UP News: रिश्तों की कच्ची डोर

UP News: घर वालों ने मनोज की शादी कर के सोचा था कि पत्नी के आने पर वह अपनी भाभी के प्रेमजाल से निकल जाएगा. लेकिन क्या ऐसा हो पाया? त्तर प्रदेश के जिला गाजियाबाद के कस्बा मोदीनगर के निकट गांव सीकरी खुर्द में हर साल चैत महीने की नवरात्र में एक विशाल मेला लगता है. इस मेले में आसपास के लोग तो आते ही हैं, अगलबगल के जिलों के भी काफी लोग आते हैं. उसी मेले में मेरठ के थाना रसूखपुर जाहिद का रहने वाला मनोज भी पत्नी संगीता और बेटी अनुष्का के साथ मेला देखने जाना चाहता था. इसलिए उस ने संगीता से कहा, ‘‘संगीता, कल सुबह जल्दी तैयार हो जाना, हम सीकरी का मेला देखने चलेंगे.’’

मनोज संगीता से अकसर लड़नेझगड़ने के साथ मारपीट करता रहता था, इसलिए संगीता ने कहा, ‘‘मुझे तुम्हारे साथ कहीं नहीं जाना है, मैं ऐसे ही ठीक हूं. मुझे मेलाठेला देखने का शौक नहीं है.’’

‘‘तुम भी जराजरा सी बात का बतंगड़ बना देती हो. अरे रात गई बात गई. रात में जो हुआ, उसे भूल जाओ. एक ओर तो कहती हो कि मैं तुम्हारे लिए कुछ करता नहीं, तुम्हें कहीं ले नहीं जाता. अब चलने को कह रहा हूं तो नखरे दिखा रही हो.’’ मनोज ने संगीता की खुशामद करते हुए कहा. संगीता कुछ कहती, उस के पहले ही मनोज की मां यानी संगीता की सास शकुंतला ने कहा, ‘‘अरे इतने प्यार से कह रहा है तो चली जा , मेला ही दिखाने तो ले जा रहा है. कुएं में धकेलने थोड़े ही ले जा रहा है.’’

‘‘इन का क्या भरोसा. मेला दिखाने के बहाने ले जा कर कहीं कुएं में ही धकेल दें. लेकिन आप कह रही हैं, इसलिए चली जाती हूं. कितने बजे निकलना है?’’ संगीता ने पूछा.

  ‘‘9 बजे तक निकलेंगे. नहाधो कर आराम से तैयार हो जाना.’’ मनोज ने कहा.

 अगले दिन रविवार था. संगीता ने बेटी अनुष्का को भी तैयार किया और खुद भी तैयार हो गई. मनोज तैयार ही बैठा था. पत्नी और बेटी को ले कर वह बस से मोदीनगर के लिए रवाना हो गया. मोदीनगर के सीकरी खुर्द पहुंच कर दिन भर वह संगीता के साथ मेले में घूमता रहा. इस बीच मनोरंजन के साथसाथ घर के लिए कुछ खरीदारी भी की. छुट्टी का दिन होने की वजह से मेले में भीड़भाड़ ज्यादा थी, डेढ़ साल की बेटी अनुष्का को मनोज खुद ही लिए था. अंधेरा होने लगा तो मनोज घर लौटने की तैयारी करने लगा. उस ने संगीता से मेले से बाहर चलने को कहा. वह तो बेटी को ले कर मेले के बाहर गया, लेकिन संगीता नहीं पाई.

कुछ देर बाहर खड़े हो कर मनोज ने संगीता का इंतजार किया. जब काफी देर तक संगीता नहीं आई तो वह उसे तलाशने के लिए फिर मेले में घुस गया. काफी देर तक वह उसे ढूंढ़ता रहा. जब रात ज्यादा होने लगी तो उस ने इस बात की जानकारी घर वालों के साथ ससुराल वालों को दी. रात ज्यादा हो गई थी और बेटी रो रही थी, इसलिए वह पत्नी के मेले में खो जाने की सूचना थाना पुलिस को दिए बगैर ही घर गया. लेकिन अगले दिन सवेरा होते ही वह थाना मोदीनगर पहुंचा और पत्नी की गुमशुदगी दर्ज करा दी.

मनोज ने संगीता के मेले में खो जाने की जानकारी ससुराल वालों को भी दे दी थी. इसलिए अगले दिन संगीता के पिता जयपाल सिंह भी थाना मोदीनगर पहुंच गए थे. लेकिन उन के पहुंचने तक मनोज संगीता की गुमशुदगी दर्ज करा कर जा चुका था. जयपाल सिंह ने थानाप्रभारी दीपक शर्मा से मिल कर बेटी के गायब होने का आरोप उस की ससुराल वालों पर लगाते हुए एक प्रार्थना पत्र दिया, जिस के आधार पर थानाप्रभारी ने संगीता के पति मनोज सिंह तथा उस के घर वालों के खिलाफ अपराध संख्या 237/2014 पर भादंवि की धाराओं 498, 420 एवं 364 के तहत मुकदमा दर्ज करा कर इस मामले की जांच सबइंसपेक्टर रोशन सिंह को सौंप दी. चूंकि रिपोर्ट नामजद दर्ज थी, इसलिए सबइंसपेक्टर रोशन सिंह ने मनोज के घर छापा मारा.

शायद रिपोर्ट दर्ज होने की जानकारी मनोज और उस के घर वालों को हो गई थी, इसलिए घर पर कोई नहीं मिला. पूरा परिवार भूमिगत हो गया था. फिर भी कोशिश कर के किसी तरह उन्होंने मनोज को हिरासत में ले ही लिया. उसे थाने ला कर पूछताछ शुरू हुई. पहले तो मनोज यही कहता रहा कि संगीता मेले में कहीं खो गई है. लेकिन जब पुलिस ने सख्ती के साथ सवालों की झड़ी लगा दी तो पुलिस के सवालों के जाल में फंसे मनोज ने स्वीकार कर लिया कि उस ने संगीता की हत्या कर के उस की लाश नहर में फेंक दी है. इस के बाद उस ने संगीता की हत्या के पीछे की जो कहानी सुनाई, वह कुछ इस प्रकार थी.

उत्तर प्रदेश के जिला मेरठ के थाना सरूरपुर खुर्द के गांव रसूखपुर जाहिद में रहते थे देवकरण सिंह. उन के पास मात्र 5 बीघा खेती की जमीन थी, जिस पर वह परिवार की मदद से मेहनत से खेती करते थे. यही खेती उन की आजीविका का साधन थी. इसी की कमाई से परिवार का गुजरबसर होता था. देवकरण सिंह के परिवार में पत्नी शकुंतला के अलावा 2 बेटे, सुरेश और मनोज थे. सुरेश ज्यादा पढ़लिख नहीं सका तो पिता के साथ खेती के कामों में मदद करने लगा. पढ़ालिखा तो मनोज भी ज्यादा नहीं था, लेकिन खेती के काम में उस का मन नहीं लगा. उस ने भी पढ़ाईलिखाई छोड़ दी तो देवकरण सिंह ने उसे गांव में ही जनरल स्टोर की दुकान खुलवा दी, जिसे वह अकेला ही संभालता था.

 देवकरण सिंह ने मरने से पहले अपने बड़े बेटे सुरेश की शादी बुलंदशहर के कस्बा स्यान के रहने वाले क्षेत्रपाल सिंह की बेटी शशि से कर दी थी. शशि तीखे नैननक्श वाली खूबसूरत लड़की थी. इसलिए आते ही उस ने ससुराल के सभी लोगों का मन मोह लिया था. वह व्यवहारकुशल के साथसाथ घर के कामों में भी निपुण थी, इसलिए घर का हर आदमी उस से खुश रहने लगा था. इस के बाद जल्दी ही गांव में उस के रूप और गुण की चर्चा होने लगी.

शशि के आगे उस का पति सुरेश कहीं नहीं ठहरता था. सुरेश को भी इस बात का अहसास था. शशि और सुरेश को देख कर कोई अंधा भी कह सकता था कि लंगूर के हाथ अंगूर लगने वाली कहावत यहां पूरी तरह चरितार्थ हो रही है. शशि को अपनी सुंदरता पर गुमान था, इसलिए अपनी उसी सुंदरता के बल पर वह पति सुरेश पर पहले ही दिन से हावी हो गई थी. शशि को सुरेश बिलकुल पसंद नहीं था, लेकिन अब वह कर भी क्या सकती थी. घर वालों ने ब्याह दिया था, इसलिए तकदीर मान कर उस ने उसे गले लगा लिया था. उस ने जैसेतैसे उस के साथ निर्वाह करने का मन बना लिया था. जिस दिन उस ने ससुराल में कदम रखा था, उसी दिन से वह देख रही थी कि उस का देवर मनोज उस का कुछ ज्यादा ही खयाल रखता था.

वह जब भी घर में अकेली होती, मनोज उसे चाहत भरी नजरों से ताकते हुए उस के आगेपीछे नाचता रहता. शुरुआत में तो शशि को लगा कि वह नईनई आई है, इसलिए आकर्षणवश मनोज उस के आगेपीछे घूमता है. लेकिन जब मौका मिलने पर मनोज उस से छेड़छाड़ करने लगा तो शशि को समझते देर नहीं लगा कि उस का प्यारा देवर क्या चाहता है. क्योंकि अब वह बच्ची नहीं रही थी कि मनोज के दिल की बात समझती.

सच भी है, जो बातें जुबान नहीं कह पाती, आंखें उन्हें इशारोंइशारों में कह देती हैं. मनोज भी भले ही दिल की बात मुंह से नहीं कह सका था, लेकिन आंखों ने इशारोंइशारों में कह दिया था. शशि को भी मनोज अच्छा लगता था, क्योंकि वह बड़े भाई सुरेश से काफी ठीकठाक था. लेकिन वह मन की बात देवर से कह नहीं सकती थी. इसलिए वह चाहती थी कि पहल देवर ही करे. इस के लिए वह मनोज को देख कर अकसर मुसकराती तो रहती ही थी, उस की हंसीमजाक और छेड़छाड़ का जवाब भी उसी के अंदाज में देती थी.

समझदार के लिए इशारा काफी होता है. मनोज भी जवान हो चुका था. स्त्रीसुख के लिए बेचैन भी रहता था. इसलिए भाभी की ओर से इशारा मिला तो एक दिन दोपहर में जब घर में शशि और उस के अलावा कोई और नहीं था तो उचित मौका देख कर वह शशि के कमरे में घुस गया. उसे अपने कमरे में देख कर शशि ने कहा, ‘‘इस समय तो तुम्हें दुकान पर होना चाहिए, यहां मेरे कमरे में क्या कर रहे हो?’’

‘‘तुम से एक बात कहनी थी, इसलिए दुकान छोड़ कर चला आया.’’

‘‘कहो, क्या कहना है?’’ शशि ने मुसकराते हुए पूछा.

‘‘भाभी, तुम मुझे बहुत अच्छी लगती हो.’’

‘‘सिर्फ अच्छी लगती हूं, और कुछ नहीं?’’

शशि ने यह कहा तो मनोज का हौसला बढ़ा. उस ने कहा, ‘‘भाभी, अच्छा लगने का मतलब है कि मैं तुम से प्यार करता हूं.’’

‘‘तो करो प्यार, मना किस ने किया है. मैं तो कब से तुम्हारे मुंह से यह बात सुनने का इंतजार कर रही हूं. क्योंकि मुझे तो बहुत पहले ही तुम्हारे दिल की बात का पता चल गया था. मैं इशारे भी कर रही थी. इस के बावजूद तुम ने यह बात कहने में इतने दिन लगा दिए.’’

‘‘तुम्हारे इशारों की वजह से ही तो हिम्मत कर सका हूं. नहीं तो किसी की पत्नी से भला यह कहने की हिम्मत कहां थी.’’ कह कर मनोज ने शशि का हाथ पकड़ा तो वह उस की बांहों में समा गई.

 मनोज ने शशि को बांहों में भर लिया. इस के बाद देवरभाभी का पवित्र रिश्ता कलंकित होने से कैसे बच सकता था. रिश्तों की परिभाषा बदली तो आयाम भी बदल गए. एक ही घर में रहने की वजह से मर्यादा तोड़ने में दिक्कत भी नहीं होती थी. घर वालों के खेतों पर जाते ही देवरभाभी पतिपत्नी बन जाते. यह ऐसा काम है, जिसे लोग करते तो बहुत चोरीछिपे हैं, इस के बावजूद लोगों की नजरों में ही जाता है. मनोज और शशि के मामले में भी ऐसा ही हुआ. घर वालों को जब मनोज और शशि के बदले संबंधों की जानकारी हुई तो दोनों को रोकने की कोशिश शुरू कर दी गई. इसी के मद्देनजर फैसला लिया गया कि अब जितनी जल्दी हो सके, मनोज की शादी कर दी जाए. पत्नी के आने से वह शशि से संबंध तोड़ लेगा.

शादी की बात रिश्तेदारों के बीच पहुंची तो दौराला के गांव पनवाड़ी के रहने वाले जयपाल सिंह बड़ी बेटी संगीता का रिश्ता ले कर उस के यहां पहुंच गए. बातचीत के बाद शादी तय हो गई. 25 जनवरी, 2012 को मनोज और संतीगा का विवाह भी हो गया. संगीता दुलहन बन कर रसूलपुर गई. मनोज की शादी पर शशि ने खूब हंगामा किया. लेकिन मनोज ने कहा था कि कुछ ही दिनों की तो बात है, बाद में सब ठीक हो जाएगा तो वह मान गई थी. संगीता के ससुराल आने के बाद कुछ दिनों तक तो सब ठीकठाक रहा, लेकिन अचानक मनोज संगीता में कमियां निकालने लगा. यही नहीं, कम दहेज लाने के ताने मार कर उस के साथ मारपीट भी करने लगा. इस बात में घर वाले भी उस का साथ दे रहे थे, खासकर शशि.

शुरूशुरू में तो संगीता की समझ में नहीं आया कि अचानक मनोज को ऐसा क्या हो गया कि उस में उसे इतनी सारी कमियां नजर आने लगीं. लेकिन जैसे घर वालों को देवरभाभी के रिश्ते की जानकारी हो गई थी, उसी तरह कुछ दिनों में संगीता को भी पति की असलियत का पता चल गया था. दरअसल एक दिन उस ने पति को भाभी के साथ रंगरलियां मनाते देख लिया था. संयोग से अब तक संगीता एक बेटी अनुष्का की मां बन चुकी थी. उसे लग रहा था कि बेटी का मुंह देख कर ही शायद मनोज का व्यवहार बदल जाए, लेकिन जब उस ने देवरभाभी को रंगेहाथों पकड़ लिया तो समझ गई कि अब कुछ नहीं हो सकता.

 मनोज लगातार संगीता पर मायके से 50 हजार रुपए नगद, अंगूठी और फ्रिज लाने की बात कह कर जुल्म ढा रहा था. 1 मार्च, 2013 को मनोज और उस के घर वालों ने संगीता को मायके भेज दिया और साफसाफ कह दिया कि जितना कहा जा रहा है, उतना सामान और रुपए ले कर ही वह ससुराल आएं, तभी उसे रहने दिया जाएगा. जयपाल ने पंचायत में गुहार लगाई. 24 जून, 2013 को गांव में हुई पंचायत ने फैसला किया कि भविष्य में मनोज के घर वाले कोई दानदहेज नहीं मांगेगे और संगीता को ठीक से रखेंगे. उसे परेशान नहीं करेंगे. समझौते के बाद 2-3 महीने तक तो मनोज और उस के घर वालों ने संगीता को कुछ नहीं कहा. उस के बाद वे अपनी पुरानी हरकतों पर उतर आए.

संगीता मायके वालों से शिकायत करती और वे कुछ करते, उस के पहले ही 6 अप्रैल, 2014 को मनोज ने ससुर जयपाल सिंह को फोन कर के बताया कि संगीता सीकरी के मेले से गायब हो गई है. हैरानपरेशान जयपाल सिंह बेटों के साथ थाना मोदीनगर पहुंचे और मनोज तथा उस के घर वालों के खिलाफ दहेज उत्पीड़न, अपहरण और हत्या का आरोप लगा कर रिपोर्ट दर्ज करा दी. थाना मोदीनगर पुलिस द्वारा की गई पूछताछ में मनोज ने बताया कि पहले से बनाई गई योजना के तहत मेला दिखाने के बहाने वह संगीता को सीकरी खुर्द ले गया. पूरे दिन मेला देखते हुए वह खरीदारी करता रहा. शाम का धुंधलका हो गया तो वह उसे साथ ले कर गंगनहर के चित्तौड़ा पुल की ओर चल पड़ा. तब संगीता ने उस से पूछा, ‘‘इधर कहां जा रहे हो, हमारा घर तो उस ओर है.’’

‘‘यहीं पास के गांव में मेरा एक दोस्त रहता है, इधर आया हूं तो चलो उस से भी मिल लेते हैं.’’ मनोज ने कहा.

इस के बाद संगीता ने कोई सवाल नहीं किया और उस के साथ चल पड़ी. जब संगीता पुल पर पहुंची तो उस ने गोद में ली बेटी को उतार कर खड़ी कर दिया और लापरवाह खड़ी संगीता को एकदम से गिरा दिया. संगीता कुछ कह पाती, उस के पहले ही उस के गले में पड़े दुपट्टे को लपेट कर कस दिया. संगीता छटपटा कर मर गई. संगीता की हत्या कर मनोज ने उस की लाश को गंगनहर में फेंक दिया और वापस गया. उस ने फोन कर के संगीता के गायब होने की सूचना ससुराल वालों को भी दे दी थी और अगले दिन थाने में उस की गुमशुदगी भी दर्ज करा दी थी. लेकिन उस की चालाकी चली नहीं और पकड़ा गया.

अगले दिन मनोज को गाजियाबाद की जिला अदालत में पेश कर के लाश बरामद करने के लिए 3 दिनों के लिए पुलिस रिमांड पर लिया गया. घटनास्थल पर मनोज को ले जा कर पुलिस ने संगीता की लाश बरामद करने की बहुत कोशिश की, लेकिन लाश बरामद नहीं हो सकी. रिमांड अवधि खत्म होने पर मनोज को अदालत में पेश किया गया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. इस के बाद पुलिस ने मनोज के घर वालों को भी गिरफ्तार कर के जेल भेज दिया था. कथा लिखे जाने तक सभी अभियुक्त जेल में बंद थे. पुलिस ने आरोप पत्र दाखिल कर दिया था. UP News

Hindi Stories Love : प्रेम में दुश्मन बनते भाई

Hindi Stories Love : लड़की के प्यार का जुनून और भाई की जिद में भाईबहन का प्यार और खून का रिश्ता दुश्मनी में बदल रहा है, जो कभीकभी जान पर भी भारी पड़ जाता है. वे एक ही छत के नीचे साथसाथ रह कर, खेलकूद कर, पढ़लिख कर बड़े होते हैं, इस के

बावजूद उम्र के नाजुक पायदान पर कदम पड़ने पर जब कोई लड़की दिल की उमंगों से अपने अंदाज में बेहतर जिंदगी की ख्वाहिश में मोहब्बत का तराना गुनगुनाती है तो उस के खून के रिश्ते का भाई ही उस के प्यार के बीच दीवार बन कर खड़ा हो जाता है. लड़की की मोहब्बत के जुनून और भाई की जिद में प्यार और खून का रिश्ता दुश्मनी में बदल जाता है. यही दुश्मनी एक दिन जान पर भारी पड़ जाती है और सगे भाई ही बहनों का कत्ल कर देते हैं.

मोहब्बत और कत्ल का यह सिलसिला चलता ही रहता है. कानून तो अपना काम करता है, लेकिन समाज खामोशी से देखता रहता है. ऐसा करने वाले यूं तो सलाखों के पीछे होते हैं, लेकिन उन्हें इस का जरा भी मलाल नहीं होता. बात अगर गैरमजहबी युवक से मोहब्बत की हो तो अंजाम और भी दिल दहला देने वाले होते हैं. हापुड़ जनपद के स्याना रोड निवासी इंसाफ अली की 20 साल की बेटी दानिश्ता ने जमाने में देखा, फिल्मों में देखा और कानून की यह बात भी पता चली कि लड़कालड़की बालिग हो जाएं तो अपनी मरजी से जिंदगी जीने के लिए आजाद हैं.

वक्त की बदलती चाल ने दानिश्ता के दिलोदिमाग पर छाप छोड़ी तो वह दूसरे मजहब के सोनू के साथ मोहब्बत का तराना गुनगुनाने लगी. उम्र की दहलीज पर उस ने अपनों से नाफरमानी कर दी. मोहब्बत का जुनून ही था कि उस ने अंजाम की परवाह किए बगैर खूबसूरत भविष्य का ख्वाब संजोया. लेकिन उस के ख्वाबों के महल तब बिखर गए, जब न सिर्फ उस के सगे भाई खलनायक बन कर उभरे, बल्कि परिवार भी उस के खिलाफ हो गया.

29 नवंबर, 2014 की सुबह का वक्त था. दानिश्ता का प्रेमी सोनू किसी काम से जा रहा था कि दानिश्ता के भाइयों तालिब, आसिफ और तसलीम ने उसे घेर लिया और उस के साथ बेरहमी से मारपीट शुरू कर दी. दानिश्ता ने अपनी मोहब्बत को दम तोड़ते देखा तो वह बचाव के लिए आगे बढ़ी और घर वालों से भिड़ गई. इस पर दानिश्ता और उस के प्रेमी सोनू को धारदार हथियारों से बेरहमी से काट कर मौत की नींद सुला दिया गया.

भाइयों में गुस्सा इस कदर था कि कोई उन्हें रोकने की हिम्मत नहीं कर सका. हत्याओं में भाइयों का साथ उन के दोस्तों और मां नूरजहां खातून ने भी दिया. हत्याएं करने के बाद तालिब और नूरजहां खुद ही थाने पहुंच गए और आत्मसमर्पण कर दिया. दानिश्ता और सोनू का प्रेमसंबंध काफी समय से चल रहा था. उन के प्रेमसंबंधों की जानकारी दानिश्ता के घर वालों को हुई तो उन्होंने उसे समझाया कि वह गैरमजहबी लड़के से कोई रिश्ता न रखे. लेकिन प्यार करने वाले ऐसे किसी बंधन को कहां मानते हैं. वे तो जातिधर्म, ऊंचीनीच की दीवारों को गिराने का दम भरते हैं. प्यार के लिए वे जमाने से भी टकराने को तैयार रहते हैं. वे जानते हैं कि प्रेम में ऐसी बाधाएं आएंगी और उन्हें उन का सामना करना पड़ेगा.

लेकिन उन्हें यह उम्मीद होती है कि एक दिन जीत उन के प्यार की ही होगी. यह बात अलग है कि बड़े शहरों की बात छोड़ दें तो ग्रामीण क्षेत्रों में हर कोई ऐसा खुशनसीब नहीं होता. दानिश्ता और सोनू की सोच भी यही थी कि एक दिन उन का प्यार जीत जाएगा. वे विवाह कर के जीवन भर साथ रहने का निर्णय ले चुके थे. जबकि दानिश्ता के भाई इस के लिए तैयार नहीं थे. वह जब भी सोनू से विवाह की बात घर में करती, उस के साथ मारपीट की जाती. दानिश्ता और सोनू दोनों ही समझ गए कि घर वालों की मरजी से वे कभी शादी नहीं कर पाएंगे.

दोनों ने कानून का सहारा लिया और गुपचुप कोर्टमैरिज कर ली. यह बात दोनों ने ही घर वालों से छिपाए रखी और अपनेअपने घर यह सोच कर रहते रहे कि अच्छे वक्त पर घर वालों को मना कर एक हो जाएंगे. जब इस बात का खुलासा हुआ तो हंगामा मच गया. दानिश्ता की शामत आ गई. इस मुद्दे पर हत्या से एक दिन पहले स्थानीय पंचायत भी हुई. दानिश्ता के भाइयों ने ऐलान कर दिया कि वे बहन की मोहब्बत को कुबूल नहीं करेंगे. पंचायत में कथित समाज के ठेकेदारों का भी फरमान था कि दोनों हमेशा अलग ही रहेंगे. जबकि यह फरमान न दानिश्ता को मंजूर था और न सोनू को. नतीजतन मौका पा कर उन की हत्या कर दी गई.

पुलिस गिरफ्त में हत्यारोपी भाई का कहना था, ‘‘बिरादरी में हमारी बदनामी हो रही थी. हमारा घर से बाहर निकलना मुश्किल हो गया था. अब घर वाले समाज में सिर उठा कर जी सकेंगे, क्योंकि हम ने अपनी इज्जत बचा ली है.’’

नूरजहां का बयान भी कुछ ऐसा ही था. उसे भी बेटी की मौत का कोई अफसोस नहीं था. इस दोहरे हत्याकांड के बाद पुलिस ने ऐसे प्रेमी युगलों की सूची बनाई, जिन्होंने अपनी मरजी से विवाह किए थे. पुलिस अधीक्षक आर.पी. पांडे ने कहा, ‘‘हम प्रेमियों को सुरक्षा देने के लिए तत्पर हैं. हमारी कोशिश है कि घृणित कृत्य करने वालों को सख्त सजा मिले.’’

औनर किलिंग की यह पहली वारदात नहीं थी. पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अकसर भाईबहन की मोहब्बत के दुश्मन बन जाते हैं. हैरानी की बात यह है कि अपनों के खून से हाथ रंगने वालों को अपने किए पर अफसोस नहीं होता. शान के लिए लड़कियों और उन के प्रेमियों की हत्या कर दी जाती है. मेरठ की रहने वाली फुरकानी ने भी गैरमजहब के लड़के रविंद्र से मोहब्बत करने का गुनाह किया था. प्रेमसंबंध की जानकारी होने पर जम कर हंगामा हुआ. उस के इस कदम से घर वाले गुस्से में आ गए. दूसरे संप्रदाय के लड़के ने उन की बेटी को दुलहन बना लिया था. उस ने प्रेमी के लिए धर्म ही नहीं, नाम भी बदल लिया था. उस ने अपना नाम निशू रख लिया था.

फुरकानी के घर वालों ने इस बात को आन का सवाल बना लिया. टकराव को टालने के लिए दोनों शहर जा कर रहने लगे. काफी दिनों बाद वे दोनों गांव आ कर रहने लगे तो फुरकानी के घर वाले खफा हो गए. 25 नवंबर को फुरकानी के भाई निजाम और फुरकान उस के घर पहुंचे और उस के सिर में गोली मार कर फरार हो गए.  समय पर उपचार मिलने से निशू की जान तो बच गई, लेकिन उस की एक आंख हमेशा के लिए चली गई. उस के भाइयों को भी गिरफ्तार कर लिया गया. लेकिन निशू के भाई निजाम को उस के जिंदा बच जाने का बहुत अफसोस है.

उस का कहना है कि अगर उसे पता होता कि बहन जिंदा बच जाएगी तो वह उसे एक और गोली मार देता. जब तक वह मरेगी नहीं, उसे चैन नहीं मिलेगा. गैरसमुदाय के लड़के से शादी कर के उस ने उस के परिवार की बहुत बदनामी कराई है, इसलिए उस ने उसे गोली मारी थी. मुजफ्फरनगर के लोई गांव के रहने वाले इलियास की बेटी शाइमा का 2 साल से गांव के ही एक लड़के से प्रेमसंबंध चल रहा था. जब घर वालों को इस बात की खबर हुई तो उन्होंने उस पर बंदिशें लगा दीं. शाइमा लड़के से विवाह करने की जिद पर अड़ गई. बंदिशों को तोड़ कर एक दिन वह घर से भाग गई. शाइमा की इस हरकत से घर वाले आगबबूला हो गए.

कुछ दिनों बाद शाइमा को उन्होंने ढूंढ निकाला और घर ला कर उस के भाई इंतजार ने उसे गोली मार दी. अमित को भी अपनी बहन मोना का प्यार मंजूर नहीं था. वह किसी लड़के से मोबाइल फोन पर बातें किया करती थी. अमित इस बात से बेहद नाराज रहता था. उसे लगता था कि इस से एक दिन परिवार की इज्जत चली जाएगी. एक दिन उस ने बहन को फोन पर बातें करते पकड़ लिया तो उस ने उसे गोली मार दी. मोना किसी तरह बच गई. पश्चिमी उत्तर प्रदेश का सामाजिक परिवेश ऐसा है, जहां प्रेमिल रिश्तों का खुलेआम विरोध है. इस के बावजूद चोरीछिपे रिश्ते पनपते हैं. तेजी से होते शिक्षा और आर्थिक विकास के बीच यह बेहद संवेदनशील मुद्दा है.

प्रेमसंबंधों को आन से जोड़ कर देखा जाता है. घर की बेटी प्रेम संबंध में अपनी मरजी से विवाह जैसा कदम उठाए, यह किसी भी दशा में मंजूर नहीं होता और अपने ही मरनेमारने पर उतारू हो जाते हैं. समाज की टीका टिप्पणियां आग में घी डालने का काम करती हैं. जिस परिवार की लड़की को ले कर इस तरह के मामले सामने आते हैं, उन्हें तरहतरह के ताने दिए जाते हैं. ऐसे में नौजवानों को यह बरदाश्त नहीं होता. मानसिकता ऐसी होती है कि उन्हें लगता है कि हत्या कर देने से उन की इज्जत बच जाएगी और वह शान की जिंदगी जी सकेंगे.

ऐसा करने वाले प्रेम करने वाली लड़की को अपने परिवार के लिए कलंक मानते हैं. कातिल मानते हैं कि सामाजिक तानों व बेइज्जती से बचने के लिए अब यही करना आवश्यक हो गया है. दुखद यह है कि ऐसा कर के भी उन की इज्जत नहीं बचती. समाज भी खुले तौर पर ऐसी हत्याओं का विरोध नहीं करता. कानून का काम लाशों के पंचनामे और हत्यारों की गिरफ्तारी तक सिमट कर रह जाता है. Hindi Stories Love

Stories in Hindi Love : प्यार नहीं, स्वार्थ का रिश्ता

Stories in Hindi Love : पत्नी की कमाई पर पलने वाले पतियों की सोच इतनी गंदी क्यों हो जाती है कि वे उसी के दुश्मन बन जाते हैं. अपनी बैंक मैनेजर पत्नी को मार कर आखिर पवन को क्या मिला? क्या इस मामले में रितु ने प्रेम के नाम पर पवन से शादी कर के बड़ी भूल नहीं की थी?

पवन और रितु की मुलाकात तब हुई थी, जब 2006 में दोनों कंप्यूटर इंस्टीट्यूट में पढ़ रहे थे. धीरेधीरे दोनों एकदूसरे को पसंद करने लगे थे. पवन रितु का हर तरह से ख्याल रखता था. जब कभी घर जाने के लिए कोई साधन नहीं होता था तो वह उसे उस के घर तक छोड़ने जाता था. रितु पढ़ाई में तेज थी, उस ने बैंकिंग की परीक्षा दी तो पास हो गई. फलस्वरूप जल्दी ही उसे नैनीताल बैंक में सहायक प्रबंधक के पद पर नौकरी मिल गई. रितु सेक्टर ए, एलडीए कालोनी, कानपुर रोड, लखनऊ में अपने पिता के साथ रहती थी. कुछ समय पहले उस की मां सुषमा का देहांत हो चुका था, जिस की वजह से उस के पिता श्यामबिहारी श्रीवास्तव परेशान रहते थे.

