UP Crime News : धर्म परिवर्तन से इनकार करने पर प्रेमिका के सिर को धड़ से अलग किया

UP Crime News : एजाज ने जिस तरह प्रिया को अपने जाल में फांसा, उस से शादी की और धर्म परिवर्तन की बात न मानने पर मार डाला, उसे भले ही लव जेहाद न कहा जाए, लेकिन समाज का एक बड़ा हिस्सा तो इसे जरूर…

जि ला: सोनभद्र, उत्तर प्रदेश. तारीख: 21 सितंबर 2020. वक्त: अपराह्न 3 बजे. स्थान: वाराणसी-शक्ति नगर राजमार्ग. इस राजमार्ग पर वन विभाग के एक भुखंड की झाडि़यों में किसी युवती की सिर कटी लाश मिली. जिस झाड़ी में लाश पड़ी थी, वह मुख्य मार्ग से 10 मीटर अंदर थी. यह खबर तेजी से फैली. कुछ ही देर में स्थानीय लोगों का वहां जमावड़ा लग गया. वहां के चौकीदार ने लाश देखी तो तत्काल स्थानीय थाना चोपन को लाश मिलने की सूचना दे दी. सूचना मिलते ही चोपन थाना इंसपेक्टर नवीन तिवारी पुलिस टीम के साथ मौके पर पहुंच गए. लाश घासफूस से ढकी हुई थी, जिसे हटवा कर उन्होंने लाश का निरीक्षण किया.

मृतका की उम्र लगभग 20-25 साल के बीच रही होगी. उस के धड़ पर जींस पैंट, टीशर्ट और पैरों में जूते थे. कपड़ों के साथ जूते भी काले रंग के थे. इंसपेक्टर तिवारी ने आसपास सिर की तलाश कराई, लेकिन सिर कहीं नहीं मिला. वहां मौजूद लोगों में से कोई भी लाश की शिनाख्त नहीं कर पाया. लाश के फोटो आदि करवाने के बाद इंसपेक्टर तिवारी ने लाश पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भेज दी. फिर थाने वापस लौट गए. थाने में चौकीदार को वादी बना कर अज्ञात के विरुद्ध भादंवि की धारा 302/201 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया गया.

लाश की फोटो सोशल मीडिया पर वायरल हो गई थी. वह फोटो देखने के बाद मोहल्ला प्रीतनगर के वार्ड नंबर-7 निवासी लक्ष्मी नारायण सोनी अपनी छोटी बेटी शर्मिला के साथ थाना चोपन पहुंचे. जिस वन भूखंड में लाश मिली थी, वह प्रीतनगर में ही आता था. थाने पहुंचे लक्ष्मी नारायण ने मृतका के कपड़ों, जूतों व शरीर की बनावट के आधार पर लाश की शिनाख्त कर दी. वह उन की 21 वर्षीया बेटी प्रिया सोनी थी. लक्ष्मी नारायण ने बताया कि प्रिया ने उन की मरजी के बिना पड़ोसी युवक एजाज अहमद उर्फ आशिक से प्रेम विवाह कर लिया था और फिलहाल वह ओबरा में रह रही थी.

शिनाख्त होने के बाद मृतका के संबंध में कुछ अहम बातें पता चलीं तो इंसपेक्टर तिवारी ने राहत की सांस ली. लेकिन अभी तक प्रिया का सिर बरामद नहीं हुआ था. देर रात एएसपी (मुख्यालय) ओ.पी. सिंह ने घटनास्थल का निरीक्षण किया. जबकि एसपी आशीष श्रीवास्तव ने मोर्चरी पहुंच कर प्रिया की लाश का निरीक्षण किया. इस के बाद उन्होंने स्वाट टीम प्रभारी प्रदीप सिंह को और सर्विलांस प्रभारी सरोजमा सिंह को थाना पुलिस की मदद के लिए लगा दिया ताकि जांच तेजी से और जल्दी हो. अगले दिन यानी 22 सितंबर को फिर से घटनास्थल पहुंच कर सिर की तलाश शुरू की गई. तलाशी के दौरान एक झाड़ी से लोहे की रौड और एक फावड़ा मिला.

फावड़ा मिलने से यह संभावना बढ़ गई कि हत्यारों ने सिर को कहीं जमीन में गड्ढा खोद कर दफनाया होगा. फावड़ा मिलने से तलाश तेज की गई तो एक झाड़ी से प्रिया का सिर मिल गया. सिर लाश मिलने वाली जगह से 150 मीटर की दूरी पर मिला. इंसपेक्टर नवीन तिवारी ने प्रिया के पति एजाज अहमद और उस के संपर्क में रहने वालों की लिस्ट बनाई. उन के मोबाइल नंबरों का पता लगा कर सारे नंबर सर्विलांस प्रभारी सरोजमा सिंह को सौंप दिए गए. सरोजमा सिंह और स्वाट प्रभारी प्रदीप सिंह ने उन सभी नंबरों की लोकेशन व काल रिकौर्ड की जांच की तो प्रिया का पति एजाज शक के घेरे में आ गया.

संदेह के फंदे में एजाज प्रिया और एजाज के मोबाइल नंबरों के काल रिकौर्ड की जांच की गई तो घटना के दिन दोपहर में दोनों के बीच बातचीत होने के सुबूत मिले. बातचीत के समय प्रिया की लोकेशन ओबरा में थी. बात होने के बाद प्रिया की लोकेशन ओबरा से होते हुए घटनास्थल तक आई. सड़क किनारे जिस जगह प्रिया की लाश मिली. उस के दूसरे किनारे पर एजाज की टायर रिपेयरिंग की दुकान थी. पुख्ता साक्ष्य मिलने के बाद इंसपेक्टर नवीन तिवारी ने 24 सितंबर को शाम साढ़े 5 बजे बग्घा नाला पुल के नीचे से एजाज अहमद को उस के साथी शोएब के साथ गिरफ्तार कर लिया. थाने ला कर दोनों से कड़ाई से पूछताछ की गई तो उन्होंने अपना अपराध स्वीकार कर लिया और हत्या की वजह भी बयां कर दी.

लक्ष्मीनारायण सोनी का परिवार जिला सोनभद्र के थाना चोपन के मोहल्ला प्रीतनगर के वार्ड नंबर 7 में रहता था. उन की पत्नी सुमित्रा का देहांत हो चुका था. उन की 4 बेटियां थीं— प्रीति, शीना, प्रिया और शर्मिला. प्रीति और शीना का विवाह हो चुका था. लक्ष्मी नारायण ‘कन्हैया स्वीट हाउस ऐंड रेस्टोरेंट’ पर काम करते थे. इसी नौकरी से वह घर का खर्च चलाते थे. उन की सभी बेटियां होनहार और समझदार थीं. उन्होंने दिल लगा कर पढ़ाई की और जब कुछ करने लायक हुई तो नौकरी करने लगीं, जिस से खुद का खर्च स्वयं उठा सकें. प्रिया ने स्नातक तक शिक्षा ग्रहण कर ली थी. गोरा रंग, आकर्षक चेहरा और छरहरा बदन प्रिया की अलग पहचान बनाते थे. इसीलिए वह आसानी से किसी की भी नजरों में चढ़ जाती थी.

महत्त्वाकांक्षी प्रिया फैशनेबल कपड़े पहनती थी, मौडर्न बनने की चाह में वह अपने बालों को अलगअलग रंगों में रंगवा लेती थी. उस का रहनसहन हाईसोसायटी की लड़कियों की तरह था. जब फैशन उन की तरह था तो प्रिया की सोच भी उन की तरह ही थी. वह हर किसी से आसानी से हंसबोल लेती थी. शर्मसंकोच से वह कोसो दूर थी. प्रिया के घर से कुछ ही दूरी पर एजाज अहमद उर्फ आशिक का मकान था. उस के पिता जाकिर हुसैन टायर रिपेयरिंग का काम करते थे. एजाज भी पिता की दुकान पर बैठ कर उन के काम में हाथ बंटाता था. वह 4 भाईबहनों में दूसरे नंबर का था. प्रिया पर एजाज की नजर भी थी. उस की खूबसूरती को देख वह पागल सा हो गया था. यह जान कर भी कि वह उस के धर्म की नहीं है, इस के बावजूद वह उस की चाहत को पाने के लिए आतुर था.

पड़ोसी होने की वजह से प्रिया और एजाज एकदूसरे को जानते तो थे ही, जबतब बातचीत भी हो जाती थी. लेकिन जब से प्रिया ने अपने रूपयौवन को आधुनिक रूप से सजाना शुरू किया था, तब से वह कयामत ढाने लगी थी. प्रिया का यौवन जब कदमताल पर थिरकता तो एजाज का दिल तेजी से धड़कने लगता. एजाज अब प्रिया के नजदीक रहने की कोशिश करता. उस से किसी न किसी बहाने से बात करने की कोशिश करता. जब बारबार ऐसा होने लगा तो प्रिया भी समझ गई कि एजाज उस के नजदीक रहने और बात करने के बहाने ढूंढढूंढ कर पास आता है, ऐसा तभी होता है जब दिल में चाहत होती है.

वह समझ गई कि एजाज उसे चाहने लगा है, इसलिए उस के नजदीक रहने की कोशिश करता है. यह सब जान कर भी न जाने क्यों प्रिया को खराब नहीं लगा. बल्कि उस के दिल में भी कुछ कुछ होने लगा. इस का मतलब था कि उस के दिल में एजाज के लिए सौफ्ट कौर्नर था, जो उसे बुरा मानने नहीं दे रहा था. प्रिया ने एजाज को यह बात जाहिर नहीं होने दी कि वह उस की हरकतों को जान गई है. अपनी धुन में डूबा एजाज उस के नजदीक रह कर अपने दिल को तसल्ली देता रहता था. वह सोचता था कि एक न एक दिन अपनी बातों से प्रिया का दिल जीत ही लेगा. प्रिया भी उस की बातों में दिलचस्पी लेने लगी थी. बातों में वह भी पीछे नहीं रहती थी. बातें बढ़ीं तो दोनों एकदूसरे से काफी खुल गए.

अब दोनों को कोई भी बात कहने में संकोच नहीं होता था. दोनों साथ घूमने भी जाने लगे थे. दोनों खातेपीते और मौजमस्ती करते. इस से दोनों एकदूसरे के काफी करीब आ गए. अब प्रिया एजाज पर विश्वास करने लगी थी. साथ ही वह यह भी सोचने लगी थी कि एजाज उसे हमेशा खुश रखेगा, कभी कोई कष्ट नहीं होने देगा. एजाज बड़ी ऐहतियात से कदम दर कदम आगे बढ़ रहा था. वह प्रिया के दिल में अपनी जगह बनाने के लिए वह सब कर रहा था, जो उसे करना चाहिए था. जब उसे लगा कि प्रिया उस के रंग में पूरी तरह रंग गई है, तो उस ने प्रिया से प्रेम का इजहार करने का फैसला कर लिया.

एजाज की दुकान के सामने सड़क पार किनारे पर वन विभाग की जमीन का छोटा सा टुकड़ा था. प्रिया से वह वहीं मिलता था. प्रिया भी जानती थी कि वह सुरक्षित जगह है, वहां कोई आताजाता नहीं था. उन दोनों को साथ देख बात मोहल्ले में फैल सकती थी. इसलिए प्रिया को एजाज से वहां मिलने से कोई गुरेज नहीं था. पहली मुलाकात में जब दोनों वहां बैठे थे, तो एजाज ने प्यार से प्रिया को निहारते हुए उस का हाथ अपने हाथ में ले लिया और बोला, ‘‘प्रिया,  मैं तुम से कुछ कहना चाहता हूं जो काफी दिन से मेरे दिल में कैद है.’’

‘‘कहो, तुम कब से अपनी बात कहने में संकोच करने लगे.’’ प्रिया ने उस की आंखों में देखते हुए मुसकरा अपनी भौंहें उचकाईं. इस से एजाज की हिम्मत बढ़ गई और वह बेसाख्ता बोल पड़ा, ‘‘प्रिया, आई लव यू… आई लव यू प्रिया.’’ कह कर एजाज ने बड़ी उम्मीद से प्रिया की ओर देखा. प्रिया को पहले ही एजाज से ऐसी उम्मीद थी. क्योंकि वह जो भूमिका बना रहा था, उस से ही जाहिर हो गया था कि एजाज अपने प्यार का इजहार करेगा. प्रिया ने भी बिना देरी लगाए प्यार का जवाब प्यार से दे दिया, ‘‘लव यू टू एजाज.’’

प्रिया के मुंह से प्यार के मीठे शब्द निकले तो एजाज ने खुशी से उसे अपनी बांहों में भर लिया. प्रिया ने भी उस की खुशी देख कर उस का साथ दिया. उस का जवाब सुन एजाज ने उस के होंठों को चूम लिया. प्रिया ने उस में भी उस का साथ दिया. लेकिन एजाज जब इस से आगे बढ़ने लगा तो प्रिया ने उसे रोक दिया, ‘‘इतने तक ठीक है, इस के आगे नहीं.’’ एजाज ने मन मसोस कर उस की बात मान ली. इस के बाद दोनों का प्यार दिनोंदिन परवान चढ़ने लगा. प्रिया अच्छी तरह जानती थी कि एजाज से प्यार की बात जानते ही घर में कोहराम मच जाएगा.

उस के पिता लक्ष्मी नारायण कभी भी गैरधर्म के युवक से शादी को तैयार नहीं होंगे. इसलिए उस ने एजाज से बात की. सलाह मशवरे के बाद दोनों ने घरवालों की बिना मरजी के शादी करने का मन बना लिया. धर्म के नाम पर पंगा घटना से डेढ़ महीने पहले दोनों ने चोरीछिपे शादी कर ली. शादी के बाद एजाज ने प्रिया को ओबरा के एक महिला लौज में ठहरा दिया. उस ने प्रिया से कहा कि जब मामला ठंडा हो जाएगा, तब उसे घर ले जाएगा. इस बीच वह अपने घर वालों को भी मना लेगा.

प्रिया ने उस की बात मान ली. वह महिला लौज में रहने लगी. उस ने पास की ही कपड़े की एक दुकान में नौकरी जौइन कर ली. शादी के कुछ ही दिन बीते थे कि एजाज प्रिया पर धर्म परिवर्तन का दबाव बनाने लगा. प्रिया इस के लिए तैयार नहीं थी. उस ने एजाज से कहा, ‘‘मैं ने तुम से प्यार किया है, तुम्हारे साथ रहने को तैयार हूं. लेकिन मैं अपना धर्म नहीं बदल सकती. जैसे तुम को अपने धर्म से प्यार है, वैसे ही मुझे अपना धर्म प्यारा है. जैसे मैं ने तुम्हें तुम्हारे धर्म के साथ स्वीकारा है, वैसे ही तुम मुझे मेरे धर्म के साथ स्वीकार करो. इस में दिक्कत क्या है. हमारे प्यार के बीच धर्म को क्यों ला रहे हो.’’

‘‘प्रिया, हमारे यहां गैरधर्म की लड़की को उस के धर्म के साथ नहीं स्वीकारा जाता. उसे अपना धर्म परिवर्तन करना ही पड़ता है. तुम मेरा धर्म स्वीकार कर लो तो मैं तुम्हें अपने घर ले चलूं.’’

‘‘मैं किसी भी हालत में अपना धर्म नहीं बदलूंगी. यह बात तुम्हें शादी और प्यार करने से पहले सोचना चाहिए था. मुझ से ही पूछ लेते तो ये नौबत न आती.’’

‘‘मैं ने सोचा जब तुम मुझ से प्यार कर सकती हो, शादी कर सकती हो तो मेरा धर्म भी स्वीकार कर लोगी.’’

‘‘सब तुम ने अपने आप ही सोच लिया, मुझ से एक बार भी पूछने की जहमत नहीं उठाई. इस में गलती तुम्हारी है, मेरी नहीं.’’

दोनों के बीच इस बात को ले कर काफी देर तक बहस होती रही लेकिन प्रिया नहीं मानी. फिर दो दोनों के बीच जबतब इस बात को ले कर विवाद होने लगा.

19 सितंबर को शाम 6:05 बजे प्रिया की एजाज से बात हुई. प्रिया ने उस से मिलने आने की बात कही. एजाज ने आने के लिए हां कर दी. प्रिया से बात होने के बाद एजाज ने फोन कर अपने दोस्त शोएब को बुला लिया. उस के साथ मिल कर उस ने योजना बनाई. प्रेमी का असली रूप कुछ देर बाद प्रिया ओबरा से आटो ले कर आई और एजाज की दुकान के सामने उतरी. एजाज ने उसे आते देख लिया था. वह उसे सड़क के दूसरी ओर वन विभाग की जमीन पर ले गया, जहां दोनों शादी से पहले मिला करते थे. एजाज और प्रिया लगभग 10 मीटर अंदर जा कर एक जगह बैठ गए. दोनों में बात हुई. एजाज ने एक बार फिर प्रिया से धर्म परिवर्तन करने की बात छेड़ी लेकिन प्रिया ने दोटूक जवाब दे दिया, ‘‘नहीं.’’

एजाज गुस्से से भर उठा, लेकिन उस ने प्रिया पर जाहिर नहीं होने दिया. एक मिनट में आने की बात कह कर वह दुकान पर आ गया. वहां से उस ने एक लीवर रौड और चाकू उठाया और शोएब को पीछे आने को कहा. एजाज फिर वहां पहुंचा, जहां प्रिया बैठी थी. प्रिया की पीठ उस की तरफ थी. एजाज ने प्रिया के सिर पर पीछे से लीवर रौड से तेज प्रहार किया. उस का वार इतने जोरों का था कि प्रिया चीख भी न सकी और वहीं ढेर हो गई. इस के बाद शोएब के वहां पहुंचने पर एजाज ने तेज धारदार चाकू से प्रिया का गला काट कर सिर धड़ से अलग कर दिया. फिर सिर को वहां से डेढ़ सौ मीटर दूर एक झाड़ी में फेंक दिया. इस के बाद धड़ को जमीन में दफनाने के लिए एजाज अपनी मारुति आल्टो कार से फावड़ा लेने चला गया.

बाजार से फावड़ा खरीद कर लाने के बाद दोनों ने जमीन को खोदने का प्रयास किया, लेकिन जमीन पथरीली होने के कारण दोनों गड्ढा नहीं खोद पाए. लाश को दफना नहीं सके तो दोनों ने आसपास उगी घास और पौधों से लाश ढक दी. प्रिया का मोबाइल उस की जींस की जेब में था. एजाज ने उस का मोबाइल निकाल कर अपनी जेब में रख लिया. लोहे की रौड, चाकू और फावड़ा झाडि़यों में छिपाने के बाद दोनों वापस लौट आए. अगले दिन 20 सितंबर को एजाज ने प्रिया के मोबाइल में उस का वाट्सऐप एकाउंट खोल कर प्रिया की तरफ से अपने नंबर पर न मिलने आने का मैसेज भेज दिया, जिस से उस पर शक न जाए. फिर उस ने प्रिया का मोबाइल स्विच्ड औफ कर के अपनी दुकान के पीछे फेंक दिया.

लेकिन उस का गुनाह छिप न सका. आखिर वह और शोएब कानून की गिरफ्त में आ ही गए. एजाज की निशानदेही पर प्रिया का मोबाइल और आल्टो कार भी पुलिस ने बरामद कर ली. हत्या में इस्तेमाल बाकी हथियार घटनास्थल से बरामद हो चुके थे. जरूरी कानूनी लिखापढ़ी के बाद दोनों को सीजेएम कोर्ट में पेश कर के जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

Love Crime : एकतरफा इश्क में डॉक्टर ने प्रेमिका को मार डाला

Love Crime : डिगरी ले कर डाक्टर बन जाना ही सब कुछ नहीं होता. इस पेशे में डाक्टर के लिए सेवाभाव, संयम, विवेक और इंसानियत भी जरूरी हैं. विवेक तिवारी डाक्टर जरूर बन गया था, लेकिन उस में इन में से कोई भी गुण नहीं था. अपने एक तरफा प्यार में वह चाहता था कि डा. योगिता वही करे जो वह चाहता है. ऐसा नहीं हुआ तो…

बीते 19 अगस्त की बात है. उत्तर प्रदेश पुलिस को सूचना मिली कि आगरा फतेहाबाद हाईवे पर बमरोली कटारा के पास सड़क किनारे एक महिला की लाश पड़ी है. यह जगह थाना डौकी के क्षेत्र में थी. कंट्रोल रूप से सूचना मिलते ही थाना डौकी की पुलिस मौके पर पहुंच गई. मृतका लोअर और टीशर्ट पहने थी. पास ही उस के स्पोर्ट्स शू पड़े हुए थे. चेहरेमोहरे से वह संभ्रांत परिवार की पढ़ीलिखी लग रही थी, लेकिन उस के कपड़ों में या आसपास कोई ऐसी चीज नहीं मिली, जिस से उस की शिनाख्त हो पाती. युवती की उम्र 25-26 साल लग रही थी.

पुलिस ने शव को उलटपुलट कर देखा. जाहिरा तौर पर उस के सिर के पीछे चोट के निशान थे. एकदो जख्म से भी नजर आए. युवती के हाथ में टूटे हुए बाल थे. हाथ के नाखूनों में भी स्कीन फंसी हुई थी. साफतौर पर नजर आ रहा था कि मामला हत्या का है, लेकिन हत्या से पहले युवती ने कातिल से अपनी जान बचाने के लिए काफी संघर्ष किया था. मौके पर शव की शिनाख्त नहीं हो सकी, तो डौकी पुलिस ने जरूरी जांच पड़ताल के बाद युवती की लाश पोस्टमार्टम के लिए एमएम इलाके के पोस्टमार्टम हाउस भेज दी. डौकी थाना पुलिस इस युवती की शिनाख्त के प्रयास में जुट गई.

उसी दिन सुबह करीब साढ़े 9 बजे दिल्ली के शिवपुरी पार्ट-2, दिनपुर नजफगढ़ निवासी डाक्टर मोहिंदर गौतम आगरा के एमएम गेट पुलिस थाने पहुंचे. उन्होंने अपनी बहन डाक्टर योगिता गौतम के अपहरण की आशंका जताई और डाक्टर विवेक तिवारी पर शक व्यक्त करते हुए पुलिस को एक तहरीर दी. डाक्टर मोहिंदर ने पुलिस को बताया कि डाक्टर योगिता आगरा के एसएन मेडिकल कालेज से पोस्ट ग्रेजुएशन कर रही है. वह नूरी गेट में गोकुलचंद पेठे वाले के मकान में किराए पर रहती है. कल शाम यानी 18 अगस्त की शाम करीब सवा 4 बजे डाक्टर योगिता ने दिल्ली में घर पर फोन कर के कहा था कि डाक्टर विवेक तिवारी उसे बहुत परेशान कर रहा है. उस ने डाक्टरी की डिगरी कैंसिल कराने की भी धमकी दी है. फोन पर डाक्टर योगिता काफी घबराई हुई थी और रो रही थी.

पुलिस ने डाक्टर मोहिंदर से डाक्टर विवेक तिवारी के बारे में पूछा कि वह कौन है? डा. मोहिंदर ने बताया कि डा. योगिता ने 2009 में मुरादाबाद के तीर्थकर महावीर मेडिकल कालेज में प्रवेश लिया था. मेडिकल कालेज में पढ़ाई के दौरान योगिता की जान पहचान एक साल सीनियर डा. विवेक से हुई थी. डाक्टरी करने के बाद विवेक को सरकारी नौकरी मिल गई. वह अब यूपी में जालौन के उरई में मेडिकल औफिसर के पद पर तैनात है. डा. विवेक के पिता विष्णु तिवारी पुलिस में औफिसर थे. जो कुछ साल पहले सीओ के पद से रिटायर हो गए थे. करीब 2 साल पहले हार्ट अटैक से उन की मौत हो गई थी.

डा. मोहिंदर ने पुलिस को बताया कि डा. विवेक तिवारी डा. योगिता से शादी करना चाहता था. इस के लिए वह उस पर लगातार दबाव डाल रहा था. जबकि डा. योगिता ने इनकार कर दिया था. इस बात को लेकर दोनों के बीच काफी दिनों से झगड़ा चल रहा था. डा. विवेक योगिता को धमका रहा था. नहीं सुनी पुलिस ने  पुलिस ने योगिता के अपहरण की आशंका का कारण पूछा, तो डा. मोहिंदर ने बताया कि 18 अगस्त की शाम योगिता का घबराहट भरा फोन आने के बाद मैं, मेरी मां आशा गौतम और पिता अंबेश गौतम तुरंत दिल्ली से आगरा के लिए रवाना हो गए. हम रात में ही आगरा पहुंच गए थे. आगरा में हम योगिता के किराए वाले मकान पर पहुंचे, तो वह नहीं मिली. उस का फोन भी रिसीव नहीं हो रहा था.

