Murder Story : सब्जी काटने वाले चाकू से सोई पत्नी का काटा गला

Murder Story : सरिता से लवमैरिज करने के बाद अजय साहू की गृहस्थी हंसीखुशी से चल रही थी. लेकिन साली कविता के सौंदर्य में फंस कर उस ने न सिर्फ अपनी गृहस्थी उजाड़ी, बल्कि साली के साथ उसे जाना पड़ा जेल…

9 साल पहले जब अजय साहू उर्फ मोहित ने सरिता से विवाह किया था, तब सरिता से छोटी साली कविता 15 साल की थी. इस के 3 साल बाद 18 साल की उम्र में वह भरीपूरी युवती लगने लगी थी. ससुराल में अजय के सासससुर के अलावा उस की 2 सालियां कविता और सविता थीं, कोई साला नहीं था. सविता काफी छोटी थी, इसलिए अजय को खिलानेपिलाने व उस की सुखसुविधा का खयाल रखने की जिम्मेदारी बड़ी साली कविता की थी. कविता भी अपने जीजा का हुक्म मानने के लिए एक पैर पर खड़ी रहती थी.

जीजा की जरूरतों का खयाल रखना साली का कर्त्तव्य होता है, इस में कोई नई बात नहीं है. अजय भी इन बातों को सामान्य रूप से लेता था. लेकिन एक दिन अचानक ही वह कविता के अद्भुत सौंदर्य की तेज रोशनी में चौंधिया गया. एक दिन जब अजय ससुराल पहुंचा तो कविता किसी परिचित के यहां मांगलिक समारोह में जाने के लिए तैयार हो रही थी. कविता ने सुर्ख लाल जोड़ा पहन रखा था और अपने बाल खुले छोड़ रखे थे. कलाई में चूडि़यां और चेहरे पर सादगी भरा शृंगार. आंखों में काजल की रेखा और होंठों पर हलकी सी लिपस्टिक. उसे देख कर अजय की नजरें ऐसी चिपकीं कि हटने को ही तैयार नहीं हुईं.

कविता ने अजय को मीठा और पानी ला कर दिया, फिर चाय बना कर पिलाई. कुछ देर उस के पास बैठ कर अपनी बहन की खैरियत पूछी. फिर उस के पास से उठते हुए बोली, ‘‘जीजाजी, आप आराम करो, मैं जल्दी ही लौट आऊंगी.’’

कविता चली गई और वह देखता रह गया. अजय बैड पर लेट गया और कविता के बारे में सोचने लगा कि इतनी सुंदर तो सरिता तब भी नहीं लगी थी, जब दुलहन बन कर उस के घर आई थी. अजय ने अपने मन से कविता का खयाल निकालने की बहुत कोशिश की, पर कामयाब नहीं हो सका. कविता के सौंदर्य की तेज रोशनी से उस ने जितना दूर जाना चाहा, उतना ही मस्तिष्क से अंधा होता गया. अजय सोचने लगा कि मेरी शादी भले ही सरिता से हो गई पर कविता भी तो उस की साली ही है. साली यानी आधी घरवाली.

अजय के मन में पाप समाया तो वह कविता को पाने की जुगत में लग गया. उत्तर प्रदेश के कौशांबी जिले के गांव पूरब थोक में राजेश चंद्र अपने परिवार के साथ रहते थे. वह खेतीबाड़ी का काम करते थे. परिवार में पत्नी उषा और 3 बेटियां सरिता, कविता और सविता थीं. बेटा न होने का राजेश को कतई गम नहीं था. उन्होंने तीनों बेटियों की बेटों से बढ़ कर परवरिश की थी. सरिता ने इंटर की पढ़ाई पूरी कर ली थी. कौशांबी के ही कुम्हियवा गांव में रामहित साहू रहते थे. वह भी खेतीकिसानी करते थे. उन के 3 बेटे थे, जिस में अजय उर्फ मोहित सब से बड़ा था. अजय ने इंटरमीडिएट तक पढ़ाई करने के बाद अपना खुद का काम करने का निर्णय लिया.

काफी सोचविचार के बाद उस ने डीजे संचालन का काम शुरू किया. उस का यह काम अच्छा चल गया. अपने इसी काम के दौरान एक वैवाहिक समारोह में उस की मुलाकात सरिता से हुई. सरिता उस समारोह में काफी सजधज कर आई थी. इस वजह से वह काफी खूबसूरत दिख रही थी. डीजे पर डांस करने के दौरान सरिता ने ‘डीजे वाले बाबू मेरा गाना बजा दो’ गाना चलाने की मांग की. अजय औपरेटर के पास ही खड़ा था. उस की पीठ सरिता की तरफ थी. मधुर आवाज सुनते ही अजय पलटा तो पलटते ही सरिता को देखा तो देखता ही रह गया.

अजय काफी स्मार्ट था. उसे अपनी तरफ देखते पा कर सरिता भी लजा गई और बोली, ‘‘सौरी, मैं आप को डीजे वाला समझ बैठी. इसलिए अपनी पसंद का गाना चलाने के लिए कह दिया.’’

अजय उस के भोलेपन पर मुसकराते हुए बोला, ‘‘आप से कोई गलती नहीं हुई, मैं डीजे वाला बाबू ही हूं यानी इस डीजे का मालिक.’’

‘‘ओह…तो यह बात है, तो मेरा पसंदीदा गाना लगवा दें, जिस से मैं डांस कर सकूं.’’ सरिता ने तिरछी नजरों से अजय को निहारते हुए कहा.

अजय ने औपरेटर को बोल कर ‘डीजे वाले बाबू…’ गाना लगवा दिया. गाना भारीभरकम स्पीकरों पर गूंजने लगा तो सरिता अपनी सहेलियों के साथ डांस करने लगी. वह डांस कर जरूर रही थी, लेकिन उस का सारा ध्यान अजय पर ही था. अजय भी उसे देखते हुए मुसकरा रहा था. वह इशारे से बारबार सरिता की तारीफ भी कर रहा था. उस की तारीफ पा कर सरिता लजा कर दूसरी ओर देखने लगती थी. डांस खत्म होने के बाद भी दोनों वहां से हटने को तैयार नहीं थे. उन की निगाहें मिलने के बाद अब उन के दिल मिलने को तड़प रहे थे. वह तड़प उन की निगाहों में बखूबी नजर आ रही थी.

आखिर अजय ने उसे इशारे से अपने पीछेपीछे आने को कहा तो सरिता उस का इशारा समझ कर दिल के हाथों मजबूर हो कर उस के पीछेपीछे चली गई. अजय एकांत में सुनसान जगह पर खड़ा हुआ तो शरमातेसकुचाते सरिता भी वहां पहुंच गई और पूछने लगी, ‘‘आप ने मुझे इशारे से अपने पीछे आने को क्यों कहा?’’

‘‘क्यों…क्या तुम्हें वास्तव में नहीं पता?’’ अजय उस की आंखों में देखते हुए बोला, ‘‘जरा अपने दिल पर हाथ रख कर अपनी धड़कनों को सुनो, जवाब मिल जाएगा.’’

‘‘सब दिल का ही तो मामला है, ये ऐसा मजबूर कर देता है कि इंसान अपनी सुधबुध खो बैठता है. और इंसान वही करने लगता है जो यह चाहता है. मैं भी दिल के हाथों मजबूर हो कर यहां आ गई हूं.’’ सरिता अपने दिल की व्यथा उजागर करती हुई बोली.

‘‘ये दिल ही तो है जब इस के अपने मन का मीत मिल जाता है तो प्यार की घंटी बजा कर आगाह कर देता है. देखो न, जब तुम्हारे दिल को मेरे दिल ने पुकारा तो तुम्हारा दिल मेरे पीछेपीछे खिंचा चला आया. कहने को हम अजनबी हैं, लेकिन हमारे दिलों ने हमारे बीच प्यार के रिश्ते की नींव रख दी है, जिस पर हमें मिल कर प्यार की इमारत खड़ी करनी है. अगर मेरा प्यार मेरा साथ मंजूर हो तो मेरे पास आ कर गले लग जाओ.’’ कहते हुए अजय ने बड़ी चाहत भरी नजरों से देखा तो सरिता उस की ओर खिंची चली गई और उस के गले लग गई.

यह ऐसा प्यार था, जिस ने बिना एकदूसरे के बारे में जाने उन के दिलों को मिला दिया था. उस के बाद उन दोनों ने एकदूसरे के बारे में जाना, खूब ढेर सारी बातें कीं. मोबाइल नंबर एकदूसरे को दिए. फिर मिलने का वादा कर के जुदा हो गए. उस दिन के बाद उन में बराबर बातें और मुलाकातें होने लगीं. करीब 9 साल पहले दोनों ने प्रेम विवाह कर लिया. सरिता के घर वालों को कोई ऐतराज नहीं था लेकिन अजय के घर वाले इस प्रेम विवाह के खिलाफ थे. अजय विवाह करने के बाद कौशांबी के सिराथू कस्बे में सैनी रोड पर किराए का कमरा ले कर सरिता के साथ रहने लगा. अजय अपनी जिंदगी से काफी खुश था.

सरिता की छोटी बहन कविता की खूबसूरती अजय का मन लुभाती तो थी, पर उस की नजरें बेईमान नहीं थीं. लेकिन उस दिन कविता को सुर्ख लाल जोड़े में सजासंवरा देखा तो वह उसे दुलहन सी हसीन लगी. बस, जीजा के मन में साली के लिए फितूर समा गया. कविता के बारे में सोचते हुए अजय सो गया और सपने में भी कविता उस का चैन हरती रही. सुखद सपनों में खोया अजय न जाने कब तक सोया रहता कि उस की सास उषा ने आ कर जगा दिया, ‘‘अजय बेटा उठो, शाम हो गई है.’’

अजय हड़बड़ा कर उठ बैठा, ‘‘मैं दोपहर को सोया था और अब शाम ढल रही है. मम्मी, आप ने मुझे जगाया क्यों नहीं.’’

‘‘तुम्हारे आराम में विघ्न न पड़े, इसलिए मैं ने नहीं जगाया.’’ उषा बोली, ‘‘तुम उठ कर हाथमुंह धो लो, तब तक कविता चाय बना कर ले आएगी.’’

अजय ने बाथरूम में जा कर हाथमुंह धोया और तौलिए से पोंछने के बाद कुरसी पर आ कर बैठ गया. सामने किचन में कविता खड़ी चाय बना रही थी. अब उस के शरीर पर लाल जोड़े की जगह सफेद सलवारसूट था. कलाई में चूडि़यां भी नहीं थीं. उस ने चेहरा पानी से जरूर धो लिया था, पर मेकअप की मौजूदगी अब भी नुमायां हो रही थी. आंखें मिलते ही कविता मुसकराई, ‘‘जीजाजी, खूब मजे से सोए.’’

अजय ने मन ही मन में जवाब दिया, ‘सपने में बिजली गिरा कर मासूम बन रही हो.’ लेकिन जुबान से बोला, ‘‘मजा ले कर सो रहा था या कजा से गुजर रहा था, बाद में बताऊंगा. पहले तुम बताओ, कब आईं?’’

‘‘थोड़ी ही देर में आ गई थी. घर आ कर देखा तो आप सो गए थे. इसलिए मैं भी घर के कामों मे लग गई थी.’’ कविता ने मुसकरा कर कहा और उस के सामने टेबल पर चाय का कप रख दिया. फिर उसी के पास बैठ गई.

अजय को उस समय वहां अपनी सास की मौजूदगी खल रही थी. कविता अकेली होती तो वह उसे रिझाने का प्रयास करता. अजय की मजबूरी यह थी कि वह न सास को वहां से जाने को कह सकता था और न कविता का हाथ पकड़ कर अकेले में बात करने के लिए ले जा सकता था. रात को खाना खाने के बाद अजय को कविता के कमरे में सोने के लिए पहुंचा दिया गया. और कविता सविता के कमरे में उस के साथ सो गई. अगले दिन सुबह होने पर अजय के सासससुर खेतों पर चले गए. सविता स्कूल चली गई. इस से अजय को कविता से बात करने का मौका मिल गया. उस समय कविता नहाने जा रही थी. अजय ने उस से पूछा, ‘‘कविता, नहाने के बाद तुम कौन से कपड़े पहनोगी?’’

कविता ने सहजता से उत्तर दिया, ‘‘मुझे कहीं जाना तो है नहीं, इसलिए घर में जो पहनती हूं, वही पहन लूंगी.’’

‘‘घर में पहनने वाले नहीं,’’ अजय ने मन की परतें उस के सामने खोलनी शुरू कर दीं, ‘‘तुम वही लाल जोड़ा पहनो, जो तुम ने कल पहना था.’’

‘‘वह रोज पहनने के लिए थोड़े ही है,’’ कविता मुसकरा कर बोली,‘‘ वह लाल जोड़ा विशेष अवसरों पर पहनने के लिए बनवाया है. कहीं विशेष प्रोग्राम होता है, तभी पहनती हूं.’’

अजय कविता के सामने आ कर खड़ा हो गया और उस की आंखों में आंखें डाल कर बोला, ‘‘तुम मुझे चाहती हो न?’’

कविता जीजा के मन का मैल नहीं समझ सकी. उस ने सहजता से जवाब दिया, ‘‘हां, चाहती हूं.’’

‘‘अगर तुम मुझे चाहती होगी तो वही लाल जोड़ा पहनोगी.’’

‘‘जीजाजी, मेरी समझ में नहीं आ रहा है कि तुम लाल जोड़े को पहनने की जिद क्यों कर रहे हो?’’ वह बोली.

‘‘इसलिए कि उसे पहन कर तुम दुलहन जैसी लगती हो.’’

‘‘इस का मतलब यह हुआ कि आप लोग मेरा विवाह कर के मुझे इस घर से निकालने पर तुले हैं.’’ कविता हंसी, ‘‘अब तो मैं उसे हरगिज नहीं पहनने वाली.’’ कह कर कविता तेजी से बाथरूम की ओर बढ़ गई.

लड़की ‘न’ कहे तो उस की ‘हां’ समझना चाहिए, सोच कर अजय के होंठों पर मुसकान फैल गई. अजय पहले ही तैयार हो चुका था. इसलिए वह बैठ कर अखबार पढ़ने लगा. कुछ देर बाद जब कविता नहा कर तैयार हुई तो मन ही मन खयाली पुलाव पका रहे अजय ने देखा तो जैसे उस के अरमान बिखर कर रह गए. कविता ने लाल जोड़ा नहीं पहना था. उस ने मेहंदी कलर का सलवारसूट पहन रखा था. उस सलवार सूट में भी उस का सौंदर्य कयामत ढा रहा था. भीगे बालों से टपकती बूंदें उस के चेहरे पर आ कर ठहर गई थी, जिस से भीगाभीगा उस का सौंदर्य दिल को लुभाने वाला था. अजय बेकाबू हो उठा और उस ने कविता को बांहों में भर लिया और उस के गालों को चूम लिया.

कविता स्तब्ध रह गई. जीजा ने यह क्या गजब कर डाला. किसी तरह उस ने स्वयं को अजय के चंगुल से आजाद किया और कमरे से निकल भागी. तभी सास भी घर लौट आई. जीजा की हरकत से कविता का दिल खिल गया. वह सोचने लगी कि मैं इतनी गजब की सुंदर हूं कि जीजा को अपनी बीवी फीकी लगती है. जबकि उन्होंने दीदी से प्रेम विवाह किया है. दोपहर को अजय को भोजन कराने के बाद उषा किसी काम से बाजार चली गई. अजय कविता के कमरे में गया और उस के पास बैठते हुए बोला, ‘‘कविता जब से तुम को लाल जोड़े में देखा है, दिल वश में नहीं है. कुछ करो कविता, वरना मैं तुम्हारे वियोग में तड़पतड़प कर मर जाऊंगा.’’

‘‘अब मैं क्या कर सकती हूं, आप की शादी तो सरिता दीदी से हो गई और वह भी आप ने लव मैरिज की है.’’

‘‘तुम पहले मिल जाती तो सरिता से बिलकुल शादी नहीं करता. लेकिन अब भी देर नहीं हुई है शादी टूटने में कितनी देर लगती है. तुम हां बोलो तो मैं सरिता को तलाक दे कर तुम से विवाह करने का जतन करूं.’’ अजय बेबाकी से बोला.

‘‘धत्त,’’ कविता हंसते हुए बैड से उठ खड़ी हुई, ‘‘जीजा, तुम पागल हो गए हो.’’

उस के बाद उस ने हाथ छुड़ाया और कमरे से जाने लगी तो अजय बेसब्र हो उठा और उस का हाथ पकड़ कर खींच कर बैड पर गिरा लिया. इस के बाद वह उसे पागलों की तरह चूमने लगा. कविता के कुंवारे बदन को परपुरुष का कामुक स्पर्श मिला तो वह भी बहक गई. उस के बाद उन के बीच अनैतिक रिश्ता कायम हो गया. कविता को अपने जीजा के प्यार में गजब का न भूलने वाला आनंद मिला. इस के बाद जब तक अजय रहा, वह कविता के साथ मजे लेता रहा. संबंधों का यह सिलसिला चलता रहा. दूसरी ओर सरिता ने एक बेटी को जन्म दिया, जिस का नाम तनु रखा गया. लेकिन अजय तो कविता के प्यार में पागल था. अब वह ससुराल के अधिक चक्कर लगाने लगा.

ससुराल वालों का माथा ठनका. जब नजर रखी तो उन्होंने कविता के साथ अजय की खिचड़ी पकती देखी. इस से पहले कि कोई अनर्थ हो जाए राजेश चंद्र ने बेटी कविता का विवाह कौशांबी के चरवा गांव निवासी नीरज से कर दिया. यह 5 साल पहले की बात है. विवाह का एक साल बीततेबीतते कविता भी एक बेटी की मां बन गई. अब वह कभीकभार ही मायके आ पाती थी. उस के आने पर अजय ससुराल पहुंच जाता था. दोनों की चाहत तन मिलने से कुछ समय के लिए पूरी हो जाती, लेकिन फिर वही पहले जैसा हाल हो जाता.  दोनों को अपने बीच की दूरी बहुत अखर रही थी. कविता पूरी तरह से अजय के प्यार में रंगी थी. इसलिए उस का ससुराल में मन नहीं लगता था. एक साल पहले वह ससुराल से मायके आई तो वापस लौट कर ससुराल नहीं गई.

अजय की खुशी का ठिकाना न रहा. वह पहले की भांति उस से मिलने जाने लगा. अजय की ससुराल वाले सब जान कर भी कुछ न कर पाते. वह चुपचाप तमाशा देखते रहे. सरिता को भी अपने पति के अपनी बहन कविता से संबंध की जानकारी हो गई. इस के बाद अजय और सरिता में विवाद होने लगा. अजय एक बहन का पति था तो दूसरे का प्रेमी. वह दोनों के जीवन से खेल रहा था. 13 अक्तूबर को अजय इलैक्ट्रौनिक्स का सामान खरीदने के लिए सुबह प्रयागराज चला गया. शाम 6 बजे जब वह घर लौटा तो दरवाजा अंदर से बंद नहीं था, धक्का देते ही खुल गया. जैसे ही वह अंदर पहुंचा तो कमरे में उस की पत्नी सरिता और 7 वर्षीय बेटी तनु की लाशें पड़ी थीं. यह देख कर वह चीखनेचिल्लाने लगा.

शोर सुन कर आसपास के लोग वहां आ गए. घटना की खबर मिलने पर क्षेत्र के विधायक शीतला प्रसाद पटेल भी वहां पहुंच गए. अजय के कमरे में उस की पत्नी व बेटी की लाशें देखने के बाद उन्होंने सैनी कोतवाली के इंसपेक्टर प्रदीप सिंह को घटना की सूचना दे दी. इंसपेक्टर प्रदीप सिंह ने अपने उच्चाधिकारियों को दोहरे हत्याकांड की सूचना दे दी. फिर घटनास्थल की ओर रवाना हो गए. घटनास्थल पर पहुंच कर उन्होंने लाशों का निरीक्षण किया. सरिता की लाश कमरे में मेज के पास जमीन पर पड़ी थी. उस के गले को चाकू से रेता गया था. शरीर पर भी 4-5 घाव के निशान थे.

लाश के पास काफी खून पड़ा था, जो सूख चुका था. लाश अकड़ी हुई थी. दरवाजे के पास सरिता की बेटी तनु की लाश पड़ी थी. उस के गले पर दबाए जाने के निशान मौजूद थे. तनु की लाश में काफी चींटियां लग गई थीं. निरीक्षण करने के बाद अनुमान लगाया गया कि दिन में किसी वक्त दोनों को मारा गया है. घर में किसी व्यक्ति द्वारा जबरन घुसने का कोई सबूत नहीं मिला. न ही आसपास पड़ोस में किसी ने घटना को अंजाम देने के समय किसी प्रकार का शोरशराबा सुना था. इस का मतलब यह कि हत्यारा कोई परिचित व्यक्ति है. इसी बीच एसपी अभिनंदन, एएसपी समर बहादुर सिंह और सीओ (सिराथू) श्यामकांत भी डौग स्क्वायड और फोरैंसिक टीम के साथ पहुंच गए. फोरैंसिक टीम साक्ष्य जुटाने में लग गई.

उच्चाधिकारियों ने लाश व घटनास्थल का निरीक्षण किया. तत्पश्चात अजय साहू से पूछताछ की तो उस ने सुबह प्रयागराज जाने और शाम 6 बजे घर आने पर घटना का पता होने की बात बताई. सीसीटीवी फुटेज देखी गई. लेकिन कोई संदेहास्पद व्यक्ति नहीं दिखा. इंसपेक्टर प्रदीप सिंह को अजय पर ही शक था. उन्होंने अपना शक एसपी अभिनंदन को बताया. एसपी अभिनंदन की सोच भी वही थी. अजय ने बताया था कि वह दोपहर 12 बजे के करीब प्रयागराज गया था. उस के बाद ही लगभग 2-3 बजे घटना हुई होगी. लेकिन 3-4 घंटे में लाश अकड़ नहीं सकती.

ऐसा तभी होता है, जब घटना हुए 10-12 घंटे का समय हो जाए. यानी सुबह के समय तब अजय घर पर ही था. अजय ने ही हत्या कर के सारी कहानी गढ़ी है, इस का विश्वास हुआ तो अजय से और सख्ती से पूछताछ के लिए उसे थाने ले जाया गया. लेकिन इस से पहले दोनों लाशों को पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भेज दिया गया. अजय के ससुर राजेश चंद्र और छोटी साली सविता आई तो इंसपेक्टर प्रदीप सिंह ने उन से पूछताछ की. राजेश चंद्र काफी दुखी थे. उन्होंने अज्ञात के खिलाफ हत्या की रिपोर्ट दर्ज करा दी. पूछताछ करने पर वह चुप ही रहे लेकिन सविता फट पड़ी. उस ने बताया कि कविता दीदी और जीजा का आपस में काफी लगाव था. इंसपेक्टर प्रदीप सिंह का शक सही साबित हुआ.

इस के बाद अजय से थाने में सख्ती से उन्होंने पूछताछ की तो उस ने अपना जुर्म स्वीकार कर लिया और इस जुर्म में उस ने साली कविता के भी शामिल होने की बात स्वीकारी. दोनों ने ही मिल कर सरिता की हत्या की साजिश रची थी. इस के बाद कविता को भी हिरासत में ले कर पूछताछ की गई. पूछताछ में पता चला कि अजय और कविता एकदूसरे से विवाह कर के साथ रहना चाहते थे. सरिता उन के संबंधों का विरोध कर रही थी, वह उन के रास्ते में आ रही थी. इसलिए कविता और अजय ने मिल कर सरिता की हत्या की योजना बनाई. अजय ने कविता से बात करने के लिए दूसरा नंबर ले रखा था, उसी से बराबर कविता से बात करता था.

उसी नंबर से बात कर के उन्होंने हत्या का षडयंत्र रचा. 13 अक्तूबर की सुबह 6 बजे अजय ने घर में रखे सब्जी काटने वाले चाकू से नींद में सोई सरिता का गला काट दिया. सरिता चीख भी न सकी, जमीन पर गिर कर तड़पने लगी. अजय ने फिर उस के शरीर पर कई वार किए, जिस से सरिता की मौत हो गई. अपने पिता के हाथों मां को मरता देख कर मासूम तनु जाग गई और डर की वजह से रोते हुए बाहर की तरफ भागने लगी. अजय ने दरवाजे तक पहुंचने से पहले ही उसे पकड़ लिया और उस का सिर दीवार पर पटक दिया.

