Family Crime: चरित्रहीन मां का गैरतमंद बेटा

Family Crime: भुलऊराम ने जो  हरकत की थी, कोई  भी गैरतमंद बेटा   बरदाश्त नहीं कर सकता था तो समयलाल कैसे बरदाश्त करता. आखिर मां की चरित्रहीनता ने उसे कातिल बना दिया. लंबी बीमारी के बाद ढेलाराम की जब मौत हुई तो पत्नी सुरजाबाई के लिए वह संपत्ति के नाम पर 6 बच्चे और एक छोटा सा मकान छोड़ गया था. गनीमत यह थी कि उस समय तक उस का बड़ा बेटा समयलाल 25 साल का हो चुका था. लड़का कमाने लायक हो गया था, इसलिए पति की मौत से सुरजाबाई को दिक्कतों का ज्यादा सामना नहीं करना पड़ा.

सुरजाबाई जवान थी, इसलिए खुद तो मजदूरी करती ही थी, समयलाल ने भी बलौदा बाजार मंडी के सामने साइकिल मरम्मत की दुकान खोल ली थी. मांबेटे की कमाई से किसी तरह खींचखांच कर गुजरबसर होने लगा था. इस की वजह यह थी कि कमाई के साथसाथ बच्चे बड़े हो रहे थे, जिस से खर्च बढ़ता जा रहा था. सुरजाबाई गांव के ही राजमिस्त्री भुलऊराम के साथ मजदूरी करने बलौदा बाजार जाती थी. उस के साथ आनेजाने में उसे कोई परेशानी नहीं होती थी. वह अपनी साइकिल से उसे साथ ले जाता और ले आता था.

सुरजाबाई अभी अधेड़ थी, इसलिए उसे मर्द की जरूरत महसूस होती थी. दिन तो कामधाम में कट जाता था, लेकिन रातें तनहाई में बेचैन करती थीं. तब जिस्मानी भूख उसे व्याकुल करती तो वह मन ही मन किसी ऐसे मर्द की कल्पना करती थी, जो उस की जिस्मानी भूख को शांत करता. उस की इस कल्पना में सब से पहले जिस का चेहरा आंखों के सामने आया, वह था भुलऊराम का, जिस के साथ वह पूरा दिन रहती थी. लोकलाज के भय से किसी तरह वह अपनी इस भूख को 2 सालों तक दबाए रही. लेकिन किसी भी चीज को आखिर कब तक दबाया जा सकता है. सुरजाबाई भी अपनी इस भूख को नहीं दबा सकी.

भुलऊराम ही सुरजाबाई के सब से करीब था. वह सुबह उस की साइकिल पर बैठ कर घर से निकलती थी तो सूर्यास्त के बाद ही घर लौटती थी. भुलऊराम था भी उस के जोड़ का. एक तो दोनों का हमउम्र होना, दूसरे पूरे दिन साथ रहने का नतीजा यह निकला कि वे एकदूसरे के प्रति आकर्षित होने लगे.

एक दिन काम करते हुए भुलऊराम ने कहा, ‘‘सुरजा, काम तो तुम मेरे साथ करती हो, जबकि मैं देखता हूं तुम्हारा मन कहीं और रहता है.’’

‘‘भुलऊ, तुम ठीक कह रहे हो. दिन तो तुम्हारे साथ गुजर जाता है, लेकिन रात गुजारे नहीं गुजरती. ऐसे में मन तो भटकेगा ही.’’ भुलऊराम को घूरते हुए सुरजाबाई ने कहा.

भुलऊराम ने जानबूझ कर यह बात कही थी. सुरजाबाई ने जवाब भी उसी तरह दिया था. वह कुछ कहता, उस के पहले ही सुरजाबाई बोली, ‘‘भुलऊ, तुम्हारी पत्नी कुछ दिनों के लिए मायके चली जाती है तो तुम्हें कैसा लगता है?’’

भुलऊराम ने सहज भाव से कहा, ‘‘मैं तो 10 दिनों में ही बेचैन हो जाता हूं. नहीं रहा जाता तो ससुराल जा कर ले आता हूं.’’

‘‘तुम 10 दिनों में ही बेचैन हो जाते हो, यहां तो मेरे पति को मरे 2 साल हो गए हैं. मेरी क्या हालत होती होगी, कभी सोचा है?’’ सुरजाबाई ने बेचैन नजरों से ताकते हुए कहा.

भुलऊराम इतना भोला नहीं था, जो सुरजाबाई के मन की बात न समझता. लेकिन वहां और भी तमाम लोग थे, इसलिए दोनों मन मसोस कर रह गए. दोनों ने उस दिन समय से पहले ही काम निपटा दिया और घर की ओर चल पड़े. सावन का महीना था, आसमान में घने काले बादल छाए थे. दोनों आधे रास्ते पहुंचे थे कि हवा के साथ बरसात शुरू हो गई. भुलऊराम ने एक पेड़ के नीचे साइकिल रोक दी. बरसात की वजह से रास्ता सूना हो गया था. दोनों भीग गए  थे, इसलिए उन के शरीर के उभार झलकने लगे थे. उस मौसम में रहा नहीं गया तो भुलऊराम ने सुरजा का हाथ थाम लिया. सुरजा ने उस की आंखों में झांका तो उस ने कहा, ‘‘सुरजा, तुम्हारा बदन तो तप रहा है. तुम्हें बुखार है क्या?’’

सुरजा ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘भुलऊ, यह बुखार की तपन नहीं, यह तपन दिल में जो आग जल रही है, उस की है. आज तुम ने इस आग को और भड़का दिया है. अब तुम्हीं इस आग को बुझा सकते हो. आज रात को मैं तुम्हारा इंतजार करूंगी. दरवाजा खुला रहेगा और मैं दहलीज में ही लेटूंगी.’’

भुलऊराम ने चाहतभरी नजरों से सुरजा को ताका और फिर साइकिल पर सवार हुआ तो पीछे कैरियर पर सुरजा बैठ गई. गांव आते ही सुरजा अपने घर चली गई तो भुलऊ अपने घर चला गया. कपड़े बदल कर उस ने खाना खाया और सब के सोने का इंतजार करने लगा. गांवों में तो वैसे भी लोग जल्दी सो जाते हैं. भुलऊराम के गांव वाले भी सो गए तो वह सुरजाबाई के घर की ओर चल पड़ा. बरसात होने की वजह से मौसम ठंडा था. बरसाती मेढक टर्रटर्र कर रहे थे तो झींगुरों की तीखी आवाज सन्नाटे को तोड़ रही थी. 5 मिनट बाद वह सुरजाबाई के घर के सामने खड़ा था. उस ने हलके हाथ से दरवाजा ठेला तो वह खुल गया. उस ने धीरे से आवाज दी, ‘‘सुरजा… ओ सुरजा.’’

सुरजा जाग रही थी. इसलिए उस के आवाज देते ही वह उस के सामने आ कर खड़ी हो गई. उस का हाथ थाम कर धीरे से फुसफुसाई, ‘‘बड़ी देर कर दी.’’

‘‘घर वाले जाग रहे थे. जब सब सो गए, तभी निकला. इसी चक्कर में देर हो गई.’’ भुलऊराम ने कहा.

सुरजा भुलऊराम का हाथ पकड़ कर कमरे में ले आई. उसे चारपाई पर बैठा कर खुद भी सट कर बैठ गई. तन की आंखों से भले ही वे एकदूसरे को नहीं देख रहे थे, लेकिन मन की आंखों से वे एकदूसरे का तनमन सब देख रहे थे.

सुरजाबाई ने भुलऊराम का हाथ थाम कर कहा, ‘‘तुम एकदम चुप हो. कुछ सोच रहे हो क्या?’’

भुलऊराम विचारों के भंवर से निकल कर बोला, ‘‘कल की सुरजा में और आज की सुरजा में कितना अंतर है.’’

‘‘तुम कहना क्या चाह रहे हो, मैं समझी नहीं?’’ सुरजा ने पूछा.

‘‘सुरजा थोड़ा ही सही, लेकिन तुम ने खुद को बदला है, यह अच्छी बात है. इंसान के मन को जो अच्छा लगे, वही करना चाहिए.’’

इस के बाद सुरजाबाई का मिजाज बदलने लगा. उसने भुलऊराम के कंधे पर हाथ रखा तो उस के सोए हुए अरमान जाग उठे. उस की पत्नी 15 दिनों से मायके गई हुई थी, इसलिए वह औरत की नजदीकी पाने के लिए बेचैन था. सुरजाबाई तो सालों से प्यासी थी. भुलऊराम पर टूट पड़ी. इस तरह भुलऊराम और सुरजाबाई के बीच नए संबंध बन गए. इस के बाद घरबाहर जहां भी मौका मिलता, दोनों संबंध बना लेते. वैसे भी दोनों दिन भर साथ ही रहते थे. आतेजाते भी साथ थे, इसलिए उन्हें न मिलने में दिक्कत थी, न संबंध बनाने में. इस के अलावा दोनों अपनी मर्जी के ही नहीं, घर के भी मालिक थे, इसलिए उन्हें कोई रोकटोक भी नहीं सकता था.

लेकिन जब दोनों का मिलनाजुलना खुलेआम होने लगा तो उन के संबंधों की चर्चा गांव में होने लगी. इस के बाद सुरजाबाई को बिरादरी वालों ने बाहर कर दिया. दूसरी ओर भुलऊराम की पत्नी भी इस संबंध का विरोध करने लगी. बिरादरी से बाहर किए जाने के बाद सुरजाबाई का बड़ा बेटा समयलाल भी मां के इस संबंध का विरोध करने लगा. इस की एक वजह यह भी थी कि गांव में सब समयलाल का मजाक उड़ाते थे. इसलिए पहले उस ने मां को समझाया. इस पर भी वह नहीं मानी तो उस ने सख्ती की. लेकिन अब तक वह भुलऊराम के साथ संबंधों की आदी हो चुकी थी, इसलिए बेटे के रोकने पर उस ने कहा,

‘‘किस के लिए मैं दिनरात मेहनत करती हूं, तुम्हीं लोगों के लिए न? इतनी मेहनत कर के अगर मुझे किसी के साथ 2 पल की खुशी मिलती है तो तुम लोगों को परेशानी क्यों हो रही है?’’

‘‘तुम जिस तरह मुझे बहका रही हो, मैं सब जानता हूं. इस दुनिया में ऐसी तमाम औरतें हैं, जिन के पति मर चुके हैं, क्या वे सभी तुम्हारी तरह नाक कटाती घूम रही हैं. अपना नहीं तो कम से कम बच्चों का खयाल करो. तुम मां के नाम पर कलंक हो.’’ समयलाल गुस्से में बोला.

‘‘आज तू मुझे सिखा रहा है. कभी सोचा है मैं ने किन परिस्थितियों से गुजर कर तुम लोगों को पाला है. तुम्हारा बाप क्या छोड़ कर गया था? सिर्फ बच्चे पैदा कर के मर गया था. आज जो बकरबकर बोल रहा है, मुझे कुलटा कह रहा है, इस लायक मैं ने ही अपना खून जला कर बनाया है.’’ सुरजा गुस्से में बोली, ‘‘गनीमत है कि मैं तुम लोगों के साथ हूं. अगर छोड़ कर चली गई होती, तो…?’’

‘‘छोड़ कर चली गई होती, तभी अच्छा रहता. लोग आज हमारी हंसी तो न उड़ाते.’’

‘‘मुझे तुम से कोई सीख नहीं लेनी. मैं जैसी हूं, वैसी ही रहने दे. तुझ से नहीं देखासुना जाता तो तू घर छोड़ कर चला जा. और सुन, आज के बाद इस मामले में मुझ से कोई बात भी मत करना.’’ सुरजा ने साफ कह दिया कि कुछ भी हो, वह उन लोगों को छोड़ सकती है, पर भुलऊराम को नहीं छोड़ सकती.

इसी तरह दिन महीने बीतते रहे. न तो भुलऊराम ने अनीति का रास्ता छोड़ा और न ही सुरजाबाई ने. धीरेधीरे 3 साल बीत गए. इस बीच समयलाल ने मां को न जाने कितनी बार समझाया, लेकिन वह अपनी आदत से बाज नहीं आई. समयलाल खून का घूंट पी कर समय से तालमेल बिठाने की कोशिश करता रहा, लेकिन लाख प्रयास के बावजूद वह इस बदनामी को झेल नहीं सका, क्योंकि पानी अब सिर से ऊपर गुजरने लगा था. उस दिन यानी 3 अप्रैल को तो हद हो गई. अभी तक जो चोरीछिपे होता था, उस दिन सब के सामने ही भुलऊराम सुरजा से मिलने आ धमका. हुआ यह कि शाम को बलौदा बाजार से लौटते समय सुरजाबाई और भुलऊराम ने रास्ते में गोश्त और शराब खरीद लिया था.

घर आ कर सुरजा गोश्त बना रही थी कि कपड़े बदल कर भुलऊराम आ गया. इस के बाद दोनों शराब पीने लगे. खाना खातेखाते दोनों ने इतनी पी ली कि भुलऊराम को जहां सुरजाबाई के अलावा कुछ और नहीं दिखाई दे रहा था, सुरजा का भी कुछ वैसा ही हाल था. दोनों की हरकतों से तंग आ कर समयलाल ने भुलऊराम के पास जा कर कहा, ‘‘रात काफी हो गई है, अब तुम अपने घर जाओ. तुम्हारे घर वाले तुम्हारा इंतजार कर रहे होंगे.’’

‘‘मैं घर जाऊं या यहां सोऊं, तुम मुझ से कहने वाले कौन होते हो?’’ भुलऊराम ने कहा.

समयलाल को गुस्सा आ गया. वह अंदर से चारपाई का पाया उठा लाया और उसी से भुलऊराम पर हमला कर दिया. उस ने पूरी ताकत से पाया भुलऊराम के सिर पर मारा तो उस की खोपड़ी पहली ही बार में फट गई. फिर तो उस ने उसे तभी छोड़ा, जब वह मर गया. उसे मार कर वह घर से गायब हो गया. सुबह गांव वाले दिशामैदान के लिए गांव से बाहर निकले तो बाठी में उन्हें एक लाश दिखाई दी. पल भर में इस की चर्चा पूरे गांव में फैल गई. लाश औंधे मुंह पड़ी थी, उस के शरीर पर एक भी कपड़ा नहीं था, इस के बावजूद गांव वालों को उसे पहचानने में जरा भी दिक्कत नहीं हुई. लाश भुलऊराम की थी. भुलऊराम के भाई पुनीतराम ने बलौदा बाजार के थाना सिटी जा कर भाई की हत्या की सूचना दी.

हत्या का मामला था, इसलिए थानाप्रभारी डी.के. मरकाम ने घटनास्थल पर जाने से पहले घटना की सूचना पुलिस अधिकारियों को भी दे दी थी. जिस से उन के घटनास्थल पर पहुंचतेपहुंचते आईएसपी अभिषेक सांडिल्य, एसडीएपी सी.पी. राजभानु भी घटनास्थल पहुंच गए थे. लाश की स्थिति से ही पता चल रहा था कि हत्या बड़ी बेरहमी से की गई थी. हत्या कहीं और कर के लाश यहां ला कर फेंकी गई थी. लाश वहां घसीट कर लाई गई थी. पुलिस जब लाश घसीट कर लाने के निशान की ओर बढ़ी तो वह निशान सुरजाबाई के घर जा कर खत्म हो गया था.

मृतक भुलऊराम की साइकिल वहां से 2 सौ मीटर की दूरी पर खड़ी मिली. पूछताछ में पता चला कि वह उसी के यहां गया था और सुरजाबाई से उस के संबंध थे तो पुलिस के लिए आशंका की कोई बात नहीं रही. पुलिस ने सुरजाबाई और उस के बड़े बेटे समयलाल को हिरासत में ले लिया. इस तरह पुलिस ने लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवाने से पहले ही अभियुक्तों को पकड़ लिया था. घटनास्थल की सारी काररवाई निपटा कर पुलिस ने लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया और मांबेटे को ले कर थाने आ गई.

थाने आ कर पहले मृतक के भाई पुनीतराम की ओर से हत्या का मुकदमा दर्ज किया, उस के बाद समयलाल से पूछताछ शुरू की. सख्ती के डर से उस ने बिना किसी हीलाहवाली के अपना अपराध स्वीकार कर के भुलऊराम की हत्या की जो कहानी सुनाई, वह इस प्रकार थी. भुलऊराम के उस की मां से संबंध हैं, यह वह जानता ही था. सब कुछ जान कर भी वह चुप था. लेकिन उस दिन तो भुलऊराम ने हद ही कर दी. उस के यहां शराब पी कर खाना खाया. खाना खाने के बाद उस के सामने ही वह उस की मां से अश्लील हरकतें करने लगा. उस ने मना किया तो उस ने अपने सारे कपड़े उतार कर कहा, ‘‘मैं यहीं तेरे सामने ही तेरी मां से संबंध बनाऊंगा, देखता हूं तू क्या करता है.’’

भुलऊराम ने जो कहा था, और जो करने जा रहा था, समयलाल की जगह कोई भी गैरतमंद बेटा होता, बरदाश्त नहीं कर सकता था. उस से भी नहीं बरदाश्त हुआ. उस ने इधरउधर देखा, चारपाई का एक पाया पड़ा दिखाई दिया. उस ने उसे उठाया और भुलऊराम पर पिल पड़ा. इस के बाद तो वहां खून ही खून नजर आने लगा. भुलऊराम खून में डूबता गया. भुलऊराम की हत्या कर के समयलाल अपने दोस्त के यहां चला गया. सुबह जब वह घर पहुंचा तो लाश वहां नहीं थी. लाश बाठी तक कैसे पहुंची, उसे मालूम नहीं.

इस के बाद पुलिस ने सुरजाबाई से पूछताछ की तो उस ने रोते हुए कहा, ‘‘मैं दरवाजे के पास खड़ी सब देख रही थी. मैं पतिता ही सही, पर इस की मां हूं. साहब मेरी वजह से आज यह हत्यारा हो गया है. इसे बचाने के लिए मैं लाश को घसीट कर बाठी में डाल आई और सुबह होने से पहले गोबर से लिपाई कर के खून साफ कर दिया.’’

इस के बाद समयलाल की निशानदेही पर पुलिस ने चारपाई का पाया, खून से सने उस के कपड़े बरामद कर लिए. सारे सबूत जुटा कर पुलिस ने समयलाल और उस की मां सुरजाबाई को कोर्ट में पेश किया, जहां से उस की मां को रायपुर की महिला जेल तो समयलाल को बलौदा बाजार जेल भेज दिया गया. Family Crime

Hindi Crime Stories: ममता को दी मौत

Hindi Crime Stories: पैसों के लिए जितेंद्र मां से झोपड़ी बचेने को कह रहा था जबकि मां झोपड़ी बेचना नहीं चाहती थी. जितेंद्र ने झोपड़ी तो बेच दी लेकिन ममता का कत्ल कर के. जितेंद्र को पैसों की सख्त जरूरत थी, लेकिन कहीं से जुगाड़ नहीं बन रहा था. क्योंकि उसे जितने पैसों की जरूरत थी, उतने कोई उधार नहीं दे सकता था. उस के पास इतनी प्रौपर्टी भी नहीं थी कि किसी बैंक से कर्ज मिल जाता. उस के पास कोई ऐसी जमापूंजी भी नहीं थी कि उसी से काम चला लेता. मजदूरी कर के भी वह उतने पैसे इकट्ठा नहीं कर सकता था.

बाप मनीराम पहले ही किसी दूसरी औरत के चक्कर में उसे और उस की मां को छोड़ कर चला गया था. गांव में औरतों को न तो ठीक से काम मिलता था और अगर काम मिलता भी था तो ठीक से मजदूरी नहीं मिलती थी, इसलिए फिरतीन बाई एकलौते बेटे जितेंद्र को गांव में छोड़ कर बिलासपुर आ गई थी, जहां उसे ठीकठाक काम के साथ अच्छी मजदूरी भी मिल रही थी, जिस से उस का गुजर तो आराम से हो ही रहा था, 4 पैसे बच भी रहे थे. जो पैसे बचते थे, महीने में एक बार वह गांव जा कर बेटे की मदद कर देती थी.

बिलासपुर में रहने के लिए फिरतीन बाई ने सरकारी जमीन पर एक झोपड़ी बना रखी थी. यह बात जितेंद्र को पता थी. उसे यह भी पता था कि वह झोपड़ी आराम से 60-70 हजार में बिक सकती है. इसलिए जब जितेंद्र को पैसों की जरूरत पड़ी तो उस ने मां से झोपड़ी बेचने को कहा. लेकिन फिरतीन बाई इस के लिए राजी नहीं हुई. क्योंकि उसे पता था कि जब तक उस के हाथपैर चल रहे हैं, वह इस झोपड़ी में रह कर कमाखा रही है. जो 4 पैसे बचते हैं, उस से बेटे की मदद कर देती है.

बुढ़ापे के लिए उस का हाथ खाली था. उस की जो जमापूंजी थी, वही झोपड़ी थी. कल को हाथपैर नहीं चलेगा तो इस झोपड़ी को बेच कर किसी तरह वह गांव में गुजरबसर कर लेगी. अगर वह अभी झोपड़ी बेच देती है तो सारे पैसे बेटा ले लेगा. उस के बाद वह खाली हाथ हो जाएगी. बेटे पर उसे भरोसा नहीं था कि बुढ़ापे में वह उस की सेवा करेगा. फिरतीन अपने बारे में सोच रही थी तो जितेंद्र अपने बारे में. उसे किसी भी तरह रुपए चाहिए थे. पहले तो जब मां गांव आती थी, तभी वह उस से झोपड़ी बेचने को कहता था.

लेकिन जब मां ने साफ मना कर दिया तो वह मां को मनाने शहर भी जाने लगा, क्योंकि उस की मंशा भांप कर मां ने गांव आना बंद कर दिया था. एकदो बार तो वह अकेला ही गया, लेकिन जब मां ने हामी नहीं भरी तो दबाव डालने के लिए वह रिश्तेदारों को ले कर जाने लगा. काफी कोशिशों के बाद भी फिरतीन बाई झोपड़ी बेचने को राजी नहीं हुई तो अंत में जितेंद्र मां को समझाने के लिए अपने ससुर तिहारूराम को ले कर मां की झोपड़ी पर पहुंचा. समधी पहली बार फिरतीन बाई की झोपड़ी पर आया था, इसलिए उस ने उस की अपनी हैसियत के हिसाब से आवभगत की. नाश्तापानी के बाद झोपड़ी बेचने की बात चली तो तिहारूराम दामाद का पक्ष ले कर फिरतीन बाई को समझाने लगा.

समधी के समझाने पर भी जब फिरतीन बाई झोपड़ी बेचने को राजी नहीं हुई तो जितेंद्र को गुस्सा आ गया. वह उठा और मां के पास जा कर बोला, ‘‘मां, मुझे पैसों की सख्त जरूरत है, इसलिए झोपड़ी तो तुम्हें बेचनी ही पड़ेगी. सीधे नहीं बेचोगी तो…’’

जितेंद्र की बात पूरी होती, उस के पहले ही फिरतीन बाई बोली, ‘‘तो क्या तू जबरदस्ती मेरी झोपड़ी बिकवा देगा. झोपड़ी मेरी है, जब मैं चाहूंगी तभी बेचूंगी, नहीं चाहूंगी तो नहीं बेचूंगी. तू कौन होता है मेरी झोपड़ी बिकवाने वाला.’’

‘‘मां, मुझे पैसों की सख्त जरूरत है. अगर सीधेसीधे बेच दे तो अच्छा रहेगा, वरना…’’

‘‘वरना क्या…मैं झोपड़ी कतई नहीं बेचूंगी, तुझे जो करना हो कर ले.’’ फिरतीन बाई चीखी.

‘‘देख, मैं क्या कर सकता हूं…’’ कह कर जितेंद्र ने मां के बाल पकड़े और जमीन पर पटक दिया. फिरतीन बाई ने सोचा भी नहीं था कि ऐसा भी हो सकता है. इसलिए बेटे की इस हरकत पर वह हक्काबक्का रह गई. वह कुछ कहती या करती, जितेंद्र ने अपना दाहिना पैर उठाया और मां के गले पर रख दिया.