डा. मोहिंदर ने आगे बताया कि योगिता के नहीं मिलने और मोबाइल पर भी संपर्क नहीं होने पर हम ने सीसीटीवी फुटेज देखी. इस में नजर आया कि डा. योगिता 18 अगस्त की शाम साढ़े 7 बजे घर से अकेली बाहर निकली थी. बाहर निकलते ही उसे टाटा नेक्सन कार में सवार युवक ने खींचकर अंदर डाल लिया.  डा. मोहिंदर ने आरोप लगाया कि सारी बातें बताने के बाद भी पुलिस ने ना तो योगिता को तलाशने का प्रयास किया और ना ही डा. विवेक का पता लगाने की कोशिश की. पुलिस ने डा. मोहिंदर से अभी इंतजार करने को कहा.

जब 2-3 घंटे तक पुलिस ने कुछ नहीं किया, तो डा. मोहिंदर आगरा में ही एसएन मेडिकल कालेज पहुंचे. वहां विभागाध्यक्ष से मिल कर उन्हें अपना परिचय दे कर बताया कि उन की बहन डा. योगिता लापता है. उन्होंने भी पुलिस के पास जाने की सलाह दी. थकहार कर डा. मोहिंदर वापस एमएम गेट पुलिस थाने आ गए और हाथ जोड़कर पुलिस से काररवाई करने की गुहार लगाई. शाम को एक सिपाही ने उन्हें बताया कि एक अज्ञात युवती का शव मिला है, जो पोस्टमार्टम हाउस में रखा है. उसे भी जा कर देख लो. मन में कई तरह की आशंका लिए डा. मोहिंदर पोस्टमार्टम हाउस पहुंचे. शव देख कर उन की आंखों से आंसू बहने लगे. शव उन की बहन डा. योगिता का ही था. मां आशा गौतम और पिता अंबेश गौतम भी नाजों से पाली बेटी का शव देख कर बिलखबिलख कर रो पड़े.

शव की शिनाख्त होने के बाद यह मामला हाई प्रोफाइल हो गया. महिला डाक्टर की हत्या और इस में पुलिस अधिकारी के डाक्टर बेटे का हाथ होने की संभावना का पता चलने पर पुलिस ने कुछ गंभीरता दिखाई और भागदौड़ शुरू की. आगरा पुलिस ने जालौन पुलिस को सूचना दे कर उरई में तैनात मेडिकल आफिसर डा. विवेक तिवारी को तलाशने को कहा. जालौन पुलिस ने सूचना मिलने के 2 घंटे बाद ही 19 अगस्त की रात करीब 8 बजे डा. विवेक को हिरासत में ले लिया. जालौन पुलिस ने यह सूचना आगरा पुलिस को दे दी. जालौन पुलिस उसे हिरासत में ले कर एसओजी आफिस आ गई. जालौन पुलिस ने उस से आगरा जाने और डा. योगिता से मिलने के बारे में पूछताछ की, तो वह बिफर गया. उस ने कहा कि कोरोना संक्रमण की वजह से वह क्वारंटीन में है.

विवेक तिवारी बारबार बयान बदलता रहा. बाद में उस ने स्वीकार किया कि वह 18 अगस्त को आगरा गया था और डा. योगिता से मिला था. विवेक ने जालौन पुलिस को बताया कि वह योगिता को आगरा में टीडीआई माल के बाहर छोड़कर वापस उरई लौट आया था. आगरा पुलिस ने रात करीब 11 बजे जालौन पहुंचकर डा. विवेक को हिरासत में ले लिया. उसे जालौन से आगरा ला कर 20 अगस्त को पूछताछ की गई. पूछताछ में वह पुलिस को लगातार गुमराह करता रहा. पुलिस ने उस की काल डिटेल्स निकलवाई, तो पता चला कि शाम सवा 6 बजे से उस की लोकेशन आगरा में थी. डा. योगिता से उस की शाम साढ़े 7 बजे आखिरी बात हुई थी.

इस के बाद रात सवा बारह बजे विवेक की लोकेशन उरई की आई. कुछ सख्ती दिखाने और कई सबूत सामने रखने के बाद उस से मनोवैज्ञानिक तरीके से पूछताछ की गई. आखिरकार उस ने डा. योगिता की हत्या करने की बात स्वीकार कर ली. बाद में पुलिस ने उसे न्यायिक अभिरक्षा में जेल भेज दिया. पुलिस ने 20 अगस्त को डाक्टरों के मेडिकल बोर्ड से डा. योगिता के शव का पोस्टमार्टम कराया. पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार डा. योगिता के शरीर से 3 गोलियां निकलीं. एक गोली सिर, दूसरी कंधे और तीसरी सीने में मिली. योगिता पर चाकू से भी हमला किया गया था. पोस्टमार्टम कराने के बाद आगरा पुलिस ने डा. योगिता का शव उस के मातापिता व भाई को सौंप दिया.

प्रतिभावान डा. थी योगिता पूछताछ में डा. योगिता के दुखांत की जो कहानी सामने आई, वह डा. विवेक तिवारी के एकतरफा प्यार की सनक थी. दिल्ली के नजफगढ़ इलाके की शिवपुरी कालोनी पार्ट-2 में रहने वाले अंबेश गौतम नवोदय विद्यालय समिति में डिप्टी डायरेक्टर हैं. वह राजस्थान के उदयपुर शहर में तैनात हैं. डा. अंबेश के परिवार में पत्नी आशा गौतम के अलावा बेटा डा. मोहिंदर और बेटी डा. योगिता थी. योगिता शुरू से ही पढ़ाई में अव्वल रहती थी. उस की डाक्टर बनने की इच्छा थी. इसलिए उस ने साइंस बायो से 12वीं अच्छे नंबरों से पास की. पीएमटी के जरिए उस का सलेक्शन मेडिकल की पढ़ाई के लिए हो गया. उस ने 2009 में मुरादाबाद के तीर्थंकर मेडिकल कालेज में एमबीबीएस में एडमिशन लिया.

इसी कालेज में पढ़ाई के दौरान योगिता की मुलाकात एक साल सीनियर विवेक तिवारी से हुई. दोनों में दोस्ती हो गई. दोस्ती इतनी बढ़ी कि वे साथ में घूमनेफिरने और खानेपीने लगे. इस दोस्ती के चलते विवेक मन ही मन योगिता को प्यार करने लगा लेकिन योगिता की प्यारव्यार में कोई दिलचस्पी नहीं थी. वह केवल अपनी पढ़ाई और कैरियर पर ध्यान देती थी. इसी दौरान 2-4 बार विवेक ने योगिता के सामने अपने प्यार का इजहार करने का प्रयास किया लेकिन उस ने हंस मुसकरा कर उस की बातों को टाल दिया. योगिता के हंसनेमुस्कराने से विवेक समझ बैठा कि वह भी उसे प्यार करती है. जबकि हकीकत में ऐसा कुछ था ही नहीं. विवेक मन ही मन योगिता से शादी के सपने देखता रहा.

इस बीच, विवेक को भी डाक्टरी की डिगरी मिल गई और योगिता को भी. बाद में डा. विवेक तिवारी को सरकारी नौकरी मिल गई. फिलहाल वह उरई में मेडिकल आफिसर के पद पर कार्यरत था. डा. विवेक मूल रूप से कानपुर का रहने वाला है. कानपुर के किदवई नगर के एन ब्लाक में उस का पैतृक मकान है. इस मकान में उस की मां आशा तिवारी और बहन नेहा रहती हैं. विवेक के पिता विष्णु तिवारी उत्तर प्रदेश पुलिस में अधिकारी थे. वे आगरा शहर में थानाप्रभारी भी रहे थे. कहा जाता है कि पुलिस विभाग में विष्णु तिवारी का काफी नाम था. वे कानपुर में कई बड़े एनकाउंटर करने वाली पुलिस टीम में शामिल रहे थे. कुछ साल पहले विष्णु तिवारी सीओ के पद से रिटायर हो गए थे. करीब 2 साल पहले उन की हार्ट अटैक से मौत हो गई थी.

मुरादाबाद से एमबीबीएस की डिगरी हासिल कर डा. योगिता आगरा आ गई. आगरा में 3 साल पहले उस ने एसएन मेडिकल कालेज में पोस्ट ग्रेजुएशन करने के लिए एडमिशन ले लिया. वह इस कालेज के स्त्री रोग विभाग में पीजी की छात्रा थी. वह आगरा में नूरी गेट पर किराए के मकान में रह रही थी. इस बीच, डा. योगिता और विवेक की फोन पर बातें होती रहती थीं. कभीकभी मुलाकात भी हो जाती थी. डा. विवेक जब भी मिलता या फोन करता, तो अपने प्रेम प्यार की बातें जरूर करता लेकिन डा. योगिता उसे तवज्जो नहीं देती थी. दोनों के परिवारों को उन की दोस्ती का पता था. डा. विवेक के पास योगिता के परिजनों के मोबाइल नंबर भी थे. उस ने योगिता के आगरा के मकान मालिकों के मोबाइल नंबर भी हासिल कर रखे थे. कहा यह भी जाता है कि विवेक और योगिता कई साल रिलेशन में रहे थे.

पिछले कई महीनों से डा. विवेक उस पर शादी करने का दबाव डाल रहा था, लेकिन डा. योगिता ने इनकार कर दिया था. इस से डा. विवेक नाराज हो गया. वह उसे फोन कर धमकाने लगा. 18 अगस्त को विवेक ने योगिता को फोन कर शादी की बात छेड़ दी. योगिता के साफ इनकार करने पर उस ने धमकी दी कि वह उसे जिंदा नहीं छोड़ेगा, उस की एमबीबीएस की डिगरी कैंसिल करा देगा. इस से डा. योगिता घबरा गई. उस ने दिल्ली में अपनी मां को फोन कर रोते हुए यह बात बताई. इसी के बाद योगिता के मातापिता व भाई दिल्ली से आगरा के लिए चल दिए थे.

योगिता को धमकाने के कुछ देर बाद डा. विवेक ने उसे दोबारा फोन किया. इस बार उस की आवाज में क्रोध नहीं बल्कि अपनापन था. उस ने कहा कि भले ही वह उस से शादी ना करे लेकिन इतने सालों की दोस्ती के नाम पर उस से एक बार मिल तो ले. काफी नानुकुर के बाद डा. योगिता ने आखिरी बार मिलने की हामी भर ली. उसी दिन शाम करीब साढ़े 7 बजे डा. विवेक ने योगिता को फोन कर के कहा कि वह आगरा आया है और नूरी गेट पर खड़ा है. घर से बाहर आ जाओ, आखिरी मुलाकात कर लेते हैं. योगिता बिना सोचेसमझे बिना किसी को बताए घर से अकेली निकल गई. यही उस की आखिरी गलती थी.

घर से बाहर निकलते ही नूरी गेट पर टाटा नेक्सन कार में सवार विवेक ने उसे कार का गेट खोल कर आवाज दी और तेजी से कार के अंदर खींच लिया. रास्ते में डा. विवेक ने योगिता से फिर शादी का राग छेड़ दिया, तो चलती कार में ही दोनों में बहस होने लगी. डा. विवेक उस से हाथापाई करने लगा. इसी हाथापाई में योगिता ने अपने हाथ के नाखूनों से विवेक के बाल खींचे और चमड़ी नोंची, तो गुस्साए विवेक ने उस का गला दबा दिया. डा. विवेक योगिता को कार में ले कर फतेहाबाद हाईवे पर निकल गया. एक जगह रुक कर उस ने अपनी कार में रखा चाकू निकाला. चाकू से योगिता के सिर और चेहरे पर कई वार किए. इतने पर भी विवेक का गुस्सा शांत नहीं हुआ, तो उस ने योगिता के सिर, कंधे और छाती में 3 गोलियां मारीं. यह रात करीब 8 बजे की घटना है.

हत्या कर के रातभर सक्रिय रहा विवेक इस के बाद योगिता के शव को बमरौली कटारा इलाके में सड़क किनारे एक खेत में फेंक दिया. पिस्तौल भी रास्ते में फेंक दी. रात में ही वह उरई पहुंच गया. रात को ही वह उरई से कानपुर गया और अपनी कार घर पर छोड़ आया. दूसरे दिन वह वापस उरई आ गया. बाद में पुलिस ने कानपुर में डा. विवेक के घर से वह कार बरामद कर ली. यह कार 2 साल पहले खरीदी गई थी. कार में खून से सना वह चाकू भी बरामद हो गया, जिस से हमला कर योगिता की जान ली गई थी. बहुत कम बोलने वाली प्रतिभावान डा. योगिता गौतम का नाम कोरोना संक्रमण काल में यूपी की पहली कोविड डिलीवरी करने के लिए भी दर्ज है. कोरोना महामारी जब आगरा में पैर पसार रही थी, तब आइसोलेशन वार्ड विकसित किया गया.

इस के लिए स्त्री और प्रसूति रोग विभाग की भी एक टीम बनाई गई. जिसे संक्रमित गर्भवतियों के सीजेरियन प्रसव की जिम्मेदारी दी गई. विभागाध्यक्ष डा. सरोज सिंह के नेतृत्व में गठित इस टीम में शामिल डा. योगिता ने 21 अप्रैल को यूपी और आगरा में कोविड मरीज के पहले सीजेरियन प्रसव को अंजाम दिया था. इस के बाद भी उन्होंने कई सीजेरियन प्रसव कराए. डा. योगिता के कराए प्रसव की कई निशानियां आज उन घरों में किलकारियां बन कर गूंज रही हैं. सिरफिरे डाक्टर आशिक के हाथों जान गंवाने से 5 दिन पहले ही 13 अगस्त को डा. योगिता का पीजी का रिजल्ट आया था. जिस में वह पास हो गई थी. पीजी कर योगिता विशेषज्ञ डाक्टर बन गई थी. लेकिन वक्त को कुछ और ही मंजूर था. लोगों की जान बचाने वाली डा. योगिता की उस के आशिक ने ही जान ले ली. घटना वाले दिन भी वह दोपहर 3 बजे तक अस्पताल में अपनी ड्यूटी पर थी.

डा. योगिता की मौत पर आगरा के एसएन मेडिकल कालेज में कैंडल जला कर योगिता को श्रद्धांजलि दी गई. कालेज के जूनियर डाक्टरों की एसोसिएशन ने प्रदर्शन कर सच्ची कोरोना योद्धा की हत्या पर आक्रोश जताया. बहरहाल डा. विवेक ने अपने एकतरफा प्यार की सनक में योगिता की हत्या कर दी. उस की इस जघन्य करतूत ने योगिता के परिवार को खून के आंसू बहाने पर मजबूर कर दिया. वहीं, खुद का जीवन भी बरबाद कर लिया. डाक्टर लोगों की जान बचाने वाला होता है, लोग उसे सब से ऊंचा दर्जा देते हैं, लेकिन यहां तो डाक्टर ही हैवान बन गया. दूसरों की जान बचाने वाले ने साथी डाक्टर की जान ले ली.

 

UP News : सोते हुए डॉक्टर को महबूबा के आशिक ने चाकू से गोद डाला

UP News : उस का नाम था मायरा बानो, लेकिन उस की सूरत और सीरत की वजह से सब उसे चांदनी कहने लगे थे. चांदनी का पहला प्यार था इमरान और इमरान का पहला प्यार थी चांदनी. डाक्टर संजय भदौरिया ने जब चांदनी पर नजर डाली तो…

पेशे से डाक्टर संजय सिंह भदौरिया बरेली के धनेटा-शीशगढ़ मार्ग से सटे आनंदपुर गांव में रहते थे. उन के पिता राजेंद्र सिंह गांव के संपन्न किसान थे. परिवार में मां और पिता के अलावा एक छोटा भाई हरिओम और एक बहन पूनम थी. पूनम का विवाह हो चुका था. संजय डाक्टरी की पढ़ाई करने के बाद 1999 में बरेली के एक अस्पताल में अपनी सेवाएं देने लगे. सन 2000 में नीलम से उन का विवाह हो गया. लेकिन काफी समय बाद भी उन्हें संतान सुख नहीं मिला. छोटे भाई हरिओम का विवाह बाद में हुआ. हरिओम के 3 बेटे हुए. संजय ने उन्हीं में से एक बेटे को गोद ले लिया था. कई अस्पतालों में अपनी सेवाएं देने के बाद डा. संजय ने अपना अस्पताल खोलने का निश्चय किया.

5 साल पहले उन्होने गौरीशंकर गौडि़या में किराए पर एक इमारत ले कर अस्पताल खोला. उन्होंने अस्पताल का नाम रखा ‘आनंद जीवन हौस्पिटल’. अस्पताल अच्छा चलने लगा. लेकिन घर से काफी दूर होने के कारण आनेजाने में दिक्कत होती थी. इसलिए डा. संजय कहीं घर के नजदीक अस्पताल खोलने पर विचार करने लगे. 6 महीने तक गौडि़या में अस्पताल चलाने के बाद संजय ने अपने गांव आनंदपुर से 2 किलोमीटर की दूरी पर विकसित गांव दुनका में एक इमारत किराए पर ले ली. इमारत दुनका गांव निवासी नत्थूलाल की थी, जिसे संजय ने 8 हजार रुपए मासिक किराए पर लिया था. संजय ने इमारत में बने हाल को 2 हिस्सों में बांट दिया.

एक हिस्से में बैठ कर वह मरीजों को देखते थे. जबकि दूसरा हिस्सा एडमिट किए गए मरीजों के लिए था. मरीजों को दवा भी वहीं दी जाती थी, जबकि यह काम उन के छोटे भाई हरिओम सिंह भदौरिया करते थे. हरिओम बड़े भाई के अन्य कामों में भी सहयोग करते थे. संजय और हरिओम के मामा नत्थू सिंह भी उन के साथ लगे रहते थे. संजय कई सालों से हिंदू युवा वाहिनी से भी जुडे़ थे. पिछले 5 सालों में संजय का अस्पताल अच्छा चल निकला था. रात में वह अधिकतर अस्पताल में ही रुकते थे. घर जाते तो कुछ ही देर में वापस लौट आते थे. रात में वह अस्पताल परिसर में चारपाई पर मच्छरदानी लगा कर सोते थे. इमारत के बाहर लोहे का एक बड़ा सा गेट था, जो दिन में खुला रहता था लेकिन रात में बंद कर दिया जाता था.

रात में कोई मरीज आता तो गेट खोल दिया जाता था. 16/17 सितंबर की रात डा. संजय अस्पताल परिसर में चारपाई पर मच्छरदानी लगा कर सो गए. उन के भाई हरिओम अस्पताल के अंदर मामा नत्थू सिंह के साथ सोए थे. 17 सितंबर की सुबह 6 बजे हरिओम उठ कर बाहर आए तो बड़े भाई संजय को मृत पाया. किसी ने बड़ी बेरहमी से उन की हत्या कर दी थी. हरिओम के मुंह से चीख निकल गई. चीख की आवाज सुन कर मामा नत्थू सिंह भी वहां आ गए. भांजे को मरा पाया तो वह भी सकते में आ गए. हरिओम ने अपने घर वालों को सूचना देने के बाद शाही थाना पुलिस को घटना के बारे में बता दिया. थोड़ी देर में शाही थाना इंसपेक्टर वीरेंद्र सिंह राणा पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए.

हत्यारा इमरान था हिंदू युवा वाहिनी के तहसील अध्यक्ष डा. संजय भदौरिया की हत्या की खबर फैलते देर नहीं लगी. हिंदू नेता की हत्या से पुलिस प्रशासन में हड़कंप मच गया. कई थानों की पुलिस और फील्ड यूनिट के साथ एसएसपी रोहित सिंह सजवान स्वयं मौके पर पहुंच गए. पुलिस अधिकारियों ने लाश का निरीक्षण किया. मृतक के गले, चेहरे, पेट व आंख पर किसी तेज धारदार हथियार से वार किए गए थे. हत्या इतनी बेदर्दी से की गई थी जैसे हत्यारे को मृतक से बेइंतहा नफरत रही हो. अस्पताल की इमारत के मालिक दुनका में रहने वाले नत्थूलाल थे. पीछे की ओर उन के भाई की दुकानों के टीन शेड में सीसीटीवी कैमरे लगे थे. पुलिस ने उन कैमरों की रिकौर्डिंग की जांच की.

रिकार्डिंग में रात साढ़े 3 बजे के करीब एक युवक अस्पताल में खड़ी टाटा मैजिक के पीछे से निकलते दिखा. वह संजय की चारपाई के नजदीक आया. फिर उस ने मच्छरदानी हटाते ही धारदार छुरे से संजय पर वार करने शुरू कर दिए. एक मिनट के अंदर उस ने संजय का काम तमाम कर दिया और जिस रास्ते से आया था, उसी रास्ते से वापस लौट गया. हत्यारे युवक को हरिओम ने पहचान लिया. वह दुनका का ही रहने वाला इमरान था. हत्यारे की पहचान होते ही पुलिस अधिकरियों ने उस की गिरफ्तारी के आदेश दे दिए. पुलिस की कई टीमें इमरान की तलाश में लग गईं. इंसपेक्टर वीरेंद्र राणा की टीम ने दोपहर पौने एक बजे इमरान को रतनपुरा के जंगल में खोज निकाला.

पुलिस को आया देख इमरान ने 315 बोर के तमंचे से पुलिस पर फायर कर दिया, जिस से कोई पुलिसकर्मी हताहत नहीं हुआ. जवाब में पुलिस ने उस के पैर को निशाना बना कर गोली चला दी, जो सीधे इमरान के पैर में लगी. गोली लगते ही इमरान के हाथ से तमंचा छूट गया और वह जमीन पर गिर कर तड़पने लगा. पुलिस ने उसे दबोच लिया. इमरान के पास से पुलिस ने एक तमंचा, एक खोखा कारतूस, 2 जिंदा कारतूस और आलाकत्ल छुरा बरामद कर लिया. थाने ला कर जब उस से कड़ाई से पूछताछ की गई तो पूरा मामला आइने की तरह साफ हो गया. इमरान शाही थाना क्षेत्र के गांव दुनका में रहता था. वह भाड़े पर टाटा मैजिक चलाता था. इस से पहले वह संजय के अस्पताल के मालिक नत्थूलाल के यहां ड्राइवर था.

इमरान की आर्थिक स्थिति काफी कमजोर थी. उस के पिता छोटे तांगा चलाते थे. इमरान 3 भाइयों में सब से बड़ा था. इमरान के घर से कुछ दूरी पर चांदनी उर्फ मायरा बानो (परिवर्तित नाम) रहती थी. नाम के अनुसार उस के रूप की चांदनी भी लोगों को लुभाती थी. उम्र के 18वें बसंत में चांदनी का यौवन अपने चरम पर था. खूबसूरत देहयष्टि वाली चांदनी युवकों से बात करने में हिचकती थी, वह बातबात में शरमा जाती थी. यौवन द्वार पर आते ही उस में कई परिवर्तन आ गए थे, शारीरिक रूप से भी और सोच में भी. कई युवक उस के आगेपीछे मंडराते थे, लेकिन चांदनी इमरान को पसंद करती थी. इमरान काफी स्मार्ट था, वह उस की नजरों से हो कर दिल में उतर गया था.

इमरान भी उस के आगेपीछे मंडराता था. दोनों एकदूसरे से परिचित थे. घर वाले भी एकदूसरे के घर आतेजाते थे. ऐसे में उन के बीच बातचीत होती रहती थी. लेकिन जब से उन के बीच प्यार के अंकुर फूटने लगे थे, तब से उन के बीच संकोच की दीवार सी खड़ी हो गई थी. जब भी इमरान उस की आंखों के सामने होता तो उस की निगाहें उसी पर जमी रहतीं. चेहरे पर इस की खुशी साफ झलकती थी. इमरान को भी उस का इस तरह से देखना भाता था, क्योंकि उस का दिल तो वैसे भी चांदनी के प्यार का मरीज था. दोनों की आंखों से एकदूसरे के लिए प्यार साफ झलकता था. दोनों इस बात को महसूस भी करते थे, लेकिन बात जुबां पर नहीं आ पाती थी.

शुरू हो गई प्रेम कहानी एक दिन चांदनी जब इमरान के घर गई तो उस समय वह घर में अकेला था. चांदनी को देखते ही इमरान का दिल तेजी से धड़कने लगा. उसे लगा कि दिल की बात कहने का इस से अच्छा मौका नहीं मिलेगा. इमरान ने उसे कमरे में बैठाया और फटाफट 2 कप चाय बना लाया. चाय का घूंट भर कर चांदनी उस से दिल्लगी करती हुई बोली, ‘‘चाय तो बहुत अच्छी बनी है. बेहतर होगा कहीं चाय की दुकान खोल लो. खूब बिक्री होगी.’’

‘‘अगर तुम रोजाना दुकान पर आ कर चाय पीने का वादा करो तो मैं दुकान भी खोल लूंगा.’’ इमरान ने चांदनी की बात का जवाब उसी अंदाज में दिया तो चांदनी लाजवाब हो गई.लदोनों इसी बात पर काफी देर हंसते रहे, फिर इमरान गंभीर हो कर बोला, ‘‘चांदनी, मुझे तुम से एक बात कहनी थी.’’

