UP News : शराब की बोतल तोड़ी, नुकीले हिस्से से पति पर वार कर किया कत्ल

UP News : यह सच्चाई है कि अवैध संबंधों को ज्यादा दिनों तक छिपाए नहीं रखा जा सकता. खुलासा होने पर ये आपराधिक वारदात को जन्म देते हैं. काश! इस बात को पेशे से अध्यापक रहे इंद्रपाल और उस की पत्नी सीमा समझ पाती तो शायद…

कन्नौज जिले का एक बड़ा कस्बा है सौरिख. इसी कस्बे के नगरिया तालपार में शिक्षक इंद्रपाल रहते थे. उन के पिता श्रीकृष्ण मुर्रा गांव के निवासी थे. वहां उन का पुश्तैनी मकान तथा खेती की जमीन है. उन के बेटे इंद्रपाल ने सौरिख कस्बे में दोमंजिला मकान बनवा लिया था. इंद्रपाल की आर्थिक स्थिति मजबूत थी. वह शिक्षक संघ का अध्यक्ष भी था. वर्ष 2001 में इंद्रपाल का विवाह फर्रुखाबाद (गदराना) निवासी सरयू प्रसाद की बेटी सुधा के साथ हुआ था. सुधा साधारण रंगरूप वाली युवती थी. लगभग 2 साल तक दोनों का दांपत्य जीवन हंसीखुशी से बीता, उस के बाद कड़वाहट घुलने लगी.

कड़वाहट का पहला कारण था, इंद्रपाल का शराब पी कर घर आना तथा दूसरा कारण था झगड़ा और मारपीट करना. सुधा शराब पीने को मना करती तो वह उसे ही दोषी ठहराता और उस के चरित्र पर अंगुली उठाता, सुधा तब परेशान हो कर मायके चली जाती. सुधा जब पहले मायके आती थी तो उल्लास से भरे उस के पैर एक स्थान पर नहीं टिकते थे. लेकिन अब जब भी आती थी तो वह गुमसुम और उदास रहती थी. उस की मां तारावती ने कई बार उस से पूछा भी कि बेटी, क्या ससुराल में तुम्हें किसी तरह का दुख या परेशानी है?

‘‘नहीं मां सब ठीक है. ऐसा कुछ भी गलत नहीं है कि उसे सही करने के लिए तुम्हें दखल देने की जरूरत हो.’’ कह कर सुधा हर बार टाल देती.

तारावती के सीने में मां का दिल था. वह खूब समझ रही थी कि सुधा असल बात बता नहीं रही, कुछ छिपाए हुए है. इस बारे में उस ने पति से राय ली तो सरयू प्रसाद ने कहा कि उन लोगों का कोई घरेलू और आपसी मामला होगा. उन्हें ही सुलझाने दो. हमें दखल देने की जरूरत नहीं है. हम दखल देंगे, तो बात बनने के बजाय बिगड़ने का अंदेशा है. लेकिन तारावती का मन बेटी की उदासी को स्वाभाविक मतभेद मानने को तैयार नहीं था. उसे लग रहा था कि कोई तो बात है, जो सुधा को घुन की तरह खाए जा रही है. उस ने तय कर लिया कि अब की बार सुधा आई, तो वह उस से जान कर रहेगी कि उस की उदासी का कारण क्या है?

कुछ दिनों बाद सुधा मायके आई तो उस के चेहरे पर पहले की तरह उदासी की परछाइयां कायम थीं. उचित समय पर तारावती ने सुधा को पास बिठा कर स्नेह से उस के सिर पर हाथ फेरा, ‘‘बेटी मां से बड़ी शुभचिंतक और हितैषी कोई दूसरी नहीं होती. न ही मां से बेहतर कोई सहेली होती है.’’

सुधा ने सिर उठा कर मां को सूनीसूनी आंखों से देखा, लेकिन कुछ बोली नहीं. तारावती ने अपनी रौ में बोलना जारी रखा, ‘‘सुधा, मैं तुम्हें दुखी और उदास नहीं देख सकती. मां न सही सहेली ही समझ कर आज तुम अपना दुख कह दो.’’

संभवत: उस दिन सुधा का अंतस कुछ अधिक भरा हुआ था. ममता की आंच से वह पिघल गई. उस की आंखों से आंसुओं की धारा बह निकली. कुछ देर बाद सुधा के आंसू थमे तो वह बोली, ‘‘मां मेरा दुख यह है कि कुछ महीनों से इंद्रपाल पहले जैसे नहीं रहे, वह बहुत बदल गए हैं.’’

सुधा ने रुंधे कंठ से बताया, ‘‘न वह सीधे मुंह बात करते है. न प्यार से पेश आते हैं. शराब पी कर झगड़ा भी करते हैं. मैं थाली परोसती हूं तो, वह उस पर नजर तक नहीं डालते. मेरे साथ सोते जरूर हैं, पर पीठ कर के.’’

सुधा की बात सुन कर तारावती की आंखें हैरत से फैल गईं. वह जान गई कि बेटी का जीवन अंधकारमय है. तारावती ने इस बाबत इंद्रपाल से बात की तो वह झगड़े पर उतारू हो गया. उस ने साफ कह दिया कि वह सुधा को पसंद नहीं करता. वह उस से तलाक चाहता है. दामाद की बात सुन कर तारावती सन्न रह गई. उस ने दोनों के बीच तनाव खत्म करने के लिए अनेक उपाय किए. रिश्तेदारों के बीच समझौते का प्रयास किया. लेकिन जब बात नहीं बनी तो मामला कोर्टकचहरी तक जा पहुंचा. आखिर में दोनों की रजामंदी से इंद्रपाल और सुधा का तलाक हो गया. फिर सुधा मायके में रहने लगी.

सुधा से तलाक होने के बाद इंद्रपाल दूसरी शादी के लिए प्रयास करने लगा. परिवार के लोग भी चाहते थे कि इंद्रपाल का दूसरा विवाह हो जाए, तो वह भी प्रयास करने लगे. घर वालों को कई रिश्ते पसंद भी आए, लेकिन इंद्रपाल ने रिश्ता नकार दिया. परिवार के लोग भी समझ गए कि इंद्रपाल अपनी मनपसंद युवती से ही शादी करेगा. इंद्रपाल फर्रूखाबाद शहर के आरबीआरडी इंटर कालेज में पढ़ाता था. वह प्राइवेट शिक्षक था. इसी कालेज में सीमा पाल नाम की लड़की पढ़ती थी. इंटरमीडिएट में पढ़ाई के दौरान सीमा और इंद्रपाल एकदूसरे की ओर आकर्षित हुए. कुछ दिनों बाद दोनों की मुलाकातें कालेज के बाहर भी होने लगीं.

सीमा पाल के पिता अवध पाल, हुसैनपुर के रहने वाले थे. परिवार में पत्नी के अलावा बेटा मनोज तथा बेटी सीमा थी. अवध पाल किसान थे. सीमा उन की होनहार बेटी थी. पढ़ने में भी तेज थी, सो वह उसे पढ़ालिखा कर अपने पैरों पर खड़ा करना चाहते थे. सीमा, छरहरी काया और तीखे नाकनक्श वाली लड़की थी. उस की मुसकान सामने वाले पर गहरा असर करती थी. सीमा की खूबसूरती और मुसकान इंद्रपाल के दिल पर भी असर कर गई थी. एक दिन इंद्रपाल ने उस से अपने मन की बात भी कह दी, ‘‘सीमा हंसते हुए तुम बहुत अच्छी लगती हो. इसी तरह हंसती रहा करो. यदि तुम मेरा प्यार कबूल कर लोगी तो मैं खुद को दुनिया का सब से खुशनसीब आदमी समझूंगा.’’

सीमा उम्र के जिस पायदान पर थी, उस में लड़कियों को ऐसी बातें गुदगुदा देती हैं. सीमा का भी दिलोदिमाग सुखद सनसनी से भर गया. उस ने इंद्रपाल की आंखों में देखा. उन आंखों में प्यार का सागर ठाठे मार रहा था. उस की आंखों में देखते हुए कुछ देर तक वह सोच में डूबी रही, उस के बाद बोली, ‘‘अगर मैं तुम्हारा प्यार कबूल कर लूं तो तुम्हारा अगला कदम क्या होगा?’’

‘‘शादी.’’ इंद्रपाल ने तपाक से जवाब दिया.

‘‘लेकिन मेरे घर वाले राजी नहीं हुए तो..?’’ सीमा ने पूछा.

‘‘…तो हम दोनों प्रेम विवाह कर लेंगे.’’

सीमा मुसकराई और फिर नजरें झुका कर स्वीकृति में सिर हिला दिया. इंद्रपाल का दिल बल्लियां उछल पड़ा. उस ने तो एक मुट्ठी आसमान की तमन्ना की थी, लेकिन यहां तो पूरा का पूरा आसमान उस का हो गया था. कुछ दिनों बाद इंद्रपाल के कहने पर सीमा ने घर वालों को अपने प्रेम से अवगत कराया और विवाह की इच्छा प्रकट की तो उन्होंने सीमा को समझाया, ‘‘बेटी, इंद्रपाल पहली पत्नी को धोखा दे चुका है. तुम्हें भी धोखा दे सकता है. बेहतर यही होगा कि उस का खयाल अपने मन से निकाल दो.’’

सीमा ने मुलाकात कर ये सारी बातें इंद्रपाल को बताईं, तो उस ने पूछा, ‘‘तुम क्या चाहती हो? तुम्हारे जवाब पर ही सब कुछ निर्भर है.’’

‘‘मैं तुम्हें पाना चाहती हूं.’’ सीमा ने जवाब दिया. इस के बाद वर्ष 2007 में सीमा पाल ने अपने घर वालों की मरजी के बिना इंद्रपाल के साथ प्रेम विवाह कर लिया और उस की दुलहन बन कर इंद्रपाल के साथ रहने लगी. इंद्रपाल के घर वालों ने भी सीमा को बहू के रूप में स्वीकार कर लिया. चूंकि सीमा और इंद्रपाल ने प्रेम विवाह किया था. अत: दोनों खुश थे. वैसे भी संपन्न घर और शिक्षक पति पा कर सीमा फूली नहीं समा रही थी. सौरिख कस्बे के नगरिया तालपार स्थित 2 मंजिला मकान की ऊपरी मंजिल पर वह पति इंद्रपाल के साथ रहती थी, भूतल और प्रथम तल पर किराएदार रहते थे. हंसीखुशी से 3 साल कब बीत गए, दोनों को पता ही न चला.

इन 3 सालों में सीमा ने एक बेटी रक्षा को जन्म दिया. रक्षा के जन्म के 3 साल बाद सीमा ने एक और बेटी दीक्षा को जन्म दिया. दोनों बेटियों को सीमा और इंद्रपाल बेहद प्यार करते थे. सीमा पाल की इच्छा टीचर बनने की थी. अत: उस ने इंद्रपाल से प्रेम विवाह करने के बावजूद पढ़ाई जारी रखी. इस में इंद्रपाल ने भी उस का सहयोग किया. बीए पास करने के बाद उस ने बीएड किया. फिर जब शिक्षकों की भरती निकली तो उस ने भी आवेदन किया. सीमा पाल के भाग्य ने साथ दिया और उस का चयन प्राथमिक पाठशाला की शिक्षिका के लिए हो गया. चयन होने के बाद सीमा पाल प्राथमिक पाठशाला, चिकनपुर में सहायक अध्यापिका के तौर पर पढ़ाने लगी.

सीमा पाल को सरकारी नौकरी मिली तो उस की खुशी का ठिकाना न रहा. अब वह मायके भी जाने लगी थी. उस का भाई मनोज पाल भी उस के घर आनेजाने लगा था. इंद्रपाल का भी ससुराल आनाजाना शुरू हो गया था. मनोज की शादी में सीमा और इंद्रपाल ने मनोज की हरसंभव मदद भी की थी. वैसे भी मनोज को जब भी आर्थिक परेशानी होती थी, इंद्रपाल उस की मदद कर देता था. सीमा और इंद्रपाल की जिंदगी खुशियों से भरी थी. दोनों खूब कमाते थे. सीमा सरकारी टीचर थी, तो इंद्रपाल ने भाउलपुर में अपना निजी विद्यालय खोल लिया था. दोनों की खुशियों में ग्रहण तब लगा, जब एक रोज मनोज अपने जीजा इंद्रपाल की शिकायत करने बहन के घर आया.

उस ने सीमा को बताया कि जीजाजी ने उस के घर आतेजाते उस की पत्नी शिखा को अपने प्रेम जाल में फंसा कर उस से नाजायज रिश्ता बना लिया है. बहन आप उन को समझाओ कि वह उस का घर बरबाद न करें. भाई की बात सुन कर सीमा के तनबदन में आग लग गई. शाम को इंद्रपाल जब विद्यालय से घर आया तो सीमा ने शिखा को ले कर सवालजवाब किया. इस पर इंद्रपाल हंस कर बोला, ‘‘शिखा हमारी सलहज है. उस से मैं हंसबोल कर अपना मन बहला लेता हूं. उस से हमारा कोई नाजायज रिश्ता नहीं है. किसी ने जरूर तुम्हारे कान भरे हैं.’’

लेकिन सीमा को पति की बात पर यकीन नहीं हुआ. उसे पता था कि उस का भाई झूठ नहीं बोल सकता. इस के बाद तो शिखा को ले कर अकसर सीमा और इंद्रपाल में झगड़ा होने लगा. कभीकभी झगड़ा इतना ज्यादा बढ़ जाता कि दोनों के बीच मारपीट हो जाती. इंद्रपाल शराब तो पहले से ही पीता था, लेकिन अब वह कुछ ज्यादा ही पीने लगा और सीमा से झगड़ा करने लगा. इसी लड़ाईझगड़े के बीच सीमा ने तीसरी बेटी दिशा को जन्म दिया. सीमा और इंद्रपाल के बीच में अब गहरी दरार पड़ गई थी. वह दोनों रहते जरूर एक छत के नीचे थे, लेकिन दोनों के बिस्तर अलग हो गए थे.

सीमा अपने बच्चों के साथ अलग कमरें में रहने लगी थी. इंद्रपाल दूसरे कमरे में बिस्तर पर करवटें बदलता रहता था. कईकई दिनों तक दोनों में बातचीत भी नहीं होती थी. पतिपत्नी के बीच तनाव चल ही रहा था कि इसी बीच अशोक ने सीमा के घर आनाजाना शुरू किया. अशोक, सौरिख में ही रहता था और रिश्ते में इंद्रपाल का भाई लगता था. वह कार चलाता था और खूब सजसंवर कर रहता था. अशोक को सीमा और इंद्रपाल के बीच तनाव की बात पता चली तो वह सीमा को रिझाने की कोशिश करने लगा. वह जब भी आता, सीमा से मीठीमीठी बातें करता तथा उस के रूप की प्रशंसा भी करता. सीमा पति की उपेक्षा की शिकार थी.

इस कारण धीरेधीरे सीमा, अशोक की ओर आकर्षित होने लगी. दोनों के बीच देवरभाभी का रिश्ता था, सो हंसीमजाक भी होने लगी. सीमा और अशोक के बीच चाहत बढ़ी तो अवैध रिश्ता कायम होने में भी देर नहीं लगी. अशोक का सीमा से मिलनाजुलना बढ़ा तो इंद्रपाल के कान खड़े हो गए. उस ने दोनों पर नजर रखनी शुरू की तो एक रोज दोनों को रंगे हाथ पकड़ लिया. फिर तो उस रोज इंद्रपाल ने सीमा की जम कर पिटाई की और सारा गुबार निकाला. इस के बाद तो यह रवैया ही चल पड़ा. जिस रोज इंद्रपाल को पता चल जाता कि अशोक आया था, वह सीमा की जम कर पिटाई करता. कई बार उस का अशोक से भी झगड़ा हुआ.

सीमा, अशोक की इतनी दीवानी बन गई थी कि वह पति की पिटाई के बावजूद उस का साथ छोड़ने को तैयार नहीं थी. एक दिन तो सीमा ने हद ही कर दी. उस ने अपनी तीनों बेटियों को बहाने से अपनी सास माया के पास छोड़ा और प्रेमी अशोक के साथ भाग गई. इंद्रपाल और उस के घरवालों को जानकारी हुई तो वह सब दंग रह गए. उन्होंने थाना सौरिख में शिकायत दर्ज कराई. तब पुलिस ने कई रोज बाद सीमा को अशोक के एक रिश्तेदार के घर से बरामद किया. घरवालों के मनाने व समझाने के बाद सीमा, इंद्रपाल के साथ रहने को राजी हुई. सीमा और इंद्रपाल में समझौता तो हो गया था, लेकिन उन के दिलों में गांठ पड़ गई थी. दोनों एक दूसरे पर शक भी करते थे.

उन के बीच तूतू मैंमैं अब भी होती रहती थी. कभीकभी मारपीट भी हो जाती थी. सीमा ने अशोक से संबंध अब भी खत्म नहीं किए थे. वह उस से चोरीछिपे मिलती रहती थी. 28 नवंबर, 2020 की सुबह 4 बजे सीमा चीखनेचिल्लाने लगी कि उस के पति इंद्रपाल की किसी ने हत्या कर दी. उस की चीख सुन कर उस के मकान में रहने वाले किराएदर आ गए. इन्हीं में से किसी ने इंद्रपाल के घर वालोें को सूचना दे दी. उस के बाद तो घर में सनसनी फैल गई. इंद्रपाल के पिता श्रीकृष्ण, मां माया देवी, चाचा लंकुश तथा चचेरा भाई राजू आ गया. इंद्रपाल का शव देख कर वह सब हैरान रह गए. कुछ देर बाद श्रीकृष्ण ने बेटे की हत्या की सूचना थाना सौरिख पुलिस को दी.

सूचना पाते ही थानाप्रभारी विजय बहादुर वर्मा पुलिस दल के साथ रवाना हो लिए. रवाना होने से पहले उन्होंने शिक्षक इंद्रपाल की हत्या की सूचना पुलिस अधिकारियों को भी दे दी थी. थानाप्रभारी विजय बहादुर वर्मा जिस समय इंद्रपाल के नगरिया तालपार स्थित मकान पर पहुंचे. उस समय वहां भारी भीड़ जुटी थी. श्री वर्मा पुलिसकर्मियों के साथ मकान के द्वितीय तल स्थित उस कमरे में पहुंचे जहां इंद्रपाल की लाश पड़ी थी. श्री वर्मा ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया. इंद्रपाल की हत्या बड़ी बेरहमी से की गई थी. उस के शरीर पर चोटों के कई निशान थे. शरीर को किसी नुकीली चीज से गोदा गया था. शव के पास ही शराब की टूटी बोतल पड़ी थी. संभवत: इसी टूटी बोतल से उस के शरीर को गोदा गया था.

हत्या संभवत: मुंह नाक दबा कर की गई थी. कमरे में खून फैला था. मृतक की उम्र लगभग 45 वर्ष के आसपास थी. पुलिस ने शराब की टूटी बोतल को साक्ष्य के तौर पर सुरक्षित कर लिया. थानाप्रभारी विजय बहादुर वर्मा अभी निरीक्षण कर ही रहे थे कि सूचना पा कर एसपी अमरेंद्र प्रसाद सिंह तथा डीएसपी शिवकुमार थापा मौका ए वारदात आ गए. उन्होंने मौके पर फौरेंसिक टीम को भी बुलवा लिया. पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का निरीक्षण किया तथा मृतक की पत्नी व घर वालों से पूछताछ की. फोरैंसिक टीम ने भी जांच कर साक्ष्य जुटाए. उस के बाद शव को पोस्टमार्टम के लिए कन्नौज के जिला अस्पताल भेज दिया गया.

हत्या का खुलासा करने के लिए एसपी अमरेंद्र प्रसाद सिंह ने डीएसपी शिवकुमार थापा के निर्देशन में पुलिस टीम का गठन कर दिया. इस टीम में थानाप्रभारी विजय बहादुर वर्मा, स्वाट टीम प्रभारी राकेश कुमार सिंह तथा सर्विलांस प्रभारी शैलेंद्र सिंह को शामिल किया गया. गठित टीम ने सब से पहले घटनास्थल का निरीक्षण किया फिर मृतक की पत्नी सीमा पाल से पूछताछ की. सीमा ने बताया कि पति की हत्या उस के मकान में रहने वाले किराएदार प्रवीण उर्फ विक्की ने की है. उस का पति से झगड़ा हुआ था. टीम ने प्रवीण को हिरासत में ले कर पूछताछ की तो उस ने बताया कि इंद्रपाल ने प्लौट खरीदने के लिये डेढ़ लाख रुपए उस से उधार लिया था, जिस में 70 हजार रुपए वह लौटा चुका था.

उस का इंद्रपाल से कोई झगड़ा न था. सीमा उसे गलत फंसा रही है. जबकि सच्चाई यह है कि इंद्रपाल की हत्या का रहस्य सीमा के ही पेट में छिपा है. प्रवीण से पूछताछ के बाद पुलिस टीम ने मृतक के पिता श्रीकृष्ण, चाचा लंकुश, मां माया देवी तथा चचेरे भाई राजू से पूछताछ की. उन सब ने बताया कि सीमा बदचलन है. उस ने अपने प्रेमी अशोक के साथ मिल कर इंद्रपाल की हत्या की है. यदि उस से सख्ती से पूछताछ की जाए तो आज ही हत्या का भेद खुल सकता है. सीमा संदेह के घेरे में आई तो पुलिस टीम ने उसे घर से गिरफ्तार कर लिया तथा उस का मोबाइल कब्जे में ले लिया. सर्विलांस प्रभारी शैलेंद्र सिंह ने उस के मोबाइल को खंगाला तो 27 नवंबर की रात 11 बजे उस ने 2 मोबाइल नंबरों पर बात की थी.

इन नंबरों को खंगाला गया तो पता चला कि एक मोबाइल नंबर सीमा के भाई मनोज पाल का है तथा दूसरा सीमा के प्रेमी अशोक का है. पुलिस टीम ने इन फोन नंबरों के आधार पर सीमा से कड़ाई से पूछताछ की तो वह टूट गई और पति इंद्रपाल की हत्या का जुर्म कबूल कर लिया. सीमा ने बताया कि अशोक के साथ उस के नाजायज संबंध थे, जिस का विरोध इंद्रपाल करता था और उस के साथ मारपीट करता था. इस मारपीट से वह आजिज आ गई थी और पति से छुटकारा पाना चाहती थी. 27 नवंबर की रात 10 बजे इंद्रपाल शराब पी कर घर आया और अशोक को ले कर झगड़ा करने लगा. उस ने उसे खूब पीटा. तब उस ने फोन कर अपने भाई मनोज पाल व प्रेमी अशोक को बुलवा लिया. अशोक अपने भाई राजेश को भी साथ लाया था.

उन चारों ने मिल कर इंद्रपाल की हत्या की योजना बनाई. इंद्रपाल उस समय अपने कमरे में नशे में धुत पड़ा था. उन चारों ने मिल कर पहले इंद्रपाल की पिटाई की फिर शराब की बोतल जो कमरे में लुढ़की पड़ी थी, अशोक ने उसी बोतल को तोड़ कर उस के नुकीले भाग से उस के शरीर को गोदा. उस के बाद नाकमुंह दबा कर उस की हत्या कर दी. फिर अशोक, राजेश व मनोज फरार हो गए. उन के जाने के बाद वह रोनेधोने का ड्रामा करने लगी. सीमा से पूछताछ करने के बाद पुलिस टीम ने अन्य आरोपियों को पकड़ने के लिए मुखबिरों को लगाया. दूसरे ही दिन एक मुखबिर की सूचना पर मनोज पाल को सौरिख विधूना मार्ग स्थित बिजलीघर के पास से गिरफ्तार कर लिया.

थाने ला कर जब उस से पूछताछ की गई तो उस ने सहज ही हत्या का जुर्म कबूल कर लिया. अशोक व राजेश पुलिस की गिरफ्त में न आ सके. चूंकि सीमा व मनोज पाल ने हत्या का जुर्म कबूल कर लिया था. अत: थानाप्रभारी विजय बहादुर वर्मा ने मृतक के पिता श्रीकृष्ण की तरफ से भादंवि की धारा 302 के तहत सीमा, मनोज, अशोक तथा राजेश के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली तथा सीमा व मनोज को विधि सम्मत गिरफ्तार कर लिया. 2 दिसंबर 2020 को पुलिस ने अभियुक्त सीमा व मनोज पाल को कन्नौज कोर्ट में पेश किया. जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. अशोक व राजेश फरार थे. आरोपी सीमा की बेटियां बाबा श्रीकृष्ण के संरक्षण में पल रही थीं.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

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सी 11 अगस्त की बात है. सुबह के करीब 9 बजे थे. सूर्यनगरी के नाम से विख्यात राजस्थान के जोधपुर शहर में नांदड़ी गोशाला के पीछे नगर निगम की एक टीम सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट की हौदी की सफाई कर रही थी. सफाई करते समय टीम को कचरे की एक थैली मिली. इस थैली में इंसान के कटे हुए 2 हाथ और 2 पैर थे. कटे हाथपैर मिलने से वहां काम कर रहे सफाई कर्मचारियों में दहशत फैल गई. सफाई कर्मियों ने पुलिस कंट्रोल रूम को सूचना दी. सूचना मिलते ही बनाड़ थाना पुलिस वहां पहुंच गई. वहां प्लांट सुपरवाइजर पूनमचंद बाल्मीकि और औपरेटर पप्पू मंडल ने बताया कि प्लांट में जाने वाली हौदी की सफाई करते समय कपड़े की एक थैली निकली

थैली में किसी इंसान के कटे हुए 2 हाथ और 2 पैर हैं. सफेदलाल रंग इस थैली पर भाग्य लक्ष्मी टेक्सटाइल, कपड़े के व्यापारी, आनंदपुर कालू, जिला पाली छपा हुआ है. इंसान के कटे हाथपैर मिलने का मामला गंभीर था. पुलिस टीम ने संबंधित जानकारी उच्चाधिकारियों को दे दी. इस पर जोधपुर के डीसीपी (ईस्ट) धर्मेंद्र सिंह यादव, एडीसीपी (ईस्ट) भागचंद, मंडोर एसीपी राजेंद्र दिवाकर, बनाड़ थानाधिकारी अशोक आंजना मौके पर पहुंच गए. कटे हाथपैरों का निरीक्षण करने के बाद पुलिस ने अंदाजा लगाया कि अंग किसी पुरुष के हैं, जिन्हें किसी धारदार कटर मशीन से काटा गया है. निस्संदेह किसी व्यक्ति की निर्दयता से हत्या कर उस के शरीर के टुकड़ेटुकड़े कर फेंके गए थे.