फिरतीन बाई ने गला छुड़ाने के लिए दोनों हाथों से जितेंद्र का पैर पकड़ कर हटाना चाहा, लेकिन तब तक तो वह अपना पैर गले पर इस तरह जमा चुका था कि वह टस से मस नहीं कर पाई. गले पर दबाव पड़ा तो वह छटपटाई. लेकिन वह ठीक से छटपटा भी नहीं सकी, क्योंकि जितेंद्र के ससुर तिहारूराम ने उस के दोनों पैर पकड़ लिए थे. पलभर में जितेंद्र ने ससुर की मदद से मां का खेल खत्म कर दिया. अब उन के सामने फिरतीन बाई की लाश पड़ी थी. लाश छोड़ कर वे जा नहीं सकते थे. अगर वहां लाश पड़ी रहती तो झोपड़ी बिक नहीं सकती थी. बाद में लोग उसे लेने से कतराते. अगर कोई लेता भी तो औनेपौने दाम में लेता, इसलिए ससुरदामाद लाश को ठिकाने लगाने की योजना बनाने लगे.

जितेंद्र ने टीवी पर आने वाले सीरियल सीआईडी में देखा था कि कोई लाश 2 थानों या 2 जिलों की सीमा पर मिलती है तो मामला सीमा विवाद में उलझ कर रह जाता है. इसलिए उस ने मां की लाश को 2 जिलों की सीमा पर फेंकने का विचार किया. उस का सोचना था कि सीमा पर लाश फेंकने पर मामला सीमा विवाद में तो उलझेगा ही, लाश की शिनाख्त भी जल्दी नहीं हो पाएगी. तब पुलिस किसी भी सूरत में उस तक नहीं पहुंच पाएगी. यही सब सोच कर उस ने ससुर से बात की और लाश को बोरे में भर कर उसे ठिकाने लगाने के लिए मोटरसाइकिल से बलौदा बाजार सीमा की ओर चल पड़ा.

बिलासपुर के थाना पचपेड़ी के अंतर्गत बलौदा बाजार और बिलासपुर जिलों की सीमा पर स्थित गांव नयापारा रहटाटोर के पास शिवनाथ नदी पर बने बांध में उन्होंने लाश फेंक दी और अपनेअपने घर चले गए. इस के बाद जितेंद्र ने बिलासपुर जा कर मां की झोपड़ी यह कह कर 67 हजार रुपए में बेच दी कि उस की मां अब गांव में ही रहेगी. इस तरह जितेंद्र ने मां की हत्या कर के झोपड़ी बेच दी. उसे पूरा विश्वास था कि पुलिस उस तक कतई नहीं पहुंच पाएगी. इस की वजह यह थी कि उन्होंने लाश दूसरे जिले यानी बलौदा बाजार जिले में फेंकी थी, जबकि वह रहती बिलासपुर जिले में थी.

हुआ भी वही. 3 मार्च को बलौदा बाजार पुलिस को बांध में लाश पड़ी होने की सूचना मिली. लेकिन बलौदा बाजार पुलिस घटनास्थल पर नहीं पहुंची. तब जिला बिलासपुर के घटनास्थल के नजदीकी थाना पचपेड़ी पुलिस ने जा कर लाश कब्जे में ली और घटनास्थल की काररवाई निपटा कर उसे पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दिया. घटनास्थल पर लाश की शिनाख्त नहीं हो सकी थी. पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने पर पता चला कि महिला की गला दबा कर हत्या की गई थी, इसलिए थाना पचपेड़ी पुलिस ने हत्या का मामला दर्ज करा दिया. थाना पचपेड़ी पुलिस को पूरा विश्वास था कि लाश जहां पड़ी थी, वह स्थान बलौदा बाजार जिले के अंतर्गत आता है, इसलिए उन्होंने मामले की फाइल बलौदा बाजार पुलिस को भेज दी.

लेकिन जब बलौदा बाजार के एसपी ने नापजोख कराई तो पता चला कि जिस स्थान पर लाश पड़ी थी, वह स्थान जिला बिलासपुर के अंतर्गत ही आता है तो उन्होंने फाइल बिलासपुर के एसपी को भिजवा दी. बिलासपुर के एसपी बद्रीनारायण मीणा ने कत्ल के इस मामले को चुनौती के रूप में लिया और थाना पचपेड़ी पुलिस को निर्देश दे कर फाइल सौंप दी. कत्ल के इस मामले की जांच चौकीप्रभारी वाई.एन. शर्मा को सौंपी गई. इस मामले में सब से मुश्किल काम था लाश की शिनाख्त कराना. श्री शर्मा ने मृतका की शिनाख्त के लिए बिलासपुर के ही नहीं, बलौदा बाजार के भी सभी थानों से पता किया कि इस तरह की महिला की कहीं कोई गुमशुदगी तो नहीं दर्ज है.

उन की यह कोशिश असफल रही. क्योंकि इस तरह की महिला की गुमशुदगी किसी थाने में दर्ज नहीं थी. इस के बाद एसपी श्री मीणा ने लाश के फोटो के पैंफ्लेट छपवा कर घटनास्थल से 30 किलोमीटर की रेंज में चस्पा कराने का आदेश दिया. लाश के फोटो वाले पैंफ्लेट गांवगांव चस्पा कराए गए. इस का परिणाम यह निकला कि जिला बलौदा बाजार की पुलिस चौकी लवन के अंतर्गत आने वाले गांव चिचिरदा के रहने वाले फागुलाल ने मृतका की पहचान अपनी बहन फिरतीन बाई के रूप में कर दी. इस के बाद वाई.एन. शर्मा ने जांच आगे बढ़ाई तो संदेह के घेरे में मृतका का बेटा जितेंद्र आ गया. इस की वजह यह थी कि उस ने थाने में मां की गुमशुदगी नहीं दर्ज कराई थी. झोपड़ी बेचते समय उस ने सभी को यही बताया था कि मां अब गांव में रहेगी. लेकिन वह गांव में भी नहीं थी.

पुलिस जितेंद्र को पकड़ कर थाना पचपेड़ी ले आई. पूछताछ में पहले तो उस ने मां की हत्या से इनकार किया. लेकिन जब पुलिस ने उस के साथ सख्ती की तो मजबूर हो कर उस ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया. उस ने पुलिस को बताया कि मां के झोपड़ी बेचने से मना करने पर उसी ने अपने ससुर तिहारूराम के साथ मिल कर मां की हत्या की थी. इस के बाद जितेंद्र की निशानदेही पर वाई.एन. शर्मा ने उस के ससुर तिहारूराम को गिरफ्तार कर के वह मोटरसाइकिल भी बरामद कर ली, जिस से उन्होंने लाश को ठिकाने लगाया था. सारे साक्ष्य जुटा कर पुलिस ने 28 वर्षीय जितेंद्र और 60 वर्षीय तिहारूराम को अदालत में पेश किया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया गया.

जितेंद्र से पूछताछ में पता चला कि फिरतीन बाई और उस के भाई के खिलाफ 1991 में बलवा और हत्या का मुकदमा दर्ज हुआ था, जिस में वह डेढ़ साल तक जेल में रही थी. Hindi Crime Stories

(कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित)

Illicit Affair: मामी की मोहब्बत में

Illicit Affair: राहुल और संतोष को जब नर्मदा ने नशे में अपने और सुनीता के संबंधों के बारे में बताया तो दोनों का खून खौल उठा. इस के बाद तो उन्होंने न संबंधों का खयाल रखा और न दोस्ती का. न र्मदा प्रसाद ने 36 वर्षीया मुंहबोली मामी सुनीता के साथ पहली बार शारीरिक संबंध बनाए तो खुद को जांबाज मर्द समझने लगा. बेरोजगारी की वजह से नर्मदा पहले न किसी से प्यार कर पाया था और न किसी से शारीरिक संबंध बनाए थे. इस तरह का खेल उस ने अपने दोस्तों के मोबाइल पर जरूर देखा था. तब उसे लगा था कि यह खेल सचमुच में खेला जाए तो जरूर बड़ा मजा आएगा.

सुनीता के साथ उसी की पहल पर जब पहली बार जिंदगी के इस हसीन सुख से रूबरू हुआ तो सुख के इस समुद्र में डूबतातैरता हुआ वह समझ नहीं पाया कि इस में उस की खुद की कोई खूबी नहीं, बल्कि सुनीता मामी की हिदायतें और सीखें ज्यादा थीं. सुनीता को देख कर कोई नहीं कह सकता था कि वह एकदो नहीं, बल्कि 3 बच्चों की मां है.

36 की उम्र में भी उस का अंगअंग सांचे में ढला लगता था. यह कुदरत की ही मेहरबानी थी. क्योंकि वह फिटनैस के लिए रईस औरतों की तरह न किसी फिटनैस सेंटर या जिम में जाती थी, न ही सुंदर दिखने के लिए किसी ब्यूटीपौर्लर में. हां, घर के कामकाज जरूर उसे अपने हाथों से करने पड़ते थे, क्योंकि पति की इतनी आमदनी नहीं थी कि वह कामवाली रख लेती. लेकिन पति की कमाई इतनी कम भी नहीं थी कि फांके मारना पड़ता या किसी के सामने हाथ फैलाना पड़ता. भोपाल से सटे औद्योगिक इलाके मंडीदीप में फैक्ट्रियों की भरमार है, जहां आसपास या मध्य प्रदेश के ही नहीं, देश भर के लोग काम की तलाश में आते हैं. नौकरी मिल जाने पर ज्यादातर लोग यहीं बस गए हैं. देश की जिन नामी कंपनियों ने यहां फैक्ट्रियां लगा रखी हैं, उन में एक बड़ा नाम दवा बनाने वाली कंपनी ल्यूपिन का भी है, जिस में हजारों मजदूर काम करते हैं.

उन्हीं हजारों लोगों में एक 37 वर्षीय कुंवर सिंह तोमर भी है, जो फैक्ट्री में नौकरी करते हुए जानता था कि अगर बच्चों और साथ रह रहे भाई राहुल को कुछ बनाना है तो उन्हें बेहतर पढ़ाई मुहैया कराना जरूरी है. लिहाजा वह लगन और मेहनत से नौकरी तो करता ही था, साथ ही शाम को ड्यूटी खत्म होने के बाद पानीपूरी का ठेला भी लगाता था. इस से उसे 3-4 सौ रुपए रोज की ऊपर की आमदनी हो जाती थी. सालों पहले जब कुंवर सिंह हरदा जिले के नीमगांव से मंडीदीप आया था तो अन्य लोगों की तरह खाली हाथ था. लेकिन धीरेधीरे घरगृहस्थी की जरूरत की सारी जरूरी चीजें जमा हो गई थीं. पास में कुछ पैसे भी हो जाएं, इस के लिए वह शाम को पानीपूरी का ठेला लगाने लगा था.

इस काम में उसे न शरम आती थी, न ही हिचक महसूस होती थी. मिलनसार होने की वजह उस का यह धंधा बढि़या चल निकला था. मंडीदीप में हर कोई उसे जानने भी लगा था. फैक्ट्री में अपनी ड्यूटी करने के बाद वह देर रात तक पानीपूरी बेच कर इतना थक जाता था कि घर आते ही खाना खा कर बिस्तर पर लुढ़क कर खर्राटे भरने लगता. यह बात कई बार सुनीता को बेहद नागवार गुजरती, लेकिन वह कुछ कह नहीं पाती थी. क्योंकि कुंवर सिंह बच्चों और घरगृहस्थी की बेहतरी के लिए ही अपना खूनपसीना एक कर रहा था. पति की इस मजबूरी की वजह से सुनीता बिस्तर पर करवटें बदलते हुए आहें भरती रहती. ऐसे में 12 साल पहले हुई शादी के बाद के दिनों को याद कर के सोने की कोशिश में वासना की आग बुझने के बजाय और भड़क उठती.

किसी तरह उसे नींद आती तो सुबह जल्दी उठ कर घर के कामकाज और बच्चों की तीमारदारी में लग जाना होता. मन ही मन घुट रही सुनीता की समझ में आने लगा था कि अब कुछ नहीं हो सकता. कुंवर सिंह उस के जज्बातों को समझ नहीं सकता. उसे रोज इसी तरह मछली की तरह तड़पना होगा. सुनीता के मन में बारबार यही खयाल आता कि पति को वह कैसे समझाए कि 3 बच्चों की मां बन जाने से औरत की शारीरिक सुख की लालसा कम नहीं हो जाती, बल्कि और बढ़ जाती है. लेकिन यह बात वह कहतेकहते रह जाती. ज्यादा बच्चे न हों, पति के कहने पर उस ने नसबंदी करा ली थी. इस पूरी कशमकश में अच्छी बात यह थी कि अभी तक उस के मन में पराए मर्द का खयाल नहीं आया था. शायद आता भी न, अगर नर्मदा प्रसाद का इस तरह उस के घर आनाजाना न होता.

यह नए साल यानी 2015 की शुरुआत की बात थी, जब एक दिन कुंवर सिंह ने सुनीता से कहा कि होशंगाबाद से भांजा नर्मदा प्रसाद काम की तलाश में उन के घर आने वाला है. नर्मदा को कभी सुनीता ने देखा नहीं था, लेकिन अपने पति की मुंहबोली बहन को वह अच्छी तरह जानती थी, जो कभीकभार उस के यहां राखी बांधने आती थी. और अगर नहीं आ पाती थी तो डाक से भेज देती थी. नर्मदा की मां और उस के पति ने एक ही गुरु से दीक्षा ली थी, इस नाते वह भाईबहन हो गए थे. वे इस रिश्ते का पूरी तरह सम्मान करते थे और हैसियत के मुताबिक निभाते भी थे.

नर्मदा प्रसाद जब मंडीदीप आया तो कुंवर सिंह ने उस की हर तरह से मदद की. पहले तो सिफारिश कर के उसे एक ग्लास फैक्ट्री में नौकरी दिलवाई. इस के बाद मंडीदीप मोहल्ला वार्ड नंबर 2 में अपने घर के सामने ही किराए पर कमरा दिलवा कर रहने की व्यवस्था कर दी. कुंवर सिंह उसे एकदम सगे भांजे की तरह मानता था. यह बात सचमुच मिसाल थी, क्योंकि वजहें कुछ भी हों, आजकल लोग सगे रिश्तों को भी इस तरह नहीं निभा पाते. इधर मुद्दत से काम की तलाश में भटक रहे बेटे को नौकरी मिली तो होशंगाबाद में रह रही उस की मां को भी तसल्ली हुई कि अब बेटे की जिंदगी पटरी पर आ जाएगी.

रायसेन में सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी कर रहे नर्मदा प्रसाद के पिता लक्ष्मीनारायण ने भी बेटे की नौकरी लगने पर बेफिक्री की सांस ली और मन ही मन सोचने लगे कि साल, 2 साल नर्मदा नौकरी कर ले तो अच्छी सी लड़की देख कर उस की शादी कर के गृहस्थी बसाने की जिम्मेदारी पूरी कर देंगे. होशंगाबाद से हो कर बहती नर्मदा नदी की वजह से उसी का प्रसाद मान कर लक्ष्मीनारायण ने बेटे का नाम नर्मदा प्रसाद रखा था. तब उन्हें शायद इस बात का अहसास नहीं था कि मंडीदीप जा कर उस की जिंदगी की नदी एकदम उलटी बह कर अनर्थ कर डालेगी.

नर्मदा जब मंडीदीप में रहने लगा तो स्वाभाविक रूप से मामा के घर उस का जानाआना होता रहा. शुरुआत में तो सुनीता ने उसे ज्यादा गंभीरता से नहीं लिया, क्योंकि पहले से ही उस के काफी रिश्तेदार और जानपहचान वाले मंडीदीप में रहते थे. ऐसे में पति ने इस मुंहबोले भांजे को ला कर उस का सिरदर्द और बढ़ा दिया था. लेकिन उस के लगातार आनेजाने से जल्दी ही वह खुद को फिर से जवान समझने लगी थी. वजह थी नर्मदा की उस के हसीन जिस्म को भेदती नजरें. हट्टाकट्टा और खूबसूरत नर्मदा जब अपनी इस मुंहबोली मामी को देखता तो लाख कोशिश के बाद भी वह मन में उठ रहे वासना के तूफान को चेहरे पर आने से रोक नहीं पाता.

भांजे के मन की बात का अहसास होते ही सुनीता का दिल उछलने लगा था कि नर्मदा चोरीछिपे उस के जिस्म को नापतातौलता रहता है. अकसर उस की निगाहें उस के उभारों पर आ कर ठहर जातीं. यह जानने के बाद उस ने नर्मदा को बातों और हरकतों से शह देना शुरू कर दिया. अब वह सीने को पल्लू से ढंकने के बजाय अकसर गिरा देती और उसी तरह गिरा रहने देती, जिस से नर्मदा उस से नजरें बचा कर अपनी मुराद पूरी कर सके. इस के बाद दोनों में बातें तो खूब होने ही लगीं, मजाक भी होने लगा. धीरेधीरे उन के मजाक में दोअर्थी शब्द भी आने लगे. सुनीता की शारीरिक सुख की कामना अंगड़ाईयां लेने लगीं. सामने बैठा मर्द क्या सोच रहा है, यह एक औरत ही बेहतर समझ सकती है. अब यह उस की मर्जी पर निर्भर करता है कि वह उसे पहली सीढ़ी पर ही रोक दे या फिर छत तक जाने दे.

सुनीता ने तो अपनी तरफ से पूरा दरवाजा ही खोल दिया था, लेकिन यह नर्मदा के मन की हिचकिचाहट और डर था कि आंखों के सामने मिठाई रखे होने के बाद भी वह उसे उठा कर खाने की हिम्मत नहीं कर पा रहा था. लेकिन आंखों से देखने से पेट तो भर नहीं सकता था. यही हालत सुनीता की भी थी और नर्मदा की भी. इस का मतलब आग दोनों तरफ बराबर लगी थी, बस भड़कने का इंतजार था कि पहल कौन करे. नर्मदा अपने दिल की बात इशारों से कहता तो सुनीता खुश होने के साथसाथ झल्ला भी उठती थी कि कैसा बेवकूफ लड़का है, सारी छूट दे रखी है, इस के बावजूद यह सिर्फ आग सुलगा कर चला जाता है. आखिरकार एक दिन सुनीता के सब्र का बांध टूट गया और उस ने पूछ लिया, ‘‘यूं चोरीछिपे देखते ही रहोगे कि मुंह से कहोगे भी कि तुम चाहते क्या हो?’’

नर्मदा इतना नादान और बेवकूफ भी नहीं था कि इतने पर भी चुप रहता. सुनीता की इस पहल पर उस ने वही किया, जो कोई भी युवक करता. उस समय घर में उन दोनों के अलावा कोई और नहीं था, इसलिए उस ने सुनीता को बांहों में उठाया और बिस्तर पर ला पटका. इस के बाद वह उस पर छा गया. अब कहनेसुनने को कुछ नहीं रह गया था. वासना एक तेज तूफान आया और एक नौसिखिया तथा एक तजुर्बेकार तैराक अपनेअपने तरीके से उस में गोते लगाने लगे. सुनीता को मुद्दत बाद मर्द का सुख मिला था, इसलिए वह उस पर निहाल हो उठी. दूसरी ओर नर्मदा भी अपने कमरे में आ कर निढाल सा बिस्तर पर पड़ कर कुछ देर पहले भोगे सुख को याद कर के रोमांचित होने लगा.

उस ने शारीरिक सुख के बारे में जो सुना और पढ़ा था, उस का असली सुख तो उस से कहीं ज्यादा था. इस के बाद यह लगभग रोज की बात हो गई. नर्मदा फैक्ट्री से आता तो सीधे सुनीता के पहलू में जा समाता. मौके की कमी नहीं थी, उस समय बच्चे खेलने गए होते थे और राहुल अपने दोस्तों के साथ गप्पे लड़ाने में मशगूल रहता था. उन दोनों के इस नाजायज रिश्ते के बारे में कोई शक भी नहीं करता था. इस की वजह कुंवर सिंह का व्यवहार और इन दोनों की सतर्कता थी. उम्र में अपने से कुछ छोटे राहुल को भी नर्मदा ने इस तरह पटा लिया था कि वह भी इस बारे में सोच नहीं सकता था.

धीरेधीरे सुनीता और नर्मदा के शारीरिक संबंध प्यार में बदल गए और दोनों साथसाथ जीनेमरने की कसमें खाने लगे. यही नहीं, उन का यह प्यार इस हद तक परवान चढ़ा कि दोनों अपना बच्चा पैदा करने के बारे में सोचने लगे. इस के लिए सुनीता नसबंदी का औपरेशन खुलवाने को भी तैयार हो गई. चूंकि मंडीदीप में रहते दोनों शादी नहीं कर सकते थे, इसलिए उन्होंने भाग कर शादी करने का फैसला कर लिया. सुनीता भूल गई कि वह 3 बच्चों की मां और गरीब ही सही, पर एक इज्जतदार आदमी की पत्नी है, जिस का समाज और रिश्तेदारी में अपना अलग रसूख है.

नर्मदा भी मामा का एहसान भूल गया कि इस शख्स ने भागदौड़ कर किस तरह नौकरी दिलाई और मंडीदीप में जमने में मदद की. शायद उतनी सहायता तो सगा मामा भी नहीं करता और उस ने एवज में क्या किया, इस मुंहबोले मामा की पीठ में छुरा घोंप दिया. नर्मदा और सुनीता सारी दुनियादारी और जिम्मेदारियां भूल कर नई दुनिया बसाने की तैयारी में जुट गए थे. मई के पहले सप्ताह में चिलचिलाती गरमी में नर्मदा, राहुल और सुनीता की बहन के लड़के संतोष को शराब की पार्टी देने होशंगाबाद ले गया. मंडीदीप और होशंगाबाद के बीच औबेदुल्लागंज में रुक कर तीनों ने छक कर शराब पी. नर्मदा आदतन शराबी था, लेकिन उस दिन ज्यादा पी लेने की वजह से उस का दिमाग काबू से बाहर होने लगा. राहुल और संतोष को काफी दिनों बाद मनमाफिक पीने की मिली थी, वह भी मुफ्त में, इसलिए वे दोनों भी धुत होते जा रहे थे.

शराब का नशा क्यों नुकसानदेह कहा जाता है, यह जल्दी ही सामने आ गया. नशे की झोंक में डींगे हांकते हुए नर्मदा ने राहुल और संतोष को हमदर्द समझते हुए उन के सामने सुनीता के साथ के अपने संबंध उजागर कर दिए. उस ने दिल की बात जिस तरह कही, वह सुन कर राहुल का खून खौल उठा. लेकिन उस समय उस ने खामोश रहना ही बेहतर समझा, क्योंकि नशे की हालत में वह कुछ नहीं कर सकता था. दूसरे नर्मदा कितना सच और कितना झूठ बोल रहा था, इस का भी अंदाजा नहीं लगाया जा सकता था. नर्मदा के मुंह से यह सुन कर कि जल्दी ही भाग कर दोनों शादी करने वाले हैं, उसे लगा कि दाल में जरूर कुछ काला ही नहीं है, बल्कि पूरी दाल ही काली है.

अपनी भाभी को मां की तरह चाहने और इज्जत देने वाले राहुल का नशा उड़ चुका था. वह बदले की आग में जल रहा था. तीनों पार्टी खत्म कर के मंडीदीप वापस आ गए और सो गए. अगले दिन राहुल ने जिस अंदाज में सुनीता और नर्मदा को बातें करते देखा, उस से उसे ताड़ते देर नहीं लगी कि बीती रात नशे में ही सही, नर्मदा ने जो कहा था, वह गलत नहीं था. अब राहुल की दिमागी स्थिति गड़बड़ाने लगी. कल तक जो नर्मदा उसे पक्का दोस्त लगता था, वह दुश्मन नंबर एक लगने लगा. उसी के साथ मां समान लगने वाली भाभी कुलटा लग रही थी, जो देवता समान पति की धोखा देने में तनिक भी नहीं हिचकिचा रही थी.

क्या किया जाए, यह सवाल राहुल को मथे डाल रहा था. भाई से कहता तो तय था कि वह उस की बात पर यकीन नहीं करते और बेवजह बात का बतंगड़ बनाते. मुमकिन है, भाभी भी उस पर ही उलटासीधा इलजाम लगा देती. हैरानपरेशान राहुल ने संतोष से बात की, जो खुद पिछली रात से तनाव में था कि उस की मौसी ऐसी है. दोनों ने मिल कर तय किया कि अब नर्मदा की हत्या के सिवाय और कोई रास्ता नहीं है. इस के लिए दोनों ने तुरंत योजना भी बना डाली. शाम के वक्त नर्मदा उन्हें मिला तो दोनों ने ऐसी ऐक्टिंग की, मानों बीती रात क्या हुआ था, उसे वे भूल चुके थे या फिर उस से उन्हें कोई सरोकार नहीं था. इतराते हुए उन्होंने नर्मदा से फिर शराब पिलाने को कहा तो नर्मदा खुशीखुशी तैयार हो गया.

