Bareilly News : बॉयफ्रेंड बना काल

Bareilly News : इमरान प्रियांगी उर्फ प्रिया को प्यार ही नहीं करता था, बल्कि धर्मांतरण करा कर उस से शादी करना चाहता था. इतना गहरा प्रेम होने के बावजूद दोनों के बीच ऐसा क्या हुआ कि इमरान को प्रियांगी उर्फ प्रिया के खून से हाथ रंगने पड़े. बरेली के थाना प्रेमनगर की शास्त्रीनगर कालोनी के रहने वाले राजेश गंगवार थे तो इंजीनियर, लेकिन जब उन्हें नौकरी रास नहीं आई तो वह समाजसेवा में जुट गए. दिल्ली के चर्चित निर्भया सामूहिक दुष्कर्म कांड के विरोध में 17 दिनों तक चले आंदोलन में उन्होंने बढ़चढ़ कर भाग लिया था. उन के परिवार में पत्नी पुष्पा के अलावा 2 बच्चे थे, बेटी प्रियांगी उर्फ प्रिया और बेटा प्रियांश.

प्रिया बीटेक करने के बाद मेरठ के साईं कालेज से बीएड कर रही थी, जबकि बेटा प्रियांश एनआईटी, कालीकट, केरल से बीटेक कर रहा था. नवंबर, 2014 के पहले हफ्ते में प्रिया अपने घर बरेली आई थी. उसे आंखों में तकलीफ थी, इसलिए 5 नवंबर की दोपहर को 2 बजे वह अपनी स्कूटी से डा. भृमरेश शर्मा के आई क्लीनिक जाने के लिए घर से निकली. उन का क्लीनिक धर्मकांटा के पास था. प्रिया को घर से निकले एक घंटे से ज्यादा हो गया था. अब तक उसे घर लौट आना चाहिए था, लेकिन जब वह घर नहीं लौटी तो पिता राजेश ने उसे फोन किया. फोन बंद था, इसलिए बात नहीं हो सकी. प्रिया कभी फोन बंद नहीं करती थी, इसलिए राजेश को थोड़ी चिंता हुई.

थोड़ीथोड़ी देर में वह बेटी को फोन करते रहे, लेकिन हर बार फोन बंद मिला. जब प्रिया का फोन नहीं मिला तो वह डा. भृमरेश शर्मा के क्लीनिक जा पहुंचे. वहां पता चला कि प्रिया ढाई बजे के करीब दवा ले कर चली गई थी. दवा ले कर प्रिया को घर जाना चाहिए था. घर जाने के बजाय बिना बताए वह कहां चली गई? इस बात को ले कर राजेश गंगवार परेशान हो उठे. घर आ कर उन्होंने यह बात पत्नी को बताई तो वह भी परेशान हो गईं. संभावित जगहों पर उन्होंने उस की तलाश शुरू की, लेकिन कहीं भी उस का पता नहीं चला. बेटी को ढूंढ़तेढूंढ़ते काफी रात हो गई तो वह घर आ गए.

जवान लड़कियों के गायब होने पर पहले यही सोचा जाता है कि कहीं वह अपने प्रेमी के साथ भाग तो नहीं गईं? लेकिन राजेश और पुष्पा की नजरों में प्रिया ऐसी लड़की नहीं थी. वह उन से कोई बात नहीं छिपाती थी. इसलिए उन्हें उस के किसी के साथ भाग जाने की बात पर विश्वास नहीं हो रहा था. उन्हें लग रहा था कि जरूर उस के साथ कोई अनहोनी घट गई है. बेटी की चिंता में रात भर पतिपत्नी को नींद नहीं आई.  सुबह होते ही राजेश गंगवार ने फिर बेटी की तलाश शुरू कर दी. प्रिया की एक सहेली थी शालिनी, जो डीडीपुरम में रहती थी. उस ने और प्रिया ने साथसाथ बीटेक किया था. जब उसे प्रिया के गायब होने की जानकारी हुई तो वह उस के घर आ पहुंची.

उस ने प्रिया की मां पुष्पा को बताया कि कल दोपहर को वह प्रिया के साथ राजेंद्रनगर स्थित इमरान के औफिस गई थी. प्रिया और इमरान में किसी बात को ले कर जोरजोर से झगड़ा होने लगा तो उन्हें झगड़ते देख वहां से अपने घर चली गई थी. घर आने के बाद देर रात को इमरान ने उसे फोन कर के धमकाया था कि अगर उस ने प्रिया के साथ उस के औफिस आने वाली बात किसी को बताई तो उस के लिए अच्छा नहीं होगा. इस से वह तो फंसेगा ही, साथ ही वह भी फंस जाएगी. पुष्पा ने यह बात पति को बताई. राजेश गंगवार इमरान को जानते थे. पत्नी की बात सुन कर राजेश को इमरान पर शक हुआ. वह तुरंत थाना प्रेमनगर पहुंचे और इंसपेक्टर अशोक सिंह को पूरी बताई.

उन्होंने सीबीगंज थाना क्षेत्र के तिलियापुर गांव के रहने वाले इमरान पर बेटी के गायब करने का शक जताया था. उन के इसी शक के आधार पर थानाप्रभारी अशोक सिंह ने प्रियांगी उर्फ प्रिया की गुमशुदगी दर्ज कर ली थी. प्रिया की गुमशुदगी दर्ज किए 3 दिन बीत गए, लेकिन थाना प्रेमनगर पुलिस ने इमरान को पूछताछ तक के लिए थाने नहीं बुलाया. इस के बाद 10 नवंबर को राजेश गंगवार एडीशनल एसपी राजीव मल्होत्रा से मिले. उस समय सीओ (प्रथम) असित श्रीवास्तव भी वहां मौजूद थे. एडीशनल एसपी ने असित श्रीवास्तव से कहा कि तुरंत प्रियांगी के अपहरण की रिपोर्ट दर्ज कराएं और इस मामले में क्या हो सकता है, इसे देखें.

रिपोर्ट दर्ज करने के लिए सीओ ने राजेश गंगवार को थाने भेज दिया. राजेश गंगवार थाना प्रेमनगर पहुंचे तो इंसपेक्टर अशोक सिंह ने एडीशनल एसपी के आदेश के बावजूद प्रियांगी के अपहरण का मुकदमा दर्ज नहीं किया. हां, इमरान रजा खान को पूछताछ के लिए थाने जरूर बुलवा लिया. उन्होंने उस से प्रियांगी के बारे में पूछा तो वह इधरउधर की बातें करने लगा. लेकिन जब अशोक सिंह ने थोड़ी सख्ती की तो इमरान ने उन्हें जो बताया उस के अनुसार, उस की और प्रिया की दोस्ती करीब 2 साल से थी. 5 नवंबर, 2014 को वह उस के राजेंद्रनगर स्थित स्पीड ग्रुप औफ कंपनीज के औफिस आई थी. औफिस की 3 चाबियां थीं, एक उस के पास रहती थी, दूसरी प्रिया के पास और तीसरी उस के यहां काम करने वाली एक अन्य लड़की अनुपम के पास.

प्रिया के उस पर 6 हजार रुपए निकल रहे थे. उस दिन वह अपने 6 हजार रुपए ले कर चली गई थी. रात साढे़ 8 बजे उस ने प्रिया को फोन किया तो उस ने फोन नहीं उठाया. उसी समय वह औफिस पहुंचा तो वहां प्रिया की लाश पंखे से लटकी मिली. प्रिया को उस हालत में देख कर वह डर गया. पुलिस के लफड़े से बचने के लिए उस ने उस की लाश उतार कर एक बोरी में भरी और उसे ठिकाने लगाने के लिए अपनी बाइक से नैनीताल रोड स्थित बिलवा पुल के आगे सड़क किनारे एक गड्ढे में फेंक आया. अगले दिन वह प्रिया की स्कूटी से वहां गया और फावड़े से लाश पर मिट्टी डाल कर वहां से कुछ दूरी पर उस की स्कूटी खड़ी कर के अपने औफिस आ गया.

इस पूछताछ से पुलिस को पता चल गया था कि प्रिया की मौत हो चुकी है. इसलिए उस की लाश बरामद करने के लिए पुलिस इमरान को उस जगह पर ले गई, जहां उस ने लाश दफन करने की बात बताई थी. राजेश गंगवार की मौजूदगी में इमरान द्वारा बताई जगह पर पुलिस ने खुदाई कराई तो वहां औंधे मुंह बैग में पड़ी एक लड़की की लाश मिली. उसे सीधा किया गया तो वह लाश प्रिया की ही थी. उसे देखते ही राजेश गंगवार रोने लगे. उसे दफनाए कई दिन बीत चुके थे, इसलिए लाश काफी सड़गल गई थी. प्रिया के कपड़े फटे हुए थे. पैरों में चप्पलें थीं, लेकिन उस के गले की सोने की चेन नहीं थी. उस का मोबाइल भी नहीं था और न ही वे 6 हजार रुपए मिले, जो उस ने इमरान से लिए थे.

उस की लाश से कुछ दूरी पर एक खेत में प्रिया की स्कूटी अलगअलग पार्ट्स में खुली मिली. मौके पर जरूरी काररवाई निपटाने के बाद पुलिस ने प्रिया की लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. इमरान ने जिस तरह प्रिया की लाश को आननफानन में चोरीछिपे ठिकाने लगाया था, उस से पुलिस को लगा कि यह मामला आत्महत्या का नहीं हो सकता. इसलिए पुलिस ने उस से सख्ती से पूछताछ की तो इमरान टूट गया. उस ने बताया कि प्रिया ने सुसाइड नहीं किया था, बल्कि उस ने तिलियापुर के रहने वाले अपने दोस्त गुड्डू के साथ मिल कर उस की हत्या की थी. हत्या की वजह उस ने यह बताई कि अपने पैसे मांगते समय प्रिया ने उसे बेइज्जत किया था.

उसी बेइज्जती का बदला लेने के लिए उस ने उसे मार डाला. पूछताछ के बाद पुलिस ने इमरान को 17 नवंबर, 2014 को न्यायालय में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. पुलिस ने आननफानन में इमरान को जेल तो भेज दिया, लेकिन यह बात किसी के गले नहीं उतर रही थी कि अकेला इमरान लाश को मोटरसाइकिल पर रख कर कैसे ले गया था? लाश को ठिकाने लगाने में निश्चित उस के साथ और लोग रहे होंगे. इंसपेक्टर अशोक सिंह ने एक बार फिर इमरान के औफिस से लाश ठिकाने लगाने वाली जगह तक का बारीकी से मुआयना किया.

उस रास्ते में उन्हें कई जगहों पर सीसीटीवी कैमरे लगे दिखाई दिए. उन्होंने उन सीसीटीवी कैमरों की फुटेज निकलवाई. एक फुटेज में एक औटो में कुछ युवक बैठे दिखाई दिए. उस औटो को इमरान चला रहा था और उस में एक बड़ा सा बैग भी रखा नजर आ रहा था. औटो में एक लंबा व्यक्ति भी बैठा था. इस के बाद उन्होंने इमरान के फोन नंबर की काल डिटेल्स और लोकेशन भी निकलवाई. इंसपेक्टर अशोक सिंह इस से आगे की जांच करते, उस से पहले उन का ट्रांसफर हो गया. उन की जगह पर इंसपेक्टर विद्याराम दिवाकर नए थानाप्रभारी आए. जाते समय इंसपेक्टर अशोक सिंह ने विद्याराम दिवाकर को इस मामले की पूरी जानकारी दे दी थी. चार्ज लेने के बाद इंसपेक्टर विद्याराम ने आगे की जांच शुरू की.

समाजसेवी राजेश गंगवार की बेटी की हत्या के विरोध में कई सामाजिक संगठनों के साथ मिल कर शहर वालों ने कैंडिल मार्च निकाला. अन्य अभियुक्तों को जल्द गिरफ्तार कर के उन के खिलाफ सख्त काररवाई करने की मांग को ले कर राजेश गंगवार 16 नवंबर से अनिश्चित कालीन अनशन पर बैठ गए. कई सामाजिक संगठनों ने उन का साथ दिया. 11 दिनों बाद पुलिस प्रशासन की नींद टूटी. जिले के पुलिस अधिकारी 26 नवंबर को उन के पास पहुंचे और उन की मांगे मानते हुए अनशन समाप्त कराया. दूसरी ओर लाश के सड़ जाने की वजह से पोस्टमार्टम रिपोर्ट में प्रिया की मृत्यु का कारण स्पष्ट नहीं हो सका. दुष्कर्म की आशंका को देखते हुए डाक्टर ने गुप्तांग को प्रिजर्व करने के साथ स्लाइड भी बनवा ली थी.

इस के अलावा उस के विसरा और गले को भी जांच के लिए फोरेंसिक लैब भेज दिया गया था. हत्या के राज उगलवाने, प्रिया का सामान बरामद करने और अन्य अभियुक्तों की गिरफ्तारी के लिए इमरान से पूछताछ करनी जरूरी थी. इसलिए इंसपेक्टर विद्याराम ने 25 नवंबर को अदालत में प्रार्थनापत्र दे कर इमरान को 36 घंटे के पुलिस रिमांड पर देने की अपील की. अदालत ने उन की अर्जी को मंजूर करते हुए इमरान को 36 घंटे के लिए पुलिस रिमांड पर दे दिया.

पुलिस ने इमरान को उस से औटो में रखे बडे़ बैग के बारे में सख्ती से पूछताछ की तो उस ने बताया कि उस बैग में प्रिया की लाश थी. उस ने कहा कि गुड्डू ने केवल हत्या करने में उस की मदद की थी, जबकि लाश ठिकाने लगाने में उस का भाई सलमान और भांजा मोहम्मद अहमद औटो में उस के साथ थे. उस ने बताया कि प्रिया की सोने की चेन उस की स्कूटी के पार्ट्स के पास ही फेंक दी थी. पुलिस ने इमरान की निशानदेही पर बिलवा पुल के पास स्थित वीरपुर उर्फ कासिमपुर गांव के पास हनीफ के खेत से प्रिया की चेन और स्कूटी के खुले हुए पार्ट्स बरामद कर लिए थे.

रिमांड अवधि पूरी होने से पहले ही पुलिस ने इमरान को अदालत में पेश कर के जेल भेज दिया. इस के बाद पुलिस ने अन्य आरोपियों की तलाश शुरू कर दी. मुखबिर की सूचना पर 27 नवंबर को इमरान के दोस्त गुड्डू को मिली बाईपास से गिरफ्तार कर लिया था. अगले दिन इमरान का भाई सलमान भी पुलिस के हत्थे चढ़ गया. दोनों अभियुक्तों से पूछताछ के बाद उन्हें भी न्यायालय में पेश कर के जेल भेज दिया गया. इमरान से हुई पूछताछ व केस की तफ्तीश के बाद जो कहानी सामने आई, वह कुछ इस प्रकार थी. इमरान रजा खान बिलकुल अपने पिता बुंदन खान के नक्शे कदम पर चल रहा था. बुंदन खान भी एक वहशी दरिंदा था. बुंदन ने 1980 में पढ़ाई के दौरान छात्रसंघ का चुनाव लड़ा था. हाथ उठा कर मतदान कराने के दौरान तब उस के क्लास की 6 लड़कियों ने उसे वोट नहीं दिया था.

इस से बौखलाए बुंदन ने उन से बदला लेने के लिए साजिश रची और चुनाव के कुछ दिनों बाद सभी लड़कियों के साथ क्लास में ही हैवानियत की. उन लड़कियों की हालत बिगड़ गई. कमरा बंद करने पहुंचे चौकीदार ने उन की हालत देख कर कालेज प्रबंधन को इस घटना की सूचना दी. मामले की गंभीरता को देखते हुए पुलिस को बुलाया गया. पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों ने सभी पीडि़त लड़कियों को अस्पताल पहुंचाया. घटना की खबर फैलते ही पूरे शहर में बवाल मच गया. उस समय शांति की अपील के लिए खुद मदर टेरेसा बरेली आई थीं. उस के बाद ही शहर का माहौल सामान्य हुआ था. बुंदन खान पर पहले से ही दुष्कर्म आदि के दरजन भर से अधिक मुकदमे चल रहे थे.

पुलिस ने इस मामले में बुंदन खान को गिरफ्तार कर के उस पर गुंडा ऐक्ट तथा गैंगस्टर लगाने के साथ उस की हिस्ट्रीशीट खोल दी थी. कई वर्षों बाद जब वह जेल से जमानत पर बाहर आया तो जुर्म की दुनिया में उस के कदम दलदल की तरह धंसते गए. 2 हत्याओं के अलावा उस पर 22 दुष्कर्म के मुकदमे दर्ज हुए थे. उस की मौत होने के बाद उस के मुकदमों की फाइल अपने आप बंद हो गई थी. अपनी आपराधिक वारदातों से चर्चित रहे बुंदन खान का बेटा इमरान भी अपने पिता की ही तरह अपराधों में लिप्त रहा. उस पर भी 3 दुष्कर्म और एक हत्या का मुकदमा दर्ज हुआ था.  4 भाइयों में तीसरे नंबर का इमरान शातिर दिमाग था. पिता की ही तरह उस का दिमाग भी अच्छे कामों के बजाय गलत कामों में ज्यादा चलता था. वह गलत कामों से पैसा कमाने में लग गया.

उस ने दिल्ली जा कर एक फाइनेंस कंपनी खोली और प्रौपर्टी ब्रोकर का भी काम करने लगा. फाइनेंस कंपनी के नाम पर वह लोगों को ठगने लगा. औफिस में काम करने वाली एक युवती की हत्या में वह फंस गया तो दिल्ली से भाग कर बरेली आ गया. इस के बाद उस ने उत्तराखंड के शहर हल्द्वानी और चंपावत में रियल एस्टेट कंपनी के औफिस खोले और लोगों को ठगना शुरू कर दिया. मौजमस्ती करने के लिए वह अपने औफिस में केवल लड़कियों को ही नौकरी पर रखता था. उस के औफिस में अर्शी उर्फ रूबी नाम की एक लड़की काम करती थी. वह बेहद खूबसूरत थी.

वह अर्शी की खूबसूरती और अदाओं के जाल में उलझ गया. इमरान लड़कियों से अपने संबंध मौजमस्ती तक ही सीमित रखता था, लेकिन अर्शी को देख कर उस ने उसे अपनी जीवनसंगिनी बनाने का फैसला किया. जल्द ही उस ने अर्शी को प्यार के जाल में फांस लिया. उन का प्यार अमरबेल की तरह बढ़ता गया. अर्शी के मांबाप को पता चला तो उन्होंने उसे समझाया, लेकिन वह नहीं मानी. अर्शी के मांबाप का दबाव बढ़ने पर इमरान अर्शी को ले कर बरेली आ गया और उस से निकाह कर लिया. यह 6 साल पहले की बात है. बाद में अर्शी ने एक बेटे और एक बेटी को जन्म दिया.

बरेली आने के बाद इमरान ने इज्जतनगर क्षेत्र में स्पीड स्काई रियल एस्टेट इंडिया लिमिटेड और बी.के. जनसेवा समिति के नाम से औफिस खोल कर अपना गोरखधंधा शुरू किया. वह लोगों से हर महीने 1,600 रुपए जमा करा कर प्लाट देने का वादा करता था. इस के अलावा वह रुहेलखंड ऐक्शन फ्रंट नाम से एक संस्था चलाता था. इस के जरिए वह सरकारी सस्ते गल्ले के डीलरों और प्रधानों की शिकायतें करता था और बाद में उन्हें ब्लैकमेल करता था. उस का यह धंधा खूब फलफूल रहा था.

2010 में इमरान ने पुराना औफिस बंद कर के बरेली की पौश कालोनी राजेंद्रनगर में नया औफिस स्पीड ग्रुप औफ कंपनीज के नाम से खोला. यह औफिस उस ने एक्सिस कोचिंग चलाने वाले डब्ल्यू.एच. सिद्दीकी की कोठी का पिछला हिस्सा किराए पर ले कर खोला था. स्टाफ की नियुक्ति के लिए उस ने कई अखबारों में विज्ञापन दिए थे. इसी विज्ञापन को देख कर प्रियांगी उर्फ प्रिया इमरान से उस के औफिस में मिली थी. इमरान ने उसे औफिस में कंप्यूटर औपरेटर के पद पर रख लिया था.

औफिस में काम के दौरान ही इमरान और प्रिया में अच्छी दोस्ती हो गई. इमरान उस का पूरा ध्यान रखता था. उसे अपने साथ घुमाने ले जाता. दोनों एकदूसरे से काफी घुलमिल गए. धीरेधीरे उन के बीच नजदीकियां बढ़ने लगीं. फिर एक दिन ऐसा भी आ गया, जब दोनों एकदूसरे के प्यार में डूब गए. उसी दौरान प्रिया बीएड करने मेरठ चली गई. वहां के हौस्टल में रह कर वह साईं कालेज से बीएड करने लगी. भले ही वह इमरान से दूर जा चुकी थी, लेकिन इमरान उस के दिल में बसा था. हफ्ते, 2 हफ्ते में जब भी उसे बरेली अपने घर आना होता तो इमरान ही उसे मेरठ लेने जाता था और मेरठ छोड़ने भी उस के साथ जाता था. वह प्रिया के ऊपर काफी पैसे खर्च कर रहा था. अचानक जरूरत पड़ने पर वह प्रिया से पैसे उधार भी ले लेता था.

जब इमरान की इस प्रेम कहानी का पता उस की पत्नी अर्शी को चला तो वह परेशान हो उठी. अर्शी को रोज डायरी लिखने का शौक था. उस ने डायरी में इमरान और अर्शी के प्रेमसंबंधों का जिक्र कर के अपनी जिंदगी तबाह होने का अंदेशा व्यक्त किया था. क्योंकि उस के मांबाप का देहांत हो चुका था. उन के बाद इमरान ही उस का सब कुछ था. ऐसे में अगर इमरान उस से दूर चला गया तो उस की जिंदगी बर्बाद हो जाती. इमरान ने प्रिया के धर्मांतरण के लिए नवंबर, 2013 में कुछ मौलवियों से बात भी की थी. उस का धर्म बदलवा कर वह उस से निकाह करना चाहता था. इस बात का अर्शी को पता लग गया था. उस ने डायरी में 20 नवंबर, 2013 के पेज पर इस बात का जिक्र भी किया था. करीब 2 महीने पहले प्रिया को जानकारी मिली कि इमरान के अन्य लड़कियों से भी संबंध हैं.

सच्चाई का पता लगाने के लिए उस ने अपने स्तर से छानबीन की तो उसे पता चला कि इमरान के सचमुच अनेक लड़कियों से अवैधसंबंध हैं. हकीकत पता चलने पर प्रिया को अपने आप पर खीझ होने लगी कि उस ने ऐसे गंदे इंसान से प्यार क्यों किया. इस के बाद प्रिया ने तय कर लिया कि वह इमरान से कोई संबंध नहीं रखेगी. उस ने उस से दूरी भी बनानी शुरू कर दी. उस ने इमरान को 6 हजार रुपए उधार दे रखे थे. उस ने कई बार उस से अपने पैसों का तकादा किया, लेकिन कोई न कोई बहाना बना कर इमरान उसे टालता रहा. अब वह मेरठ से जब भी घर आती, अकेली ही आती और अकेली ही जाती थी. प्रिया में आए इस बदलाव को इमरान समझ नहीं पाया. वह उस से बात करने की कोशिश करता तो प्रिया उसे कोई महत्त्व नहीं देती.

प्रिया जब भी मेरठ से बरेली आती, इमरान से अपने पैसे मांगने उस के औफिस पहुंच जाती और उस से झगड़ा करने लगती. एक बार तो उस ने इमरान को स्टाफ के सामने ही थप्पड़ मार दिया था, जिस से इमरान को काफी बेइज्जती महसूस हुई थी. प्रिया के रोजरोज के झगड़ों से वह काफी तंग आ चुका था. 5 नवंबर, 2014 को प्रिया अपनी आंखों की दवा लेने के लिए स्कूटी से धर्मकांटा के पास स्थित डा. भृमरेश शर्मा के क्लीनिक पर पहुंची. वहां से दवा ले कर वह अपनी सहेली शालिनी से मिली और उस से कहा कि वह आज अपने पैसे इमरान से ले कर ही आएगी.

शालिनी को साथ ले कर वह इमरान के औफिस पहुंच गई. वहां इमरान और प्रिया में पैसों को ले कर झगड़ा होने लगा. उन का झगड़ा खत्म न होता देख लगभग 25 मिनट बाद शालिनी वहां से चली गई. प्रिया ने गुस्से में औफिस में चीखना शुरू कर दिया. इमरान उसे समझाने की कोशिश करते हुए औफिस से सटे कमरे में ले गया. उसी कमरे में इमरान लड़कियों के साथ मौजमस्ती करता था. कमरे में उस समय उसी के गांव का रहने वाला उस का दोस्त गुड्डू भी था. कमरे में इमरान ने प्रिया के मुंह पर हाथ रख कर उसे चुप कराने की कोशिश की. वह नहीं मानी तो उस ने बगल में खड़े गुड्डू को इशारा किया.

इस के बाद दोनों ने प्रिया की नाक व मुंह दबा कर हत्या कर दी. हत्या करने के बाद उस के गले में पड़ी सोने की चेन, मोबाइल फोन और रुपए निकाल लिए. इमरान ने गुड्डू की मदद से प्रिया की लाश को एक क्रिकेट बैग में भरा और उसे वहीं छोड़ कर औफिस बंद कर के चला गया. वहां से गुड्डू के साथ सीधे अपने गांव तिलियापुर पहुंचा. गांव पहुंचते ही गुड्डू इमरान को छोड़ कर चला गया. इमरान ने उसे बुलाने की काफी कोशिश की, लेकिन वह वापस नहीं आया. लाश ठिकाने लगाने के लिए इमरान को एक आदमी की जरूरत थी. उस ने गांव के ही बबलू से कहा कि वह उसे बरेली जंक्शन पर छोड़ आए. बबलू उस के साथ स्टेशन तक गया. वहां से इमरान किसी बहाने उसे अपने औफिस ले गया.

जिस बैग में प्रिया की लाश रखी थी, वह बैग उठाने में उस ने बबलू से मदद करने को कहा. बबलू को पता नहीं था कि बैग में क्या है. उस ने बैग उठाना चाहा तो वह बहुत भारी लगा. उसे शक हो गया. उस ने बैग खोल कर देखा तो उस में लाश रखी थी. लाश देख कर वह डर के मारे भाग गया. इमरान ने उसे दौड़ कर पकड़ने की कोशिश भी की, लेकिन वह पकड़ में नहीं आया. इमरान लाश को ठिकाने लगाने के लिए काफी परेशान था. वह अपने गांव आ गया और गांव के ही आजाद का औटो रेलवे स्टेशन तक जाने के बहाने ले लिया. अपने भाई सलमान और भांजे मोहम्मद अहमद को साथ ले कर वह आधी रात को अपने औफिस पहुंचा.

उन के सहयोग से उस ने प्रिया की लाश वाले क्रिकेट बैग को औटो में रखा. सलमान और मोहम्मद अहमद पिछली सीट पर बैग के साथ बैठ गए तो वह औटो चला कर नैनीताल रोड पर स्थित बिलवा पुल के पास ले गया. वहां पानी से कट कर जमीन में एक गड्ढा बन गया था. इमरान ने अपने भाई व भांजे की मदद से प्रिया की लाश वाले बैग को उसी गड्ढे में डाल दिया. इस के बाद तीनों गांव लौट आए. 6 नवंबर, 2014 को इमरान औफिस के बाहर खड़ी प्रिया की स्कूटी से वहां पहुंचा, जहां प्रिया की लाश फेंकी थी. अपने साथ वह एक फावड़ा भी ले आया था. फावड़े की मदद से उस ने प्रिया की लाश वाले बैग पर मिट्टी डाल दी. इस के बाद वह वहां से कुछ दूरी पर स्थित हनीफ के खेत में प्रिया की स्कूटी के पार्ट्स खोल कर छिपा दिए. प्रिया का मोबाइल उस ने किला नदी में फेंक दिया.

इमरान जानता था कि प्रिया अपनी सहेली शालिनी के साथ उस के यहां आई थी, इसलिए उस ने शालिनी को धमकी दी कि वह प्रिया के उस के औफिस आने की बात किसी को नहीं बताएगी, वरना दोनों फंस सकते हैं. इमरान ने सोचा था कि शालिनी खुद के फंस जाने के डर से किसी को कुछ नहीं बताएगी. लेकिन हुआ इस का उलटा. शालिनी ने प्रिया की मां पुष्पा को सब कुछ बता दिया था. इमरान से पूछताछ के बाद पुलिस ने गुड्डू, सलमान और मोहम्मद अहमद के खिलाफ भादंवि की धारा 364, 302, 201 और 404 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया था. सलमान की निशानदेही पर पुलिस ने अभियुक्त गुड्डू और सलमान को भी गिरफ्तार कर लिया था. जबकि मोहम्मद अहमद पुलिस के हत्थे नहीं चढ़ सका.

इमरान की निशानदेही पर पुलिस ने लाश ठिकाने लगाने में प्रयुक्त औटो भी तिलियापुर गांव से बरामद कर लिया था. गिरफ्तार आरोपियों को न्यायालय में पेश कर के जेल भेज दिया गया था. Bareilly News

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित, शालिनी परिवर्तित नाम है.

 

UP Crime : बदनामी का खून

UP Crime : नवीन की शादी इसलिए नहीं हो रही थी, क्योंकि उस की दलित प्रेमिका सीमा को उस से बेटा हो गया था. इस से उस की ही नहीं, घर वालों की भी बदनामी हो रही थी. घर वालों ने इस बदनामी से बचने का जो उपाय किया, क्या वह उचित था?

उत्तर प्रदेश के जिला गोरखपुर थानाकोतवाली बड़हलगंज का एक गांव है तिहामोहम्मद. इसी गांव में रामाश्रय अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी केसरी देवी के अलावा 2 बेटे संजय, राकेश कुमार उर्फ हृदय कुमार और 2 बेटियां सीमा तथा आशा थीं. बात 10 नवंबर, 2014 की है. सुबह साढ़े 6 बजे के करीब गांव के ग्रामप्रधान काशी राय टहलने के लिए घर से निकल कर गलियों से होते हुए गांव के बाहर रह रहे दलितों के मोहल्ले से होते हुए चले जा रहे थे कि गली के किनारे बने रामाश्रय के झोपड़ानुमा मकान की खुली दालान में चारपाई पर उन की नजर पड़ी तो उस की हालत देख कर उन का कलेजा मुंह को आ गया.

दालान में पड़ी उस चारपाई पर एकएक कर के 3 लाशें पड़ी थीं. सब से नीचे रामाश्रय के नाती आशीष उर्फ लालू, उस के ऊपर उस की पत्नी केसरी देवी और सब से ऊपर उस की बेटी सीमा की लाश पड़ी थी. उन्होंने आवाज लगा कर कुछ लोगों को बुलाया और घटना के बारे में बताया. इस के बाद थोड़ी ही देर में घटना की सूचना पूरे गांव में फैल गई. इस के बाद तो रामाश्रय के घर के सामने भीड़ लग गई. ग्रामप्रधान काशी राय ने घटना की सूचना थानाकोतवाली बड़हलगंज पुलिस को दी तो कोतवाली प्रभारी इंसपेक्टर सुनील कुमार राय एसआई वी.पी. सिंह, देवेंद्र मौर्य, हरिकेष कुमार आर्या, हेडकांस्टेबल रमाकांत पांडेय, कांस्टेबल समतुल्ला खान, सुरेश सिंह, अनिल पाल, शंभू सिंह के साथ गांव तिहामोहम्मद आ पहुंचे.

दिल दहला देने वाली स्थिति देख कर इंसपेक्टर सुनील कुमार राय ने इस बात की जानकारी आईजी सतीश कुमार माथुर, डीआईजी डा. संजीव कुमार, एसएसपी राजकुमार भारद्वाज, एसपी (ग्रामीण) बृजेश सिंह और सीओ अशोक कुमार को दी. पुलिस अधिकारियों को सूचना देने के बाद वह साथियों के साथ घटनास्थल और लाशों का निरीक्षण करने के लिए दालान में पहुंचे. दालान में पड़ी चारपाई पर तीनों लाशें एक के ऊपर एक पड़ी थीं. चारपाई के पास ही 315 बोर के 5 खोखे और कांच की टूटी चूडि़यों के टुकड़े पड़े थे. वे टुकड़े मृतका सीमा की कलाई की चूडि़यों के थे, इसलिए उन टुकड़ों को देख कर अनुमान लगाया गया कि मृतका सीमा ने खुद या बच्चे और मां को बचाने के लिए हत्यारों से संघर्ष किया होगा.

पुलिस ने गोलियों के खोखे के साथ टूटी चूडि़यों के उन टुकड़ों को भी कब्जे में ले लिया. लाशों के निरीक्षण में पता चला, मृतका सीमा की पीठ और सिर में बाईं ओर केसरी देवी के सिर और कान के ऊपर बाईं ओर तथा सब से नीचे पड़े आशीष उर्फ लालू के सीने में दाहिनी ओर गोली मारी गई थी. स्थिति देख कर ही लग रहा था कि हत्यारे कम से कम 3-4 रहे होंगे. आसपास वालों से की गई पूछताछ में पता चला कि मृतकों के परिवार में और कोई नहीं है. एक बेटी आशा ससुराल में है और बेटा राकेश मुंबई में है. एक बेटा संजय 18 साल से लापता है. परिवार के मुखिया रामाश्रय की 8-9 साल पहले मौत हो चुकी है. मृतकों के घर में उस समय कोई ऐसा नहीं था, जिस से कुछ जानकारी मिल पाती.

