा एंबुलेंस आने के बाद पुलिस ने आननफानन में उसे शांतिगोपाल अस्पताल भिजवा दिया. साथ में एसआई शिशुपाल सिंह भी अस्पताल पहुंचे थे. इधर, घटनास्थल का निरीक्षण करने के बाद इंसपेक्टर महेंद्र सिंह ने कानूनी औपचारिकताएं पूरी करने का काम शुरू कर दिया. मौके पर मौजूद लोगों से पूछताछ करने पर पता चला कि छत से गिरने वाले गुलशन वासुदेवा और उन के घर के तीनों सदस्य थे.

सोसाइटी के लोगों से पूछताछ करने पर यह भी पता चल गया कि गुलशन टावर-ए की 8वीं मंजिल के फ्लैट संख्या 806 में अपने परिवार के साथ रहते हैं. सोसाइटी के पदाधिकारियों और व अपने सहयोगियों को ले कर इंसपेक्टर महेंद्र सिंह जब 8वीं मंजिल के उस फ्लैट पर पहुंचे तो वहां दरवाजा भीतर से लौक मिला. गार्डों की मदद से दरवाजे की कुंडी को तोड़ क र पुलिस ने भीतर प्रवेश किया. 2 लाशें और मिलीं कमरे में ड्राइंगरूम की दीवारों पर कई जगह परिवार की तसवीरें फ्रेम में लगी हुई थीं, जिस में परिवार के सदस्यों की बचपन से लेकर अभी तक की लगभग सभी तसवीरें थीं. पुलिस ने एकएक कर सभी कमरों का निरीक्षण किया, जिस के बाद पता चला कि घर के सिर्फ 3 सदस्यों की ही मौत नहीं हुई थी, बल्कि घर के भीतर भी 2 लाशें और पड़ी थीं, जिस में एक लाश लड़की व दूसरी लड़के की थी.

सोसाइटी के लोगों ने बताया कि वे गुलशन के बच्चे कृतिका व रितिक थे. उन की हत्या गला रेत कर की गई थी. उसी कमरे में एक खरगोश का शव भी मिला, ऐसा लग रहा था कि पालतू खरगोश को गरदन मरोड़ कर मारा गया था. इस बीच भोर का उजाला पूरी तरह अपने पांव पसार चुका था. 5 लोगों की मौत की खबर पूरी सोसाइटी में जंगल की आग की तरह फैल गई. इंसपेक्टर महेंद्र सिंह ने अपने क्षेत्र के एएसपी केशव कुमार के साथ एसपी (सिटी) मनीष मिश्रा और एसएसपी सुधीर कुमार सिंह को फोन कर के पूरे हादसे की इत्तिला दे दी. मामला इतना बड़ा था कि सूचना मिलने के कुछ ही देर बाद जिले के सभी आला अधिकारी मौके पर पहुंच गए. फोरैंसिक टीम के अलावा मीडिया के लोग भी जानकारी पा कर घटनास्थल पर पहुंच चुके थे. एक तरह से कृष्णा अपरा सोसाइटी के भीतरबाहर लोगों की भारी भीड़ जमा हो गई. हर कोई माजरा जानना चाहता था कि इतने बड़े हादसे की वजह आखिर क्या थी.

पुलिस के तमाम आला अधिकारियों ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया, फोरैंसिक टीम ने घटनास्थल के अलगअलग जगह से फोटो और फिंगरप्रिंट एकत्र किए. उन तमाम सबूतों को अपने कब्जे में लिया, जिस से वारदात का खुलासा करने में मदद मिल सकती थी. इस बीच वारदात की सूचना गुलशन के कुछ नजदीकी मित्रों और झिलमिल कालोनी में रहने वाले उस के परिजनों के पास भी पहुंच गई थी. सुबह होतेहोते वे भी घटनास्थल पर पहुंच गए. सभी से इंसपेक्टर महेंद्र सिंह ने पूछताछ की, उन के बयान दर्ज किए. करीब 11 बजतेबजते पुलिस ने पांचों शव पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दिए.

इस दौरान पुलिस की जांच में पाया गया कि गुलशन वासुदेवा ने बच्चों की हत्या करने के बाद खुद भी फांसी का फंदा लगा कर आत्महत्या करने का प्रयास किया था. क्योंकि पुलिस को एक कमरे में पंखे से लगा एक फंदा भी मिला. ऐसा प्रतीत होता था शायद एक कमरे में ही 3 फंदे लगाने की जगह न होने पर उस ने आत्महत्या करने का तरीका बदला. गुलशन उस की पत्नी व साथ में ही खुदकुशी करने वाली संजना ने बालकनी में लाइन से कुर्सियां लगाईं और फिर तीनों एक साथ नीचे कूद गए. कूदते समय उस कमरे को चुना, जिस की बालकनी में जाली नहीं लगी थी. ड्राइंगरूम वाले कमरे में दीवार पर एक बड़ा प्रोजेक्टर लगाया था. बड़ा होम थिएटर भी लगा था, जिस से लग रहा था कि पूरा परिवार डिजिटल उपकरणों का काफी प्रयोग करता था.

पुलिस को एक कमरे से आला कत्ल चाकू व रस्सी बरामद हुई. संभवत: उसी से दोनों बच्चों की गला रेत कर हत्या की गई थी. कमरे से 5-5 सौ के 18 नोट और 100 के नोट भी मिले. जो कुल रकम करीब 10 हजार थी. कालोनी के लोगों से पूछताछ में पता चला कि जिस रात पूरे परिवार ने बच्चों की हत्या कर खुदकुशी की, उसी दिन उन्होंने गार्ड, मेड व सोसायटी के अन्य कर्मचारियों को जैकेट व कंबल बांटे. शाम को घर में बने मंदिर में परिवार के साथ पूजाअर्चना की थी. पूरी घटना का विश्लेषण करने के बाद एक बात स्पष्ट हो रही थी कि गुलशन नहीं चाहता था कि परिवार का कोई भी सदस्य जिंदा बचे. इस के लिए शायद उस ने मौत को गले लगाने के कई तरीके सोचे थे.

रसोई में मिली सल्फास और 3 गिलास, बाथरूम में मिली सिरींज तथा बैडरूम में मिले चाकू व रस्सी इस बात की गवाही दे रहे थे कि गुलशन हर हाल में बच्चों की हत्या करना चाहता था, ताकि उस के मरने के बाद किसी को कोई तकलीफ भरी जिंदगी न गुजारनी पड़े. ऐसा लगता था कि गुलशन ने पहले बेटाबेटी को खाने में नशीला पदार्थ मिला कर बेहोश किया, फिर सोने के बाद उन का पहले गला दबाया फिर गला काट कर हत्या कर दी. जिस के बाद गुलशन ने परमीना और संजना के साथ 8वीं मंजिल से कूद कर आत्महत्या कर ली.

वारदात की पहले ही कर ली थी प्लानिंग पूरे हालात को देखने के बाद ये भी स्पष्ट था कि गुलशन व दोनों महिलाओं ने सहमति से कूदने का फैसला लिया था. हो सकता है कि दोनों बच्चों को उन की मौत के बारे में पता न चले, इसलिए दोनों को पहले भारी नशे की डोज दी गई हो. अगर नशे की डोज नहीं दी होती और सहमति नहीं होती तो मारने के दौरान बच्चों के चीखनेचिल्लाने की आवाज जरूर आती. कालोनी के लोगों से पूछताछ में यह भी पता चला कि गुलशन ने काफी दिन पहले ही शायद इस हादसे को अंजाम देने का मन बना लिया था, क्योंकि उस के घर पर एक मेड कुंती काम करती थी. कुंती की मौसी गीता ने पुलिस को बताया कि गुलशन के घर पर कुंती ने एक महीने काम किया था. 27 नवंबर को गुलशन ने उस का हिसाब कर दिया. इस के बाद कहा कि वह कुछ दिनों के लिए बाहर जा रहे हैं.

एक सब से अहम बात यह थी कि ड्राइंगरूम में कमरे की दीवार पर पुलिस को एक सुसाइड नोट मिला, जिस में गुलशन ने लिखा था कि उन सभी की मौत के लिए उस का साढ़ू राकेश वर्मा जिम्मेदार है. साथ ही उस ने अपनी अंतिम इच्छाभी दीवार पर लिखी थी कि उन सभी के शव का एक साथ एक ही जगह पर अंतिम संस्कार किया जाए. इंसपेक्टर महेंद्र सिंह ने उच्चाधिकारियों से मशविरा करने के बाद उसी दिन इंदिरापुरम थाने में अपराध भादंसं की धारा 302 का मुकदमा पंजीकृत कर लिया. चूंकि जांच में सामने आ चुका था कि गुलशन के साढ़ू राकेश वर्मा ने उस के लाखों रुपए हड़प लिए थे और वापस नहीं किए थे, जिस के कारण आर्थिक तंगी और अवसाद में आ कर गुलशन को बच्चों की हत्या कर मौत को गले लगाना पड़ा.

जांच अधिकारी महेंद्र सिंह ने इस मामले में धारा 306 भी जोड़ दी. मौके से बरामद हुए सीरींज, सल्फास और तीनों गिलासों से बरामद हुए पेय पदार्थ, चाकू व रस्सी को जांच के लिए प्रयोगशाला भेज दिया गया. गुलशन के परिजनों से बातचीत करने के बाद पुलिस को राकेश वर्मा से गुलशन के सारे लेनदेन की बात भी पता चल चुकी थी. मामला बड़ा होने से पोस्टमार्टम डाक्टरों के एक पैनल ने किया. जिलाधिकारी से रात में पोस्टमार्टम की अनुमति मांगी गई. अगली सुबह तक सभी का पोस्टमार्टम हुआ. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में हुआ खुलासा इधर पांचों शवों की पोस्टमार्टम रिपोर्ट पुलिस को प्राप्त हो गई. सामने आया कि कृतिका की मौत फंदे पर लटकाने के कारण हुई थी. जबकि बेटे रितिक की मौत चाकू से गला रेतने के कारण हुई. गुलशन, परमीना और संजना की मौत हैमरेज से हुई. यानी गुलशन ने पहले बेटी कृतिका को फंदे पर लटकाया, उस के बाद उस का गला रेता था. यानी उस का गला रेतने से पहले ही उस की मौत हो चुकी थी.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट के मुताबिक गुलशन के शरीर पर 4 जगहों पर चोट आईं, जबकि परमीना और संजना के शरीर पर करीब 6-6 जगहों पर चोट आई थीं. मृतकों ने विषैला पदार्थ खाया था या नहीं, इस का खुलासा विसरा की उस रिपोर्ट के बाद ही पता चल सकेगा, जिसे पुलिस ने फोरैंसिक जांच के लिए भेजा है. इस के अलावा यह बात भी साफ हो गई कि सभी लोगों की मौत 4 घंटे के अंदर हुई थी. इसी बीच पुलिस ने अगले दिन पोस्टमार्टम के बाद पांचों शव गुलशन के परिजनों को सौंप दिए. चूंकि गुलशन, उस की पत्नी परमीना व दोनों बच्चे एक ही परिवार के सदस्य थे, इसलिए परिजनों ने उन के शव की सुपुर्दगी ले कर उसी दिन हिंडन घाट पर उन का अंतिम संस्कार कर दिया. जबकि संजना जो कि गुलशन की मैनेजर थी, उस का शव लेने के लिए उस की मां नूरजहां व भाई फिरोज वहां पहुंच गए थे, इसलिए वे उस का शव ले कर गए और उसे सुपुर्दे खाक कर दिया गया.

दूसरे धर्म की थी संजना 5 लोगों की मौत के मामले में सब से अधिक चर्चा संजना पर छिड़ी हुई थी. दूसरे समुदाय की संजना गुलशन वासुदेवा परिवार के साथ जान देने को कैसे तैयार हो गई, इस पर चर्चाओं में सवाल उठाए जाने लगे. सवाल था कि संजना के साथ गुलशन के रिश्ते का नाम क्या था? हालांकि संजना की मां और भाई ने पुलिस को जो बयान दिए उस से स्थिति काफी हद तक साफ हो गई. यह बात साफ हो गई कि दिल्ली के वेलकम इलाके की रहने वाली संजना करीब 7 सालों से गुलशन के साथ थी. शुरुआत में तो वह फैक्ट्री में काम देखती थी लेकिन धीरेधीरे उस का गुलशन के घर में आनाजाना शुरू हो गया. डेढ़ महीने पहले गुलशन परिवार के साथ एटीएस सोसायटी से कृष्णा अपरा सफायर सोसायटी में शिफ्ट हुए. तब से संजना उन के साथ ही रह रही थी. लेकिन संजना का गुलशन से क्या रिश्ता था, यह किसी को नहीं पता.

संजना मुसलिम समुदाय से थी. उस का असली नाम गुलशन था. 3 साल पहले उस ने अपना नाम संजना कर लिया था. 26 वर्षीय संजना करीब 7 साल से गुलशन वासुदेवा की फैक्ट्री में बतौर सुपरवाइजर काम कर रही थी. इसी दौरान दोनों एकदूसरे के आकर्षण में बंध गए. दोनों के बीच बेहद करीबी रिश्ते कायम हो गए. करीब डेढ़ साल पहले संजना घर छोड़ कर गई तो यह कह कर गई थी कि वह गुलशन वासुदेवा से शादी करने जा रही है. उस के कुछ दिन बाद वह घर आई और अपने कपड़े व अन्य सामान ले कर चली गई. संजना अब गुलशन के कारोबार में पूरी तरह से उस की मदद करने लगी थी.

परमीना के परिजनों ने पुलिस को बताया कि गुलशन वासुदेवा और संजना पहले कुछ समय तक लिवइन रिलेशन में रहे. उन्होंने शायद चोरी से शादी भी कर ली थी, इस का पता परमीना को भी हो गया था. पतिपत्नी के बीच जब इस मुद्दे पर बात हुई तो परमीना ने पति की खुशी के लिए संजना को पत्नी के तौर पर साथ में रहने की अनुमति दे दी थी. इसलिए जब गुलशन अपरा सोसाइटी में आए तो उन्होंने संजना से किराए का फ्लैट छुड़वा दिया और अपने परिवार के साथ फ्लैट में ले आए. साढ़ू पर लगाया आरोप इस बात की पुष्टि किसी ने नहीं की कि संजना वाकई गुलशन की पत्नी थी या प्रेमिका. लेकिन यह बात स्पष्ट थी कि पूरे परिवार में संजना व गुलशन के रिश्ते को मान्यता मिली हुई थी. इस से भी बड़ी बात यह थी कि संजना पूरे परिवार से इस तरह जुड़ी थी कि गुलशन के साथ उस ने भी खुशीखुशी मौत को गले लगाया था.

लेकिन सब से बड़ी बात यह थी कि आखिर गुलशन ने इतना बड़ा कदम क्यों  उठाया? जांच में यह बात भी स्पष्ट हो गई. परमीना की बड़ी बहन संगीता का पति राकेश वर्मा जो साहिबाबाद के शालीमार गार्डन में रहता है, उस ने कुछ समय पहले गुलशन से प्रौपर्टी के कारोबार में निवेश करने को कहा था. गुलशन ने उसे सवा करोड़ रुपए दिए थे. बदले में राकेश वर्मा ने 2015 में अपनी मां फूला वर्मा से शालीमार गार्डन स्थित कोठी का एग्रीमेंट गुलशन के करीबी सीए प्रवीण बख्शी के नाम करा दिया. लेकिन 2018  में उक्त कोठी 1.49 करोड़ रुपये में किसी और को बेच दी. राकेश ने खुद ही पैसा निवेश नहीं किया था बल्कि अपने कुछ दोस्तों से भी उधार पैसे ले कर निवेश करा दिया था.