रितु अपनी बहनों में सब से छोटी थी. उस की बड़ी बहन की शादी हो चुकी थी और वह अपने पति के साथ लखनऊ के ही मडि़यांव इलाके रहती थी. रितु और पवन के प्यार के बारे में हालांकि सब को पता था. लेकिन उस के पिता श्यामबिहारी चाहते थे कि बेटी ऐसे आदमी से शादी करे, जो समाज में उस की तरह ही अपनी हैसियत रखता हो. पवन किसी अच्छी नौकरी की तलाश में था, लेकिन काफी भागदौड़ के बाद भी उसे प्राइवेट नौकरी ही मिल पाई थी.

श्यामबिहारी बूढ़े हो चले थे, उन की तबीयत भी खराब रहती थी. पत्नी की मौत के बाद वह बेटी रितु और बेटे साहिल को ले कर चिंतित रहते थे. वैसे उन्हें पूरा भरोसा था कि रितु हर हाल में अपने भाई का ख्याल रखेगी. बीमारी के चलते ही सन 2009 में उन की मौत हो गई. पिता की मौत के बाद रितु पर परिवार चलाने की जिम्मेदारी आ गई. ऐसे में अपने लिए कुछ सोचना बहुत मुश्किल था. उस का छोटा भाई साहिल उस के साथ ही रहता था. रितु उसे भाई नहीं, बल्कि बेटे की तरह पाल रही थी. रितु के पिता की मौत के बाद पवन ने उस पर शादी करने के लिए दबाव डालना शुरू किया तो रितु ने उसे प्यार से समझाया, ‘‘पवन इस बारे में सोचती तो मैं भी हूं, लेकिन साहिल की चिंता है. वह हाईस्कूल में पहुंच जाए तो मैं उसे आगे की पढ़ाई के लिए हौस्टल भेज दूंगी और तुम से शादी कर लूंगी.’’

‘‘देखो रितु, प्राइवेट ही सही, मुझे भी नौकरी मिल गई है. अब हमें शादी कर लेनी चाहिए. अब नहीं तो क्या हम बुढ़ापे में शादी करेंगे?’’

‘‘ठीक है बाबा, इस बारे में मैं जल्द ही कोई फैसला कर लूंगी.’’ रितु ने पवन को टालने के लिए शादी की हामी भर दी.

सोचविचार कर रितु ने अपनी बहन और भाई ने पवन के साथ शादी करने के बारे में बात की. रीतू के भाई और बहन दोनों का मानना था कि न तो पवन अच्छे स्वभाव का है और न ही वह कहीं अच्छी नौकरी करता है. दरअसल उन दोनों की नजर में पवन में सब से बड़ी बुराई यह थी कि वह शराब पीने का आदी था. भाईबहन की बात सुन कर रितू बोली, ‘‘तुम लोगों की बात अपनी जगह सही है. मैं उस की इस बुराई के बारे में जानती हूं. पर क्या करूं, समझ नहीं पा रही हूं? उस के साथ इतने दिनों की दोस्ती है, उसे भूल कर किसी और से शादी करना मुझे थोड़ा मुश्किल लग रहा है.’’

‘‘दीदी, आप ठीक कह रही हैं, पर हमारा मन इस के लिए तैयार नहीं है.’’ भाईबहन ने दो टूक कहा. इस के बावजूद रितु का खुद का मन शादी टालने का नहीं हो रहा था.

इसी के चलते उस ने अपने परिवार की मरजी के खिलाफ जा कर नवंबर, 2013 में पवन से शादी कर ली. शादी के 2-3 महीने ठीक से गुजरे. इस बीच रितु अपनी ससुराल के बजाय अपने मायके में ही रहती रही. पवन को इस बात से कोई शिकायत नहीं थी. रितु के पास मायके की काफी जायदाद तो थी ही, साथ ही वह बैंक में अच्छे पद पर नौकरी भी करती थी. घर में सुखसुविधा के सारे साधन मौजूद थे. उसे केवल चिंता थी तो अपने छोटे भाई की. एक दिन पवन घर पहुंचा तो बहुत उदास था. रितु ने उसे देखा तो पूछा, ‘‘क्या बात है, उदास क्यों हो?’’

‘‘रितु, आज मेरी कंपनी ने कई लोगों को नौकरी से निकाल दिया है, मेरी भी नौकरी चली गई.’’ पवन ने दुखी हो कर कहा.

‘‘कोई बात नहीं, प्राइवेट नौकरियों में तो यह होता ही रहता है. कहीं और नौकरी तलाश करो.’’ रितु ने पवन को समझाया. पवन को अपना खर्च चलाने के लिए पैसों की ज्यादा जरूरत नहीं थी, क्योंकि उस की पत्नी तो नौकरी कर ही रही थी. उसे पैसों की जरूरत केवल अपने शौक पूरे करने के लिए थी. उसे यह पता था कि रितु को सब से अधिक नफरत उस के शराब पीने से है. इस के लिए वह उसे पैसा देने को तैयार नहीं थी. उस की बात सही भी थी. निठल्ले बैठे पति को शराब के लिए कौन पत्नी अपनी कमाई का पैसा देगी?

इसी बात को ले कर दोनों के बीच दूरियां बढ़ने लगीं. कहासुनी से शुरू होने वाले विवाद धीरेधीरे लड़ाईझगड़े तक पहुंचने लगे. रितु जब भी पवन को समझाने की कोशिश करती, वह उस की बात को गलत तरह से लेता. उसे लगने लगा कि रितु यह सब अपनी नौकरी की धौंस दिखाने के लिए करती है. रितु ने 35 लाख में अपने पिता की एक प्रौपर्टी बेच दी थी ताकि कोई नई जमीन खरीद कर मकान बनवा सके. दरअसल उसे लग रहा था कि मकान बन जाएगा तो वह ठीक से रह सकेगी. इस के लिए उस ने मकान बनाने के लिए एक जमीन पसंद भी कर ली थी.

उस जमीन को खरीदने के लिए 2 लाख रुपए एडवांस देने थे. उस ने यह रकम पवन को दे दी, ताकि वह प्रौपर्टी डीलर को दे दे. लेकिन पवन ने वे पैसे प्रौपर्टी डीलर को देने के बजाय अपने भाई को दे दिए. यह बात जब रितु को पता चली तो वह गुस्से में बोली, ‘‘पवन, पैसे की कीमत को समझो. पैसा डाल पर नहीं लगता कि हाथ बढ़ाया और तोड़ लिया. बहुत मेहनत करनी पड़ती है पैसा कमाने के लिए. हमें नए मकान के लिए पैसे की जरूरत है और तुम पैसे कहीं और दे आए.’’

लेकिन पवन ने रितु की बात को गंभीरता से न ले कर कड़वाहट से जवाब दिया, ‘‘तुम पैसे को ले कर बहुत झगड़ा करने लगी हो. मैं नौकरी नहीं करता, इसलिए तुम मुझे ताना मारती हो. तुम्हें पैसे का बहुत घमंड हो गया है.’’

‘‘तुम से बात करना ही बेकार है, तुम किसी बात को समझना ही नहीं चाहते.’’ कह कर रितु बैंक चली गई.

रितु ने बाकी बची 33 लाख की रकम अपने बैंक खाते में जमा कर दी थी. इस खाते में उस ने अपने भाई साहिल को नौमिनी बनाया था न कि पति को. इस के बाद पैसे और जायदाद को ले कर पतिपत्नी के बीच लड़ाईझगड़ा और बढ़ गया. प्यारमोहब्बत के बीच पैसा विलेन बन चुका था. इस बीच रितु 6 माह की गर्भवती हो गई थी. इस से वह काफी खुश थी. उसे लग रहा था कि बच्चे के आ जाने के बाद शायद पवन में बदलाव आ जाए.

19 दिसंबर, 2014 की बात है. नादान महल रोड, लखनऊ स्थित नैनीताल बैंक की शाखा में बैंक के लौकर नहीं खुल पाए थे. वजह यह थी कि बैंक के लौकर की चाबी सहायक प्रबंधक रितु के पास रहती थी. जबकि वह बैंक नहीं आई थी. बैंक के मैनेजर दयाशंकर मलकानी ने रितु के मोबाइल फोन पर संपर्क किया तो पता चला कि उस का फोन बंद है. दयाशंकर ने परेशान हो कर चौक थाने को सूचना दी. इसी बीच रितु के पति पवन का फोन नंबर मिल गया तो उसे फोन किया गया. बातचीत में उस ने बताया कि रितु कल से लापता है. इस जानकारी के बाद थाना चौक पुलिस ने यह बात कैंट थाने की पुलिस को बताई. पुलिस ने पवन के घर जा कर वहां बाहर खड़ी इंडिका कार की तलाशी ली तो उस में बैंक लौकर की चाबियां मिल गईं.

इस के बाद कैंट थाने की पुलिस रितु को तलाशने में जुट गई. एक महिला बैंक अधिकारी के गायब होने का मामला था. पूरे शहर में खलबली मच गई. लखनऊ में नए एसएसपी यशस्वी यादव ने पद संभाला था. तभी पुलिस के लिए यह घटना बड़ी चुनौती के रूप में सामने आ गई थी. एसएसपी के आदेश पर कैंट क्षेत्र की सीओ बबिता सिंह ने इस चुनौती को स्वीकार करते हुए अपनी पुलिस टीम को रितु का पता लगाने में लगा दिया. इसी बीच एसओ कैंट सुरेश यादव को सूचना मिली कि कैंट क्षेत्र स्थित फायरिंग रेंज के पास झडि़यों में किसी महिला का शव पड़ा है. सूचना मिलते ही सुरेश यादव अपनी टीम के साथ वहां पहुंच गए. सूचना सही थी. लाश की शिनाख्त होने में भी देर नहीं लगी.

लाश बैंक मैनेजर रितु की ही थी. घटनास्थल पर पुलिस को कोई भी ऐसा सुबूत नहीं मिला, जिस से यह लगता कि रितु के साथ कोई जोरजबरदस्ती की गई थी. उस के शरीर के कपड़े भी सही सलामत थे. किसी प्रकार की कोई लूट भी नहीं हुई थी, क्योंकि मृतका के कानों के आभूषण भी सुरक्षित थे और हाथों की चूडि़यां भी. अलबत्ता उस का पर्स और मोबाइल जरूर गायब था. इस से पुलिस को संदेह हुआ कि इस घटना में रितु का कोई अपना ही शामिल हो सकता है. पुलिस ने इस बारे में पहले रितु के भाई साहिल से बात की और फिर उस के पति पवन से. दोनों की बातों से पुलिस का शक पवन पर गहरा गया. पुलिस ने काल डिटेल्स हासिल कर के रितु के फोन नंबर और पवन के फोन नंबर की जांच की तो पता चला कि रितु से अंतिम बार पवन ने ही बात की थी.

इस के बाद पुलिस ने पवन को हिरासत में ले कर पूछताछ की. इस पूछताछ में जो बात सामने आई, वह यह थी कि रितु और पवन के बीच दौलत विलेन बन गई थी. पैसे के लिए पवन इतना अंधा हो गया था कि रितु को मौत के घाट उतारते वक्त उसे उस की कोख में पल रहे अपने बच्चे का भी खयाल नहीं आया. 18 दिसंबर, 2014 को रितु अपनी बैंक की ड्यूटी पूरी करने के बाद औटो से चारबाग पहुंची. वहां से उसे दूसरा औटो ले कर अपने घर पहुंचना था. रितु जैसे ही औटो से उतरी, उस ने देखा कि पवन अपने बहनोई की कार लिए उस का इंतजार कर रहा है. यह देख कर उस ने चौंक कर पूछा, ‘‘तुम यहां, यह कार क्यों लाए?’’

‘‘मैं अपने बीमार भाई से मिलने देहरादून जा रहा हूं, आज ही रात को. उन की तबीयत ज्यादा खराब है.’’ पवन ने कहा.

‘‘मुझे लगा कि तुम मुझे लेने आए हो? तुम्हें तो अपने कामों से ही फुरसत नहीं है. तुम जाओ मैं औटो ले कर घर चली जाऊंगी.’’ अभी रितु ने कहा ही था कि उस के मोबाइल पर उस के भाई साहिल का फोन आ गया. वह उस से घर पहुंचने के बारे में पूछ रहा था. भाई से बात करते हुए रितु ने कहा, ‘‘मैं तुम्हारे जीजाजी के साथ हूं, अभी थोड़ी देर में आती हूं.’’

उस वक्त शाम के करीब पौने 7 बजे थे. रितु के फोन बंद करते ही पवन बोला, ‘‘ऐसे नाराज मत हो. चलो, पहले कहीं घूम आते हैं. तुम्हारी शिकायत भी दूर हो जाएगी.’’ पवन ने मिन्नत की तो रितु उस की कार में बैठ गई. मानमनुहार कर के रितु को मनाने के बाद पवन कार ले कर शहीद पथ की ओर बढ़ गया. रितु को लगा कि वह उस से झगड़ा खत्म करने के लिए ऐसा कर रहा है. सुलतानपुर रोड पर अर्जुनगंज ओवर ब्रिज के पास पवन ने कार कच्चे रास्ते पर उतार कर खड़ी कर दी और बहाना कर के नीचे उतरा. रितु उस के मन की बात को समझ पाती, उस के पहले ही वह रितु की गरदन में रस्सी का फंदा डाल कर उसे कसने लगा. इस के लिए वह रस्सी पहले ही साथ लाया था.

इस के अलावा उस ने रितु को मारने के लिए उस के सिर पर 3 वार भी किए. इस का नतीजा यह हुआ कि रितु तत्काल मर गई. गर्भवती पत्नी की हत्या करने के बाद पवन ने उस का मोबाइल बंद कर के उस के पर्स में रखा और पर्स वहीं नाले में फेंक दिया. इस के बाद वह कार ले कर सुनसान जगह की तलाश में आगे बढ़ गया. आगे जा कर उस ने फायरिंग रेंज के पास रितु की लाश जंगल में फेंक दी. वापस लौट कर कार उस ने अपने घर के सामने खड़ी कर दी और सोने की कोशिश करने लगा. देर रात तक जब रितु घर नहीं पहुंची तो साहिल ने करीब 8 बजे के बाद उसे फोन करना शुरू किया. रितु का फोन बंद था. इस से परेशान हो कर साहिल ने अपने जीजा पवन को फोन किया. उधर से पवन ने कहा, ‘‘मैं तुम्हारी दीदी को छोड़ कर देहरादून जा रहा हूं. तुम परेशान मत हो.’’

साहिल ने कई बार पवन के मोबाइल पर फोन किया तो उस ने बताया कि वह लखनऊ में ही है. पुलिस ने रितु की लाश मिलने के बाद जब साहिल से पूछताछ की थी तो उस ने यह बात सीओ कैंट बबिता सिंह को बता दी थी. इसी से वह संदेह के दायरे में आया था. इस से बबिता सिंह को लगा कि जब पवन देहरादून गया नहीं तो उस ने साहिल से झूठ क्यों बोला? दूसरे पवन के फोन की लोकेशन रितु के फोन के साथ मिली थी. संदेह हुआ तो पुलिस ने पवन को गिरफ्तार कर के उस से सख्ती से पूछताछ की. इस से पवन टूट गया और उस ने पुलिस को रितु की हत्या की पूरी जानकारी दे दी थी. शुरू में पवन रितु की हत्या को आत्महत्या साबित करना चाहता था. इस के लिए उस ने एक सुसाइड नोट भी तैयार किया था. लेकिन वह ऐसा कर नहीं सका.

दरअसल पवन के मन में गुस्सा इस बात को ले कर था कि रितु उस से झगड़ा करती है. उस ने अपने बैंक खाते में भी उस की जगह पर भाई को नौमिनी बनाया था. रितु और पवन के बीच मोहब्बत का दौर जरूर लंबा खिंचा, पर शादी के कुछ दिनों के बाद ही उन के बीच अनबन शुरू हो गई थी. इस की वजह थी पवन का नशा करना. जिस समय उस ने रितु का कत्ल किया था, उस समय भी उस ने शराब पी रखी थी. इसीलिए वह यह भी नहीं समझ पाया कि वह केवल अपनी पत्नी की ही हत्या नहीं कर रहा है, बल्कि उस की कोख में पल रहे अपने बच्चे को भी मार रहा है. Stories in Hindi Love

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारि

Crime Stories : कत्ल एक दिलदार का

Crime Stories : कबड्डी खेलते समय नासिर ने चौधरी आफताब की जो बेइज्जती की थी, उस का बदला लेने के लिए उस नेहैदर अली के साथ मिल कर नासिर के साथ ऐसा क्या किया कि उसे और हैदर अली को पछताना पड़ा. उन दिनों मैं जिला छंग के एक देहाती थाने में तैनात था. वह जगह दरिया के करीब थी. मई का महीना होने की वजह से अच्छीभली गरमी पड़ रही थी. अचानक एक दिन पास के गांव से एक वारदात की खबर आई. कांस्टेबल सिकंदर अली ने बताया कि गुलाबपुर में एक गबरू जवान का बड़ी बेदर्दी से कत्ल कर दिया गया है, जिस की लाश खेतों में पड़ी है. गुलाबपुर मेरे थाने से करीब एक मील दूर था.

वहां से फैय्याज और यूनुस खबर ले कर आए थे. वे दोनों खबर दे कर वापस जा चुके थे. मैं ने पूछा, ‘‘मरने वाला कौन है?’’

‘‘उस का नाम नासिर है, वह कबड्डी का बहुत अच्छा और माहिर खिलाड़ी था.’’ सिकंदर अली ने बताया.

मैं 2 सिपाहियों के साथ गुलाबपुर रवाना हो गया. हमारे घोड़े खेतों के बीच आड़ीतिरछी पगडंडी पर चल रहे थे. जिस खेत में लाश पड़ी थी, वह गांव से एक फर्लांग के फासले पर था. कुछ लोग हमें वहां तक ले गए. वहां एक अधूरा बना कमरा था, न दीवारें न छत. जरूर कभी वहां कोई इमारत रही होगी. नासिर की लाश कमरे के सामने पड़ी थी. लाश के पास 8-9 लोग खड़े थे, जो हमें देख कर पीछे हट गए थे. मैं उकड़ूं बैठ कर बारीकी से लाश की जांच करने लगा. बेशक वह एक खूबसूरत गबरू जवान था. उस की उम्र 23-24 साल रही होगी. वह मजबूत और पहलवानी बदन का मालिक था, रंग गोरा और बाल घुंघराले.

लाश देख कर मैं इस नतीजे पर पहुंचा कि उस पर तेजधार हथियार या छुरे से हमला हुआ होगा. मारने वाले एक से ज्यादा लोग रहे होंगे. उस के हाथों के जख्म देख कर लगता था कि उस ने अपने बचाव की भरपूर कोशिश की थी. नासिर कबड्डी का अच्छा खिलाड़ी था, इसलिए गुलाबपुर के लोग उसे गांव की शान समझते थे. लाश पर चादर डाल कर मैं लोगों से पूछताछ करने लगा. नासिर का 60 साल का बाप वहीं था, उस की हालत बड़ी खराब थी, आंखें आंसुओं से भरी हुईं. उस का नाम बशीर था. मैं ने उस के कंधे पर हाथ रख कर उसे तसल्ली दी, ‘‘चाचा, आप फिकर न करो, आप के बेटे का कातिल पकड़ा जाएगा.’’

उस ने रोते हुए कहा, ‘‘साहब, मेरा बेटा तो चला गया. कातिल के पकड़े जाने से मेरा बेटा लौट कर तो नहीं आएगा.’’

बेटे के गम ने उस की सोचनेसमझने की ताकत खत्म कर दी थी. उसे बस एक ही बात याद थी कि उस का जवान बेटा कत्ल हो चुका है. मुझे उस पर बड़ा तरस आया. मैं ने उसे एक जगह बिठा दिया और अपनी काररवाई करने लगा. सब से पहले मैं ने घटनास्थल का नक्शा तैयार किया. वहां मुझे कत्ल का कोई सुराग नहीं मिला. यहां तक कि वह हथियार भी नहीं, जिस से उस का कत्ल किया गया था.n मैं ने वारदात की जगह पर मौजूद लोगों के बयान लिए. लेकिन सिवाय नासिर की तारीफ सुनने के कोई जानकारी नहीं मिली. मैं ने नासिर की लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया.

मेरे दिमाग में एक सवाल घूम रहा था कि इतनी रात को नासिर इस सुनसान जगह पर क्या कर रहा था. मेरे अंदाज से कत्ल रात को हुआ था. मैं ने मौजूद लोगों से घुमाफिरा कर कई सवाल किए, पर काम की कोई बात पता नहीं चली. मैं ने यूनुस और फैयाज से भी पूछताछ की. पर वे कुछ खास नहीं बता सके. इलियास जिस ने सब से पहले लाश देखी थी, मैं ने उस से भी पूछा, ‘‘इलियास, तुम सुबहसुबह कहां जा रहे थे?’’

‘‘साहबजी, मैं कुम्हार हूं. मैं मिट्टी के बरतन बनाता हूं. मैं रोजाना सुबह मिट्टी लाने के लिए घर से निकलता हूं. मेरा कुत्ता मोती भी मेरे साथ होता है. वह मुझे इस तरफ ले आया, तभी लाश पर मेरी नजर पड़ी. लाश देख कर मैं ने ऊंची आवाज में चीखना शुरू कर दिया. उस वक्त खेतों में लोगों का आनाजाना शुरू हो गया था. कुछ लोग जमा हो गए. मौजूद लोगों से पता चला कि बशीर लोहार के बेटे नासिर का किसी ने कत्ल कर दिया है.’’

बशीर लोहार का घर गांव के बीच में था. उस का छोटा सा परिवार था. घर में नासिर के मांबाप के अलावा एक बहन थी. बशीर ने अपने घर के बरामदे में भट्ठी लगा रखी थी. वहीं पर वह लोहे का काम करता था. जब मैं उस के घर पहुंचा तो वह मुझे घर के अंदर ले गया. मैं ने उस से कहा, ‘‘चाचा बशीर, जो कुछ तुम्हारे साथ हुआ, बहुत अफसोसनाक है. मैं तुम्हारे गम में बराबर का शरीक हूं. मेरी पूरी कोशिश होगी कि जैसे भी हो, कातिल को कानून के हवाले करूं. लेकिन तुम्हें मेरी मदद करनी होगी. हर बात साफसाफ और खुल कर बतानी होगी.’’

उस की बीवी जुबैदा बोल उठी, ‘‘साहब, आप से कुछ भी नहीं छिपाएंगे. हमारी दुनिया तो अंधेरी हो ही गई है, लेकिन जिस जालिम ने मेरे बच्चे को मारा है, उसे कड़ी सजा मिलनी चाहिए.’’

‘‘आप दोनों को किसी पर शक है?’’

‘‘साहब, हमें किसी पर शक नहीं है. मेरा बेटा तो पूरे गांव की आंख का तारा था. अभी पिछले महीने ही उस ने कबड्डी का टूर्नामेंट जीता था. इस मुकाबले में 4 गांवों की टीमों ने हिस्सा लिया था. गुलाबपुर की टीम में अगर नासिर न होता तो यह जीत नजीराबाद के हिस्से में जाती. सुल्तानपुर और चकब्यासी पहले दौर में आउट हो गए थे. असल मुकाबला गुलाबपुर और नजीराबाद में था. जीतने पर गांव वाले उसे कंधे पर उठाए घूमते रहे. बताइए, मैं किस पर शक करूं?’’ बशीर ने तफ्सील से बताया.

‘‘नासिर कबड्डी का इतना अच्छा खिलाड़ी था, जहां 10 दोस्त थे, वहां एकाध दुश्मन भी हो सकता है.’’ मैं ने कहा.

‘‘आप बिलकुल ठीक कह रहे हैं साहब, पर मुझे इस बारे में कुछ पता नहीं है.’’ बशीर ने बेबसी जाहिर की.

‘‘मुझे उस दसवें आदमी की तलाश है, जिस ने नासिर का बेदर्दी से कत्ल किया है. जरूर यह किसी दुश्मन का काम है. हो सकता है, गांव के बाहर का कोई दुश्मन हो?’’ मैं ने कहा.

‘‘बाहर का भी कोई दुश्मन नहीं है साहब.’’ उस की बीवी जुबैदा ने कहा तो मैं सोच में पड़ गया. अचानक बशीर बोल उठा, ‘‘वह तो सारा दिन मेरे साथ काम में लगा रहता था. शाम को अखाड़े में कसरत वगैरह करता था.’’

‘‘यह अखाड़ा कहां है?’’ मैं ने पूछा.

‘‘अखाड़ा ट्यूबवेल के पास है. उस टूटीफूटी इमारत के करीब, जहां यह वारदात हुई.’’ उस ने जवाब दिया.

‘‘मेरे अंदाज से कत्ल देर रात को हुआ है, इतनी रात को वह अखाड़े में क्या कर रहा था?’’ मैं ने पूछा.

‘‘यह बात हमारी भी समझ में नहीं आ रही है.’’ जुबैदा बोली.

‘‘रात को क्या वह रोजाना की तरह समय पर सोया था?’’

‘‘सोया तो रोजाना की तरह ही था.’’ कहतेकहते जुबैदा रुक गई.

‘‘मुझे खुल कर बताओ, क्या बात है?’’ मैं ने कहा तो वह बोली, ‘‘आप हमारे साथ ऊपर छत पर चलिए. आप खुद समझ जाएंगे.’’

हम छत पर पहुंचे तो जुबैदा कहने लगी, ‘‘मैं रोजाना नासिर को उठाने छत पर आती थी और वह 2 पुकार में उठ जाता था. लेकिन आज ऐसा नहीं हुआ. मैं ने आगे बढ़ कर चादर उठाई तो उस के नीचे एक तकिया रखा हुआ था, जिस पर चादर ओढ़ाई हुई थी. ऐसा लग रहा था, जैसे कोई सो रहा है.’’

मैं खामोश खड़ा रहा तो जुबैदा ने कहा, ‘‘इस का मतलब है कि पिछली रात नासिर अपनी मरजी से घर से निकला था. वह नहीं चाहता था कि किसी को उस के जाने के बारे में पता चले.’’ जुबैदा बोली.

‘‘नहीं जुबैदा, ऐसा नहीं है. वह पहले भी जाता रहा होगा, पर सुबह होने से पहले आ जाता होगा. इसलिए तुम्हें पता नहीं चला. तुम्हारा बेटा रात के अंधेरे में कहीं जाता था और जल्द लौट आता होगा, इसलिए तुम्हें खबर नहीं मिल सकी. मुझे तो किसी लड़की का चक्कर लगता है.’’ मैं ने कहा तो वे दोनों बेयकीनी से मुझे देखने लगे, ‘‘लड़की का चक्कर…’’

बशीर ने कहा, ‘‘साहब, नासिर ऐसा लड़का नहीं था. वह तो गुलाबपुर की लड़कियों और औरतों को मांबहनें समझता था. वह कभी किसी की तरफ आंख उठा कर भी नहीं देखता था.’’

‘‘मैं नहीं मान सकता कि लड़की का चक्कर नहीं था. पिछली रात वह किसी लड़की से मुलाकात करने ही खेत में पहुंचा था. अगर आप लोग लड़की का नाम बता दो तो केस जल्द हल हो जाएगा. मैं कातिलों तक पहुंच जाऊंगा, क्योंकि वही लड़की बता सकती है कि खेत में क्या हुआ था?’’ मैं ने पूरे यकीन से कहा.

‘‘जनाब, हम कसम खा कर कह रहे हैं कि हम ऐसी किसी लड़की को नहीं जानते.’’ दोनों ने एक साथ कहा.

‘‘मैं आप की बात का यकीन करता हूं, पर इश्क और मुश्क छिपाए नहीं छिपते. मैं कहीं न कहीं से इस का सुराग लगा ही लूंगा. आप यह बताएं कि गुलाबपुर में नासिर का सब से करीबी दोस्त कौन है?’’

‘‘जमील से उस की गहरी दोस्ती थी.’’ बशीर ने कहा.

‘‘ठीक है, अब मैं पता कर लूंगा. दोस्त दोस्त का राज जानते हैं. मुझे जमील से मिलना है. तुम उसे यहां बुला लो?’’ मैं ने कहा.

‘‘उस का घर पड़ोस में है, मैं अभी बुलाता हूं.’’ कहते हुए बशीर बाहर निकल गया.

उस ने वापस लौट कर बताया कि जमील 2 दिनों से टोबा टेक सिंह गया हुआ है.

‘‘ठीक है, कल वह वापस आएगा तो उस से पूछ लूंगा. अभी उस के घर वालों से बात कर लेता हूं.’’ मैं ने कहा.

सामने ही उस की परचून की दुकान थी. उस का बाप वहीं मिल गया. मैं ने करीब 15 मिनट तक उस से बात की, पर कोई काम की बात पता नहीं चल सकी. वह भी कबड्डी की वजह से नासिर का बड़ा फैन था. उसे उस की मौत का बहुत गम था. मेरा दिमाग गहरी सोच में था. मुझे पक्का यकीन था कि जरूर लड़की का चक्कर है. जहां लाश मिली थी, वहां एक अधूरा कमरा था. रात में मुलाकात के लिए वह बेहतरीन जगह थी. मुझे ऐसी लड़की की तलाश थी, जो नासिर से मोहब्बत करती थी और नासिर उस के इश्क में पागल था.

वह जगह गुलाबपुर के करीब ही थी, इसलिए लड़की भी वहीं की होनी चाहिए थी. मेरी सोच के हिसाब से कातिल इस राज से वाकिफ था कि लड़की और नासिर वहां छिपछिप कर मिलते हैं. उसे इस बात का भी यकीन रहा होगा कि नासिर वहां जरूर आएगा. निस्संदेह कातिल उन दोनों की मोहब्बत और मिलन से सख्त नाराज रहा होगा. उस ने वक्त और मौका देख कर नासिर को मौत के घाट उतार दिया होगा. मुझे उस लड़की को तलाश करना था.

दोपहर के बाद मैं ने हमीदा को थाने बुलाया. वह कस्बे में घरघर जा कर क्रीमपाउडर और परांदे वगैरह बेचा करती थी. हर घर की लड़कियों को वह खूब जानती थी और कई की राजदार भी थी. पहले भी वह मेरे कई काम कर चुकी थी. मैं उसे कुछ पैसे दे देता था तो वह खुश हो जाती थी. मैं ने उस से पूछा, ‘‘हमीदा, तुम गुलाबपुर के हर घर से वाकिफ हो. मुझे नासिर के बारे में जानकारी चाहिए. तुम जो जानती हो, बताओ.’’