तय हुआ कि आज कलियासोत बांध पर चल कर पी जाए. तीनों बांध पर पहुंचे और पीनी शुरू कर दी. फर्क इतना था कि आज राहुल और संतोष दिखावे के लिए घूंटघूंट पी रहे थे, जबकि नर्मदा को ज्यादा से ज्यादा पिलाने की कोशिश कर रहे थे. नशा चढ़ा तो नर्मदा ने फिर अपने और सुनीता के संबंधों के बारे में बताना शुरू कर दिया. ये बातें राहुल और संतोष के कानों में पिघले शीशे की तरह उतर रही थीं. सुनतेसुनते जब यकीन हो गया कि नर्मदा को इतना नशा चढ़ गया है कि वह कुछ नहीं कर सकता तो दोनों ने एकदूसरे को इशारा किया.

इस के बाद वे उस पर चाकू से ताबड़तोड़ वार करने लगे. नर्मदा के शरीर को चाकुओं से गोद कर उस के चेहरे पर एक भारी पत्थर पटका. जब उन्हें तसल्ली हो गई कि यह मर चुका है तो उन्होंने लाश को वहीं कचरे के ढेर में छिपा दिया और मंडीदीप वापस आ गए. दूसरे दिन 8 मई को थाना मिसरोद के थानाप्रभारी के.एस. मुकाती को किसी अज्ञात आदमी ने फोन द्वारा सूचना दी कि कलियासोत नदी के पुल के नीचे एक नौजवान की सिर कुचली लाश पड़ी है तो वह फौरन पुलिस टीम ले कर घटनास्थल पर जा पहुंचे. लाश देख कर ही पुलिस समझ गई कि मामला हत्या का है. मृतक की पहचान के लिए जब उस की तलाशी ली गई तो जेब से मिली परची पर लिखे फोन नंबर से उस की पहचान नर्मदा प्रसाद के रूप में हो गई.

शुरुआती जांच में पुलिस को कुछ हासिल नहीं हुआ. राहुल और संतोष से भी पूछताछ हुई, लेकिन उन्होंने इस तरह इत्मीनान से जवाब दिए कि पुलिस का शक उन पर नहीं गया. उन्होंने कहा था कि नर्मदा की किसी से कोई रंजिश नहीं थी, इसलिए उसे कोई क्यों मारेगा. नर्मदा की मौत शायद रहस्य बन कर रह जाती, अगर उस की मां के बयान न लिए जाते. उस ने अपने बयान में सीधे तो नहीं, लेकिन इशारों में बता दिया था कि नर्मदा के अपनी मुंहबोली मामी सुनीता से नाजायज ताल्लुकात थे. इस के बाद पुलिस के पास करने को ज्यादा कुछ नहीं रह गया. अपने बयान में राहुल और संतोष यह बात छिपा गए थे कि पिछली रात वे नर्मदा के साथ कलियासोत नदी पर गए थे. पुलिस ने दोनों के हलक में अंगुली डाली तो सारी कहानी बाहर आ गई.

दोनों को हत्या के आरोप में गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया. लेकिन सुनीता पर कोई आरोप नहीं लगा, जो इस कत्ल की वजह थी. हैरत की और सोचने की बात यह है कि जो औरत फसाद की जड़ थी, वह कानूनी शिकंजे से बाहर है. उस के पाप की सजा अब उस का जवान देवर और भांजा भुगतेंगे. Illicit Affair

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

Crime News: उम्र के भंवरजाल में फंसी औरत

Crime News: 2 बच्चों की मां नीरू जब जवान हुई तो उस का पति बूढ़ा हो गया. इस स्थिति में उस के कदम बहक गए. इस का दुखद अंत यह हुआ कि बीवी के कत्ल में आज पति जेल में है.

रात के 12 बज रहे थे. अभी तक नीरू उर्फ नीलम घर नहीं लौटी थी. बीते 3 दिनों से यही क्रम चल रहा था. महावीर अग्रवाल ने पत्नी की गैरहाजिरी में खाना बना कर बेटी कोमल और बेटे हर्षित को खिला कर सुला दिया था. खुद खा कर पत्नी नीरू का खाना फ्रिज में रख दिया था. 4 लोगों के इस परिवार में बीते कई सालों से यही सिलसिला चला आ रहा था. महावीर के चेहरे पर कभी शिकन तक नहीं आई थी.

घर और कपड़ों की साफसफाई से ले कर चौकाचूल्हा तक के काम में वह पत्नी की मदद करता था. नीरू की गैरहाजिरी में वह अपने दोनों बच्चों को पिता के साथसाथ मां के स्नेह से भी सराबोर कर रहा था. दोनों बच्चों के चेहरे देख कर और उन्हें लाड़प्यार कर के वह दिन भर की दौड़धूप और घर के कामकाज की थकावट को भूल जाता था. राजस्थान के जिला श्रीगंगानगर के मोहल्ला प्रेमनगर के बने एक साधारण से घर में टीवी के सामने बैठा महावीर अग्रवाल पत्नी का बेसब्री से इंतजार कर रहा था. रात एक बजे के करीब नीरू घर में दाखिल हुई.

अस्तव्यस्त कपड़े, बिखरे बाल और पस्त बदन देख कर महावीर का माथा ठनका. वह कुछ कहता, उस से पहले ही नीरू बोल पड़ी, ‘‘क्या करूं यार, आज 3 जगहों के और्डर थे और एक दुलहन तो पौर्लर पर ही आ गई थी. अब 4-4 दुलहनों को सजाने में देर तो हो ही जाएगी.’’

नीरू ने देर होने की वजह बता दी. महावीर ने उस की इस सफाई पर ध्यान दिए बगैर कहा, ‘‘सुबह बात करेंगे. खाना फ्रिज में रखा है, मन हो तो खा लेना.’’

इतना कह कर महावीर अपने बिस्तर पर जा कर लेट तो गया, लेकिन उस की नींद आंखों से कोसों दूर थी. दोनों बच्चों के भविष्य, खस्ताहाल दुकानदारी और नीरू के संदिग्ध चालचलन को ले कर उस के दिमाग में तूफान चल रहा था. नीरू कपड़े बदल कर दूसरे कमरे में जा कर अपने बिस्तर पर लेट गई. उस ने खाना नहीं खाया था. महावीर को लगा, संभवत: वह किसी के यहां से मनपसंद खाना खा कर आई होगी. सुबह महावीर की आंख लगी तो वह देर से सो कर उठा. कोमल और हर्षित स्कूल जा चुके थे. नाश्ता कोमल ने बनाया था.

धूप चढ़े नीरू उठी तो महावीर ने 2 कप चाय बनाई. बिस्तर पर बैठी नीरू को चाय का कप पकड़ा कर महावीर उस के सामने पड़ी कुरसी पर बैठते हुए बोला, ‘‘देखो नीरू, तुम्हारा रवैया दिनबदिन असहनीय होता जा रहा है. तुम मेरी उपेक्षा कर रही हो, इस की मुझे रत्ती भर चिंता नहीं है. लेकिन बच्चों के लिए तो सोचो.’’

‘‘मैं ने क्या कर दिया भई. ब्यूटीपौर्लर चलता हूं. इन दिनों लगनें चल रही हैं. मैं ने तो आप को रात में ही बता दिया था कि 4 दुलहनों को तैयार करना है, घर आने में देर हो जाएगी.’’ नीरू ने कहा.

महावीर को पता था कि उस दिन शादियां नहीं थीं, नीरू रटारटाया बहाना बना कर झूठ बोल रही है. वह नहीं चाहता था कि नीरू बात का बतंगड़ बना कर झगड़ा करने लगे, इसलिए उस ने बड़े धैर्य से उसे समझाने की कोशिश की. महावीर ने कहा, ‘‘देखो नीरू, मुझे पता है कि दुकानदारी से जो कमाई हो रही है, उस से घर के खर्चे पूरे नहीं हो रहे हैं. दोनों बच्चों को अच्छा खिलाड़ी बनाने के लिए कोचिंग करानी है. ठीक से आमदनी न होने की वजह से मैं काफी परेशान रहता हूं. मैं तुम्हारे हाथ जोड़ता हूं. तुम मेरी सहनशीलता की परीक्षा लेना बंद कर दो. किसी भी समय मेरे सब्र का बांध टूट सकता है. जिस दिन ऐसा हुआ, अनर्थ हो जाएगा.’’

महावीर ने ये बातें जिस तरह गिड़गिड़ाते हुए कही थीं, कोई भी समझदार औरत होती तो सिर ऊपर न उठाती. लेकिन नीरू उस की बात समझने के बजाय गुस्से में बोली, ‘‘यह गीदड़ भभकी किसी और  को देना. तुम्हारा और तुम्हारे बच्चों का खर्च पूरा करने के लिए ही तो मैं रातदिन खटती हूं. इस बात का एहसान मानने के बजाय तुम मुझे धमकी दे रहे हो. अपने मांबाप की तरह तुम भी मुझ पर शक करते हो. तुम जैसे निखट्टू के पल्ले बंध कर मेरा तो जीवन नरक हो गया है.’’

नीरू की इन जहरबुझी बातों से महावीर को भी गुस्सा आ गया. अपने 16 साल के वैवाहिक जीवन में महावीर पहली बार आपा खो बैठा. उस ने चाय का कप लिए नीरू के गालों पर तड़ातड़ 2 थप्पड़ रसीद कर दिए. नीरू तिलमिला उठी. भद्दी सी गाली देते हुए उस ने कहा, ‘‘तुम ने मेरे ऊपर हाथ उठाया है. अब देखो, मैं तुम्हें कैसा मजा चखाती हूं. मैं अभी मम्मी को फोन कर के बुलाती हूं. तुम्हारे शरीर में भूसा न भरवा दिया तो मेरा भी नाम नीरू नहीं.’’

नीरू इसी तरह बड़बड़ाती रही और महावीर घर से निकल गया. मोहल्ले के पार्क में पेड़ के नीचे लेटा महावीर भविष्य के तानेबाने बुनता रहा. उस के मोबाइल पर कई बार उस की सास चंपा देवी का फोन आया, लेकिन उस ने फोन रिसीव नहीं किया. उस की नजर में यह पतिपत्नी के बीच घटी एक मामूली घटना थी. नीरू ने नमकमिर्च लगा कर मां से शिकायत कर दी होगी. इसलिए वह उसे खरीखोटी सुनाने के लिए फोन कर रही होगी.

महावीर की सास चंपा देवी नीरू से भी ज्यादा तीखी थी. नीरू ने उन से कहा था कि उस से ब्याह कर के उस का जीवन नरक हो गया है, जबकि यह सरासर झूठ था. सही बात तो यह थी कि नीरू मजे लूट रही थी और उस की वजह से उसी की नहीं, पूरे परिवार का जीवन नरक हो चुका था. अंधेरा घिरने तक महावीर पार्क में ही पड़ा रहा. अब तक उस की सास ने न जाने कितनी बार फोन कर दिया था, पर उस ने फोन रिसीव नहीं किया था. रात 10 बजे वह घर पहुंचे तो दोनों बच्चे खापी कर सो चुके थे. किचन में मिला खाना खा कर महावीर लेट गया. नीरू अभी पौर्लर से नहीं लौटी थी.

अगले दिन सुबह महावीर थोड़ी देर से उठा. दोनों बच्चे स्कूल चले गए थे. नीरू अपने कमरे में घोड़े बेच कर सो रही थी. घर के थोड़ेबहुत काम निपटा कर महावीर पार्क में जा पहुंचा. नीरू परिवार की ही नहीं, अपने दोनों मासूम बच्चों की भी अनदेखी कर रही थी. उसे उन की जरा भी चिंता नहीं थी. यही सब सोचसोच कर उसे नीरू से नफरत सी होती जा रही थी. उस की सहनशीलता अंतिम पड़ाव पर जा पहुंची थी. तभी उस की सास चंपा देवी का फोन आ गया. महावीर ने जैसे ही फोन रिसीव किया, दूसरी ओर से चंपा देवी उसे डांटने लगी. अंत में उस ने उसे जेल भिजवाने तक की धमकी दे डाली. महावीर जवाब में तो कुछ नहीं बोला, लेकिन जेल भिजवाने की धमकी उस के दिमाग में बैठ गई.

महावीर के दिमाग में आया, वह तो वैसे भी जेल से बदतर जीवन जी रहा है. वही क्यों, उस के दोनों बच्चे, बूढ़े मांबाप भी एक तरह से जेल से भी गयागुजरा जीवन जीने को मजबूर हैं. उस समय महावीर जिन स्थितियों से गुजर रहा था, उस में सकारात्मक सोच मिलने पर वह संत बन सकता था और नकारात्मक सोच में शैतान. महावीर और उस के परिवार का दुर्भाग्य था कि उस समय उस के दिमग पर नकारात्मक सोच भारी हो गई. अपने बच्चों के भविष्य को बचाने के लिए उस ने एक भयानक निर्णय ले लिया. उस का सोचना था कि अब उसे जेल जाना ही है, सास भिजवाए या वह स्वयं चला जाए. अंत में उस ने खुद जेल जाने का निर्णय कर लिया.

खतरनाक निर्णय लेने के बाद महावीर ने खुद को काफी हलका महसूस किया. शायद उस का दिलोदिमाग विवेकहीन हो गया था. वह पार्क से उठा और सीधा घर पहुंचा. नहाधो कर 3 दिनों से बंद पड़ी अपनी स्पेयर पार्ट्स की दुकान पर पहुंचा. उसे अब दुकानदारी में कोई दिलचस्पी नहीं थी. शाम होने से पहले ही वह घर लौट आया. दोनों बच्चे घर पर ही थे. बच्चों की मनपसंद का खाना बना कर उन्हें प्यार से खिलाया और सुला दिया. इस के बाद खुद टीवी देखते हुए नीरू का इंतजार करने लगा.

देर रात नीरू घर लौटी तो महावीर ने उसे मुख्य द्वार पर ही रोक लिया. बरामदे में 2 कुरसी उस ने पहले से रख दी थी. उस ने नीरू का हाथ पकड़ कर एक कुरसी पर बिठा दिया और खुद सामने वाली कुर्सी पर बैठ गया. इस के बाद उस के गाल पर हाथ फेरते हुए बोला, ‘‘नीरू जो हो गया, अब उसे भूल जाओ. मैं अपनी गलती के लिए माफी मांगता हूं. अब इस परिवार को बचाना तुम्हारे हाथ में है. मैं तुम्हारा हर आदेश मानने को तैयार हूं. तुम्हारी हर इच्छा पूरी करूंगा. बस तुम गलत आदतें छोड़ दो.’’

महावीर की इन बातों पर गंभीर होने के बजाय नीरू खिलखिला कर हंस पड़ी. इस के बाद व्यंग्य से बोली, ‘‘इस तरह की फालतू बातें मैं सुनने की आदी नहीं.’’

नीरू इतना ही कह पाई थी कि महावीर के सब्र का बांध टूट गया. वह उस पर एकदम से पिल पड़ा. उस ने नीरू के गले में पड़े दुपट्टे को लपेट कर कसना शुरू किया तो फिर तभी छोड़ा, जब वह मर कर कुर्सी से लुढ़क गई. पत्नी को मार कर महावीर ने उस की लाश को उठा कर बरामदे के कोने में बने स्टोर रूम में ले जा कर रख दिया और अपने बिस्तर पर जा कर सो गया. अगले दिन सुबह महावीर बच्चों से पहले उठ गया. बच्चों ने मम्मी के बारे में पूछा तो कहा कि वह ब्यूटीपौर्लर का सामान लेने बाहर गई है. उसी समय सास चंपा देवी का फोन आया तो उन से भी कह दिया कि वह बाहर गई है. बच्चे स्कूल चले गए तो महावीर बाजार गया और लोहा काटने की एक आरी खरीद लाया. मुख्य दरवाजा बंद कर के वह स्टोर रूम में घुस गया.

महावरी ने उस के दोनों पैर आरी से काट कर धड़ से अलग कर दिए. इस के बाद दोनों हाथों के पंजे काटे. दब्बू पति से जल्लाद बना महावीर अब तक थक गया था. उस के दिल में नीरू के प्रति पैदा नफरत बढ़ती जा रही थी. अब वह उस की लाश से बदला ले रहा था. इस के बाद उस ने कमरे में ताला बंद कर दिया और अगले दिन तक बच्चों के साथ सामान्य ढंग से रहता रहा. दोनों बच्चे रोज की तरह स्कूल चले गए. बच्चों के जाने के बाद महावीर कमरे में घुसा तो दोनों हाथ काट कर धड़ से अलग किए. इस के बाद उस ने सिर काट कर अलग किया. इस तरह नीरू की लाश 8 टुकड़ों में बंट गई. जबकि महावीर के चेहरे पर किसी तरह की शिकन या प्रायश्चित नहीं था.

इस बीच चंपा देवी ने महावीर को कई बार फोन कर के नीरू या बच्चों से बात करवाने के लिए कह चुकी थी. लेकिन हर बार उस ने नीरू के न लौटने और बच्चों के बाहर होने की बात कह कर सास को टरका दिया था. अब तक चंपा देवी को किसी अनहोनी की आशंका हो गई थी. इसलिए उस ने श्रीगंगानगर में ही रह रहे अपने दूसरे दामाद धर्मेंद्र अग्रवाल को फोन कर के नीरू के बारे में पता लगाने को कहा. महावीर ने उसे भी टरका दिया था. थकहार कर चंपा देवी ने फाजिल्का में रह रहे अपने भाई अमित को नीरू के बारे में पता लगाने के लिए श्रीगंगानगर भेजा, इसी के साथ वह खुद भी श्रीगंगानगर के लिए रवाना हो गई.

अमित अग्रवाल श्रीगंगानगर पहुंचे तो महावीर ने उन्हें भी गोलमोल जवाब दिया. हर्षित और कोमल घर में ताला बंद होने की वजह से पड़ोसी के यहां बैठे थे. अमित तुरंत सेतिया कालोनी स्थित पुलिस चौकी पहुंचे और अपनी भांजी नीरू के संदिग्ध परिस्थितियों में लापता होने की सूचना दी, लेकिन पुलिस ने उन की शिकायत पर ध्यान नहीं दिया. तब अमित ने अपने कुछ रिश्तेदारों और परिचितों को इस मामले के बारे में बता कर मदद मांगी. जब सभी लोग महावीर के घर पहुंचे तो वहां से आने वाली असहनीय दुर्गंध से उन्हें आशंका हुई. अमित के साथ आए लोगों ने तुरंत कोतवाली पुलिस को सूचना दी. सूचना मिलते ही कोतवाली प्रभारी विष्णु खत्री दलबल के साथ महावीर के घर पहुंच गए.

उन्होंने इस बात की सूचना अधिकारियों को दी तो उन की सूचना पर एएसपी (शहर) शशि डोगरा, प्रशिक्षु आईपीएस चूनाराम भी घटनास्थल पहुंच गए. महावीर के पहुंचने पर कमरा खुलवाया गया तो पुलिस अधिकारी भी नफरत की वजह से मानवीय संवेदनाओं का वहशीपन भरा हश्र देख कर भौचक्के रह गए. पुलिस अधिकारियों ने नीरू की 8 टुकड़ों में बंटी लाश को कब्जे में ले लिया. महावीर ने अपना जुर्म कबूल लिया था, इसलिए पुलिस ने उसे हिरासत में ले लिया. इस के बाद पुलिस ने लाश को पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दिया. पुलिस घटनास्थल की काररवाई निपटा रही थी, तभी नीरू की मां चंपा देवी भी वहां पहुंच गई थीं.

कोतवाली पुलिस ने चंपा देवी की ओर से नीरू की हत्या का मुकदमा महावीर अग्रवाल के खिलाफ दर्ज कर लिया. यह 6 अप्रैल, 2015 की बात थी. चंपा देवी के बताए अनुसार, नीरू की हत्या 2 अप्रैल की रात 2 बजे के करीब की गई थी. उस ने तो हत्या के इस मामले में महावीर के पूरे परिवार को नामजद करा दिया था, लेकिन जांच में पता चला कि परिवार के बाकी लोगों से इन लोगों का बहुत पहले ही संबंध खत्म हो चुका था, इसलिए पुलिस ने बाकी लोगों को निर्दोष मान लिया. पुलिस पूछताछ में नीरू की हत्या की जो कहानी सामने आई थी, वह इस प्रकार थी—

पंजाब प्रदेश का एक जिला है फतेहगढ़ साहिब. इसी जिले की एक प्रमुख व्यावसायिक मंडी है गोविंदगढ़. यहीं आयरन मंडी में रहते थे शिवदयाल अग्रवाल. उन की बेटी नीलम उर्फ नीरू विवाह लायक हुई तो रिश्तेदारों के बताने पर उन्होंने अबोहर निवासी खुशीराम के बेटे महावीर से नीरू का विवाह कर दिया था. खुशीराम काफी संपन्न आदमी थे. महावीर भी खूब मेहनती और मिट्टी में सोना निकालने वाला था. लेकिन नीरू और महावीर की उम्र के बीच का फासला काफी लंबा था. नीरू 18 साल की थी, जबकि महावीर 35 साल का. लेकिन धनदौलत और वैभवशाली परिवार की चकाचौंध में दोगुनी उम्र का अंतर गौण हो गया था.

महावीर और नीरू के शुरुआती दिन बड़े अच्छे गुजरे. लेकिन उम्र बढ़ने के साथ उन के दांपत्य में खटास आने लगी. उसी बीच खुशीराम को व्यापार में घाटा हुआ तो वह परिवार के साथ अबोहर से श्रीगंगानगर आ गए. शादी के 2 सालों बाद नीरू ने बेटी कोमल और उस के बाद बेटे हर्षित को जन्म दिया. महत्वाकांक्षी और स्वछंद विचारों वाली नीरू को संयुक्त परिवार में घुटन सी होती थी. इसलिए अलग रहने के लिए उस ने क्लेश शुरू कर दिया. महावीर ने किराए पर अलग मकान ले लिया और कमाई के लिए स्पेयर पार्ट्स का खुदरा व्यवसाय शुरू कर दिया. संजनेसंवरने का शौक रखने वाली नीरू ने अपने इस शौक को व्यावसायिक उपयोग करने की गरज से ब्यूटीपौर्लर खोल लिया.

नीरू का ब्यूटीपौर्लर चल निकला. पतिपत्नी, दोनों के कमाने से परिवार में बरकत होने लगी. नीरू और महावीर की उम्र में अंतर तो था ही, अब उन के विचारों में भी जमीनआसमान का अंतर आ गया था. स्वच्छंद जीवन जीने वाली नीरू को रोकटोक बहुत कस्टदायक लगता था. जबकि महावीर को इस तरह की आजादी बिलकुल पसंद नहीं थी. इस तरह विचारों के टकराव की वजह से पतिपत्नी में कलह रहने लगी. कहा जाता है कि श्रीगंगानगर में आने के बाद खुशीराम और उन की पत्नी मनोरीदेवी ने नीरू की आजादी से नाराज हो कर उस से पूरी तरह रिश्ता खत्म कर लिया था.

खुदगर्जी का जीवन जीने वाली नीरू अपने पति और बच्चों से अलगअलग होती गई. मांबाप के बीच होने वाली कलह और खींचतान से बच्चे भी परेशान रहते थे. उन्होंने अपने ढंग से दोनों को समझाने की कोशिश भी की, लेकिन नीरू और महावीर के अपनेअपने जो अहम थे, उस की वजह से बात बन नहीं पाई और बात हत्या तक पहुंच गई. हत्या के इस मामले की जांच कोतवाली प्रभारी विष्णु खत्री ने स्वयं संभाली. पूछताछ में महावीर ने बताया कि नीरू की बदचलनी की वजह से वह परेशान हो चुका था. उस की सास चंपा देवी उसे जेल भिजवाने की धमकी देती रहती थी.

अगले दिन पुलिस ने महावीर को न्यायालय में पेश कर के पूछताछ एवं सबूत जुटाने के लिए 3 दिनों के पुलिस रिमांड पर लिया. रिमांड अवधि के दौरान पुलिस ने वह आरी बरामद कर ली, जिस से नीरू की लाश के टुकड़े किए गए थे. इस के बाद अन्य औपचारिकताएं पूरी कर के महावरी को पुन: न्यायालय में पेश किया गया, जहां से उसे न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. लोगों का कहना है कि इस हत्या की मुख्य वजह मियांबीवी के बीच की उम्र का अंतर था. शादी के समय नीरू 18 साल की थी, जबकि महावीर 35 साल का. नीरू जब पूरी तरह जवान हुई तो महावीर को बुढ़ापा आ गया, जिस की वजह से नीरूके कदम बहके तो बहकते ही चले गए. परिणामस्वरूप उसे असमय ही मरना पड़ा.