इस पर गुलशन ने पैसे मांगे तो राकेश ने चैक दिए जो बाउंस हो गए. तगादा करने के बावजूद राकेश द्वारा पैसे नहीं लौटाने से गुलशन व उस का पूरा परिवार तनाव में आ गया. जिस के बाद कई बार मांगने पर भी राकेश वर्मा ने पैसे वापस नहीं लौटाए. उस का साफ कहना था कि जिन प्रौपर्टी में उस ने राकेश व उस के जरिए मिले दूसरे लोगों को पैसा निवेश किया था, उन सभी प्रौपर्टी के दाम नोटबंदी और रियल एस्टेट में आई मंदी के कारण भाव काफी गिर गए हैं. निराश हो कर गुलशन ने राकेश वर्मा और उस की मां के खिलाफ साहिबाबाद थाने में धोखाधड़ी, चेक बाउंस होने व अमानत में खयानत का मामला दर्ज कराया, जिस के आधार पर साहिबाबाद पुलिस ने मामला दर्ज कर दोनों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया. बाद में दोनों की उच्च न्यायालय से जमानत हो गई थी.

जांच अधिकारी इंसपेक्टर महेंद्र सिंह को जांचपड़ताल करने पर पता चला कि राकेश वर्मा प्रौपर्टी कारोबारी तो है ही, वह पंजाब में होटल भी चलाता था. आर्थिक तंगी के कारण वहां भी घाटा उठाना पड़ रहा था. झूठ और फरेब पर चल रहा था कारोबार उस का कारोबार झूठ और फरेब के आधार पर कई राज्यों में पसरा था. पुलिस को अभी तक कोलकाता, दिल्ली और नोएडा में उस के कारोबार की पुख्ता जानकारी मिली है. राकेश वर्मा ने पटना, उत्तराखंड और झारखंड तक में संपत्तियां बनाईं. इन संपत्तियों को बनाने के लिए उस ने केवल गुलशन वासुदेव को ही नहीं, कई अन्य जानकारों और रिश्तेदारों को मोहरा बनाया था. राकेश वर्मा ने कई जगह होटल कारोबार में भी अपने हाथ डाले थे.

गोवा जैसे कुछेक स्थानों पर होटल किराए पर ले कर संचालन किया, लेकिन हर जगह उसे घाटा उठाना पड़ा. इसलिए वह गुलशन का पैसा लौटाने में नाकामयाब रहा. एक तरफ राकेश के ऊपर कर्ज का दबाव बढ़ गया था, वहीं दूसरी ओर खरीदी या विकसित की गई प्रौपर्टी निकल नहीं पा रही थी. बीते 4-5 सालों से वह खुद भी आर्थिक तंगी के दौर से गुजर रहा था. इधर करोड़ों के नुकसान तले दबा गुलशन पहले कई सालों तक तो घाटे से उबरने की जद्दोजेहद में जुटा रहा. लेकिन अपने लेनदारों का दबाव गुलशन की सहनशक्ति से अब बाहर हो चुका था. कुछ दिन पहले कोलकाता की कंपनी में करीब 60 लाख रुपए डूबने का पता लगने पर वह बुरी तरह टूट गया और आखिरकार परिवार के खात्मे का फैसला ले लिया.

इंदिरापुरम पुलिस ने सभी तथ्य सामने आने के बाद गुलशन के साढ़ू राकेश वर्मा को आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया. हालांकि राकेश की मां फूला देवी इस से पहले ही फरार हो गई.  इस लोमहर्षक हत्या व आत्महत्या कांड के बाद पुलिस मामले की पड़ताल कर आरोप पत्र तैयार करने के काम में लगी थी.

(कथा पुलिस व परिजनों से पूछताछ पर आधारित)

 

Jharkhand Crime : कर्ज से बचने के लिए महिला को मिट्टी के तेल से जलाया

Jharkhand Crime : उधार की रकम कभीकभी अपराध को भी जन्म देती है. अंजलि के साथ यही हुआ. मोटे ब्याज के चक्कर में उस ने फिरदौस, रमन और आरती को काफी रकम उधार दे दी थी. एक दिन यही रकम अंजलि की जान की ऐसी दुश्मन बनी कि…

झारखंड के रांची जिले के कस्बा अरगोड़ा की 33 वर्षीय अंजलि उर्फ विनीता तिर्की पति मुंसिफ खान के साथ किराए के मकान में रहती थी. दोनों ने कई साल पहले प्रेम विवाह किया था. हालांकि अंजलि पहले से शादीशुदा थी. पहला पति रमन सिमडेगा शहर के सलगापुर गांव में अपने दोनों बच्चों के साथ रहता था. रमन मानसिक रूप से अस्वस्थ था. स्वच्छंदता और आधुनिकता का अंजलि पर ऐसा रंग चढ़ा कि पति और बच्चों को छोड़ कर वह अरगोड़ा के मोहल्ला महावीर नगर में प्रेमी से पति बने मुंसिफ खान के साथ आ कर बस गई थी. ऐसे में जब बच्चों की ममता अंजलि को तड़पाती थी तब वह बच्चों से मिलने चली जाया करती थी.

एकदो दिन उन के पास बिता कर फिर महावीर नगर मुंसिफ खान के पास चली आती थी. वर्षों से अंजलि और मुंसिफ खान दोनों साथ मिल कर सूद पर रुपए बांटने का धंधा करते थे. सूद के कारोबार में उन के लाखों रुपए बाजार में फंस चुके थे. इस के बावजूद भी उन्हें इस धंधे में बड़ा मुनाफा हो रहा था. सूद के साथसाथ उन्होंने जुए का भी धंधा शुरू कर दिया था. जुए के धंधे ने उन के बिजनैस में चारचांद लगा दिए. दिन दूनी, रात चौगुनी आमदनी उन्हें हो रही थी. अंजलि एक बेहद खूबसूरत और चंचल किस्म की महिला थी. महिला हो कर भी उस ने एक ऐसे धंधे में अपने पांव पसार दिए थे जहां ग्राहक घड़ी दर घड़ी औरतों को भूखे भेडि़ए की नजरों से घूरते हैं.

ऐसे में अंजलि ‘ना काहू से दोस्ती, ना काहू से बैर’ जैसा व्यवहार रखती थी. पते की बात तो यह थी कि सूद और जुए का धंधा तो गंदा जरूर था पर अंजलि चरित्र के मामले में बेहद पाकसाफ और सतर्क रहती थी. बुरी नजरों से देखने वालों के साथ वह सख्ती से पेश आती थी. बहरहाल, अंजलि और मुंसिफ खान के धंधे में साथ देने वालों में कई नाम शुमार थे. जिन में फिरदौस रसीद और आरती के नाम मुख्य थे. फिरदौस रसीद और आरती दोनों ही लोअर बाजार इलाके के कलालटोली चर्च रोड मोहल्ले में अगलबगल रहते थे. धंधे की वजह से फिरदौस और आरती का अंजलि के यहां आनाजाना लगा रहता था. जिस की वजह से दोनों पर अंजलि अंधा विश्वास करती थी. कभीकभी वह अपना धंधा फिरदौस और आरती के भरोसे छोड़ जाती थी. ईमानदारी के साथ वे दोनों धंधा करते और सही हिसाब उन्हें सौंप देते थे.

बात 25 दिसंबर, 2019 की है. अंजलि शाम करीब साढ़े 6 बजे घर से किसी काम से अपनी आल्टो 800 कार ले कर निकली. कई घंटे बीत जाने के बाद भी न तो उस का फोन आया और न ही वह घर लौटी. जबकि घर से निकलते वक्त वह पति मुंसिफ खान से कह गई थी कि जल्द ही लौट कर आ जाएगी. उस के जाने के बाद मुंसिफ भी थोड़ी देर के लिए बाजार टहलने निकल गया था. करीब 2 घंटे बाद जब वह बाजार से घर लौटा तो अंजलि तब तक घर नहीं लौटी थी. ये देख कर वह परेशान हो गया. मुंसिफ खान ने अंजलि के मोबाइल फोन पर काल की तो उस का फोन बंद आ रहा था. यह देख कर वह और भी हैरान हो गया कि उस का फोन बंद क्यों आ रहा है? क्योंकि वह कभी भी फोन बंद नहीं रखती थी.

रात भर ढूंढता रहा मुंसिफ खान बारबार फोन स्विच्ड औफ आने से मुंसिफ खान बहुत परेशान हो गया था. पहली बार ऐसा हुआ था जब अंजलि का फोन स्विच्ड औफ आ रहा था. मुंसिफ ने अपने जानपहचान वालों को फोन कर के अंजलि के बारे में पता किया, लेकिन कहीं से भी उस के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली. इस के बाद मुंसिफ को यह बात खटकने लगी कि कहीं उस के साथ कोई ऊंचनीच की बात तो नहीं हो गई. अंजलि की तलाश में मुंसिफ खान ने पूरी रात यहांवहां ढूंढ़ते हुए बिता दी, लेकिन उस का पता नहीं चला. अगली सुबह मुंसिफ थकामांदा घर पहुंचा तो दरवाजा देख कर आश्चर्य के मारे उस की आंखें फटी की फटी रह गईं. उस के कमरे का ताला टूटा हुआ था. कमरे के भीतर रखी अलमारी के दोनों पाट खुले हुए थे और अलमारी का सारा सामान फर्श पर बिखरा हुआ था.

अलमारी की हालत देख कर ऐसा लग रहा था जैसे किसी को अलमारी में किसी खास चीज की तलाश थी और उस व्यक्ति को पता था कि वह खास चीज इसी अलमारी में है, इसीलिए उस ने अलमारी के अलावा घर में रखी किसी भी वस्तु को हाथ नहीं लगाया था. मुंसिफ अंजलि को ले कर पहले से ही परेशान था, ऊपर से एक और मुसीबत ने दस्तक दे कर परेशानी और बढ़ा दी थी. मुंसिफ ने जब अलमारी चैक की तो उस में रखी ज्वैलरी और रुपए गायब थे. ये सोच कर वह परेशान था कि यह किस की हरकत हो सकती है?

मुंसिफ को समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे? किस के पास जाए? इसी उलझन में डूबे हुए कब दिन के 11 बज गए उसे पता ही नहीं चला. उसी समय उस ने अपना व्हाट्सएप यह सोच कर औन किया कि अंजलि के बारे में कहीं कोई सूचना तो नहीं आई है. एकएक कर के ग्रुप में आए मैसेज को सरसरी निगाहों से वह देखता चला गया. एक मैसेज पर जा कर उस की नजर ठहर गई. मैसेज में एक महिला की बुरी तरह जली लाश की फोटो पोस्ट की गई थी. लाश झुलसी हुई थी इसलिए पहचान में नहीं आ रही थी. वह लाश खूंटी थाना क्षेत्र में कालामाटी के तिरिल टोली गांव के एक खेत से मिली थी. उस मैसेज में लाश का जो हुलिया दिया गया था, वह उस की पत्नी अंजलि की कदकाठी से काफी मेल खाता हुआ नजर आ रहा था.

मैसेज पढ़ कर मुंसिफ खान दंग रह गया था. उस का दिल जोरजोर से धड़कने लगा था. अंजलि को ले कर उस के मन में बुरेबुरे खयाल आने लगे थे. मैसेज पढ़ कर मुंसिफ जल्द ही बाइक से खूंटी की तरफ रवाना हो गया. रांची से खूंटी करीब 50-60 किलोमीटर दूर था. तेज गति से बाइक चला का मुंसिफ खान करीब एक घंटे में वह खूंटी थाना पहुंच गया था. उस ने थानाप्रभारी जयदीप टोप्पो से मुलाकात की. थानाप्रभारी ने अपने मोबाइल द्वारा उस लाश के खींचे गए फोटो मुंसिफ को दिखाए. फोटो देख कर मुंसिफ की सारी आशंका दूर हो गई क्योंकि लाश उस की पत्नी अंजलि उर्फ विनीता तिर्की की ही थी. हत्यारों ने बेरहमी से उसे जला दिया था. थानाप्रभारी को इस बात की आशंका थी कि कहीं अंजलि के साथ रेप कर के उस की हत्या तो नहीं कर दी.

थानाप्रभारी ने मुंसिफ से बात की तो उन्हें मुंसिफ की बातों और बौडी लैंग्वेज से उसी पर शक हो रहा था. उन्हें लग रहा था कि कहीं इसी ने तो अपनी पत्नी की हत्या कर के लाश यहां फेंक दी हो और पुलिस से बचने का नाटक कर रहा हो. इसी आशंका के मद्देनजर थानाप्रभारी टोप्पो ने मुंसिफ खान को पूछताछ के लिए हिरासत में ले लिया. उस से की गई लंबी पूछताछ के बाद पुलिस को उस से कुछ भी हासिल नहीं हुआ. पूछताछ में उस ने बताया कि अंजलि उस की पत्नी थी. दोनों 10 सालों से दीया और बाती की तरह घुलमिल कर रहते थे. दोनों ने प्रेम विवाह किया था. उन का जीवन खुशहाली में बीत रहा था, तो वो भला पत्नी की हत्या क्यों करेगा.

उस की यह बात सुन कर थानाप्रभारी भी सोच में पड़ गए कि वह जो कह रहा है, सच हो सकता है. इसलिए उन्होंने कुछ हिदायत दे कर उसे छोड़ दिया. अगले दिन यानी 27 दिसंबर, 2019 को अंजलि उर्फ विनीता तिर्की की पोस्टमार्टम रिपोर्ट पुलिस के पास आ चुकी थी. रिपोर्ट पढ़ कर इस बात की पुष्टि हो चुकी थी कि मृतका के साथ दुष्कर्म नहीं किया गया था. रिपोर्ट में यह जरूरी उल्लेख किया गया था कि मृतका की हत्या गला दबा कर की गई थी. उस के बाद बदमाशों ने लाश पर मिट्टी का तेल डाल कर आग लगा थी. एसपी ने संभाली कमान अंजलि उर्फ विनीता तिर्की हत्याकांड की मानिटरिंग एसपी आशुतोष शेखर कर रहे थे. उन्होंने घटना के खुलासे के लिए एसडीपीओ आशीष कुमार के नेतृत्व में एक स्पैशल इनवैस्टीगेशन टीम (एसआईटी टीम) का गठन किया. उस टीम में इंसपेक्टर राधेश्याम तिवारी, दिग्विजय सिंह,

राजेश प्रसाद रजक, खूंटी थानाप्रभारी जयदीप टोप्पो, एसआई मीरा सिंह, नरसिंह मुंडा, पुष्पराज कुमार, रजनीकांत, रंजीत कुमार यादव, बिरजू प्रसाद, दीपक कुमार सिंह, पंकज कुमार और विवेक प्रशांत शामिल थे. चूंकि मृतका अंजलि दूसरे जिला यानी रांची की रहने वाली थी. इसलिए पुलिस ने सच की तह तक पहुंचने के लिए रांची से ही घटना की जांच शुरू की. इंसपेक्टर राधेश्याम तिवारी ने रांची पहुंच कर अंजलि के पति मुंसिफ खान से फिर से पूछताछ की और उस के मोबाइल की काल डिटेल्स निकलवाई. काल डिटेल्स का अध्ययन किया तो पता चला कि अंजलि के मोबाइल फोन पर आखिरी बार काल 25 दिसंबर, 2019 को शाम साढ़े 6 बजे की गई थी. जिस नंबर से काल की गई थी, छानबीन में वह नंबर इसी जिले के लोअर बाजार थाने के कलालटोली चर्च मोहल्ले की रहने वाली आरती का निकला.

28 दिसंबर को लोअर बाजार थाना पुलिस की मदद से एसआईटी टीम और खूंटी पुलिस ने आरती को उस के घर से पूछताछ के लिए उठा लिया. पुलिस उसे लोअर बाजार थाने ले आई. पुलिस ने उस से सख्ती से पूछताछ की तो आरती उस के सामने पूरी तरह से टूट गई और अपना जुर्म कबूल कर लिया. उस ने पुलिस के सामने सच्चाई उगल दी. उस पता चला कि उस ने अपने साथियों फिरदौस रसीद और रमन कुमार के साथ मिल कर अंजलि की हत्या की थी. लाश की शिनाख्त आसानी से न होने पाए, इसलिए तीनों ने मिल कर उसे जला दिया था.

