MP News : प्रेमिका की हत्या कर शव को कुत्ते की लाश संग गड्ढे में दबाया

MP News : डा. आशुतोष त्रिपाठी संपन्न परिवार से था. अपनी अटैंडेंट विभा केवट को शादी का झांसा दे कर उस ने इसलिए संबंध बनाए थे, ताकि वह उस के साथ जब चाहे मौजमस्ती कर सके. लेकिन उसे क्या पता था कि उस का यह कदम उसे …

विभा केवट की उम्र 24 साल थी. सामान्य कदकाठी की विभा देखने में सुंदर होने के साथ पढ़नेलिखने में भी होशियार थी. चूंकि उस के घर की माली हालत अच्छी नहीं थी इसलिए पिछले 2 सालों से वह फैमिली दंत चिकित्सालय में अटेंडेंट की नौकरी कर रही थी. सतना के धावरी स्थित कलैक्ट्रेट रोड पर यह दंत चिकित्सालय डा. आशुतोष त्रिपाठी का था. विभा का घर मल्लाह मोहल्ले में था. वह हर रोज सुबह 8 बजे घर से क्लीनिक के लिए निकल जाती थी और पेशेंट देखने में डा. आशुतोष की मदद करती थी.

दोपहर में वह लंच करने के लिए घर लौटती. लंच के बाद फिर वापस क्लीनिक में लौट आती थी. रात के 8 बजे डा. आशुतोष त्रिपाठी क्लीनिक बंद कर के कार से पहले विभा को उस के घर के पास छोड़ता फिर अपने घर जाता था. यह विभा की रोज की दिनचर्या थी. नौकरी में अपना अधिकतर समय देने के बाद भी विभा पढ़ाई के लिए समय निकाल लेती थी. उस का सपना एलएलबी कर के वकील बनने का था. वह एक प्राइवेट कालेज से एलएलबी कर रही थी. चूंकि घर की हालत सही न होने के कारण वह अपनी पढ़ाई के खर्चों को पूरा करने में असमर्थ थी. इसलिए पिछले 2 सालों से इस क्लीनिक में नौकरी कर रही थी.

वह अपने काम से खुश थी और जिंदगी सामान्य ढर्रे पर चल रही थी. पिछले साल 14 दिसंबर को वह रोज की तरह घर से ड्यूटी पर गई थी. दोपहर के समय वह घर आई और लंच कर के वापस ड्यूटी पर लौट गई. उस रात नौ बजे तक वह घर नहीं लौटी तो उस के पिता रामनरेश केवट और मां रमरतिया की आंखों में परेशानियों के बादल घुमड़ने लगे. उस का मोबाइल फोन भी स्विच्ड औफ था. उन के मन में तरह तरह के बुरे खयाल आ रहे थे. रात भर इंतजार के बाद सुबह भी विभा घर नहीं लौटी तो क्लीनिक खुलने के समय दोनों डाक्टर से मिलने उस के क्लीनिक जा पहुंचे. डा. आशुतोष क्लीनिक में पेशेंट देख रहे थे. बुरी तरह परेशान रामनरेश केवट ने जब डा.

आशुतोष से बेटी के बारे में पूछा तो उस ने विभा के घर नहीं पहुंचने पर हैरानी जाहिर करते हुए कहा कि कल शाम विभा ने उस से पगार के छह हजार रुपए लिए और कुछ जरूरी काम से बाहर जाने की बात कह कर चली गई थी. लगता है, उस ने कहीं दूसरी जगह काम पकड़ लिया है. चिंता न करो वह कुछ दिनों में खुद ही घर लौट आएगी. रामनरेश और रमरतिया वहां से घर लौट आए और बारबार विभा के मोबाइल पर काल कर उस से संपर्क साधने का प्रयास करते रहे. लेकिन बीती रात से ही उस का मोबाइल स्विच्ड औफ आ रहा था. रामनरेश ने अपने सभी रिश्तेदारों से फोन कर पूछा, लेकिन निराशा ही हाथ लगी.

बाद में रामनरेश ने फिर डा. आशुतोष त्रिपाठी से विभा के बारे में पूछा तो उस ने बताया कि विभा ने उस के यहां से नौकरी छोड़ दी है. वह तुम लोगों से नाराज है और किसी दूसरी जगह पर कमरा ले कर रहने लगी है. उस ने अपना फोन नंबर भी बदल लिया है. विभा ने कहां पर कमरा लिया है इस की जानकारी उसे नहीं है. बेटी के अलग रहने की बात रामनरेश और रमरतिया के गले से नहीं उतरी. फिर भी उन्होंने बेटी की तलाश में शहर का चप्पाचप्पा छान मारा लेकिन वह उस का पता लगाने में नाकामयाब रहे. किसी की समझ में नहीं आ रहा था कि उसे जमीन निगल गई या आसमान खा गया.

दरअसल, विभा के मातापिता को ऐसा लग रहा था जैसे डाक्टर को विभा के बारे में जानकारी है और वह शायद बाद में विभा के बारे उन्हें बता देगा. विभा की तलाश करतेकरते डेढ़ महीने गुजर जाने के बाद भी जब उस का पता नहीं चला तो रमरतिया ने एक फरवरी, 2021 को धवारी की सिटी कोतवाली में बेटी की गुमशुदगी दर्ज करा दी और पुलिस अधिकारियों से उसे तलाश करने की गुहार लगाई. सिटी कोतवाली इंसपेक्टर अर्चना द्विवेदी ने 24 वर्षीय युवती विभा केवट के गायब होने के मामले को गंभीरता से लिया. वह इस की जांच में जुट गईं.

इंसपेक्टर अर्चना द्विवेदी ने विभा के मातापिता से उस के गायब होने के बारे में विस्तार से पूछताछ की तो उन्होंने बताया कि 14 दिसंबर की सुबह विभा डा. आशुतोष के क्लीनिक में ड्यूटी पर गई थी. जहां डाक्टर के अनुसार उस ने शाम तक ड्यूटी की. इस के बाद वह डाक्टर से 6 हजार रुपए लेने के बाद कहीं दूसरी जगह रहने चली गई. उस ने अपना मोबाइल नंबर भी बदल लिया था. यह जानकारी मिलने के बाद इंसपेक्टर अर्चना द्विवेदी ने डा. आशुतोष त्रिपाठी को कोतवाली बुला कर उस से विभा केवट के बारे में पूछताछ की. थोड़ी पूछताछ के बाद डा. आशुतोष को घर जाने की इजाजत मिल गई.

लेकिन डाक्टर के बारबार बदले बयानों को ले कर इंसपेक्टर अर्चना द्विवेदी को उस पर संदेह हो गया था. उन्होंने डा. आशुतोष त्रिपाठी और विभा के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स निकलवा कर देखी तो पता चला कि विभा ने आखिरी बार 14 दिसंबर को डा. आशुतोष त्रिपाठी से 750 सेकंड बातें की थीं. इस के बाद उस का मोबाइल स्विच्ड औफ हो गया था, जो फिर औन नहीं हुआ था. इस का मतलब था कि विभा के गायब होने का राज डा. आशुतोष को मालूम था. इंसपेक्टर अर्चना द्विवेदी ने डा. आशुतोष त्रिपाठी को दोबारा थाने बुला कर मनोवैज्ञानिक तरीके से कुरेदना शुरू किया तो वह ज्यादा देर तक नहीं टिक सका.

उस ने विभा के बारे में जो कुछ बताया उसे सुन कर अर्चना द्विवेदी आश्चर्यचकित रह गईं. उस ने बताया कि दरअसल विभा का कत्ल हो चुका है और उस की लाश एक गड्ढे में दबा दी गई थी. कत्ल की बात पता चलते ही इंसपेक्टर अर्चना द्विवेदी ने डा. आशुतोष को गिरफ्तार कर लिया और इस की सूचना सतना के एसपी (सिटी) विजय प्रताप सिंह को दी. 20 फरवरी, 2021 शनिवार को एसपी (सिटी) विजय प्रताप सिंह, तहसीलदार अनुराधा सिंह, नायब तहसीलदार हिमांशु भलवी, यातायात थानाप्रभारी राजेंद्र सिंह राजपूत और इंसपेक्टर अर्चना द्विवेदी आरोपी डा. आशुतोष के साथ घटनास्थल पर पहुंचे जहां पर विभा की लाश एक गड्ढे में दबी थी.

मिल गई विभा की लाश डा. आशुतोष की निशानदेही पर नगर निगम के श्रमिकों की मदद से गड्ढे की खुदाई की गई तो कुछ देर खुदाई के बाद उस में से एक कुत्ते की लाश निकली. कुत्ते की लाश को बाहर निकालने के बाद थोड़ी और खुदाई की गई तो वहां एक युवती की लाश दिखाई पड़ी. लाश को बाहर निकाला गया. लाश के गले में एक दुपटटा तथा कमर के नीचे लोअर मौजूद था. रामनरेश केवट और उस की पत्नी रमरतिया को लाश दिखाई गई तो दोनों ने कपड़ों के आधार पर उस की पहचान अपनी बेटी विभा केवट के रूप में की. शिनाख्त हो जाने के बाद लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी गई. डा. आशुतोष के बयान और पुलिस की तहकीकात के आधार पर विभा केवट हत्याकांड के पीछे एक सनसनीखेज कहानी उभर कर सामने आई—

सतना के धावरी इलाके में चांदमारी रोड, मंगल भवन के पीछे अंग्रेजी के शिक्षक नरेंद्र त्रिपाठी अपने परिवार के साथ रहते थे. वह राजकीय कन्या विद्यालय, धावरी में नौकरी करते हैं. उन के 2 बेटे हैं. बड़ा बेटा अभिषेक त्रिपाठी छत्तीसगढ़ के रायपुर शहर स्थित एक रियल एस्टेट फर्म में बतौर फाइनेंस मैनेजर कार्यरत है. दूसरा बेटा आशुतोष डेंटिस्ट है. 2 साल पहले आशुतोष को अपने क्लीनिक के लिए एक अटेंडेंट की जरूरत थी. मल्लाह मोहल्ले में रहने वाले रामनरेश केवट की दूसरी बेटी विभा को जब इस नौकरी बारे में पता चला तो उस ने डा. आशुतोष से मिल कर उस के यहां काम करने की इच्छा जाहिर की.

डा. आशुतोष ने विभा को क्लीनिक से संबंधित जरूरी कामकाज के बारे में समझाते हुए जब सैलरी के बारे में उसे बताया तो उस ने वहां काम करने के लिए हामी भर दी. यह बात सन 2018 की थी. डा. आशुतोष ने विभा को क्लीनिक से संबंधित सभी बातों को समझने के बाद यह भी समझा दिया कि वहां आने वाले पेशेंट से किस प्रकार व्यवहार करना है. फिर उसे अपना मोबाइल नंबर देते हुए कहा कि अगर उस की अनुपस्थिति में उसे कोई भी मुश्किल आए तो मुझे कभी भी काल कर सकती हो. उसी समय विभा और डा. आशुतोष ने अपनेअपने मोबाइल में एक दूसरे के नंबर सेव कर लिए. विभा तेजतर्रार युवती थी. थोड़े ही दिनों में वह सारा काम सीख गई. उस की कुशलता देख कर डा. आशुतोष भी खुश हुआ.

विभा यहां काम पा कर पूरी तरह संतुष्ट थी. क्योंकि उस के प्रति डाक्टर का व्यवहार ठीक था. वह वेतन भी टाइम से दे देता था. इस तरह धीरेधीरे समय का पहिया घूमता रहा. सालभर गुजर जाने के बाद डाक्टर आशुतोष और विभा आपस में काफी घुलमिल गए थे. पेशेंट की मौजूदगी में वे दोनों एक दूसरे से सिर्फ काम की ही बातें करते थे. लेकिन जब वहां कोई नहीं होता तो वे हंसीमजाक से ले कर दुनियाजहान की बातें करते थे. बातों बातों में वक्त आसानी से कट जाता था. इसी दौरान डाक्टर आशुतोष ने मन ही मन विभा को पाने की योजना तैयार की और उस पर अमल करना आरंभ कर दिया.

अपनी योजना के तहत शाम को जब वह क्लीनिक बंद करता तो घर जाने से पहले विभा को उस के घर छोड़ने जाने लगा. विभा डा. आशुतोष के इस बदले हुए व्यवहार के पीछे की चाल को नहीं भांप सकी. उस ने सोचा कि डा. आशुतोष खुश हो कर उस की मदद कर रहे हैं. कभीकभार वह विभा को घर छोड़ने से पहले किसी होटल या रेस्टोरेंट में ले जाता जहां खाने के दौरान वह विभा का दिल जीतने की कोशिश करता था. विभा एक गरीब परिवार से ताल्लुक रखती थी. जल्द ही वह उस की बातों में आ गई. डा. आशुतोष ने जब ताड़ लिया कि विभा उस की इच्छा का विरोध नहीं करेगी तो एक दिन उस ने विभा को शादी करने का झांसा दे कर उस के साथ शारीरिक संबंध बना लिया.

उस दिन के बाद विभा के प्रति डा. आशुतोष का व्यवहार एकदम बदल गया. विभा को खुश रखने के लिए वह उसे महंगे तोहफे आदि देता रहता था. ताकि उस की जिस्मानी जरूरतों को पूरा करने में विभा आनाकानी न करे. अलबत्ता एक दिन विभा ने अपनी बड़ी बहन को आशुतोष से अपने अफेयर की बात बता दी और यह भी कहा कि कुछ दिनों के बाद डाक्टर उस से शादी कर लेगा. इस पर उस की बहन ने उसे समझाते हुए कहा भी कि अमीर लोग गरीब घर की लड़की से शादी करने की बात अपना मतलब निकालने के लिए करते हैं. कहीं तुम आगे चलकर ठगी न जाओ, इसलिए जितनी जल्दी हो सके शादी कर लो.

बहन की बात सुन कर विभा ने उसे जवाब दिया कि उस का प्यार इतना कच्चा नहीं है कि डाक्टर उस से शादी का बहाना कर असानी से अपना मुंह फेर ले. उस वक्त कहने के लिए तो विभा ने बड़़े ही आत्मविश्वाश के साथ अपनी बड़ी बहन को जवाब दे दिया. लेकिन उसी दिन उस ने मन में ठान लिया कि वह डाक्टर से जल्द शादी करने को कहेगी. विभा बन गई गले की हड्डी इस के बाद जब भी आशुतोष विभा को शारीरिक संबंध बनाने के लिए राजी करने की कोशिश करता तो वह उस से पहले शादी करने की बात करती. इतना ही नहीं, जब भी दोनों क्लीनिक में अकेले होते वह उस से शादी करने का दबाव डालना शुरू कर देती थी. आशुतोष एक बड़े परिवार से ताल्लुक रखता था. समाज में उस की अपनी अच्छीखासी हैसियत थी.

उस ने तो केवल विभा के साथ मौजमस्ती करने के लिए उस से शादी की बात कही थी. वास्तव में उस ने दिल से कभी विभा से शादी के बारे में सोचा तक नहीं था. इसलिए जब विभा ने उस पर शादी का अधिक दबाव बनाना शुरू किया तो 14 दिसंबर, 2020 को आशुतोष ने बात बढ़ जाने पर विभा की गला घोंट कर हत्या कर दी. उस समय क्लीनिक में उन दोनों के सिवा कोई नहीं था. विभा की हत्या करने के बाद आशुतोष ने उस की लाश एक बोरी में डाल कर क्लीनिक के अंदर ही एक कोने में रख दी. अगले दिन वह क्लीनिक में पेशेंट का इलाज करते हुए मन ही मन विभा की लाश को ठिकाने लगाने की तरकीब सोचता रहा.

दोपहर के बाद उस ने कुछ मजदूरों को बुलाया और क्लीनिक के पीछे बारिश का गंदा पानी जमा करने की बात कह कर एक 6 फुट गहरा गड्ढा खुदवाया. रात को उस ने विभा की लाश गड्ढे में डाल कर उस के उपर नमक डाला फिर उस पर थोड़ी मिट्टी डाल दी. इस के बाद कहीं से उस ने एक कुत्ते की लाश का इंतजाम किया. कुत्ते की लाश को उसी गड्ढे में डालने के बाद उस ने उस के उपर अच्छी तरह मिट्टी भर दी. कुत्ते की लाश गड्ढे में इसलिए डाली गई कि ताकि विभा की लाश की बदबू आसपास फैलने पर अगर लोग बदबू उठने का कारण पूछे तो वह सब को बता सके कि वहां कुत्ते की लाश दबाई गई है.

इस तरह विभा की लाश इस गड्ढे में दबी होने की बात उजागर नहीं होगी. लेकिन पुलिस को विभा की अंतिम काल और उस के मोबाइल फोन की लोकेशन के आधार पर आशुतोष के ऊपर शक हो गया. जब उस से थोड़ी सख्ती बरती गई तो उस ने सारा सच उगल दिया. विभा की लाश का डीएनए टेस्ट कराने के लिए सैंपल भी सुरक्षित रख लिया गया ताकि तय हो सके कि लाश विभा की ही थी. विभा की लाश की बरामदगी के बाद इस मामले में हत्या और साजिश की धारा 302, 201, जोड़ दी गई. पुलिस ने आशुतोष त्रिपाठी से पूछताछ करने के बाद उसे गिरफ्तार कर सतना की अदालत में पेश किया गया, जहां से उसे न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. MP News

UP Crime News : युवक के इश्क में बड़ी बहन ने छोटी बहन का गला घोंटा फिर शव तालाब में फेंका

UP Crime News  : 21 वर्षीय सुनीता 2 बच्चों के पिता पवन तोमर से दिल लगा बैठी. वह उसे तलाक दिला कर शादी का दबाव बना रही थी. इस में वह नाकाम रही तो उस ने चस्पा कर दिया अपहरण का खूनी नोटिस…

फिरोजाबाद जिले के थाना शिकोहाबाद का एक गांव है नगला सैंदलाल. इसी गांव में राजमिस्त्री रामभरोसे अपने परिवार के साथ रहता था. रामभरोसे की पहली शादी बिरमा देवी के साथ हुई थी. उस से 2 बेटियां सुनीता, गीता के अलावा एक बेटा विक्रम है. बिरमा देवी की बीमारी से मौत हो जाने के बाद रामभरोसे ने अपनी तीसरे नंबर की साली सोमवती से शादी कर ली. इस से एक बेटा करन व 3 बेटियां विनीता, खुशी और हिमांशी पैदा हुईं. बात 9 मार्च, 2021 की है. सुबह करीब 7 बजे रामभरोसे की सब से छोटी बेटी 6 वर्षीय हिमांशी खेत पर जाते समय रास्ते से अचानक गायब हो गई.

हुआ यह कि रामभरोसे की 21 वर्षीय बड़ी बेटी सुनीता छोटी बहन हिमांशी के साथ घर से खेत के लिए निकली थी. रास्ते में हिमांशी पीछे रह गई और सुनीता खेत पर पहुंच गई. सुनीता हिमांशी के आने का इंतजार करती रही. जब करीब आधा घंटा बीत गया और हिमांशी नहीं आई तो सुनीता को चिंता हुई. उस ने लौट कर मां को बताया कि हिमांशी उस के साथ खेत पर जाने के लिए निकली थी, लेकिन वह रास्ते से कहीं गायब हो गई. इस पर मां ने सोचा कि रास्ते में कहीं खेलती रह गई होगी, आ जाएगी. लेकिन जब लगभग 2 घंटे बाद भी हिमांशी घर नहीं आई तो घर वालों को चिंता हुई. पड़ोसियों के साथ ही घर वाले हिमांशी की खोजबीन में जुट गए.

लेकिन हिमांशी का कोई पता नहीं चला. इसी बीच गांव वालों की नजर रामभरोसे के घर के दरवाजे पर चिपके एक पत्र पर गई. पत्र में सब से ऊपर पवन तोमर का नाम लिखा था. पत्र में लिखा था कि यदि सुनीता की शादी पवन से नहीं कराई तो बच्ची को मार दूंगा. हिमांशी के अपहरण की बात पता चलते ही पिता रामभरोसे गांव के कुछ लोगों के साथ थाना शिकोहाबाद पहुंच गया और पुलिस को बेटी के अपहरण होने की पूरी जानकारी दी. सूचना मिलते ही थानाप्रभारी सुनील कुमार तोमर अपनी टीम के साथ गांव पहुंच गए. उन्होंने सुनीता से पूरे घटनाक्रम की जानकारी ली. अपने स्तर से पुलिस ने गांव में व आसपास के क्षेत्र में हिमांशी की तलाश की, लेकिन उस का कोई सुराग नहीं मिला.

दिनदहाड़े गांव से लड़की के लापता होने से घर वालों के साथ ही गांव वालों की चिंता और आक्रोश बढ़ता जा रहा था. इस पर थानाप्रभारी ने उच्चाधिकारियों को घटना की जानकारी दी. जानकारी होते ही एसएसपी अजय कुमार पांडेय एसपी (ग्रामीण) अखिलेश नारायण सिंह, सीओ बलदेव सिंह खनेडा, एसओजी प्रभारी कुलदीप सिंह सहित कई थानों की फोर्स व डौग स्क्वायड की टीम के साथ गांव पहुंच गए. अधिकारियों ने मौके पर पहुंच कर जांचपड़ताल की. खोजी कुत्ते को हिमांशी के पुराने कपड़े सुंघाए गए. इस के बाद उसे छोड़ा गया तो वह घर के पीछे ईंट भट्ठा तक पहुंचा. पुलिस आसपास सुराग खोजती रही, लेकिन बालिका हिमांशी का पता नहीं चला.

पुलिस जांच में सामने आया कि गांव के ही पवन और सुनीता के बीच प्रेमसंबंध थे. रामभरोसे के दरवाजे पर चिपके पत्र में भी लिखा था कि पवन का तलाक करवा कर सुनीता से शादी करवा दो. इस से साफ हो गया कि कहीं न कहीं सुनीता का इस मामले में हाथ हो सकता है. सुनीता या तो हिमांशी के अपहरण में खुद शामिल है या फिर उस ने किसी से यह काम करवाया है. जांच के दौरान कुछ नाम और भी सामने आए. सुनीता से इस संबंध में पूछताछ की गई तो वह पूरे घटनाक्रम से अनभिज्ञता व्यक्त करती रही. वह एक ही बात की रट लगाए जा रही थी कि खेत पर जाते समय हिमांशी पीछे रह गई थी और वह रास्ते से ही गायब हो गई थी.

शादीशुदा पवन से पुलिस ने पूछताछ की. लेकिन उस ने हिमांशी के संबंध में कुछ भी जानकारी होने से इनकार कर दिया. एसएसपी अजय कुमार पांडेय ने दीवार पर चस्पा किए गए पत्र की लिखावट को पढ़ा. पवन की हैंडराइटिंग का मिलान कराया गया, लेकिन उस की हैंडराइटिंग अलग थी. इस के बाद सुनीता से पूछताछ की गई.  पत्र की बारीकी से जांच के बाद शक की सुई सुनीता पर टिक गई. तब पुलिस सुनीता और पवन को हिरासत में ले कर थाने लौट आई. इस बीच एसओजी प्रभारी कुलदीप सिंह के नेतृत्व में उन की टीम गांव में जा कर जांच में जुटी रही.  थाने ला कर पुलिस ने पवन व सुनीता से कड़ाई से पूछताछ की.

पूछताछ पूरी करने के बाद शाम 3 बजे दोनों को ले कर पुलिस अधिकारी गांव पहुंचे. सुनीता को गांव के तालाब पर ले जाया गया. जानकारी मिलते ही बड़ी संख्या में गांव वाले भी तालाब पर पहुंच गए. सुनीता की निशानदेही पर तालाब के एक किनारे से हिमांशी का शव बरामद कर लिया गया. हिमांशी की तलाश के लिए पुलिस की तत्परता देख मां सोमवती को अपनी बेटी के मिलने का भरोसा था, लेकिन उसे यह उम्मीद नहीं थी कि वह मृत अवस्था में मिलेगी. हिमांशी का शव मिलने की जानकारी होते ही वह बुरी तरह फूट पड़ी. अन्य भाईबहन भी तालाब के किनारे पहुंच कर रोनेबिलखने लगे. अपनी लाडली बेटी की हत्या से गमगीन पिता रामभरोसे को विश्वास ही नहीं हो रहा था कि बड़ी बहन घटिया सोच के चलते अपनी छोटी बहन की हत्या कर देगी.

पुलिस ने जरूरी काररवाई पूरी करने के बाद शव को पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भिजवा दिया. सुनीता पुलिस से यही कहती रही कि पैर फिसलने से हिमांशी तालाब में गिर गई और डूब गई थी. सुनीता का अब भी यह कहना था कि यह बात उस ने डर की वजह से घर वालों को नहीं बताई थी. पुलिस ने उसी दिन शाम को शव का पोस्टमार्टम करा दिया. पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने के बाद पुलिस ने  दूसरे दिन 10 मार्च, 2021 को हिमांशी हत्याकांड का परदाफाश कर दिया. शादीशुदा युवक के इश्क में पागल सुनीता ने ही अपनी छोटी बहन हिमांशी का गला घोंट कर हत्या करने के बाद शव को तालाब में फेंक दिया था.

हत्यारोपी सुनीता ने ही घर वालों, पुलिस और गांव वालों को गुमराह करने के लिए दरवाजे के बाहर अपहरण का पत्र चिपकाया था. पुलिस ने पिता द्वारा दर्ज कराए गए अपहरण के मुकदमे को हत्या में तरमीम कर दिया. सुनीता कंप्यूटर कोर्स कर रही थी. एसओजी टीम ने उस के बैग की कौपियां देखीं तो एक कौपी का पन्ना फटा था, जिस का मिलान पत्र से हो गया. असल में सुनीता ने पत्र लिखने के लिए जो कागज इस्तेमाल किया था, वह उस ने अपनी ही कौपी से फाड़ा था. उसे चिपकाने की लेई भी उस ने खुद बनाई थी. लेई की कटोरी भी घर के अंदर से बरामद कर ली गई.

इस सनसनीखेज कांड का खुलासा करने वाली टीम को एसएसपी अजय कुमार पांडेय ने 20 हजार रुपए का ईनाम देने की घोषणा की. सुनीता से पूछताछ करने पर पुलिस को पता चला कि उस ने अपने ही हाथों अपनी मासूम बहन की हत्या कर के अपने प्रेमी पवन को फंसाने की एक गहरी साजिश रची थी. इस केस की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार निकली—

अपनी मां की मौत के बाद पिता ने उस की मौसी सोमवती से शादी कर ली. सौतेली मां सोमवती के व्यवहार से सुनीता परेशान रहती थी. कुछ समय पहले एक प्लौट पिता ने खरीदा था. उस प्लौट को भी सोमवती ने अपने नाम करा लिया था. सारे दिन सुनीता घर के काम में ही लगी रहती थी. इसलिए उस ने कंप्यूटर सीख कर नौकरी करने का निर्णय लिया. सोमवती इस बात से खुश नहीं थी. वह चाहती थी सुनीता उस के साथ घरगृहस्थी के काम में हाथ बंटाए. सुनीता ने गांव के पवन तोमर जो शिकोहाबाद में मैनपुरी चौराहा पर एक जनसेवा केंद्र चलाता था, के सेंटर पर कंप्यूटर ट्रेनिंग लेने का निर्णय लिया.

वह उस के सेंटर पर जाने लगी. कंप्यूटर ट्रेनिंग के दौरान पवन और सुनीता का झुकाव एकदूसरे के प्रति हो गया. धीरेधीरे पवन और सुनीता के प्रेमसंबंध हो गए. पवन शादीशुदा था और उस की पत्नी व 2 बेटियां हैं. पवन भी सुनीता को बहुत प्यार करता था. अगर किसी दिन सुनीता सेंटर पर नहीं आती तो वह बेचैन हो जाता था. वे मिलने में पूरी सावधानी बरतते थे. दोनों कंप्यूटर सेंटर पर ही एकदूसरे से मिलते थे. और गांव में तो वे एकदूसरे से बात तक नहीं करते थे. कंप्यूटर सेंटर गांव से लगभग 2 किलोमीटर दूर था, इसलिए दोनों के प्रेम संबंधों के बारे में गांव में किसी को कानोंकान खबर तक नहीं हुई थी.

सुनीता ने एक दिन पवन से कहा, ‘‘पवन, ऐसा कब तक चलेगा. हम दोनों एकदूसरे को प्यार करते हैं. आखिर हम छिपछिप कर कब तक मिलते रहेंगे? तुम मुझ से शादी कर लो.’’

‘‘सुनीता तुम तो जानती हो कि मेरी पत्नी और 2 बेटियां हैं, ऐसे में मैं तुम से कैसे शादी कर सकता हूं.’’ पवन ने कहा.