महावीर की बेटी कोमल और बेटा हर्षित पढ़ने में तो अच्छे हैं ही, बैडमिंटन और टेबल टेनिस के अच्छे खिलाड़ी भी हैं. अब मां का कत्ल हो गया और पापा मां के कत्ल के आरोप में जेल चले गए. दोनों बच्चों के लिए दुख की बात यह है कि उन्होंने दादादादी को मां की मौत और पिता के जेल जाने के बाद पहली बार देखा था. वहीं ननिहाल पक्ष वालों ने उन्हें अपने साथ ले जाने से साफ मना कर दिया था. ऐसे में इन होनहार बच्चों का क्या होगा?

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

Delhi Crime Story: कंबल में लपेट दिया अपना रिलेशन

Delhi Crime Story: पति की हत्या के आरोप में जेल गई अनीता, जमानत पर छूटने के बाद अपनी सहेली पुष्पा के भाई शिवनंदन के साथ ही लिवइन रिलेशन में रहने लगी. इसी दौरान उन दोनों के बीच ऐसा क्या हुआ कि शिवनंदन ने लिवइन रिलेशन को कंबल में लपेट कर रख दिया.

बात पहली जून, 2015 की है. सुबह करीब साढ़े 8 बजे दिल्ली के उत्तर पश्चिमी जिले के थाना आदर्श नगर के ड्यूटी औफिसर को पुलिस नियंत्रण कक्ष द्वारा सूचना मिली कि मजलिस पार्क के मकान नंबर ए/308 से दुर्गंध आ रही है और दरवाजे पर ताला लगा है. ड्यूटी औफिसर ने इस काल के बारे में थानाप्रभारी संजय कुमार को अवगत करा दिया. बंद मकान से बदबू आने की बात सुन कर ही थानाप्रभारी समझ गए कि वहां कुछ न कुछ गड़बड़ जरूर है. क्योंकि इस तरह की जो भी काल आती हैं, उन में से ज्यादातर मामले हत्या के ही निकलते हैं. यानी कोई किसी की हत्या कर के लाश को कमरे में छिपा कर दरवाजा बंद कर के फरार हो जाता है.

बहरहाल थानाप्रभारी पुलिस टीम के साथ मजलिस पार्क की तरफ निकल गए. जहां से बदबू आने की बात कही गई थी, वह पहली मंजिल पर था. पुलिस ने भी उस मकान से आती हुई दुर्गंध को महसूस किया. वहीं पर करीब 20 साल का एक युवक नीरज भी था. वह उस मकान में रहने वाले शिवनंदन का सौतेला बेटा था. नीरज ने पुलिस को बताया कि मकान की चाबी उस के पिता के पास है और वह पता नहीं कहां चले गए. तभी आसपास रहने वाले लोग भी वहां आ गए. उन्होंने भी दुर्गंध वाली बात उन्हें बताई. वहां मौजूद लोगों की मौजूदगी में पुलिस ने दरवाजे पर लगा ताला तोड़ कर जैसे ही किवाड़ खोले तो बदबू और बढ़ गई. नाक पर रुमाल रख कर पुलिस घर में घुसी और यह खोजने लगी कि यह बदबू आ कहां से रही है.

दरवाजे के पास ही एक बरामदा था. फिर एक कमरा बना था. उस के बराबर में किचन थी. किचन के पास बाथरूम था. फिर उस के बराबर में एक कमरा था. कमरे के पीछे बालकनी थी. पुलिस ने कमरे और बाथरूम को छान मारा लेकिन वहां कुछ नहीं मिला. इस के बाद पुलिस किचन में पहुंची तो वहां 2 चूहे मरे मिले. उन चूहों से तेज बदबू आ रही थी इसलिए पुलिस ने नीरज से उन चूहों को फिकवा दिया. पुलिस तो बदबू के दूसरे ही मायने लगा रही थी, लेकिन वहां मामला दूसरा ही निकला. लिहाजा थानाप्रभारी राहत की सांस ले कर वहां से चले गए. करीब साढ़े 9 बजे थानाप्रभारी के मोबाइल पर नीरज का फोन आया. उस ने उन्हें बताया कि मकान से बदबू अभी भी आ रही है. मकान का कोनाकोना छान मारा. लेकिन अब कोई मरा हुआ चूहा भी नहीं मिला. फिर भी पता नहीं बदबू कहां से आ रही है.

थानाप्रभारी एसआई प्रवीण कुमार के साथ एक बार फिर मजलिस पार्क में उसी मकान पर पहुंच गए. इस बार वहां नीरज के साथ उस का सौतेला पिता शिवनंदन भी मिल गया. बदबू महसूस होने पर पुलिस ने एक बार फिर से खोजबीन शुरू कर दी. इस बार भी बदबू किचन की तरफ से ही आ रही थी. पुलिस ने सोचा कि पहले की तरह कोई चूहा ही मरा पड़ा होगा. वह किचन में खोजबीन करने लगी. लेकिन वहां कुछ दिखाई नहीं दे रहा था. तभी पुलिस की नजर ऊपर की तरफ स्लैब पर बने लकड़ी के रैक पर गई. उस रैक को जैसे ही खोला तो बदबूदार भभका आया.  रैक में एक कंबल दिखाई दिया. देखने पर लग रहा था जैसे उस कंबल में कोई इंसान लिपटा हुआ हो.

पुलिस ने वह कंबल उतार कर खोला तो उस में एक युवती की लाश निकली उस की उम्र करीब 40 साल थी. वह महिला क्रीम कलर का सूट पहने हुए थी. जिस पर ब्राउन कलर के फूल थे. जामुनी रंग की चुन्नी भी उस के गले में थी. लाश को देखते ही नीरज चीखते हुए बोला कि यह तो मेरी मां अनीता है. शिवनंदन भी रो रहा था क्योंकि वह उसी के साथ पत्नी बन कर लिवइन रिलेशन में रह रही थी. शिवनंदन और उस के सौतेले बेटे से पुलिस ने अनीता की हत्या के बारे में पूछा तो दोनों ने बताया कि अनीता की हत्या किस ने की, इस बारे में उन्हें कुछ पता नहीं है. गम के माहौल में पुलिस ने उन दोनों से ज्यादा पूछताछ तो नहीं की लेकिन पुलिस के शक की सुई दोनों बापबेटों पर ही टिकी थी.

मौके पर क्राइम इनवैस्टीगेशन टीम को बुला कर पुलिस ने घटनास्थल की जरूरी काररवाई पूरी की और लाश को पोस्टमार्टम के लिए जहांगीरपुरी के बाबू जगजीवनराम मेमोरियल अस्पताल भिजवा दिया. हत्या के इस मामले को सुलझाने के लिए थानाप्रभारी संजय कुमार के नेतृत्व में एक पुलिस टीम बनाई गई, जिस में इंसपेक्टर राकेश कुमार, एसआई प्रवीण कुमार, हेडकांस्टेबल बालकिशन, राजेंद्र सिंह, अंगद सिंह, कांस्टेबल नवीन कुमार, गजेंद्र, विकास, मनोज आदि को शामिल किया गया. जिस मकान में अनीता की लाश मिली थी, उस में शिवनंदन और अनीता का बेटा नीरज भी रहता था. उन दोनोें के होते हुए कोई मकान में वारदात कर के चला जाए और इस बात की भनक उन्हें न लगे, ऐसी संभावना बहुत कम थी.

दोनों में से कोई न कोई हत्या का राज जरूर जानता होगा. ऐसा पुलिस का मानना था. लिहाजा उन दोनों से पूछताछ करने के लिए पुलिस ने उन्हें थाने बुला लिया. पूछताछ में शिवनंदन ने बताया कि वह आजादपुर मंडी में काम करता है. रोजाना सुबह जल्दी घर से निकलने के बाद देर रात को घर लौटता है. नीरज भी सब्जीमंडी में दूसरी जगह काम करता था. वह भी सुबह घर से जाने के बाद शाम को घर लौटता है.

‘‘जब तुम लोग घर से निकल जाते थे तो घर पर अनीता ही रह जाती होगी?’’ थानाप्रभारी ने उन से पूछा.

‘‘हां, घर पर वही रहती थी.’’ शिवनंदन बोला.

‘‘तो कौन से दिन वह घर पर नहीं मिली?’’ थानाप्रभारी ने जानना चाहा.

‘‘29 मई को जब हम शाम को घर आए तो वह घर से गायब मिली.’’ शिवनंदन ने बताया.

‘‘फिर तुम ने उस की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराई?’’ थानाप्रभारी ने पूछा.

‘‘नहीं, पुलिस में खबर इस वजह से नहीं की क्योंकि वह कईकई दिनों के लिए घर से गायब हो जाती थी. यही सोचा कि वह 2-4 दिनों में आ जाएगी.’’ शिवंनदन ने कहा.

‘‘बाहर…बाहर कहां और क्यों जाती थी?’’ थानाप्रभारी चौंके.

‘‘सर, पता नहीं कहां जाती थी. मगर इतना पता है कि एक बार वह जिस्मफरोशी के आरोप में चंडीगढ़ पुलिस द्वारा और नशीले पदार्थ की तस्करी के आरोप में पंचकुला पुलिस द्वारा गिरफ्तार की गई थी.’’ शिवनंदन ने बताया.

यह सुन कर पुलिस समझ गई कि अनीता जरूर आवारा और आपराधिक प्रवृत्ति की रही होगी. चाहे वह जैसी भी रही हो, उस का मर्डर तो हुआ ही था. एक बात तो तय थी कि उस का मर्डर बड़ी तसल्ली से उस घर में ही किया गया था. यह काम घर का कोई नजदीकी व्यक्ति ही कर सकता है. वह व्यक्ति कौन हो सकता है, जानने के लिए थानाप्रभारी ने शिवनंदन से पूछा कि उन के घर में और कौनकौन आता था?  जब शिवनंदन ने बताया कि कोई नहीं आता था तो पुलिस को शिवनंदन पर शक गहरा गया. उस से सख्ती से पूछताछ की तो उस ने स्वीकार कर लिया कि अनीता की हत्या उस ने ही की थी.

अनीता ने उस के सामने ऐसे हालात पैदा कर दिए थे जिस की वजह से उसे यह कदम उठाने के लिए मजबूर होना पड़ा था. उस ने अनीता की हत्या करने के पीछे की जो कहानी बताई वह बड़ी दिलचस्प निकली. शिवनंदन मूल रूप से उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के अथर गांव के रहने वाले गयाप्रसाद का बेटा था. शिवनंदन के अलावा गया प्रसाद के एक बेटा और 5 बेटियां थीं. गयाप्रसाद खेतीबाड़ी कर के अपने परिवार का भरणपोषण कर रहे थे. जैसेजैसे बच्चे जवान होते गए वह उन की शादी करते गए. उन्होंने मंझली बेटी पुष्पा की शादी उत्तर पश्चिमी दिल्ली के मजलिस पार्क में रहने वाले रमेश चंद से की थी. रमेश आजादपुर सब्जी मंडी में काम करता था.

रमेश का काम अच्छा चल रहा था. 10 साल की उम्र में शिवनंदन भी अपने बहनोई रमेश के पास दिल्ली आ गया. रमेश ने उसे पढ़ाना चाहा लेकिन उस का पढ़ाई में मन नहीं लगा तो रमेश उसे अपने साथ ही काम पर सब्जीमंडी में ले जाने लगा. कुछ दिनों में ही वह मंडी का काम समझ गया. इस तरह वह 14-15 साल की उम्र में ही पैसे कमाने लगा था. वह जो पैसे कमाता उन्हें अपने पिता के पास भेज देता था. इस बीच अनीता 2 बेटों और एक बेटी की मां बन गई थी. बताया जाता है कि शिवनंदन की बहन पुष्पा के अपने भतीजे से ही नाजायज संबंध हो गए थे. इस बात की जानकारी रमेश को हुई तो उस ने पत्नी पुष्पा को समझाया.

पुष्पा को जब लगा कि उस के अवैध संबंधों में पति बाधक है तो उस ने सन 2004 में पति की हत्या कर दी. पति की हत्या के आरोप में पुष्पा को जेल जाना पड़ा. तब शिवनंदन ने ही अपने दोनों भांजों और भांजी की परवरिश की. एक साल बाद जेल में ही पुष्पा की मुलाकात अनीता से हुई. अनीता मूलरूप से बिहार के मुजफ्फरपुर जिले की रहने वाली थी. उस की शादी दिल्ली के खजूरी खास क्षेत्र के रहने वाले देवेंद्र सिंह से हुई थी. बताया जाता है कि सन 2005 में उस ने भी अपने पति की हत्या कर दी थी. पति की हत्या के आरोप में उसे जेल जाना पड़ा था. अनीता के 2 बेटे थे नीरज और सूरज. उस के जेल जाने के बाद बच्चों को लक्ष्मीनगर में रहने वाली उन की मौसी ले गई थी.

पुष्पा और अनीता हमउम्र थीं इसलिए जेल में वे दोनों अच्छी दोस्त बन गई थीं. शिवनंदन जेल में अपनी बहन से मिलने जाता ही था. वहीं पर बहन ने उस की मुलाकात अनीता से कराई थी. अविवाहित शिवनंदन अनीता से मिल कर बहुत प्रभावित हुआ. वह उसे मन ही मन चाहने लगा. अनीता की वजह से वह जल्दजल्द बहन से मिलने जाने लगा. इसी बीच पुष्पा को सजा हो गई तो वह सजा पूरी कर के घर आ गई. कई साल पहले अनीता के मांबाप की मौत हो चुकी हो चुकी थी. दिल्ली के लक्ष्मीनगर में जो उस की बहन रह रही थी, वह भी ऐसी नहीं थी जो उस की जमानत करा सके. उस की जमानत कराने वाला कोई नहीं था जिस से वह जेल में ही बंद थी.

पुष्पा चाहती थी कि किसी तरह अनीता भी जेल से बाहर आ जाए. इसलिए एक दिन उस ने शिवनंदन से उस की जमानत कराने को कहा. शिवनंदन भी यही चाहता था, इसलिए उस ने सन 2010 में किसी तरह अनीता की जमानत करा दी. जमानत के बाद अनीता को पुष्पा ने अपने घर ही रख लिया. शिवनंदन की कमाई से ही घर का खर्चा चल रहा था. एक ही घर में रहने की वजह से शिवनंदन और अनीता एकदूसरे के बेहद नजदीक आ गए. पुष्पा को उन के संबंधों की भनक लग चुकी थी. उन से इस बारे में कुछ कहने के बजाय उस ने मुंह फेर लिया.

इतना ही नहीं, पुष्पा का उत्तरी दिल्ली के बुराड़ी क्षेत्र में एक मकान और था. वह अपने तीनों बच्चों को ले कर बुराड़ी चली गई. मजलिस पार्क वाले मकान में शिवनंदन ही रहने लगा, मगर वह इस के बदले बहन को किराया दे देता था. शिवनंदन और अनीता ने जब महसूस किया कि उन के संबंधों पर पुष्पा को कोई आपत्ति नहीं है तो उन की हिम्मत और बढ़ गई. इस के बाद वे बिना शादी किए पतिपत्नी की तरह रहने लगे. हालांकि अनीता उस से उम्र में 15 साल बड़ी थी, इस के बाद भी दोनों के इस तरह रहने पर पुष्पा भी खुश थी. अनीता ने अपने दोनों बेटों को भी अपने पास बुला लिया. बड़ा बेटा सूरज अपने किसी जानकार के साथ नौकरी के लिए मुंबई चला गया. तब से वह मुंबई में ही है. जबकि छोटा 20 साल का नीरज मां के साथ ही रह रहा था. नीर को शिवनंदन ने आजादपुर सब्जी-मंडी में काम पर लगवा दिया.

शिवनंदन तो सुबह ही घर से मंडी के लिए निकल कर देर शाम को ही घर लौटता था. इस दौरान अनीता अकेली ही घूमने के लिए निकल जाती थी. वह कहां जाती और किस के साथ घूमती थी, यह बात वह पुष्पा को भी नहीं बताती थी. शिवनंदन को जब अनीता की इस हरकत की जानकारी मिली तो उस ने उसे समझाया लेकिन वह नहीं मानी. इस के बाद तो उस की हिम्मत इतनी बढ़ गई कि वह कईकई दिनों तक घर से बाहर रहने लगी. इस दौरान वह अपना फोन भी स्विच्ड औफ कर लेती थी. अनीता जब अपनी मनमरजी करने लगी तो शिवनंदन ने भी उस से कहनासुनना बंद कर दिया.

शिवनंदन को पता नहीं था कि वह गलत धंधा भी करने लगी है. वह गलत धंधा क्या है इस का पता उसे तब लगा जब वह 3 साल पहले नशीले पदार्थ के साथ पंचकुला पुलिस द्वारा गिरफ्तार की गई. ड्रग की खेप वह दिल्ली से पंजाब पहुंचाने जा रही थी. पुष्पा को अनीता के गिरफ्तार होने की जानकारी मिली तो वह हैरान रह गई. उसे लगा कि अनीता शायद गलत तरह के लोगों के बीच फंस गई है और वे लोग उस से ड्रग सप्लाई करा रहे हैं. वह उस से बात कर के सच्चाई जानना चाहती थी. इसलिए वह उस से जेल में मिलने पहुंच गई. पुष्पा को देखते ही अनीता फूटफूट कर रोई. अनीता ने उसे बताया कि ड्रग सप्लाई का काम वह किसी के दबाव में कर रही थी. यानी पुष्पा जैसा सोच रही थी, बात वही निकली.

बहरहाल पुष्पा को अनीता पर दया आ गई. और उस ने भाई से कह कर उस की जमानत करा ली. वह फिर से शिवनंदन के साथ ही रहने लगी. कुछ दिनों तक तो अनीता वहां ठीक रही, बाद में वह अपने पुराने ढर्रे पर उतर आई. बिना बताए घर से निकल कर देर रात घर लौटना जैसे उस का रोज का नियम बन गया था. शिवनंदन उसे डांटता तो वह 2-4 दिन तो ठीक रहती उस के बाद वही उस का घूमनाफिरना शुरू हो जाता था. पुष्पा को कभीकभी गुस्सा आता कि वह उसे घर से निकाल दे लेकिन यह सोच कर खयाल भी आ जाता था कि इस के मांबाप तो हैं नहीं. यहां के बाद ये जाएगी कहां. इसलिए वह बारबार अनीता को समझाती ही रहती थी.

शिवनंदन को कोई परेशानी न हो इसलिए उस ने अपने घर के दरवाजे पर लगने वाले ताले की दूसरी चाबी अपने पास रख ली. करीब एक साल पहले वह अचानक घर से फिर गायब हो गई. उस का मोबाइल फोन भी स्विच्ड औफ था. शिवनंदन और पुष्पा ने उसे संभावित जगहों पर तलाशा लेकिन वह कहीं नहीं मिली. फिर 4-5 दिनों बाद पुष्पा के मोबाइल पर चंडीगढ़ पुलिस का फोन आया. पुलिस ने बताया कि अनीता वेश्यावृत्ति के आरोप में गिरफ्तार की गई है. यह खबर मिलते ही पुष्पा चौंक गई. इस के बाद वह समझ गई कि अनीता कईकई दिनों तक बाहर क्यों रहती है. उस ने यह बात शिवनंदन को बताई तो वह भी हैरान रह गया.

अब की बार शिवनंदन ने तय कर लिया कि वह अनीता से न तो जेल में मिलने जाएगा और न ही उस की जमानत कराएगा लेकिन पुष्पा के मन में तो अब भी उस के लिए दया थी. आखिर उस ने शिवनंदन को चंडीगढ़ जाने के लिए तैयार कर लिया. दोनों ने उस से जेल में मुलाकात की. अनीता ने इस बार भी लाख सफाई दी कि उसे झूठे आरोप में फंसाया गया है, वह बेकुसूर है. लेकिन शिवनंदन को उस पर विश्वास नहीं हुआ क्योंकि वह उस का विश्वास पहले ही तोड़ चुकी थी. अनीता पुष्पा से इस बार और माफ करने के लिए गिड़गिड़ाने लगी. उस के आंसू देख कर पुष्पा का दिल फिर से पसीज गया. लिहाजा भाई से कहसुन कर उस ने अनीता की फिर से जमानत करा ली.

इस बार उस ने अनीता को हिदायत दी कि वह अब कोई ऐसावैसा काम न करे जिस से उन्हें परेशानी हो. अनीता ने वादा तो कर लिया लेकिन उसे निभा नहीं पाई. फिलहाल उस ने घर से बाहर निकलना तो बंद कर दिया था, पर वह घर पर ही अपने फोन से पता नहीं किसकिस से बतियाती रहती थी. शिवनंदन उस के आचरण को जान ही चुका था. इसलिए उसे इस बात का शक था कि वह अपने किसी यार से ही बात करती होगी. उस ने इस बारे में अनीता से पूछा भी पर अनीता यही कह देती कि अपनी सहेलियों से बातें करती है. 29 मई, 2015 को अनीता का बेटा नीरज सब्जीमंडी गया हुआ था. शिवनंदन घर पर ही था. अनीता उस दिन भी अपने फोन पर काफी देर से किसी से बातें कर रही थी. शिवनंदन मन ही मन कसमसा रहा था. जैसे ही अनीता की बात खत्म हुई तो शिवनंदन ने पूछा, ‘‘किस का फोन था जो इतनी लंबी बात चली?’’

‘‘तुम्हें क्यों बताऊं किस का फोन था. जब तुम किसी से बातें करते हो तो मैं क्या तुम से पूछती हूं?’’ अनीता बोली.

‘‘मैं इतनी देर तक किसी से बात भी तो नहीं करता. और यदि तुम्हारे पूछने पर मैं नहीं बताता तो कहती.’’ उस ने कहा.

‘‘देखोजी, मैं किसी से बात करूं या ना करूं इस से तुम्हें कोई मतलब नहीं होना चाहिए.’’ अनीता तुनक कर बोली.

इसी बात पर अनीता और शिवनंदन के बीच कहासुनी हो गई. अनीता ने शिवनंदन पर हाथ छोड़ दिया. शिवनंदन भी आपा खो बैठा उस ने दोनों हाथों से अनीता का गला दबा दिया. कुछ ही देर में अनीता का दम घुट गया. उस के मरते ही शिवनंदन घबरा गया. उस ने गुस्से में अनीता को मार तो दिया, लेकिन अब उस के सामने समस्या यह थी कि वह उस की लाश को ठिकाने कहां लगाए. अगर वह उसे कहीं बाहर ले जाए तो उस के पकड़े जाने की संभावना थी. लिहाजा वह उसी घर में उसे ठिकाने लगाने की सोचने लगा. काफी सोचनेविचारने के बाद उस ने एक कंबल में उस की लाश लपेट ली. फिर उसे किचन के ऊपर के स्लैब पर बनी लकड़ी की रैक में छिपा दिया. इस के बाद वह मकान के दरवाजे पर ताला लगा कर सब्जीमंडी चला गया.

शाम को शिवनंदन और नीरज सब्जीमंडी से लौटे तो नीरज ने घर में मां को नहीं देखा तो वह चौंका. तब शिवनंदन ने कह दिया कि वह पहले की तरह कहीं गई होगी. अनीता कईकई दिनों के लिए अचानक घर से गायब हो जाती थी, इसलिए वह कुछ नहीं बोला. उसे पता नहीं था कि उस की मां अब इस दुनिया में नहीं है. 2-3 दिनों बाद लाश सड़ने लगी तो शिवनंदन ने किचन में खाना बनाना बंद कर दिया ताकि नीरज को कोई शक न हो. वह बाजार से ही खाना मंगाने लगा. उधर अनीता की लाश से बदबू वाला तरल पदार्थ रिसने लगा. उस तरल पदार्थ को शायद किचन में गए चूहों ने पीया होगा, जिस से उन की मौत हो गई. शिवनंदन और नीरज रोजाना ही उसी घर में सोते थे. बदबू बढ़ने पर नीरज ने उस से पूछा भी लेकिन शिवनंदन ने कोई चूहा मरने की बात कह कर उस की बात टाल दी.

पहली जून को शिवनंदन और नीरज अपने काम पर निकल गए. नीरज किसी काम से घर आया तो उस से पड़ोसियों ने बदबू आने वाली बात बताई. उसी दौरान किसी ने पुलिस को फोन कर दिया. फोन काल पर पुलिस वहां आई और मरे हुए चूहे निकलवा कर चली गई. एकडेढ़ घंटे बाद शिवनंदन भी वहां आ गया. उसे जब पता चला कि किचन में जाने के बावजूद भी पुलिस लाश का पता नहीं लगा पाई तो वह बहुत खुश हुआ. उस ने सोचा कि अब वह पकड़ा नहीं जाएगा. लेकिन उस की यह खुशी केवल कुछ देर तक ही रही. क्योंकि उसी दौरान बदबू आने की शिकायत पुलिस से दोबारा जो कर दी गई थी. दूसरी बार पहुंची पुलिस ने बदबू की वजह ढूंढ ही निकाली.

