social story in hindi : भारत में छिपकर जी रहा था फांसी की सजा काटने वाला अपराधी

social story in hindi : बंगलादेश में फांसी की सजा पाया मासूम भारत आ गया था. वह अपने दोस्त सरवर और उस के परिवार के साथ रहने लगा. इसी दौरान अचानक सरवर गायब हो गया तो मासूम उस की पत्नी का शौहर बन कर फरजी दस्तावेजों में सरवर बन कर रहने लगा. लेकिन दिल्ली पुलिस…

‘‘ख बर एकदम पक्की  है न.’’ एएसआई अशोक ने फोन डिसकनेक्ट करने से पहले अपनी तसल्ली के लिए उस शख्स से एक बार फिर सवाल किया, जिस से वह फोन पर करीब पौने घंटे से बात कर रहे थे.

‘‘जनाब एकदम सोलह आने पक्की खबर है… आज तक कभी ऐसा हुआ है क्या कि मेरी कोई खबर झूठी निकली हो.’’ दूसरी तरह से सवाल के बदले मिले इस जवाब के बाद अशोक ने ‘‘चल ठीक है… जरूरत पड़ी तो तुझ से फिर बात करूंगा.’’ कहते हुए फोन डिसकनेक्ट कर दिया.

दिल्ली पुलिस की अपराध शाखा के एसटीएफ दस्ते में तैनात सहायक सबइंसपेक्टर अशोक कुमार की अपने सब से खास मुखबिर से एक खास खबर मिली थी. वह कुरसी से खड़े हुए और कमरे से बाहर निकल गए. दिल्ली पुलिस की अपराध शाखा की स्पैशल टास्क  फोर्स यूनिट में तैनात एएसआई अशोक कुमार दिल्ली पुलिस में अकेले ऐसे पुलिस अफसर हैं, जिन का बंगलादेशी अपराधियों को पकड़ने का अनोखा रिकौर्ड है. बंगलादेशी अपराधियों के खिलाफ अशोक कुमार का मुखबिर व सूचना तंत्र देश में ही नहीं, बल्कि बंगलादेश तक में फैला है.

बंगलादेश तक फैले मुखबिरों का नेटवर्क अशोक को फोन या वाट्सऐप से जानकारी दे कर बताता है कि किस बंगलादेशी अपराधी ने किस वारदात को अंजाम दिया है. अशोक कुमार को जो सूचना मिली थी, वह बंगलादेश में उन के एक भरोसेमंद मुखबिर से मिली थी. सूचना यह थी कि बंगलादेश का एक अपराधी, जिस का नाम मासूम है, को हत्या के एक मामले में बंगलादेश की अदालत से फांसी की सजा मिली थी, लेकिन वह भारत भाग आया था. भारत में वह सरवर नाम से पहचान बना कर रहता है. मुखबिर से यह भी पता चला कि सरवर तभी से लापता है, जब से मासूम ने अपनी पहचान सरवर के रूप में बनाई है.

मासूम ने जब से खुद को सरवर की पहचान दी है, तब से वह सरवर नाम के व्यक्ति की पत्नी के साथ रहता है. यह भी पता चला कि सरवर बेंगलुरु में रहता है, लेकिन वह अकसर दिल्ली  आता रहता है.  दिल्ली में उस के कई रिश्तेदार व दोस्त हैं. एएसआई अशोक ने अपने एसीपी पंकज सिंह को मुखबिर की सूचना से अवगत करा दिया. पंकज सिंह को अशोक के सूचना तंत्र पर पूरा भरोसा था. इसलिए उन्होंने एएसआई अशोक कुमार की मदद के लिए इंसपेक्टर दिग्विजय सिंह के नेतृत्व में एसआई राजीव बामल,  विजय हुड्डा, विजय कुमार, वीर सिंह, कांस्टेबल पयार सिंह सोनू और अजीत की टीम गठित कर दी.

चूंकि मामला विदेश से भागे एक अपराधी को पकड़ने से जुड़ा था, इसलिए एसीपी पंकज सिंह ने अपने डीसीपी भीष्म सिंह के अलावा दूसरे उच्चाधिकारियों को भी इस मामले की जानकारी दे दी. क्योंकि वे बखूबी जानते थे कि मामले की जांच आगे बढ़ाने पर उच्चाधिकारियों की मदद के बिना सफलता नहीं मिलेगी. जिस तरह अशोक का मुखबिर नेटवर्क अलग किस्म का है, उसी तरह उन सूचनाओं को वैरीफाई करने का भी उन के पास अपना नेटवर्क है. मासूम उर्फ सरवर के बारे में अशोक को पहली सूचना अक्तूबर, 2020 में मिली थी. मासूम के बारे में मिली सूचनाओं की पुष्टि करने के लिए पूरे 2 महीने का समय लगा. जिस से साबित हो गया कि वह सरवर नहीं, बंगलादेशी अपराधी मासूम है.

अशोक कुमार की टीम को बेंगलुरु के अलावा पश्चिम बंगाल व दिल्ली में कई बंगलादेशी बस्तियों के धक्के खाने पड़े. संयोग से पुलिस टीम ने सरवर का मोबाइल नंबर हासिल कर लिया. नंबर को इलैक्ट्रौनिक सर्विलांस पर लगाया गया तो 4 दिसंबर, 2020 को पता चला कि सरवर उर्फ मासूम 5 दिसंबर को खानपुर टी पौइंट पर आने वाला है. एएसआई अशोक कुमार ने सरवर की तलाश के लिए गठित की गई टीम के साथ इलाके की घेराबंदी कर ली. पुलिस टीम के साथ एक ऐसा बंगलादेशी युवक भी था, जो मासूम उर्फ सरवर को पहचानता था. सरवर जैसे ही बताए गए स्थान पर पहुंचा, पुलिस टीम ने उसे गिरफ्तार कर लिया. तलाशी में उस के कब्जे से एक देसी कट्टा और 2 जिंदा कारतूस बरामद हुए.

पुलिस टीम मासूम उर्फ सरवर को क्राइम ब्रांच के दफ्तर ले आई. पूछताछ में पहले तो सरवर यही बताता रहा कि पुलिस को गलतफहमी हो गई है वह मासूम नहीं बल्कि सरवर है. लेकिन एएसआई अशोक पहले ही इतने साक्ष्य एकत्र कर चुके थे कि सरवर झुठला नहीं सका कि वह सरवर नहीं मासूम है. पुलिस ने थोड़ी सख्ती इस्तेमाल की तो वह टेपरिकौर्डर की तरह बजता चला गया कि उस ने कैसे एक दूसरे आदमी की पहचान हासिल कर खुद को मासूम से सरवर बना लिया था. यह बात चौंकाने वाली थी. पूछताछ के बाद पुलिस ने उस के खिलाफ भादंसं की धारा 25 आर्म्स ऐक्ट और 14 विदेशी अधिनियम के तहत मामला दर्ज कर उसे गिरफ्तार कर लिया.

सरवर उर्फ मासूम से पूछताछ के बाद जो कहानी सामने आई, वह कुछ इस प्रकार है—

मूलरूप से बंगलादेश के जिला बगीरहाट, तहसील खुलना, गांव बहल का रहने वाला मासूम (40) बंगलादेश के उन लाखों लोगों में से एक है, जिन के भरणपोषण का असली सहारा या तो कूड़ा कबाड़ बीन कर उस से मिलने वाली मामूली रकम होती है. ऐसे लोग चोरी, छीनाझपटी और उठाईगिरी कर के अपना पेट पालते हैं. मेहनतमजूदरी करने वाले मातापिता के अलावा परिवार में 3 बड़े भाई व एक बहन में सब से छोटा मासूम गुरबत भरी जिंदगी के कारण पढ़लिख नहीं सका. बचपन से ही बुरी संगत और आवारा लड़कों की सोहबत के कारण वह उठाईगिरी करने लगा.

धीरेधीरे छीनाझपटी के साथ अपराध करने की उस की प्रवृत्ति संगीन होती गई. जेल जाना और जमानत पर छूटने के बाद फिर से अपराध करना उस की फितरत बन चुकी थी. मासूम ने किया अपहरण और कत्ल

साल 2005 में मासूम ने एक ऐसे अपराध को अंजाम दिया, जिस ने उस की जिंदगी पर मौत की लकीर खींच दी. उस ने अपने साथी बच्चू, मोनीर, गफ्फार व जाकिर के साथ मिल कर बांग्लादेश के मध्य नलबुनिया बाजार में मोबाइल विक्रेता जहीदुल इसलाम का अपहरण कर लिया. लूटपाट के लिए अपहरण करने के बाद उस ने साथियों के साथ जहीदुल इसलाम की गला रेत कर हत्या कर दी. शृंखला थाने की पुलिस ने घटना के अगले दिन नलबुनिया इलाके के खाली मैदान से जहीदुल का शव बरामद किया. चश्मदीदों से पूछताछ व सर्विलांस के आधार पर पुलिस ने 2 दिन के भीतर ही मासूम समेत सभी पांचों अपराधियों को गिरफ्तार कर लिया. सब पर मुकदमा चला.

चूंकि पुलिस को मासूम के कब्जे से मृतक जहीदुल का मोबाइल फोन मिला था, इसलिए  2013 में बंगलादेश की संबंधित कोर्ट ने मासूम को दोषी करार दे कर फांसी की सजा सुना दी, जबकि बाकी 4 आरोपितों को कोर्ट ने सुबूतों के अभाव में बरी कर दिया था. लेकिन इस से पहले ही केस के ट्रायल के दौरान सन 2010 में मासूम को अदालत से जमानत मिल गई थी और वह देश छोड़ कर फरार हो गया था. अदालत से सजा मिलने के बाद जब मासूम अदालत में हाजिर नहीं हुआ तो पुलिस ने उसे भगोड़ा घोषित कर उस की गिरफ्तारी पर एक लाख का ईनाम घोषित कर दिया.

इधर जमानत पर बाहर आने के बाद मासूम सरवर नाम के एक व्यक्ति के संपर्क में आया. मासूम जानता था कि उस के गुनाहों की फेहरिस्त काफी बड़ी हो चुकी है और जहीदुल इस्लाम केस में पुलिस को उस के खिलाफ ठोस सबूत मिले हैं. लिहाजा उस ने कानून से बचने के लिए देश को अलविदा कह कर दूसरे देश भाग जाने की योजना बना ली. अपनी इसी मंशा को अंजाम देने के लिए मासूम ने सरवर से मुलाकात की. सरवर से उस की मुलाकात कुछ साल पहले बशीरहाट जेल में हुई थी, जहां वह किसी अपराध में गिरफ्तार हो कर गया था.

सरवर मूलरूप से रहने वाला तो बंगलादेश का ही था, लेकिन वह ज्यादातर भारत में रहता था. जहां उस ने अवैध रूप से रहते हुए न सिर्फ वहां की नागरिकता के सारे दस्तावेज तैयार करा लिए थे, बल्कि वहां अपना परिवार भी बना लिया था. सरवर नाम के लिए तो भारत और बंगलादेश के बीच कारोबार के बहाने आनेजाने का काम करता था, लेकिन असल में सरवर का असली काम था नकली दस्तावेज तैयार कर के बंगलादेशी लोगों का अवैध रूप से भारत में घुसपैठ कराना. मासूम ने जमानत मिलने के बाद सरवर से संपर्क साधा और उसे अपनी दोस्ती का वास्ता दे कर भारत में घुसपैठ करवा कर वहां शरण देने के लिए मदद मांगी. सरवर दोस्ती की खातिर इनकार नहीं कर सका.

सरवर ने 50 हजार रुपए में मासूम से सौदा तय किया कि वह इस के बदले न सिर्फ उसे बंगलादेश से भारत पहुंचा देगा. बल्कि उसे वहां रहने के लिए सुरक्षित ठिकाना भी उपलब्ध करा देगा. सरवर के लिए बंगलादेशी लोगों को सीमा पार करवा कर भारत लाना मामूली सा काम था. 2011 के शुरुआत में सरवर मासूम के साथ सीमा पार कर के भारत आ गया. सरवर उन दिनों बेंगलुरु में अपने परिवार के साथ रहता था, जहां उस ने कबाड़ का गोदाम बना रखा था. इसी गोदाम में उस की पत्नी नजमा व 2 बेटियां साथ रहती थीं.

सरवर ने मासूम को इसी गोदाम पर अपने परिवार के साथ रखवा लिया और उसे कबाड़ का गोदाम संभालने की जिम्मेदारी सौंप दी. कुछ समय भारत में रहने के बाद सरवर फिर से वापस बंगलादेश गया था. बताते हैं कि वह बंगलादेश से भारत तो लौट आया था, लेकिन उस के बाद आज तक अपने परिवार से नहीं मिल पाया. कई महीने बीत गए लेकिन सरवर अपने परिवार के पास वापस नहीं लौटा तो परिवार को चिंता होने लगी. सरवर की पत्नी नजमा ने बंगलादेश में फोन कर के सरवर के मातापिता से बात की. उन्होंने बताया कि सरवर तो भारत चला गया. जब उन्हें नजमा से यह पता चला कि सरवर भारत में अपनी पत्नी और बच्चों के पास नहीं पहुंचा है तो उन्होंने मई 2011 में बंगलादेश में सरवर की गुमशुदगी की सूचना दर्ज करवा दी.

सरवर का परिवार बना मासूम का इधर, बेंगलुरु में सरवर की पत्नी नजमा और दोनों बेटियां कायनात (22) और सिमरन (16) पूरी तरह मासूम पर निर्भर हो गईं. हालांकि सरवर ने 2 साल पहले ही बेटी कायनात की शादी बेंगलुरु में कबाड़ का काम करने वाले एक युवक यूनुस से कर दी थी. मासूम ने सरवर की पत्नी नजमा और छोटी बेटी सिमरन के गुजारे और खाने के खर्चे तो उठाने शुरू कर दिए, लेकिन अब उस के दिमाग में कुछ दूसरी ही खिचड़ी पकने लगी थी. वह सरवर के परिवार को पालने की कीमत वसूलना चाहता था.

मासूम ने सरवर की पत्नी नजमा को धीरेधीरे विश्वास में ले कर उस से आंतरिक संबंध बना लिए. कुछ ही दिन में मासूम का नजमा से पत्नी जैसा रिश्ता कायम हो गया. वैसे नजमा के लिए सरवर हो या मासूम, इस से कोई फर्क नहीं पड़ता था. क्योंकि उसे लगता था कि मर्दों का उस की जिंदगी में आनाजाना उस की नियति बन चुकी है. असल में सरवर से भी उस की दूसरी शादी थी. नजमा के पहले पति असलम की मौत हो चुकी थी. कायनात उस के पहले पति असलम से पैदा हुई बेटी थी. असलम की मौत के बाद जब नजमा बेटी को गोद में लिए आश्रय और पेट पालने के लिए इधरउधर भटक रही थी, तभी वह सरवर के संपर्क में आई थी. सरवर ने उसे आसरा भी दिया और नजमा को उस की बेटी के साथ अपना कर अपनी छत्रछाया भी दी.

सरवर अकसर हिंदुस्तान और बंगलादेश के बीच आवागमन करता रहता था. बेंगलुरु में उस ने कबाड़ का गोदाम बना रखा था, इसी में उस ने अपने रहने का ठिकाना भी बना लिया था. सरवर के अचानक लापता हो जाने के बाद मासूम ने कबाड़ के इस गोदाम को संभालने और सरवर की बीवी और बेटी को पालने का जिम्मा अपने ऊपर ले लिया था. इधर सरवर की छोटी बेटी भी धीरेधीरे जवानी की दहलीज पर कदम रख रही थी. शराब के नशे का आदी मासूम जब सिमरन को देखता तो उस का मन सिमरन का गदराता हुआ जिस्म पाने के लिए मचल उठता.

एक दिन उसे मौका मिल गया. नजमा लोगों के घरों में काम करती थी. एक रात वह अपने किसी मालिक के घर पर होने वाले शादी समारोह के लिए घर से बाहर थी कि उसी रात मासूम ने शराब के नशे में सिमरन को अपने बिस्तर पर खींच कर हवस का शिकार बना डाला. अगली सुबह सिमरन ने अपनी मां को जब यह बात बताई तो उस ने मासूम के साथ खूब झगड़ा किया. 1-2 दिन दोनों के बीच बातचीत भी नहीं हुई. लेकिन उस के बाद सब कुछ सामान्य हो गया. यह बात सिमरन भी जानती थी और नजमा भी कि मासूम ही अब उन का सहारा है. इसीलिए उस के हौसले बुलंद हो गए. इस घटना के बाद वह जब भी उस का मन करता और मौका मिलता, सिमरन को अपनी हवस का शिकार बना लेता.

इधर मासूम को अब लगने लगा था कि अगर बंगलादेश में पुलिस को उस के भारत में होने या भारत की पुलिस को उस के बंगलादेश का सजायाफ्ता अपराधी होने की बात पता चल गई तो उस के लिए बड़ी मुश्किल हो सकती है. इसलिए सितंबर, 2013 के बाद मासूम ने अपनी पहचान मिटा कर सरवर के रूप में अपनी नई पहचान बनाने का फैसला कर लिया. अपने इरादों को पूरा करने के लिए मासूम नजमा व सिमरन को ले कर दिल्ली आ गया और यहां ई ब्लौक सीमापुरी में किराए का मकान ले कर रहने लगा. दरअसल, नजमा से उसे पता चला था कि कुछ समय सरवर भी यहां रहा था. इसी इलाके में सरवर ने अपनी आईडी बनवाई हुई थी. उस का आधार कार्ड भी यहीं बना था.

कुछ समय यहां रहने के बाद मासूम ने दलालों से संपर्क साध कर ऐसी सेटिंग बनाई कि उस ने रिकौर्ड में सरवर की आईडी पर अपना फोटो चढ़वा लिया. अब वह कानून की नजर में पूरी तरह से सरवर बन गया था. बाद में इसी आईडी के आधार पर उस ने बैंक में खाता भी खुलवा लिया और ड्राइविंग लाइसैंस भी हासिल कर लिया. मासूम बन गया सरवर मासूम ने धीरेधीरे सरवर की पहचान से जुड़े हर दस्तावेज को खत्म कर उन सभी में खुद को सरवर के रूप में अंकित करा दिया. अब वह पूरी तरह बेखौफ हो गया.

6 माह के भीतर ये सब करने के बाद पूरी तरह सरवर बन चुका मासूम नजमा व सिमरन को ले कर फिर से बेंगलुरु लौट गया. इस बार उस ने बेंगलुरु के हिंबकुडी को अपना नया ठिकाना बनाया. अब उस ने दिल्ली से बनवाए गए अपने ड्राइविंग लाइसैंस के आधार पर टैक्सी चलाने का नया काम शुरू कर दिया. धीरेधीरे उस ने यहां भी अपनी पहचान सरवर के रूप में स्थापित कर ली. मासूम था तो असल में अपराधी प्रवृत्ति का ही. लिहाजा उस के दिमाग में फिर से अपराध करने का कीड़ा कुलबुलाने लगा. उस ने बंगलादेशी लोगों के बीच अपनी अच्छीखासी पैठ बना ली थी. टैक्सी चलाने के नाम पर वह कुछ अपराधियों के साथ मिल कर छीनाझपटी और ठगी करने लगा.

पुलिस से बचने के लिए उस ने एक शानदार रास्ता भी बना लिया था. वह बेंगलुरु में क्राइम ब्रांच के साथसाथ शहर के चर्चित पुलिस अफसरों के लिए मुखबिरी भी करने लगा. जिस वजह से पुलिस महकमे में उस की अच्छीखासी जानपहचान हो गई. एक तरह से मासूम ने सरवर बन कर अपना पूरा साम्राज्य स्थापित कर लिया था. अपराध की दुनिया से होने वाली काली कमाई से उस ने कई गाडि़यां खरीद लीं, जिन्हें वह दूसरे लोगों को किराए पर दे कर टैक्सी के रूप में चलवाता था. इतना ही नहीं, उसी इलाके में उस ने अब फिर से कबाड़ का काम भी शुरू कर दिया. इस के लिए जमीन खरीद कर गोदाम बना लिया था. पुलिस से बने संबंधों के चलते वह लूट व चोरी का माल भी खरीदने लगा.

बड़े स्तर पर पुलिस के लिए मुखबिरी करने के कारण सरवर उर्फ मासूम के कुछ दुश्मन भी बन गए थे. ज्यादातर दुश्मन वे बंगलादेशी थे, जो भारत में अवैध रूप से रह कर अपराध करते थे और उन का बंगलादेश में लगातार आनाजाना होता था. ऐसे ही कुछ लोगों ने कथित सरवर से दुश्मनी के कारण जब उस की जन्मकुंडली निकाली तो उन्हेें पता चला कि असली सरवर तो सालों से लापता है, उस की जगह मासूम ने ले ली है. बात जब फूटी तो दिल्ली पुलिस की अपराध शाखा के एएसआई अशोक कुमार तक जा पहुंची. एक मुखबिर ने इस सूचना को और पुख्ता करने के बाद वाट्सऐप कर के एएसआई अशोक को बताया.

इस के बाद एएसआई अशोक ने जाल बिछाना शुरू किया और दिसंबर महीने में कथित सरवर उर्फ मासूम दिल्ली पुलिस की अपराध शाखा के हत्थे चढ़ गया. एएसआई अशोक ने उत्तरपूर्वी दिल्ली के निर्वाचन कार्यालय से संपर्क कर वे दस्तावेज भी हासिल कर लिए, जिन में सरवर के रूप में असली सरवर तथा नए सरवर दोनों की फोटो लगी थी. नए सरवर के ड्राइविंग लाइसैंस का रिकौर्ड व अन्य दस्तावेज हासिल करने के बाद  अशोक ने दिल्ली से ले कर बेंगलुरु व कोलकाता में उन तमाम लोगों से संपर्क करना शुरू कर दिया, जिन के नंबरों पर कथित सरवर की अकसर बातचीत होती थी. ऐसे ही लोगों से पूछताछ करतेकरते अशोक इस नतीजे पर पहुंच गए कि जो शख्स सरवर बन कर भारत में रह रहा है, वह असल में बंगलादेश में फांसी की सजा मिलने के बाद फरार हुआ अपराधी मासूम है.

इस के बाद अशोक ने बंगलादेश में अपने मुखबिर तंत्र को सक्रिय कर यह भी पता कर लिया कि मासूम के परिवार वालों को भी यह बात पता थी कि वह भारत में छिप कर रह रहा है. वह अपने परिवार वालों से अलगअलग फोन से संपर्क कर बातचीत करता था. इतना ही नहीं अशोक ने बंगलादेश के बगीरहाट जिले में शृंखला थाने का नंबर हासिल कर वहां के थानाप्रभारी से वाट्सऐप के जरिए अपना परिचय दे कर बात की और उन से मासूम की पूरी क्रिमिनल हिस्ट्री का रिकौर्ड वाट्सऐप के जरिए मंगवा लिया. साथ ही वे दस्तारवेज भी जिन में उस घटना का जिक्र था, जिस में मासूम को फांसी की सजा मिली थी. फरार होने के बाद उस पर पुलिस के ईनाम का नोटिस भी अशोक के पास आ गया, तब जा कर उन्होंने मासूम को दबोचने की रणनीति पर काम किया.

कसने लगा शिकंजा सरवर उर्फ मासूम के इर्दगिर्द घेरा कसते हुए एएसआई अशोक को पता चला था कि सरवर की पत्नी नजमा की एक बहन खातून दिल्ली के खानपुर इलाके में रहती है. अशोक ने खातून को विश्वास में ले कर सरवर के राज उगलवाए. पता चला कि बेंगलुरु का रहने वाला सरवर उर्फ मासूम का दोस्त अल्लासमीन है जो इन दिनों दिल्ली के खानपुर में रहता है. मासूम उर्फ सरवर उस से अकसर मिलने आता रहता है. बस इसी माध्यम से अशोक ने सरवर को दबोचने का प्लान बनाया और 5 दिसंबर, 2020 को जब वह अल्लासमीन से मिलने आया तो पुलिस के हत्थे चढ़ गया.

हालांकि पुलिस ने मासूम को गिरफ्तार करने के बाद उस से सरवर को ले कर कड़ी पूडताछ की. लेकिन मासूम ने सरवर के बारे में कोई जानकारी नहीं दी. शक है कि मासूम ने सरवर की हत्या कर दी होगी. उस के बाद वह सरवर की पत्नी के साथ रहने लगा और अपना नाम उसी के नाम पर सरवर भी रख लिया. इस बात की आशंका इसलिए भी है कि उसे शायद पता था कि सरवर कभी लौट कर नहीं आएगा, इसीलिए उस ने अपनी पहचान सरवर के रूप में गढ़ ली थी. पूछताछ में यह भी खुलासा हुआ कि सरवर उर्फ मासूम से नजमा ने एक और बेटी को जन्म दिया, जिस की उम्र इस वक्त 8 साल है.

दूसरी तरफ नजमा की मंझली बेटी सिमरन मासूम के लगातार शारीरिक शोषण से तंग आ कर अपनी बड़ी बहन के पति यूनुस की तरफ आकर्षित हो गई थी और एक साल पहले अपने बहनोई के साथ घर छोड़ कर भाग गई थी. दिल्ली पुलिस की अपराध शाखा ने मासूम उर्फ सरवर को अदालत में पेश कर जेल भेज दिया और उस की गिरफ्तारी की सूचना बंगलादेश दूतावास के माध्यम से बंगलादेश की पुलिस को दे दी. social story in hindi

—कथा आरोपी के बयान और पुलिस की जांच पर आधारित

 

UP News : पत्रकार आशु यादव हत्याकांड – बेवफा प्रेमिका निकली कातिल की मास्टरमाइंड

UP News : बहकी हुई महिला के कदम अकसर किसी अपराध को जन्म देते हैं. एक पुलिसकर्मी की बेटी दीपिका शुक्ला ने पति बल्ली शुक्ला और 2 बेटियों को छोड़ कर अवनीश शर्मा से शादी कर ली. इस के बाद हिस्ट्रीशीटर और कथित पत्रकार आशू यादव से उस के अनैतिक संबंध हो गए. फिर वह अमित के संपर्क में आई. इस का नतीजा यह हुआ कि…

2 जनवरी, 2021 की सुबह धर्मेंद्र नगर, कच्ची बस्ती के कुछ लोग मार्निंग वाक पर निकले तो उन्होंने सीटीआई नहर किनारे सरस्वती शिशु मंदिर स्कूल की बाउंड्री वाल के पास एक लावारिस कार खड़ी देखी. स्थानीय लोगों में चर्चा शुरू हुई, तो लोगों की भीड़ जुट गई. इसी बीच किसी ने फोन कर के थाना बर्रा पुलिस को सूचना दे दी. सूचना मिलते ही थानाप्रभारी हरमीत सिंह पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर आ गए. उन्होंने कार का बारीकी से निरीक्षण किया. कार के शीशों पर काली फिल्म चढ़ी थी, जिस से अंदर का कुछ भी दिखाई नहीं पड़ रहा था.