सिर में लगी चोट से तनु बेहोश हो गई. अजय ने फिर उस का गला घोंट कर उस की भी हत्या कर दी. अजय तनु को मारना नहीं चाहता था लेकिन भेद खुलने के डर से उसे बेटी की हत्या करनी पड़ी. उस ने हत्या के बाद कविता से मोबाइल पर बात की और दोनों की हत्या करने की बात बता दी. इस के बाद वह बाजार गया और कई जगह जानबूझ कर गया, जिस से वह सीसीटीवी कैमरों में कैद में आ जाए. एक जगह उस ने समोसा खरीद कर भी खाया. इस के बाद वह प्रयागराज चला गया. वहां वह शाहगंज इलाके में कई उन इलैक्ट्रौनिक सामानों की दुकानों पर गया, जहां सीसीटीवी कैमरे लगे थे. अपने प्रयागराज में होने के सबूत छोड़ कर शाम को वह कौशांबी लौट

आया. यहां लौटने के बाद भी कुछ जगहों पर गया. शाम 6 बजे वह कमरे पर पहुंचा और लाश देख कर शोर मचाने लगा. लेकिन काफी होशियारी के बाद भी वह कविता के साथ कानून के शिकंजे में फंस गया. इंसपेक्टर प्रदीप सिंह ने दोनों आरोपियों को न्यायालय में पेश किया, वहां से दोनों को जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारि

UP News : पिटाई से तंग आकर पत्नी ने प्रेमी से कराया पति का कत्ल

UP News : दंपति के बीच आपसी विवाद होना एक आम बात होती है. लेकिन समझदार लोग पहल कर के खुद ही विवादों को निपटा लेते हैं. अवतार सिंह और अंजना यादव भी अगर अपना अहंकार छोड़ कर घरेलू विवाद निपटाने की कोशिश करते तो शायद…

उत्तर प्रदेश का एक मशहूर जिला है ललितपुर. यह झांसी डिवीजन के तहत आता है. महाराजा सोमेश सिंह ने अपनी पत्नी ललिता देवी की यादगार में इस का नाम ललितपुर रखा था. साल 1974 में यह जिले के रूप में अस्तित्व में आया. जिले की सीमाएं झांसी व दतिया से जुड़ी हैं. झांसी जहां ऐतिहासिक क्रांति के लिए मशहूर है तो दतिया दूधदही व खोया व्यापार के लिए. जबकि ललितपुर उधार व्यापार के लिए चर्चित है. इन 3 जिलों को मिला कर एक कहावत बहुत मशहूर है ‘झांसी गले की फांसी, दतिया गले का हार. ललितपुर न छोडि़ए, जब तक मिले उधार.’

ललितपुर जिला ऐतिहासिक तथा धर्मस्थलों के लिए भी मशहूर है. यहां कई प्रसिद्ध मंदिर हैं. भारत के 3 बांधों में प्रमुख गोविंद सागर बांध इसी ललितपुर में स्थित है. इस बांध को लव पौइंट के नाम से भी जाना जाता है. इसी ललितपुर शहर में एक गांव है जिजयावन. यादव बाहुल्य इस गांव में शेर सिंह यादव अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी कमला के अलावा एक बेटी रामरती और बेटा अवतार सिंह था. शेर सिंह की आजीविका खेती थी. उसी की आय से उस ने बेटी का ब्याह कर उसे ससुराल भेजा था. शेर सिंह यादव खुद तो जीवन भर खेत जोतता रहा, लेकिन वह अपने बेटे अवतार सिंह को पढ़ालिखा कर अच्छी नौकरी दिलवाना चाहता था.

लेकिन उस की यह तमन्ना अधूरी ही रह गई. क्योंकि अवतार सिंह का मन पढ़ाई में नहीं लगा. हाईस्कूल में फेल होने के बाद उस ने पढ़ाई बंद कर दी और खेती के काम में पिता का हाथ बंटाने लगा. अवतार सिंह का मन खेतीकिसानी में लग गया तो शेर सिंह ने उस का विवाह भसौरा गांव निवासी राजकुमार यादव की बेटी अंजना उर्फ सुखदेवी के साथ कर दिया. अंजना थी तो सांवली, लेकिन उस का बदन भरा हुआ और नाकनक्श सुंदर थे. अवतार सिंह उस की अदाओं पर फिदा था, इसी कारण वह धीरधीरे जोरू का गुलाम बन गया. दोनों की शादी को 5 साल बीत गए. इस बीच अंजना 2 बेटियों की मां बन गई.

अंजना की सास कमला की दिली तमन्ना थी कि उस का एक पोता हो. लेकिन जब अंजना ने एक के बाद एक 2 बेटियों को जन्म दिया तो कमला गम में डूब गई. इसी गम से वह बीमार रहने लगी और फिर एक दिन उस की मृत्यु हो गई. पत्नी छोड़ कर चली गई तो शेर सिंह को भी संसार से मोह नहीं रह गया. उस ने साधु वेश धारण कर लिया और तीर्थस्थानों के भ्रमण करने लगा. वह महीने दो महीने में घर आता, हफ्तादस दिन रहता, उस के बाद फिर भ्रमण पर निकल जाता. ससुर के घर छोड़ने से जहां अंजना खुश थी, वहीं अवतार सिंह को इस बात का गहरा सदमा लगा था. अवतार सिंह का मानना था कि मां की मौत की जिम्मेदार उस की पत्नी अंजना ही है.

पिता भी उसी के कारण घर छोड़ कर गए हैं. कभीकभी वह अंजना को इस बात का ताना भी देता था. इसे ले कर दोनों में झगड़ा होता, फिर अंजना रूठ कर मायके चली जाती. अवतार सिंह के मनाने पर ही वह घर वापस आती थी. पतिपत्नी के बीच तनाव बढ़ा, तो उन के अंतरंग संबंधों पर भी असर पड़ने लगा. जब मन में दूरियां पैदा हो जाएं तो तन अपने आप दूर हो जाते हैं. अब महीनों तक दोनों देह मिलन से भी दूर रहते. अंजना चाहती थी कि प्रणय की पहल अवतार सिंह करे, जबकि अवतार सिंह चाहता था कि अंजना खुद उस के पास आए. इसी जिद पर दोनों अड़े रहते. तनाव पैदा होने से, घर में एक बुराई और घुस आई. अवतार सिंह को शराब पीने की आदत पड़ गई. वह शराब पी कर आने लगा. इस से मनमुटाव और बढ़ गया.

अवतार सिंह की जानपहचान कल्याण उर्फ काले कुशवाहा से थी. कल्याण पड़ोस के गांव मिर्चवारा का रहने वाला था और काश्तकार था. अवतार और कल्याण के खेत मिले हुए थे सो दोनों की खेतों पर अकसर मुलाकात हो जाती थी. कल्याण की आर्थिक स्थिति मजबूत थी. उस के पास बुलेरो कार भी थी, जिसे मोहन कुशवाहा चलाता था. बोलेरो कार बुकिंग पर चलती थी, जिस से कल्याण को अतिरिक्त आय होती थी. मोहन कुशवाहा ड्राइवर ही नहीं बल्कि उस का दाहिना हाथ था. कल्याण उर्फ काले कुशवाहा शराब व शबाब का शौकीन था. अवतार सिंह को भी शराब पीने की लत थी, सो उस ने कल्याण से दोस्ती कर ली. अब दोनों की महफिल साथसाथ जमने लगी. चूंकि अवतार सिंह को पैसा खर्च नहीं करना पड़ता था सो वह उस के बुलावे पर तुरंत उस के पास पहुंच जाता था.

एक रोज कल्याण शराब की बोतल ले कर अवतार सिंह के घर आ पहुंचा. उस रोज पहली बार कल्याण की नजर अवतार की पत्नी अंजना पर पड़ी. पहली ही नजर में अंजना उस के दिल में रचबस गई. अंजना भी हृष्टपुष्ट कल्याण को देख कर प्रभावित हुई. दरअसल अंजना अपने पति अवतार सिंह से संतुष्ट नहीं थी. उस का जिस्मानी रिश्ता खत्म सा हो गया था. अत: उस ने मन ही मन कल्याण को अपने प्यार के जाल में फंसाने का निश्चय कर लिया. कल्याण कुशवाहा का अंजना के घर आनाजाना शुरू हुआ, तो दोनों के बीच नजदीकियां भी बढ़ने लगीं. 2 बेटियों की मां बन जाने के बाद भी अंजना का यौवन अभी ढला नहीं था. अंजना की आंखों में जब उसे मूक निमंत्रण दिखने लगा, तो कामना की प्यास भी बढ़ गई.

अंजना की नजदीकियां पाने के लिए कल्याण ने अवतार सिंह को ज्यादा भाव देना शुरू कर दिया. वह उसे मुफ्त में शराब तो पिलाता ही था, अब उस की आर्थिक मदद भी करने लगा. कल्याण का घर आना बढ़ा तो अंजना समझ गई कि कल्याण पर उस के हुस्न का जादू चल गया है. वह अपने हावभाव से उस की प्यास और भड़काने लगी. बेताबी दोनों ओर बढ़ती गई. अब उन्हें मौके का इंतजार था. एक रोज कल्याण ने अंजना को पाने का मन बनाया और दोपहर को अवतार सिंह के घर पहुंच गया. अंजना उस समय घर में अकेली थी. बच्चे स्कूल गए थे और अवतार सिंह खेतों पर.

मौका अच्छा था. कल्याण को देख अंजना के होंठों पर शरारती मुसकान बिखरी और उस ने पूछा, ‘‘तुम तो शाम को अंगूर की बेटी को होंठों पर लगाने यहां आते थे, आज दिन में रास्ता कैसे भूल गए?’’

‘‘अंजना, अंगूर की बेटी से होंठों की प्यास कहां बुझती है, उल्टा और भड़क जाती है. सोचा कि आज शराब से भी ज्यादा नशीली, उस से ज्यादा मादक अपनी अंजना का नशा कर लूं.’’ कहते हुए कल्याण ने उस के कंधे पर हाथ रख दिए.

‘‘तुम ने न मुझे हाथ लगाया, न होंठ लगाए. फिर कैसे कह सकते हो कि मैं शराब से ज्यादा मादक और नशीली हूं.’’ अंजना ने अपनी अंगुलियों से कल्याण की छाती सहलानी शुरू कर दी. यह मिलन का साफ आमंत्रण था. कल्याण का हौसला बढ़ा. उस ने अंजना को अपनी बांहों में भर लिया. इस के बाद दोनों ने हसरतें पूरी कीं. उस रोज के बाद कल्याण तथा अंजना के बीच अकसर यह खेल खेला जाने लगा. दोनों को न मर्यादा की परवाह थी, न रिश्तेनातों की. अंजना अब खूब बन संवर कर रहने लगी. अकसर दोपहर को कल्याण का अवतार सिंह के घर आना, लोगों के लिए जिज्ञासा का विषय बनना ही था. धीरेधीरे पासपड़ोस वाले समझ गए कि दोनों के बीच कौन सी खिचड़ी पक रही है.

चर्चा फैली तो बात अवतार सिंह के कानों तक पहुंची. उस ने पत्नी से जवाबतलब किया तो अंजना बोली, ‘‘कल्याण तो तुम्हारे साथ पीनेखाने के लिए आता है. इसी बात की जलन लोगों को होती है. तुम्हें अगर उस के आने से परेशानी है, तो तुम ही उसे मना कर देना. मैं बेकार में क्यों बुरी बनूं.’’

पत्नी की बातों से अवतार सिंह को लगा कि गांव वाले बिना वजह बातें कर रहे हैं. अंजना गलत नहीं है. वह शांत हो कर चारपाई पर जा लेटा. अवतार सिंह ने अंजना की बात पर यकीन तो कर लिया, लेकिन मन का शक दूर नहीं हुआ. इधर अंजना ने सारी बात कल्याण को बताई. इस के बाद दोनों मिलन में बेहद सतर्कता बरतने लगे. अब जब अंजना फोन पर उसे सूचना देती, तभी कल्याण घर आता. उस रोज अवतार सिंह ललितपुर जाने की बात कह कर घर से निकला, लेकिन किसी वजह से 2 घंटे बाद ही घर वापस आ गया. वह घर के अंदर कमरे के पास पहुंचा तभी उसे कमरे के अंदर से खुसरफुसर की आवाज सुनाई दी.

आवाज सुन कर वह समझ गया कि कमरे में अंजना के साथ कोई मर्द भी है. उस की आंखों में खून उतर आया. उस ने पूरी ताकत से दरवाजे पर लात मारी. भड़ाक से दरवाजा खुला, सामने बिस्तर पर कल्याण और अंजना आपत्तिजनक हालत में थे. अवतार सिंह पूरी ताकत से दहाड़ा, ‘‘हरामजादे तेरी यह हिम्मत कि तू मेरे ही घर में घुस कर मेरी इज्जत लूटे. मैं तुझे जिंदा नहीं छोडूंगा.’’

गुस्से से आग बबूला अवतार सिंह आंगन के कोने में रखा डंडा लेने लपका. तब तक कल्याण और अंजना संभल चुके थे. कल्याण तो भाग गया, लेकिन अंजना कहां जाती. अवतार सिंह ने उस की जम कर पिटाई की, और गालियां बकता रहा. फिर वह सीधा देशी शराब के ठेके पर चला गया. वहां से वह धुत हो कर लौटा, फिर पत्नी की खबर लेनी शुरू कर दी. उस रोज पूरा गांव जान गया कि अंजना का कल्याण से गलत रिश्ता है. अंजना तो कल्याण की दीवानी बन चुकी थी. अत: पिटाई के बावजूद भी उस ने कल्याण का साथ नहीं छोड़ा. अब वह घर के बजाए खेतखलिहान व बागबगीचे में प्रेमी से मिलने लगी. इस की जानकारी जब अवतार सिंह को हुई तो उस ने फिर अंजना को पीटा और चेतावनी दी कि आज के बाद जिस दिन वह उसे रंगे हाथ पकड़ लेगा, उस दिन बहुत बुरा होगा. पति की इस चेतावनी से अंजना बुरी तरह डर गई थी.

11 अगस्त, 2020 को अचानक अवतार सिंह लापता हो गया. कई दिन बीत जाने के बाद जब गांव वालों को अवतार सिंह नहीं दिखा तो लोगों ने अंजना से उस के बारे में पूछा. उस ने लोगों को बताया कि उस के पति मथुरा वृंदावन गए हैं. हफ्तादस दिन में वापस आ जाएंगे. अंजना का जवाब पा कर लोग संतुष्ट हो गए. लगभग एक हफ्ते बाद अंजना का ससुर शेर सिंह तीर्थ स्थानों का भ्रमण कर घर लौटा तो अंजना ने उसे भी बता दिया कि अवतार सिंह मथुरा गया है. इधर 15 अगस्त, 2020 को वानपुर थानाप्रभारी राजकुमार यादव को सूचना मिली कि खिरिया छतारा गांव के पास नहर की पटरी के किनारे झाडि़यों में एक आदमी की लाश पड़ी है. जिस से दुर्गंध आ रही है.

सूचना से राजकुमार यादव ने अपने अधिकारियों को अवगत कराया फिर चौकी इंचार्ज कृष्ण कुमार, एसआई दया शंकर, सिपाही रजनीश चौहान और देवेंद्र कुमार को साथ ले कर घटनास्थल पर पहुंच गए. उस समय वहां गांव वालों की भीड़ जुटी थी. थानाप्रभारी ने झाडि़यों से शव बाहर निकलवाया, जो एक चादर में लिपटा था. चादर से शव निकाला तो वह 34-35 साल के युवक का था. शव की हालत देख कर अनुमान लगाया जा सकता था कि उस की हत्या 4-5 दिन पहले की गई होगी. बरसात के कारण शव फूल भी गया था. देखने से प्रतीत हो रहा था कि युवक की हत्या गला घोंट कर की गई थी.

थानाप्रभारी राजकुमार यादव अभी निरीक्षण कर ही रहे थे कि सूचना पा कर एसपी एस.एस. बेग, एएसपी बृजेश कुमार सिंह तथा डीएसपी केशव नाथ घटनास्थल आ गए. पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का निरीक्षण किया तो पता चला कि युवक की हत्या कहीं और की गई थी और शव को नहर किनारे झाडि़यों में फेंका गया था. पुलिस अधिकारियों की उपस्थिति में सैकड़ों लोग शव को देख चुके थे. पर कोई भी उसे पहचान नहीं पा रहा था. इस से अधिकारियों ने अंदाजा लगाया कि मृतक आसपास के गांव का नहीं बल्कि कहीं दूरदराज का है. तब अधिकारियों ने शव का फोटो खिंचवा कर पोस्टमार्टम के लिए ललितपुर के जिला अस्पताल भिजवा दिया.

एसपी एम.एम. बेग ने इस ब्लाइंड मर्डर का परदाफाश करने की जिम्मेदारी थानाप्रभारी राजकुमार यादव को सौंपी. सहयोग के लिए एसओजी व सर्विलांश टीम को भी लगाया. पूरी टीम की कमान एएसपी बृजेश कुमार सिंह को सौंपी गई. थानाप्रभारी राजकुमार यादव ने इस केस को खोलने के लिए पूरी ताकत झोंक दी. मुखबिरों को गांवगांव भेजा. पासपड़ोस के कई थानों से गुमशुदा लोगों की जानकारी जुटाई पर उस अज्ञात शव की किसी ने शिनाख्त नहीं की. तब यादव को शक हुआ कि मृतक किसी दूरदराज गांव का हो सकता है. इस पर थानाप्रभारी ने दूरदराज के गांवों में अज्ञात युवक की लाश बरामद करने की मुरादी कराई.

जिजयावन गांव का शेर सिंह यादव उस समय खेत पर जा रहा था. अपने गांव में डुग्गी पिटती देख वह रुक गया. ऐलान सुना तो वह अंदर से कांप सा गया. क्योंकि उस का बेटा अवतार सिंह भी 11 अगस्त से घर से लापता था. खेत पर जाना भूल कर शेर सिंह ने पड़ोसी रामसिंह को साथ लिया और थाना वानपुर पहुंच कर थानाप्रभारी राजकुमार यादव से मिला. थानाप्रभारी ने जब शेर सिंह को लाश के फोटो, कपड़े, चादर आदि दिखाई तो उन दोनों ने उस की शिनाख्त अवतार सिंह के तौर पर कर दी. पड़ोसी रामसिंह ने थानाप्रभारी राजकुमार यादव को यह भी जानकारी दी कि अवतार सिंह के घर मिर्चवारा गांव के कल्याण उर्फ काले का आनाजाना था. काले तथा अवतार सिंह की बीवी अंजना के बीच नाजायज रिश्ता था. अवतार सिंह इस का विरोध करता था. संभव है, इसी विरोध के कारण उस की हत्या की गई हो.

अवतार सिंह की हत्या का सुराग मिला तो पुलिस टीम अंजना से पूछताछ करने उस के घर पहुंच गई. अंजना ने पूछताछ में बताया कि उस के पति मथुरा गए हैं. वहां से कहीं और चले गए होंगे. 2-4 दिन बाद आ जाएंगे. लेकिन जब पुलिस ने बताया कि उस के पति की हत्या हो गई है और उस के ससुर शेर सिंह ने फोटो चादर से उस की शिनाख्त भी कर ली है. तब अंजना ने जवाब दिया कि उस के ससुर वृद्ध हैं. बाबा बन गए हैं. उन की अक्ल कमजोर हो गई, इसलिए उन्होंने हत्या की बात मान ली और उन की गलत शिनाख्त कर दी. पर सच्चाई यह है कि पति तीर्थ करने गए हैं. आज नहीं तो कल आ ही जाएंगे. बिना सबूत के पुलिस टीम ने अंजना को गिरफ्तार करना उचित नहीं समझा. पुलिस ने पूछताछ के बहाने उस का मोबाइल फोन जरूर ले लिया तथा उस की निगरानी के लिए पुलिस का पहरा बिठा दिया.

पुलिस ने अंजना का मोबाइल फोन खंगाला तो पता चला कि अंजना एक नंबर पर ज्यादा बातें करती है. पुलिस ने उस नंबर का पता किया तो जानकारी मिली कि वह नंबर अंजना के प्रेमी कल्याण उर्फ काले का है और वह हर रोज उस से बात करती है. फिर क्या था, पुलिस टीम ने 3 सितंबर, 2020 की सुबह अंजना को उस के घर से हिरासत में ले लिया और थाना वानपुर ले आई. फिर अंजना की ही मदद से पुलिस टीम ने कल्याण उर्फ काले को भी भसौरा तिराहे से गिरफ्तार कर लिया. उस समय वह अपनी बोलेरो यूपी94एफ 4284 पर सवार था और ड्राइवर मोहन कुशवाहा का इंतजार कर रहा था. उसे मय बोलेरो थाना वानपुर लाया गया.

थाने पर जब उस ने अंजना को देखा तो समझ गया कि अवतार सिंह की हत्या का राज खुल गया है. जब पुलिस ने कल्याण से अवतार सिंह की हत्या के बारे में पूछा तो उस ने सहज ही हत्या का जुर्म कबूल कर लिया और अपनी बोलेरो से तार का वह टुकड़ा भी बरामद करा दिया जिस से उस ने अवतार सिंह का गला घोंटा था. कल्याण के टूटते ही अंजना भी टूट गई और पति की हत्या का जुर्म कबूल कर लिया. कल्याण उर्फ काले कुशवाहा ने पुलिस को बताया कि अवतार सिंह की पत्नी अंजना से उस के नाजायज संबंध हो गए थे. इस रिश्ते की जानकारी अवतार को हुई तो वह विरोध करने लगा और अंजना को पीटने लगा.

अंजना की पिटाई उस से बरदाश्त नहीं हो रही थी. इसलिए उस ने अंजना और अपने ड्राइवर मोहन कुशवाहा के साथ मिल कर अवतार की हत्या की योजना बनाई और सही समय का इंतजार करने लगा. 11 अगस्त, 2020 की रात 8 बजे अंजना ने फोन कर के कल्याण को जानकारी दी कि अवतार सिंह फसल की रखवाली के लिए खेत पर गया है. वह रात को ट्यूबवैल वाली कोठरी में सोएगा. यह पता चलते ही वह अपनी बोलेरो यूपी94एफ 4284 से ड्राइवर मोहन कुशवाहा के साथ जिजयावन गांव के बाहर पहुंचा. वहां योजना के तहत अंजना उस का पहले से ही इंतजार कर रही थी. उस के बाद वह तीनों खेत पर पहुंचे. जहां अवतार सिंह कोठरी में जाग रहा था.

वहां पहुंचते ही तीनों ने अवतार सिंह को दबोच लिया, फिर बिजली के तार से अवतार सिंह का गला घोंट दिया. हत्या के बाद तीनों ने शव चादर में लपेटा और बोलेरो गाड़ी में रख कर वहां से 20 किलोमीटर दूर खिरिया छतारा गांव के बाहर नहर की पटरी वाली झाडि़यों के बीच फेंक दिया. शव ठिकाने लगाने के बाद सभी लोग अपनेअपने घर चले गए. चूंकि कल्याण उर्फ काले ने ड्राइवर मोहन कुशवाहा को भी हत्या में शामिल होना बताया था, अत: पुलिस ने तुरंत काररवाई करते हुए 4 सितंबर की दोपहर 12 बजे मोहन कुशवाहा को भी ललितपुर बस स्टैंड के पास से गिरफ्तार कर लिया. थाना वानपुर की हवालात में जब उस ने कल्याण को देखा तो सब कुछ समझ गया. पूछताछ में उस ने सहज ही हत्या का जुर्म कबूल कर लिया.

पुलिस ने हत्यारोपित कल्याण उर्फ काले, मोहन कुशवाहा तथा अंजना यादव के खिलाफ भादंवि की धारा 302/201/120बी के तहत मुकदमा दर्ज कर उन्हें 5 सितंबर 2020 को ललितपुर कोर्ट में पेश किया, जहां से तीनों को जिला जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

Mumbai Crime News : पत्नी पर शक था इसलिए दुपट्टे से गला घोंटकर की हत्या

Mumbai Crime News : संदेह और कलह ऐसी चीजें हैं, जो हंसतेखेलते परिवार को बरबादी के कगार पर ले जा कर खड़ा कर देती हैं. अंबुज ने तो दोनों को ही प्यार से पाल रखा था, नतीजा यह…

नवी मुंबई के उपनगर घनसोली के रहने वाले महेंद्रनाथ हरिहर तिवारी की बहू नीलम और बेटा अंबुज तिवारी 22 जुलाई, 2020 की शाम साढ़े 5 बजे बिना किसी को बताए घर से निकल गए. पतिपत्नी थे, कहीं भी घूमने जा सकते थे, इसलिए किसी ने ध्यान नहीं दिया. घर वाले तब परेशान हुए, जब दोनों शाम को लौट कर नहीं आए. परेशानी तब हदें पार कर गई जब अगले दिन भी दोनों न तो घर लौटे और न ही फोन किया. दोनों के फोन भी स्विच्ड औफ थे, सो उन से बात भी नहीं हो पा रही थी. मामला जवान बहू और बेटे का था, इसलिए घर वाले सोच रहे थे कि दोनों जवान हैं, कहीं दूर घूमने भी जा सकते हैं. फिर भी जैसेजैसे समय बीत रहा था, घर वालों की बेचैनी बढ़ती जा रही थी, इस की खास वजह थी उन के मोबाइल स्विच्ड औफ होना.