सुनीता समझ गई कि पवन के शादीशुदा होने से शादी में पेंच फंस रहा था. वह कुछ क्षण सोचने के बाद बोली, ‘‘पवन, इस का एक उपाय यह है कि तुम अपनी पत्नी को तलाक दे दो और मुझ से शादी कर लो. क्योंकि मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकती.’’

पवन ने सुनीता को समझाया कि वह उस से प्यार तो करता रहेगा लेकिन शादी नहीं कर सकता. जब सुनीता के लाख समझाने का भी पवन पर कोई असर नहीं हुआ तो उस ने पवन पर दवाब बनाने के लिए एक खौफनाक षडयंत्र रचा. सुबह खेत पर जाते समय सुनीता छोटी बहन हिमांशी को भी साथ ले गई. तालाब के किनारे पेड़ों और झाडि़यों की आड़ में ले जा कर उस ने अपने हाथों से सौतेली बहन हिमांशी की गला दबा कर हत्या कर दी. इस के बाद उस के शव को तालाब में फेंक दिया. इस के बाद वह घर आ कर हिमांशी के लापता होने का नाटक करने लगी. इसी बीच उस ने पहले से लिखे पत्र को घर के दरवाजे पर लेई से चिपका दिया.

गांव के एक कोने पर घर होने से सुनीता की कारगुजारी को कोई देख नहीं पाया था. 10 मार्च, 2021 को पुलिस ने सुनीता को सौतेली बहन की हत्या के अपराध में गिरफ्तार कर के न्यायालय में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया.  अपराध करने वाला कितना भी शातिर हो, वह अपराध के बाद निशान छोड़ ही जाता है. फिर सुनीता तो अभी 21 साल की ही थी. गेम प्लान सुनीता ने रचा था, लेकिन वह कामयाब नहीं हो पाई. UP Crime News

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

crime stories in hindi : प्रेमी से पति को गोली मारकर कराई हत्या

crime stories in hindi : झगड़ालू और चरित्रहीन निशा ने अपने स्वार्थ की खातिर पहले पति के परिवार को बिखेरा, फिर यार को पाने के लिए अपने बच्चों के भविष्य की परवाह करने के बजाए पति को ही…

28 फरवरी, 2021 को अपने भाई को घर आया देख निशा की खुशी का ठिकाना नहीं था. उस का भाई काफी समय बाद उसे ससुराल से लेने आया था. उस वक्त निशा और उस का पति रिंकू घरगृहस्थी में आए उतारचढ़ाव को ले कर काफी परेशान चल रहे थे. जिस के चलते उन का घर चिंता और परेशानियों से घिरा हुआ था. इस दौरान निशा ने कई बार अपने मायके जाने की सोची भी, लेकिन वह रिंकू को ऐसी स्थिति में छोड़ कर जाने की हिम्मत नहीं जुटा पाई थी. रिंकू की परेशानी का कारण यह था कि सन 2017 में उस के परिवार में एक ऐसी अनहोनी हो गई थी, जिस में उस की मां और उस के 2 भाइयों की मौत हो गई थी. उस की मां की एक जीवनबीमा पौलिसी थी.

मां की मौत के बाद बीमा की रकम मिली तो उस के छोटे भाई विपिन ने चालाकी से सारी रकम हड़प ली. भाई के विश्वासघात से रिंकू को जबरदस्त झटका लगा था. बाद में उस का छोटा भाई विपिन उस की जान का दुश्मन बन गया था. अपने साले दीपक के आने के बाद रिंकू ने निशा को समझाबुझा कर उसी दिन उस के साथ मायके भेज दिया. मायके पहुंचने के बाद भी निशा बारबार अपने पति को फोन कर के उस की खैरखबर लेती रही. 28 फरवरी को रात करीब 10 बजे निशा की रिंकू से फोन पर आखिरी बार बात हुई. रिंकू ने निशा को बताया था कि उस का भाई विपिन कुछ लोगों के साथ उस के पास आया था और उस ने गालीगलौज की थी. उस के बाद से उस का मोबाइल बंद हो गया था.

अगले दिन पहली मार्च, 2021 को सुबह निशा ने फिर से रिंकू को फोन मिलाया तो उस समय भी उस का मोबाइल बंद आ रहा था. रात से लगातार रिंकू का फोन बंद आने से निशा परेशान हो उठी. जब उस से नहीं रहा गया तो वह भाई दीपक को साथ ले कर ससुराल जा पहुंची. लेकिन वहां उस के घर का दरवाजा अंदर से बंद था, जिसे देख निशा और उस का भाई दीपक परेशान हो उठे. उन्होंने तुरंत इस बात की जानकारी पड़ोसियों को दी, जिस के बाद कालोनी के कुछ लोग दीवार फांद कर घर के अंदर पहुंचे तो अंदर रिंकू की खून से लथपथ लाश पड़ी हुई थी. पति की लाश देखते ही निशा चक्कर खा कर गिर पड़ी. रिंकू की हत्या की बात सुन कर पूरे मोहल्ले में सनसनी फैल गई. इस बात की सूचना तुरंत पुलिस को दी गई.

बंद घर में एक युवक की हत्या की बात सुनते ही पुलिस आननफानन में घटनास्थल पर पहुंच गई. यह घटना रुद्रपुर, ऊधमसिंह नगर से सटे भदईपुरा इलाके की है. वह जगह रमपुरा चौकी के अंतर्गत आता था. इसलिए जानकारी मिलते ही रमपुरा चौकीप्रभारी अनिल जोशी ने इस घटना की जानकारी उच्चाधिकारियों को दी और खुद घटनास्थल की ओर रवाना हो गए. सूचना मिलते ही रुद्रपुर कोतवाल एन.एन. पंत, सीओ (सिटी) अमित कुमार, एसपी (क्राइम) मिथिलेश सिंह और एसएसपी दलीप सिंह कुंवर भी घटनास्थल पर पहुंच गए.

रिंकू की लाश बंद घर के अंदर मिली थी. किसी ने रिंकू के सिर में सटा कर गोली मारी थी, जिस से उस की मौके पर ही मौत हो गई थी. इस हत्या की जांचपड़ताल करते हुए पुलिस ने सब से पहले मृतक की बीवी निशा से पूछताछ शुरू की. निशा ने बताया कि वह एक दिन पहले ही अपने भाई के साथ मायके चली गई थी. जहां पर उसे पति द्वारा ही पता चला था कि उस के भाई विपिन ने उस के साथ गालीगलौज की थी. उस के बयान के आधार पर पुलिस ने मृतक के भाई विपिन और उस के एक सहयोगी को पूछताछ के लिए हिरासत में ले लिया. एसएसपी ने केस की तह तक जाने के लिए एसओजी समेत 3 टीमों को लगाया.

लाश को देख कर लग रहा था कि रिंकू की हत्या कई घंटे पहले की गई थी. पुलिस ने पड़ोसियों से बात की तो उन्होंने बताया कि उन्होंने गोली की कोई आवाज नहीं सुनी थी. हालांकि मृतक की बीवी ने अपने ही देवर पर रिंकू की हत्या का आरोप लगाया था. लेकिन पुलिस के लिए इस तरह के सबूत तब तक मायने नहीं रखते जब तक पुलिस हत्या से सबंधित कोई तथ्य न जुटा ले. पुलिस ने अपनी काररवाई को आगे बढ़ाते हुए रिंकू की लाश पोस्टमार्टम हेतु जिला अस्पताल भिजवा दी. लेकिन पोस्टमार्टम होने से पहले ही मृतक के ससुराल वालों ने पोस्टमार्टम का विरोध करते हुए हंगामा करना शुरू कर दिया.

उन का कहना था कि पहले इस हत्या केस का खुलासा करो, बाद में पोस्टमार्टम कराना. पुलिस के काफी समझाने के बाद भी वे लोग मानने को तैयार नहीं हुए थे. रिंकू के ससुराल वाले उस के छोटे भाई समेत अन्य कई रिश्तेदारों पर उस की मां के एक्सीडेंट क्लेम के रुपए हड़पने के लिए हत्या का आरोप लगा रहे थे. तफ्तीश में जुटी पुलिस इस मामले में रिंकू ने कोर्ट के माध्यम से 22 फरवरी, 2020 को रुद्रपुर कोतवाली में अपने छोटे भाई विपिन के खिलाफ धोखाधड़ी का केस दर्ज कराया था. यह बात पुलिस के संज्ञान में थी. उन्हीं तथ्यों के आधार पर पहली मार्च को निशा यादव की ओर से देवर विपिन यादव, सचिन यादव और दीपक यादव के खिलाफ कोतवाली में रिंकू की हत्या की नामजद रिपोर्ट दर्ज कर ली गई.

मुकदमा भादंवि की धारा 302 के तहत दर्ज किया गया. पुलिस ने इस केस की तहकीकात शुरू करते हुए सर्विलांस की मदद से रिंकू के घर के आसपास लगे सीसीटीवी कैमरे खंगालने शुरू कर दिए. उसी दौरान पुलिस ने रिंकू के घर के पास स्थित दुकानदार पुष्पेंद्र से पूछताछ की तो उस ने बताया कि 28 फरवरी की शाम रिंकू उस की दुकान से सिगरेट लेने आया था. उस वक्त उस के साथ 3 अन्य लोग भी थे, जिन्हें वह नहीं जानता. इस बात की जानकारी मिलते ही पुलिस ने रिंकू के मोबाइल की कालडिटेल्स खंगाली, जिस से पता चला कि उस वक्त उस की पत्नी ने ही उस से बात की थी.

पुलिस ने निशा से पूछताछ की तो निशा ने अपनी सफाई देते हुए अपनी तरफ से अपने 2 गवाह पेश कर के साबित करने की कोशिश की कि उस के भाई और बहन ने विपिन और उस के साथियों को घर से तमंचा ले कर भागते हुए देखा था. पुलिस ने उस के भाई और बहन के बारे में जांचपड़ताल की तो पता चला कि उस के भाईबहन भदईपुरा में रहते ही नहीं तो उन्होंने उन को भागते हुए कैसे देख लिया. निशा का बिछाया यही जाल उस के लिए जी का जंजाल बन गया. पुलिस को संदेह हो गया कि जरूर रिंकू की हत्या करने में निशा की ही भूमिका रही होगी.

हालांकि पुलिस ने इस केस को पारिवारिक विवाद से जोड़ कर 2 संदिग्धों को हिरासत में ले कर पूछताछ भी शुरू कर दी थी, लेकिन जब पुलिस को निशा ही संदिग्ध लगी तो पुलिस ने उसे भी पूछताछ के लिए हिरासत में ले लिया. निशा को हिरासत में ले कर पुलिस ने उस की कालडिटेल्स निकाली तो उस के नंबर पर सब से ज्यादा बात भदईपुरा निवासी उस के पड़ोसी अभिषेक यादव से होती पाई गई. 28 फरवरी, 2021 को भी निशा और अभिषेक यादव के बीच कई बार बात हुई थी. पुलिस ने निशा से कड़ी पूछताछ की तो वह पुलिस के दांवपेंच में फंसती चली गई. आखिरकार उस ने स्वीकार कर लिया कि उस ने ही अभिषेक से मिल कर अपने पति की हत्या कराई है.

उस ने पुलिस को बताया कि अभिषेक यादव और उस के बीच काफी समय से अवैध संबंध थे. इस बात का शक उस के पति रिंकू को हो गया था. उस ने एक दिन हम दोनों को रंगेहाथों घर में ही पकड़ लिया था, जिस के बाद उस का पति से मनमुटाव हो गया था. उसी मनमुटाव के चलते उस ने अभिषेक से मिल कर उस की हत्या करा दी. नाजायज फायदा उठाया उस के बाद उस ने अपने पारिवारिक संबंधों का नाजायज फायदा उठाते हुए इस केस में अपने ही परिवार वालों को घसीटने की कोशिश की. निशा तेजतर्रार महिला थी. उस ने रिंकू के साथ कोर्टमैरिज की थी. रिंकू से कोर्टमैरिज करने के बाद उस ने रिंकू को कैसे अपनी अंगुलियों के इशारे पर नचाया, यह रोमांचक कहानी है.

रुद्रपुर, ऊधमसिंह नगर से लगभग एक किलोमीटर दूर किच्छा मार्ग पर एक कालोनी है भदईपुरा. इसी कालोनी में भान सिंह यादव का परिवार रहता था. भान सिंह के 4 बेटे थे. समय के साथ चारों बेटे जवान हुए तो वे भी कामों में अपने पिता का सहयोग करने लगे. चारों बेटों ने मिलजुल कर काम करना शुरू किया तो भान सिंह के परिवार की स्थिति इतनी मजबूत हो गई कि उसी कमाई के सहारे उस ने मकान भी बनवा लिया. भान सिंह ने समय से 2 बेटों की शादी कर दी थी. रिंकू तीसरे नंबर का था. रिंकू ने किसी फोटोग्राफर के यहां रह कर फोटोग्राफी का काम सीखा और वह शादीविवाह में फोटोशूट का काम करने लगा. उसी दौरान किसी बीमारी के चलते भान सिंह की मृत्यु हो गई.

भान सिंह के निधन से घर की जिम्मेदारी चारों बेटों पर आ गई. चारों बेटे पहले की तरह ही एकमत हो कर घर की सारी जिम्मेदारी निभाते रहे. रिंकू भी शादी लायक हो गया था. रिंकू फोटोग्राफी का काम करता था, इसलिए उसे अकसर बाहर रहना पड़ता था. अब से करीब 8 साल पहले रिंकू दिल्ली में किसी शादी में फोटोशूट के लिए गया हुआ था. उसी दौरान उस की मुलाकात निशा से हुई. निशा देखनेभालने में ठीकठाक थी. शादी में फोटोशूट के दौरान वह रिंकू से इंप्रैस हुई तो उस ने रिंकू का फोन नंबर ले लिया. उस शादी के बाद रिंकू अपने घर आ गया. रिंकू के घर आने के एकदो दिन बाद ही रिंकू के पास निशा के फोन आने लगे.

फोन पर बात होने के दौरान ही निशा ने बताया कि हल्द्वानी और रुद्रपुर में उस की बहनें रहती हैं. वह उन के घर भी आतीजाती है. समय गुजरते निशा और रिंकू के बीच प्रेम अंकुरित हुआ और दोनों ही एकदूसरे के साथ जिंदगी बिताने के सपने देखने लगे. उस दौरान निशा कई बार अपनी बहन के घर आई तो उस ने रिंकू को मिलने के लिए अपनी बहन के घर बुलाया. उसी दौरान रिंकू के परिवार वालों को भी पता चल गया था कि वह निशा नाम की किसी लड़की से प्यार करता है. उस के परिवार वालों ने उसे समझाने की कोशिश की कि शादी के मामले इतने आसान नहीं होते. ऐसे मौके इंसान की जिंदगी में बारबार नहीं आते.

किसी की लड़की घर में लाने से पहले उस के परिवार के बारे में जानकारी जुटाना बहुत जरूरी होता है. लेकिन रिंकू अपने परिवार वालों की एक भी बात मानने को तैयार न था. वह निशा के प्यार में इस कदर पागल हो चुका था कि किसी भी कीमत पर उसे छोड़ने को तैयार न था. परिवार के इसी विरोध के चलते रिंकू ने परिवार वालों को बिना बताए निशा से कोर्टमैरिज कर ली. निशा से शादी कर के रिंकू ने शहर में ही उसे किराए का एक कमरा दिला दिया. वह भी उसी के साथ रहने लगा. जब घर वालों को उस की हकीकत पता चली तो उन्होंने उस की मजबूरी समझ कर निशा को घर लाने को कहा. ससुराल में शुरू की कलह निशा रिंकू के घर वालों के रहमोकरम पर बहू बन कर परिवार के बीच रहने लगी. शादी के कुछ समय बाद तक निशा ठीकठाक रही. लेकिन कुछ ही दिनों में उस का व्यवहार बदलने लगा.

वह रिंकू के घर वालों के साथ गलत व्यवहार करने लगी. उस के घर वाले उसे बोझ लगने लगे. जिस के चलते वह रिंकू पर घर वालों से अलग रहने का दबाव बनाने लगी. यहां तक वह परिवार वालों का खाना बनाने के लिए भी तैयार नहीं थी. रिंकू का छोटा भाई विपिन उस वक्त कुंवारा था. घर में आई बहू की हालत देख उस के घर वालों ने अपने छोटे बेटे विपिन की शादी करने का फैसला कर लिया. विपिन की शादी की बात चली तो उस के योग्य एक लड़की मिल गई. विपिन की शादी उत्तर प्रदेश के बिलासपुर कस्बे से हुई. विपिन की शादी होते ही घर में दूसरी बहू आई तो घर वालों को कुछ राहत मिली.

विपिन की शादी होते ही रिंकू अपनी पत्नी निशा को ले कर अलग रहने लगा. खानापीना घर परिवार से अलग बनने लगा, लेकिन रहनसहन उसी घर में था. भाई तो भाई होते हैं लेकिन एक ही छत के नीचे चार बहुओं का रहना किसी मुसीबत से कम नहीं था. यही कारण था कि परिवार में आए दिन किसी न किसी बात पर मनमुटाव होता रहता था. जिस घर में कलह होने लगे तो वहां शांति के लिए कोई जगह नहीं रह जाती. वही इस परिवार में भी हुआ. सन 2017 में रिंकू की मां द्रौपदी अपने 2 बेटों भारत यादव और सुनील यादव के साथ किसी काम से बरेली गई हुई थी. वहां से घर लौटते समय उन की बाइक किसी गाड़ी की चपेट में आ गई, जिस से उन तीनों की मौत हो गई.

घर में एक साथ 3 मौतें हो जाने के कारण रिंकू को जबरदस्त झटका लगा. उस के बावजूद उस ने जैसेतैसे अपने परिवार को संभालने की कोशिश की. दोनों भाइयों की विधवा बीवी और बच्चों की जिम्मेदारी भी उसी ने संभाली. लेकिन यह सब निशा को पसंद नहीं था. निशा शुरू से ही तेजतर्रार थी. पैसे से उसे कुछ ज्यादा ही प्यार था. उसी दौरान निशा को पता चला कि उस की सास द्रौपदी का जीवनबीमा था, जिस का क्लेम उन के नौमिनी को मिलना था. रिंकू के सभी परिवार वाले यह बात जानते थे कि अगर पैसा रिंकू के हाथ में चला गया तो उस की बीवी सारे पैसे पर अपना कब्जा जमा लेगी.

दूसरे रिंकू के घर अभिषेक यादव का बहुत आनाजाना था. अभिषेक यादव आवारा युवक था, जिस का घर में आना उस के परिवार वालों को बिलकुल पसंद नहीं था. अभिषेक का घर आनाजाना रिंकू को भी खलता था. लेकिन निशा को बुरा न लगे, इसलिए वह अपनी जुबान बंद रखता था. रिंकू के भाई विपिन और उस के रिश्तेदारों ने पूरी कोशिश की कि पैसा किसी भी हाल में रिंकू या उस की बीवी के हाथ में न जाने पाए. जब यह जानकारी निशा को हुई तो उस ने घर में बवाल खड़ा कर दिया. पैसे ने भाइयों में डाली फूट अपने भाई की मजबूरी और अपनी भाभी के चरित्र और व्यवहार को देखते हुए विपिन ने एलआईसी से मिलने वाली मां की पौलिसी की रकम अपने खाते में ट्रांसफर करा ली.

यह जानकारी निशा को हुई तो घर में तूफान आ गया. निशा ने घर में जम कर हंगामा किया. उस ने रिंकू का भी जीना हराम कर दिया. वह बातबात पर उस से लड़नेझगड़ने लगी. इस बीच अभिषेक यादव का भी आनाजाना बढ़ गया था, जिस से उस के परिवार वाले बुरी तरह चिढ़ते थे. विपिन के खाते में रुपए जाने के बाद निशा उस से बुरी तरह चिढ़ने लगी थी. उस ने पति रिंकू से साफ शब्दों में कह दिया कि इस घर में या तो मैं और मेरा परिवार रहेगा या फिर विपिन. रिंकू निशा की जिद से परेशान था. उस ने कह दिया कि जैसा तुम चाहोगी वैसा ही होगा. इस तरह निशा ने रिंकू को अपने भाई के सामने खड़ा करा कर दोनों में मनमुटाव करा दिया, साथ ही उस के नाम मां की एलआईसी के रुपए हड़पने का आरोप लगा कर रुद्रपुर कोतवाली में एक एफआईआर भी दर्ज करा दी.

विपिन ने अपने कुछ रिश्तेदारों के सहयोग से पुलिस से मिल कर जैसेतैसे वह मामला निपटाया. इस से विपिन को लगा कि अब उस घर में अपने भाई के साथ रहना उस की सुरक्षा की दृष्टि से ठीक नहीं है. वह अपना घर छोड़ कर अपनी ससुराल बिलासपुर में जा कर रहने लगा. तब से वह वहीं पर रह रहा था. विपिन के घर छोड़ते ही निशा के सारे बंद रास्ते खुल गए. सुबह होते ही रिंकू अपने काम पर निकल जाता. उस के बाद वह अभिषेक को फोन कर के अपने घर बुला लेती थी. रिंकू के अभी 2 ही बच्चे थे, जिन में बड़ी बेटी मानवी 5 वर्ष की थी और उस से छोटा बेटा मानव 3 वर्ष का था. मानवी तो स्कूल जाने लगी थी. लेकिन बेटा अभी छोटा था, जिस से निशा को कोई खास परेशानी नहीं होती थी.

वह रिंकू की अनुपस्थिति का लाभ उठाते हुए आए दिन अभिषेक यादव के साथ मस्ती करती थी. अभिषेक का आनाजाना बढ़ गया तो मोहल्ले वालों को भी अखरने लगा. चलतेचलते यह बात रिंकू के सामने भी जा पहुंची. रिंकू ने निशा को समझाने की कोशिश की. लेकिन निशा ने उलटे उसे ही समझाते हुए कहा कि अभिषेक उस का दूर का रिश्तेदार है. वह उस के घर पर आने पर रोक नहीं लगा सकती. निशा के सामने रिंकू की एक न चली. रिंकू का आए दिन बाहर आनाजाना लगा रहता था. उसी दौरान एक दिन रिंकू ने अभिषेक और निशा को अपने घर में ही आपत्तिजनक स्थिति में रंगेहाथों पकड़ लिया. अभिषेक तो छत की सीढि़यों से पीछे कूद कर भाग गया.

उस रात रिंकू और निशा के बीच खूब गालीगलौज हुई. रिंकू ने निशा को बहुत भलाबुरा कहा. लेकिन निशा को जैसे सांप सूंघ गया था. उस ने रिंकू के सामने माफी मांगते हुए भविष्य में ऐसी गलती न करने की कसम भी खाई. रिंकू जानता था कि बात ज्यादा बढ़ाने से उसी की बेइज्जती होगी, लिहाजा वह सहन कर गया. निशा जानती थी कि अब रिंकू को अभिषेक के बारे में सब कुछ पता चल चुका है, वह आगे किसी भी कीमत पर अभिषेक को सहन नहीं करेगा. उस दिन से अभिषेक काफी दिनों तक उस गली से नहीं गुजरा. लेकिन वह मोबाइल पर हमेशा निशा के संपर्क में रहता था. जब रिंकू कहीं काम से बाहर जाता तो वह घंटों तक अभिषेक से मोबाइल पर बात करती रहती. मोबाइल पर उस ने अभिषेक यादव से कहा कि अगर तुम मुझे सच्चा प्यार करते हो तो मुझे इस नर्क से निकाल कर कहीं दूसरी जगह ले चलो.

लेकिन अभिषेक यादव जानता था कि उस के छोटेछोटे 2 बच्चे हैं, वह उन का क्या करेगा. निशा ने रची साजिश अंतत: निशा ने अभिषेक के साथ मिल कर रिंकू से पीछा छुड़ाने के लिए एक साजिश रच डाली. साजिश के तहत निशा ने अभिषेक को बताया कि वह 28 फरवरी, 2021 को अपनी बहन के घर हल्द्वानी जा रही है. अगर तुम मुझे सच्चा प्यार करते हो तो मेरे आने से पहले रिंकू को दुनिया से विदा कर दो. फिर हम दोनों इसी घर में मौजमस्ती करेंगे. अभिषेक यादव निशा के प्यार में पागल था. वह उसे पाने के लिए कुछ भी करने को तैयार था. वह उस की साजिश का हिस्सा बन गया.

रिंकू की हत्या करने के लिए उस ने अपने दोस्त आकाश यादव, साहिल व सूरज को भी शामिल कर लिया. निशा और अभिषेक यादव ने आकाश को 20 हजार रुपए देने के साथ ही एक तमंचा भी दिला दिया था. योजना के तहत निशा ने अपने भाई को अपने घर बुलाया और 28 फरवरी को वह उस के साथ चली गई. निशा के जाने के बाद रिंकू घर पर अकेला रह गया था. 28 फरवरी की शाम को पूर्व योजनानुसार आकाश यादव उर्फ बांडा निवासी भदईपुरा, साहिल निवासी भूत बंगला ने रिंकू के घर पर पार्टी करने की योजना बनाई, जिस में शराब के साथ मुर्गा भी बनाया गया. पार्टी में तीनों ने रिंकू को ज्यादा शराब पिलाई. उस शाम रिंकू के घर के पास एक शादी भी थी, जिस में डीजे बज रहा था.

डीजे की आवाज में कुछ सुनाई नहीं दे रहा था. देर रात तक चली पार्टी में जब रिंकू बेहोशी की हालत में हो गया तो मौका पाते ही तीनों ने गोली मार कर उस की हत्या कर दी. रिंकू की हत्या करने के बाद उन्होंने उस का मोबाइल भी स्विच्ड औफ कर दिया था. उस के बाद तीनों घर के दरवाजे पर अंदर से ताला लगा कर छत के रास्ते नीचे कूद कर चले गए. रिंकू की हत्या के बाद आकाश ने अभिषेक को बता दिया कि उस का काम हो गया है. उस के आगे का काम स्वयं निशा ने संभाला. योजनानुसार निशा ने इस केस में रिंकू के छोटे भाई विपिन और उस के रिश्तेदारों को फंसाने की योजना बना रखी थी. लेकिन उस का यह दांव चल नहीं सका और वह खुद ही अपने जाल में उलझ गई.

इस केस के खुलते ही पुलिस ने पांचों आरोपियों को कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया. इस हत्याकांड का खुलासा करने वाली टीम में शामिल कोतवाल एन.एन. पंत, एसएसआई सतीश कापड़ी, एसआई पूरनी सिंह, रमपुरा चौकीप्रभारी मनोज जोशी, एसओजी प्रभारी उमेश मलिक, कांस्टेबल प्रकाश भगत और राजेंद्र कश्यप को आईजी ने 5 हजार, एसएसपी ने ढाई हजार रुपए का ईनाम देने की घोषणा की. crime stories in hindi

Crime News : पति के कातिल को पत्नी ने देशी कट्टे से मारी गोली

Crime News : पैसे और दबंगई के नशे में दिलावर सिंह इतना क्रूर और अय्याश हो गया था कि वह किसी को कुछ नहीं समझता था. उसी की पीडि़त बैंक कैशियर मालती ने उस से इस तरह बदला लिया कि…

मालती पुणे शहर में नईनई आई थी. वह भारतीय स्टेट बैंक में एक कैशियर थी. अपने काम के प्रति वह बहुत गंभीर रहती थी. ऐसे में मजाल है कि उस से कोई गलती हो जाए. वह बेहद खूबसूरत थी. जब वह मुसकराती तो लोगों के दिलों पर बिजली सी गिर जाती थी. एक दिन वह सिर झुका  कर बैंक में बैठी अपना काम निपटा रही थी कि एक बुलंद आवाज ने उस का ध्यान तोड़ दिया. एक मोटेतगड़े आदमी ने कहा, ‘‘ऐ लौंडिया, पहले मेरा काम कर.’’ उस आदमी का नाम दिलावर सिंह था. मालती ने देखा कि वह आदमी 2 गनमैन के साथ खड़ा था. उसे देख कर बैंक के सारे कर्मचारी खड़े हो गए.

मैनेजर खुद बाहर आ कर उस से बोला, ‘‘दिलावर सिंहजी, चलिए मेरे चैंबर में चलिए. मैं खुद आप का काम करवा दूंगा.’’

दिलावर सिंह बोला, ‘‘मैनेजर तू अपने केबिन में जा. आज काउंटर से ही काम करवाने का मन हो रहा है. हां तो लौंडिया, मेरे ये 50 लाख रुपए जमा कर दे. तब तक मैं तेरा काम देखता हूं.’’