कार के पिछले शीशे पर एक स्टिकर चिपका था, जिस पर लिखा था ‘अमर स्तंभ हिंदी दैनिक समाचार पत्र’ आशू यादव संवाददाता. स्टिकर पर ‘पुलिस’ और मोबाइल नंबर भी लिखा था. हरमीत सिंह ने अनुमान लगाया कि कार किसी पत्रकार की हो सकती है. उन्होंने स्टिकर पर लिखा मोबाइल नंबर मिलाया, लेकिन वह बंद था. कार के अंदर की स्थिति को जानने के लिए हरमीत सिंह ने कार का पिछला दरवाजा खोला, तो वह सहम गए. पिछली सीट पर एक युवक की लाश पड़ी थी. हरमीत सिंह ने लावारिस कार से शव बरामद होने की सूचना पुलिस अधिकारियों को दी तो मौके पर एसएसपी प्रीतिंदर सिंह, एसपी (पूर्वी) राजकुमार अग्रवाल, एसपी (साउथ) दीपक भूकर तथा सीओ (गोविंद नगर) विकास कुमार पांडेय आ गए.

पुलिस अधिकारियोें ने मौके पर फोरैंसिक टीम को भी बुला लिया. पुलिस अधिकारियों ने बारीकी से कार तथा शव का निरीक्षण किया. मृतक की उम्र 30 वर्ष के आसपास थी. उस के शरीर पर चोटों के निशान थे और गले पर रगड़ का निशान था. इस से अनुमान लगाया कि युवक की हत्या रस्सी से गला घोंट कर की गई होगी. हत्या से पहले संभवत: उस के साथ मारपीट भी की गई थी. फोरैंसिक टीम ने कार से फिंगरप्रिंट लिए तथा अन्य साक्ष्य जुटाए. कार की तलाशी में शराब की एक खाली बोतल, 4 शिकायती पत्र, 2 माइक, आगे की सीट के नीचे प्लास्टिक बैग में 2 टेडीबियर, कोटी, फोटो लगे कई स्टिकर तथा मृतक की जेब से 300 रुपए बरामद हुए. इस सामान को पुलिस ने जाब्ते में ले लिया.

अब तक शव को सैकड़ों लोग देख चुके थे, लेकिन कोई उस की पहचान नहीं कर पाया था. जिस से पुलिस अधिकारियों ने अनुमान लगाया कि मृतक आसपास का नहीं है. अत: उन्होंने शव की पहचान कराने के लिए कानपुर शहर के सभी थानों को कंट्रोलरूम से अज्ञात लाश मिलने के संबंध में सूचना प्रसारित करा दी. कुछ देर बाद ही थाना रेलबाजार के थानाप्रभारी दधिबल तिवारी ने एसपी (पूर्वी) राजकुमार अग्रवाल को सूचना दी कि उन के थाने में आशू यादव नाम के युवक की गुमशुदगी दर्ज है, जो कथित पत्रकार तथा हिस्ट्रीशीटर है. चूंकि कार में लगे पोस्टर में भी आशू यादव का नाम छपा था, अत: एसपी अग्रवाल ने दधिबल तिवारी को आदेश दिया कि वह आशू के घरवालों को साथ ले कर जल्द ही धर्मेंद्र नगर कच्ची बस्ती स्थित नहर की पटरी पर पहुंचें.

आदेश पाते ही दधिबल तिवारी ने आशू यादव के घरवालों को सूचना दी, फिर उन्हें साथ ले कर वहां पहुंच गए. घरवालों ने कार में पड़े शव को देखा तो वे फफक कर रो पड़े. कंचन, शानू, धर्मेंद्र तथा जितेंद्र ने बताया कि शव उन के भाई आशू यादव का है. कार भी उसी की है. रात से लापता था मृतक की बहन शानू व कंचन ने पुलिस अधिकारियों को बताया कि 31 दिसंबर की रात डेढ़ बजे किसी का फोन आने पर आशू अपनी कार ले कर घर से निकला था, फिर रात को वापस नहीं आया. आशू अपने पास 3 मोबाइल फोन रखता था. सुबह हम लोगों ने उस के तीनों नंबरों पर संपर्क करने की कोशिश की, लेकिन तीनों नंबर बंद थे.

इस के बाद हम लोग उस की खोज में जुट गए. चिंता इसलिए भी बढ़ गई थी कि पहली जनवरी को उस का जन्मदिन था. अपना जन्मदिन वह धूमधाम से मनाता था और दोस्तों को बुलाता था. लेकिन उस का कुछ पता नहीं चल रहा था. दिन भर खोजने के बाद जब उस का कुछ भी पता नहीं चला तो उन्होंने शाम को थाना रेलबाजार जा कर उस की गुमशुदगी दर्ज करा दी थी. बहन कंचन ने यह भी बताया कि आशू गले में सोने की चेन तथा दोनों हाथों में सोने की 6 अंगूठियां पहने हुआ था. हत्यारों ने उस के तीनों मोबाइल, चेन तथा अंगूठियां लूट ली हैं. चूंकि शव की शिनाख्त हो गई थी. अत: पुलिस ने घटनास्थल की काररवाई निपटाने के बाद शव को पोस्टमार्टम के लिए लाला लाजपतराय अस्पताल भिजवा दिया.

आशू यादव की गुमशुदगी थाना रेलबाजार में दर्ज थी, अत: थानाप्रभारी दधिबल तिवारी ने मृतक की बहन कंचन की ओर से भादंवि की धारा 364/302/201/120बी के तहत अज्ञात हत्यारों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली. रिपोर्ट दर्ज होने के बाद एसएसपी प्रीतिंदर सिंह ने मृतक आशू यादव के भाई धर्मेंद्र यादव से घटना के संबंध में पूछताछ की. पूछताछ में धर्मेंद्र ने बताया कि उस का भाई आशू हिंदी दैनिक समाचार पत्र ‘अमर स्तंभ’ में काम करता था. कुछ समय पहले उस ने क्षेत्रीय पार्षद मधु के पति राजू सोनकर व उन के बेटों के कारनामोें के खिलाफ समाचार छापा था, जिस पर राजू ने झगड़ा किया था और उस के बेटे अति व सोनू सोनकर ने आशू को जान से मारने की घमकी दी थी. आशू की हत्या में इन्हीं लोगों का हाथ है.

संदेह के आधार पर पुलिस ने राजू व उस के बेटों से पूछताछ की. लेकिन कुछ हाथ नहीं लगा. अत: पूछताछ के बाद उन्हें थाने से घर भेज दिया गया. चूंकि मामला एक कथित पत्रकार व हिस्ट्रीशीटर की हत्या का था. अत: एसएसपी प्रीतिंदर सिंह ने इस ब्लाइंड मर्डर की गुत्थी सुलझाने के लिए तीन टीमों का गठन किया. इन तीनों टीमों को एसपी (पूर्वी) राजकुमार अग्रवाल व एसपी (साउथ) दीपक भूकर के निर्देशन में काम करना था. इन टीमों में इंसपेक्टर (नौबस्ता) सतीश कुमार सिंह, इंसपेक्टर (बर्रा) हरमीत सिंह, इंसपेक्टर (रेलबाजार) दधिबल तिवारी, सीओ (गोविंदनगर) विकास कुमार पांडेय तथा सर्विलांस टीम को शामिल किया गया.

पुलिस की तीनों टीमों ने अलगअलग जांच शुरू की. आशू यादव 31 दिसंबर की रात डेढ़ बजे अपने घर खपरा मोहाल से निकला था और उस के मोबाइल फोन की आखिरी लोकेशन 31 दिसंबर की रात 2:37 बजे मसवानपुर की मिली थी. मिलने लगे सबूत पुलिस की एक टीम ने खपरा मोहाल से घंटाघर, जरीब चौकी, विजय नगर व मसवानपुर तक रोड पर लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज खंगाली तथा दूसरी टीम ने दूसरे रोड की फुटेज को खंगाला, जिस में आशू की कार मसवानपुर जाते समय फजलगंज व विजयनगर चौराहे पर जाते समय तो दिखी पर लौटते समय दिखाई नहीं दी.

जाहिर था कि हत्या के बाद हत्यारे आशू की कार को किसी दूसरे रूट से लाए थे और धर्मेंद्र नगर स्थित नहर पटरी पर कार को खड़ा कर दिया था. सर्विलांस टीम ने मृतक आशू के तीनों मोबाइल नंबरों की काल डिटेल्स निकलवाई तो पता चला कि 31 दिसंबर की देर रात आशू के मोबाइल फोन पर आखिरी काल एक महिला की आई थी. वह महिला सीतापुर में रहने वाली शालिनी थी. पुलिस जब उस के पते पर पहुंची तो पता चला कि उस फोन नंबर का इस्तेमाल मसवानपुर निवासी दीपिका शुक्ला कर रही थी.

टीम ने दीपिका के संबंध में जानकारी जुटाई तो पता चला कि वह शातिर अपराधी है. शिवली, सचेंडी व कोहना थाने में उस के खिलाफ कई मुकदमे दर्ज हैं. नकली शराब बनाने व बेचने के जुर्म में वह पति के साथ जेल गई थी और अब जमानत पर थी. सर्विलांस टीम ने उस के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकलवाई तो हिस्ट्रीशीटर अमित गुप्ता के बारे में जानकारी मिली. अमित गुप्ता के फोन की डिटेल्स के जरिए टीम को उस के 2 साथियों जूहीलाल कालोनी निवासी किशन वर्मा व सचिन वर्मा की जानकारी मिली. अमित के मोबाइल फोन पर 31 दिसंबर की रात 2:08 बजे एक मैसेज भेजा गया था, जिस में लिखा था- ‘बुला लो भाई उस को, आज हो जाएगा काम.’ जांच से पता चला कि जिस नंबर से मैसेज भेजा गया था, वह किशन का था.

पुख्ता सबूत मिलने के बाद पुलिस की संयुक्त टीमों ने 3 जनवरी, 2021 की रात 11 बजे किशन वर्मा व सचिन वर्मा के जूही लाल कालोनी स्थित घर से दोनों को गिरफ्तार कर लिया. उन दोनों को थाना रेलबाजार लाया गया. थाने में जब किशन व सचिन वर्मा से आशू यादव की हत्या के संबंध में सख्ती से पूछताछ की गई तो वे टूट गए और हत्या का जुर्म कबूल कर लिया. उन दोनों की निशानदेही पर पुलिस टीमों ने मसवानपुर स्थित दीपिका के घर छापा मारा. लेकिन दीपिका और अमित फरार हो चुके थे. दीपिका के घर से पुलिस ने वह रस्सी बरामद कर ली, जिस से आशू का गला घोंटा गया था.

पूछताछ में आरोपी किशन वर्मा व सचिन ने बताया कि आशू की हत्या प्रेम त्रिकोण में की गई थी. आशू व अमित दोनों का दीपिका से नाजायज रिश्ता था. अमित को आशू और दीपिका की नजदीकियां पसंद नहीं थीं, इसलिए उस ने दीपिका के साथ मिल कर आशू को मौत की नींद सुला दिया. रुपयों के लालच में उन दोनों ने भी अमित का साथ दिया. हत्या मसवानपुर स्थित दीपिका के घर की गई थी. 4 जनवरी, 2021 को रेलबाजार थाना प्रभारी दधिबल तिवारी ने आशू यादव की हत्या का खुलासा करने की जानकारी पुलिस अधिकारियों को दी तो एसएसपी प्रीतिंदर सिंह, एसपी (पूर्वी) राजकुमार अग्रवाल, एसपी (साउथ) दीपक भूकर ने पुलिस लाइन सभागार में प्रैसवार्ता की. एसएसपी ने केस का खुलासा करने वाली टीम को 25 हजार रुपया ईनाम देने की भी घोषणा की.

चूंकि आशू यादव की हत्या का मुकदमा रेलबाजार थाने में पहले से अज्ञात में दर्ज था. अत: खुलासा होने के बाद थानाप्रभारी दधिबल तिवारी ने इस मामले में 4 आरोपी दीपिका शुक्ला, अमित गुप्ता, किशन वर्मा व सचिन वर्मा को नामजद कर दिया. 2 आरोपी दीपिका व अमित फरार थे. आरोपियों से पूछताछ में प्रेम त्रिकोण में हुई हत्या का सनसनीखेज खुलासा हुआ. उत्तर प्रदेश के कानपुर शहर के थाना रेलबाजार के अंतर्गत एक मोहल्ला है-खपरा मोहाल. इसी मोहल्ले के मकान नंबर डी-19 में छोटे सिंह यादव रहते थे. उन के परिवार में पत्नी मालती के अलावा 3 बेटे धर्मेंद्र, जितेंद्र, आशू तथा 2 बेटियां शानू व कंचन थीं. छोटे सिंह की जनरल स्टोर की दुकान थी. उसी की आमदनी से परिवार का भरणपोषण होता था.

3 भाइयों में आशू यादव मंझला था. छोटे सिंह का पूरा परिवार आपराधिक प्रवृत्ति का था. आशू का भाई धर्मेंद्र व चाचा बड़े यादव रेलबाजार थाने के हिस्ट्रीशीटर थे. आशू भी अपने घरवालों की राह पर चल पड़ा. यद्यपि वह पढ़ालिखा व तेजतर्रार था. आशू ने अपराध जगत से नाता जोड़ा तो उस ने अपने चाचा व भाइयों को भी पीछे छोड़ दिया. कुछ समय बाद ही उस पर थाना रेलबाजार, छावनी, फीलखाना समेत अन्य थानों में एनडीपीएस ऐक्ट, शस्त्र अधिनियम, गुंडा अधिनियम, रंगदारी, अपहरण समेत अन्य संगीन धाराओं के 10 मुकदमे दर्ज हो गए. वह रेलबाजार थाने का हिस्ट्रीशीटर बन गया.

आशू यादव ने पुलिसकर्मी राकेश कुमार की बेटी ज्योति से लवमैरिज की थी. राकेश कुमार उन दिनों कानपुर शहर के हरवंश मोहाल थाने में तैनात थे. उन का परिवार भी साथ रहता था. इसी दौरान आशू की मुलाकात ज्योति से हुई. दोनों में प्रेम संबंध बने, फिर ज्योति ने घरवालोें की मरजी के खिलाफ आशू से प्रेम विवाह कर लिया. ज्योति के 7 वर्षीय बेटा शुभ तथा 5 वर्षीया बेटी सोनाक्षी हैं. हिस्ट्रीशीटर बन गया पत्रकार आशू यादव बड़ी ही शानोशौकत से रहता था. अवैध कमाई से उस ने कार भी खरीद ली थी. वह शातिर दिमाग था.

पुलिस से बचने के लिए उस ने हिंदी दैनिक समाचार पत्र ‘अमर स्तंभ’ में काम करना शुरू कर दिया था. उस ने अपनी कार पर भी अमर स्तंभ का स्टिकर लगा लिया था. शासनप्रशासन के अधिकारियों से वह पत्रकार के रूप में ही मिलता था. पत्रकारिता की आड़ में वह जायजनाजायज काम करने लगा था. लोगों से धन वसूली भी करता था. सन 2019 में आशू यादव किसी मामले में जेल गया तो वहां उस की मुलाकात मोती मोहाल निवासी अमित गुप्ता व कल्याणपुर निवासी अवनीश कुमार शर्मा से हुई. तीनों एक ही बैरक में थे. अमित शातिर अपराधी था. उस ने रुपए व जेवर हड़पने के लिए कल्याणपुर निवासी बुआ बिट्टो, फूफा पवन गुप्ता तथा बिट्टो की सास रानी की हत्या कर दी थी.

पकड़े जाने के बाद अदालत ने उसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी. अवनीश कुमार शर्मा नकली शराब बनाने व बेचने के जुर्म में जेल में था. चूंकि तीनों शातिर अपराधी थे, अत: उन के बीच दोस्ती हो गई. अवनीश शर्मा की ही पत्नी का नाम दीपिका शुक्ला था. वह भी पति के अवैध कारोबार में हाथ बंटाती थी. दीपिका मूलरूप से शिवली थाने के गांव भीखर की रहने वाली थी. उस के पिता अशोक चतुर्वेदी मुंबई पुलिस में हवलदार थे. रिटायर होने के बाद उन की मुजफ्फरनगर में हत्या कर दी गई थी. कुछ दिनों बाद मां की भी मौत हो गई. उस के बाद सन 2002 में दीपिका ने शिवली थाने के बैरी सवाई गांव निवासी बल्ली शुक्ला उर्फ हरीराम शुक्ला से शादी कर ली.

बल्ली शुक्ला से दीपिका ने 2 बेटियों को जन्म दिया. बल्ली शुक्ला के पड़ोस में अवनीश शर्मा रहता था. उस का बल्ली शुक्ला के घर आनाजाना था. घर आतेजाते अवनीश शर्मा ने दीपिका को अपने प्यार के जाल में फंसा लिया. वर्ष 2016 में अवनीश की दीवानी दीपिका 2 बेटियों को छोड़ कर अवनीश के साथ भाग गई. अवनीश कल्याणपुर में रहता था और नकली शराब बनाता व बेचता था. दीपिका भी अवनीश के साथ नकली शराब बनाने व बेचने का काम करने लगी. उस ने कई शराब तस्करों से अपने संबंध मजबूत कर लिए और उन के मार्फत शिवली, सचेंडी, घाटमपुर तथा कानपुर में नकली शराब बेचने लगी थी.

सन 2017 में नकली व जहरीली शराब पीने से घाटमपुर व सचेंडी में 17 लोगों की मौत हो गई थी. इस मामले में वह अवनीश के साथ पहली बार जेल गई. उस के बाद सन 2019 में कोहना तथा शिवली थाने से भी नकली शराब बनाने व बेचने के जुर्म में जेल गई. कोहना थाने से उसे गैंगस्टर ऐक्ट में जेल भेजा गया था. इस मामले में उसे जून 2020 में जमानत मिली और वह बाहर आ गई. आशू यादव जब जेल से बाहर आया तो उस ने दीपिका से मुलाकात की. मुलाकातें प्यार में बदलीं, फिर दोनों के बीच नाजायज रिश्ता बन गया. दीपिका उस की कार में घूमने लगी तथा उस के घर भी जाने लगी. आशू उस की आर्थिक मदद भी करने लगा.

इधर आजीवन कारावास की सजा भुगत रहे अमित गुप्ता को सितंबर 2020 में पैरोल मिल गई. अमित पैरोल पर बाहर आ रहा था, तो अवनीश ने उस से कहा कि वह उस की पत्नी दीपिका का खयाल रखे तथा उसे भी जेल से बाहर निकलवाने की कोशिश करे. कपड़ों की तरह बदलती रही प्रेमी अमित ने जेल से बाहर आ कर दीपिका से संपर्क किया. कुछ दिनों में ही दोनों के बीच अवैध संबंध बन गए. वह दीपिका को ले कर अपने घर मोतीमोहाल पहुंचा. अमित के घरवालों ने दीपिका को घर में रखने की इजाजत नहीं दी. इस पर वह दीपिका को ले कर मसवानपुर में अनिल शुक्ला के मकान में किराए पर रहने लगा. दिखावे के लिए उस ने बाजार में कपड़े की दुकान खोल ली.

दीपिका के साथ रहते अमित को पता चला कि दीपिका के उस के दोस्त आशू यादव से पहले से ही नाजायज संबंध हैं. यह बात अमित को नागवार लगी और उस ने आशू को मिटाने की ठान ली. उस ने दीपिका से साथ देने को कहा तो वह आनाकानी करने लगी. इस पर अमित ने दीपिका को धमकी दी कि वह साथ नहीं देगी तो वह आशू और उस के नाजायज रिश्तों की बात उस के पति अवनीश को बता देगा. इस धमकी से दीपिका डर गई और वह अमित का साथ देने को राजी हो गई. इस के बाद अमित ने दीपिका के साथ मिल कर आशू के कत्ल की योजना बनाई और अपनी योजना में दोस्त किशन वर्मा व सचिन वर्मा को भी पैसों का लालच दे कर शामिल कर लिया.

योेजना के तहत 31 दिसंबर की रात डेढ़ बजे दीपिका ने आशू के मोबाइल फोन पर काल की और जन्मदिन की बधाई दी. साथ ही घर आने तथा मौजमस्ती करने का आमंत्रण भी दिया. इस के बाद आशू सजसंवर कर अपनी कार से दीपिका के घर मसवानपुर पहुंच गया. जन्मदिन की खुशी में दीपिका ने उसे खूब शराब पिलाई. आशू जब नशे में धुत हो गया तभी अमित अपने साथियों किशन व सचिन के साथ घर आ गया. दोनों ने आशू को दबोच लिया और खूब पिटाई की. फिर अमित व दीपिका ने मिल कर रस्सी से आशू का गला घोंट दिया. इस बीच दीपिका ने आशू के 3 मोबाइल फोन कब्जे में ले कर स्विच्ड औफ कर दिए तथा आशू के गले से सोने की चेन तथा दोनों हाथों से सोने की 6 अंगूठियां उतार लीं.

इस के बाद सब ने मिल कर आशू के शव को उस की कार में रखा और कार बर्रा थाना क्षेत्र के धर्मेंद्र नगर कच्ची बस्ती ला कर नहर की पटरी पर खड़ी कर दी. उस के बाद वे सब फरार हो गए. थाना रेलबाजार पुलिस ने अभियुक्त किशन वर्मा व सचिन वर्मा से पूछताछ के बाद उन्हें 4 जनवरी, 2021 को कानपुर कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. मुख्य आरोपी अमित गुप्ता तथा दीपिका शुक्ला फरार थीं. पुलिस सरगरमी से उन की तलाश में जुटी थी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Gujarat News : एक ही घर में तीन कत्ल करने वाले कातिल की स्टोरी

Gujarat News : हत्या के जुर्म में सुनाई गई सजा काटते वक्त पैरोल जंप कर गुजरात से आ कर रतलाम में बसा हत्यारा गैंगस्टर दिलीप देवले इसलिए हत्या कर देता था ताकि पुलिस को उस के खिलाफ कोई सबूत न मिल सके. देव दिवाली की रात भी उस ने 3 लोगों को इसीलिए मौत की नींद सुला दिया था  कि…

25 नंवबर, 2020 को देव दिवाली का त्यौहार होने के कारण एक ओर जहां रतलाम के लोग अपने आंगन में गन्ने से बने मंडप तले शालिग्राम और माता तुलसीजी का विवाह उत्सव मना रहे थे, वहीं दूसरी ओर शहर भर के बच्चे दीवाली की बची आतिशबाजी को खत्म करने के जतन में लगे हुए थे. चारों तरफ भक्ति के साथ धूमधड़ाके का माहौल था. लेकिन इस से अलग औद्योगिक थाना इलाके में कब्रिस्तान के पास बसे राजीव नगर में 4 युवक बेवजह ही सड़क पर यहां से वहां चक्कर लगाते हुए कालोनी के एक तिमंजिला मकान पर नजर लगाए हुए थे. यह मकान गोविंद सेन का था. लगभग 50 वर्षीय गोविंद सेन का स्टेशन रोड पर अपना सैलून था.

उन का रिश्ता ऐसे परिवार से रहा जिस के पास पुश्तैनी संपत्ति रही है इसलिए पारिवारिक बंटवारे में मिली बड़ी संपत्ति के कारण उन्होंने राजीव नगर में यह आलीशान मकान बनवा लिया था. इस की पहली मंजिल पर वह स्वयं 45 वर्षीय पत्नी शारदा और 21 साल की बेहद खूबसूरत बेटी दिव्या के साथ रहते थे. जबकि बाकी 5 मंजिल पर किराएदार रहते थे. उन की एक बड़ी बेटी भी थी, जिस की शादी हो चुकी थी. इस परिवार के बारे में आसपास के लोग जितना जानते थे, उस के हिसाब से गोविंद सिंह की पत्नी घर पर अवैध शराब बेचने का काम करती थी. जबकि उन की बेटी को काफी खुले विचारों के तौर पर जाना जाता था. लोगों का मानना था कि दिव्या एक ऐसी लड़की है जो जवानी में ही दुनिया जीत लेना चाहती थी.

उस की कई युवकों से दोस्ती की बात भी लोगों ने अपनी आंखों से देखी और सुनी थी. फिर हाथ कंगन को आरसी क्या, पिता के सैलून चले जाने के बाद दिन भर ही तो घर में अकेली रह जाती. मां शारदा और बेटी दिव्या से मिलने के लिए आने वालों की कतार लगी रहती थी. मोहल्ले वाले यह सब देख कर कानाफूसी करने के बाद ‘हमें क्या करना’ कह कर अनदेखी करते रहते थे. इसलिए 25 नवंबर की रात जब चारों ओर देव दिवाली की धूम मची हुई थी. राजीव नगर की इस गली मे घूम रहे युवक कोई साढे़ 7 बजे के आसपास गोविंद के घर के सामने से गुजरते हुए सीढ़ी चढ़ कर ऊपर चले गए तो सामने के मकान से देख रहे युवक ने इस बात पर खास ध्यान नहीं दिया.

जबकि उन का चौथा साथी गोविंद के घर जाने के बजाय कुछ दूरी पर जा कर खड़ा हो गया. रात कोई सवा 9 बजे गोविंद दूध की थैली लिए हुए थकाहारा सा घर की ओर लौटा. गोविंद सीढि़यां चढ़ कर ऊपर पहुंचे, जिस के कुछ देर बाद वे तीनों युवक उन के घर से निकल कर नीचे आ गए. जिस पड़ोसी ने इन को ऊपर जाते देखा था, संयोग से इन तीनों को वापस उतरते भी देखा तो यह सोच कर उस के चेहरे पर मुसकराहट तैर गई कि घर लौटने पर इन युवकों को अपने घर में पहले से मौजूद देख कर गोविंद सेन की मन:स्थिति क्या रही होगी. तीनों युवकों ने नीचे खड़ी दिव्या की एक्टिवा स्कूटी में चाबी लगाने की कोशिश की, लेकिन संभवत: वे गलत चाबी लाए थे.