शिवनंदन से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने उसे हत्या और लाश ठिकाने लगाने के आरोप में गिरफ्तार कर के जिला एवं सत्र न्यायालय रोहिणी के महानगर दंडाधिकारी कपिल कुमार के समक्ष पेश किया, जहां से उसे न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. शिवनंदन और पुष्पा ने अनीता को सुधरने के कई मौके दिए थे लेकिन अनीता अपनी बढ़ती महत्त्वाकांक्षाओं के चलते गलत पर गलत काम करती रही. यदि वह सही रास्ते पर चलती तो शायद शिवनंदन के हाथों नहीं मारी जाती. बहरहाल, अनीता का बेटा सूरज मां की मौत के बाद भी मुंबई से नहीं आया. मामले की तफ्तीश इंसपेक्टर राकेश कुमार कर रहे हैं. Delhi Crime Story

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित.

Hindi Stories: कातिल दरोगा

Hindi stories: फरियाद ले कर पुलिस चौकी पहुंची खूबसूरत ईशा को देख कर दरोगा ज्ञानेंद्र सिंह इतना प्रभावित हुआ कि शादीशुदा होते हुए भी वह उसे चाहने लगा. इतना ही नहीं, खुद को अविवाहित बता कर उस ने ईशा से शादी भी कर ली. बाद में यही झूठ ऐसा जी का जंजाल बना कि वह एक खौफनाक अपराध कर बैठा. कानपुर के थाना काकादेव क्षेत्र में एक मोहल्ला है नवीन नगर. कौशलेश सचान अपनेपरिवार के साथ इसी मोहल्ले में रहते थे. उन के परिवार में पत्नी विनीता के अलावा एक बेटा ऐश्वर्य राज, 2 बेटियां ईशा व प्रगति थीं. कौशलेश साधन संपन्न व्यक्ति थे. घर में किसी चीज की कोई कमी नहीं थी.

कौशलेश सचान की बड़ी बेटी का नाम वैसे तो ईशा था लेकिन घर में सब लोग उसे ईशू कहते थे. गोरी, तीखे नाकनक्श और बड़ीबड़ी आंखों वाली ईशा सुशील और विनम्र स्वभाव की थी. ईशा तनमन से जितनी खूबसूरत थी, पढ़नेलिखने में भी उतनी ही तेज थी. उस ने कानपुर के सरस्वती बालिका इंटर कालेज से प्रथम श्रेणी में इंटरमीडिएट और एएनडी कालेज में बीए पास किया. ईशा की इच्छा थी कि वह आईएएस बने. इसलिए प्रथम श्रेणी में बीए पास करने के बाद उस ने आईएएस की तैयारी के लिए कोचिंग शुरू कर दी थी. लेकिन लगातार 3 साल तक परीक्षा देने के बाद भी वह सिविल सर्विस में न निकल सकी.

एक दिन ईशा अपनी मां विनीता के साथ जेके मंदिर गई. दर्शन करने के बाद जब वह गेट के बाहर निकली, तो एक झपटमार ने उस के गले की सोने की चेन खींच ली और साथ ही उस का पर्स भी छीन कर भाग निकला. बदहवास मांबेटी थाना नजीराबाद पहुंचीं. उस इलाके के चौकी इंचार्ज सबइंसपेक्टर ज्ञानेंद्र सिंह पटेल उस समय थाने में ही थे. ईशा ने ज्ञानेंद्र सिंह को लूट की पूरी घटना बताई तो उन्होंने रिपोर्ट दर्ज कर के लुटेरे की तलाश शुरू कर दी. 3-4 दिन बाद ही ज्ञानेंद्र ने छोटे यादव नाम के लुटेरे को पकड़ लिया. दरोगा ज्ञानेंद्र सिंह की इस त्वरित काररवाई से ईशा काफी प्रभावित हुई.

बयान दर्ज कराने, लुटेरे और सामान की शिनाख्त करने के लिए ईशा को कई बार थाना नजीराबाद आनाजाना पड़ा. इसी आनेजाने में ईशा और दरोगा ज्ञानेंद्र सिंह एकदूसरे के आकर्षण में बंध गए. ज्ञानेंद्र सिंह जहां ईशा की खूबसूरती पर फिदा था, वहीं ईशा भी शरीर से हृष्टपुस्ट व स्मार्ट दरोगा ज्ञानेंद्र सिंह को देख कर उस की ओर आकर्षित हो गई थी. दोनों को एक अनजाना आकर्षण एकदूसरे की तरफ खींचने लगा था. दरोगा ज्ञानेंद्र सिंह को ईशा कुछ ज्यादा ही पसंद आ गई थी, इसलिए उस ने उस का मोबाइल नंबर ले लिया था. वह जब तब ईशा से बातें करने लगा. ईशा को भी उस की रसभरी बातों में प्यार झलकता था. वह भी उस से खूब बातें करने लगी. धीरेधीरे दोनों की मुलाकातें भी होने लगीं. बात आगे बढ़ी तो दोनों साथसाथ सैरसपाटे के लिए भी जाने लगे. ज्ञानेंद्र ईशा को फिल्म भी दिखाता और रेस्तरां में खाना भी खिलाता.

सबइंसपेक्टर ज्ञानेंद्र सिंह पटेल मूल रूप से चित्रकूट जिले के मऊ थाना अंतर्गत आने वाले गांव छिवलहा का रहने वाला था. उस का सलेक्शन 2007 के बैच में हुआ था. उस की पहली पोस्टिंग कानपुर के किदवई नगर थाने की साकेत नगर पुलिस चौकी में हुई थी. इस के बाद वह कानपुर शहर और देहात के कई थानों में तैनात रहा. कुछ समय वह क्राइम ब्रांच में भी रहा. ज्ञानेंद्र सिंह नौकरी के अलावा प्लौटिंग का भी काम करता था. इस काम में उस ने खूब पैसा कमाया. उस के पास 4-5 लग्जरी कारें थीं, जिन्हें उस ने एक ट्रैवलिंग एजेंसी में लगवा रखा था. ज्ञानेंद्र सिंह शादीशुदा और 2 बच्चों का बाप था. उस की शादी मध्य प्रदेश स्थित सतना जिले की बछरांवा निवासी नीलम के साथ हुई थी.

पत्नी और बच्चों के साथ वह साकेत नगर, कानपुर में रह रहा था. जबकि ईशा से उस ने खुद को अविवाहित बताया था. एक रोज ज्ञानेंद्र सिंह ईशा के घर पहुंचा, तो उस वक्त वह घर में अकेली थी. उस के मातापिता किसी काम से माल रोड गए हुए थे, और भाईबहन कालेज में थे. ज्ञानेंद्र सिंह और ईशा कमरे में बैठ कर बातचीत करने लगे. बातोंबातों में ज्ञानेंद्र ने ईशा की खूबसूरती के कसीदे काढ़ने शुरू कर दिए. यह देख उस ने ज्ञानेंद्र की बेचैन आंखों में आंखें डाल कर पूछा, ‘‘ज्ञानेंद्र, क्या सचमुच मैं तुम्हें अच्छी लगती हूं? कहीं तुम मुझे खुश करने के लिए मेरी झूठी तारीफ तो नहीं कर रहे?’’

ज्ञानेंद्र सिंह ने ईशा को चाहत भरी नजरों से देखा, वह उसे ही अपलक निहार रही थी. ज्ञानेंद्र ने महसूस किया कि दिल की बात कहने का ऐसा मौका मुश्किल से ही मिलेगा. इसलिए वह ईशा की कलाई थामते हुए बोला, ‘‘ईशा, मुझे तुम से प्यार हो गया है. तुम्हारे बगैर सबकुछ सूनासूना सा लगता है. मुझे लगता है कि तुम्हारे दिल में भी मेरे लिए ऐसी ही फीलिंग्स हैं. अगर ऐसा है तो प्लीज मेरा प्यार स्वीकार कर लो.’’

‘‘ज्ञानेंद्र, तुम नहीं जानते कि मैं तुम्हारे मुंह से ये शब्द सुनने के लिए कितनी बेकरार थी. कितनी देर लगा दी तुम ने अपने दिल की बात कहने में. मैं तुम्हें कैसे यकीन दिलाऊं कि मैं तुम से कितना प्यार करती हूं. आई लव यू ज्ञानेंद्र.’’

उस दिन दोनों ने अपनेअपने प्यार का इजहार कर दिया, इस के बाद जैसे दोनों की दुनिया ही बदल गई. समय के साथ उन की मोहब्बत दिन दूनी रात चौगुनी परवान चढ़ती गई. ज्ञानेंद्र जब ड्यूटी पर होता तो ईशा से मोबाइल पर बातें करता और जब समय मिलता तो उस के साथ घूमताफिरता. इस तरह दोनों एकदूसरे के इतना करीब आ गए कि उन्हें लगने लगा, अब एकदूसरे के बिना नहीं रहा जा सकता. अंतत: शुरुआत ईशा ने की. उस ने अपने दिल की बात घरवालों को बता कर ज्ञानेंद्र सिंह से शादी करने की इच्छा जाहिर की.

ईशा की बात सुन कर पहले तो उस की मां विनीता और पिता कौशलेश चौंके, लेकिन बाद में बेटी की खुशी के लिए राजी हो गए. दरअसल ईशा ने उन्हें समझाया था कि दरोगा ज्ञानेंद्र सिंह उन की ही जातिबिरादरी का है. अच्छा कमाता है और पुलिस विभाग में अच्छे पद पर तैनात है. बेटी की मरजी जान कर वे लोग ईशा की शादी ज्ञानेंद्र से करने को राजी हो गए. सबइंसपेक्टर ज्ञानेंद्र से बात की गई तो उस ने बताया कि कुछ कारणों से उस ने अपने घर वालों से संबंध विच्छेद कर रखा है इसलिए उस के परिवार का कोई सदस्य शादी में शामिल नहीं हो पाएगा.

बहरहाल, बातचीत के बाद कौशलेश ने 10 मार्च, 2013 को अपनी बेटी ईशा का विवाह ज्ञानेंद्र सिंह के साथ कर दिया. शादी के बाद ज्ञानेंद्र उसे साकेत नगर स्थित अपने घर ले गया. उस वक्त उस की पत्नी नीलम मायके गई हुई थी. इस के बाद ईशा ज्यादातर मायके में ही रही. वह उसे अपने घर तभी ले जाता था, जब नीलम मायके गई होती थी. बहरहाल, हंसीखुशी से एक वर्ष कब बीत गया, पता ही न चला. इसी बीच ईशा ने एक खूबसूरत बच्ची को जन्म दिया, जिस का नाम उस ने सान्या रखा. सान्या के जन्म से जहां ईशा के जीवन में बहार आ गई थी, वहीं ज्ञानेंद्र खोयाखोया सा रहने लगा था. दिखावे के तौर पर तो वह उसे प्यार करता था, लेकिन अंदर ही अंदर परेशान रहता था.

ईशा और ज्ञानेंद्र में पहली बार तकरार तब शुरू हुई जब वह अपनी बेटी सान्या का बर्थडे सर्टिफिकेट बनवाने नगर निगम पहुंची. दरअसल, ज्ञानेंद ने सर्टिफिकेट में पिता की जगह अपना नाम लिखवाने से मना कर दिया था. इस बात को ले कर ईशा और ज्ञानेंद्र में काफी विवाद हुआ. यहीं से ईशा को ज्ञानेंद्र पर शक हुआ. जब ईशा ने गुप्त रूप से ज्ञानेंद्र के संबंध में जानकारी हासिल की तो उस के पैरों तले से जमीन खिसक गई. उसे पता चला कि ज्ञानेंद्र शादीशुदा और 2 बच्चों का पिता है. वह अपनी पत्नी नीलम और बच्चों के साथ कानपुर में ही रहता है. वह उसे तभी अपने घर ले जाता है, जब नीलम मायके गई होती है.

उस दिन देर रात ज्ञानेंद्र सिंह घर आया तो ईशा ने उस से पूछा, ‘‘मैं कौन हूं तुम्हारी. पत्नी, प्रेमिका या रखैल?’’

‘‘यह तुम कैसी बहकीबहकी बातें कर रही हो? तुम पत्नी हो मेरी.’’ ज्ञानेंद्र ने जवाब दिया.

‘‘झूठ बोल रहे हो, तुम शादीशुदा और 2 बच्चों के पिता हो. तुम्हारी पत्नी का नाम नीलम है, जिस के साथ तुम वैवाहिक जीवन बिता रहे हो. तुम फरेबी और धोखेबाज हो. प्यार का नाटक कर के तुम ने मुझे धोखा दिया और मुझ से शादी कर ली. लेकिन अब मैं चुप नहीं बैठूंगी. तुम्हारे खिलाफ लड़ाई लड़ूंगी. जरूरत पड़ी तो रिपोर्ट भी दर्ज कराऊंगी.’’

ज्ञानेंद्र सिंह समझ गया कि ईशा को असलियत का पता चल गया है, इसलिए उस ने माफी मांग ली. फिर बोला, ‘‘ईशा तुम मेरी दूसरी पत्नी बन कर रह सकती हो. मैं तुम्हें पूरा सम्मान दूंगा. कभी किसी चीज की कमी नहीं होने दूंगा. चाहो तो अपने और बेटी के नाम पर जितना चाहे पैसा जमा करा सकती हो. मैं खुशीखुशी जमा कर दूंगा.’’

‘‘मिस्टर ज्ञानेंद्र, पत्नी दूसरी पहली नहीं होती. पत्नी सिर्फ पत्नी होती है. अगर तुम मुझ से प्यार करते हो तो अपनी पत्नी नीलम को तलाक दे दो.’’

‘‘उसे तलाक देना आसान नहीं है.’’ ज्ञानेंद्र ने मजबूरी जाहिर की तो ईशा बोली, ‘‘मेरा क्या होगा. यह सोचा है तुम ने? अपनी पत्नी और बच्चों की चिंता थी तो मेरे साथ प्यार का स्वांग कर के धोखे से शादी क्यों की? अगर तुम ने नीलम को तलाक नहीं दिया तो इस का अंजाम अच्छा नहीं होगा. मैं जहर खा कर जान दे दूंगी या फिर तुम्हारे खिलाफ धोखाधड़ी से शादी रचाने और शारीरिक शोषण करने की रिपोर्ट दर्ज कराऊंगी.’’

ईशा की धमकी सुन कर ज्ञानेंद्र सिंह अंदर तक कांप गया.वह तनाव में रहने लगा. ऐसी स्थिति में दोनों के बीच दूरियां बढ़ना स्वभाविक था. फलस्वरूप दोनों में आएदिन झगड़ा होने लगा. लड़झगड़ कर ईशा मायके आ गई. आखिरकार इस गंभीर समस्या के निदान के लिए दरोगा ज्ञानेंद्र सिंह ने ईशा के कत्ल की योजना बना डाली. अपनी इस योजना में उस ने अपने साथी मनीष कठेरिया, उस के भाई बच्चा और मनीष के साथी अर्जुन व उस की प्रेमिका अवंतिका को शामिल कर लिया. मनीष कठेरिया किदवई नगर में रहता था. वह दबंग किस्म का आदमी था. साकेत नगर में उस की ‘टेलीकाम विला’ नाम से मोबाइल शौप तथा ‘बालाजी ट्रैवल्स’ के नाम से ट्रैवलिंग एजेंसी थी. इस के अलावा वह कमेटी भी चलाता था. पुलिस से दोस्ती करना उस का शौक था.

दर्जनों थानेदारों से उस के दोस्ताना संबंध थे. जिन्हें वह मुफ्त में मोबाइल फोन और आनेजाने के लिए लग्जरी गाडि़यां मुहैया कराता था. इस सेवा के एवज में वह अपने काम निकलवाता था. ज्ञानेंद्र सिंह जब साकेत नगर चौकी इंचार्ज था, तभी उस की दोस्ती मनीष से हुई थी. धीरेधीरे दोनों की दोस्ती बढ़ती गई. अर्जुन जूही बारादेवी में रहता था और मनीष कठेरिया का दोस्त था. वह मनीष की ट्रैवलिंग एजेंसी में लग्जरी कार चलाता था. अर्जुन की प्रेमिका अवंतिका किदवई नगर में रहती थी. दोनों ने प्रेम विवाह कर लिया था. मनीष कठेरिया ने ही अर्जुन और अवंतिका का परिचय दरोगा ज्ञानेंद्र सिंह से कराया था. मनीष का भाई बच्चा गोविंद नगर में रहता था.

आर्थिक मदद के लिए वह मनीष के पास आता था. मनीष के कहने पर बच्चा हर काम करने के लिए तत्पर रहता था. मनीष की कमेटी का पैसा बच्चा ही वसूल किया करता था. वह हमेशा मारपीट पर आमादा रहता था. इसी बीच ज्ञानेंद्र सिंह का तबादला प्रतापगढ़ हो गया था. वहां वह आंसपुर (देवसरा) थाने में तैनात रहा. बाद में काम में लापरवाही बरतने के कारण उसे लाइन हाजिर कर दिया गया था. लाइन हाजिर होने के बाद वह पुलिस लाइन में ड्यूटी कर रहा था. ईशा की धमकी ने उस का दिन का चैन और रात की नींद हराम कर दी थी. उसे पता था कि ईशा ने रिपोर्ट दर्ज करा दी तो उस की नौकरी तो जाएगी ही उसे जेल की हवा भी खानी पड़ेगी. इसलिए वह जल्द से जल्द ईशा का काम तमाम करना चाहता था. इस के लिए वह बराबर अपने दोस्तों से संपर्क बनाए हुए था. उस ने उन से मिल कर ईशा की हत्या की योजना बना ली थी.

अपनी योजना के तहत दरोगा ज्ञानेंद्र सिंह 17 मई, 2015 को ईशा के घर नवीन नगर, काकादेव पहुंचा. वहां उस ने ईशा की मां, मौसी, मामा व अन्य घरवालों से माफी मांगी और वादा किया कि वह ईशा को शारीरिक या मानसिक पीड़ा नहीं पहुंचाएगा और जैसा वह कहेगी, वैसा ही करेगा. उस के कहने पर पहली पत्नी नीलम को तलाक भी दे देगा. उस ने यह भी कहा कि अगर किसी वजह से वह नीलम को तलाक न दे सका तो ईशा व उस की बेटी के भरणपोषण के लिए मोटी रकम देगा. ईशा के घरवालों ने इस समझौते को स्वीकार कर लिया. 18 मई, 2015 की शाम 4 बजे दरोगा ज्ञानेंद्र सिंह अपने साथी मनीष कठेरिया के साथ लग्जरी कार से ईशा के घर पहुंचा और उस की मां विनीता के पैर छू कर बोला, ‘‘मांजी, हम ईशा को कुष्मांडा देवी के दर्शन कराने ले जाना चाहते हैं. हमें आप की इजाजत चाहिए.’’

ईशा ज्ञानेंद्र की पत्नी थी, सो उन्हें क्या ऐतराज हो सकता था. लिहाजा उन्होंने ईशा को ज्ञानेंद्र के साथ जाने की इजाजत दे दी. ईशा व ज्ञानेंद्र को रात 8 बजे तक मंदिर से वापस आ जाना चाहिए था. लेकिन जब दोनों रात 10 बजे तक वापस नहीं आए तो ईशा की मां विनीता सचान को चिंता हुई. उन्होंने ईशा और ज्ञानेंद्र से मोबाइल पर बात करनी चाही, लेकिन दोनों के मोबाइल स्विच्ड औफ थे. रात भर विनीता बेटी के आने का इंतजार करती रहीं, लेकिन वह वापस नहीं लौटी. सुबह को परेशानहाल विनीता सचान थाना काकादेव पहुंचीं. थाने पर उस समय थानाप्रभारी उदय प्रताप यादव मौजूद थे. उन्होंने सारी बात बताते हुए रिपोर्ट दर्ज करने की गुहार लगई. लेकिन विभाग का मामला होने की वजह से पुलिस ने उन्हें टरका दिया. इस पर विनीता सचान डीआईजी आशुतोष पांडेय से मिलीं और शक जताते हुए रिपोर्ट दर्ज कराने की विनती की.

डीआईजी आशुतोष पांडेय को मामला गंभीर लगा. अत: उन्होंने थानाप्रभारी उदय प्रताप को तत्काल रिपोर्ट दर्ज करने का आदेश दे दिया. आदेश मिलते ही उदय प्रताप ने विनीता सचान की ओर से भादंवि की धारा 364 के तहत दरोगा ज्ञानेंद्र सिंह के विरुद्ध रिपोर्ट दर्ज कर ली. 20 मई को काकादेव थानाप्रभारी उदय प्रताप यादव को कौशांबी के थाना महेवाघाट द्वारा एक युवती की सिर विहीन लाश मिलने की सूचना दी गई. शक के आधार पर थानाप्रभारी विनीता सचान, उन के पुत्र ऐश्वर्य राज व अन्य घरवालों के साथ महेवाघाट थाना पहुंचे. पुलिस ने लाश मोर्चरी में रखवा दी थी. विनीता सचान ने जब उस लाश को देखा तो वह फफक कर रो पड़ीं. यह लाश उन की बेटी ईशा की ही थी. विनीता ने लाश की पहचान ईशा के हाथ में बंधी कलाई घड़ी तथा बांह पर गुदे लव आकार के टैटू से की थी.

लाश की शिनाख्त होने पर महेवाघाट थाना पुलिस ने अपने यहां दर्ज हत्या के मामले को थाना काकादेव, कानपुर ट्रांसफर कर दिया. चूंकि ईशा की लाश की शिनाख्त हो चुकी थी, इसलिए काकादेव पुलिस ने अपहरण के इस मामले में धारा 302/201/120बी और जोड़ दी. साथ ही विनीता के बयान के आधार पर ज्ञानेंद्र सिंह के साथसाथ बच्चा, मनीष कठेरिया, अर्जुन और उस की कथित पत्नी अवंतिका को भी आरोपी बना दिया. चूंकि यह मामला पुलिस के एक दरोगा से जुड़ा था इसलिए डीआईजी आशुतोष पांडेय ने ईशा के हत्यारोपियों को गिरफ्तार करने, कत्ल में प्रयुक्त हथियार और सिर बरामद करने के लिए एक विशेष पुलिस टीम बनाई. इस टीम में सीओ स्वरूप नगर आतिश कुमार, क्राइम ब्रांच के सीओ अमित कुमार राय, प्रभारी आर.के. सक्सेना तथा काकादेव थानाप्रभारी उदय प्रताप यादव को शामिल किया गया.

पुलिस टीम ने ज्ञानेंद्र, बच्चा, मनीष कठेरिया तथा उस के साथी अर्जुन के ठिकानों पर ताबड़तोउ़ छापे मारे. लेकिन सभी आरोपी फरार थे. पुलिस टीम ने उन के मोबाइल नंबर सर्विलांस पर लगा दिए. साथ ही करीब एक दर्जन लोगों को भी हिरासत में ले कर पूछताछ की. निर्दोष पाए जाने पर बाद में उन्हें छोड़ दिया गया. पुलिस टीम को ईशा के मोबाइल की लोकेशन आगरा में मिली. पुलिस टीम आगरा गई और हाइवे के एक ढाबे के कर्मचारी से ईशा का मोबाइल बरामद कर लिया. उस कर्मचारी ने बताया कि कुछ लोग यह मोबाइल खाना खाने के बाद मेज पर छोड़ गए थे. पुलिस टीम को समझते देर नहीं लगी कि हत्यारोपियों ने पुलिस को गुमराह करने के लिए ऐसा किया होगा.

25 मई, 2015 को पुलिस टीम ने हत्यारोपी अर्जुन व उस की प्रेमिका अवंतिका को छपेड़ा पुलिया, काकादेव से कार सहित गिरफ्तार कर लिया. अर्जुन अपनी प्रेमिका को स्विफ्ट डिजायर कार से घुमाने बिठूर जा रहा था. यह कार मनीष कठेरिया की थी. अर्जुन और अवंतिका के पास से ईशा का एक कंगन भी बरामद हुआ. पूछताछ में अर्जुन ने बताया कि घटना वाले दिन शाम 4 बजे ज्ञानेंद्र सिंह स्विफ्ट कार से ईशा के घर पहुंचा था. उस वक्त कार में मनीष और उस का भाई बच्चा भी मौजूद था. ईशा को साथ ले कर तीनों नौबस्ता आए. मनीष ने उसे व अवंतिका को फोन कर के वहीं बुला लिया.