हत्थे चढ़े आरोपी फिर क्या था? आरती के बयान के बाद पुलिस ने फिरदौस रसीद को कलालटोली चर्च मोहल्ले में स्थित उस के घर से गिरफ्तार कर लिया और दोनों को रांची से खूंटी ले आई. दोनों का तीसरा साथी रमन फरार था. पूछताछ में आरती और फिरदौस ने अंजलि की हत्या की वजह बता दी. उस के बाद दोनों की निशानदेही पर पुलिस ने अंजलि की हत्या के बाद लूटी गई उस की अल्टो कार, उस के घर से लूटे गए जेवरात और मोबाइल फोन भी बरामद कर लिया. गिरफ्तार दोनों आरोपियों के द्वारा बताई गई कहानी कुछ ऐसे सामने आई—

बिंदास अंजलि उर्फ विनीता तिर्की सूद कारोबार से बेहद फलफूल गई थी. जिंदगी और बिजनैस दोनों का साथ देने वाला प्रेमी पति मुंसिफ खान साये के समान 24 घंटे उस से चिपका रहता था. वह पत्नी के एक हुक्म पर आसमान से तारे तोड़ लाने के लिए तैयार रहता था. सूद के कारोबार से उस ने बहुत पैसे कमाए. जब पैसे आने लगे तो उस ने अपने कारोबार का विस्तार किया और मोहल्ले के एक गुप्त स्थान पर बड़ा कमरा ले कर जुए का अड्डा बना लिया और वहीं जुआ खिलाती थी. जब अंजलि का कारोबार बढ़ा तो उसे बिजनैस संभालने के लिए आदमियों की जरूरत महसूस हुई. उस ने ऐसे आदमियों की तलाश शुरू की जो उसी की तरह ईमानदार और विश्वासपात्र हो.

बिजनैस में बेईमानी करने वाला न हो.अंजली के पड़ोस में फिरदौस रसीद, रमन और आरती रहते थे. तीनों से अंजलि की खूब पटती थी. वे उस से अकसर सूद पर पैसे लेते थे और समय पर ब्याज चुकता भी कर देते थे. तीनों की ईमानदारी और व्यवहार से अंजलि बेहद खुश थी. उस के कहने पर वे कभीकभी जुए का अड्डा संभालने में उस की मदद कर दिया करते थे. फिरदौस रसीद, रमन और आरती तीनों कलालटोली चर्च मोहल्ले में अगलबगल रहते थे. तीनों एकदूसरे के पड़ोसी थे. तीनों का अपना भरापूरा परिवार था. बस कुछ नहीं था तो वह थी अच्छी सी नौकरी. इस वजह से उन के पास पर्याप्त और खाली समय रहता था. खाली समय में वे करते तो क्या करते?

आरती को छोड़ कर दोनों बालबच्चेदार थे. परिवार का खर्च चलाने के लिए उन्हें पैसों की सख्त जरूरत थी. शार्टकट तरीके से वे कम समय में ज्यादा पैसे कमाना चाहते थे. पैसे कमाने के लिए जुआ खेलने अंजलि के अड्डे पर चले जाते थे. जुए की लत ने बनाया कंगाल फिरदौस रसीद को जुए की लत ने कंगाल बना दिया था. फिरदौस के साथसाथ आरती और रमन भी जुएबाज बन गए थे. फिरदौस तो जुए में बीवी के गहने तक हार गया था. गहने वापस पाने के लिए फिरदौस यारदोस्तों से कुछ कर्ज ले कर फिर से अपनी किस्मत आजमाने अंजलि के अड्डे पर चला गया. लेकिन उस की किस्मत ने उसे फिर से दगा दे दी. कर्ज ले कर जिन पैसों से अपनी किस्मत बदलने फरदौस आया था, वो तो हार ही गया, धीरेधीरे वह अंजलि का लाखों रुपए का कर्जदार भी हो गया. ये बात दिसंबर, 2019 के पहले हफ्ते की थी.

अंजलि अपने पैसों के लिए फिरदौस रसीद से हर घड़ी तगादा करती थी. फिरदौस के पास इतने पैसे नहीं थे कि वह उस का कर्ज चुकता कर सके. अंजलि के तगादे से वह बच कर भागाभागा यहांवहां फिरता था. धीरेधीरे एक पखवाड़ा बीत गया. न तो वह कर्ज का एक रुपया चुका सका और न ही वह अंजलि के सामने ही आया. उस के बारबार टोकने से फिरदौस खुद की नजरों में अपमानित महसूस करता था. उस की समझ नहीं आ रहा था वह क्या करे. कैसे उस से छुटकारा पाए. इसी परेशानी के दौर में उस के दिमाग में एक खतरनाक योजना ने जन्म लिया. उस ने सोचा कि क्यों न अंजलि को ही रास्ते से हटा दें. न वह रहेगी और न ही उसे कर्ज चुकाना पड़ेगा. यानी न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी. यह विचार मन में आते ही वह खुशी से झूम उठा.

फिरदौस रसीद ने योजना तो बना ली थी लेकिन योजना को अंजाम देना उस के अकेले के बस की बात नहीं थी. उस ने अपनी योजना में आरती और रमन को भी शामिल कर लिया. आरती और रमन साथ देने के लिए तैयार हो गए थे. दरअसल, वे दोनों भी अंजलि से नफरत करते थे. वे भी उस से जुए में एक बड़ी रकम हार चुके थे. जिस से कर्जमंद हो गए थे. रकम वापसी के लिए अंजलि उन पर तगादे का चाबुक चलाए हुई थी. आरती और रमन के पास एक फूटी कौड़ी नहीं थी. तो वे इतनी बड़ी रकम कहां से चुकाते. अंजलि के बारबार तगादा करने से वे परेशान हो चुके थे, इसलिए उन्होंने फिरदौस का साथ देना मंजूर कर लिया.

तीनों दुश्मनों ने बनाई योजना अब एकदो नहीं बल्कि अंजलि के 3 दुश्मन सामने आ चुके थे. तीनों ही मिल कर अंजलि से बदला लेने के लिए तैयार थे. तीनों ने मिल कर योजना बना ली थी कि किस तरह अंजलि को रास्ते से हटाना है. 25 दिसंबर यानी क्रिसमस का त्यौहार था. उन के लिए यह मौका सब से अच्छा था क्योंकि क्रिसमस के त्यौहार की वजह से सभी लोग अपनेअपने घरों में दुबके रहेंगे. वैसे भी अंजलि को कोई पूछने वाला तो था नहीं, इसलिए सुनहरे मौके को तीनों किसी कीमत पर हाथ से गंवाना नहीं चाहते थे. यही मौका उन्हें ठीक लगा. इसी योजना के मुताबिक, फिरदौस ने अंजलि को फोन कर के शाम साढ़े 6 बजे एक पार्टी दी और रिंग रोड बुलाया. उस ने यह भी कहा कि तुम्हारे पैसे तैयार हैं, उन्हें भी लेती जाना.

पैसों का नाम सुनते ही अंजलि की आंखों में चमक जाग उठी थी. उसे क्या पता था कि पैसे तो एक बहाना है, दरअसल उन्होंने उस के इर्दगिर्द मौत का जाल बिछा दिया था. उस जाल में वह फंस चुकी थी. वह दिन उस का आखिरी दिन था. बहरहाल, अंजलि ने फिरदौस से बता दिया कि वो रिंग रोड पर ही उस का इंतजार करे, कुछ ही देर में वह वहां पहुंच रही है. अंजलि की ओर से हां का जवाब मिलते ही फिरदौस, आरती और रमन की आंखों में खुशी की लहर दौड़ पड़ी. तकरीबन शाम 7 बजे अंजलि रिंग रोड पहुंच गई. जहां पर फिरदौस, आरती और रमन उसी के इंतजार में पलक बिछाए बैठे थे. फिरदौस के साथ आरती और रमन को देख कर अंजलि थोड़ी चौंकी थी.

अंजलि के रिंग रोड पहुंचते ही तीनों उस की कार में सवार हो गए. फिरदौस आगे की सीट पर बैठ गया था और आरती व रमन पीछे वाली सीट पर सवार थे. अंजलि ड्राइविंग सीट पर बैठी कार चला रही थी. उस ने कार जैसे ही आगे बढ़ाई, अचानक पीछे से अंजलि ने अपनी गरदन पर दबाव महसूस किया और वह चौंक गई.  उस के हाथ से स्टीयरिंग छूटतेछूटते बचा और कार हवा में लहराती हुई सड़क के दाईं ओर जा कर रुक गई. अभी वह कुछ समझ पाती तब तक फिरदौस और आरती भी उस पर भूखे भेडि़ए के समान टूट पड़े. रमन पहले ही फिरदौस के इशारे पर टूट पड़ा था.

चलती कार में घोटा गला तीनों दरिंदों के चंगुल से आजाद होने के लिए अंजलि फड़फड़ा रही थी लेकिन उन की मजबूत पकड़ से वह आजाद नहीं हो पाई और वह मौत की आगोश में सदा के लिए समा गई. अंजलि की मौत हो चुकी थी. उस की मौत के बाद तीनों बुरी तरह डर गए कि अब इस की लाश का क्या होगा? जल्द ही फिरदौस ने इस का रास्ता भी निकाल लिया. पहले तीनों ने मिल कर उस की लाश पीछे वाली सीट पर बीच में ऐसे बैठाई जैसे वह आराम से बैठीबैठी सो रही हो. उस के अगलबगल में रमन और आरती बैठ गए. फिरदौस ड्राइविंग सीट पर बैठ गया. वहां से तीनों खूंटी पहुंचे. खूंटी के कालामाटी के तिरिल टोली गांव के बाहर सूनसान खेत में अंजली का शव ले कर गए. उस के ऊपर मिट्टी का तेल उड़ेल कर आग लगा दी और कार ले कर वापस रांची पहुंचे.

इधर मुंसिफ खान अंजलि की तलाश में यहांवहां भटक रहा था. उधर तीनों अंजलि के घर पहुंचे और उस के घर की अलमारी तोड़ कर उस में से उस के सारे गहने लूट लिए और वहां से रफूचक्कर हो गए. तीनों ने जिस चालाकी से अंजलि की हत्या कर के उस की पहचान मिटाने की कोशिश की थी उन की चाल सफल नहीं हुई. आखिरकार पुलिस उन तक पहुंच ही गई और उन्हें उन के असल ठिकाने तक पहुंचा दिया. तीनों आरोपियों से पुलिस ने अंजलि के घर से लूटे गहने और कार बरामद कर ली थी.  कथा लिखने तक पुलिस अदालत में आरोपपत्र दाखिल कर चुकी थी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

Lucknow Crime : बेवफा बीवी ने प्रेमी के साथ मिल कर बनाया पति का मर्डर प्‍लान

Lucknow Crime : कमला और रामकुमार की अच्छीभली गृहस्थी थी. लेकिन जब ज्ञान सिंह दोनों के बीच आया तो उन की गृहस्थी भी बिखरने लगी और रिश्तों के धागे भी उलझ गए. अब कमला और उस के चाहने वाले ज्ञान सिंह के पास एक ही विकल्प था कि…

शाम के यही कोई 6 बजे थे. धुंधलका उतर आया था. लखनऊ से सीतापुर जाने वाले मार्ग पर एक कस्बा है बख्शी का तालाब. इसी कस्बे से शिवपुरी बराखेमपुर गांव को एक रोड जाती है. सायंकाल का वक्त होने के कारण वह रोड सुनसान थी. अचानक गुडंबा की तरफ से आ रही एक बाइक गोलइया मोड़ पर आ कर रुकी. बाइक पर 3 व्यक्ति सवार थे. वे सड़क किनारे खड़े हो कर किसी के आने का इंतजार करने लगे. कुछ देर के बाद सामने से एक बाइक आती हुई दिखाई दी, जिस पर 2 लोग बैठे थे. इस से पहले कि मामला कुछ समझ में आता कि सड़क किनारे खड़े उन तीनों व्यक्तियों में से एक ने सामने से आती हुई उस बाइक को रोका. उस बाइक पर रामकुमार और उस का भतीजा मतोले बैठे थे, जो शिवपुरी बराखेमपुर में रहते थे.

जैसे ही रामकुमार ने बाइक की गति धीमी की, तभी उन तीनों में से एक व्यक्ति ने तमंचे से फायर कर दिया. गोली बाइक रामकुमार के लगी जिस से बाइक सहित वे दोनों लड़खड़ा कर गिर पड़े. उन के गिरते ही तीनों हमलावर घटनास्थल से फरार हो गए. यह घटना 25 दिसंबर, 2019 की है. रात काफी हो गई थी. मतोले ने उसी समय फोन कर के यह सूचना रामकुमार की पत्नी कमला को देते हुए कहा, ‘‘चाची, ज्ञानू ने अपने 2 साथियों राजा व अंकित के साथ चाचा रामकुमार पर हमला कर दिया है. उन के पेट में गोली लगी है. चाचा गोलइया मोड़ के पास घायल पड़े हैं.’’

यह खबर सुनते ही कमला फफक कर रो पड़ी. उस ने अपने जेठ यानी मतोले के पिता जयकरण व देवर दिनेश व अन्य परिवारजनों को यह जानकारी दे दी. घटनास्थल गांव से 4-5 सौ मीटर की दूरी पर था. इसलिए जल्द ही परिवार व मोहल्ले वाले घटनास्थल पर पहुंच गए. परिवारजन घायल रामकुमार कोे बाइक से बख्शी के तालाब तक ले आए, फिर वहां से वाहन द्वारा लखनऊ के केजीएमयू मैडिकल अस्पताल ले गए. रामकुमार की हालत गंभीर थी. उस के पेट में गोली लगने से खून ज्यादा मात्रा में बह चुका था, डाक्टरों की लाख कोशिशों के बाद भी रामकुमार को बचाया नहीं जा सका. मैडिकल कालेज में उपचार के दौरान उस की मृत्यु हो गई.

चूंकि मामला हत्या का था, इसलिए अस्पताल प्रशासन ने इस की सूचना स्थानीय थाना बख्शी का तालाब में दे दी. सूचना पा कर थानाप्रभारी बृजेश सिंह, एसएसआई कुलदीप कुमार सिंह और एसआई योगेंद्र कुमार, अवनीश कुमार और सिपाही नितेश मिश्रा के साथ मैडिकल कालेज जा पहुंचे. डाक्टरों से बातचीत करने के बाद उन्होंने मृतक के परिजनों से पूछताछ की तो मतोले ने थानाप्रभारी को हमलावरों के नाम भी बता दिए. जरूरी काररवाई करने के बाद पुलिस ने रामकुमार का शव अस्पताल की मोर्चरी में भेज दिया. इस के बाद थानाप्रभारी रात में ही घटनास्थल पर पहुंच गए. रोशनी की व्यवस्था कर उन्होंने घटनास्थल से खून आलूदा मिट्टी से सबूत एकत्र किए.

अगले दिन 26 दिसंबर, 2019 को पोस्टमार्टम होने के बाद रामकुमार का शव उस के परिजनों को सौंप दिया. अंतिम संस्कार के बाद थानाप्रभारी ने रामकुमार की पत्नी कमला की ओर से ज्ञान सिंह उर्फ ज्ञानू और राजा के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 120बी व एससी/एसटी एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया. चूंकि मुकदमे में एससी/एसटी एक्ट की धारा भी लगी थी, इसलिए इस की जांच की जिम्मेदारी सीओ स्वतंत्र सिंह ने संभाली. पुलिस ने जांच शुरू की तो पता चला कि मृतक की पत्नी कमला का चरित्र ठीक नहीं था, इसलिए पुलिस ने कमला का मोबाइल फोन अपने कब्जे में ले लिया और उस से ज्ञान सिंह यादव का फोन नंबर भी प्राप्त कर लिया. पुलिस ने उन के नंबरों की काल डिटेल्स निकलवाई.