इसलिए उन में से एक वापस ऊपर जा कर दूसरी चाबी ले आया, जिस के बाद वे दिव्या की एक्टिवा पर बैठ कर चले गए. 26 नवंबर की सुबह के 8 बजे रतलाम में रोज की तरह सड़कों पर आवाजाही थी. लेकिन गोविंद सेन के घर में अभी भी सन्नाटा पसरा हुआ था. कुछ देर में उन के मकान में किराए पर रहने वाली युवती ज्वालिका अपने कमरे से बाहर निकल कर दिव्या के घर की तरफ बढ़ गई. गोविंद के मकान में किराए पर रहने वाली दिव्या की हमउम्र ज्वालिका एक प्राइवेट अस्पताल में नौकरी करती है. गोविंद की बेटी भी एक निजी कालेज से बीएससी की पढ़ाई के साथ नर्सिंग का कोर्स कर रही थी. महामारी के कारण आजकल क्लासेस बंद पड़ी थीं, इसलिए वह अपनी बड़ी बहन की कंपनी में नौकरी करने लगी.

ज्वालिका और दिव्या एक ही एक्टिवा का उपयोग करती थीं. जब जिस को जरूरत होती, वही एक्टिवा ले जाती थी. लेकिन इस की चाबी हमेशा गोविंद के घर में रहती थी. सो काम पर जाने के लिए एक्टिवा की चाबी लेने के लिए ज्वालिका जैसे ही गोविंद के घर में दाखिल हुई, चीखते हुए वापस बाहर आ गई. उस की चीख सुन कर दूसरे किराएदार बाहर आ गए और उन्हें पता चला कि गोविंद के घर के अंदर गोविंद, उस की पत्नी और बेटी की लाश पड़ी है. घबराए लोगों ने यह खबर नगर थाना टीआई रेवल सिंह बरडे को दे दी. जिस से कुछ ही देर में वह अपनी टीम के साथ मौके पर पहुंच गए और मामले की गंभीरता को देखते हुए इस तिहरे हत्याकांड की खबर तुरंत एसपी गौरव तिवारी को दे दी.

चंद मिनट बाद ही एसपी गौरव तिवारी एएसपी सुनील पाटीदार, एफएसएल अधिकारी अतुल मित्तल एवं एसपी के निर्देश पर माणकचौक के थानाप्रभारी अयूब खान भी मौके पर पहुंच गए. तिहरे हत्याकांड की खबर पूरे रतलाम में फैल गई, जिस से मौके पर जमा भारी भीड़ के बीच मौकाएवारदात की जांच में एसपी गौरव तिवारी ने पाया कि शारदा का शव बिस्तर पर पड़ा था, जिस के सिर में गोली लगी थी. उन की बेटी दिव्या की लाश किचन के बाहर दरवाजे पर पड़ी थी. दिव्या के हाथ में आटा लगा हुआ था और आधे मांडे हुए आटे की परात किचन में पड़ी हुई थी. इस से साफ हुआ कि पहले बिस्तर पर लेटी हुई शारदा की हत्या हुई होगी. गोली की आवाज सुन कर दिव्या बाहर आई होगी तो हत्यारों ने उसे भी गोली मार दी होगी.

जांच में स्पष्ट हुआ कि दरवाजे के पास पड़ी गोविंद की लाश की हत्या सब से बाद में हुई थी. उन के पैर में जूते थे और हाथ में दूध की थैली. जिस से पुलिस ने अनुमान लगाया कि हत्यारे 2 हत्या करने के बाद भागना चाहते होंगे, लेकिन भागते समय ही गोविंद घर लौट आए, जिस से उन की भी हत्या कर दी होगी. पड़ोसियों ने गोविंद को 9 बजे घर आते देखा था. उस के बाद 3 लोगों को घर से बाहर जाते देखा. इस से यह साफ हो गया कि हत्या 9 बजे के पहले की गई होगी. पुलिस ने जांच शुरू की तो गोविंद सेन के परिवार के बारे में जो जानकरी निकल कर सामने आई, उस से पुलिस को शक था कि हत्याएं प्रेम प्रसंग या अवैध संबंध को ले कर की गई होंगी.

लेकिन गोविंद के एक रिश्तेदार ने इस बात को पूरी तरह गलत करार देते हुए बताया कि गोविंद ने कुछ ही समय पहले गांव की अपनी जमीन 30 लाख रुपए में बेची थी. दूसरा घटना के दिन ही शारदा और दिव्या ने डेढ़ लाख रुपए की ज्वैलरी की खरीदारी की थी, जो घर में नहीं मिली. इस कारण पुलिस लूट के एंगल से भी जांच करने में जुट गई. चूंकि मौके पर संघर्ष के निशान नहीं थे और हत्यारे गोविंद की बेटी की एक्टिवा भी साथ ले गए थे. इस से यह साफ हो गया कि वे जो भी रहे होंगे, परिवार के परिचित रहे होंगे एवं उन्हें गाड़ी की चाबी आदि रखने की जगह भी मालूम थी. हत्यारों ने वारदात का दिन देव दिवाली का सोचसमझ कर चुना. इसलिए आतिशबाजी के शोर में किसी ने भी पड़ोस में चलने वाली गोलियों की आवाज पर ध्यान नहीं दिया था.

मामला गंभीर था इसलिए आईजी राकेश गुप्ता ने भी मौके का निरीक्षण करने के बाद हत्यारों की गिरफ्तारी पर 30 हजार रुपए के ईनाम की घोषणा कर दी. वहीं एसीपी गौरव तिवारी ने 10 थानों के टीआई और लगभग 60 पुलिसकर्मियों की एक टीम गठित कर दी, जिस की कमान  थानाप्रभारी अयूब खान को सौंपी गई. इस टीम ने इलाके के पूरे सीसीटीवी कैमरे खंगाल दिए, इस के अलावा घटना के समय राजीव नगर में स्थित मोबाइल टावर के क्षेत्र में सक्रिय 70 हजार से अधिक फोन नंबरों की जांच शुरू की. दिव्या को एक बोल्ड लड़की के रूप में जाना जाता था. उस की कई लड़कों से दोस्ती थी. कुछ दिन पहले उस ने एक अलबम ‘मैनूं छोड़ के…’ में काम किया था.

इस अलबम में भी उस की एक दुर्घटना में मौत हो जाती है. पुलिस ने उस के साथ काम करने वाले युवक अभिजीत बैरागी से पूछताछ की लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला. घटना से ले कर चंद रोज पहले तक दिव्या ने जिन युवकों से फोन पर बात की थी, उन सभी से पुलिस ने पूछताछ की गई. गोविंद सेन की एक्टिवा देवनारायण नगर में लावारिस खड़ी मिली. तब पुलिस ने वहां भी चारों ओर लगे सीसीटीवी कैमरों के फुटेज जमा कर हत्यारों का पता लगाने की कोशिश शुरू कर दी. जिस में दोनों जगहों के फुटेज से 2 संदिग्ध युवकों की पहचान कर ली गई. जिन्हें घटना से पहले इलाके में पैदल घूमते देखा गया था. और बाद में वही युवक गोविंद की एक्टिवा पर जाते हुए सीसीटीवी कैमरे में कैद हुए.

जाहिर है कि हर बड़ी घटना के आरोपी भले ही कितनी भी दूर क्यों न भाग जाएं, वे घटना वाले शहर में पुलिस क्या कर रही है. इस बात की जानकारी जरूर रखते हैं, यह बात एसपी गौरव तिवारी जानते थे. इसलिए उन्होंने जानबूझ कर जांच के दौरान मिले महत्त्वपूर्ण सुराग को मीडिया के सामने नहीं रखा था. दरअसल, जब पुलिस सीसीटीवी के माध्यम से हत्यारों के भागने के रूट का पीछा कर रही थी कि देवनारायण नगर में आ कर दोनों संदिग्धों ने गोविंद की एक्टिवा छोड़ दी थी. वहां पहले से एक युवक स्कूटर ले कर खड़ा था, जिसे ले कर वे वहां से चले गए. जबकि स्कूटर वाला युवक पैदल ही वहां से गया था.

इस से एसपी का शक था कि तीसरा युवक स्थानीय हो सकता है, जो आसपास ही रहता होगा. बात सही थी, वह अनुराग परमार उर्फ बौबी था, जो विनोबा नगर में रहता था. इंदौर से बीटेक करने के बाद भी उस के पास कोई काम नहीं था. वह इस घटना में शामिल था और पुलिस की गतिविधियों पर नजर रखे हुए था. इसलिए जब उसे पता चला कि पुलिस को उस का कोई फुटेज नहीं मिला तो वह लापरवाही से घर से बाहर घूमने लगा. जिस के चलते नजर गड़ा कर बैठी पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर उस से पूछताछ की. उस से मिली जानकारी के 4 दिन बाद ही पुलिस ने दाहोद (गुजरात) से लाला देवल निवासी खरेड़ी गोहदा और यहीं से रेलवे कालोनी रतलाम निवासी गोलू उर्फ गौरव को गिरफ्तार कर लिया.

उन से पता चला कि पूरी घटना का मास्टरमांइड दिलीप देवले है, जो खरेड़ी गोहद का रहने वाला है. यही नहीं पूछताछ में यह भी साफ हो गया कि जून 20 में दिलीप देवल ने ही अपने ताऊ के बेटे सुनीत उर्फ सुमीत चौहान निवासी गांधीनगर, रतलाम और हिम्मत सिंह देवल निवासी देवरादेनारायण के साथ मिल कर डा. प्रेमकुंवर की हत्या की थी. जिस से पुलिस ने सुनीत और हिम्मत को भी गिरफ्तार कर लिया. इन से पता चला कि तीनों हत्याएं लूट के इरादे से की गई थीं. दिलीप के बारे में पता चला कि वह रतलाम में ही छिप कर बैठा है. पुलिस को यह भी पता चला कि वह मिडटाउन कालोनी में किराए के एक मकान में रह रहा है और पुलिस तथा सीसीटीवी कैमरे से बचने के लिए पीछे की तरफ टूटी बाउंड्री से आताजाता है.

यह जानकारी मिलने के बाद पुलिस ने पीछे की तरफ खाचरौद रोड पर उसे घेरने की योजना बनाई, जिस के चलते 2 दिसंबर, 2020 को वह पुलिस को दिख गया. पुलिस टीम ने उसे ललकारा तो दिलीप ने पुलिस पर गोलियां चलानी शुरू कर दीं, जवाबी काररवाई में पुलिस ने भी गोलियां चलाईं. कुछ ही देर में मास्टरमाइंड दिलीप मारा गया. इस प्रकार से असंभव से लगने वाले तिहरे हत्याकांड के सभी आरोपियों को पुलिस ने महज 5 दिन में सलाखों के पीछे पहुंचा दिया. इस में टीम प्रभारी अयूब खान और 2 एसआई सहित 5 पुलिसकर्मी भी घायल हुए.

 

Rajasthan Crime News : शादी से पहले बैंक मैनेजर ने बैंक में कराई 1 करोड़ 13 लाख की डकैती

Rajasthan Crime News : बैंक मैनेजर सुशील कुमार की 10 नवंबर को शादी होनी थी. कार उस ने खरीद  ली थी. लोन ले कर आलीशान मकान भी बनवा लिया था. वह शानोशौकत से शादी करना चाहता था. इस के लिए उस ने अपने ममेरे भाई नितेश, उस के 2 दोस्तों सतपाल व सुखविंद्र के साथ मिल कर साजिश रची और अपने ही बैंक में 1 करोड़ 13 लाख की डकैती करा दी, लेकिन…

‘हैं डसअप’. मुख्य गेट का शटर डाल कर अंदर घुसे तीनों युवकों ने बैंक भवन के अंदर मेज पर रखी रखी फाइलों में उलझे बैंक प्रबंधक सुशील कुमार व केशिय परमपाल सिंह को हथियारों की नोक पर लेते हुए कर्कश आवाज में कहा था. आगंतुकों के चेहरे के हावभाव व आंखों से उगलती आग दर्शा रही थी कि विरोध करने पर वे किसी भी हद तक जा सकते थे. अचानक आई आफत को देख दोनों बैंककर्मियों की घिग्घी बंध गई. हाथों में हथियार व 2 युवकों के कंधे पर लटकते पिट्ठू बैग देख उन को आभास हो गया था कि वे लोग बैंक लूटने आए हैं. दो पगड़ीधारी युवकों के हाथों में पिस्टल व तीसरे के हाथ में लंबे फल वाला का चाकू था.

दोनों बैंककर्मियों ने कोई प्रतिरोध न कर के आत्मसमर्पण कर दिया. तीनों लुटेरे केशियर व बैंक मैंनेजर को धकिया कर बैंक के स्ट्रांग रूम में ले गए. वहां तीनों ने तिजोरी में रखी 2 हजार, 5 सौ व एक सौ रुपयों की गड्डियां दोनों बैगों में ठूंसठूंस कर भर ली. दोनों बैंक अफसरों के मोबाइल पहले ही छीन लिए गए थे. मैनेजर व कैशियर को स्ट्रांगरूम में बंद कर ताला लगा दिया गया. एक लुटेरे ने मैनेजर की मेज पर रखी कार की चाबी उठा ली थी. स्ट्रांग रूप की चाबी लुटेरों ने स्ट्रांग रूम के सामने ही फेंक दी. नकदी भरे बैग उठाए तीनों युवक फुर्ती से बाहर निकल गए. जाते समय मुख्य गेट का शटर बंद कर तीनों लुटेरे बैंक मैनेजर की बाहर खड़ी गाड़ी आई10 नंबर आरजे 13 सीसी 1283 में भाग निकले.

आधा घंटा बाद स्ट्रौगरूम में बंद मैनेजर व कैशियर कुछ सहज हुए. दोनों ने मिल कर स्ट्रौंगरूम में लगी प्लास्टिक की एक पाइप को उखाड़ा और जैसेतैसे स्ट्रांगरूम से बाहर निकले. लूट की इस बड़ी बारदात को महज 7 मिनट में अंजाम दे दिया गया था. बैंक गार्ड आधा घंटा पहले ही छुट्टी कर घर चला गया था. लूट की यह सनसनीखेज घटना 17 सितंबर, 2020 को राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले की प्रमुख मंडी संगरिया की धान मंडी स्थित एक्सिस बैंक शाख में रात तकरीबन 8 बजे हुई थी. बैंक प्रबंधन की सूचना मिलते ही संगरिया थाना के टीआई इंद्र कुमार ने मौकामुआयना कर अविलंब उच्च अधिकारियों को सूचना प्रेषित कर दी.

बैंक मैनेजर ने हथियारों की नोक पर एक करोड़ 13 लाख रुपए लूट ले जाने के आरोप में 3 अज्ञात लोगों के खिलाफ पुलिस में मुकदमा दर्ज कर दिया. पुलिस ने मुकदमा आईपीसी 292 व 34 के तहत दर्ज कर लिया. संयोग से सवा करोड़ की लूट की यह वारदात संभवत: मंडी सांगरिया की पहली घटना थी. सूचना मिलते ही बीकानेर रेंज के पुलिस महानिरीक्षक प्रफुल्ल कुमार जिला पुलिस अधीक्षक राशि डोगरा सहित अन्य वरिष्ठ अधिकारियों ने घटना स्थल पर पहुंच कर स्थिति का जायजा लिया. पुलिस अधिकारियों को बताया गया कि कई दिनों से बैंक में लगे सीसीटीवी कैमरा सिस्टम गड़बड़ था. पुलिस जांच में यह तथ्य भले ही परेशानी साबित हो सकता था पर एसपी राशि डोगरा ने कैमरों के गड़बड़झाले को जांच में एक अहम क्लू माना. आईजी प्रफुल्ल कुमार ने इस लूट प्रकरण को जल्दी से ट्रेस आउट करने का आदेश दे दिया.

एसपी राशि डोगरा ने एकएक बिंदु को देखा, परखा जिला मुख्यालय से महज 30 किलोमीटर दूर घटित बैंक लूट की इस घटना को युवा आईपीएस राशि डोगरा ने एक चैलेंज के रूप में लिया. एसपी डोगरा ने एएसपी जस्साराम बोस और स्वयं के सुपरविजन में जिला क्षेत्र के सीओ दिनेश एजोश, सीओ प्रशांत कौशिक, सीओ नारायण सिंह, सर्किल इंस्पेक्टर इंद्रकुमार, एसआई फूल सिंह और राजाराम व सुरेश के नेतृत्व में दर्जनभर हैड कांस्टेबलों को लगाया. इस के तहत 8 टीमों का गठन कर जांच में लगा दिया गया. साइबर व सीसीटीवी कैमरा एक्सपर्ट भी लगाए गए.

अपराधी कितना भी शातिर हो, अनजाने में कोई न कोई भूल कर घटनास्थल पर कोई न कोई क्लू जरूर छोड़ जाता है. इसी तथ्य को स्वीकारकर राशि डोगरा ने अपने अनुभव इस वारदात को खोलने में लगा दिए. शुरुआती जांच व बैंक के नजदीक स्थित दुकानों पर लगे कैमरों से यह साबित हो गया था कि जाते समय लुटेरे मैनेजर की कार में भागे थे. लेकिन आते समय बैंक तक पैदल ही आए थे. पुलिस की आठो टीम पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, यूपी, मध्य प्रदेश सहित हनुमानगढ़ व श्री गंगानगर जिला क्षेत्र में उतर गई थीं. 15 दिन बीत जाने के बाद भी पुलिस के हाथ खाली थे. एक दुकान के बाहर लगे कैमरों में तीनों लुटेरों की कदकाठी नजर आ रही थी पर पगड़ी के पल्लु व कैप लगी होने के कारण तीनों में से एक का भी चेहरा दिखाई नहीं दे रहा था.

सीसीटीवी कैमरा एक्सपर्ट ने जांच कर खुलासा कर दिया था कि बैंक के अंदर लगे सीसीटीवी कैमरों में हाल ही में छेड़छाड़ की गई थी. जांचपड़ताल में मिल रहे मामूली क्लू बैंक प्रबंधन के खिलाफ जा रहे थे. पर पुख्ता साक्ष्य के अभाव में पुलिस प्रमुख राशि डोगरा कोई रिस्क नहीं लेना चाहती थीं. बड़ी रकम का मामला था. अन्य प्रदेशों व स्थलों पर गई टीमों के भी हाथ खाली थे. बैंक मैनेजर सुशील व कैशियर परमपाल सिंह से अलगअलग व संयुक्त रूप से कई दौर में पूछताछ की गई पर नतीजा शून्य रहा. दूसरे दिन मैनेजर सुशील की कार संगरिया से 30 किलोमीटर दूर हरियाणा के डबवाली शहर में लावारिस हालात में मिल गई.

पूछताछ में पता चला कि 2 दिन पहले कार की जगह एक मोटर साइकिल कई घंटे खड़ी रही थी. राशि डोगरा की नजर में बैंक मैनेजर सुशील कुमार चढ़ चुका था. उन्होंने सुशील की जन्म कुंडली खंगालना शुरू कर दी. उन्हें बताया गया कि सुशील को कुछ अरसा पहले ही बैंक परीक्षा पास करने पर मैनेजर की नौकरी मिली थी. इसी 10 नवंबर को सुशील की शादी होनी थी. उन का रिहायशी आलीशान बंगला बिना कर्ज लिए बनना मुश्किल था. सुशील की ननिहाल पंजाब के जनखुआ (राजपुरा) में है. एसपी डोगरा ने संगरिया के तेजतर्रार सर्किल इंस्पेक्टर इंद्रकुमार को टीम के साथ जनसुआ भेज दिया. हाईकमान के आदेशानुसार 4 सदस्यीय टीम ने यूनिफार्म की जगह ग्रामीणों के वेश धर लिए.

खुद इंद्रकुमार ने शरीर पर सफेद कुरता और व लुंगी पहना. पैरों में चमड़े की जूती व सिर पर चैकदार साफा. सीआई ने टीम के साथ सुशील के ननिहाल में रैकी शुरू कर दी थी. वहीं 3 अन्य पुलिसकर्मी शराब ठेकों व बाजार की रैकी में लग गए थे. इस पुलिस टीम का टारगेट था एक्सिस बैंक संगरिया के नजदीक सीसीटीवी कैमरों में दर्ज हुए लुटेरों की चालढाल व कदकाठी वाले युवकों की तलाशना. टीम ने 2 लोगों की कदकाठी व चाल को पहचान लिया. एक तो सुशील के नाना के घर आजा रहा था. दूसरे को शराब ठेके पर शराब की महंगी बोतल खरीदते समय पहचाना गया. सीओ इंद्रकुमार ने डेली रिपोर्ट के रूप में इस प्रोगेस को एसपी राशि डोगरा से साझा किया. एसपी के आदेश पर इंद्रकुमार की टीम संगरिया लौट आई.

टीम की मेहनत रंग लाई इंद्रकुमार की टीम ने दोनों संदिग्धों के चोरीछिपे विडियो मोबाइल कैमरे में कैद कर लिए थे. कैमरों व वीडियो में कैद फोटोज लुटेरों से मिल रहे थे. शक की गुंजाइश नहीं थी. बैंक मैनेजर वारदात के बाद से लगातार ड्यूटी पर आ रहा था. 21 अक्तूबर को पुलिस ने अपराधियों को एक साथ उठाने का निर्णय लिया. सब से पहले जांच अधिकारी इंद्रकुमार ने मैनेजर सुशील को पूछताछ के बहाने पुलिस थाने बुलाया. एक मुस्तैद सिपाही जो डंडा लिए था की तरफ इशारा करते हुए सीओ ने कहा, ‘मैनेजर साहब, आप  बिना लागलपेटे सारा कुछ सचसच उगल दो. वरना इन डंडे वालों को संभालना मुश्किल हो जाएगा.’’

‘‘सर, मैं सब कुछ सचसच बता दूंगा,’’ सुशील ने कहा.

बिना लागलपेट सुशील कुमार ने बयां किया, ‘‘बैंक परीक्षा पास करने के बाद मुझे बैंक में नौकरी मिल गई थी. मैं ने कर्जा उठा कर भव्य मकान बनवा लिया. अब 10 नवंबर को मेरी शादी होनी थी. शानोशौकत की चाह भावी दांपत्य जीवन को मनमोहक बना देती है. इसी इच्छा के चलते बैंक की तिजौरी में रखी नोटों की गड्डियों ने मेरा इमान डोला दिया. मैं ने अपने ममेरे भाई नितेश को बुला कर उस से गुफ्तगू की. मेरी रजामंदी के चलते नितेश ने अपने 2 दोस्तों सतपाल व सुखविंद्र को शामिल कर लिया. कुछ दिन पहले नितेश अपने दोस्तों के साथ बैंक आया था. तीनों ने गहनता से बैंक भवन व आसपास का जायाजा लिया था.

वारदात के दिन तीनों दोस्त मोटरसाइकिल से डबवाली पहुंचे. डबवाली के बाजार से एक काली व एक रंगीन पगड़ी खरीदी गई. पिट्ठू बैग भी यहीं से खरीदे गए थे. दो जनों ने पगड़ी इसलिए बांधी कि पुलिस भ्रमित हो जाए. मोटरसाइकिल डबवाली में रोड़ पर खड़ी कर तीनों बस से 6 बजे शाम संगरिया पहुंच गए थे. निर्धारित प्रोग्राम के मुताबिक गार्ड को छुट्टी दे दी गई थी. बैंक में लगे कैमरे कई दिन पहले ही डिस्टर्ब कर दिए थे. दोनों बैंककर्मियों को स्टं्रागरूम में बंद कर चाबी वहीं डाल दी गई थी ताकि स्ट्रांगरूम का दरवाजा तोड़ने की नौबत न आ जाए. मैनेजर की कार प्लानिंग के अनुसार ली गई थी. तीनों सहयोगियों की पहचान भी सुशील ने जाहिर कर दी थी.

सुशील के बताए अनुसार तीनों लोग उसी दिन नकदी के साथ कुल्लू-मनाली पहुंच गए. तीनों ने वहां महंगे होटलों व शराबखोरी में दोतीन दिनों में 3 लाख रुपए उड़ा दिए. पुलिस सांगरिया में साजिशकर्ता सुशील निवासी भूना जिला फतेहाबाद से पूछताछ कर रही थी. वहीं 2 टीमें जनसुआ तहसील राजपुरा में अन्य आरोपियों की गिरफ्तारी में जुटी थीं. जनसुआ से पुलिस ने सुशील के ममेरे भाई नितेश जो 8वीं तक पढ़ा और अविवाहित है, अंबाला का सुखविंद्र एमए तक शिक्षित व 2 बेटों का पिता है. सतपाल 5वीं तक पढ़ा था, वह जनसुआ में हैयर ड्रैसिंग का काम करता था, गिरफ्तार कर लिया. पुलिस ने चारों से अलगअलग व आमनेसामने बिठा कर पूछताछ शुरू की.

पर चारों रिकवरी के बिंदु पर पुलिस को गच्चा देते रहे. जांच अधिकारी इंद्रकुमार ने चारों आरोपियों को अदालत में पेश कर पुलिस रिमांड पर ले लिया. दोबारा पूछताछ में चारों ने अपने घरों में छिपा कर रखी एक करोड़ 5 लाख रुपयों की बरामदगी करवा दी थी. अदालत में दोबारा पेश करने पर अदालत ने तीनों को जेल भिजवा दिया. मुख्य साजिशकर्ता सुशील को पुलिस ने रिकवरी के लिए दोबारा 2 दिनों के रिमांड पर ले लिया था. इस अवधि में सुशील ने अपने घर से 5 लाख रुपए और बरामद करवाए. पुलिस ने वारदात में इस्तेमाल की गई मोटरसाइकिल, कार व अन्य साक्ष्य जुटा लिए. आईजी बीकानेर ने एसपी साहित अन्य अधकारियों की दिल खोल कर हौसलाअफजाई की. एसपी राशि डोगरा ने सीआई इंद्रकुमार की विशेष सराहना की.

चारों आरोपियों ने रूपयों की खनकदमक के आगे पहली बार अपराध किया था ताकि उन का व उन के परिवार का भविष्य संवर जाए. पर हकीकत में चारों ने न केवल खुद को बल्कि परिवार को भी अंधेरे की गहराइयों में धकेल दिया है.

 

Extramarital Affair : सरिता क्यों बनी पति की कातिल

Extramarital Affair : पति की एक्सीडेंट में मौत हो जाने के बाद 34 वर्षीय सरिता ने कुख्यात बदमाश सोनू नागर से शादी कर ली थी. कुछ दिनों बाद ही ऐसा क्या हुआ कि सरिता को सोनू नागर की हत्या की सुपारी देनी पड़ी? पढ़ें, फेमिली क्राइम की यह खास स्टोरी.