‘‘साहब, वह तो गुलाबपुर का हीरो था. बच्चाबच्चा उस पर जान देता था.’’ उस ने दुखी हो कर कहा.

‘‘मुझे गुलाबपुर की उस हसीना का नाम बताओ, जो उस पर जान देती थी और नासिर भी उस का आशिक रहा हो.’’ मैं ने उस की आंखों में झांकते हुए पूछा.

‘‘ओह, तो कत्ल की इस वारदात का ताल्लुक नासिर की मोहब्बत की कहानी से जुड़ा हुआ है.’’ उस ने गहरी सांस ले कर कहा.

‘‘सौ फीसदी, उस के इश्क में ही कत्ल का राज छिपा है.’’ मैं ने पूरे यकीन से कहा.

हमीदा कुछ सोचती रही, फिर धीरे से बोली, ‘‘सच क्या है, यह तो नहीं कह सकती. पर मैं ने उड़तीउड़ती खबर सुनी थी कि रेशमा से उस का कुछ चक्कर चल रहा था. रेशमा शकूर जुलाहे की बेटी है.’’

मैं ने हमीदा को इनाम दे कर विदा किया. मैं पहले भी उस से मुखबिरी का काम ले चुका था. उस की खबरें पक्की हुआ करती थीं. अगले दिन गरमी कुछ कम थी. मैं खाने और नमाज से फारिग हो कर बैठा था कि जमील अपने बाप के साथ आ गया. मैं ने उस के बाप को वापस भेज कर जमील को सामने बिठा लिया. वह गोराचिट्टा, मजबूत जिस्म का जवान था. मैं ने उस से पूछा, ‘‘जमील, तुम्हें नासिर के साथ हुए हादसे का पता चल गया होगा?’’

मेरी बात सुन कर उस की आंखें भीग गईं. वह दुखी लहजे में बोला, ‘‘साहब, मैं ने अपना सब से प्यारा दोस्त खो दिया है. पता नहीं किस जालिम ने उसे कत्ल कर दिया.’’

‘‘तुम उस जालिम को सजा दिलवाना चाहते हो?’’

‘‘जरूर, साहब मैं दिल से यही चाहता हूं.’’

‘‘तुम्हारी मदद मुझे कातिल तक पहुंचा सकती है. जमील मुझे यकीन है कि बिस्तर पर तकिया रख कर वह पहली बार रात को घर से बाहर नहीं गया होगा. जरूर वह पहले भी जाता रहा होगा. यह खेल काफी दिनों से चल रहा था. तुम उस के दोस्त हो, राजदार हो, तुम्हें सब पता होगा. मैं सारी हकीकत समझ चुका हूं, पर तुम्हारे मुंह से सुनना चाहता हूं.’’

कुछ देर सोचने के बाद वह बोला, ‘‘आप का अंदाजा सही है, इस मामले में एक लड़की का चक्कर है.’’

‘‘रेशमा नाम है न उस का?’’ मैं ने बात पूरी की तो वह हैरानी से मुझे देखने लगा. फिर बोला, ‘‘साहब, उस का नाम रेशमा ही है. दोनों एकदूसरे से मोहब्बत करते थे. धीरेधीरे उन की मुलाकातों का सिलसिला शुरू हो गया था. मैं उन का राजदार था या यूं कहिए मेरी वजह से ही ये मुलाकातें मुमकिन थीं. रेशमा हमारी दुकान पर सामान लेने आती थी. उसे पता था कि मैं कब दुकान पर रहता हूं. मैं ही रेशमा को बताया करता था कि उसे कब खेतों में पहुंचना है. नासिर उस की राह देखेगा, अगर वह आने को हां कह देती थी तो मैं नासिर को बता देता था. फिर वह उस जगह पहुंच जाता था. इस तरह उन दोनों की मुलाकात हो जाती थी.’’

‘‘क्या मुलाकात के वक्त तुम भी आसपास होते थे?’’

‘‘नहीं साहब, मैं कभी उस तरफ नहीं गया. हां, दूसरे दिन नासिर मुझे सब बता दिया करता था.’’

‘‘दोनों के बीच बात किस हद तक आगे बढ़ चुकी थी?’’

‘‘दोनों की मोहब्बत शादी तक पहुंच गई थी. रेशमा जल्दी शादी करने का इसरार कर रही थी. नासिर भी शादी करना चाहता था, लेकिन उसे इतनी जल्दी नहीं थी. जबकि रेशमा जल्दी रिश्ता तय करने की बात कर रही थी.’’

‘‘रेशमा की जल्दी के पीछे भी कोई वजह रही होगी?’’

‘‘हां, दरअसल रेशमा की मां सरदारा बी उस का रिश्ता अपनी बहन के लड़के से करना चाहती थी और उस का बाप उस का रिश्ता अपने भाई के लड़के से करना चाहता था. पर बात सरदारा बी की ही चलनी थी, क्योंकि वह काफी तेज है. वही सब फैसले करती है. रिश्ता खाला के बेटे से न तय हो जाए, इस डर से रेशमा नासिर को जल्दी रिश्ता लाने को कह रही थी.’’ जमील ने तफ्सील से बताया.

‘‘एक बात समझ में नहीं आई जमील, तुम्हारे मुताबिक उन की मुलाकातों के तुम अकेले राजदार थे. जबकि कत्ल वाले दिन के पहले से तुम गांव से बाहर थे. फिर उस दिन दोनों की मुलाकात किस ने तय कराई थी?’’ मैं ने पूछा.

‘‘साहब, जिस दिन मैं टोबा टेक सिंह गया था, उसी दिन मैं ने उन की दूसरे दिन की मुलाकात तय करा दी थी. नासिर ने दूसरे दिन मिलने को कहा था. मैं ने यह बात रेशमा को बता दी थी. उस के हां कहने पर मैं ने नासिर को भी प्रोग्राम पक्का होने के बारे में बता दिया था.’’

‘‘इस का मतलब प्रोग्राम के मुताबिक ही नासिर अगली रात रेशमा से मिलने खेतों में पहुंचा था. यकीनन वादे के मुताबिक रेशमा भी वहां आई होगी और उस रात नासिर के साथ जो खौफनाक हादसा हुआ, वह उस ने भी देखा होगा. उस का बयान कातिल तक पहुंचने में मदद कर सकता है. मुझे रेशमा का बयान लेना होगा.’’ मैं ने कहा.

‘‘साहब, मामला बहुत नाजुक है. नासिर तो अब मर चुका है, आप रेशमा से इस तरह मिलें कि बात फैले नहीं. नहीं तो बेवजह वह मासूम बदनाम हो जाएगी.’’

‘‘तुम इस की चिंता न करो, मैं उस से बहुत सोचसमझ कर इस तरह मिलूंगा कि किसी को पता भी नहीं चलेगा.’’ मैं ने उसे समझाया.

‘‘बहुतबहुत शुक्रिया जनाब, आप बहुत अच्छे इंसान हैं.’’

‘‘जमील, तुम एक बात का खयाल रखना, जो बातें हमारे बीच हुई हैं, उन का किसी से जिक्र मत करना.’’

जब मैं नासिर की लाश ले कर गुलाबपुर पहुंचा तो बशीर लोहार के घर तमाम लोग जमा थे. लाश देख कर एक बार फिर रोनापीटना शुरू हो गया. मौका देख कर मैं ने शकूर को एक तरफ ले जा कर कहा, ‘‘शकूर, मुझे नासिर के कत्ल के सिलसिले में तुम से कुछ पूछना है. यहां खड़े हो कर बात करने से बेहतर है तुम्हारे घर बैठ कर बात की जाए.’’

उस ने कोई आपत्ति नहीं की. मैं उस के साथ उस के घर चला आया और उस की बैठक में बैठ गया. उस की एक बेटी थी रेशमा और एक बेटा शमशाद. बेटा 12-13 साल का रहा होगा, जो उस वक्त बाहर खेल रहा था. अभी थोड़ी ही बातचीत हुई थी कि सरदारा बी चाय की ट्रे ले कर आ गई. शकूर ने कहा, ‘‘थानेदार साहब, चाय पीएं और सवाल भी पूछते रहें. ये मेरी बीवी सरदारा बी है, इस से भी जो पूछना है पूछ लें.’’

उन की बातचीत से मैं ने अंदाजा लगाया कि उन्हें रेशमा के इश्क के बारे में कोई जानकारी नहीं थी. मैं ने उन से नासिर के बारे में कुछ सवाल पूछे, उन दोनों ने उस की बहुत तारीफें कीं. बातचीत के बाद मैं ने उन से पूछा, ‘‘आप की बेटी रेशमा कहां है?’’

‘‘वह घर में ही है जनाब, कल से उसे तेज बुखार है. हकीमजी से दवा ला कर दी, पर उस का कुछ असर नहीं हुआ.’’ सरदारा बी ने कहा.

‘‘रेशमा का बुखार हकीमजी की दवा से कम नहीं होगा. यह दूसरी तरह का बुखार है.’’ मैं ने कहा तो शकूर ने चौंक कर मेरी ओर देखा. मैं ने आगे कहा, ‘‘मैं सच कह रहा हूं, यह इश्क का बुखार है. नासिर की मौत ने रेशमा के दिलोदिमाग को झिंझोड़ कर रख दिया है.’’

दोनों उलझन भरी नजरों से मुझे देखने लगे, ‘‘हमारी तो कुछ समझ में नहीं आ रहा. यह सब क्या है?’’

‘‘मैं समझाता हूं. यही सच्चाई है. रेशमा और नासिर एकदूसरे से बहुत मोहब्बत करते थे. दोनों रातों को मिलते भी थे. रेशमा को उस की मौत से बहुत दुख पहुंचा है.’’ मैं ने एकएक शब्द पर जोर देते हुए कहा.

‘‘मुझे बिलकुल यकीन नहीं आ रहा है.’’ सरदारा बी बोली.

हकीकत जान कर वे दोनों परेशान थे. मैं ने कहा, ‘‘परेशान न हों, आप के घर की बात इस चारदीवारी से बाहर नहीं जाएगी. रेशमा मेरी बेटी की तरह है और बिलकुल बेगुनाह है. मुझे उस की इज्जत का पूरा खयाल है. आप मुझे उस के पास ले चलो, मैं उस से कुछ बातें करूंगा. इस बात की कानोंकान किसी को खबर नहीं हो पाएगी. आप को घबराने की जरूरत नहीं है.’’

उन्होंने मुझे रेशमा के पास पहुंचा दिया. मैं ने उन दोनों को बाहर भेज दिया. वे दरवाजे के पीछे जा कर खड़े हो गए. मैं ने रेशमा से नरम लहजे में कहा, ‘‘रेशमा, मैं तुम से कुछ सवाल पूछना चाहता हूं. दरअसल मैं तुम से नासिर के बारे में कुछ बातें जानना चाहता हूं. वैसे तो मैं सब जानता हूं, फिर भी तुम्हारे मुंह से सुनना जरूरी है.’’

‘‘मैं जो जानती हूं, सब बताऊंगी.’’ उस ने बेबसी से कहा.

‘‘कत्ल की रात तुम खेतों में नासिर से मिलने गई थीं, मुझे यह बताओ कि उस पर हमला किस ने किया था?’’ मैं ने पूछा.

‘‘मैं उस रात नासिर से मिलने नहीं गई थी.’’ वह मजबूती से बोली. उस के लहजे में विश्वास और यकीन साफ झलक रहा था.nमैं ने अगला सवाल किया, ‘‘जमील ने मुझे बताया है कि तुम्हारी और नासिर की मुलाकात पहले से तय थी. यह बात इस से भी साबित होती है, क्योंकि नासिर तुम से मिलने खेतों में गया था.’’

‘‘यही बात तो मेरी समझ में नहीं आ रही है कि नासिर वहां क्यों गया था? जबकि उस ने खुद ही प्रोग्राम कैंसिल कर दिया था.’’ उस ने उलझन भरे लहजे में कहा.

‘‘प्रोग्राम कैंसिल कर दिया था, यह तुम क्या कह रही हो?’’ उस की बात सुन कर मैं बुरी तरह चौंका.

‘‘मैं बिलकुल सच कह रही हूं थानेदार साहब, मुझे नहीं पता प्रोग्राम कैंसिल करने के बाद नासिर वहां क्यों गया था. कल से मैं यही बात सोच रही हूं.’’ रेशमा ने सोचते हुए कहा.

‘‘एक मिनट, तुम दोनों के बीच खबर का आदानप्रदान जमील ही करता था न, पर जमील पिछले 2 दिनों से गुलाबपुर में नहीं था. फिर प्रोग्राम कैंसिल होने की खबर तुम्हें किस ने दी?’’ मैं ने उसे देखते हुए पूछा.

‘‘इम्तियाज ने.’’ उस ने एकदम से कहा.

‘‘इम्तियाज कौन है?’’

‘‘माजिद चाचा का बेटा.’’

‘‘क्या इम्तियाज को भी तुम दोनों की मोहब्बत की खबर थी?’’

‘‘नहीं जी, वह तो 8 साल का बच्चा है. हमारे पड़ोस में ही रहता है.’’

‘‘इम्तियाज ने तुम से क्या कहा था?’’

‘‘मुझे तो यह जान कर ही बड़ी हैरानी हुई थी कि नासिर ने इम्तियाज के हाथ यह पैगाम क्यों भिजवाया था कि मुझे वहां नहीं जाना है. मैं ने चेक करने के लिए उस से पूछा, ‘कहां नहीं जाना है.’ इस पर उस ने कहा था कि वह इस से ज्यादा कुछ नहीं जानता. नासिर भाई ने कहा है कि रेशमा को कह दो कि आज नहीं आना है. कुछ जरूरी काम है.’’ उस ने रुकरुक कर आगे कहा, ‘‘मैं जमील की दुकान पर जा कर पता कर लेती, पर वह टोबा टेक सिंह चला गया था. इम्तियाज से कुछ पूछना बेकार था. बहरहाल मैं ने फैसला कर लिया था कि मैं नासिर से मिलने नहीं जाऊंगी.’’

‘‘इस का मतलब है कि नासिर को पूरी मंसूबाबंदी से साजिश के तहत कत्ल किया गया है. मुझे यकीन है कि इम्तियाज उस आदमी को पहचानता होगा, जिस ने नासिर के हवाले से तुम्हारे लिए संदेश भेजा था.’’ मैं ने सोचते हुए कहा.

‘‘आप यह बात इम्तियाज से पूछें. मेरी तबीयत बहुत बिगड़ रही है. चक्कर आ रहे हैं.’’ वह कमजोर लहजे में बोली.

‘‘तुम आराम करो रेशमा, पर इन बातों का किसी से जिक्र मत करना और परेशान मत होना.’’ मैं ने उसे समझाया.

जब मैं कमरे से निकला तो उस के मांबाप ने मुझे घेर कर पूछा, ‘‘थानेदार साहब, कुछ पता चला?’’

‘‘कुछ नहीं, बल्कि सब कुछ पता चल गया है.’’

‘‘हमें भी तो कुछ बताइए न?’’ शकूर ने कहा.

‘‘पहले आप पड़ोस से इम्तियाज को बुलाएं.’’

थोड़ी देर में सरदारा बी इम्तियाज को बैठक में ले आई. वह 8 साल का मासूम सा बच्चा था. मैं ने उसे प्यार से अपने पास बिठा कर पूछा, ‘‘बेटा इम्तियाज, तुम जानते हो कि मैं कौन हूं?’’

‘‘हां, आप पुलिस हैं.’’ वह मुझे गौर से देखते हुए बोला.

इधरउधर की एकदो बातें करने के बाद मैं ने उस से कहा, ‘‘तुम स्कूल जाते हो, एक अच्छे बच्चे हो, सच बोलने वाले. यह बताओ, परसों शाम को तुम ने रेशमा बाजी से कहा था कि नासिर भाई ने कहा है कि आज नहीं आना है.’’ मैं ने उसे गौर से देखते हुए कहा, ‘‘ऐसा हुआ था न?’’

‘‘हां, ऐसा हुआ था साहब.’’ इम्तियाज बोला.

‘‘तुम बहुत अच्छे बच्चे हो. मैं तुम्हें टाफियां दूंगा. अब यह भी बता दो कि तुम ने रेशमा बाजी को कहां जाने से मना किया था?’’

‘‘यह मुझे नहीं पता.’’ वह मासूमियत से बोला, ‘‘आप को यकीन नहीं आ रहा है तो रब की कसम खाता हूं.’’

‘‘नहीं बेटा, कसम खाने की जरूरत नहीं है. मुझे तुम पर भरोसा है. तुम ने तो रेशमा बाजी से वही कहा था, जो नासिर भाई ने तुम से कहलवाया था, है न?’’

‘‘नहीं जी.’’ वह उलझन भरी नजरों से मुझे देखने लगा.

‘‘क्या नहीं?’’

‘‘यह बात मुझे नासिर भाई ने नहीं कही थी.’’

उस ने कहा तो मैं ने तपाक से सवाल किया, ‘‘फिर किस ने कही थी?’’

‘‘हैदर भाई ने.’’

‘‘तुम्हारा मतलब है हैदर अली? सरदारा बी का भांजा हैदर अली, जुलेखा का बेटा.’’ मैं ने पूछा.

‘‘जी, जी वही हैदर भाई.’’ उस ने जल्दी से कहा.

सरदारा बी की बहन जुलेखा का घर भी गुलाबपुर में ही था. हैदर अली उसी का बेटा था और वह इसी हैदर से रेशमा की शादी करना चाहती थी. यह भी सुनने में आया था कि हैदर का दावा था कि रेशमा उस की बचपन की मंगेतर है. मैं सोचने लगा कि जब उसे रेशमा और नासिर की मोहब्बत का पता चला होगा तो उस ने अपने प्रतिद्वंदी को रास्ते से हटाने की कोशिश की होगी. मुझे लगा कि अब केस हल हो जाएगा. जैसे ही वह मेरे हत्थे चढ़ेगा, उसे डराधमका कर मैं उस की जुबान खुलवाने में कामयाब हो जाऊंगा. पर ऐसा नहीं हुआ.

जब मैं जुलेखा के घर पहुंचा तो हैदर अली घर पर नहीं था. मैं ने जुलेखा से पूछा, ‘‘हैदर अली कहां गया है?’’

‘‘मुझे तो पता नहीं, बता कर नहीं गया है जी. वैसे आप हैदर को क्यों ढूंढ रहे हैं?’’ वह परेशान हो कर बोली.

उस की परेशानी स्वाभाविक थी. अगर पुलिस किसी के दरवाजे पर आए तो घर के लोग चिंता में पड़ जाते हैं. मैं जुलेखा को अंधेरे में नहीं रखना चाहता था. मैं ने ठहरे हुए लहजे में कहा, ‘‘तुम्हें यह पता है न कि गुलाबपुर में एक लड़के का कत्ल हो गया है?’’

‘‘जी…जी मालूम है, बशीर लोहार के जवान बेटे का कत्ल हो गया है. किसी जालिम ने उसे बड़ी बेरहमी से मारा है.’’ उस ने कहा.

‘‘किसी ने नहीं, एक खास बंदे ने जिस की तलाश में मैं यहां आया हूं. तुम्हारा लाडला हैदर अली.’’

‘‘नहींऽऽ.’’ उस ने एक चीख सी मारी, ‘‘मेरा बेटा कातिल नहीं हो सकता. आप को कोई गलतफहमी हुई है थानेदार साहब.’’ वह रोनी आवाज में बोली.

‘‘हर मां का यही खयाल होता है कि उस का बेटा मासूम है. पर मैं तफ्तीश कर के पक्के सुबूत के साथ यहां आया हूं.’’

‘‘कैसा सुबूत साहब?’’ वह परेशान हो कर बोली.

‘‘हैदर अली को मेरे हाथ लगने दो, उसी के मुंह से सुबूत भी जान लेना.’’ मैं ने तीखे लहजे में कहा.

काफी देर राह देखने के बाद मैं ने गांव में अपने 2 लोग उस की तलाश में भेजे. पर वह कहीं नहीं मिला. इस का मतलब था, वह गांव छोड़ कर कहीं भाग गया था. गुलाबपुर में भी किसी को उस के बारे में कुछ पता नहीं था. हैदर अली के गांव से गायब होने से पक्का यकीन हो गया कि वारदात में उसी का हाथ था. मैं काफी देर तक गुलाबपुर में रुका रहा. फिर जुलेखा से कहा, ‘‘जैसे ही हैदर घर आए, उसे थाने भेज देना.’’

एक बंदे को टोह में लगा कर मैं थाने लौट आया. अगले रोज मैं सुबह की नमाज पढ़ कर उठा ही था कि किसी ने दरवाजा खटखटाया. दरवाजा खोला तो सामने कांस्टेबल न्याजू खड़ा था. पूछने पर बोला, ‘‘साहब, जिस सिपाही को हैदर पर नजर रखने के लिए गांव में छोड़ कर आए थे, उस ने खबर भेजी है कि वह देर रात घर लौट आया है.’’

‘‘न्याजू, तुम और हवलदार समद फौरन गुलाबपुर रवाना हो जाओ और हैदर अली को साथ ले कर आओ.’’ मैं ने उसे आदेश दिया.

तैयार हो कर मैं थाने पहुंचा तो थोड़ी देर बाद हवलदार समद हैदर को गिरफ्तार कर के ले आया. उस के साथ रोती, फरियाद करती जुलेखा भी थी. मैं ने कहा, ‘‘देखो, रोनेधोने की जरूरत नहीं है. यह थाना है शोर मत करो.’’

‘‘साहब, आप मेरे जवान बेटे को पकड़ कर ले आए हैं, मैं फरियाद भी न करूं.’’ वह रोते हुए बोली.

‘‘मैं ने तुम्हारे बेटे को पूछताछ के लिए थाने बुलाया है, फांसी पर चढ़ाने के लिए नहीं. अगर वह बेकुसूर है तो अभी थोड़ी देर में छूट जाएगा. यह मेरा वादा है तुम से.’’

‘‘अल्लाह करे, मेरा बेटा बेगुनाह निकले.’’

‘‘मेरी सलाह है, तुम घर चली जाओ. अगर हैदर बेकुसूर है तो शाम तक घर आ जाएगा.’’

हैदर को मैं ने अपने कमरे में बुलाया. हवलदार समद भी साथ था. मैं ने उसे गहरी नजर से देख कर तीखे लहजे में कहा, ‘‘हैदर, इसी कमरे में तुम्हारी जुबान खुल जाएगी या तुम्हें ड्राइंगरूम की सैर कराई जाए.’’

मेरी बात सुन कर उस के चेहरे का रंग उतर गया. वह गिड़गिड़ाया, ‘‘साहब, मैं ने ऐसा क्या किया है?’’

‘‘क्या के बच्चे, मैं बताता हूं तेरी काली करतूत. तूने नासिर का कत्ल किया है.’’

‘‘नहीं जी, मैं ने किसी का कत्ल नहीं किया.’’ वह घबरा उठा.

‘‘फिर नासिर का कातिल कौन है?’’ मैं ने उस की आंखों में देखते हुए कहा.

‘‘मुझे कुछ पता नहीं थानेदार साहब.’’ वह हकलाया.

‘‘तुम्हें यह तो पता है न कि रेशमा तुम्हारी बचपन की मंगेतर है.’’ मैं ने टटोलने वाले अंदाज में कहा.

‘‘जी, जी हां, यह सही है.’’ उस ने कहा.

‘‘और यह भी तुम्हें मालूम होगा कि मकतूल नासिर और तुम्हारी मंगेतर रेशमा में पिछले कुछ अरसे से इश्क का चक्कर चल रहा था?’’

‘‘यह आप क्या कह रहे हैं थानेदार साहब?’’ उस ने नकली हैरत दिखाते हुए कहा.

‘‘मैं जो कह रहा हूं, तुम अच्छी तरह समझ चुके हो. सीधी तरह से सच्चाई बता दो, वरना मुझे दूसरा तरीका अपनाना पड़ेगा.’’ मैं ने सख्त लहजे में कहा.

‘‘मैं बिलकुल सच कह रहा हूं, मैं ने नासिर का कत्ल नहीं किया.’’ वह नजरें चुराते हुए बोला.

‘‘नासिर के कत्ल वाली बात पहले हो चुकी है. अभी मेरे इस सवाल का जवाब दो कि तुम्हें रेशमा और नसिर के इश्क की खबर थी या नहीं? सच बोलो.’’ मैं ने पूछा.

‘‘नहीं साहब, मुझे इस बारे में कुछ पता नहीं था.’’

‘‘तो क्या तुम इम्तियाज को भी नहीं जानते?’’

‘‘कौन इम्तियाज?’’ वह टूटी हुई आवाज में बोला.

‘‘माजिद का बेटा, रेशमा का पड़ोसी बच्चा. याद आया कि नहीं?’’ मैं ने दांत पीसते हुए कहा.

‘‘अच्छाअच्छा, आप उस बच्चे की बात कर रहे हैं.’’

‘‘हां…हां, वही बच्चा, जिस के हाथ तुम ने रेशमा के लिए संदेश भेजा था कि नासिर भाई ने कहा है कि आज नहीं आना है.’’ मैंने एकएक शब्द पर जोर देते हुए कहा तो वह हैरानी से बोला, ‘‘मैं ने? मैं ने तो ऐसी कोई बात नहीं की…’’

‘‘तुम्हारे इस कारनामे के 2 गवाह मौजूद हैं. एक तो इम्तियाज, जिस के हाथ तुम ने संदेश भेजा था, दूसरी रेशमा, जिस के लिए तुम ने यह पैगाम भेजा था. अब बताओ, क्या कहते हो?’’

मेरी बात सुन कर वह हड़बड़ा गया. हवलदार समद ने कहा, ‘‘आप इस नालायक को मेरे हवाले कर दें, एक घंटे में फटाफट बोलने लगेगा.’’

मैं ने हैदर अली को हवलदार के हवाले कर दिया. थोड़ी देर में उस की चीखनेचिल्लाने की आवाजें आने लगीं. एक घंटे के पहले ही हवलदार ने खुशखबरी सुनाई.

‘‘हैदर अली ने जुर्म कुबूल लिया है. आप इस का बयान ले लें.’’

‘‘मतलब यह कि उस ने नासिर के कत्ल की बात मान ली है?’’ मैं ने पूछा.

‘‘जी नहीं, बात कुछ और ही है, आप उसी से सुनिए.’’

हैदर अली ने नासिर का कत्ल सीधेसीधे नहीं किया था. अलबत्ता वह एक अलग तरह से इस कत्ल से जुड़ा था. यह भी सच था कि नन्हे इम्तियाज से रेशमा को पैगाम उसी ने भिजवाया था. यह पैगाम उस ने चौधरी आफताब के कहने पर रेशमा को भिजवाया था, ताकि रेशमा वारदात की रात मुलाकात की जगह न पहुंच सके और नासिर को ठिकाने लगाने में किसी मुश्किल का सामना न करना पड़े. चौधरी आफताब नजीराबाद के चौधरी का बेटा था. वह भी कबड्डी का अच्छा खिलाड़ी था. हाल ही में खेले गए टूर्नामेंट में वह नजीराबाद से खेल रहा था. फाइनल मैच में नजीराबाद की बुरी तरह से हार हुई थी. कप और इनाम गुलाबपुर के हिस्से में आए. ढेरों तारीफ व जीत की खुशी भी नासिर के नाम लिखी गई.

एक कबड्डी का दांव नासिर और आफताब के बीच पड़ा था, जिस में नासिर ने चौधरी आफताब को इतनी बुरी तरह से रगड़ा था कि उस की नाक और मुंह से खून बहने लगा था. एक तो गांव की हार, ऊपर से अपनी दुर्गति पर उस का दिल गुस्से और बदले की आग से जलने लगा था. उस का वश चलता तो वह वहीं नासिर का सिर फोड़ देता. उस ने मन ही मन इरादा कर लिया कि नासिर से बदला जरूर लेगा. इस तरह उस का अपने सब से बड़े प्रतिद्वंदी से भी पीछा छूट जाएगा. आफताब से हैदर ने कह रखा था कि रेशमा उस की बचपन की मंगेतर है. किसी तरह उसे यह भी पता चल गया था कि नासिर और रेशमा के बीच मोहब्बत और मुलाकात का सिलसिला चल रहा है. इसलिए उस ने एक तीर से दो शिकार करने का खतरनाक मंसूबा बना लिया.

हैदर अली को रेशमा और नासिर के संबंध का शक तो था ही, पर जब आफताब ने इस बारे में उसे शर्मसार किया तो वह आपे से बाहर हो गया. चौधरी आफताब ने उसे समझाया कि जोश के बजाय होश और तरीके से काम लिया जाए तो सांप भी मर जाएगा और लाठी भी सलामत रहेगी. हैदर अली ने चौधरी आफताब का साथ देने का फैसला कर लिया. हैदर अली ने अपने हाथों से नासिर का कत्ल नहीं किया था, पर वह इस साजिश का एक हिस्सा था. जिस में चौधरी के भेजे हुए दो लोगों ने तेजधार चाकू की मदद से नासिर का बेदर्दी से कत्ल कर दिया था. जब कातिल उसे मौत के घाट उतार रहे थे तो हैदर अली थोड़ी दूर अंधेरे में खड़ा यह खूनी तमाशा देख रहा था.

हैदर अली के इकबालेजुर्म और गवाही पर मैं ने उसी रोज खुद नजीराबाद जा कर नासिर के कत्ल के सिलसिले में चौधरी आफताब को भी गिरफ्तार कर लिया था. आफताब गांव के चौधरी का बेटा था, इसलिए उस की गिरफ्तारी को रोकने के लिए मुझ पर काफी दबाव डाला गया था, पर मैं ने उस के असर व पैसे की परवाह न करते हुए चौधरी आफताब और उस की निशानदेही पर उन दोनों कातिलों को भी जेल की सलाखों के पीछे पहुंचा दिया था. अपनी हर कोशिश नाकाम होते देख चौधरी ने मुझे धमकी दी थी, ‘‘मलिक साहब, आप को मेरी ताकत का अंदाजा नहीं है. मैं अपने बेटे को अदालत से छुड़वा लूंगा.’’

मैं ने विश्वास से कहा, ‘‘चौधरी साहब, मैं सिर्फ खुदा की ताकत और कानून से डरता हूं. आप को जितना जोर लगाना है, लगा लो. आप का होनहार बेटा अदालत से सीधा जेल जाएगा.’’