हैरानपरेशान महेंद्रनाथ हरिहर तिवारी पूरी रात पूरे दिन 10 बजे तक उन की तलाश जानपहचान वालों और नातेरिश्तेदारों के यहां करते रहे. जब कहीं से कोई जानकारी नहीं मिली तो उन के मन में किसी तरह की अनहोनी को ले कर तरहतरह के विचार आने लगे. जब सारी कोशिशें बेकार गईं तो महेंद्रनाथ हरिहर तिवारी रात साढ़े 10 बजे कुछ नातेरिश्तेदारों के साथ थाना रबाले पहुंचे और थानाप्रभारी योगेश गावड़े को सारी बातें बता दीं. योगेश गावड़े ने उन के बेटे और बहू की गुमशुदगी दर्ज करवा दी. गुमशुदगी की शिकायत दर्ज होते ही थानाप्रभारी योगेश गावड़े हरकत में आ गए.

उन्होंने इस मामले की जानकारी पहले पुलिस कमिश्नर संजय कुमार, जौइंट सीपी राजकुमार व्हटकर, डीसीपी जोन-1 पंकज दहाणे, एसीपी (वाशी डिवीजन) विनायक वस्त के साथ नवी मुंबई पुलिस कंट्रोल रूम को दे दी. इस के बाद मामले की गंभीरता को देखते हुए इस की जांच की जिम्मेदारी इंसपेक्टर गिरधर गोरे को सौंप दी. उन की सहायता के लिए इंसपेक्टर उमेश गवली, सहायक इंसपेक्टर तुकाराम निंबालकर, प्रवीण फड़तरे, संदीप पाटिल और अमित शेलार को नियुक्त किया गया. जांच की जिम्मेदारी मिलते ही इंसपेक्टर गिरधर गोरे ने अपने सहायकों के साथ मामले पर गहराई से विचार कर के जांच की रूपरेखा तैयार की ताकि जांच तेजी से हो सके.

सब से पहले उन्होंने गुमशुदा अंबुज तिवारी और उस की पत्नी नीलम तिवारी के हुलिए सहित उन की फोटो नवी मुंबई के सभी पुलिस थानों को भेजे. साथ ही यह संदेश भी दिया गया कि उन के बारे में कहीं से कोई सूचना मिले तो जानकारी दें. साथ ही तेजतर्रार मुखबिरों को भी सक्रिय कर दिया था. इस के बाद इंसपेक्टर गिरधर गोरे ने अंबुज और नीलम के मोबाइल नंबर सर्विलांस पर लगवा दिए. जहांजहां उन के मिलने की संभावना थी, गिरधर गोरे ने वहांवहां अपनी टीम भेजी. लेकिन अंबुज और नीलम के बारे में कहीं से ऐसी कोई जानकारी नहीं मिली, जिस के सहारे उन तक पहुंचा जा सके. उन के पड़ोसियों ने यह जरूर बताया कि अंबुज और नीलम की अकसर तकरार होती थी. लेकिन दोनों घर छोड़ कर कहां गए होंगे, किसी को कोई जानकारी नहीं थी. जिस फर्म में अंबुज काम करता था, वहां से भी कोई जानकारी नहीं मिल सकी.

इंसपेक्टर गिरधर गोरे अपनी टीम के साथ जांच तो कर रहे थे, लेकिन उन की समझ में यह बात नहीं आ रही थी कि पतिपत्नी दोनों वयस्क थे, जहां जाना चाहते, आजा सकते थे. फिर लौकडाउन में उन का बिना किसी को कुछ बताए घर से निकल जाना और पूरे दिनरात घर न आना, रहस्यमय था. कहां गए होंगे और क्यों गए होंगे, यह गुत्थी सुलझ नहीं रही थी. इस गुत्थी को सुलझाने में पुलिस टीम को 4 से 5 दिन लग गए. जब यह गुत्थी सुलझी तो जांच टीम अवाक रह गई. मुखबिर ने दिया सूत्र 28 जुलाई, 2020 को इंसपेक्टर गिरधर गोरे को एक मुखबिर ने खबर दी कि जिस अंबुज और नीलम तिवारी को वह खोज रहे हैं, उन्हें घनसोली की अर्जुनवाड़ी में देखा गया है. यह खबर मिलते ही इंसपेक्टर गिरधर गोरे ने अपनी काररवाई के लिए टीम को सजग कर दिया.

उन की टीम ने छापा मार कर अंबुज तिवारी को अपनी गिरफ्त में लिया और उसे वरिष्ठ अधिकारियों के सामने ले जाया गया. अधिकारियों ने उस से फौरी तौर पर पूछताछ कर के जांच टीम के हवाले कर दिया.  जांच टीम ने जब उस से नीलम के बारे में पूछताछ की तो उस ने अनभिज्ञता जाहिर करते हुए पुलिस को गुमराह करने की कोशिश की. लेकिन जांच टीम उस की बातों से सहमत नहीं थी. उस के चेहरे से मक्कारी साफ झलक रही थी, वह कुछ छिपा रहा था. सच की तह में जाने के लिए जब उसे रिमांड पर लिया तो उसे बोलना पड़ा. अंबुज ने बताया कि उस ने अपने दोस्त के साथ मिल कर नीलम की हत्या कर दी है. उस ने आगे बताया कि नीलम के शव को प्लास्टिक के ड्रम में डाल कर वह और उस का दोस्त टैंपो से मुंबई-पुणे हाइवे होते हुए लोनावला के पास गांव दापोली के पास पहुंचे और लाश घनी झाडि़यों में छिपा दी.

पुलिस टीम को नीलम तिवारी का शव बरामद करना था. अंबुज तिवारी के बयान पर पुलिस टीम ने अपराध में शामिल उस के दोस्त श्रीकांत चौबे को भी गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ में उस ने अंबुज तिवारी की बातों की पुष्टि की. श्रीकांत चौबे की गिरफ्तारी के बाद पुलिस टीम दोनों को ले कर मुंबई-पुणे हाइवे के लोनावला, दापोली के बीच पहुंची और प्लास्टिक का वह ड्रम बरामद कर लिया. ड्रम का ढक्कन खोल कर नीलम तिवारी का शव बाहर निकाला गया फिर बारीकी से उस का निरीक्षण कर के पंचनामा बनाया गया. शव को पोस्टमार्टम के लिए मुंबई के गांधी अस्पताल भेज कर पुलिस टीम थाने लौट आई. पूछताछ में नीलम तिवारी हत्याकांड की जो कहानी सामने आई, उस की पृष्ठभूमि कुछ इस तरह थी—

65 वर्षीय महेंद्रनाथ हरिहर तिवारी मूलरूप से उत्तर प्रदेश के जिला आजमगढ़ के लालगंज बाजार के रहने वाले थे. अच्छे काश्तकार होने के साथ वह एक उच्चकुल के ब्राह्मण थे. गांव में उन की काफी इज्जत थी. उन का पूरा परिवार गांव में रहता था. महेंद्रनाथ सालों पहले मुंबई आ बस गए. वह करीब 30 सालों से महानगर नवी मुंबई के घनसोली इलाके में रहते आ रहे थे और फलों का व्यवसाय करते थे. 28 वर्षीय अंबुज तिवारी उन का बेटा था, जिसे वह बहुत प्यार करते थे. स्वस्थ, सुंदर अंबुज तिवारी ने साइंस से अपनी पढ़ाई पूरी की थी. फलस्वरूप उसे मुंबई जैसे महानगर में नौकरी के लिए संघर्ष नहीं करना पड़ा. पढ़ाई पूरी कर के वह सन 2010 में नौकरी के लिए पिता के पास मुंबई आ गया था.

मुंबई में उसे कुर्ला की एक जानीमानी सीमेंट मिक्सिंग कंपनी में क्वालिटी सुपरवाइजर की नौकरी मिल गई. अंबुज तिवारी जिस फर्म में काम करता था, उसी में श्रीकांत चौबे भी नौकरी कर रहा था. वह फर्म में टैंपो ड्राइवर था. वह माल डिलिवरी करता था. 23 वर्षीय श्रीकांत जयनारायण चौबे भी मूलरूप से आजमगढ़ का ही रहने वाला था. जल्दी ही दोनों की जानपहचान दोस्ती में बदल गई. जब भी मौका मिलता, दोनों घूमनेफिरने निकल जाते थे.

 

अच्छी नौकरी और अंबुज की बढ़ती उम्र को देखते हुए महेंद्रनाथ तिवारी अंबुज की शादी कर अपनी जिम्मेदारी से मुक्त हो जाना चाहते थे. उन्होंने जानपहचान और नातेरिश्तेदारी में अंबुज की शादी की बात चलाई तो उन्हें नीलम के बारे में जानकारी मिली. बातचीत के बाद 2016 में नीलम और अंबुज की शादी हो गई. शादी के बाद अंबुज ने कुछ दिनों के लिए नीलम को अपनी मां की सेवा के लिए गांव में छोड़ दिया था. वह खुद पिता के साथ मुंबई में रहता रहा. बीचबीच में वह छुट्टी ले कर गांव जाता रहता था. मगर नीलम इस से संतुष्ट नहीं थी. वह उस से इस बात की शिकायत करती थी कि उस के बिना उसे गांव अच्छा नहीं लगता. वह सारी रात उस को याद करकर के करवटें बदलती है. वैसे भी तुम्हें और पापा को खाना बनाने में तकलीफ होती होगी.

नीलम की शिकायत वाजिब थी. क्योंकि वह जवान और नईनवेली दुलहन थी. उस के भी अपने सपने और अरमान थे. उस का भी दिल पति के साथ रहने के लिए मचलता था, पर अंबुज की अपनी कुछ विवशताएं थीं. उस की मां बूढ़ी हो चली थी. मुंबई में वह पिता के साथ रहता था. घर छोटा था, ऐसे में वह घर में कैसे रहेगी. काफी सोचविचार के बाद उसे नीलम की जिद पर उसे मुंबई ले कर आना पड़ा. नीलम को अपने पति और ससुर के साथ रहते हुए लगभग एक साल से अधिक हो गया था. मुंबई आ कर नीलम ने घर और रसोई का सारा काम संभाल लिया था. पति के साथ नीलम बहुत खुश थी. मगर उस की यह खुशी ज्यादा दिनों तक कायम नहीं रही. उस के सुखी जीवन में परेशानी कुछ इस कदर आ कर बैठ गई कि उस का मानसम्मान सब रेत की दीवार की तरह ढह गया.

फोन बना परेशानी नीलम का कुसूर सिर्फ इतना था कि वह चंचल स्वभाव और खुले विचारों वाली हंसमुख और मिलनसार युवती थी. घर का कामकाज निपटा कर वह दिल बहलाने के लिए फोन पर अपनी फ्रैंड्स और मायके वालों के साथ चिपक जाती थी. इस बीच जब अंबुज को नीलम से बात करने की इच्छा होती थी तो उस का फोन बिजी रहता था, जिसे ले कर अंबुज के मन में तरहतरह के खयाल आने लगे थे. धीरेधीरे यही खयाल संदेह का वायरस बन कर अंबुज के दिमाग में बैठ गया. उसे लगा कि नीलम का गांव में किसी युवक के साथ चक्कर है. इस बारे में अंबुज ने जब नीलम से बात की तो वह स्तब्ध रह गई. फिर उस ने अपने आप को संभाल लिया और कहा कि यह सब उस के मन का वहम है.

नीलम के लाख सफाई देने के बाद भी संदेह का वायरस अंबुज के दिमाग से नहीं गया. वह बातबात पर अकसर नीलम से लड़ाई और मारपीट करने लगा. संदेह का वायरस उस के दिमाग में कुछ इस प्रकार घुसा था कि उस ने नीलम को ठिकाने लगाने का फैसला कर लिया. घटना वाली रात अंबुज पिता महेंद्रनाथ तिवारी को बिना बताए नीलम को यह कह कर साथ ले गया कि उस के दोस्त की बर्थडे पार्टी है. दोनों श्रीकांत चौबे के घर अर्जुनवाड़ी आ गए. अर्जुनवाड़ी में श्रीकांत चौबे के घर कोई पार्टी न देख नीलम को ठीक नहीं लगा क्योंकि अंबुज उसे झूठ बोल कर लाया था. इसलिए वह अंबुज से घर लौटने की जिद करने लगी. इस पर अंबुज ने उस के दुपट्टे से गला कस दिया और तब तक कसता रहा जब तक नीलम के प्राणपखेरू नहीं उड़ गए.

अंबुज की इस हरकत से श्रीकांत चौबे बुरी तरह डर गया. श्रीकांत को अंबुज तिवारी की यह योजना मालूम नहीं थी. उस ने अंबुज को खाना खाने के लिए बुलाया था. नीलम की हत्या करने के बाद अंबुज ने उस के शव को ठिकाने लगाने के लिए श्रीकांत चौबे से मदद मांगी. दोस्ती के नाते श्रीकांत उस की मदद करने को तैयार हो गया. उस की मजबूरी यह भी थी कि लाश उस के घर में पड़ी थी. दोनों ने नीलम के शव को प्लास्टिक के ड्रम में डाल कर टैंपो पर लाद दिया और मुंबई-पुणे हाइवे के दोपाली और लोनावला के बीच घनी झाडि़यों में डाल आए, जहां से पुलिस ने शव बरामद कर लिया.

अंबुज महेंद्रनाथ तिवारी और श्रीकांत जयनारायण चौबे से विस्तृत पूछताछ के बाद पुलिस ने उन्हें भादंवि की धारा 302, 201, 34 के तहत विधिसम्मत गिरफ्तार कर लिया. बाद में दोनों को अदालत पर पेश कर के तलोजा जेल भेज दिया गया. वारदात में इस्तेमाल टैंपो को पुलिस ने कब्जे में ले लिया था.

 

UP News : प्रेमी ने विवाहिता प्रेमिका की गमछे से गला दबाकर की हत्या

UP News : 2 बच्चों की मां होने के बावजूद ननकी अपने प्रेमी छत्रपाल के साथ गुलछर्रे उड़ाने लगी. इस बेहयाई से तंग आ कर उस का पति अंबिका प्रसाद घर छोड़ कर चला गया. इस के बाद ऐसा क्या हुआ कि प्रेमी छत्रपाल ही ननकी का कातिल बन गया.

सुबह होते ही गांव में शोर मचने लगा कि छत्रपाल अपनी प्रेमिका ननकी की हत्या कर फरार हो गया है, उस की लाश कमरे में पड़ी है. हल्ला होते ही गांव वाले ननकी के मकान की ओर दौड़ पड़े. गांव का प्रधान भी उन में शामिल था. गांव के पूर्वी छोर पर ननकी का मकान था. वहां पहुंच कर लोगों ने देखा, सचमुच ननकी की लाश कमरे में जमीन पर पड़ी थी. किसी की समझ में नहीं आ रहा था कि छत्रपाल ने ननकी की हत्या क्यों कर दी. इसी बीच ग्राम प्रधान रामसिंह यादव ने थाना बिंदकी में फोन कर के इस हत्या की खबर दे दी. सूचना पाते ही थानाप्रभारी नंदलाल सिंह अपनी टीम के साथ मौके पर पहुंच गए. उन्होंने महिला की हत्या किए जाने की खबर पुलिस अधिकारियों को दी फिर निरीक्षण में जुट गए.

वह उस कमरे में पहुंचे जहां ननकी की लाश पड़ी थी. लाश के पास कुछ महिलाएं रोपीट रही थीं. पूछने पर पता चला कि मृतका अपने प्रेमी छत्रपाल के साथ रहती थी. उस का पति अंबिका प्रसाद करीब 5 साल पहले घर से चला गया था और वापस नहीं लौटा. मृतका के 2 बच्चे भी हैं, जो अपनी ननिहाल में रहते हैं. मृतका ननकी की उम्र 35 वर्ष के आसपास थी. उस के गले में गमछा लिपटा था. लग रहा था जैसे उसी गमछे से गला कस कर उस की हत्या की गई हो. कमरे का सामान अस्तव्यस्त था. साथ ही टूटी चूडि़यां भी बिखरी पड़ी थीं. इस से लग रहा था कि हत्या से पहले मृतका ने हत्यारे से संघर्ष किया था.

थानाप्रभारी नंदलाल सिंह अभी घटनास्थल का निरीक्षण कर ही रहे थे कि सूचना पा कर एसपी प्रशांत कुमार वर्मा, एएसपी राजेश कुमार और सीओ योगेंद्र कुमार मलिक घटनास्थल पर आ गए. उन्होंने घटनास्थल का निरीक्षण किया तथा मौके पर मौजूद मृतका के घरवालों तथा पासपड़ोस के लोगों से घटना के बारे में पूछताछ की. मौके पर शारदा नाम की लड़की मिली. मृतका ननकी उस की मौसी थी. शारदा ने पुलिस को बताया कि वह कल शाम छत्रपाल के साथ मौसी के घर आई थी. खाना खाने के बाद वह कमरे में जा कर लेट गई. रात में किसी बात को ले कर मौसी और छत्रपाल में झगड़ा हो रहा था. सुबह 5 बजे छत्रपाल बदहवास हालत में निकला और घर के बाहर चला गया.

कुछ देर बाद मैं ननकी मौसी के कमरे में गई तो कमरे में जमीन पर मौसी मृत पड़ी थी. मैं बाहर आई और शोर मचाया. मैं ने फोन द्वारा अपने मातापिता और नानानानी को खबर दी तो वह सब भी आ गए. मृतका की मां चंदा और बड़ी बहन बड़की ने पुलिस अधिकारियों को बताया कि छत्रपाल ननकी के चरित्र पर शक करता था. मायके का कोई भी युवक घर पहुंच जाता तो वह उसे शक की नजर से देखता था और फिर झगड़ा तथा मारपीट करता था. इसी शक में छत्रपाल ने ननकी को मार डाला है. उस के खिलाफ सख्त काररवाई की जाए.

अधिकारियों ने दिए निर्देश पूछताछ के बाद एएसपी ने थानाप्रभारी को निर्देश दिया कि शव को पोस्टमार्टम के लिए भेजने के बाद हत्यारोपी छत्रपाल को जल्द से जल्द गिरफ्तार करें. इस के बाद थानाप्रभारी नंदलाल सिंह ने मौके से सबूत अपने कब्जे में लिए और ननकी का शव पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल फतेहपुर भिजवा दिया. फिर थाने आ कर शारदा की तरफ से छत्रपाल के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली. रिपोर्ट दर्ज होते ही थानाप्रभारी ने हत्यारोपी छत्रपाल की तलाश शुरू कर दी. उन्होंने उस की तलाश में नातेरिश्तेदारों के घर सरसौल, बिंदकी, खागा और अमौली में छापे मारे, लेकिन छत्रपाल वहां नहीं मिला. तब उस की टोह में मुखबिर लगा दिए.

29 मई, 2020 की शाम 5 बजे खास मुखबिर के जरीए थानाप्रभारी नंदलाल सिंह को पता चला कि हत्यारोपी छत्रपाल इस समय बिंदकी बस स्टैंड पर मौजूद है. शायद वह कहीं भागने की फिराक में किसी साधन का इंतजार कर रहा है. यह खबर मिलते ही थानाप्रभारी आवश्यक पुलिस बल के साथ बस स्टैंड पहुंच गए. पुलिस जीप रुकते ही बेंच पर बैठा एक युवक उठा और तेजी से सड़क की ओर भागा. शक होने पर पुलिस ने उस का पीछा किया और रामजानकी मंदिर के पास उसे दबोच लिया.

उस ने अपना नाम छत्रपाल बताया. पूछताछ के लिए पुलिस उसे थाने ले आई. थानाप्रभारी नंदलाल सिंह ने जब उस से ननकी की हत्या के बारे में पूछा तो वह साफ मुकर गया. लेकिन जब थोड़ी सख्ती बरती तो वह टूट गया और हत्या का जुर्म कबूल कर लिया. उस से की गई पूछताछ में ननकी की हत्या के पीछे की कहानी अवैध रिश्तों की बुनियाद पर गढ़ी हुई मिली—

उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जनपद का एक व्यापारिक कस्बा है अमौली. इसी कस्बे में चंद्रभान अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी चंदा के अलावा 2 बेटियां बड़की व ननकी और एक बेटा मोहन था. चंद्रभान कपड़े का व्यापार करता था. इसी व्यापार से होने वाली कमाई से वह अपने परिवार का भरणपोषण करता था. चंद्रभान की बड़ी बेटी बड़की जवान हुई तो उस ने उस का विवाह खागा कस्बा निवासी हरदीप के साथ कर दिया. बड़की से 4 साल छोटी ननकी थी. बाद में जब वह भी सयानी हुई तो वह उस के लिए भी सही घरबार ढूंढने लगा. आखिर उन की तलाश अंबिका प्रसाद पर जा कर खत्म हो गई.

अंबिका प्रसाद के पिता जगतराम फतेहपुर जनपद के गांव शाहपुर के रहने वाले थे. उन के 2 बेटे शिव प्रसाद व अंबिका प्रसाद थे. शिव प्रसाद की शादी हो चुकी थी. वह इलाहाबाद में नौकरी करता था और परिवार के साथ वहीं रहता था. उन का छोटा बेटा अंबिका प्रसाद उन के साथ खेतों पर काम करता था. चंद्रभान ने अंबिका को देखा तो उस ने उसे अपनी बेटी ननकी के लिए पसंद कर लिया. बात तय हो जाने के बाद 10 जनवरी, 2004 को ननकी का विवाह अंबिका प्रसाद के साथ हो गया. अंबिका प्रसाद तो सुंदर बीवी पा कर खुश था, लेकिन ननकी के सपने ढह गए थे. क्योंकि पहली रात को ही वह पत्नी को खुश नहीं कर सका. वह समझ गई कि उस के पति में इतनी शक्ति नहीं है कि वह उसे शारीरिक सुख प्रदान कर सके.

समय बीतता गया और ननकी पूजा और राजू नाम के 2 बच्चों की मां बन गई. बच्चों के जन्म के बाद परिवार का खर्च बढ़ गया. पिता जगतराम की भी सारी जिम्मेदारी अंबिका प्रसाद के कंधों पर थी, अत: वह अधिक से अधिक कमाने की कोशिश में जुट गया. अंबिका ने आय तो बढ़ा ली, लेकिन जब वह घर आता, तो थकान से चूर होता. ननकी पति का प्यार चाहती थी. लेकिन अंबिका पत्नी की भावनाओं को नहीं समझता. कुछ साल इसी अशांति एवं अतृप्ति में बीत गए. इस के बाद ननकी अकसर पति को ताने देने लगी कि जब तुम अपनी बीवी को एक भी सुख नहीं दे सकते तो ब्याह ही क्यों किया.

बीवी के ताने सुन कर अंबिका कभी हंस कर टाल देता तो कभी बीवी पर बरस भी पड़ता. इन सब बातों से त्रस्त हो कर ननकी ने आखिर देहरी लांघ दी. उस की नजरें छत्रपाल से लड़ गईं. छत्रपाल ननकी के घर से 4 घर दूर रहता था. उस के मातापिता का निधन हो चुका था. वह अपने बड़े भाई के साथ रहता था और मेहनतमजदूरी कर अपना पेट पालता था. ननकी के पति अंबिका प्रसाद के साथ वह मजदूरी करता था, इसलिए दोनों में दोस्ती थी. दोस्ती के कारण छत्रपाल का अंबिका के घर आनाजाना था. वह ननकी को भाभी कहता था. हंसमुख व चंचल स्वभाव की ननकी छत्रपाल से काफी हिलमिल गई थी. देवरभाभी होने से उस का मजाक का रिश्ता था. ननकी का खुला मजाक और उस की आंखों में झलकता वासना का आमंत्रण छत्रपाल के दिल में उथलपुथल मचाने लगा.

वह यह तो समझ चुका था कि भाभी उस से कुछ चाहती है, लेकिन अपनी तरफ से पहल करने की उस की हिम्मत नहीं हो रही थी. दोनों खुल कर एकदूसरे से छेड़छाड़ व हंसीमजाक करने लगे. इसी छेड़छाड़ में एक दोपहर दोनों अपने आप पर काबू न रख सके और मर्यादा की सीमाएं लांघ गए. उस रोज छत्रपाल पहली बार नशीला सुख पा कर फूला नहीं समा रहा था. ननकी भी कम उम्र का अविवाहित साथी पा कर खुश थी. बस उस रोज से दोनों के बीच यह खेल अकसर खेला जाने लगा. कुछ समय बाद छत्रपाल रात को भी चुपके से ननकी के पास आने लगा. ननकी के लिए अब पति का कोई महत्त्व नहीं रह गया था. उस की रातों का राजकुमार छत्रपाल बन गया था. छत्रपाल जो कमाता था, वह सब ननकी पर खर्च करने लगा था.