घटना का चश्मदीद मृतक का भतीजा मतोले था, पूछताछ करने पर मतोले ने पुलिस को बताया कि पड़ोस की दूध की डेयरी पर काम करने वाले ज्ञान सिंह उर्फ ज्ञानू ने उस से कई बार कहा कि तुम शहर में कामधंधे के लिए अपने चाचा रामकुमार के साथ न जाया करो, क्योंकि तुम्हारे चाचा से मेरी रंजिश चल रही है. उस ने अपने दोस्तों के साथ घेर कर चाचा को गोली मार दी. उधर पुलिस ने कमला और ज्ञान सिंह के फोन नंबरों की काल डिटेल्स का अध्ययन किया तो इस बात की पुष्टि हो गई कि कमला और ज्ञान सिंह के बीच दाल में कुछ काला अवश्य है.

एसएसआई कुलदीप सिंह ने इस बारे में मतोले से पूछा तो उस ने हां में सिर हिला दिया. ऐसे में कमला से पूछताछ करनी जरूरी थी. इसलिए 26 दिसंबर, 2019 की शाम एसएसआई कुलदीप सिंह अपने सहयोगियों एसआई अवनीश कुमार, हंसराज, महिला सिपाही श्रद्धा शंखधार, नेहा शर्मा को साथ ले कर कमला के घर पहुंचे. रात में पुलिस को अपने घर आया देख कर कमला सकपका गई. उस के चेहरे का रंग उतर गया. उस ने पूछा, ‘‘दरोगाजी, इतनी रात को घर आने का क्या मकसद है?’’

‘‘मैं यह जानना चाहता हूं कि क्या ज्ञान सिंह उर्फ ज्ञानू से तुम्हारे पति रामकुमार की कोई रंजिश थी? मुझे पता चला है कि तुम्हारे पति पर ज्ञान सिंह ने ही भाड़े के लोगों के साथ हमला कराया था. पुलिस उसी की तलाश में गांव आई है.’’ एसएसआई ने कहा. यह कह कर एसएसआई ने कमला के दिमाग से शक का कीड़ा निकाल दिया, ताकि उसे लगे कि वह पुलिस के शक के दायरे में नहीं है. इस केस की जांच में सहयोग करने के लिए तुम्हें कल सुबह थाने आना होगा. इस पूछताछ में पुलिस को ज्ञान सिंह उर्फ ज्ञानू व अंकित यादव के खिलाफ कुछ और तथ्य मिल गए.

अगले दिन पुलिस टीम ज्ञान सिंह यादव उर्फ ज्ञानू, अंकित आदि की तलाश में उन के घर गई तो वे घरों पर नहीं मिले. पता चला कि कमला भी अपने घर से फरार हो गई है. इस से पुलिस को पूरा विश्वास हो गया कि ये लोग इस अपराध से जुड़े हैं. इसलिए पुलिस ने तीनों के पीछे मुखबिर लगा दिए. मुखबिरों द्वारा पुलिस को पता चला कि कमला अपने प्रेमी ज्ञान सिंह उर्फ ज्ञानू व उस के दोस्त अंकित यादव के साथ फरार होने के लिए गांव से निकल कर भगतपुरवा तिराहा, भाखामऊ रोड पर खड़ी है. कुछ ही देर में थाना बख्शी का तालाब से एक पुलिस टीम वहां पहुंच गई. वहीं से पुलिस ने कमला, ज्ञान सिंह और अंकित को गिरफ्तार कर लिया.

एक मुखबिर की सूचना पर एक अन्य आरोपी उत्तम कुमार को भैसामऊ क्रौसिंग से एक तमंचे व 2 कारतूस सहित गिरफ्तार कर लिया गया. थाने पहुंच कर कमला निडरता के साथ बोली, ‘‘दरोगाजी, हमें थाने बुला कर काहे बारबार परेशान कर रहे हैं.’’

इतना सुनते ही थानाप्रभारी बृजेश कुमार सिंह ने महिला सिपाही नेहा शर्मा और सिपाही शंखधार को बुला कर कहा, ‘‘इस औरत को हिरासत में ले लो. एक तो इस ने अपने प्रेमी के साथ मिल कर अपने पति की हत्या करने की साजिश रची और ऊपर से स्वयं पतिव्रता बनने का नाटक कर रही है.’’

थानाप्रभारी ने हंसते हुए कमला से कहा, ‘‘परेशान न हो शाम तक तुम्हें घर वापस भेज दिया जाएगा. कुछ अधिकारी यहां आ रहे हैं, तुम उन्हें सचसच बता देना.’’

सीओ स्वतंत्र सिंह भी जांच हेतु थाने पहुंच गए. सूचना पा कर एसपी (ग्रामीण) आदित्य लंगेह भी थाना बख्शी का तालाब आ पहुंचे. चारों आरोपियों को अधिकारियों के सामने पेश किया गया. चारों आरोपियों ने पुलिस के सामने स्वीकार किया कि कमला के गांव के ही निवासी ज्ञान सिंह उर्फ ज्ञानू से अवैध संबंध थे. उन्होंने ही रामकुमार को ठिकाने लगाया था. उन चारों से हुई पूछताछ के आधार पर रामकुमार हत्याकांड की गुत्थी सुलझ गई. पूछताछ में कमला और ज्ञान सिंह के अवैध संबंधों की जो कहानी प्रकाश में आई, वह इस प्रकार है—

लखनऊ से 20 किलोमीटर दूर लखनऊ-सीतापुर राजमार्ग के किनारे तहसील बख्शी का तालाब है. इसी क्षेत्र में गांव शिवपुरी बरा खेमपुर है. रामकुमार रावत का परिवार इसी गांव में रहता था. रामकुमार रावत अपने परिवार में सब से बड़ा था. उस के अन्य 2 भाई दिनेश (35 साल) व राजेश (30 साल) थे. रामकुमार का विवाह करीब 15 साल पहले मूसानगर के निकट कुरसी गांव की रहने वाले शिवचरण रावत की बेटी कमला के साथ हुआ था. उस के 2 बच्चे थे. रामकुमार लखनऊ के आसपास कामधंधे की तलाश में जाता रहता था. उस के पड़ोस में ही ज्ञान सिंह उर्फ ज्ञानू रहता था, जो मूलरूप से शिवपुरी मानपुर लाला, थाना बख्शी का तालाब का रहने वाला था. ज्ञान सिंह अविवाहित था.

रामकुमार की पत्नी कमला की उम्र लगभग 40 वर्ष के आसपास रही होगी. कमला की एक बहन रामप्यारी शिवपुरी मानपुर लाला में रहती थी. निकटवर्ती रिश्तेदारी होने के कारण कमला का अपनी बहन के गांव शिवपुरी मानपुर लाला अकसर आनाजाना लगा रहता था. ज्ञान सिंह उर्फ ज्ञानू अपने गांव में दूध की डेयरी का काम करता था. वह रोजाना अपने गांव से दूध इकट्ठा कर बाइक से बख्शी का तालाब कस्बे में बेचने के लिए आताजाता था. कमला की बहन रामप्यारी के कहने पर ज्ञान सिंह ने कमला के पति रामकुमार को अपने साथ दूध के काम पर लगा दिया. इस के बाद दूध इकट्ठा करने का काम रामकुमार करने लगा. बाद में वह दूध बेचने के लिए लखनऊ व निकटवर्ती इलाकों में निकल जाता था और दूध बेच कर शाम तक अपने गांव शिवपुरी बराखेमपुर लौट आता था.

रामकुमार की दिन भर की यही दिनचर्या थी. इस तरह कई सालों तक रामकुमार ज्ञान सिंह के साथ रह कर दूध बेचने का काम करता रहा. चूंकि ज्ञान सिंह और रामकुमार के गांवों में महज 3 किलोमीटर की दूरी थी. ज्ञान सिंह का रामकुमार के घर भी आनाजाना हो गया और धीरेधीरे रामकुमार ज्ञान सिंह का विश्वासपात्र बन गया. इसी दौरान ज्ञान सिंह की नजरें रामकुमार की पत्नी कमला पर जा टिकीं. रामकुमार दिन में जब दूध ले कर शहर को निकल जाता तो ज्ञान सिंह दोपहर के वक्त कमला के घर में बैठ कर उस से घंटों बतियाता. दरअसल वह उस के मन को टटोला करता था. कमला की नजरों ने ज्ञान सिंह के मन को भांप लिया कि वह क्या चाहता है. ज्ञान सिंह कमला को भाभी कहता था.

उम्र में वह कमला से काफी छोटा था. इसलिए दोनों में नजदीकियां काफी बढ़ गईं. वक्तजरूरत पर ज्ञान सिंह ने पैसे से मदद कर कमला का मन जीत लिया था. धीरेधीरे वह भी उस की तरफ आकर्षित होने लगी और कमला का झुकाव ज्ञान सिंह की तरफ हो गया था. फिर दोनों में करीबी रिश्ता बन गया. एक दिन कमला ने मौका देख कर ज्ञान सिंह से कहा, ‘‘तुम मेरे मकान के नजदीक खाली पड़े खंडहर में दूध की डेयरी का काम क्यों नहीं शुरू कर देते. तुम्हारे भाईसाहब को भी शिवपुरी मानपुर लाला से जा कर रोजाना दूध लेने की जरूरत नहीं पड़ेगी और उन्हें भी आसानी हो जाएगी. समय निकाल कर मैं भी दूध की डेयरी पर हाथ बंटा दिया करूंगी. बच्चों का खर्च उठाने के लिए मुझे भी धंधा मिल जाएगा.’’

कमला की बात सुन कर ज्ञान सिंह हंसते हुए बोला, ‘‘अच्छा तो यह बात है. मैं अपने रिश्तेदार अंकित यादव से इस बारे में बात करूंगा.’’

ज्ञान सिंह उर्फ ज्ञानू अंकित यादव का रिश्तेदार था. उस के अंकित के परिवार से अच्छे संबंध थे. ज्ञान सिंह ने अंकित के सामने यह प्रस्ताव रखा कि वह शिवपुरी बरा खेमपुर में दूध की डेयरी खोलना चाहता है. अंकित ने ज्ञान सिंह के प्रस्ताव को सुन कर हामी भर ली और शिवपुरी बरा खेमपुर में रामकुमार के आवास के पास ही दूध की डेयरी खोल ली और दूध के कारोबार की जिम्मेदारी कमला के पति रामकुमार को सौंप दी. कमला ज्ञान सिंह की इस पहल से काफी खुश थी. गांव में दूध की डेयरी खुल जाने के बाद कमला और ज्ञान सिंह की नजदीकियां बढ़ गईं तो दोनों ने इस का भरपूर फायदा उठाया. रामकुमार भी पहले से अधिक ज्ञान सिंह की डेयरी पर समय बिताने लगा. रामकुमार ज्ञान सिंह की काली करतूतों से अनजान था.

धीरेधीरे ज्ञान सिंह और कमला की नजदीकियों की चर्चा रामकुमार के कानों तक पहुंच गई. पहले तो रामकुमार ने इन चर्चाओं पर विश्वास नहीं किया. उस ने कहा कि जब तक वह आंखों से देख नहीं लेगा, विश्वास नहीं करेगा. लेकिन फिर एक दिन कमला और ज्ञान सिंह को रामकुमार ने अपने ही घर में आपत्तिजनक स्थिति में देख लिया. उस समय रामकुमार कमला से कुछ नहीं बोला लेकिन रात का खाना खा कर रामकुमार ने फुरसत के क्षणों में कमला से पूछा, ‘‘क्यों, मैं जो कुछ सुन रहा हूं और जो कुछ मैं ने अपनी आंखों से देखा, वह सच है?’’

चतुर कमला ने दोटूक जवाब देते हुए ज्ञान सिंह से अपने संबंधों की बात नकार दी. लेकिन रामकुमार के मन में संदेह का बीज पनपते ही घर में कलह की नींव पड़ गई. धीरेधीरे उस का मन ज्ञान सिंह की डेयरी पर काम करने को ले कर उचटने लगा. मन में दरार पड़ते ही उस ने ज्ञान सिंह से साफ कह दिया कि उस की पत्नी और उस के बीच जो कुछ भी चल रहा है, वह उस के जीवन में जहर घोल रहा है. उस ने ज्ञान सिंह से उस की डेयरी पर काम करने के लिए न केवल इनकार कर दिया, बल्कि ज्ञान सिंह की डेयरी पर काम भी छोड़ दिया. दोनों की दोस्ती कमला को ले कर दुश्मनी में बदल गई. यह बात ज्ञान सिंह और कमला को अच्छी नहीं लगी. कमला ने पति से कहा कि उस ने ज्ञान सिंह का कारोबार छोड़ कर दुश्मनी मोल ले ली है,

लेकिन रामकुमार ने उस की एक नहीं सुनी. इतना ही नहीं, उस ने पत्नी कमला पर दबाव बना कर पत्नी की तरफ से ज्ञान सिंह के खिलाफ थाना बख्शी का तालाब में एससी/एसटी एक्ट के तहत शिकायत दर्ज करवा दी. रिपोर्ट दर्ज होने के बाद ज्ञान सिंह की बदनामी हुई तो कुछ लोगों ने गांव में ही दोनों का फैसला करा दिया. ज्ञान सिंह की दूध की डेयरी पर काम बंद करने एवं थाने में शिकायत दर्ज कराने को ले कर ज्ञान सिंह के मन में काफी खटास पैदा हो गई थी. दूसरे, दूध की डेयरी की जिम्मेदारी भी ज्ञान सिंह पर स्वयं आ पड़ी. रामकुमार ने भी अपनी मेहनतमजदूरी के वास्ते शहर जा कर काम ढूंढ लिया. पुलिस की जानकारी में आया कि एक बार ज्ञान सिंह ने शहर के एक अज्ञात व्यक्ति द्वारा रामकुमार पर हमला करवा दिया था. उस दिन से रामकुमार और ज्ञान सिंह दोनों एकदूसरे के कट्टर दुश्मन बन गए. उस दिन घर लौट कर रामकुमार ने कमला को खूब खरीखोटी सुनाई थी.

रामकुमार ने कमला को हिदायत देते हुए ज्ञान सिंह ने दूर रहने की चेतावनी दे दी. ऐसा न करने पर उस ने अंजाम भुगतने की धमकी भी दी. लेकिन दोनों में से कोई भी रामकुमार की हिदायतों को मानने के लिए तैयार नहीं था. इधर कमला की भी मजबूरी थी. वह ज्ञान सिंह द्वारा वक्तवक्त पर आर्थिक मदद के कारण उस के दबाव और अहसानों से दबती चली गई. रामकुमार इस बात से बिलकुल अंजान था. कमला ने ज्ञान सिंह से ली हुई रकम को चुकता करने के लिए डेयरी पर आनेजाने का सिलसिला जारी रखा. वह चाहती थी कि ज्ञान सिंह की दूध की डेयरी पर अधिक से अधिक दिनों तक काम कर के उस की ली हुई आर्थिक मदद में उधार की रकम की देनदारी को चुकता कर दे.