सभी 6 लोग 2 गाडि़यों के साथ विधनू, घाटमपुर, फतेहपुर होते हुए कौशांबी की ओर बढ़े. रास्ते में एक सुनसान जगह पर ज्ञानेंद्र ने गाड़ी रोक दी. उसी वक्त मनीष ने ईशा को दबोच लिया और ज्ञानेंद्र ने तेज धार वाले चाकू से ईशा का सिर धड़ से अलग कर दिया. धड़ से खून का फव्वारा छूटा तो मनीष ने अपनी शर्ट उतार कर सिर को धड़ से बांध दिया. फिर ईशा के शरीर से कपड़े और जेवर उतार कर सिर को यमुना नदी में तथा धड़ को महेवाघाट यमुना पुल के पास फेंक दिया. तत्पश्चात गाड़ी की अदलाबदली कर के तथा कंगन दे कर उसे वापस भेज दिया गया. मनीष, बच्चा व दरोगा ज्ञानेंद्र दूसरी गाड़ी से कहीं चले गए. अर्जुन व अवंतिका का बयान दर्ज करने के बाद काकादेव पुलिस ने दोनों को जेल भेज दिया.

अब पुलिस टीम ने शातिर दिमाग ज्ञानेंद्र सिंह, उस के साथी मनीष कठेरिया व बच्चा को गिरफ्तार करने के लिए जाल बिछाया. इस से घबरा कर 30 मई को मनीष कठेरिया ने सीजेएमएम मीना श्रीवास्तव की अदालत में आत्मसमर्पण कर दिया. पुलिस ने उसे 3 दिनों की रिमांड पर ले लिया. मनीष से कोहना व किदवई नगर थाने में कड़ाई से पूछताछ की गई, लेकिन वह टस से मस नहीं हुआ. दबाव बनाने के लिए पुलिस ने उस की मां उषा को थाने बुलवा लिया. दोनों को आमनेसामने बैठा कर पुलिस टीम ने पूछताछ शुरू की. जबान न खुलने पर पुलिस ने उस की मां उषा को जेल भेजने की धमकी दी. इस धमकी से मनीष टूट गया और उस ने जबान खोल दी.

वह पुलिस टीम को महेवाघाट थाना क्षेत्र ले गया. वहां उस ने एक गड्ढे से मृतक ईशा का पर्स व सोने का एक कंगन बरामद करा दिया. पर्स में कुछ नकदी व जरूरी कागजात थे. पुलिस टीम ने यहीं से मनीष की खून से सनी शर्ट भी बरामद कर ली, जिसे उस ने हत्या के बाद खून रोकने के लिए इस्तेमाल किया था. बयान दर्ज करने के बाद पुलिस ने मनीष को अदालत पर पेश कर के जेल भेज दिया. मनीष को जेल भेजने के बाद पुलिस टीम ने ईशा की हत्या के मुख्य आरोपी दरोगा ज्ञानेंद्र सिंह को पकड़ने की कवायद शुरू की. एसएसपी शलभ माथुर ने उसे पकड़ने के लिए 12 हजार का ईनाम घोषित कर दिया था. लेकिन दरोगा ज्ञानेंद्र सिंह पुलिस की हर युक्ति को धता बता कर 8 जून को कोर्ट में हाजिर हो गया. पुलिस और क्राइम ब्रांच की टीम हाथ मलती रह गई.

दरोगा ज्ञानेंद्र सिंह द्वारा आत्मसमर्पण की बात कानपुर कोर्ट में फैली तो वकीलों का गुस्सा सातवें आसमान जा पहुंचा. वे झुंड बना कर सीजेएमएम कोर्ट जा पहुंचे. पुलिस जब ज्ञानेंद्र को ले जाने लगी तो वकील उस पर टूट पड़े और उसे लातघूंसों से जम कर पीटा, उन्होंने उस के कपड़े फाड़ दिए और मुंह पर थूका. बड़ी मसक्कत के बाद पुलिस उसे जेल ले जा सकी. कत्ल में इस्तेमाल हथियार और मृतका का सिर बरामद करने के लिए पुलिस टीम ने दरोगा ज्ञानेंद्र सिंह को 17 जून को 2 दिनों के रिमांड पर लिया. काफी जद्दोजहद के बाद ज्ञानेंद्र सिंह ने मुंह खोला. वह पुलिस टीम को महेवाघाट, कौशांबी में यमुना नदी के दूसरी तरफ ले गया, जहां उस ने जमीन में गड़े सर्जिकल चाकू, ईशा का मंगलसूत्र, चेन और अंगूठी बरामद कराई. ईशा के सिर के संबंध में पूछने पर ज्ञानेंद्र ने बताया कि उसे यमुना नदी की तेज धारा में फेंक दिया गया था.

सिर को बरामद करने के लिए पुलिस ने यमुना नदी में जाल डलवाया, लेकिन सिर बरामद नहीं हो सका था. पुलिस पूछताछ में ज्ञानेंद्र ने बताया कि ईशा उस पर पहली पत्नी नीलम को तलाक देने का दबाव बना रही थी. जिस से परेशान हो कर उस ने उसे ठिकाने लगा दिया. वह उसे मंदिर दर्शन कराने के बहाने ले गया था. रास्ते में कार के भीतर ही उस का काम तमाम कर दिया गया. फिर धड़ को महेवाघाट थाने के पास यमुना नदी के पास फेंक दिया गया और सिर यमुना नदी में. वारदात के वक्त मनीष कठेरिया, उस का भाई बच्चा, अर्जुन तथा उस की प्रेमिका अवंतिका उस के साथ थे.

19 जून, 2015 को काकादेव पुलिस ने रिमांड अवधि पूरी होने पर अभियुक्त ज्ञानेंद्र सिंह को सीजेएमएम मीना श्रीवास्तव की कोर्ट में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. कथा संकलन तक किसी भी अभियुक्त की जमानत नहीं हुई थी. अभियुक्त बच्चा फरार था. Hindi stories

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Jawaharlal Nehru: फिर आया जिन्न बाहर नेहरू – बोस के रिश्तों का

लेखक – एम.जेड. बेग, Jawaharlal Nehru: देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू द्वारा महान देशभक्त सुभाषचंद्र बोस के घर वालों की आईबी से जांच कराने के मामले ने राजनैतिक रूप लेना शुरू कर दिया है. जब बात उठी है तो नेताजी के रहस्यमय तरीके से गायब होने की भी इस बार जांच हो ही जानी चाहिए. पिछले दिनों एक पत्रिका में एक रिपोर्ट प्रकाशित हुई, जिस में बताया गया था कि भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने आजाद हिंद फौज के संस्थापक और महान देशभक्त सुभाषचंद्र बोस के परिवार की निगरानी भारतीय खुफिया जांच एजेंसी आईबी से कराई थी और यह निगरानी नेहरू की मृत्यु के 4 साल बाद तक होती रही. इस रिपोर्ट के प्रकाशित होते ही भारतीय राजनीति में एक उबाल सा आ गया.

रिपोर्ट के अनुसार सन 1948 से ले कर 1968 तक आईबी के लोग नेताजी सुभाषचंद्र बोस  के परिवार वालों की निगरानी करते रहे. वे इस बात की पूरी रिपोर्ट प्रधानमंत्री कार्यालय को भेजते थे कि नेताजी के रिश्तेदारों से मिलने कौन आया, कितनी देर रुका. उन के पते पर जो भी पत्र आता था, उसे पहले आईबी वाले खोल कर पढ़ते थे, उस के बाद ही वह पत्र संबंधित व्यक्ति तक पहुंचता था. नेताजी जैसे महान देशभक्त के परिवार के लोगों की निगरानी भारत सरकार द्वारा करवाना अवश्य ही अचरज भरी बात थी. वैसे तो सभी जानते हैं कि सुभाषचंद्र बोस और नेहरू व गांधी के बीच बहुत गहरे मतभेद थे. इस निगरानी प्रकरण को समझने के लिए हमें स्वतंत्रता प्राप्ति से पूर्व के घटनाक्रम को देखना होगा. क्योंकि इस सारे प्रकरण की असली जड़ें तो वहीं हैं.

23 जनवरी, 1897 को कटक के एक मशहूर वकील जानकीनाथ बोस के घर में पैदा हुए बच्चे को ही लोग आज सुभाषचंद्र बोस के नाम से जानते हैं. 14 भाईबहनों में नौवें नंबर के सुभाषचंद्र बोस शुरू से ही होनहार थे. हर इम्तहान में वह कामयाबी की एक नई दास्तान लिखते गए. यहां तक कि सन 1920 में भारत की सिविल सर्विस के लिए दिए गए इम्तहान में भी वह मैरिट में चौथे नंबर पर रहे, जोकि एक भारतीय के लिए बहुत बड़ी बात थी. लेकिन जलियांवाला बाग की घटना से व्यथित हो कर उन्होंने सिविल सर्विस छोड़ दी और 1921 में भारत लौट आए. भारत आ कर वह गांधीजी से प्रभावित हो कर कांग्रेस में शामिल हो गए. लेकिन जल्द ही उन के गांधीजी से वैचारिक मतभेद हो गए.

असहयोग आंदोलन में भाग लेने के कारण जिस समय सुभाषचंद्र बोस जेल में थे, उस समय गांधीजी ने लार्ड इरविन के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए, जिस की एक शर्त थी कि असहयोग आंदोलन को वापस लेना होगा. यह बात सुभाषचंद्र बोस को नागवार लगी. यहीं से गांधीजी और सुभाषचंद्र बोस के बीच मतभेद उभर कर सामने आने लगे. सुभाषचंद्र बोस पूर्ण स्वतंत्रता से पहले असहयोग आंदोलन वापस नहीं लेना चाहते थे और ऐसी स्थिति में तो बिलकुल ही नहीं, जबकि उन्हीं दिनों भगत सिंह और उन के साथियों को फांसी दी गई थी. लार्ड इरविन और गांधीजी के समझौते के अनुसार, सन 1937 में हुए प्रांतीय असेंबलियों के चुनाव में कांग्रेस 7 राज्यों में विजयी हुई. सन 1938 के हरीपुरा में हुए कांग्रेस अधिवेशन में सुभाषचंद्र बोस को कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष चुन लिया गया. कांग्रेस का अध्यक्ष बनते ही सुभाषचंद्र बोस ने भारत के भविष्य के लिए योजनाएं बनानी शुरू कर दीं.

सुभाषचंद्र बोस ने कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद पूर्ण स्वतंत्रता का नारा दिया. वह चाहते थे कि ब्रिटिश सरकार को 6 महीने का इस बात का अल्टीमेटम दिया जाए कि या तो वह भारत को स्वतंत्र कर दे अन्यथा परिणाम भुगतने को तैयार रहे. यहीं से गांधी व नेहरू और नेताजी के बीच मतभेद हो गए. इस के विपरीत सुभाषचंद्र बोस की ख्याति और विश्वसनीयता भारत के जनमानस में बढ़ती गई. यह वह समय था, जब यूरोप में अशांति बढ़ती जा रही थी और आने वाले समय में एक और विश्वयुद्ध की संभावनाएं बढ़ती जा रही थीं. सुभाषचंद्र बोस की दूरगामी दृष्टि यह देख रही थी कि निकट भविष्य में युद्ध होगा और अंगरेज भारतीयों को भी इस युद्ध की भट्ठी में झोंक देंगे. इसलिए वह चाहते थे कि भारत जल्द से जल्द पूर्ण स्वतंत्र हो जाए जिस से होने वाले युद्ध की विभीषिका से भारतीय सुरक्षित रह सकें.

जबकि गांधीजी और नेहरू की सोच यह थी कि जिस तरह ब्रिटिश हुकूमत धीरेधीरे भारतीयों को अधिकार दे रही है, इसी तरह चलती रहनी चाहिए. गांधीजी ने नई साजिश रचनी शुरू कर दी. सुभाषचंद्र बोस का राजनीतिक प्रभाव कम करने के लिए 1939 में जब कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए चुनाव का समय आया तो गांधीजी ने चाहा कि सुभाषचंद्र बोस चुनाव में भाग न लें. वह डा. पट्टाभि को कांग्रेस का अध्यक्ष बनाने के पक्षधर थे. मगर सुभाषचंद्र बोस चुनाव में खड़े हुए और गांधीजी के भरपूर विरोध के बावजूद भी भारी मतों से दोबारा कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए. डा. पट्टाभि सीतारमय्या की हार को गांधीजी ने अपनी हार माना, क्योंकि उन्हें जिताने में उन की प्रतिष्ठा दांव पर जो लगी थी.

सुभाषचंद्र बोस दोबारा अध्यक्ष चुन तो लिए गए, लेकिन बाकी पूरी कार्यकारिणी पर गांधीजी का प्रभाव था. इसलिए कांग्रेस कार्यकारिणी ने सुभाषचंद्र बोस की राह में रोड़े अटकाने शुरू कर दिए. एक दिन तो ऐसा हुआ कि पूरी कार्यकारिणी ने त्यागपत्र दे दिया. सुभाषचंद्र बोस के लिए नई कार्यकारिणी का चुनाव कराना आसान नहीं था. हालात इतने बिगड़ गए कि उन के लिए काम तक करना मुश्किल हो गया. आखिर उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष पद से त्यागपत्र दे कर कांग्रेस को भी अलविदा कह दिया. इस के बाद उन्होंने अपना एक अलग दल फारवर्ड ब्लौक का गठन किया. संगठन को मजबूत करने के लिए उन्होंने भारतीयों को इकट्ठा करना शुरू किया, ताकि एक बड़े संग्राम की शुरुआत की जा सके. इस से ब्रिटिश हुकूमत हरकत में आ गई. उन की गतिविधियों को देखते हुए हुकूमत ने उन्हें जेल में बंद कर दिया. जेल में उन का स्वास्थ्य खराब हो गया तो उन्हें उन के घर में ही नजरबंद कर दिया गया.

सन 1941 में सुभाषचंद्र बोस योजना बना कर कलकत्ता के अपने घर से गायब हो गए और अफगानिस्तान होते हुए जर्मनी पहुंच गए. वहां वह उस समय के जरमन शासक एडोल्फ हिटलर से मिले. उस समय विश्वयुद्ध चल रहा था और सिंगापुर में रासबिहारी बोस ने भारत की आजादी के लिए एक सेना का गठन किया हुआ था, जिस को आजाद हिंद फौज के नाम से जाना जाता था. तब सन 1943 में सुभाषचंद्र बोस जर्मनी से सिंगापुर आ गए और आजाद हिंद फौज की कमान उन्होंने संभाल ली. आजाद हिंद फौज को ले कर नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने भारत की ओर पेशकदमी शुरू कर दी. उन्होंने इसी फौज की बदौलत अंडमान व निकोबार द्वीप समूह को अंगरेजी शासन से मुक्ति दिलाई. जनवरी, 1944 में आजाद हिंद फौज का मुख्यालय रंगून में स्थापित किया और 18 मार्च, 1944 को बर्मा की सीमा पार करते हुए आजाद हिंद फौज भारत पहुंच गई.

कहा जाता है कि विश्वयुद्ध के समय ब्रिटिश हुकूमत में कभी सूर्य अस्त नहीं होता था. यानी धरती के इतने बड़े भूभाग पर अंगरेजों का शासन था कि कहीं न कहीं दिन होता ही था. इतना बड़ा साम्राज्य होने के कारण अंगरेज एक तरह से आलसी हो चुके थे. यही वजह थी कि जब जापानियों ने सिंगापुर पर आक्रमण किया तो अंगरेज वहां से बिना लड़े ही भाग खड़े हुए. बाद में भारतीय लोगों से सुसज्जित सेना को लड़ने के लिए सिंगापुर भेजा. भारतीय सेना ने जापानी सेना से लोहा लिया. नेताजी का अंदेशा सही साबित हुआ, क्योंकि उन का यही मानना था कि जब भी युद्ध होगा, अंगरेज स्वयं न लड़ कर भारतीयों को ही युद्ध के मोरचे पर भेजेंगे.

सुभाषचंद्र बोस के कांग्रेस से परिस्थितिवश विदा होने से एक बात साफ हो गई थी कि कांग्रेस में वही होगा, जो गांधीजी और नेहरू चाहेंगे. और शायद यही सोच आगे चल कर भारत के विभाजन की वजह बनी. क्योंकि सुभाषचंद्र बोस की कांग्रेस से विदाई और अंगरेज सरकार द्वारा उन्हें नजरबंद करने के बाद ही मुसलिम लीग और जिन्ना का उदय हुआ. सुभाषचंद्र बोस चाहते थे कि भारत में कुछ ऐसा ही हो, जैसा तुर्की के अतातुर्क मुस्तफा कमाल पाशा ने किया था. खिलाफत खत्म कर के वह देश में केवल एक भाषा चलाना चाहते थे, जिस से पूरा देश एक सूत्र में बंध जाए. देश में सारे धर्मों को बराबर सम्मान दिया जाना चाहिए और किसी को कोई आरक्षण नहीं, केवल योग्यता ही मापदंड हो. जबकि गांधीजी ने खिलाफत खत्म करने का विरोध किया.

सुभाषचंद्र बोस ने जब सिंगापुर में आजाद हिंद फौज की कमान संभाली तो उस समय जापानी आगे बढ़ते ही जा रहे थे और अंगरेज पीछे भागते जा रहे थे. अंगरेजों के भागने का सिलसिला उस वक्त थमा, जब अमेरिका ने 6 और 9 अगस्त, 1945 को हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु बम गिराए. इस के कुछ दिनों बाद ही अंगरेज सरकार ने घोषणा की कि 18 अगस्त, 1945 को ताइपे में जिस विमान में आग लगी थी, उस में नेताजी सुभाषचंद्र बोस भी थे. यानी विमान में आग लगने से नेताजी की मृत्यु हो गई. इसी के साथ शुरू हो गया यह विवाद कि क्या सचमुच उस समय सुभाषचंद्र बोस उस विमान में मौजूद थे भी या नहीं?

15 अगस्त, 1947 को भारत स्वतंत्र तो हो गया, मगर इस बात पर संशय बरकरार रहा कि नेताजी की मृत्यु हो चुकी है या वह अभी जीवित हैं. नेताजी का रहस्य जानने के लिए भारत सरकार ने कई बार आयोग बिठाए, मगर उन सब का नतीजा कुछ खास नहीं निकला. लोग दावे करते रहे कि नेताजी ताइपे विमान हादसे में नहीं मरे थे. कुछ लोग कहते थे कि वह जापान की हार के बाद मंचूरिया होते हुए रूस चले गए थे, जहां स्टालिन ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया था. चूंकि ब्रिटिश शासन और नेहरू व स्टालिन तीनों ही नहीं चाहते थे कि सुभाषचंद्र बोस भारत आएं, जिस से कि इन तीनों के हित प्रभावी हों. क्योंकि वे जानते थे कि नेताजी की भारत में उपस्थिति एक राजनीतिक हलचल पैदा कर देगी. दूसरी तरफ कुछ लोगों का दावा था कि सुभाषचंद्र बोस फैजाबाद के एक आश्रम में गुमनामी बाबा की हैसियत से रह रहे हैं.

सच्चाई कुछ भी हो, मगर यह बात तय है कि आधिकारिक तौर पर 18 अगस्त, 1945 के बाद से उन का कोई पता नहीं है. इस सच्चाई को कोई भी इनकार नहीं कर सकता कि भारतीय राजनीति में 1940-50 के दशक में यदि नेहरू को कोई चुनौती दे सकता था तो वह सुभाषचंद्र बोस ही थे. हाल ही में सामने आए दस्तावेजों से भी यह बात साबित होती है कि जवाहरलाल नेहरू भी शायद यह नहीं मानते थे कि वास्तव में सुभाषचंद्र बोस की मृत्यु हो चुकी है. उन्हें डर था कि सुभाषचंद्र बोस कभी भी प्रकट हो सकते हैं. उन के सामने आने से नेहरू के लिए बहुत ही ज्यादा परेशानियां खड़ी हो जातीं.

नेहरू को सत्ता संभालने की जल्दी थी, इसलिए उन्होंने अपने हाथ में सत्ता लेते समय अंगरेज शासन से कई समझौते किए थे. उन में से एक यह भी था कि स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भी अगर आजाद हिंद फौज का कोई ऐसा व्यक्ति भारत सरकार के हाथ लगता है, जिस पर ब्रिटिश हुकूमत ने केस कर रखा है तो उस व्यक्ति को ब्रिटिश सरकार को सौंपना होगा. ऐसे व्यक्तियों में सुभाषचंद्र बोस का नाम प्रमुखता से लिया जा सकता है. आज भारत को स्वतंत्र हुए 7 दशक होने को हैं. अब शायद इस बात का महत्त्व नहीं है कि सुभाषचंद्र बोस की विमान हादसे में मृत्यु हुई या नहीं? मगर तत्कालीन कांग्रेस सरकार के रवैए से यह सवाल उठ खड़े होते हैं कि क्या वास्तव में भारत को स्वतंत्र कराने में कांग्रेस का हाथ था या इस के पीछे और कोई दूसरे कारण थे, जिस की वजह से अंगरेजों ने भारत को बहुत जल्दी में स्वतंत्रता प्रदान कर दी.

अब भारत सरकार को चाहिए कि नेताजी से संबंधित सारी जानकारी सार्वजनिक करे. क्योंकि भारतीयों का यह अधिकार है कि वह सच्चाई और सुभाषचंद्र बोस की महिमा को जाने.  एक बार इंग्लैंड के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटली, जोकि भारत की स्वतंत्रता के समय इंग्लैंड के प्रधानमंत्री थे, से भारत की आजादी के बाद जब बंगाल के राज्यपाल चटर्जी ने उन से सवाल किया था कि भारत को आजादी दिलाने में गांधीजी के भारत छोड़ो आंदोलन की क्या भूमिका थी तो अटली का जवाब था कि बहुत ही कम. अर्थात कुछ और दूसरे कारण थे, जिन की वजह से अंगरेजों को भारत छोड़ना पड़ा. नेहरू ने सुभाषचंद्र बोस के परिवार की निगरानी कराई या नहीं, मगर अब समय आ गया है कि सारी वास्तविकता लोगों के सामने लाई जाए.

 

Firozabad Crime: प्यार की राह का रोड़ा – पति को बनाया पराया

Firozabad Crime: घटना उत्तर प्रदेश के जिला फिरोजाबाद के थाना टूंडला के गांव नगला राधेलाल की है. 30 अक्तूबर की सुबह जब हरभेजी सो कर उठी तो बराबर के कमरे में उन्हें कोई हलचल नहीं दिखी. उस कमरे में उन का बेटा गब्बर बहू विवेक कुमारी उर्फ लालपरी तथा पोते अनुज के साथ सोया था. गब्बर के 2 बच्चे हरभेजी के साथ ही सोए थे. हरभेजी जब गब्बर के कमरे में गईं तो अंदर का दृश्य देखते ही उन के मुंह से चीख निकल गई.

उन का 40 वर्षीय बेटा गब्बर पंखे से बंधे फंदे पर लटका हुआ था, उस के पैर कमरे के फर्श को छू रहे थे. गब्बर के चेहरे से खून टपक रहा था. मां हरभेजी ने बहू लालपरी को आवाज लगाई, लेकिन वह कमरे में नहीं मिली. न ही वहां उस का बेटा अनुज था. बहू की तलाश की गई पर उस का कोई पता नहीं चला. इस घटना से परिवार में कोहराम मच गया. मां के रोने की आवाज सुन कर उन के और बेटे भी वहां आ गए. कुछ ही देर में मोहल्ले के लोग वहां जमा हो गए. उसी दौरान किसी ने आत्महत्या करने की सूचना पुलिस को फोन द्वारा दे दी.

सूचना पर थानाप्रभारी बी.डी. पांडेय फोर्स सहित घटनास्थल पर पहुंच गए. उन्होंने शव के साथ मकान का भी निरीक्षण किया. सूचना मिलने पर सीओ डा. अरुण कुमार सिंह भी वहां आ गए. निरीक्षण के उपरांत पुलिस ने निष्कर्ष निकाला कि गब्बर ने आत्महत्या नहीं की बल्कि उस की पीटपीट कर हत्या करने के बाद शव को फंदे पर लटकाया गया है. गब्बर के साथ कमरे में उस की पत्नी ही सोई थी, जो वहां से फरार थी, इसलिए पूरा शक पत्नी पर ही था. अब सवाल यह था कि शव को अकेले पत्नी पंखे पर नहीं लटका सकती. इस काम में किसी ने उस की मदद जरूर की होगी.

पुलिस ने कमरे की तलाशी ली तो वहां एक ऐसी मैक्सी मिली, जिस पर खून लगा हुआ था. पता चला कि वह मैक्सी मृतक की पत्नी लालपरी की थी. लालपरी के कुछ कपड़े और अन्य सामान कमरे से गायब थे. इस से अंदाजा लगाया गया कि वह पति की हत्या के बाद अपना सामान व अपने साथ सोए बच्चे को ले कर फरार हो गई है. पुलिस ने घर वालों से पूछताछ की तो पता चला कि रात को पतिपत्नी में किसी बात को ले कर झगड़ा हुआ था. झगड़े के समय लालपरी का प्रेमी स्वामी उर्फ सुम्मा भी वहां मौजूद था. स्वामी टूंडला थाने के गांव बन्ना का रहने वाला था. उस समय परिवार के लोगों ने दोनों को समझाबुझा कर झगड़ा शांत करा दिया था. इस के बाद वे अपने कमरे में सोने के लिए चले गए थे.