मोबाइल फोन की घंटी लगातार रुकरुक कर बज रही थी. गुरमीत उस समय बाथरूम में था. जैसे ही फोन की घंटी की आवाज गुरमीत के कानों में पड़ी तो वह फटाफट नहा कर बाथरूम से बाहर आ गया. गुरमीत ने मोबाइल की स्क्रीन पर फ्लैश होते नाम को देखा तो उस के चेहरे पर मुसकान तैर गई. उस ने तुरंत काल रिसीव कर ली.

”हैलो बग्गा! आज सुबहसुबह कैसे याद आ गई अपने यार की?’’ गुरमीत ने चहक कर पूछा.

”तुझे तो मैं हर वक्त दिल में रखता हूं गुरप्रीत.’’ बग्गा सिंह दूसरी ओर से बोला, ”फिर याद तो अपनों को ही किया जाता है.’’

”ठीक है.’’ गुरमीत हंसा, ”बोल, कैसे फोन किया?’’

”एक मुरगे को टपकाना है गुरमीत.’’

”टपका देंगे.’’ गुरमीत ने लापरवाही से गरदन झटकी, ”मुरगा वजनदार तो है ना?’’

”मैं वजनदार मुरगा ही हलाल करता हूं गुरमीत. पूरे डेढ़ लाख में सौदा किया है.’’

”वाह!’’ गुरमीत ने होंठों पर जुबान फिराई, ”मोटी कटेगी यार, लेकिन सौदा फिफ्टीफिफ्टी का रहेगा बग्गा भाई.’’

”नहीं, पार्टी मेरी है इसलिए मैं तुम्हें 50 हजार दूंगा.’’ बग्गा सिंह की आवाज में अडिय़लपन था, ”देख, जब तेरी पार्टी होती है तो मैं भी वही लेता हूं जो तू देता है.’’

गुरमीत ने बात काट दी, ”वो सब ठीक है बग्गा, लेकिन 50 कुछ कम है.’’

”चल मैं 10 हजार और बढ़ा देता हूं.’’ बग्गा ने कहा, ”अब कुछ नहीं कहना.’’

”ओके.’’ गुरमीत ने गहरी सांस ली, ”मुरगा कहां टपकाना है?’’

”दिल्ली में.’’ बग्गा सिंह ने धीमी आवाज में कहा, ”तू आज ही दिल्ली पहुंच. मैं भी घर से निकल रहा हूं.’’

”तू इस वक्त कहां है?’’

”मैं भटिंडा में हूं, लेकिन हर हाल में शाम तक दिल्ली पहुंच जाऊंगा. तू मुझे फोन कर लेना. हमें कहां मिलना है, कहां ठहरना है, मैं तुझे बता दूंगा. अब तू तैयार हो, मैं काल काट रहा हूं.’’ बग्गा की तरफ से कहा गया. फिर संपर्क काट दिया गया.

गुरमीत ने मोबाइल टेबल पर रखा और दिल्ली जाने की तैयारी करने लगा. आधा घंटा बाद ही वह बैग ले कर घर से निकला और बसअड्ïडे के लिए आटो से रवाना हो गया.

3 फरवरी, 2025 की सुबह उत्तरी दिल्ली में शक्ति नगर के एफसीआई गोदाम के पास बहने वाले नाले में एक युवक औंधे मुंह पड़ा हुआ था. वहां से गुजर रहे एक व्यक्ति ने उस युवक को देखा तो वह ठिठक गया. उसे लगा कि शायद कोई शराबी नशे में गिर गया होगा. वह उसे गौर से देखने लगा. वह व्यक्ति नाले में औंधे मुंह पड़ा था, लेकिन उस के शरीर में कोई हरकत नहीं दिखी तो उस ने अनुमान लगा लिया कि शायद इस की मौत हो चुकी है. उस ने अपना शक दूर करने के लिए दूर खड़े 2 व्यक्तियों को इशारे से अपने पास आने को कहा. वे दोनों व्यक्ति आपस में बातें कर रहे थे. इशारा मिलने पर वह उस व्यक्ति के पास आ गए.

”क्या आप हमें जानते हैं?’’ उन में से एक व्यक्ति ने पूछा.

”नहीं भाई, मैं आप दोनों को नहीं जानता. मुझे तो यहां नाले में पड़े इस युवक को देख कर संदेह हो रहा है कि वह युवक जीवित भी है या नहीं. आप देख कर बताएं.’’

नाले में मिली लाश

दोनों व्यक्ति नाले में देखने लगे. वहां पड़े युवक को देख कर वे घबरा गए. उन में से एक बोला, ”नूर, सरक ले यहां से. यह लाश है, यदि पुलिस आ गई तो बेकार के लफड़े में फंस जाएंगे हम लोग.’’

उस के साथ वाला व्यक्ति यह सुनते ही तेजी से एक तरफ चल पड़ा. उस के साथ वाला व्यक्ति उस के पीछे लपका. वहां खड़ा पहले वाला व्यक्ति जिम्मेदार नागरिक था. वह वहां से नहीं भागा, बल्कि उस ने जेब से मोबाइल निकाल कर वहां पड़ी लाश की सूचना दिल्ली पुलिस कंट्रोल रूम को दे दी. कंट्रोल रूम से उसे वहीं खड़े रहने को कह दिया गया. करीब आधा घंटा बाद पुलिस वैन वहां सायरन बजाती हुई आ गई. इस वैन में रूपनगर थाने के एसएचओ रमेश कौशिक थे. उन के साथ पुलिस के 5 कांस्टेबल भी थे. सभी सावधानी से नाले में उतर गए. वह लाश औंधे मुंह पड़ी थी, उसे सीधा करने से पहले उस लाश की बहुत बारीकी से जांच की गई.

पीठ की ओर उन्हें कोई जख्म नजर नहीं आया. इसी एंगल से उस की मोबाइल द्वारा फोटो खींची गईं, फिर उसे सीधा किया गया. यह कोई 40-45 साल का व्यक्ति था. उस के शरीर पर पैंटशर्ट थी. उस के चेहरे पर गौर से देखने पर खिंचाव महसूस हो रहा था. एसएचओ रमेश कौशिक को लगा कि वह व्यक्ति जान निकलते समय बहुत तड़पा है. ऐसा उस हाल में होता है जब किसी का गला घोंटा जाता है. सांसें रुकने से व्यक्ति छटपटाता है और तड़पते हुए उस के प्राण निकलते हैं. कौशिक ने उस आदमी के गले का निरीक्षण किया तो उन का अनुमान सही साबित हुआ. उस के गले पर दबाब के कारण लाल निशान पड़ गए थे, जो साफ दिखाई दे रहे थे.

लाश की जेबों की तलाशी ली गई तो उस की जेब में कुछ नहीं मिला. इस से अनुमान लगाया गया कि इस की हत्या करने के बाद जेब से सारा सामान निकाल लिया गया है, ताकि कोई सुराग पुलिस के हाथ न आ पाए. रमेश कौशिक की सूचना पर नौर्थ डिस्ट्रिक्ट के डीसीपी राजा बांठिया और एसीपी (सिविल लाइंस) विनीता त्यागी भी थोड़ी देर में मौके पर पहुंच गईं. उस से पहले एसएचओ रमेश कौशिक ने एक बार और मृतक की जेबें टटोलीं. हाथ की कलाई देखी, ताकि कोई गुदा हुआ नाम दिख जाए. लेकिन न जेबों में कुछ मिला, न उस की कलाई पर कुछ गुदा हुआ था.

नाले के ऊपर अब तक लाश की सूचना पा कर काफी लोग एकत्र हो गए थे. रमेश कौशिक ने ऊपर आ कर उन लोगों से लाश की पहचान करने को कहा, लेकिन किसी ने भी उस युवक को नहीं पहचाना. इस से यह अनुमान लगाया गया कि इस की हत्या कहीं और कर के उसे यहां ला कर फेंक दिया गया है, इस क्षेत्र में इस आदमी की लाश को शायद ही कोई पहचान पाएगा. यह व्यक्ति इस क्षेत्र का नहीं है. काफी पूछताछ करने के बाद भी उस व्यक्ति की पहचान नहीं हो पाई. उसी दौरान फिंगरप्रिंट्स एक्सपर्ट की टीम भी वहां पहुंच चुकी थी. 2 फोटोग्राफर्स भी इस टीम में थे.

आते ही यह टीम अपने काम में लग गई. एसएचओ ने डीसीपी को बताया कि लाश की शिनाख्त नहीं हो पा रही है, लगता है इसे कहीं और मारा गया है. पहचान न हो, इसलिए इस की लाश को यहां ला कर नाले में फेंक दिया गया है.

”इंसपेक्टर कौशिक, लाश की पहचान तो आवश्यक है. अपराधी तक हम तभी पहुंचेंगे, जब इस की पहचान होगी.’’ डीसीपी गंभीर स्वर में बोले.

”जी सर.’’ एसएचओ ने सिर हिलाया, ”हम पूरी कोशिश कर रहे हैं.’’

डीसीपी बांठिया ने युवक की लाश का निरीक्षण किया. गले पर लाल निशान देख कर वह समझ गए थे कि इस की हत्या गला घोंट कर की गई है. वहां ऐसे सुराग नजर नहीं आ रहे थे, जिस से समझा जा सके कि इसे यहीं खत्म किया गया है. हत्या कहीं और कर के इस की लाश को यहां फेंक दिया गया है.

पूरा निरीक्षण कर लेने के बाद डीसीपी ने इंसपेक्टर कौशिक से कहा, ”मामला पेचीदा लग रहा है. मैं आप की हैल्प के लिए स्पैशल स्टाफ के इंसपेक्टर रोहित को भी बुला लेता हूं.’’

”यह उचित रहेगा सर. स्पैशल स्टाफ के आने से यह केस आसानी से सौल्व हो जाएगा. आप रोहितजी को बुलवा लीजिए.’’

डीसीपी बांठिया ने स्पैशल स्टाफ (नौर्थ डिस्ट्रिक्ट) के इंसपेक्टर रोहित से बात की और पूरी बात बता कर उन्हें घटनास्थल पर बुला लिया. इंसपेक्टर रोहित अपनी टीम के साथ कुछ ही देर में वहां आ गए. उन की टीम ने युवक की लाश का बारीकी से निरीक्षण किया. इंसपेक्टर रोहित ने फिंगरप्रिंट्स एक्सपर्ट से बात कर के कुछ निर्देश दिए और इंसपेक्टर कौशिक को लाश पोस्टमार्टम हेतु हिंदूराव हौस्पिटल भेजने को कह दिया.

दिशानिर्देश दे कर डीसीपी और एसीपी भी घटनास्थल से चले गए. इंसपेक्टर कौशिक लाश का पंचनामा बनाने में जुट गए. यह काम पूरा होने तक स्पैशल स्टाफ वहां नहीं रुक सकता था, वे आगे की जांच के लिए वहां से निकल गए. इंसपेक्टर कौशिक ने लाश की शेष काररवाई निपटा कर पोस्टमार्टम के लिए हिंदूराव हौस्पिटल भेज दी और थाना रूपनगर लौट आए. यह केस बहुत पेचीदा था. मरने वाला व्यक्ति कौन है, उसे किस ने गला घोंट कर मारा, उस का कुसूर क्या था. इन सभी बातों का जवाब तभी मिल सकता था, जब उस की पहचान हो जाती. उस की लाश उस के परिजनों के लिए पोस्टमार्टम करवा कर सुरक्षित रखवा दी गई थी. अभी तक उस की पहचान नहीं हुई थी.

मृतक था दिल्ली का घोषित बदमाश

उस की पहचान करने के लिए इंसपेक्टर कौशिक और स्पैशल स्टाफ के इंसपेक्टर रोहित पूरी कोशिश कर रहे थे, लेकिन कोई सूत्र हाथ नहीं लग रहा था, लाश को ज्यादा दिनों तक रखा भी नहीं जा सकता था. पुलिस ने उस के शव की शिनाख्त के लिए पैंफ्लेट छपवा कर शक्ति नगर, रूपनगर और आसपास के क्षेत्र मे चस्पा कर दिए थे. अखबारों में भी शव की पहचान करने की अपील छपवाई गई, लेकिन कोई रिस्पौंस नहीं मिला. अब स्पैशल स्टाफ के इंसपेक्टर रोहित सारस्वत ने आखिरी उपाय करने के लिए युवक के फिंगरप्रिंट्स को कमला मार्किट क्रिमिनल रिकौर्ड औफिस (सीआरओ) भेजा गया. आशा नहीं थी, यह उपाय कारगर सिद्ध होगा, लेकिन ऐसा करने से पुलिस को सफलता मिल गई. उस के फिंगरप्रिंट्स क्राइम रिकौर्ड ब्यूरो में पहले से दर्ज फिंगरप्रिंट्स से मेल खा गए.

पहले वाले फिंगरप्रिंट्स सोनू नागर नाम के अपराधी के थे. यह युवक हौजकाजी थाने का घोषित बदमाश था और इस पर 10 से अधिक आपराधिक मामले कई थानों में दर्ज थे, विशेष कर हौजकाजी थाने में. यहां से उस के घर का एड्रैस मिल गया. यह युवक गुलाबी बाग, सीनियर सैकेंड्री गवर्नमेंट स्कूल के पास टाइप वन के क्वार्टर में रहता था. क्वार्टर का नंबर 570 था. इंसपेक्टर रमेश कौशिक और स्पैशल स्टाफ के इंसपेक्टर रोहित सारस्वत, मनोज कुमार और हैडकांस्टेबल जितेंद्र के साथ उस क्वार्टर पर पहुंच गए. क्वार्टर 570 में एक महिला मिली. इस का नाम सरिता था. उस की उम्र करीब 34 साल थी. दरवाजे पर पुलिस को देख कर उस के चेहरे का रंग सफेद पड़ गया, किंतु तुरंत ही उस ने खुद को संभाल कर प्रश्न कर दिया, ”आप कोई अच्छी खबर ले कर आए हैं मेरे लिए.’’

इंसपेक्टर रोहित सारस्वत उस महिला के चेहरे पर नजरें जमाए हुए थे. पुलिस को सामने वाले के चेहरे के उतारचढ़ाव से उस की मनोस्थिति का अनुमान लगाना सिखाया जाता है. इंसपेक्टर रोहित मन ही मन मुसकराए. प्रत्यक्ष में वह चौंकने का अभिनय करते हुए बोले, ”अच्छी खबर! क्या तुम्हें उम्मीद थी कि पुलिस तुम्हारे दरवाजे पर अच्छी खबर ले कर आने वाली है?’’

”जी हां.’’ सरिता ने सिर हिलाया, ”मेरे पति कुछ दिनों से गुम हैं. मैं समझ रही हूं कि आप उन के बारे में अच्छी खबर ले कर आए हैं.’’

”तुम्हारे पति गुम हैं?’’ इंसपेक्टर ने चौंकते हुए कहा, ”क्या नाम है तुम्हारे पति का?’’

”सोनू… सोनू नागर पूरा नाम है जी.’’

”वह कब से लापता है?’’

”2 फरवरी की रात से.’’ सरिता ने बताया.

”क्या तुम ने सोनू नागर के गुम होने की सूचना लिखवाई है?’’

”हां साहब,’’ सरिता ने सिर हिलाया, ”मैं ने 7 फरवरी को थाना गुलाबी बाग में पति के गुम होने की सूचना लिखवा दी थी. वह 2 फरवरी की रात 10 बजे घर से गए थे, तब से वापस नहीं लौटे हैं. क्या वह आप को मिल गए हैं?’’

”मिले तो हैं लेकिन,’’ इंसपेक्टर रोहित ने बात अधूरी छोड़ दी.

”लेकिन क्या साहब, जल्दी बताइए… मेरा दिल बैठा जा रहा है.’’

”तुम्हारा पति अब इस दुनिया में नहीं रहा है, उस की डैडबौडी हमें शक्तिनगर में गंदे नाले के पास मिली है.’’

”ओहऽऽ नहींऽऽ’’ सरिता जोर से चीखी और दहाड़े मार कर रोने लगी.

उस की रोने की आवाज सुन कर अंदर से एक महिला निकल कर बाहर आ गई. सरिता को रोती देख कर उस ने घबरा कर पूछा, ”क्या हुआ बहू, तू रो क्यों रही है?’’

”मांजी हम लुट गए, बरबाद हो गए. पुलिस को तुम्हारे बेटे की लाश मिल गई है.’’ सरिता ने रोते हुए बताया.

वह महिला भी रोने लगी. पुलिस ने उन का मन हलका होने दिया. फिर सरिता को टोका, ”हमें सोनू नागर की हत्या की जांच करनी है. तुम हमारे साथ थाने चलो, वहीं तुम से कुछ बात करनी है.’’

”चलिए साहब. अब तो यही सब होगा, मेरा पति जान से गया है. मुझे अन्य सभी टोकेंगे.’’

पुलिस ने कोई ध्यान नहीं दिया कि वह क्या बोल रही है. वह तो दोनों को ले कर थाने में आ गए. सरिता की सास का नाम मिथिलेश था. फिलहाल उन दोनों का रोनाधोना थम गया था. इंसपेक्टर रोहित सारस्वत ने सरिता से पूछा, ”2 फरवरी की रात को तुम्हारा पति सोनू नागर घर से गया तो क्या वह तुम्हें कुछ बता कर गया था?’’

”सिर्फ इतना कहा था साहब, मैं बाहर ही हूं, इन से बात कर के मैं आ रहा हूं. फिर वह उन दोनों व्यक्तियों के साथ बाहर चले गए थे. तब से उन का कुछ पता नहीं चल रहा था.’’

”वह 2 व्यक्ति आखिर कौन थे

जिन के साथ तुम्हारे पति सोनू नागर बाहर

गए थे?’’ इंसपेक्टर रोहित सारस्वत ने पूछा.

”मैं उन्हें नहीं जानती. वे दोनों साढ़े 11 बजे बाइक से मेरे घर आए थे. उन से मेरे पति की कुछ बातें हुईं. क्या बातें हुईं, यह मैं नहीं सुन सकी. मेरे पति उन के साथ घर से निकलते हुए इतना ही बोले कि मैं थोड़ी देर में वापस आ रहा हूं. लेकिन काफी देर बीत जाने पर भी वह नहीं लौटे तो मुझे चिंता होने लगी. मैं ने उन्हें फोन लगाया, लेकिन उस वक्त उन की काल नहीं लगी. यह सोच कर कि वह किसी काम में उलझ गए होंगे, मैं सो गई थी.’’

”फिर अगले दिन तुम्हारे पति नहीं लौटे तो क्या तुम ने उन्हें तलाश करने की जरूरत नहीं समझी?’’ सारस्वत ने प्रश्न किया.

”दूसरे दिन मैं ने उन्हें तलाश किया था साहब. दोस्तों, रिश्तेदारी सब जगह तलाश किया था, लेकिन वह नहीं मिले.’’ सरिता ने बताया, ”उन को 2-4 दिन और ढूंढा, फिर हार कर गुलाबी बाग थाने में रिपोर्ट दर्ज करवा दी.’’

”वह 2 व्यक्ति दिखने में कैसे लग रहे थे?’’ इंसपेक्टर रमेश कौशिक ने पूछा.

”उन की उम्र 35-40 के बीच की थी. रंग सांवला था. सामान्य कदकाठी के थे. एक के सिर पर ब्लैक कलर की कैप थी, जिस के हेड पर क्करू्र लिखा था.’’

”हूं, तुम मोबाइल इस्तेमाल करती हो?’’ कौशिक ने प्रश्न किया.

”जी हां.’’ सरिता ने कह कर अपना मोबाइल दिखाया.

मोबाइल फोन में मिले अहम सबूत

इंसपेक्टर कौशिक ने वह मोबाइल ले लिया और बाहर निकल गए. बाहर आ कर उन्होंने मोबाइल से की गई काल लिस्ट देखी, उस में काफी नंबर थे. इंसपेक्टर ने 2 और 3 तारीख की आउटगोइंग काल्स देखी. वह चौंक पड़े. 2 फरवरी की रात को सरिता की ओर से 12 बजे रात को किसी एक नंबर पर फोन किया गया था. वही नंबर बाद में भी था. यानी सरिता ने उस नंबर पर रात में 3-4 बार अलगअलग समय पर काल कर के काफी देरदेर तक बातें की थी.

इंसपेक्टर रमेश कौशिक के चेहरे पर कुटिल मुसकान तैर गई. वह अंदर आ गए और सरिता से बोले, ”तुम्हारा मोबाइल हम कस्टडी में ले रहे हैं. इस की जांच करनी है हमें.’’

”ज…जी, मेरे फोन में ऐसा क्या है साहब,’’ सरिता अचकचा कर बोली.

”वह बाद में मालूम हो जाएगा. तुम यह बताओ, यह सोनू नागर तुम्हारी जिंदगी में कैसे आया? यह तो यहां के हौजकाजी थाने का घोषित अपराधी था. इस पर 10 अपाराधिक मामले दर्ज हैं.’’

सरिता ने नीचे सिर झुका लिया. कुछ देर वह खामोश रही, फिर एक गहरी सांस भर कर वह बोली, ”साहब, मेरा नाम सरिता है. मेरी शादी पहले किसी और से हुई थी. उस से मुझे एक लड़की और एक लड़का हुआ. मेरा पति तीस हजारी कोर्ट के पास पान की दुकान लगाता था. यहां पर सोनू नागर आताजाता रहता था. यहीं से मैं सोनू नागर को जानने लगी.

”अभी 8 महीने पहले मेरे पति की एक एक्सीडेंट में मौत हो गई. तब सोनू मेरी मदद के लिए आगे आया. मैं उस के अहसान तले दब गई और उस के सहारे रहने लगी. फिर मैं ने उस से शादी कर ली. नियति को मुझ से न जाने क्या नाराजगी है, उस ने मेरा यह दूसरा पति भी मुझ से छीन लिया.’’ कहतेकहते सरिता भावुक हो गई और रोने लगी.

”अपने आप को संभालो और घर जाओ, जरूरत पड़ी तो बुलवा लेंगे.’’ इंसपेक्टर रोहित सारस्वत ने उस से कहा और उठ कर खड़े हो गए.

सरिता अपनी सास के साथ थाने से बाहर निकल गई. उन के जाने के बाद इंसपेक्टर रमेश कौशिक ने कहा, ”मुझे सरिता पर संदेह है. इस के मोबाइल की काल डिटेल्स निकलवाइए. इस ने पति के लापता होने वाली रात यानी 2 फरवरी को रात में 3-4 बार एक ही नंबर पर बातें की थीं. मालूम करना है वह नंबर किस का और क्या सरिता पहले भी इस नंबर के संपर्क में रही है?’’

इंसपेक्टर सारस्वत ने हैडकांस्टेबल जितेंद्र कुमार को मोबाइल दे दिया और जनवरीफरवरी माह की तमाम काल डिटेल्स निकलवा कर लाने का आदेश दे दिया. अगले दिन उन की टेबल पर सरिता के मोबाइल की जनवरी-फरवरी माह की काल डिटेल्स रखी थी. उस को बहुत बारीकी से देखा गया. सरिता द्वारा एक नंबर पर जनवरी फरवरी माह की 10 तारीख तक कईकई बार बातें की गई थीं. इस नंबर की फोन प्रदाता कंपनी से जांच की गई तो यह नंबर पंजाब के किसी बग्गा सिंह नाम के व्यक्ति का निकला. उस का एड्रैस भी मिल गया. यह था गांव लांबी, जिला श्रीमुक्तसर साहिब, पंजाब. इस के बाद गुप्तरूप से सोनू नागर के घर गुलाबी बाग के आसपास इस नंबर की जांच की गई तो पुलिस की खुशी का ठिकाना नहीं रहा. 2 फरवरी की रात साढ़े 11 बजे से 12 बजे तक इस नंबर की लोकेशन वहां थी.

इस तरह सरिता ने खोला राज

यह विश्वास हो जाने के बाद कि बग्गा सिंह का सोनू नागर की हत्या में कोई न कोई रोल है, श्रीमुक्तसर साहिब जा कर बग्गा सिंह को घर से उठा लिया गया. उसे दिल्ली लाया गया. थाने में जब 19 वर्षीय बग्गा सिंह से सरिता से संबंध के विषय में पूछा गया तो पहले वह किसी सरिता को पहचानने से इंकार करता रहा, लेकिन जब पुलिस ने सख्ती की तो वह कांपते हुए बोला, ”साहब, मैं सरिता को पहचानता हूं. उस से मेरी मुलाकात एक महीने पहले भटिंडा में हुई थी.’’

”सरिता वहां क्या करने गई थी?’’ इंसपेक्टर रोहित सारस्वत ने पूछा.

”वहां उस की बहन रहती है.’’

”हूं.’’ इंसपेक्टर ने सिर हिलाया, ”सरिता तुम से किस मकसद से मिली थी?’’

”साहब, वह मुझ से अपने पति का खून करवाना चाहती थी.’’ बग्गा सिंह ने चौंकाने वाला खुलासा किया.

”ओह!’’ इंसपेक्टर हैरानी से बोले, ”यानी सरिता अपने पति सोनू नागर की हत्या तुम से करवाना चाहती थी.’’

”जी साहब.’’ बग्गा ने सिर हिलाया.

”इस सुपारी की तुम्हें कितनी रकम मिली बग्गाï?’’

”डेढ़ लाख रुपए में यह सौदा हुआ था. सरिता ने 50 हजार रुपए पेशगी दी थी.’’

”पेशगी लेने के बाद तुम ने सोनू की हत्या कैसे की, अब यह भी बता दो हमें.’’ बग्गा के चेहरे पर नजरें जमा कर इंसपेक्टर रमेश कौशिक ने पूछा.

”साहब, मेरा एक दोस्त है गुरमीत, वह भी सुपारी किलर है. मैं ने उसे फोन कर के 2 फरवरी को दिल्ली पहुंचने को कहा. मैं भी दिल्ली आ गया. हम कश्मीरी गेट बस अड्ïडा पर मिले, वहां से एक होटल में ठहर गए. सरिता से संपर्क कर के हम ने उसे बता दिया कि हम दिल्ली आ गए हैं. सरिता ने हमें सोनू नागर का काम तमाम करने के लिए रात को आने को कहा. हम ने दिन में ही सरिता के मकान की रेकी कर ली थी और रात को साढ़े 11 बजे हर ओर सन्नाटा होने पर उस के दरवाजे पर पहुंच गए.

”सरिता ने चुपके से घर का कुंडी खोल दी. हम दबे पांव अंदर घुसे. सोनू नागर उस वक्त सो चुका था. हम ने सोते हुए सोनू नागर को दबोच लिया. सरिता ने पांव पकड़े. गुरमीत ने सोनू नागर के हाथ पकड़े. मैं ने छाती पर चढ़ कर सोनू की गरदन दबा कर उस की हत्या कर दी.

