Crime stories : शादी का झांसा देता फरजी सीबीआई अधिकारी

Crime stories : 12 दिसंबर, 2017 को मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के थाना अशोका गार्डन में काफी भीड़भाड़ थी. धीरेधीरे यह भीड़ बढ़ती जा रही थी. लोग यह जानने के लिए उस भीड़ का हिस्सा बनते जा रहे थे कि आखिर यहां हो क्या रहा है? लोग उत्सुकता से एकदूसरे का मुंह भी ताक रहे थे कि यहां हो क्या रहा है? उधर से गुजरने वाला हर आदमी बिना ठिठके आगे नहीं बढ़ रहा था.

इस की वजह यह थी कि शायद माजरा उस की समझ में आ जाए. जब उन्हें सच्चाई का पता चला तो सभी के सभी हक्केबक्के रह गए. एक लड़की, जिस की उम्र 23-24 साल रही होगी, वह एक लड़के का गिरेबान पकड़ कर कह रही थी, ‘‘सर, इस ने मेरी जिंदगी बरबाद कर दी. इस ने मेरे साथ बहुत बड़ा धोखा किया है.’’

इस के बाद उस लड़की ने थाना पुलिस को जो बताया, उस के अनुसार उस लड़के ने फरजी आईपीएस अधिकारी बन कर उसे शादी का झांसा दिया था. काफी समय तक वह उस की इज्जत को तारतार करते हुए उस के भरोसे से खेलता रहा. यही नहीं, शादी करने के नाम पर उस ने उस से लाखों रुपए भी लिए थे.

लड़की को जब लड़के की सच्चाई का पता चला तो उस ने फरार होने की कोशिश की, लेकिन लड़की ने घर वालों की मदद से उसे पकड़ लिया और थाने ले आई. हर मांबाप की यही ख्वाहिश होती है कि वह अपनी औलाद को पढ़ालिखा कर इस काबिल बना दे कि वह खूब तरक्की करे.

ऐसी ही ख्वाहिश याकूब मंसूरी की भी थी. वह अपनी बेटी जेबा को गेट की तैयारी करवा रहे थे. जबकि मुसलमानों में आमतौर पर यही माना जाता है कि लड़कियों को ज्यादा पढ़ालिखा कर उन से नौकरी थोड़ी ही करानी है. लेकिन याकूब मंसूरी की सोच इस के विपरीत थी. वह जेबा को पढ़ालिखा कर कुछ करने के लिए प्रेरित करने के साथसाथ हर तरह से उस की मदद भी कर रहे थे.

जेबा मंसूरी भी अपने वालिद के सपनों को साकार करने में पूरी ईमानदारी से जुटी थी. वह परीक्षा की तैयारी मेहनत से कर रही थी. वह पढ़ने में भी काफी होशियार थी. उसे पूरी उम्मीद थी कि इस साल वह गेट की परीक्षा पास कर लेगी. इस के लिए वह रातदिन मेहनत कर रही थी. लेकिन जो सपने उस ने बुने थे, उस पर समीर खान की नजर लग गई.

मैट्रीमोनियल साइट से हुई दोस्ती

जवान होती लड़की के लिए हर मांबाप की यही ख्वाहिश होती है कि उन की बेटी के लिए किसी भी तरह एक अच्छा सा लड़का मिल जाए. इस के लिए मांबाप लड़के वालों की तमाम तरह की मांगों को पूरी करने की कोशिश भी करते हैं. अच्छे रिश्ते के लिए ही याकूब मंसूरी ने शादी डाटकौम पर बेटी जेबा की प्रोफाइल बनाई थी.

उन्होंने ऐसा बेटी के सुखद भविष्य के लिए किया था. लेकिन हो गया उल्टा. शायद इसीलिए जहां शादी की शहनाई बजनी थी, वहां अब मातम पसरा था. समाज में आज इतना बदलाव आ गया है कि लड़केलड़कियां अपनी पसंद से शादी करने लगे हैं. इस में कोई बुराई भी नहीं है. क्योंकि जब लड़के और लड़की को जीवन भर साथ रहना है तो पसंद भी उन्हीं की होनी चाहिए.

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इसीलिए अब परिचय सम्मेलन आयोजित किए जाने लगे हैं. इस से सब से बड़ा फायदा यह हुआ है कि लड़के के साथ लड़की को भी अपनी पसंद का जीवनसाथी मिल जाता है. चूंकि जमाना हाइटेक हो चुका है, इसलिए अब विवाह के लिए जीवनसाथी तलाशने का काम औनलाइन भी होने लगा है. कई प्लेटफार्म लोगों की शादी के लिए अच्छा जरिया बन गए हैं.

जेबा मंसूरी ने थाना अशोका गार्डन पुलिस को जो तहरीर दी थी, उस के अनुसार शादी के नाम पर उस के साथ धोखा हुआ था. जेबा ने नए साल में अपने लिए तरहतरह के जो अरमान पाले थे, नए साल के कुछ दिनों पहले ही उस के साथ जो हुआ, उस से उस के सारे अरमान एक ही झटके में चकनाचूर हो गए.

उस ने क्या सोचा था और उस के साथ क्या हो गया. शादी के नाम पर उस लड़के ने उस के साथ बहुत भयानक खेल खेला था, जिसे वह चाह कर भी इस जनम में नहीं भुला पाएगी. जेबा ने जो शिकायत दर्ज कराई है, उस के अनुसार उस के शादी के नाम पर धोखा खाने की कहानी कुछ इस प्रकार है—

जेबा प्रतियोगी परीक्षा गेट की तैयारी कर रही थी. जवान होती बेटी की शादी के लिए पिता याकूब मंसूरी ने शादी डाटकौम पर प्रोफाइल बना दी थी. शादी डाटकौम के जरिए शादी के लिए उस की प्रोफाइल पर एक रिक्वेस्ट आई. रिक्वेस्ट में दिए मोबाइल नंबर पर याकूब मंसूरी ने बात की.

इस बातचीत में उस ने अपना नाम समीर खान बताया था. उस ने बताया कि वह चेन्नई में सीबीआई में बतौर अंडरकवर डीएसपी नौकरी करता है. याकूब ने उस के घर वालों से बात करने की इच्छा जाहिर की तो उस ने अपने पिता अनवर खान का नंबर दे दिया. अनवर खान से समीर खान के बारे में जानकारी ली गई तो पता चला कि उन का बेटा समीर सीबीआई में अंडरकवर डीएसपी है. फिलहाल उस की पोस्टिंग चेन्नई में है.

बातचीत के लिए जेबा को ले गया होटल में

इस के बाद समीर ने याकूब मंसूरी से जेबा का मोबाइल नंबर यह कह कर मांग लिया कि वह उस से बात करेगा. अगर वह उसे पसंद आ गई तो वह इस जानपहचान को जल्दी ही शादी जैसे खूबसूरत रिश्ते में बदल देगा. याकूब मंसूरी ने समीर की बातों पर विश्वास कर के उसे जेबा का नंबर दे दिया.

अक्तूबर महीने में एक दिन जेबा के मोबाइल पर समीर ने फोन किया. दोनों में काफी देर तक बातें हुईं. दोनों ने एकदूसरे को अपनेअपने घर परिवार और विचारों के बारे में बताया. समीर ने ऐसी लच्छेदार बातें कीं कि जेबा उस के दिखाए सब्जबाग में फंस गई. इस के बाद अकसर उन की बातें होने लगीं. वाट्सऐप पर भी संदेशों का आदानप्रदान होने लगा.

ऐसे में ही एक दिन समीर ने भोपाल आ कर जेबा से मिलने की ख्वाहिश जाहिर की, जिसे वह मना नहीं कर सकी. समीर के भोपाल आने की बात पर एक ओर जहां जेबा खुश हो रही थी, वहीं दूसरी ओर अंजाना सा डर भी सता रहा था. क्योंकि किसी से फोन पर बात करना अलग बात होती है और आमनेसामने मिलना अलग.

लेकिन शादी का मामला था, इसलिए जेबा ने मिलना मुनासिब समझा. आखिर वह समीर को लेने भोपाल रेलवे स्टेशन पर पहुंच गई.  यह 22 नवंबर, 2017 की बात है. दोनों ने एकदूसरे को देखा तो पहली नजर में ही पसंद कर लिया.

समीर ने जेबा के घर जाने के बजाय उस के साथ स्टेशन से सीधे नूरउससबा पैलेस होटल पहुंचा. जबकि जेबा उसे घर ले जाना चाहती थी. लेकिन समीर की मरजी के आगे उस की एक न चली.

होटल में उस ने डबलबैड कमरा लिया था, जिस में दोनों 2 दिनों तक रुके. इस बीच समीर ने अपने परिवार के बारे में जेबा को खूब बढ़ाचढ़ा कर बताया. उस के बताए अनुसार, उस के परिवार के ज्यादातर लोग सरकारी नौकरियों में हैं. कोई जज है तो कोई इसी तरह की अन्य सरकारी नौकरी में. अपने पिता के बारे में उस ने बताया कि उन का मुंबई में कपड़ों का बहुत बड़ा बिजनैस है, इसलिए वह वहीं रहते हैं. वह बनारस का रहने वाला है, जहां उस की काफी जमीनजायदाद है.

समीर ने पसंद किया जेबा को

अपने घरपरिवार के बारे में बता कर समीर ने जेबा से कहा कि वह उसे पसंद है और उस से शादी के लिए तैयार है. समीर अच्छे घर का लड़का था और  (CBI )सीबीआई में अफसर था, इसलिए जेबा ने भी हामी भर दी. जेबा के हां करते ही समीर उस से छेड़छाड़ करने लगा. इस के बाद सारी मर्यादाएं लांघते हुए उस ने उस के साथ शारीरिक संबंध बना लिए.

जेबा भी उस के बहकावे में आ कर गुनाहों के ऐसे दलदल में जा फंसी, जहां से निकलना किसी भी लड़की के लिए बहुत मुश्किल होता है. भोपाल में 2 दिन रुकने के बाद समीर ने कहा कि औफिशियल काम से उसे दिल्ली जाना है. इस से जेबा को लगा कि वाकई उसे वहां जरूरी काम होगा.

लेकिन बाद में पता चला कि वह सब झूठ था. यह सब जेबा काफी बाद में जान पाई. दिल्ली जाने के बाद समीर ने उसे फोन किया. डरते हुए उस ने बताया कि उन के होटल में रुकने का पता उस के घर वालों को चल गया है, जिस से वे काफी नाराज हैं. उस की बातें सुन कर जेबा शौक्ड रह गई. वह यह क्या कह रहा है, अब क्या होगा, उस की कितनी बदनामी होगी?

समीर ने जेबा को समझाते हुए कहा कि वह बिलकुल परेशान न हो. यह बात भोपाल में किसी को पता नहीं है, सिर्फ उस के घर वालों को ही पता है. इस बात से वे काफी नाराज हैं. लेकिन घबराने की कोई बात नहीं है. कुछ दिनों में वह सब संभाल लेगा. वह बिलकुल परेशान न हो. वह उन्हें मना लेगा. वह फिर भोपाल आ रहा है. 2 दिन बाद समीर फिर भोपाल आया और नूरउससबा होटल के उसी कमरे में ही रुका. लेकिन इस बार जेबा होटल में उस के साथ नहीं रुकी, लेकिन उस से मिलने रोज आती रही.

अंत में जब समीर ने दबाव डाला तो वह 8 नवंबर से 23 नवंबर तक होटल में रुकी. समीर से उस के शारीरिक संबंध बन ही चुके थे, इसलिए इस बार भी वह उस से शारीरिक संबंध बनाता रहा.

जेबा ने ऐतराज जताया तो उस ने होटल में ही काजी को बुला लिया और उन के सामने कहा कि वह उस से निकाह कर के उसे अपनी बीवी मान रहा है. इस तरह से जेबा का निकाह समीर से हो गया. वह समीर की बीवी बन कर रहने लगी, जबकि उन के इस निकाह का कोई लिखित सबूत नहीं था.

इतने दिनों तक होटल में साथ रुकने के बाद जेबा समीर को अपने मम्मीपापा से मिलवाने के लिए सागर ले गई, जहां मकरोनिया सागर में उस का पुश्तैनी मकान था. वहां भी वह अपनी लच्छेदार बातों के जाल में फंसा कर जेबा के घर वालों के सामने एक अच्छा लड़का बना रहा. याकूब मंसूरी और उन की पत्नी को भी समीर पसंद आ गया था. अब इस रिश्ते में कोई अड़चन नहीं थी. कुछ समय तक सागर में रुक कर दोनों भोपाल लौट आए. समीर भोपाल स्थित जेबा के घर पर भी कई दिनों तक रुका. वहां भी दोनों ने जिस्मानी रिश्ते बनाए.

ट्रेनिंग के लिए जाने की बात कह कर ठगे लाखों रुपए

समीर ने जेबा के साथसाथ उस के घर वालों को भी इस बात का पक्का यकीन दिला दिया था कि वह सीबीआई में अंडरकवर डीएसपी है और उस का सिलेक्शन आईपीएस के रूप में हो गया है, जिस की ट्रेनिंग हैदराबाद में होनी है. आईपीएस की ट्रेनिंग पर वह इसलिए नहीं जा पा रहा था, क्योंकि किसी वजह से स्टे लगा था. लेकिन अब स्टे हट गया है, इसलिए उसे ट्रेनिंग के लिए हैदराबाद जाना है.

ऐसे में ही जेबा ने उस से पूछ लिया कि वह वरदी क्यों नहीं पहनता तो उस ने कहा कि वह सीबीआई अफसर है, इसलिए उसे पहचान छिपा कर रखनी पड़ती है. जब कभी औफिस जाना होता है तो वह वरदी पहनता है.

जेबा के कहने पर एक दिन समीर ने उसे आईपीएस की वरदी पहन कर दिखाते हुए कहा कि जब कभी औफिशियल मीटिंग होती है, तब वह यह वरदी पहन कर जाता है. जेबा को उस वरदी पर संदेह हुआ, क्योंकि उस पर सीनियर अफसरों के बैज लगे थे. इस के बाद समीर ने उसे सील लगे हुए कई दस्तावेज दिखाए.