मैं ने हैदर अली, चौधरी आफताब और नासिर के दोनों कातिलों के खिलाफ बहुत सख्त रिपोर्ट बनाई और उन्हें अदालत के हवाले कर दिया. दोनों कातिल अपने जुर्म का इकबाल कर चुके थे, इसलिए उन की बाकी जिंदगी जेल में ही गुजरनी थी. Crime Stories

 

UP Crime News : एक नाबालिग के 2 दीवाने दोनों ने कर दी हत्या

UP Crime News : कुशीनगर की 17 वर्षीय अमृता शर्मा और 26 वर्षीय सैफुद्दीन उर्फ सैफ अली एकदूसरे को दिलोजान से प्यार करते थे. सैफ अली का लंगोटिया यार इम्तियाज अहमद उर्फ टिंकू भी अमृता से एकतरफा मोहब्बत करता था. प्यार में अंधी अमृता एक दिन अपना घर छोड़ कर प्रेमी सैफ अली के पास आ गई. इस के बाद इन दोनों दोस्तों ने अमृता के साथ जो किया वो…

26 वर्षीय सैफुद्दीन उर्फ सैफ अली घर में नमाज अता करते वक्त इबादत कर रहा था, ”मेरी महबूबा अमृता पर किसी आवारा आशिक की बुरी नजर न लगे. वह मेरी थी, मेरी है और मेरी ही रहेगी. किसी आवारा आशिक की जब भी उस पर गंदी नजर पड़ती है या उसे घूर कर कोई देखता है तो मेरे कलेजे में आग सी लग जाती है. उस समय जी तो यही चाहता है कि उसे कत्ल कर दूं, लेकिन मैं ऐसा कर नहीं सकता. क्योंकि बेपनाह मोहब्बत करता हूं मैं उसे. पलकों पर बैठा कर रखना चाहता हूं उसे. या मेरे परवरदिगार, अगर कहीं मेरे से महबूबा की शान में कोई गुस्ताखी हो जाए तो मुझे माफ करना. आमीन.’’

सैफ अली ने अपने एक कमरे में तरीके से सारा सामान सजा कर रखा था. कमरे में एक तख्त था, जिस पर बिस्तर बिछा हुआ था. फर्श पर वह एक साफसुथरी चादर बिछा कर नमाज अता कर रहा था और महबूबा अमृता की सलामती के लिए दुआ मांग रहा था. उस वक्त शाम ढल चुकी थी. नमाज अता कर के जैसे ही सैफ अली फारिग हुआ, तभी उस का अजीज दोस्त इम्तियाज अहमद उर्फ टिंकू उस से मिलने आया. दोनों ने एकदूसरे से दुआसलाम की. तभी इम्तियाज बोला, ”कई दिनों से मैं तुम से मुलाकात करने की सोच रहा था. फिर आज आ ही गया.’’

”अच्छा किया, जो मिलने आ गए. तुम से मिलने के लिए मेरा मन भी बेचैन था.’’ सैफ अली ने कहा.

”और भाभीजान कैसी हैं?’’ टिंकू ने सैफ अली की महबूबा अमृता के बारे में सवाल किया था.

”मजे में है.’’ उस ने सपाट लहजे में जवाब दिया.

जवाब सुन कर टिंकू चुप रह गया. पल भर कमरे में सन्नाटा छा गया था. फिर सन्नाटे को टिंकू ही तोड़ा, ”दोस्त, मुझ से नाराज हो क्या?’’

”नहीं तो, बाई दि वे तुम्हें ऐसा क्यों लगता है कि मैं तुम से नाराज हूं?’’

”मेरी दिल्लगी करने की आदत जो है, वही कर रहा था.’’

”लेकिन मेरी ऐसा करने की कोई आदत नहीं, सो प्लीज यार, सीरियस हो जाओ.’’

”कहीं ऐसा तो नहीं, जानेअनजाने में मैं ने तेरा दिल दुखा दिया हो. अगर ऐसी बात है तो यार माफ करना मुझे, मेरा ऐसा कोई इरादा नहीं था, जिस से तेरा दिल दुखे और तू तकलीफ में आ जाए.’’

”खैर, छोड़ यार. वैसे भी मेरा मूड कुछ अपसेट है. थोड़ा फ्री रहना चाहता हूं. कल मिलता हूं, फिर बात करता हूं.’’

”चलता हूं.’’ इम्तियाज अहमद उर्फ टिंकू दोस्त को सलाम कर वहां से अपने घर के लिए चला गया. रास्ते भर वह यही सोचता रहा कि सचमुच दोस्त किसी बात को ले कर परेशान दिख रहा था. कहीं भाभीजान की खैरियत पूछ लेने से तो नाराज नहीं हो गया या कोई और बात है. कल मुलाकात करने पर जरूर पूछूंगा. सोचतेसोचते टिंकू घर पहुंच गया.

सैफ अली अजीज दोस्त टिंकू से वाकई नाराज था. क्योंकि उस की प्रेमिका अमृता ने सैफ को बताया था कि टिंकू उस पर बुरी तरह से फिदा है. वह भी उसे चाहता है. उस ने अपना प्रेम निवेदन मुझ तक शेयर कर के अपने दिल की बात बताई थी कि वह भी उस से दिलोजान से मोहब्बत करता है. उसे अपने दिल रूपी घर में पनाह ले लेने दे.

सैफ अली ने अमृता के मुंह से जब से यह बात सुनी, तब से उस के तनबदन में आग सी लग गई थी. उस की हिम्मत कैसे हुई कि उस ने मेरे प्यार को बहकाने की जुर्रत की. मजा तो इस का उसे चखा कर ही रहूंगा. अमृता मेरी थी, मेरी है और मेरी ही रहेगी. कोई भी हमारे बीच में आने की जुर्रत करेगा तो उसे अपनी जान से हाथ धोना पडेगा. टिंकू ने अमृता को बुरी नजर से देख कर उसे नापाक करने की कोशिश की है, छोड़ूंगा नहीं उसे, कल मिलता हूं फिर उसे मजा चखाता हूं. इसीलिए उसे देख कर सैफुद्दीन उर्फ सैफ अली का मूड खराब हो गया था और अपने घर से उसे जल्दी से लौटा दिया था.

सैफ अली उत्तर प्रदेश के कुशीनगर जिले के हाटा पिपरा कपूर गांव का रहने वाला था. 3 भाइयों में वह सब से बड़ा था. पढ़लिख कर भी वह बेरोजगार था. नौकरी की तलाश में वह जुटा हुआ था, लेकिन नौकरी नहीं मिलने पर वह खाली बैठा था. इसी गांव में उस की प्रेमिका अमृता शर्मा भी रहती थी.

7171 गैंग के सदस्य थे दोनों दोस्त

सोशल मीडिया पर ‘लाला 7171 गैंग’ सक्रिय था. यह रील बना कर सोशल मीडिया पर खतरनाक असलहों और धारदार हथियारों के साथ रील बना कर पोस्ट कर के लोगों में अपने गैंग का खौफ भरते थे. सैफ अली और टिंकू दोनों उस खतरनाक गैंग के सक्रिय सदस्य थे. 20 सदस्यों वाला यह गैंग किसी से झगड़ा होने पर एकजुट हो कर खतरनाक असलहे और लाठीडंडा ले कर मारपीट करने पर उतारू हो जाता था. कुशीनगर जिले में इस गैंग की इतनी दहशत थी कि कोई गलती से भी पंगा लेने के बारे में सोचता नहीं था.

इसी गैंग के सदस्य बनने के बाद सैफ अली और टिंकू दोनों एकदूसरे के निकट आए और दोनों में गहरी दोस्ती हो गई थी. इम्तियाज उर्फ टिंकू हाटा कस्बे के अंबेडकर नगर मोहल्ले में अपने परिवार के साथ रहता था. परिवार में मम्मीपापा के अलावा 4 भाईबहन थे. उन में वह दूसरे नंबर का था. वह भी पढ़लिख कर बेरोजगार था और कामधंधे की तलाश थी, इसलिए वह भर दिन यहांवहां तफरीमस्ती करता था.

पड़ोस में रहने वाली नाबालिग अमृता शर्मा (17 वर्षीय) से सैफ अली प्यार करता था. अपने दिल की हर बात वह दोस्त इम्तियाज अहमद उर्फ टिंकू से शेयर करता था. टिंकू से दिल की बात शेयर किए बिना उस का जैसे खाना हजम ही नहीं होता था. एक दिन की बात है. शाम का वक्त हो रहा था. घर पर सैफ अली का मन नहीं लग रहा था. वह हाटा कस्बे में घूमने आया तो वहां उसे टिंकू मिल गया.

उस समय सैफ अली के चेहरे पर खुशी साफ झलक रही थी. ऐसा लग रहा था जैसे दुनिया भर की खुशियां उस की झोली में आ गिरी हों या कोई मन की मुराद पूरी हो गई हो. सैफ अली  के चमकते चेहरे को देख कर उसे रहा नहीं गया तो वह दोस्त से खुशी का राज पूछ बैठा, ”क्या बात है यार, आज तो बड़े खुश नजर आ रहे हो. भाभी ने किसविस दे दी क्या?’’

”तुम्हें जलन हो रही है मेरी खुशी देख कर,’’ टिंकू की बात सुन कर उस का पूरा मूड खराब हो गया, ”हां, किस दे दी है तो… देख रहा हूं आजकल तेरी मेरे प्यार पर कुछ खास ही नजर रहती है. बड़ा मेहरबान रहता है तू उस पर.’’

”दोस्त, मैं ने तो मजाक में ऐसे ही कह दिया था.’’ टिंकू समझ गया था कि वह नाराज हो गया है, इसीलिए वह बात बदलते हुए आगे बोला, ”अगर तुम्हें बुरा लगा हो तो माफ कर देना.’’

”देख, तू मेरा यार है, बात यारी तक ही रह जाए तो अच्छा है, वरना दोस्ती में खटास आ जाएगी, कह देता हूं.’’

”मतलब! ऐसा मैं ने क्या किया, जो तुम मेरे को धमका रहे हो कि दोस्ती में खटास आ जाएगी.’’

”तू तो ऐसा भोला बन रहा है, जैसे तेरे को कुछ पता ही नहीं. लेकिन मैं तेरे को आखिरी बार समझा देता हूं कि तू मेरे प्यार से जितनी दूरी बना कर रखेगा, तेरी सेहत के लिए उतना ही अच्छा होगा. अमृता ने मुझ से सब साफसाफ बता दिया है कि तू उस पर डोरे डाल रहा है, उसे लाइन मारता है.’’

”क्यों बकवास किए जा रहा है यार.’’ टिंकू दोस्त पर बिदक गया, ”झूठ बोलती है, वो. मैं सच कहता हूं कि ऐसा कुछ भी नहीं है. दोस्त, हमारी पाक दोस्ती के बीच गलतफहमी पैदा कर वह हमें आपस में लड़ाना चाहती है. दोस्तों के बीच दरार पैदा करना चाहती. कसम से कह रहा हूं कि मेरे दिल में भाभी के लिए सिर्फ इज्जत है और कुछ नहीं.’’

”झूठ नहीं बोलती वो.’’ सैफुद्दीन जोर से चीखा. चीख सुन कर आसपास के लोग दोनों को देखने लगे कि वे क्यों झगड़ रहे हैं.

”झूठ तू बोल रहा है. हमारे बीच गलतफहमी का बीज वो नहीं बो रही है, तू बो रहा है. तू उस पर फिदा है, मरता है तू उस पर. तूने अपनी मोहब्बत का पैगाम उसे दिया, उस ने तेरे प्यार को ठुकरा दिया और कहता कि वह हमारे बीच दरार डालने की कोशिश कर रही है. देख टिंकू, मैं सब कुछ बरदाश्त कर सकता हूं, लेकिन मेरे प्यार के साथ कोई छेड़छाड़ करे, ये कतई बरदाश्त नहीं कर सकता. समझे.’’

”बात मान यार मेरी तू, अमृता भाभी मेरे पर जो इलजाम लगा रही है, सरासर गलत है. ऐसा मैं ने कुछ नहीं किया है, जो मेरे पर इलजाम लगाए. ये सब बेबुनियाद इलजाम हैं. तू यकीन कर मेरे दोस्त.’’

”चल, कुछ देर के लिए मैं ने तेरी बात मान ली, अमृता तुझे बदनाम करने के लिए झूठ बोल रही थी. तू सोच वह झूठ क्यों बोलेगी? ऐसा कर के उसे क्या मिलेगा? वह क्यों खुद के ऊपर कीचड़ उछालेगी, जिस से वह खुद ही गंदी हो जाए. है तेरे पास इस का कोई जबाव तो बता.’’

सैफ अली की बात सुन कर टिंकू एकदम चुप रह गया. कोई उत्तर नहीं दिया.

”नहीं हैं न, तेरे पास इस का कोई जवाब. मतलब साफ है कि तू झूठ बोलता है न कि अमृता. बस बहुत हो गया, उस से दूर हो जा, नहीं तो मैं दोस्ती तोडऩे में जरा भी वक्त नहीं लगाऊंगा. ये मेरी पहली और आखिरी चेतावनी है. आगे तेरी मरजी.’’

इम्तियाज ने इस तरह रची खतरनाक साजिश

एक लड़की के चलते पहली बार टिंकू को इतना जलील होना पड़ा था. सैफ अली ने पहली बार अपनी प्रेमिका के लिए अपने अजीज दोस्त को जलालतमलामत का सबक सिखाया था. जबकि उन की दोस्ती लोगों में मिसाल बना करती थी. यह बात टिंकू को बहुत बुरी लगी थी. उसे कतई अमृता से ऐसी उम्मीद नहीं थी कि मेरे प्रेम निवेदन वाली बात दोस्त से साझा कर देगी. उसी पल टिंकू ने कसम खाई कि अमृता मेरी नहीं हुई तो मैं किसी और की नहीं होने दूंगा. उस के जीवन में ऐसी आग लगाऊंगा कि वह उस की आग में अपनी सारी खुशियां झुलसा देगी. दोस्तों के बीच गहरी खाई खोद कर अच्छा नहीं किया है.

दरअसल, टिंकू दोस्त की प्रेमिका अमृता शर्मा से एकतरफा प्यार करने लगा था. चूंकि अमृता अपने प्रेमी का दोस्त समझ कर उस से हंसबोल लिया करती थी. उस की उसी हंसी को वह प्यार समझने की भूल कर बैठा था. ऊपर से सैफ अली भी अपने प्यार का बखान समयसमय पर उस के सामने करता रहता था. इसी से उस का झुकाव अमृता की ओर बढ़ता गया और उसे उस से प्यार हो गया था. लेकिन अमृता उसे प्यार नहीं करती थी, बल्कि वह इस बात से अंजान थी टिंकू भी उस से प्यार करता था.

खैर, टिंकू दोस्त से हुए अपमान को बदला लेने के लिए फडफ़ड़ाने लगा था. उस ने फैसला कर लिया था कि अगर वह मेरी नहीं हुई तो मैं किसी और की भी नहीं होने दूंगा. दोस्त सैफुद्दीन उर्फ सैफ अली और अमृता के बीच चल रहे प्यार वाली बात अमृता के घर वालों को बता देगा. उस के बाद जो खेल होगा, उस में हाथ सेंकने में बड़ा मजा आएगा. तब कहीं जा कर मेरे कलेजे को ठंडक पहुंचेगी. टिंकू ने जैसा सोचा था, वैसा ही किया. 10 जुलाई, 2025 की दोपहर वह अमृता के घर पहुंच गया. उस समय वह घर पर नहीं थी, स्कूल गई थी. उस के घर पर उस की मम्मी और उस क ी बहनें थीं. यही मौका उसे सही और उचित लगा था घर वालों को भड़काने के के लिए.

फिर क्या था, टिंकू ने मौका देख कर चौका मार दिया. उस ने अमृता की मम्मी से सैफ अली और उस की बेटी की प्रेम लीला वाली बात खोल अपनी जलन पर बर्फ का मरहम लगा लिया और वहां से अपने घर लौट आया. अब जा कर उस के कलेजे को ठंडक पहुंची थी. एक दूसरे समुदाय के लड़के से अमृता प्यार करती है, यह बात सुन कर फेमिली वाले आगबबूला हो गए थे. बेटी से उन्हें कतई ऐसी उम्मीद नहीं थी कि वह अपनी कुलच्छन हरकत से घर वालों का नाम डुबोएगी. शाम में जब अमृता के पापा राघव कामधंधे से वापस घर लौटे तो उन की पत्नी ने बेटी की करतूतों की पोटली उन के सामने खोल कर रख दी थी.

बेटी की करतूत सुन कर राघव का खून खौल उठा था. उन्होंने आव देखा न ताव, हाथ में जो भी मिला, उसी से बेटी को पीटने लगे. उसे बुरी तरह लात, चप्पल और डंडे से तब तक पीटते रहे, जब तक उन का गुस्सा शांत नहीं हुआ. जब गुस्सा शांत हुआ, तब पत्नी से बोल दिया कि उसे घर में कैद कर के रखो और इस का स्कूल जाना बंद कर दो. इस पर इतनी कड़ाई करो कि इस के सिर से उस बेहूदा इश्क का भूत उतर जाएगा. अगर तुम से यह नहीं हो सकता तो बता दो मैं ही कोई इंतजाम कर दूं. इस नालायक ने तो हमारी इज्जत मटियामेट कर दी है.

अमृता पापा की मार से बुरी तरह आहत थी. रोरो कर उस का बुरा हाल था. गनीमत थी कि उस का फोन उसी के पास सुरक्षित रह गया था. वह छीन नहीं पाए थे. यह सोच कर उसे थोड़ी तसल्ली हुई. थोड़ी देर बाद जब उस का मन शांत हुआ तो उस ने प्रेमी सैफ अली के पास चुपके से फोन किया. उस समय रात के करीब 9 बज रहे थे. प्रेमिका का रात के समय फोन आया देख सैफुद्दीन घबरा गया और कमरे से फोन ले कर बाहर निकल आया.

”हैलो! इतनी रात गए तुम ने फोन क्यों किया?’’ दबी जुबान में उस ने पूछा.

”मैं हमेशाहमेशा के लिए घर छोड़ कर आप के पास रहने आ रही हूं.’’ अमृता सुबकती हुई बोली.

”पहले तुम रोनाधोना बंद करो और बताओ बात क्या है? किसी ने तुम्हें कुछ कहा है या कोई और बात है. साफसाफ बताओ मुझे.’’

”हमारे प्यार के बारे में मेरे घर वालों को पता चल गया. पापा ने डंडे से मुझे बहुत मारा है. मुझे घर से निकलने पर पाबंदी लगा दिए हैं. मैं आप के बिना  जी नहीं सकती, मर जाऊंगी. मुझे आप के साथ रहना है.’’

”आखिर उन्हें हमारे प्यार के बारे पता कैसे चला?’’

”कैसे पता चला! अपने दोस्त टिंकू से पूछिए. उसी ने जा कर मेरे घर वालों को बताया है.’’

”टिंकू ने ऐसा किया!’’ सैफुद्दीन चौंक पड़ा, ”मुझे यकीन नहीं हो रहा कि टिंकू ने ऐसी गद्दारी की हमारे साथ. उस हरामी के पिल्ले को तो मैं छोड़ूंगा नहीं, लेकिन तुम इतनी रात गए घर से निकलना मत. थोड़ा सोचने का मौका दो.’’

”मैं कुछ नहीं जानती हूं. मुझे अब घर नहीं रहना तो नहीं रहना. बस कह दिया मैं ने. मैं आ रही हूं घर छोड़ कर.’’

”ठीक है, नहीं मानोगी तो गांव के बाहर आ कर मिलो. मिल कर फिर सोचता हूं कि क्या करना है.’’ कह कर फोन डिसकनेक्ट कर दिया सैफ अली ने और आगे के रास्ते के बारे में सोचने लगा.

अमृता अपनी जिद पर अड़ी रही और उस ने घर छोडऩे का पक्का मूड बना लिया. बस घर वालों के गहरी नींद में जाने के इंतजार में बेकरार थी.

अमृता का फोन आने के बाद से सैफ अली का दिमाग काम करना बंद कर दिया था. जैसे उस की सोचनेसमझने की शक्ति कम हो गई थी. वह बुरी तरह परेशान हो कर इधरउधर टहलता रहा. दिल जोरजोर से सीने में बेखौफ धड़कने लगा था और माथे पर पसीने की बूंदें चुहचुहा उठी थीं. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि उसे इतनी रात गए घर पर तो नहीं ला सकता था. घर वाले जानेंगे तो क्या सोचेगें. अब्बूअम्मी तो मेरी जान ले लेंगे. यह किस मुसीबत में डाल दिया तूने टिंकू. मैं तेरे को छोड़ूंगा नहीं.

सैफ अली सोचता हुआ घर वालों से झूठ बोल कर बाइक ले कर गांव के बाहर चकरी पट्टी नहर पहुंच गया, जहां अमृता शर्मा उस से मिलने आ रही थी. इस से पहले उस ने टिंकू को फोन कर के गांव के बाहर बुला लिया था. टिंकू की हरकतों से वह गुस्से से लालपीला हुआ जा रहा था.

साजिश में शमिल हो गया सैफ अली

सैफ अली का फोन रिसीव कर टिंकू गांव के बाहर पैदल ही आ चुका था. टिंकू को देखते ही सैफुद्दीन का पारा सावतें आसमान पर चढ़ गया. इस बात पर दोनों आपस में झगड़ते रहे कि उस ने प्यार वाली बात अमृता के फेमिली वालों को क्यों बताई? इस पर सफाई देते हुए उस ने कहा, ”तू उस की मक्कारी को समझ नहीं रहा है, वह तुझे अंधेरे में रख कर मेरे से नैन मटक्का करती है. पूछने पर कहती है कि वह मुझ से प्यार करती है. तुम से नहीं.’’

”जानता है तू इस प्यार के लफड़े ने हमें कितनी बड़ी मुसीबत में डाल दिया है. वह हमेशाहमेशा के लिए अपना घर छोड़ कर मेरे पा रहने आ रही है. तू बता मैं क्या करूं? कहां रखूं उसे?’’

”क्या..? अमृता घर छोड़ कर आ रही है? वह भी इतनी रात गए?’’ टिंकू भी चौंके बिना नहीं रह सका. वह भी उतना ही परेशान हुआ था, जितना सैफ अली परेशान था.

”यार, मैं तो कहता हूं इस संकट की घड़ी में हम अपनी दुश्मनी भुला कर कोई रास्ता निकालते हैं, जिस से सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे.’’

”सारे फसाद की जड़ तू है. न तू अकड़ दिखाता और न ही हमें फंसना पड़ता.’’

”देख भाई, जो होना था सो हो गया. अब क्या करना है उस के बारे में सोच. कैसे इस मुसीबत से बाहर निकला जाए, उस के बारे में सोच.’’

”तू ही बता इस मुसीबत से कैसे बाहर निकला जाए?’’

”बात मानोगे भाई मेरी?’’

”बक, क्या बकना चाहता है?’’

”इस लड़की ने हमारी दोस्ती में दरार डाली और हमारे बीच गलतफहमी पैदा की है. जब तक जिंदा रहेगी, यूं ही परेशान करती रहेगी.’’

”क्या मतलब है तेरा?’’

”इसे रास्ते से हटा दो भाई. सारा लफड़ा ही खत्म हो जाएगा.’’ टिंकू ने उसे सुझाव दिया.

”कह तो तू ठीक ही रहा है.’’ सैफ अली को टिंकू की बात में दम दिखाई दिया, ”जैसे भी हो, गले की इस हड्डी को अपनी जिंदगी से दूर करना है, वरना हमारा मरना तय है.’’

”तो ठीक है, आने दो साली को, आज ही निबटा देते हैं. सारे फसाद की जड़ ही खत्म हो जाएगी.’’

”तो ठीक है, जो करना है आज ही करना है, मार दो साली को.’’ सैफ अली ने सारे शिकवेगिले भुला कर टिंकू से हाथ मिला लिया और चकरी पट्टी नहर पर अमृता के आने का इंतजार करने लगा. टिंकू को भी वहीं मिलने को बुलाया था. फिर दोनों ने मिल कर आगे की योजना बनाई. अमृता की हत्या कर उस की लाश वहां दूर रामपुर कारखाना स्थित नहर में डाल देंगे, जिस का पता किसी को कभी नहीं हो सकता.

दोनों की जैसे ही बातें पूरी हुईं, अमृता वहां आ धमकी थी. उसे सामने देख दोनों ही हक्काबक्का रह गए थे. मन ही मन उस की दिलेरी को सलाम किया और उस की हिम्मत देख कर दंग रह गए. गजब की दिलेर लड़की है, बिना डरे इतनी रात गए यहां आ सकती है तो आगे हमारे लिए परेशानी का बड़ा सबब भी बन सकती है, इसे जल्द से जल्द रास्ते से हटा देना ही अच्छा होगा. उस समय दोनों के सिर से इश्क का भूत उतर चुका था. अब वही अमृता दोनों के लिए विष का प्याला जैसी दिख रही थी.

आते ही अमृता सैफ अली से बोली, ”सदा के लिए मैं ने अपने मम्मीपापा का घर छोड़ कर आप के पास आ गई हूं. चलिए, यहां से कहीं दूर ले चलिए मुझे, जहां हमारे प्यार के सिवाय कोई और न रहता हो. हमें कोई रोकनेटोकने वाला न हो और न ही बोलने वाला हो. दोनों एकदूसरे की बाहों में लिपटे प्यार करते रहें. बस, ऐसी जगह हमें ले चलिए.’’

सैफ अली को अमृता की इन रोमांटिक बातों में जरा सी भी दिलचस्पी नहीं थी. वह तो पहले से ही यह सोचसोच कर परेशान हो रहा था कि इस मुसीबत से कैसे छुटकारा पाए. ऊपर से यह थी कि बकबक किए जा रही थी. सैफ अली उस के किसी भी सवाल का जबाव देना उचित नहीं समझ रहा था. योजना के मुताबिक, इतने में उस ने टिंकू को इशारा किया कि वह धीरे से अमृता के पीछे पहुंचे और उसे दबोच ले. इशारा पा कर वह दबे पांव अमृता के पीछे जा पहुंचा और उसे कस कर अपनी मजबूत बांहों में जकड़ लिया. अचानक खुद को टिंकू की बाहों में जकड़ा देख वह घबरा गई और उस की बाहों से आजाद होने के लिए छटपटाने लगी, ”यह क्या बत्तमीजी है टिंकू. छोड़ो मुझे.’’

”सौरी अमृता, हमें माफ कर देना. तुम्हारा खेल खत्म. तुम्हारे सपने कभी पूरे नहीं हो सकते. तुम हमेशा के लिए हमें छोड़ कर जा रही हो, अलविदा.’’ कह कर सैफुद्दीन उर्फ सैफ अली के दोनों हाथ उस की गरदन की ओर बढ़ गए. उस ने उस का गला तब तक कस कर दबाए रखा, जब तक कि अमृता की मौत न हो गई. दोनों ने अमृता को हिलाडुला कर देखा. उस के शरीर में कोई हरकत नहीं थी. जब वे पूरी तरह संतुष्ट हो गए कि वह मर चुकी है तो सैफ अली ने बाइक स्टार्ट कर ड्राइविंग खुद संभाली.

टिंकू अमृता को बीच में बैठा कर खुद पीछे बैठ गया और दोनों अपनी योजना में तबदीली लाते हुए देवरिया के बजाय कुशीनगर के ही हाटा रजवाहा नहर पहुंचे. वहां लाश नहर में फेंक कर अपनेअपने घर वापस लौट आए. यह सब करतेकरते रात के करीब 3 बज गए थे. घर आ कर दोनों आराम से सो गए.

नहर में मिली अमृता की लाश

इधर पूरी रात बीत गई. अगली सुबह यानी 11 जुलाई, 2025 को अमृता घर नहीं लौटी तो घर वालों को चिंता सताने लगी थी. उस के नाना विश्राम शर्मा ने नतिनी अमृता की चिंता में पूरी रात आंखों में काट दी थी. जब उन्हें उस का कहीं पता नहीं लगा तो वह तहरीर ले कर हाटा कोतवाली पहुंच गए और कोतवाल रामसहाय चौहान को विस्तार से पूरी बात बता कर अमृता की गुमशुदगी की सूचना दर्ज कराई. गुमशुदगी दर्ज कर पुलिस ने आगे की काररवाई शुरू की.

12 जुलाई, 2025 को देवरिया जिले के थाना रामपुर कारखाना स्थित नहर में एक लड़की की लाश पाई गई. यह सूचना हाटा कोतवाली को मिली तो यहां की पुलिस वादी विश्राम शर्मा को साथ ले कर रामपुर कारखाना पहुंची, ताकि लाश की शिनाख्त की जा सके. क्योंकि लाश की कदकाठी 2 दिनों से गुम हुई अमृता शर्मा की कदकाठी से काफी मेल खा रही थी. नाना विश्राम शर्मा ने लाश की पहचान कर ली. वह लाश अमृता की थी. फिर क्या था? लाश मिलते ही घर में कोहराम मच गया था. सभी का रोरो कर हाल बुरा हुए जा रहा था.

हाटा पुलिस ने लाश पोस्टमार्टम के लिए कुशीनगर जिला अस्पताल भेजवा दी और अपनी टीम के साथ थाने वापस लौट आए और आगे की काररवाई में जुट गए. उन्होंने अमृता की गुमशुदगी को बीएनएस की धारा 103(1) (हत्या) और 238 (सबूत मिटाने) में तरमीम कर कातिलों की तलाश शुरू कर दी थी. कोतवाल रामसहाय चौहान ने घटना की सूचना एसपी संतोष कुमार मिश्र और एएसपी निवेश कटियार को दे दी. एसपी संतोष मिश्र ने एएसपी निवेश कटियार के नेतृत्व में पुलिस की 4 टीमें गठित कर के केस का जल्द से जल्द खुलासा करने का निर्देश दिया. निवेश कटियार ने कोतवाल रामसहाय चौहान को मृतका के सिम नंबर की काल डिटेल्स निकाल कर उसे खंगालने के आदेश दिए, ताकि जल्द से जल्द सच तक पहुंचा जा सके.

काल डिटेल्स की गहन जांचपड़ताल करने पर 2 फोन नंबर ऐसे मिले थे, जिस से मृतका की अकसर लंबीलंबी बातें होती थीं. घटना वाली रात भी उन्हीं दोनों में से एक नंबर पर उस की बात हुई थी. उस के बाद मृतका का फोन स्विच्ड औफ हो गया था. जांच में दोनों नंबरों में एक नाम सैफुद्दीन उर्फ सैफ अली निवासी पिपरा कपूर (हाटा) और दूसरा नाम इम्तियाज अहमद उर्फ टिंकू प्रकाश में आया. आगे की काररवाई और कौल डिटेल्स की पड़ताल से मामला दोनों प्रेमियों द्वारा प्रेम संबंधों में दावे को ले कर हुई हत्या के रूप में सामने आया. जैसे ही यह खुलासा हुआ कि हत्या में विशेष समुदाय के लोग शामिल हैं, कस्बा तनाव की आग में जल उठा.

चूंकि दोनों प्रेमी विशेष समुदाय के थे, यह बात गांव की फिजा से तैरती हुई पौलिटिक्स के गलियारों तक पहुंच गई थी. सूचना मिलते ही कुशीनगर के सांसद विजय कुमार दूबे, हाटा के विधायक मोहन शर्मा, रामकोला के विधायक विजय प्रकाश गौड़ और खड्डा के विधायक विवेकानंद पांडेय पिपरा कपूर गांव पहुंच गए और उन्होंने मृतका के फेमिली वालों से मिल कर उन्हें न्याय दिलाने और बेटी के हत्यारों को जल्द से जल्द गिरफ्तार करने का आश्वासन दिया. इस के बाद गांव वालों को साथ मिला कर आंदोलन छेड़ दिया और थाने का घेराव कर के बेटी अमृता के कातिलों को अतिशीघ्र गिरफ्तार करने का दवाब बनाया.