साल सवासाल तक ननकी व छत्रपाल के अवैध संबंध बेरोकटोक चलते रहे और किसी को भनक तक नहीं लगी. अपनी मौज में वह भूल गए कि इस तरह के खेल ज्यादा दिनों तक छिपे नहीं रहते. इन के मामले में भी यही हुआ. हुआ यह कि एक रात पड़ोसन रामकली ने चांदनी रात में आंगन में रंगरलियां मना रहे छत्रपाल और ननकी को देख लिया. फिर तो उन दोनों की चर्चा पूरे गांव में होने लगी. अंबिका प्रसाद पत्नी पर अटूट विश्वास करता था. जब उसे ननकी और छत्रपाल के नाजायज रिश्तों की जानकारी हुई तो वह सन्न रह गया. इस बाबत उस ने ननकी से जवाब तलब किया. ननकी भी जान चुकी थी कि बात फैल गई है, इसलिए झूठ बोलना या कुछ भी छिपाना फिजूल है. लिहाजा उस ने सच बोल दिया. ‘‘जो तुम बाहर से सुन कर आए हो, वह सब सच है. मैं बेवफा नहीं हुई बस छत्रपाल पर मन मचल गया.’’

‘‘ननकी, शायद तुम्हें अंदाजा नहीं कि मैं तुम्हें कितना चाहता हूं.’’ अंबिका प्रसाद बोला,  ‘‘मैं तुम्हारी गली माफ कर दूंगा बस, तुम छत्रपाल से रिश्ता तोड़ लो.’’

‘‘बदनाम न हुई होती तो जरूर रिश्ता तोड़ लेती. अब मैं गुनहगार बन चुकी हूं, इसलिए अब उसे नहीं छोड़ सकती.’’

शरम से अंबिका ने छोड़ा घर अंबिका प्रसाद ने पत्नी को सही राह पर लाने की बहुत कोशिश की, मगर कामयाब नहीं हुआ. एक रात तो अंबिका ने ननकी और छत्रपाल को अपने घर में ही आपत्तिजनक हालत में देख लिया. अंबिका ने इस का विरोध किया तो शर्मसार होने के बजाय ननकी और छत्रपाल उसी पर हावी हो गए. ‘‘जो आज देखा है, वह हर रात देखोगे. देख सको तो घर में रहो, न देख सको तो घर छोड़ कर कहीं चले जाओ.’’

ननकी की सीनाजोरी पर अंबिका प्रसाद दंग रह गया. वह घर के बाहर आ गया और माथा पकड़ कर चारपाई पर बैठ गया. इस वाकये के बाद अंबिका को पत्नी से नफरत हो गई. अंबिका आंखों के सामने पत्नी की बदचलनी के ताने भला कब तक बरदाश्त करता. अत: जनवरी 2015 में ऐसे ही एक झगड़े के बाद उस ने घर छोड़ दिया और गुमनाम जिंदगी बिताने लगा. अंबिका प्रसाद के घर छोड़ने के बाद छत्रपाल उस के घर पर कुंडली मार कर बैठ गया. उस ने उस की जर, जोरू और जमीन पर भी कब्जा कर लिया. ननकी अभी तक उस की प्रेमिका थी किंतु अब उस ने ननकी को पत्नी का दरजा दे दिया. यद्यपि छत्रपाल ने ननकी से न तो कोर्ट मैरिज की थी और न ही प्रेम विवाह किया था.

ननकी की बेटी अब तक 10 साल की उम्र पार कर चुकी थी, जबकि बेटा 5 साल का हो गया था. दोनों बच्चे छत्रपाल की अय्याशी में बाधक बनने लगे थे. अत: वह दोनों को पीटता था. ननकी को बुरा तो लगता था, पर वह मना नहीं कर पाती थी. बच्चों पर बुरा असर न पड़े, इसलिए ननकी ने दोनों बच्चों को अपनी मां के पास भेज दिया. बच्चे चले गए तो ननकी और छत्रपाल के मिलन की बाधा दूर हो गई. अब वे स्वतंत्र रूप से रहने लगे. ननकी और छत्रपाल को साथसाथ रहते 4 साल बीत चुके थे. इस बीच न तो ननकी का पति अंबिका प्रसाद वापस घर लौटा और न ही ननकी ने उस की कोई सुध ली. वह कहां है, किस परिस्थिति में है. इस की जानकारी न तो ननकी को थी और न ही किसी सगेसंबंधी को.

ननकी बच्चों से मिलने मायके अमौली जाती थी. फिर वहां कई दिन तक रुकती थी. इस से छत्रपाल को शक होने लगा था कि ननकी का मन उस से भर गया है और अब उस ने मायके में कोई नया यार बना लिया है. इस कारण वह मायके में डेरा जमाए रहती है. इसे ले कर अब ननकी और छत्रपाल में झगड़ा होने लगा था. मायके का कोई भी व्यक्ति घर आता तो छत्रपाल उसे शक की नजर से देखता और उस के जाने के बाद ननकी के चरित्र पर लांछन लगाते हुए झगड़ा करता. ननकी की बड़ी बहन बड़की खागा कस्बे में ब्याही थी. उस की बेटी का नाम शारदा था. शारदा अपनी मौसी से ज्यादा हिलीमिली थी सो उस ने ननकी से उस के घर आने की बात कही. ननकी ने शारदा की बात मान ली और उसे जल्द ही बुलाने की बात कही.

25 मई, 2020 की सुबह ननकी ने छत्रपाल को पैसे दे कर शारदा को बुलाने खागा भेज दिया. छत्रपाल खागा के लिए निकला तो ननकी के मायके से उस का पड़ोसी गोपाल आ गया. ननकी ने उसे घर के अंदर कर दरवाजा बंद कर लिया. ननकी का दरवाजा बंद हुआ तो पड़ोसी आपस में कानाफूसी करने लगे. शाम 5 बजे छत्रपाल शारदा को साथ ले कर वापस आ गया. कुछ देर बाद छत्रपाल घर से निकला तो चुगलखोरों ने चुगली कर दी, ‘‘छत्रपाल तुम घर से निकले तभी कोई सजीला युवक आया. ननकी ने उसे घर के अंदर बुला कर दरवाजा बंद कर लिया था. बंद दरवाजे के पीछे क्या गुल खिला होगा, इसे बताने की जरूरत नहीं.’’

छत्रपाल पहले से ही ननकी पर शक करता था, पड़ोसियों की चुगली ने आग में घी डालने जैसा काम किया. गुस्से में छत्रपाल शराब ठेका गया और शराब पी कर घर लौटा. रात में कमरे में जब उस का सामना ननकी से हुआ तो उस ने ननकी के चरित्र पर अंगुली उठाई और उसे बदचलन, बदजात और वेश्या कहा. इस पर दोनों में जम कर झगड़ा हुआ. झगड़े के दौरान ननकी के ब्लाउज से 5-5 सौ के 2 नोट नीचे गिर गए जो छत्रपाल ने उठा लिए थे. अब उसे पक्का विश्वास हो गया कि यह नोट अय्याशी के दौरान घर पर आए उस युवक ने दिए होंगे. शक का कीड़ा दिमाग में कुलबुलाया तो छत्रपाल का गुस्सा सातवें आसमान जा पहुंचा. उस ने ननकी को जमीन पर पटक दिया और फिर गमछे से गला कसने लगा. ननकी कुछ देर तड़पी फिर सदा के लिए शांत हो गई. हत्या करने के बाद छत्रपाल कमरे से निकला और फरार हो गया.

छत्रपाल से पूछताछ करने के बाद थानाप्रभारी नंदलाल सिंह ने 30 मई, 2020 को छत्रपाल को फतेहपुर कोर्ट में रिमांड मजिस्ट्रैट पी.के. राय की अदालत में पेश किया, जहां से उसे जिला जेल भेज दिया. कथा संकलन तक उस की जमानत स्वीकृत नहीं हुई थी. मृतका के बच्चे अपने नानानानी के पास रह रहे थे.

(कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित)

 

 

Murder Story : गन्ने के खेत में लेकर क्यों पत्नी ने पति को मरवाया

Murder Story : पतिपत्नी के बीच सब से बड़ी डोर विश्वास होती है, जिस के सहारे घरगृहस्थी चलती है. इसी विश्वास के नाते लाखों लोग घर से सैकड़ोंहजारों किलोमीटर दूर नौकरियां करते हैं. लेकिन जब किसी तीसरे की वजह से विश्वास की डोर कमजोर पड़ती है तो कई जिंदगियों में जलजला सा…

जिला मुरादाबाद से करीब 19 किलोमीटर दूर है थाना मूंढापांडे. इसी थाना क्षेत्र का एक गांव है जैतपुर विशाहट. रोहित सिंह इसी गांव का मूल निवासी था. वैसे वह अपनी पत्नी अन्नू के साथ मुरादाबाद शहर में रहता था. मुरादाबाद की पीतल बस्ती के कमल विहार में उस ने 400 वर्गगज में अपना मकान बनवा रखा था. रोहित पेशे से ट्रक ड्राइवर था और बरेली की एक ट्रांसपोर्ट कंपनी में नौकरी करता था. रोहित हफ्ते में कम से कम एक बार अपने गांव जैतपुर जरूर जाता था. गांव में उस के पिता सत्यभान सिंह परिवार के साथ रहते थे.

रोहित का गांव मूंढापांडे कस्बे से करीब 6 किलोमीटर दूर था, इसलिए वह गांव से बाइक से मूंढापांडे तक आता था और वहां पर भारतीय स्टेट बैंक के पास एक मोटर मैकेनिक की दुकान पर बाइक खड़ी कर के बस से बरेली चला जाता था. 23 अगस्त, 2020 को रोहित बरेली जाने के लिए अपने गांव जैतपुर विशाहट से दोपहर करीब 12 बजे बाइक ले कर  निकला. रात करीब 8 बजे रोहित के पिता सत्यभान सिंह ने रोहित को फोन किया तो उस का फोन बंद मिला. पिता ने उसे कई बार फोन मिलाया लेकिन हर बार फोन बंद मिला.

ऐसा कभी नहीं होता था, इसलिए फोन न मिलने से सत्यभान सिंह चिंतित हुए. उन्होंने बरेली की उस ट्रांसपोर्ट कंपनी में फोन किया, जहां रोहित नौकरी करता था. पता चला रोहित उस दिन अपनी ड्यूटी पर पहुंचा ही नहीं था.  सत्यभान परेशान हो गए. उन्होंने मुरादाबाद में रह रही रोहित की पत्नी अन्नू से पूछा तो उस ने  बताया कि वह मुरादाबाद नहीं आए, अपनी ड्यूटी पर ही होंगे. जबकि रोहित ड्यूटी पर नहीं पहुंचा था. बेटे की चिंता में सत्यभान और उन के घर वालों को रात भर नींद नहीं आई. सुबह होने पर वह उस मोटर मैकेनिक की दुकान पर पहुंचे, जहां रोहित अपनी बाइक खड़ी किया करता था. मैकेनिक ने बताया कि रोहित ने उस के यहां बाइक खड़ी नहीं की थी और न ही आया था.

उधर अन्नू भी पति का फोन बंद मिनने से परेशान थी. अपनी चिंता वह ससुर से व्यक्त कर रही थी. सत्यभान ने अपने तमाम रिश्तेदारों के यहां भी फोन कर के रोहित के बारे में  पता किया, लेकिन उस का कहीं पता नहीं चला. अंतत: सत्यभान ने 24 अगस्त, 2020 को थाना मूंढापांडे में बेटे रोहित की गुमशुदगी दर्ज करा दी. थानाप्रभारी नवाब सिंह ने गुमशुदगी दर्ज होने के बाद जरूरी काररवाई  शुरू कर दी. 2 दिन हो गए, रोहित का कहीं पता नहीं चला. घरवाले उस की चिंता में परेशान थे. उन की समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करें.

25 अगस्त, 2020 मंगलवार  के अखबारों में अमरोहा देहात थाना क्षेत्र में एक व्यक्ति की लाश मिलने की खबर छपी. लाश गांव कंकरसराय के गन्ने के एक खेत से मिली थी. उस का सिर कुचला हुआ था. सत्यभान के एक रिश्तेदार अमरोहा में रहते थे. रिश्तेदार ने सत्यभान को गन्ने के खेत में लाश मिली होने की जानकारी दी. साथ ही यह भी बताया कि मृतक के हाथ पर रोहित लिखा हुआ है, इसलिए आप अमरोहा देहात थाने आ कर लाश देख लें. खबर मिलते ही सत्यभान सिंह 26 अगस्त को परिवार के लोगों के साथ अमरोहा देहात थाने पहुंच गए. थानाप्रभारी ने सत्यभान को बरामद लाश के फोटो व कपड़े दिखाए. कपड़ों से सत्यभान ने पहचान लिया कि कपड़े उन के बेटे रोहित के हैं.

थानाप्रभारी लाश की शिनाख्त के लिए उन्हें जिला अस्पताल ले गए. मोर्चरी में रखी लाश देखते ही सत्यभान फूटफूट कर रोने लगे. वह लाश उन के बेटे रोहित की ही थी. लाश की शिनाख्त हो जाने के बाद थानाप्रभारी ने राहत की सांस ली. पोस्टमार्टम हो जाने के बाद लाश उसी दिन मृतक के घर वालों को सौंप दी गई. पोस्टमार्टम में पता चला कि रोहित की मौत गला दबाने से हुई थी. इस के अलावा उस के सिर और लिंग को ईंट से बुरी तरह कुचला गया था. चूंकि गुमशुदगी का मामला थाना मूंढापांडे में दर्ज हुआ था, इसलिए पोस्टमार्टम रिपोर्ट थाना मूंढापांडे पुलिस के पास आ गई.

थानाप्रभारी नवाब सिंह मामले को सुलझाने में जुट गए. पोस्टमार्टम रिपोर्ट पढ़ने के बाद वह इस नतीजे पर पहुंचे कि हत्यारे की मृतक रोहित से कोई गहरी दुश्मनी थी, इसलिए उस ने इतनी क्रूरता दिखाई. उन्होंने मृतक के पिता से पूछा कि उन की किसी से कोई रंजिश वगैरह तो नहीं है? अगर उन्हें किसी पर कोई शक हो तो बता दें. सत्यभान सिंह ने मुरादाबाद की पीतल बस्ती के कमल विहार निवासी अजय पाल व 2 अन्य लोगों पर शक जताया. इस के बाद थानाप्रभारी ने एक टीम गठित की और 28 अगस्त को नामजद आरोपी अजय पाल और उस के साथी कुलदीप सैनी को मुरादाबाद स्थित उन के घरों से गिरफ्तार कर लिया.

उन दोनों से सख्ती से पूछताछ की गई तो उन्होंने मान लिया कि रोहित की हत्या उन्होंने ही की थी और यह सब कुछ मृतक की पत्नी अन्नू के इशारे पर किया था. पुलिस ने अन्नू और अजय पाल के फोन नंबरों की काल डिटेल्स निकलवाई तो पता चला कि घटना के दिन दोनों ने आपस में कई बार बात की थी और एकदूसरे को मैसेज भी भेजे थे. दोनों से पूछताछ के बाद रोहित की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह काफी दिलचस्प थी. करीब 10 साल पहले रोहित सिंह की शादी संभल जिले के गांव भोजपुर की अन्नू के साथ हुई थी. उस समय रोहित मुरादाबाद में आटोरिक्शा चलाया करता था.

रोहित का गांव मुरादाबाद शहर से करीब 19 किलोमीटर दूर था, इसलिए उसे रोजाना आनेजाने में परेशानी होती थी. इस परेशानी से बचने के लिए उस ने मुरादाबाद की पीतल बस्ती में 400 वर्गगज का एक प्लौट खरीद लिया. 5 साल पहले उस ने प्लौट पर अपना मकान बनवा लिया. उस की गृहस्थी हंसीखुशी से चल रही थी. उस के 2 बच्चे थे, एक बेटा और एक बेटी. रोहित का एक दोस्त था अजय पाल. वह भी मुरादाबाद में आटोरिक्शा चलाता था. इसलिए दोनों की दोस्ती हो गई थी. शाम को दोनों अकसर साथ बैठ कर शराब पीते थे. अजय पाल का रोहित के घर आनाजाना लगा रहता था.

बाद में रोहित सिंह की बरेली की एक ट्रांसपोर्ट कंपनी में नौकरी लग गई. वह ट्रांसपोर्ट कंपनी का ट्रक चलाता था, जिस की वजह से वह कईकई दिन बाद घर लौटता था. उसी दौरान अजय पाल के रोहित की पत्नी अन्नू से अवैध संबंध बन गए. पति की गैरमौजूदगी में अन्नू अपने प्रेमी के साथ खूब मौजमस्ती करती थी. उसे रोकनेटोकने वाला कोई नहीं था, इसलिए किसी का डर भी नहीं था. रोहित जब बरेली से घर लौटता तो पत्नी को फोन कर के सूचना दे देता था. अन्नू सतर्क हो जाती और प्रेमी से भी सतर्क रहने के लिए कह देती थी. घर लौटने के बाद रोहित की अपने दोस्त अजय पाल के साथ महफिल सजती थी. रोहित दोस्त पर विश्वास करता था, यह अलग बात थी कि वही दोस्त विश्वास की आड़ में उस के घर में सेंध लगा चुका था.

2-3 दिन घर रुकने के बाद रोहित मातापिता से मिलने अपने गांव जैतपुर वशाहट जाता और फिर अगले दिन वहीं से ड्यूटी पर बरेली चला जाता था. उधर अन्नू और अजय पाल के संबंध गहरे होते जा रहे थे. उन्होंने जीवन भर साथ रहने की कसम खा ली थी. अजय अन्नू पर घर से भाग चलने का दबाव डालता था, लेकिन अन्नू घर से भागने को मना कर देती. वह कहती थी कि घर से भागने की जरूरत क्या है, यदि रोहित का काम तमाम कर दो तो रास्ता अपने आप साफ हो जाएगा.

अन्नू के प्यार में अंधे हो चुके अजय पाल को प्रेमिका की यह सलाह बहुत अच्छी लगी. उस ने अन्नू से वादा कर दिया कि वह रोहित का काम तमाम करा देगा. इस के बाद अन्नू और अजय पाल ने रोहित को ठिकाने लगाने की योजना बनानी शुरू कर दी. अजय ने इस बारे में अपने दोस्त कुलदीप सैनी से बात की. वह भी अजय का साथ देने को तैयार हो गया. फिर वे उचित मौके का इंतजार करने लगे. 23 अगस्त, 2020 को उन्हें यह मौका मिल गया. क्योंकि उस दिन रोहित ड्यूटी से अपने घर मुरादाबाद आया हुआ था और उसी दिन उसे मुरादाबाद से अपने गांव जैतपुर वशाहट जाना था. सुबह 9 बजे नाश्ता करने के बाद वह बाइक से गांव जाने के लिए निकल गया.

अन्नू ने यह जानकारी फोन से अजय को दे दी. योजना के अनुसार अजय पाल अपने साथी कुलदीप सैनी को ले कर पीतल बस्ती के आगे गुलाबबाड़ी में सड़क किनारे खड़े हो कर रोहित के आने का इंतजार करने लगा. रोहित वहां पहुंचा तो अजय ने हाथ दे कर उस की बाइक रुकवाई. अजय ने कुलदीप का परिचय रोहित से कराते हुए कहा कि इस की बहन मूंढापांडे में रहती है. हम लोग वहीं जा रहे हैं. तुम हमें मूंढापांडे छोड़ कर अपने गांव निकल जाना. रोहित दोस्त की बात नहीं टाल सका. वह दोनों को अपनी बाइक पर बैठा कर चल दिया. अजय पाल और कुलदीप को मूंढापांडे छोड़ने के बाद रोहित अपने गांव जैतपुर विशाहट चला गया.

उस ने अजय को बता दिया कि वह मातापिता से मिलने के बाद आज ही ड्यूटी पर बरेली चला जाएगा. उस का गांव मूंढापांडे से करीब 6 किलोमीटर दूर था. अजय पाल को अपनी योजना को अंजाम देना था, इसलिए वह मूंढापांडे में ही रोहित के लौटने का इंतजार करने लगा. अजय को यह बात पता थी कि रोहित अपनी बाइक मूंढापांडे में एक मैकेनिक के पास खड़ी कर के बस से बरेली जाता है, इसलिए अजय और कुलदीप उस के आने का इंतजार करने लगे. मातापिता से मिलने के बाद रोहित ड्यूटी पर जाने के लिए घर से निकल गया. उसे अपनी बाइक मैकेनिक के पास खड़ी करनी थी, लेकिन उस से पहले ही रास्ते में उसे अजय पाल और कुलदीप  खड़े मिले. उन्हें देखते ही रोहित ने बाइक  रोक दी. उस ने पूछा, ‘‘तुम लोग अभी तक यहीं हो.’’

‘‘हां, हम तुम्हारे आने का इंतजार कर रहे थे.’’ अजय बोला.

‘‘क्यों, क्या कोई खास बात है?’’ रोहित ने पूछा.

‘‘हां भाई, बात खास है तभी तो तुम्हारा इंतजार कर रहे थे.’’ अजय ने कहा.

‘‘बताओ क्या बात है?’’

‘‘रोहित बात यह है कि यहां पर कुलदीप के किसी के पास मोटे पैसे फंसे हुए थे. आज सारे पैसे मिल गए. इसलिए हम लोग बहुत खुश हैं और इसी खुशी में आज पार्टी करना चाहते हैं.’’ अजय बोला.

‘‘नहीं यार, अभी तो मैं ड्यूटी पर जा रहा हूं. फिर कभी पार्टी कर लेंगे.’’

‘‘अरे यार, एकएक पेग लेने में क्या बुराई है.’’ अजय ने जोर डाला.

रोहित अपने दोस्त की बात को टाल नहीं सका. तभी अजय का दोस्त कुलदीप सैनी एक बोतल और पकौड़े ले आया. तीनों ने पकौड़े के ठेले पर ही शराब पीनी शुरू कर दी. रोहित पर नशा ज्यादा चढ़ गया तो वह बोला, ‘‘आज मैं ड्यूटी नहीं जाऊंगा.’’ वे तीनों बाइक से दलपतपुर जीरो पौइंट हाइवे पर आ गए. हाइवे से सटा हुआ एक गांव है मछरिया. वहीं पर कुलदीप ने रोहित का मोबाइल ले कर उस की बैटरी निकाल दी, ताकि उस का किसी से संपर्क न हो सके.

इस के बाद तीनों हाइवे से होते हुए कस्बा पाकवड़ा पहुंचे. पाकवड़ा में तीनों ने फिर शराब पी और खाना खाया. खाना खाने के बाद रोहित ने घर चलने को कहा तो अजय बोला, ‘‘अभी चलते हैं. हमें अमरोहा में कुछ जरूरी काम है. अमरोहा यहां से थोड़ी ही दूर है. बस, काम निपटा कर आ जाएंगे.’’

अजय और कुलदीप अपनी योजना के अनुसार रोहित को अमरोहा ले गए. रात करीब 10 बजे तीनों अमरोहा देहात के गांव कंकरसराय पहुंचे. उस समय तक रोहित को ज्यादा नशा चढ़ चुका था. नशे की हालत में दोनों उसे गन्ने के खेत में ले गए और गला दबा कर उस की हत्या कर दी. रोहित की हत्या करने के बाद उन्होंने उस का सिर ईंट से कुचल दिया, जिस से उस का चेहरा पहचान में न आ सके. इस के अलावा उन्होंने उस के लिंग को भी ईंट से कुचल दिया. हत्या से पहले अजय के मोबाइल पर रोहित की पत्नी अन्नू का फोन आया था. अंजू ने उस से कहा था कि किसी भी हालत में रोहित को जिंदा मत छोड़ना.

मरने से पहले रोहित दोनों के सामने गिड़गिड़ाया था कि यार मुझ से क्या गलती हो गई, मुझे क्यों मार रहे हो लेकिन उन का दिल नहीं पसीजा. कुलदीप ने रोहित की टांगें पकड़ लीं और अजय ने गला दबा कर उस की हत्या कर दी थी. अजय ने हत्या की जानकारी अन्नू को दे दी थी. हत्यारों को  विश्वास था कि यहां रोहित की लाश कुछ दिनों में सड़गल जाएगी और पुलिस उन तक कभी नहीं पहुंचेगी लेकिन उन की यह सोच गलत साबित हुई. वे पुलिस के हत्थे चढ़ ही गए. अभियुक्त अजय पाल और कुलदीप सैनी से पूछताछ के बाद पुलिस ने उन्हें रोहित की हत्या कर शव छिपाने के आरोप में गिरफ्तार कर 28 अगस्त, 2020 को कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जिला जेल भेज दिया.