एक दिन समीर परेशान सा सोफे पर चुपचाप बैठा था. जेबा ने परेशानी की वजह पूछी तो उस ने धीमी आवाज में कहा, ‘‘क्या बताऊं, मुझे ट्रेनिंग के लिए हैदराबाद जाना है, जिस के लिए काफी पैसों की जरूरत है. होटल में मिलने को ले कर पापा अभी तक नाराज हैं, इसलिए उन से किसी तरह की मदद की उम्मीद नहीं है. अब परेशानी यह है कि ट्रेनिंग का खर्च कहां से आएगा.’’

समीर की बातों में आ कर जेबा ने कहा, ‘‘आप परेशान मत होइए, मैं आप के लिए पैसों का इंतजाम कर दूंगी.’’

समीर मना करता रहा, इस के बावजूद कई बार में जेबा ने तकरीबन 2 लाख रुपए उसे दे दिए. क्योंकि उसे कभी उस पर संदेह नहीं हुआ था.

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परिवार से मिलवाने की बात को टाल जाता था

जब भी जेबा समीर से घर वालों के बारे में पूछती या मिलवाने की बात कहती, वह कोई न कोई बहाना बना कर टाल जाता. जेबा को उस से मिले करीब 2 महीने हो गए थे, लेकिन उस ने अपने मम्मीपापा से मिलवाने की कौन कहे, फोन पर बात तक नहीं करवाई थी.

इन्हीं बातों से जेबा को उस पर शक होने लगा. संदेह गहराया तो उस ने अपने पापा से समीर के बारे में पता करने को कहा. उस ने और उस के मम्मीपापा ने समीर से उस की नौकरी और पढ़ाई के कागजात मांगे तो वह टालमटोल करने लगा. याकूब मंसूरी ने अपने कई परिचितों को समीर के बारे में पता करने के लिए लगा दिया. नतीजा यह निकला कि उस की असलियत का पता चल गया.

समीर को पता नहीं कैसे भनक लग गई कि उस की पोल खुल गई है. वह अपना बैग ले कर घर से भागने की फिराक में था, तभी जेबा ने कहा, ‘‘समीर, हमें तुम्हारी असलियत का पता चल गया है. अब मैं तुम्हें पुलिस के हवाले करूंगी, जिस से तुम्हारी जिंदगी जेल में कटेगी.’’

समीर डर गया. उस ने कहा, ‘‘अगर तुम लोगों ने मेरी शिकायत पुलिस में की तो मैं तुम सभी को जान से मार दूंगा.’’

लेकिन उस की इस धमकी से न जेबा डरी और न उस के मम्मीपापा. याकूब मंसूरी ने अपने दोस्तों की मदद से समीर को पकड़ लिया और थाना अशोका गार्डन ले गए, जहां वह खुद को पुलिस अधिकारी होने का भरोसा दिलाता रहा और वादा करता रहा कि जेबा से ही शादी करेगा.

लेकिन शादी का झांसा दे कर शारीरिक शोषण करने के साथ लाखों रुपए ऐंठने वाले समीर की असलियत जेबा को पता चल गई थी, इसलिए उस ने उस की किसी बात पर भरोसा नहीं किया. मामले की नजाकत को भांपते हुए अशोका गार्डन पुलिस ने समीर को तुरंत हिरासत में ले लिया.

समीर को हिरासत में लेने के बाद पुलिस ने याकूब मंसूरी के घर में रखे उस के बैग को कब्जे में ले कर तलाशी ली तो उस में से राजीव गांधी प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, सीबीआई सहित कई संस्थानों की फरजी मोहरें मिलीं. यही नहीं, उस के पास से डीआईजी रैंक के पुलिस अधिकारी की वरदी भी मिली. समीर ने एक गलती यह की थी कि उस ने जो वरदी खरीदी थी, वह डीआईजी रैंक के पुलिस अधिकारी की थी. 3 स्टार और अशोक चक्र लगी वरदी को पुलिस ने कब्जे में ले लिया था. पूछताछ में उस ने बताया कि यह वरदी उस ने बिहार के भागलपुर से खरीदी थी.

शातिर दिमाग है ठग समीर खान

एएसपी हितेश चौहान के अनुसार, समीर अनवर खान बहुत ही शातिर दिमाग था. उस ने बड़ी चालाकी से शादी डाटकौम पर अपनी प्रोफाइल बना कर जेबा मंसूरी जैसी पढ़ीलिखी लड़की को अपने जाल में फांस लिया था. बाद में पता चला कि उस ने ऐसा ही कारनामा पंजाब में किया था. मध्य प्रदेश पुलिस ने पंजाब पुलिस से जानकारी हासिल की तो पता चला कि ऐसे ही मामले में वह वहां भी गिरफ्तार किया गया था. जमानत पर रिहा होने के बाद वह फरार हो गया था.

पुलिस द्वारा की गई पूछताछ के अनुसार, समीर मूलरूप से उत्तर प्रदेश के जिला वाराणसी का रहने वाला था. उस ने दिखावे के लिए एमटेक में अप्लाई कर रखा था. उस के पिता मुंबई में झुग्गीझोपड़ी में रहते थे और फेरी में कपड़े बेच कर गुजरबसर करते थे. उस ने जेबा से बताया था कि वाराणसी में उस की तमाम जमीनजायदाद है, लेकिन यह सब झूठ था.

मजे की बात यह थी कि उस ने पंजाब में जो धोखाधड़ी की थी, उस में उस ने 40-50 लाख रुपए की चपत लगाई थी. लेकिन कहीं से भी नहीं लगता था कि इतना पैसा उस के पास होगा.

थाना अशोका गार्डन पुलिस ने समीर के खिलाफ भादंवि की धारा 170, 419, 420, 471, 472, 473, 376 और 506 के तहत मुकदमा दर्ज किया था. कथा लिखे जाने तक समीर पुलिस रिमांड पर था. पुलिस उस से कई पहलुओं पर पूछताछ कर रही थी. पुलिस द्वारा की गई पूछताछ में समीर ने जो बताया है, उस से जाहिर होता है कि वह छोटामोटा अपराधी नहीं है.

होटल प्रबंधन को भी लगाया लाखों का चूना

समीर कितना शातिरदिमाग है, इस बात का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वह भोपाल के सब से मशहूर होटल नूरउससबा में 2 नवंबर, 2017  से 23 नवंबर, 2017 तक लड़की के साथ रुका रहा, लेकिन होटल प्रबंधन को उस की कारगुजारियों की तनिक भी भनक नहीं लगी. वह इतने बड़े होटल को लाखों का चूना लगा कर रफूचक्कर हो गया था.

अच्छा हुआ कि वक्त रहते जेबा मंसूरी को उस पर शक हो गया, वरना हाथ से निकलने के बाद फिर शायद ही कभी वह चंगुल में फंसता. नूरउससबा पैलेस होटल में 20 दिनों से ज्यादा रहने के बाद भी वह पैसे दिए बिना  वहां से फरार हो गया था. होटल प्रबंधन के बताए अनुसार, 2 नवंबर से 23 नवंबर, 2017 तक होटल में रहने और खानेपीने का बिल 2 लाख 15 हजार 311 रुपए बना था.

समीर ने चालाकी से काम लेते हुए होटल प्रबंधन को भरोसे में लेने के लिए 20 हजार रुपए एडवांस जमा करा दिए थे. उसे वहां 24 नवंबर तक रुकना था, लेकिन एक दिन पहले ही वह अपना बोरियाबिस्तर समेट कर वहां से चलता बना.

पंजाब में आईएएस बन कर कर चुका है फरजीवाड़ा

समीर के बताए अनुसार, उस ने पंजाब के कपूरथला में भी एक बीएससी की छात्रा के साथ जालसाजी की थी. वहां भी उस ने कुछ ऐसी ही कहानी गढ़ी थी. उस ने वहां बताया था कि उस का सिलेक्शन ( Crime stories ) आईएएस में हो गया है. इस तरह उस के बहकावे में आ कर उस लड़की ने समीर से सन 2016 में निकाह कर लिया था. वहां उस ने अपना नाम शमशेर बताया था.

जब फरजी आईएएस का झूठ सामने आया तो कपूरथला के थाना फगवाड़ा पुलिस ने जनवरी, 2016 में शमशेर के खिलाफ धोखाधड़ी, दहेज अधिनियम और धमकाने की धाराओं में मुकदमा दर्ज कर के उसे गिरफ्तार कर लिया था. शमशेर उर्फ समीर वहां 2 महीने तक जेल में बंद रहा. उस की दादी ने जमानत कराई तो जेल से बाहर आते ही वह फरार हो गया.

अब देखना यह है कि मध्य प्रदेश के साथसाथ पंजाब पुलिस समीर उर्फ शमशेर को धोखाधड़ी, पैसे ऐंठने, शारीरिक शोषण और फरजी पदों का गलत इस्तेमाल करने के अपराध में कितनी सजा दिलवा सकती है. पुलिस यह भी पता कर रही है कि यह काम समीर अकेला ही करता था या उस के साथ और कोई भी था.

काजल का असली रंग : बेटे को पढ़ाने वाले Teacher से बनाए संबंध

Tuition Teacher : वासना की आग ऐसी भड़की कि पतिपत्नी के उस रिश्ते को भी भूल गई, जिस के लिए 12 साल पहले उस ने सात जन्मों का बंधन निभाने का वादा किया था. उस ने प्रेमी संग मिल कर पति की हत्या कर डाली. प्रेमी ने योजना तो ऐसी बनाई थी कि पति की हत्या में मायके वाले ही फंस जाएं और वह प्रेमिका संग मौज मनाता रहे. लेकिन उन के मंसूबों पर तब पानी फिर गया, जब उन की काल डिटेल्स में 13 सौ बार बातचीत करने का पता चला.

35 वर्षीय दिलीप कुमार पाठक बिहार के बेगूसराय जिले के थाना तेघरा के गांव रानीटोल में अपनी ससुराल आया था. उस की पत्नी काजल उर्फ कंचन एकलौते बेटे अंश को ले कर सालों से मायके में रह रही थी. अंश मामा के घर रह कर ही पढ़ता था. काजल भी वहीं रहते हुए एक नर्सरी स्कूल में पढ़ाती थी.

वैसे भी दिलीप की माली हालत ठीक नहीं थी. वह प्रौपर्टी डीलिंग का काम करता था. प्रौपर्टी डीलिंग के इस धंधे में उस ने अपनी सारी जमापूंजी लगा दी थी. इस धंधे में उसे इतना घाटा हुआ था कि वह पैसेपैसे के लिए मोहताज हो गया था. अपनी स्थिति सुधारने के लिए ही उस ने पत्नी और बेटे को ससुराल भेजा था.

उस ने सोचा था कि जब तक हाथ खाली है, तब तक पत्नी और बच्चे को मायके में रहने दे. पैसों का थोड़ा इंतजाम हो जाने के बाद उन्हें वापस बुला लेगा. इसीलिए उस ने काजल और बेटे अंश को रहने के लिए ससुराल भेज दिया था.

उस दिन 25 नवंबर, 2017 की तारीख थी. शाम साढ़े 6 बजे के करीब दिलीप घर से अकेला ही बेटे की कौपी खरीदने चौर बाजार के लिए निकला. उस ने पत्नी से कहा कि कौपी खरीद कर थोड़ी देर में लौट आएगा. उसे घर से निकले काफी देर हो चुकी थी. देखतेदेखते रात के 10 बज गए, लेकिन दिलीप लौट कर घर नहीं आया. इस से काजल और अंश दोनों परेशान हो गए. दोनों की समझ में नहीं आ रहा था कि वे क्या करें. इतनी रात गए उसे कहां ढूंढें.

परेशान काजल को जब कुछ नहीं सूझा तो उस ने देवर विनीत के पास ससुराल फोन कर के पूछा कि दिलीप वहां तो नहीं गए हैं? शाम 5 बजे के करीब बाजार जाने के लिए कह कर घर से पैदल ही निकले थे, लेकिन अभी तक लौट कर नहीं आए. मेरा तो सोचसोच कर दिल बैठा जा रहा है.

भाभी के मुंह से भाई के बारे में ऐसी बात सुन कर विनीत भी परेशान हो गया कि आखिर बिना कुछ बताए भाई कहां चला गया. फिर उस ने बड़े भाई दिलीप के फोन पर काल की तो उस का फोन स्विच्ड औफ था. उस ने कई बार उस से बात करने की कोशिश की लेकिन हर बार फोन बंद मिला. आखिर उस ने यह बात घर वालों को भी बता दी.

दिलीप के घर वाले जिला समस्तीपुर में रहते थे. वहां से बेगूसराय थोड़ी दूरी पर था. विनीत ने सोचा अब तो सुबह ही कुछ हो सकता है. उस ने रात तो जैसेतैसे काट ली. सुबह होते ही वह भाई का पता लगाने रानीटोल पहुंच गया.

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वहां पहुंच कर उसे पता चला कि रानीटोल से सटी बूढ़ी गंडक नदी के किनारे हृष्टपुष्ट गोरे रंग और औसत कदकाठी के एक युवक की लाश पाई गई है. लाश का जो हुलिया बताया जा रहा था, वह काफी कुछ उस के भाई दिलीप से मेल खा रहा था. यह सुन कर विनीत थोड़ा विचलित हो गया कि कहीं लाश भाई की तो नहीं है. हो सकता है, उस के साथ कोई घटना घट गई हो.

जितनी भी जल्दी हो सकता था, वह मौके पर पहुंच गया. वहां काफी भीड़ जमा थी. भीड़ को चीरता हुआ वह लाश तक पहुंच गया. लाश दाईं करवट पड़ी थी. हत्यारों ने उस की गरदन पर किसी तेज धारदार हथियार से पीछे से वार किया था. पास ही पूजा की सामग्री पड़ी थी और लाश के ऊपर अधखुली पीली मखमली चादर पड़ी थी.

ऐसा लग रहा था, जैसे मृतक जब पूजा कर रहा था, तभी हत्यारे ने मौका देख कर उस पर पीछे से वार कर दिया हो. विनीत लाश देख कर पहचान गया कि लाश उस के भाई की है. वह भाई की लाश से लिपट कर बिलखबिलख कर रोने लगा.

गांव वाले भी लाश को देखते ही पहचान गए थे कि काजल के पति दिलीप की लाश है. जैसे ही काजल को पति की हत्या की सूचना मिली तो वह गश खा कर गिर गई. घर में रोनापीटना शुरू हो गया. घर वाले वहां पहुंच गए, जहां दामाद का शव पड़ा था.

जहां से दिलीप का शव बरामद हुआ था, वह इलाका समस्तीपुर जिले के थाना मुफस्सिल में पड़ता था. थाना मुफस्सिल को घटना की सूचना मिल चुकी थी. थानाप्रभारी पवन सिंह पुलिस टीम के साथ मौके पर पहुंच गए थे. पवन सिंह ने इस बात की सूचना पुलिस अधीक्षक दीपक रंजन और डीएसपी मोहम्मद तनवीर अहमद को दे दी थी. वरिष्ठ पुलिस अधिकारी भी वहां पहुंच गए. घटनास्थल और लाश का निरीक्षण करने के बाद थानाप्रभारी पवन सिंह ने मृतक के भाई से पूछताछ की तो उस ने बताया कि दिलीप के पास उस का एक सेलफोन था, जो गायब है.

घटनास्थल पर पूजा की सामग्री के अलावा दूसरी कोई चीज नहीं मिली थी. पुलिस ने पूजा सामग्री और चादर अपने कब्जे में ले ली. कागजी काररवाई करने के बाद लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी गई. फिर पुलिस थाने लौट आई.

विनीत ने अपने भाई दिलीप की हत्या की तहरीर थाने में दे दी, जिस के आधार पर पुलिस ने भादंवि की धारा 302, 34 के तहत अज्ञात हत्यारों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर के जांच शुरू कर दी.

दिलीप पाठक हत्याकांड का खुलासा करने के लिए एसपी दीपक रंजन ने डीएसपी तनवीर अहमद के नेतृत्व में एक टीम गठित कर दी. डीएसपी तनवीर अहमद ने घटनास्थल का दौरा कर के स्थिति को समझने की कोशिश की. परिस्थितियां बता रही थीं कि हत्या के इस मामले में मृतक का कोई अपना ही शामिल था. वह कौन था, इस का पता लगाना जरूरी था.

पुलिस ने मृतक के भाई विनीत पाठक से दिलीप की किसी से दुश्मनी के बारे में पूछा तो उस ने बताया कि उस की किसी से कोई दुश्मनी नहीं थी. काजल ने भी यही कहा. इसी दौरान एक मुखबिर ने चौंकाने वाली जानकारी दी. उस ने बताया कि दिलीप और उस की पत्नी काजल के बीच काफी मनमुटाव चल रहा था. प्रारंभिक जांच के दौरान तनवीर अहमद को काजल की हरकतें खटकी भी थीं, लेकिन उस के खिलाफ कोई ठोस सबूत नहीं थे, इसलिए उन्होंने उस से सीधे बात करना ठीक नहीं समझा था.

डीएसपी मोहम्मद तनवीर अहमद ने दिलीप और काजल के मोबाइल की काल डिटेल्स निकलवाई. काजल के फोन की डिटेल्स देख कर उन के होश उड़ गए. उस के फोन पर डेढ़ महीने में एक ही नंबर से 13 सौ फोन आए थे. कई काल तो ऐसी थीं, जिन में उसी नंबर से 2 से 3 घंटे तक बातचीत की गई थी.

यह नंबर पुलिस के शक के दायरे में आ गया. पुलिस ने उस नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई तो वह नंबर लक्ष्मण कुमार पासवान, निवासी रातगांव करारी, थाना-तेघरा, जिला बेगूसराय का निकला. पुलिस ने बिना समय गंवाए उसी दिन लक्ष्मण के घर पर दबिश दी और उसे पूछताछ के लिए थाने ले आई. पूछताछ में लक्ष्मण टूट गया. उस ने अपना अपराध स्वीकार करते हुए बताया कि उस ने काजल के कहने पर उस के पति दिलीप की हत्या की थी. काजल उस की प्रेमिका थी. यह सुन कर सभी अधिकारी स्तब्ध रह गए. क्योंकि देखने में भोलीभाली लगने वाली औरत नागिन से भी जहरीली निकली, जिस ने इश्क के नशे में अपने पति को ही डंस लिया.

काजल को यह समझते देर नहीं लगी कि उस के गुनाहों की पोल खुल चुकी है. ऐसे में भलाई सच बताने में ही है. काजल ने भी अपना जुर्म कबूल कर लिया कि उसी के कहने पर लक्ष्मण ने दिलीप की हत्या की थी. काजल ने हत्या की पूरी कहानी कुछ ऐसे बयां की—

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35 वर्षीय दिलीप कुमार पाठक मूलत: बिहार के समस्तीपुर जिले के थाना भगवानपुर के गांव बुढ़ीवन तैयर का रहने वाला था. पिता अनिल पाठक की 4 संतानों में वह सब से बड़ा था. हंसमुख स्वभाव का दिलीप मेहनतकश था. उस ने प्रौपर्टी डीलिंग का काम शुरू किया था, उस का यह धंधा सही चल निकला था.

दिलीप अपने पैरों पर खड़ा हो चुका था और ईमानदारी से पैसा कमा रहा था. पिता ने 12 साल पहले उस की शादी बेगूसराय के तेघरा, रानीटोल की रहने वाली काजल के साथ कर दी थी. शादी के कई साल बाद उस के घर में एक बेटा पैदा हुआ, जिस का नाम अंश रखा गया. समय के साथ प्रौपर्टी के धंधे में दिलीप को काफी नुकसान हुआ. इस के बाद उस का धंधा धीरेधीरे और भी मंदा होता गया. स्थिति यह आई कि प्रौपर्टी के बिजनैस में उस ने जितनी पूंजी लगाई थी, सब डूब गई. यह करीब 3 साल पहले की बात है.

पति की माली हालत खराब देख काजल बेटे को ले कर अपने मायके रानीटोल चली गई और वहीं मांबाप के साथ रहने लगी. पत्नी का यह रवैया दिलीप को काफी खला, क्योंकि मुसीबत के वक्त साथ देने के बजाय वह उसे अकेला छोड़ कर चली गई. वह मन मसोस कर रह गया और सब कुछ वक्त पर छोड़ दिया.

उधर काजल ने बेटे को वहीं के एक कौन्वेंट स्कूल में पढ़ाना शुरू कर दिया. दिलीप बीचबीच में पत्नी और बेटे से मिलने ससुराल जाता रहता था. ससुराल में 1-2 दिन रह कर वह अपने घर लौट आता था. अंश जिस कौन्वेंट स्कूल में पढ़ता था, वहां की किताबें भाषा में काफी मुश्किल होती थीं. कभीकभी अंगरेजी के कुछ शब्दों के अर्थ काजल को भी पता नहीं होते थे, जबकि वह अच्छीभली पढ़ीलिखी थी. बेटे की पढ़ाई में कोई परेशानी न आए, इसलिए उस ने अंश के लिए घर पर ही एक ट्यूटर लगा दिया. यह पिछले साल जुलाईअगस्त की बात है.

ट्यूटर ( Tuition Teacher ) का नाम लक्ष्मण कुमार पासवान था. रातगांव करारी का रहने वाला 21 वर्षीय लक्ष्मण कुमार एकदम साधारण शक्लसूरत और सांवले रंग का युवक था. लक्ष्मण की वाकपटुता से काजल काफी प्रभावित थी. अंश को भी वह खूब मन लगा कर पढ़ाता था. थोड़े ही दिनों में लक्ष्मण उस परिवार का हिस्सा बन गया. बेटे को पढ़ाते समय काजल लक्ष्मण के पास ही बैठी रहती थी. लक्ष्मण जवान था. ऊपर से कुंवारा भी. जब काजल उस कमरे में आ कर बैठती थी, जिस में वह अंश को पढ़ाता था तो लक्ष्मण उसे कनखियों से निहारता रहता था. काजल भी लक्ष्मण के पास बैठने के लिए बेकरार रहती थी.

एक दिन लक्ष्मण अंश को (Tuition Teacher) ट्यूशन पढ़ाने उस के घर पहुंचा. उस समय शाम का वक्त था. उस रोज काजल काफी परेशान थी. उस ने अपने दुखों का पिटारा उस के सामने खोल कर रख दिया. लक्ष्मण काजल की दुखभरी व्यथा सुन कर भावनाओं में बह गया.

काजल ने उस से कहा कि वह उस के लिए कोई छोटीमोटी नौकरी ढूंढने में मदद करे. लक्ष्मण मना नहीं कर सका. बाद में लक्ष्मण ने अपने एक परिचित के माध्यम से एक नर्सरी स्कूल में उसे अध्यापिका की नौकरी दिलवा दी. काजल लक्ष्मण के अहसानों की कायल थी. धीरेधीरे वह उस की ओर झुकती गई. लक्ष्मण भी उस की ओर आकर्षित होता गया. धीरेधीरे दोनों में प्यार हो गया. प्यार भी ऐसा कि एकदूसरे को देखे बिना रह न सके. यह बात भी जुलाई अगस्त 2016 की है. 2 महीने के प्यार के बाद लक्ष्मण और काजल ने चुपके से मंदिर में विवाह कर लिया. काजल ने इस की भनक किसी को नहीं लगने दी, पति तक को नहीं.

9 वर्ष का अंश भले ही छोटा था, लेकिन उस में इतनी अक्ल थी कि वह अच्छे और बुरे में फर्क महसूस कर सके. उस ने अपनी मम्मी और ट्यूटर के बीच के रिश्तों को महसूस कर लिया था. उसे लगता था कि कहीं कुछ गलत हो रहा है, जो घरपरिवार के लिए अच्छा नहीं है. अंश ने यह बात अपने पापा दिलीप को बता दी. बेटे की बात सुन कर उस के तनबदन में आग लग गई. बहरहाल, सूचना मिलने के अगले दिन दिलीप ससुराल रानीटोल पहुंच गया. उस दिन (Tuition Teacher) ट्यूटर लक्ष्मण को ले कर पतिपत्नी के बीच काफी झगड़ा हुआ. काजल पति को समझाने के लिए झूठ पर झूठ बोले जा रही थी. उस ने सफाई देते हुए कहा कि उस के और लक्ष्मण के बीच कोई संबंध नहीं है.

लक्ष्मण को उस ने बेटे को ट्यूशन पढ़ाने के लिए रखा है. ट्यूटर आता है और बच्चे को ट्यूशन पढ़ा कर चला जाता है. उस रोज काजल अपने त्रियाचरित्र के दम पर पति को काबू करने में कामयाब हो गई थी. जैसेतैसे मामला शांत तो हो गया, लेकिन दिलीप पत्नी पर नजर रखने लगा.

पति को उस पर शक हो गया है, काजल ने यह बात लक्ष्मण को फोन कर के बता दी थी. उस ने लक्ष्मण को यह कहते हुए सावधान कर दिया था कि पति जब तक घर पर रहे, तब तक वह बच्चे को(Tuition Teacher) ट्यूशन पढ़ाने भी न आए. लक्ष्मण उस की बात मान गया और वैसा ही किया, जैसा उस ने करने को कहा था. काजल लक्ष्मण से मिलने के लिए बेचैन रहती थी. पति के रहते उन के मिलन में बाधा पड़ रही थी. काजल से लक्ष्मण की जुदाई बरदाश्त नहीं हो रही थी. उस ने पति को रास्ते से हटाने के लिए लक्ष्मण पर दबाव बनाया कि वह उस की हत्या कर दे. उस के बाद रास्ते में रुकावट पैदा करने वाला कोई नहीं रहेगा. काजल को पाने के लिए लक्ष्मण उस की बात मानने के लिए तैयार हो गया.

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लक्ष्मण जानता था कि दिलीप की माली हालत अच्छी नहीं है, इसलिए कुछ ऐसा चक्कर चलाया जाए, जिस से वह उस के काबू में आ जाए. इस के लिए उस ने काजल को धोखे में रखते हुए एक और खेल खेलने की सोची.

उस ने सोचा कि दिलीप की हत्या का ऐसा तानाबाना बुना जाए, जिस से पूरा शक काजल और काजल के मायके वालों पर ही जाए. कभी मामले का खुलासा हो भी तो वह शक के दायरे से बचा रहे. दिलीप ने लक्ष्मण को कभी नहीं देखा था, इसलिए वह उसे जानतापहचानता नहीं था. लक्ष्मण और काजल ने इसी बात का फायदा उठाते हुए योजना बनाई कि दिलीप को भरोसा दिलाया जाए कि एक ऐसी पूजा है, जिसे ध्यानमग्न हो कर करने पर पूजा की जगह पर ही 25 हजार रुपए मिल जाते हैं.

योजना बनाने के बाद काजल ने पति को इस पूजा के लिए मना लिया. दिलीप इसलिए तैयार हुआ था क्योंकि उस की आर्थिक स्थिति एकदम जर्जर हो चुकी थी. वह पैसेपैसे के लिए मोहताज था. उस ने सोचा कि संभव है ऐसा करने पर उसे आर्थिक लाभ मिल जाए. बहरहाल, सब कुछ योजना के मुताबिक चल रहा था. काजल ने 25 नवंबर, 2017 को दिन में एक तेज धार वाला गंडासा दिलीप की मोटरसाइकिल की डिक्की में छिपा कर रख दिया. उस ने यह बात फोन कर के लक्ष्मण को बता दी. अब केवल योजना को अमलीजामा पहनाना बाकी था. लक्ष्मण ने काजल को भरोसा दिलाया कि आज काम तमाम हो जाएगा.

25 नवंबर की शाम साढ़े 6 बजे के करीब दिलीप बेटे के लिए कौपी खरीदने के लिए घर से अकेला निकला. घर से निकल कर जब वह चौर बाजार पहुंचा तो पीछे से लक्ष्मण पंडित बन कर उस की मोटरसाइकिल के पास पहुंच गया.

दरअसल, दिलीप के घर से निकलते ही काजल ने लक्ष्मण को फोन कर के बता दिया था कि शिकार घर से निकल चुका है. चौर में उस से मुलाकात हो जाएगी. आगे क्या करना है, यह उसे पता था ही. चौर बाजार में उस की मुलाकात दिलीप से हुई तो उस ने काजल का परिचय देते हुए उसे पूजा वाली बात बताई. दिलीप समझ गया कि यह वही पंडित है, जिस से पूजा करानी है. लक्ष्मण उसे बाइक पर बैठा कर चौर (तेघरा) से समस्तीपुर ले आया, जहां उस ने पूजा की सामग्री खरीदी. सामग्री खरीदने के बाद वह दिलीप को ले कर मोटरसाइकिल से रानीटोल स्थित माधोपुर बूढ़ी गंडक नदी के किनारे पहुंच गया. यह इलाका जिला समस्तीपुर में आता था.

योजना के अनुसार, लक्ष्मण ने पहले दिलीप से पूजा करवाई. पूजा की प्रारंभिक विधि समाप्त होने के बाद उस ने पैसे पाने के लिए दिलीप से 15 मिनट तक आंखें बंद कर ध्यानमग्न होने को कहा. साथ यह भी कहा कि आंखें बंद करने के बाद ही पैसे मिलेंगे.

दिलीप ध्यानमग्न हो गया. तभी लक्ष्मण बाइक की डिक्की में रखा धारदार गंडासा ले आया. उस ने पीछे से दिलीप की गरदन पर जोरदार वार किया. गरदन कटने से दिलीप की मौके पर ही मौत हो गई. दिलीप की हत्या करने के बाद लक्ष्मण वहां से बाइक से वापस बेगूसराय लौट गया. बेगूसराय जाते वक्त लक्ष्मण ने दिलीप का मोबाइल फोन गरुआरा चौर की झाडि़यों में फेंक दिया. वहां से आगे जा कर उस ने गंडासा दलसिंहसराय के पास एनएच-28 के किनारे एक झाड़ी में फेंक दिया, ताकि पुलिस उस तक कभी न पहुंच सके.

इत्मीनान होने के बाद वह मोटरसाइकिल ले कर प्रेमिका काजल के घर रानीटोल पहुंचा. काजल उस के आने का बड़ी बेसब्री से इंतजार कर रही थी. लक्ष्मण को देखते ही उस का चेहरा खुशी से खिल उठा. घर में सभी सो गए थे. उस ने दबे पांव मोटरसाइकिल बरामदे में चढ़ा दी. उस वक्त रात के करीब 10 बज रहे थे.

मोटरसाइकिल खड़ी करवाने के बाद काजल ऊपर खाली पड़े कमरे में गई तो पीछेपीछे लक्ष्मण भी हो लिया. वहां दोनों एकदूसरे की बांहों में समा गए. बाद में लक्ष्मण अपने घर चला गया.

दोनों के रास्ते का रोड़ा साफ हो चुका था. दोनों यह सोच कर खुश थे कि पुलिस उन तक कभी नहीं पहुंच पाएगी. लेकिन कानून के लंबे हाथों ने उन के मंसूबों पर पानी फेर दिया और दोनों वहां पहुंच गए, जहां उन का असली ठिकाना था यानी जेल की सलाखों के पीछे. अंश अपने दादा अनिल के साथ अपने पैतृक गांव बूढ़ीवन आ गया और दादादादी के साथ रह रहा है.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

दुलारी की साजिश : प्रियंका बनी हत्यारी – भाग 3

उन के रिश्ते के मामा राधा उरांव राजनीति के पुराने खिलाड़ी थे. राजनीति का ककहरा अनिल ने उसी मामा से सीखा और किस्मत आजमाने रामविलास पासवान के पास पहुंच गए. उन्होंने आशीर्वाद स्वरूप अपना हाथ अनिल के सिर पर रख दिया और उन्हें आदिवासी प्रकोष्ठ का प्रदेश अध्यक्ष बना दिया.

खद्दर का सफेद कुरता पायजामा पहन कर अनिल उरांव ताकतवर हो गए थे. यह घटना से 7 साल पहले की बात है.

अमीरों की तरह ठाठबाट थे प्रियंका के अनिल के पास अब पैसों के साथ साथ सत्ता की पावर थी और बड़ेबड़े माननीयों के बीच में उठनाबैठना भी. पहली बार अनिल ने सत्ता के गलियारे का मीठा स्वाद चखा था. माननीयों के सामने जब नौकरशाह सैल्यूट मारते थे, यह देख कर अनिल का दिल बागबाग हो जाता था.

यहीं से प्रियंका उर्फ दुलारी नाम की महिला अनिल उरांव की किस्मत में दुर्भाग्य की कुंडली मार कर बैठ गई थी. तब कोई नहीं जानता था कि यही प्रियंका एक दिन नागिन बन कर अनिल को डस लेगी.

36 वर्षीया प्रियंका हाट थानाक्षेत्र में स्थित केसी नगर कालोनी में दूसरे पति राजा के साथ रहती थी. पहला पति उसे बहुत पहले तलाक दे चुका था. उस के कोई संतान नहीं थी लेकिन दोनों बड़े ठाठबाट से रहते थे, अमीरों की तरह.

कई कमरों वाले उस के शानदार और आलीशान मकान में सुखसुविधाओं की सारी चीजें मौजूद थीं. घर में कमाने वाला सिर्फ उस का पति था. एक आदमी की कमाई में ऐसी शानोशौकत देख कर मोहल्ले वाले दंग रहते थे.

प्रियंका की शानोशौकत देख कर मोहल्ले वालों का दंग रहना जायज था. उस का पति राजा पूर्णिया विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर राजनाथ यादव का एक मामूली सा कार ड्राइवर था. उस की इतनी आमदनी भी नहीं थी कि वह घर खर्च के अलावा नवाबों जैसी जिंदगी जिए. ये ऐशोआराम तो प्रियंका की खूबसूरती की देन थी.

गोरीचिट्टी और तीखे नयननक्श वाली प्रियंका की मोहल्ले में बदनाम औरतों में गिनती होती थी. शहर के बड़ेबड़े धन्नासेठों, भूमाफियाओं और नेताओं का उस के घर पर उठनाबैठना था. उस में लोजपा का युवा नेता अनिल उरांव का नाम भी शामिल था.

शादीशुदा होते हुए भी अनिल उरांव प्रियंका की गोरी चमड़ी के इस कदर दीवाने हुए कि उसे देखे बिना रह नहीं पाते थे. लेकिन प्रियंका उन से तनिक भी प्यार नहीं करती थी. वह तो केवल उन की दौलत से प्यार करती थी. वह जानती थी कि अनिल एक एटीएम मशीन है. बस, उस से दौलत निकालते जाओ, निकालते जाओ और ऐश करते जाओ.

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प्रियंका ने बनाई योजना

अनिल उरांव जिस प्रियंका के प्यार में दीवाने थे, पूर्णिया का शूटर अंकित यादव उर्फ अनंत भी उसी प्रियंका को बेपनाह चाहता था. अनिल का उस की प्रेमिका प्रियंका की ओर आकर्षित होना, अंकित के सीने पर सांप लोटने जैसा था.

उस ने प्रियंका से कह दिया था ‘‘तू अपने आशिक से कह देना कि मेरी चीज पर नजर न डाले, वरना जिस दिन मेरा भेजा गरम हो गया तो उस की खोपड़ी में रिवौल्वर की सारी गोलियां डाल दूंगा.’’

फिर उस ने अपने प्रेमी अंकित को समझाया, ‘‘देखो अंकित, तुम ठहरे गरम खून के इंसान. जब देखो गोली, कट्टा और बंदूक की बातें करते हो, कभी ठंडे दिमाग से काम नहीं लेते. जिस दिन से ठंडे दिमाग से सोचना शुरू कर दोगे, उस दिन बिना गोली, कट्टे के सारे काम बन जाएंगे. क्यों बेवजह परेशान हो कर अपना ब्लड प्रैशर बढ़ाते हो. मैं क्या कहती हूं, उसे ध्यान से सुनो. मेरे पास एक नायाब तरीका है. जिस से सांप भी मर जाएगा और लाठी भी नहीं टूटेगी.’’

‘‘बता क्या कहना चाहती है तू.’’ अंकित ने पूछा.

‘‘यही कि अनिल उरांव का अपहरण कर लेते हैं और बदले में उस के घर वालों से फिरौती की एवज में मोटी रकम ऐंठ लेते हैं. नेताजी की जान के बदले उस के घर वालों के लिए 10-20 लाख देना कोई बहुत बड़ी बात

नहीं होगी. बोलो क्या कहते हो?’’ प्रियंका ने प्लान बनाया.

‘‘ठीक है जो करना हो, जल्दी करना. उस गैंडे को तेरे नजदीक देख कर मेरे तनबदन में आग सी लग जाती है, कहीं ऐसा न हो कि मैं अपना आपा खो दूं और तू भी स्वाहा हो जाए. जो करना है, जल्दी करना, समझी.’’ अंकित बोला.

‘‘ठीक है, बाबा ठीक है. क्यों बिना मतलब के अपना खून जलाते हो. समझो कि काम हो गया और तुम्हारी राह का कांटा भी हट गया.’’ प्रियंका ने कहा.

प्रियंका और अंकित ने मिल कर अनिल के अपहरण की योजना बना ली. योजना के मुताबिक, 29 अप्रैल, 2021 की सुबह प्रियंका ने अनिल उरांव को फोन कर के अपने घर आने को कहा. अनिल भतीजे राजन को साथ ले कर मोटरसाइकिल से निकले और बीच रास्ते में खुद मोटरसाइकिल से नीचे उतर कर कहा प्रियंका के यहां जा रहा हूं. जब फोन करूं तो बाइक ले कर चले आना.

फिरौती ले कर बदल गई नीयत

अनिल प्रियंका के यहां पहुंचे तो उस के घर पर पहले से शूटर अंकित यादव उर्फ अनंत, उस का भांजा मिट्ठू कुमार यादव उर्फ मिट्ठू, मोहम्मद सादिक उर्फ राहुल और चुनमुन झा उर्फ बटेसर मौजूद थे.

अंकित को देख कर अनिल घबरा गए और वापस लौटने लगे तो चारों ने लपक कर उन्हें पकड़ लिया. अनिल ने बदमाशों के चंगुल से बचने के लिए खूब संघर्ष किया. कब्जे में लेने के लिए बदमाशों ने अनिल को लातघूंसों से खूब मारा और कपड़े वाली मोटी रस्सी से उन के हाथपैर बांध कर उन्हें कमरे में बंद कर दिया और उन का फोन भी अपने कब्जे में ले लिया ताकि वह किसी से बात न कर सकें.

फिर उन्हीं के फोन से अंकित ने अनिल के घर वालों को फोन कर के अपहरण होने की जानकारी देते हुए फिरौती के 10 लाख रुपए की मांग की. उस के बाद मोबाइल फोन से सिम निकाल कर तोड़ कर फेंक दिया ताकि पुलिस उन तक पहुंच न पाए.

30 अप्रैल, 2021 को फिरौती की रकम मिलने के बाद बदमाशों की नीयत बदल गई. चारों ने प्रियंका के घर पर ही अनिल की गला दबा कर हत्या कर दी और पेचकस जैसे नुकीले हथियार से अंकित ने अनिल की दोनों आंखें फोड़ दीं.

फिर उसी रात अनिल की लाश के. नगर थाने के डंगराहा के एक खेत में गड्ढा खोद कर दफना दी. जल्दबाजी में लाश दफन करते समय मृतक का एक हाथ बाहर निकला रह गया और वे कानून के शिकंजे में फंस गए.

कथा लिखे जाने तक फरार चल रहा मुख्य आरोपी अंकित यादव उर्फ अनंत और उस का भांजा मिट्ठू कुमार यादव दोनों दरभंगा जिले से नाटकीय ढंग से गिरफ्तार कर लिए गए थे. दोनों आरोपियों ने लोजपा नेता अनिल उरांव के अपहरण और हत्या  करने का जुर्म स्वीकार लिया था.

जांचपड़ताल में प्रियंका के असम में करोड़ों रुपए संपत्ति का पता चला है, जो अपराध से कमाई गई थी. पुलिस ने संपत्ति जब्त करने की प्रक्रिया शुरू कर दी थी.

कथा लिखे जाने तक पुलिस पांचों आरोपियों प्रियंका उर्फ दुलारी, अंकित यादव, मिट्ठू कुमार यादव, मोहम्मद सादिक और चुनमुन झा के खिलाफ अदालत में आरोप पत्र दाखिल करने की तैयारी कर रही थी. पांचों आरोपी जेल की सलाखों के पीछे अपने किए की सजा भुगत रहे थे.

दुलारी की साजिश : प्रियंका बनी हत्यारी – भाग 2

‘‘तुम बहुत समझदार हो. बहुत जल्द मेरी बात समझ गई. रुपए का इंतजाम कर के रखना, जल्द ही फोन कर के बताऊंगा कि पैसे कब और कहां पहुंचाने हैं.’’ इस के बाद दूसरी ओर से फोन कट गया.

स्क्रीन पर जिस नंबर को देख कर पिंकी की आंखों में चमक जागी थी, वह नंबर उस के पति का था. बदमाशों ने अनिल के फोन से काल कर के फिरौती की रकम मांगी थी. ताकि पुलिस उन तक पहुंच न सके.

खैर, पति के अपहरण की जानकारी पिंकी ने जैसे ही घर वालों को दी, उस की बातें सुन कर सभी स्तब्ध रह गए. किंतु उन्हें इस बात से थोड़ी तसल्ली हुई थी कि अनिल जिंदा हैं और बदमाशों के कब्जे में हैं. अगर उन्हें फिरौती की रकम दे दी जाए तो उन की सहीसलामत वापसी हो सकती है.

अनिल उरांव की मिली लाश

बदमाशों की धमकी सुन कर पिंकी और उस की ससुराल वालों ने पुलिस को बिना कुछ बताए 10 लाख रुपए का इंतजाम कर लिया और शाम होतेहोते बदमाशों के बताए अड्डे पर फिरौती के 10 लाख रुपए पहुंचा दिए गए.

बदमाशों ने रुपए लेने के बाद देर रात तक अनिल को छोड़ देने का भरोसा दिया था. पूरी रात बीत गई, लेकिन अनिल उरांव लौट कर घर नहीं पहुंचे तो घर वाले परेशान हो गए.

अनिल उरांव के फोन पर घर वालों ने काल की तो वह बंद आ रहा था. जिन दूसरे नंबरों से बदमाशों ने 3 बार काल की थी, वे नंबर भी बंद आ रहे थे. इस का मतलब साफ था कि फिरौती की रकम वसूलने के बाद भी बदमाशों ने अनिल उरांव को छोड़ा नहीं था. बदमाशों ने उन के साथ गद्दारी की थी. यह सोच कर घर वाले परेशान थे.

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बात 2 मई, 2021 की सुबह की है. के. नगर थाने के झुन्नी इस्तबरार के डंगराहा गांव की महिलाएं सुबहसुबह गांव के बाहर खेतों में आई थीं. तभी उन्होंने खेत में जो दृश्य देखा, वह दंग रह गईं. किसी आदमी का एक हाथ जमीन के बाहर झांक रहा था. जमीन के बाहर हाथ देख कर महिलाएं उलटे पांव गांव की ओर भागीं और गांव पहुंच कर पूरी बात गांव के लोगों को बताई.

खेत में लाश गड़ी होने की सूचना मिलते ही गांव वाले मौके पर पहुंच गए और इस की सूचना के. नगर थाने को दे दी.

सूचना मिलते ही थानाप्रभारी डंगराहा पहुंच गए और गड्ढे से लाश बाहर निकलवाई. शव का निरीक्षण करने पर पता चला कि हत्यारों ने मृतक के साथ मानवता की सारी हदें पार कर दी थीं. उन्होंने किसी नुकीली चीज से मृतक की दोनों आंखें फोड़ दी थीं और शरीर पर चोट के कई जगह निशान थे.

डंगराहा में एक अज्ञात शव मिलने की सूचना जैसे ही अनिल के घर वालों को मिली, वे भी मौके पर जा पहुंचे थे. उन्होंने लाश देखते ही पहचान ली. घर वाले चीखचीख कर प्रियंका उर्फ दुलारी के ऊपर हत्या का आरोप लगा रहे थे.

लोजपा नेता की लाश मिलते ही क्षेत्र में सनसनी फैल गई थी. घर वालों का रोरो कर बुरा हाल था. अपहर्त्ताओं ने धोखा किया था. रुपए लेने के बाद भी उन्होंने हत्या कर दी थी.

जैसे ही नेताजी की हत्या की सूचना लोजपा कार्यकर्ताओं को मिली, वे उग्र हो गए और शहर के हर खास चौराहों को जाम कर आग के हवाले झोंक दिया तथा पुलिस के खिलाफ नारेबाजी करने लगे. इधर पुलिस ने लाश अपने कब्जे में ले कर वह पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दी और आगे की काररवाई में जुट गए.

पुलिस ने मृतक के घर वालों के बयान के आधार पर उसी दिन दोपहर के समय मृतक की प्रेमिका प्रियंका उर्फ दुलारी को उस के घर से हिरासत में ले लिया और पूछताछ के लिए के. हाट थाने ले आई. प्रियंका ने पहले तो पुलिस को खूब इधरउधर घुमाया, किंतु जब उस की दाल नहीं गली तो उस ने पुलिस के सामने अपने घुटने टेक दिए.

प्रेमिका प्रियंका ने उगला हत्या का राज

अपना जुर्म कबूल करते हुए प्रियंका ने कहा, ‘‘इस कांड को अंजाम देने में मैं अकेली नहीं थी. 4 और लोग शामिल थे. घटना का मास्टरमांइड अंकित यादव है और उसी ने योजना के तहत इस घटना को अंजाम दिया था.’’

प्रियंका के बयान के बाद उस की निशानदेही पर पुलिस ने 2 बदमाशों मोहम्मद सादिक उर्फ राहुल और चुनमुन झा उर्फ बटेसर को धर दबोचा और थाने ले आई. घटना का मास्टरमाइंड अंकित यादव और उस का भांजा मिट्ठू कुमार यादव उर्फ मिट्ठू फरार थे.

आरोपी मोहम्मद सादिक और चुनमुन झा ने भी अपने जुर्म कबूल कर लिए थे. पुलिस ने अज्ञात हत्यारों के स्थान पर उपर्युक्त सभी को नामजद करते हुए भादंवि की धारा 302, 120बी, 364ए और एससी/एसटी ऐक्ट भी लगाया.

पुलिस ने गिरफ्तार तीनों आरोपियों प्रियंका उर्फ दुलारी, मोहम्मद सादिक उर्फ राहुल और चुनमुन झा उर्फ बटेसर को अदालत में पेश कर उन्हें जेल भेज दिया और फरार आरोपियों अंकित यादव और मिट्ठू कुमार यादव की तलाश में सरगर्मी से जुट गई थी. पुलिस द्वारा की गई पूछताछ में आरोपितों के बयान के आधार पर कहानी कुछ ऐसे सामने आई—

35 वर्षीय अनिल उरांव मूलरूप से बिहार के पूर्णिया जिले के के. हाट थाना क्षेत्र स्थित जेपी नगर के रहने वाले थे. पिता जयप्रकाश उरांव के 2 बच्चे थे. बड़ी बेटी सीमा और छोटा बेटा अनिल. जयप्रकाश एक रिहायशी एस्टेट के मालिक थे.

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विरासत में मिली अरबों की संपत्ति

पुरखों की जमींदारी थी. उन्हें अरबों रुपए की यह चलअचल संपत्ति विरासत में मिली थी. आगे चल कर यही संपत्ति उन के बेटे अनिल उरांव के नाम हो गई थी. क्योंकि पिता के बाद वही इस संपत्ति का इकलौता वारिस था.

जयप्रकाश एक बड़ी प्रौपर्टी के मालिक थे. उन का समाज में बड़ा नाम था. उन के घर से कोई गरीब दुखिया कभी खाली हाथ नहीं जाता था. गरीब तबके की बेटियों की शादियों में वह दिल खोल कर दान करते थे.

गरीबों की दुआओं का असर था कि कभी घर में धन की कमी नहीं हुई. अगर यह कहें कि लक्ष्मी घर के कोनेकोने में वास करती थी तो गलत नहीं होगा.

यही नहीं, उन्होंने अपनी बिरादरी के लिए बहुत कुछ किया था, इसलिए लोग उन का सम्मान करते थे. बाद के दिनों में जब जयप्रकाश का स्वर्गवास हुआ तो उन्हीं के नाम पर उस कालोनी का नाम जेपी नगर रख दिया गया था.

बहरहाल, अनिल को यह संपत्ति विरासत में मिली थी, इसलिए उस की कीमत वह नहीं समझ रहे थे. पुरखों की यह दौलत अपने दोनों हाथों से यारदोस्तों पर पानी की तरह बहाने में जरा भी नहीं हिचकिचाते थे.

समय के साथ अनिल की पिंकी के साथ शादी हो गई. गृहस्थी बसते ही वह 2 बच्चों प्रांजल और मोनू के पिता बने. अनिल की जिंदगी मजे से कट रही थी. खाने को अच्छा भोजन था, पहनने के लिए महंगे कपड़े थे और सिर ढकने के लिए शानदार और आलीशान मकान था.

कहते हैं, जब इंसान के पास बिना मेहनत किए दौलत आ जाए तो उस के पांव दलदल की ओर बढ़ने में देरी नहीं लगती है. अनिल के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ था.

जमींदार घर का वारिस तो थे ही वह. अरबों की अचल संपत्ति तो थी ही उन के पास. धीरेधीरे उन्होंने उन जमीनों को बेचना शुरू किया. बेशकीमती जमीनों के सौदों से उन के पास रुपए आते रहे. जब उन के पास रुपए आए तो राजनीति की चकाचौंध से आंखें चौधियां गई थीं.

दुलारी की साजिश : प्रियंका बनी हत्यारी – भाग 1

लोक जनशक्ति पार्टी के आदिवासी प्रकोष्ठ के युवा प्रदेश अध्यक्ष 35 वर्षीय अनिल उरांव रोजाना की तरह उस दिन भी नाश्ता कर के क्षेत्र में भ्रमण के लिए तैयार हो कर ड्राइंगरूम में बैठे अपने भतीजे के आने का इंतजार कर रहे थे. तभी उन के मोबाइल फोन की घंटी बजी. अपनी शर्ट की जेब से मोबाइल निकाल कर डिसप्ले पर उभर रहे नंबर पर नजर डाली तो वह नंबर जानापहचाना निकला.

स्क्रीन पर डिसप्ले हो रहे नंबर को देख कर अनिल उरांव का चेहरा खुशियों से खिल उठा था. उन्होंने काल रिसीव करते हुए कहा, ‘‘हैलो!’’

‘‘नेताजी, प्रणाम.’’ दूसरी ओर से एक महिला की मीठी सी आवाज अनिल उरांव के कानों से टकराई.

‘‘प्रणाम…प्रणाम.’’ उन्होंने जबाव दिया, ‘‘कैसी हो प्रियंकाजी?’’ उस महिला का नाम प्रियंका उर्फ दुलारी था.

‘‘ठीक हूं, नेताजी.’’ प्रियंका जबाव देते हुए बोली, ‘‘मैं क्या कह रही थी कि जनता की खैरियत पूछने जब क्षेत्र में निकलिएगा तो मेरे गरीबखाने पर जरूर पधारिएगा. मैं आप की राह तकूंगी.’’

‘‘सुबह….सुबह क्यों मेरी टांग खींच रही हैं प्रियंकाजी. कोई और नहीं मिला था क्या आप को टांग खींचने के लिए? आलीशान और शानदार महल कब से गरीबखाना बन गया?’’ अनिल ने कहा.

‘‘क्या नेताजी? क्यों मजाक उड़ा रहे हैं इस नाचीज का. काहे का शानदार महल. सिर ढंकने के लिए ईंटों की छत ही तो है. बहुत मजाक करते हैं आप मुझ से. अच्छा, अब मजाक छोडि़ए और सीरियस हो जाइए. ये बताइए कि दोपहर तक आ रहे हैं न मेरी कुटिया में, मुझ से मिलने. कुछ जरूरी मशविरा करना है आप से.’’ वह बोली.

‘‘ऐसा कभी हुआ है प्रियंकाजी कि आप बुलाएं और हम न आएं. फिर जब आप इतना प्रेशर मुझ पर बना ही रही हैं तो भला मैं कैसे कह दूं कि मैं आप की कुटिया पर नहीं पधारूंगा, मैं जरूर आऊंगा. मुझे तो सरकार के दरबार में हाजिरी लगानी ही होगी.’’

नेता अनिल उरांव की दिलचस्प बातें सुन कर प्रियंका खिलखिला कर हंस पड़ी तो वह भी अपनी हंसी रोक नहीं पाए और ठहाका मार कर हंसने लगे. उस के बाद दोनों के बीच कुछ देर तक हंसीमजाक होती रही. फिर प्रियंका ने अपनी ओर से फोन डिसकनेक्ट कर दिया तो अनिल उरांव ने भी मोबाइल वापस अपनी जेब के हवाले किया.

फिर भतीजे राजन के साथ मोटरसाइकिल पर सवार हो कर वह मनिहारी क्षेत्र की ओर निकल पड़े. वह खुद मोटरसाइकिल चला रहे थे और भतीजा पीछे बैठा था. यह 29 अप्रैल, 2021 की सुबह साढ़े 10 बजे की बात है.

अनिल उरांव को क्षेत्र भ्रमण में निकले तकरीबन 10 घंटे बीत चुके थे. वह अभी तक घर वापस नहीं लौटे थे और न ही उन का फोन ही लग रहा था. घर वालों ने साथ गए जब भतीजे से पूछा कि दोनों बाहर साथ निकले थे तो तुम उन्हें कहां छोड़ कर आए?

इस पर उस ने जबाव दिया, ‘‘चाचा को रेलवे लाइन के उस पार छोड़ कर आया था. उन्होंने कहा था कि वह प्रियंका के यहां जा रहे हैं, बुलाया है, मीटिंग करनी है. थोड़ी देर वहां रुक कर वापस घर लौट आऊंगा, तब मैं बाइक ले कर घर लौट आया था.’’

नेताजी अचानक हुए लापता

भतीजे राजन के बताए अनुसार अनिल प्रियंका से मिलने उस के घर गए थे. राजन उस के घर के पास छोड़ कर आया था तो फिर वह कहां चले गए? अनिल के घर वालों ने प्रियंका को फोन कर के अनिल के बारे में पूछा तो उस ने यह कहते हुए अपना पल्ला झाड़ लिया कि नेताजी तो उस के यहां आए ही नहीं.

यह सुन कर सभी के पैरों तले से जमीन खिसक गई थी. वह प्रियंका के यहां नहीं गए तो फिर कहां गए?

लोजपा नेता अनिल उरांव और प्रियंका काफी सालों से एकदूसरे को जानते थे. दोनों के बीच संबंध काफी मधुर थे. यह बात अनिल के घर वाले और प्रियंका के पति राजा भी जानते थे. बावजूद इस के किसी ने कभी कोई विरोध नहीं जताया था.

अनिल को ले कर घर वाले परेशान हो गए थे. उन के परिचितों के पास भी फोन कर के पता लगाया गया, लेकिन उन का कहीं पता नहीं चला. घर वालों को अंदेशा हुआ कि कहीं उन के साथ कोई अनहोनी तो नहीं हो गई.

उसी दिन रात में नेता अनिल उरांव की पत्नी पिंकी कुछ लोगों को साथ ले कर हाट थाने पहुंची और पति की गुमशुदगी की एक तहरीर थानाप्रभारी सुनील कुमार मंडल को सौंप दी. तहरीर लेने के बाद थानाप्रभारी सुनील कुमार ने पिंकी को भरोसा दिलाया कि पुलिस नेताजी को ढूंढने का हरसंभव प्रयास करेगी. आप निश्चिंत हो कर घर जाएं. उस के बाद पिंकी वापस घर लौट आई.

मामला हाईप्रोफाइल था. लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) के आदिवासी प्रकोष्ठ के प्रदेश अध्यक्ष अनिल उरांव की गुमशुदगी से  जुड़ा हुआ मामला था. उन्होंने अनिल उरांव की गुमशुदगी की सूचना दर्ज कर ली और आवश्यक काररवाई में जुट गए. चूंकि यह मामला राज्य के एक बड़े नेता की गुमशुदगी से जुड़ा हुआ था, इसलिए उन्होंने इस बाबत एसपी दया शंकर को जानकारी दे दी थी.

वह जानते थे कि अनिल उरांव कोई छोटीमोटी हस्ती नहीं है. उन के गुम होने की जानकारी जैसे ही समर्थकों तक पहुंचेगी, वो कानून को अपने हाथ में लेने से कभी नहीं हिचकिचाएंगे. इस से शहर की कानूनव्यवस्था बिगड़ सकती है, इसलिए किसी भी स्थिति से निबटने के लिए उन्हें मुस्तैद रहना होगा.

इधर पति के घर लौटने की राह देखती पिंकी ने पूरी रात आंखों में काट दी थी. लेकिन अनिल घर नहीं लौटे. पति की चिंता में रोरो कर उस का हाल बुरा था. दोनों बेटे प्रांजल (7 साल) और मोनू (2 साल) भी मां को रोता देख रोते रहे. रोरो कर सभी की आंखें सूज गई थीं.

फिरौती की आई काल

बात अगले दिन यानी 30 अप्रैल की सुबह की है. पति की चिंता में रात भर की जागी पिंकी की आंखें कब लग गईं, उसे पता ही नहीं चला. उस की आंखें तब खुलीं जब उस के फोन की घंटी की आवाज कानों से टकराई.

स्क्रीन पर डिसप्ले हो रहे नंबर को देख कर हड़बड़ा कर वह नींद से उठ कर बैठ गई. क्योंकि वह फोन नंबर उस के पति का ही था. वह जल्दी से फोन रिसीव करते हुए बोली, ‘‘हैलो! कहां हो आप? एक फोन कर के बताना भी जरूरी नहीं समझा और पूरी रात बाहर बिता दी. जानते हो कि हम सब आप को ले कर कितने परेशान थे रात भर. और आप हैं कि…’’

पिंकी पति का नंबर देख कर एक सांस में बोले जा रही थी. तभी बीच में किसी ने उस की बात काट दी और रौबदार आवाज में बोला, ‘‘तू मेरी बात सुन. तेरा पति अनिल मेरे कब्जे में है. मैं ने उस का अपहरण कर लिया है.’’

‘‘अपहरण किया है?’’ चौंक कर पिंकी बोली.

‘‘तूने सुना नहीं, क्या कहा मैं ने? तेरे पति का अपहरण किया है, अपहरण.’’

‘‘तुम कौन हो भाई.’’ बिना घबराए, हिम्मत जुटा कर पिंकी आगे बोली, ‘‘तुम ने ऐसा क्यों किया? मेरे पति से तुम्हारी क्या दुश्मनी है, जो उन का अपहरण किया?’’

अपहर्त्ताओं को दिए 10 लाख रुपए

‘‘ज्यादा सवाल मत कर. जो मैं कहता हूं चुपचाप सुन. फिरौती के 10 लाख रुपयों का बंदोबस्त कर के रखना. मेरे दोबारा फोन का इंतजार करना. मैं दोबारा फोन करूंगा. रुपए कब और कहां पहुंचाने हैं, बताऊंगा. हां, ज्यादा चूंचपड़ करने या होशियारी दिखाने की कोशिश मत करना और न ही पुलिस को बताना. नहीं तो तेरे पति के टुकड़ेटुकड़े कर के कौओं को खिला दूंगा, समझी.’’ फोन करने वाले ने पिंकी को धमकाया.

‘‘नहीं…नहीं उन्हें कुछ मत करना.’’ पिंकी फोन पर गिड़गिड़ाने लगी, ‘‘तुम जो कहोगे, मैं वही करूंगी. मैं तुम्हारे आगे हाथ जोड़ती हूं. मैं पुलिस को कुछ नहीं बताऊंगी. प्लीज, उन्हें छोड़ दो. पैसे कहां पहुंचाने हैं, बता दो. तुम्हारे पैसे समय पर पहुंच जाएंगे.

किरण की कहानी : प्यार दे या मार दे

रखने को तो घर वालों ने उस का नाम किरण रख दिया था, लेकिन मिडिल स्कूल की पढ़ाई के दौरान ही उस की समझ में आ गया था कि उस की जिंदगी में उम्मीद की कोई किरण नहीं है. इस की वजह यह थी कि प्रकृति ने उस के साथ घोर अन्याय किया, जो उसे एक आंख से दिव्यांग बनाया था.

किरण न बहुत ज्यादा खूबसूरत थी और न ही किसी रईस घराने से ताल्लुक रखती थी. एक मामूली खातेपीते परिवार की यह साधारण सी युवती न तो अपनी उम्र की लड़कियों की तरह रोमांटिक सपने बुनती थी और न ही ज्यादा सजनेसंवरने की कोशिश करती थी. घर में पसरे अभाव भी उसे दिखाई देते थे तो खुद को ले कर पिता का चिंतित चेहरा भी उस की परेशानी का सबब बना रहता था.

उस के पिता डालचंद कौरव अब से कई साल पहले नरसिंहपुर जिले की तहसील गाडरवारा के गांव सूरजा से भोपाल आ कर बस गए थे. उन का मकसद बच्चों की बेहतर परवरिश और शहर में मेहनत कर के ज्यादा से ज्यादा पैसा कमाना था, जिस से घरपरिवार का जीवनस्तर सुधरे और धीरेधीरे ही सही, बच्चों का भविष्य बन सके. इस के लिए वह खूब मेहनत करते थे. लेकिन आमदनी अगर चवन्नी होती थी तो पता चलता था कि महंगाई की वजह से खर्चा एक रुपए का है.

वह भोपाल में एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी करते थे, जहां से मिलने वाले वेतन से खींचतान कर किसी तरह खर्च चल जाता था. 3 बेटियों के पिता डालचंद बड़ी बेटी की शादी ठीकठाक और खातेपीते परिवार में कर चुके थे. उस के बाद किरण को ले कर उन की चिंता स्वाभाविक थी, क्योंकि आजकल हर कोई उस लड़की से शादी करने से कतराता है, जिस के शरीर में कोई कमी हो.

सयानी होती किरण की भी समझ में यह बात आ गई थी कि एक आंख कमजोर होने की वजह से सपनों का कोई राजकुमार उसे ब्याहने नहीं आएगा. शादी होगी भी तो वह बेमेल ही होगी, इसलिए उस ने काफी सोचविचार के बाद तय कर लिया कि जो भी होगा, देखा जाएगा. हालफिलहाल तो पढ़ाई और कैरियर पर ध्यान दिया जाए. अपने एकलौते भाई राजू को वह बहुत चाहती थी, जो बाहर की भागादौड़ी के सारे काम तेजी और संयम से निपटाता था. यही नहीं, वह पढ़ाई में भी ठीकठाक था.

छोटी बहन आरती भोपाल के प्रतिष्ठित सैम कालेज में पढ़ रही थी. किरण भी वहीं से बीकौम की पढ़ाई कर रही थी. वह स्वाभिमानी भी थी और समझदार भी, लिहाजा उस ने मीनाल रेजीडेंसी स्थित एजिस नाम के कालसैंटर में पार्टटाइम नौकरी कर ली थी. वहां से मिलने वाली तनख्वाह से वह अपनी पढ़ाई का और अन्य खर्च उठा लेती थी.

21 अक्तूबर, 2016 को किरण अपने घर ई-34 सिद्धार्थ लेकसिटी, आनंदनगर से रोज की तरह कालेज जाने को तैयार हुई तो घर का माहौल रोज की तरह ही था. चायनाश्ते का दौर खत्म हो चुका था और सभी अपनेअपने औफिस, स्कूल और कालेज जाने के लिए तैयार हो रहे थे.

किरण भी तैयार थी. वह कालेज के लिए घर से निकलने लगी तो चाचा संबल कौरव से खर्चे के लिए कुछ पैसे मांगे. उन्होंने उसे 20 रुपए दे दिए. किरण का भाई राजू भी तैयार था, इसलिए किरण उस के साथ चली गई. ऐसा लगभग रोज ही होता था कि जब किरण जाने लगती थी तो राजू उस के साथ हो लेता था और उसे सैम कालेज के गेट पर छोड़ देता था. उस दिन भी उस ने किरण को कालेज के गेट पर छोड़ा तो वह चुपचाप अंदर दाखिल हो गई. उन दिनों सैम कालेज में निर्माण कार्य चल रहा था.

राजू को कतई अहसास नहीं था कि बहन के दिलोदिमाग में एक ऐसा तूफान उमड़ रहा है, जो उस की जिंदगी लील लेगा. वह दीदी को बाय कह कर वापस चला गया तो किरण सीधे कालेज की निर्माणाधीन बिल्डिंग ब्लौक की छत पर जा पहुंची और चौथी मंजिल पर जा कर खड़ी हो गई. उस के दिल में उमड़ता तूफान अब शबाब पर था, जिस का मुकाबला करने की हिम्मत अब उस में नहीं रह गई थी. लिहाजा वह चौथी मंजिल से सीधे नीचे कूद गई.

इस के बाद सैम कालेज में हल्ला मच गया. इतनी ऊंचाई से नीचे कूदने के बाद किरण के जिंदा बचने का कोई सवाल ही नहीं था. जरा सी देर में छात्रों की भीड़ इकट्ठा हो गई. इस बात की खबर कालेज प्रबंधन तक भी पहुंच गई. फलस्वरूप उसे तुरंत नजदीकी नर्मदा अस्पताल पहुंचाया गया. अस्पताल से पुलिस को खबर कर दी गई. किरण को देखने के बाद डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया.

कालेज प्रबंधन ने किरण की बहन आरती को इस हादसे की सूचना दी तो उस ने घर वालों को बताया. घर वाले भागेभागे नर्मदा अस्पताल पहुंचे, लेकिन तब तक किरण दुनिया को अलविदा कह चुकी थी. उस के पास से कोई सुसाइड नोट भी नहीं मिला था, जबकि आमतौर पर ऐसा नहीं होता कि कोई पढ़ीलिखी समझदार युवती खुदकुशी करे और सुसाइड नोट न छोड़े. पर इस मामले में ऐसा ही हुआ था. कौरव परिवार में रोनाधोना मच गया था. किरण के सहपाठी भी दुखी थे कि आखिर जिंदादिल किरण ने ऐसा आत्मघाती कदम क्यों उठाया.

पुलिस ने जांच को आगे बढ़ाते हुए छानबीन और पूछताछ शुरू की. जिस खुदकुशी को गुत्थी समझा जा रहा था, वह चंद घंटों में सुलझ गई, जो प्यार में धोखा खाई हीनभावना से ग्रस्त एक लड़की की दर्दभरी छोटी सी कहानी निकली.

किरण ने सुसाइड नोट छोड़ने की जरूरत शायद इसलिए नहीं समझी थी, क्योंकि उसे जो कहना था, उसे वह अपने फेसबुक एकाउंट में लिख चुकी थी. किरण के घर और कालेज वाले यह जान कर हैरान हो उठे थे कि किरण किसी से प्यार करती थी और वह भी इतना अधिक कि अपने प्रेमी की बेरुखी से घबरा गई थी और उसे कई दिनों से मनाने की कोशिश कर रही थी.

सैम कालेज से बीई कर रहा रोहित किरण का बौयफ्रैंड था, जो बीते कुछ दिनों से उसे भाव नहीं दे रहा था. रोहित की दोस्ती और प्यार ने किरण के मन में जीने की उम्मीद जगा दी थी, उस की नींद में कई रोमांटिक ख्वाब पिरो दिए थे. इस से उसे लगने लगा था कि अभी भी दुनिया में ऐसे तमाम लड़के हैं, जो प्यार के सही मतलब समझते हैं. जातिपांत, ऊंचनीच और शारीरिक कमियों पर ध्यान नहीं देते. उन के लिए सूरत से ज्यादा सीरत अहम होती है.

सब कुछ ठीकठाक चल रहा था, पर कुछ दिनों से रोहित का मूड उखड़ाउखड़ा रहता था. वह किरण से बात भी नहीं कर रहा था. उस का यह रवैया किरण की समझ में नहीं आ रहा था. अगर रोहित उसे वजह बताता तो तय था कि वह किसी न किसी तरह उसे मना लेती, कोई गलतफहमी होती तो वह उसे दूर कर देती. लेकिन रोहित की इस बेरुखी से किरण को अपने ख्वाब उजड़ते नजर आए और वह खुद को ठगा सा महसूस करने लगी.

जब प्रेमी बात ही नहीं कर रहा था तो वह क्या करती  लिहाजा किरण ने फेसबुक पर कशिश कौरव नाम से बनाए अपने एकाउंट पर मन की व्यथा साझा करनी शुरू कर दी. अपने पोस्टों में उस ने बौयफ्रैंड के छोड़े जाने यानी ब्रेकअप की बात कही और भावुकता में अपने सुसाइड की बात भी कह डाली थी. शायद ही नहीं, निश्चित रूप से वह अपने प्रेमी को अपने दिल का दर्द बताना चाह रही थी, जो उस की सांसों में बस चुका था.

एक जगह उस ने शायराना अंदाज में लिखा था, ‘ऐ इश्क तुझे खुदा की कसम या तो मुझे मेरा प्यार दे या फिर मुझे मार दे.’

प्यार नहीं मिला तो किरण ने खुद के लिए मौत चुनने की नादानी कर डाली, वह भी इस तरह कि कोई रोहित पर सीधे अंगुली न उठा सके. लेकिन फेसबुक एकाउंट में अपने प्यार और प्रेमी की बेरुखी की चर्चा कर के उस ने उसे शक के दायरे में तो ला ही दिया था. दूसरे दिन पुलिस ने साईंखेड़ा स्थित रोहित के घर में दबिश दी, लेकिन वह घर पर नहीं मिला. जाहिर है, किरण की खुदकुशी के बाद वह गिरफ्तारी के डर से फरार हो गया था.

पुलिस ने कालेज में पूछताछ की तो एक बात यह भी सामने आई कि रोहित और किरण में दोस्ती तो थी, पर प्यार जैसी कोई बात उन के बीच नहीं थी. किरण की कुछ सहेलियों ने दबी जुबान से स्वीकार किया था कि वह रोहित से एकतरफा प्यार करती थी. इस का मतलब तो यही हुआ कि किरण दोस्ती को प्यार मानते हुए जबरदस्ती रोहित के गले पड़ना चाहती थी. इस बात का खुलासा अब रोहित ही कर सकता है, जो कथा लिखे जाने तक पुलिस की पकड़ में नहीं आया था.

किरण भावुक थी और रोहित को ले कर शायद वह जरूरत से ज्यादा जज्बाती हो गई थी. इस की एक वजह उस की आंख की विकृति से उपजी हीनभावना भी हो सकती है. रोहित से दोस्ती के बाद निस्संदेह उस की यह सोच और भी गहरा गई होगी. फेसबुक पर उस ने तरहतरह से रोहित को मनाने की कोशिश की थी, लेकिन असफल रही थी.

जब उसे लगा कि यार और प्यार नहीं तो जिंदगी क्यों, जो अब किसी के काम की नहीं. यही सोच कर उस ने यह खतरनाक फैसला ले डाला होगा.

कौरव परिवार ने इस गम में दिवाली नहीं मनाई. उन्हें अपनी लाडली किरण की मौत के बारे में यकीन ही नहीं हो रहा है. उन्हें लगता ही नहीं कि अब वह इस दुनिया में नहीं है. डालचंद के चेहरे पर विषाद है, पर इसलिए नहीं कि किरण ने उन की चिंता हमेशा के लिए दूर कर दी है, बल्कि इसलिए कि उन की बेटी ने जल्दबाजी में आत्मघाती फैसला ले लिया और खुद ही हमेशा के लिए उन से दूर चली गई.

रोहित का कुछ खास बिगड़ेगा, ऐसा नहीं लग रहा. क्योंकि उस ने अगर किरण से कुछ वादे किए भी होंगे तो उन के प्रमाण नहीं हैं और न ही किरण ने उसे सीधे तौर पर अपनी खुदकुशी का जिम्मेदार ठहराया है.

संभव है कि वह दोस्ती को प्यार समझते हुए मन ही मन रोहित को चाहने लगी हो और ठुकराए जाने पर व्यथित हो कर टूट गई हो. लेकिन वह हौसला और सब्र रख कर जिंदा रहती तो शायद बात बन जाती.

मेडिकल छात्रा का प्यार बना गुनाहगार

शुभांगी जोगदंड नांदेड़ के राजकीय आयुर्वेदिक मैडिकल कालेज से बीएचएमएस (बैचलर औफ होमियोपैथिक मैडिसिन ऐंड सर्जरी) कर रही थी. वह तृतीय वर्ष की छात्रा थी. जनवरी 2023 का महीना था. इन दिनों वह अपने गांव पिंपरी महीपाल में थी. उस का गांव मुंबई से लगभग 600 किलोमीटर दूर नांदेड़ जिले में स्थित है.

गांव में आने पर भी शिवांगी अपने दोस्तों से बातें जरूर किया करती थी. पिछले 2-3 दिनों से उस के दोस्तों का शुभांगी से संपर्क नहीं हो पा रहा था. उस का मोबाइल भी लगातार स्विच्ड औफ चल रहा था. उन्होंने सोशल मीडिया के द्वारा शुभांगी से संपर्क साधने की बहुत कोशिश की, मगर फिर भी उन का संपर्क नहीं हुआ तो सभी परेशान हो गए.

इसी बीच 26 जनवरी, 2023 को किसी व्यक्ति ने शुभांगी के लापता होने की जानकारी नांदेड़ के लिंबगांव थाने में दे दी तो वहां मौजूद एसआई चंद्रकांत इस सूचना की तसदीक करने के लिए शिवांगी के गांव पिंपरी महीपाल निकल गए.

एसआई चंद्रकांत जब शुभांगी के घर पहुंचे तो वहां उस के पिता जनार्दन जोगदंड मौजूद थे. उन्होंने जब उन से शुभांगी के बारे में पूछताछ की तो वह गोलमोल जवाब देने लगे.

एसआई पूछताछ के लिए उसे थाने ले आए. थाने में जनार्दन जोगदंड से शुभांगी के बारे में सख्ती से पूछताछ की गई तो उस ने बड़ी ही आसानी से उस की हत्या करने की बात स्वीकार कर ली.

उस के मुंह से बेटी की हत्या की बात सुन कर एसआई चंद्रकांत भी चौंक गए. उन्होंने पूछा, ‘‘उस की लाश कहां है?’’

‘‘सर, लाश खेत में जलाने के बाद उस की राख और अस्थियां नदी में बहा दीं. इस काम में उस के बेटे, भतीजे और साले ने सहायता की थी.’’ जनार्दन ने बताया.

मामला गंभीर था, इसलिए एसआई चंद्रकांत ने इस की सूचना विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों को दे दी. फिर एसपी के निर्देश पर पुलिस टीम ने जनार्दन जोगदंड को साथ ले कर अन्य आरोपियों के यहां दबिश दे कर कृष्णा (19 वर्ष), गिरधारी (30 वर्ष), गोविंद (32 वर्ष) व केशव शिवाजी (37 वर्ष) को उन के घरों से गिरफ्तार कर लिया.

जनार्दन जोगदंड की निशानदेही पर पुलिस टीम उस के प्याज के खेत में पहुंची, जहां उस ने 22 जनवरी, 2023 की रात शिवांगी की लाश का दाह संस्कार किया था. बाद में उस नदी तक भी पहुंची, जहां उस की राख फेंकी गई थी.

पुलिस को बारीकी से तलाश करने पर वहां कुछ मानव अस्थियां बरामद हुईं, जिसे पुलिस ने अपने कब्जे में लिया. दोनों जगहों पर फोरैंसिक टीम ने कुछ नमूने भी एकत्रित किए. आरोपियों से पूछताछ करने के बाद शुभांगी के औनर किलिंग की जो कहानी सामने आई, वह प्यार में सराबोर निकली—

महाराष्ट्र के नांदेड़ जिले के पिंपरी महीपाल गांव में जनार्दन जोगदंड अपने परिवार के साथ रहता था. यह जगह नांदेड़ के प्रसिद्ध तीर्थस्थल से लगभग एक घंटे की ड्राइव पर है. उस के परिवार में पत्नी के अलावा 2 बेटियां और एक बेटा था. वह खेतीकिसानी कर परिवार का पालनपोषण कर रहा था.

उस ने अपनी बड़ी बेटी की शादी गांव में ही कर दी थी. बेटा कृष्णा जोगदंड और बेटी शुभांगी अभी पढ़ रहे थे. शुभांगी जोगदंड पढ़ाई में शुरू से ही तेज थी. वह डाक्टर बनना चाहती थी. उस की मेहनत की वजह से उसे नांदेड के राजकीय आयुर्वेदिक मैडिकल कालेज में दाखिला मिल गया और वह वहां से बीएचएमएस की पढ़ाई कर रही थी. इस साल उस का 5वां सेमेस्टर था.

22 वर्षीय शुभांगी देखने में काफी खूबसूरत और हंसमुख स्वभाव की थी. घर में सभी उसे बहुत प्यार करते थे. वह मैडिकल की पढ़ाई कर रही थी, इसलिए घर वालों को उम्मीद थी कि डाक्टर बन कर वह घर का नाम रोशन करने के साथ घर की आमदनी बढ़ाने का जरिया भी बनेगी.

उधर शुभांगी जोगदंड अपने ही गांव के देव नाम के एक युवक को बहुत चाहती थी. देव भी उसे अपनी जान से बढ़ कर प्यार करता था. उन का प्यार धीरेधीरे परवान चढ़ने लगा. वह उस मुकाम पर पहुंच गया कि उन्होंने साथ में जीने और मरने की कसमें खाईं.

फिलहाल देव और शुभांगी के बीच सब कुछ ठीक चल रहा था. दोनों अपने भावी जीवन के सपने संजोने में मस्त थे. लेकिन ऐसी बातें अधिक दिनों तक कहां छिपती हैं. शुभांगी के घर वालों को भी इन के प्यार के बारे में पता चल गया. वे भड़क उठे.

यह सच था कि जनार्दन जोगदंड शुभांगी को बहुत प्यार करता था. मगर गांव के एक युवक के साथ प्यार की पींगें बढ़ाना उन्हें बहुत नागवार लगा.

शुभांगी के मातापिता ने खानदान की इज्जत और अपनी ममता की दुहाई दे कर बहुत समझाया तो शुभांगी घर की इज्जत की खातिर अपने प्रेमी को भूल पिता की पसंद के किसी लड़के से शादी करने के लिए तैयार हो गई. इस से जनार्दन जोगदंड बहुत खुश हुआ.

जल्द ही उस ने बेटी के लिए उचित लड़का तलाश कर लिया. उस युवक को भी शुभांगी पसंद आ गई तो जल्द ही उन की सगाई तय कर दी. उधर शुभांगी के सगाई हो जाने की भनक जब उस के प्रेमी देव को मिली तो उस के पैरों की जमीन जैसे खिसकती महसूस हुई.

सालों तक उस ने जिस शुभांगी के साथ अपनी पूरी जिंदगी गुजारने का सपना संजोया था, वह किसी और की होने वाली थी. देव शुभांगी के बिना अपने जीवन की कल्पना नहीं कर सकता था, इसलिए वह शिवांगी की सगाई तोड़ने की योजना में जुट गया.

वह चाहता था कि किसी भी तरह शुभांगी की सगाई टूट जाए और फिर वह और शुभांगी एक साथ जीवन गुजार सकें. उस के मोबाइल में शुभांगी के साथ बिताए हुए निजी पलों के बहुत सारे फोटो थे. अचानक उस के मन में विचार आया कि अगर वह इन फोटो को किसी तरह शुभांगी के होने वाले पति तक पहुंचा दे तो शुभांगी की सगाई टूट सकती है.

देव ने जो बात मन में सोची थी, उसे शिवांगी की सगाई की तारीख आने से कुछ दिन पहले अंजाम देने का निश्चय किया. उस ने शुभांगी के होने वाले पति को शुभांगी के साथ बिताए हुए अपने निजी पलों के फोटो सौंप दिए.

अपनी होने वाली पत्नी शुभांगी के अंतरंग पलों वाले फोटो किसी युवक के साथ देखते ही वह भड़क गया. इस का नतीजा यह हुआ कि होने वाले दामाद ने जनार्दन जोगदंड को उस की बेटी की काली करतूत बताते हुए बहुत बुराभला कहा और सगाई तोड़ दी. यानी शुभांगी की शादी उस के प्रेमी की वजह से टूट गई.

जनार्दन जोगदंड ने सपने में भी नहीं सोचा था कि जिस बेटी की शादी को ले कर वह और उस का परिवार बड़ेबड़े सपने देख रहा था, उसी बेटी के कारण समाज में अपना मुंह छिपाना पड़ेगा.

दरअसल, जैसे ही गांव में शुभांगी की सगाई टूटने की बात फैली तो गांव के लोग उन से मिलने से भी दूर भागने लगे. गांव में उस की खूब बेइज्जती हुई.

यह सब देख कर जनार्दन जोगदंड को शिवांगी पर बहुत गुस्सा आया. पत्नी को बताए बगैर उस ने अपने बेटे कृष्णा जोगदंड, भतीजे गिरधारी, चचेरे भाई गोविंद और साले केशव शिवाजी कदम के साथ मिल कर शिवांगी की हत्या की योजना तैयार की.

22 जनवरी, 2023 को जनार्दन जोगदंड ने किसी बहाने से अपनी पत्नी को मायके भेज दिया. शाम होने पर जब शिवांगी खाना खा कर सो गई तो जनार्दन जोगदंड और साजिश में शामिल अन्य लोग दबेपांव उस के बैड के पास पहुंचे और गहरी नींद में सो रही शुभांगी का गला घोट कर उसे मौत की नींद सुला दिया.

आधी रात को जब हर तरफ सन्नाटा था, पांचों आरोपी घर से खाद के बोरे में लाश ले कर कुछ दूरी पर स्थित अपने प्याज के खेत में पहुंचे. शिवांगी की लाश को खेत में रख कर ननिहाल से उस की मां को वहां बुला लिया गया.

जनार्दन ने अपनी पत्नी से झूठ बोलते हुए कहा कि शिवांगी की करंट लगने से मौत हो गई है. उन्होंने उसे शिवांगी की लाश का केवल चेहरा भर दिखाने के बाद लाश को आननफानन में जला दिया. वहां पर जो राख और अस्थियां बची थीं, वह समेट कर कुछ दूरी पर बह रही नदी में डाल आए.

जिस जगह पर शिवांगी की लाश जलाई गई थी, सबूत मिटाने के लिए अगले दिन वहां पर हल चलवा कर पानी से अच्छी तरह पटाया ताकि लोगों को वहां जलने या राख आदि के कोई अवशेष दिखाई न पड़े.

अगले दिन से जनार्दन जोगदंड के परिवार के लोग घर में ऐसे रहने लगे जैसे मानो कुछ हुआ ही न हो.

लेकिन नांदेड़ में शिवांगी के साथ पढ़ने वाले स्टूडेंट बारबार उस के मोबाइल पर फोन कर संपर्क करने की कोशिश कर रहे थे. जब 2-3 दिनों तक उन का शिवांगी से संपर्क नहीं हुआ तो उन्होंने 26 जनवरी, 2023 को पुलिस को इस बात की सूचना दे दी.

पांचों आरोपियों से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने उन्हें स्थानीय अदालत में पेश किया, जहां से सभी को 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.  द्य

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

जान से प्यारी की ली जान

वैलेंटाइन डे यानी 14 फरवरी, 2023 का दिन था. नालासोपारा इलाके में भी इस समय अच्छीखासी चहलपहल थी. लोग रोजमर्रा के कामों में व्यस्त थे. शाम के समय वहां के निवासियों को सीता सदन बिल्डिंग से बदबू आती हुई महसूस हुई तो किसी अनहोनी की आशंका से उन्होंने इस की सूचना इलाके के तुलिंज थाने में फोन कर के दे दी.

यह सूचना सुन कर पुलिस सीता सदन बिल्डिंग की तरफ निकलने की तैयारी करने लगी. इसी दौरान कर्नाटक से एक महिला ने इसी थाने में फोन कर के सूचना दी कि सीता सदन में रहने वाली उस की भतीजी मेघा का कत्ल हो गया है. उसे यह बात स्वयं कातिल हार्दिक ने वाट्सऐप पर मैसेज कर के बताई है.

कुछ देर पहले पुलिस को सीता सदन में ही बदबू आने की काल मिली थी, अब उसी बिल्डिंग में हत्या किए जाने की काल मिलने पर इंसपेक्टर शैलेंद्र नगरकर समझ गए कि दोनों ही काल एक ही घटना की हो सकती हैं. इसलिए वह पुलिस टीम के साथ घटनास्थल की तरफ निकल गए. जब वह वहां पहुंचे तो देखा कि मुख्य दरवाजे पर ताला लगा था. उन्होंने ताला तुड़वा कर कमरे में प्रवेश किया तो कमरे में एक बैड पड़ा था, जिस के अंदर से भयंकर बदबू आ रही थी. बैड का बौक्स खोला गया तो उस के अंदर सड़ीगली हालत में एक महिला की लाश मिली.

लाश की खराब हालत को देख कर ऐसा लगता था जैसे उस की हत्या लगभग 2 से 3 दिन पहले की गई होगी, क्योंकि शव सड़ने लगा था और उस से तेज बदबू बाहर निकल रही थी.

घर के अन्य कमरों की तलाशी लेने पर वहां घरगृहस्थी का कोई अन्य सामान नहीं मिला. लाश की सभी एंगल से फोटोग्राफी करवाने और फिंगरप्रिंट लेने के बाद उसे पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भिजवा दिया गया.

इंसपेक्टर शैलेंद्र नगरकर ने पड़ोसियों से घटना के बारे में पूछताछ कर मालूम करने की कोशिश की तो पता चला कि कोई एकाध महीने पहले एक दंपति यहां किराए पर रहने के लिए आया था. पड़ोसियों को इस मकान के अंदर से अकसर उन के लड़ने की भी आवाजें आती थीं, जिस से लगता था उन के आपसी संबंध ठीक नहीं रहे होंगे.

चूंकि पड़ोसियों को उन के व्यक्तिगत मामले से कुछ लेनादेना नहीं था, शायद इसलिए किसी ने उन के पर्सनल मामले में हस्तक्षेप करना ठीक नहीं समझा था. मृतक मेघा के साथ रहने वाला युवक हार्दिक गायब था. यह देख कर पुलिस ने अनुमान लगाया कि इस की हत्या उस के पति हार्दिक ने ही की होगी. क्योंकि उसी ने मेघा की चाची को वाट्सऐप पर मैसेज भेज कर मेघा का कत्ल करने की बात कही थी.

अब पुलिस को पूछताछ के लिए उस युवक की तलाश थी, लेकिन पड़ोसियों में से किसी ने भी उसे फरार होते हुए नहीं देखा था. आखिरकार, मकान मालिक और रियल स्टेट एजेंट को बुला कर इस में रहने वाले युवक के बारे में पूछताछ की गई.

इस जांच में केवल इतना पता लगा कि युवक का नाम हार्दिक शाह और महिला का नाम मेघा धन सिंह थोरवी था. लेकिन पूछताछ में सब से अच्छी बात यह हुई कि पुलिस को मकान मालिक से हार्दिक का मोबाइल नंबर मिल गया.

सीता सदन को सील कर इंसपेक्टर शैलेंद्र नगरकर की टीम वापस थाने लौट गई. उसी रात यानी 14 फरवरी, 2023 को मेघा की हत्या का मामला दर्ज कर लिया गया.

मोबाइल फोन से मिला सुराग

मामला दर्ज करने के बाद पुलिस आरोपी हार्दिक की तलाश में जीजान से लग गई. इंसपेक्टर शैलेंद्र नगरकर ने अपनी टीम को घर के आसपास लगे सीसीटीवी की फुटेज खंगालने का आदेश दिया. साथ ही आरोपी हार्दिक के मोबाइल नंबर को सर्विलांस पर लगा कर उस की लोकेशन को ट्रेस करना शुरू किया तो 12 फरवरी को उस के ट्रेन द्वारा मुंबई से राजस्थान के लिए रवाना होने का पता चला. इस वक्त वह ट्रेन में सवार था.

इंसपेक्टर शैलेंद्र नगरकर ने मुंबई के मीरा भायंदर वसई विरार की अपराध शाखा और मध्य प्रदेश के नागदा स्थित आरपीएफ पुलिस को आरोपी के बारे में सूचित कर दिया. आरपीएफ की मदद से हार्दिक को यात्रा के दौरान ही मध्य प्रदेश के नागदा रेलवे स्टेशन से उस समय गिरफ्तार कर लिया गया, जब वह ट्रेन की बोगी में यात्रा कर रहा था.

अपराध शाखा की टीम ने आरोपी हार्दिक को नागदा से ला कर तुलिंज थाने के इंसपेक्टर शैलेंद्र नगरकर को सौंप दिया.

इंसपेक्टर शैलेंद्र नगरकर ने हार्दिक से पूछताछ शुरू की तो हार्दिक ने मेघा की हत्या का जुर्म स्वीकार कर लिया. अपने इकबालिया बयान में आरोपी हार्दिक ने जो कुछ बताया, वह इस प्रकार है—

हार्दिक शाह एक मौडर्न खयाल का युवक था. वह मुंबई में मलाड के एक नामचीन हीरा  व्यापारी संपत भाई का बेटा था. घर में दौलत की कमी नहीं थी, इसलिए उस का सारा दिन सैरसपाटे और मौजमस्ती में गुजर जाता था. जैसा कि आमतौर पर देखा गया है कि आजकल लड़के की कोई न कोई गर्लफ्रैंड जरूर होती है. हार्दिक शाह को भी सोशल मीडिया पर चलने वाले विभिन्न ऐप पर नई लड़कियों से दोस्ती कर उन के साथ चैटिंग करने में बड़ा मजा आता था.

बात सन 2018 की है. एक डेटिंग ऐप पर हार्दिक शाह की मुलाकात मेघा धन सिंह तोरवी से हुई. 34 वर्षीया मेघा तोरवी मूलरूप से केरल की निवासी थी, लेकिन इन दिनों नालासोपारा के एक अस्पताल में नर्स की नौकरी करती थी. इन दिनों लड़के हों या लड़कियां, अपने से बड़ी उम्र के पार्टनर के साथ इश्क करने से गुरेज नहीं करते.

हार्दिक और मेघा तोरवी के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ. हार्दिक शाह की उम्र 24 साल थी, जबकि मेघा तोरवी 34 की थी. वह हार्दिक से लगभग 10 साल बड़ी थी. लेकिन प्रेमिका के बड़ी उम्र के होने से हार्दिक को कोई परेशानी नहीं थी.

कुछ दिनों तक आपस में चैटिंग करने के बाद उन का मिलनाजुलना शुरू हो गया. धीरेधीरे दोनों एकदूसरे के इतने करीब आ गए कि उन्हें अब एकदुसरे से दूर रह पाना मुश्किल लगने लगा. आखिरकार उन्होंने लिवइन रिलेशनशिप में रहने का फैसला कर लिया.

हार्दिक मलाड स्थित अपने पैतृक घर से दूर आ कर विजय नगर में एक मकान ले कर मेघा के साथ रहने लगा. हार्दिक जैसे मालदार प्रेमी का साथ पा कर मेघा अपने जीवन को धन्य समझने लगी. हार्दिक ने मेघा के सामने अपने पिता की दौलत को ले कर ढेर सारे कसीदे पड़े थे, जिसे सुन कर मेघा सपनों की सतरंगी दुनिया में विचरने लगी थी. उसे लगता था कि हार्दिक के साथ उस की बाकी की जिंदगी बड़े आराम से गुजरेगी.

हार्दिक को खुश रखने के लिए वह अपनी सारी कमाई उस पर लुटाने लगी. उसे खुश रखने में मेघा कभी कोई कोरकसर बाकी नहीं छोड़ती थी.

मेघा के साथ लिवइन में रहने लगा हार्दिक

हालांकि हार्दिक भी मेघा को दिलोजान से चाहता था. वह मेघा के लिए नएनए तोहफे लाया करता और उस की हर सुखसुविधा का बहुत खयाल रखता था. मेघा जब नौकरी के लिए जाती तो वह उसे छोड़ने और छुट्टी के समय उसे लेने जाता था. हार्दिक के पिता उसे जेब खर्च के लिए हरेक महीने 20 हजार रुपए देते थे. दोनों की जिंदगी मजे में गुजर रही थी.

तभी 2019 के मार्च महीने में कोरोना फैलने के डर से पूरे देश में लौकडाउन लगा दिया गया. इस लौकडाउन से लोगों के कामधंधे छूट गए. हार्दिक और मेघा भी इस से बच नहीं सके और उन की भी जिंदगी परेशानी में घिर गई.

कुछ दिनों के बाद हार्दिक ने फिर भी डेटा कलेक्शन का काम कर के घर की स्थिति को संभाल लिया. 2022 में जब देश में लौकडाउन हटाने की घोषणा हुई तो मुंबई का जनजीवन सामान्य होने लगा. इस के बाद जब हालात ठीक हो गए तो मेघा ने फिर से अपनी नौकरी पर जाना शुरू कर दिया. उन के घर में खुशियां पहले की बहाल हो गईं.

सब कुछ ठीक ही चल रहा था. हार्दिक बीचबीच में मलाड स्थित अपने पिता के घर भी चला जाता था. अभी तक हार्दिक ने अपने घर में मेघा के साथ रहने की बात नहीं बताई थी. उसे मालूम था कि उस के पिता मेघा को अपने घर की बहू के रूप में कभी स्वीकार नहीं करेंगे.

एक बार किसी काम में हार्दिक ने पिता के 40 लाख रुपए गंवा दिए. इस से उस के पिता बहुत नाराज हुए थे. करीब 8 महीने बाद अगस्त में हार्दिक ने मेघा से शादी कर ली और विजय नगर से नालासोपारा के सीता सदन में रहने चला आया. यहां हार्दिक

और मेघा ने लोगों को यही बताया कि वे पतिपत्नी हैं.

अभी दोनों को यहां रहते हुए कुछ ही समय गुजरा था कि हार्दिक के पिता को बेटे के मेघा के साथ रहने की जानकारी हुई तो वह उस से इस कदर नाराज हुए कि उन्होंने हार्दिक को अपनी पूरी जायदाद से हमेशा के लिए बेदखल कर दिया. इस के साथ उन्होंने हार्दिक को महीने का मिलने वाला 20 हजार रुपए देना बंद कर दिया.

मेघा की कमाई पर करने लगा ऐश

पिता द्वारा उठाए इस सख्त कदम से हार्दिक की आर्थिक हालत खस्ता हो गई. दरअसल, अभी तक वह पिता की दौलत पर ही ऐश कर रहा था. लेकिन अब जब पिता ने उस की हरकतों से तंग आ कर उसे बेदखल किया तो अपने पैर पर खड़े होने की बजाय वह मेघा की कमाई पर ऐश करने लगा. उसे लगता था कि मेघा उस के बेरोजगार पड़े रहने पर कुछ नहीं कहेगी.

पहले तो मेघा ने उसे समझाबुझा कर अपने योग्य कोई ढंग का काम या कोई नौकरी तलाशने का सुझाव दिया. पर मेघा की बात पर हार्दिक ने रत्ती भर भी ध्यान नहीं दिया.

वह मेघा की कमाई पर ऐश करने लगा, जिस से मेघा को घर का खर्च पूरा करने में परेशानी होने लगी. हार्दिक के हाथ पर हाथ रख कर बैठे रहने से घर चलाने की पूरी जिम्मेदारी मेघा के नाजुक कंधों पर आ गई. रुपएपैसे की किल्लत के कारण उन के घर में क्लेश रहने लगा. हार्दिक मामले की नजाकत को नहीं समझा और मेघा के पैसों पर ऐश करना जारी रखा.

आखिर में 11 और 12 फरवरी, 2023 की रात हार्दिक के बेरोजगार रहने को ले कर बात बढ़ जाने पर हार्दिक अपना आपा खो बैठा और तौलिए से मेघा का गला घोट कर मार डाला. मेघा की लाश को छिपाने के लिए उस ने उस की लाश बिस्तर में लपेट कर बैड के बौक्स में रख दी.

पुलिस द्वारा पकड़े जाने से बचने के लिए वह यहां से बहुत दूर चला जाना चाहता था. लेकिन उस के पास पैसे नहीं थे, इसलिए अगले दिन उस ने घर के सभी महंगे सामान कम कीमत पर बेच कर कुछ रुपए इकट्ठा किए.

12 फरवरी को फरार होने से पहले हार्दिक ने कनार्टक में रहने वाली मेघा की चाची को फोन कर बता दिया कि रोजरोज के झगड़े तंग आ कर उस ने मेघा की हत्या कर दी है और उस की लाश बैड के बौक्स में छिपा दी है. अब वह आत्महत्या करने हरिद्वार जा रहा है.

इस के बाद वह घर के दरवाजे पर ताला लगा कर रेलवे स्टेशन पर पहुंच गया. वहां से उस ने राजस्थान जाने के लिए ट्रेन पकड़ी मगर पुलिस ने 15 फरवरी, 2023 को बीच रास्ते से ही उसे गिरफ्तार कर लिया.

उसे मुंबई के वसई की अदालत में पेश किया गया, जहां से उसे 21 फरवरी, 2023 तक के लिए पुलिस कस्टडी में भेज दिया गया है.  द्य