आंदोलन भयानक रूप ले चुका था. तनावपूर्ण स्थिति देखते हुए एसपी संतोष कुमार मिश्र ने पिपरा कपूर गांव में भारी पुलिस फोर्स तैनात कर दी थी, ताकि कोई अप्रिय घटना न घट सके. इधर पुलिस कातिलों की तलाश में जुटी हुई थी. कातिलों के जहां छिपे होने की संभावना थी, वहां छापे डाल रही थी, लेकिन वे उन की पकड़ से काफी दूर थे. आखिरकार पुलिस की मेहनत रंग लाई और 15 जुलाई, 2025 को रात के समय आरोपी सैफुद्ïदीन उर्फ सैफ और इम्तियाज अहमद उर्फ टिंकू को हाटा से उस समय गिरफ्तार कर लिया, जब वे कहीं भागने की फिराक में बस का इंतजार कर रहे थे. इस के बाद पुलिस ने ‘लाला 7171 गैंग’ के दरजन भर सदस्यों को भी गिरफ्तार कर लिया.

गैंग के सभी सदस्यों ने थाने में हाथ जोड़ कर माफी मांगते हुए कसम खाई कि भविष्य में वह कोई भी गलत काम नहीं करेंगे और एएसपी निवेश कटियार के सामने सख्ती से पूछताछ की तो दोनों आरोपियों ने उन के सामने घुटने टेक दिए. उन्होंने कुबूल कर लिया कि उन दोनों ने ही मिल कर अमृता की हत्या की थी. अगले दिन यानी 16 जुलाई को एसपी संतोष कुमार मिश्र और एएसपी निवेश कटियार दोनों अधिकारियों ने कुशीनगर पुलिस लाइंस में संयुक्त प्रैसवार्ता बुला कर घटना का खुलासा कर दिया और आरोपियों को अदालत में पेश कर 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेज दिया.

17 वर्षीय अमृता शर्मा कुशीनगर के हाटा कोतवाली के पिपरा कपूर गांव की रहने वाली थी. राघव शर्मा उस के पिता का नाम था. उन का अपना खुद का व्यापार था. उसी की आमदनी से घरपरिवार चलाते थे. मजे से परिवार का भरणपोषण होता था. राघव के पड़ोस में सरफुद्दीन अली परिवार के साथ रहते थे. सैफुद्दीन उर्फ सैफ अली उन का बड़ा बेटा था. इंटर तक पढ़ाई पूरी करने के बाद उस ने आगे की पढ़ाई छोड़ कर ‘लाला 71-71 गैंग’ जौइन कर लिया था, जिस का कहानी में पहले जिक्र किया जा चुका है.

किशोरावस्था में ऐसे परवान चढ़ा प्यार

बात करीब 3 साल पहले की थी. अमृता शर्मा बेहद चंचल और हंसमुख के साथ खूबसूरत भी थी. सजसंवर कर जब घर से निकलती थी तो सैफ की नजर उस पर पड़ ही जाती थी और उसे तब तक निहारता रहता था, जब तक वह उस की नजर से ओझल नहीं हो जाती थी. सैफ का प्रेम भरी नजरों से उसे देखना बहुत अच्छा लगता था. उस का रोमरोम खिल उठता था. मन ही मन वह बहुत खुश होती थी. बदले में अमृता भी उसे चाहत भरी नजरों से देखती थी.

धीरेधीरे दोनों के दरमियान दोस्ती हुई. इस दोस्ती ने प्यार का रूप ले लिया, न तो अमृता जान पाई और न ही सैफ को अहसास हुआ. दोनों को इस का तब पता चला, जब वे एकदूसरे से अलग होते थे. उस के बाद जो तड़प होती थी, वे दोनों समझ नहीं पाते थे ऐसा क्यों हो रहा है. दिल की तड़प ने अहसास दिलाया. उन्हें एकदूसरे से प्यार हो गया है. फिर दोनों ने अपने प्यार का इजहार एकदूसरे के सामने कर दिया. धीरेधीरे दोनों का प्यार जवां होता गया. दोनों ही भविष्य के सपने संजोने लगे थे. चाहत की दुनिया बसाने के लिए अपने पंख फैलाए जीने की हसरतें पालने लगे.

उसी गांव में सैफ का दोस्त इम्तियाज अहमद उर्फ टिंकू पुत्र मैनुद्दीन भी रहता था. टिंकू का एक मकान हाटा कस्बे के वार्ड नंबर 10, अंबेडकरनगर में भी था. घर के आधे सदस्य वहां रहते थे और आधे गांव वाले मकान में. सैफ अली और टिंकू के बीच दांत काटी रोटी जैसी दोस्ती थी. एकदूसरे के दुखसुख में साथ देते थे. अमृता से प्यार हो गया है, सैफ अली ने जब अपने दिल का हाल दोस्त टिंकू के सामने बयान किया तो वह खुशी से झूम उठा था. सैफ ने ही प्रेमिका अमृता से दोस्त टिंकू का परिचय करवाया था, ”अमृता, ये मेरा बचपन का दोस्त टिंकू है. समझो, दो जिस्म एक जान हैं हम. इस के बिना मैं नहीं और मेरे बिना ये नहीं.  एकदूसरे के बिना हम दोनों अधूरे हैं.’’

टिंकू का परिचय जान कर अमृता हौले से मुसकरा दी थी. कोई जवाब नहीं दिया. अपनी प्रेमिका अमृता के सामने दोस्त सैफ अली द्वारा दोस्ती का बखान सुन कर टिंकू का सीना गर्व से चौड़ा हो गया था. उसे अपनी दोस्ती पर नाज हो गया था. टिंकू जब भी सैफ से मिलता था, वह अपनी प्रेम कहानी उसे सुनाने लगता था. दोस्त की जुबान से उस की प्रेम कहानी सुनसुन कर टिंकू भी अमृता की ओर आकर्षित होता चला गया. चंूकि वह जब भी टिंकू से कहीं भी मिलती थी तो उसे रोक कर अपने प्रेमी सैफ का हालचाल पूछ बैठती थी. खुशदिलमिजाज अमृता की बात करने की अंदाज और बातबात पर मुसकरा कर बात करने की अदा ने टिंकू के दिल में घर बना लिया था.

टिंकू अमृता से एकतरफा प्यार करने लगा था. जबकि अमृता उस के इस भाव से बेखबर थी कि टिंकू के दिल में उस के प्रति प्रेम का अंकुर फूट चुका है और वह उसे चाहता है. एक फूल पर 2 आवारा भौंरों ने अपना कब्जा जमा लिया था. एक दिन टिंकू ने अपना प्रेम निवेदन अमृता के सामने रख दिया कि वह भी उस से बेहद प्यार करता है. उस के बिना जी नहीं सकता. उस के प्यार पर अपनी स्वीकृति की मोहर लगा कर जीवनदान दे दो.

टिंकू की जुबान से यह सुन कर वह हक्कीबक्की रह गई थी. उस ने साफसाफ कह दिया था कि वह सिर्फ सैफ से प्यार करती है, सिर्फ उस के बारे में सोचती है. उस के अलावा किसी के बारे में सपने में भी नहीं सोचती. वही उस का पहला और आखिरी प्यार है. थोड़ी सी हंस कर बात क्या कर ली, उसे प्यार समझ बैठे तो इस में मेरी क्या गलती है. टिंकू के प्रेम निवेदन वाली बात अमृता ने अपने प्रेमी सैफ को बता दी थी. उस के जुबान से यह बात सुन कर वह आगबबूला हो गया था. इस बात को ले कर दोनों के बीच में झगड़ा भी हो गया था. अपनेअपने तरीके से दोनों दावे करने लगे थे कि अमृता तुम से नहीं मुझ से प्यार करती है. इसी टकराव के चलते उन की दोस्ती में खटास आ गई थी.

टिंकू ने तय कर लिया था कि अगर अमृता मेरी नहीं हो सकती तो किसी और की भी नहीं होने दूंगा. साम दाम दंड भेद चाहे जैसे भी हो, उस की जिंदगी झंड बना दूंगा. और फिर उस ने अमृता के घर वालों के सामने उस की और सैफ की प्यार वाली बातें बता कर आग लगा दी. प्यार का दावा करने वाले दोनों प्रेमियों ने इस आग के दरिया में अमृता को झोंक कर उस की जिंदगी लील ली.             खैर, कुशीनगर सांसद विजय कुमार दूबे, हाटा विधायक मोहन शर्मा, रामकोला विधायक विजय प्रकाश गोंड और खड्डा विधायक विवेकानंद पांडेय ने प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मुलाकात कर पीडि़त परिवार को न्याय दिलाने और कातिलों को कड़ी से कड़ी सजा दिलाने की गुहार लगाई.

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने मामले की सही जांच करने और अमृता के कातिलों को कड़ी से कड़ी सजा दिलाने का भरोसा दिलाया है. यही नहीं, आरोपियों के घरों पर बुलडोजर चलवाने के जनप्रतिनिधियों के प्रस्ताव पर जांच जारी थी. कथा लिखे जाने तक उन के घरों पर कोई काररवाई नहीं हुई थी. UP Crime News

(कथा में अमृता शर्मा परिवर्तित नाम है)

 

 

UP Crime News : मीत न मिला मन का

UP Crime News : प्रीति की ख्वाहिश थी कि उस की शादी किसी सरकारी नौकरी वाले युवक के साथ हो, लेकिन वह किसान ओमपाल से ब्याह दी गई. वह 2 बेटियों की मां जरूर बन गई, लेकिन पति उस की भावनाओं को नजरअंदाज करता रहा. ऐसे में वह गांव के देवर अभय सिंह के संपर्क में आई. अपने प्यार को रिश्ते में बदलने के लिए इन दोनों ने ऐसा कदम उठाया कि…

रात के कोई 2 बजे का वक्त रहा होगा, कमरे में पतिपत्नी और एक 12 वर्षीय बच्ची ममता सो रही थी. अचानक बच्ची की आंखें खुलीं. उस बच्ची की नजर अपनी चाची पर पड़ी. चाची ने किसी गैरमर्द को इशारा किया. फिर दोनों उस के सो रहे चाचा ओमपाल की ओर बढ़ गए. चाची ने अपना तकिया उठाया और वह वहां पर सो रहे अपने पति की तरफ बढ़ चली.

चाची को देखते ही बच्ची सहम गई. फिर उस ने सोने की ऐक्टिंग करते हुए जो देखा, उसे देखते ही उस की रूह कांप उठी. वह डर के मारे थरथर कांपने लगी. चाची ने उस तकिए से उस के चाचा ओमपाल का मुंह दबा दिया. उस के साथ ही उस अन्य पुरुष ने चुनरी से उस के चाचा का गला दबा दिया. थोड़ी देर छटपटाने और इधरउधर पैर मारने के बाद उस के चाचा पूरी तरह से शांत हो गए. यह कोई फिल्मी स्टोरी नहीं, बल्कि एक हकीकत है. फिर उस के बाद जो हुआ, इस कहानी में पढि़ए.

8 सितबंर, 2025 को रात के कोई 2 बजे का वक्त था. बुलंदशहर के गांव परतापुर की रहने वाली प्रीति ने अचानक अपनी जेठानी सीता का दरवाजा खटखटाना शुरू किया.

”दीदी, जल्दी चलिए, देखिए मेरे पति को अचानक क्या हो गया? वह बिलकुल भी बोल नहीं रहे.’’

इतना सुनते ही सीता देवी अपनी देवरानी के पीछेपीछे उस के कमरे में पहुंची. ओमपाल एक खटिया पर पड़ा हुआ था. सीता ने अपने देवर ओमपाल के पास जाते ही उस के चेहरे को हिलाया.

”ओमपाल…ओमपाल, क्या हो गया तुम्हें.’’

उस के बाद सीता ने उस के सीने पर भी हाथ लगा कर देखा, लेकिन ओमपाल कुछ नहीं बोला. ओमपाल की हालत देखते ही सीता देवी ने अपने पति रवि करन को बुलाया. रवि करन ने भी छोटे भाई की नब्ज टटोली, लेकिन वह शांत थी. भाई की हालत देख रवि करन भी बुरी आशंका से भयभीत हो गया था. ओमपाल को ऐसी हालत में देखते ही रवि करन ने तुरंत ही अपने परिचित एक डौक्टर को फोन मिलाया. कोई आधा घंटे के बाद डौक्टर ओमपाल को देखने के लिए उस के घर पर पहुंचा. डौक्टर ने ओमपाल की नब्ज चैक की. नब्ज चैक करते ही डौक्टर ने जबाव दे दिया, ”ओमपाल की मौत हो चुकी है.’’

इतना सुनते ही ओमपाल के घर में कोहराम मच गया. सब बुरी तरह से रोनेधोने लगे. घर में सब को रोते देख ममता और नेहा नाम की 2 बच्चियां भी रोने लगी थीं.

डौक्टर ने ओमपाल की पत्नी से पूछा, ”आप के पति को हुआ क्या था?’’

तब प्रीति ने रोते हुए बताया, ”उन्होंने मुझे सोते से जगाया. फिर बोले प्रीति मेरे सीने में बहुत ही भयंकर दर्द हो रहा है. उस के बाद मैं ने उन के सीने को काफी देर तक मसला भी, लेकिन कोई आराम नहीं हुआ. तब मैं ने सोचा कि मैं सीता भाभी को बुला कर लाती हूं. जैसे ही मैं उन को साथ ले कर अपने कमरे में पहुंची तो उन की सांस थम चुकी थी.’’

इतना सुनते ही डौक्टर ने बताया कि उन्हें शायद हार्ट अटैक आ गया था, जिस के कारण आननफानन में उस की मौत हो गई. ओमपाल की मौत से उस के परिवार में मातम छा गया. ओमपाल की 2 छोटी बेटियां थीं. एक 4 वर्ष की दूसरी ढाई वर्ष की. घर में रोनेचिल्लाने को देख कर उन का भी रोरो क र बुरा हाल था, जिन को उन की ताई सीता ने संभाल रखा था. अगले दिन सुबह ही ओमपाल के दाह संस्कार की तैयारी होने लगी. सभी रिश्तेदारों को खबर दी गई थी. ओमपाल का हार्ट अटैक से निधन हो गया. पूरे गांव में इसी बात की चर्चा थी. फिर कुछ ही समय बाद नैचुरल डेथ समझ कर उस का अंतिम संस्कार भी कर दिया गया था. सभी मेहमान अपनेअपने घर को जा चुके थे.

लेकिन उस घटना के बाद से 12 वर्षीय ममता कुछ बीमार सी रहने लगी थी. उस की मम्मी सीता ने कई बार उस से उस की परेशानी के बारे में पूछा, लेकिन वह पूरी तरह से अपना मुंह बंद किए हुए थी. न तो वह कुछ खापी रही थी और न ही किसी से कोई बात ही कर रही थी. ओमपाल की हत्या के बाद सीता देवी वहीं पर काम में लगी हुई थी, लेकिन ममता एक बार भी अपनी चाची प्रीति के घर नहीं गई थी. तभी सीता देवी ने महसूस किया कि ममता जबजब प्रीति के सामने जाती है, वह बुरी तरह से घबरा जाती है. इस बात में जरूर कोई राज है.

ममता की बिगड़ती हालत को देखते हुए पहले तो उस के फेमिली वालों ने सोचा कि उसे अपने चाचा के खत्म होने का गहरा सदमा लग गया है. क्योंकि ओमपाल उसे बहुत प्यार करता था. उसे भी उस से बहुत लगाव था. इसी कारण वह अकसर ओमपाल के घर पर ही पड़ी रहती थी. फिर वहीं पर खाना खापी कर सो भी जाती थी.

ममता की हालत को देखते हुए उस के पापा ने उसे डौक्टर के पास ले जा कर भी दिखाया. उसे न तो कोई बुखार वगैरह था और न ही कोई बीमारी. उस के बाद ममता की मम्मी ने उसे एकांत में ले जा कर उस से पूछताछ की तो उस ने अपनी मम्मी को जो जानकारी दी, वह हैरान कर देने वाली थी. ममता ने ओमपाल की मौत की हकीकत खोलते हुए बताया, ”चाचा की हार्ट अटैक से मौत नहीं हुई, बल्कि उस की हत्या गांव के ही अभय सिंह ने चाची प्रीति के साथ मिल कर की थी.’’

इस जानकारी ने ओमपाल फेमिली में हड़कंप मचा दिया. ममता ने बताया कि रात में अचानक उस की आंखें खुलीं तो चाची प्रीति और अभय सिंह चाचा ओमपाल को बुरी तरह से मार रहे थे. यह देख कर वह बुरी तरह से डर गई. फिर वह सोने का नाटक करते हुए यूं ही बिस्तर पर पड़ी रही.

ममता ने आगे बताया, ”जिस वक्त मैं चाची के घर पर पहुंची तो चाचा और चाची खाना खा कर सोने जा रहे थे. तब मैं ने चाची से कहा, ‘चाची, मैं भी तुम्हारे पास ही सोऊंगी.’ फिर मैं चाची के साथ ही सो गई. रात में मेरी आंखें खुलीं तो चाची मेरे पास नहीं थी. उस के बाद मैं ने सब कुछ अपनी आंखों से देखा.’’

ओमपाल की मौत की हकीकत सामने आते ही उस के बड़े भाई रवि करन को प्रीति पर गुस्सा तो बहुत आया, लेकिन उन्होंने किसी तरह से अपने गुस्से पर काबू किया. फिर यह बात उन्होंने उस से छिपाते हुए पुलिस को इस बात की सूचना दे दी. उस वक्त तक प्रीति अपने पति की मौत का गम मनाने की ऐक्टिंग करने में लगी हुई थी. उस का ओमपाल की मौत के वक्त से ही रोरो कर बुरा हाल था.

ओमपाल की मौत की हकीकत की जानकारी मिलते ही थाना बीबीनगर पुलिस उस के घर पर जा पहुंची. पुलिस ने प्रीति से सख्ती से पूछताछ की तो प्रीति ने पुलिस की मार से बचने के लिए सहज ही अपना अपराध कुबूल कर लिया था. प्रीति के जुर्म कुबूलते ही पुलिस ने अभय सिंह को भी उस के घर से गिरफ्तार कर लिया. पुलिस ने उस से भी कड़ी पूछताछ की तो उस ने भी अपना जुर्म कुबूल कर लिया.

इस घटना की जानकारी मिलते ही एसएचओ राहुल चौधरी ने मृतक ओमपाल के फेमिली वालों के साथसाथ गांव वालों से भी विस्तृत जानकारी ली. ओमपाल की मौत की सच्चाई सामने आते ही गांव में तरहतरह की चर्चा होने लगी थी. लोग विश्वास ही नहीं कर पा रहे थे कि ओमपाल की हत्या उस की पत्नी के इशारे पर ही की गई थी. ओमपाल की हत्या का राज खुलते ही पुलिस ने आरोपियों की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त की गई चुन्नी और तकिया भी बरामद कर लिया था. इस मामले की जानकारी मिलते ही एसपी (सिटी) शंकर प्रसाद ने घटनास्थल पर जा कर जानकारी जुटाई.

यह मामला उत्तर प्रदेश के जिला बुलंदशहर के गांव परतापुर की है. इसी गांव में रहता था मोहर सिंह का परिवार. मोहर सिंह एक किसान थे. उन के 3 बेटों देवीशरण, रवि करन में ओमपाल सब से छोटा था. तीनों की शादी हो जाने के बाद तीनों भाई गांव में अलगअलग घर बना कर रह रहे थे. रवि करन और ओमपाल के घर आसपास में ही थे. जबकि उस का बड़ा भाई देवीशरण गांव के बाहरी छोर पर रह रहा था.

ओमपाल की शादी अब से लगभग 7 साल पहले प्रीति के साथ हुई थी. शादी के कुछ समय बाद तक तो ओमपाल और प्रीति के संबंध मधुर रहे, लेकिन कुछ ही दिनों बाद ओमपाल प्रीति की नजरों से उतरने लगा. प्रीति देखनेभालने में खूबसूरत थी, लेकिन ओमपाल गांव का सीधासादा युवक. समय के साथसाथ प्रीति 2 बच्चों की मां भी बन गई थी, लेकिन 2 बच्चों की मां बन जाने के बाद भी उस की खूबसूरती में चार चांद लगे हुए थे.

ओमपाल हर वक्त खेती के काम में ही लगा रहता था. शाम को खेतीबाड़ी का कामकाज निपटा कर आता, फिर वह जल्दी ही खाना खा कर सो जाता था. यह बात प्रीति को बिलकुल भी पसंद नहीं थी. वह एक महत्त्वाकांक्षी युवती थी. शादी से पहले उस ने भी एक सुंदर सरकारी जौब वाले पति के सपने देखे थे, लेकिन शादी के बाद उस के सारे अरमानों पर पानी फिर गया था. फिर भी उस ने काफी समय तक ओमपाल के साथ निभाने की कोशिश की.

ओमपाल हर शाम को अपने सारे दिन की थकान मिटाने के लिए शराब का आदी भी हो गया था. उस के बाद वह अपनी ही धुन में रहने लगा था. बीवी की उसे कोई परवाह नहीं थी. ओमपाल की हरकतों को देख कर प्रीति ने अपनी किस्मत को कोसना शुरू कर दिया था. प्रीति जब कभी भी अपने खेतों पर जाती तो उस की मुलाकात खेतों पर ही अभय सिंह से होने लगी थी. उस वक्त तक अभय सिंह कुंवारा था. हालांकि दोनों के बीच चाचीभतीजे का रिश्ता था. लेकिन अभय जब कभी भी प्रीति से मिलता तो उस की सुंदरता की तारीफ करना नहीं भूलता था.

खेतों पर काम करते देख कर प्रीति ने उसे अपने पास बुलाया, फिर वह उस से मजाक भरी बातें करने लगी. चाची की बातें सुनते ही अभय ने बात आगे बढ़ाते हुए प्रश्न किया. ”चाची, चाचा के क्या हालचाल हैं?’’

”अभय, तुम्हारे चाचा की चाल तो जैसे बिलकुल ही शांत पड़ गई. सारे दिन मजदूरों की तरह खेतों में लगे रहते हैं. उस के बाद शाम को खाना खा कर सो जाते हैं. उन्हें तुम्हारी चाची से तो जैसे कोई मतलब ही नहीं. मेरी किस्मत फूटी थी, जो मुझे ऐसा पति मिला. न काम

का न काज का, दुश्मन अनाज का.’’

”अरे चाची, कैसी बात करती हो. चाचा सारे दिन इतना काम करते हैं और आप कह रही हो कि वह कुछ नहीं करते.’’ अभय ने चाची की बात को आगे बढ़ाया.

”लेकिन लाला, एक मर्द को अपनी औरत की भावनाओं को भी पढऩा चाहिए. एक औरत को रोटी के अलावा और कुछ भी चाहिए.’’

”चाची, तुम भी कैसी बात करती हो. एक इंसान को पेट भर रोटी मिल जाए तो उस से बड़ी और क्या बात हो सकती है. चाची, हम तो रोटी खा कर पेट पर हाथ फेरते हैं. हमें तो फिर किसी चीज की इच्छा नहीं होती.’’

”लगता है अभय, तुम भी अपने चाचा की तरह ही हो. किसी औरत के दिल की भाषा पढऩे में तुम भी फेल हो.’’

”अरे चाची, आप क्या बात करती हो. मेरी शादी हो जाने दो. अपनी पत्नी को रानी बना कर रखूंगा. मैं अपने चाचा की तरह अपनी पत्नी को खेतों की मिट्टी चटाने के लिए शादी नहीं करूंगा.’’ अभय ने चाची के सामने अपनी शेखी बघारी.

प्रीति हंसते हुए बोली, ”अभय, मुझे तो तुम्हारे जैसा ही पति चाहिए था, लेकिन मेरी किस्मत में मिट्टी का पुतला मिला. पता नहीं कब तक उसे झेलना पड़ेगा.’’

”अभय, तुम बताओ, तुम्हें कैसी पत्नी चाहिए?’’

”चाची, अब मैं अपने मुंह से तुम्हारी क्या तारीफ करूं. जब भी तुम्हें देखता हूं, मेरे दिल में कुछकुछ होने लगता है. मुझे तो तुम्हारी जैसी ही सुंदरसलोनी पत्नी चाहिए.’’

अभय की बात सुनते ही प्रीति ने उस का हाथ पकड़ कर अपने सीने पर रख दिया, ”अभय देख, मेरा दिल भी तेरे लिए कितना उछलकूद कर रहा है. यह काफी समय से तेरे लिए पागल हो कर तेरा पीछा कर रहा है.’’

चाची के सीने पर हाथ जाते ही अभय के दिल की धड़कनें भी दोगुनी हो चुकी थीं. फिर उसी दिन प्रीति ने अभय को कसम खिलाई कि हम दोनों पतिपत्नी तो नहीं बन सकते, लेकिन दोस्ती तो कर ही सकते हैं. उस दिन अभय और प्रीति के बीच दोस्ती हो गई. फिर क्या था, दोनों के बीच रिश्ता ही ऐसा था कि जिस के कारण दोनों का मिलनाजुलना बेरोकटोक चलने लगा. उसी दौरान दोनों के बीच अवैध संबंध भी बन गए. ओमपाल अपने कामकाज में इतना व्यस्त रहता था कि प्रीति हर रोज के घरेलू जरूरतों के लिए अभय को ही इस्तेमाल करने लगी थी. इसी सब के चलते दोनों के बीच मधुर संबंध स्थापित हो गए थे.

अभय भी ज्यादातर अपनी चाची के घर पर ही पड़ा रहता था. फिर एक दिन ऐसा भी आया कि ओमपाल ने प्रीति और अभय को प्यार की तपिश में तपते देख लिया था. ओमपाल मजबूर था. अभय उस के रिश्ते के बड़े भाई का बेटा था, जिसे ले कर वह गांव में अपनी पत्नी को बदनाम नहीं करना चाहता था. इसी कारण ओमपाल ने अभय से विरोध करने के बजाए प्रीति पर ही पाबंदी लगानी शुरू कर दी, लेकिन प्रीति भी पाबंदी की बेडिय़ों में जकड़ कर जीना नहीं चाहती थी. वह अभय के प्यार में इतनी पागल हो चुकी थी कि वह उसे किसी भी कीमत पर छोडऩे को तैयार नहीं थी.

उस के बाद दोनों ने मोबाइल का रास्ता पकड़ा और फिर दोनों एकदूसरे से मोबाइल पर प्यार भरी बातें करने लगे, लेकिन यह बात भी ओमपाल से ज्यादा दिन तक छिप न सकी. उस के बाद ओमपाल ने अभय के साथसाथ प्रीति को भी प्यार से समझाया, लेकिन दोनों ही मानने को तैयार न थे.

नतीजतन दोनों परिवार के बीच में गहरा विवाद पैदा हो गया. पतिपत्नी दोनों के बीच मनमुटाव के साथ ड़ाईझगड़ा भी होने लगा था. उस के बाद ओमपाल ने प्रीति के घर से निकलने पर भी पाबंदी लगा दी थी. पाबंदी लगते ही प्रीति पिंजरे में कैद चिडिय़ा की तरह अभय से मिलने की चाहत में फडफ़ड़ाने लगी. उसी दौरान एक दिन मौका पाते ही प्रीति ने अभय को अपने खेतों पर मिलने के लिए बुलाया.

प्रीति अभय को देखते ही रोने लगी, ”अभय, मैं तुम्हारे बिना एक पल भी नहीं रह सकती. अगर तुम मुझे तनिक भी प्यार करते हो तो मुझे किसी भी तरह से इस कैद से मुक्त कराओ. फिर मुझे कहीं भी ले चलो. मगर मैं इस जाहिल इंसान के साथ नहीं रहना चाहती. पहले तो वह मेरे साथ गालीगलौज ही करता था, अब तो हर रोज मेरे साथ मारपीट भी करने लगा है. मुझे तुम्हारे साथ ही सच्चा प्यार मिलता है. मैं तुम्हारे बिना जिंदा नहीं रह सकती.’’

प्रीति की आंखों में आंसू देख कर अभय ने उसे अपने सीने से लगा लिया. फिर उस ने कहा, ”चाची तुम परेशान मत हो. मैं कोई उपाय करता हूं. अगर तुम मेरा साथ दो तो मैं ओमपाल को इस दुनिया से ही विदा किए देता हूं.’’

तभी प्रीति ने चुप्पी तोड़ते हुए कहा, ”अगर तुम्हें मेरे साथ रहना है तो उस के लिए ऐसा उठाना ही होगा, जिस से सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे.’’

उसी दिन दोनों ने ओमपाल को अपने बीच से निकाल फेंकने की योजना बना डाली थी. ओमपाल प्रीति की बेवफाई से तंग आ कर नशे का आदी बन चुका था. उस के घर में हमेशा ही शराब एडवांस में रखी रहती थी. यह जानकारी अभय को पहले ही थी. इसी बात का लाभ उठाते हुए अभय ने प्रीति को नशे के कुछ पाउच ला कर दे दिए थे. मौका पाते ही प्रीति वह पाउच खोल कर पति की शराब में मिला देती थी, जिसे पीने के बाद ओमपाल गहरी नींद में सो जाता था. उस के बाद प्रीति अभय को अपने घर बुला लेती और फिर दोनों मौजमस्ती के समंदर में गोते लगाने लगते थे.

लेकिन इस के बावजूद भी दोनों को डर लगा रहता था कि कोई उन के फेमिली वाला आ कर उन्हें रंगेहाथों पकड़ न ले. इस सब झंझट से छुटकारा पाने के लिए दोनों ने मिल कर ओमपाल को मौत की नींद सुलाने का प्लान बना डाला.

उसी प्लान के तहत 8 सितंबर, 2025 को जब ओमपाल खापी कर सो गया तो प्रीति ने प्रेमी अभय सिंह को फोन कर के अपने घर बुला लिया. उस दिन जेठानी की 12 वर्षीय बेटी ममता भी उस के बच्चों के साथ वहीं पर सोई हुई थी. अभय के आने से पहले प्रीति ने सभी बच्चों को चैक किया, सभी गहरी नींद में सोए पड़े थे. फिर दोनों ने ओमपाल की गला घोंट कर हत्या कर दी.

