Real Crime Stories in Hindi : इंस्टा क्वीन ने किया पति का मर्डर

Real Crime Stories in Hindi : 30 वर्षीय रवीना की मेहनत रंग ला रही थी. उस की रील्स को लोग पसंद कर रहे थे. वहीं दूसरी ओर उस का पति प्रवीण कुमार यादव उन रील्स को अश्लील बता कर समझता था कि पत्नी की वजह से परिवार की बदनामी हो रही है. दूसरे उसे यह भी शक था कि जिस सुरेश राघव नाम के युवक के साथ वह रील बना रही है, उस से उस का चक्कर चल रहा है. पतिपत्नी के बीच इसी बात को ले कर होने वाली यह किचकिच एक दिन इस मुकाम पर पहुंच गई कि…

पति प्रवीण कुमार यादव के रोजरोज के तानों और पिटाई से रवीना तंग आ चुकी थी. प्रवीण कुमार की एक ही जिद थी कि वह रील बनानी बंद कर के अपने बेटे की तरफ ध्यान दे, लेकिन रवीना ने बड़ी मेहनत से अपने फालोअर्स बढ़ाए थे, जिन की वजह से उसे यूट्यूब से अच्छी आमदनी हो रही थी. वह अपनी आमदनी को बंद नहीं करना चाहती थी. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह ऐसे में क्या करे. ऐसे में वह अपने प्रेमी सुरेश राघव से मिली. रवीना की आंखों में आंसू भरे थे. सुरेश राघव ने उस के आंसू अपनी हथेलियों से पोंछते हुए कहा, ”आज फिर पति से झगड़ा हुआ?’’

”तुम्हें क्या बताऊं! उस ने मेरा जीना हराम कर रखा है. जिंदगी नरक बन गई है.’’ रवीना सिसकती हुई बोली.

”ऐसे कब तक चलेगा?’’ सुरेश राघव बोला.

”तुम्हीं कोई उपाय बताओ…कोई रास्ता निकालो.’’ सुरेश की सहानुभूति से सहज होती हुई रवीना बोली.

”एक बार उस से पूछ तो लो कि वह चाहता क्या है?’’ सुरेश ने समझाने की कोशिश की.

”अरे, वह चाहेगा क्या? यही कि मैं इंस्टा पर वीडियो नहीं बनाऊं. …और तुम्हारे साथ तो हरगिज ही नहीं बनाऊं.’’ रवीना ने बताया.

”उसे समझाओ न कि मेरे साथ नहीं बनाने से क्या ठीक होगा. कोई न कोई तो मेल आर्टिस्ट होगा ही.’’ सुरेश ने कहा.

”वह तो चाहता है कि मैं वीडियो बनाना ही बंद कर दूं.’’ बोलती हुई रवीना मायूस हो गई.

”यह भी कोई बात हुई! तुम्हारे वीडियो बनाने से जो पैसे घर में आ रहे हैं, क्या इस से उसे मदद नहीं मिल रही है?’’ सुरेश बोला.

”यही तो वह नहीं समझ रहा है. केवल तुम पर शक करता है.’’

”वह मुझ पर कितना शक करता है, इस का नहीं पता, लेकिन तुम्हारे सोशल मीडिया पर फेमस होने पर तुम से वह ईष्र्या जरूर करता है.’’ सुरेश बोला.

”मुझे भी यही लगता है. मैं दिल से कहती हूं कि इंस्टाग्राम पर वीडियो बनाना मेरा सब से प्यारा शौक है. इस के बगैर मैं नहीं रह सकती.’’

रवीना कहने को एक घरेलू युवती थी, लेकिन उस की एक पहचान इंस्टा क्वीन की भी थी. जबकि पति प्रवीण कुमार यादव एक ड्राइवर था. वह जितना महीने भर में वेतन पाता था, उतना तो रवीना हफ्ते भर के वीडियो से कमा लेती थी. प्रवीण की एक आदत शराब पीने की भी थी. दूसरी तरफ रवीना का हमउम्र सुरेश राघव की मदद से वह वीडियो बनाती थी. वह उस के साथ मेल आर्टिस्ट का रोल निभाता था. एक सच तो यह भी था कि दोनों एकदूसरे की भावनाओं को अच्छी तरह समझते थे. उन के दिल एकदूसरे के सुखदुख और हंसीठिठोली के लिए एक साथ धड़कते थे. उन के बीच की इस फीलिंग को प्रवीण समझ गया था, लेकिन इस का खुल कर विरोध नहीं कर पा रहा था.

उस ने जो वीडियो बनाने से मना करने का तरीका अपनाया हुआ था, जिस में उस के परिवार वाले भी साथ देते थे. इस कारण पतिपत्नी के बीच अकसर तूतूमैंमैं हो जाती थी. 1-2 बार तो प्रवीण ने रवीना पर हाथ भी उठा दिया था. उस रोज रवीना के साथ वैसा ही कुछ हुआ था. पति के साथ जबरदस्त झगड़ा हुआ था और वह बिफरती हुई सुरेश के पास भाग आई थी. सुरेश से गले लग कर खूब रोई थी. जब उस से अलग हुई, तब सुरेश ने उस की दुखती रग पर सहानुभूति का मलहम लगाना शुरू कर दिया था. इस से रवीना के दिल को न तो तसल्ली मिल रही थी और न ही आगे का कोई समाधान ही निकलता नजर आ रहा था.

रवीना की परेशानी को समझते हुए सुरेश पूछ बैठा, ”आखिर क्या किया जाए, तुम्हीं कुछ बताओ.’’

”मैं जो कहूंगी, वह तुम कर पाओगे.?’’

”तुम एक बार बोल कर तो देखो.’’ सुरेश के बोलते ही रवीना ने दोनों हाथों से जो इशारा किया, उस का मतलब समझते ही वह चौंक गया. उस के मुंह से एक शब्द निकला, ”ऐंऽऽ’’

”ऐं क्या? इस में मैं भी तुम्हारा साथ दूंगी. न रहेगा बांस, न बजेगी बांसुरी!’’ रवीना बोली.

उस के बाद दोनों के बीच धीमीधीमी आवाज में खुसरफुसर होने लगी. उन के हावभाव बता रहे थे कि वे कोई गंभीर योजना बना रहे हैं.

मर्डर का प्लान ऐसे हुआ सक्सेसफुल

aropi

बात 25 मार्च, 2025 की है. रवीना वीडियो बनाने के बाद हरियाणा के भिवानी जिलांतर्गत गुर्जरों की ढाणी आई थी. उस वक्त पति प्रवीण आटो ले कर भिवानी गया हुआ था. वह रात के साढ़े 8 बजे लौट आया था. आते ही रवीना पर बरस पड़ा. उस ने रवीना पर सीधेसीधे सुरेश के साथ गुलछर्रे उड़ाने का आरोप मढ़ दिया था. इसी के साथ दोनों के बीच गरमागरम बहस होने लगी थी. प्रवीण ने उस पर चरित्रहीन का तोहमत मढ़ दिया. घरपरिवार की नाक कटवाने वाली कहा. उस ने वडियो बनाने से मना करते हुए यहां तक कहा कि उस की वीडियो की वजह से लोग उसे ताने देते हैं.

इन आरोपों का खंडन करती हुई रवीना रोने लगी थी और अपने कमरे में सोने चली गई. प्रवीण बकबक किए जा रहा था. रवीना कमरे में अपने बैड पर रोतीसिसकती रही. उसे नींद नहीं आ रही थी. वह उस वक्त सुरेश से बात करना चाहती थी. अपने दिल का बोझ हलका करना चाहती थी. एकमात्र सुरेश ही था, जो उस की भावनाओं को समझता था और उस के वीडियो बनाने के काम की प्रशंसा करता था. रवीना अपनी तरहतरह की वीडियो बना कर सोशल मीडिया पर अपलोड करती थी. उस के लाखों में फालोअर्स बन चुके थे, जबकि पति इसे ले कर नाराज रहता था. उसे घर की प्रतिष्ठा का हवाला दे कर उस पर वीडियो न बनाने का दबाव डालता था.

इसी बात को ले कर उस रोज भी रवीना और प्रवीण के बीच जबरदस्त बहस हो गई थी. प्रवीण ने उसे एक तरह से धमकी दे डाली थी, जिस से रवीना बहुत ही दुखी थी. दूसरी तरफ सुरेश की आंखों में भी नींद नहीं थी. वह रवीना की बातों से चिंतित था. बारबार मोबाइल देख रहा था. उसे आशंका थी कि प्रवीण ने जरूर फिर रवीना को काफी जलीकटी सुनाई होगी. उसे यह चिंता थी कि उस ने हफ्ते भर से एक भी नया वीडियो इंस्टा पर अपलोड नहीं किया था. खैर, रात के 11 बजे उस का मोबाइल अंधेरे में चमक उठा. साइलेंट मोड पर मोबाइल में रवीना की मिस काल आई थी. कुल 28 सेकेंड पहले के मिस काल पर सुरेश ने तुंरत कालबैक कर दी.

सुरेश की काल को रवीना ने तुरंत रिसीव किया. एक नजर खर्राटे मार रहे प्रवीण पर डाली, फिर कमरे से बाहर निकल कर धीमी आवाज में बोली, ”हैलो!’’

”तैयार हो! मेन गेट खुला है न!’’

”हां!’’ रवीना ने बोलने के साथ ही काल डिसकनेक्ट कर दी.

थोड़ी देर में ही सुरेश पुराने बस स्टैंड के पास रवीना के दोमंजिले मकान की गली में था. वहीं रवीना अपने पति के साथ ऊपर के फ्लोर पर रहती थी, जबकि नीचे उस का देवर संदीप अपनी पत्नी के साथ रहता था. उन दिनों उस की देवरानी घर में अकेली थी. वह अपने कमरे की लाइट बंद कर सो रही थी. दूसरी मंजिल पर जाने के लिए सीढिय़ां मकान में बाहर से बनी हुई थीं. वहीं रवीना सुरेश का बेसब्री से इंतजार कर रही थी, लेकिन मकान में पासपड़ोस की लाइटें जलती देख मन में कुछ सोचते हुए सुरेश वापस लौट गया. करीब आधे घंटे बाद सुरेश दोबारा रवीना के मकान के नीचे आया. उस वक्त इलाके में सन्नाटा पसरा हुआ था. खुले मेनगेट से वह सीधे रवीना के कमरे तक जा पहुंचा.

सब कुछ हो रहा था दोनों के प्लान के मुताबिक

वे बेखबर सो रहे प्रवीण के कमरे में पहुंच गए. सुरेश ने सो रहे प्रवीण का एक चादर से चेहरा ढंक दिया. उसी फुरती के साथ रवीना ने अपनी चुन्नी निकाली और प्रवीण की गरदन में लपेट कर कस दी. प्रवीण छटपटा कर रह गया, लेकिन उस की चीख नहीं निकल पाई. कुछ समय में ही उस की छटपटाहट बंद हो गई. रवीना ने सुरेश को देखा और सुरेश ने रवीना को. दोनों पसीने से तरबतर थे, वे एकदूसरे को देख कर मुसकरा उठे. रवीना बोली, ”अब आगे का काम करो… जरा भी चूक नहीं होनी चाहिए.’’

”हम इस प्लान में सफल हो गए हैं, आगे भी हमें सफलता मिलेगी और हम लोग बेदाग बचे रहेंगे.’’ बोलते हुए सुरेश ने रवीना को अपनी ओर खींच लिया. चूमने लगा. रवीना उस से अलग होती हुई बोली, ”वह सब बाद में, पहले इसे जल्द ठिकाने लगाओ.’’

लाश ठिकाने लगा कर हो रहे थे खुश

सुरेश ने प्रवीण की लाश को एक चादर में लपेट दिया. दोनों उसे पकड़ कर नीचे खड़ी बाइक के पास ले आए. उसे जीवित व्यक्ति की तरह बाइक के बीच में बिठा दिया. आगे सुरेश और लाश के पीछे रवीना बैठ गई. उन्हें देखने वाला कोई भी कह सकता था कि किसी बीमार व्यक्ति को पीछे बैठा व्यक्ति संभाले हुए है. सुरेश बाइक संभाल कर चलाते हुए रवीना के घर से करीब 6 किलोमीटर दूर विनोद रोड पर नाले के ठीक किनारे पहुंचा और वहीं बाइक रोक दी. लाश को एक हाथ से संभाले हुए रवीना बाइक से उतरी, सुरेश भी उतरा और दोनों ने लाश को एक झटके में नाले में धकेल दिया. मरा हुआ प्रवीण लुढ़कतालुढ़कता नाले में जा गिरा. उस पर लिपटी चादर अलग हो गई थी. उसे छिपाने के लिए सुरेश ने लाश

के ऊपर से कंटीली झाडिय़ां और घासफूस डाल दी. तब तक रात के ढाई बज चुके थे. अगले रोज 26 मार्च की सुबह घर में परिजनों ने प्रवीण को नहीं पाया. वे उस के बारे में पूछने लगे थे. उन के पूछने की वजह भी थी, क्योंकि बीती रात पतिपत्नी के बीच झगड़े की आवाजें उन्होंने भी सुनी थीं. उन्हें लगा प्रवीण गुस्से में कहीं चला न गया हो. उन के पूछे जाने पर रवीना छूटते ही बोल पड़ी, ”शायद उन को ड्राइविंग के लिए कहीं जाना था, इसलिए सुबहसुबह चले गए. कहां गए, उन्होंने नहीं बताया.’’