मालती ने विनम्रतापूर्वक कहा, ‘‘सर, आप के पहले से ये बुजुर्ग महाशय खड़े थे. पहले मैं इन को पेंशन दे दूं.’’

मगर दिलावर ने ममता की इस बात को अपना अपमान समझा, दिलावर सिंह उस बुजुर्ग से बोला, ‘‘क्यों भई बुजुर्ग महाशय के बच्चे, तू मेरे पहले यहां क्यों आया?’’

वह बुजुर्ग डरते हुए बोला, ‘‘नहीं हुजूर आप ही पहले आए थे.’’

मालती दिलावर सिंह के नोट गिनने लगी. उस के काम करने की गति देख कर दिलावर सिंह अवाक रह गया.कंप्यूटर से भी तेज. दिलावर सिंह जब भी बैंक आता तो कैशियर को हर बार 5 सौ का एक नोट ज्यादा देता था. मालती ने वह नोट लौटाते हुए कहा, ‘‘सर, आप का एक 5 सौ का नोट ज्यादा आया है.’’

‘‘लौंडिया, ये तेरे लिए,’’ दिलावर गरजती आवाज में बोला.

‘‘नहीं सर, यह आप के पसीने की कमाई है. इस पर आप का हक है.’’ मालती ने किंचित मुसकराहट के साथ कहा.

दिलावर बोला, ‘‘घर के दरवाजे ठीक तरह से बंद रखा कर.’’ फिर पीछे मुड़ कर वह उस बुजुर्ग से बोला, ‘‘हे बुजुर्ग महाशय, ये 5 सौ रुपए मैडम की तरफ से बख्शीश है, रख लीजिए.’’ यह कह कर दिलावर बगैर रसीद लिए बैंक से चला गया.

मालती ने उस दिन अपमान तो बहुत सहा पर उस के प्रति बैंक के बाकी कर्मचारियों का व्यवहार सामान्य रहा. मालती ने अनुमान लगाया कि वे सब ऐसे अपमानजनक व्यवहार के आदी हो चुके हैं. मालती को दिलावर की चेतावनी समझ में नहीं आई कि खिड़कियां और दरवाजे ठीक से बंद रखा करने का उस का क्या मतलब है. पर बैंक के कर्मचारियों ने मालती को सावधान कर दिया कि वह गुंडा कभी भी तुम्हारे घर आ सकता है. मालती के पति वेटरनरी असिस्टेंट सर्जन थे. मालती ने खाना खाते समय आज की घटना का जिक्र पति से किया. पति दिलावर के आतंक से परिचित था. इसलिए वह तत्काल ही सामान पैक करने लगा. मालती को कुछ समझ में नहीं आया कि ये क्या कर रहे हैं. उस ने पति से पूछा, ‘‘कहां जा रहे हो?’’

उस का पति बोला, ‘‘कहां नहीं जा रहा, बल्कि हम दोनों को आज ही यह शहर छोड़ना होगा.’’

मालती कुछ समझती सी बोली, ‘‘हम कहांकहां से भागेंगे.’’

उस का पति बोला, ‘‘पहले यहां से तो भाग लें. फिर सोचेंगे कि कहांकहां से भागेंगे. मैं उस डौन को जानता हूं. वह एक नंबर का लोलुप है.’’

मालती को भी उस दबंग आदमी की नजरों को देख कर ऐसा ही लगा था. लिहाजा वह भी तैयार होने लगी कि तभी दिलावर सिंह दनदनाता हुआ उस के घर में घुस आया. रात के 9 ही बजे थे. उस के साथ 4 गनमैन थे. इस बार अंदाजा नहीं था कि पहाड़ इतनी जल्दी टूट पड़ेगा. उसने मालती के पति से कहा, ‘‘आउट यू ब्लडी मैन. बैटर इफ यू स्टे आउट.’’

मालती ने सोचा इतना पढ़ालिखा भी इतनी गिरी हरकत कर सकता है. वह गुस्से से बोली, ‘‘स्टिल बैटर इफ यू डू नाट टच मी.’’

दिलावर हंस कर बोला, ‘‘आय हैव कम ओनली टू टीयर यू आफ. उस का पति मालती को बचाने के लिए आगे बढ़ा तो दिलावर बोला, ‘‘मैं हमारा कहना न मानने वाले कुत्तों को जिंदा नहीं छोड़ता.’’ यह कह कर उस ने पिस्टल निकाला और मालती के पति के ऊपर गोली चला दी. गोली लगने के बाद वह वहां से आगे भी नहीं बढ़ पाया और उचक कर वहीं ढेर हो गया. मालती की आंखों में खून उतर आया. वह प्रतिशोध में आगे बढ़ी तो गनमैनों ने उसे पकड़ कर उस के हाथपैर बांध दिए. इस के बाद दिलावर ने मालती को इतने चांटे मारे कि पड़ोसियों को केवल चाटों की आवाज सुनाई देती रही.

पिटतेपिटते वह बेहोश हो गई. कोई बचाने तो क्या उस के यहां झांकने तक नहीं आया.  रात भर वह गुंडा मालती के शरीर को नोचता रहा. वह बेहोश हो गई. रक्त से लथपथ मालती जब सुबह उठी तो वह पथराई आंखों से अपने मृत पति और स्वयं की दुर्गति देखती रही. उस के पास ही एक पत्र पड़ा था. जिस में लिखा था कि पुलिस के पास जाने की हिम्मत मत करना. वह मेरी पुलिस है, सरकार की नहीं. मुझे तुम्हारे पति की मौत पर दुख है. तुम सीधे न्यायालय भी मत जाना. मेरे पास संदेह के कारण बरी होने के कई प्रमाण हैं. दरअसल, न्यायालय में केवल न्यायाधीश ही नहीं होता. पुलिस गवाह और वकील मिल कर पूरा न्यायालय बनाते हैं जबकि न्यायाधीश को गलतफहमी रहती है कि वह न्यायालय है.

तुम्हारे उस मृत पति के पास एक फूल पड़ा है जो बतौर उसे मेरी श्रद्धांजलि है. मैं कल रात को फिर आऊंगा. अब खिड़की दरवाजे बंद करने की जरूरत नहीं है. तुम्हारा प्रेमी दिलावर मालती पति के शव को स्वयं अस्पताल ले कर गई. डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया. चूंकि उस की मौत गोली लगने से हुई थी, इसलिए डाक्टर ने पुलिस को सूचना दे दी. थोड़ी देर में पुलिस अस्पताल पहुंच गई. पुलिस ने मालती के बयान लिए गए. मालती ने बताया कि उस के पति की हत्या दिलावर ने की है. मालती की बात सुन कर कांस्टेबल हंस दिया. पुलिस की औपचारिकताएं पूरी करने के बाद डाक्टर ने पोस्टमार्टम करने के बाद लाश मालती को सौंप दी. इस घटना के बाद मालती शहर में नहीं दिखी.

दिलावर दूसरे दिन पोस्टमार्टम करने वाले डाक्टर से मिला और उस से पोस्टमार्टम के बारे मे पूछा. डाक्टर ने कहा, ‘‘गोली सामने से सीने के बाईं ओर मारी गई थी. कोई पेशेवर हत्यारा था.’’

‘‘वह मैं ही था और तुम्हें कैसे मालूम कि गोली सामने से मारी गई?’’ दिलावर ने पूछा.

‘‘जी सामने कार्बन के ट्रेड मार्क्स थे और प्रवेश का घाव सामने ही था.’’

दिलावर ने पूछा, ‘‘तुम्हें कैसे मालूम कि घाव बून्ड औफ एंट्री सामने ही था?’’

डाक्टर ने जवाब दिया, ‘‘उस के किनारे अंदर की ओर थे.’’

‘‘अच्छा,’’ तो गोली बाहर निकलने का घाव पीछे की ओर होगा क्योंकि वह बड़ा होगा और उस के किनारे फटे होंगे.’’

‘‘हां.’’ डाक्टर ने जवाब दिया.

अब दिलावर ने चैकबुक निकाली उस पर पहले से ही हस्ताक्षर थे. फिर डाक्टर से कहा कि अमाउंट अपनी औकात के अनुसार भर लेना, पर घाव सिर के बाजू में ही चाहिए.

‘‘डाक्टर कैन नाट बी परचेज्ड लाईक दिस.’’ डाक्टर बोला.

दिलावर ने पिस्टल निकाल कर टेबिल पर रखी और पूछा, ‘‘कैन डाक्टर बी परचेज्ड विद दिस?’’

डाक्टर कांपने लगा और दोनों लौटाते हुए बोला, ‘‘आप दोनों रखिए. गोली के अंदर जाने का घाव खोपड़ी के दाहिनी तरफ ही होगा और त्वचा जली हुई होगी.’’

दिलावर गनमैन के साथ बाहर चला गया. सरकार उन्हें तो पिस्टल का लाइसैंस नहीं देती जिन्हें आत्मरक्षा की जरूरत है पर उन्हें दे देती है जो पिस्टल ले कर नाचते हुए वीडियो फेसबुक पर डाल देते हैं. कोई आतंकवादी या सामूहिक बलात्कारी पुलिस एनकांउटर में मारे जाते हैं तो जाने कहां से मानव अधिकार आयोग उन की रक्षा के लिए खड़ा हो जाता है पर कश्मीर घाटी में कश्मीरी पंडितों का नरसंहार हुआ तो मानव अधिकार आयोग कहां छिप कर बैठ गया था, किसी को नहीं मालूम.

दिलावर एक दबंग और प्रभावशाली व्यक्ति था. उस के पास पैसों की कोई कमी नहीं थी, इसलिए उस ने अपने प्रभाव से डाक्टर से भी मालती के पति की पोस्टमार्टम रिपोर्ट बदलवा दी थी. डाक्टर ने सिर में गोली लगने की बात पोस्टमार्टम रिपोर्ट में लिखी थी. जबकि पुलिस ने जो पंचनामा बनाया था, उस में गोली सीने पर बाईं ओर लगने की बात लिखी थी. इस का फायदा दिलावर को न्यायालय में मिला. कोर्ट में पुलिस और पोस्टमार्टम करने वाले डाक्टर की अलगअलग रिपोर्ट देख कर जज भी हैरान रह गया. दिलावर के वकीलों ने कोर्ट में दलील दी कि उन के क्लायंट को रंजिश के चलते इस केस में फंसाया गया है.

उन का इस हत्या से कोई संबंध नहीं है. इस का नतीजा यह हुआ कि सबूतों के अभाव में कोर्ट ने दिलावर को हत्या के इस केस से बरी कर दिया. दिलावर के छूट जाने के बाद मालती को बहुत दुख हुआ. वह पति के हत्यारे को सजा दिलाना चाहती थी, लेकिन दबंगई और पैसों के बूते वह साफ बच गया था. इस के बाद मालती ने तय कर लिया कि भले ही दिलावर कोर्ट से बरी हो गया है लेकिन वह उस का घरबार उजाड़ने वाले दिलावर को वह ऐसी सजा देगी, जिस से वह किसी और की दुनिया उजाड़ने लायक ही न रहे. काफी सोचनेविचारने के बाद आखिर उस ने एक खतरनाक योजना बना ली. इस के लिए उस ने खुद को भी भस्म करने की ठान ली.

इस के बाद वह एक डाक्टर के पास गई और उन से एड्स बीमारी के बारे में जानकारी ली. डाक्टर ने बताया कि एचआईवी एक ह्यूमन इम्यूनोडेफिसिएंसी वायरस है, जो व्यक्ति की रोगों से लड़ने की क्षमता कम करता है. यह व्यक्ति के शारीरिक द्रवों के संपर्क ड्रग्स, यूजर, संक्रमित रक्त या मां से बच्चे को ही फैलता है. एड्स, एचआईवी संक्रमित मरीजों में संक्रमण या कैंसर होने की शृंखला है. संक्रमण के 3 महीने बाद ही रक्त की रिपोर्ट पौजिटिव आती है. बीच का समय ‘विंडो पीरियड’ होता है. अपनी इसी योजना के तहत वह एक दिन सफेद साड़ी पहन कर सरकारी अस्पताल में गई. उस ने एड्स काउंसलर से एड्स पीडि़तों की सूची मांगी.

काउंसलर ने कहा, ‘‘वह लिस्ट तो नहीं दी जा सकती. क्योंकि नाम गुप्त रखे जाते हैं.’’

मालती ने झूठ बोलते हुए कहा, ‘‘मैं एक एनजीओ से हूं और एड्स पीडि़तों के बीच काम करना चाहती हूं.’’

काउंसलर ने पूछा, ‘‘आप को काउंसिलिंग की परिभाषा भी मालूम है?’’

‘‘जी, 2 व्यक्तियों या समूहों के मध्य संवाद, जिस में एक जानने वाला दूसरे के डर एवं गलतफहमियां दूर करता है.’’

उस की बातों से काउंसलर ने संतुष्ट हो कर करीब 400 एचआईवी पौजिटिव पुरुषों की सूची उसे दे दी. काउंसलर ने हाथ मिलाते हुए कहा, ‘‘मैं आप की सेवा भावना से प्रमावित हूं.’’

धन्यवाद दे कर वह युवती बाहर आ गई.

लिस्ट पा कर मालती मन ही मन खुश हुई. इस के बाद मालती ने हर रात एक एड्स पीडि़त के साथ बिताई. फिर 3 महीने बाद उस ने स्वयं का एचआईवी टेस्ट करवाया. रिपोर्ट पौजिटिव आई तो मालती को सीमातीत प्रसन्नता हुई. 3 महीने बाद एक रात को मालती दिलावर के घर पहुंची. दिलावर उसे देख कर अचकचा गया. उस ने कहा, ‘‘इतनी रात को तुम यहां?’’

‘‘जी मेरे पति तो गुजर गए. मैं ने आवेश में अपनी बैंक नौकरी से भी इस्तीफा दे दिया. मैं बदनाम हो गई थी. अब आप का ही सहारा है.’’ वह बोली.

दिलावर खुश हो कर बोला, ‘‘सहारा मजबूत पेड़ का ही लेना चाहिए. महिलाओं की मनमोहक सुंदरता पुरुषों को आकर्षित करती है इसलिए वे खुद को संभाल नहीं पाते. मैं हैरान हूं कि तुम्हारा आकर्षण अभी तक बरकरार है. तुम्हारा स्वागत है.’’

इस तरह मालती दिलावर की प्रेमिका बन कर उस के साथ रहने लगी. उसे रोज रात को दिलावर को शरीर समर्पण करना पड़ता, जिस से उसे अत्यंत प्रसन्नता होती. 3 महीने बाद दिलावर को फ्लू जैसा बुखार आया, जिस से मालती को दिल में अत्यंत प्रसन्नता हुई. वह दिखावे के तौर पर चिंतित हो कर बोली, ‘‘सर, मैं फैमिली डाक्टर को बुला लाऊं?’’‘‘अरे नहीं, सामान्य बुखार और खांसी है. खुदबखुद ठीक हो जाएगा.’’ दिलावर बोला.

‘‘नहींनहीं, मुझे आप की बहुत चिंता रहती है. आप ही तो मेरा सहारा हैं,’’ कहती हुई मालती बाहर चली गई और दिलावर के फैमिली डाक्टर को बुला लाई.

दिलावर के फैमिली डाक्टर शहर के प्रसिद्ध डाक्टर थे. उन्होंने दिलावर का परीक्षण किया और सामान्य दवाइयां लिख दीं. उन्होंने खून की जांच के लिए भी लिख दिया.

‘‘इस की क्या जरूरत थी डाक्टर, यह मालती मेरी ज्यादा ही फिक्र करने लगी है.’’ दिलावर डाक्टर से बोला.

प्रयोगशाला से टैक्नीशियन रक्त का सैंपल लेने आया. उस ने आते ही दिलावर के पैर छुए. फिर इस तरह की भावना दिखाते हुए खून लिया जैसे स्वयं को दर्द हो रहा हो. कुछ देर बाद प्रयोगशाला में मालती का फोन आया, ‘‘हैलो डाक्टर, मैं मालती बोल रही हूं, दिलावर सर की पीए. साहब के कलेक्टेड ब्लड सैंपल का एचआईवी टेस्ट और करना है, वे डाक्टर साहब उन के डर के कारण पर्ची में नहीं लिख पाए. पर उस की रिपोर्ट मुझ को भेजनी है.’’

मालती सामान्य ब्लड रिपोर्ट ले कर डाक्टर के पास पहुंची. डाक्टर ने कहा, ‘‘थोडे़ प्लेटलेट्स कम हैं. पर ओवरआल रिपोर्ट सामान्य ही है.’’

एचआईवी टेस्ट की रिपोर्ट मालती खुद ले आई थी. रिपोर्ट पौजिटिव निकलने पर मालती बहुत खुश हुई. यानी उस का मकसद पूरा हो गया था. फिर वह उसी दिन मालती दिलावर के पास से गायब हो गई. 7 दिन बाद दिलावर को मुंबई से एक पत्र प्राप्त हुआ. उस में लिखा था, ‘कमीने, मैं इस समय मुंबई में हूं. चिट्ठी के साथ ही तेरी एचआईवी की रिपोर्ट है, जो पौजिटिव है. तू मुझ से बदला लेने यहां आ जा. हम दोनों साथ ही साथ मरेंगे. तुझे संक्रमित करने के लिए मुझे खुद संक्रमित होना पड़ा था. तेरे जान की दुश्मन मालती’

पत्र पढ़ कर दिलावर कांपने लगा, उस ने प्रयोगशाला के डाक्टर को बुलाया और उस के गाल पर चांटा मार कर दहाड़ा, ‘‘सूअर के बच्चे, तूने मुझे क्यों नहीं बताया कि मैं एचआईवी पौजिटिव हो गया हूं?’’

डाक्टर ने कांपते हुए कहा, ‘‘आप की पीए मालती मैडम ने कहा था.’’

‘‘निकल यहां से. किसी को यदि मालूम हुआ कि मैं एचआईवी पौजिटिव हूं तो ये देखी है इसे पिस्तौल कहते हैं. इस में से गोली घूमती हुई निकलती है.’’

डाक्टर डरता हुआ चुपचाप बाहर निकल गया.

जब दिलावर का राज सब को मालूम हुआ तो उस के गनमैन उसे छोड़ कर चले गए. दिलावर जब कमजोर हो गया तो शहर में कई नए डौन बन गए. दिलावर मुंबई पहुंचा पर मालती नहीं मिली. लौट कर जब वह घर आया तो उस पर दूसरे गुंडे ने कब्जा कर रखा था. उस ने दिलावर को चिट्ठी दी जो सूरत से आई थी. उस में सूरत का सुंदर वर्णन था. अब दिलावर को टीबी हो गई थी. चिट्ठी के साथ में 2 साधारण क्लास के टिकट थे. 6 महीने में दिलावर हांफने लगा था. उस के साथ कोई नहीं था. उसी के साथी उस के पैसे लूट कर भाग गए थे. उसे चक्कर आने लगा था. वह भारतीय स्टेट बैंक में अपना एकाउंट बंद कराने गया तो उस के आगे एक हृष्टपुष्ट आदमी खड़ा था.

जब दिलावर आगे जाने लगा तो उस ने दिलावर को एक थप्पड़ जड़ दिया. दिलावर करुणा से उन कर्मचारियों को देखने लगा जो पहले उसे देखते ही खड़े हो जाते थे. सब मुसकराने लगे. काउंटर पर जब वह गया तो सामने एक युवती बैठी थी. उसे लगा कि वह मालती जैसी थी.

दिलावर ने हाथ जोड़ कर कहा, ‘‘मैडम, मुझे अपना एकाउंट बंद करवाना है. कृपया मेरी एप्लीकेशन ले लीजिए.’’

वह मालती नहीं थी. बोली, ‘‘सर बैठिए.’’

दिलावर सिर नीचे किए बैठा रहा. वह बोली, ‘‘कहिए, मैं आप के किस काम आ सकती हूं? आप क्यों अपना एकाउंट बंद कराना चाहते हैं? आप को इस के लिए मैनेजर साहब से मिलना पड़ेगा.’’

दिलावर जब मैनेजर से मिलने गया तब उसे बाहर चपरासी ने रोक दिया. उस ने कहा, ‘‘पहले पर्ची दो. उस पर अपना नाम लिखो और मिलने का कारण लिखो.’’

दिलावर ने पर्ची भिजवा दी. मैनेजर ने उसे अंदर बुला लिया. दिलावर ने सोचा कि मैनेजर देखते ही उसे बैठने को कहेगा. पर मैनेजर ने उसे बैठने को नहीं कहा और उपेक्षा से पूछा, ‘‘क्यों दिलावर, तुम्हें एकाउंट क्यों बंद कराना है?’’

दिलावर ने हाथ जोड़ कर कहा, ‘‘हुजूर उस में मात्र 2 हजार रुपए ही बचे हैं. मैं भुखमरी के कगार पर हूं.’’

उस के अनुरोध पर मैनेजर ने उस का एकाउंट बंद करा दिया.

रात को दिलावर जब सो रहा था तो अचानक गाल पर पड़े एक जोरदार थप्पड़ ने उसे जगा दिया. वह हड़बड़ा कर उठा तो सामने मालती खड़ी थी उस के हाथ में एक देशी कट्टा था. वह गुस्से में बोली, ‘‘कमीने पहले पूरा होश में आ जा.’’

दिलावर कांपता हुआ बोला, ‘‘मैडम, मैं होश में आ गया हूं. आप ने मुझे जगा दिया है.’’

‘‘तो सुन…’’ मालती बोली, ‘‘तू इस काबिल नहीं कि पिस्टल की गोली से मारा जाए. देशी कट्टे से मारना भी तेरी इज्जत करना है.’’ ऐसा कह कर उस ने दोनों हाथों में कट्टे ताने और 2 गोलियां उस के सीने में एक साथ दाग दीं. दिलावर की करनी उस के सामने आ गई. Crime News

hindi love story in short : आयशा की कहानी – मरते दम तक पति से किया बेइंतहा प्यार, जानिए कौन था वो

hindi love story in short : तमाम तरह से प्रताडि़त होने के बावजूद आयशा अपने शौहर आरिफ को दिलोजान से मोहब्बत करती थी, लेकिन लालची आरिफ आयशा के बजाय अपनी प्रेमिका को चाहता था. निकाह के एक साल बाद आरिफ ने ऐसे हालात बना दिए कि आयशा को अपनी मौत का वीडियो बनाने के लिए मजबूर होना पड़ा…

अहमदाबाद में साबरमती नदी की उफान मारती लहरों पर अटकी मेरी निगाहों में उस वक्त अतीत के लम्हे एकएक कर चलचित्र की तरह तैर रहे थे. रिवरफ्रंट के किनारे चहलकदमी करने वाले लोगों से बेपरवाह मेरे जेहन में सिर्फ जिंदगी के वे अफसोस भरे लम्हे उभर कर सामने आ रहे थे, जिन के कारण आज मेरी जिंदगी इतने अवसाद में भर चुकी थी कि मैं ने एक जिंदगी का सब से कठिन फैसला ले लिया था. मैं अपने अब्बू लियाकत अली मरकाणी की 2 संतानों में सब से बड़ी थी, मुझ से छोटा एक भाई है. अब्बू पेशे से टेलर मास्टर थे. अब्बू बचपन से ही कहा करते थे कि मेरी आयशा बड़ी टैलेंटेड लड़की है.

अब्बू ज्यादा पढ़लिख नहीं सके थे, लेकिन उन का सपना था कि उन के बच्चे पढ़लिख कर काबिल इंसान बनें और लोग उन्हें उन के बच्चों की शोहरत के कारण जानें. अब्बू ने मुझे पढ़ालिख कर या तो आईएएस बनाने या टीचर बनाने का सपना देखा था. इधर अम्मी ने भी मुझे बचपन से ही घर के हर काम में पारंगत कर दिया था. वे कहा करती थीं कि पराए घर जाना है इसलिए अपने घर की जिम्मेदारियां संभाल कर ही ससुराल की जिम्मेदारियों के लिए तैयार होना पड़ता है. मेरा ख्वाब था कि मैं पीएचडी कर के लेक्चरर या प्रोफैसर बनूं. लेकिन कहते हैं न कि इंसान की किस्मत में जो लिखा हो, होता वही है. मुझे राजस्थान के जालौर से बचपन से ही लगाव था.

क्योंकि यहां शहर के राजेंद्र नगर में मेरे मामू अमरुद्दीन रहा करते थे. बचपन से ही जब भी स्कूल की छुट्टियां होती थीं तो मैं मामू के पास ननिहाल आ जाती थी. मामू भी कहते थे कि आयशा तुझे जालौर से जिस तरह का लगाव है उसे देख कर लगता है तेरी शादी यहीं करानी पडे़गी. बचपन में मामू की कही गई ये बातें एक दिन सच साबित हो जाएंगी, इस का मुझे उस वक्त अहसास नहीं था. बात सन 2017 की है, मैं ने ग्रैजुएशन पूरी कर ली थी. हमेशा गरमियों की छुट्टियों की तरह उस साल भी मैं मामू के घर चली गई थी. लेकिन इस बार एक अलग अहसास ले कर लौटी. इस बार मेरी मुलाकात वहां जालौर के ही रहने वाले आरिफ खान से हुई थी.

पता नहीं, वह कौन सा आकर्षण था कि पहली ही नजर में आरिफ मेरे दिल में उतर गया. उस से मिलने के बाद दिल में अजीब सा अहसास जागा, पहली मुलाकात के बाद जब वापस लौटी तो लगा जैसे कोई ऐसा मुझ से दूर चला गया है, जिस के बिना जीवन अधूरा है. मुझे लगा शायद मैं उसे अपना दिल दे बैठी थी. बस यही कारण था कि आरिफ से मिलनेजुलने का सिलसिला लगातार शुरू हो गया. आरिफ में भी मैं ने खुद से मिलने की वैसी ही तड़प देखी, जैसी मुझ में थी. मिलनेजुलने का सिलसिला शुरू होते ही हम दोनों अपने परिवारों के बारे में भी एकदूसरे को जानकारी देने लगे.

आरिफ अपने पिता बाबू खान के साथ जालौर की एक ग्रेनाइट फैक्ट्री में काम करता था. उस के अपने पुश्तैनी घर के बाहर 2 दुकानें थीं, जो उस ने किराए पर दे रखी थीं. आरिफ ग्रेनाइट फैक्ट्री में सुपरवाइजर के पद पर तैनात था, जबकि उस के पिता कंस्ट्रक्शन कंपनी की देखरेख का काम करते थे. जल्द ही हम दोनों की मुलाकातें प्यार में बदल गईं. आरिफ से बढ़ते प्यार के बारे में अपनी मामीजान को सारी बात बताई तो उन्होंने मामा से आरिफ के बारे में बताया. मामा ने पहले आरिफ से मुलाकात की और उस से जानना चाहा कि क्या वह सचमुच मुझ से प्यार करता है. जब उस ने कहा कि वह मुझ से निकाह करना चाहता है तो मामूजान ने आरिफ के अब्बा व अम्मी से मुलाकात की.

उस के बाद जब सब कुछ ठीक लगा तो मामू ने मेरे अब्बू व अम्मी को आरिफ के बारे में बताया. शादी में बदल गया प्यार मिडिल क्लास फैमिली की तरह बेटी के जवान होते ही मातापिता को बेटी के हाथ पीले करने की फिक्र होने लगती है. मेरे अब्बू  और अम्मी मेरे लिए काबिल शौहर तथा एक भले परिवार की तलाश कर ही रहे थे. मामू ने अब्बू को यह भी बता दिया कि उन्होेंने आरिफ व उस के परिवार के बारे में पता कर लिया है. अच्छा खातापीता और शरीफ परिवार है. अब्बू को भी लगा कि चलो बेटी ननिहाल स्थित अपनी ससुराल में रहेगी तो उन्हें  भी चिंता नहीं रहेगी.

इस के बाद मेरे परिवार ने आरिफ के परिवार वालों से मिल कर आरिफ से मेरे रिश्ते की बात चलानी शुरू की. एकदो मुलाकात व बातचीत के बाद आरिफ से मेरा रिश्ता पक्का हो गया. 6 जुलाई, 2018 को आरिफ से मेरे निकाह की रस्म पूरी हो गई और मैं आयशा आरिफ खान के रूप में नई पहचान ले कर अपने मायके से ससुराल जालौर पहुंच गई. हालांकि शादी में दानदहेज देने की कोई बात तय नहीं हुई थी, लेकिन अब्बा ने शादी में अपनी हैसियत के लिहाज से जरूरत की हर चीज दी. आरिफ की मोहब्बत में निकाह के कुछ दिन कैसे बीत गए, मुझे पता ही नहीं चला.