रामकुमार को कमला का उस की डेयरी पर आनाजाना बिलकुल नहीं भाता था. लेकिन कमला ने पति की चिंता नहीं की. वह पति से ज्यादा प्रेमी ज्ञान सिंह को चाहती थी. इस की एक वजह यह थी कि ज्ञान सिंह उच्च जाति का धनवान व्यक्ति था. रामकुमार से अनबन कर लेने पर उसे कोई नुकसान नहीं था, लेकिन ज्ञान सिंह से अलग हो जाने पर गृहस्थी का सारा खेल बिगड़ सकता था. इसी वजह से कमला ने ज्ञान सिंह से मिलनाजुलना जारी रखा. रामकुमार मन ही मन कुढ़ता रहता और रोजाना घर में कलह होती रहती. पति के चाहते हुए भी कमला ज्ञान सिंह को अपनी जिंदगी से दूर करने का विकल्प नहीं ढूंढ पा रही थी.

ज्ञान सिंह ने एक दिन कमला से कहा, ‘‘भाभी, पानी सिर से ऊपर हो चुका है. अब एक म्यान में दो तलवारें नहीं रह सकतीं. तुम ही बताओ कुछ न कुछ तो करना होगा.’’

कमला ने कहा, ‘‘तुम ही बताओ, कौन सा रास्ता निकाला जाए.’’

ज्ञान सिंह ने कमला से मिल कर अपने मन की छिपी हुई बात बताते हुए कहा कि तुम्हारे पास मेरी जो 20 हजार रुपए की रकम है, वह तुम्हें वापस करनी थी. उन में से अब 13 हजार रुपए देने होंगे और रामकुमार को किराए के लोगों से बुला कर शाम के समय लखनऊ से गांव लौटते समय रास्ते से हटा देंगे. इस प्रस्ताव को सुन कर कमला भी खुश हो गई. उस ने ज्ञान सिंह को रजामंदी दे दी, फिर ज्ञान सिंह ने कमला के साथ मिल कर षडयंत्रपूर्वक एक योजना बना ली. तब ज्ञान सिंह ने कमला के पति रामकुमार को रास्ते से हटाने के लिए अंकित यादव को इस वारदात के लिए राजी कर लिया. ज्ञान सिंह ने उस से और किराए के आदमी जुटाने को कहा.

तब अंकित यादव ने रामकुमार की हत्या के लिए 20 हजार रुपए में सौदेबाजी पक्की कर ली. इस काम के लिए उस ने राजा, निवासी बरगदी, के.डी. उर्फ कुलदीप सिंह निवासी बख्शी का तालाब, उत्तम कुमार निवासी अस्ती रोड, गांव मूसानगर को तैयार किया. राजा के कहने पर कमला और ज्ञान सिंह ने 13 हजार रुपए अंकित यादव को सौंप दिए और 7 हजार रुपए काम हो जाने के बाद देने का वादा कर लिया गया. सभी ने तय किया कि 25 दिसंबर, 2019 को लखनऊ से आते समय भखरामऊ गोलइया मोड़ पर रामकुमार की हत्या को अंजाम दिया जाएगा. योजना के अनुसार 25 दिसंबर, 2019 की शाम को के.डी. सिंह के साथ राजा और उस के साथी पहुंच गए. राजा ने रामकुमार पर बाइक से आते समय तमंचे से हमला कर दिया. उस समय बाइक रामकुमार स्वयं चला रहा था और उस का भतीजा मतोले पीछे बैठा हुआ था.

पुलिस को अभी 2 अभियुक्तों राजा व कुलदीप सिंह की तलाश थी. पुलिस द्वारा मुखबिरों का जाल फैला दिया गया था. मुखबिर की सूचना पर 3 जनवरी, 2020 को राजा व कुलदीप दोनों को मय तमंचे और बाइक के साथ गिरफ्तार कर लिया गया. राजा ने पुलिस के साथ जा कर हमले में उपयोग किया गया तमंचा बरामद करा दिया. पुलिस ने अभियुक्तों को गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

 

Agra Crime : पति की लाश को संदूक में बंद कर यमुना में फेंका

Agra Crime : पतिपत्नी के रिश्ते कितने भी मधुर क्यों न हों, अगर उन के बीच ‘वो’ आ जाए तो न केवल रिश्तों का माधुर्य बिखर जाता है बल्कि किसी एक को मिटाने की भूमिका भी बन जाती है. हरिओम और बबली के साथ भी यही हुआ. इन के रिश्तों में जब कमल की एंट्री हुई तो…

मानने वाले प्रेमीप्रेमिका और पतिपत्नी का रिश्ता सब से अजीम मानते हैं. लेकिन जबजब ये रिश्ते आंतरिक संबंधों की महीन रेखा को पार करते हैं, तबतब कोई न कोई संगीन जुर्म सामने आता है. हरिओम तोमर मेहनतकश इंसान था. उस की शादी थाना सैंया के शाहपुरा निवासी निहाल सिंह की बेटी बबली से हुई थी. हरिओम के परिवार में उस की पत्नी बबली के अलावा 4 बच्चे थे. हरिओम अपनी पत्नी बबली और बच्चों से बेपनाह मोहब्बत करता था. बेटी ज्योति और बेटा नमन बाबा राजवीर के पास एत्मादपुर थानांतर्गत गांव अगवार में रहते थे, जबकि 2 बेटियां राशि और गुड्डो हरिओम के पास थीं. राजवीर के 2 बेटों में बड़ा बेटा राजू बीमारी की वजह से काम नहीं कर पाता था. बस हरिओम ही घर का सहारा था, वह चांदी का कारीगर था.

हरिओम और बबली की शादी को 15 साल हो चुके थे. हंसताखेलता परिवार था, घर में किसी चीज की कोई कमी नहीं थी. दिन हंसीखुशी से बीत रहे थे. लेकिन अचानक एक ऐसी घटना घटी, जिस से पूरे परिवार में मातम छा गया.  3 नवंबर, 2019 की रात में हरिओम अपनी पत्नी और 2 बच्चों के साथ घर से लापता हो गया. पिछले 12 साल से वह आगरा में रह रहा था. 36 वर्षीय हरिओम आगरा स्थित चांदी के एक कारखाने में चेन का कारीगर था. पहले वह बोदला में किराए पर रहता था. लापता होने से 20 दिन पहले ही वह पत्नी बबली व दोनों बच्चियों राशि व गुड्डो के साथ आगरा के थानांतर्गत सिकंदरा के राधानगर इलाके में किराए के मकान में रहने लगा था.

आगरा में ही रहने वाली हरिओम की साली चित्रा सिंह 5 नवंबर को अपनी बहन बबली से मिलने उस के घर गई. वहां ताला लगा देख उस ने फोन से संपर्क किया, लेकिन दोनों के फोन स्विच्ड औफ थे. चित्रा ने पता करने के लिए जीजा हरिओम के पिता राजबीर को फोन कर पूछा, ‘‘दीदी और जीजाजी गांव में हैं क्या?’’

इस पर हरिओम के पिता ने कहा कि कई दिन से हरिओम का फोन नहीं मिल रहा है. उस की कोई खबर भी नहीं मिल पा रही. चित्रा ने बताया कि मकान पर ताला लगा है. आसपास के लोगों को भी नहीं पता कि वे लोग कहां गए हैं. किसी अनहोनी की आशंका की सोच कर राजबीर गांव से राधानगर आ गए. उन्होंने बेटे और बहू की तलाश की, लेकिन उन की कोई जानकारी नहीं मिली. इस पर पिता राजबीर ने 6 नवंबर, 2019 को थाना सिकंदरा में हरिओम, उस की पत्नी और बच्चों की गुमशुदगी दर्ज करा दी. जांच के दौरान हरिओम के पिता राजबीर ने थाना सिकंदरा के इंसपेक्टर अरविंद कुमार को बताया कि उस की बहू बबली का चालचलन ठीक नहीं था. उस के संबंध कमल नाम के एक व्यक्ति के साथ थे, जिस के चलते हरिओम और बबली के बीच आए दिन विवाद होता था.

पुलिस ने कमल की तलाश की तो पता चला कि वह भी उसी दिन से लापता है, जब से हरिओम का परिवार लापता है. पुलिस सरगरमी से तीनों की तलाश में लग गई. इस कवायद में पुलिस को पता चला कि बबली सिकंदरा थानांतर्गत दहतोरा निवासी कमल के साथ दिल्ली गई है. उन्हें ढूंढने के लिए पुलिस की एक टीम दिल्ली के लिए रवाना हो गई. शनिवार 16 नवंबर, 2019 को बबली और उस के प्रेमी कमल को पुलिस ने दिल्ली में पकड़ लिया. दोनों बच्चियां भी उन के साथ थीं, पुलिस सब को ले कर आगरा आ गई. आगरा ला कर दोनों से पूछताछ की गई तो मामला खुलता चला गया. पता चला कि 3 नवंबर की रात हरिओम रहस्यमय ढंग से लापता हो गया था. पत्नी और दोनों बच्चे भी गायब थे. कमल उर्फ करन के साथ बबली के अवैध संबंध थे. वह प्रेमी कमल के साथ रहना चाहती थी.

इस की जानकारी हरिओम को भी थी. वह उन दोनों के प्रेम संबंधों का विरोध करता था. इसी के चलते दोनों ने हरिओम का गला दबा कर हत्या कर दी थी. बबली की बेहयाई यहीं खत्म नहीं हुई. उस ने कमल के साथ मिल कर पति की गला दबा कर हत्या दी थी. बाद में दोनों ने शव एक संदूक में बंद कर यमुना नदी में फेंक दिया था. पूछताछ और जांच के बाद जो कहानी सामने आई, वह इस तरह थी—

फरवरी, 2019 में बबली के संबंध दहतोरा निवासी कमल उर्फ करन से हो गए थे. कमल बोदला के एक साड़ी शोरूम में सेल्समैन का काम करता था. बबली वहां साड़ी खरीदने जाया करती थी. सेल्समैन कमल बबली को बड़े प्यार से तरहतरह के डिजाइन और रंगों की साडि़यां दिखाता था. वह उस की सुंदरता की तारीफ किया करता था. उसे बताता था कि उस पर कौन सा रंग अच्छा लगेगा. कमल बबली की चंचलता पर रीझ गया. बबली भी उस से इतनी प्रभावित हुई कि उस की कोई बात नहीं टालती थी. इसी के चलते दोनों ने एकदूसरे को अपने मोबाइल नंबर दे दिए थे. अब जब भी बबली उस दुकान पर जाती, तो कमल अन्य ग्राहकों को छोड़ कर बबली के पास आ जाता.

वह मुसकराते हुए उस का स्वागत करता फिर इधरउधर की बातें करते हुए उसे साड़ी दिखाता. कमल आशिकमिजाज था, उस ने पहली मुलाकात में ही बबली को अपने दिल में बसा लिया था. नजदीकियां बढ़ाने के लिए उस ने बबली से फोन पर बात करनी शुरू कर दी. जब दोनों तरफ से बातों का सिलसिला शुरू हुआ तो नजदीकियां बढ़ती गईं. फोन पर दोनों हंसीमजाक भी करने लगे. फिर उन की चाहत एकदूसरे से गले मिलने लगी. बातोंबातों में बबली ने कमल को बताया कि वह बोदला में ही रहती है. इस के बाद कमल बबली के घर आनेजाने लगा. जब एक बार दोनों के बीच मर्यादा की दीवार टूटी तो फिर यह सिलसिला सा बन गया. जब भी मौका मिलता, दोनों एकांत में मिल लेते थे.

हरिओम की अनुपस्थिति में बबली और कमल के बीच यह खेल काफी दिनों तक चलता रहा. लेकिन ऐसी बातें ज्यादा दिनों तक छिपी नहीं रहतीं, एक दिन हरिओम को भी भनक लग गई. उस ने बबली को कमल से दूर रहने और फोन पर बात न करने की चेतावनी दे दी. दूसरी ओर बबली कमल के साथ रहना चाहती थी. उस के न मानने पर वह घटना से 20 दिन पहले बोदला वाला घर छोड़ कर सपरिवार सिकंदरा के राधानगर में रहने लगा. 3 नवंबर, 2019 को हरिओम शराब पी कर घर आया. उस समय बबली मोबाइल पर कमल से बातें कर रही थी. यह देख कर हरिओम के तनबदन में आग लग गई. इसी को ले कर दोनों में झगड़ा हुआ तो हरिओम ने बबली की पिटाई कर दी.

बबली ने इस की जानकारी कमल को दे दी. कमल ने यह बात 100 नंबर पर पुलिस को बता दी. पुलिस आई और रात में ही पतिपत्नी को समझाबुझा कर चली गई. पुलिस के जाने के बाद भी दोनों का गुस्सा शांत नहीं हुआ, दोनों झगड़ा करते रहे. रात साढे़ 11 बजे बबली ने कमल को दोबारा फोन कर के घर आने को कहा. जब वह उस के घर पहुंचा तो हरिओम उस से भिड़ गया. इसी दौरान कमल ने गुस्से में हरिओम का सिर दीवार पर दे मारा. नशे के चलते वह कमल का विरोध नहीं कर सका. उस के गिरते ही बबली उस के पैरों पर बैठ गई और कमल ने उस का गला दबा दिया. कुछ देर छटपटाने के बाद हरिओम की मौत हो गई. उस समय दोनों बच्चियां सो रही थीं. कमल और बबली ने शव को ठिकाने लगाने के लिए योजना तैयार कर ली. दोनों ने शव को एक संदूक में बंद कर उसे फेंकने का फैसला कर लिया, ताकि हत्या के सारे सबूत नष्ट हो जाएं.

योजना के तहत दोनों ने हरिओम की लाश एक संदूक में बंद कर दी. रात ढाई बजे कमल टूंडला स्टेशन जाने की बात कह कर आटो ले आया. आटो से दोनों यमुना के जवाहर पुल पर पहुंचे. लाश वाला संदूक उन के साथ था. इन लोगों ने आटो को वहीं छोड़ दिया. सड़क पर सन्नाटा था, कमल और बबली यू टर्न ले कर कानपुर से आगरा की तरफ आने वाले पुल पर पहुंचे और संदूक उठा कर यमुना में फेंक दिया. इस के बाद दोनों अपनेअपने घर चले गए. दूसरे दिन 4 नवंबर को सुबह कमल बबली और उस की दोनों बच्चियों को साथ ले कर दिल्ली भाग गया.

बबली की बेवफाई ने हंसतेखेलते घर को उजाड़ दिया था. उस ने पति के रहते गैरमर्द के साथ रिश्ते बनाए. यह नाजायज रिश्ता उस के लिए इतना अजीज हो गया कि उस ने अपने पति की मौत की साजिश रच डाली. पुलिस 16 नवंबर को ही कमल व बबली को ले कर यमुना किनारे पहुंची. उन की निशानदेही पर पीएसी के गोताखोरों को बुला कर कई घंटे तक यमुना में लाश की तलाश कराई गई, लेकिन लाश नहीं मिली. अंधेरा होने के कारण लाश ढूंढने का कार्य रोकना पड़ा. रविवार की सुबह पुलिस ने गोताखोरों और स्टीमर की मदद से लाश को तलाशने की कोशिश की. लेकिन कोई सार्थक परिणाम नहीं निकला.

बहरहाल, पुलिस हरिओम का शव बरामद नहीं कर सकी. शायद बह कर आगे निकल गया होगा. पुलिस ने बबली और उस के प्रेमी कमल को न्यायालय में पेश किया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

Uttar Pradesh Crime : सुभाष बाथम से 24 बच्चों को कैसे बचाया गया

Uttar Pradesh Crime : समाज में ऐसे लोगों की कमी नहीं है, जो यह सोचते हैं कि वे जो कह रहे हैं, कर रहे हैं वही सही है. सुभाष बाथम भी इसी सोच का था. इसी के चलते उस ने 24 मासूम बच्चों को घर में कैद कर लिया. लेकिन उसे मिला क्या, मौत. आखिर उस ने…

30 जनवरी, 2020 की शाम 4 बजे फर्रुखाबाद जिले के करथिया गांव में एक दहशतजदा खबर फैली. खबर यह थी कि गांव के ही सुभाष बाथम ने अपने घर में 2 दरजन मासूम बच्चों को बंधक बना लिया है. उस ने बच्चों को अपनी एक साल की बेटी गौरी के जन्मदिन पर खाने की चीजें देने के बहाने बुलाया था, जिस के बाद उन्हें कैद कर लिया. जिस ने भी यह खबर सुनी, सुभाष के घर की ओर दौड़ पड़ा. कुछ ही देर में उस के घर के बाहर भीड़ जुटने लगी. सभी खौफजदा थे, लेकिन उन लोगों का हाल बेहाल था, जिन के जिगर के टुकड़े घर के अंदर कैद थे.

