डीपफेक : टेक्नोलॉजी का गलत इस्तेमाल

जब से प्रो. वरिंदर कालेज के मास कम्युनिकेशन विभाग में आए थे, तब से इस विभाग में स्टूडेंट्स काफी बढ़ गए थे. हर स्टूडेंट प्रो. वरिंदर के पढ़ाने के तरीके से प्रभावित था. यह हिमाचल के रहने वाले थे और कालेज के हौस्टल में ही रहते थे. सभी स्टूडेंट्स उन के दीवाने थे, क्योंकि वह काफी हैंडसम थे.

किसी को भी अंदाजा नहीं था कि प्रो. वरिंदर का अश्लील वीडियो वायरल हो जाएगा. सभी तरफ इस वीडियो की ही चर्चा हो रही थी. प्रो. वरिंदर खुद हैरान थे कि यह कैसे हो सकता है.

कालेज, शहर, देशविदेश में यह वीडियो जंगल की आग की तरह फैल गया था. प्रिंसिपल गुरदयाल सिंह ने प्रो. वरिंदर को अपनी केबिन में बुलाया और उस वायरल वीडियो के बारे में पूछा.

”सर, यह वीडियो मेरा नहीं है.’’ प्रो. वङ्क्षरदर ने प्रिंसिपल साहब को सफाई दी.

”लेकिन वीडियो में तो आप ही हैं. वरिंदरजी, आप खुद देखो न, आप खुद हो, साथ में लड़की नैना है, जो बार बार आप से कई टौपिक पर पूछती रहती थी. यह कमरा, बैडरूम, दीवार अपने ही हैं. दीवार पर अलगअलग स्टिकर लगे हुए हैं. यह कमरा तो अपने ही हौस्टल का ही है. सौरी वरिंदरजी, हम कालेज की बदनामी नहीं करा सकते. जब तक यह वीडियो वाली बात साफ नहीं हो जाती, सच्चाई पता नहीं चल जाती, प्लीज आप कालेज मत आना. मुझे इस की जानकारी पुलिस को देनी पड़ेगी.’’

”पर सर, मैं नहीं हूं. जो लड़की है वह मेरी स्टूडेंट है, फिर मैं यह कैसे कर सकता हूं.’’ प्रो. वङ्क्षरदर ने कहा.

प्रिंसिपल गुरदयाल सिंह ने खुद ही इंसपेक्टर को फोन मिलाया और कहा, ”मलकीतजी, कालेज जल्दी आना.’’

इंसपेक्टर मलकीत सिंह पिं्रसिपल का दोस्त था.

”कोई खास वजह?’’ इंसपेक्टर मलकीत ने पूछा.

”मेरे कालेज के प्रो. वरिंदर हैं, उन का एक वीडियो काफी वायरल हो रहा है.’’

”अच्छा…. वो वाला वीडियो… यह तो काफी वायरल है. मैं आता हूं.’’ इंसपेक्टर ने कहा.

प्रो. वरिंदर काफी उदास थे. उन का एक स्टूडेंट रमन उन्हें काफी हौसला दे रहा था. रमन मास कम्युनिकेशन का स्टूडेंट था. उसे तकनीकी जानकारी बहुत थी. अच्छे वीडियो बनाता था. उसे फोटोग्राफी का भी शौक था. मौडलिंग भी करता था. कालेज के स्टूडेंट्स को ले कर वह शार्ट मूवीज भी बनाता रहता था.

उस ने प्रो. वङ्क्षरदर से कहा, ”सर,  आप चिंता न करें. हम इस का हल ढूंढ निकालेंगे.’’

प्रो. वरिंदर को रमन की बातें सुन कर हौसला मिलता था कि मेरा यह कितना खयाल रख रहा है.

इंसपेक्टर मलकीत सिंह पुलिस टीम के साथ कालेज पहुंच गए. कालेज में छुट्टी होने के कारण स्टूडेंट्स नहीं थे. पुलिस ने प्रिंसिपल गुरदयाल के साथ काफी लंबी बातचीत की. प्रो. वरिंदर को भी बुलाया.

”प्रो. साहब, यह वीडियो आप की है?’’ इंसपेक्टर मलकीत सिंह ने पूछा.

”नहीं सर, मेरी नहीं है.’’ प्रो. वङ्क्षरदर ने बताया.

”पर लग तो आप ही रहे हैं.’’

”नहीं सर, यह मेरी वीडियो नहीं है.’’

”यह लड़की कौन है?’’

”सर, यह लड़की नैना है. पर सर, मैं तो इस लड़की से मिला ही नहीं. बस यह किसी टौपिक के बारे में मुझ से पूछती और चली जाती थी. वह हमेशा अपनी सहेलियों के साथ ही आती थी.

“पर प्रोफेसर साहब, यह वीडियो तो आप की ही लगती है.’’

”नहीं इंसपेक्टर साहब, यह मैं नहीं हूं. आप मेरा रिकौर्ड चैक करवा सकते हैं.’’

”रिकौर्ड तो सामने ही है,’’ इंसपेक्टर मलकीत ने हंसते हुए कहा.

”नहीं सर, सच मानो मैं नहीं हूं.’’

वीडियो देख कर प्रिंसिपल को क्यों आया पसीना

इस मौके पर लड़की नैना को भी बुलाया गया, जो काफी रो रही थी. वह भी बोली, ”सर, यह मैं नहीं हूं. मैं तो अकेली सर को मिली ही नहीं. जब भी मिली हूं तो मेरी सहेलियां नमिता, नीतिका साथ में ही होती थीं.’’

”बेटा हम समझते हैं, पर आप हमारा साथ दोगे तो अच्छा रहेगा.’’ इंसपेक्टर ने समझाया.

”सर, मैं सच कहती हूं, यह मैं नहीं हूं. मैं तो अकेले कभी सर से मिली ही नहीं.’’

वे बात ही कर रहे थे कि प्रिंसिपल गुरदयाल के चेहरे पर पसीना छलक आया था. वह कोई वीडियो मोबाइल पर देख रहे थे, जिस में 2 निर्वस्त्र लड़कियां थीं…

इंसपेक्टर मलकीत सिंह ने कहा, ”गुरदयाल सिंहजी क्या हुआ..?’’

प्रिंसिपल ने साइड में इंसपेक्टर मलकीत को ले जा कर वीडियो दिखाते हुए कहा, ”यह भी कालेज की लड़कियों का है जो बिलकुल नंगी हैं और एकदूसरे के साथ चिपक रही हैं.’’

नीचे एक मैसेज भी लिखा था ‘आप देखते जाओ, मेरे पास आप के कालेज के काफी वीडियो हैं. जो एक के बाद एक बाहर आऐंगे. हां प्रिंसिपल साहब, आप के वीडियो भी हैं मेरे पास… जितने मरजी एक्सपर्ट बुला लें, आप को नहीं पता चलेगा कि वीडियो कहां से लोड हो रही है.’

इंसपेक्टर मलकीत ने प्रो. वरिंदर और नैना को जाने को कहा.

”गुरदयालजी, यह मामला सिर्फ प्रो. वरिंदर और नैना का नहीं है. यह तो आप के कालेज का मामला लगता है. ये दोनों लड़कियां कौन हैं?’’

”ये हमारे कालेज की ही रानी और मोना हैं. ये इतनी घटिया हरकत कर सकती हैं, मैं ने सोचा नहीं था.’’

इंसपेक्टर ने प्रिंसिपल गुरदयाल, प्रो. वरिंदर, नैना, रानी, मोना सभी के मोबाइल नंबर लिए और कालेज से चले गए. उन को थाने से फोन आया था कि गांव के सरपंच ने अपनी बुजुर्ग मां को घर से बाहर निकाल दिया है, सारा गांव ही थाने आया है.

प्रिंसिपल की हालत बहुत खराब थी. प्रो. वरिंदर का मामला सुलझा नहीं था कि एक और वीडियो सामने आ गया. प्रिंसिपल सोच में डूबे थे कि स्टूडेंट रमन उन के पास आया, ”सर, मेरे कई दोस्त एक्सपर्ट हैं, जो पता लगा सकते हैं कि वीडियो कहां से अपलोड हो रहे हैं. ये साइबर एक्सपर्ट हैं.’’

रमन की बात प्रिंसिपल गुरदयाल को अच्छी लगी. रमन ने प्रिंसिपल के कहने पर अपने एक्सपर्ट दोस्तों को कालेज के बाहर ही रूम ले कर दे दिया. वे खोज खबर में लग गए. रमन अपने दोस्तों के साथ रात को जाम भी छलकाने लगा.

प्रिंसिपल गुरदयाल को उम्मीद थी कि बहुत जल्दी ही दोषी पकड़ा जाएगा.

शाम 5 बजे कालेज से सभी स्टूडैंट्स चले जाते थे. इंसपेक्टर मलकीत अपनी टीम के साथ आए और काफी बातें कीं.

”आप की पत्नी डा. नीता कहां है?’’ इंसपेक्टर मलकीत ने प्रिंसिपल से पूछा.

पत्नी का नाम सुन कर प्रिंसिपल हैरान हो गए.

प्रिंसिपल का चेहरा पढ़ते हुए वह बोले, ”जी हां, आप की पत्नी डा. नीता जी…’’

”मेरी पत्नी से कई साल से बोलचाल बंद है. हमारे संबंध ठीक नहीं हैं. क्या यह मेरी पत्नी ने..?

”नहीं, नहीं… मैं ने ऐसा नहीं कहा. दरअसल, हम ने कालेज के कई पुराने लोगों से बात की तो पता चला कि आप की पत्नी के साथ आप के संबंध ठीक नहीं हैं.’’ इंसपेक्टर ने कहा.

डा. नीता क्यों हुई पति के खिलाफ

इंसपेक्टर मलकीत ने उन से डा. नीता का मोबाइल नंबर लिया. उन्होंने डा. नीता को थाने बुलाया. पूछताछ करने पर डा. नीता ने कहा, ”इस प्रिंसिपल ने तो मेरी जिंदगी ही बरबाद कर दी. मैं पछता रही हूं इन से शादी कर के.’’

”डा. नीताजी, आप यह बताएं कि आप के पति प्रिंसिपल गुरदयाल कैसे आदमी हैं?

”बहुत ही घटिया हैं,’’ डा. नीता ने बिंदास कहा, ”मैं तो शादी कर के पछता रही हूं. मुझे पता है कि मैं ने अपनी बेटी को कैसे पाला. फिर विदेश भेजा, इन को तो पूरी जिंदगी कालेज से ही फुरसत नहीं मिली. मैं तो डाक्टर थी, काम अच्छा था तो मैं ठीक रही, नहीं तो मैं भी इन के साथ किताबों में गुम हो जाती.’’

”डा. नीता, कालेज के एक प्रोफेसर का वीडियो काफी वायरल हुआ है. इसी के लिए मैं ने आप को बुलाया है.’’ इंसपेक्टर ने कहा.

”आप का मतलब यह मैं ने किया…’’

”नहीं, हम यह नहीं कह रहे हैं कि आप ने किया, हमें तो सिर्फ यह जानना था कि आप के पास भी कारण है कि प्रिंसिपल साहब को बदनाम करने का…’’

”क्या फालतू सवाल है? मुझे इन को बदनाम करना होता तो 12 साल पहले ही कर देती, जब मैं इन से अलग हुई थी. नहीं, यह सब झूठ है. आप मेरा मोबाइल चैक कर सकते हैं… मेरा नंबर तो आप के पास है ही, मेरी बेटी का यह नंबर है.

आप के पास तो अडवांस टैक्निक है, आप पता कर सकते हैं. हमारे रिश्ते बेशक ठीक नहीं हैं, मैं एक डाक्टर के नाते ऐसा नहीं कर सकती. मेरी भी सोशल इमेज है. मेरे अस्पताल जा कर भी आप मेरे बारे में पूछ सकते हैं.’’ डा. नीता ने सफाई दी.

”वह हम पता लगा लेंगे, लेकिन जब तक यह केस हल नहीं हो जाता, आप शहर के बाहर हमें बता कर जाना.’’

रमन और उस की टीम कोई न कोई खबर बना कर प्रिंसिपल गुरदयाल से काफी पैसे ले चुकी थी. रमन और दोस्तों का शाम का दारू और लेट नाइट बार डांस अच्छा चल रहा था.

इंसपेक्टर ने प्रो. वरिंदर को फिर थाने बुलाया. उन्होंने पूछा, ”आप के प्रिंसिपल सर कैसे हैं?’’

”सर अच्छे हैं.’’

”उन के पत्नी के साथ रिलेशन कैसे हैं?’’ इंसपेक्टर मलकीत ने पूछा.

”इतना ही पता है कि पत्नी अलग रहती है और बेटी विदेश में है.’’

रमन प्रिंसिपल से जब भी मिलता तो कुछ न कुछ पैसे ले लेता.

”सर, ये वीडियो विदेश की आईडी से लोड किए गए हैं.’’ सीआईए स्टाफ के रणजीत सिंह की टीम ने जांच कर इंसपेक्टर मलकीत से कहा.

इंसपेक्टर मलकीत ने प्रो. वरिंदर को फिर बुलाया और उन से पूछा, ”आप की यहां पर कोई दुश्मनी, कालेज स्टडी समय हिमाचल में कोई दुश्मनी आदि तो नहीं थी?’’

”दुश्मनी तो मेरी किसी से नहीं… लेकिन एक बार रमन के साथ झगड़ा हुआ था, जब इस ने एक लड़की की कुछ अश्लील तसवीरें खींची थीं. मैं ने रमन को मना किया था तो उस ने सौरी भी बोला था कि आगे से ऐसा नहीं करेगा… यह बात जब प्रिंसिपल सर को पता चली तो उन्होंने रमन को थप्पड़ मारा था. यह मामला तो 2 साल पहले का है. पर रमन तो अब काफी बदल चुका है.’’ प्रो. वरिंदर ने बताया.

पुलिस ने कई ऐंगल से इस को ध्यान से देखा. अपने खबरी भी अलर्ट किए. हर छोटी से छोटी जानकारी हासिल की.

छात्रों ने प्रिंसिपल से किस बात का लिया बदला

संडे का दिन था, प्रिंसिपल गुरदयाल सिंह नाश्ता कर रहे थे. तभी इंसपेक्टर मलकीत पुलिस टीम के साथ कालेज के हौस्टल में पहुंच गए. गुरदयाल ने उन से नाश्ता करने को कहा.

तभी इंसपेक्टर ने कहा, ”नहीं सर, पहले काम बाकी बातें और नाश्ता बाद में. प्रिंसिपल साहब, आप यह बताएं कि पिछले कुछ दिनों से आप एक नंबर पर पैसे ट्रांसफर कर रहे हैं. वह बैंक खाता यूपी का है, लेकिन पैसे कालेज के एटीएम से निकाले जा रहे हैं.’’

”पैसे… कौन से पैसे…’’ प्रिंसिपल ने अनजान बनते हुए कहा.

”प्रिंसिपल साहब, झूठ न बोलो, असल मुद्दे पर आओ.’’

प्रिंसिपल को पता चल गया था कि अब झूठ बोल कर कोई फायदा नहीं, इसलिए उन्होंने हकीकत बयां कर दी.

उन्होंने कहा, ”दरअसल, हमारे कालेज के स्टूडेंट रमन ने मुझ से कहा था कि उस के कई दोस्त साइबर एक्सपर्ट हैं. वह पता कर लेंगे कि वीडियो कहां से अपलोड हुई है.’’

”फिर पता चला?’’ इंसपेक्टर मलकीत ने पूछा.

”नहीं…’’

”प्रिंसिपल साहब, यह सब फ्रौड है. यह तो यूपी बिहार के टौप के क्रिमिनल हैं, जो आप को लाखों का चूना लगा रहे हैं.’’

प्रिंसिपल ने अपनी गलती मानी. कालेज के नजदीक नया बाजार में रमन को, जो घर किराए पर ले कर दिया था, पुलिस ने वहां रेड की तो सभी फरार हो चुके थे.

रमन के कई मोबाइल नंबर थे. पुलिस ने अलगअलग स्थानों पर रेड कर के रमन को रेलवे स्टेशन से पकड़ लिया, लेकिन उस के साथी फरार हो गए.

थाने पहुंचते ही रमन ने सारे राज उगल दिए. उस ने कहा, ”मैं ने प्रिंसिपल साहब से बदला लेने के लिए यह सब किया. प्रिंसिपल साहब ने सब स्टूडैंट्स के सामने मुझे थप्पड़ मारे थे, वह भी प्रो. वरिंदर की वजह से. फिर मैं ने डीपफेक तकनीक से चेहरे बदल कर यह सब किया.’’

रमन ने आगे बताया, ”सर, इस वीडियो में वरिंदर सर नहीं हैं, न ही वह लड़की… यह सब मैं ने तैयार करवाए. जो 2 लड़कियों का वीडियो था, वह किसी विदेश की साइट से लिया वीडियो था. मेरे पास मौडलिंग की काफी फोटो थीं, उन्हीं से मैं ने आसानी से वीडियो तैयार कर लिया. वीडियो के पीछे जो बैकग्राऊंड है, वह हमारे कालेज की है.

रमन की स्टोरी सुन कर पुलिस हैरान थी.

पुलिस ने रमन के महंगे मोबाइल को जब देखा तो उस में और भी वीडियो मिले, जिन्हें देख कर इंसपेक्टर मलकीत हैरान रह गए. लड़कियों के नहाने के कई असल वीडियो भी थे. पुलिस ने रमन के कमरे की तलाशी ली तो वहां से ढेर सारी अश्लील मैगजीन, कई लड़कियों के नग्न फोटो, विदेशी अश्लील फिल्में, क्राइम पर लिखी गई कई किताबें मिलीं.

पुलिस यह भी देख कर दंग रह गई कि प्रिंसिपल गुरदयाल का वीडियो तैयार किया जा रहा था. वहां से पुलिस ने कंप्यूटर, सीडी, हार्डडिस्क, टूटा लैपटाप अपने कब्जे में ले लिया.

हकीकत सामने आने के बाद प्रिंसिपल साहब को विश्वास हो गया कि प्रो. वरिंदर बेकुसूर हैं, इसलिए उन्होंने प्रो. वरिंदर को फिर कालेज में रख लिया. इस के बाद उन्होंने कालेज में मोबाइल लाने पर सख्त पाबंदी लगा दी. डीपफेक का राज उजागर कर पुलिस ने रमन के साथियों को भी गिरफ्तार कर लिया.

आखिरी गुनाह करने की ख्वाहिश

वैलेंटाइन डे पर मिली अनोखी सौगात

आखिरी गुनाह करने की ख्वाहिश – भाग 4

2 दिनों तक दोनों आपस में खिंचे खिंचे रहे. तीसरे दिन चुनन शाह ने कहा, ‘‘भावल, मैं मानता हूं कि मैं ने गलती की है. लेकिन वादा करता हूं कि अब आगे कभी इस तरह का घटिया काम नहीं करूंगा.’’

चुनन शाह की इस बात से भावल खान खुश हो गया. सुगरा छिपछिप कर दोनों की बातें सुनती रहती थी. उस ने भावल से कई बार कहा था कि चुनन शाह से पीछा छुड़ा ले. वह कहती थी कि चुनन शाह अच्छा आदमी नही है. तब वह जवाब में कहता, ‘‘सुगरा, मैं भी अच्छा आदमी नहीं हूं.’’

एक दिन अचानक चुनन शाह ने भावल खान से कहा, ‘‘भावल, इस बार तुम्हारी पसंद का काम मिला है. लेकिन काम थोड़ा जटिल है.’’

भावल खान को ऐसे ही काम करने में मजा आता था. वह तैयार हो गया. चुनन शाह ने अपने किसी पुराने साथी के साथ डकैती की योजना बनाई थी. बहुत बड़ी रकम हाथ लगने वाली थी. लेकिन काम सचमुच जटिल था.

उन्हें करेंसी से भरी वैन को लूटना था. उस वैन का ड्राइवर उन की पहचान का था, जो उन की मदद कर रहा था. योजना के अनुसार, वैन से नोटों के बैग उतार कर एक कार से फरार होना था. चुनन शाह ने कार की भी व्यवस्था कर ली थी. भावल खान सुगरा से 2 दिन बाद लौटने की बात कह कर चुनन शाह के साथ चला गया.

अगले दिन सुबह योजना को अंजाम देना था. लेकिन रात को जिस होटल में वे ठहरे थे, वहां पुलिस ने छापा मार कर उन्हें पकड़ लिया. थाने पहुंचने पर पता चला कि उन का तीसरा साथी, जो पहले से ही किसी मामले में वांछित था, उसे दोपहर में ही आते समय पुलिस ने रास्ते से पकड़ लिया था. उसी ने अगले दिन वैन लूटने के बारे में बता कर बाकी लोगों को गिरफ्तार करवा दिया था.

पकड़े जाने के बाद भावल खान को अपने मरहूम बाप की वह बात याद आ गई कि चोर हमेशा अकेला ही कामयाब होता है. लेकिन इस बार भावल खान शहरी लोगों के चक्कर में फंस गया था. उस ने कहा था कि वह इन लोगों को जानता ही नहीं. पुलिस ने जिस आदमी को गिरफ्तार किया था, वह उसे आज ही मिला था.

पुलिस वाले 7 दिनों का रिमांड ले कर भावल खान की धुनाई करते रहे, लेकिन उस से कुछ नहीं उगलवा सके. हार कर उन्होंने उस पर आवारागर्दी का मुकदमा कायम कर जेल भेज दिया. वहां उस की कोई जमानत लेने वाला नहीं था. उसे सुगरा की चिंता थी, लेकिन वह मन को तसल्ली देता कि चुनन शाह तो है ही.

6 महीने बाद भावल खान जेल से बाहर आया. जेल में उस से मिलने न चुनन शाह आया था, न सुगरा. इसलिए उसे चिंता हो रही थी कि कहीं कोई गड़बड़ तो नहीं हो गई. इसलिए जेल से बाहर आते ही वह सीधे उस मकान पर जा पहुंचा, जहां वह रहता था. वहां दोनों नहीं थे. पड़ोसियों से पूछने पर पता चला कि चुनन शाह पंजाब जाने की बात कर रहा था.

भावल खान पंजाब जा पहुंचा. बुआ के घर गया तो पता चला कि सुगरा वहां भी नहीं आई थी. भावल का दिल धक से रह गया. वह समझ गया कि चुनन शाह अपना काम कर गया.

बुआ से पैसे ले कर भावल खान चल पड़ा. शकल सूरत काफी हद तक बदल गई थी, इसलिए वह आसानी से पहचाना नहीं जा सकता था. वह सुगरा और चुनन शाह को गली गली ढूंढ़ता रहा, लेकिन दोनों में से कोई नहीं मिला. इस तरह उसे 5 साल बीत गए.

एक दिन वह शहर के रेडलाइट एरिया से गुजर रहा था तो एक दलाल उस से टकरा गया. उस के लिए यह दुनिया नई नहीं थी. दलाल उसे उस कोठे पर ले गया, जहां उस के जीवन की सब से दर्दनाक स्थिति उस का इंतजार कर रही थी.

भावल खान के सामने बहुत सारी लड़कियां खड़ी थीं, उन में एक सुगरा भी थी. वह हड्डियों का ढांचा बन चुकी थी. उसे देख कर भावल की आंखें फटी की फटी रह गईं. भावल उस की ओर लपका तो वह पागलों की तरह भागी. उस ने लपक कर उस का बाजू पकड़ लिया. उस के मुंह से मुश्किल से निकला, ‘‘सुगरा, तुम यहां?’’

‘‘भावल, खुदा के लिए मेरा नाम मत लो. मुझे छुओ भी मत. सुगरा मर चुकी है.’’

पता नहीं सुगरा क्याक्या बकती रही. भावल उस के साथ एक कमरे में बैठा था. दलाल अपना काम कर के चला गया था. सुगरा ने रोरो कर उसे बताया कि चुनन शाह ने आ कर उस से कहा था कि वह पुलिस मुठभेड़ में मारा गया. अब पुलिस यहां छापा मारने वाली है.

इस के बाद चुनन शाह घर पहुंचाने के बहाने सुगरा को कार से इस अड्डे पर पहुंचा गया था. यहां आने पर उसे पता चला कि वह औरतों का पुराना दलाल था और मुद्दत से औरतों का अपहरण कर के बेचने का धंधा कर रहा था.

सुगरा की कहानी उन बदनसीब लड़कियों से मिलती जुलती थी, जो ऐसे अड्डों तक पहुंचा दी जाती थीं. उस ने भावल को यह भी बताया था कि उस ने 3 बार आत्महत्या करने की कोशिश की थी, लेकिन यहां के लोगों ने उसे मरने भी नहीं दिया था.

भावल ने जब सुगरा से साथ चलने को कहा तो वह बोली, ‘‘भावल, यहां बहादुरी से काम नहीं चल सकता. ये बड़े असरदार लोग हैं. तुम कल दोपहर को गली के अगले वाले चौराहे पर जो डाक्टर है, उस के यहां मिलना. मैं वहां दवा लेने के बहाने जाती हूं. वहां से हम निकल चलेंगे.’’

मजबूर हो कर भावल खान वापस आ गया. रात उस ने करवटों में काटी. योजना के मुताबिक वह डाक्टर के यहां पहुंच गया. लेकिन सुगरा नहीं आई. शाम तक वह उस का इंतजार करता रहा. रात में वह उस के अड्डे पर पहुंचा तो पता चला कि उस ने रात को ही नींद की गोलियां खा कर आत्महत्या कर ली थी. उसे एक लावारिस के रूप में दफना दिया गया था.

इस खबर ने भावल खान को बेचैन कर दिया था. उस की समझ में आ गया था कि उस हालत में सुगरा उस के साथ जाना नहीं चाहती थी. इस के बाद भावल के जीवन का एक ही मकसद रह गया था कि कैसे भी हो, वह उन लोगों को चुनचुन कर मार दे, जिन्होंने उस की सुगरा को और उसे जीतेजी मार डाला था. इस के बाद वह अपने मकसद को पूरा करने के लिए निकल पड़ा.

एक हफ्ते के अंदर भावल ने 10 लोगों को मार दिया था. ये सब वे लोग थे, जिन का सुगरा की बरबादी में किसी न किसी रूप में हाथ था. चुनन शाह न जाने कहां गायब हो गया था. भावल उसे ढूंढ़ता रहा. पुलिस उस के पीछे हाथ धो कर पड़ी थी.

अचानक भावल खान ने रूप बदल कर अपराधों से तौबा कर के दुकान खोल ली. अब वह एक आखिरी गुनाह करने के लिए खुदा से दुआ मांग रहा था कि किसी तरह चुनन शाह मिल जाए और वह उस दुष्ट से इस दुनिया को छुटकारा दिला दे.

भावल ने जो पाप किए थे, उन की माफी मांगने और मन की शांति के लिए कभीकभी वह धर्मगुरुओं के यहां भी चला जाता था. यही उस के लिए फायदेमंद साबित हुआ. एक दिन उसे एक धर्मगुरू के गांव में आने के बारे में पता चला तो वह उन से मिलने पहुंच गया. वहीं भावल को मंजिल मिल गई. उसी पीर के चेलों में चुनन शाह भी था. वह अपना रूप बदले हुए था.

लोग उसे बाबा चुनन शाह के नाम से पुकार रहे थे. भावल समझ गया कि उस ने यह रूप भी अपने धंधे को आगे बढ़ाने के लिए बना रखा है. भावल ने पीछा कर के उस के ठिकाने का पता लगा लिया. फिर एक दिन उस ने उस के साथियों के सामने ही उसे कुत्ते की मौत मार दिया.

भावल ने उस की हत्या कुल्हाड़ी से काट कर की थी. उसे काटते हुए वह चिल्ला चिल्ला कर कह भी रहा था, ‘‘सुगरा का बदला ले रहा हूं. मैं बहराम खान का बेटा भावल खान हूं, जिस ने भी मेरी इज्जत से खेला है, उसे जिंदा रहने का कोई अधिकार नहीं है.’’

भावल खान को रोकने की कोई हिम्मत नहीं कर सका था. वहां से वह सीधे अपने गांव गया. पिता की कब्र पर हाजिरी दी. कानूनी दस्तावेज तैयार करा कर अपनी सारी जमीन बुआ के बेटों को दे दी.

इस के बाद वहां पहुंचा, जहां नियाज अली के रूप में रह रहा था. वहीं से उसे पुलिस ने पकड़ लिया. उस का कहना था कि अगर वह चाहता तो पुलिस उसे कभी न पकड़ पाती. लेकिन अब उस की जिंदगी का कोई मकसद नहीं रह गया था, क्योंकि उस की आखिरी गुनाह करने की जो ख्वाहिश थी, वह पूरी हो गई थी.

आखिरी गुनाह करने की ख्वाहिश – भाग 3

2 हथियारबंद लोगों ने बहराम खान का पीछा किया और वहां से लगभग एक फरलांग की दूरी पर उसे घेर लिया. निहत्था और घायल होने के बावजूद बहराम ने कायर की मौत मरने के बजाय एक पर छलांग लगा दी. उस की गरदन उस के कब्जे में आ गई. बहराम कुछ कर पाता, उस के पहले ही उस के साथी ने बहराम के सिर में एक के बाद एक कर के 6 गोलियां उतार कर अपने साथी को बचा लिया.

इस हमले में भावल खान के पिता तथा उम्मीदवार के साथ 2 अन्य लोग मारे गए. बाकी लोग गंभीर रूप से घायल हुए. विरोधी उम्मीदवार पुलिस की मिलीभगत से पहले ही जेल जा चुका था, इसलिए उस का इस मामले में बाल भी बांका नहीं हो सका.

भावल खान ने अपने पिता को दफनाते समय कसम खाई थी कि वह बाप की मौत का बदला जरूर लेगा. इस के लिए उसे कितनी ही कीमत क्यों न चुकानी पड़े.

बहराम खान ने उसे सिखाया था कि चोर हमेशा अकेला ही कामयाब होता है. लेकिन उस ने बाप का यह नियम चुनन शाह पर विश्वास कर के तोड़ दिया था.

चुनन शाह से भावल खान की दोस्ती हो गई थी. था तो वह भी अपराधी, लेकिन वह दूसरे तरह के अपराध करता था. वह औरतों को बहला फुसला कर ले जाता और कोठों पर बेच देता था. लेकिन उस ने भावल खान को कभी इस की भनक नहीं लगने दी थी. उस ने उस से बताया था कि वह तसकरी करता है.

जिस आदमी ने बहराम खान को मारा था, उसे पता था कि इस इलाके में भावल खान के अलावा कोई दूसरा उस का कुछ नहीं बिगाड़ सकता. शायद इसीलिए उस ने भावल से दोस्ती करने के लिए खूब कोशिश की. लेकिन भावल को तो उस से बदला लेना था. वह दोस्ती कर के उस से बदला नहीं ले सकता था. क्योंकि किसी के साथ धोखेबाजी करना उसे पसंद नहीं था.

चुनन शाह बहुत ही कमीना आदमी था. समय के साथ वह अपने रूप बदलता रहता था. भावल खान के साथ वह इसलिए लगा रहता था, क्योंकि उसे उस के विरोधियों से भावल के अलावा और कोई नहीं बचा सकता था. भावल भी उसे इसलिए साथ रखता था, क्योंकि उस ने उसे नएनए हथियार दिलाए थे. फिर दूसरे इलाकों में भी चुनन शाह की अच्छी जानपहचान थी, इसलिए जरूरत पड़ने पर वह छिपने की व्यवस्था करा सकता था.

आखिर वह मौका आ गया, जिस का भावल खान को बेचैनी से इंतजार था. मध्यावधि चुनाव की घोषणा हो गई. चुनाव प्रचार भी शुरू हो गया. विरोधी उम्मीदवार एक गांव से चुनाव सभा कर के लौट रहा था तो रात हो गई. भावल चुनन शाह के साथ रास्ते में घात लगा कर बैठा था. जैसे ही उस उम्मीदवार की जीप उन के सामने आई, उन्होंने गोलियों की बौछार कर दी, साथ ही हथगोले भी फेंके.

किराए के लोग ऐसे मौकों पर मरना नहीं चाहते. उस विरोधी उम्मीदवार के साथी भी अपनी जान बचाने के लिए गाडि़यों से कूदकूद कर भागे. उम्मीदवार और उस के 2 साथी मारे गए. उन की मौत की पुष्टि हो गई तो भावल चुनन शाह के साथ भाग निकला. भागने की तैयारी उन्होंने पहले से ही कर रखी थी.

अगले दिन भावल चुनन शाह के साथ एक सुरक्षित स्थान पर पहुंच गया. वहां चुनन शाह की जानपहचान काम आई. उस ने वहां रहने के लिए एक कमरा किराए पर ले लिया. चुनन शाह के साथ भावल वहां 3 महीने तक रहा. एक दिन चुनन शाह को बिना बताए ही भावल अपनी बुआ के यहां चला गया. उस के पिता ने बचपन में ही उस की शादी बुआ की बेटी से तय कर दी थी. बुआ उसे देख कर हैरान रह गई.

‘‘बुआजी, आप को घबराने की जरूरत नहीं है.’’ भावल खान ने कहा, ‘‘मैं पिताजी की बात का मान रखने आया हूं, क्योंकि वह चाहते थे कि मेरी शादी सुगरा से हो. मेरे बारे में आप को सब पता ही है. अगर तुम मना भी कर दोगी तो मुझे कोई ऐतराज नहीं होगा. फिर भी मैं चाहता हूं कि पिताजी की आत्मा को दुख न हो.’’

‘‘तू मेरे भाई की निशानी है,’’ बुआ ने भावल के गालों को चूमते हुए कहा, ‘‘तू अच्छा हो या बुरा, बेटियों का भाग्य ईश्वर लिखता है. सुगरा तेरी अमानत है, तू इसे ले जा.’’

तीसरे दिन एक साधारण से समारोह में सुगरा और भावल खान की शादी हो गई. चुनन शाह ने हर काम में एक सगे भाई की तरह बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया. चुनन शाह की सलाह पर भावल सुगरा को ले कर कराची आ गया.

कराची की भीड़भाड़ में भावल खान समा गया. उस ने अपना नाम नियाज अली रख लिया. इसी नाम से उस ने अपना पहचान पत्र भी बनवा लिया और 3 कमरों का बड़ा सा मकान ले लिया था. आगे वाले कमरे में चुनन शाह रहता था, बाकी के पीछे के 2 कमरों में नियाज अली सुगरा के साथ रहता था. यहां उन की जिंदगी आराम से कट रही थी.

समय के साथ बड़ेबड़े खजाने खाली हो जाते हैं. यही भावल खान के साथ भी हुआ. कुछ दिनों में उस की जमापूंजी खत्म हो गई. इस बीच सुगरा उस से कहती रही कि वह पुरानी जिंदगी भूल कर कोई छोटामोटा काम कर ले. लेकिन उसे जो चस्का लग चुका था, वह जल्दी छूटने वाला नहीं था. उस ने कभी भी मामूली चोरी तक नहीं की थी.

चुनन शाह बहुत ही कमीना आदमी था. उस ने देखा कि भावल खान परेशान है तो एक दिन बोला, ‘‘भाईसाहब, इस तरह कब तक काम चलेगा. कहीं न कहीं हाथ मारना ही पड़ेगा.’’

‘‘मैं तैयार हूं. लेकिन शहर वाले काम मैं ने कभी किए नहीं, हम ने तो मर्दों वाले काम किए हैं.’’ भावल खान ने कहा.

‘‘ठीक है, मैं ही बाहर निकलता हूं. शायद कोई पुरानी जानपहचान काम आ जाए.’’ चुनन शाह ने कहा.

‘‘जैसी तुम्हारी इच्छा. मैं तुम्हारे साथ हूं.’’ भावल खान ने कहा.

चुनन शाह चला गया. 3 दिनों बाद वह लौटा तो अकेला नहीं था. उस के साथ एक जवान लड़की थी. भावल खान ने हैरानी से पूछा, ‘‘यह कौन है?’’

चुनन शाह ने आंख से गंदा सा इशारा किया. भावल को गुस्सा आ गया. उस का हाथ उठता, उस के पहले ही चुनन शाह बोल पड़ा, ‘‘भावल यह तुम्हारा गांव नहीं, कराची शहर है. तुम जानते हो, हम दोनों फरार हत्यारे हैं. दिमाग को ठंडा रखो और हां, अगर होशियारी दिखाई तो हम दोनों मारे जाएंगे.’’

भावल खान ने खुद को कभी इतना बेबस और मजबूर नहीं महसूस किया था. शायद सुगरा से शादी कर के वह डरपोक हो गया था. उस ने चुनन शाह की इस बात का कोई जवाब नहीं दिया. अगले दिन चुनन शाह उस लड़की को ले कर गया तो शाम तक वापस आया. भावल ने अंदाजा लगाया कि उस ने उसे ठिकाने लगा दिया है.

आखिरी गुनाह करने की ख्वाहिश – भाग 2

भावल का बाप उसूलों वाला डाकू था. एक दिन उस ने कहा, ‘‘बेटा, इधर के लोग तो हमें पहचानते हैं, इसलिए हम अपना काम सरहद पार करेंगे.’’

बहराम खान जानवरों की चोरी का उस्ताद माना जाता था. उस ने कभी मामूली जानवर पर हाथ नहीं डाला था. उस ने कभी भी सैकड़ों रुपए से कम की घोड़ी नहीं खोली थी. मजे की बात यह थी कि खोजी उस का खुरा तक नहीं उठा पाते थे. इस की वजह यह थी कि वह खुरा छोड़ता ही नहीं था.

भावल बाप के साथ मिल कर सरहद पार चोरियां करता था. जल्दी ही बाप बेटे का नाम दोनों ओर गूंजने लगा. उन दिनों गाय भैसों की चोरी आम बात थी. पुलिस वालों ने कई बार बहराम खान को गिरफ्तार किया था, लेकिन पुलिस कभी कोई चोरी उस से कुबूल नहीं करवा पाई थी.

भावल खान उस समय 15 साल का था, जब पहली बार पुलिस ने उसे गिरफ्तार किया था. पुलिस उसे ले कर जाने लगी तो बहराम ने कहा, ‘‘बेटा, तू पहली बार पुलिस के चक्कर में फंसा है. मर्द बन कर हालात का मुकाबला करना. पुलिस को भी पता चल जाए कि तू बहराम खान का बेटा है.’’

भावल ने कहा था, ‘‘बाबा, तेरा यह बेटा जीतेजी ताना देने लायक कोई काम नहीं करेगा.’’

भावल 15 दिनों तक रिमांड पर रहा. थाने में घुसते ही पुलिस वाले उस पर पिल पड़े थे. लेकिन जल्दी ही उन की समझ में आ गया था कि उन का वास्ता किसी ऐरेगैरे से नहीं, बल्कि बहराम के बेटे भावल से पड़ा है.

15 दिनों तक पुलिस भावल को सूली पर लटकाए रही. कोई भी ऐसा अत्याचार बाकी नहीं रहा, जो पुलिस ने उस के ऊपर नहीं किया. रिमांड खत्म होने वाले दिन थानेदार ने उस की पीठ थपथपा कर कहा था, ‘‘तू ने साबित कर दिया कि तू बहराम का बेटा है.’’

पुलिस वालों ने मजिस्ट्रेट से और रिमांड की मांग की तो मजिस्ट्रेट ने भावल की ओर ध्यान से देखते हुए कहा, ‘‘15 साल के इस बच्चे से तुम लोग 15 दिनों में कुछ नहीं उगलवा सके तो अब 15 साल में भी कुछ नहीं उगलवा सकते.’’

मजिस्ट्रेट ने रिमांड देने से मना कर दिया था और उसे न्यायिक हिरासत में भेज दिया था. जेल में उस का इस तरह स्वागत हुआ, जैसे वह कोई बड़ा नेता हो. उस जेल के तमाम कैदी उस के पिता को अच्छी तरह जानते थे.

अगले दिन भावल को जमानत मिल गई थी, क्योंकि पुलिस उस से कुछ भी बरामद नहीं कर सकी थी. वह जेल से बाहर आया तो बहराम ने उसे गले लगा कर कहा था, ‘‘बेटा, तू ने मेरा सिर गर्व से ऊंचा कर दिया. पूरी बिरादरी को तुझ पर नाज है.’’

बाप के नाम के साथ भावल के नाम की भी चर्चा होने लगी थी. जहां बापबेटे रहते थे, वहां का बच्चाबच्चा उन्हें जान गया था. भावल की मां बचपन में ही मर गई थी. बाप ही उस का सब कुछ था.

बहराम ने गांव में अच्छीखासी जमीन कब्जा रखी थी. लेकिन ढंग से खेती न होने की वजह से खास पैदावार नहीं होती थी. जबकि आमदनी का स्रोत वही मानी जाती थी. गांव में ऐसा कोई नहीं था, जिस की मदद बहराम खान ने न की हो. गांव की हर लड़की की शादी में वह दिल खोल कर मदद करता था.

उम्र ढलने के साथ बहराम खान की सत्ता का सूरज चढ़ने लगा था. भावल अब तक 30-32 साल का गबरू जवान हो गया था. उस इलाके के नेता और सरकारी अधिकारी बापबेटे की मुट्ठी में थे. चुनाव के दौरान उन के घर के सामने लंबीलंबी कारें और जीपें आ कर खड़ी होती थीं. क्योंकि आसपास के लोग उसी को वोट देते थे, जिसे बहराम कहता था. इस की वजह यह थी कि वह सब की मदद करता था.

चुनाव की घोषणा हुई तो इलाके के एक नेता ने बहराम खान से संपर्क कर के कहा कि वह उन के लिए काम करे. चुनाव में दौड़धूप के लिए वह मोटी रकम भी दे गया था. अंधे को क्या चाहिए, 2 आंखें. बापबेटों को यह काम आसान लगा. उन के लिए एक जीप भी भिजवा दी गई थी.

भावल खान जीप पर सवार हो कर हथियारबंद गार्डों के साथ राजाओं की तरह घूमता और अपने उम्मीदवार के लिए प्रचार करता. हर दूसरे तीसरे दिन खर्च के लिए उस के पास नोटों के बंडल पहुंच जाते थे.

चुनन शाह से भावल की मुलाकात इसी चुनाव प्रचार के दौरान हुई थी. वह उम्मीदवार का खास आदमी था. वह अपने इलाके का जानामाना गुंडा था. लेकिन चुनन शाह जो अपराध करता था, उस से भावल घृणा करता था.

भावल का उम्मीदवार काफी पैसे वाला था. लेकिन वह जिस के खिलाफ चुनाव लड़ रहा था, वह पैसे वाला तो था ही, जानामाना गुंडा भी था. इस के अलावा वह पहले से ही असेंबली का मेंबर था. लोग उस से काफी परेशान थे, इसलिए भावल खान का प्रत्याशी जीत गया था.

यह सीट पुराने प्रत्याशी की खानदानी सीट थी. इसलिए उस की हार से लोग हैरान थे. जीत की खुशी में भावल खान के प्रत्याशी ने रैली निकाली और हारे हुए उम्मीदवार के घर के सामने बमपटाखे फोड़े.

उस समय तो हारने वाला प्रत्याशी चुप रहा. लेकिन वह भी कोई साधारण आदमी नहीं था. जिस दिन भावल खान के उम्मीदवार को शपथ लेने जाना था, विरोधियों ने उसी दिन बदला लेने का निर्णय लिया.

विजयी उम्मीदवार बहराम खान तथा दो बौडीगार्ड के साथ एक जीप में था, जबकि बाकी लोग दूसरी जीप में बैठे थे. जैसे ही जीप उस जगह पहुंची, जहां वे घात लगाए बैठे थे, उन्होंने फायरिंग शुरू कर दी.

किसी को संभलने का मौका नहीं मिला. बहराम खान आसानी से मरने वालों में नहीं था. उसे जैसे ही गोली लगी, उस ने जीप से छलांग लगा दी और दूर तक लुढ़कता चला गया. विरोधियों को पता था कि अगर बहराम जिंदा बच गया तो एक एक को चुनचुन कर मारेगा.

रूपम के बहके कदमों का नतीजा

9 मई की रात तकरीबन साढ़े 8 बजे का वक्त था. उत्तर प्रदेश के जिला गाजियाबाद के थाना इंदिरापुरम  में किसी ने फोन कर के सूचना दी कि न्याय खंड-3 में एक महिला को किसी ने गोली मार दी है.

इस संवदेनशील सूचना के मिलते ही थानाप्रभारी वीरेंद्र सिंह मय पुलिस बल के सूचना में बताए स्थान पर पहुंच गए. उस इलाके में सैकड़ों की तादाद में जनता फ्लैट बने हुए हैं. जिस जगह यह वारदात हुई, वह गली एकदम सुनसान थी. गली फ्लैटों के पीछे की साइड में होने की वजह से लोग उस का इस्तेमाल कम ही किया करते थे.

थानाप्रभारी ने मौका मुआयना किया तो वहां करीब 28-30 साल की महिला खून से लथपथ पड़ी थी. गोली उस की कनपटी पर मारी गई थी. मौके पर मोबाइल फोन और एक थैला भी पड़ा था, जिस में सब्जियां थीं. महिला शायद जिंदा बच जाए इसलिए आननफानन में पुलिस उसे नजदीक के एक निजी अस्पताल ले गई. लेकिन डाक्टरों ने उस महिला को देख कर मृत घोषित कर दिया.

महिला के पास से ऐसी कोई चीज नहीं मिली थी जिस से तुरंत उस की शिनाख्त हो सके. लिहाजा घटनास्थल के आसपास के फ्लैटों में रहने वाले लोगों से पुलिस उस महिला के बारे में पूछताछ करने लगी.

उसी समय अजय झा नाम का एक युवक पुलिस के पास पहुंचा. उस ने बताया कि उस की पत्नी रूपम काफी देर पहले सब्जी लेने गई थी, वह अभी तक नहीं लौटी है. पुलिस ने अजय को लाश दिखाई तो उस ने तुरंत लाश को पहचान लिया और उस की पुष्टि अपनी पत्नी रूपम के रूप में कर दी.

मामला हत्या का था, इसलिए थानाप्रभारी ने इस की सूचना आला अधिकारियों को भी दे दी. सूचना मिलने पर एसपी सिटी शिवहरि मीणा और सीओ सिटी रणविजय सिंह भी अस्पताल पहुंच गए.  मृतका का पति बुरी तरह बिलख रहा था. पुलिस ने उसे ढांढस बंधा कर शुरुआती पूछताछ की. उस ने बताया कि शाम करीब 7 बजे रूपम बाजार से सब्जी लेने के लिए घर से निकली थी.

पुलिस ने उस समय उस से ज्यादा पूछताछ करना जरूरी नहीं समझा और पंचनामा भर कर लाश पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दी.

अजय झा की तहरीर पर पुलिस ने अज्ञात हत्यारों के खिलाफ भादंवि की धारा 302 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया. थानाप्रभारी ने केस की छानबीन शुरू कर दी. वह इतना तो समझ गए थे कि हमलावर का मकसद केवल रूपम की हत्या करना था और उस के सिर में गोली इसलिए मारी गई थी ताकि वह जिंदा न बच सके.

चूंकि रूपम का पर्स, पहने हुए आभूषण और मोबाइल फोन सलामत था, इसलिए लूट की वजह से हत्या करने की संभावना बिलकुल नहीं थी. एसएसपी शुचि घिल्डियाल ने अगले दिन मृतका के पति को अपने औफिस में बुला कर पूछताछ की. उस ने बताया कि वह प्रौपर्टी डीलिंग का काम करता है. किसी के साथ अपनी रंजिश या झगड़ा होने से भी उस ने इनकार कर दिया.

उस से पूछताछ में यह पता जरूर चला कि कुछ समय पहले उस ने अंतरिक्ष सोसायटी के पास एक प्रौपर्टी खरीदी थी. सीओ रणविजय सिंह ने एसएसपी के आदेश पर जब प्रौपर्टी वाले बिंदु पर जांच की तो आशंका खारिज हो गई.

आगे बढ़ने का कोई और रास्ता न देख पुलिस ने रूपम के मोबाइल फोन की जांच की. उस में अंतिम काल उस के पति की थी. इस बारे में पुलिस ने अजय से पूछा तो उस ने बताया, ‘‘मेरे पास रूपम का फोन करीब 8 बजे आया था. उस ने बताया था कि उस की सहेली मिल गई है इसलिए थोड़ा लेट हो जाएगी.’’

जांच के दौरान यह भी पता लगा कि रूपम एक दूसरा मोबाइल भी इस्तेमाल करती थी. पुलिस ने उस का दूसरा नंबर भी हासिल कर लिया.  उस के नंबरों की काल डिटेल्स निकलवाई गई.

काल डिटेल्स की जांच में एक ऐसा नंबर पुलिस को मिल गया, जिस पर रूपम अकसर बातें किया करती थी. हत्या वाली शाम भी उस की उस नंबर पर बात हुई थी, लेकिन बात करने के बाद उस ने वह नंबर डिलीट कर दिया था. फोन की डायल सूची से रूपम ने वह नंबर डिलीट क्यों किया, इस बात को पुलिस नहीं समझ पा रही थी.

पुलिस ने उस नंबर की पड़ताल की तो वह न्याय खंड-3 के ही फ्लैट नंबर-553जी निवासी रोहित राणा का निकला. एक और चौंकाने वाली बात यह भी थी कि रूपम का जो दूसरा नंबर था, उस का सिम भी रोहित के नाम पर खरीदा गया था.

इन दोनों बातों से रोहित अब पुलिस के शक के दायरे में आ गया. पुलिस ने उस के घर दबिश दी लेकिन वह लापता था. इस से उस पर पुलिस का शक और भी पुख्ता हो गया.

सीओ रणविजय सिंह ने यह पूरी जानकारी एसएसपी को दी तो एसएसपी ने रोहित राणा की तलाश करने के लिए एक पुलिस टीम बनाई जिस में थानाप्रभारी वीरेंद्र सिंह, एसएसआई विशाल, एसआई सुभाष गौतम, अंजनी कुमार, कांस्टेबल विपिन चावला आदि को शामिल किया गया.

सीओ रणविजय सिंह के निर्देशन में पुलिस रोहित की तलाश में संभावित जगहों पर दबिश डालने लगी. इस की भनक शायद रोहित को लग चुकी थी जिस से वह पुलिस से बचने के लिए इधरउधर भागता रहा. अंतत: एक मुखबिर की सूचना पर उसे रात 8 बजे के करीब एक शौपिंग मौल के पास से गिरफ्तार कर लिया गया.

तलाशी में उस के पास से एक .32 बोर की पिस्टल और एक कारतूस भी बरामद हुआ. थाने ला कर उस से सख्ती से पूछताछ की गई तो उस ने रूपम की हत्या से परदा उठा दिया. वही उस का हत्यारा था. हत्या की जो वजह उस ने बताई. उसे सुन कर सभी चौंक गए.

30 वर्षीया रूपम का पति अजय झा मूलरूप से बिहार के दरभंगा जिले के न्यू बलभद्रपुर, भदेरिया सराय के रहने वाले श्यामधर का बेटा था. सालों पहले अजय भी अन्य युवकों की तरह कामधंधे की तलाश में दिल्ली चला आया था. उस ने कई छोटेमोटे काम कर के किसी तरह अपने पैर जमाए. 8 साल पहले उस का विवाह रूपम झा से हुआ.

रूपम खूबसूरत युवती थी. चूंकि अजय भी दिल्ली में काम करता था इसलिए शादी के बाद वह पत्नी को भी अपने साथ दिल्ली ले आया. रूपम वक्त के साथ 2 बच्चों की मां बन गई थी. वह बनसंवर कर रहती थी.

3 साल पहले अजय ने गाजियाबाद में प्रौपर्टी डीलिंग का मामूली सा काम शुरू किया. बाद में वह दिल्ली से गाजियाबाद शिफ्ट हो गया. अपने काम की उलझनों में अजय पत्नी पर ज्यादा ध्यान नहीं दे पाता था.

इस के विपरीत रूपम की हसरतें जवान थीं. उसे देख कर नहीं लगता था कि वह 2 बच्चों की मां है. पति सुबह ही घर से निकल जाता था इसलिए घरेलू कामों के लिए रूपम को ही बाजार जाना पड़ता था. इसी दौरान उस की नजरें रोहित से चार हो गईं.

रोहित मूलत: उत्तर प्रदेश के बागपत जिले के अग्रवाल मंडी, टटीरी कस्बे का रहने वाला था. फिलहाल वह न्याय खंड-3 में ही रहता था. वहीं वह ज्वैलरी की छोटी सी दुकान चलाता था. रोहित नवयुवक था.

एक बार रूपम उस के यहां से बिछुए खरीद कर लाई थी. उस छोटी सी मुलाकात में ही वह रोहित को भा गई. यह करीब 5 महीने पहले की बात है.

रोहित थोड़ा बातूनी स्वभाव का था. उस ने उस समय रूपम की सुंदरता की थोड़ी तारीफ क्या कर दी कि वह गदगद हो गई. इस के कुछ दिनों बाद रूपम की एक सहेली को भी अपने गले की चेन के लिए एक लौकेट खरीदना था, तब रूपम सहेली को रोहित की दुकान पर ले गई. रूपम को अपनी दुकान पर फिर आया देख रोहित बहुत खुश हुआ. उस के हावभाव और आंखों की भाषा से रूपम उस के मन की बात समझ गई थी.

शादी के कई साल बाद भी अजय उस की महत्त्वाकांक्षाओं को पूरा नहीं कर सका था. रोहित की चाहत को देख कर रूपम के दिल की घंटी सी बज उठी. उसे लगा कि रोहित उस के ख्वाबों को हकीकत में बदल सकता है इसलिए मुसकरा कर उस ने रोहित के प्यार को हरी झंडी दे दी. उस दिन रोहित ने रूपम का फोन नंबर ले लिया.

बातों ही बातों में रूपम ने उसे बता दिया कि उस का पति प्रौपर्टी डीलर है जो देर रात को ही घर लौटता है. इसलिए रूपम उस की दुकान से जाने के थोड़ी देर बाद ही रोहित ने उसे फोन कर दिया. इधरउधर की बातें करने के बाद रोहित ने उस से अपने मन की बात खुल कर कह दी. रूपम ने भी बिना कोई देर किए उस के प्यार को स्वीकार कर लिया. प्यार का इजहार कर के दोनों ही खुश थे.

इस के बाद दोनों एकदूसरे से मोबाइल पर अकसर बातें करने लगे. रूपम अपने घर से किसी न किसी बहाने निकलती और रोहित के साथ रेस्टोरेंट व पार्कों में चली जाती. एकांत में होने वाली बातों के जरिए दोनों एकदूसरे के बेहद करीब आ गए.

दिल तो कब के मिल चुके थे. फिर एक दिन एक होटल में उन्होंने अपनी हसरतें भी पूरी कर लीं. जब पति अपने काम पर निकल जाता और बच्चे स्कूल, तभी रूपम रोहित को फोन कर देती. मौका देख कर रोहित उस के घर आ जाता था. इस तरह वे दोनों खूब मौजमस्ती करते रहे.

पति को शक न हो, इस से बचने के लिए रूपम मोबाइल पर बातें कर के प्रेमी रोहित का नंबर डिलीट कर देती थी. बाद में रोहित ने उसे एक मोबाइल और सिमकार्ड भी खरीद कर दे दिया. रोहित से बात करने के लिए वह ज्यादातर उसी नए नंबर का उपयोग करती थी.

प्यार की दीवानगी हदों को लांघने लगी थी. वह पति और बच्चों को छोड़ कर प्रेमी के साथ ही घर बसाने की सोचने लगी. एक दिन उस ने रोहित से अपने मन की बात कह भी दी, ‘‘रोहित, क्यों न हम कहीं जा कर शादी कर लें और फिर एक हो कर रहें.’’

रूपम की बात सुन कर रोहित सकते में आ गया. एकाएक उस से कोई जवाब नहीं बना क्योंकि उस ने कभी सोचा ही नहीं था कि ऐसी नौबत भी आ सकती है. वह रूपम को प्यार तो करता था लेकिन उस से शादी जैसी बात कभी नहीं सोची थी. उसे खामोश देख कर रूपम ने टोका, ‘‘क्या सोच रहे हो, क्या मैं तुम्हें पसंद नहीं?’’

‘‘ऐसी बात नहीं है रूपम. तुम ने जो बात कही है उस पर मुझे सोचने का मौका दो.’’

उस रात रोहित को ठीक से नींद नहीं आई. रूपम उस से उम्र में बड़ी थी. वह उसे इस्तेमाल तो करना चाहता था लेकिन उस के साथ बंध कर रहना नहीं चाहता था. काफी सोचने समझने के बाद उस ने रूपम से पीछा छुड़ाने का फैसला ले लिया और उस से पीछा छुड़ाने की सोचने लगा.

इस के बाद रोहित ने रूपम से दूरियां बनानी शुरू कर दीं. रूपम को जब लगा कि प्रेमी ने उस से मिलना कम कर दिया है तो एक दिन वह बोली, ‘‘रोहित, तुम आजकल कुछ बदलेबदले लगते हो. कहीं तुम मुझे धोखा तो नहीं दे रहे?’’

‘‘ऐसी कोई बात नहीं है रूपम.’’ रोहित ने कहा.

‘‘तो फिर मुझे ऐसा क्यों लग रहा है कि तुम मुझ से दूर होते जा रहे हो. वैसे शादी के बारे में तुम ने क्या सोचा?’’

‘‘मैं हर पल तुम्हारे साथ हूं रूपम. मैं तुम से प्यार भी बहुत करता हूं. मेरा कहना यह है कि शादी के लिए अभी रुक जाओ. वैसे भी शादी की तुम इतनी जल्दी क्यों कर रही हो? हम मिलते तो रहते हैं.’’

‘‘रोहित, तुम्हारी बातों से मुझे यह लग रहा है कि तुम मुझे शादी के लिए टाल रहे हो. लेकिन मैं भी तुम्हें एक बात बताना चाहती हूं.’’

‘‘क्या?’’

‘‘अगर तुम ने मुझ से शादी नहीं की और धोखा दिया तो मैं आत्महत्या कर लूंगी और सुसाइड नोट में तुम्हारा नाम लिख दूंगी.’’

रूपम की इस धमकी से रोहित के पसीने छूट गए. वह बोला, ‘‘मुझे थोड़ा समय तो दो.’’

‘‘बस अब और नहीं. मुझे जल्दी जवाब चाहिए.’’ रूपम के तेवर देख कर रोहित डर गया. उस ने उसे समझाने की बहुत कोशिश की लेकिन वह अपनी जिद पर अड़ी रही.

रोहित समझ गया था कि रूपम किसी भी सूरत में उस का पीछा छोड़ने वाली नहीं है.  उस से पीछा छुड़ाने के लिए उस ने एक खतरनाक योजना बना ली.

रोहित का एक दोस्त था गौरव त्यागी. गौरव को रोहित ने अपनी परेशानी बताई और उस से किसी हथियार का इंतजाम करने को कहा. गौरव ने बहुत जल्द एक पिस्टल का इंतजाम कर के उसे दे दिया.

रोहित ने सोच लिया था कि वह आखिरी बार रूपम को समझाने की कोशिश करेगा. अगर वह फिर भी नहीं मानी तो उसे रास्ते से हटा देगा. योजना बना कर उस ने  शाम को रूपम को फोन किया, ‘‘रूपम, मुझे आज तुम से मिलना है. एक जरूरी बात करनी है.’’

रूपम खुश हुई कि रोहित ने शायद उस की बात मान ली है. वह बोली, ‘‘ठीक है, मैं तुम से 8 बजे के बाद घर के पीछे वाली उसी गली में मिलूंगी, जहां हम पहले मिलते थे.’’

उस गली का चुनाव रूपम ने इसलिए किया था क्योंकि वह सुनसान रहती थी.

उस शाम रूपम बाजार के लिए घर से निकली. उस ने घर के लिए सब्जियां खरीदीं. इसी बीच उस ने अपने पति को फोन भी कर दिया कि वह सहेली के पास जाएगी इसलिए घर थोड़ी देरी से आएगी. वह तय समय पर रोहित से मिलने गली में पहुंच गई. रोहित भी वहां पहुंच गया था. वह रोहित के खतरनाक इरादों से पूरी तरह अनजान थी.

उसे देखते ही रूपम ने पूछा, ‘‘क्या सोचा तुम ने?’’

‘‘रूपम, तुम मेरी मजबूरी समझो. मैं तुम से शादी नहीं कर सकता.’’ यह सुनते ही रूपम के पैरों तले से जमीन खिसक गई. उसे उम्मीद नहीं थी कि रोहित उसे ऐसा जवाब देगा.

‘‘मैं अब तुम्हें छोड़ूंगी नहीं. तुम ने मेरे साथ अच्छा नहीं किया.’’ कहने के साथ ही रूपम ने गुस्से में रोहित के साथ हाथापाई शुरू कर दी. उसे नहीं पता था कि रोहित उस की मौत बनने जा रहा है.

‘‘पीछा तो तुम्हें छोड़ना ही पड़ेगा रूपम.’’ रोहित गुस्से में बोला और पलक झपकते ही पिस्टल निकाल ली. यह देख कर रूपम के होश उड़ गए. वह कुछ कर पाती, उस से पहले ही रोहित ने उस के सिर से पिस्टल सटा कर गोली चला दी. गोली लगते ही रूपम गिर पड़ी. उसे तड़पता छोड़ रोहित वहां से भाग गया.

पुलिस उस तक न पहुंच सके, इसलिए वह घर से भी फरार हो गया. लेकिन पुलिस के जाल में वह फंस ही गया. उस से पूछताछ के बाद पुलिस ने उस की निशानदेही पर हत्या के समय पहनी गई टीशर्ट जिस पर खून के छींटे लगे थे, बरामद कर ली. उस का मोबाइल भी पुलिस ने जब्त कर लिया.

अगले दिन पुलिस ने उसे न्यायालय में पेश किया जहां से उसे 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक उस की जमानत नहीं हो सकी थी. पुलिस उसे पिस्टल मुहैया कराने वाले उस के दोस्त गौरव त्यागी की तलाश कर रही थी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

आखिरी गुनाह करने की ख्वाहिश – भाग 1

नियाज अली से ज्यादा सीधासादा आदमी मैं ने अपनी जिंदगी में इस से पहले नहीं देखा था. उस की उम्र 50 से ऊपर रही होगी, मगर  स्वास्थ्य ऐसा था कि जवान भी देख कर लजा जाए. उसे इस गांव में आए 5-6 साल ही हुए थे. लेकिन अपने स्वभाव और सेवाभाव की वजह से गांव के सभी लोग उसे बहुत पसंद करते थे.

गुजारे के लिए उस ने अपने घर के एक कोने में किराने की छोटी सी दुकान खोल रखी थी. हफ्ते में एक दिन शहर जा कर वह दुकान के लिए सामान ले आता था, बाकी 6 दिन वह गांव में ही रहता था.

अपनी ईमानदारी और सेवाभाव की वजह से वह गांव में ही नहीं, आसपास के गांवों में भी लोकप्रिय हो गया था. इसी वजह से उस की दुकान भी बढि़या चल रही थी. उस का अपना कोई नहीं था. पूछने पर भी उस ने कभी किसी को अपने घर परिवार के बारे में कुछ नहीं बताया था. बाद में लोगों ने इस बारे में पूछना ही छोड़ दिया था.

एक दिन नियाज अली शहर गया तो पूरे एक हफ्ते बाद लौटा. गांव वालों ने पूछा तो उस ने बताया कि वह एक मेले में चला गया था. जिस दिन वह गांव लौटा था, उस के अगले दिन गांव में एक ट्रक, पुलिस एक जीप के साथ आ पहुंची.

इस से पहले गांव में इस तरह पुलिस कभी नहीं आई थी. अगर कोई जरूरत पड़ती थी तो थानेदार 2 सिपाहियों से नंबरदार को खबर भिजवा कर जिस आदमी की जरूरत होती थी, उसे थाने बुलवा लेता था.

इतनी अधिक पुलिस देख कर गांव वाले डर गए. जीप सीधे नंबरदार के दरवाजे पर आ कर रुकी तो ट्रक से आए सिपाहियों ने फुर्ती से पूरे गांव को घेर लिया. नंबरदार दरवाजे पर ही खड़ा था. उस ने हिम्मत कर के पूछा, ‘‘क्या बात है इंसपेक्टर साहब, यह सब क्या है?’’

‘‘नबी खान, मुझे अफसोस है कि आज इस गांव की रीति टूट गई है. लेकिन मैं मजबूर हूं. हमें एक खतरनाक फरार हत्यारे को गिरफ्तार करना है.’’

‘‘कौन है वह?’’ नंबरदार ने पूछा.

‘‘नियाज अली.’’ इंसेक्टर ने जैसे ही यह नाम लिया, नंबरदार हैरान रह गया. उस ने कहा, ‘‘साहब, आप का दिमाग तो ठीक है?’’

‘‘मैं सच कह रहा हूं. मैं नियाज अली को ही गिरफ्तार करने आया हूं.’’

‘‘आइए मेरे साथ. साहब, आप जरूर किसी भ्रम में हैं.’’ नंबरदार ने कहा.

नंबरदार के साथ इंसपेक्टर को अपने घर की ओर आते देख नियाज अली दुकान से निकल कर बाहर आ गया. करीब आने पर उस ने आगे बढ़ कर कहा, ‘‘इतनी बड़ी फौज ले कर आने की क्या जरूरत थी थानेदार साहब. शाम को तो मैं खुद ही आ कर हाजिर होने वाला था. क्योंकि अब मेरा काम खत्म हो गया है.’’

नियाज अली के सामने इंसपेक्टर इस तरह सिर झुकाए खड़ा था, जैसे वह खुद अपराधी हो. नियाज अली नंबरदार से मुखातिब हुआ, ‘‘नंबरदार साहब, इस गांव में इस तरह पुलिस के आने का मुझे दुख है. इस के लिए मैं माफी मांगता हूं. आप लोगों को पता ही है, मैं यहां किस तरह रहा. मैं आज शाम को इस खेल को खत्म कर देता, लेकिन थानेदार साहब सरकार को दिखाने के लिए सुबह ही चले आए.’’

‘‘नियाज अली, तुम…’’ नंबरदार ने उसे हैरानी से देखते हुए कहा.

नंबरदार की बात बीच में ही काट कर नियाज अली बोला, ‘‘नहीं नंबरदार साहब, यह मेरा आखिरी रूप था. मेरा नाम नियाज अली नहीं, भावल खान है, बाकी आप को यह थानेदार साहब बता देंगे.’’

नियाज अली नंबरदार से अपनी बातें कह रहा था, तभी गांव की मसजिद के मौलवी साहब भी आ गए. नियाज अली उन से मुखातिब हुआ, ‘‘मियांजी, आज से मेरे मकान और दुकान के मालिक आप हैं. अगर जिंदा रहा तो आऊंगा अन्यथा यह सब आप का.’’

‘‘हम तुम्हारे घर की तलाशी लेना चाहते हैं.’’ इंसपेक्टर ने कहा.

‘‘शौक से लीजिए.’’ नियाज अली ने कहा.

मौलवी साहब और नंबरदार हैरानी से नियाज अली का मुंह ताक रहे थे. इंसपेक्टर के इशारे पर नियाज अली को हिरासत में ले लिया गया. मकान और दुकान की तलाशी में कोई भी ऐसी चीज नहीं मिली, जिसे गैरकानूनी कहा जाता.

इंसपेक्टर ने बताया था कि यह नियाज अली नहीं, बल्कि फरार अपराधी भावल खान है. इसे पीर चुनन शाह की हत्या के आरोप में गिरफ्तार किया जा रहा है. पुलिस नियाज अली को साथ ले कर चली गई थी.

मैं अगले दिन उस गांव पहुंचा तो मुझे नियाज अली की गिरफ्तारी के बारे में पता चला. मैं उस गांव का रहने वाला नहीं था. लेकिन उस गांव में हमारी कुछ जमीन थी, जिस की देखभाल के लिए मैं वहां अकसर जाता रहता था. इसी आनेजाने में नियाज अली से मेरी अच्छी दोस्ती हो गई थी. एक बार वह हमारे शहर वाले घर पर भी आया था. मेरे पिताजी उस से मिल कर बहुत खुश हुए थे.

गांव वालों ने जब बताया कि नियाज अली एक फरार अपराधी था, जिसे पुलिस ने पीर चुनन शाह की हत्या के आरोप में गिरफ्तार किया था. यह जान कर मुझे धक्का सा लगा. हैरानी की बात यह थी कि वहां कोई भी उसे हत्यारा मानने को तैयार नहीं था. उन लोगों में मैं भी शामिल था.

मैं जब भी गांव आता था, 2-4 दिन रुक कर जाता था. लेकिन इस बार मैं एक रात भी वहां नहीं रुक सका. मैं यह जानना चाहता था कि क्या सचमुच नियाज अली फरार अपराधी था. गांव वालों ने भी मुझ से सच्चाई के बारे में पता करने को कहा था.

यह सब मैं ने पिताजी को बताया तो उन्होंने दिमाग पर जोर दे कर कहा कि भावल खान नाम का एक फरार अपराधी था. उस का नाम उन्होंने किसी थाने में सुना था. लेकिन पुलिस रिकौर्ड में उस का कोई फोटो नहीं था, इसलिए वह उसे पहचानते नहीं थे.

जेलर पिताजी के मित्र थे, इसलिए नियाज अली यानी भावल खान से मिलने में मुझे कोई दिक्कत नहीं हुई. मैं जेल की कोठरी में उस से मिलने पहुंचा तो वहां मुझे देख कर वह हैरान रह गया. उस ने कहा, ‘‘बेटा, तुम यहां कहां? यह जगह तुम जैसे पढ़े लिखे लोगों के लिए नहीं है. तुम्हें यहां नहीं आना चाहिए था.’’

‘‘ऐसा न कहो चचा. तुम जहां भी होते, मैं तुम से मिलने जरूर आता.’’

इधर उधर की बातें करने के बाद मैं ने पूछा, ‘‘क्या, आप सचमुच फरार अपराधी भावल खान हैं, जिस के कारनामों से पुलिस फाइलें भरी पड़ी हैं?’’

‘‘हां बेटा, मैं वही भावल खान हूं. लेकिन पुलिस फाइलों में मेरे बारे में जो लिखा है, वह हकीकत नहीं है.’’ इतना कह कर वह चुप हो गया.

इस के बाद नियाज अली उर्फ भावल खान ने अपने बारे में जो बताया था, वह कुछ इस तरह था.

भावल खान का संबंध एक पिछड़े इलाके से था. उस के पिता बहराम खान अपने जमाने के नामी डाकू थे. बंटवारे से पहले वह भारत के एक सरहदी इलाके में रहते थे. बंटवारे के बाद वह पाकिस्तान आ गए. लेकिन वह सरहदी इलाके मे ही रहते रहे. उन दिनों भावल की उम्र 12-13 थी. होश संभालने तक उस के बाप ने उसे अपनी कला में निपुण कर दिया था.

जानलेवा शर्त ने ली एक बेगुनाह की जान

शहर के आउटस्कर्ट पर लगा यह पुलिस थाना है. यहां पर हलचल शहर के और थानों की अपेक्षा कम ही रहती है. कारण स्पष्ट है कि आसपास ग्रामीण इलाका है, कुछ इलाका घना जंगली भी है. इस शांत जंगली इलाके में अकसर शराबी लोग पार्टियां करने के लिए आया करते हैं.

जनवरी की शुरुआत है और मौसम की ठंडक अपने शबाब पर. थाने के पूरे स्टाफ की नए वर्ष के सेलिब्रेशन की खुमारी अभी तक टूटी नहीं थी. शाम के लगभग 4 बजे थे.

”साहब पास के जंगल में एक लाश पड़ी है,’’ थाने के अंदर घुसता हुआ 20-21 साल का एक युवक बोला.

”तो मैं क्या करूं?’’ स्वागत डेस्क पर बैठा जवान, जो रिपोर्ट लिखने का भी काम करता था, अधखुली आंखों से बोला.

”साहब, आप मेरा यकीन कीजिए. चाहे तो आप उस जगह पर चल कर देख लो,’’ वह युवक बोला.

”तू कौन है? तुझे पता चला कि वह लाश ही है? हो सकता है कोई आदमी दारू पी कर बेसुध पड़ा हो.’’ जवान उसी अवस्था में बोला.

”साहब, मेरा नाम राधेश्याम है और मैं मवेशी चराता हूं. मवेशियों को वापस गांव में लाते समय मुझे वह लाश दिखाई दी थी. वह कोई शराबी या कोई सोया हुआ आदमी नहीं था. उस के शरीर पर कुछ अजीब तरह से जलने के निशान थे,’’ उस युवक ने बताया.

”जा… जा कर जंगल के चौकीदार को यह बात बता. नियमों के अनुसार चौकीदार की रिपोर्ट पर ही पुलिस तस्दीक करने जाएगी.’’ वह पुलिस वाला उस युवक को टरकाने के मकसद से बोला.

”साहब, मुझे मवेशियों को उन के मालिकों को सौंपना है. इसी वजह से मैं ने चौकीदार को नहीं खोजा.’’ युवक ने साफसाफ बता दिया.

”तो जा, जा कर मवेशियों को उन के मालिकों को वापस कर दे. जब चौकीदार की तरफ से सूचना आएगी, तब काररवाई हो जाएगी.’’ पुलिसकर्मी उस युवक को टालते हुए बोला.

”क्या कर रहे हो रामसिंह? एक मर्डर की इन्फर्मेशन को इतने हलके में ले रहे हो.’’ अंदर की तरफ के औफिस से निकलते हुए इंसपेक्टर आलोक कुमार बोले, ”मैं ने अपने औफिस में बैठे हुए पूरी बात सुन ली है.’’

”अरे साहब, इस जंगल में लोग नए साल की पार्टी करने के लिए आते हैं और जब कोई नशे में धुत हो जाता है तो उस के साथी उसे ऐसे ही छोड़ कर निकल जाते हैं. यह भी कोई इसी तरह का आदमी होगा, जो होश में आने पर उठ कर चला जायगा. और अगर लाश होगी तो चौकीदार हमें सूचित करेगा ही.’’ रामसिंह ने जवाब दिया.

”नहीं नहीं साहब, वह लाश ही है.’’ राधेश्याम बीच में ही बोल पड़ा.

”तुझे कैसे पता कि वह लाश ही है.’’ इंसपेक्टर ने पूछा.

”क्योंकि साहब उस के हाथ और पैर बंधे हुए हैं. शरीर पर कपड़े भी नहीं हैं और बदन पर कुछ अजीब तरह के निशान हैं.’’ राधेश्याम ने बताया.

”किस तरह के अजीब निशान हैं?’’ इंसपेक्टर ने पूछा.

”जैसे चमड़ी के जलने के बाद आते हैं, उस तरह के.’’ राधेश्याम ने बताया.

”रामसिंह फोटोग्राफर और बाकी स्टाफ को तैयार करो, मामला गंभीर लग रहा है. हम इस लड़के की बताई हुई जगह पर चलेंगे.’’ इंसपेक्टर ने कहा.

कुछ ही देर में इंसपेक्टर पुलिस टीम और  राधेश्याम को साथ ले कर जंगल में पहुंच गए.

किस की थी जंगल में मिली लाश

वहां 50-55 साल के किसी आदमी की लाश थी. उस के हाथ पैर बंधे हुए थे. कपड़े कुछ दूरी पर पड़े हुए थे. ऐसा लग रहा था कि हाथ पैर बांधने के बाद उस के कपड़े फाड़ कर उतार दिए गए हों.

जिस तरह चीता या जेब्रा के शरीर पर धारियां होती हैं, कुछ उसी तरह की पतली पतली धारियां सी उस के शरीर पर दिखाई दे रही थीं. ऐसा लग रहा था जैसे निशान वाले स्थान पर किसी चीज से जलाया गया हो. पास ही शराब की एक तीन चौथाई खाली बोतल व प्लास्टिक का एक खाली गिलास भी रखा था.

”देखिए साहब, मैं कह रहा था न कि लोग इस जंगल में शराब पार्टी करने के लिए ही आते हैं. यह शराब पार्टी के लिए ही यहां आया था.’’ रामसिंह बोला.

”अगर पार्टी के मकसद से यहां आए होते तो कुछ और गिलास भी होने चाहिए थे, पर यहां सिर्फ एक ही गिलास है. दूसरा इस के पहनावे और चेहरे मोहरे से भी यह उस स्तर का व्यक्ति नहीं लग रहा कि पार्टी कर सके. बल्कि मुझे तो यह खुद एक भिखारी जैसा लग रहा है.’’ इंसपेक्टर ने कहा.

”सर, हो सकता है कि पार्टी करने के लिए ही आए हों और कुछ विवाद हुआ हो और वह सब इस का मर्डर कर के भाग गए हों. हमें फिंगरप्रिंट न मिल पाएं, यही सोच कर खाली गिलास अपने साथ ले गए हों. शरीर पर कपड़े नहीं हैं इस से ऐसा भी लगता है कि कहीं अवैध संबंधों का मामला न हो.’’ एसआई शफीक अहमद ने कहा.

”पार्टी जैसा कोई माहौल तो लग नहीं रहा है. ऊपर से शरीर पर यह धारीनुमा निशान इस बात की तरफ इशारा कर रहे हैं कि इन स्थानों पर इसे जलाया गया है.’’ इंसपेक्टर आलोक ने अपना शक जाहिर किया.

”मगर इतनी बारीकी से कौन जला सकता है. अगर ऐसा हुआ है तो यह एक बड़ी शानदार कलाकारी है.’’ एसआई शफीक ने कहा.

”ऐसे निशान तो सिर्फ करंट के जलने से आते हैं. यहां पर आसपास दूर तक कोई बिजली की लाइन नहीं है. ऐसे में यहां करंट दे कर जलना कुछ तर्कसंगत नहीं लगता,’’ इंसपेक्टर ने बताया.

”यह भी तो हो सकता है कि इसे कहीं और करंट दे कर मारा गया हो और जांच की दिशा भटकाने के लिए यह बोतल और गिलास यहां रख दिए हों.’’ रामसिंह बोला.

”मेरे विचार से ऐसा नहीं हुआ होगा. क्योंकि उस के कपड़े किसी ब्लेड या चाकू की मदद से काट कर अलग किए गए हैं. मतलब करंट उसे कपड़े उतारने के बाद लगाया गया है. वरना कपड़ों पर जले हुए मांस के कुछ अंश कपड़ों पर जरूर चिपकते.’’ इंसपेक्टर आलोक ने अपने विचार जाहिर किए.

”फिर?’’ एसआई ने पूछा.

”फोटोग्राफर को बोल कर सभी एंगल से फोटो ले लो और डेड बौडी को पोस्टमार्टम के लिए भेज दो.’’ इंसपेक्टर ने निर्देश दिए, ‘ï’पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने पर मुझे दिखलाना.’’

”यस सर,’’ कह कर सब अपने कामों में लग गए.

”सर, उस अंधे कत्ल की पोस्टमार्टम रिपोर्ट आ गई है.’’ लगभग 2 दिनों के बाद एसआई ने सूचित किया.

”मौत का कारण लो इंटेंसिटी करंट का बौडी से प्रवाहित होना लिखा गया है.’’ इंसपेक्टर आलोक रिपोर्ट पढ़ते हुए बोले.

”वहां पर बिजली कैसे पहुंची होगी?’’ एसआई शफीक ने पूछा.

”यही तो देखने वाली बात है. ऐसा करो इस आदमी का फोटो ले जा कर सभी भिखारियों को दिखाओ. शायद कोई क्लू मिल जाए.’’ इंसपेक्टर ने कहा.

”जी, अभी टीमें भिजवाता हूं.’’ एसआई शफीक कहते हुए औफिस से निकल गए.

किस ने किया भिखारी मोहन का मर्डर

2 दिन बाद एसआई ने सूचना दी, ”सर, हम लोगों का अनुमान सही निकला. वह लाश एक भिखारी की ही है जो यहां से करीब 7 किलोमीटर दूर शंकर मंदिर के पास बैठ कर भीख मांगा करता था.’’

”और क्या इन्फर्मेशन है उस भिखारी के बारे में?’’ इंसपेक्टर आलोक ने पूछा.

”सर, उस का नाम मोहन है और वह उसी इलाके में मंदिर से कुछ दूर एक ब्रिज के नीचे झोपड़ी बना कर रहता है. उस के परिवार के बारे में कुछ अतापता नहीं है. अकेले ही रहता था. बहुत ही शांत प्रवृत्ति का इंसान था, लेकिन शराब पीने का बहुत शौकीन था. लेकिन पीने के बाद कोई हंगामा नहीं करता था.’’ एसआई ने मृतक मोहन के बारे में बताया.

”उस की झोपड़ी की तलाशी ली क्या?’’ इंसपेक्टर ने पूछा.

”जी सर, झोपड़ी की तलाशी के दौरान करीब एक हजार रुपए नकद मिले. कोई भी ऐसी चीज नहीं मिली, जिसे देख कर कोई संदेह पैदा होता हो.’’ एसआई शफीक ने बताया.

”आसपास के शराबी, अफीमचियों और नशे का धंधा करने वालों पर नजर रखो. शायद उस ने किसी को देख लिया हो और अपने पकड़े जाने के डर से उसे मार डाला गया हो.’’ इंसपेक्टर ने शक जाहिर किया.

”सर, हम ने नजर रखी हुई है और मुखबिर भी अलर्ट कर दिए है, लेकिन अभी तक ऐसा कोई सुराग नहीं मिला.’’ एसआई ने सूचना दी.

”ठीक है, आप लोग उस की झोपड़ी पर फिर से पहुंचो और सभी पास पड़ोसियों को इकट्ठा कर लो. मैं खुद पूछताछ करूंगा.’’ इंसपेक्टर आलोक कुमार ने कहा.

लगभग 2 घंटे बाद इंसपेक्टर आलोक कुमार उस बस्ती में थे, जिस में मोहन रहता था.

”साहब, मोहन एक सीधासादा इंसान था, जो सिर्फ अपने पीने और खाने से मतलब रखता था. वह एक नियम का पक्का था कि चाहे कितना भी बड़ा त्यौहार हो, मंदिर में कितनी भी भीड़ हो, लेकिन शाम को 8 बजे के बाद कभी भीख नहीं मांगता था. उस के बाद उस का पीने का ही काम रहता था. कभी हम लोगों में से किसी के साथ भी उस का कभी कोई विवाद नहीं हुआ.’’ भीड़ में मौजूद एक बुजुर्ग भिखारी ने बताया.

”उस का कोई दोस्त? कोई दुश्मन?’’ इंसपेक्टर आलोक ने पूछा.

”नहीं साहब, वह किसी से ज्यादा बात नहीं करता था. हां, पिछले 15-20 दिनों से वह सामने के चौराहे पर आटो मैकेनिक नदीम की दुकान पर जरूर 5-7 मिनट रुका करता था. शायद वह कुछ बता सके.’’ वहां मौजूद लोगों में से एक ने बताया.

”नदीम? कैसा आदमी है? मेरा मतलब वह शराब, अफीम या कोई और नशा करता है क्या?’’ इंसपेक्टर ने पूछा.

”यह तो पता नहीं. हम तो जाते नहीं उस की दुकान पर क्योंकि हमारे पास तो कोई गाड़ी है नहीं.’’ वह व्यक्ति बोला.

”तो मोहन से क्यों बातें करता था वह.’’ इंसपेक्टर आलोक ने पूछा.

”पता नहीं. शायद मोहन के मंदिर जाने का रास्ता भी वही था इसी कारण दुआ सलाम हो जाती हो.’’ वह व्यक्ति बोला.

”साहब, नदीम को यहां बुलवाऊं क्या?’’ एसआई शफीक ने पूछा.

”नहीं, तुम ऐसा करो नदीम को उठा कर थाने में ही ले आओ. शायद उस से अच्छी तरह से पूछताछ करनी पड़े.’’ इंसपेक्टर आलोक कुमार ने निर्देश दिया.

”ठीक है सर.’’ एसआई ने कहा.

कौन सी शर्त ने ली मोहन की जान

कुछ ही देर में एसआई शफीक अहमद नदीम को उस की दुकान से थाने ले आए. थाने में आते ही इंसपेक्टर ने नदीम से पूछा, ”तुम मोहन को कैसे पहचानते हो नदीम?’’

”सर, उसे बीड़ी पीने का शौक था और मैं उसे बीड़ी दिया करता था. बस इतनी पहचान थी उस से,’’ नदीम ने जवाब दिया.

”तुम ने उसे क्यों मारा?’’ इंसपेक्टर आलोक ने तुरंत मुद्दे पर आते हुए पूछा.

”नहीं साहब, मैं ने उसे नहीं मारा.’’ नदीम सहमते हुए बोला.

”लेकिन मेरा अनुभव कहता है कि तुम ने ही उसे मारा है और मेरे पास इस के गवाह और सबूत मौजूद हैं.’’ इंसपेक्टर आलोक अंधेरे में तीर चलाते हुए बोले.

”साहब, मेरी उस से कोई दुश्मनी नहीं थी तो भला मैं उसे क्यों मारूंगा?’’ नदीम ने इंसपेक्टर से उल्टा प्रश्न किया.

”यही तो मैं जानना चाहता हूं. हमें तुम सीधे सीधे बताते हो या फिर मैं अपनी तरह से उगलवाऊं?’’ इंसपेक्टर ने कड़ा रुख अपनाते हुए कहा.

”नहीं साहब, मुझे कुछ नहीं मालूम. मां कसम.’’ नदीम ने फिर कहा.

”हवलदार, इस की बत्तीसी निकाल कर मेरे हाथों में रख दो और याद रहे एक भी दांत बचा तो तुम्हारी बत्तीसी मैं निकाल लूंगा.’’ इंसपेक्टर आलोक कुमार ने पास खड़े एक सिपाही से कहा.

”साहब, मत मारिए मैं सब कुछ बताता हूं.’’ 2-3 करारे थप्पड़ों के बाद ही नदीम टूट गया.

”हां, तो बताओ क्यों मारा मोहन को? सुन, झूठ बोलने की और पुलिस को बहकाने की गलती कतई मत करना वरना शरीर की 208 हड्डयों का चूरमा बनवा दूंगा.’’ इंसपेक्टर ने धमकाते हुए कहा.

”सर, एक शर्त की वजह से मोहन को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा.’’ नदीम ने बताया

”शर्त? कैसी शर्त?’’ इंसपेक्टर ने हैरान होते हुए पूछा.

नदीम ने कैसे पूरी की शर्त

नदीम ने बताया, ”सर, मैं एक साइंस का स्टूडेंट रहा हूं और मैं ने ट्वेल्थ तक साइंस सब्जेक्ट ही लिया है. फिजिक्स मेरा प्रिय विषय था. मगर मैं ट्वेल्थ पास नहीं हो पाया. इसी कारण मैं ने आटो मैकेनिक की ट्रेनिंग ले कर यह दुकान खोल ली.

”कुछ दिनों पहले अखबार में मैं ने एक खबर पढ़ी कि एक स्कूल की फिजिक्स लैब में एक प्रयोगशाला सहायक 12 वोल्ट की बैटरी पर गिर गया और उस के भीगे हुए होने के कारण इलेक्ट्रिक का सर्किट पूरा हो गया और करंट लगने से उस की मौत हो गई.’’

”यह तो एक खबर हो गई. इस में शर्त कहां से आ गई?’’ इंसपेक्टर आलोक उतावलेपन से बोले.

”मेरा एक दोस्त है जुनैद. वह इलेक्ट्रीशियन है. उसे मैं ने जब यह खबर बताई तो वह मानने को तैयार नहीं हुआ. उस के अनुसार 12 वोल्ट का करंट बहुत कम होता है और उस से कोई बड़ा आदमी नहीं मर सकता. बस इसी बात को ले कर हम दोनों में 5-5 हजार रुपए की शर्त लग गई.

”अब समस्या यह थी कि यह प्रयोग किस पर किया जाए और कैसे किया जाए. हम ने आसपास देखा तो हमें मोहन इस प्रयोग के लिए सही लगा. बिना परिवार का आदमी था, गायब हो जाने पर कोई शिकायत करेगा, इस की संभावनाएं बहुत कम थीं.’’ नदीम ने बताया.

”फिर तुम ने अपनी योजना को अंजाम किस तरह दिया?’’ इंसपेक्टर आलोक ने उत्सुकता से पूछा.

”हमें यह तो पता था कि मोहन शराब का बहुत शौकीन है. बस, उस की यह कमजोरी ही उस की मौत का कारण बनी. रोज दुकान के सामने से गुजरते समय हम ने उस से आगे बढ़ कर दुआसलाम करना चालू कर दिया. धीरे धीरे जाते समय हम ने योजना के अनुसार उसे बीड़ी पिलानी चालू कर दी. इस से उस का विश्वास हम पर और बढ़ गया.

”एक दिन हम ने उसे हमारे साथ शराब पीने का औफर दिया तो उस ने यह कह कर मना कर दिया कि इस बस्ती के सभी लोग उसे पहचानते हैं, इसी कारण वह बाहर शराब न पी कर सिर्फ अपनी झोपड़ी में ही पीता है. और वह भी सिर्फ रात को.

”तब हम ने उसे नए साल की खुशी में पास के जंगल में दारू व मुरगे की पार्टी रखने की बात कही तो वह लालच में आ गया और पार्टी की बात मान गया. मेरे पास 2002 मौडल का एक पुराना स्कूटर था. हम तीनों उसी पर बैठ कर जंगल में गए.’’

shart-fiction-crime-story

साइंस के प्रयोग से कैसे पहुंचे जेल

इंसपेक्टर ने पूछा, ”लेकिन तुम ने उसे मारा कैसे? करंट का इंतजाम कैसे किया?’’

”वही तो बता रहा हंू साहब. मैं और जुनैद दोनों शराब नहीं पीते. मगर अपने प्रयोग का परिणाम देखने के लिए हम ने मोहन की पसंद की पूरी बोतल ली.’’

”अरे मुरगे का क्या हुआ. पार्टी तो दारू और मुरगे दोनों की थी न?’’ मोहन शराब पीते हुए बोला, ”आज बहुत दिनों के बाद जी भर कर पीऊंगा.’’

”पास ढाबे वाले को बोल दिया है, कुछ ही देर में मुरगा ले कर आता होगा,’’ जुनैद ने जवाब दिया.

”लगभग आधी बोतल पीने के बाद मोहन बेसुध होने लगा. मैं ने उस के कपड़े उतारना चाहा लेकिन यह संभव नहीं था. इसलिए आननफानन में एक ब्लेड से उस के कपड़े काट कर उतार दिए.’’ नदीम बोला.

”मारने के लिए करंट का इंतजाम कहां से किया? क्योंकि मुझे मालूम है स्कूटर के उस मौडल या उस समय के किसी भी स्कूटर के मौडल में बैटरी लगती ही नहीं थी और साथ में तुम ने कोई बैटरी रखी नहीं थी.’’ इंसपेक्टर ने पूछा.

”यहां पर मेरा मैकेनिक और फिजिक्स का स्टूडेंट होना काम आया. स्कूटर के टेक्निकल स्पेसिफिकेशन के अनुसार जब उसे साढ़े 5 हजार आरपीएम पर चलाते हैं तो डायनमो के द्वारा 12 वोल्ट का करंट जेनरेट करता है.

”मोहन के कपड़े उतारने के बाद हम ने उस के पैर और हाथ ऊपर कर के बांध दिए. यह सब करने से यह स्पष्ट हो गया था कि मोहन कोई विरोध नहीं कर सकता.

”अब मैं ने अपनी शौप से लाए 5 क्लच वायर से मोहन के शरीर पर एक कांपैक्ट क्वाइल की रचना बना दी. इस क्वाइल को मैं ने स्पार्क प्लग से जोड़ कर पावर सर्किट को पूरा कर दिया.

”अब स्कूटर को न्यूट्रल गियर में डाल कर फुल एक्सीलेटर दे कर चालू कर दिया. बेसुध मोहन विरोध करने की स्थिति में तो था नहीं. कुछ समय करंट से जूझने के बाद मोहन शांत हो गया. और मैं शर्त जीत गया.’’ नदीम ने बताया.

”तो यह बात है, एक शर्त जीतने के लिए एक गरीब की मुफ्त में जान ले ली. वैसे कुल मिला कर करंट कितनी देर देना पड़ा?’’ इंसपेक्टर आलोक कुमार ने नदीम से पूछा.

”साहब, कुल 20 मिनट के करंट के बाद मोहन शांत हो चुका था. मुझे उम्मीद थी कि इस सूने जंगल में लाश 2-3 दिन तो पड़ी ही रहेगी और उस की खाल जल जाने की वजह से कीड़े मकोड़े और जानवर जल्दी ही मांस नोच लेंगे फिर मोहन को पहचानना मुश्किल हो जायगा.’’ नदीम बोला.

”क्या खूब कहानी रची तुम ने, मगर एक चरवाहे के समय पर पहुंचने के कारण सारा प्लान फेल हो गया.’’ इंसपेक्टर ने बात पूरी की.

”हां सर, हम से यह बड़ी गलती हुई है. हमें ऐसा नहीं करना चाहिए था. यह मुझे अब अहसास हुआ है.’’ नदीम ने हाथ जोड़ते हुए कहा. तभी जुनैद भी इंसपेक्टर आलोक कुमार के सामने हाथ जोड़ कर माफ करने के लिए गिड़गिड़ाने लगा.

”तुम लोगों ने एक बेगुनाह का मर्डर किया है, इसलिए तुम्हें इस की सजा तो मिलनी ही चाहिए. वो तो भला हो उस चरवाहे का, जिस ने लाश की जानकारी पुलिस को दी, वरना लाश डैमेज हो जाने के बाद केस भी आसानी से नहीं खुल पाता.’’ इंसपेक्टर आलोक कुमार ने कहा.

इस के बाद उन्होंने एसआई शफीक अहमद से कहा कि इन दोनों को मोहन की हत्या के आरोप में गिरफ्तार कर जेल भेजने की काररवाई करें. एक मामूली शर्त की वजह से नदीम और जुनैद को जेल जाना पड़ा.

वैलेंटाइन डे पर मिली अनोखी सौगात – भाग 3

किरण और रामबाबू के बीच एक बार जिस्मानी संबंध बनने के बाद उन का सिलसिला चलता रहा. लेकिन ज्यादा दिनों तक सिलसिला कायम न रह सका. करतार सिंह को पत्नी के हावभाव से उस पर शक होने लगा. उसे रामबाबू का उस के यहां ज्यादा आना अच्छा नहीं लगता था. इस बात का ऐतराज उस ने पत्नी से भी जताया और कहा कि वह रामबाबू को यहां आने से मना कर दे. लेकिन किरण ने ऐसा नहीं किया.

इसी बात को ले कर पत्नी से करतार की नोकझोंक होती रहती थी. उसी दौरान किरण की छोटी बहन सलीना भी उस के पास रहने के लिए आ गई. 22 साल की सलीना खूबसूरत थी. जवान साली को देख कर करतार की भी नीयत डोल गई. वह उस पर डोरे डालने लगा लेकिन घर में अकसर पत्नी के रहने की वजह से उस की दाल नहीं गल पाई.

उधर किरण और रामबाबू के अवैध संबंध का खेल कायम रहा और 7 फरवरी को वह रामबाबू के साथ भाग गई. बदनामी की वजह से करतार ने इस की रिपोर्ट थाने में भी नहीं लिखवाई. करीब एक हफ्ते तक दोनों इधरउधर घूम कर मौजमस्ती कर के घर लौट आए. करतार ने किरण को आडे़ हाथों लिया तो किरण ने पति के पैरों में गिर कर माफी मांग ली. पत्नी के घडि़याली आंसू देख कर करतार का दिल पसीज गया और उस ने पत्नी को माफ कर दिया.

13 फरवरी की शाम को रामबाबू करतार के यहां आया. करतार को पता था कि उस की पत्नी को रामबाबू ही भगा कर ले गया था इसलिए उस के घर आने पर वह मन ही मन कुढ़ रहा था. फिर भी उस ने उस से कुछ कहना जरूरी नहीं समझा.

उस ने उस की खातिरदारी की और उस के साथ शराब भी पी. शराब पीने के दौरान ही बातोंबातों में उन का झगड़ा हो गया. झगड़ा बढ़ने पर रामबाबू वहां से चला गया. किरण ने इसे अपने प्रेमी रामबाबू की बेइज्जती समझा और उलटे वह भी पति से झगड़ने लगी.

अगले दिन 14 फरवरी को वैलेंटाइन डे था. प्यार का इजहार करने के इस दिन का तमाम लोगों को बेसब्री से इंतजार रहता है. 40 साल का करतार भी अपनी 22 साल की साली सलीना को मन ही मन चाहता था. उस दिन सलीना किरण के साथ महिपालपुर में रामबाबू के घर चली गई थी. इस बात की जानकारी करतार सिंह को थी.

करतार सिंह ने भी वैलेंटाइन डे के दिन ही सलीना को अपने प्यार का इजहार करने का फैसला कर लिया. वह दुकान पर अपने बेटे को बिठा कर रामबाबू के कमरे पर पहुंच गया. उस समय वहां रामबाबू नहीं था. वह किरण और सलीना को कमरे पर छोड़ कर किसी काम से घर से बाहर चला गया था और उस की पत्नी प्रभा मायके गई हुई थी.

करतार सलीना के लिए बेचैन हुआ जा रहा था. जिस समय किरण किचन में कोई काम कर रही थी, सलीना कमरे में थी, तभी मौका देख कर करतार ने सलीना का हाथ पकड़ लिया.

सलीना घबरा गई. जब उस ने हाथ छुड़ाने की कोशिश की तो करतार ने उस के सामने प्यार का इजहार करते हुए उसे किस कर दी और वह उस के साथ अश्लील हरकतें करने लगा. सलीना चीखी तो किचन से किरण आ गई. पति की हरकतों को देख कर उसे भी गुस्सा आ गया. तब सलीना ने किसी तरह खुद को उस के चंगुल से छुड़ा लिया और किचन की ओर भाग गई.

उधर किरण पति को डांट ही रही थी तभी सलीना किचन से चाकू ले आई. इस से पहले कि वह कुछ समझ पाता, सलीना ने करतार के पेट में चाकू घोंप दिया.

चाकू लगते ही करतार के पेट से खून का फव्वारा फूट पड़ा. सलीना ने उसी चाकू से एक वार उस के पेट की दूसरी साइड में कर दिया. इस के बाद करतार सिंह फर्श पर गिर गया और बेहोश हो गया.

बहन के इस कदम पर किरण भी हैरान रह गई. जो हो चुका था, उस में अब वह कुछ नहीं कर सकती थी. उस ने छोटी बहन से कुछ नहीं कहा. बल्कि वह यह सोच कर खुश हुई कि करतार के मरने के बाद वह रामबाबू के साथ बिना किसी डर के रहेगी. करतार कहीं जिंदा न रह जाए, इसलिए किरण ने उसी चाकू से उस का गला काट दिया. इस के बाद किरण ने फोन कर के रामबाबू को करतार की हत्या करने की खबर दे दी. उस ने उसे बुला लिया.

दोनों बहनों द्वारा करतार की हत्या करने पर वह भी हैरान रह गया. अब उन तीनों ने उस की लाश को ठिकाने लगाने की योजना बनाई. सब से पहले उन्होंने उस की बौडी के खून को साफ किया फिर लाश को प्लास्टिक के कट्टे में रख लिया.

अंधेरा होने के बाद रामबाबू ने उस की लाश अपने आटोरिक्शा में रख ली. किरण और सलीना भी आटो में बैठ गईं. रामबाबू आटो को वसंत कुंज इलाके की तरफ ले गया. वसंत वाटिका पार्क के पास उन्हें बिना ढक्कन का एक मेनहोल दिखा तो उसी मेनहोल में उन्होंने लाश गिराने का फैसला ले लिया.

आटो से कट्टा उतार कर उस मेनहोल के पास ले गए और कट्टे का मुंह खोल कर लाश उस मेनहोल में गिरा दी और कट्टा वहीं फेंक कर वे उसी कमरे पर चले गए जहां करतार की हत्या की गई थी.

तीनों ने फर्श धो कर खून के धब्बे साफ किए फिर किरण और सलीना वहां से करतार के कमरे पर आ गईं. उन्हें देख कर घर का कोई भी सदस्य यह अनुमान तक नहीं लगा पाया कि वे कोई जघन्य अपराध कर के आई हैं.

जब देर रात तक करतार घर नहीं पहुंचा तो उस के घर वालों ने किरण से उस के बारे में पूछा. तब किरण ने यही जवाब दिया कि उसे करतार के बारे में कुछ नहीं पता. घर वालों के साथ वह भी करतार को इधरउधर ढूंढती रही.

10-12 दिनों तक घर वाले परेशान होते रहे, लेकिन करतार का कहीं पता नहीं चला. करतार के घर वाले जब उस के गुम होने की रिपोर्ट दर्ज कराने की बात करते तो किरण उन्हें यह कह कर मना करती कि वह कहीं गए होंगे. अपने आप लौट आएंगे. घर वालों के दबाव देने पर किरण ने 25 फरवरी को थाना वसंत कुंज (नार्थ) जा कर पति की गुमशुदगी की रिपोर्ट लिखा दी.

उधर करतार सिंह के मातापिता का कहना है कि सलीना ने उन के बेटे पर छेड़खानी का जो आरोप लगाया है वह सरासर गलत है. हकीकत यह है कि सलीना करतार के साथ पहले से ही उस के कमरे में सोती थी. जब किरण रामबाबू के साथ भाग गई थी तब सलीना करतार के साथ ही सोती थी.

हफ्ता भर तक जब जीजासाली बंद कमरे में सोए थे तो उन्होंने भजनकीर्तन तो किया नहीं होगा. जाहिर है उन्होंने सीमाएं भी लांघी होंगी. ऐसे में उस के द्वारा छेड़छाड़ का आरोप लगाने वाली बात एकदम गलत है.

उन्होंने आरोप लगाया कि करतार की हत्या रामबाबू, किरण और सलीना ने साजिश के तहत की है. तीनों के खिलाफ सख्त काररवाई की जानी चाहिए.

बहरहाल अब यह बात अदालत ही तय करेगी कि करतार सिंह का हत्यारा कौन है. किरण और सलीना से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने एक बार फिर रामबाबू के यहां दबिश दी, लेकिन वह नहीं मिला.

पुलिस को पता चला कि करतार की लाश ठिकाने लगाने में रामबाबू ने अपने जिस आटोरिक्शा का प्रयोग किया था, वह किसी के यहां खड़ा है. पुलिस उस जगह पर पहुंच गई जहां उस का आटोरिक्शा खड़ा था. उस आटोरिक्शा को ले कर पुलिस थाने लौट आई.

पुलिस ने किरण और सलीना को भादंवि की धारा 302 (हत्या करना), 201 (हत्या कर के लाश छिपाने की कोशिश) और 120बी (अपराध की साजिश रचने) के तहत गिरफ्तार कर के उन्हें न्यायालय में पेश कर के जेल भेज दिया.

कथा संकलन तक दोनों अभियुक्त जेल में बंद थीं जबकि रामबाबू की तलाश में पुलिस अनेक स्थानों पर दबिश डाल चुकी थी.

—कथा पुलिस सूत्रों और जनचर्चा पर आधारित