इस मामले में मृतक रोहित की पत्नी अन्नू का भी हाथ था, इसलिए पुलिस ने 29 अगस्त को अन्नू को भी गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ में अन्नू ने भी अपना गुनाह कबूल कर लिया. पुलिस ने उसे भी न्यायालय में पेश करने के बाद जेल भेज दिया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

UP Crime News : धर्म परिवर्तन से इनकार करने पर प्रेमिका के सिर को धड़ से अलग किया

UP Crime News : एजाज ने जिस तरह प्रिया को अपने जाल में फांसा, उस से शादी की और धर्म परिवर्तन की बात न मानने पर मार डाला, उसे भले ही लव जेहाद न कहा जाए, लेकिन समाज का एक बड़ा हिस्सा तो इसे जरूर…

जि ला: सोनभद्र, उत्तर प्रदेश. तारीख: 21 सितंबर 2020. वक्त: अपराह्न 3 बजे. स्थान: वाराणसी-शक्ति नगर राजमार्ग. इस राजमार्ग पर वन विभाग के एक भुखंड की झाडि़यों में किसी युवती की सिर कटी लाश मिली. जिस झाड़ी में लाश पड़ी थी, वह मुख्य मार्ग से 10 मीटर अंदर थी. यह खबर तेजी से फैली. कुछ ही देर में स्थानीय लोगों का वहां जमावड़ा लग गया. वहां के चौकीदार ने लाश देखी तो तत्काल स्थानीय थाना चोपन को लाश मिलने की सूचना दे दी. सूचना मिलते ही चोपन थाना इंसपेक्टर नवीन तिवारी पुलिस टीम के साथ मौके पर पहुंच गए. लाश घासफूस से ढकी हुई थी, जिसे हटवा कर उन्होंने लाश का निरीक्षण किया.

मृतका की उम्र लगभग 20-25 साल के बीच रही होगी. उस के धड़ पर जींस पैंट, टीशर्ट और पैरों में जूते थे. कपड़ों के साथ जूते भी काले रंग के थे. इंसपेक्टर तिवारी ने आसपास सिर की तलाश कराई, लेकिन सिर कहीं नहीं मिला. वहां मौजूद लोगों में से कोई भी लाश की शिनाख्त नहीं कर पाया. लाश के फोटो आदि करवाने के बाद इंसपेक्टर तिवारी ने लाश पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भेज दी. फिर थाने वापस लौट गए. थाने में चौकीदार को वादी बना कर अज्ञात के विरुद्ध भादंवि की धारा 302/201 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया गया.

लाश की फोटो सोशल मीडिया पर वायरल हो गई थी. वह फोटो देखने के बाद मोहल्ला प्रीतनगर के वार्ड नंबर-7 निवासी लक्ष्मी नारायण सोनी अपनी छोटी बेटी शर्मिला के साथ थाना चोपन पहुंचे. जिस वन भूखंड में लाश मिली थी, वह प्रीतनगर में ही आता था. थाने पहुंचे लक्ष्मी नारायण ने मृतका के कपड़ों, जूतों व शरीर की बनावट के आधार पर लाश की शिनाख्त कर दी. वह उन की 21 वर्षीया बेटी प्रिया सोनी थी. लक्ष्मी नारायण ने बताया कि प्रिया ने उन की मरजी के बिना पड़ोसी युवक एजाज अहमद उर्फ आशिक से प्रेम विवाह कर लिया था और फिलहाल वह ओबरा में रह रही थी.

शिनाख्त होने के बाद मृतका के संबंध में कुछ अहम बातें पता चलीं तो इंसपेक्टर तिवारी ने राहत की सांस ली. लेकिन अभी तक प्रिया का सिर बरामद नहीं हुआ था. देर रात एएसपी (मुख्यालय) ओ.पी. सिंह ने घटनास्थल का निरीक्षण किया. जबकि एसपी आशीष श्रीवास्तव ने मोर्चरी पहुंच कर प्रिया की लाश का निरीक्षण किया. इस के बाद उन्होंने स्वाट टीम प्रभारी प्रदीप सिंह को और सर्विलांस प्रभारी सरोजमा सिंह को थाना पुलिस की मदद के लिए लगा दिया ताकि जांच तेजी से और जल्दी हो. अगले दिन यानी 22 सितंबर को फिर से घटनास्थल पहुंच कर सिर की तलाश शुरू की गई. तलाशी के दौरान एक झाड़ी से लोहे की रौड और एक फावड़ा मिला.

फावड़ा मिलने से यह संभावना बढ़ गई कि हत्यारों ने सिर को कहीं जमीन में गड्ढा खोद कर दफनाया होगा. फावड़ा मिलने से तलाश तेज की गई तो एक झाड़ी से प्रिया का सिर मिल गया. सिर लाश मिलने वाली जगह से 150 मीटर की दूरी पर मिला. इंसपेक्टर नवीन तिवारी ने प्रिया के पति एजाज अहमद और उस के संपर्क में रहने वालों की लिस्ट बनाई. उन के मोबाइल नंबरों का पता लगा कर सारे नंबर सर्विलांस प्रभारी सरोजमा सिंह को सौंप दिए गए. सरोजमा सिंह और स्वाट प्रभारी प्रदीप सिंह ने उन सभी नंबरों की लोकेशन व काल रिकौर्ड की जांच की तो प्रिया का पति एजाज शक के घेरे में आ गया.

संदेह के फंदे में एजाज प्रिया और एजाज के मोबाइल नंबरों के काल रिकौर्ड की जांच की गई तो घटना के दिन दोपहर में दोनों के बीच बातचीत होने के सुबूत मिले. बातचीत के समय प्रिया की लोकेशन ओबरा में थी. बात होने के बाद प्रिया की लोकेशन ओबरा से होते हुए घटनास्थल तक आई. सड़क किनारे जिस जगह प्रिया की लाश मिली. उस के दूसरे किनारे पर एजाज की टायर रिपेयरिंग की दुकान थी. पुख्ता साक्ष्य मिलने के बाद इंसपेक्टर नवीन तिवारी ने 24 सितंबर को शाम साढ़े 5 बजे बग्घा नाला पुल के नीचे से एजाज अहमद को उस के साथी शोएब के साथ गिरफ्तार कर लिया. थाने ला कर दोनों से कड़ाई से पूछताछ की गई तो उन्होंने अपना अपराध स्वीकार कर लिया और हत्या की वजह भी बयां कर दी.

लक्ष्मीनारायण सोनी का परिवार जिला सोनभद्र के थाना चोपन के मोहल्ला प्रीतनगर के वार्ड नंबर 7 में रहता था. उन की पत्नी सुमित्रा का देहांत हो चुका था. उन की 4 बेटियां थीं— प्रीति, शीना, प्रिया और शर्मिला. प्रीति और शीना का विवाह हो चुका था. लक्ष्मी नारायण ‘कन्हैया स्वीट हाउस ऐंड रेस्टोरेंट’ पर काम करते थे. इसी नौकरी से वह घर का खर्च चलाते थे. उन की सभी बेटियां होनहार और समझदार थीं. उन्होंने दिल लगा कर पढ़ाई की और जब कुछ करने लायक हुई तो नौकरी करने लगीं, जिस से खुद का खर्च स्वयं उठा सकें. प्रिया ने स्नातक तक शिक्षा ग्रहण कर ली थी. गोरा रंग, आकर्षक चेहरा और छरहरा बदन प्रिया की अलग पहचान बनाते थे. इसीलिए वह आसानी से किसी की भी नजरों में चढ़ जाती थी.

महत्त्वाकांक्षी प्रिया फैशनेबल कपड़े पहनती थी, मौडर्न बनने की चाह में वह अपने बालों को अलगअलग रंगों में रंगवा लेती थी. उस का रहनसहन हाईसोसायटी की लड़कियों की तरह था. जब फैशन उन की तरह था तो प्रिया की सोच भी उन की तरह ही थी. वह हर किसी से आसानी से हंसबोल लेती थी. शर्मसंकोच से वह कोसो दूर थी. प्रिया के घर से कुछ ही दूरी पर एजाज अहमद उर्फ आशिक का मकान था. उस के पिता जाकिर हुसैन टायर रिपेयरिंग का काम करते थे. एजाज भी पिता की दुकान पर बैठ कर उन के काम में हाथ बंटाता था. वह 4 भाईबहनों में दूसरे नंबर का था. प्रिया पर एजाज की नजर भी थी. उस की खूबसूरती को देख वह पागल सा हो गया था. यह जान कर भी कि वह उस के धर्म की नहीं है, इस के बावजूद वह उस की चाहत को पाने के लिए आतुर था.

पड़ोसी होने की वजह से प्रिया और एजाज एकदूसरे को जानते तो थे ही, जबतब बातचीत भी हो जाती थी. लेकिन जब से प्रिया ने अपने रूपयौवन को आधुनिक रूप से सजाना शुरू किया था, तब से वह कयामत ढाने लगी थी. प्रिया का यौवन जब कदमताल पर थिरकता तो एजाज का दिल तेजी से धड़कने लगता. एजाज अब प्रिया के नजदीक रहने की कोशिश करता. उस से किसी न किसी बहाने से बात करने की कोशिश करता. जब बारबार ऐसा होने लगा तो प्रिया भी समझ गई कि एजाज उस के नजदीक रहने और बात करने के बहाने ढूंढढूंढ कर पास आता है, ऐसा तभी होता है जब दिल में चाहत होती है.

वह समझ गई कि एजाज उसे चाहने लगा है, इसलिए उस के नजदीक रहने की कोशिश करता है. यह सब जान कर भी न जाने क्यों प्रिया को खराब नहीं लगा. बल्कि उस के दिल में भी कुछ कुछ होने लगा. इस का मतलब था कि उस के दिल में एजाज के लिए सौफ्ट कौर्नर था, जो उसे बुरा मानने नहीं दे रहा था. प्रिया ने एजाज को यह बात जाहिर नहीं होने दी कि वह उस की हरकतों को जान गई है. अपनी धुन में डूबा एजाज उस के नजदीक रह कर अपने दिल को तसल्ली देता रहता था. वह सोचता था कि एक न एक दिन अपनी बातों से प्रिया का दिल जीत ही लेगा. प्रिया भी उस की बातों में दिलचस्पी लेने लगी थी. बातों में वह भी पीछे नहीं रहती थी. बातें बढ़ीं तो दोनों एकदूसरे से काफी खुल गए.

अब दोनों को कोई भी बात कहने में संकोच नहीं होता था. दोनों साथ घूमने भी जाने लगे थे. दोनों खातेपीते और मौजमस्ती करते. इस से दोनों एकदूसरे के काफी करीब आ गए. अब प्रिया एजाज पर विश्वास करने लगी थी. साथ ही वह यह भी सोचने लगी थी कि एजाज उसे हमेशा खुश रखेगा, कभी कोई कष्ट नहीं होने देगा. एजाज बड़ी ऐहतियात से कदम दर कदम आगे बढ़ रहा था. वह प्रिया के दिल में अपनी जगह बनाने के लिए वह सब कर रहा था, जो उसे करना चाहिए था. जब उसे लगा कि प्रिया उस के रंग में पूरी तरह रंग गई है, तो उस ने प्रिया से प्रेम का इजहार करने का फैसला कर लिया.

एजाज की दुकान के सामने सड़क पार किनारे पर वन विभाग की जमीन का छोटा सा टुकड़ा था. प्रिया से वह वहीं मिलता था. प्रिया भी जानती थी कि वह सुरक्षित जगह है, वहां कोई आताजाता नहीं था. उन दोनों को साथ देख बात मोहल्ले में फैल सकती थी. इसलिए प्रिया को एजाज से वहां मिलने से कोई गुरेज नहीं था. पहली मुलाकात में जब दोनों वहां बैठे थे, तो एजाज ने प्यार से प्रिया को निहारते हुए उस का हाथ अपने हाथ में ले लिया और बोला, ‘‘प्रिया,  मैं तुम से कुछ कहना चाहता हूं जो काफी दिन से मेरे दिल में कैद है.’’

‘‘कहो, तुम कब से अपनी बात कहने में संकोच करने लगे.’’ प्रिया ने उस की आंखों में देखते हुए मुसकरा अपनी भौंहें उचकाईं. इस से एजाज की हिम्मत बढ़ गई और वह बेसाख्ता बोल पड़ा, ‘‘प्रिया, आई लव यू… आई लव यू प्रिया.’’ कह कर एजाज ने बड़ी उम्मीद से प्रिया की ओर देखा. प्रिया को पहले ही एजाज से ऐसी उम्मीद थी. क्योंकि वह जो भूमिका बना रहा था, उस से ही जाहिर हो गया था कि एजाज अपने प्यार का इजहार करेगा. प्रिया ने भी बिना देरी लगाए प्यार का जवाब प्यार से दे दिया, ‘‘लव यू टू एजाज.’’

प्रिया के मुंह से प्यार के मीठे शब्द निकले तो एजाज ने खुशी से उसे अपनी बांहों में भर लिया. प्रिया ने भी उस की खुशी देख कर उस का साथ दिया. उस का जवाब सुन एजाज ने उस के होंठों को चूम लिया. प्रिया ने उस में भी उस का साथ दिया. लेकिन एजाज जब इस से आगे बढ़ने लगा तो प्रिया ने उसे रोक दिया, ‘‘इतने तक ठीक है, इस के आगे नहीं.’’ एजाज ने मन मसोस कर उस की बात मान ली. इस के बाद दोनों का प्यार दिनोंदिन परवान चढ़ने लगा. प्रिया अच्छी तरह जानती थी कि एजाज से प्यार की बात जानते ही घर में कोहराम मच जाएगा.

उस के पिता लक्ष्मी नारायण कभी भी गैरधर्म के युवक से शादी को तैयार नहीं होंगे. इसलिए उस ने एजाज से बात की. सलाह मशवरे के बाद दोनों ने घरवालों की बिना मरजी के शादी करने का मन बना लिया. धर्म के नाम पर पंगा घटना से डेढ़ महीने पहले दोनों ने चोरीछिपे शादी कर ली. शादी के बाद एजाज ने प्रिया को ओबरा के एक महिला लौज में ठहरा दिया. उस ने प्रिया से कहा कि जब मामला ठंडा हो जाएगा, तब उसे घर ले जाएगा. इस बीच वह अपने घर वालों को भी मना लेगा.

प्रिया ने उस की बात मान ली. वह महिला लौज में रहने लगी. उस ने पास की ही कपड़े की एक दुकान में नौकरी जौइन कर ली. शादी के कुछ ही दिन बीते थे कि एजाज प्रिया पर धर्म परिवर्तन का दबाव बनाने लगा. प्रिया इस के लिए तैयार नहीं थी. उस ने एजाज से कहा, ‘‘मैं ने तुम से प्यार किया है, तुम्हारे साथ रहने को तैयार हूं. लेकिन मैं अपना धर्म नहीं बदल सकती. जैसे तुम को अपने धर्म से प्यार है, वैसे ही मुझे अपना धर्म प्यारा है. जैसे मैं ने तुम्हें तुम्हारे धर्म के साथ स्वीकारा है, वैसे ही तुम मुझे मेरे धर्म के साथ स्वीकार करो. इस में दिक्कत क्या है. हमारे प्यार के बीच धर्म को क्यों ला रहे हो.’’

‘‘प्रिया, हमारे यहां गैरधर्म की लड़की को उस के धर्म के साथ नहीं स्वीकारा जाता. उसे अपना धर्म परिवर्तन करना ही पड़ता है. तुम मेरा धर्म स्वीकार कर लो तो मैं तुम्हें अपने घर ले चलूं.’’

‘‘मैं किसी भी हालत में अपना धर्म नहीं बदलूंगी. यह बात तुम्हें शादी और प्यार करने से पहले सोचना चाहिए था. मुझ से ही पूछ लेते तो ये नौबत न आती.’’

‘‘मैं ने सोचा जब तुम मुझ से प्यार कर सकती हो, शादी कर सकती हो तो मेरा धर्म भी स्वीकार कर लोगी.’’

‘‘सब तुम ने अपने आप ही सोच लिया, मुझ से एक बार भी पूछने की जहमत नहीं उठाई. इस में गलती तुम्हारी है, मेरी नहीं.’’

दोनों के बीच इस बात को ले कर काफी देर तक बहस होती रही लेकिन प्रिया नहीं मानी. फिर दो दोनों के बीच जबतब इस बात को ले कर विवाद होने लगा.

19 सितंबर को शाम 6:05 बजे प्रिया की एजाज से बात हुई. प्रिया ने उस से मिलने आने की बात कही. एजाज ने आने के लिए हां कर दी. प्रिया से बात होने के बाद एजाज ने फोन कर अपने दोस्त शोएब को बुला लिया. उस के साथ मिल कर उस ने योजना बनाई. प्रेमी का असली रूप कुछ देर बाद प्रिया ओबरा से आटो ले कर आई और एजाज की दुकान के सामने उतरी. एजाज ने उसे आते देख लिया था. वह उसे सड़क के दूसरी ओर वन विभाग की जमीन पर ले गया, जहां दोनों शादी से पहले मिला करते थे. एजाज और प्रिया लगभग 10 मीटर अंदर जा कर एक जगह बैठ गए. दोनों में बात हुई. एजाज ने एक बार फिर प्रिया से धर्म परिवर्तन करने की बात छेड़ी लेकिन प्रिया ने दोटूक जवाब दे दिया, ‘‘नहीं.’’

एजाज गुस्से से भर उठा, लेकिन उस ने प्रिया पर जाहिर नहीं होने दिया. एक मिनट में आने की बात कह कर वह दुकान पर आ गया. वहां से उस ने एक लीवर रौड और चाकू उठाया और शोएब को पीछे आने को कहा. एजाज फिर वहां पहुंचा, जहां प्रिया बैठी थी. प्रिया की पीठ उस की तरफ थी. एजाज ने प्रिया के सिर पर पीछे से लीवर रौड से तेज प्रहार किया. उस का वार इतने जोरों का था कि प्रिया चीख भी न सकी और वहीं ढेर हो गई. इस के बाद शोएब के वहां पहुंचने पर एजाज ने तेज धारदार चाकू से प्रिया का गला काट कर सिर धड़ से अलग कर दिया. फिर सिर को वहां से डेढ़ सौ मीटर दूर एक झाड़ी में फेंक दिया. इस के बाद धड़ को जमीन में दफनाने के लिए एजाज अपनी मारुति आल्टो कार से फावड़ा लेने चला गया.

बाजार से फावड़ा खरीद कर लाने के बाद दोनों ने जमीन को खोदने का प्रयास किया, लेकिन जमीन पथरीली होने के कारण दोनों गड्ढा नहीं खोद पाए. लाश को दफना नहीं सके तो दोनों ने आसपास उगी घास और पौधों से लाश ढक दी. प्रिया का मोबाइल उस की जींस की जेब में था. एजाज ने उस का मोबाइल निकाल कर अपनी जेब में रख लिया. लोहे की रौड, चाकू और फावड़ा झाडि़यों में छिपाने के बाद दोनों वापस लौट आए. अगले दिन 20 सितंबर को एजाज ने प्रिया के मोबाइल में उस का वाट्सऐप एकाउंट खोल कर प्रिया की तरफ से अपने नंबर पर न मिलने आने का मैसेज भेज दिया, जिस से उस पर शक न जाए. फिर उस ने प्रिया का मोबाइल स्विच्ड औफ कर के अपनी दुकान के पीछे फेंक दिया.

लेकिन उस का गुनाह छिप न सका. आखिर वह और शोएब कानून की गिरफ्त में आ ही गए. एजाज की निशानदेही पर प्रिया का मोबाइल और आल्टो कार भी पुलिस ने बरामद कर ली. हत्या में इस्तेमाल बाकी हथियार घटनास्थल से बरामद हो चुके थे. जरूरी कानूनी लिखापढ़ी के बाद दोनों को सीजेएम कोर्ट में पेश कर के जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

Love Crime : एकतरफा इश्क में डॉक्टर ने प्रेमिका को मार डाला

Love Crime : डिगरी ले कर डाक्टर बन जाना ही सब कुछ नहीं होता. इस पेशे में डाक्टर के लिए सेवाभाव, संयम, विवेक और इंसानियत भी जरूरी हैं. विवेक तिवारी डाक्टर जरूर बन गया था, लेकिन उस में इन में से कोई भी गुण नहीं था. अपने एक तरफा प्यार में वह चाहता था कि डा. योगिता वही करे जो वह चाहता है. ऐसा नहीं हुआ तो…

बीते 19 अगस्त की बात है. उत्तर प्रदेश पुलिस को सूचना मिली कि आगरा फतेहाबाद हाईवे पर बमरोली कटारा के पास सड़क किनारे एक महिला की लाश पड़ी है. यह जगह थाना डौकी के क्षेत्र में थी. कंट्रोल रूप से सूचना मिलते ही थाना डौकी की पुलिस मौके पर पहुंच गई. मृतका लोअर और टीशर्ट पहने थी. पास ही उस के स्पोर्ट्स शू पड़े हुए थे. चेहरेमोहरे से वह संभ्रांत परिवार की पढ़ीलिखी लग रही थी, लेकिन उस के कपड़ों में या आसपास कोई ऐसी चीज नहीं मिली, जिस से उस की शिनाख्त हो पाती. युवती की उम्र 25-26 साल लग रही थी.

पुलिस ने शव को उलटपुलट कर देखा. जाहिरा तौर पर उस के सिर के पीछे चोट के निशान थे. एकदो जख्म से भी नजर आए. युवती के हाथ में टूटे हुए बाल थे. हाथ के नाखूनों में भी स्कीन फंसी हुई थी. साफतौर पर नजर आ रहा था कि मामला हत्या का है, लेकिन हत्या से पहले युवती ने कातिल से अपनी जान बचाने के लिए काफी संघर्ष किया था. मौके पर शव की शिनाख्त नहीं हो सकी, तो डौकी पुलिस ने जरूरी जांच पड़ताल के बाद युवती की लाश पोस्टमार्टम के लिए एमएम इलाके के पोस्टमार्टम हाउस भेज दी. डौकी थाना पुलिस इस युवती की शिनाख्त के प्रयास में जुट गई.

उसी दिन सुबह करीब साढ़े 9 बजे दिल्ली के शिवपुरी पार्ट-2, दिनपुर नजफगढ़ निवासी डाक्टर मोहिंदर गौतम आगरा के एमएम गेट पुलिस थाने पहुंचे. उन्होंने अपनी बहन डाक्टर योगिता गौतम के अपहरण की आशंका जताई और डाक्टर विवेक तिवारी पर शक व्यक्त करते हुए पुलिस को एक तहरीर दी. डाक्टर मोहिंदर ने पुलिस को बताया कि डाक्टर योगिता आगरा के एसएन मेडिकल कालेज से पोस्ट ग्रेजुएशन कर रही है. वह नूरी गेट में गोकुलचंद पेठे वाले के मकान में किराए पर रहती है. कल शाम यानी 18 अगस्त की शाम करीब सवा 4 बजे डाक्टर योगिता ने दिल्ली में घर पर फोन कर के कहा था कि डाक्टर विवेक तिवारी उसे बहुत परेशान कर रहा है. उस ने डाक्टरी की डिगरी कैंसिल कराने की भी धमकी दी है. फोन पर डाक्टर योगिता काफी घबराई हुई थी और रो रही थी.

पुलिस ने डाक्टर मोहिंदर से डाक्टर विवेक तिवारी के बारे में पूछा कि वह कौन है? डा. मोहिंदर ने बताया कि डा. योगिता ने 2009 में मुरादाबाद के तीर्थकर महावीर मेडिकल कालेज में प्रवेश लिया था. मेडिकल कालेज में पढ़ाई के दौरान योगिता की जान पहचान एक साल सीनियर डा. विवेक से हुई थी. डाक्टरी करने के बाद विवेक को सरकारी नौकरी मिल गई. वह अब यूपी में जालौन के उरई में मेडिकल औफिसर के पद पर तैनात है. डा. विवेक के पिता विष्णु तिवारी पुलिस में औफिसर थे. जो कुछ साल पहले सीओ के पद से रिटायर हो गए थे. करीब 2 साल पहले हार्ट अटैक से उन की मौत हो गई थी.

डा. मोहिंदर ने पुलिस को बताया कि डा. विवेक तिवारी डा. योगिता से शादी करना चाहता था. इस के लिए वह उस पर लगातार दबाव डाल रहा था. जबकि डा. योगिता ने इनकार कर दिया था. इस बात को लेकर दोनों के बीच काफी दिनों से झगड़ा चल रहा था. डा. विवेक योगिता को धमका रहा था. नहीं सुनी पुलिस ने  पुलिस ने योगिता के अपहरण की आशंका का कारण पूछा, तो डा. मोहिंदर ने बताया कि 18 अगस्त की शाम योगिता का घबराहट भरा फोन आने के बाद मैं, मेरी मां आशा गौतम और पिता अंबेश गौतम तुरंत दिल्ली से आगरा के लिए रवाना हो गए. हम रात में ही आगरा पहुंच गए थे. आगरा में हम योगिता के किराए वाले मकान पर पहुंचे, तो वह नहीं मिली. उस का फोन भी रिसीव नहीं हो रहा था.

डा. मोहिंदर ने आगे बताया कि योगिता के नहीं मिलने और मोबाइल पर भी संपर्क नहीं होने पर हम ने सीसीटीवी फुटेज देखी. इस में नजर आया कि डा. योगिता 18 अगस्त की शाम साढ़े 7 बजे घर से अकेली बाहर निकली थी. बाहर निकलते ही उसे टाटा नेक्सन कार में सवार युवक ने खींचकर अंदर डाल लिया.  डा. मोहिंदर ने आरोप लगाया कि सारी बातें बताने के बाद भी पुलिस ने ना तो योगिता को तलाशने का प्रयास किया और ना ही डा. विवेक का पता लगाने की कोशिश की. पुलिस ने डा. मोहिंदर से अभी इंतजार करने को कहा.

जब 2-3 घंटे तक पुलिस ने कुछ नहीं किया, तो डा. मोहिंदर आगरा में ही एसएन मेडिकल कालेज पहुंचे. वहां विभागाध्यक्ष से मिल कर उन्हें अपना परिचय दे कर बताया कि उन की बहन डा. योगिता लापता है. उन्होंने भी पुलिस के पास जाने की सलाह दी. थकहार कर डा. मोहिंदर वापस एमएम गेट पुलिस थाने आ गए और हाथ जोड़कर पुलिस से काररवाई करने की गुहार लगाई. शाम को एक सिपाही ने उन्हें बताया कि एक अज्ञात युवती का शव मिला है, जो पोस्टमार्टम हाउस में रखा है. उसे भी जा कर देख लो. मन में कई तरह की आशंका लिए डा. मोहिंदर पोस्टमार्टम हाउस पहुंचे. शव देख कर उन की आंखों से आंसू बहने लगे. शव उन की बहन डा. योगिता का ही था. मां आशा गौतम और पिता अंबेश गौतम भी नाजों से पाली बेटी का शव देख कर बिलखबिलख कर रो पड़े.

शव की शिनाख्त होने के बाद यह मामला हाई प्रोफाइल हो गया. महिला डाक्टर की हत्या और इस में पुलिस अधिकारी के डाक्टर बेटे का हाथ होने की संभावना का पता चलने पर पुलिस ने कुछ गंभीरता दिखाई और भागदौड़ शुरू की. आगरा पुलिस ने जालौन पुलिस को सूचना दे कर उरई में तैनात मेडिकल आफिसर डा. विवेक तिवारी को तलाशने को कहा. जालौन पुलिस ने सूचना मिलने के 2 घंटे बाद ही 19 अगस्त की रात करीब 8 बजे डा. विवेक को हिरासत में ले लिया. जालौन पुलिस ने यह सूचना आगरा पुलिस को दे दी. जालौन पुलिस उसे हिरासत में ले कर एसओजी आफिस आ गई. जालौन पुलिस ने उस से आगरा जाने और डा. योगिता से मिलने के बारे में पूछताछ की, तो वह बिफर गया. उस ने कहा कि कोरोना संक्रमण की वजह से वह क्वारंटीन में है.

विवेक तिवारी बारबार बयान बदलता रहा. बाद में उस ने स्वीकार किया कि वह 18 अगस्त को आगरा गया था और डा. योगिता से मिला था. विवेक ने जालौन पुलिस को बताया कि वह योगिता को आगरा में टीडीआई माल के बाहर छोड़कर वापस उरई लौट आया था. आगरा पुलिस ने रात करीब 11 बजे जालौन पहुंचकर डा. विवेक को हिरासत में ले लिया. उसे जालौन से आगरा ला कर 20 अगस्त को पूछताछ की गई. पूछताछ में वह पुलिस को लगातार गुमराह करता रहा. पुलिस ने उस की काल डिटेल्स निकलवाई, तो पता चला कि शाम सवा 6 बजे से उस की लोकेशन आगरा में थी. डा. योगिता से उस की शाम साढ़े 7 बजे आखिरी बात हुई थी.

इस के बाद रात सवा बारह बजे विवेक की लोकेशन उरई की आई. कुछ सख्ती दिखाने और कई सबूत सामने रखने के बाद उस से मनोवैज्ञानिक तरीके से पूछताछ की गई. आखिरकार उस ने डा. योगिता की हत्या करने की बात स्वीकार कर ली. बाद में पुलिस ने उसे न्यायिक अभिरक्षा में जेल भेज दिया. पुलिस ने 20 अगस्त को डाक्टरों के मेडिकल बोर्ड से डा. योगिता के शव का पोस्टमार्टम कराया. पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार डा. योगिता के शरीर से 3 गोलियां निकलीं. एक गोली सिर, दूसरी कंधे और तीसरी सीने में मिली. योगिता पर चाकू से भी हमला किया गया था. पोस्टमार्टम कराने के बाद आगरा पुलिस ने डा. योगिता का शव उस के मातापिता व भाई को सौंप दिया.

प्रतिभावान डा. थी योगिता पूछताछ में डा. योगिता के दुखांत की जो कहानी सामने आई, वह डा. विवेक तिवारी के एकतरफा प्यार की सनक थी. दिल्ली के नजफगढ़ इलाके की शिवपुरी कालोनी पार्ट-2 में रहने वाले अंबेश गौतम नवोदय विद्यालय समिति में डिप्टी डायरेक्टर हैं. वह राजस्थान के उदयपुर शहर में तैनात हैं. डा. अंबेश के परिवार में पत्नी आशा गौतम के अलावा बेटा डा. मोहिंदर और बेटी डा. योगिता थी. योगिता शुरू से ही पढ़ाई में अव्वल रहती थी. उस की डाक्टर बनने की इच्छा थी. इसलिए उस ने साइंस बायो से 12वीं अच्छे नंबरों से पास की. पीएमटी के जरिए उस का सलेक्शन मेडिकल की पढ़ाई के लिए हो गया. उस ने 2009 में मुरादाबाद के तीर्थंकर मेडिकल कालेज में एमबीबीएस में एडमिशन लिया.

इसी कालेज में पढ़ाई के दौरान योगिता की मुलाकात एक साल सीनियर विवेक तिवारी से हुई. दोनों में दोस्ती हो गई. दोस्ती इतनी बढ़ी कि वे साथ में घूमनेफिरने और खानेपीने लगे. इस दोस्ती के चलते विवेक मन ही मन योगिता को प्यार करने लगा लेकिन योगिता की प्यारव्यार में कोई दिलचस्पी नहीं थी. वह केवल अपनी पढ़ाई और कैरियर पर ध्यान देती थी. इसी दौरान 2-4 बार विवेक ने योगिता के सामने अपने प्यार का इजहार करने का प्रयास किया लेकिन उस ने हंस मुसकरा कर उस की बातों को टाल दिया. योगिता के हंसनेमुस्कराने से विवेक समझ बैठा कि वह भी उसे प्यार करती है. जबकि हकीकत में ऐसा कुछ था ही नहीं. विवेक मन ही मन योगिता से शादी के सपने देखता रहा.

इस बीच, विवेक को भी डाक्टरी की डिगरी मिल गई और योगिता को भी. बाद में डा. विवेक तिवारी को सरकारी नौकरी मिल गई. फिलहाल वह उरई में मेडिकल आफिसर के पद पर कार्यरत था. डा. विवेक मूल रूप से कानपुर का रहने वाला है. कानपुर के किदवई नगर के एन ब्लाक में उस का पैतृक मकान है. इस मकान में उस की मां आशा तिवारी और बहन नेहा रहती हैं. विवेक के पिता विष्णु तिवारी उत्तर प्रदेश पुलिस में अधिकारी थे. वे आगरा शहर में थानाप्रभारी भी रहे थे. कहा जाता है कि पुलिस विभाग में विष्णु तिवारी का काफी नाम था. वे कानपुर में कई बड़े एनकाउंटर करने वाली पुलिस टीम में शामिल रहे थे. कुछ साल पहले विष्णु तिवारी सीओ के पद से रिटायर हो गए थे. करीब 2 साल पहले उन की हार्ट अटैक से मौत हो गई थी.

मुरादाबाद से एमबीबीएस की डिगरी हासिल कर डा. योगिता आगरा आ गई. आगरा में 3 साल पहले उस ने एसएन मेडिकल कालेज में पोस्ट ग्रेजुएशन करने के लिए एडमिशन ले लिया. वह इस कालेज के स्त्री रोग विभाग में पीजी की छात्रा थी. वह आगरा में नूरी गेट पर किराए के मकान में रह रही थी. इस बीच, डा. योगिता और विवेक की फोन पर बातें होती रहती थीं. कभीकभी मुलाकात भी हो जाती थी. डा. विवेक जब भी मिलता या फोन करता, तो अपने प्रेम प्यार की बातें जरूर करता लेकिन डा. योगिता उसे तवज्जो नहीं देती थी. दोनों के परिवारों को उन की दोस्ती का पता था. डा. विवेक के पास योगिता के परिजनों के मोबाइल नंबर भी थे. उस ने योगिता के आगरा के मकान मालिकों के मोबाइल नंबर भी हासिल कर रखे थे. कहा यह भी जाता है कि विवेक और योगिता कई साल रिलेशन में रहे थे.

पिछले कई महीनों से डा. विवेक उस पर शादी करने का दबाव डाल रहा था, लेकिन डा. योगिता ने इनकार कर दिया था. इस से डा. विवेक नाराज हो गया. वह उसे फोन कर धमकाने लगा. 18 अगस्त को विवेक ने योगिता को फोन कर शादी की बात छेड़ दी. योगिता के साफ इनकार करने पर उस ने धमकी दी कि वह उसे जिंदा नहीं छोड़ेगा, उस की एमबीबीएस की डिगरी कैंसिल करा देगा. इस से डा. योगिता घबरा गई. उस ने दिल्ली में अपनी मां को फोन कर रोते हुए यह बात बताई. इसी के बाद योगिता के मातापिता व भाई दिल्ली से आगरा के लिए चल दिए थे.

योगिता को धमकाने के कुछ देर बाद डा. विवेक ने उसे दोबारा फोन किया. इस बार उस की आवाज में क्रोध नहीं बल्कि अपनापन था. उस ने कहा कि भले ही वह उस से शादी ना करे लेकिन इतने सालों की दोस्ती के नाम पर उस से एक बार मिल तो ले. काफी नानुकुर के बाद डा. योगिता ने आखिरी बार मिलने की हामी भर ली. उसी दिन शाम करीब साढ़े 7 बजे डा. विवेक ने योगिता को फोन कर के कहा कि वह आगरा आया है और नूरी गेट पर खड़ा है. घर से बाहर आ जाओ, आखिरी मुलाकात कर लेते हैं. योगिता बिना सोचेसमझे बिना किसी को बताए घर से अकेली निकल गई. यही उस की आखिरी गलती थी.

घर से बाहर निकलते ही नूरी गेट पर टाटा नेक्सन कार में सवार विवेक ने उसे कार का गेट खोल कर आवाज दी और तेजी से कार के अंदर खींच लिया. रास्ते में डा. विवेक ने योगिता से फिर शादी का राग छेड़ दिया, तो चलती कार में ही दोनों में बहस होने लगी. डा. विवेक उस से हाथापाई करने लगा. इसी हाथापाई में योगिता ने अपने हाथ के नाखूनों से विवेक के बाल खींचे और चमड़ी नोंची, तो गुस्साए विवेक ने उस का गला दबा दिया. डा. विवेक योगिता को कार में ले कर फतेहाबाद हाईवे पर निकल गया. एक जगह रुक कर उस ने अपनी कार में रखा चाकू निकाला. चाकू से योगिता के सिर और चेहरे पर कई वार किए. इतने पर भी विवेक का गुस्सा शांत नहीं हुआ, तो उस ने योगिता के सिर, कंधे और छाती में 3 गोलियां मारीं. यह रात करीब 8 बजे की घटना है.

हत्या कर के रातभर सक्रिय रहा विवेक इस के बाद योगिता के शव को बमरौली कटारा इलाके में सड़क किनारे एक खेत में फेंक दिया. पिस्तौल भी रास्ते में फेंक दी. रात में ही वह उरई पहुंच गया. रात को ही वह उरई से कानपुर गया और अपनी कार घर पर छोड़ आया. दूसरे दिन वह वापस उरई आ गया. बाद में पुलिस ने कानपुर में डा. विवेक के घर से वह कार बरामद कर ली. यह कार 2 साल पहले खरीदी गई थी. कार में खून से सना वह चाकू भी बरामद हो गया, जिस से हमला कर योगिता की जान ली गई थी. बहुत कम बोलने वाली प्रतिभावान डा. योगिता गौतम का नाम कोरोना संक्रमण काल में यूपी की पहली कोविड डिलीवरी करने के लिए भी दर्ज है. कोरोना महामारी जब आगरा में पैर पसार रही थी, तब आइसोलेशन वार्ड विकसित किया गया.

इस के लिए स्त्री और प्रसूति रोग विभाग की भी एक टीम बनाई गई. जिसे संक्रमित गर्भवतियों के सीजेरियन प्रसव की जिम्मेदारी दी गई. विभागाध्यक्ष डा. सरोज सिंह के नेतृत्व में गठित इस टीम में शामिल डा. योगिता ने 21 अप्रैल को यूपी और आगरा में कोविड मरीज के पहले सीजेरियन प्रसव को अंजाम दिया था. इस के बाद भी उन्होंने कई सीजेरियन प्रसव कराए. डा. योगिता के कराए प्रसव की कई निशानियां आज उन घरों में किलकारियां बन कर गूंज रही हैं. सिरफिरे डाक्टर आशिक के हाथों जान गंवाने से 5 दिन पहले ही 13 अगस्त को डा. योगिता का पीजी का रिजल्ट आया था. जिस में वह पास हो गई थी. पीजी कर योगिता विशेषज्ञ डाक्टर बन गई थी. लेकिन वक्त को कुछ और ही मंजूर था. लोगों की जान बचाने वाली डा. योगिता की उस के आशिक ने ही जान ले ली. घटना वाले दिन भी वह दोपहर 3 बजे तक अस्पताल में अपनी ड्यूटी पर थी.

डा. योगिता की मौत पर आगरा के एसएन मेडिकल कालेज में कैंडल जला कर योगिता को श्रद्धांजलि दी गई. कालेज के जूनियर डाक्टरों की एसोसिएशन ने प्रदर्शन कर सच्ची कोरोना योद्धा की हत्या पर आक्रोश जताया. बहरहाल डा. विवेक ने अपने एकतरफा प्यार की सनक में योगिता की हत्या कर दी. उस की इस जघन्य करतूत ने योगिता के परिवार को खून के आंसू बहाने पर मजबूर कर दिया. वहीं, खुद का जीवन भी बरबाद कर लिया. डाक्टर लोगों की जान बचाने वाला होता है, लोग उसे सब से ऊंचा दर्जा देते हैं, लेकिन यहां तो डाक्टर ही हैवान बन गया. दूसरों की जान बचाने वाले ने साथी डाक्टर की जान ले ली.

 

UP News : सोते हुए डॉक्टर को महबूबा के आशिक ने चाकू से गोद डाला

UP News : उस का नाम था मायरा बानो, लेकिन उस की सूरत और सीरत की वजह से सब उसे चांदनी कहने लगे थे. चांदनी का पहला प्यार था इमरान और इमरान का पहला प्यार थी चांदनी. डाक्टर संजय भदौरिया ने जब चांदनी पर नजर डाली तो…

पेशे से डाक्टर संजय सिंह भदौरिया बरेली के धनेटा-शीशगढ़ मार्ग से सटे आनंदपुर गांव में रहते थे. उन के पिता राजेंद्र सिंह गांव के संपन्न किसान थे. परिवार में मां और पिता के अलावा एक छोटा भाई हरिओम और एक बहन पूनम थी. पूनम का विवाह हो चुका था. संजय डाक्टरी की पढ़ाई करने के बाद 1999 में बरेली के एक अस्पताल में अपनी सेवाएं देने लगे. सन 2000 में नीलम से उन का विवाह हो गया. लेकिन काफी समय बाद भी उन्हें संतान सुख नहीं मिला. छोटे भाई हरिओम का विवाह बाद में हुआ. हरिओम के 3 बेटे हुए. संजय ने उन्हीं में से एक बेटे को गोद ले लिया था. कई अस्पतालों में अपनी सेवाएं देने के बाद डा. संजय ने अपना अस्पताल खोलने का निश्चय किया.

5 साल पहले उन्होने गौरीशंकर गौडि़या में किराए पर एक इमारत ले कर अस्पताल खोला. उन्होंने अस्पताल का नाम रखा ‘आनंद जीवन हौस्पिटल’. अस्पताल अच्छा चलने लगा. लेकिन घर से काफी दूर होने के कारण आनेजाने में दिक्कत होती थी. इसलिए डा. संजय कहीं घर के नजदीक अस्पताल खोलने पर विचार करने लगे. 6 महीने तक गौडि़या में अस्पताल चलाने के बाद संजय ने अपने गांव आनंदपुर से 2 किलोमीटर की दूरी पर विकसित गांव दुनका में एक इमारत किराए पर ले ली. इमारत दुनका गांव निवासी नत्थूलाल की थी, जिसे संजय ने 8 हजार रुपए मासिक किराए पर लिया था. संजय ने इमारत में बने हाल को 2 हिस्सों में बांट दिया.

एक हिस्से में बैठ कर वह मरीजों को देखते थे. जबकि दूसरा हिस्सा एडमिट किए गए मरीजों के लिए था. मरीजों को दवा भी वहीं दी जाती थी, जबकि यह काम उन के छोटे भाई हरिओम सिंह भदौरिया करते थे. हरिओम बड़े भाई के अन्य कामों में भी सहयोग करते थे. संजय और हरिओम के मामा नत्थू सिंह भी उन के साथ लगे रहते थे. संजय कई सालों से हिंदू युवा वाहिनी से भी जुडे़ थे. पिछले 5 सालों में संजय का अस्पताल अच्छा चल निकला था. रात में वह अधिकतर अस्पताल में ही रुकते थे. घर जाते तो कुछ ही देर में वापस लौट आते थे. रात में वह अस्पताल परिसर में चारपाई पर मच्छरदानी लगा कर सोते थे. इमारत के बाहर लोहे का एक बड़ा सा गेट था, जो दिन में खुला रहता था लेकिन रात में बंद कर दिया जाता था.

रात में कोई मरीज आता तो गेट खोल दिया जाता था. 16/17 सितंबर की रात डा. संजय अस्पताल परिसर में चारपाई पर मच्छरदानी लगा कर सो गए. उन के भाई हरिओम अस्पताल के अंदर मामा नत्थू सिंह के साथ सोए थे. 17 सितंबर की सुबह 6 बजे हरिओम उठ कर बाहर आए तो बड़े भाई संजय को मृत पाया. किसी ने बड़ी बेरहमी से उन की हत्या कर दी थी. हरिओम के मुंह से चीख निकल गई. चीख की आवाज सुन कर मामा नत्थू सिंह भी वहां आ गए. भांजे को मरा पाया तो वह भी सकते में आ गए. हरिओम ने अपने घर वालों को सूचना देने के बाद शाही थाना पुलिस को घटना के बारे में बता दिया. थोड़ी देर में शाही थाना इंसपेक्टर वीरेंद्र सिंह राणा पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए.

हत्यारा इमरान था हिंदू युवा वाहिनी के तहसील अध्यक्ष डा. संजय भदौरिया की हत्या की खबर फैलते देर नहीं लगी. हिंदू नेता की हत्या से पुलिस प्रशासन में हड़कंप मच गया. कई थानों की पुलिस और फील्ड यूनिट के साथ एसएसपी रोहित सिंह सजवान स्वयं मौके पर पहुंच गए. पुलिस अधिकारियों ने लाश का निरीक्षण किया. मृतक के गले, चेहरे, पेट व आंख पर किसी तेज धारदार हथियार से वार किए गए थे. हत्या इतनी बेदर्दी से की गई थी जैसे हत्यारे को मृतक से बेइंतहा नफरत रही हो. अस्पताल की इमारत के मालिक दुनका में रहने वाले नत्थूलाल थे. पीछे की ओर उन के भाई की दुकानों के टीन शेड में सीसीटीवी कैमरे लगे थे. पुलिस ने उन कैमरों की रिकौर्डिंग की जांच की.

रिकार्डिंग में रात साढ़े 3 बजे के करीब एक युवक अस्पताल में खड़ी टाटा मैजिक के पीछे से निकलते दिखा. वह संजय की चारपाई के नजदीक आया. फिर उस ने मच्छरदानी हटाते ही धारदार छुरे से संजय पर वार करने शुरू कर दिए. एक मिनट के अंदर उस ने संजय का काम तमाम कर दिया और जिस रास्ते से आया था, उसी रास्ते से वापस लौट गया. हत्यारे युवक को हरिओम ने पहचान लिया. वह दुनका का ही रहने वाला इमरान था. हत्यारे की पहचान होते ही पुलिस अधिकरियों ने उस की गिरफ्तारी के आदेश दे दिए. पुलिस की कई टीमें इमरान की तलाश में लग गईं. इंसपेक्टर वीरेंद्र राणा की टीम ने दोपहर पौने एक बजे इमरान को रतनपुरा के जंगल में खोज निकाला.

पुलिस को आया देख इमरान ने 315 बोर के तमंचे से पुलिस पर फायर कर दिया, जिस से कोई पुलिसकर्मी हताहत नहीं हुआ. जवाब में पुलिस ने उस के पैर को निशाना बना कर गोली चला दी, जो सीधे इमरान के पैर में लगी. गोली लगते ही इमरान के हाथ से तमंचा छूट गया और वह जमीन पर गिर कर तड़पने लगा. पुलिस ने उसे दबोच लिया. इमरान के पास से पुलिस ने एक तमंचा, एक खोखा कारतूस, 2 जिंदा कारतूस और आलाकत्ल छुरा बरामद कर लिया. थाने ला कर जब उस से कड़ाई से पूछताछ की गई तो पूरा मामला आइने की तरह साफ हो गया. इमरान शाही थाना क्षेत्र के गांव दुनका में रहता था. वह भाड़े पर टाटा मैजिक चलाता था. इस से पहले वह संजय के अस्पताल के मालिक नत्थूलाल के यहां ड्राइवर था.

इमरान की आर्थिक स्थिति काफी कमजोर थी. उस के पिता छोटे तांगा चलाते थे. इमरान 3 भाइयों में सब से बड़ा था. इमरान के घर से कुछ दूरी पर चांदनी उर्फ मायरा बानो (परिवर्तित नाम) रहती थी. नाम के अनुसार उस के रूप की चांदनी भी लोगों को लुभाती थी. उम्र के 18वें बसंत में चांदनी का यौवन अपने चरम पर था. खूबसूरत देहयष्टि वाली चांदनी युवकों से बात करने में हिचकती थी, वह बातबात में शरमा जाती थी. यौवन द्वार पर आते ही उस में कई परिवर्तन आ गए थे, शारीरिक रूप से भी और सोच में भी. कई युवक उस के आगेपीछे मंडराते थे, लेकिन चांदनी इमरान को पसंद करती थी. इमरान काफी स्मार्ट था, वह उस की नजरों से हो कर दिल में उतर गया था.

इमरान भी उस के आगेपीछे मंडराता था. दोनों एकदूसरे से परिचित थे. घर वाले भी एकदूसरे के घर आतेजाते थे. ऐसे में उन के बीच बातचीत होती रहती थी. लेकिन जब से उन के बीच प्यार के अंकुर फूटने लगे थे, तब से उन के बीच संकोच की दीवार सी खड़ी हो गई थी. जब भी इमरान उस की आंखों के सामने होता तो उस की निगाहें उसी पर जमी रहतीं. चेहरे पर इस की खुशी साफ झलकती थी. इमरान को भी उस का इस तरह से देखना भाता था, क्योंकि उस का दिल तो वैसे भी चांदनी के प्यार का मरीज था. दोनों की आंखों से एकदूसरे के लिए प्यार साफ झलकता था. दोनों इस बात को महसूस भी करते थे, लेकिन बात जुबां पर नहीं आ पाती थी.

शुरू हो गई प्रेम कहानी एक दिन चांदनी जब इमरान के घर गई तो उस समय वह घर में अकेला था. चांदनी को देखते ही इमरान का दिल तेजी से धड़कने लगा. उसे लगा कि दिल की बात कहने का इस से अच्छा मौका नहीं मिलेगा. इमरान ने उसे कमरे में बैठाया और फटाफट 2 कप चाय बना लाया. चाय का घूंट भर कर चांदनी उस से दिल्लगी करती हुई बोली, ‘‘चाय तो बहुत अच्छी बनी है. बेहतर होगा कहीं चाय की दुकान खोल लो. खूब बिक्री होगी.’’

‘‘अगर तुम रोजाना दुकान पर आ कर चाय पीने का वादा करो तो मैं दुकान भी खोल लूंगा.’’ इमरान ने चांदनी की बात का जवाब उसी अंदाज में दिया तो चांदनी लाजवाब हो गई.लदोनों इसी बात पर काफी देर हंसते रहे, फिर इमरान गंभीर हो कर बोला, ‘‘चांदनी, मुझे तुम से एक बात कहनी थी.’’

‘‘हां, कहो न.’’

‘‘सोचता हूं कहीं तुम बुरा न मान जाओ.’’

‘‘जब तक कहोगे नहीं कि बात क्या है तो मुझे कैसे पता चलेगा कि अच्छा मानना है कि बुरा.’’

‘‘चांदनी, मैं तुम से दिलोजान से प्यार करता हूं. ये प्यार आज का नहीं बरसों का है जो आज जुबां पर आया है. ये आंखें तो बस तुम्हें ही देखना पसंद करती हैं, तुम्हारे पास रहने से दिल को करार आता है. तुम्हारे प्यार में मैं इतना दीवाना हो चुका हूं कि अगर तुम ने मेरा प्यार स्वीकार नहीं किया तो मैं पागल हो जाऊंगा.’’

इमरान के दिल की बात जुबां पर आ गई. सुन कर चांदनी का चेहरा शर्म से लाल हो गया. पलकें झुक गईं, होंठों ने कुछ कहना चाहा लेकिन जुबां ने साथ नहीं दिया. चांदनी की यह हालत देख कर इमरान बोला, ‘‘कुछ तो कहो चांदनी. क्या मैं इस लायक नहीं कि तुम से प्यार कर के तुम्हारा साथ पा सकूं.’’

‘‘क्या कहना ही जरूरी है, तुम अपने आप को दीवाना कहते हो और मेरी आंखों में बसी चाहत को नहीं देख सकते. सच पूछो तो जो हाल तुम्हारा है, वही हाल मेरा भी है. मैं ने भी तुम्हें बहुत पहले से दिल में बसा लिया था. पर डरती थी कि कहीं यह मेरा एकतरफा प्यार न हो.’’ चांदनी ने अपनी चाहत का इजहार कर दिया तो इमरान खुशी से झूम उठा. उसे लगा जैसे सारी दुनिया की दौलत चांदनी के रूप में उस की झोली में आ समाई हो. एक बार दोनों के बीच प्यार का इजहार हुआ तो फिर उन के मिलनेजुलने का सिलसिला बढ़ गया. अब दोनों रोज गांव के बाहर एक सुनसान जगह पर मिलने लगे. वहां दोनों एकदूसरे पर जम कर प्यार बरसाते और हमेशा एकदूसरे का साथ निभाने की कसमें खाते.

जैसेजैसे समय बीतता गया, दोनों की चाहत दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ती गई. इसी बीच चांदनी को पेट दर्द की समस्या हुई तो उस ने इमरान को बताया. इमरान डा. संजय भदौरिया से परिचित था. इसलिए वह चांदनी को इलाज के लिए संजय के अस्पताल में ले आया. डा. संजय ने चांदनी का चैकअप किया, फिर कुछ दवाइयां लिख दीं, जोकि उन के हौस्पिटल के मैडिकल स्टोर में उपलब्ध थीं, हरिओम ने पर्चे में लिखी दवाइयां दे दीं. चांदनी को देखते और उसे छूते समय संजय को एक सुखद अनूभूति हुई थी. चांदनी की खूबसूरती को देख संजय की आंखें चुंधिया गई थीं, दिल में भी उमंगें उठने लगी थीं.

उस दिन के बाद चांदनी संजय के पास दवा लेने के लिए अकेले ही आने लगी. संजय उसे अकेले में देखता और उस से खूब बातें करता. बातोंबातों में उस ने चांदनी को अपने प्रभाव में लेना शुरू कर दिया. उस ने चांदनी से दवा के पैसे लेना भी बंद कर दिया था. डा. संजय ने छीना इमरान का प्यार चांदनी भी संजय से खुल कर बातें करती थी. एक दिन संजय ने उस से कहा, ‘‘चांदनी, तुम मुझे बहुत अच्छी लगती हो. लगता है मैं तुम्हें चाहने लगा हूं.’’

यह कह कर संजय ने चांदनी के चेहरे पर नजरें गड़ा दीं. यह सुन कर चांदनी पल भर के लिए चौंकी, फिर बोली, ‘‘आप मुझ से उम्र में बहुत बड़े हैं और शादीशुदा भी. ऐसे में प्यार मुझ से…’’

‘‘पगली, प्यार उम्र और बंधन को कहां देखता है, जिस से होना होता है, हो जाता है. तुम मुझे अब मिली हो, अगर पहले मिल जाती तो मैं तुम से ही शादी करता. खैर अब वह तो हो नहीं सकता, उस की क्या बात करें. मैं तुम्हारा पूरा ख्याल रखूंगा, तुम्हें किसी चीज की कमी नहीं होने दूंगा.’’

‘‘मैं इमरान से प्यार करती हूं और हम दोनों शादी भी करने वाले हैं.’’

‘‘इमरान से प्यार कर के तुम्हें क्या मिलेगा? वह एक मामूली इंसान है. तुम्हारी खुशियों का खयाल नहीं रख पाएगा. मेरे पास पैसा है, शोहरत है. मैं तुम्हारे लिए बहुत कुछ कर सकता हूं. हर तरह से…’’

‘‘आप की बात तो सही है लेकिन…’’ दुविधा में पड़ी चांदनी इस से आगे कुछ नहीं बोल पाई.

‘‘सोच लो, विचार कर लो, वैसे भी जिंदगी के अहम फैसले जल्दबाजी में नहीं लिए जाते. कोई जल्दी नहीं, आराम से सोच कर बता देना.’’

इस के बाद चांदनी अस्पताल से घर लौट आई. उस के दिमाग में तरहतरह के विचार घुमड़घुमड़ रहे थे. इमरान उस का प्यार था लेकिन उस के सिर्फ प्यार से अच्छी जिंदगी नहीं गुजारी जा सकती थी. अच्छी जिंदगी के लिए पैसों की जरूरत होती है, वह जरूरत संजय से पूरी हो सकती थी. संजय के प्यार को स्वीकार कर के वह अच्छी जिंदगी गुजार सकती थी. आगे चल कर वह उसे शादी के लिए भी मना सकती थी, नहीं तो वह उस की दूसरी बीवी की तरह ताउम्र गुजार सकती थी. चांदनी का मन बदल गया और उस का फैसला संजय के हक में गया था. अगले ही दिन चांदनी संजय के अस्पताल पहुंच कर उस से मिली. उस के चेहरे की खुशी देख कर संजय जान गया था कि चांदनी ने उस का होने का फैसला कर लिया है. फिर भी अंजान बनते हुए उस ने चांदनी से पूछ लिया, ‘‘तो चांदनी, तुम ने क्या सोचा…इमरान या मैं?’’

‘‘जाहिर है आप, आप को न चुनती तो मैं यहां वापस आती भी नहीं.’’ चांदनी ने बड़ी अदा से मुसकराते हुए कहा. संजय उस का फैसला सुन कर खुश हो गया. उस दिन के बाद से संजय और चांदनी का मिलनाजुलना बढ़ गया. दोनों एकदूसरे के काफी नजदीक आ गए. इन नजदीकियों के बाद चांदनी ने इमरान से दूरी बनानी शुरू कर दी. चांदनी का अपने प्रति रूखा व्यवहार देख कर इमरान को उस पर शक हो गया. वह उस पर नजर रखने लगा. जल्द ही उसे सारी सच्चाई पता चल गई. इमरान ने बदले की ठान ली इस बात को ले कर वह चांदनी से तो झगड़ा ही, संजय से भी लड़ा. संजय ने उसे डांटडपट कर वहां से भगा दिया. अपनी प्रेमिका को अपने से दूर जाते देख कर इमरान बौखला गया. वह उस दिन को कोसने लगा जब वह चांदनी को इलाज के लिए संजय के पास ले गया था.

संजय ने उस की पीठ में छुरा घोंपा था. इसलिए उस ने संजय की जिंदगी छीन लेने का फैसला कर लिया. 16/17 सितंबर की रात साढ़े 3 बजे के करीब वह संजय के अस्पताल में घुसा. उस ने संजय को बाहर चारपाई पर मच्छरदानी लगा कर सोते देखा. वह चारपाई के नजदीक पहुंचा और मच्छरदानी हटा कर साथ लाए छुरे से संजय पर ताबड़तोड़ प्रहार करने शुरू कर दिए. सोता हुआ संजय चीख तक न सका और उस की मौत हो गई. संजय को मौत के घाट उतारने के बाद इमरान जिस रास्ते से आया था, उसी रास्ते से अस्पताल से बाहर निकल गया. वहां से जाने के बाद वह रतनपुरा के जंगल में जा कर छिप गया.

लेकिन उस का गुनाह तीसरी आंख में कैद हो गया था, जिस के बाद पुलिस को उस तक पहुंचने में देर नहीं लगी. इंसपेक्टर वीरेंद्र सिंह राणा ने हरिओम को वादी बना कर इमरान के विरुद्ध भादंवि की धारा 302 के तहत मुकदमा दर्ज करवा दिया. इस के अलावा मुठभेड़ के दौरान पुलिस पर जानलेवा हमला करने पर भी उस के खिलाफ धारा 307 का भी मुकदमा दर्ज किया गया. आवश्यक कानूनी लिखापढ़ी के बाद इमरान को न्यायालय में पेश कर न्यायिक अभिरक्षा में जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधा

Extramarital Affair : दुपट्टे से गला घोंटकर प्रेमी से करवाया पति का कत्ल

Extramarital Affair : ड्राइवर नरेंद्र राठी शराब का इतना आदी हो गया था कि उस ने अपनी घरगृहस्थी की तरफ ध्यान नहीं दिया. इस का नतीजा यह हुआ कि उस की पत्नी पूजा राठी के पांव बहक गए. पूजा ने अपने प्रेमी अमन के साथ मिल कर ऐसी साजिश रची कि…

वह 10 जुलाई, 2020 का दिन था. दोपहर के 3 बज रहे थे. उत्तराखंड की योगनगरी ऋषिकेश के कोतवाल रीतेश शाह कोतवाली में ही थे. तभी एक महिला उन के पास पहुंची. महिला ने बताया, ‘‘सर, मैं गली नंबर 2, चंद्रशेखर नगर में रहती हूं और मेरा नाम कुसुम है. मेरा बेटा नरेंद्र राठी टैक्सी चलाता है. वह शादीशुदा है और उस के 2 बेटे हैं. वह पहली जुलाई को घर से निकला था, उस के बाद वह अभी तक नहीं लौटा है.’’

‘‘आप के बेटे की किसी से दुश्मनी तो नहीं थी?’ शाह ने पूछा

‘‘नहीं सर, उस की किसी से कोई दुश्मनी नहीं थी, बल्कि वह तो अपने काम से काम रखता था.’’ कुसुम ने बताया.

‘‘तुम ने उसे कहांकहां तलाश किया है?’’ शाह ने पूछा.

‘‘सर पिछले 10 दिनों में मैं और मेरे रिश्तेदार नरेंद्र के दोस्तों और अपने सभी रिश्तेदारों के घर पर उसे तलाश कर चुके हैं, मगर हमें अभी तक उस के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली है. सर, मेरी आप से विनती है कि आप मेरे बेटे को तलाश करने में मेरी मदद करें.’’ कुसुम बोली. इंसपेक्टर रीतेश शाह ने नरेंद्र राठी की गुमशुदगी दर्ज कर ली और जांच एसआई चिंतामणि को सौंप दी. एसआई चिंतामणि ने सब से पहले नरेंद्र राठी की पत्नी पूजा से पूछताछ की. इस के बाद उन्होंने नरेंद्र के पड़ोसियों से भी उस के बारे में जानकारी जुटाई. उन्हें पता चला कि नरेंद्र के अपनी पत्नी पूजा के साथ अच्छे संबंध नहीं थे. वह अकसर शराब पी कर उस से मारपीट करता था. इस के अलावा यह भी जानकारी मिली कि नरेंद्र की गैरमौजूदगी में उस के घर पर अमन नामक एक प्लंबर ठेकेदार अकसर आताजाता है.

यह जानकारी मिलने के बाद पुलिस ने नरेंद्र के फोन को सर्विलांस पर लगा दिया. इस से पुलिस को जानकारी मिली कि नरेंद्र का मोबाइल 27 जून, 2020 से स्विच्ड औफ चल रहा था. इस बाबत पूजा ने बताया कि नरेंद्र का मोबाइल खराब हो गया है. उन्होंने सिम अपने पास रख कर मोबाइल को ठीक करने के लिए एक दुकानदार को दे रखा है. पुलिस के पास नरेंद्र तक पहुंचने का कोई जरिया नहीं था. पुलिस ने सोचा कि कहीं ऐसा तो नहीं कि उस के साथ कोई अप्रिय घटना हो गई हो और हत्यारे ने लाश गंगा नदी में बहा दी हो. इस आशंका को दूर करने के लिए एसएसआई ओमकांत भूषण ने जल पुलिस के साथ ऋषिकेश के त्रिवेणी घाट से बैराज तक गंगा किनारे तलाश करवाई, मगर कोई जानकारी नहीं मिल सकी.

अचानक 20 जुलाई, 2020 को नरेंद्र राठी की पत्नी पूजा राठी कोतवाली ऋषिकेश पहुंची. उस ने पुलिस को बताया कि 4 दिन पहले मेरे पति नरेंद्र राठी ने मुझे फोन कर के जान से मारने की धमकी दी थी. उस की धमकी के बाद मुझे बहुत डर लग रहा है. आप तुरंत उस के खिलाफ काररवाई करें. यह सुन कर पुलिस चौंकी. आखिर ऐसी कौन सी वजह है जो पति अपनी पत्नी को जान से मारने की धमकी दे रहा है. इस शिकायत से तो यही लग रहा था कि नरेंद्र जहां कहीं भी है, ठीकठाक है. इंसपेक्टर रीतेश शाह ने यह जानकारी एसपी (देहात) प्रमेंद्र डोवाल को दी. एसपी डोवाल ने एसएसआई को नरेंद्र राठी के फोन नंबर की काल डिटेल्स निकलवाने के निर्देश दिए ताकि उसकी लोकेशन पता चल सके.

एसएसआई ओमकांत भूषण ने तुरंत नरेंद्र राठी के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई. काल डिटेल्स से पता चला कि नरेंद्र राठी के नंबर से 2 काल्स पूजा राठी को तथा 3 काल्स कुसुम राठी को की गई थीं. जिस वक्त ये काल्स की गई थी, उस समय उस के फोन की लोकेशन हरिद्वार की थी. इस के बाद उस का फोन स्विच्ड औफ हो गया था. जिस फोन से ये काल्स की गई थीं, पुलिस ने उस का आईएमईआई नंबर हासिल कर लिया था. जांच अधिकारी ने नरेंद्र की पत्नी पूजा के फोन की काल डिटेल्स निकलवाई. इस से पुलिस को चौंकाने वाली जानकारी मिली.

पता चला कि जिस फोन का प्रयोग पूजा को धमकी देने के लिए किया गया था, उसी फोन में कोई दूसरा सिमकार्ड डाल कर पूजा से पहले काफीकाफी देर तक बातें हुई थीं. पुलिस ने इस की जांच की तो वह मोबाइल नंबर उसी ठेकेदार का निकला, जिस का पूजा के घर आनाजाना था. अब पूजा और अमन पुलिस के शक के दायरे में आ गए. पुलिस को संदेह हो गया कि नरेंद्र राठी की गुमशुदगी में कहीं न कहीं पूजा व अमन का हाथ है. इस के बाद पुलिस ने अमन व पूजा को पूछताछ के लिए कोतवाली बुलवाया. जानकारी मिलने पर सीओ भूपेंद्र सिंह धोनी व एसपी (देहात) प्रमेंद्र डोवाल भी वहां पहुंच गए थे. पुलिस ने पूजा व अमन से नरेंद्र के गायब होने के मामले में गहन पूछताछ शुरू की.

पहले तो दोनों पुलिस को इधरउधर की बातें कर के गच्चा देते रहे,  मगर जब दोनों से अलगअलग ले जा कर पूछताछ की गई, तो दोनों के बयान भिन्नभिन्न निकले. इसी के मद्देनजर जब पुलिस ने उन से सख्ती की तो वे टूट गए और दोनों ने पुलिस के सामने नरेंद्र की हत्या का जुर्म स्वीकार कर लिया. उन्होंने उस की हत्या के पीछे की जो कहानी बताई, इस प्रकार निकली—

पूजा उत्तराखंड के शहर ऋषिकेश के मोहल्ला चंद्रशेखर नगर, शीशम झाड़ी के रहने वाले संतोष की बेटी थी. रुढि़वादी विचारों वाले संतोष ने वर्ष 2002 में नरेंद्र राठी से पूजा का विवाह तब कर दिया था, जब वह मात्र 13 साल की थी. नरेंद्र ड्राइवर था. वह जब ससुराल पहुंची तो पता चला उस का पति शराबी है और कुसुम उस की सौतेली मां है. पूजा ने जब पति को समझाने की कोशिश की तो उस पर समझाने का कोई असर नहीं हुआ. पूजा जब भी शराब पीने का विरोध करती तो वह उस की पिटाई कर देता था. पूजा ने यह बात जब अपनी सौतेली सास कुसुम को बताई, तो उस ने भी इस बात पर कोई ध्यान नहीं दिया.

इसी तरह कलह के साथ समय गुजरता गया और पूजा 2 बेटों की मां बन गई. शराब पी कर नरेंद्र अकसर पूजा की पिटाई करता था. करीब एक साल पहले पूजा राठी का सिटी गेट, ऋषिकेश में एक ट्रक से एक्सीडेंट हो गया था. एक्सीडेंट के समय उधर से बापू ग्राम निवासी प्लंबर अमन जा रहा था. उस ने पूजा को तत्काल ऋषिकेश के एक अस्पताल में भरती कराया. खबर मिलने पर पूजा के घर वाले भी अस्पताल पहुंच गए. उन सभी ने अमन की बहुत तारीफ की. जब तक पूजा अस्पताल में रही, अमन ने ही उस की सब से ज्यादा देखभाल की. दोनों में लंबीलंबी बातें होने लगीं और बाद में दोनों एकदूसरे से प्यार करने लगे. उसी दौरान दोनों के बीच शारीरिक संबंध भी बन गए.

जब अमन का नरेंद्र के घर में ज्यादा आनाजाना हुआ तो नरेंद्र को पत्नी पर संदेह हो गया. इस के बाद वह पूजा से ज्यादा मारपीट करने लगा था. रोजरोज की पिटाई से पूजा आजिज आ चुकी थी. इस बारे में उसने प्रेमी अमन से बात की. दोनों ने मिल कर नरेंद्र को रास्ते से हटाने की योजना बनाई. वह पहली जुलाई, 2020 का दिन था. उस दिन शाम को ही पूजा ने अमन को अपने मकान में बुला कर छिपा दिया था. इस के बाद रात को उस ने दोनों बच्चों का छत पर सुला दिया और ठंडी हवा के लिए कूलर चला दिया था. कूलर तेज आवाज करता था. रात को जब नरेंद्र शराब के नशे में घर आया तो उस ने पहले पत्नी से आमलेट बनवा कर खाया और फिर सो गया. इस के बाद अमन ने दुपट्टे का फंदा बना कर गहरी नींद में सोए नरेंद्र का गला घोंट दिया.

इस दौरान पूजा उस के पैर पकड़े रही थी. जब दोनों को यकीन हो गया कि नरेंद्र मर चुका है, तो उन्होंने उस की लाश प्लास्टिक के एक सफेद बोरे में छिपा कर घर में रख दी. अगले दिन अमन 2 मजदूरों को घर में ले कर आया. इस के बाद अमन ने मजदूरों की मदद से टौयलेट की शीट उखड़वाई और शौचालय के गड्ढे में लाश सहित बोरे को डाल दिया. फिर अमन ने वहां पर नई टौयलेट शीट व नई टाइल्स लगवा कर शौचालय सही कर दिया था. उधर हफ्ता भर तक जब कुसुम को नरेंद्र नहीं दिखा तो उस ने कुसुम से नरेंद्र के बारे में पूछा. पूजा ने अपनी सास को बताया कि वह पहली जुलाई को गाड़ी ले कर गए थे, लेकिन अभी तक नहीं लौटे हैं.

नरेंद्र इतने दिनों तक जब कभी घर के बाहर रहता तो कुसुम को फोन जरूर कर दिया करता था. लेकिन इस बार उस ने कोई फोन नहीं किया, जिस से कुसुम को उस की चिंता हुई और उस ने इस की सूचना पुलिस को दे दी. नरेंद्र के बारे में खोजबीन करते हुए 8 दिन बीत गए लेकिन पुलिस को कोई जानकारी नहीं मिल रही थी. नरेंद्र की हत्या करने के बाद उस के मोबाइल का सिम पूजा ने अपने पास रख लिया था. खुद को इस अपराध से बचाने व पुलिस का ध्यान भटकाने के लिए उन दोनों ने एक ऐसी योजना बनाई जिस से पुलिस को उन पर शक न हो तथा नरेंद्र की सौतेली मां को यह भ्रम रहे कि नरेंद्र अभी जिंदा है.

योजना के अनुसार 18 जुलाई को अमन ने अपने मोबाइल में नरेंद्र का सिम डाला और हरिद्वार जा कर उसी मोबाइल से 2 बार पूजा को फोन किया तथा 3 मिस काल कुसुम के मोबाइल नंबर पर की थीं. पुलिस ने पूजा राठी और अमन से पूछताछ के बाद इस केस में भादंवि की धाराएं 302, 201 तथा 34 और बढ़ा दीं. इस के बाद पुलिस उन्हें ले कर पूजा के घर पहुंची और उन की निशानदेही पर शौचालय के गड्ढे की खुदाई कराई. खुदाई में गड्ढे में नरेंद्र का सड़ागला शव पुलिस ने बरामद कर लिया, जिसे उन्होंने पोस्टमार्टम के लिए अस्पताल भेज दिया.

काररवाई पूरी करने के बाद एसएसआई ओमकांत भूषण ने अमन के कब्जे से वह मोबाइल भी बरामद कर लिया, जिस में उस ने नरेंद्र का सिमकार्ड डाल कर हरिद्वार से पूजा और कुसुम को काल की थीं. उस मोबाइल में नरेंद्र का ही सिम था. अमन के पास से पुलिस ने 2 कागज भी बरामद किए थे, जिन में क्रमश: नरेंद्र व कुसुम के फोन नंबर लिखे थे. पूजा राठी और अमन से विस्तार से पूछताछ के बाद पुलिस ने उन्हें कोर्ट में पेश कर के जेल भेज दिया. पुलिस ने नरेंद्र राठी के शव का विसरा और डीएनए टेस्ट के सैंपल जांच के लिए एफएसएल देहरादून भिजवा दिए. कथा लिखे जाने तक एसएसआई ओमकांत भूषण द्वारा इस केस की विवेचना की जा रही थी.

—पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

Ujjain News : पैसे के लिए प्रेमी से कराया पति का कत्ल

Ujjain News : सीआरपीएफ के जवान बलवीर सिंह चौहान की पत्नी रेखा 3 बच्चों की मां थी. उसे किसी भी तरह की आर्थिक समस्या नहीं थी. इस के बावजूद ऐसा क्या हुआ कि रेखा ने सीआरपीएफ के ही दूसरे जवान रवि कुमार पनिका के साथ मिल कर…

सूरज सिर पर चढ़ जाने के बावजूद बलवीर सिंह चौहान सो कर नहीं उठे तो उन की पत्नी रेखा को चिंता हुई. दीवार पर टंगी घड़ी में उस समय सुबह के 9 बज चुके थे. अपनी दिनचर्या के मुताबिक, वह सुबह 6 बजते ही उठ जाते थे. 54 वर्षीय बलवीर सिंह चौहान सीआरपीएफ में हेडकांस्टेबल थे. रेखा ने छत के फर्श पर दरी बिछा कर सो रहे पति को पहले तो आवाज दे कर जगाने की कोशिश की. लेकिन जब वह नहीं उठे तो उस ने पति को हिलाडुला कर उठाने की कोशिश की. लेकिन बलवीर के शरीर में कोई हरकत नहीं हुई तो रेखा समझ गई कि अब वह दुनिया में नहीं रहे. उन की मौत हो चुकी थी.