लेकिन अभय के घर में घुसते ही ममता की आंखें खुल गईं. उस ने उस रात अपनी आंखों से हत्या का जो लाइव मंजर देखा, उसे देख कर बुरी तरह से डर गई थी. उस दिन ममता वहां पर मौजूद न होती तो ओमपाल की मौत का खुलासा न हो पाता. इस मामले में मृतक ओमपाल के भाई रवि करन की तरफ से प्रीति व अभय सिंह को आरोपी मान कर पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराई थी, जिसे पुलिस ने भारतीय न्याय संहिता की धारा 103(1) के तहत दर्ज किया था. पुलिस ने दोनों को गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश करने के बाद दोनों को जेल भेज दिया था. UP Crime News

(कथा में ममता और नेहा परिवर्तित नाम है)

 

 

UP Crime : पति और प्रेमी नहीं समझे बीनू का दर्द

UP Crime : बीनू शर्मा को अपने घर और बच्चों की चिंता थी, तभी तो वह पति संजय शर्मा से शराब पीने को मना करती थी, लेकिन समझाने पर उसे मिला शारीरिक और मानसिक उत्पीडऩ. फिर बड़ी उम्मीद के साथ उस ने देहरी लांघ कर अनुज दुबे की तरफ कदम बढ़ाए. प्यार करते हुए उस को अपना सब कुछ समर्पित कर दिया. इस के बावजूद प्रेमी अनुज ने उस के साथ ऐसा छल किया कि…

अनुज दुबे बहुत बेचैन था. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह बेवफा प्रेमिका बीनू शर्मा का क्या करे. क्योंकि वह उस से दूरी बना कर अशोक नाम के युवक के संपर्क में आ गई थी. इस बात को ले कर अनुज परेशान था. 11 मई, 2025 की रात 9 बजे अनुज ने बीनू को कौल लगाई और उसे बताया कि वह उस से मिलने आ रहा है. उसे कुछ जरूरी बात करनी है. बीनू इस का कुछ जवाब दे पाती, उस से पहले ही अनुज ने फोन डिसकनेक्ट कर दिया.

लगभग एक घंटा बाद रात 10 बजे अनुज बीनू के घर आ गया. उस समय बीनू के बच्चे कमरे के बाहर बरामदे में तख्त पर सो रहे थे और पति संजय शर्मा काम पर गया था. संजय शर्मा एक होटल में काम करता था और रात 12 बजे के बाद ही घर लौटता था. अनुज ने कमरे में घुसते ही बीनू से कहा कि छत पर चलो, वहां एकांत में कुछ जरूरी बातें करनी है. इस पर बीनू ने पूछा कि छत पर ही क्यों? कमरे में बैठ कर भी तो बात कर सकते हैं. तब अनुज ने कहा कि यहां बच्चों के जाग जाने का खतरा है. वह उन की बातों में खलल डाल सकते हैं.

बीनू ने बुझे मन से अनुज की बात मान ली. फिर दोनों सीढिय़ों से छत पर पहुंचे. वहां दोनों बैठ कर बातें करने लगे. बातों ही बातों में अनुज ने बीनू के नए आशिक अशोक की चर्चा छेड़ दी. अशोक के नाम से बीनू भड़क गई और दोनो में गरमागरम बहस होने लगी. इसी बहस में अनुज को गुस्सा आ गया और उस ने बीनू को दबोच लिया. फिर चाकू से उस के गले व सिर पर कई प्रहार किए, जिस से उस का गला कट गया और खून बहने लगा. सिर से भी खून की धार बह निकली. कुछ देर तड़पने के बाद बीनू ने दम तोड़ दिया.

प्रेमिका बीनू की हत्या करने के बाद अनुज ने उस के शव को छत से नीचे खंडहर में फेंक दिया. इस के बाद अनुज ने बीनू का मोबाइल फोन अपने कब्जे में किया और चाकू को साथ ले कर फरार हो गया. इधर रात 12 बजे के बाद संजय शर्मा होटल से घर आया. उस समय वह नशे में था. उस ने एक नजर तख्त पर सो रहे बच्चों पर तो डाली, लेकिन पत्नी बीनू की तरफ उस का ध्यान ही नहीं गया. फिर वह चारपाई पर पसर गया.

सुबह 7 बजे बीनू की 10 वर्षीया बेटी जागी तो उस ने देखा कि पापा तो चारपाई पर सो रहे हैं, लेकिन मम्मी कमरे में नहीं है. उस ने तब अपने छोटे भाई शुभ को जगाया और मम्मी की तलाश में जुट गई. दोनों ने घर का कोनाकोना छान मारा, लेकिन मम्मी कहीं नहीं दिखी. बेटी ने सोचा कि मम्मी गरमी के कारण कहीं छत पर तो सोने नहीं चली गई. अत: भाई को साथ ले कर वह छत पर पहुंची. छत पर खून फैला देख कर दोनों घबरा गए. बेटी ने छत के नीचे झांक कर देखा तो मकान के पिछवाड़े खंडहर में उसे एक लाश दिखी.

बेटी को समझते देर नहीं लगी कि लाश उस की मम्मी की है. अत: दोनों भाईबहन रोने लगे. रोते हुए दोनों ज्योति शुक्ला के कमरे में पहुंचे. ज्योति भी इसी मकान में किराएदार थी और भूतल पर अपने पति सौरभ शुक्ला के साथ रहती थी. बीनू के बच्चे ज्योति को मौसी कह कर बुलाते थे. सुबहसुबह किराएदार के बच्चों को रोते देख कर मकान मालिक ज्योति ने पूछा, ”क्या बात है बच्चो, तुम दोनों रो क्यों रहे हो? क्या पापा ने मम्मी को मारापीटा है?’’

बेटी बोली, ”नहीं मौसी, पापा तो सो रहे हैं, लेकिन मम्मी घर में नहीं है. छत पर खून फैला है और मकान के पीछे खंडहर में एक लाश पड़ी है. लगता है किसी ने छत पर मम्मी की हत्या कर दी और लाश को छत से नीचे फेंक दिया है.’’

बच्ची की बात सुन कर ज्योति शुक्ला घबरा गई. उस ने दोनों बच्चों को पुचकारा, फिर बच्ची के पापा संजय शर्मा को झकझोर कर जगाया. इस के बाद ज्योति शुक्ला अपने पति सौरभ व बीनू के पति संजय के साथ मकान के पिछवाड़े पहुंची, जहां लाश पड़ी थी. लाश देखते ही सभी के मुंह से चीख निकल पड़ी. क्योंकि वह लाश संजय शर्मा की पत्नी बीनू शर्मा की ही थी. ज्योति शुक्ला ने सूचना थाना चौबेपुर पुलिस को दी.

सूचना के मुताबिक हत्या की यह घटना कानपुर जिले के चौबेपुर कस्बा के ब्रह्मïनगर मोहल्ले में घटित हुई थी. अत: थाना चौबेपुर के एसएचओ राजेंद्र कांत शुक्ला सूचना मिलते ही सहयोगी पुलिसकर्मियों के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. उन की सूचना पर डीसीपी (वेस्ट) दिनेशचंद्र त्रिपाठी तथा एसीपी अमरनाथ यादव भी मौकाएवारदात पर आ गए. पुलिस अधिकारियों ने फोरैंसिक टीम को भी बुलवा लिया.

पुलिस अधिकारियों ने जांच शुरू की तो पता चला कि मृतका का नाम बीनू शर्मा है, जो इस मकान में अपने पति संजय शर्मा व 3 बच्चों के साथ रहती थी. बीनू की हत्या किसी नुकीली चीज से गोद कर बड़ी बेरहमी से की गई थी. उस के गले व सिर पर गहरे घाव थे. हत्या छत पर की गई थी, फिर शव को छत से नीचे फेंका गया था. मृतका की उम्र 32 वर्ष के आसपास थी. मृतका का मोबाइल फोन भी गायब था. फोरैंसिक टीम ने भी छत से ले कर खंडहर तक बारीकी से जांच की और सबूत जुटाए.

घटनास्थल पर मृतका की मां लक्ष्मी देवी भी मौजूद थी. वह बेटी के शव के पास सुबक रही थी. डीसीपी दिनेशचंद्र त्रिपाठी ने जब उन से पूछताछ की तो वह फफक पड़ी, ”साहब, हमारी बेटी की हत्या हमारे दामाद संजय शर्मा ने की है. वह आदमी नहीं दानव है. वह शराब का लती है. मेरी बेटी को मारतापीटता था. उस की प्रताडऩा से वह मायके आ जाती थी. लेकिन माफी मांग कर बेटी को साथ ले जाता था. बीती रात वह नशे में आया होगा. बेटी के टोकने पर मारापीटा होगा और हत्या कर दी होगी. हुजूर, उसे गिरफ्तार कर लो. उसे फांसी से कम सजा नहीं मिलनी चाहिए.’’

चूंकि लक्ष्मी के आरोप गंभीर थे, अत: डीसीपी दिनेशचंद्र त्रिपाठी के आदेश पर मृतका बीनू के पति संजय शर्मा को इंसपेक्टर राजेंद्र कांत शुक्ला ने हिरासत में ले लिया. फोरैंसिक टीम ने संजय शर्मा के कपड़ों व हाथों का बेंजाडीन टेस्ट किया तो खून के धब्बे पाए गए. सबूत मिलने पर उसे गिरफ्तार कर लिया गया.

एसीपी अमरनाथ यादव ने मृतका की बेटी तथा किराएदार ज्योति शुक्ला से भी पूछताछ की. बेटी ने बताया कि बीती रात 8 बजे मम्मी ने खाना बनाया था. फिर हम सब ने खाना खाया. उस के बाद हम तीनों भाईबहन तख्त पर सो गए. सुबह आंखें खुलीं तो मम्मी घर में नहीं थी. हम उन्हें खोजते छत पर गए. वहां खून फैला था. छत से नीचे झांका तो खंडहर में मम्मी की लाश पड़ी थी. हम ने ज्योति मौसी को बताया. मौसी ने पापा को जगाया और पुलिस को सूचना दी. मम्मी की हत्या किस ने की, उसे इस बारे में कुछ भी नहीं पता.

किराएदार ज्योति शुक्ला ने बताया कि संजय अपनी पत्नी बीनू को प्रताडि़त करता था. कभीकभी उस की चीखें कानों में पड़ती थीं तो वह उसे बचाने उस के कमरे में जाती थी और संजय को डांटती थी. लेकिन संजय बीनू की हत्या कर देगा, ऐसा उस ने कभी नहीं सोचा था. आज सुबह बच्चे रोते हुए आए थे और मम्मी की हत्या की बात बताई थी. उस के बाद वह उन के साथ गई थी. फिर पुलिस को सूचित किया था. घटनास्थल का निरीक्षण और पूछताछ के बाद पुलिस अधिकारियों ने मृतका के शव को पोस्टमार्टम हेतु जिला अस्पताल माती भिजवा दिया. संजय शर्मा को थाना चौबेपुर लाया गया.

थाने में जब पुलिस अधिकारियों ने संजय शर्मा से बीनू की हत्या के बारे में पूछताछ शुरू की तो संजय ने यह बात स्वीकार की कि वह बीनू को प्रताडि़त करता था, लेकिन इस बात से साफ इंकार कर दिया कि उस ने बीनू की हत्या की है. पुलिस ने कई राउंड में संजय से पूछताछ की और हर हथकंडा अपनाया, लेकिन संजय ने बीनू की हत्या का जुर्म स्वीकार नहीं किया. हर राउंड की पूछताछ में संजय एक ही बात कहता कि उस ने हत्या नहीं की.

संजय शर्मा के खिलाफ हत्या के पर्याप्त सबूत थे. बेंजाडीन टेस्ट में भी हाथों व कपड़ों पर खून के सबूत मिले थे. लेकिन वह हत्या से इंकार कर रहा था. हालांकि अभी तक पुलिस आलाकत्ल भी बरामद नहीं कर पाई थी. इसलिए पुलिस के मन में भी संदेह पैदा होने लगा था कि कहीं हत्यारा कोई और तो नहीं. इस संदेह को दूर करने के लिए डीसीपी दिनेशचंद्र त्रिपाठी ने एक बार फिर संजय से पूछताछ की, ”संजय, यदि तुम ने बीनू की हत्या नहीं की तो तुम्हारे हाथों व कपड़ों पर खून के धब्बे कैसे पड़े?’’

”सर, सुबह मैं बीनू के शव के पास गया था. यह जानने के लिए कि कहीं उस की सांसें चल तो नहीं रही हैं. इसी आस में हम ने उस के शव को हिलायाडुलाया था, तभी हाथ व कपड़ों पर खून लग गया होगा. यही बेंजाडीन टेस्ट में आ गया. मैं निर्दोष हूं.’’

”तुम निर्दोष हो तो तुम्हारी पत्नी बीनू का हत्यारा कौन है?’’ डीसीपी ने संजय से पूछा.

”सर, मैं यकीन के साथ तो नहीं कह सकता, लेकिन मुझे शक है कि बीनू की हत्या में अनुज दुबे का हाथ हो सकता है.’’

”यह अनुज दुबे कौन है?’’ डीसीपी दिनेशचंद्र त्रिपाठी ने पूछा.

”सर, अनुज दुबे रौतेपुर गांव का रहने वाला है. किराएदार ज्योति शुक्ला का पति सौरभ शुक्ला भी रौतेपुर गांव का निवासी है. सौरभ और अनुज गहरे दोस्त हैं. अनुज का सौरभ के घर आनाजाना था. सौरभ के घर आतेजाते अनुज की बुरी नजर मेरी पत्नी पर पड़ी. उस ने उसे प्रेमजाल में फंसा लिया. दोनों के बीच नाजायज रिश्ता बन गया. हम ने बीनू को समझाने की कोशिश की, लेकिन वह नहीं मानी.

”इधर बीते कुछ दिनों से दोनों के बीच किसी बात को ले कर मनमुटाव हो गया था, जिस से अनुज का आनाजाना कम हो गया था. सर, मुझे शक है कि बीती रात अनुज घर आया होगा. गरमी के कारण दोनों छत पर बतियाने गए होंगे. फिर वहीं अनुज ने बीनू की हत्या कर दी होगी.’’

अनुज दुबे संदेह के घेरे में आया तो पुलिस ने उस के खिलाफ साक्ष्य जुटाने के लिए बीनू और अनुज दुबे के फोन नंबरों की काल डिटेल्स निकलवाई, जिस से पता चला कि बीनू के मोबाइल फोन पर अनुज की ही आखिरी कौल रात 9 बजे आई थी. रात 11 बजे तक बीनू और अनुज के फोन की लोकेशन बीनू के घर की थी. उस के बाद 11:52 पर बीनू का फोन बंद हुआ था. उस समय उस के फोन की लोकेशन रौतेपुर गांव के पास थी. इस से साफ हो गया कि अनुज फोन कर बीनू के घर रात 10 बजे के आसपास आया, फिर बीनू की हत्या कर उस का फोन साथ ले कर गांव गया और फिर दोनों फोन बंद कर लिए.

पुलिस अधिकारियों के आदेश पर एसएचओ राजेंद्र कांत शुक्ला ने 13 मई की सुबह अपनी टीम के साथ रौतेपुर गांव में अनुज के घर छापा मारा और अनुज को दबोच लिया. उसे थाना चौबेपुर लाया गया. पुलिस अधिकारियों ने अनुज से बीनू की हत्या के बारे में पूछा तो वह साफ मुकर गया. लेकिन जब सख्ती की गई तो वह टूट गया और उस ने बीनू की हत्या का जुर्म कुबूल कर लिया. यही नहीं, अनुज ने हत्या में प्रयुक्त चाकू व खून से सने कपड़े भी बरामद करा दिए, जो उस ने अपने गांव के बाहर झाडिय़ों में छिपा दिए थे.

मृतका बीनू का मोबाइल फोन जिसे अनुज ने तोड़ कर एक गड्ढे में फेंक दिया था. पुलिस ने उस फोन को भी बरामद कर लिया. साक्ष्य के तौर पर पुलिस ने बरामद सामान को सुरक्षित कर लिया. अनुज ने पुलिस को बताया कि वह बीनू से बहुत प्यार करता था. उस के प्यार में इतना डूब गया था कि उसे अपनी पत्नी मान बैठा था. उस के प्यार में उस ने शादी भी नहीं की. उस के सारे खर्च भी वही उठाता था, लेकिन प्यार में उसे धोखा मिला. बीनू उस का प्यार ठुकरा कर किसी और से प्यार करने लगी. प्रेमिका की बेवफाई उसे बरदाश्त नहीं हुई और उसे मार डाला. उसे बीनू की हत्या का कोई अफसोस नहीं है.

चूंकि अनुज ने हत्या का जुर्म कुबूल कर लिया था और आलाकत्ल चाकू भी बरामद करा दिया था, अत: पुलिस ने मृतका के पति संजय शर्मा को निर्दोष मानते हुए थाने से जाने दिया. साथ ही मृतका की मां लक्ष्मी देवी की तहरीर पर बीएनएस की धारा 103(1) के तहत अनुज दुबे के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली तथा उसे विधिसम्मत गिरफ्तार कर लिया. पुलिस जांच में पति व प्रेमी से प्रताडि़त महिला की सनसनीखेज कहानी प्रकाश में आई.

उत्तर प्रदेश के कानपुर शहर से लगभग 20 किलोमीटर दूर जीटी रोड पर एक बड़ा व्यापारिक कस्बा है- चौबेपुर. यह कानपुर (देहात) जिले के अंतर्गत आता है. इसी कस्बे से 2 किलोमीटर दूर बसा है एक गांव गबड़हा. रामकिशन शर्मा का परिवार इसी गांव में रहता था. परिवार में पत्नी के अलावा 2 बेटे संजय व अजय थे. रामकिशन की आर्थिक स्थिति ज्यादा अच्छी नहीं थी. मेहनतमजदूरी कर किसी तरह वह परिवार का पालनपोषण करता था. समय बीतने के साथ दोनों बेटे बड़े हुए तो वे भी परिवार की सहायता करने लगे.

संजय जब शादी के लायक हो गया तो रामकिशन ने उस का ब्याह बीनू के साथ कर दिया. आकर्षक कदकाठी की छरहरी तथा गौरवर्ण वाली बीनू पचौर गांव के रमेश शर्मा की बेटी थी. 3 भाईबहनों में वह सब से छोटी थी. संजय बीनू को पा कर बेहद खुश था, क्योंकि उस ने जैसी पत्नी की कल्पना की थी, उसे बिलकुल वैसी ही पत्नी मिली थी. बीनू की मोहक मुसकान, कजरारी आंखें एवं छरहरी काया का वह दीवाना हो गया था. समय हंसीखुशी से बीतता रहा. इस दौरान बीनू 3 बच्चों की मां बन गई. उस का घरआंगन किलकारियों से गूंजने लगा.

बच्चों के जन्म के बाद संजय की जिम्मेदारियां बढ़ गईं तो उस ने शहर कस्बा जा कर पैसा कमाने का फैसला किया. इस बारे में उस ने परिवार वालों से बात की तो वे भी राजी हो गए. अगले ही दिन उस ने अपना सामान समेटा और चौबेपुर कस्बा आ गया. यहां उस ने काम की तलाश शुरू की तो उसे कस्बे के जीटी रोड स्थित राही होटल में वेटर का काम मिल गया. वह अन्य कर्मचारियों के साथ होटल में ही रहने लगा. वेटरों के बीच अकसर शराब पीनेपिलाने का दौर भी चलता था. संजय भी उन के साथ पीता था. धीरेधीरे वह शराब का लती बन गया.

संजय जब कमाने लगा तो उस ने चौबेपुर कस्बे के ब्रह्मïनगर मोहल्ले में एक कमरा किराए पर ले लिया. उस के बाद पत्नी व बच्चों को भी ले आया. किराए के इस मकान में बीनू के 2 साल हंसीखुशी से बीते. उस के बाद दोनों के बीच तकरार होने लगी. तकरार का पहला कारण था- संजय का शराब पी कर घर आना. बीनू शराब पी कर घर आने को मना करती तो वह गालीगलौज करता और बीनू की पिटाई करता. तकरार का दूसरा कारण था- आर्थिक अभाव. बीनू बच्चों व घर खर्च के लिए पैसे मांगती तो वह मना कर देता. जोर देने पर बीनू की धुनाई कर देता.

पति की प्रताडऩा से बीनू परेशान रहने लगी थी. उसे जब अधिक पीड़ा महसूस होती तो वह मायके चली जाती, लेकिन संजय वहां भी पहुंच जाता और हाथपैर जोड़ तथा माफी मांग कर बीनू को ले आता. एकदो माह उस का रवैया ठीक रहता, उस के बाद वह बीनू को फिर प्रताडि़त करने लगता. बीनू यह सोच कर प्रताडऩा सहती कि पति आज नहीं तो कल वह सुधर जाएगा. फिर उस का भी जीवन सुधर जाएगा, लेकिन ऐसा हुआ नहीं. दिनप्रतिदिन संजय की प्रताडऩा बढ़ती ही गई.

बीनू जिस मकान में किराएदार थी, उसी में ज्योति शुक्ला भी किराएदार थी. ज्योति अपने पति सौरभ शुक्ला के साथ भूतल पर रहती थी, जबकि बीनू पहली मंजिल पर रहती थी. बीनू बच्चों का मुंह देख कर दिन बिता रही थी और पति की प्रताडऩा सह रही थी. समय बिताने के लिए कभीकभार बीनू ज्योति के कमरे में चली जाती थी. वहीं एक रोज उस की मुलाकात हुई अनुज दुबे से. अनुज दुबे रौतेपुर गांव का रहने वाला था. ज्योति शुक्ला का पति सौरभ शुक्ला भी रौतेपुर गांव का था. अनुज और सौरभ बचपन के दोस्त थे. दोस्ती के नाते अनुज सौरभ के घर जबतब आता रहता था. अनुज के पिता की आर्थिक स्थिति मजबूत थी. अनुज भी नौकरी करता था और खूब कमाता था.

ज्योति शुक्ला के घर अनुज व बीनू का आमनासामना हुआ तो दोनों एकदूसरे को देख कर पलक झपकाना भूल गए. जहां बीनू की आकर्षक देहयष्टि देख अनुज की आंखों में लालच के डोरे उतर आए, वहीं अनुज का खूबसूरत चेहरामोहरा एवं गठीले बदन से बीनू मंत्रमुग्ध सी हो गई थी. ज्योति ने दोनों का एकदूसरे से परिचय कराया तो अनुज ने जल्दी ही अपनी वाकपटुता से बीनू का दिल जीत लिया. बातचीत के दौरान अनुज की नजरें बीनू के जिस्म को तौलती रहीं. वह बारबार कनखियों से उस की तरफ देखता. बीनू की नजरें जब उस की नजरों से टकरातीं तो वह कामुक अंदाज से मुसकरा देता. उस की मुसकराहट से बीनू के दिलोदिमाग में हलचल मचनी शुरू हो गई थी.

दरअसल, बीनू पति की प्रताडऩा से ऊब चुकी थी. अत: जब अनुज की हमदर्दी उसे मिली तो वह उस की ओर आकर्षित हो गई. चूंकि चाहत दोनों तरफ से थी, इसलिए जल्द ही उन के बीच प्यार पनपने लगा. प्यार पनपा तो शारीरिक मिलन शुरू हो गया. बातचीत के लिए अनुज ने उसे एक फोन भी खरीद कर दे दिया. बीनू से अवैध रिश्ता बना तो अनुज उस की आर्थिक मदद करने लगा. उस के बच्चों का भी खयाल रखने लगा. बीनू उस की बाइक पर बैठ कर सैरसपाटे पर भी जाने लगी. बीनू का पति संजय शर्मा होटल में काम करता था. वह दोपहर 11 बजे घर से निकलता और फिर रात 12 बजे के बाद ही घर लौटता था.

पति संजय के होटल जाने के बाद अनुज बीनू के पास आ जाता. दोनों खूब हंसतेबोलते, बतियाते और फिर रंगरलियां मनाते. बीनू अब खुश रहने लगी थी. उस की पेट की और शारीरिक भूख पूरी होने लगी थी. अनुज इतना दीवाना बन गया था कि वह बीनू को अपनी जागीर समझने लगा था. लेकिन एक रोज उन के नाजायज रिश्तों का भांडा फूट गया. उस रोज संजय होटल गया तो था, लेकिन होटल किसी कारण बंद था, इसलिए वापस घर आ गया था. घर आ कर उस ने जो अनर्थ देखा, उस से उस का पारा चढ़ गया. कमरे में बीनू और अनुज हमबिस्तर थे. संजय ने उन्हें धिक्कारा तो कपड़े दुरुस्त कर अनुज तो भाग गया, लेकिन बीनू कहां जाती. उस ने बीनू की जम कर पिटाई की.

अभी तक घर में कलह मारपीट, शराब व आर्थिक परेशानी को ले कर होती थी. अब अनुज को ले कर बीनू का उत्पीडऩ शुरू हो गया था. एक रात पिटाई के दौरान बीनू का धैर्य टूट गया. वह पति से बोली, ”मारपीट कर तुम मुझे चोट पहुंचा सकते हो, लेकिन उस के प्यार को कम नहीं कर सकते. तुम ने कभी सोचा कि बच्चों का पेट भरा है या वह खाली पेट सो रहे हैं. उन के बदन पर कपड़ा है या नहीं. अनुज ने साथ न दिया होता तो मैं कब की बच्चों सहित सुसाइड कर लेती. इसलिए कान खोल कर सुन लो, मैं तुम्हारा साथ छोड़ सकती हूं, लेकिन अनुज का नहीं.’’

बीनू की धमकी से संजय डर गया. इस के बाद उस ने बीनू से टोकाटाकी बंद कर दी. हालांकि उस का उत्पीडऩ जारी रहा. बीनू अब स्वच्छंद रूप से अनुज के साथ घूमने लगी. दोनों के बीच रिश्ता भी कायम रहा. बीनू अनुज के साथ रंगरलियां जरूर मनाती थी, लेकिन कभीकभी उसे ग्लानि भी होती. वह सोचती कि अनुज से दिल लगा कर उस ने अच्छा नहीं किया. पति के साथ धोखा तो किया ही, बच्चों के भविष्य के बारे में भी नहीं सोचा. कल को उस की बेटी सयानी होगी और अनुज उस पर डोरे डालने लगा तो कैसे उसे रोक पाएगी. धीरेधीरे बीनू का प्यार फीका पडऩे लगा और वह अनुज से दूरियां बनाने लगी.

बीनू को मोबाइल फोन चलाने का शौक था. वह फेसबुक और इंस्टाग्राम चलाती थी. इंस्टाग्राम के माध्यम से उस की दोस्ती अशोक नाम के युवक से हुई. दोस्ती प्यार में बदली और दोनों के बीच चैटिंग शुरू हो गई. अशोक से प्यार हुआ तो बीनू अनुज की उपेक्षा करने लगी. अनुज पिछले कई महीने से महसूस कर रहा था कि जब भी वह अपनी प्रेमिका बीनू के घर उस से मिलने जाता है तो वह उस की उपेक्षा करती है. पहले जब वह बीनू के घर जाता था तो वह उस से खूब हंसती, बोलती और बतियाती थी. आवभगत करती थी. लेकिन अब आते ही उस का चेहरा लटक जाता है. न हंसती और न बतियाती है.

बीनू की जुबान में अब कड़वाहट भी आ गई थी. आवभगत करना तो जैसे वह भूल ही गई थी. अनुज की समझ में नहीं आ रहा था कि बीनू के स्वभाव में यह परिवर्तन क्यों और कैसे आया? आखिर एक रोज इस राज का परदाफाश हो ही गया. उस रोज अनुज बीनू से मिलने आया तो वह बाथरूम में नहा रही थी. अनुज कमरे में जा कर पलंग पर बैठ गया. उसी समय उस की नजर बीनू के मोबाइल फोन पर पड़ी, जो पलंग पर तकिए के पास रखा था. अनुज ने उत्सुकतावश बीनू का फोन उठा लिया और चैक करने लगा. अनुज जैसेजैसे मोबाइल फोन चैक करता गया, वैसेवैसे उस के माथे पर बल पड़ते गए.

बीनू का मोबाइल फोन खंगालने के बाद अनुज के आश्चर्य का ठिकाना न रहा, क्योंकि बीनू ने इंस्टाग्राम के जरिए किसी अशोक नाम के युवक से दोस्ती गांठ ली थी. दोनों के बीच चैटिंग होती थी. बीनू का इंस्टाग्राम पर अकाउंट था. उस ने एक जगह लिखा था, ‘तुम ने तो 2 बूंद ही मांगी थी, हम ने तो समंदर ही लुटा दिया.’ इस का मतलब था कि दोनों के बीच नाजायज रिश्ता बन चुका था. फोन में दोनों के अश्लील फोटो भी मौजूद थे. अनुज अब समझ गया था कि बीनू ने उसे दिल से क्यों निकाल फेंका है. क्योंकि उस ने नए आशिक अशोक को दिल में बसा लिया है. इसी कारण उस के स्वभाव में परिवर्तन आ गया है.

कुछ देर बाद बीनू बाथरूम से निकली तो कमरे में बैठे अनुज को देख कर सकपका गई. फिर गुस्से से बोली, ”अनुज, तुम्हें फोन कर के आना चाहिए था. इस तरह किसी के घर आना अच्छी बात नहीं. आइंदा इस बात का खयाल रखना.’’

”मैं कोई पहली बार तो तुम्हारे घर आया नहीं. इस के पहले भी बेधड़क आताजाता रहा हूं. तब तो तुम ने कभी टोकाटाकी नहीं की.’’ अनुज ने बीनू की बात का जवाब दिया. कुछ देर कमरे में सन्नाटा पसरा रहा. फिर अनुज ने बीनू के चेहरे पर नजरें गड़ा कर पूछा, ”बीनू, यह अशोक कौन है? इस से तुम्हारा क्या रिश्ता है?’’

अशोक का नाम सुनते ही बीनू अंदर ही अंदर घबरा गई. वह जान गई कि अनुज ने उस का मोबाइल फोन खंगाला है. फिर भी वह संभलते हुए बोली, ”अशोक मेरा दूर का रिश्तेदार है. हम दोनों की इंस्टाग्राम के जरिए से दोस्ती हुई थी.’’

”सिर्फ दोस्ती या फिर नाजायज रिश्ता भी है.’’ अनुज ने कटाक्ष किया.

”तुम मुझ पर लांछन लगा कर अपनी हद पार कर रहे हो अनुज,’’ बीनू भी भड़क उठी.

”मैं अपनी हद पार नहीं कर रहा हूं, बल्कि सच्चाई बयां कर रहा हूं. मोबाइल फोन में मौजूद अश्लील फोटो और चैटिंग इस बात का सबूत है कि तुम दोनों के बीच नाजायज रिश्ता है. इसी कारण तुम मेरी उपेक्षा करती हो.’’

पोल खुल जाने से बीनू डर गई थी. वह बात बढ़ाना नहीं चाहती थी, अत: धीमी आवाज में बोली, ”अनुज, तुम्हें जो समझना है, समझो. मैं तुम्हारा शक तो दूर नहीं कर सकती.’’