निकाह के 2 महीने बाद ही मेरी जिंदगी में संघर्ष का एक नया अध्याय शुरू हो गया. 2 महीने के भीतर ही मुझे समझ आने लगा कि निकाह के बाद पहली रात को अपने अंकपाश में लेते हुए आरिफ ने मुझ से ताउम्र मोहब्बत करने और जिंदगी भर साथ निभाने का जो वादा किया था, वह दरअसल एक फरेब था. असल में उस की जिदंगी में पहले से ही एक लड़की थी. बेवफाई आई सामने घर वाली के रूप में मेरे शरीर को भोगने के अलावा मोहब्बत तो आरिफ अपनी उस प्रेमिका से करता था, जिस से अब तक वह चोरीछिपे वाट्सऐप पर चैट और वीडियो काल कर के दिन के कई घंटे बातचीत में बिताता था. निकाह के 2 महीने बाद जब आरिफ के फोन से यह भेद खुला तो मेरे ऊपर तो जैसे पहाड़ ही टूट पड़ा.

आरिफ बेवफा होगा, इस की मुझे तनिक भी उम्मीद नहीं थी. एक औरत कुछ भी बांट सकती है, लेकिन पति का बंटवारा उसे कतई गवारा नहीं. जाहिर था, मैं भी एक औरत होने के नाते इस सोच से अछूती नहीं रही. मैं ने आरिफ की इस बात का विरोध किया कि आखिर मुझ में ऐसी कौन से कमी है, जो वह किसी दूसरी औरत में मेरी उस कमी को तलाश रहा है. उस दिन आरिफ ने जो कहा मेरे लिए वह किसी कहर से कम नहीं था. आरिफ ने मुझे बताया कि वह तो शादी से पहले ही एक लड़की से प्यार करता था, मगर जातपात की ऊंचनीच के कारण परिवार वाले उस से शादी के लिए तैयार नहीं हुए.

उस ने तो बस परिवार की खातिर मुझ से निकाह किया था. यह बात मेरे लिए कितनी पीड़ादायक थी, इस का अहसास दुनिया की हर उस औरत को आसानी से हो सकता है जिस ने अपने पति से दिल की गहराइयों से प्यार किया होगा. यह दुख, दर्द, तकलीफ मेरे लिए असहनीय थी. फिर अकसर ऐसा होने लगा कि आरिफ उस प्रेम कहानी को ले कर मेरे ऊपर हाथ छोड़ने लगा. इतना ही नहीं, अब तो वह चोरीछिपे नहीं मेरी मौजूदगी में ही अपनी प्रेमिका से वीडियो काल तक करने लगा था. आंखों से आंसू और दिल में दर्द लिए मैं सब कुछ तड़प कर सह जाती थी.

आरिफ की कमाई के साधन तो सीमित थे, लेकिन उस की आशिकी के कारण उस के खर्चे बेहिसाब थे. इसलिए जब भी उसे पैसे की जरूरत होती तो वह मुझे जरूरत बता कर दबाव बनाता कि मैं अपने अब्बू से पैसे मंगा कर दूं. जिंदगी में पति के साथ दूरियां तो बन ही चुकी थीं, सोचा कि चलो इस से ही आरिफ के साथ संबध सुधर जाएंगे. एकदो बार मैं ने 10-20 हजार मंगा कर आरिफ को दे दिए. लेकिन पता चला कि ये पैसा आरिफ ने अपनी महबूबा के साथ अय्याशियों के लिए मंगाया था. कुछ समय बाद ऐसा होने लगा कि आरिफ ने मुझे एकएक पाई के लिए तरसाना शुरू कर दिया और अपनी सारी कमाई आशिकी में लुटाने लगा. पैसे की कमी होती तो मुझ पर अब्बू से पैसा लाने का दबाव बनाता.

आखिर मैं भी एक साधारण परिवार की लड़की थी, लिहाजा मैं ने कह दिया कि अब मैं अब्बू से कोई पैसा मंगा कर नहीं दूंगी. दरअसल, मैं इतना सब होने के बाद खामोश थी तो इसलिए कि मैं अपने गरीब मातापिता की इज्जत बचाना चाहती थी. पति से मिलने वाले दर्द को छिपाते हुए मैं हर पल एक नई तकलीफ से गुजरती थी, लेकिन इस के बावजूद सहती रही. मेरा दर्द सिर्फ इतना नहीं था. एक बार आरिफ मुझे अहमदाबाद मेरे मायके छोड़ गया. मैं उस समय प्रैग्नेंट थी. आरिफ ने कहा था कि जब मेरे अब्बू डेढ़ लाख रुपए दे देंगे तो वह मुझे अपने साथ ले जाएगा. अचानक इस हाल में मायके आ जाने और आरिफ की शर्त के बाद मुझे परिवार को अपना सारा दर्द बताना पड़ा.

प्रैग्नेंसी के दौरान एक बार आरिफ ने मेरी पिटाई की थी. उसी के बाद से मुझे लगातार ब्लीडिंग होने लगी थी. मायके आने के बाद अब्बू ने मुझे हौस्पिटल में भरती कराया. तब डाक्टर ने तुरंत सर्जरी की जरूरत बताई, लेकिन गर्भ में पल रहे मेरे बच्चे को नहीं बचाया जा सका. इस के बाद जिंदगी में पूरी तरह अवसाद भर चुका था. प्रैग्नेंसी के दौरान आरिफ के बर्ताव से मैं बुरी तरह टूट गई थी. लेकिन ऐसे में अम्मीअब्बू ने मुझे सहारा दिया और मेरा मनोबल बढ़ा कर कहने लगे कि अगर आरिफ नालायक है तो इस के लिए मैं क्यों अपने को जिम्मेदार मान रही हूं.

लेकिन मेरी पीड़ा इस से कहीं ज्यादा इस बात पर थी कि इतना सब हो जाने पर भी आरिफ और उस के परिवार वाले मुझे देखने तक नहीं आए. मुझे लगने लगा कि आरिफ और उस के परिवार के लिए शायद पैसा ही सब कुछ है. वे यही रट लगाए रहे कि जब तक पैसा नहीं मिलेगा, मुझे अपने साथ नहीं ले जाएंगे. मैं या अब्बूअम्मी जब भी आरिफ या उस के परिवार वालों से बात कर के ले जाने के लिए कहते तो वे फोन काट देते. निकाह के बाद दहेज के लिए किसी लड़की की जिंदगी नर्क कैसे बनती है, मैं इस का जीताजागता उदाहरण बन चुकी थी.

सब कुछ असहनीय था मैं थक चुकी थी. मैं ने परिवार वालों को कुछ नहीं बताया. लेकिन मेरे बच्चे की मौत और आरिफ का मुझ से मुंह मोड़ लेना असहनीय हो गया था. लिहाजा थकहार कर 21 अगस्त, 2020 को मैं ने अब्बू के साथ जा कर अहमदाबाद के वटवा थाने में आरिफ और अपने सासससुर तथा ननद के खिलाफ दहेज की मांग तथा घरेलू हिंसा का मुकदमा दर्ज करा दिया. 10 मार्च, 2020 से आरिफ जब से मुझे अब्बू के घर छोड़ कर गया था, तब से मुझे लगने लगा था कि मैं अपने गरीब परिवार पर बोझ बन चुकी हूं. इसलिए मैं ने अहमदाबाद के रिलीफ रोड पर स्थित एसवी कौमर्स कालेज में इकोनौमिक्स से प्राइवेट एमए की पढ़ाई शुरू कर दी और एक निजी बैंक में नौकरी करने लगी.

जिंदगी चल रही थी, गुजर रही थी लेकिन न जाने क्यों मुझे लगने लगा था कि जिदंगी पराई हो गई है. मैं अब भी अपना परिवार जोड़ना चाहती थी. मुकदमा दर्ज होने के बाद भी मैं आरिफ को समझाती रही कि अगर वह मुझे अपना लेगा तो अब्बू से कह कर सब ठीक करा दूंगी. मैं हर तरीके से अपने परिवार को वापस जोड़ने की कोशिश कर रही थी. लेकिन आरिफ मेरी हर बात को बारबार नकारता रहा. 22 फरवरी, 2021 को मैं ने आरिफ से आखिरी बार फोन पर बात की थी. लेकिन आरिफ ने उस दिन जो कुछ कहा, उस ने मुझे भीतर से तोड़ दिया. उस ने कहा कि वह मर भी जाए तो भी मुझे ले कर नहीं जाएगा.

मैं ने आरिफ से कहा कि अगर वह ले कर नहीं जाएगा तो मैं जान दे दूंगी. इस पर आरिफ ने कहा अगर मरना है तो मर जाए, लेकिन मरने से पहले वीडियो बना कर भेज दे. मैं ने भी वादा कर लिया कि ठीक है, मरूंगी जरूर और वीडियो भी भेजूंगी. उसी दिन से मन जिंदगी के प्रति निराशा से भर गया था. 25 फरवरी को मैं उसी निराशा और हताशा में मन की शांति के लिए साबरमती रिवरफ्रंट पर जा पहुंची. यहीं पर बैठेबैठे अतीत के पन्नों  को पढ़ते हुए हताशा ने मुझे एक बार फिर इस तरह घेर लिया कि सोचा जब जीवन खत्म ही करना है तो क्यों न आज ही कर लिया जाए.

वीडियो में उस ने जिक्र किया कि इस मामले में आरिफ को परेशान न किया जाए. मैं आरिफ से प्यार करती थी, इसलिए उस से किया गया वादा पूरा करने के लिए मैं ने एक वीडियो बनाया. आयशा का आखिरी वीडियो ‘हैलो, अस्सलाम आलैकुम, मेरा नाम आयशा आरिफ खान है और मैं अब जो करने जा रही हूं, अपनी मरजी से करने जा रही हूं. मुझ पर कोई दबाव नहीं था. अब मैं क्या बोलूं? बस, यह समझ लीजिए कि अल्लाह द्वारा दी गई जिंदगी इतनी ही है और मेरी यह छोटी सी जिंदगी सुकून वाली थी. डियर डैड आप कब तक लड़ेंगे अपनों से? केस वापस ले लीजिए. नहीं लड़ना.

‘आयशा लड़ाइयों के लिए नहीं बनी. प्यार करते हैं आरिफ से, उसे परेशान थोड़े ही न करेंगे. अगर उसे आजादी चाहिए तो ठीक है वो आजाद रहे. चलो, अपनी जिंदगी तो यहीं तक है.

‘मैं खुश हूं कि मैं अल्लाह से मिलूंगी और पूछूंगी कि मुझ से गलती कहां हो गई. मां बाप बहुत अच्छे मिले, दोस्त भी बहुत अच्छे मिले, पर शायद कहीं कमी रह गई मुझ में या फिर तकदीर में. मैं खुश हूं सुकून से जाना चाहती हूं, अल्लाह से दुआ करती हूं कि वो दोबारा इंसानों की शक्ल न दिखाए.

‘एक चीज जरूर सीखी है मोहब्बत करो तो दोतरफा करो, एकतरफा में कुछ हासिल नहीं है. कुछ मोहब्बत तो निकाह के बाद भी अधूरी रहती हैं. इस प्यारी सी नदी से प्रेम करती हूं कि ये मुझे अपने आप में समा ले.

‘मेरे पीछे जो भी हो प्लीज ज्यादा बखेड़ा खड़ा मत करना, मैं हवाओं की तरह हूं, सिर्फ बहना चाहती हूं. मैं खुश हूं आज के दिन, मुझे जिन सवालों के जवाब चाहिए थे वो मिल गए, जिसे जो बताना चाहती थी सच्चाई बता चुकी हूं. बस इतना काफी है. मुझे दुआओं में याद रखना. थैंक यू, अलविदा.’

आरिफ से मेरा यही वादा था, इसलिए इस वीडियो को मैं ने आरिफ और उस के परिवार वालों को सेंड कर दिया है ताकि उस को समझ आ जाए कि मैं वाकई उस से सच्ची मोहब्बत करती थी और मरने के बाद भी उसे किसी पचडे़ में नहीं फंसाना चाहती. इस वीडियो संदेश को आरिफ को भेजने के बाद मैं ने अपने अब्बू व अम्मी से बात की. उन्हेंबता दिया कि मैं साबरमती के किनारे खड़ी हूं और मरने जा रही हूं.

हालांकि अब्बू  ने खूब मन्नतें की कि कोई गलत कदम न उठाऊं. लेकिन मैं ने खुद की जिंदगी खत्म  करने का फैसला ले लिया था. मरने से पहले भी आरिफ के लिए मेरा प्यार कम नहीं हुआ था इसीलिए मैं ने अब्बू से कहा कि वे आरिफ और उस के खिलाफ दर्ज मामले को वापस ले लें. मैं ने साबरमती के किनारे खड़े हो कर अपने इस फोन और बैग को किनारे रखा और साबरमती के सामने अपनी बांहें फैला दीं और उस के बाद मैं ने अपना भार साबरमती पर छोड़ दिया. hindi love story in short

 

hindi stories love : टीचर के प्यार में स्टूडेंट ने फांसी लगाकर दे दी जान

hindi stories love : आराधना एक्का ओम की टीचर थी, गुरु शिष्य का नाता था दोनों में. लेकिन अराधना ने ओम को शिष्य नहीं बल्कि एक नवयुवक समझ कर पेंच लड़ाए और इस स्थिति तक पहुंचा दिया कि एक अभागिन मां के एकलौते बेटे को…

इसी साल 18 मार्च की बात है. शाम का समय था. करीब 6-साढ़े 6 बज रहे थे. छत्तीसगढ़ के शहर बिलासपुर में रहने वाली सरिता श्रीवास्तव मंदिर जाने की तैयारी कर रही थीं. बेटा ओम प्रखर घर पर अपने कमरे में पढ़ रहा था. इसी दौरान डोर बेल बजी. सरिता ने बाहर आ कर गेट खोला. गेट पर 25-30 साल की एक युवती खड़ी थी.

सरिता ने युवती की ओर देख कर सवाल किया, ‘‘हां जी, बताओ क्या काम है?’’

युवती ने अपने दोनों हाथ जोड़ कर सरिता से कहा, ‘‘मैम नमस्ते. ओम घर पर है क्या?’’

‘‘हां, ओम घर पर ही है.’’ सरिता ने युवती को जवाब दे कर सवाल किया, ‘‘आप को उस से क्या काम है?’’

‘‘मैम, मेरा नाम आराधना एक्का है. मैं ओम के स्कूल में टीचर हूं. इधर से जा रही थी, तो सोचा ओम से मिलती चलूं.’’ युवती ने बताया.

बेटे की टीचर होने की बात जान कर सरिता ने आराधना को अंदर बुलाते हुए ओम को आवाज दे कर कहा, ‘‘ओम, आप की मैम मिलने आई हैं.’’

ओम बाहर आया, तो टीचर उसे देख कर मुसकरा दी. सरिता को मंदिर जाने को देर हो रही थी. इसलिए उन्होंने ओम से कहा, ‘‘ओम, अपनी टीचर को चायपानी पिलाओ. मुझे मंदिर के लिए देर हो रही है.’’

‘‘ठीक है मम्मी, आप मंदिर जाइए.’’ ओम ने मम्मी को आश्वस्त किया और अपनी टीचर से कहा, ‘‘मैम, आ जाओ, कमरे में बैठते हैं.’’

‘‘हां बेटे, तुम बातें करो. मैं मंदिर हो कर आती हूं.’’ कह कर सरिता घर से निकल गईं.

मंदिर सरिता के घर से दूर था. जब वह मंदिर से घर लौटीं, तो रात के करीब 8 बज गए थे. घर का गेट खुला देख कर सरिता को थोड़ा ताज्जुब हुआ, ओम की लापरवाही पर खीझ भी हुई. वह ओम को आवाज देती हुई घर में घुसीं. ओम का जवाब नहीं आने पर उन्होंने कमरे में जा कर देखा, तो उन के मुंह से चीख निकल गई. ओम अपने कमरे में पंखे के हुक से लटक रहा था. सरिता पढ़ीलिखी हैं. वह निजी स्कूल चलाती हैं. अपने 16-17 साल के बेटे ओम को फंदे पर लटका देख कर वह कुछ समझ नहीं पाईं. उन्होंने रोते हुए तुरंत घर से बाहर आ कर जोर से आवाज दे कर पड़ोसियों को बुलाया.

पड़ोसियों की मदद से पंखे से लटके ओम को नीचे उतारा गया. ओम को फंदे से उतार कर उस की नब्ज देखी, तो सांस चलती हुई नजर आई. सरिता पड़ोसियों की मदद से बेटे को तुरंत बिलासपुर के अपोलो हौस्पिटल ले गईं. डाक्टरों ने बच्चे की जांचपड़ताल करने के बाद उसे मृत घोषित कर दिया. अस्पताल वालों ने इस की सूचना तोरवा थाना पुलिस को दी. मामला सुसाइड का था, इसलिए पुलिस अस्पताल पहुंच गई. पुलिस ने सरिता से पूछताछ के बाद ओम का शव पोस्टमार्टम के लिए अपने कब्जे में ले लिया. इस के बाद पुलिस देवरीखुर्द हाउसिंग बोर्ड इलाके में सरिता के घर पहुंची. उस समय तक रात के करीब 10 बज गए थे. इसलिए पुलिस ने वह कमरा सील कर दिया, जिस में ओम ने फांसी लगाई थी.

दूसरे दिन तोरवा थाना पुलिस ने ओम के शव का पोस्टमार्टम कराया. एक पुलिस टीम ने सरिता के मकान पर पहुंच कर ओम के कमरे की जांचपड़ताल की. कमरे में पुलिस को ओम का मोबाइल स्टैंड पर लगा हुआ मिला. मोबाइल का डिजिटल कैमरा चालू था. पुलिस ने मोबाइल की जांच की, तो उस में ओम के फांसी लगाने का पूरा वीडियो मिला. ओम ने अपना मोबाइल स्टैंड पर इस तरह सेट किया था कि उस के फांसी लगाने की प्रत्येक गतिविधि कैमरे में कैद हो गई थी. पुलिस ने मोबाइल जब्त कर लिया. पुलिस ने ओम की किताब, कौपियां भी देखीं, लेकिन कोई सुसाइड नोट नहीं मिला. उस के कमरे से दूसरी कोई संदिग्ध चीज भी नहीं मिली.

पुलिस ने सरिता श्रीवास्तव से ओम के फांसी लगाने के कारणों के बारे में पूछा, लेकिन उन्हें कुछ पता ही नहीं था, तो वे क्या बतातीं. उन्होंने मंदिर जाने से पहले ओम की टीचर आराधना के घर आने और मंदिर से वापस घर आने तक का सारा वाकया पुलिस को बता दिया. लेकिन इस से ओम के आत्महत्या करने के कारणों का पता नहीं चला. तोरवा थाना पुलिस ने ओम की आत्महत्या का मामला दर्ज कर लिया. जब्त किए उस के मोबाइल पर कुछ चीजों में लौक लगा हुआ था. मोबाइल का लौक खुलवाने के लिए उसे साइबर सेल में भेज दिया गया. पुलिस जांचपड़ताल में जुट गई, लेकिन यह बात समझ नहीं आ रही थी कि ओम ने सुसाइड क्यों किया और सुसाइड का वीडियो क्यों बनाया?

ओम प्रखर एक निजी स्कूल में 12वीं कक्षा में पढ़ता था. इस के साथ ही एक इंस्टीट्यूट में कोचिंग भी कर रहा था. ओम सरिता का एकलौता बेटा था. पति सुनील कुमार से अनबन होने के कारण सरिता बेटे के साथ घर में अकेली रहती थीं. सरिता परिजात स्कूल की प्राचार्य थीं. यह स्कूल वह खुद चलाती थीं. पुलिस ओम के सुसाइड मामले की जांचपड़ताल कर रही थी, इसी बीच उस के कुछ दोस्तों के मोबाइल पर डिजिटल फौर्मेट में कुछ सुसाइट नोट पहुंचे. पता चलने पर पुलिस ने ये सुसाइड नोट जब्त कर लिए. इन सुसाइड नोट में ओम ने कई तरह की बातें लिखी थीं, जिन में वह जीने की इच्छा जाहिर कर रहा था और अपने व अपनों के लिए कुछ करने की बात भी कह रहा था.

सुसाइड नोट में ओम ने किसी लड़की का जिक्र करते हुए लिखा था कि वह उस का मोबाइल नंबर कभी ब्लौक तो कभी अनब्लौक कर देती है. उस ने सुसाइड नोट में अपनी मौत से उसे दर्द पहुंचाने की बात भी लिखी थी. यह सुसाइड नोट सामने आने से पुलिस को यह आभास हो गया कि यह मामला प्रेम प्रसंग का हो सकता है. इसलिए पुलिस ने सुसाइड नोट के आधार पर जांच आगे बढ़ाई. इस दौरान ओम के दोस्तों के पास उस के सुसाइड से जुड़े मैसेज आते रहे. जांच में पता चला कि ओम ने सुसाइड से पहले मोबाइल में 2-3 सुसाइड नोट रिकौर्ड किए थे. इस के अलावा कुछ अन्य मैसेज भी लिखे थे.

ये मैसेज और सुसाइड नोट दोस्तों को अलगअलग समय पर मिलें, इस के लिए उस ने टाइम सेट किया था. टाइम सेट किए जाने के कारण ही ओम के दोस्तों को उस के सुसाइड नोट और मैसेज अलगअलग समय पर मिले. सुसाइड नोट और मैसेज के आधार पर पुलिस ने 23 मार्च को ओम को आत्महत्या के लिए उकसाने और पोक्सो ऐक्ट के तहत मामला दर्ज कर शिक्षिका आराधना एक्का को गिरफ्तार कर लिया. पुलिस की ओर से एकत्र किए सबूतों के आधार पर जो कहानी सामने आई है, वह 16-17 साल के किशोर ओम प्रखर को उस की टीचर आराधना एक्का द्वारा अपने प्रेमजाल में फंसाने और उस का दैहिक शोषण करने की कहानी थी.

30 साल की आराधना एक्का बिलासपुर के सरकंडा इलाके में एक निजी स्कूल में कैमिस्ट्री की टीचर थी. ओम भी इसी स्कूल में 12वीं कक्षा में पढ़ता था. ओम अपनी क्लास का होशियार विद्यार्थी था. पढ़ातेपढ़ाते आराधना का झुकाव ओम की ओर होने लगा. वह गुरुशिष्य का रिश्ता भूल कर ओम को प्यार करने लगी. आराधना ने ओम का मोबाइल नंबर भी ले लिया. वह कभी ओम को क्लास में रोक कर उसे छूती और प्यार भरी बातें करती, तो कभी घर पर बुला लेती. ओम जवानी की दहलीज पर खड़ा था. वह प्रेम प्यार का ज्यादा मतलब तो नहीं समझता था, लेकिन इस उम्र में विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण बढ़ जाना स्वाभाविक है.

आराधना जब उसे छूती और उस के नाजुक अंगों को सहलाती, तो ओम को अच्छा लगता. किशोरवय ओम जल्दी ही अपनी टीचर के प्यार की गिरफ्त में आ गया. आराधना उस का शारीरिक शोषण भी करने लगी. इसी बीच आराधना का अपने स्कूल के एक शिक्षक से प्रेम प्रसंग शुरू हो गया. इस के बाद आराधना ने ओम की तरफ ध्यान देना कम कर दिया. इस से ओम बेचैन रहने लगा. आराधना ने उसे प्यार की ऐसी गिरफ्त में ले लिया था कि ओम को उस के बिना सब कुछ सूनासूना सा लगता था. ओम जब आराधना को फोन करता, तो कई बार वह फोन नहीं उठाती थी. इस पर ओम को कोफ्त होती थी.

ओम ने पता किया, तो मालूम हुआ कि आराधना का एक टीचर से चक्कर चल रहा है. यह बात जान कर ओम परेशान हो उठा. एक दिन आराधना ने ओम को बिलासपुर के एक मौल में बुलाया. ओम वहां गया, तो उस ने बहाने से आराधना का मोबाइल ले लिया. ओेम ने आराधना की आंख बचा कर उस के मोबाइल को हैक कर लिया. इस के बाद आराधना जब भी अपने प्रेमी टीचर से बातें करती या सोशल मीडिया पर कोई मैसेज भेजती, तो सारी बातें ओम को पता चल जातीं. आराधना की बेवफाई की बातें सुन और पढ़ कर ओम ज्यादा परेशान रहने लगा.

18 मार्च को आराधना जब ओम के घर आई, तब उस की मम्मी सरिता श्रीवास्तव मंदिर जा रही थीं. मां के मंदिर जाने के बाद ओम ने आराधना से उस की बेवफाई के बारे में पूछा, तो आराधना ने उसे फटकार दिया और अपनी मनमर्जी की मालिक होने की बात कहते हुए चली गई. आराधना की बातों से किशोरवय ओम के दिल को गहरी ठेस पहुंची. नासमझी में उस ने सुसाइड करने का फैसला कर लिया. उस ने किसी खास ऐप की मदद से कोड लैंग्वेज में कुछ सुसाइड नोट लिखे. एकदो सुसाइड नोट उस ने हिंदी में भी लिखे. ये सुसाइड नोट लिख कर उस ने टाइम सेट कर दिया और अपने दोस्तों को भेज दिए.

इस के बाद घर में अकेले ओम ने एक रस्सी से फांसी का फंदा बनाया और कमरे में लगे पंखे से लटक कर अपनी जीवनलीला समाप्त कर ली. सुसाइड नोट के टाइम सेट किए जाने के कारण ओम के दोस्तों को उस के सुसाइड नोट अलगअलग तय समय पर मिले. दोस्तों को सुसाइड नोट मिलने पर ओम के सुसाइड करने के कारणों का पता चला. पुलिस ने ओम के मोबाइल का लौक खुलवा कर जांचपड़ताल की, तो उस में कोड वर्ड में लिखा सुसाइड नोट मिला. पुलिस ने साइबर विशेषज्ञों की मदद से सुसाइड नोट के कोड वर्ड को डिकोड कराया.

सुसाइड नोट में आराधना के लिए एक जगह लिखा था कि उसे पता था कि मैं बेस्ट हूं लेकिन उस ने मुझे बरबाद कर दिया. मैं जिंदा रहना चाहता हूं, अपने लिए, अपने घर वालों के लिए. जो मुझ से प्यार करते हैं, उन के लिए बहुत कुछ करना चाहता हूं. मैं जिंदगियां बचाना चाहता हूं, लेकिन मुझे कोई नहीं बचा सकता. आराधना की बेवफाई का जिक्र करते हुए ओम ने सुसाइड नोट में लिखा कि वह मुझे अकसर ब्लौक कर देती थी और खुद की जरूरत पड़ने पर अनब्लौक. मैं ने उस से पूछा था कि वास्तविक जीवन में कैसे ब्लौक करोगी?

मैं ने उस से मजाक में यह भी पूछा था कि क्या कोई और मिल गया है, तो उस ने कहा था, क्या मेरा एक साथ 10 के साथ चक्कर चलेगा? फिर बोली थी कि कभी शक मत करना. पहले उस ने मुझे प्यार में फंसाया. फिर जब मुझे गहराई से प्यार हो गया, तो वह मुझे छोड़ने की बात करने लगी. मैं मनाता था, तो मान भी जाती थी. वह मुझे इस्तेमाल करती थी. मैं ने उसे सब कुछ दे दिया. आरोपी टीचर आराधना ने पुलिस से बताया कि ओम ही उसे परेशान करता था. वह कम उम्र का था, इसलिए उस ने कभी उस की शिकायत उस के घर वालों से नहीं की.

पुलिस ने आरोपी टीचर को गिरफ्तार करने के बाद अदालत में पेश किया. अदालत के आदेश पर उसे 24 मार्च को जेल भेज दिया गया. पुलिस ने उस का मोबाइल भी जब्त कर लिया. बहरहाल, आराधना ने अपनी काम इच्छा की पूर्ति के लिए किशोर उम्र के ओम का इस्तेमाल किया. हवस में अंधी आराधना की बेवफाई ने ओम को तोड़ दिया. उस ने सुसाइड कर लिया. बेटे ओम की मौत से सरिता श्रीवास्तव पर दोहरा वज्रपात हुआ. एक तो वह पति से पहले ही अलग रहती थीं. अब बेटे की मौत ने उन की जिंदगी की रहीसही खुशियां भी छीन लीं. hindi stories love

hindi love story : सूटकेस में मिली प्रेमिका

hindi love story : 24 साल की अनन्या निषाद और 22 साल के विशाल साहनी के बीच 5 साल पुराना प्यार था. प्रेमी की खातिर अनन्या अपने पति को भी छोड़ आई थी. अब वह प्रेमी से शादी करने के सपने संजोए थी. इसी बीच 27 फरवरी, 2025 को एक सूटकेस में अनन्या की लाश मिली. आखिर किस ने की उस की हत्या?

प्रेमिका अनन्या द्वारा पति का घर छोड़ कर वापस लौट आने से विशाल बहुत खुश था, लेकिन शादी वाली बात सुन कर पता नहीं क्यों उस ने अजीब सा बरताव अख्तियार कर लिया था. मतलब अभी शादी की इतनी जल्दी क्या है, अभी अपने पैरों पर और मजबूती से खड़ा हो जाऊं, तब शादी करूंगा, ताकि परिवार बढ़े तो उन्हें सुख से पालापोसा जा सके. अनन्या निषाद अपना मायका (बनारस) छोड़ कर जौनपुर आ गई. यहां उस ने पौश इलाका मछलीशहर मोहल्ले में वकील विमलेश का एक कमरा किराए पर ले लिया और अकेली रहने लगी थी.

उस की माली हालत इतनी मजबूत नहीं थी कि घर बैठे जीवन खुशहाली से बिता सके, फिर घर पर अकेली बैठेबैठे बोर भी हो जाती थी. इसलिए उस ने कोई जौब करने का मन बना लिया था. फिर क्या था, मकान मालिक वकील की मदद से इस्टाइल बाजार स्थित एक शौपिंग माल में जौब शुरू कर दी तो उस की माली हालत में सुधार भी होने लगा और अच्छे से समय भी कटने लगा था. रात ड्यूटी से वापस घर लौटने के बाद वह विशाल से घंटों प्यार भरी बातें करती थी. और जल्द शादी करने के लिए उस पर दबाव भी बना रही थी.

विशाल साहनी अपना मन बदल चुका था. दरअसल, जो विशाल अपनी अनन्या से टूट कर अंधा प्यार करता था, उस के दिल में अब वह प्यार नहीं रह गया था. उसे अनन्या अब जूठन लगने लगी थी. दिखावे के लिए वह उस पर जान छिड़कता था, लेकिन भीतर ही भीतर उस से नफरत करने लगा था. विशाल सिर्फ उस के सुंदर और गदराए बदन से प्यार करने लगा था ताकि वह अपनी कामपिपासा की आग को समयसमय पर बुझा सके.

अनन्या विशाल के इस घृणित विचार से नावाकिफ थी. वह तो आज भी उसे समुद्र की गहराइयों जैसे ही प्यार करती थी और विश्वास भी, लेकिन विशाल के मन में क्या चल रहा है, इस से वह अनभिज्ञ थी. इसी साल के फरवरी महीने के पहले सप्ताह में केरल से विशाल बनारस अपने घर आया था. अनन्या का मोबाइल नंबर उस के पास था ही. दोनों फोन पर घंटों मीठीमीठी प्यार भरी बातें करते थे. अनन्या उस से शादी करने की बात कहना नहीं भूलती थी. अनन्या के बारबार शादी करने के दबाव से अब विशाल बुरी तरह परेशान रहने लगा था और अनन्या से जल्द से जल्द छुटकारा पाने के उपाय ढूंढने लगा था. अनन्या एक तरह से उस के गले की हड्डी बन गई थी.

अनन्या नाम की गले की हड्डी से कैसे छुटकारा पाया जाए, इस के लिए वह तरकीबें ढूढने लगा. एक तरकीब उस के मन में खतरनाक रूप ले चुकी थी, वह तरकीब थी अनन्या की मौत. यानी इस से छुटकारा पाने के लिए उसे मरना होगा. प्लान के मुताबिक, 24 फरवरी, 2025 की शाम 4 बजे विशाल बनारस से बस से जौनपुर के लिए चला और रात 8 बजे जौनपुर पहुंच गया. 2 घंटे इधरउधर बिता कर रात 10 बजे अनन्या के कमरे पर पहुंचा. उस ने प्रेमिका अनन्या को फोन पर पहले ही बता दिया था कि वह उस से मिलने जौनपुर आ रहा है.

प्यार से मिलन के जमीं पर पलक पांवड़े बिछाए अनन्या विशाल के आने का बेसब्री से इंतजार करने लगी थी. उस समय वह कितनी खुश थी, यह किसी से बता नहीं सकती थी. आखिरकार इंतजार की घडिय़ां रात 10 बजे तब खत्म हुईं, जब विशाल को अपने सामने खड़ा पाया. उसे देख कर वह फूली नहीं समा रही थी. बहरहाल, अनन्या और विशाल देर रात तक जागते रहे. दोनों ने साथसाथ खाना खाया और फिर सो गए. विशाल को नींद नहीं आ रही थी, क्योंकि उस के मन में  अनन्या को मौत के घाट उतारने की उथलपुथल मची हुई थी, लेकिन रात में बात नहीं बनी तो उस की आंखें कब लग गईं, उसे पता नहीं चला.

रोज की तरह अगली सुबह यानी 25 फरवरी को भी अनन्या अपने नियत समय पर उठ कर तरोताजा हुई और फिर नाश्ता बना कर तैयार कर दिया था. विशाल सुबह 9 बजे के करीब उठा और फ्रेश हो कर दोनों ने एक साथ बैठ नाश्ता किया. फिर अनन्या खाना बनाने किचन में चली गई, क्योंकि उसे ड्यूटी भी तो जाना था. इसी दरमियान अनन्या ने अपनी शादी करने की बात विशाल से फिर छेड़ दी थी. शादी की बात सुन कर वह भीतर ही भीतर जलभुन उठा और गुस्से से लाल हो गया, ”अरे, कर लूंगा शादी. तुम शादी करने के लिए इतना परेशान क्यों रहती हो. अच्छा समय देख कर शादी कर लेंगे. थोड़ा सा हमें और समय दे दो.’’ विशाल ने अनन्या को समझाने की कोशिश की.

”देखो विशाल, हमें तुम धोखा तो नहीं दोगे. मैं ने अपने प्यार के लिए अपनी जिंदगी दांव पर लगा दी है. पति का घर छोड़ा, मम्मीपापा का घर छोड़ा, सिर्फ तुम्हारे लिए. अगर तुम ने मुझे धोखा दिया तो…’’

”…तो क्या कर लोगी. जाओ, नहीं करता शादी.’’

इतना सुनते ही अनन्या का गुस्सा भी सातवें आसमान पर चढ़ गया. उस समय विशाल वहीं किचन के दरवाजे के सामने खड़ा बातें कर रहा था. उस ने आव देखा न ताव, स्लैब पर रखा चावल निकालने वाला पल्टा ले विशाल पर घायल शेरनी की तरह टूट पड़ी. यह देख कुछ पल के लिए विशाल घबरा गया था. पहली बार उस ने अनन्या का यह रूप देखा था. फिर क्या था विशाल और अनन्या के बीच गुत्थमगुत्थी हो गई. अपनी जान बचाने के लिए विशाल ने उस के हाथ से पल्टा छीन लिया और उसी पल्टे से उस के सिर पर कई वार किए. वार इतना जोरदार था कि अनन्या वहीं किचन में कटे वृक्ष की तरह फर्श पर धड़ाम से गिर गई और थोड़ी देर में ही उस की मौत हो गई.

कुछ देर बाद जब विशाल का गुस्सा शांत हुआ तो फर्श पर निढाल पड़ी अनन्या को हिलाडुला कर देखा तो उस के होश उड़ गए. उस की सांसें बंद थीं, यानी वह मर चुकी थी. यह देख कर वह घबरा गया और उस के दिमाग ने काम करना बंद कर दिया. उस की आंखों के सामने जेल की सलाखें दिखने लगी थीं, लेकिन वह जेल नहीं जाना चाहता था. फिर क्या था? किचन में अनन्या की लाश छोड़ कर विशाल दरवाजे पर चिटकनी लगा कर कमरे में लौट आया. कमरे में नजर घुमा कर चारों ओर देखा तो उसे एक कोने में लाल रंग का बड़ा सा सूटकेस दिखाई दिया.

झट से खोल कर उस ने देखा, उस में अनन्या के रोजमर्रा के कपड़े और कुछ सामान था. फटाफट उस ने सूटकेस खाली किया और सारा सामान वहीं फर्श पर उड़ेल दिया. उसी लाल रंग के सूटकेस में उस ने अनन्या की लाश तोड़मरोड़ कर भर दी. लाश ठिकाने लगाने के लिए वह कुछ देख के लिए कमरे पर ताला लगा कर भाड़े का टैंपो लेने चला गया, टैंपो वाले से उस ने यह बताया था कि कुछ भारी सामान है, रिश्तेदार के यहां पहुंचाना है तो टैंपो वाला तैयार हो गया. फिर टैंपो ले कर वह घर पहुंचा. विशाल लाल सूटकेस को कंधे पर लाद कर बाहर ले आया और टैंपो पर लाद दिया.

वहां से वह कोतवाली के वाजिदपुर तिराहे पर उतर गया और भारी सूटकेस को कंधों पर लाद कर कमला हौस्पिटल के सामने स्थित झाडिय़ों में फेंक कर बनारस के लिए बस पकड़ कर चल दिया. सबूत मिटाने के लिए उस ने अनन्या का फोन अपने पास रख लिया था, ताकि ट्रेस कर के पुलिस किसी भी तरह उस तक न पहुंच सके. उस समय सुबह के 10 बज कर 34 मिनट हो रहे थे. अनन्या निषाद की हत्या का विशाल साहनी को काफी दुख था और पश्चाताप भी. अपने पश्चाताप को कम करने के लिए उस ने सिर मुड़वा दिया और गंगा घाट पहुंच कर नदी में डुबकी लगा कर खुद को पापमुक्त होने का अहसास किया.

यही नहीं, सबूत मिटाने के लिए अपने साथ लाए अनन्या के मोबाइल फोन को नदी में प्रवाहित भी कर दिया. फिर आराम से अपने घर बनारस लौट गया. इधर 27 फरवरी, 2025 की सुबह एक राहगीर ने झाड़ी के पास लाल रंग का सूटकेस देखा तो उस का मन चहक उठा और वह यह सोच कर उस ओर बढ़ा था कि उस में शायद माल भरा होगा. यह सोच कर जैसे ही उस ने सूटकेस की थोड़ी सी चेन खोली तो उस में से पैर निकल आया. यह देख कर उस के मुंह से चीख निकल पड़ी और वह उलटे पांव ‘लाश..लाश’ चिल्लाते हुए बाहर भागा. थोड़ी देर में वहां तमाशबीनों की भारी भीड़ जमा हो गई थी, उसी भीड़ में से किसी ने कोतवाली थाने को फोन कर दिया था.

सूटकेस में लाश पाए जाने की सूचना पा कर कोतवाल मिथिलेश मिश्र कुछ पुलिसकर्मियों के साथ मौके पर पहुंच गए. सूटकेस खोल कर देखा तो उस में किसी महिला की लाश थी, जो बुरी तरह सड़ चुकी थी. पहनावे से वह किसी मध्यमवर्गीय परिवार की लग रही थी. मौके पर जमा तमाशबीनों से कोतवाल मिश्रा ने शिनाख्त कराने की कोशिश की, लेकिन उस की शिनाख्त न हो सकी. कोतवाल मिथिलेश मिश्र ने लाश मिलने की सूचना एसपी डा. कौस्तुभ, एएसपी (सिटी) अरविंद वर्मा और ट्रेनी आईपीएस सीओ (सिटी) आयुष श्रीवास्तव को दे दी थी. सूचना पा कर सभी पुलिस अधिकारी थोड़ी देर में मौके पर पहुंच गए थे.

खैर, लाश की शिनाख्त नहीं हुई तो कोतवाल मिथिलेश ने पंचनामा भर कर उसे पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दिया था. इस के अगले दिन यानी 28 फरवरी की सुबह में अनन्या के पेरेंट्स उसे ढंूढते हुए जौनपुर कोतवाली थाने पहुंचे, बेटी की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराने के लिए. दरअसल, बेटी भले ही मायके से दूर रहती थी, पेरेंट्स भले ही उस से नाराज रहते थे, लेकिन मोबाइल पर उस से बातें होती रहती थीं. अनन्या की मम्मी 25 फरवरी से ही बेटी से बात करने के लिए उस के मोबाइल पर काल कर रही थी. हर बार उस का फोन स्विच औफ बता रहा था.

यह देख कर वह बुरी तरह से परेशान थी और पति से यह बात बताई. बेटी का पता लगाने के लिए ही 28 फरवरी को पेरेंट्स बनारस से जौनपुर चले थे. जिस कमरे में रहती थी. मकान मालिक से पूछने पर पता चला कि अनन्या 25 फरवरी से ही नहीं दिख रही थी. उस के कमरे में ताला जड़ा था. किसी अनहोनी को देखते हुए पेरेंट्स कोतवाली पहुंच कर बेटी की गुमशुदगी की सूचना लिखाने पहुंचे थे. कोतवाल मिथिलेश मिश्र ने बीते दिन मिली अज्ञात युवती की लाश की तसवीर उन्हें दिखाई और पहचान करने के लिए कहा. तसवीर देखते ही पेरेंट्स फफकफफक कर रोने लगे. मतलब यह था कि युवती उन की बेटी थी और उस का अनन्या नाम था.

लाश की शिनाख्त हो जाने से कोतवाल मिथिलेश मिश्र ने थोड़ी राहत भरी सांस ली. फिर उन्होंने किसी पर आशंका होने की बात पूछी तो जय कुमार ने बताया 24 फरवरी को जब बेटी से बात हो रही थी तो उस ने गांव के ही विशाल साहनी के वहां आने की जानकारी दी थी. विशाल ने ही कोई कांड किया होगा. यह जानकारी उन्होंने एसपी डा. कौस्तुभ और एएसपी (सिटी) अरविंद वर्मा को दे दी. फिर विस्तार से उन्होंने पूरी बात बताई.

इस के बाद पुलिस विशाल साहनी को गिरफ्तार करने वाराणसी पहुंची और उस के फोन नंबर को सर्विलांस पर भी लगा दिया. पहली मार्च 2025 की सुबह विशाल की लोकेशन जौनपुर जंक्शन पर मिली तो पुलिस की तत्परता से वह गिरफ्तार कर लिया गया. पुलिस पूछताछ में विशाल ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया था. उस की निशानदेही पर किचन से पल्टा भी बरामद कर लिया गया. विशाल से पूछताछ के बाद अनन्या की हत्या की जो स्टोरी सामने आई, इस प्रकार थी—

उत्तर प्रदेश के वाराणसी जिले के मूड़ादेव टिहरी के रहने वाले थे विशाल और अनन्या निषाद के घर थोड़ी दूरी पर विपरीत दिशाओं में थे. चूंकि दोनों एक ही जातिबिरादरी के थे, ऊपर से पट्टीदार भी, इसलिए दोनों परिवार ही एकदूसरे के सुखदुख में एक पैर पर खड़े रहते थे. यहां तक कि शादीब्याह में भी दोनों एकदूसरे की भरपूर मदद करते थे. अनन्या के पिता का नाम जय कुमार निषाद था तो राकेश कुमार साहनी विशाल के पिता थे. दोनों ही अलगअलग प्राइवेट कंपनियों में काम करते थे और बड़े खुशहाल से उन का परिवार चलता था.

जय निषाद के 4 बच्चों में अनन्या निषाद सब से बड़ी थी. राकेश साहनी के 3 बच्चों में विशाल साहनी सब से बड़ा था. फिलहाल, अनन्या विशाल से करीब 2 साल बड़ी थी. बचपन की गलियों में साथसाथ दोनों चले और बड़े हुए. साथसाथ खेले और स्कूल में भी साथसाथ पढ़े. अनन्या ने बचपन की गलियों को छोड़ कर जवानी की दहलीज पर कदम रखा तो इस की सब से पहले खुशबू विशाल तक पहुंची थी. अनन्या ने विशाल की आंखों के रास्ते उस के दिल में मुकाम बना लिया था. उठतेबैठते, हंसतेखेलते, सोतेजागते और दिनरात, हर घड़ी, हर पल अनन्या की तसवीर उस के आंखों के सामने घूमती रहती थी. एक दिन उसे न देखे तो वह बेचैन हो जाता है.

ऐसा नहीं था कि यह आलम एक ओर ही था, बल्कि अनन्या का भी हाल ऐसा ही था. जब से विशाल को देखा था, अपने दिल के कोरे कागज पर उस का सुनहरे अक्षरों में नाम लिख दिया था. विशाल और अनन्या एकदूजे से दिलोजान से प्यार करने लगे थे. लेकिन दोनों अपने प्यार का इजहार करने में झिझक रहे थे. एक दिन विशाल ने अनन्या से जरूरी बात करने के लिए बगीचे में बुलाया. नियत समय पर अनन्या वहां पहुंच गई.

”तुम से कुछ कहना चाहता हूं अनन्या,’’ मीठी सी आवाज अनन्या निषाद के कानों से टकराई तो पलकें नीची झुकाती हुई वह बोली, ”हां, कहो न विशाल, क्या कहना चाहते हो?’’

”अनन्या, जब से मैं ने तुम को देखा है, मेरा दिन का चैन और रातों की नींद उड़ चुकी है. बस, हर घड़ी तुम्हारे बारे में ही ये नादान दिल सोचता रहता है…’’ विशाल ने आगे कहा, ”जैसे तुम्हारे बिना धड़कना भूल जाए. तुम दूर जाती हो तो ये बेचैन हो जाता है. मन परेशान हो जाता है. अपने दिल को कैसे समझाऊं मैं, यही सोचसोच कर हमेशा परेशान रहता हूं.’’

”बस, इतनी सी बात है.’’ मचलती हुई अनन्या बोली, ”मैं ने सोचा कुछ और कहना चाहते हो, तभी तुम ने मुझे यहां बगीचे में बुलाया है. यही बात कहनी थी तो तुम फोन पर भी कह सकते थे, इतनी दूर बुलाने की क्या जरूरत थी.’’ गुस्से में तुनक कर अनन्या बोली.

दरअसल, अनन्या और विशाल के बीच करीब 5 कदम की दूरी रही होगी. आगे अनन्या खड़ी थी तो विशाल उस के पीछे खड़ा था. दोनों अपनेअपने फेमिली वालों की नजरों से बचते हुए गांव के बाहर स्थित इस बगीचे तक पहुंचे थे. विशाल फैसला कर के ही घर से निकला था कि चाहे कुछ भी हो जाए, अनन्या से अपने प्यार का इजहार कर के ही रहेगा. इसीलिए उस ने फोन कर के उसे बगीचे में बुलाया था. अनन्या भी विशाल को अपना दिल दे चुकी थी. वह भी विशाल से सागर की गहराइयों से प्यार करती थी, बस अपने प्यार का इजहार करने से झिझकती थी, जबकि दोनों इस बात से निश्चिंत थे कि दोनों एकदूसरे से प्यार करते हैं.

”नहीं…नहीं…नहीं, ऐसी बात नहीं है अनन्या,’’ विशाल तड़प कर बोला, ”दरअसल, मैं तुम से कुछ और ही कहना चाहता था.’’

”तो कह दो न, किस ने रोका है तुम्हें.’’ अनन्या विशाल की ओर पलटी तो विशाल चौंक कर अनन्या को आश्चर्य से देखने लगा. दिल तो सीने में ऐसे धकड़ रहा था जैसे अभी छलक कर बाहर निकल जाएगा. वह थी कि उस की आंखों में आंखें डाले एकटक देखे जा रही थी.

”ऐसे क्यों देख रही हो?’’ विशाल नर्वस हो कर बोला.

”तुम्हें पढऩे की कोशिश कर रही हूं.’’ अनन्या मासूमियत भरे स्वर में बोली.

”मैं कोई दिलचस्प नावेल थोड़े न हूं, जो मुझे पढऩे की कोशिश कर रही हो.’’

”सो तो मैं देख ही रही हूं, तुम क्या बला हो. बहरहाल, यूं ही बकवास करने के लिए मुझे यहां बुलाए हो तो मैं वापस घर जा रही हूं, तुम यहीं खड़ेखड़े पेड़ के पत्तों को गिनते रहना, समझे.’’

कह कर अनन्या वापस जाने के लिए जैसे ही पलटी कि विशाल तड़प उठा, ”नहीं अनन्या, मुझे छोड़ मत जाओ. मैं तुम्हारे बिना मर जाऊंगा, तुम ही मेरी जिंदगी हो. तुम्हें देख कर मैं जीता हूं, सो प्लीज! मुझे छोड़ कर मत जाओ.’’

”तुम्हारी कोई बात नहीं सुनूंगी, मैं जा रही हूं.’’ अनन्या ने जैसे ही कदम आगे बढ़ाया, तभी उसे दिल को सुकून देने वाला एक शब्द उस के कानों से टकराया.

”आई लव यू, अनन्या.’’

प्रेमी विशाल के मुंह से आई लव यू सुन कर उस के पांव वहीं रुक गए और खुशी के मारे चेहरा खिल उठा और पलट कर मुसकराती दुई दबे पांव उस तक पहुंची, ”एक बार फिर से कहो, क्या कहा तुम ने? मैं ने सुना नहीं.’’ अनन्या ने उसे छेड़ा.

”आई लव यू, अनन्या.’’ अनन्या की गोरी कलाइयां अपने हाथों में थामे उस ने आगे कहा, ”मैं तुम से बहुत प्यार करता हूं अनन्या. तुम्हीं मेरी जिंदगी हो और बंदगी भी. तुम्हारे प्यार के बिना एक पल भी मैं जी नहीं सकता, मर जाऊंगा.’’

”आज तो तुम ने यह कह दिया, फिर दोबारा कभी ये शब्द मत कहना.’’

विशाल की बातें सुन अनन्या तड़प उठी और उस के होंठों पर अपनी अंगुलियां रखती हुई आगे बोली, ”तुम्हारे बिना मैं भी जी नहीं सकती विशाल. आई लव यू वैरी मच. यही सुनने के लिए मेरे कान कब से तरस रहे थे.’’

कह कर अनन्या ने विशाल को अपनी बांहों में भर लिया तो उस ने भी उसे अपनी मजबूत बांहों में कस कर जकड़ लिया. कुछ पल तक दोनों एकदूसरे के साथ आलिंगनबद्ध थे और भावनाओं के सागर में डुबकी लगा रहे थे. लेकिन दोनों ने अपनी मर्यादाओं की सीमा को सुरक्षित रखा था. थोड़ी देर बाद जब भावनाओं की लहरें ठंडी पड़ीं और दोनों एकदूसरे के आगोश से अलग हुए तो उन के चेहरे खिले हुए थे. इस सुनहरे और खूबसूरत पल को दोनों ने यादों के पिंजरे में कैद कर लिया था. अपने प्यार का इजहार कर के दोनों ही फूले नहीं समा रहे थे. फिर वे एकदूसरे को बायबाय कह अपने घरों को वापस चले गए.

अनन्या अपनी मम्मी से सहेली से मिलने का बहाना कर घर से निकली थी. उसे घर से निकल हुए घंटों बीत गए थे. उस की चोरी पकड़ी न जाए, इसलिए वह जल्द से जल्द घर पहुंचना चाहती थी. अनन्या के वापस घर लौटते ही विशाल भी अपने घर को लौट गया था. आखिरकार दोनों ने अपने प्यार का इजहार कर ही दिया. ये बात साल 2019 की है, तब विशाल 17 साल के करीब था और अनन्या निषाद 19 साल की. अनन्या और विशाल साहनी का प्यार खुले आसमान के तले कुलांचे भर रहा था. दोनों अपने प्यार के सुनहरे सपने बुन रहे थे. उन का प्यार 3 सालों तक परदे के पीछे छिपा रहा.

धीरेधीरे दोनों के प्यार के चर्चे फिजाओं में तैरने लगे. गांव वालों से होते हुए यह बात जब अनन्या की फेमिली तक पहुंची तो पेरेंट्स आगबबूला हो उठे. बेटी पर उन्हें यकीन नहीं हो रहा था कि एक दिन वह ऐसा भी गुल खिलाएगी. उस दिन के बाद से अनन्या के पापा जय कुमार ने उस का घर से निकलना बंद कर दिया और पत्नी शीला को सख्त हिदायत देते हुए कहा, ”अनन्या पर कड़ी निगरानी रखो. देखो उस विशाल से चोंच से चोंच मिलाने फिर से न निकल जाए. अगर ऐसा हुआ तो इस की जिम्मेदार तुम होगी और मैं तुम्हें छोडऩे वाला नहीं, समझी तुम.’’ पत्नी पर जय कुमार के मुंह से शब्दों के अंगार निकले थे.

”अब ध्यान रखूंगी, आप बेफिक्र रहिए.’’ अदब के साथ पत्नी शीला ने जबाव दिया, ”जितना नैनमटक्का करना था, कर लिया. मेरे जीते जी फिर विशलवा से नहीं मिल सकती है. फिर मिलने की कोशिश की तो उस की दोनों टांगें तोड़ कर हाथ में दे दूंगी, फिर सारी जिंदगी लंगड़ी बन कर लश्क लड़ाती रहेगी.’’

”यही काम पहले किया होता, उस पर नजर रखी होती तो आज ये दिन देखने नहीं पड़ते. लेकिन तुम्हें तो दिन भर मोबाइल देखने और खाट तोडऩे से फुरसत मिलती तब न बेटी पर ध्यान देती कि वह कब कहां जा रही है, किस से मिल रही है.’’

”देखो अनन्या के पापा, मैं कह देती हूं, नाहक मुझ पर मत भड़को. मैं ने क्या किया है? वो विशाल घर पर आता था, तब आप भी देखते थे. बेटी से मिलता था. बातें करता था तो आप भी सुनते थे, बहरे नहीं थे. फिर क्यों नहीं उसे घर आने से मना किया? आप भी तो बेटी से मिलने से रोक सकते थे, क्यों मना नहीं किया उसे?’’ पति पर जब शीला भड़की तो जय कुमार की घिग्घी बंध गई.

”ठीक है, ठीक है. मैं सोचता हूं कि मुझे क्या करना है, लेकिन उस पर कड़ी नजर रखना, फिर से उस कमीने से मिलने की कोशिश करे तो इस की टांगें तोड़ देना. आगे मैं देख लूंगा.’’

विशाल और अनन्या के प्यार के चर्चे चटखारे ले कर गांव वाले कर रहे थे. गांव मोहल्ले में जय कुमार की खूब बदनामी हो रही थी. जय कुमार ने विशाल के पापा राकेश से साफतौर पर कह दिया था कि वह अपने बेटे को समझा दें कि वह अनन्या से दूर रहे. उस ने यह भी धमकी दी थी कि अगर बेटी से दूर नहीं हुआ और कुछ ऊंचनीच की बात हो गई तो मुझ से बुरा कोई नहीं होगा. इस के लिए मैं किसी भी हद तक जा सकता हूं.

जय कुमार की धमकियों से राकेश बुरी तरह डर गए थे. वह उस के नेचर से भलीभांति परिचित थे. इसलिए जय की बातों को उन्होंने गंभीरता से लिया. राकेश ने बेटे विशाल को समाज के रीतिरिवाजों को घोल कर घुट्टी की तरह पिलाया. उसे नीचऊंच के भेदभाव को समझाया, मगर उस के सिर पर तो अनन्या के प्यार का भूत इस कदर सवार था कि उसे अनन्या के अलावा कुछ भी सूझ नहीं रहा था. पापा ने क्या कहा, क्या समझाया, उस के पल्ले तनिक भी नहीं पड़ा था. बस वह अपने प्यार की धुन में मगन था. राकेश समझ चुके थे कि बेटे के सिर इश्क का भूत सवार है, इसलिए उसे समझाने का कोई मतलब नहीं है. कुछ ऐसा करना होगा, जिस से सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे.

काफी सोचविचार कर राकेश साहनी इस फैसले पर पहुंचे कि बेटे को घर पर रखना ठीक नहीं है. जब यहां नहीं होगा तो अनन्या से कैसे मिलेगा. राकेश साहनी के परिवार के कई लोग केरल में जौब करते थे. उन्होंने भी बेटे विशाल साहनी को वहीं भेजने का फैसला किया और उसे वहां भेज दिया. हालांकि विशाल केरल जाना नहीं चाहता था, लेकिन पेरेंट्स के फैसले के आगे उस की एक न चली. मजबूर हो कर उसे घर से दूर जाना पड़ा था. विशाल केरल चला तो गया था, लेकिन उस का दिल अनन्या के पास ही था. इधर अनन्या विरह की अग्नि में हौलेहौले जल रही थी, उधर विशाल जल बिन मछली की तरह तड़प रहा था.

प्रेमी युगल एकदूजे से मिलने के लिए बेताब थे. अपनी बेताबियां मोबाइल पर बात कर मिटा लेते थे. बहरहाल, जय कुमार इस बात से बेहद खुश था कि बेटी के रास्ते का कांटा विशाल फिलहाल दूर चला गया है. तभी आननफानन में उस ने एक अच्छा सा लड़का ढूढ कर बेटी अनन्या का हाथ पीला कर दिया था. फेमिली वालों के कठोर फैसले के आगे अनन्या की एक न चली थी, लेकिन उस ने अपने फेमिली वालों को कह दिया था, ”विशाल उस के जीवन का पहला और अंतिम युवक है, जिसे वह अपना पति मान चुकी है. उस के बिना जीवन अधूरा है.

आप सभी के जिद के सामने मैं ने शादी कर तो ली है, लेकिन यह शादी अधूरी है. मैं मर जाऊंगी, लेकिन इस अशोक को कभी अपना पति स्वीकार नहीं करूंगी, कभी नहीं.’’ ये बात 2023 की थी. विशाल को जब पता चला कि अनन्या के घर वालों ने उस की जबरन शादी करवा दी है तो यह सुन कर वह आगबबूला हो उठा था, ‘ये कभी नहीं हो सकता है.’

विशाल होंठों में ही बुदबुदाया, ‘मुझे छोड़ कर अनन्या किसी और से शादी कैसे कर सकती है. वह सिर्फ मेरी है, मेरी. किसी ने उसे मुझ से छीनने की कोशिश को तो मैं उस की बची हुई सांसें छीन लूंगा. जान से मार डालूंगा उसे मैं. अनन्या सिर्फ मेरी थी, मेरी है और मेरी ही रहेगी. क्या हुआ जो उस के घर वालों ने उस की शादी किसी और से करा दी है, मैं जल्द ही अपनी अनन्या को उस से भी छीन लूंगा. चाहे जबरन या चाहे प्यार से. मेरा प्यार मेरे पास ही लौट कर आएगा ये वायदा है जय चाचा तुम से.’

दरअसल, विशाल और अनन्या एक ही गांव के सगे पट्टीदार थे, इसलिए सामाजिक परंपरा के अनुसार उन की शादी नहीं हो सकती थी, दोनों के परिवार प्रेमी युगल के इस फैसले के खिलाफ थे. अनन्या के पापा जय कुमार कभी नहीं चाहते थे कि रिश्ते के भाईबहन लगने वाले मर्यादा को लांघें. खैर, नियति को तो कुछ और ही मंजूर था. अनन्या के जीवन की कुंडली ऐसी बनाई थी कि उस का प्यार विशाल ही उस की सांसों की डोर तोडऩे पर आमादा हो गया था. जिस प्यार को पाने के लिए अनन्या ने घर और समाज यहां तक कि पति से भी बगावत कर घर छोड़ दिया था, वही यमराज बन कर उस की जिंदगी में कुंडली मार कर बैठ गया था.

अनन्या के जीवन में ज्वारभाटा की तरह भूचाल तब आया था, जब उस के पति अशोक को उस के अतीत के बारे में पता चला कि पत्नी का गांव के ही किसी विशाल के साथ लंबे अरसे से अफेयर चला आ रहा है और आज भी दोनों एकदूसरे से प्यार करते हैं. ये बात अशोक पचा नहीं सका. कोई भी पुरुष यह कभी नहीं चाहेगा कि उस की पत्नी शादी के बाद भी अपने यार की बांहों में सजने के लिए सजीसवंरी रहे. अशोक ही नहीं, उस के घर वाले भी चरित्रहीन बहू को स्वीकारने के लिए कतई तैयार नहीं थे, लिहाजा 6 महीने के भीतर उन्होंने अनन्या को तलाक दे दिया.

एक ओर अनन्या निषाद जहां इस फैसले से मन ही मन खुश थी कि अब हमारे विशाल साहनी से एक होने से कोई भी रोक नहीं सकता है तो वहीं दूसरी ओर अनन्या के फेमिली वाले बेटी के तलाक से दुखी और परेशान थे. ये सब उस के चलते ऐसा हुआ था, इसलिए घर वालों ने अनन्या को मायके में शरण नहीं दी, बल्कि उसे उसी के हाल पर छोड़ दिया. अनन्या ने भी फैसला कर लिया था कि वह अपने घर वालों के सिर पर बोझ नहीं बनेगी और न ही मायके (बनारस) जाएगी, बल्कि अपने प्यार के साथ शादी कर के अपनी नई दुनिया बसाएगी.

विशाल को उस ने पति का घर हमेशाहमेशा के लिए छोड़ कर वापस आ जाने की सूचना दे दी थी और विशाल से यह भी कह दिया कि वह उस के बिना जी नहीं सकती. जल्द से जल्द हम दोनों शादी कर लेंगे और सदा के लिए एक हो जाएंगे. लेकिन शादी करने के बजाए विशाल प्रेमिका से पीछा छुड़ाने के रास्ते तलाशने लगा. उस के मन की बात अनन्या भांप नहीं सकी, क्योंकि वह तो विशाल की दीवानी हो चुकी थी. जब भी वह शादी के लिए कहती, विशाल टाल देता था. और फिर एक दिन उस ने प्रेमिका अनन्या की हत्या कर दी. विशाल साहनी से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने उसे शाम को उसे अदालत में पेश कर जेल भेज दिया. hindi love story

 

 

crime kahani : पत्नी ने दो प्रेमियों संग साजिश रचकर गला दबाकर पति की कराई हत्या

crime kahani : अवैध संबंधों का नतीजा अकसर एक गुनाह को जन्म देता है. इस बात को अगर मंजू समझ जाती तो अपने प्रेमियों के साथ जेल जाने के बजाय वह अपनी घरगृहस्थी को संभाल रही होती…

सुबह के यही कोई 7 बजे थे, तभी धार जिले के अमझेरा थानाप्रभारी रतनलाल मीणा को थाना इलाके में एक युवक द्वारा आत्महत्या करने की खबर मिली.  सूचना पाते ही टीआई मीणा के निर्देश पर एसआई राजेश सिंघाड पुलिस टीम को ले कर मौके पर पहुंच गए, जहां कमरे की छत पर लगभग 28 वर्षीय अजय भायल की लाश छत में लगे कुंदे के सहारे फांसी पर लटकी थी. घटना के समय घर में अजय की पत्नी मंजू मौजूद थी, जिस ने शुरुआती पूछताछ में बताया कि रात को हम दोनों खाना खा कर अपने बिस्तर पर सो गए थे. जिस के बाद सुबह उठ कर उस ने पति को फांसी पर लटका देखा तो उस ने लोगों को घटना की जानकारी दी.

एसआई सिंघाड को मंजू के हावभाव कुछ अजीब लगे. क्योंकि मंजू बेबाक हो कर घटना की जानकारी दे रही थी. जबकि एक जवान पति के मरने के बाद किसी भी औरत का इस तरह बात करना असंभव था. वह भी तब जब उस के पति का शव उस के सामने फांसी के फंदे पर झूल रहा हो. एसआई राजेश सिंघाड ने यह बात अपने ध्यान में नोट कर शव को फंदे से उतारा. उन्होंने पूरी स्थिति से टीआई रतनलाल मीणा को अवगत कराया. शव पोस्टमार्टम के लिए भेजने से पहले उन्होंने पूरे घर की अच्छी तरह से तलाशी ली, पर वहां कहीं भी कोई सुसाइड नोट नहीं मिला. यह बात 26 अगस्त, 2020 की है.

यह आत्महत्या है या अजय की हत्या की गई है, यह तय करने के लिए पुलिस को पोस्टमार्टम रिपोर्ट का इंतजार था. तब तक मामला संदिग्ध था. इस दौरान प्रारंभिक पूछताछ में अजय के घर वालों ने अपने बेटे की मौत को हत्या बताते हुए उस की पत्नी मंजू पर शक जाहिर किया. उन का कहना था कि मंजू का चालचलन ठीक नहीं था, जिस के कारण पतिपत्नी में आए दिन झगड़ा होता रहता था. इतना ही नहीं, जिस रात अजय का शव फांसी पर लटका मिला उस रात भी उस की पत्नी और अजय के बीच झगड़ा होने की बात पुलिस की जानकारी में आई, मगर मंजू ने इस बात से इनकार कर दिया.

उस का कहना था कि उस के पति कई दिनों से परेशान रहने लगे थे. मैं ने उन से परेशानी का कारण भी जानने की कोशिश की, लेकिन उन्होंने इस बारे में कुछ नहीं बताया. जांच अधिकारी एसआई राजेश सिंघाड ने पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने से पहले ही जांच कर पता कर लिया था कि मृतक अजय और उस की पत्नी दोनों न केवल शराब पीने के शौकीन थे, बल्कि गांव में अवैध रूप से शराब का धंधा भी करते थे. जाहिर सी बात है जहां शराब का धंधा होता हो, वहां लड़ाईझगड़ा होना कोई अजूबा नहीं है. इसलिए दोनों के झगडे़ पर कोई ध्यान नहीं देता था. इस बीच पुलिस को अजय की पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिल गई, जिस में साफ बताया गया कि अजय की मौत फांसी लगने के पहले ही हो चुकी थी.

बात साफ थी कि उस की हत्या करने के बाद उसे आत्महत्या साबित करने की गरज से फांसी पर लटकाया गया था. चूंकि अजय का शव घर के अंदर मिला था और रात में उस की 25 वर्षीय बेहद खूबसूरत पत्नी मंजू उस के साथ में थी. इसलिए टीआई मीणा जानते थे कि यह संभव नहीं है कि पत्नी घर में सोती रहे और कोई बाहर से आ कर पति की हत्या कर के चला जाए. इसलिए उन के निर्देश पर जांच अधिकारी एसआई सिंघाड ने मृतक की पत्नी मंजू से बारबार पूछताछ की, जिस में एक समय ऐसा आया कि वह खुद अपने बयानों में उलझ गई, जिस से उस ने अपने 2 प्रेमियों मनोहर और सावन निवासी राजपुरा के साथ मिल कर पति की हत्या करने की बात स्वीकार कर ली.

पुलिस ने आरोपियों के ठिकानों पर छापे मार कर उन्हें भी गिरफ्तार कर लिया, जिस के बाद अपने दोनों प्रेमियों के साथ मिल कर हत्या कर दिए जाने की कहानी इस प्रकार से सामने आई. अजय मध्य प्रदेश के जिला धार के गांव नालापुरा में अपनी पत्नी मंजू के साथ रहता था. अजय के पास आय का कोई साधन नहीं था. इसलिए अजय ने घर पर छोटीमोटी किराने की दुकान खोल रखी थी, जिस से उस का मुश्किल से ही गुजारा हो पाता था. अजय की पत्नी मंजू जितनी खूबसूरत थी, उतनी ही दिमाग से तेज भी थी इसलिए उस ने अजय को सलाह दी कि अकेला गुड़, तेल बेचने से उन की दालरोटी नहीं चलने वाली, इसलिए हम किराने की ओट में शहर से शराब ला कर बेचना शुरू कर देते हैं, जिस से काफी कमाई हो सकती है.

इस काम में अजय ने पुलिस का डर होने की बात कही तो मंजू ने कहा कि यह बात तुम मुझ पर छोड़ दो. अजय पत्नी की बात पर राजी हो गया, जिस से उस ने शहर से शराब ला कर दुकान में रख कर बेचनी शुरू कर दी थी. कहना नहीं होगा कि शराब पीने वाले रेट के चक्कर में नहीं पड़ते, इसलिए गांव के शौकीन लोग मंजू से मुंहमांगे दाम पर शराब खरीदने लगे. गांव का संपन्न किसान मनोहर पडियार भी शराब का शौकीन था. इसलिए जब उसे पता चला कि मंजू और अजय गांव में शराब बेचने लगे हैं, तब से मनोहर ने शहर से शराब खरीदनी ही बंद कर दी.

मंजू जानती थी कि शराब के शौकीन मजबूरी में ही महंगी शराब उस से खरीदते हैं, वरना लोग शहर से ही अपने लिए शराब खरीद कर लाते थे. लेकिन मनोहर उस का रोज का ग्राहक था. इसलिए एक दिन मंजू ने मनोहर से पूछ लिया, ‘‘अब शहर से शराब खरीद कर नहीं लाते क्या?’’

‘‘मेरा यहां रोजरोज आना तुम्हें अच्छा नहीं लगता क्या?’’ मनोहर ने उलटा उसी से सवाल कर दिया.

‘‘नहीं, यह बात नहीं है, बस ऐसे ही पूछ लिया.’’ वह बोली.

‘‘अब पूछ लिया है तो कारण भी सुन लो. तुम जिस बोतल को हाथ लगा देती हो न, उस बोतल का नशा और भी बढ़ जाता है. इसलिए मुझे तुम्हारे यहां की शराब अच्छी लगती है.’’  मनोहर ने मंजू की प्रशंसा करते हुए कहा.

‘‘ऐसा है क्या?’’ मनोहर की बात सुन कर मंजू ने मुसकराते हुए बोली.

‘‘हां, क्योंकि तुम्हारे छू भर लेने से शराब में तुम्हारा नशा भी घुल जाता है.’’ मनोहर ने मुसकराते हुए कहा और शराब की बोतल पकड़ते समय मंजू की अंगुलियां दबा दीं.

मंजू बच्ची तो थी नहीं, जो इस का मतलब न समझती हो. लेकिन वह अपने रोज के ग्राहक को नाराज नहीं करना चाहती थी, इसलिए मुसकराते हुए बोली, ‘‘क्या बात है मनोहर बाबू, आज पीने से पहले ही चढ़ गई क्या?’’

‘‘हां, तुम से चार बातें जो हो गईं.’’ मनोहर ने उस से कहा और अपनी बोतल ले कर चला गया. उस दिन के बाद से मनोहर और मंजू के बीच अनकहे तौर पर नजदीकी बढ़ने लगी. जिस से कुछ दिनों बात मनोहर मंजू के घर में ही बैठ कर शराब पीने लगा. मंजू भी शराब पीने की शौकीन थी, सो एक दिन वह भी मनोहर के साथ पेग से पेग भिड़ाने लगी. जिस के चलते शराब के नशे में दोनों के बीच अवैध संबंध बन गए. मंजू खूबसूरत और जवान थी. मनोहर को उस की जरूरत थी और मंजू को मनोहर के पैसों की. इसलिए मनोहर उस पर पैसे लुटाते हुए लगभग रोज ही मंजू के साथ उस वक्त समय बिताने लगा, जब उस का पति अजय दुकान का सामान लेने शहर गया होता था.

राजपुरा गांव का रहने वाला सावन हेयर कटिंग सैलून चलाता था. वह शराब का शौकीन भी था और मनोहर का दोस्त भी. इसलिए कभीकभार वह मनोहर के साथ मंजू के यहां शराब पीने चला जाया करता था. इस दौरान वह जल्दी ही समझ गया कि मनोहर और मंजू के बीच शारीरिक संबंध भी हैं तो मौके का फायदा उठा कर उस ने मनोहर से कहा कि वह उसे भी मंजू संग सोने का मौका दिलवा दे. मनोहर ने मंजू से सावन को एक बार खुश करने को कहा तो मंजू थोड़ी नानुकुर के बाद मान गई. लेकिन इस के बाद कुछ ऐसा हुआ कि मनोहर के अलावा सावन के साथ भी मंजू के स्थाई अवैध संबंध बन गए.

चूंकि मनोहर और सावन दोनों दोस्त थे और साथ में ही शराब पीया करते थे, इस कारण कई बार वे दोनों एक साथ मंजू के संग अय्याशी कर चुके थे. लेकिन कोरोना के कारण देश में लौकडाउन लग जाने से अजय का सामान खरीदने के लिए शहर जाना बंद हो गया. दूसरा उस के पास शराब का स्टौक भी खत्म हो गया. इस से अजय और मंजू की कमाई पर ब्रेक तो लगा ही, साथ ही मंजू के संग मनोहर और सावन की अय्याशी पर भी ब्रेक लग गया. जिस से दोनों दोस्त मंजू से मिलने के लिए परेशान होने लगे. इस बीच एक दिन गांव में अपने दोस्तों के साथ अजय को ताश खेलते देख मनोहर और सावन मंजू के घर पहुंच गए और एक साथ मंजू के संग वासना का खेल खेलने लग गए.

इसी बीच अजय के घर आ जाने से तीनों रंगेहाथ पकड़े गए. पत्नी को अय्याशी का घिनौना खेल खेलते देख अजय पागल हो कर गुस्से में उस की पिटाई करने लगा. जिस के बाद तो यह आए दिन का काम होने लगा. अजय बातबात पर उस की अय्याशी का ताना दे कर उसे पीटने लगा. इस से मंजू तंग आ गई. उस ने यह बात अपने प्रेमियों को बताई तो वे अजय के साथ रंजिश रखने लगे. इस दौरान लौकडाउन फिर से हट जाने से मंजू अवैध शराब बेचने लगी, मनोहर शराब लेने उस की दुकान पर अभी भी जाया करता था. लेकिन अब पहले जैसी अय्याशी संभव नहीं थी. इसलिए मनोहर और सावन दोनों ही अजय को रास्ते से हटाने की सोचने लगे थे.

आरोपियों ने बताया कि घटना की रात अजय फिर मंजू को उस के अवैध संबंध को ले कर उस के साथ मारपीट कर रहा था. इस बात की जानकारी मंजू ने मनोहर को फोन पर दी तो मनोहर सावन को ले कर मंजू के घर पहुंच गया. जहां उस ने अजय को समझाबुझा कर अपने साथ शराब पीने को राजी कर लिया. इस के बाद उस ने अजय से ही खरीद कर उसे खूब शराब पिलाई और जब उस ने देखा कि पर्याप्त नशा हो गया है तो सावन, मंजू और मनोहर तीनों ने मिल कर गला दबा कर अजय की हत्या कर दी. उस के बाद लाश को फांसी पर लटका दिया ताकि पुलिस समझे कि उस ने आत्महत्या की है. लेकिन टीआई रतनलाल मीणा के नेतृत्व में एसआई राजेश सिंघाड की सटीक जांच से तीनों आरोपी हफ्ते भर में ही कानून की गिरफ्त में आ गए.

मंजू के बारे में बताया जाता है कि पति की हत्या करने के बाद उसे कानून का जरा भी डर नहीं था. इसलिए दोनों प्रेमियों संग मिल कर पति की हत्या के बाद उस के शव को फंदे पर लटका कर दोनों प्रेमियों संग मस्ती करते हुए शराब पीने के बाद खाना भी खाया और फिर जिस कमरे में पति की लाश लटकी थी, उसी कमरे में सो गई थी. उस ने पुलिस को बताया कि सुबह उठने के बाद उस ने मोहल्ले वालों को बुला कर पति द्वारा आत्महत्या करने की बाद बताई.  पुलिस ने मंजू और उस के दोनों प्रेमियों मनोहर व सावन को गिरफ्तार करने के बाद कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. crime kahani

UP Crime News : बीमा क्लेम के करोड़ों हड़पने वाला गैंग

UP Crime News : यूपी के जिला संभल की पुलिस ने बीमा क्लेम हड़पने वाले गैंग के 30 लोगों को गिरफ्तार कर बड़ी सफलता हासिल की है. यह गैंग मरे हुए लोगों का भी मोटी धनराशि का जीवन बीमा करा कर बैंक अधिकारियों की मिलीभगत से क्लेम ले लेता था. पिछले 8 सालों से देश के विभिन्न राज्यों में गैंग धड़ल्ले से काम कर रहा था. आप भी जानें कि गैंग किस तरह से अपने शिकार तलाशता था?

ओंकारेश्वर मिश्रा बीमा पौलिसी का सर्वे करने वाली फस्र्ट सोल्यूशन सर्विस कंपनी में बतौर जांच अधिकारी के रूप में काम करता था. करीब 8 वर्ष पहले की बात है. वह एक जीवन बीमा क्लेम से संबंधित जांच करने गया था.

जांच में पता चला कि जिस व्यक्ति का इंश्योरेंस क्लेम लेने के लिए प्रार्थना पत्र दिया गया है, उस की बीमा पौलिसी मृत्यु से 3 महीने पहले ही कराई गई थी. ओंकारेश्वर मिश्रा ने और गहनता से जांच की तब पता चला कि वह व्यक्ति कई महीनों से कैंसर से पीडि़त था. उस की जो इंश्योरेंस पौलिसी की गई थी, वह नियम के अनुसार नहीं थी.

मृतक के फेमिली वालों ने मिश्राजी से सांठगांठ की. कुछ लेनदेन की बात चली. कुल मिला कर क्लेम की धनराशि के आधेआधे पर फैसला हो गया. नौमिनी को पौलिसी की राशि का भुगतान हो गया. इस तरह मिश्राजी को इस सांठगांठ से इतनी रकम हासिल हो गई, जितनी उस की एक महीने की सैलरी भी नहीं थी.

इस के बाद ओंकारेश्वर मिश्रा की बुद्धि में चेतना जागी. उस ने इस तरह के घोटाले को अपना धंधा बनाने के विचार पर मंथन शुरू कर दिया. इस के लिए उस ने अपने एक साथी अमित कुमार से विचारविमर्श किया. अमित भी इसी लाइन से जुड़ा था. दोनों ने मिल कर योजना तैयार की. वह किसी ऐसे बीमार व्यक्ति की तलाश में लग गए, जिस की मृत्यु निकट दिनों में ही संभव हो. कई दिनों के प्रयास के बाद भी ऐसा कोई मरणासन्न बीमार उन दोनों के हत्थे नहीं चढ़ा.

ओंकारेश्वर मिश्रा उत्तर प्रदेश के वाराणसी जिले के कस्बा फुलवारिया का रहने वाला था. इधरउधर हाथपैर मारने के बाद ओंकारेश्वर और अमित को सफलता नहीं मिली. कई दिनों से थकेहारे दोनों के चेहरे पर एक दिन चमक जाग उठी. दोनों ने तय किया कि ग्रामीण क्षेत्र की किसी आशा दीदी से कांटेक्ट किया जाए.

अमित की जानकारी में एक आशा दीदी थी. दोनों ने उस महिला से संपर्क किया. वह एक सक्रिय आशा थी. उसे अपने पूरे गांव की जानकारी थी. आशा ने इन दोनों को बताया कि गांव की एक महिला कैंसर से पीडि़त है और इस समय वह मरणासन्न स्थिति में है.

गांव के ही झोलाछाप डाक्टर से दवाई ले कर उस की जिंदगी के दिन पूरे कर रहे थे. महिला 50 प्लस की उम्र में पहुंच चुकी थी.

ओंकारेश्वर और अमित ने उस के परिवार वालों से बातचीत की उन्हें समझाया कि यदि इन का बीमा कर दिया जाए तो काफी रकम उन की मृत्यु के बाद परिजनों को मिल सकती है. परिवार के लोगों ने कहा कि बीमा कराने के लिए उन के पास पैसे नहीं है. मिश्राजी इसी जुमले का इंतजार कर रहे थे. उन्होंने तुरंत कहा कि पैसा हम लगाएंगे, कागज सब तैयार हम करेंगे, लेकिन आप को बीमा की आधी रकम हमें देनी पड़ेगी.

फेमिली के लोग उस की बात पर बिना किसी नानुकुर के तैयार हो गए. पूरा खाका तैयार कर लिया गया. जुगाड़ बाजी करके महिला का बीमा करा दिया गया. इन दोनों ने मिलकर बता दिया कि 5 लाख रुपए का बीमा कराया गया है.

बीमा की 2 किस्तें इन दोनों ने अपनी जेब से भर दीं. इत्तेफाक कहिए या इन लोगों का मुकद्दर, 2 महीने बाद ही महिला की मृत्यु हो गई. इन्होंने क्लेम कर के बीमा राशि निकाल ली और शर्त के अनुसार रकम आधीआधी बांट ली. वृद्धा की फेमिली भी खुश और मिश्राजी भी खुश. इस कामयाबी के बाद ये लोग इसी धंधे में लग गए.

इस के बाद ये लोग किसी बीमार मरणासन्न व्यक्ति की तलाश करते. उस का बीमा करवाते उस की मृत्यु के बाद बीमा राशि क्लेम कर के निकलवा लेते और उस का बंदरबांट कर लेते. इस तरह इन के इस धंधे में और भी लोग जुड़ते रहे और एक गैंग तैयार हो गया. सभी सदस्य भरपूर कमाई कर रहे थे. भरपूर आमदनी हो रही थी. फिर एक दिन अचानक गैंग पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा. देखते ही देखते एक आलीशान मजबूत किला रूपी गैंग रेत के घरौंदे की तरह बिखर गया.

बात 17 जनवरी, 2025 की है. रात का समय था. ठंड पड़ रही थी. इस दौरान उत्तर प्रदेश के जिला संभल की एडिशनल एएसपी अनुकृति शर्मा अपनी गाड़ी से थाना रजपुरा पुलिस की रात्रि गस्त की निगरानी कर रही थीं. तभी रास्ते में एक काले रंग की स्कौर्पियो ने उन की गाड़ी को ओवरटेक किया. गाड़ी की स्पीड और ओवरटेक करने का ढंग देख एएसपी अनुकृति शर्मा को शक हुआ. उन्होंने अपने ड्राइवर को निर्देश दिया कि इस स्कौर्पियो को रोका जाए.

पुलिस ने उस स्कौर्पियो का पीछा किया. स्कौर्पियो ने स्पीड और तेज कर दी. एएसपी अनुकृति शर्मा ने भी अपने ड्राइवर को कार का पीछा करने के निर्देश दिए. पुलिस की 2 गाडिय़ां पीछे आते देख कर स्कौर्पियो का ड्राइवर घबरा गया. जैसे ही मौका लगा, एएसपी अनुकृति शर्मा के ड्राइवर ने ओवरटेक कर के स्कौर्पियो रुकवाई. उस में ओंकारेश्वर मिश्रा और अमित कुमार नाम के 2 शख्स बैठे थे.

अमित कार ड्राइव कर रहा था. उन से सामान्य नागरिक की तरह ही कुछ जानकारी पुलिस ने करनी शुरू कर दी. पहले तो वो पुलिस के सवालों को टालते रहे. इस पर एएसपी ने उन की गाड़ी की तलाशी लेने के निर्देश दिए. तलाशी में उन के पास से 16 डेबिट कार्ड, कई बीमा कंपनियों से जुड़े कागजात और 11 लाख से अधिक रुपए नकद मिले. यह सब बरामद होने पर एएसपी को मामला संदिग्ध लगा तो वह उन दोनों को कार सहित थाने ले गई.

संभल रजपुरा थाने में उन से पूछताछ का सिलसिला व्यापक होता गया. बातबात में बात बढ़ती गई. जब आगे जांच हुई तो पता चला कि यह कोई सामान्य लोग नहीं थे, बल्कि ये अंतरराज्यीय बीमा घोटाले के सरगना निकले.

पुलिस ने जब ओंकारेश्वर मिश्रा से पूछताछ की तो चौंकाने वाली बातें सामने आईं. यह गैंग फरजी बीमा पौलिसी से जुड़ा था. ओंकारेश्वर ने कुबूला कि हम बीमा पौलिसी का सर्वे करने वाली कंपनी में बतौर इन्वेस्टिगेटर काम करते हैं.

मिश्रा और अमित ने दिल्ली स्थित 2 बीमा जांच कंपनियों, ‘ईस्ट इंडिया कंपनी’ और ‘फस्र्ट साल्यूशंस एजेंसी’ के लिए काम किया था, जो कई बीमा कंपनियों के दावों को वेरिफाई करने का काम किया करती थीं. उन का काम पौलिसीधारक की मृत्यु के बाद नौमिनी के क्लेम की जांच करना था, लेकिन वे उल्टा काम कर रहे थे.

थाना रजपुरा पुलिस द्वारा इन दोनों से विस्तार से पूछताछ करने के बाद जेल भेज दिया गया और इन से बरामद कागजात व अन्य सामग्री के आधार पर जांच चलती रही.

इन के द्वारा बताए गए अन्य साथियों पर भी पुलिस की निगरानी बढ़ गई. जगहजगह छापे मारे गए. जहां से जो आरोपी हाथ लगा उसे गिरफ्तार किया जाता रहा. यह सिलसिला कई महीने तक चलता रहा. पुलिस ने बीमा घोटाले में शामिल रहे 30 आरोपियों को 15 अप्रैल, 2025 तक गिरफ्तार कर जेल भिजवा दिया.

शुरू के दिनों में गिरोह के लोग बीमार व्यक्ति के फेमिली वालों से संपर्क करते थे. उन्हें सरकारी मदद का झांसा देते थे और आधार कार्ड और पैन कार्ड ले लेते थे. मरीज के इलाज की फाइल के साथ सिग्नेचर या फिर अंगूठे का इंप्रेशन ले लेते थे. गांव में कौन व्यक्ति बीमार है, किस को कैंसर हुआ है. कौन मरने वाला है, उन्हें तलाश कर उन की जीवन बीमा पौलिसी करा दिया करते थे. यह लोग गरीब और अशिक्षित लोगों को ही अपना टारगेट किया करते थे.

यह लोग अब तो किसी मरणासन्न व्यक्ति का ही नहीं अपितु मृत्यु के बाद भी मृतक व्यक्ति का बीमा कराने में कामयाब होने लगे. अब गैंग ने पूरी रकम हड़पने की योजना तैयार कर ली. ऐसा ही एक मामला संभल पुलिस की जांच में देश की राजधानी दिल्ली का सामने आया.

उत्तरी दिल्ली के शक्तिनगर निवासी त्रिलोक कुमार बीते वर्ष 19 जून को बीमारी से मौत हो गई. 25 सितंबर को उन्हें जिंदा दर्शा कर बीमा घोटाला गैंग ने बीमा की 2 पौलिसी करा दी. त्रिलोक कुमार कैंसर से पीडि़त थे. 15 जून, 2024 को वह दिल्ली के राजीव गांधी कैंसर इंस्टीट्यूट में भरती हुए. 19 जून, 2024 को उन की मौत हो गई थी.

20 जून को दिल्ली के निगम बोध घाट पर उन का अंतिम संस्कार हो गया. फेमिली वालों के पास एमसीडी दिल्ली की श्मशान घाट की रसीद मौजूद थी, जिस पर मौत का कारण कैंसर लिखा था. इस के अलावा राजीव गांधी हौस्पिटल के डाक्यूमेंट्स भी थे. त्रिलोक कुमार के नाम पर कुल 2 जीवन बीमा पौलिसी एलआईसी से कराई गईं. इस में दूसरी वाली पौलिसी 20.48 लाख रुपए की थी. गिरोह ने इन की बीमा धनराशि हड़प ली.

ऐसा ही एक मामला बुलंदशहर जिले के डिबाई थाना क्षेत्र में भीमपुर गांव का सामने आया. पुलिस को सुनीता ने बताया कि उस के पति सुभाष की मौत बीमारी की वजह से पिछले साल हुई. मरने से कुछ दिनों पहले ही गांव की आशा दीदी नीलम उन के पास आई. उस ने कहा कि वह सरकार से कुछ मदद दिला सकती है.

वह सारे कागजात ले गई और वो उस ने इंश्योरेंस गिरोह को सौंप दिए. घोटाले का मामला सोशल मीडिया पर चर्चा में होने के बाद सुनीता को भी उस के पति के बीमे के कागज चैक कराने की याद आई. बाद में पता चला कि उस के पति के नाम पर लाखों रुपए की बीमा राशि निकाली जा चुकी है.

इसी तरह गाजियाबाद में लोनी थाना क्षेत्र की पूजा कालोनी में रहने वाले सौराज की 9 नवंबर, 2022 को मौत हो गई. उसी दिन पूजा कालोनी के श्मशान घाट में उस का अंतिम संस्कार हो गया. फेमिली वालों के पास इस श्मशान घाट की रसीद भी मौजूद है. इस में अंतिम संस्कार 9 नवंबर, 2022 को दोपहर साढ़े 3 बजे होना लिखा है. सौराज की मौत के बाद फरजी बीमा पौलिसी गैंग ऐक्टिव हुआ और उस के घर पहुंच गया.

मर चुके लोगों का भी गैंग ने कराया बीमा

इस गैंग ने सौराज के मृत्यु प्रमाणपत्र अन्य कागजात में हेराफेरी कर के उस की 2 जीवन बीमा पौलिसी करा दीं. एक पौलिसी मौत के 20 दिन बाद 29 नवंबर, 2022 को हुई. यह साढ़े 8 लाख रुपए की थी. दूसरी पौलिसी अन्य बीमा कंपनी से 7 दिसंबर, 2022 को हुई. यह 19 लाख 91 हजार 970 रुपए की थी.

मामला उत्तर प्रदेश के ही जिला बदायूं के गांव सिठौली का सामने आया. यहीं के रहने वाले सुरजीत सिंह की मौत एक लंबी बीमारी के बाद हो गई थी. गैंग ने उन के 2 बीमे करा दिए. सुरजीत सिंह को इसकी भनक भी नहीं लगी. गैंग ने बीमा कंपनी से क्लेम कर के फरजी तरीके से बीमा राशि हड़प ली. इस फरजीवाड़े में बैंककर्मियों की मिलीभगत की संभावना व्यक्त की गई.

घोटाले के एक अन्य मामले में सर्वेश के पति मुकेश कुमार की मृत्यु किडनी फेल होने से हुई थी. उन के नाम पर 20 लाख रुपए का बीमा था. गैंग के लोगों ने सभी दस्तावेज लेकर सर्वेश से उस पर हस्ताक्षर भी कर दिए थे. इस के बावजूद बीमे की धनराशि सर्वेश के खाते में नहीं आई. 2 जनवरी, 2025 को गिरोह ने सर्वेश के नाम पर खोले गए फरजी खाते से सेल्फ चैक के जरिए से 9 लाख 90 हजार रुपए निकाल लिए.

चौंकाने वाली बात यह रही कि सर्वेश ने दावा किया कि उन्होंने ऐसा कोई खाता नहीं खुलवाया और न ही बैंक जा कर कोई चैक साइन किया. उन का एकमात्र बैंक खाता रजपुरा में था, जबकि नोएडा के सूरजपुर स्थित यस बैंक में उन के नाम से नया खाता खोल दिया गया था.

घोटाले का मामला हाईलाइट हो जाने पर बीमा राशि हड़पने की एक शिकायत जनपद संभल के थाना कुडफ़तेहगढ़ और एक थाना बनियाठेर में दर्ज हुई.

यह मामला अप्रैल 2025 का है. थाना कुडफ़तेहगढ़ क्षेत्र के गांव स्योडारा निवासी मीरावती के पति सुदामा, जो कैंसर से पीडि़त थे. इन की 2020 में मृत्यु हुई थी. इन के नाम की भी एक पौलिसी एलआईसी से कराई गई थी. इन के भी फरजी दस्तावेज तैयार किए गए. बीमा का पैसा मीरावती के खाते में

आया था.

आरोपियों ने प्रथमा ग्रामीण बैंक स्योडारा में मीरावती का खाता खुलवाया था . बैंक से चेक बुक ले कर मीरावती से खाली चेक पर अंगूठा लगवा लिया. मीरावती के खाते से कई लाख रुपए आराम सिंह नाम के व्यक्ति ने अपने बेटे पंकज सिंह के खाते में ट्रांसफर करा लिए.

हर विभाग में कर रखी थी सैटिंग

दूसरे मामले में बनियाढेर क्षेत्र के निवासी सत्यवीर सिंह की पत्नी मृतका सुकरवती को काला पीलिया था. जनवरी 2020 को उन की मृत्यु हो गई. जनवरी 2021 में उन्हें जीवित दिखा कर बीमा कराया गया.

मार्च में मृत्यु दिखा कर दूसरा मृत्यु सर्टिफिकेट ब्लौक बिलारी से ही बनवाया गया. बीमा कंपनियों में क्लेम कर के बीमा राशि प्राप्त कर ली और हेराफेरी कर के नौमिनी के खाते से निकाल ली. इन दोनों फरजीवाड़े के मामलों में नामजद आराम सिंह को नामजद किया गया.

पुलिस द्वारा आराम सिंह निवासी अल्लापुर, बिलारी को गिरफ्तार किया गया. आराम सिंह अंतरराज्यीय बीमा गिरोह का एक सदस्य निकला.

मुख्य आरोपी आराम सिंह ने पूछताछ में कई चौंकाने वाले खुलासे किए. उस ने बताया कि ओंकारेश्वर मिश्रा, सचिन शर्मा उर्फ मोनू आदि के साथ मिल कर यह धोखाधड़ी की जाती थी. यह गिरोह पिछले 8 सालों से सक्रिय था. संभल, धनारी, बबराला, बिलारी और मुरादाबाद समेत कई क्षेत्रों में इन का नेटवर्क फैला हुआ था. गिरोह ने 12 राज्यों के सैकड़ों लोगों के साथ इस तरह की धोखाधड़ी करनी स्वीकार की.

एडिशनल एसपी अनुकृति शर्मा की निगरानी में संभल पुलिस को जांच में एक व्यक्ति पंचम सिंह के 2 आधार कार्ड बरामद हुए. एक में उन की जन्मतिथि जनवरी 1955 और एक दूसरे आधार कार्ड में जुलाई 1976 दर्ज थी. दोनों आधार कार्ड का नंबर सेम था.

पंचम सिंह के बेटे विनोद कुमार को 2 आधार कार्ड इस्तेमाल करने के जुर्म में पुलिस द्वारा गिरफ्तार किया गया. क्योंकि बीमा घोटाला गैंग ने पंचम सिंह की मृत्यु के बाद उन की बीमा राशि हड़प ली थी. पुलिस ने दोनों आधार कार्ड यूआईडीआई का डेटाबेस से चेक कराए.

डुप्लीकेट आधार कार्ड में पंचम सिंह की आयु 21 वर्ष काम कराई गई थी. क्योंकि पीएम जेजेवाई (प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना) का लाभ के लिए उम्र 50 साल से कम की उम्र होनी चाहिए, जबकि पंचम सिंह 70 साल के थे. इसलिए आधार में आयु कम कराई गई थी.

पुलिस के लिए चिंता की बात यह थी कि यह सब हुआ कैसे? पंचम सिंह के बेटे विनोद ने आधार कार्ड में जन्मतिथि की हेराफेरी करने की जानकारी दी.

हैरान करने वाली बात यह थी कि आम नागरिक को अगर अपना एड्रेस चेंज कराना हो या मोबाइल नंबर दर्ज करना हो या बदलवाना हो तो लोगों को व्यक्तिगत रूप से आधार के अधिकृत सेंटर पर उपस्थित होना होता है, लेकिन पंचम सिंह ने यह कैसे करा लिया? यह सब कैसे हो गया?

पुलिस की तहकीकात में इल्लीगल तरीके से इन लोगों ने एकदम लुक लाइक पोर्टल बनाया था, जोकि आधार की तरह दिखता था. ये लोग वेब डिजाइनिंग व कोडिंग में बहुत माहिर थे.

पुलिस ने बदायूं और अमरोहा जिले से 4 लोगों को गिरफ्तार किया. जिन के पास से लैपटाप और कंप्यूटर सिस्टम के अलावा बायोमैट्रिक डाटा लेने वाले कई उपकरण बरामद किए गए, जिस में रबड़ के फरजी फिंगरप्रिंट, आइरिस कापी, फरजी पासपोर्ट, कई राज्यों के फरजी जन्म प्रमाणपत्र, मोडिफाई फिंगरप्रिंट स्कैनिंग मशीन, मोबाइल फोन, पैन कार्ड प्रपत्र, फिंगर अपडेशन, आवेदन प्रपत्र 400 से अधिक आधार संशोधन के लिए एनरोलमेंट आवेदन, 8 पासपोर्ट फोटो आदि बरामद किए गए. बीमा घोटाला गैंग की यह टीम आधार कार्ड में संशोधन करने की जिम्मेदारी खुद निभाती थी.

हिरासत में लिए गए लोगों की सूचना पर 6 लोगों को और गिरफ्तार किया गया. इस गिरोह के अन्य सदस्यों के पास से पुलिस ने 81 पासबुक, 35 चेकबुक के अलावा 31 मृत्यु प्रमाण पत्र, कई बैंकों की मोहरें, लैपटाप भी बरामद किए.

गिरफ्तार किए गए आरोपियों में प्रेमपाल और प्रेम सिंह फरजी तरीके से सिम देने का काम करते थे. दोनों ही युवक एक मोबाइल कंपनी के एजेंट थे. जिन के पास से भी पुलिस ने फरजी दस्तावेज बरामद किए.

इन से मोबाइल फोन और 7 भिन्नभिन्न कंपनियों के सिम बरामद किए गए. बरामद डाक्यूमेंट्स राजस्थान, गुजरात, दिल्ली, हरियाणा, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, झारखंड, बिहार, पश्चिम बंगाल के रहने वाले व्यक्तियों से संबंधित हैं जो या तो खुद जीवन बीमा की पौलिसी धारक हैं या फिर मृतक के नौमिनी हैं.

ऐसा ही एक और मामला पुलिस की जांच में सामने आया. बुलंदशहर जिले के पहासू थाना क्षेत्र के मोहल्ला चमारान कला अशोकनगर की रुखसार के पति असलम का बीमा क्लेम गिरोह ने ठग लिया. असलम गंभीर रूप से बीमार थे. गिरोह को जब यह जानकारी हुई तब गैंग के सदस्यों ने असलम का जीवन बीमा करा दिया.

रुखसार को उस का नौमिनी बनाया गया. जब उस के पति की मृत्यु हुई, रुखसार के नाम से एक फरजी खाता खोला गया और उस में बीमा की रकम डाल कर गैंग के सदस्यों द्वारा निकाल ली गई. बैंक में दिए गए मोबाइल नंबर भी गलत थे, जिस से रुखसार को कोई जानकारी नहीं मिली.

रुखसार ने बीमा कंपनी से संपर्क किया तो उसे पता चला कि उस के पति का बीमे का क्लेम पहले ही हो चुका है. रुखसार के बैंक खाते में क्लेम की रकम नहीं आई.

कई राज्यों में फैला हुआ था जालसाजी का नेटवर्क

इस मामले की जांच में सामने आया कि बुलंदशहर जिले के कस्बा अनूपशहर स्थित यस बैंक के 2 डिप्टी मैनेजरों ने फरजी दस्तावेजों पर गिरोह के सदस्य का खाता खोला था. रुखसार के क्लेम की रकम गिरोह के खाते में आई और वह निकाल कर ले गए.

जब पुलिस ने जांच की तो बैंकिंग प्रक्रियाओं में बड़े पैमाने पर गड़बड़ी का पता चला. बैंककर्मियों ने खाताधारक की उपस्थिति के बिना ही खाते खोल दिए, जिस से ठगी की योजना को अंजाम दिया गया. उक्त बैंक के दोनों डिप्टी मैनेजरों को पुलिस ने जेल भेज दिया.

एएसपी अनुकृति शर्मा के निर्देश पर गैंग का खुलासा करने के बाद सभी 10 बीमा कंपनियों को एक लेटर लिखा. उन से 2 साल का डेटा मांगा. इस में सिर्फ उन पौलिसी की डिटेल्स मांगी गईं, जिन में बीमा होने और मरने में सिर्फ एक साल का अंतर रहा हो.

डेटा एनालिसिस करने के बाद एसबीआई लाइफ की 7.27 करोड़, पीएनबी मेटलाइफ की 2 करोड़ रुपए से ज्यादा, कैनरा एचएसबीसी की 7.44 करोड़ रुपए, इंडिया फस्र्ट की 10.33 करोड़ रुपए, आईसीआईसीआई प्रूडेंशियल लाइफ की 4. कुछ ही कंपनियों द्वारा भेजे गए डेटा में 50 करोड़ रुपए की बीमा पौलिसी सस्पेक्टेड पाई गईं. बाकी बीमा कंपनियों ने कथा संकलन तक डेटा नहीं दिया था.

इन में करीब 70 फीसदी लोगों की मौत का कारण हार्टअटैक बताया है. इस से स्पष्ट होता है कि गैंग ने डाक्टरी रिपोर्ट और मृत्यु प्रमाण पत्र सब स्वयं के द्वारा तैयार किए गए होंगे. बीमा कंपनियों से प्राप्त रिपोर्ट के अनुसार बीमा पौलिसी उत्तर प्रदेश के अलावा उत्तराखंड, हरियाणा, गुजरात, झारखंड, दिल्ली, बिहार, असम, वेस्ट बंगाल, छत्तीसगढ़ आदि राज्यों में हुई थीं.

यानी इन का नेटवर्क पूरे देश में फैला था. चूंकि यह गैंग पिछले 8 सालों से काम कर रहा था और अभी पुलिस को सिर्फ 2 साल का डेटा मिला है, इसलिए अनुमान है कि फरजी पौलिसी की रकम 100 करोड़ रुपए से भी पार पहुंच सकती है. पुलिस अप्रैल 2025 तक गैंग के 30 लोगों को गिरफ्तार कर चुकी थी.

गिरफ्तार किए गए आरोपियों में मुख्य रूप से अमित ड्राइवर, ओंकारेश्वर मिश्रा के अतिरिक्त धनारी थाना क्षेत्र के गांव भैयापुर का शाहरुख खान, संजू, अरुण किशोर, हीरेंद्र कुमार, प्रेमपाल, प्रेम सिंह, बुलंदशहर जिले की थाना डिबाई क्षेत्र के गांव बाधौर की नीलम थी.

नीलम आशा कार्यकर्ता है, अन्य मुख्य अभियुक्त अमित पुत्र हीरालाल निवासी मसजिद मोहल्ला बबराला, हाल निवासी अलीपुर चोपला, थाना गजरौला, नितिन चौधरी (डिप्टी मैनेजर, यस बैंक, अनूप शहर ब्रांच) निवासी देवीपुरा मोहल्ला, बुलंदशहर, अभिनेश राघव (डिप्टी मैनेजर, यस बैंक, बुलंदशहर ब्रांच), ईस्ट इंडिया इनवेस्टिगेशन कंपनी के मालिक शैलेंद्र कुमार, नरेश कुमार तथा नरेश का बेटा आकाश यादव निवासी मोहल्ला बाजार कस्बा बिलारी जिला मुरादाबाद है. कुछ लोग अभी फरार हैं, जिन के खिलाफ अदालत में काररवाई की जा रही है.

संभल में हुए बीमा घोटाले में कई थानों की पुलिस ने काररवाई की. इस घोटाले में रजपुरा और गुन्नौर थाना पुलिस ने मुख्य रूप से अंतरराज्यीय गिरोह के सदस्यों को गिरफ्तार किया.

बीमा घोटाला गैंग के खिलाफ प्रभावी काररवाई एसएचओ (थाना रजपुरा) हरीश कुमार, एसएचओ (गुन्नौर) अखिलेश कुमार, दीपक कुमार (सीओ गुन्नौर), एडिशनल एसपी अनुकृति शर्मा और एसपी कृष्ण कुमार बिश्नोई के नेतृत्व में हुई.

कथा लिखने तक जांच जारी थी. घोटाला कहां तक पहुंचेगा, अभी कुछ कहा नहीं जा सकता.

50 लाख के क्लेम के लिए विकलांग को कुचला

पहली अगस्त, 2024 को संभल जिले के बिसौली थाना क्षेत्र के ढीलवारी गांव निवासी राजेंद्र ने अपने भाई दरियाब जाटव की मौत के संबंध में एफआईआर दर्ज कराई थी. दरियाब 21 जुलाई, 2024 को बाजार जाने की बात कह कर घर से निकला था, लेकिन वह देर शाम तक भी घर वापस नहीं आया. संभावित स्थानों पर तलाश भी किया गया, दरियाब का पता नहीं चला.

सैनिक चौराहे से चंदौसी के आटा गांव जाने वाली सड़क पर करीब डेढ़ सौ मीटर की दूरी पर रात 10 बजे दरियाब का शव मिला सूचना मिलने पर राजेंद्र भी मौके पर पहुंचा. घटनास्थल देख कर ऐसा लग रहा था कि दरियाब की मौत सड़क दुर्घटना में हुई है.

राजेंद्र के कहने पर और लोगों ने भी अज्ञात वाहन की टक्कर से उसकी मृत्यु होना स्वीकार कर लिया. पुलिस को सूचना दी गई. मौका मुआयना करने के बाद पुलिस ने शव को कब्जे में ले कर पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया था.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मौत का कारण सिर में चोट और पूरे शरीर पर छिलने जैसे निशान बताए गए थे. पोस्टमार्टम रिपोर्ट एक्सीडेंट मामले की ओर इशारा कर रही थी. 2 अगस्त 2024 को राजेंद्र की तहरीर पर पुलिस ने अज्ञात वाहन द्वारा टक्कर मार देने से हुई मृत्यु का मुकदमा दर्ज कर लिया. पुलिस ने मामले को सड़क हादसा दिखाते हुए फाइनल रिपोर्ट लगा दी थी.

बीमा कंपनी टाटा एआईए को इस मामले में शक हुआ. दरियाब के नाम की एक साल पहले बीमा पौलिसी की गई थी. बीमा कंपनी ने पुलिस को सूचना दी. संभल जिले में बीमा घोटाला माफिया गिरोह पुलिस के हत्थे चढ़ चुका था. उस की जांच भी चल रही थी. इस घोटाले की जांच का नेतृत्व एएसपी अनुकृति शर्मा कर रही थीं. इसलिए बीमा कंपनी की शिकायत संभल के एसपी कृष्ण कुमार बिश्नोई ने एएसपी अनुकृति शर्मा को जांच हेतु सौंप दी. 9 महीने पहले दिव्यांग दरियाब की सड़क दुर्घटना की फाइल बंद चुकी थी.

बीमा कंपनी की शिकायत पर फिर से फाइल ओपन की गई. जांच में पता चला कि सड़क दुर्घटना में मौत का शिकार हुए व्यक्ति की 5 बीमा पौलिसी कराई गई थीं. एक सवाल था कि दिव्यांग दरियाब कोई काम नहीं करता था. 5 पौलिसी की किस्तें जमा करने के लिए उस के पास पैसा कहां से आता था.

जांच में सामने आया कि दरियाब दिव्यांग होने के कारण ट्राई साइकिल पर चलता था. उस का एक्सीडेंट उस के घर से करीब 27 किलोमीटर दूर हुआ था. अब सवाल यही उठ रहा था कि वह आखिर 27 किलोमीटर की दूरी पैदल चलकर कैसे पहुंच गया. क्योंकि घटनास्थल पर दिव्यांग की ट्राई साइकिल बरामद नहीं हुई थी.

इस के बाद पुलिस ने आगे की जांच की तो पता चला एक्सिस बैंक के एडवाइजर पंकज राघव ने दरियाब की पौलिसी की थी. पुलिस ने उस की काल डिटेल्स खंगाली. काल डिटेल्स में पंकज, हरिओम और विनोद की बात सामने आई. पुलिस ने तीनों से पूछताछ की तो पूरा मामला खुल गया.

दरअसल, हरिओम और विनोद नामक 2 सगे भाई एक्सिस बैंक में लोन लेने के लिए गए थे. वहां उन का सिविल खराब होने के कारण लोन देने से मना कर दिया. यहां उन की मुलाकात एक्सिस बैंक के इंश्योरेंस पौलिसी एडवाइजर पंकज राघव से हुई. लोन न मिलने पाने की स्थिति में तीनों की बातचीत का सिलसिला आगे बढ़ा तो शातिर दिमाग पंकज राघव ने पौलिसी हड़पने का घटिया प्लान तैयार किया.

दोनों भाइयों ने मिल कर गरीब दिव्यांग का प्लानिंग के अनुसार दरियाब का 50.68 लाख रुपए का 5 अलगअलग बीमा कंपनियों से एक्सीडेंटल बीमा करवाया. दरियाब के भाई राजेंद्र को विश्वास में लिया. पंकज ने खुद को बचाते हुए बीमा में नौमिनी तो राजेंद्र को बनाया, लेकिन मोबाइल नंबर अपना डलवा दिया, ताकि भविष्य में मैसेज उसी को मिलें. खाते खुलवाए गए आधार कार्ड आदि सभी कागजात राजेंद्र से अपने कब्जे में ले लिए.

क्लेम के कागज तैयार कर के उस पर राजेंद्र के अंगूठे, हस्ताक्षर भी ले लिए. बीमा की किस्तें भी एक साल तक लगातार जमा करते रहे. 31 जुलाई को प्रताप, हरिओम और विनोद दरियाब को कार में बैठा कर चंदौसी लाए.

दरियाब को शराब पिलाई गई और फिर आटा गांव रोड के पास सुनसान जगह पर कार से बाहर निकल कर नशे में बेहोश दरियाब को सड़क पर डाल दिया. उस के ऊपर कार चढ़ा दी गई. कार से कुचलने के बाद भी उस की मौत नहीं हुई तो हथौड़े से उस के सिर पर वार किए गए. जिस से उस की मौत हो गई.

दरियाब की मौत के बाद 50.68 लाख रुपए के कुल बीमे में से इन लोगों ने 15.68 लाख रुपए पुलिस की गिरफ्त में आने से पहले ही हड़प लिए थे. बाकी राशि उन को नहीं मिल पाई थी. दिलचस्प बात यह है कि राजेंद्र के हाथ एक पैसा नहीं लगा. राजेंद्र को प्लानिंग की कोई जानकारी भी नहीं दी गई.

इस खुलासे को अंजाम देने वाली टीम को विभाग की तरफ से 25 हजार रुपए का ईनाम देने की घोषणा की गई. गिरोह के 4 आरोपियों को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था. सड़क दुर्घटना के 9 महीने बाद 30 अप्रैल, 2025 को पूरे मामले का खुलासा संभल के एसपी कृष्ण कुमार बिश्नोई ने प्रैस कौन्फ्रैंस में किया.  UP Crime News

 

 

UP News : यूनिवर्सिटी में फरजी डिगरी चेयरमैन निकला 5 लाख का इनामी

UP News : हापुड़ में स्थित मोनाड यूनिवर्सिटी फरजी मार्कशीट और डिग्रियां बेचने का अड्डा बनी हुई थी. देश भर में तैनात दलाल 5 हजार रुपए से ले कर 5 लाख रुपए में यह गोरखधंधा कर रहे थे. चौंकाने वाली बात तो यह है कि इस यूनिवर्सिटी का चेयरमैन और अघोषित चांसलर विजेंद्र सिंह हुड्डा 15 हजार करोड़ रुपए के फ्रौड का आरोपी है, जिस पर 5 लाख का इनाम भी घोषित था. आखिर कैसे चल रहा था यह गोरखधंधा?

लोग अकसर उन लोगों से सवाल पूछते हैं, जो अपने बच्चों को विदेशों में पढ़ाई करने भेजते हैं कि हमारे देश में भी तो अच्छे कालेज और यूनिवर्सिटी हैं, बच्चों को देश में क्यों नहीं पढ़ाते? कुछ लोग अकसर ऐसे भी सवाल उठाते हैं कि विश्वस्तरीय शिक्षण संस्थानों की रैंकिंग में भारत के शिक्षण संस्थान क्यों नहीं शामिल हैं?

ऐसे तमाम सवालों का एक ही जवाब है कि भारत में शिक्षण संस्थानों ने शिक्षा को धंधा बना लिया है. वे न तो शिक्षण संस्थानों के संचालन के लिए बनी नियमावली का पालन करते हैं, न ही सरकार उन की निगरानी और नियमों का पालन नहीं करने पर कड़ी काररवाई करती है. इसलिए कुकुरमुत्तों की तरह खुले स्कूल, कालेज और यूनिवर्सिटी स्टूडेंट को बिना कोई हुनर दिए मोटी रकम ले कर प्रसाद की तरह डिग्रियां बांट रहे हैं.

कहीं दूर जाने की जरूरत नहीं, दिल्ली से केवल 50 किलोमीटर की दूरी पर हापुड़ जिले में एक ऐसी यूनिवर्सिटी का खुलासा हुआ है, जहां बिना पढ़ाई और परीक्षा के मोटा पैसा ले कर छात्रों को डिग्रियां बांटी जा रही थीं. इस का संचालक एक ऐसा शख्स था, जो पश्चिमी उत्तर प्रदेश में राजनीति की दुनिया का जानामाना नाम था. लोगों से ठगी और जालसाजी करने का उस का पुराना अतीत भी रहा है.

शिक्षा को धंधा बनाने वाले इस मामले की कहानी जान कर आप भी दांतों तले अंगुली दबा लेंगे. बीते दिनों यूपी एसटीएफ चीफ को एक लिखित शिकायत मिली थी. दरअसल, हरियाणा के एक विश्वविद्यालय में नौकरी पाए शख्स किशनपाल सिंह ने पीएचडी की फरजी डिग्री लगा दी और वहां असिस्टेंट प्रोफेसर बन गया. नौकरी देने के बाद यूनिविर्सिटी ने किशनपाल सिंह के शैक्षणिक प्रमाणपत्रों की जांचपड़ताल कराई. सारे प्रमाणपत्रों का तो सत्यापन हो गया, लेकिन पीएचडी की डिग्री किसी भी औनलाइन डाटाबेस में नहीं मिली. पीएचडी की ये डिग्री हापुड़ में पिलखुआ रोड पर बनी मोनाड यूनिवर्सिटी से जारी की गई थी.