पुलिस के सामने सब से बड़ा सवाल यह था कि मृतक का सिर और धड़ कहां है? क्योंकि केवल हाथपैरों से उस की शिनाख्त मुश्किल थी और बिना शिनाख्त के केस आगे नहीं बढ़ सकता था. इसलिए अधिकारियों ने डौग स्क्वायड और एफएसएल टीम को मौके पर बुला लिया, लेकिन पुलिस को तत्काल ऐसी कोई जानकारी नहीं मिल सकी, जिस से मृतक या कातिल के बारे में कुछ पता चल पाता. पुलिस ने कटे हुए हाथपैर एमजीएच अस्पताल की मोर्चरी में भिजवा दिए. सब से पहले मृतक का सिर और धड़ मिलना जरूरी था. इस के लिए पुलिस ने आसपास के इलाकों और ट्रीटमेंट प्लांट हौदी से जुड़ी सीवरेज पाइप लाइनों में जेट मशीनों से धड़ सिर की तलाश शुरू कराई.

इस के अलावा आसपास के जिलों में वायरलैस संदेश भेज कर गुमशुदा लोगों की जानकारी भी मांगी गई. पुलिस जांचपड़ताल में जुटी थी कि उसी दिन शाम करीब 4 बजे सूचना मिली कि ट्रीटमेंट प्लांट की सीवरेज लाइन में एक और थैली मिली है, जिस में कटा हुआ सिर है. इस पर पुलिस अधिकारी दोबारा प्लांट पर पहुंचे. जिस थैली में सिर मिला, उस पर नागौर जिले के मेड़ता सिटी की एक दुकान का पता छपा थाजरूरी जांच पड़ताल के बाद कटा सिर भी अस्पताल की मोर्चरी में भेज दिया गया. बनाड़ पुलिस थाने में एएसआई गोरधन राम की रिपोर्ट पर अज्ञात मुलजिमों के खिलाफ अज्ञात व्यक्ति की हत्या कर सबूत नष्ट करने का केस दर्ज कर लिया गया.

अपराध की गंभीरता को देखते हुए जांच पड़ताल के लिए पुलिस कमिश्नर के निर्देश पर एडीसीपी भागचंद के नेतृत्व में एसीपी राजेंद्र दिवाकर, बनाड़ थानाधिकारी अशोक आंजना और डांगियावास थानाधिकारी लीलाराम की टीम गठित की गई. धड़ की तलाश जरूरी थी. इस के लिए अधिकारियों ने सीवरेज प्लांट में आने वाले नाले में आधुनिक तकनीकी मशीनों से धड़ की तलाश शुरू कराई. उसी दिन रात को जोधपुर पुलिस को नागौर जिले से सूचना मिली कि चरणसिंह उर्फ सुशील चौधरी 10 अगस्त से लापता है. उस की गुमशुदगी का मामला मेड़ता सिटी थाने में दर्ज है. जोधपुर पुलिस ने चरणसिंह के फोटो मंगा कर सीवरेज लाइन में मिले कटे सिर के फोटो से मिलान किया, तो दोनों में समानता पाई गई.

  जोधपुर पुलिस ने मेड़ता सिटी थाना पुलिस को सूचना भेज कर चरणसिंह के परिजनों को बुलाया. दूसरे दिन यानी 12 अगस्त को मिले कटे अंगों की शिनाख्त मेड़ता के खाखड़की गांव निवासी 27 वर्षीय चरणसिंह उर्फ सुशील जाट के रूप में हो गई. चरणसिंह के मामा के बेटे राजेंद्र गोलिया ने की. राजेंद्र गोलिया ने जोधपुर पुलिस को बताया कि 2 महीने पहले ही चरणसिंह राजस्थान सरकार के कृषि विभाग में सहायक कृषि अधिकारी के रूप में नियुक्त हुआ था. उस की पोस्टिंग नागौर जिले के डेगाना तहसील के खुडि़याला गांव में थी. चरणसिंह 10 अगस्त को घर से निकला था, लेकिन वापस नहीं लौटा. मिलने लगे सुराग कटे हुए अंगों की शिनाख्त हो जाने से पुलिस को तहकीकात में कुछ मदद मिली. पुलिस ने चरणसिंह के परिजनों से जरूरी पूछताछ की ताकि कत्ल के कारण और कातिलों का पता लगाया जा सके.

पूछताछ में पता चला कि 2013 में चरणसिंह की शादी बोरूंदा निवासी पोकर राम जाट की बेटी सीमा से हुई थी, लेकिन अभी गौना (शादी के बाद की एक रस्म) नहीं हुआ था. इन दिनों उस के गौने की बात चल रही थी. यह भी सामने आया कि चरणसिंह के परिवार और उस की ससुराल वालों के बीच बोरूंदा स्थित एक चूना भट्ठे को ले कर कुछ विवाद था. दरअसल, चरणसिंह के पिता नेमाराम कई सालों से बोरूंदा में पोकर राम के चूना भट्ठे पर काम करते थे. बाद में चरणसिंह की शादी पोकरराम की बेटी सीमा से हो गई. कुछ साल पहले पोकर राम को लकवा गया था, तब नेमाराम ने चूना भट्ठे का सारा काम संभाल लिया थाबाद में इस भट्टे के मालिकाना हक को ले कर नेमाराम और पोकर राम के बीच विवाद हो गया.

नेमाराम अपने बेटे चरणसिंह का गौना करवाना चाहते थे, जबकि पोकर राम के परिवार वाले पहले भट्ठे का विवाद सुलझाना चाहते थे. एक तरफ पुलिस मामले की गहराई में जा कर हत्या के कारणों और हत्यारों की तलाश में जुटी थी, वहीं दूसरी तरफ सीवरेज प्लांट से जुड़े नालों और पाइप लाइनों में चरणसिंह के धड़ की तलाश की जा रही थी. इस बीच, जोधपुर पुलिस को सूचना मिली कि मेड़ता सिटी में पब्लिक पार्क के पास एक लावारिस मोटरसाइकिल खड़ी मिली है, जो चरणसिंह की है. पुलिस ने इस पब्लिक पार्क के आसपास लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज खंगाली. इन फुटेज में 10 अगस्त की शाम करीब 4:50 बजे सलवारसूट पहने 2 युवतियां मोटर साइकिल खड़ी करती नजर आईं.

चरणसिंह की बाइक पर सवार हो कर आई 2 युवतियों से पुलिस ने अनुमान लगाया कि हत्या की कडि़यां उस की ससुराल से जुड़ी हो सकती हैं. अब पुलिस ने अपनी जांच का फोकस मानव अंग मिलने वाले जोधपुर के नांदड़ी इलाके के साथसाथ मेड़ता और बोरूंदा पर केंद्रिंत कर दिया. इस में साइबर टीम के जरिए तकनीकी जानकारियां भी जुटाई गईं. 3 सगी बहनों के नाम आए सामने पुलिस ने मामले की तह तक पहुंचने के लिए चरणसिंह की पत्नी के अलावा 2 सालियों, एक साले और चूना भट्टे से जुड़े कई लोगों से पूछताछ कीगहन पूछताछ और जांच पड़ताल कर जरूरी सबूत जुटाने के बाद जोधपुर पुलिस ने 13 अगस्त को सहायक कृषि अधिकारी चरणसिंह उर्फ सुशील चौधरी की हत्या के मामले में उस की 23 वर्षीय पत्नी सीमा के अलावा 2 बड़ी सालियों 25 वर्षीया प्रियंका और 27 वर्षीया बबीता के साथ प्रियंका के बौयफ्रैंड भींयाराम जाट को गिरफ्तार कर लिया

भींया राम खींवसर थाना इलाके के गांव कांटिया का रहने वाला था जबकि तीनों बहनें सीमा, प्रियंका और बबीता बोरूंदा के डांगों की ढाणियों की रहने वाली थी. ये तीनों बहनें शादीशुदा थीं. पोकर राम जाट की इन तीनों बेटियों में सीमा का अभी गौना नहीं हुआ था. तीनों बहनों और भींयाराम की निशानदेही पर पुलिस ने उसी दिन शाम को मंडोर 9 मील इलाके में नाले की तलाशी करवाकर चरणसिंह का धड़ भी बरामद कर लिया. पुलिस की पूछताछ में चरणसिंह की नृशंस हत्या के लिए राक्षसी बनीं तीनों सगी बहनों की सामने आई कहानी में फिल्मों की तरह थ्रिल भी था और सस्पेंस भी. इस में प्यार भी था और नफरत भी. कुल जमा 5 किरदारों की कहानी थी यह. ये किरदार थे पति चरणसिंह, उस की पत्नी सीमा, साली प्रियंका और बबीता. साथ ही प्रियंका से 15 साल बड़ा उस का बौयफ्रैंड भींयाराम.

इसे कथा कहानी पटकथा कुछ भी कहें, इस में आजाद ख्याल तीनों बहनों की महत्वाकांक्षाएं शामिल थीं. अपनी इच्छा से आजाद जीवन जीने के लिए तीनों बहनों ने ऐसा खूनी खेल खेला, जिस के बारे में चरणसिंह तो क्या कोई भी सोच तक नहीं सकता था कि उस की पत्नी और सालियां ऐसी नृशंसता करेंगी. हत्या की आरोपी तीनों बहनों और भींयाराम से पूछताछ में जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार है

बोरूंदा के डांगों के रहने वाले पोकर राम की 7 बेटियां हैं और एक बेटा. पोकर राम का बोरूंदा में चूना भट्टा था. इस से उस की ठीकठाक कमाई हो जाती थी. इसी कमाई से उस ने एकएक कर 7 बेटियों की शादी कर दी थी. इन में 4 बेटियां अपने ससुराल में पति और बच्चों के साथ सुखी हैं. बाकी रह गई 3 बेटियां सीमा, प्रियंका और बबीता. इन तीनों की भी शादी हो चुकी थी. इन में बबीता और प्रियंका ने अपनेअपने पति को छोड़ दिया था. सीमा सब से छोटी थी. उस की शादी 2013 में नागौर जिले के मेड़ता सिटी निवासी नेमाराम जाट के बेटे चरणसिंह उर्फ सुशील से हुई थी, लेकिन गौना नहीं होने के कारण सीमा अभी तक ससुराल नहीं गई थी.

तीनों बहनें पढ़ीलिखी थीं. सीमा वेटनरी (पशुपालन) सहायक थी. बबीता ने एएनएम (नर्सिंग) का कोर्स कर रखा था, लेकिन अभी उसे सरकारी नौकरी नहीं मिली थी. वह पटवारी भर्ती परीक्षा की तैयारी कर रही थी. प्रियंका भी स्नातक तक की पढ़ाई पूरी कर चुकी थी. वह एक मल्टी लेवल मार्केटिंग (एमएलएम) कंपनी से जुड़ी हुई थी और सौंदर्य स्वास्थ्य संबंधी प्रसाधन सामग्री औनलाइन मंगा कर बेचने का काम करती थी. नागौर जिले के खींवसर थाना इलाके के कांटिया गांव का रहने वाला भींयाराम प्रियंका के साथ काम करता था. इसीलिए प्रियंका और भींयाराम की दोस्ती थी. भींयाराम पूर्व फौजी था. हालांकि वह प्रियंका से 15 साल बड़ा था, फिर भी दोनों में दोस्ती थी. प्रियंका और बबीता पतियों से अलग होने के बाद जोधपुर शहर के नांदड़ी इलाके में किराए पर रहती थीं. हालांकि इस बीच बबीता का रिश्ता दूसरी जगह तय हो गया था.

अगर चरणसिंह की बात करें तो वह प्रतिभाशाली युवक था. 10वीं और 12वीं की परीक्षा में मेरिट हासिल करने के बाद उस ने बीएससी की पढ़ाई की थी. इसी दौरान उस की शादी सीमा से हो गई थी. बाद में चरणसिंह ने जोधपुर के मंडोर स्थित कृषि विश्वविद्यालय में एसआरएफ के रूप में काम किया. इसी दौरान चरणसिंह अच्छी नौकरी हासिल करने के लिए प्रतियोगी परीक्षाएं देता रहा. इसी के चलते उस का चयन बैंक अधिकारी के रूप में हो गया. उसे पहली नियुक्ति उत्तर प्रदेश के अयोध्या में मिली. करीब 10-12 महीने काम करने के दौरान चरणसिंह का चयन राजस्थान के कृषि विभाग में सहायक कृषि अधिकारी के रूप में हो गया. इसी साल 23 मई को उस ने नौकरी ज्वाइन की थी.

चरणसिंह की शादी हुए 7 साल हो चुके थे. उस की उम्र भी 27 साल हो गई थी. साथ ही अच्छी सरकारी नौकरी भी मिल गई थी, लेकिन विवाहित होने के बावजूद वह पत्नी सुख से वंचित था. चरणसिंह के परिवार वाले काफी दिनों से सीमा का गौना कराने का दबाव डाल रहे थे, लेकिन सीमा के कहने पर उस के परिजन हर बार टाल जाते थे जबकि सीमा भी 23 साल की हो चुकी थी. चूंकि सीमा पत्नी थी, इसलिए चरणसिंह कई बार उस से मोबाइल पर बात कर लेता था. सीमा वैसे तो हंसहंस कर प्यार की बातें करती थी, लेकिन गौने के नाम पर भड़क जाती थीचरणसिंह हंसमुख, स्मार्ट, सरकारी अधिकारी था, फिर भी पता नहीं किन कारणों से सीमा उसे पसंद नहीं करती थी. कहा जाता है कि वह समलैंगिंक थी. उस के किसी महिला से संबंध थे. वह पुरुषों से दूर रहना पसंद करती थी. इसीलिए वह गौना करा कर ससुराल नहीं जाना चाहती थी.

आरोप है कि सीमा के व्यवहार से परेशान चरणसिंह अपनी बड़ी साली प्रियंका से फ्लर्ट करता था. प्रियंका जीजासाली के रिश्ते को देखते हुए इस का विरोध नहीं कर पाती थी, लेकिन वह चरणसिंह की बातों से परेशान जरूर हो जाती थी. षडयंत्र ऐसा कि पुलिस भी चकरा गई. कुछ दिन पहले जब चरणसिंह के परिवार की ओर से गौने का ज्यादा दबाव पड़ा, तो सीमा ने अपनी दोनों बड़ी बहनों प्रियंका और बबीता से कहा कि वह आत्महत्या कर लेगी लेकिन चरणसिंह के साथ नहीं जाएगी. इस पर बबीता और प्रियंका ने उस से कहा कि उसे आत्महत्या करने की जरूरत नहीं है, हम मिल कर उसे ही निपटा देंगे, जिस से तू परेशान है.

इस के बाद तीनों बहनें चरणसिंह की हत्या की साजिश रचने लगी. काफी सोचविचार के बाद उन्होंने अपनी योजना को अंतिम रूप दे दिया. चरणसिंह की हत्या को अंजाम देने के लिए उन्होंने बाजार से इलैक्ट्रिक ग्राइंडर कटर मशीन खरीदी. यह मशीन जोधपुर में प्रियंका बबीता के मकान पर रख दी गई. योजना के तहत सीमा ने फोन कर चरणसिंह को 10 अगस्त को जोधपुर बुलाया. चरणसिंह उसी दिन अपनी मोटर साइकिल से जोधपुर पहुंच गया. सीमा उसे इंतजार करती मिली. वह चरणसिंह की मोटर साइकिल पर बैठ कर उसे अपनी दोनों बहनों के मकान पर नांदड़ी ले गई. वहां सीमा, प्रियंका बबीता ने कुछ देर तो इधरउधर की बातें की, फिर चरणसिंह को शराब पिलाई. बाद में कोल्डड्रिंक में नींद की गोलियां मिला कर उसे पिला दी गईं.

कुछ ही देर में चरणसिंह अचेत हो गया, तो उसे एनेस्थीसिया का इंजेक्शन लगाया गया ताकि उस के होश में आने की कोई गुंजाइश ही रहे. बाद में तीनों बहनों ने उसे गला दबा कर उसे हमेशा के लिए मौत की नींद सुला दिया. इस के बाद तीनों ने इलैक्ट्रिक ग्राइंडर कटर मशीन से चरणसिंह के शव को 6 टुकड़ों में काटा. इन टुकड़ों को 3 थैलियों में भर दिया गया. शव के टुकड़े करने के दौरान फर्श पर फैले खून को साफ करने के लिए पूरे घर को धो दिया गया. इस सब के बाद तीनों बहनें मकान पर ताला लगा कर चरणसिंह की मोटर साइकिल से बोरूंदा पहुंची. वहां सीमा को उतार दिया गया. फिर प्रियंका और बबीता उसी मोटर साइकिल से मेड़ता सिटी गईं. वहां इन दोनों ने पब्लिक पार्क के बाहर चरणसिंह की मोटर साइकिल खड़ी कर दी.

मेड़ता सिटी से दोनों बहनें बस से जोधपुर गईं. इन बहनों के पास केवल एक स्कूटी थी. जिस पर शव के टुकड़ों को ले जा कर ठिकाने लगाना जोखिम भरा काम था. इसलिए प्रियंका ने अपने बौयफ्रैंड भींयाराम को फोन कर के जरूरी काम होने की बात कह कर बुलाया. भींयाराम 10 अगस्त की रात कार ले कर उन के मकान पर पहुंचा, तो प्रियंका और बबीता ने उसे चरणसिंह की हत्या कर टुकड़े थैलियों में भर कर रखने की बात बताई. साथ ही उस से उन्हें ठिकाने लगाने में मदद मांगी. भींयाराम ने इस काम में उन का साथ देने से इनकार कर दिया, तो प्रियंका बबीता ने कहा कि अगर वह साथ नहीं देगा, तो तीनों बहनें सुसाइड कर लेंगी और सुसाइड नोट में मौत का जिम्मेदार उसे बता देंगी.

डरासहमा भींयाराम आखिर उन का साथ देने को राजी हो गया. उस ने तीनो थैलियां अपनी कार की पिछली सीट पर रखीं. दोनों बहनें आगे की सीट पर बैठ गईं. इन्होंने चरणसिंह के कटे हाथपैर और सिर वाली 2 थैलियां नांदड़ी में अपने घर से करीब 100 मीटर दूर सीवरेज लाइन में डाल दीं. धड़ वाली तीसरी थैली इन्होंने रातानाड़ा पुलिस लाइन के पीछे नाले में डालने की सोची, लेकिन वहां पुलिस का नाका देख कर वे लोग नागौर रोड़ की तरफ निकल गए, वहां नाले में तीसरी थैली फेंक दी. इस के बाद तीनों नांदड़ी गए. प्रियंका ने रात को डर लगने की बात कह कर भीयाराम को रोकने की कोशश की, लेकिन उस ने रुकने से इनकार कर दिया और अपने घर चला गया.

हाथपैर सिर वाली 2 थैलियां 11 अगस्त को नांदड़ी गोशाला के पीछे सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट की हौदी की सफाई के दौरान मिली थी. चारों आरोपियों की गिरफ्तारी के बाद 13 अगस्त को उन की निशानदेही पर धड़ वाली थैली बरामद की गई. पुलिस ने 14 अगस्त को जोधपुर के एमजीएच अस्पताल में 5 डाक्टरों के मेडिकल बोर्ड से शव के 6 टुकड़ों का पोस्टमार्टम कराया. डाक्टरों की टीम ने शव के सभी 6 टुकड़ों के डीएनए सैंपल लिए ताकि पुष्टि हो सके कि ये एक ही व्यक्ति के थे. तीनों बहनें इतनी शातिर निकली कि जब चरणसिंह के लापता होने और मेड़ता सिटी थाने में गुमशुदगी दर्ज होने की खबरें सोशल मीडिया पर चलने लगीं, तो उन्होंने चरणसिंह के रिश्तेदारों को फोन कर पूछा कि वे कहां गायब हो गए?

पुलिस ने 12 अगस्त को जब तीनों बहनों से अलगअलग पूछताछ की, तो वे पूरे आत्मविश्वास से पुलिस को छकाती रहीं और चरणसिंह की हत्या में अपना हाथ होने से इनकार करती रहींबाद में पुलिस ने भींयाराम को भी हिरासत में ले लिया और सीसीटीवी फुटेज सहित अन्य कई सबूत उन के सामने रख कर पूछताछ की, तो वे टूट गईं और चरणसिंह की हत्या कर उस के शव के टुकड़े कर सीवरेज के नालों में फेंकने की बात स्वीकार कर ली. इस के बाद 13 अगस्त को चारों को गिरफ्तार कर लिया गया. पति चरणसिंह से नफरत करने वाली सीमा ने अपनी आजादी और शौक पूरे करने के लिए उसे मौत के घाट उतार कर खुद के साथ अपनी 2 बड़ी बहनों और एक बहन के दोस्त का जीवन बरबाद कर दिया. अपने पतियों की ना हो सकी तीनों बहनों ने पिता पोकर राम को बुढ़ापे में ऐसा दर्द दिया है कि वह जीते जी उसे सालता रहेगा.

(कहानी पुलिस सूत्रों और विभिन्न रिपोर्ट्स  पर आधारित)

 नोटपुलिस ने सीमा के समलैंगिक संबंधों की पुष्टि की है, समाचार पत्रों में भी सीमा के समलैंगिक होने की बात छपी है.

                              

UP Crime News : 5 लाख की सुपारी देकर कराई पति की हत्या

UP Crime News : मौडर्न और महत्त्वाकांक्षी विनीता ने प्रवक्ता पति के होते 2-2 प्रेमी बना लिए थे. जब वह चेन मार्केटिंग कंपनी ‘वेस्टीज’ से जुड़ने के बाद तो वह अवधेश को 2 कौड़ी का समझने लगी थी. आखिर उस ने अपने मन की करने के लिए…

42 वर्षीय अवधेश सिंह जादौन फिरोजाबाद जिले के भीतरी गांव के निवासी थे. वह बरेली जिले के सहोड़ा में स्थित कुंवर ढाकनलाल इंटर कालेज में हिंदी लेक्चरर के पद पर तैनात थे. नौकरी के चलते ढाई वर्ष पहले उन्होंने बरेली के कर्मचारीनगर की निर्मल रेजीडेंसी में अपना निजी मकान ले लिया था, जिस में वह अपनी पत्नी विनीता और 6 वर्षीय बेटे अंश के साथ रहते थे. 12 अक्तूबर, 2020 को अवधेश से फोन पर गांव में रह रही उन की मां अन्नपूर्णा देवी ने बात की थी. अवधेश उस समय काफी परेशान थे. मां ने उन्हें दिलासा दी कि जल्द ही सब ठीक हो जाएगा.

इस के बाद उन्होंने अवधेश से बात करनी चाही, लेकिन बात न हो सकी. उन का मोबाइल बराबर स्विच्ड औफ आ रहा था. अन्नपूर्णा को चिंता हुई तो वह 16 अक्तूबर को बरेली पहुंच गईं. जब वह बेटे के मकान पर पहुंची, तो वहां मेनगेट पर ताला लगा मिला. पड़ोसियों से पूछताछ की तो पता चला कि 12 अक्तूबर, 2020 को कुछ लोग कार से अवधेश के मकान में आए थे. तब से उन्हें नहीं देखा. अन्नपूर्णा का दिल किसी अनहोनी की आशंका से धड़कने लगा. वह वहां से स्थानीय थाना इज्जतनगर पहुंच गईं और थाने के इंसपेक्टर के.के. वर्मा को पूरी बात बताई. यह भी बताया कि अवधेश को अपने ससुरालीजनों से खतरा था. यह बात अवधेश ने 12 अक्तूबर को फोन पर बात करते समय मां को बताई थी.

उस की पत्नी विनीता भी अपने बच्चे के साथ गायब थी. इस पर अन्नपूर्णा से लिखित तहरीर ले कर इंसपेक्टर वर्मा ने थाने में अवधेश सिंह जादौन की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज करा दी. फिरोजाबाद के फरिहा में 4/5 दिसंबर, 2019 की रात एक ज्वैलर्स की दुकान में हुई चोरी के मामले में पुलिस के एसओजी प्रभारी कुलदीप सिंह ने नारखी थाना क्षेत्र के धौकल गांव निवासी हिस्ट्रीशीटर शेर सिंह उर्फ चीकू को पकड़ा. 25 अक्तूबर, 2020 की शाम शेर सिंह को उठा कर जब उस से पूछताछ की गई तो उस ने बरेली के हिंदी प्रवक्ता अवधेश सिंह की हत्या करना स्वीकार किया. अवधेश की पत्नी विनीता ने अवधेश की हत्या के लिए उसे 5 लाख की सुपारी दी थी.

इस में विनीता के पिता थाना नारखी के खेरिया खुर्द गांव निवासी रिटायर्ड फौजी अनिल जादौन, भाई प्रदीप जादौन, बहन ज्योति, विनीता का आगरा निवासी प्रेमी अंकित और शेर सिंह के 2 साथी भोला और एटा निवासी पप्पू जाटव शामिल थे. हत्या में कुल 8 लोग इस शामिल थे. शेर सिंह ने बताया कि बरेली में हत्या करने के बाद लाश को सभी लोग फिरोजाबाद ले कर आए और यहां नारखी में रामदास नाम के व्यक्ति के खेत में गड्ढा खोद कर दफना दिया था. अवधेश मिला पर जीवित नहीं इस खुलासे के बाद फिरोजाबाद पुलिस ने बरेली की इज्जतनगर पुलिस को सूचना दी.

अवधेश की मां अन्नपूर्णा को बुला कर 26 अक्तूबर, 2020 को फिरोजाबाद पुलिस ने तहसीलदार की उपस्थिति में उस खेत में बताई गई जगह पर खुदाई करवाई तो वहां से अवधेश की लाश मिल गई. चेहरा बुरी तरह जला हुआ था. शव को कब्जे में ले कर पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया. अवधेश की लाश मिलने के बाद उसी दिन इज्जतनगर थाने में विनीता, ज्योति, अनिल जादौन, प्रदीप जादौन, अंकित, शेर सिंह उर्फ चीकू, भोला सिंह और पप्पू जाटव के विरुद्ध भादंवि की धारा 147/302/201 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया गया. इस के बाद हत्याभियुक्तों की तलाश में ताबड़तोड़ दबिश दी गई, लेकिन सभी अपने घरों से लापता थे.

उन सब के मोबाइल नंबर सर्विलांस पर लगवा दिए गए. सभी के मोबाइल बंद थे. बीच में किसी से बात करने के लिए कुछ देर के लिए खुलते तो फिर बंद हो जाते. उन की लोकेशन जिस शहर की पता चलती, वहां पुलिस टीम भेज दी जाती. लेकिन वहां पहुंचने से पहले ही हत्यारे वहां से निकल जाते थे. 31 अक्तूबर, 2020 को एक हत्यारोपी पप्पू जाटव उर्फ अखंड प्रताप को इंसपेक्टर के.के. वर्मा ने गिरफ्तार कर लिया. उस ने भी बयान में वहीं कहा, जो शेर सिंह ने कहा था. इस बीच 5 नवंबर को इज्जतनगर पुलिस ने सभी आरोपियों के गैरजमानती वारंट हासिल कर लिए.

अगले ही दिन इस से डर कर अवधेश की पत्नी विनीता ने अपने वकील के माध्यम से थाने में आत्मसमर्पण कर दिया. पूछताछ में वह अपने मृतक पति अवधेश को ही गलत साबित करने पर तुल गई. जबकि उस की सारी हकीकत सब के सामने आ गई. जब उस से क्रौस क्वेशचनिंग की गई. कई सवालों पर वह चुप्पी साध गई. अनिल जादौन परिवार के साथ फिरोजाबाद के गांव खेरिया खुर्द में रहते थे. वह सेना से रिटायर थे. परिवार में पत्नी रेखा और 3 बेटियां विनीता, नीतू और ज्योति व एक बेटा प्रदीप था. अनिल के पास पर्याप्त कृषियोग्य भूमि थी. तीनों बेटियां काफी खूबसूरत थीं और सभी ने स्नातक तक पढ़ाई पूरी कर ली थी.

2010 में नीतू का अफेयर गांव के ही पूर्व प्रधान के बेटे के साथ हो गया. जिस पर काफी बवाल हुआ. इस पर अनिल ने जल्द से जल्द अपनी बेटियों का विवाह करने का फैसला कर लिया. नारखी थाना क्षेत्र के ही गांव भीतरी में बाबू सिंह का परिवार रहता था. परिवार में पत्नी अन्नपूर्णा और 2 बेटे रमेश और अवधेश थे. रमेश का विवाह हो चुका था और वह परिवार के साथ जयपुर में रह कर नौकरी कर रहा था. अविवाहित अवधेश हिंदी प्रवक्ता के पद पर नौकरी कर रहा था. नौकरी के चक्कर में उस की उम्र अधिक हो गई थी. अवधेश विनीता से 12 साल बड़ा था. फिर भी अनिल विनीता की शादी उस से करने को तैयार हो गए.

अनिल ने विनीता से बात की तो वह मना करने लगी कि 12 साल बड़े लड़के से शादी नहीं करेगी. अनिल ने जब समझाया कि वह सरकारी नौकरी में है, उस के पास पैसों की कमी नहीं है तो वह शादी के लिए तैयार हो गई. 2011 में अवधेश का विनीता से विवाह हो गया. उसी दिन ज्योति का भी विवाह हुआ. विनीता मायके से ससुराल आ गई. विनीता पढ़ीलिखी आजाद खयालों वाली युवती थी. जबकि अवधेश सीधेसादे सरल स्वभाव का था. दोनों एक बंधन में तो बंध गए थे लेकिन उन के विचार, उन की सोच बिलकुल एकदूसरे से अलग थी.

पति सीधा था पत्नी मौडर्न विनीता को ठाठबाट से रहना पसंद था. जबकि अवधेश को साधारण तरीके से जीवन जीना अच्छा लगता था. दोनों की सोच और खयाल एक नहीं थे तो उन में आए दिन मनमुटाव और विवाद होने लगा. विनीता की अपनी सास अन्नपूर्णा से भी नहीं बनती थी. अवधेश अपनी मां की बात मानता था. विनीता इस बात को ले कर भी चिढ़ती थी. दोनों के बीच विवाद कम होने का नाम नहीं ले रहे थे. 6 साल पहले विनीता ने एक बेटे को जन्म दिया, जिस का नाम उन्होंने अंश रखा. ढाई वर्ष पहले बरेली के इज्जतनगर थाना क्षेत्र के कर्मचारी नगर की निर्मल रेजीडेंसी में अवधेश ने अपना निजी मकान ले लिया. पहले वह मकान विनीता के नाम लेना चाहता था. लेकिन उस की बातें और हरकतों से उस का मन बदल गया.

वह विनीता व बेटे के साथ अपने नए मकान में आ कर रहने लगा. बढ़ते आपसी विवादों में विनीता अवधेश से नफरत करने लगी थी. उस ने शादी से पहले सोचा था कि अवधेश उस के कहे में चलेगा, उस की अंगुलियों के इशारे पर नाचेगा, लेकिन वैसा कुछ नहीं हुआ. पैसों के लिए उसे अवधेश का मुंह देखना पड़ता था. अवधेश अपनी सैलरी से विनीता को उस के खर्च के लिए 3 हजार रुपए महीने देता था. उस में विनीता का गुजारा नहीं होता था. अपने खर्चे को देखते हुए विनीता ने घर में ही ‘रिलैक्स जोन’ नाम से एक ब्यूटीपार्लर खोल लिया. विनीता अपनी छोटी बहन ज्योति की ससुराल जाती थी. वहीं पर उस की मुलाकात सिपाही अंकित यादव से हो गई. अंकित यादव बिजनौर का रहने वाला था.

उस समय उस की पोस्टिंग मैनपुरी में थी. अंकित अविवाहित था और काफी स्मार्ट था. विनीता से उस की बात हुई तो वह उस के रूपजाल में उलझ कर रह गया. फिर दोनों मोबाइल पर बातें करने लगे. एक दिन अंकित विनीता से मिलने बरेली आया. दोनों एक होटल में मिले. उस दिन से दोनों के बीच प्रेम संबंध बन गए. विनीता से मिलने वह अकसर बरेली आने लगा. विनीता का भाई प्रदीप एक मल्टीलेवल मार्केटिंग कंपनी में नौकरी करता था. उस ने विनीता से कहा कि वह मल्टीलेवल मार्केटिंग से जुड़ी कंपनी ‘वेस्टीज’ से जुड़ जाए. इस में कम समय में ज्यादा पैसा कमाने का मौका मिलता है.

चेन मार्केटिंग कंपनियां कंपनी से जुड़ने वाले लोगों को बड़ेबडे़ सपने दिखाती हैं. विनीता ने भी कंपनी से जुड़ने का फैसला कर लिया. वह कई मीटिंग में गई और मीटिंग में जाने के बाद उस पर चेन मार्केटिंग के जरिए जल्द से जल्द पैसा कमा कर रईस बनने का नशा सवार हो गया. इस के लिए उस ने इसी साल की शुरुआत में कंपनी जौइन कर ली. इस के लिए विनीता ने किसी बड़ी महिला अधिकारी की तरह अपनी वेशभूषा बनाई. शानदार सूटबूट में चश्मा लगा कर जब वह इंग्लिश में बड़े विश्वास के साथ अपनी बात किसी भी व्यक्ति के सामने रखती तो वह उस का मुरीद हो जाता और उस के कहने पर कंपनी जौइन कर लेता.

भाई प्रदीप की लाल टीयूवी कार विनीता अपने पास रखने लगी. वह इसी कार से लोगों से मिलने जाती थी. लग्जरी कार से सूटेडबूटेड महिला को उतरता देख कर लोगों पर इस का काफी गहरा प्रभाव पड़ता. घर की चारदीवारी से विनीता बाहर निकली तो उस ने अपने लिए पैसों का इंतजाम करना शुरू कर दिया. अब लोग विनीता से मिलने घर पर भी आने लगे. विनीता की चल पड़ी दुकान अवधेश तो दिन में कालेज में होता था और शाम को ही लौटता था. उसे पड़ोसियों से पता चलता तो अवधेश और विनीता में विवाद होता. विनीता पहले जब अवधेश से नहीं डरीदबी तो अब तो वह खुद का काम कर रही थी. ऐसे में अवधेश को ही शांत होना पड़ता था.

दोनों  के बीच की दूरियां गहरी खाई में तब्दील होती जा रही थीं. दूसरी ओर विनीता की बहन ज्योति का अपनी ससुरालवालों से मनमुटाव हो गया था. वह काफी समय से मायके में रह रही थी. विनीता ने उसे अपने पास रहने के लिए बुला लिया. इस से भी अवधेश खफा था. लौकडाउन के दौरान फेसबुक पर विनीता की दोस्ती अमित सिसोदिया उर्फ अंकित से हुई. अमित आगरा का रहने वाला था और वेस्टीज कंपनी से ही जुड़ा था, जिस से विनीता जुड़ी थी. अमित विवाहित था और एक बेटे का पिता भी था. दोनों की फेसबुक पर बातें हुईं तो पता चला कि अमित विनीता के भाई प्रदीप का दोस्त है.

इस के बाद दोनों खुल कर बातें करने लगे और मिलने भी लगे. दोनों अलगअलग शहरों में होने वाले कंपनी के सेमिनार में भी साथ जाने लगे. अमित और विनीता की सोच और विचार काफी मिलते थे. एक साथ रहने के दौरान विनीता को यह बात महसूस हो गई थी. दोनों ही जिंदगी में खूब पैसा कमाना चाहते थे. दोनों साथ बैठते तो कल्पनाओं की ऊंची उड़ान भरते. एक दिन अमित ने विनीता का हाथ अपने हाथ में ले कर कहा, ‘‘विनीता, हम दोनों बिलकुल एक जैसे है. एक जैसा सोचते हैं, एक जैसा काम करते है और एक ही उद्देश्य है, एकदूसरे का साथ भी हमें भाता है. क्यों न हम हमेशा के लिए एक हो जाएं.’’

विनीता पहले हलके से मुसकराई, फिर गंभीर मुद्रा में बोली, ‘‘हां अमित, मैं भी ऐसा ही सोच रही थी. यह भी सोच रही थी कि तुम मेरी जिंदगी में पहले क्यों नहीं आए, आ जाते तो मुझे कष्टों से न गुजरना पड़ता.’’ कुछ पलों के लिए रुकी, फिर बोली, ‘‘खैर अब भी हम एक हो सकते हैं ठान लें तो.’’

विनीता की स्वीकृति मिलते ही अमित खुश हो गया, ‘‘तुम ने कह दिया तो अब हमें एक होने से कोई नहीं रोक सकता.’’ कह कर अमित ने विनीता को बांहों में भर लिया. विनीता भी उस से लिपट गई. अमित को पा कर जैसे विनीता ने राहत की सांस ली. उसे ऐसे ही युवक की तलाश थी जो उस के जैसा हो, उसे समझता हो और उस के लिए कुछ भी करने को तैयार हो जाए. दूसरी ओर वह अंकित यादव से भी संबंध बनाए हुए थी. विनीता दिनरात एक कर के अपने मार्केटिंग के बिजनैस में सफल होना चाहती थी. इसलिए वह इस में लगी रही. कुछ महीनों में ही उस ने अपने अंडर में एक हजार लोगों की टीम खड़ी कर दी. कंपनी ने उसे कंपनी का ‘सिलवर डायरेक्टर’ घोषित कर दिया.

विनीता खुशी से फूली नहीं समाई. कंपनी ने उसे एक स्कूटी भी इनाम में दी. विनीता अपनी कंपनी के कार्यक्रमों और उस के रिकौर्डेड संदेशों को अपने फेसबुक अकाउंट पर डालती रहती थी. कंपनी से जुड़ने के लिए लोगों से अपील भी करती थी कि उस के पास बिजनैस करने का एक अनोखा आइडिया है, जिस में महीने में 5 से 50 हजार तक कमा सकते हैं. जो कमाना चाहते हैं, उस से मिलें. विनीता की जिंदगी में सब कुछ अब अच्छा ही अच्छा हो रहा था. बस खटकता था तो अवधेश. उस के साथ होने वाली कलह. अब विनीता अवधेश से छुटकारा पाने की सोचने लगी थी. उस की जिंदगी में अमित आ चुका था, वह उस के साथ जिंदगी बिताने का सपना देखने लगी थी. अमित भी उस से कई बार कह चुका था कि वह कहे तो अवधेश को ठिकाने लगा दिया जाए. वह ही मना कर देती थी.

अवधेश के मरने से उसे हमेशा के लिए छुटकारा तो मिलता ही साथ ही अवधेश का मकान और सरकारी नौकरी भी मिल जाती. यही सोच कर उस ने आगे की योजना बनानी शुरू कर दी. इस में उस ने अपने पिता व भाई से साफ कह दिया कि वह अवधेश के साथ नहीं रहना चाहती. उसे मारने से उसे मकान और उस की सरकारी नौकरी भी मिलेगी. विनीता के पिता अनिल ने एक बार कहा भी कि वह अपना बसा हुआ घर न उजाड़े, लेकिन विनीता नहीं मानी. विनीता की जिद और लालच के लिए वे सभी उस का साथ देने को तैयार हो गए. विनीता का एक मुंहबोला चाचा था शेर सिंह उर्फ चीकू. वह उस के पिता अनिल का खास दोस्त था. शेर सिंह नारखी थाने का हिस्ट्रीशीटर था, उस पर वर्तमान में 16 मुकदमे दर्ज थे.

विनीता ने शेर सिंह से कहा कि उसे उस के पति अवधेश की हत्या करनी है. शेर सिंह ने उस से 5 लाख रुपए का इंतजाम करने को कहा तो विनीता ने हामी भर दी. अवधेश ने कार खरीदने के लिए घर में रुपए ला कर रखे थे. सोचा था कि नवरात्र में बुकिंग करा देगा और धनतेरस पर गाड़ी खरीद लेगा. उन पैसों पर विनीता की नजर पड़ गई. उन रुपयों में से 70 हजार रुपए निकाल कर विनीता ने शेर सिंह को दे दिए, बाकी पैसा बाद में देने को कहा. इस के बाद शेर सिंह ने अपने गांव के ही भोला सिंह और एटा के पप्पू जाटव को हत्या में साथ देने के लिए तैयार कर लिया. शेर सिंह ने विनीता, विनीता के पिता अनिल, भाई प्रदीप और प्रेमी अमित सिसोदिया के साथ मिल कर अवधेश की हत्या की योजना बनाई. विनीता ने बाद में ज्योति को इस बारे में बता कर उसे भी अपने साथ शामिल कर लिया.

12 अक्तूबर, 2020 की रात अवधेश रोज की तरह टहलने के लिए निकले. उस के जाने के बाद विनीता ने हत्या के उद्देश्य से पहुंचे शेर सिंह, भोला, पप्पू जाटव, अनिल, प्रदीप और अमित को घर के अंदर बुला लिया. सभी घर में छिप कर बैठ गए. कर दी हत्या कुछ देर बाद जब अवधेश लौटे तो घर में घुसते ही सब ने मिल कर उसे दबोच लिया. विनीता अपने बेटे अंश को ले कर ऊपरी मंजिल पर चली गई. नीचे सभी ने अवधेश को पकड़ कर उस का गला घोंट दिया. अवधेश के मरने के बाद विनीता नीचे उतर कर आई. अवधेश की लाश को बड़ी नफरत से देख कर गाली देते हुए उस में कस के पैर की ठोकर मार दी.

देर रात अमित ने लाश को सभी के सहयोग से अपनी आल्टो कार में डाल लिया. इस के बाद प्रदीप की टीयूवी कार जो विनीता के पास रहती थी, सब उस में सवार हो गए. प्रदीप कार चला रहा था. उस के पीछे थोड़ी दूरी पर अंकित चल रहा था. लगभग साढ़े 3 घंटे का सफर तय कर के अवधेश की लाश को ले कर वे फिरोजाबाद में नारखी पहुंचे. लेकिन तब तक उजाला हो चुका था. इसलिए लाश को कहीं दफना नहीं सकते थे. इन लोगों ने पूरा दिन ऐसे ही निकाला. इस बीच लाश को जलाने के लिए बाजार से तेजाब खरीद कर लाया गया.

अंधेरा होने पर नारखी में रामदास के खेत में गड्ढा खोद कर अवधेश की लाश को उस में डाल दिया गया. फिर लाश पर तेजाब डाल दिया गया, जिस से लाश का चेहरा व कई हिस्से जल गए. लाश को दफनाने के बाद सभी वहां से लौट आए. विनीता बराबर वीडियो काल के जरिए उन लोगों के संपर्क में थी. 14 अक्तूबर, 2020 को वह भी बेटे अंश को ले कर घर से भाग गई. शेर सिंह पकड़ा गया तो घटना का खुलासा हुआ. उस ने विनीता के प्रेमी अंकित का नाम लिया. घटना की खबर अखबारों की सुर्खियां बनीं तो विनीता के प्रेमी सिपाही अंकित यादव ने देखा. अंकित ने अपना नाम समझा. उसे लगा कि पुलिस को विनीता की काल डिटेल्स से उस के बारे में पता लग गया है. अब वह भी इस हत्याकांड की जांच में फंस जाएगा.

दूसरी ओर अंकित नाम आने पर विनीता के शातिर दिमाग ने खेल खेला. अपने प्रेमी अमित सिसोदिया को बचाने के लिए वह अंकित को ही फंसाने में लग गई. 26 अक्तूबर, 2020 को वह अंकित यादव से मिलने संभल गई. 2 महीने से अंकित संभल की हयातनगर चौकी पर तैनात था. वहां वह उस से मिली. कुछ सिपाहियों ने उसे उस के साथ देखा भी. विनीता उस से मिल कर चली गई. अंकित भयंकर तनाव में आ गया. 27 अक्तूबर, 2020 को उस ने अपने साथी सिपाही की राइफल ले कर उस से खुद को गोली मार ली. अंकित के आत्महत्या कर लेने की बात विनीता को पता चल गई थी. इसलिए जब उस ने आत्मसमर्पण किया तो वह सारा दोष अंकित यादव पर डालती रही.

वह अपने प्रेमी अमित सिसोदिया उर्फ अंकित को बचाना चाहती थी. समर्पण से पहले विनीता ने अपना मोबाइल भी तोड़ दिया था, ताकि पुलिस उस मोबाइल से कोई सुराग हासिल न कर सके. गैरजमानती वारंट जारी होने के बाद से सभी आरोपियों में इस बात का खौफ है कि पुलिस उन की संपत्तियों को तोड़फोड़ सकती है, कुर्क कर सकती है. इसलिए बारीबारी से सभी आत्मसमर्पण करने की तैयारी में लग गए. फिलहाल कथा लिखे जाने तक पुलिस शेष आरोपियों की तलाश में जुटी हुई थी. शेर सिंह की रिमांड 20 नवंबर को मिलनी थी.द्य

—कथा पुलिस सूत्रों व मीडिया में छपी रिपोर्टों के आधा

Crime Stories : पति की धमकी से तंग आकर पत्नी ने कराया पति का कत्ल

Crime Stories : पति पत्नी के बीच के झगड़े और मतभेद आम सी बात है. वक्त के साथ सब ठीक हो जाता है. लेकिन अगर हमदर्द बन कर कोई तीसरा दोनों के बीच कूद जाए तो परिणाम भयावह…

वह 26 जून, 2020 की मध्यरात्रि थी. समय सुबह के 3 बजकर 20 मिनट. उत्तराखंड के जिला हरिद्वार की लक्सर कोतवाली के कोतवाल हेमेंद्र सिंह नेगी देहात क्षेत्र के गांवों में गस्त कर रहे थे, तभी उन के मोबाइल की घंटी बजी. नेगी ने मोबाइल स्क्रीन देखी, कोई अज्ञात नंबर था. इतनी रात में कोई यूं ही फोन नहीं करता. नेगी ने मोबाइल काल रिसिव की. दूसरी ओर कोई अपरीचित था, जिस की आवाज डरीसहमी सी लग रही थी. हेमेंद्र सिंह के परिचय देने पर उस ने कहा, ‘‘सर, मेरा नाम अभिषेक है और मैं आप के थाना क्षेत्र के गांव झीबरहेडी से बोल रहा हूं.

मुझे आप को यह सूचना देनी थी कि आधा घंटे पहले बदमाशों ने मेरे चचेरे भाई प्रदीप की हत्या कर दी है.’’

‘‘हत्या, कैसे? पूरी बात बताओ’’

‘‘सर मुझे हत्यारों की तो कोई जानकारी नहीं है, क्योंकि उस वक्त मैं गहरी नींद में था. करीब आधा घंटे पहले मेरे मकान की दीवार से किसी के कूदने की आवाज आई थी. मुझे लगा कि गांव में बदमाश आ गए हैं. मैं तुरंत नीचे आ कर दरवाजा बंद कर के लेट गया.

‘‘थोड़ी देर बाद चचेरे भाई प्रदीप के कराहने की आवाज आई तो मैं बाहर आया. मैं ने देखा कि प्रदीप लहूलुहान पड़ा था, उस के पेट, छाती व सिर पर धारदार हथियारों से प्रहार किए गए थे.’’ अभिषेक बोला.

‘‘फिर?’’

‘‘सर, फिर मैं ने अपने घरवालों को जगाया और प्रदीप को  तत्काल अस्पताल ले जाने को कहा. लेकिन हम प्रदीप को अस्पताल ले जाते, उस ने दम तोड़ दिया.’’ अभिषेक बोला.

‘प्रदीप किसान था?’ नेगी ने पूछा

‘नहीं सर प्रदीप स्थानीय श्री सीमेंट कंपनी में ट्रक चलाता था और गत रात ही वह देहरादून से लौटा था. रात को वह अकेला ही अपने घर की छत पर सो रहा था.’ अभिषेक बोला.

‘‘प्रदीप की गांव में किसी से कोई रंजिश तो नहीं थी?’ नेगी ने पूछा.

‘‘नहीं सर वह तो हंसमुख स्वभाव का था और गांव के सभी बिरादरी के लोग उस की इज्जत करते थे. प्रदीप ज्यादातर अपने काम से काम रखने वाला आदमी था.’’ अभिषेक बोला.

‘‘ठीक है अभिषेक, पुलिस 15 मिनट में घटनास्थल पर पहुंच जाएगी.’’

कोतवाल हेमेंद्र नेगी ने फोन डिस्कनेक्ट कर दिया. नेगी ने सब से पहले लक्सर कोतवाली की चेतक पुलिस को गांव झीबरहेड़ी में प्रदीप के घर पहुंचने का आदेश दिया. फिर इस हत्या के बारे में सीओ राजन सिंह, एसपी देहात स्वप्न किशोर सिंह और वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक सेंथिल अबुदई कृष्णाराज एस. को सूचना दी. नेगी गांव झीबरहेड़ी की ओर चल दिए. 20 मिनट बाद नेगी प्रदीप के घर पर पहुंच गए. उस समय सुबह के 4 बज गए थे और अंधेरा छंटने लगा था. प्रदीप के घर में उस का शव आंगन में चादर से ढका रखा था, आसपास गांव वालों की भीड़ जमा थी. नेगी व चेतक पुलिस के सिपाहियों ने सब से पहले ग्रामीणों को वहां से हटाया. इस के बाद शव का निरीक्षण किया. हत्यारों ने प्रदीप की हत्या बड़ी बेरहमी से की थी.

बदमाशों ने प्रदीप का पूरा शरीर धारदार हथियारों से गोद डाला था. जब नेगी ने प्रदीप के बीबी बच्चों की बाबत, पूछा तो घर वालों ने बताया कि कई सालों से प्रदीप की बीबी ममता बच्चों के साथ अपने मायके बादशाहपुर में रहती है. घरवालों से नंबर ले कर नेगी ने ममता को प्रदीप की हत्या की जानकारी दी. इस के बाद नेगी ने गांव वालों से प्रदीप की दिनचर्या के बारे में जानकारी ली और पूछा कि उस की गांव में किसी से दुश्मनी तो नहीं थी. नेगी का अनुमान था कि प्रदीप की हत्या का कारण रंजिश भी हो सकता है, क्योंकि यह मामला लूट का नहीं लग रहा था.

नेगी ग्रामीणों से प्रदीप के बारे में जानकारी जुटा ही रहे थे, कि सीओ राजन सिंह, एसपी देहात एसके सिंह और वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक सेंथिल अबुदई कृष्णाराज एस भी पहुंच गए. तीनों अधिकारियों ने वहां मौजूद ग्रामीणों से प्रदीप की हत्या के बारे में पूछताछ की. इस के बाद अधिकारियों ने कोतवाल नेगी को प्रदीप के शव को पोस्टमार्टम के लिए जेएन सिन्हा स्मारक राजकीय अस्पताल रुड़की भेजने के निर्देश दिए और चले गए. शव को अस्पताल भेज कर नेगी थाने लौट आए. उन्होंने प्रदीप के भाई सोमपाल की ओर से धारा 302 के तहत हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया और मामले की जांच शुरू कर दी. प्रदीप की हत्या का मामला थोड़ा पेचीदा था, क्योंकि न तो प्रदीप का कोई दुश्मन था और न लूट हुई थी.

अगले दिन 27 जून को एसपी देहात एसके सिंह ने इस केस का खुलासा करने के लिए लक्सर कोतवाली में मीटिंग की, जिस में सीओ राजन सिंह, कोतवाल हेमेंद्र नेगी, थानेदार मनोज नोटियाल, लोकपाल परमार, आशीष शर्मा, यशवीर नेगी सहित सीआईयू प्रभारी एनके बचकोटी, एएसआई देवेंद्र भारती व जाकिर आदि शामिल हुए. एसके सिंह ने सीओ राजन सिंह के निर्देशन में इन सभी को जल्द से जल्द प्रदीप हत्याकांड का खुलासा करने के निर्देश दिए. निर्देशानुसार सीआईयू प्रभारी एनके बचकोटी ने झीबरहेड़ी में घटी घटना का साइट सैल डाटा उठाया. साथ ही रात में हत्या के समय आसपास चले मोबाइलों की काल डिटेल्स खंगाली. इस के बाद पुलिस द्वारा उन मोबाइल नंबरों की पड़ताल की गई.

साथ ही बचकोटी ने सीआईयू के एएसआई देवेंद्र भारती व जाकिर को प्रदीप हत्याकांड की सुरागरसी करने के लिए सादे कपड़ों में झीबरहेड़ी भेजा. सिपाहियों कपिलदेव व महीपाल को उन्होंने प्रदीप की पत्नी ममता के बारे में जानकारी जुटाने के लिए उस के मायके बादशाहपुर भेजा था. इस का परिणाम यह निकला कि 28 जून, 2020 की शाम को पुलिस और सीआईयू के हाथ प्रदीप हत्याकांड के पुख्ता सबूत लग गए. पुलिस को जो जानकारी मिली, वह यह थी कि मृतक प्रदीप के साथ अमन भी ट्रक चलाता था. वह गांव हरीपुर, जिला सहारनपुर का रहने वाला था. इसी के चलते वह प्रदीप के घर आताजाता था. प्रदीप की पत्नी ममता का चालचलन ठीक नहीं था, इस वजह से पति पत्नी में अकसर मनमुटाव रहता था.

घर में आनेजाने से अमन की आंखे ममता से लड़ गई थीं और वे दोनों प्रदीप की गैरमौजूदगी में रंगरलियां मनाने लगे थे. गत वर्ष जब प्रदीप को ममता व अमन के अवैध संबंधों की जानकारी हुई तो उस ने दोनों को धमकाया भी, मगर 42 वर्षीया ममता अपने 23 वर्षीय प्रेमी अमन को छोड़ने के लिए तैयार नहीं थी. इस विवाद के चलते वह अपने बच्चों के साथ मायके बादशाहपुर जा कर रहने लगी थी. उस के जाने के बाद प्रदीप अपने झीबरहेडी स्थित मकान पर अकेला रहने लगा. 29 जून, 2020 को पुलिस को प्रदीप की पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिल गई, जिस में उस की मौत का कारण शरीर पर धारदार हथियारों के प्रहारों से ज्यादा खून बहना बताया गया था.

यह जानकारी मिलने के बाद पुलिस को अमन पर शक हो गया. दूसरी ओर सीआईयू प्रभारी एनके बचकोटी को जिस मोबाइल नंबर पर शक था, वह अमन का ही नंबर था. सीआईयू ने अमन की गिरफ्तारी के लिए जाल बिछा दिया था. अमन को शाम को ही पुलिस ने लक्सर क्षेत्र से उस समय गिरफ्तार कर लिया, जब वह ममता से मिलने जा रहा था. अमन को पकड़ने के बाद पुलिस उसे कोतवाली ले आई. इस के बाद एसपी देहात एसके सिंह व सीओ राजन सिंह ने उस से प्रदीप की हत्या के बारे में सख्ती से पूछताछ की. अमन ने पुलिस को जो जानकारी दी, वह इस प्रकार है—

अमन ने अपना जुर्म कबूल करते हुए बताया कि वह प्रदीप के साथ गत 3 वर्षो से ट्रक चलाता था. उस का प्रदीप के घर आना जाना होता रहता था. प्रदीप की बीवी ममता पति के रूखे व्यवहार से परेशान रहती थी. जब उस ने ममता से प्यार भरी बातें करनी शुरू कर दीं, तो वह भी उसी टोन में बतियाने लगी. तनीजा यह हुआ कि उस के ममता से अवैध संबंध बन गए. यह जानकारी मिलने पर प्रदीप ने मुझे धमकी दी, जिस से मैं बुरी तरह डर गया. इस के बाद उस ने प्रदीप द्वारा दी गई धमकी की जानकारी ममता को दी. तब उस ने ममता की सहमति से प्रदीप की हत्या की योजना बनाई. 26 जून को उस ने प्रदीप के बेटे शकुन को फोन किया और उस से प्रदीप के बारे में पूछा.

शकुन के मुताबिक प्रदीप उस शाम घर पर ही था. रात 12 बजे मैं छुरी ले कर झीबरहेडी की ओर निकल गया. प्रदीप के मकान के पीछे खेत थे रात करीब 2 बजे वह खेतों की ओर से मकान पर चढ़ गया. उस समय प्रदीप मकान की छत पर अकेला बेसुध सोया पड़ा था. उसे देख कर उस का खून खौल गया. इस के बाद उस ने पूरी ताकत लगा कर प्रदीप के गले पर वार करने शुरू कर दिए. उस ने प्रदीप के गले, सिर व पेट पर कई वार किए. इस के बाद वह मकान की छत से कूद कर, वापस लक्सर आ गया. लक्सर से बादशाहपुर ज्यादा दूर नहीं था. इसलिए लक्सर पुलिस ममता को भी कोतवाली ले आई. जब ममता ने अमन को पुलिस हिरासत में देखा, तो वह सारा माजरा समझ गई और पुलिस के सामने अपने पति की हत्या का षडयंत्र रचने में अपनी संलिप्तता मान कर ली.

इस के बाद एसपी देहात एसके सिंह ने प्रदीप हत्याकांड का खुलासा होने और 2 आरोपियों के गिरफ्तार होने की जानकारी वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक हरिद्वार सेंथिल अबुदई कृष्णाराज को दी. 30 जून, 2020 को एसपी देहात एसके सिंह ने लक्सर कोतवाली में प्रैसवार्ता के दौरान मीडियाकर्मियों को प्रदीप हत्याकांड के खुलासे की जानकारी दी. इस के बाद पुलिस ने अमन व ममता को कोर्ट में पेश कर के जेल भेज दिया. 3 बच्चों की मां होने के बाद भी ममता अमन के प्रेम में इस कदर डूबी कि उस ने पति की हत्या अपने प्रेमी से कराने में कोई संकोच नहीं किया, बल्कि इस हत्याकांड को छिपाए रखा.

प्रदीप से ममता की शादी वर्ष 2001 में हुई थी. प्रदीप का 18 वर्षीय बेटा सन्नी हैदराबाद में कोचिंग कर रहा है और 17 साल की बेटी आंचल और 12 साल का बेटा शकुन मां ममता के साथ बादशाहपुर में रहते थे.

(पुलिस सूत्रों पर आधारित)

Delhi Crime : चौथी शादी से नाराज पहली पत्नी ने सुपारी देकर कराई पति की हत्या

Delhi Crime : पैसा कमाने के लिए खूनपसीना बहाना पड़ता है. विकास उर्फ नीटू गांव से खाली हाथ दिल्ली आ कर अमीर बना था, लेकिन उस की अय्याशी ने उसे उस मोड़ पर ला खड़ा किया, जहां से आगे खून बहता है. खास बात यह कि उस की 4 पत्नियों में से… दिल्ली से सटे बागपत जिले में एक गांव है शाहपुर बडौली. विकास तोमर उर्फ नीटू (32) यहीं का रहने वाला था. उस के पिता किसान थे. 5 भाइयों में नीटू चौथे नंबर का था. 3 भाई उस से बड़े थे. जबकि एक छोटा था. नीटू ज्यादा पढ़ालिखा नहीं था. इंटर तक पढ़ाई करने के बाद वह दिल्ली चला आया था. करीब 12 साल पहले वह जब दिल्ली आया था तो उस के पास 2 जोड़ी कपड़े और पांव में एक जोड़ी जूते थे. नीटू ने एक प्लेसमेंट एजेंसी की मदद से एक फैक्ट्री में नौकरी कर ली. लेकिन जब उसे पहले महीने की सैलरी मिली तो वह आधी थी. पता चला आधी सैलरी कमीशन के रूप में प्लेसमेंट एजेंसी ने अपने पास रख ली.

नीटू ने उस फैक्ट्री में 5 महीने तक नौकरी की. लेकिन हर महीने सैलरी में से एक फिक्स रकम प्लेसमेंट एजेंसी कमीशन के रूप में काट लेती थी. अगर नीटू विरोध करता तो प्लेसमेंट एजेंसी उसे नौकरी से निकालने की धमकी देती. नीटू को लगा कि नौकरी से तो अच्छा है कि प्लेसमेंट एजेंसी खोल लो और दूसरों की कमाई पर खुद ऐश करो. लेकिन प्लेसमेंट एजेंसी यानी कि लोगों को नौकरी दिलाने का कारोबार चलता कैसे है. इस सवाल का जवाब पाने के लिए नीटू ने नांगलोई की एक प्लेसमेंट एजेंसी में करीब 6 महीने तक पहले औफिस बौय फिर सुपरवाइजर की नौकरी की.

नौकरी करना तो एक बहाना था ताकि गुजरबसर और खानेखर्चे का इंतजाम होता रहे. असल बात तो यह थी कि नीटू प्लेसमेंट एजेंसी के धंधे के गुर सीखना चाहता था. आखिरकार 7-8 महीने की नौकरी के दौरान नीटू ने प्लेसमेंट एजेंसी चलाने के गुर सीख लिए. इस के बाद उस ने अपने परिवार से आर्थिक मदद ली और नांगलोई के निहाल विहार में ही एक दुकान ले कर प्लेसमेंट एजेंसी का दफ्तर खोल लिया. पास के ही एक मकान में उस ने रहने के लिए कमरा भी ले लिया. प्लेसमेंट एजेंसी चलाने के लिए जरूरी लाइसैंस तथा कानूनी औपचारिकता भी उस ने पूरी कर लीं. संयोग से उस का धंधा चल निकला. देखतेदेखते नीटू लाखों में खेलने लगा. लेकिन दिक्कत यह थी कि वह अकेला पड़ जाता था. उस के पास कोई भरोसे का आदमी नहीं था.

लेकिन जल्द ही उस की ये परेशानी भी दूर हो गई. उसी के गांव में रहने वाला सुधीर जिसे गांव में सब प्यार से लीलू कहते थे, उस के साथ काम करने के लिए तैयार हो गया. नीटू ने लीलू को अपने साथ रख लिया और तय किया कि वह उसे सैलरी नहीं देगा बल्कि जो भी कमाई होगी, उस में से एक चौथाई का हिस्सा उसे मिलेगा. इस के बाद तो कुदरत ने नीटू का ऐसा हाथ पकड़ा कि देखते ही देखते उस का धंधा तेजी से चल निकला और उस के ऊपर पैसे की बारिश होने लगी.

अचानक हुई हत्या नीटू के एक बड़े भाई की पिछले साल एक दुर्घटना में मौत हो गई थी. 22 जून, 2020 को उस की बरसी थी. भाई की बरसी पर घर में होने वाले हवनपूजा और दूसरे रीतिरिवाजों को पूरा करने के लिए नीटू गांव में अपने परिवार के पास आया हुआ था. वैसे भी कोरोना वायरस की वजह से लगे लौकडाउन के बाद कामधंधे ठप पड़े थे. इसलिए नीटू ने सोचा कि जब पूजापाठ के लिए गांव आया हूं तो क्यों न घर में छोटेमोटे बिगड़े पड़े कामों को सुधार लिया जाए.

घर से थोड़ी दूरी पर बने घेर (पशुओं का बाड़ा और बैठक) में 19 जून को नीटू ने बोरिंग कराने का काम शुरू कराया था. सुबह से शाम हो गई थी. काम अभी भी बाकी था. रात के करीब साढ़े 8 बज चुके थे. नीटू का छोटा भाई बबलू और बड़ा भाई अजीत घेर में उस के पास बैठे गपशप कर रहे थे. तभी अचानक एक पल्सर बाइक तेजी से घेर के बाहर आकर रुकी. बाइक पर 3 लोग सवार थे, जिन में से 2 गाड़ी से उतरे और घेर के अंदर आ गए. तीनों भाई दरवाजे से 8-10 कदम की दूरी पर पड़ी अलगअलग चारपाइयों पर बैठे थे. उन्होंने सोचा बाइक से उतरे लड़के शायद कुछ पूछना चाहते होंगे.

दोनों लड़कों ने कुर्ता और जींस पहन रखी थी. मुंह पर मास्क की तरह गमछे बांधे हुए थे. क्षण भर में दोनों लड़के नीटू की चारपाई के पास पहुंचे. इस से पहले कि नीटू या उस के भाई कुछ पूछते अचानक दोनों युवकों ने कुर्ते के नीचे हाथ डाल कर तमंचे निकाले और एक के बाद एक 2 गोलियां चलाईं, जिस में से एक गोली नीटू की छाती में लगी दूसरी उस की कनपटी पर. गोली चलते ही दोनों भाइयों के पांव तले की जमीन खिसक गई. जान बचाने के लिए वे चीखते हुए घेर के भीतर की तरफ भागे. मुश्किल से 3 या 4 मिनट लगे होंगे. जब हमलावरों को इत्मीनान हो गया कि नीटू की मौत हो चुकी है तो वे जिस बाइक से आए थे, दौड़ते हुए उसी पर जा बैठे और आखों से ओझल हो गए.

गोली चलने और चीखपुकार सुन कर गांव के लोग एकत्र हो गए. सारा माजरा पता चला तो नीटू के परिवार के लोग भी घटनास्थल पर पहुंच गए. देखते देखते पूरा गांव नीटू के घेर के अहाते के बाहर एकत्र हो गया. गांव के लोग इस बात पर हैरान थे कि हमलावरों ने 3 भाइयों में से केवल नीटू को ही गोलियों का निशाना क्यों बनाया. नीटू तो वैसे भी गांव में नहीं रहता था फिर उस की किसी से ऐसी क्या दुश्मनी थी कि उस की हत्या कर दी गई. इस दौरान गांव के प्रधान ने इस वारदात की सूचना पुलिस कंट्रोल रूम को दे दी थी. वहां से यह सूचना बड़ौत थाने की पुलिस को दी गई.

लौकडाउन का दौर चल रहा था. लिहाजा पुलिस भी लौकडाउन का पालन कराने के लिए सड़कों पर ही थी. बड़ौत थानाप्रभारी अजय शर्मा को जैसे ही शाहपुर बडौली में एक व्यक्ति की गोली मार कर हत्या करने की सूचना मिली तो वह एसएसआई धीरेंद्र सिंह तथा अपनी पुलिस टीम के साथ बडौली गांव में पहुंच गए. सूचना मिलने के करीब एक घंटे के भीतर बड़ौत इलाके के सीओ आलोक सिंह, एडीशनल एसपी अनित कुमार तथा एसपी अजय कुमार सिंह भी घटनास्थल पर आ गए. पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का निरीक्षण किया. चश्मदीद के तौर पर 2 ही लोग थे नीटू के भाई अजीत व बबलू. दोनों न अक्षरश: पुलिस के सामने वह घटनाक्रम बयान कर दिया जो हुआ था.

लेकिन वारदात को किस ने अंजाम दिया, नीटू की हत्या क्यों हुई, क्या उस की किसी से दुश्मनी थी. कातिल कौन हो सकता है, जैसे पुलिस के सवालों के जवाब परिवार का कोई भी शख्स नहीं दे पाया. वजह यह कि नीटू की हत्या खुद उन के लिए भी एक पहेली की तरह ही थी. हत्या का कारण पता नहीं चला बहरहाल पुलिस को तत्काल नीटू की हत्या के मामले में कोई अहम जानकारी नहीं मिल सकी. इसलिए रात में ही शव को पोस्टमार्टम के लिए बागपत के सरकारी अस्पताल भिजवा दिया गया. नीटू की हत्या का मामला बड़ौत कोतवाली में भादंसं की धारा 302, 452, 506 और दफा 34 के तहत दर्ज कर लिया गया.

एसपी अजय कुमार ने एएसपी अनित कुमार सिंह की निगरानी में एक पुलिस टीम गठित करने का आदेश दिया. सीओ आलोक सिंह के नेतृत्व में गठित इस टीम में बड़ौत थानाप्रभारी अजय शर्मा के अलावा एसएसआई धीरेंद्र सिंह, कांस्टेबल विशाल कुमार, हरीश, देवेश कसाना, रोहित भाटी, अजीत के अलावा महिला उपनिरीक्षक साक्षी सिंह तथा महिला कांस्टेबल तनु को भी शामिल किया गया. पुलिस ने गांव में कुछ मुखबिर भी तैनात कर दिए ताकि लोगों के बीच चल रही चर्चाओं की जानकारी मिल सके.

शुरुआती जांच के बाद यह बात सामने आई कि संभव है इस वारदात को नीटू की पहली पत्नी रजनी ने अंजाम दिया हो. पता चला नीटू ने अपनी पत्नी को कई सालों से छोड़ रखा था. वह दिल्ली में अपने मायके में रहती थी, लेकिन उसके दोनों बच्चे गांव में नीटू के घरवालों के पास रहते थे. साथ ही पुलिस को यह भी पता चला कि जिस रात नीटू की हत्या हुई उसी रात सूचना मिलने के बाद नीटू की पहली पत्नी रजनी रात को करीब 1 बजे गांव पहुंच गई थी. रजनी के पास अपने पति की हत्या कराने का आधार तो था, लेकिन बिना सबूत के उस पर हाथ डालना उचित नहीं था. इसलिए पुलिस ने रजनी का मोबाइल नंबर हासिल कर के उस की डिटेल्स निकलवा ली. पुलिस टीम ने जांच को आगे बढाया तो एक और आशंका हुई कि हो ना हो गांव के ही किसी शख्स ने हत्यारों को नीटू के गांव में होने की सूचना दी हो.

क्योंकि आमतौर पर नीटू गांव में कम ही आता था और अगर आता भी था तो केवल एक रात के लिए. एक आंशका ये भी थी कि संभवत: नीटू की हत्या के तार दिल्ली से जुड़े हों. दिल्ली में या तो उस की किसी से कोई दुश्मनी रही होगी या लेनदेन का विवाद. इसलिए पुलिस की एक टीम ने परिवार वालों से जानकारी ले कर दिल्ली स्थित नीटू के 2 मकानों पर दबिश दी तो पता चला विकास उर्फ नीटू ने एक नहीं बल्कि 4 शादियां की थीं. दिल्ली में नीटू के घर में रहने वाले किराएदारों और उस की प्लेसमेंट एजेंसी में काम करने वाले कर्मचारियों से पता चला कि नीटू रंगीनमिजाज इंसान था और अपनी अय्याशियों के कारण महिलाओं से एक के बाद एक शादी करता रहा था.

लेकिन पुलिस को किसी से भी नीटू की अन्य पत्नियों के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं मिल सकी. इसी बीच अचानक मामले में एक नया मोड़ आया. 22 मई को 2 महिलाएं बड़ौत थाने पहुंच कर जांच अधिकारी अजय शर्मा से मिलीं. पता चला कि उन में से एक महिला विकास की दूसरे नंबर की पत्नी शिखा थी और दूसरी कविता जो उस की वर्तमान व चौथे नंबर की पत्नी थी.  उन दोनों ने बताया कि नीटू की पहली पत्नी रजनी ने 2018 में भी एक बार नीटू को मरवाने की साजिश रची थी. ये बात खुद नीटू ने उन से कही थी. शिखा और कविता से जरूरी पूछताछ के बाद पुलिस ने रजनी के मोबाइल की काल डिटेल्स निकलवाई.

काल डिटेल्स की पड़ताल के बाद पता चला कि जिस रात नीटू की हत्या की गई उसी रात रजनी के मोबाइल पर 9 बजे से 10 बजे के बीच एक ही नंबर से 2 काल आई थीं. जब इन काल्स के बारे में पता किया गया तो जानकारी मिली कि जिस नंबर से काल आईं वह शाहपुर बडौली में रहने वाले नीटू के दोस्त और पुराने पार्टनर सुधीर उर्फ लीलू का था. आखिर ऐसी कौन सी बात थी कि इतनी रात में लीलू ने नीटू की पत्नी को 2 बार फोन किए. कहीं ऐसा तो नहीं कि लीलू ही वो शख्स हो, जिस ने कातिलों को नीटू के उस रात गांव में होने की जानकारी दी हो.

संदेह के घेरे में रजनी और लीलू पुलिस को जैसे ही लीलू पर शक हुआ उस के मोबाइल की कुंडली खंगाली गई. पता चला उस रात कत्ल से पहले लीलू की 2 अंजान नंबरों पर भी बात हुई थी. वे दोनों नंबर गांव के किसी व्यक्ति के नहीं थे, लेकिन दोनों नंबरों की लोकेशन गांव में ही थी. गुत्थियां काफी उलझी हुई थीं, जिन्हें सुलझाने के लिए पुलिस ने सुधीर व नीटू की पहली पत्नी को पूछताछ के लिए हिरासत में ले लिया. पुलिस ने जब उन के सामने मोबाइल फोन की डिटेल्स सामने रख कर पूछताछ शुरू की तो बहुत ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ी. नीटू हत्याकांड की गुत्थी खुद ब खुद सुलझती चली गई.

जिस के बाद पुलिस ने मुखबिरों का जाल बिछा कर 25 जून को बावली गांव की पट्टी देशू निवासी रोहित उर्फ पुष्पेंद्र को गिरफ्तार कर लिया. पता चला उसी ने बावली गांव के रहने वाले अपने 2 साथियों सचिन और रवि उर्फ दीवाना के साथ मिल कर नीटू की गोली मार कर हत्या की थी. पुलिस ने जब रजनी, सुधीर उर्फ लीलू तथा रोहित से पूछताछ की तो नीटू की हत्या के पीछे उस के रिश्तों की उलझन की कहानी कुछ इस तरह सामने आई. विकास ने जिन दिनों दिल्ली में प्लेसमेंट एजेंसी खोली थी, वह उन दिनों दिल्ली के निहाल विहार में रजनी के घर में किराए का कमरा ले कर रहता था. 2009 में दोनों की यहीं पर जानपहचान हुई थी.

नीटू अय्याश रंगीनमिजाज जवान था, वह अकेला रहता था और उसे एक औरत के जिस्म की जरूरत थी. धीरेधीरे उस ने रजनी से दोस्ती कर ली. रजनी को भी नीटू अच्छा लगा. धीरेधीरे दोनों की दोस्ती प्यार में बदल गई और दोनों के बीच रिश्ते भी बन गए. लेकिन कुछ समय बाद जब रजनी के परिवार वालों को दोनों के रिश्तों की भनक लगी तो उन्होंने रजनी से शादी करने का दबाव डाला. फलस्वरूप नीटू को रजनी से शादी करनी पड़ी. इस के बाद नीटू ने रजनी के परिवार वाला मकान छोड़ दिया. चूंकि इस दौरान उस का कामधंधा काफी जम गया था और कमाई अच्छी हो रही थी, इसलिए उस ने नांगलोई में एक प्लौट ले कर उस पर मकान बनवा लिया था. रजनी को ले कर नीटू उसी मकान में रहने लगा.

दोनों की जिंदगी ठीक गुजर रही थी. रजनी और नीटू के 2 बेटे हुए . लेकिन रजनी नीटू की एक बुरी आदत से अंजान थी. प्लेसमेंट के धंधे से होने वाली अच्छीखासी कमाई थी. जब पैसा आया तो अय्याशी का शौक लग गया. इसी के चलते प्लेसमेंट औफिस में धंधा करने वाली लड़कियों को बुला कर अय्याशी करने लगा. जब इंसान के पास इफरात में दौलत आती है तो कई को शराब की लत लग जाती है. औफिस में पीना पिलाना नीटू की रोजमर्रा की आदत बन गई. रजनी को नीटू की अय्याशियों का पता तब चला, जब नीटू के गांव का ही रहने वाला सुधीर उर्फ लीलू नीटू के साथ धंधे में उस का पार्टनर बना.

रजनी बच्चों के साथ अक्सर नीटू के गांव भी जाती थी. गांव के दोस्त रजनी को नीटू की पत्नी होने के कारण भाभी कह कर बुलाते थे. नीटू ने लीलू को अपने ही घर में रहने के लिए एक कमरा दे दिया था. इसीलिए घर में रहतेरहते लीलू को रजनी से काफी लगाव हो गया था. उसे यह देखकर बुरा लगता कि 2 बच्चों का पिता बन जाने और घर में अच्छीखासी पत्नी होने के बावजूद नीटू अपनी कमाई बाजारू औरतों पर लुटाता है. रजनी से हमदर्दी के कारण एक दिन लीलू ने रजनी को नीटू की अय्याशियों के बारे में बता दिया. नीटू की बेवफाई और अय्याशियों के बारे में पता चलने के बाद रजनी ने उस पर निगाह रखनी शुरू कर दी और एकदो बार उसे औफिस में अय्याशी करते पकड़ भी लिया. इस के बाद रजनी व नीटू में अक्सर झगड़ा होने लगा.

नीटू की अय्याशी अब घर में कलह का कारण बन गई. इस दौरान नीटू ने इफरात में होने वाली आमदनी से निहाल विहार में ही एक और प्लौट खरीद कर उस पर भी एक मकान बना लिया था. उस ने उसी मकान को अपनी अय्याशी का नया अड्डा बना लिया. 2 बच्चों को जन्म देने के बाद रजनी का शरीर ढलने लगा था. उस में नीटू को अब वो आकर्षण नहीं दिखता था जो उसे रजनी की तरफ खींचता था. बात बढ़ती गई नीटू की अय्याशी की लत के कारण रजनी से उस की खटपट व झगड़े इस कदर बढ़ गए कि एक दिन रजनी दोनों बच्चों को छोड़ कर अपने मायके चली गई. दरअसल उन के बीच हुए इस अलगाव की वजह थी शिखा नाम की नीटू की प्रेमिका जिस के बारे में उसे पता चला था कि नीटू उस से शादी करने वाला है.

जब रजनी उसे छोड़ कर अपने मायके चली गई तो नीटू का रास्ता साफ हो गया, लिहाजा उस ने शिखा से शादी कर ली. शिखा के परिवार वालों ने नीटू के खिलाफ मुकदमा दर्ज करा दिया. साथ ही उन्होंने अपनी तहरीर में आरोप लगाया कि उन की बेटी नाबालिग है. लेकिन शिखा ने अदालत में इस बात का प्रमाण दे दिया कि वह बालिग है. इस पर अदालत ने उसे बालिग मान कर न सिर्फ नीटू के खिलाफ दर्ज मुकदमे को खारिज कर दिया बल्कि उस की शादी को भी वैध करार दिया. इस दौरान नीटू के दोनों बच्चे गांव में उस के मातापिता के पास रहने लगे थे. तब तक नीटू ने परिवार के अलावा गांव वालों को इस बात की भनक नहीं लगने दी थी कि उस ने रजनी को छोड़ कर दूसरी लड़की से शादी कर ली है.

चूंकि रजनी उस के बच्चों की मां थी इसलिए नीटू कभीकभी उसे बच्चों से मिलाने के लिए अपने साथ गांव ले जाता था. रजनी पहली पत्नी थी और उस से नीटू का कानूनी तलाक भी नहीं हुआ था, इसलिए जब वह उस के साथ शारीरिक संबध भी बनाता रहता था. रजनी भी कभी इनकार नहीं कर पाती थी. इसी दौरान लीलू ने अपनी निजी जरूरत के लिए नीटू से 12 लाख रुपए लिए और कुछ समय बाद वापस करने का वादा कर दिया. लेकिन काफी दिन बीत जाने पर भी जब वह पैसे वापस नहीं कर पाया तो नीटू ने उस पर दबाव बनाना शुरू कर दिया.

आखिर एक दिन ऐसी नौबत आई कि नीटू व लीलू में इस बात को ले कर खटपट इतनी बढ़ गई कि नीटू ने उस का हिसाबकिताब चुकता कर उसे पार्टनरशिप से हटा दिया. लेकिन इस के बावजूद नीटू के उस पर 10 लाख रुपए बकाया रह गए. अब नीटू जब भी बच्चों से मिलने के लिए गांव जाता तो लीलू पर अपनी रकम वापस करने का दबाव डालता था. कुछ इंसान गलतियों से भी सीख नहीं लेते. नीटू भी ऐसा ही इंसान था. दौलत की चमक ने उस में अय्याशी की जो भूख पैदा कर दी थी, उसे पूरा करने के बावजूद वह अय्याशियों से बाज नहीं आया. लिहाजा 2019 आतेआते नीटू का अपने ही दफ्तर में काम करने वाली एक लड़की ज्योति पर दिल आ गया और उस ने ज्योति से आर्यसमाज मंदिर में शादी कर के उसे किराए के एक मकान में रख दिया.

वह कभी शिखा के पास चला जाता तो कभी ज्योति की बाहों का हार बन जाता. लेकिन एक दिन शिखा पर उस की तीसरी शादी का राज खुल गया तो शिखा से उस का झगड़ा शुरू हो गया. आखिर एक दिन शिखा ने पुलिस बुला ली. जिस के बाद शिखा ने 4 लाख रुपए ले कर नीटू को तलाक दे दिया. जब ज्योति को इस बात का पता चला कि उस से पहले नीटू 2 शादी कर चुका है और इस के अलावा भी कई लड़कियों के साथ उस के संबंध हैं तो 2019 खत्म होतेहोते उस ने भी नीटू से नाता तोड़ लिया और तलाक का आवेदन कर दिया. उधर लीलू नीटू के कर्ज को ले कर परेशान था. वह नीटू की पत्नी रजनी के लगातार संपर्क में था और नीटू की तीनों शादियों के बारे में उसे भी बता दिया था.

इसी बीच जब ज्योति नीटू को छोड़ कर चली गई तो एक बार फिर उसे औरत की जरूरत महसूस होने लगी. इस बार उस ने शादी डौट कौम पर जीवनसाथी की तलाश कर एक ऐसी लड़की के साथ शादी करने का फैसला किया जो उस के दोनों बच्चों को भी अपना सके. नीटू की तलाश जल्द ही पूरी हो गई. गुरुग्राम में रहने वाली कविता भी जीवनसाथी खोज रही थी, जिस ने एक बच्चा होने के बाद अपने पति की शराब की लत से परेशान हो कर उसे तलाक दे दिया था. कविता संपन्न परिवार की लड़की थी. कविता के साथ बात आगे बढ़ी तो उस ने नीटू के दोनों बच्चों को अपनाने की सहमति दे दी. नीटू ने भी कविता की बेटी को पिता का नाम देने और उसे अपनाने की अनुमति दे दी.

सपना, सपना ही रह गया लौकडाउन के दौरान 20 मई को परिवार वालों की मौजूदगी में नीटू ने कविता से शादी कर ली. शादी के बाद नीटू कविता को ले कर अपने गांव भी गया और उसे दोनों बच्चों से भी मिलाया. नीटू ने फैसला कर लिया था कि कोरोना का चक्कर खत्म होने के बाद जब लौकडाउन पूरी तरह खत्म हो जाएगा तो दोनों बच्चों व कविता को उस की बेटी के साथ दिल्ली के मकान में ले आएगा. फिलहाल कविता अपनी बेटी के साथ अपने मायके में ही रह रही थी. इस दौरान सुधीर उर्फ लीलू के जरिए रजनी को यह बात पता चल गई कि नीटू ने फिर से चौथी शादी कर ली है.

इस बार उस ने जिस लड़की से शादी की है वो नीटू के परिवार को भी काफी पसंद आई है तो रजनी अपने भविष्य को ले कर चिंता में पड़ गई. क्योंकि नीटू ने एक तो उसे छोड़ दिया था, ऊपर से उसे खर्चा भी नहीं देता था. अगर कविता से उस के संबध सही रहे तो उस के दोनों बच्चे भी उस के हाथ से चले जाएंगे. ऐसे में न तो उसे नीटू की प्रौपर्टी में से कोई हिस्सा मिलेगा न ही उसे बच्चे मिलेंगे. लिहाजा उस ने लीलू को दिल्ली बुला कर कोई ऐसा उपाय करने को कहा जिस से उसे नीटू की प्रौपर्टी में हिस्सा मिल जाए. लीलू तो पहले ही नीटू से छुटकारा पाने की सोच रहा था. लिहाजा उस ने रजनी से कहा कि अगर नीटू की हत्या करा दी जाए तो न सिर्फ उस से छुटकारा मिल जाएगा बल्कि उस की प्रौपर्टी भी उसे ही मिल जाएगी.

एक बार इंसान के दिमाग में खुराफात समा जाए तो फिर अपने लालच को पूरा करने के लिए वह उसे अंजाम तक पहुंचा कर ही दम लेता है. रजनी ने लीलू से कहा कि अगर वह किसी कौंट्रेक्ट किलर से नीटू की हत्या करवा दे तो वह केवल नीटू का दिया कर्ज माफ कर देगी बल्कि नीटू का निहाल विहार वाला दूसरा मकान जिस की कीमत करीब एक करोड़ रुपए है, उस के नाम कर देगी. साथ ही उस ने ये भी कहा कि हत्या कराने के लिए जो भी खर्च आएगा वो उस का भी आधा खर्च उसे दे देगी. लीलू तो पहले ही अपने कर्ज से मुक्ति और नीटू से बदला लेने के लिए किसी ऐसे ही मौके की तलाश में था, अब तो उसे बड़ा फायदा होने की भी उम्मीद थी, लिहाजा उस ने रजनी की बात मान ली.

सुधीर उर्फ लीलू ने विकास की हत्या करने के लिए कौन्ट्रैक्ट किलर से संपर्क किया. बागपत के ही रोहित उर्फ पुष्पेंद्र, सचिन और रवि से उस की पुरानी जानपहचान थी. उस ने इस काम के लिए उन तीनों को 6 लाख की सुपारी देना तय किया. 3 लाख रुपए एडवांस दे दिए. लीलू ने उन्हें बता दिया था कि नीटू दिल्ली से अपने गांव आने वाला है, गांव में उस की हत्या को अंजाम देना है. 19 जून को दिन में ही लीलू ने हत्यारों को फोन कर के बता दिया था कि नीटू अपने घेर में बोरिंग करवा रहा है. घेर में उसे मारना बेहद आसान है, इसलिए आज ही मौका देख कर उस का खात्मा कर दें. शाम को रोहित नाम का बदमाश गांव में आया और लीलू से मिला. लीलू ने उसे नीटू का घेर दिखा दिया और अपने साथ ले जा कर रोहित को नीटू की शक्ल भी दिखा दी. उस के बाद वे लोग चले गए.

रात को करीब साढे़ 8 बजे जब पूरी तरह अंधेरा छा गया तो रोहित अपने दोनों साथियों रवि और सचिन के साथ स्पलेंडर बाइक पर गमछे बांध कर घेर पर पहुंचा और विकास उर्फ नीटू की गोली मार कर हत्या कर दी. पुलिस ने पूछताछ के बाद अभियुक्त रोहित के कब्जे से 1 लाख 20 हजार रुपए, घटना में प्रयुक्त एक स्पलेंडर बाइक, एक तमंचा 315 बोर और 2 जिंदा कारतूस बरामद कर लिए, जबकि नीटू की हत्या की सुपारी देने वाले आरोपी सुधीर उर्फ लीलू से 2 लाख रुपए नकद और स्कोडा कार बरामद हुई.  रजनी से 4 हजार रुपए बरामद किए गए.

रोहित से पूछताछ में पता चला कि 12 जून, 2020 को उस ने अपने 2 साथियों के साथ अब्दुल रहमान उर्फ मोनू पुत्र बाबू खान, निवासी बावली जोकि खल मंडी में एक आढ़ती के पास पल्लेदार का काम करता है, से 93,500 रुपए लूट लिए थे, इन्हीं पैसों से उन्होंने नीटू की हत्या के लिए हथियार खरीदे थे क्योंकि घटना को अंजाम देने के लिए हथियारों की व्यवस्था करने का काम शूटर्स का ही था. नीटू हत्याकांड के तीनों आरोपियों से पूछताछ के बाद पुलिस ने उन्हें अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. 2 फरार आरोपियों को पकड़ने के लिए पुलिस  प्रयास कर रही थी.

—कथा पुलिस व पीडि़त परिवार से मिली जानकारी पर आधारित

Aligarh News : पत्नी के समलैंगिक संबंधों के कारण में मारा गया पति

Aligarh News : 4 बच्चों की मां रूबी ने रजनी से बने समलैंगिक संबंधों के लिए अपने पति भूरी सिंह को रजनी के साथ मिल कर ठिकाने लगा दिया. बच्चों की तो छोडि़ए, अगर वह अपने और रजनी के भविष्य के बारे में सोचती तो…

जिला अलीगढ़, उत्तर प्रदेश. तारीख 10 मार्च, 2020. अलीगढ़ के थाना गांधीपार्क क्षेत्र की कुंवरनगर कालोनी. उस दिन होली थी. कुंवरनगर कालोनी के भूरी सिंह ने दोस्तों और परिचितों के साथ जम कर होली खेली. होली खेलने के बाद वह नहाधो कर सो गया. भूरी सिंह सटरिंग का काम करता था. शाम को सो कर उठने के बाद वह अपनी पत्नी रूबी से यह कह कर कि ठेकेदार से अपने रुपए लेने जा रहा है, घर से निकल गया. जब वह देर रात तक घर वापस नहीं आया तो पत्नी को उस की चिंता हुई. रात गहराने लगी तो रूबी ने किराएदार हरिओम की पत्नी रितू के मोबाइल से पति को फोन किया, लेकिन उस का फोन रिसीव नहीं हुआ.

दूसरे दिन 11 मार्च की सुबह 7 बजे लोगों ने कालोनी से निकलने वाले नाले में एक लाश उल्टी पड़ी देखी. इस जानकारी से कालोनी में सनसनी फैल गई. आसपास के लोग जमा हो गए. इसी बीच किसी ने पुलिस को सूचना दे दी. कुछ ही देर में थाना गांधी पार्क के थानाप्रभारी सुधीर धामा पुलिस टीम के साथ वहां पहुंच गए. इसी बीच भूरी सिंह की पत्नी रूबी को किसी ने नाले में लाश मिलने की जानकारी दी. रूबी तत्काल वहां पहुंच गई. थानाप्रभारी ने लाश को नाले से बाहर निकलवाया. मृतक की शिनाख्त घटनास्थल पर पहुंची उस की पत्नी रूबी व छोटे भाई किशन लाल गोस्वामी ने भूरी सिंह गोस्वामी के रूप में की.

थानाप्रभारी ने इस घटना की जानकारी अपने उच्चाधिकारियों को दे दी थी. कुछ ही देर में एसपी (सिटी) अभिषेक कुमार फोरैंसिक टीम के साथ मौकाएवारदात पर पहुंच गए. पति की लाश देख रूबी बिलखबिलख कर रो रही थी. मोहल्ले की महिलाओं ने उसे किसी तरह संभाला. पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया, फिर फोरैंसिक टीम ने भी जांच कर साक्ष्य जुटाए.  मृतक के मुंह पर टेप लगा था और उस के हाथपैर रस्सी से बंधे हुए थे. जांच के दौरान फोरैंसिक टीम ने देखा कि मृतक भूरी की गरदन पर चोट का निशान है. भूरी सिंह की हत्या किस ने और क्यों की, इस का जवाब किसी के पास नहीं था. सवाल यह भी था कि हत्यारे हत्या कर लाश को मृतक के छोटे भाई के घर के पास नाले में क्यों फेंक गए थे?

पुलिस का अनुमान था कि हत्यारे भूरी सिंह की हत्या किसी अन्य स्थान पर करने के बाद लाश को उस के छोटे भाई किशन गोस्वामी के घर के पास फेंक गए होंगे. होली का त्यौहार होने के कारण आवागमन कम होने से हत्यारों को लाश फेंकते किसी ने नहीं देखा होगा. पुलिस को मृतक की जेब से उस का मोबाइल भी मिल गया था. थानाप्रभारी ने रूबी से उस के पति के बारे में पूछताछ की. रूबी ने बताया, ‘मंगलवार रात 9 बजे पति के मोबाइल पर पेमेंट ले जाने के लिए ठेकेदार का फोन आया था. इस के बाद वह घर से निकल गए और फिर नहीं लौटे. काफी रात होने पर उन्हें फोन किया, लेकिन काल रिसीव नहीं हुई थी.’ परिवार वालों को यह जानकारी नहीं थी कि भूरी सिंह किस ठेकेदार के पास रुपए लेने गया था. पुलिस ने मौके की काररवाई निपटाने के बाद लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया.

दूसरे दिन पोस्टमार्टम की रिपोर्ट आई तो पता चला कि भूरी सिंह की हत्या तार अथवा रस्सी से गला घोटने से हुई थी. मृतक के भाई किशनलाल गोस्वामी की तहरीर पर पुलिस ने मृतक भूरी सिंह की पत्नी रूबी, उस के किराएदार डब्बू, डब्बू की पत्नी रजनी और दूसरे किराएदार हरिओम और डब्बू के एक दोस्त आसिफ के विरुद्ध हत्या का केस दर्ज कर लिया. रिपोर्ट में आरोप लगाया गया कि मृतक भूरी सिंह की पत्नी रूबी के किराएदार डब्बू से अवैध संबंध थे. इस का भूरी सिंह विरोध करता था. इस बात को ले कर रूबी और भूरी सिंह में आए दिन झगड़ा होता रहता था. घटना से 10 दिन पहले भी रूबी व किराएदार डब्बू ने मिल कर भूरी सिंह को पीटा था.

घटना वाली रात डब्बू ने अपने दोस्त आसिफ को घर बुलाया और पांचों नामजदों ने मिल कर भूरी की हत्या कर दी. हत्या के बाद लाश को मकान से कुछ दूर नाले में फेंक दिया. सुबह रूबी ने अपने आप को साफसुथरा दिखाने के लिए पुलिस को कपोलकल्पित कहानी सुनाई थी कि भूरी सिंह ठेकेदार से पेमेंट लेने गया था, जो लौट कर घर नहीं आया. पुलिस ने हत्या का मुकदमा दर्ज करने के बाद जांच शुरू कर दी. सीओ (द्वितीय) पंकज श्रीवास्तव ने बताया कि मृतक की लाश से उस का मोबाइल बरामद हुआ था, जिस की मदद से कुछ तथ्य सामने आए. पुलिस केस की गहनता से जांच कर रही थी. नतीजतन पुलिस ने घटना के दूसरे दिन ही इस हत्या की गुत्थी सुलझा ली.

दरअसल, पुलिस ने भूरी सिंह की हत्या के आरोप में मृतक की पत्नी रूबी व उस के किराएदार डब्बू की पत्नी रजनी को हिरासत में ले कर पूछताछ की. शुरुआती पूछताछ में दोनों पुलिस को बरगलाने की कोशिश करने लगीं. लेकिन जब सख्ती हुई तो दोनों एकदूसरे को देख कर टूट गईं और अपना जुर्म कुबूल कर लिया. 12 मार्च को एसपी (सिटी) अभिषेक कुमार ने पुलिस लाइन में प्रैसवार्ता के दौरान जो कुछ बताया, वह चौंकाने वाला था. दरअसल, सभी समझ रहे थे कि भूरी सिंह की हत्या उस की पत्नी रूबी के किराएदार डब्बू से अवैध संबंधों के बीच रोड़ा बनने के चलते की गई थी, लेकिन हकीकत कुछ और ही थी, जिसे सुन कर पुलिस ही नहीं सभी हक्केबक्के रह गए.

भूरी सिंह की हत्या का कारण था 2 महिलाओं के समलैंगिक संबंध. रूबी और रजनी ने अपना जुर्म कबूल कर लिया. दोनों ने इस हत्याकांड के पीछे जो कहानी बताई, वह चौंकाने वाली थी—

भूरी सिंह की हत्या पूरी प्लानिंग के तहत की गई थी. इन दोनों महिलाओं ने ही उस की हत्या की पटकथा एक माह पहले लिख दी थी, जिसे अंजाम तक पहुंचाया होली के दिन गया. भूरी सिंह की पहली पत्नी की मृत्यु के बाद उस का विवाह पत्नी की बहन यानी साली रूबी से करा दिया गया था. भूरी सिंह दूसरी पत्नी रूबी से उम्र में 11 साल बड़ा था. भूरी सिंह के पहली पत्नी से 3 बेटे व 1 बेटी थी. भूरी सिंह सीधेसरल स्वभाव का था. वह केवल अपने काम से काम रखता था. ऐसे व्यक्ति का सीधापन कभीकभी उस के लिए ही घातक साबित हो जाता है. भूरी सिंह जैसा था, उस की पत्नी रूबी ठीक उस के विपरीत थी. वह काफी तेज और चंचल स्वभाव की थी.

घर वालों ने उस की शादी भूरी सिंह से इसलिए की थी ताकि बहन के बच्चों की देखभाल ठीक से हो जाए. वह मजबूरी में भूरी सिंह का साथ निभा रही थी. अपनी ओर भूरी सिंह द्वारा ध्यान न देने से जवान रूबी की रातें करवटें बदलते कटती थीं. भूरी सिंह अपने बड़े भाई के मकान में किराए पर रहता था. पड़ोस में ही रजनी भी किराए के मकान में रहती थी. दोनों हमउम्र थीं. एकदूसरे के यहां आनेजाने के दौरान जानेअनजाने सोशल मीडिया पर अश्लील फोटो, वीडियो देखतेदेखते दोनों में नजदीकियां हो गईं, फिर दोस्ती गहरा गई.

दोनों के बीच समलैंगिक संबंध बन गए और एकदूसरे से पतिपत्नी की तरह प्यार करने लगीं. रूबी पत्नी तो रजनी पति का रिश्ता निभाने लगी. दोनों सोशल मीडिया की इस कदर मुरीद थीं कि अपना ज्यादातर समय मोबाइल पर बिताती थीं. दोनों अपने इस रिश्ते के वीडियो तैयार कर के टिकटौक पर भी अपलोड करती थीं. उन के कई वीडियो वायरल हो चुके थे. डब्बू और रजनी की शादी को 5 साल हो गए थे. उन का कोई बच्चा नहीं था. इसलिए भी दोनों महिलाओं के रिश्ते और गहरे हो गए. बाद में दोनों ने साथ रहने की कसमें खाते हुए कभी जुदा न होने का फैसला लिया.

इस बीच भूरी सिंह ने अपना मकान बनवा लिया था. रूबी और रजनी के बीच बने संबंध इस कदर प्रगाढ़ हो चुके थे कि घटना से एक साल पहले पति भूरी सिंह से जिद कर के रूबी ने अपने मकान की ऊपरी मंजिल पर एक कमरा और बनवा लिया था. फिर रजनी को उस के पति डब्बू के साथ किराएदार बना कर रख लिया, ताकि उन के संबंधों के बारे में किसी को पता न चल सके. एक ही मकान में रहने से अब दोनों महिलाएं बिना किसी डर के आपस में मिल लेती थीं. भूरी सिंह सटरिंग के काम के लिए सुबह ही निकल जाता था और देर शाम लौटता था. इस के चलते दोनों सहेलियों में पिछले 2 सालों में गहरे समलैंगिक संबंध बन गए थे. दोनों एकदूसरे से बिना मिले नहीं रह पाती थीं.

इन अनैतिक संबंधों को बनाए रखने के लिए दोनों काफी गोपनीयता बरतती थीं. फिर भी उन की पोल खुल ही गई. एक माह पहले ही भूरी सिंह को अपनी पत्नी रूबी  और किराएदार रजनी के बीच चल रहे अनैतिक संबंधों का पता चल गया. दोनों महिलाओं के बीच चल रहे प्रेम संबंधों का पता चलने के बाद भूरी सिंह के होश उड़ गए. वह परेशान रहने लगा. उस ने इन अनैतिक संबंधों को गलत बताते हुए विरोध किया. उस ने पत्नी रूबी को समझाया और रजनी से दूर रहने को कहा. इन्हीं संबंधों को ले कर दोनों में विवाद होने लगा. भूरी सिंह ने रूबी को सुधर जाने की हिदायत देते हुए कहा कि वह अपने मकान में रजनी को किराएदार नहीं रखेगा.

दूसरे दिन भूरी सिंह के काम पर जाने के बाद रूबी ने यह बात रजनी को बताई. भूरी सिंह उन के प्रेम संबंधों में बाधक बन रहा था, इस से दोनों परेशान हो गईं. काफी विचारविमर्श के बाद दोनों ने राह के रोड़े भूरी सिंह को रास्ते से हटाने का फैसला कर लिया. इस के बाद भी दोनों के संबंध चलते रहे. हां, अब दोनों थोड़ी होशियारी से मिलती थीं. होली वाले दिन शाम को रूबी और रजनी ने भूरी सिंह को जम कर शराब पिलाई. इस के चलते भूरी सिंह नशे में बेसुध हो गया, तो दोनों ने उस के हाथपैर रस्सी से बांधे और मुंह पर टेप लगाने के बाद रस्सी से गला घोंट कर हत्या कर दी.

रात होने पर दोनों ने लाश को पड़ोस में रहने वाले छोटे भाई किशनलाल के घर के पास नाले में फेंक दिया ताकि शक भाई  के ऊपर जाए. बुधवार को कुंवर नगर कालोनी में नाले में उस का शव मिला. पुलिस द्वारा पूछताछ करने पर रूबी ने अफवाह फैला दी कि उस का पति भूरी सिंह ठेकेदार से रुपए लेने की बात कह कर घर से निकला था, लेकिन देर रात तक जब घर वापस नहीं आया, तब उस ने किराएदार हरिओम की पत्नी रितू के फोन से काल थी. जबकि हकीकत वह स्वयं जानती थी. पुलिस ने इस हत्याकांड का खुलासा करने के साथ ही दोनों महिलाओं की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त रस्सी व टेप बरामद कर लिया. दोनों महिलाओं को न्यायालय में पेश करने के बाद जेल भेज दिया गया.

हालांकि भारतीय दंड संहिता की धारा-377 को वैध कर दिया गया है यानी समलैंगिकता अब हमारे देश में कानूनन अपराध नहीं है, अर्थात आपसी सहमति से 2 व्यस्कों के बीच समलैंगिक संबंध अब अपराध नहीं रहा. लेकिन हमारे देश में अभी तक इसे पूरी तरह अपनाया नहीं गया है. इसी के चलते लोग अपने संबंधों को समाज में स्थापित करने के लिए अपराध की राह पर चल पड़ते हैं. भूरी सिंह हत्याकांड के पीछे भी यही कारण प्रमुख रहा. दोनों महिलाओं के अनैतिक संबंधों के चलते उन के परिवार उजड़ गए. भूरी सिंह की मौत के बाद उस के चारों अबोध बच्चे अनाथ हो गए.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Maharashtra Crime : खाने में जहर खिलाकर पति को मार डाला

Maharashtra Crime : जब महिलाएं पति की व्यस्तता या किसी मजबूरी की वजह से अन्य पुरुष से संबंध बनाती हैं, तब उन्होंने कल्पना भी नहीं की होती है कि यह उन की बरबादी की शुरुआत है. सेना के जवान संजय की पत्नी शीतल ने भी यही किया. नतीजा यह निकला कि उस का पति संजय…

38 वर्षीय संजय भोसले महाराष्ट्र के जनपद सतारा के गांव एक्सल का रहने वाला था. उस के पिता पाडूरंग भोसले की जो थोड़ीबहुत खेती की जमीन थी, उस की उपज से वह परिवार का भरणपोषण कर रहे थे. गांव में उन की काफी इज्जत और प्रतिष्ठा थी. वह सीधेसरल स्वभाव के व्यक्ति थे. संजय भोसले एक महत्त्वाकांक्षी युवक था. उस की नौकरी भारतीय थल सेना में बतौर ड्राइवर लग गई थी. पुणे में 6 माह की ट्रेनिंग के बाद उस की पोस्टिंग हो गई थी. संजय की नौकरी लग चुकी थी, इसलिए मातापिता उस की शादी करना चाहते थे.

मराठी समाज में जब लड़की शादी योग्य हो जाती है तो लड़की वाले लड़के की तलाश में नहीं जाते, बल्कि लड़के वालों को ही लड़की की तलाश करनी होती है. इसलिए पाडूरंग भोसले भी बेटे संजय के लिए लड़की की तलाश में जुट गए. उन्होंने जब यह बात अपने नाते रिश्तेदारों और जानपहचान वालों में चलाई तो उन के एक रिश्तेदार ने शीतल जगताप का नाम सुझाया. 28 वर्षीय शीतल पुणे शहर के तालुका बारामती, गांव ढाकले के रहने वाले बवन विट्ठल जगताप की बेटी थी. खूबसूरत होने के साथसाथ वह उच्चशिक्षित भी थी. वह डी.फार्मा कर चुकी थी. पाडूरंग भोसले ने बवन विट्ठल से मुलाकात कर अपने बेटे संजय के लिए उन की बेटी शीतल का हाथ मांगा.

संजय पढ़ालिखा था और सेना में नौकरी कर रहा था, इसलिए विट्ठल ने सहमति दे दी. फिर घरवालों ने शीतल और संजय की मुलाकात कराई. हालांकि संजय शीतल से 10 साल बड़ा था, लेकिन वह सरकारी मुलाजिम था, इसलिए शीतल ने उसे पसंद कर लिया. बाद में सामाजिक रीतिरिवाज से अक्तूबर 2008 में दोनों का विवाह हो गया. जहां संजय शीतल को पा कर अपने आप को खुशनसीब समझ रहा था, वहीं शीतल भी मजबूत कदकाठी वाले फौजी संजय से शादी कर के गर्व महसूस कर रही थी. लेकिन शीतल का यह वहम शीघ्र ही धराशायी हो गया. शीलत के हाथों की मेंहदी का रंग अभी छूटा भी नहीं था कि संजय की छुट्टियां खत्म हो गईं. अपनी नईनवेली दुलहन शीलत को उस के मायके छोड़ कर संजय को अपनी ड्यूटी पर जाना पड़ा. जबकि शीतल चाहती थी कि संजय उस के पास कुछ दिन और रहे.

एक खतरनाक इलाके में पोस्टिंग होने के कारण संजय को बहुत कम छुट्टी मिलती थी. ऐसे में शीतल को ज्यादातर समय अपने मायके और ससुराल में ही बिताना पड़ता था. साल दो साल में जब भी संजय को छुट्टी मिलती तभी वह घर आ पाता था. इस बीच शीतल एक बच्चे की मां बन गई थी. आज के जमाने में कोई भी पत्नी अपने पति से दूर नहीं रहना चाहती. लेकिन किसी मजबूरी के चलते उसे समझौता करना पड़ता है. यही हाल शीतल का भी था. उसे अपने मन और तन की प्यास को दबाना पड़ा था. 8 साल इसी तरह बीत गए. इस के बाद संजय का ट्रांसफर पुणे के सेना कैंप में हो गया. शीतल के लिए यह खुशी की बात थी. यहां उसे रहने के लिए सरकारी आवास भी मिल गया था, सो संजय शीतल को पुणे ले आया.

पति के संग रह कर शीतल खुश तो जरूर थी. लेकिन वह खुशी अभी भी उसे नहीं मिल रही थी, जो एक औरत के लिए ज्यादा महत्त्वपूर्ण होती है. यहां भी संजय पत्नी को पूरा समय नहीं दे पाता था. भटकने लगा शीतल का मन हालांकि शीतल 10 वर्षीय बच्चे की मां थी. लेकिन हसरतें अभी भी जवान थीं, जो पति के संपर्क के लिए तरस रही थीं. शीतल का दिन तो बच्चे और घर के कामों में गुजर जाता था लेकिन रात उस के लिए पहाड़ सी बन जाती. एक कहावत है कि नारी सहनशील और बड़े ही धीरज वाली होती है. लेकिन थोड़ी सी सहानुभूति पाने पर वह बहुत जल्दी बहक भी जाती है और उस का फायदा कुछ मनचले लोग उठा लेते हैं.

यही हाल शीतल का भी हुआ. उस के कदम बहक गए. जिस का फायदा योगेश कदम ने उठाया. वह उस की निजी जिंदगी में कब आ गया, इस का शीतल को आभास ही नहीं हुआ. संजय को जो सरकारी क्वार्टर मिला था, किसी वजह से 3 साल बाद उसे वह छोड़ना पड़ा. वह अपनी फैमिली ले कर पुणे के नखाते नगर स्थित अंबर अपार्टमेंट की दूसरी मंजिल के फ्लैट में आ गया. जिस फ्लैट में संजय भोसले अपनी पत्नी और बच्चे को ले कर रहने के लिए आया था. उसी के ठीक सामने वाले फ्लैट में योगेश कदम रहता था. वह एक कैमिकल कंपनी में नौकरी करता था. पड़ोसी होने के नाते पहले ही दिन दोनों का परिचय हो गया. बाद में योगेश का संजय के यहां आनाजाना शुरू हो गया.

अविवाहित योगेश कदम ने जब से शीतल को देखा था, तब से वह उस का दीवाना हो गया था. ऐसा ही हाल शीतल का भी था. जबजब वह योगेश कदम को देखती, उस के मन में एक हूक सी उठती थी. शारीरिक रूप से भी योगेश कदम उस के पति संजय भोसले से ज्यादा मजबूत था. जबजब दोनों की नजरें एकदूसरे से टकरातीं, दोनों के दिलों में हलचल सी मच जाती थी. उन की नजरों में जो चमक होती थी, उसे अच्छी तरह से महसूस करते थे. यही कारण था कि उन्हें एकदूसरे के करीब आने में समय नहीं लगा. योगेश कदम यह बात अच्छी तरह से जानता था कि शीतल अकसर घर में अकेली रहती है. बच्चे को स्कूल छोड़ने के बाद और कभीकभी संजय भोसले की नाइट ड्यूटी लग जाने पर योगेश को शीतल से बात करने का मौका मिल जाता था.

बाद में उस ने शीतल के पति संजय से भी दोस्ती बढ़ा ली, जिस के बहाने वह जबतब शीतल के घर आनेजाने लगा. इस तरह शीतल और योगेश के बीच अवैध संबंध कायम हो गए. जब एक बार मर्यादा की सीमा टूटी तो टूटती ही चली गई. जब भी शीतल और योगेश कदम को मौका मिलता, अपने तनमन की प्यास बुझा लेते थे. योगेश कदम से मिलन के बाद शीतल खुश रहने लगी. उस के चेहरे का रंगरूप बदल गया. वह योगेश के प्यार में इतनी दीवानी हो गई थी कि अब वह पति संजय भोसले की उपेक्षा भी करने लगी. पत्नी के इस बदले रंगरूप और व्यवहार को पहले तो संजय समझ नहीं पाया. लेकिन जब तक समझ पाया, तब तक काफी देर हो चुकी थी.

मामला नाजुक था. लिहाजा एक दिन संजय ने पत्नी को काफी समझाया मानमर्यादा और समाज की दुहाई दी, लेकिन शीतल पर उस की बातों का कोई असर नहीं हुआ. पहले तो शीतल घर में ही योगेश के साथ रंगरलियां मनाती थी लेकिन जब संजय ने उस पर निगाह रखनी शुरू कर दी तो वह प्रेमी के साथ मौल और रेस्टोरेंट वगैरह में आनेजाने लगी. जब यह बात संजय को पता चली तो उस ने पत्नी पर सख्ती दिखानी शुरू कर दी. तो इस से शीतल बगावत पर उतर आयी. नतीजा मारपीट तक पहुंच गया. दोनों के बीच अकसर रोजाना ही झगड़ा होता. रोजरोज की कलह से शीतल भी उकता गई. लिहाजा उस ने प्रेमी के साथ मिल कर पति को ही ठिकाने लगाने की योजना बना ली,

लेकिन किसी कारणवश यह योजना सफल नहीं हो सकी. पत्नी की हरकतों से तंग आ कर आखिरकार संजय भोसले ने कहीं दूर जा कर रहने का फैसला किया. यह करीब 5 महीने पहले की बात है. बनने लगी बरबादी की भूमिका साल 2019 के अक्तूबर माह में एक माह की छुट्टी ले कर संजय भोसले ने अपना घर बदल दिया. वह पत्नी और बच्चे को ले कर पुणे के नखाते कालेबाड़ी स्थित एक सोसाइटी में आ गया. लेकिन उसे यहां भी राहत नहीं मिली. शीतल के व्यवहार में जरा भी परिवर्तन नहीं आया. बच्चे के स्कूल और पति के ड्यूटी पर जाने के बाद शीतल फोन कर योगेश को फ्लैट पर बुला लेती थी. किसी तरह यह जानकारी संजय को मिल जाती थी. पत्नी की हठधर्मिता से वह इस प्रकार टूट गया कि उस ने शराब का सहारा ले लिया. शराब के नशे में वह पत्नी को अकसर मारतापीटता था.

इस के अलावा अब वह कभी भी वक्तबेवक्त घर आने लगा, जिस से शीतल और योगेश के मिलनेजुलने में परेशानियां खड़ी हो गईं. इस से छुटकारा पाने के लिए शीतल ने फिर वही योजना बनाई, जो पहले बनाई थी. मौका देख कर शीतल ने योगेश कदम से कहा, ‘‘योगेश तुम अगर मुझ से प्यार करते हो और मुझे पूरी तरह अपना बनाना चाहते हो तो तुम्हें संजय के लिए कोई कठोर कदम उठाना होगा, मतलब उसे हम दोनों के बीच से हटाना पड़ेगा.’’ योगेश कदम भी यही चाहता था. वह इस के लिए तुरंत तैयार हो गया. 8 नवंबर, 2019 की सुबह करीब 5 बजे शिवपुर पुलिस चौकी पर तैनात एसआई समीर कदम को जो सूचना मिली उसे सुन कर वह चौंके.

सूचना देने वाले एंबुलेंस ड्राइवर सूफियान मुश्ताक मुजाहिद, निवासी गांव बेलु, जनपद पुणे ने उन्हें बताया कि शिवपुर टोलनाका क्रौस पुणे सतारा हाइवे पर स्थित होटल गार्गी और कंदील के बीच सर्विस रोड पर एक युवक बुरी तरह घायल पड़ा है. एसआई समीर कदम ने बिना किसी विलंब के इस मामले की जानकारी रायगढ़ थानाप्रभारी दत्तात्रेय दराड़े के अलावा पुलिस कंट्रोलरूम को दी और अपने सहायकों के साथ घटनास्थल की ओर रवाना हो गए. घटनास्थल पर पहुंच कर एसआई अभी वहां का मुआयना कर ही रहे थे कि थानाप्रभारी दत्तात्रेय दराड़े, एसपी संदीप पाटिल और एएसपी अन्नासो जाधव मौकाएवारदात पर आ गए. तब तक वहां पड़ा युवक मर चुका था. उसे देख कर मामला रोड ऐक्सीडेंट का लग रहा था. इसलिए घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण कर शव पोस्टमार्टम के लिए पुणे के ससून अस्पताल भेज दिया गया.

पुलिस को घटना से एक मोबाइल फोन, ड्राइविंग लाइसेंस और एक डायरी मिली, जिस से पता चला कि मृतक का नाम संजय भोसले है. पुलिस ने फोन से उस की पत्नी शीतल का फोन नंबर हासिल कर के उसे पुलिस चौकी शिवपुर बुला लिया. संजय भोसले की पत्नी शीतल ने संजय भोसले के मोबाइल फोन और ड्राइविंग लाइसेंस को पहचान लिया और दहाड़े मारमार कर रोने लगी. पूछताछ में शीतल ने कहा कि उसे नहीं पता है कि संजय घटनास्थल तक कैसे पहुंच गए. आखिर सच आ ही गया सामने शीतल ने आगे बताया कि कल रात उन्होंने परिवार के साथ खाना खाया था. रात 10 बजे के करीब उसे और बच्चे को सोने के लिए बेडरूम में भेज कर खुद हाल में सो गए थे. इस के बाद क्या हुआ, वह कुछ नहीं जानती.

मामला काफी उलझा हुआ था. जांच अधिकारी ने उस समय तो शीतल को घर जाने दिया था. लेकिन उन्होंने उसे क्लीन चिट नहीं दी. उन्हें शीतल के घडि़याली आंसुओं पर संदेह था. बाकी की रही सही कसर पोस्टमार्टम रिपोर्ट ने पूरी कर दी. रिपोर्ट में बताया गया कि मामला दुर्घटना का नहीं है, उसे सल्फास नामक जहरीला पदार्थ दिया गया था, जिस का सेवन तकरीबन 12 घंटे पहले किया गया था. यह जहर कहां से आया, क्यों आया यह जांच का विषय था. पुलिस टीम ने जब गहराई से जांचपड़ताल की और शीतल के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स देखी तो तो वह पुलिस के रडार पर आ गई.

पुलिस ने जब शीतल से सख्ती से पूछताछ की तो वह टूट गई और अपना गुनाह कबूल कर के प्रेमी योगेश कदम और उस के सहयोगियों का नाम बता दिए. उस ने बताया कि जिस जहरीले पदार्थ से संजय की मौत हुई, वह जहर 7 नवंबर, 2019 को योगेश कदम अपनी कंपनी से लाया था. उस ने वही जहर संजय के खाने में मिला दिया था. जहर खाने से जब उस की मौत हो गई तब उस ने योगेश को वाट्सएप मैसेज भेज कर जानकारी दे दी थी. अब समस्या संजय के शव को ठिकाने लगाने की थी. योगेश ने अपने 2 दोस्तों मनीष कदम और राहुल काले के साथ मिल कर इस का बंदोबस्त पहले ही कर रखा था. उन्होंने एक कार किराए पर ली, उस कार से योगेश रात 2 बजे के करीब शीतल के घर पहुंचा और अपने दोस्तों के साथ संजय भोसले के शव को कार में डाल लिया,

जिसे ये लोग यह सोच कर पुणे सतारा रोड की सर्विस लेन पर डाल आए कि मामला दुर्घटना का लगेगा, लेकिन इस में वह कामयाब नहीं हो सके. शीतल से विस्तृत पूछताछ करने के बाद पुलिस ने मामले के अन्य अभियुक्तों की धड़पकड़ तेज कर दी और जल्दी ही संजय भोसले हत्याकांड के सभी अभियुक्तों को गिरफ्तार कर लिया. गिरफ्तार शीतल संजय भोसले, योगेश कमलाकर राव कदम, मनीष नारायन कदम और राहुल अशोक काले को थानाप्रभारी ने अपने वरिष्ठ अधिकारियों के समक्ष पेश किया. उन्होंने भी आरोपियों से पूछताछ की. इस के बाद उन्हें भादंवि की धारा 302, 201, 120बी, 109 के तहत गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश कर पुणे की नरवदा जेल भेज दिया.

 

Bihar Crime : प्रेमी संग रची साजिश और पति को शराब पिला कर हमेशा के लिए सुला दिया

Bihar Crime : लड़कियों या महिलाओं पर बुरी नजर वालों को पता होता है कि उन तक पहुंचने के लिए पहली सीढ़ी उन की तारीफ करना है. रतन ने इसी युक्ति से पुष्पा को पटाया. पति से नाखुश पुष्पा उस के प्रेमजाल में फंस गई और फिर दोनों ने मिल कर…

सांवले रंग का धनंजय सामान्य कदकाठी वाला युवक था. उस की एकमात्र खूबी यही थी कि वह सरकारी नौकरी में था. कहने का अभिप्राय यह कि वह जिंदगी भर अपने परिवार का बोझ अपने कंधों पर उठा सकता था. बिहार के जिला गोपालगंज के बंगरा बाजार निवासी रामजी मिश्रा ने धनंजय की यही खूबी देख कर उस से अपनी बेटी ब्याही थी. मांबाप ने कहा और खूबसूरत पुष्पा शादी के बंधन में बंध कर मायके की ड्योढ़ी छोड़ ससुराल आ गई. लेकिन उसे धक्का तब लगा, जब उस ने पति को देखा. वह जरा भी उस के जोड़ का नहीं था. पत्नी यदि खूबसूरत हो तो पति उस के हुस्न का गुलाम बन ही जाता है. धनंजय भी पुष्पा का शैदाई बन गया. पुष्पा ने धनंजय की कमजोरी का फायदा उठा कर उसे अपनी उंगलियों पर नचाना शुरू कर दिया.

पुष्पा को धनंजय चाहे जैसा लगा हो, लेकिन धनंजय खूबसूरत, पढ़ीलिखी बीवी पा कर खुश था. धनंजय सुबह 9 बजे घर से निकलता था, तो फिर रात 8 बजे के पहले घर नहीं लौटता था. पीडब्ल्यूडी में लिपिक के पद पर कार्यरत धनंजय की ड्यूटी पड़ोसी जिले सीवान में थी. धनंजय को अपने गांव अमवां से सीवान आनेजाने में 2 घंटे लग जाते थे. धनंजय को जितनी पगार मिलती थी, वह पूरी की पूरी पुष्पा के हाथ पर रख देता था. धंनजय के 2 भाई और थे, बड़ा रंजीत और छोटा राजीव. रंजीत मुंबई में तो राजीव दिल्ली में नौकरी करता था. विवाह के बाद से ही धनंजय पुष्पा के साथ अलग घर में रह रहा था. कालांतर में पुष्पा 2 बच्चों की मां बनी. एक बेटा था सौरभ और एक बेटी साक्षी.

गत वर्ष मई महीने में धनंजय के साले का विवाह देवरिया की भुजौली कालोनी में हुआ था. विवाह में धनंजय पांडे की मुलाकात दुलहन के चचेरे भाई रतन पांडे से हुई. मुलाकात के दौरान दोनों की काफी बातें हुई. इसी बातचीत के दौरान धनंजय ने उस से देवरिया में मकान किराए पर दिलाने को कहा तो रतन ने हामी भर दी. विवाह में शामिल  होने के बाद धनंजय और पुष्पा बच्चों के साथ वापस लौट आए. रतन पांडे देवरिया के थाना गौरीबाजार के सिरजम हरहंगपुर निवासी सुभाष पांडेय का बेटा था. सुभाष पांडेय टीवी मैकेनिक थे. 24 वर्षीय रतन 4 बहनों में दूसरे नंबर का था. इंटर पास रतन देवरिया में मोबाइल कंपनी ‘एमआई’ के कस्टमर केयर सेंटर में नौकरी करता था और देवरिया खास में ही किराए पर कमरा ले कर रह रहा था.

धनंजय से बात होने के कुछ ही दिनों के अंदर रतन ने धनंजय को शहर के इंदिरा नगर मोहल्ले में सौरभ श्रीवास्तव का मकान किराए पर दिलवा दिया. धनंजय अपनी पत्नी पुष्पा और दोनों बच्चों के साथ उसी मकान में रहने लगा. बिहार का सीवान जिला उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले की सीमा से सटा है. इसलिए धनंजय को वहां से सीवान जाने में कोई दिक्कत नहीं होती थी, वह अपनी ड्यूटी पर रोजाना आनेजाने लगा. बच्चों का एडमीशन भी पास के एक स्कूल में करा दिया था. धनंजय रोजाना सुबह निकल जाता और देर रात वापस लौटता था. बच्चे भी स्कूल चले जाते थे. पुष्पा घर पर अकेली रह जाती थी. ऐसे में रतन का पुष्पा के पास आनाजाना बढ़ गया. रतन पुष्पा की खूबसूरती पर पहले ही मर मिटा था.

इसीलिए उस ने पुष्पा के नजदीक रहने के लिए धनंजय को देवरिया में किराए पर मकान दिलवाया था. धनंजय के कहने पर वह उस के बच्चों सौरभ और साक्षी को ट्यूशन पढ़ाने लगा था. बच्चों के जन्म के बाद से धनंजय अब पुष्पा में पहले जैसी रुचि नहीं लेता था. वैसे भी जैसेजैसे वैवाहिक जीवन आगे बढ़ता है, कई पतिपत्नी एकदूसरे में दोष खोजने लगते हैं, जो उन के बीच विवाद की जड़ बनते हैं. धनंजय भी पुष्पा में कमियां निकालने लगा था. वैसे भी पुष्पा को तो वह कभी नहीं भाया था, किसी तरह उस के साथ अपनी जिंदगी काट रही थी. जब धनंजय उस के दोष और गलतियां निकालता था तो पुष्पा के अंदर दबा गुस्सा गुबार बन कर बाहर निकल पड़ता था, जिस पर धनंजय उस की पिटाई कर देता था. ऐसा अधिकतर धनंजय के शराब के नशे में होने पर ही होता था. धनंजय मारपिटाई पर उतर आया तो पुष्पा को उस से हद से ज्यादा नफरत हो गई.

रतन ने उस के घर आना शुरू किया तो पुष्पा की नजर उस पर टिकने लगीं. रतन गोराचिट्टा, स्मार्ट और कुंवारा था. पुष्पा ने ऐसे ही युवक की कामना की थी. विवाह से पहले उस की 2 ही इच्छाएं थीं, एक तो उस का जीवनसाथी सरकारी नौकरी वाला हो और दूसरा वह खूबसूरत व स्मार्ट हो. उस की जोड़ी उस के साथ ‘रब ने बना दी जोड़ी’ जैसी हो. उस की एक इच्छा तो पूरी हो गई थी लेकिन दूसरी इच्छा ने उसे रूला दिया. धनंजय ने कभी भी पुष्पा की तारीफ  नहीं की थी, लेकिन रतन पुष्पा की जम कर तारीफ करता था, साथ ही हंसीमजाक भी. पुष्पा सोचती थी कि रतन को सुंदरता की कद्र करनी आती है, लेकिन धनंजय को नहीं.

रतन लतीफे सुना कर पुष्पा को खूब हंसाता था. उस की पसंदनापसंद की चीजों का ख्याल रखता था. पुष्पा साड़ी या सलवारसूट पहनती तो उसे अपनी राय बताता. इन बातों से पुष्पा मन ही मन बहुत खुश होती. धीरेधीरे पुष्पा को भी रतन की आदत पड़ गई. उस के बिना अब उसे अच्छा नहीं लगता, घर में सब सूनासूना सा महसूस होता. रतन ने पुष्पा को इतनी खुशियां दीं कि वह सोचने को मजबूर हो गई कि काश! मेरा पति रतन जैसा होता, तो कितना अच्छा होता…?

एकांत क्षणों में पुष्पा, रतन की तुलना धनंजय से करने लगती और यह सोच कर मायूस हो जाती कि धनंजय रतन के आगे किसी मामले में नहीं ठहरता. पुष्पा रतन के बारे में ज्यादा सोचती तो उस का मन उस की बांहों में ही सिमटने को मचल उठता. पुष्पा और रतन की निगाहों में एकदूसरे के लिए तड़प भरी रहती थी. पानी का गिलास, चाय का कप लेतेदेते हुए दोनों की अंगुलियों का स्पर्श होता तो दोनों ही ओर चिंगारियां छूटने लगतीं. पुष्पा का रतन रतन का व्यक्तित्व पुष्पा के दिल में हलचल मचाए हुए था तो पुष्पा की आकर्षक देहयष्टि रतन के युवा मन में सरसराहट भरती रहती थी. वह पुष्पा से बिना नजरें मिलाए उस का दीदार करता रहता. उसे पूरी तरह पा कर न सही, स्पर्श कर के ही सुख लूटता रहता.

रतन कुछ कारणों से अपने गांव चला गया तो पुष्पा खुद को फिर तन्हा महसूस करने लगी. उसे ऐसा लगा, जैसे उस की रूह निकल कर चली गई हो और मुरदा जिस्म वहां रह गया हो. धनंजय सीवान से अपनी ड्यूटी से वापस लौटता, रात में जब वह उस से संसर्ग करता, तब भी वह मुर्दों की तरह निष्क्रिय पड़ी रहती. धनंजय उस के व्यवहार से इसलिए स्तब्ध नहीं हुआ, क्योंकि वह जानता था कि पुष्पा उस से बिलकुल खुश नहीं है. उधर गांव गए रतन का हाल भी ऐसा ही था. पुष्पा को याद कर के वह रात भर करवटें बदलता रहता, आंखें बंद करता तो सपने में पुष्पा ही नजर आती. जो वह हकीकत में करने की ख्वाहिश रखता था, उसे कल्पना में ही कर के खुद को तसल्ली दे लेता था.

आखिर रतन गांव से शहर लौटा तो पुष्पा से मिलने गया. पुष्पा उस समय अकेली थी. उसे रतन की यादों ने बेहाल कर रखा था. रतन को देखते ही पुष्पा का चेहरा खिल उठा. रतन के अंदर आते ही पुष्पा ने लपक कर दरवाजा बंद कर दिया. फिर नाराजगी प्रकट करते हुए बोली, ‘‘क्या इस तरह मुझे तड़पाना अच्छा लगता है तुम्हें?’’

‘‘मैं समझा नहीं.’’ रतन अंजान बनते हुए बोला.

‘‘कितने दिन हो गए तुम्हें. मैं तुम्हारी सूरत देखने को तरस गई थी.’’ पुष्पा ने शिकायती लहजे में कहा.

‘‘सच,’’ रतन खुश होते हुए बोला,‘‘मैं यही सुनने को तो गैरहाजिर था. मैं देखना चाहता था कि तुम्हारे दिल में मेरे लिए कितनी चाहत है. अगर ऐसा नहीं करता, तो तुम शायद आज अपने दिल की बात मुझ से न कहतीं.’’

‘‘तुम सच कह रहे हो रतन. तुम ने मुझ पर न जाने कैसा जादू कर दिया है कि मैं हर पल तुम्हारे बारें में ही सोचती रहती हूं.’’ कहते हुए उस ने रतन के गले में बांहें डाल दीं.

‘‘यही हाल मेरा भी है पुष्पा. जिस दिन तुम्हारा दीदार नहीं होता, वह दिन पहाड़ सा लगता है.’’ पुष्पा की पतली कमर में हाथ डालते हुए रतन ने उसे अपने करीब खींचा और उस के होंठों पर अपने होंठ रख दिए.

पुष्पा के होंठों में ऐसी तपन थी, कि रतन को लगा जैसे उस ने अंगारों को छू लिया हो. पुष्पा के होंठों से अपने होंठ अलग करते हुए उस ने पुष्पा की सुरमई आंखों में झांका, तो लगा जैसे उन में पूरा मयखाना समाया हो. पुष्पा की नशीली आंखों, फूलों जैसे रुखसार, सुराही जैसी गरदन और उस के नाजुक अंगों को देख कर रतन के रोमरोम में लहर सी दौड़ गई. गजब तो तब हुआ, जब पुष्पा ने अपने बंधे हुए गेसू खोल दिए. थोड़ी देर पहले ही उस ने सिर धोया था. सावन की घटाओं से भी श्यामवर्ण गेसू कमर के नीचे उभारों को छूने लगे, तो रतन बोल पड़ा, ‘‘वाह पुष्पा, क्या लाजवाब हुस्न है तुम्हारा.’’

पुष्पा ने खिलखिला कर हंसते हुए पूछा, ‘‘वो कैसे?’’

‘‘आइने में देख लो, खुद समझ जाओगी.’’

‘‘वो तो मैं तुम्हारी आंखों में देख कर समझ रही हूं.’’

‘‘क्या देख रही हो मेरी आंखों में?’’ रतन ने पूछा.

‘‘बेईमानी. किसी का माल हड़पने के लिए नीयत खराब कर रहे हो.’’ पुष्पा ने हौले से रतन के गाल पर चपत लगाई.

‘‘अगर वह माल लाजवाब और मीठा हो तो उसे उठा कर मुंह में रख लेने में कैसी झिझक. सच में दिल कर रहा है कि आज मैं तुम्हें लूट ही लूं.’’

‘‘तो रोका किस ने है?’’ कहते हुए पुष्पा रतन के गले से झूल गई और बोली,‘‘आओ लूट लो मेरे हुस्न के इस अनमोल खजाने को. मैं तो कब से तुम्हें सौंपने को बेताब थी.’’

रतन का गला सूखने लगा था, ‘‘कोई आ गया तो?’’

‘‘कोई नहीं आ रहा अभी, तुम निश्चिंत रहो.’’

इस के बाद दोनों वासना के खेल में डूबते चले गए. घर की तनहाई दोनों के दिलों की ही नहीं जिस्मों के मिलन की भी साक्षी बन गई. इस के बाद तो रोज ही उन के बीच यह खेल खेला जाने लगा. रतन ने पुष्पा को दिया अपने नाम वाला सिम रतन ने पुष्पा को एक सिम खरीद कर दे दिया. उस ने सिम को अपने मोबाइल में डाल लिया. पुष्पा इस सिम का इस्तेमाल केवल रतन से बात करने के लिए करती थी. धनंजय की अनुपस्थिति में रतन पूरे दिन पुष्पा के साथ उस के घर में मौजूद रहता. उस के साथ समय बिताता तो उन पलों को अपने स्मार्टफोन में भी कैद कर लेता. वह अपने मोबाइल से अंतरंग पलों के फोटो और वीडियो भी बनाता था.

18 अप्रैल की सुबह बंद चीनी मिल के परिसर में कुछ युवक लकड़ी लेने गए. इस बीच उन की नजर एक पेड़ के नीचे पड़ी एक लाश पर गई. उन्होंने आसपास के लोगों को बताया तो चंद मिनटों में वहां काफी भीड़ इकट्ठा हो गई. 112 नंबर पर काल कर के पुलिस को लाश मिलने की सूचना दी गई. घटनास्थल थाना कोतवाली देवरिया में आता था, इसलिए कंट्रोल रूम से यह सूचना कोतवाली पुलिस को दे दी गई. सूचना पा कर इंसपेक्टर टीजे सिंह अपनी पुलिस टीम के साथ मौके पर पहुंच गए. मृतक की उम्र 40-42 वर्ष रही होगी. उस के चेहरे को किसी भारी वस्तु से कूंचा गया था. चेहरा क्षतविक्षत होने के कारण मृतक की पहचान होना मुश्किल था. उस के गले पर भी कसे जाने के निशान मौजूद थे.

घटनास्थल पर लाश से कुछ दूरी पर खून से सना एक ईंट का टुकड़ा पड़ा मिला. हत्यारे ने उसी ईंट के टुकड़े से मृतक का चेहरा कुचला था. इंसपेक्टर टीजे सिंह निरीक्षण कर ही रहे थे कि तभी एसपी डा. श्रीपति मिश्र, एएसपी शिष्यपाल, सीओ सिटी निष्ठा उपाध्याय समेत अन्य अधिकारी भी वहां पहुंच गए. अधिकारियों ने भी लाश व घटनास्थल का निरीक्षण किया. इंसपेक्टर टीजे सिंह के आदेश पर कुछ सिपाहियों ने मृतक के कपड़ों की तलाशी ली तो कपड़ों से मृतक का आधार कार्ड मिल गया, जिस में मृतक का नाम धनंजय पांडे लिखा था और पता देवरिया की सीमा से सटे बिहार के गोपालगंज जिले के कुचायकोट थाना क्षेत्र में आने वाले गांव अमवा का लिखा था.

मृतक के घर वालों को कुचायकोट थाना पुलिस के जरीए सूचना भेजी गई. इस के बाद पुलिस अधिकारी इंसपेक्टर टीजे सिंह को आवश्यक दिशानिर्देश दे कर वापस लौट गए. सूचना पर मृतक के घर वाले और ससुराल वाले वहां पहुंचे. उन लोगों ने धनंजय की लाश की शिनाख्त कर दी. लाश की शिनाख्त होने के बाद उसे पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भेज दिया गया. कोतवाली लौट कर इंसपेक्टर टीजे सिंह ने धनंजय पांडे के ससुर रामजी मिश्रा की लिखित तहरीर के आधार पर अज्ञात के विरूद्ध भादंवि की धारा 302 के तहत मुकदमा दर्ज करा दिया. केस की जांच शुरू करते हुए इंसपेक्टर टीजे सिंह ने सर्वप्रथम पुष्पा से पूछताछ की, जो कि घटना से एक महीने पहले से अपने मायके में रह रही थी.

उन्होंने पुष्पा से पूछा, ‘‘धनंजय की किसी से कोई दुश्मनी थी या उस का किसी से हाल ही में कोई लड़ाईझगड़ा हुआ था?’’

‘‘सर, उन की किसी से दुश्मनी नहीं थी और न ही उन का किसी से लड़ाईझगड़ा हुआ था. वह तो सुबह अपने आफिस के लिए निकल जाते थे और रात में लौटते थे.’’

‘‘फिर भी कोई दुश्मनी रही हो, याद करने की कोशिश कीजिए.’’

‘‘सर, मेरी जानकारी में तो नहीं है, अगर औफिस में कोई बात हुई हो तो मुझे पता नहीं. मेरे पति आफिस की कोई भी बात मुझे नहीं बताते थे.’’

पुष्पा बड़े ही सहज भाव से सवालों का जवाब दे रही थी. उस के चेहरे के भावों और बोलने के अंदाज से यह कतई नहीं झलक रहा था कि वह पति की मौत से गमगीन है. यह बात मन में शक पैदा करने वाली थी. पुष्पा के चेहरे को पढ़ने की कोशिश करते हुए इंसपेक्टर टीजे सिंह ने एक और सवाल दागा, ‘‘घर में कौनकौन आता था?’’

‘‘सर, हम देवरिया में किराए पर रह रहे थे. हमारी किसी से जानपहचान नहीं है. इसलिए कोई भी नहीं आताजाता था.’’

‘‘कोई भी नहीं?’’ इंसपेक्टर टीजे सिंह ने उस की आंखों से आंखें मिला कर उस का सच और झूठ पकड़ने के लिए एक बार फिर एकएक शब्द पर जोर देते हुए पूछा. इंसपेक्टर सिंह को घुमाती रही पुष्पा इंसपेक्टर टीजे सिंह द्वारा इस तरह पूछने पर पुष्पा एक पल के लिए हड़बड़ाई, लेकिन अगले ही पल खुद को संभालते हुए बोली, ‘‘जी सर कोई नहीं, बस मेरे बच्चों को पढ़ाने के लिए रतन पांडे आता था. वह हमारा दूर का रिश्तेदार है, उसी ने हमें देवरिया में रहने के लिए किराए पर मकान दिलवाया था.’’

‘‘तो बताना चाहिए था न… मैं दोबारा न पूछता तो आाप बताती भी नहीं.’’

‘‘सर, वह तो घर का ही है, बाहर का नहीं, इसीलिए नहीं बताया.’’ पुष्पा ने सफाई दी.

‘‘ये आप हमें तय करने दें कि कौन क्या है, हमारे निशाने पर सभी होते हैं चाहे घर के हों या बाहर के. वैसे भी अधिकतर केसों में हत्यारा घर का अपना ही कोई निकलता है.’’ कह कर टीजे सिंह ने पुष्पा की तरफ  देखा तो उस के चेहरे पर आने वाले भाव देख कर वह मुस्करा उठे और फिर उठते हुए बोले, ‘‘खैर अब मैं चलता हूं, जरूरत पड़ी तो आप से दोबारा पूछताछ करूंगा.’’

‘‘जी सर.’’

टीजे सिंह वहां से चले गए. वहां से निकलने से पहले वह पुष्पा का मोबाइल नंबर लेना नहीं भूले. इंसपेक्टर सिंह ने उस नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई साथ ही जिस मोबाइल में सिम पड़ा था. उस मोबाइल में दूसरे सिम भी डाले गए थे तो उन सिम के नंबरों की भी डिटेल्स देने को कहा गया. जब पुष्पा के बताए नंबर की काल डिटेल आई तो उस में कुछ खास नहीं मिला. लेकिन साथ में एक और नंबर की काल डिटेल्स आई थी. वह नंबर भी पुष्पा अपने डबल सिम वाले मोबाइल में प्रयोग कर रही थी. लेकिन उस नंबर के बारे में पुष्पा ने कुछ नहीं बताया था. उस नंबर से केवल एक नंबर पर ही रोज बात की जाती थी. उस नंबर की डिटेल्स निकलवाई तो वह नंबर रतन पांडे के नाम पर था. रतन वही था जो धनंजय के घर ट्यूशन पढ़ाने आता था. उस का पता किया तो वह घर से फरार मिला.

20 अप्रैल को इंसपेक्टर टीजे सिंह ने एक मुखबिर की सूचना पर अमेठी तिराहे के खोराराम मोड़ से रतन पांडे को गिरफ्तार कर लिया. थाने ला कर जब उस से सख्ती से पूछताछ की गई तो रतन ने अपना जुर्म स्वीकार कर लिया, साथ ही हत्या की वजह भी बता दी. इस के बाद इंसपेक्टर सिंह पुष्पा को उस के मायके से गिरफ्तार कर के थाने ले आए.

थाने में जब उस से पूछताछ की गई तो उस ने बरगलाने की कोशिश की कि रतन ने उस के अश्लील फोटो व वीडियो बना लिए थे, जिन के सहारे वह उसे ब्लैकमेल कर रहा था. उसी ने उस के पति की हत्या की है. लेकिन जब सख्ती दिखाई गई तो उस ने सच उगल दिया. पुष्पा रतन को अपनी जान से भी ज्यादा चाहने लगी थी, उसी के साथ विवाह कर के वह अपनी आगे की जिंदगी गुजारना चाहती थी. इस के लिए वह रतन के साथ भाग जाती और विवाह कर लेती. लेकिन जिंदगी सिर्फ प्यार से नहीं गुजरती, पैसों की भी जरूरत होती है. रतन छोटीमोटी नौकरी करता था, उस से उस का खुद का गुजारा ही नहीं हो पाता था. ज्यादा पैसा तो सरकारी नौकरी में ही मिलता है जो कि धनंजय के पास थी. इसलिए पैसों की उसे कभी कोई दिक्कत नहीं हुई.

पुष्पा को सरकारी नौकरी का मोह था. इसलिए उस ने इस का रास्ता निकाल लिया. उस रास्ते पर चल कर उस की सारी इच्छाएं पूरी हो सकती थीं. वह रास्ता था धनंजय की मौत. धनंजय के मरने से पुष्पा को एक तो उस से छुटकारा मिल जाता, दूसरे उस की जगह मृतक आश्रित कोटे से उसे नौकरी मिल जाती और तीसरा वह रतन से विवाह कर के आराम से जिंदगी गुजार सकती थी. पुष्पा अपनी इच्छाओं को पूरा करने के लिए पति के खून से हाथ रंगने को तैयार थी. वह यह भूल गई कि केवल सोचने भर से जिंदगी आसान नहीं हो जाती. सब कुछ मनचाहा नहीं होता.

वह जिस रास्ते पर चलने को आमादा थी उस पर उसे सरकारी नौकरी तो नहीं जेल की सलाखें जरूर मिलने वाली थीं. दूसरी ओर धनंजय को अपनी मौत के षड़यंत्र का कैसे पता चलता, जबकि उसे पुष्पा और रतन के अवैध संबंधों तक की जानकारी नहीं थी. पुष्पा अपने इरादों को अंजाम तक पहुंचाने को आतुर थी. रतन तो पहले से ही पुष्पा से बारबार धनंजय को मार देने की बात कहता रहता था. वह तो पुष्पा की तरफ से बस हरी झंडी मिलने का इंतजार कर रहा था. पुष्पा ने अपने दिल की पूरी बात रतन को बता दी. इस के बाद दोनों ने धनंजय की हत्या की योजना बनाई. योजनानुसार 16 मार्च, 2020 को पुष्पा बच्चों के साथ अपने मायके गोपालगंज चली गई.

एक महीना पूरा होने पर 17 अप्रैल की शाम 4 बजे पुष्पा ने रतन को फोन कर के धनंजय की हत्या करने को कहा. काश! धनंजय शराब के लालच में न पड़ता 18 अप्रैल की रात 8 बजे के करीब रतन ने धनंजय को शराब पीने के लिए बंद चीनी मिल परिसर में बुलाया. धनंजय के वहां पहुंचने पर रतन ने एक ईंट के टुकडे़ से उस के सिर पर प्रहार किया. धनंजय दर्द से बिलबिला उठा. इसी बीच रतन ने पास में उगी गिलोय की बेल उखाड़ कर धनंजय के गले में डाल दी और पूरी ताकत से कस दिया.

दम घुटने से धनंजय की मौत हो गई. इस के बाद रतन ने धनंजय के चेहरे को बुरी तरह से कुचल दिया. फिर धनंजय की जेब से मोबाइल निकाल कर रतन वहां से चला गया. उस ने वाट्सऐप पर मैसेज कर के पुष्पा को धनंजय की मौत की जानकारी दे दी. पुष्पा द्वारा मैसेज देख लेने के बाद रतन ने वह मैसेज डिलीट कर दिया. लेकिन दोनों पकड़े गए. रतन ने अपना एंड्रायड मोबाइल फारमेट कर दिया था. इसलिए उस मोबाइल का डाटा रिकवर करने के लिए इंसपेक्टर टीजे सिंह ने मोबाइल में डाटा रिकवरी ऐप इंस्टाल किया और मोबाइल का पूरा डाटा रिकवर कर लिया. मोबाइल की गैलरी में रतन व पुष्पा के अनगिनत फोटो मिले, जिस में कई अश्लील भी थे, जिन को उन्होंने सुबूत के तौर रख लिया.

अभियुक्त रतन के पास से इंसपेक्टर सिंह ने धनंजय का मोबाइल भी सिम सहित बरामद कर लिया. हत्या में प्रयुक्त ईंट का टुकड़ा पहले ही घटनास्थल से बरामद हो गया था. कानूनी औपचारिकताएं पूरी कर के दोनों को न्यायालय में पेश किया गया, जहां से दोनों को न्यायिक अभिरक्षा में जेल भेज  दिया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

Extramarital Affair : पड़ोसी के प्यार में पागल पत्नी ने कराया पति का कत्ल

Extramarital Affair : तमाम पतिपत्नियों की तरह कपिल और खुशबू में लड़ाईझगड़ा होता था. लेकिन खुशबू इस झगड़े को नाक का सवाल बना कर मायके चली गई, जहां उस के संबंध चंदन से बन गए. खुशबू को चंदन की यारी ऐसी भाई कि उस ने…

दक्षिणपूर्वी दिल्ली के थाना शाहीनबाग के अंतर्गत नई बस्ती ओखला के रहने वाले कपिल की ससुराल उत्तर प्रदेश के जिला फिरोजाबाद के आसफाबाद में थी. करीब 3 साल पहले किसी बात को ले कर उस का अपनी पत्नी खुशबू से विवाद हो गया था. तब खुशबू अपने मायके चली गई थी और वापस नहीं लौटी थी. इतना ही नहीं, ढाई साल पहले खुशबू ने फिरोजाबाद न्यायालय में कपिल के खिलाफ घरेलू हिंसा व गुजारा भत्ते का मुकदमा दायर कर दिया था. कपिल हर तारीख पर फिरोजाबाद कोर्ट जाता था और तारीख निपटा कर देर रात दिल्ली लौट आता था. 10 फरवरी, 2020 को भी वह इसी मुकदमे की तारीख के लिए दिल्ली से फिरोजाबाद आया था. वह रात को घर नहीं पहुंचा तो घर वालों ने उसे 11 फरवरी की सुबह फोन किया.

लेकिन उस का फोन बंद मिला. इस से घर वाले परेशान हो गए. उन्होंने 11 फरवरी की शाम तक कपिल का इंतजार किया. इस के बाद उन की चिंता और भी बढ़ गई. 12 फरवरी को कपिल की मां ब्रह्मवती, बहन राखी, मामा नेमचंद और मौसी सुंदरी फिरोजाबाद के लिए निकल गए. कपिल की ससुराल वाला इलाका थाना रसूलपुर क्षेत्र में आता है, इसलिए वे सभी थाना रसूलपुर पहुंचे और कपिल के रहस्यमय तरीके से गायब होने की बात बताई. थाना रसूलपुर से उन्हें यह कह कर थाना मटसैना भेज दिया गया कि कपिल कोर्ट की तारीख पर आया था और कोर्ट परिसर उन के थानाक्षेत्र में नहीं बल्कि थाना मटसैना में पड़ता है.

इसलिए वे सभी लोग उसी दिन थाना मटसैना पहुंचे, लेकिन वहां भी उन की बात गंभीरता से नहीं सुनी गई. ज्यादा जिद करने पर मटसैना पुलिस ने कपिल की गुमशुदगी दर्ज कर ली. गुमशुदगी दर्ज कर के उन्हें थाने से टरका दिया. इस के बाद भी वे लोग कपिल की फिरोजाबाद में ही तलाश करते रहे. इसी बीच 15 फरवरी की दोपहर को किसी ने थाना रामगढ़ के बाईपास पर स्थित हिना धर्मकांटा के नजदीक नाले में एक युवक की लाश पड़ी देखी. इस खबर से वहां सनसनी फैल गई. कुछ ही देर में भीड़ एकत्र हो गई. इसी दौरान किसी ने इस की सूचना रामगढ़ थाने में दे दी. कुछ ही देर में थानाप्रभारी श्याम सिंह पुलिस टीम के साथ मौके पर पहुंच गए. उन्होंने शव को नाले से बाहर निकलवाया. मृतक के कानों में मोबाइल का ईयरफोन लगा था.

पुलिस ने युवक की शिनाख्त कराने की कोशिश की, लेकिन वहां मौजूद लोगों में से कोई भी उसे नहीं पहचान सका. पुलिस ने उस अज्ञात युवक की लाश पोस्टमार्टम के लिए जिला चिकित्सालय फिरोजाबाद भेज दी. कपिल की मां ब्रह्मवती और बहन राखी उस समय फिरोजाबाद में ही थीं. शाम के समय जब उन्हें बाईपास स्थित नाले में पुलिस द्वारा किसी अज्ञात युवक की लाश बरामद किए जाने की जानकारी मिली तो मांबेटी थाना रामगढ़ पहुंच गईं. उन्होंने थानाप्रभारी श्याम सिंह से अज्ञात युवक की लाश के बारे में पूछा तो थानाप्रभारी ने उन्हें फोन में खींचे गए फोटो दिखाए. फोटो देखते ही वे दोनों रो पड़ीं, क्योंकि लाश कपिल की ही थी. इस के बाद थानाप्रभारी ब्रह्मवती और उस की बेटी राखी को जिला अस्पताल की मोर्चरी ले गए.

उन्होंने वह लाश दिखाई तो दोनों ने उस की शिनाख्त कपिल के रूप में कर दी. लाश की शिनाख्त हो जाने के बाद थानाप्रभारी ने भी राहत की सांस ली. थानाप्रभारी ने शव की शिनाख्त होने की जानकारी एसपी (सिटी) प्रबल प्रताप सिंह को दे दी और उन के निर्देश पर आगे की काररवाई शुरू कर दी. थानाप्रभारी श्याम सिंह ने मृतक कपिल की मां ब्रह्मवती और बहन राखी से बात की तो उन्होंने बताया कि कपिल की पत्नी खुशबू चरित्रहीन थी. इसी बात पर कपिल और खुशबू के बीच अकसर झगड़ा होता था, जिस के बाद खुशबू मायके में आ कर रहने लगी थी. राखी ने आरोप लगाया कि खुशबू ने ही अपने परिवार के लोगों से मिल कर उस के भाई की हत्या की है.

पुलिस ने राखी की तरफ से मृतक की पत्नी खुशबू, सास बिट्टनश्री, साले सुनील, ब्रजेश, साली रिंकी और सुनील की पत्नी ममता के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करा दी. चूंकि रिपोर्ट नामजद थी, इसलिए पुलिस आरोपियों की तलाश में जुट गई. पुलिस ने मृतक की पत्नी खुशबू व उस की मां को हिरासत में ले लिया. उन से कड़ाई से पूछताछ की गई. खुशबू से की गई पूछताछ में पुलिस को कोई खास जानकारी हाथ नहीं लगी, बस यही पता चला कि कपिल पत्नी के चरित्र पर शक करता था. फिर भी पुलिस यह समझ गई थी कि एक अकेली औरत कपिल का न तो मर्डर कर सकती है और न ही शव घर से दूर ले जा कर नाले में फेंक सकती है. पुलिस चाहती थी कि कत्ल की इस वारदात का पूरा सच सामने आए.

इस बीच जांच के दौरान पुलिस को एक अहम सुराग हाथ लगा. किसी ने थानाप्रभारी को बताया कि खुशबू चोरीछिपे अपने प्रेमी चंदन से मिलती थी. दोनों के नाजायज संबंधों का जो शक किया जा रहा था, उस की पुष्टि हो गई. जाहिर था कि हत्या अगर खुशबू ने की थी तो कोई न कोई उस का संगीसाथी जरूर रहा होगा. इस बीच पुलिस की बढ़ती गतिविधियों और खुशबू को हिरासत में लिए जाने की भनक मिलते ही खुशबू का प्रेमी चंदन और उस का साथी प्रमोद फरार हो गए. इस से उन दोनों पर पुलिस को शक हो गया. उन की सुरागरसी के लिए पुलिस ने मुखबिरों का जाल फैला दिया. मुखबिर की सूचना पर घटना के तीसरे दिन पुलिस ने खुशबू के प्रेमी चंदन व उस के साथी प्रमोद को कनैटा चौराहे के पास से हिरासत में ले लिया. दोनों वहां फरार होने के लिए किसी वाहन का इंतजार कर रहे थे.

थाने ला कर दोनों से पूछताछ की गई. थाने में जब चंदन और प्रमोद से खुशबू का आमनासामना कराया गया तो तीनों सकपका गए. इस के बाद उन्होंने आसानी से अपना जुर्म कबूल कर लिया. अपराध स्वीकार करने के बाद पुलिस ने खुशबू, उस के प्रेमी चंदन उर्फ जयकिशोर निवासी मौढ़ा, थाना रसूलपुर, उस के दोस्त प्रमोद राठौर निवासी राठौर नगर, आसफाबाद को कपिल की हत्या के आरोप में गिरफ्तार कर लिया. उन की निशानदेही पर पुलिस ने हत्या में प्रयुक्त रस्सी, मोटा सरिया व मोटरसाइकिल बरामद कर ली. खुशबू ने अपने प्यार की राह में रोड़ा बने पति कपिल को हटाने के लिए प्रेमी व उस के दोस्त के साथ मिल कर हत्या का षडयंत्र रचा था. खुशबू ने पति की हत्या की जो कहानी बताई, वह इस तरह थी—

क्षिणपूर्वी दिल्ली की नई बस्ती ओखला के रहने वाले कपिलचंद्र की शादी सन 2015 में खुशबू के साथ हुई थी. शादी के डेढ़ साल तक सब कुछ ठीकठाक रहा. कपिल की गृहस्थी हंसीखुशी से चल रही थी. करीब 3 साल पहले जैसे उस के परिवार को नजर लग गई. हुआ यह कि खुशबू अकसर मायके चली जाती थी. इस से कपिल को उस के चरित्र पर शक होने लगा. इस के बाद पतिपत्नी में तकरार शुरू हो गई. पतिपत्नी में आए दिन झगड़े होने लगे. गुस्से में कपिल खुशबू की पिटाई भी कर देता था. गृहक्लेश के चलते खुशबू अपने बेटे को ले कर अपने मायके में आ कर रहने लगी. ढाई साल पहले उस ने कपिल पर घरेलू हिंसा व गुजारा भत्ते के लिए फिरोजाबाद न्यायालय में मुकदमा दायर कर दिया.

मायके में रहने के दौरान खुशबू के अपने पड़ोसी चंदन से प्रेम संबंध हो गए थे. हालांकि चंदन शादीशुदा था और उस की 6 महीने की बेटी भी थी. कहते हैं प्यार अंधा होता है. दोनों एकदूसरे को दिलोजान से चाहने लगे थे. मायके में रहने के दौरान चंदन खुशबू के पति की कमी पूरी कर देता था. लेकिन ऐसा कब तक चलता. एक दिन खुशबू ने चंदन से कहा, ‘‘चंदन, हम लोग ऐसे चोरीछिपे आखिर कब तक मिलते रहेंगे. तुम मुझ से शादी कर लो. मैं अपने पति से पीछा भी छुड़ाना चाहती हूं. लेकिन वह मुझे तलाक नहीं दे रहा. अगर तुम रास्ते के इस कांटे को हटा दोगे तो हमारा रास्ता साफ हो जाएगा.’’

दोनों एकदूसरे के साथ रहना चाहते थे. चंदन को खुशबू की सलाह अच्छी लगी. इस के बाद खुशबू व उस के प्रेमी चंदन ने मिल कर एक षडयंत्र रचा. मुकदमे की तारीख पर खुशबू और कपिल की बातचीत हो जाती थी. खुशबू ने चंदन को बता दिया था कि कपिल हर महीने मुकदमे की तारीख पर फिरोजाबाद कोर्ट में आता है. 10 फरवरी को अगली तारीख है, वह उस दिन तारीख पर जरूर आएगा. तभी उस का काम तमाम कर देंगे. कपिल 10 फरवरी को कोर्ट में अपनी तारीख के लिए आया. कोर्ट में खुशबू व कपिल के बीच बातचीत हो जाती थी. कोर्ट में तारीख हो जाने के बाद खुशबू ने उसे बताया, ‘‘अपने बेटे जिगर की तबीयत ठीक नहीं है. वह तुम्हें बहुत याद करता है. उस से एक बार मिल लो.’’

अपने कलेजे के टुकड़े की बीमारी की बात सुन कर कपिल परेशान हो गया और तारीख के बाद खुशबू के साथ अपनी ससुराल पहुंचा. कपिल शराब पीने का शौकीन था. खुशबू के प्रेमी व उस के दोस्त ने कपिल को शराब पार्टी पर आमंत्रित किया. शाम को ज्यादा शराब पीने से कपिल नशे में चूर हो कर गिर पड़ा. कपिल के गिरते ही खुशबू ने उस के हाथ पकड़े और प्रेमी चंदन व उस के साथी प्रमोद ने साथ लाई रस्सी से कपिल के हाथ बांधने के बाद उस के सिर पर मोटे सरिया से प्रहार कर उस की हत्या कर दी. कपिल की हत्या इतनी सावधानी से की गई थी कि पड़ोसियों को भी भनक नहीं लगी. हत्या के बाद उसी रात उस के शव को मोटरसाइकिल से ले जा कर बाईपास के किनारे स्थित नाले में डाल दिया गया. 15 फरवरी को शव से दुर्गंध आने पर लोगों का ध्यान उधर गया.

एसपी (सिटी) प्रबल प्रताप सिंह ने बताया कि कपिल की हत्या के मुकदमे में नामजद आरोपियों की भूमिका की जांच की जा रही है. जो लोग निर्दोष पाए जाएंगे, उन्हें छोड़ दिया जाएगा. पुलिस ने तीनों हत्यारोपियों को गिरफ्तार करने के बाद न्यायालय में पेश किया, जहां से तीनों को जेल भेज दिया गया. निजी रिश्तों में आई खटास के चलते खुशबू ने अपनी मांग का सिंदूर उजाड़ने के साथ पतिपत्नी के पवित्र रिश्ते को कलंकित कर दिया. वहीं कांच की चूडि़यों से रिश्तों को जोड़ने के लिए मशहूर सुहागनगरी फिरोजाबाद को रिश्तों के खून से लाल कर दिया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Mirzapur Crime : पत्नी ने 21 साल बाद लिया अपहरण का बदला

Mirzapur Crime : कोई महिला 21 साल तक किसी की पत्नी बन कर रहे, उस के 2 बच्चों की मां बने और फिर इसलिए पति की हत्या करवा दे, क्योंकि 21 साल पहले उस के पति ने न केवल उस का अपहरण किया था, बल्कि उस के भाई की हत्या भी कर दी थी. सुनने में यह असंभव सी बात लगती है, लेकिन कंचन और प्रमोद के मामले में ऐसा ही हुआ. कैसे…

4 फरवरी, 2020 की सुबह मीरजापुर के थाना विंध्याचल की पुलिस को सूचना मिली कि गोसाईंपुरवा स्थित कालीन के कारखाने में रहने वाले प्रमोद की रात में किसी ने हत्या कर दी है. सूचना मिलते ही थानाप्रभारी वेदप्रकाश राय ने भादंवि की धारा 302, 452 के तहत प्रमोद की हत्या का मुकदमा  दर्ज कराया और पुलिस टीम के साथ घटनास्थल के लिए रवाना हो गए. पुलिस जब घटनास्थल पर पहुंची तो प्रमोद की लाश चारपाई पर पड़ी थी. मृतक की उम्र 40 साल के आसपास रही होगी, उस का सिर किसी भारी चीज से कुचला गया था. मृतक के शरीर से जो खून बहा था, वह सूख कर काला पड़ चुका था. इस से पुलिस ने अंदाजा लगाया कि हत्या आधी रात के पहले यानी 9-10 बजे के आसपास की गई थी. ठंड का मौसम था, इसलिए खून पूरी तरह नहीं सूखा था.

थानाप्रभारी वेदप्रकाश राय ने साथियों की मदद से घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण कर जरूरी साक्ष्य जुटाए और हत्या की सूचना पुलिस अधिकारियों को दे दी. उन्होंने आसपास उस भारी चीज की भी तलाश की, जिस से हत्या की गई थी. पर काफी कोशिश के बाद भी पुलिस को कुछ नहीं मिला. थानाप्रभारी ने मौके पर फोरैंसिक टीम बुला ली. टीम ने वहां से जरूरी साक्ष्य जुटाए. सारी काररवाई पूरी कर उन्होंने लाश पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दी. सारी काररवाई निपटा कर वेदप्रकाश राय ने हत्यारे का पता लगाने के लिए कारखाने में काम करने वाले प्रमोद के साथियों से पूछताछ शुरू की. पूछताछ में पता चला कि प्रमोद कहीं बाहर का रहने वाला था. वह काफी दिनों से यहीं रह रहा था. वह कहां का रहने वाला था, यह बात कोई नहीं बता सका.

बस इतना ही पता चला कि उस के परिवार में पत्नी और 2 बच्चे थे. पत्नी जिला कौशांबी में होमगार्ड में थी. बेटी अमेठी से पौलिटेक्निक कर रही थी, जबकि बेटा दिल्ली में रह कर कोई प्राइवेट नौकरी करता था, साथ ही उस ने राजस्थान इंटर कालेज से प्राइवेट फार्म भी भर रखा था. प्रमोद मीरजापुर में कालीन बुनाई का काम करता था, जबकि पत्नी कंचनलता कौशांबी में होमगार्ड में प्लाटून कमांडर थी. इस का मतलब दोनों अलगअलग रहते थे. पूछताछ में प्रमोद के साथियों ने यह भी बताया था कि पतिपत्नी में पटती नहीं थी. प्रमोद पत्नी से अकसर मारपीट करता था. उस की इस मारपीट से आजिज कंचनलता मीरजापुर कम ही आती थी.

थानाप्रभारी राय को जब पतिपत्नी के बीच तनाव की बात पता चली तो उन्हें लगा कि कहीं प्रमोद की हत्या इसी तनाव के कारण तो नहीं हुई. पूछताछ में उन्हें यह भी पता चला कि उस कारखाने में सीसीटीवी कैमरे लगे हैं. इस से उन्हें उम्मीद जगी कि सीसीटीवी फुटेज से हत्यारे का अवश्य पता चल जाएगा. उन्होंने उस रात की सीसीटीवी फुटेज की जांच की तो उन की उम्मीद पूरी तरह से खरी उतरी. सीसीटीवी फुटेज से पता चला कि प्रमोद की हत्या एक पुरुष और एक महिला ने मिल कर की थी. थानाप्रभारी को लगा कि वह औरत कोई और नहीं, मृतक प्रमोद की पत्नी कंचनलता ही होगी.

राय ने सीसीटीवी कैमरे की फुटेज प्रमोद के साथ काम करने वाले कर्मचारियों को दिखाई तो उस महिला की ही नहीं, बल्कि उस के साथ हत्या में शामिल पुरुष की भी पहचान कर दी. वह औरत मृतक प्रमोद की पत्नी कंचनलता ही थी. उस के साथ जो पुरुष था, वह उस का भाई अंबरीश था. प्रमोद की हत्या बहनभाई ने मिल कर की थी. प्रमोद के हत्यारों को पता चल गया था, अब उन्हें गिरफ्तार करना था. लेकिन उन्हें गिरफ्तार करना इतना आसान नहीं था. क्योंकि थानाप्रभारी वेदप्रकाश राय जानते थे कि अब तक कंचनलता फरार हो चुकी होगी. हत्या के बाद उन्होंने उसे बुला कर पूछताछ भी की थी, तब उस ने स्वयं को निर्दोष बताया था.

फिर भी एक पुलिस टीम कौशांबी गई. जैसी पुलिस को आशंका थी, वैसा ही हुआ. कंचनलता वहां नहीं मिली. उस का मोबाइल नंबर उन के पास था ही. पुलिस ने यह बात एसपी डा. धर्मवीर सिंह को बताई तो उन्होंने कंचनलता का नंबर सर्विलांस टीम को दे कर उस के बारे में पता करने का आदेश दिया. यही नहीं, उन्होंने सर्विलांस टीम के अलावा एसआईटी और स्वाट को भी कंचनलता व उस के भाई अंबरीश को जल्द से जल्द गिरफ्तार करने का आदेश दिया. इसी के साथ उन्होंने दोनों भाईबहन को गिरफ्तार करने वाली टीम को 25 हजार रुपए बतौर ईनाम देने की घोषणा भी की.

अब थाना पुलिस के अलावा सर्विलांस टीम, एसआईटी और स्वाट भी कंचनलता और अंबरीश के पीछे लग गईं. थाना पुलिस ने अपने मुखबिरों को दोनों के बारे में पता करने के लिए लगा दिया था. इन कोशिशों से फायदा यह निकला कि 22 फरवरी यानी हत्या के 19 दिनों बाद मुखबिर ने सटीक जानकारी दी. मुखबिर ने काले रंग की उस प्लेटिना मोटरसाइकिल यूपी53सी जेड1559 के बारे में भी बताया, जिस पर सवार हो कर भाईबहन गोसाईंपुरवा से अमरावती चौराहे की ओर जा रहे थे. मुखबिर की सूचना पर पुलिस टीमों ने रात लगभग सवा 10 बजे कालीखोह मेनरोड गेट के पास से दोनों को गिरफ्तार कर लिया. दोनों उसी मोटरसाइकिल पर सवार थे, जिस के बारे में मुखबिर ने सूचना दी थी. दोनों को गिरफ्तार करने के बाद थाने लाया गया.

कंचन और अंबरीश की गिरफ्तारी की सूचना अधिकारियों को भी दे दी गई थी. खबर पा कर एसपी भी थाना विंध्याचल आ गए. उन की उपस्थिति में कंचन और अंबरीश से पूछताछ की गई तो दोनों ने हत्या का अपराध स्वीकार करने के साथ प्रमोद की हत्या के पीछे की जो कहानी सुनाई, वह इस तरह थी—

इस कहानी की शुरुआत सन 1999 में तब हुई, जब अंबरीश नाबालिग था. वह उत्तर प्रदेश के जिला गोरखपुर के थाना सहजनवां के गांव बेलवाडांडी के रहने वाले सोहरत सिंह (गौड़) का सब से छोटा बेटा था. उस से बड़ा एक भाई धर्मवीर और 2 बहनें शशिकिरन तथा कंचनलता थीं. शशिकिरन शादी लायक हुई तो सोहरत सिंह ने उस की शादी जिला संत कबीर नगर के रहने वाले दशरथ सिंह से कर दी. इस के बाद उन्हें दूसरी बेटी कंचनलता की शादी करनी थी. क्योंकि वह भी जवानी की दहलीज पर कदम रख चुकी थी. सोहरत सिंह उस के लिए घरवर की तलाश में लगे थे. लेकिन वह उस की शादी कर पाते, उस के पहले ही उस के साथ एक दुर्घटना घट गई.

जवानी की दहलीज पर कदम रख चुकी कंचनलता काफी सुंदर थी. सुंदर होने की वजह से गांव के लड़कों की नजरें उस पर जम गई थीं. ज्यादातर लड़के तो उसे सिर्फ देख कर ही संतोष कर लेते थे, पर उन्हीं में एक प्रमोद था, जो उस के पीछे हाथ धो कर पड़ गया था. कंचन को एक नजर देखने के लिए वह दिन भर उस के घर के आसपास घूमता रहता था. उस की हरकतों से कंचन को उस के इरादों का पता चल गया. कंचन उस तरह की लड़की नहीं थी, उसे खुद की और मातापिता की इज्जत का खयाल था, वह जानती थी कि अगर एक बार बदनामी का दाग लग गया तो जीवन भर नहीं छूटेगा.

यही सब सोच कर एक दिन उस ने प्रमोद को डांट दिया. प्रमोद दब्बू किस्म का लड़का नहीं था. वह कंचन से प्यार करता था, इसलिए डांट का भी जवाब प्यार से ही दिया. उस ने कहा, ‘‘कंचन, मैं तुम से प्यार करता हूं. तुम मेरे दिल में बसी हो, मैं तुम्हें रानी बना कर रखूंगा.’’

कंचन तो वैसे ही गुस्से में थी. उस ने प्रमोद को दुत्कारने वाले अंदाज में कहा, ‘‘शक्ल देखी है अपनी, जो मुझे रानी बनाने चला है. तेरे जैसे 36 लड़के मेरे पीछे पड़े हैं. पर मैं ने किसी को राह में नहीं आने दिया तो तू किस खेत की मूली है.’’

‘‘मैं उन 36 में से नहीं हूं, मैं ने तुम्हें चाहा है तो अपनी बना कर ही रहूंगा.’’ प्रमोद ने कहा.

‘‘अरे जाओ यहां से. फिर कभी इधर दिखाई दिया तो हाथपैर तोड़वा दूंगी.’’ कंचन ने धमकी दी.

उस समय कंचन अपने घर पर थी, इसलिए शोर मचा कर बखेड़ा कर सकती थी. प्रमोद उस के घर के सामने कोई बखेड़ा नहीं करना चाहता था, क्योंकि वह वहां पिट सकता था. इसलिए उस ने वहां से चुपचाप चले जाने में ही अपनी भलाई समझी. लेकिन जातेजाते उस ने इतना जरूर कहा, ‘‘तू कुछ भी कर ले कंचन, तुझे बनना मेरी ही है.’’

कंचन के लिए यह एक चुनौती थी. वह भी जिद्दी किस्म की लड़की थी. उस के घर वाले भी दबंग थे, गांव में किसी से न डरने वाले. लड़ाईझगड़ा और मारपीट से भी नहीं घबराते थे. यही वजह थी कि कंचन किसी से नहीं डरती थी. उस ने प्रमोद की शिकायत अपने घर वालों से कर दी. इस के बाद तो दोनों परिवारों में जम कर लड़ाईझगड़ा हुआ. प्रमोद के घर वाले भी कम नहीं थे. पर गांवों में लड़की की इज्जत, घरपरिवार की इज्जत से ही नहीं गांव की इज्जत से जोड़ दी जाती है. इसलिए गांव के बाकी लोग सोहरत सिंह की तरफ आ खड़े हुए. इस से प्रमोद के घर वाले कमजोर पड़ गए, जिस से उस के घर वालों को झुकना पड़ा.

इस घटना से प्रमोद की तो बदनामी हुई ही, उस के घर वालों की भी खासी फजीहत हुई. यह सब कंचन की वजह से हुआ था, इसलिए प्रमोद उस से अपनी बेइज्जती का बदला लेना चाहता था. वह मौके की तलाश में लग गया. आखिर उसे एक दिन मौका मिल ही गया. गर्मियों के दिन थे. फसलों की कटाई चल रही थी. लोग देर रात खेतों पर फसल की कटाई और मड़ाई करते थे. उस समय आज की तरह ट्रैक्टर से मड़ाई और कटाई नहीं होती थी. तब कटाई हाथों से होती थी और मड़ाई थ्रेशर या बैलों से, इसलिए फसल की कटाई और मड़ाई में काफी समय लगता था. गरमी के बाद बरसात आती है, इसलिए लोग जल्दी से जल्दी फसल की कटाई और मड़ाई करते थे. इस के लिए लोग देर रात तक खेतों में काम करते थे.

कंचन के घर वालों की फसल की कटाई और मड़ाई लगभग खत्म हो चुकी थी. जो बची थी, उसे जल्दी से जल्दी निपटाने के चक्कर में देर रात तक खेतों में काम करते थे. वैसे भी जून का अंतिम सप्ताह चल रहा था, बरसात कभी भी हो सकती थी. 27 जून, 1997 की रात खेतों पर काम कर के सभी घर आ गए, पर कंचन नहीं आई थी. रात का समय था, इसलिए ज्यादा इंतजार भी नहीं किया जा सकता था. फिर कंचन रात को कहीं रुकने वाली भी नहीं थी. जिस दिन प्रमोद के घर वालों से झगड़ा हुआ था, उसी दिन प्रमोद ने धमकी दी थी कि वह अपनी बेइज्जती का बदला जरूर लेगा.

कंचन के घर न पहुंचने पर उस के घर वालों को प्रमोद की वह धमकी याद आ गई. कंचन के घर वाले तुरंत प्रमोद के घर पहुंचे तो पता चला कि वह भी घर से गायब है. पूछने पर घर वालों ने साफ कहा कि उन्हें न प्रमोद के बारे में पता है, न कंचन के बारे में. गांव वालों ने भी दबाव डाला, पर न कंचन का कुछ पता चला न प्रमोद का. घर वाले पूरी रात गांव वालों के साथ मिल कर कंचन को तलाश करते रहे, पर उस का कुछ पता नहीं चला. सोहरत सिंह की गांव में तो बेइज्जती हुई ही थी, धीरेधीरे नातेरिश्तेदारों को भी कंचन के घर से गायब होने का पता चल गया था. अब तक साफ हो गया था कि कंचन को प्रमोद ही अगवा कर के ले गया था.

घर वाले खुद ही कंचन को ढूंढ लेना चाहते थे, लेकिन काफी प्रयास के बाद भी जब वे कंचन और प्रमोद का पता नहीं लगा सके तो करीब 3 महीने बाद 14 सितंबर, 1997 को गोरखपुर के महिला थाने में कंचन के अपहरण की रिपोर्ट दर्ज करा दी गई. पुलिस ने इस मामले को अपराध संख्या 01/1997 पर भादंवि की धारा 363, 366 के तहत दर्ज कर लिया. उस समय कंचन का भाई अंबरीश नाबालिग था. उस का बड़ा भाई धर्मवीर समझदार था. उसे परिवार की बेइज्जती का बड़ा मलाल था, इसलिए वह खुद बहन की तलाश में लगा था. क्योंकि उसे पता था कि पुलिस इस मामले में कुछ खास नहीं करेगी. उस समय आज की तरह न मोबाइल फोन थे, न सर्विलांस की व्यवस्था थी.

कंचन का भाई धर्मवीर कंचन और उस का अपहरण कर के ले जाने के दिन से प्रमोद की तलाश में दिनरात एक किए हुए था. प्रमोद ने समाज में उस की प्रतिष्ठा को भारी क्षति पहुंचाई थी. धर्मवीर दोनों की तलाश में ट्रेन से कानपुर जा रहा था. लेकिन वह कानपुर नहीं पहुंच सका. उस की लाश ट्रेन की पटरी के पास मिली. पुलिस ने इसे दुर्घटना माना और इस मामले की फाइल बंद कर दी. पुलिस ने धर्मवीर की मौत को भले ही दुर्घटना माना, लेकिन घर वालों ने धर्मवीर की मौत को हत्या माना. उन्हें लग रहा था कि धर्मवीर की हत्या प्रमोद के घर वालों ने की है. क्योंकि वह प्रमोद के पीछे हाथ धो कर पड़ा था. अपने परिवार की बरबादी का कारण प्रमोद को मान कर अंबरीश, उस के पिता सोहरत सिंह, चाचा जगरनाथ सिंह ने मिल कर प्रमोद के छोटे भाई नीलकमल की हत्या कर दी. यह सन 2001 की बात है.

इस मामले का मुकदमा थाना सहजनवां (वर्तमान में थाना गीडा) गोरखपुर में भादंवि की धारा 302, 506 के तहत दर्ज हुआ. नीलकमल की हत्या के आरोप में सोहरत सिंह और जगरनाथ सिंह को आजीवन कारावास की सजा हो चुकी है. इस समय दोनों हाईकोर्ट से मिली जमानत पर बाहर हैं. घटना के समय अंबरीश नाबालिग था. उस का मुकदमा अभी विचाराधीन है. वह भी जमानत पर है. नीलकमल की हत्या में अंबरीश की चाची उर्मिला को भी अभियुक्त बनाया गया था, लेकिन वह दोषमुक्त साबित हुई. इस परिवार की बरबादी का कारण प्रमोद था, इसलिए अंबरीश प्रतिशोध की आग में जल रहा था. वह किसी भी तरह प्रमोद को ठिकाने लगाना चाहता था, पर उस का कुछ पता ही नहीं चल रहा था.

दूसरी ओर कंचनलता को अगवा करने के बाद प्रमोद ने उस से जबरदस्ती शादी कर ली और किसी अज्ञात जगह पर छिप कर रहने लगा. कुछ दिनों बाद वह उसे ले कर मीरजापुर आ गया और किराए का मकान ले कर रहने लगा. गुजरबसर के लिए वह मजदूरी करता रहा. इस बीच दोनों 2 बच्चों, एक बेटी आकृति और एक बेटे स्वयं सिंह के मातापिता बन गए. आकृति इस समय अमेठी से पौलिटेक्निक कर रही है तो स्वयं सिंह प्राइवेट पढ़ाई करते हुए दिल्ली में नौकरी कर रहा है. धीरेधीरे गृहस्थी जम गई. लेकिन कंचन ने न कभी प्रमोद को दिल से पति माना और न ही प्रमोद ने उसे पत्नी. बस दोनों रिश्ता निभाते रहे. यही वजह थी कि दोनों में कभी पटरी नहीं बैठी. कंचन को प्रमोद पर भरोसा नहीं था, इसलिए वह पढ़लिख कर कुछ करना चाहती थी.

इस की एक वजह यह थी कि प्रमोद अकसर उस के साथ मारपीट करता था. शायद इसलिए कि कंचन की वजह से उस का घरपरिवार छूटा था. अगर वह चुनौती न देती तो वह भी इस तरह भटकने के बजाए अपने परिवार के साथ सुख से रह रहा होता. कुछ ऐसा ही हाल कंचन का भी था. वह भी अपनी बरबादी का कारण प्रमोद को मानती थी. इसलिए वह प्रमोद को अकसर ताना मारती रहती थी. इसी के बाद दोनों में लड़ाईझगड़ा होता और मारपीट हो जाती. कंचन प्रमोद से पीछा छुड़ाना चाहती थी, इसलिए उस ने प्रमोद से पढ़ने की इच्छा जाहिर की तो उस ने जिला कौशांबी के रहने वाले अपने एक परिचित सुरेश दूबे से बात की. वह कौशांबी के मंझनपुर में भार्गव इंटर कालेज में बाबू था. सुरेश ने कंचन का भार्गव इंटर कालेज में दाखिला ही नहीं करा दिया, बल्कि उसे इंटर पास भी कराया.

इस के बाद सुरेश दूबे ने ही डिग्री कालेज मंझनपुर से कंचनलता को प्राइवेट फार्म भरवा कर बीए करा दिया. सन 2010 में कौशांबी में होमगार्ड में प्लाटून कमांडर की भरती हुई तो कंचनलता होमगार्ड में प्लाटून कमांडर बन गई. वर्तमान में वह महिला थाना कौशांबी में तैनात थी. प्लाटून कमांडर होने के बाद कंचन कौशांबी में रहने लगी तो प्रमोद मीरजापुर में अकेला ही रहता रहा. दोनों बच्चे भी बाहर रहते थे. प्रमोद कालीन बुनाई का काम करता था. वह अकेला पड़ गया तो कारखाना मालिक ने उस से कारखाने में ही रहने को कहा. इस से दोनों का ही फायदा था. मालिक को कम पैसे में चौकीदार मिल गया तो प्रमोद को सोने के भी पैसे मिलने लगे थे. अब प्रमोद 24 घंटे कारखाने में ही रहने लगा था. पतिपत्नी में वैसे भी नहीं पटती थी.

अलगअलग रहने से दोनों के बीच दूरियां बढ़ती गईं. कंचनलता जब तक प्रमोद के साथ रही, डर की वजह से उस ने मायके वालों से संपर्क नहीं किया था. लेकिन जब वह कौशांबी में अकेली रहने लगी तो वह घर वालों से संपर्क करने की कोशिश करने लगी. करीब 21 साल बाद उस ने अपने परिचित सुरेश दूबे को संत कबीर नगर में रहने वाली अपनी बहन के यहां भेज कर अपने बारे में सूचना दी. इस के बाद बहन को उस का मोबाइल नंबर मिल गया. दोनों बहनों की बातचीत होने लगी. बहन ने ही उसे मायके का भी नंबर दे दिया था. कंचन की मायके वालों से बातें होने ही लगीं, तो वह मायके भी गई.

अंबरीश गाजियाबाद की एक मोटर पार्ट्स की दुकान में नौकरी करता था. वह मोटर पार्ट्स लाने ले जाने का काम करता था, इसलिए उस का हर जगह आनाजाना लगा रहाता था. उसे भी बहन कंचन का नंबर मिल गया था, इसलिए वह भी बहन से बातें करने लगा था. अंबरीश बहन से अकसर प्रमोद का मीरजापुर वाला घर दिखाने को कहता था, क्योंकि वह प्रमोद की हत्या कर अपने परिवार की बदनामी और बरबादी का बदला लेना चाहता था. अपनी इसी योजना के तहत वह 1 फरवरी, 2020 को दिल्ली से चल कर 2 फरवरी को मंझनपुर में रह रही बहन कंचन के यहां पहुंचा. अगले दिन यानी 3 फरवरी की सुबह उस ने कंचन को विश्वास में ले कर उस का मोबाइल फोन बंद कर के कमरे पर रखवा दिया. क्योंकि उसे पता था कि पुलिस मोबाइल की लोकेशन से अपराधियों तक पहुंच जाती है.

उस ने अपना मोबाइल फोन भी बंद कर दिया. दिन के 10 बजे वह कंचन को मोटरसाइकिल से ले कर मीरजापुर के लिए चल पड़ा. दोनों 4 बजे के आसपास मीरजापुर पहुंचे. पहले उन्होंने विंध्याचल जा कर मां विंध्यवासिनी के दर्शन किए. इस के बाद दोनों इधरउधर घूमते हुए रात होने का इंतजार करने लगे. रात 11 बजे जब दोनों को लगा कि अब तक कारखाने में काम करने वाले मजदूर चले गए होंगे और प्रमोद सो गया होगा तो कंचन उसे ले कर कारखाने पर पहुंच गई. कंचन अंबरीश को कारखाना दिखा कर बाहर ही रुक गई. अंबरीश अकेला कारखाने के अंदर गया तो प्रमोद को सोते देख खुश हुआ. क्योंकि अब उस का मकसद आसानी से पूरा हो सकता था.

उस ने देर किए बगैर वहां रखी ईंटों में से एक ईंट उठाई और प्रमोद के सिर पर दे मारी. ईंट के प्रहार से प्रमोद उठ कर बैठ गया पर वह अपने बचाव के लिए कुछ कर पाता, उस के पहले ही अंबरीश ने उस के गले में अंगौछा लपेट कर कसना शुरू कर दिया. अपने बचाव में प्रमोद ने संघर्ष किया, जिस से अंबरीश को भी चोटें आईं. पर एक तो प्रमोद पहले ही ईंट के प्रहार घायल हो चुका था, दूसरे अंगौछा से गला कसा हुआ था, इसलिए काफी प्रयास के बाद भी वह स्वयं को नहीं बचा सका.

गला कसा होने की वजह से वह बेहोश हो गया तो अंबरीश ने उसी ईंट से उस का सिर कुचल कर उस की हत्या कर दी. खुद को बचाने के लिए प्रमोद संघर्ष करने के साथसाथ ‘बचाओ…बचाओ’ चिल्ला भी रहा था.  उस की ‘बचाओ…बचाओ’ की आवाज सुन कर कंचन जब अंदर आई, तब तक अंबरीश उस की हत्या कर चुका था. अंबरीश का काम हो चुका था, इसलिए वह बहन को ले कर रात में ही मोटरसाइकिल से मंझनपुर चला गया. अगले दिन पुलिस ने जब कंचनलता को प्रमोद की हत्या की सूचना दे कर थाना विंध्याचल बुलाया तो कंचन ने अंबरीश को खलीलाबाद भेज दिया. इस की वजह यह थी कि प्रमोद जब खुद को बचाने के लिए संघर्ष कर रहा था, तब उसे चोटें आ गई थीं.

उस के शरीर पर चोट के निशान देख कर पुलिस को शक हो जाता और वे पकड़े जाते. अंबरीश को खलीलाबाद भेज कर कंचनलता सुरेश दुबे के साथ थाना विंध्याचल आई. इस के बाद वह भी फरार हो गई. दोनों ने बड़ी होशियारी से प्रमोद की हत्या की, पर कारखाने में लगे सीसीटीवी ने उन की पोल खोल दी. और वे पकड़े गए. अंबरीश की निशानदेही पर पुलिस ने झाडि़यों से वह ईंट बरामद कर ली थी, जिस से प्रमोद की हत्या की गई थी. इस तरह प्रमोद की नादानी से दो परिवार बरबाद हो गए. पूछताछ के बाद पुलिस ने दोनों को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. पुलिस के पास प्रमोद के घर का पता नहीं था, इसलिए पुलिस ने थाना विंध्याचल को उस की हत्या की सूचना दे कर थाना सहजनवां पुलिस को खबर भिजवाई.