रवीना की बातों में उस के ससुराल के लोग आ गए. उन्हें प्रवीण के बारे में मालूम था कि ड्राइवरी के काम में अकसर बाहर जाता रहता था. वह हर तरह की गाडिय़ां चला लेता था. कभी आटोरिक्शा चलाता था तो कभी ट्रक पर भी नौकरी कर लेता था. इस कारण परिजन रवीना की बातों में आ गए. 35 वर्षीय प्रवीण कुमार यादव सुभाष कुमार यादव का बेटा था. उस की शादी साल 2017 में रेवाड़ी निवासी रवीना के साथ हुई थी. रवीना बेहद खूबसूरत थी. प्रवीण का एक छोटा भाई संदीप था, उस की भी शादी हो चुकी है.

प्रवीण और रवीना का एक बेटा है. प्रवीण मेहनतकश इंसान था, लेकिन ड्राइवरी करने के दौरान उसे नशे की लत लग गई थी. ड्राइवरों के साथ शराब पीता था. हालांकि कुछ महीने से वह कुछ ज्यादा ही नशा करने लगा था. उस के पिता सुभाष ने दोनों बेटों की शादी के बाद आजाद जिंदगी गुजारने के लिए एक ही घर में अलगअलग रहने को फ्लोर दे दिया था. दोनों भाइयों का परिवार खुशहाल जिंदगी गुजार रहा था. खूबसूरत रवीना को रील्स बनाने का शौक था. वह शराबी पति के व्यवहार से खुश नहीं थी. तरहतरह के रील्स बना कर उसी में अपनी खुशी तलाशती थी. वह प्रोफेशनल डांस नहीं जानती थी, लेकिन डांस के कुछ स्टेप्स फिल्मों के वीडियो देख कर सीख लिए थे. उसे वह अपने अंदाज में जगहजगह घूम कर रील बनाती थी.

उस के रील्स कमरे से ले कर खेतखलिहानों और पेड़पौधों के बीच बने होते थे. ग्रामीण परिवेश की वेशभूषा में फिल्मी गानों की बैकग्राउंड आवाज के साथ उस की सुंदरता और अदाएं उस के फालोअर्स को बेहद पसंद आती थीं. इस का प्रमाण उन की रील्स को मिलने वाले हजारों लाइक्स थे. इस के बदले में उस की कमाई भी हो रही थी. उस के खाते में हजारों रुपए महीने में आने लगे थे. उन्हीं पैसों से अच्छी तरह से वह घर चलाती थी और अपने पहनावे पर भी खर्च करती थी. वह अपने घरपरिवार के अलावा गांव के पासपड़ोसियों की नजर में आ चुकी थी. उस के प्रति लोगों के अलगअलग विचार थे.

कोई उस की रील्स की तारीफ के पुल बांध देता था तो कोई उस की बुराई करने से नहीं चूकता था. पीठ पीछे उस की शिकायत करने वाले उसे संस्कारहीन और समाज के लिए गलत बताते थे. इस की वे उस के पति प्रवीण से भी शिकायतें कर चुके थे. प्रवीण को भी रवीना का रील्स बनाना पसंद नहीं था. जिस दिन उसे घर लौटते वक्त रवीना की शिकायत मिलती, उस दिन वह शराब के नशे में उस से खूब झगड़ा करता था. शराब पीने को ले कर रवीना भी उसे खूब खरीखोटी सुना देती थी. रवीना को प्रवीण वीडियो बनाने के लिए   मना करता था, जिसे वह अनसुना कर देती थी. वह तरहतरह के वीडियो बनाने लगी थी, जिस में शार्ट वीडियो, हरियाणवी गाने और सीरियल में काम करने लगी थी.

हालांकि उन में फूहड़ता और सैक्स अपील की अश्लीलता भी होती थी. उस के वीडियो इंस्टाग्राम से ले कर यूट्यूब पर काफी लोकप्रिय हो चुके थे. उस की वास्तविक जिंदगी यह कहें कि रीयल लाइफ पूरी तरह से रील लाइफ में बदल चुकी थी. उसे अपने काम से प्यार हो गया था, जिसे किसी भी कीमत पर नहीं छोड़ सकती थी. पति, देवर, सास और ससुर समेत दूसरे परिजनों की बातें उसे कड़वी लगती थीं. सभी उसे समझाते थे कि रील्स एक दिन उस की जिंदगी बरबाद कर देगी. फेमिली वाले इकलौते बेटे पर ध्यान देने को कहते थे. वह तीसरी कक्षा में पढ़ता था.

सभी उसे घरपरिवार और बेटे पर ध्यान देने की नसीहत देते थे, लेकिन इस नसीहत की उस के कानों पर जूं तक नहीं रेंगती थी. जैसेजैसे उस के सब्सक्राइबर्स और फालोअर्स बढ़ते जा रहे थे, वैसेवैसे उस की आजादी की उड़ान भी बढ़ती जा रही थी. उस के बाद से तो वह कईकई दिनों तक वीडियो शूट करने के लिए घर से बाहर रहने लगी थी. प्रवीण जब काम से घर लौटता तो रवीना को नहीं पा कर खून के घूंट पी कर रह जाता. जैसे ही वह घर लौटती, वह उस पर बरस पड़ता था. पति उस की अश्लील वीडियो पर मिलने वाले कमेंट से परेशान रहने लगा था.

father

दोनों की जिंदगी लड़तेझगड़ते किसी तरह से गुजर रही थी. गम भुलाने के लिए प्रवीण  अधिक शराब पीने लगा था, जबकि रवीना ने रील्स की दुनिया में अपनी खुशी तलाश ली थी. इसी बीच उस की मुलाकात यूट्यूबर सुरेश राघव से हुई. वह हिसार जिले में हांसी के प्रेमनगर गांव का निवासी था. वह शादीशुदा था और रवीना के साथ हरियाणवी नाटक में काम करता था. बहुत जल्द ही रवीना ने महसूस किया कि सुरेश उस का अच्छा मददगार है. दोनों के बीच पहले प्रोफेशनल दोस्ती हुई, फिर वे एकदूसरे को चाहने वाले बन गए. रवीना सुरेश के दिल में अपनी जगह बना चुकी थी तो सुरेश उस की खूबसूरती पर मोहित हो चुका था. वह यह भूल गया था कि 2 बच्चों का पिता है और उस की भी एक सुंदर पत्नी है.

दोनों के बीच जब अवैध संबंध का रिश्ता कायम हो गया, तब वे एकदूसरे के और करीब आ गए. एकदूजे के हमराज और हितैषी बन गए. वे हमसफर बनने की ओर बढऩे लगे थे, किंतु इस में कई अड़चनें थीं. दोनों न केवल विवाहित थे, बल्कि अलगअलग जातियों से भी थे. मार्च का महीना रवीना बहुत ही तनाव से भरी हुई थी. पति के विरोध और फेमिली वालों के तानों से तंग आ चुकी थी. हफ्ते भर से उस ने ढंग का नया वीडियो नहीं बनाया था. उस के फालोअर्स घट रहे थे. वह बेहद तनाव के दौर से गुजर रही थी. उसे एकमात्र सहारा सुरेश से ही मिलता था.

उस का 28 वर्षीय सुरेश राघव के साथ काम करना प्रवीण को फूटी आंख नहीं सुहाता था. होली के मौके पर जब रवीना कई दिनों बाद घर आई थी, तब प्रवीण से काफी कहासुनी हो गई थी. आखिरकार रवीना ने सुरेश के साथ मिल कर उसे मार डालने की योजना बना ली. योजना तो उस ने काफी सोचविचार कर बनाई थी. उसे अपने तरीके से अंजाम भी दिया था और प्रवीण की लाश को इस तरह से ठिकाने लगा दिया था ताकि किसी को भी यह लगे कि शराब के नशे में नाले में गिरने से उस की मौत हो गई है.

रवीना और सुरेश निश्चिंत हो गए थे, जबकि प्रवीण के फेमिली वाले उस की चिंता में परेशान थे. वह 2 दिनों तक घर नहीं आया था. 26 मार्च, 2025 को दिन में ही रवीना परिवार में किसी को कुछ बताए बिना सुरेश के पास चली गई थी. वह 28 मार्च को घर लौटी. उस ने परिवार के लोगों को प्रवीण की तलाश करते हुए पाया. वह भी उन के साथ पति की तलाशी के लिए उस के संपर्क के लोगों को फोन मिला कर उन से पूछताछ करने लगी.

टैटू से हो गई प्रवीण की लाश की पहचान

28 मार्च, 2025 को ही भिवानी में सदर थाना पुलिस ने नाले से सड़ीगली अवस्था में एक युवक की लाश बरामद की. उस की शुरुआती शिनाख्त के बाद एसएचओ नरेंद्र कुमार ने अज्ञात लाश और वारदात के बारे में भिवानी के एसपी नीतीश अग्रवाल को सूचित कर दिया. अग्रवाल के निदेशानुसार लाश को पोस्टमार्टम के लिए अस्पताल में रखवा दिया गया. अगले रोज 29 मार्च को समाचारपत्रों में अज्ञात लाश के बारे में खबर छपी. इस खबर से सुभाष यादव और उन के छोटे बेटे संदीप  प्रवीण को ले कर संदेह से भर गए. वे अस्पताल गए. जिस की आशंका थी वही हुआ था. उन्होंने हाथ पर बने टैटू से लाश को पहचान लिया, जो प्रवीण कुमार यादव की ही थी.

लाश की शिनाख्त हो जाने के बाद पुलिस ने प्रवीण की मौत की जांच का सिलसिला आगे बढ़ाया. लाश बरामद के स्थान की सीसीटीवी फुटेज निकाली गई. फुटेज में 25-26 मार्च की आधी रात में बाइक पर सवार 3 लोग दिख गए. उन में 2 की पहचान सुरेश राघव और रवीना यादव के रूप में हो गई. बीच में बैठाया गया शख्स निश्चित रूप से प्रवीण था. बाइक गुर्जरों की ढाणी से विनोद रोड की ओर जाती दिखी थी. फुटेज रात एक बजे के करीब की थी. उसी वक्त दूसरी फुटेज में बाइक वापस लौटती दिखी, जिस पर 2 लोग सवार दिखे थे.

मृतक की मां

उस वक्त दोनों का कहीं भी पता नहीं था. फुटेज की सच्चाई जानने के लिए उन से पूछताछ करनी जरूरी थी. वारदात के 19 दिन बाद 11 अप्रैल, 2025 को सुरेश राघव और रवीना यादव पुलिस की गिरफ्त में आ गए. उन्हें थाने ला कर सख्ती के साथ पूछताछ की गई. पुलिस ने फुटेज दिखाते हुए उन से सीधा सवाल किया कि बाइक पर उन के बीच बैठा व्यक्ति कौन था? सीसीटीवी फुटेज में रवीना और सुरेश अपनी वीडियो देख कर सहम गए. वे समझ गए कि अब उन का बचना मुश्किल है. इसलिए उन्होंने स्वीकार कर लिया कि बीच में बैठा व्यक्ति प्रवीण यादव ही था, जिस की उन्होंने हत्या कर दी थी.

साथ ही दोनों ने यह भी बता दिया कि उन्होंने किस तरह से सो रहे प्रवीण की चुन्नी से गला दबा कर मौत के घाट उतार दिया. एसएचओ ने दोनों के द्वारा प्रवीण की हत्या का अपराध कबूले जाने का बयान दर्ज कर लिया. उन्हें हिरासत में ले कर उन के खिलाफ हत्या कर लाश ठिकाने लगाने का मुकदमा दर्ज कर लिया. इस तरह इंस्टा क्वीन सलाखों के पीछे जा पहुंची. उस के हजारों फालोअर्स कोई काम नहीं आए थे. सुरेश राघव भी रवीना की बातों में आ कर अपने खुशहाल परिवार को धक्का पहुंचाया था. पूछताछ में पुलिस को उन्होंने जो कुछ बताया, उस के अनुसार कहानी इस प्रकार सामने आई.

इंस्टाग्राम पर हुई थी सुरेश और रवीना की दोस्ती

हरियाणा के रेवाड़ी जिले के कोसली तहसील में जुड़ी गांव की 8वीं पास रवीना की शादी 12वीं पास युवक प्रवीण कुमार यादव से हुई थी. वह हलवाई का काम करने वाले सुभाष यादव का मंझला बेटा था. शादी के बाद कुछ साल रवीना को रील्स बनाने का शौक हो गया. वह यूट्यूब पर हरियाणवी नाटक, गाने आदि की वीडियो बना कर अपलोड करने लगी. उस के रील्स इंस्टाग्राम और फेसबुक पर शेयर कर उस का प्रचार किया. उस के डिजिटल मार्केटिंग के अच्छे नतीजे निकले. उस के सब्सक्राइबर तेजी से बढऩे लगे. डेढ़ साल के अंदर ही वह इंटरनेट मीडिया पर लोकप्रिय हो गई.

इंस्टाग्राम पर उस के 34 हजार से अधिक फालोअर्स हो गए थे. उस ने इंस्टाग्राम पर 659 पोस्ट डाले थे. रेटिंग मिलने से आमदनी भी होने लगी. बताते हैं कि रवीना को एक शार्ट वीडियो के दोढाई हजार रुपए तक मिल जाते थे. धीरेधीरे उस का शौक बढ़ता चला गया, लेकिन उस के पति को उस का वीडियो बनाना पसंद नहीं था. पति की टोकाटाकी का असर रवीना पर कोई असर नहीं हुआ. तब तक उस की मुलाकात सुरेश राघव से हो चुकी थी. वह उसे वीडियो के फालोअर्स बढ़ाने में मदद करता था. 28 साल के सुरेश के पिता रेलवे में कौन्ट्रेक्ट पर नौकरी करते थे. वह 5 बहनों का इकलौता भाई था. उस की 3 बहनें शादीशुदा हैं, जबकि 2 स्कूल में पढ़ाई कर रही थीं.

उस के पिता ने उसे भी रेलवे इलैक्ट्रानिक टिकटिंग मशीन पर नौकरी पर लगवा दिया था, लेकिन उस काम में उस का मन नहीं लगा और घर छोड़ दिया. 4 साल दुबई में रहने के दरम्यान उसे वीडियो बनाने का शौक लग गया. तरहतरह के वीडियो से वह यूट्यूबर बन गया. कहने को उस की शादी हो चुकी थी. बीवी और बच्चे भी थे, लेकिन वह अपनी ही दुनिया में मस्त रहता था. उस ने इंस्टाग्राम पर सुरेश राघव नाम की आईडी बना रखी थी. उस के 403 फालोअर्स में एक रवीना भी थी. वहीं से दोनों की दोस्ती हो गई. वे जब मिले, तब मिल कर वीडियो बनाने लगे.

सुरेश रवीना को ले कर जगहजगह घूमघूम कर वीडियो बनाता था. इस के लिए दिल्ली भी आताजाता रहता था. मायके जाने के बहाने से रवीना कई दिनों तक ससुराल से गायब रहती थी. वह अपने पति के साथ होने वाले झगड़े के बारे में सुरेश को बताती रहती थी. इस पर सुरेश उसे समझाता था. धैर्य रखने को कहता था. धीरेधीरे रवीना का पति से रिश्ता खराब होता चला गया और सुरेश की तरफ नजदीजियां बढऩे लगीं. एक तरफ रवीना की पति के साथ तनाव की जिंदगी थी, दूसरी तरफ वह सुरेश के साथ मौजमजे की जिंदगी का आनंद उठा रही थी. सुरेश अपने घरपरिवार की जिम्मेदारियों से दूर बना रहता था.

उस ने अपना सुख रवीना में तलाश लिया था. एक दिन वह रवीना के भावनात्मक दबाव में आ गया. उस के बाद जो कुछ हुआ, उस से उस पर अपराध का ठप्पा लग गया. सुरेश राघव और रवीना से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने 12 अप्रैल, 2025 को उन्हें न्यायालय में पेश किया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया गया. Real Crime Stories in Hindi

 

 

Rajasthan Crime News : शादी से पहले बैंक मैनेजर ने बैंक में कराई 1 करोड़ 13 लाख की डकैती

Rajasthan Crime News : बैंक मैनेजर सुशील कुमार की 10 नवंबर को शादी होनी थी. कार उस ने खरीद  ली थी. लोन ले कर आलीशान मकान भी बनवा लिया था. वह शानोशौकत से शादी करना चाहता था. इस के लिए उस ने अपने ममेरे भाई नितेश, उस के 2 दोस्तों सतपाल व सुखविंद्र के साथ मिल कर साजिश रची और अपने ही बैंक में 1 करोड़ 13 लाख की डकैती करा दी, लेकिन…

‘हैं डसअप’. मुख्य गेट का शटर डाल कर अंदर घुसे तीनों युवकों ने बैंक भवन के अंदर मेज पर रखी रखी फाइलों में उलझे बैंक प्रबंधक सुशील कुमार व केशिय परमपाल सिंह को हथियारों की नोक पर लेते हुए कर्कश आवाज में कहा था. आगंतुकों के चेहरे के हावभाव व आंखों से उगलती आग दर्शा रही थी कि विरोध करने पर वे किसी भी हद तक जा सकते थे. अचानक आई आफत को देख दोनों बैंककर्मियों की घिग्घी बंध गई. हाथों में हथियार व 2 युवकों के कंधे पर लटकते पिट्ठू बैग देख उन को आभास हो गया था कि वे लोग बैंक लूटने आए हैं. दो पगड़ीधारी युवकों के हाथों में पिस्टल व तीसरे के हाथ में लंबे फल वाला का चाकू था.

दोनों बैंककर्मियों ने कोई प्रतिरोध न कर के आत्मसमर्पण कर दिया. तीनों लुटेरे केशियर व बैंक मैंनेजर को धकिया कर बैंक के स्ट्रांग रूम में ले गए. वहां तीनों ने तिजोरी में रखी 2 हजार, 5 सौ व एक सौ रुपयों की गड्डियां दोनों बैगों में ठूंसठूंस कर भर ली. दोनों बैंक अफसरों के मोबाइल पहले ही छीन लिए गए थे. मैनेजर व कैशियर को स्ट्रांगरूम में बंद कर ताला लगा दिया गया. एक लुटेरे ने मैनेजर की मेज पर रखी कार की चाबी उठा ली थी. स्ट्रांग रूप की चाबी लुटेरों ने स्ट्रांग रूम के सामने ही फेंक दी. नकदी भरे बैग उठाए तीनों युवक फुर्ती से बाहर निकल गए. जाते समय मुख्य गेट का शटर बंद कर तीनों लुटेरे बैंक मैनेजर की बाहर खड़ी गाड़ी आई10 नंबर आरजे 13 सीसी 1283 में भाग निकले.

आधा घंटा बाद स्ट्रौगरूम में बंद मैनेजर व कैशियर कुछ सहज हुए. दोनों ने मिल कर स्ट्रौंगरूम में लगी प्लास्टिक की एक पाइप को उखाड़ा और जैसेतैसे स्ट्रांगरूम से बाहर निकले. लूट की इस बड़ी बारदात को महज 7 मिनट में अंजाम दे दिया गया था. बैंक गार्ड आधा घंटा पहले ही छुट्टी कर घर चला गया था. लूट की यह सनसनीखेज घटना 17 सितंबर, 2020 को राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले की प्रमुख मंडी संगरिया की धान मंडी स्थित एक्सिस बैंक शाख में रात तकरीबन 8 बजे हुई थी. बैंक प्रबंधन की सूचना मिलते ही संगरिया थाना के टीआई इंद्र कुमार ने मौकामुआयना कर अविलंब उच्च अधिकारियों को सूचना प्रेषित कर दी.

बैंक मैनेजर ने हथियारों की नोक पर एक करोड़ 13 लाख रुपए लूट ले जाने के आरोप में 3 अज्ञात लोगों के खिलाफ पुलिस में मुकदमा दर्ज कर दिया. पुलिस ने मुकदमा आईपीसी 292 व 34 के तहत दर्ज कर लिया. संयोग से सवा करोड़ की लूट की यह वारदात संभवत: मंडी सांगरिया की पहली घटना थी. सूचना मिलते ही बीकानेर रेंज के पुलिस महानिरीक्षक प्रफुल्ल कुमार जिला पुलिस अधीक्षक राशि डोगरा सहित अन्य वरिष्ठ अधिकारियों ने घटना स्थल पर पहुंच कर स्थिति का जायजा लिया. पुलिस अधिकारियों को बताया गया कि कई दिनों से बैंक में लगे सीसीटीवी कैमरा सिस्टम गड़बड़ था. पुलिस जांच में यह तथ्य भले ही परेशानी साबित हो सकता था पर एसपी राशि डोगरा ने कैमरों के गड़बड़झाले को जांच में एक अहम क्लू माना. आईजी प्रफुल्ल कुमार ने इस लूट प्रकरण को जल्दी से ट्रेस आउट करने का आदेश दे दिया.

एसपी राशि डोगरा ने एकएक बिंदु को देखा, परखा जिला मुख्यालय से महज 30 किलोमीटर दूर घटित बैंक लूट की इस घटना को युवा आईपीएस राशि डोगरा ने एक चैलेंज के रूप में लिया. एसपी डोगरा ने एएसपी जस्साराम बोस और स्वयं के सुपरविजन में जिला क्षेत्र के सीओ दिनेश एजोश, सीओ प्रशांत कौशिक, सीओ नारायण सिंह, सर्किल इंस्पेक्टर इंद्रकुमार, एसआई फूल सिंह और राजाराम व सुरेश के नेतृत्व में दर्जनभर हैड कांस्टेबलों को लगाया. इस के तहत 8 टीमों का गठन कर जांच में लगा दिया गया. साइबर व सीसीटीवी कैमरा एक्सपर्ट भी लगाए गए.

अपराधी कितना भी शातिर हो, अनजाने में कोई न कोई भूल कर घटनास्थल पर कोई न कोई क्लू जरूर छोड़ जाता है. इसी तथ्य को स्वीकारकर राशि डोगरा ने अपने अनुभव इस वारदात को खोलने में लगा दिए. शुरुआती जांच व बैंक के नजदीक स्थित दुकानों पर लगे कैमरों से यह साबित हो गया था कि जाते समय लुटेरे मैनेजर की कार में भागे थे. लेकिन आते समय बैंक तक पैदल ही आए थे. पुलिस की आठो टीम पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, यूपी, मध्य प्रदेश सहित हनुमानगढ़ व श्री गंगानगर जिला क्षेत्र में उतर गई थीं. 15 दिन बीत जाने के बाद भी पुलिस के हाथ खाली थे. एक दुकान के बाहर लगे कैमरों में तीनों लुटेरों की कदकाठी नजर आ रही थी पर पगड़ी के पल्लु व कैप लगी होने के कारण तीनों में से एक का भी चेहरा दिखाई नहीं दे रहा था.

सीसीटीवी कैमरा एक्सपर्ट ने जांच कर खुलासा कर दिया था कि बैंक के अंदर लगे सीसीटीवी कैमरों में हाल ही में छेड़छाड़ की गई थी. जांचपड़ताल में मिल रहे मामूली क्लू बैंक प्रबंधन के खिलाफ जा रहे थे. पर पुख्ता साक्ष्य के अभाव में पुलिस प्रमुख राशि डोगरा कोई रिस्क नहीं लेना चाहती थीं. बड़ी रकम का मामला था. अन्य प्रदेशों व स्थलों पर गई टीमों के भी हाथ खाली थे. बैंक मैनेजर सुशील व कैशियर परमपाल सिंह से अलगअलग व संयुक्त रूप से कई दौर में पूछताछ की गई पर नतीजा शून्य रहा. दूसरे दिन मैनेजर सुशील की कार संगरिया से 30 किलोमीटर दूर हरियाणा के डबवाली शहर में लावारिस हालात में मिल गई.

पूछताछ में पता चला कि 2 दिन पहले कार की जगह एक मोटर साइकिल कई घंटे खड़ी रही थी. राशि डोगरा की नजर में बैंक मैनेजर सुशील कुमार चढ़ चुका था. उन्होंने सुशील की जन्म कुंडली खंगालना शुरू कर दी. उन्हें बताया गया कि सुशील को कुछ अरसा पहले ही बैंक परीक्षा पास करने पर मैनेजर की नौकरी मिली थी. इसी 10 नवंबर को सुशील की शादी होनी थी. उन का रिहायशी आलीशान बंगला बिना कर्ज लिए बनना मुश्किल था. सुशील की ननिहाल पंजाब के जनखुआ (राजपुरा) में है. एसपी डोगरा ने संगरिया के तेजतर्रार सर्किल इंस्पेक्टर इंद्रकुमार को टीम के साथ जनसुआ भेज दिया. हाईकमान के आदेशानुसार 4 सदस्यीय टीम ने यूनिफार्म की जगह ग्रामीणों के वेश धर लिए.

खुद इंद्रकुमार ने शरीर पर सफेद कुरता और व लुंगी पहना. पैरों में चमड़े की जूती व सिर पर चैकदार साफा. सीआई ने टीम के साथ सुशील के ननिहाल में रैकी शुरू कर दी थी. वहीं 3 अन्य पुलिसकर्मी शराब ठेकों व बाजार की रैकी में लग गए थे. इस पुलिस टीम का टारगेट था एक्सिस बैंक संगरिया के नजदीक सीसीटीवी कैमरों में दर्ज हुए लुटेरों की चालढाल व कदकाठी वाले युवकों की तलाशना. टीम ने 2 लोगों की कदकाठी व चाल को पहचान लिया. एक तो सुशील के नाना के घर आजा रहा था. दूसरे को शराब ठेके पर शराब की महंगी बोतल खरीदते समय पहचाना गया. सीओ इंद्रकुमार ने डेली रिपोर्ट के रूप में इस प्रोगेस को एसपी राशि डोगरा से साझा किया. एसपी के आदेश पर इंद्रकुमार की टीम संगरिया लौट आई.

टीम की मेहनत रंग लाई इंद्रकुमार की टीम ने दोनों संदिग्धों के चोरीछिपे विडियो मोबाइल कैमरे में कैद कर लिए थे. कैमरों व वीडियो में कैद फोटोज लुटेरों से मिल रहे थे. शक की गुंजाइश नहीं थी. बैंक मैनेजर वारदात के बाद से लगातार ड्यूटी पर आ रहा था. 21 अक्तूबर को पुलिस ने अपराधियों को एक साथ उठाने का निर्णय लिया. सब से पहले जांच अधिकारी इंद्रकुमार ने मैनेजर सुशील को पूछताछ के बहाने पुलिस थाने बुलाया. एक मुस्तैद सिपाही जो डंडा लिए था की तरफ इशारा करते हुए सीओ ने कहा, ‘मैनेजर साहब, आप  बिना लागलपेटे सारा कुछ सचसच उगल दो. वरना इन डंडे वालों को संभालना मुश्किल हो जाएगा.’’

‘‘सर, मैं सब कुछ सचसच बता दूंगा,’’ सुशील ने कहा.

बिना लागलपेट सुशील कुमार ने बयां किया, ‘‘बैंक परीक्षा पास करने के बाद मुझे बैंक में नौकरी मिल गई थी. मैं ने कर्जा उठा कर भव्य मकान बनवा लिया. अब 10 नवंबर को मेरी शादी होनी थी. शानोशौकत की चाह भावी दांपत्य जीवन को मनमोहक बना देती है. इसी इच्छा के चलते बैंक की तिजौरी में रखी नोटों की गड्डियों ने मेरा इमान डोला दिया. मैं ने अपने ममेरे भाई नितेश को बुला कर उस से गुफ्तगू की. मेरी रजामंदी के चलते नितेश ने अपने 2 दोस्तों सतपाल व सुखविंद्र को शामिल कर लिया. कुछ दिन पहले नितेश अपने दोस्तों के साथ बैंक आया था. तीनों ने गहनता से बैंक भवन व आसपास का जायाजा लिया था.

वारदात के दिन तीनों दोस्त मोटरसाइकिल से डबवाली पहुंचे. डबवाली के बाजार से एक काली व एक रंगीन पगड़ी खरीदी गई. पिट्ठू बैग भी यहीं से खरीदे गए थे. दो जनों ने पगड़ी इसलिए बांधी कि पुलिस भ्रमित हो जाए. मोटरसाइकिल डबवाली में रोड़ पर खड़ी कर तीनों बस से 6 बजे शाम संगरिया पहुंच गए थे. निर्धारित प्रोग्राम के मुताबिक गार्ड को छुट्टी दे दी गई थी. बैंक में लगे कैमरे कई दिन पहले ही डिस्टर्ब कर दिए थे. दोनों बैंककर्मियों को स्टं्रागरूम में बंद कर चाबी वहीं डाल दी गई थी ताकि स्ट्रांगरूम का दरवाजा तोड़ने की नौबत न आ जाए. मैनेजर की कार प्लानिंग के अनुसार ली गई थी. तीनों सहयोगियों की पहचान भी सुशील ने जाहिर कर दी थी.

सुशील के बताए अनुसार तीनों लोग उसी दिन नकदी के साथ कुल्लू-मनाली पहुंच गए. तीनों ने वहां महंगे होटलों व शराबखोरी में दोतीन दिनों में 3 लाख रुपए उड़ा दिए. पुलिस सांगरिया में साजिशकर्ता सुशील निवासी भूना जिला फतेहाबाद से पूछताछ कर रही थी. वहीं 2 टीमें जनसुआ तहसील राजपुरा में अन्य आरोपियों की गिरफ्तारी में जुटी थीं. जनसुआ से पुलिस ने सुशील के ममेरे भाई नितेश जो 8वीं तक पढ़ा और अविवाहित है, अंबाला का सुखविंद्र एमए तक शिक्षित व 2 बेटों का पिता है. सतपाल 5वीं तक पढ़ा था, वह जनसुआ में हैयर ड्रैसिंग का काम करता था, गिरफ्तार कर लिया. पुलिस ने चारों से अलगअलग व आमनेसामने बिठा कर पूछताछ शुरू की.

पर चारों रिकवरी के बिंदु पर पुलिस को गच्चा देते रहे. जांच अधिकारी इंद्रकुमार ने चारों आरोपियों को अदालत में पेश कर पुलिस रिमांड पर ले लिया. दोबारा पूछताछ में चारों ने अपने घरों में छिपा कर रखी एक करोड़ 5 लाख रुपयों की बरामदगी करवा दी थी. अदालत में दोबारा पेश करने पर अदालत ने तीनों को जेल भिजवा दिया. मुख्य साजिशकर्ता सुशील को पुलिस ने रिकवरी के लिए दोबारा 2 दिनों के रिमांड पर ले लिया था. इस अवधि में सुशील ने अपने घर से 5 लाख रुपए और बरामद करवाए. पुलिस ने वारदात में इस्तेमाल की गई मोटरसाइकिल, कार व अन्य साक्ष्य जुटा लिए. आईजी बीकानेर ने एसपी साहित अन्य अधकारियों की दिल खोल कर हौसलाअफजाई की. एसपी राशि डोगरा ने सीआई इंद्रकुमार की विशेष सराहना की.

चारों आरोपियों ने रूपयों की खनकदमक के आगे पहली बार अपराध किया था ताकि उन का व उन के परिवार का भविष्य संवर जाए. पर हकीकत में चारों ने न केवल खुद को बल्कि परिवार को भी अंधेरे की गहराइयों में धकेल दिया है.

 

कैशियर छुट्टी पर था तो बैंक कर्मचारी ने लूटे लाखों

बैंक के अस्थाई कर्मचारी देवप्रकाश ने मोबाइल की दुकान चलाने वाले अपने दोस्त अरुण के साथ मिल कर बैंक का पैसा लूटने की योजना बनाई. इस में वे कामयाब भी हो गए, लेकिन…  

रमी का मौसम होने की वजह से पथरीला शहर कोटा जैसे तंदूर की तरह तप रहा था. मंगलवार 19 जून2018 का दिन भी कमोबेश ऐसा ही था. दोपहर ढल चुकी थी. इस के बावजूद कोटा के तापमान में कमी नहीं आई थी. अपराह्न के लगभग 4 बज चुके थे, सीओ नरसीलाल मीणा अपने चैंबर में बैठे बड़े गौर से ग्यारसीराम शृंगी नाम के शख्स की बातें सुन रहे थे. लगभग 50 साल की उम्र पार कर चुका ग्यारसीराम बड़ौदाराजस्थान क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक की गुमानपुरा शाखा में कैशियर के पद पर कार्यरत था. लेकिन वक्ती तौर पर वह इसी बैंक की कंसुआ शाखा में कैशियर का काम संभाल रहा था. कंसुआ अनंतपुरा थाना क्षेत्र में आता है

अनंतपुरा पुलिस स्टेशन पर सीओ अमर सिंह राठौड़ थानाप्रभारी के पद पर तैनात थे. संयोग से उस वक्त राठौड़ भी मीणा साहब के चैंबर में बैठे थे. ग्यारसीराम जो समस्या ले कर उन के पास आया था, वह काफी गंभीर थी. इतनी गंभीर कि ग्यारसीराम की नौकरी और इज्जत दोनों ही दांव पर लग गई थीं. ग्यारसीराम ने नरसीलाल मीणा को बताया कि 3 बजे वह बैंक का अस्थाई कर्मचारी देवप्रकाश के साथ बैंक से 8 लाख रुपए ले कर रवाना हुआ था. मोटरसाइकिल वह खुद चला रहे थे जबकि पीछे बैठे देवप्रकाश ने रुपयों से भरा बैग थाम रखा थायह रकम भामाशाह मंडी स्थित बैंक की दूसरी शाखा में जमा करनी थी. जैसे ही वे भामाशाह मंडी की पुलिया तक पहुंचे, अचानक एक स्कूटी पर सवार 2 लोग आए और बड़ी फुरती से देवप्रकाश के हाथों से नोटों का बैग छीन कर भाग गए.

दोनों ने शोर मचाते हुए काफी दूर तक उन का पीछा भी किया, लेकिन बदमाश तेज रफ्तार के साथ भाग निकले. ग्यारसीराम ने बताया कि यह सब इतने अचानक हुआ कि वह ठीक से स्कूटी का नंबर और बदमाशों का हुलिया तक नहीं देख पाए. दोनों बदमाश 24-25 साल के आसपास के थे और स्कूटी काले रंग की थी.

‘‘जब रकम आप के बैंक में सुरक्षित थी तो उसे दूसरी शाखा में जमा कराने का क्या मतलब?’’ सीओ मीणा ने सवाल किया. कैशियर ग्यारसीराम ने उन्हें बैंकिंग प्रक्रिया समझाते हुए कहा, ‘‘सर, बैंक की कंसुआ शाखा में 5 लाख से ज्यादा रकम रखने का प्रावधान नहीं है. जब बैंक में 8 लाख की रकम जमा हो गई तो बैंक की मुख्य ब्रांच भामाशाह मंडी शाखा में जमा कराना जरूरी हो गया था.’’

सीओ नरसीलाल मीणा ने ग्यारसीराम के चेहरे पर नजर गड़ाते हुए पूछा, ‘‘आप बैंक से कितने बजे रवाना हुए थे और वारदात कितने बजे हुई?’’

‘‘जी, यही कोई पौने 3 बजे…’’ हड़बड़ाते हुए ग्यारसीराम ने कहा.

‘‘मतलब वारदात 15 मिनट बाद ही हो गई, क्यों?’’ सीओ ने सवाल किया.

‘‘जी.’’ ग्यारसीराम के मुंह से निकला.

 सीओ मीणा की आंखों में जैसे गहरी चमक कौंध गई. उन्होंने टेबल पर रखे पेपरवेट को घुमाते हुए कहा, ‘‘इस का मतलब किसी को आप के पूरे रूटीन की जानकारी थी.’’

ग्यारसीराम हक्काबक्का हो कर सीओ नरसीलाल मीणा की तरफ देखता रह गया. वारदात जिस ढंग से हुई थी, उस का केंद्र भामाशाह मंडी की पुलिया थी और यह जगह वीरान नहीं बल्कि आमदरफ्त वाला चहलपहल भरा इलाका था. मीणा ने तत्काल एसपी अंशुमान भोमिया को घटना का ब्यौरा दिया तो वह भी चौंके. उन के मुंह से बरबस निकला पड़ा, ‘‘ऐसा कैसे हो सकता है?’’

इस मामले का खुलासा करने के लिए भोमिया साहब ने एडीशनल एसपी समीर कुमार दुबे की अगुवाई में स्पैशल टीम का गठन किया. इस टीम में सीओ नरसीलाल मीणा के अलावा अनंतपुरा थानाप्रभारी अमर सिंह राठौड़, एएसआई आनंद यादव, दिनेश त्यागी, हैडकांस्टेबल कमल सिंह, कांस्टेबल रामकरण आदि को शामिल किया गया. भामाशाह मंडी के पास जहां वारदात हुई थी, उधर जाने वाला रास्ता एकदम सुनसान नहीं था. वहां आसपास दुकानें और छोटेबडे़ कई मकान भी थे. दुकानें भी छोटेमोटे बाजारनुमा थीं.

पुलिस की शुरुआती तहकीकात का नतीजा ही चौंकाने वाला निकला. दुकानदारों से बात की तो उन्होंने बताया कि उन्होंने यहां ऐसी कोई वारदात होती नहीं देखीघटनास्थल के पास स्थित स्टाल पर चाय बेचने वाले ने बताया कि यहां लूट की कोई वारदात हुई ही नहीं है और ही उस ने यहां लूट को ले कर किसी का शोर सुना. जबकि ग्यारसीराम ने शोर मचाने की बात पुलिस को बताई थी. पुलिस ने सीसीटीवी कैमरे भी खंगाले, लेकिन कहीं कुछ नहीं मिला. एएसपी दुबे के मन में शक तब हुआ, जब ग्यारसीराम ने उन्हें बताया कि एफआईआर दर्ज कराने के लिए देवप्रकाश उस के साथ नहीं आया, जबकि वारदात के दौरान रकम का बैग उसी के पास था.

घटना को ले कर संदेहास्पद स्थितियों ने कई सवाल खड़े कर दिए थे. जैसे लूट की वारदात अचानक हुई थी, ऐसी स्थिति में बाइक का गिरना तो दूर की बात, उस का संतुलन तक नहीं बिगड़ा था. चौंकाने वाला सवाल यह भी था कि लूट दोपहर 3 बजे हुई लेकिन उन्होंने तत्काल पुलिस को सूचित करने के बजाए एक घंटे बाद यानी 4 बजे खबर की. पुलिस ने अब यह पता लगाने की कोशिश की कि इस पूरे मामले में कैशियर ग्यारसीराम की क्या भूमिका थी. एएसपी समीर कुमार दुबे ने एक बार फिर ग्यारसीराम से बात कीइस बार उस ने जो बताया, उस ने तहकीकात का नया खाका खींच दिया. उस ने कहा, ‘‘वारदात के दिन कंसुआ बैंक शाखा के मैनेजर और नियमित कैशियर दोनों छुट्टी पर थे. मेरी तैनाती तो बैंक की गुमानपुरा शाखा में है. मुझे वक्ती तौर पर एवजी कैशियर के रूप में बैंक में रकम जमा करवाने के लिए बुलवाया गया था.’’

‘‘लेकिन पुलिस को इत्तला करने में एक घंटा क्यों जाया किया गया? क्या वारदात की जानकारी पुलिस को तुरंत नहीं दी जानी चाहिए थी?’’ एएसपी दुबे ने सवाल किया.

‘‘सर, हम ने पहले अपने स्तर पर कोशिश की. गोबरिया बावड़ी तक हम ने दौड़ भी लगाई. फिर वापस बैंक आए. लेकिन जब कोई नतीजा नहीं निकला तो पुलिस के पास तो आना ही था.’’ उस ने बताया. एएसपी दुबे को लगा कि ग्यारसीराम जो कह रहा है, शायद सच हो. इसलिए उस से कहा, ‘‘ठीक है, आप अभी घर चले जाइए लेकिन कहीं बाहर मत जाना. पूछताछ के लिए जरूरत पड़ सकती है.’’

एएसपी दुबे का संदेह अब पूरी तरह देवप्रकाश पर टिक गया. इस की वजह भी साफ थी कि वारदात के दौरान वह बाइक के पीछे बैठा था और लुटेरों ने रकम से भरा बैग उसी से छीना था. ऐसे में उसे भी ग्यारसीराम के साथ थाने आना चाहिए था, लेकिन नहीं आया. एएसपी दुबे अभी इस बारे में सोच ही रहे थे कि उसी समय सीओ नरसीलाल मीणा और इंसपेक्टर अमर सिंह राठौड़ ने उन के चैंबर में प्रवेश किया. सीओ मीणा ने आते ही कहा, ‘‘सर, बैंक की गतिविधियों से पूरी तरह वाकिफ अंदर का आदमी तो देवप्रकाश ही है, क्या आप इस बात पर यकीन नहीं कर पा रहे?’’

‘‘नहीं, मुझे पूरा यकीन है लेकिन ऐसे मामलों में जल्दबाजी ठीक नहीं होती.’’ एएसपी दुबे ने बात का खुलासा करते हुए कहा, ‘‘मुझे शक ही नहीं, पूरा विश्वास है कि इस वारदात का मास्टरमाइंड देवप्रकाश के अलावा और कोई नहीं हो सकता. लेकिन वारदात को तो उस के 2 साथियों ने अंजाम दिया था

‘‘अब अगर सीधे देवप्रकाश को गिरफ्तार किया जाता है तो उस के दोनों साथी भाग जाएंगे और हमें ऐसा नहीं होने देना है. हमें उसे अंधेरे में रखना है कि पुलिस को उस पर शक नहीं है. इस का नतीजा यह होगा कि वह बेफिक्र हो कर रकम के बंटवारे के लिए अपने साथियों से मिलने की कोशिश करेगा. तभी हम आसानी से उसे और उस के साथियों को दबोच लेंगे.’’

‘‘और हां, आप ने देवप्रकाश की जन्मकुंडली तो खंगाल ली होगी?’’ एएसपी दुबे ने पूछा.

‘‘यस सर,’’ सर्किल इंसपेक्टर अमर सिंह राठौड़ ने बताया, ‘‘देवप्रकाश पिछले 4 सालों से बतौर अस्थाई कर्मचारी बैंक में चपरासी तैनात है, इसलिए बैंक की तमाम गतिविधियों से वह पूरी तरह वाकिफ है. आदमी खुराफाती किस्म का है. उस की संगत भी कुछ गड़बड़ नजर आती है. बैंक के सामने ही एक मोबाइल की दुकान है. दुकान अरुण कुमार बुलीवाल की है. देवप्रकाश और अरुण में अच्छी दोस्ती है.’’

‘‘हां, अब बात का सिरा नजर गया है.’’ एएसपी ने अमर सिंह राठौड़ की बात बीच में ही काट कर सीओ मीणा की तरफ देखते हुए कहा, ‘‘फौरन इस अरुण कुमार को थामो. बिल्ली की पूंछ पर पैर पड़ेगा तो उस के गले में घंटी बांधने में देर नहीं लगेगी.’’

योजना के मुताबिक, सर्किल इंसपेक्टर अमर सिंह राठौड़ अगले दिन सादे कपड़ों में बैंक के सामने स्थित अरुण की मोबाइल की दुकान पर पहुंच गए. ग्राहक के रूप में मोबाइल खरीदारी की बात कर के उन्होंने तसल्ली कर ली कि जिस से वह रूबरू हुए हैं, वह अरुण बुलीवाल ही है. दुकान पर राठौड़ कुछ इस तरह खड़े थे कि बैंक में लोगों की आवाजाही साफ दिखाई दे. लगभग आधे घंटे बाद देवप्रकाश अरुण की दुकान पर आया. उस की दुकान में दाखिल होते ही अरुण अमर सिंह राठौड़ को छोड़ कर देवप्रकाश को गली के दूसरे मुहाने पर ले जाने लगा. जाते समय वह सर्किल इंसपेक्टर अमर सिंह राठौड़ से बोला, ‘‘मैं अपने दोस्त से कोई जरूरी बात कर लूं, तब तक आप मोबाइल सैट पसंद कर लीजिए.’’

‘‘ठीक है, तुम बात कर लो. मुझे कोई जल्दी नहीं है. लेकिन तुम इस तरह हड़बड़ाए हुए क्यों हो?’’ राठौड़ ने बड़े सहज भाव से अरुण की कलाई थामते हुए कहा.

‘‘कहां साब, आप अपना मोबाइल खरीदो और चलते बनो.’’ अनजान शख्स की मौजूदगी से अरुण हड़बड़ा गया था. फिर भी उस ने साहस बटोरते हुए कहा, ‘‘अब तुम फूटो यहां से, मुझे तुम्हें कोई मोबाइल नहीं देना है. पता नहीं कैसेकैसे लोग चले आते हैं.’’

‘‘तो चलो एक बात बताओ, जिस के साथ तुम जा रहे हो वह बैंक में काम करने वाला देवप्रकाश ही है , तुम्हारा जिगरी दोस्त.’’

शेर बनने की कोशिश करने वाला अरुण अब सकपकाते हुए बोला, ‘‘भाई, तुम क्यों पंगा कर रहे हो? जरूर तुम्हें कोई गलतफहमी हुई है.’’

‘‘कोई बात नहीं, गलतफहमी हो गई है तो अभी दूर कर देते हैं.’’ राठौड़ ने अरुण के गले में बांह डालते हुए गली के मुहाने की तरफ घसीटते हुए कहा, ‘‘चलो, तुम्हें कुछ दिखाते हैं.’’

यह सुन कर अरुण के होश फाख्ता हो गए. उस ने सामने जो नजारा देखा उसे देख वह बुरी तरह थरथराने लगा. देवप्रकाश को 2 सिपाही पकड़े हुए खड़े थे. सीआई राठौर ने उसे घुड़कते हुए कहा, ‘‘अरुण, तुम्हारी भलाई इसी में है कि तुम सब सचसच बता दो. तुम ने देवप्रकाश के साथ मिल कर कैसे बैंक की रकम लूटने की योजना बनाई और  तुम्हारे इस खेल में कौनकौन शामिल था?’’

तब तक दोनों सिपाही देवप्रकाश को राठौड़ के पास ले आए. देवप्रकाश का खेल खत्म हो चुका था. सीआई राठौड़ ने वहीं पर देवप्रकाश के 2-3 थप्पड़ जड़ते हुए कहा, ‘‘2 तो तुम हो गए, अब और साथियों के नाम बता दो.’’

थप्पड़ और राठौड़ के पुलिसिया खौफ से थर्राए देवप्रकाश ने राहुल राठौड़ का नाम बताया. पुलिस ने तत्काल राहुल राठौड़ के घर छापा मारा. पुलिस को देखते ही राहुल के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं. पुलिस पूछताछ में देवप्रकाश ने अपना अपराध स्वीकार करते हुए बताया, ‘‘सर, बैंक से रकम लूटने की योजना मैं ने ही बनाई थी.’’ इस के साथ ही अरुण की तरफ देखते हुए बोला, ‘‘इस पर अमल करने का तरीका अरुण ने बताया था. बैग छीनने के लिए स्कूटी अरुण ने ही ड्राइव की थी.’’

‘‘…और तीसरा कौन था, जिस ने देवप्रकाश से बैग छीनैती को अंजाम दिया?’’ एसपी भोमिया साहब ने घुड़कते हुए पूछा.

‘‘साहब, यह काम राहुल ने किया था.’’ उस ने राहुल की तरफ इशारा किया. पुलिस को देवप्रकाश ने जो कुछ बताया, उस के मुताबिक मौजमजे में उस ने काफी लोगों से कर्ज ले लिया था और अब वह उन के तकाजों से परेशान था. बैंक के सामने स्थित मोबाइल की दुकान के मालिक अरुण बुलीवाल से उस की गहरी दोस्ती थी. आर्थिक दृष्टि से अरुण भी तंगहाली में था. बैंक से रकम निकालने जमा कराने के काम में कैशियर के साथ उसी को आनाजाना होता था. देवप्रकाश को अपनी तंगहाली से उबरने का एक ही उपाय सूझा कि लूट का ऐसा नाटक रचा जाए ताकि किसी को शक भी हो और अच्छीखासी रकम भी हाथ लग जाए. लेकिन कोई मुनासिब मौका हाथ नहीं रहा था.

वारदात के लिए मंगलवार 19 जून, 2018 का दिन उस ने इसलिए चुना क्योंकि बैंक का नियमित कैशियर तो छुट्टी पर था ही, बैंक मैनेजर के परिवार में किसी की मौत की वजह से वह भी छुट्टी पर थे. कैश जमा करवाने के लिए बैंक की गुमानपुरा शाखा के कैशियर ग्यारसीराम को बुलवाया गया थावारदात के मास्टरमाइंड देवप्रकाश ने सारी प्लानिंग कर रखी थी. मौका मिला तो वारदात को अंजाम भी दे दिया. योजना बनाते समय देवप्रकाश ने तीनों का हिस्सा तय कर रखा था. पुलिस ने तीनों से 8 लाख रुपए बरामद कर लिए. देवप्रकाश की गरदन शर्म से झुक गई. कथा लिखने तक देवप्रकाश, राहुल और अरुण तीनों न्यायिक अभिरक्षा में थे.

   —कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

50 लाख के लिए दिनदाहड़े बड़े अफसर का अपहरण

50 लाख की फिरौती के लिए किडनैपर सहायक उद्योग कमिश्नर रमणलाल वसावा को किडनैप कर
गुप्तस्थान पर ले जा रहे थे. फिरौती की रकम हासिल करने के बाद उन का मकसद वसावा की हत्या
करना था. क्या बदमाश अपनी योजना में सफल हो पाए?

पुलिस कंट्रोल रूम द्वारा अपहरण की सूचना प्रसारित होते ही पूरे जिले के सभी थानों की पुलिस के साथ
पीसीआर वाले और लोकल क्राइम ब्रांच भी अलर्ट हो गई. घटना गुजरात की राजधानी गांधीनगर के थाना
चीलोड़ा के अंतर्गत घटी थी, इसलिए थाना चीलोड़ा के एसएचओ ए.एस. अंसारी अपनी टीम के साथ तुरंत
घटनास्थल पर पहुंच गए. लेकिन उन के पहुंचने के पहले ही वहां एक पीसीआर वैन पहुंच चुकी थी.

अपहरण गियोड स्थित मंदिर के पास हुआ था. मंदिर के पास खड़े कुछ लोगों ने अपहरण होते हुए देखा
था, इस के साथ सामने से आ रही पुलिस कंट्रोल रूम की गाड़ी के 2 कर्मचारियों ने भी देखा था.
गुजरात के जिला पालनपुर के सहायक उद्योग कमिश्नर रमणलाल वसावा तबीयत खराब होने की वजह
से 3 दिनों से छुट्टी ले कर गांधीनगर स्थित अपने घर पर ही थे. 25 मई, 2024 की दोपहर को वह
हिम्मतनगर के किसी डाक्टर को दिखाने के लिए अपनी कार से घर से निकले.

 

वह गांधीनगर से थोड़ी दूर गियोड मंदिर के पास पहुंचे थे कि पीछे से आ रही एक सफेद और दूसरी
आसमानी रंग की कार ने उन्हें घेर कर रोक लिया. सफेद रंग की कार से 3 लोग उतरे और रमणलाल
वसावा को उन की कार से जबरदस्ती खींच कर उतारा और अपनी कार में बैठा कर ले गए.

वहां खड़े कुछ लोगों ने यह देखा तो उन्हें समझते देर नहीं लगी कि मामला कुछ तो गड़बड़ है. उन्होंने
तुरंत इस घटना की सूचना फोन द्वारा पुलिस कंट्रोल रूम को दे दी.

रमणलाल वसावा की कार घटनास्थल पर ही खड़ी थी. इंसपेक्टर ए.एस. अंसारी ने जब उस कार की
तलाशी ली तो उस में से रमणलाल वसावा के नाम का आधार कार्ड तथा इलेक्शन कार्ड मिला.
बगल की सीट पर 2 फाइलें रखी थीं. ए.एस. अंसारी ने जब उन फाइलों को उठा कर देखा तो उन में वह सहायक उद्योग कमिश्नर, पालनपुर लिखा था. इस से पता चला कि जिन रमणलाल वसावा का अपहरण हुआ था, वह पालनपुर में सहायक उद्योग कमिश्नर थे. यानी वह क्लास वन अफसर थे. यह पता चलते ही पुलिस विभाग में हड़कंप मच गया.

इंसपेक्टर अंसारी ने तुरंत अपने परिचित पुलिस अधिकारियों को फोन कर के पूछा तो उन लोगों ने
बताया कि रमणलाल वसावा पालनपुर में सहायक उद्योग कमिश्नर हैं, जो इसी 30 जून को रिटायर होने
वाले हैं.

जब स्पष्ट हो गया कि जिस व्यक्ति का किडनैप हुआ है, वह पालनपुर के सहायक उद्योग कमिश्नर हैं
तो एसएचओ ने फोन द्वारा जिले के सभी पुलिस अधिकारियों को भी यह बात बता दी. अभी वह
घटनास्थल की ही जांच कर रहे थे कि एसपी और लोकल क्राइम ब्रांच की एक टीम इंसपेक्टर हार्दिक सिंह परमार के नेतृत्व में पहुंच गई.
इस के बाद इंसपेक्टर हार्दिक सिंह ने रमणलाल वसावा की कार के नंबर के आधार पर उन के घर का
पता मालूम किया और उन के घर वालों से संपर्क किया तो घर वालों ने बताया कि उन्हें लग रहा था कि
इधर 2 दिनों से कोई उन के घर की रेकी कर रहा था. इस के अलावा अलगअलग नंबरों से फोन कर के
रमणलाल वसावा को धमकी भी दी जा रही थी.

पुलिस को वे नंबर मिल गए थे, जिन नंबरों से रमणलाल वसावा को धमकी दी जा रही थी. धमकी देने
वाले उन से 50 लाख रुपए की रंगदारी मांग रहे थे. कुल 3 नंबरों से वसावा को धमकी दी गई थी.
पुलिस ने टेक्निकल सर्विलांस से उन तीनों नंबरों की लोकेशन पता कराई.

इन में से एक नंबर की लोकेशन प्रांतिज और वीसनगर की ओर जाती मिली. लेकिन प्रांतिज टोलनाका
की सीसीटीवी फुटेज चैक की गई तो उस में किडनैपर्स की कार दिखाई नहीं दी. इस से पुलिस को
समझते देर नहीं लगी कि किडनैपर मेनरोड से न जा कर बीच के रास्तों का उपयोग कर रहे हैं. पुलिस
को जो 3 नंबर मिले थे, उन तीनों नंबरों की अलगअलग लोकेशन आ रही थी.

एक की लोकेशन धोलेरा की आ रही थी तो दूसरे की लोकेशन गांधीनगर की थी, जबकि तीसरे की
लोकेशन वीसनगर माणसा रोड की थी. पुलिस को लगा कि आरोपी प्रांतिज तो नहीं गए होंगे. उन्होंने
जरूर बीच का रास्ता चुना होगा. इसलिए अन्य नंबरों को ट्रेस करने के बजाय पुलिस ने वीसनगर की
ओर जाने वाले नंबर पर अपना पूरा ध्यान लगा दिया. क्योंकि इस नंबर की लोकेशन लगातार बदल रही
थी.

इस तरह से की पुलिस ने प्लानिंग अब तक पुलिस की कई टीमें बना कर रमणलाल वसावा की खोज में लगा दी गई थीं. इन टीमों को अलगअलग काम सौंप दिया गया था. पर किसी भी टीम की समझ में नहीं आ रहा था कि वे क्या करें.

तभी क्राइम ब्रांच के इंसपेक्टर हार्दिक सिंह परमार के मन में आया कि वह पुलिस की सरकारी जीप का उपयोग करने के बजाय अगर अपनी कार से बदमाशों का पीछा करें तो ज्यादा ठीक रहेगा. इस की वजह यह थी कि पुलिस जीप देख कर आरोपी अलर्ट हो जाते. जबकि निजी कार से उन्हें पता न चलेगा कि
कार किस की है और उस में कौन बैठा है.

हार्दिक सिंह परमार ने एसआई आर.जी. देसाई और के.के. पाटडिया को अपनी कार में बैठाया और
बदमाशों की खोज में निकल पड़े. उन्हें पूरा विश्वास था कि जिस मोबाइल नंबर की लोकेशन वीसनगर
की ओर की मिली है, उसी नंबर वालों के साथ रमणलाल वासवा हैं. इसलिए उन्होंने क्राइम ब्रांच के
इंसपेक्टर डी.बी. वाला से हर 2 मिनट पर उस नंबर की लोकेशन भेजने के लिए कहा.

दूसरी ओर थाना चीलोड़ा के एसएचओ ए.एस. अंसारी अपनी टीम के साथ कार में मिले आधार कार्ड और
इलेक्शन कार्ड में लिखे पते के आधार पर उन के घर पहुंचे तो वसावा की पत्नी रमीलाबेन ने बताया कि
उन के पति अस्पताल जा रहे थे, तभी उन का अपहरण हुआ था. अन्य जानकारी ले कर एसएचओ
ए.एस. अंसारी उन्हें अपने साथ ले कर थाने आ गए थे.

जब रमीलाबेन से पूछताछ की गई तो उन्होंने बताया कि 30 जून को आर.के. वसावा रिटायर होने वाले
हैं. उन की तबीयत खराब थी, इसलिए वह चीलोड़ा हो कर दवा लेने जा रहे थे. उन के बेटे की अभी कुछ
दिनों पहले ही मौत हो गई थी. ससुर भी बीमार हैं. उन की दवा चल रही है. इसलिए वसावा काफी टेंशन
में थे.

कुछ दिनों से उन के पास अज्ञात लोगों के फोन आ रहे थे कि वे आर.के. वसावा से मिलना चाहते हैं. पर
वह उन से मिलने से मना कर रहे थे. क्योंकि वे उन्हें फोन कर के 50 लाख रुपए मांग रहे थे. एक तरह
से वे उन्हें ब्लैकमेल कर रहे थे. रिटायरमेंट के समय कोई इश्यू न खड़ा हो, इसलिए वसावा उन से 30
जून या पहली जुलाई को मिलने के लिए कह रहे थे. जबकि वे उन से तुरंत मिलने की जिद कर रहे थे.

किडनैप के एक दिन पहले 2 लोग उन के घर की रेकी कर रहे थे. उस समय रमीलाबेन घर में अकेली थीं. उन दोनों में से एक व्यक्ति ने उन से आर.के. वसावा के बारे में पूछा भी था. उन्होंने मना किया तो उन लोगों ने रमीलाबेन को धमकी दी थी कि देख लेना वे उन्हें सुबह थाने जाने के लिए मजबूर कर देंगे. वह उन की कार का फोटो लेने के लिए मोबाइल फोन लेने अंदर गईं, उसी बीच वे दोनों व्यक्ति वहां से भाग गए थे.

रमीलाबेन ने आगे बताया था कि किसी भीखाभाई भरवार का फोन अकसर उन के पति के पास आता
था. लेकिन उन्होंने कभी यह नहीं सोचा था कि उन का किडनैप हो जाएगा.

एसपी ने पुलिस की अलगअलग टीमें बनाई थीं और थाना कलोल, माणसा, हिम्मतनगर और ऊझा पुलिस
से कह कर नाकाबंदी करवा दी थी. अहमदाबाद की क्राइम ब्रांच पुलिस को भी सूचना दे दी गई थी,
क्योंकि किडनैपर अहमदाबाद की ओर भी भाग सकते थे.

पुलिस चूहे बिल्ली का खेल और किडनैपरों में चला

इंसपेक्टर डी.डी. वाला किडनैपर्स का पीछा कर रहे इंसपेक्टर हार्दिक सिंह परमार को पलपल की लोकेशन दे रहे थे. एसआई के.के. पाटडिया के हाथ में मोबाइल था. वह हार्दिक सिंह परमार को लगातार गाइड करते हुए यह भी बता रहे थे कि बदमाशों और उन के बीच कितना अंतर है. जबकि एसआई आर.जी. देसाई दाहिनी ओर से आने वाली गाडिय़ों पर नजर रख रहे थे.

लोकेशन ट्रैस करते करते एक समय ऐसा आ गया, जब बदमाशों की कार और हार्दिक सिंह परमार की टीम की कार के बीच मात्र 8 मिनट का अंतर रह गया. इस के बाद तो पुलिस की यह टीम एकदम से
सावधान हो गई.

इंसपेक्टर परमार ने एसआई देसाई से कहा, ''देसाई साहब, अब आप सामने से आने वाली हर कार पर नजर रखिएगा. इन में अगर कोई काले कांच वाली या फिर जिस तरह की कार के बारे में हमें बताया गया है, उस तरह की कार दिखाई दे तो तुरंत बताइएगा.’’

इंसपेक्टर हार्दिक सिंह परमार अपनी कार खुद ही चला रहे थे. इस के अलावा इंसपेक्टर ए.एस. अंसारी
को भी बदमाशों की वीसनगर, गोझारिया और माणसा जैसे स्थानों की जो लोकेशन मिल रही थी, उस की
जानकारी थाना चीलोड़ा, कलोल, माणसा पुलिस को देने के साथ क्राइम ब्रांच पुलिस को भी दी जा रही थी,
जिस से पुलिस की अलगअलग टीमों ने जगहजगह नाकाबंदी कर दी थी.

बदमाशों की कार और उस का पीछा कर रही इंसपेक्टर हार्दिक सिंह परमार की कार के बीच का अंतर
लगातार घटता जा रहा था. जिस की वजह से इंसपेक्टर परमार और उन के साथी पूरी तरह से सावधान
हो गए थे. इस का एक कारण यह भी था कि बदमाश सामने से आ रहे थे. 2 मिनट बाद उन की कार
की बगल से काले कांच वाली एक कार निकली.

इंसपेक्टर परमार को लगा कि शायद बदमाशों की कार यही है. क्योंकि लोकेशन के आधार पर बदमाशों
की कार उन की कार के एकदम नजदीक दिखाई दी थी. उन्होंने तुरंत यूटर्न लिया और उस काले कांच
वाली कार के पीछे अपनी कार लगा दी.

लगभग 15 मिनट तक उस कार का पीछा करते हुए इंसपेक्टर परमार ने उन की कार को ओवरटेक
किया. ओवरटेक करते हुए उन्होंने देखा कि कार के सभी शीशे बंद थे. कार भीखा भरवार (रघु देसाई उर्फ
रघु भरवार) चला रहा था. इंसपेक्टर परमार ने अपनी कार बदमाशों की कार के बगल लगाई तो बदमाशों
ने अपनी कार का शीशा थोड़ा खोल कर यह देखना चाहा कि इस कार में कौन हैं.

तभी इंसपेक्टर परमार की कार में बैठे एसआई के.के. पाटडिया ने कार का पूरा शीशा खोल कर बदमाशों
से कहा, ''हम पुलिस वाले हैं. तुम लोगों के लिए यही अच्छा होगा कि तुम लोग कार रोक दो.’’
बदमाशों को जब पता चला कि पुलिस वाले उन के पीछे लगे हैं तो उन की जैसे जान निकल गई. वे
किसी भी तरह पुलिस के हाथ नहीं आना चाहते थे, इसलिए उन्होंने कार की स्पीड लगभग 140
किलोमीटर प्रति घंटे की कर दी.

जैसे ही उस कार की रफ्तार एकदम से बढ़ी तो पुलिस को समझते देर नहीं लगी कि इसी कार में
बदमाश हैं. फिर तो इंसपेक्टर परमार ने उस कार के पीछे अपनी कार लगा दी. बदमाश जिस तरह तेजी से कार चला रहे थे, उस से पुलिस समझ गई कि ये लोग कोई न कोई गलती जरूर करेंगे. आगे एक चौराहा था, जिस पर पुलिस ने नाकाबंदी कर रखी थी. बदमाशों और उस के पीछे लगी पुलिस की कार बहुत तेज गति में चल रही थीं.

आगे बदमाशों की कार थी. उन्होंने बैरिकेड्स उड़ा दिए. बैरिकेड्स के आसपास खड़े सिपाही अगर पीछे न
हटते तो वह कार उन के ऊपर चढ़ा देते.

निजी कार होने की वजह से नाकाबंदी पर खड़े पुलिस वालों को पता नहीं चला कि उस कार से पुलिस
वाले बदमाशों का पीछा कर रहे हैं. इसलिए उन्होंने इंसपेक्टर परमार की कार रोकने की कोशिश की, पर
वह रुके नहीं. क्योंकि अगर वह कार रोक कर पुलिस वालों को अपना परिचय देने लगते तो तब तक
बदमाश बहुत दूर निकल जाते और उन की आंखों से ओझल हो जाते. इसलिए वह अपना परिचय देने के
बजाय बदमाशों का पीछा करते रहे.

पुलिस ने क्यों ठोंकी किडनैपर्स की कार

संयोग से थोड़ा आगे जाने पर माणसा रोड पर रेलवे फाटक बंद था. बदमाशों ने दूर से ही देख लिया कि
रेलवे फाटक बंद है, इसलिए उन्होंने अपनी कार की रफ्तार धीमी कर ली. क्योंकि वे आगे जा कर फाटक
पर फंस सकते थे. इसलिए वे यूटर्न ले कर पीछे लौटना चाहते थे. इंसपेक्टर परमार कट टू कट अपनी
कार चला रहे थे. आगे फाटक पर ट्रैफिक था. वह बदमाशों को घेरना चाहते थे, जिस से बदमाश पीछे की
ओर न भाग सकें.

फाटक से थोड़ा पहले एक खुली जगह से बदमाशों ने यूटर्न लिया. इंसपेक्टर परमार के पास कोई विकल्प
नहीं था. अगर बदमाश यूटर्न ले कर निकल जाते तो वे किस रास्ते से निकल जाते, पता करना मुश्किल हो जाता.
इसलिए इंसपेक्टर परमार ने तुरंत फैसला लिया. उन्होंने कार में बैठे अपनी साथियों से कहा, ''इन्हें रोकने
के लिए अपनी कार इन की कार से भिड़ानी पड़ेगी. इसलिए आप लोग अपनी सीट बेल्ट टाइट कर
लीजिए.’’

इतना कह कर इंसपेक्टर परमार ने जानबूझ कर अपनी कार से बदमाशों की कार में पीछे से जोर से
टक्कर मारी. इंसपेक्टर परमार की कार का अगला हिस्सा बदमाशों की कार के पिछले टायर से जा लगा,
जिस से बदमाशों की कार का पिछला टायर फट गया.

इंसपेक्टर परमार उन की कार को ठेलते हुए सड़क के किनारे तक ले गए. टायर फटने से इंसपेक्टर
परमार समझ गए कि अब बदमाश ज्यादा दूर नहीं भाग सकेंगे.

टक्कर मारने से इंसपेक्टर परमार की कार का भी अगला भाग टूट कर झूल गया था. फिर भी वह उन
का पीछा करते रहे. टायर फट जाने के बावजूद बदमाशों ने लगभग डेढ़ किलोमीटर तक कार भगाई. अंत
में उन्होंने एक जगह सड़क किनारे कार रोकी और उस में से 3 लोग उतर कर भागे. निश्चित था कि वे
आरोपी थे.

इसलिए इंसपेक्टर परमार ने भी अपनी कार रोकी और एक एसआई को कार की तलाशी लेने और पीडि़त
आर.के. वसावा को संभालने के लिए कह कर वह एक आरोपी के पीछे दौड़े. दूसरे आरोपी के पीछे दूसरे
एसआई को लगा दिया था. चौथा कोई नहीं था, इसलिए एक आरोपी भाग निकला.

करीब सौ मीटर दौड़ा कर पुलिस ने एक किडनैपर को पकड़ लिया, दूसरा किडनैपर करीब डेढ़ किलोमीटर दूर जा कर पकड़ा गया. तीसरे आरोपी का पीछा करने वाला कोई नहीं था, इसलिए वह खेतों के बीच से होता हुआ भाग गया.

जिस समय बदमाश पकड़े गए थे, उस समय शाम के 5 बज रहे थे. जबकि बदमाशों ने आर.के. वसावा
को धमकी दी थी कि अगर 5, साढ़े 5 बजे तक उन्हें 50 लाख रुपए नहीं मिले तो वे कच्छ के रण में ले
जा कर उन की हत्या कर देंगे. उन्होंने आर.के. वसावा के साथ मारपीट भी की थी, लेकिन उन्हें कोई
गंभीर चोट नहीं पहुंचाई थी.

पुलिस ने जब उन्हें किडनैपर्स से मुक्त कराया था तो वह काफी नर्वस थे. वह कार के बगल खड़े थे. जब
पुलिस ने उन से पूछा कि अपहरण किस का हुआ है तो वह धीरे से बोले, ''साहब, मेरा हुआ है.’’

पुलिस के हत्थे ऐसे चढ़े किडनैपर्स

इस के बाद इंसपेक्टर परमार ने आर.के. वसावा को अपनी बगल वाली यानी ड्राइवर की बगल वाली सीट
पर बैठा कर कहा, ''अब आप रिलैक्स हो जाइए, शांति रखिए, अब आप को कुछ नहीं होगा. पुलिस आ गई है.’’

फिर बदमाशों की कार को वहीं छोड़ कर इंसपेक्टर हार्दिक सिंह परमार की टीम आर.के. वसावा और
पकड़े गए दोनों बदमाशों को ले कर थाना चीलोडा पहुंची. आरोपियों की कार से कोई हथियार नहीं मिला
था. पुलिस के पास हथियार थे, लेकिन उन्हें चलाने की जरूरत नहीं पड़ी थी.

थाने में बैठी आर.के. वसावा की पत्नी रमीलाबेन ने जब पति को पुलिस की कार से उतरते देखा तो वह
जोरजोर से रोने लगीं. कुछ समय पहले ही उन के जवान बेटे की मौत हुई थी. उस दिन पति मौत के
मुंह से निकल कर लौटे थे, इसलिए वह अपने दिल के दर्द को आंसुओं में बहा देना चाहती थीं.

आर.के. वसावा ने पत्नी को सीने से लगा कर कहा, ''पुलिस वालों का आभार मानो कि तुम्हारा सुहाग जिंदा वापस आ गया वरना बदमाश हमें जिंदा नहीं छोडऩे वाले थे. पैसा पाने के बाद भी वे मुझे मार
देते.’’

इंसपेक्टर हार्दिक सिंह परमार ने पकड़े गए दोनों बदमाशों को थाना चीलोड़ा पुलिस के हवाले कर दिया
था. पकड़े गए दोनों आरोपियों के नाम भीखा भरवार और रोहित ठाकोर थे.

पूछताछ में आरोपियों ने बताया कि यह पूरी योजना भावनगर के बुधा भरवार की बनाई थी. योजना बना
कर आर.के. वसावा से 50 लाख रुपए वसूलने की जिम्मेदारी बुधा भरवार ने भीखा भरवार को सौंपी थी.

उस ने भीखा से कहा था कि उस ने बहुत पैसा कमाया है. इसलिए उस से कम से कम 50 लाख रुपए
लेने हैं. रुपए मिलने पर आपस में बांट लिए जाएंगे.

50 लाख लेने के बाद थी मारने की योजना
पकड़े गए आरोपियों में भीखा भरवार गुजरात की राजधानी गांधीनगर के गोकुलपुरा का रहने वाला था.
वह जमीन खरीदने और बेचने का काम करता था. वही सहायक उद्योग कमिश्नर आर.के. वसावा को
फोन कर के धमकी देता था और रुपए मांगता था.

भीखा के साथ पकड़ा गया रोहित ठाकोर चाय की दुकान चलाता था. इस के पहले भी पुलिस ने उसे लोहे
की चोरी में जेल भेजा था. उस से कहा गया था कि उसे एक साहब के पास जा कर बात करनी है और
उन्हें अपने साथ ले जाना है. किडनैपरों में शामिल रायमल ठाकोर मजदूरी करता था. वही पुलिस के
चंगुल से बच निकला था. इस के अलावा इन के साथ नवघण भरवार, बुधा भरवार, निमेश परमार और
एक अन्य आरोपी हितेश था.

किडनैप के इस मामले में भावनगर का बुधा भरवार मुख्य आरोपी था. जबकि आर.के. वसावा के किडनैप
की योजना भीखा भरवार की थी, जिस के लिए उस ने अपने गैंग में 5 लोगों को शामिल किया था.
भीखा भरवार के नेतृत्व में सभी रोहित ठाकोर की चाय की दुकान पर इकट्ठा होते थे और वहीं योजना
बनती थी कि कैसे रेकी करना है, किस तरह किडनैप कर के रुपए वसूलना है.

 

आर.के. वसावा को डराने के लिए भीखा भरवार फोन कर के कहता था कि उन की एक फाइल उस के
पास है. वह रिटायर होने वाले हैं. अगर उन की फाइल खुल गई तो वह फंस जाएंगे, जिस से उन्हें सरकार
की ओर से मिलने वाला पैसा भी फंस जाएगा और उन की पेंशन भी रुक सकती है. जबकि पुलिस को
किडनैपरों के पास से ऐसी कोई फाइल नहीं मिली थी.

पुलिस ने पूछताछ के बाद दोनों आरोपियों को अदालत में पेश किया था, जहां से उन्हें 8 दिनों के पुलिस
रिमांड पर भेज दिया गया. इस के बाद पुलिस ने इन्हीं दोनों आरोपियों की मदद से एकएक कर के अन्य
सभी आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया है.
किसी को पुलिस ने फोन सर्विलांस की मदद से पकड़ा था तो किसी को मुखबिरों की मदद से. बहरहाल,
आर.के. वसावा को ब्लैकमेल करने और उन का किडनैप कर रंगदारी मांगने वाले सभी आरोपी जेल पहुंच
गए थे.

सनक में कर बैठी प्रेमी के दोस्त की हत्या

कातिल निगाहों ने बनाया कातिल

सनक में कर बैठी प्रेमी के दोस्त की हत्या – भाग 3

तान्या बहुत ही तेज तर्रार थी. वह जानती थी कि बाहर रह कर लड़कियों से दोस्ती करने से कोई लाभ नही, लड़कों से दोस्ती कर हर मकसद पूरा किया जा सकता है. क्योंकि अधिकांश लड़कियों में एकदूसरे से जलने की आदत होती है. यही कारण था कि उस ने इंदौर आते ही सब से पहले युवकों को ही निशाना बनाया था.

छोटू से दोस्ती करते ही उसे भरोसा हो गया था कि वह ही उसे उस की मंजिल तक पहुंचा सकता है. यही सोच कर उस ने छोटू के लिए अपने दिल के दरबाजे खोल दिए थे. उस के सहारे से ही उस की कई अवारा लड़कों से दोस्ती हो गई थी.

तान्या की हरकतों का पता रचित को लगा तो उस ने उसे समझाने की कोशिश की, लेकिन उस ने उस की एक भी बात नहीं मानी. बाद में रचित तान्या को बोझ लगने लगा था. उस ने रचित से साफ शब्दों में कह दिया था कि उसे उस की हमदर्दी की कोई जरूरत नही. तान्या की बात सुनते ही रचित ने उस की तरफ ध्यान देना बिल्कुल ही बंद कर दिया था. लेकिन फिर भी उसे एक चिंता लगी रहती थी कि वह गलत हाथों में पड़ कर अपना भविष्य खराब न कर ले.

हालांकि तान्या ने रचित से पूरी तरह से संबंध खत्म कर लिए थे, लेकिन फिर भी उस के दिल में रचित के लिए बेचैनी रहती थी. उस के दिल में उस के लिए अभी भी थोड़ी जगह खाली थी. लेकिन उस के छोटू से संबंध होते ही रचित ने उस से पूरी तरह से संबंध खत्म कर लिए थे. उस के बाद तान्या ने रचित से बदला लेने का पक्का प्लान बना लिया था. उस ने अपने इस मकसद को अंजाम देने के लिए छोटू के साथसाथ शोभित और उस के दोस्त को भी अपने साथ मिला लिया था.

पूर्व बौयफ्रैंड को सिखाना चाहती थी सबक

26 जुलाई, 2023 को तान्या अपने तीनों दोस्तों के साथ एक होटल में खाना खाने गई हुई थी. उसी दौरान तान्या को पता लगा कि रचित अपने दोस्तों मोनू, विशाल व रचित के साथ महाकाल दर्शन करने के लिए जा रहा है. यह जानकारी मिलते ही उस ने अपने तीनों दोस्तों से रचित को सबक सिखाने वाली बात कही.

उस के सभी दोस्त उस वक्त शराब के नशे में थे. तान्या के कहने मात्र से सभी ने उस की नजरों में हीरो बनते हुए उस की हां में हां कर दी. फिर जल्दी से तीनों ने एक्टिवा स्कूटी निकाली और लोटस चौराहे पर जा पहुंचे. तान्या जानती थी कि उन की कार उसी रास्ते से हो कर गुजरेगी.

लोटस चौराहे पर पहुंचते ही रचित की नजर सामने खड़ी स्कूटी पर पड़ी. उस वक्त तान्या स्कूटी पर सब से पीछे बैठी सिगरेट पी रही थी. इतनी रात गये तान्या को तीन युवकों के साथ इस तरह से घूमते हुए देख रचित को गुस्सा आ गया. रचित ने उस के पास जा कर ही कार रोकी.

तान्या को देखते ही रचित बोला, ”तान्या तुम्हें शर्म नहीं आती . इस तरह से तुम 3-3 लड़कों के साथ रात में आवारगर्दी करती फिर रही हो.”

रचित की बात सुनते ही तान्या को भी गुस्सा आ गया.”तू कौन होता है मुझे रोकने टोकने वाला. तुझ से मेरा क्या रिश्ता है?” उस ने चिल्लाते हुए कहा.

रचित की बात सुनते ही उस के साथी बौखला गए. उन्होंने कार की तरफ लपकने की कोशिश की तो रचित उर्फ टीटू ने कार आगे बढ़ा दी. कार के आगे बढ़ते ही चारों स्कूटी पर सवार हुए. फिर उन्होंने स्कूटी कार के पीछे लगा दी. फिर कार को आगे से घेर कर रचित व उस के साथियों पर हमला कर दिया.

इस केस के खुल जाने के बाद पुलिस ने आरोपियों की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त एक्टिवा स्कूटी व चाकू भी बरामद कर लिया था. पुलिस ने इस मामले में तान्या कुशवाह सहित उस के अन्य दोस्तों शोभित ठाकुर,छोटू उर्फ तन्यम व ऋतिक को कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया था.

हालांकि तान्या ने पुलिस के सामने सफाई देते हएु कहा कि रचित को मारने का उस का कोई इरादा नहीं था. वह केवल उसे डराना चाहती थी. फिर भी उस ने जेल जाने से पहले पुलिस के सामने कहा कि रचित ने कई साल उस का शोषण किया था. वह उसे इतनी आसानी से नहीं छोड़ेगी. वह जब भी जेल से छूटेगी, उस से बदला जरूर लेगी.

आज की इस फैशनपरस्त दुनियां में लिवइन रिलेशनशिप में रहना युवकयुवतियों में क्रेज सा बन गया है. युवकयुवतियां अपना भविष्य बनाने के लिए बड़े शहरों में कोचिंग या पढ़ाई करने के नाम पर निकलते हैं, लेकिन मांबाप से दूर रह कर अधिकांश वहां पर जाते ही गलत रास्ता अपना लेतेे हैं.

शुरूशुरू में लिव इन रिलेशन में रहना अच्छा लगता है, लेकिन जैसे ही बात शादी की आती है तो उस प्रेमी युगल में एक शख्स पीछे हटने लगता है. जिस के कारण दोनों में मनमुटाव पैदा हो जाता है. फिर कुछ ही दिनों में दोनों प्रेमी युगल के रास्ते अलगअलग हो जाते हैं.

इस से युवकों को तो ज्यादा फर्क नही पड़ता, लेकिन युवतियों के आगे. खून के आंसू बहाने के अलाबा कोई रास्ता नहीं बचता. जिस के कारण उन की जिंदगी ही तबाह हो कर रह जाती है. तान्या के साथ भी यही हुआ. काश! वह समझदारी से काम लेती तो वह शायद जेल नहीं पहुंचती.

कातिल निगाहों ने बनाया कातिल – भाग 3

लेकिन सोनाली ने उस के पत्र का कोई जबाव नहीं दिया और न ही यह बात उस ने संजय को बताई. सोनाली नहीं चाहती थी कि किसी बाहर वाले के कारण उस के घर में किसी तरह का कोई विवाद खड़ा हो. लेकिन किसी तरह से यह बात संजय के सामने पहुंच गई, जिसे ले कर मियांबीवी के बीच काफी मनमुटाव हुआ.

संजय ने सोनाली पर शक भी किया. सोनाली ने इस बात को ले कर संजय के सामने काफी सफाई भी पेश की, लेकिन वह उस की एक भी बात मानने को तैयार न था. उस के कुछ दिन बाद जगदीश उसे मिला तो सोनाली ने उसे काफी खरीखोटी सुनाई और उस के बाद कभी भी उस के घर न आने की चेतावनी भी दी. लेकिन इस के बावजूद भी जगदीश अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहा था.

खुराफाती दिमाग में रच डाली खौफनाक साजिश

उस के एक महीने बाद ही जगदीश फिर से सोनाली के घर आ धमका. उस वक्त संजय यादव भी घर पर नहीं था. घर आते ही वह सोनाली से लडऩेझगडऩे लगा. तब बात बढ़ते देख पड़ोसियों ने उसे घर से धक्का मार कर बाहर निकाला. लेकिन इस सब के बावजूद भी वह घर से जाने को तैयार न था.

जगदीश का कहना था कि वह बहुत समय पहले से उसे अपनी बीवी मान चुका है, वह उस के बिना नहीं रह सकता. उस की बातें सुन कर तभी किसी ने उसे पुलिस के हवाले करने वाली बात कही तो वह वहां से चला गया. लेकिन उस दिन के बाद सोनाली और संजय के प्रति उस के दिल में नफरत पैदा हो गई थी.

उस ने उसी दिन सोच लिया था कि सोनाली जब उस की नहीं हो सकती तो वह किसी की भी नहीं हो सकती. जगदीश ने उसी दिन तय किया कि वह संजय को मौत की नींद सुला देगा. उस के बाद वह संजय को ठिकाने लगाने के मौके की तलाश में जुट गया.

दोहरे हत्याकांड से 2 दिन पहले ही उस ने ट्रांजिट कैंप बाजार से एक कांपा खरीदा. फिर वह मौके तलाशता रहा. 3 अगस्त, 2023 की रात को संजय के पड़ोस में एक शादी का प्रोग्राम था. आसपड़ोस के लोगों ने मिलजुल कर एक युवती का प्रेम विवाह कराया था. उस दिन कालोनी के सभी लोग वहां पर जमा थे.

देर रात शादी का प्रोग्राम खत्म हुआ तो सभी अपनेअपने घर चले गए थे. उस वक्त जगदीश भी वहीं पर मंडरा रहा था. जब सब लोग अपनेअपने घर चले गए तो जगदीश कांपा ले कर संजय के घर पहुंचा. उस वक्त तक सभी लोग गहरी नींद में सो चुके थे.

संजय यादव के घर के बाहर टिन का पतला दरवाजा लगा हुआ था, जो कुंडी के सहारे ताले से बंद था. जगदीश ने आरी के ब्लेड से कुंडी को काटा और घर में घुस गया. आसपास के घरों में कूलर पंखे व एसी चलने के कारण किसी को भी कोई आवाज सुनाई नहीं दी.

दोनों की हत्या कर फरार हो गया जगदीश

घर में घुसते ही जगदीश ने संजय की गला रेत कर हत्या कर दी. उस के बाद वह दूसरे कमरें में गया, जहां पर सोनाली सोई हुई थी. उस वक्त सोनाली भी गहरी नींद में थी. सोनाली को सोते देख उस ने कांपे से उस के ऊपर कई वार किए, जिस से उसकी जोरदार चीख निकली.

सोनाली के चीखने की आवाज सुन कर उस की मम्मी गौरी सोनाली के पास पहुंचीं तो उस ने उन पर भी वार कर बुरी तरह से घायल कर दिया. उस के बाद जय की नींद टूटी तो वह भी घर में शोर सुन कर बाहर आया तो जगदीश उसे भी धक्का मारा और घर से फरार हो गया.

इस घटना को अंजाम देने के बाद जगदीश सिडकुल चौक तक पैदल पहुंचा. वहीं पर उस ने झाडिय़ों में हत्या में प्रयुक्त कांपा भी फेंक दिया. उस के बाद वह रात में ही किसी तरह से हल्द्वानी पहुंच गया. उसी दौरान उस का मोबाइल भी पानी में गिर कर बंद हो गया था.

हल्द्वानी जाने के बाद वह सडक़ों पर घूमता रहा और शाम को उस ने एक जनसेवा केंद्र से रुपए निकाले और फिर वह रामपुर चला गया. रामपुर से दिल्ली होते हुए वह अंबाला जाने का प्लान बना चुका था, लेकिन उसी दौरान पुलिस ने उसे दबोच लिया.

इस जघन्य अपराध को अंजाम देने वाला आरोपी 45 पुलिसकर्मियों की टीम के द्वारा पूरे 150 घंटे में गिरफ्तार किया गया था. गिरफ्तारी के दौरान भी आरोपी ने वही घटना वाले ही कपड़े पहन रखे थे. उस के कपड़ों पर जगहजगह खून के निशान मौजूद थे. इस दौरान न तो वह नहाया था और न ही उस ने कपड़े बदले थे.

पुलिस ने उस के कपड़े बदलवा कर खून लगे कपड़े सील कर दिए. पुलिस ने कपड़ों के साथ घटना में प्रयुक्त कांपा भी जांच के लिए फोरैंसिक लैब भेज दिया था.

पुलिस ने जगदीश उर्फ राजकमल उर्फ राज उर्फ राजवीर से पूछताछ करने के बाद उसे कोर्ट में पेश करने के बाद जेल भेज दिया. आईजी नीलेश आनंद भरणे ने टीम में शामिल सभी पुलिसकर्मियों को 2,500 और एसएसपी डा. मंजूनाथ टीसी ने 5,000 का ईनाम देने की घोषणा की थी. इस घटना में आरोपी तक पहुंचते के लिए एसआई अरविंद बहुगुणा की भूमिका सराहनीय थी.

साइबर सेल में तैनात एसआई अरविंद बहुगुणा ने आरोपी के ठेकेदार के पास जा कर उस के बैंक खाते का पता लगाया, जो यूनियन बैंक का था. जिस में से आरोपी ने हल्द्वानी जाने के बाद रुपए निकाले थे.

इस मामले में सोनाली की बहन रूपाली पत्नी संजय निवासी सुभाष कालोनी ने पुलिस को लिखित तहरीर दे कर मुकदमा दर्ज कराया था, जिस को थाना ट्रांजिट कैंप में मुकदमा संख्या 224/23 के अंतर्गत भादंवि की धारा 457/302/307 पर पंजीकृत किया गया था. इस की विवेचना इंसपेक्टर सुंदरम शर्मा स्वयं ही कर रहे थे.

सनक में कर बैठी प्रेमी के दोस्त की हत्या – भाग 2

तान्या रचित और टीटू को बहुत पहले से जानती थी. फिर अचानक ऐसा क्या हुआ कि उसे इतना बड़ा कदम उठाना पड़ा. पुलिस पूछताछ में तान्या व उसके दोस्तों से जो जानकारी प्राप्त हुई वह इस प्रकार थी.

मध्य प्रदेश के धार जिले के बागटांडा के बरोड़ निवासी तान्या कुछ समय पहले पढ़ाई करने के लिए इंदौर आई थी. इंदौर आते ही उस ने एक ब्रोकर के माध्यम से पलासिया इलाके के गायत्री अपार्टमेंट में एक किराए का फ्लैट लिया, और वहीं रह कर उस ने अपनी पढ़ाई शुरू कर दी थी.

तान्या खातेपीते परिवार से थी. उस के पास रुपयोंपैसों की कमी नही थी. उस के मम्मीपापा उस का भविष्य सुधारने के लिए काफी रुपए खर्च कर रहे थे. खूबसूरत तान्या के कालेज में एडमिशन लेते ही उस के कई दीवाने हो गए थे. वह शुरू से ही बनठन कर रहती थी. मम्मीपापा खर्च के लिए पैसा भेजते तो वह खुले हाथ से पैसा खर्च भी करती थी.

इंदौर आते ही उस के जैसे पंख निकल आए थे. वह खुली हवा में घूमने लगी. उस की कुछ फ्रेंड गलत संगत में पड़ी हुई थीं. तान्या उन के संपर्क में आई तो उस पर भी उन का रंग चढ़ने लगा. वह भी अपनी दोस्तों के साथ शराब और सिगरेट का नशा करने लगी थी. उसी नशे के कारण उस की दोस्ती आवारा लड़कों से हो गई. जवानी के जोश में उस के कदम बहके तो वह पढ़ाई करना भूल गई.

उसी दौरान उस की मुलाकात रचित उर्फ टीटू से हुई. टीटू ने उसे एक बार प्यार से देखा तो देखता ही रह गया. दोनों के बीच परिचय हुआ और फिर जल्दी ही दोनों ने दोस्ती के लिए हाथ बढ़ा दिए थे. दोस्ती के सहारे ही उन के बीच प्यार बढ़ा और कुछ ही दिनों में वह एकदूसरे को दिलो जान से चाहने लगे.

तान्या से दोस्ती हो जाने के बाद रचित का उस के फ्लैट पर भी आनाजाना शुरू हो गया था. रचित घंटों उस के पास पड़ा रहता था. जिस के कारण उस के आसपास रहने वाले लोग परेशान रहने लगे थे. चूंकि तान्या ने वह फ्लैट किराए पर लिया था. इसी कारण उस के पड़ोसी उसे वहां से जाने के लिए भी नहीं कह सकते थे.

पहले तो उस के फ्लैट पर रचित ही आता था, लेकिन कुछ ही दिनों बाद अन्य कई युवक भी आने लगे. थे. तान्या के फ्लैट में लडकों का आनाजान शुरू हुआ तो पड़ोसियों को परेशानी हुई. .उस की हरकतों से तंग आ कर पड़ोसियों ने उस फ्लैट के मालिक से उस की शिकायत कर उस से फ्लैट खाली कराने के लिए दबाव बनाया.

पड़ोसियों के दबाव में आ कर फ्लैट मालिक ने तान्या से तुरंत ही फ्लैट खाली करने को कहा. मालिक के कहने पर तान्या ने फ्लैट खाली करने के लिए एक सप्ताह का समय मांगा. तान्या ने यह बात अपने दोस्त रचित को बताई. साथ ही उसने उस से उस के लिए एक मकान ढूंढने को कहा, लेकिन इस मामले में रचित ने उस की कोई भी सहायता करने से साफ मना कर दिया था.

रचित ने तान्या को समझाने का किया प्रयास

रचित के अलाबा तान्या का एक ओर दोस्त था छोटू. उस का भी उस के पास बहुत आना जाना लगा रहता था. यह बात उस ने छोटू के सामने रखी तो उस ने उस के लिए फ्लैट ढूंढना शुरू कर दिया. छोटू परदेशीपुरा इलाके में रहता था. छोटू एक दबंग किस्म का युवक था. छोटेमोटे अपराध और मारपीट कर उस ने अपने इलाके में दहशत फैला रखी थी. उस पर 3 मुकदमे दर्ज थे.

कुछ सयम पहले ही तान्या की उस से मुलाकात हुई थी. छोटू को लड़कियों को परखने की महारत हासिल थी. उस ने तान्या के लिए कुछ ही दिनों में एक किराए के फ्लैट की व्यवस्था कर दी. उस के बाद वह उसी के इलाके में आ कर रहने लगी थी. तान्या की छोटू से दोस्ती पक्की हो गई थी. छोटू के साथ दोस्ती हो जाने के बाद तान्या को नशे की लत भी लग गई थी. जिस के बाद उसमें अच्छा बुरा सोचने की क्षमता भी खत्म हो गई. थी.

यह बात रचित को पता चली तो उस ने उसे समझाने की कोशिश की, ”तान्या तुम पढ़ीलिखी हो, तुम्हें ऐसे आवारा किस्म के साथ दोस्ती नही करनी चाहिए. छोटू के साथ दोस्ती करने के बाद तुम पछताओगी.”

लेकिन तान्या ने उस की एक न सुनी. फिर रचित ने भी उस से बात करनी ही बंद कर दी. फिर भी तान्या रचित को छोड़ने को तैयार न थी. वह बारबार रचित को फोन लगाती, लेकिन वह उस का फोन रिसीव नहीं कर रहा था. जिस के कारण वह उस से मिल भी नहीं पा रही थी.

उस के बाद तान्या ने छोटू सेे कहा कि वह किसी भी तरह से एक बार उसे रचित से मिलवा दे. छोटू ने रचित से मिलकर तान्या का मैसेज देते हुए. मिलने को कहा, लेकिन उस के बाद भी रचित उस से नहीं मिला.

जब रचित ने तान्या से रिश्ता तोड़ लिया तो तान्या ने उसे सबक सिखाने की योजना बनाई. छोटू पहले से ही आपराधिक प्रवृत्ति का था. हर वक्त उस के साथ कई आवारा किस्म के लड़के घूमते थे. एक दिन तान्या ने छोटू से कहा कि वह रचित को धमकाना चाहती है, जिस से घबरा कर वह उसके संपर्क में आ जाए.

तान्या पर मौडल बनने का भूत था सवार

छोटू अय्याश किस्म का था. उस से ज्यादा वह हवाबाज होने के बाद शेखी बघारने में भी कम नही था. यही कारण था कि सामने वाला जल्दी ही उस की बातों में आ जाता था. तान्या उस के सम्पर्क में आई तो उसे भी लगा कि छोटू जो कहता है, उसे कर भी देता है.

तान्या इंदौर आ कर हवा में उड़ने लगी और शीघ्र उच्च स्तर की मौडल बनने का सपना देखने लगी थी. छोटू से दोस्ती करते ही उसे लगने लगा था कि वह उस के सपनों को जल्दी ही पूरा कर सकता है. तान्या उस के संपर्क में आने के बाद कई बार उस से बोल चुकी थी कि उस की मुलाकात एक दो मौडल लड़कों से करवा देना.

फेसबुकिया प्यार बना जी का जंजाल