उस दिन बहस के बाद अनुज घर चला तो गया, लेकिन उस के बाद उस का दिन का चैन और रात की नींद हराम हो गई. उसे प्रेमिका बीनू की बेवफाई रास नहीं आई. वह सोचता कि जिस के लिए उस ने अपना तन, मन, धन सब न्यौछावर कर दिया, वही बेवफा बन गई, जिस को वह प्रेमिका की जगह पत्नी मानने लगा, जिसे वह अपनी जागीर समझने लगा, जिस के लिए उस ने शादी भी नहीं की. उसी ने उस के साथ इतना बड़ा धोखा किया. ऐसी बेवफा प्रेमिका को वह कभी माफ नहीं करेगा. उसे उस की बेवफाई की सजा जरूर मिलेगी. वह उस की न हुई तो वह उसे किसी और की भी नहीं होने देगा.

इस के बाद अनुज ने अपनी प्रेमिका बीनू की हत्या का प्लान बनाया. प्लान के मुताबिक वह चौबेपुर बाजार गया और एक तेज धार वाला चाकू खरीदा और उसे अपने पास सुरक्षित रख लिया. फिर योजनानुसार उस की हत्या कर दी. अनुज से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने 14 मई, 2025 को अनुज को कानपुर (देहात) की माती कोर्ट में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. मृतका के बच्चे नानी लक्ष्मी के साथ रह रहे थे.

 

 

Stories in Hindi Love : दिल के मरीज डौक्टर की हैवानियत – बेरहम एकतरफा प्यार

Stories in Hindi Love : बीते 19 अगस्त की बात है. उत्तर प्रदेश पुलिस को सूचना मिली कि आगरा फतेहाबाद हाईवे पर बमरोली कटारा के पास सड़क किनारे एक महिला की लाश पड़ी है. यह जगह थाना डौकी के क्षेत्र में थी. कंट्रोल रूप से सूचना मिलते ही थाना डौकी की पुलिस मौके पर पहुंच गई. मृतका लोअर और टीशर्ट पहने थी. पास ही उस के स्पोर्ट्स शू पड़े हुए थे. चेहरेमोहरे से वह संभ्रांत परिवार की पढ़ीलिखी लग रही थी, लेकिन उस के कपड़ों में या आसपास कोई ऐसी चीज नहीं मिली, जिस से उस की शिनाख्त हो पाती. युवती की उम्र 25-26 साल लग रही थी.

पुलिस ने शव को उलटपुलट कर देखा. जाहिरा तौर पर उस के सिर के पीछे चोट के निशान थे. एकदो जख्म से भी नजर आए. युवती के हाथ में टूटे हुए बाल थे. हाथ के नाखूनों में भी स्कीन फंसी हुई थी. साफतौर पर नजर आ रहा था कि मामला हत्या का है, लेकिन हत्या से पहले युवती ने कातिल से अपनी जान बचाने के लिए काफी संघर्ष किया था. मौके पर शव की शिनाख्त नहीं हो सकी, तो डौकी पुलिस ने जरूरी जांच पड़ताल के बाद युवती की लाश पोस्टमार्टम के लिए एमएम इलाके के पोस्टमार्टम हाउस भेज दी. डौकी थाना पुलिस इस युवती की शिनाख्त के प्रयास में जुट गई.

उसी दिन सुबह करीब साढ़े 9 बजे दिल्ली के शिवपुरी पार्ट-2, दिनपुर नजफगढ़ निवासी डाक्टर मोहिंदर गौतम आगरा के एमएम गेट पुलिस थाने पहुंचे. उन्होंने अपनी बहन डाक्टर योगिता गौतम के अपहरण की आशंका जताई और डाक्टर विवेक तिवारी पर शक व्यक्त करते हुए पुलिस को एक तहरीर दी. डाक्टर मोहिंदर ने पुलिस को बताया कि डाक्टर योगिता आगरा के एसएन मेडिकल कालेज से पोस्ट ग्रेजुएशन कर रही है. वह नूरी गेट में गोकुलचंद पेठे वाले के मकान में किराए पर रहती है.

कल शाम यानी 18 अगस्त की शाम करीब सवा 4 बजे डाक्टर योगिता ने दिल्ली में घर पर फोन कर के कहा था कि डाक्टर विवेक तिवारी उसे बहुत परेशान कर रहा है. उस ने डाक्टरी की डिगरी कैंसिल कराने की भी धमकी दी है. फोन पर डाक्टर योगिता काफी घबराई हुई थी और रो रही थी. पुलिस ने डाक्टर मोहिंदर से डाक्टर विवेक तिवारी के बारे में पूछा कि वह कौन है? डा. मोहिंदर ने बताया कि डा. योगिता ने 2009 में मुरादाबाद के तीर्थकर महावीर मेडिकल कालेज में प्रवेश लिया था. मेडिकल कालेज में पढ़ाई के दौरान योगिता की जान पहचान एक साल सीनियर डा. विवेक से हुई थी.

डाक्टरी करने के बाद विवेक को सरकारी नौकरी मिल गई. वह अब यूपी में जालौन के उरई में मेडिकल औफिसर के पद पर तैनात है. डा. विवेक के पिता विष्णु तिवारी पुलिस में औफिसर थे. जो कुछ साल पहले सीओ के पद से रिटायर हो गए थे. करीब 2 साल पहले हार्ट अटैक से उन की मौत हो गई थी. डा. मोहिंदर ने पुलिस को बताया कि डा. विवेक तिवारी डा. योगिता से शादी करना चाहता था. इस के लिए वह उस पर लगातार दबाव डाल रहा था. जबकि डा. योगिता ने इनकार कर दिया था. इस बात को लेकर दोनों के बीच काफी दिनों से झगड़ा चल रहा था. डा. विवेक योगिता को धमका रहा था.

नहीं सुनी पुलिस ने

पुलिस ने योगिता के अपहरण की आशंका का कारण पूछा, तो डा. मोहिंदर ने बताया कि 18 अगस्त की शाम योगिता का घबराहट भरा फोन आने के बाद मैं, मेरी मां आशा गौतम और पिता अंबेश गौतम तुरंत दिल्ली से आगरा के लिए रवाना हो गए. हम रात में ही आगरा पहुंच गए थे. आगरा में हम योगिता के किराए वाले मकान पर पहुंचे, तो वह नहीं मिली. उस का फोन भी रिसीव नहीं हो रहा था.

डा. मोहिंदर ने आगे बताया कि योगिता के नहीं मिलने और मोबाइल पर भी संपर्क नहीं होने पर हम ने सीसीटीवी फुटेज देखी. इस में नजर आया कि डा. योगिता 18 अगस्त की शाम साढ़े 7 बजे घर से अकेली बाहर निकली थी. बाहर निकलते ही उसे टाटा नेक्सन कार में सवार युवक ने खींचकर अंदर डाल लिया. डा. मोहिंदर ने आरोप लगाया कि सारी बातें बताने के बाद भी पुलिस ने ना तो योगिता को तलाशने का प्रयास किया और ना ही डा. विवेक का पता लगाने की कोशिश की. पुलिस ने डा. मोहिंदर से अभी इंतजार करने को कहा.

जब 2-3 घंटे तक पुलिस ने कुछ नहीं किया, तो डा. मोहिंदर आगरा में ही एसएन मेडिकल कालेज पहुंचे. वहां विभागाध्यक्ष से मिल कर उन्हें अपना परिचय दे कर बताया कि उन की बहन डा. योगिता लापता है. उन्होंने भी पुलिस के पास जाने की सलाह दी. थकहार कर डा. मोहिंदर वापस एमएम गेट पुलिस थाने आ गए और हाथ जोड़कर पुलिस से काररवाई करने की गुहार लगाई. शाम को एक सिपाही ने उन्हें बताया कि एक अज्ञात युवती का शव मिला है, जो पोस्टमार्टम हाउस में रखा है. उसे भी जा कर देख लो.

मन में कई तरह की आशंका लिए डा. मोहिंदर पोस्टमार्टम हाउस पहुंचे. शव देख कर उन की आंखों से आंसू बहने लगे. शव उन की बहन डा. योगिता का ही था. मां आशा गौतम और पिता अंबेश गौतम भी नाजों से पाली बेटी का शव देख कर बिलखबिलख कर रो पड़े. शव की शिनाख्त होने के बाद यह मामला हाई प्रोफाइल हो गया. महिला डाक्टर की हत्या और इस में पुलिस अधिकारी के डाक्टर बेटे का हाथ होने की संभावना का पता चलने पर पुलिस ने कुछ गंभीरता दिखाई और भागदौड़ शुरू की.

आगरा पुलिस ने जालौन पुलिस को सूचना दे कर उरई में तैनात मेडिकल आफिसर डा. विवेक तिवारी को तलाशने को कहा. जालौन पुलिस ने सूचना मिलने के 2 घंटे बाद ही 19 अगस्त की रात करीब 8 बजे डा. विवेक को हिरासत में ले लिया. जालौन पुलिस ने यह सूचना आगरा पुलिस को दे दी. जालौन पुलिस उसे हिरासत में ले कर एसओजी आफिस आ गई. जालौन पुलिस ने उस से आगरा जाने और डा. योगिता से मिलने के बारे में पूछताछ की, तो वह बिफर गया. उस ने कहा कि कोरोना संक्रमण की वजह से वह क्वारंटीन में है.

विवेक तिवारी बारबार बयान बदलता रहा. बाद में उस ने स्वीकार किया कि वह 18 अगस्त को आगरा गया था और डा. योगिता से मिला था. विवेक ने जालौन पुलिस को बताया कि वह योगिता को आगरा में टीडीआई माल के बाहर छोड़कर वापस उरई लौट आया था. आगरा पुलिस ने रात करीब 11 बजे जालौन पहुंचकर डा. विवेक को हिरासत में ले लिया. उसे जालौन से आगरा ला कर 20 अगस्त को पूछताछ की गई. पूछताछ में वह पुलिस को लगातार गुमराह करता रहा. पुलिस ने उस की काल डिटेल्स निकलवाई, तो पता चला कि शाम सवा 6 बजे से उस की लोकेशन आगरा में थी. डा. योगिता से उस की शाम साढ़े 7 बजे आखिरी बात हुई थी.

इस के बाद रात सवा बारह बजे विवेक की लोकेशन उरई की आई. कुछ सख्ती दिखाने और कई सबूत सामने रखने के बाद उस से मनोवैज्ञानिक तरीके से पूछताछ की गई. आखिरकार उस ने डा. योगिता की हत्या करने की बात स्वीकार कर ली. बाद में पुलिस ने उसे न्यायिक अभिरक्षा में जेल भेज दिया. पुलिस ने 20 अगस्त को डाक्टरों के मेडिकल बोर्ड से डा. योगिता के शव का पोस्टमार्टम कराया. पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार डा. योगिता के शरीर से 3 गोलियां निकलीं. एक गोली सिर, दूसरी कंधे और तीसरी सीने में मिली. योगिता पर चाकू से भी हमला किया गया था. पोस्टमार्टम कराने के बाद आगरा पुलिस ने डा. योगिता का शव उस के मातापिता व भाई को सौंप दिया.

पूछताछ में डा. योगिता के दुखांत की जो कहानी सामने आई, वह डा. विवेक तिवारी के एकतरफा प्यार की सनक थी. दिल्ली के नजफगढ़ इलाके की शिवपुरी कालोनी पार्ट-2 में रहने वाले अंबेश गौतम नवोदय विद्यालय समिति में डिप्टी डायरेक्टर हैं. वह राजस्थान के उदयपुर शहर में तैनात हैं. डा. अंबेश के परिवार में पत्नी आशा गौतम के अलावा बेटा डा. मोहिंदर और बेटी डा. योगिता थी.

प्रतिभावान डाक्टर थी योगिता

योगिता शुरू से ही पढ़ाई में अव्वल रहती थी. उस की डाक्टर बनने की इच्छा थी. इसलिए उस ने साइंस बायो से 12वीं अच्छे नंबरों से पास की. पीएमटी के जरिए उस का सलेक्शन मेडिकल की पढ़ाई के लिए हो गया. उस ने 2009 में मुरादाबाद के तीर्थंकर मेडिकल कालेज में एमबीबीएस में एडमिशन लिया.

इसी कालेज में पढ़ाई के दौरान योगिता की मुलाकात एक साल सीनियर विवेक तिवारी से हुई. दोनों में दोस्ती हो गई. दोस्ती इतनी बढ़ी कि वे साथ में घूमनेफिरने और खानेपीने लगे. इस दोस्ती के चलते विवेक मन ही मन योगिता को प्यार करने लगा लेकिन योगिता की प्यारव्यार में कोई दिलचस्पी नहीं थी. वह केवल अपनी पढ़ाई और कैरियर पर ध्यान देती थी. इसी दौरान 2-4 बार विवेक ने योगिता के सामने अपने प्यार का इजहार करने का प्रयास किया लेकिन उस ने हंस मुसकरा कर उस की बातों को टाल दिया.

योगिता के हंसनेमुस्कराने से विवेक समझ बैठा कि वह भी उसे प्यार करती है. जबकि हकीकत में ऐसा कुछ था ही नहीं. विवेक मन ही मन योगिता से शादी के सपने देखता रहा. इस बीच, विवेक को भी डाक्टरी की डिगरी मिल गई और योगिता को भी. बाद में डा. विवेक तिवारी को सरकारी नौकरी मिल गई. फिलहाल वह उरई में मेडिकल आफिसर के पद पर कार्यरत था. डा. विवेक मूल रूप से कानपुर का रहने वाला है. कानपुर के किदवई नगर के एन ब्लाक में उस का पैतृक मकान है. इस मकान में उस की मां आशा तिवारी और बहन नेहा रहती हैं. विवेक के पिता विष्णु तिवारी उत्तर प्रदेश पुलिस में अधिकारी थे. वे आगरा शहर में थानाप्रभारी भी रहे थे.

कहा जाता है कि पुलिस विभाग में विष्णु तिवारी का काफी नाम था. वे कानपुर में कई बड़े एनकाउंटर करने वाली पुलिस टीम में शामिल रहे थे. कुछ साल पहले विष्णु तिवारी सीओ के पद से रिटायर हो गए थे. करीब 2 साल पहले उन की हार्ट अटैक से मौत हो गई थी. मुरादाबाद से एमबीबीएस की डिगरी हासिल कर डा. योगिता आगरा आ गई. आगरा में 3 साल पहले उस ने एसएन मेडिकल कालेज में पोस्ट ग्रेजुएशन करने के लिए एडमिशन ले लिया. वह इस कालेज के स्त्री रोग विभाग में पीजी की छात्रा थी. वह आगरा में नूरी गेट पर किराए के मकान में रह रही थी.

इस बीच, डा. योगिता और विवेक की फोन पर बातें होती रहती थीं. कभीकभी मुलाकात भी हो जाती थी. डा. विवेक जब भी मिलता या फोन करता, तो अपने प्रेम प्यार की बातें जरूर करता लेकिन डा. योगिता उसे तवज्जो नहीं देती थी. दोनों के परिवारों को उन की दोस्ती का पता था. डा. विवेक के पास योगिता के परिजनों के मोबाइल नंबर भी थे. उस ने योगिता के आगरा के मकान मालिकों के मोबाइल नंबर भी हासिल कर रखे थे. कहा यह भी जाता है कि विवेक और योगिता कई साल रिलेशन में रहे थे.

पिछले कई महीनों से डा. विवेक उस पर शादी करने का दबाव डाल रहा था, लेकिन डा. योगिता ने इनकार कर दिया था. इस से डा. विवेक नाराज हो गया. वह उसे फोन कर धमकाने लगा. 18 अगस्त को विवेक ने योगिता को फोन कर शादी की बात छेड़ दी. योगिता के साफ इनकार करने पर उस ने धमकी दी कि वह उसे जिंदा नहीं छोड़ेगा, उस की एमबीबीएस की डिगरी कैंसिल करा देगा. इस से डा. योगिता घबरा गई. उस ने दिल्ली में अपनी मां को फोन कर रोते हुए यह बात बताई. इसी के बाद योगिता के मातापिता व भाई दिल्ली से आगरा के लिए चल दिए थे.

योगिता को धमकाने के कुछ देर बाद डा. विवेक ने उसे दोबारा फोन किया. इस बार उस की आवाज में क्रोध नहीं बल्कि अपनापन था. उस ने कहा कि भले ही वह उस से शादी ना करे लेकिन इतने सालों की दोस्ती के नाम पर उस से एक बार मिल तो ले. काफी नानुकुर के बाद डा. योगिता ने आखिरी बार मिलने की हामी भर ली. उसी दिन शाम करीब साढ़े 7 बजे डा. विवेक ने योगिता को फोन कर के कहा कि वह आगरा आया है और नूरी गेट पर खड़ा है. घर से बाहर आ जाओ, आखिरी मुलाकात कर लेते हैं. योगिता बिना सोचेसमझे बिना किसी को बताए घर से अकेली निकल गई. यही उस की आखिरी गलती थी.

घर से बाहर निकलते ही नूरी गेट पर टाटा नेक्सन कार में सवार विवेक ने उसे कार का गेट खोल कर आवाज दी और तेजी से कार के अंदर खींच लिया. रास्ते में डा. विवेक ने योगिता से फिर शादी का राग छेड़ दिया, तो चलती कार में ही दोनों में बहस होने लगी. डा. विवेक उस से हाथापाई करने लगा. इसी हाथापाई में योगिता ने अपने हाथ के नाखूनों से विवेक के बाल खींचे और चमड़ी नोंची, तो गुस्साए विवेक ने उस का गला दबा दिया.

डा. विवेक योगिता को कार में ले कर फतेहाबाद हाईवे पर निकल गया. एक जगह रुक कर उस ने अपनी कार में रखा चाकू निकाला. चाकू से योगिता के सिर और चेहरे पर कई वार किए. इतने पर भी विवेक का गुस्सा शांत नहीं हुआ, तो उस ने योगिता के सिर, कंधे और छाती में 3 गोलियां मारीं. यह रात करीब 8 बजे की घटना है.

हत्या कर के रातभर सक्रिय रहा विवेक

इस के बाद योगिता के शव को बमरौली कटारा इलाके में सड़क किनारे एक खेत में फेंक दिया. पिस्तौल भी रास्ते में फेंक दी. रात में ही वह उरई पहुंच गया. रात को ही वह उरई से कानपुर गया और अपनी कार घर पर छोड़ आया. दूसरे दिन वह वापस उरई आ गया. बाद में पुलिस ने कानपुर में डा. विवेक के घर से वह कार बरामद कर ली. यह कार 2 साल पहले खरीदी गई थी. कार में खून से सना वह चाकू भी बरामद हो गया, जिस से हमला कर योगिता की जान ली गई थी.

बहुत कम बोलने वाली प्रतिभावान डा. योगिता गौतम का नाम कोरोना संक्रमण काल में यूपी की पहली कोविड डिलीवरी करने के लिए भी दर्ज है. कोरोना महामारी जब आगरा में पैर पसार रही थी, तब आइसोलेशन वार्ड विकसित किया गया.

इस के लिए स्त्री और प्रसूति रोग विभाग की भी एक टीम बनाई गई. जिसे संक्रमित गर्भवतियों के सीजेरियन प्रसव की जिम्मेदारी दी गई. विभागाध्यक्ष डा. सरोज सिंह के नेतृत्व में गठित इस टीम में शामिल डा. योगिता ने 21 अप्रैल को यूपी और आगरा में कोविड मरीज के पहले सीजेरियन प्रसव को अंजाम दिया था.  इस के बाद भी उन्होंने कई सीजेरियन प्रसव कराए. डा. योगिता के कराए प्रसव की कई निशानियां आज उन घरों में किलकारियां बन कर गूंज रही हैं.

सिरफिरे डाक्टर आशिक के हाथों जान गंवाने से 5 दिन पहले ही 13 अगस्त को डा. योगिता का पीजी का रिजल्ट आया था. जिस में वह पास हो गई थी. पीजी कर योगिता विशेषज्ञ डाक्टर बन गई थी. लेकिन वक्त को कुछ और ही मंजूर था. लोगों की जान बचाने वाली डा. योगिता की उस के आशिक ने ही जान ले ली. घटना वाले दिन भी वह दोपहर 3 बजे तक अस्पताल में अपनी ड्यूटी पर थी. डा. योगिता की मौत पर आगरा के एसएन मेडिकल कालेज में कैंडल जला कर योगिता को श्रद्धांजलि दी गई. कालेज के जूनियर डाक्टरों की एसोसिएशन ने प्रदर्शन कर सच्ची कोरोना योद्धा की हत्या पर आक्रोश जताया.

बहरहाल डा. विवेक ने अपने एकतरफा प्यार की सनक में योगिता की हत्या कर दी. उस की इस जघन्य करतूत ने योगिता के परिवार को खून के आंसू बहाने पर मजबूर कर दिया. वहीं, खुद का जीवन भी बरबाद कर लिया. डाक्टर लोगों की जान बचाने वाला होता है, लोग उसे सब से ऊंचा दर्जा देते हैं, लेकिन यहां तो डाक्टर ही हैवान बन गया. दूसरों की जान बचाने वाले ने साथी डाक्टर की जान ले ली. Stories in Hindi Love

UP Crime News : गलती खुद की सजा किसी और को

UP Crime News : राजकुमार पढ़ालिखा ही नहीं था, सरकारी नौकरी में भी था. उस की पत्नी आशा भी पढ़ीलिखी होने के साथसाथ खूबसूरत भी थी. दोनों की अच्छी जोड़ी थी. अचानक राजकुमार के मन में ऐसा क्या आया कि वह बीवी का हत्या करने को मजबूर हो गया. उत्तर प्रदेश के जिला मथुरा के नंदगांव का रहने वाला सुनहरीलाल इलाहाबाद में किसी सरकारी विभाग में नौकरी करता था. उस के परिवार में पत्नी शारदा के अलावा बेटी आशा और बेटा राजकुमार उर्फ राजू था. चूंकि सुनहरीलाल इलाहाबाद में परिवार के साथ रहता था, इसलिए आशा और राजकुमार ने वहीं पढ़ाई की थी.

आशा एमए कर के कोई नौकरी कर पाती, सुनहरीलाल रिटायर हो कर गांव आ गया था. आशा की पढ़ाई पूरी हो गई थी और वह शादी लायक हो गई थी, इसलिए सुनहरीलाल को उस की शादी की चिंता हुई. वह लड़के की तलाश में भागदौड़ करने लगे. भागदौड़ का सुखद परिणाम भी निकला. एटा के थाना सकीट के गांव नौरंगाबाद निवासी रौशनलाल बघेल का छोटा बेटा राजकुमार उन्हें आशा के लिए पसंद आ गया तो उन्होंने बेटी की शादी उस के साथ तय कर दी. आशा पढ़ीलिखी तो थी ही, खूबसूरत भी थी, इसलिए लड़के वालों के मना करने का सवाल ही नहीं था. राजकुमार भी कम खूबसूरत नहीं था. एकदम आशा के जोड़ का था. लेकिन वह आशा से कम पढ़ा था.

आशा एमए पास थी, जबकि वह बीए तक ही पढ़ा था. लेकिन उसे शीतलपुर विकास खंड में सफाईकर्मी की नौकरी मिल गई थी. बीए पास राजकुमार ने यह नौकरी मजबूरी में की थी. क्योंकि काफी भागदौड़ और मेहनत के बाद भी उसे कोई ढंग की नौकरी नहीं मिली थी. संयोग से मायावती शासनकाल में सफाईकर्मियों की भरती की गई तो उसे यह नौकरी मिल गई थी. राजकुमार सरकारी नौकरी में था. स्मार्ट होने के साथसाथ व्यवहारकुशल भी था. इसलिए उस से झाड़ू लगवाने के बजाय विकास खंड अधिकारी औफिस का काम कराने लगे थे. वह मेहनत और लगन से काम करता था, इसलिए औफिस के लोग उसे पसंद करते थे. यही सब देख कर सुनहरीलाल ने आशा के लिए राजकुमार को पसंद किया था.

आशा की शादी हो गई और वह दुलहन बन कर पिया राजकुमार के घर आ गई. पढ़ीलिखी और सुंदर पत्नी पा कर राजकुमार तो खुश था ही, घर वाले भी फूले नहीं समा रहे थे. क्योंकि गांव में उन्हीं की बहू सब से ज्यादा पढ़ीलिखी थी. राजकुमार को शीतलपुर विकास खंड परिसर में आवास भी मिला था, इसलिए शादी के बाद वह आशा को भी वहीं ले आया. आते ही आशा ने पति की पूरी गृहस्थी संभाल ली. दिन हंसीखुशी से गुजर रहे थे. आशा पढ़ीलिखी थी, इसलिए वह भी चाहती थी कि कोई नौकरी मिल जाए, जिस से गृहस्थी की गाड़ी आराम से चल सके. वह नौकरी तलाश रही थी कि तभी पता चला वह गर्भवती हो चुकी है. अब बच्चा होने तक कुछ नहीं हो सकता था.

शादी के साल भर बाद आशा ने बेटे को जन्म दिया, जिस का नाम अनंत रखा गया. बेटे के जन्म के बाद खुशियां दोगुनी हो गईं. अनंत थोड़ा बड़ा हुआ तो आशा की नौकरी करने वाली लालसा फिर जाग उठी. आशा पढ़ीलिखी थी, लेकिन उस के पास कोई प्रोफेशनल डिग्री नहीं थी. इस के लिए उस ने राजकुमार से कंप्यूटर सीखने की इच्छा जाहिर की. तब राजकुमार ने कहा कि अभी अनंत इस लायक नहीं है कि उसे घर में अकेला छोड़ा जा सके. उसे थोड़ा बड़ा हो जाने दो. फिर अभी कहां उस की उम्र निकली जा रही है.

‘‘ठीक है, तुम कहते हो तो मैं अनंत के कुछ और बड़े होने तक इंतजार कर लेती हूं.’’ आशा ने कहा.

इस के बाद आशा ने महसूस किया कि राजकुमार अब मोबाइल फोन से कुछ ज्यादा ही चिपका रहने लगा है. वह हंसहंस कर इस तरह फुसुरफुसुर बातें करता है, जैसे उस से कुछ छिपाना चाहता है. वह जिस तरह बातें कर रहा था, उस तरह तो किसी लड़की से ही बातें की जाती हैं. यह शंका होने पर आशा ने राजकुमार से पूछा भी, लेकिन कुछ बताने के बजाय वह टाल गया, जिस से आशा का संदेह बढ़ गया. उस का यह संदेह तब विश्वास में बदल गया, जब वह दिवाली पर ससुराल गई. उस ने देखा कि पड़ोस में रहने वाली सुनीता राजकुमार से हंसहंस कर बातें करती थी. औरत होने के नाते उस ने सुनीता की नजरों से ही जान लिया कि मामला गड़बड़ है.

उस ने इस बारे में जानकारी जुटाई तो उसे पता चला कि सुनीता और राजकुमार का प्रेमसंबंध शादी से पहले से चल रहा है. यह जानने के बाद आशा से रहा नहीं गया और उस ने राजकुमार से पूछ लिया, ‘‘मुझे पता चला है कि सुनीता से तुम्हारा अफेयर था? अगर ऐसा था तो तुम ने मुझ से शादी क्यों की? परेशानी की बात यह है कि तुम अभी भी उसे भूल नहीं पाए हो और उस से फोन पर बातें करते हो.’’

यह सुन कर राजकुमार के चेहरे का रंग उड़ गया, क्योंकि उस की चोरी पकड़ी गई थी. उस ने खुद को संभाल कर आशा को आश्वस्त करने के लिए कहा, ‘‘शादी के पहले क्या था, अब यह सोचनेविचारने की जरूरत नहीं है. अब मैं सिर्फ तुम्हारा हूं और वादा करता हूं कि आज से तुम्हें शिकायत का कोई मौका नहीं मिलेगा.’’

राजकुमार ने भले ही आशा से वादा किया था कि अब उसे शिकायत का कोई मौका नहीं मिलेगा, लेकिन आशा को अब पति पर भरोसा नहीं रह गया था. उसे अपने और बेटे के भविष्य की चिंता सताने लगी थी. उसे लगने लगा था कि अब उस का और बेटे का भविष्य तभी सुरक्षित हो सकता है, जब वह नौकरी कर ले. आशा ने कंप्यूटर का कोर्स करने के लिए ब्रज कंप्यूटर सेंटर में दाखिला ले लिया. घर के बाहर निकलने से आशा का मनोबल थोड़ा बढ़ा. परिणामस्वरूप कभीकभी बातचीत में वह राजकुमार को ताना मार देती कि उस की सफाईकर्मी वाली नौकरी उसे बिलकुल पसंद नहीं है. पत्नी के इस ताने से राजकुमार के मन में हीनभावना पैदा होने लगी.

उस की पत्नी सुंदर तो थी ही, उस से ज्यादा पढ़ीलिखी भी थी. यह बात उसे खटकने लगी. हीनभावना से ग्रस्त राजकुमार के मन में तरहतरह के विचार आने लगे. वह खुद को आशा से हीन समझने लगा था, इसलिए आशा को किसी आदमी से बातचीत करते देख लेता तो जरूर पूछ लेता, ‘‘क्या बातें हो रही थीं, तुम्हें किसी पराए मर्द से बातें करते शरम नहीं आती?’’

शुरू में तो आशा ने राजकुमार की इस बात पर ध्यान नहीं दिया, लेकिन जब राजकुमार कुछ ज्यादा ही टोकाटाकी करने लगा तो आशा उसे परेशान करने के लिए लोगों से कुछ ज्यादा ही बातें करने लगी. इस का नतीजा यह निकला कि राजकुमार भी उसे परेशान करने के लिए फिर से सुनीता से फोन पर बातें करने लगा. अब आशा को इस बात की चिंता सताने लगी कि पति की इन हरकतों का असर उस की गृहस्थी पर न पड़े. अपनी गृहस्थी को बचाने के लिए आशा ने सारी बात मांबाप और भाई को बताई. उस ने पिता से कहा कि उस की मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं. एक तो राजकुमार के गांव की एक लड़की से नाजायज संबंध हैं, दूसरे वह उसे किसी से बात भी नहीं करने देता. उस की समझ में नहीं आता कि वह क्या करे.

बेटी की जिंदगी का सवाल था, इसलिए सुनहरीलाल को ये बातें परेशान करने लगीं. मांबाप को जैसा करना चाहिए, उसी तरह पतिपत्नी ने आशा को समझाया कि जैसे भी हो, वह खुद को संभाले और राजकुमार को प्यार से समझाए, जिस से उस की गृहस्थी में दरार न आए. पढ़ीलिखी होने की वजह से आशा काफी समझदार थी. इसी वजह से राजकुमार के व्यवहार से वह परेशान रहती थी. क्योंकि वह उस की जासूसी करने लगा था. आशा उस की अनुपस्थिति में भी पड़ोस में किसी के घर चली जाती या किसी से बातचीत कर लेती तो घर आ कर वह उस से लड़ाईझगड़ा ही नहीं करता, मारपीट भी करता. कोई पड़ोसी भी उस से बात कर लेता तो पिटाई उसी की होती.

यही नहीं, कंप्यूटर सीखने जाते समय राजकुमार उस के पीछेपीछे जाता. शायद उसे लगने लगा था कि आशा उस से ज्यादा पढ़ीलिखी है, खूबसूरत है, जबकि वह मात्र बीए पास है और सफाईकर्मी की नौकरी करता है, इसलिए दूसरे तो आशा को ताकतेझांकते ही हैं, आशा भी उसे पसंद नहीं करती. इसीलिए उस का भी मन बहक रहा है. ऐसे में कभी औफिस में कोई आशा की तारीफ कर देता तो घर आ कर वह इस का बदला आशा से लेता. मांबाप के इस लड़ाईझगड़े से परेशानी 4 साल के अनंत को भी होती थी. वह सहमासहमा रहता था. आशा बेटे का हवाला दे कर राजकुमार को समझाती भी थी कि उसे अपने इस व्यवहार में बदलाव लाना चाहिए, वरना घर तो बरबाद होगा ही, बेटे का भी भविष्य बरबाद हो जाएगा.

लेकिन राजकुमार की शंका बढ़ती जा रही थी. एक दिन आशा कंप्यूटर सीख कर निकल रही थी तो उस के किसी साथी ने उस से कुछ पूछ लिया. राजकुमार उस पर नजर रख ही रहा था. उस ने आशा को लड़के से बात करते देख लिया तो घर आ कर पूछा, ‘‘वह लड़का कौन था, जिस से तुम बातें कर रही थी?’’

‘‘वह भी मेरे साथ कंप्यूटर सीख रहा है. नईनई जानकारियों के लिए आपस में बात करनी ही पड़ती है. उस ने मुझ से कुछ पूछ लिया तो इस में परेशानी क्या है?’’ आशा ने कहा.

‘‘मुझे लगता है कि तुम वहां कंप्यूटर सीखने नहीं, गुलछर्रे उड़ाने जाती हो.’’

पति के इस आरोप से आशा तड़प उठी, ‘‘तुम मुझे भी अपनी तरह समझते हो क्या? पहले खुद को देखो, उस के बाद किसी को कुछ कहो.’’

आशा का इतना कहना था कि राजकुमार ने उसे 3-4 तमाचे जड़ दिए. पति की इस हरकत से आशा तिलमिला कर बोली, ‘‘मैं तुम्हारी पत्नी हूं, गुलाम नहीं. आज के बाद फिर कभी हाथ उठाया तो जेल भिजवा दूंगी. नौकरी तो जाएगी ही, जेल में पड़े सड़ते रहोगे.’’

आशा की इस धमकी से राजकुमार डर गया. उसे लगा कि उस की पत्नी को बाहर की हवा लग गई है. कंप्यूटर सीख रही है तो इस का यह हाल है, नौकरी लग जाएगी तब तो यह उसे छोड़ ही देगी. यही हाल आशा का भी था. पति की हरकतों से उसे अपने और बेटे के भविष्य की चिंता सताने लगी थी. आखिर वह कब तक मारपीट सह कर इस शादी को बचा सकती है? अगर पति ने छोड़ दिया तो वह बेटे को ले कर कहां जाएगी. राजकुमार के दुर्व्यवहार से त्रस्त आशा उस से कटीकटी रहने लगी थी. परेशान आशा जब देखो, तब मायके चली जाती थी. इस से राजकुमार को लगने लगा कि आशा का मायके में किसी से संबंध है, जिस की वजह से वह उस की उपेक्षा कर के मायके जाने लगी है. यह बात मन में आते ही राजकुमार और क्रूर हो गया.

आशा ने कंप्यूटर सीख लिया तो नौकरी ढूंढने लगी. वह सोच रही थी कि नौकरी लगने पर वह अपने पैरों पर खड़ी हो जाएगी तो राजकुमार से अलग हो जाएगी. क्योंकि अगर ऐसे में अलग हो जाती है तो मायके वालों पर वह बोझ बन जाएगी. नौकरी से रिटायर हो चुके पिता पर वह बोझ नहीं बनना चाहती थी, इसलिए पति की मारपीट झेल रही थी. एक दिन आशा का भाई शीतलपुर उस से मिलने आया तो उस ने रोरो कर कहा कि राजकुमार ने ऐसे हालात पैदा कर दिए हैं कि अब जिंदा रहना मुश्किल हो गया है. उस ने उस की जिंदगी को नरक बना दिया है.

बहन की परेशानी जान कर राजू परेशान हो उठा. उस ने राजकुमार से बात करने का निश्चय किया. शाम को जब राजकुमार घर आया तो उस ने कहा, ‘‘जीजाजी, आखिर आप चाहते क्या हैं, जो मेरी बहन का जीना हराम कर दिया है?’’

‘‘भई, आप रिश्तेदार हैं, रिश्तेदार बन कर रहिए. हमारा पतिपत्नी का मामला है, आप को बीच में पड़ने की जरूरत नहीं है.’’ राजकुमार ने कहा.

‘‘तुम्हारी पत्नी होने से पहले वह मेरी बहन है और मैं अपनी बहन को कभी दुखी एवं परेशान नहीं देख सकता. अच्छा होगा कि तुम अपनी हद में रहो. अपनी गृहस्थी को संभालो, वरना सब बरबाद हो जाएगा.’’

‘‘इसी तरह की धमकी कुछ दिनों पहले तुम्हारी बहन ने भी दी थी, अब तुम दे रहे हो. एक बात याद रखना, तुम ने अगर कुछ ऐसावैसा किया तो मुझ से बुरा कोई नहीं होगा.’’ राजकुमार ने भी धमकाया. इस के बाद राजू ने राजकुमार से कुछ कहने के बजाय आशा से कहा, ‘‘दीदी, मैं घर जा कर पापा से बात करूंगा. अब कोई न कोई ठोस निर्णय लेना ही होगा.’’

बातचीत कर के राजू चला गया. इतना सब होने के बाद भी राजकुमार की समझ में बात नहीं आई. उस ने आशा की जम कर पिटाई की. पिटाई करते हुए उस के दिमाग में आया कि अब अगर यह मायके गई तो उसे बिलकुल नहीं छोड़ेगी. निश्चित दहेज उत्पीड़न का मुकदमा कर देगी. उस के बाद तो उस की जमानत भी नहीं हो पाएगी. इसलिए इसे मार देना ही ठीक है. राजकुमार ने आशा को मारने का निर्णय लिया तो इस बात पर विचार करने लगा कि उसे मारे कैसे. चाकूछुरे से वह उस की हत्या कर नहीं सकता था. इसलिए देसी तमंचा और कारतूस खरीद लाया.

दोनों चीजें घर में छिपा दीं. इस के बाद वह मौके की तलाश में लग गया. वह आशा की हत्या इस तरह करना चाहता था कि पुलिस उसे पकड़ न सके, क्योंकि पकड़े जाने पर नौकरी तो जाती ही, पूरी जिंदगी जेल में कटती. दूसरी ओर राजू ने घर जा कर पूरी बात सुनहरीलाल को बताई तो उन्होंने तुरंत आशा को फोन किया. बेटी को आश्वासन देते हुए उन्होंने कहा, ‘‘अब तुम्हें परेशान होने की जरूरत नहीं है. मैं जल्दी ही आ कर तुम्हें ले आता हूं. उस के बाद राजकुमार के खिलाफ मारपीट और दहेज उत्पीड़न का मुकदमा दर्ज करा दूंगा.’’

संयोग से आशा जब पिता सुनहरीलाल से ये बातें कर रही थी, राजकुमार घर आ चुका था. उसे फोन पर बातें करते देख वह दरवाजे की ओट में खड़ा हो कर उस की बातें सुनने लगा. सुनहरीलाल की बातें तो वह नहीं सुन सका, लेकिन आशा की बातों से उसे ससुर के इरादे का पता चल गया कि वह आशा को ले जा कर उस के खिलाफ कानूनी काररवाई करने का मन बना चुके हैं. वह वहीं से बाहर निकल गया तो रात 9 बजे लौटा. तब तक आशा अनंत को सुला चुकी थी. उस ने उठ कर राजकुमार को खाना दिया तो वह खाना खा कर बाहर टहलने चला गया. इस के बाद रात 11 बजे के बाद लौटा तो किसी से फोन पर बातें करते हुए अंदर आया.

उस समय तक आशा सो गई थी. लेकिन उस की बातचीत से आशा जाग गई. राजकुमार को फोन पर हंसहंस कर बातें करते देख वह समझ गई कि बातचीत सुनीता से हो रही है. उसे गुस्सा आ गया. उस ने कहा, ‘‘तुम सुनीता से बातें कर रहे हो न, कल पापा आएंगे, मैं उन के साथ चली जाऊंगी. उस के बाद तुम सुनीता से खूब बातें करना. मन हो तो उसे ला कर साथ रख लेना.’’

राजकुमार ने फोन काट कर कहा, ‘‘क्या, कल तुम सचमुच जा रही हो?’’

‘‘हां, कल पापा आ रहे हैं, मैं उन के साथ जा रही हूं. बहुत जुल्म सह लिया मैं ने, अब सहने की हिम्मत नहीं रह गई है. अब मैं तुम से छुटकारा चाहती हूं.’’

‘‘तुम्हें मैं इतनी आसानी से नहीं छोड़ सकता.’’ राजकुमार ने कहा और अलमारी में रखा तमंचा निकाल लिया. राजकुमार के हाथ में तमंचा देख कर आशा डर गई. वह चीखती, उस के पहले ही राजकुमार ने गोली चला दी. शायद उस ने आशा को मारने की पहले से ही तैयारी कर रखी थी, क्योंकि तमंचे में उस ने पहले से गोली भर रखी थी. गोली लगने से जहां आशा पलंग पर ढेर हो गई, वहीं उस की आवाज सुन कर अगलबगल रहने वाले जाग गए. गोली चलाने के साथ राजकुमार चिल्लाने लगा था, ‘बचाओ… बचाओ…बदमाश आ गए.’

पड़ोस में रहने वाले उमेश और कप्तान सिंह राजकुमार के घर पहुंचे तो घर का दरवाजा अंदर से बंद था. वे दरवाजा खुलवा कर अंदर आए तो देखा पलंग पर खून से लथपथ आशा की लाश पड़ी थी. राजकुमार बेटे को गोद में लिए रो रहा था और कह रहा था, ‘‘बदमाश आए थे. वे आशा को गोली मार कर चले गए.’’

पड़ोसियों ने देखा था कि दरवाजा अंदर से बंद था, खिड़की भी बंद थी. फिर बदमाश घर के अंदर कैसे घुसे? अगर आ ही गए तो उन्होंने आशा को ही क्यों गोली मारी? जबकि बदमाश अकसर गोली घर के मर्द को मारते हैं. पड़ोसियों ने कोतवाली सकीट पुलिस को सूचना दे दी. सूचना पा कर कोतवाली प्रभारी दिनेश कुमार दुबे और सीओ अंबेशचंद्र त्यागी पुलिस बल के साथ विकास खंड परिसर में आ पहुंचे. घटनास्थल और लाश का निरीक्षण करने के बाद पुलिस अधिकारियों ने राजकुमार से पूछताछ की तो उस ने बताया कि कुछ बदमाश घर में घुस आए और आशा को गोली मार दी. गोली क्यों मारी, यह पूछने पर वह कोई जवाब नहीं दे सका.

पुलिस को उस की बातों पर विश्वास नहीं हुआ. क्योंकि एक तो खिड़की-दरवाजा अंदर से बंद था, दूसरे बदमाशों ने उसे क्यों छोड़ दिया था, बदमाश मारते तो पहले उसे ही मारते. सीओ अंबेशचंद्र त्यागी ने देखा कि राजकुमार पलंग के इर्दगिर्द नाच रहा है. उन्होंने काररवाई करवा कर लाश पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दी. इस के बाद पुलिसकर्मियों को बारीकी से तलाशी लेने को कहा. लूटपाट का कोई निशान पहले ही नहीं नजर आ रहा था. लूटपाट हुई भी नहीं थी. तलाशी के दौरान पलंग पर बिछे गद्दे को पलटा गया तो वहां तमंचा मिल गया, जिस से राजकुमार ने आशा की हत्या की थी.

पुलिस ने जब उस से उस तमंचे के बारे में पूछा तो उस ने कहा कि इसे उस ने अपनी सुरक्षा के लिए रखा था. लेकिन जब पुलिस ने उस की नाल चैक की तो पता चला कि उस से गोली चलाई गई थी. पुलिस ने आशा के घर वालों को उस की हत्या की सूचना दे दी और राजकुमार को ले कर कोतवाली आ गई. सूचना पाते ही सुनहरीलाल बेटे राजू के साथ सुबह ही कोतवाली सकीट पहुंच गया. बापबेटे ने पूरी बात पुलिस अधिकारियों को बताई तो साफ हो गया कि आशा की हत्या राजकुमार ने ही की थी.

7 अक्तूबर, 2014 को सुनहरीलाल की ओर से आशा की हत्या का मुकदमा राजकुमार के खिलाफ दर्ज कर के पूछताछ की गई तो उस ने हत्या का अपना अपराध स्वीकार कर लिया. हथियार पुलिस ने पहले ही बरामद कर लिया था. सारी काररवाई निपटा कर उसी दिन राजकुमार को अदालत में पेश किया गया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. UP Crime News

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Extramarital Affair : देह सुख के लिए

Extramarital Affair : संजय और कंचन की गृहस्थी बढि़या चल रही थी. दोनों 2 प्यारेप्यारे बच्चों के मांबाप भी थे. इस के बावजूद संजय में ऐसा क्या बदलाव आ गया कि कंचन को पड़ोसी मनीष ज्यादा भाने लगा.15  दिसंबर, 2014 की सुबह करीब 10 बजे थाना बरौर के थानाप्रभारी संजय कुमार अपने कक्ष में बीती रात पकड़े गए 2 अपराधियों से पूछताछ कर रहे थे कि तभी एक अधेड़ उन के पास आया. थानाप्रभारी ने एक सरसरी नजर उस पर डाली. वह बेहद घबराया हुआ लग रहा था. उन्होंने पूछा, ‘‘कहां से आए हो? क्या काम है?’’

‘‘साब, मैं बसहरा गांव से आया हूं. मेरा नाम गोपीचंद है. बीती रात हमारे भतीजे संजय की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गई है.’’

‘‘क्या मतलब?’’ थानाप्रभारी संजय कुमार ने गोपीचंद्र के चेहरे पर नजरें गड़ाते हुए पूछा.

‘‘यह बात मैं इसलिए कह रहा हूं कि उसे कोई बीमारी नहीं थी. देर शाम तक वह मुझ से बतियाता रहा था, उस के बाद घर जा कर सो गया था. मुझे सुबह जानकारी मिली कि उस की मौत हो गई है. मुझे शक है कि उस की मौत स्वाभाविक नहीं है, मुझे लगता है उस की हत्या की गई है.’’

‘‘तुम्हें किसी पर शक है?’’

‘‘जी साब,’’

‘‘किस पर?’’

‘‘साब, यकीन के साथ तो नहीं कह सकता, लेकिन मुझे बहू कंचन पर शक है.’’

‘‘वह कैसे?’’

‘‘मुझे कंचन पर इसलिए शक है, क्योंकि पड़ोस का एक लड़का मनीष उस के यहां आता रहता है. उसे ले कर संजय और कंचन के बीच अकसर झगड़ा होता रहता था. इसीलिए मैं यह बात कह रहा हूं.’’

गोपीचंद की बात सुन कर थानाप्रभारी संजय कुमार सबइंसपेक्टर आर.के. शुक्ला, कांस्टेबल अमर सिंह, शिवप्रताप तथा नीलेश कुमार को साथ ले कर बसहरा गांव की तरफ रवाना हो गए. बसहरा गांव थाने से 5 किलोमीटर दूर औरैया रोड पर है. इसलिए 10-15 मिनट में वह वहां पहुंच गए. गोपीचंद थानाप्रभारी को उस कमरे में ले गया, जहां उस के भतीजे संजय की लाश पड़ी थी. पुलिस को देख कर एक औरत छाती पीटपीट कर रोने लगी. पता चला कि वह मृतक की पत्नी कंचन थी. वहां गांव के और लोग भी मौजूद थे. थानाप्रभारी ने लाश की जांच की तो उस के शरीर पर चोट का कोई निशान नजर नहीं आया. गले में खरोंच का निशान तथा हलकी सूजन जरूर थी.

मरने वाले की उम्र यही कोई 35 साल के आसपास थी. जामा तलाशी में उस की पैंट की जेब से 70 रुपए, पान मसाला के 2 पाउच तथा एक डायरी मिली, जिस में घरगृहस्थी का हिसाब तथा कुछ नातेरिश्तेदारों के नामपते लिखे थे. निरीक्षण के बाद थानाप्रभारी ने मृतक संजय के शव का पंचनामा भरा और सीलमोहर कर के माती स्थित पोस्टमार्टम हाउस भिजवा दिया. मृतक की पत्नी कंचन का रोनाधोना अब तक बंद हो गया था. थानाप्रभारी ने उस से पूछताछ की तो उस ने बताया कि उस का पति संजय देर रात घर आया और खाना खा कर कमरे में सो गया. सुबह जब वह 8 बजे तक नहीं उठा तो वह उस के कमरे में गई. रजाई हटा कर देखा तो उस की धड़कनें बंद थीं.

वह घबरा गई और जोरजोर से चीखनेचिल्लाने लगी. उस की आवाज सुन कर पासपड़ोस के लोग आ गए.

‘‘क्या तुम बता सकती हो कि संजय की मौत कैसे हुई होगी?’’ थानाप्रभारी ने पूछा, ‘‘क्या संजय नशा भी करता था?’’

‘‘सर, वह शराब, गांजा, अफीम जैसी नशीली चीजों का सेवन करते थे. उन की मौत या तो हार्टअटैक से हुई है या फिर ज्यादा नशा करने से.’’ कंचन ने जवाब में कहा. कंचन से पूछताछ के बाद थानाप्रभारी को उस पर शक हुआ, क्योंकि जैसा दुख पति की मौत पर एक जवान औरत के चेहरे पर झलकना चाहिए, वैसा कंचन के चेहरे पर नहीं था. रोनेधोने का भी उस ने नाटक ही किया था, आंखों से आंसू नहीं निकल रहे थे. पुलिस और मौजूद लोगों की गतिविधियों पर भी वह विशेष नजर रख रही थी. चचिया ससुर गोपीचंद को वह नफरत से घूर रही थी. चूंकि कंचन के खिलाफ उन के पास कोई सुबूत नहीं था, इसलिए उन्होंने उसे गिरफ्तार नहीं किया.

अगले दिन थानाप्रभारी को संजय की पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिली तो रिपोर्ट पढ़ कर वह चौंके. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में बताया गया था कि उस की मौत गला कसने से हुई थी. उस ने शराब नहीं पी थी और उस ने मृत्यु से पूर्व खाना भी नहीं खाया था. हत्या की पुष्टि होने पर थानाप्रभारी ने कंचन को पूछताछ के लिए थाने बुलवा लिया. महिला दरोगा सरला यादव ने कंचन से सख्ती से पूछताछ की तो उस ने पति की हत्या की सारी सच्चाई बयां कर दी. उस ने बताया कि पति की हत्या उस ने अपने प्रेमी मनीष के साथ मिल कर की थी. हत्या में मनीष का नाम आने पर पुलिस ने उस के घर पर दबिश दी, लेकिन वह फरार हो गया था. तब पुलिस ने उस के घर वालों पर दबाव बनाया.

घर वालों के सहयोग से पुलिस ने मनीष को भी गिरफ्तार कर लिया. उस ने भी हत्या का जुर्म कुबूल कर लिया. दोनों अभियुक्तों से की गई पूछताछ में एक ऐसी नारी की कहानी सामने आई, जिस ने देहसुख के लिए अपने पति की आहुति दे दी थी. उत्तर प्रदेश के कानपुर देहात जनपद के पुखरायां कस्बे में रामगोपाल अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी के अलावा 3 बेटियां और 2 बेटे थे. कंचन उसी की छोटी बेटी थी. रामगोपाल की कस्बे में ही लकड़ी की टाल थी. उसी की कमाई से पूरे परिवार का भरणपोषण होता था. कंचन ने जवानी की दहलीज पर कदम रखा तो उस के रूपरंग में और निखार आ गया. रामगोपाल दोनों बड़ी बेटियों की शादी कर चुका था.

छोटी बेटी कंचन के जवान होने पर उसे उस के विवाह की चिंता सताने लगी थी. वह उस के लिए योग्य वर खोजने लगा. काफी भागदौड़ के बाद रामगोपाल को कंचन के लिए संजय पसंद आ गया. संजय कानपुर देहात के ही बरौर बसहरा गांव के रहने वाले रामचंद्र का बेटा था. वह अपनी खेतीकिसानी करता था. रीतिरिवाज से कंचन का विवाह संजय के साथ कर दिया गया. संजय सीधासादा था, जबकि कंचन तेजतर्रार व चंचल स्वभाव की थी. वह न तो अपने ससुर से परदा करती थी और न ही चचिया ससुर से. गांव में भी वह हमेशा बनसंवर कर रहती थी. कंचन की ये आदतें उस की सास को अच्छी नहीं लगती थीं.

कंचन को ससुराल में रहते 2 साल भी नहीं बीते थे कि चचिया सास लक्ष्मी से उस का मनमुटाव हो गया. गोपीचंद्र उस समय अपने बड़े भाई रामचंद्र के साथ संयुक्त परिवार में रहता था. कंचन और लक्ष्मी में जब रोजरोज झगड़ा होने लगा तो लक्ष्मी अपने पति गोपीचंद के साथ अलग रहने लगी. इस के बाद जमीन तथा मकान का भी बंटवारा हो गया. रामचंद्र नहीं चाहता था कि उस का भाई उस से अलग रहे. इस बंटवारे से वह इतना दुखी हुआ कि घर छोड़ कर चला गया और संन्यासी बन गया. उस के घर छोड़ने के एक साल के अंदर ही उस की पत्नी की भी मौत हो गई. अब घर में कंचन और उस का पति संजय ही रह गया. कंचन को अब कोई रोकनेटोकने वाला तो था नहीं, इसलिए वह पूरी तरह स्वच्छंद हो गई.

कुछ समय यूं ही बीत चला. इस दरम्यान कंचन 2 बार गर्भवती हुई. पर किसी वजह से उस का दोनों ही बार गर्भ गिर गया. कंचन को लगा कि कोई व्याधा उस का गर्भ गिरा देती है. अत: वह तांत्रिकों के पास जाने लगी. उन के पास जाने के बाद कंचन ने 2 बच्चों के जन्म दिया, जिन में एक बेटा और एक बेटी हुई. 2 बच्चों की मां बनने के बाद भी कंचन के शरीर में कसाव था, ऊपर से वह बनसंवर कर रहती थी. वह चाहती थी कि पति उसे बहुत प्यार करे, लेकिन संजय उस की भावना को नहीं समझता था. वह दिन भर खेतीबाड़ी के काम से थकामांदा घर लौटता और खाना खा कर जल्द ही सो जाता. पति की बेरुखी से कंचन ने देहरी लांघने का फैसला कर लिया. अब उस का मन आसपास रहने वाले ऐसे मर्द की तलाश करने लगा, जो उसे भरपूर प्यार दे सके.

उसी समय उस का ध्यान पड़ोस में रहने वाले 24-25 वर्षीय मनीष की तरफ गया. पढ़नेलिखने में तेज मनीष बीए पास कर चुका था और सरकारी नौकरी पाने की कोशिश में लगा था. वह अकसर उस के यहां आताजाता भी रहता था. वह उसे भाभी कहता था. इस नाते दोनों के बीच हलकाफुलका मजाक भी होता रहता था. मनीष, कंचन से 8-10 साल छोटा जरूर था, लेकिन उस का गठीला बदन कंचन को भा गया था. धीरेधीरे कंचन ने उस पर अपने रूप का जादू चलाना शुरू कर दिया. कुछ ही दिनों में मनीष को उस ने अपने रूप और बातों के जाल में फांस लिया. मनीष भी इतना नासमझ नहीं था, जो कंचन के हावभाव का मतलब न समझता. दोनों ही धीरेधीरे अपनी हदें लांघने लगे और एक दिन ऐसा भी आ गया, जब उन्होंने अपनी हसरतें पूरी कर लीं. अपने से छोटे युवक का प्यार पा कर कंचन फूली नहीं समा रही थी.

इस के बाद एक साल तक उन का यह खेल बेरोकटोक चलता रहा. संजय को इन संबंधों की भनक तक नहीं लगी. वह रोज सुबह खेतों पर निकल जाता और अंधेरा होने पर घर लौटता. उसे क्या पता था कि पत्नी क्या गुल खिला रही है. लेकिन मनीष का जब कंचन के यहां आनाजाना ज्यादा बढ़ गया तो पासपड़ोस की औरतों तथा चचिया सास लक्ष्मी को उन दोनों के रिश्तों पर शक होने लगा. बाद में संजय को पत्नी के संबंधों की जानकारी हुई तो उसे बड़ा दुख हुआ. सच्चाई अपनी आंखों से देखने के लिए संजय अब कंचन व मनीष पर नजर रखने लगा. एक दिन उस ने दोनों को अपने यहां रंगेहाथ पकड़ लिया. पति को सामने देख कर कंचन घबरा गई. मनीष तो सिर पर पैर रख कर भाग गया.

संजय का सारा गुस्सा कंचन पर फूटा. उस ने उस की खूब पिटाई की. तब कंचन ने माफी मांगते हुए वादा किया कि अब वह मनीष से कभी नहीं मिलेगी. लेकिन कहते हैं कि औरत एक बार बहक जाए तो उस का संभलना मुश्किल होता है. कंचन अपने जेहन से मनीष की यादों को निकाल नहीं पा रही थी. बहरहाल उस ने मनीष से मिलनाजुलना फिर से शुरू कर दिया. लेकिन अब वह पहले से ज्यादा सावधानी बरतने लगी थी. कंचन भले ही पति की नजरों से बच कर रंगरलियां मना रही थी, लेकिन मोहल्ले वालों की नजरों को वह कैसे धोखा दे सकती थी. यानी मोहल्ले में कंचन और मनीष के संबंधों को ले कर फिर चर्चाएं होने लगीं.

पत्नी की बदचलनी के कारण संजय का गांव में सिर उठा कर चलना दूभर हो गया था. लोग उस पर फब्तियां कसने लगे थे. जिस से वह तिलमिला उठता था. घर आ कर वह सारा गुस्सा कंचन पर उतारता था.  घर में रोजरोज की कलह से तंग आ कर संजय शराब पीने लगा. जिस दिन शराब नहीं मिलती, उस दिन वह चरस, गांजा आदि पीता. इस नशाखोरी के कारण संजय की आर्थिक स्थिति भी खराब हो गई. नशा के लिए उस ने कंचन के गहने तक बेच डाले. कंचन विरोध करती तो वह उसे जलील करता और पीट देता. पति की पिटाई से कंचन परेशान रहने लगी. कलह के कारण उस ने दोनों बच्चों को अपने मायके भेज दिया.

पिटाई के बावजूद कंचन अपने प्रेमी मनीष को नहीं भुला पाई. एक रोज वह मनीष से बोली, ‘‘मनीष, मैं तुम्हारे बगैर नहीं जी सकती. अब मुझे हमेशा के लिए तुम्हारा साथ चाहिए.’’

‘‘संजय भैया के रहते यह संभव नहीं है. वह हम दोनों के मिलन में दीवार बने हैं.’’

‘‘तो उस दीवार को ढहा क्यों नहीं देते. वैसे भी नशेड़ीगंजेड़ी पति से मैं नफरत करती हूं. कंचन ने अपनी मंशा जाहिर की.’’

‘‘तो ठीक है, जिस दिन मौका मिलेगा, उस दिन यह काम कर दूंगा.’’ मनीष ने वादा किया.

14 दिसंबर, 2014 की रात गांव के प्रधान नरेश पांडेय के घर कीर्तन का आयोजन था. संजय भी कीर्तन सुनने वहां गया था. कंचन को उम्मीद थी कि वह अब आधी रात से पहले घर नहीं लौटेगा. इसलिए मौका देख कर उस ने मनीष को फोन कर के अपने यहां बुला लिया. इस के बाद दोनों जिस्म का खेल खेलने में व्यस्त हो गए. संजय का मन कीर्तन में नहीं लगा तो वह घर की ओर चल पड़ा. रास्ते में उसे चाचा गोपीचंद्र मिल गए. वह उन से कुछ देर बतियाता रहा, फिर घर पहुंचा. उस ने घर की कुंडी खटखटाई, लेकिन दरवाजा नहीं खुला. संजय ने सोचा कि शायद कंचन सो गई होगी. अत: वह पिछवाड़े की दीवार फांद कर घर में दाखिल हुआ. दबे पांव वह कमरे में पहुंचा तो वहां का दृश्य देख कर उस का क्रोध सातवें आसमान पर पहुंच गया. उस की पत्नी और मनीष आपत्तिजनक स्थिति में थे.

संजय को देखते ही वे दोनों उठ गए और कपड़े पहनने लगे. लेकिन दोनों ही बेहद घबरा रहे थे. संजय ने गुस्से में कंचन के गाल पर 2-3 थप्पड़ जड़ दिए. इस के बाद वह मनीष से भिड़ गया. मनीष ने उसे धक्का दिया तो वह लड़खड़ा कर जमीन पर गिर पड़ा. उसी समय कंचन ने प्रेमी को उकसाया, ‘‘देखते क्या हो मनीष, आज इस बाधा को दूर ही कर दो. आखिर मैं कब तक इस के जुल्म सहती रहूंगी.’’

यह सुनते ही मनीष संजय की छाती पर सवार हो गया और दोनों हाथों से उस का गला दबाने लगा. संजय हाथपैर पटकने लगा तो कंचन ने उस के पैर दबोच लिए. कुछ ही देर में संजय की सांसें थम गईं. हत्या करने के बाद दोनों ने कमरा दुरुस्त किया और संजय की लाश को चारपाई पर लिटा कर रजाई से ढंक दिया. मनीष व कंचन संजय के शव को गांव के बाहर झाडि़यों में फेंकना चाहते थे, लेकिन गांव में कीर्तन होने के कारण चहलपहल थी, इसलिए वे हिम्मत नहीं जुटा सके. मनीष तो रात के अंतिम पहर में वहां से फरार हो गया और कंचन सवेरा होते ही त्रियाचरित्र का नाटक कर रोनेचीखने लगी.

उस की चीखपुकार सुन कर पासपड़ोस के लोग आ गए. उन सब को कंचन ने बताया कि पता नहीं कैसे रात में संजय की मौत हो गई. गोपीचंद को जब भतीजे संजय की मौत का पता चला तो उन्हें शक हुआ. अत: वह रिपोर्ट दर्ज कराने थाना बरौर पहुंच गए. पुलिस ने मनीष और कंचन को संजय की हत्या के आरोप में गिरफ्तार कर कानपुर देहात की माती अदालत में रिमांड मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया, जहां से दोनों को जिला कारागार भेज दिया गया. कथा संकलन तक उन की जमानत नहीं हो सकी थी. Extramarital Affair

—कथा पुलिस सूत्रो