यह खबर तब फैली जब सुभाष बाथम के पड़ोस में रहने वाले आदेश बाथम की पत्नी बबली अपनी बेटी खुशी और बेटे आदित्य को बुलाने उस के घर पहुंची. उस ने सुभाष के घर का दरवाजा खटखटाया, लेकिन उस ने दरवाजा खोलने से मना कर दिया. उस ने जब ज्यादा जिद की तो सुभाष बोला, ‘‘पहले गांव के लालू को बुला कर ला.’’

बबली ने मना किया तो वह गालीगलौज करने लगा. बदहवास बबली अपने घर आई और अपने पति आदेश तथा अन्य घरवालों को बच्चों को बंधक बनाए जाने की जानकारी दी. उस के बाद यह खबर पूरे गांव में फैल गई. बच्चों को बंधक बनाए जाने की खबर ग्रामप्रधान शशि सिंह और उन के पति हरवीर सिंह को मिली तो उन्होंने तत्काल डायल 112 को सूचना दी. खबर मिलते ही पीआरवी आ गई. पीआरवी के जवान जयवीर तथा अनिल ने सुभाष के घर का दरवाजा खटखटाया और कहा, ‘‘सुभाष, दरवाजा खोलो. तुम्हारी जो भी समस्या होगी, उस का निदान किया जाएगा, बच्चों को छोड़ दो.’’

लेकिन सुभाष बाथम ने दरवाजा नहीं खोला. परेशान हो कर दीवान जयवीर ने कोतवाली मोहम्मदाबाद को सूचना दी. इस पर कोतवाल राकेश कुमार पुलिस बल के साथ करथिया गांव आ गए. सुभाष के घर के बाहर ग्रामीणों की भीड़ जुटी थी. इंसपेक्टर राकेश कुमार ने अपना परिचय दे कर दरवाजा खोलने को कहा तो सुभाष बोला, ‘‘मैं ने बच्चों को बंधक बना लिया है, दरवाजा तभी खुलेगा जब डीएम, एसपी और विधायक यहां आएंगे.’’

इसी के साथ सुभाष ने गोली चलानी शुरू कर दी. इतना ही नहीं, उस ने अंदर से हैंडग्रैनेड भी फेंका, जिस से इंसपेक्टर राकेश कुमार, दरोगा संजय सिंह, दीवान जयवीर और सिपाही अनिल कुमार घायल हो गए. इंसपेक्टर राकेश कुमार को समझते देर नहीं लगी कि मामला बेहद गंभीर है. चूंकि घर के अंदर 2 दरजन बच्चे बंधक थे, ऐसे में बिना बड़े अधिकारियों के आदेश से कोई कदम नहीं उठाया जा सकता था. दूसरी बात बच्चों को बंधक बनाने वाला सुभाष खुद भी एसपी, डीएम और विधायक को बुलाने की मांग कर रहा था. राकेश कुमार ने तत्काल पुलिस अधिकारियों, डीएम तथा क्षेत्रीय विधायक को फोन कर के घटना की सूचना दी और तुरंत घटनास्थल पर पहुंचने को अनुरोध किया.

आपात जैसी स्थिति और मासूम बच्चे चूंकि मामला मासूम बच्चों को बंधक बनाने का था, इसलिए सूचना मिलते ही शासनप्रशासन में हड़कंप मच गया. एसपी डा. अनिल कुमार मिश्र, एएसपी त्रिभुवन प्रताप सिंह तथा सीओ (मोहम्मदाबाद) राजवीर सिंह करथिया गांव आ गए. पुलिस अधिकारियों ने मौके पर फर्रुखाबाद जिले के कई थानों की फोर्स बुलवा ली. जिलाधिकारी मानवेंद्र सिंह तथा भोजपुर विधायक नागेंद्र राठौर भी सूचना पा कर करथिया गांव आ गए. एसपी डा. अनिल कुमार मिश्र ने गांव वालों से जानकारी जुटाई तो पता चला सुभाष के घर एक साल से ले कर 13 साल तक के 24 बच्चे बंधक हैं. सुभाष बाथम की पत्नी रूबी और उस की एक वर्षीया बेटी गौरी भी घर के अंदर थीं.

गांव के जिन मासूमों को बंधक बनाया गया था, उन में आर्बी पुत्री आनंद, रोशनी पुत्री सत्यभान, अरुण, अंजलि, लवी पुत्र नरेंद्र, भानु पुत्र मदनपाल, खुशी, मुसकान, आदित्य पुत्र आदेश विनीत पुत्र रामकिशोर, पायल, प्रिंस पुत्र नीरज, प्रशांत, नैंसी पुत्री राकेश, आकाश, लक्ष्मी पुत्री ब्रजकिशोर, अक्षय पुत्र अरुण, गौरी पुत्री लालजीत, लवकुमार, सोनम, शबनम और गुगा, जमुना पुत्री आशाराम शामिल थे. इन बच्चों में सब से बड़ी नरेंद्र की बेटी अंजलि थी जो 13 वर्ष की थी. जबकि सब से छोटी शबनम 6 महीने की थी. पुलिस अधिकारियों ने सुभाष बाथम को समझाया, साथ ही आश्वासन दिया कि उस की जो भी डिमांड होगी, पूरी की जाएगी. वह बच्चों को रिहा कर दे, वे भूखप्यास से तड़प रहे होंगे.

इस पर सुभाष ने घर के अंदर से धमकी दी कि अगर पुलिस ने उस के घर में घुसने की जुर्रत की तो वह पूरे घर को बारूद से उड़ा देगा. सारे बच्चे मारे जाएंगे, क्योंकि उस के पास 32 किलो बारूद है. इस चेतावनी के बाद पुलिस पीछे हट गई. पुलिस अधिकारी सूझबूझ से काम ले रहे थे ताकि शातिर बाथम कोई खुराफात न कर बैठे. इस बीच विधायक नागेंद्र सिंह राठौर आगे आए. उन्होंने पुलिस अधिकारी से माइक ले कर सुभाष से बात करने का प्रयास किया तो उस ने उन्हें निशाना बना कर फायर झोंक दिया. इस हमले में विधायक बालबाल बचे. उस ने विधायक को वापस चले जाने को कहा. इस के बाद वह पीछे हट गए. इधर पुलिस अधिकारियों को पता चला कि गांव का अनुपम दुबे सुभाष का मित्र है. वह उस के साथ उठताबैठता है. चोरी के एक मामले में उस ने सुभाष को जमानत पर रिहा कराया था.

यह भी पता चला कि सुभाष की पत्नी रूबी की पड़ोसन विनीता से पटरी बैठती है. संभव है कि इन दोनों के समझाने पर सुभाष मान जाए और बच्चों को रिहा कर दे. पुलिस अधिकारियों ने अनुपम दुबे और विनीता को मौके पर बुलवा लिया और सुभाष को समझाने का अनुरोध किया. अनुपम दुबे के आवाज देने पर सुभाष मुख्य दरवाजे पर आ कर उस से बात करने लगा. उस ने कहा कि गांव वालों ने उसे चोरी के झूठे इलजाम में फंसाया था, अब भुगतो. जब अनुपम दुबे उसे समझाने लगा तो सुभाष गुस्से में आ गया. उस ने दरवाजे के नीचे अनुपम पर फायर कर दिया. गोली अनुपम के पैर में लगी और वह तड़पने लगा. उसी समय विनीता हिम्मत जुटा कर आगे बढ़ी और रूबी को ऊंची आवाज में पुकारने लगी.

रूबी तो सामने नहीं आई लेकिन सुभाष ने विनीता पर भी फायर झोंक दिया. वह भी घायल हो कर तड़पने लगी. पुलिस ने तत्काल दोनों को इलाज के लिए डा. राममनोहर लोहिया अस्पताल भेजा. अब तक क्यूआरटी और एसओजी टीम भी घटनास्थल पर आ गई थीं. फोर्स ने आते ही सुभाष के घर को चारों ओर से घेर कर मोर्चा संभाल लिया. पुलिस ने कई बार घर के अंदर घुसने का प्रयास किया, लेकिन बच्चों की सुरक्षा को देखते हुए पीछे हट जाती. सुभाष घर के अंदर से संवाद भी करता जा रहा था और गोली भी चला रहा था. कभी वह बच्चों के लिए बिसकुट की डिमांड करता तो कभी मीडिया वालों को बुलाने की बात करता.

पुलिस अधिकारी बराबर सुभाष के घर की टोह ले रहे थे. लेकिन उन्हें बच्चों के रोनेचिल्लाने या बोलने की आवाज सुनाई नहीं दे रही थी. जबकि घर के अंदर 1-2 नहीं बल्कि 24 बच्चे कैद थे. बच्चों की आवाज न आने से पुलिस अधिकारी परेशान थे. डर के बावजूद तमाशा जारी था बच्चों के बंधक बनाए जाने की खबर पा कर मीडियाकर्मियों का भी जमावड़ा शुरू हो गया था. न्यूज चैनलों ने खबर का सीधा प्रसारण शुरू कर दिया, जिस से उत्तर प्रदेश ही नहीं बल्कि पूरे देश में खलबली मच गई. चैनलों की बे्रकिंग न्यूज लोगों की धड़कनें बढ़ा रही थीं. सभी के मन में जिज्ञासा थी कि बंधक बनाए गए बच्चों के साथ क्या होने वाला है.

करथिया गांव के अलावा पासपड़ोस के दरजनों गांवों में भी खबर फैल गई थी, सुन कर गांवों के हजारों लोग वहां आ गए. गांव पुलिस छावनी में तब्दील हो चुका था. पुलिस के लिए भीड़ को संभालना मुश्किल होता जा रहा था. भीड़ के कारण पुलिस के काम में बाधा आ रही थी. भीड़ को रोकने के लिए पुलिस बीचबीच में बल भी प्रयोग कर रही थी. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ प्रयागराज, गोरखपुर के कार्यक्रमों में शिरकत कर लखनऊ लौटे तो उन्हें फर्रुखाबाद के करथिया गांव में 2 दरजन मासूम बच्चों के बंधक बनाए जाने की जानकारी हुई. उन्होंने फर्रुखाबाद के एसपी व डीएम को फटकार लगाई, फिर औपरेशन मासूम के नाम पर उच्चस्तरीय बैठक की.

इस बैठक में प्रमुख सचिव (गृह) अवनीश अवस्थी, डीजीपी ओमप्रकाश सिंह और एडीजी (ला ऐंड और्डर) पी.वी. राम शास्त्री ने भाग लिया. योगी आदित्यनाथ ने अधिकारियों से बच्चों को सुरक्षित निकालने का आदेश दिया. उन्होंने कहा कि बच्चों को सुरक्षित बचाना हमारी प्राथमिकता है. किसी के शरीर पर खरोंच भी नहीं आनी चाहिए. मुख्यमंत्री का आदेश पाते ही डीजीपी ओमप्रकाश सिंह ने औपरेशन मासूम की कमान आईजी (कानपुर जोन) मोहित अग्रवाल को सौंपी और उन्हें तत्काल करथिया गांव रवाना कर दिया. एडीजी (ला ऐंड और्डर) पी.वी. राम शास्त्री ने एटीएस टीम को तुरंत करथिया गांव भेजा. अधिकारी डीजीपी औफिस से औपरेशन मासूम की मौनिटरिंग करने लगे.

मासूमों की जिंदगी से चिंतित मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने घटना की जानकारी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह को भी दी. योगी ने गृहमंत्री अमित शाह से एनएसजी कमांडो भेजने को कहा. फलस्वरूप एनएसजी कमांडोज को करथिया गांव रवाना कर दिया गया. तब तक रात के 10 बज चुके थे. भीषण ठंड के बावजूद हजारों लोग घटनास्थल पर मौजूद थे. पुलिस की टीम तो थी ही. सब की निगाहें सुभाष के घर को ताक रही थीं. किसी की समझ में नहीं आ रहा था कि बच्चों को कैसे मुक्त कराया जाए. पुलिस असहज थी, लोग दहशत में थे. सब से ज्यादा वे महिलाएं बेहाल थीं, आंसू बहा रही थीं, जिन के जिगर के टुकड़े मकान में कैद थे.

जिलाधिकारी मानवेंद्र सिंह और एसपी डा. अनिल कुमार मिश्रा शातिर अपराधी सुभाष की गतिविधियों पर नजर गड़ाए थे. उस का ध्यान बंटाने के लिए उन्होंने गांव के 4 युवकों को लगा रखा था, जो उसे अच्छी तरह से जानते थे. इन्हीं में से एक युवक ने कहा कि डीएम साहब आ गए हैं, घर के बाहर आ कर अपनी बात कहो. इस पर सुभाष बोला, ‘‘मैं ने कई बार कलेक्ट्रेट के चक्कर लगाए. कालोनी मांगी, शौचालय मांगा, लेकिन कुछ नहीं मिला. अब चाहे कोई भी आ जाए, मैं दरवाजा नहीं खोलूंगा.’’

थोड़ी देर बाद सुभाष ने दीवार के छेद से एक पत्र बाहर फेंका. जिलाधिकारी को संबोधित उस पत्र में उस ने कई समस्याएं लिखीं. उस ने लिखा कि वह मेहनतमजदूरी कर के अपने परिवार को पालता है. प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत कालोनी आई, लेकिन प्रधान शशि सिंह और उन के पति ने नहीं दी. शौचालय भी नहीं बनवाया. सेक्रेटरी के पास गया, कलेक्ट्रेट के चक्कर लगाए, लेकिन कुछ हासिल नहीं हुआ. प्रति बच्चा एक करोड़ मांगे सुभाष बाथम ने एसओजी के सिपाही ललित से बात की और तमाम इलजाम लगाए. उस ने कहा कि एसओजी के सिपाही सचेंद्र व अनुज ने उसे चोरी के इलजाम में झूठा फंसाया, उसे मारापीटा, करेंट लगाया. उस ने मोहम्मदाबाद थाने के सिपाही लल्लू पर भी प्रताडि़त करने का आरोप लगाया.

मकान के अंदर से केवल सुभाष ही संवाद नहीं कर रहा था, बल्कि उस की पत्नी रूबी भी बात कर रही थी. गांव के एक युवक अमित ने जब रूबी से बात की तो उस ने धनाढ्य बनने की लालसा जाहिर की. उस ने प्रति बच्चा छोड़ने की कीमत एक करोड़ रुपया रखी. कहा कि यदि अधिकारी 24 करोड़ रुपए देने को राजी हो जाएं तो वह सभी बच्चों को रिहा कर देगी. साथ ही उस ने सुभाष के खिलाफ चल रहे सभी मुकदमों को खत्म करने की भी शर्त रखी. रात 11 बजे पुलिस ने भीड़ को खदेड़ कर सुभाष बाथम के घर की नाकेबंदी कर दी. इसी बीच सुभाष के एक परिचित अंशुल दुबे ने डीएम व एसपी की मौजूदगी में सुभाष से बात की. अंशुल ने सुभाष से कहा कि उस की कैद में 6 महीने की शबनम है. वह भूखीप्यासी होगी, उसे बाहर निकाल दे.

इस पर कुछ देर बाद उस ने मासूम शबनम को पीछे वाले कमरे की दीवार के छेद से अंशुल को थमा दिया. शबनम को उस की मां ने सीने से लगा लिया. उस की बेटी सोनम और बेटा लवकुमार अब भी सुभाष की कैद में थे. लगभग 7 घंटे बाद पहली बच्ची कैद से छूटी तो अधिकारियों को लगा कि शायद सुभाष और उस की पत्नी का रुख नरम पड़ रहा है. इधर आईजी मोहित अग्रवाल लगभग 4 घंटे का सफर तय कर के रात साढ़े 12 बजे करथिया गांव पहुंचे. गांव पहुंचते ही उन्होंने औपरेशन मासूम की पहल शुरू कर दी. मोहित अग्रवाल एसओजी टीम के साथ सुभाष बाथम के मकान की छत पर पहुंचे और वहां का जायजा लिया.

फिर वह पड़ोस के मकान की छत पर पहुंचे और पूरी स्थिति को भांपा. उन्होंने छतों पर अत्याधुनिक हथियारों को लोड करा कर पुलिसकर्मियों को तैनात कर दिया और अलर्ट रहने को कहा. फिर उन्होंने सुभाष के घर का एक चक्कर लगा कर जायजा लिया. इसी बीच सुभाष बाथम को महसूस हुआ कि पुलिस की गतिविधियां तेज हो रही हैं. उस ने दहशत फैलाने के लिए लगातार 2 फायर किए. दोनों फायरिंग में लगभग 10 सेकेंड का अंतराल था. आईजी मोहित अग्रवाल ने महसूस किया कि अगर सुभाष पर काबू पाना है तो औपरेशन को 10 सेकेंड में पूरा करना होगा. क्योंकि वह एक बार फायर करने के बाद 10 सेकेंड में हथियार लोड करता है.

उन्होंने यह भी देख लिया कि घर के अंदर जाने के 2 दरवाजे हैं. मुख्य दरवाजा सामने है जो लोहे का बना है, जबकि दूसरा मकान के पीछे था जो लकड़ी का था. तय हुआ कि जब सुभाष गोली चलाएगा, तभी पुलिस पीछे का दरवाजा तोड़ कर घर के अंदर दाखिल होगी और 10 सेकेंड के अंदर उसे पकड़ लेगी. यह भी तय हुआ कि दरवाजा टूटने की भनक सुभाष और उस की पत्नी को न लगे, इसलिए कुछ स्थानीय युवकों को घर के सामने से पत्थरबाजी करने व शोर मचाने को कहा गया. आईजी की रणनीति में फंसा सुभाष सुभाष आईजी की इस रणनीति में फंस गया. कुछ देर बाद सुभाष ने जैसे ही गोली चलाई, पुलिस टीम ने पीछे का दरवाजा तोड़ा और घर के अंदर दाखिल हो गई.

जब तक पुलिस सुभाष के सामने पहुंची, तब तक वह दोबारा गोली लोड कर चुका था. उस ने गोली चलाई जो आईजी मोहित अग्रवाल की बुलेटप्रूफ जैकेट में लगी. वार खाली जाते देख वह पत्नी रूबी के साथ गेट खोल कर बाहर की ओर भागा. भीड़ ने रूबी को घेर लिया और मारोमारो कहते हुए उस पर टूट पड़ी. यह देख कर सुभाष घबरा गया और पीछे उसी कमरे की ओर भागा जहां बच्चे कैद थे. योजना के मुताबिक वहां पहले से ही पुलिस तैनात थी. पुलिस को देखते ही उस ने एसओजी प्रभारी दिनेश कुमार गौतम पर फायर कर दिया. इस बार भी उस की गोली बुलेटप्रूफ जैकेट में फंस गई.

सुभाष दोबारा फायर करने ही वाला था, तभी एसओजी के सिपाही नवनीत कुमार ने एके47 से सुभाष पर फायर झोंक दिया. वह घायल हो कर गिर पड़ा और मौके पर ही दम तोड़ दिया. इधर भीड़ ने सुभाष की पत्नी रूबी को पीटपीट कर बुरी तरह घायल कर दिया. बड़ी मशक्कत के बाद पुलिस रूबी को भीड़ के चंगुल से छुड़ा पाई. उसे इलाज के लिए डा. राममनोहर लोहिया अस्पताल ले जाया गया. उस की हालत गंभीर होने के कारण डाक्टरों ने उसे सैफई रेफर कर दिया. लेकिन उस ने सैफई पहुंचने के पहले ही रास्ते में दम तोड़ दिया. पुलिस उस के शव को वापस ले आई.

सुभाष बाथम ने कमरे के अंदर एक तहखाना बना रखा था, जिस में सभी बच्चे कैद थे. तहखाने का दरवाजा अंदर से बंद था. पुलिस ने दरवाजा पीटा और पुलिस की मौजूदगी का आभास कराया, इस पर अंजलि नाम की बालिका ने दरवाजा खोला. उस के बाद आईजी मोहित अग्रवाल ने सभी बच्चों को रिहा करा कर उन के मातापिता को सौंप दिया. अपने बच्चों को सहीसलामत पा कर उन की आंखों में खुशी के आंसू आ गए. पुलिस ने उस कमरे से एक मासूम को भी बरामद किया. यह मासूम औपरेशन के दौरान मारे गए सुभाष बाथम की एक वर्षीय पुत्री गौरी थी. आईजी मोहित अग्रवाल ने उसे गोद में लिया, दुलारा फिर महिला सिपाही रजनी को सौंप दिया.

अब तक एनएसजी टीम दिल्ली से आगरा पहुंच चुकी थी. टीम को औपरेशन मासूम सफल होने की जानकारी मिली तो टीम आगरा से वापस लौट गई. लखनऊ से रवाना एटीएस टीम भी औपरेशन पूरा होने के बाद ही पहुंच पाई. आईजी (कानपुर जोन) मोहित अग्रवाल ने सभी बंधक बच्चों को सकुशल मुक्त कराने और अपराधी सुभाष बाथम के मारे जाने की जानकारी डीजीपी ओमप्रकाश सिंह, प्रमुख सचिव (गृह) तथा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को दी, तो सभी के चेहरे खिल उठे. मुख्यमंत्री ने आईजी मोहित अग्रवाल को बधाई दी और उन की टीम को ईनामस्वरूप 10 लाख रुपए देने की घोषणा की.

31 जनवरी, 2020 की सुबह पौ फटते ही बच्चों को बंधक बनाने वाले सुभाष बाथम के मारे जाने तथा बच्चों के सकुशल मुक्त होने की खबर जंगल की आग की तरह फैली तो कई गांवों के लोग सुभाष का शव देखने के लिए उमड़ पड़े. चारों तरफ पुलिस जिंदाबाद के नारे लगने लगे. एडीजी (कानपुर जोन) जे.एन. सिंह तथा कमिश्नर सुधीर एम. बोवडे भी घटनास्थल पर पहुंचे. उन्होंने भी पुलिस पार्टी की प्रशंसा की. इस के बाद सुभाष और उस की पत्नी रूबी के शवों को पोस्टमार्टम हाउस फर्रुखाबाद भेज दिया गया. सुभाष बाथम के घर की तलाशी तथा विस्फोटक बरामदगी हेतु एएसपी त्रिभुवन सिंह की देखरेख में बम निरोधक टीम करथिया गांव पहुंची. बम निरोधक दस्ते ने सुभाष के घर की तलाशी ली तो तहखाने में 5 किलो के गैस सिलेंडर में विस्फोटक भरा मिला. साथ ही 4 बड़े तथा 4 छोटे बम भी मिले.

इस के अलावा भारी मात्रा में बारूद, गंधक, पोटाश, बजरी और तार बरामद हुआ. तेज धमाके वाले 100 पटाखे व 30 अर्धनिर्मित बम भी बरामद हुए. घर में एक .315 बोर का तमंचा, एक राइफल, 20 खोखे और 2 दरजन से अधिक जिंदा कारतूस बरामद हुए. एक मोबाइल फोन भी बरामद हुआ. सुभाष बाथम के घर से विस्फोटक का जो जखीरा मिला, उस से साफ हो गया कि अगर धमाका होता तो 40 मीटर के दायरे में तबाही मच जाती. यह बात भी साफ थी कि सुभाष बम बनाना जानता था. सिलेंडर को सौर ऊर्जा की प्लेट और नीचे बैटरी के तार से जोड़ा गया था. दोनों तारों के कनेक्शन आपस में जुड़ जाते तो बड़ा धमाका हो जाता.

बच्चों ने झेली थी मानसिक यंत्रणा दूसरी तरफ फोरैंसिक टीम ने तमंचा, राइफल तथा कारतूसों को साक्ष्य के तौर पर सील कर दिया. एएसपी त्रिभुवन सिंह ने सुभाष के मोबाइल को जांच हेतु जाब्ते में शामिल कर लिया. पूरे घर को खंगालने के बाद पुलिस ने सुभाष बाथम के मकान को सील कर के बाहर पुलिस का पहरा बिठा दिया. इधर आईजी मोहित अग्रवाल ने डीएम मानवेंद्र सिंह, विधायक नागेंद्र सिंह राठौर, एसपी डा. अनिल कुमार मिश्र और गांव वालों की मौजूदगी में बंधक बनाए गए कुछ बच्चों से बातचीत की. इन में गांव के दिवंगत नरेंद्र की 13 वर्षीय बेटी अंजलि भी थी. अंजलि नौवीं कक्षा की छात्रा थी, समझदार. अंजलि ने कैद के दौरान उन 11 घंटों की खौफनाक दास्तां बताई तो सभी के रोंगटे खड़े हो गए.

अंजलि ने बताया कि जब वह चाचा (सुभाष) के घर पहुंची तो तहखाने में 12 बच्चे मौजूद थे. इस के बाद धीरेधीरे उस की तरह 24 बच्चे आ गए. बच्चों को एक दरी दी गई, सब उसी पर बैठ गए. वहां जन्मदिन मनाने जैसा कोई इंतजाम नहीं था, जिस से उस के मन में कुछ संशय हुआ. कुछ देर में बच्चे शोर मचाने लगे तो सुभाष चाचा ने उन्हें डांटा और धमकी दी कि शोर मचाया तो बम से उड़ा देंगे. धमकी से बच्चे डर गए. इस के बाद तो बच्चों की सिसकियों पर भी पाबंदी लग गई. भूख और प्यास पर खौफ हावी हो गया. सामने मौत खड़ी थी, लेकिन कोई आवाज भी निकालता तो दूसरा बच्चा उस के मुंह पर हाथ लगा देता.

खौफनाक मंजर का हाल बताते समय अंजलि के चेहरे पर दहशत झलक रही थी. उस ने बताया कि तहखाने के अंदर एक बोरी में बारूद रखा था, जिस में बिजली का तार लगा था. एक 5 किलोग्राम का गैस सिलेंडर भी रखा था. उस में से भी तार निकला था, जो ऊपर कमरे की ओर गया था. सुभाष चाचा बारबार धमकी दे रहे थे कि अगर मुंह से आवाज निकाली तो सब को बम से उड़ा देंगे. धमकी देने के बाद चाचा तहखाने से बाहर गए तो उस ने लपक कर तहखाने का दरवाजा अंदर से बंद कर लिया. फिर चाचा के कहने पर भी नहीं खोला.

अंजलि ने बताया कि जब उस की निगाह बोरी और सिलेंडर पर पड़ी तो उसे लगा कि चाचा बोरी में रखे बारूद से ही उड़ाने की धमकी दे रहा है. उस ने हिम्मत जुटा कर बोरी के बाहर निकला तार दांत से काट दिया, फिर गैस सिलेंडर से निकला तार भी दांत से काट दिया. चाची (रूबी) ने दरवाजे के नीचे से बिसकुट और खाना दिया, लेकिन किसी ने कुछ नहीं खाया और चुप रहे. रात करीब डेढ़ बजे पुलिस के कहने पर उस ने अंदर से दरवाजा खोला. सुभाष और रूबी का शव कोई भी लेने को तैयार नहीं था, उस की मां सुरजा देवी भी इनकार कर चुकी थी. अंतत: पुलिस ने दोनों शवों का अंतिम संस्कार कर दिया. सुभाष कौन था, वह अपराधी कैसे बना, उस ने मासूम बच्चों को बंधक क्यों बनाया, उस की पत्नी रूबी ने उस का साथ क्यों दिया? यह सब जानने के लिए अतीत में लौटना होगा.

फर्रुखाबाद जिले के थाना मोहम्मदाबाद क्षेत्र में एक गांव है करथिया. इटावा बेबर रोड पर बसा यह गांव जिला मुख्यालय से 45 किलोमीटर दूर है. करथिया में 300 परिवार रहते हैं और यहां की आबादी है 1200. ज्यादातर परिवार खेतीकिसानी करते हैं. गरीब परिवार अधिक हैं जो मेहनतमजदूरी कर अपनी जीविका चलाते हैं. इसी करथिया गांव के जगदीश प्रसाद बाथम का बेटा था सुभाष. वह शुरू से ही क्रोधी और सनकी था. वह आवारा लोगों के साथ घूमता, उन के साथ बैठ कर शराब पीता, शराब पी कर उत्पात मचाता. मात्र 13 साल की उम्र में सुभाष चोरी करने लगा. सन 1998-99 में उस पर चोरी के 2 मुकदमे दर्ज हुए, जिन के इलजाम में थाना मोहम्मदाबाद पुलिस ने उसे जेल भेज दिया.

जेल से बाहर आने के बाद वह फिर अपराध करने लगा. वह जबरदस्ती घर का अनाज बेच देता, मां विरोध करती तो उस के साथ मारपीट करता. पति की मौत के बाद दुष्ट बेटे से तंग आ कर सुरजा देवी अपनी बहन के घर अहकारीपुर जा कर रहने लगी. स्वभाव से चिड़चिड़ा और सनकी था सुभाष सुभाष की मौसी सुमन इसी करथिया गांव में मेघनाथ को ब्याही थी. मेघनाथ गांव के स्कूल में चपरासी था. सुभाष का मौसा मेघनाथ सुभाष को इसलिए पसंद नहीं करता था क्योंकि वह चोरी करता था. मेघनाथ उसे सुधर जाने की नसीहत देता था. इस के चलते सुभाष अपने मौसा से खुन्नस खाने लगा था. इसी खुन्नस में उस ने 25 नवंबर, 2001 की सुबह 8 बजे चाकू घोंप कर मौसा मेघनाथ की हत्या कर दी.

सुमन ने पति की हत्या की रिपोर्ट सुभाष के खिलाफ लिखवाई. थाना मोहम्मदाबाद पुलिस ने सुभाष को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया. सन 2005 में सुभाष को 10 साल की सजा सुनाई गई. सजा की अवधि 2015 में पूरी हुई. उस के बाद वह जेल से घर आ गया और मेहनतमजदूरी कर के अपना भरणपोषण करने लगा. हालांकि उस ने चोरी करना अब भी नहीं छोड़ा था.सुभाष की गांव के वीरपाल कठेरिया से दोस्ती थी. दोनों साथ बैठ कर शराब पीते थे. एक दिन सुभाष की नजर वीरपाल कठेरिया की साली रूबी पर पड़ी. पहली ही नजर में रूबी सुभाष के मन को भा गई. उस ने रूबी के सामने प्यार का इजहार किया और शादी का प्रस्ताव रखा. रूबी राजी हो गई. इस के बाद सुभाष ने रूबी के साथ प्रेम विवाह कर लिया. दलित की बेटी बाथम परिवार में बहू बन कर आई तो बाथम बिरादरी के लोगों ने सुभाष का बहिष्कार कर दिया.

रूबी से शादी करने के बाद सुभाष ने अपनी 4 बीघा जमीन बेच दी. इस पैसे से उस ने बंकरनुमा घर बनाया. घर के भीतर के गोपनीय ठिकानों की किसी को जानकारी न हो, इस के लिए उस ने बाहर से राजमिस्त्री या मजदूर बुलाने के बजाय पत्नी के साथ मिल कर निर्माण किया. कमरे के अंदर ही उस ने तहखाना बनाया. इसी बीच उस ने सरकारी कालोनी तथा शौचालय पाने का प्रयास किया, लेकिन मिला कुछ नहीं. सन 2019 के जनवरी महीने में रूबी ने एक बच्ची को जन्म दिया. बेटी गौरी के जन्म से रूबी सुभाष दोनों खुश थे. गौरी अभी 6 महीने की थी कि एसओजी ने सुभाष को फतेहगढ़ में हुई चोरी के आरोप में पकड़ लिया. पुलिस ने उस को खूब टौर्चर किया और जेल में भेज दिया.

3 महीने पहले वह जमानत पर घर आया तो उस के मन में टीस बनी रही. यह भी खुन्नस थी कि बिरादरी के लोग उस का साथ नहीं देते थे. उस के मन में इस बात की टीस भी थी कि सरकारी सिस्टम से उसे कोई मदद नहीं मिल रही थी. उसे टौर्चर करने वाली पुलिस, ग्रामप्रधान, जो उस के खिलाफ थी, पर भी गुस्सा था. खतरनाक इरादा था इसी सब की वजह से सुभाष ने कुछ ऐसा धमाका करने की सोची, जिस से वह सब से हिसाब बराबर कर सके. सुभाष को मोबाइल फोन चलाना अच्छी तरह आता था. उस ने गूगल व यूट्यूब से सर्च कर के बम बनाना और इस के लिए उपकरण बनाना सीखा. गूगल सर्च में ही उस ने मास्को (रूस) में बंधक बनाए गए बच्चों का वीडियो देखा.

वीडियो को देख कर उस ने भी मासूम बच्चों को बंधक बनाने की योजना तैयार की. इस के बाद वह तैयारी में जुट गया. उस ने अपने घर को बारूद के ढेर पर खड़ा कर दिया. उस के पास तमंचा व राइफल पहले से ही थी. सुभाष ने कारतूस भी खरीद कर रख लिए. 30 जनवरी को उस की बेटी का बर्थडे था. उस ने दोपहर बाद से बच्चों को बर्थडे पार्टी में बुलाना शुरू कर दिया. 3 बजे तक 24 बच्चे उस के घर आ गए. इन बच्चों को उस ने तहखाने में बंधक बना लिया और धमकी दी कि शोर मचाया तो वह सब को बम से उड़ा देगा. घटना की जानकारी तब हुई, जब बबली अपने बच्चों को बुलाने गई. इस के बाद पुलिस को सूचना दी गई. पुलिस ने सर्च औपरेशन कर बंधक बच्चों को छुड़ाया और अपराधी को मार गिराया.

7 फरवरी को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपने 5, कालिदास मार्ग स्थित आवास पर सभी 24 बच्चों को सम्मानित किया. योगी ने इस अवसर पर मारे गए सुभाष बाथम की बेटी गौरी की परवरिश सरकार द्वारा किए जाने की घोषणा की. इस के अलावा सिलेंडर बम का तार निकाल कर तहखाने में बंधक बच्चों की जान बचाने वाली 13 वर्षीया अंजलि को बतौर पुरस्कार 51 हजार रुपए दिए जाने की घोषणा की. उसे एक टैबलेट दे कर सम्मानित भी किया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

 

Madhya Pradesh Crime : दो हजार रुपए की लालच में मां ने अपने ही प्रेमी से कराया बेटी का रेप

Madhya Pradesh Crime : पैसे ले कर बलात्कार के लिए अपनी नाबालिग बेटी को किसी वहशी को सौंपने वाली कई मांएं होंगी, जिन्हें मां के नाम पर कलंक ही कहा जा सकता है. ऊषा भी ऐसी ही मां थी, जिस ने मात्र 600 रुपए में अपनी नाबालिग बेटी को अपने यार महमूद को सौंप  दिया. लेकिन…

बात 21 अक्तूबर, 2019 की है. मध्य प्रदेश के धार जिले के थाना बगदून के टीआई आनंद तिवारी अपने औफिस में बैठे थे, तभी उन के पास एक महिला आई. उस महिला के साथ 12-13 साल की एक किशोरी भी थी. महिला के साथ आई किशोरी काफी डरी हुई थी. अनीता नाम की महिला ने टीआई को बताया कि इस लड़की के साथ बहुत ही घिनौना कृत्य किया गया है. महिला की बात को समझ कर थानाप्रभारी ने तुरंत एसआई रेखा वर्मा को बुला लिया. रेखा वर्मा ने उस महिला व उस के साथ आई लड़की से पूछताछ की तो उन की कहानी सुन कर वह आश्चर्यचकित रह गईं. वह सोच में पड़ गईं कि क्या कोई मां ऐसी भी हो सकती है. उन दोनों ने पूछताछ के बाद महिला एसआई रेखा वर्मा ने टीआई आनंद तिवारी को सारी बात बता दी.

सुन कर टीआई भी बुरी तरह चौंके. वही क्या कोई भी इस बात पर भरोसा नहीं कर सकता था कि एक मां अपनी मासूम बेटी के साथ एक अधेड़ व्यक्ति से बलात्कार जैसा घिनौना कृत्य करवाया. प्रारंभिक पूछताछ में थाने आई किशोरी ने बताया था कि वह कक्षा 6 में पढ़ती है. पिता मांगीराम की मौत के बाद मां 4 भाईबहनों के साथ रह कर मेहनतमजदूरी करती थी. लेकिन 4 साल पहले मां ने तब मजदूरी करनी छोड़ दी जब उस की दोस्ती मटन बेचने वाले महमूद से हुई. तब से महमूद अकसर उस के घर आने लगा था. पीडि़त बच्ची ने आगे बताया कि महमूद के आने पर मां सब भाईबहनों को बाहर के कमरे में बैठा कर खुद उस के साथ कमरे में चली जाती थी.

ऐसा बारबार होने लगा तो मैं ने एक दिन चुपचाप झांक कर देखा. मां और महमूद पूरी तरह नंगे हो कर गंदा खेल खेल रहे थे. मैं ने मां को इस बात के लिए मना किया तो उस ने उलटा मुझे डांट दिया और खामोश रहने की हिदायत दी. उस लड़की ने आगे बताया कि 15 अक्तूबर को महमूद शाम को हमारे घर आया तो मां ने मुझे उस के साथ पीछे के कमरे में भेज दिया. उस कमरे में महमूद मुझ से अश्लील हरकतें करने लगा. मैं ने भागने की कोशिश की तो मां ने मेरे हाथपैर बांध दिए और खुद दरवाजे पर आ कर खड़ी हो गई. तब महमूद ने मेरे साथ गंदा काम किया.

इस के बाद वह मां को 600 रुपए दे कर चला गया. इस बात की जानकारी मैं ने पड़ोस में रहने वाली अनीता आंटी को दी तो उन्होंने मदद करने का वादा किया. आज फिर महमूद हमारे घर आया और मुझे पकड़ कर पीछे के कमरे में ले जाने लगा, जिस पर मैं मां और उस की पकड़ से छूट कर बाहर भाग आई. काफी देर बाद जब घर वापस लौटी तो मेरी मां ने मेरे साथ मारपीट की, जिस के बाद मैं आंटी को ले कर थाने आ गई. पड़ोस में रहने वाली अनीता के साथ आई मासूम बच्ची के झूठ बोलने की कोई संभावना और कारण नहीं था, इसलिए टीआई आनंद तिवारी ने उसी वक्त मासूम किशोरी का मैडिकल परीक्षण करवाया, जिस में उस के साथ दुष्कर्म किए जाने की पुष्टि हुई.

इस के बाद टीआई ने किशोरी की आरोपी मां ऊषा और उस के आशिक महमूद शाह के खिलाफ बलात्कार एवं पोक्सो एक्ट का मामला दर्ज कर के इस घटना की जानकारी एसपी (धार) आदित्य प्रताप सिंह को दे दी. जबकि वह स्वयं पुलिस टीम ले कर आरोपियों की गिरफ्तारी के लिए निकल गए. दोनों आरोपी घर पर ही मिल गए. आधे घंटे में पुलिस 30 वर्षीय ऊषा और उस के 42 वर्षीय आशिक महमूद को हिरासत में ले कर थाने लौट आई. पूछताछ की गई तो पहले तो मां और उस का आशिक दोनों बेटी को झूठा बताने की कोशिश करते रहे. लेकिन थोड़ी सी सख्ती करने पर उन्होंने सच्चाई बता दी. उन से पूछताछ के बाद जो हकीकत सामने आई, उस ने मां शब्द पर ही ग्रहण लगा दिया. कोई कल्पना भी नहीं कर सकता था कि मां ऐसी भी हो सकती है.

मध्य प्रदेश के धार जिले के पीतमपुर गांव की रहने वाली ऊषा के पति मांगीराम की अचानक मौत हो गई थी. पति की मौत के बाद ऊषा के सामने बच्चों को पालने की समस्या खड़ी हो गई. उस के 4 बच्चे थे. 30 वर्षीय ऊषा को किसी तरहघर का खर्च तो चलाना ही था, लिहाजा वह मेहनतमजदूरी करने लगी. जवान औरत के सिर से अगर पति का साया उठ जाए तो कितने ही लोग उसे भूखी नजरों से देखने लगते हैं. ऊषा पर भी तमाम लोगों ने डोरे डालने शुरू कर दिए थे. इसी दौरान खूबसूरत ऊषा पर मटन की सप्लाई करने वाले महमूद शाह की नजर पड़ी. महमूद का बगदून में पोल्ट्री फार्म था. अपने फार्म से वह ढाबे और होटलों में मटन सप्लाई करता था.

महमूद ऊषा के नजदीक पहुंचने के लिए जाल बुनने लगा. इस से पहले महमूद गरीब घर की ऐसी कई लड़कियों और महिलाओं को अपना शिकार बना चुका था, वह जानता था कि गरीब औरतें जल्दी ही पैसों के लालच में आ जाती हैं. उस ने काम के बहाने ऊषा से जानपहचान बढ़ाई और उस के बिना मांगे ही उसे मटन देने लगा. ऊषा ने जब उस से कहा कि वह पैसा नहीं चुका पाएगी तो उस ने कहा कि कभी मुझे अपने घर बुला कर मटन खिला देना. मैं समझ लूंगा कि सारे पैसे वसूल हो गए. जवाब में ऊषा ने कह दिया कि आज ही आ जाना, खिला दूंगी. इस पर महमूद ने मिर्चमसाले आदि के लिए उसे 200 रुपए भी दे दिए.

ऊषा खुश हुई. उस ने उस के लिए मटन बना कर रखा लेकिन महमूद नहीं आया. अगले दिन ऊषा ने महमूद से शिकायत की तो उस ने कोई बहाना बना दिया और फिर किसी दिन आने को कहा. उस के बाद अकसर ऐसा होने लगा. ऊषा मटन बना कर उस का इंतजार करती. अब वह मटन के साथ उसे खर्च के पैसे भी देने लगा. इस तरह ऊषा का उस की तरफ झुकाव होने लगा. महमूद ऊषा की बातों और मुसकराहट से समझ गया था कि वह उस के जाल में फंस चुकी है, लिहाजा एक दिन वह दोपहर के समय ऊषा के घर चला गया. उस समय ऊषा के बच्चे सरकारी स्कूल में पढ़ने गए हुए थे. महमूद को घर आया देख ऊषा खुश हुई. महमूद उस से प्यार भरी बातें करने लगा. उसी दौरान दोनों ने अपनी हसरतें भी पूरी कर लीं.

हालांकि महमूद शादीशुदा और 2 बच्चों का पिता था. लेकिन ऊषा ने जिस तरह उसे खुश किया, उस से वह बहुत प्रभावित हुआ. इस के बाद उसे जब भी मौका मिलता, ऊषा के घर चला आता. कुछ महीनों बाद उस के कहने पर ऊषा ने मजदूरी करना बंद कर दिया. उस के घर का पूरा खर्च महमूद ही उठाने लगा. वह भी दिन भर महमूद के साथ बिस्तर में पड़ी रहने लगी. ऊषा की बड़ी बेटी 12-13 साल की थी. मां के साथ महमूद को देख कर वह भी समझ गई थी कि मां किस रास्ते पर चल रही है. बेटी ने मां की इस हरकत का विरोध करने की कोशिश की. लेकिन ऊषा पर बेटी के समझाने का तो कोई फर्क नहीं पड़ा, उलटे महमूद की नजर बेटी पर जरूर खराब हो गई.

कुछ समय बाद महमूद ने ऊषा को 2 हजार रुपए दे कर बड़ी बेटी को उस के साथ सोने के लिए तैयार करने को कहा. 2 हजार रुपए देख कर वह लालच में अंधी हो गई और बेटी को उसे सौंपने को तैयार हो गई. जिस के चलते 15 अक्तूबर की शाम को महमूद ऊषा की बेटी के संग ऐश करने की सोच कर उस के घर पहुंचा. ऊषा ऐसी निर्लज्ज हो गई थी कि वह अपनी कोमल सी बच्ची को उस के हवाले करने को तैयार हो गई. महमूद के पहुंचने पर ऊषा ने बेटी को महमूद के साथ बात करने के लिए कमरे में भेज दिया. उसे देखते ही महमूद उस पर टूट पड़ा तो वह रोनेचिल्लाने लगी.

यह देख बेदर्द ऊषा कमरे में आई और बेटी की चीख पर दया दिखाने के बजाए उलटा उसे समझाने लगी, ‘‘कुछ नहीं होगा, थोड़ा प्यार कर लेने दे. तू महमूद को खुश कर देगी तो यह तुम्हें लैपटौप और मोबाइल दिला देंगे.’’

बच्ची डर के मारे रो रही थी. वह नहीं मानी तो बेहया ऊषा ने अपनी बेटी के हाथ और पैर बांध कर बिस्तर पर पटक दिया. इस के बाद महमूद को अपनी मन की करने का इशारा कर के वह कमरे के दरवाजे पर बैठ कर चौकीदारी करने लगी. महमूद वासना का भूखा भेडि़या बन कर उस कोमल बच्ची पर टूट पड़ा. असहाय और मासूम बच्ची दर्द से कराहती रही, लेकिन न तो उस दानव का दिल पसीजा और न ही जन्म देने वाली मां का. उस के नाजुक जिस्म को लहूलुहान करने के बाद महमूद मुसकराते हुए उठा और अपने कपड़े पहनने के बाद ऊषा को 600 रुपए दे कर दूसरे दिन फिर आने को कह कर वहां से चला गया.

बच्ची अपने शरीर से बहता खून देख कर डर गई तो ऊषा ने उसे डांटते हुए कहा, ‘‘नाटक मत कर. हर लड़की के साथ पहली बार यही होता है. तू इस से मरेगी नहीं, 1-2 दिन में सब ठीक हो जाएगा.’’

दूसरे दिन हवस का भेडि़या बन कर महमूद फिर आया पर ऊषा ने उसे समझाया कि बच्ची अभी घायल है. 2-4 दिन उस से मुलाकात नहीं कर सकती. इस पर महमूद ऊषा के संग कमरे में कुछ समय बिता कर चला गया. इधर डर के मारे बच्ची कांप रही थी. वह सीधे आंटी अनीता के पास पहुंची और उन से मदद की गुहार लगाई. 21 अक्तूबर को ऊषा ने फिर अपनी बेटी को महमूद के साथ कमरे में भेजने की कोशिश की, जिस पर वह घर से बाहर भाग गई. लौटने पर ऊषा ने उस की पिटाई की तो उस ने अनीता आंटी को सारी बात बताई.

इस के बाद अनीता बच्ची को ले कर थाने पहुंच गईं. पुलिस ने कलयुगी मां ऊषा और उस के प्रेमी महमूद से पूछताछ के बाद कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया.

—कथा में अनीता परिवर्तित नाम है