पति के शव के पास बैठी रेखा जोरजोर से रोने लगी. मां के रोने की आवाज सुन कर उस के तीनों बच्चे दौडे़भागे छत पर पहुंचे. मां को रोते देख वे भी हकीकत समझ गए, इसलिए वे भी पिता की मौत पर रोने लगे. अचानक बलवीर के घर में रोने की आवाज सुन कर पड़ोसी उन के घर पहुंचने लगे. लेकिन यह बात किसी के गले नहीं उतर रही थी कि चौहान साहब की अचानक मृत्यु कैसे हो गई. जिस ने भी बलवीर सिंह की मौत की खबर सुनी, हैरान रह गया. रेखा ने फोन कर के पति की मौत की सूचना सीआरपीएफ के अधिकारियों को दे दी थी. हेडकांस्टेबल बलवीर की अचानक मौत की सूचना पा कर अधिकारी भी चकित रह गए. मामला संदिग्ध था, अधिकारियों ने स्थानीय पुलिस को सूचना दी.

बलवीर की मौत की सूचना मिलने के कुछ देर बाद माधवनगर थाने के इंसपेक्टर रघुवीर सिंह, एएसपी अमरेंद्र सिंह और एसपी (सिटी) रविंद्र वर्मा बलवीर के घर पहुंच गए. पुलिस अधिकारियों ने सब से पहले छत का मुआयना किया, जहां बलवीर सिंह चौहान का शव बिस्तर पर पड़ा हुआ था. पुलिस अधिकारियों ने बारीकी से लाश का मुआयना किया. लाश देख कर ऐसा नहीं लग रहा था कि बलवीर की मौत स्वाभाविक रूप से हुई है. क्योंकि खून कान से निकल कर नाक की ओर बहा था, जो पतली रेखा के रूप में जम कर सूख गया था. गले पर दाहिनी ओर चोट जैसा निशान दिख रहा था.

कुल मिला कर बलवीर की मौत रहस्यमई लग रही थी, जबकि मृतक की पत्नी रेखा पुलिस अधिकारियों के सामने चीखचीख कर बारबार यही कह रही थी कि ड्यूटी से देर रात घर लौट कर इन्होंने कपड़े बदले, फ्रैश होने के बाद खाना खाया. फिर ज्यादा गरमी की वजह से कमरे में न सो कर छत पर सोने चले आए थे, जबकि वह बेटी के साथ कमरे में सो गई थी. दोनों बेटे रमेश और चंदन दूसरे कमरे में सो रहे थे. आदत के मुताबिक वह रोज सुबह 6 बजे उठ जाते थे. जब सुबह के 9 बजे भी वह छत से नीचे नहीं आए तो चिंता हुई. उन्हें जगाने छत पर पहुंची तो देखा वह बिस्तर पर मरे पड़े थे.

कहतेकहते रेखा फिर से रोने लगी. खैर, पुलिस ने कागजी काररवाई पूरी कर के मृतक बलवीर की लाश पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दी. पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने के बाद ही बलवीर की मौत की सही मिल सकती थी. यह 18 जून, 2020 की बात है. हेडकांस्टेबल बलवीर सिंह चौहान की रहस्यमय मौत से पूरी बटालियन में शोक था.खुशमिजाज और अपनी बातों से सभी को गुदगुदाने वाले चौहान साहब सदा के लिए खामोश हो चुके थे. पुलिस अधिकारियों को जिस बात की आशंका थी, वह पोस्टमार्टम रिपोर्ट में सच साबित हुई. बलवीर की मौत स्वाभाविक नहीं थी, बल्कि उन की गला दबा कर हत्या की गई थी. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में साफतौर पर बताया गया था बलवीर की मौत गले की हड्डी टूट कर सांस रुकने से हुई थी.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट आ जाने के बाद आईजी राकेश गुप्त ने एसपी (सिटी) रवींद्र वर्मा को घटना का जल्द से जल्द परदाफाश करने का आदेश दिया. आईजी का आदेश मिलने के बाद एसपी (सिटी) रवींद्र वर्मा ने उसी दिन अपने औफिस में मीटिंग बुलाई. मीटिंग में एएसपी अमरेंद्र सिंह और माधवनगर थाने के इंसपेक्टर रघुवीर सिंह भी शामिल थे. रवींद्र वर्मा ने एएसपी अमरेंद्र सिंह के नेतृत्व में एक टीम का गठन कर दिया. घटना की मौनिटरिंग एएसपी अमरेंद्र सिंह को करनी थी. थानाप्रभारी रघुवीर सिंह के साथसाथ अमरेंद्र सिंह खुद भी घटना के एकएक पहलू पर नजर गड़ाए हुए थे. इधर रिपोर्ट में हत्या की बात सामने आने के बाद पुलिस ने मृतक की पत्नी रेखा की तहरीर पर अज्ञात के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 201 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया.

जांच की जिम्मेदारी इंसपेक्टर रघुवीर सिंह को सौंपी गई. रघुवीर सिंह ने फूंकफूंक कर एकएक कदम आगे बढ़ाते हुए जांच शुरू की. उन के सामने सब से बड़ा सवाल यह था कि बलवीर की हत्या किस ने और क्यों की? उन की मौत से सब से ज्यादा फायदा किसे होने वाला था? इन सवालों का जवाब बलवीर के घर से ही मिल सकता था. इसलिए उन्होंने चौहान की मौत की वजह उन के घर से ही खोजनी शुरू की. विवेचना के दौरान मृतक की पत्नी रेखा का चरित्र संदिग्ध लगा तो पुलिस की नजर उस के क्रियाकलापों पर जम गई.

पुलिस ने रेखा का मोबाइल नंबर ले कर सर्विलांस पर लगा दिया. साथ ही उस के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकलवा कर उस के अध्ययन में जुट गई. इसी बीच पुलिस को एक खास जानकारी मिली. पता चला कि रेखा से पहले बलवीर की 2 शादियां हुई थीं. उन की पहली पत्नी ने आत्महत्या कर ली थी, जबकि दूसरी पत्नी की एक हादसे में मौत हो चुकी थी. सन 2003 में बलवीर ने रेखा से शादी की थी. बलवीर के तीनों बच्चे रेखा से ही जन्मे थे. बलवीर और रेखा की उम्र में करीब 20 साल का अंतर था. इस से भी बड़ी बात यह थी कि पतिपत्नी दोनों के रिश्ते खराब थे. दोनों के बीच झगड़े होते रहते थे.

पुलिस ने रेखा के फोन की काल डिटेल्स का अध्ययन किया तो पता चला कि घटना वाली रात रेखा की एक ही नंबर पर कई बार बातचीत हुई थी. आखिरी बार दोनों के बीच उसी नंबर पर करीब साढ़े 11 बजे बात हुई थी. तमाम सबूत रेखा के खिलाफ थे. वैज्ञानिक साक्ष्यों के आधार पर पुलिस यह मान चुकी थी कि बलवीर की हत्या में उस की पत्नी रेखा का ही हाथ है. शक के आधार पर पुलिस रेखा को हिरासत में ले कर थाने ले आई. थानाप्रभारी रघुवीर सिंह ने इस की सूचना एएसपी अमरेंद्र सिंह को दे दी थी. सूचना मिलते ही एएसपी अमरेंद्र सिंह उस से पूछताछ करने के लिए थाने पहुंच गए. यह 20 जून, 2020 की बात है.

‘‘रेखा, मैं जो सवाल करूंगा, उस का जवाब ठीक से देना, तुम्हारे लिए यही अच्छा होगा.’’ समझाते हुए एएसपी अमरेंद्र ने रेखा से सख्त लहजे में कहा.

रेखा बुत बनी बैठी रही तो उन्होंने सवाल किया, ‘‘यह बताओ कि तुम ने बलवीर की हत्या क्यों की?’’

‘‘मैं ने उन की हत्या नहीं की, मैं निर्दोष हूं.’’ रेखा ने सपाट लहजे में जवाब दिया.

‘‘तो तुम ऐसे नहीं बताओगी. ठीक है, मत बताओ. यह तो बता सकती हो कि रवि कौन है और उसे तुम कैसे जानती हो?’’ एएसपी अमरेंद्र ने रेखा की आंखों में झांक कर सवाल किया. सवाल सुन कर रेखा सन्न रह गई.

‘‘क..क..क…कौन रवि.’’ वह हकलाती हुई बोली, ‘‘मैं किसी रवि को नहीं जानती.’’

‘‘वही रवि, जिस से घटना वाले दिन फोन पर तुम्हारी कई बार बात हुई थी.’’

सिर पर एक महिला सिपाही खड़ी थी. एएसपी ने उसे इशारा कर के कहा, ‘‘अगर ये झूठ बोले तो बिना कहे शुरू हो जाना.’’

इस पर रेखा हाथ जोड़ते हुए बोली, ‘‘सर, पति की हत्या मैं ने ही अपने प्रेमी रवि के साथ मिल कर की थी, मुझे माफ कर दीजिए. प्यार में अंधी हो कर मैं ने ही अपने हाथों अपना घर उजाड़ दिया.’’

इस के बाद रेखा पति की हत्या की पूरी कहानी सिलसिलेवार बताती चली गई. हेडकांस्टेबल बलवीर सिंह चौहान की हत्या के मामले से पुलिस ने 72 घंटे के भीतर परदा उठा दिया था. रेखा का प्रेमी रवि भी सीआरपीएफ का जवान था. वह शहडोल में तैनात था. पुलिस जब उसे गिरफ्तार करने शहडोल पहुंची तब तक वह फरार हो गया था. अगले दिन एएसपी अमरेंद्र सिंह और एसपी रवींद्र वर्मा ने मिल कर प्रैसवार्ता की. पत्रकारों के सामने भी रेखा ने अपना जुर्म कबूल लिया. उस ने पति की हत्या की जो कहानी बताई, चौंकाने वाली थी—

54 वर्षीय बलवीर सिंह चौहान मूलरूप से उज्जैन में माधवनगर के रहने वाले थे. उन के परिवार में पत्नी रेखा के अलावा 2 बेटे रमेश और चंदन और एक बेटी शालिनी थी. कहने को तो बलवीर का दांपत्य जीवन खुशहाल था लेकिन हकीकत में वह अपनी पत्नी रेखा से खुश नहीं रहते थे. रेखा ने जब बलवीर के जीवन में कदम रखा, तब से उन के जीवन में खुशियां ही खुशियां थीं. रेखा उन की तीसरी पत्नी थी. बलवीर सिंह चौहान की 2 शादियां पहले भी हुई थीं. बलवीर की पहली पत्नी किरन थी. जब वह ब्याह कर ससुराल आई थी, बलवीर की किस्मत का ताला खुल गया था. शादी के बाद उन की सीआरपीएफ में नौकरी पक्की हुई थी.

बलवीर की नईनई शादी हुई थी. घर में नई दुलहन आई थी. अभी किरन के हाथों की मेहंदी का रंग फीका भी नहीं पड़ा था कि उसे अकेले घर पर छोड़ बलवीर नौकरी चले गए. रात में पत्नी जब बिस्तर पर होती तो पति के बिना बिस्तर काटने को दौड़ता था. वह बेचैन हो जाती थी. पति की दूरियां उस से बरदाश्त नहीं हो रही थीं. जब सब कुछ बरदाश्त के बाहर हो गया तो किरन ने कमरे के पंखे से झूल कर आत्महत्या कर कर ली. पत्नी की आत्महत्या से बलवीर बुरी तरह टूट गए. वह बेपनाह मोहब्बत करते थे. लेकिन नौकरी के फर्ज और घर की जिम्मेदारी के बीच पिस कर उन्होंने 28 साल की उम्र में पत्नी को गंवा दिया था.

पत्नी की मौत के बाद से बलवीर गुमसुम रहने लगे. पूरी जिंदगी सामने थी. अकेले काटना मुश्किल था. इसी नजरिए से मांबाप उन की दूसरी शादी की सोचने लगे. बलवीर सरकारी नौकरी में थे, इसलिए उन की दूसरी शादी के लिए कई प्रस्ताव आए. काफी सोचने के बाद मांबाप ने उस की दूसरी शादी आभा से करवा दी. जब आभा बलवीर की जिंदगी में पत्नी बन कर आई, तो धीरेधीरे बलवीर के जीवन में बदलाव आने लगा. लेकिन बलवीर की ये खुशी भी ज्यादा दिनों तक टिकी नहीं रही. एक सड़क हादसे ने बलवीर से आभा को भी छीन लिया. एक बार फिर अकेले पड़ गए. 2-2 पत्नियों की मौत से बलवीर जीवन से निराश होने लगे.

कुछ दिनों बाद बलवीर की जिंदगी में रेखा तीसरी पत्नी बन कर आई. वह दोनों की यह शादी साल 2003 में मंदिर में हुई थी. दोनों की उम्र में करीब 20 साल का फासला था. रेखा के आने से बलवीर की जिंदगी फिर से संवर गई. पहले की दोनों बीवियों से बलवीर की कोई संतान नहीं थी, लेकिन रेखा से बलवीर के यहां 3 बच्चे पैदा हुए. 2 बेटे रमेश व चंदन और एक बेटी शालिनी. रेखा भले ही बलवीर के 3 बच्चों की मां बन गई थी, लेकिन वह पति के प्यार से संतुष्ट नहीं थी. इसी के चलते रेखा के पांव बहक गए. शहडोल जिले के उमरिया की रहने वाली रेखा को अपना पुराना प्यार याद आ गया. उस का नाम था रवि कुमार पनिका. रवि और रेखा कालेज के जमाने से एकदूसरे को जानते थे.

उन्हीं दिनों दोनों में प्यार हुआ था. लेकिन दोनों के सपने पूरे नहीं हुए थे. रेखा बलवीर की जिंदगी की डोर से बंध गई थी. यह बात घटना से करीब 4 साल पहले की है. रेखा का वही प्यार एक बार फिर से जवां हो गया. उस के तीनों बच्चे 10-12 साल के हो चुके थे. पति अकसर ड्यूटी पर घर से बाहर रहते थे. इस बीच रेखा घर पर अकेली रहती थी. इस अकेलेपन के दौरान वह रवि के साथ फोन पर चिपकी रहती थी. कभीकभार बलवीर जब बच्चों का हालचाल लेने के लिए पत्नी को फोन लगाता तो वह अकसर व्यस्त मिलता था. यह देख कर बलवीर की त्यौरी चढ़ जाती थी कि आखिर दिन भर वह फोन पर किस से चिपकी रहती है.

35 वर्षीय रवि कुमार पनिका सीआरपीएफ का जवान था. वह रायपुर के जगदलपुर में तैनात था, शादीशुदा. उस के भी बालबच्चे थे. उस का परिवार उमरिया में रहता था. बीचबीच में छुट्टी मिलने पर वह घर जाता था. रेखा रवि की पुरानी प्रेमिका थी. कालेज के दिनों में दोनों एकदूसरे से जुनूनी हद तक प्यार करते थे. उस समय तो दोनों एक नहीं हो सके थे लेकिन अब दोनों एक होने को लालायित थे. जब से रेखा ने प्रेमी रवि को दिल से पुकारा था, रवि का दीवानापन हद से ज्यादा बढ़ गया था. रायपुर से नौकरी से छुट्टी ले कर रवि रेखा से मिलने उज्जैन स्थित उस के घर पहुंच जाता था. दोनों अपनी जिस्मानी आग ठंडी करते और फिर रवि रायपुर लौट जाता. रेखा प्रेमी रवि को घर तभी बुलाती थी जब उस के तीनों बच्चे स्कूल में होते थे और पति नौकरी पर.

रेखा की इस आशनाई का खेल सालों तक चलता रहा. अब रेखा पति को देख कर वैसा आनंदित नहीं होती थी, जैसे पहले हुआ करती थी. पहले की अपेक्षा रेखा के तेवर और रूपरंग में भी बदलाव आ गया था. उस के बदलेबदले तेवर और रूपरंग को देख कर बलवीर को उस पर शक गया. ऊपर से हर समय उस के फोन का बिजी आना. ये उस के शक को और बढ़ावा दे रहा था. वह ठहरा एक पुलिस वाला, जिन की एक आंख में शक तो दूसरी आंख में यकीन होता है. ऐसे में रेखा पति की नजरों से कहां बचने वाली थी. एक दिन बलवीर ने पत्नी से पूछ ही लिया, ‘‘तुम्हारा फोन अक्सर बिजी क्यों रहता है. जब भी फोन लगाओ तुम किसी से बात करती मिलती हो, किस से बात करती रहती हो? कौन है वो?’’

पति का इतना पूछना था कि रेखा बिदक गई, ‘‘आप मुझ पर शक करते हो. मैं ऐसीवैसी औरत नहीं हूं जो पति की गैरमौजूदगी में यहांवहां मुंह मारती फिरूं.’’

रेखा ने पति की आंखों के सामने ज्यामिति की ऐसी टेढ़ीमेढ़ी रेखा खींची कि उस की बोलती बंद कर दी. भले ही रेखा ने अपने त्रियाचरित्र से पति की आंखों पर परदा डाल दिया था, लेकिन बलवीर को यकीन हो चुका था कि पत्नी का किसी गैरपुरुष से नाजायज रिश्ता है. इस बात को ले कर अकसर दोनों के बीच विवाद होता रहता था. रेखा जान चुकी थी कि पति को उस पर शक हो गया है. लेकिन पति नाम के कांटे को वह अपने जीवन से कैसे निकाले, समझ नहीं पा रही थी. बात पिछले साल दिसंबर 2019 की है. बलवीर अपने जानकारों से जान चुके थे कि पत्नी का नाजायज रिश्ता उस के पुराने आशिक रवि कुमार पनिका से बन गया है.

इसे ले कर दोनों के बीच खूब लड़ाई हुई. घर में शांति और सुकून जैसे गायब हो गया था. जब देखो पतिपत्नी के बीच विवाद होता रहता था. मांबाप के झगड़ों से बच्चे भी परेशान हो चुके थे. लेकिन वे कर भी क्या सकते थे, चुप रहने के अलावा. पति से नाराज हो कर रेखा प्रेमी रवि के पास रायपुर चली गई. अगले 25 दिनों तक वह उसी के साथ रही. इस दौरान दोनों ने जबलपुर, कटनी, मंडसला और रायपुर के अलगअलग होटलों में रातें रंगीन कीं. इसी दौरान दोनों ने बलवीर सिंह चौहान को रास्ते से हटाने की खतरनाक योजना बनाई. योजना ऐसी कि बलवीर की मौत स्वाभाविक लगे और दोनों का लाखों का फायदा हो. रवि ने रेखा को बताया कि बलवीर का एक बड़ी रकम का जीवन बीमा करा दिया जाए. उस की मौत के बाद वह रकम उस की पत्नी यानी तुम्हें मिल जाएगी.

उस रकम को हम दोनों आधाआधा बांट लेंगे. किसी को हम पर शक भी नहीं होगा और हमारा काम भी हो जाएगा. इस तरह साला बूढ़ा तेरे जीवन से भी निकल जाएगा. फिर हमें मौजमस्ती करने से कोई नहीं रोक सकेगा. पूरी योजना बन जाने के बाद रेखा घर लौट आई और घडि़याली आंसू बहाते हुए पति के पैरों में गिर कर अपनी गलती की माफी मांग ली. बलवीर ने उसे माफ कर दिया लेकिन उसे अपना नहीं सके. सामाजिक मानप्रतिष्ठा के चलते बलवीर ने समझदारी से काम लिया. उन्होंने बच्चों को देखते हुए रेखा को घर में पनाह तो दे दी, लेकिन दोनों के बीच गहरी खाई खुद चुकी थी, जो पट नहीं सकती थी. रेखा को पति की भावनाओं से कोई लेनादेना नहीं था.

बच्चों से भी उस का कोई वास्ता नहीं था. वह तो योजना बना कर अपने रास्ते के कांटे को सदा के लिए हटाने के लिए आई थी. योजना के अनुसार, रवि और रेखा ने मिल कर 54 साल के बलवीर का 40 लाख रुपए का जीवन बीमा करा दिया, जिस की किस्त 45 हजार रुपए वार्षिक बनी. पहली किस्त के रूप में रवि ने 25 हजार और रेखा ने 20 हजार यानी 45 हजार रुपए फरवरी महीने में जमा करा दिए और निश्चिंत हो गए. अब बारी थी बलवीर को रास्ते से हटाने की. दोनों बेकरार थे कि उन्हें कब सुनहरा मौका मिलेगा. आखिरकार उन्हें वह अवसर मिल ही गया.

मई, 2020 के आखिरी सप्ताह में बलवीर कुछ दिनों की छुट्टी ले कर घर आए. रेखा यह सुनहरा अवसर अपने हाथों से जाने नहीं देना चाहती थी. 29 मई को फोन कर के उस ने रवि को बता दिया कि शिकार हलाल होने के लिए तैयार है, आ जाओ. प्रेमिका की ओर से हरी झंडी मिलते ही रवि तैयार हो गया. रवि उन दिनों अपने घर शहडोल आया हुआ था. शहडोल से उज्जैन की दूरी 738 किलोमीटर थी. सड़क मार्ग से ये दूरी करीब 18 घंटे में तय की जा सकती थी. रेखा के हां करते ही रवि 30 मई, 2020 को अपनी मोटरसाइकिल से शहडोल से उज्जैन रवाना हो गया. अगले दिन 31 मई को वह उज्जैन पहुंच गया और एक होटल में ठहरा.

फिर फोन कर के रेखा को बता दिया कि वह उज्जैन पहुंच चुका है. आगे की योजना बताओ. रेखा ने रात ढलने तक होटल में ही रुके रहने को कहा. साथ ही यह भी कि जब वह फोन करे तो घर आ जाए.  होटल से रेखा का घर कुछ ही दूरी पर था. रेखा ने रात साढ़े 11 बजे फोन कर के रवि को घर बुला लिया. साथ ही बता भी दिया कि घर का मुख्यद्वार खुला रहेगा. चुपके से घर में आ जाए. उस समय बलवीर नीचे अपने कमरे में सोए हुए थे और तीनों बच्चे दूसरे कमरे में सो रहे थे. बेचैन रेखा बिस्तर पर करवटें बदल रही थी. ठीक साढ़े 11 बजे रवि रेखा के घर पहुंच गया और दबेपांव घर में घुस आया. वैसे भी वह घर के कोनेकोने से वाकिफ था.

रवि को आया देख वह खुशी से उछल पड़ी और उस की बांहों में समा गई. थोड़ी देर बाद रेखा जब होश में आई तो बिस्तर पर पति को सोता देख उस ने नफरत भरी नजर डाली और रवि को इशारा किया. फिर इशारा मिलते ही रवि ने अपने हाथों से बलवीर का गला तब तक दबाए रखा, जब तक उस की मौत हुई. बलवीर की मौत हो चुकी थी. हत्या की घटना को दोनों स्वाभाविक मौत दिखाना चाहते थे. इसलिए दोनों ने योजना बनाई. रेखा छत पर बिस्तर लगा आई. फिर दोनों बलवीर की लाश उठा कर छत पर ले गए और बिस्तर पर ऐसे लिटा दिया जैसे वह खुद वहां आ कर सो गए हों.

रेखा और रवि के रास्ते का कांटा हट गया था. सुबह होते ही जब रवि जाने लगा तो रेखा ने उस से कहा कि वह उसे कमरे में बंद कर दरवाजे पर बाहर से सिटकनी चढ़ा दे. रवि ने वही किया, जैसा रेखा ने करने को कहा था. सुबह जब बच्चे उठे तो मां का कमरा बाहर से बंद देख चौंके. उन्होंने कमरे की सिटकनी खोल दी. बच्चों ने देखा उन के पिता कमरे में नहीं थे. पापा के बारे में मां से पूछा तो उस ने बच्चों से झूठ बोलते हुए कहा कि तुम्हारे पापा देर रात लौटे थे और छत पर सो गए. वहीं सो रहे होंगे. उस के बाद रेखा समय का इंतजार करने लगी ताकि अपना ड्रामा शुरू करे.

रेखा और रवि ने बलवीर की हत्या को इस तरह अंजाम दिया था कि उस की मौत स्वाभाविक लगे, लेकिन पुलिस तहकीकात ने उन के सारे राज से परदा उठा दिया. उन के 40 लाख के सपने धरे के धरे रह गए. रेखा तो गिरफ्तार कर ली गई, लेकिन रवि कुमार पनिका फरार था. रवि को गिरफ्तार करने के लिए पुलिस ने कई जगह दबिश दी लेकिन वह पुलिस की पकड़ में नहीं आ सका. 72 घंटे के भीतर घटना का खुलासा करने पर आईजी राकेश गुप्ता ने पुलिस टीम को 25 हजार रुपए नकद देने की घोषणा की. कथा लिखे जाने तक रेखा जेल में थी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित