Family Crime : पत्नी को भांग की गोली खिलाकर हत्या की फिर शव के टुकड़े कर झाड़ियों में फेंके

Family Crime : बिना छानबीन के हुई शादी के बाद जब पति या पत्नी की हकीकत सामने आनी शुरू होती है तो विवाद बढ़ना स्वाभाविक होता है. कई बार इस विवाद में किसी एक की जान भी दांव पर लग जाती है. अमित और कोमल के मामले में भी…

भिवाड़ी राजस्थान ही नहीं, उत्तरी भारत का प्रमुख औद्योगिक इलाका है. भिवाड़ी और हरियाणा के बीच केवल एक सड़क का फासला है. भिवाड़ी में सुई से ले कर अंतरिक्ष यान तक के कलपुर्जे बनाने वाले उद्योग हैं. भिवाड़ी वैसे तो अलवर जिले में आता है, लेकिन अपराधों के नजरिए से महत्त्वपूर्ण होने के कारण साल भर पहले अलवर जिले में भिवाड़ी को नया पुलिस जिला बना दिया गया था. राजस्थान में केवल अलवर ही ऐसा जिला है, जहां अलगअलग जिलों के नाम से 2 एसपी हैं. राज्य के कुछ जिलों में ग्रामीण और शहर एसपी हैं. जबकि जयपुर और जोधपुर शहर में पुलिस कमिश्नरेट है.

अपराधों के लिहाज से 2 महीने पहले भिवाड़ी में दबंग और इंटेलीजेंट एसपी के रूप में राममूर्ति जोशी को यह जिम्मेदारी सौंपी गई थी. बात 14 अगस्त की है. एसपी साहब जब अपने औफिस में स्वतंत्रता दिवस पर पुलिस की ओर से किए जाने वाले इंतजामों की फाइल देख रहे थे, तभी उन के मोबाइल पर यूआईटी फेज थर्ड थानाप्रभारी सुरेंद्र कुमार का फोन आया. थानाप्रभारी ने कहा, ‘‘सर, खिदरपुर गांव के सरकारी स्कूल के पास सड़क किनारे एक महिला के शव के अलगअलग टुकड़े मिले हैं.’’

महिला के शव के टुकड़े मिलने की बात सुन कर एसपी साहब चौंके. मामले की गंभीरता को देखते हुए उन्होंने थानाप्रभारी को कुछ जरूरी निर्देश दे कर कहा, ‘‘आप शव के बाकी टुकड़े तलाश कराओ, मैं मौके पर आता हूं.’’

एसपी साहब ने अपने पीए को एडिशनल एसपी अरुण माच्या से बात कराने और तुरंत गाड़ी लगवाने को कहा. पीए ने फोन पर लाइन दी, तो एसपी साहब ने एडिशनल एसपी को महिला के शव के टुकड़े मिलने की बात बता कर तुरंत मौके पर चलने को कहा और खुद औफिस के बाहर खड़ी गाड़ी में सवार हो कर खिदरपुर स्कूल की ओर चल दिए. कुछ ही देर में वह खिदरपुर गांव पहुंच गए. स्कूल के पास तमाशबीन खड़े थे. वहां सड़क किनारे झाडि़यां उगी हुई थीं. थानाप्रभारी और कई पुलिसकर्मी भी वहां मौजूद थे. एसपी जोशी के पहुंचने के 2-4 मिनट बाद ही एडिशनल एसपी अरुण माच्या भी पहुंच गए. पुलिस के आला अधिकारियों को देख कर लोगों की भीड़ एक तरफ हट गई.

थानाप्रभारी ने आगे आ कर एसपी और एडिशनल एसपी को सैल्यूट किया. फिर बताया कि सब से पहले कमर से नीचे और जांघों से ऊपर का हिस्सा मिला. इस के बाद आसपास तलाश कराई गई तो कुछ दूर झाडि़यों में अलगअलग जगह पर दोनों हाथ मिले. एक जगह पर बालों में उलझा इंसानी मांस का टुकड़ा मिला. शव के ये अलगअलग टुकड़े महिला के थे, जो करीब 200 मीटर के दायरे में मिले थे. टुकड़ों से पता लगाना मुश्किल था एसपी राममूर्ति जोशी ने शव के टुकड़ों का निरीक्षण किया. वे 4-5 दिन पुराने लग रहे थे. जांघ और कमर से नीचे के हिस्से पर कोई कपड़ा नहीं था. शव के टुकड़े आवारा जानवरों के नोंचने और फूल जाने के कारण उम्र का अंदाज भी नहीं लग सका.

जहांजहां शव के टुकड़े मिले, वहां तेज बदबू आ रही थी. मौकामुआयना कर जोशी समझ गए कि महिला की बेरहमी से हत्या कर उस के शव को टुकड़ों में काट कर अलगअलग जगह फेंका गया है. यह भी आशंका थी कि महिला के साथ दुष्कर्म किया गया हो. चिंता की बात यह थी कि सिर सहित शव के अन्य टुकड़े नहीं मिले थे. जोशीजी ने थानाप्रभारी और एडिशनल एसपी को आसपास के इलाकों में शव के बाकी हिस्से तलाशने के निर्देश दिए. इसी के साथ उन्होंने अलवर से विधि विज्ञान विशेषज्ञों और डौग स्क्वायड को भी बुलवा लिया.

अलवर से एफएसएल के विशेषज्ञ और डौग स्क्वायड मौके पर पहुंच गया. पुलिस ने खोजी कुत्ते को शव के टुकड़े सुंघा कर बाकी टुकड़ों की तलाश कराई, लेकिन पुलिस को शव का कोई अन्य हिस्सा नहीं मिला. इस का कारण यह था कि 2-3 दिन से हो रही बारिश ने सुराग मिटा दिए थे. फोरैंसिक विशेषज्ञों ने भी मौके से साक्ष्य जुटाए, लेकिन 8-10 घंटे की खोजबीन के बाद भी पुलिस को न तो महिला के बारे में कोई सुराग मिला और न ही कातिलों के बारे में कोई जानकारी. पुलिस ने जगहजगह से एकत्र किए शव के टुकड़े सरकारी अस्पताल की मोर्चरी में भिजवा दिए. भिवाड़ी के यूआईटी फेज थर्ड पुलिस थाने में इस संबंध में मुकदमा दर्ज कर लिया गया.

मामले की गंभीरता को देखते हुए जयपुर रेंज के आईजी एस. सेंगाथिर के निर्देश पर एसपी (भिवाड़ी) राममूर्ति जोशी के निर्देशन में विशेष जांच टीम का गठन किया गया. इस टीम को एडिशनल एसपी अरुण माच्या के नेतृत्व में काम करना था. टीम में डीएसपी (भिवाड़ी) हरिराम कुमावत और यूआईटी फेज थर्ड थानाप्रभारी सुरेंद्र कुमार सहित कई अफसरों और जवानों को शामिल किया गया. पुलिस ने तेजी से जांचपड़ताल शुरू की, लेकिन कहीं कोई ओरछोर नहीं मिल पा रहा था. इस का कारण यह था कि औद्योगिक इलाका होने के कारण भिवाड़ी में रोजाना राजस्थान के ही नहीं बल्कि हरियाणा के गुड़गांव, धारूहेड़ा, रेवाड़ी, बावल, फरीदाबाद, पलवल और दिल्ली तक के रोजाना हजारों लोग नौकरी और कामकाज के सिलसिले में भिवाड़ी आतेजाते हैं.

यह भी आशंका थी कि हरियाणा में हत्या करने के बाद शव के टुकड़े राजस्थान के भिवाड़ी में फेंके गए हों. हत्या के ऐसे एकदो मामले पहले भी सामने आए थे. दूसरी बड़ी समस्या यह थी भिवाड़ी में देश के विभिन्न राज्यों के लाखों श्रमिक काम करते हैं, इन श्रमिकों की भिवाड़ी सहित आसपास के गांवों में बड़ीबड़ी बस्तियां हैं. साथ ही भिवाड़ी में भी सैकड़ों बहुमंजिला सोसायटियां हैं. इन सभी इलाकों में एक महिला के बारे में खोजबीन करना चुनौती भरा काम था.

एसपी राममूर्ति जोशी पहले भी अलवर में विभिन्न पदों पर रह चुके थे. इसलिए उन्होंने अपने अनुभवों के आधार पर भिवाड़ी और आसपास के इलाकों से पिछले दिनों लापता हुई महिलाओं का रिकौर्ड मंगवाया. इन महिलाओं की गुमशुदगी के बारे में जांचपड़ताल की गई, लेकिन ऐसा कोई सुराग नहीं मिला, जिस से पुलिस को शव के टुकड़ों की शिनाख्त में मदद मिलती. इलाके की सोसायटियों में पिछले दिनों मकान खाली कर जाने वाले किराएदारों का भी पता लगाया गया. इस के अलावा घटनास्थल के निकटवर्ती सांथलका गांव में पिछले दिनों मकान खाली करने

वाले किराएदारों और कंपनियों से अचानक नौकरी छोड़ने वाले महिलापुरुषों के बारे में जानकारी हासिल करने के लिए डोर टू डोर सर्वे किया गया. यह काम भूसे के ढेर में सूई खोजने जैसा था. पचासों पुलिस वाले इस काम में सुबह से शाम तक जुटे रहते. एसपी साहब इस काम में कोई कमी नहीं छोड़ना चाहते थे. वह हर संभव प्रयास से मृतका की शिनाख्त और कातिलों तक पहुंचना चाहते थे. इसलिए रोजाना शाम को एडिशनल एसपी और डीएसपी से रिपोर्ट लेते और उन्हें जरूरी निर्देश देते. पुलिस को मिली जांच की राह 2 सप्ताह से भी ज्यादा समय तक चली इस भागदौड़ में पुलिस को पता चला कि गांव सांथलका की विनोद कालोनी में रहने वाले अमित गुप्ता और उस की पत्नी कोमल पिछले कुछ दिनों से बिना किसी को बताए अचानक कमरा खाली कर चले गए.

पुलिस ने कालोनी के दूसरे लोगों से पूछताछ की, तो जानकारी मिली कि अमित और कोमल में आपस में झगड़ा होता रहता था. दोनों अलगअलग फैक्ट्रियों में काम करते थे. पुलिस को अमित का पता तो नहीं मिला. अलबत्ता यह जरूर पता लगा कि वह भरतपुर का रहने वाला है. यह सुराग मिलने पर पुलिस को उम्मीद की कुछ किरण नजर आई. अब पुलिस अमित और कोमल को तलाशने में जुट गई. इसी दौरान 3 सितंबर को यूआईटी फेज थर्ड पुलिस थाने पर डाक से एक पत्र आया. पत्र में अमित गुप्ता ने अपनी पत्नी कोमल के गायब होने की बात लिखी थी. पत्र में अमित का मोबाइल नंबर और कोमल का कानपुर का पता लिखा था.

पुलिस ने मामले की पड़ताल करने के लिए अमित के मोबाइल पर फोन किया, लेकिन वह स्विच्ड औफ मिला. चूंकि अमित और उस की पत्नी अचानक मकान खाली कर के गए थे और अब अमित ने खुद थाने आने के बजाय पत्र लिख कर अपनी पत्नी की गुमशुदगी की बात कही थी. इस से पुलिस को संदेह हुआ.
थानाप्रभारी सुरेंद्र कुमार ने एसपी राममूर्ति जोशी को पूरी बात बताई. जोशी को भी मामले में संदेह नजर आया. उन्होंने भी अमित के मोबाइल नंबर पर कई बार काल की. लेकिन उस का फोन हर बार स्विच्ड औफ मिला. मोबाइल स्विच्ड औफ होने से उस की लोकेशन का भी पता नहीं चल पा रहा था. सच्चाई का पता लगाने के लिए एसपी ने थानाप्रभारी को पत्र में लिखे कोमल के कानपुर के पते पर पुलिस टीम भेजने के निर्देश दिए.

भिवाड़ी से पुलिस टीम कानपुर में मीरपुर कैंट स्थित कोमल के घर पहुंची. वहां पूछताछ में पता चला कि कोमल की अपने परिजनों से 11 अगस्त के बाद से कोई बात नहीं हुई थी. उन्हें न तो कोमल का कुछ पता था और न ही अमित का. कोमल के परिजनों ने पुलिस को बताया कि दोनों मियांबीवी में आए दिन झगड़ा होता था. यह भी बताया कि अमित ने कोमल से धोखे से शादी की थी. उन से यह जानकारी भी मिली कि अमित ने अपनी किसी महिला दोस्त की हत्या भी की थी. उन्हें शंका थी वह कोमल की भी हत्या कर सकता है. कानपुर में कोमल के घर वालों से मिली जानकारी के बाद अमित पर पुलिस का शक पक्का हो गया. साथ ही यह अनुमान भी लग गया कि 14 अगस्त को खिदरपुर स्कूल के पास मिले शव के टुकड़े कोमल के ही हो सकते हैं.

अब अमित को तलाशना जरूरी था, क्योंकि उसी से सारी सच्चाई का पता लग सकता था. एसपी राममूर्ति जोशी ने भिवाड़ी पुलिस की साइबर सेल को अमित गुप्ता के मोबाइल नंबर का तकनीकी अनुसंधान करने का निर्देश दिया. साइबर सेल के हैड कांस्टेबल मोहनलाल, कांस्टेबल संदीप और नीरज ने अमित का मोबाइल लगातार स्विच्ड औफ मिलने पर उस की पुरानी काल डिटेल्स निकलवा कर उन का विश्लेषण किया. पुलिस ने इन काल डिटेल्स के आधार पर पहले से अमित के संपर्क में रहे लोगों से उस की पूरी जन्मकुंडली हासिल की. तमाम प्रयासों के बाद पुलिस ने 7 सितंबर को अमित गुप्ता को भिवाड़ी के ही सांथलका इलाके से गिरफ्तार कर लिया. उसे पुलिस थाने ला कर पूछताछ की गई. पहले तो वह पुलिस को यह कह कर गुमराह करता रहा कि कोमल लापता है.

मैं उस की तलाश कर रहा हूं. लेकिन कड़ाई से पूछताछ में उस ने अपना जुर्म स्वीकार कर लिया.
पुलिस पूछताछ में कोमल की हत्या की जो कहानी उभर कर सामने आई, वह इस प्रकार है—

अमित गुप्ता राजस्थान के भरतपुर शहर का रहने वाला था. उस की शादी 13 दिसंबर, 2019 को कानपुर निवासी हरिप्रसाद गुप्ता की बड़ी बेटी कोमल से भरतपुर में हुई थी. कोमल की यह दूसरी शादी थी. उस की पहली शादी 2004 में कानपुर के संजय से हुई थी, लेकिन टीबी की बीमारी के कारण उस के पति संजय की 4 साल बाद 2008 में मौत हो गई थी. लौकडाउन में भुखमरी की नौबत ले आई भिवाड़ी अमित भरतपुर में ई मित्र की दुकान करता था. अमित और कोमल भरतपुर में कुम्हेर गेट पर रहते थे. कोमल अपने पहले पति संजय के भांजे लाली गुप्ता से फोन पर बात करती थी. इस पर अमित को ऐतराज था. इसी बात पर दोनों में आए दिन झगड़ा होता था.

कोरोना संक्रमण के कारण लौकडाउन होने से अमित का ई मित्र का कामकाज ठप हो गया. वह बेरोजगार हुआ, तो रोजीरोटी की तलाश में भरतपुर से भिवाड़ी आ गया. अमित और कोमल भिवाड़ी में सांथलका गांव की विनोद कालोनी में किराए का कमरा ले कर रहने लगे. अमित सेंट गोबेन कंपनी में नौकरी करने लगा. केवल अमित की नौकरी से घर का खर्च नहीं चल पाता था. इसलिए उस ने कोमल को भी नौकरी करने को कहा. कोमल ने प्रयास किया, तो उसे भिवाड़ी के पास चौपानकी में क्लच वायर बनाने वाली कंपनी में नौकरी मिल गई. भले ही पतिपत्नी दोनों नौकरी करने लगे थे, लेकिन उन के बीच झगड़े खत्म नहीं हुए. परेशान हो कर कोमल ने 11 अगस्त को अमित को कमरे से निकाल दिया. अमित कमरे से चला गया, उस के कुछ देर बाद कोमल अपनी नौकरी पर चली गई.

पत्नी से झगड़े के बाद अमित ने एक बार तो अपने घर भरतपुर जाने का विचार बनाया. फिर उस ने रोजरोज का झगड़ा खत्म करने के लिए कोमल का ही खेल खत्म करने की योजना बना डाली. उस ने बाजार से एक लुहार से तेज धारदार वाला बड़ा चाकू खरीदा और वापस कमरे पर आ गया. कमरे की एक चाबी अमित के पास पहले से ही रहती थी. इसलिए उसे कोई परेशानी नहीं हुई. शाम को कोमल अपनी नौकरी से वापस कमरे पर लौटी, तो अमित ने कमरे का गेट बंद कर उसे तरंग नामक भांग की गोलियां खिला दीं.
भांग के नशे में कोमल को कुछ होश नहीं रहा. अमित ने उस के हाथपैर बांध दिए और गला दबा कर उस की हत्या कर दी.

इस के बाद उस ने तेज धार वाले लंबे चाकू से उस के शरीर के अलगअलग टुकड़े किए. टुकड़े करने के दौरान कमरे के फर्श पर बिछी दरी पर खून फैल गया. इस पर उस ने दरी को एक तरफ रख कर बाकी खून के निशान पानी से धो दिए. इस काम में उसे करीब 3 घंटे लगे. कोमल के शव के टुकड़ों को प्लास्टिक के 3 अलगअलग बोरों में भर कर वह रात को कमरे पर ही सो गया. दूसरे दिन सुबह जब कालोनी के लोग अपनेअपने कामों पर चले गए, तब वह कमरे से एकएक बोरा निकाल कर ले गया और कच्चे रास्ते से हो कर खिदरपुर स्कूल के पास अलगअलग जगहों पर फेंक दिए.

उस ने खून से लथपथ वह दरी भी फेंक दी. दूसरे दिन वह अपना थोड़ाबहुत घरेलू सामान ले कर बिना किसी को कुछ बताए किराए का कमरा खाली कर फरार हो गया. बाद में 7 सितंबर को पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया. फरारी के दौरान वह भिवाड़ी के अलावा पलवल, भरतपुर और जयपुर में रहा. अमित की गिरफ्तारी के बाद उस की निशानदेही पर पुलिस ने 7 सितंबर को ही कोमल के सीने से ऊपर का हिस्सा बरामद कर लिया. इस के अगले दिन 8 सितंबर को पुलिस ने खिदरपुर गांव से करीब 2 किलोमीटर दूर झाडि़यों से वह दरी भी बरामद कर ली, जिस पर कोमल की हत्या की गई थी. दरी पर खून के निशान सूख चुके थे. 9 सितंबर को पुलिस ने अमित की निशानदेही पर सिर का हिस्सा भी बरामद कर लिया.

पुलिस की सूचना पर कोमल के घर वाले 8 सितंबर को कानपुर से भिवाड़ी पहुंचे. पुलिस ने कोमल के भाई और बहन के डीएनए के सैंपल लिए ताकि कोमल के शव की अधिकृत पुष्टि की जा सके. पूछताछ में यह भी पता चला कि अमित ने सन 2013 में भरतपुर में दुष्कर्म करने के बाद एक महिला होमगार्ड की हत्या कर दी थी. इस मामले में पुलिस ने उसे गिरफ्तार किया था. करीब डेढ़ साल तक वह भरतपुर जिले की सेवर जेल में बंद रहा. इस मामले में अदालत ने उसे आजीवन कारावास की सजा दी थी. सन 2014 में हाईकोर्ट से उस की जमानत हो गई थी.

अमित ने जो अपराध किया, उस की सजा उसे कानून देगा. लेकिन कोमल की मौत से उस के पिता हरिप्रसाद टूट गए हैं. कानपुर में चाय की थड़ी लगाने वाले हरिप्रसाद की 3 बेटियों में कोमल सब से बड़ी थी. पहले पति की मौत के बाद से कोमल कानपुर में अपने पिता के पास रह कर जौब करती थी. सुमन ने फंसाया था कोमल को हरिप्रसाद का कहना है कि इस दौरान कोमल के संपर्क में सुमन नाम की महिला आई. सुमन धीरेधीरे उन के घर भी आने लगी. फिर वह कोमल का रिश्ता भरतपुर के अच्छे परिवार में कराने की बात कहने लगी. भरतपुर ज्यादा दूर होने के कारण उन्होंने मना कर दिया. फिर भी सुमन ने पता नहीं कब कोमल का भरतपुर के अमित से संपर्क करा दिया.

जल्दी ही अमित ने कोमल को पूरी तरह अपने झांसे में ले लिया. इस का उन्हें पता भी नहीं चला. बाद में सुमन ने कहा कि एक बार भरतपुर जा कर लड़का देख आओ, पसंद आए तभी रिश्ता करना. बेटी की खुशी के लिए हरिप्रसाद भरतपुर गए. वहां देखा तो पहले से ही शादी की पूरी तैयारी हो चुकी थी. अनजान शहर में वे अकेले पड़ गए. बेटी की सहमति से उन्होंने अगले ही दिन 13 दिसंबर, 2019 को भरतपुर में कोमल की शादी अमित से कर दी. बाद में उन्हें पता चला कि यह शादी कराने के एवज में सुमन ने अमित से एक लाख रुपए लिए थे. कोमल शादी के बाद केवल एक बार होली पर अपने घर कानपुर गई थी.
कोमल अपनी छोटी बहन काजल को फोन पर बताती थी कि अमित का चालचलन ठीक नहीं है. वह उस पर शक करता है और आए दिन झगड़ता है.

कोमल की छोटी बहन काजल की 10 अगस्त को अमित से फोन पर बात हुई थी, तब अमित ने कहा था कि आज के बाद तुम से हमारा कोई रिश्ता नहीं रहेगा और न ही तुम कोमल से बात कर सकोगी. इस के बाद से लगातार संपर्क करने के बाद भी जब परिजनों की कोमल से बात नहीं हुई तो हरिप्रसाद ने अमित के पिता को फोन किया. उन्होंने कहा कि उन का बेटे और बहू से कोई संबंध नहीं है. इस संबंध में वे अखबार में विज्ञापन भी छपवा चुके हैं. हरिप्रसाद का कहना है कि बेटी तो चली गई, लेकिन अमित जैसे जल्लाद से कोमल का रिश्ता कराने वाली सुमन के खिलाफ भी काररवाई हो, जो पैसे कमाने के लिए जरूरतमंद युवतियों को झांसे में ले कर उन की जिंदगी बरबाद कर देती हैं.

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कई बार घंटी बजाने पर भी न दरवाजा खुला, न अंदर कोई आहट हुई. अमूमन ऐसा होता नहीं है, लेकिन
ऐसा ही हो रहा था. अबकी बार वेटर ने दरवाजा खटखटाया, एक नहीं कई बार. लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला. वेटर रिसैप्शन पर बैठे मैनेजर दुर्गेश पटेल के पास पहुंचा. वह रिसैप्शनिस्ट से बातें कर रहे थे. वेटर ने तेजी से आ कर कहा, ‘‘सर, कमरा नंबर 303 का दरवाजा नहीं खुल रहा. मैं ने घंटी बजाई, दरवाजा थपथपाया, पर कोई नतीजा नहीं निकला.’’

‘‘कमरे में कोई है भी या यूं ही…’’

मैनेजर ने कहा तो वेटर की जगह रिसैप्शनिस्ट ने जवाब दिया, ‘‘हां, मैडम हैं कमरे में. उन का साथी बाहर गया है. कह रहा था थोड़ी देर में आता हूं, पर आया नहीं. मैं उसे फोन करता हूं.’’

रिसैप्शनिस्ट ने विजिटर्स रजिस्टर खोल कर कमरा नंबर 303 के कस्टमर का फोन नंबर देखा और उसे फोन मिला दिया. लेकिन फोन स्विच्ड औफ था. इस से वह घबराया. उस ने यह बात दुर्गेश पटेल को बताई. साथ ही यह भी कि चायनाश्ते के बरतन अंदर हैं. वेटर को मैं ने ही भेजा था. बात चिंता की थी. वेटर, रिसैप्शनिस्ट और मैनेजर दुर्गेश पटेल तुरंत खड़े हो गए. कमरा नंबर 303 के सामने पहुंच कर मैनेजर दुर्गेश पटेल ने भी वही किया, जो वेटर कर चुका था. काफी प्रयास के बाद भी जब दरवाजा नहीं खुला और न ही कमरे के अंदर कोई हलचल हुई तो उन के मन में तरहतरह की शंकाएं जन्म लेने लगीं. उन्हें लगा कमरे के अंदर जरूर कोई गड़बड़ है. कमरे में ठहरा युवक थोड़ी देर में आने को कह कर गया था, लेकिन आया नहीं. उस ने अपना फोन भी बंद कर लिया था. कहीं उस ने ही तो कुछ नहीं किया.

कोई और रास्ता न देख मैनेजर दुर्गेश पटेल ने कमरे की दूसरी चाबी मंगा कर कमरा खोला तो अंदर का दृश्य देख कर होश उड़ गए. कमरे के बैड पर कस्टमर के साथ आई युवती चित पड़ी हुई थी. उस का चेहरा खून में डूबा हुआ था. मतलब उस के साथ आया युवक उस की हत्या कर के फरार हो गया था.
होटल नटराज उज्जैन का जानामाना होटल था, जिस के प्रबंधक और मालिक इंदौर के एक रिटायर्ड पुलिस अधिकारी थे. उन के होटल में इस तरह की घटना पहली बार घटी थी, इसलिए होटल के सभी कर्मचारी परेशान हो गए. होटल के अन्य ग्राहकों को जब इसबात की जानकारी मिली तो सब घबरा गए. जरा सी देर में होटल के कमरा नंबर 303 के सामने कस्टमर्स की भीड़ एकत्र हो गई.

मामला हत्या का था. होटल के प्रबंधक मालिक और पुलिस को खबर देना जरूरी था. मैनेजर दुर्गेश पटेल ने फोन से इस मामले की जानकारी थाना नानाखेड़ा के साथ होटल के मालिक को दे दी. सूचना पाते ही थाना नानाखेड़ा के प्रभारी ओ.पी. अहीर पुलिस टीम के साथ होटल नटराज पहुंच गए. उन्होंने सरसरी तौर पर घटनास्थल का निरीक्षण किया. मामले की गंभीरता को देखते हुए उन्होंने इस वारदात की जानकारी वरिष्ठ अधिकारियों के साथसाथ पुलिस कंट्रोल रूम को दे दी. कमरा नंबर 303 होटल की तीसरी मंजिल पर था. थानाप्रभारी ओ.पी. अहीर ने देखा, जिस युवती का शव बैड पर खून से सराबोर पड़ा था, उस की उम्र 20-22 साल के आसपास थी. उस की हत्या बड़ी बेरहमी से की गई थी. चेहरेमोहरे से वह किसी सामान्य और शरीफ घर की दिख रही थी.

पुलिस समझ नहीं पाई मंजर खौफनाक भी था और मार्मिक भी. जिसे देख पुलिस टीम भी स्तब्ध थी. पूछताछ में होटल मैनेजर दुर्गेश पटेल ने ओ.पी. अहीर को बताया कि मृतका जिस युवक के साथ आई थी, उस की उम्र 23 साल के आसपास रही होगी. उस की साथी युवती के कंधों पर एक कैरीबैग था. देखने में वह किसी कालेज की छात्रा लगती थी. उन्होंने शाम तक के लिए कमरा बुक करवाया था. कमरा बुक करवाते समय उन्होंने खुद को पतिपत्नी बताया था. कमरा बुक करवाने के डेढ़ घंटे बाद युवक यह कह कर बाहर निकला था कि मैडम अंदर आराम कर रही हैं, उन का ध्यान रखना. वह किसी काम से बाहर जा रहा है. उस के जाने के कुछ समय बाद वेटर नाश्ते और चाय की प्लेट लेने गया तो मैडम ने दरवाजा नहीं खोला. काफी कोशिशों के बाद हम ने कमरे की दूसरी चाबी मंगा कर दरवाजा खोला. मैनेजर दुर्गेश पटेल ने बताया.

‘‘मृतका के साथी के बारे में कोई जानकारी है?’’ पुलिस टीम ने पूछा.

‘‘जी हां सर, उस का पूरा ब्यौरा विजिटर रजिस्टर में दर्ज है.’’ कहते हुए मैनेजर दुर्गेश पटेल ने रजिस्टर ला कर पुलिस के सामने रख दिया. पुलिस टीम ने विजिटर्स रजिस्टर देख कर उस युवक का नामपता हासिल कर लिया. आमतौर पर ऐसे लोग अपना नाम पता सही नहीं देते, लेकिन यहां ऐसा नहीं था. आगंतुक द्वारा दी गई जानकारी सही निकली.

युवक का नाम सुभाष पोरवाल था और युवती का नाम तनु परिहार. दोनों के परिवार वालों को मामले की जानकारी दे कर उन्हें होटल नटराज बुला लिया गया. खबर मिलते ही दोनों के परिवार वाले जिस स्थिति में थे, उसी में होटल पहुंच गए. तनु परिहार के परिवार वालों की स्थिति काफी दयनीय थी. पुलिस टीम ने उन्हें सांत्वना दे कर संभाला. थानाप्रभारी ओ.पी. अहीर अपनी टीम के साथ अभी होटल कर्मचारियों और मृतकों के परिवार वालों से पूछताछ कर ही रहे थे कि एसपी मनोज सिंह, एसपी (सिटी) रूपेश द्विवेदी, सीएसपी एच.एम. बाथम और अरविंद नायक फोरैंसिक टीम के साथ मौकाएवारदात पर पहुंच गए.

फोरैंसिक टीम का काम खत्म हो गया तो वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण कर थानाप्रभारी ओ.पी. अहीर को आवश्यक निर्देश दिए और अपने औफिस लौट गए. वरिष्ठ अधिकारियों के जाने के बाद थानाप्रभारी ओ.पी. अहीर ने अपने सहायकों के साथ मृतका तनु परिहार के शव का निरीक्षण किया. तनु का शरीर बुरी तरह जख्मी था. उस के गले पर एक और पेट में 3 गहरे घाव थे, जो किसी तेजधार हथियार से वार करने से आए थे. मृतका के शव का बारीकी से निरीक्षण कर के पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भेज दिया गया. प्राथमिक काररवाई से निपट कर थानाप्रभारी थाने लौट आए. तनु परिहार की मां को वह अपने साथ ले आए थे.

उस की मां की तहरीर पर सुभाष पोरवाल के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर जांच शुरू कर दी गई. परिवार से पूछताछ करने के साथसाथ सुभाष के मोबाइल नंबर को सर्विलांस पर लगा दिया गया. साइबर सेल की सक्रियता से 24 घंटे में सुभाष को आगरा में खोज निकाला गया. आगरा गई पुलिस टीम सुभाष पोरवाल को गिरफ्तार कर उज्जैन ले आई. थानाप्रभारी ओ.पी. अहीर के सामने आते ही सुभाष पोरवाल ने बिना किसी हीलाहवाली के अपना अपराध स्वीकार कर लिया. पुलिस जांच और सुभाष पोरवाल के बयानों के अनुसार तनु परिहार हत्याकांड की दिल दहला देने वाली कहानी सामने आई, वह कुछ इस तरह थी.
23 वर्षीय सुभाष साधारण लेकिन भरेपूरे स्वस्थ शरीर का युवक था. उस के पिता का नाम आत्माराम पोरवाल था, जो मूलरूप से गुजरात के पोरबंदर का रहने वाला था.

सालों पहले आत्माराम रोजीरोटी की तलाश में उज्जैन आया था. बाद में वह अपने परिवार को भी उज्जैन ले आया और नानाखेड़ा इलाके में बस गया. वह आटोरिक्शा चलाता था. आटोरिक्शा की कमाई से इस परिवार की गाड़ी आराम से चल जाती थी. सुभाष आत्माराम का एकलौता बेटा था. वह कुछ जिद्दी स्वभाव का था. वह जिस चीज की हठ कर लेता था, उसे हासिल कर के छोड़ता था. सुभाष पोरवाल हट्टाकट्टा जवान था, फैशनपरस्त और दिलफेंक भी. पढ़ाईलिखाई में कभी उस का मन नहीं लगा. उस ने बड़ी मुश्किल से 10वीं पास की थी. पढ़ाई बंद हो जाने के बाद उस ने पिता की तरह ही आटोरिक्शा चलाना शुरू कर दिया था.
सुभाष पोरवाल जहां रहता था, उसी के सामने वाले मकान में ऋषि परिहार का परिवार रहता था. उन का अपना 5 सदस्यों का परिवार था. आय के लिए उन की छोटी सी किराने की दुकान थी. घर की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी.

दुकान से किसी तरह दालरोटी चल जाती थी. अपने 3 भाईबहनों में तनु सब से बड़ी थी. पिता ऋषि परिहार की मृत्यु तभी हो गई थी, जब तनु बहुत छोटी थी. पति के निधन के बाद बच्चों के पालनपोषण की जिम्मेदारी मां आशा देवी के कंधों पर आ गई थी, जिसे उन्होंने बखूबी निभाया. आशा का छोटा बेटा 7वीं में और दूसरा 9वीं कक्षा में पढ़ता था. बेटी तनु बीकौम सेकेंड ईयर की छात्रा थी. तनु जितनी स्वस्थ, सुंदर और चंचल थी, उतनी ही सुशील, सभ्य और सरल स्वभाव की थी. वह किसी से भी ऐसी कोई बात नहीं करती थी, जिस से किसी का दिल दुखे. तनु के मधुर व्यवहार की वजह से आसपास के लोग उसे प्यार करते थे. यही वजह थी कि जैसे ही उस की हत्या की खबर इलाके में फैली, लोग थाना नानाखेड़ा के सामने इकट्ठा होने लगे. उन की मांग थी कि आरोपी सुभाष पोरवाल को जल्दी गिरफ्तार किया जाए.

स्थिति बिगड़ती देख एसपी (सिटी) रूपेश द्विवेदी ने इस आश्वासन पर लोगों को शांत कराया कि अभियुक्त को शीघ्र गिरफ्तार कर लिया जाएगा. वैसे तो आमनेसामने रहने के कारण तनु और सुभाष शुरू से एकदूसरे को देखते आए थे लेकिन दोनों के दिलों में प्यार के अंकुर 5 साल पहले 17-18 साल की उम्र में फूटे थे. तनु परिहार के उभरते यौवन और सौंदर्य को देख सुभाष उस का दीवाना हो गया था. यही हाल तनु का भी था. शुरूशुरू में तो तनु का ध्यान उस की ओर नहीं था, लेकिन धीरेधीरे उस का झुकाव भी सुभाष की ओर हो गया. इस की अहम कड़ी थी उस का आटोरिक्शा. तनु के करीब आने के लिए सुभाष ने अपने आटोरिक्शा का इस्तेमाल किया था.

जब तनु कालेज जाने के लिए निकलती, सुभाष अपना आटो ले कर उस की राह में आ खड़ा होता था. तनु को अपने आटो में बैठा कर वह उस के कालेज ले जाता और फिर उसे कालेज से ले कर उस के घर के करीब छोड़ देता था. बीच के समय में वह सवारियां ढोता था लेकिन तनु के कालेज के समय पर वह सवारियां नहीं लेता था. बीचबीच में जब भी मौका मिलता, दोनों साथसाथ घूमनेफिरने भी निकल जाते थे. जैसेजेसे समय आगे बढ़ रहा था, वैसेवैसे दोनों का प्यार परिपक्व होता जा रहा था. दोनों एकदूसरे को अपने जीवनसाथी के रूप में देखने लगे थे. जब भी दोनों साथ होते थे, अपने भविष्य को ले कर तानेबाने बुनते थे. इस में आगे सुभाष रहता था. वह तनु को सपने दिखाता और तनु उन सपनों में खो जाती थी. दोनों शादी कर के अपना अलग संसार बसाना चाहते थे. घटना के एक महीने पहले दोनों ने सात फेरे भी ले लिए थे.

9 जुलाई, 2020 को दोनों ने उज्जैन कोर्ट में कोर्टमैरिज कर ली थी. इस के बाद 13 जुलाई को चिंतामणि गणेश मंदिर जा कर दोनों विधिविधान से शादी के बंधन में बंध गए थे. सुभाष ने इस बात की जानकारी अपने परिवार को दे दी थी. परिवार वालों ने उस का यह रिश्ता स्वीकार भी कर लिया था. लेकिन तनु ऐसा नहीं कर पाई. भावनाओं में बह कर उस ने सुभाष से शादी तो कर ली थी लेकिन इस पर उस की मां की ममता और प्यार भारी पड़ रहा था. मां ने जिन कठिनाइयों में खूनपसीना बहा कर उन्हें पालापोसा था, उसे देख वह मां से धोखा नहीं करना चाहती थी. उसे जब पता चला कि मां उस के योग्य लड़का तलाश कर रही है तो उसे लगा कि मां का दिल दुखाना ठीक नहीं है. इसलिए उस ने अपनी शादी का राज छिपाए रखना ही ठीक समझा.

जब सुभाष को पता चला कि तनु की मां उस के लिए वर ढूंढ रही है तो वह पत्नी होने के नाते तनु पर साथ रहने का दबाव बनाने लगा. लेकिन जब तनु इस के लिए तैयार नहीं हुई तो सुभाष का धैर्य टूट गया और उस ने तनु के प्रति एक खतरनाक निर्णय ले लिया. उस की सोच थी कि तनु उस की दुलहन है और उसी की रहेगी. इस के लिए उस ने एक तेजधार वाला चाकू खरीद कर अपने पास रख लिया था. घटना वाले दिन सुभाष का मन बहुत उदास था. वह एक बार तनु से मिल कर उस का आखिरी फैसला जान लेना चाहता था. इस के लिए उस ने होटल नटराज को चुना था. होटल में कमरा खाली है या नहीं, यह जानने के लिए उस ने विकास के नाम से होटल मैनेजर दुर्गेश पटेल से बात की.

होटल से हरी झंडी मिलने के बाद सुभाष ने तनु को मैसेज भेज कर कुछ जरूरी बात करने के लिए बुलाया. सुभाष के इरादों से अनभिज्ञ तनु ने अपना कोचिंग बैग और पानी की बोतल उठाई और मां से कोचिंग के लिए कह कर सुभाष से मिलने पहुंच गई. सुभाष उसे अपने आटो से होटल नटराज ले गया. होटल में कमरा बुक कर के दोनों कमरा नंबर 303 में चले गए. कमरे में आ कर सुभाष ने पहले चायनाश्ता मंगवाया, फिर तनु से साथ रहने वाली बात छेड़ दी. जिसे ले कर दोनों में बहस हो गई. सुभाष ने तनु को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि जब हमारी शादी दोदो बार हो चुकी है तो तीसरी बार शादी की जरूरत क्यों और किसलिए?

‘‘वह हमारी भूल थी, गुजरे कल की बात. अब हमें आज का सोचना है. मैं अपने परिवार के खिलाफ नहीं जा सकती. मैं अपनी मां को धोखा नहीं दूंगी. मां पहले से बहुत दुखी हैं. मैं उन्हें और दुखी नहीं देख सकती.

इसलिए मैं मां के देखे हुए लड़के के साथ शादी करूंगी.’’

‘‘और मैं क्या करूं?’’ सुभाष का चेहरा लाल हो गया. क्रोध में उठ कर उस ने कमरे में टहलते हुए कहा,

‘‘हम दोनों एकदूसरे को भूल जाएं?’’

तनु ने गरदन झुकाते हुए कहा, ‘‘हां.’’

रक्त में डूब गई प्रेम कहानी

‘‘ऐसा नहीं होगा, तुम मेरी थी मेरी ही रहोगी,’’ कहते हुए सुभाष ने छिपा कर लाए चाकू को बाहर निकाला और तनु की गरदन पर सीधा वार कर दिया. वार इतना तेज था कि तनु की आधी गरदन कट गई. तनु चीख कर बैड पर गिर गई. उस के बैड पर गिरने के बाद क्रोधित सुभाष ने उस के पेट में 3 वार और किए.

कुछ मिनट तड़पने के बाद जब तनु के प्राणपखेरू उड़ गए तब सुभाष ने उस का फोन उठाया और बहाना बना कर होटल से निकल गया. वहां से निकल कर वह अपने आटो से शाजापुर बसअड्डा पहुंचा. फिर वहां से बस पकड़ कर अपनी मौसी के यहां आगरा चला गया. सुभाष पोरवाल से विस्तृत पूछताछ करने के बाद पुलिस टीम ने तनु परिहार हत्याकांड से संबंधित चाकू, तनु का मोबाइल फोन और आटोरिक्शा को अपने कब्जे में ले लिया. सुभाष को जिला सत्र न्यायालय के जज के सामने पेश किया गया, जहां से उसे न्यायिक हिरासत में जिला जेल भेज दिया गया. द्य

Social Crime : पाखंडी पुजारी ने प्रेमिका के पति और बच्चे का किया कत्ल

Social Crime : आस्थावान लोग पुजारी और साधुओं पर आंख मूंद कर विश्वास करते हैं. लेकिन दुख तब होता है जब कुछ पाखंडी अपने यजमान की थाली में छेद करने लगते हैं. पुजारी पंडित रविशंकर शुक्ला यशवंत साहू की पत्नी माहेश्वरी के पीछे हाथ धो कर पड़ा था. इसी चक्कर में वह इतना बड़ा अपराध कर बैठा कि…

छत्तीसगढ़ के जिला बलौदा बाजार भाटापारा के पलारी थाने के अंतर्गत एक गांव है छेरकाडीह. यशवंत साहू इसी गांव में अपनी पत्नी, छोटे भाई जितेंद्र साहू व मातापिता के साथ संयुक्त परिवार में रहता था. यह परिवार धार्मिक आस्थावान था. घर में अकसर पूजापाठ, कथा का आयोजन होता रहता था. यह पूजापाठ के ये कार्यक्रम पंडित रविशंकर शुक्ला संपन्न कराता था. पंडित रविशंकर पास के ही गांव जारा में रहता था. आसपास के कई गांवों के लोग उसी के यजमान थे. रविशंकर शुक्ला ने होश संभालने के साथ ही पुरोहित का काम करना शुरू कर दिया था.

एक बार की बात है. सुबह के 10 बजे यशवंत साहू के यहां सत्यनारायण की कथा का आयोजन था. उस दिन 32 वर्षीय रविशंकर शुक्ला यशवंत साहू के घर पहुंचा. यशवंत साहू ने उस का स्वागत किया. रविशंकर शुक्ला ने घर में इधरउधर नजरें दौड़ाने के बाद पूछा, ‘‘यजमान, देवी माहेश्वरी कहां हैं, दिखाई नहीं दे रहीं.’’

‘‘रसोई में है महराज, अभी आ जाएगी. आप बैठिए, मैं पूजा की कुछ सामग्री लाना भूल गया हूं, बाजार से ले कर आता हूं, तब तक आप चाय आदि ग्रहण करें.’’ यशवंत साहू ने कहा. यशवंत साहू मोटरसाइकिल ले कर बाजार के लिए रवाना हुआ तो पंडित रविशंकर उठ खड़ा हुआ और रसोई की ओर दबे पांव आगे बढ़ा. रसोई में माहेश्वरी साहू पूजा के लिए प्रसाद बना रही थी. तभी पंडित रविशंकर ने किचन में पहुंच कर पीछे से माहेश्वरी के गले में बांहें डाल दीं.

‘‘अरे! कौन.’’ माहेश्वरी ने घबरा कर देखा तो पीछे पंडितजी थे. वह बोली, ‘‘अरे महाराज आप?’’

‘‘हां, साहूजी को मैं ने बाजार भेजा है. घबराने की जरूरत नहीं है.’’ कह कर पंडित रविशंकर रहस्यमय भाव से  मुसकराया .

‘‘अरे, घर में  पूजा है ,बच्चे हैं और तुम…’’

‘‘अरेअरे, क्या कहती हो… चलो.’’ पंडित अपने रंग में आने लगा.

‘‘नहीं… नहीं तुम आज पूजा कराने आए हो… तुम्हें थोड़ी भी समझ नहीं है क्या.’’ माहेश्वरी ने मीठी झिड़की दी.

‘‘मुझे तुम्हारे अलावा कुछ दिखाई नहीं देता… सच कहूं तो तुम ही मेरी भगवान हो.’’ वह बेशरमी से बोला.

‘‘छि…छि… यह क्या कह रहे हो. थोड़ी तो शर्म करो, मैं तुम्हें कितना अच्छा समझती थी.’’

‘‘क्यों, मुझे क्या हो गया है… मैं तो तुम्हें अभी भी उसी तरह चाहता हूं जैसा कि ठीक 2 साल पहले… जब तुम्हारीहमारी पहली मुलाकात हुई थी.’’

‘‘अच्छा, सब याद है,’’ अचरज से माहेश्वरी का मुंह खुला का खुला रह गया.

‘‘हां तारीख, दिन, समय… सब कुछ… वह दिन मैं भला कैसे भूल सकता हूं. क्या तुम भूल गई हो?’’ रविशंकर शुक्ला ने पूछा .

‘‘अच्छा, अभी तुम बैठक मैं पहुंचो… मैं 2 मिनट में आती हूं…’’ कह कर माहेश्वरी ने रविशंकर को जाने को कहा तो रविशंकर इठला कर बोला, ‘‘मैं चाय पीऊंगा तुम्हारे हाथों की. इस के बाद ही यहां से टलूंगा.’’

‘‘हां, मैं बनाती हूं महाराज,’’ कह कर माहेश्वरी मुसकराई और बोली, ‘‘अब तुम मुझ से दूर रहा करो. बच्चे बड़े हैं, अच्छा नहीं लगता. कहीं किसी ने देख लिया तो मुझे जहर खा कर मरना पड़ेगा.’’

रविशंकर और माहेश्वरी अभी बातें कर ही रहे थे कि यशवंत साहू पूजा की सामग्री ले कर आ गया. पंडितजी को बैठक में न पा कर वह स्वाभाविक रूप से रसोई की ओर बढ़ा तो पंडित रविशंकर की आवाज सुन वह ठिठक कर रुक गया. यशवंत साहू ने रविशंकर और माहेश्वरी की बातें सुनी तो उस के पैरों तले की जमीन खिसक गई. वह गुस्से के मारे चिल्ला कर बोला, ‘‘पंडित, यह क्या हो रहा है?’’

‘‘अरे, यजमान… भाभीजी चाय बना रही थीं, तो हम ने सोचा कि यहीं बैठ कर पी लें.’’ मीठी वाणी में रविशंकर शुक्ला ने बात बनानी चाही.

‘‘मगर तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई यहां तक घुसने की… और सुनो, मैं ने सब सुन लिया है. मुझे  तुम  पर बहुत  दिनों से  शक था, आज तू पकड़ा गया. तू पंडित नहीं, राक्षस है. चला जा, मेरे घर से.’’ यशवंत साहू ने आंखें दिखाईं तो पंडित घबराया मगर हिम्मत कर के बोला, ‘‘यजमान, तुम कहना क्या चाहते हो? तुम्हें जरूर कोई गलतफहमी हुई है. तुम ने मुझे  सत्यनारायण की कथा के लिए बुलाया है.’’

‘‘देखो, मैं तुम से साफसाफ कह रहा हूं… मेरे घर से अभी चले जाओ.’’

‘‘मगर मैं तो पूजा करने आया था… तुम नाराज क्यों हो रहे हो भाई?’’ रविशंकर ने बात बनाने की पूरी कोशिश की मगर यशवंत साहू की आंखों के सामने से मानो परदा उठ चुका था. यशवंत साहू ने जलती हुई आंखों से देखते हुए कहा, ‘‘भाग जाओ, यहां से. अब तुम्हारी पोल खुल गई है.’’

मामले की गंभीरता को देखते हुए रविशंकर वहां से चले जाने में ही भलाई समझी. इस घटना के बाद यशवंत और माहेश्वरी के वैवाहिक जीवन पर मानो ग्रहण लग गया. माहेश्वरी ने यशवंत के पैरों पर गिर कर सब कुछ स्वीकार कर लिया और फिर कभी दोबारा गलती नहीं करने की कसम खाई. परिवार की इज्जत बचाए रखने और बच्चों के भविष्य को देखते हुए यशवंत साहू ने उसे एक तरह से खून का घूंट पी कर माफ कर दिया. पुजारी ने दी धमकी मगर पंडित रविशंकर शुक्ला जब कभी गांव छेरकाडीह आता और कहीं अचानक से उसे माहेश्वरी दिख जाती तो वह उस से बात करने की कोशिश करता. लेकिन माहेश्वरी उसे देख मुंह फेर लेती तो रविशंकर मनुहार करता.

जब कई बार के प्रयासों से भी महेश्वरी नहीं पिघली तो अंतत: एक दिन गुस्से में आ कर उस ने कहा, ‘‘माहेश्वरी, मैं तुम्हें आसपास के सभी गांव में बदनाम कर दूंगा… तुम कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं रहोगी.’’

माहेश्वरी यह सुन कर घबराई फिर बोली, ‘‘तुम क्या चाहते हो, क्या यह चाहते हो कि मेरा पति और परिवार वाले मुझे अहिल्या की तरह त्याग दें. नहीं… मैं ऐसा नहीं होने दूंगी. तुम चले जाओ…’’

मगर पंडित रविशंकर शुक्ला धमकी दे कर चला गया. जब यह बात यशवंत को मालूम हुई तो वह चिंता में पड़ गया. एक दिन वह अपने मित्र और गांव जारा के सरपंच नारायण दास से मिला. सरपंच को सारी बात बताते हुए यशवंत ने उस से मदद मांगी तो सरपंच ने कहा, ‘‘साहूजी, मामला घरेलू है, मगर मैं इस में तुम्हारी पूरी मदद करूंगा.’’

एक दिन सरपंच ने चुनिंदा लोगों की सभा बुलाई. वहां पुजारी रविशंकर शुक्ला को बुला कर सरपंच ने सब के सामने साफसाफ कहा, ‘‘पंडितजी, अगर तुम ने दोबारा माहेश्वरी भाभी को देखने, धमकाने की कोशिश की तो मामला पुलिस तक पहुंच जाएगा और तुम्हारी पुरोहिती सभी  गांवों  में बंद करा दी जाएगी.’’

मामला हाथ से निकलता देख कर पुजारी रविशंकर शुक्ला ने उस दिन हाथ जोड़ कर माफी मांगी और वहां से चला गया. यशवंत साहू और माहेश्वरी को लगा कि मामले का पटाक्षेप हो गया है, मगर ऐसा हुआ नहीं था. यशवंत साहू का परिवार मूलत: किसान था. छेरकाडीह में रह रहे उस के संयुक्त परिवार में पिता दानसाय साहू, मां लक्ष्मी, भाई  जितेंद्र साहू जो शिक्षक थे, उन की पत्नी मीना, बेटा शशिमणि व बेटी तनिशा थे. यह गांव का धनाढ्य परिवार था. यही कारण था कि हाल ही में घर के पास पिछवाड़े में आलीशान घर बनवाया था, जिस में छोटा भाई  जितेंद्र साहू अपने परिवार व पिता और मां के साथ रहता था. जबकि यशवंत साहू पत्नी व बेटे देवेंद्र के साथ पुराने मकान में ही रह रहा था. बेटी पूनम ज्यादातर दादादादी और चाचा की लड़की तनिशा के साथ रहना पसंद करती थी, वह रहती भी वहीं थी.

जब यशवंत साहू ने पंडित रविशंकर को भलाबुरा कह कर घर से निकाला था तो उस समय यशवंत का बेटा देवेंद्र साहू भी मौजूद था. बाद में जब एक बार पंडित रविशंकर गांव छेरकाडीह आया तो उस की देवेंद्र साहू से मुठभेड़ हो गई थी. इस पर पंडित रविशंकर ने धान काटने के हंसिए से देवेंद्र को मार फेंकने की धमकी दी थी. मगर यशवंत साहू ने इसे  गंभीरता से लेते हुए बेटे देवेंद्र को समझाया कि पंडित रविशंकर से मुंह न लगा करे. चाह कर भी रविशंकर शुक्ला माहेश्वरी को भुला नहीं पा रहा था. गांव में सभा हो जाने के बाद कुछ समय वह शरीफ बना रहा, फिर उस के भीतर का प्रेमी जागृत हो उठा. उस ने सोचा, जरूर माहेश्वरी पति के दबाव में उसे नकार रही है. वह उस से अभी भी प्यार करती है. उस ने सोचा कि क्यों न माहेश्वरी से बात करे… मिले… अंतिम बार.

यही सोच कर रविशंकर शुक्ला ने माहेश्वरी को मोबाइल पर काल की लेकिन माहेश्वरी ने उस की काल रिसीव नहीं की. कई बार काल करने पर भी काल रिसीव नहीं हो रही थी, ऐसे में पंडित के मन में कई शंकाएं जन्म ले रही थीं. वह सोच में डूबा था कि उस का मोबाइल घनघना उठा. उस ने देखा काल माहेश्वरी की तरफ से आ रही थी, वह खुश हो कर काल रिसीव करते हुए वह बोला, ‘‘माहेश्वरी, मैं जानता था कि तुम मुझे नहीं छोड़ सकतीं… मुझे विश्वास था कि तुम्हारा फोन आएगा. सुनो, तुम मेरे पास आ जाओ.’’

तभी माहेश्वरी गुस्से में बोली, ‘‘देखो पंडितजी, पंचायत में तुम्हें हिदायत दे दी थी, अब तुम मर्यादा में रहो.’’

‘‘मैं…मैं जानता हूं, तुम दबाव, पति के प्रभाव में हो, सचसच कहो.’’ पंडित ने पूछा .

‘‘नहीं, मैं किसी दबाव में नहीं हूं. मैं ने विवाह किया है, मेरे 2 बच्चे हैं. और तुम भी शादीशुदा हो. इसलिए आगे से फोन किया तो ठीक नहीं होगा.’’ कह कर माहेश्वरी ने गुस्से से फोन बंद कर दिया. रविशंकर शुक्ला के माथे में बल पड़ गए. वह सोचने लगा कि यह तो अलग ही सुर निकाल रही है, मैं इस को ऐसा सबक सिखाऊंगा कि इस की सात पुश्तें भी याद रखेंगी. पुजारी ने रची खूनी साजिश रविशंकर शुक्ला माहेश्वरी को सबक सिखाने की योजना बनाने में जुट गया. उस ने अपनी ससुराल के एक दोस्त दुर्गेश वर्मा से बात की. फिर गांव के तालाब किनारे ले जा कर उसे अपनपा दर्द बताया और सहयोग मांगा.

जब वह साथ देने और मरनेमारने पर उतारू हो गया तो रविशंकर शुक्ला बहुत खुश हुआ और बोला, ‘‘मैं माहेश्वरी को सबक सिखाना चाहता हूं. उस के बेटे देवेंद्र व पति का काम तमाम करते ही वह मजबूर  हो कर मेरे आगोश मे आ जाएगी.’’

दुर्गेश ने पंडित रविशंकर की दोस्ती के कारण शनिवार 11-12 अप्रैल 2020 की रात यशवंत साहू के घर में घुस कर यशवंत साहू की हत्या की योजना बनाई. दोनों रविशंकर शुक्ला की बाइक सीजी22 एसी 7453 पर गांव गातापारा से छेरकाडीह के लिए रवाना हुए. इसी दौरान दुर्गेश वर्मा को अपने  घर के पास एक मित्र नेमीचंद धु्रव दिखाई दिया. उस ने उसे भी बाइक पर बैठा लिया और कहा, ‘‘चल, तुझे भी एक मिशन पर ले चलते  हैं.’’

रात लगभग 11 बजे छेरकाडीह पहुंच कर इन लोगों ने एक जगह बाइक खड़ी कर के नेमीचंद को वहीं खड़ा छोड़ दिया और एक टंगिया, एक फरसी ले कर दोनों  यशवंत साहू के घर की ओर बढ़े. पंडित रविशंकर जानता था कि पिछवाड़े से यशवंत के घर में आसानी से दाखिल हुआ जा सकता है. वह दुर्गेश के साथ भीतर गया. एक कमरे में यशवंत साहू अपने बेटे देवेंद्र के साथ सोया था. रविशंकर ने नींद में सोए देवेंद्र पर ताबड़तोड़ हमला कर दिया. फरसे  की चोट लगते ही देवेंद्र उठ खड़ा हुआ तो दोनों ने मिल कर उसे वहीं ढेर कर दिया. इस बीच यशवंत की नींद टूट गई. वह डर से कांप रहा था. दोनों ने हमला कर के उस भी मार डाला.

दूसरे कमरे में माहेश्वरी अकेली सो रही थी. चीखपुकार सुन वह जब घटनास्थल पर पहुंची तो पति यशवंत व बेटे देवेंद्र की लाश देख कर चीख पड़ी. इस पर पंडित रविशंकर शुक्ला ने पोल खुल जाने के डर से वहां रखे  सब्बल से उस के सिर पर वार कर उसे भी मार डाला. उसी समय  घर के पिछवाड़े में नए घर में बैठी यशवंत की बेटी पूनम ने मां के चीखने की आवाज सुनी और घबरा कर चार कदम आगे बढ़ी. मगर यह सोच कर खामोश बैठ गई कि मां का पिताजी के साथ झगड़ा हो रहा होगा. उधर चारों तरफ खून फैला हुआ था, जिसे देख कर दुर्गेश और रविशंकर शुक्ला घबराए और वहां से भाग खड़े हुए. बाहर थोड़ी दूरी पर नेमीचंद धु्रव उन का इंतजार कर रहा था. तीनों बाइक से गातापार की तरफ चले गए.

सुबह 6 बजे यशवंत के पिता दानसाय साहू उठे और टहलते हुए जब यशवंत के घर की ओर बढ़े तो परछी में बहू माहेश्वरी को खून से लथपथ पडे़ देख घबरा कर उलटे पांव वापस लौटे और पत्नी लक्ष्मी को वहां की यह बात बताई. सुनते ही पास बैठी पूनम दौड़ कर घटनास्थल पर पहुंची. वह मां को मृत देख रोने लगी. जब उस ने कमरे में लाइट जलाई तो वहां पिता और भाई की खून से लथपथ लाशें पड़ी थीं. यह देख कर वह फूटफूट कर रोने लगी. उसे समझ में नहीं आ रहा था कि यह सब कैसे और क्या हो गया. पूनम के रोने की आवाज सुन चाचा जितेंद्र व सारा परिवार वहां आ गया. ग्राम पंचायत छेरकाडीह के सरपंच रामलखन भी घटनास्थल पर पहुंचे और थाना पलारी फोन कर के घटना की जानकारी दी.

12 अप्रैल, 2020 को लगभग 8 बजे पलारी थानाप्रभारी प्रमोद कुमार सिंह डौग स्क्वायड टीम व स्टाफ के साथ छेरकाडीह पहुंचे और घटनास्थल का मुआयना किया. चारों तरफ खून फैला हुआ था. उन्हें यह समझते देर नहीं लगी कि किसी ने दुश्मनी के कारण यह नृशंस हत्याकांड किया है. पुलिस ने जरूरी काररवाई कर तीनों लाशें पोस्टमार्टम के लिए भेज दीं. इसी दरम्यान थानाप्रभारी को यह खबर मिली कि हाल ही में यशवंत साहू ने सरपंच से कह कर सभा बुलाई थी, जिस में सरपंच ने पुजारी रविशंकर को हिदायत दी थी कि वह माहेश्वरी के पीछे न पड़े. पुलिस के हत्थे चढ़े आरोपी थानाप्रभारी प्रमोद कुमार सिंह को पूरा मामला शीशे की तरह साफ नजर आ रहा था. शक की सुई पुजारी रविशंकर की ओर घूम चुकी थी. उन्होंने एसपी प्रशांत ठाकुर बलोदाबाजार, भाटापारा  को संपूर्ण जानकारी दे कर मार्गदर्शन मांगा.

तब एसपी ने इस केस को खोलने के लिए थाना गिधौरी के थानाप्रभारी ओमप्रकाश त्रिपाठी और थाना सुहेला के थानाप्रभारी रोशन सिंह को भी उन के साथ लगा दिया. पुलिस टीम ने रविशंकर शुक्ला को शाम को ही धर दबोचा. उसे पलारी थाना ला कर पूछताछ शुरू की गई, लेकिन वह शातिराना ढंग से स्वयं को पंडित बता कर  बचना चाह रहा था मगर जब पुलिस ने कड़ाई से पूछताछ की तो वह टूट गया और तिहरे हत्याकांड को अंजाम देने की कहानी बता दी. उस ने बताया कि उस के इस काम में दुर्गेश व नेमीचंद भी साथ थे. पुजारी रविशंकर शुक्ला ने बताया कि वह 5 वर्षों से गांवगांव घूम कर यज्ञ आदि धार्मिक अनुष्ठान संपन्न कराता था, 2 साल पहले यशवंत साहू ने उसे पहली बार सत्यनारायण की कथा के लिए बुलाया था, जहां उस का परिचय उस की पत्नी माहेश्वरी से हुआ और बहुत जल्द दोनों के अंतरंग संबंध बन गए.

मगर बाद में माहेश्वरी उस से दूर छिटकने की कोशिश करने लगी और वह एक बार रंगेहाथों पकड़ा भी गया था. पंचायत में बात जाने के बाद वह माहेश्वरी से बातचीत कर उसे भगा ले जाने को तैयार था मगर जब माहेश्वरी ने साफ इंकार कर दिया तो उस ने दुर्गेश को विश्वास में ले कर यशवंत साहू को सबक सिखाने की सोची. फिर माहेश्वरी सहित उस के बेटे देवेंद्र साहू को मार डाला. आरोपी रविशंकर शुक्ला ने जांच अधिकारी प्रमोद कुमार सिंह को अपने इकबालिया  बयान में  बताया कि वह माहेश्वरी से दिलोजान से प्रेम करता था, इसलिए प्रेम में अंधे हो कर उस के हाथों यह हत्याकांड हो गया. पुलिस ने आरोपी पंडित रविशंकर शुक्ला और दुर्गेश वर्मा से हत्या में इस्तेमाल हथियार  टंगिया, फरसा व खून से सने कपड़े जब्त कर लिए.

प्राथमिक विवेचना के बाद पुलिस ने पलारी थाने में धारा 302 भादंवि के तहत केस दर्ज किया और मुख्य आरोपी पंडित रविशंकर शुक्ला, सहआरोपी दुर्गेश और नेमीचंद को गिरफ्तार कर के मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी कृष्णकुमार सूर्यवंशी की अदालत में पेश किया, जहां से तीनों को जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों से बातचीत पर आधारित

Love Story : भागकर शादी करने पर लड़की के घरवालों ने दामाद की कर दी हत्या

Love Story : घर वालों की मरजी के खिलाफ पढ़ीलिखी ज्योति ने रोहित से अंतरजातीय विवाह किया था. रोहित सरकारी नौकरी करता था, इसलिए ज्योति उस के साथ हंसीखुशी से रह रही थी. इस के 2 साल बाद इन के जीवन में ऐसा वाकया हुआ, जिस की किसी ने कल्पना तक नहीं की थी.

उत्तर प्रदेश के मैनपुरी जिले का एक गांव है बृजपुरा. इसी गांव के निवासी महेश सिंह यादव पेशे से किसान थे. उन का बड़ा बेटा रोहित पशु पालन विभाग में नौकरी करता था. 9 जुलाई, 2020 की बात है. रोहित की पत्नी ज्योति की तबियत अचानक खराब हो गई थी. बुखार के साथ उस के पेट में दर्द भी हो रहा था. इस से रोहित बहुत परेशान हो रहा था. ज्योति की तबियत खराब होने से रोहित परेशान हो उठा. शाम का वक्त हो गया था. जब घरेलू उपायों से भी कोई लाभ नहीं हुआ. घर वालों ने रोहित से ज्योति को कीरतपुर के किसी डाक्टर को दिखाने को कहा. क्योंकि बृजपुरा में कोई अच्छा डाक्टर नहीं था.

घर वालों की बात मान कर रोहित ने ज्योति से कहा, ‘‘चलो डाक्टर को दिखा आते हैं. कहीं रात में ज्यादा तबियत खराब हो गई तो किसे दिखाएंगे.’’

पति की बात मान कर ज्योति डाक्टर के पास चलने के लिए तैयार हो गई. गांव ब्रजपुरा से कीरतपुर लगभग 5 किलोमीटर दूर था. इसलिए रोहित अपनी मोटरसाइकिल से ज्योति को कीरतपुर में स्थित एक डाक्टर के क्लीनिक पर ले गया. ज्योति का चैकअप करने के बाद डाक्टर ने दवा दे दी और 2 दिन बाद फिर से आने को कहा. डाक्टर से दवा लेने के बाद रोहित पत्नी को ले कर अपने घर की तरफ चल दिया. लौटते समय रात हो गई थी. जब उस की मोटरसाइकिल सिंहपुर नहर पुल स्थित हुर्रइया पुलिया के पास पहुंची. उस समय रात के सवा 8 बज रहे थे. सड़क पर सन्नाटा था. ज्योति रोहित को पकड़े बाइक पर बैठी थी. उस ने कहा, ‘‘अंधेरे में मुझे डर लग रहा है. तुम गाड़ी कुछ तेज चलाओ जिस से हम घर जल्दी पहुंच जाएं.’’

रोहित कुछ कह पाता, तभी वहां घात लगाए हमलावरों ने उन दोनों पर हमला कर दिया. दोनों को जिस बात का डर था वही हो गई. ऐसा लग रहा था बदमाश जैसे उन दोनों का ही इंतजार कर रहे थे. अचानक हुए हमले से दोनों घबरा गए. रोहित ने मोटरसाइकिल तेज कर वहां से भागने का प्रयास किया. लेकिन बदमाशों ने ताबड़तोड़ फायरिंग शुरू कर दी थी. तभी एक गोली रोहित के पेट में लगी और बाइक सहित दोनों सड़क पर जा गिरे. कई गोली लगने से ज्योति गंभीर रूप से घायल हो गई थी. हमलावर 2 मोटरसाइकिलों पर सवार हो कर आए थे. रात के सन्नाटे में गोलियों की आवाज सुन कर आसपास के ग्रामीण घटनास्थल पर पहुंच गए. ग्रामीणों के वहां पहुंचने से पहले ही बदमाश घटनास्थल से फरार हो चुके थे. कुछ ग्रामीणों ने घायल दंपति को पहचान लिया और उन्होंने बृजपुरा उन के घर फोन कर घटना की जानकारी दे दी.

घटना की जानकारी होते ही रोहित के घर में कोहराम मच गया. छोटा भाई मोहित, पिता महेश व अन्य घर वाले गांव वालों के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. ज्योति और रोहित सड़क किनारे बिजली के खंभे के पास लहूलुहान पड़े हुए थे. इसी बीच किसी ने थाना मैनपुरी पुलिस को भी घटना की सूचना दे दी. सड़क पर बाइक सवार दंपति को गोली मारने की सूचना पर थाने में हड़कंप मच गया. घटनास्थल थाने से लगभग 7-8 किलोमीटर दूर था. कुछ ही देर में इंसपेक्टर भानुप्रताप सिंह पुलिस टीम व एंबुलेंस के साथ मौके पर पहुंच गए. उन्होंने गंभीर रूप से घायल दंपति को एंबुलेंस से जिला अस्पताल में उपचार के लिए भिजवाया.

दंपति पर जानलेवा हमले की वारदात से ग्रामीणों में रोष फैल गया था. गांव वालों के रोष को भांप कर थानाप्रभारी ने घटना की जानकारी उच्चाधिकारियों को दे कर स्थिति से अवगत कराया. खबर मिलते ही एएसपी मधुबन सिंह, सीओ अभय नारायण राय भी घटनास्थल पर पहुंच गए. अधिकारियों ने घटनास्थल का निरीक्षण किया. घटनास्थल से पुलिस को जहां 2 खोखे मिले, वहीं घटनास्थल से लगभग 150 मीटर की दूरी पर भी एक खोखा मिला. पुलिस ने घटनास्थल से जरूरी सबूत जुटा कर मौके की जरूरी काररवाई निपटाई. वहीं सीओ ने गुस्साए ग्रामीणों को भरोसा दिया कि पुलिस हमलावरों को जल्द गिरफ्तार कर लेगी. उन के आश्वासन के बाद ही ग्रामीण शांत हुए.

पुलिस बदमाशों की तलाश में जुट गई. लेकिन रात का समय होने के कारण बदमाशों के बारे में कोई जानकारी नहीं मिल सकी. बदमाशों ने दंपति को घायल करने के बाद उन की बाइक, नकदी व आभूषण की लूट नहीं की थी. इस से पुलिस को भी आशंका हुई कि बदमाशों ने हमला लूटपाट के लिए नहीं किया, इस के पीछे जरूर कोई रंजिश रही होगी. घटनास्थल से अधिकारी सीधे जिला चिकित्सालय पहुंचे. उन्होंने घायलों के बारे में चिकित्सकों से जानकारी ली. चिकित्सकों ने बताया कि रोहित के पेट में एक गोली तथा ज्योति के शरीर में 6 गोलियां लगी थीं. घायल रोहित ने अधिकारियों को हमलावरों के नाम भी बता दिए.

अस्पताल में मौजूद रोहित के छोटे भाई मोहित ने रंजिश के चलते अंगौथा निवासी बृजेश मिश्रा उस के बेटे गुलशन व हिमांशु मिश्रा, बृजेश के छोटे भाई अशोक मिश्रा व उस के 2 बेटों राघवेंद्र उर्फ टेंटा व रघुराई पर वारदात को अंजाम देने का आरोप लगाया था. घायल दंपति का जिला अस्पताल मैनपुरी में उपचार शुरू किया गया. उपचार के दौरान दोनों की गंभीर हालत को देखते हुए डाक्टरों ने उन्हें मैडिकल कालेज सैफई रैफर कर दिया. पुलिस व घर वाले जब एंबुलेंस से घायल दंपति को सैफई ले जा रहे थे तो रास्ते में ज्योति की मौत हो गई. जबकि रोहित का सैफई पहुंचते ही इलाज शुरू हो गया था. गोली उस के पेट में लगी थी जो पार हो गई थी.

औपरेशन के बाद चिकित्सकों ने रोहित को आईसीयू में भरती कर दिया था. रोहित की सुरक्षा के लिए थानाप्रभारी ने 2 सिपाही भी तैनात कर दिए गए थे. रोहित के भाई मोहित ने रिपोर्ट में आरोप लगाया था कि ज्योति मिश्रा ने उस के भाई रोहित यादव के साथ करीब 2 साल पहले अंतरजातीय प्रेम विवाह किया था, जिस से ज्योति के घर वाले उस के भाई रोहित व भाभी ज्योति से बहुत नफरत करते थे, उन्होंने कई बार धमकियां भी दी थीं. इसी के चलते इन लोगों ने घटना को अंजाम दिया. रिपोर्ट दर्ज होने के बाद पुलिस ने नामजद आरोपियों की गिरफ्तारी के लिए उन के गांव में दबिश दी. लेकिन कोई भी आरोपी घर नहीं मिला. पुलिस ने बृजेश मिश्रा के परिवार के कुछ लोगों के साथ ही कई संदिग्धों को हिरासत में ले लिया था. उन्हें कोतवाली ला कर पूछताछ की गई.

2 गांव के बीच प्रेम विवाह को ले कर हुई इस खूनी घटना के बाद खुफिया विभाग भी सतर्क हो गया था. लगातार दोनों गांव की स्थिति पर पुलिस नजर बनाए हुए थी. जहां रोहित के घर पर मातम पसरा हुआ था, वहीं अंगौथा में आरोपी के घरों पर कोई नहीं था. दोनों गांवों में इस घटना के बाद से सन्नाटा पसरा हुआ था. इस सनसनीखेज हत्याकांड के एक हफ्ते बाद भी पुलिस के हाथ खाली थे. पुलिस अब तक नामजद आरोपियों में से एक भी आरोपी को गिरफ्तार नहीं कर सकी थी. हत्यारों द्वारा ज्योति पर ताबड़तोड़ गोलियां बरसा कर मार देने की खबर इलैक्ट्रौनिक और प्रिंट मीडिया में प्रमुखता से छाने लगी, जिस से पुलिस पर दबाव बढ़ता जा रहा था, लेकिन पुलिस अपने काम में जुटी रही. पुलिस की जांच सही दिशा में आगे बढ़ रही थी.

पुलिस के अलावा सर्विलांस टीम, स्वाट टीम को भी आरोपियों की गिरफ्तारी के काम में लगाया गया. पुलिस की मेहनत रंग लाई और हत्याकांड के 3 नामजद आरोपियों को पुलिस ने दबिश के बाद उन के गांव के पास से गिरफ्तार कर लिया. 16 जुलाई, 2020 को पुलिस ने 10 दिन पहले हुए ज्योति हत्याकांड का परदाफाश कर दिया. एसपी अजय कुमार पांडेय ने प्रैसवार्ता आयोजित कर इस हत्याकांड का खुलासा किया. पता चला कि इस हत्याकांड को सम्मान की खातिर सगे भाई और 2 चचेरे भाइयों ने अंजाम दिया था. घटना में नामजद 5 आरोपियों में से पुलिस ने ज्योति के सगे भाई गुलशन मिश्रा तथा 2 चचेरे भाइयों राघवेंद्र मिश्रा व रघुराई मिश्रा को गिरफ्तार कर उन के कब्जे से 2 तमंचे व 5 कारतूस बरामद किए थे. तीनों हत्यारोपियों ने अपना जुर्म कुबूल कर लिया. इस हत्याकांड की जो कहानी बताई, वह कुछ इस तरह थी—

थाना मैनपुरी के बृजपुरा और अंगौथा गांव अगलबगल थे. बृजपुरा निवासी महेश सिंह के 2 बेटे व एक बेटी थी. बड़ा बेटा 25 वर्षीय रोहित यादव पशु पालन विभाग में नौकरी करता था. जबकि छोटा बेटा मोहित अभी बीएससी फर्स्ट ईयर में पड़ रहा था. छोटी बहन प्रियंका चौथी क्लास में पढ़ती थी. वहीं अंगौथा निवासी बृजेश मिश्रा खेतीकिसानी करता था. गांव में उस की आटा चक्की भी थी. उस के 4 बेटे बेटियों में गुलशन व हिमांशु के अलावा ज्योति तीसरे नंबर की थी. ज्योति की एक छोटी बहन और थी. गुलशन पिता के साथ आटा चक्की के काम में हाथ बंटाता था जबकि दूसरे नंबर का बेटा हिमांशु पुणे में नौकरी करता था.

रोहित यादव पशुपालन विभाग में अंगौथा मौजा (मझरा) में स्थित पशु चिकित्सालय व कृत्रिम गर्भाधान केंद्र में कार्य करता था. इसी सिलसिले में उस का आसपास के गांवों में आनाजाना लगा रहता था. वह पड़ोसी गांव अंगौथा भी पशुओं के इलाज के सिलसिले में जाता था. एक दिन जिस घर के पशुओं के इलाज के संबंध में रोहित आया था, उसी घर में पड़ोस में रहने वाली ज्योति आई हुई थी. रोहित की नजर उस पर पड़ी. ज्योति सुंदर लड़की थी. वह उस का अनगढ़ सौंदर्य देख ठगा सा रह गया. उस ने उसी क्षण उसे दिल में बसा लिया. ज्योति को भी अहसास हो गया कि रोहित उसे चाहत की नजरों से देख रहा है. रोहित कसी हुई कदकाठी का जवान युवक था. उसे देख कर 22 वर्षीय ज्योति का दिल भी तेजी से धड़कने लगा था.

रोहित जब भी ज्योति के गांव जाता उस की मुलाकात ज्योति से हो जाती. दोनों ही एकदूसरे को देख कर मुसकरा देते थे. जब दो युवा मिलते हैं तो जिंदगी में नया रंग घुलने लगता है. दोनों एकदूसरे से प्यार का इजहार करना चाहते थे. एक दिन ज्योति को मौका मिल ही गया. भाई और पिता आटा चक्की पर थे, मां घर के कामों में व्यस्त थी. ज्योति ने जैसे ही रोहित को देखा वह उस के पास से निकली और चुपचाप से एक पर्ची उस के पास गिरा दी. रोहित ने वह पर्ची झट से उठा कर अपने पास रख ली. काम निपटाने के बाद रास्ते में उस पर्ची को खोला तो उस पर एक मोबाइल नंबर लिखा था. बिना देर किए रोहित ने वह नंबर डायल किया.

दूसरी ओर से आवाज आई, ‘‘मैं ज्योति मिश्रा बोल रही हूं, आप कौन?’’

इस पर उस ने जवाब दिया, ‘‘मैं रोहित यादव बोल रहा हूं. आप के गांव के मवेशियों के इलाज के लिए आताजाता रहता हूं.’’

‘‘जनाब, आप इलाज जानवरों का करते हैं और घायल इंसानों को कर देते हैं,’’ कह कर ज्योति खिलखिला कर हंस पड़ी.

‘‘आप चिंता न करें, अब मुझे आप का फोन नंबर मिल गया है. अब आप बिलकुल ठीक हो जाओगी.’’ रोहित ने भी उसी अंदाज में जवाब दिया. एकदूसरे के मोबाइल नंबर मिलने के बाद दोनों के बीच धीरेधीरे बातचीत का सिलसिला शुरू हो गया. यह काफी दिनों तक चलता रहा. जब भी रोहित ज्योति के गांव में आता दोनों चोरीछिपे मिल कर एकदूसरे की दिल की बात जान लेते.

दोनों की जातियां भले ही अलगअलग थीं. लेकिन प्यार के दीवानों को इस की परवाह नहीं थी. दोनों का मानना था कि समाज और जाति सब अपनी जगह हैं, लेकिन हमारा प्यार इन सब से ऊपर है. यह सोच कर दोनों ने एकदूसरे का हमसफर बनने का निर्णय ले लिया था. इश्क की खुशबू कभी छिपती नहीं है. ज्योति के घर वालों को जब दोनों के बीच चल रहे प्रेमप्रसंग का पता चला तो उन्होंने ज्योति को कड़ी चेतावनी दी और रोहित से न मिलने की हिदायत दे दी. लेकिन रोहित की प्रेम दीवानी ज्योति पर इस चेतावनी का कोई असर नहीं हुआ था. उस ने घर वालों से बगावत कर दी और एक दिन मौका मिलते ही ज्योति रोहित के साथ घर से भाग गई.

इस बात की जानकारी होने पर ज्योति के घर वालों ने दोनों को बहुत तलाशा. उन के न मिलने पर उन्होंने रोहित के खिलाफ कोतवाली मैनपुरी में ज्योति को बहलाफुसला कर भगा ले जाने की रिपोर्ट दर्ज करा दी. 17 सितंबर, 2018 को दोनों ने घर वालों की मरजी के बिना प्रयागराज में कोर्ट मैरिज कर ली. कोर्ट मैरिज के बाद रोहित और ज्योति कुछ दिन दिल्ली जा कर रहे. दोनों बाद में गांव बृजपुरा आ गए थे. ज्योति के घर वालों ने यह जानकारी  पुलिस को दे दी. तब पुलिस ने ज्योति और रोहित को हिरासत में ले लिया. पुलिस ज्योति को जब न्यायालय में बयान दर्ज कराने के लिए ले जा रही थी, तब ज्योति के घर वालों ने उस से कहा कि वह उन के साथ चलने की बात कोर्ट में कहे.

इस बात के लिए ज्योति ने हामी तो भर दी थी, लेकिन जब कोर्ट में ज्योति के बयान दर्ज हुए तो उस ने पति रोहित के साथ ही जाने के बयान दिए थे. लिहाजा ज्योति को उस के पति रोहित के साथ भेज दिया गया. बेटी के इस फैसले के बाद वृद्ध पिता ब्रजेश मिश्रा व मां चुपचाप घर चले गए थे. उस समय उन्होंने खुदको बहुत अपमानित महसूस किया था. अंतरजातीय प्रेम विवाह ज्योति के घर वालों को मंजूर नहीं था. खासकर ज्योति के भाई गुलशन व चचेरे भाइयों राघवेंद्र व रघुराई को. इस वजह से वह ज्योति और रोहित से रंजिश मानने लगे थे. वे लोग दोनों की हत्या करना चाहते थे, लेकिन घर के बड़ेबुजुर्गों ने उन्हें समझाया कि हत्या करने से गई हुई इज्जत वापस तो आ नहीं जाएगी. यदि तुम लोग हत्या करोगे तो पुलिस का शक तुम्हीं लोगों पर जाएगा और पकड़े जाओगे.

उस समय तो वे लोग खून का घूंट पी कर रह गए थे. लगभग 2 साल बीतने के बाद घर वाले भी यह मान बैठे थे कि अब ये लड़के कोई घटना नहीं करेंगे. ज्योति के गैर जाति में शादी कर लेने की वजह से गांव में भी लोग आए दिन घर वालों पर छींटाकशी करते रहते थे. इस के साथ ही अविवाहित चचेरे भाई राघवेंद्र की शादी के लिए रिश्ते तो आते थे, लेकिन जब उन्हें सारी बातों की जानकारी होती, तो वे शादी से इंकार कर देते थे. चचेरी बहन के यादव जाति में शादी कर लेने से राघवेंद्र की शादी भी नहीं हो पा रही थी. इस से राघवेंद्र परेशान रहने लगा था. एक बार राघवेंद्र अकेला ज्योति की ससुराल जा पहुंचा और उस ने ज्योति से घर चलने के लिए दवाब डाला. लेकिन ज्योति ने साफ मना कर दिया. इस पर राघवेंद्र मुंह लटका कर घर लौट आया था.

यह बात गुलशन व रघुराई को नागवार लगी थी. इस घटना के बाद एक बार उन्होंने 50 हजार में भाड़े के एक शूटर से ज्योति व रोहित की हत्या कराने की योजना भी तैयार की गई थी, लेकिन वे सफल नहीं हुए थे. समय बीतने के साथ ही तीनों आरोपियों के मन में ज्योति के प्रति नफरत बढ़ती गई. इन्हें डर था कि कहीं ज्योति मां बन गई तो इस रिश्ते की डोर और भी मजबूत हो जाएगी. फिर दोनों परिवार कभी एक भी हो सकते हैं. सब तरफ से हताश होने के बाद गुलशन और उस के चचेरे भाइयों ने दोनों की हत्या करने की प्लानिंग की. वे पिछले एक महीने से इस की तैयारी कर रहे थे. उन्होंने तय कर लिया था कि ज्योति और रोहित जिस दिन एक साथ मिलेंगे, वह उन की हत्या कर देंगे. इसी वजह से वे घर वालों को अंधेरे में रख कर हत्या की योजना बना रहे थे.

उन्होंने असलहों का इंतजाम भी कर लिया था. फिर तीनों ने उन की रेकी करने का काम शुरू कर दिया. 7 जुलाई, 2020 को उन को मौका मिल भी गया. उस दिन राघवेंद्र ने मोटरसाइकिल से शाम के समय रोहित और ज्योति को जाते देख लिया था. उस ने गुलशन और रघुराई को बताया कि आज दोनों को निपटा देने का अच्छा मौका है. उसी समय उन लोगों ने योजना को अंजाम देने की ठान ली थी. तीनों ने तमंचों व कारतूसों का इंतजाम पहले ही कर लिया था. वे सिंहपुर नहर पुल के बंबे के पास मोटरसाइकिलों से जा कर उन का इंतजार करने लगे. रात सवा 8 बजे जैसे ही उन्हें रोहित की मोटरसाइकिल आती दिखी, उन लोगों ने दोनों पर घात लगा कर हमला कर दिया. उन्होंने दोनों पर ताबड़तोड़ फायरिंग  कर दी.

घटना के दौरान गुलशन मार्ग से आनेजाने वाले लोगों पर नजर भी रख रहा था, जबकि ज्योति को 6 गोलियां राघवेंद्र व रघुराई ने मारीं थीं, जिस से उस के बचने की कोई गुंजाइश न रहे. वहीं योजना थी कि रोहित के घुटने में गोली मार कर उसे जिंदगी भर के लिए अपाहिज कर दिया जाए. ताकि वह सारी जिंदगी अपने किए पर पछताता रहे. इसीलिए उन्होंने रोहित के एक गोली मारी. लेकिन हड़बड़ी में गोली रोहित के घुटने के बजाय पेट में जा लगी. अपनी योजना को अमलीजामा पहनाने के बाद आरोपी घटनास्थल से फरार हो गए थे.

रिपोर्ट 5 लोगों के खिलाफ दर्ज कराई गई थी. इन में 3 नामजदों को पुलिस द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया था. जबकि पिता बृजेश मिश्रा के खिलाफ जांच में कोई सबूत नहीं मिला था. इसी तरह पांचवें आरोपी की लोकेशन घटना के समय पुलिस को पुणे में मिली थी. इस संबंध में कहानी लिखे जाने तक विवेचना जारी थी. हत्या के लिए 2 तमंचे व 10 कारतूस का इंतजाम आरोपियों ने किया था. कारतूस व तमंचा कहां से जुटाए गए थे, पुलिस इस की भी जांच कर रही थी, ताकि दोषियों के विरुद्ध काररवाई की जा सके. इस हत्याकांड के खुलासे में एएसपी मधुबन सिंह, सीओ अभय नारायण राय, इंसपेक्टर भानुप्रताप सिंह, सर्विलांस सेल प्रभारी जोगिंदर सिंह, स्वाट टीम प्रभारी रामनरेश यादव का विशेष सहयोग रहा. एसपी अजय कुमार पांडेय ने पुलिस टीम को इस हत्याकांड का खुलासा करने पर 20 हजार का इनाम देने की घोषणा की.

पुलिस ने गिरफ्तार आरोपियों को 18 जुलाई, 2020 को ही न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया गया. मामले की जांच इंसपेक्टर भानुप्रताप सिंह कर रहे थे.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Crime Story : बेइज्जती का बदला लेने के लिए दोस्त का किया कत्ल

Crime Story : प्रदीप 8 महीने तक फेसबुक पर ज्योति के संपर्क में रहा. दोनों में पहले दोस्ती हुई, फिर प्यार और फिर मिलन की तैयारी. उस के इस फेसबुकिया प्रेम ने उस के दोस्त…

फिरोजाबाद जिले का एक थाना है नगला खंगर. इसी के थाना क्षेत्र में एक गांव है धौनई. यहीं के रहने वाले अजयपाल का बेटा है प्रदीप यादव. वह झारखंड की एक कंपनी में नौकरी करता था. अजयपाल रक्षाबंधन से 9-10 दिन पहले अपने गांव धौनई आ गया था ताकि त्यौहार अच्छे से मनाया जा सके. उस के आने से पूरा परिवार खुश था. वजह यह कि नौकरी की वजह से अजय को झारखंड में रहना पड़ता था. वहां से वह कईकई महीने में आ पाता था. करीब 8 महीने पहले अजयपाल की फेसबुक के माध्यम से एक युवती ज्योति शर्मा से दोस्ती हो गई थी. बाद में दोनों ने एकदूसरे को अपने मोबाइल नंबर भी दे दिए थे. इस के बाद मोबाइल पर दोनों के बीच बातों का सिलसिला शुरू हो गया था.

बातों बातों में प्रदीप को पता चला कि ज्योति फिरोजाबाद जिले के गांव नगला मानसिंह की रहने वाली है. ज्योति ने बताया था कि वह बीए में पढ़ रही है. फेसबुक से शुरू हुई दोनों की दोस्ती धीरेधीरे आगे बढ़ने लगी. अब ज्योति और प्रदीप मोबाइल पर प्यार भरी बातें भी करने लगे. अगर किसी लड़केलड़की के बीच लगातार बातचीत होती रहे तो कई बार प्यार हो जाता है. यही अजयपाल और ज्योति के बीच भी हुआ. दोनों एकदूसरे को प्यार करने लगे. दोनों ने एकदूसरे पर अपने प्रेम को भी उजागर कर दिया. प्रदीप ने ज्योति को बताया कि वह भी फिरोजाबाद जिले के थाना नगला खंगर के गांव धौनई का रहने वाला है. यह जानने के बाद दोनों एकदूसरे से मिलने के लिए उतावले हो गए.

लेकिन प्रदीप को कंपनी से छुट्टी नहीं मिल पा रही थी. अपने गांव जाने से वह इसलिए भी कतरा रहा था कि घर वाले पूछेंगे कि तुम अचानक क्यों आ गए? इसलिए प्रदीप ने ज्योति को बताया, वह रक्षाबंधन पर घर आएगा तो उस से जरूर मुलाकात करेगा. प्रदीप अपनी प्रेयसी से मिलने को आतुर था. इसलिए उस ने रक्षाबंधन से पहले ही घर जाने का निर्णय कर लिया. उस ने घर जाने के लिए छुट्टी ले ली. फिर वह रक्षाबंधन से 10 दिन पहले ही गांव आ गया. रक्षाबंधन 3 अगस्त को था. इस बीच उस की ज्योति से फोन पर बातचीत होती रही. प्रदीप का गांव में एक ही दोस्त था सत्येंद्र. वह गांव में ही खेतीकिसानी करता था. उस के पिता रामनिवास की मृत्यु हो चुकी थी. सत्येंद्र फौज में भरती होने की तैयारी कर रहा था.

2 अगस्त की शाम 7 बजे थे. सत्येंद्र खेत से काम कर के वापस घर लौटा था. हाथमुंह धो कर उस ने मां से खाना परोसने के लिए कहा. मां थाली परोस कर लाई ही थी कि सत्येंद्र का दोस्त प्रदीप आ पहुंचा. प्रदीप ने इशारे से सत्येंद्र को अपने पास बुलाया. प्रदीप ने उस के कान के पास मुंह ले जा कर धीमी आवाज में कुछ कहा. इस पर सत्येंद्र बोला, ‘‘खाना खा कर चलते हैं.’’

लेकिन प्रदीप ने कहा, ‘‘अभी लौट कर आते हैं, तभी खा लेना.’’

इस पर सत्येंद्र ने परोसी थाली छोड़ कर मां से कहा कि वह जरूरी काम से प्रदीप के साथ तिलियानी गांव जा रहा है. थोड़ी देर में लौट आएगा और वह जाने लगा तो मां ने कहा, ‘‘बेटा खाना तो खा ले, अभी तो कह रहा था तेज भूख लग रही है.’’

‘‘चिंता मत करो मां, वापस आ कर खा लूंगा.’’ कह कर 23 वर्षीय सत्येंद्र अपने 24 वर्षीय दोस्त प्रदीप की मोटरसाइकिल पर बैठ कर उस के साथ चला गया. दोस्ती में सत्येंद्र बना शिकार रात सवा 8 बजे सत्येंद्र के घर वालों को सूचना मिली कि सत्येंद्र तिलियानी रोड पर नगला मानसिंह के पास लहूलुहान पड़ा है. यह सुन कर घर वालों के पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई. घर वाले आननफानन में घटनास्थल पर पहुंचे और घायल सत्येंद्र को उपचार के लिए जिला अस्पताल ले आए. उस के माथे पर गोली लगी थी. उस की गंभीर हालत देख डाक्टरों ने उसे आगरा रेफर कर दिया. घर वाले सत्येंद्र को उपचार के लिए जब आगरा ले जा रहे थे, तो रास्ते में उस की मौत हो गई. पोस्टमार्टम के लिए उस के शव को जिला अस्पताल वापस लाया गया. सत्येंद्र के शरीर में गोली न मिलने के कारण उस के शव का एक्सरे किया गया.

पता चला कि गोली माथे में लगने के बाद पार हो गई थी. सुबह जब सत्येंद्र की मौत की खबर गांव पहुंची तो सनसनी फैल गई. सभी उसे सीधासादा बता कर उस की हत्या पर शोक जताने लगे. उधर पुलिस की पूछताछ में सत्येंद्र के भाई धर्मवीर ने बताया कि कल शाम 7 बजे जब सत्येंद्र खाना खाने बैठा था, तभी गांव का उस का दोस्त प्रदीप आया और भाई को जबरन साथ ले गया. धर्मवीर ने आरोप लगाया कि उसी ने भाई की गोली मार कर हत्या कर दी है. धर्मवीर की तहरीर पर पुलिस ने प्रदीप के विरुद्ध भादंवि की धारा 302 के तहत हत्या की रिपोर्ट दर्ज कर ली. पुलिस ने प्रदीप को हिरासत में लेने के साथसाथ उस के मोबाइल को भी कब्जे में ले लिया और उस से पूछताछ शुरू कर दी.

पूछताछ के दौरान प्रदीप ने पुलिस को बताया कि वह सत्येंद्र के साथ तिलियानी गांव की ओर जा रहा था. इसी दौरान रास्ते में अचानक गोली चली और मोटरसाइकिल चला रहे सत्येंद्र के माथे में आ लगी, उस ने मोटरसाइकिल रोक दी. सत्येंद्र को गोली लगने पर वह डर गया और अपनी जान बचाने के लिए वहां से भाग गया. हत्या का यह मामला आईजी (आगरा रेंज) ए. सतीश गणेश तक पहुंचा. उन्होंने कहा, ‘कहानी जितनी सीधी दिख रही है उतनी है नहीं. कोई पागल ही होगा जो अपने साथ किसी को उस के घर से ले कर आए और उस की हत्या कर दे. इस मामले में गहराई से जांच कराई जाए.’

पुलिस को प्रदीप की बात गले नहीं उतर रही थी. पुलिस को लगा कि वह सच्चाई छिपा रहा है. सवाल यह था कि रात में दोनों तिलियानी गांव किस से मिलने जा रहे थे और क्या काम था, पुलिस प्रदीप से जानना चाहती थी कि हत्या से पहले क्याक्या हुआ था, अब प्रदीप के पास सच बताने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं था. पुलिस ने इस बारे में प्रदीप से सख्ती से पूछताछ की तो वह टूट गया. उस ने पुलिस को बहुत बाद में बताया कि उस की एक गर्लफ्रैंड है ज्योति शर्मा. उस ने ही उसे मिलने के लिए नगला मानसिंह मोड़ पर बुलाया था, दोनों उसी के पास जा रहे थे कि रास्ते में यह घटना घट गई. उस ने पुलिस से कहा कि वह चाहें तो ज्योति से पूछ ले.

प्रदीप के बयानों की सच्चाई जानने के लिए पुलिस ने ज्योति की तलाश शुरू की. लेकिन ज्योति होती तो मिलती. प्रदीप से उस का मोबाइल नंबर लेने के बाद सर्विलांस पर लगा दिया गया. साइबर सेल ने यह गुत्थी सुलझा दी. दरअसल प्रदीप को फंसाने के लिए ज्योति शर्मा के नाम से एक हाईटेक जाल फैलाया गया था, जांच में पुलिस को पता चला कि जो नंबर ज्योति शर्मा का बताया जा रहा था वह नंबर गांव इशहाकपुर निवासी राघवेंद्र उर्फ काके का है. पुलिस ने प्रदीप से कहा, तुम जिस नंबर को ज्योति शर्मा का बता रहे हो, वह तो राघवेंद्र का है. यह सुनते ही प्रदीप का माथा ठनका. उस ने पुलिस को बताया कि इशहाकपुर का राघवेंद्र तो उस से रंजिश रखता है. लगता है वह मेरी बात ज्योति शर्मा नाम की किसी लड़की से कराता था. वह लड़की कौन है, यह बात तो राघवेंद्र ही बता सकता है.

एसएसपी सचिंद्र पटेल इस सनसनीखेज हत्याकांड की पलपल की जानकारी ले रहे थे. उन्होंने इस केस के आरोपियों की गिरफ्तारी की जिम्मेदारी एसपी (देहात) राजेश कुमार को सौंपी. साथ ही उन्होंने उन की मदद के लिए एएसपी डा. इरज रजा और थाना सिरसागंज के प्रभारी गिरीश चंद्र गौतम को ले कर एक पुलिस टीम का गठन कर दिया. इस पुलिस टीम में थानाप्रभारी के साथ ही एसओजी प्रभारी कुलदीप सिंह, एसआई रनवीर सिंह, अंकित मलिक, प्रवीन कुमार, कांस्टेबल विजय कुमार, परमानंद, राघव दुबे, हिमांशु, महिला कांस्टेबल हेमलता शामिल थे. इस टीम के सहयोग के लिए एसओजी प्रभारी कुलदीप सिंह को भी सहयोग करने का आदेश दिया गया. पुलिस शुरू से ही इस मामले की गहनता से जांच कर रही थी.

सौफ्टवेयर का कमाल जांच कार्य में एसएसपी सचिंद्र पटेल के निर्देश के बाद और तेजी आ गई. 7 अगस्त को पुलिस को मुखबिर से जानकारी मिली कि नगला मानसिंह में हुई हत्या के आरोपी गड़सान रोड पर व्यास आश्रम के गेट के पास खड़े हैं. इस सूचना पर थानाप्रभारी गिरीशचंद्र गौतम पुलिस टीम के साथ बताए गए स्थान पर पहुंच गए और घेराबंदी कर राघवेंद्र यादव उर्फ काके और उस के दोस्त अनिल यादव को गिरफ्तार कर लिया. पुलिस दोनों हत्यारोपियों को थाने ले आई. पुलिस ने उन के कब्जे से हत्या में इस्तेमाल 315 बोर का तमंचा, एक खोखा, एक कारतूस, 3 मोबाइल और हत्या में इस्तेमाल मोटरसाइकिल बरामद कर ली. दोनों आरोपियों ने सत्येंद्र की हत्या करने का जुर्म कबूल कर लिया. पुलिस लाइन सभागार में आयोजित प्रैस कौन्फ्रैंस में एसपी (ग्रामीण) राजेश कुमार ने हत्यारोपियों की गिरफ्तारी की जानकारी दी.

राघवेंद्र प्रदीप से रंजिश के चलते उस की हत्या करना चाहता था. उस ने फूलप्रूफ षडयंत्र भी रचा. हत्यारोपियों ने हाईटेक जाल बिछाया और प्रदीप को अपने जाल में फंसा कर उसे अपनी मनपसंद जगह पर भी बुला लिया लेकिन निशाना चूक गया. हत्या प्रदीप की करनी थी, लेकिन हो गई उस के दोस्त सत्येंद्र की. हत्यारोपियों ने इस सनसनीखेज हत्याकांड के पीछे की जो कहानी बताई, वह चाैंकाने वाली थी—

सन 2014 की बात है. प्रदीप के गांव धौनई की रहने वाली एक लड़की से थाना नगला खंगर क्षेत्र के गांव इशहाकपुर निवासी राघवेंद्र का प्रेमप्रसंग चल रहा था. एक दिन प्रदीप राघवेंद्र को उसी लड़की के चक्कर में धोखे से बुला कर अपने गांव ले गया था. उस ने अपने परिवार के युवक हिमाचल से राघवेंद्र की पिटाई करवाने के साथसाथ उसे बेइज्जत भी कराया. तभी से वह प्रदीप से रंजिश मानने लगा था.वह प्रदीप से अपनी बेइज्जती का बदला लेना चाहता था. लेकिन इस घटना के बाद प्रदीप नौकरी के लिए झारखंड चला गया था. राघवेंद्र के सीने में प्रतिशोध की आग धधक रही थी. करीब 8 माह पहले उसे प्रदीप की फेसबुक से पता चला कि वह झारखंड की एक कंपनी में काम करता है. इस के बाद उस ने ज्योति शर्मा बन कर उस से दोस्ती कर ली और उस का मोबाइल नंबर भी ले लिया.

प्रदीप का मोबाइल नंबर लेने के बाद राघवेंद्र ने अपने मोबाइल में वौइस चेंजर ऐप डाउनलोड किया. इसी ऐप के माध्यम से वह नगला मानसिंह की ज्योति शर्मा बन कर प्रदीप से बातें करने लगा. रक्षाबंधन पर प्रदीप को गांव आना था, राघवेंद्र को इस की जानकारी थी. उस ने कई दिन पहले से प्रदीप की हत्या की साजिश का तानाबाना बुनना शुरू कर दिया था. उस ने ज्योति शर्मा बन कर आवाज बदलने वाले सौफ्टवेयर से आवाज बदल कर प्रदीप को फोन किया. दोनों के बीच फोन पर प्यार भरी बातें होने लगीं. मिलने के वादे हुए. फोन पर प्रदीप जिसे ज्योति समझ कर हंसीमजाक करता था, उस से अपने दिल की बात कहता था वह राघवेंद्र था. वह भी ज्योति बन कर प्रदीप से पूरे मजे लेता था.

रक्षाबंधन पर प्रदीप के घर आने की जानकारी राघवेंद्र को थी. प्रदीप से बदला लेने का अच्छा मौका देख उस ने ज्योति की आवाज में पहली अगस्त को प्रदीप को नगला मानसिंह मोड़ पर मिलने के लिए शाम को बुलाया. उस से वादा किया कि आज मिलने पर उस की सारी हसरतें पूरी कर देगी. पहले दिन मोटरसाइकिल पर 2 लोग होने के कारण राघवेंद्र घटना को अंजाम नहीं दे सका था. 2 अगस्त को उस ने दोबारा ज्योति बन कर प्रदीप को फोन किया और मिलने के लिए बुलाया. प्रदीप ने ज्योति से कहा कि वह कुछ ही देर में उस से मिलने आ रहा है. इस के बाद प्रदीप अपने दोस्त सत्येंद्र के घर गया और उसे साथ ले कर तिलियानी रोड स्थित नगला मानसिंह मोड़ की ओर चल दिया.

नगला मानसिंह के पास रास्ते में राघवेंद्र अपने गांव के ही दोस्त अनिल यादव के साथ मोटरसाइकिल से पहले ही पहुंच गया था. प्रदीप को मोटरसाइकिल पर आते देख कर राघवेंद्र ने गोली चला दी. गोली प्रदीप को न लग कर उस के दोस्त सत्येंद्र के माथे में लगी, जिस से बाद में उस की मौत हो गई थी. पुलिस ने दोनों हत्यारोपियों को न्यायालय में पेश किया, जहां से उन्हें जिला जेल भेज दिया गया. इस सनसनीखेज घटना का खुलासा करने वाली टीम को एसएसपी सचिंद्र पटेल ने 15 हजार रुपए का पुरस्कार दिया. यह सच है कि युवक हों या युवतियां प्यार में अंधे हो जाते हैं. न तो खुद गहराई से सोचते हैं और न दूसरे को सोचने देते हैं. इसी वजह से कभीकभी ऐसा कुछ हो जाता है, जो सावधानी बरतने पर नहीं होता. उस के अंधे प्यार ने उस के दोस्त की बलि ले ली.

आईजी के शक के चलते प्रदीप हत्या का आरोपी बनने से बच गया. उस की जगह उस का दोस्त सत्येंद्र बिना वजह मारा गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Love Crime : साली के प्यार में पत्नी और बेटे को सल्फास की गोलियां खिलाकर मार डाला

Love Crime : सही मायनों में साली का दरजा सगी छोटी बहन जैसा होता है, इस के बावजूद कई लोग साली को आधी घर वाली कहते हैं, कहते ही नहीं समझने भी लगते हैं.कई सालियां भी पीछे नहीं रहतीं. अनिल और पूजा के साथ भी ऐसा ही कुछ था. तभी तो अनिल ने पूजा…

अनिल के घर से आती रोनेचीखने की आवाजें सुन कर पड़ोसियों को हैरानी हुई कि ऐसी क्या बात हो गई, जो अनिल इतनी जोर से रो रहा है. वह रोते हुए चीख रहा था, ‘‘अनिता तुम्हें क्या हो गया, तुम उठ क्यों नहीं रही हो?’’

अनिल सुबकते हुए कह रहा था, ‘‘देखो, हमारा बेटा मयंक भी नहीं उठ रहा है?’’

चीखपुकार और रोने की आवाजें सुन कर आसपड़ोस के कुछ लोग अनिल के घर पहुंच गए. लोगों ने देखा, एक कमरे में अनिता और उन का बेटा मयंक पड़े थे. दोनों ना तो होश में थे और ना ही हिलडुल रहे थे. अनिल ने पड़ोसियों को आया देख कर कहा, ‘‘पता नहीं मेरी बीवी और बेटे को क्या हो गया है? कुछ बोल ही नहीं रहे हैं. लगता है, इन्होंने कुछ खा लिया है. उल्टियां भी हुई थीं.’’

पड़ोसियों ने भी अनिता और मयंक के हाथपैर हिला कर उन की स्थिति जानने की कोशिश की, लेकिन दोनों में जीवन के कोई लक्षण नजर नहीं आए. पड़ोस की भाभीजी बोली, ‘‘कल रात तक तो अनिता मुझ से खूब हंसहंस कर बात कर रही थी. रात ही रात में ऐसा क्या हो गया, जो मरणासन्न सी पड़ी है.’’

अनिता और मयंक के कुछ खाने की बात सुन कर पड़ोसियों की सुगबुगाहट शुरू हो गई. तभी अनिल रोतेरोते बोला, ‘‘भाई साहब, आजकल कोरोना की महामारी चल रही है, कहीं मेरी बीवी और बेटा कोरोना के शिकार तो नहीं हो गए.’’

कोरोना की बात सुन कर पड़ोसियों ने कहा, ‘‘अनिल, इन दोनों को अस्पताल ले जाओ. एक बार डाक्टर को दिखाओ. क्या पता किसी और वजह से बेहोशी आ गई हो?’’

अनिल ने रोतेबिलखते हुए अपने साले और एकदो दूसरे रिश्तेदारों को फोन किया. फिर पत्नी अनिता और बेटे मयंक को कांवटिया अस्पताल ले गया. अस्पताल की इमरजेंसी में डाक्टरों ने जांचपड़ताल के बाद मांबेटे को मृत घोषित कर दिया. डाक्टरों ने अनिल की बताई बातों और दोनों शवों के लक्षण देख कर यह अंदाजा लगा लिया कि दोनों की मौत जहरीला पदार्थ खाने से हुई है. मांबेटे की संदिग्ध मौत के कारण अस्पताल प्रशासन की ओर से इस संबंध में पुलिस को सूचना दे दी गई. यह बात इसी साल 25 जून की है. अनिल शर्मा जयपुर में सूर्यनगर, नाड़ी का फाटक, लाइफलाइन डेंटल अस्पताल के पास स्थित मकान नंबर 12 में पत्नी अनिता और बेटे मयंक के साथ रहता था. अनिल जयपुर कलेक्ट्रेट में क्लर्क है.

अस्पताल की सूचना पर करधनी थाना पुलिस कांवटिया अस्पताल पहुंची और अनिता व मयंक के शव को कब्जे में ले कर पंचनामे की कार्यवाही की. इस के बाद दोनों शवों का पोस्टमार्टम कराया गया. करधनी थाना पुलिस ने मामला धारा 174 सीआरपीसी में दर्ज कर इस की जांच एएसआई प्रमोद कुमार को सौंप दी. पुलिस ने मौकामुआयना किया. अनिता के पति अनिल और पड़ोसियों से पूछताछ की. पूछताछ में सामने आया कि पड़ोसियों ने अनिता के देवर सुनील को घटना से एक दिन पहले शाम को अनिल के घर पर आतेजाते देखा था. यह भी पता चला कि अनिल की साली पूजा भी वहां आतीजाती रहती थी.

संदेह हुआ तो जांच हुई शुरू  शुरुआती जांच में पुलिस अधिकारियों को मांबेटे की मौत का यह मामला संदिग्ध नजर आया. इस पर डीसीपी (जयपुर पश्चिम) प्रदीप मोहन शर्मा ने जांच के लिए अतिरिक्त पुलिस उपायुक्त बजरंग सिंह के निर्देशन में एक टीम बनाई. इस टीम को झोटवाड़ा के एसीपी हरिशंकर शर्मा के सुपरविजन और करधनी थानाप्रभारी रामकिशन बिश्नोई के नेतृत्व में काम करना था. इस टीम में एएसआई प्रमोद कुमार, हैडकांस्टेबल मनोज कुमार, कांस्टेबल नरेंद्र सिंह, अजेंद्र सिंह, बाबूलाल, रामसिंह, अमन, रविंद्र और महिला कांस्टेबल निशा को शामिल किया गया.

पुलिस ने जांच में तेजी लाते हुए अनिल, उस के छोटे भाई सुनील और साली पूजा के मोबाइल की काल डिटेल्स निकलवाई. इस के अलावा अनिल की गतिविधियों का भी पता लगाया. अनिल की ससुराल वालों की जानकारी भी हासिल की गई. अनिल की साली पूजा के बारे में भी जरूरी सूचनाएं जुटाई गईं. पुलिस ने एकदो बार अनिल और पूजा से पूछताछ भी की. पुलिस की जांचपड़ताल तेज होती देख अनिल को लगा कि पुलिस गहराई में जा रही है. वह राजस्थान की राजधानी जयपुर की कलेक्ट्रेट में बाबू था. इसलिए उस का वास्ता सभी तरह के लोगों से पड़ता था. वैसे भी वह सरकारी कामकाज की सारी प्रक्रिया जानता था.

अनिल ने घटना के करीब एक हफ्ते बाद राजस्थान के पुलिस महानिदेशक कार्यालय में इस मामले की जांच के लिए एक परिवाद लगा दिया. दूसरी तरफ, कलेक्ट्रेट के अधिकारियों से पुलिस के एक उच्चाधिकारी को जांच के नाम पर अनिल को परेशान नहीं करने की सिफारिश कराई. इन दोनों बातों से उस पर पुलिस का शक गहरा गया. कारण यह कि पुलिस ने अभी तक उस से कोई खास पूछताछ नहीं की थी, फिर भी उस ने कलेक्ट्रेट के अधिकारियों से सिफारिश लगवाई थी. पुलिस को अनिल, सुनील और पूजा के मोबाइल की काल डिटेल्स मिली, तो उन में कई चौंकाने वाले पहलू सामने आए. तीनों के बयानों में काफी विरोधाभास था.

पुलिस ने व्यापक जांचपड़ताल के बाद अनिल से सख्ती से पूछताछ की, तो उस की 38 साल की पत्नी अनिता और 14 साल के बेटे मयंक की मौत का राज खुल गया. अनिल ने रचा बड़ा षडयंत्र अनिल से पूछताछ के आधार पर उस के छोटे भाई सुनील और साली पूजा से भी पूछताछ की गई. इस पूछताछ के बाद पुलिस ने 30 जुलाई को अनिता और मयंक की हत्याओं के आरोप में अनिल, सुनील और पूजा को गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ में मांबेटे की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह अनिल का अपनी साली पूजा से प्रेम प्रसंग का परिणाम थी. जीजा अनिल के इश्क में पूजा इतनी निष्ठुर हो गई थी कि उस ने अपना घर बसाने के लिए बहन का घर उजाड़ने के साथ बहन और भांजे को भी मरवा दिया.

अनिल अपनी शादीशुदा साली के हुस्न का इतना दीवाना हो गया था कि उस ने पूजा से अवैध संबंधों का विरोध करने वाली पत्नी और बेटे को ही मौत की नींद सुला दिया. उस ने अपने भाई सुनील और साली पूजा के साथ मिल कर बीवीबच्चे की जान ले ली. करीब 15 साल पहले अनिल शर्मा की शादी राजस्थान के सीकर जिले के लोसल कस्बे में रहने वाले अंजनी कुमार की बेटी अनिता से हुई थी. बड़ी बेटी अनिता की शादी के बाद अंजनी कुमार के परिवार में पत्नी मंजू, छोटी बेटी पूजा और बेटा अनुराग रह गए थे. शादी के बाद अनिता खुश थी. पति अनिल सरकारी नौकरी में था. घर का खर्च आराम से चल जाता था. परिवार में ज्यादा जिम्मेदारियां भी नहीं थी. घर में केवल अनिल का छोटा भाई सुनील था. हंसीखुशी से दिन गुजर रहे थे. शादी के कुछ समय बाद ही अनिता ने एक दिन अनिल को खुशखबरी दी.

अनिता के मुंह से जल्दी ही पिता बनने की बात सुन कर अनिल के जीवन में खुशियों के रंग भर गए.  आखिर वह दिन भी आ गया, अनिता ने बेटे को जन्म दिया. बेटा पा कर अनिल भी खुश था और अनिता भी. इन दोनों से ज्यादा खुश मंजू और अंजनी कुमार थे. वे दोनों नानानानी बन गए थे. नवासे ने उन के बुढ़ापे में भी खुशियों का चमन खिला दिया था. अनिल और अनिता ने बेटे का नाम मयंक रखा. मयंक समय के साथ बड़ा हो कर स्कूल जाने लगा. पहले अनिल की पोस्टिंग सीकर में थी. इसी दौरान 14 जुलाई, 2014 को अनिल के ससुर अंजनी कुमार की संदिग्ध अवस्था में मौत हो गई. सीकर जिले की लोसल थाना पुलिस ने जांचपड़ताल के बाद आत्महत्या का मामला मानते हुए अंजनी कुमार की मौत की फाइल बंद कर दी.

पत्नी और बेटे की हत्या में अनिल की जयपुर में हुई गिरफ्तारी के बाद पूछताछ में यह रहस्य भी उजागर हुआ है कि अंजनी कुमार की हत्या की गई थी. अंजनी कुमार की हत्या के बारे में बाद में बात करेंगे. पहले अंजनी कुमार की मौत के बाद की कहानी जान लें. अनिल की ससुराल में ससुर अंजनी कुमार ही परिवार के मुखिया थे. उन की मौत से परिवार पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा. परिवार में दिवंगत अंजनी कुमार की पत्नी, एक जवान बेटी पूजा और छोटा बेटा अनुराग रह गए थे. घर में जवान बेटी हो और कोई बड़ा पुरुष ना हो, तो लोगों की गंदी नजरें पीछा करती ही हैं. ऐसे समय में अनिल ने आगे बढ़ कर सहारा देने के लिए अपनी सास, साली और साले को सीकर में अपने साथ ही रख लिया. दोनों परिवार एकसाथ रहने लगे. इस दौरान अनिल और पूजा के बीच प्यार के बीज अंकुरित हो गए. घर में उन्हें ज्यादा मौका नहीं मिल पाता था, इसलिए मौका मिलने पर अनिल और पूजा घर से बाहर एकदूसरे की बांहों में समाने लगे.

इस बीच, अनिल ने अपने ससुर का प्लौट 30 लाख रुपए में बेच दिया और ससुराल वालों को बता दिया कि इस रकम से आप के लिए जयपुर में प्लौट ले लिया है. सास और सालासाली ने अनिल की बात पर भरोसा कर लिया. जबकि हकीकत यह थी कि अनिल ने ससुराल वालों के नाम से जयपुर में कोई प्लौट नहीं लिया था. साल 2016 में अनिल का तबादला सीकर से जयपुर कलेक्ट्रेट में हो गया. तबादला होने पर अनिल को गुलछर्रे उड़ाने का बड़ा मौका हाथ लग गया. इस के लिए उस ने एक चाल चली. वह अपनी सास को विश्वास में ले कर साली पूजा तथा साले अनुराग को पढ़ाने के बहाने जयपुर ले आया, जबकि पत्नी अनिता व बेटे मयंक को सास की देखभाल के लिए सीकर में ही छोड़ दिया.

बीवी की जगह साली को लाया साथ जयपुर आने के बाद अनिल को आजादी मिल गई. मन की मुराद पूरी करने के लिए वह साली पूजा को भी साथ ले आया था. जयपुर में उन्हें देखनेपूछने या टोकने वाला कोई नहीं था. इसलिए अनिल और पूजा को प्रेमबेल ज्यादा मजबूत होती गई. जीजा के प्यार में डूबी पूजा अपनी बहन की ही सौतन बन कर अनिल से शादी करने के ख्वाब देखने लगी. अनिल को भी पता नहीं पूजा में ऐसा क्या दिखा कि वह भी उस से शादी रचाने को बेताब था. बस समस्या यह थी कि दोनों के बीच समाज और परिवार आड़े आ रहे थे. इस बीच, अनिल ने जयपुर में मकान खरीद लिया और परिवार को जल्दी ही जयपुर ले आया. जयपुर आने पर अनिता को अनिल और पूजा की करतूतों का पता चल गया. अनिता ने इस का विरोध किया. फलस्वरूप घर में कलह होने लगी.

अनिल ने परिस्थितियां भांप कर सास, साली और साले को अपने मकान के पास ही दूसरा मकान दिलवा दिया. अनिता ने अपनी मां से पूजा की शादी जल्द से जल्द करने पर जोर दिया. अनिल ने साल 2018 में पूजा की शादी करवा दी. भले ही पूजा की शादी हो गई थी, लेकिन वह तो जीजा अनिल को ही सपनों का राजकुमार मानती थी. यही कारण रहा कि पूजा शादी के बाद ससुराल बहुत कम जाती थी. जब भी वह ससुराल जाती, पति को नौकरी नहीं लगने का ताना मार कर उस से दूर ही रहती. शादी के बाद भी पूजा और अनिल के बीच दूरियां कम नहीं हुई थी, बल्कि प्रेम की यह बेल एकदूसरे से गुंथ कर बढ़ती ही जा रही थी. इस बात पर अनिता और अनिल के बीच आए दिन झगड़ा होता था. इसी बीच, पूजा जयपुर में एक प्राइवेट नौकरी करने लगी.

अनिल और पूजा की राह में सब से बड़ा रोड़ा अनिता और मयंक थे. रोजाना के झगड़े से परेशान हो कर अनिल ने ऐसा षडयंत्र रचा कि सांप भी मर जाए और लाठी भी ना टूटे. अनिल ने इस षडयंत्र का मोहरा बनाया अपने छोटे सगे भाई सुनील को. उस ने सुनील शर्मा की शादी कराने और जयपुर में मकान दिलाने का लालच दिया. सुनील की उम्र 30 साल से ज्यादा हो गई थी, लेकिन अभी तक उस की शादी नहीं हुई थी. वह बेरोजगार था. अनिल ने अपने भाई सुनील से कहा कि वह उस की शादी अपनी साली पूजा से करा देगा. पूजा भी तैयार है. लेकिन उस की भाभी अनिता और मयंक रोड़ा बने हुए हैं. अगर उन दोनों को ठिकाने लगा दिया जाए तो कोई परेशानी नहीं होगी.

पूजा तो अनिल की ग्रिप में पहले से ही थी, भाई भी मिल गया तो अनिल ने दोनों के साथ मिल कर अनिता और मयंक को रास्ते से हटाने की योजना बनाई. इस के तहत अनिल ने मई के पहले सप्ताह में नींद की हाईडोज वाली गोलियां खरीदीं और अपने गांव धानोता जा कर सुनील को दे आया. साथ ही उसे पूरी योजना भी समझा दी. कोरोना संक्रमण काल में लौकडाउन लगने के कारण मौका नहीं मिलने की वजह से सुनील जयपुर नहीं आ सका. अनिल ने 24 जून को अपने भाई सुनील को गांव से जयपुर अपने घर बुलाया. अनिल अपनी ड्यूटी पर चला गया. शाम को ड्यूटी पूरी कर के अनिल ने अपनी मोटरसाइकिल पर पूजा को साथ लिया. दोनों जयपुर स्थित अजमेर रोड पर एक होटल में पहुंचे और किराए पर एक कमरा ले लिया.

कुछ देर रुकने के बाद योजना के तहत दोनों ने कमरे में अपनेअपने बैग और मोबाइल छोड़ दिए. वे होटल से यह कह कर निकल गए कि कुछ देर में आएंगे. सुनील उसी दिन शाम को जयपुर स्थित अपने भाई के घर पहुंच गया. होटल से निकल कर अनिल पूजा के साथ अपनी सास मंजू के घर जयपुर के चरणनदी मुरलीपुरा गया. वहां दोनों ने खाना खाया. कुछ देर बाद सास के घर से पूजा को मोटरसाइकिल पर बैठा कर अनिल अपने घर सूर्य नगर के लिए चल दिया. घर से कुछ पहले ही अनिल ने अपनी बाइक एक खाली प्लाट में खड़ी कर दी. उस समय रात के करीब 11 बज रहे थे. अनिल व पूजा पैदल ही घर की ओर चल दिए. रास्ते में उन्हें सुनील मिला. सुनील ने बताया कि उस ने 13 गोलियां दूध में मिला कर भाभी अनिता और भतीजे मयंक को पिला दी हैं.

अंतिम घटनाक्रम पूजा के साथ अनिल अपने घर में गया. सुनील बाहर खड़ा रहा. अनिल व पूजा ने देखा तो अनिता और मयंक बेहोश थे लेकिन उन की सांसें चल रही थीं. खेल बिगड़ता देख कर अनिल ने पहले से खरीदी हुई सल्फास की गोलियां नींबू की शिकंजी में मिला कर बेहोशी की हालत में ही अनिता और मयंक को मुंह खोल कर पिला दीं. एकदो गोलियां उन के मुंह में भी डालीं. इस के बाद अनिल और पूजा मकान का गेट बंद कर वापस अजमेर रोड वाले होटल में चले गए. सुनील अपने गांव धानोता चला गया. अगले दिन 25 जून को अनिल सुबह अकेला अपने घर पहुंचा और अनिता व मयंक की उल्टियों के बर्तन धो कर रोनाचीखना शुरू कर दिया. उस की चीखपुकार सुन कर पड़ोसी एकत्र हो गए. बाद की कहानी आप पढ़ चुके हैं. अनिता और मयंक की हत्या का राज खुलने पर करधनी थाना पुलिस ने भादंसं की धारा 302, 201 व 120बी के तहत नामजद केस दर्ज कर लिया.

अब अनिल के ससुर अंजनी कुमार की मौत का मामला भी समझ लीजिए. सीकर के लोसल निवासी अंजनी कुमार की संदिग्ध मौत जुलाई 2014 में घर में बने पानी की हौदी में डूबने से हुई थी. उस समय लोसल थाना पुलिस ने इसे आत्महत्या का मामला मानते हुए फाइल बंद कर दी थी. अब पत्नी और बेटे की हत्या में गिरफ्तार अनिल ने करधनी थाना पुलिस को पूछताछ में बताया कि अंजनी कुमार की हत्या की गई थी. उन की हत्या में रिश्तेदार और अन्य लोग शामिल थे. अंजनी कुमार की हत्या किस मकसद से किनकिन लोगों ने की थी, इस का खुलासा अनिल ने किया है. करधनी थाना पुलिस ने इस मामले में लोसल थाना पुलिस को सूचना भेज दी है. लोसल पुलिस इस मामले की जांच कर रही है. हो सकता है अंजनी कुमार की हत्या का कोई नया राज खुले.

बहरहाल, जीजासाली के अंधे प्रेम ने 3 परिवारों को बरबाद कर दिया. अनिल के साथ उस का भाई भी जेल की सलाखों के पीछे चला गया. पूजा ना तो अपने पति की हुई और ना ही जीजा की हो सकी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

UP News : पति की हत्‍या को बना दिया आत्‍महत्‍या

UP News : चंदन रेलवे में नौकरी करता था. ड्यूटी पर जाता तो देर रात लौटता. उस की पत्नी पिंकी दिन भर अकेली रहती थी. अकेलेपन से ऊब कर उस ने पड़ोस में रहने वाले अविवाहित किशन से दोस्ती कर ली. जल्दी ही दोनों ने मर्यादाओं को तारतार कर डाला. जाहिर है पति पत्नी और वो का मामला था. एक न एक को तो…

उस दिन जून 2020 की 6 तारीख थी. सुबह होने पर प्रियंका की आंखें खुलीं तो खिड़की से आती तेज रोशनी उस की आंखों में लगी. पिंकी ने आंखें बंद कर लीं, फिर आंखों को मलते हुए जम्हाई ले कर बैड पर उठ कर बैठ गई. कुछ देर वह अलसाई सी बैठी रही, फिर मुंह घुमा कर बैड के दूसरे किनारे की ओर देखा तो पति चंदन वहां नहीं था. शायद आज जल्दी उठ गया, बाहर होगा, सोच कर वह बैड से उठी और पैरों में चप्पल पहन कर बैडरूम से बाहर निकल आई. जैसे ही वह बाहर आई तो बाहर का दृश्य देख कर सन्न रह गई. चंदन नायलौन की रस्सी से मुख्यद्वार की लोहे की चौखट से लटका था. यह देख पिंकी के मुंह से चीख निकल गई.

चीखते हुए वह बाहर की तरफ भागी और पड़ोसियों को बुला लिया. पड़ोसियों ने आ कर देखा तो सब अपनेअपने कयास लगाने लगे. चंदन रेलवे में नौकरी करता था और पत्नी के साथ रहता था. यह मामला सोनभद्र जिले के थाना कोतवाली राबर्ट्सगंज क्षेत्र के बिचपई गांव का था. किसी ने सुबह 8 बजे राबर्ट्सगंज कोतवाली को घटना की सूचना दे दी. सूचना पा कर इंसपेक्टर मिथिलेश मिश्रा टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. चंदन की उम्र 34-35 वर्ष रही होगी. वह दरवाजे की लोहे की चौखट से नायलोन की रस्सी से लटका हुआ था. उस के पैर जमीन को छू रहे थे, घुटने मुड़े हुए थे.

देखने से लग रहा था जैसे चंदन ने आत्महत्या की हो, लेकिन पैर जमीन पर लगे होने से थोड़ा संदेह भी था कि क्या वाकई चंदन ने आत्महत्या की है या किसी ने उस की हत्या कर के आत्महत्या का रूप देने की कोशिश की है. इंसपेक्टर मिश्रा के दिमाग में ऐसी ही बातें उमड़घुमड़ रही थीं. फिर मिश्राजी ने सोचा कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट में सारी हकीकत सामने आ जाएगी. उन्होंने सिर को झटका और सोचों के भंवर से बाहर आए. उन्होंने पास में बैठी मृतक चंदन की पत्नी पिंकी से पूछताछ की तो उस ने बताया कि रात में खाना खा कर दोनों साथ बैड पर सोए थे. सुबह उस की आंख खुली तो चंदन बैड पर नहीं था. वह बाहर आई तो चंदन को इस हालत में चौखट से लटकते हुए पाया.

इंसपेक्टर मिथिलेश मिश्रा ने उस से और विस्तृत पूछताछ की तो पता चला वह चंदन के साथ जिस मकान में रह रही थी, वह पिंकी के पिता परमेश्वर भारती का था. वह खुद बीजपुर में रहते हैं. पिंकी और चंदन के दोनों बच्चे भी अपने नाना के पास रह रहे थे. पतिपत्नी के अलावा उस मकान में कोई नहीं रहता था. चंदन बिचपई से 25 किमी दूर मदैनिया गांव का निवासी था, जो करमा थाना क्षेत्र में आता था. घटना की सूचना करमा थाने को दी गई, वहां से यह खबर चंदन के परिवार तक पहुंचा दी गई. इंसपेक्टर मिश्रा ने लाश को पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भेज दिया और कोतवाली लौट आए. 2 घंटे बाद चंदन का भाई अपने गांव से राबर्ट्सगंज कोतवाली पहुंचा. उस ने इंसपेक्टर मिश्रा को एक लिखित तहरीर दी, जिस में उस ने चंदन की हत्या का आरोप उस की पत्नी पिंकी उर्फ प्रियंका, ससुर परमेश्वर भारती, सास चमेली, साले पिंटू और पड़ोसी कृष्णा चौहान पर लगाया था.

भाई ने तहरीर में कृष्णा से पिंकी के संबंध होने का जिक्र किया था. तहरीर देख कर इंसपेक्टर मिश्रा चौंके. उन के मन का संदेह सच होता दिखने लगा. लाश की स्थिति देख कर उन्हें पहले ही चंदन के आत्महत्या पर संदेह था. पति की मौत पर पिंकी भी उतनी दुखी नहीं लग रही थी, उस का चीखनाचिल्लाना नाटक सा लग रहा था. खैर, अब इंसपेक्टर मिश्रा को पोस्टमार्टम रिपोर्ट के आने का इंतजार था. शाम को जब रिपोर्ट आई तो उस में चंदन की हत्या किए जाने की पुष्टि हो गई. इस के बाद इंसपेक्टर मिश्रा ने चंदन की लिखित तहरीर के आधार पर पिंकी, कृष्णा चौहान, परमेश्वर भारती, चमेली और पिंटू के खिलाफ भादंवि की धारा 302/201 के तहत मुकदमा दर्ज करा दिया.

इंसपेक्टर मिथिलेश मिश्रा ने केस की जांच शुरू करते हुए कृष्णा चौहान उर्फ किशन के बारे में पता किया तो जानकारी मिली कि वह आपराधिक प्रवृत्ति का था. बिचपई में वह पिंकी के घर के पड़ोस में अपनी मां के साथ किराए पर रहता था. जांच के दौरान पूछताछ में यह भी पता चला कि कृष्णा का पिंकी के घर काफी आनाजाना था. वह घर से गायब भी था. पिंकी और कृष्णा की काल डिटेल्स निकलवाई गई तो उस से भी दोनों के संबंधों की पुष्टि हो गई. इस के बाद इंसपेक्टर मिश्रा किशन उर्फ कृष्णा की गिरफ्तारी के प्रयास में लग गए. 11 जून को उन्होंने मुखबिर की सूचना पर राबर्ट्सगंज के रोडवेज बस स्टैंड से किशन और प्रियंका को गिरफ्तार कर लिया. भेद खुल जाने की आशंका से प्रियंका किशन के साथ कहीं भाग जाने की फिराक में थी, लेकिन पकड़ी गई.

कोतवाली ला कर जब दोनों से कड़ाई से पूछताछ की गई तो दोनों ने चंदन की हत्या का जुर्म स्वीकार कर लिया और हत्या करने के पीछे की पूरी कहानी बयां कर दी—

उत्तर प्रदेश के जिला सोनभद्र के थाना करमा क्षेत्र के मदैनिया गांव में शंकर भारती रहते थे. वह रेलवे में थे. उन के परिवार में पत्नी कबूतरी के अलावा एक बेटी राजकुमारी और 2 बेटे चंद्रशेखर व चंदन थे. उन्होंने सब से बड़ी बेटी राजकुमारी का विवाह समय रहते कर दिया था. बेटों में चंद्रशेखर बड़ा था. वह किसी के यहां कार ड्राइवर की नौकरी करता था. सब से छोटे चंदन ने बीए तक पढ़ाई की थी. सब कुछ अच्छा चल रहा था कि 2002 में शंकर भारती की मृत्यु हो गई. मृतक आश्रित कोटे में नौकरी की बात आई तो आपसी सहमति से चंदन का नाम दिया गया. 2004 में चंदन रेलवे में भरती हो गया. वर्तमान में वह चुर्क में बतौर केबिनमैन कार्यरत था. रेलवे में नौकरी लगते ही चंदन के लिए रिश्ते आने लगे.

एनटीपीसी में इंजीनियर परमेश्वर भारती बीजपुर में रहते थे. परिवार में पत्नी चमेली और एक बेटी पिंकी उर्फ प्रियंका व 2 बेटे थे पिंटू और रिंकू. पिंकी सब से बड़ी थी. उस ने बीए कर रखा था. परमेश्वर को चंदन के बारे में पता चला तो उन्होंने उस के बारे में जानकारी हासिल की. उस समय करमा थाने के जो इंसपेक्टर थे, वह परमेश्वर के रिश्तेदार थे. परमेश्वर ने उन से बात की तो उन्होंने पता करके परमेश्वर को बताया कि लड़का बहुत अच्छा और सीधासादा है. उस में कोई ऐब भी नहीं है, सरकारी नौकरी में है. फिर रिश्ता तय हुआ और 2005 में चंदन और पिंकी का विवाह हो गया.

पिंकी खबसूरत और पढ़ीलिखी थी. वह अच्छे खातेपीते परिवार से ताल्लुक रखती थी. विवाह के बाद जब वह अपनी ससुराल आई तो वहां का मकान और रहनसहन उसे अच्छा नहीं लगा. लेकिन अब वह कुछ नहीं कर सकती थी. शादी के बाद पिंकी चंदन से जिद करने लगी कि वह बिचपई में रहे. बिचपई में पिंकी के पिता का एक मकान खाली पड़ा था. पिंकी ने उस में चंदन के साथ रहने की बात अपने पिता परमेश्वर से कर ली थी. चंदन को मानना पड़ा आए दिन पिंकी चंदन से बिचपई चल कर रहने की जिद करती. चंदन अपने परिवार के साथ रहना चाहता था, इसलिए पिंकी की बात पर ध्यान नहीं देता था. अपनी बात न मानते देख पिंकी बीवियों वाले हथकंडे अपनाने लगी. उस से नाराज हो कर बोलना बंद कर देती, खाना नहीं खाती थी. इस पर चंदन समझाता तो उस की बात सुनती तक नहीं थी. आखिर चंदन को उस की जिद के आगे झुकना ही पड़ा.

वह पिंकी के साथ बिचपई में अपने ससुर परमेश्वर के मकान में रहने लगा. कालांतर में प्रियंका 2 बेटों अमन और नमन की मां बनी. स्कूल जाने लायक तो प्रियंका ने उन्हें नाना परमेश्वर के पास भेज दिया. चंदन कभीकभी शराब पी लेता था. पीने पर पिंकी कुछ कहती तो वह उस की पिटाई कर देता था. पिंकी भी चंदन के साथ कुछ अच्छा व्यवहार नहीं करती थी. वह ज्यादातर मायके का ही गुणगान करती रहती थी. चंदन अपने घरवालों से बात करता या उन की तारीफ करने लगता तो पिंकी के तनबदन में आग लग जाती थी. पत्नी के रूखे व्यवहार के कारण चंदन ज्यादा शराब पीने लगा था. शराब पीने के बाद दोनों में झगड़ा जरूर होता था.

किशन उर्फ कृष्णा चौहान फुलाइच तरवा आजमगढ़ का रहने वाला था. उस के पिता रामत चौहान ने 2 शादियां की थीं. रामत चौहान पहली पत्नी और उस की 2 बेटियों के साथ आजमगढ़ में रह रहा था. किशन उस की दूसरी पत्नी रमा का बेटा था. कृष्णा अपनी मां के साथ डेढ़ साल से पिंकी के घर के पड़ोस में किराए पर रह रहा था. वह अपराधी प्रवृत्ति का था. राबर्ट्सगंज कोतवाली में उस पर 2019 में धारा 457/380/411 के तहत मुकदमा भी दर्ज था. 29 साल का किशन अविवाहित था. पड़ोस में रहते हुए उस की नजर पिंकी पर गई तो उस की खूबसूरती देख कर किशन उस की ओर आकर्षित हो गया. चंदन ड्यूटी पर रहता था, प्रियंका घर में अकेली होती थी.

पड़ोसी होने के नाते पिंकी और किशन एकदूसरे को जानते  थे, पर अभी तक बात नहीं हुई थी. दोनों की नजर एकदूसरे पर पड़ती, तो जल्दी नहीं हटती थी. एक दिन किशन सुबहसुबह पिंकी के घर पहुंच गया. हमेशा की तरह पिंकी उस समय भी अकेली थी. दरवाजा खटखटाने पर पिंकी ने दरवाजा खोला तो किशन को खडे़ पाया और मुंह से निकला, ‘‘अरे आप…’’

‘‘जी, मैं आप का पड़ोसी किशन.’’

‘‘जानती हूं आप को, बताने की जरूरत नहीं.’’ पिंकी ने मुस्करा कर कहा, ‘‘अरे अंदर आइए, बाहर क्यों खड़े हैं.’’

औपचारिकतावश पिंकी ने कहा तो किशन बोला, ‘‘चाय बनाने जा रहा था तो देखा चीनी नहीं है. अभी दुकानें भी नहीं खुली हैं. फिर सोचा पड़ोसी ही पड़ोसी के काम आता है, इसलिए आप के पास चला आया. इस बहाने आप से परिचय भी हो जाएगा.’’

‘‘अच्छा किया. अब मैं खुद आप को चाय बना कर पिलाती हूं. उस के बाद आप चीनी भी ले जाइएगा.’’ कह कर पिंकी ने उसे कुरसी पर बैठाया और खुद चाय बनाने किचन में चली गई.

कामी नजर किशन जिस जगह कुरसी पर बैठा था, ठीक उसी के सामने किचन थी. किशन चाय बनाती पिंकी को पीछे से ताड़ रहा था. पिंकी के शरीर की बेहतरीन बनावट उस की आंखों में प्यास जगा रही थी. इसी बीच पिंकी ने पलट कर उस की ओर देखा तो उसे अपनी ओर देखते पाया. एकाएक दोनों की आंखें मिलीं तो होंठ खिल उठे. चाय के कप टे्र में रख कर पिंकी किचन से बाहर आई और टे्र मेज पर रख कर किशन को चाय देते हुए पूछा, ‘‘आप लोग कुछ समय पहले यहां रहने आए हैं, इस से पहले कहां रहते थे?’’

‘‘भाभी, मैं पहले आजमगढ़ में रहता था. वहां मेरे पिता रहते हैं. यहां मैं अपनी मां के साथ रहता हूं.’’

फिर चाय का घूंट भरते हुए किशन पिंकी की तारीफ करते हुए बोला, ‘‘वाह, आप चाय बहुत बढि़या बनाती हैं.’’

‘‘तारीफ के लिए शुक्रिया.’’ तारीफ सुन कर पिंकी खुशी से बोली.

चाय पीतेपीते उन दोनों ने एकदूसरे के बारे में जानकारी ली. पिंकी को किशन से बात करना बहुत अच्छा लग रहा था. उस की बातें और बात करने का ढंग अलग ही था. काफी देर तक बातें करने के बाद किशन वहां से चला गया. इस के बाद तो दोनों के बीच हर रोज बातें होने लगीं. किशन किसी न किसी बहाने से पिंकी के पास पहुंच जाता. पिंकी भी जान गई थी कि किशन उस से मिलने और बातें करने के लिए बहानों का सहारा लेता है. इसलिए एक दिन उस ने किशन से कह दिया कि उसे मिलने के लिए किसी बहाने की जरूरत नहीं है. वह ऐसे भी मिलने आ सकता है. किशन खुश हो गया कि अब उसे बहाने नहीं बनाने पड़ेंगे.

अब जब देखो किशन पिंकी के पास ही नजर आने लगा. घर के कामों में भी उस की मदद करने लगा. साथ में काम करतेकरते हंसीमजाक करते कब समय बीत जाता, पता ही नहीं चलता. चंदन के घर आने से पहले ही किशन वहां से चला आता था. कुछ ही दिनों में दोनों काफी घुलमिल गए. दोनों को एकदूसरे के बिना कुछ अच्छा नहीं लगता था. किशन तो जानता था कि वह पिंकी को जी जान से चाहने लगा है. लेकिन अब पिंकी को भी एहसास होने लगा कि किशन चुपके से आ कर किस तरह उस की जिंदगी बन गया, उस के दिलोदिमाग पर छा गया. पिंकी के दिमाग में सिर्फ उस की बातें ही घूमती रहती थीं. किशन पिंकी के दिलोदिमाग पर ऐसा छाया कि वह भी उस की ओर खिंचने लगी. जब प्यार का एहसास हुआ तो वह भी किशन से मजाक कर के लिपटनेचिपटने लगी. पिंकी का ऐसा करना किशन के लिए शुभ संकेत था कि वह उस की होने के लिए

बेताब है. एक दिन दोनों पासपास बैठे किशन की लाई आइसक्रीम खा रहे थे. किशन ने अपनी आइसक्रीम खाई तो उस ने ऐसा मुंह बनाया जैसे उसे आइसक्रीम अच्छी न लगी हो. फिर उस ने पिंकी की आइसक्रीम की ओर देखा और तेजी से उस का हाथ पकड़ कर उस की आइसक्रीम की एक बाइट खा ली. किशन की इस हरकत पर पिंकी भौंचक्की रह गई. फिर शरारती अंदाज में उस की पीठ पर प्यार से धौल जमाने लगी. उस के इस अंदाज से किशन हंसने लगा. फिर बोला, ‘‘आप की आइसक्रीम सच में बहुत मीठी है.’’

पिंकी उस से नाराज होने की बात कह कर चुपचाप बैठ गई तो किशन की नजर पिंकी के पिंक लिप्स पर गई, जहां कुछ आइसक्रीम लगी हुई थी. उसे शरारत सूझी, वह अपने चेहरे को पिंकी के चेहरे के पास ले गया और उस के चेहरे को अपने हाथों में ले कर उस के पिंक लिप्स को अपने होंठों से चाट लिया. इस शरारत से पिंकी अचंभित रह गई, लेकिन इस शरारत ने उस के शरीर में आग भरने का काम किया. किशन भी अपने आप को नहीं रोक पाया. वह बराबर पिंकी के लिप्स को चूमने लगा तो पिंकी ने मस्त हो कर आंखें मूंद लीं. इस के बाद तो उन के बीच वही हुआ जो अकसर उन्माद के क्षणों में होता है. दोनों बहके तो ऐसे फिसले कि अपनी इच्छा पूरी करने के बाद ही अलग हुए.

बन गए रिश्ते उन के बीच एक बार जो अनैतिक रिश्ता बना तो वह बारबार दोहराया जाने लगा. लेकिन ऐसे रिश्ते की सच्चाई अधिक दिनों तक छिपी नहीं रह पाती. एक दिन चंदन ने दोनों को रंगेहाथों पकड़ लिया. इस के बाद किशन तो वहां से चला गया, लेकिन चंदन ने पिंकी को जम कर पीटा. साथ ही आगे से ऐसी नापाक हरकत न करने की हिदायत दी. पिंकी के इस गलत कदम से चंदन परेशान रहने लगा. उस की अपने भाई चंद्रशेखर से बात होती रहती थी. उस ने भाई को भी पिंकी के किशन से अवैध संबंध के बारे में बता दिया. दूसरी ओर पिंकी पर चंदन द्वारा की गई पिटाई और हिदायत का कोई असर नहीं हुआ. वैसे भी चंदन हर वक्त घर पर रह नहीं सकता था. इस के अलावा घर में पिंकी पर नजर रखने वाला कोई नहीं था.

पिंकी पहले की तरह ही किशन के साथ रंगरलियां मनाती रही. वह चाहती थी कि उस के और किशन के रिश्ते पर कोई तर्कवितर्क न करे. 5/6 जून की रात किशन और पिंकी रंगरलियां मना रहे थे कि रात 12 बजे चंदन घर लौट आया. उस ने पिंकी और किशन को एक साथ आपत्तिजनक हालत में देख लिया तो वह उन से झगड़ने लगा. इस पर किशन ने पिंकी से कहा कि आज इस का काम खत्म कर देते हैं. पिंकी भी उस की बात से सहमत थी, इसलिए उस का साथ देने लगी. वह घर में पड़ी नायलोन की रस्सी उठा लाई. दोनों ने मिल कर रस्सी से चंदन का गला घोंट दिया, जिस से उस की मौत हो गई. चंदन की हत्या करने के बाद दोनों ने उस की लाश को नायलोन की रस्सी से बांध कर घर की लोहे की चौखट से लटका दिया, जिस से यह लगे कि चंदन ने आत्महत्या की है. इस के बाद किशन वहां से चला गया.

सुबह जब पुलिस आई तो पिंकी ने उस के आत्महत्या कर लेने की बात ही बताई. लेकिन उन दोनों की चाल काम न आई और दोनों पकड़े गए. आवश्यक कानूनी लिखापढ़ी कर के दोनों को न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों व चंद्रशेखर से पूछताछ पर आधारित

 

Love Crime : बेटी के अफेयर के चक्कर में मारा गया पिता

Love Crime : नाबालिग बेटी खुशबू के पैर बहक जाने की जानकारी मिलने पर मां रानी देवी को बेटी को समझा कर सही रास्ते पर लाना चाहिए था, लेकिन ऐसा करने के बजाय उस ने बेटी के सहारे अपना प्रेमी ही ढूंढ लिया. इस के बाद जो हुआ, उस की किसी ने कल्पना तक नहीं की थी…

‘‘भा भी, भैया कहां हैं? दिन ढल गया, दिखाई नहीं दे रहे. किसी काम से गए हैं क्या?’’ राकेश सिंह ने अपनी भाभी रानी से पूछा.

‘‘दोपहर में किसी का फोन आया था, फोन पर बात करते हुए थोड़ी देर में आने को कह कर घर से निकले. लेकिन सांझ हो गई है, अभी तक नहीं लौटे. मुझे चिंता हो रही है.’’ परेशान रानी ने देवर राकेश से कहा.‘‘मैं भैया को ढूंढने जा रहा हूं. अगर कुछ पता नहीं चला तो मैं पहासू थाने चला जाऊंगा और गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज करा दूंगा.’’

‘‘आप के जो समझ में आए, करो. किसी भी तरह उन का का पता लगाओ.’’ रानी बोली.

‘‘जी छोटा मत करो भाभी.’’ राकेश ने भाभी को समझाया. राकेश भाई को ढूंढने निकल गया. उस समय शाम के करीब साढ़े 6 बज रहे थे. तारीख थी 9 जुलाई 2020. जितना संभव था, राकेश ने बड़े भाई बलवीर सिंह को ढूंढा लेकिन उस का कहीं पता नहीं चला. बलवीर सिंह न तो किसी दोस्त के यहां गया था और न ही किसी परिचित के यहां. राकेश भी परेशान था कि बाइक ले कर वह कहां गया होगा. बलवीर का फोन स्विच्ड औफ आ रहा था. फोन बंद होने से राकेश के माथे पर चिंता की लकीरें उभर आईं. जब बलवीर का कहीं पता नहीं चला तो राकेश पहासू थाने पहुंच गया.

थाने के दीवान अशोक कुमार को अपनी परेशानी बता कर उस ने भाई की गुमशुदगी की तहरीर उन्हें दे दी. अशोक कुमार ने राकेश को विश्वास दिलाया कि बड़े साहब के आते ही आवश्यक काररवाई हो जाएगी. रात काफी हो गई है, अभी अपने घर जाओ. दीवान के आश्वासन पर राकेश घर लौट आया. उस समय रात के करीब 10 बज रहे थे. घर वालों की बढ़ी चिंता रानी और राकेश ने किसी तरह रात काटी. बलवीर की पत्नी रानी दरवाजे पर इस आस से टकटकी लगाए रही कि वह अब घर लौटेंगे तो दरवाजा कौन खोलेगा.  बलवीर सिंह को घर से गए 24 घंटे हो गए. लेकिन उस का कहीं पता नहीं चला. समझ नहीं आ रहा था कि वह गया तो कहां गया? इस बात को ले कर घर वालों को चिंता सताने लगी. डर था कि उस के साथ कहीं कोई अप्रिय घटना तो नहीं घट गई, क्योंकि उस का फोन अब भी बंद आ रहा था.

उस के फोन का बंद आना, घर वालों की चिंता बढ़ा रहा था. पहासू थाने के थानाप्रभारी आर.के. यादव ने राकेश की तहरीर पर बलवीर की गुमशुदगी की सूचना दर्ज कर आवश्यक काररवाई शुरू कर दी थी. गुमशुदगी के तीसरे दिन यानी 11 जुलाई को पुलिस को दिन के करीब 11 बजे सूचना मिली कि थाने से करीब 6 किलोमीटर दूर गंगावली नहर के किनारे झाड़ी में एक अधेड़ उम्र के आदमी की लाश पड़ी है. लाश बुरी तरह झुलसी हुई है और उस के पास एक लावारिस बाइक खड़ी है. सूचना मिलते ही थानाप्रभारी अपनी टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. उन्होंने इस की जानकारी राकेश को भी दे दी थी और उसे लाश की शिनाख्त के लिए मौके पर पहुंचने को कह दिया.

जानकारी मिलते ही राकेश घटनास्थल पहुंच गया. लाश की कदकाठी और कपड़ों से उस ने लाश की पहचान अपने भाई बलवीर सिंह के रूप में कर ली. पुलिस ने लाश झाड़ी के अंदर से बाहर निकलवाई. उस का चेहरा बुरी तरह झुलसा हुआ था. हत्यारों ने बलवीर की हत्या करने के बाद पहचान छिपाने के लिए उस के चेहरे पर कोई ज्वलनशील पदार्थ उड़ेल कर आग लगा दी थी. शव के पास जो मोटरसाइकिल बरामद हुई, वह भी बलवीर की ही थी. पुलिस ने लाश और बाइक दोनों को अपने कब्जे में ले लिया. घटनास्थल का निरीक्षण करने पर मौके से कोई अन्य चीज बरामद नहीं हुई थी.

घटनास्थल की काररवाई कर पुलिस ने लाश पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दी. थाने लौट कर पुलिस ने राकेश सिंह की तहरीर पर धारा 302 भादंसं के तहत अज्ञात हत्यारों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया और आगे की काररवाई शुरू कर दी. बलवीर सिंह की हत्या की सूचना मिलते ही उस के घर में कोहराम मच गया. मृतक की पत्नी रानी, बेटी खुशबू और राकेश का रोरो कर बुरा हाल था. किसी की समझ में नहीं आ रहा था कि बलवीर की हत्या किस ने और क्यों की? जबकि उस की किसी से दुश्मनी नहीं थी. वह सीधासादा किसान था, अपने काम से काम रखने वाला.

बलवीर सिंह की हत्या ब्लांइड मर्डर थी. पुलिस के लिए चुनौती. पुलिस को बलवीर का मोबाइल नंबर मिल गया था. नंबर ही एक ऐसा आधार था जिस से पुलिस कातिलों तक पहुंच सकती थी. यह भी पता चल सकता था कि उस के फोन पर आखिरी बार किस ने काल की थी.  2 दिनों बाद पुलिस को बलवीर के मोबाइल की कालडिटेल्स मिल गई. काल डिटेल्स का अध्ययन करने पर पता चला कि उस के नंबर पर आखिरी काल दोपहर एक बजे के करीब आई थी. फिर एक घंटे बाद उस का फोन स्विच्ड औफ हो गया था. इस से एक बात साफ हो गई कि बलवीर के साथ जो कुछ हुआ, वह इसी एक घंटे के बीच में हुआ था. हत्यारों ने इसी एक घंटे के भीतर अपना काम कर के लाश ठिकाने लगा दी होगी.

पुलिस को मिली अहम जानकारी पुलिस को जांचपड़ताल से पता चला कि बलवीर के फोन पर आखिरी बार जिस नंबर से काल आई थी, वह नंबर हेमंत का था. हेमंत पहासू थाने के जाटोला का रहने वाला था. मृतक भी पहासू का रहने वाला था और फोन करने वाला भी. इस का मतलब बलवीर और हेमंत के बीच जरूर कोई संबंध था. बलवीर और हेमंत के बीच की बिखरी कडि़यों को जोड़ते हुए पुलिस को मुखबिर के जरिए ऐसी चौंकाने वाली जानकारी मिली कि पुलिस भौचक रह गई. मृतक की बेटी खुशबू और गांव के हेमंत के बीच कई सालों से अफेयर था. इतना ही नहीं, बलवीर की पत्नी रानी के भी गांव के ही एक युवक से मधुर संबंध थे. मांबेटी का अफेयर गांव के 2 अलगअलग युवकों से चल रहा था.

बलवीर सिंह को मांबेटी के अनैतिक संबंधों की जानकारी हो गई थी. वह दोनों के संबंधों का विरोध करता था. इसे ले कर पतिपत्नी के बीच काफी समय से विवाद चल रहा था. पुलिस के लिए यह जानकारी काफी थी. उस की हत्या प्रेम में बाधा बनने के कारण हुई थी. लेकिन पुलिस के पास इस बात का कोई ठोस सबूत नहीं था, जिस से वह मांबेटी को गिरफ्तार कर सके. मांबेटी तक पहुंचने के लिए पुलिस को दोनों के मोबाइल नंबरों की जरूरत थी. पुलिस चाहती थी कि मांबेटी को इस की भनक तक न लगे. बहरहाल, किसी तरह पुलिस ने मांबेटी के फोन नंबर हासिल कर लिए. नंबर मिल जाने के बाद दोनों नंबर सर्विलांस पर लगा दिए गए. साथ ही दोनों नंबरों की काल डिटेल्स भी निकलवा ली गई. इस से पता चला कि खुशबू की काल डिटेल्स में हेमंत का वही नंबर था जो नंबर मृतक बलवीर सिंह की काल डिटेल्स में मिला था.

हेमंत और खुशबू के बीच घटना वाले दिन और उस से पहले कई बार बातचीत हुई थी. घटना के बाद भी खुशबू और हेमंत फोन पर बातचीत कर रहे थे. दोनों को इस बात की जानकारी नहीं थी कि पुलिस उन के नंबरों को सर्विलांस पर लगा कर उन की बातचीत सुन रही है.  घटना के कई दिनों बाद हेमंत ने खुशबू को फोन कर के कहा, ‘‘अब तो हमारे रास्ते का कांटा हमेशाहमेशा के लिए निकल चुका है. अब हमें एक होने से कोई नहीं रोक सकता.’’

इस पर खुशबू ने जवाब दिया, ‘‘ज्यादा इतराओ मत. पुलिस को हमारे राज के बारे में पता चल गया तो जिंदगी भर जेल में बैठे चक्की पीसेंगे. फिर सलाखों के पीछे बैठे इश्क की माला जपते रहना. थोड़ा सब्र रखो, ऐसा कोई काम मत करना जिस से हम पकड़े जाएं.’’

पुलिस को सुराग तो मिल गया था लेकिन उसे अभी भी यकीन नहीं हो रहा था कि बलवीर की हत्या मांबेटी ने मिल कर अपने आशिकों से कराई थी. मृतक की पत्नी रानी की अपने आशिक से बातचीत का रिकौर्ड पुलिस के पास मौजूद था. इन्हीं पुख्ता सबूतों के आधार पर पुलिस 22 जुलाई, 2020 को रानी और उस की बेटी खुशबू को गिरफ्तार कर पहासू थाने ले आई. दोनों से कड़ाई से पूछताछ की गई तो दोनों ने अपना जुर्म कबूल कर लिया. पता चला कि बलवीर की हत्या प्रेम संबंधों में बाधक बनने की वजह से हुई थी. माशूकाओं ने पकड़वाया आशिकों को रानी और खुशबू से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने उसी दिन शाम को उन के आशिकों हेमंत, गोली और उस के दोस्त आकाश को बसअड्डा, पहासू से गिरफ्तार कर लिया.

पुलिस तीनों आरोपितों को गिरफ्तार कर के पहासू थाने ले आई. उन तीनों ने खुशबू और उस की मां रानी को पुलिस हिरासत में देखा तो उन के होश उड़ गए. उन्होंने भी बड़ी आसानी से अपना जुर्म कबूल कर लिया. 14 दिनों से राज बने बलवीर सिंह हत्याकांड से आखिर परदा उठ ही गया. पुलिस ने अज्ञात की जगह मृतक पत्नी रानी, बेटी खुशबू, उन के आशिकों हेमंत और गोली व उस के दोस्त आकाश को नामजद कर दिया. एसपी गोपालकृष्ण चौधरी ने उसी दिन पुलिस लाइंस में प्रैस कौन्फ्रैंस कर के बलवीर हत्याकांड के पांचों आरोपियों को पत्रकारों के सामने पेश कर घटना का खुलासा कर दिया. पुलिसिया पूछताछ में बलवीर सिंह हत्याकांड की कहानी ऐसे सामने आई—

45 वर्षीय बलवीर सिंह उत्तर प्रदेश के जिला बुलंदशहर के थाना पहासू के गांव जाटोला में रहता था. उस का छोटा सा परिवार था, जिस में पत्नी रानी और बेटी खुशबू तथा एक बेटा था. बलवीर का एक छोटा भाई था राकेश सिंह. बलवीर और राकेश दोनों भाइयों के बीच अटूट प्रेम था. दोनों भाई एकदूसरे के दुखसुख में हमेशा खड़े रहते थे.  बलवीर सिंह को इलाके का सब से बड़ा किसान कहा जाता था. उस के पास खेती की कई एकड़ जमीन थी, जिस पर वह वैज्ञानिक विधि से खेती करवाता था. इस से उसे अच्छा मुनाफा होता था. इसी आमदनी से वह दोनों बच्चों को अच्छे स्कूलों में पढ़ा रहा था. बच्चों की पढ़ाई के साथ वह कोई समझौता नहीं करता था. धीरेधीरे बलवीर के दोनों बच्चे बड़े हो रहे थे. बेटी खुशबू बड़ी थी और बेटा छोटा.

कब बचपन को पीछे छोड़ कर खुशबू ने जवानी की दहलीज पर कदम रख दिया था. वह 17 साल की हो चुकी थी. खुशबू कब तक कोरे दिल को आशिकों की नजरों से बचाती फिरती, आखिरकार वह हेमंत को अपना दिल दे बैठी. हेमंत उसी गांव का रहने वाला था. आतेजाते हेमंत की नजर खुशबू पर पड़ी तो वह उस के दिल में समा गई. खुशबू को भी हेमंत पसंद था. 22 साल का हेमंत गबरू जवान था. वह अभी पढ़ाई कर रहा था. पढ़ाई के दौरान नौकरी की तैयारी में भी जुटा था. जल्दी ही दोनों ने एकदूसरे से प्रेम का इजहार कर दिया. हेमंत से मोहब्बत की लगन लगने के बाद खुशबू के चेहरे पर कुछ अलग ही तरह का निखार आ गया था. उस के चेहरे पर हर घड़ी मुसकान थिरकने लगी. यह देख कर उस की मां रानी को शक हुआ कि खुशबू के चेहरे पर बिन बरसात हरियाली क्यों छाई रहती है. कहीं कोई इश्कविश्क का चक्कर तो नहीं है.

खुशबू की मां रानी औरत थी. एक औरत दूसरी औरत के मन की बात को जल्दी भांप लेती है. यहां तो खुशबू उस की बेटी थी, वह बेटी के दिल की बात जान सकती थी. वैसे भी मांबेटी के बीच सहेलियों जैसा रिश्ता था. मां ने पूछी दिल की बात एक दिन दोपहर का समय था. घर में मां और बेटी के अलावा कोई नहीं था. बेटा और पिता बलवीर सिंह के साथ खेती के काम से बाहर गया हुआ था. मांबेटी दोनों एक साथ पलंग पर लेटी हुई थीं. उन के बीच में घर की बातों को ले कर बातचीत हो रही थी. इसी दरमियान रानी ने बेटी के मन की बात जानने के लिए पूछा,‘‘क्या बात है खुशबू, आजकल तुम्हारे चेहरे पर कुछ ज्यादा ही चमक रहती है. कहीं प्यारव्यार का चक्कर तो नहीं है?’’

‘‘मम्मी, कैसी बातें कर रही हो?’’ खुशबू एकदम से हड़बड़ा गई, जैसे उस की चोरी पकड़ी गई हो. वह बोली, ‘‘कोई अपनी बेटी से ऐसे बात करता है क्या?’’

‘‘देखो बेटी, मैं मां हूं तुम्हारी. तुम मेरे सामने मत उड़ो.’’ कह कर रानी ने जता दिया कि वह अनुभवी है. उस से कोई बात छिपी नहीं रह सकती.

‘‘कहां मां, मैं कहां उड़ रही हूं. जैसा तुम सोच रही हो, ऐसी कोई बात नहीं है.’’ खुशबू ने मां से झूठ बोलने की कोशिश की, लेकिन रानी ने उस का झूठ पकड़ लिया.

‘‘मुझे सब पता है. तुम मुझ से झूठ बोल कर बच नहीं सकती.’’

‘‘क….क्या पता है?’’ खुशबू हड़बड़ा गई.

‘‘यही कि तुम जिस से प्यार करती हो वो कौन है?’’

‘‘क…कौन है? बताओ..बताओ कौन है?’’

‘‘उस का नाम हेमंत है न.’’ मां की जुबान से प्रेमी का नाम सुनते ही खुशबू के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं. बेटी के चेहरे का रंग बदलते देख रानी खिलखिला कर हंस पड़ी. मां की रहस्यमई हंसी देख कर खुशबू और भी परेशान हो गई.

‘‘देखा, उड़ा दिए न तुम्हारे होश.’’ रानी बेटी के चेहरे को ध्यान से देखती हुई बोली, ‘‘वैसे हेमंत के साथ घूमने वाला दूसरा गबरू जवान कौन है, जो अकसर उस के साथ घूमताफिरता है?’’

‘‘वो…वो तो उस का दोस्त गोली है. पर बात क्या है मां? तुम क्यों पूछ रही हो?’’

‘‘बड़ा बांका छोरा है. जब तेरे पापा घर पर न रहें तो उसे हेमंत के साथ घर बुलवाना.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘उसे बुलवाओ तो सही, पता चल जाएगा. लेकिन याद रहे कि ये बात हम दोनों के बीच ही रहनी चाहिए. किसी तीसरे तक बात पहुंची तो तुम्हारी खैर नहीं.’’ कहती हुई रानी बिस्तर से नीचे उतरी और सीधे किचन में चली गई. खुशबू मां की बातों से अवाक थी क्योंकि वह उस की प्रेम कहानी जान गई थी. मां की बात नहीं मानी तो पापा से कह सकती है. इसलिए उस ने मां की बात मानने में ही भलाई समझी. रानी को बेटी के बहकते कदमों को रोकना चाहिए था. लेकिन ऐसा न कर के वह पति के होते हुए पराए पुरुष के आगोश में समाने को बेकरार होने लगी. बेटी के जरिए मिला मां को यार खुशबू ने हेमंत से कह कर उस के दोस्त गोली को अपने घर बुलाया. उस गबरू जवान को देख कर रानी खुश हो गई. बेशरमी की सारी हदें पार कर के रानी बेटी के सामने ही गोली से हंसहंस कर बातें करने लगी.

रानी गोली से पहली बार मिली थी. पहली ही मुलाकात में उस ने गोली के मन को टटोल लिया. बेटी के सामने जो नहीं कहना चाहिए था, रानी वहां तक कह गई थी. खुशबू की मां की जुबान से ऐसी बातें सुन कर गोली भी अवाक रह गया. वह समझ नहीं पा रहा था इन के सवालों का क्या और कैसे जवाब दे. कुछ देर बाद हेमंत गोली को ले कर वापस चला गया. जाते समय रानी ने दोनों को आते रहने के लिए कह दिया. 23 साल का बांका जवान गोली रानी के मन की बात समझ गया था. उस दिन के बाद से हेमंत और गोली रानी के घर ऐसे समय पर जाते थे जब उस का पति बलवीर सिंह और बेटा घर पर नहीं होते थे. धीरेधीरे गोली और रानी के बीच प्रेम प्रसंग बढ़ा और दोनों का रिश्ता जिस्मानी संबंधों तक पहुंच गया. उधर उस की बेटी खुशबू भी खुलेआम अपने प्रेमी की बांहों में रंगरलियां मनाने लगी.

अनैतिक काम ज्यादा दिनों तक नहीं छिप पाता. धीरेधीरे मांबेटी के प्रेम के चर्चे गांव में फैलने लगे. यह बात जब बलवीर सिंह तक पहुंची तो उस के पैरों तले की जमीन खिसक गई. उसे सुनी बातों पर यकीन नहीं हुआ. क्योंकि वह पत्नी व बेटी पर बहुत विश्वास करता था. इस खबर ने उस के मन में वहम पैदा कर दिया था. लिहाजा उस ने तय कर लिया कि जब तक वह अपनी आंखों से देख नहीं लेगा, किसी का विश्वास नहीं करेगा. वह पत्नी और बेटी दोनों को रंगेहाथों पकड़ना चाहता था. दोनों को रंगेहाथों पकड़ने के लिए बलवीर ने एक युक्ति निकाली. घटना से करीब 3 माह पहले की बात है. वह सुबह के समय जानबूझ कर बेटे को साथ ले कर खेतों पर चला गया. यह बात उस ने घर में बता दी थी. उस ने पत्नी से कहा था कि लौटने में शाम हो सकती है. पति की बात सुन कर मांबेटी दोनों मन ही मन खुश हुईं.

मां के कहने पर दोपहर के समय खुशबू ने अपने और मां के प्रेमी दोनों को घर बुला लिया और दोनों अलगअलग कमरों में रंगरलियां मनाने लगीं. बलवीर शाम को आने की बात कह कर गया था लेकिन वह दोपहर में ही घर लौट आया. दरवाजा बेटी खुशबू ने ही खोला था. सामने पापा को देख कर उस के होश उड़ गए. तब तक बलवीर की नजर कमरे में पड़ चुकी थी. रंगेहाथों पकड़ा मांबेटी को  घर में गांव के 2 युवक हेमंत और गोली कुरसी पर आराम से बैठे थे. बलवीर को देख कर दोनों वहां से दबेपांव भाग गए. बलवीर का खून खौल उठा. बलवीर ने न आव देखा न ताव, पत्नी और बेटी दोनों को लातथप्पड़ों से जम कर पीटा और धमकाया भी आज के बाद तुम दोनों ने घिनौनी हरकतें कीं तो मुझ से बुरा कोई नहीं होगा.

उस दिन के बाद से घर में जो विवाद शुरू हुआ, उस ने थमने का नाम नहीं लिया. इस प्रेम प्रसंग को ले कर आए दिन घर में पत्नीबेटी और पिता के बीच महाभारत होने लगी थी. इस विवाद से घर की शांति खत्म हो गई थी. कोई सुकून से रोटी नहीं खा पा रहा था. रोजरोज के विवाद और टोकाटाकी से मांबेटी बलवीर से तंग आ गई थीं. बेटी ने मां को समझाया कि क्यों न इस विवाद की जड़ को ही हमेशा के लिए रास्ते से हटा दिया जाए. न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी. मां ने बेटी को मंजूरी दे दी. फिर क्या था. खुशबू ने हेमंत को फोन कर के अपने पापा बलवीर सिंह को रास्ते से हटाने का फरमान जारी कर दिया. खुशबू के प्यार में अंधे हेमंत ने हां कर दी. हेमंत ने गोली से मिल कर बलवीर की हत्या की योजना बनाई. इन्होंने एक अवैध पिस्टल भी खरीद ली. इस के बाद हेमंत ने खुशबू को बता दिया कि पूरी योजना बन गई है, शिकार का शिकार कब करना है बताओ. खुशबू की ओर से जवाब आया, ‘‘ठीक है, जल्द बताती हूं.’’

बात 7 जुलाई, 2020 की है. बलवीर सिंह अपनी बाइक से मोबाइल खरीदने बाजार गया. दोपहर एक बजे के करीब नया मोबाइल खरीद कर वह घर लौटा. बलवीर के घर लौटते ही खुशबू ने हेमंत को फोन कर दिया कि शिकार घर आ गया है. फिर तय योजना के अनुसार, हेमंत ने अपने फोन के ऊपर रुमाल रख कर बलवीर को फोन किया ताकि बलवीर उस की आवाज न पहचान सके. उस ने बलवीर को बाजार में जरूरी काम से मिलने के लिए बुलाया. नंबर अंजान था फिर भी बलवीर बाइक ले कर उस अंजान व्यक्ति से मिलने बाजार चला गया. हो गई योजना पूरी  बाजार में हेमंत, गोली और उस का दोस्त आकाश मिल गए. बलवीर को देखते ही दोनों नाटक करते हुए माफी मांगने लगे और उसे अपनी बातों में उलझा कर बाजार से काफी दूर सुनसान इलाके में ले आए.

गोली और उस का दोस्त आकाश बलवीर को अपनी बातों में उलझाए रहे. तभी हेमंत ने अपने साथ लाए लकड़ी के एक मोटे डंडे से उस के सिर पर पीछे से जोरदार वार किया. सिर पर वार होते ही बलवीर जमीन पर गिर गया. उस के बाद हेमंत ने बलवीर को पिस्टल से 2 गोलियां सिर और सीने में मार दीं. बलवीर की मौत हो गई. फिर तीनों ने बलवीर की लाश गंगावली नहर के किनारे झाड़ी में डाल दी. उसे कोई आसानी से न पहचान सके, इस के लिए आधा लीटर की प्लास्टिक की बोतल में लाया तेजाब उस के चेहरे पर उड़ेल दिया, जिस से उस का चेहरा झुलस गया. उस की बाइक भी उसी झाड़ी में छिपा दी और तीनों अपनेअपने घरों को लौट आए.

हेमंत ने काम पूरा हो जाने के बाद फोन कर के खुशबू को जानकारी दे दी कि हमारे प्यार के रास्ते का सब से बड़ा कांटा हमेशाहमेशा के लिए निकल गया है, अब हमें मिलने से कोई नहीं रोक सकता है. लेकिन मृतक के छोटे भाई राकेश की हिम्मत ने हत्यारों के मंसूबे पर पानी फेर दिया. जेल की सलाखों के पीछे पहुंचने के बाद रानी और खुशबू को अपने किए पर पश्चाताप हो रहा था कि खुद अपने ही हाथों सुखमय गृहस्थी में आग लगा दी, लेकिन अब पछताने से क्या होगा, जो होना था सो हो चुका था.

—कथा में खुशबू परिवर्तित नाम है. कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

Extramarital Affair : देवर के इश्क में पत्नी ने कराई पति की हत्या

Extramarital Affair : 3 बच्चों की मां बन जाने के बाद रीना को अपने परिवार की ठीक से देखरेख करनी चाहिए थी. लेकिन ऐसा करने के बजाए वह अपने देवर के साथ इश्क की पतंग उड़ाने लगी. इसी बीच उस ने एक दिन…

जनपद हरदोई के अतरौली थाना क्षेत्र के गांव बहोइया के रहने वाले रामसिंह की भरावन चौराहे पर दरजी की दुकान थी. उस का विवाह गांव मांझगांव की रीता से हुआ था. बाद में उस से एक बेटा हुआ. लेकिन रीता राम सिंह से उम्र में बड़ी थी, इसी बात को ले कर उस का पत्नी से विवाद होता रहता था. यह विवाद इतना बढ़ गया कि रीता अपने मायके चली गई, तो फिर लौट कर वापस नहीं आई. रामसिंह ने कई सालों तक उस के वापस आने की राह देखी, जब वह वापस नहीं आई तो राम सिंह ने करीब 12 साल पहले गांव बसंतापुर की रीना से विवाह कर लिया. रीना रामसिंह से 10 साल छोटी थी. कालांतर में रीना 2 बच्चों की मां बनी. उस के बड़े बेटे का नाम सौरभ था और छोटे का गौरव. बाद में रीना आंगनवाड़ी में सहायिका के रूप में काम करने लगी.

जैसेजैसे उम्र बढ़ रही थी, रामसिंह का दमखम जवाब देने लगा था. दिन भर दुकान पर खटने के बाद वह घर आता तो रास्ते में दारू के ठेके से दारू पी कर घर लौटता था. घर आ कर खाना खाते ही सो जाता था. उसे बीवी की जरूरतों को पूरा करने की सुध ही नहीं रहती थी. रामसिंह के मकान के बराबर में ही उस के चाचा श्रीपाल रहते थे. श्रीपाल के 2 बेटे थे सोनेलाल उर्फ भूरा और कमलेश. कमलेश लखनऊ में बीकौम की पढ़ाई कर रहा था. भूरा भरावन चौराहे पर ही एक दुकान पर सिलाई का काम करता था. वह अविवाहित था. रामसिंह और भूरा की उम्र में काफी अंतर था, इस के बावजूद भी दोनों भाइयों में अच्छी पटती थी. एक दिन भूरा अपने साथियों के साथ तालाब में मछलियां पकड़ने गया.

वह काफी मछलियां पकड़ कर लाया. उस ने सोचा क्यों न थोड़ी मछलियां रामसिंह भैया को दे आए. वह मछलियां ले कर रामसिंह के घर पहुंचा तो रीना सब्जी बनाने के लिए बैंगन काट रही थी. थैला उस के आगे रखते हुए भूरा बोला, ‘‘छोड़ो भाभी, ये बैंगनसैंगन काटना. ये लो मस्त मछलियां, इन को साफ कर के पकाओ. आज रात मैं भी खाना यहीं खाऊंगा.’’

रीना ने एक नजर मछलियों पर डाली, फिर होंठों पर मुसकान सजाते हुए बोली, ‘‘भूरा शिकार फंसाने में तो तुम माहिर हो. गजब की मछलियां फंसाई हैं.’’

भूरा ने भी मजाकिया अंदाज में जवाब दिया, ‘‘ये तो छोटीछोटी मछलियां हैं, कोई बड़ी मछली फंसे तो बात बने.’’

‘‘देवरजी, उस के लिए दमदार कांटा होना चाहिए.’’ रीना ने तिरछी नजरों से कामुक वार किया.

‘‘कांटा तो दमदार है भाभी, पर कोई आजमाए तो.’’ भूरा की इस बात पर रीना लजा गई.

मछलियां दे कर भूरा बाहर निकला तो घर के बाहर बैठे राम सिंह ने पूछा, ‘‘क्या हुआ?’’

‘‘आज भाभी मछलियां बनाएंगी और मैं शाम को यहीं आ कर खाना खाऊंगा.’’ भूरा बोला.

‘‘फिर तो दारू मुझे ही मंगानी पड़ेगी. शाम को जल्दी आ जाना.’’ रामसिंह ने कहा. शाम हुई तो रीना ने मछली और रोटियां तैयार कर के रख दीं. इस बीच रामसिंह और भूरा भी आ गए. रामसिंह और भूरा दारू पीते हुए गपशप करने लगे. कितना समय बीत गया, पता ही नहीं चला. रामसिंह ने कुछ ज्यादा ही शराब पी ली. जब वह सुधबुध खोने लगा तो रीना ने कलाई पकड़ कर उसे उठाया और कमरे के अंदर ले जा कर पलंग पर लिटा दिया. पलंग पर ढेर होते ही राम सिंह खर्राटे भरने लगा. भूरा ने माफी मांगते हुए कहा, ‘‘भाभी, भैया कुछ ज्यादा ही पी गए. गलती मेरी भी है, मुझे उन को रोकना चाहिए था. खैर आप भी खाना खा लो. मछलियां बहुत स्वादिष्ट बनाई हैं आप ने, मजा आ गया.’’ भूरा  ने रीना की प्रशंसा की.

रीना ने भरपूर नजरों से भूरा को देखा. भूरा का युवा चेहरा नशे की मस्ती में चमक रहा था. वह बोली, ‘‘तुम्हारे भैया को सचमुच ज्यादा चढ़ गई, पड़ते ही सो गए.’’

‘‘शराब चीज ही ऐसी है, भाभी. कितनी भी थकान हो, गम हो, परेशानी हो, आराम से नींद आ जाती है.’’

रीना ने ठंडी आह भरी, ‘‘हां दारू पी कर लोग थकान उतार लेते हैं. जहां असली नशा हो, वहां नजर भी नहीं डालते.’’

रीना के इन शब्दों में दर्द भी था और आमंत्रण भी. भूरा ने उस की आंखों में आंखें डालीं तो वहां उसे प्यास का समंदर ठाठें मारता दिखा. वह रोमांटिक अंदाज में बोला, ‘‘सच कहती हो भाभी. अब खुद को ही देख लो. आप के पास क्या नहीं है. अपने आप में पूरा मयखाना हो. जिस के रोमरोम में नशा है और भैया घर के मयखाने न देख कर शराब में डूब जाते हैं.’’

‘‘ओह, तो मैं तुम्हें नशे की बोतल लगती हूं.’’ रीना एकदम से भूरा के करीब आ गई. भूरा ने दुस्साहस किया. रीना की कलाई पकड़ कर उसे अपने पास खींच लिया और उस का हाथ अपने सीने पर रखते हुए बोला, ‘‘मेरे दिल से पूछ कर देख लो. यह बता देगा कि तुम कैसी हो. तुम हसीन हो, नशीली हो, मस्त हो.’’

3 बच्चों की मां, जो शरीर सुख से वंचित हो, कोई कुंवारा जवां मर्द उस के हुस्न की तारीफ करे, उस का हाथ थामे तो उस का बहकना स्वाभाविक है. रीना भी भूरा का अंदाज देख कर गदगद हो गई. भूरा ने उस का चेहरा थाम कर अपनी हथेलियों में लिया और अपनी गर्म सांसों से उस के चेहरे को नहलाना शुरू किया तो वह सुधबुध खोने लगी. धीरेधीरे यह खेल अपनी सीमाएं लांघता गया और उन के बीच अनैतिक संबंध बन गए. कुंवारे भूरा ने रीना की व्याकुल देह को उस रात जो सुख दिया, उस से रीना उस की दीवानी हो गई. अब वह अकसर पति रामसिंह की नजरों से बच कर वासना का खेल खेलने लगी.

महीनों बीत गए. उन का खेल इसी तरह चलता रहा. भूरा रीना से ऐसे समय मिलने जाता, जब रामसिंह दुकान पर होता. एक दिन भूरा रीना को अपनी बांहों में समेटे पड़ा था. तभी अचानक रीना ने सास की झलक देखी तो उस ने भूरा को धक्का दे कर परे किया और हड़बड़ा कर उठ बैठी. भूरा पकड़े गए चोर की तरह सिर झुका कर वहां से चला गया. रीना भी सिर झुकाए धरती निहारने लगी. सास राधा देवी का खून खौल रहा था. उस ने आंखें निकाल कर कहा, ‘‘कुलच्छिनी, तू इतनी नीच निकली. अरे, कुछ तो शरम की होती.’’

रीना ने सास के पैर पकड़ लिए, ‘‘अम्मा, इस में मेरा कोई कुसूर नहीं है. भूरा ही न जाने क्यों मेरे पीछे पड़ा रहता है.’’

‘‘पीछे पड़ा रहता है,’’ राधा अपना हाथ नचाते हुए बोली, ‘‘आज मैं ने तेरी चोरी पकड़ ली तो पाकसाफ होने का ढोंग कर रही है. मैं कल ही तेरे बाप को बुला कर तेरी करतूत बताती हूं.’’ सास ने धमकी दी. रीना सास के पैरों में गिर पड़ी. माफी मांगते हुए गिड़गिड़ाई, ‘‘इस बार माफी दे दो अम्मा. आइंदा उस से बात करते भी देखा तो अपने हाथों से मेरा गला घोंट देना.’’

खानदान की इज्जत का सवाल था. इसलिए राधा देवी ने चेतावनी दे कर रीना को माफ कर दिया. बाद में उन्होंने यह बात अपने पति श्यामलाल को जरूर बता दी. बहू की हरकत से श्यामलाल भी सन्न रह गए. उन्होंने राधा से कहा, ‘‘बात अपनी ही इज्जत की है, इसलिए ज्यादा तूल देंगे तो अपनी ही बदनामी होगी. बहू ने अगर गलती मान ली है और दोबारा गलती न करने का भरोसा दिया है तो एक बार उसे सुधरने का मौका देना ही ठीक है.’’

उस दिन से राधा सतर्क हो गई. सासससुर ने यह बात राम सिंह की जानकारी में नहीं आने दी थी. इस के बाद भूरा ने रीना के घर आनाजाना बंद कर दिया.  कुछ दिन दोनों शांत रहे, पर अंदर ही अंदर दोनों बेचैन थे. उन से यह दूरी बरदाश्त नहीं हो पा रही थी. आखिरकार एक दिन दोनों को मौका मिल ही गया. भूरा अपनी ताई राधा की नजरें बचा कर किसी तरह रीना के पास पहुंच गया और हसरतें पूरी कर लौट आया. इस के बाद दोनों को लंबे समय तक मिलन का मौका नहीं मिला. राधा की नजरें हमेशा बहू की पहरेदारी करती रहतीं.

एक दिन शाम को दुकान से वापस आते समय राम सिंह को भूरा मिल गया. राम सिंह ने उस से पूछा, ‘‘भूरा, क्या बात है आजकल तुम मिलते ही नहीं, घर भी नहीं आते.’’

भूरा चौंका. इस का मतलब राधा ताई ने रामसिंह को कुछ नहीं बताया था. भूरा ने तुरंत बहाना ढूंढ लिया, ‘‘अरे भैया, बस ऐसे ही कुछ काम में फंसा हुआ था.’’

‘‘बहुत दिन हो गए हैं, बैठे हुए. कल शाम को आओ, फिर महफिल जमाते हैं.’’

भूरा ने हां तो कर दी, पर उसे डर था कि रामसिंह के साथ उस के घर में खातेपीते देख कर राधा कहीं तूफान न खड़ा कर दे. उस का साहस जवाब दे गया. उस ने राम सिंह के घर न जाने का निश्चय कर लिया. अगले दिन शाम को भूरा घर नहीं पहुंचा तो रामसिंह उसे खुद जा कर पकड़ लाया. इत्तफाक से राधा और श्यामलाल घर पर ही थे. दोनों को देख कर भूरा की नजरें झुक गईं. वे दोनों भूरा को देख कर कुढ़ रहे थे, पर बेटे का भूरा के प्रति अपनत्व देख कर उन्होंने उस वक्त कुछ कहना ठीक नहीं समझा. भूरा ऐसा जाहिर कर रहा था, जैसे उसे अपनी गलती का बहुत पछतावा हो. उस ने रीना को नजर उठा कर भी नहीं देखा.

उस दिन से भूरा के लिए फिर से रीना के घर जाने का रास्ता खुल गया. राधा चाह कर भी रामसिंह को रीना और भूरा के रिश्ते की बात नहीं बता सकी. उस ने इशारोंइशारों में बेटे को समझाना चाहा कि जवान लड़के का यों उस के घर में घुसे रहना ठीक नहीं है. लेकिन रामसिंह भूरा पर कुछ ज्यादा ही विश्वास करता था. उस के इस विश्वास का फायदा उठाते हुए रीना और भूरा फिर से वासना के खेल में डूब गए. अब उन को राधा की भी परवाह नहीं थी. लेकिन एक साल पहले राम सिंह ने दोनों को एक दिन खेत पर रंगरलियां मनाते हुए देख लिया. रामसिंह ने दोनों को जम कर मारापीटा. उस दिन के बाद से रीना और भूरा मोबाइल पर बात कर के अपने मन को समझाने लगे. जब मौका होता, रीना उसे बुला लेती.

भूरा भी रामसिंह के सामने पड़ने से बचने लगा. इस के बाद तो भूरा अपनी दुकान से हट कर कहीं जाता तो रामसिंह उस का पीछा करता कि कहीं वह घर पर रीना से तो मिलने नहीं जा रहा. करीब 8 महीने पहले रीना ने एक बेटी को जन्म दिया लेकिन वह अधिक दिन जीवित नहीं रह सकी. भूरा उसे अपनी बेटी मान रहा था. उस के मरने से वह बहुत दुखी हुआ. 17 जुलाई, 2020 की शाम 7 बजे रामसिंह अपनी दुकान से लौटा. वह शराब पी कर आया था. उस ने खाना खाया, रीना घर पर नहीं थी. उस की बहन शिल्पी आई हुई थी, पता चला कि रीना सुबह ही उसी के साथ मायके बसंतापुर चली गई थी. इसलिए रामसिंह खाना खा कर घर के बाहर चारपाई डाल कर सो गया. दूसरे दरवाजे पर उस के पिता श्यामलाल और रामसिंह के बच्चे सो रहे थे.

18 जुलाई की सुबह साढ़े 5 बजे गांव की महिलाएं बाहर निकलीं तो उन्होंने राम सिंह की चारपाई के नीचे खून पड़ा देखा तो दंग रह गईं. महिलाओं ने शोर मचाया तो रामसिंह के घर वाले व गांव के अन्य लोग वहां एकत्र हो गए. घर वालों ने रीना को खबर करने के बाद अतरौली थाने में घटना की सूचना दे दी. सूचना पा कर इंसपेक्टर संतोष तिवारी पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. रामसिंह की लाश चारपाई पर पड़ी थी. उस के सिर, चेहरे व पेट पर गहरे घाव थे जो किसी तेज धारदार हथियार के मालूम पड़ रहे थे. घटनास्थल के आसपास का निरीक्षण किया गया तो वहां से करीब 70 मीटर की दूरी पर एक सूखे कुएं में खून से सनी एक कुल्हाड़ी पड़ी दिखी.

इस पर इंसपेक्टर तिवारी ने फोरैंसिक टीम बुला ली. फोरैंसिक टीम ने कुएं से कुल्हाड़ी निकलवा कर उस के हत्थे से फिंगरप्रिंट उठाए. घटना की खबर पा कर रीना भी तुरंत घर वापस आ गई थी. इंसपेक्टर संतोष तिवारी ने घटनास्थल का मुआयना करने के बाद रीना, श्यामलाल व घर के अन्य लोगों से पूछताछ की तो उन्हें आभास हो गया कि हत्या के पीछे किसी करीबी का ही हाथ है. घर वाले जानते हैं लेकिन बता नहीं रहे हैं. आलाकत्ल कुल्हाड़ी का घटनास्थल के पास मिलना दर्शा रहा था कि घटना को अंजाम देने के बाद हत्यारे ने जल्दी में कुल्हाड़ी को कुएं में फेंका और घर जा कर सो गया. फिलहाल इंसपेक्टर तिवारी ने लाश पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भेज दी.

रीना की तरफ से उन्होंने अज्ञात के खिलाफ भादंवि की धारा 302 के तहत मुकदमा दर्ज करा दिया. पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने के बाद इंसपेक्टर तिवारी ने घर वालों से सख्ती से पूछताछ की तो सारी हकीकत सामने आ गई. पूछताछ के बाद उन्होंने 19 जुलाई, 2020 को रीना और सोनेलाल को उन के घर से गिरफ्तार कर लिया और थाने ला कर उन से सख्ती से पूछताछ की तो दोनों ने अपना जुर्म स्वीकार कर लिया. रामसिंह के बराबर निगरानी रखने से भूरा और रीना का मिलना मुश्किल होता जा रहा था. घटना से एक महीने पहले भूरा अपनी दुकान से कहीं काम से गया और वापस लौट कर आया तो राम सिंह को शक हुआ कि वह रीना से मिल कर आ रहा है. गुस्से से उबल रहे रामसिंह ने भूरा को कैंची से मारा. अपने आप को बचाने के लिए भूरा ने अपना दायां हाथ आगे किया तो से उस के हाथ में घाव हो गया और खून बहने लगा.

घर आ कर उस ने मोबाइल पर बात कर के रीना को खेत पर बुलाया और उसे अपना हाथ दिखा कर पूरी बात बताई. इस पर रीना ने कहा, ‘‘अब बहुत ज्यादा हो गया. अगर साथ रहना है तो इसे (रामसिंह को) रास्ते से हटाना ही पड़ेगा.’’

इस के बाद दोनों घर लौट गए. अब भूरा राम सिंह से नजदीकियां बढ़ाने की कोशिश करने लगा, जिस से उसे विश्वास में ले कर उस की हत्या कर सके. लेकिन राम सिंह शराब पी कर अकसर भूरा को डांट देता था. 17 जुलाई, 2020 की सुबह रीना भूरा से मिली और कहा, ‘‘मैं आज मायके जा रही हूं, मौका देख कर आज इस का काम तमाम कर देना.’’ कह कर रीना चली गई. रीना के जाने के बाद रामसिंह दुकान पर चला गया, उस के पीछे से भूरा भी अपनी दुकान चला गया. शाम को रामसिंह दुकान से सीधे शराब के ठेके पर गया और शराब पी कर घर चला गया. उस के जाने के 10 मिनट बाद भूरा भी शराब पी कर घर चला आया.

शाम 7 बजे खाना खाने के बाद राम सिंह सो गया. रात 10 बजे भूरा ने राम सिंह के बड़े बेटे बिन्नू से कुल्हाड़ी ले कर अपने पास रख ली. रात साढ़े 12 बजे के आसपास भूरा अपने घर से निकला. बीच रास्ते में गाय बंधी थी. किसी तरह की आवाज न हो, इस के लिए उस ने गाय की रस्सी खूंटे से खोल दी, जिस से गाय वहां से चली गई. भूरा रामसिंह की चारपाई के पास पहुंचा और रामसिंह के सिर पर साथ लाई कुल्हाड़ी का एक तेज प्रहार कर दिया. रामसिंह के शरीर में कोई हरकत नहीं हुई. इस के बाद भूरा ने उस के ऊपर 4 वार किए. रामसिंह की मौत होने के बाद वह पास के एक सूखे कुएं के पास गया और कुल्हाड़ी कुएं में फेंक दी. फिर घर आ कर सो गया.

लेकिन भूरा और रीना का गुनाह कानून की नजर में आ ही गया. कागजी खानापूर्ति करने के बाद दोनों को सक्षम न्यायालय में पेश किया गया, वहां से दोनों को जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

Murder Stories : साला ने पहले जीजा को मौत के घाट उतारा फिर बहन को भी मार डाला

Murder Stories : बिजनैसमैन सुखबीर ने फरीदाबाद में 500 वर्गगज में एक आलीशान कोठी बनाई थी. जिस में वह अपनी पत्नी मोनिका के साथ रहते थे. शादी के कई साल बीत जाने के बाद भी उन के आंगन में बच्चे की किलकारी नहीं गूंजी थी. इसी दौरान ऐसा क्या हुआ कि किसी ने उन की कोठी में घुस कर दोनों की हत्या कर दी और…

रात के लगभग सवा 9 बजे का वक्त था. लेकिन कई बार कालबेल बजाने के बाद भी जब मोनिका ने दरवाजा नहीं खोला तो मनीष को कोफ्त होने लगी. उसे गुस्सा इस बात पर आ रहा था कि एक तो उस की बहन मोनिका घर पर दूध लेने के लिए नहीं पहुंची थी, दूसरे जब वह खुद दूध देने के लिए आया तो कालबेल की आवाज सुन कर 10 मिनट बाद भी मोनिका और सुखबीर ने दरवाजा नहीं खोला था. आश्चर्य की बात यह थी कि घर का मुख्यद्वार भी अंदर से लौक नहीं था. जीजा सुखबीर ने करीब 15 दिन पहले ही 40 लाख रुपए में औडी क्यू-3 कार खरीदी थी, वह पोर्च में खड़ी थी. सब से बड़ी हैरानी इस बात पर थी कि घर के अंदर और बाहर पूरी तरह अंधेरा था और एक भी लाइट नहीं जल रही थी.

ये सब बातें ऐसी थी कि कोफ्त होने के साथसाथ मनीष का मन आशंका से भी भर उठा था. बहन की इस लापरवाही पर उसे गुस्सा आ रहा था. मनीष ने दरवाजे को जोरजोर से पीटना शुरू कर दिया. 1-2 बार दरवाजे को जोर लगा कर थपथपाया तो अचानक दरवाजा खुल गया और वह अंदर दाखिल हो गया. अंदर घुप्प अंधेरा था. मनीष ने मोबाइल की टौर्च जला कर स्विच बोर्ड तलाश किया और ड्राइंगरूम की लाइट जला दी, जिस से कमरा रोशन हो गया. लेकिन इतना सब होने के बावजूद घर के भीतर कोई हलचल नहीं हुई तो मनीष का दिल किसी अनहोनी के डर से कांपने लगा. क्योंकि ड्राइंगरूम से ले कर कई जगह घर का सामान अस्तव्यस्त पड़ा था. वह दौड़ता हुआ उस कमरे तक पहुंचा, जहां उस की बहन मोनिका का बैडरूम था.

उस ने दरवाजे से लगे बिजली के स्विच बोर्ड से कमरे की बत्ती जलाई तो बैडरूम के अंदर का दृश्य देख कर उस के हलक से हृदयविदारक चीख निकल गई. कमरे के भीतर उस की बहन मोनिका और जीजा सुखबीर के खून से लथपथ शव पड़े थे. दोनों के हाथपांव और मुंह सर्जिकल टेप से बंधे थे. घर की अलमारियां खुली थीं और सारा सामान अस्तव्यस्त था. घर से लाए दूध का डिब्बा मनीष के हाथ से छूट गया और और वह जमीन पर दोनों हाथों से अपना सिर पकड़ कर बैठ गया. कुछ देर बाद जब उसे होश आया तो वह घर से बाहर दौड़ा और खून…खून चिल्लाता हुआ लोगों से मदद की गुहार लगाने लगा. कालोनी में रहने वाले लोग दरवाजा खोल कर घर से बाहर आए और मनीष से चिल्लाने का कारण पूछा.

मनीष ने वह सब बयान कर दिया जो उस ने अंदर देखा था. कुछ ही देर में वहां लोगों की भीड़ एकत्र हो गई. इसी दौरान मनीष ने गांव में रहने वाले अपने परिजनों को भी फोन कर दिया. थोड़ी देर बाद मनीष का पूरा परिवार, गांव में रहने वाले दूसरे रिश्तेदार व अड़ोसपड़ोस में रहने वाले लोगों की भीड़ सुखबीर के घर के बाहर जमा हो गई. मनीष ने सुखबीर के परिवार वालों को भी फोन कर के इस बात की जानकारी दे दी थी. गांव वालों के कहने पर मनीष ने पुलिस कंट्रोल रूम को भी वारदात की सूचना दे दी. 11 अगस्त को जन्माष्टमी के दिन ये वारदात दिल्ली से सटे ग्रेटर फरीदाबाद के गांव जसाना में हुई थी. जिस गांव में वारदात हुई थी, वह फरीदाबाद के तिगांव थाना क्षेत्र में आता है. सूचना मिलने के आधे घंटे बाद तिगांव थाने की पुलिस मौके पर पहुंच गई.

सुखबीर के बड़े भाई ओमबीर और पिता रिछपाल भी अपने परिवार के साथ मौके पर आ गए थे. पुलिस ने सभी घरवालों से एकएक कर के पूछताछ शुरू कर दी. वारदात की जानकारी सब से पहले मनीष को ही मिली थी, लिहाजा पुलिस ने सब से पहले उस से ही पूरी का घटना का ब्यौरा हासिल किया. मनीष ने पुलिस को बताया कि उस की बहन मोनिका (25) की शादी साल 2013 में मूलरूप से फरीदाबाद के ही फतेहपुर चंदीला गांव के रहने वाले सुखबीर (27) के साथ हुई थी. सुखबीर को अपनी फैक्ट्री तक आने के लिए गांव से लंबी दूरी तय करनी पड़ती थी. उस का इलाका काफी भीड़भाड़ वाला भी था, इसलिए उस ने 2 साल पहले ससुराल वालों की मदद से जसाना गांव के बाहर एक नवनिर्मित बस्ती में 500 गज का प्लौट ले कर उस पर दोमंजिला आलीशान मकान बनवा लिया और मोनिका के साथ यहीं आ कर रहने लगा.

घर में सभी आधुनिक सुखसुविधाएं मौजूद थीं. छत पर एक्सरसाइज के लिए ओपन जिम भी बनवाया था. गांव का दामाद होने के कारण गांव के सभी लोग सुखबीर को पाहूना या रिश्तेदार कह कर संबोधित करते थे. सुखबीर मिलनसार और हंसमुख स्वभाव का था इसलिए सभी उस की बहुत इज्जत करते थे. उस की बेदर्दी से हुई हत्या से सभी दुखी थे. करीब 15 दिन पहले ही सुखबीर ने औडी क्यू-3 कार खरीदी थी. इस कार की कीमत 35 से 40 लाख रुपए है. कार लेने के बाद सुखबीर ने अपने घर पर इस की पार्टी भी दी थी, जिस में उस की ससुराल वालों के अलावा घर के लोग भी शामिल हुए थे. सुखबीर ने अपने पिता व भाई की मेहनत व लगन के बूते काफी कम समय में अच्छी तरक्की की थी. गांव बड़खल में उन की लिक्विड फिलिंग मशीनें बनाने की फैक्ट्री है, जिसे वे सब खुद संभालते थे.

सुखबीर सीए भी कर चुका था. इसलिए फैक्ट्री के एकाउंट का काम भी वह खुद ही संभालता था. जबकि उस की पत्नी मोनिका गृहिणी थी. सुखबीर के भाई ओमबीर और पिता रिछपाल सप्ताह में कम से कम एक बार सुखबीर और मोनिका का हालचाल लेने गांव जसाना जरूर जाते थे. फोन पर भी उन की दोनों से रोजाना बातचीत होती थी. कुल मिला कर सुखबीर के घर में काफी प्रेम था. पतिपत्नी भी एकदूसरे से बहुत प्यार करते थे. बस कमी थी तो यह कि शादी को 7 साल होने के बावजूद सुखबीर व मोनिका के घर में बच्चे की किलकारी नहीं गूंजी थी.

11 अगस्त को सुबह से ही सुखबीर के पेट में दर्द था इसलिए मोनिका के कहने पर वह उस दिन फैक्ट्री नहीं गया और घर पर आराम करता रहा. दिन भर आराम करने के बावजूद जब पेट की तकलीफ कम नहीं हुई तो मोनिका सुखबीर को सुबह 11 बजे दवा दिलाने के लिए अपने साथ डाक्टर के पास ले गई. वहां से दोनों एक घंटे बाद घर लौट आए थे. चूंकि जसाना गांव मोनिका का मायका था और घर में दूध का काम होता था लिहाजा उस का दूध मायके से ही आता था. मोनिका रोज शाम को घर की डेरी पर ही दूध लेने जाती थी. लेकिन 11 अगस्त को सुखबीर की तबीयत ठीक नहीं होने के कारण वह दूध लेने के लिए नहीं जा सकी. पिता रामबीर से उस ने फोन कर के कह दिया था कि शाम को कोई घर की तरफ आए तो खुद ही दूध भिजवा दें.

रात को 9 बजे जब उन का छोटा बेटा मनीष गांव के घेर में सोने के लिए जाने लगा तो उन्होंने उस से कहा कि जाते वक्त दूध का डिब्बा मोनिका के घर पकड़ा देना. दूध का वही डिब्बा देने के लिए मनीष मोनिका के घर आया था. लेकिन वहां बहन और जीजा की लाशें देख कर उस के होश उड़ गए. जब वह घर पहुंचा तो देखा सभी लाइटें बंद थी और अंदर दोनों की लाशें पड़ी थीं. रात के 12 बजे तक फरीदाबाद के पुलिस कमिश्नर ओ.पी. सिंह और क्राइम ब्रांच के अधिकारी भी मौके पर आ गए. डौग स्क्वायड के साथ फोरैंसिक टीम भी जांचपड़ताल में जुट गई. घर के हर कोने से बदमाशों की पहचान के लिए फिंगरप्रिंट तथा सबूत एकत्र किए जाने लगे. घर वालों से अब तक की पूछताछ में जो जानकारी हासिल हुई थी, उस से लग रहा था कि बदमाशों ने इस वारदात को लूटपाट के लिए अंजाम दिया था.

सुखबीर व उस की पत्नी इतने बड़े मकान में अकेले रहते थे. उन के घर तथा महंगी गाड़ी को देख कर किसी को भी उन की हैसियत का अंदाजा लग सकता था. इसलिए पहली नजर में लग रहा था कि लूटपाट करने वाले बदमाशों ने ही वारदात को अंजाम दिया होगा. वैसे भी घर में जिस तरह से सारी अलमारियां खुली हुई थीं, घर के कीमती जेवरात लापता थे, उस से भी यही लगता था. जहां तक सुखबीर की किसी से रंजिश की बात थी तो परिवार वालों ने साफ कर दिया था कि सुखबीर की किसी से भी आज तक कोई रंजिश नहीं रही. बस एक बात ऐसी थी, जिस ने पुलिस को उलझा कर रख दिया था. वह यह कि अगर बदमाशों ने घर में घुसने के बाद सुखबीर तथा मोनिका को काबू में कर के उन के हाथपांव और मुंह सर्जिकल टेप से बांध दिए थे तो वे लूटपाट करने के बाद आराम से भाग सकते थे.

बदमाश और लुटेरे आमतौर पर किसी की हत्या तभी करते हैं, जब उन का विरोध होता है. लेकिन यहां तो सुखबीर तथा मोनिका के बंधे होने के कारण विरोध की संभावना ही नहीं थी. इस का मतलब साफ था कि बदमाशों को पता था कि अगर वे उन्हें जिंदा छोड़ कर गए तो पकड़े जा सकते हैं. ऐसा भी तभी होता है जब बदमाश पीडि़त का कोई जानकार होता है. एक दूसरी बात यह भी थी कि बदमाश वारदात को अंजाम देने के बाद घर में लगे सीसीटीवी कैमरे का डीवीआर उखाड़ कर ले गए थे. ऐसा तभी होता है जब बदमाश पहचान वाला हो और सीसीटीवी की फुटेज से आसानी से पहचाने जाने के डर से आशंकित हो.

मौके पर मौजूद पुलिस अधिकारियों को इस बात का पूरा यकीन हो गया कि हो न हो इस वारदात के पीछे सुखबीर या मोनिका के किसी जानकार का ही हाथ है. सुखबीर व मोनिका की हत्या सिर में गोली मार कर की गई थी. कई घंटे की जांचपड़ताल तथा परिवार वालों से की गई पूछताछ के बाद तिगांव थाना पुलिस ने सुखबीर व मोनिका के शवों को पोस्टमार्टम के लिए बी.के. अस्पताल भिजवा दिया और अज्ञात बदमाशों के खिलाफ भादंसं की धारा 302, 395 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया गया. पुलिस कमिश्नर ओ.पी. सिंह ने उसी रात इस केस को सुलझाने का जिम्मा क्राइम ब्रांच को सौंप दिया और एक विशेष टीम का गठन भी कर दिया. विशेष टीम में सीआईए सेक्टर-30 के इंचार्ज विमल कुमार, सेक्टर-85 सीआईए प्रभारी सुमेर सिंह, डीएलएफ प्रभारी सुरेंद्र व एनआईटी क्राइम ब्रांच प्रभारी को शामिल किया गया.

डीसीपी (क्राइम) मकसूद अहमद ने खुद इस केस की मौनिटरिंग का काम संभाला और एसीपी (क्राइम) अनिल कुमार तथा एसीपी (तिगांव) को विशेष टीमों की अगुवाई करने का जिम्मा सौंपा गया. एसीपी धारणा यादव को भी विशेष टीम की अगुवाई करने का जिम्मा दिया गया था. मामला चूंकि सीधे पुलिस कमिश्नर की दिलचस्पी का केंद्र बन गया था, इसलिए अगली सुबह से विशेष टीम ने अलगअलग बिंदुओं को आधार बना कर जांचपड़ताल करने का काम तेजी से शुरू कर दिया. बदमाश घर से कितनी नकदी व जेवरात लूट कर ले गए गए थे, यह तो पुलिस को कोई नहीं बता सका लेकिन ये साफ था कि घर में लूटपाट जरूर हुई थी. इतना ही नहीं, बदमाश सुखबीर व मोनिका के मोबाइल भी लूट ले गए थे, क्योंकि पुलिस को काफी तलाश करने पर भी मोबाइल घर में नहीं मिले थे. दोनों मोबाइल स्विच्ड औफ आ रहे थे. घर से सुखबीर का लैपटाप भी गायब था.

इधर, बदमाशों ने घर के सीसीटीवी कैमरे तोड़ दिए और डीवीआर उखाड़ कर ले गए थे. लेकिन पुलिस को यकीन था कि आसपास के किसी मकान में सीसीटीवी जरूर लगा होगा, जिस से बदमाशों तक पहुंचने में मदद मिल सकती है. पुलिस ने जब सीसीटीवी की जानकारी हासिल कर उन्हें खंगालने का काम शुरू किया तो सुखबीर के मकान से 2 मकान छोड़ कर एक दुकान के बाहर लगे सीसीटीवी की फुटेज में पुलिस को वह फुटेज मिल गई, जिस में बदमाश आतेजाते दिख रहे थे. इस फुटेज से पता चला कि 11 अगस्त, 2020 की दोपहर 1 बज कर 37 मिनट पर 4 युवक 2 बाइकों से मकान के पास गली में आए. उन्होंने बाइकों को मकान से कुछ दूर खड़ा किया. वे घर के भीतर करीब 42 मिनट तक रहे, जिस के बाद वे 2 बज कर 18 मिनट पर वापस जाते दिखे.

2 युवक पहले घर से निकले, जिन्होंने बाइक स्टार्ट की और मकान के पास आ कर खड़े हो गए. कुछ ही देर बाद 2 युवक मकान में से भागते हुए आए और बाइकों पर बैठ गए. जिस के बाद वे फरार हो गए. वारदात की फुटेज और बदमाशों के सीसीटीवी कैमरे में कैद हो जाना पुलिस के लिए संजीवनी की तरह काम आया. पुलिस ने इन सीसीटीवी फुटेज को अपने कब्जे में ले लिया. हालांकि इन फुटेज में किसी भी मोटरसाइकिल का नंबर तो साफ नहीं दिख रहा था. लेकिन चेहरे रूमाल से ढके होने के बावजूद उन्हें पहचानने में कोई परेशानी नहीं थी. मोनिका व सुखबीर दोनों के घर वालों को बुला कर पुलिस ने वह फुटेज दिखाई तो मनीष ने देखते ही साफ कर दिया कि उन चारों बदमाशों में से एक बदमाश का हुलिया उस के बड़े भाई ब्रह्मजीत की पत्नी उषा (परिवर्तित नाम) के भाई विष्णु से काफी मिलताजुलता है.

जब पुलिस ने उषा व ब्रह्मजीत को वह फुटेज दिखाई तो वे घबरा गए. उन्होंने बताया कि हुलिया विष्णु से मिलताजुलता जरूर है, लेकिन वह अपने ही जीजा की बहन के घर पर ऐसी वारदात क्यों करेगा. विष्णु के वारदात में शामिल होने की पुष्टि करने के लिए पुलिस ने मोनिका के घर वालों से विष्णु का फोन नंबर तथा घर का पता सब हासिल कर लिया. पुलिस ने विष्णु को दबोचने की तैयारी शुरू कर दी, लेकिन इस से पहले पुलिस ने विष्णु के फोन की काल डिटेल्स निकलवा ली. क्योंकि पुलिस यह विश्वास कर लेना चाहती थी कि जिस बदमाश के विष्णु होने की शंका जताई जा रही है वो असल में विष्णु है भी या नहीं.

काल डिटेल्स सामने आई तो पता चला कि सीसीटीवी फुटेज में जिस वक्त 4 बदमाश सुखबीर के घर में वारदात करने के लिए घुसे थे, उस वक्त विष्णु के मोबाइल की लोकेशन सुखबीर के घर पर ही थी. इस से साफ हो गया कि इस वारदात में विष्णु शामिल था. पुलिस के लिए इस वारदात का खुलासा करने के लिए यह एक बड़ी लीड थी. पुलिस की एक टीम ने दिल्ली का रुख किया. विष्णु दिल्ली के भजनपुरा में रहता था. पुलिस की टीम ने उसे रात के वक्त सोते हुए उस के घर से ही दबोच लिया. विष्णु को फरीदाबाद के तिगांव थाने में ला कर जब उस से सख्ती से पूछताछ की गई तो उस ने कुबूल कर लिया कि सुखबीर व मोनिका की हत्या उस ने मेरठ के किला परीक्षितगढ़ के रहने वाले अपने 3 साथियों के साथ मिल कर की थी. इस वारदात को उस ने अपने जीजा यानी बहन उषा के पति ब्रह्मजीत के कहने पर अंजाम दिया.

एक भाई आखिर अपनी बहन और उस के पति की हत्या क्यों करवाएगा? पुलिस को यह बात थोड़ी अटपटी लगी. लेकिन जब विष्णु से गहराई से पूछताछ हुई और उस ने कारण बताया तो पुलिस भी चौंकी. पुलिस को यकीन हो गया कि ब्रह्मजीत ही इस हत्याकांड का असली मास्टरमाइंड है. लिहाजा पुलिस ने उसी रात ब्रह्मजीत को भी हिरासत में ले लिया. इस के बाद पुलिस ने ताबड़तोड़ छापेमारी शुरू की और जल्द ही विष्णु के तीनों साथी सोनू, यतिन उर्फ छोटू और कुलदीप कुमार उर्फ कैलाश सिंह को भी मेरठ से गिरफ्तार कर लिया.

सभी आरोपियों से पूछताछ के बाद सुखबीर व मोनिका हत्याकांड की कहानी कुछ इस तरह सामने आई. सुखबीर चूंकि पिछले 2 साल से अपनी ससुराल जसाना में ही मकान बना कर रहने लगा था. इसलिए अपनी ससुराल वालों के घर में उस का बेधड़क आनाजाना था. पुराने और गांवदेहात के लोग आज भी घर के दामाद को बड़ा मान देते हैं. सुखबीर की पत्नी मोनिका के 2 भाई हैं मनीष और ब्रह्मजीत. दोनों ही शादीशुदा हैं और दोनों लंबेचौड़े घर में अलगअलग हिस्सों में रहते हैं. सुखबीर अपने दोनों सालों के घर में बेधड़क आताजाता था. ब्रह्मजीत की पत्नी उषा देखने में परिवार की दूसरी महिलाओं से कुछ ज्यादा सुंदर थी. लिहाजा सुखबीर उस के घर कुछ ज्यादा और बेधड़क आताजाता था. उषा भी खुले स्वभाव की थी.

चूंकि सुखबीर उस की ननद का पति था, इसलिए वह उस का बेहद सम्मान करती थी. लेकिन जब कभी सुखबीर उस के साथ हंसीमजाक करता तो वह भी उस से हंसीमजाक कर लेती थी. हुआ यूं कि करीब 2 महीने पहले सुखबीर जब ब्रह्मजीत के घर पहुंचा तो वह घर में नहीं था और उस की पत्नी नहाने के लिए बाथरूम में थी. सुखबीर सोफे पर बैठ कर उस के बाहर आने का इंतजार कर रहा था कि उस की नजर सामने पड़े उषा के मोबाइल फोन पर पड़ी. उत्सुकतावश उस ने उषा का फोन उठा लिया और उसे चैक करने लगा. उस ने उत्सुकता में ही फोन उठा कर परिवार की फोटो तथा वीडियो देखना शुरू कर दिया. अचानक कुछ ऐसी वीडियो और फोटो देख कर उस के होश उड़ गए, जिस में उषा ने अपने निजी पलों की ऐसी तसवीरें तथा वीडियो बनाए हुए थे, जिस में वह पूरी तरह या तो निर्वस्त्र थी या उस के शरीर पर बहुत कम कपडे़ थे.

सुखबीर की पत्नी मोनिका भी हालांकि बेहद खूबसूरत थी लेकिन ब्रह्मजीत की पत्नी उषा जिसे वह भाभी कहता था, अपने कदकाठी और छरहरे बदन के कारण हमेशा उस के आकर्षण का केंद्र रही. उस दिन सुखबीर ने जब उषा की ऐसी फोटो तथा वीडियो क्लिप देखीं तो उस की आंखों में उषा के प्रति कामना के डोरे तैरने लगे. मन में उषा को अपना बनाने की तमन्ना का ज्वार फूटने लगा. हालांकि किसी की इजाजत के बिना चोरीछिपे उस का मोबाइल देखना एक तरह गलत काम है. लेकिन उस दिन पूरे परिवार की इज्जत का तारा बना सुखबीर यह पाप कर बैठा. उस ने उषा के बाथरूम से आने के पहले ही उस के मोबाइल में पड़ी उस की निजी पलों की फोटो और वीडियो अपने मोबाइल में ट्रांसफर कर लीं और ट्रांसफर हिस्ट्री को डिलीट कर दिया ताकि किसी को पता न लगे.

उस वक्त सुखबीर को नहीं पता था कि उस ने किस मकसद से उषा के फोटो और वीडियो अपने फोन में ट्रांसफर किए हैं. लेकिन कुछ दिन बाद जब उस ने एकांत में उन तसवीरों और क्लिप को देखना शुरू किया तो उस के मन में उषा को पाने की लालसा जाग उठी. आखिर एक दिन सुखबीर जब ब्रह्मजीत के घर गया और उस ने उषा को अकेला पाया तो उस ने अपने दिल की बात उषा से कह दी. दरअसल, उस दिन सुखबीर ने उषा से ऐसी द्विअर्थी बातचीत शुरू की जिस से उषा भी अचकचा गई. सुखबीर ने उषा से उस के छरहरे बदन, उस के सांचे में ढले जिस्म की तारीफें इस तरह करनी शुरू कर दीं कि उषा ने पूछ ही लिया, ‘‘जीजाजी, आज आप ये कैसी बहकीबहकी सी बातें कर रहे हैं?’’

सुखबीर ने मौका देख कर खुल कर बताने की जगह अपना मोबाइल खोल कर उषा को उस की तसवीरें और वीडियो दिखानी शुरू कर दीं और बोला, ‘‘उषा भाभी, आप की ऐसी तसवीरें देख कर तो विश्वामित्र की तपस्या भी भंग हो सकती है हम तो वैसे भी आप के हुस्न के पहले से कद्रदान हैं. भाभी, कभी हम पर भी अपने इस हुस्न की बरसात कर दो.’’

दरअसल सुखबीर को लगा था कि अपने फोन से उषा को उसी की आपत्तिजनक तस्वीरें दिखाने से उषा की उस के प्रति हिचक दूर हो जाएगी और वह शरमातेसकुचाते हुए उस के अंकपाश में आ जाएगी. लेकिन हुआ इस का उलटा. उस दिन उषा की सुखबीर से खूब बहस हुई. उस ने सुखबीर की खूब लानतमलामत की और उसे चेतावनी दी कि अगर उस ने अपने मोबाइल से चोरी से ट्रांसफर की गई उस की फोटो और वीडियो डिलीट नहीं कीं तो इस का अंजाम बहुत बुरा होगा. सुखबीर को उषा के ऐसे रिएक्शन की उम्मीद नहीं थी. लेकिन उसे उम्मीद थी कि अगर वह थोड़ा सा और प्रयास करेगा तो उषा उस की बाहों में जरूर आ जाएगी. उस ने उषा की फोटो तथा वीडियो तो डिलीट नहीं कीं, लेकिन इस के बाद उषा से ऐसे वक्त पर फोन कर के बातचीत जरूर शुरू कर दी, जब वह घर में अकेली होती थी.

वह सब बातें वाट्सऐप काल के जरिए करता था. उस ने उषा पर दबाव डालना शुरू कर दिया कि अगर उस ने उस का दिल नहीं बहलाया तो हो सकता है वह उस की ये फोटो और वीडियो कुछ ऐसे लोगों तक पहुंचा दे, जिस से उस का जीना मुश्किल हो जाए और दुनिया भर में उस की बदनामी हो जाए. इस बात को ले कर उषा अकसर तनाव में रहने लगी. इसी दौरान ब्रह्मजीत को भी उषा के बदले हुए व्यवहार तथा उस के तनाव में रहने का अहसास हुआ. जब उस ने पत्नी उषा से इस की वजह पूछी तो उषा अपने दिल में भरे गुबार को रोक न सकी. उस ने पति को ननदोई सुखबीर की सारी बात बता दी कि वह किस तरह उसे ब्लैकमेल कर रहा है.

किसी भी पति के लिए पत्नी की इज्जत सब से बड़ी चीज होती है. लेकिन मुश्किल यह थी कि इस हरकत को करने वाला भी कोई गैर नहीं, बल्कि एकलौती बहन का पति था. उस ने उषा को समझाया कि फिलहाल वह चुप रहे, वह जल्द ही कोई रास्ता निकालेगा. इसी तरह कई दिन बीत गए. दूसरी तरफ सुखबीर फोन कर के उषा को हर दिन ब्लैकमेल कर के अपना दबाव बढ़ाता जा रहा था. इसी बीच 3 अगस्त को रक्षाबंधन आ गया. चूंकि उषा का तनाव के कारण मन ठीक नहीं था, इसलिए उस ने अपने भाई विष्णु से कह दिया कि वह इस बार घर नहीं आ सकेगी. वह राखी बंधवाने खुद ही आ जाए.

उषा का भाई विष्णु जब रक्षाबंधन पर उस के पास आया तो बहन के चेहरे पर फैली उदासी तथा तनाव उस से छिप नहीं सका. उस ने अपनी कसम दे कर उषा से पूछ ही लिया कि ऐसी कौन सी बात है जिस की वजह से वह परेशान है. न चाहते हुए भी उषा को भाई से सुखबीर की तरफ से उसे ब्लैकमेल किए जाने की सारी बात बतानी पड़ी. किसी भाई के लिए रक्षाबंधन के दिन उस की बहन की अस्मत पर आंच आने की बात पता चलना कितनी बड़ी पीड़ा होती है, यह कोई उस दिन विष्णु के दिल से पूछ सकता था. सुखबीर की इस घिनौनी हरकत को जान कर उस का खून खौल उठा लेकिन उस की बहन उषा ने उसे अपनी कसम दे कर शांत कर दिया.

उस दिन विष्णु को सुखबीर से ज्यादा गुस्सा अपने जीजा ब्रह्मजीत पर आया. उस ने अपने जीजा को खूब लानत दी और धिक्कारा कि पत्नी के इतने बड़े अपमान के बाद भी किस तरह उस का खून ठंडा पड़ा है.

‘‘ऐसा नही है विष्णु कि मेरा खून ठंडा पड़ा है. मेरा मन तो चाहता है कि उस कमीने को अभी जा कर खत्म कर दूं लेकिन फिर सोचता हूं कि अगर मैं ने जोश में ये काम कर दिया तो मुझे पुलिस पकड़ लेगी.

‘‘फिर उषा का क्या होगा. क्योंकि सब जानते हैं कि वह मेरा जीजा है…कितनी भी सफाई से काम करूं लेकिन भेद तो देरसबेर खुल ही जाएगा.’’

बात विष्णु की भी समझ में आ गई. उस ने जीजा से कहा, ‘‘तुम कहो तो मैं ऐसे लोगों का इंतजाम कर दूं कि वे इस हरामजादे का काम तमाम कर दें.’’

‘‘कोई है तुम्हारी नजर में तो देखो.क्योंकि उषा की इस बेइज्जती के बाद से मेरी रातों की नींद उड़ी हुई है.’’ ब्रह्मजीत ने कहा.

लेकिन साथ ही उस ने यह भी कहा कि उस के पास इस काम को करने वाले लोगों को देने के लिए पैसा नहीं है. लेकिन उन्हें सुखबीर के घर में इतना माल तो मिल ही जाएगा कि उन्हें काम करने का मलाल नहीं होगा. क्योंकि उस के पास पैसे की कोई कमी नहीं है. उस दिन ब्रह्मजीत और विष्णु ने सुखबीर की हत्या का पूरा मन बना लिया और विष्णु दिल्ली आने के बाद इस काम के लिए भाडे़ के हत्यारे जुटाने में लग गया. सब से पहले उस ने हत्या के लिए 2 तंमचे व कारतूस खरीदे तथा उन्हें ला कर अपने जीजा को दे गया. इस के बाद उस ने अपने 3 पुराने जानकारों मेरठ के परीक्षितगढ़ निवासी सोनू, यतिन उर्फ छोटू व कुलदीप कुमार उर्फ कैलाश सिंह से इस बारे में बात की.

दरअसल, विष्णु अवैध शराब की तस्करी के धंधे से जुडा था. मेरठ के उस के तीनों दोस्त भी इसी धंधे में थे और कभीकभी उस से माल खरीदते थे. विष्णु ने उन से बताया कि उस की बहन को उस का ननदोई कुछ गलत फोटो और वीडियो दिखा कर ब्लैकमेल कर रहा है. वह चाहता है कि वे तीनों बहन के ननदोई की हत्या करने में उस की मदद करें. उन्हें घर से इतना माल मिल जाएगा कि इस काम के लिए उन्हें पछताना नहीं पडे़गा. माल मिलने और बहन की खातिर दोस्त की मदद करने के नाम पर सोनू, छोटू व कुलदीप इस काम को करने के लिए तैयार हो गए. बस इस के बाद विष्णु ने जीजा ब्रह्मजीत के साथ मिल कर सुखबीर की हत्या का पूरा तानाबाना बुन लिया.

वारदात को अंजाम देने से पहले एक दिन शाम के वक्त तीनों ने विष्णु के साथ आ कर सुखबीर के घर का निरीक्षण भी कर लिया. उस के बाद उन्होंने परतापुर इलाके से 2 मोटरसाइकिल चुराईं. जन्माष्टमी के दिन वारदात करने के लिए चुना और उस दिन चोरी की दोनों मोटरसाइकिलों पर सवार हो कर विष्णु अपने तीनों दोस्तों के साथ जसाना गांव पहुंच गया. गांव के बाहर ब्रह्मजीत से उन की मुलाकात हुई. उस ने चारों को पहले से खरीदे गए तमंचे और एक पिस्टल दिया. इस के बाद ब्रह्मजीत अपने घर चला गया और बाकी चारों लोग अपना काम करने के लिए सुखबीर के घर पहुंच गए.

संयोग यह था कि सुखबीर जहां रहता था, वह गली सुनसान रहती थी. इसलिए उन्हें वहां आते किसी ने नहीं देखा. उन्होंने घर में घुसते ही सुखबीर तथा मोनिका को बंधक बना लिया. बड़ी सर्जिकल टेप से दोनों के हाथपांव बांध दिए. फिर घर में लूटपाट की. घर में जो भी गहना व नकदी मिली उसे एक बैग में भर लिया और बाद में सुखबीर तथा मोनिका को गोली मार दी. हालांकि ब्रह्मजीत ने कहा था कि उन्हें मुंह पर कपड़ा बांध कर केवल सुखबीर की हत्या करनी है. लेकिन मोनिका ने वारदात के दौरान विष्णु का चेहरा देख लिया और पहचान लिया था. इसलिए उन्होंने पकड़े जाने के डर से मोनिका की भी हत्या कर दी थी.

चूंकि सुखवीर जिस जगह पर मकान बना कर रहता था, वहां पर आसपास और पीछे के एरिया में सभी प्लौट खाली थे. जबकि सामने पड़ोस में रहने वाले मकान मालिक घटना के समय घर पर नहीं थे. यह परिवार किसी काम से बाहर गया हुआ था. किसी ने भी गोली चलने की आवाज नहीं सुनी. लेकिन उन के घर के बाहर बनी एक दुकान के बाहर लगे सीसीटीवी कैमरे में बदमाशों के आने की सारी रिकार्डिंग हो गई. वारदात को अंजाम देने के बाद उन्होंने घर में रखा एक लैपटौप, सुखबीर व मोनिका के मोबाइल फोन तथा सीसीटीवी का डीवीआर भी उखाड़ कर बैग में भर लिया और सीसीटीवी कैमरे तोड़ दिए.

क्योंकि ब्रह्मजीत ने उन्हें पहले ही बता दिया था कि सुखबीर के घर में सीसीटीवी लगा है. इस से उन्हें लगा कि अब उन्हें कोई नहीं पकड़ पाएगा. लेकिन उन्हें यह पता नहीं था कि पड़ोस के मकान में लगा सीसीटीवी उन के अपराध की चुगली कर देगा. 13 अगस्त को जरूरी पूछताछ के बाद पुलिस ने पांचों आरोपियों को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें 3 दिन की पुलिस हिरासत में भेज दिया गया. हिरासत में पूछताछ के बाद पुलिस ने उन की निशानदेही पर हत्या में प्रयोग किए गए 2 देसी तमंचे, 1 पिस्तौल, एक जिंदा कारतूस और एक चोरी की मोटरसाइकिल मेरठ शहर के पास मेन रोड पर झाड़ी से बरामद कर ली.

दूसरी मोटरसाइकिल पास ही दूसरी झाड़ी में मिली जो उन्होंने मेरठ के थाना परतापुर एरिया से चोरी की थी. आरोपी विष्णु के घर से सैमसंग फोन, सोने की एक चेन और 1200 रुपए नकद बरामद किए गए.  आरोपी कुलदीप से एक हजार रुपए नकद, सोने के एक जोड़ी झुमके, चांदी की एक चेन उस की बहन की ससुराल से बरामद की. आरोपी सोनू से एक लूटा हुआ लैपटौप एक मोबाइल फोन सिम कार्ड के साथ 2 हजार रुपए नकद बरामद किए गए. आरोपी जतिन से सोने के एक जोड़ी झुमके, डकैती के 2 हजार रुपए और वारदात में पहने हुए कपड़े बरामद किए गए. इस के साथ ही उस का खुद का एक मोबाइल और सिम भी बरामद किया गया.

पूछताछ में विष्णु ने बताया कि हत्या के बाद सुखबीर का मोबाइल वह अनलौक नहीं कर पा रहा था. सुखवीर के मोबाइल और लैपटौप में उस की बहन की अश्लील तसवीरें थीं. इसी वजह से हत्या के बाद विष्णु उसे साथ ले गया था. पुलिस ने दोनों मोबाइल और लैपटौप उस के पास से ही बरामद किए. सुखबीर की हत्या उस के ही घर में करने की प्लानिंग ब्रह्मजीत ने इसीलिए रची थी कि भाड़े पर लाए गए शूटरों को पैसे न देने पड़ें. उन्होंने लूटा हुआ माल सुपारी के तौर पर शूटरों को ही रखने का लालच दिया था. लेकिन बदमाशों को दुर्भाग्य से वहां से ज्यादा नकदी और गहने नहीं मिले. ब्रह्मजीत ने ही उस दिन विष्णु को सुखबीर के घर पर होने की जानकारी दी थी.

पुलिस ने 16 अगस्त, 2020 को मुकदमे में शस्त्र अधिनियम तथा साजिश की धारा जोड़ कर पांचों अभियुक्तों को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें नीमका जेल भेज दिया गया है. दूसरी तरफ मृतक सुखबीर के बड़े भाई सतबीर चंदीला ने मीडिया के सामने खुलासा किया है कि उन के भाई पर साले की पत्नी से ब्लैकमेलिंग का झूठा आरोप लगा कर जानबूझ कर बदनाम किया है. उन्होंने बताया कि सुखबीर ने खुद अपनी पत्नी और ससुराल वालों से भाभी की शिकायत की थी कि वह उसे अश्लील तसवीरें भेजती है. इस बात को ले कर रक्षाबंधन से पहले सुखबीर के ससुराल में तीखी नोंकझोंक भी हुई थी.

—कथा पुलिस की जांच व आरोपियों के बयानों पर आधारित