मृतक के भाई योगेश ने पुलिस को बताया कि शादी के पहले से ही लालपरी के स्वामी से अवैध संबंध थे. मौके की जांच करने के बाद पुलिस ने गब्बर की लाश पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल फिरोजाबाद भेज दी. पुलिस ने मृतक के भाई योगेश की ओर से विवेक कुमारी उर्फ लालपरी व उस के प्रेमी स्वामी उर्फ सुम्मा के खिलाफ भादंवि की धारा 302 के तहत रिपोर्ट दर्ज कर ली. रिपोर्ट दर्ज होने के बाद पुलिस नामजद आरोपियों की तलाश में जुट गई. पुलिस ने कई संभावित स्थानों पर दबिश भी दी, लेकिन उन का कोई पता नहीं लगा. तब पुलिस ने मुखबिरों का जाल फैला दिया.

लालपरी की शादी गब्बर से हो जरूर गई थी लेकिन वह उसे शुरू से ही पसंद नहीं था. वह अपने घर वालों की मरजी का विरोध भी नहीं कर सकी थी. यानी घर वालों की वजह से उस ने गब्बर से शादी कर जरूर ली थी लेकिन उस के दिल में तो उस का प्रेमी बसा था. यही वजह थी कि वह प्रेमी को शादी के बाद भी भुला न सकी. प्रेमी स्वामी उस के पति की गैरमौजूदगी में उस के घर आनेजाने लगा. जब पति काम पर चला जाता तो मौका देख कर लालपरी प्रेमी को फोन कर बुला लेती थी. इस के बाद दोनों ऐश करते थे लेकिन ऐसी बातें ज्यादा दिनों तक छिपी तो नहीं रहतीं.

लालपरी व स्वामी के संबंधों की जानकारी मोहल्ले के साथ ससुराल के लोगों को भी हो गई. इस की भनक जब गब्बर को लगी तो उस ने कई बार पत्नी को समझाया, लेकिन लालपरी की समझ में कुछ नहीं आया. इस बात को ले कर दोनों में कई बार झगड़ा भी हुआ, पर उस ने प्रेमी से मिलनाजुलना जारी रखा. घटना के 3 सप्ताह बाद भी लालपरी और उस के प्रेमी स्वामी के बारे में पुलिस को कोई जानकारी नहीं मिली थी. 21 नवंबर, 2018 को पुलिस को एक जरूरी सूचना मिली कि लालपरी और उस का प्रेमी इस समय टूंडला से लगभग 6 किलोमीटर दूर स्थित एफएच मैडिकल कालेज में मौजूद हैं. थानाप्रभारी बी.डी. पांडेय ने एसआई नेत्रपाल शर्मा के नेतृत्व में तुरंत एक पुलिस टीम वहां भेज दी.

पुलिस को अस्पताल में स्वामी घायलावस्था में उपचार कराते मिला, जबकि उस की प्रेमिका लालपरी अस्पताल में उस की देखभाल कर रही थी. पता चला कि स्वामी एक सप्ताह पहले सड़क हादसे में घायल हो गया था. उस के सिर में गहरी चोट लगी थी. उस की प्रेमिका उसे गंभीर हालत में उपचार के लिए एफ.एच. मैडिकल कालेज ले कर आई थी. लेकिन उपचार के दौरान दोनों के बीच अस्पताल में ही किसी बात को ले कर झगड़ा हो गया था. झगड़े में वे दोनों गब्बर की हत्या को ले कर एकदूसरे पर आरोप लगा रहे थे.

करीब 3 सप्ताह पहले हुई गब्बर की हत्या की जानकारी मीडिया द्वारा अस्पताल के स्टाफ को मिल चुकी थी. उन की बातों से वहां के स्टाफ को यह शक हो गया कि गब्बर हत्याकांड में ये लोग शामिल हैं. इसलिए उन्होंने पुलिस को सूचना दे दी थी. पुलिस ने दोनों हत्यारोपियों को हिरासत में ले लिया. स्वामी और उस की प्रेमिका लालपरी को थाने ले जा कर उन से पूछताछ की गई. हत्यारोपियों की गिरफ्तारी की खबर पा कर सीओ डा. अरुण कुमार सिंह भी वहां पहुंच गए. उन के सामने थानाप्रभारी बी.डी. पांडेय ने लालपरी और स्वामी से पूछताछ की तो उन्होंने गब्बर की हत्या का जुर्म कबूल कर लिया. उन्होंने गब्बर की हत्या की जो कहानी बताई, वह इस प्रकार थी-

रोजाबाद जिले के गांव नगला राधेलाल के रहने वाले गब्बर की शादी करीब 9 साल पहले विवेक कुमारी उर्फ लालपरी से हुई थी. बाद में वह 3 बच्चों का बाप बन गया. गब्बर के पास खेती की थोड़ी जमीन थी, उस से बमुश्किल परिवार का गुजारा होता था. तब खाली समय में गब्बर राजमिस्त्री का काम कर लेता था. शादी से पहले ही लालपरी के पैर बहक गए थे. बन्ना गांव के रहने वाले स्वामी उर्फ सुम्मा से उस का चक्कर चल रहा था. करीब एक साल पहले की बात है. लालपरी का अपने प्रेमी स्वामी के साथ रंगरेलियां मनाते हुए अश्लील वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था. इस से गब्बर और उस के परिवार की बड़ी बदनामी हुई थी.

इस के बाद गब्बर को मोहल्ले के लोगों के ताने सुनने पड़े थे. गब्बर ने पत्नी से कहा कि वह स्वामी से संबंध खत्म कर ले, लेकिन वह इतनी बेशर्म हो चुकी थी कि उलटे पति से ही झगड़ने लगती थी. एक बार वह पति से झगड़ कर बन्ना स्थित कांशीराम कालोनी में जा कर रहने लगी थी. कुछ समय बाद जब लालपरी का गुस्सा शांत हो गया तो वह पति के घर लौट आई. वहां वह कुछ दिनों तक तो ठीक से रही लेकिन बाद में उस ने प्रेमी से मिलनाजुलना फिर शुरू कर दिया. पति जब उसे टोकता तो उसे उस की बात बुरी लगती थी. एक तरह से उसे पति रास्ते का कांटा नजर आने लगा. उस कांटे से वह हमेशा के लिए निजात पाना चाहती थी, ताकि प्रेमी के साथ चैन से रह सके.

एक दिन उस ने इस सिलसिले में प्रेमी से बात करने के बाद पति को ठिकाने लगाने की तरकीब खोजी. लालपरी ने एक बार पति को मारने के लिए उस के खाने में जहर मिला दिया. जहर का असर होते ही गब्बर सिंह की हालत बिगड़ गई. घर वाले उसे इलाज के लिए तुरंत आगरा ले गए और उसे एक अस्पताल में भरती करा दिया. परिवार वालों को लालपरी पर शक तो था, लेकिन वे यह भी सोच रहे थे कि कहीं खाने में छिपकली तो नहीं गिर गई. बहरहाल, उन्होंने इस की जानकारी पुलिस को नहीं दी. उन्होंने लालपरी से इस बारे में पूछताछ की तो उस ने कहा कि हो सकता है उस की लापरवाही से खाने में कोई छिपकली वगैरह गिर गई हो. इस के लिए लालपरी ने घर वालों से माफी मांग ली.

अस्पताल से पति के घर वापस आने के बाद लालपरी ने रोरो कर गब्बर से भी माफी मांग ली. यह सब लालपरी का ड्रामा था. सीधेसादे गब्बर ने पत्नी को इस घटना के बाद भी माफ कर दिया और खुद पत्नी की तरफ से बेफिक्र हो गया. लालपरी भले ही अपने मतलब के लिए पति से माफी मांग लेती थी, लेकिन हकीकत यह थी कि वह दबंग थी. सीधेसादे गब्बर पर वह अकसर हावी रहती थी. स्वामी से उस के संबंधों को ले कर पति जब उस पर नाराज होता तो वह उलटे उस की शिकायत थाने में कर आती थी. कई बार वह पति व ससुरालियों के खिलाफ मारपीट की थाने में शिकायत दर्ज करा चुकी थी. इस के चलते पति व ससुराल वाले उस का कोई विरोध नहीं कर पाते थे.

समाज को दिखाने के लिए उस ने करवाचौथ का व्रत भी रखा था. लेकिन वह अब पति से हमेशा के लिए छुटकारा पाना चाहती थी. इस बारे में उस ने अपने प्रेमी स्वामी के साथ एक अंतिम योजना तैयार कर ली थी. 29 अक्तूबर, 2018 को स्वामी लालपरी के घर आया. गब्बर ने स्वामी से तो कुछ नहीं कहा, लेकिन पत्नी से झगड़ने लगा. स्वामी और घर वालों ने दोनों को समझा कर शांत कराया. उसी समय लालपरी ने स्वामी से कह दिया था कि इस कांटे को आज रात ही निकाल देना है. प्रेमिका की बात सुन कर स्वामी वहां से चला गया.

उस रात लालपरी अपने 6 साल के बेटे अनुज के साथ पति के कमरे में ही सोई थी. उस ने कमरे के दरवाजे की कुंडी नहीं लगाई. जब गब्बर गहरी नींद में सो गया तो लालपरी ने फोन कर के प्रेमी को बुला लिया. दोनों ने मिल कर सोते हुए गब्बर को दबोच लिया और मारपीट की, फिर गला दबा कर हत्या कर दी. हत्या करने के बाद इसे आत्महत्या का रूप देने के लिए दोनों ने उस की लाश पंखे पर लटका दी. उस ने अपने प्रेम संबंधों की राह में रोड़ा बने पति को हटा दिया. पुलिस ने स्वामी उर्फ सुम्मा और लालपरी से पूछताछ के बाद उन्हें गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया.

लालपरी ने प्यार की खातिर अपने घर को ही नहीं, अपनी मांग के सिंदूर को भी उजाड़ लिया. बच्चों के सिर पर भी मांबाप का साया नहीं रहा. बिलखते हुए बच्चों को देख कर लोग लालपरी को कोस रहे थे कि प्रेमी के साथ जाना था तो ऐसे ही चली जाती, पति को क्यों मार डाला. Firozabad Crime.

-कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Crime Stories: अपमान और नफरत की साजिश

Crime Stories: पहली मई, 2019 की बात है. दिन के करीब 12 बजे का समय था, जब महाराष्ट्र के अहमदनगर से करीब 90 किलोमीटर दूर थाना पारनेर क्षेत्र के गांव निधोज में उस समय अफरातफरी मच गई, जब गांव के एक घर में अचानक आग के धुएं, लपटों और चीखनेचिल्लाने की आवाजें आनी शुरू हुईं. चीखनेचिल्लाने की आवाजें सुन कर गांव वाले एकत्र हो गए. लेकिन घर के मुख्यद्वार पर ताला लटका देख खुद को असहाय महसूस करने लगे.

दरवाजा टूटते ही घर के अंदर से 3 बच्चे, एक युवक और युवती निकल कर बाहर आए. बच्चों की हालत तो ठीक थी, लेकिन युवती और युवक की स्थिति काफी नाजुक थी. गांव वालों ने आननफानन में एंबुलेंस बुला कर उन्हें स्थानीय अस्पताल पहुंचाया, जहां डाक्टरों ने उन का प्राथमिक उपचार कर के उन्हें पुणे के सेसूनडाक अस्पताल के लिए रेफर कर दिया. साथ ही इस मामले की जानकारी पुलिस कंट्रोल रूम को भी दे दी.

पुलिस कंट्रोल रूम से मिली जानकारी पर थाना पारनेर के इंसपेक्टर बाजीराव पवार ने चार्जरूम में मौजूद ड्यूटी अफसर को बुला कर तुरंत इस मामले की डायरी बनवाई और बिना विलंब के एएसआई विजय कुमार बोत्रो, सिपाही भालचंद्र दिवटे, शिवाजी कावड़े और अन्ना वोरगे के साथ अस्पताल की तरफ रवाना हो गए. रास्ते में उन्होंने अपने मोबाइल फोन से मामले की जानकारी अपने वरिष्ठ अधिकारियों को दे दी.

जिस समय पुलिस टीम अस्पताल परिसर में पहुंची, वहां काफी लोगों की भीड़ जमा हो चुकी थी. इन में अधिकतर उस युवक और युवती के सगेसंबंधी थे. पूछताछ में पता चला कि युवती का नाम रुक्मिणी है और युवक का नाम मंगेश रणसिंग लोहार. रुक्मिणी लगभग 70 प्रतिशत और मंगेश 30 प्रतिशत जल चुका था. अधिक जल जाने के कारण रुक्मिणी बयान देने की स्थिति में नहीं थी. मंगेश रणसिंग भी कुछ बताने की स्थिति में नहीं था.

इंसपेक्टर बाजीराव पवार ने मंगेश रणसिंग और अस्पताल के डाक्टरों से बात की. इस के बाद वह अस्पताल में पुलिस को छोड़ कर खुद घटनास्थल पर आ गए.

घटना रसोईघर के अंदर घटी थी, जहां उन्हें पैट्रोल की एक खाली बोतल मिली. रसोईघर में बिखरे खाना बनाने के सामान देख कर लग रहा था, जैसे घटना से पहले वहां पर हाथापाई हुई हो.

जांचपड़ताल के बाद उन्होंने आग से बच गए बच्चों से पूछताछ की. बच्चे सहमे हुए थे. उन से कोई खास बात पता नहीं चली. वह गांव वालों से पूछताछ कर थाने आ गए. मंगेश रणसिंग के भाई महेश रणसिंग को वह साथ ले आए थे. उसी के बयान के आधार पर रुक्मिणी के परिवार वालों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर मामले की जांच शुरू कर दी.

इस मामले में रुक्मिणी का बयान महत्त्वपूर्ण था. लेकिन वह कोई बयान दर्ज करवा पाती, इस के पहले ही 5 मई, 2019 को उस की मृत्यु हो गई. मंगेश रणसिंग और उस के भाई महेश रणसिंग के बयानों के आधार पर यह मामला औनर किलिंग का निकला.

रुक्मिणी की मौत के बाद इस मामले ने तूल पकड़ लिया, जिसे ले कर सामाजिक कार्यकर्ता और आम लोग सड़क पर उतर आए और संबंधित लोगों की गिरफ्तारी की मांग करने लगे. इस से जांच टीम पर वरिष्ठ अधिकारियों का दबाव बढ़ गया. उसी दबाव में पुलिस टीम ने रुक्मिणी के चाचा घनश्याम सरोज और मामा सुरेंद्र भारतीय को गिरफ्तार कर लिया. रुक्मिणी के पिता मौका देख कर फरार हो गए थे.

पुलिस रुक्मिणी के मातापिता को गिरफ्तार कर पाती, इस से पहले ही इस केस ने एक नया मोड़ ले लिया. रुक्मिणी और मंगेश रणसिंग के साथ आग में फंसे बच्चों ने जब अपना मुंह खोला तो मामला एकदम अलग निकला. बच्चों के बयान के अनुसार पुलिस ने जब गहन जांच की तो मंगेश रणसिंग स्वयं ही उन के राडार पर आ गया.

मामला औनर किलिंग का न हो कर एक गहरी साजिश का था. इस साजिश के तहत मंगेश रणसिंग ने अपनी पत्नी की हत्या करने की योजना बनाई थी. पुलिस ने जब मंगेश से विस्तृत पूछताछ की तो वह टूट गया. उस ने अपना गुनाह स्वीकार करते हुए रुक्मिणी हत्याकांड की जो कहानी बताई, वह रुक्मिणी के परिवार वालों और रुक्मिणी के प्रति नफरत से भरी हुई थी.

23 वर्षीय मंगेश रणसिंग गांव निधोज का रहने वाला था. उस के पिता चंद्रकांत रणसिंग जाति से लोहार थे. वह एक कंस्ट्रक्शन साइट पर राजगीर का काम करते थे. घर की आर्थिक स्थिति ज्यादा अच्छी नहीं थी. फिर भी गांव में उन की काफी इज्जत थी. सीधेसादे सरल स्वभाव के चंद्रकांत रणसिंग के परिवार में पत्नी कमला के अलावा एक बेटी प्रिया और 3 बेटे महेश रणसिंग और ओंकार रणसिंग थे.

मंगेश रणसिंग परिवार में सब से छोटा था. वह अपने दोस्तों के साथ सारा दिन आवारागर्दी करता था. गांव के स्कूल से वह किसी तरह 8वीं पास कर पाया था. बाद में वह पिता के काम में हाथ बंटाने लगा. धीरेधीरे उस में पिता के सारे गुण आ गए. राजगीर के काम में माहिर हो जाने के बाद उसे पुणे की एक कंस्ट्रक्शन साइट पर सुपरवाइजर की नौकरी मिल गई.

वैसे तो मंगेश को पुणे से गांव आनाजाना बहुत कम हो पाता था, लेकिन जब भी वह अपने गांव आता था तो गांव में अपने आवारा दोस्तों के साथ दिन भर इधरउधर घूमता और सार्वजनिक जगहों पर बैठ कर गप्पें मारता. इसी के चलते जब उस ने रुक्मिणी को देखा तो वह उसे देखता ही रह गया.

20 वर्षीय रुक्मिणी और मंगेश का एक ही गांव था. उस का परिवार भी उसी कंस्ट्रक्शन साइट पर काम करता था, जिस पर मंगेश अपने पिता के साथ काम करता था. इस से मंगेश रणसिंग का रुक्मिणी के करीब आना आसान हो गया था. रुक्मिणी का परिवार उत्तर प्रदेश का रहने वाला था. उस के पिता रामा रामफल भारतीय जाति से पासी थे. सालों पहले वह रोजीरोटी की तलाश में गांव से अहमदनगर आ गए थे. बाद में वह अहमदनगर के गांव निधोज में बस गए थे. यहीं पर उन्हें एक कंस्ट्रक्शन साइट पर काम मिल गया था.

बाद में उन्होंने अपनी पत्नी सरोज और साले सुरेंद्र को भी वहीं बुला लिया था. परिवार में रामा रामफल भारतीय के अलावा पत्नी, 2 बेटियां रुक्मिणी व 5 वर्षीय करिश्मा थीं.

अक्खड़ स्वभाव की रुक्मिणी जितनी सुंदर थी, उतनी ही शोख और चंचल भी थी. मंगेश रणसिंग को वह अच्छी लगी तो वह उस से नजदीकियां बढ़ाने की कोशिश करने लगा.

मंगेश रणसिंग पहली ही नजर में रुक्मिणी का दीवाना हो गया था. वह रुक्मिणी को अपने जीवनसाथी के रूप में देखने लगा था. उस की यह मुराद पूरी भी हुई.

कंस्ट्रक्शन साइट पर रुक्मिणी के परिवार वालों का काम करने की वजह से मंगेश रणसिंग की राह काफी आसान हो गई थी. वह पहले तो 1-2 बार रुक्मिणी के परिवार वालों के बहाने उस के घर गया. इस के बाद वह मौका देख कर अकेले ही रुक्मिणी के घर आनेजाने लगा.

मंगेश रुक्मिणी से मीठीमीठी बातें कर उसे अपनी तरफ आकर्षित करने की कोशिश करता. साथ ही उसे पैसे भी देता और उस के लिए बाजार से उस की जरूरत का सामान भी लाता. जब भी वह रुक्मिणी से मिलने उस के घर जाता, उस के लिए कुछ न कुछ ले कर जाता. साथ ही उस के भाई और बहन के लिए भी खानेपीने की चीजें ले जाता था.

मांबाप की जानपहचान और उस का व्यवहार देख कर रुक्मिणी भी मंगेश की इज्जत करती थी. रुक्मिणी उस के लिए चायनाश्ता करा कर ही भेजती थी. मंगेश रणसिंह तो रुक्मिणी का दीवाना था ही, रुक्मिणी भी इतनी नादान नहीं थी. 20 वर्षीय रुक्मिणी सब कुछ समझती थी.

वह भी धीरेधीरे मंगेश रणसिंग की ओर खिंचने लगी थी. फिर एक समय ऐसा भी आया कि वह अपने आप को संभाल नहीं पाई और परकटे पंछी की तरह मंगेश की बांहों में आ गिरी.

अब दोनों की स्थिति ऐसी हो गई थी कि एकदूसरे के लिए बेचैन रहने लगे. उन के प्यार की ज्वाला जब तेज हुई तो उस की लपट उन के घर वालों तक ही नहीं बल्कि अन्य लोगों तक भी जा पहुंची.

मामला नाजुक था, दोनों परिवारों ने उन्हें काफी समझाने की कोशिश की, लेकिन दोनों शादी करने के अपने फैसले पर अड़े रहे.

आखिरकार मंगेश रणसिंग के परिवार वालों ने उस की जिद की वजह से अपनी सहमति दे दी. लेकिन रुक्मिणी के पिता को यह रिश्ता मंजूर नहीं था. फिर भी वह पत्नी के समझाने पर राजी हो गए. अलगअलग जाति के होने के कारण दोनों की शादी में उन का कोई नातेरिश्तेदार शामिल नहीं हुआ.

एक सादे समारोह में दोनों की शादी हो गई. शादी के कुछ दिनों तक तो सब ठीकठाक चलता रहा, लेकिन बाद में दोनों के रिश्तों में दरार आने लगी. दोनों के प्यार का बुखार उतरने लगा था. दोनों छोटीछोटी बातों को ले कर आपस में उलझ जाते थे. अंतत: नतीजा मारपीट तक पहुंच गया.

30 अप्रैल, 2019 को मंगेश रणसिंग ने किसी बात को ले कर रुक्मिणी को बुरी तरह पीट दिया था. रुक्मिणी ने इस की शिकायत मां निर्मला से कर दी, जिस की वजह से रुक्मिणी की मां ने उसे अपने घर बुला लिया. उस समय रुक्मिणी 2 महीने के पेट से थी. इस के बाद जब मंगेश रणसिंग रुक्मिणी को लाने के लिए उस के घर गया तो रुक्मिणी के परिवार वालों ने उसे आड़ेहाथों लिया. इतना ही नहीं, उन्होंने उसे धक्के मार कर घर से निकाल दिया.

रुक्मिणी के परिवार वालों के इस व्यवहार से मंगेश रणसिंग नाराज हो गया. उस ने इस अपमान के लिए रुक्मिणी के घर वालों को अंजाम भुगतने की धमकी दे डाली.

बदमाश प्रवृत्ति के मंगेश रणसिंग की इस धमकी से रुक्मिणी के परिवार वाले डर गए, जिस की वजह से वे रुक्मिणी को न तो घर में अकेला छोड़ते थे और न ही बाहर आनेजाने देते थे.  रुक्मिणी का परिवार सुबह काम पर जाता तो रुक्मिणी को उस के छोटे भाइयों और छोटी बहन के साथ घर के अंदर कर बाहर से दरवाजे पर ताला डाल देते थे, जिस से मंगेश उन की गैरमौजूदगी में वहां आ कर रुक्मिणी को परेशान न कर सके.

इस सब से मंगेश को रुक्मिणी और उस के परिवार वालों से और ज्यादा नफरत हो गई. उस की यही नफरत एक क्रूर फैसले में बदल गई. उस ने रुक्मिणी की हत्या कर पूरे परिवार को फंसाने की साजिश रच डाली.

घटना के दिन जब रुक्मिणी के परिवार वाले अपनेअपने काम पर निकल गए तो अपनी योजना के अनुसार मंगेश पहले पैट्रोल पंप पर जा कर इस बहाने से एक बोतल पैट्रोल खरीद लाया कि रास्ते में उस के दोस्त की मोटरसाइकिल बंद हो गई है. यही बात उस ने रास्ते में मिले अपने दोस्त सलमान से भी कही.

फिर वह रुक्मिणी के घर पहुंच गया. उस समय रुक्मिणी रसोईघर में अपने भाई और बहन के लिए खाना बनाने की तैयारी कर रही थी. घर के दरवाजे पर पहुंच कर मंगेश रणसिंग जोरजोर दरवाजा पीटते हुए रुक्मिणी का नाम ले कर चिल्लाने लगा. वह ताले की चाबी मांग रहा था.

दरवाजे पर आए मंगेश से न तो रुक्मिणी ने कोई बात की और न दरवाजे की चाबी दी. वह उस की तरफ कोई ध्यान न देते हुए खाना बनाने में लगी रही.