”सोनू नागर की हत्या करने के बाद उस की लाश को हम ने बाइक पर बीच में इस तरह बिठा लिया, जैसे वह जीवित हो और हम कहीं जा रहे हों. हम सोनू की लाश ले कर शक्ति नगर के एरिया में आए और सुनसान पड़े नाले में इस लाश को फेंक दिया. इस के बाद सरिता को सब बता कर हम होटल चले गए. अगले दिन हम सरिता से रुपए ले कर श्रीमुक्तसर साहिब गुरमीत के घर आ गए.’’

बग्गा सिंह का यह बयान कलमबद्ध कर लिया गया. सरिता को पकड़ कर थाने लाने के लिए इंसपेक्टर रमेश कौशिक अपनी पुलिस टीम के साथ गुलाबी बाग पहुंच गए. सरिता घर में ही थी. उसे महिला पुलिस ने पकड़ कर पुलिस की गाड़ी में बिठा लिया. सरिता चिल्लाई, ”मुझे इस तरह पकड़ कर पुलिस की गाड़ी में क्यों बिठाया गया है? इंसपेक्टर साहब, यह कैसी बेहूदगी है?’’

”बेहूदगी कहां है सरिताजी, हम तो तुम्हें थाने ले जा रहे हैं, वहां हम ने तुम्हारे पति के कातिल को पकड़ कर बिठा लिया है. तुम्हें वही दिखाने ले जा रहे हैं.’’ इसपेक्टर कौशिक ने मुसकरा कर कहा. सरिता यह सुन कर खामोश बैठ गई.

थाने में उसे जब बग्गा सिंह के सामने ला कर खड़ा किया गया तो उस के चेहरे का रंग उड़ गया, वह धम्म से कुरसी पर बैठ गई. सरिता ने अपना जुर्म कुबूल कर लिया. पूछताछ में उस ने कहा कि पहले पति की मौत के बाद उस की जिंदगी में सोनू नागर आ गया. कुछ दिनों तक वह सोनू नागर के साथ लिवइन रिलेशनशिप में रही, फिर उस से शादी कर ली. शादी के बाद उसे मालूम हुआ कि सोनू नागर अपराधी प्रवृत्ति का आदमी है, उस की नजर उस की दुकान और मकान पर थी. वह उन्हें बेचने के चक्कर में था.

उस ने मेरी बेटी, जो स्कूल में पढ़ती थी, उस की इज्जत पर भी हाथ डाला. मैं सोनू से डरती थी, इसलिए खून का घूंट पी कर रह गई. सोनू मुझ से गालीगलौज और मारपीट भी करने लगा था. मुझे यह भी लगा कि मेरी जायदाद के लिए वह मेरी हत्या कर सकता है, इसलिए तंग आ कर मैं ने बग्गा सिंह को उस के कत्ल की सुपारी डेढ़ लाख रुपए में दे दी.

बग्गा ने अपने साथी गुरमीत के साथ

सोनू की हत्या 2 फरवरी, 2025 की रात को कर दी और लाश शक्ति नगर ले जा कर नाले में फेंक दी, जो 3 फरवरी को रूपनगर पुलिस को मिली थी. सरिता के इकबालिया बयान के बाद इस अपराध को भारतीय न्याय संहिता की धारा-103(1) के तहत सरिता और सुपारी किलर बग्गा सिंह को सक्षम न्यायालय में पेश करने के बाद जेल भेज दिया गया. गुरमीत को पकडऩे के लिए पुलिस टीम श्री मुक्तसर साहिब में छापेमारी करने गई तो वह फरार हो गया था. कथा लिखे जाने तक वह पुलिस के हाथ नहीं आया था.

 

 

Murder Stories : मंहगा फोन खरीदने के लिए युवक ने ली महिला की जान

Murder Stories : युवा गांव के हों या शहर के, सभी के लिए कीमती और ज्यादा से ज्यादा फीचर्स वाले मोबाइल फोन जरूरत नहीं बल्कि शौक बनते जा रहे हैं. कई युवा तो ऐसे फोनों को प्रस्टेज इशू बनाने लगे हैं. गौरव भी ऐसे ही युवाओं में था उस की इस चाहत ने एक ऐसी युवती की जान ले ली जो…

18 अक्तूबर, 2019 को दिन के 12 बजे का वक्त रहा होगा. एक मोबाइल फोन शोरूम के मालिक मनीष चावला ने काशीपुर कोतवाली में जो सूचना दी, उसे सुन कर पुलिस के जैसे होश ही उड़ गए. मनीष चावला ने पुलिस को बताया कि उन के शोरूम पर काम करने वाली युवती पिंकी की किसी ने हत्या कर दी है. शहर में दिनदहाड़े एक युवती की हत्या वाली बात सुनते ही कोतवाल चंद्रमोहन सिंह हैरान रह गए. उन्होंने इस की सूचना उच्चाधिकारियों को दे दी और खुद घटनास्थल के लिए रवाना हो गए. मनीष चावला का मोबाइल शोरूम कोतवाली से कुछ ही दूर गिरीताल रोड पर था, वह थोड़ी देर में ही वहां पहुंच गए.

तब तक वहां काफी भीड़भाड़ जमा हो गई थी. शव शोरूम से सटे स्टोर में पड़ा था. वहां पहुंचते ही कोतवाल चंद्रमोहन सिंह ने पिंकी के शव का जायजा लिया. वहां पर खून ही खून फैला था. उस के शरीर पर धारदार हथियार के कई घाव थे. देखने से लग रहा था जैसे शोरूम में लूटपाट भी हुई हो. कोतवाल का ध्यान सब से पहले शोरूम के सीसीटीवी कैमरों की ओर गया. पूछताछ में मनीष चावला ने बताया कि कुछ दिन पहले ही उस के सीसीटीवी कैमरे खराब हो गए थे, जिन्हें वह अभी तक सही नहीं करा पाए. सूचना मिलने पर एसएसपी बरिंदरजीत सिंह, एएसपी डा. जगदीश चंद्र, सीओ मनोज कुमार ठाकुर, ट्रेनी सीओ अमित कुमार भी वहां पहुंच गए. जांचपड़ताल के दौरान पता चला कि हत्यारे ने पिंकी के पेट पर चाकू से 8 वार किए थे, जिन के निशान साफ दिख रहे थे.

फर्श व शोरूम के काउंटर पर खून के निशान देख कर लग रहा था कि मरने से पहले पिंकी ने हत्यारों का डट कर मुकाबला किया था. एसएसपी के निर्देश पर डौग स्क्वायड और फोरैंसिक टीम भी घटना स्थल पर पहुंच गईं. लेकिन इस मामले में डौग स्क्वायड कोई मदद नहीं कर सका. फोरैंसिक टीम ने शोरूम के अंदर कई जगहों से फिंगर प्रिंट उठाए. प्राथमिक जानकारी जुटाने के बाद पुलिस ने शोरूम के मालिक मनीष चावला से पूछताछ की. चावला ने बताया कि करीब पौने 12 बजे पिंकी ने उन्हें फोन पर बताया था कि दुकान पर कोई ग्राहक आया है और पावर बैंक का रेट पूछ रहा है. पावर बैंक का रेट बताने के बाद उन्होंने पिंकी से कह दिया था कि वह कुछ देर में शोरूम पहुंचने वाले हैं.

उस के लगभग 20 मिनट बाद जब वह शोरूम पहुंचे तो वहां के हालात देख कर उन के होश उड़ गए. उन्होंने बताया कि बदमाश पिंकी की हत्या कर के शोरूम से लगभग डेढ़ लाख रुपए के मोबाइल भी लूट कर ले गए थे. पुलिस समझ नहीं पा रही थी कि पिंकी को किस ने मारा एसएसपी ने पुलिस अफसरों को इस मामले का जल्दी से जल्दी खुलासा करने के निर्देश दिए. साथ ही साथ उन्होंने जांच के लिए तुरंत पुलिस टीम गठित करने को कहा. पुलिस ने उसी वक्त शोरूम के आसपास सीसीटीवी कैमरों की तलाश की, लेकिन वहां कहीं भी सीसीटीवी कैमरा नहीं लगा था. घटना स्थल से सारे तथ्य जुटाने के बाद पुलिस ने लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी. जैसेजैसे शहर में पिंकी हत्याकांड की खबर फैलती गई लोग घटना स्थल पर जमा होते गए. हत्या के बाद पर्वतीय समाज में जबरदस्त आक्रोश पैदा हो गया.

बेटी पिंकी की हत्या के सदमे में उस के पिता मनोज बिष्ट तो सुधबुध ही खो बैठे. पिंकी के परिजनों का दुकानदार मनीष चावला के प्रति गुस्सा बढ़ता जा रहा था. उसी दिन देर शाम को काफी लोग एकत्र हो कर एएसपी डा. जगदीश चंद्र के पास पहुंचे और इस मामले का जल्दी खुलासा करने की मांग की. मृतका पिंकी के पिता ने इस घटना के लिए शोरूम मालिक मनीष चावला को जिम्मेदार ठहराते हुए उस के खिलाफ काररवाई करने की मांग की. एएसपी को सौंपी गई तहरीर में उन्होंने कहा कि शोरूम मालिक मनीष चावला ने अपने शोरूम में सुरक्षा के कोई ठोस इंतजाम नहीं किए थे. शोरूम में सीसीटीवी कैमरे तक नहीं लगाए गए थे.

पिंकी वहां काम करने पर स्वयं भी असुरक्षित महसूस कर रही थी. उस ने कई बार इस बात का जिक्र अपने घरवालों से किया था. पिंकी ने उन्हें बताया था कि उस के मालिक ने शोरूम में लगे सभी कैमरे हटवा दिए थे. जिस के कारण उसे वहां पर अकेले काम करते हुए डर लगता है. वह वहां से नौकरी छोड़ देना चाहती थी, लेकिन मनीष चावला उसे छोड़ने को तैयार नहीं था. उन्हें शक है कि मनीष चावला ने ही उन की बेटी की हत्या कराई है. पुलिस प्रशासन पर बढ़ते दवाब के कारण एएसपी ने उन की तहरीर के आधार पर केस दर्ज करने का आदेश दिया. उसी वक्त युवा पर्वतीय महासभा के पूर्व अध्यक्ष पुष्कर सिंह बिष्ट ने घोषणा की कि अगले दिन शनिवार साढ़े 5 बजे मृतका पिंकी की आत्मा की शांति तथा इस केस के शीघ्र खुलासे के लिए नगर निगम से सुभाष चौक तक कैंडल मार्च निकाला जाएगा.

अगले दिन सुबह ही पूर्व योजनानुसार कई सामाजिक संगठन सड़क पर उतर गए. सड़कों पर जन शैलाब उमड़ा तो पुलिस प्रशासन के पसीने छूटने लगे. क्योंकि इस से अगले दिन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत का काशीपुर आने का प्रोग्राम था. रावत के आगमन से एक दिन पहले ही नगर में हुए जाम और प्रदर्शन को ले कर पुलिस प्रशासन सकते में आ गया. इस जाम को हटवाने के लिए रुद्रपुर से एसएसपी बरिंदरजीत सिंह, एएसपी डा. जगदीश चंद्र, सीओ मनोज ठाकुर, ट्रेनी सीओ अमित कुमार, दीपशिखा अग्रवाल, कोतवाल चंद्रमोहन सिंह, कुंडा थाना प्रभारी राजेश यादव और आईटीआई थानाप्रभारी कुलदीप सिंह अधिकारी आदि जनसैलाब को समझाने में जुट गए.

पिंकी हत्याकांड के विरोध में सैकड़ों नागरिकों और डिगरी कालेज के छात्रों ने महाराणा प्रताप चौक तक कैंडल मार्च निकाला और शोक सभा आयोजित कर मृतका को श्रद्धांजलि दी. साथ ही हत्यारों की तुरंत गिरफ्तारी की मांग भी की. पर्वतीय महासभा के पदाधिकारियों ने पीडि़त परिवार को 40 लाख रुपए का मुआवजा और परिवार के एक सदस्य को नौकरी दिलाने की मांग की. उसी दौरान मृतका का पोस्टमार्टम होने के दौरान जनाक्रोश भड़क उठा. सैकड़ों लोग पोस्टमार्टम हाउस पर एकत्र हो गए और केस का खुलासा होने पीडि़त परिवार को मुआवजा मिलने तक शव का अंतिम संस्कार करने से इनकार करने लगे.

लोगों ने पुलिस पर लापरवाही बरतने का आरोप लगाते हुए नारेबाजी शुरू कर दी. लोग नारेबाजी करते हुए चीमा चौराहे पर जा पहुंचे. वहां पहुंच कर भी भीड़ ने काफी उत्पात मचाया. पुलिस अधिकारियों के काफी समझाने के बाद भी लोग टस से मस न हुए. यह देख एसडीएम ने लोगों को आश्वासन दिया कि 48 घंटे में इस केस का खुलासा कर दिया जाएगा. एसडीएम के आश्वासन के बाद वहां लगा जाम खुल सका. लेकिन इस के बावजूद भी पुलिस प्रशासन ने सतर्कता में ढील नहीं दी. मृतका का अंतिम संस्कार होने तक पुलिस प्रशासन चौकन्ना बना रहा. जाम हटाने के बाद प्रदर्शनकारी पोस्टमार्टम हाउस के लिए रवाना हुए तो पुलिस भी उन के पीछेपीछे रही. पोस्टमार्टम के बाद मृतका के परिजन उस के शव को सीधे श्मशान ले गए, जहां पर उस का दाह संस्कार कर दिया गया. दाहसंस्कार के बाद पुलिस ने राहत की सांस ली.

मृतका के पिता मनोज बिष्ट मूल रूप से पौड़ी गढ़वाल जिले के गांव धुमाकोट के रहने वाले थे. परिवार में मियांबीवी और बच्चों को मिला कर कुल 5 सदस्य थे. बच्चों में 2 बेटियां और उन से छोटा एक बेटा प्रवीण कुमार था. घरपरिवार के लिए नौकरी करती थी पिंकी खेती में गुजरबजर न होने के कारण करीब 2 साल पहले पिंकी अपने भाई प्रवीण को साथ ले कर रोजगार की तलाश में काशीपुर आ गई थी. काशीपुर की सैनिक कालोनी में उस की बुआ आशा रावत रहती थी. जिस के सहारे दोनों भाईबहन यहां आए थे. बुआ ने उन्हें मानपुर रोड स्थित आर.के.पुरम निवासी चंदन सिंह बिष्ट के यहां पर किराए का कमरा दिला दिया था. वहीं रहते हुए पिंकी को गिरीताल रोड स्थित मनीष चावला के मोबाइल फोन शोरूम में नौकरी मिल गई थी. पिंकी उस मोबाइल शोरूम पर अकेली ही रहती थी.

इस घटना से एक दिन पहले ही उस के पिता मनोज बिष्ट काशीपुर से दवा लेने आए थे. उस दिन वह अपनी बहन आशा रावत के घर पर ही रुके हुए थे. लेकिन उन्हें दिन के 3 बजे तक अपनी बेटी की हत्या वाली बात पता नहीं चली थी. 18 अक्तूबर, 2019 को ही दोपहर लगभग साढ़े 3 बजे फरीदाबाद से पिंकी की दूसरी बुआ मीना ने अपने भाई की खबर लेने के लिए पिंकी के मोबाइल पर फोन किया तो वह काल कोतवाल चंद्रमोहन सिंह ने रिसीव की. उन्होंने पिंकी की बुआ को बताया कि पिंकी की किसी ने हत्या कर दी है. उस के बाद मीना ने काशीपुर में अपनी बहन आशा को फोन पर उस की हत्या वाली बात बताई. बेटी की हत्या की बात सुनते ही इलाज के लिए काशीपुर आए मनोज रावत अपनी सुधबुध खो बैठे.

शनिवार की देर शाम पूर्व सीएम हरीश रावत भी मृतका के परिजनों को सांत्वना देने उन के घर पहुंचे. उन्होंने पीडि़त परिवार को सांत्वना दी. रावत ने जल्दी ही अपराधियों को पकड़ने के साथसाथ परिवार को आर्थिक सहायता दिलाने और भाई को सरकारी नौकरी दिलाने का प्रयास करने का आश्वासन दिया. रावत ने उसी वक्त डीजी (कानून व्यवस्था) अशोक कुमार से फोन पर बात कर घटना की जानकारी दी और पीडि़त परिवार की स्थिति से अवगत कराया. इन सब स्थितियों से निपटने के बाद पुलिस प्रशासन पूरी तरह से पिंकी के हत्यारों की तलाश में जुट गया. घटना स्थल से पुलिस ने मृतका का मोबाइल फोन कब्जे में लिया था. पुलिस अपनी हर काररवाई को इस हत्याकांड से जोड़ कर देख रही थी.

पिंकी की उम्र ऐसी थी जहां बच्चों के कदम बहकना कोई नई बात नहीं होती. पुलिस को शंका थी कि हत्या का कारण किसी युवक के साथ पिंकी के संबंध होना तो नहीं है. यह जानने के लिए पुलिस ने उस के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकलवाकर जांच की. लेकिन मोबाइल से कोई ऐसी जानकारी नहीं मिली जिस से उस की हत्या की गुत्थी सुलझ पाती. इस बहुचर्चित हत्याकांड के खुलासे के लिए आईजी अशोक कुमार के निर्देश पर एसएसपी बरिंदरजीत सिंह ने एएसपी डा. जगदीश चंद्र के निर्देशन में 6 पुलिस टीमें गठित कीं. इन टीमों में एक सीओ 2 ट्रेनी सीओ, 2 इंसपेक्टर, एक एसओ के अलावा 9 एसआई और 50 कांस्टेबलों के साथसाथ एसटीएफ और एसओजी की टीमों को भी लगाया गया था.

इस केस को खोलने के लिए पुलिस प्रशासन ने दिनरात एक करते हुए 5 दिनों तक नगर के अलगअलग इलाकों में लगे मोबाइल टावरों से डंप डाटा प्राप्त किए. पुलिस अधिकारी सादा कपड़ों में बाइकों से दिनभर संदिग्धों की टोह लेते नजर आए. एएसपी डा. जगदीश चंद्र, सीओ मनोज ठाकुर, कोतवाल चंद्रमोहन सिंह आदि सभी अधिकारी सादा कपड़ों में संदिग्धों की तलाश में बाजपुर रोड, मुरादाबाद, रामनगर रोड पर कई जगह वीडियो फुटेज चेक करने में जुटे रहे. इस दौरान लगभग 5 हजार संदिग्ध मोबाइल नंबरों की पड़ताल की गई. साथ ही शहर के अलगअलग वार्डों में लगे लगभग 300 सीसीटीवी कैमरों से फुटेज ली गईं. उन्हीं सीसीटीवी फुटेज के दौरान पुलिस टीम को एक संदिग्ध बाइक नजर आई. पुलिस ने उस बाइक की पहचान करने के लिए उस के मालिक के बारे में जानकारी जुटाना चाही तो उस में भी एक अड़चन सामने आ खड़ी हुई.

उस बाइक का नंबर अधूरा था. जिस का पता लगाने के लिए पुलिस को काफी माथापच्ची करनी पड़ी. इस के लिए पुलिस ने बाइक के नंबर की 3 सीरिज में पड़ताल की और तीनों बाइक मालिकों के बारे में जानकारी जुटाई. तफ्तीश रंग लाने लगी सीसीटीवी फुटेज से प्राप्त जानकारी के अनुसार पुलिस बाइक नंबर यूके18जे0431 ट्रेस करने के बाद बाइक मालिक के पास पहुंची. पुलिस ने इस बाइक के मालिक कचनालगाजी निवासी मनोज उर्फ मोंटी से पूछताछ की. अपने घर पुलिस को आई देख मनोज उर्फ मोंटी के हाथपांव फूल गए. पुलिस पूछताछ में मोंटी ने बताया कि उस की बाइक मुरादाबाद के थाना भगतपुर क्षेत्र के गांव मानपुरदत्ता निवासी गौरव ले गया था. उस ने आगे बताया कि गौरव उस का रिश्तेदार है.

18 अक्तूबर को गौरव एक युवक के साथ उस के यहां आया था. उसी दिन वह उस की बाइक मांग कर ले गया था. लेकिन जब वे दोनों एक घंटे बाद घर लौटे तो दोनों के कपड़ों पर खून लगा था. उन की हालत देख डर की वजह से उस का भाई विनोद उर्फ डंपी दोनों को उन के गांव मानपुरदत्ता छोड़ आया था. यह जानकारी मिलते ही पुलिस ने मनोज और उस के भाई विनोद को अपनी हिरासत में ले लिया. उस के बाद पुलिस उन दोनों को ले कर गांव मानपुरदत्ता पहुंची. जहां से पुलिस ने गौरव और उस के दोस्त रोहित को हिरासत में ले लिया. मनोज और विनोद को पुलिस जिप्सी में बैठे देख गौरव और रोहित समझ गए कि अब पुलिस के सामने अपनी सफाई पेश करने से कोई लाभ नहीं. क्योंकि मनोज और विनोद पुलिस को सबकुछ उगल कर ही यहां आए होंगे. सभी को ले कर पुलिस टीम सीधे काशीपुर कोतवाली आ गई.

पुलिस ने चारों आरोपियों से एक साथ कड़ी पूछताछ की. पुलिस के सामने अपना जुर्म कबूल करने के बाद उन में से कोई भी नहीं मुकर सका. चारों आरोपियों ने स्वीकार किया कि उन्होंने ही मोबाइल लूट के लिए पिंकी की जान ली थी. उन की निशानदेही पर पुलिस ने पिंकी की हत्या में इस्तेमाल किए गए चाकू, शोरूम से लूटे गए 10 महंगे मोबाइल फोन, खून से सने कपड़े बरामद कर लिए. पुलिस पूछताछ में पता चला कि इस हत्याकांड को अंजाम देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका गौरव की थी. थाना भगतपर, मुरादाबाद निवासी गौरव कुमार बीकौम द्वितीय वर्ष का छात्र था. वह पढ़ाई के प्रति गंभीर था. लेकिन पढ़ाई के साथसाथ उसे महंगे मोबाइल रखने का भी शौक था. जिस के लिए वह पढ़ाई के साथसाथ कोई भी काम करने में शर्म नहीं करता था.

इस वारदात को अंजाम देने से 6 माह पूर्व उस ने दिनरात पेंटिंग का काम किया. उसी कमाई से उस ने एक महंगा मोबाइल खरीदा. लेकिन एक महीने बाद ही उस का मोबाइल कहीं पर गिर गया. वह मोबाइल उस ने कड़ी मेहनत कर के खरीदा था. मोबाइल खो जाने का उसे जबरदस्त झटका लगा. उस के पास इतने पैसे इकट्ठा नहीं हो पा रहे थे कि वह उन पैसों से एक दूसरा नया एंड्रोयड मोबाइल फोन खरीद सके. गौरव काशीपुर से ही सरकारी नौकरी के लिए कोचिंग कर रहा था. उस का काशीपुर आनाजाना लगा रहता था. आतेजाते कई बार उस की नजर गिरीताल रोड पर स्थित मनीष चावला के मोबाइल फोन शोरूम पर पड़ी थी, जहां पर उस ने कई बार एक अकेली युवती को बैठे देखा था. उस युवती से उस ने मोबाइलों के रेट भी मालूम करने की कोशिश की थी. उसी दौरान उसे पता चला कि इस शोरूम में महंगे से महंगे मोबाइल मौजूद हैं.

हत्यारा बन गया मोबाइल की चाह में उस के बाद गौरव ने उसी शोरूम से मोबाइल लूटने की साजिश रची. उस ने इस बात का जिक्र अपने साथ कोचिंग कर हरे 2 साथियों से किया. यह जानकारी मिलते ही उस के दोनों साथियों ने 17 अक्तूबर को गिरीताल रोड पर जा कर मोबाइल शोरूम की रेकी की. लेकिन उस के साथ आए दोनों साथी इस काम में उस का साथ देने से पीछे हट गए. उस के बाद उस ने अपने ही गांव के रहने वाले किशोर कुमार को इस काम के लिए राजी कर लिया. 18 अक्तूबर को किशोर अपने घर से स्कूल बैग ले कर निकला. लेकिन स्कूल न जा कर वह गौरव के बहकावे में आ कर उस के साथ सीधा काशीपुर आ गया. किशोर कक्षा 10 में पढ़ रहा था. किशोर हेकड़ था. इसीलिए वह उस दिन घर से ही पूरी तरह तैयार हो चाकू ले कर निकला था.

इसी दौरान रास्ते में उन दोनों की मुलाकात रोहित से हुई. रोहित जागरण मंडली में काम करता था. वह भी महंगा मोबाइल खरीदना चाहता था. लेकिन वह पैसे की तंगी की वजह से खरीद न पाया था. गौरव ने उसे भी महंगा मोबाइल दिलाने का झांसा दिया तो वह भी उस का साथ देने के लिए तैयार हो गया. पूर्व नियोजित योजनानुसार गौरव जिस वक्त अपने साथियों के साथ मोबाइल शोरूम पर पहुंचा, उस वक्त पिंकी शोरूम में अकेली थी. वहां पहुंचते ही गौरव ने पिंकी से पावर बैंक और महंगा मोबाइल दिखाने की बात कही. तभी गौरव ने पिंकी से पीने के लिए पानी मांगा. जैसे ही पिंकी वाटर कूलर से पानी निकालने के लिए झुकी, उसी दौरान गौरव ने साथ लाया बेहोश करने वाला स्प्रे छिड़क कर उसे बेहोश करने की कोशिश की.

स्प्रे करते ही गौरव ने पिंकी को अपने कब्जे में ले लिया. उस के बाद पिंकी ने चिल्लाने की कोशिश की तो सामने खड़े किशोर ने हाथ से उस का मुंह बंद कर दिया. पिंकी पूरी तरह से बेहोश नहीं हुई थी, इसलिए वह बुरी तरह चिल्लाने लगी तो रोहित ने चाकू से उस पर वार करने शुरू कर दिए, जिस से वह फर्श पर गिर गई. रोहित पिंकी पर तब तक चाकू से वार करता रह

Crime news : लेडी डाक्टर के साथ गैंगरेप किया और जला डाला

Crime news : दुर्दांत दरिंदों के जाल में फंस कर जान गंवा चुकी दिल्ली की निर्भया के गुनहगारों को सजा मिलने से पहले, हैदराबाद में भी एक लेडी डाक्टर के साथ बर्बरतापूर्ण ऐसी ही दरिंदगी हुई. फर्क बस इतना रहा कि दिल्ली के गुनहगारों को सजा नहीं मिली पर हैदराबाद के दरिंदों ने अपनी सजा खुद चुन ली…

अगर कोई युवती या महिला शिक्षित होने के साथसाथ खूबसूरत, हंसमुख, मृदुभाषी, शालीन और आत्मनिर्भर हो तो उसे सर्वगुण संपन्न माना जाता है. हैदराबाद की 27 वर्षीय डा. प्रियांशी रेड्डी ऐसी ही युवती थी. पेशे से पशु चिकित्सक प्रियांशी रेड्डी 27 नवंबर, 2019  को औफिस जाने के लिए सुबह 8 बजे घर से निकली. उस का औफिस घर से काफी दूर था, इसलिए उसे घर से जल्दी निकलना पड़ता था. वह शमशाबाद स्थित टोल प्लाजा के नजदीक एक जगह अपनी स्कूटी पार्क करती थी और फिर कैब से कोल्लुरु स्थित पशु चिकित्सालय जाती थी. छुट्टियों को छोड़ कर डा. प्रियांशी का यह रोजमर्रा का काम था. शाम को औफिस से लौटते वक्त वह पार्किंग से स्कूटी ले कर घर आती थी.

27 नवंबर, 2019 को हौस्पिटल से घर लौटने में उसे थोड़ी देर हो गई थी. साढ़े 7 बजे जब वह टोल प्लाजा पार्किंग पहुंची तो देखा उस की स्कूटी का पिछला पहिया पंक्चर था. रात का अंधेरा गहरा चुका था. प्रियांशी यह सोच कर परेशान हो गई कि घर कैसे जाएगी. इतनी रात गए पंक्चर लगना मुश्किल था. दूरदूर तक पंक्चर बनाने वाला कोई नहीं था. स्कूटी को ले कर प्रियांशी काफी परेशान हुई. पार्किंग में जहां स्कूटी खड़ी थी, उस के पास ही एक लोडेड ट्रक खड़ा था. जैसेजैसे रात गहरा रही थी, प्रियांशी की धड़कनें बढ़ती जा रही थीं. परेशानी स्वाभाविक ही थी. वजह यह कि एक तो वह अकेली महिला थी, ऊपर से सुनसान इलाका. वैसे भी वहां सब अजनबी थे.

वहां से थोड़ी दूर अंधेरे में खडे़ 4 लोगों की आंखें प्रियांशी पर जमी थीं. उस की परेशानी को समझ कर वे खुश थे. जब उन्हें लगा कि वह कुछ ज्यादा ही परेशान है तो वे प्रियांशी के पास आए. उन 4 अजनबियों को देख वह और ज्यादा डर गई. उन चारों में से एक हट्टाकट्टा युवक बोला, ‘‘काफी देर से देख रहे हैं कि आप काफी परेशान हैं. क्या हम आप की कोई मदद कर सकते हैं?’’

प्रियका ने सहम कर उन चारों को देखा और कुछ सोच कर दबी जुबान में बोली, ‘‘पता नहीं कैसे मेरी स्कूटी का पहिया पंक्चर हो गया. आसपास कोई दुकान भी नहीं दिख रही, जहां इसे ठीक करा लूं.’’

‘‘इस में परेशानी की क्या बात है मैडम?’’ वह युवक उतावला हो कर बोला, ‘‘आप कहें तो हम आप की परेशानी दूर कर सकते हैं. मैं एक पंक्चर बनाने वाले को जानता हूं, जो देर रात तक पंक्चर बनाता है.’’

‘‘प्लीज, आप मेरी मदद कीजिए, किसी भी तरह मेरी स्कूटी ठीक करा दीजिए. आप लोगों का बहुत अहसान होगा मुझ पर.’’

‘‘अरे मैडम, इस में अहसान की क्या बात है. हम भी तो इंसान हैं. इंसान एकदूसरे के काम न आए तो धिक्कार है इंसानियत पर.’’ उस युवक की भावनात्मक बातें सुन कर प्रियांशी का डर थोड़ा कम हुआ. उस ने चारों युवकों को स्कूटी ठीक कराने को कह दिया. प्रियांशी की स्वीकृति मिलते ही चारों युवकों ने स्कूटी का पिछला पहिया खोल कर निकाल लिया और पंक्चर बनवाने के लिए वहां से चले गए. युवकों के वहां से जाने के बाद प्रियांशी ने अपनी छोटी बहन रुचिका को फोन कर के सारी स्थिति बता दी. साथ ही कहा कि उसे घर पहुंचने में देर हो सकती है. स्कूटी ठीक होते ही वह घर के लिए निकल जाएगी. दोनों बहनों के बीच करीब 15 मिनट तक बातें होती रहीं. आखिर में प्रियांशी ने थोड़ी देर बाद बात करने के लिए कहा. प्रियांशी ने जब अपनी ओर से फोन डिसकनेक्ट किया, तब 9 बज कर 22 मिनट हो रहे थे.

कहीं नहीं मिली प्रियांशी कुछ देर रुक कर रुचिका ने यह जानने के लिए प्रियांशी को फोन किया कि स्कूटी ठीक हुई या नहीं. लेकिन दूसरी ओर से फोन स्विच्ड औफ बताया गया. इस के बाद रुचिका प्रियांशी का नंबर लगातार मिलाती रही, लेकिन उस का फोन बंद ही मिला. इस से रुचिका परेशान हो गई. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि जिस नंबर पर उस ने थोड़ी देर पहले बात की थी, वह बंद कैसे हो गया. घबराहट के मारे उस की धड़कनें बढ़ गईं. तब तक रात के करीब 10 बज गए थे. रुचिका ने जब यह बात मातापिता को बताई तो वे भी घबरा गए. उस के पिता पी.एस. रेड्डी बगैर समय गंवाए रुचिका और बेटे समीर को साथ ले कर प्रियांशी की तलाश में टोल प्लाजा जा पहुंचे, जहां प्रियांशी ने अपनी मौजूदगी बताई थी.

पी.एस. रेड्डी और उन के दोनों बच्चों ने आसपास सब जगह छान मारीं, लेकिन न तो प्रियांशी कहीं दिखी और न ही उस की स्कूटी. टोल प्लाजा के पास लोडेड ट्रक खड़ा था. यह देख कर वे लोग और भी ज्यादा परेशान हुए. प्रियांशी ने फोन पर रुचिका को वहीं होने की बात कही थी. जब प्रियांशी कहीं नहीं मिली तो वह यह सोच कर डर गए कि कहीं उस के साथ कोई अनहोनी तो नहीं घट गई है. ऐसे में पी.एस. रेड्डी के मन में बुरेबुरे खयाल आने लगे. वह मन ही मन फरियाद करने लगे कि उन की बेटी जहां भी हो, सहीसलामत और सुरक्षित हो. रेड्डी के मन में खयाल आ रहा था कि क्यों न घर फोन कर के पत्नी से पूछ लें कि बेटी कहीं घर तो नहीं पहुंच गई.

रेड्डी ने पत्नी को फोन कर के बेटी के बारे में पूछा तो उस ने बताया कि प्रियांशी अभी घर नहीं पहुंची है. जवाब सुन कर रेड्डी और भी ज्यादा परेशान हो गए. परेशानी के आलम में रात गहराती जा रही थी. जब कुछ भी समझ में नहीं आया तो रुचिका, पिता और भाई को ले कर साइबराबाद थाने पहुंच गई. उस समय रात के करीब 12 बज रहे थे. थाने पहुंच कर उस ने दीवान को अपनी परेशानी बताई और आवश्यक काररवाई करने के लिए बहन की गुमशुदगी की तहरीर दी. साइबराबाद पुलिस ने काररवाई करने के बजाए कहा कि यह मामला उन के थाना क्षेत्र का नहीं है. वहां की पुलिस ने उन्हें थाना शमशाबाद भेज दिया. जिस जगह से प्रियांशी गुम हुई थी, वह इलाका थाना शमशाबाद में आता था.

शमशाबाद पुलिस ने उन की बात सुनी और प्रियांशी की तलाश में रेड्डी परिवार के साथ कई सिपाही लगा दिए. रेड्डी परिवार और पुलिस ने मिल कर सुबह 4 बजे तक तलाशी अभियान चलाया, लेकिन प्रियांशी का कहीं पता नहीं चला. उस के अचानक गुम हो जाने से रेड्डी परिवार के अड़ोसपड़ोस वाले भी हैरानपरेशान थे. प्रियांशी को तलाश करतेकरते सुबह हो गई थी, लेकिन उस का कहीं पता नहीं चला. परिवार वालों ने अपने परिचितों और नातेरिश्तेदारों को भी फोन कर के पता किया लेकिन प्रियांशी का कोई पता नहीं चला. उस की गुमशुदगी से नातेरिश्तेदार भी परेशान थे. रेड्डी परिवार समझ नहीं पा रहा था कि क्या करे.

परेशान हो कर रेड्डी बच्चों के साथ घर लौट आए. तब तक सुबह के 7 बज गए थे. थकेहारे रेड्डी अपने बरामदे में चिंतातुर कुरसी पर बैठे थे. तभी करीब 8 बजे उन के मोबाइल पर फोन आया, फोन शमशाबाद थाने से आया था. उन्हें तत्काल शमशाबाद थाने पहुंचने को कहा गया था. फोन पर आई काल सुनते ही पी.एस. रेड्डी का कलेजा धक से रह गया. रुचिका और समीर को साथ ले कर वह थाना शमशाबाद पहुंच गए. थाने पर उन्हें बताया गया कि करीब 40 किलोमीटर दूर हैदराबाद-बेंगलुरु हाइवे पर चत्तनपल्ली पुलिया के नीचे एक महिला की जली हुई लाश मिली है, आप हमारे साथ चल कर शिनाख्त कर लें.

लाश बरामद होने की बात सुन कर भाईबहन और पिता सन्न रह गए. रेड्डी साहब को तो ऐसा झटका लगा कि वह घुटनों में सिर रख कर पास पड़ी कुरसी पर बैठ गए. रुचिका ने पिता को संभाला और उन्हें पुलिस के साथ ले कर घटनास्थल जा पहुंची. हैदराबाद-बेंगलुरु राष्ट्रीय राजमार्ग की पुलिया के नीचे एक युवती की बुरी तरह जली लाश पड़ी थी. लाश इतनी ज्यादा जल गई थी कि पहचानना मुश्किल था. उत्सुकतावश रुचिका लाश के पास पहुंची और ध्यान से देखने लगी. लाश के गले में लौकेट पड़ा था. प्रियांशी ऐसा ही लौकेट पहनती थी. गले में पड़े लौकेट को देख रुचिका दहाड़ मार कर रोने लगी.

इस से यह बात साफ हो गई कि लाश डा. प्रियांशी रेड्डी की थी. यह देख पुलिस समझ गई कि मृतका डा. प्रियांशी रेड्डी ही है. वही प्रियांशी जो कोल्लुरु स्थित पशु चिकित्सालय में बतौर डाक्टर तैनात थी. डा. प्रियांशी रेड्डी की लाश बरामद होते ही यह मामला हाईप्रोफाइल बन गया. यह खबर तेजी से फैली. प्रियांशी की हत्या की सूचना मिलते ही लोग उग्र और आक्रोशित हो गए. शहरी नागरिकों के आक्रोश को देख पुलिस के हाथपांव फूल गए. शहर के लोगों में इस बात को ले कर आक्रोश था कि हत्यारों ने प्रियांशी की हत्या क्यों की और हत्या के बाद उसे जलाया क्यों?

जिले की कानूनव्यवस्था गड़बड़ाती, इस से पहले ही पुलिस सक्रिय हो गई. पुलिस फोर्स को यहांवहां मुस्तैदी से तैनात कर दिया गया. बात बढ़े, इस से पहले ही पुलिस ने चतुराई से लाश का पंचनामा भर कर उसे पोस्टमार्टम के लिए अस्पताल भिजवा दिया. 29 नवंबर, 2019 को मृतका की पोस्टमार्टम रिपोर्ट आ गई. पोस्टमार्टम रिपोर्ट पढ़ कर पुलिस के हाथपांव फूल गए. रिपोर्ट में बताया गया था कि पहले मृतका के साथ बलात्कार किया गया और बाद में उस का गला घोंटा गया. मतलब मामला बलात्कार और कत्ल का था. प्रियांशी के साथ बलात्कार के बाद हत्या की पुष्टि होेते ही हाहाकार मच गया. न्यूज चैनलों और सोशल मीडिया के माध्यम से यह खबर देश भर में फैल गई.

इस घटना को ले कर देश भर में गुस्सा फूटने लगा. सोशल मीडिया से ले कर आम नागरिक तक सड़क पर उतर आए. लोग दरिंदों के लिए फांसी की मांग कर रहे थे. इस घटना ने करीब 7 साल पहले दिल्ली के धौला कुआं में निर्भया के साथ घटी घटना की यादें ताजा कर दी थीं. दरिंदों ने निर्भया के साथ हद दरजे की दरिंदगी की थी. दरिंदगी और बर्बरता की वजह से निर्भया की मौत हो गई थी. प्रियांशी का परिवार ही नहीं देश भर के लोग सरकार से दुष्कर्मियों को मार डालने की गुहार लगा रहे थे. डा. प्रियांशी रेड्डी के रेप और हत्या की हर तबके, हर धर्म के लोगों ने न केवल निंदा की बल्कि हत्यारों को तुरंत फांसी पर चढ़ाने को कहा. घटना में पुलिस की घोर लापरवाही को ले कर लोग उस पर तमाम तरह के आरोप लगा रहे थे.

जब देश भर में बेंगलुरु पुलिस की किरकिरी होने लगी तो प्रदेश के पुलिस महानिदेशक और मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव ने आरोपियों को जल्द से जल्द गिरफ्तार करने का आदेश दिया. डीजीपी का आदेश मिलते ही साइबराबाद के पुलिस कमिश्नर वी.सी. सज्जनार ने इस मामले को गंभीरता से लिया. उन के आदेश पर पुलिस गुनहगारों की सघन तलाशी में जुट गई. सज्जनार के आदेश पर पुलिस ने जांच वहीं से शुरू की, जहां से डा. प्रियांशी गुम हुई थी. सज्जनार ने सब से पहले खुद टोल प्लाजा के आसपास के सीसीटीवी फुटेज देखे. सीसीटीवी ही ऐसा चश्मदीद हो सकता था, जो पुलिस को बलात्कारी हत्यारों तक पहुंचा सकता था.

टोल प्लाजा पर पूछताछ करने पर पता चला था कि बीती रात एक लोडेड ट्रक वहां रुका था, जिस में केवल 4 युवक सवार थे. टोल प्लाजा के पास एक कैमरे में 4 युवक, जिन की उम्र 22 से 27 साल के बीच थी, चहलकदमी करते हुए दिखाई दिए. पहनावे से वे चारों ड्राइवर जैसे दिख रहे थे. पुलिस कमिश्नर वी.सी. सज्जनार ने टोल प्लाजा के आसपास के लोगों से पूछताछ की तो उन से भी यही पता चला कि काफी देर तक खड़ी रहे लोडेड ट्रक के आसपास 4 युवक देखे गए थे. सीसीटीवी फुटेज में चारों युवक संदिग्ध दिख रहे थे. सीसीटीवी कैमरे और लोगों से की गई पूछताछ से यह बात तय हो गई थी कि संदिग्ध दिखने वाले चारों युवक ही दोषी थे.

ट्रक वाले युवक आए संदेह के दायरे में पूछताछ में पुलिस ने जैसेतैसे चारों युवकों के नाम खोज निकाले. उन में से एक का नाम मोहम्मद पाशा उर्फ आरिफ, जोलू नवीन, जोलू शिवा और चिंताकुंता चेन्नाकेशवुलू उर्फ चेन्ना था. इन में से 26 साल का पाशा और 20 साल का जोलू शिवा लौरी ड्राइवर थे, जबकि 23 वर्षीय जोलू नवीन और 20 साल का चिंताकुंता चेन्नाकेशवुलू क्लीनर थे. यह बात सज्जनार के लिए काफी काम की साबित हुई. निर्दयी हत्यारों तक पहुंचने के लिए शादनगर पुलिस और शमशाबाद पुलिस को साथ काम करने को कहा गया. पुलिस ने चारों हत्यारों तक पहुंचने के लिए मुखबिरों का जाल बिछा दिया. जांचपड़ताल में मोहम्मद पाशा उर्फ आरिफ के बारे में जानकारी मिली. वह महबूबनगर जिले के नारायणपेट का रहने वाला था.

पाशा के बारे में सूचना मिलते ही पुलिस ने उसे उस के घर से धर दबोचा. पुलिस उसे थाना शादनगर ले आई. कमिश्नर सज्जनार की देखरेख में थाने में उस से सख्ती से पूछताछ की गई तो उस ने जुबान खोल दी. पाशा ने प्रियांशी की स्कूटी से ले कर उसे जलाने तक की कहानी बता दी. उस ने कमिश्नर के सामने अपना जुर्म कबूल करते हुए बताया कि उस ने अपने 3 साथियों जोलू नवीन, जोलू शिवा और चेन्ना के साथ मिल कर प्रियांशी रेड्डी के साथ बलात्कार किया था. राज छिपाने के लिए बाद में चारों ने मिल कर उस की हत्या कर दी थी और लाश को जला दिया था. उस ने इस से आगे की सारी बातें विस्तार से बता दीं कि क्याक्या और कैसे हुआ था. पाशा का बयान दिल दहलाने वाला था.

खैर, सज्जनार ने काफी समझदारी से काम लेते हुए पाशा उर्फ आरिफ की निशानदेही पर तीनों दरिंदों जोलू नवीन, जोलू शिवा और चेन्ना को उन के घरों से गिरफ्तार कर लिया. ये तीनों भी महबूबनगर के नारायणपेट के रहने वाले थे, जिन में नवीन और शिवा सगे भाई थे. इन तीनों ने भी अपनाअपना जुर्म कबूल कर लिया. 30 नवंबर, 2019 को डा. प्रियांशी रेड्डी केस के चारों मुलजिमों की गिरफ्तारी की खबर लगते ही स्थानीय लोग आक्रोशित हो गए और उन्होंने शादनगर थाने पर धावा बोल दिया. लोगों का कहना था कि चारों दरिंदों को उन के हवाले कर दिया जाए. जिस तरह इन दरिंदों ने मिल कर प्रियांशी के साथ बर्बरता की, उसी तरह उन के साथ भी किया जाएगा.

काफी मशक्कत के बाद जैसतैसे सज्जनार ने स्थिति को संभाला और भीड़ को भरोसा दिया कि प्रियांशी का बलिदान बेकार नहीं जाएगा. उस के चारों गुनहगारों को कड़ी सजा दिलाने में वह पीछे नहीं रहेंगे. उन के आश्वासन पर लोगों का आक्रोश शांत हुआ. लोगों के आक्रोश को देख कर मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव ने पहली बार कहा कि प्रियांशी के आरोपियों को सजा दिलाने के लिए मुकदमा फास्टट्रैक कोर्ट में चलेगा और मुलजिमों को 6 महीने के अंदर कड़ी से कड़ी सजा दिलाई जाएगी. इस के बाद पुलिस कमिश्नर सज्जनार ने चारों अभियुक्तों को अदालत में पेश कर के जेल भेज दिया. उन से की गई पूछताछ के बाद दुष्कर्म, हत्या और वहशत से जुड़ी दुर्दांत हत्यारों की हकीकत पता चली.

27 वर्षीय प्रियांशी रेड्डी मूलरूप से हैदराबाद के साइबराबाद की रहने वाली थी. पी.एस. रेड्डी की 3 संतानों में प्रियांशी बड़ी थी. जबकि भाई समीर और रुचिता छोटे थे. प्रियांशी अपनी मेहनत के बूते पर पशु चिकित्सक बनी थी. प्रियांशी रेड्डी का औफिस घर से करीब 30-35 किलोमीटर दूर नवाबपेट मंडल के कोल्लुर में था. ड्यूटी के लिए वह रोजाना सुबह लगभग 8 बजे अपनी स्कूटी से घर से निकलती थी. स्कूटी को वह शमशाबाद टोल प्लाजा के नजदीक पार्क कर के वहां से कैब ले कर कोल्लुर जाती थी. फिर शाम 5 बजे के करीब वह कोल्लुर से कैब ले कर टोल प्लाजा आती और वहां से अपनी स्कूटी ले कर घर पहुंच जाती थी.

घटना से कुछ दिनों पहले उसी टोल प्लाजा पर महबूबनगर के नारायणपेट का रहने वाला मोहम्मद आरिफ उर्फ पाशा अपनी लौरी ट्रक ले कर रुका था. उस की लौरी में हेल्पर के रूप में उसी के गांव के 3 युवक जोलू नवीन, जोलू शिवा और चिंताकुंता चेन्नाकेशवुलू सवार थे. आरिफ जब भी लौरी ले कर बाहर निकलता था, ये तीनों उस के साथ रहते थे. मोहम्मद आरिफ उर्फ पाशा शादीशुदा था. उस की पत्नी ससुराल में पति और सासससुर के साथ रहती थी. आरिफ अपने गांव और घर में किसी से कोई खास मेलजोल नहीं रखता था. वह अपने काम से काम रखता था, जबकि जोलू नवीन, जोलू शिवा और चेन्ना खुराफाती दिमाग के थे.

गांव में हमेशा सब से झगड़ा करते थे, झगड़ालू प्रवृत्ति के तीनों युवकों से गांव वाले अलगथलग रहते थे, ताकि अपना सम्मान बचाए रखें. कम पढ़ेलिखे तीनों युवक बातबात पर भद्दीभद्दी गालियां देने से भी नहीं चूकते थे. कैसे आई प्रियांशी हैवानों के निशाने पर बहरहाल, जिस समय आरिफ लौरी ले कर टोल प्लाजा पर रुका था, उसी समय प्रियांशी भी टोल प्लाजा अपनी स्कूटी लेने पहुंची थी. प्रियांशी की खूबसूरती देख कर आरिफ के मन में पाप जाग उठा. वह तब तक प्रियांशी को देखता रहा, जब तक उस की आंखों से ओझल नहीं हो गई. प्रियांशी के जाने के बाद आरिफ होंठों ही होंठों में बुदबुदाया, ‘‘क्या माल है यार.’’

आरिफ को बुदबुदाता देख जोलू पूछ बैठा, ‘‘क्या बात है पाशा उस्ताद, किस की बात कर रहे हो?’’

आरिफ ने जवाब दिया, ‘‘कुछ नहीं यार, बस ऐसे ही कह रहा था. कोई बात नहीं है. चलो, चायशाय पीते हैं. फिर अपनी धन्नो को आगे बढ़ाएंगे.’’

आरिफ ने जोलू की बात टाल दी और चाय की दुकान की ओर बढ़ गया. चारों चाय पी कर लौरी से आगे चले गए. आरिफ माल की डिलिवरी दे कर जब 2 दिनों बाद शाम को उसी रास्ते पर लौटा तो उस ने टोल प्लाजा पर फिर अपनी लौरी रोक दी. उसे चाय की जोरों से तलब लगी थी. जब उस ने लौरी सड़क किनारे लगाई, तभी उस की नजर प्रियांशी पर पड़ी. प्रियांशी पार्किंग से अपनी स्कूटी निकाल रही थी. वह उसे तब तक खा जाने वाली नजरों से घूरता रहा, जब तक वह दिखती रही. डा प्रियांशी रेड्डी ने इस तरफ ध्यान नहीं दिया और वह अपनी स्कूटी ले कर घर चली गई.

उस दिन के बाद आरिफ जब भी लौरी ले कर माल की डिलिवरी करने जाता, टोल प्लाजा के पास अपनी लौरी खड़ी कर के चाय की चुस्की लेने के बहाने प्रियांशी की स्कूटी देखता और चाय पी कर चला जाता. उसे यकीन हो गया था कि प्रियांशी रोज अपनी स्कूटी यहीं खड़ी करती है और फिर कहीं जाती है. आरिफ को बस इतना पता था कि उस के दिमाग में कुछ हलचल सी हुई है. उस के जिस्म में अय्याशी के कीड़े कुलबुलाने लगे. उस ने अपने साथियों के साथ मिल कर एक खरतनाक योजना बना ली थी और उस दिन के बाद वह प्रियांशी पर नजर रखने लगा था. वह सही मौके की तलाश में जुट गया. आखिरकार वह मौका उसे 27 सितंबर, 2019 को मिल ही गया.

उस दिन शाम करीब 5 बजे आरिफ लौरी ट्रक ले कर टोल प्लाजा पहुंचा और लौरी को एक ओर खड़ी कर के चाय की दुकान पर चाय पीने चला गया. उस के साथ तीनों हेल्पर जोलू शिवा, जोलू नवीन और चेन्ना भी थे. आरिफ को पता था कि प्रियांशी के आने का समय हो रहा है. चाय पीने के बाद उस ने अपने साथियों को वहां से उठने का इशारा किया. योजनानुसार प्रियांशी को किसी भी तरह रात 9 बजे तक रोकना था. इस के लिए आरिफ ने नुकीली कील से प्रियांशी की स्कूटी का पिछला पहिया पंक्चर कर दिया और चारों वहां से थोड़ी दूर हट कर उस पर नजर रखने लगे. रात करीब 7 बजे प्रियांशी टोल प्लाजा पहुंची. वहां से वह पार्किंग में गई, जहां उस ने अपनी स्कूटी पार्क की थी. स्कूटी पंक्चर देख कर उस का माथा चकरा गया कि वह घर कैसे पहुंचेगी? स्कूटी को ले कर वह परेशान हो गई.

योजना के अनुसार, तभी आरिफ तीनों साथियों के साथ प्रियांशी के पास पहुंचा और परेशानी का सबब पूछा तो उस ने बता दिया कि उस की स्कूटी पंक्चर है और इतनी रात गए कहीं पंक्चर लग नहीं सकता. आरिफ और उस के तीनों साथी मन ही मन खुश हुए. शिकार जाल में फंस गया था. बस चोट करने की देरी थी. तभी आरिफ ने उस के सामने पंक्चर लगवा देने की पेशकश की तो प्रियांशी ने सकुचाते हुए हां कर दी. प्रियांशी की ओर से हरी झंडी मिलते ही आरिफ ने पिछला पहिया खोल कर जोलू शिवा को सौंप दिया कि वह पंक्चर लगवा कर ले आए. इसी बीच प्रियांशी ने छोटी बहन रुचिका को फोन कर के बता दिया कि उस की स्कूटी पंक्चर है. कुछ लोग उस की मदद के लिए तैयार हैं. लेकिन पता नहीं क्यों उसे डर सा लग रहा है. उस ने आगे कहा कि वह तब तक बात करती रहे, जब तक कि पंक्चर लग कर आ न जाए.

प्रियांशी की आखिरी फोन काल इस पर रुचिका ने उसे सलाह दी कि डर लग रहा है तो पुलिस को फोन कर दे या आसपास कोई ओर हो तो उस की मदद ले ले. या फिर स्कूटी वहीं छोड़ कर कैब ले कर घर चली आए. उस समय रात के 9 बज कर 22 मिनट हो रहे थे और चारों ओर सन्नाटा फैल चुका था. रात के सन्नाटे में प्रियांशी तीनों लड़कों के बीच अकेली डरीसहमी खड़ी थी. छोटी बहन से बात करने के बाद प्रियांशी को उस की बात जंच गई और कैब ले कर घर जाने का मन बना लिया. उसी समय आरिफ ने देखा कि शिकार उस के हाथ से निकल रहा है. फिर क्या था, अचानक आरिफ, चेन्ना और नवीन फुरती से प्रियांशी पर झपट पड़े और उसे अपनी मजबूत बांहों में जकड़ लिया.

सब से पहले आरिफ ने उस का मोबाइल फोन अपने कब्जे में ले कर स्विच्ड औफ किया ताकि वह किसी से बात न कर पाए. उस के बाद तीनों उस का मुंह दबा कर घसीटते हुए पीछे खेत में ले गए. तीनों ने बारीबारी से अपनी हवस मिटाई. उसी समय पंक्चर लगवा कर जोलू शिवा भी वहां पहुंचा. बाद में उस ने भी अपनी जिस्मानी भूख मिटाई. अंत में एक बार फिर आरिफ ने प्रियांशी के साथ मुंह काला किया. उस समय उस के मजबूत हाथ की पकड़ प्रियांशी के मुंह और नाक पर बनी रही, जिस से दम घुटने से उस की मौत हो गई. प्रियांशी की मौत होते ही चारों के सिर से हवस का जुनून उतर गया. डर के मारे वे चारों थरथर कांपने लगे थे. आरिफ ने सुझाया कि लाश यहां छोड़ी तो पकड़े जाएंगे.

इसे ठिकाने लगाना होगा. उस के बाद चारों ने पहले प्रियांशी की लाश लौरी में लादी फिर उस की स्कूटी. उस के बाद उस ने शिवा को एक कैन दे कर पैट्रोल पंप से पैट्रोल मंगवाया. पैट्रोल लेते शिवा की तसवीर पैट्रोल पंप के सीसीटीवी कैमरे में कैद हो गई थी. शिवा पैट्रोल ले कर आया और चारों वहां से लौरी ले कर करीब 40 किलोमीटर दूर हैदराबाद-बेंगलुरु हाइवे के चत्तनपल्ली पहुंचे. इन लोगों ने हाइवे के नीचे स्थित पुलिया के अंदर लौरी खड़ी कर दी. फिर चारों ने मिल कर लौरी से प्रियांशी की डेडबौडी और स्कूटी नीचे उतारी. स्कूटी एक ओर खड़ी कर दी. फिर उस की लाश पर पैट्रोल छिड़क कर आग लगा दी. आग लगाने के बाद चारों वहां से अपनेअपने घर पहुंच गए.

वहीं मिली सजा, जहां प्रियांशी की लाश जलाई गई रात 2 बजे के करीब आरिफ अपने घर पहुंचा तो उस की मां ने उस से इतनी देर से आने का कारण पूछा. वह कुछ बोला नहीं बस इतना ही कहा कि मुझे सोने दो, सुबह बात करेंगे. फिर वह अपने कमरे में चला गया. उस समय वह बुरी तरह घबराया हुआ था. उस की मां भी उससे कुछ पूछ नहीं पाई थी. इधर प्रियांशी के घर वाले उस से बात न होने और मोबाइल स्विच्ड औफ आने के बाद टोल प्लाजा पहुंचे तो वहां न तो प्रियांशी दिखाई दी और न ही उस की स्कूटी. वह दिखाई तो तब देती जब वह वहां होती. दरिंदे तो उस का काम तमाम कर के वहां से भाग चुके थे. घर वाले रात भर उस की तलाश में मारेमारे यहांवहां फिरते रहे. अगली सुबह जब उस की जली हुई लाश बरामद हुई तो उस की तपिश से पूरा देश धधक उठा. फिर क्या हुआ, कहानी में ऊपर वर्णित है.

बहरहाल, गिरफ्तार किए गए चारों आरोपियों मोहम्मद पाशा उर्फ आरिफ, जोलू नवीन, जोलू शिवा और चेन्ना को 5 दिसंबर, 2019 को पुलिस ने अदालत से रिमांड पर लिया. उन्हें ले कर पुलिस क्राइम सीन रीक्रिएट करने के लिए उसी घटनास्थल पर पहुंची, जहां डा. प्रियांशी को जलाया था. उसी दौरान अंधेरे का लाभ उठा कर अभियुक्तों ने पुलिस के हथियार छीन कर उलटे पुलिस पर ही हमला बोल दिया और भागने की कोशिश की. इस का नतीजा यह हुआ कि पुलिस ने चारों मार गिराए. हैदराबाद के चारों हैवानों के किस्से 10 दिनों में ही खत्म हो गए.

कुछ सफेदपोशों ने इसे जानबूझ कर बदले की भावना में की गई हत्या करार दिया. उस के बाद सुप्रीम कोर्ट के आदेश से मामले की जांच के लिए मैजिस्ट्रियल जांच बैठा दी गई. अब सच्चाई जो भी निकले, लेकिन देश का हर तबका उन के मारे जाने पर खुश हुआ.

—कथा में मृतका और उस के परिजनों के नाम  परिवर्तित हैं. कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित.

 

 

Murder story : पूर्व प्रेमी के लिए पति का मर्डर

Murder story : सुमित श्रीवास्तव से मुलाकात हो जाने के बाद मानसी ने प्रेमी गणेश को छोड़ सुमित से लव मैरिज कर ली. इस दौरान ऐसा क्या हुआ कि कुछ दिनों बाद ही वह फिर से गणेश की बांहों में आने के लिए छटपटाने लगी. इस के लिए मानसी और गणेश ने जो प्लान बनाया, क्या उस में उन्हें कामयाबी मिली? पढ़ें, लव क्राइम की यह कहानी.

गणेश सुमित श्रीवास्तव को ले कर बहुत परेशान था, लेकिन वह समझ नहीं पा रहा था कि क्या करे. एक दिन वह अपने जिगरी दोस्तों दीपक कोली, शिवम गोविंदा और शिव के साथ बैठा था. ये सभी लंगोटिया यार थे. चारों हर शाम एक साथ बैठ कर खातेपीते और मौजमस्ती करते थे. उसी दौरान गणेश ने अपने दिल का दर्द अपने दोस्तों को सुनाया, ”यारो, एक बात को ले कर मैं बहुत परेशान हूं. तुम्हें तो पता ही है कि मैं मानसी को दिलोजान से चाहता हूं. उस से शादी भी करना चाहता हूं. लेकिन इस वक्त सुमित उस के दिलोदिमाग पर राज कर रहा है. यह मुझ से बरदाश्त नहीं होता.’’

अभी गणेश की बात पूरी भी नहीं हो पाई थी, तभी दीपक कोली बोला, ”अरे यार, इतनी छोटी सी बात के लिए परेशान क्यों हो रहा है. तू चाहे तो तेरे दर्द के कांटे को आज ही सफा कर डालते हैं.’’

”नहीं यार, ये काम इतनी जल्दबाजी के नहीं होते.’’

”अबे यार, तू कैसा प्रेमी है, प्रेम भी करता है और उसे पाने से डरता भी है.’’ गणेश की बात सुनते ही उस के सामने बैठे शिवम ने जबाव दिया.

”नहीं यार, ऐसा कुछ नहीं, बल्कि मैं चाहता हूं कि सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे. मैं मानसी को हर तरह से समझाबुझा कर हार चुका हूं. लेकिन वह सुमित के होते मुझ से शादी करने को तैयार नहीं.’’ गणेश ने कहा.

गणेश की बात सुनते ही उस के सामने बैठा गोविंदा बोला, ”अबे यार, तू भी निरा गोबर गणेश ही है. कोई भी प्यार करने वाली लड़की अपना मुंह नहीं खोलना चाहती. उस का तो एक ही इलाज है, सुमित को ही तुम दोनों के बीच से हटा देते हैं. न रहेगा बांस, न बजेगी बांसुरी.’’ शिवम बोला.

तभी गणेश बोला, ”यार, यह काम इतना ईजी भी तो नहीं है, जितना तुम समझ रहे हो.’’

”अरे यार क्या बात करता है, यह काम तू हम पर छोड़ दे. तू तो केवल मुरगा पार्टी का इंतजाम कर. बाकी सब हम पर छोड़ दे.’’ शिवम ने अपनी बात रखी.

उसी शाम पांचों दोस्तों ने सुमित को मौत की नींद सुलाने का प्लान बनाया. गोविंदा ने गणेश को समझाया, ”तू तो किसी भी तरह से सुमित को पार्टी के बहाने बुला लेना. जब सुमित आ जाएगा तो उसे शराब पिलाने के बाद बाकी काम हम कर देंगे. इस के बाद Murder story लाश को नदी में फेंक देंगे. किसी को कुछ पता भी नहीं चलेगा.’’

यह प्लान बनाते ही पांचों ने उस के मर्डर का दिन 14 नबंवर (गुरु पूर्णिमा) के दिन निश्चित कर दिया था. सुमित की मौत की प्लानिंग करने के बाद 13 नबंवर, 2024 को गणेश प्रेमिका मानसी से जा कर मिला. मानसी के पास जाते ही उस ने फिर से उसे समझाने की कोशिश की, ”मानसी, मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूं. मैं तुम से शादी कर तुम्हें अपनी बीवी बनाना चाहता हूं.’’

लेकिन मानसी ने उस की बात का एक ही जबाव दिया, ”गणेश, सुमित के रहते तुम्हारा यह सपना पूरा होने वाला नहीं.’’

”मानसी, अगर तुम्हें पाने के लिए मुझे सुमित के खून से हाथ भी रंगने पड़े तो मैं पीछे नहीं हटूंगा.’’ गणेश ने अपना अटूट प्यार दिखाते हुए कहा.

”ठीक है, जो तुम्हें करना है करो, इस में मैं कुछ नहीं बोलूंगी.’’ मानसी ने भी अपने मन की बात गणेश के सामने रख दी थी.

मानसी ने पति को क्यों भेजा मौत के मुंह में

मानसी की बात सुनते ही गणेश समझ गया कि वह भी यही चाहती है. तभी गणेश ने मानसी को बताया, ”14 नवंबर के दिन हम सुमित को एक शानदार पार्टी देंगे और यह पार्टी उस की जिंदगी की आखिरी पार्टी होगी.’’

यह बात मानसी को बता कर गणेश वहां से चला गया. 14 नवंबर, 2024 की शाम को अपने प्लान के मुताबिक गणेश ने मानसी से मुरगा बनाने को कहा. गणेश ने मानसी को समझा दिया था कि जैसे ही सुमित घर आए, उसे मीट ले कर हमारे पास भेज देना. शाम होते ही गणेश ने सुमित श्रीवास्तव को फोन कर बता दिया कि आज रात तुम्हारी पार्टी है. तुम जल्द ही प्रीत विहार (कल्याणी नदी) पहुंचो. लेकिन ज्यादा देर हो जाने के कारण सुमित ने जाने से मना कर दिया. उस वक्त मानसी भी उस के पास ही बैठी थी. तभी मानसी ने सुमित की बात सुनते ही कहा, ”आज शाम गणेश का फोन आया था. कह रहा था कि भाभीजी आज तो तुम्हारे हाथ का बना मुरगा खाने का मन है. हो सके तो शाम को मुरगा बना कर सुमित भैया के हाथ भिजवा देना. शायद तुम्हारे इंतजार में आज उस ने खाना भी न खाया हो.’’

मानसी की बात सुनते ही सुमित उस के बारे में सोचने पर मजबूर हो गया. फिर वह गणेश के पास जाने को तैयार भी हो गया. तब मानसी ने एक टिफिन में मुरगे का मीट और रोटियां भी रख दीं. टिफिन ले कर सुमित प्रीत विहार में कल्याणी नदी के किनारे पहुंच गया. वहां पर गणेश अपने दोस्तों के साथ उस का ही इंतजार कर रहा था. सुमित के पहुंचते ही सभी ने वहीं पर एक साथ बैठ कर शराब पी और मीट भी खाया. शराब पीने के बाद जब सुमित पर नशा हावी हो गया तो पांचों ने मौका पाते ही जूतों के फीते निकाल कर सुमित का गला घोंट दिया. जिस के थोड़ी देर बाद ही उस की मौत हो गई.

उस के बाद भी उन्होंने उस के सिर पर बियर की कई बोतलें फोड़ डालीं, ताकि वह जिंदा न बचे. उस के बाद उन्होंने उस की लाश को नदी में फेंक दिया. फिर पांचों अपनेअपने घर चले गए.

मानसी ने पति की हत्या कराने के बाद क्यों दर्ज कराई रिपोर्ट

उस रात जब सुमित घर वापस नहीं आया तो मानसी समझ गई कि गणेश ने अपना काम पूरा कर दिया है. उस ने उसे फोन इसलिए नहीं किया, क्योंकि वह उसी काल से फंस सकती थी. अगले दिन 15 नवंबर को मानसी ने अपने ससुर को फोन कर बताया कि रात सुमित घर वापस नहीं आया. उन का कहीं अतापता नहीं. मानसी के जरिए से यह बात चारों ओर फैली तो उस के फैमिली वालों ने पड़ोसियों को साथ ले कर सुमित को हर जगह ढूंढा, लेकिन उस का कहीं भी पता न चल सका.

16 नवंबर, 2024 को मानसी रोतीधोती रमपुरा पुलिस चौकी पहुंची, जहां पर उस ने सुमित के गायब होने की तहरीर दी. उस वक्त गणेश भी उस के साथ था. तभी गणेश ने शिवम को फोन कर एक बार सुमित की लाश को देखने को कहा, ताकि वे किसी भी तरह से पकड़ में न आएं. उसी शाम शिवम ने 50 किलोग्राम का नमक का कट्टा खरीदा. फिर शिवम अपने दोस्त शिव और दीपक कोली को साथ ले कर कल्याणी नदी पर पहुंचा. वहां पर पहुंचते ही उन्होंने सुमित की डैडबौडी को उस जगह से उठा कर कुछ दूरी पर ले जा कर गड्ढा खोद कर नमक डालने के बाद दफन कर दिया था.

मानसी की लिखित तहरीर के आधार पर पुलिस ने मुकदमा दर्ज कर उस की जांच शुरू की. सब से पहले पुलिस ने सुमित के घर के आसपास लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज चैक की तो उस में वह उस रात अकेला ही घर से निकलता नजर आया. उस के बाद भी पुलिस ने अन्य रास्तों पर भी लगे सीसीटीवी कैमरे चैक किए, लेकिन पुलिस के हाथ कोई सफलता हाथ नहीं लगी. 22 नवंबर को रुद्रपुर के प्रीत विहार के कुछ स्थानीय व्यक्तियों ने नदी के किनारे से तेज स्मैल आने की पुलिस से शिकायत की. लोगों की शिकायत पर पुलिस वहां पर इनवैस्टीगेशन के लिए पहुंची तो नदी किनारे एक ताजा खुदे गड्ढे से स्मैल आने का शक हुआ.

शक के आधार पर पुलिस ने उस गड्ढे को खुदवाना शुरू किया. गड्ढे से थोड़ी मिट्टी हटाने के बाद ही उस में एक इंसान का हाथ नजर आया. उस के बाद गड्ढे को और गहरा खोदा गया तो उस में से नमक निकलनी शुरू हुई. गड्ढे को कोई 5-6 फीट गहरा खोदने पर एक डैडबौडी निकली. गड्ढे से एक व्यक्ति की डैडबौडी मिलने की सूचना से पूरे क्षेत्र में सनसनी फैल गई थी. देखते ही देखते घटनास्थल पर भारी भीड़ जमा हो गई थी. पुलिस ने उस डैडबौडी को बाहर निकाल कर उस की जांचपड़ताल की तो उस के एक हाथ पर सुमित श्रीवास्तव नाम गुदा हुआ मिला. सुमित श्रीवास्तव नाम सामने आते ही पुलिस समझ गई थी कि यह वही सुमित है, जिस की गुमशुदगी की रिपोर्ट मानसी नामक युवती ने 16 नवंबर को रमपुरा पुलिस चौकी में दर्ज कराई थी.

गायब सुमित श्रीवास्तव की लाश मिलते ही पुलिस ने फोन द्वारा उस की वाइफ मानसी को इस की सूचना दी. सुमित की लाश मिलने की सूचना पर उस के फैमिली वाले रोतेबिलखते घटनास्थल पर पहुंचे. इस घटना की जानकारी मिलते ही एसपी (सिटी) मनोज कत्याल, सीओ निहारिका तोमर, कोतवाल मनोज रतूड़ी भी घटनास्थल पर पहुंचे. सभी अफसरों ने मौके पर पहुंच कर घटना का जायजा लिया. सुमित के शव की शिनाख्त होते ही पुलिस ने उसे पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया था. घटना की जानकारी मिलते ही पूर्व एमएलए राजकुमार ठुकराल, समाजसेवी संजय ठुकराल, ललित बिष्ट सहित बड़ी संख्या में लोग इकट्ठा हो गए. उन्होंने मृतकों के घर वालों को ढांढस बंधाया और पुलिस की काररवाई पर तरहतरह के सवाल भी उठाए.

एसएसपी मणिकांत मिश्रा ने इस केस को सुलझाने के लिए सीओ (सिटी) निहारिका तोमर के निर्देशन में एक पुलिस टीम बनाई. टीम में कोतवाल मनोज रतूड़ी, एसएसआई ललित मोहन रावल, एसआई नवनी बुधानी, गणेश भट्ट, जितेंद्र कुमार, होशियार सिंह, चंदन बिष्ट, चंद्र सिंह, नेहा राणा, कांस्टेबल महेंद्र कुमार, महेश राम, ताजबीर सिंह, रमेशचंद्र, दलीप कुमार आदि को शामिल किया.

पुलिस को ऐसे मिला हत्या का क्लू

पुलिस टीम ने सुमित की डैडबौडी मिलने के बाद सीसीटीवी कैमरों और सर्विलांस की मदद ली तो गणेश के साथ अन्य व्यक्ति भी जाते नजर आए. उसी दौरान पुलिस को जानकारी मिली कि गणेश का सुमित के घर पहले से आनाजाना था. इस जानकारी के मिलते ही पुलिस ने गणेश को पूछताछ के लिए उठा लिया. पुलिस ने गणेश से इस मामले में सख्ती से पूछताछ की तो उस ने अपना मुंह तक नहीं खोला. जबकि पुलिस पहले ही उस के मोबाइल को सर्विलांस पर लगा कर उस की हकीकत जान चुकी थी. पुलिस को मानसी और उस के मोबाइल पर काफी समय तक बात होने के सबूत Murder story भी मिले. इस से साफ हो गया था कि मानसी और उस के बीच जरूर पहले से ही कुछ खिचड़ी पक रही थी.

जब काफी पूछताछ के बाद भी गणेश सच्चाई बताने को तैयार नहीं हुआ तो पुलिस ने सख्ती से पूछताछ की. जिस के तुरंत बाद ही वह लाइन पर आ गया. उस ने स्वीकार किया कि मानसी और उस के बीच काफी समय से अवैध संबंध चले आ रहे थे. उसी ने मानसी को एक मोबाइल भी खरीद कर दिया था, ताकि दोनों के बीच बातचीत होती रहे. गणेश ने स्वीकार किया कि मानसी उस की पहली मोहब्बत थी. इसीलिए वह उस पर काफी पैसा लुटा चुका था. वह उस से शादी करना चाहता था. उस की चाहत में उस ने अपने दोस्तों के साथ मिल कर सुमित को मौत के घाट उतार दिया था.

यह इनफार्मेशन मिलते ही पुलिस ने उस के दोस्तों में से दीपक कोली, शिवम और शिव को भी गिरफ्तार कर लिया. अभियुक्तों व सुमित के फैमिली वालों से पूछताछ के बाद इस केस की जो स्टोरी सामने उभर कर आई, वह इस प्रकार थी. बहुत समय पहले मानसी और गणेश की फैमिली उत्तराखंड के शहर रुद्रपुर के रमपुरा में पासपास ही रहती थीं. यही कारण था कि मानसी और गणेश बचपन से ही एक साथ खेलेकूदे थे. उन की शिक्षा भी एक ही स्कूल में हुई थी. मानसी और गणेश दोनों ही साथसाथ स्कूल आतेजाते थे. कक्षा एक से कक्षा 5 तक दोनों एक साथ पढ़े थे. इसी कारण दोनों में गहरी दोस्ती थी.

कक्षा 5 तक आतेआते दोनों के बीच प्रेम प्रसंग भी हो गया था. उस के बाद दोनों के स्कूल अलगअलग हो गए थे, लेकिन स्कूल से लौटने के बाद दोनों एक साथ ही खेलते और पढ़ाई भी करते थे. उसी दौरान मानसी की मुलाकात सुमित श्रीवास्तव से हुई. सुमित उत्तर प्रदेश के बरेली जिले के गांव मसवासी मानपुर के राजू श्रीवास्तव का बेटा था. अब से लगभग 15 साल पहले राजू श्रीवास्तव की पत्नी का किसी बीमारी के चलते देहांत हो गया था. पत्नी की डैथ के बाद राजू श्रीवास्तव ने ही अपने पांचों बच्चों की परवरिश की थी.

3 भाई और 2 बहनों में सुमित सब से बड़ा था. राजू श्रीवास्तव की एक बहन उत्तराखंड के शहर रुद्रपुर की रमपुरा कालोनी में रहती थी. अब से कई साल पहले सुमित अपनी बुआ के साथ रुद्रपुर घूमने आया था. उस के बाद उस का मन यहीं पर लग गया. जिस के बाद वह बुआ के पास ही रहने लगा था. घर के आसपास रहते हुए जल्दी ही उस की दोस्ती मानसी से हो गई थी. कुछ समय तक तक मानसी, गणेश और सुमित एक साथ ही खेले. उसी दौरान मानसी का लगाव सुमित श्रीवास्तव की और बढऩे लगा था. जिस के बाद वह गणेश में कम दिलचस्पी लेने लगी थी.

उस समय तक मानसी जवानी की दहलीज पर आ खड़ी हुई थी. वह जन्म से ही भरे बदन की युवती थी. वक्त बदलते सुमित का मन भी मचल उठा. दोनों के दिलों में एकदूसरे के प्रति चाहत बढ़ी तो दोनों एकदूसरे के साथ अपनी दुनिया बसाने के सपने संजोने लगे थे. समय की चाल बढ़ते ही दोनों प्यार की दीवार को लांघ कर हदों को पार करने लगे थे. नतीजा यह निकला कि कुछ ही दिनों में दोनों के प्यार के चर्चे समाज के सामने आ गए.जब इस बात की जानकारी मानसी के फैमिली वालों को हुई तो उन्हें बहुत बड़ा झटका लगा. पहले तो उन्होंने उसे समझाने की कोशिश की, उस के बाद सुमित की बुआ से भी उस की शिकायत की. सुमित की बुआ ने भी उसे समझाने की कोशिश की. लेकिन दोनों पर किसी की बात का कोई असर नहीं पड़ा. दोनों छिपछिप कर मिलने लगे.

उसी वक्त मानसी ने एक मुलाकात में सुमित के सामने अपने दिल की बात रखते हुए कहा, ”सुमित, क्यों न हम कहीं बाहर जा कर शादी कर लें. उस के बाद हम दोनों आजादी से साथसाथ रहेंगे.’’

जब एक मोड़ पर मिला पुराना प्रेमी

चाहता तो सुमित भी यही था, लेकिन वह अपनी तरफ से हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था. यही सोचते एक दिन दोनों ने आखिरी निर्णय लिया. अब से लगभग 8 साल पहले दोनों ने घर से भाग कर शादी कर ली. शादी करने के बाद दोनों ही मुरादाबाद शहर में रहने लगे थे. सुमित वहीं पर एक कारखाने में नौकरी करने लगा था. कुछ दिन मुरादाबाद में रहने के बाद सुमित मानसी को साथ ले कर रामपुर चला गया. कुछ वक्त दोनों का रामपुर में गुजरा. फिर सुमित मानसी को ले कर रुद्रपुर के ट्रांजिट कैंप कालोनी रमपुरा में आ कर रहने लगा. रुद्रपुर में मानसी ने एक बेटे को जन्म दिया.

उसी समय सुमित ने एक आटोरिक्शा खरीद लिया था और उसी को चला कर वह अपनी रोजीरोटी चलाने लगा था. आटो चलाने के दौरान सुमित को शराब की लत लग गई थी, जिस के बाद वह अपनी आधी से ज्यादा कमाई शराब में ही खर्च कर डालता था. मानसी ने उसे कई बार समझाने की कोशिश की, लेकिन वह उस की एक भी बात मानने को तैयार नहीं था. बात बढऩे पर वह मानसी के साथ गालीगलौज करते हुए उसे मारनेपीटने भी लगा था. सुमित की हरकतों से आजिज आ कर मानसी का उस के प्रति पनपा प्यार भी फीका पडऩे लगा था. वह उसे खर्च के लिए पैसे देने में भी आनाकानी करने लगा था. जिस के कारण वह हमेशा ही अपने दिल के अरमानों को मसोस कर रह जाती थी. उसी समय एक दिन उस की फिर से मुलाकात गणेश से हो गई.

शाम का वक्त था. गणेश बाजार से अपने घर की ओर जा रहा था. उसी समय रास्ते के चौराहे पर उस की नजर एक युवती पर पड़ी. जैसे ही उस की बाइक उस युवती के पास से गुजरी, उस ने एक तिरछी नजर उस युवती पर डाली. उसे देखते ही वह सकपका गया, ”मानसी यहां!’’

उस ने अपनी बाइक साइड में लगा कर रोक दी. जैसे ही वह युवती उस के पास पहुंची, गणेश बोला, ”मानसी, तुम यहां कैसे? इस वक्त तुम कहां जा रही हो?’’

यूं अचानक गणेश को सामने खड़ा देख जैसे मानसी का रोमरोम खिल उठा था.

”अरे गणेश, तुम कैसे हो?’’

मेरी छोड़ो, तुम अपनी सुनाओ. तुम तो सुमित से शादी करने के बाद शहर छोड़ कर चली गई थी. फिर अचानक यहां कैसे?’’

”अब सारी राम कहानी यहीं पर सुनोगे, आगे नहीं बढ़ोगे.’’

गणेश ने अपनी बाइक सड़क के किनारे खड़ी कर दी. तभी मानसी ने गणेश से सवाल किया, ”अब इस वक्त तुम कहां रह रहे हो?’’

”मैं तो अभी भी रमपुरा में ही रह रहा हूं, मुझे यह शहर छोड़ कर कहां जाना है.’’

”अच्छा, मैं भी तो उसी कालोनी में रह रही हूं. आओ, तुम्हें अपना कमरा दिखाती हूं. वही बैठ कर कुछ बातचीत करेंगे.’’

मानसी को पाने के लिए गणेश ने क्यों चुना खतरनाक रास्ता

मानसी की बात सुनते ही उस का मन हिचकोले लेने लगा था. उस के बाद मानसी उसे सीधे अपने कमरे पर ले गई. गणेश उस दिन खुशी से फूला नहीं समा रहा था. जब बरसों बाद दोनों एक साथ बैठे तो बातों का सिलसिला चालू हुआ. मानसी की कहानी सुन कर गणेश समझ गया था कि वह अपने पति सुमित के साथ खुश नहीं है. शादी के इतने साल बाद भी वह उस की महत्त्वाकांक्षाओं को समझ नहीं पाया था. यही कारण था कि इतने साल बाद भी गणेश से मिलने के बाद उस की चाहत की घंटी फिर से बज उठी थी. गणेश को देखते ही उसे लगने लगा था कि वही उस के ख्वाबों को हकीकत में बदल सकता है. तभी मानसी ने गणेश को प्यार की हरी झंडी भी दिखा दी थी.

उसी वक्त मानसी ने गणेश को बता दिया था कि उस का पति सुमित आटोरिक्शा चलाता है, जो देर रात ही घर पहुंचता है. गणेश के जाने से पहले मानसी ने उसे अपना मोबाइल नंबर देने के बाद उस का नंबर भी अपने मोबाइल में सेव कर लिया था. मानसी को देखते ही उस के मन में ऐसा भूचाल आया कि उस ने घर पहुंचते ही उसे फोन कर दिया था. शायद वह भी जैसे उस के फोन का ही इंतजार कर रही थी. कुछ देर इधरउधर की बातें करने के बाद मानसी ने अपने दिल की बात गणेश के सामने रख दी थी. गणेश के मन में भी वही सब खिचड़ी पक रही थी. मानसी से बात कर के उस का मन बहुत ही हलका महसूस हो रहा था. उसे लगा कि उस का पहला प्यार फिर से उस की झोली में आ पड़ा है.

उस दिन के बाद दोनों ही फोन पर एकदूसरे से बात करने लगे थे. सुमित के घर से निकलते ही मानसी फोन कर के उसे अपने कमरे पर बुला लेती थी. उस के बाद दोनों शहर में मौजमस्ती करने निकल जाते. यह सिलसिला दोनों के बीच काफी समय तक चलता रहा. एक दिन मानसी ने उस की मुलाकात सुमित से भी करा दी थी. सुमित पहले से जानता था कि गणेश उन के पड़ोस में रहता है. सुमित और गणेश दोनों ही शराब के शौकीन थे. यही कारण रहा कि जल्दी ही दोनों के बीच गहरी दोस्ती भी हो गई थी.

गणेश रेनू का बचपन का दोस्त था. उसी कारण दोनों के बीच जल्दी संबंध हो गए थे. उस के बाद गणेश ने ही उस का सारा खर्च उठाना शुरू कर दिया था.

इस केस के खुलते ही पुलिस ने मानसी, उस के प्रेमी गणेश चंद्रा, वंश, दीपक कोली और शिवम निवासी रमपुरा को गिरफ्तार करने के बाद कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया था. जबकि एक आरोपी गोविंदा घर से फरार हो गया था, जिस की पुलिस तलाश कर रही थी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. कथा में मानसी परिवर्तित नाम है.

कीवर्ड (लव क्राइम)

 

काली दुनिया का कुख्यात Gangster

Gangster story : बदन सिंह बद्दो मूलरूप से पंजाब का रहने वाला है. उस के पिता चरण सिंह पंजाब के जालंधर से 1970 में मेरठ आए और यहां के एक मोहल्ला पंजाबीपुरा में बस गए. चरण सिंह एक ट्रक ड्राइवर थे. ट्रक चला कर उस आमदनी से किसी तरह अपने 7 बेटेबेटियों के बड़े परिवार को पाल रहे थे. बदन सिंह बद्दो सभी भाईबहनों में सब से छोटा था. 8वीं के बाद उस ने स्कूल जाना बंद कर दिया. कुछ बड़ा हुआ तो बाप के साथ ट्रक चलाने लगा. एक शहर से दूसरे शहर माल ढुलाई के दौरान उस का वास्ता पहले कुछ छोटेमोटे अपराधियों से और फिर शराब माफियाओं से पड़ा. उस ने कई बार पैसे ले कर शराब की खेप एक जगह से दूसरी जगह पहुंचाई.

धीरेधीरे पश्चिमी यूपी के बौर्डर के इलाकों में उस ने बड़े पैमाने पर शराब की तस्करी शुरू कर दी. फिर स्मगलिंग के बड़े धंधेबाजों से उस की दोस्ती हो गई. वह स्मगलिंग का सामान बौर्डर के आरपार करने लगा. हरियाणा और दिल्ली बौर्डर पर तस्करी से उस ने खूब पैसा कमाया. इस के बाद तो वह पूरी तरह अपराध के कारोबार में उतर गया और उस की दिन की कमाई लाखों में होने लगी. दिखने के लिए बद्दो खुद को ट्रांसपोर्ट के बिजनैस से जुड़ा दिखाता रहा, मगर उस का धंधा काला था.

अपराध की राह पर बड़ी तेजी से आगे बढ़ते बद्दो की मुलाकात जब पश्चिमी उत्तर प्रदेश के 2 बड़े बदमाश सुशील मूंछ और भूपेंद्र बाफर से हुई तो इन दोनों के साथ उस का मन लग गया. इन के साथ ने बद्दो को निडर बनाया. बद्दो ने कई गुर्गे पाल लिए जो उस के इशारे पर सुपारी ले कर हत्या और अपहरण का धंधा चलाने लगे. सुशील मूंछ और बद्दो के गठजोड़ ने जमीनों पर अवैध कब्जे का धंधा भी शुरू कर दिया. सरकारी जमीनों पर अवैध कब्जे कर वहां दुकानें बना कर करोड़ों में खरीदनेबेचने के इस धंधे में सरकारी सिस्टम में बैठी काली भेड़ें भी शामिल थीं, जो अपना हिस्सा ले कर किसी भी फाइल को आगे बढ़ा देती थीं.

बदन सिंह बद्दो और सुशील मूंछ की दोस्ती जब बहुत गहरी हुई तो भूपेंद्र बाफर और सुशील मूंछ में दूरियां बढ़ गईं और एक समय वह आया जब बाफर सुशील मूंछ का दुश्मन हो गया. तब मूंछ और बद्दो एकदूसरे का सहारा बन गए. सुशील मूंछ का बड़ा गैंग था. विदेश तक उस के कारनामों की गूंज थी. जरायम की दुनिया के इन 2 बड़े कुख्यातों का याराना पुलिस फाइल और अपराध की काली दुनिया में बड़ी चर्चा में रहता था. दोस्ती भी अजीबोगरीब थी. हैरतअंगेज था कि जब एक किसी अपराध में गिरफ्तार हो कर जेल जाता तो दूसरा बाहर रहता था और धंधा संभालता था. 3 दशकों तक ये दोनों पुलिस से आंखमिचौली खेलते रहे. मूंछ जब 3 साल जेल में बंद रहा तो उस दौरान बद्दो जेल से बाहर था. मूंछ का सारा काम बद्दो संभालता था.

वहीं 2017 में जब बद्दो को उम्रकैद की सजा हुई तो मूंछ बाहर था और बद्दो की पूरी मदद कर रहा था. 2019 में जब बद्दो पुलिस को चकमा दे कर कस्टडी से फरार हुआ तो दूसरे ही दिन सुशील मूंछ ने सरेंडर कर दिया और जेल चला गया. पुलिस कभी भी इन दोनों की साजिश को समझ नहीं पाई. कहते हैं कि बद्दो को कस्टडी से फरार करवाने की सारी प्लानिंग सुशील मूंछ ने की. इस के लिए पुलिस और कुछ सफेदपोशों को बड़ा पैसा खिलाया गया. लेकिन बद्दो कहां है यह राज आज तक पुलिस सुशील मूंछ से नहीं उगलवा पाई. कहा जाता है कि वह दुनिया के किसी कोने में बैठ कर हथियारों का धंधा करता है.

पर्सनैलिटी में झलकता रईसी अंदाज

बदन सिंह बद्दो सिर्फ 8वीं पास था, लेकिन उस में बात करने की सलाहियत ऐसी थी कि लगता वह दर्शन शास्त्र का कोई बड़ा गहन जानकार हो. बातबात में वह शायरी और महापुरुषों के वक्तव्यों को कोट करता था. एक पार्टी के दौरान जब एक रिपोर्टर ने उस से पूछ लिया कि जरायम की दुनिया से कैसे जुड़ गए तो विलियम शेक्सपियर को कोट करते हुए बद्दो ने कहा, ‘ये दुनिया एक रंगमंच है और हम सब इस मंच के कलाकार.’ पश्चिमी उत्तर प्रदेश का कुख्यात गैंगस्टर बदन सिंह बद्दो अब खुल कर लग्जरी लाइफ जीने लगा था. बद्दो का रहनसहन देख कर कोई भी उस के रईसी शौक का अंदाजा आसानी से लगा सकता है. लूई वीटान जैसे महंगे ब्रांड के जूते और कपड़े पहनना बदन सिंह बद्दो को अन्य अपराधियों से अलग बनाता है. वह आंखों पर लाखों रुपए मूल्य के विदेशी चश्मे लगाता है. हाथों में राडो और रोलैक्स की घडि़यां पहनता है.

बदन सिंह बद्दो महंगे विदेशी हथियार रखने का भी शौकीन है. उस के पास विदेशी नस्ल की बिल्लियां और कुत्ते थे, जिन के साथ वह अपनी फोटो फेसबुक पर भी शेयर करता था. इन तसवीरों को देख कर कोई कह नहीं सकता कि मासूम जानवरों को गोद में खिलाने वाले इस हंसमुख चेहरे के पीछे एक खूंखार गैंगस्टर छिपा हुआ है. बुलेटप्रूफ कारों का लंबा जत्था उस के साथ चलता था. उस के महलनुमा कोठी में सीसीटीवी कैमरे समेत आधुनिक सुरक्षा तंत्र का जाल बिछा है. ब्रांडेड कपड़े और जूते पहन कर जब वह किसी फिल्मी हस्ती की तरह विदेशी हथियारों से लैस बौडीगार्ड्स और बाउंसर्स की फौज के साथ घर से निकलता तो आसपास देखने वालों की भीड़ लग जाती थी. वह हमेशा बुलेटप्रूफ बीएमडब्ल्यू या मर्सिडीज कार से ही चलता था. उस की शानोशौकत भरी जिंदगी देख कर कोई यकीन नहीं करता था कि वह एक हार्डकोर क्रिमिनल है.

पहली हत्या और फिर हत्याओं का सिलसिला

बदन सिंह बद्दो की हिस्ट्रीशीट के मुताबिक, उस पर पहला आपराधिक मामला साल 1988 में दर्ज हुआ था, जब उस ने एक जमीन विवाद में मेरठ के गुदरी बाजार कोतवाली इलाके में राजकुमार नाम के व्यक्ति की दिनदहाड़े हत्या कर दी थी. इस हत्या के बाद उस का नाम मेरठ से निकल कर हापुड़, गाजियाबाद और बागपत तक पहुंच गया. बदमाशों के बीच चर्चा शुरू हो गई कि बदन Gangster story  सिंह नाम का नया गैंगस्टर आ गया है, जिसे ‘न’ सुनना पसंद नहीं है. बद्दो को इस अपराध में पुलिस ने एक राइफल और 15 जिंदा कारतूस के साथ गिरफ्तार किया था. वह कुछ समय तक जेल में रहा, फिर जमानत पर बाहर आ गया. इस के बाद तो उस की हिम्मत और बढ़ गई.

1994 में बदन सिंह बद्दो ने प्रकाश नाम के एक युवक की गोली मार कर हत्या कर दी. साल 1996 में बदन सिंह ने वकील राजेंद्र पाल की हत्या की. इस के बाद तो जैसे हत्याओं का सिलसिला ही शुरू हो गया. वह सुपारी ले कर हत्याएं करवाने का धंधा भी करने लगा. बद्दो के बारे में कहा जाता है कि उस का गुस्सा तभी शांत होता था, जब वह अपने दुश्मन से बदला ले लेता था. कहते हैं कि उसे टोकाटाकी कतई बरदाश्त नहीं है. वकील राजेंद्र पाल की हत्या ने बद्दो को खूब मशहूर किया.

दरअसल, वकील राजेंद्र पाल भी कुछ कम दबंग नहीं था. एक पार्टी में बदन सिंह बद्दो ने किसी बात से चिढ़ कर वकील राजेंद्र पाल के पारिवारिक मित्र की पत्नी के बारे में अनुचित टिप्पणी कर दी थी, जिस से नाराज राजेंद्र पाल ने उसे सरेआम थप्पड़ जड़ दिया. बस फिर क्या था, राजेंद्र को मौत के घाट उतार कर बद्दो ने बदला पूरा किया और फरार हो गया. पुलिस ने केस दर्ज किया और जांच शुरू की. यह केस कई साल चलता रहा. इस बीच बद्दो ने जमानत करवा ली और अपने आपराधिक कारनामे बदस्तूर चलाता रहा.

उस के क्राइम का ग्राफ दिनबदिन बढ़ता ही चला गया.

2011 में जहां उस ने मेरठ के हस्तिनापुर क्षेत्र के जिला पंचायत सदस्य संजय गुर्जर की गोली मार कर हत्या की, वहीं साल 2012 में उस ने केबल नेटवर्क के एक संचालक पवित्र मैत्रेय की हत्या कर दी. इन हत्याओं के अलावा बदन सिंह के खिलाफ दिल्ली और पंजाब में किडनैपिंग, जमीन कब्जाने के कई केस दर्ज हुए. मेरठ जिले के प्रतिष्ठित व्यवसायी राजेश दीवान से 2 करोड़ रुपए की रंगदारी मांगने और धमकी देने के मामले में भी बद्दो के खिलाफ परतापुर और लालकुर्ती थाने में मुकदमे दर्ज हुए. इस मामले में चार्जशीट भी दाखिल हो चुकी है.

सफेदपोश नेताओं और अधिकारियों का खास उत्तर प्रदेश समेत कई राज्यों में उस पर हत्या, वसूली, लूट, डकैती के 40 से ज्यादा मामले दर्ज हैं. सुपारी किंग के नाम से मशहूर हो चुके बदन सिंह बद्दो ने सुपारी ले कर कई हत्याएं करवाईं. उस से यह सेवा लेने वाले कई सफेदपोश नेता भी हैं, जिन्होंने बद्दो के जरिए अपने राजनीतिक प्रतिद्वंदियों का सफाया करवाया. बदले में बद्दो को मोटी रकम मिली. राजेंद्र पाल हत्या के मामले में 21 साल बाद वर्ष 2017 में बद्दो को उम्रकैद की सजा सुनाई गई और उसे गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया. बदन सिंह बद्दो की दोस्ती के ख्वाहिशमंद सिर्फ अपराध की दुनिया के लोग ही नहीं थे, बल्कि बड़ेबड़े कारोबारी, सफेदपोश नेता और पुलिस अधिकारी भी उस से अच्छे रिश्ते बना कर रखते थे. बद्दो भी इन तमाम लोगों का खास खयाल रखता था. खासतौर से पुलिस के साथ तो उस का दोस्ताना साफ दिखाई देता था. इस की एक बानगी देखिए.

2012 में बद्दो को पुलिस ने धमकी देने के एक मामले में गिरफ्तार किया. उसे लालकुर्ती थाने ले जाया गया. बद्दो जैसे ही थाने पहुंचा, थानेदार उछल कर अपनी कुरसी से खड़ा हो गया. थानेदार के मुंह से एकाएक निकला, ‘अरे बद्दो तुम यहां कैसे?’ बद्दो ने उसे देखा और मुसकरा कर सामने पड़ी कुरसी पर फैल कर बैठ गया. उस को थाने ले कर आने वाले एसआई और सिपाही इस बदली सिचुएशन से सकपका गए. बद्दो अभी थाने में बैठा ही था कि एसएसपी समेत कई बड़े कारोबारी थाने पहुंच गए. अब एफआईआर हुई थी तो पुलिस को काररवाई तो दिखानी थी.

अगले दिन जब बद्दो को कचहरी ले जाया गया तो शहर के सारे बड़े कारोबारी उस के पीछे चल रहे थे. साल 2000 के बाद से बदन सिंह बद्दो नेताओं को मोटी फंडिंग करने वाला बन गया था. यही कारण था कि उस के धंधों पर हाथ डालने से पुलिस अधिकारी पीछे हटने लगे.

वकील हत्याकांड में हुई उम्रकैद की सजा

21 साल बाद 31 अक्तूबर, 2017 को वकील राजेंद्र पाल हत्याकांड में गौतमबुद्धनगर के जिला न्यायालय ने 9 गवाहों की गवाही के बाद बदन सिंह बद्दो को उम्रकैद की सजा सुनाई. उस दिन बद्दो कोर्ट में मौजूद था. सजा का ऐलान होते ही वह रो पड़ा. इस से पहले 13 अक्तूबर को बदन सिंह बद्दो ने फेसबुक पर एक पोस्ट डाली थी. उस में लिखा था, ‘जब गिलाशिकवा अपनों से हो तो खामोशी ही भली, अब हर बात पर जंग हो यह जरूरी तो नहीं.’ उस को जानने वाले कहते हैं कि इस मामले में उसे सजा का एहसास हो गया था. कोर्टरूम में सजा सुनाए जाने के तुरंत बाद बद्दो को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया.

बदन सिंह बद्दो 2 साल जेल में रहा. जेल के अंदर से भी उस के काले कारनामे बदस्तूर चलते रहे, जिन्हें बाहर उस का खास दोस्त सुशील मूंछ संभालता रहा. 28 मार्च, 2019 का दिन था जब बद्दो को फतेहगढ़ जेल से एक पुराने मामले में पेशी के लिए गाजियाबाद कोर्ट ले जाना था. पुलिस का दस्ता बख्तरबंद गाड़ी में बद्दो को ले कर गाजियाबाद पहुंचा और कोर्ट में उस की पेशी हुई. वापसी में बद्दो ने पुलिसकर्मियों को कुछ देर के लिए मेरठ चलने के लिए राजी कर लिया. एवज में बड़ी रकम का लालच दिया गया.

5-5 सौ रुपए के लिए कानून को धता बताने वाले पुलिसकर्मी इतने बड़े औफर को भला कैसे ठुकरा देते. बद्दो के लिए पुलिस की गाड़ी मेरठ की ओर मुड़ गई. वहां एक शानदार थ्री स्टार मुकुट महल होटल में बद्दो ने सभी पुलिसकर्मियों को छक कर उन का मनपसंद खाना खिलवाया और जम कर शराब पिलवाई. इतनी शराब कि सारे होश खो बैठे. उन्हें होटल में बेसुध छोड़ कर बदन सिंह बद्दो ऐसा फरार हुआ कि फिर आज तक किसी को नजर नहीं आया. कहते हैं बद्दो को फरार करवाने की पूरी प्लानिंग उस के दोस्त सुशील मूंछ ने की और जेल से ले कर होटल तक सब को मैनेज किया. पूरा प्लान जेल के अंदर बद्दो तक पहुंचाया गया. इस प्लानिंग में होटल का मालिक और स्टाफ भी शामिल था.

होटल के बाहर पार्किंग में पहले से ही एक लग्जरी गाड़ी मय ड्राइवर खड़ी थी. पुलिसकर्मियों को दारू के नशे में धुत कर के बद्दो कब उस गाड़ी में बैठ कर मेरठ की सीमा लांघता हुआ विदेश पहुंच गया, कोई नहीं जानता. मजे की बात तो यह है कि जिस दिन यह घटना घटी उस दिन मेरठ में हाई अलर्ट था, क्योंकि 28 मार्च को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी घटनास्थल से लगभग 18 किलोमीटर दूर टोल प्लाजा के पास एक चुनावी रैली को संबोधित कर रहे थे. पुलिस डिपार्टमेंट और इंटेलिजेंस के लिए इस से शर्मनाक और क्या होगा.

देश भर की पुलिस इस खूंखार अपराधी को पकड़ने के लिए बीते 3 सालों से हाथपैर मार रही है, मगर उस की छाया तक कहीं नहीं मिल रही है. उस को पकड़ने के लिए इंटरपोल तक से मदद मांगी गई है. उस के सिर पर जिंदा या मुर्दा मिलने पर ढाई लाख रुपए का ईनाम घोषित है. मगर बद्दो किस बिल में जा छिपा है, कोई नहीं जानता. पुलिस व एजेंसियां मानती हैं कि वह अपने बेटे के साथ विदेश में है, लेकिन अभी  तक कोई भी सुराग पुलिस के हाथ नहीं लग पाया है. बदन सिंह बद्दो के पुलिस कस्टडी से फरार होने के बाद मेरठ पुलिस ने उस के बेटे सिकंदर पर 25 हजार रुपए का ईनाम घोषित कर दिया और कुछ दिनों बाद उसे अरेस्ट कर लिया.

लेकिन बदन सिंह की तलाकशुदा पत्नी ने जब आस्ट्रेलिया से मेरठ के एसएसपी को फोन कर के कहा कि उस का बेटा बेकुसूर है और बदन सिंह बद्दो के गलत कामों की सजा उसे न दी जाए तो उस के कुछ ही दिन बाद सिकंदर को छोड़ दिया गया. इस के बाद तो सिकंदर भी ऐसा गायब हुआ जैसे गधे के सिर से सींग. अब बापबेटे दोनों की तलाश में पुलिस लकीर पीट रही है. बद्दो की फरारी मामले में 2 दरोगा, 3 सिपाही और 2 ड्राइवरों को तुरंत निलंबित कर दिया गया था. फर्रुखाबाद जिले के 6 पुलिसकर्मियों सहित कुल 21 व्यक्तियों को आरोपी बनाया गया.

इन में मेरठ के कई नामचीन व्यापारियों सहित होटल मुकुट महल के मालिक मुकेश गुप्ता और करण पब्लिक स्कूल के संचालक भानु प्रताप भी जेल भेज दिए गए. बद्दो और उस के बेटे के खिलाफ रेड कौर्नर नोटिस जारी हो चुका है. इंटरपोल से भी मदद मांगी गई, मगर कोई फायदा नहीं हुआ. इंटरपोल ने यह कहते हुए इंकार कर दिया कि बद्दो के पासपोर्ट पर कोई एंट्री ही नहीं है. कहते हैं कि बद्दो की 2 प्रेमिकाएं थीं. एक मेरठ के साकेत में ब्यूटीपार्लर चलाती थी और दूसरी गुरुग्राम में रहने वाली एक महिला थी. पुलिस कहती है कि बद्दो जब होटल से भागा तो सीधे मेरठ वाली प्रेमिका के घर पहुंचा.

आज तक ढूंढ नहीं सकी पुलिस

बद्दो को शहर की सीमा से निकलने में परेशानी न हो, इस के लिए उस ने बद्दो का लुक बदल दिया, जबकि गुरुग्राम वाली प्रेमिका ने देश छोड़ कर भागने में बद्दो की मदद की. मेरठ से अपनी वेशभूषा बदल कर निकले बद्दो को उस की गुड़गांव वाली प्रेमिका दिल्ली मेट्रो स्टेशन पर मिली और उस के बाद बद्दो उसी के साथ उस की कार में गया. बद्दो की यह प्रेमिका अपने फ्लैट पर ताला लगा कर बीते 2 साल से गायब है. कहते हैं गुड़गांव वाली प्रेमिका बद्दो से नाराज भी थी, क्योंकि बद्दो के बेटे को इसी प्रेमिका ने अपने बेटे की तरह पाला था और बद्दो ने उस से वादा किया था कि वह उसे अपने साथ विदेश ले जाएगा. मगर फरार होने के बाद बद्दो ने पलट कर अपनी प्रेमिकाओं की ओर कभी नहीं देखा.

माना जाता है कि बदन सिंह बद्दो नीदरलैंड और मलेशिया में अपना ठिकाना बना चुका है और वहीं से वह अवैध हथियारों का धंधा करता है. उस के धंधे में उस का बेटा Gangster story  सिकंदर अब उस का पार्टनर बन चुका है. जब उत्तर प्रदेश एसटीएफ, क्राइम ब्रांच और दूसरे राज्यों की स्पैशल पुलिस भी बदन सिंह बद्दो का कुछ पता नहीं लगा पाई तो खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे की तर्ज पर बीते साल योगी सरकार ने इस गैंगस्टर की संपत्तियों को खंगालना और उन्हें जब्त करने की काररवाई शुरू करवाई. 20 जनवरी, 2021 को मेरठ नगर निगम के अधिकारी मनोज सिंह 2 बुलडोजर और 20 मजदूर ले कर पंजाबीपुरा पहुंचे और बद्दो की आलीशान कोठी को जमींदोज कर दिया गया. गैंगस्टर बदन सिंह बद्दो के गुर्गे अजय सहगल की संपत्ति पर भी बाबा का बुलडोजर चला.

अजय सहगल को गैंगस्टर बदन सिंह बद्दो का राइट हैंड माना जाता है. उस की 7 अवैध दुकानों को तोड़ दिया गया. ये दुकानें 1500 वर्गमीटर के सरकारी जमीन पर बने पार्क पर अवैध रूप से कब्जा कर के बनाई गई थीं और इन का बैनामा भी करा लिया गया था.

इस से पहले नवंबर, 2020 में बद्दो की कुछ अन्य संपत्तियां कुर्क की गई थीं. मेरठ प्रशासन को बद्दो के पास दरजनों लग्जरी गाडि़यां होने का पता था, मगर उन में से वह एक भी जब्त नहीं कर पाई, क्योंकि बद्दो ने तमाम गाडि़यां दूसरों के नाम से खरीदी थीं.