इंसपेक्टर सुनील कुमार राय पूछताछ कर रहे थे कि अन्य पुलिस अधिकारी भी आ पहुंचे. पुलिस अधिकारियों ने भी घटनास्थल और लाशों का निरीक्षण कर लिया तो ग्रामप्रधान काशी राय की उपस्थिति में घटनास्थल की काररवाई निपटा कर तीनों लाशों को पोस्टमार्टम के लिए बाबा राघवदास मैडिकल कालेज भिजवा दिया गया. इस के बाद ग्रामप्रधान काशी राय द्वारा दी गई तहरीर पर थानाकोतवाली बड़हलगंज में अज्ञात लोगों के खिलाफ तीनों हत्याओं का मुकदमा दर्ज कर लिया गया. मुकदमा दर्ज होने के बाद कोतवाली प्रभारी सुनील कुमार राय ने मामले की जांच शुरू की.

सब से पहले उन्होंने पड़ोसियों से राकेश का फोन नंबर ले कर उसे घटना की सूचना दी. स्थिति को देखते हुए हत्या की वजह रंजिश लग रही थी, क्योंकि घर का सारा सामान जस का तस था. इस से साफ था कि हत्यारे सिर्फ हत्या करने आए थे. घर वालों की हत्या की जानकारी मिलते ही राकेश गोरखपुर के लिए चल पड़ा. 11 नवंबर, 2014 को वह घर पहुंचा और सामान वगैरह रख कर सीधे कोतवाली बड़हलगंज के लिए रवाना हो गया. कोतवाली पहुंच कर उस ने इंसपेक्टर सुनील कुमार राय को एक प्रार्थना पत्र दिया, जिस में उस ने गांव के हीरा राय और उन के 4 बेटों, परविंद कुमार राय, अरुण कुमार राय उर्फ विक्की, अरविंद कुमार राय और नवीन कुमार राय उर्फ टुनटुन को अपनी मां, बहन और भांजे की हत्याओं का दोषी ठहराया था.

कोतवाली पुलिस ने राकेश के उस प्रार्थना पत्र के आधार पर अज्ञात की जगह प्रार्थना पत्र में लिखे पांचों को नामजद अभियुक्त बना कर मुकदमे में एससीएसटी ऐक्ट जोड़ दिया. इस के बाद इस मामले की जांच सीओ अशोक कुमार को सौंप दी गई. राकेश द्वारा दिए गए प्रार्थना पत्र के अनुसार उस की बहन सीमा के अवैधसंबंध 13-14 सालों से हीरा राय के तीसरे नंबर के बेटे नवीन कुमार राय उर्फ टुनटुन से थे, जिस की वजह से नवीन के घर वाले आए दिन लड़ाईझगड़ा करते रहते थे. मौका मिलने पर उन्होंने ही ये तीनों हत्याएं की हैं. अगर राकेश भी घर में होता तो उस की भी हत्या हो सकती थी.

नामजद मुकदमा दर्ज होने के बाद पुलिस ने गिरफ्तारी के लिए हीरा राय के घर छापा मारा, लेकिन घर में सिर्फ महिलाएं मिलीं. सारे के सारे पुरुष घर छोड़ कर भाग गए थे. सीमा का मोबाइल फोन मिल गया था. फोन से पता चला कि घटना वाली रात 12 बजे सीमा के फोन पर एक फोन आया था. पुलिस ने उस के बारे में पता किया तो वह नंबर गांव के अरुण का था. इस से साफ हो गया था कि अरुण ने सीमा को फोन कर के स्थिति के बारे में पता किया होगा. इस का मतलब राकेश का शक सही था.

पुलिस को हत्यारों के बारे में पता चल गया, लेकिन वे पकड़ में नहीं आए, क्योंकि वे सभी के सभी फरार थे. गिरफ्तारी न हो पाने की वजह से 13 नवंबर को एसएसपी औफिस के सामने बहुजन समाज पार्टी के जिलाध्यक्ष सुरेश कुमार भारती के नेतृत्व में 6 सूत्रीय मांगें ले कर धरनाप्रदर्शन किया गया. उसी दिन समाजवादी पार्टी की पूर्व विधायक शारदा देवी, राकेश के गांव तिहामोहम्मद पहुंची और राकेश को ढांढस बंधाया. उन्होंने मुख्यमंत्री अखिलेश यादव सरकार को मुआवजा के लिए पत्र तो भेजा ही, अभियुक्तों की गिरफ्तारी के लिए पुलिस पर भी दबाव बनाया.

इन्हीं दबावों का ही परिणाम था कि 14 नवंबर को नामजद अभियुक्तों में से 3 अभियुक्तों परविंद कुमार, अरुण कुमार राय उर्फ विक्की और अरविंद कुमार राय को ओझौली गांव के पास से रात डेढ़ बजे गिरफ्तार कर लिया गया. बाकी बचे 1 अभियुक्त हीरा राय का पता नहीं था, जबकि नवीन कुमार राय उर्फ टुनटुन 2 साल पहले बैंकाक चला गया था और घटना के समय भी वहीं था. इस के बावजूद पुलिस ने हत्या के जुर्म में उसे भी आरोपी बना दिया था. पुलिस परविंद, अरुण और अरविंद को कोतवाली बड़हलगंज कोतवाली ले आई, जहां उन से हत्याओं के बारे में पूछताछ की जाने लगी. तीनों अभियुक्तों ने बिना किसी हीलाहवाली के अपना अपराध स्वीकार कर लिया. इस के बाद उन्होंने तीनों हत्याओं की जो कहानी बताई, वह कुछ इस प्रकार थी.

दलित बस्ती में रहने वाला रामाश्रय खेती कर के अपने परिवार को पाल रहा था. बड़ा बेटा संजय 15 साल का हुआ तो अपने किसी रिश्तेदार के साथ गुजरात के सूरत शहर चला गया. 6 महीने तो उस ने कमा कर रुपए भेजे, लेकिन उस के बाद अचानक उस ने रुपए भेजने बंद कर दिए. घर वालों ने रिश्तेदार को फोन कर के पूछा तो उस ने बताया कि अब वह उन के पास नहीं रहता. इस के बाद से आज तक उस का कुछ पता नहीं चला है. बेटे के इस तरह लापता हो जाने से रामाश्रय को इतना गहरा आघात पहुंचा कि वह बीमार पड़ गया. कुछ दिनों बाद उस की मौत हो गई तो 2 बेटियों और एक बेटे की जिम्मेदारी केसरी देवी पर आ पड़ी.

केसरी देवी की बड़ी बेटी सीमा कीचड़ में खिले कमल की तरह थी. जवानी की दहलीज पर कदम रखते ही उस की सुंदरता में जो निखार आया, वह गांव के लड़कों को लुभाने लगा. मजे की बात यह थी कि वह जितनी सुंदर थी, उतनी ही चंचल भी थी. चंचल, चपल और चालाक सीमा अपनी सीमा जानती थी. वह गरीब घर की बेटी थी, जिस की जमापूंजी सिर्फ इज्जत होती है. वह अपनी इज्जत को बचा कर रखना चाहती थी, लेकिन गांव के ही हीरा राय के तीसरे नंबर का बेटा नवीन कुमार राय उर्फ टुनटुन उस का ऐसा दीवाना हुआ कि उस ने कोशिश कर के उसे अपने रंग में ढाल ही लिया. यह 12-13 साल पहले की बात है.

उस समय सीमा की उम्र 19-20 साल रही होगी. नवीन भी उम्र लगभग उतनी ही थी. नवीन गबरू जवान तो था ही, खातेपीते घर का होने के साथसाथ खूबसूरत भी था. शायद उस की खूबसूरती पर ही सीमा भी मर मिटी थी. प्यार हुआ तो दोनों के बीच शारीरिक संबंध भी बन गए थे. इस के बाद दोनों के संबंधों की बात गांव में चर्चा का विषय बन गई. सीमा दलित थी, जबकि नवीन भूमिहार यानी सामान्य वर्ग का था. नवीन के घर वालों ने सोचा दलित होने के नाते सीमा के घर वाले क्या कर लेंगे. साल, 2 साल बाद दोनों की शादी हो जाएगी तो संबंध अपने आप खत्म हो जाएंगे.

तिहामोहम्मद गांव के ही रहने वाले हीरा राय साधनसंपन्न आदमी थे. उस की 5 संतानों में 4 बेटे, अरविंद कुमार राय, परविंद कुमार राय उर्फ गुड्डू, नवीन कुमार राय उर्फ टुनटुन, अरुण कुमार राय और एक बेटी संध्या राय थी. उस के 2 बेटे अरविंद और परविंद बैंकाक में रहते थे. इन से छोटा नवीन पढ़ाई के साथसाथ खेती के कामों में पिता की मदद करता था. सब से छोटा अरुण समझदार होते ही बड़े भाइयों के पास बैंकाक चला गया था, जहां वह नौकरी करने लगा था. बैंकाक से आने वाले रुपयों से हीरा राय गांव में जमीनें खरीदते गए, जिस से जल्दी ही उन की गिनती बड़े लोगों में होने लगी. बाद में बड़ा बेटा अरविंद गांव आ गया और यहीं रहने लगा. लेकिन परविंद और अरुण वहीं रह कर नौकरी करते रहे.

नवीन और सीमा के संबंध हद पार करने लगे तो हीरा राय और उन के बड़े बेटे अरविंद को लगा कि आगे चल कर बात बिगड़ सकती है. कहीं बात शादी की आ गई तो वे समाज को कैसे मुंह दिखा पाएंगे. यही सोच कर अरविंद ने केसरी देवी को धमकाया कि वह अपनी बेटी को काबू में रखे. उस ने केसरी देवी को ही नहीं धमकाया, नवीन पर भी सीमा से मिलने पर पूरी तरह से पाबंदी लगा दी. नवीन कोई लड़की नहीं था कि घर वाले उस के पैरों में जंजीर डाल कर उसे कमरे में कैद कर देते. उस ने पिता और भाई के दबाव में भले ही सीमा से मिलने के लिए मना कर दिया था, लेकिन यह दिखावा मात्र था. सीमा उस की धमनियों में खून बन कर बह रही थी. इसलिए वह पिता और भाई को दिए आश्वासन पर अटल नहीं रह सका और चोरीछिपे लगातार सीमा से मिलता रहा.

परिणामस्वरूप  बिना शादी के ही सीमा गर्भवती हो गई. धीरेधीरे गांव में यह बात फैली तो केसरी देवी की बदनामी होने लगी. बदनामी से बचने के लिए उस ने देवरिया जिले के थाना एकौना के गांव छपना के रहने वाले दीपचंद के साथ सीमा की शादी कर दी. सीमा ससुराल चली तो गई, लेकिन उस के गर्भ में पल रहा पाप पति से छिपा नहीं रहा. दीपचंद को जब पता चला कि सीमा की कोख में किसी दूसरे का 2-3 महीने का बच्चा पल रहा है तो उस ने इज्जत के साथ सीमा को उस के मायके पहुंचा दिया और सीमा की सहमति से तलाक ले लिया. यह बात 11-12 साल पहले की है.

इस के बाद सीमा मां और बहनभाई के साथ मायके में ही रहने लगी. समय पर उस ने बेटे को जन्म दिया, जिस का नाम आशीष उर्फ लालू रखा. यह सभी को पता था कि सीमा का बेटा आशीष नवीन कुमार राय का बेटा है. नवीन सीमा को अपनाने के लिए तैयार भी था, लेकिन घर वाले इस शादी के सख्त खिलाफ थे. इस की सब से बड़ी वजह सीमा का दलित होना था. लालू धीरेधीरे बड़ा होने लगा. सीमा ने स्कूल में उस का दाखिला कराते समय पिता के नाम के रूप में नवीन कुमार राय का ही नाम लिखाया था. इस से हीरा राय और उन के बेटों, अरविंद, परविंद और अरुण को इस बात का डर सताने लगा कि बड़ा हो कर लालू उन की संपत्ति में हिस्सा ले सकता है.

जबकि नवीन पर इस बात का कोई असर नहीं था, क्योंकि वह सीमा और लालू को अपनाने को तैयार था. शायद इसीलिए वह कहीं और शादी नहीं कर रहा था. लालू और सीमा को ले कर हीरा राय के परिवार में महाभारत छिड़ा हुआ था. सीमा से छुटकारा पाने का अब एक ही उपाय था कि उस की शादी कहीं और हो जाए. हीरा राय और उस के बेटे इस के लिए कोशिश भी कर रहे थे, लेकिन नवीन ऐसा होने नहीं दे रहा था. इस से घर वालों ने सोचा कि अगर नवीन को गांव से हटा दिया जाए तो यह काम आसानी से हो जाएगा.

नवीन के 2 भाई, परविंद और अरुण बैंकाक में रह ही रहे थे. हीरा और अरविंद ने नवीन का पासपोर्ट और वीजा तैयार करा कर उसे भी बैंकाक भेज दिया. नवीन के हटते ही हीरा राय और अरविंद दिमाग चलाने लगे. योजना के अनुसार नवीन के बैंकाक पहुंचते ही परंविद और अरुण गांव आ गए. अरविंद, परविंद और अरुण रास्ते का कांटा लालू को हटाने की योजना बनाने लगे. लालू की ही वजह से नवीन की भी शादी नहीं हो रही थी, बदनामी अलग से हो रही थी. नवीन भले ही बैंकाक चला गया था, लेकिन फोन से वह बराबर सीमा और उस के बेटे का हालचाल लेता रहता था.

अरुण काफी दबंग किस्म का युवक था. बैंकाक से खूब रुपए कमा कर लाया ही था, इसलिए पैसों की भी गरमी थी. उस का उठनाबैठना भी बदमाशों के बीच था, इसलिए लालू को रास्ते से हटाने के लिए उस ने अपने उन्हीं दोस्तों की मदद से कट्टा और कारतूस का इंतजाम किया हथियारों का इंतजाम हो गया तो एक दिन तीनों भाइयों ने पिता हीरा राय के साथ बैठ कर लालू को खत्म करने की योजना बना डाली. 9/10 नवंबर की रात 12 बजे अरुण ने सीमा के मोबाइल पर फोन कर के पता किया कि वह सो गई है या जाग रही है. वैसे तो सीमा सो रही थी, लेकिन मोबाइल की घंटी ने उसे जगा दिया. 2-4 बातें हुईं, उस के बाद सीमा फोन काट कर सो गई.

सीमा से बात होने के काफी देर बाद अरुण, अरविंद और परविंद 315 बोर के देसी कट्टे और कारतूस ले कर केसरी देवी के घर जा पहुंचे. बिजली न होने की वजह से गांव में अंधेरा था. अरुण को पता था कि लालू अपनी नानी के पास बरामदे में चारपाई पर सोता है, जबकि सीमा अंदर कमरे में सोती है. अरुण को सारी स्थिति का पता था, इसलिए सीमा के घर पहुंचते ही उस ने एक, डेढ मीटर की दूरी से लालू पर निशाना साध कर कट्टे से गोली चला दी. गोली लालू के सीने में दाईं ओर लगी. सोया लालू छटपटा कर हमेशाहमेशा के लिए सो गया.

गोली की आवाज सुन कर केसरी देवी जाग गई. पकड़े जाने के डर से अरुण और अरविंद ने एक साथ केसरी देवी को गोली मार दी. केसरी देवी भी लहरा कर नाती लालू के ऊपर गिर गई. दूसरी ओर गोली की आवाज सुन कर कमरे में सो रही सीमा भी जाग गई थी और उठ कर बाहर आ गई थी. उस ने तीनों भाइयों को पहचान भी लिया था. मां को बचाने के चक्कर में वह अरुण से भिड़ गई थी. उसी दौरान उस की चूडि़यां टूट कर नीचे गिर गई थीं. सीमा ने उन्हें पहचान लिया था, इसलिए उसे भी जिंदा नहीं छोड़ा जा सकता था. अरुण और अरविंद ने एक साथ गोलियां चला कर उसे भी मार दिया. मां को बचाने के लिए वह चारपाई के पास ही खड़ी थी. इसलिए गोलियां लगने के बाद भी वह मां के ऊपर चारपाई पर गिर पड़ी थी.

इस तरह एक हत्या करने के चक्कर में अरविंद, अरुण और परविंद ने 3 हत्याएं कर डालीं थीं. फिर भी उन्हें न किसी बात की चिंता थी, न किस तरह का पछतावा. वे घर जा कर आराम से सो गए. लेकिन सुबह होते ही हीरा राय और उन के तीनों बेटे अरविंद, परविंद और अरुण घर छोड़ कर भाग गए. 14 नवंबर, 2014 की रात अरविंद, परविंद और अरुण ओझौली गांव से गिरफ्तार हो गए. पुलिस ने अरुण के पास से 315 बोर का एक कट्टा, कारतूस के 3 खोखे, एक जिंदा कारतूस, अरविंद के पास से 315 बोर का एक कट्टा, कारतूस के 2 खोखे और 1 जिंदा कारतूस बरामद कर लिया था. इस के बाद पुलिस ने तीनों को अदालत मे पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया था.

21 नवंबर को पुलिस ने गांव के बाहर हीरा राय को भी गिरफ्तार कर लिया था. पूछताछ के बाद पुलिस ने उसे भी जेल भेज दिया है. पुलिस का मानना है कि साजिश रचने में नवीन भी शामिल था, इसलिए धारा 120बी के तहत उसे भी आरोपी बनाया है. लेकिन इस समय वह बैंकाक में है. पुलिस उसे वहां से बुला कर गिरफ्तार करने की कोशिश कर रही है. UP Crime

Agra News : बेवफाई या मजबूरी

Agra News : अंजलि सनी का बचपन का प्यार थी, इसलिए वह उसे हर हालत में अपनी बनाना चाहता था, अंजलि भी उस की बनने को तैयार थी. फिर ऐसा क्या हुआ कि सनी को प्रेमिका अंजलि का हत्यारा बनना पड़ा…

5 नवंबर, 2014 की शाम पौने 7 बजे के आसपास अंधेरा घिरने पर आगरा के थाना हरिपर्वत के मोहल्ला नाला बुढ़ान सैयद में रेल की पटरियों के किनारे रहने वाले सतीशचंद की बेटी अंजलि किसी काम से पटरियों की ओर गई तो किसी ने उस पर चाकू से जानलेवा हमला कर दिया. जान बचाने के लिए अंजलि चिल्लाते हुए घर की ओर भागी, लेकिन हमलावर ने उसे गिरा कर गर्दन पर ऐसा वार किया कि उस की गर्दन कट गई और वह तुरंत मर गई. शोर सुन कर आसपास के लोग वहां पहुंच पाते, हमलावर अंजलि को मार कर अंधेरे में गायब हो गया.

शोर सुन कर अंजलि के घर वाले भी आ गए थे. उस की हालत देख कर वे रोने लगे. थोड़ी ही देर में वहां पूरा मोहल्ला इकट्ठा हो गया. हत्या का मामला था, इसलिए पुलिस को सूचना दी गई. थाना हरिपर्वत पास में ही था, इसलिए सूचना मिलते ही थानाप्रभारी इंसपेक्टर हरिमोहन सिंह एसएसआई शैलेश कुमार सिंह, एसआई अभय प्रताप सिंह, हाकिम सिंह, सिपाही परेश पाठक और रामपाल सिंह को साथ ले कर तुरंत घटनास्थल पर पहुंच गए.

चूंकि इस घटना की सूचना पुलिस कंट्रोलरूम को भी दे दी गई थी, इसलिए जिले के पुलिस अधिकारियों को भी घटना की जानकारी हो गई थी. इसलिए थोड़ी ही देर में एसएसपी शलभ माथुर, एसपी (सिटी) समीर सौरभ, सीओ हरिपर्वत अशोक कुमार सिंह, मनीषा सिंह, एएसपी शैलेष पांडे भी घटनास्थल पर पहुंच गए थे. पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल और लाश का निरीक्षण किया. हत्यारे ने जिस तरह चाकू से वार कर के मृतका की हत्या की थी, उस से अंदाजा लगाया कि हत्यारा अंजलि से गहरी नफरत करता था.

पुलिस अधिकारियों ने डौग स्क्वायड टीम भी बुलाई थी. लेकिन कुत्ते पुलिस की कोई मदद नहीं कर सके. वे वहीं आसपास घूम कर रह गए थे. इस हत्या से नाराज मोहल्ले वालों ने पुलिस के विरोध में नारे लगाने के साथ घोषणा कर दी कि वे लाश तब तक नहीं उठाने देंगे, जब तक हत्यारा पकड़ा नहीं जाता. पुलिस अधिकारियों ने समझायाबुझाया और हत्यारे को जल्द पकड़ने का आश्वासन दिया, तब कहीं जा कर घर और मोहल्ले वालों ने लाश ले जाने की अनुमति दी. पुलिस ने जल्दीजल्दी घटनास्थल की काररवाई निपटा कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. अब तक सूचना पा कर पड़ोस के मोहल्ले में रहने वाला मृतका का पति सुनील भी आ गया था.

उस ने पुलिस को बताया कि उस की पत्नी की हत्या उस की ससुराल वालों के पड़ोस में रहने वाले उत्तमचंद के बेटे सनी ने की है. इस के बाद सुनील की ओर से थाना हरिपर्वत में अंजलि की हत्या का मुकदमा नाला बुढ़ान सैयद के रहने वाले उत्तम चंद के बेटे सनी के खिलाफ नामजद दर्ज कर लिया गया. मुकदमा दर्ज होने के बाद पुलिस ने सनी को गिरफ्तार करने के लिए उस के घर छापा मारा तो वह घर से गायब मिला. सनी के घर छापा मारने गई पुलिस टीम से घर वालों से कहा कि अंजलि की हत्या उस के पति सुनील ने ही की है. लेकिन पुलिस टीम को उन की इस बात पर विश्वास नहीं हुआ.

हत्या के इस मामले की जांच थानाप्रभारी इंसपेक्टर हरिमोहन सिंह ने खुद संभाल रखी थी. पुलिस अधिकारियों की भी नजर इस मामले पर थी. इसलिए सनी को पकड़ने के लिए सीओ हरिपर्वत अशोक कुमार सिंह के नेतृत्व में 3 टीमें बनाई गईं. एसएसपी शलभ माथुर ने तीनों टीमों को सख्त चेतावनी देते हुए कहा था कि उन्हें किसी भी तरह उसी रात सनी को पकड़ना है. क्योंकि उन्हें पता था कि पोस्टमार्टम के बाद मृतका के घर वाले फिर हंगामा करेंगे. वह नहीं चाहते थे कि पोस्टमार्टम के बाद अंतिम संस्कार के समय घर वाले किसी तरह का हंगामा करें. सब से बड़ी बात यह थी कि मोहल्ले के पास से रेलवे लाइन गुजरती थी, हंगामा करने वाले लाइन पर बैठ कर गाडि़यों का आवागमन रोक सकते थे.

देर रात सीओ अशोक कुमार सिंह को कहीं से सूचना मिली कि सनी राजा मंडी रेलवे स्टेशन से ट्रेन पकड़ कर दिल्ली जा सकता है. इसी सूचना के आधार पर इंसपेक्टर हरिमोहन सिंह के नेतृत्व वाली पुलिस टीम राजा मंडी रेलवे स्टेशन पर सनी की तलाश में जा पहुंची. सुबह 6 बजे के आसपास वहां से दिल्ली के लिए इंटरसिटी एक्सप्रेस जाती थी, इसलिए तीनों टीमें पूरी सतर्कता के साथ ट्रेन पर चढ़ने वाली सवारियों पर नजर रखने लगीं. सनी को पहचानने वाला एक आदमी पुलिस टीमों के साथ था. ट्रेन छूटने में 5 मिनट बाकी था, तभी उस आदमी ने एक युवक की ओर इशारा किया. चूंकि पुलिस टीमों के सदस्य वर्दी में नहीं थे, इसलिए सनी को पता नहीं चला कि पुलिस स्टेशन पर उसे तलाश रही है.

सनी निश्ंिचत हो कर ट्रेन पर चढ़ रहा था, इसलिए पुलिस ने आराम से उसे पकड़ लिया. थाना हरिपर्वत ला कर उस से पूछताछ शुरू हुई. वह कोई बहानेबाजी करता, उस के पहले ही पुलिस ने उस के कपड़ों पर लगे खून के छींटों की ओर इशारा किया तो उस ने अपना अपराध स्वीकार कर के अंजलि की हत्या की पूरी कहानी सुना दी. अंजलि आगरा के थाना हरिपर्वत के मोहल्ला नाला बुढ़ान सैयद के रहने वाले सतीशचंद की 6 संतानों में पांचवें नंबर की बेटी थी. शहर के पौश इलाके हरिपर्वत से सटा रेलवे लाइन को किनारे बसा है मोहल्ला नाला बुढान सैयद. यहां रहने वाले लोग आपस में मिलजुल कर रहते हैं. कभी यह गरीबों का मोहल्ला था. लेकिन आज यहां लगभग सभी के मकान 3 तीन मंजिल बन चुके हैं.

सतीशचंद के पड़ोस में उत्तमचंद का मकान था. उस के परिवार में पत्नी बेबी के अलावा तीन बेटे, भोलू, बबलू और सनी थे. निम्न मध्यम वर्गीय परिवार होने की वजह से उत्तमचंद के बच्चे पढ़ नहीं सके. जवानी की दहलीज पर कदम रखते ही वे छोटेमोटे काम करने लगे. सनी ने भी हाईस्कूल कर के पढ़ाई छोड़ दी थी. पड़ोसी होने की वजह से सनी और अंजलि साथसाथ खेल कर बड़े हुए थे और एक ही स्कूल में पढ़े थे. अंजलि ने जहां आठवीं पास कर के पढ़ाई छोड़ दी थी, वहीं सनी ने हाईस्कूल पास कर के. हमउम्र होने की वजह से दोनों में कुछ ज्यादा ही पटती थी. यही पटरी किशोरावस्था आतेआते प्यार में बदल गया.

अंजलि के मांबाप ने पहले तो दोनों के मेलमिलाप व मुलाकातों पर कोई बंदिश नहीं लगाई, लेकिन जब उन्हें लगा कि बेटी अब सयानी हो गई है तो उन्हें लगा कि जवान बेटी का किसी जवान लड़के से मिलनाजुलना ठीक नहीं है. बस इस के बाद उन्होंने समझदारी से काम लेते हुए अंजलि को ऊंचनीच का पाठ पढ़ाते हुए उसे सनी से दूर रहने की सलाह दी. अंजलि ने मांबाप को भले ही आश्वासन दिया कि वह सनी से नहीं मिलेगी, लेकिन उस के लिए ऐसा करना आसान नहीं था. सनी अब तक उस के लिए उस की जिस्म की जान बन चुका था, उस के दिल की धड़कन बन चुका था. ऐसे में वह सनी से दूर कैसे रह सकती थी.

अंजलि उस से मिलतीजुलती रही. हां, अब वह उस से मिलने में थोड़ा सावधानी जरूर बरतने लगी थी. लेकिन उस की मुलाकातों की भनक सतीशचंद और विमला देवी को लग ही गई. उन्हें लगा कि अब अंजलि का विवाह कर देना ही ठीक है. उन्होंने आननफानन में लड़का देखा और अंजलि की शादी कर दी. यह 3 साल पहले की बात है. अंजलि का पति सुनील नाला बुढान सैयद से लगे मोहल्ले पीर कल्याणी में रहता था. वह एक जूते की फैक्ट्री में सुपरवाइजर था. नौकरी की वजह से वह सुबह 8 बजे घर से निकल जाता तो देर रात को ही घर लौटता था. शादी के बाद कुछ दिनों तक तो अंजलि ने सनी से दूरी बनाए रखी, लेकिन कुछ दिनों बाद वह उस से फिर मिलनेजुलने लगी. इसी बीच वह एक बेटे की मां बन गई.

अंजलि का सोचना था कि उस का सनी से मिलनाजुलना किसी को पता नहीं है. लेकिन ऐसा नहीं था. उस की हरकतों पर ससुराल वालों की नजर थी. वे एकएक बात सुनील से बताते रहते थे. सुनील ने अंजलि की आशनाई का सुबूत जुटाने के लिए उसे एक ऐसा मोबाइल फोन खरीद कर दे दिया था, जिस में बातचीत करते समय पूरी बात रिकौैर्ड हो जाती थी. इस तरह अंजलि और सनी की अंतरंग बातें रिकौर्ड कर के सुनील ने सुबूत इकट्ठा कर लिए थे. इस के बाद उस ने अंजलि को समझाना चाहा तो वह बगावत पर उतर आई. नाराज हो कर वह बेटे चीनू को ले कर मायके चली गई.

मायके वाले उसे दोष न दें, इसलिए उस ने अपनी मां से बताया कि सुनील का किसी औरत से संबंध है, जिस की वजह से वह उस से प्यार नहीं करता. इसीलिए दुखी हो कर वह मायके आ गई है. विमला देवी को लगा कि बेटी सच कह रही है. इस की वजह यह थी कि सुनील अंजलि और सासससुर से बहुत कम बातें करता था. अंजलि लगभग 6 महीने तक लगातार मायके में रह गई तो आसपड़ोस वाले सवालजवाब करने लगे. इस के बाद सतीशचंद ने सुनील को घर बुलाया तो सच्चाई का पता चला. तब सतीशचंद और विमला देवी ने बेटीदामाद को समझाबुझा कर अंजलि को सुनील के साथ ससुराल भेज दिया.

सुनील अंजलि को साथ ले तो नहीं जाना चाहता था, लेकिन सासससुर का उतरा हुआ चेहरा देख कर वह अंजलि को साथ ले आया. 2-3 महीने तक सब ठीकठाक चला. लेकिन इस के बाद जो होने लगा, वह पहले से भी ज्यादा खतरनाक था. सनी पहले तो अंजलि से फोन पर ही बातें करता था, इस बार वह सुनील की अनुपस्थिति में अंजलि से मिलने उस के पीर कल्याणी स्थित घर आने लगा. अंजलि ने ससुराल वालों से उसे दूर का रिश्तेदार बताया था. 6 महीने तक सनी पीर कल्याणी अंजलि से मिलने आताजाता रहा. लेकिन एक दिन दोपहर को सुनील घर आ गया तो उस ने सनी को अंजलि के कमरे में बैठे बातें करते देख लिया.

पहले तो उस की सनी से हाथापाई हुई, इस के बाद सुनील ने उसे तो बेइज्जत कर के भगाया ही, अंजलि को भी उस की मां विमला देवी से सारी हकीकत बता कर मायके छोड़ आया. विमला देवी उस दिन तो सुनील से कुछ नहीं कह सकी, लेकिन बाद में उस पर अंजलि को ले जाने का दबाव बनाने लगी. सुनील अंजलि को ले जाता, उस के पहले ही एक दोपहर अंजलि बेटे को मायके में छोड़ कर सनी के साथ भाग निकली. इस से दोनों ही परिवारों में हड़कंप मच गया. पता चला कि अंजलि बेटे की दवा लेने के बहाने से घर निकली और राजामंडी चौराहे से धौलपुर जाने वाली बस में सवार हो कर सनी के साथ चली गई थी.

धौलपुर में सनी की मौसी रहती थी. सनी अंजलि को ले कर उन के यहां पहुंचा तो उन्होंने फोन द्वारा अपनी बहन बेबी को इस बात की सूचना दे दी. सतीशचंद सनी के पिता उत्तमचंद के साथ धौलपुर जाने की तैयारी कर रहे थे कि बेटे से मिलने के लिए सुनील ससुराल आ पहुंचा. इस तरह उसे भी पत्नी के सनी के साथ भाग जाने की जानकारी हो गई. उसी शाम सुनील ने थाना लोहामंडी जा कर सनी के खिलाफ अपनी पत्नी अंजलि को बहलाफुसला कर भगा ले जाने की रिपोर्ट दर्ज करा दी. पुलिस कोई काररवाई करती, उस के पहले ही सुनील विमला देवी, सतीशचंद और बेबी उत्तमचंद के साथ धौलपुर गया और अंजलि को आगरा ले आया. आगरा आ कर उस ने थाना लोहामंडी पुलिस को धौलपुर में जहां सनी ठहरा था, वहां का पता बता दिया.

इस के बाद थाना लोहामंडी पुलिस धौलपुर गई और सनी को पकड़ कर ले आई. इस के बाद पुलिस ने सनी को अदालत में पेश करने के साथ अंजलि का भी बयान दर्ज कराया, जहां उस ने सनी के खिलाफ जम कर जहर उगला. उस ने कहा कि सनी ने उस का जबरन अपहरण किया था और उसे बंधक बना कर उस के साथ दुष्कर्म किया था. अंजलि के इसी बयान की वजह से सनी को हाईकोर्ट से अपनी जमानत करानी पड़ी. सनी के साथ जो हुआ था, इस के लिए उस ने अंजलि को दोषी माना. इसलिए उसे अंजलि से गहरी नफरत हो गई. अब वह उस की हत्या करने के बारे में सोचने लगा. जेल से बाहर आने के बाद 1-2 बार उस ने अंजलि से मिलने और बातचीत करने की कोशिश की, लेकिन अंजलि ने साफ मना कर दिया.

इस की वजह यह थी कि सुनील ने साफसाफ कह दिया था कि अगर अब उस ने सुन भी लिया कि वह सनी से बातचीत करती है तो वह उसे तलाक दे देगा. इसलिए अपने और बच्चे के भविष्य को देखते हुए अंजलि ने सनी से दूर रहने का फैसला कर लिया था. कहा जाता है कि अंजलि ने अदालत में सनी के खिलाफ जो बयान दिया था, वह भी सुनील के ही कहने पर दिया था. सुनील का सोचना था कि अंजलि के इस बयान से दोनों के बीच दरार पड़ जाएगी और हुआ भी वही.

जमानत पर जेल से बाहर आने के बाद सनी अपने घर आने के बजाय धौलपुर जा कर मौसी के यहां रह रहा था. लेकिन वह अपने दोस्तों से अंजलि के बारे में पता करता रहता था. जैसे ही उसे पता चला कि अंजलि मायके आई है, वह मौसी से मांबाप से मिलने की बात कह कर आगरा आ गया. सनी भले ही घर आ गया था, लेकिन वह ज्यादातर घर में ही रहता था. 4 नवंबर, 2014 की शाम वह छत पर बैठा था, तभी उसे अंजलि रेलवे की पटरियों की ओर जाती दिखाई दी. सनी को लगा कि अपमान का बदला लेने के लिए यह अच्छा मौका है.

वह नीचे उतरा और बाजार जा कर खुद को कसाई बता कर गोश्त काटने वाला छुरा खरीद लाया. अगले दिन यानी 5 नवंबर को अंधेरा होने से पहले ही वह वहां छिप कर बैठ गया, जिधर अंजलि जाती थी. अंधेरा होने पर अंजलि उधर आई तो उस ने उस की हत्या कर के अपनी नफरत की आग बुझा ली. अंजलि की चीख सुन कर जब तक मोहल्ले वाले वहां पहुंचते, सनी उस की हत्या कर के जा चुका था. उस समय कोई नहीं जान सका कि अंजलि को किस ने इतनी बेरहमी से मार दिया. वहां से भाग कर सनी राजामंडी रेलवे स्टेशन पर पहुंचा. उसे लग रहा था कि लोग उसे खोजते हुए वहां आ सकते हैं, इसलिए वह एक खोखे के पीछे छिप गया.

उसे यह भी पता था कि पुलिस उसे खोजते हुए धौलपुर जा सकती है, इसलिए उस ने दिल्ली जाने का निर्णय लिया. वह दिल्ली जा पाता, उस के पहले ही पुलिस ने उसे पकड़ लिया. पूछताछ के बाद पुलिस ने उस की निशानदेही पर रेलवे लाइन के किनारे से पत्थरों के नीचे से वह छुरा बरामद कर लिया था, जिस से उस ने अंजलि की हत्या की थी. सारे सुबुत जुटा कर पुलिस ने उसे अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक वह जेल में ही था. Agra News

कहानी पुलिस सूत्रों व सुनील के बयान

UP Crime : बीवी के बिस्तर का साथी

UP Crime : मुकेश जगदीश को अपना अच्छा दोस्त समझता था, जबकि जगदीश उस का दोस्त नहीं, उस की बीवी के बिस्तर का साथी था…

मीना और जगदीश पहली मुलाकात में ही एकदूजे को अपना दिल दे बैठे थे. मीना को पाने की चाह जगदीश के दिल में हिलोरे मारने लगी थी. इसलिए वह किसी न किसी बहाने से मीना से मिलने उस के घर अकसर आने लगा. घर आने पर मीना उस की आवभगत करती. चायपानी के दौरान जगदीश जानबूझ कर मीना के शरीर को स्पर्श कर लेता तो वह बुरा मानने के बजाय मुसकरा देती. इस से जगदीश की हिम्मत बढ़ती गई और वह मीना को जल्द से जल्द पाने की कोशिश में लग गया.

एक दिन जगदीश सुमन के घर आया तो सुमन उस समय घर में अकेली आईने के सामने शृंगार करने में मशगूल थी. उस की साड़ी का पल्लू गिरा हुआ था. जगदीश दबे पांव आ कर उस के पीछे चुपचाप खड़ा हो गया. उस की कसी देह आईने में नुमाया हो रही थी. मीना उस की मौजूदगी से अंजान थी. जगदीश कुछ देर तक मंत्रमुग्ध सा आईने में मीना के निखरे सौंदर्य को अपनी आंखों से समेटने की कोशिश करता रहा. इस तरह देख कर उस की चाहत दोगुनी होती जा रही थी.

इसी बीच मीना ने आईने में जगदीश को देखा तो तुरंत पीछे मुड़ी. उसे देख कर जगदीश मुसकराया तो मीना ने अपना आंचल ठीक करने के लिए हाथ बढ़ाया. तभी जगदीश ने उस का हाथ थाम कर कहा, ‘‘मीना, बनाने वाले ने खूबसूरती देखने के लिए बनाई है. मेरा बस चले तो अपने सामने तुम को कभी आंचल डालने ही न दूं. तुम आंचल से अपनी खूबसूरती को बंद मत करो.’’

‘‘तुम्हें तो हमेशा शरारत सूझती रहती है. किसी दिन तुम से बात करते हुए मुसकान के पापा ने देख लिया तो तुम्हारी चोरी पकड़ में आ जाएगी.’’ मीना मुसकराते हुए बोली, ‘‘अच्छा, एक बात बताओ, कहीं तुम मीठीमीठी बातें कर के मुझ पर डोरे डालने की कोशिश तो नहीं कर रहे?’’

‘‘लगता है, तुम ने मेरे दिल की बात जान ली. मैं तुम्हें बहुत चाहता हूं. अब तो मेरी हालत ऐसी हो गई है कि जिस रोज तुम्हें देख नहीं लेता, बेचैनी महसूस होती है. इसलिए किसी न किसी बहाने से यहां चला आता हूं. तुम्हारी चाहत कहीं मुझे पागल न…’’

जगदीश की बात अभी खत्म भी न हो पाई थी कि मीना बोली, ‘‘पागल तो तुम हो चुके हो. तुम ने कभी मेरी आंखों में झांक कर देखा कि उन में तुम्हारे लिए कितनी चाहत है. मुझे ऐसा लग रहा है कि दिल की भाषा को आंखों से पढ़ने में भी तुम अनाड़ी हो.’’

‘‘सच कहा तुम ने. लेकिन आज यह अनाड़ी तुम से बहुत कुछ सीखना चाहता है. क्या तुम मुझे सिखाना चाहोगी?’’ कहते हुए जगदीश ने मीना के चेहरे को अपने हाथों में भर लिया. मीना ने भी अपनी आंखें बंद कर के अपना सिर जगदीश के सीने पर टिका दिया. दोनों के जिस्म एकदूसरे से चिपके तो सर्दी के मौसम में भी उन के शरीर दहकने लगे. जब उन के जिस्म मिले तो हाथों ने भी हरकतें करनी शुरू कर दीं और कुछ ही देर में उन्होंने अपनी हसरतें पूरी कर लीं. शराब पीपी कर खोखले हो चुके पति मुकेश के शरीर में वह बात नहीं रह गई थी, जो उसे जगदीश से मिली. इसलिए उस के कदम जगदीश की तरफ बढ़ते चले गए. इस तरह उन का अनैतिकता का यह खेल चलता रहा.

उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर जिले के निगोही थानाक्षेत्र में एक गांव है हमजापुर. इसी गांव में 30 वर्षीय मुकेश कुमार. अपनी पत्नी मीना और 2 बच्चों के साथ रहता था. मुकेश के पास 20 बीघा जमीन थी. जमीन मुख्य सड़क के किनारे होने की वजह से बहुत कीमती थी. उसी पर खेती कर के वह अपने परिवार का खर्च चलाता था. उस की गृहस्थी ठीकठाक चल रही थी. खर्च उठाने में उसे कभी दिक्कत का सामना नहीं करना पड़ा. मुकेश को शराब पीने की लत थी. मीना ने उसे कई बार समझाया भी, लेकिन उस ने पत्नी की बात नहीं मानी. इस के अलावा वह पत्नी की जरूरतों को भी अनदेखा करने लगा. करीब 6 महीने पहले उस ने जगदीश नाम के राजमिस्त्री को बुलाया.

जगदीश मुकेश का परिचित था और उस के गांव से 2 किलोमीटर दूर गांव पैगापुर में रहता था. जगदीश अय्याश प्रवृत्ति का था. 2 बच्चों का बाप होने के बाद भी उस की प्रवृत्ति नहीं बदली थी. जब वह मुकेश के घर गया तो उस की पत्नी मीना को देख कर उस की नीयत बदल गई. चाहत की नजरें मीना के जिस्म पर टिक गईं. उसी पल मीना भी उस की नजरों को भांप गई थी. जगदीश हट्टाकट्टा युवक था. मीना पहली नजर में ही उस की आंखों के रास्ते के दिल में उतर गई. मुकेश से बातचीत करते समय उस की नजरें बारबार मीना पर ही टिक जाती थीं. मीना को भी जगदीश अच्छा लगा. जगदीश की भूखी नजरों की चुभन जैसे उस की देह को सुकून पहुंचा रही थी.

मीना को पाने के लालच में जगदीश ने काम के पैसे भी कम बताए थे. अगले दिन से जगदीश ने काम शुरू कर दिया. काम शुरू करते ही जगदीश ने अपनी बातों के जरिए मुकेश से दोस्ती कर ली. जगदीश को जब भी मौका मिलता, वह मीना के सौंदर्य की तारीफ करने लग जाता. मीना को भी उस का व्यवहार अच्छा लगता था. वह जब कभी उसे चाय, पानी देने आती, जानबूझ कर उस के हाथों को छू लेता. इस का मीना ने विरोध नहीं किया तो जगदीश की हिम्मत बढ़ती गई. फिर उस की मीना से होने वाली बातों का दायरा भी बढ़ने लगा. मीना का भी जगदीश की तरफ झुकाव होने लगा था.

जगदीश को पता था कि मुकेश को शराब पीने की लत है. इसी का फायदा उठाने के लिए उस ने शाम को मुकेश के साथ ही शराब पीनी शुरू कर दी. मीना से नजदीकी बनाने के लिए वह मुकेश को ज्यादा शराब पिला कर धुत कर देता था. कहते हैं, जहां चाह होती है, वहां राह निकल ही आती है. आखिर एक दिन जगदीश को मीना के सामने अपने दिल की बात कहने का मौका मिल गया और उस के बाद दोनों के बीच वह रिश्ता बन गया, जो दुनिया की नजरों में अनैतिक कहलाता है. दोनों ने इस रास्ते पर कदम बढ़ा तो दिए, लेकिन उन्होंने इस बात पर ध्यान नहीं दिया कि वे अपने जीवनसाथी के साथ कितना बड़ा विश्वासघात कर रहे हैं.

तन से तन का रिश्ता कायम होने के बाद मीना और जगदीश उसे बारबार दोहराने लगे. जगदीश ने मुकेश के यहां का मरम्मत का काम पूरा कर दिया, इस के बावजूद भी वह वहां आताजाता रहा. मुकेश जैसे ही अपने खेतों पर जाने के लिए निकलता, झट से मीना जगदीश को फोन कर देती. अवैधसंबंधों को कोई भले ही लाख छिपाने की कोशिश क्यों न करे, एक न एक दिन उस की पोल खुल ही जाती है. एक दिन ऐसा ही हुआ. मुकेश जैसे ही अपने खेतों की तरफ निकला, मीना ने अपने प्रेमी जगदीश को फोन कर दिया. मीना जानती थी कि मुकेश सुबह घर से निकलने के बाद शाम को ही घर लौटता है. इस दौरान वह प्रेमी से साथ मौजमस्ती कर लेगी. प्रेमिका का फोन आते ही जगदीश  साइकिल से मीना के घर पहुंच गया.

उस दिन भी आते ही उस ने मीना के गले में अपनी बांहों का हार डाल दिया. तभी मीना इठलाते हुए बोली, ‘‘अरे, यह क्या कर रहे हो, थोड़ा सब्र तो करो.’’

‘‘कुआं जब सामने हो तो प्यासे को सब्र थोड़े ही होता है.’’ कहते हुए जगदीश ने उस का मुंह चूम लिया.

‘‘तुम्हारी इन नशीली बातों ने ही तो मुझे अपना दीवाना बना रखा है. न दिन को चैन मिलता है और न रातों को. पता है, जब मैं मुकेश के साथ होती हूं तो केवल तुम्हारा ही चेहरा मेरे समाने होता है.’’ मीना ने इतना कह कर जगदीश के गालों को चूम लिया.

जगदीश से भी रहा नहीं गया, वह मीना को बांहों में उठा कर पलंग पर ले गया. इस से पहले कि वे कुछ कर पाते, दरवाजा खटखटाने की आवाज आई. इस आवाज को सुनते ही उन के दिमाग से वासना का बुखार उतर गया. मीना ने जल्दी से अपने अस्तव्यस्त कपड़ों को ठीक किया और दरवाजा खोलने भागी. जैसे ही उस ने दरवाजा खोला, सामने पति को देख कर उस के चेहरे का रंग उड़ गया.

‘‘तुम इतनी जल्दी कैसे आ गए?’’ मीना हकलाते हुए बोली.

‘‘क्यों… क्या मुझे अपने घर आने के लिए भी किसी की इजाजत लेनी होगी? अब दरवाजे पर ही खड़ी रहोगी या मुझे अंदर भी आने दोगी.’’ कहते हुए मुकेश ने मीना को एक ओर किया और अंदर घुसा तो सामने जगदीश को देख कर उस का माथा ठनका.

‘‘अरे, तुम कब आए?’’ मुकेश ने पूछा तो जगदीश ने कहा, ‘‘बस अभीअभी आ रहा हूं.’’

मीना का व्यवहार मुकेश को कुछ अजीब सा लग रहा था, उस ने पत्नी की तरफ देखा. वह घबरा सी रही थी. उस के बाल बिखरे हुए थे, माथे की बिंदिया भी उस के गले पर चिपकी हुई थी. यह सब देख कर शक होना लाजिमी था. जगदीश भी उस से नजरें नहीं मिला पा रहा था. ठंड में भी उस के माथे पर पसीना छलक रहा था. मुकेश उस से कुछ पूछता, उस से पहले ही वह वहां से भाग गया.

उस के जाते ही मुकेश ने पत्नी से पूछा, ‘‘यह जगदीश यहां क्या करने आया था?’’

‘‘मुझे क्या पता, तुम से मिलने आया होगा.’’ असहज होते हुए मीना बोली.  ‘‘लेकिन मुझ से तो कोई ऐसी

बातें नहीं की.’’

‘‘अब मैं क्या जानूं, यह तो तुम्हें ही पता होगा.’’ मीना ने कहा तो मुकेश गुस्से का घूंट पी कर रह गया. उस के मन में पत्नी को ले कर शक पैदा हो गया. मुकेश ने सख्ती का रुख अख्तियार करते हुए पत्नी पर निगाह रखनी शुरू कर दी और हिदायत दे दी कि जगदीश से वह आइंदा न मिले. वह पत्नी की पिटाई भी करने लगा. पति की सख्ती के बावजूद मीना जगदीश से कई बार मिली. मीना को प्रेमी से चोरीछिपे मिलना अच्छा नहीं लगता था. उधर जगदीश भी चाहता था कि मीना जीवन भर उस के साथ रहे. लेकिन यह इतना आसान नहीं था. अपना स्वार्थ पूरा करने के लिए उन दोनों ने मुकेश को ठिकाने लगाने की योजना बना डाली.

22-23 सितंबर की रात 8 बजे मुकेश ने रोजाना की तरह खाना खाया. उस से पहले वह जम कर शराब पी चुका था और काफी नशे में था. खाना खाने के बाद मुकेश सोने के लिए पहली मंजिल पर बने कमरे में चला गया. उस के सोते ही मीना ने जगदीश को फोन कर के बुला लिया. सुबह 4 बजे के करीब मीना और जगदीश ने गहरी नींद में सो रहे मुकेश को दबोच लिया और उस के हाथपैर बांध दिए. फिर उसे जीवित अवस्था में ही उठा कर पड़ोसी ज्ञान सिंह के खाली पड़े मकान के आंगन में छत से फेंक दिया. जमीन पर गिरते ही मुकेश गंभीर रूप से घायल हो गया.

वह दर्द से तड़पने लगा. मुकेश के बेटे कल्लू ने यह सब होते हुए अपनी आंखों से देख लिया, लेकिन डर की वजह से वह चुपचाप आंखें बंद किए बिस्तर पर ही लेटा रहा. इस के बाद जगदीश वहां से चला गया. मुकेश के गिरने की आवाज से ज्ञान सिंह के परिवार वालों की नींद टूट गई. वे उठ कर आंगन की तरफ आए तो रस्सी से बंधे मुकेश को देख कर हतप्रभ रह गए. उन के शोर मचाने पर आसपड़ोस के अन्य लोग भी वहां आ गए. जब तक मीना वहां पहुंची, तब तक मुकेश की आवाज बंद हो चुकी थी. वहां आते ही मीना घडि़याली आंसू बहा कर रोने लगी. मुकेश की हालत गंभीर बनी हुई थी. वह बोल नहीं पा रहा था. उसी हालत में उसे जिला अस्पताल ले जाया गया.

बासप्रिया गांव में मुकेश के मामा हरद्वारी और उस की बहन राजबेटी रहती थी. उन्हें भी घटना की सूचना दी गई तो वे भी जिला अस्पताल पहुंचे. मुकेश की गंभीर हालत को देखते हुए शाहजहांपुर जिला अस्पताल से उसे बरेली रेफर किया गया, लेकिन बरेली पहुंचने से पहले ही उस ने दम तोड़ दिया. तब मुकेश की लाश को वापस घर ले आया गया. दोपहर बाद करीब 2 बजे किसी ने इस की सूचना निगोही थानापुलिस को दे दी. सूचना पा कर थानाप्रभारी आशीष शुक्ला पुलिस टीम के साथ तुरंत मुकेश के घर पहुंच गए. उन्होंने घटनास्थल और लाश का निरीक्षण करने के बाद लाश पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भेज दी.

थानाप्रभारी ने मुकेश की बहन राजबेटी से पूछताछ की तो उस ने अपनी भाभी मीना और जगदीश के अवैधसंबंधों की जानकारी उन्हें देते हुए शक जताया कि उस की हत्या में इन दोनों का ही हाथ है. उधर मुकेश के बेटे कल्लू ने भी मां की करतूत का खुलासा कर दिया. थानाप्रभारी आशीष शुक्ला ने राजबेटी की तहरीर पर मीना और उस के आशिक जगदीश के खिलाफ भादंवि की धारा 302 और 304 के तहत मुकदमा दर्ज करा कर दोनों को गिरफ्तार कर लिया. दोनों ने पूछताछ के दौरान अपना जुर्म कुबूल कर लिया. इस के बाद उन्हें सीजेएम की अदालत में पेश किया गया, जहां से दोनों को न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. UP Crime

कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

Love Story in Hindi : प्यार का गुलाल

Love Story in Hindi : शराबखोरी की दोस्ती हमेशा घातक होती है, खास कर तब जब शराबी दोस्त की नजर जवान बीवी पर पड़ जाए. संतोष ने सब से बड़ी गलती यही की कि वह अपने दोस्त लक्ष्मण को घर में बुला कर शराब पिलाने लगा. जब लक्ष्मण और संतोष की पत्नी सत्यरूपा के बीच अवैधसंबंध बन गए तो संतोष की शामत आनी ही थी. 4  अक्तूबर की सुबह की बात है. लोगबाग रोजाना की तरह उठ कर अपने दैनिक कार्यों में लग गए थे. तभी खेतों की ओर गए किसी व्यक्ति ने तालाब के किनारे खून से लथपथ

पड़ी लाश देखी. इस के बाद जल्दी ही यह बात आग की तरह पूरे इलाके में फैल गई. जहां लाश पड़ी थी, वह क्षेत्र लखनऊ के थाना विभूति खंड मे आता था. तालाब किनारे लाश पड़ी होने की खबर सुन कर विभूति खंड के ही मोहल्ला बड़ा भरवारा में रहने वाली सत्यरूपा भी वहां पहुंच गई. उस का पति संतोष रात से गायब था. लाश देख कर वह दहाड़ मारमार कर रोने लगी. लाश उस के पति संतोष साहू की थी.

इसी बीच किसी ने इस मामले की सूचना थाना विभूति खंड को दे दी. सूचना पा कर थानाप्रभारी देवेंद्र दुबे पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. उन्होंने लाश का निरीक्षण किया. मृतक संतोष की उम्र करीब 45 साल थी. उस के पेट पर किसी तेज धारदार हथियार से कई वार किए गए थे, जिस से पेट में गहरे घाव लगे थे. लाश के पास ही उस की साइकिल पड़ी थी. मृतक की पत्नी के अनुसार उस के पास मोबाइल भी था, लेकिन कपड़ों की तलाशी में उस का मोबाइल नहीं मिला था.

थानाप्रभारी देवेंद्र दुबे ने सत्यरूपा से पूछताछ की तो उस ने बताया कि बीती रात संतोष अपने बेटे राकेश के साथ मछली खरीदने निकला था. मछली खरीद कर संतोष ने राकेश को घर भेज दिया था और खुद कुछ देर में आने की बात कह कर कहीं चला गया था. जब वह काफी देर तक नहीं लौटा तो उस ने फोन किया, लेकिन उस का मोबाइल बंद मिला. वह पूरी रात उस का नंबर मिलाती रही, लेकिन मोबाइल बराबर बंद ही मिला. सवेरा होते ही उस ने पति की तलाश शुरू की. पड़ोस में ही टिंबर का काम करने वाले सोनू को साथ ले कर जब वह पति को तलाश रही थी, तभी उसे तालाब किनारे एक लाश पड़ी होने की खबर मिली. इस के बाद वह तुरंत तालाब किनारे पहुंच गई.

सत्यरूपा ने बताया था कि संतोष राजगीर था और इन दिनों वह एक डाक्टर के घर पर काम कर रहा था. गत दिवस उसे पैसे मिले थे जिन में से थोड़े उस ने घर में दे दिए, बाकी अपने पास रख लिए थे. सत्यरूपा ने आशंका भी जताई थी कि कहीं लूट का विरोध करने पर उस के पति का कत्ल न कर दिया गया हो? प्राथमिक पूछताछ और काररवाई के बाद थानाप्रभारी दुबे ने संतोष की लाश को पोस्टमार्टम के लिए मैडिकल कालेज भेज दिया. थाने लौट कर उन्होंने सत्यरूपा की तहरीर के आधार पर अज्ञात हत्यारों के खिलाफ भादंवि की धारा 302 के तहत मुकदमा दर्ज करा दिया.

थानाप्रभारी देवेंद्र दुबे ने सब से पहले संतोष के फोन नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई. सीडीआर के मुताबिक संतोष के नंबर पर 3 अक्तूबर यानी घटना वाली रात आखिरी काल लखनऊ के थाना गुडंबा के आदिलनगर निवासी लक्ष्मण साहू ने की थी. पुलिस ने जब लक्ष्मण साहू के बारे में जानकारी जुटाई तो पता चला कि पेशे से लक्ष्मण भी राजगीर था और संतोष का करीबी दोस्त था. संतोष के घर उस का काफी आनाजाना था. यहां तक कि वह संतोष की गैरमौजूदगी में भी उस के घर आताजाता था और काफी देर तक रुकता था. इस से अनुमान लगाया गया कि यह मामला अवैधसंबंधों का हो सकता है. संभव है संतोष के विरोध करने पर उस की हत्या की गई हो.

संदेह हुआ तो थानाप्रभारी देवेंद्र दुबे ने 7 अक्तूबर को लक्ष्मण और सत्यरूपा को हिरासत में ले कर उन से कड़ाई से पूछताछ की. थोड़ी सी सख्ती करने पर उन दोनों ने संतोष की हत्या का जुर्म कुबूल लिया. इतना ही नहीं, लक्ष्मण ने अपने सहयोगियों के नाम भी बता दिए. पूछताछ के बाद पुलिस ने निखिल उर्फ पिंकू निवासी विकासनगर, लखनऊ और अजय चौहान उर्फ मुक्कू निवासी लखनऊ विश्वविद्यालय आवासीय परिसर को भी गिरफ्तार कर लिया. दरअसल, छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले का मूल निवासी संतोष साहू अपने परिवार के साथ लखनऊ के विभूति खंड में बड़ा भरवारा में रहता था. वह राजगिरी का काम करता था.

संतोष का काम ठीक चल रहा था, जिस की वजह से परिवार का भरणपोषण करने में उसे कोई दिक्कत नहीं होती थी. काम के दौरान ही एक दिन संतोष की मुलाकात लखनऊ के थाना गुडंबा के आदिलनगर मोहल्ले में रह रहे लक्ष्मण साहू से हुई. लक्ष्मण भी छत्तीसगढ़ के कमरधा जनपद के गांव पिपरिया थारा का रहने वाला था. वह लखनऊ में आदिलनगर में किराए पर रह कर राजगिरी का काम करता था. वह था तो शादीशुदा, लेकिन अकेला रहता था. उस के बीवीबच्चे कमरधा में ही रह रहे थे.

पहली मुलाकात में ही संतोष और लक्ष्मण कुछ इस तरह घुलमिल गए, मानो पुराने दोस्त हों. पीनेपिलाने वालों के बीच अकसर ऐसा ही होता है. एक ही राज्य से होने और खानेपीने के शौकीन होने की वजह से दोनों में अच्छी पटने लगी. लक्ष्मण ने संतोष को कई अच्छे काम दिलाए. इसी वजह से संतोष उस की दोस्ती पर पूरी तरह कुर्बान था. जब भी खुशी की कोई बात होती, दोनों खूब जश्न मनाते. पीनेपिलाने की महफिल हर बार लक्ष्मण के कमरे पर ही जमती थी.

एक दिन जब एक काफी बड़ा काम मिला तो संतोष बोला, ‘‘लक्ष्मण, आज खुशी का दिन है, इसलिए जश्न होना चाहिए.’’

‘‘जरूर,’’ लक्ष्मण चहका, ‘‘चलो, कमरे पर चलते हैं, वहीं बोतल खाली करेंगे.’’

‘‘तुम्हारे कमरे पर बहुत महफिलें हो चुकीं, आज तुम मेरे घर चलो,’’ संतोष बोला, ‘‘मेरी घर वाली बहुत बढि़या नौनवेज पकाती है. घर में बैठ कर शराब का भी मजा आएगा और मीट का भी.’’

‘‘अगर ऐसी बात है तो आज रहने दो,’’ लक्ष्मण ने अपनी राय जाहिर की, ‘‘अगले हफ्ते होली है, उस दिन दोहरा जश्न मनाएंगे.’’

‘‘होली का जश्न भी हो जाएगा,’’ संतोष अपनी खुशी नहीं दबा पा रहा था, ‘‘मुझे इतना बड़ा काम मिला है, इसलिए आज भी दावत होनी चाहिए.’’

लक्ष्मण संतोष की खुशी कम नहीं करना चाहता था. उस की बात मान कर वह उस के साथ उस के घर चला गया. घर में संतोष की पत्नी और बच्चे मौजूद थे. संतोष ने लक्ष्मण को उन सब से मिलवाया. चूंकि संतोष अपनी पत्नी सत्यरूपा से अकसर लक्ष्मण की बात किया करता था, इसलिए वह उस से मिल कर खुश हुई. लक्ष्मण सत्यरूपा को देख कर आश्चर्य में रह गया. कई बच्चों की मां हो कर भी उस के रूपलावण्य में कमी नहीं आई थी. न उस की त्वचा की दमक फीकी पड़ी थी और न ही पेट या कूल्हों पर चर्बी की परत जमी थी. उस के चेहरे में कशिश थी और मुसकान कातिलाना.

संतोष बोतल और मीट साथ लाया था. वह मीट वाली थैली सत्यरूपा को देते हुए बोला, ‘‘जल्दी से बढि़या मीट पका. ऐसा कि लक्ष्मण भी अंगुलियां चाटता रह जाए.’’

सत्यरूपा मीट ले कर किचन में चली गई तो संतोष लक्ष्मण के साथ शराब पीने बैठ गया. लक्ष्मण बातें करते हुए शराब तो संतोष के साथ पी रहा था, लेकिन उस का मन सत्यरूपा में उलझा हुआ था और उस की निगाहें लगातार उसी का पीछा कर रही थीं. जैसेजैसे नशा चढ़ता गया, वैसेवैसे उस की निगाहों में सत्यरूपा नशीली होती गई. शराब का दौर खत्म हुआ तो सत्यरूपा खाना परोस कर ले आई. खाना खा कर लक्ष्मण ने उस की दिल खोल कर तारीफ की. सत्यरूपा भी उस की बातों में खूब रस ले रही थी. खाना खाने के बाद लक्ष्मण अपने कमरे पर लौट गया.

इस के बाद लक्ष्मण जब भी संतोष से मिलता, उसे होली की दावत की याद दिलाना नहीं भूलता. लक्ष्मण को भी होली का बेसब्री से इंतजार था. उस ने मन ही मन सोच लिया था कि उसे होली में कैसे हुड़दंग मचाना है. उसे संतोष से कम, सत्यरूपा से ज्यादा होली खेलनी थी. सत्यरूपा को छूने, टटोलने और दबाने का इस से बेहतर मौका और कोई नहीं मिल सकता था. भाभी संग होली खेलने की रस्म भी है और दस्तूर भी. कुछ भी कर गुजरो, केवल एक ही जुमले में सारी खताएं माफ, ‘बुरा न मानो होली है.’ लक्ष्मण ने इसी हथियार को आजमाने का फैसला कर लिया था. उसे पूरा यकीन था कि होली में अगर वह मनमानी करेगा तो सत्यरूपा बुरा नहीं मानेगी.

आखिर इंतजार की घडि़यां खत्म हुईं और होली आ गई. होली के दिन 2 बजे तक रंग चला. उस के बाद लक्ष्मण ने नहाधो कर साफसुथरे कपड़े पहने और संतोष के घर पहुंच गया. दोस्त से रंग खेलने के लिए संतोष रंगों से सना बैठा था. लक्ष्मण को साफसुथरा आया देख कर संतोष ने रंग खेलने के बजाय उसे केवल गुलाल लगाया और गुझिया खिलाई. फिर उसे बैठाते हुए बोला, ‘‘मैं जरा नहा लूं, उस के बाद दोनों आराम से बैठ कर पिएंगे.’’

संतोष कपड़े ले कर बाथरूम में जा घुसा. लक्ष्मण को जैसे इसी समय का इंतजार था. उस ने साथ लाए पैकेट से गुलाल निकाला और अंदर पहुंच गया. सत्यरूपा उसे आंगन में मिल गई. वह उसे देखते ही चहका, ‘‘भाभी, होली मुबारक हो.’’ उस ने सत्यरूपा के गाल पर अंगुली से थोड़ा गुलाल लगा दिया. सत्यरूपा भी उसे होली की बधाई देते हुए बोली, ‘‘भाभी से होली खेलने आए हो तो ढंग से खेलो. यह क्या कि अंगुली से थोड़ा गुलाल लगा दिया.’’

लक्ष्मण ने सत्यरूपा की बात का गलत मतलब निकाला. फलस्वरूप उस की हसरतें जोश में आ गईं. उस की मुट्ठी में गुलाल था ही, अच्छा मौका देख उस ने गुलाल वाला हाथ सत्यरूपा के वर्जित क्षेत्रों तक पहुंचा दिया और उन्हें रंगने लगा. सत्यरूपा उस के गुलाल से सने दोनों हाथ पकड़ कर कसमसाते हुए बोली, ‘‘छोड़ो, यह क्या पागलपन है?’’

‘‘बुरा न मानो होली है.’’ लक्ष्मण ने कहा और अंगुलियों का खेल जारी रखा. सत्यरूपा किसी तरह उस से अपने आप को छुड़ा कर बोली, ‘‘अभीअभी नहाई थी, अब फिर से नहाना पड़ेगा.’’

‘‘नहा लेना,’’ लक्ष्मण हंसते हुए बोला, ‘‘साल भर में रंगों का त्यौहार एक ही दिन तो आता है.’’

सत्यरूपा के इस व्यवहार से यह बात साफ हो गई कि उस ने लक्ष्मण की इस अमर्यादित हरकत का बुरा नहीं माना था. लक्ष्मण वह नहीं समझ सका कि ऐसा होली की वजह से हुआ था, सत्यरूपा भी उस के जैसा भाव अपने मन में पाले हुए थी. इस हकीकत को जानने के लिए उस ने फिर से उसे बांहों में भर कर रंग लगाना शुरू कर दिया. सत्यरूपा को जिस तरह पुरजोर विरोध करना चाहिए था, उस ने वैसा विरोध नहीं किया. शायद उसे लक्ष्मण की यह हरकत अच्छी लगी थी. शायद वह कुछ देर और यूं ही लक्ष्मण की बांहों में सिमटी रहती, लेकिन तभी उसे संतोष के बाथरूम से बाहर निकलने की आहट सुनाई दी तो उस ने खुद को लक्ष्मण से अलग कर लिया.