रुक्मिणी के इस व्यवहार से मंगेश रणसिंग का पारा और चढ़ गया. वह किसी तरह घर की दीवार फांद कर रुक्मिणी के पास पहुंच गया और उस से मारपीट करने लगा. बाद में उस ने अपने साथ लाई बोतल का सारा पैट्रोल  रुक्मिणी के ऊपर डाल कर उसे आग के हवाले कर दिया.

मंगेश की इस हरकत से रुक्मिणी के भाईबहन बुरी तरह डर गए थे. वे भाग कर रसोई के एक कोने में छिप गए. जब आग की लपटें भड़कीं तो रुक्मिणी दौड़ कर मंगेश से कुछ इस तरह लिपट गई कि मंगेश को उस के चंगुल से छूटना मुश्किल हो गया. इसीलिए वह भी रुक्मिणी के साथ 30 प्रतिशत जल गया.

इस के बावजूद भी मंगेश का शातिरपन कम नहीं हुआ. अस्पताल में उस ने रुक्मिणी के परिवार वालों के विरुद्ध बयान दे दिया. उस का कहना था कि उस की इस हालत के लिए उस के ससुराल वाले जिम्मेदार हैं.

उस की शादी लवमैरिज और अंतरजातीय हुई थी. यह बात रुक्मिणी के घर वालों को पसंद नहीं थी, इसलिए उन्होंने उसे घर बुला कर पहले उसे मारापीटा और जब रुक्मिणी उसे बचाने के लिए आई तो उन्होंने दोनों पर पैट्रोल डाल कर आग लगा दी.

अपमान और नफरत की आग में जलते मंगेश रणसिंग की योजना रुक्मिणी के परिवार वालों के प्रति काफी हद तक कामयाब हो गई थी. लेकिन रुक्मिणी के भाई और उस के दोस्त सलमान के बयान से मामला उलटा पड़ गया.

अब यह केस औनर किलिंग का न हो कर पति और पत्नी के कलह का था, जिस की जांच पुलिस ने गहराई से कर मंगेश रणसिंग को अपनी हिरासत में ले लिया.

उस से विस्तृत पूछताछ करने के बाद उस के विरुद्ध भादंवि की धारा 302, 307, 34 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया. कानूनी प्रक्रिया पूरी करने के बाद रुक्मिणी के परिवार वालों को रिहा कर दिया गया. Crime Stories

Real Crime Story: इश्क में फिर बहा खून

Real Crime Story: पासपड़ोस में रहने के कारण दीपक और जावित्री को एकदूसरे से कब प्यार हो गया, पता ही नहीं चला. एक दिन जावित्री के पिता वीरपाल ने उन दोनों को ऐसी हालत में देखा कि वह अपने गुस्से को कंट्रोल नहीं कर सका और फिर…

जावित्री जैसे ही स्कूल जाने के लिए साइकिल से निकली, रास्ते में इंतजार कर रहे दीपक ने अपनी साइकिल उस के पीछे लगा दी. जावित्री ने दीपक को पीछे आते देखा तो उस ने साइकिल की गति और तेज कर दी. दीपक ने भी अपनी साइकिल की रफ्तार बढ़ाई और कुछ देर में जावित्री की साइकिल के आगे अपनी साइकिल इस तरह खड़ी कर दी कि अगर जावित्री ने पूरी ताकत से ब्रेक न लगाई होती तो उस की साइकिल से टकरा जाती. साइकिल संभालते हुए जावित्री खीझ कर बोली, ‘‘देख नहीं रहे हो मैं स्कूल जा रही हूं. एक तो वैसे ही देर हो गई है, ऊपर से तुम ने रास्ता रोक लिया. अभी किसी ने हम दोनों को इस तरह देख लिया तो बिना मतलब का बात का बतंगड़ बनने लगेगा.’’

‘‘जिसे जो कहना है, कहता रहे. मुझे किसी की परवाह नहीं है.’’ दीपक ने अपनी यह बात इस तरह अकड़ कर कही, जैसे सचमुच उसे किसी का कोई डर नहीं है.

जावित्री को स्कूल जाने के लिए देर हो रही थी. इसलिए वह बेचैन थी. उस ने दीपक को देखा, उस के बाद विनती के स्वर में बोली, ‘‘दीपक, मुझे सचमुच देर हो रही है, बिना मतलब स्कूल में झूठ बोलना पड़ेगा. अभी जाने दो, मैं तुम से बाद में मिल लूंगी, तब जो बात कहनी हो, कह देना’’

जावित्री की विनती पर दीपक नरम पड़ गया. साइकिल हटाते हुए उस ने जावित्री के सुंदर मुखड़े को देखते हुए कहा, ‘‘जावित्री, तुम मेरी आंखों में देखो, प्यार का सागर लहराता नजर आएगा. तुम्हें पता है, तुम्हारे प्यार में मैं सब कुछ भूल गया हूं. दिनरात सिर्फ तुम्हारी ही यादों में खोया रहता हूं.’’

‘‘वह सब ठीक है दीपक, लेकिन तुम्हें पता होना चाहिए कि हम एक ही गांव में रहते हैं. हमारे और तुम्हारे घरों के बीच ज्यादा दूरी भी नहीं है. अगर हम दोनों इसी तरह प्यारमोहब्बत की पींगे बढ़ाते रहे तो मोहल्ले वालों से यह बात छिपी नहीं रहेगी. तुम मेरे पापा को तो जानते ही हो, वह बातबात में गुस्सा हो जाते हैं. कही उन्हें हम दोनों के प्रेम की भनक लग गई तो मैं बदनाम हो जाऊंगी. उस के बाद मेरे पापा मेरी क्या गत बनाएंगे, तुम सोच भी नहीं सकते.’’

‘‘जावित्री, मैं तुम्हें सपने में भी बदनाम करने के बारे में नहीं सोच सकता. तुम मेरा प्यार हो और प्यार के लिए लोग न जाने क्याक्या करते हैं. एक तुम हो कि जरा सी बदनामी से डर रही हो. मैं तुम से मिलने और 2 बातें करने के लिए कितने तिकड़म भिड़ाता हूं. तब कहीं जा कर तुम से मुलाकात होती है. जबकि तुम बदनामी का बहाना कर के मुझ से पीछा छुड़ाना चाहती हो. मैं तुम्हें भला क्यों बदनाम होने दूंगा. तुम्हें मालूम होना चाहिए कि मैं ने तय कर लिया है कि मैं शादी तुम्हीं से करूंगा. तुम्हारे अलावा मेरी दुलहन कोई दूसरी नहीं हो सकती. तब बदनामी कैसी?’’

दीपक की बातों के जवाब मे लंबी सांस ले कर जावित्री बोली, ‘‘अच्छा अब बस करो. मुझे स्कूल जाना है. वैसे ही देर हो चुकी है. अब और देर मत करो.’’

कह कर जावित्री साइकिल पर चढ़ी और चल पड़ी तो दीपक ने पीछे से मुसकराते हुए कहा, ‘‘अभी तो प्यार की शुरुआत है, इसलिए मिलने के लिए थोड़ा समय निकाल लिया करो.’’

जावित्री बिना कुछ बोले चली गई. दीपक अकसर जावित्री के स्कूल जाने वाले रास्ते पर खड़ा हो कर उस का रास्ता रोकता और कभी प्रेम से तो कभी थोड़ा गुस्से से अपने प्रेम का मनुहार करता. उत्तर प्रदेश के महानगर बरेली के फतेहगंज पश्चिमी थाना कस्बा के मोहल्ला लोधीनगर में वीरपाल मौर्य रहता था. उस के पास खेती की थोड़ी जमीन थी, जिस पर खेती कर के वह अपने परिवार का भरणपोषण कर रहा था. परिवार में पत्नी कमला देवी और 4 बेटियां थीं. सभी अववाहित थीं. जावित्री सब से छोटी थी. वह अपनी अन्य बहनों से ज्यादा खुबसूरत और चंचल थी. घर में सब से छोटी होने की वजह से मांबाप भी उसे ज्यादा प्यार करते थे.

जावित्री उम्र के उस पायदान पर खड़ी थी, जब शरीर में अनेक बदलाव आते हैं और दिल में उमंग की लहरें हिचकोले लेने लगती हैं. लोग उसे गहरी नजरों से देखने लगे थे. वह उन नजरों को पहचानने भी लगी थी. लेकिन दीपक उन सब से अलग था, उस की नजरें हमेशा उसे प्यार से देखती थीं. उस की आंखों में उस के लिए अलग तरह की चाहत थी. दीपक भी कम स्मार्ट और खूबसूरत नहीं था. वह भिठौरा मोहल्ले में रहता था. जावित्री और उस के घर के बीच की दूरी दो, ढाई सौ मीटर रही होगी. दीपक के पिता कांताप्रसाद मौर्य उर्फ पप्पू मेहनतमजदूरी करते थे. घर में पिता के अलावा मां रामवती और 2 बड़े भाई थे.

वीरपाल और कांताप्रसाद का ही नहीं, पूरे परिवार का एकदूसरे के यहां आनाजाना था. इसी आनेजाने में जवान हो रही जावित्री पर दीपक की नजर पड़ी तो बरबस वह उस की ओर खिंचने लगा. घर में अन्य लोगों के होने की वजह से दीपक जावित्री से मन की बात कर नहीं पाता था. इसलिए वह इस फिराक में रहने लगा कि जावित्री अकेले में मिल जाए. संयोग से एक दिन ऐसा ही मौका उस के हाथ लग गया. जावित्री के घर वाले किसी समारोह में शामिल होने के लिए गए थे. जावित्री घर पर ही रह गई थी. इस बात का पता चलते ही किसी बहाने से दीपक उस के घर पहुंच गया. दरवाजे पर दस्तक दी तो जावित्री ने दरवाजा खोला. दीपक को देखते ही वह बोली, ‘‘सभी लोग शादी में गए हैं, घर में कोई नहीं है.’’

जावित्री की बात खत्म होते ही दीपक ने कहा, ‘‘जावित्री, मैं घर वालों से नहीं, सिर्फ तुम से मिलने आया हूं. चाचा से मिलना होता तो बाहर ही मिल लेता.’’

‘‘ठीक है, अंदर आ जाओ और बताओ मुझ से क्या काम है?’’ बगल होते हुए ही जावित्री बोली.

दीपक अंदर आ कर कमरे में खड़ा हो गया. तभी जावित्री ने कहा, ‘‘अब बताओ, मुझ से क्या काम है?’’

दीपक जावित्री को घूरते हुए बोला, ‘‘दरअसल, मैं बहुत दिनों से तुम से अकेले में मिलना चाहता था. क्योंकि मैं तुम्हें चाहने लगा हूं. मुझे तुम से प्यार हो गया है. दिल नहीं माना तो तुम से मिलने चला आया.’’

दीपक आगे कुछ और कहता, जावित्री को हंसी आ गई. उस ने हंसते हुए ही कहा, ‘‘आतेजाते तुम मुझे जिस तरह से देखते थे, उसी से मुझे तुम्हारे दिल की बात का पता चल गया था.’’

‘‘इस का मतलब तुम भी मुझे पंसद करती हो. तुम्हारी बातों से तो यही लगता है कि जो मेरे दिल है, वही तुम्हारे दिल में भी है.’’

दीपक कुछ और कहता, जावित्री झट से बोली, ‘‘मम्मीपापा के आने का समय हो रहा है. वह कभी भी आ सकते हैं, इसलिए तुम अभी यहां से चले जाओ. मुझे जैसे ही मौका मिलेगा, मैं तुम से बात कर लूंगी.’’

जावित्री के यह कहने के बावजूद भी दीपक वहीं खड़ा रहा और उस की खूबसूरती का बखान करता रहा. जावित्री को इस बात का डर था कि कहीं उस के मम्मीपापा न आ जाएं, इसलिए उस ने दीपक का हाथ पकड़ कर उसे  बाहर कर के अंदर से दरवाजा बंद कर लिया. लेकिन जातेजाते दीपक ने जावित्री को याद करा दिया कि उस ने बाहर मिलने का वादा किया है. जावित्री वादे को नहीं भूली और अगले दिन स्कूल जाते समय रास्ते में हमेशा की तरह दीपक दिखाई दिया तो इशारे से समझा दिया कि स्कूल से लौटते समय वह उस से मिलेगी. दीपक समय से पहले ही जावित्री के लौटने वाले रास्ते पर खड़ा हो कर उस का बेसब्री से इंतजार करने लगा.

जावित्री स्कूल से लौटी तो दीपक से उस की मुलाकात हुई. दीपक के प्यार को स्वीकार करते हुए उस ने कहा, ‘‘हमें इस बात का खयाल रखना होगा कि हमारे प्यार को किसी की नजर न लगे. इस के लिए हमें सावधान रहना होगा. दीपक जावित्री के हाथों को अपने हाथों में ले कर बोला, ‘‘तुम भी कैसी बातें करती हो, कौन प्रेमी चाहेगा कि उस की प्रेमिका की रुसवाई हो. तुम मुझ पर पूरा भरोसा रखो, मैं कोई भी ऐसा काम नहीं करूंगा, जिस से तुम्हारा सिर नीचा हो.’’

समय बीतता रहा, लोगों की नजरों से बच कर दोनों मिलते रहे. जल्दी ही दोनों का प्यार इतना गहरा हो गया कि वे एकदूसरे के लिए कुछ भी कर सकते थे, यहां तक कि जान भी दे सकते थे, पर एकदूसरे से कतई अलग नहीं हो सकते थे. लेकिन उन के यह प्रेमिल संबंध ज्यादा दिनों तक छिपे नहीं रह सके. दोनों के ही घर वालों तक उन के संबंधों की बात पहुंच गई. रिश्तेदारों को पता चला तो वे भी नाराज हो उठे. उस दिन जिंदगी में पहली बार वीरपाल ने बेटी को मारने के लिए हाथ उठाया. उस ने जावित्री की खूब पिटाई की. कमला ने किसी तरह पति को शांत कर के जावित्री को सामने से हटाया.

इस के बाद वीरपाल सीधे कांताप्रसाद के घर गया और उसे हिदायत दी कि वह दीपक को रोके वरना ठीक नहीं होगा. दीपक मिला तो वीरपाल ने उसे भी समझाया, लेकिन वह नहीं माना. इस के बाद वीरपाल और उस का भाई राजेंद्र तनाव में रहने लगे. उन्हें चिंता थी कि जावित्री और दीपक के प्रेमसंबधों की बात खुल गई तो समाज में उन की बड़ी बदनामी होगी. लेकिन ऐसी बातें कहां छिपती हैं. घर वालों ने दीपक पर अंकुश लगाने की कोशिश की तो पूरे समाज में बात फैल गई. एक दिन वीरपाल के चाचा प्रेमशंकर दीपक को रोक कर समझाने लगे तो वह उस से भिड़ गया. इस पर प्रेमशंकर ने उसे थप्पड़ मार दिया. उस समय तो दीपक खून का घूंट पी कर चला गया. लेकिन अगले दिन जब प्रेमशंकर घर के बाहर बैठे थे तो दीपक अपने दोस्तों के साथ वहां पहुंचा और बेल्टों से उन्हें जम कर पीटा. इस तरह उस ने अपने अपमान का बदला ले लिया.

प्रेमशंकर ने थाना फतेहगंज पश्चिमी में दीपक और उस के दोस्तों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराने के लिए तहरीर दी, लेकिन पुलिस ने कोई काररवाई नहीं की. प्रेमशंकर के साथ घटी घटना की जानकारी वीरपाल को हुई तो उस ने कुछ दिनों बाद दीपक के दोस्तों से मारपीट की. अब तक जावित्री और दीपक का मिलना आम हो गया था. इस बात से वीरपाल बेहद खफा रहता था. ढाई महीने पहले उस ने वार्ड मेंबर को बीच में डाल कर एक पंचायत बुलाई. पंचायत ने दीपक को जावित्री से मिलने से मना किया तो उस ने भरी पंचायत में कह दिया कि यह संभव नहीं है. वह जावित्री से हरगिज दूर नहीं रह सकता. इस पर वीरपाल भड़क उठा और पंचायत के सामने ही दीपक को लातघूंसों से मारा.

इस के बाद दीपक दिल्ली चला गया. मार्च में होली पर घर लौटा तो 10 दिनों के लिए कांवर लेने हरिद्वार चला गया. वहां से वह 15 मार्च को लौटा. उस का एक दोस्त था सोनू, जो ट्रैक्टर मैकेनिक था और वीरपाल के मकान में किराए पर रहता था. 24 मार्च को उस की बेटी का नामकरण संस्कार था, जिस में दीपक को भी निमंत्रण दिया गया था. 24 मार्च की रात दीपक दावत में पहुंचा, लेकिन वहां से वह लौट कर नहीं आया. दावत में जावित्री भी थी, वह भी गायब हो गई थी. अगले दिन दोनों के घर वालों ने उन की तलाश शुरू की. जब वे नहीं मिले तो दोनों के घर वाले थाना फतेहगंज पश्चिम पहुंचे. वीरपाल ने दीपक के खिलाफ जावित्री के अपहरण की रिपोर्ट लिखवाई तो कांताप्रसाद ने वीरपाल, राजेंद्र, प्रेमशंकर और कमला देवी के खिलाफ दीपक के अपहरण का मुकदमा दर्ज करा दिया. एकदूसरे के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करा कर वे अपनेअपने घर लौट आए.

6 अप्रैल को भिठौरा के एक तालाब में एक बोरा तैरता दिखाई दिया, जिस में से इंसानी पैर बाहर निकले थे. मोहल्ले वालों ने इस बात की जानकारी थाना फतेहगंज पश्चिमी पुलिस को दी. थानाप्रभारी अखिलेश सिंह यादव छुट्टी पर थे, इसलिए थाने का प्रभार देख रहे एसआई अवधेश कुमार पुलिस बल के साथ उस तालाब के किनारे पहुंचे. उन्होंने बोरे को तालाब से निकलवाया तो उस में से एक लड़की की लाश बरामद हुई. लोगों ने उस लाश की शिनाख्त जावित्री के रूप में की. लाश के साथ बोरे से 8 ईंटें भी बरामद हुईं. अनुमान लगाया गया कि लाश को पानी में डुबोने के लिए लाश के साथ बोरे में ईंटें भी रखी गई थीं. लाश सड़ गई तो बोरा तालाब की सतह पर आ गया. जावित्री के घर वाले भी वहां मौजूद थे.

पुलिस ने उन से पूछताछ की तो वे जावित्री की हत्या का आरोप दीपक पर लगाने लगे. उसी बीच एसआई अवधेश कुमार के इशारे पर सिपाहियों ने वीरपाल के मकान का मुआयना किया तो वहां से पुलिस को जो सुराग मिले, वे कुछ और ही कहानी कह रहे थे. एक तो जिस तालाब में जावित्री की लाश मिली थी, वह वीरपाल के मकान के ठीक पीछे था. इस के अलावा जिस तरह के बोरे में जावित्री की लाश मिली थी, उसी तरह के धान भरे हुए बोरे वीरपाल के घर में रखे थे. बोरे से ईंटें बरामद हुई थीं, उसी मार्का की ईंटें वीरपाल के घर में लगी थीं. लेकिन पुलिस ने उस समय वीरपाल से कुछ नहीं कहा, उन्होंने घटनास्थल की अन्य काररवाई निपटा कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया.

इसी बीच घटना की जानकारी मिलने पर थानाप्रभारी अखिलेश यादव थाने आ गए. उन्होंने पूरी घटना पर गंभीरता से विचार किया. इस के बाद पुलिस ने वीरपाल और उस के भाई राजेंद्र को हिरासत में ले लिया और पूछताछ शुरू कर दी. वीरपाल का कहना था कि दीपक ने उस की बेटी की हत्या की है. लेकिन जब सुबूतों का हवाला देते हुए उस से सख्ती से पूछताछ की गई तो उस ने जावित्री की हत्या का अपराध स्वीकार कर लिया. हत्या में उस का भाई राजेंद्र और लाश ठिकाने लगाने में उस का साढ़ू राजाराम और साथी टेनी उर्फ अरविंद ने साथ दिया था. राजाराम और टेनी भिठौरा में ही रहते थे. पुलिस ने उसी दिन टेनी को भी गिरफ्तार कर लिया. राजाराम घर से फरार था.

उस ने थानाप्रभारी को बताया कि दीपक खुद गायब नहीं हुआ, बल्कि उसे गायब कर के उस की हत्या कर दी गई है. जो बाप अपनी बेटी की हत्या कर सकता है, उस के लिए दीपक का कत्ल करना कोई बड़ी बात नहीं है. इस के बाद पुलिस ने 8 अप्रैल को सभी से अलगअलग पूछताछ की तो उन्होंने दीपक और जावित्री की हत्या की जो कहानी बताई, वह इस प्रकार निकली—

24 मार्च को दीपक सोनू के यहां दावत में पहुंचा तो वहां जावित्री से उस की मुलाकात हो गई. दीपक ने उसे इशारे से पीछे आने को कहा. जावित्री सब की नजरें बचा कर उस के पीछेपीछे चली गई. उधर वीरपाल को जावित्री नहीं दिखी तो उस ने दीपक के बारे में पता किया. वह भी वहां नहीं था. वह समझ गया कि दीपक उस की बेटी को अपने साथ कहीं ले गया है. उस ने वहां मौजूद अपने भाई राजेंद्र को यह बात बताई और उसे साथ ले कर उस की खोज में निकल पड़ा. कुछ ही दूरी पर उन्हें एक खंडहर में दोनों आपत्तिजनक स्थिति में मिल गए. उन्हें उस स्थिति में देख कर उन का खून खौल उठा. दोनों भाइयों ने दीपक को पकड़ लिया और उस की पिटाई करने लगे. जावित्री घर की ओर भागी कि वह लोगों को दीपक को बचाने के लिए बुला लाए. वीरपाल और राजेंद्र ने दीपक को पीटपीट कर अधमरा कर दिया.

इस के बाद ईंटों से उस का सिर और चेहरा कुचल कर मार डाला. तभी जावित्री लौट कर आ गई. उस ने दीपक को मरा पाया तो वह बगावत पर उतर आई. उस ने कहा कि वह सब कोबता देगी कि दीपक की हत्या उन्होंने की है. वह उन्हें सजा दिलवा कर रहेगी. इस पर दोनों भाइयों ने जावित्री को पकड़ लिया और बेल्ट से उस का गला कस कर उसे भी मार डाला. रात 12 बजे वीरपाल ने मोहल्ले में ही रहने वाले साढू राजाराम और उस के साथ काम करने वाले टेनी को फोन कर के बुलाया. दोनों के आने पर उस ने उन्हें पूरी बात बता कर मदद मांगी. इस के बाद वह घर गया और धान के 2 बोरे ले आया. एक बोरे में उस ने जावित्री की लाश भरी और दूसरे में दीपक की.

जावित्री की लाश वाला बोरा वीरपाल, राजाराम और टेनी घर ले गए और उस में 8 ईंटें डाल कर बोरे का मुंह बंद करके घर के पीछे वाले तालाब में फेंक दिया. वजन की वजह से बोरा तलहटी में बैठ गया. इस के बाद टेनी अपने घर चला गया. राजाराम वहां से अपने छोटे भाई के घर गया और मोटरसाइकिल ले आया. राजाराम और राजेंद दीपक के लाश वाले बोरे को ले कर मोटरसाइकिल से नेशनल हाईवे पर मीरगंज के पहले भखड़ा नदी के पुल पर ले गए और ऊपर से ही बोरे को नीचे फेंक दिया. नदी सूखी थी, इसलिए लाश जमीन पर जा गिरी. वे घर लौट आए और घर से फावड़ा ले कर फिर वहां पहुंचे. नदी में बने टापू पर करीब तीन फुट गहरा गड्ढा खोद कर उस में दीपक की लाश वाला बोरा गाड़ दिया और घर लौट आए.

वीरपाल ने तो अपने हिसाब से सब कुछ बड़े अच्छे तरीके से किया था. लेकिन बेटी की लाश ने पानी के ऊपर आ कर उस की चुगली कर दी तो पुलिस के हाथ उस तक पहुंच ही गए. उस की निशानदेही पर पुलिस ने भखड़ा नदी में बने मिट्टी के टापू से दीपक की लाश बरामद कर ली और पोस्टमार्टम के लिए भेज दी. पुलिस ने दीपक के अपहरण के मुकदमे में हत्या और साक्ष्य छिपाने की धाराएं जोड़ कर सभी अभियुक्तों की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त ईंटें, बेल्ट और फावड़ा बरामद कर लिया. 9 अप्रैल को पुलिस ने वीरपाल, राजेंद्र और टेनी को सीजेएम की अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. 10 अप्रैल को पुलिस ने राजाराम को भी गिरफ्तार कर कर के जेल भेज दिया. Real Crime Story

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित