Murder Story : प्रेमी के साथ मिलकर किया शौहर का कत्ल

Murder Story : लतीफ से निकाह हो जाने के बाद अजमेरिन को मायके के प्रेमी तेजपाल से संबंध खत्म कर देने चाहिए थे. लेकिन उस ने ऐसा नहीं किया. बल्कि वह प्रेमी तेजपाल को अपनी ससुराल में भी बुलाने लगी. इस का नतीजा इतना खतरनाक निकला कि…

9 अप्रैल की सुबह 5 बजे अजमेरिन की चीख और रोनेपीटने की आवाज सुन कर घर वाले तथा पड़ोसी आ गए. उस ने अपने ससुर साबिर अली को बताया कि उस के शौहर लतीफ को किसी ने रात में मार डाला है. बेटे की हत्या की बात सुन कर साबिर अली अवाक रह गए. इस के बाद तो बेहटा गांव में कोहराम मच गया. अजमेरिन को ले कर गांव में तरहतरह की चर्चाएं होने लगीं. कुछ लोग दबी जुबान से तो कुछ खुल कर अजमेरिन को ही दोषी ठहरा रहे थे. घर वालों को भी अजमेरिन पर ही शक था. कुछ देर बाद साबिर अली थाना ठठिया पहुंचे. उस समय थानाप्रभारी शैलेंद्र सिंह थाने पर मौजूद थे. उन्होंने अधेड़ उम्र के व्यक्ति को बदहवास देखा, तो पूछा, ‘‘बताइए, कैसे आना हुआ और इतने घबराए हुए क्यों हो?’’

‘‘साहब, मेरा नाम साबिर अली है. मैं गांव बेहटा का रहने वाला हूं. बीती रात किसी ने मेरे बेटे लतीफ की हत्या कर दी. वह 20 दिन पहले ही हैदराबाद से गांव लौटा था.’’

हत्या की बात सुन कर थानाप्रभारी शैलेंद्र सिंह चौंके. उन्होंने साबिर अली से पूछा, ‘‘तुम्हारे बेटे लतीफ की हत्या किस ने और क्यों की होगी? क्या उस की गांव में किसी से कोई दुश्मनी या लेनदेन का लफड़ा था?’’

‘‘साहब, लतीफ बहुत सीधासादा था. गांव में उस की न तो किसी से दुश्मनी थी और न ही किसी से लेनदेन का लफड़ा था. पर मुझे एक आदमी पर गहरा शक है.’’

‘‘किस पर?’’ शैलेंद्र सिंह ने आश्चर्य से पूछा.

‘‘लतीफ की बीवी अजमेरिन पर.’’ साबिर अली ने बताया.

‘‘वह कैसे?’’ थाना प्रभारी ने पूछा.

‘‘साहब, लतीफ की बीवी अजमेरिन का चरित्र ठीक नहीं है. वह मायके के यार तेजपाल को घर बुलाती थी. तेजपाल को ले कर मियांबीवी में झगड़ा होता था. मुझे शक है कि अजमेरिन ने ही अपने प्रेमी तेजपाल के साथ मिल कर मेरे बेटे को मार दिया है. अब वह पाकीजा बनने का नाटक कर रही है.’’

अवैध संबंधों में हुई हत्या का पता चलते ही थानाप्रभारी शैलेंद्र सिंह ने इस वारदात से वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को अवगत कराया और फिर पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पहुंच गए. उस समय लौकडाउन की वजह से इक्कादुक्का लोग ही मौजूद थे. पुलिस को देख कर शौहर के शव के पास बैठी अजमेरिन छाती पीटपीट कर रोने लगी. अजमेरिन रो जरूर रही थी, पर उस की आंखों से आंसू नहीं निकल रहे थे. शैलेंद्र सिंह को समझते देर नहीं लगी कि अजमेरिन रोने का ड्रामा कर रही है. फिर भी सहानुभूति जताते हुए उन्होंने उसे शव से दूर किया और निरीक्षण कार्य में जुट गए. मृतक लतीफ का शव घर के बाहर बरामदे में तख्त पर पड़ा था. उस के शरीर पर चोटों के निशान थे. देखने से ऐसा लग रहा था कि हत्या गला दबा कर की गई थी. उस की उम्र 35 वर्ष के आसपास थी और वह शरीर से हृष्टपुष्ट था.

थानाप्रभारी शैलेंद्र सिंह अभी जांच कर ही रहे थे कि सूचना पा कर एसपी अमरेंद्र प्रसाद, एएसपी विनोद कुमार तथा सीओ सुबोध कुमार जायसवाल घटनास्थल पर आ गए. पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया फिर मृतक की बीवी अजमेरिन से पूछताछ की. अजमेरिन ने बताया कि बीती रात 9 बजे उस ने शौहर के साथ बैठ कर खाना खाया था. कुछ देर दोनों बतियाते रहे, उस के बाद वह घर के बाहर बरामदे में जा कर तख्त पर सो गए. इस के बाद रात में किसी ने उन की हत्या कर दी. कैसे और कब, इस बारे में उसे नहीं मालूम. सुबह जब वह सो कर उठी और साफसफाई करते हुए बरामदे में पहुंची तो उन्हें मृत पाया. पति को इस हालत में देख कर वह चीखीचिल्लाई तो ससुर व पड़ोसी आ गए. ससुर ने पुलिस को सूचना दी तो पुलिस आ गई.

पुलिस अधिकारियों ने मृतक के वालिद साबिर अली से बात की तो उस ने लतीफ की बीवी अजमेरिन पर शक जताया कि वह चरित्र की खोटी है. पुलिस अधिकारी पक्के सबूत के बिना अजमेरिन को गिरफ्तार नहीं करना चाहते थे. इसलिए घटनास्थल की सारी काररवाई पूरी कर शव पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल कन्नौज भिजवा दिया गया. साथ ही थानाप्रभारी शैलेंद्र सिंह को आदेश दिया कि वह पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिलने के बाद काररवाई करें. 10 अप्रैल की शाम 5 बजे थानाप्रभारी शैलेंद्र सिंह को लतीफ की पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिल गई. रिपोर्ट के मुताबिक लतीफ की हत्या गला घोंट कर की गई थी. हत्या के पहले उस के साथ मारपीट भी हुई थी. उस के हाथों व पैरों पर गंभीर चोटों के निशान थे.

भोजन पचा पाया गया, जिस से अनुमान लगाया कि हत्या रात 12 बजे के बाद हुई थी. जहर की आशंका को देखते हुए विसरा को सुरक्षित कर लिया गया. पोस्टमार्टम रिपोर्ट का अध्ययन करने के बाद शैलेंद्र सिंह दूसरे रोज सुबह 10 बजे मृतक की बीवी अजमेरिन से पूछताछ करने उस के गांव बेहटा पहुंचे लेकिन वहां दरवाजे पर ताला लटक रहा था. उन्होंने मृतक के पिता साबिर अली से पूछा, तो उन्होंने बताया कि अजमेरिन घर में ताला डाल कर फरार हो गई है. संभव है, वह अपने मायके चली गई है. उस का मायका कानपुर देहात जनपद के रसूलाबाद थाना अंतर्गत गांव सहवाजपुर में है. उसी गांव में उस का आशिक तेजपाल भी रहता है.

अजमेरिन के फरार होने से थानाप्रभारी शैलेंद्र सिंह को पक्का यकीन हो गया कि लतीफ की हत्या में उस का ही हाथ है. उसी ने अपने आशिक के साथ मिल कर शौहर की हत्या की है. अत: अजमेरिन और उस के आशिक को पकड़ने के लिए शैलेंद्र सिंह अपनी टीम के साथ थाना रसूलाबाद पहुंच गए. वहां की पुलिस की मदद से उन्होंने गांव सहवाजपुर में अजमेरिन व तेजपाल के घर छापा मारा. लेकिन वह दोनों अपनेअपने घर में नहीं थे. तेजपाल के पिता ओमप्रकाश ने बताया कि तेजपाल 8 अप्रैल की सुबह मोटरसाइकिल ले कर घर से निकला था, तब से वह वापस नहीं आया. जबकि अजमेरिन के घर वालों ने बताया कि वह मायके आई ही नहीं है.

तेजपाल व अजमेरिन को पकड़ने के लिए थानाप्रभारी ने तमाम संभावित स्थानों पर छापे मारे, लेकिन दोनों पकड़ में नहीं आए. इस बीच उन्होंने उन के घर वालों से भी सख्ती से पूछताछ की, लेकिन उन का पता नहीं चला. इस पर थानाप्रभारी ने अपने खास मुखबिरों का जाल फैला दिया. 14 अप्रैल की सुबह 8 बजे एक मुखबिर ने थाने आ कर थानाप्रभारी को बताया कि अजमेरिन अपने आशिक तेजपाल के साथ नेरा पुल के पास मौजूद है. दोनों शायद किसी सुरक्षित ठिकाने की तलाश में है. मुखबिर की इस सूचना पर शैलेंद्र सिंह सक्रिय हुए और पुलिस बल के साथ नेरा पुल के पास पहुंच गए. पुल पर उन्हें कोई नजर ही नहीं आया.

निरीक्षण करते हुए पुलिस जब पुल के नीचे पहुंची तो वहां एक युवक और एक युवती मिले. पुलिस को देख कर दोनों ने भागने की कोशिश की, लेकिन पुलिस ने घेराबंदी कर दोनों को पकड़ लिया. थाना ठठिया ला कर जब उन से पूछताछ  की गई तो युवक ने अपना नाम तेजपाल बताया. जबकि युवती ने अपना नाम अजमेरिन बताया. उन से जब लतीफ की हत्या के संबंध में पूछा गया तो दोनों साफ मुकर गए. लेकिन जब पुलिस ने अपना असली रंग दिखाया तो दोनों टूट गए और हत्या का जुर्म कुबूल कर लिया. यही नहीं उन्होंने हत्या में इस्तेमाल अंगौछा और डंडा भी बरामद करा दिया जिसे उन्होंने घर में छिपा दिया था. अजमेरिन ने बताया कि तेजपाल से उस के संबंध निकाह से पूर्व से थे. जो निकाह के बाद भी बने रहे.

उस का शौहर इन नाजायज ताल्लुकात का विरोध करता था और मारपीट और झगड़ा करता था. शौहर की शराबखोरी और मारपीट से आजिज आ कर उस ने तेजपाल के साथ मिल कर शौहर की हत्या की योजना बनाई. फिर 8 अप्रैल की रात उस के साथ मारपीट की और गला घोंट कर मार डाला. अजमेरिन की बात का तेजपाल ने भी समर्थन किया. थानाप्रभारी शैलेंद्र सिंह ने लतीफ हत्याकांड का परदाफाश करने और उस के कातिलों को पकड़ने की जानकारी पुलिस अधिकारियों को दी तो वह थाना ठठिया आ गए. उन्होंने हत्यारोपियों से खुद पूछताछ की. फिर एसपी अमरेंद्र प्रसाद सिंह ने आननफानन प्रैसवार्ता बुलाई और हत्यारोपियों को मीडिया के सामने पेश कर घटना का खुलासा किया.

चूंकि हत्यारोपियों ने अपना जुर्म स्वीकार कर लिया था. इसलिए शैलेंद्र सिंह ने मृतक के पिता साबिर अली को वादी बना कर भादंवि की धारा 302 के तहत तेजपाल व अजमेरिन के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करवाई और दोनों को विधि सम्मत गिरफ्तार कर लिया. पुलिस जांच में एक ऐसी औरत की कहानी सामने आई जिस ने देह सुख के लिए शौहर का कत्ल करा दिया. उत्तर प्रदेश के जिला कानपुर (देहात) के रसूलाबाद थाना अंतर्गत ककवन रोड पर एक गांव है सहवाजपुर. हिंदूमुसलिम की मिलीजुली आबादी वाला यह गांव पूरी तरह से विकसित है. सड़क मार्ग से जुड़ा होने के कारण गांव में दिन भर चहल पहल रहती है.

यहां के ज्यादातर लोग या तो खेती करते हैं या फिर व्यवसाय. हफ्ते में हर बुधवार को यहां साप्ताहिक बाजार भी लगता है, जिस में आसपास के गांव के लोग आते हैं. नूर आलम अपने परिवार के साथ इसी सहवाजपुर गांव में रहता था. उस के परिवार में बीवी खालिदा बेगम, 2 बेटियां अनीसा, अजमेरिन और बेटा ताहिर था. नूर आलम जूताचप्पल बेचने का काम करता था. इस काम में उस का बेटा ताहिर भी मदद करता था. इसी धंधे से उस के परिवार का भरणपोषण आसानी से हो जाता था. बड़ी बेटी अनीसा का निकाह इरशाद के साथ कर दिया. इरशाद रसूलाबाद कस्बे में रहता था और फल बेचता था. अनीसा शौहर के साथ खुशहाल थी.

नूर आलम की बेटी अजमेरिन भाईबहनों में सब से छोटी थी. वह 5 जमात के आगे न पढ़ सकी. वह मां के साथ चौकाचूल्हा में हाथ बंटाने लगी थी. गोरा चेहरा, नशीली आंखें और सुर्ख होठों पर कंपन लिए अजमेरिन जब मस्तानी चाल से घर से बाहर निकलती तो जवान युवकों की धड़कनें बढ़ जाती थीं. वह उसे देख कर फब्तियां कसते थे. उन की चुभती नजरें अजमेरिन को रोमांच से भर देती थीं. अजमेरिन के वैसे तो कई दीवाने थे, लेकिन 4 घर दूर रहने वाला तेजपाल उसे कुछ ज्यादा ही चाहता था. तेजपाल के पिता ओमप्रकाश किसान थे. उन के 3 बच्चों में तेजपाल सब से छोटा था.

घर के बाहरी छोर पर उन की जनरल स्टोर की दुकान थी, जिस पर तेजपाल बैठता था. उन का बड़ा बेटा कानपुर शहर में नौकरी करता था, जबकि बेटी की शादी हो चुकी थी. पड़ोस में रहने के कारण अजमेरिन और तेजपाल का आमनासामना अकसर हो जाता था. तेजपाल जहां अजमेरिन के रूप का दीवाना था, तो अजमेरिन भी तेजपाल के कुशल व्यवहार से प्रभावित थी. दोनों हंसबोल लेते थे. अजमेरिन 20 साल की हो चुकी थी. उस के युवा तन में तरंगें उठने लगी थीं. तेजपाल भी 22 वर्ष की उम्र का बांका जवान था. उस की रातें भी बेचैनी से बीतती थीं. अजमेरिन जब भी उस की दुकान पर आती, तो तेजपाल उस के यौवन को निहारता रह जाता था.

उसे इस तरह देखते देख अजमेरिन उसे मुसकरा कर देखती और हया से सिर झुका लेती. मोहब्बत का बीज शायद दोनों के मन में पड़ चुका था. धीरेधीरे यह सिलसिला सा बन गया. जब भी अजमेरिन तेजपाल के सामने पड़ती, लाज से उस के गाल सुर्ख हो जाते. तेजपाल मंदमंद मुसकराते हुए उसे देखता तो वह और भी शरमा जाती. एक रोज एकांत पा कर अजमेरिन ने पूछ ही लिया, ‘‘मुझे देख कर यूं शरारत से क्यों मुसकराते हो?’’

‘‘इसलिए कि सीधीसादी अजमेरिन के हुस्न का खजाना मेरी आंखों में बस गया है.’’ तेजपाल ने कह दिया.

‘‘धत्त,’’ अजमेरिन ने तिरछी चितवन से उसे देखा और शरमा कर चली गई.

अब दोनों की निगाहें एकदूजे से कुछ कहने लगीं. एक रोज अजमेरिन तेजपाल की दुकान पर गई तो दुकान बंद थी. वह घर के अंदर गई तो तेजपाल खाना बना रहा था. दरअसल तेजपाल की मां बीमार थी, पिता उसे डाक्टर को दिखाने गए थे. अजमेरिन को शरारत सूझी तो वह बोली, ‘‘अपने हाथों से चपातियां ठोकते हो, शादी क्यों नहीं कर लेते?’’

‘‘चलो, तुम्हें मेरी परेशानी देख कर रहम तो आया,’’ तेजपाल ने ठंडी सांस छोड़ी, ‘‘जब तुम जैसी कोई हसीना मिलेगी, ब्याह रचा लूंगा.’’

अजमेरिन के गालों पर गुलाब खिल गए. उस ने उसे तिरछी चितवन से निहारा और बिना जवाब दिए मुड़ कर जाने लगी. तेजपाल ने उस का हाथ थाम लिया, ‘‘मेरा चैन ओ करार छीन कर मुसकराती हो’’?

‘‘तुम ने भी तो मेरी रातों की नींद छीन रखी है.’’ अजमेरिन ने कहा.

दोनों की मोहब्बत परवान चढ़ी तो दोनों मिलन का अवसर ढूंढने लगे. उन्हें यह मौका जल्द ही मिल गया. उस रोज अजमेरिन के घर वाले रिश्तेदार के घर गए थे और वह घर में अकेली थी. अजमेरिन ने ही तेजपाल को घर सूना होने की बात बता कर मिलन की राह सुझाई थी. दोपहर के समय दुकान बंद कर तेजपाल, अजमेरिन के घर पहुंचा. उस समय वह उसी का इंतजार कर रही थी. तेजपाल ने धीरे से दरवाजा अंदर से बंद किया फिर अजमेरिन के पास आ कर उसे बांहों में भर लिया और शारीरिक छेड़छाड़़ करने लगा. तेजपाल के इरादे को भांप कर अजमेरिन ने दिखावे के तौर पर विरोध किया, और बोली, ‘‘हंसना, बोलना और हंसीमजाक अपनी जगह ठीक है, लेकिन जो तुम चाहते हो वह पाप है.’’

‘‘पापपुण्य मैं नहीं जानता, मैं सिर्फ इतना जानता हूं कि जो चेहरा मेरे सपनों में बस गया है, वह मुझे मिल जाए.’’ तेजपाल ने बाजू छोड़ कर उस का चेहरा हथेलियों में समेट लिया. धीरेधीरे तेजपाल का चेहरा नजदीक आता गया. इतना करीब कि सांसें एकदूसरे के चेहरे से टकराने लगीं. तेजपाल की गुनगुनी सांसें अजमेरिन को कमजोर करने लगीं. इतना ज्यादा कि मर्यादा हार गई और हसरत जीत गई. दोनों ही विशुद्ध कुंवारे थे. प्रथम मिलन का असीम आनंद दोनों को मिला तो वह इस आनंद को पाने के लिए लालायित रहने लगे. अजमेरिन मौका पा कर सामान लेने के बहाने तेजपाल की दुकान पर जाती और मौका पाते ही दोनों मिलन कर लेते.

तेजपाल तो इतना दीवाना हो गया था कि वह अजमेरिन से शादी रचाने को भी राजी था. लेकिन अजमेरिन जानती थी कि वह मुसलमान है, अत: हिंदू लड़के, वह भी पड़ोसी, से कभी उस के परिवार वाले शादी को राजी नहीं होंगे. तेजपाल का समयअसमय अजमेरिन के घर आना पड़ोसियों को नागवार लगा. उन्होंने अजमेरिन के भाई ताहिर से शिकायत की तो उस का माथा ठनका. उस ने बहन पर नजर रखनी शुरू कर दी. एक रोज तेजपाल बहाने से घर आया और अजमेरिन से मिला तो ताहिर ने छिप कर दोनों पर नजर रखी. इस का नतीजा यह निकला कि उस ने दोनों को एकदूसरे को चूमते देख लिया. उस समय तो उस ने बहन से कुछ नहीं कहा. लेकिन दूसरे रोज उसे अकेले में समझाया कि तेजपाल हिंदू है और तू मुसलमान. उस से तेरा रिश्ता कभी नहीं हो सकता. इसलिए तू उस का ख्वाब छोड़ दे.

अजमेरिन ने भाई से वादा किया कि वह तेजपाल से कभी नहीं मिलेगी. तेजपाल को भी ताहिर ने समझा दिया. लेकिन यौवन की आरजू के आगे अजमेरिन भी हार गई और तेजपाल भी. कुछ माह बीतने के बाद दोनों फिर छिपछिप कर मिलने लगे. इस का नतीजा यह निकला कि दोनों के नाजायज रिश्तों के चर्चे गांव की हर गली के मोड़़ पर होने लगे. बदनामी ने पैर पसारे और बिरादरी में भी थूथू होने लगीं तो नूर आलम परेशान हो उठा. उस ने बेलगाम लड़की पर लगाम कसने के लिए, उस का जल्द ही जातिबिरादरी के लड़के के साथ निकाह करने की ठान ली. इस बाबत उस ने खोज शुरू की तो अजमेरिन के लिए उसे लतीफ पसंद आ गया.

लतीफ के पिता साबिर अली कन्नौज जनपद के ठठिया थाना अंतर्गत गांव बेहटा में रहते थे. उन की 4 औलादों में लतीफ सब से छोटा था. 2 बेटियां व एक बेटे की वह शादी कर चुके थे, जबकि लतीफ अभी कुंवारा था. लतीफ साधारण रंगरूप का था. पिता के साथ वह किसानी करता था. नूर आलम ने जब लतीफ को देखा तो उस ने उसे अपनी बेटी अजमेरिन के लिए पसंद कर लिया. साल 2010 के जुलाई माह में अजमेरिन का शादी लतीफ के साथ हो गई. अजमेरिन खूबसूरत थी. वह लतीफ की दुलहन बन कर ससुराल पहुंची तो ससुराल वालों ने उसे हाथोंहाथ लिया और उस के हुस्न की तारीफ की.

खूबसूरत बीवी पा कर लतीफ जहां खुश था, वहीं अजमेरिन साधारण रंगरूप वाले शौहर को देख कर उदास थी. उस ने तो अपने प्रेमी तेजपाल जैसे युवक की तमन्ना की थी, लेकिन उस की तमन्ना अधूरी रह गई. 2 हफ्ते ससुराल में रहने के बाद अजमेरिन मायके आई तो उस का चेहरा मुसकराने के बजाय कुम्हलाया हुआ था. अजमेरिन का सामना तेजपाल से हुआ तो वह रो पड़ी, ‘‘तेजपाल, मेरी तो किस्मत ही फूट गई. न शौहर ढंग का मिला न घरद्वार. पता नहीं उस घर में मेरा जीवन कैसे कटेगा. मुझे तो ससुराल में भी तुम्हारी याद सताती रही.’’

तेजपाल अजमेरिन के गोरे गालों पर लुढ़क आए आंसुओं को पोंछते हुए बोला, ‘‘तुम्हारे ससुराल चले जाने के बाद मुझे भी चैन कहां था. रातरात भर मैं तुम्हारे खयालों में ही खोया रहता था. आज मैं ने जब तुम्हें सामने देखा तो दिल को तसल्ली हुई. तुम किसी तरह की चिंता न करो. मैं तुम्हारा हमेशा साथ दूंगा.’’

अजमेरिन मायके आई तो स्वच्छंद हो गई. निकाह के बाद घर वालों ने भी उसे रोकनाटोकना बंद कर दिया था. अत: वह पहले की तरह तेजपाल से मिलनेजुलने लगी. शारीरिक मिलन भी होने लगा. तेजपाल, अजमेरिन की हर ख्वाहिश पूरी करने लगा. 3 महीने बाद अजमेरिन दोबारा ससुराल चली गई लेकिन इस बार वह तेजपाल का दिया मोबाइल भी लाई थी. इस मोबाइल से वह ससुराल वालों से नजर बचा कर बात कर लेती थी. इस के बाद तो यह सिलसिला ही चल पड़ा. अजमेरिन जब मायके आती तो प्रेमी तेजपाल के साथ गुलछर्रे उड़ाती और जब ससुराल में होती तो मोबाइल फोन पर बातें कर अपनी दिल की लगी बुझाती. देर रात मोबाइल फोन पर बतियाना न तो उस के सासससुर को अच्छा लगता था और न ही शौहर को. लतीफ ने कई बार उसे टोका भी. पर वह तुनक कर कहती, ‘‘क्या मैं अपने घर वालों से भी बात न करूं?’’

अजमेरिन को संयुक्त परिवार में रहना अच्छा नहीं लगता था. क्योंकि संयुक्त परिवार में बंदिशें थीं, सासससुर की हुकूमत थी, इसलिए जब मोबाइल फोन पर बात करने को ले कर टोकाटाकी होने लगी तो वह घर में झगड़ा करने लगी. सासससुर को तीखा जवाब देने लगी. घर में कलह बढ़ी तो साबिर अली ने अजमेरिन का चूल्हाचौका अलग कर दिया. घरजमीन का भी बंटवारा हो गया. लतीफ अपने परिवार से अलग नहीं रहना चाहता था, लेकिन बीवी के आगे उसे झुकना पड़ा. अब वह अजमेरिन के साथ 2 कमरों वाले मकान में रहने लगा. अजमेरिन अलग रहने लगी तो वह पूरी तरह से स्वच्छंद हो गई. उस ने शर्मोहया त्याग दी और बेरोकटोक घर से निकलने लगी. वह सासससुर से तो दूरियां बनाए रखती थी, पर पड़ोसियों से हिलमिल कर रहती थी.

अलग होने के बाद अजमेरिन ने तेजपाल से आर्थिक मदद मांगी तो वह राजी हो गया. आर्थिक मदद के बहाने तेजपाल का अजमेरिन की ससुराल में आनाजाना शुरू हो गया. बातूनी तेजपाल ने अपनी बातों के जाल में अजमेरिन के शौहर लतीफ को भी फंसा लिया. उस ने उसे शराब का चस्का भी लगा दिया. अब जब भी तेजपाल आता तो शराब और गोस्त जरूर लाता. शाम को अजमेरिन मीट पकाती और तेजपाल और लतीफ की शराब की पार्टी शुरू हो जाती. तेजपाल जानबूझकर लतीफ को ज्यादा पिला देता, उस के बाद लतीफ तो जैसेतैसे खाना खा कर चारपाई पर पसर जाता और तेजपाल रात भर अजमेरिन के साथ रंगरलियां मनाता.

सवेरा होने के पहले ही वह मोटरसाइकिल पर सवार हो कर अपने गांव की ओर रवाना हो जाता. चूंकि तेजपाल कभीकभी ही आता था, सो लतीफ को उस पर शक नहीं हुआ. दूसरे जब वह आता था तो लतीफ की मुफ्त में दारू पार्टी होती थी. इसलिए वह स्वयं भी उस के आने का इंतजार करता था. तीसरे, जब कभी उसे बीज खाद के लिए पैसों की जरूरत होती थी तो वह बेहिचक उस से मांग लेता था. लतीफ तेजपाल को अपना हमदर्द और दोस्त मानता था, जबकि तेजपाल यह सब अपने स्वार्थ के लिए करता था. कहते हैं कि चोर कितना भी शातिर क्यों न हो, एक न एक दिन उस की चोरी पकड़ी ही जाती है.

अजमेरिन और तेजपाल के साथ भी यही हुआ. हुआ यह कि उस शाम लतीफ ने तेजपाल के साथ शराब तो जम कर पी थी, लेकिन कुछ देर बाद उसे उल्टी हो गई थी. आधी रात के बाद उस की आंखें खुलीं तो अजमेरिन कमरे में नहीं थी. वह कमरे से बाहर निकला तो उसे दूसरे कमरे में कुछ खुसरफुसर सुनाई दी. लतीफ का माथा ठनका. वह दबे पांव कमरे में पहुंचा तो उस ने शर्मनाक नजारा देखा. अजमेरिन अपने मायके के यार के साथ मौजमस्ती कर रही थी. उन दोनों को आपत्तिजनक स्थिति में देख कर लतीफ मानो बुत बन गया. उसे बीवी व दोस्त से ऐसी उम्मीद न थी. अजमेरिन और तेजपाल ने लतीफ को अपने सिर पर खड़े देखा तो हड़बड़ाकर अलग हो गए.

उस ने गालीगलौज शुरू की तो तेजपाल भाग गया, पर अजमेरिन कहां जाती. लतीफ ने उस की जम कर पिटाई की. मौके की नजाकत भांप कर अजमेरिन ने गिरगिट की तरह रंग बदला और शौहर से माफी मांग ली. लतीफ अपनी बसीबसाई गृहस्थी नहीं उजाड़ना चाहता था. इसलिए अजमेरिन को चेतावनी देते हुए माफ कर दिया. अपने लटकोंझटकों से उस ने शौहर को भी मना लिया. हवस औरत को बहुत नीचे गिरा देती है. पति द्वारा माफ करने पर अजमेरिन को संभल जाना चाहिए था. पर मायके के यार को वह भुला नहीं पाई और पति धर्म भूल गई. कुछ समय बाद वह तेजपाल से फिर मिलने लगी.

तेजपाल को ले कर घर में शुरू हुई कलह ने पैर पसार लिए थे. लतीफ और अजमेरिन में झगड़ा बढ़ा तो बात घर से निकल कर बाहर आ गई. पड़ोसी जान गए कि झगड़ा क्यों होता है. साबिर अली भी बहू की बदचलनी से वाकिफ हो गया. लतीफ अब शराब पी कर घर आता और अजमेरिन को पीटता. पिटाई से अजमेरिन बुरी तरह चीखतीचिल्लाती. शराब पीने के कारण लतीफ की आर्थिक हालत खराब हो गई थी. उस ने अपना खेत भी गिरवी रख दिया था. आर्थिक स्थिति खराब हुई तो लतीफ कमाई करने के लिए हैदराबाद चला गया. वहां उस का एक दोस्त मजदूर सप्लाई करने वाले किसी ठेकेदार के पास काम करता था. उस ने लतीफ को भी मजदूरी के काम पर लगवा दिया था.

शौहर परदेश कमाने चला गया, तो अजमेरिन मायके आ गई. मायके आ कर उस ने तेजपाल को रोरो कर अपने उत्पीड़न की व्यथा बताई. उस ने साफ कह दिया कि अब वह शौहर के जुल्म बरदाश्त नहीं करेगी. वह उस से छुटकारा चाहती है. फिर मायके में रहने के दौरान ही अजमेरिन ने प्रेमी तेजपाल के साथ मिल कर शौहर के कत्ल की योजना बनाई और उस के वापस घर आने का इंतजार करने लगी. 10 मार्च को लतीफ हैदराबाद से वापस घर लौटा. आते ही उस ने अजमेरिन को मायके से बुलवा लिया. अजमेरिन पहले ही शौहर को हलाल करने की योजना बना चुकी थी. इसलिए वह बिना किसी हीलाहवाली के ससुराल वापस आ गई.

औरत एक बार फिसल जाए तो वह विश्वास के काबिल नहीं रहती. अजमेरिन भी विश्वास खो चुकी थी, सो लतीफ उसे शक की नजर से देखता था और अजमेरिन को पीट भी देता था. अजमेरिन तो कुछ और ही सोच कर आई थी, सो पिट कर भी जुबान बंद रखती थी. 8 अप्रैल की सुबह अजमेरिन ने मोबाइल फोन पर तेजपाल से बात की और देर शाम उसे घर बुलाया. तेजपाल समझ गया कि उसे क्यों बुलाया गया है. मोटरसाइकिल से वह रात 8 बजे बेहटा गांव पहुंच गया. उस ने अपनी मोटरसाइकिल मदरसे के सामने खड़ी की और पैदल ही अजमेरिन के घर पहुंच गया.

उस समय लतीफ घर में नहीं था. अजमेरिन ने उसे कमरे में बिठा दिया. देर रात लतीफ देशी शराब पी कर आया. अजमेरिन ने उसे खाना खिलाया फिर वह चारपाई पर जा कर लुढ़क गया. इस के बाद अजमेरिन तेजपाल के कमरे में पहुंची, जहां दोनों ने पहले हसरतें पूरी कीं. आधी रात के बाद दोनों लतीफ की चारपाई के पास पहुंचे और उसे दबोच लिया. दोनों ने मिल कर पहले लतीफ  की डंडों से पिटाई की फिर उसी के अंगौछे से गला कस कर उसे मार डाला. हत्या करने के बाद शव को घर के बाहर बरामदे में तख्त पर डाल दिया. सुबह 4 बजे तेजपाल मोटरसाइकिल से फरार हो गया.

सुबह अजमेरिन रोनेपीटने लगी, तब घर और पड़ोसियों को लतीफ की हत्या की जानकारी हुई. कुछ देर बाद मृतक के पिता साबिर अली थाना ठठिया पहुंचे और बेटे की हत्या की सूचना दी. तेजपाल और अजमेरिन से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने उन्हें 15 अप्रैल को कन्नौज के जिला सत्र न्यायाधीश के आवास पर उन के समक्ष पेश किया, जहां से उन्हें जिला जेल भेज दिया गया.द्य

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

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वह 26 जून, 2020 की मध्यरात्रि थी. समय सुबह के 3 बजकर 20 मिनट. उत्तराखंड के जिला हरिद्वार की लक्सर कोतवाली के कोतवाल हेमेंद्र सिंह नेगी देहात क्षेत्र के गांवों में गस्त कर रहे थे, तभी उन के मोबाइल की घंटी बजी. नेगी ने मोबाइल स्क्रीन देखी, कोई अज्ञात नंबर था. इतनी रात में कोई यूं ही फोन नहीं करता. नेगी ने मोबाइल काल रिसिव की. दूसरी ओर कोई अपरीचित था, जिस की आवाज डरीसहमी सी लग रही थी. हेमेंद्र सिंह के परिचय देने पर उस ने कहा, ‘‘सर, मेरा नाम अभिषेक है और मैं आप के थाना क्षेत्र के गांव झीबरहेडी से बोल रहा हूं.

मुझे आप को यह सूचना देनी थी कि आधा घंटे पहले बदमाशों ने मेरे चचेरे भाई प्रदीप की हत्या कर दी है.’’

‘‘हत्या, कैसे? पूरी बात बताओ’’

‘‘सर मुझे हत्यारों की तो कोई जानकारी नहीं है, क्योंकि उस वक्त मैं गहरी नींद में था. करीब आधा घंटे पहले मेरे मकान की दीवार से किसी के कूदने की आवाज आई थी. मुझे लगा कि गांव में बदमाश आ गए हैं. मैं तुरंत नीचे आ कर दरवाजा बंद कर के लेट गया.

‘‘थोड़ी देर बाद चचेरे भाई प्रदीप के कराहने की आवाज आई तो मैं बाहर आया. मैं ने देखा कि प्रदीप लहूलुहान पड़ा था, उस के पेट, छाती व सिर पर धारदार हथियारों से प्रहार किए गए थे.’’ अभिषेक बोला.

‘‘फिर?’’

‘‘सर, फिर मैं ने अपने घरवालों को जगाया और प्रदीप को  तत्काल अस्पताल ले जाने को कहा. लेकिन हम प्रदीप को अस्पताल ले जाते, उस ने दम तोड़ दिया.’’ अभिषेक बोला.

‘प्रदीप किसान था?’ नेगी ने पूछा

‘नहीं सर प्रदीप स्थानीय श्री सीमेंट कंपनी में ट्रक चलाता था और गत रात ही वह देहरादून से लौटा था. रात को वह अकेला ही अपने घर की छत पर सो रहा था.’ अभिषेक बोला.

‘‘प्रदीप की गांव में किसी से कोई रंजिश तो नहीं थी?’ नेगी ने पूछा.

‘‘नहीं सर वह तो हंसमुख स्वभाव का था और गांव के सभी बिरादरी के लोग उस की इज्जत करते थे. प्रदीप ज्यादातर अपने काम से काम रखने वाला आदमी था.’’ अभिषेक बोला.

‘‘ठीक है अभिषेक, पुलिस 15 मिनट में घटनास्थल पर पहुंच जाएगी.’’

कोतवाल हेमेंद्र नेगी ने फोन डिस्कनेक्ट कर दिया. नेगी ने सब से पहले लक्सर कोतवाली की चेतक पुलिस को गांव झीबरहेड़ी में प्रदीप के घर पहुंचने का आदेश दिया. फिर इस हत्या के बारे में सीओ राजन सिंह, एसपी देहात स्वप्न किशोर सिंह और वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक सेंथिल अबुदई कृष्णाराज एस. को सूचना दी. नेगी गांव झीबरहेड़ी की ओर चल दिए. 20 मिनट बाद नेगी प्रदीप के घर पर पहुंच गए. उस समय सुबह के 4 बज गए थे और अंधेरा छंटने लगा था. प्रदीप के घर में उस का शव आंगन में चादर से ढका रखा था, आसपास गांव वालों की भीड़ जमा थी. नेगी व चेतक पुलिस के सिपाहियों ने सब से पहले ग्रामीणों को वहां से हटाया. इस के बाद शव का निरीक्षण किया. हत्यारों ने प्रदीप की हत्या बड़ी बेरहमी से की थी.

बदमाशों ने प्रदीप का पूरा शरीर धारदार हथियारों से गोद डाला था. जब नेगी ने प्रदीप के बीबी बच्चों की बाबत, पूछा तो घर वालों ने बताया कि कई सालों से प्रदीप की बीबी ममता बच्चों के साथ अपने मायके बादशाहपुर में रहती है. घरवालों से नंबर ले कर नेगी ने ममता को प्रदीप की हत्या की जानकारी दी. इस के बाद नेगी ने गांव वालों से प्रदीप की दिनचर्या के बारे में जानकारी ली और पूछा कि उस की गांव में किसी से दुश्मनी तो नहीं थी. नेगी का अनुमान था कि प्रदीप की हत्या का कारण रंजिश भी हो सकता है, क्योंकि यह मामला लूट का नहीं लग रहा था.

नेगी ग्रामीणों से प्रदीप के बारे में जानकारी जुटा ही रहे थे, कि सीओ राजन सिंह, एसपी देहात एसके सिंह और वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक सेंथिल अबुदई कृष्णाराज एस भी पहुंच गए. तीनों अधिकारियों ने वहां मौजूद ग्रामीणों से प्रदीप की हत्या के बारे में पूछताछ की. इस के बाद अधिकारियों ने कोतवाल नेगी को प्रदीप के शव को पोस्टमार्टम के लिए जेएन सिन्हा स्मारक राजकीय अस्पताल रुड़की भेजने के निर्देश दिए और चले गए. शव को अस्पताल भेज कर नेगी थाने लौट आए. उन्होंने प्रदीप के भाई सोमपाल की ओर से धारा 302 के तहत हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया और मामले की जांच शुरू कर दी. प्रदीप की हत्या का मामला थोड़ा पेचीदा था, क्योंकि न तो प्रदीप का कोई दुश्मन था और न लूट हुई थी.

अगले दिन 27 जून को एसपी देहात एसके सिंह ने इस केस का खुलासा करने के लिए लक्सर कोतवाली में मीटिंग की, जिस में सीओ राजन सिंह, कोतवाल हेमेंद्र नेगी, थानेदार मनोज नोटियाल, लोकपाल परमार, आशीष शर्मा, यशवीर नेगी सहित सीआईयू प्रभारी एनके बचकोटी, एएसआई देवेंद्र भारती व जाकिर आदि शामिल हुए. एसके सिंह ने सीओ राजन सिंह के निर्देशन में इन सभी को जल्द से जल्द प्रदीप हत्याकांड का खुलासा करने के निर्देश दिए. निर्देशानुसार सीआईयू प्रभारी एनके बचकोटी ने झीबरहेड़ी में घटी घटना का साइट सैल डाटा उठाया. साथ ही रात में हत्या के समय आसपास चले मोबाइलों की काल डिटेल्स खंगाली. इस के बाद पुलिस द्वारा उन मोबाइल नंबरों की पड़ताल की गई.

साथ ही बचकोटी ने सीआईयू के एएसआई देवेंद्र भारती व जाकिर को प्रदीप हत्याकांड की सुरागरसी करने के लिए सादे कपड़ों में झीबरहेड़ी भेजा. सिपाहियों कपिलदेव व महीपाल को उन्होंने प्रदीप की पत्नी ममता के बारे में जानकारी जुटाने के लिए उस के मायके बादशाहपुर भेजा था. इस का परिणाम यह निकला कि 28 जून, 2020 की शाम को पुलिस और सीआईयू के हाथ प्रदीप हत्याकांड के पुख्ता सबूत लग गए. पुलिस को जो जानकारी मिली, वह यह थी कि मृतक प्रदीप के साथ अमन भी ट्रक चलाता था. वह गांव हरीपुर, जिला सहारनपुर का रहने वाला था. इसी के चलते वह प्रदीप के घर आताजाता था. प्रदीप की पत्नी ममता का चालचलन ठीक नहीं था, इस वजह से पति पत्नी में अकसर मनमुटाव रहता था.

घर में आनेजाने से अमन की आंखे ममता से लड़ गई थीं और वे दोनों प्रदीप की गैरमौजूदगी में रंगरलियां मनाने लगे थे. गत वर्ष जब प्रदीप को ममता व अमन के अवैध संबंधों की जानकारी हुई तो उस ने दोनों को धमकाया भी, मगर 42 वर्षीया ममता अपने 23 वर्षीय प्रेमी अमन को छोड़ने के लिए तैयार नहीं थी. इस विवाद के चलते वह अपने बच्चों के साथ मायके बादशाहपुर जा कर रहने लगी थी. उस के जाने के बाद प्रदीप अपने झीबरहेडी स्थित मकान पर अकेला रहने लगा. 29 जून, 2020 को पुलिस को प्रदीप की पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिल गई, जिस में उस की मौत का कारण शरीर पर धारदार हथियारों के प्रहारों से ज्यादा खून बहना बताया गया था.

यह जानकारी मिलने के बाद पुलिस को अमन पर शक हो गया. दूसरी ओर सीआईयू प्रभारी एनके बचकोटी को जिस मोबाइल नंबर पर शक था, वह अमन का ही नंबर था. सीआईयू ने अमन की गिरफ्तारी के लिए जाल बिछा दिया था. अमन को शाम को ही पुलिस ने लक्सर क्षेत्र से उस समय गिरफ्तार कर लिया, जब वह ममता से मिलने जा रहा था. अमन को पकड़ने के बाद पुलिस उसे कोतवाली ले आई. इस के बाद एसपी देहात एसके सिंह व सीओ राजन सिंह ने उस से प्रदीप की हत्या के बारे में सख्ती से पूछताछ की. अमन ने पुलिस को जो जानकारी दी, वह इस प्रकार है—

अमन ने अपना जुर्म कबूल करते हुए बताया कि वह प्रदीप के साथ गत 3 वर्षो से ट्रक चलाता था. उस का प्रदीप के घर आना जाना होता रहता था. प्रदीप की बीवी ममता पति के रूखे व्यवहार से परेशान रहती थी. जब उस ने ममता से प्यार भरी बातें करनी शुरू कर दीं, तो वह भी उसी टोन में बतियाने लगी. तनीजा यह हुआ कि उस के ममता से अवैध संबंध बन गए. यह जानकारी मिलने पर प्रदीप ने मुझे धमकी दी, जिस से मैं बुरी तरह डर गया. इस के बाद उस ने प्रदीप द्वारा दी गई धमकी की जानकारी ममता को दी. तब उस ने ममता की सहमति से प्रदीप की हत्या की योजना बनाई. 26 जून को उस ने प्रदीप के बेटे शकुन को फोन किया और उस से प्रदीप के बारे में पूछा.

शकुन के मुताबिक प्रदीप उस शाम घर पर ही था. रात 12 बजे मैं छुरी ले कर झीबरहेडी की ओर निकल गया. प्रदीप के मकान के पीछे खेत थे रात करीब 2 बजे वह खेतों की ओर से मकान पर चढ़ गया. उस समय प्रदीप मकान की छत पर अकेला बेसुध सोया पड़ा था. उसे देख कर उस का खून खौल गया. इस के बाद उस ने पूरी ताकत लगा कर प्रदीप के गले पर वार करने शुरू कर दिए. उस ने प्रदीप के गले, सिर व पेट पर कई वार किए. इस के बाद वह मकान की छत से कूद कर, वापस लक्सर आ गया. लक्सर से बादशाहपुर ज्यादा दूर नहीं था. इसलिए लक्सर पुलिस ममता को भी कोतवाली ले आई. जब ममता ने अमन को पुलिस हिरासत में देखा, तो वह सारा माजरा समझ गई और पुलिस के सामने अपने पति की हत्या का षडयंत्र रचने में अपनी संलिप्तता मान कर ली.

इस के बाद एसपी देहात एसके सिंह ने प्रदीप हत्याकांड का खुलासा होने और 2 आरोपियों के गिरफ्तार होने की जानकारी वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक हरिद्वार सेंथिल अबुदई कृष्णाराज को दी. 30 जून, 2020 को एसपी देहात एसके सिंह ने लक्सर कोतवाली में प्रैसवार्ता के दौरान मीडियाकर्मियों को प्रदीप हत्याकांड के खुलासे की जानकारी दी. इस के बाद पुलिस ने अमन व ममता को कोर्ट में पेश कर के जेल भेज दिया. 3 बच्चों की मां होने के बाद भी ममता अमन के प्रेम में इस कदर डूबी कि उस ने पति की हत्या अपने प्रेमी से कराने में कोई संकोच नहीं किया, बल्कि इस हत्याकांड को छिपाए रखा.

प्रदीप से ममता की शादी वर्ष 2001 में हुई थी. प्रदीप का 18 वर्षीय बेटा सन्नी हैदराबाद में कोचिंग कर रहा है और 17 साल की बेटी आंचल और 12 साल का बेटा शकुन मां ममता के साथ बादशाहपुर में रहते थे.

(पुलिस सूत्रों पर आधारित)

Firozabad Crime : सिपाही पति ने पत्नी को पीटा फिर सीने में दागी चार गोलियां

Firozabad Crime : हत्या बड़ा अपराध है, इस के बावजूद ऐसे अपराध होते रहते हैं, लेकिन अगर कोई कानून का रक्षक हत्या जैसा अपराध करे तो बात गंभीर हो जाती है. यतेंद्र यादव ने पिस्तौल उठाई तो पत्नी को ही ठिकाने लगा दिया, आखिर क्यों…

सिपाही यतेंद्र कुमार यादव ने 26 अप्रैल, 2020 को रात 9 बजे अपने चचेरे साले सुरजीत के मोबाइल पर फोन किया. फोन सुरजीत के छोटे भाई योगेंद्र ने उठाया. यतेंद्र ने कहा, ‘‘सुनो, जैसे ही गेट में घुसोगे, घुसते ही नेमप्लेट लगी है. उस के ऊपर ग्रिल है, चाबी वहीं रखी है और अंदर पिंकी (पत्नी) आंगन में है. आप उन लोगों (ससुरालीजनों) को बता देना. मतलब हम ने पिंकी को गोली मार दी है. साफसीधी बात है.’’

योगेंद्र ने पूछा, ‘‘कब?’’

यतेंद्र ने बताया, ‘‘आज रात में.’’

‘‘बच्चियां कहां हैं?’’

इस पर यतेंद्र ने कहा, ‘‘बच्चियां भी गायब हैं. आप उन को (ससुरालीजनों को) बता देना, बहुत सोचसमझ कर ही कोई कदम उठाएं. हमें जो करना था कर दिया. आप समझदार हो, जो भी गलती हुई माफ करना. अभी चाहो अभी काल कर लो. रात की बात है. जो भी काररवाई करवानी है करवाओ.’’

उत्तर प्रदेश के फिरोजाबाद जनपद के शिकोहाबाद थानांतर्गत हाइवे स्थित आवास विकास कालोनी 3/39 के सेक्टर-3 में 32 वर्षीय सरोज देवी उर्फ पिंकी अपनी 3 बेटियों 10 साल की आकांक्षा, 8 साल की आरती व सब से छोटी 4 साल की अन्या के साथ अपने निजी मकान में रहती थीं. सरोज का पति यतेंद्र कुमार यादव आगरा के थाना सैंया में डायल 112 पर सिपाही पद पर तैनात था. बीचबीच में यतेंद्र घर पर अपनी पत्नी व बेटियों के पास आताजाता रहता था. कहते हैं कभीकभी खून सिर चढ़ कर बोलता है. यही बात यतेंद्र के साथ भी हुई.

उस ने अपनी पत्नी की हत्या करने के बाद अपने चचेरे साले को फोन कर पूरे घटनाक्रम की जानकारी दी और अपने ससुरालीजनों को सूचना देने व आगे की काररवाई करने को कहा. इस के साथ ही उस ने उन्हें धमकी भी दी कि वे जो भी काररवाई करें, खूब सोचसमझ कर करें. योगेंद्र ने पूरी बात रिकौर्ड कर ली थी. उसे जैसे ही बहनोई यतेंद्र से अपनी चचेरी बहन पिंकी की हत्या की जानकारी मिली उस के हाथपैर फूल गए. उस समय लौकडाउन चल रहा था. उसे इस बात की जानकारी थी कि पिंकी और यतेंद्र के बीच विवाद चल रहा है. लेकिन हालात हत्या तक पहुंच जाएगा, इस की उस ने कल्पना भी नहीं की थी.

योगेंद्र ने रात में ही पिंकी के मायके में फोन कर अपने चचेरे भाई हरिओम को घटना की जानकारी दी. हरिओम ने जैसे ही बहन पिंकी की हत्या की खबर बताई, घर में कोहराम मच गया. रोनापीटना शुरू हो गया. इस से पहले 26 अप्रैल की सुबह 9 बजे हरिओम के पास आवास विकास कालोनी में रहने वाले एक परिचित का फोन आया था. उस ने बताया कि वह उस की बहन सरोज उर्फ पिंकी के घर गया था. मकान का गेट अंदर से बंद था. कई आवाजें देने पर भी गेट नहीं खुला. इस पर हरिओम ने अपने बहनोई यतेंद्र व बहन सरोज उर्फ पिंकी के मोबाइलों पर फोन किया, लेकिन किसी ने भी फोन नहीं उठाया. हरिओम ने अनुमान लगाया कि वे लोग कहीं गए होंगे, मोबाइल घर पर भूल गए होंगे.

रात को हरिओम के पास योगेंद्र का फोन आने पर बहनोई यतेंद्र द्वारा बहन सरोज उर्फ पिंकी की हत्या किए जाने की जानकारी हुई. हरिओम ने थाना शिकोहाबाद पुलिस को घटना की जानकारी दे दी. इस पर थाना पुलिस रात में ही आवास विकास कालोनी स्थित उस मकान पर पहुंची, लेकिन मकान का दरवाजा बंद देख कर लौट गई. पुलिस ने हरिओम से थाने आने को कहा. इन सब बातों के चलते काफी रात हो गई. इस के साथ ही लौकडाउन के चलते और गांव में एक गमी होने के कारण हरिओम व उस के घरवाले शिकोहाबाद नहीं आ पाए थे.

पुलिस ले कर पहुंचे मायके वाले दूसरे दिन 27 अप्रैल को सुबह होते ही हरिओम यादव अपने पिता रामप्रकाश व अन्य रिश्तेदारों के साथ शिकोहाबाद की आवास विकास कालोनी पहुंच गए और पुलिस को सूचना दी. घर वालों के आने की सूचना पर थानाप्रभारी अनिल कुमार पुलिस टीम के साथ आवास विकास कालोनी पहुंच गए. हरिओम ने पुलिस को बताया कि बहनोई यतेंद्र ने फोन पर ताऊ के लड़के योगेंद्र को मकान की चाबी ग्रिल के ऊपर रखी होने की जानकारी दी थी. इस पर चाबी को तलाशा गया. बताई गई जगह पर चाबी मिल गई. मकान का ताला खोल कर पुलिस अंदर गई.

आंगन में सरोज की खून से लथपथ लाश पड़ी हुई थी. तीनों बच्चियां भी गायब थीं. थानाप्रभारी अनिल कुमार ने मामले की गंभीरता को देखते हुए यह सूचना अपने उच्चाधिकारियों को दे दी. सूचना पर सीओ इंदुप्रभा सिंह व एसपी (ग्रामीण) राजेश कुमार फोरैंसिक टीम को ले कर मौकाएवारदात पर पहुंच गए. हत्या की जानकारी होते ही कालोनी के लोग भी एकत्र हो गए. सिपाही द्वारा पत्नी की हत्या किए जाने की खबर से सनसनी फैल गई. पुलिस अधिकारियों ने लाश का बारीकी से निरीक्षण किया. मृतका के शरीर पर चोटों के साथ ही गोलियों के 4 निशान भी मिले. फोरैंसिक टीम ने भी जांच कर पूरे घर से साक्ष्य जुटाए. लाश के पास की दीवारों पर खून के छींटे मिलने के साथ ही टूटी हुई चूडियां भी मिलीं. इस से अनुमान लगाया कि मृतका ने अंतिम सांस तक पति के साथ संघर्ष किया था.

हरिओम ने हत्यारोपी सिपाही यतेंद्र द्वारा किए गए फोन की रिकौर्डिंग भी पुलिस अधिकारियों को सुनवाई. मकान से पुलिस को 2 मोबाइल फोन मिले. यह मृतका के बताए जा रहे थे. पुलिस ने फोनों के लौक खुलवा कर जांच कराने की बात कही. तीनों बेटियों के स्कूल आईडी कार्ड घर के बाहर पड़े मिले. 4 साल पहले यतेंद्र ने अपने परिचित के जरिए शिकोहाबाद की आवास विकास कालोनी में प्लौट खरीदा और रजिस्ट्री पत्नी सरोज के नाम कराई थी. इस के बाद मकान बनवाया था.

आवास विकास कालोनी का इलाका आबादी से दूर होने से सिपाही यतेंद्र ने सुरक्षा की दृष्टि से 5 सीसीटीवी कैमरे लगवा रखे थे. शातिर सिपाही ने पत्नी की हत्या के बाद सारे सुबूत मिटाने की कोशिश की थी. वह घर के अंदर और बाहर लगे सभी सीसीटीवी कैमरों की रिकौर्डिंग डिलीट करने के बाद तीनों बेटियों को ले कर इस तरह घर निकला कि किसी को कानोंकान भनक तक नहीं लगी. पूछताछ में मृतका के भाई हरिओम यादव व पिता रामप्रकाश ने बताया कि यतेंद्र के मथुरा की एक युवती से अवैध संबंध थे. इस के चलते पतिपत्नी में विवाद होता रहता था. यतेंद्र मकान बेचने का दबाव बनाने के साथ ही दहेज की मांग को ले कर बहन पिंकी का उत्पीड़न करता था.

सरोज की शिकायत पर घर वालों ने यतेंद्र को कई बार समझाया, लेकिन उस पर कोई असर नहीं पड़ा. यतेंद्र आए दिन पिंकी के साथ मारपीट करता था और इसी के चलते यतेंद्र ने उस की हत्या कर दी. घटना के बाद से तीनों बच्चियां भी गायब थीं. घर वालों को आशंका थी कि आरोपी ने बच्चियों के साथ कोई अनहोनी न कर दी हो. पड़ोसियों ने बताया कि रात में उन्हें गोली चलने की आवाज सुनाई नहीं दी. मृतका के भाई हरिओम यादव की तहरीर पर पुलिस ने सिपाही यतेंद्र कुमार यादव, उस के पिता रामदत्त व यतेंद्र के बहनोई हरेंद्र के खिलाफ सरोज की गोली मार कर हत्या करने का केस दर्ज कर लिया. पुलिस का अनुमान था कि कालोनी हाइवे के किनारे स्थित है, मकान दूरी पर बने हैं. रात का समय होने पर संभव है कि पड़ोसियों को गोली की आवाज सुनाई न दी हो. एक पड़ोसी ने इतना जरूर बताया कि शनिवार की शाम सरोज को घर के दरवाजे पर बैठा देखा था.

एसपी (ग्रामीण) ने बताया कि या तो कैमरे बंद किए गए थे या फिर रिकौर्डिंग डिलीट कर दी गई थी. आगरा से जानकारी करने पर पता चला कि यतेंद्र 26 अप्रैल को दोपहर 2 बजे से अनुपस्थित चल रहा था, उस के खिलाफ आगरा में रपट लिखी गई है. बेटियां लापता पुलिस का मानना था कि हो सकता है कि तीनों बेटियों को आरोपी यतेंद्र अपने साथ ले गया हो. बेटियों को ले कर वह कहां गया, इस का कोई पता नहीं चल रहा था. पुलिस व फोरैंसिक टीम ने मौके की काररवाई निपटाने के बाद लाश को पोस्टमार्टम के लिए जिला चिकित्सालय फिरोजाबाद भिजवा दिया. हत्यारोपी सिपाही की गिरफ्तारी के लिए लौकडाउन में पुलिस ने 3 टीमें गठित कीं. इन टीमों ने मैनपुरी और इटावा स्थित सिपाही के घर व रिश्तेदारियों के अलावा आगरा व मथुरा में भी दबिशें दीं.

मथुरा के थाना हाइवे क्षेत्र निवासी उस की प्रेमिका से भी पूछताछ की गई लेकिन हत्यारोपी सिपाही का कोई सुराग नहीं मिला. प्रेमिका ने पुलिस को बताया कि यतेंद्र से एक साल से बात नहीं हुई है. आरोपी का एक मामा भी कांस्टेबल था. मामा के मोबाइल की भी काल डिटेल्स खंगाली गई. जांच में पता चला कि मामा के मोबाइल पर एक भी फोन आरोपी का नहीं आया था. आरोपी की तलाश में पुलिस द्वारा लगातार दबिशें दिए जाने पर भी पुलिस के हाथ खाली थे. सरोज उर्फ पिंकी इटावा जनपद के थाना भरथना अंतर्गत गांव नगला नया कुर्रा निवासी रामप्रकाश यादव की बड़ी बेटी थी. स्वभाव से मिलनसार. पिंकी की शादी 2008 में मैनपुरी जनपद के कुर्रा थानांतर्गत गांव अंबरपुर सौंख निवासी रामदत्त यादव के बेटे यतेंद्र कुमार यादव के साथ हुई थी. यतेंद्र 2005 बैच का सिपाही है.

ससुरालीजनों ने बताया कि डेढ़ साल पहले यतेंद्र की तैनाती मथुरा जनपद के थाना हाइवे में हुई थी. ड्यूटी के दौरान यतेंद्र की मुलाकात उसी क्षेत्र की रहने वाली एक युवती से हुई. दोनों के बीच प्यार परवान चढ़ा तो वह यह भी भूल गया कि पहले से शादीशुदा है. सिपाही यतेंद्र अपनी प्रेमिका को ले कर फरार हो गया. जब ये बात प्रेमिका के घरवालों को पता चली तो उन्होंने थाना हाइवे में मुकदमा दर्ज करा दिया. इस संबंध में यतेंद्र कुमार सस्पेंड भी रहा था. 2 माह बाद युवती वापस आ गई और उस ने सिपाही यतेंद्र के पक्ष में बयान दिया था. बाद में यह मामला रफादफा हो गया था.

पति की इस करतूत से पिंकी को गहरी ठेस लगी. दोनों के बीच इस बात को ले कर तल्खी बढ़ गई. छोटीमोटी बातों को ले कर दोनों के बीच विवाद होने लगे. इस के चलते जीवन भर साथ निभाने वाली पत्नी पिंकी पति की नजरों में खटकने लगी थी. घटना के 3 दिन बाद मृतका पिंकी की तीनों बेटियां नाना के गांव नगला नया कुर्रा से 3-4 किलोमीटर दूर रौरा गांव की रोड पर मिलीं. उन्हें दिन के समय यतेंद्र छोड़ गया था. बच्चियों को देख कर गांववालों ने उन से पूछताछ की. इस पर सब से बड़ी लड़की आकांक्षा ने अपने नाना रामप्रकाश यादव के साथ ही गांव का नाम भी बता दिया.

पास का गांव होने के कारण गांव वाले उन के परिवार को जानते थे. गांव वालों ने तीनों बच्चियों को उन के गांव पहुंचा दिया. बच्चियों ने बताया कि पापा उन्हें कार से छोड़ कर चले गए थे. बच्चियों के मिलने की सूचना पुलिस को भी दे दी गई. आकांक्षा ने बताया कि उस ने पापा को मम्मी को गोली मारते देखा था. हम लोग डर गए थे. घटना के बाद आरोपी सिपाही की गिरफ्तारी के लिए पुलिस ने काफी प्रयास किए, लेकिन सफलता न मिलने पर एसएसपी सचिंद्र पटेल ने इसे गंभीरता से लिया और आरोपी पर 15 हजार का इनाम घोषित कर दिया. उन्होंने थानाप्रभारी अनिल कुमार को उस की गिरफतारी के भी निर्देश दिए.

पकड़ा गया आरोपी आखिर पुलिस की मेहनत रंग लाई. लौकडाउन में फरार चल रहे हत्यारोपी सिपाही यतेंद्र को पुलिस ने शिकोहाबाद के सुभाष तिराहे से लगभग एक माह बाद 24 मई की सुबह पौने 6 बजे तब गिरफ्तार कर लिया, जब वह कहीं जाने के लिए वाहन का इंतजार कर रहा था. सिपाही के कब्जे से 32 बोर की देशी पिस्टल भी बरामद हुई. इसी पिस्टल से उस ने अपनी पत्नी पिंकी की हत्या की थी. पुलिस ने सिपाही यतेंद्र के खिलाफ हत्या के साथ ही 25 आर्म्स एक्ट के अंतर्गत भी मुकदमा दर्ज किया. थाने में एसपी ग्रामीण राजेश कुमार ने प्रैसवार्ता में हत्यारोपी यतेंद्र कुमार यादव उर्फ सिंटू की गिरफ्तारी की जानकारी दी.

घटना के बाद वह बच्चियों को नाना के गांव के पास छोड़ गया था. पुलिस ने उस के घर से गिरफ्तारी से 15 दिन पूर्व कार बरामद कर ली थी. विवेचना में यह बात सामने आई कि सिपाही के एक युवती से प्रेम संबंधों को ले कर पिछले डेढ़ साल से पतिपत्नी के बीच कलह शुरू हो गई थी. यतेंद्र पत्नी पर मकान को बेचने का दबाव डालता था. 26 अप्रैल को यतेंद्र आगरा से शिकोहाबाद स्थित अपने घर आया हुआ था. पुरानी बातों को ले कर पतिपत्नी के बीच विवाद हो गया. मामला इतना बढ़ा कि यतेंद्र ने पत्नी सरोज उर्फ पिंकी के साथ मारपीट की. इस से भी जब उस का मन नहीं भरा तो उस ने साथ लाई देशी 32 बोर की पिस्टल से 4 गोलियां उस के सीने में उतार दीं.

घटना को अंजाम देने से पहले उस ने अपनी तीनों बेटियों को मकान के बाहर खड़ी कार में बैठा दिया था. बड़ी बेटी आकांक्षा अपने पिता की करतूत को पूरी तरह समझ गई थी, लेकिन पिता द्वारा धमकी देने से वह चाह कर भी कुछ नहीं कर सकी थी. घटना को अंजाम देने के बाद सिपाही यतेंद्र तीनों बेटियों को ले कर फरार हो गया. गिरफ्तारी के बाद आरोपी सिपाही ने अपना जुर्म स्वीकार कर लिया. सुंदर, सुशील पत्नी के होते हुए भी युवती से प्रेम संबंधों के चलते सिपाही यतेंद्र ने अपनी खुशहाल जिंदगी को ग्रहण लगा लिया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

Kanpur Crime : एकतरफा इश्क में आशिक ने प्रेमिका के पिता की ले ली जान

Kanpur Crime : मोहम्मद फहीम अपने पड़ोस की लड़की नाजनीन को बेइंतहा चाहता था. एक रात उस ने नाजनीन के पिता मोहम्मद अशरफ की हत्या कर दी. उस के बाद की जो हकीकत सामने आई, वह…

उस दिन जून 2020 की 9 तारीख थी. सुबह के यही कोई 8 बज रहे थे. थाना बाबूपुरवा के कार्यवाहक थानाप्रभारी सुरेश सिंह औफिस में आ कर बैठे ही थे कि उन्हें मोबाइल फोन पर सूचना मिली कि मुंशीपुरवा में एक अधेड़ व्यक्ति का कत्ल हो गया है. सुबहसुबह कत्ल की सूचना पा कर सुरेश सिंह का मन कसैला हो उठा. लेकिन मौकाएवारदात पर तो पहुंचना ही था. अत: उन्होंने कत्ल की सूचना वरिष्ठ अधिकारियों को दी और आवश्यक पुलिस बल साथ ले कर मुंशीपुरवा घटनास्थल पर पहुंच गए.  उस समय घटनास्थल पर मकान के बाहर भीड़ जुटी थी. भीड़ में से एक 20 वर्षीय युवक निकल कर सामने आया. उस ने थानाप्रभारी सुरेश सिंह को बताया कि उस का नाम इरफान है.

उस के अब्बू मोहम्मद अशरफ  का कत्ल हुआ है. उन की लाश छत पर पड़ी है. इस के बाद इरफान उन्हें छत पर ले कर गया. छत पर पहुंच कर सुरेश सिंह ने बारीकी से निरीक्षण शुरू किया. मृतक मोहम्मद अशरफ की लाश फोल्डिंग पलंग पर खून से तरबतर पड़ी थी. पलंग के नीचे भी फर्श पर खून फैला हुआ था. मोहम्मद अशरफ का कत्ल बड़ी बेरहमी से किसी तेज धार वाले हथियार से किया गया था. उस का गला आधे से ज्यादा कटा था. संभवत: ताबड़तोड़ कई वार गरदन पर किए गए थे, जिस से सांस नली कटने तथा अधिक खून बहने से उस की मौत हो गई थी.

मोहम्मद अशरफ की उम्र 50 साल के आसपास थी. कार्यवाहक थानाप्रभारी सुरेश सिंह अभी घटनास्थल का निरीक्षण कर ही रहे थे कि सूचना पा कर एसएसपी अनंत देव तिवारी, एसपी (साउथ) अपर्णा गुप्ता तथा डीएसपी आलोक सिंह घटनास्थल पर आ गए. पुलिस अधिकारियों ने मौके पर फोरैंसिक टीम तथा डौग स्क्वायड टीम को भी बुलवा लिया. पुलिस अधिकारियोें के पहुंचते ही घर में कोहराम मच गया. परिवार की महिलाएं दहाड़ मार कर चीखनेचिल्लाने लगीं. इस के बाद उन्होंने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया तथा मृतक के घर वालों से घटना के संबंध में जानकारी हासिल की.

मृतक के बेटे इरफान ने पुलिस अधिकारियों को बताया कि उस के पिता खरादी बुरादे का व्यापार करते थे. वह बीती शाम 7 बजे घर आए थे और खाना खाने के बाद रात 8 बजे सोने के लिए छत पर चले गए थे. पिता के साथ वह भी छत पर सोता था, लेकिन बीती रात वह टीवी देखतेदेखते कमरे में ही सो गया था. वह सुबह 6 बजे सो कर उठा और छत पर पहुंचा तो छत पर फोल्डिंग पलंग पर पिता का खून से लथपथ शव पड़ा देखा. शव देख कर उस के मुंह से चीख निकल गई. चीख सुन कर घर के अन्य लोग आ गए. इस के बाद तो घर में कोहराम मच गया.

घटनास्थल पर मृतक का भाई मोहम्मद नासिर भी मौजूद था. उस ने बताया कि वह सऊदी अरब में नौकरी करता है. उस के परिवार में पत्नी गुलशन बानो तथा 2 साल का बेटा है. 3 महीने पहले वह सऊदी अरब से परिवार सहित कानपुर आया था और भाईजान के घर परिवार के साथ रह रहा था. सुबह इरफान की चीख सुनाई दी तो वह दौड़ कर छत पर पहुंचा. वहां भाईजान पलंग पर मृत पड़े थे. किसी ने बड़ी बेरहमी से उन का कत्ल कर दिया था. मां रईसा को जानकारी हुई तो वह गश खा कर जमीन पर गिर पड़ीं. किसी तरह उन्हें होश में लाया गया. घटनास्थल पर फोरैंसिक टीम ने बड़ी ही बारीकी से जांच शुरू की. टीम ने खून का नमूना परीक्षण हेतु सुरक्षित किया फिर पलंग व आसपास से कई फिंगरप्रिंट लिए.

फोरैंसिक टीम ने जांच के बाद यह भी पाया कि हत्यारा छत पर या तो सीढ़ी लगा कर पहुंचा था या फिर छत से सटी दूसरे मकान की बाउंड्री फांद कर आया था. फिर उसी रास्ते वापस चला गया. डौग स्क्वायड की टीम खोजी कुत्ते को ले कर छत पर पहुंची. कुत्ते ने मृतक के शव को तथा छत के फर्श पर पड़े खून को सूंघा फिर वह पलंग के चारों ओर घूमता रहा. उस के बाद पड़ोसी की छत पर जाने के लिए उछलने लगा. लेकिन बाउंड्री वाल ऊंची थी, सो उछल कर दीवार फांद नहीं पा रहा था. यह देख कर टीम के सदस्यों ने लकड़ी की सीढ़ी मंगा कर छत पर लगाई. सीढ़ी के सहारे पड़ोसी की छत पर पहुंचे खोजी कुत्ते ने छत पर पड़े

खून के छींटों को सूंघना शुरू कर दिया. उस के बाद खोजी कुत्ता छत से नीचे उतरा और घटनास्थल से कुछ दूर स्थित मैदान में पहुंचा. वहां मैदान में खड़े एक युवक को सूंघ कर उस पर भौंकने लगा. तभी टीम ने उस युवक को पकड़ लिया और पुलिस अधिकारियों के सुपुर्द कर दिया. पुलिस अधिकारियों ने जब उस से पूछताछ की तो उस ने अपना नाम मोहम्मद फहीम उर्फ नदीम बताया. जिस छत पर खोजी कुत्ता फांद कर गया था और खून की छींटे सूंघे थे, वह मकान मोहम्मद फहीम का ही था.

संदेह के आधार पर पुलिस ने मोहम्मद फहीम को गिरफ्तार कर लिया. फोरैंसिक टीम व पुलिस ने मोहम्मद फहीम के घर की तलाशी ली तो वहां फहीम के ऐसे गीले कपड़े मिले, जो शायद सुबह ही धोए थे. उन कपड़ों पर बेंजामिन टेस्ट किया तो खून के धब्बे उभर आए. इस के अलावा उस के घर से एक चापड़ भी बरामद हुआ. मय चापड़ और कपड़ों सहित मोहम्मद फहीम को थाना बाबूपुरवा लाया गया तथा मृतक मोहम्मद अशरफ के शव को पोस्टमार्टम हाउस लाला लाजपत राय अस्पताल भेज दिया गया. एसपी (साउथ) अपर्णा गुप्ता तथा सीओ आलोक सिंह ने जब थाने में मोेहम्मद फहीम से अशरफ की हत्या के संबंध में पूछताछ की तो वह साफ मुकर गया और पुलिस अधिकारियों को बरगलाने लगा.

लेकिन हत्या का सबूत मिल चुका था और उस के घर से खून सने कपड़े तथा आला कत्ल भी बरामद हो चुका था. अत: पुलिस ने उस पर सख्ती की तो वह टूट गया. इस के बाद उस ने पुलिस अधिकारियों को बताया कि वह पड़ोसी मोहम्मद अशरफ की बेटी नाजनीन से मोहब्बत करता था. पर वह मुंबई चला गया और वहां नौकरी करने लगा. 3 साल बाद फरवरी 2020 में वह मुंबई से वापस कानपुर आया. अब तक नाजनीन जवान हो गई थी और खूबसूरत दिखने लगी थी. उसे देख कर उस की सोती हुई मोहब्बत फिर से जाग उठी और उसे एकतरफा प्यार करने लगा. उस ने सोच लिया था कि उस की मोहब्बत में जो भी बाधक बनेगा, उसे मिटा देगा. नाजनीन की मोहब्बत में उस का बाप मोहम्मद अशरफ बाधक बनने लगा तो बीती रात उसे चापड़ से काट कर हलाल कर दिया.

चूंकि मोहम्मद फहीम ने हत्या का जुर्म कबूल कर लिया था, अत: बाबूपुरवा थाना प्रभारी (कार्यवाहक) सुरेश सिंह ने मृतक के बेटे इरफान को वादी बना कर भादंवि की धारा 302 के तहत मोहम्मद फहीम के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली तथा उसे विधिसम्मत बंदी बना लिया. पुलिस जांच में एक ऐसे सनकी प्रेमी की कहानी प्रकाश में आई, जिस ने एकतरफा प्यार में पागल हो कर प्रेमिका के बाप को मौत की नींद सुला दिया. उत्तर प्रदेश के कानपुर शहर में बाबूपुरवा थाना अंतर्गत एक मुसलिम बाहुल्य आबादी वाला मोहल्ला मुंशीपुरवा पड़ता है. इसी मुंशीपुरवा में मसजिद के पास मोहम्मद अशरफ अपने परिवार के साथ रहता था.

उस के परिवार में पत्नी शबनम के अलावा एक बेटी नाजनीन तथा बेटा इरफान था. मोहम्मद अशरफ खरादी बुरादे का व्यापार करता था. इस व्यापार में मेहनतमशक्कत तो थी, पर कमाई भी अच्छी थी. इसी कमाई से वह अपने परिवार का भरणपोषण करता था. मोहम्मद अशरफ के साथ उस की मां रईसा खान तथा भाई नासिर भी रहता था. नासिर की शादी गुलशन बानो के साथ हुई थी. शादी के बाद नासिर सऊदी अरब चला गया था. अब वह तभी आता था, जब उसे घरपरिवार की याद सताती थी. अशरफ मेहनत की रोटी खा कर परिवार के साथ खुश रहता था. परंतु उस की खुशियों में ग्रहण तब लगना शुरू हो गया जब उस की बेगम शबनम बीमार रहने लगी.

फिर बीमारी के दौरान ही सन 2010 में उस की मृत्यु हो गई. उस समय नाजनीन की उम्र 10 वर्ष तो इरफान की 9 साल थी. शबनम की मौत के बाद बच्चों के पालनपोषण की जिम्मेदारी अशरफ की मां रईसा खान पर आ गई. रईसा खान ने इस जिम्मेदारी को खूब निभाया और पालपोस कर बच्चों को बड़ा किया. रईसा खान अपने पोतेपोती को बहुत प्यार करती थी और उन की हर जायज ख्वाहिश पूरी करती थी. फहीम उर्फ नदीम नाजनीन का दीवाना था. वह उस के पड़ोस में ही रहता था. फहीम और नाजनीन हमउम्र थे. दोनों एक ही गली में खेलकूद कर बड़े हुए थे. दोनों एकदूसरे को जानतेपहचानते थे और अकसर उन का आमनासामना हो जाता था. फहीम मन ही मन नाजनीन को चाहने लगा था.

पर नाजनीन के मन में उस के प्रति कोई लगाव न था. वह तो पड़ोसी के नाते उस से भाईजान कह कर बात करती थी. फहीम के 2 अन्य भाई भी थे, जो उसी मकान में रहते थे. फहीम सिलाई कारीगर था. वह जो कमाता था, अपने ऊपर ही खर्च करता था, इसलिए बनसंवर कर खूब ठाटबाट से रहता था. फहीम अपने प्यार का इजहार नाजनीन से कर पाता, उस के पहले ही वह मुंबई कमाने चला गया. मुंबई जा कर भी वह नाजनीन को भुला न सका. उस के मनमस्तिष्क पर नाजनीन ही छाई रही. वह उसे अपने दिल की मल्लिका बनाने के सपने संजोता रहा. पर सपना तो सपना ही होता है. भला सपने से कभी किसी  के ख्वाब पूरे नहीं हुए.

देश में तालाबंदी घोषित होेने के एक माह पहले ही फहीम मुंबई से कानपुर अपने घर वापस आ गया. कमाई कर के वह जो पैसे लाया था, उसे अपने ऊपर और अपने दोस्तों पर खर्च करता. भाइयों ने उस की इस फिजूलखर्ची का विरोध किया तो वह उन पर हावी हो गया. अब वह दोस्तों के साथ मौजमस्ती तथा शराब पीने लगा. एक रोज नाजनीन किसी काम से घर से निकली तभी फहीम की नजर उस पर पड़ी. खूबसूरत नाजनीन को देख कर फहीम का मन मचल उठा. 3 साल पहले जब उस ने नाजनीन को देखा था तब वह 16 वर्ष की थी. किंतु अब वह 19 साल की उम्र पार कर चुकी थी. अब वह पहले से ज्यादा खूबसूरत दिखने लगी थी.

फहीम की आंखों में पहले से ही नाजनीन रचीबसी थी सो अब उसे देखते ही उस का मन बेकाबू होने लगा था. अब वह नाजनीन को फंसाने का तानाबाना बुनने लगा. मौका मिलने पर वह उस से बात करने का प्रयास करता था. लेकिन नाजनीन उसे झिड़क देती थी. तब फहीम खिसिया जाता. आखिर जब उस के सब्र का बांध टूट गया तो उस ने एक रोज मौका मिलने पर नाजनीन का हाथ पकड़ लिया और बोला, ‘‘नाजनीन, मैं तुम से बेइंतहा मोहब्बत करता हूं. तुम्हारी खूबसूरती ने मेरा चैन छीन लिया है. तुम्हारे बिना मैं अधूरा हूं.’’

नाजनीन अपना हाथ छुड़ाते हुए गुस्से से बोली, ‘‘फहीम, तुम ये कैसी बहकी बातें कर रहे हो. मैं तुम्हारी जातिबिरादरी की हूं और इस नाते तुम मेरे भाईजान लगते हो. भाई को बहन से इस तरह की बातें करते शर्म आनी चाहिए.’’

‘‘प्यार अंधा होता है नाजनीन. प्यार जातिबिरादरी नहीं देखता.’’ वह बोला.

‘‘होगा, लेकिन मैं अंधी नही हूं. मैं ऐसा नहीं कर सकती. मैं तुम से नफरत करती हूं. और हां, आइंदा मेरा रास्ता रोकने या हाथ पकड़ने की कोशिश मत करना, वरना मुझ से बुरा कोई न होगा, समझे.’’ नाजनीन ने धमकाया. कुछ देर बाद नाजनीन घर वापस आई तो वह परेशान थी. वह समझ गई कि फहीम एकतरफा प्यार में पागल है. उस ने यह सोच कर फहीम की शिकायत घर वालों से नहीं की कि अब्बूजान बेमतलब परेशान होंगे. बात बढ़ेगी. बतंगड़ होगा. फिर लोग उस के चरित्र पर अंगुलियां उठाना शुरू कर देंगे.

इधर नाजनीन की फटकार से फहीम समझ गया कि नाजनीन अब ऐेसे नहीं मानेगी. उसे अपनी खूबसूरती और जवानी पर इतना घमंड है तो वह उस के घमंड को हर हाल में तोड़ कर रहेगा. वह उसे ऐसा दर्द देगा, जिसे वह ताजिंदगी नहीं भुला पाएगी. फहीम का एक दोेस्त सलीम था. दोनों ही हमउम्र थे, सो दोनों में खूब पटती थी. एक रोज दोनों शराब पी रहे थे. उसी समय फहीम बोला, ‘‘यार सलीम, मैं नाजनीन से मोहब्बत करता हूं लेकिन वह हाथ नहीं रखने दे रही.’’

‘‘देख फहीम, मैं एक बात बताता हूं कि नाजनीन ऐसीवैसी लड़की नहीं है. उस का पीछा छोड़ दे. कहीं ऐसा न हो कि उस का पंगा तुझे भारी पड़ जाए.’’ सलीम ने फहीम को समझाया.

‘‘अरे छोड़ इन बातों को, मैं भी जिद्दी हूं. नाजनीन अगर राजी से न मानी तो मुझे दूसरा रास्ता अपनाना पड़ेगा.’’ फहीम ने कहा.

इस के बाद फहीम फिर से नाजनीन को छेड़ने लगा. फहीम ने नाजनीन पर लाख डोरे डालने की कोशिश की, लेकिन हर बार उसे बेइज्जती का सामना करना पड़ा. फहीम की बढ़ती छेड़छाड़ से नाजनीन को अब डर सताने लगा था. अत: एक रोज उस ने फहीम की बदतमीजी तथा डोरे डालने की शिकायत दादी रईसा खान तथा अब्बू अशरफ से कर दी. नाजनीन की बात सुन कर जहां रईसा तिलमिला उठीं, वहीं अशरफ का भी गुस्सा फूट पड़ा. पहले रईसा ने फहीम को खूब खरीखोेटी सुनाई फिर अशरफ ने भी फहीम को जम कर लताड़ा तथा बेटी से दूर रहने की नसीहत दी. अशरफ ने फहीम की शिकायत उस के भाइयों से भी की तथा उसे समझाने को कहा. उस ने साफ  कहा कि वह इज्जतदार इंसान है. बेटी से छेड़छाड़ बरदाश्त न करेगा.

अशरफ ने उलाहना दिया तो दोनों भाइयों ने फहीम को खूब समझाया तथा नाजनीन से दूर रहने की नसीहत दी. लेकिन फहीम पर तो इश्क का भूत सवार था. वह तो एकतरफा प्यार में दीवाना था, सो उसे भाइयों की नसीहत पसंद नहीं आई. एक रोज फहीम ने गली के मोड़ पर नाजनीन को रोका और उस का हाथ पकड़ लिया. गुस्साई नाजनीन ने फहीम के हाथ पर दांत गड़ा कर अपना हाथ छुड़ा लिया और बोली, ‘‘बदतमीज, अपनी हरकतों से बाज आ, वरना अंजाम अच्छा नहीं होगा.’’

नाजनीन की बात सुन कर फहीम भी गुस्से से बोला, ‘‘नाजनीन, यही बात मैं तुझे बता रहा हूं. मेरी मोहब्बत को स्वीकार कर ले और मुझे अपना बना ले. वरना कान खोल कर सुन ले, मेरी मोहब्बत में जो भी बाधा डालेगा, उसे मैं मिटा दूंगा. फिर वह तुम्हारा बाप, भाई या कोई और क्यों न हो.’’

जून, 2020 की 3 तारीख को फहीम ने पुन: नाजनीन से छेड़छाड़ की. इस की शिकायत उस ने पिता से की. शिकायत सुन कर अशरफ तिलमिला उठा. उस ने फहीम को खूब खरीखोटी सुनाई और कहा कि वह अंतिम बार उसे चेतावनी दे रहा है. इस के बाद उस ने हरकत की तो थाने जा कर रिपोर्ट दर्ज करा देगा और जेल भिजवा देगा. फहीम पहले से ही उस पर खार खाए बैठा था. अत: अशरफ ने जब उसे जेल भिजवाने की धमकी दी तो उस की खोपड़ी घूम गई. उस ने अपने प्रेम में बाधक बने प्रेमिका के पिता अशरफ को मौत की नींद सुलाने का इरादा पक्का कर लिया. फिर वह अंजाम की तैयारी में जुट गया. उस ने तेजधार वाले चापड़ का इंतजाम किया फिर उसे घर में छिपा कर रख लिया.

8 जून, 2020 की रात फहीम ने अपनी छत की बाउंड्री से झांक कर देखा तो पता चला कि अशरफ आज रात अकेला ही छत पर सोया है. उचित मौका देख कर फहीम चापड़ ले आया फिर रात 2 बजे सीढ़ी लगा कर अशरफ की छत पर पहुंच गया. फहीम ने नफरत भरी एक नजर अशरफ पर डाली फिर चापड़ से खचाखच 4 वार अशरफ की गरदन पर किए. उस की गरदन आधी से ज्यादा कट गई और खून की धार बह निकली. अशरफ कुछ क्षण तड़पा फिर ठंडा हो गया.

हत्या करने के बाद सीढ़ी के रास्ते फहीम अपनी छत पर आ गया. यहां चापड़ पर लगे खून की कुछ बूंदे छत पर टपक गईं. नीचे जा कर उस ने कपड़े बदले और चापड़ में लगे  खून को साफ  किया. फिर कपड़ों और चापड़ को धो कर घर में छिपा दिए और कमरे में जा कर सो गया. मोहम्मद फहीम से पूछताछ के बाद पुलिस ने 10 जून, 2020 को उसे कानपुर कोर्ट में पेश किया, जहां से उसे जिला कारागार भेज दिया गया.

कथा संकलन तक उस की जमानत स्वीकृत नहीं हुई थी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित.

नाजनीन परिवर्तित नाम है.

 

Uttarakhand News : दोस्‍त के साथ मिलकर बीवी का घोंटा गला फिर लाश में लगा दी आग

Uttarakhand News : पतिपत्नी के झगड़े आम बात हैं. झगड़े होते हैं और कभी पति की तो कभी पत्नी की पहल पर खत्म हो जाते हैं. रविंद्र आहूजा और अनीता चाहते तो सब ठीक हो सकता था. लेकिन ठीक होने के बजाय बात इतनी बिगड़ी कि एक की जान गई और दूसरे को मिली…

31 जनवरी, 2020 की बात है. नैनीताल जिले के थाना रामनगर में किसी अज्ञात व्यक्ति ने फोन कर के सूचना दी कि गांव बैलपोखरा के एक खेत में किसी महिला की झुलसी हुई लाश पड़ी है. हत्या की खबर सुन कर थानाप्रभारी दिनेश नाथ महंत घटनास्थल पर जाने के लिए तैयार हो गए. जिले के वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को सूचना देने के बाद थानाप्रभारी पुलिस टीम के साथ उस जगह पहुंच गए, जहां लाश पड़ी होने की सूचना थी. वहां पर आसपास के गांवों के कई लोग जमा थे. थानाप्रभारी ने लाश का मुआयना किया, वह इस हद तक जल चुकी थी कि उसे पहचानना मुश्किल था. ऐसा लग रहा था जैसे किसी ने युवती की हत्या कर लाश पर जला हुआ मोबिल औयल डाल कर जलाया है, क्योंकि वहां आसपास काले मोबिल औयल के छींटे पड़े थे. हत्यारे ने यह सब लाश की पहचान मिटाने के लिए किया था.

थानाप्रभारी लाश के बारे में वहां मौजूद लोगों से पूछताछ कर ही रहे थे कि एसएसपी सुनील कुमार मीणा, एसपी (सिटी) अमित श्रीवास्तव और सीओ साहब भी पहुंच गए. सभी अधिकारियों ने लाश और घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया. लेकिन वहां ऐसा कोई सबूत नहीं मिला, जिस से लाश की शिनाख्त कराने में आसानी होती. घटनास्थल के आसपास पुलिस को किसी कार के टायरों के निशान दिखाई दिए. इस से आशंका जताई गई कि संभव है मृतका रामनगर थानाक्षेत्र के बजाए कहीं दूसरे जिले की भी हो सकती है. यह स्पष्ट था कि लाश को ठिकाने लगाने में किसी कार का उपयोग किया गया है. वरिष्ठ अधिकारियों के दिशानिर्देश मिलने के बाद थानाप्रभारी ने घटनास्थल से जरूरी सबूत इकट्ठे कर के लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी.

एसएसपी सुनील कुमार मीणा ने इस केस को खोलने के लिए थानाप्रभारी दिनेशनाथ महंत के नेतृत्व में तेजतर्रार पुलिसकर्मियों की एक टीम बनाई. टीम के सामने समस्या यही थी इस केस की जांच कहां से शुरू की जाए, क्योंकि पुलिस को कहीं से कोई क्लू नहीं मिल रहा था. घटनास्थल के पास टायरों के निशानों से किसी कार के वहां आने की संभावना थी. कार किस की थी, यह पता लगाना आसान नहीं था. अगले दिन थानाप्रभारी को मृतका की पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिल गई. रिपोर्ट में बताया गया कि महिला की हत्या रस्सी जैसी किसी चीज से गला घोंट कर की गई थी.

थानाप्रभारी ने सब से पहले नैनीताल जिले के सभी थानों से यह जानकारी हासिल की कि किसी थानाक्षेत्र की महिला की गुमशुदगी तो दर्ज नहीं है. लेकिन किसी थाने से किसी महिला की गुमशुदगी की कोई जानकारी नहीं मिली. इस के बाद पुलिस टीम ने जिले के अलगअलग थानों के आपराधिक प्रवृत्ति के 30 लोगों को पूछताछ के लिए उठाया. उन सभी से कई दिनों तक अलगअलग तरीके से पूछताछ की गई लेकिन उन से कोई भी ऐसी जानकारी नहीं मिली, जिस से मरने वाली की पहचान हो सकती. पुलिस की एक टीम इस बात की जांच करने में जुट गई कि घटनास्थल तक किनकिन रास्तों से हो कर जाया जा सकता है.

इस के बाद इसी टीम ने पता लगाना शुरू किया कि उन रास्तों पर सीसीटीवी कैमरे कहांकहां लगे हैं. इस से पुलिस यह पता लगाना चाहती थी कि घटनास्थल पर जो कार आई थी, उस का नंबर क्या था. इस कवायद में पुलिस ने 110 सीसीटीवी कैमरों की फुटेज एकत्र कर लीं. ये कैमरे चूनाखान और कमोला धमोला मार्ग पर लगे थे. इस के बाद पुलिस टीम बड़े गौर से एकएक फुटेज को देखने लगी. एक फुटेज में 30-31 जनवरी की रात को तड़के के समय एक कार घटनास्थल बैलपोखरा गांव की तरफ आती दिखी. इस के 20 मिनट के बाद वही कार वहां से जाती दिखी. यह कार शक के दायरे में आ गई. लेकिन उस फुटेज में कार का नंबर स्पष्ट दिखाई नहीं दे रहा था.

अब सीसीटीवी फुटेज देखने वाली पुलिस टीम उस कार का पता लगाने में जी जान से जुट गई. कई फुटेज में उस कार का मूवमेंट दिखाई दिया. इसी दौरान एक कैमरे की फुटेज में उस कार की स्पष्ट फोटो दिखाई दी, जिस से पुलिस को कार का नंबर मिल गया. कार का पता लग जाने के बाद पुलिस टीम को सफलता की किरण नजर आने लगी. कार के नंबर से यह पता लगाना आसान था कि कार का मालिक कौन है. कार के नंबर के आधार पर पुलिस को यह जानकारी मिल गई कि कार नैनीताल जिले के ही चकलुआ गांव के रहने वाले रमनजीत सिंह की थी.

यह जानकारी मिलते ही थानाप्रभारी दिनेश नाथ महंत के नेतृत्व में पुलिस टीम चकलुआ गांव में रमनजीत सिंह के पास पहुंच गई. रमनजीत घर पर ही था. पूछताछ करने पर उस ने बताया कि 30 जनवरी को उस की कार उस का बहनोई कुलदीप सिंह (निवासी धर्मपुर चूनाखान) मांग कर ले गया था. पुलिस ने 31 जनवरी, 2020 को लाश बरामद की थी और कुलदीप 30 जनवरी को कार मांग कर ले गया था. इस से यह पुष्टि हो गई कि महिला की लाश ठिकाने लगाने में रमनजीत सिंह की कार का ही इस्तेमाल किया गया था. थानाप्रभारी को जांच सही दिशा में जाती दिखाई दी, क्योंकि जांच में कडि़यां जुड़ने लगी थीं. देर किए बिना पुलिस धर्मपुर चूनाखान में कुलदीप सिंह के यहां पहुंच गई.

लेकिन वह घर पर नहीं मिला. चूंकि कुलदीप से पूछताछ करनी जरूरी थी, लिहाजा थानाप्रभारी ने उस की तलाश के लिए मुखबिर लगा दिए. कई दिनों की मशक्कत के बाद आखिर 11 फरवरी, 2020 को पुलिस ने गडेरी नदी के पुल के पास से कुलदीप सिंह को हिरासत में ले लिया. थाने ला कर जब कुलदीप से सख्ती से पूछताछ की गई तो उस ने स्वीकार कर लिया कि वह लाश दिल्ली में रहने वाले उस के दोस्त रविंद्र आहूजा की पत्नी अनीता की थी. उस ने और रविंद्र ने योजना बना कर उसे गला घोंट कर मारा था, फिर आग लगा कर लाश जलाने की कोशिश की थी.

कुलदीप से पूछताछ के बाद न सिर्फ मृतका की पहचान हुई, बल्कि हत्यारोपियों का भी पता लग गया. यानी पूरा केस खुल चुका था. पुलिस को अब रविंद्र आहूजा को गिरफ्तार करना बाकी था. इस के लिए पुलिस ने कुलदीप से ही रविंद्र आहूजा को फोन कराया. पुलिस के निर्देश पर उस ने किसी बहाने से हरिद्वार के नजदीक मिलने को कहा. पुलिस कस्टडी में ही कुलदीप ने रविंद्र को फोन कर कहा, ‘‘अरे भाई रविंद्र, हमारा काम बड़ी आसानी से निपट गया है. अब क्यों न हम हरिद्वार जा कर गंगा में डुबकी लगा लें. कम से कम हमारे हाथों हुआ पाप तो धुल जाएगा.’’

‘‘ठीक कह रहे हो कुलदीप भाई, बताओ कब चलना है हरिद्वार?’’ रविंद्र आहूजा ने पूछा. ‘‘कब क्या भाई, ऐसा करो आज ही आ जाओ. ऐसा करना हरिद्वार के पास जो मोतीचूर रेलवे स्टेशन है, तुम वहीं उतर जाना, मैं वहीं मिलूंगा. वहां से हम किसी तरह हरिद्वार चले चलेंगे.’’ कुलदीप बोला.

‘‘मैं घर से अभी निकलता हूं, मुझे जो भी ट्रेन मिलेगी, बता दूंगा. मगर तुम तब तक स्टेशन पहुंच जरूर जाना.’’ रविंद्र ने कहा.

‘‘चिंता मत करो, मैं वहीं मिलूंगा.’’ कह कर कुलदीप ने काल डिसकनेक्ट कर दी. दोस्त से बात करने के बाद रविंद्र हरिद्वार जाने के लिए घर से निकल गया. इस के बाद वह दिल्ली से हरिद्वार की तरफ जाने वाली ट्रेन में बैठ गया. यह जानकारी उस ने कुलदीप को भी फोन कर के दे दी. यह योजना रामनगर पुलिस की थी, लिहाजा पुलिस टीम कुलदीप को साथ ले कर मोतीचूर रेलवे स्टेशन पहुंच गई. रविंद्र आहूजा तो समझे बैठा था कि जितनी होशियारी से उस ने पत्नी की हत्या कर लाश ठिकाने लगाई है, उस से सारे सबूत नष्ट हो चुके होंगे. पुलिस उस तक कभी नहीं पहुंच सकेगी. लेकिन यह उस की बड़ी भूल थी.

बहरहाल, जैसे ही रविंद्र आहूजा ट्रेन से मोतीचूर रेलवे स्टेशन पर उतरा तो पुलिस ने कुलदीप की शिनाख्त पर उसे हिरासत में ले लिया. पुलिस गिरफ्त में आते ही रविंद्र समझ गया कि वह फंस चुका है. थाने में पहुंचने के बाद थानाप्रभारी ने उस से उस की पत्नी अनीता के बारे में पूछताछ की तो रविंद्र ने बताया कि उस की पत्नी फिल्मों और नाटकों में अभिनय करती है, इसलिए वह 6 महीने की ट्रेनिंग के लिए मुंबई गई हुई है. चूंकि पुलिस को कुलदीप से सच्चाई पता लग चुकी थी, इसलिए पुलिस समझ गई कि रविंद्र झूठ बोल कर घुमाने की कोशिश कर रहा है.

लिहाजा पुलिस ने उस से दूसरे तरीके से पूछताछ की तो उस ने स्वीकार कर लिया कि 30 जनवरी की रात को पत्नी अनीता की गला घोंट कर हत्या करने के बाद उस की लाश गांव बैलपोखरा के एक खेत में आग के हवाले कर दी थी. रविंद्र ने अनीता की हत्या की जो कहानी बताई, वह दिल दहला देने वाली थी—

रविंद्रपाल सिंह आहूजा मूलरूप से पंजाब के फिरोजपुर शहर का रहने वाला था. वह कई साल पहले काम की तलाश में दिल्ली आया था. यहीं पर उस की नौकरी एक निजी कंपनी में ऋण वसूली एजेंट के रूप में लग गई. नौकरी मिल जाने के बाद उस ने दक्षिणपूर्वी दिल्ली के बदरपुर इलाके में रहना शुरू कर दिया. इसी दौरान उस की शादी अनीता से हो गई. अनीता की 4 बहनें और थीं. उन में अनीता दूसरे नंबर की थी. 2 बहनों की शादी हो गई थी और 3 बहनें शादी के लिए बाकी थीं. अनीता खुले विचारों वाली युवती थी. इस के अलावा उस की दिली इच्छा फिल्मी दुनिया के रुपहले परदे पर पहुंचने की थी. इस के लिए अनीता अपने स्तर पर प्रयास करती रही.

इसी दौरान अनीता एक ऐसी एजेंसी के संपर्क में आई, जो बौलीवुड फिल्मों और सीरियलों के लिए जूनियर आर्टिस्ट उपलब्ध कराती थी. उसी एजेंसी की वजह से अनीता को एकदो फिल्मों और सीरियलों में भीड़ का हिस्सा बनने का मौका मिला. इस से अनीता बहुत खुश हुई. इस के बाद वह एजेंसी के माध्यम से खुद भी जूनियर आर्टिस्ट उपलब्ध कराने का धंधा करने लगी, जिस से उसे अच्छीखासी कमाई हो जाती थी. अनीता को आमदनी तो होने लगी लेकिन वह एक बात से दुखी रहती थी कि शादी के कई साल बीत जाने के बाद भी वह मां नहीं बन सकी थी.

रविंद्रपाल पत्नी की इस पीड़ा को अच्छी तरह महसूस करता था. तब दोनों ने सहमति से एक बच्चे को गोद ले लिया. इस से परिवार में खुशी आ गई. लेकिन यह खुशी भी बहुत लंबे समय तक कायम नहीं रह सकी. वजह यह थी कि अनीता का व्यवहार पति के प्रति काफी बदल गया था. वह फोन पर पता नहीं किसकिस से बातें करती रहती थी. रविंद्र जब कभी से पूछता तो वह कह देती कि अपने कैरियर के लिए फिल्मी दुनिया से जुड़े लोगों से बात करती हूं. रविंद्र को हर समय फोन पर बात करना पसंद नहीं था, इसलिए उस ने कह दिया कि वह इस काम को छोड़ कर आराम से अपनी घरगृहस्थी पर ध्यान दे. लेकिन अनीता ने साफ कह दिया कि वह ऐसा नहीं कर करेगी. पत्नी की इस जिद पर रविंद्र को गुस्सा आ गया.

पत्नी की बातों और व्यवहार से रविंद्र को शक था कि जरूर उस का किसी के साथ चक्कर चल रहा है. वह इस शक की पुष्टि करने के बारे में सोचने लगा, पर यह नहीं समझ पा रहा था कि कैसे पता लगाए. एक दिन उस के हाथ अनीता का फोन लग गया. सब से पहले रविंद्र ने वाट्सऐप मैसेज देखे. तभी उसे एक नंबर ऐसा मिल गया, जो कश्मीर के एक युवक का था. उस युवक से जो अश्लील मैसेज आदानप्रदान हुए थे, उन्हें देख कर वह चौंक गया. दोनों ने अपने कई तरह के फोटो भी शेयर किए थे. इस से रविंद्र के मन में जो शक था, वह सच में बदल गया. उस ने तय कर लिया कि ऐसी बेवफा पत्नी को वह अपने साथ नहीं रख सकता, उसे इस की सजा जरूर देगा. रविंद्र ने एकदो बार उसे मारने का प्लान भी बनाया, लेकिन किसी वजह से सफल नहीं हो सका.

रविंद्र आहूजा का एक दोस्त था कुलदीप सिंह, जो उत्तराखंड के रामनगर कस्बे में रहता था. रविंद्र और कुलदीप की दोस्ती एक कौमन दोस्त उमेश के माध्यम से हुई थी. रविंद्र ने कुलदीप से अपनी पत्नी की बेवफाई की बातें बताते हुए उसे ठिकाने लगाने में सहयोग की मांग की. दोस्ती की खातिर कुलदीप उस का साथ देने को तैयार हो गया. कुलदीप ने उसे सलाह दी कि वह किसी तरह पत्नी को रामनगर ले आए. फिर यहीं उस का काम तमाम कर देंगे. दोनों ने योजना बनाई कि हत्या के बाद उस की लाश पर काला तेल (प्रयोग किया हुआ मोबिल औयल) डाल कर आग लगा देंगे तो लाश पूरी तरह जल जाएगी.

24 जनवरी, 2020 को रविंद्र ने कुलदीप से कहा कि वह रस्सी, एक कार और 5-6 लीटर काले तेल का इंतजाम कर ले. इस के लिए उस ने कुलदीप की पत्नी के खाते में 2 हजार रुपए भी जमा करा दिए. पति का दोस्त होने के नाते अनीता भी कुलदीप को अच्छी तरह से जानती थी. रविंद्र ने एक दिन पत्नी को विश्वास दिलाते हुए कहा, ‘‘अनीता, कुलदीप की एक करीबी महिला मुंबई में कलाकारों को ट्रेनिंग देती है. उस की कई हीरो और प्रोड्यूसरों से अच्छी जानपहचान है. ऐसा करते हैं, कुलदीप के पास चल कर उस महिला से तुम्हारी मुलाकात करा देते हैं. क्या पता उस के जरिए तुम्हारी किस्मत चमक जाए.’’

पति की यह बात सुन कर अनीता बहुत खुश हुई. वह जल्द से जल्द कुलदीप के पास पहुंचने के लिए कहने लगी. योजना के अनुसार, रविंद्र 30 जनवरी, 2020 को पत्नी को दिल्ली से बस द्वारा रामनगर ले गया. वहां पहुंचने के बाद रोडवेज बस अड्डे पर ही उस ने पत्नी को चाय पिलाई. चाय में उस ने पहले से ही अपने पास रखा नींद की गोलियों का पाउडर मिला दिया. कुछ देर में कुलदीप अपने साले रमनजीत सिंह की कार ले रविंद्र के पास पहुंच गया. रविंद्र पत्नी के साथ उस कार में बैठ गया. कुलदीप कार ले कर रामनगर से कालाडूंगी की तरफ चल दिया. उधर अनीता पर नींद की गोलियों का असर हो चुका था, जिस से वह कार की पिछली सीट पर लुढ़क गई. यह बात रात डेढ़ बजे की है. तभी चूनाखान के पास कार रोक कर कुलदीप ने कार की डिक्की से रस्सी निकाली और उस से अनीता का गला घोंट दिया.

इस के बाद उस की लाश भी ठिकाने लगानी थी. कार को वह बैलपोखरा गांव की तरफ ले गया. वहां एक खेत में ले जा कर लाश डाल दी और उस पर जरीकेन में रखा 5 लीटर काला तेल उड़ेल दिया, फिर आग लगा दी. रस्सी और खाली जरीकेन उन्होंने सड़क किनारे की झाडि़यों में छिपा दी थीं. पत्नी की लाश ठिकाने लगाने के बाद रविंद्र आहूजा अगले दिन दिल्ली लौट आया था. रविंद्र की 2 सालियां उस के घर पर ही रहती थीं. जब सालियों ने बड़ी बहन के बारे में पूछा तो रविंद्र ने कह दिया कि रामनगर में हम जिस महिला के पास गए थे, उस ने वहीं से उसे 6 महीने की ट्रेनिंग के लिए मुंबई भेज दिया है. अब उस की किस्मत चमक जाएगी. यह सुन कर दोनों बहनें बहुत खुश हुईं.

रविंद्र पत्नी को ठिकाने लगाने के बाद उस का मोबाइल फोन अपने साथ ले आया था, जिसे उस ने म्यूट कर के अपने पास रख लिया था. अनीता से बात करने के लिए जब उस की बहनें काल करतीं तो वह काल रिसीव तो नहीं करता, लेकिन वाट्सऐप पर अनीता की तरफ से जवाब दे देता था. बहनें यही समझती थीं कि उन की दीदी की ट्रेनिंग ठीक चल रही है. 11 फरवरी को रविंद्र सालियों से हरिद्वार गंगा स्नान करने की बात कह कर गया था. जब वह घर नहीं लौटा तो एक साली ने रविंद्र के मोबाइल पर फोन कर घर लौटने के बारे में पूछना चाहा तो वह काल रामनगर थाने के एक पुलिसकर्मी ने रिसीव किया. उसी ने रविंद्र को पत्नी की हत्या के आरोप में गिरफ्तार करने की जानकारी दी.

बहन अनीता की हत्या की बात सुन कर दोनों बहनें दहाड़ें मार कर रोने लगीं. इस के बाद अन्य लोगों को सच्चाई पता चली. हत्या के दोनों आरोपियों कुलदीप सिंह और रविंद्रपाल सिंह आहूजा की निशानदेही पर पुलिस ने हत्या में प्रयुक्त रस्सी, काले तेल की जरीकेन और हत्या के समय पहने हुए उन के कपड़े भी बरामद कर लिए. पूछताछ के बाद पुलिस ने उन्हें न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

UP Crime : युवक ने धर्म छिपा कर की शादी, बाद में लड़की की गर्दन काट डाली

UP Crime : इंसान का एक गलत कदम उस की जिंदगी के लिए कभीकभी बेहद घातक साबित हो जाता है. एकता ने भी यही गलती की थी, जिस के लिए उसे पछताने का मौका भी नहीं मिला.

दिल्ली से करीब 50 किलोमीटर दूर उत्तर प्रदेश के मेरठ शहर में एक कस्बा है दौराला. यहीं पर एक गांव है लोइया, जहां 13 जून 2019 को इसी गांव के रहने वाले शबी अहमद के खेत से एक कुत्ता किसी मानव अंग को ले कर भाग रहा था. कुत्ते को मानव अंग ले कर भागते हुए गांव में रहने वाले ईश्वर पंडित ने देख लिया था. उसे शक हुआ कि हो ना हो वहां किसी इंसान को मार कर दबाया गया है. ईश्वर ने पहले गांव के कुछ लोगों को ये बात बताई. सब उस जगह पहुंचे, जहां से कुत्ता मानव अंग ले कर भागा था. तलाश करने पर खेत में एक जगह वो गड्ढा मिल गया, जहां एक लाश दबी थी और कुत्ते के खोदने से लाश का कुछ हिस्सा बाहर झांक रहा था. लिहाजा ईश्वर पंडित ने गांव वालों के साथ इस की सूचना दौराला पुलिस को दे दी.

दौराला थाने के एसएचओ इंसपेक्टर जनक सिंह चौहान तत्काल अपनी टीम के साथ लोइया गांव पहुंच गए. पुलिस ने आ कर शबी अहमद के खेत की खुदाई करवाई तो वहां वाकई एक लाश मिली. लाश किसी महिला की थी, जिस का सिर और दोनों हाथ गायब थे. शरीर पर अंतर्वस्त्र को छोड़ कर कोई भी कपड़ा नहीं था. देखने से ही लग रहा था कि शायद उस के साथ दुष्कर्म किया गया है जिस के बाद बेदर्दी से उस की हत्या कर के शव को वहां दबा दिया गया है. घटना दिल दहलाने और किसी को भी झकझोर देने वाली थी. इसलिए एसएचओ ने तत्काल उच्चाधिकारियों को सूचना दे दी.

सूचना मिलते ही सीओ जितेंद्र सिंह सरगम, एसपी (सिटी) अखिलेश नारायण सिंह और मेरठ के एसएसपी अजय कुमार साहनी भी क्राइम टीम और डौग स्क्वायड को ले कर मौके पर पहुंच गए. आमतौर पर पुलिस के लिए हत्या के मामले सामने आने की घटना होना कोई आश्चर्य वाली बात नहीं थी. लेकिन जिस तरह से इस महिला की हत्या की गई थी, वह जरूर हैरत में डालने वाली बात थी. क्योंकि उस का सिर तथा दोनों हाथ काटने के पीछे का रहस्य किसी की समझ में नहीं आ रहा था. सिर काटने के पीछे का मकसद तो समझ में आता था कि क्योंकि चेहरा देखने से उस की पहचान हो सकती थी इसलिए कातिल ने उस का सिर काटा होगा. लेकिन उस के दोनों हाथ कंधे से काट दिए गए थे, ये सब की समझ से परे था.

शव बुरी तरह से सड़गल चुका था. इस का मतलब था कि हत्या कर के शव कई दिन पहले दबाया गया होगा. शव की हालत देखने से एक दूसरी बात भी साफ हो रही थी कि लाश के सिर और हाथ काटने वाला अपराधी बेहद क्रूर होगा तथा उसे गांव में लड़की की पहचान का डर रहा होगा. इस के बाद क्राइम टीम ने पहले डौग स्क्वायड की मदद से शव के दूसरे हिस्सों और कातिल का सुराग लगाने का प्रयास किया. लेकिन काफी समय बीत जाने के कारण शायद कातिल की गंध और शव के दूसरे हिस्सों की गंध उड़ चुकी होगी . इसलिए डिटेक्टिव कुत्तों से कोई मदद नहीं मिल सकी.

इस के बाद पुलिस ने जेसीबी मशीन और ट्रैक्टर की मदद से पूरे खेत की खुदाई करवाई लेकिन खेत में शरीर का कोई दूसरा हिस्सा बरामद नहीं हो सका. इस दौरान पुलिस की एक टीम ने लोइया गांव के लोगों को बुला कर शव दिखाया और यह जानने की कोशिश की कि कहीं इस गांव की किसी लड़की का तो ये शव नहीं है. लेकिन पता चला कि गांव से कोई महिला या लड़की गायब नहीं थी. हालांकि उस की पहचान बिना सिर के कारण कोई नहीं कर पा रहा था. एसएसपी अजय साहनी के निर्देश पर उसी दिन शव का पंचनामा कर उसे पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया और थाना दौराला में अपराध संख्या भादंसं की धारा 302 पर अज्ञात हत्यारों के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज कर लिया गया.

सीओ जितेंद्र सिंह सरगम ने एसएचओ जनक सिंह चौहान की निगरानी में इस केस की जांच का जिम्मा एसआई एम.पी. सिंह को सौंप दिया और उन के सहयोग के लिए एसआई राजकुमार तथा कुछ पुलिसकर्मियों को नियुक्त कर दिया. शव का पोस्टमार्टम होने के बाद जांच अधिकारी ने 3 दिन तक अज्ञात महिला की लाश को अस्पताल में सुरक्षित रखवाया लेकिन आसपास के इलाके में मुनादी और समाचार पत्रों में उस लाश की जानकारी छपवाने के बाद भी जब कोई उस की पहचान के लिए नहीं आया तो पुलिस ने लावारिस के तौर पर शव का अंतिम संस्कार कर दिया.

लाश के ब्लड सैंपल और टिश्यू सैंपल सुरक्षित रख लिए गए. दौराला थाने की पुलिस अपने तरीके से इस हत्याकांड की जांच को सुलझाने के काम में लगी थी. लेकिन इस के अलावा एसएसपी अजय कुमार साहनी ने सर्विलांस टीम के इंचार्ज हैड कांस्टेबल मनोज दीक्षित को उन की टीम के साथ इस हत्याकांड की गुत्थी सुलझाने के काम पर लगा दिया. सर्विलांस टीम ने जांच तो शुरू कर दी, मगर पुलिस को तत्काल ऐसे साक्ष्य नहीं मिले, जिस से पुलिस मृतका की पहचान कर पाती या पुलिस के हाथ कातिल की गरदन तक पहुंचते.  वक्त धीरेधीरे गुजरता रहा और लोइया गांव में मिले अज्ञात महिला के शव की फाइल पर धूल की परतें जमती रहीं. कहते हैं कातिल कितना भी चालाक हो, लेकिन एक दिन पुलिस के हाथ उस की गरदन तक पहुंच ही जाते हैं.

2 जून, 2020 को मेरठ के एसएसपी अजय साहनी के कौन्फ्रैंस कक्ष में पत्रकारों की भीड़ जमा थी. कोरोना की महामारी का संकट पूरे जोरों पर था और लौकडाउन के कारण पूरा देश अपने घरों के अंदर था. लेकिन उस दिन एसएसपी ने एक साल पहले लोइया गांव में मिली अज्ञात लड़की की हत्या के राज से परदा हटा दिया. लोइया गांव के खेत में मिली वह लाश एकता जसवाल (20) की थी और उस की हत्या लोइया गांव में रहने वाले शाकेब ने अपने भाई मुशर्रत, अपनी पत्नी इस्मत, पिता मुस्तकीम, एक अन्य भाई नावेद की पत्नी रेशमा और गांव के रहने वाले दोस्त अयान के साथ मिल कर की थी.

एकता की हत्या करने वाले सभी 6 आरोपियों को सर्विलांस टीम के मुखिया मनोज दीक्षित ने अपनी टीम के कांस्टेबल शाहनवाज राणा, कांस्टेबल बंटी सिंह, महेश कुमार और सौरभ सिंह ने गहन जांच के बाद गिरफ्तार किया था. मांबाप की एकलौती बेटी थी एकता आरोपियों से पूछताछ के बाद जब एकता की हत्या का पूरा सच सामने आया तो लव जेहाद की एक ऐसी कहानी से परदा उठा, जिस से पता चला कि बिना विचार किए अंजान लड़कों के प्रेम जाल में फंसने वाली लड़कियां किस तरह लव जेहाद का शिकार हो कर अपनी जिंदगी को दांव पर लगा देती हैं.

एकता जसवाल मूलरूप से हिमाचल प्रदेश में कांगड़ा जिले की तहसील डेहरा के गांव चिनौर में रहने वाले कर्मवीर जसवाल और बबीता जसवाल की एकलौती बेटी थी. एकता के पिता कांगड़ा की एक ट्रांसपोर्ट कंपनी में ड्राइवर थे, जबकि मां घरेलू महिला. मध्यवर्गीय परिवार में जन्मी एकता के सपने पढ़लिख कर बड़ी नौकरी हासिल करने के थे. घर में कोई कमी नहीं थी, इसलिए मातापिता ने एकलौती बेटी की ख्वाहिशों को पूरा करने के लिए उसे पढ़नेलिखने की पूरी आजादी दी, मनचाही जिंदगी जीने का मौका दिया. कांगड़ा में अच्छे स्कूल नहीं थे, न ही ऊंची पढ़ाई करने का माहौल, इसलिए इंटरमीडिएट करने के बाद एकता पढ़ाई करने के लिए लुधियाना आ गई और बीकौम की पढ़ाई करने के लिए एक अच्छे कालेज में दाखिला ले लिया. पढ़ाई करने के साथ एकता अपने खर्चे चलाने के लिए पार्टटाइम जौब भी करने लगी थी.

धीरेधीरे उस ने बीकौम की पढ़ाई पूरी कर ली. एक साल पहले वह लुधियाना की एक इवेंट मैनेजमेंट कंपनी में काम करती थी और लुधियाना अंकुजा आनंद नगर, खब्बेवार गली नंबर 1 में बी-34 नंबर मकान में किराए का कमरा ले कर रहती थी. यहीं पर उस की जिंदगी में पंकज सिंह नाम का एक नौजवान आया. पंकज भी एक दूसरी इवेंट मैनेजमेंट कंपनी में नौकरी करता था. जल्द ही पंकज तथा एकता की दोस्ती प्यार में बदल गई. पंकज संपन्न और प्रतिष्ठित परिवार का युवक था. पंकज और एकता के बीच कुछ ही दिनों में इतनी प्रगाढ़ता हो गई कि एकता उस के साथ जिंदगी गुजारने के सपने देखने लगी. लेकिन पंकज एक ऐसा मनचला भंवरा था, इसलिए दूसरी लड़की से संपर्क में आने के बाद उस ने एकता से दूरी बना ली.

एकता की समझ में नहीं आ रहा था कि उस में आखिर ऐसी कौन सी कमी है जो पंकज उसे नजरअंदाज करने लगा है. पंकज को उस ने कई बार मनाने और जानने की कोशिश की लेकिन पंकज ने हर बार उसे झिड़क दिया. एकता पर पंकज को पाने का जुनून सवार था. वह किसी भी तरह पंकज को हासिल कर के अपनी लाइफ सेटल करना चाहती थी. पंजाब और हरियाणा ऐसी जगह है, जहां लोग टोनेटोटके और झाड़फूंक करने वाले तथाकथित तांत्रिकों पर जरूरत से ज्यादा विश्वास करते हैं. एकता ने भी तांत्रिक की वशीकरण विद्या के कई किस्से सुन रखे थे, लिहाजा उस ने पंकज को अपने वश में करने के लिए किसी तांत्रिक से वशीकरण उपाय कराने का मन बनाया.

एक समाचार पत्र में छपे विज्ञापन के आधार पर एक दिन उस ने फोन पर अमन नाम के एक तांत्रिक से बात की. अमन ने एकता को भरोसा दिलाया कि वह सौ फीसदी ऐसा उपाय कर देगा कि उस का आशिक पूरी तरह उस पर लट्टू हो जाएगा. प्रेमी को वश में करने के लिए गई एकता तांत्रिक के पास 2 दिन बाद ही एकता मोतीनगर स्थित तांत्रिक अमन के औफिस पहुंची. अमन तंत्रमंत्र का काम जरूर करता था लेकिन बातचीत में वह बेहद सलीकेदार था. पहनावे और शक्लसूरत से भी वह बेहद आकर्षक था. फीस तय होने के बाद एकता ने अमन को अपनी समस्या बताई. बातों ही बातों में अमन ने यह भी जान लिया कि एकता कांगड़ा में रहने वाले अपने परिवार से दूर लुधियाना में अकेली रहती है और अपने परिवार की इकलौती लड़की है.

अमन समझ गया कि एकता उस के लिए सोने का अंडा देने वाली मुर्गी साबित हो सकती है. क्योंकि उस के आगेपीछे रोकटोक करने वाला कोई नहीं था. लिहाजा अमन ने उस दिन के बाद और भी ज्यादा सलीके से रहना और बातचीत करना शुरू कर दिया. उस ने कुछ ऐसा चक्कर चलाया कि धीरेधीरे एकता पंकज को भूल कर सिर्फ अमन के बारे में सोचने लगी. अमन और एकता के बीच कुछ ही दिनों में एक तांत्रिक और पीडि़त वाले संबंधों की जगह दोस्ती के संबंध कायम हो गए. दोनों के बीच अब घंटों तक वाट्सऐप चैटिंग, कालिंग और फोन पर बात होने लगी. धीरेधीरे एकता को अमन से बात करतेकरते इस बात का भी आभास हो गया कि अमन कम पढ़ालिखा जरूर है लेकिन जिस काम को वो करता है उस में इतना पैसा है कि वह चाहे तो लाखों कमा सकता है. जब भी समय मिलता अमन एकता को कभी किसी रेस्टोरेंट में ले जाता तो कभी सिनेमा में मूवी दिखाता.

एकता के दिलोदिमाग से अब पंकज की मोहब्बत का जुनून लगभग पूरी तरह से उतर चुका था. अमन के साथ उस की दोस्ती धीरेधीरे दीवानगी की हद तक परवान चढ़ती जा रही थी. दोनों की दोस्ती को करीब डेढ़ महीने बीत चुका था कि इसी दौरान अमन को अपने पार्टनर तांत्रिक से पैसे के लेनदेन को ले कर झगड़ा हो गया. दरअसल अमन दिलशाद नाम के जिस तांत्रिक के औफिस में काम करता था, उस के ऊपर धीरेधीरे अमन का ग्राहक पटा कर लाने का 3 लाख रुपए का कमीशन जमा हो चुका था. एक दिन हुआ यूं कि लेनदेन के इसी विवाद में अमन और दिलशाद के बीच हाथापाई हो गई. दिलशाद ने अमन को अपने यहां से हटा दिया. इस के बाद अमन ने लुधियाना के किसी दूसरे तांत्रिक के साथ मिल कर काम शुरू कर दिया. लेकिन वहां भी एक महीने से ज्यादा अमन की नहीं पटी.

क्योंकि दिलशाद की तरह वह तांत्रिक भी आसामियों से मिलने वाला सारा पैसा खुद ही हजम कर लेता था. अब उस ने मन बना लिया कि वह अंजान लोगों के इस इलाके में काम ही नहीं करेगा. उस ने करनाल जाने की तैयारी कर ली. करनाल में उस के गांव के कई लड़के तंत्रमंत्र और टोनेटोटके का काम करते थे. उस ने सोचा क्यों न वह अपने दोस्तों के सहयोग से करनाल में अपना खुद का काम शुरू करे. लेकिन इस काम के लिए तो पैसे की जरूरत थी. अचानक उसे एकता का खयाल आया. उस ने सोचा क्यों न एकता को झांसे में ले कर उस से मोटी रकम ऐंठी जाए. करनाल छोड़ने से पहले अमन ने एकता से मुलाकात की और उसे पिछले दिनों में अपने साथ पार्टनर तांत्रिकों द्वारा किए गए धोखे के बारे में बताया. उस ने कहा कि वह करनाल जा रहा है, वहां जा कर वह कोई ठीया देख कर खुद का औफिस शुरू कर देगा. अपना काम होगा तो वह लाखों रुपए कमा लेगा. कामधंधा जमाने के बाद अमन ने एकता से शादी करने का भी वायदा कर लिया.

अमन करनाल में गांव के रहने वाले अपने दोस्तों के पास करनाल चला गया और वहां कुछ दिन में ही उस ने अपना एक दफ्तर खोल कर तंत्रमंत्र जादू टोने और वशीकरण का काम शुरू कर दिया. अमन ने किराए का एक कमरा भी ले लिया. कमरा लेने के बाद अमन ने एक दिन एकता को फोन किया. इधर अमन के करनाल जाने के बाद जैसे एकता पर मुसीबतों का दौर शुरू हो गया था. अचानक उस की नौकरी छूट गई. वह समझ नहीं पा रही थी कि क्या करे. ऐसे में उसे अमन की बेहद याद सता रही थी. अचानक उस दिन जब अमन का फोन आया तो उसे लगा जैसे डूबते को किनारा मिल गया हो. बातचीत में एकता ने उसे बता दिया कि उस की नौकरी चली गई है और वह खुद को अकेला महसूस कर रही है.

अमन ने कहा, ‘‘अब तुम लुधियाना छोड़ो, क्योंकि यहां मैं ने अपना औफिस खोल लिया है. सामान ले कर मेरे पास चली आओ. यहीं पर तुम्हारी नौकरी का भी इंतजाम कर दूंगा. इस के बाद हम दोनों यहीं पर अपनी गृहस्थी बसाएंगें.’’

अमन की बातें सुन कर एकता भविष्य के सुनहरे ख्वाब संजोने लगी. अमन ने उसे अपना पता भेज दिया और अगले कुछ दिन बाद ही एकता लुधियाना से अपना बोरियाबिस्तर समेट कर करनाल अमन के पास पहुंच गई. 1-2 दिन साथ रहने के बाद अमन ने एकता से कहा, ‘‘देखो एकता, अगर हमें अपना भविष्य सुनहरा बनाना है और अपने काम से मोटा पैसा कमाना है तो इस के लिए हमें कुछ मोटी रकम खर्च करनी होगी ताकि हम अपने काम को बड़े स्तर से कर सकें. इसलिए अगर तुम अपने परिवार से कुछ पैसा मांग कर मेरी मदद कर सको तो हमारी आगे की जिंदगी बहुत हसीन हो जाएगी.’’

प्रेमी की मदद करने के लिए एकता पहुंची अपने घर एकता अमन के प्यार में इस कदर दीवानी हो चुकी थी कि उस पर आंख मूंद कर विश्वास करने लगी थी. कुछ महीने पहले जो एकता अमन के पास किसी और के वशीकरण के लिए आई थी वह अब खुद अमन के वशीकरण का शिकार हो चुकी थी. अमन की बातों का एकता पर ऐसा असर हुआ कि वह पैसे लेने के लिए अपने परिवार के पास कांगड़ा चली गई. कांगड़ा में अपने घर पहुंच कर उस ने अपनी मां बबीता को यह नहीं बताया कि वह लुधियाना छोड़ कर करनाल चली गई है. उस ने यह बताया कि अमन नाम के एक लड़के से वह प्यार करती है.

‘‘कौन है, कहां का रहने वाला है और किस जाति का है?’’ मां ने पूछा

‘‘मां ये तो पता है कि वो मेरठ का रहने वाला है, लेकिन जाति का नहीं पता वैसे जितना मैं ने उसे जाना है, अच्छी जाति का ही होगा.’’

एकता ने जिस भोलेपन से जवाब दिया उसे देखसुन कर मां बबीता ने अपना सिर पीट लिया, ‘‘तेरा दिमाग तो ठीक है लड़की, जिस लडके से शादी करना चाहती है, यह तक नहीं पता कि वह किस जाति का है, गोत्र क्या है. अरे वह कुछ कामधाम भी करता है या उसे भी हमारी छाती पर ही ला कर पालेगी.’’ बबीता का पारा चढ़ने लगा.

‘‘देखो मां, वह अच्छाखासा पैसा कमाता है. लोगों की समस्याएं सुलझाता है. कंसलटेंसी का काम करता है.’’ एकता ने मां से अमन के असल कामधंधे की बात छिपा कर इस तरीके से उस के काम का परिचय दिया ताकि मां को अच्छा लगे.

‘‘देख लड़की तेरे पापा ने बड़ी मेहनत से एकएक पाई जोड़ कर तेरी शादी के लिए कुछ गहने बनवाए हैं और पैसा जोड़ा है. अब तू पढ़लिख चुकी है…बहुत हो चुका, छोड़ ये नौकरी और घर आ जा. कोई अच्छा सा लड़का देख कर तेरे हाथ पीले कर देंगे.’’ मां ने समझाया. मां का लहजा देख कर एकता भी समझ गई कि वह अमन से उस की शादी कतई नहीं करेंगी और न ही उस के लिए मातापिता से उसे कोई आर्थिक मदद मिलेगी. लिहाजा जल्दी ही एकता यह कह कर अपने घर से लुधियाना के लिए चली गई कि वह अंबाला में मामाजी के घर होते हुए लुधियाना चली जाएगी और कुछ दिन में नौकरी से सारा हिसाबकिताब कर के वापस यहां आ जाएगी.

लेकिन इस दौरान एकता ने अपने घर में मां की अलमारी में रखे करीब 3 लाख रुपए की नकदी और 12 लाख रुपए के गहने चुरा कर अपने बैग में रख लिए थे. क्योंकि वह मानती थी कि इन पैसों और गहनों पर तो उसी का अधिकार है. अब वह इन्हें जिस तरह चाहे अपने ऊपर खर्च करे. अपने ही घर से गहने और रुपया चुरा कर एकता अंबाला में अपने मामा के घर पहुंची और वहां एक रात रुकी. मामा अच्छे संपन्न व्यापारी थे. घर में रुपएपैसे और गहनों की कमी नहीं थी. उसी रात एकता ने अमन के प्यार की दीवानगी में अपने मामा के घर से करीब 2 लाख रुपए नकद और 7 लाख रुपए के गहने चुरा कर अपने बैग में रख लिए.

अगली सुबह जब तक किसी को कुछ पता चलता तब तक वह मामा के घर से लुधियाना जाने की बात कह कर निकल गई. एकता ने अपने माता और मामा के घर से करीब 25 लाख के गहने और नकदी चुरा ली थी. वह लुधियाना के बजाय सीधे करनाल पहुंच गई. एकता ने मातापिता और मामा के घर से चुराए गए नकद रुपए और गहने ले जा कर अमन के हाथों में सौंप दिए और बोली, ‘‘देखो अमन, मैं अपने घर से जेवर और रुपए चुरा कर ले तो आई हूं, लेकिन एक बात साफ समझ लो कि अब मैं अपने घर में नहीं जा सकती. मैं ने तुम पर भरोसा किया है, मेरे भरोसे का खून मत कर देना.’’

इतनी बड़ी रकम और लाखों के गहने देख कर अमन की खुशी की सीमा नहीं रही. उस ने महीनों की मोहब्बत के बाद आज पहली बार एकता को अपनी बांहों में भर लिया. उस के माथे पर एक प्यारभरी जुंबिश दे कर बोला, ‘‘कैसी बात करती हो पगली, मेरी दुनिया भी तो तुम तक ही सीमित है. तुम फिक्र मत करो, हम 1-2 दिन में ही शादी कर लेंगे और तुम्हें परिवार की चिंता करने की जरूरत नहीं है. मेरा परिवार भी तो तुम्हारा ही परिवार है. शादी के बाद मैं तुम्हें अपने परिवार वालों के पास ले चलूंगा. देखना मेरा परिवार तुम्हें इतना प्यार देगा कि तुम दुनिया को भूल जाओगी.’’

अमन की बातें सुन कर एकता की आंखें डबडबा आईं. एकता अपनी किस्मत पर इतराने लगी क्योंकि वह तो पंकज की चाहत में अमन से मिली थी, लेकिन उसे क्या पता था कि किस्मत उस के लिए पंकज से भी अच्छा जीवनसाथी चुन चुकी है. इधर जब एकता अपने परिवार और मामा के घर से नकदी और गहने चोरी कर के भागी तो अगले दिन तक ही उस के मातापिता और मामा के घर में पता चल गया कि वह घर से चोरी कर के भागी है. मामा और मामी एकता के मातापिता के पास पहुंचे तो उन्हें सारी बात पता चली. पूरा परिवार चिंता में डूब गया. क्या किया जाए इस पर विचार किया गया. एक बात तो साफ थी कि एकता ने अपने ही घर में चोरी करने का ये काम अमन नाम के अपने उस प्रेमी की मदद करने के लिए किया था, जिस से वह शादी करना चाहती थी.

बेटी नहीं मिली तो लिखाई थाने में गुमशुदगी परिवार ने लुधियाना जा कर एकता की तलाश करने का फैसला किया. लेकिन यह क्या, जब परिवार के लोग लुधियाना पहुंचे तो उन्हें पता चला कि एकता एक महीना पहले ही उस मकान को छोड़ कर जा चुकी थी, जहां वह रहती थी. एकता कहां गई है, किसी को भी इस बात का पता नहीं था. एकता के घर वाले समझ गए कि एकता पूरी तरह अमन नाम के लड़के के प्यार में पागल हो चुकी है. इसलिए अब एक ही चारा था कि एकता की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज करवा दी जाए. घर वालों ने पुलिस को यह बात तो नहीं बताई कि उन की बेटी अपने ही घर से बड़ी रकम और गहने चुरा कर भागी है, लेकिन उन्होंने लुधियाना के मोतीनगर थाने में उस की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराते हुए पुलिस को यह जरूर बताया कि उन की बेटी किसी अमन नाम के लड़के से प्यार करती थी और शायद उसी के बहकावे में आ कर भाग गई है.

मोतीनगर पुलिस ने एकता की गुमशुदगी का मामला दर्ज कर लिया और एक एएसआई को उस की तलाश तथा मुकदमे की जांच का काम सौंप दिया. पुलिस ने आसपास के सभी जिलों की पुलिस और नैशनल क्राइम रिकौर्ड ब्यूरो में एकता के फोटो और गुमशुदगी से जुड़ी सभी जानकारी भेज दी. एकता जब अपने परिवार में चोरी कर के अमन के पास आई थी तब यह बात मई, 2019 की थी. दूसरी तरफ जब एकता ने करीब 25 लाख रुपए की नकदी और गहने अमन को ले जा कर दिए तो उस ने करनाल में तंत्रमंत्र का काम करने वाले अपने 5-6 दोस्तों की उपस्थिति में एकता से घर में ही एक पंडित को बुला कर हिंदू रीतिरिवाज से शादी कर ली और अगले ही दिन वह एकता को ले कर अपने गांव दौराला चला गया.

दौराला में अमन ने पहले से ही अपने कुछ परिचितों की मदद से फोन पर बातचीत कर के किराए के एक मकान की व्यवस्था भी कर ली थी. अमन और एकता के पास अपने पहनने के कपड़े तथा जरूरत का कुछ सामान था. बाकी की घरगृहस्थी का जरूरी सामान उन्होंने वहां जा कर खरीद लिया. लेकिन सब से बड़ी बात यह थी कि एकता से शादी के बाद भी अमन ने उस के शरीर को छुआ तक नहीं था. एकता के पूछने पर वह हमेशा यही कहता कि कुछ दिन बाद वह अपने परिवार वालों से उसे मिलाने के लिए ले जाएगा तब परिवार वालों का आशीर्वाद लेने के बाद ही वह उस के साथ सुहागरात मनाएगा.

अपने परिवार और मातापिता के लिए ऐसे आदर्शवादी पति के मुंह से ये बातें सुन कर एकता का सिर गर्व से ऊंचा हो गया. उसे लगा कि उस ने अमन को अपना जीवनसाथी चुन कर कोई गलती नहीं की है. इस दौरान एकता ने अपनी मां को 1-2 बार वाट्सऐप पर मैसेज कर के यह बात जरूर बता दी थी कि उस ने अमन से शादी कर ली है और वह बहुत खुश है. साथ ही उस ने यह भी कहा कि उसे ढूंढने की कोशिश न करें. इस बीच करीब एक महीना गुजर गया. एकता को घर में अकेला छोड़ कर काम की तलाश में जाने की बात कर के अमन रोज कई घंटों के लिए कहीं चला जाता था. शाम को जब वह देर से आता तो पूछने पर एकता को यही बताता कि वह नया काम शुरू करने के लिए जगह की तलाश कर रहा है, जल्द ही उसे औफिस मिल जाएगा.

एकता से टालमटोल करता रहा अमन जब एक महीना पूरा हो गया तो एकता ने थोड़ा सख्त लहजे में अमन से पूछना शुरू कर दिया कि वह जल्द ही उसे अपने परिवार से मिला देगा और उन का आशीर्वाद ले कर उसे पत्नी का दरजा देगा लेकिन एक महीना होने के बाद भी वह न तो उसे परिवार से मिला रहा था और न ही कोई नया काम शुरू किया. इस तरह तो सारा पैसा भी खत्म हो जाएगा. एकता ने उस दिन थोड़ा सख्त लहजे में कहा कि उस ने अपने परिवार के साथ छल किया और उस पर भरोसा कर के बहुत बड़ी गलती की है. अमन को उस दिन लगा कि अब अगर उस ने एकता को जल्द ही पत्नी का दरजा नहीं दिया तो वह बगावत कर के उसे छोड़ कर चली जाएगी.

2 दिन बाद ईद का त्यौहार था. इस से एक दिन पहले अमन दोपहर को अचानक बाहर से काम निबटा कर घर पहुंचा और एकता को बांहों में भर लिया, ‘‘लो जी मैडम, आज वह खुशी का दिन आ गया, जब तुम्हें अपनी ससुराल वालों से मिलना है. जल्दी से तैयार हो जाओ, हमें गांव चलना है घरवालों के पास.’’  एकता की खुशी का ठिकाना नहीं रहा. इस दिन का वह कितनी बेसब्री से इंतजार कर रही थी जब वह पूरी तरह अमन की हो जाएगी. एकता झटपट तैयार हो गई. अमन उसे एक आटोरिक्शा में बैठा कर अपने गांव लोइया आ गया. लेकिन यह क्या अमन तो उसे किसी मुसलिम परिवार में ले आया था.  घर में मौजूद लोगों के मुसलिम लिबास, रहनसहन और बोलचाल देख कर साफ समझ आ रहा था कि वह जिस घर में आई है, वह एक मुसलिम परिवार है.

प्रेमी की असलियत जान कर बिफर पड़ी एकता एकता ने हैरतभरी निगाहों से अमन की तरफ देखा तो अमन बोला, ‘‘अरे देख क्या रही हो, यही मेरा परिवार है. ये मेरे अब्बू हैं, ये बड़े भाईजान और ये दोनों मेरी भाभीजान हैं.’’

‘‘लेकिन अमन तुम ने तो कभी नहीं बताया कि तुम मेरे धर्म के नहीं और तुम ने तो अपना नाम अमन बताया था.’’ एकता फटी आखों से अमन को देख कर बिफरते हुए बोली.

‘‘अरे..अरे मेरी प्यारी बीवी, इस में नाराज होने की क्या बात है. भई मेरा प्यार का नाम अमन ही है, इस में मैं ने झूठ कहां बोला. हां, वैसे घर वाले मुझे शाकेब कह कर बुलाते हैं. तुम ने तो अपना घरबार मेरे लिए ही छोड़ा है अब मेरा नाम शाकेब हो या अमन, मैं हिंदू हूं या मुसलमान क्या फर्क पडता है.’’

अमन जो वास्तव में शाकेब था, उस ने बड़ी ही धूर्तता के साथ एकता के कंधों को पकड़ कर कहा.

‘‘दूर हट जाओ मुझ से. खबरदार जो मुझे छूने की कोशिश की. तुम्हारा धर्म क्या है, तुम्हारा असली नाम क्या है, मेरे लिए यह बहुत मायने रखता है. तुम ने मेरे साथ छल किया है. इसलिए भूल जाओ कि अब मैं तुम्हारे पास रहूंगी. मुझे अभी अपने घर जाना है, अपने परिवार वालों के पास जाना है. मैं ने तुम्हारे लिए उन का जो दिल दुखाया है, उन से मिल कर मैं माफी मांगना चाहती हूं. तुम्हारी खातिर मैं ने अपने ही घर में चोरी की है. उन की मेहनत की कमाई वापस लौटा कर, मैं उन से माफी मांग कर अपने पाप को कम करना चाहती हैं.’’ एकता ने एक ही सांस में अपनी सारी भड़ास अमन उर्फ शाकेब पर निकाल दी.

दूसरी तरफ शाकेब जो अब तक खुद को अमन के रूप में पेश करता रहा था. उसे लग गया कि एकता के ऊपर चढ़ा उस के सम्मोहन का जादू अब टूट गया है और मामला बिगड़ चुका है. उस ने एक ही क्षण में फैसला कर लिया कि उसे क्या करना है. उस ने किसी तरह सब से पहले एकता को शांत कराया और उस से कहा कि वह उस के साथ किसी तरह की जोरजबरदस्ती नहीं करेगा. अगर वह उस के साथ नहीं रहना चाहती तो वह ईद से अगले दिन उस के घर भेज देगा और उस ने जो गहने और पैसे दिए हैं, उसे वापस दे देगा. शाकेब उर्फ अमन ने एक दिन शांति के साथ एकता को अपने घर पर ही एक मेहमान की तरह रुकने का अनुरोध किया तो एकता भी विरोध न कर सकी. शाकेब के इरादों से अनजान एकता एक दिन के लिए उसी घर में रुकने के लिए मान गई.

इस के बाद शाकेब ने एकता का अपने पूरे परिवार से बेहद सलीके से परिचय कराया. शाकेब के परिवार में उस के पिता मुस्तकीम के अलावा 4 भाई थे, जिन में शाकेब खुद सब से छोटा था. मां का इंतकाल हो चुका था. उस से बड़े 3 भाई मुशर्रत, नावेद और जावेद हैं. शाकेब के पिता पेशे से ड्राइवर हैं जबकि चारों भाई दौराला से बाहर अलगअलग शहरों में तंत्रमंत्र और झाड़फूंक का काम करते हैं  मुशर्रत की शादी इस्मत से हुई थी, जबकि नावेद की पत्नी रेशमा है, आशिया तीसरे नंबर के भाई जावेद की पत्नी थी, जो अपनी पत्नी के साथ अपनी ससुराल गया हुआ था. नावेद भी इन दिनों किसी अपराध में शामिल होने के कारण मेरठ जेल में बंद था.

एकता ने की अपने घर जाने की जिद एकता शाकेब के परिवार के बारे में जानने के बाद यह तो समझ गई थी कि उस का परिवार अच्छा नहीं है. शाकेब के साथ उस के गांव आने के बाद एकता को पूरी तरह आभास हो चुका था कि वह तथाकथित अमन के सम्मोहन में पड़ कर बुरी तरह फंस चुकी थी. लेकिन जिस तरह शाकेब ने उसे भरोसा दिया था कि वह ईद के अगले दिन उसे उस के पैसों के साथ सकुशल घर वापस पहुंचा देगा, उसे जानने के बाद वह सुकून महसूस कर रही थी कि चलो उसे अपनी भूल सुधारने का मौका मिल गया है. वह किसी तरह अगले दिन मनाई जाने वाली ईद का इंतजार करने लगी, ताकि उस के खत्म होते ही वह अपने परिवार के पास वापस लौट सके. रात में एकता ने शाकेब के पूरे परिवार के साथ मिल कर खाना खाया.

खाना खाने के बाद परिवार के सभी लोगों ने सोने से पहले कोल्डड्रिंक पी. शाकेब की भाभी रेशमा ने एकता को भी एक गिलास में डाल कर कोल्डड्रिंक पीने के लिए दी, जिस के बाद सभी लोग खुशनुमा माहौल में कुछ देर बात करने लगे. चंद मिनटों बाद एकता को नींद की उबासी आने लगी तो उस ने कहा कि उसे सोना है. यह सुनने के बाद सभी लोग उसे कमरे में सोने के लिए छोड़ कर बाहर चले गए. दरअसल अब तक जो घटनाक्रम हो रहा था, वह एक एक साजिश का हिस्सा था जिसे अब अंजाम दिया जाना था. जिन दिनों अमन बना शाकेब दौराला में एकता के साथ किराए का घर ले कर रह रहा था, उस वक्त वह रोज अपने घर वालों से मिलने के लिए आता था.

उस ने घर वालों को बता दिया था कि उस ने एक हिंदू लडकी को अपने जाल में फंसाया है और उस से दिखावे के लिए शादी भी कर ली है. क्योंकि उस ने लड़की को अपने बारे में यही बताया था कि वह हिंदू है. परिवार वालों को जब ये पता चला कि एकता शाकेब के प्यार में फंसने के बाद अपने घर से करीब 25 लाख रुपए के गहने व नकदी भी चुरा कर ले आई है तो सब बहुत खुश हुए. चूंकि एक दिन तो एकता के ऊपर अमन उर्फ शाकेब के मुसलिम होने की हकीकत पता चल ही जानी थी और उस के परिवार की हकीकत भी उजागर हो जानी थी. शाकेब का परिवार यह भी जानता था कि अगर शाकेब से हिंदू लड़की एकता निकाह के लिए राजी भी हो गई तो उन की बिरादरी के लोग उन का गैरमजहब में शादी के कारण जीना हराम कर देंगे. अगर शाकेब और एकता की शादी नहीं हुई तो यह भी तय था कि वह शाकेब को दी गई अपनी सारी रकम मांग लेगी.

इसलिए शाकेब ने अपने पिता, भाई और भाभियों के साथ मिल कर पहले ही यह साजिश तैयार कर ली थी कि एकता को अपने घर ला कर उस की हत्या कर दी जाए. इस से उसे एकता की रकम भी नहीं लौटानी पड़ेगी और उस से छुटकारा भी मिल जाएगा. एकता के नशे में बेसुध हो जाने के बाद शाकेब ने उस के कपड़े उतारे और नशे की अवस्था में ही उस के शरीर से अपनी हवस की भूख शांत की. एकता के शरीर से खिलवाड़ करने के बाद बिस्तर से उठ कर अंगड़ाई लेने के बाद शाकेब बुदबुदाया, ‘‘मूर्ख लड़की तुझे मेरे साथ सुहागरात मनाने की बड़ी जल्दी थी न…चल मरने से पहले मैं ने तेरी ये ख्वाहिश भी पूरी कर दी. अब अगले जन्म में हमारी मुलाकात होगी.’’

शाकेब ने उस के बाद दूसरे कमरों में बेसब्री से इंतजार कर रहे अपने भाई, भाभियों और पिता को बुलाया. इस के बाद उन्होंने मिल कर एकता की गला दबा कर हत्या कर दी. चूंकि पूरी साजिश पहले ही तैयार कर ली गई थी. एकता की लाश को भी ठिकाने लगाना था. इस काम के लिए शाकेब ने अपने ही गांव में रहने वाले एक कम उम्र के लड़के अयान को भी अपने साथ मिला लिया था. अयान कुछ दिनों से शाकेब के साथ मिल कर तंत्रमंत्र का काम सीख रहा था. शाकेब ने उसे 20 हजार रुपए भी देने का वायदा किया. एकता की हत्या करने के बाद शाकेब ने अपने भाई, पिता और अयान के साथ मिल कर ईद पर दी जाने वाली बलि की पहले बलकटी से एकता की गरदन काट कर उसे धड़ से अलग किया. उस के बाद दोनों हाथों को कंधे से काट कर अलग किया.

दरअसल सिर और दोनों हाथ काटने की खास वजह थी. शाकेब को डर था कि अगर कल को किसी वजह से एकता का शव बरामद भी हो जाए तो उस की पहचान न हो सके. क्योंकि उस के हाथ पर उस का अपना नाम गुदा हुआ था और दूसरे पर उस ने अमन का नाम गुदवाया हुआ था. इसीलिए शाकेब ने उस के दोनों हाथ भी धड़ से अलग कर दिए थे. एकता की हत्या के बाद उस के शरीर के चारों टुकड़ों को 4 अलगअलग बोरियों में भर कर उसी रात शाकेब अपने भाई व दोस्त के साथ मोटरसाइकिल पर लाद कर उन्हें ठिकाने लगाने के लिए ले गए. सब से पहले लोइया गांव में ही ईश्वर पंडित के खेत में गड्ढा खोद कर एकता के धड़ वाले हिस्से को दफना दिया गया. शव जल्द से गल जाए, इस के लिए शाकेब ने शव के ऊपर 5 किलो नमक डाल दिया और ऊपर से मिट्टी डाल दी.

धड़ को ठिकाने लगाने के बाद शाकेब ने भाई व दोस्त के साथ मिल कर एकता के सिर व दोनों कटे हुए हाथों को बोरी समेत गांव के आसपास के कीचड़ भरे तालाबों के किनारे दफना दिया. अगले दिन शाकेब के पूरे परिवार ने धूमधाम से ईद मनाई. उस दिन 5 जून, 2019 थी. ईद मनाने के कुछ दिन बाद ही शाकेब फिर से करनाल में आ कर अपने दोस्तों के साथ तंत्रमंत्र के काम में लग गया. लेकिन इस दौरान कहीं न कहीं उस के मन में एक डर भी बना रहा. वह जानता था कि एकता ने अपने परिवार को उस के बारे में बता रखा है और यह भी बता दिया है कि उस ने अमन से शादी कर ली है. इसलिए उस ने एकता के मोबाइल का सिम निकाल कर उस के वाट्सऐप तथा फेसबुक को खुद ही अपडेट करने का काम शुरू कर दिया. ताकि उस के परिवार को लगे कि एकता ठीक है.

शाकेब अमन बन कर एकता के वाट्सऐप तथा फेसबुक की गैलरी में पड़ी प्रोफाइल फोटो भी चेंज करता रहता था, जिस से एकता के परिवार को लगता कि वह खुश है. कभीकभी एकता की मां उसे मैसेज करती थी, जिस का वह चैटिंग के जरिए तो एकता बन कर जवाब देता मगर जब वह उस से फोन पर बात करने के लिए कहती तो वह एकता बन कर कह देता कि सौरी मम्मी, मैं फोन पर बात नहीं करूंगी. इधर कुछ दिन बाद 13 जून को कुत्तों ने ईश्वर पंडित के खेत में उस जगह को खोद दिया, जहां एकता की लाश को दबाया गया था. कुत्ता शव के एक हिस्से को मुंह में दबा कर जा रहा था तो गांव वालों पर ये भेद खुल गया और मामला पुलिस तक पहुंच गया.

सर्विलांस टीम ने खोला केस चूंकि पुलिस को एकता की लाश का केवल धड़ मिला था, इसलिए पुलिस के सामने सब से बडी चुनौती थी कि शव की शिनाख्त कैसे की जाए. इसलिए एसएसपी अजय साहनी ने अपनी सर्विलांस टीम को जांच के काम में लगा दिया. ये टीम एसएसपी के कैंप औफिस में उन्हीं की निगरानी में काम करती है और छोटी से छोटी जानकारी के बारे में एसएसपी को ही रिपोर्ट करती है. सर्विलांस टीम ने जब अपना काम शुरू किया तो उसे लोइया गांव या आसपास के इलाके में किसी भी महिला अथवा युवती के लापता होने की जानकारी नहीं मिली. अलबत्ता यह जरूर पता चला कि लोइया गांव के ज्यादातर नौजवान पंजाब व हरियाणा के अलगअलग स्थानों पर तंत्रमंत्र झाड़फूंक और टोनेटोटके, वशीकरण का काम करते हैं.

एसएसपी के निर्देश पर सर्विलांस टीम ने एक साथ 2 तरह से विवेचना के काम को आगे बढ़ाना शुरू कर दिया. टीम ने सब से पहले लोइया गांव से 13 जून से एक महीने पहले तक के उन तमाम फोन नंबरों का डं डाटा एकत्र किया जो उस वक्त वहां सक्रिय थे. सर्विलांस टीम ने पंडित ईश्वर चंद के खेत के आसपास से मिले मोबाइल फोनों के डंप डाटा की जांच शुरू करनी शुरू कर दी जो एक थका देने वाली प्रक्रिया थी. इसी के साथ सर्विलांस टीम ने डिस्ट्रिक्ट क्राइम रिकौर्ड ब्यूरो और स्टेट क्राइम रिकौर्ड ब्यूरो में दर्ज लापता युवतियों के बारे में सूचना एकत्र करनी शुरू की. लेकिन ब्यूरो से मिले कोई तथ्य शव से मेल नहीं खा रहे थे.

इस के बाद पुलिस ने यह पता लगाना शुरू किया कि इस गांव के कौनकौन से लोग दूसरे राज्यों में काम करते हैं. क्योंकि अगर मेरठ या आसपास के इलाकों की मृतक महिला होती तो अब तक उस के परिजन पुलिस से संपर्क कर चुके होते. पुलिस ने जब इस ऐंगल पर पड़ताल शुरू की तो पता चला कि करनाल और लुधियाना भी ऐसे शहर हैं, जहां इस गांव के युवक तंत्रमंत्र और वशीकरण का काम करते हैं. पुलिस की पड़ताल जब लुधियाना तक पहुंची तो उन शहरों में महिलाओं की रिपोर्ट खंगाली गई. आखिरकार, लुधियाना पहुंची मेरठ की सर्विलांस टीम के हाथ सफलता लग गई. पुलिस को पता चला कि लुधियाना के मोतीनगर इलाके में रहने वाली करीब 20 साल की एक युवती जिस का नाम एकता है, उस के परिवार वालों ने उस की मिसिंग रिपोर्ट दर्ज कराई है.

युवती की मिसिंग रिपोर्ट के साथ उस का फोटो भी था और उस के परिजनों का पता व फोन नंबर भी थे. पुलिस ने परिजनों से जब संपर्क साधा तो उन्हें पता चला कि उन की बेटी एकता ने तो अमन नाम के एक लड़के से शादी कर ली है. परिजनों ने बताया कि उन की बेटी को कुछ नहीं हुआ है क्योंकि वह तो वाट्सऐप पर उन से चैटिंग करती रहती है और अपना स्टेटस भी चेंज करती रहती है. हालांकि पुलिस निराश जरूर हो गई थी लेकिन फिर भी उस ने एकता और उस के प्रेमी अमन का मोबाइन नंबर उस के परिवार वालों से हासिल कर लिया.

मेरठ आने के बाद पुलिस ने इन दोनों नंबरों की काल डिटेल्स निकाल कर पड़ताल शुरू कर दी तो पता चला कि एकता का फोन तो कई महीनों से एक्टिव ही नहीं है. अलबत्ता उस के नंबर पर वाट्सऐप जरूर चल रहा है. जबकि अमन का जो नंबर है वह भी लुधियाना के ही किसी फरजी पते से लिया गया था. इसलिए पुलिस ने एक बार फिर लुधियाना का रुख किया. पुलिस ने लुधियाना में उन दफ्तरों की खाक छाननी शुरू की, जहां एकता काम करती थी. पुलिस का एकता के आखिरी दफ्तर में काम करने वाली उस की एक खास सहेली प्रीति (परिवर्तित नाम) से पता चला कि एकता जब वहां काम करती थी तो वह मोतीनगर में ही दिलशाद नाम के एक तांत्रिक के यहां काम करने वाले अमन से मिलने जाती थी.

तांत्रिक दिलशाद से मिली खास जानकारी अमन के बारे में यह सुराग मिलते ही सर्विलांस टीम की बांछें खिल गईं. बस फिर क्या था, पुलिस टीम ने दिलशाद को उठा लिया. दिलशाद से अमन के बारे में पूछा गया तो उस ने बता दिया कि उस के यहां अमन नाम का जो लड़का काम करता था, उस का असली नाम शाकेब था और वह अब उस के यहां काम नहीं करता. हां, दिलशाद ने इतना जरूर बताया कि अमन उर्फ शाकेब मेरठ के दौराला में लोइया गांव का रहने वाला है. इतनी जानकारी मिलते ही पुलिस टीम उछल पडी. क्योंकि जिस कातिल को वह दुनिया भर में ढूंढ रही थी, वह तो लोइया गांव में ही मौजूद था. इस के बाद का काम बहुत आसान था. दिलशाद से जो जानकारी मिली थी, उस के आधार पर पुलिस ने लोइया गांव के शाकेब के बारे में जानकारी हासिल कर ली.

20 मई, 2020 को सर्विलांस टीम ने शाकेब को उस वक्त उस के घर से उठा लिया जब वह परिवार से मिलने के लिए गांव की तरफ जा रहा था. बाद में शाकेब ने अपना गुनाह कबूल कर लिया और एकता की हत्या में सहयोग करने वाले अन्य नामों का खुलासा कर दिया. जिस के बाद पुलिस ने उसी रात को दबिश दे कर शाकेब के पिता, भाई, दोनों भाभियों और उस के दोस्त अयान को गिरफ्तार कर लिया. उसी रात पुलिस ने काल कर के एकता के घर वालों को भेज कर एकता की हत्या और उस के कातिलों के पकड़े जाने की पूरी जानकारी दे दी. घर वाले अगले ही दिन कांगड़ा से मेरठ पहुंच गए.

पुलिस ने सभी आरोपियों को साथ में ले जा कर उन स्थानों की पहचान की, जहां एकता के शव के दूसरे अंग ठिकाने लगाए थे. पुलिस टीम ने उन जगहों की गहराई से छानबीन की, लेकिन एकता के शव के बाकी हिस्से कहीं नहीं मिले. दरअसल वक्त इतना बीत चुका था कि शरीर के बाकी हिस्सों का मिलना अब वैसे भी नामुमकिन था. एकता के शव की सच्चाई स्थापित करने के लिए पुलिस ने उस के परिवार के लोगों के ब्लड सैंपल लिए. पुलिस ने एकता के शव के रिजर्व रखे गए अंश से फोरैंसिक जांच के बाद डीएनए कराने की प्रक्रिया शुरू की है ताकि यह साबित किया जा सके कि लोइया गांव में जो शव मिला था वह एकता का ही था.

पुलिस ने सभी आरोपियों की गिरफ्तारी के बाद उन की निशानेदही पर एकता का मोबाइल फोन, शाकेब का मोबाइल फोन, एकता के शव के टुकड़े करने में इस्तेमाल बलकटी और गड्ढा खोदने में इस्तेमाल फावड़ा बरामद कर लिया है. आरोपियों से विस्तृत पूछताछ व जांच के बाद मामले की जांच कर रहे विवेचक ने एकता हत्याकांड के मुकदमे में सबूत मिटाने की धारा 201, 147,148 व 149 भी जोड़ दी. पुलिस ने सभी आरोपियों को मेरठ के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रैट की अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. एक साल पुराने इस ब्लाइंड मर्डर केस की गुत्थी सुलझाने वाली सर्विलांस टीम को एसएसपी अजय साहनी ने 20 हजार रुपए का पुरस्कार दिया है.

—कथा पुलिस की जांच आरोपियों के बयान और पीडि़त परिवार से मिली जानकारी पर आधारित

 

Love Crime : 7 साल बाद जेल से रिहा हुए आशिक से कराया पति का कत्‍ल

Love Crime : अंशुल बावरा जब 7 साल की सजा काट कर जेल से बाहर आया तो उसे अपनी प्रेमिका निशा की याद आई. निशा की शादी हो चुकी थी और वह एक बेटी की मां भी थी. लेकिन अंशुल जब फोन पर बातें कर के उसे पुरानी यादों में ले गया तो वह पति, परिवार और बेटी को भूल कर…

निशा छत पर टकटकी लगाए रजत को उस वक्त तक देखती रही जब तक वह गली के नुक्कड़ पर नहीं पहुंच गया. गली के नुक्कड़ पर सुषमा स्कूटी लिए खड़ी थी. रजत के पास आते ही सुषमा स्कूटी से उतर गई और रजत ने स्कूटी थाम ली. ड़्राइविंग सीट पर पर वह खुद बैठा, जबकि सुषमा पीछे की सीट पर बैठ गई. रजत ने एक नजर गली में मकान की छत पर खड़ी निशा को देखा और हाथ हिला कर ‘बाय’ करते हुए स्कूटी आगे बढ़ा दी. उत्तर प्रदेश के मेरठ में रजपुरा गांव का रहने वाला रजत सिवाच उर्फ मोनू (27) मंगलपांडे नगर के बिजलीघर में सुपरवाइजर की नौकरी करता था. पिछले 4 साल से वह संविदा पर काम कर रहा था. सुषमा (परिवर्तित नाम) भी मंगलपांडे नगर के बिजली घर में ही काम करती थी.

एक तो रजत और सुषमा के घर एकडेढ़ किलोमीटर के दायरे में थे, दूसरा उन का दफ्तर भी एक ही था. यहां तक कि दोनों का ड्यूटी का समय भी एक ही रहता था, इसलिए पिछले कुछ महीने से दोनों एक ही वाहन से आते जाते थे. कभी रजत अपनी बाइक से जाता तो वह सुषमा को उस के घर से साथ ले लेता था और अगर सुषमा को अपनी स्कूटी ले जानी होती तो वह रजत को अपने साथ ले लेती थी. 29 अप्रैल, 2020 की सुबह भी ऐसा ही हुआ. रजत की मोटरसाइकिल के गियर में कुछ खराबी आ गई थी, इसलिए पिछले एक सप्ताह से रजत सुषमा के साथ उस की स्कूटी से बिजली घर जा रहा था.

उस दिन सुबह करीब सवा 8 बजे वह सुषमा की स्कूटी पर उसे पीछे बैठा कर बिजली घर जा रहा था. जब वह मवाना रोड पर विजयलोक कालोनी के सामने एफआईटी के पास पहुंचा तो अचानक पीछे से तेजी से आए स्पलेंडर बाइक सवार 2 युवकों ने अपनी बाइक स्कूटी के सामने अड़ा दी. सब कुछ इतनी तेजी से हुआ कि रजत को ब्रेक लगा कर स्कूटी रोकनी पड़ी. वह गुस्से से चिल्लाया, ‘‘ओ भाई, होश में तो है भांग पी रखी है क्या?’ बाइक पर सवार दोनों युवकों ने रूमाल बांध कर मास्क पहना हुआ था इसलिए उन्हें पहचान पाना मुश्किल था.

इस से पहले कि सुषमा और रजत कुछ समझते बाइक सवार युवकों में से एक बाइक से उतरा और कमर में लगा रिवौल्वर निकाल कर तेजी से स्कूटी के पास जा कर रजत के जबड़े पर पिस्टल सटा कर गोली चला दी. इतना ही नहीं, उस ने एक गोली और चलाई जो रजत के भेजे में घुस गई. एक के बाद एक 2 गोली लगते ही रजत स्कूटी से नीचे गिर गया. उस के शरीर से खून का फव्वारा छूट पड़ा. सब कुछ इतनी तेजी से अचानक हुआ था कि सुषमा कुछ भी नहीं समझ पाई, न ही उस की समझ में यह आया कि क्या करे. जब माजरा समझ में आया तो उस के हलक से चीख निकल गई और वह मदद के लिए चिल्लाने लगी. इतनी देर में वारदात को अंजाम दे कर दोनों बाइक सवार फरार हो गए.

दिनदहाड़े भरी सड़क पर हुई इस वारदात के कुछ ही देर बाद राहगीरों की भीड़ एकत्र हो गई, लोगों में दहशत थी. जिस जगह ये वारदात हुई थी वह इलाका रजत के घर से मात्र 2 किलोमीटर की दूरी पर था. बदहवास सी सुषमा ने सब से पहले अपने मोबाइल से रजत के पिता जोगेंद्र सिंह को फोन किया. जोगेंद्र सिंह ने तुरंत अपने भतीजे विपिन को फोन कर के ये बात बताई और परिवार के सदस्यों के साथ घटनास्थल की तरफ दौड़ पड़े. परिवार का एकलौता बेटा था रजत रजत के ताऊ का लड़का विपिन चौधरी रजपुरा गांव का प्रधान है. जैसे ही उसे अपने चाचा से रजत के ऊपर गोली चलने की सूचना मिली तो वह लोगों को साथ ले कर कुछ मिनटों में ही विजयलोक कालोनी के पास पहुंच गया.

विपिन चौधरी के पहुंचने से पहले ही रजत की मौत हो चुकी थी. जिस जगह घटना घटी थी, वह इलाका गंगानगर थाना क्षेत्र में आता था. लिहाजा विपिन चौधरी ने तुरंत गंगानगर थाने के एसएचओ बृजेश शर्मा को फोन कर के अपने भाई के साथ घटी घटना की सूचना दे दी. सुबह का वक्त ऐसा होता है जब रात भर की गश्त और निगरानी के बाद पुलिस नींद की उबासी में होती है. फिर भी पुलिस को घटनास्थल पर आने में मुश्किल से 10 मिनट का समय लगा. घटना की सूचना मिलते ही एएसपी (सदर देहात) अखिलेश भदौरिया, एसपी देहात अविनाश पांडे, फोरैंसिक टीम और क्राइम ब्रांच की टीम के अफसरों को ले कर मौके पर पहुंच गए. थोड़ी देर बाद एसएसपी अजय साहनी भी घटनास्थल पर पहुंच गए.

पुलिस अधिकारियों ने घटना को ले कर सब से पहले वारदात की प्रत्यक्षदर्शी सुषमा से जानकारी ली, उस के बाद रजत के घर वालों के बयान दर्ज किए गए. लेकिन किसी ने भी यह नहीं बताया कि रजत की किसी से कोई दुश्मनी थी. वहां पहुंची रजत की मां और पत्नी निशा दहाड़े मारमार कर रो रही थीं, जिस से माहौल बेहद गमगीन हो गया था. एसएसपी के निर्देश पर लिखापढ़ी कर के रजत के शव को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया गया. पुलिस के साथ थाना गंगानगर पहुंचे परिवार वालों की तहरीर पर एएसपी अखिलेश भदौरिया ने अज्ञात हत्यारों के खिलाफ भादंसं की धारा 302 के तहत हत्या का मुकदमा दर्ज करवा दिया. इस केस की जांच का काम एसएचओ बृजेश कुमार शर्मा को सौंपा गया. एसएसपी अजय साहनी ने गंगानगर पुलिस की मदद के लिए क्राइम ब्रांच की टीम को भी लगा दिया.

उसी शाम को पोस्टमार्टम के बाद रजत का शव उस के घर वालों को सौंप दिया गया. परिजनों ने उसी शाम रजत के शव का अंतिम संस्कार कर दिया. इस दौरान जांच अधिकारी बृजेश शर्मा ने उस इलाके का फिर से निरीक्षण किया, जहां वारदात हुई थी. वारदात के बाद हत्यारे जिस दिशा में भागे थे, संयोग से वहां कई सीसीटीवी कैमरे लगे थे. जांच अधिकारी के आदेश पर पुलिस ने उन सभी सीसीटीवी कैमरों की फुटेज अपने कब्जे में ले ली. एक पुरानी कहावत है कि हत्या जैसे हर अपराध के पीछे मुख्य रूप से 3 कारण होते है जर, जोरू और जमीन. यानी वारदात के पीछे या तो कोई पुरानी रंजिश हो सकती है, जिस की संभावना ना के बराबर थी.

क्योंकि रजत के परिवार ने अपने बयान में साफ कर दिया था कि न तो उन की, न ही उन के बेटे की किसी से कोई रंजिश थी और न ही इस की संभावना थी. वैसे भी रजत के बारे में अभी तक जो जानकारी सामने आई थी, उस के मुताबिक वह हंसमुख और मिलनसार प्रवृत्ति का लड़का था. वह केवल अपने काम से काम रखता था. एक आशंका यह भी थी परिवार की कोई जमीनजायदाद या प्रौपर्टी का कोई मामला हो. लेकिन परिवार ने बताया कि उन के परिवार में प्रौपर्टी से जुड़ा हुआ कोई विवाद नहीं है.

रजत अपने परिवार का एकलौता बेटा था. उस के पिता के नाम काफी संपत्ति थी, ऐसे में संपत्ति के लिए भी उस की हत्या हो सकती थी. इस के अलावा तीसरा अहम बिंदु था प्रेम प्रसंग. हत्या को जिस तरह से अंजाम दिया गया था, उस से इस बात की आशंका ज्यादा लग रही थी कि इस वारदात के पीछे कोई प्रेम त्रिकोण हो सकता है. पुलिस उलझी जांच में जिस वक्त रजत की हत्या हुई, उस वक्त वह अपनी दोस्त सुषमा के साथ औफिस जा रहा था. यह भी पता चला कि दोनों अक्सर साथ ही दफ्तर आतेजाते थे. जांच अधिकारी बृजेश शर्मा के मन में अचानक सवाल उठा कि कहीं ऐसा तो नहीं कि रजत और सुषमा के बीच कोई ऐसा संबध हो, जिस की वजह से रजत की हत्या कर दी गई हो.

इस आशंका के पीछे एक अहम कारण यह भी था क्योंकि पूछताछ में पता चला था कि उत्तराखंड के युवक से सुषमा की 10 दिन बाद ही शादी होनी थी. एक तरफ पुलिस टीमों ने क्राइम ब्रांच की मदद से कब्जे में ली गईं सभी सीसीटीवी कैमरों की फुटेज देखने का कामशुरू कर दिया, दूसरी तरफ पुलिस ने रजत व उस के कुछ करीबी दोस्तों के साथ सुषमा के मोबाइल नंबरों की सीडीआर निकलवा ली. इन सीडीआर की जांचपड़ताल कर के यह देखा जाने लगा कि रजत का ज्यादा संपर्क किस से था. पुलिस की नजर में शुरुआती जांच में ही सुषमा सब से ज्यादा संदिग्ध नजर आ रही थी. इसलिए पुलिस ने सुषमा और उस के एक भाई को पूछताछ के लिए हिरासत में ले लिया.

वारदात के दूसरे ही दिन रजत की पत्नी निशा भी थाने पहुंच गई. उस ने पुलिस के सामने ही सुषमा पर अपने भाइयों के साथ मिल कर रजत की हत्या का आरोप लगाया. उस ने सुषमा से जिस तरह के सवालजवाब किए, उस से भी पुलिस को लगने लगा कि कहीं न कहीं रजत और सुषमा के बीच असामान्य रिश्ते थे. हालांकि सुषमा अभी तक केवल यही कह रही थी औफिस में एक कर्मचारी के नाते ही वह रजत के साथ आतीजाती थी. इस से ज्यादा उन के बीच कोई रिश्ता नहीं था. लेकिन निशा इस बात पर जोर दे रही थी कि जब रजत पर हमला हुआ तो उस ने हत्यारों से मुकाबला क्यों नहीं किया.

सुषमा का कहना था कि गोली चलते ही वह डर गई थी. उस समय उस में कुछ भी सोचने समझने की शक्ति नहीं रह गई थी. पुलिस को सुषमा व उस के भाई पर शक होने का एक मजबूत आधार यह भी था कि जब सीसीटीवी फुटेज देखी गई तो उस में एक हत्यारोपी पैर में चप्पल पहने नजर आया. जब पुलिस सुषमा के भाई को पकड़ कर थाने लाई तो उस ने ठीक वैसी ही चप्पल पहनी हुई थी. सुषमा का भाई योगेश (परिवर्तित नाम) गुड़गांव की एक प्राइवेट कंपनी में काम करता था और लौकडाउन के चलते छुट्टी पर घर आया हुआ था. जब पुलिस ने उसे पूछताछ के लिए उठाया तो उस वक्त उस के पैर में वैसी ही चप्पल थी. सुषमा व उस के भाइयों पर शक का एक दूसरा आधार ये भी था कि सुषमा ने रजत से 8 हजार रुपए उधार लिए थे.

हालांकि जब पुलिस ने सुषमा से पूछताछ की तो उस ने इस बात से साफ इनकार किया कि उस का रजत से कोई लेनदेन का हिसाब था. लेकिन जब निशा ने लेनदेन की बात बताई तो सुषमा ने माना कि उस ने रजत से 8 हजार रुपए उधार लिए थे, जिस में से 2 हजार चुकता कर दिए थे. अब पुलिस को लगने लगा कि हो न हो कोई ऐसी कहानी जरूर है, जिसे सुषमा छिपा रही है. लग रहा था कि उस के भाइयों ने ही रजत की हत्या की है. क्योंकि सुषमा काफी दिनों से रजत को गांव के बाहर से स्कूटी पर बैठा कर औफिस ले जा रही थी. कातिलों की टाइमिंग भी एकदम परफेक्ट थी, जैसे ही वह रजत को ले कर गांव से निकली कातिलों ने पीछा शुरू कर दिया और सब से हैरानी की बात ये थी कि कातिलों ने सुषमा को छुआ तक नहीं. जबकि रजत को 2 गोली मारी और फरार हो गए.

सीसीटीवी फुटेज का सहारा पुलिस की कई टीमें अलगअलग बिंदुओं पर रजत हत्याकांड की गुत्थी सुलझाने में लगी थीं. मोबाइल की काल डिटेल्स व दोस्तों से पूछताछ में यह भी पता चला कि रजत की कई अन्य लड़कियों से भी दोस्ती थी. काल डिटेल्स से पुलिस को कुछ और क्लू भी मिले. इस दौरान पुलिस ने एफआईटी से ले कर रजपुरा तक 42 सीसीटीवी की फुटेज देखने का काम पूरा कर लिया. फुटेज में बाइक सवार तो मिले, पर उन की पहचान नहीं हो पाई. सुषमा से कातिलों के बारे में जितनी भी जानकारी मिली थी, उस के आधार पर पुलिस ने उन के स्केच तैयार कर लिए.

पुलिस और क्राइम ब्रांच की टीमें 2 हफ्तों तक सीसीटीवी फुटेज खंगालते हुए हर संदिग्ध से पूछताछ करती रहीं. पुलिस ने एफआईटी से सीसीटीवी को आधार बना कर भी बदमाशों की तलाश की. सीसीटीवी की फुटेज देख कर लग रहा था कि बदमाश गंगानगर से अम्हेड़ा होते हुए सिखेड़ा की तरफ गए थे और सिवाया टोलप्लाजा होते हुए मुजफ्फरनगर की तरफ निकल गए थे. आशंका थी कि शूटर मुजफ्फरनगर क्षेत्र के हो सकते हैं. पुलिस और क्राइम ब्रांच की टीम इस आधार पर भी मामले की पड़ताल करती रही. पुलिस ने दोनों शूटरों के स्केच के आधार पर जेल में बंद बदमाशों से भी पहचान कराने की कोशिश की.

2 सप्ताह की जांच में एक बात साफ हो गई थी कि सुषमा या उस के परिवार के लोग कुछ बातों को ले कर संदिग्ध जरूर लग रहे थे, लेकिन उन के खिलाफ अभी तक ऐसा कोई ठोस सबूत या आधार सामने नहीं आया था कि उन्हें गिरफ्तार किया जाता. इसलिए पुलिस उन्हें पूछताछ के लिए थाने बुलाती तो रही लेकिन इस के साथ दूसरी दिशा में भी अपनी जांच आगे बढ़ाती रही. दरअसल, पुलिस जब सीसीटीवी की जांच कर रही थी, तो उन्हें घटनास्थल से पल्लवपुरम तक के सीसीटीवी कैमरे में एक ऐसी बाइक दिखी, जिस में मुंह पर गमछा बांधे 2 सवार बैठे थे, बाइक भी एक जैसी थी बस फर्क इतना था कि वह बाइक जब घटनास्थल पर दिखी तो उस की नंबर प्लेट इस तरह मुड़ी हुई थी कि सीसीटीवी में उस का नंबर नहीं दिख रहा था.

लेकिन पल्लवपुरम के बाद जब वो बाइक दिखी तो उस की नंबर प्लेट एकदम सीधी थी और उस का नंबर भी साफ दिख रहा था. क्राइम ब्रांच की टीम ने जब जांच अधिकारी बृजेश शर्मा को उस बाइक का नंबर निकाल कर दिया तो शर्मा ने तत्काल बाइक के नंबर को ट्रेस करवा कर उस के मालिक का पता निकलवा लिया. पता चला वह बाइक कंकरखेड़ा के सैनिक विहार में रहने वाले इशांत दत्ता के नाम थी. लंबी कवायद के बाद पुलिस को एक बड़ा सुराग मिला था इसलिए पुलिस ने तत्काल एक पुलिस टीम को भेज कर इशांत दत्ता को थाने बुलवा लिया.

सीसीटीवी में जो स्पलेंडर बाइक दिखाई दे रही थी, उसी नंबर प्लेट की बाइक इशांत के घर पर खड़ी थी. पुलिस उसे भी अपने साथ थाने ले आई. थाने में इशांत दत्ता से पूछताछ का सिलसिला शुरू हुआ. इशांत नौकरीपेशा युवक था, जब पुलिस ने उसे बताया कि 29 मई को उस की बाइक का इस्तेमाल रजत सिवाच की हत्या करने में हुआ था, तो इशांत ने बिना एक पल गंवाए बता दिया कि उस से एक दिन पहले कंकरखेड़ा के श्रद्धापुरी में रहने वाला उस का दोस्त अंशुल उस की बाइक यह कह कर ले गया था कि उसे किसी काम से मुजफ्फरनगर जाना है 1-2 दिन में बाइक लौटा देगा.

चूंकि लौकडाउन के कारण इशांत को कहीं नहीं जाना था, इसलिए उस ने अपनी बाइक अंशुल को दे दी और अंशुल वादे के मुताबिक 2 दिन बाद उस की बाइक वापस लौटा गया. इशांत ने बताया कि उसे नहीं मालूम कि अंशुल ने उस की बाइक का इस्तेमाल किसी गलत काम में किया है. इशांत था बेकसूर पुलिस को पहले तो इशांत की बातों पर यकीन नहीं हुआ, लेकिन उस के मोबाइल की लोकेशन को ट्रेस करने के बाद यह बात साफ हो गई कि उस दिन वह अपने घर पर ही था. पुलिस ने पुख्ता यकीन करने के लिए आसपड़ोस के लोगों से भी इस बात की पुष्टि कर ली. उस दिन इशांत अपने घर पर ही था.

इशांत से पूछताछ के बाद यह बात तो साफ हो गई कि उस की बाइक अंशुल बावरा नाम का उस का दोस्त ले कर गया था. अब पुलिस के राडार पर अंशुल बावरा आ गया. इशांत दत्ता से अंशुल बावरा की सारी जानकारी और पता हासिल करने के बाद पुलिस ने अपना जाल बिछा दिया. अगले 24 घंटे में पुलिस ने अंशुल को भी हिरासत में ले लिया, जिस के बाद पुलिस ने सुषमा से उस की शिनाख्त कराई तो उस ने बता दिया कि जिन लोगों ने रजत के ऊपर हमला किया था, उन में से एक की कदकाठी बिल्कुल अंशुल के हुलिए से मेल खाती है. इस के बाद पुलिस ने जब अंशुल से अपने तरीके से पूछताछ की तो कुछ घंटों की मशक्कत के बाद वह टूट गया. उस ने कबूल कर लिया कि उस ने सरधना के दबथुआ में रहने वाले अपने एक दोस्त कपिल जाट के साथ मिल कर रजत की हत्या की थी.

अंशुल ने यह भी मान लिया कि उस ने सैनिक विहार निवासी अपने दोस्त इशांत से झूठ बोल कर उस की बाइक से वारदात को अंजाम दिया था. घटना के वक्त बाइक के पीछे लगी नंबर प्लेट को उस ने मोड़ कर ऊपर की तरफ कर दिया था ताकि किसी को नंबर पता न चल सके. घटना के बाद जब वे लोग पल्लवपुरम के पास पहुंचे तो उस ने नंबर प्लेट सीधी कर दी. इसी के बाद एक जगह लगे सीसीटीवी कैमरे में बाइक का नंबर आ गया होगा. इस से साफ हो गया कि रजत की हत्या करने में इशांत दत्ता उर्फ ईशू शामिल नहीं था. अब सवाल था कि आखिर अंशुल बावरा ने रजत की हत्या क्यों की. जब इस बारे में पूछताछ हुई तो पुलिस के पांव तले की जमीन खिसक गई. क्योंकि पिछले 2 हफ्ते से वह इस हत्याकांड के सुराग तलाशने में दूसरे जिलों तक हाथपांव मार रही थी, उसे क्या पता था कि रजत का कातिल उस के घर में ही छिपा बैठा था.

अंशुल से पूछताछ में पता चला कि उस ने रजत की पत्नी निशा के कारण रजत की हत्या को अंजाम दिया था. अब कपिल जाट के अलावा रजत की पत्नी भी उस की हत्या में वांछित हो गई. पुलिस ने कोई भी कदम उठाने से पहले रजत के परिवार वालों को विश्वास में लेना जरूरी समझा, इसलिए उन्होंने रजत के पिता जोगेंद्र सिंह और उस के कजिन रजपुरा के प्रधान विपिन चौधरी को बुला कर अंशुल बावरा से हुई पूछताछ के बारे में बताया. यह जानकारी मिलने के बाद उन्होंने पुलिस को निशा को हिरासत में ले कर पूछताछ करने की अनुमति दे दी. महिला पुलिस के सहयोग से उसी दिन निशा को भी हिरासत में ले लिया गया.

दूसरी ओर एक टीम पहले ही कपिल जाट की गिरफ्तारी के लिए भेज दी गई थी, उसे भी रात होतेहोते पुलिस ने धर दबोचा. इस के बाद तीनों आरोपियों को आमनेसामने बैठा कर पूछताछ की गई. जो कहानी पुलिस के सामने आई, उसे जानने के बाद सभी के होश उड़ गए, क्योंकि निशा की 7 साल पुरानी एक प्रेम कहानी ने जो अंगड़ाई ली थी, उस ने उस की जिंदगी में खूनी रंग भर दिए. खास बात यह कि खून के रंग भरने वाली चित्रकार वही थी. निशा का पहला प्यार था अंशुल कंकरखेड़़ा के श्रद्धापुरी का रहने वाला अंशुल बावरा (37) पहले से शादीशुदा और 2 बच्चों का पिता था और दूध की डेयरी चलाता था. निशा का परिवार लंबे समय से उस के पड़ोस में ही रहता था. निशा को अंशुल ने अपनी आंखों के सामने जवान होते देखा था.

निशा को वह उसी वक्त से पसंद करता था जब वह किशोरावस्था में थी. ऐसा नहीं था कि उस का प्यार एकतरफा था. रजत दबंग किस्म का फैशनपरस्त और चकाचौंध भरी जिंदगी जीने वाला नौजवान था. कोई भी लड़की उस की तरफ आकर्षित हो सकती थी. निशा भी अंशुल की तरफ आकर्षित थी और मन ही मन उसे पसंद भी करती थी. पड़ोस में रहने के कारण निशा बदनामी के डर से अंशुल से ज्यादा तो नहीं मिल पाती थी लेकिन जब भी दोनों की बातचीत होती तो उस से दोनों को ही यह आभास हो गया था कि वे एकदूसरे को पसंद करते हैं. दबी जबान से दोनों ने एक दूसरे से यह बात कह भी दी थी.

लेकिन इसी दौरान एक ऐसी घटना घटी, जिस की वजह से अंशुल और निशा के प्यार ने परवान चढ़ने से पहले ही दम तोड़ दिया. हुआ यह कि साल 2011 में नोएडा के एक व्यवसायी के अपहरण और उस से फिरौती वसूलने के आरोप में अंशुल को नोएडा पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया. इस मामले में उसे 6 साल जेल में गुजारने पड़े. जब 2017 में अंशुल जेल से बाहर आया तो उसे पता चला कि उस की माशूका निशा की शादी हो चुकी है. उस ने निशा के बारे में अपनी कालोनी के लड़कों से जानकारी हासिल करने के बाद किसी तरह उस का मोबाइल नंबर भी प्राप्त कर लिया. 3 साल पहले अंशुल ने निशा के नंबर पर फोन किया तो पहले वह अंजान नंबर देख कर सकपका गई.

लेकिन जब उसे पता चला कि फोन करने वाला अंशुल है तो उस की जान में जान आई. अंशुल ने पहली बार की बातचीत में ही निशा के सामने अपने दिल की शिकायत दर्ज करा दी. उस ने निशा से शिकायत भरे लहजे में कहा, ‘‘यार मैं ने तो तुम्हें अपने मन के मंदिर में बसा कर जीवन भर साथ निभाने के सपने देखे थे, किस्मत ने मेरे जीवन के साथ थोड़ा खिलवाड़ क्या किया कि तुम ने मुझे भुला ही दिया. मेरा इंतजार किए बिना घर बसा लिया.’’

निशा के पास कोई जवाब तो था नहीं, लिहाजा उस दिन उस ने सिर्फ यही कहा कि वह अपनी मम्मी से मिलने के लिए घर आएगी तब उस के साथ विस्तार से बात करेगी. उस दिन के बाद निशा और अंशुल की हर रोज फोन पर बातें होने लगीं. कुछ दिन बाद जब वह कंकरखेड़ा अपने मायके गई तो लंबे अरसे बाद अंशुल से मुलाकात हुई. अंशुल ने खूब गिलेशिकवे किए और बताया कि झूठे मुकदमे में फंसा कर उसे जेल भेज दिया गया था. जेल में वह हर दिन उसे याद कर के अपना वक्त गुजारता था. अंशुल की इस बात ने निशा को भावुक कर दिया, वह सोचने लगी कि उस ने तो अंशुल को जेल जाने के बाद ही भुला दिया था जबकि वह अपने प्यार की खातिर उसे 7 साल बाद भी नहीं भुला पाया.

निशा जब कालेज में पढ़ती थी, तब उस की जानपहचान रजत से हुई थी. कालेज के दिनों में दोनों के बीच इश्क शुरू हुआ और कालेज की पढ़ाई खत्म होतेहोते इश्क इस तरह परवान चढ़ा कि दोनों ने लव मैरिज कर ली. रजत जाट परिवार से था जबकि निशा वैश्य परिवार की थी. रजत का परिवार बिरादरी से बाहर निशा से उस की शादी के लिए तैयार नहीं था, लेकिन रजत ने परिवार के विरुद्ध जा कर निशा से शादी की. शादी के कुछ दिन तक वह परिवार से अलग रहा, लेकिन परिवार का एकलौता लड़का होने की वजह से घर वालों ने निशा से शादी को मंजूरी दे दी.

शादी के एक साल बाद ही निशा ने एक प्यारी सी बेटी को जन्म दिया, जो अब करीब 5 साल की है. रजत की मां स्वास्थ्य विभाग में नौकरी करती थीं, जो कुछ दिन पहले ही रिटायर हुई हैं. हांलाकि रजत के पिता के पास काफी जमीनजायदाद थी, लेकिन इस के बावजूद 3 साल पहले रजत ने बिजली विभाग में संविदा पर सुपरवाइजर की नौकरी जौइन कर ली थी. कुछ ही दिन पहले निशा दोबारा गर्भवती हुई थी. अतीत के तमाम खुशनुमा लम्हों के बावजूद 3 साल पहले जब अंशुल दोबारा निशा की जिदंगी में आया तो वह सब कुछ भूल कर फिर से उस के आगोश में समा गई.

पुराने प्यार ने ऐसी अंगड़ाई ली कि निशा यह भी भूल गई कि वह एक बेटी की मां है और उस ने उस शख्स से शादी की है जिस ने उस के प्यार की खातिर अपने परिवार से बगावत कर दी थी. 3 साल पहले फिर से ताजा हुई निशा की अंशुल से पुरानी मोहब्बत दिनोंदिन परवान चढ़ती गई. वह अपनी मां से मिलने का बहाना बना कर अक्सर कंकरखेड़ा जाती और फिर कभी किसी होटल में तो कभी किसी दोस्त के घर पर अंशुल के गले का हार बन कर अपने पति को धोखा देती. हालांकि हर घर में पतिपत्नी में छोटीमोटी बातों पर तकरार होती है, झगड़ा होता है यहां तक कि कभीकभी मारपीट तक हो जाती है. ऐसा ही रजत और निशा की जिदंगी में भी था.

लेकिन जब से अंशुल उस की जिंदगी में आया था, तब से रजत का ऐसा हर व्यवहार उसे अपने ऊपर अत्याचार लगने लगा था. जब वह अंशुल से रजत के इस व्यवहार के बारे में बताती तो वह आग में घी डालने का काम करता. अब अक्सर ऐसा होने लगा कि जब भी रजत व निशा के बीच किसी बात को ले कर तकरार होती तो वह अकसर झगड़े में बदल जाती थी. धीरेधीरे रजत और निशा के बीच मनममुटाव झगड़े और मारपीट में बदलने लगे थे. जब भी ऐसा होता तो निशा अकसर मायके जाती और वहां अंशुल की बांहों का सहारा उसे दिलासा देता.

निशा के ऊपर अब अंशुल के प्यार की खुमारी इस कदर चढ़ चुकी थी कि वह रजत को छोड़ने का मन बना चुकी थी. अंशुल ने भी उसे अपनी बनाने को कह दिया था कि वह उसे भगा कर उस से शादी कर लेगा. ऐसा ही हुआ भी, निशा ने घर से भागने की पूरी तैयारी भी कर ली. 22 मार्च को लौकडाउन होने से पहले निशा ने 20 मार्च को फोन कर के इस योजना के तहत रात के समय अंशुल को अपने घर के पीछे बुलाया और कपड़ों से भरे 2-3 बैग छत से नीचे फेंक दिए. जिन्हें ले जा कर अंशुल ने अपने घर में रख लिया. योजना यह थी कि अगले दिन निशा घर से कुछ गहने व नकदी ले कर किसी बहाने खाली हाथ निकल जाएगी और फिर अंशुल उसे कहीं ले जाएगा, जहां दोनों शादी कर लेंगे.

लेकिन अगले ही दिन जनता कर्फ्यू का ऐलान हो गया और उस के अगले ही दिन देश भर में लौकडाउन लग गया. फलस्वरूप दोनों की योजना पूरी नहीं हो सकी. कुछ दिनों बाद निशा ने अंशुल को फोन कर दोबारा कहा कि वह बहुत परेशान है. आ कर उसे ले जाए. इस के बाद अंशुल ने कहा कि रजत को मार देता हूं, जिस के जवाब में निशा ने कहा कि तुम्हें जो करना है करो, लेकिन मुझे यहां से ले जाओ. उस के बाद अंशुल और निशा ने मिल कर रजत की हत्या की योजना बनाई. इसी योजना को पूरा करने के लिए अंशुल ने पहले एक तमंचे का इंतजाम किया. उस के बाद उस ने किसी ऐसे साथी का साथ लेने का फैसला किया जो हिम्मत वाला हो. इस काम के लिए उस ने अपहरण केस में अपने साथी कपिल जाट को साथ रखने का फैसला किया.

उस ने वाहन के लिए सैनिक विहार में रहने वाले अपने दोस्त इशांत दत्ता से झूठ बोल कर 28 मई को उस की स्पलेंडर बाइक ले ली. उसी सुबह वह पहले तड़के दबथुआ गया और वहां से कपिल जाट को साथ ले कर गंगानगर पहुंचा. गंगानगर में मोटरसाइकिल पर सवार होने के दौरान ही अंशुल ने कपिल को बताया था कि उसे अपनी प्रेमिका के पति का काम तमाम करना है. हालांकि कपिल ने इस बात पर ऐतराज भी किया था कि अगर ऐसा काम करना ही था तो उसे पहले बताना चाहिए था, फिर कारगर योजना बना कर काम करते. लेकिन अंशुल ने उसे समझा दिया कि उस ने पूरी प्लानिंग कर ली है, बस वह बाइक चला ले गोली मारने का काम वह कर लेगा.

दूसरी तरफ निशा अंशुल को पहले ही बता चुकी थी कि रजत अपने औफिस में काम करने वाली लड़की के साथ 8 से साढ़े 8 बजे के करीब घर से निकलता है. इसीलिए अंशुल कपिल जाट के साथ 8 बजे ही गली के बाहर कुछ दूरी बना कर रजत के बाहर आने का इंतजार करने लगा. रजत जैसे ही सुषमा के साथ स्कूटी ड़्राइव करते हुए अपने औफिस के लिए चला तो अंशुल ने उस की स्कूटी का पीछा शुरू कर दिया. करीब 2 किलोमीटर पीछा करने के बाद मौका देख कर स्कूटी को ओवरटेक कर के रोका, फिर रजत को 2 गोली मार कर कपिल के साथ फरार हो गया.

रजत की हत्या के बाद अंशुल सीधे अपने घर पहुंचा. कपिल को उस ने कहीं छोड़ दिया था. दूसरी तरफ पड़ोस में रहने वाले निशा के घर वालों को जब पता चला कि उन के दामाद रजत की किसी ने हत्या कर दी है तो उस के घर में रोनापीटना शुरू हो गया. पता चलने पर अंशुल कालोनी के कुछ लोगों के साथ निशा के परिजनों को सांत्वना देने पहुंचा. जब निशा के घर वाले रजत के घर जाने की चर्चा करने लगे तो हमदर्दी दिखाते हुए अंशुल अपनी कार से उन्हें रजत के घर ले गया. निशा के परिजनों के साथ उस ने भी पारिवारिक सदस्य की तरह ही शोक व्यक्त किया. अंशुल के वहां आने से निशा इस बात को बखूबी समझ गई थी कि अंशुल ने अपना काम न सिर्फ सफाई से किया है बल्कि वह सुरक्षित भी है.

अंशुल ने खेला सेफ गेम इस दौरान अंशुल ने किसी को भी शक नहीं होने दिया. अगले दिन सुबह ही अंशुल ने इशांत दत्ता की मोटरसाइकिल उसे वापस लौटा दी. अंशुल निश्चिंत था कि उस ने रजत की हत्या इतनी सफाई से की है कि पुलिस के हाथ उस की गरदन तक नहीं पहुंचेंगे. लेकिन हर अपराधी से कहीं न कहीं चूक होती है. अंशुल की चुगली सीसीटीवी कैमरों ने कर दी. पुलिस ने घटनास्थल से ले कर कई किलोमीटर तक करीब 40 सीसीटीवी कैमरों से कडि़यां जोड़ते हुए वारदात में शामिल उस बाइक को खोज निकाला. इस तरह अंशुल बावरा, कपिल जाट तथा निशा तीनों पुलिस के चंगुल में फंस गए.

पुलिस ने हत्या में प्रयुक्त बाइक पहले ही बरामद कर ली थी बाद में अंशुल से पूछताछ के बाद हत्या में इस्तेमाल तमंचा भी बरामद कर लिया गया. पुलिस ने अंशुल के घर से ही निशा के कपड़ों से भरे बैग भी बरामद कर लिए. दरअसल, पुलिस ने जिन 20 नंबरों की सीडीआर खंगाली थी, उन में एक नंबर रजत की पत्नी निशा सिवाच का भी था. सीडीआर में पता चला कि रजत की हत्या से पहले निशा एक नए नंबर पर लगातार 2 महीने तक बातचीत कर रही थी. पुलिस ने जब उस नंबर की आईडी निकलवाई तो पता चला वह निशा की मां के नाम पर है. हालांकि यह नंबर 21 अप्रैल को बंद हो गया था. पता चला कि 2 महीने पहले निशा ने अपनी मम्मी की आईडी पर नया सिम ले कर अंशुल को दिया था.

21 अप्रैल को अंशुल इस सिम को निशा को दे कर चला गया था, जिस के बाद वह एक्टिव नहीं था. दरअसल, इस नंबर को निशा ने अपनी मां के नाम से ले कर अंशुल को इसलिए दिया था ताकि वे दोनों इसी नंबर पर बात करते रहें और निशा जब घर से भागे और पुलिस उस के मोबाइल की काल डिटेल्स निकाले तो कहीं भी अंशुल का नंबर ट्रेस न हो. पुलिस ने जिस वक्त निशा को गिरफ्तार कर के जेल भेजा था वह साढ़े 3 माह की गर्भवती थी. रजत के कत्ल और अंशुल से निशा के नाजायज रिश्तों की कहानी सामने आने पर रजत के घर वाले चाहते हैं कि निशा की कोख में पल रहे बच्चे का डीएनए टेस्ट कराया जाए.

यदि बच्चा रजत का है तो वे अपना लेंगे. हालांकि परिवार ने रजत निशा की 5 साल की बेटी को अपने पास ही रखा है. दूसरी तरफ निशा के पिता बेटी की करतूत से बेहद शर्मिदा हैं और कहते हैं कि वे उस की पैरवी नहीं करेंगे. यह अंशुल की अपने प्यार को पाने के लिए रची गई खूनी साजिश थी, जिस ने उसे सलाखों के पीछे पहुंचा दिया है.

—कथा पुलिस व आरोपियों से हुई पूछताछ पर आधारित

Aligarh News : पत्नी के समलैंगिक संबंधों के कारण में मारा गया पति

Aligarh News : 4 बच्चों की मां रूबी ने रजनी से बने समलैंगिक संबंधों के लिए अपने पति भूरी सिंह को रजनी के साथ मिल कर ठिकाने लगा दिया. बच्चों की तो छोडि़ए, अगर वह अपने और रजनी के भविष्य के बारे में सोचती तो…

जिला अलीगढ़, उत्तर प्रदेश. तारीख 10 मार्च, 2020. अलीगढ़ के थाना गांधीपार्क क्षेत्र की कुंवरनगर कालोनी. उस दिन होली थी. कुंवरनगर कालोनी के भूरी सिंह ने दोस्तों और परिचितों के साथ जम कर होली खेली. होली खेलने के बाद वह नहाधो कर सो गया. भूरी सिंह सटरिंग का काम करता था. शाम को सो कर उठने के बाद वह अपनी पत्नी रूबी से यह कह कर कि ठेकेदार से अपने रुपए लेने जा रहा है, घर से निकल गया. जब वह देर रात तक घर वापस नहीं आया तो पत्नी को उस की चिंता हुई. रात गहराने लगी तो रूबी ने किराएदार हरिओम की पत्नी रितू के मोबाइल से पति को फोन किया, लेकिन उस का फोन रिसीव नहीं हुआ.

दूसरे दिन 11 मार्च की सुबह 7 बजे लोगों ने कालोनी से निकलने वाले नाले में एक लाश उल्टी पड़ी देखी. इस जानकारी से कालोनी में सनसनी फैल गई. आसपास के लोग जमा हो गए. इसी बीच किसी ने पुलिस को सूचना दे दी. कुछ ही देर में थाना गांधी पार्क के थानाप्रभारी सुधीर धामा पुलिस टीम के साथ वहां पहुंच गए. इसी बीच भूरी सिंह की पत्नी रूबी को किसी ने नाले में लाश मिलने की जानकारी दी. रूबी तत्काल वहां पहुंच गई. थानाप्रभारी ने लाश को नाले से बाहर निकलवाया. मृतक की शिनाख्त घटनास्थल पर पहुंची उस की पत्नी रूबी व छोटे भाई किशन लाल गोस्वामी ने भूरी सिंह गोस्वामी के रूप में की.

थानाप्रभारी ने इस घटना की जानकारी अपने उच्चाधिकारियों को दे दी थी. कुछ ही देर में एसपी (सिटी) अभिषेक कुमार फोरैंसिक टीम के साथ मौकाएवारदात पर पहुंच गए. पति की लाश देख रूबी बिलखबिलख कर रो रही थी. मोहल्ले की महिलाओं ने उसे किसी तरह संभाला. पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया, फिर फोरैंसिक टीम ने भी जांच कर साक्ष्य जुटाए.  मृतक के मुंह पर टेप लगा था और उस के हाथपैर रस्सी से बंधे हुए थे. जांच के दौरान फोरैंसिक टीम ने देखा कि मृतक भूरी की गरदन पर चोट का निशान है. भूरी सिंह की हत्या किस ने और क्यों की, इस का जवाब किसी के पास नहीं था. सवाल यह भी था कि हत्यारे हत्या कर लाश को मृतक के छोटे भाई के घर के पास नाले में क्यों फेंक गए थे?

पुलिस का अनुमान था कि हत्यारे भूरी सिंह की हत्या किसी अन्य स्थान पर करने के बाद लाश को उस के छोटे भाई किशन गोस्वामी के घर के पास फेंक गए होंगे. होली का त्यौहार होने के कारण आवागमन कम होने से हत्यारों को लाश फेंकते किसी ने नहीं देखा होगा. पुलिस को मृतक की जेब से उस का मोबाइल भी मिल गया था. थानाप्रभारी ने रूबी से उस के पति के बारे में पूछताछ की. रूबी ने बताया, ‘मंगलवार रात 9 बजे पति के मोबाइल पर पेमेंट ले जाने के लिए ठेकेदार का फोन आया था. इस के बाद वह घर से निकल गए और फिर नहीं लौटे. काफी रात होने पर उन्हें फोन किया, लेकिन काल रिसीव नहीं हुई थी.’ परिवार वालों को यह जानकारी नहीं थी कि भूरी सिंह किस ठेकेदार के पास रुपए लेने गया था. पुलिस ने मौके की काररवाई निपटाने के बाद लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया.

दूसरे दिन पोस्टमार्टम की रिपोर्ट आई तो पता चला कि भूरी सिंह की हत्या तार अथवा रस्सी से गला घोटने से हुई थी. मृतक के भाई किशनलाल गोस्वामी की तहरीर पर पुलिस ने मृतक भूरी सिंह की पत्नी रूबी, उस के किराएदार डब्बू, डब्बू की पत्नी रजनी और दूसरे किराएदार हरिओम और डब्बू के एक दोस्त आसिफ के विरुद्ध हत्या का केस दर्ज कर लिया. रिपोर्ट में आरोप लगाया गया कि मृतक भूरी सिंह की पत्नी रूबी के किराएदार डब्बू से अवैध संबंध थे. इस का भूरी सिंह विरोध करता था. इस बात को ले कर रूबी और भूरी सिंह में आए दिन झगड़ा होता रहता था. घटना से 10 दिन पहले भी रूबी व किराएदार डब्बू ने मिल कर भूरी सिंह को पीटा था.

घटना वाली रात डब्बू ने अपने दोस्त आसिफ को घर बुलाया और पांचों नामजदों ने मिल कर भूरी की हत्या कर दी. हत्या के बाद लाश को मकान से कुछ दूर नाले में फेंक दिया. सुबह रूबी ने अपने आप को साफसुथरा दिखाने के लिए पुलिस को कपोलकल्पित कहानी सुनाई थी कि भूरी सिंह ठेकेदार से पेमेंट लेने गया था, जो लौट कर घर नहीं आया. पुलिस ने हत्या का मुकदमा दर्ज करने के बाद जांच शुरू कर दी. सीओ (द्वितीय) पंकज श्रीवास्तव ने बताया कि मृतक की लाश से उस का मोबाइल बरामद हुआ था, जिस की मदद से कुछ तथ्य सामने आए. पुलिस केस की गहनता से जांच कर रही थी. नतीजतन पुलिस ने घटना के दूसरे दिन ही इस हत्या की गुत्थी सुलझा ली.

दरअसल, पुलिस ने भूरी सिंह की हत्या के आरोप में मृतक की पत्नी रूबी व उस के किराएदार डब्बू की पत्नी रजनी को हिरासत में ले कर पूछताछ की. शुरुआती पूछताछ में दोनों पुलिस को बरगलाने की कोशिश करने लगीं. लेकिन जब सख्ती हुई तो दोनों एकदूसरे को देख कर टूट गईं और अपना जुर्म कुबूल कर लिया. 12 मार्च को एसपी (सिटी) अभिषेक कुमार ने पुलिस लाइन में प्रैसवार्ता के दौरान जो कुछ बताया, वह चौंकाने वाला था. दरअसल, सभी समझ रहे थे कि भूरी सिंह की हत्या उस की पत्नी रूबी के किराएदार डब्बू से अवैध संबंधों के बीच रोड़ा बनने के चलते की गई थी, लेकिन हकीकत कुछ और ही थी, जिसे सुन कर पुलिस ही नहीं सभी हक्केबक्के रह गए.

भूरी सिंह की हत्या का कारण था 2 महिलाओं के समलैंगिक संबंध. रूबी और रजनी ने अपना जुर्म कबूल कर लिया. दोनों ने इस हत्याकांड के पीछे जो कहानी बताई, वह चौंकाने वाली थी—

भूरी सिंह की हत्या पूरी प्लानिंग के तहत की गई थी. इन दोनों महिलाओं ने ही उस की हत्या की पटकथा एक माह पहले लिख दी थी, जिसे अंजाम तक पहुंचाया होली के दिन गया. भूरी सिंह की पहली पत्नी की मृत्यु के बाद उस का विवाह पत्नी की बहन यानी साली रूबी से करा दिया गया था. भूरी सिंह दूसरी पत्नी रूबी से उम्र में 11 साल बड़ा था. भूरी सिंह के पहली पत्नी से 3 बेटे व 1 बेटी थी. भूरी सिंह सीधेसरल स्वभाव का था. वह केवल अपने काम से काम रखता था. ऐसे व्यक्ति का सीधापन कभीकभी उस के लिए ही घातक साबित हो जाता है. भूरी सिंह जैसा था, उस की पत्नी रूबी ठीक उस के विपरीत थी. वह काफी तेज और चंचल स्वभाव की थी.

घर वालों ने उस की शादी भूरी सिंह से इसलिए की थी ताकि बहन के बच्चों की देखभाल ठीक से हो जाए. वह मजबूरी में भूरी सिंह का साथ निभा रही थी. अपनी ओर भूरी सिंह द्वारा ध्यान न देने से जवान रूबी की रातें करवटें बदलते कटती थीं. भूरी सिंह अपने बड़े भाई के मकान में किराए पर रहता था. पड़ोस में ही रजनी भी किराए के मकान में रहती थी. दोनों हमउम्र थीं. एकदूसरे के यहां आनेजाने के दौरान जानेअनजाने सोशल मीडिया पर अश्लील फोटो, वीडियो देखतेदेखते दोनों में नजदीकियां हो गईं, फिर दोस्ती गहरा गई.

दोनों के बीच समलैंगिक संबंध बन गए और एकदूसरे से पतिपत्नी की तरह प्यार करने लगीं. रूबी पत्नी तो रजनी पति का रिश्ता निभाने लगी. दोनों सोशल मीडिया की इस कदर मुरीद थीं कि अपना ज्यादातर समय मोबाइल पर बिताती थीं. दोनों अपने इस रिश्ते के वीडियो तैयार कर के टिकटौक पर भी अपलोड करती थीं. उन के कई वीडियो वायरल हो चुके थे. डब्बू और रजनी की शादी को 5 साल हो गए थे. उन का कोई बच्चा नहीं था. इसलिए भी दोनों महिलाओं के रिश्ते और गहरे हो गए. बाद में दोनों ने साथ रहने की कसमें खाते हुए कभी जुदा न होने का फैसला लिया.

इस बीच भूरी सिंह ने अपना मकान बनवा लिया था. रूबी और रजनी के बीच बने संबंध इस कदर प्रगाढ़ हो चुके थे कि घटना से एक साल पहले पति भूरी सिंह से जिद कर के रूबी ने अपने मकान की ऊपरी मंजिल पर एक कमरा और बनवा लिया था. फिर रजनी को उस के पति डब्बू के साथ किराएदार बना कर रख लिया, ताकि उन के संबंधों के बारे में किसी को पता न चल सके. एक ही मकान में रहने से अब दोनों महिलाएं बिना किसी डर के आपस में मिल लेती थीं. भूरी सिंह सटरिंग के काम के लिए सुबह ही निकल जाता था और देर शाम लौटता था. इस के चलते दोनों सहेलियों में पिछले 2 सालों में गहरे समलैंगिक संबंध बन गए थे. दोनों एकदूसरे से बिना मिले नहीं रह पाती थीं.

इन अनैतिक संबंधों को बनाए रखने के लिए दोनों काफी गोपनीयता बरतती थीं. फिर भी उन की पोल खुल ही गई. एक माह पहले ही भूरी सिंह को अपनी पत्नी रूबी  और किराएदार रजनी के बीच चल रहे अनैतिक संबंधों का पता चल गया. दोनों महिलाओं के बीच चल रहे प्रेम संबंधों का पता चलने के बाद भूरी सिंह के होश उड़ गए. वह परेशान रहने लगा. उस ने इन अनैतिक संबंधों को गलत बताते हुए विरोध किया. उस ने पत्नी रूबी को समझाया और रजनी से दूर रहने को कहा. इन्हीं संबंधों को ले कर दोनों में विवाद होने लगा. भूरी सिंह ने रूबी को सुधर जाने की हिदायत देते हुए कहा कि वह अपने मकान में रजनी को किराएदार नहीं रखेगा.

दूसरे दिन भूरी सिंह के काम पर जाने के बाद रूबी ने यह बात रजनी को बताई. भूरी सिंह उन के प्रेम संबंधों में बाधक बन रहा था, इस से दोनों परेशान हो गईं. काफी विचारविमर्श के बाद दोनों ने राह के रोड़े भूरी सिंह को रास्ते से हटाने का फैसला कर लिया. इस के बाद भी दोनों के संबंध चलते रहे. हां, अब दोनों थोड़ी होशियारी से मिलती थीं. होली वाले दिन शाम को रूबी और रजनी ने भूरी सिंह को जम कर शराब पिलाई. इस के चलते भूरी सिंह नशे में बेसुध हो गया, तो दोनों ने उस के हाथपैर रस्सी से बांधे और मुंह पर टेप लगाने के बाद रस्सी से गला घोंट कर हत्या कर दी.

रात होने पर दोनों ने लाश को पड़ोस में रहने वाले छोटे भाई किशनलाल के घर के पास नाले में फेंक दिया ताकि शक भाई  के ऊपर जाए. बुधवार को कुंवर नगर कालोनी में नाले में उस का शव मिला. पुलिस द्वारा पूछताछ करने पर रूबी ने अफवाह फैला दी कि उस का पति भूरी सिंह ठेकेदार से रुपए लेने की बात कह कर घर से निकला था, लेकिन देर रात तक जब घर वापस नहीं आया, तब उस ने किराएदार हरिओम की पत्नी रितू के फोन से काल थी. जबकि हकीकत वह स्वयं जानती थी. पुलिस ने इस हत्याकांड का खुलासा करने के साथ ही दोनों महिलाओं की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त रस्सी व टेप बरामद कर लिया. दोनों महिलाओं को न्यायालय में पेश करने के बाद जेल भेज दिया गया.

हालांकि भारतीय दंड संहिता की धारा-377 को वैध कर दिया गया है यानी समलैंगिकता अब हमारे देश में कानूनन अपराध नहीं है, अर्थात आपसी सहमति से 2 व्यस्कों के बीच समलैंगिक संबंध अब अपराध नहीं रहा. लेकिन हमारे देश में अभी तक इसे पूरी तरह अपनाया नहीं गया है. इसी के चलते लोग अपने संबंधों को समाज में स्थापित करने के लिए अपराध की राह पर चल पड़ते हैं. भूरी सिंह हत्याकांड के पीछे भी यही कारण प्रमुख रहा. दोनों महिलाओं के अनैतिक संबंधों के चलते उन के परिवार उजड़ गए. भूरी सिंह की मौत के बाद उस के चारों अबोध बच्चे अनाथ हो गए.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Family Dispute : पत्नी ने साजिश रचकर पति को गोली से मरवाया

Family Dispute : राजनीति में पैसा भी है और पावर भी, लेकिन इन चीजों को पचाना सब के बस की बात नहीं होती. रणजीत जमीन से उठ कर एक खास मुकाम तक भी पहुंच गया और 2-2 महिलाओं से शादी भी रचा ली, लेकिन उस ने सोचा भी नहीं होगा कि…

बात सन 2000 की है. गोरखपुर के कैंट थाना क्षेत्र इलाके के चेतना तिराहे पर एक नुक्कड़ नाटक चल रहा था. नाटक के कलाकार ‘इंकलाब जिंदाबाद’ के नारे लगा रहे थे. ये लोग देशभक्ति से ओतप्रोत नाटक का मंचन करते हुए लोगों को जागरूक कर रहे थे. सामान्य कदकाठी और गेहुंआ रंग का एक युवक नाटक का निर्देशन कर रहा था. वही कलाकारों का लीडर था. उस का नाम था रणजीत कुमार श्रीवास्तव उर्फ रणजीत बच्चन. सदी के महानायक अमिताभ बच्चन से प्रेरित हो कर रणजीत ने अपने नाम के आगे बच्चन शब्द जोड़ लिया था. दरअसल, रणजीत रंगमंच का एक उम्दा कलाकार था. कला की दुनिया में वह नाम कमाना चाहता था, इसलिए सतत प्रयासरत था.

‘इंकलाब जिंदाबाद’ के नारे सुन कर एक युवती के पांव थम से गए. उसे नाटक इतना भाया कि वह नाटक खत्म होने तक वहीं जमी रही. वह युवती पूर्वांचल मैराथन की प्रथम विजेता कालिंदी शर्मा थी, जो मूलरूप से कुशीनगर जिले के थाना नेबुआ में आने वाले भंडार बिंदौलिया की रहने वाली थी. उस वक्त वह गोरखपुर के शाहपुर इलाके के असुरन चौक के पास अपने मातापिता और 5 बहनों के साथ रह रही थी. नुक्कड़ नाटक के समापन के बाद कालिंदी ने कलाकारों से पूछा कि तुम्हारा लीडर कौन है? उन में से एक कलाकार ने रणजीत बच्चन की ओर इशारा कर के बताया कि वही हमारे लीडर हैं. नाटक का मंचन उन्हीं के निर्देशन में होता है.

कालिंदी शर्मा ने रणजीत बच्चन से मुलाकात की और अपने बारे में बताया. कालिंदी का परिचय जान कर रणजीत काफी प्रभावित हुआ. इस मुलाकात के बाद दोनों में दोस्ती हो गई. दरअसल, कालिंदी की चाहत थी कि वह देश के लिए कुछ करे. रणजीत की सोच भी यही थी कि वह कुछ ऐसा करे, जिस से उस का नाम हो. दोनों की एक ही सोच थी, कुछ बड़ा करने की. अब तक दोनों अलगअलग थे. दोनों की सोच एक जैसी निकली तो दोनों की दिशाएं एक हो गईं. इसी बीच कालिंदी के जीवन के साथ एक नया कीर्तिमान जुड़ गया था. मैराथन दौड़ में प्रथम आने के आधार पर उसे नेहरू युवा केंद्र के सांस्कृतिक कार्यक्रम हेतु 2 साल के लिए एनएसबी सदस्य बना दिया गया था. संस्थान की ओर से उसे समाज को जागरूक करने वाले कुछ कार्यक्रम करने को कहा गया था, उस में नुक्कड़ नाटक का भी कराया जाना था. विषय था सारक्षरता.

कालिंदी ने रणजीत के साथ मिल कर नाटक का प्रस्तुतीकरण कराया जिस से लोग काफी प्रभावित हुए. कालिंदी के इस काम से संस्थान के निदेशक खुश हुए. इस मंचन के बाद से कालिंदी के दिल में रणजीत के लिए सौफ्ट कौर्नर बन गया, कह सकते हैं कि वह रणजीत को चाहने लगी थी. 40 वर्षीया कालिंदी शर्मा 5 बहनों में सबसे बड़ी थी. उस के पिता परमात्मा शर्मा प्राइवेट नौकरी करते थे. उन की आमदनी बहुत कम थी. उसी से परिवार के भरणपोषण के साथसाथ बेटियों की पढ़ाई का खर्चा भी होता था. कालिंदी परमात्मा शर्मा की सब से बड़ी संतान थी. कालिंदी ने अपनी लगन और परिश्रम की बदौलत समाजशास्त्र से परास्नातक की डिग्री ली.

करीब 45 वर्षीय रणजीत कुमार श्रीवास्तव उर्फ रणजीत बच्चन मूलरूप से गोरखपुर के गोला थाना क्षेत्र के अहिरौली लाला टोला का रहने वाला था. उस के पिता ताराशंकर श्रीवास्तव सिंचाई विभाग में ट्यूबवेल आपरेटर थे. कहने को तो ताराशंकर मूलरूप से अहिरौली गांव के निवासी थे, लेकिन 4 दशक पहले उन्होंने अपना गांव छोड़ दिया था. वह परिवार सहित गोरखपुर आ कर बस गए थे. 20 साल पहले सन 2000 में ताराशंकर की मृत्यु हो गई थी. पिता की मृत्यु के बाद परिवार की सारी जिम्मेदारी तीसरे बेटे रघुवंश कुमार श्रीवास्तव के कंधों पर आ गई थी. बाद में उन के 2 बड़े बेटों पप्पू और राजेश की भी बीमारी से मौत हो गई. रघुवंश अपनी जिम्मेदारियों को बखूबी अंजाम देते रहे.

ताराशंकर की सभी संतानों में सब से कुशाग्र बुद्धि वाला उन का सब से छोटा बेटा रणजीत था. उस में कुछ नया करने की जिजीविषा रहती थी. होश संभालने के बाद जब वह कुछ समझदार हुआ तो बड़ा हो कर फिल्मी दुनिया में जाने की सोचने लगा. रणजीत गांव के कुछ युवकों की टोली बना कर नुक्कड़ नाटक किया करता था. इसी नुक्कड़ नाटक के जरिए उस की मुलाकात कालिंदी से हुई. सन 2002 के जनवरी में कालिंदी के मन में एक योजना आई. ॒यह योजना थी साइकिल यात्रा से देश में शांति का संदेश फैलाना. कालिंदी ने यह बात रणजीत को बताई तो वह खुश हुआ. रणजीत ने कालिंदी की साइकिल यात्रा पर मुहर लगा दी. रणजीत बच्चन ने कालिंदी सहित अपनी नाटक मंडली के 16 सदस्यों सहित यात्रा की तैयारी कर ली. टीम का नेतृत्व उस ने अपने हाथों में ले लिया.

4 फरवरी, 2002 को रणजीत बच्चन के नेतृत्व में साइकिल से भारत भ्रमण यात्रा शुरू हुई. आखिरी समय में सिर्फ कालिंदी और रणजीत बच्चन ही बचे रहे. 7 साल 10 महीने 14 दिन में दोनों ने भारत, नेपाल और भूटान सहित साइकिल से 1 लाख 32 हजार किलोमीटर की यात्रा तय कर के एक नया कीर्तिमान स्थापित किया था. इस उपलब्धि के लिए लिम्का बुक औफ रिकौर्ड्स में दोनों के नाम दर्ज हुए. इसी यात्रा के दौरान फरवरी, 2005 में कालिंदी और रणजीत बच्चन ने महाराष्ट्र के नासिक में एक मंदिर में गंधर्व विवाह कर लिया था. लेकिन दोनों ने अपने प्रेम विवाह को घरपरिवार और समाज से छिपा कर रखा. फिर जब बात खुली तो 9 साल बाद 31 मार्च, 2014 को परिवार वालों ने इस शादी पर अपनी स्वीकृति की मोहर लगा दी.

साइकिल यात्रा के दौरान सरकार और लोगों से काफी पैसा मिला था. उन पैसों से रणजीत ने गोरखपुर के गुलरिहा थानाक्षेत्र के पतरका टोला में अपने नाम से एक जमीन खरीद ली. उस जमीन पर रणजीत अपनी मां के नाम पर कौशल्या देवी वृद्ध एवं अनाथ आश्रम खोलना चाहता था. योजना पर काम भी शुरू किया गया, लेकिन यह योजना पूरी हो पाती, इस से पहले ही उस की हत्या हो गई. नुक्कड़ नाटकों से न तो कोई मुकाम मिलने वाला था और न ही दौलत. रणजीत यह बात समझ गया था. फलस्वरूप उस ने अपनी दिशा बदल दी, लेकिन लक्ष्य वही रहा. उन दिनों प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी की सरकार थी.

सत्ताधारी दल के साथ रहना मुफीद था, इसलिए रणजीत ने जुगाड़ लगा कर बसपा की सदस्यता ग्रहण कर ली. लेकिन उस ने जो सोचा था, वह नहीं हो सका. इस पर रणजीत ने बसपा छोड़ कर समाजवादी पार्टी की सदस्यता ले ली. सन 2013 में उत्तर प्रदेश में विधानसभा का चुनाव होने वाला था. साइकिल समाजवादी पार्टी का चुनाव चिह्न है. चुनाव में रणजीत ने कालिंदी के साथ मिल कर साइकिल यात्रा के जरिए सपा के लिए खूब प्रचार किया, जिस का परिणाम सकारात्मक निकला. चर्चा में बने रहने के लिए रणजीत कुछ न कुछ करता रहता था. इस के लिए वह कभी महापुरुषों की प्रतिमा सफाई अभियान, कभी इंसेफेलाइटिस जागरूकता तो कभी पल्स पोलियो अभियान चलाता रहता था. शोहरत हासिल करने के लिए उस ने पानी पर साइकिल तक चलाई थी, लेकिन उसे मनचाहा मुकाम नहीं मिला.

रणजीत बच्चन का सितारा उस समय बुलंदियों पर पहुंच गया, जब प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार बनी थी. अखिलेश यादव के मुख्यमंत्री बनने पर रणजीत को काफी महत्व मिला. उसे राज्यमंत्री का दर्जा दे दिया गया. रणजीत और कालिंदी के काम से खुश हो कर अखिलेश यादव ने दोनों को 5-5 लाख का पुरस्कार भी दिया. रणजीत ने कालिंदी के हिस्से के भी पैसे खुद रख लिए थे. इस के बाद दोनों ने लखनऊ की ओसीआर बिल्डिंग के बी-ब्लौक के फ्लैट नंबर 604 आवंटित करा लिए था. राज्यमंत्री का दर्जा मिलने के बाद रणजीत बच्चन के शौक भी बढ़ गए थे. बाइक से चलने वाले रणजीत ने अब कार लेने का मन बना लिया था. नवंबर, 2014 के अंतिम सप्ताह में रणजीत ने ओएलएक्स पर एक एक्सयूवी कार देखी. कार उसे पसंद आ गई. वह कार लखनऊ के संजय श्रीवास्तव के नाम पर रजिस्टर्ड थी.

जय श्रीवास्तव की बेटी स्मृति वर्मा ने कार बेचने के लिए ओएलएक्स साइट पर डाल रखी थी. स्मृति वर्मा लखनऊ की विकास नगर कालोनी के आवास संख्या- 2/625 में रहती थी. साइट पर कार के साथ स्मृति का फोन नंबर भी था. बातचीत के बाद सौदा पक्का हो गया तो 27 नवंबर को रणजीत दोस्तों के साथ वाहन की डिलिवरी लेने लखनऊ स्थित स्मृति के घर विकास नगर पहुंच गया. रणजीत बच्चन ने जब दूधिया रंगत वाली बला की खूबसूरत स्मृति को देखा तो उसे अपलक देखता रह गया. एक ही नजर में स्मृति रणजीत की आंखों के रास्ते उस के दिल में उतर गई. उस ने तय कर लिया कि सौदा चाहे कितना भी मंहगा हो, तय कर के ही रहेगा. पेशगी के तौर पर रणजीत ने स्मृति को साढ़े 4 लाख रुपए नकद दे दिए. बाकी के रुपए कागजात हैंडओवर होने के बाद देना तय हुआ. इस पर स्मृति मान गई तो वह कार ले कर गोरखपुर आ गया.

इस के बाद स्मृति और रणजीत के बीच मोबाइल पर बातचीत होने लगी. बातोंबातों में रणजीत को पता चला कि स्मृति पिता के स्थान पर कोषागार विभाग में कनिष्ठ लेखाकार है. रणजीत ने जब से स्मृति को देखा था, उस का दिन का चैन और रात की नींद उड़ गई थी. उस के दिमाग में एक ही बात उछलकूद मचा रही थी कि चाहे जैसे भी हो, स्मृति को अपना बना ले. इस के लिए वह किसी भी हद तक जाने को तैयार था. जिन दिनों की यह बात है उन दिनों कालिंदी रणजीत के बच्चे की मां बनने वाली थी. लेकिन उसे इस की कोई परवाह नहीं थी. वह पूरी तरह से स्मृति के प्यार के रंग में डूब चुका था. इसी चक्कर में उस ने स्मृति से खुद को कुंवारा बताया था. उस ने अपनी लच्छेदार बातों से स्मृति के चारों ओर सम्मोहन का ऐसा जाल फैला दिया कि वह उसी जाल में घिर गई. रणजीत स्मृति से प्रेम करने लगा था, स्मृति भी उस से प्यार करती थी.

स्मृति वर्मा का रणजीत की ओर झुकाव तब हुआ, जब उसे पता चला कि सत्ता के गलियारे में उस की पहुंच बहुत ऊपर तक है. इतना ही नहीं, वह दर्जा प्राप्त राज्यमंत्री है. प्रदेश सरकार में उस की अच्छी धाक है. रणजीत ने स्मृति के घर आनाजाना शुरू कर दिया था. बराबर आनेजाने से रणजीत ने स्मृति के अतीत के पन्नों को पढ़ लिया था, जिन में उस के जीवन के पन्नों पर कई दुख भरी कहानियां लिखी हुई थीं. राजधानी लखनऊ के विकासनगर में नायब तहसीलदार संजय श्रीवास्तव परिवार सहित रहते थे. पत्नी शोभना और 3 बच्चों में 2 बेटियां थीं, श्रुति और स्मृति और एक बेटा शिवांश. शोभना के शरीर पर जगहजगह सफेद दाग थे. सफेद दाग की वजह से संजय पत्नी को पसंद नहीं करते थे.

उन्होंने शोभना को तलाक दे दिया था. शोभना के पास 3 बच्चे थे. तीनों के पालनपोषण की जिम्मेदारी उसी के कंधों पर थी. ऐसे में वह क्या करती, बच्चों को ले कर कहां जाती. तलाक के बावजूद शोभना बच्चों के साथ पति के ही घर में रहती थी. नायब तहसीलदार संजय श्रीवास्तव के घर में तलाकशुदा शोभना भी रह रही थी, लेकिन दोनों के बीच कोई संबंध नहीं था. बाद में संजय श्रीवास्तव ने कानपुर की रहने वाली एक दूसरी महिला से शादी कर ली. उन्होंने शादी तो कर ली, लेकिन पत्नी को अपने घर नहीं ला सके. बच्चों और शोभना के दबाव के चलते संजय का जीवन रेत के महल सा हो गया था. इसलिए दूसरी पत्नी अकसर कानपुर में ही रहती रही.

पहली पत्नी शोभना के तीनों बच्चे धीरेधीरे बड़े होते रहे. इन में दूसरे नंबर की बेटी स्मृति खूबसूरत और जहीन थी. बात सन 2013 की है. नायब तहसीलदार संजय की बड़ी बेटी श्रुति अपने प्रेमी के साथ घर से अचानक भाग गई. बेटी के इस घिनौने कदम से संजय श्रीवास्तव की समाज में बहुत बदनामी हुई. बेटी की इस करतूत से बुरी तरह आहत तहसीलदार श्रीवास्तव ने सारी संपत्तियों की पावर औफ अटार्नी छोटी बेटी स्मृति के नाम कर दी ताकि उन के न रहने पर वह संपत्ति की देखभाल कर सके. आननफानन में तहसीलदार संजय ने स्मृति की शादी लखनऊ के एक बैंक मैनेजर के साथ तय कर दी थी.

तिलक की रस्म भी पूरी हो गई थी. चढ़ावे में नकदी और लाखों रुपए के कीमती गहने चढ़ाए गए. घर में शादी की जोरशोर से तैयारियां चल रही थीं, अचानक एक दुखद हादसे ने बहुत कुछ बदल दिया. तिलक की रस्म के कुछ दिनों बाद की बात है. रात का समय था. संजय श्रीवास्तव अपनी छत पर टहल रहे थे. अचानक वह रहस्यमय तरीके से छत से नीचे सड़क पर जा गिरे. सिर में आई गंभीर चोट की वजह से मौके पर ही उन की मौत हो गई. वह छत से कैसे गिरे, यह रहस्य आज भी बरकरार है. जहां खुशियां होनी चाहिए थीं, वहां मातम छा गया. पिता की मौत के बाद स्मृति की शादी टूट गई. लाखों रुपए नकद और लाखों के जेवरात ससुराल में फंसे रह गए. स्मृति के ससुराल वालों ने पैसे और जेवर लौटाने से मना कर दिया.

स्मृति के सामने ससुराल वालों से सामान वापस लेना चुनौती थी. ऐसे में रणजीत बच्चन स्मृति से टकरा गया. दोनों के बीच जब नजदीकियां बढ़ीं तो स्मृति ने अपनी आपबीती रणजीत से बता कर ससुराल से नकदी और गहने वापस दिलवाने की पेशकश की. उस ने यह भी कह दिया था कि जिस दिन वह गहने और नकदी दिलवा देगा उसी दिन वह उस की हो जाएगी. रणजीत के लिए स्मृति की शर्त जीतना कोई बड़ी बात नहीं थी. क्योंकि उस पास साम, दाम, दंड, भेद चारों शस्त्र थे, इसलिए थोड़ी चुनौतियों का सामना करते हुए उस ने स्मृति की ससुराल जा कर चारों शस्त्र आजमाए. भले ही जबरदस्ती सही, लेकिन उस ने नकदी और जेवरात वसूल कर स्मृति की झोली में डाल दिए.

रणजीत की इस दबंगई से खुश हो कर स्मृति ने उस से शादी करने के लिए हामी भर दी. आखिर 18 जनवरी, 2015 को रणजीत और स्मृति ने मंदिर में जा कर शादी कर ली. रणजीत ने यह राज पहली पत्नी कालिंदी से छिपाए रखा. रणजीत द्वारा स्मृति से शादी करने के 3 दिनों बाद 21 जनवरी को कालिंदी ने बेटे को जन्म दिया. कालिंदी के मां बनने की जानकारी मिलने के बाद भी रणजीत पत्नी को देखने हौस्पिटल तक नहीं आया. लेकिन रणजीत की सच्चाई न तो पहली पत्नी कालिंदी से छिप सकी और न ही दूसरी पत्नी स्मृति वर्मा से.

कालिंदी को जब रणजीत की दूसरी शादी की बात पता चली तो उस के पैरों तले से मानो जमीन ही खिसक गई. उसे रणजीत से ऐसी उम्मीद नहीं थी कि जिस रणजीत के लिए उस ने अपने घर वालों से बगावत कर उसे अपना जीवन सौंप दिया था, वही हमसफर सितमगर निकलेगा. जब यह बात दूसरी पत्नी स्मृति को पता चली कि रणजीत पहले से ही शादीशुदा है तो उस की आंखों के सामने अंधेरा छा गया. रणजीत ने उसे धोखा दिया था. उस ने एक साथ कई जिंदगियां दांव पर लगा दी थीं. पति की सच्चाई सामने आने के बाद स्मृति उसे छोड़ कर विकासनगर वापस लौट आई. उसे नाराज देख रणजीत के हाथपांव ठंडे पड़ गए.

स्मृति से रणजीत इतना प्यार करता था कि उस की जुदाई एक पल के लिए बर्दाश्त नहीं कर सकता था, वह सच्चाई जान कर उस से नाराज हो कर गई थी इसलिए रणजीत ने स्मृति को मनाने के लिए जमीनआसमान एक कर दिया. खैर, पहली पत्नी कालिंदी चुप बैठने वालों में से नहीं थी. पति के धोखा देने के एवज में उस ने रणजीत के खिलाफ गोरखपुर महिला थाने में एक तहरीर दी. कालिंदी के उठाए कड़े कदम से रणजीत की त्यौरियां चढ़ गईं. दोनों के प्यार ने अब नफरत और दुश्मनी का रंग ले लिया.

स्थिति यहां तक पहुंच गई कि जहां देखो हत्या कर दो. कालिंदी अपनी और बच्चे की जान बचाने के लिए यहांवहां छिपती रही. जान का दुश्मन बना रणजीत कालिंदी को नहीं ढूंढ पाया. कालिंदी भागतेभागते थक चुकी थी. वह जानती थी कि रणजीत से जीत पाना आसान नहीं है. आखिर उस ने रणजीत के सामने घुटने टेक दिए. इस का सब से बड़ा कारण यह था कि उस के मायके वालों ने उस का साथ देना छोड़ दिया था. वे रणजीत की करतूतों से बेहद नाराज थे. ऐसे में कालिंदी के सामने एक ही सहारा बचा था, रणजीत के पास वापस लौटने का. आखिरकार कालिंदी बेटे आदित्य को ले कर रणजीत के पास लखनऊ आ गई, रणजीत ने भी सारे गिलेशिकवे भुला कर उसे माफ कर दिया.

कहते हैं एक म्यान में 2 तलवारें नहीं रह सकतीं. सच भी यही है. कालिंदी के ओसीआर आते ही स्मृति ने रणजीत से दूरी बना ली. स्मृति से दूरियां रणजीत से सहन नहीं हो रही थीं. स्मृति की दूरियों से खुन्नस खाया रणजीत कालिंदी पर अपनी मर्दानगी और जुल्म की कहानी लातघूंसों से लिखता था और मोबाइल का स्पीकर औन कर के स्मृति को सुनाता था. वह यह दिखाने की कोशिश करता था कि वो उसे कितना प्यार करता है, इसी से अंदाजा लगा सकती है. जबकि बेटे की खातिर कालिंदी पति के जुल्मों को सह कर भी उफ तक नहीं करती थी.

कालिंदी पर एक और आपदा तब टूटी जब 2017 में उस के ढाई साल के बेटे आदित्य की मृत्यु हो गई. बेटे की मौत से कालिंदी ही नहीं रणजीत भी बुरी तरह से टूट गया. इस घटना के बाद से रणजीत का झुकाव अध्यात्म की तरफ हो गया और वह एक वस्त्र (गेरुआ वस्त्र) धारण करने लगा. इस दौरान वह अखिल भारतीय हिंदू महासभा के संस्थापक चक्रपाणि महाराज के संपर्क में आया और संगठन का प्रदेश अध्यक्ष बन गया. बाद में रणजीत बच्चन ने अपना खुद का संगठन ‘विश्व हिंदू महासभा’ बनाया और खुद को उस का अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष घोषित कर दिया. कालिंदी उस की सहयोगी रही.

हिंदूवादी नेता की छवि बनाने के लिए वह भगवा कपड़े पहनने लगा. विभिन्न मंचों से हिंदुत्व पर बेबाक टिप्पणी करने लगा, जिस से उसकी छवि हिंदू नेता के रूप में उभरने लगी. अतिमहत्त्वाकांक्षी रणजीत का संगठन चल निकला. धीरेधीरे बेटे की मौत को वह भूलने लगा था. अब भी वह स्मृति की याद में पागल था. जबकि स्मृति उस से दूर हो चली थी. उस के जीवन में दूसरा पुरुष आ गया था, जिस का नाम दीपेंद्र सिंह था. सन 2017 में अमर नगर रायबरेली निवासी दीपेंद्र की स्मृति से मुलाकात उस के दफ्तर में हुई थी. वह किसी आवश्यक काम से वहां आया था. धीरेधीरे दोनों की मुलाकातें होती रहीं. दोनों पहले दोस्त, फिर दोस्त से प्रेमी बन गए. दोनों एकदूसरे से प्यार करने लगे थे और शादी करना चाहते थे.

रणजीत से छुटकारा पाने के लिए स्मृति ने अदालत में तलाक की अर्जी दाखिल कर दी थी. रणजीत ने स्मृति को तलाक देने से साफ इनकार कर दिया था. वह जान चुका था कि स्मृति दीपेंद्र से प्यार करने लगी है. रणजीत ने खुले तौर पर स्मृति को धमकी दी कि वह दीपेंद्र का साथ छोड़ दे अन्यथा इसका अंजाम बहुत बुरा होगा. रणजीत के धमकाने का स्मृति पर कोई असर नहीं हुआ था. बावजूद इस के वह खुलकर दीपेंद्र से मिलती रही. यह बात रणजीत से सहन नहीं हो पा रही थी. दीपेंद्र को ले कर रणजीत और स्मृति के बीच विवाद बढ़ता गया. रणजीत स्मृति के पीछे जितनी तेज भागता गया, स्मृति उतनी ही तेजी से दीपेंद्र के पास आती गई. जबकि कालिंदी रणजीत के पीछे भाग रही थी.

बात 18 जनवरी, 2020 की है. उस दिन रणजीत और स्मृति की शादी की सालगिरह थी. लखनऊ के एक बड़े होटल में रणजीत ने दिन में एक पार्टी का आयोजन किया था. उस ने खासतौर पर स्मृति को आने के लिए आमंत्रित किया था. पार्टी में बड़ेबड़े लोग आए थे. समय बीत जाने के बाद भी स्मृति वहां नहीं पहुंची, तो रणजीत ने खुद को अपमानित महसूस किया. उसे स्मृति पर गुस्सा भी आया. उस ने मन ही मन स्मृति को सबक सिखाने की ठान ली. जैसेतैसे पार्टी खत्म कर के वह स्मृति के घर जा पहुंचा. संयोग से उस की मुलाकात घर पर ही हो गई. स्मृति को देखते ही रणजीत का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया. उस ने आव देखा न ताव, गुस्से से तमतमाते हुए स्मृति के गालों पर एक जोरदार थप्पड़ जड़ दिया.

थप्पड़ इतना जोरदार था कि उसे दिन में तारे नजर आने लगे. उसे सावधान करते हुए रणजीत ने दीपेंद्र का साथ छोड़ने के लिए हिदायत दी और वापस लौट आया. रणजीत का यह थप्पड़ स्मृति को काफी नागवार गुजरा. उस ने यह बात दीपेंद्र से बताई और रणजीत को सदा के लिए रास्ते से हटाने का दबाव बनाया. दीपेंद्र स्मृति से टूट कर प्यार करता था. उस ने इस काम के लिए हामी भर दी. दीपेंद्र ने इस के लिए अपने चचेरे भाई जितेंद्र की मदद ली. जितेंद्र मनबढ़ किस्म का युवक था. उस के खिलाफ रायबरेली के कई थानों में गंभीर और संगीन आपराधिक मुकदमे दर्ज थे. जितेंद्र तैयार हो गया.

योजना बनने के बाद 29 जनवरी, 2020 को दीपेंद्र चचेरे भाई जितेंद्र को साथ ले कर अपनी गाड़ी से रायबरेली से लखनऊ पहुंचा और 3 दिनों तक शहर में रह कर उस ने रणजीत की रेकी की. वह घर से कब निकलता है, कब घर लौटता है. घर से निकलते समय उस के साथ कौनकौन होता है, वगैरह. दीपेंद्र और जितेंद्र ने 3 दिनों तक रेकी कर के रणजीत की पूरी कुंडली तैयार कर ली और रायबरेली लौट आए. 1 फरवरी, 2020 की रात दीपेंद्र और उस का भाई जितेंद्र ड्राइवर संजीत के साथ बोलेनो कार से लखनऊ आ कर एक होटल में ठहर गए.

2 फरवरी की सुबह साढ़े 5 बजे डेली रूटीन के तहत सब से पहले घर से कालिंदी मौर्निंग वाक के लिए निकली. उस के 2-4 मिनट के अंतराल पर रणजीत अपने पुराने परिचित और गोरखपुर निवासी आदित्य कुमार श्रीवास्तव उर्फ सोनू के साथ निकला. आदित्य कुछ दिन पहले एक ठेके के संबंध में रणजीत से मिलने आया था. रणजीत ने उसे वाक पर साथ चलने के लिए कहा, तो वह साथ हो गया. कालिंदी आगेआगे दौड़ती हुई जा रही थी और पीछे मुड़मुड़ कर देख रही थी कि रणजीत कहां तक पंहुचे. कालिंदी पहली बार ग्लोब पार्क की ओर निकली थी. रणजीत और आदित्य जब पार्क की ओर आते दिखे तो उस ने उन्हें हाथ हिला कर इशारा किया कि वह आगे बढ़ रही है.

कालिंदी दयानिधान पार्क की ओर दौड़ती हुई चली गई, जहां वह अक्सर जाया करती थी. इधर हजरतगंज चौराहे के पास दीपेंद्र कार से उतर गया. जितेंद्र थोड़ी दूर स्थित कैपिटल सिनेमा के पास उतरा और वहीं खड़ा हो गया. रणजीत आदित्य के साथ ओसीआर से निकल कर सीडीआरआई जा रहा था. उसी वक्त जितेंद्र ने उस का पीछा करना शुरू कर दिया था. वह शाल से अपना चेहरा ढके हुए था. जैसे ही दोनों ग्लोब पार्क के पास पहुंचे, जितेंद्र फुरती के साथ आगे बढ़ा और पिस्टल निकाल कर रणजीत पर तान दिया. उस ने दोनों से मोबाइल फोन मांगा तो रणजीत और आदित्य ने कोई मोबाइल चोर समझ कर अपनेअपने फोन उस की ओर बढ़ा दिए. जितेंद्र ने दोनों के फोन अपने कब्जे में कर लिए.

रणजीत और आदित्य कुछ समझ पाते, तब तक जितेंद्र ने रणजीत को लक्ष्य बना कर उस के सिर में .32 बोर की गोली मार दी. गोली लगते ही रणजीत वहीं जमीन पर गिर पड़ा. यह देख आदित्य अपनी जान बचा कर वहां से भागा, तो जितेंद्र ने उसे भी गोली मार दी. यह संयोग ही था कि गोली उस के बाएं हाथ में लगी. गोली मारने के बाद जितेंद्र वहां से भाग निकला और दीपेंद्र के पास जा पहुंचा. दीपेंद्र उस का बेसब्री से इंतजार कर रहा था. उस ने बताया कि काम हो गया है. फिर उसी कार में सवार हो कर दोनों रायबरेली चले गए.

उसी दिन शाम को दीपेंद्र और जितेंद्र रायबरेली से इलाहाबाद पहुंचे. वहां से दोनों मुंबई भाग गए. बीच रास्ते में दीपेंद्र ने स्मृति को मैसेज कर के बता दिया था कि काम हो गया. यह सुन कर वह खुश हो गई. गोली से घायल आदित्य श्रीवास्तव की तहरीर पर हजरतगंज पुलिस ने भारतीय दंड विधान की धारा 302, 307 के तहत अज्ञात बदमाशों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर के जांच शुरू कर दी. लखनऊ के पुलिस कमिश्नर सुजीत पांडेय ने घटना का खुलासा करने के लिए 8 टीमें गठित कर दीं.

जांच की दिशा जर, जमीन और जोरू को ले कर तय की गई थी. पुलिस ने पहली पत्नी कालिंदी से पूछताछ शुरू की. कालिंदी से हुई पूछताछ से पता चला कि रणजीत ने दूसरी शादी विकास नगर सेक्टर-2/625 की रहने वाली स्मृति वर्मा से की थी. तकरीबन 4 दिनों की छानबीन के बाद पुलिस का पुख्ता शक दूसरी पत्नी स्मृति वर्मा पर जा टिका. पुलिस ने स्मृति को हिरासत में ले कर उस से कड़ाई से पूछताछ की, तो वह टूट गई और पूरी कहानी पुलिस को बता दी. उस ने अपना जुर्म कबूल करते हुए बताया कि रणजीत की हत्या उसी ने अपने प्रेमी दीपेंद्र से मिल कर कराई थी.

पूछताछ में उस ने दीपेंद्र के मुंबई चले जाने की बात बताई. उसी दिन हजरतगंज पुलिस टीम फ्लाइट से मुंबई पहुंची और वहां से दीपेंद्र को गिरफ्तार कर के लखनऊ ले आई. पता नहीं कैसे शूटर जितेंद्र को पुलिस के आने की भनक लग गई थी और वह वहां से फरार हो गया था. 6 फरवरी, 2020 को पुलिस ने रणजीत हत्याकांड के 3 आरोपियों— स्मृति वर्मा प्रेमी दीपेंद्र और ड्राइवर संजीत को गिरफ्तार कर लिया. कमिश्नर सुजीत पांडेय ने प्रैस कौन्फ्रैंस कर के घटना का खुलासा किया. 3 दिन बाद पुलिस मुठभेड़ के बाद हजरतगंज में शूटर जितेंद्र को भी गिरफ्तार कर लिया गया.

कथा लिखे जाने तक चारों आरोपी जेल में थे. पुलिस ने अज्ञात की जगह चारों आरोपियों स्मृति बच्चन उर्फ स्मृति वर्मा, दीपेंद्र, शूटर जितेंद्र और चालक संजीत को नामजद कर दिया था. यही नहीं, धारा 302, 307 के साथसाथ केस में धारा 120बी और 7 सीएलए की धाराएं भी जोड़ दी थी. कथा लिखे जाने तक पुलिस ने आरोपियों से रणजीत और आदित्य के मोबाइल फोन बरामद कर लिए थे.

—कथा वादी आदित्य, रणजीत की पहली पत्नी कालिंदी और पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

Extramarital Affair : ड्राइवर के साथ मिलकर बेवफा बीवी ने की फौजी पति की हत्‍या

Extramarital Affair : दीपक पट्टनदार मिलिट्री में थे. साल में 1-2 महीने की छुट्टी पर ही आ पाते थे. इसी वजह से उन की पत्नी अंजलि ने अपने कार ड्राइवर प्रशांत पाटिल से संबंध बना लिए. इतना ही नहीं, बल्कि उन के छुट्टी पर आने पर…

कर्नाटक के जिला बेलगांव के कस्बा होन्निहाल की रहने वाली अंजलि पट्टनदार का पति दीपक पट्टनदार जब 4-5 दिनों तक घर नहीं लौटा तो घर वालों को उस की चिंता सताने लगी. उन्होंने अंजलि पट्टनदार से दीपक के बारे में पूछताछ की. क्योंकि उस दिन दीपक पत्नी अंजलि और ड्राइवर प्रशांत पाटिल के साथ अपनी टाटा इंडिका कार से बाहर गया था. पूछने पर अंजलि ने बताया कि 28 जनवरी को जब वह गोडचिनमलकी से पिकनिक से लौट रही थी तो रात करीब साढ़े 9 बजे दीपक ने एक जगह कार रुकवाई और यह कहते हुए कार से नीचे उतर गए तुम कि तुम लोग घर जाओ, मुझे बेलगांव में कुछ जरूरी काम है, वह जल्दी ही घर आ जाऊंगा.

ससुराल वालों को अंजलि की बातों पर विश्वास नहीं हुआ, क्योंकि दीपक को अगर कोई काम होता तो निपटा कर अब तक घर आ गया होता. उस का फोन भी स्विच्ड औफ था, इसलिए उन्होंने अंजलि से कहा कि वह दीपक के बारे में सही जानकारी दे. ससुराल वालों के दबाव को देखते हुए अंजलि मरिहाल पुलिस थाने पहुंच गई और अपने पति दीपक पट्टनदार की गुमशुदगी दर्ज करवा दी. अपनी शिकायत में अंजलि ने वहां के ड्यूटी अफसर को वही बात बताई, जो उस ने ससुराल वालों को बताई थी. उस ने कहा, ‘‘उस दिन से आज तक मेरे फौजी पति घर नहीं  लौटे. ऐसे में मैं ससुराल वालों और परिवार को क्या बताऊं. सब लोग उन के न लौटने का जिम्मेदार मुझे मान रहे हैं.’’ कहते हुए अंजलि सिसकसिसक कर रोने लगी.

बहरहाल, ड्यूटी पर तैनात अधिकारी ने अंजलि को सांत्वना देते हुए उस के पति दीपक की गुमशुदगी दर्ज कर ली. दीपक का हुलिया और फोटो भी ले लिए और अंजलि को घर भेज दिया. पुलिस ने उसे भरोसा दिया. कि पुलिस जल्द ही दीपक पट्टनदार को ढूंढ निकालेगी. जबकि पुलिस यह बात अच्छी तरह जानती थी कि यह काम इतना आसान नहीं था. फिर भी पुलिस को अपना दायित्व तो निभाना ही था. मामले की गंभीरता को देखते हुए ड्यूटी अफसर ने फौजी दीपक पट्टनदार के लापता होने की सूचना अपने वरिष्ठ अधिकारियों को दे दी. थाना पुलिस ने लापता दीपक पट्टनदार की खोजबीन शुरू कर दी. दीपक का हुलिया और फोटो जिले के सभी पुलिस थानों को भेज दिए गए. यह 4 फरवरी, 2020 की बात थी.

एक तरफ जहां पुलिस दीपक की तलाश में लगी हुई थी, वहीं दूसरी तरफ दीपक के घर वाले अपनी जानपहचान, नातेरिश्तेदारों और उन के दोस्तों से लगातार संपर्क कर रहे थे. लेकिन लाख कोशिशों के बाद भी दीपक के घर वालों और पुलिस को दीपक का कोई सुराग नहीं मिला. ऐसी स्थिति में घर वालों का विश्वास डगमगा रहा था. उन्हें यकीन हो गया था कि दीपक के अचानक गायब होने के पीछे कोई गहरा राज है, जिस का रहस्य दीपक की पत्नी अंजलि और ड्राइवर प्रशांत पाटिल के पेट में छिपा है. इस का संकेत दीपक पट्टनदार के भाई उदय पट्टनदार ने थाने के अधिकारियों को दे दिया था. लेकिन नतीजा वही ढाक के तीन पात जैसा ही रहा.

पुलिस अधिकारियों ने दीपक की पत्नी अंजलि और ड्राइवर प्रशांत पाटिल को कई बार थाने बुला कर पूछताछ भी की थी, लेकिन उन से दीपक के बारे में कोई सूचना नहीं मिली. 8-10 दिन और निकल जाने के बाद भी जब पुलिस दीपक के बारे में कोई पता नहीं लगा पाई तो उदय पट्टनदार और उस के घर वालों को लगने लगा कि दीपक के साथ कोई अनहोनी हुई है. जब धैर्य जवाब देने लगा तो वे लोग बेलगांव के एसपी लक्ष्मण निमबार्गी से मिले. उन लोगों ने कप्तान साहब को सारी कहानी सुनाई. एसपी लक्ष्मण निमबार्गी ने गुमशुदा फौजी दीपक पट्टनदार के घर वालों की बातों को बड़े ध्यान से सुना और थाना मरिहाल के थानाप्रभारी को शीघ्र से शीघ्र फौजी दीपक का पता लगाने के निर्देश दिए.

मामला एक प्रतिष्ठित परिवार और आर्मी अफसर की गुमशुदगी से संबंधित था. थानाप्रभारी विजय कुमार सिंतुर ने अपने वरिष्ठ अधिकारियों के निर्देशन में जांच शुरू कर दी. उन्होंने बिना किसी विलंब के इंसपेक्टर एम.वी. बड़ीगेर, वी.पी. मुकुंद, वी.एस. नाइक, आर.एस. तलेवार आदि के साथ मिल कर जांच की रूपरेखा तैयार की. सब से पहले उन्होंने केस का अध्ययन किया. इस के साथ ही साथ उन्होंने तेजतर्रार मुखबिरों को गुमशुदा दीपक पट्टनदार का सुराग लगाने की जिम्मेदारी सौंप दी, जिस में उन्हें कामयाबी भी मिली.  मुखबिरों से मिली सूचना के आधार पर थानाप्रभारी विजय कुमार सिंतुर ने दीपक पट्टनदार की पत्नी अंजलि का बैकग्राउंड खंगाला तो कई चौंकाने वाली जानकारियां मिलीं, जिस के बाद अंजलि पर उन का शक गहरा गया.

उन्होंने अंजलि को थाने बुला कर उस से पूछताछ शुरू की तो वह पहले जैसा ही बयान दे कर पुलिस को गुमराह करने की कोशिश करती रही. इतना ही नहीं, वह अपनी ससुराल पक्ष के लोगों पर कई तरह के गंभीर आरोप लगा कर उन्हें पुलिस के राडार पर खड़ा करने की कोशिश कर रही थी. लेकिन इस बार वह अपने मकसद में कामयाब नहीं हुई. क्योंकि पुलिस को अंजलि के चालचलन को ले कर कई तरह की जानकारी मिल चुकी थी, इसलिए वह पुलिस के शिकंजे में फंस ही गई. पुलिस ने उस के साथ जब थोड़ी सख्ती बरती तो उस के हौसले पस्त हो गए. अपना गुनाह स्वीकार करते हुए आखिर उस ने पति दीपक पट्टनदार की हत्या की कहानी पुलिस को बता दी. थानाप्रभारी के पूछताछ करने पर अंजलि ने पति दीपक की हत्या की जो कहानी बताई, वह चौंका देने वाली थी—

35 वर्षीय दीपक पट्टनदार सुंदर, स्वस्थ और महत्त्वाकांक्षी युवक था. उस के पिता का नाम चंद्रकांत पट्टनदार था. उस के परिवार में मांबाप के अलावा एक छोटा भाई उदय पट्टनदार के अलावा एक बहन थी. दीपक की आर्थिक स्थिति काफी मजबूत थी. समाज में प्रतिष्ठा और मानसम्मान था. पढ़ाई पूरी करने के बाद दीपक ने अपनी किस्मत आजमाने के लिए इंडियन आर्मी का रुख किया तो उस का चयन हो गया. पहली पोस्टिंग के बाद जब वह अपने घर आया तो परिवार वालों ने उस की शादी अंजलि के साथ कर दी. 27 वर्षीय अंजलि के पास रूप भी था और यौवन भी. आर्मी जवान को पति के रूप में पा कर अंजलि खूब खुश थी. दीपक भी अंजलि का पूरापूरा ध्यान रखता था. उस की जरूरत की सारी चीजें घर में मौजदू रहती थीं.

इंडियन आर्मी में होने के कारण दीपक को अपने परिवार और पत्नी के साथ रहने के लिए बहुत ही कम समय मिलता था. वह साल में एकदो बार ही महीने 2 महीने के लिए घर आ पाता था. लेकिन इस से अंजलि का मन नहीं भरता था. छुट्टियों का यह समय तो पलक झपकते ही निकल जाता था. पति दीपक के जाने के बाद अंजलि को फिर वही अकेलापन, तनहाइयां घेर लेती थीं. उस का दिन तो किसी तरह गुजर जाता था लेकिन रात उस के लिए नागिन बन जाती थी. वह पूरी रात करवटें बदलबदल कर बिताती थी, जिस का फायदा अंजलि के चतुर चालाक ड्राइवर प्रशांत पाटिल ने उठाया. ड्राइवर प्रशांत पाटिल उसी के गांव का रहने वाला था. अंजलि और प्रशांत पाटिल के बीच की दूरियां जल्द ही दूर हो गईं.

अंजलि जब बनसंवर कर कहीं आनेजाने के लिए कार में बैठती थी, प्रशांत उस की सुंदरता और कपड़ों की खूबसूरती का पुल बांध देता था. मन ही मन उस के शरीर में सिहरन सी दौड़ जाती थी. जब वह दीपक पट्टनदार का वह नाम लेता तो अंजलि का मन विचलित हो जाता था. एक कहावत है कि नारी मन की 2 कमजोरियां होती हैं. वह प्यार और अपनी प्रशंसा की अधिक भूखी होती है. यह बात प्रशांत अच्छी तरह से जानता था. अंजलि कभी प्रशांत पाटिल के मुंह से अपनी तारीफ सुन कर मुसकराती तो कभी झेंप जाती थी.  समय अपनी गति से चल रहा था. एक तरफ जहां दीपक पट्टनदार अंजलि से दूर था, वहीं प्रशांत पाटिल उस के करीब आता जा रहा था. अंजलि का मन आकर्षित करने का वह कोई मौका नहीं छोड़ता था. धीरेधीरे अंजलि भी उस की तरफ आकर्षित होने लगी थी.

एक रात जब अंजलि की बेचैनी बढ़ी तो उस ने प्रशांत पाटिल को फोन कर सुबह ड्यूटी पर जल्दी आने के लिए कहा. सुबह जब प्रशांत पाटिल ड्यूटी पर आया तो अंजलि प्रशांत के मनपसंद कपड़े पहन कर कार में आ बैठी. कार जब घर के कंपाउंड से बाहर निकली तो अंजलि ने अपनी खामोशी तोड़ते हुए कहा, ‘‘प्रशांत देखो आज, मैं ने तुम्हारी पसंद के कपड़े पहने हैं.’’

‘‘वही तो देख रहा हूं मालकिन, आज किस पर बिजली गिराएंगी. बताओ, कहां चलना है?’’ प्रशांत ने कहा.

‘‘बिजली किस पर गिरेगी, यह मैं बाद में बताऊंगी. पहले तुम मुझे अपनी मनपसंद जगह ले कर चलो, क्योंकि मैं ने आज तुम्हारे मनपसंद कपड़े पहने हैं. आज मैं केवल तुम्हारे लिए ही तैयार हुई हूं.’’

पहले तो प्रशांत पाटिल की समझ में अंजलि की रहस्यमय बातें नहीं आईं, लेकिन जब समझ में आईं तो अंजलि के अशांत मन का तूफान आ कर शांत हो चुका था. अंजलि प्रशांत के साथ पहले एक पार्क में गई. वहां अंजलि ने उसे साफसाफ बता दिया कि वह उसे कितना प्यार करती है. मालकिन का यह झुकाव देख कर प्रशांत भी फूला नहीं समा रहा था. उस के बाद अंजलि उसे एक होटल में ले गई और पतिपत्नी के नाम से 3 घंटे के लिए एक कमरा बुक किया. वहां दोनों ने अपनी सीमाओं को तोड़ दिया. एक बार जब मर्यादा की सीमाएं टूटीं तो फिर टूटती ही चली गईं. ज्योति जब से ड्राइवर प्रशात के संपर्क में आई, तब से अपने घर वालों से कटीकटी सी रहने लगी थी. घर के कामों में उस की कोई रुचि नहीं रह गई थी.

उस के मन में जब भी मौजमस्ती का तूफान उठता, वह घर वालों से कोई न कोई बहाना कर ड्राइवर प्रशांत के साथ कभी बेलगांव तो कभी गोकाक के लिए निकल जाती थी. कभी पार्कों में तो कभी मौल और कभी अच्छे होटलों में जा कर वह प्रशांत के साथ मौजमस्ती कर लौट आती थी.अंजलि के बदले हुए इस रूप से घर वाले अनभिज्ञ नहीं थे. वह जल्दी ही घर वालों की नजरों में आ गई. ये लोग जब अंजलि के बाहर जाने और लौटने पर सवाल उठाते तो वह उन पर बिफर पड़ती. उस ने यह कह कर सब का मुंह बंद कर दिया कि कार उस की, ड्राइवर उस का और पैसा उस के पति का है. जब वह इन चीजों का प्रयोग करती है तो उन के पेट में दर्द क्यों उठता है. उस का मन जहां करेगा, वहां जाएगी.

मामला नाजुक होने के कारण घर वाले तब तक खामोश रहे, जब तक दीपक घर नहीं आया. 29 दिसंबर, 2019 को दीपक 2 महीने की छुट्टी पर जब घर आया तो घर वालों ने उसे उस की पत्नी के विषय में सारी बातें बता कर उसे सचेत कर दिया. पहले तो दीपक को घर वालों की बातों पर विश्वास ही नहीं हुआ. क्योंकि 7 साल के वैवाहिक जीवन में उसे कभी भी अंजलि के प्रति कोई शिकायत नहीं मिली थी. पूरा परिवार अंजलि के व्यवहार से खुश था. लेकिन बिना आग के धुआं तो उठता नहीं है. उसे यह बात जल्द समझ में आ गई. दीपक ने चुपचाप अंजलि पर नजर रखी तो अंजलि की बेवफाई जल्द ही उस के सामने आ गई.

हालांकि अंजलि और प्रशांत अपने संबंधों के प्रति काफी सावधानी बरतते थे. लेकिन वह इस में सफल नहीं हुए. दीपक को जल्द ही महसूस होने लगा कि अंजलि का उस के प्रति अब पहले जैसा व्यवहार और लगाव नहीं है. अंजलि के बदले हुए इस व्यवहार पर दीपक ने जब उसे आड़ेहाथों लिया तो अंजलि ने दीपक से माफी मांग कर उस समय तो मामला शांत कर दिया लेकिन अपने आप को वह समझा नहीं सकी. उस के दिल में प्रशांत पाटिल के प्रति जो लौ जल रही थी, वह बुझी नहीं थी. उस ने जब अपने मन में पति और प्रेमी की तुलना की तो उसे प्रेमी पति से ज्यादा प्यारा लगा.

लेकिन यह तभी संभव था जब पति नामक कांटा उस की जिंदगी से बाहर निकल जाता. इस विषय पर काफी मंथन के बाद अंजलि ने पतिरूपी कांटे को अपने और प्रेमी के बीच से निकाल फेंकने की एक गहरी साजिश रची. अपनी साजिश की बात अंजलि ने जब प्रशांत को बताई तो वह खुशीखुशी अंजलि की साजिश में शामिल ही नहीं हुआ, बल्कि अपने दोस्त नवीन कंगेरी और प्रवीण हिदेद को भी योजना में शामिल कर लिया. इस के बाद अंजलि ने पति को ज्यादा प्यार जताना शुरू कर दिया ताकि उसे शक न हो. घर का माहौल और दीपक का व्यवहार अपने अनुरूप देख कर अंजलि ने अपनी साजिश को अंतिम रूप देने के लिए पिकनिक का प्रोग्राम बनाया. पिकनिक के लिए गोडचिनमलकी फौल को चुना गया.

घटना के दिन अंजलि पति दीपक, ड्राइवर प्रशांत पाटिल और उस के 2 दोस्तों नवीन कंगेरी और प्रवीण हिदेद को साथ ले कर पिकनिक के लिए निकली. योजना के अनुसार, ड्राइवर प्रशांत ने गोडचिनमलकी के पहले ही एक सुनसान जगह पर कार रोड की साइड में खड़ी कर दी. साथ ही उस ने शराब पीने की भी इच्छा जाहिर की. एक ही गांव और जानपहचान होने के कारण दीपक उन्हें मना नहीं कर सका. उन लोगों ने खुद तो शराब पी ही, दीपक को भी जम कर पिला दी थी. शराब के नशे में मदहोश होने के बाद प्रशांत अपने दोनों दोस्तों की मदद से दीपक को जंगल के भीतर ले गया. जब तक काम खत्म नहीं हुआ, अंजलि कार में बैठी रही.

दीपक को जंगल के भीतर ले जाने के बाद प्रशांत पाटिल ने अपने साथ लाए चाकू से कई वार कर दीपक को मौत की नींद सुला दिया. इस के बाद उस के शव के 4 टुकड़े कर जंगल में फेंक दिए. दीपक पट्टनदार की हत्या कर उस की लाश ठिकाने लगाने के बाद सब अपनेअपने घर चले गए, जहां से मरिहाल पुलिस के हत्थे चढ़ गए. घर वालों के पूछने पर अंजलि ने वही बातें दोहरा दी थी, जो उस ने पुलिस अधिकारियों को गुमराह करने के लिए बताई थीं. मरिहाल पुलिस की गिरफ्त में आई अंजलि पट्टनदार, ड्राइवर प्रशांत पाटिल, नवीन कंगेरी और प्रवीण हिदेद से विस्तृत पूछताछ कर पुलिस ने 20 फरवरी, 2020 को उन की निशानदेही पर गोडचिनमलकी के जंगलों में जा कर दीपक के अस्थिपंजर बरामद कर लिए.

जिन्हें पोस्टमार्टम के लिए बेलगांव जिला अस्पताल भेज दिया गया और सभी अभियुक्तों को फौजी दीपक पट्टनदार की हत्या कर लाश ठिकाने लगाने के आरोप में गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया गया, जहां से उन्हें हिडंलगा जिला जेल भेज दिया गया.