जैसे ही संतोष बाथरूम से निकला, सत्यरूपा झट से बाथरूम में घुस गई. उसे डर था कि कहीं संतोष लक्ष्मण की हरकतों के सुर्ख निशान देख न ले. जब तक संतोष ने कपड़े पहने, तब तक लक्ष्मण ने भी गुलाल से सने हाथ धो लिए. इस के बाद वह कमरे में बैठ गया. नहाधो कर संतोष शराब की बोतल, पानी, गिलास और नमकीन ले आया. इस के बाद दोनों ने जाम से जाम लड़ाने शुरू कर दिए. सत्यरूपा भी नहा कर आ चुकी थी. हया से उस के गाल अब भी लाल हो रहे थे. वह दूर खड़ी अजीब सी नजरों से लक्ष्मण को देख रही थी.

सत्यरूपा के इस व्यवहार से लक्ष्मण को लगा कि सत्यरूपा भी उस की तरह ही मिलन को प्यासी है. अगर वह पहल करेगा तो शायद वह इनकार न करे. यही सोच कर उस ने उसी दिन सत्यरूपा पर अपने प्यार का रंग चढ़ाने का निश्चय कर लिया. लक्ष्मण ने मन ही मन योजना बना कर खुद तो कम शराब पी, संतोष को जम कर शराब पिलाई. देर रात शराब की महफिल खत्म हुई तो दोनों ने खाना खाया. लक्ष्मण ने भरपेट खाना खाया, जबकि संतोष चंद निवाले खा कर एक तरफ लुढ़क गया.

लक्ष्मण की मदद से सत्यरूपा ने संतोष को चारपाई पर लिटा दिया. इस के बाद वह हाथ झाड़ते हुए बोली, ‘‘अब इन के सिर पर कोई ढोल भी बजाता रहे तो भी यह सुबह से पहले जागने वाले नहीं.’’ इस के बाद उस ने लक्ष्मण की आंखों में झांकते हुए भौंहें उचकाईं, ‘‘तुम घर जाने लायक हो या इन के पास ही तुम्हारा भी बिस्तर लगा दूं.’’

लक्ष्मण के दिल में उमंगों का सैलाब उमड़ रहा था. उसे लगा कि सत्यरूपा भी यही चाहती है कि वह यहीं रुके और उस के साथ प्यार की होली खेले. इसलिए बिना देर किए उस ने कहा, ‘‘हां, नशा कुछ ज्यादा हो गया है, मेरा भी बिस्तर यहीं लगा दो.’’

सत्यरूपा ने लक्ष्मण के लिए भी चारपाई बिछा कर बिस्तर लगा दिया और बच्चों के साथ दूसरे कमरे में सोने चली गई. लक्ष्मण की आंखों में नींद नहीं थी. उसे सत्यरूपा के साथ दिन में बिताए पल बारबार याद आ रहे थे. उस के शारीरिक स्पर्श से वह काफी रोमांचित हुआ था. वह उस स्पर्श की दोबारा अनुभूति पाने के लिए बेकरार था. संतोष की ओर से वह पूरी तरह निश्चिंत था. आखिर फैसला कर के वह दबे पैर चारपाई से उठा और संतोष के पास जा कर उसे हिला कर देखा. उस पर किसी तरह की कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई तो वह धड़कते दिल से उस कमरे की ओर बढ़ गया, जिस में सत्यरूपा बच्चों के साथ सो रही थी.

कमरे में चारपाई पर बच्चे लेटे थे, जबकि सत्यरूपा जमीन पर बिस्तर लगा कर लेटी थी. कमरे में जल रही लाइट बंद कर के लक्ष्मण सत्यरूपा के पास जा कर उस के बिस्तर पर लेट गया. जैसे ही उस ने सत्यरूपा को बांहों में भरा वह दबी जुबान में बोली, ‘‘मनमानी कर तो चुके, अब क्या करने आए हो, जाओ यहां से.’’

‘‘उस वक्त तो बनावटी रंग लगाए थे, अब तुम्हें अपने प्यार के असली रंग में सराबोर करने आया हूं. कह कर उस ने सत्यरूपा को अपने अंदाज में प्यार करना शुरू कर दिया. इस के बाद तो 2 जिस्मों के अरमानों की होड़ सी लग गई. बदन से कपड़े उतरते गए और हसरतें बेलिबास हो गईं. जल्दी ही उन के बीच वह संबंध बन गए, जो सिर्फ पतिपत्नी के बीच में होने चाहिए. एक ने अपने पति के साथ बेवफाई की थी तो दूसरे ने दोस्त के साथ दगाबाजी.’’

उस रात के बाद सत्यरूपा और लक्ष्मण एकदूसरे को समर्पित हो गए. सत्यरूपा लक्ष्मण के साथ रंगरलियां मनाने लगी. उस ने लक्ष्मण को अपना सब कुछ मान लिया. यही हाल लक्ष्मण का भी था. सत्यरूपा के साथ मौजमस्ती करने के लिए लक्ष्मण हर दूसरेतीसरे दिन संतोष के घर महफिल जमाने लगा. संतोष को वह नशे में धुत कर के सुला देता और बाद में सत्यरूपा के बिस्तर पर पहुंच जाता. जब लक्ष्मण की रातें अकसर संतोष के घर में गुजरने लगीं तो पड़ोसियों में कानाफूसी शुरू हो गई कि खानेपीने तक तो ठीक है, लेकिन पराए मर्द को घर में सुलाना कैसी दोस्ती है. जरूर कहीं कुछ गड़बड़ है.

लोगों ने तांकझांक की तो लक्ष्मण और सत्यरूपा के संबंध का भेद खुलने में देर नहीं लगी. इस के बाद तो उन के अवैधसंबंध के चर्चे आम हो गए. आसपड़ोस में फैली बात संतोष के कानों तक पहुंची तो उस ने सत्यरूपा से पूछा. इस पर उस ने कहा कि वह उस का दोस्त है, उस के साथ ही खातापीता, उठताबैठता है. इस में वह क्या कर सकती है, लोगों का तो काम ही दूसरों की गृहस्थी में चिंगारी लगाना होता है.

इस के बाद संतोष ने फिर कभी सत्यरूपा से इस संबंध में कोई बात नहीं की. लेकिन सत्यरूपा और लक्ष्मण के दिमाग में यह बात आ गई कि आखिर कब तक वे इस तरह संतोष और दुनिया वालों की नजरों से बच पाएंगे. इस का कोई न कोई स्थाई हल निकालना ही होगा. दोनों ने इस मुद्दे पर काफी सोच विचार किया तो नतीजा यही निकला कि संतोष को बिना रास्ते से हटाए वे दोनों एकसाथ अपनी जिंदगी की शुरुआत नहीं कर सकते. दोनों की सहमति बनी तो योजना बनते देर नहीं लगी.

इसी योजना के तहत लक्ष्मण ने अपने दोस्तों निखिल उर्फ पिंटू और अजय चौहान उर्फ मुक्कू से संतोष की हत्या करने की बात की तो दोनों ने हत्या के लिए 20 हजार रुपए मांगे. लक्ष्मण खुशी से पैसे देने के लिए तैयार हो गया. पेशगी के तौर पर उस ने दोनों को 5 हजार रुपए दे भी दिए. 3 अक्तूबर की रात लक्ष्मण अपने दोनों साथियों निखिल और अजय के साथ हनीमैन चौराहे पर पहुंचा. उस ने संतोष को काम दिलाने के बहाने वहीं से उस के मोबाइल पर बात की. सुन कर संतोष खुश हुआ तो लक्ष्मण ने उसे साइट दिखाने को कहा. वह आने को तैयार हो गया.

संतोष उस वक्त अपने बेटे राकेश के साथ मछली खरीदने के लिए मछली मंडी आया था. लक्ष्मण का फोन सुनने के बाद उस ने मछली खरीद कर बेटे राकेश को दे दी और कुछ देर में घर आने की बात कह कर उसे घर भेज दिया. इस के बाद संतोष साइकिल से हनीमैन चौराहे पर पहुंच गया. वहां लक्ष्मण उसे अपने 2 साथियों के साथ मिला. चारों ने एक ठेके पर बैठ कर शराब पी. शराब पीने के बाद लक्ष्मण और उस के साथी टहलने का बहाना बना कर उसे रेलवे लाइन के किनारे तालाब के पास ले गए. वहां दूरदूर तक कोई नहीं दिख रहा था.

सुनसान जगह देख कर लक्ष्मण ने निखिल और अजय के साथ मिल कर संतोष को दबोच लिया और उस के पेट पर चाकू से ताबड़तोड़ कई वार कर दिए, जिस से संतोष जमीन पर गिर कर कुछ देर तड़पा, फिर हमेशा के लिए शांत हो गया. उसे मारने के बाद लक्ष्मण ने फोन कर के सत्यरूपा को उस की हत्या की जानकारी दे दी और तीनों वहां से फरार हो गए. पुलिस काल डिटेल्स के सहारे उन तक पहुंची तो घटना का खुलासा होने में देर नहीं लगी. सत्यरूपा और लक्ष्मण से पूछताछ के बाद पुलिस ने निखिल और अजय को भी गिरफ्तार कर लिया. पुलिस ने उन की निशानदेही पर घटनास्थल के पास की झाडि़यों से हत्या में इस्तेमाल किया गया चाकू भी बरामद कर लिया.

मुकदमे में चारों आरोपियों के नाम दर्ज करने के बाद पुलिस ने उन्हें उसी दिन सीजेएम की अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. Love Story in Hindi

— कथा

UP News : हत्या को बना न पाए आत्महत्या

UP News : 15 साल की आशू और 19 साल के राहुल निषाद को साथसाथ पढ़ते हुए ही प्यार हो गया था. कई साल बाद जब उन के प्यार की पोल खुली, तब तक उन के संबंध बहुत गहरे हो चुके थे. घर वालों ने उन के प्यार पर नकेल कसने की कोशिश की, लेकिन असफल रहे. अंत में यह जोड़ा भी औनर किलिंग के गर्त में इस तरह समा गया कि…

उत्तर प्रदेश का कुशीनगर जिला एक पर्यटनस्थल के रूप में जाना जाता है. यहां देशविदेश से बौद्ध भिक्षु घूमने आया करते हैं. बताया जाता है कि यहीं पर गौतम बुद्ध ने अपनी अंतिम सांस ली थी, इसलिए यह जिला देशविदेश में काफी प्रसिद्ध है. इसी जिले के तमकुहीराज थाना अंर्तगत परसौनी गांव में 58 वर्षीय रामदेव कुशवाहा अपने परिवार के साथ रहता था. परिवार में 3 बेटियां थीं. पत्नी की कई साल पहले बीमारी से मृत्यु हो गई थी. बेटियों के अलावा रामदेव के कोई बेटा नहीं था.

रामदेव के बड़े भाई के 3 बेटे थे, इसलिए उन्हें कभी इस बात का मलाल नहीं हुआ कि उन्हें बेटा क्यों नहीं पैदा हुआ. बड़े भाई के दूसरे नंबर का बेटा, जिस का नाम सिकंदर कुशवाहा था, दुखसुख में चाचा रामदेव के पास हर घड़ी खड़ा रहता था. उन की एक आवाज पर कड़ी धूप हो या चाहे तूफान आ जाए, उन का आदेश सिरआंखों पर रख पहले फरमाइश पूरी करता था.

रामदेव सिकंदर को बेटे की तरह मानते थे और उस के लिए हमेशा समर्पित रहते थे. उस की बातों और भावनाओं को सिर माथे लगाए रखते थे. बेटियां भी सिंकदर को अपने सगे भाई से कम नहीं समझती थीं. हर साल रक्षाबंधन के त्योहार पर सिकंदर की कलाई पर राखी बांध कर उस से ढेरों आशीर्वाद लेती थीं. इस दिन सिकंदर दिल खोल कर बहनों को आशीर्वाद देता था.

बात 30 जून, 2025 की रात की है. गांव के पट्टीदारी में एक बारात आई थी. उस बारात में रामदेव कुशवाहा भी पूरे परिवार के साथ आमंत्रित थे. वह तीनों बेटियों विमला, सुमन, आशू और बेटे सिकंदर के साथ लड़की के घर बारात में पहुंचे थे. वहां पहुंच कर सभी पार्टी एंजौय करने में मशगूल हो गए थे. सिकंदर अपने हमजोलियों के साथ मस्त था तो रामदेव की सब से छोटी बेटी आशू कुशवाहा अपनी बहनों और सहेलियों के साथ पार्टी एंजौय करने में मस्त थी.

पार्टी एंजौय करतेकरते आशू कहीं नजर नहीं आ रही थी. चचेरा भाई सिकंदर भले ही पार्टी एंजौय कर रहा था, लेकिन उस का पूरा ध्यान पार्टी नहीं सिर्फ आशू पर था. वह क्या कर रही है, किस से मिल रही है, उन के बीच क्या बातचीत कर रही है, घूमघूम कर यही निगरानी वह कर रहा था. अचानक से जब आशू पार्टी में कहीं नहीं दिखी तो उस का माथा ठनक गया. पागल कुत्ते के माफिक वह आशू को पार्टी में इधरउधर ढूंढने लगा. वह कहीं नहीं दिखी. चाचा रामदेव ने भी सिकंदर को हिदायत दी थी कि आशू पर निगरानी रखे. इतना समझाने के बावजूद अगर उस के पांव उस के बस में नहीं होते हैं तो इज्जत बचाने के लिए जो अच्छा लगे, फैसला कर सकते हो.

रंगेहाथों पकड़ी गई आशू

बहन आशू को ढंूढतेढूंढते सिकंदर पार्टी वाली जगह से थोड़ा बाहर निकला तो अंधेरे में उसे किसी के फुसफुसाने की आवाज सुनाई दी. वह दबे पांव और आहिस्ताआहिस्ता वहां पहुंचा तो उसे आशू दिख गई. वह अपने प्रेमी राहुल निषाद से बातें कर रही थी. पास खड़े चचेरे भाई को देख कर आशू एकदम सकपका गई. उस का चेहरा पीला पड़ गया था. बहन की इस हरकत पर सिकंदर गुस्से से लाल हो गया. उस ने आव देखा न ताव, बहन की बाजू पकड़ कर खींचता हुआ वहां से ले कर घर चल दिया.

”क्या कर रहे हो भैया?’’ आशू दर्द से बिलबिलाई और भाई की मजबूत पकड़ से छूटने की कोशिश की, ”दर्द हो रहा है, छोड़ो मेरा हाथ. टूट जाएगा.’’

”तुझे दर्द हो रहा है, हाथ टूट जाएगा तेरा, चल घर चल.’’ घसीटते हुए सिकंदर आगे बोला, ”बताता हूं तुझे. घर की इज्जत डुबोते हुए तुझे तब दर्द नहीं हो रहा था, बेशरम कहीं की.’’

”मेरा हाथ छोड़ दो.’’

”तू घर तो चल पहले, फिर तेरा हाथ भी छोड़ दूंगा और तेरी अच्छे से खातिर भी करूंगा. तूने समझ क्या रखा है हमें. इतना समझाने के बाद भी तेरे कान पर जूं तक नहीं रेगती और तू फिर उस लुच्चे से चोंच मिलाने चली गई. तेरी इस गुस्ताखी की तो आज सजा मिल कर ही रहेगी. थोड़ी देर तू और रुक जा. चाचा को आ जाने दे. उस के बाद बताता हूं तेरे को.’’ कहता हुआ सिकंदर आशू को कमरे में धकेल कर बाहर से दरवाजे पर सिटकनी लगा दी.

गुस्से के मारे सिकंदर का नथुना फूलपिचक रहा था और बदन थरथरा रहा था. उस समय वह अपने काबू में नहीं था. क्षण भर बाद जैसेतैसे उस ने खुद पर काबू पाया और मोबाइल निकाल कर चाचा रामदेव को फोन कर के फौरन घर आने को कह दिया. जिस लहजे में सिकंदर ने बात की थी, उस से रामदेव को समझने में देर नहीं लगी थी कि वह बहुत गुस्से में है. फिर वह सोचने लगे, अभी तो वह यहीं था, कब घर चला गया और ऐसी क्या बात हो गई कि उस ने तुरंत घर पहुंचने को कहा है.

रामदेव खाना बीच में छोड़ कर बहू रामदुलारी और बेटियों को साथ ले कर लंबेलंबे डग भरते हुए घर निकल पड़े. थोड़ी देर में वह अपने घर पहुंचे तो देखा कि सिंकदर दरवाजे पर खड़ा था और लंबीलंबी सांसें ले रहा था, ”सिकंदर, क्या बात हो गई, जो तुम ने फौरन घर बुला लिया, खाने भी नहीं दिया. आखिर क्या बात है?’’

”आप को खाना खाने की पड़ी है? सुनोगे तो आप के पैरों तले से जमीन खिसक जाएगी.’’

”बात बताओ, जलेबी की तरह गोलगोल मत घुमाओ, आसमान टूट पड़ा या जमीन फट गई? बात क्या है, जो तुम इतने गुस्से में हो.’’

”न आसमान टूट पड़ा और न ही जमीन फट पड़ी, सुनोगे तो आप भी गुस्से से दहकने लगोगे.’’

”अब मुझ से और सब्र नहीं हो रहा, जो कहना है जल्दी कह.’’ रामदेव ने इधरउधर देखते हुए भतीजे सिकंदर से सवाल किया, ”यहां सब तो दिख रहे हैं, लेकिन आशू कहीं दिख नहीं रही है, कहां है? पार्टी से आई नहीं क्या?’’

”अरे चाचा, जब हम पार्टी में मशगूल थे तब वह घर के पिछवाड़े अपने यार की बाहों में चिपकी झप्पी ले रही थी. वहां जब कहीं नहीं दिखी तो मैं ने उसे ढूंढना शुरू किया, तब वह पकड़ में आई थी. उसे पकड़ कर घर लाया और कमरे में बंद कर दिया हूं. फडफ़ड़ा रही है, बंद कमरे में आजाद होने के लिए.’’

”क्या कह रहे हो?’’ रामदेव भतीजे की बात सुन कर गुस्से से तमतमा उठा, ”उस बेशरम नालायक की इतना मजाल, बारबार समझाने के बावजूद भी उस के सिर से राहुल के इश्क का भूत उतर नहीं रहा है, आज तो उस ने सारी हदें ही पार कर दीं, इस गुस्ताखी की सजा तो उसे जरूर मिलेगी. खोल री दरवाजा. जवानी का सारा पानी नींबू की तरह निचोड़ नहीं दिया तो… रोजरोज की बदनामी का किस्सा ही खत्म कर देते हैं,  खोल दरवाजा सिकंदर, जल्दी खोल.’’

चाचा रामदेव का आदेश पा कर सिकंदर ने दरवाजा खोल दिया. एलईडी की सफेद रोशनी से कमरा नहा रहा था और आशू दीवार के एक कोने से दुबकी, डरीसहमी घुटने मोड़ कर बैठी हुई थी. रामदेव की नजर जैसे ही उस की नजर से टकराई, गुस्से से लाल हो गया. उस ने आव देखा न ताव, उस पर लातघूसों की बरसात शुरू कर दी.

डरीसहमी आशू अपनी जान की भीख मांगती रही, उन के सामने गिड़गिड़ाती रही, लेकिन इंसान से हैवान बन चुके रामदेव ने उस की एक न सुनी. कल तक जिस बेटी की एक आवाज पर सारी दुनिया को सिर पर उठा लेने को तैयार था, आज वही पिता पूरी तरह शैतान बन चुका था, ”तुझे बारबार समझाया था बेशरम, उस आवारा राहुलवा से दूर रहना, मत करना नैन मटक्का. तेरे चलते गांव में मेरी कितनी बदनामी हो रही है, लेकिन तूने मेरी एक न सुनी, करती रही नैन मटक्का तो ले भुगत.’’

पीटपीट कर मार डाला फेमिली वालों ने

रामदेव, चचेरा भाई सिकंदर और उस की पत्नी रामदुलारी तीनों मिल कर आशू पर हैवानों की तरह टूट पड़े और जिसे जो हाथ मिला, उसी से तब तक मारते रहे, जब तक उस की मौत न हो गई. लहूलुहान आशू अपने ही खून में डूबी फर्श पर औंधे मुंह निढाल पड़ी हुई थी. थोड़ी देर बाद जब उन का गुस्सा शांत हुआ और होश में आए तो तीनों में से सिकंदर ने उसे हिलाडुला कर देखा. उस के शरीर में कोई हलचल नहीं हो रही थी. वह मर चुकी थी. इस के बाद उन्होंने लाश पर चादर डाल दी और दरवाजे पर ताला जड़ दिया.

फिर तीनों एक पेट हो हत्या की बात हजम कर गए. घर के सभी सदस्यों को धमका दिया था कि किसी ने भी इस घटना को घर से बाहर किया तो उस का भी वही हाल होगा, जो आशू का हुआ है. इसलिए चुप रहने में सब की भलाई है आशू की निर्मम हत्या करने बाद भी तीनों का गुस्सा शांत नहीं हुआ था. उसी रात उन्होंने आशू के प्रेमी राहुल को भी जान से मार डालने की योजना को अंतिम रूप दे दिया. योजना के अनुसार, अगली सुबह यानी पहली जुलाई के दिन सुबह से ही सिकंदर राहुल को गांव में यहांवहां ढंूढता रहा, लेकिन वह उसे कहीं नजर नहीं आया. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर गया तो गया कहां? कहीं दिख क्यों नहीं रहा है वह उसे.

इकहरे बदन वाला सिकंदर था तो एकदम दुबलापतला, लेकिन दिमाग से शातिरों का शातिर था. काफी देर तक मंथन करने के बाद उस ने राहुल तक पहुंचने का एक नायाब और आसान सा रास्ता निकाल ही लिया. उसे पता था विनय और विकास नाम के 2 युवक उस के जिगरी यार थे. तीनों में गहरी छनती थी. किसी तरह उन्हें अपनी ओर मिला लें तो काम आसान हो सकता है. फिर क्या था, यह सोच कर वह मन ही मन गदगद हो उठा और विनय और विकास से जा मिला.

”हैलो विनय, कैसे हो?’’ मुसकराते हुए सिकंदर आगे बोला, ”आओ, चलो चाय पीते हैं.’’

उस समय विनय अपने दोस्त विकास के साथ गांव के बीच स्थित चाय की दुकान पर खड़ा था और राहुल का इंतजार कर रहा था.

”नहीं भैया, मैं चाय नहीं पीता.’’ विनय ने सामान्य तरीके से उत्तर दिया.

”तो बिसकुट ही खा लो,’’ कह कर सिकंदर ने डिब्बे में रखे 4 बिसकुट निकाले और 2 बिसकुट विनय की ओर और 2 बिसकुट विकास की ओर बढ़ाए. दोनों ने बिसकुट पकड़ लिए और खाने लगे. फिर बड़ी चालाकी से अपनी बातों में दोनों को उलझाते हुए वहां से बाहर ले गया और बातों बातों में उस से राहुल के बारे में पूछा कि राहुल कहां है, आज दिख नहीं रहा. आशू उसे याद कर रही थी, मिलना चाहती थी उस से, तभी तो मैं तुम्हारे पास मिलने आया हूं. तुम दोनों उस के सब से अच्छे दोस्त हो, मेरी बात उस से करा सकते हो क्या? तुम उसे यहां बुला दो. बड़ा एहसान होगा तुम दोनों का.’’

”इस में एहसान की क्या बात है भैया,’’ इस बार विकास बोला था, ”मैं अभी फोन कर के बुला देता हूं. दोस्त दोस्त के काम न आए तो फिर दोस्ती किस काम की.’’

सिकंदर ने दोनों की थोड़ी तारीफ क्या कर दी थी, वे चने के झाड़ पर चढ़ गए. वाहवाही में विकास ने फोन कर के राहुल को चाय की दुकान पर बुला लिया. लोमड़ी से ज्यादा शातिर सिकंदर तो यही चाहता था, किसी तरह राहुल बिल से बाहर निकले. उस के बाद क्या करना है, पहले से सोच रखा था. विनय और विकास शातिर सिकंदर के दिमाग को पढ़ नहीं सके और दोनों उस के चक्रव्यूह में फंस गए. दोस्त विकास का फोन रिसीव करते ही राहुल चाय की दुकान पर पहुंच गया. जैसे ही उस की नजर सिकंदर पर पड़ी तो वह घबरा गया और वापस मुडऩे लगा. बड़ी मुश्किल से शिकार चंगुल में फंसा था और उस के हाथों से फिसल रहा था. वह उसे हाथों से फिसलने देना नहीं चाहता था.

वह राहुल के नजदीक जा कर बोला, ”डरो मत भाई, जो होना था सो हो गया. मुझे अपनी गलतियों का पश्चाताप है, माफी चाहता हूं. आशू तुम से मिलना चाहती है. मैं तुम्हें उस से मिलाना चाहता हूं. मिलना चाहोगे?’’

कह कर सिकंदर ने राहुल के चेहरे को पढऩे की कोशिश की कि उस के दिमाग में क्या चल रहा है. राहुल कुछ सोच कर आशू से मिलने के लिए तैयार हो गया था. उस ने अपने साथ विनय और विकास को भी चलने के लिए तैयार कर लिया था. आगेआगे सिकंदर और राहुल चल रहे थे, पीछेपीछे विनय और विकास. उस ने राहुल को भरोसा दिला दिया था कि घर पर चाचा रामदेव नहीं हैं, किसी काम से बाहर गए हुए हैं और शाम तक आएंगे. तभी वह प्रेमिका आशू से मिलने के लिए तैयार हुआ था.

इधर बातोंबातों में उस ने कब चाचा रामदेव को फोन कर ‘शिकार खुद बलि चढऩे के लिए आ रहा है, सतर्क हो जाएं.’ कह कर उन्हें अलर्ट कर दिया था. इस की भनक न तो राहुल को लगी थी और न ही विनय और विकास को ही. राहुल निषाद को देखते ही सिकंदर का खून खौल उठा था, लेकिन अपनी भावनाओं को उन के सामने जाहिर नहीं होने दिया था. उस के दिल में कसक तो इस बात की थी कि इसी कमीने के चलते बहन को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा था तो ये कैसे जिंदा रहे. इसे भी बहन की तरह तड़पतड़प कर मरना होगा, बस किसी तरह घर तक पहुंच जाए, फिर देखेंगे क्या होता है.

इधर भतीजे से सूचना मिलते ही रामदेव सतर्क हो गया था और बहू को भी सतर्क कर दिया था ताकि शिकार चंगुल से छूट कर भाग न सके. उसे भी जान से मार देना होगा. इस कमीने की वजह से इज्जत तारतार हुई है, किसी कीमत पर जिंदा बच कर जाना नहीं चाहिए.

एक ही कमरे में मार डाला प्रेमीप्रेमिका को

घर पहुंचते ही सिकंदर के शरीर में जैसे शैतानी ताकत कुलांचे मारने लगी. गजब की फुरती आ गई थी उस में. उस ने राहुल को अपनी दोनों मजबूत भुजाओं में कस कर जकड़ लिया. जोरजोर से आवाज दे कर चाचा रामदेव को बाहर बुलाया. राहुल खुद को सिकंदर की भुजाओं में जकड़ा देख समझ गया कि उस के साथ बड़ा धोखा हुआ है. उस ने दोस्तों के साथ मिल कर धोखा किया है. राहुल ने सिकंदर की मजबूत बाहों से आजाद होने के लिए बहुत दम लगाया था, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. उस की मजबूत पकड़ से वह आजाद नहीं हो सका. चाचाभतीजा दोनों मिल कर उसे उसी कमरे में धकेल कर ले गए थे, जहां पहले से आशू की लाश पड़ी थी.

इधर सिकंदर ने विनय और विकास को धमका कर अपने पक्ष में मिला लिया था कि अगर किसी से कुछ भी कहा तो दोनों को भी अपनी जान से हाथ धोना पड़ सकता है, इसलिए भलाई इसी में है कि हमेशा के लिए अपनी जुबान बंद कर लें. सिकंदर की धमकियों से दोनों बुरी तरह डर गए और चुप हो गए. उस ने दोनों को दूसरे कमरे में बंद कर दिया था. भतीजा सिकंदर, चाचा रामदेव और बहू रामदुलारी तीनों मिल कर उस पर टूट पड़े. लाठी, डंडे और लातघंूसों से उसे मारने लगे.

राहुल जान बचाने के लिए भीख मांग रहा था. कमरे में चीखताचिल्लाता इधरउधर भाग रहा था, लेकिन उन के कानों पर जूं तक नहीं रेंगी. गुस्से से लाल हुए तीनों बस लाठी, डंडे की बरसात करते रहे. इस से भी जब उन का मन नहीं भरा तो सिकंदर दरवाजे पर रखी एक ईंट उठा लाया और उसी ईंट से राहुल के सिर के पीछे जोरदार वार किया. ईंट का वार इतना जोरदार था कि पल भर में उस की आवाज शांत हो गई और उस का शरीर निढाल हो कर शांत हो गया.

सिकंदर ने राहुल को हिलाडुला कर देखा. उस की सांसें टूट चुकी थीं. शरीर में कोई हरकत नहीं हो रही थी. वह मर चुका था. सिर से खून का रिसाव हो रहा था. लाश देख कर तीनों नफरत भरी हुंकार भर और लाश वहीं छोड़ कर कमरे से बाहर निकल आए और फिर उस कमरे में दाखिल हुए, जहां मृतक राहुल के दोस्तों विनय और विकास को बंद कर के रखा था. शातिर सिकंदर ने दोनों को धमकाते हुए इस शर्त पर वहां से जाने दिया कि वह जब भी उसे बुलाएगा, दोनों को आना होगा और यहां जो कुछ भी हुआ है, अगर किसी से भी कुछ कहा तो उन्हें भी जान से मार देंगे, इसलिए चुप रहने में ही दोनों की भलाई है.

रामदेव के घर में 2 लाशें पड़ी हुई थीं. इस के बावजूद उन के चेहरे पर कोई शिकन तक नहीं थी. तीनों खुद को बचाते हुए कोई ऐसा रास्ता निकालना चाहते थे, जिस में यह घटना मर्डर के बजाए आत्महत्या की लगे. इस के लिए मतबूत और लंबी रस्सी की जरूरत थी. सिकंदर बाजार से नायलोन की 2 बंडल मजबूत और मोटी रस्सी खरीद कर ले आया और घर में छिपा कर रख दी और रात होने का इंतजार करने लगे.

इधर राहुल को घर से निकले 4 घंटे बीत चुके थे. वह तक घर वापस नहीं पहुंचा था. यह देख कर उस के फेमिली वाले परेशान हो गए थे. राहुल की मम्मी ने फोन कर के पति अशरफी निषाद को बताया कि 10 बजे का निकला बेटा अभी तक घर नहीं लौटा है, मेरा दिल बैठा जा रहा है. उस समय अशरफी अपनी नौकरी पर थे. बेटे के गायब होने की सूचना मिलते ही वह बुरी तरह परेशान हो गए और ड्यूटी से छुट्टी ले कर वापस घर आ गए.

अशरफी ने अपने गांव और आसपास के गांवों में बेटे की तलाश की, लेकिन उस का कहीं पता नहीं चला. देखते ही देखते गांव में राहुल के गायब होने की खबर जंगल में आग की तरह फैल गई थी. बेटा जब कहीं नहीं मिला तो शाम को थाना तमकुहीराज में गुमशुदगी की सूचना दर्ज करा दी. उसी दौरान रामदेव तक खबर पहुंची तो उस के हाथपांव फूल गए. आननफानन में उस ने भी बेटी आशू के रहस्यमय तरीके से गायब होने की खबर गांव में फैला दी, ताकि उस पर किसी का शक न जाए.

अचानक आशू और राहुल दोनों के एक साथ गायब होने से गांव में यही चर्चा होने लगी कि कहीं दोनों गांव से भाग तो नहीं गए. यह बात सभी पहले से जानते थे कि दोनों के बीच में 4 सालों से लव अफेयर है. इसे ले कर 2 बार पंचायत भी बुलाई गई थी. दोनों के अचानक गायब हो जाने से गांव में खुसरफुसर शुरू हो गई. मामले की नजाकत को समझते हुए उसी शाम रामदेव भतीजे सिकंदर के साथ तमकुहीराज थाने पहुंचा और बेटी आशू के रहस्यमय तरीके से गायब होने की सूचना दर्ज करा दी, ताकि वह ऐसा कर के खुद सुरक्षित रह सके.

तमकुहीराज के इंसपेक्टर सुशील कुमार शुक्ला को जब परसौनी गांव की आशू और राहुल के गायब होने की तहरीर मिली थी. छानबीन में पता चला कि दोनों एकदूसरे से प्रेम करते थे. इस के अलावा कोई और खास जानकारी नहीं मिल सकी थी. पुलिस अपनी आगे की काररवाई में जुटी रही. पुलिस रामदेव कुशवाहा तक पहुंच पाती, इस से पहले वे दोनों लाशों को ठिकाने लगा देना चाहता था. क्योंकि 2-2 लाशों को हजम कर पाना रामदेव के बस की बात नहीं थी. वह रात गहराने का बेसब्री से इंतजार कर रहा था. रात जैसे गहराई, सिकंदर ने विनय को काल कर के उस की स्कूटी मंगाई.

हत्या को दे दिया आत्महत्या का रूप

विनय और विकास चुपके से उस समय अपने घर से स्कूटी ले कर निकले थे, जब घर वाले गहरी नींद में जा चुके थे. सिकंदर की धमकी से दोनों बुरी तरह डरे हुए थे. अगर वे उस का साथ नहीं देंगे तो उन्हें अपनी जान से हाथ धोना पड़ सकता था. सिकंदर, विनय और विकास के सहारे स्कूटी पर पहले आशू की लाश घर से करीब 400 मीटर दूर आम के घने बगीचे में पहुंचा दी. वहां पहले से रामदेव मौजूद था. फिर चाचा रामदेव को वहीं छोड़ कर विनय और विकास को साथ ले कर वापस घर आया और राहुल की लाश को स्कूटी पर लाद कर बगीचे में पहुंचा दी.

फिर साथ लाई रस्सी को 2 बराबर टुकड़ों में काट कर बारीबारी से दोनों लाशें आम की मजबूत डाली से लटका दी, ताकि देखने से लगे कि दोनों ने आत्महत्या की है, इस काम को अंजाम देने में सिकंदर का साथ चाचा रामदेव, विनय और विकास तीनों ने बराबरबराबर साथ दिया था. लाश ठिकाने लगाने के बाद चारों ने राहत भरी सांसें लीं और मोबाइल की टौर्च के उजाले में बगीचे के चारों ओर देखा. जब चारों आश्वस्त हो गए कि उन्हें कोई देख नहीं रहा है, तब वहां से अपनेअपने घरों को लौट गए और घर जा कर इत्मीनान से सो गए.

अगले दिन यानी 2 जुलाई, 2025 की सुबह परसौनी गांव का तापमान उस समय बढ़ गया था, जब गांव से 400 मीटर दूर आम के बगीचे में आशू और राहुल की पेड़ से लटकती हुई लाशें मिलने की खबर गांव वालों को मिली. खबर मिलते ही गांव वाले मौके पर पहुंच गए थे. बेटे की लाश मिलने की सूचना जैसे ही अशरफी को मिली तो उन के तो हाथपांव ढीले हो गए और गश खा कर नीचे गिर गए और घर में कोहराम मच गया था. लाश की सूचना मिलते ही दिखावे के तौर पर रामदेव और सिकंदर भी मौके पर पहुंच गए थे, ताकि किसी को उन पर कोई शक न हो.

थोड़ी देर में ये खबर तमकुहीराज थाने तक पहुंच गई. सूचना मिलते ही इंसपेक्टर सुशील कुमार शुक्ला आननफानन में पुलिस टीम के साथ मौके पर जा पहुंचे और निरीक्षण में जुट गए. प्रथमदृष्टया मामला आत्महत्या का नहीं, मर्डर का लग रहा था. पेड़ की जिस ऊंचाई से मृतक लटक कर आत्महत्या किए थे, उन के घुटने जमीन पर मुड़े हुए थे और दोनों की जीभ भी बाहर नहीं निकली थी. अमूमन आत्महत्या के केस में मृतक की जीभ बाहर निकल जाती है, यही बात इंसपेक्टर शुक्ला को खटक रही थी. घटनास्थल की छानबीन के दौरान मौके से एक ईंट बरामद हुई थी. ईंट पर खून लगा हुआ था, जो सूख चुका था. पुलिस ने साक्ष्य के तौर पर वह अपने कब्जे में ले ली.

इंसपेक्टर सुशील कुमार शुक्ला ने घटना की सूचना एसपी संतोष कुमार मिश्रा और एएसपी निवेश कटियार को दे दी. सूचना पा कर दोनों पुलिस अधिकारी और फोरैंसिक टीम मौके पर पहुंच गई थी. एजेंसी अपनी जांच में जुट गई थी. कागजी काररवाई पूरी कर लाशों को पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल कुशीनगर भेज दिया और आगे की काररवाई में जुट गई थी. अगले दिन 3 जुलाई, 2025 को आशू और राहुल की पोस्टमार्टम की रिपोर्ट इंसपेक्टर सुशील कुमार शुक्ला के सामने थी. जिसे पढ़ कर वह चौंके बिना नहीं रहे. उन्हें यकीन ही नहीं हो रहा था कि जो उन की आंखें देख रही हैं, वो सच हो सकता है. रिपोर्ट में उल्लेख था कि दोनों मौतों के बीच में करीब 8 से 10 घंटे का अंतर है.

दोनों ने आत्महत्या नहीं की थी, बल्कि उन की मौतें सिर पर लगे गहरे जख्म की वजह से हुई थीं. जिस का मतलब शीशे की तरह साफ था कि दोनों की हत्या कर के उसे आत्महत्या का रूप देने की कोशिश की गई थी. पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिलने के बाद इंसपेक्टर शुक्ला की जांच की दिशा तेज हो गई थी. वैज्ञानिक साक्ष्य, कौल डिटेल्स और मुखबिर की निशानदेही ने पुलिस के शक की सूई रामदेव कुशवाहा की ओर घुमा दी थी. तब उन का शक और पुख्ता हो गया था, जब घटनास्थल से बरामद ईंट रामदेव के दरवाजे पर रखे ईंट के मार्का आपस में मेल खा लिए थे. फिर क्या था? पुलिस अधिकारियों के दिशानिर्देश से सप्ताह के भीतर दूध का दूध और पानी का पानी अलग हो गया.

शक के आधार पर तमकुहीराज पुलिस 9 जुलाई, 2025 की दोपहर रामदेव कुशवाहा को उस के घर से हिरासत में ले लिया. उस से कड़ाई से पूछताछ की तो उस ने पुलिस के सामने घुटने टेक दिए और अपना जुर्म कुबूल कर लिया कि उस ने अपने भतीजे सिकंदर, बहू रामदुलारी देवी, राहुल के दोस्तों विनय और विकास की मदद से बेटी आशू और उस के प्रेमी राहुल को मौत के घाट उतारा था. बेटी और उस के प्रेमी ने इज्जत का बट्टा लगा दिया था. गांव और इलाके में थूथू हो रही थी. बेटी को बहुत समझाया, लेकिन उस के सिर से राहुल के इश्क का भूत उतर ही नहीं रहा था तो क्या करता? इज्जत की खातिर उसे ये खौफनाक कदम उठाना ही पड़ा.

किशोर उम्र में हो गया आशू और राहुल को प्यार

रामदेव कुशवाहा कुशीनगर जिले के तमकुहीराज थानाक्षेत्र के परसौनी गांव में परिवार सहित रहता था. परिवार में 3 बेटियां ही थीं. तीनों बेटियों में सब से छोटी बेटी आशू थी. आशू गजब की खूबसूरत थी. उस पर किसी की नजर पड़ जाती तो उस के सुंदर चेहरे से जल्दी नजर हटती नहीं थी. आशू थी तो 15 साल की. उस का अंगअंग विकसित हो चुका था. देखने से कोई नहीं कह सकता था कि पूरी तरह परिपक्व नहीं है. औसत कदकाठी की आशू नागिन सी लहराती कालीकाली जुल्फें खुली छोड़ कर जब घर से बाहर निकलती थी, मनचलों के दिलों पर छुरियां चल जाती थीं. बिलकुल कीचड़ में खिली कमल जैसी थी.

राहुल निषाद आशू का पड़ोसी था. वह 19 साल का था और 10वीं में उसी स्कूल में पढ़ता था, जहां आशू पढ़ती थी. वह 8वीं क्लास की छात्रा थी. करीब 4 साल पहले ही राहुल आशू के जुल्फों में इस कदर कैद हो चुका था कि अपना दिल उस के नाम कुरबान कर दिया था. तब उस की उम्र 15 साल के करीब रही होगी और आशू यही कोई 12 साल के करीब रही होगी, जिस ने अपने दिल के कोरे पन्ने पर प्रेमी राहुल का नाम लिख दिया था. कच्ची उम्र में आशू राहुल को दिल दे बैठी थी.

समय के साथ दोनों ने अपने प्यार का इजहार कर दिया था. उम्र के साथसाथ दोनों का प्यार भी प्रगाढ़ होता चला गया था. जिस कच्ची उम्र में दोनों ने प्यार की दहलीज पर पांव रखा था, उस उम्र में उन्हें प्यार का मतलब समझ में आ रहा था या नहीं, ये बता पाना मुश्किल होगा, लेकिन उन के बीच में गजब का आकर्षण था. आलम यह था कि एक दिन वे एकदूसरे को देखे बिना रह नहीं पाते थे.

चूंकि दोनों के घर अगलबगल थे, इसलिए वे एकदूसरे के घरों को आतेजाते भी थे. घंटों बैठ कर वे आपस में प्रेमभरी मीठी बातें करते थे. घर वालों को उन पर शक नहीं हुआ कि उन के बीच में क्या खिचड़ी पक रही है. घर वाले यही समझते थे कि दोनों बच्चे हैं, एक ही स्कूल में पढ़ते हैं, साथसाथ आतेजाते हैं तो आपस में स्कूल को ले कर बातचीत करते होंगे, इसलिए उन पर कोई खास तवज्जो नहीं देते थे.

धीरेधीरे 3 साल बीत गए थे. आखिरकार उन के प्यार की गगरी फूट ही गई. इश्क का भांडा फूटते ही घर वालों की चिंता बढ़ गई. रामदेव कुशवाहा को तो ऐसा लगा, जैसे उन के पैरों तले से जमीन खिसक गई हो. जिस बेटी को वह अभी छोटी सी बच्ची समझ रहा था, वह तो प्रेम की पाठशाला में अव्वल निकली. माथे पर हाथ रख कर रामदेव जमीन पर बैठ गया था. बेटी ने इज्जत की धज्जियां उड़ा दी थीं. गांव में रामदेव की किरकिरी मची हुई थी. उस का घर से निकलना मुश्किल हो गया था. वह जहां जाता था, वहीं बेटी के प्यार के चर्चे चटखारे ले कर होते थे. सुनसुन कर रामदेव के कान पक गए. अब और बदनामी उस से बरदाश्त नहीं हो पा रही थी, इसलिए उस ने कारगर फैसला करने का निर्णय ले लिया था.

रामदेव कुशवाहा ने बेटी को समाज की ऊंचनीच का पाठ तो पढ़ाया ही, साथ ही भतीजे सिकंदर को साथ ले कर उस के प्रेमी राहुल के घर पहुंच कर पिता अशरफी निषाद से राहुल की शिकायत करते हुए आड़े हाथों लेते हुए उसे समझाया, ”देख अशरफी, तुम से या तुम्हारे परिवार से मेरा कोई बैर नहीं है. पड़ोसी होने के नाते हमारे रिश्ते अच्छे हैं. हम दोनों एकदूसरे के दुखसुख में बराबर खड़े रहते हैं. बता, सच है कि नहीं.’’

”सच तो है.’’ असमंजस की स्थिति में अशरफी ने उत्तर दिया, ”लेकिन बात क्या है, रामदेव भाई. आज आप ये कैसी बात कर रहे हैं? मेरी समझ में कुछ भी नहीं आ रहा है. क्या कहना चाहते हो?’’

”सब समझ में आ जाएगा अशरफी, चिंता मत कर. तुझे सब समझाता हूं. लगता है, इसी उमर में तेरा बेटा जवान हो गया है.’’

”मतलब?’’

”मतलब यह कि आजकल तेरा बेटा राहुल मेरी बेटी के पीछे हाथ धो कर पड़ा है.’’

”मेरा बेटा तुम्हारी बेटी के पीछे हाथ धो कर पड़ा है, अभी भी मैं समझा नहीं. जो कहना है, खुल कर कर कहो भाई.’’

”लगता है तुम्हारी खोपड़ी में बात उतरी नहीं.’’ इस बार रामदेव का भतीजा सिकंदर गुर्राते हुए बोला था, ”चाचा कह रहे हैं कि तुम्हारा बेटा राहुल मेरी बहन के पीछे हाथ धो कर पड़ा है तो बात समझ में नहीं आ रही है या समझाऊं तुम्हें. देखो अशरफी चाचा, मैं तुम्हें हिंदी में समझा रहा हूं कि अपने बेटे को समझा लो. उस से कह दो कि आशू से दूरी बना ले, अगर वह दूरी नहीं बनाता है तो उस की सेहत के लिए अच्छा नहीं होगा. मैं आप को समझा कर जा रहा हूं, दोबारा उस से बातें करते या उस से मिलते देख लिया तो जान से मार दूंगा. समझा देना अपने बेटे को.’’

चेतावनी से बुरी तरह डर गए थे अशरफी

सिकंदर अशरफी निशाद को चेता कर चाचा रामदेव के साथ घर वापस लौट गया, लेकिन उस के कानों में सिकंदर की धमकी भरी बातें गंूजती रहीं. उस की धमकी से वह बुरी तरह डर गया था. राहुल उस का इकलौता बेटा था. सचमुच उस के साथ कुछ अनहोनी हो गई तो वह तो जीते जी मर जाएगा. उस शाम उस ने बेटे को बुलाया और अपने पास बैठा कर उसे समझाया कि अभी ये उम्र पढऩेलिखने की है. मन लगा कर पढ़ाई करो, जब समय आएगा तो अच्छी सी लड़की देख कर उस से तुम्हारा ब्याह रचा दूंगा. तुम आशू से दूरियां बना लो, इसी में हम सभी की भलाई है.

आशू के पापा रामदेव और उस का भाई सिकंदर धमकी दे कर गए हैं कि अगर तुम ने उस से बात की या उस से मिला तो तुम्हें जान से मार देंगे. इसलिए मेरा कहना मान ले बेटा, तू आशू नाम की उस बला से दूरियां बना ले, नहीं तो कोई अनहोनी तुम्हारे साथ हो गई तो जीवन भर हम रोते रहेंगे. मेरी बात मान ले और उस से दूरी बना ले.’’

सिर नीचे झुकाए राहुल अपने पापा की बातें ध्यान से सुनता रहा, मानो ऐसा लग रहा था कि जैसे धरती फटे और वह उस में समा जाए. उस समय उस ने पापा को भरोसा दिलाया कि दोबारा उन्हें शिकायत का मौका नहीं देगा. राहुल ने अपने पापा से झूठ बोल कर खुद को बचा लिया था. अगले दिन किसी तरह वह आशू से मिला और सारी बातें उसे बता दीं कि उस के पापा को हमारे प्यार वाली बात पता चल गई. और तुम से मिलने से मना कर रहे थे. ऐसे में आशू ने भी उसे बता दिया कि उस के घर वालों ने इज्जत की दुहाई देते हुए तुम से मिलने से मना किया है.

”चाहे कुछ भी हो जाए आशू, हमें प्यार करने से कोई रोक नहीं सकता. हमारा प्यार अमर है, क्या हुआ अगर जमाने वाले हमारे प्यार को नहीं समझते. वक्त आने दो, मैं जैसे ही अपने पैरों पर खड़ा होऊंगा, भाग कर हम दोनों शादी कर लेंगे. फिर घर लौट कर कभी नहीं आएंगे.’’ राहुल बोला.

मांबाप के समझाने का आशू और राहुल दोनों पर कोई असर नहीं हुआ था. दोनों छिपछिप कर मिलते रहे और प्यार की गाड़ी मजे से चलती रही, लेकिन उन की ज्यादा दिनों तक फर्राटे नहीं भर सकी थी. घरवालों को पता चल गया कि आशू उन की आंखों में धूल झोंक कर अपने प्रेमी से छिपछिप कर मिलती है. यह बात न तो रामदेव को हजम हुई और न ही भतीजे सिकंदर को ही. दोनों का खून खौल उठा और राहुल को सबक सिखाने की ठान लिया.

इस के बाद रामदेव कुशवाहा और सिकंदर दोनों ने मिल कर गांव में पंचायत बुलाई. पंचायत में अशरफी निषाद और राहुल को खड़ा किया. घंटों पंचायत चली. इस दौरान पंचों ने निर्णय लिया कि राहुल को समझाबुझा कर छोड़ दिया जाए, दोबारा गलती करते पकड़े जाने पर पंचायत सख्त काररवाई करने के लिए बाध्य होगी. पंचों का निर्णय सुन कर रामदेव और सिकंदर अंदर ही अंदर झुलस कर रह गए. उन्हें इस बात की कतई उम्मीद नहीं थी कि पंचायत ऐसा छोटा निर्णय ले कर राहुल को छोड़ देगी. लेकिन उन्हें पंचों के निर्णय के आगे झुकना पड़ा. सिकंदर भी चुप रहने वालों में से नहीं था. उस दिन के बाद से वह दोनों पर और कड़ी नजर रखने लगा था, ताकि मौका मिलते ही राहुल को सजा दे सके.

पंचायत में बदनामी होने के बाद अशरफी निषाद ने बेटे को टाइट कर के रखा और आशू से मिलते पर सख्त पाबंदी लगा दी. बेटे की करतूत से उसे काफी बदनामी झेलनी पड़ी थी. अब और बदनामी झेलने की क्षमता नहीं थी. लेकिन राहुल पर रत्ती भर भी फर्क नहीं पड़ा था और वह आशू से मिलताजुलता रहा. फिर यह खबर रामदेव तक पहुंच गई थी. खबर मिलते ही वह आगबबूला हो गया था और एक बार फिर पंचायत बुलाई गई. उस पंचायत में राहुल के साथसाथ आशू को भी पेश किया गया था. पंचायत के दौरान काफी हंगामा हुआ और गुस्साए सिकंदर ने भरी पंचायत में राहुल को ललकारा, जहां देखेंगे, उसे जान से मार देंगे. इस ने हमारी इज्जत की छिछालेदर मचा दी है, छोड़ूंगा नहीं किसी कीमत पर, चाहे कुछ भी हो जाए. मरना है तो उसे मरना है.

बात आई गई, खत्म हो गई. पंचायत की यह बात घटना से 2 दिन पहले यानी 28 जून, 2025 की थी. 2 दिन बाद यानी 30 जून को गांव में एक लड़की की शादी थी. शादी का कार्यक्रम रात में होना तय था. शादी में गांव के सभी लोग आमंत्रित थे. उस में रामदेव और अशरफी दोनेां का परिवार भी आमंत्रित था. सभी के साथ दोनों परिवार वाले पार्टी का आनंद ले रहे थे. इसी बीच आशू और राहुल दोनों के घर वाले जब पार्टी में व्यस्त हो गए थे, तभी मौका देख कर आशू और राहुल घर के पिछवाड़े जा पहुंचे और प्यार भरी बातें करने लगे थे. सिकंदर ने उन दोनों को पकड़ लिया. इस के बाद दोनों की हत्या कर दी गई.

पुलिस ने इस दोहरे हत्याकांड को अंजाम देने वाले रामदेव कुशवाहा के इकरारेजुर्म के बाद उस के भतीजे सिकंदर, रामदुलारी, विनय और विकास को गिरफ्तार कर लिया. पहले से दी गई अशरफी की तहरीर के आधार पर पुलिस ने भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) की धारा 103/238/61 (2)/315 के तहत रामदेव कुशवाहा, सिकंदर कुशवाहा, रामदुलारी देवी को जेल और नाबालिग विनय और विकास को बाल सुधार गृह भेज दिया. UP News

(कथा में विनय और विकास परिवर्तित नाम है.)

 

 

Love Story in Hindi : गुनाह प्यार, सजा मौत

Love Story in Hindi : आरती का गुनाह यही था कि उस ने नेतराम से प्यार किया और घर वालों के मना करने के बावजूद उस से कोर्टमैरिज कर ली. घर के अन्य लोगों ने इसे एक दुर्घटना माना और सोच लिया कि आरती मर गई. लेकिन राकेश इस बात को भुला नहीं सका और 7 सालों बाद उसे मौत के घाट उतार दिया.

आरती आगरा की डिफेंस कालोनी के रहने वाले लौहरे सिंह चाहर की बेटी थी. उस के अलावा उन की 3 संतानें और थीं, जिन में 2 बेटे प्रवीण, राकेश और एक बेटी बीना थी. लौहरे सिंह सेना से सूबेदार से रिटायर हुए थे. उन का बड़ा बेटा प्रवीण भी पढ़लिख कर सेना में भर्ती हो गया था. नौकरी लगते ही लौहरे सिंह ने उस का विवाह कर दिया था. इस के बाद उस से छोटी बेटी बीना का भी विवाह लौहरे सिंह ने सेना में सिपाही की नौकरी करने वाले कमल सिंह सोलंकी के साथ किया था. वह चाहते थे कि उन का छोटा बेटा भी सेना में जाए. वह अपनी छोटी बेटी आरती की भी शादी सेना में नौकरी करने वाले से करना चाहते थे, लेकिन न तो उन का छोटा बेटा सेना में गया और न ही वह छोटी बेटी आरती की शादी सेना में नौकरी वाले लड़के से कर पाए.

दरअसल, लौहरे सिंह का छोटा बेटा राकेश लाड़प्यार की वजह से बिगड़ गया था. पढ़नेलिखने के बजाय यारदोस्तों की सोहबत उसे कुछ ज्यादा अच्छी लगती थी. दोस्तों के साथ वह जो उलटेसीधे काम करता था, उस की शिकायतें घर आती रहती थीं, जिस से लौहरे सिंह परेशान रहते थे. उन्होंने बड़े बेटे प्रवीण के साथ मिल कर उसे सुधारने की बहुत कोशिश की, लेकिन उन की इस कोशिश का कोई लाभ नहीं हुआ. राकेश को न सुधरना था, न सुधरा. बेटे की वजह से लौहरे सिंह की काफी बदनामी हो रही थी. बेटे को इज्जत की धज्जियां उड़ाते देख उन्होंने सोचा कि उसे किसी रोजगार से लगा दिया जाए तो दोस्तों का साथ अपनेआप छूट जाएगा.

इस के लिए उन्होंने बगल वाले मोहल्ले चावली में आटा चक्की लगवा कर उस पर उसे बैठा दिया. उस की मदद के 15 साल के मुकेश को नौकर रख दिया. मुकेश था तो नौकर, लेकिन राकेश से उस की खूब पटती थी. जबकि मुकेश की उम्र राकेश से काफी काम थी. चक्की पर अकसर आने वाली एक लड़की पर मुकेश का दिल आ गया. मुकेश ने उसे अपने प्रेमजाल में फंसाने की बहुत कोशिश की, लेकिन लड़की ने उसे भाव नहीं दिया. चूंकि राकेश मुकेश से दोस्त जैसा व्यवहार करता था, इसलिए उस ने लड़की वाली बात राकेश को भी बता दी थी. जब लड़की ने मुकेश को भाव नहीं दिया तो राकेश ने कहा, ‘‘अगर किसी तरह तू उस लड़की से शारीरिक संबंध बना ले तो वह अपनेआप तेरी मुरीद हो जाएगी.’’

इस के बाद मुकेश उस लड़की से शारीरिक संबंध बनाने का मौका ढूंढ़ने लगा. आखिर एक दिन उसे मौका तो मिल गया, लेकिन उस में उसे राकेश को भी साझा करना पड़ा. हुआ यह कि लड़की चक्की पर आटा लेने आई तो किसी बहाने से मुकेश उसे चक्की के पीछे बने कमरे में ले गया और उस के साथ जबरदस्ती कर डाली. उस समय राकेश भी वहां मौजूद था, इसलिए इस काम में उसे साझा करना पड़ा. राकेश ने सोचा था कि इज्जत के डर से लड़की कुछ नहीं बोलेगी. लेकिन जब उस ने कहा कि वह उन की करतूत घर वालों से बताएगी तो दोनों डर के मारे उसे चक्की के अंदर बंद कर के भाग गए. बाद में लड़की ने रोते हुए शोर मचाया तो मोहल्ले वालों ने उसे बाहर निकाला.

इस के बाद पीडि़त लड़की के घर वालों ने मुकेश और राकेश के खिलाफ दुष्कर्म का मुकदमा दर्ज करा दिया. चूंकि पीडि़त लड़की नाबालिग थी, इसलिए मामले की संवेदनशीलता को देखते हुए पुलिस ने रातदिन एक कर के राकेश और मुकेश को पकड़ कर अदालत में पेश किया, जहां से राकेश को जेल भेज दिया गया तो नाबालिग होने की वजह से मुकेश को बाल सुधार गृह. मुकेश नाबालिग था, इसलिए करीब साढ़े 3 महीने बाद उसे जमानत मिल गई, लेकिन बालिग होने की वजह से राकेश की जमानत की अर्जियां एक के बाद एक खारिज होती गईं, जिस की वजह वह जेल से बाहर नहीं आ सका. यह सन 2006 की बात थी.

बेटे के जेल जाने से लौहरे सिंह की बदनामी तो हुई ही, परेशानी भी बढ़ गई थी. बेटे को जेल से बाहर निकालने के लिए वह काफी भागदौड़ कर रहे थे. इस में उन का समय भी बरबाद हो रहा था और पैसा भी. राकेश की वजह से वह छोटी बेटी आरती पर ध्यान नहीं दे पाए और उस ने भी जो किया, उस से एक बार फिर उन्हें बदनामी का दंश झेलना पड़ा. जिन दिनों राकेश ने यह कारनामा किया था, उन दिनों आरती कंप्यूटर का कोर्स कर रही थी. ग्रेजुएशन उस ने कर ही रखा था, इसलिए कंप्यूटर का कोर्स पूरा होते ही उसे एक प्राइवेट कंप्यूटर सेंटर पर कंप्यूटर सिखाने की नौकरी मिल गई. इस नौकरी में वेतन तो ठीकठाक मिल ही रहा था, इज्जत भी मिल रही थी.

आरती ने जो चाहा था, वह उसे मिल गया था. मांबाप की लाडली होने की वजह वह वैसे भी जिद्दी थी, अब ठीकठाक नौकरी मिल गई तो घर में दबंगई दिखाने लगी. आरती जो चाहती थी, वही होता था. कमाऊ बेटी थी, इसलिए मांबाप भी ज्यादा विरोध नहीं करते थे. जिस कंप्यूटर सेंटर पर आरती नौकरी कर रही थी, उसी में आगरा के थाना तेहरा (सैया) के गांव बेहरा छरई का रहने वाला नेतराम कुशवाह भी नौकरी करता था. वह चंदन सिंह की 9 संतानों में चौथे नंबर पर था. एमए करने के बाद उस ने कंप्यूटर कोर्स किया और उसी कंप्यूटर सेंटर पर शिक्षक की नौकरी करने लगा, जहां आरती नौकरी कर रही थी.

आरती और नेतराम हमउम्र और हमपेशा थे, इसलिए दोनों में दोस्ती हो गई. इस के बाद दोनों साथसाथ बैठ कर चाय भी पीने लगे और लंच भी करने लगे. नेतराम को जब पता चला कि आरती डिफेंस कालोनी में रहती है और उस के पिता लौहरे सिंह चहार सेना से रिटायर सूबेदार हैं. उस का बड़ा भाई ही नहीं, बड़ी बहन का पति भी सेना में है तो उस ने हंसते हुए कहा, ‘‘आरती, तब तो तुम्हारी शादी भी किसी फौजी से ही होगी.’’

‘‘हो भी सकती है और नहीं भी हो सकती. मैं शादी उसी से करूंगी, जो मुझे अच्छा लगेगा. आप को बता दूं, यह जरूरी नहीं कि वह मेरी जाति का ही हो. वह किसी अन्य जाति से भी हो सकता है. तुम भी हो सकते हो.’’

आरती की इस बात से नेतराम हैरान रह गया. चूंकि वह कुंवारा था और आरती उसे पसंद थी. वह उस से शादी भी करना चाहता था, लेकिन जाति अलग होने की वजह से यह बात कहने की वह हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था. जबकि लड़की हो कर आरती ने यह बात कह दी थी. लगातार मिलते रहने और साथसाथ खानापीना होने से आरती और नेतराम का आपसी सामंजस्य बैठता गया और फिर उन की दोस्ती सचमुच प्यार में बदल गई. इस के बाद नेतराम आरती के घर भी आनेजाने लगा. घर वाले उसे आरती का दोस्त मानते थे, इसलिए कभी किसी ने न तो उस के घर आने पर ऐतराज जताया, न उस से मिलनेजुलने पर.

इस की सब से बड़ी वजह यह थी कि एक तो वह कमाऊ बेटी थी, दूसरे उन्हें विश्वास था कि उन की बेटी ऐसा कोई काम नहीं करेगी, जिस से उन्हें किसी तरह की दिक्कत का सामना करना पड़े. धीरेधीरे आरती और नेतराम का आपसी लगाव बढ़ता गया. उन्हें देख कर कोई नहीं कह सकता था कि वे अलगअलग जाति से हैं. समय के साथ उन के प्यार की गांठ मजबूत होती गई और वे आपस में शादी के बारे में सोचने लगे. जब इस बात की जानकारी चाहर परिवार को हुई तो घर में हंगामा मच गया. एक तो जाट परिवार, दूसरे फौजी, हंगामा तो मचना ही था. लौहरे सिंह और प्रवीण ने आरती पर बंदिशें लगानी चाहीं तो वह बगावत पर उतर आई.

उस ने साफ कह दिया कि यह जिंदगी उस की अपनी है, वह जैसे चाहे जिए. अगर उसे परेशान किया गया या बंदिश लगाई गई तो वह उन की इज्जत का भी खयाल नहीं करेगी. इस के बाद आरती ने नेतराम से कहा कि जो भी करना है, जल्द कर लिया जाए. क्योंकि जितना समय बीतेगा, तनाव बढ़ता ही जाएगा. आरती का बड़ा भाई प्रवीण नौकरी की वजह से ज्यादातर बाहर ही रहता था. छोटा भाई जेल में था. घर में मातापिता थे, वे भी बूढ़े हो चुके थे. बेटे की वजह से वे वैसे ही परेशान थे, इसलिए आरती के बारे में वे वैसे भी ज्यादा नहीं सोच पाते थे.

नेतराम के भी इरादे मजबूत थे. वह जानता था कि पढ़ीलिखी, समझदार आरती के साथ उस की जिंदगी मजे से कटेगी. आरती उस के प्यार में इतना आगे बढ़ चुकी थी कि उस का पीछे लौटना मुश्किल था. जबकि वह जानती थी कि अलग जाति होने की वजह से नेतराम से शादी करना उस के परिवार पर भारी पड़ सकता है. पूरी बिरादरी हायतौबा मचाएगी, लेकिन वह दिल के हाथों मजबूर थी. उसे अपना भविष्य नेतराम में ही दिखाई दे रहा था. यही वजह थी कि न चाहते हुए भी उस ने 12 दिसंबर, 2007 में नेतराम के साथ कोर्टमैरिज कर ली. उस दिन सुबह आरती नौकरी के लिए घर से निकली तो लौट कर नहीं आई. मां ने फोन किया तो पता चला कि उस का फोन बंद है.

ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था, इसलिए लौहरे सिंह को समझते देर नहीं लगी कि आरती कहां गई होगी. अगले दिन आरती ने फोन कर के अपनी शादी के बारे में बड़ी बहन बीना को बताया तो उन्होंने इस बात की जानकारी मांबाप को दे दी. आखिर वही हुआ, जिस का चाहर परिवार को डर था. बेटी की इस करतूत से घर वालों को गहरा आघात लगा. एक बेटा दुष्कर्म के आरोप में जेल में था, बेटी ने गैर जाति के लड़के से शादी कर ली थी. बदनामी के डर से भले ही उन्होंने कोई काररवाई नहीं की, लेकिन वे उस के इस अपराध को माफ नहीं कर सकते थे. बेटी बालिग थी, वह उस का कुछ कर भी नहीं सकते थे, इसलिए उन्होंने यह सोच कर संतोष कर लिया कि वह उन के लिए मर गई. घर के अन्य लोगों ने तो खुद को संभाल लिया, पर आरती की मां खुद को नहीं संभाल पाई और बेटी के इस निर्णय की वजह से उस की मौत हो गई.

आरती ने नेतराम से शादी कर के अपनी गृहस्थी बसा ली थी. वह उस के साथ खुश थी. पतिपत्नी दोनों ही नौकरी कर रहे थे. इस के अलावा नेतराम घर से भी संपन्न था, इसलिए उन्हें किसी तरह की कोई कभी नहीं थी. शादी के लगभग डेढ़ साल बाद आरती ने बेटे को जन्म दिया, जिस का नाम हर्षित रखा गया. आरती के घर वालों ने शादी के बाद कभी आरती के बारे में कुछ जानने की कोशिश नहीं की तो उस ने भी कभी कुछ नहीं बताया. नेतराम और आरती, दोनों ही पढ़ेलिखे और महत्वाकांक्षी थे. दोनों ठीकठाक कमाते भी थे, इस के अलावा वह घर से भी संपन्न था, इसलिए मजे से जिंदगी कट रही थी.

सन 2009 में नेतराम की मां सुमित्रा देवी का निधन हो गया था. तब तक आरती चाहर ने बीएड भी कर लिया था, इसलिए उस ने नेतराम से अपना एक स्कूल खोलने को कहा. नेतराम के पास पैसे भी थे और जमीन भी, उस ने अपने करीबी कस्बे तेहरा में मां के नाम सुमित्रा देवी कन्या इंटरकालेज खोल दिया. नेतराम खुद स्कूल का मैनेजर बन गया और पत्नी आरती को स्कूल का प्रिंसिपल बना दिया. उन का यह स्कूल जल्दी ही बढि़या चलने लगा, जिस से कमाई भी बढि़या होने लगी. इस के बाद नेतराम ने आगरा की नई विकसित हो रही कालोनी रचना पैलेस में एक प्लाट ले कर उस में 10 कमरों का बढि़या 2 मंजिला मकान बनवा लिया. इस मकान का नंबर था 93. मकान तैयार हो गया तो नेतराम पत्नी और बच्चों के साथ उसी में रहने लगा. अब तक आरती एक और बेटे की मां बन चुकी थी, जिस का नाम युवराज रखा गया था.

सन 2007 से सन 2014 तक के 7 साल कैसे बीते, पता ही नहीं चला. नेतराम तरक्की के नित नए आयाम स्थापित करते चले गए. अब वह एक टैक्निकल कालेज खोलना चाहते थे. वह अपनी एक संस्था भी चला रहे थे, जिस के अंतर्गत गरीब और असहाय बच्चों को कंप्यूटर सिखाया जाता था. राष्ट्रीय कंप्यूटर शिक्षा मिशन के अंतर्गत चल रही इस संस्था की कई जिलों में शाखाएं खुल गई थीं. इन सभी शाखाओं का कोऔर्डिनेशन नेतराम खुद कर रहे थे. नेतराम दिन दूनी रात चौगुनी उन्नति कर रहे थे. उन्हें अब किसी चीज की कमी नहीं थी. भरपूरा परिवार तो था ही, समाज में अच्छीखासी शोहरत और इज्जत मिलने के साथ पैसे भी खूब आ रहे थे. सब कुछ ठीकठाक चल रहा था कि अचानक 20 नवंबर, 2014 को आरती की हत्या हो गई.

हुआ यह कि दिन के डेढ़ बजे नेतराम ने आरती को फोन किया तो फोन नहीं उठा. कई बार फोन करने के बाद जब आरती की ओर से फोन रिसीव नहीं किया गया तो उन्हें हैरानी हुई. इस के बाद उन्होंने ऊपर की मंजिल  में रहने वाले अपने किराएदार को फोन कर के आरती से बात कराने का अनुरोध किया. किराएदार अपना मोबाइल फोन ले कर नीचे आया और ‘भाभीजी… भाभीजी…’ आवाज लगाते हुए घर के अंदर पहुंचा तो बैडरूम का नजारा देख कर उस के होश उड़ गए. उस ने शोर मचा कर पूरी कालोनी तो इकट्ठा कर ही ली, नेतराम से भी तुरंत घर आने को कहा.

5-7 मिनट में ही नेतराम घर आ गए. मोटरसाइकिल खड़ी कर के वह तेजी से घर के अंदर पहुंचे. उन के साथ कालोनी के कई लोग अंदर आ गए थे. घर के अंदर की स्थिति बड़ी ही खौफनाक थी. आरती की लाश बैड पर एक किनारे पड़ी थी, उस का सिर नीचे की ओर लटका हुआ था. गरदन से बह रहा खून फर्श पर फैल रहा था. आरती की बगल में बैठा युवराज रो रहा था. वह मर चुकी मां को उठाने के चक्कर में खून से सन चुका था. पत्नी की हालत देख कर नेतराम फफकफफक कर रोने लगे. रोते हुए ही उन्होंने अपने जिगर के टुकड़े युवराज को उठाया और किराएदार को थमा कर उसे नहला कर कपड़े बदल देने का अनुरोध किया.

अब तक उन का बड़ा बेटा हर्षित भी स्कूल से आ चुका था. मां की हालत देख कर वह भी रोने लगा. पड़ोस की औरतों ने उसे संभाला. घटना की सूचना पुलिस कंट्रोल रूम को दे दी गई थी. थोड़ी ही देर में पुलिस अधिकारियों की आधा दर्जन गाडि़यां रचना पैलेस में आ कर खड़ी हो गईं. एसएसपी शलभ माथुर, एसपी (सिटी) समीर सौरभ, सीओ (सदर) असीम चौधरी थाना ताजगंज के थानाप्रभारी मधुर मिश्रा घटनास्थल पर आ पहुंचे थे. डौग स्क्वायड, फिंगरप्रिंट एक्सपर्ट्स और फोटोग्राफर को भी बुला लिया गया था. पुलिस अधिकारियों ने बारीकी से मकान और उस कमरे का निरीक्षण किया, जिस में आरती की लाश पड़ी थी. इस मामले में डौग स्क्वायड कोई खास मदद नहीं कर सका. उस ने बैडरूम से ले कर ड्राइंगरूम तक 3-4 चक्कर लगाए और मकान से बाहर आ कर बगल वाले मकान की चारदीवारी के पास रुक गया.

पुलिस अधिकारियों ने अनुमान लगाया कि हत्यारे बैडरूम और ड्राइंगरूम के बीच चहलकदमी करते रहे होंगे. उस के बाद मकान से निकल कर बगल वाले मकान चारदीवारी के पास आए होंगे, जहां उन की मोटरसाइकिल या स्कूटर खड़ी रही होगी. मकान के निरीक्षण में पुलिस ने देखा कि हत्या के बाद हत्यारों ने बैडरूम के बगल में लगे वाशबेसिन में खून सने हाथ धोए थे. फिंगरप्रिंट एक्सपर्ट्स ने ड्राइंगरूम में रखे चाय के 2 कपों से फिंगरप्रिंट उठाए. चाय के कप और ट्रे में रखी नमकीन, मिठाई देख कर पुलिस अधिकारी समझ गए कि जिस ने भी यह कत्ल किया है, वह कोई खास परिचित रहा होगा.

अब पुलिस को यह पता करना था कि खास लोगों में ऐसा कौन हो सकता है, जो हत्या कर सकता है. पुलिस ने जब इस बारे में पूछताछ की तो पता चला कि मृतका आरती चाहर ने घर वालों के खिलाफ जा कर अन्य जाति के नेतराम कुशवाह से करीब 7 साल पहले प्रेमविवाह किया था. तब उस के घर वालों ने इस बात को अपना अपमान मान कर खामियाजा भुगतने की धमकी दी थी. पुलिस को जांच आगे बढ़ाने का एक महत्वपूर्ण सूत्र मिल गया था, लेकिन फिलहाल तो उन्हें घटनास्थल की काररवाई निपटानी थी. आवश्यक काररवाई पूरी कर के पुलिस ने आरती की लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. उसी 7 साल पुरानी धमकी के आधार पर नेतराम ने आरती के भाई राकेश चाहर के खिलाफ आरती की हत्या का मुकदमा दर्ज करा दिया.

चूंकि राकेश का एक साथी लोकेश भी अकसर नेतराम के घर आता रहता था, इसलिए नेतराम को शक था कि हत्या के समय वह भी साथ रहा होगा, इसलिए मुकदमे में उस का नाम भी शामिल करा दिया था. रिपोर्ट दर्ज होने के बाद पुलिस ने जांच को आगे बढ़ाने के लिए राकेश और लोकेश के फोन नंबर ले लिए. इस के बाद उन नंबरों पर फोन किए गए तो वे नंबर बंद पाए गए. हत्या के बाद नंबर बंद होने से पुलिस का संदेह बढ़ गया. इस मामले की जांच थाना ताजगंज का उसी दिन चार्ज संभालने वाले थानाप्रभारी मधुर मिश्रा को सौंपी गई.

उन्होंने इस मामले की जांच के लिए एक टीम बनाई, जिस में एसएसआई प्रमोद कुमार यादव, नरेंद्र कुमार, सिपाही रामन और आशीष कुमार को शामिल किया. चूंकि एक स्कूल प्रिंसिपल की दिनदहाड़े हत्या का मामला था, इसलिए सीओ सिटी असीम चौधरी भी इस मामले पर नजर रखे हुए थे. पुलिस को राकेश की तलाश थी. इसलिए पुलिस टीम उस के घर पहुंची तो घर में मौजूद उस का बड़ा भाई प्रवीण सिंह फौजी वर्दी की धौंस दिखाते हुए पुलिस से उलझ गया. नाराज पुलिस टीम उसे हिरासत में ले कर थाने आ गई. थाने में उस से पूछताछ चल रही थी कि मुखबिर से पुलिस टीम को राकेश के साथी लोकेश के बारे में पता चल गया.

पुलिस लोकेश को पकड़ कर थाने ले आई. शुरुआती पूछताछ में तो वह पुलिस को गुमराह करता रहा. उस ने एक पान वाले से भी कहलवाया कि उस दोपहर को वह उस की दुकान पर बैठ कर अखबार पढ़ रहा था. पुलिस पान वाले को भी ले आई. इस के बाद जब पुलिस ने अपने ढंग से पूछताछ की तो पान वाले ने बक दिया कि उस ने लोकेश के कहने पर झूठ बोला था. इस के बाद पुलिस ने लोकेश से सच्चाई उगलवा ली. लोकेश ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया तो उस की निशानदेही पर पुलिस ने थाना एत्माद्दौला की ट्रांस यमुना कालोनी के बी ब्लाक के मकान नंबर 3/5 से राकेश को गिरफ्तार कर लिया. सीओ असीम चौधरी दोनों को अपने औफिस ले आए, जहां की गई लगभग एक घंटे की पूछताछ में राकेश ने आरती की हत्या की जो कहानी सुनाई, वह इस प्रकार थी.

जिन दिनों आरती ने प्रेमविवाह किया था, उन दिनों राकेश जेल में था. दुष्कर्म के मामले में निचली अदालत से उसे 10 साल के कैद की सजा हुई थी. घर वालों के खिलाफ आरती की छोटीमोटी बगावतें वह पहले से ही सुनता आ रहा था, लेकिन जब बड़े भाई प्रवीण ने उसे नेतराम से विवाह की खबर सुनाई तो उस का खून खौल उठा. नेतराम कुशवाह से उसे कोई शिकायत नहीं थी, क्योंकि अगर उस की बहन आरती न चाहती तो भला उस की क्या मजाल थी कि वह आरती से जबरदस्ती कोर्टमैरिज कर लेता. उस की नजरों में इस के लिए दोषी उस की बड़ी बहन आरती थी.

राकेश ने अपने घर वालों की इज्जत बचाने के लिए आरती को खत्म करने का फैसला कर लिया. उस ने जेल से ही आरती को धमकी दी कि उस ने जो किया है, इस के लिए वह उसे सबक जरूर सिखाएगा. उसी बीच आरती की वजह से मां की मौत हो गई तो राकेश को आरती से नफरत हो गई. उस ने कसम खा ली कि कुछ भी हो, वह आरती को जीवित नहीं छोड़ेगा. राकेश जेल की जिस बैरक में सजा काट रहा था, उसी में लोकेश नाम का एक लड़का आया. वह पड़ोस के ही मोहल्ले का रहने वाला था, इसलिए राकेश से उस की दोस्ती हो गई. जल्दी ही दोनों के संबंध इतने मधुर हो गए कि वे एक ही थाली में खाना खाने लगे. उन्होंने जीवन भर इस संबंध को निभाने की कसमें भी खाईं.

राकेश और लोकेश हमउम्र थे. दोनों अच्छे दोस्त बन गए थे, इसलिए राकेश ने अपनी बहन आरती के प्रेमविवाह के बारे में बता कर पूछा कि इस मामले में क्या किया जाना चाहिए? समझदारी दिखाते हुए लोकेश ने सलाह दी कि इस मामले में अभी इंतजार करना चाहिए. आरती को उस के किए की सजा इस तरह दी जाए कि पुलिस भी पता न कर सके कि ऐसा किस ने किया होगा. आरती ने जो किया था, उस से घर के सभी लोग नाराज थे. इसलिए जब कभी कोई जेल में राकेश से मिलने आता तो उस का जिक्र जरूर छिड़ता. राकेश के लिए परेशानी यह थी कि उस के मुकदमे की कोई ठीक से पैरवी करने वाला नहीं था. मां मर चुकी थी, बाप बूढ़ा था, बड़ा भाई और बहनोई फौज में थे. जिस की वजह से वे ज्यादातर बाहर रहते थे. एक बहन थी बीना, वही कभीकभी मिलने आ जाती थी.

राकेश चाहता था कि किसी तरह हाईकोर्ट से उस की जमानत हो जाए. बूढ़े होने की वजह से पिता भागदौड़ नहीं कर पा रहे थे. इसलिए राकेश ने बीना से कहा कि वह आरती से बात कर के उस की जमानत करवा दे. बीना ने आरती को फोन कर के कहा भी कि वह जेल जा कर राकेश से मिल ले और उस की जमानत करा दे. लेकिन आरती न तो राकेश से मिलने जेल गई और न ही उस की जमानत कराई. जबकि राकेश के पिता लौहरे सिंह ने आरती को उस की जमानत कराने के लिए एक लाख रुपए नकद और इतने के गहने भी दिए थे. रुपए और गहने ले कर भी आरती ने राकेश की जमानत के प्रति ध्यान नहीं दिया.

राकेश जेल से बाहर आने के लिए छटपटा रहा था. आरती न तो उस से मिलने गई थी और न उस की जमानत कराई थी. इस से उसे लगा कि बहन उस के बारे में जरा भी नहीं सोच रही है. लगभग 6 महीने पहले हाईकोर्ट से उस की जमानत हुई. राकेश घर आ गया. बहन के व्यवहार से उस के मन में एक टीस सी उठती थी. लेकिन अभी वह जमानत पर जेल से आया था, इसलिए कोई अपराध नहीं करना चाहता था. इस के बावजूद वह बहन को उस के किए की सजा देना चाहता था. लेकिन वह यह काम इस तरह करना चाहता था कि उस पर आरोप लगने की बात तो दूर, कोई शक भी न कर सके. इस के लिए उस ने आरती से मधुर संबंध बनाने शुरू किए. जल्दी ही उस ने इस तरह संबंध बना लिए, जैसे उस से उसे कोई शिकायत नहीं है.

राकेश के बदले व्यवहार से आरती भी उसे मानने लगी थी. वह जब भी आता था, आरती उसे खूब खिलातीपिलाती थी, जाते समय कुछ न कुछ बांध भी देती थी. जरूरत पड़ने पर रुपएपैसे से भी उस की मदद करती थी. इस के अलावा अगर वह पति और बच्चों के साथ कहीं बाहर घूमने जाती थी तो उसे भी साथ ले जाती. उसी बीच लोकेश भी जेल से बाहर आ गया तो दोनों साथसाथ दिखाई देने लगे. आरती के ठाठबाट और सुखी जीवन से राकेश को ईर्ष्या हो रही थी. वह सोचता था कि अगर आरती चाहती तो बहुत पहले ही वह जेल से बाहर आ जाता. लेकिन उस ने उस की परेशानी को बिलकुल नहीं समझा. आरती भले ही राकेश का खूब खयाल रखती थी, लेकिन सही बात यह थी कि आरती बिलकुल नहीं चाहती कि राकेश उस के घर आए.

इस बात को राकेश समझ गया था, इसलिए वह खुद को अपमानित महसूस करता था. इन सब बातों से उसे लगता था कि इस तरह की बहन को सुख से जीने का कोई अधिकार नहीं है. राकेश के मन में क्या है, शायद आरती ने ताड़ लिया था. इसलिए वह उस की ओर से निश्चिंत नहीं थी. वह नेतराम से कहती भी रहती थी कि उसे राकेश से डर लगता है. जबकि नेतराम का कहना था कि राकेश तो वैसे ही कानून के शिकंजे में है, इसलिए अब वह कोई गैरकानूनी काम कर के अपनी जिंदगी बरबाद नहीं करेगा. एक दिन राकेश लोकेश को साथ ले कर आरती के घर पहुंचा. जब आरती को पता चला कि लोकेश भी जेल से छूट कर आया है तो उसे झटका सा लगा. उस ने राकेश से कहा भी, ‘‘उसे ऐसे लोगों से मेलजोल नहीं रखना चाहिए.’’

राकेश को बहन की यह बात बिलकुल अच्छी नहीं लगी. उस ने कहा, ‘‘यह मेरा देस्त है. दोस्त कैसा भी हो, दोस्त ही होता है.’’

इस के बाद राकेश आरती के घर से बाहर आया तो लोकेश से बोला, ‘‘दोस्त, मैं अपनी इस बहन को सहन नहीं कर पा रहा हूं. मेरे घर वालों के मुंह पर कालिख पोत कर देखो यह किस तरह सुख और चैन से जी रही है.’’

‘‘उस कालिख को तो इस के खून से ही धोया जा सकता है.’’ लोकेश ने कहा. राकेश भी यही सोच रहा था. साथी मिल गया तो उस का पूरा ध्यान इस बात पर केंद्रित हो गया कि परिवार की मर्यादा का उल्लंघन करने वाली बहन को कैसे सबक सिखाया जाए. आरती को भले ही राकेश पर विश्वास नहीं था, लेकिन राकेश बहन और बहनोई का विश्वास जीतने कोशिश कर रहा था. हफ्ते में 2-3 बार वह बहनबहनोई और भांजों से मिलने उन के घर आता था. उस के साथ लोकेश भी होता था. आरती के पास किसी चीज की कमी नहीं थी, इसलिए अच्छाअच्छा खिलानेपिलाने के साथ वह छोटे भाई राकेश को पौकेट मनी भी देती थी. इस की वजह यह थी कि आरती और नेतराम राकेश से अपने संबंध मधुर बना लेना चाहते थे.

26 नवंबर, 2014 को वैष्णो देवी जाने के लिए नेतराम ने पूरे परिवार का टिकट कराया था. नेतराम ने साथ ले जाने के लिए राकेश की भी टिकट करा रखी थी. जबकि राकेश बहन को सबक सिखाने का मौका तलाश रहा था. 18 नवंबर को राकेश और लोकेश आरती के यहां बैठे बातें कर रहे थे, तभी बातोंबातों में नेतराम ने कहा कि 20 नवंबर को उसे सजावट का सामान (झूमर झाड़फानूस) लेने फिरोजाबाद जाना है. यह सुन कर राकेश की आंखों में चमक आ गई. थोड़ी देर बाद राकेश लोकेश के साथ बाहर आ गया. इस के बाद उस ने लोकेश के साथ मिल कर आरती की हत्या की योजना बना डाली.

18 नवंबर की बातचीत के अनुसार, 20 नवंबर की सुबह के करीब 11 बजे नेतराम को फिरोजाबाद जाने के लिए घर से निकलना था. लेकिन इस बीच उस का प्रोग्राम बदल गया. उस ने डिजाइन पसंद करने के लिए आरती को भी साथ चलने के लिए तैयार कर लिया था. इस नए प्रोग्राम के अनुसार उसे 2 बजे के आसपास घर से निकलना था. नेतराम का बड़ा बेटा हर्षित स्कूल गया था, जिसे डेढ़ बजे तक घर आना था. आरती चाहती थी कि वह अपने हाथों से उसे खाना खिला कर फिरोजाबाद जाए.

नेतराम के फिरोजाबाद जाने के प्रोग्राम में बदलाव हो चुका है, यह राकेश और लोकेश को पता नहीं था. 20 नवंबर, 2014 दोपहर के बाद नेतराम और आरती को फिरोजाबाद जाना था, इसलिए नेतराम अपने कंप्यूटर सेंटर के काम से 2-3 घंटे में आने के लिए कह कर सेवला स्थित एक साइबर कैफे पर चला गया. आरती घर के कामों में लग गई. नेतराम के जाते ही साढ़े 10 बजे के आसपास राकेश मोटरसाइकिल से लोकेश को साथ ले कर आरती के घर के लिए चल पड़ा. आरती को सबक सिखाने की योजना राकेश ने 18 नवंबर को ही बना डाली थी, इसलिए 19 नवंबर की शाम को उस ने चाकू खरीद लिया था. हत्या करने में किसी तरह की झिझक न हो, इसलिए एकएक क्वार्टर शराब खरीद कर पी लिया.

सवा 11 बजे जब राकेश और लोकेश मोटरसाइकिल से रचना पैलेस कालोनी की ओर जा रहे थे तो उन्हें नेतराम जाता दिखाई दिया. उन्हें लगा कि वह फिरोजाबाद जा रहा है. इस के बाद दोनों एक पान के खोखे के पास खड़े हो गए. आधेपौने घंटे बाद जब उन्हें लगा कि नेतराम शहर से बाहर निकल गया होगा तो दोनों आरती के घर की ओर चल पड़े. योजनानुसार राकेश ने मोटरसाइकिल आरती के घर से कुछ दूरी पर बगल वाले मकान की चारदीवारी के पास खड़ी कर दी और इधरउधर देख कर लोकेश के साथ बहन के घर जा पहुंचा. भाई और उस के दोस्त के आने पर आरती ने फटाफट चाय बनाई और नमकीन एवं मिठाई के साथ उन्हें पीने को दी. इस के बाद उस ने कहा, ‘‘राकेश, तुम दोनों चाय पियो, तब तक मैं युवराज को नहला देती हूं.’’

यह कह कर आरती युवराज को गोद में ले कर कपड़े उतारने लगी तो राकेश ने कहा, ‘‘दीदी, आप ने कुछ देने को कहा था. लाइए उसे दे दीजिए.’’

आरती ने युवराज को लोकेश को थमाया और खुद किचन में गई. अब तक चाय खत्म हो चुकी थी. इसलिए किचन में जा कर जैसे ही आरती ने फ्रिज खोलना चाहा, पीछे से राकेश पहुंच गया. उस ने आरती के गले में पड़े दुपट्टे की लपेट कर पकड़ लिया और घसीटते हुए बैडरूम ले गया. हक्काबक्का आरती कुछ कहती, युवराज को लोकेश की गोद में देख कर डर गई कि उस के चिल्लाने पर वह उस के बेटे का अनिष्ट न कर दे. इस के बाद राकेश ने आरती को बैड पर गिरा कर चाकू से हमला कर दिया. गला रेत कर उस की हत्या करने के बाद गले की चेन और कान के कुंडल उतार लिए. इस के बाद अलमारी वगैरह खोल कर उस में रखा कीमती सामान ले कर इधरउधर फैला दिया, जिस से लगे कि यह हत्या लूट के लिए की गई है.

आरती की हत्या करने के बाद दोनों घर से निकले और मोटरसाइकिल से आराम से चले गए. लोकेश अपने घर चला गया, जबकि राकेश अपने एक दोस्त के घर जा कर लोकल न्यूज चैनल पर समाचार देखने लगा कि पुलिस की जांच किस दिशा में जा रही है. राकेश पुलिस जांच का पता लगा पाता, पुलिस ने पहले लोकेश को और फिर उस की मदद से उसे पकड़ लिया. पूछताछ के बाद पुलिस ने दोनों की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त चाकू, गहने, मोटरसाइकिल और कपड़े बरामद कर के दोनों को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

राकेश ने बहन को मौत के घाट उतार कर उस के मासूम बच्चों को अनाथ कर दिया है. लेकिन उसे न तो बहन की हत्या का कोई दुख है, न उस के बच्चों के अनाथ होने का. उस का कहना है कि बहन ने परिवार पर बदनामी का जो दाग लगाया था, उस के खून से उस ने वह दाग धो दिया है. अब उसे चाहे जो भी सजा मिले, उसे उस का कोई दुख नहीं है. Love Story in Hindi

 

UP Crime News : बहन के प्यार का साइड इफेक्ट

UP Crime News : गगन उर्फ गौतम नहीं चाहता था कि उस की सौतेली बहन नंदिनी मोहल्ले के दूसरी बिरादरी के युवक से प्यार करे. लेकिन नंदिनी भी जिद्दी थी. अपनी जिद पूरी करने के लिए उस ने भाई गगन की पूर्व प्रेमिका ममता के साथ मिल कर भाई के खिलाफ ऐसी खूनी साजिश रची कि…

घर में सभी लोगों की लाडली नंदिनी की शादी को ले कर उस के पिता ओमप्रकाश चिंतित रहते थे. उस की शादी की उम्र हो चुकी थी. वह जितनी चंचल, उतनी ही हिम्मती और बातबात पर अड़ जाने वाली थी. जिद्दी इतनी कि एक बार जो मन में ठान लिया, उसे पूरा कर के ही छोड़ती थी. मुरादाबाद की एक एक्सपोर्ट कंपनी में काम करने वाले ओमप्रकाश के खातेपीते सुखीसंपन्न परिवार में पत्नी ओमवती के अलावा बेटी नंदिनी और बेटा गगन था.

मुरादाबाद की लालबाग रामगंगा कालोनी में रहने वाले इस परिवार के सभी सदस्य सौतेलेपन की कुंठा से ग्रसित थे. वहीं सौतेलापन नंदिनी को भी भीतर ही भीतर कुछ ज्यादा ही कुरेदता रहता था. उस की बड़ी बहन पूजा की शादी हो चुकी थी. वह अपने घर में खुश थी, लेकिन नंदिनी को पड़ोस में रहने वाले प्रदीप नाम के युवक से प्यार हो गया. लेकिन वह उस की बिरादरी का नहीं था. इस के अलावा वह बेरोजगार भी था. इसी बात को ले कर गगन उस के प्रेम में रोड़ा बन बैठा था. नंदिनी गगन की भले ही सौतेली बहन थी, लेकिन वह नहीं चाहता था कि नंदिनी प्रदीप से प्यार करे. गगन अपने मातापिता को इस बारे में उकसाता भी रहता था. पिता भी गगन का ही पक्ष लेते थे. सौतेली मां कलावती का निधन भी बीते साल कैंसर से हो चुका था.

घर में नंदिनी की एकमात्र हमदर्द गगन की पत्नी राधा बन सकती थी, लेकिन उस की घर में जरा भी नहीं चलती थी. गगन नंदिनी के साथसाथ उसे भी काफी डांटडपट कर रखता था. कई बार इस वजह से नंदिनी काफी दुखी हो जाती थी और गगन के विरोधी तेवर को अपने दिल पर लेती हुई बिफर भी पड़ती थी. उस के मुंह से निकल पड़ता था, ‘‘गगन उस का दुश्मन है, क्योंकि वह सौतेला भाई जो है, अपना होता तो…’’

अब नंदिनी को यह समझ नहीं आ रहा था कि वह अपने दिल की बात कहे तो किस से? अपनी समस्या का समाधान निकाले भी तो किस की मदद ले? यही सोच कर वह हमेशा तनाव में रहती थी. प्रेमी प्रदीप के साथ वह ज्यादा समय तक मिलबैठ भी नहीं सकती थी. क्योंकि गगन उस पर हमेशा पहरेदार की तरह तना रहता था. हर बात में मिर्चमसाला लगा कर पिता को बताता था और घर में बात का बतंगड़ बना डालता था. और तो और, उस के प्रेमी को नाकारा निकम्मा कहता हुआ घर में सभी के सामने उसे काफी जलील करता था. इस बात को ले कर नंदिनी परेशान रहने लगी थी. उस के मन में तरहतरह के खयाल आतेजाते रहते थे.

अपनी समस्याओं को ले कर उधेड़बुन में एक बार नंदिनी बाजार से गुजर रही थी. तभी अचानक उस की मुलाकात ममता से हो गई. उसी ने टोका, ‘‘अरे नंदिनी तुम! काफी परेशान दिख रही हो? क्या बात है?’’

‘‘अरे ममता! तुम तो पहचानने में ही नहीं आ रही हो. तुम्हारी शादी होने वाली है क्या? बहुत दिनों बाद मिली… कैसी हो तुम?’’ नंदिनी ने चौंकते हुए उसी की तरह एक साथ कई सवाल दाग दिए.

‘‘मैं तो बस अपने दिल को बहला रही हूं. खुद को दिलासा दे रही हूं. तुम्हारे भाई ने जब से मुझे धोखा दिया है, उस के बाद समझो आज ही मूड फ्रैश करने के लिए थोड़ा बनठन कर निकली हूं… अच्छी लग रही हूं न?’’ ममता ने भी नंदिनी के अंदाज में जवाब दिया.

‘‘बहुत ही अच्छी, ग्लैमरस. तुम्हारी सुंदरता का कोई जवाब नहीं. तुम कुछ भी पहन लो हीरोइन दिखती हो…’’ नंदिनी बोली.

‘‘बसबस, किसी की अधिक तारीफ नहीं करते. उस से उस की मुराद पूरी होने में अड़चन आ जाती है.’’ ममता बोली.

‘‘तुम्हारी मुराद क्या है?’’ नंदिनी तपाक से पूछ बैठी.

‘‘बदला,’’ नंदिनी के लहजे में ममता बोली.

‘‘एेंऽऽ बदला… यह कोई मुराद हुई? मगर किस से?’’ चौंकती हुई नंदिनी ने पूछा.

‘‘तुम्हारे उसी भाई से, जो मेरी जिंदगी उजाड़ कर तुम्हारी जिंदगी भी बरबाद करने पर तुला है.’’ ममता गुस्से में बोली.

‘‘कह तो तुम बिलकुल सही रही हो, मगर क्या कर सकती हूं, समझ नहीं पा रही हूं.’’ नंदिनी ने कहा.

वह मायूसी के साथ आगे कहने लगी, ‘‘गगन सौतेला भाई है न, इसलिए अपना सौतेलापन खुल कर दिखा रहा है. प्रदीप को मेरा और पूरे परिवार का दुश्मन बताता है. पापा को उस के खिलाफ काफी भड़का दिया है. पापा से बोलता है कि उन की जायदाद पर प्रदीप की नजर है. तुम तो जानती हो उसे, वह ऐसा बिलकुल ही नहीं है. वह मुझे बहुत प्यार करता है. मैं भी उसे बहुत चाहती हूं.’’

‘‘देखो, नंदिनी तुम्हारे चाहने और नहीं चाहने से क्या होता है. गगन कभी नहीं चाहता है कि तुम्हारी प्रदीप के साथ शादी हो. इस के पीछे छिपा हुआ उस का मकसद समझो. वह जानता है कि तुम्हारी प्रदीप से शादी होने पर तुम इसी मोहल्ले में रहने लगोगी… और फिर अपने पिता की संपत्ति पर हक जताने लगोगी. इसलिए वह तुम्हारी शादी कहीं दूर करवाना चाहता है.’’ ममता ने समझाया.

इसी के साथ उस ने यह भी कह दिया कि उन दोनों का एक ही दुश्मन है गगन. गगन की प्रेमिका थी ममता यह बात नंदिनी के दिमाग में घर कर गई. उस वक्त तो ममता और नंदिनी अपनीअपनी उलझनों का बोझ एकदूसरे पर उतार कर विदा हो लिए, लेकन दोनों के दिमाग में गगन के विरोध की ज्वाला धधकने लगी. ऐसा होना भी स्वाभाविक था. नंदिनी को गगन हमेशा कहता रहता था कि प्रदीप उस का हितैषी नहीं दुश्मन है, वह उस के साथ प्रेम का नाटक कर रहा है और उस की मंशा जमीनजायदाद हथियाने की है. एक समय में लालबाग रामगंगा कालोनी निवासी रमेश कुमार की बेटी ममता गगन की प्रेमिका हुआ करती थी. गगन उस पर जान छिड़कता था. गगन भी ममता से बेइंतहा मोहब्बत करता था. उस का दीवाना था.

वह बेहद सुंदर और मांसलता के दैहिक आकर्षण से भरी हुई थी, अपनी खूबसूरती को आधुनिक पहनावे और स्टाइल से और भी ग्लैमर बना देती थी. बौडी लैंग्वेज से ले कर बोलचाल तक से किसी को भी पलक झपकते ही अपनी ओर आकर्षित कर लेती थी. उस के स्वच्छंद विचार और आधुनिक पहनावे से निखरे रूपरंग का कई लोग गलत अर्थ भी निकालते थे. दबी जुबान में उसे बदचलन तक कह देते थे. ऐसी धारणा रखने वालों में गगन के पिता ओमप्रकाश भी थे. उन्होंने ममता को ले कर गगन को एक बार खूब डांटा था. उस से दूर रहने की चेतावनी दी. यहां तक कि उन्होंने भी उसे बदचलन करार दे दिया था. दुर्भाग्य से 2018 में गगन की मां कलावती का कैंसर से निधन हो गया.

करीब 25 साल पहले ही ओमप्रकाश ने अमरोहा निवासी विवाहिता कलावती से दूसरा विवाह तब किया था, जब उन की पहली पत्नी का आकस्मिक निधन हो गया था. विवाह के वक्त कलावती की गोद में 3 साल का गगन भी था. नंदिनी का बचपन उसी सौतेले भाई के साथ गुजरा, जो अब 28 साल का हो चुका था. ओमप्रकाश की पहली पत्नी से उन के 2 बच्चे पूजा और नंदिनी थी. वे पूजा की शादी कर चुके थे और नंदिनी की शादी के प्रयास में थे. कलावती के निधन के बाद ओमप्रकाश घर को संभालने के लिए गगन की शादी की योजना बनाने लगे थे. इसी सिलसिले में ममता के साथ उस के प्रेम संबंध का मामला सामने आ गया था. उन्होंने ममता से शादी करना सिरे से मना कर दिया था.

इस पर गगन न तो पिता का विरोध कर पाया, और न ही ममता की भावनाओं की कद्र. और फिर गगन की शादी 6 जुलाई 2018 को मुरादाबाद में ही बलदेवपुरी थाना कटघर निवासी कुंदन कुमार की बेटी राधा से हो गई. गगन का राधा के साथ शादी होना ममता को अच्छा नहीं लगा. वह खुल कर विरोध नहीं कर पाई, लेकिन भीतर ही भीतर नफरत की आग में जल उठी. इस का जिक्र उस ने कई बार अपने दूसरे दोस्तों से भी किया, वह अकसर महीने-2 महीने के लिए दूसरे शहर चली जाया करती थी और लोगों को कभी बरेली तो कभी लखनऊ में नौकरी लगने की बातें बताती रहती थी.

यहां तक कि वह अपने मातापिता से अलग किराए का कमरा ले कर रहने लगी थी. वह जिगर कालोनी में स्थित एक्सपोर्ट फर्म में काम करती थी. वह प्रदीप को भी ताने मारती थी, जो उस के दूर का रिश्तेदार था. ममता ने प्रदीप को एक बार तो साफसाफ कह दिया था कि जब तक गगन रहेगा तब तक उस की नंदिनी से शादी नहीं हो पाएगी.

यही बात वह नंदिनी को भी ताना देते हुए अकसर कहती थी कि गगन उसे उस के प्रेमी प्रदीप से कभी मिलने नहीं देगा. गगन भले ही उस का सौतेला भाई है, लेकिन उस की पिता की संपत्ति का वारिस वही बनेगा. उस दिन बाजार में ममता ने नंदिनी को एक बार फिर उस के हरे जख्म को कुरेद दिया था. ममता से बात कर के नंदिनी विचलित हो गई थी. गगन चाहता था कि उस की बहन की शादी किसी रोजगारशुदा व्यक्ति से ही हो. इस में उसे सौतेले पिता का भी समर्थन मिला हुआ था. नंदिनी के पिता हमेशा गगन का पक्ष ले कर नंदिनी को समझाते थे कि प्रदीप न तो बिरादरी का है, और न ही बराबरी का. जबकि इस की नंदिनी के कानों पर जूं तक नहीं रेंगती थी. वह मस्ती में रहती हुई अपनी जिद पर अड़ी थी.

कबाड़ी का कारोबार करने वाले गगन का यही सोचना था कि प्रदीप की निगाह उस के पिता की प्रौपर्टी पर टिकी है. ओमप्रकाश एक्सपोर्ट फर्म में काम करते थे. उन के लाड़प्यार में पली नंदिनी ही घर की देखभाल और खर्च की पूरी जिम्मेदारी संभाले हुई थी. बाजार और बैंक आदि का हिसाबकिताब नंदिनी के जिम्मे था. फिर भी घर में गगन की ही मनमानी चलती थी. वह पत्नी राधा को इस से दूर रखता था. नंदिनी नहीं चाहती थी कि उस की शादी किसी दूसरे शहर में हो. वह हमेशा पिता के मकान में ही रहना चाहती थी. प्रदीप को ले कर गगन के साथ नंदिनी का हमेशा झगड़ा होता रहता था.

बात जून 2021 की है. जब एक दिन नंदिनी के साथ गगन का झगड़ा काफी बढ़ गया था. इस कारण गगन अपनी ससुराल जा कर रहने लगा था. तब उस की पत्नी राधा भी अपने मायके में ही थी. एक तरफ नंदिनी थी, और दूसरी तरफ ममता. दोनों के दिल में गगन को ले कर विरोध की सुलगती चिंगारी जबतब भड़क उठती थी. नंदिनी अपने प्रेमी से शादी में आई बाधा को ले कर परेशान थी तो ममता को गगन से शादी नहीं हो पाने का मलाल था. कारण ममता ने गगन के साथ कई साल साथ गुजारे थे और विवाह होने के कसमेवादे किए थे. उन पलों को याद करके हुए ममता भावुक हो जाती थी. ममता ने प्रण कर लिया था कि वह गगन को जरूर सबक सिखाएगी. ममता को बस समय का इंतजार था.

नंदिनी से मिलने के बाद ममता ने अपने दिल की भड़ास निकाल दी थी. तभी ममता को मालूम हुआ था कि गगन 2 महीने से अपनी ससुराल बलदेवपुरी में रह रहा है. नंदिनी से मुलाकात से कुछ दिन पहले ही ममता की मुलाकात प्रदीप से भी हुई थी. उस ने नंदिनी की परेशानी के बारे में उसे जानकारी दे दी थी. उस ने भी बदले की आग में जलती ममता और नंदिनी की पीड़ा गहराई से महसूस की. जल्द ही तीनों ने गगन को लक्ष्य बना कर एक मीटिंग की. विशेषकर नंदिनी और ममता ने प्रदीप को अपनी योजना में शामिल कर लिया.

योजना के मुताबिक प्रदीप ने अपने एक दोस्त वीरू उर्फ हरीश को भी साथ ले लिया. वीरू मुरादाबाद में थाना मझोला के गांव जयंतीपुर का रहने वाला एक बदमाश किस्म का युवक था. तीनों ने वीरू से गगन को ठिकाने लगाने की बात कही. उन्होंने बदले में उसे 50 हजार रुपए दिए. दरअसल, नंदिनी और ममता ने मिल कर प्रदीप के माध्यम से गगन को रास्ते से हमेशा के लिए हटाने की योजना बनाई थी.

योजना के अनुसार नंदिनी ने ममता को गगन का मोबाइल नंबर दिया. ममता ने अपने पूर्व प्रेमी गगन को काल की, ‘‘हैलो गगन.’’

‘‘हां, कौन?’’ गगन ने पूछा

‘‘अरे मुझे पहचाना नहीं, मैं तुम्हारी ममता बोल रही हूं.’’

ममता ने उलझाया मीठी बातों में गगन अचानक ममता की आवाज सुन कर एकदम से भौचक्का रह गया. भले ही ममता से उस की शादी नहीं हुई थी, किंतु उस के दिल में ममता अभी भी बसी हुई थी. न चाहते हुए भी अचरज से बोला, ‘‘चलो, तुम्हें मेरी याद तो आई.’’

‘‘मुझ से मिलोगे नहीं? तुम्हें तो पता ही होगा कि अब मेरा घर वालों से कोई वास्ता नहीं रहा. मैं बंगला गांव में रह रही हूं किराए पर. पास ही जिगर कालोनी में जौब करती हूं, फोन में तुम्हारा नंबर अचानक दिख गया तो तुम्हारी याद आ गई. फिर मैं ने फोन कर लिया.’’ ममता बोली.

गगन अभी कुछ बोलता इस से पहले ही ममता बोली, ‘‘मैं हर्बल पार्क घूमने आई थी. पार्क की सुंदरता देख कर तुम्हारे साथ यहां गुजारे पुराने दिन याद आ गए. आ जाओ यहीं पार्क के रेस्तरां में एक बार फिर मिलते हैं. साथ बैठते हैं…’’

बीते दिनों की कई पुरानी बातें बता कर ममता ने गगन को काफी भावुक कर दिया था. वह ममता की बातें सुन कर पुराने दिनों के हसीन लम्हों में खो गया. ममता गगन का पहला प्यार थी. गगन को ममता के साथ बिताए पल अचानक झिलमिलाने लगे थे. वह ममता से बोला,‘‘तुम बुलाओ और हम न आएं, ऐसा नहीं हो सकता.’’

थोड़ी देर में ही गगन हर्बल पार्क पहुंच गया. ममता जींस टौप पहने बेसब्री से उस का इंतजार कर रही थी. गगन ने आते ही ममता को बाहों में भर लिया. ममता उस से छूटते ही बोली, ‘‘तुम अभी भी वही पुराने वाले गगन, जरा भी नहीं बदले…लेकिन अब तुम शादीशुदा हो आगे से ध्यान रखना हां. …अच्छा चलो पार्क के बाहर झाडि़यों की ओर चलते हैं. वहीं बैठ कर कुछ बातें करेंगे, आराम से.’’

गगन को झाडि़यों में ले गई ममता गगन ने महसूस किया कि ममता में कोई बदलाव नहीं आया है, वही पहले की तरह चंचल अदाएं, कसक और अपनापन….

‘‘ थोड़ा रुको यार, बहुत दिनों बाद मिले हो तुम्हारे लिए कोल्ड ड्रिंक्स और नमकीन लाती हूं. वहीं पार्क में बैठ कर साथसाथ पीएंगे.’’

ममता के बोलने पर गगन बोला, ‘‘हांहां क्यों नहीं.’’

‘‘ बस मैं कैंटीन गई और अभी आई.’’ बोलती हुई ममता कैंटीन की ओर जाने लगी.

तभी गगन हाथ खींचते हुआ बोला, ‘‘यह काम तुम्हारा नहीं मेरा है.’’

‘‘देखो मैं ने तुम्हें बुलाया है. समझो कि आज तुम हमारे मेहमान हो.’’ ममता कहती हुई गगन से हाथ छुड़ा कर तेजी से कैंटीन की ओर दौड़ी चली गई. गगन उसे देखता रह गया.

ममता यह सब योजना के मुताबिक कर रही थी. ममता की जिद के आगे गगन कुछ नहीं कर पाया. वह केवल ममता के साथ गुजारे पुराने लम्हों को ही याद करता रह गया.

‘‘ आओ चलें…’’ ममता बोली.

गगन एक बार फिर सपनों की दुनिया से बाहर आया. ममता के हाथ से कोल्ड ड्रिंक अपने हाथ में ले ली. ममता डिसपोजल गिलास और नमकीन का पैकेट संभालती हुई झाडि़यों की ओर बढ़ गई. कुछ पल में ही दोनों पार्क के मुख्य मार्ग से नजर नहीं आने वाली झाडि़यों के पीछे थे. गगन टायलेट का इशारा करते हुए उस ओर चला गया. ममता के लिए इस से अच्छा मौका और क्या हो सकता था. उस ने तुरंत दोनों डिसपोजल गिलास निकाले. उन में दोतिहाई कोल्ड ड्रिंक भरा और अपने साथ लाई नशीले पदार्थ की पुडि़या एक गिलास में डाल दी. गगन के आते ही उस ने अपने बाएं हाथ का गिलास उस की ओर बढ़ा दिया.

‘‘नहींनहीं, इस हाथ से नहीं दाएं हाथ वाला दो. तुम्हारी बाएं हाथ से किसी को सामन देने की आदत अभी तक गई नहीं है.’’ गगन बोला.

‘‘क्या करूं गगन, मेरा दायां हाथ चलता ही नहीं है. तुम्हारे साथ शादी हो जाती तब  शायद यह आदत छूट जाती. अच्छा लो इसे पकड़ो.’’ कहती हुई ममता ने अपने दाएं हाथ का कोल्ड ड्रिंक भरा गिलास आगे कर दिया. गगन ने गिलास हाथ में ले लिया. उस से एक घूंट पीने के बाद ममता मंदमंद मुसकराई. उस की मुसकान में कुटिलता छिपी थी, कारण वह अपनी योजना में कामयाब हो रही थी. नशीला पदार्थ मिला कोल्ड ड्रिंक का गिलास गगन के हाथ में था और वह नमकीन के साथसाथ घूंटघूंट कर चुस्की लेने लगा था.

कुछ समय में ही गगन बोला. ‘‘ममता… म… ममता,  मुझे तुम्हारा चेहरा साफ क्यों नहीं दिख रहा.’’ गगन की आवाज में लड़खड़ाहट थी. ममता समझ गई कि उस पर नशा हावी हो रहा है. ममता ने प्रेम भरी हमदर्दी दर्शाते हुए उस का सिर अपनी गोद में ले लिया. उस के बालों में अंगुलियां घुमाने लगी. कुछ पल में ही गगन पूरी तरह से बेहोश हो चुका था. ममता ने तुरंत थोड़ी दूर दूसरी झाड़ी के पीछे छिपे वीरू को इशारा किया. इशारा पाते ही ताक में बैठा वीरू ममता के पास आ गया. ममता वहां से उठती हुई बोली, ‘‘शिकार को संभालो, मैं ने अपना काम कर दिया, आगे का काम तुम्हारा.’’

उस के बाद नंदिनी और प्रदीप को भी इस की जानकारी दे दी कि उस का काम पूरा हो चुका है. हालांकि तब तक गगन के मुंह से केवल एक ही बड़बड़ाने की आवाज निकल रही थी, ‘‘ममता क्या हुआ है मुझे…’’

‘‘कुछ नहीं तुम्हें थोड़ा चक्कर आ गया है, अभी तुम्हें डाक्टर के यहां ले जाने का इंतजाम करवाती हूं.’’ ममता बोली. ममता उसे सहारा देते हुए वीरू के साथ उस की मोटरसाइकिल तक ले गई. वहां प्रदीप पहले से मौजूद था.

गगन को प्रदीप और वीरू ने पकड़ कर मोटरसाइकिल पर बिठा दिया. वीरू मोटरसाइकिल चलाने के लिए बैठ गया, जबकि प्रदीप गगन को गिरने से थामे हुए था. वीरू और प्रदीप गगन को जयंतीपुर ले गए. वहां एक खाली प्लौट में उन दोनों ने गगन को जबरदस्ती शराब पिलाई. फिर गगन के गले में पड़े गमछे से गला घोंट कर उस की हत्या कर दी. इस के बाद उन्होंने उस के पैर गमछे से बांध दिए. फिर वीरू जयंतीपुर स्थित अपने घर से एक कंबल ले आया. उस कंबल में उन्होंने गगन की लाश लपेट दी. कंबल में उन्होंने कुछ ईंटें भी रख दी थीं. वह लाश को पास में बह रहे गहरे नाले में डुबोना चाहते थे, इसलिए 2 कट्टों में उन्होंने ईंटें भर कर वे कट्टे कंबल से बांधने के बाद लाश नाले में डाल दी. ईंटों की वजह से लाश नाले में डूब गई. यह बात 13 जुलाई, 2021 की है.

लाश ठिकाने लगाने के बाद वीरू ने रात करीब 10 बजे नंदिनी को फोन कर के गगन की लाश ठिकाने लगाने की जानकारी दी. उस समय गगन की पत्नी राधा तो अपने मायके गई हुई थी. पहली अगस्त को वह अपनी ससुराल  गई. उसे अपने मायके में होने वाले एक कार्यक्रम का निमंत्रण देना था. वहां पति नहीं दिखा तो राधा ने नंदिनी से पूछा. नंदिनी ने उसे बताया कि जब से गगन तुम्हारे घर पर रह रहा था. तब से यहां आया ही नहीं है. राधा ने पति को फोन मिलाया तो उस का फोन भी बंद मिला. उस ने सभी रिश्तेदारियों में फोन कर के पति के बारे में पूछा. लेकिन पता चला कि गगन किसी रिश्तेदारी में गया ही नहीं था.

जब कहीं से जानकारी नहीं मिली तो नंदिनी भी राधा के साथ गगन को ढूंढने का नाटक करती रही. जब गगन कहीं नहीं मिला तो पिता ओमप्रकाश ने मुरादाबाद शहर के थाना मुगलपुरा में गगन की गुमशुदगी दर्ज करा दी. थानाप्रभारी अमित कुमार ने गगन के लापता होने की सूचना उच्चाधिकारियों को भी दे दी. मुरादाबाद का मुसलिम बाहुल्य लालबाग क्षेत्र बहुत संवेदनशील है. क्षेत्र में लापता युवक को ले कर वहां अशांति न हो जाए, इसलिए एसएसपी पवन कुमार ने एएसपी अनिल यादव के नेतृत्व में एक पुलिस टीम बनाई. टीम में मुगलपुरा के थानाप्रभारी अमित कुमार, एसआई नितेश सहरावत, ताजवर सिंह, जगजीत सिंह, राजवंदर कौर, कांस्टेबल संगम कसाना, नीरज कुमार, समीर आदि को शामिल किया.

टीम अपने स्तर से केस की छानबीन में जुट गई. इस के अलावा लालबाग क्षेत्र में भारी मात्रा में पुलिस फोर्स भी तैयार कर दी. पुलिस टीम ने सब से पहले गगन के घर वालों से पूछताछ करने के बाद गगन के फोन की काल डिटेल्स निकलवाई. काल डिटेल्स से पता चला कि 13 जुलाई को शाम 5 बजे गगन की एक फोन नंबर पर बात हुई थी. जांच में वह नंबर बंगला गांव मोहल्ले की रहने वाली ममता का निकला. पुलिस ममता के घर पहुंची तो उस का कमरा बंद मिला. पुलिस को पता चला कि ममता जिगर कालोनी स्थित एक एक्सपोर्ट फर्म में नौकरी करती है. पुलिस उस फर्म में पहुंची तो ममता वहां मिल गई. पूछताछ के लिए पुलिस उसे मुगलपुरा थाने ले आई.

पुलिस ने ममता से पूछताछ की तो वह खुद को बेकुसूर बताती रही. उस ने कहा कि गगन से उस के प्रेम संबंध जरूर थे लेकिन जब से गगन की शादी हुई है, वह संबंध खत्म हो गए.

‘‘जब तुम्हारे संबंध खत्म हो गए तो तुम ने 1 जुलाई को गगन को फोन क्यों किया?’’ थानाप्रभारी अमित कुमार ने उस से पूछा.

‘‘सर, उस का नंबर मेरे फोन में सेव था, जो गलती से लग गया.’’ ममता ने बताया.

थानाप्रभारी को लग रहा था कि ममता कुछ छिपा रही है, इसलिए उन्होंने पास में बैठी एसआई राजवेंदर कौर को इशारा किया. राजवेंदर कौन ने ममता से पूछताछ करते हुए एक थप्पड़ उस के गाल पर जड़ा. थप्पड़ लगते ही ममता हाथ जोड़ते हुए बोली, ‘‘मुझे मत मारो, मैं सब कुछ बताती हूं.’’

इस के बाद ममता ने गगन से उस का प्यार होने से ले कर अब तक की सारी कहानी बताते हुए कहा कि गगन ने उस की सारी जिंदगी खराब कर दी. उसी का बदला लेने के लिए उस की सौतेली बहन नंदिनी और दीपक के साथ मिल कर उस की हत्या करनी पड़ी. उस ने बताया कि दीपक उस का रिश्तेदार है. अब पुलिस को लाश बरामद करनी थी लिहाजा पुलिस ने 5 घंटे तक गगन की लाश नाले में तलाश कराई, लेकिन लाश बरामद नहीं हो सकी. इसी दौरान पुलिस ने हरीश उर्फ वीरू को उस के घर से गिरफ्तार कर लिया.

वीरू ने बताया कि उस की लाश के साथ ईंटें बंधी थीं. उस की निशानदेही पर पुलिस ने 3 अगस्त, 2021 को नाले से गगन की सड़ीगली लाश बरामद कर ली. उधर पुलिस ने नंदिनी और प्रदीप को तलाशा तो दोनों फरार मिले. उन के फोन की लोकेशन के आधार पर पुलिस ने उन्हें नोएडा से गिरफ्तार कर लिया. उन्होंने बताया कि उन्होंने 3 अगस्त को ही नोएडा के मंदिर में शादी कर ली थी. उन से भी पूछताछ की गई तो उन्होंने भी अपना जुर्म कुबूल कर लिया. पुलिस ने हत्यारोपी हरीश उर्फ वीरू, प्रदीप, नंदिनी और ममता को गिरफ्तार कर मुरादाबाद की कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जिला जेल भेज दिया गया. मामले की जांच थानाप्रभारी अमित कुमार कर रहे थे. UP Crime News

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

UP Crime News : पत्नी की अनेदखी न बाबा न

UP Crime News : बलरामपुर की विनीता और उस का पति मदन कुमार आर्य दोनों ही सरकारी नौकरी पर थे. हर महीने मोटी सैलरी मिलती थी. कमाई के चक्कर में मदन कुमार पत्नी की शारीरिक जरूरत को तवज्जो नहीं देता था. ऐसे में 2 जवान बच्चों की 40 वर्षीय मां विनीता का अपने भांजे उमेश कुमार पर दिल आ गया. फिर एक दिन वही हुआ, जिस की…

विनीता आर्य 2 सप्ताह से अपने भांजे उमेश कुमार की काल रिसीव नहीं कर रही थी, जिस से उमेश की उलझन बढ़ती जा रही थी. इसी उलझन में वह शाम करीब 5 बजे विनीता के घर जा पहुंचा. उस ने डोरबैल बजाई तो चंद मिनट बाद विनीता ने दरवाजा खोला. सामने उमेश को देखते ही विनीता तल्ख स्वर में बोली, ”उमेश, तुम्हारे मामा तो घर में हैं नहीं. बेटा मनु भी कोचिंग गया है.’’

”मामी, मामा नहीं, आप तो हैं.’’ कहते हुए उमेश घर के अंदर आ गया और कमरे में पड़े सोफे पर आ कर बैठ गया. उमेश ने एक सरसरी नजर विनीता मामी पर डाली फिर बोला, ”मामी, वैसे भी मैं मामा से नहीं, तुम से मिलने आया हूं. तुम मेरी काल रिसीव क्यों नहीं कर रही थी.’’

”देखो उमेश, अब तुम शादीशुदा और एक बच्चे के बाप हो. इसलिए तुम से फोन पर बतियाना और तुम्हारा घर आना, दोनों ही ठीक नहीं है. वैसे भी पति और बेटा दोनों तुम्हें शक की नजरों से देखते हैं. तुम से नफरत करते हैं.’’

”मामी, मैं पहले भी तो घर आता था. तब तुम खूब हंसती थी, बोलती थी, बतियाती थी. मेरे आने का इंतजार करती थी. 2-4 दिन भी न आऊं तो उलाहना देती थी. अंतरंग क्षणों में तुम्हें सुख की अनुभूति भी होती थी, परंतु अब क्या हो गया है?’’

”तब की बात और थी उमेश. तब मैं तुम से प्यार करती थी. इसलिए खुल कर हंसतीबोलती थी. तुम्हारा बेसब्री से इंतजार भी करती थी. न आने पर बेचैन हो जाती थी. तुम्हारे साथ मिलन में मुझे सुख भी मिलता था. लेकिन अब बात कुछ और है. तुम्हारी खूबसूरत पत्नी है. बच्चा है. अब तुम पतिधर्म का पालन करो और मुझे भूल जाओ. वैसे भी अब मैं तुम से प्यार नहीं करती. मैं ने तुम्हें अपने दिल से निकाल दिया है.’’

”मामी, मैं मानता हूं कि मेरी पत्नी जवान है और खूबसूरत भी है. लेकिन तुम मेरा पहला प्यार हो. तुम्हारे साथ मिलन में मुझे जो सुख मिलता है, वह बीवी के साथ नहीं. वैसे मामी, मुझे पता है कि तुम मुझे क्यों नजरअंदाज कर रही हो और क्यों तुम ने मुझे अपने दिल से निकाल फेंका है. जवान और सुंदर बीवी तो बहाना है.’’

”क्या पता है तुम्हें?’’ विनीता ने अनजान बनते हुए उमेश से पूछा.

”यही कि अब तुम ने अपने दिल में किसी और को बसा लिया है. उसी के साथ गुलछर्रे उड़ा रही हो. इसलिए तुम ने मुझे अपने दिल से निकाल दिया है और मुझे नजरअंदाज कर रही हो. तुम मामा की आंखों में धूल झोंक सकती हो, मेरी आंखों में नहीं.’’

विनीता गुस्से से बोली, ”उमेश, तुम हदें पार कर रहे हो. तुम्हारा इलजाम सरासर गलत है. मैं ने किसी को दिल में नहीं बसाया है और न ही पति की आंखों में धूल झोंक रही हूं. तुम्हें नजरअंदाज करने लगी हूं. इसलिए तुम मेरे चरित्र पर अंगुली उठाने लगे हो.’’

उस रोज विनीता और उमेश के बीच नजर अंदाज को ले कर काफी देर तक नरमगरम बहस होती रही. उस के बाद उमेश वापस घर आ गया. दरअसल, उमेश को शक था कि विनीता ने अपने साथ नौकरी करने वाले एक टीचर से रिश्ता जोड़ लिया है. इसलिए वह उसे नजरअंदाज करने लगी है और उस से दूरी बना ली है. उमेश नहीं चाहता था कि उस की प्रेमिका विनीता उस के अलावा किसी और की बांहों में समाए. इसलिए उस ने विरोध जताया और समझाने का प्रयास भी किया. लेकिन विनीता जब नहीं मानी तो उस ने उसे सबक सिखाने की ठान ली. उमेश ने मन ही मन निश्चय कर लिया कि विनीता उस की नहीं हुई तो वह उसे किसी और की भी नहीं होने देगा.

पहली अप्रैल, 2025 की शाम 5 बजे उमेश अपनी ब्रेजा कार से वीर विनय चौराहे की ओर जा रहा था, तभी उस की नजर विनीता पर पड़ी. वह बाजार की ओर शायद कुछ घरेलू सामान खरीदने जा रही थी. उमेश कार ले कर विनीता के पास पहुंचा और बोला, ”मामी, क्या बाजार जा रही हो? कार में बैठो, मैं तुम्हें बाजार तक छोड़ देता हूं. बाजार करने के बाद मैं तुम्हें घर भी छोड़ दूंगा.’’

”नहीं, नहीं उमेश, मैं बाजार चली जाऊंगी. तुम मेरे लिए परेशान मत हो. जहां जा रहे हो, जाओ.’’

लेकिन उमेश नहीं माना. उस ने फुरती से कार का दरवाजा खोला और विनीता को अगली सीट पर बिठा लिया. उस के बाद स्वयं ड्राइविंग सीट पर बैठ कर कार बढ़ा दी तो विनीता ने पूछा, ”उमेश, तुम मुझे कहां ले जा रहे हो?’’

उमेश मुसकराते हुए बोला, ”मामी, आज बहुत दिनों बाद मौका मिला है. इसलिए हम सैरसपाटे पर जा रहे है. घंटे दो घंटे में वापस आ जाएंगे.’’

”घर न पहुंची तो तुम्हारे मामा परेशान होंगे. इसलिए मैं घूमने नहीं जाऊंगी. तुम मुझे बाजार छोड़ दो. सामान ले कर मैं समय से घर पहुंच जाऊंगी. मुझे खाना भी बनाना है.’’

लेकिन उमेश ने विनीता की बात अनसुनी कर दी. वह उसे बलरामपुर शहर से श्रावस्ती ले गया, फिर वहां से बहराइच होता हुआ गोंडा जिले के खरगूपुर थाना क्षेत्र के गांव परसौनी पहुंचा. यहां उस ने गांव से कुछ दूर विसुहा नदी के पुल के किनारे कार रोक दी. अब तक रात का अंधेरा घिर आया था. आवाजाही न के बराबर थी. उमेश ने विनीता का हाथ अपने हाथ में ले कर पूछा, ”मामी, सचसच बताओ, क्या तुम मुझ से प्यार नहीं करती और तुम ने किसी और को अपने दिल में बसा लिया है?’’ कहते हुए उमेश ने विनीता को अपनी बांहों में भर लिया और मनमानी करने लगा. विनीता बचाव करने लगी.

बचाव के दौरान ही विनीता ने एक तमाचा उमेश के गाल पर जड़ दिया. तमाचा पड़ते ही उमेश का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया. उस ने विनीता के गले में पड़ा दुपट्टा उसी के गले में लपेटा और गला कसने लगा. कुछ ही देर में विनीता की जीभ और आंखें बाहर आ गईं और उस की मौत हो गई. हत्या करने के बाद उमेश ने विनीता का मोबाइल फोन व दुपट्टा सुरक्षित किया, फिर शव को कार से निकाल कर विसुहा नदी के पुल के नीचे फेंक दिया. वापस लौटते समय उस ने विनीता का मोबाइल फोन बंद कर दिया. फोन और दुपट्टा दुल्हिनपुर के जंगल में फेंक दिया. इस के बाद वह घर आ गया.

इधर विनीता अपने पति मदन कुमार आर्य से शाम 5 बजे यह कह कर घर से निकली थी कि वह घर का सामान खरीदने सिविल लाइंस बाजार जा रही है. सामान खरीद कर घंटे-दो घंटे बाद वापस आ जाएगी. इंतजार करतेकरते मदन कुमार को 3 घंटे से अधिक का समय बीत चुका था, लेकिन विनीता बाजार से खरीददारी कर वापस नहीं आई थी. पत्नी की खोज में मदन कुमार सिविल लाइंस स्थिति मार्केट भी गया और मार्केट का चप्पाचप्पा छान मारा, लेकिन विनीता उसे कहीं नहीं दिखी. अत: हताश हो कर वह वापस आ गया.

सुबह होते ही अड़ोसपड़ोस में भी विनीता के लापता होने की खबर फैल गई. फिर तो विनीता का लापता होना मोहल्ले में चर्चा का विषय बन गया. मदन कुमार आर्य 2 अप्रैल, 2025 की सुबह 10 बजे थाना सिविल लाइंस पहुंचा. उस समय एसएचओ शैलेश सिंह थाने में मौजूद थे. मदन कुमार आर्य ने उन्हें बताया कि उन की पत्नी विनीता कंपोजिट विद्यालय में अनुदेशिका पद पर कार्यरत है. कल शाम 5 बजे वह सिविल लाइंस बाजार गई थी. तब से वह वापस नहीं आई. उस का फोन भी बंद है. उस की खोज हर संभावित स्थान पर की गई है. लेकिन उस का कुछ भी पता नहीं चल पा रहा है. उन्होंने यह भी बताया कि विनीता पूर्व विधायक सुखदेव प्रसाद की बेटी की बहू है.

चूंकि मामला पूर्व विधायक के परिवार से जुड़ा था, अत: एसएचओ शैलेश सिंह ने विनीता के लापता होने की जानकारी एसपी विकास कुमार को दी. साथ ही मदन कुमार की तहरीर पर गुमशुदगी दर्ज कर ली. एसपी विकास कुमार ने विनीता की गुमशुदगी को गंभीरता से लिया और उस की खोज के लिए एएसपी नम्रता श्रीवास्तव की अगुवाई में एक विशेष टीम गठित कर दी. इस टीम में एसएचओ शैलेश सिंह के अलावा कुछ तेजतर्रार पुलिसकर्मियों व सर्विलांस टीम को शामिल किया गया. साथ ही कुछ खास खबरियों को भी विनीता की टोह में लगाया गया.

पुलिस टीम ने सब से पहले विनीता के पति मदन कुमार व उन के बेटे मनु से पूूछताछ की, फिर सर्विलांस टीम की मदद से घर से ले कर बाजार तक सड़क किनारे लगे सीसीटीवी कैमरों को खंगाला. टीम को एक बड़ी सफलता तब मिली, जब सिविल लाइंस बाजार के पहले सड़क किनारे लगे सीसीटीवी कैमरे में विनीता दिखी. वह किसी कार सवार युवक से बात कर रही थी. फिर उसी युवक की कार में बैठ जाती दिखी. पुलिस टीम ने वह फुटेज विनीता के पति मदन कुमार आर्य को दिखाई तो वह चौंकते हुए बोला, ”अरे यह तो उमेश कुमार है. कार भी उसी की है. विनीता उसी से बात कर रही है.’’

”यह उमेश कुमार कौन है?’’ एसएचओ शैलेश सिंह ने मदन कुमार से पूछा.

”सर, उमेश कुमार हमारा भांजा है. वह देहात कोतवाली थाना क्षेत्र के गांव गजाधर सिंह डिडवा में रहता है. बलरामपुर शहर के वीर विनय चौराहा स्थित एचडीएफसी बैंक में सेल्स औफिसर के पद पर कार्यरत है. उस का मेरे घर खूब आनाजाना था. मामीभांजे में खूब पटती थी. परंतु इधर कुछ महीने से उस का घर आनाजाना बेहद कम हो गया है. विनीता भी उस से दूरियां बनाए हुए थी. लेकिन सर..?’’

”लेकिन क्या?’’ एसएचओ शैलेश सिंह ने मदन कुमार की आंखों में झांकते हुए पूछा.

”सर, कल हम ने उमेश को कौल लगा कर विनीता के लापता होने की जानकारी दी थी, लेकिन उस ने साफ मना कर दिया था कि विनीता के बारे में उसे कोई जानकारी नहीं है. आखिर उस ने झूठ क्यों बोला? जबकि विनीता उसी की कार में उसी के साथ बैठ कर फुटेज में जाती दिख रही है. सर, मुझे तो दाल में कुछ काला नजर आ रहा है.’’

सेल्स औफिसर उमेश कुमार शक के घेरे में आया तो पुलिस टीम ने उस के घर रात 11 बजे छापा मारा और उसे हिरासत में ले लिया. उसे थाना सिविल लाइंस लाया गया. थाने में एसएचओ शैलेश सिंह ने उमेश से पूछा, ”विनीता कहां है?’’

”सर, मुझे उस के बारे में कुछ भी पता नहीं है.’’ उमेश बोला.

”तुम सरासर झूठ बोल रहे हो. विनीता तुम्हारे साथ ही गई थी. यकीन नहीं तो यह सीसीटीवी फुटेज देख लो.’’ एसएचओ शैलेश सिंह ने कड़ा रुख अपनाया.

उमेश ने सीसीटीवी फुटेज देखी तो वह हक्काबक्का रह गया और बगलें झांकने लगा. इसी समय शैलेश सिंह ने फिर से पूछा, ”अब बताओ, विनीता कहां है?’’

”सर, विनीता अब इस दुनिया में नहीं है.’’ उमेश ने विस्फोट किया.

”क्या तुम ने उसे मार डाला? उस की लाश कहां है?’’ शैलेश सिंह ने पूछा.

”सर, विनीता को मैं घुमाने के बहाने अपनी कार से ले गया था. फिर गोंडा जिले के गांव परसौना के पास कार में ही उस को गला घोंट कर मार दिया और लाश विसुहा नदी के पुल के नीचे फेंक दी थी.’’

एसएचओ शैलेश सिंह ने अनुदेशिका विनीता की हत्या होने व आरोपी के पकड़े जाने की खबर एसपी विकास कुमार को दी तो वह चौंक गए. उन्होंने तत्काल गोंडा के एसपी विनीत जायसवाल से बात की और विनीता का शव विसुहा नदी के पुल के नीचे से बरामद करने को कहा. गोंडा एसपी विनीत जायसवाल की सूचना पर थाना खरगूपुर पुलिस घटनास्थल विसुहा नदी पुल पर पहुंची. एसएचओ शैलेश सिंह भी अपनी टीम तथा आरोपी उमेश को साथ ले कर घटनास्थल पहुंच गए. फिर उमेश की निशानदेही पर पुलिस की संयुक्त टीम ने मृतका विनीता का शव पुल के नीचे से बरामद कर लिया.

बलरामपुर के एसपी विकास कुमार, एएसपी नम्रता श्रीवास्तव तथा गोंडा एसपी विनीत जायसवाल भी घटनास्थल पहुंचे और घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया. मृतका विनीता की उम्र 40 साल के पार थी. उस की हत्या गला घोंट कर की गई थी. उस के शरीर पर चोट का कोई निशान नहीं था. उस का रंग गोरा, औसत कद तथा शरीर स्वस्थ था. इधर पत्नी विनीता की हत्या की खबर पा कर मदन कुमार भी अपने बेटे मनु के साथ घटनास्थल पर पहुंच गया. पत्नी का शव देख कर मदन कुमार की भी आंखों से आंसू बहने लगे.

पुलिस अधिकारियों ने निरीक्षण के बाद विनीता के शव को पोस्टमार्टम के लिए गोंडा के जिला अस्पताल भिजवा दिया. उस के बाद पुलिस टीम आरोपी उमेश को थाना सिविल लाइंस ले आई. थाने में एसपी विकास कुमार तथा एएसपी नम्रिता श्रीवास्तव ने आरोपी उमेश कुमार से घटना के संबंध में पूछताछ की. उमेश कुमार ने पुलिस अधिकारियों को बताया कि मामा मदन कुमार आर्य के घर उस का आनाजाना बना रहता था. इसी आनेजाने में उस का लव अफेयर मामी विनीता से बन गया. कुछ समय बाद मामी ने अपने विद्यालय के एक टीचर को अपने दिल में बसा लिया और उसे नजरअंदाज करने लगी.

मामी का दूसरे से संबंध बनाना उसे नागवार लगा. उस ने मामी को समझाया भी, लेकिन जब वह नहीं मानी तो घटना वाले दिन वह उसे घुमाने के बहाने ले गया और कार में उसी के दुपट्टे से उस का गला घोंट दिया. उमेश ने हत्या में प्रयुक्त दुपट्टा, कार व मोबाइल फोन भी पुलिस को बरामद करा दिया. दुपट्टा व मोबाइल को उस ने दुल्हिनपुर के जंगल में छिपा दिया था.

चूंकि उमेश कुमार ने विनीता की हत्या का जुर्म कुबूल कर लिया था और आलाकत्ल भी बरामद करा दिया था, अत: पुलिस ने मृतका के पति मदन कुमार आर्य की तरफ से बीएनएस की धारा 103(1) तथा 238 के तहत उमेश कुमार निवासी गांव गजोधर सिंह डिडवा के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली तथा उसे विधिसम्मत गिरफ्तार कर लिया. पुलिस जांच में मामीभांजे के लव क्राइम की जो कहानी सामने आई, उस का विवरण इस प्रकार है.

उत्तर प्रदेश के बलरामपुर शहर के सिविल लाइंस मोहल्ले में मदन कुमार आर्य सपरिवार रहता था. उस के परिवार में पत्नी विनीता के अलावा बेटा मनु व एक बेटी थी. मदन कुमार बिजली विभाग में बाबू था. उस की पत्नी विनीता बलरामपुर जिला पंचायत स्थित आदर्श कंपोजिट विद्यालय में अनुदेशिका के पद पर थी. चूंकि पतिपत्नी दोनों सरकारी नौकरी करते थे, अत: उन की आर्थिक स्थिति मजबूत थी. बेटी पढ़लिख कर जवान हुई तो उन्होंने उस का ब्याह रचा दिया था. वह सुखपूर्वक ससुराल में रह रही थी. मदन कुमार आर्य की मां गंगाजली पूर्व विधायक सुखदेव प्रसाद की बेटी थीं. सुखदेव प्रसाद बलरामपुर शहर की तुलसीपुर विधानसभा सीट से 2 बार विधायक चुने गए थे. सिविल लाइंस वाला बंगला विधायक कोटे के तहत आवंटित हुआ था. विधायक पिता सुखदेव की मृत्यु के बाद गंगाजली अपने बेटे मदन कुमार व बहू विनीता के साथ इसी बंगले में रहने लगी थी.

मदन कुमार व उस की पत्नी विनीता, बेटे मनु को बेहद प्यार करते थे. वह उसे अच्छी शिक्षा दिला कर प्रशासनिक सेवा में लाना चाहते थे. इसलिए वह उस की शिक्षा पर पूरा ध्यान दे रहे थे और पैसा भी खूब खर्च कर रहे थे. मनु भी पढऩे में तेज था. अत: वह पढ़ाई पर जोर दे रहा था. विनीता खुद अच्छा कमाती थी और उस के पति मदन कुमार की भी कमाई खूब थी. घर में किसी चीज की कमी न थी. दोनों खुशहाल थे, लेकिन विनीता को पति की कमी खलती थी. दरअसल, विनीता बलरामपुर शहर में कार्यरत थी, जबकि पति गोंडा शहर में बिजली विभाग में बाबू था.

उस का रोजाना घर आना संभव न था, इसलिए वह गोंडा में ही किराए के मकान में रहता था. महीने में एकदो बार ही घर आता था और 2-3 दिनों बाद वापस चला जाता था. विनीता उन दिनों उम्र के उस दौर से गुजर रही थी, जब औरत को पुरुष की नजदीकियों की ज्यादा जरूरत होती है. विनीता 2 जवान बच्चों की मां जरूर थी, लेकिन उस की उम्र का अंदाजा लगाना मुश्किल था. वह खूब बनसंवर कर रहती थी. वह कुछ समय तक पति की कमी बरदाश्त करती रही. उस के बाद उस का जिस्म अंगड़ाइयां लेने लगा.

एक रोज विनीता सजधज कर घर से निकलने ही वाली थी कि मदन कुमार आर्य का भांजा उमेश कुमार आ गया. विनीता ने उसे आश्चर्य से देखते हुए पूछा, ”अरे तुम, इस तरह अचानक?’’

”मामी, अभीअभी गांव से आ रहा हूं.’’ उमेश कुमार ने मुसकरा कर जवाब दिया.

उस दिन उमेश को मामी बहुत ज्यादा खूबसूरत लगी. उस की निगाहें विनीता के चेहरे पर जम गईं. यही हाल विनीता का भी था. उमेश को इस तरह निगाहें जमाए देखा तो विनीता बोली, ”ऐसे क्या देख रहे हो मुझे? क्या पहली बार देखा है? बोलो, किस संकोच में डूबे हो?’’

”नहीं मामी, ऐसी कोई बात नहीं है. मैं तो यह देख रहा था कि मेकअप में आप कितनी सुंदर लग रही हैं. खुले बालों में तो आप गजब ही ढा रही हो.’’

”बस… बस रहने दो. बहुत बातें बनाने लगे हो. तुम्हारे मामा तो कभी तारीफ नहीं करते. महीने में एक या 2 बार आते हैं. वह भी थकेथके से रहते हैं.’’

”अरे मामी, औरत की खूबसूरती सब को रास थोड़े ही आती है. मामा बिजली विभाग में हैं. ऊपरी कमाई में जुटे रहते हैं, इसलिए वह तुम्हारी कद्र नहीं करते.’’

”तू तो मेरी बहुत कद्र करता है. महीनों बीत जाते हैं, झांकने तक नहीं आता. जा बहुत देखे हैं, तेरे जैसे बातें बनाने वाले.’’

”मुझे सचमुच आप की कद्र है मामी. यकीन न हो तो परख लो. अब मैं तुम्हारी खैरखबर लेने आता रहूंगा. छोटाबड़ा जो भी काम कहोगी, करूंगा.’’ उमेश ने विनीता की चिरौरी सी की. उमेश की यह बात सुन कर विनीता खिलखिला कर हंस पड़ी. फिर बोली, ”तुम आराम से सोफे पर बैठो. मैं तुम्हारे लिए चाय बनाती हूं.’’ कह कर विनीता ने रसोई का रुख किया.

थोड़ी देर में विनीता 2 कप चाय और नाश्ता ले आई. दोनों गपशप लड़ाते हुए चाय पीते रहे और चोरीछिपे एकदूसरे को देखते रहे. दोनों के ही दिलोदिमाग में हलचल सी मची हुई थी. सच तो यह था कि विनीता उम्र में कई साल छोटे स्मार्ट उमेश को देख कर उस पर फिदा हो गई थी. वह ही नहीं, उमेश भी मामी का दीवाना बन गया था. दोनों के दिल एकदूसरे के लिए धड़के तो नजदीकियां खुदबखुद बन गईं. इस के बाद उमेश कुमार हर सप्ताह विनीता से मिलने आने लगा. विनीता को उस का आना अच्छा लगता था. जल्द ही वे एकदूसरे से खुल गए और दोनों के बीच हंसीमजाक होने लगी. चूंकि दोनों के बीच मामीभांजे का रिश्ता था, इसलिए विनीता चाहती थी कि पहल उमेश कुमार करे. जबकि उमेश चाहता था कि जिस्म की भूखी मामी स्वयं उसे उकसाए.

आखिर जब विनीता से नहीं रहा गया तो एक रोज रात में उस ने उमेश को अपने घर रोक लिया. खाना खाने के बाद उमेश कमरे में जा कर पलंग पर लेट गया और सोने की कोशिश करने लगा. थोड़ी देर बाद विनीता भी उसी पलंग पर उमेश के बगल में लेट गई और उस से लिपट गई. विनीता का स्पर्श पा कर उमेश सिहर उठा. लेकिन वह रिश्ते की मर्यादा समझता था. इसलिए चुपचाप लेटा रहा. विनीता उस वक्त अधोवस्त्र में थी, जिस से उस के कोमल उभार उमेश के शरीर को छू रहे थे. वह उस से सटती ही जा रही थी, लेकिन उमेश रिश्ते की मर्यादा सोच कर चुपचाप लेटा था.

लेकिन वह कब तक चुप रहता? विनीता ने उकसाया तो उस रात दोनों के बीच की हर दीवार टूट गई. मामीभांजे का रिश्ता टूट कर बिखर गया और एक नए रिश्ते ने जन्म लिया, वह था अवैध संबंधों का रिश्ता. उस दिन के बाद विनीता और उमेश अकसर देह सुख प्राप्त करने लगे. विनीता भूल गई कि वह 2 जवान बच्चों की मां है और पति से विश्वासघात कर रही है. उस ने पवित्र रिश्ते को भी ताख पर रख दिया. जवां भांजे की वह दीवानी बन गई.

30 वर्षीय उमेश कुमार बलरामपुर (देहात) कोतवाली के गांव गजोधर सिंह डिडवा का रहने वाला था. उस के पिता सालिक राम किसान थे. 3 भाईबहनों में वह सब से बड़ा था. उमेश पढ़ालिखा स्मार्ट था. वह बलरामपुर शहर के वीर विनय चौराहा स्थित एचडीएफसी बैंक में सेल्स औफिसर पद पर था. उस की कमाई अच्छी थी. अत: ठाट से रहता था. उस के पास बे्रजा कार थी, जिस से वह आताजाता था.

दबंग स्वभाव का उमेश अकसर कार से विनीता के घर आता था और मामी के जिस्म से खेल कर वापस चला जाता था. कभीकभी वह रात को भी वहीं रुक जाता था और दोनों रात भर रंगरलियां मनाते. चूंकि दोनों के बीच मामीभांजे का रिश्ता था, इसलिए कोई शक भी नहीं करता था. लेकिन ऐसे संबंध छिपते नहीं. धीरेधीरे मोहल्ले में उन दोनों के संबंधों की चर्चा होने लगी.

विनीता के पति मदन कुमार को जब विनीता और उमेश के संबंधों का पता चला तो उस के पैरों तले से जमीन खिसक गई. उस ने इस बारे में पत्नी व भांजे से बात की तो दोनों ने साफ कह दिया कि ऐसी कोई बात नहीं है. लेकिन एक शाम जब उस ने अचानक दोनों को हंसीठिठोली करते देख लिया तो उस ने दोनों को फटकारा. पर उन पर इस का कोई असर नहीं हुआ. उन का मिलन जारी रहा. इसी बीच विनीता ने अपने रिश्तेदार की लड़की ज्योति से उमेश की शादी करा दी. सुंदर पत्नी पा कर उमेश पत्नी में रम गया. साल भर बाद उमेश एक बच्चे का बाप भी बन गया. पत्नी के आ जाने से उमेश का मामी से शारीरिक मिलन बंद सा हो गया. हां, इतना जरूर था कि उस की फोन पर मामी से बात होती रहती थी.

इधर विनीता पुरुष सुख की आदी बन गई थी, अत: जब उमेश से उस का शारीरिक मिलन बंद हुआ तो उस ने एक जवान टीचर से संबंध बना लिए. कुछ समय बाद नई बीवी का नशा उतरा तो उमेश मामी से संबंध स्थापित करने का प्रयास करने लगा. लेकिन विनीता ने तो किसी और को दिल में बसा लिया था, अत: उस ने उमेश को तवज्जो देनी बंद कर दी और उसे नजरअंदाज करने लगी. उमेश को पहले तो कुछ पता नहीं चला, लेकिन उस ने जब गुप्त रूप से जानकारी जुटाई तो उसे पता चला कि विनीता ने किसी और को दिल में बसा लिया है, जिस से वह उसे नजरअंदाज कर रही है. यही नहीं, उस ने उमेश की काल रिसीव करनी भी बंद कर दी.

मामी की बेवफाई से उमेश बौखला गया. आखिर उस ने विनीता को सबक सिखाने की ठान ली और उस की रेकी करने लगा. पहली अप्रैल, 2025 की शाम 5 बजे विनीता सामान लेने सिविल लाइंस बाजार की ओर गई, तभी उमेश की नजर उस पर पड़ी. इस के बाद वह उस के पास पहुंचा और घुमाने के बहाने विनीता को कार में बिठा लिया. देर रात उस ने विनीता को दुपट्टे से गला घोंट कर मार डाला और लाश को भी ठिकाने लगा दिया.

विस्तार से पूछताछ करने के बाद 4 अप्रैल, 2025 को पुलिस ने हत्यारोपी उमेश कुमार को बलरामपुर कोर्ट में पेश किया, जहां से उसे जिला जेल भेज दिया गया. कथा संकलन तक उस की जमानत लोअर कोर्ट से खारिज हो गई थी. इस के बाद उस के फेमिली वाले जमानत के लिए हाईकोर्ट में पैरवी कर रहे थे. UP Crime News

 

 

Love Story in Hindi : भांजी के प्यार में बना बलि का बकरा

Love Story in Hindi : 12 अगस्त, 2013 की बात है. नेहा तय समय पर कुछ कपड़े और सामान ले कर चुपचाप घर के  बाहर निकल गई. उस ने और महेंद्र ने पहले ही घर से भागने की योजना बना ली थी. गांव से निकल कर नेहा रायबरेली लालगंज जाने वाली सड़क पर पहुंच गई. वहां उस का प्रेमी महेंद्र पहले से उस का इंतजार कर रहा था.

दोनों ने वहां से फटाफट बस पकड़ी और कानपुर चले गए. कानपुर के एक मंदिर में दोनों ने पहले शादी की, फिर वहां से दिल्ली चले गए. दिल्ली में महेंद्र का एक दोस्त रहता था. उस की मार्फत दिल्ली में उस की नौकरी लग गई. बाद में उस ने किराए पर एक कमरा ले लिया. किराए के उस कमरे में वह नेहा के साथ रहने लगा. इधर महेंद्र और नेहा के फरार होने के बाद उन के गांव बीजेमऊ में हंगामा मच गया. नेहा नाबालिग थी, ऐसे में उस के मांबाप ने 15 अगस्त को महेंद्र के खिलाफ खीरो थाने में भादंवि की धारा 363, 366 और 376 के तहत अपहरण और बलात्कार का मुकदमा दर्ज करा दिया.

खीरो थाने के एसआई राकेश कुमार पांडेय नेहा और महेंद्र की खोज में जुट गए. हफ्ता भर कोशिश करने के बाद उन्होंने दोनों को आखिर ढूंढ लिया. राकेश कुमार ने महेंद्र और नेहा को बरामद कर के 24 अगस्त को न्यायालय में पेश किया. महेंद्र और नेहा ने कोर्ट में सफाई दी कि उन्होंने शादी कर ली है. इतना ही नहीं, उन्होंने अपनी शादी के फोटो भी कोर्ट में पेश किए लेकिन नेहा के नाबालिग होने की वजह से अदालत ने महेंद्र को जेल भेज दिया और नेहा को उस की मां के हवाले करने का आदेश दिया.

पुलिस ने इस मामले की जांच पूरी करने के बाद 27 अगस्त, 2013 को अदालत में चार्जशीट पेश कर दी. पुलिस की जांच से पता चला कि महेंद्र और नेहा का प्यार 2 साल पहले शुरू हुआ था. नेहा और महेंद्र के प्यार की शुरुआत की कहानी भी बड़ी दिलचस्प है. उत्तर प्रदेश के जिला रायबरेली की रहने वाली नेहा की मां की दोस्ती रेखा गुप्ता नाम की एक महिला से थी. रेखा के पति श्यामू गुप्ता की करीब 8 साल पहले मृत्यु हो गई थी. उन से 3 बेटियां कोमल, करिश्मा और खुशबू थीं. पति की मौत के बाद रेखा किसी तरह परिवार पाल रही थी, उसी दौरान उस की मुलाकात सर्वेश यादव से हुई.

सर्वेश यादव मूल रूप से कन्नौज जिले के मुंडला थाना क्षेत्र के गांव ताल का रहने वाला था. उस के पिता मोहर सिंह किसान थे. सर्वेश काम की तलाश में गांव से रायबरेली आया तो फिर वहीं का हो कर रह गया.   रेखा से मुलाकात होने के बाद उस की उस से दोस्ती हो गई. यह दोस्ती दोनों को इतना करीब ले आई कि रेखा और सर्वेश ने शादी कर ली. सर्वेश से शादी करने के बाद रेखा 2 और बच्चों की मां बनी. बाद में सर्वेश ने रेखा की बड़ी बेटी कोमल की शादी अपने भांजे सुमित से करा दी थी.

सहेली होने के नाते नेहा की मां विनीता अपने घरपरिवार की सारी परेशानी रेखा और सर्वेश से कहती रहती थी. विनीता और सर्वेश एक ही जाति के थे, इसलिए वह विनीता को बहन कहता था. दोनों में बहुत छनती थी. रेखा का घर विनीता के घर से कुछ दूरी पर था. जब भी मौका मिलता था, वह उस के पास चली आती थी. नेहा के भागने के बाद विनीता गांव में खुद को अपमानित महसूस करती थी. वह रेखा के अलावा किसी के घर नहीं जाती थी.

एक बार रेखा और विनीता आपस में बातचीत कर रही थीं तभी वहां मौजूद सर्वेश ने विनीता से कहा, ‘‘बहन, तुम्हारी बेटी नेहा तुम्हारे कहने में नहीं है. अभी तो वह नाबालिग थी तो पुलिस ने उसे पकड़ लिया. बालिग होने के बाद अगर वह किसी के साथ चली जाएगी तो पुलिस भी कोई मदद नहीं करेगी.’’

‘‘भैया, तुम्हारी बात तो सही है. पर क्या करें कुछ समझ नहीं आ रहा है. मैं उसे बहुत समझाने की कोशिश करती हूं लेकिन उस के ऊपर महेंद्र का भूत सवार है.’’ विनीता बोली.

‘‘बहन, तुम चिंता मत करो. मैं अपने गांव में नेहा की शादी की बात करता हूं. वहां के लोगों को नेहा के बारे में कोई बात पता नहीं है. इसलिए शादी होने में कोई परेशानी नहीं आएगी. शादी होने के बाद सब ठीक हो जाता है.’’

सर्वेश का एक भतीजा था जोगिंदर. उस की शादी नहीं हुई थी. सर्वेश ने सोचा कि अगर नेहा और जोगिंदर की शादी हो जाए तो दोनों की जोड़ी अच्छी रहेगी. रायबरेली और कन्नौज के बीच करीब 160 किलोमीटर की दूरी है. ऐसे में नेहा जल्द मायके भी नहीं आजा सकेगी और महेंद्र को भूल कर अपनी गृहस्थी में रचबस जाएगी. विनीता चाहती थी कि महेंद्र के जेल से बाहर आने से पहले नेहा की शादी हो जाए तो अच्छा रहेगा. इसलिए उस ने सर्वेश से कहा कि जितनी जल्दी हो सके, वह इस काम को करवा दे.

सर्वेश ने ऐसा ही किया. जोगिंदर और उस के घरवालों से बात करने के बाद आननफानन में जोगिंदर और नेहा की शादी कर दी गई. शादी के बाद नेहा कन्नौज चली गई. बेटी की शादी हो जाने के बाद विनीता ने राहत की सांस ली. लगभग 3 महीने जेल में रहने के बाद नवंबर, 2013 में महेंद्र जमानत पर घर आ गया. जेल में रहने के बाद भी वह नेहा को भूल नहीं पाया था.  उस ने अपने घरवालों से नेहा के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि नेहा के घर वालों ने उस की शादी दूसरी जगह कर दी है. यह सुन कर उसे बहुत बड़ा धक्का लगा.

बाद में महेंद्र ने पता लगा लिया कि नेहा की शादी कराने में सब से बड़ी भूमिका सर्वेश यादव की रही थी. इसलिए उस ने सर्वेश के पास जा कर उसे धमकी दी, ‘‘नेहा मुझे प्यार करती थी और मेरे साथ रहना चाहती थी. तुम सब ने मुझे जेल भिजवा कर उस की शादी कर दी. तुम ने सोचा होगा कि इस से हम दूर हो जाएंगे. लेकिन मैं तुम्हें बता देना चाहता हूं कि यह तुम लोगों की गलतफहमी है. मैं नेहा को दोबारा हासिल कर के रहूंगा. जिस ने भी नेहा को मुझ से अलग करने का काम किया है, मैं उसे सबक सिखा कर रहूंगा.’’

सर्वेश ने महेंद्र से उलझना ठीक नहीं समझा. उस के जाने के बाद वह अपने काम में लग गया. उधर महेंद्र इस कोशिश में लग गया कि किसी तरह उस की एक बार नेहा से बात हो जाए. वह उस से जानना चाहता था कि शादी के बाद भी वह उस के साथ रहना चाहती है या नहीं. यदि वह उसे अब भी चाहती है तो वह उसे ले कर कहीं दूर चला  जाएगा. महेंद्र यह बात अच्छी तरह जानता था कि अब तक नेहा बालिग हो चुकी है. ऐसे में अब अगर वह अपनी मरजी से उस के साथ जाएगी तो पुलिस भी उसे फिर से जेल नहीं भेज पाएगी.

कुछ समय बाद महेंद्र को किसी तरह नेहा का मोबाइल नंबर मिल गया. उस ने नेहा से बात की. महेंद्र के जेल से आने की बात सुन कर नेहा खुश हो गई.  आपसी गिलेशिकवे दूर करने के बाद नेहा ने उसे बताया, ‘‘घरवालों ने मेरी शादी जबरन कराई है. मैं अब भी तुम्हारे साथ रहना चाहती हूं लेकिन अब इतनी दूर हूं कि मिलना भी संभव नहीं है.’’

प्रेमिका की बात सुन कर महेंद्र का दिल बागबाग हो गया. इस के बाद दोनों ने आगे की रणनीति बनाई.

8 फरवरी, 2014 को नेहा के चचेरे भाई पवन की शादी थी. नेहा ने महेंद्र से कहा कि मैं उस की शादी में शामिल होने के लिए गांव आऊंगी. तब तुम से मिलूंगी.

‘‘बस नेहा एक बार तुम मेरे पास आ जाओ, इस के बाद मैं तुम्हें कभी भी दूर नहीं जाने दूंगा. तुम्हें ले कर इतनी दूर चला जाऊंगा कि किसी को पता तक नहीं चलेगा.’’ महेंद्र ने कहा.

महेंद्र की बातों में आ कर नेहा एक बार फिर से उस के साथ भागने को तैयार हो गई तो महेंद्र ने यह बात अपने कुछ दोस्तों को भी बता दी. फिर क्या था, यह जानकारी सर्वेश को भी मिल गई. महेंद्र के जेल से छूट कर आने के बाद उस ने जब से सर्वेश को धमकी दी थी, तब से वह उस की हर हरकत पर नजर रख रहा था.

सर्वेश को महेंद्र की योजना का पता चल ही गया था. उस की योजना को फेल करने के लिए सर्वेश ने अपने भतीजे जोगिंदर को फोन कर के कहा, ‘‘जोगिंदर पवन की शादी में तुम नेहा को ले कर उस के गांव मत आना. यहां आ कर वह परेशान हो जाती है. अपनी मां, घरपरिवार के मोह में वह यहां आना चाहती है.’’

भतीजे से बात करने के बाद सर्वेश को लगा कि जब नेहा यहां आएगी ही नहीं तो महेंद्र कुछ नहीं कर सकेगा. यही नहीं सर्वेश ने जोगिंदर से कह कर नेहा का मोबाइल नंबर भी बदलवा दिया, ताकि महेंद्र उस से दोबारा बात न कर सके. यह बात जब महेंद्र को पता चली तो उसे शक हो गया कि यह सब सर्वेश ने ही कराया होगा. वह सर्वेश के पास पहुंच गया और आगबबूला होते हुए बोला, ‘‘मैं ने तुम से कहा था कि तुम मेरे बीच में मत आओ लेकिन तुम नहीं माने. अब इस का खामियाजा भुगतने को तैयार रहो.’’

27 मार्च, 2014 की रात को सर्वेश अपने घर के बाहर दरवाजे पर सो रहा था. आधी रात को अचानक उस के चीखने की आवाजें आने लगीं. आवाज सुन कर उस की पत्नी रेखा भाग कर बाहर आई तो सर्वेश का गला कटा हुआ था.  पति की हालत देख कर वह जोरजोर से रोने लगी. उस की आवाज सुन कर गांव के दूसरे लोग भी वहां आ गए. लोगों को इस बात की हैरानी हो रही थी कि इस तरह गला रेत कर सर्वेश की हत्या किस ने कर दी?

सूचना मिलने पर थाना खीरो की पुलिस भी वहां पहुंच गई. पुलिस रेखा और अन्य लोगों से पूछताछ करने लगी. पुलिस को लोगों से तो कुछ पता नहीं चला लेकिन वह इतना जरूर समझ गई कि हत्यारे की सर्वेश से गहरी दुश्मनी रही होगी. पुलिस ने लाश का पंचनामा करने के बाद उसे पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. पुलिस ने रेखा की तरफ से अज्ञात लोगों के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर के तहकीकात शुरू कर दी. पुलिस अधीक्षक राजेश कुमार पांडेय ने खीरो के थानाप्रभारी विद्यासागर पाल को जल्द से जल्द इस मामले का परदाफाश करने के आदेश दिए.

थानाप्रभारी ने रेखा से बात की तो उस ने बताया कि उन की वैसे तो किसी से भी कोई दुश्मनी वगैरह नहीं थी लेकिन महेंद्र कई बार दरवाजे पर आ कर धमकी दे गया था. चूंकि पुलिस अधीक्षक सीधे इस केस की काररवाई पर नजर रखे हुए थे इसलिए थानाप्रभारी ने रेखा द्वारा कही गई बात उन्हें बताई तो उन्होंने महेंद्र के खिलाफ सुबूत जुटाने को कहा.

थानाप्रभारी ने सर्वेश के घर वालों के अलावा मोहल्ले के अन्य लोगों से बात की तो पता चला कि महेंद्र का विनीता की बेटी नेहा से चक्कर चल रहा था. अपने और नेहा के बीच में वह सर्वेश को रोढ़ा मानता था. लोगों से की गई बात के बाद थानाप्रभारी को भी महेंद्र पर शक होने लगा.

एसपी के आदेश पर खीरो थाने की पुलिस महेंद्र के पीछे लग गई. घटना के 3 दिन बाद 31 मार्च, 2014 को मुखबिर की सूचना पर एसआई राकेश कुमार पांडेय, कांस्टेबल सुरेश चंद्र सोनकर, गोबिंद और कमरूज्जमा अंसारी ने महेंद्र को हिरासत में ले लिया. थाने ला कर जब उस से पूछताछ की गई तो उस ने आसानी से स्वीकार कर लिया कि उस ने ही सर्वेश की हत्या की थी. महेंद्र ने पुलिस को बताया कि वह नेहा से बहुत प्यार करता था. उस के लिए वह जेल भी गया था. इस बीच नेहा की शादी जोगिंदर से हो जरूर गई थी, लेकिन उस के जेल से लौटने के बाद भी नेहा पति को छोड़ उस के साथ ही रहना चाहती थी. सर्वेश उस की और नेहा की राह में रोड़ा बन कर बारबार आ रहा था. तब मजबूरी में उस ने सर्वेश को रास्ते से हटाने की योजना बनाई.

वह सर्वेश को मारने का मौका ढूंढता रहा. जाड़े के दिनों में वह घर में सोता था इसलिए उसे मौका नहीं मिला. जाडे़ का मौसम गुजर जाने के बाद सर्वेश घर के बाहर सोने लगा. महेंद्र मौके की तलाश में रात में रोजाना उस के घर की तरफ जाता था. 27 मार्च को भी वह मौके की फिराक में था. रात साढ़े 12 बजे जब सन्नाटा हो गया तो उस ने सर्वेश का मुंह दबा कर उस का गला चाकू से काट दिया.

सर्वेश जोर से चिल्लाने लगा तो उस ने उस पर चाकू से कई वार किए. इस बीच उस की पत्नी रेखा दरवाजा खोल कर आती दिखी तो वह भाग निकला. हत्या के समय खून के छींटे महेंद्र की शर्ट पर भी आए थे. उस ने चाकू और खून लगी शर्ट महारानीगंज, सिधौर मार्ग पर बने मंदिर के बगल वाली पुलिया के नीचे छिपा दी थी. फिर वह घर चला गया था.

महेंद्र को जब पता चला कि पुलिस ज्यादा एक्टिव हो गई है तो उस ने घर से कानपुर के रास्ते दिल्ली भागने की योजना बना ली. इस से पहले कि वह वहां से भाग पाता पुलिस ने मुखबिर की सूचना पर उसे समेरी चौराहे से गिरफ्तार कर लिया. महेंद्र की निशानदेही पर पुलिस ने चाकू और खून से सनी शर्ट भी बरामद कर ली. 1 अप्रैल, 2014 को पुलिस ने महेंद्र को रायबरेली के जिला न्यायालय में पेश किया. वहां से उसे जेल भेज दिया गया.  महेंद्र ने अपने और अपनी प्रेमिका के बीच सर्वेश के आने पर प्रतिशोध की भावना से ग्रस्त हो कर उस की हत्या कर दी. भले ही वह अपना प्रतिशोध लेने में सफल हो गया हो पर यह उस के लिए बहुत महंगा साबित हुआ. अब वह हत्या के आरोप में जेल में बंद है. उसे न तो प्रेमिका मिल सकी और न उस का साथ.

प्रतिशोध की भावना लोगों को अंधा कर देती है. ऐसे में यह दिखाई नहीं देता कि प्रतिशोध का अंजाम जीवन बरबाद करने वाला होता है. महेंद्र को यह कदम उठाने से पहले सोच लेना चाहिए था. वह खुद तो तिलतिल मर कर जेल में अपनी जिंदगी गुजार ही रहा होगा लेकिन उसे इस बात का अहसास नहीं होगा कि उस का परिवार उस से भी अधिक मुसीबत में है.

उस के परिवार वाले अपनी जमीनजायदाद बेच कर मुकदमा लड़ने के लिए वकील की फीस चुका रहे हैं. इस सब के बाद भी अदालत इस मामले में जो फैसला सुनाएगी, वह जरूरी नहीं कि महेंद्र के पक्ष में ही आए.

कुल मिला कर बात यहीं आ कर ठहरती है कि महेंद्र ने गुस्से में जो कदम उठाया उस से उस का परिवार ही मुसीबत में नहीं फंसा बल्कि सर्वेश यादव की हत्या के बाद उस की पत्नी और परिवार का जीवन भी अंधकारमय हो गया है. Love Story in Hindi

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित है. कथा में कुछ पात्रों के नाम परिवर्तित हैं.