ऐसे में हरियाणा की यूनिवर्सिटी ने किशनपाल के खिलाफ कानूनी काररवाई करते हुए उत्तर प्रदेश के शिक्षा विभाग को एक पत्र लिखा, जिस में मोनाड यूनिवर्सिटी की फरजी पीएचडी डिग्री का जिक्र कर जांच करने के लिए कहा गया था. किशनपाल सिंह की नियुक्ति तो रद्द हो गई और उस के खिलाफ शिकायत की पुलिस में जांच शुरू हो गई. इधर जब यूपी सरकार को हरियाणा की यूनिवर्सिटी से मोनाड यूनिवर्सिटी की फरजी डिग्री के बारे में लेटर मिला तो शिक्षा विभाग ने यूपी एसटीएफ के चीफ अमिताभ यश से यूनिवर्सिटी की जांच कराने का आदेश दिया.

इस शिकायत की जांच का काम एसटीएफ लखनऊ में तैनात डीएसपी संजीव दीक्षित को सौंपा गया. एसटीएफ मुख्यालय ने मामले की जांच मेरठ टीम को इसलिए नहीं दी, क्योंकि मेरठ की लोकल टीम के इनवौल्व होने पर मास्टरमाइंड विजेंद्र हुड्डा को भनक लग सकती थी और वह छापेमारी की काररवाई से पहले ही चौकन्ना हो सकता था. दरअसल, इस यूनिविर्सिटी का संचालक विजेंद्र सिंह हुड्डा मेरठ का ही रहने वाला है और राजनीति में बड़ा रसूखदार आदमी है.

डीएसपी संजीव दीक्षित ने अपनी टीम के सब से तेजतर्रार इंसपेक्टर ओमशंकर शुक्ला और उन की टीम को इस केस की जांच के काम पर लगा दिया. साथ ही यह भी कहा गया कि जांच का काम बेहद गुप्त तरीके से हो ताकि किसी को भनक न लगे. एसटीएफ ने जांचपड़ताल शुरू कर दी.

मोनाड यूनिवर्सिटी की स्थापना से ले कर उस के संचालन और कामकाज की जानकारी के साथ कि वहां पढऩे वाले करीब 7 हजार स्टूडेंट के बीच से मुखबिरों के जरिए जानकारी जुटाई जाने लगी. इस यूनिवर्सिटी की छवि के बारे में भी पता किया गया तो पता चला कि पिछले काफी लंबे समय से मोनाड यूनिवर्सिटी के खिलाफ फरजी डिग्री बनाने की चर्चा है. यूं कहें तो गलत नहीं होगा कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मोनाड यूनिवर्सिटी की छवि बहुत अच्छी नहीं थी.

पुलिस ने यूनिविर्सिटी में अहम पदों पर काम करने वाले अफसरों के साथ इस के चेयरमैन विजेंद्र सिंह हुड्डा की निगरानी शुरू कर दी. जिस के बाद सामने आया कि पलवल का रहने वाला संदीप सेहरावत, जो फरजी डिग्री मामले में पहले पकड़ा जा चुका है, वह विजेंद्र सिंह का बेहद खास है. संदीप अकसर या तो खुद आता है या विजेंद्र सिंह का कोई खास आदमी उस से मिलता है. उन के बीच कुछ सर्टिफिकेट के पैकेट का आदानप्रदान होता है.

पुलिस टीम ने सब से पहले संदीप सहरावत को टारगेट पर लिया. कई दिन की निगरानी के बाद संदीप को 16 मई, 2025 की रात हिरासत में लिया गया. संयोग से जब उसे पकड़ा गया तो उस के पास पीएचडी और ला की कुछ छपी हुई फरजी डिग्रियां भी थीं. उसे हिरासत में ले कर जब पूछताछ की गई तो एसटीएफ को बहुत ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ी. इस पूरे घोटाले का परदाफाश होता चला गया. बस अब घेराबंदी कर के इस पूरे गोरखधंधे में शामिल गैंग को पकडऩा था.

एसटीएफ ने जब सारी तैयारियां कर लीं तो 17 मई की सुबह हापुड़ पुलिस के एसपी राजेश कुमार से बात कर के स्थानीय पिलखुआ पुलिस की टीम को साथ ले कर छापेमारी की काररवाई शुरू की गई. यूनिवर्सिटी के सभी एंट्री व एग्जिट गेट बंद कर वहां पुलिस तैनात कर दी गई. यूनिवर्सिटी के चांसलर विजेंद्र सिंह हुड्डा समेत करीब 10 ऐसे लोग जांच में जिन की भूमिका संदिग्ध दिखी, उन्हें हिरासत में ले लिया गया. सभी के मोबाइल फोन जब्त कर लिए गए. करीब 5 घंटे तक मोनाड यूनिवर्सिटी में एसटीएफ की जांच और तलाशी का काम चला. इस दौरान करीब 1,372 फरजी डिग्री  मार्कशीट और डिग्रियां रिकवर हुईं.

बरामद हुईं सैकड़ों फरजी डिग्रियां और मार्कशीट

एसटीएफ ने इस पूरी काररवाई में 1,372 फरजी मार्कशीट, डिग्रियां, 262 फरजी प्रोविजनल और माइग्रेशन सर्टिफिकेट, 14 मोबाइल फोन, एक आईपैड, 7 लैपटाप, 26 इलेक्ट्रौनिक डिवाइसेस (सर्वर) और 6,54,800 रुपए और एक सफारी कार व 35 लग्जरी गाडिय़ों की चाबियां बरामद की गईं. बरामद फरजी मार्कशीट का डेटा यूनिवर्सिटी की वेबसाइट पर नहीं मिला तो पता चला कि ये सर्वर रूम के रिकौर्ड में दर्ज हैं, इसलिए एसटीएफ ने पूरे सर्वर रूम को ही सील कर दिया. इसे जांच के लिए लखनऊ में फोरैंसिक जांच के लिए भेजा जाएगा.

इस घोटाले में विश्वविद्यालय के चेयरमैन चौधरी विजेंद्र सिंह उर्फ विजेंद्र हुड्डा, प्रो. चांसलर नितिन कुमार सिंह, वाइस चांसलर, एडमिशन डायरेक्टर इमरान, वेरिफिकेशन हेड गौरव शर्मा सहित कुल 10 आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया गया. पूछताछ में पता चला कि यह गिरोह सालों से छात्रों से लाखों रुपए वसूल कर फरजी डिग्रियां और मार्कशीट बेच रहा था.

उत्तर प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था को झकझोर कर रख देने वाला एक बड़ा घोटाला सामने आने के बाद गाजियाबाद से ले कर लखनऊ तक हडकंप मच गया. क्योंकि हापुड़ स्थित मोनाड यूनिवर्सिटी में फरजी डिग्री रैकेट का यह गोरखधंधा कई साल से चल रहा था. एसटीएफ की इस काररवाई ने उस सच्चाई को उजागर कर दिया है, जिस में शिक्षा जैसे पवित्र क्षेत्र को कुछ लोगों ने मुनाफे का धंधा बना रखा था. यूनिवर्सिटी के नाम पर फरजी डिग्रियां तैयार की जा रही थीं, जो न केवल छात्रों के भविष्य से खिलवाड़ है, बल्कि पूरी शिक्षा प्रणाली को बदनाम करने वाली साजिश भी.

बरामद किए गए इन सबूतों से साफ था कि यह कोई सामान्य गलती नहीं, बल्कि एक संगठित अपराध था. मौके पर की गई पूछताछ में पता चला कि यूनिवर्सिटी के अधिकारी मोटी रकम ले कर छात्रों को बिना परीक्षा दिए डिग्रियां जारी करते थे. बीए, बीकौम, बीएससी, एमबीए, बीटेक, एलएलबी, बीफार्मा, डीफार्मा समेत कई अन्य कोर्सेस की फरजी डिग्रियां व तकनीकी और प्रोफेशनल डिग्रियां 5 हजार रुपए से ले कर 5 लाख रुपए तक में बेची जाती थीं. इस गोरखधंधे में यूनिवर्सिटी प्रशासन के कई उच्च अधिकारी, एजेंट और बाहरी दलाल भी शामिल थे.

इस घोटाले में शामिल यूनिवर्सिटी के चेयरमैन वीरेंद्र सिंह पूरे नेटवर्क के मास्टरमाइंड है. इस गिरोह का नेटवर्क दिल्ली, मेरठ, नोएडा, हापुड़ और हरियाणा तक फैला हुआ था. सभी आरोपी बेरोजगार युवाओं की मजबूरी का फायदा उठा कर उन्हें असली डिग्री का झांसा देते थे, जिस से हजारों छात्रों का भविष्य खतरे में पड़ गया है. वैसे यह पहला मामला नहीं है. पिछले 15 सालों से चल रही मोनाड यूनिवर्सिटी पहले भी कई बार विवादों में रही है. विश्वविद्यालय अनुदान आयोग  ने 2022 में इस के कई पाठ्यक्रमों पर सवाल उठाए थे और नियमानुसार प्रमाणन की मांग की थी. इस के बावजूद विश्वविद्यालय में यह फरजीवाड़ा बेरोकटोक चल रहा था.

एसटीएफ की टीम सभी आरोपियों तथा बरामद किए सामान को ले कर पिलखुआ कोतवाली पहुंची, जहां एसटीएफ की तरफ से दी गई शिकायत के बाद आरोपियों के खिलाफ पुलिस ने जालसाजी कर फरजी दस्तावेज तैयार करने व संगठित अपराध करने पर भारतीय न्याय संहिता की धारा 318(4), 338, 340 (1), 340(2), 111 और 336(3) के तहत मुकदमा दर्ज कर 11 आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया.

गिरफ्तार आरोपियों की पहचान संदीप सहरावत निवासी गांव चिरवाड़ी, जिला पलवल, हरियाणा, विजेंद्र सिंह हुड्डा निवासी कंकरखेड़ा मेरठ, मुकेश ठाकुर निवासी कटवारिया सराय, नई दिल्ली, अनिल बत्रा सेक्टर 47 नोएडा,  नितिन सिंह, आनंदलोक रुड़की रोड मेरठ,  गौरव शर्मा निवासी रोशनपुर डार्ली रुड़की रोड हापुड़, सन्नी कश्यप निवासी अर्जुन नगर हापुड़, इमरान निवासी हापुड़,  कुलदीप कुमार सिंह निवासी गांव बलवंतनगर जिला बुलंदशहर,  विपुल ताल्या निवासी स्वर्ग आश्रम रोड हापुड़ के रूप में हुई हैं.

एकएक कर सभी आरोपियों से इस पूरे फरजीवाड़े को ले कर पूछताछ हुई तो पता चला कि इस का मास्टरमाइंड और जाली डिग्री रैकेट का सरगना 46 साल का विजेंद्र सिंह हुड्डा है, जो मेरठ के मवाना के एक गांव का रहने वाला है. विजेंद्र सिंह के पिता एक जमाने में मवाना स्थित एक भट्ठे पर मुनीम का काम करते थे. 10वीं तक की पढ़ाई करने के बाद विजेंद्र सिंह भी उसी ईंट के भट्ठे पर नौकरी करने लगा. बचपन से ही महत्त्वाकांक्षी और बड़ा आदमी बनने का सपना देखने वाला विजेंद्र सिंह दिलेर और बातचीत का धनी इंसान था. उस में लोगों को प्रभावित करने और उन से संबंध बना लेने की अद्भुत कला थी.

यही कारण रहा कि कुछ ही सालों में उस ने सामाजिक और राजनीतिक रसूखदारों से संबध बना लिए और धीरेधीरे तिकड़मबाजी कर पैसा भी बना लिया. इसी का नतीजा है कि आज मेरठ में शिवलोकपुरी तथा गंगानगर क्षेत्र की पौश डिफेंस कालोनी में उस के आलीशान मकान हैं, जहां मेरठ के सांसद अरुण गोविल समेत तमाम वीआईपी रहते हैं.

बताते हैं कि विजेंद्र सिंह ने 2005 के बाद कुछ समय तक चीन में लैपटाप और टैबलेट बेच कर करोड़ों रुपए कमाए. वर्ष 2010 में उस ने चीन से लौट कर भारत में यह कारोबार शुरू किया और यहां भी उस ने करोड़ों रुपए कमाए. इस के बाद उस ने देश के नामी पत्रकारों के साथ मिल कर एक न्यूज चैनल शुरू किया. इस के जरिए उस ने यूपी के बड़े नौकरशाहों के साथ ही देश के तमाम चर्चित नेताओं से अपने संपर्क बनाए. वर्ष 2018 में उस ने अपने न्यूज चैनल को बेच दिया और दूसरे कारोबार करने में जुट गया. परंतु उसे सफलता नहीं मिली.

बाद में वह ग्रेटर नोएडा के ग्राम चीती में रहने वाले संजय भाटी, जिस ने साल 2010 में गर्वित इनोवेटिव प्रमोटर्स लिमिटेड नाम से कंपनी बनाई थी, उस के संपर्क में आया. 2018 में संजय भाटी ने बाइक बोट स्कीम लांच करते हुए बाइक टैक्सी की शुरुआत की. इस के तहत एक निवेशक से एक बाइक की कीमत करीब 62 हजार रुपए ली गई. उन्हें हर महीने 9 हजार 765 रुपए लौटाने का वादा किया गया. एक साल बाद कंपनी ने रुपए लौटाने बंद कर दिए.

बाइक बोट से बटोरे 15 हजार करोड़ रुपए

नेटवर्किंग कंपनी अपने निवेशकों के हजारों करोड़ रुपए ले कर भाग गई. इस के बाद धड़ाधड़ मुकदमे दर्ज होने शुरू हुए. उत्तर प्रदेश, दिल्ली, राजस्थान, मध्य प्रदेश, हरियाणा सहित कई राज्यों में कई सौ मुकदमे दर्ज हुए. 118 मुकदमों की जांच यूपी पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा  ने की थी. सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर दर्ज हुए 118 मुकदमों में ईओडब्लू मेरठ चार्जशीट लगा चुकी है. नोएडा की अदालत में ईओडब्लू ने जिन 31 लोगों को आरोपी बनाया गया है, उस में विजेंद्र सिंह हुड्डा भी है. बाइक बोट कंपनी के घोटाले मे विजेंद्र भी संजय भाटी के साथ शामिल था और आरोपी भी था, लेकिन वह इतना शातिर था कि कहीं भी सीधे तौर पर नहीं जुडा था.

जब संजय भाटी कई हजार करोड़ का घपला कर के भागा और विजेंद्र हुड्डा के पीछे पुलिस लगी तो सालभर से ज्यादा समय तक विजेंद्र हुड्डा अपनी एक महिला सहयोगी मित्र दीप्ति बहल को ले कर लंदन भाग गया, जहां एक साल तक फरारी बिताई. जांच एजेंसियों को उस के खिलाफ लुकआउट नोटिस जारी करना पड़ा था. इस दौरान उस पर 5 लाख रुपए का इनाम भी घोषित हुआ. बाद में अपने राजनीतिक प्रभाव तथा पैसे के बल पर गोटियां फिट कर के वह भारत लौटा और नोएडा कोर्ट में पेश हो कर उसे जमानत करानी पड़ी. कोर्ट से राहत मिलने के बाद विजेंद्र हुड्डा ने पौलिटिक्स में हाथ आजमाने का फैसला किया.

2020 में बाइक बोट घोटाले में जमानत पर छूटने के बाद कोविड महामारी का प्रकोप शुरू हुआ तो उस वक्त लोग जिंदगी बचाने को मारेमारे फिर रहे थे, लेकिन उस वक्त विजेंद्र सिंह का कारोबार विकास कर रहा था. उसी दौर में उस ने 2022 में हापुड़ के पिलखुआ में मोनाड यूनिवर्सिटी को खरीद लिया. तेजी से पैसा कमाने के लिए उस ने बड़े स्तर पर फरजी डिग्रियां व सर्टिफिकेट बेचने का धंधा शुरू कर दिया. गलत काम करने वाले को हमेशा राजनीतिक संरक्षण की तलाश रहती है. विजेंद्र सिंह हर कला में माहिर था. वह राजनीतिक संरक्षण के लिए भाजपा में शामिल होना चाहता था, लेकिन बाइक बोट घोटाले में नाम आने के बाद उस को वहां एंट्री नहीं मिल सकी.

इस के बाद 2022 में उस ने सुनील सिंह के साथ लोकदल में बड़ा पद हासिल कर लिया. नाम और शोहरत पाने के लिए उस ने चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न देने व किसानों के मुद्ïदों को ले कर कई रैलियां और प्रदर्शन किए. उसे शोहरत तो मिली, लेकिन इतना सब खर्च करने के बावजूद जब मजबूत मुकाम नहीं मिल सका तो उस ने चुनाव से ठीक पहले लोकदल से इस्तीफा दे कर बहुजन समाज पार्टी (बसपा) का दामन थाम लिया. वह बसपा के टिकट पर बिजनौर से 2024 में लोकसभा का चुनाव लड़ा, हालांकि चुनाव में उसे पराजय हाथ लगी. लेकिन इस के कारण उस के सामने दूसरे दलों में प्रवेश के लिए राजनीतिक दरवाजे जरूर खुल गए.

उस के बाद उस ने फिर से भाजपा में प्रवेश करने का प्रयास किया, लेकिन स्थानीय जाट व ठाकुर नेताओं के विरोध के चलते कामयाब नहीं हो सका. चुनाव के कुछ समय बाद ही विजेंद्र ने बसपा को अलविदा कह दिया और राष्ट्रीय लोकदल की सदस्यता ले ली. क्योंकि रालोद के भाजपा के साथ आने से उस को नई उम्मीद दिखने लगी थी. वह रालोद के साथ जुड़ कर सत्ता पक्ष का करीबी बनना चाहता था. मोनाड यूनिवर्सिटी का चेयरमैन बन चुके चौधरी विजेंद्र सिंह हुड्डा के पास अब अकूत संपत्ति भी थी और वह वेस्ट यूपी का प्रसिद्ध राजनीतिज्ञ व सामाजिक कार्यकर्ता भी था.

यह उस का समाज में दिखावे के जीवन का औरा था. लेकिन इस कथित छवि को बचाने के लिए 5 साल से राजनीतिक संरक्षण पाने की जो मारामारी वह कर रहा था, उस में अभी तक सफलता नहीं मिली थी. विजेंद्र हुड्डा जो काम कर रहा था, उस के लिए उसे सत्ता का आश्रय चाहिए था. जिस से वह कभी फंसे तो किसी बड़ी काररवाई से बच सके. राष्ट्रीय लोकदल के अध्यक्ष जयंत चौधरी से उस की बातचीत चल रही थी ताकि वह उसे पार्टी में कोई बडा पद दे सकें और वह यूपी सरकार की भागीदार पार्टी का लाभ उठा सके. लेकिन वह इस में कामयाब होता, इस से पहले ही एसटीएफ ने उस के बड़े फरजीवाड़े का परदाफाश कर दिया.

विजेंद्र सिंह कितना शातिर है, इस का पता इसी बात से चलता है कि वह मोनाड यूनिवर्सिटी का चांसलर है. लेकिन यूनिवर्सिटी की वेबसाइट में उस का कहीं कोई जिक्र नहीं है. हुड्डा के कई और भी कालेज हैं. अब वह मेरठ में एक नया कालेज खोलने की भी तैयारी कर रहा था. उस के काले धंधों की भनक मेरठ के ज्यादातर मीडिया वालों को थी, लेकिन करीबी संबंधों और उन के बीच पैसा बांटने के कारण कभी किसी ने उस के कारनामों को उजागर करने की कोशिश नहीं की.

विजेंद्र सिंह ने 2024 के लोकसभा चुनाव में दिए गए अपने शपथपत्र में जानकारी दी थी कि 2024 में उस के पास 28 करोड़ की संपत्ति थी, जबकि 230 करोड़ की देनदारी थी. उस की 2022-23 में वार्षिक आय मात्र 15 लाख रुपए ही थी.

इस मामले की अब ईडी भी करेगी जांच

मोनाड विश्वविद्यालय की फरजी मार्कशीट मामले में एसटीएफ और पिलखुवा पुलिस ने 19 मई को अगले दिन फरीदाबाद के हाई स्ट्रीट 81 माल से एक अन्य आरोपी राजेश को भी गिरफ्तार किया, जो मुकेश कालोनी बल्लभगढ़, फरीदाबाद का रहने वाला है. राजेश की निशानदेही पर पुलिस ने बड़ी मात्रा में फरजी दस्तावेज बरामद किए. इन में मोनाड विश्वविद्यालय की 957 खाली मार्कशीट, 223 खाली सर्टिफिकेट और 575 खाली प्रोविजनल सर्टिफिकेट शामिल थे. इस के अलावा 2 प्रिंटर, कारट्रेज, मोनोग्राम सील का एक बंडल, एक कंप्यूटर और 49 तैयार की गई फरजी मार्कशीट भी मिली थीं.

राजेश सब से पहले पकड़े गए आरोपी संदीप सहरावत के साथ विजेंद्र सिंह का बेहद करीबी साथी था. संदीप व राजेश दोनों मिल कर फरजी मार्कशीट छापने का काम करते थे. संदीप के पकड़े जाने के बाद राजेश फरार हो गया था. राजेश ही वह शख्स है, जो फरजी डिग्री छापने के बाद उन की डिलीवरी करने के लिए ज्यादातर मोनाड यूनिवर्सिटी ले कर जाता था. बताया जा रहा है कि एसटीएफ की इस रिपोर्ट के आधार पर ईडी के अधिकारी विजेंद्र सिंह हुड्डा के चंद सालों में खड़े किए गए विशाल साम्राज्य की जांच कर सकते हैं. यह भी पता लगाएंगे कि 15 हजार करोड़ रुपए के बाइक बोट घोटाले में नाम आने के बाद 5 लाख रुपए का इनामी विजेंद्र सिंह कैसे विदेश भागा और फिर वहां से वापस आने के बाद उस की जमानत कैसे हो गई.

फिर वह बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के टिकट पर कैसे बिजनौर से बीता लोकसभा का चुनाव लड़ा और उस के बाद कैसे वह मोनाड यूनिवर्सिटी की फरजी मार्कशीट बेचने का घंधा करने लगा. फिलहाल एसटीएफ के अधिकारियों को मोनाड यूनिवर्सिटी से पकड़े गए संदीप कुमार उर्फ संदीप सहरावत, जो हरियाणा का रहने वाला है, ने यह बताया है कि वह यूनिवर्सिटी के चेयरमैन विजेंद्र सिंह हुड्डा के कहने पर फरजी मार्कशीट व डिग्री छापता था और विजेंद्र सिंह का खास राजेश इस काम में उस की मदद करता था.

उस ने बताया कि वह बीते 3 सालों से यह धंधा कर रहा था. यह सब भी तब हो रहा था जबकि इस रैकेट का मास्टरमाइंड विजेंद्र सिंह बाइक बोट घोटाले का आरोपी है तथा ईओडब्ल्यू के साथ ईडी बाइक बोट घोटाले की जांच कर रही है. ऐसे में अब विजेंद्र सिंह हुड्डा की गिरफ्तारी के बाद मोनाड यूनिवर्सिटी पर ईडी का भी शिकंजा कसना तय है, क्योंकि आशंका जताई जा रही है कि बाइक बोट घोटाले से जुटाई गई रकम विजेंद्र सिंह हुड्डा ने मोनाड यूनिवर्सिटी में निवेश किया है. एसटीएफ की अब तक जांच में पता चला है कि पलवल में रहने वाला संदीप सहरावत इस रैकेट का दूसरा मास्टरमाइंड है, जो महज 12वीं तक पढ़ा हुआ है.

उस ने 15 साल पहले हथीन में एक कंप्यूटर सेंटर से शुरुआत की थी और बाद में नकली मार्कशीट बनवाने का अवैध धंधा शुरू कर दिया. धीरेधीरे इस गोरखधंधे से उस ने करोड़ों की संपत्ति बना ली. पलवल के चिरावड़ी गांव में उस की अलीशान कोठी, फुल बौडी स्कैनर, हाईसिक्योरिटी कैमरे और लग्जरी गाडिय़ां उस की गैरकानूनी कमाई की गवाही देते हैं. संदीप 3 साल पहले विजेंद्र हुड्डा के संपर्क में आया था. जब विजेंद्र को संदीप के हुनर की जानकारी मिली तो दोनों ने हाथ मिला लिया. संदीप की फरजी मार्कशीट को हापुड़ की मोनाड यूनिवर्सिटी मान्यता देने लगी और इन्हें छात्रों को 50 हजार से ले कर 4 लाख रुपए तक में बेचा जाने लगा.

संदीप को प्रति मार्कशीट 5 हजार रुपए मिलते थे. गिरोह के सदस्य यूनिवर्सिटी तक मार्कशीट पहुंचाते और वेरिफिकेशन दिखाने में सहयोग करते थे. गोरखधंधे की कमाई बनी संदीप की आलीशान कोठी इतनी भव्य है कि हरियाणवी डांसर सपना चौधरी ने भी यहां अपने गाने की शूटिंग की थी. वह खुद को बिजनेसमैन बताता था और आमतौर पर फाच्र्यूनर जैसी लग्जरी गाडिय़ों में चलता था. कोठी में उस की पत्नी और 2 बच्चे रहते हैं. पुलिस ने अभी तक गिरफ्तार सभी 12 आरोपियों को हापुड़ कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया है और उन से बरामद किए गए दस्तावेजों की जांच की जा रही है.

सवालों के घेरे में प्राइवेट यूनिवर्सिटी मौडल

हापुड़ की मोनाड यूनिवर्सिटी में हुआ फरजी डिग्री व मार्कशीट का घोटाला प्राइवेट यूनिवर्सिटी मौडल की निगरानी और पारदर्शिता पर भी सवाल खड़े करता है. अकसर देखा गया है कि कुछ निजी विश्वविद्यालय केवल मुनाफा कमाने के उद्ïदेश्य से खोले जाते हैं और वहां शिक्षा की गुणवत्ता या पारदर्शिता का अभाव होता है. मोनाड यूनिवर्सिटी का मामला इसी चिंताजनक स्थिति को उजागर करता है. आशंका है कि यह गिरोह केवल उत्तर प्रदेश तक सीमित नहीं है. बरामद किए गए दस्तावेजों और डिजिटल डेटा से यह संकेत मिल रहे हैं कि इस रैकेट का नेटवर्क अन्य राज्यों और संभवत: विदेशों तक फैला हो सकता है.

जांच एजेंसियां अब उन डिग्रियों और प्रमाणपत्रों की सूची तैयार कर रही हैं, जो इस यूनिवर्सिटी से जारी किए गए थे, ताकि उन के धारकों की वैधता की जांच की जा सके. इस घोटाले के सामने आने के बाद शिक्षा मंत्रालय की निगरानी प्रणाली पर भी सवाल उठने लगे हैं. आखिर कैसे इतनी बड़ी संख्या में फरजी डिग्रियां बिना किसी सरकारी जांच या शिकायत के जारी होती रहीं. यह दर्शाता है कि निगरानी प्रणाली में कहीं न कहीं गंभीर खामियां हैं, जिन का सुधार तत्काल जरूरी है.

फरजी डिग्रीधारक यदि सरकारी या निजी संस्थानों में नौकरी पा जाते हैं तो इस से योग्य उम्मीदवारों का नुकसान होता है और संस्थानों की कार्यक्षमता पर भी असर पड़ता है. यह न सिर्फ व्यक्तिगत स्तर पर अन्याय है, बल्कि देश की प्रगति के रास्ते में एक बड़ी बाधा भी. इस मामले की जांच को और गहराई से करने की जरूरत है. डिजिटल सबूतों को साइबर फोरैंसिक लैब में भेजा जा रहा है. इस के साथ ही जिन एजेंटों और दलालों के नाम सामने आ रहे हैं, उन की भी तलाश की जा रही है. माना जा रहा है कि आने वाले दिनों में और भी गिरफ्तारियां हो सकती हैं.

इस घटना के बाद आम नागरिकों, खासकर छात्रों और अभिभावकों को भी अधिक सतर्क रहने की जरूरत है. किसी भी संस्थान में प्रवेश लेने से पहले उस की मान्यता, रिकौर्ड और विश्वसनीयता की पूरी जांच करना जरूरी है. मोनाड यूनिवर्सिटी फरजी डिग्री घोटाले ने न केवल उत्तर प्रदेश बल्कि पूरे देश की शिक्षा व्यवस्था को झकझोर कर रख दिया है. यह समय है जब सरकार, शिक्षा विभाग और न्यायिक संस्थाएं मिल कर ऐसी गतिविधियों पर सख्त से सख्त काररवाई करें, ताकि शिक्षा का पवित्र स्वरूप बचा रह सके. इस काररवाई से यूनिवर्सिटी समेत इस गोरखधंधे में संलिप्त लोगों में हड़कंप मचा हुआ है. UP News