‘‘हां, कहो न.’’

‘‘सोचता हूं कहीं तुम बुरा न मान जाओ.’’

‘‘जब तक कहोगे नहीं कि बात क्या है तो मुझे कैसे पता चलेगा कि अच्छा मानना है कि बुरा.’’

‘‘चांदनी, मैं तुम से दिलोजान से प्यार करता हूं. ये प्यार आज का नहीं बरसों का है जो आज जुबां पर आया है. ये आंखें तो बस तुम्हें ही देखना पसंद करती हैं, तुम्हारे पास रहने से दिल को करार आता है. तुम्हारे प्यार में मैं इतना दीवाना हो चुका हूं कि अगर तुम ने मेरा प्यार स्वीकार नहीं किया तो मैं पागल हो जाऊंगा.’’

इमरान के दिल की बात जुबां पर आ गई. सुन कर चांदनी का चेहरा शर्म से लाल हो गया. पलकें झुक गईं, होंठों ने कुछ कहना चाहा लेकिन जुबां ने साथ नहीं दिया. चांदनी की यह हालत देख कर इमरान बोला, ‘‘कुछ तो कहो चांदनी. क्या मैं इस लायक नहीं कि तुम से प्यार कर के तुम्हारा साथ पा सकूं.’’

‘‘क्या कहना ही जरूरी है, तुम अपने आप को दीवाना कहते हो और मेरी आंखों में बसी चाहत को नहीं देख सकते. सच पूछो तो जो हाल तुम्हारा है, वही हाल मेरा भी है. मैं ने भी तुम्हें बहुत पहले से दिल में बसा लिया था. पर डरती थी कि कहीं यह मेरा एकतरफा प्यार न हो.’’ चांदनी ने अपनी चाहत का इजहार कर दिया तो इमरान खुशी से झूम उठा. उसे लगा जैसे सारी दुनिया की दौलत चांदनी के रूप में उस की झोली में आ समाई हो. एक बार दोनों के बीच प्यार का इजहार हुआ तो फिर उन के मिलनेजुलने का सिलसिला बढ़ गया. अब दोनों रोज गांव के बाहर एक सुनसान जगह पर मिलने लगे. वहां दोनों एकदूसरे पर जम कर प्यार बरसाते और हमेशा एकदूसरे का साथ निभाने की कसमें खाते.

जैसेजैसे समय बीतता गया, दोनों की चाहत दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ती गई. इसी बीच चांदनी को पेट दर्द की समस्या हुई तो उस ने इमरान को बताया. इमरान डा. संजय भदौरिया से परिचित था. इसलिए वह चांदनी को इलाज के लिए संजय के अस्पताल में ले आया. डा. संजय ने चांदनी का चैकअप किया, फिर कुछ दवाइयां लिख दीं, जोकि उन के हौस्पिटल के मैडिकल स्टोर में उपलब्ध थीं, हरिओम ने पर्चे में लिखी दवाइयां दे दीं. चांदनी को देखते और उसे छूते समय संजय को एक सुखद अनूभूति हुई थी. चांदनी की खूबसूरती को देख संजय की आंखें चुंधिया गई थीं, दिल में भी उमंगें उठने लगी थीं.

उस दिन के बाद चांदनी संजय के पास दवा लेने के लिए अकेले ही आने लगी. संजय उसे अकेले में देखता और उस से खूब बातें करता. बातोंबातों में उस ने चांदनी को अपने प्रभाव में लेना शुरू कर दिया. उस ने चांदनी से दवा के पैसे लेना भी बंद कर दिया था. डा. संजय ने छीना इमरान का प्यार चांदनी भी संजय से खुल कर बातें करती थी. एक दिन संजय ने उस से कहा, ‘‘चांदनी, तुम मुझे बहुत अच्छी लगती हो. लगता है मैं तुम्हें चाहने लगा हूं.’’

यह कह कर संजय ने चांदनी के चेहरे पर नजरें गड़ा दीं. यह सुन कर चांदनी पल भर के लिए चौंकी, फिर बोली, ‘‘आप मुझ से उम्र में बहुत बड़े हैं और शादीशुदा भी. ऐसे में प्यार मुझ से…’’

‘‘पगली, प्यार उम्र और बंधन को कहां देखता है, जिस से होना होता है, हो जाता है. तुम मुझे अब मिली हो, अगर पहले मिल जाती तो मैं तुम से ही शादी करता. खैर अब वह तो हो नहीं सकता, उस की क्या बात करें. मैं तुम्हारा पूरा ख्याल रखूंगा, तुम्हें किसी चीज की कमी नहीं होने दूंगा.’’

‘‘मैं इमरान से प्यार करती हूं और हम दोनों शादी भी करने वाले हैं.’’

‘‘इमरान से प्यार कर के तुम्हें क्या मिलेगा? वह एक मामूली इंसान है. तुम्हारी खुशियों का खयाल नहीं रख पाएगा. मेरे पास पैसा है, शोहरत है. मैं तुम्हारे लिए बहुत कुछ कर सकता हूं. हर तरह से…’’

‘‘आप की बात तो सही है लेकिन…’’ दुविधा में पड़ी चांदनी इस से आगे कुछ नहीं बोल पाई.

‘‘सोच लो, विचार कर लो, वैसे भी जिंदगी के अहम फैसले जल्दबाजी में नहीं लिए जाते. कोई जल्दी नहीं, आराम से सोच कर बता देना.’’

इस के बाद चांदनी अस्पताल से घर लौट आई. उस के दिमाग में तरहतरह के विचार घुमड़घुमड़ रहे थे. इमरान उस का प्यार था लेकिन उस के सिर्फ प्यार से अच्छी जिंदगी नहीं गुजारी जा सकती थी. अच्छी जिंदगी के लिए पैसों की जरूरत होती है, वह जरूरत संजय से पूरी हो सकती थी. संजय के प्यार को स्वीकार कर के वह अच्छी जिंदगी गुजार सकती थी. आगे चल कर वह उसे शादी के लिए भी मना सकती थी, नहीं तो वह उस की दूसरी बीवी की तरह ताउम्र गुजार सकती थी. चांदनी का मन बदल गया और उस का फैसला संजय के हक में गया था. अगले ही दिन चांदनी संजय के अस्पताल पहुंच कर उस से मिली. उस के चेहरे की खुशी देख कर संजय जान गया था कि चांदनी ने उस का होने का फैसला कर लिया है. फिर भी अंजान बनते हुए उस ने चांदनी से पूछ लिया, ‘‘तो चांदनी, तुम ने क्या सोचा…इमरान या मैं?’’

‘‘जाहिर है आप, आप को न चुनती तो मैं यहां वापस आती भी नहीं.’’ चांदनी ने बड़ी अदा से मुसकराते हुए कहा. संजय उस का फैसला सुन कर खुश हो गया. उस दिन के बाद से संजय और चांदनी का मिलनाजुलना बढ़ गया. दोनों एकदूसरे के काफी नजदीक आ गए. इन नजदीकियों के बाद चांदनी ने इमरान से दूरी बनानी शुरू कर दी. चांदनी का अपने प्रति रूखा व्यवहार देख कर इमरान को उस पर शक हो गया. वह उस पर नजर रखने लगा. जल्द ही उसे सारी सच्चाई पता चल गई. इमरान ने बदले की ठान ली इस बात को ले कर वह चांदनी से तो झगड़ा ही, संजय से भी लड़ा. संजय ने उसे डांटडपट कर वहां से भगा दिया. अपनी प्रेमिका को अपने से दूर जाते देख कर इमरान बौखला गया. वह उस दिन को कोसने लगा जब वह चांदनी को इलाज के लिए संजय के पास ले गया था.

संजय ने उस की पीठ में छुरा घोंपा था. इसलिए उस ने संजय की जिंदगी छीन लेने का फैसला कर लिया. 16/17 सितंबर की रात साढ़े 3 बजे के करीब वह संजय के अस्पताल में घुसा. उस ने संजय को बाहर चारपाई पर मच्छरदानी लगा कर सोते देखा. वह चारपाई के नजदीक पहुंचा और मच्छरदानी हटा कर साथ लाए छुरे से संजय पर ताबड़तोड़ प्रहार करने शुरू कर दिए. सोता हुआ संजय चीख तक न सका और उस की मौत हो गई. संजय को मौत के घाट उतारने के बाद इमरान जिस रास्ते से आया था, उसी रास्ते से अस्पताल से बाहर निकल गया. वहां से जाने के बाद वह रतनपुरा के जंगल में जा कर छिप गया.

लेकिन उस का गुनाह तीसरी आंख में कैद हो गया था, जिस के बाद पुलिस को उस तक पहुंचने में देर नहीं लगी. इंसपेक्टर वीरेंद्र सिंह राणा ने हरिओम को वादी बना कर इमरान के विरुद्ध भादंवि की धारा 302 के तहत मुकदमा दर्ज करवा दिया. इस के अलावा मुठभेड़ के दौरान पुलिस पर जानलेवा हमला करने पर भी उस के खिलाफ धारा 307 का भी मुकदमा दर्ज किया गया. आवश्यक कानूनी लिखापढ़ी के बाद इमरान को न्यायालय में पेश कर न्यायिक अभिरक्षा में जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधा

UP News : पैसे और प्रेमी के चक्कर में मां ने खुद ही करवाया बेटे का अपहरण

UP News : पात्र जुड़ते रहे, कहानी बनती गई. बिना किसी मिर्चमसाले के इतनी रोचक कि आदमी सोचने को मजबूर हो जाए कि यह हकीकत है या कल्पना. वाकई न तो शिखा जैसी मां ढूंढे मिलेगी, जिस ने प्रेमी के भविष्य के लिए मासूम बेटे का अपहरण करा दिया और न ऐसा प्रेमी जो प्रेमिका शिखा के इशारे पर अपराध का भागीदार बनने तेलंगाना से मुरादाबाद चला आया. मजेदार बात यह कि कहानी पति गौरव ने शुरू कराई और समाप्त भी उसी पर हुई.

5 वर्षीय धु्रव बहुत शरारती था, शरारती के साथ जिद्दी भी. वजह यह कि घर में एकलौता बेटा  था, सभी का दुलारा, घर के लोग उस की शरारतों को नजरअंदाज कर देते थे. धु्रव मुरादाबाद शहर के लाइनपार क्षेत्र में रहने वाले गौरव कुमार का बेटा था. उस के अलावा गौरव की 8 वर्ष की एक बेटी थी सादगी. 7 अगस्त, 2020 की बात है. ध्रुव अपनी पसंद के बिस्कुट खाने की जिद कर रहा था. उस की मां शिखा ने उसे पैसे देते हुए घर के पास की दुकान से बिस्कुट लेने भेज दिया. उस वक्त दोपहर का डेढ़ बजने को था. बिस्कुट ला कर खाने के कुछ देर बाद ध्रुव घर से बाहर खेलने चला गया.

धु्रव को घर से निकले काफी देर हो गई, लेकिन वह घर नहीं लौटा. मां शिखा को चिंता हुई तो वह उसे ढूंढने निकल पड़ी. शिखा ने धु्रव को इधरउधर ढूंढा लेकिन वह कहीं नहीं दिखा तो शिखा परेशान हो कर घर लौट आई. उस ने यह बात अपनी सास सुधा को बताई. पोते के न मिलने से सुधा चिंतित हुई. फिर सासबहू दोनों धु्रव को ढूंढने निकल गईं.

दोनों कुछ दूर स्थित रामलीला मैदान में भी गईं. वहां मोहल्ले के बच्चे खेल रहे थे. उन्होंने बच्चों से धु्रव के बारे में पूछा, लेकिन कोई भी उस के बारे में नहीं बता पाया. इधरउधर तलाशने के बाद भी जब उन का लाडला नहीं मिला तो दोनों उदास मन से घर लौट आईं. कुछ देर पहले धु्रव खेलने गया था, ऐसे कहां गायब हो गया, यही सोचसोच कर सास बहू परेशान हो रही थीं. सुधा का पति गौरव एक फाइनैंस कंपनी में नौकरी करता था. उस समय वह अपनी ड्यूटी पर था. शिखा ने बेटे के गायब होने की सूचना गौरव को दी तो वह कुछ ही देर में घर पहुंच गया. शिखा ने पति को बेटे के गायब होने की बात विस्तार से बताई.

हालांकि गौरव की पत्नी और मां धु्रव को पहले ही सब जगह ढूंढ चुकी थीं, इस के बावजूद गौरव का मन नहीं माना. वह बाइक ले कर बेटे को ढूंढने के लिए निकल गया. उस ने सभी संभावित जगहों पर बेटे को ढूंढा, लेकिन कुछ पता नहीं लगा. गौरव के दोस्तों ने भी धु्रव को लाइन पार के नाले के किनारे जा कर देखा कि कहीं खेलतेखेलते नाले में न गिर गया हो, पर वहां भी कुछ दिखाई नहीं दिया . धु्रव के गायब होने की खबर मिलने पर मोहल्ले वाले गौरव के घर पर एकत्र होने लगे. सभी आश्चर्य में थे कि आखिर 5 साल का बच्चा कहां चला गया. लोग तरहतरह के कयास लगा रहे थे. बेटे की चिंता में शिखा की आंखों के आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे. गौरव की समझ में भी नहीं आ रहा था कि वह बेटे को अब कहां तलाश करे.

शाम के 4 बजे थे. गौरव अपने घर वालों के साथ घर में बैठा हुआ था. तभी उस के मोबाइल पर एक अनजान नंबर से काल आई. गौरव ने जैसे ही काल रिसीव की, तभी दूसरी ओर से आवाज आई, ‘‘तुम्हारा बेटा धु्रव अब हमारे कब्जे में है. अगर उसे जिंदा चाहते हो तो 30 लाख रुपए का इंतजाम कर लो वरना उस की लाश भी नहीं मिल पाएगी.’’

‘‘नहीं, आप मेरे बेटे को कुछ नहीं करना, जैसा कहोगे मैं वैसा ही करूंगा.’’ गौरव गिड़गिड़ाते हुए बोला.

‘‘ठीक है, तुम पैसों का इंतजाम कर लो. मैं बाद में फोन करूंगा. और हां, एक बात भेजे में डाल लो, पुलिस के पास जाने की कोशिश भी की तो नुकसान तुम्हारा ही होगा.’’ कहने के बाद अपहर्त्ता ने काल डिसकनेक्ट कर दी. 30 लाख रुपए नहीं थे गौरव के पास गौरव समझ चुका था कि उस के बेटे का किसी ने अपहरण कर लिया है और अपहर्त्ता 30 लाख रुपए की फिरौती मांग रहा है. गौरव ने अपहर्त्ता से कह तो दिया था कि वह सब करने को तैयार है लेकिन समस्या यह थी कि 30 लाख रुपए का इंतजाम कहां से करे. धु्रव के अपहरण की बात सुन कर घर के सभी लोगों की चिंताएं बढ़ गई थीं.

चूंकि स्थिति गंभीर थी, इसलिए रिश्तेदारों और मोहल्ले वालों ने गौरव को सलाह दी कि यह जानकारी पुलिस को देना जरूरी है. वही मदद कर सकती है. गौरव को भी यह सलाह सही लगी और वह पत्नी शिखा और 2-3 लोगों के साथ एसएसपी प्रभाकर चौधरी के निवास पर पहुंच गया. उस ने चौधरी को बेटे के रहस्यमय तरीके से गायब होने और 30 लाख की फिरौती मांगे जाने की बात बता दी. जिस फोन नंबर से गौरव के पास फिरौती की काल आई थी, एसएसपी ने उस के फोन में वह नंबर देखा तो आश्चर्यचकित रह गए क्योंकि वह नंबर 13 अंकों का था. यानी वह काल किसी सिमकार्ड से नहीं बल्कि इंटरनेट से की गई थी. इस से वह समझ गए कि अपहर्त्ता बेहद शातिर है.

उन्होंने अपहरण के इस मामले को गंभीरता से लेते हुए उसी समय एसपी (सिटी) अमित कुमार आनंद को अपने पास बुला कर इस मामले में त्वरित काररवाई करने को कहा. पुलिस कप्तान के निर्देश पर थाना मझोला के थानाप्रभारी राकेश कुमार सिंह ने अज्ञात के खिलाफ अपहरण का केस दर्ज कर लिया. केस को सुलझाने के लिए एसएसपी प्रभाकर चौधरी ने एसपी (सिटी) अमित कुमार आनंद के निर्देशन में एक पुलिस टीम बनाई. टीम में एएसपी कुलदीप सिंह गुलावत, थानाप्रभारी (मझोला) राकेश कुमार सिंह, एसओजी प्रभारी इंसपेक्टर सत्येंद्र सिंह, एसआई राजेंद्र सिंह, पंकज कुमार, मोहित, कांस्टेबल अंकुल, आलोक त्यागी आदि को शामिल किया गया.

पुलिस टीम ने गौरव कुमार और उस के घर वालों से पूछताछ करने के बाद जांच शुरू कर दी. गौरव के घर के आसपास लगे सीसीटीवी कैमरों की जांच की गई. एक फुटेज में धु्रव पास ही स्थित दुकान तक जाता दिखा और वहां से बिस्कुट का पैकेट लाते हुए भी दिखाई दिया. इस के बाद जब वह दोबारा खेलने के लिए घर से निकला तो फुटेज में नजर नहीं आया. इस के बाद वह सीसीटीवी कैमरे की जद से बाहर हो गया, जिस से पता नहीं चल पाया कि वह कहां गया. पुलिस ने उस दुकानदार से भी पूछताछ की, इस के अलावा अन्य लोगों से भी धु्रव के बारे में पूछा लेकिन पुलिस को कोई जानकारी नहीं मिली, जिस के सहारे जांच आगे बढ़ सकती.

एसपी (सिटी) ने ध्रुव के घर वालों से पूछा कि उन की किसी से कोई दुश्मनी तो नहीं है, इस पर शिखा ने कहा, ‘‘सर, वैसे तो हमारी किसी से दुश्मनी नहीं है, पर हमारा प्रौपर्टी को ले कर विवाद जरूर चल रहा है.’’

‘‘किस से?’’ एसपी (सिटी) ने पूछा. तभी गौरव बोला, ‘‘सर, हमारे मामा सतीश से प्रौपर्टी को ले कर विवाद चल रहा है.’’

इस बारे में एसपी (सिटी) अमित कुमार आनंद ने उस से विस्तार से पूछताछ की तो पता चला कि गौरव जिस मकान में रहता है, वह उस के नाना कुंवर सैन का है. कुंवर सैन रेलवे विभाग में नौकरी करते थे. उन की 3 बेटियां सुधा, रेखा, सरोज के अलावा 2 बेटे सतीश और सुशील थे. वह अपने सभी बच्चों की शादी कर चुके थे. उन के एक बेटे सुशील की मौत हो चुकी थी. जिस का परिवार मेरठ में रहता था, जबकि 2 बेटियां रेखा और सरोज अपने परिवार के साथ सम्राट अशोक नगर में रहती थीं. संदेह था मामला प्रौपर्टी विवाद से न जुड़ा हो कुंवर सैन का मुरादाबाद के लाइनपार क्षेत्र में जो दोमंजिला मकान था, उस की कीमत करीब डेढ़ करोड़ रुपए थी. सुधा के बेटे गौरव को कुंवर सैन बहुत प्यार करते थे, इसलिए गौरव अपने बीवीबच्चों और मां सुधा के साथ इसी मकान में रहता था. यहीं पर कुंवर सैन का बेटा सतीश भी अपने परिवार के साथ रह रहा था.

सतीश झगड़ालू किस्म का था, वह पिता के साथ मारपिटाई करता रहता था, इसलिए कुंवर सैन ने उसे अपनी प्रौपर्टी से बेदखल कर दिया था. लेकिन वह जबरदस्ती वहां रह रहा था. गौरव और सतीश का उसी प्रौपर्टी को ले कर विवाद चल रहा था. विवाद की वजह पता लग जाने के बाद एसपी (सिटी) को भी सतीश पर ही शक हुआ, इसलिए उन्होंने सतीश, उस की पत्नी और बेटे को पूछताछ के लिए थाने बुला लिया. पुलिस टीम ने उन तीनों से ध्रुव के बारे में कई तरह से पूछताछ की. लेकिन वे तीनों खुद को बेकुसूर बताते रहे. उधर पुलिस ने गौरव से कह दिया था कि जब भी अपहर्त्ताओं का फोन आए तो वह उन से प्यार से बात करें. इस के बाद गौरव रात में भी अपहर्त्ताओं के फोन काल का इंतजार करता रहा.

रात डेढ़ बजे अपहर्त्ता ने गौरव के फोन पर काल कर के पूछा कि पैसों का इंतजाम हुआ या नहीं. गौरव ने कह दिया कि वह इंतजाम कर रहा है. इस के बाद फोन कट गया. गौरव ने यह जानकारी पुलिस को दे दी. शिखा बारबार इस बात पर ही जोर देती रही कि उस के बेटे के अपहरण के पीछे सतीश मामा का हाथ है. पुलिस रात भर सतीश व उस के बेटे से पूछताछ करती रही, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला. पुलिस ने गौरव और उस की पत्नी शिखा के फोन को सर्विलांस पर लगा रखा था. एसएसपी सारी जानकारी से आईजी रमित शर्मा को बराबर अवगत करा रहे थे. 8 अगस्त को सुबह गौरव के मोबाइल पर अपहर्त्ता ने फोन कर के कहा, ‘‘कल पैसों का इंतजाम कर लो. जैसे ही पैसे मिलेंगे, धु्रव को बस में बिठा कर भेज देंगे.’’

इस बार भी काल इंटरनेट से की गई थी. जिस ऐप से काल की गई थी, वह एक चीनी ऐप था. इस संबंध में प्रदेश स्तर के पुलिस अधिकारी ने चीनी कंपनी से उस ईमेल आईडी की जानकारी मांगी जो उस ऐप को इंस्टाल करते समय उपभोक्ता को देनी होती है. यह जानकारी मिलने पर पुलिस अपहर्त्ता तक पहुंचने का रास्ता तैयार कर सकती थी. अपहर्त्ताओं तक पहुंचने के अलावा पुलिस की प्राथमिता धु्रव को सकुशल बरामद करने की भी थी. इस काम में 300 पुलिसकर्मी अलगअलग तरीके से जांच कार्य में जुटे थे. 8 अगस्त को ही सुबह करीब 9 बजे गौरव के मोबाइल पर ऐसी काल आई, जिस ने गौरव  की हताशा में आशा का दीप जला दिया.

फोन करने वाले ने कहा, ‘‘भाई, मैं बस का कंडक्टर दीपक सिंह बोल रहा हूं. बस चलने वाली है और आप का बेटा धु्रव बस में बैठा रो रहा है. आप जल्दी आ जाइए.’’

यह सुन कर गौरव चौंकते हुए बोला, ‘‘भाईसाहब, मैं तो मुरादाबाद में हूं. आप मेरे बेटे से वीडियो काल कराइए.’’

ड्राइवर कंडक्टर की समझदारी कंडक्टर ने गौरव को वीडियो काल कर के बस की सीट पर बैठे धु्रव को दिखाया. धु्रव ने गौरव को बताया कि एक अंकल उसे बस में बिठा कर कहीं चले गए. धु्रव को सकुशल देख कर गौरव की आंखों में आंसू छलक आए. गौरव ने कंडक्टर को बताया कि 7 अगस्त को धु्रव का किसी ने अपहरण कर 30 लाख रुपए की फिरौती मांगी थी. जानकारी मिलने के बाद कंडक्टर ने धु्रव को अपनी सुरक्षा में ले लिया. वह बस गाजियाबाद के कौशांबी से मुरादाबाद जाने वाली थी. बस में उस समय 18 सवारियां बैठी थीं. मामला बहुत ही संवेदनशील था, इसलिए कंडक्टर दीपक सिंह और ड्राइवर विकल भाटी बस को करीब 100 मीटर दूर महाराजपुर पुलिस चौकी ले गए.

यह पुलिस चौकी गाजियाबाद के लिंक थाना के अंतर्गत आती है. उन्होंने धु्रव को पुलिस को सौंपते हुए उस के अपहरण होने की जानकारी दे दी. अपहर्त्ता धु्रव की जेब में एक परची रख गए थे, जिस पर धु्रव लिखा था. साथ ही 2 फोन नंबर भी लिखे थे. उन में से पहले फोन नंबर पर बस कंडक्टर ने बात की तो वह धु्रव के पिता गौरव का निकला. एसएसपी प्रभाकर चौधरी को अपहृत धु्रव के सकुशल बरामद होने की जानकारी मिल गई थी. उन्होंने बच्चे को लाने के लिए एक पुलिस टीम गाजियाबाद रवाना कर दी. इस के अलावा कौशांबी डिपो की जिस बस संख्या यूपी78 एफएन4762 को चालक विकल भाटी और परिचालक दीपक सिंह मुरादाबाद ला रहे थे, वह बस उन्होंने मुरादाबाद के थाना पाकबड़ा के बाहर ही रुकवा ली.

एनएच-24 पर स्थित थाना पाकबड़ा में बस के कंडक्टर और ड्राइवर से विस्तार से पूछताछ की गई. दोनों कर्मचारियों ने पुलिस को सारी बात बता दी. बस में बैठी सवारियों ने पुलिस को बताया कि मास्क बांधे एक युवक बच्चे को बस में बिठा कर गया था. उधर मुरादाबाद से गाजियाबाद गई पुलिस टीम धु्रव को सकुशल वहां से ले आई. अपने लाडले को देख कर शिखा खुशी से उछल पड़ी. एसएसपी ने 8 अगस्त को ही एक प्रैस कौन्फ्रैंस कर बताया कि उन्होंने बच्चे की बरामदगी के लिए चारों तरफ पुलिसकर्मी तैनात कर दिए थे. पुलिस का बढ़ता दबाव देख कर अपहर्त्ता धु्रव को बस में बिठा कर फरार हो गए. यह पुलिस की बड़ी उपलब्धि थी.

धु्रव उस समय सहमा हुआ था. जब उस से पूछताछ की गई तो उस ने बताया कि एक लंबे से अंकल मुझे मोटरसाइकिल पर बिठा कर ले गए थे. इस के बाद वह एक कार से एक होटल में ले गए. वहां उन्होंने खाना खिलाया फिर कार से बहुत दूर ले गए. अपहर्त्ता की पहचान के लिए मुरादाबाद पुलिस ने कौशांबी बस डिपो में लगे सीसीटीवी की फुटेज देखी लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला. सारी औपचारिकताएं पूरी कर के पुलिस ने धु्रव को उस के मांबाप के हवाले कर दिया. बेटे के सहीसलामत मिलने पर गौरव के घर में त्यौहार जैसा माहौल था. गौरव और शिखा ने इस खुशी में मोहल्ले में हलवापूरी बंटवाई.

बच्चे के बरामद होने के बाद पुलिस का अगला मकसद अपहर्त्ताओं तक पहुंचना था. इस के लिए एक ही जरिया था, इंटरनेट काल का 13 अंकों का वह नंबर, जिस से फिरौती की काल की गई थी. आईजी रमित शर्मा ने इस बारे में डीजीपी हितेश अवस्थी से बात की. डीजीपी ने संबंधित कंपनियों से इस संबंध में संपर्क किया. इधर सर्विलांस टीम अपने काम में जुटी हुई थी. टीम ऐसे फोन नंबरों की जांच में जुट गई जो 7 अगस्त को मुरादाबाद के लाइन पार क्षेत्र में स्थित मोबाइल टावर के संपर्क में आए थे. ये नंबर हजारों की संख्या में थे. इसे डंप डाटा कहा जाता है. पुलिस ने इस डंप डाटा की जांच की. कई दिनों की जांच के बाद कई फोन नंबर पुलिस टीम की रडार पर चढ़ गए.

उन फोन नंबरों को सर्विलांस टीम ने फिल्टर किया तो एक फोन नंबर 9100263333 शक के दायरे में आ गया. जांच में पता चला कि यह फोन नंबर मोहम्मद अशफाक पुत्र मोहम्मद उस्मान, गांव जलालपुर, थाना वर्नी, जिला निजामाबाद, तेलंगाना के नाम पर लिया गया था. एसएसपी ने एक पुलिस टीम तेलंगाना रवाना कर दी. टीम ने थाना वर्नी पुलिस के सहयोग से मोहम्मद अशफाक के घर दबिश दी तो अशफाक घर पर ही मिल गया. थाना वर्नी में पुलिस ने अशफाक से सख्ती के साथ पूछताछ की तो उस ने स्वीकार कर लिया कि उस ने ही धु्रव का अपहरण किया था. लेकिन उस ने यह काम अपनी प्रेमिका और धु्रव की मम्मी शिखा के कहने पर किया था.

यह सुन कर पुलिस चौंकी. यह सवाल छोटा नहीं था कि क्या एक मां खुद अपने एकलौते बेटे का अपहरण करा सकती है. अशफाक ने यह भी बताया कि बच्चे का अपहरण करने के लिए वह निजामाबाद से ही टाटा टिगोर गाड़ी नंबर एमएच26बीसी 4145 किराए पर ले कर मुरादाबाद गया था. गाड़ी को यहीं का ड्राइवर इमरान खान चला कर ले गया था. पुलिस टीम ने अशफाक की निशानदेही पर ड्राइवर इमरान खान को भी हिरासत में ले लिया और टाटा टिगोर गाड़ी भी बरामद कर ली. अब केस पूरी तरह खुल चुका था. चूंकि इस मामले में अपहृत हुए बच्चे की मां शिखा के भी शामिल होने की बात सामने आ चुकी थी, इसलिए तेलंगाना में मौजूद मुरादाबाद पुलिस ने यह बात मुरादाबाद के कप्तान प्रभाकर चौधरी को बता दी.

उन्होंने एसपी (सिटी) को शिखा को हिरासत में लेने के निर्देश दिए ताकि वह फरार न हो सके. आरोपी अशफाक और इमरान को निजामाबाद की कोर्ट से ट्रांजिट रिमांड पर ले कर पुलिस टीम तेलंगाना से मुरादाबाद के लिए रवाना हो गई. 18 अगस्त को दोनों आरोपियों को स्थानीय कोर्ट में पेश करने के बाद एसएसपी के पास ले जाया गया. वहां शिखा पहले से मौजूद थी. मोहम्मद अशफाक को अपने सामने देख कर वह सकपका गई. तीनों आरोपी एकदूसरे के सामने थे, इसलिए अब झूठ बोलने का तो सवाल ही नहीं था. कोई सोच भी नहीं सकता था पुलिस टीम ने उन से पूछताछ की तो एक ऐसी मां की प्रेमकहानी और साजिश सामने आई, जिस ने अपने प्यार और पैसे की खातिर खुद प्रेमी के हाथों अपने एकलौते बेटे का अपहरण कराया.

इतना ही नहीं, उस मां ने प्रेमी के साथ मिल कर इस से आगे की कहानी का जो तानाबाना बुना था, वह ऐसा था कि पुलिस भी गच्चा खा जाए. गौरव और शिखा की शादी 2011 में हुई थी. गौरव एक फाइनैंस कंपनी में कलेक्शन एजेंट था. वहां से उसे जो वेतन मिलता था, उस से उस की घरगृहस्थी ठीकठाक चल रही थी. समय अपनी गति से गुजरता रहा और शिखा 2 बच्चों की मां बन गई. उस की बेटी 8 साल की है और बेटा धु्रव 5 साल का. गौरव सोशल साइट्स पर भी सक्रिय रहता था. कई साल पहले फेसबुक पर उस की दोस्ती निशा परवीन से हुई थी. उस से वह खूब चैटिंग करता था. दोनों की यह दोस्ती इतनी बढ़ी कि जब तक दोनों चैटिंग नहीं कर लेते थे, उन्हें चैन नहीं मिलता था.

पति के अकसर फोन पर व्यस्त रहने के बारे में एक दिन शिखा ने पूछा तो गौरव ने उसे सब कुछ बता दिया कि वह तेलंगाना की रहने वाली निशा परवीन नाम की दोस्त से फेसबुक पर चैटिंग करता है. पति की इस साफगोई से शिखा प्रभावित हुई. गौरव ने निशा परवीन को भी अपनी बीवी के बारे में सब कुछ बता दिया. तब शिखा ने भी निशा से चैटिंग शुरू कर की. शिखा को निशा परवीन की बातें और विचार अच्छे लगे. लिहाजा गौरव के ड्यूटी पर चले जाने के बाद शिखा अपने फोन द्वारा निशा परवीन से चैटिंग करती थी. शिखा ने अपनी फेसबुक आईडी रानी के नाम से बनाई थी. इस तरह शिखा और निशा भी गहरी दोस्त बन गईं.

एक दिन निशा परवीन ने शिखा को अपने बारे में जो कुछ बताया, उसे सुन कर शिखा हैरान रह गई. उस ने बताया कि वह कोई लड़की नहीं बल्कि लड़का है और उस का असली नाम मोहम्मद अशफाक है. उस ने केवल लड़की के नाम से फेसबुक आईडी बनाई है. यह सुन कर शिखा और ज्यादा खुश हुई क्योंकि वह एक युवक था. विपरीत लिंगी के साथ वैसे भी आकर्षण बढ़ जाता है. इस के बाद उन दोनों ने एकदूसरे को अपने फोन नंबर दे दिए. शिखा ने मोहम्मद अशफाक का नंबर मौसी के नाम से अपने फोन में सेव कर लिया था. अशफाक बहुत बातूनी था, शिखा को उस की बातें बहुत अच्छी लगती थीं. धीरेधीरे उन की बातों का दायरा बढ़ता गया और वे एकदूसरे को चाहने लगे. फोन पर उन्होंने अपनी चाहत का इजहार भी कर दिया था.

दोनों के दिलों में प्यार का अंकुर फूटा और धीरेधीरे बड़ा होने लगा. शादीशुदा और 2 बच्चों की मां शिखा को 11 सौ किलोमीटर दूर तेलंगाना में बैठा अशफाक अपने पति से ज्यादा प्यारा लगने लगा था. दूर बैठे बातें करने के बजाए उस का मन करता कि या तो वह उस के पास पहुंच जाए या फिर उस का प्रेमी उड़ कर उस के पास आ जाए, जिस से वह उस से रूबरू हो सके. दूर बैठे दोनों प्रेमी तड़प रहे थे. ऐसी तड़प में प्यार और ज्यादा मजबूत होता है. यही हाल शिखा और अशफाक का था. शिखा अपने प्रेमी से मिलने के उपाय खोजने लगी. करीब एक साल पहले शिखा ने इस की तरकीब खोज निकाली. उस ने अशफाक को फोन कर के मेरठ आने को कहा और वहां होटल में मिलना तय कर लिया.

फिर एक दिन शिखा मौसी के घर जाने के बहाने मेरठ चली गई. योजना के अनुसार, अशफाक तेलंगाना से मेरठ पहुंच गया. वहीं पर दोनों एक होटल में ठहरे. पहली मुलाकात में वे एक दूसरे से बहुत प्रभावित हुए. करीब एक साल से उन के दिलों में प्यार की जो अग्नि भभक रही थी, दोनों ने उसे शांत किया. शिखा को अशफाक पहली मुलाकात में ही इतना भा गया था कि उस के लिए पति तक को छोड़ने को तैयार हो गई. अशफाक ने उसे अपने बारे में बताया कि वह अविवाहित है और आईटीआई करने के बाद एक इलैक्ट्रौनिक्स कंपनी में बतौर मोटर वाइंडर काम करता है. इस काम को छोड़ कर वह अपना एक जिम खोलेगा. शिखा ने भी कह दिया कि वह उस के लिए अपना सब कुछ छोड़ने को तैयार है.

बातोंबातों में हो गई प्रेमी की एक रात होटल में बिताने के बाद अशफाक अपने घर लौट गया और शिखा मौसी के यहां चली गई. 2-4 दिन बाद शिखा मौसी के घर से मुरादाबाद लौट आई. घर लौटने के बाद उस के जेहन में प्रेमी का प्यार छाया रहा. वह अपनी घरगृहस्थी में लगी जरूर रही लेकिन उस का मन प्रेमी के पास ही रहता था. गौरव को इस बात की भनक तक नहीं लगी कि उस की ब्याहता तन और मन से अब किसी और की हो चुकी है. उस ने अशफाक का फोन नंबर मौसी के नाम से सेव कर रखा था, इसलिए वह गौरव के सामने भी उस से बात करती रहती थी. कुछ महीनों बाद शिखा की बेताबी बढ़ने लगी तो उस ने अशफाक को तेलंगाना से मुरादाबाद बुला लिया. उस ने शिखा के घर के नजदीक ही किराए पर एक कमरा ले लिया. कमरा लेते वक्त उस ने अपना नाम मयंक बताया था. प्रेमी के नजदीक रहने पर शिखा को बड़ी खुशी हुई.

पति के ड्यूटी पर चले जाने के बाद वह फोन कर के प्रेमी को अपने घर बुला लेती फिर दोनों हसरतें पूरी करते. बाद में अशफाक गौरव के सामने भी उस के घर आने लगा. शिखा ने उस का परिचय अपने मौसेरे भाई मयंक के रूप में कराया था. अशफाक उर्फ मयंक एक तरह से शिखा के घर का सदस्य बन गया. वह उस के बच्चों को स्कूल भी छोड़ कर आता और छुट्टी होने पर लाता भी. एक बार शिखा की सास सुधा की तबीयत खराब हो गई. उस समय गौरव अपनी ड्यूटी पर था तो अशफाक ही सुधा को अस्पताल ले गया था. एक बार शिखा रिश्तेदार के यहां जाने के बहाने घर से निकली और प्रेमी के साथ रामनगर घूमने चली गई. वहां एक रात वे

होटल में ठहरे. वहां से दोनों एक दिन बाद वापस लौटे. अशफाक को मुरादाबाद में रहते हुए करीब 15 दिन बीत गए थे. हालांकि उस का खर्चा शिखा ही उठा रही थी लेकिन अशफाक को अपनी नौकरी भी करनी थी, इसलिए वह तेलंगाना लौट गया. प्रेमी के चले जाने के बाद शिखा फिर से बेचैन रहने लगी. गौरव जिस मकान में रहता था, वह उस के नाना कुंवर सैन का था. इसी मकान में ऊपर की मंजिल पर गौरव के मामा सतीश अपने परिवार के साथ रहते थे. सतीश की गलत हरकतों की वजह से कुंवर सैन ने अपने बेटे सतीश को अपनी प्रौपर्टी से बेदखल कर दिया था. कुंवर सैन अपने नाती गौरव को बहुत चाहते थे. इसलिए गौरव और शिखा को उम्मीद थी कि वह मरने से पहले उन्हें कुछ न कुछ प्रौपर्टी जरूर दे कर जाएंगे.

लेकिन कोरोना महामारी की वजह से लगे लौकडाउन के समय कुंवर सैन का निधन हो गया. इस के बाद जब वसीयत सामने आई तो पता चला कि कुंवर सैन ने गौरव और उस के बच्चों के नाम कोई प्रौपर्टी नहीं छोड़ी. सारी प्रौपर्टी उन्होंने अपनी बेटी रेखा के नाम कर दी थी. यह पता चलते ही शिखा के होश उड़ गए. शिखा की मौसेरी सास रेखा पहले से ही संपन्न थी. वह शिखा के बेटे धु्रव को बहुत चाहती थीं. रेखा ने पिछले दिनों 18 लाख रुपए की एक प्रौपर्टी बेची थी. बन गई एक घिनौनी योजना शिखा अब अपने स्वार्थ का जाल बुनने में जुट गई कि किस तरह उस के मंसूबे पूरे हों. यह सारी बातें उस ने अपने प्रेमी अशफाक से भी साझा कीं. फिर शिखा ने अपने ही बेटे धु्रव के अपहरण का प्लान बनाया.

इस काम के लिए उस ने प्रेमी अशफाक को भी राजी कर लिया. शिखा का मानना था कि अगर धु्रव का अपहरण हो जाएगा तो गौरव की मां और मौसी फिरौती की रकम दे देंगी. फिरौती के जो 30-35 लाख रुपए मिलेंगे, उस से प्रेमी को वह अच्छा बिजनैस शुरू करा देगी. फिर पति को छोड़ कर वह उस के साथ रहने के लिए तेलंगाना चली जाएगी. पूरी योजना बनाने के बाद अशफाक ने निजामाबाद से 2 हजार रुपए प्रतिदिन के हिसाब से किराए पर टाटा टिगोर कार ली. तय हुआ कि गाड़ी में तेल अशफाक को डलवाना होगा. अशफाक ड्राइवर इमरान खान के साथ 5 अगस्त को कार ले कर मुरादाबाद के लिए चल दिया. 7 अगस्त को तड़के 3 बजे वह मुरादाबाद के लाइनपार स्थित रामलीला मैदान पहुंच गया.

उसी समय उस ने औनलाइन मुरादाबाद के होटल मिलन में एक कमरा बुक करा दिया. मुरादाबाद पहुंचने की जानकारी उस ने शिखा को दे दी थी. सुबह 4 बजे मौर्निंग वाक के बहाने शिखा अपने प्रेमी से मिलने के लिए निकली. उस के लिए वह चाय और नाश्ते का सामान भी ले आई थी. जब वह अशफाक के पास पहुंची तो उस ने कार के ड्राइवर इमरान को वहां से जाने का इशारा किया. इमरान रामलीला मैदान की सीढि़यों पर जा कर सो गया. शिखा प्रेमी के साथ कार में बैठ गई. चायनाश्ता लेने के बाद अशफाक ने कार में ही उस के साथ हसरतें पूरी कीं. चलते समय शिखा ने उसे 18 हजार रुपए भी दिए. प्रेमिका से मिलने के बाद अशफाक ड्राइवर को ले कर होटल मिलन चला गया. वहां दोपहर तक दोनों ने आराम किया. इस बीच उस की शिखा से बातचीत होती रही.

फिर योजना के अनुसार, दोपहर करीब एक बजे अशफाक कार ले कर रामलीला मैदान के पास पहुंच गया. योजना को अंजाम तक पहुंचाने के लिए शिखा बेचैन थी. रोजाना की तरह गौरव उस दिन भी अपनी ड्यूटी पर जा चुका था. दोपहर डेढ़ बजे के करीब जब धु्रव दुकान से बिस्कुट ले कर लौटा तो शिखा उसे खुद ले कर अशफाक की कार के पास गई. वह उन रास्तों से गई, जहां सीसीटीवी नहीं लगे थे. शिखा ने बेटे से कह दिया कि अंकल के साथ घूमने चले जाना, यह तुम्हें बहुत सारी चीजें दिलाएंगे. वैसे धु्रव अशफाक को पहले से जानता था, लेकिन उस ने उस समय मास्क लगा रखा था, इसलिए पहचान नहीं पाया. अपने जिगर के टुकड़े को प्रेमी के हवाले करने के बाद शिखा उन्हीं रास्तों से घर लौट आई, जहां सीसीटीवी नहीं लगे थे.

अशफाक धु्रव को ले कर होटल में पहुंचा. धु्रव न रोए, इस के लिए उस ने उसे चौकलेट व अन्य कई तरह की खाने की चीजें दिला दी थीं. शाम के समय उस ने धु्रव को एक होटल में खाना भी खिलाया. इस बीच मौका मिलने पर उसने धु्रव के पिता गौरव को इंटरनेट से काल कर 30 लाख रुपए की फिरौती मांगी. धु्रव के अपहरण की सूचना पर घर के सभी लोग परेशान थे. शिखा को तो पहले से ही सब पता था. परंतु वह दिखावा करने के लिए रो रही थी. मुरादाबाद पुलिस ने सक्रिय हो कर इस मामले में तेजी से काररवाई शुरू कर दी थी. फंस गया अशफाक अशफाक बच्चे को ले कर रात में ही दिल्ली की तरफ निकल गया था. दिल्ली बौर्डर के नजदीक जब वह कौशांबी पहुंचा तो धु्रव रोने लगा.

तब कार रुकवा कर वह धु्रव को कोल्डड्रिंक दिलाने ले गया. इस से कार के ड्राइवर इमरान को शक हो गया कि बच्चे का अपहरण किया जा रहा है, इसलिए कार से उतर कर उस ने कार मालिक को तेलंगाना फोन कर इस बारे में बताया. कार मालिक ने इमरान से कहा कि वह किसी तरह अशफाक को वहीं छोड़ कर अकेला तेलंगाना चला आए. इमरान ने ऐसा ही किया. वह वहां से अकेला ही लौट गया. उसी दौरान अशफाक ने फिर से गौरव को फिरौती की काल की. जब अशफाक काल कर के आया तो उसे वहां पर न तो कार दिखी और न ही ड्राइवर. काफी तलाश करने के बाद जब अशफाक को कार ड्राइवर नहीं मिला तो उस ने इमरान को फोन किया. उस का फोन स्विच्ड औफ मिलने से अशफाक घबरा गया.

यह जानकारी उस ने शिखा को दी तो उस ने कहा कि पुलिस बहुत तेजी से काररवाई कर रही है, इसलिए वह बच्चे को मुरादाबाद आने वाली किसी बस में बिठा दे. उस की जेब में वह नाम व फोन नंबर लिखी परची भी डाल दे ताकि कोई उसे यहां तक पहुंचा सके. अशफाक धु्रव को ले कर कौशांबी बस डिपो पर पहुंचा. वहां ग्रेटर नोएडा डिपो की एक बस नोएडा जाने के लिए तैयार खड़ी थी. उस ने धु्रव को उसी बस में कंडक्टर वाली सीट पर बैठा दिया और उस की जेब में नाम और फोन नंबर लिखी परची डाल दी. जब बस वहां से चलने को तैयार हुई और कंडक्टर दीपक सिंह अपनी सीट पर बैठा तो उस ने सवारियों से उस बच्चे के बारे में पूछा. बच्चा रो रहा था.

कंडक्टर ने उस की जेब की तलाशी ली तो जेब में परची मिली. उस परची पर लिखा फोन नंबर मिलाने पर उस की बात बच्चे के पिता गौरव से हुई. तब कंडक्टर को पता चला कि इस बच्चे का एक दिन पहले अपहरण हुआ था. यह जानकारी मिलने के बाद कंडक्टर दीपक सिंह ने धु्रव को महाराजपुर पुलिस चौकी पहुंचा दिया. उधर अपहृत धु्रव को बस में बैठाने के बाद मोहम्मद अशफाक तेलंगाना लौट गया. उसे विश्वास था कि पुलिस उस तक नहीं पहुंच पाएगी, लेकिन उस की सोच गलत साबित हुई और वह प्रेमिका के साथ हवालात पहुंच गया. आरोपी अशफाक, शिखा और इमरान खान से विस्तार से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने उन्हें न्यायालय में पेश किया, जहां से तीनों को जिला जेल भेज दिया गया.

गिरफ्तार होने के बाद भी अशफाक का कहना है कि वह शिखा के बिना नहीं रह सकता. जेल से छूटने के बाद वह उस के साथ ही शादी करेगा, वहीं शिखा ने भी कहा कि वह अशफाक के साथ ही तेलंगाना में रहेगी. गौरव ने बताया कि वह अपने बच्चों को शिखा से दूर रख कर उन की अच्छी तरह देखभाल करेगा.

—कथा पुलिस सूत्रों और पीडि़त परविर से की गई बातचीत पर आधारित

 

Family Dispute : सौतन को सीने में मारी 6 गोलियां

Family Dispute : शबाना ने आलिया नाम की औरत का सरेराह कत्ल किया था, उस ने आलिया के सीने पर बैठ कर पूरी मैग्जीन खाली कर दी थी, आखिर क्यों…

नाम शबाना. हां, यही नाम है उस का. लेकिन 2 बार क्यों? क्योंकि उस ने भले ही अपराध किया, लेकिन खुलेआम किया. भरे चौराहे पर किया, बिना डरे किया. अपराध कर के भागी भी नहीं. इंतजार करती रही पुलिस का. चौराहे पर एक लाश पड़ी थी, आलिया की लाश. कुछ ही देर पहले शबाना ने आलिया के सीने पर चढ़ कर पूरी पिस्तौल खाली कर दी थी. उस की लहूलुहान लाश सड़क पर पड़ी थी और शबाना पिस्तौल लहराती लाश के इर्दगिर्द घूम रही थी. गुस्से में उस के होंठों से गाली या जो भी शब्द निकल रहे थे, वे सब आलिया के लिए थे. यह घटना बीते 9 जून की है.

आखिर आलिया थी कौन, जिस से शबाना इतनी नाराज थी कि पिस्तौल की सारी गोलियां उस के सीने में उतार दीं. यह जानते हुए भी कि उसे जेल जाना पड़ेगा. सच तो यह है कि उस का क्रोध, उस की नफरत किसी भी सोच पर भारी पड़ गए थे. इतने भारी कि आलिया को मार कर उसे खुद भी मरना पड़ता तो वह खुशीखुशी मर जाती. अपने अंदर की इस नफरत को शबाना ने एकडेढ़ साल बड़ी शिद्दत से पाला था. यहां तक कि अपने पति और बच्चों तक को पता नहीं चलने दिया. शबाना घरेलू महिला थी. 5 बच्चों की मां. स्वाभाविक सा सवाल यह है कि उस के पास पिस्तौल कहां से आई और उस ने उसे चलाना कैसे सीखा? इस की भी एक अलग कहानी है. शबाना का पति मोहम्मद जफर ट्रांसपोर्टर था. कभीकभी वह खुद भी ट्रक ले कर बाहर चला जाता था.

घटना से 8-9 महीने पहले एक बार जब वह कई दिन बाद घर लौटा तो शबाना ने उसे बताया कि रात में चोरी करने की कोशिश की गई थी, 3-4 लोग थे हथियारों से लैस. मैं तो बुरी तरह डर गई थी. मुझे डर अपना नहीं बच्चों का था. गनीमत रही कि मुझे जागता देख वे लोग भाग गए.

‘‘थाने में रिपोर्ट लिखाई?’’ जफर ने पूछा तो शबाना बोली, ‘‘रिपोर्ट तो तब लिखाती जब कुछ चोरी गया होता. पुलिस वाले उलटा मुझ से ही दसों तरह के सवाल पूछते.’’

शबाना ने पहले जफर के दिमाग में यह बात बैठाई कि उस के पीछे वह और बच्चे असुरक्षित रहते हैं. फिर रास्ता भी बता दिया, ‘‘कब क्या हो जाए, कोई भरोसा नहीं. अपने बचाव के लिए घर में कोई हथियार होना चाहिए. बेहतर होगा कोई हथियार खरीद कर घर में रख लो. वक्त जरूरत में काम आएगा. मैं ने अखबारों में पढ़ा है, देसी पिस्तौल चोरीछिपे खूब बिकती हैं.’’

बात जफर के दिमाग में बैठ गई. फिर भी उस ने पूछा, ‘‘जरूरत पड़ने पर चलाएगा कौन?’’

‘‘मैं चलाऊंगी और कौन चलाएगा.’’ शबाना ने पूरे आत्मविश्वास से कहा.

‘‘सीखोगी कहां?’’

‘‘ये मेरा सिरदर्द है. क्या सारे काम आदमी ही कर सकता है, औरत नहीं?’’ शबाना के तेवर बदलते देख जफर सहज भाव में बोला, ‘‘मुझे तुम्हारी चिंता रहती है, इसलिए पूछा.’’

‘‘अगर मैं कहूं, मुझे पिस्तौल चलाना आता है तो पूछोगे कैसे सीखा, इसलिए मैं पहले ही बता देती हूं. मैं ने फेसबुक से सीखा है.’’ शबाना ने यह रहस्य भी खोल दिया.

जफर में इतनी हिम्मत नहीं थी कि शबाना से पंगा लेता, सो उस ने कह दिया, ‘‘ठीक है, मैं कर दूंगा इंतजाम.’’

‘‘कर तो दोेगे,’’ शबाना थोड़ी सी तल्ख हो कर बोली, ‘‘पर पहले यह पूछ तो लेते, मुझे चाहिए क्या?’’

‘‘तुम ने हथियार की बात की है. मैं हथियार लाने को कह रहा हूं.’’ जफर ने कहा तो शबाना उस के चेहरे पर नजरें जमा कर बोली, ‘‘मुझे तमंचा नहीं, पिस्तौल चाहिए. जिस में 5-6 दाने (कारतूस) भरे जाते हैं. साथ में 10-15 दाने भी.’’

मोहम्मद जफर शबाना से बहस करने की स्थिति में नहीं था, इसलिए उसने पत्नी की बात मान ली. इस के कुछ दिनों बाद जफर को ट्रक ले कर मुंगेर जाना पड़ा. वहां कुछ लोग उस के परिचित थे. उन की मदद से उस ने 25 हजार में .32 बोर की पिस्तौल और कारतूस खरीद लिए. वापस लौट कर उस ने पिस्तौल और कारतूस शबाना के हवाले कर दिए. शबाना बहुत खुश हुई. मऊ हरथला निवासी मोहम्मद जफर और शबाना का निकाह करीब 20 साल पहले हुआ था. वक्त के साथ दोनों के 5 बच्चे हुए. 2 बेटे और 3 बेटियां. उन का बड़ा बेटा हौस्टल में रह कर नैनीताल के एक जानेमाने स्कूल में पढ़ रहा था. बाकी की पढ़ाई मुरादाबाद में ही चल रही थी.

जफर पहले ट्रक ड्राइवर था. धीरेधीरे उस ने ट्रांसपोर्ट कंपनी बना ली थी. जफर और शबाना की गृहस्थी ठीक चल रही थी. घर में न पैसे की कमी थी, न सुख के साधनों की. पैसा आया तो जफर ने कुछ प्रौपर्टी भी खरीद ली थी. पति ने ला कर दी पिस्तौल बहरहाल, कह सकते हैं कि जफर का परिवार सुखी और संपन्न था. हां, शबाना जरूर विचलित थी. उस के मन को तब शांति मिली थी, जब उस के हाथों में पिस्तौल और कारतूस आ गए. शबाना ने यूट्यूब पर कुछ पहले देखा था, कुछ पिस्तौल आने पर सीख लिया. उसे बस इतना ही चाहिए था कि दुश्मन को मार सके. और उस की दुश्मन थी आलिया. 8 जून की शाम को शबाना हड़बड़ाई सी साप्ताहिक बाजार से घर लौटी और बुरका पहन कर जल्दबाजी में बाहर जाने लगी तो बच्चों ने पूछा, ‘‘कहां जा रही हो अम्मी?’’

शबाना ने जाते हुए जल्दबाजी में जवाब दिया, ‘‘दुकानदार के पास पैसे रह गए हैं, ले कर आती हूं.’’

साप्ताहिक बाजार शबाना के घर से ज्यादा दूर नहीं था. शबाना बुरके में छिपा कर फुल लोडेड पिस्तौल लाई थी. आलिया 7 महीने की गर्भवती थी. हरथला बाजार में उसे रूटीन चैकअप के लिए डाक्टर के पास जाना था. वह पड़ोस में रहने वाली मुसकान को साथ ले कर घर से निकली. साथ में उस की 4 साल की बेटी जिया भी थी. चैकअप के बाद सवा 7 बजे आलिया जब मुसकान के साथ घर लौट रही थी, तब शबाना दीवार की ओट में खड़ी उसी का इंतजार कर रही थी. पास आते ही शबाना ने सब से पहले वहां खेल रहे बच्चों को हटाया और आलिया पर गोली दाग दी. उस की चलाई गोली आलिया को न लग कर मुसकान की बगल से निकल गई. आलिया को पता था कि उस की जान को खतरा है, इसी के मद्देनजर वह जमीन पर गिर गई. उसे गिरा देख मुसकान उस की बेटी जिया को ले कर वहां से भाग निकली.

आलिया के गिरने से शबाना को मौका मिल गया. वह पिस्तौल ले कर उस के सीने पर चढ़ गई और उस पर पूरी मैगजीन खाली कर दी. यह देख कर कुछ लोग वहां जमा हो गए. शबाना के पास जाने की हिम्मत किसी की नहीं हुई. कुछ अपनी छतों से यह दृश्य देख रहे थे. जब शबाना को यकीन हो गया कि आलिया मर चुकी है तो वह पिस्तौल हवा में लहराते हुए लाश के आसपास घूमने लगी. शबाना का घर वहां से ज्यादा दूर नहीं था. किसी जानने वाले ने यह खबर उस के 17 वर्षीय बेटे को दे दी. वह जल्दी से स्कूटी ले कर घटनास्थल पर पहुंचा. उस ने मां से कहा, ‘‘अम्मी, घर चलो, मैं आप को लेने आया हूं.’’

लेकिन शबाना ने जाने से इनकार कर दिया और बेटे को घर जाने को कहा. इसी बीच किसी ने थाना सिविललाइंस को सूचना दे दी थी. इस सनसनीखेज घटना की खबर मिलते ही थानाप्रभारी नवल मारवाह पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. मुरादाबाद के इतिहास की शायद यह पहली घटना थी, जब एक औरत ने दूसरी औरत का कत्ल किया था, वह भी किसी माफिया डौन की तरह. कहानी में कहानी  घटना की खबर मिलते ही एएसपी दीपक भूखर, एसपी (सिटी) अमित कुमार आनंद और एसएसपी अमित पाठक भी वारदात की जगह पहुंच गए. इंसपेक्टर नवल मारवाह जब घटनास्थल पर पहुंचे तो शबाना ने अपनी पिस्तौल यह कह कर उन के हवाले कर दी, ‘‘मैं आप का ही इंतजार कर रही थी.’’

वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों की मौजूदगी में मौके की जांचपड़ताल और लिखापढ़ी कर के आलिया की लाश पोस्टमार्टम के लिए अस्पताल भेज दी गई. शबाना को साथ ले कर पुलिस थाना सिविललाइंस लौट आई. सब के सामने पूछताछ की जानी थी, इसलिए एसएसपी, एसपी (सिटी) और एएसपी भी थाने आ गए. शबाना ने आलिया को सरेराह क्यों मारा, आलिया को ले कर उस के मन में इतना गुस्सा क्यों था और आलिया कौन थी, यह जानने के लिए हमें एक और कहानी की दुम पकड़ कर थोड़ा दाएंबाएं घूमना होगा. हां, तो एक थी मानसी शर्मा. बीए की डिग्रीधारक. जिला बिजनौर के थाना धामपुर थानाक्षेत्र के गांव चक्करपुर में पलीबढ़ी और धामपुर में पढ़ी.

12 साल पहले मानसी का विवाह राजू शर्मा से हुआ, जो कस्बा नूरपुर के निकटवर्ती गांव कुंडा बलदान का रहने वाला था. दोनों का एक बेटा भी हुआ, तनिष्क.  शादी के बाद राजू कभीकभी शराब पी कर आता था तो मानसी उसे डांटती भी और समझाती भी कि यही हाल रहा तो मेरी और बेटे की जिम्मेदारी कैसे उठाओगे. कभीकभी राजू मानसी की बात मान भी लेता था. लेकिन जैसेजैसे दोनों का रिश्ता पुराना होता गया, वैसेवैसे राजू की शराब पीने की लत बढ़ती गई. एक वक्त ऐसा भी आया, जब राजू पूरा पियक्कड़ बन गया, ऊपर से मानसी के साथ मारपीट भी करता था. वह बीवीबच्चे के बिना रह सकता था, पर शराब के बिना नहीं. जब बात बरदाश्त के बाहर हो गई तो मानसी ने राजू से साफसाफ कह दिया कि उसे दोनों में से किसी एक को चुनना होगा.

यह बात भी मानसी के विपरीत ही गई. कोई रास्ता नहीं बचा तो मानसी ससुराल को तिलांजलि दे कर बेटे तनिष्क के साथ अपनी बुआ के पास मुरादाबाद आ गई. मायके चक्करपुर जाने से कोई फायदा नहीं था. मानसी ग्रैजुएट तो थी ही सुंदर भी थी. उसे उम्मीद थी कि कोशिश करने पर कोई न कोई ऐसी नौकरी जरूर मिल जाएगी, जिस से अपना और बेटे का पेट पाल सके. उस ने कोशिश की तो उसे दिल्ली रोड स्थित एक बड़े डेंटल

मैडिकल कालेज में सुपरवाइजर की नौकरी मिल गई. इस से उस का और तनिष्क का ठीकठीक गुजारा होने लगा. मानसी अपनी वैवाहिक जिंदगी और पति को भूल गई. पति राजू तो उसे पहले ही भूल चुका था. आलिया को 6 गोलियां लगी थीं. 4 घंटे चले पोस्टमार्टम में पता चला कि उसे 4 गोलियां मारी गई थीं, जो शरीर के आरपार हो गई थीं. जबकि शबाना का कहना था कि उस ने आलिया को 6 गोली मारी थी. जब 2 गोलियों की जानकारी नहीं मिली तो आलिया के शव को एक्सरे के लिए भेजा गया. एक्सरे में शरीर के अंदर फंसी गोलियां नजर आ रही थीं. डाक्टरों की टीम ने फिर गोलियां तलाशीं, लेकिन सफलता नहीं मिली.

पुलिस की परेशानी अत: शव को एक बार फिर एक्सरे के लिए भेजा गया. इस एक्सरे में भी छाती में फंसी 2 गोलियां नजर आईं. डाक्टरों ने दोनों गोलियां निकाल दीं. गोलियां लगने से आलिया का लीवर और दोनों फेफड़े छलनी हो गए थे, उस की मौत ज्यादा खून बहने से हुई थी. उस के पेट में जो 7 महीने का गर्भ था, वह भी नष्ट हो गया था. मानसी के मातापिता का निधन हो चुका था. उस के पैतृक गांव चक्करपुर में उस का भाई सूरज शर्मा, बहन पूनम शर्मा और छोटा भाई पिंटू शर्मा रहते थे. पूनम की शादी हो चुकी थी. मानसी मायके इसलिए नहीं गई थी, क्योंकि वह भाइयों पर बोझ नहीं बनना चाहती थी. थाने में शबाना से पूछताछ की गई तो उस ने बताया कि 6-7 महीने पहले भी वह थाने आई थी. अगर तभी उसे आलिया का पता बता दिया गया होता तो शायद आज उस की हत्या न करनी पड़ती.

शबाना ने बताया कि 7-8 महीने पहले आलिया गौर ग्रेसियस में किराए के फ्लैट में रह रही थी, तो वह उस से मिलने गई थी. लेकिन वहां गार्डों ने उसे अंदर नहीं जाने दिया था. वजह यह कि उसे आलिया का फ्लैट या फोन नंबर मालूम नहीं था. उस ने जिद की तो गार्डों ने कहा कि थाने जा कर ले ले पता, वहां दर्ज होता है. वहां से वह थाने आई तो वहां भी आलिया के बारे में नहीं बताया.

‘‘जिस का तुम ने मर्डर किया, उस से तुम्हारी क्या दुश्मनी थी?’’ पूछने पर शबाना का दर्द छलक आया. वह गुस्से भरी रोआंसी आवाज में बोली, ‘‘वह मेरी सौतन थी, मेरे पति की दूसरी बीवी. उस ने धर्म बदल कर निकाह किया था मेरे मर्द से. उस का नाम मानसी शर्मा था, जिसे बदल कर वह आलिया बनी थी.’’

‘‘तुम ने अपने पति को क्यों नहीं रोका इस सब से?’’ एसएसपी अमित पाठक ने पूछा तो शबाना बोली, ‘‘मेरे पति पर जादू कर रखा था, मेरी नहीं उस की सुनता था वह. आलिया मुझे ताना देती थी, तेरे पति की जो भी जमीनजायदाद है, तू रख, लेकिन उस का दिल मेरा ही रहेगा.’’

शबाना ने बताया कि उस का पति जफर बाहर ट्रक ले जाने के बहाने घर से जाता था और कईकई दिन आलिया के पास पड़ा रहता था. उस का पूरा खर्च भी वही उठाता था. जफर से आलिया की 4 साल की एक लड़की भी है जिया, जबकि दूसरा बच्चा उस के पेट में था. शबाना के अनुसार, जफर और आलिया के संबंधों और धर्म बदल कर निकाह करने की बात उसे डेढ़ साल पहले पता चली थी. जबकि दोनों के संबंध 5 साल से थे. जानकारी होने के बाद शबाना ने जासूसी शुरू की, पति की भी और पता लगा कर मानसी उर्फ आलिया की भी. शबाना ने जब जफर पर दबाव डाला तो उसे पता चला कि उस ने मानसी का धर्म परिवर्तन करा कर उस से निकाह कर लिया है. इस बात से उसे धक्का लगा. वह कुछ कहती, उस से पहले ही जफर ने उसे समझाया, ‘‘इसलाम में 2 शादी जायज है, वैसे भी वह अलग रहती है, तुम्हें परेशानी क्या है?’’

शबाना उस वक्त चुप हो गई, लेकिन उस के मन में गुबार भर गया. वह सोचने लगी कि आलिया को पति की जिंदगी से कैसे बाहर करे. अत: उस ने आलिया की खोज शुरू कर दी. छली गई थी मानसी मानसी जिस डेंटल कालेज में नौकरी करती थी, वहां मोहम्मद जफर का ट्रांसपोर्ट का ठेका था. एंबुलेंस, सामान लाने ले जाने वाली छोटी गाड़ी या ट्रक वही मुहैया कराता था. एक दिन जफर ने मानसी को देखा तो उस के सौंदर्य पर रीझ गया. उस ने मानसी के बारे में पता लगाया तो पता चला कि उस ने पति को छोड़ दिया है और 5-6 साल के बेटे के साथ रहती है. जफर को लगा कि मानसी को पटाना मुश्किल नहीं है. वह समीर बन कर मानसी से मिला. मानसी को जफर अच्छा लगा. वैसे भी वह बुआ पर बोझ बनी हुई थी, उसे एक पुरुष के सहारे की जरूरत थी.

फलस्वरूप जफर और मानसी पास आते गए. मानसी ने समीर (जफर) को अपने बारे में सब कुछ बता दिया. लेकिन जफर ने अपने बारे में कुछ भी सच नहीं बताया. 2015 में समीर ने मानसी को मुगलपुरा में एक कमरा किराए पर दिला दिया. तब मानसी अपने बेटे तनिष्क के साथ वहीं रहने लगी. समीर (जफर) वहां आ जाता था. मांबेटे का पूरा खर्च और कमरे का किराया वही देता था. मानसी और जफर के आंतरिक संबंध पहले ही बन चुके थे. वहीं रहते मानसी प्रैग्नेंट हो गई और जफर की बेटी को जन्म दिया. दोनों ने उस का नाम रखा जिया. अगले 3 सालों तक मानसी को पता ही नहीं चला कि समीर हिंदू नहीं मुसलमान है और उस का नाम मोहम्मद जफर है.

हकीकत सामने आई तो उस ने जफर को खूब लताड़ा. कहा कि उस ने उसे छला है. इस पर जफर ने मानसी को समझाया, ‘‘मैं तुम्हें प्यार करने लगा था. सच बोल कर तुम्हें खोना नहीं चाहता था. मेरे प्यार की जो सजा दो, मैं भोगने को तैयार हूं.’’

मानसी के पास कोई भी विकल्प नहीं था, इसलिए वह शांत हो गई. वैसे भी उस के गर्भ में जफर का अंश था. दोनों की अपनीअपनी मजबूरियां थीं. समय पर मानसी ने बेटी को जन्म दिया. बाद में जब मानसी ने दबाव डाला तो जफर ने मानसी का धर्म परिवर्तन करा कर उस से शादी कर ली. मानसी का नाम बदल कर आलिया हो गया. दोनों की शादी को 2-3 साल हो गए थे कि यह बात शबाना को पता चल गई. उसने आलिया का पता ढूंढा और उस के कमरे पर जा कर खूब उलटीसीधी सुनाई. यह बात थाना मुगलपुरा तक पहुंची. शबाना और आलिया को पुलिस थाने ले गई. वहां जफर को भी बुलाया गया. जफर ने पुलिस के सामने वादा किया कि वह मानसी उर्फ आलिया से नहीं मिलेगा.

जफर आलिया को प्यार करता था. उस  ने उस ने निकाह भी किया था, फिर उसे ऐसे कैसे छोड़ सकता था. उस ने आलिया उर्फ मानसी व उस के बच्चों के लिए कांठ रोड पर गौर ग्रेसियस सिटी में किराए का एक फ्लैट ले लिया. वहां वह भी आताजाता था. गौर ग्रसियस ऐसी सोसायटी थी, जहां बिना पते और फोन नंबर के कोई नहीं जा सकता था. इस बीच सामान्य रहते हुए शबाना ने जफर से पिस्तौल मंगवा ली थी और उसे चलाना भी सीख लिया था. पता लगा कर वह गौर ग्रेसियस सोसायटी के गेट तक गई भी लेकिन गार्डों ने उसे अंदर नहीं जाने दिया. जब यह बात जफर को पता चली तो उस ने मानसी से कहा कि कुछ दिन के लिए वह मायके चली जाए, तब तक वह दूसरा मकान ढूंढ लेगा. मानसी अपने गांव चक्करपुर चली गई, जहां वह लौकडाउन में फंसी रही.

वह लौट कर आई तो जफर ने आलिया के लिए हरथला विद्यानगर में मकान ले लिया और मानसी उर्फ आलिया को मुरादाबाद बुला लिया. यह मकान शबाना के घर से 6-7 सौ गज दूर था. घटना वाले दिन शबाना साप्ताहिक बाजार गई थी. वहां अचानक उस की नजर आलिया पर पड़ गई. उसे देखते ही वह घर की ओर भागी और पिस्तौल ले कर लौट आई और शबाना ने आलिया को मार डाला. पूछताछ के बाद शबाना को जेल भेज दिया गया. उसे अपने किए पर कोई पश्चाताप नहीं था.

Superstition : तांत्रिक के कहने पर कलेजा निकाल खा गया कपल

Superstition : शादी के 10 साल बाद भी जब परशुराम और सुनयना के कोई बच्चा नहीं हुआ तो सुनयना तांत्रिकों के चक्कर लगाने लगी. एक तांत्रिक ने सुनयना को एक बच्ची की बलि दे कर कलेजा खाने की सलाह दी. संतान प्राप्ति के लिए सुनयना और उस के पति ने ऐसा किया भी लेकिन…

उस दिन नवंबर, 2020 की 15 तारीख थी. सुबह के यही कोई 8 बज रहे थे. तभी थाना घाटमपुर प्रभारी इंसपेक्टर राजीव सिंह को नरबलि की खबर मिली. यह खबर भदरस गांव के किसी व्यक्ति ने उन के मोबाइल फोन पर दी थी. उस ने बताया कि दीपावली की रात गांव के करन कुरील की 7 वर्षीय बेटी श्रेया उर्फ भूरी की बलि दी गई है. उस की लाश भद्रकाली मंदिर के पास पड़ी है. खबर पाते ही थानाप्रभारी पुलिस टीम के साथ भदरस गांव पहुंच गए. भद्रकाली मंदिर गांव के बाहर था. वहां भारी भीड़ जुटी थी. दरअसल मासूम बच्ची की बलि चढ़ाए जाने की बात भदरस ही नहीं, बल्कि अड़ोसपड़ोस के गांवों तक फैल गई थी. अत: सैंकड़ों लोगों की भीड़ वहां जमा थी.

भीड़ देख कर राजीव सिंह के हाथपांव फूल गए. क्योंकि वहां मौजूद लोगों में गुस्सा भी था. लोगों ने साफ कह दिया था कि जब तक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी घटनास्थल पर नहीं आएंगे, तब तक वह बच्ची के शव को नहीं उठने देंगे. थानाप्रभारी राजीव सिंह ने यह जानकारी पुलिस अधिकारियों को दे दी फिर जांच में जुट गए. श्रेया उर्फ भूरी की नग्न लाश भद्रकाली मंदिर के समीप नीम के पेड़ के नीचे गन्नू तिवारी के खेत में पड़ी थी. शव के पास मृत बच्ची का पिता करन कुरील बदहवास खड़ा था और उस की पत्नी माया कुरील दहाड़े मार कर रो रही थी. घर की महिलाएं उसे संभालने की कोशिश कर रही थीं.

मासूम का पेट किसी नुकीले व धारवाले औजार से चीरा गया था और पेट के अंदर के अंग दिल, फेफड़े, लीवर, आंतें तथा किडनी गायब थीं. मासूम श्रेया के गुप्तांग पर चोट के निशान थे. माथे पर तिलक लगा था और पैर लाल रंग से रंगे थे. देखने से ऐसा प्रतीत हो रहा था कि नरपिशाचों ने बलि देने से पहले मासूम के साथ दुराचार भी किया था. शव के पास ही मृतका की चप्पल, जींस तथा अन्य कपड़े पड़े थे. नमकीन का एक खाली पैकेट भी वहां पड़ा मिला. थानाप्रभारी सिंह ने वहां पड़ी चीजों को साक्ष्य के तौर पर सुरक्षित कर लिया. उसी दौरान एसएसपी प्रीतिंदर सिंह, एसपी (ग्रामीण) बृजेश कुमार श्रीवास्तव तथा सीओ (घाटमपुर) रवि कुमार सिंह भी वहां आ गए.

पुलिस अधिकारियों ने मौके पर फोरैंसिक टीम तथा कई थानों की फोर्स बुलवा ली. पुलिस अधिकारियों ने उत्तेजित भीड़ को आश्वासन दिया कि जिन्होंने भी इस वीभत्स कांड को अंजाम दिया है, वह जल्द ही पकड़े जाएंगे और उन्हें सख्त से सख्त सजा दिलाई जाएगी. अधिकारियों के इस आश्वासन पर लोग नरम पड़ गए. उस के बाद उन्होंने घटनास्थल का निरीक्षण किया. मासूम बालिका का शव देख कर पुलिस अधिकारी भी सिहर उठे. एसएसपी के बुलावे पर डौग स्क्वायड टीम भी घटनास्थल पर पहुंची. डौग स्क्वायड प्रभारी अवधेश सिंह ने जांच शुरू की. उन्होंने नीम के पेड़ के नीचे पड़ी मासूम के खून के अंश व उस की चप्पल खोजी कुतिया को सुंघाई. उसे सूंघने के बाद यामिनी खेत की पगडंडी से होते हुए गांव की ओर दौड़ पड़ी.

कई जगह रुकने के बाद वह सीधे मृतक बच्ची के घर पहुंची. यहां से बगल के घर से होते हुए गली के सामने बने एक घर पर पहुंची. 4 घरों में जाने के बाद गली के कोने में स्थित एक मंदिर पर जा कर रुक गई. टीम ने पड़ताल की, लेकिन कुछ हाथ नहीं लगा. इस के बाद यामिनी गांव का चक्कर लगा कर घटनास्थल पर वापस वह आ गई. यामिनी हत्यारों तक नहीं पहुंच सकी. निरीक्षण के बाद पुलिस अधिकारियों ने मृतका श्रेया के शव को पोस्टमार्टम के लिए लाला लाजपतराय चिकित्सालय कानपुर भिजवा दिया. मोर्चरी के बाहर भी भारी संख्या में पुलिस बल तैनात कर दिया गया गया. उधर नरबलि की खबर न्यूज चैनलों तथा इंटरनेट मीडिया पर वायरल होते ही कानपुर से ले कर लखनऊ तक सनसनी फैल गई.

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने स्वयं इस दुस्साहसिक वारदात को संज्ञान में लिया. मुख्यमंत्री ने मंडलायुक्त, डीएम व एसएसपी प्रीतिंदर सिंह से वार्ता की और तुरंत आरोपियों के खिलाफ सख्त से सख्त काररवाई करने का आदेश दिया. उन्होंने दुखी परिवार के प्रति गहरी संवेदना व्यक्त की और 5 लाख रुपए आर्थिक मदद देने की घोषणा की. उन्होंने कहा, ‘सरकार इस प्रकरण की फास्टट्रैक कोर्ट में सुनवाई करा कर अपराधियों को जल्द सजा दिलाएगी.’

मुख्यमंत्री ने नाराजगी जताई तो प्रशासन एक पैर पर दौड़ने लगा. आननफानन में 3 डाक्टरों का पैनल गठित किया गया और शव का पोस्टमार्टम कराया गया. मासूम के शव का परीक्षण करते समय पोस्टमार्टम करने वाली टीम के हाथ भी कांप उठे थे. मासूम के पेट के अंदर कोई अंग था ही नहीं. दिल, फेफड़े, लीवर, आंतें, किडनी, स्पलीन और इन अंगों को आपस में जोड़े रखने वाली मेंब्रेन तक गायब थी. मासूम के निजी अंगों में चोट के निशान थे, जिस से दुष्कर्म की पुष्टि हुई थी. मासूम के पेट में कुछ था या नहीं, आंतें गायब होने से इस की पुष्टि नहीं हो सकी. पोस्टमार्टम के बाद श्रेया का शव उस के पिता करन कुरील को सौंप दिया गया.

इधर रात 10 बजे एसडीएम (नर्वल) रिजवाना शाहीद के साथ नवनिर्वाचित विधायक (घाटमपुर क्षेत्र) उपेंद्र पासवान भदरस गांव पहुंचे और मृतका श्रेया के पिता करन कुरील को 5 लाख रुपए का चैक सौंपा. उन्हें 2 बीघा कृषि भूमि का पट्टा दिलाने का भी भरोसा दिया गया. चैक लेते समय करन व उन की पत्नी माया की आंखों में आंसू थे. उन्होंने नर पिशाचों को जल्द गिरफ्तार करने की मांग की. चूंकि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने मामले को वर्क आउट करने में देरी पर नाराजगी जताई थी, इसलिए एसएसपी प्रीतिंदर सिंह व एसपी (ग्रामीण) बृजेश कुमार श्रीवास्तव ने थाना घाटमपुर में डेरा डाल दिया और डीएसपी रवि कुमार सिंह के निर्देशन में खुलासे के लिए पुलिस टीम गठित कर दी.

इस टीम ने भदरस गांव पहुंच कर अनेक लोगों से गहन पूछताछ की. गांव के एक झोलाछाप डाक्टर ने गांव के गोंगा के मझले बेटे अंकुल कुरील पर शक जताया. पड़ोसी परिवार की एक बच्ची ने भी बताया कि शाम को उस ने श्रेया को अंकुल के साथ जाते हुए देखा था. अंकुल कुरील पुलिस की रडार पर आया तो पुलिस टीम ने उसे घर से उठा लिया. उस समय वह ज्यादा नशे में था. उसे थाना घाटमपुर लाया गया. उस से कई घंटे तक पूछताछ की लेकिन अंकुल नहीं टूटा. आधी रात के बाद जब नशा कम हुआ तब उस से सख्ती के साथ दूसरे राउंड की पूछताछ की गई. इस बार वह पुलिस की सख्ती से टूट गया और मासूम श्रेया की हत्या करने का जुर्म कबूल कर लिया.

अंकुल ने जो बताया उस से पुलिस अधिकारियों के रोंगटे खड़े हो गए और मामला ही पलट गया. अंकुल ने बताया कि उस के चाचा परशुराम व चाची सुनयना ने 1500 रुपए में मासूम बच्ची का कलेजा लाने की सुपारी दी थी. उस के बाद उस ने अपने दोस्त वीरन के साथ मिल कर करन की बेटी श्रेया को पटाखा देने के बहाने फुसलाया. उसे वह गांव से एक किलोमीटर दूर भद्रकाली मंदिर के पास ले गए. वहां दोनों ने उस के साथ दुराचार किया फिर अंगौछे से उस का गला घोंट दिया. उस के बाद चाकू से उस का पेट चीर कर अंगों को निकाल लिया गया. उस ने कलेजा पौलीथिन में रख कर चाची सुनयना को ला कर दिया. सुनयना और परशुराम ने कलेजे के 2 टुकड़े किए और कच्चा ही खा गए. ऐसा उन्होंने संतान प्राप्ति के लिए किया था.

इस के बाद वादे के मुताबिक चाची ने 500 रुपए मुझे तथा हजार रुपए वीरन को दिए, फिर हम लोग घर चले गए. 16 नवंबर, 2020 की सुबह 7 बजे पुलिस टीम ने पहले वीरन फिर परशुराम तथा उस की पत्नी सुनयना को गिरफ्तार कर लिया. सुनयना के घर से पुलिस ने हत्या में प्रयुक्त अंगौछा तथा 2 चाकू बरामद कर लिए. चाकू को सुनयना ने भूसे के ढेर में छिपा दिया था. उन तीनों को थाने लाया गया. यहां तीनों की मुलाकात हवालात में बंद अंकुल से हुई तो वे समझ गए कि अब झूठ बोलने से कोई फायदा नहीं है. अत: उन तीनों ने भी पूछताछ में सहज ही श्रेया की हत्या का जुर्म कबूल कर लिया.

पुलिस ने जब परशुराम कुरील से कलेजा खाने की वजह पूछी तो उस के चेहरे पर पश्चाताप की जरा भी झलक नहीं थी. उस ने कहा कि सभी जानते हैं कि किसी बच्ची का कलेजा खाने से निसंतानों के बच्चे हो जाते हैं. वह भी निसंतान था. उस ने बच्चा पाने की चाहत में कलेजा खाया था. चूंकि सभी ने जुर्म कबूल कर लिया था और आलाकत्ल भी बरामद करा दिया था. अत: थानाप्रभारी राजीव सिंह ने मृतका के पिता करन कुरील की तहरीर पर भादंवि की धारा 302/201/120बी के तहत अंकुल, वीरन, परशुराम व सुनयना के विरुद्ध रिपोर्ट दर्ज कर ली और सभी को विधिसम्मत गिरफ्तार कर लिया.

अंकुल व वीरन के खिलाफ दुराचार तथा पोक्सो एक्ट के तहत भी मुकदमा दर्ज किया गया. पुलिस जांच में एक ऐसे दंपति की कहानी प्रकाश में आई, जिस ने अंधविश्वास में पड़ कर संतान पाने की चाह में एक मासूम के कलेजे की सुपारी दी और उसे खा भी लिया. उत्तर प्रदेश के कानपुर शहर से करीब 40 किलोमीटर दूर एक बड़ा कस्बा है घाटमपुर. इस कस्बे से कुछ दूरी पर स्थित है-भदरस गांव. परशुराम कुरील इसी दलित बाहुल्य इस गांव में रहता था. लगभग 10 साल पहले उस की शादी सुनयना के साथ हुई थी. परशुराम के पास कृषि भूमि नाममात्र की थी. वह साबुन का व्यवसाय करता था.

वह गांव कस्बे में फेरी लगा कर साबुन बेचता था. इसी व्यवसाय से वह अपने घर का खर्च चलाता था. भदरस और उस के आसपास के गांव में अंधविश्वास की बेल खूब फलतीफूलती है. जिस का फायदा ढोंगी तांत्रिक उठाते हैं. भदरस गांव भी तांत्रिकों के मकड़जाल में फंसा है. यहां घरघर कोई न कोई तांत्रिक पैठ बनाए हुए है. बीमारी में तांत्रिक अस्पताल नहीं मुर्गे की बलि, पैसा कमाने को मेहनत नहीं, बकरे की बलि, दुश्मन को ठिकाने लगाने के लिए शराब और बकरे की बलि, संतान के लिए नरबलि की सलाह देते हैं. इन तांत्रिकों पर पुलिस भी काररवाई से बचती है. कोई जघन्य कांड होने पर ही पुलिस जागती है.

परशुराम और उस की पत्नी सुनयना भी तांत्रिकों के मकड़जाल में फंसे हुए थे. महीने में एक या दो बार उन के घर तंत्रमंत्र व पूजापाठ करने कोई न कोई तांत्रिक आता रहता था. दरअसल, सुनयना की शादी को 10 वर्ष से अधिक का समय बीत गया था. लेकिन उस की गोद सूनी थी. पहले तो उस ने इलाज पर खूब पैसा खर्च किया. लेकिन जब सफलता नहीं मिली तो वह अंधविश्वास में उलझ गई और तांत्रिकों व मौलवियों के यहां माथा टेकने लगी. तांत्रिक उसे मूर्ख बना कर पैसे ऐंठते. धीरेधीरे 5 साल और बीत गए. लेकिन सुनयना की गोद सूनी की सूनी रही.

सुनयना की जातिबिरादरी के लोग उसे बांझ समझने लगे थे और उस का सामाजिक बहिष्कार करने लगे थे. समाज का कोई भी व्यक्ति परशुराम को सामाजिक काम में नहीं बुलाता था. कोई भी औरत अपने बच्चे को उस की गोद में नहीं देती थी. क्योंकि उसे जादूटोना करने का शक रहता था. परिवार के लोग उसे अपने बच्चे के जन्मदिन, मुंडन आदि में भी नहीं बुलाते थे, जिस से उसे सामाजिक पीड़ा होती थी. सामाजिक अवहेलना से सुनयना टूट जरूर गई थी, लेकिन उस ने हिम्मत नहीं हारी थी. 10 सालों से उस का तांत्रिकों के पास आनाजाना बना हुआ था. एक रोज वह विधनू कस्बा के एक तांत्रिक के पास गई और उसे अपनी पीड़ा बताई.

तांत्रिक ने उसे आश्वासन दिया कि वह अब भी मां बन सकती है, यदि वह उपाय कर सके.

‘‘कौन सा उपाय?’’ सुनयना ने उत्सुकता से पूछा.

‘‘यही कि तुम्हें दीपावली की रात 10 साल से कम उम्र की एक बालिका की पूजापाठ कर बलि देनी होगी. फिर उस का कलेजा निकाल कर पतिपत्नी को आधाआधा खाना होगा. बलि देने तथा कलेजारूपी प्रसाद चखने से मां काली प्रसन्न होंगी और तुम्हें संतान प्राप्ति होगी.’’

‘‘ठीक है बाबा. मैं उपाय करने का प्रयत्न करूंगी. अपने पति से भी रायमशविरा करूंगी.’’ सुनयना ने तांत्रिक से कहा. उन्हीं दिनों परशुराम के हाथ ‘कलकत्ता का काला जादू’ नामक तंत्रमंत्र की एक पुस्तक हाथ लगी. इस किताब में भी संतान प्राप्ति के लिए उपाय लिखा था और मासूम बालिका का कलेजा कच्चा खाने का जिक्र किया गया था. परशुराम ने यह बात पत्नी सुनयना को बताई तो वह बोली, ‘‘विधनू के तांत्रिक ने भी उसे ऐसा ही उपाय करने को कहा था.’’

अब परशुराम और सुनयना के मन में यह अंधविश्वास घर कर गया कि मासूम बालिका का कच्चा कलेजा खाने से उन को संतान हो सकती है. इस पर उन्होंने गंभीरता से सोचना शुरू किया तो उन्हें लगा अंकुल उन की मदद कर सकता है. अंकुल, परशुराम के बड़े भाई गोंगा कुरील का बेटा था. 3 भाइयों में वह मंझला था. वह नशेबाज और निर्दयी था, गंजेड़ी भी. अपने भाईबहनों के साथ मारपीट और हंगामा भी करता रहता था. अपने स्वार्थ के लिए परशुराम ने भतीजे अंकुल को मोहरा बनाया. अब वह उसे घर बुलाने लगा और मुफ्त में शराब पिलाने लगा. गांजा फूंकने को पैसे भी देता. अंकुल जब हां में हां मिलाने लगा तब एक रोज सुनयना ने उस से कहा, ‘‘अंकुल, तुम्हें तो पता ही है कि हमारे पास बच्चा नहीं है. लेकिन तुम चाहो तो मैं मां बन सकती हूं.’’

‘‘वह कैसे चाची?’’

‘‘इस के लिए तुम्हें मेरा एक काम करना होगा. आने वाली दीपावली की रात तुम्हें किसी बच्ची का कलेजा ला कर देना होगा. देखो ‘न’ मत करना. यदि तुम मेरा काम कर दोगे तो हमारे घर में खुशी आ सकती है.’’

‘‘ठीक है चाची, मैं तुम्हारे लिए यह काम कर दूंगा.’’

अंकुल राजी हो गया तो उन लोगों ने मासूम बच्ची पर मंथन किया. मंथन करतेकरते उन के सामने भूरी का चेहरा आ गया. श्रेया उर्फ भूरी करन कुरील की बेटी थी. उस की उम्र 7 साल थी. करन परशुराम के घर के समीप रहता था. उस की 3 बेटियों में श्रेया दूसरे नंबर की थी. वह कक्षा 2 में पढ़ती थी. करन किसान था. उसी से जीविका चलाता था. वीरन कुरील अंकुल का दोस्त था. पारिवारिक रिश्ते में वह उस का भाई था. वीरन भी नशेड़ी था, सो उस की अंकुल से खूब पटती थी. अंकुल ने वीरन को सारी बात बताई और अपने साथ मिला लिया था. अब अंकुल के साथ वीरन भी परशुराम के घर जाने लगा और नशेबाजी करने लगा.

14 नवंबर, 2020 को दीपावली थी. अंकुल और वीरन शाम 5 बजे परशुराम के घर पहुंच गए. परशुराम ने दोनों को खूब शराब पिलाई. सुनयना ने दोनों को कलेजा लाने की एवज में 1500 रुपए देने का भरोसा दिया. इस के बाद उस ने अंकुल व वीरन को गोश्त काटने वाले 2 चाकू दिए. इन चाकुओं को पत्थर पर घिस कर दोनों ने धार बनाई. सुनयना ने लाल रंग से भरी एक डब्बी अंकुल को दी और कुछ आवश्यक निर्देश दिए. शाम 6 बजे अंकुल और वीरन, परशुराम के घर से निकले. तब तक अंधेरा घिर चुका था. वे दोनों जब करन के घर के सामने आए तो उन की निगाह मासूम श्रेया पर पड़ी. वह नए कपड़े पहने पेड़ के नीचे एक बच्ची के साथ खेल रही थी. अंकुल ने भूरी को बुलाया और पटाखों का लालच दिया.

भूरी पर मौत का साया मंडरा रहा था. वह मान गई और अंकुल के साथ चल दी. दोनों भूरी को ले कर गांव के बाहर आए और फिर भद्रकाली मंदिर की ओर चल पड़े. श्रेया को आशंका हुई तो उस ने पूछा, ‘‘भैया, कहां ले जा रहे हो?’’ यह सुनते ही अंकुल ने उस का मुंह दबा दिया और वीरन ने चाकू चुभो कर उसे डराया, जिस से उस की घिग्घी बंध गई. फिर वे दोनों भूरी को भद्रकाली मंदिर के पास ले गए और नीम के पेड़ के नीचे पटक दिया. उन दोनों ने श्रेया उर्फ भूरी के शरीर से कपड़े अलग किए तो उन के अंदर का शैतान जाग उठा. उन्होंने बारीबारी से उस के साथ दुराचार किया. इस बीच मासूम चीखी तो उन्होंने अंगौछे से उस का गला कस दिया, जिस से उस की मौत हो गई.

इस के बाद सुनयना के निर्देशानुसार अंकुल ने श्रेया के पैरों में लाल रंग लगाया तथा माथे पर टीका किया. फिर चाकू से उस का पेट चीर डाला. अंदर से अंग काट कर निकाल लिए और कलेजा पौलीथिन में रख कर वहां से निकल लिए. रास्ते में पानी भरे एक गड्ढे में बाकी अंग फेंक दिए और कलेजा ला कर परशुराम को दे दिया. परशुराम ने कलेजे को शराब से धोया फिर चाकू से उस के 2 टुकड़े किए. उस ने एक टुकड़ा स्वयं खा लिया तथा दूसरा टुकड़ा पत्नी सुनयना को खिला दिया. सुनयना ने खुश हो कर 500 रुपए अंकुल को और 1000 रुपए वीरन को दिए. उस के बाद वे दोनों अपनेअपने घर चले गए.

इधर दीया जलाते समय करन को श्रेया नहीं दिखी तो उस ने खोज शुरू की. करन व उस की पत्नी माया रात भर बेटी की खोज करते रहे. लेकिन उस का कुछ भी पता नहीं चला. सुबह गांव के कुछ लोगों ने उसे बेटी की हत्या की जानकारी दी. तब वह वहां पहुंचा. इसी बीच किसी ने घटना की जानकारी थाना घाटमपुर पुलिस को दे दी थी. 17 नवंबर, 2020 को पुलिस ने अभियुक्त अंकुल, वीरन, परशुराम व सुनयना को कानपुर कोर्ट में पेश किया, जहां से उन चारों को जिला जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Delhi News : प्रेमी की गला दबाकर हत्या, प्रेमिका का भाई बना वारदात में साझेदार

Delhi News : मां के मना करने के बावजूद साहिल ने वर्षा से कोर्टमैरिज तो कर ली, लेकिन वह उसे अपने घर नहीं ले जा सका. वर्षा द्वारा घरले जाने की जिद को वह टाल देता था. वर्षा की जिद को हर बार टालना साहिल को इतना भारी पड़ा कि…

11 सितंबर, 2020 की सुबह उत्तरी दिल्ली के वजीराबाद थाने में एक राहगीर से सूचना मिली कि अमीना मसजिद के पास एक लाश पड़ी है. इस सूचना पर थाने से एसआई अशोक कुमार मसजिद के पास पहुंचे तो वास्तव में सड़क के किनारे एक युवक की लाश पड़ी थी. उस युवक की उम्र 25 साल के करीब लग रही थी. उस के गले पर हलके खरोंच के निशान थे. उस समय सुबह का वक्त था. कुछ लोग सड़क पर आजा रहे थे. उन्होंने कुछ लोगों को बुला कर लाश की शिनाख्त कराने की कोशिश की. चूंकि यह मामला हत्या का प्रतीत हो रहा था, इसलिए एसआई अशोक कुमार ने थानाप्रभारी पी.सी. यादव को घटना के बारे में सूचना दे दी.

थानाप्रभारी पी.सी. यादव थाने में मौजूद एएसआई प्रदीप, हैड कांस्टेबल कैलाश और कांस्टेबल अजय को साथ ले कर थोड़ी ही देर में घटनास्थल पर पहुंच गए. उन्होंने लाश का बारीकी से मुआयना किया. मृतक ने नारंगी रंग की टीशर्ट और स्लेटी रंग की पैंट पहन रखी थी. थानाप्रभारी ने क्राइम इनवैस्टीगेशन टीम को भी घटनास्थल पर बुला लिया, जिस ने लाश की कई कोण से फोटो खींची. मृतक के गले पर खरोंच के निशान के अलावा शरीर पर जख्म के निशान दिखाई नहीं दे रहे थे.

2 घंटे तक वहां के लोगों से लाश की शिनाख्त कराने के प्रयास किए. इस के बावजूद भी जब मृतक की पहचान नहीं हो सकी तो उसे पोस्टमार्टम के लिए सब्जीमंडी मोर्चरी भेज दिया गया. मोर्चरी में लाश पर चोटों के निशान देखने के लिए उस के कपड़े उतारे गए तो पता चला कि मृतक युवक मुसलिम है. उसी दिन थानाप्रभारी पी.सी. यादव के निर्देश पर मृतक की फोटो वजीराबाद के कई वाट्सऐप ग्रुप में भेज कर उन से लाश की शिनाख्त करने की अपील की गई. दोपहर में फोटो की पहचान वजीराबाद की गली नंबर 9 में रहने वाले साहिल उर्फ राजा के रूप में हो गई. उस के घर पहुंचने पर मृतक की मां मिली. उस ने मोबाइल पर लाश की फोटो देख कर उस की पुष्टि अपने बेटे साहिल के रूप के कर ली.

पूछताछ के दौरान उन्होंने थानाप्रभारी पी.सी. यादव को बताया कि कल रात साहिल ने उसे फोन कर बताया था कि वह अभी वर्षा के घर जा रहा है, इसलिए उस का इंतजार न करें. मां ने साहिल की हत्या का शक वर्षा पर जताया. 13 सितंबर को पुलिस ने साहिल की मां की शिकायत पर वर्षा के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज कर लिया और इस केस की जांच अतिरिक्त थानाप्रभारी गुलशन गुप्ता को सौंप दी गई. अतिरिक्त थानाप्रभारी गुलशन गुप्ता ने साहिल की मां से वर्षा के बारे में पूछताछ की तो पता चला कि वर्षा अपने भाई आकाश के साथ दिल्ली के ही शास्त्रीनगर में रहती है.

वर्षा के ठिकाने का पता लगते ही वह पुलिस टीम के साथ शास्त्रीनगर स्थित वर्षा के मकान पर पहुंचे. लेकिन उस के मकान पर ताला लटका हुआ था. उस के मकान मालिक का पता लगा कर उस से वर्षा के बारे में पूछताछ की, लेकिन मकान मालिक को भी वर्षा के मूल निवास स्थान की जानकारी मालूम नहीं थी. लेकिन उस ने पुलिस टीम को वर्षा के छोटे भाई आकाश का मोबाइल नंबर बता दिया, जिसे अतिरिक्त थानाप्रभारी गुलशन गुप्ता ने अपनी डायरी में नोट कर लिया. वर्षा के घर से गायब रहने के कारण जांच अधिकारी के मन में साहिल की हत्या में उस का हाथ होने का शक और पुख्ता हो गया.

इस के बाद उन्होंने साहिल के दोस्त साजिद से पूछताछ की तो साजिद ने बताया कि कल रात वह और साहिल औफिस से साथ निकले थे. बातचीत के दौरान साहिल ने उस से कहा भी था कि वह वर्षा के घर जा रहा है. उस ने भी वर्षा पर ही साहिल की हत्या का शक जाहिर किया. वहां से लौट कर गुलशन गुप्ता घटनास्थल पर पहुंचे तो वहां से 50 मीटर की दूरी पर एक सीसीटीवी कैमरा लगा देखा, जिस का फोकस उसी तरफ था, जहां पर साहिल का शव मिला था. उन्होंने फौरन उस सीसीटीवी कैमरे की फुटेज निकलवा कर बीरीकी से इस की जांचपड़ताल करनी शुरू की तो देखा सुबह सवा 6 बजे के समय वहां पर एक आटो आ कर रुका, जिस से 3 औरतें बाहर निकलीं.

उन्होंने एक बेहोश से आदमी को आटो से बाहर निकाला और इस के बाद आटो वहां से चला गया. आटो के जाने के बाद तीनों उस आदमी को वहां से थोड़ी दूर घसीट कर ले गईं. फिर एक सुनसान सी जगह पर उसे लिटा कर फरार हो गईं. सीसीटीवी फुटेज को कई वार रिवर्स कर के देखने से आटो के पीछे लिखा ‘अंशुल दी गड्डी’ और आटो की नंबर प्लेट पढ़ कर उसे अपनी डायरी पर नोट कर लिया. करीब 200 आटो की खोजबीन करने के बाद वह आटो मिल गया, जिस के पीछे कवर पर अंशुल दी गड्डी लिखा था. आटो की नंबर प्लेट से उस के मालिक रविंद्र तथा ड्राइवर मुकेश का पता लगा लिया.

मुकेश से पूछताछ करने पर पता चला कि घटना वाली रात को तड़के 4 बजे वह अपने आटो के साथ कश्मीरी गेट बसअड्डे पर किसी सवारी का इंतजार कर रहा था. एक युवती उस के पास आई थी और अपने दोस्त के गहरे नशे में होने की बात कह कर उसे शास्त्री पार्क स्थित अपने कमरे पर ले गई. वहां से अपने बेहोश साथी को ले कर जगप्रवेश अस्पताल गई. उस के साथ 2 युवतियां और थीं. वहां किसी कारण इलाज नहीं होने पर उसे वजीराबाद ला कर वहां छोड़ दिया, जहां पर पुलिस ने सुबह लाश बरामद की थी. मुकेश का बयान दर्ज करने के बाद पुलिस टीम जगप्रवेश अस्पताल पहुंची और वहां के सीसीटीवी फुटेज की जांचपड़ताल की. उस में आटो और तीनों औरतें साफ दिख गईं.

अब तक की जांचपड़ताल से इतना पता चल गया था साहिल की हत्या में उन्हीं 3 औरतों का हाथ है. आकाश के मोबाइल नंबर की लोकेशन से पता चला कि वह इस समय उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर में है. 13 सितंबर, 2020 को दिल्ली से एक पुलिस टीम वर्षा और उस के साथियों की तलाश में शाहजहांपुर पहुंची और वहां पर अपने एक रिश्तेदार के यहां छिपे वर्षा और उस के भाई आकाश को गिरफ्तार कर लिया. उन से पूछताछ करने पर तीसरे साथी अलका उर्फ अली हसन को भी उस के रिश्तेदार के यहां से गिरफ्तार कर लिया. तीनोें को गिरफ्तार करने के बाद पुलिस टीम वजीराबाद थाने लौट आई.

वर्षा से पूछताछ की. पहले तो उस ने साहिल की हत्या करने से इनकार किया, लेकिन जब उसे सीसीटीवी फुटेज दिखाया गया तो वर्षा का चेहरा सफेद पड़ गया. उस ने साहिल की हत्या की बात स्वीकार करते हुए अपने इकबालिया बयान में जो बात बताई, वह हैरतअंगेज कर देने वाली थी. वर्षा से पूछताछ के बाद साहिल की हत्या की जो कहानी उभर कर सामने आई, वह कुछ इस प्रकार थी. 23 वर्षीय साहिल उर्फ राजा अपनी अम्मी के साथ उत्तरी दिल्ली के वजीराबाद में रहता था. कई साल पहले उस के अब्बा का इंतकाल एक लंबी बीमारी के दौरान हो गया था.

कोई 4 साल पहले की बात है. तब साहिल ग्रैजुएशन की पढ़ाई कर चुका था. अब्बा की मौत के बाद से ही घर में मुश्किलों का दौर शुरू हो गया था, जो अब तक कम होने का नाम ही नहीं ले रहा था. अम्मी जैसेतैसे घर का गुजारा चला रही थी. उस ने अपने लिए नौकरी की तलाश शुरू की. काफी भागदौड़ करने के बाद किसी तरह उसे शास्त्री पार्क स्थित एक स्थानीय अखबार के औफिस में नौकरी मिल गई. जहां वह रिपोर्टिंग के साथ अखबार के लिए विज्ञापन लाने का काम करता था. इस काम में उसे तनख्वाह और कमीशन मिलता था. उस से घर का गुजारा चलने लगा.

साहिल को अभी यह काम करते हुए कुछ महीने गुजरे थे कि एक दिन उस की मुलाकात वर्षा से हुई. 19 वर्षीय वर्षा देखने में काफी सुंदर होने के अलावा हंसमुख स्वभाव की थी. साहिल को वर्षा की बातें अच्छी लगीं. वर्षा ने साहिल को बताया कि वह मूलरूप से उत्तर प्रदेश के गांव हसनपुर, हरदोई की रहने वाली है. गांव में उसे बहुत सी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा था, इसलिए वह नौकरी की तलाश में अपने भाई के साथ दिल्ली आ गई. इस समय वह अपने छोटे भाई आकाश के साथ शास्त्री पार्क में रहती है. साहिल ने वर्षा से उस का मोबाइल नंबर ले लिया. वर्षा ने भी साहिल का मोबाइल नंबर सेव कर लिया. इस घटना के बाद साहिल और वर्षा हमेशा एकदूसरे के संपर्क में रहने लगे.

जब भी साहिल को काम से फुरसत मिलती वह वर्षा को बुला क र उस के साथ कहीं घूमने निकल जाता था. वर्षा भी साहिल को प्यार करती थी, इसलिए वह हमेशा उसे खुश रखने की कोशिश करती थी. चूंकि इश्क की आग दोनों तरफ बराबर लगी थी, सो जल्द ही उन के बीच शारीरिक संबंध भी बन गए. काफी दिनों तक ऐसा ही चलता रहा. बाद में वर्षा साहिल से शादी करने की जिद करने लगी तो पहले साहिल ने उस से शादी करने में कुछ आनाकानी की, लेकिन जब वर्षा ने साहिल से कहा कि बिना शादी के वह इस रिलेशन को नहीं रखना चाहती है तो साहिल ने वर्षा की जिद देखते हुए उस के साथ कोर्टमैरिज तो कर लिया, मगर उसे अपने घर नहीं ले गया.

उस ने वर्षा को समझाते हुए कहा कि उस की अम्मी अभी इस कोर्टमैरिज को स्वीकार नहीं करेंगी. जब उस की अम्मी उसे अपनी बहू बनाने के लिए तैयार हो जाएंगी तो वह उसे अपनी बेगम बना कर घर ले जाएगा. वर्षा ने साहिल की बात पर यकीन कर लिया. इस के बाद साहिल ने वर्षा के रहने के लिए शास्त्री पार्क में एक मकान किराए पर ले लिया, जिस में एक कमरा ग्राउंड फ्लोर पर और दूसरा कमरा ऊपरी मंजिल पर बना था. साहिल दिन में औफिस में काम करता था और रात में वर्षा के पास रुक जाता था. रात के समय में दोनों ऊपरी कमरे में सोते थे, जबकि वर्षा का भाई आकाश नीचे ग्राउंड फ्लोर पर सोता था.

आकाश को वर्षा और साहिल के रिश्ते की शुरू से जानकारी थी. उसे इस पर कोई ऐतराज नहीं था. वर्षा और आकाश के साथ उस के ही गांव हसनपुर का एक लड़का अली हसन उर्फ अलका भी रहता था. आकाश और अली हसन दिन के समय लड़कियों के कपड़े पहन कर हिजड़ों का रूप धारण कर लेते थे और शादीब्याह वाले घरों या जिस किसी के घर में बच्चे का जन्म होता, उस के घर जा कर बधाइयां गाने का काम करते थे. इस काम में उसे थोड़ी देर नाचनेगाने में ही अच्छीखासी रकम हाथ लग जाती थी. उन्हें मजदूरी करना काफी मेहनत का काम लगता था, इसलिए दोनों इसे नहीं करना चाहते थे. जबकि नकली हिजड़ा बन कर नाचगा कर मांगने का काम आकाश और अली हसन को आसान लगता था.

कुछ दिनों के बाद साहिल और वर्षा के रिश्ते की जानकारी साहिल की अम्मी को हो गई. दरअसल, साहिल अब रात में घर न पहुंच कर वर्षा के घर शास्त्री पार्क में अपनी रातें गुजारने लगा था. जब उस की अम्मी ने साहिल से इस का कारण पूछा तो उस ने अम्मी को वर्षा और अपने रिलेशनशिप के बारे में सब कुछ बता दिया. इस के बाद अम्मी ने साहिल का विरोध नहीं किया. सालों पहले शौहर की मौत हो जाने के बाद से वह एक बेवा की जिंदगी गुजार रही थी. अब बेटे को नाराज कर वह उसे खोना नहीं चाहती थी. इसी प्रकार साहिल और वर्षा के रिश्ते को 4 साल हो गए. वर्षा के रहनेखाने का सारा खर्च साहिल ही उठाता था, लेकिन वह उसे अपने घर ले जाने के लिए तैयार नहीं था. वर्षा जब भी साहिल को अपने घर ले चलने की बात कहती, साहिल कोई न कोई बहाना बना कर उस की बात को टाल जाता था.

पिछले 2 सालों से साहिल द्वारा लगातार टाले जाने से परेशान वर्षा के सब्र का बांध अब टूटने के कगार पर था. उस ने गंभीर हो कर यह बात अपने छोटे भाई आकाश को बताई तो वह भी बहन की परेशानी को समझ कर सोच में डूब गया. काफी सोचविचार के बाद यह तय हुआ कि आज वह साहिल से दोटूक बात करेगी. साहिल को हर हाल में उसे अपनाना ही पड़ेगा. आकाश और अली हसन दोनों ने वर्षा की बात का समर्थन करते हुए कहा, ‘‘ठीक है, आज इस बात का फैसला हो कर ही रहेगा.’’

10 सितंबर, 2020 की रात लगभग 10 बजे साहिल जब वर्षा के घर पहुंचा तो वहां सब उस के आने का इंतजार कर रहे थे. किसी ने खाना नहीं खाया था. साहिल मार्केट जा कर सब के लिए खाना और शराब की बोतल ले आया. सब ने एक साथ मिल कर शराब पी और खाना भी खाया. इस के बाद साहिल रोमांटिक मूड में वर्षा को अपनी तरफ खींचते हुए ऊपर वाले कमरे में चलने के लिए कहने लगा तो वह उस की बांहों से छिटक कर अलग हो गई और बोली, ‘‘तुम रोज मेरे जिस्म से खेलते हो और जब मैं तुम्हारे साथ तुम्हारे घर जा कर बीवी बन कर रहने की बात करती हूं तो बहाना बना कर टाल जाते हो. आज तुम साफसाफ बताओ कि तुम्हारे मन में क्या है?’’

वर्षा के इस बदले हुए तेवर को देख कर भी साहिल पर इस का जरा भी असर नहीं हुआ. उस ने समझा कि वर्षा थोड़ी नानुकुर करने के बाद उस की बात मान कर ऊपर के कमरे में चली जाएगी. लेकिन वह नहीं गई. वर्षा साहिल के बारबार टालने से काफी तंग आ चुकी थी, इसलिए वह साहिल के साथ शारीरिक संबंध बनाने के लिए तैयार नहीं हुई. वर्षा ने साहिल की इच्छा का विरोध करना शुरू कर दिया. इसी बात पर उन के बीच हाथापाई शुरू हो गई, जिस पर साहिल ने गुस्से में वर्षा के ऊपर हाथ उठा दिया. इस पर वर्षा ने अपने भाई आकाश और अली हसन के साथ मिल कर साहिल को फर्श पर पटक कर उस का गला घोंट दिया.

जब साहिल का बेजान जिस्म एक ओर लुढ़क गया तो उस की लाश देख कर उन तीनों के हाथपांव फूल गए. काफी देर तक आपस में विचार करने के बाद उन्हें लगा कि अगर साहिल को अस्पताल ले जाया जाए तो शायद उस की जान बच सकती है. ऐसा सोच कर उन्होंने कश्मीरी गेट बसअड्डे से आटो बुलाया और उसे आटो में ले कर जगप्रवेश अस्पताल पहुंचे, जहां डाक्टरों ने उसे देखते ही मृत घोषित कर दिया. डाक्टर की बात सुन कर तीनों एकदम बदहवास हो गए. साहिल के बेजान जिस्म को उसी आटो में लाद कर वे वजीराबाद पहुंचे और उस की लाश वहां उतार कर आटो वाले को वापस भेज दिया.

आटो के नजर से ओझल होते ही उन तीनों ने लाश थोड़ी दूर खींच कर एक साइड में डाल दी और वहां से फरार हो गए. सुबह पुलिस द्वारा पकड़े जाने से बचने के लिए तीनों शास्त्री पार्क स्थित मकान पर ताला लगा कर वहां से फरार हो गए. इसी दौरान उन्होंने यमुना नदी में साहिल का पर्स और मोबाइल फोन फेंक दिया. इस के बाद वे आनंद विहार पहुंचे और वहां से बस पकड़ कर हरदोई पहुंच गए. वहां भी जब उन्हें लगा कि पुलिस उन की तलाश में यहां भी पहुंच सकती है तो वे शाहजहांपुर स्थित अपने रिश्तेदार के यहां जा कर छिप गए.

लेकिन उन की चालाकी काम नहीं आई और दिल्ली पुलिस ने 13 सितंबर, 2020 को उन्हें दबोच लिया. 14 सितंबर को साहिल उर्फ राजा की हत्या के आरोप में उस की प्रेमिका वर्षा उस के भाई आकाश और अली हसन को तीसहजारी कोर्ट में पेश किया गया, जहां से तीनों को जेल भेज दिया गया.

 

Extramarital Affair : प्रेमी संग मिलकर पत्नी ने सोते पति को मारी गोली

Extramarital Affair : पति रामऔतार की आंखों में धूल झोंक कर नन्ही पति के दोस्त नरेंद्र के साथ हसरतें पूरी करती रही. उसी दौरान ऐसा क्या हुआ कि नन्ही ने प्रेमी नरेंद्र के साथ मिल कर खुद अपना ही सिंदूर मिटा दिया…

उत्तर प्रदेश के जिला बरेली के गांव पचैमी की रहने वाली नन्ही रामऔतार की पत्नी थी. उस का विवाह रामऔतार से करीब 15 साल पहले हुआ था. उस के 6 बच्चे थे. रामऔतार का गांव के ही इतवारी और उस के 2 बेटों से जमीन को ले कर विवाद हुआ तो वह पत्नी व बच्चों के साथ बदायूं के कलौरा गांव में परिवार के साथ आ कर रहने लगा. यहां वह एक ईंट भट्ठे पर काम करने लगा. काम करते रामऔतार की दोस्ती कलौरा गांव के ही नरेंद्र से हो गई. नरेंद्र भी उस के साथ ही काम करता था. 35 वर्षीय नरेंद्र अविवाहित था. वह अपने भाइयों में सब से बड़ा था. उस के पास खेती की कुछ जमीन थी, जिस पर वह खेती करता था. खेती करने से बचे समय में वह ईंट भट्ठे पर काम करता था.

रामऔतार और नरेंद्र में दोस्ती करीब 2 साल पहले हुई थी. दोस्ती हुई तो नरेंद्र का रामऔतार के घर आनाजाना शुरू हो गया. आनेजाने के दौरान ही कुंवारे नरेंद्र को नन्ही का रूपरंग भा गया था. रामऔतार की गैरमौजूदगी में भी वह नन्ही का हालचाल जानने के बहाने उस के घर चला आता था. नन्ही उस की खूब आवभगत करती थी. नरेंद्र मंझे हुए खिलाड़ी की तरह अपना हर कदम आगे बढ़ा रहा था. जब भी वह रामऔतार के घर जाता, उस की नजरें नन्ही के इर्दगिर्द ही घूमा करती थीं. वह उस पर दिलोजान से लट्टू था. 6 बच्चों की मां बनने के बाद भी नन्ही में आकर्षण था. उस के इकहरे बदन में मादकता का बसेरा था.

नरेंद्र दोस्त की गैरमौजूदगी में नन्ही को कभीकभी तोहफा दे आता तो कभी रुपए दे कर खुश कर देता. उस के इस आत्मीय व्यवहार से नन्ही उस का खूब सत्कार करती और उस से खुल कर बातें करती थी. एक दिन दोपहर को जब नन्ही घर में अकेली थी, अचानक नरेंद्र उस के यहां पहुंच गया. हमेशा की तरह नन्ही ने उस का स्वागत किया और चाय बना कर दी. फिर हंसते हुए बोली, ‘‘आज आप की दोस्त से मुलाकात नहीं हो पाएगी. क्योंकि वह काम से बाहर गए हैं.’’

नरेंद्र के होंठों के कोनों पर शैतानी मुसकान आ बैठी, ‘‘कोई बात नहीं भाभी, असल में आज मैं तुम से ही मिलने आया था.’’

‘‘ऐसी क्या बात है कि आप को खास मुझ से मिलने की जरूरत आ पड़ी. बताओ, मैं किस काम आ सकती हूं.’’ वह बोली.

नन्ही का मन टटोलने के लिए नरेंद्र बोला, ‘‘वक्तबेवक्त अपनों का फर्ज बनता है कि अपनों की मदद करें. तुम्हें पता है कि मैं ने तुम्हारे लिए कभी अपना हाथ नहीं खींचा. आज उसी मदद का प्रतिदान मांगने आया हूं.’’

नरेंद्र ने बढ़ाया कदम नन्ही समझ नहीं पाई कि नरेंद्र कहना क्या चाहता है. वह बस इतना कह पाई, ‘‘आप कहिए तो, मैं आप के किस काम आ सकती हूं.’’

जवाब में नरेंद्र ने उस का हाथ पकड़ कर उसे अपनी बगल में बैठा लिया. फिर उस की जांघ पर हाथ रखते हुए उस के कान में बोला, ‘‘मैं ने मन से तुम्हारी मदद की, अब तुम तन से मेरी मदद कर दो.’’ कहने के साथ ही उस ने हाथ नन्ही की कमर में डाल कर उसे खुद से सटा लिया और उसे चूमते हुए बोला, ‘‘सच कहता हूं, मैं तुम्हें बहुत चाहता हूं. तुम्हें कसम है मेरे प्यार की, इनकार मत करना.’’

नन्ही हतप्रभ रह गई. उस ने नरेंद्र से हटने की कोशिश करते हुए कहा, ‘‘मैं तुम्हारे दोस्त की बीवी हूं. वह तुम पर बहुत विश्वास करते हैं. यह विश्वास टूटा तो दिल टूट जाएगा.’’

‘‘मैं तुम्हारे पति के विश्वास को कभी टूटने नहीं दूंगा. यकीन करो, हमारे बीच जो होगा, उसे मैं छिपा कर रखूंगा.’’ नरेंद्र ने कहा.

नन्ही के होंठ एक बार फिर बुदबुदाए, ‘‘कल जब यह भेद खुलेगा तो हम कहीं के नहीं रहेंगे.’’

‘‘भेद खुलेगा कैसे? मैं तुम्हें अपना समझता हूं. अब न मत करो.’’ उस के बाद नरेंद्र के हाथ नन्ही के बदन पर रेंगने लगे.

उस की हरकतों से नन्ही के विवेक पर भी परदा पड़ गया. नन्ही भी सारी मानमर्यादा भूल कर नरेंद्र के साथ अनैतिक रिश्ता बना बैठी. अपने स्त्री धर्म पर दाग लगा चुकी नन्ही को यह सब करने का पछतावा इसलिए अधिक नहीं हुआ क्योंकि अविवाहित नरेंद्र का साथ उसे बहुत अच्छा लगा था. औरत एक बार जब फिसलती है तो फिर फिसलन की राह पर जाने से अपने कदमों को रोक नहीं पाती. फिर नरेंद्र जैसा बहकाने वाला मर्द हो तो नन्ही जैसी औरतें कहां खुद को रोक पाती हैं. लिहाजा नन्ही और नरेंद्र के संबंधों का सिलसिला चल निकला.

नरेंद्र नन्ही को तोहफेऔर पैसे दे कर खुश रखता तो बदले में वह भी उसे खुश रखती. लेकिन अवैध संबंध कायम रखने में चाहे कितनी सावधानी क्यों न बरती जाए, एक दिन उन की पोल खुल ही जाती है. इन दोनों का राज भी खुल गया. दरअसल, एक दिन रामऔतार अपने काम से जल्दी लौट आया, उसे कुछ अपनी तबियत ठीक नहीं लग रही थी. घर का मेनगेट खुला होने के कारण वह सीधा अंदर चला आया. उस ने अंदर का जो दृश्य देखा, वह जड़वत खड़ा रह गया. उस की बीवी नरेंद्र की बांहों में झूल रही थी. यह देखते ही रामऔतार की आंखों में खून उतर आया. वह चीखा तो दोनों हड़बड़ा कर अलग हो गए.

नरेंद्र तो तुरंत वहां से भाग खड़ा हुआ, नन्ही भला कहां भागती. वह अपराधबोध से नजरें झुकाए सामने खड़ी थी. रामऔतार ने लातघूंसों से उस की पिटाई करनी शुरू कर दी, ‘‘हरामजादी, मैं तेरी सुखसुविधाओं के लिए बाहर खट रहा हूं और तू गैरमर्द के साथ घर में गुलछर्रे उड़ा रही है. तूने एक बार मर्यादा के बारे में नहीं सोचा. कल जब तेरा कलंक गलीमोहल्ले वालों को पता लगेगा तो मैं सिर उठाने लायक रह पाऊंगा?’’

पति को गुस्से में जलता देख नन्ही ने त्रियाचरित्र दिखाया, ‘‘मैं ने बहुत विरोध किया लेकिन तुम्हारी गैरमौजूदगी में तुम्हारा दोस्त मेरे साथ जबरदस्ती पर आमादा हो गया था. घर में मुझे अकेला पा कर उस के हौसले और भी बढ़ गए. मोहल्ले वालों की मदद इसलिए नहीं ली कि बात गांव में फैलती तो और बदनामी हो जाती. मैं कसम खा कर कहती हूं कि मैं मजबूर थी.’’

नन्ही ने चालाकी से अपने आप को बचा लिया. उस दिन के बाद से नरेंद्र काफी दिनों तक रामऔतार के सामने नहीं पड़ा और न ही उस के घर गया. लेकिन जिस्म की आग भला कहां चैन लेने देती है. फिर से नरेंद्र रामऔतार के घर उस की गैरमौजूदगी में जाने लगा. लेकिन अब दोनों ही सावधानी बरतने लगे थे. 20 अगस्त, 2020 की रात रामऔतार छत पर सो रहा था. नन्ही नीचे कमरे में सो रही थी. रात सवा 11 बजे कुछ लोगों ने घर में घुस कर रामऔतार को गोली मार दी. रामऔतार की हुई हत्या गोली की आवाज सुन कर गांव के लोग घरों से जब तक बाहर निकलते, तब तक हमलावार वहां से भाग गए.

गोली की आवाज सुन कर नन्ही कमरे से बाहर निकली और छत की तरफ देखा तो उसे अनहोनी की आशंका हुई. वह सीढि़यां चढ़ कर छत पर गई तो अपने पति रामऔतार को मृत पाया. वह रोनेचिल्लाने लगी. गोली की आवाज सुन कर घर से निकले आसपड़ोस के लोगों ने रामऔतार के घर से रोने की आवाजें सुनीं तो वहां पहुंच गए. छत पर खून से लथपथ रामऔतार की लाश पड़ी हुई थी, वहीं पास बैठी नन्ही रो रही थी. उसी दौरान किसी ने 112 नंबर पर फोन कर के घटना की सूचना पुलिस को दे दी. घटनास्थल दातागंज थाने में आता था, इसलिए पुलिस कंट्रोल रूम से इस की सूचना दातागंज थाने को दे दी गई.

सूचना पा कर थानाप्रभारी अजीत कुमार सिंह अपनी टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. वहां पहुंच कर उन्होंने लाश का निरीक्षण किया. रामऔतार के सीने में गोली लगने का घाव था. छत व आसपास की लोकेशन को देखने के बाद उन्होंने नन्ही से पूछताछ की. नन्ही ने बताया कि वह नीचे कमरे में सो रही थी. गोली चलने की आवाज सुन कर बाहर आई तो यहां कोई नहीं था, न किसी को उस ने वहां से भागते देखा. छत पर आई तो पति की लाश पड़ी मिली. किसी पर शक होने के बारे में पूछने पर उस ने बताया कि वह अपने पति के साथ बरेली के फरीदपुर के पचैमी गांव में रहती थी. वहां गांव के ही इतवारी और उस के बेटों कलट्टर और अर्जुन से उस के पति का जमीनी विवाद चल रहा था.

उस विवाद की वजह से ही वह पति के साथ यहां आ कर रह रही थी. नन्ही ने आरोप लगाया कि उन तीनों ने ही उस के पति को मारा है. आसपास के लोगों से पूछताछ करने पर पुलिस को ऐसी कोई जानकारी नहीं मिली, जो केस खोलने के काम आए. पूछताछ के बाद थानाप्रभारी अजीत कुमार सिंह ने लाश मोर्चरी भेज दी. फिर नन्ही को सुबह थाने आने को कह कर वापस थाने लौट गए. सुबह थाने पहुंच कर नन्ही ने इतवारी, कलट्टर और अर्जुन के खिलाफ भादंवि की धारा 302/34 के तहत मुकदमा दर्ज करा दिया. थानाप्रभारी सिंह ने जांच शुरू की. सब से पहले उन्होंने तीनों नामजद लोगों के बारे में पता किया. उन के फोन नंबर ले कर घटना की रात की लोकेशन की जांच की तो घटनास्थल तो क्या दूरदूर तक उन की लोकेशन नहीं मिली. इस से थानाप्रभारी को लगा कि दुश्मनी की आड़ में कोई और ही काम को अंजाम दे गया है.

थानाप्रभारी अजीत सिंह की सोच यह थी कि गांव के या आसपास के ही किसी परिचित ने इस घटना को अंजाम दिया होगा. इसलिए थानाप्रभारी सिंह ने रामऔतार के दोस्तों और उस के घर आनेजाने वाले लोगों के बारे में जानकारी जुटाई तो पता चला कि गांव के नरेंद्र नाम के युवक से रामऔतार की अच्छी दोस्ती थी. वह दिन में उस के घर के कई चक्कर लगाता था. आरोपियों ने स्वीकारा अपराध यह जानकारी मिली तो उन्होंने 26 अगस्त को नरेंद्र को शक के आधार पर हिरासत में ले लिया. जब उस से सख्ती से पूछताछ की तो उस ने अपना जुर्म स्वीकार करते हुए हत्या में साथ देने वालों के नाम भी बता दिए.

हत्या में उस का साथ मृतक की पत्नी नन्ही, नरेंद्र के सगे भाई मुकेश, मौसेरे भाई रिंकू, दोस्त रामनिवास और मुकेश ने दिया था. पुलिस ने उसी दिन नन्ही और रामनिवास व मुकेश को गिरफ्तार कर लिया. उन सभी से पूछताछ करने पर पता चला कि नन्ही और नरेंद्र रामऔतार की गैरमौजूदगी में सावधानी से मिल तो रहे थे लेकिन कई बार पकड़े जाने से बालबाल बचे थे. अब पकड़े जाने पर उन्हें रामऔतार की ओर से कोई खतरनाक कदम उठाए जाने का भी अंदेशा था. वैसे भी जब से रामऔतार ने नन्ही को नरेंद्र के साथ आपत्तिजनक अवस्था में देखा था, तब से वह वक्तबेवक्त घर आ धमकता था. उस के घर आने का खौफ दोनों के दिमाग पर हावी रहने लगा. ऐसे में वे दोनों ठीक से मिल भी नहीं पाते थे. इसलिए रामऔतार नाम के खौफ को हमेशा के लिए अपनी जिंदगी से मिटाने का उन दोनों ने फैसला कर लिया.

रामऔतार की हत्या में साथ देने के लिए नरेंद्र ने अपने सगे भाई मुकेश, मौसरे भाई रिंकू, दोस्त रामनिवास निवासी गांव मलौथी थाना दातागंज और दोस्त मुकेश निवासी गांव छेदापट्टी, जिला शाहजहांपुर को तैयार कर लिया. सब के साथ मिल कर नरेंद्र ने हत्या की योजना बनाई. योजना बना कर नन्ही को नरेंद्र ने पूरी योजना के बारे में बता दिया. 20 अगस्त की रात जब रामऔतार छत पर सो रहा था. नन्ही नीचे कमरे में जागी हुई उस का इंतजार कर रही थी. रात सवा 11 बजे नरेंद्र अपने साथियों के साथ रामऔतार के घर पहुंच गया और नन्ही द्वारा रामऔतार के छत पर सोने की बात बताने पर सभी छत पर पहुंच गए और सोते हुए रामऔतार के सीने पर गोली मार दी.

गोली लगते ही रामऔतार ने दम तोड़ दिया. इस से पहले कि कोई वहां आए, वे लोग वहां से फरार हो गए. नन्ही योजना के अनुसार कुछ देर बाद छत पर जा कर रोनेचिल्लाने लगी. वे हत्या करने की अपनी योजना में तो सफल हो गए, लेकिन अपने आप को बचाने में सफल नहीं हो पाए और पकड़े गए. थानाप्रभारी अजीत कुमार सिंह ने मुकदमे में धारा 120बी और बढ़ा दी. अभियुक्तों की निशानदेही पर पुलिस ने हत्या में प्रयुक्त तमंचे के साथ एक और तमंचा बरामद कर लिया. कागजी खानापूर्ति करने के बाद चारों अभियुक्तों नन्ही, नरेंद्र, रामनिवास और मुकेश को सक्षम न्यायालय में पेश करने के बाद उन्हें जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक नरेंद्र का भाई मुकेश और मौसेरा भाई रिंकू फरार थे, पुलिस सरगर्मी से उन की तलाश कर रही थी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

UP Crime : भतीजे ने चाची को गड़ासे से 14 टुकड़े किए फिर जमीन में दबा दिया

UP Crime : अपराधी चाहे कितना भी शातिर क्यों न हो, उस के किए गुनाह की लकीर के सहारे पुलिस उस तक पहुंच ही जाती है. खेत में मिले नरमुंड ने सर्वेश और संतोष के संगीन गुनाहों की ऐसी फेहरिस्त खोली कि…

उत्तर प्रदेश के मैनपुरी जिले का एक गांव है बरुआ नद्दी. शाम के समय कुछ लोग खेतों से गांव की ओर आ रहे थे. तभी उन की नजर एक खेत के किनारे कुत्तों के झुंड पर पड़ी. कुत्ते एक नरमुंड को ले कर खींचतान कर रहे थे. लोगों ने कुत्तों को भगा दिया और नजदीक आए. वहां एक नरमुंड पड़ा था. कुछ ही देर में वहां भीड़ जुट गई. गांव भर में सनसनी फैल गई. इसी बीच किसी ने थाना किशनी में सूचना दे दी. थानाप्रभारी अजीत सिंह पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए और उच्च अधिकारियों को घटना से अवगत कराया. सूचना पर कुछ ही देर में एसपी अजय कुमार पांडेय, एएसपी मधुबन कुमार भी मौके पर पहुंच गए. उन्होंने घटनास्थल का निरीक्षण किया, इस के साथ ही आसपास के लोगों से बातचीत कर जानकारी ली.

एसपी ने पूरा कंकाल होने की आशंका के चलते आसपास के खेतों में तलाशी अभियान चलाया. काफी देर तलाश के बाद भी पुलिस के हाथ कुछ नहीं लगा. नरमुंड पुरुष का है या महिला का, इस के लिए एसपी ने अधीनस्थों को डीएनए जांच कराने के निर्देश दिए. थानाप्रभारी ने मौके की काररवाई निपटाने के बाद नरमुंड को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. यह घटना 10 अक्तूबर,2020 की है. पुलिस ने दूसरे दिन घटनास्थल के आसपास के गांव वालों से फिर से पूछताछ की. लेकिन कोई सुराग नहीं मिला.

नरमुंड मिलने की जानकारी मिलने के 2 दिन बाद जनपद इटावा के थाना चौबिया के गांव टोरपुर का निवासी मिथिलेश कुमार थाना किशनी पहुंचा. उस ने बताया कि उस की 35 वर्षीय भाभी पूती देवी 20 सितंबर, 2020 से लापता हैं. इस संबंध में उस ने थाना भरथना में गुमशुदगी भी दर्ज कराई थी. लेकिन अभी तक उन का कोई पता नहीं चला. गांव बरुआ नद्दी के खेत में मिला नरमुंड उस की भाभी पूती देवी का हो सकता था. वह नरमुंड पूती देवी का है या नहीं, इस बात की पुष्टि डीएनए जांच के बाद ही हो सकती थी. लिहाजा पुलिस ने मिथिलेश कुमार से विस्तार से पूछताछ करने के बाद उस की भाभी पूती देवी के बारे में जांच शुरू कर दी.

पुलिस को जांच के दौरान पता चला कि 35 वर्षीय पूती देवी की ससुराल इटावा जिले के थाना चौबिया में है. उस के पति दिलासा राम की कई साल पहले मौत हो चुकी थी. बच्चों को पढ़ाने के लिए पूती देवी अपने दोनों बच्चों सहित भरथना के मोहल्ला कृष्णानगर में रहने लगी थी. गांव बरुआ नद्दी निवासी सर्वेश कुमार यादव और उस के मामा संतोष कुमार, जो औरेया जिले के नगला परशादी का रहने वाला है, ने पूती देवी को आवास व अन्य सरकारी सहायता दिलाने का लालच दे कर अपने जाल में फंसा लिया था. वे लोग उसे 20 सितंबर, 2020 को अपने साथ ले गए थे. इस के बाद से उस का कोई पता नहीं चला.

मिथिलेश का आरोप था कि उन लोगों ने भाभी का अपहरण करने के बाद उन की हत्या कर दी है. मिथलेश के इस दावे के बाद सर्वेश और उस के मामा संतोष के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया. पुलिस को जांच में पता चला कि देवर मिथिलेश ने इस मामले में भरथना पुलिस से जो शिकायत की थी, उस पर कोई जांच व काररवाई नहीं की गई थी. अब सवाल यह था कि यदि नरमुंड पूती देवी का नहीं था तो पूती इस समय कहां थी? आरोपी भी लापता थे. इस से पुलिस ने अनुमान लगाया कि आरोपी व उस का मामा महिला को आशनाई के लिए ले कर फरार हो गए होंगे. मुकदमा दर्ज होने के बाद एसपी अजय कुमार पांडेय ने इस घटना के राजफाश के लिए स्वाट टीम, सर्विलांस टीम सहित 5 पुलिस टीमें गठित कीं.

गहराई से पड़ताल में जुटी पुलिस ने मुखबिर की सूचना पर 26 अक्तूबर, 2020 को रात के समय आरोपी सर्वेश यादव और उस के मामा संतोष को गांव में सर्वेश के खेत में बने मकान से गिरफ्तार कर लिया. पुलिस को देखते ही आरोपियों ने पुलिस पर फायरिंग शुरू कर दी थी. लेकिन पुलिस ने घेराबंदी कर दोनों को दबोच लिया. आरोपियों के कब्जे से तंमचा व कारतूस बरामद किए गए. थाने ला कर दोनों से पूती देवी हत्याकांड के बारे में कड़ाई से पूछताछ की गई तो दोनों आरोपियों ने पूती देवी की हत्या करने का जुर्म कबूल करते हुए सनसनीखेज हत्याकांड का रहस्योद्घाटन किया. उन्होंने बताया कि हत्या के बाद उन्होंने पूती देवी के शव के गड़ासे से 14 टुकड़े कर उन्हें अलगअलग स्थानों पर जमीन में दबा दिया था.

पुलिस लाइन सभागार में 27 अक्तूबर को आयोजित प्रैस कौन्फ्रैंस में एसपी अजय कुमार पांडेय ने हत्यारोपियों की गिरफ्तारी की जानकारी दी. हत्याकांड के पीछे महिला का धन लूटना था. सर्वेश भोलीभाली, गरीब, बेसहारा, विधवा महिलाओं को सरकारी आवास और रुपए दिलाने का झांसा दे कर अपने जाल में फंसाता था. वह न सिर्फ महिलाओं से पैसे ऐंठता था बल्कि घर से दूर सुनसान इलाके में ले जा कर हत्या कर उन के आभूषण ले लेता था. शव के टुकड़े कर के जमीन में जगहजगह गड्ढा खोद कर गाड़ देता था. इस दिल दहला देने वाले हत्याकांड के पीछे हत्यारोपी सर्वेश की पूती देवी की शादी अपने मामा संतोष से कराने की योजना थी. लेकिन जब पूती देवी ने शादी करने से मना कर दिया तो उस ने उस की हत्या कर दी.

इस षडयंत्र में सर्वेश का मामा संतोष भी शामिल था. दोनों ही आरोपी आपराधिक प्रवृत्ति के थे. उन के विरुद्ध कन्नौज के थाना सौरिख में हत्या, हत्या के प्रयास सहित कई संगीन धाराओं में मुकदमे दर्ज थे. सर्वेश मामा के साथ मिल कर अब तक कई आपराधिक घटनाओं को अंजाम दे चुका था. इस हत्याकांड की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार निकली—

पूती देवी का मायका गांव बरुआ नद्दी का था. वह सर्वेश की दूर के रिश्ते की चाची लगती थी, जिस की वजह से वह सर्वेश को जानती थी. पूती देवी के पति दिलासा राम की 6 साल पहले मौत हो गई थी. वह पिछले 3 साल से भरथना में अपने बच्चों को पढ़ानेलिखाने के मकसद से किराए का मकान ले कर रह रही थी. यह बात सर्वेश को पता थी कि वह गरीब है, उसे रुपयों और मकान की जरूरत है. सर्वेश के 45 वर्षीय मामा संतोष की पत्नी की 3 साल पहले मौत हो चुकी थी. सर्वेश अपने मामा संतोष की शादी पूती देवी के साथ कराना चाहता था. इसी योजना के तहत 20 सितंबर, 2020 को सर्वेश पूती देवी के पास पहुंचा और उसे सरकारी आवास दिलाने के बहाने से 4 हजार रुपए, आधार कार्ड, व फोटो ले कर विकास भवन चलने को कहा.

सर्वेश पूती देवी को झांसा दे कर अपनी बाइक पर बिठा कर अपने गांव ले आया. मामा भी उस के साथ था. सर्वेश और संतोष पूती देवी को ले कर गांव बरुआ नद्दी आ गए. जब पूती देवी ने यह देखा तो वह भड़क गई. उस ने विरोध करते हुए कहा कि तुम लोग तो विकास भवन चलने की बात कह रहे थे. मुझे यहां कहां ले कर आए हो? तब सर्वेश ने कहा, ‘‘चाची तुम बच्चों के साथ अकेली रहती हो. घर में कोई आदमी भी बच्चों की देखभाल के लिए नहीं है. यह मेरे मामा संतोष हैं. 3 साल पहले इन की पत्नी की मौत हो चुकी है. तुम इन के साथ शादी कर लो, जिस से दोनों का घर बस जाएगा.’’

पूती देवी ने सर्वेश की बात का न सिर्फ विरोध किया, बल्कि पुलिस में उस की शिकायत करने की धमकी भी दी. काफी समझाने पर भी जब पूती देवी उस की बात मानने को तैयार नहीं हुई, तो सर्वेश को गुस्सा आ गया. अपना राज खुलने के डर से उस ने मामा के साथ मिल कर पूती देवी की गला दबा कर उसी दिन हत्या कर दी. वहां सुनसान इलाके में पूती देवी की चीख भी कोई नहीं सुन सका. हत्या करने के बाद उस की लाश ठिकाने लगाने के लिए उन्होंने उस के 14 टुकड़े किए और अलगअलग जगह गाड़ दिए. 10 अक्तूबर को आवारा कुत्तों द्वारा नरमुंड को खोद कर निकालने के बाद किशनी पुलिस हरकत में आई और 26 अक्तूबर की रात आरोपितों को मुठभेड़ में गिरफ्तार कर लिया.

पूती देवी के मर्डर की परतें खुलने के साथ ही पता चला कि सर्वेश साइकोकिलर है. वह इस से पहले 4 अन्य महिलाओं का भी मर्डर कर चुका था. सर्वेश भोलीभाली, गरीब, बेसहारा, विधवा महिलाओं को सरकारी आवास, पेंशन और रुपए दिलाने का झांसा दे कर अपने जाल में फंसाता था. वह न सिर्फ महिलाओं से पैसे ऐंठता था, बल्कि उन्हें सुनसान जगह पर ले जा कर उन की हत्या कर देता था. उन के आभूषण लेने के बाद शव के टुकड़े कर जमीन में जगहजगह गड्ढा खोद कर गाड़ देता था. 26 महीने बाद मार्च, 2020 में सर्वेश जेल से जमानत पर छूट कर घर आया था. वह कोर्ट में तारीख पर भी नहीं जाता था. इसलिए उस के खिलाफ गैरजमानती वारंट जारी हो गए थे.

सर्वेश ने बीती 3 मई, 2020 को अपनी वृद्ध मां को भी जला कर मार डाला था. इस हत्याकांड पर सौरिख पुलिस ने उस पर 25 हजार रुपए का ईनाम घोषित किया था. इस के चलते सर्वेश फरार हो गया था. इस दौरान वह चोरीछिपे गांव में आता था. फरारी के दौरान भी उसने अपराध करना जारी रखा था. सर्वेश की हरकतों और सनकीपन से परिवार के लोग बहुत परेशान थे. उस पर अनेक आपराधिक मामले दर्ज थे. वहीं वह आए दिन कुछ न कुछ उत्पात करता था. गांव की बात करें तो सर्वेश का गांव में इतना खौफ था कि सूरज ढलने के बाद गांव की महिलाएं अपने घरों से बाहर खेतों की तरफ नहीं जाती थीं.

सर्वेश ने गांव के मकान के अलावा अपने खेत पर एक झोपड़ी बना ली थी. सुनसान जगह पर झोपड़ी बना कर वह उसी में रहता था ताकि आसानी से अपराध को अंजाम दे सके. गांव के लोग न तो इस साइकोकिलर से बात करते थे न ही उसे किसी आयोजन आदि में बुलाते थे. सर्वेश के पास 25 बीघा जमीन थी. उसे गांजा पीने की लत लग गई थी. इसी लत के चलते वह अपनी 15 बीघा जमीन भी बेच चुका था. लगभग 2 महीने पहले अपनी गांजे की लत पूरी करने के लिए उस ने गेहूं बेच दिए थे. इस बात पर उस के दोनों बेटों पुष्पेंद्र और प्रवेश ने उस की पिटाई की थी. उस के इसी व्यवहार से परेशान हो कर पत्नी व बच्चों ने भी उस से रिश्ता तोड़ लिया था.

पुलिस गांव में सर्वेश की तलाश में आने लगी तो पत्नी ममता दोनों बेटों को ले कर अपने मायके आ कर रहने लगी थी. 40 वर्षीय सर्वेश के खिलाफ 3 हत्याओं सहित 11 आपराधिक मुकदमे दर्ज हैं. वह पिछले 19 साल से अपराध की दुनिया में सक्रिय था. जब वह 19 साल का था, तब गुजरात से एक लड़की को ले कर आया था. बाद में उस ने उस की हत्या कर शव के टुकड़े करने के बाद दफना दिए थे. सनकी सर्वेश ने सन 2012 में जिला कन्नौज के सौरिख थाना क्षेत्र में एक महिला की दुष्कर्म के बाद हत्या कर दी थी. पुलिस के अनुसार सर्वेश व मामा संतोष ने कई महिलाओं की हत्या करने की बात भी स्वीकार की. पुलिस ने दोनों हत्यारोपियों सर्वेश व संतोष को न्यायालय में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

जेल भेजने से पहले दोनों आरोपियों ने स्वीकार किया कि पूती देवी के शव के टुकड़े अपने खेत में अलगअलग स्थानों पर दबा दिए थे. जेल भेजने के दूसरे दिन 29 अक्तूबर को एसपी अजय कुमार पांडेय की मौजूदगी में पुलिस ने खेत की जेसीबी से खुदाई कराई तो एक स्थान पर कुछ हड्डियां, सिर के बाल और ब्लाउज का टुकड़ा बरामद हुआ. इस पर फोरैंसिक टीम को भी बुला लिया गया. पुलिस ने बरामद हड्डियों का डीएनए टेस्ट कराने का निर्णय लिया. देवर मिथिलेश के अलावा सर्वेश के दोनों बेटों को भी बुला लिया गया. उन्होंने बरामद ब्लाउज के टुकड़े को पूती देवी का बताया. इस आधार पर पुलिस ने पंचनामा भरा.

साइकोकिलर व उस के मामा को जेल भेजने के बाद पुलिस ने अन्य हड्डियां, ब्लाउज का शेष हिस्सा, आलाकत्ल, बाइक बरामद करने के लिए हत्यारोपी सर्वेश को 3 दिन की पुलिस रिमांड पर दिए जाने की मांग की. पुलिस की इस मांग के समर्थन में अभियोजन के संयुक्त निदेशक डी.के. मिश्रा के निर्देशन में एपीओ शशिकांत ने कोर्ट में अभियोजन का पक्ष प्रस्तुत किया. सुनवाई के बाद 2 नवंबर को न्यायालय द्वारा पुलिस का आवेदन स्वीकार कर लिया गया. आरोपित सर्वेश को 3 नवंबर सुबह 8 बजे से 5 नवंबर की शाम 5 बजे तक पुलिस रिमांड पर देने का आदेश दिया गया.

पुलिस उसे गांव बरुआ नद्दी ले गई. वहां उस ने एक स्थान पर शव के टुकड़े दफनाने की बात कही. सच्चाई जानने के लिए पुलिस ने खुदाई कराई तो वहां पूती देवी की कुछ हड्डियां बरामद हुईं. आरोपी ने अपने घर की छत से हत्या में प्रयुक्त कुल्हाड़ी व गांव मईखेड़ा निवासी अपने बहनोई आदेश के यहां से बाइक बरामद कराई. वह पूती देवी को इसी बाइक पर बिठा कर लाया था. गिरफ्तारी के समय आरोपी सर्वेश ने पूती देवी की गड़ासे से टुकड़े करने की बात पुलिस को बताई थी. जबकि रिमांड के दौरान कुल्हाड़ी से टुकड़े करने की बात बताई. पूती देवी हत्याकांड से जुड़े आलाकत्ल व अन्य सबूत हाथ लगने के बाद पुलिस ने उसी दिन सर्वेश को जेल भेज दिया.

उन की निशानदेही पर पुलिस ने पूती देवी का मोबाइल फोन, कंगन व आधार कार्ड भी बरामद कर लिया. एसपी अजय कुमार पांडेय ने इस सनसनीखेज हत्याकांड का खुलासा करने वाली टीम में शामिल थानाप्रभारी अजीत सिंह, थानाप्रभारी (एलाऊ) सुरेशचंद्र शर्मा, सर्विलांस प्रभारी जोगिंदर सिंह, स्वाट प्रभारी रामनरेश, जैकब फर्नांडिज, धर्मेंद्र मलिक, अमित चौहान, रोबिन, संदीप कुमार, हरेंद्र सिंह, सोनू शर्मा, रामबाबू को 25 हजार रुपए का ईनाम देने की घोषणा की.

इंसान गुनाह कर के उस पर परदा डाल देता है. सर्वेश और संतोष ने भी ऐसा ही किया. उन्होंने सोचा था कि उन का यह गुनाह उन के अन्य गुनाहों की तरह हमेशा के लिए जमीन में दफन हो जाएगा. लेकिन उन की सोच गलत साबित हुई और एक नरमुंड ने उन के सारे गुनाह उजागर कर दिए.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

UP News : एकतरफा प्यार बना मौत की वजह

UP News : इशिका और शिवम का प्यार परवान चढ़ रहा था. इसी बीच इशिका का पड़ोसी भरत इशिका पर डोरे डालने लगा. जब भरत समझाने पर भी नहीं माना तो इशिका ने प्रेमी शिवम के साथ मिल कर उसे ऐसा सबक सिखाया कि…

बाराबंकी जिले के थाना कोतवाली नगर अंतर्गत मोहल्ला नई बस्ती पीरबटान में रहता था 28 वर्षीय भरत वर्मा. वह अपने घर में बिजली से संबंधित उपकरणों इनवर्टर और स्टेबलाइजर बनाने का काम करता था.  उस के पिता पुजारीलाल वर्मा ने एक नामी माचिस कंपनी और एक बीड़ी कंपनी की एजेंसी ले रखी थी, जिस से उन्हें अच्छी कमाई होती थी. संपन्न होने के कारण उन्होंने अपने बच्चों की अच्छी परवरिश की थी. सन 2000 में पुजारीलाल की मृत्यु हो गई. भरत की 3 बहनें और 3 भाई थे. बहनें विवाह के बाद अपनी ससुराल में रह रही थीं. भरत से 2 बडे़ भाई थे राम, लक्ष्मण और एक छोटा भाई था शत्रोहन.

बड़े भाई राम की भी सन 2009 में कैंसर के कारण मृत्यु हो गई थी. भरत को छोड़ कर दोनों भाई विवाहित थे. जवान बेटे राम की मृत्यु के बाद मां अन्नपूर्णा भी बीमार रहने लगीं और सन 2016 में उन का भी देहांत हो गया था. तीनों भाई अपनेअपने कामधंधे में व्यस्त थे. 22 अक्तूबर, 2020 को भरत घर पर था. किसी का फोन आया तो रात साढ़े 8 बजे वह घर से निकल गया. शत्रोहन और लक्ष्मण घर लौटे तो भरत घर पर नहीं था. घर के सदस्यों से पूछा तो पता चला कि किसी का फोन आया था, उस के बाद भरत चला गया था. लक्ष्मण ने भरत का फोन मिलाया तो वह बंद था.

23 अक्तूबर की सुबह यंग स्ट्रीम स्कूल के पीछे नाले के किनारे एक युवक की लाश पड़ी मिली. वहां पहुंचे राहगीरों ने लाश देखी तो किसी ने नगर कोतवाली पुलिस को सूचना दे दी. इंसपेक्टर पंकज सिंह अपनी टीम के साथ तुरंत मौके पर पहुंच गए. मृतक की उम्र लगभग 28-30 वर्ष थी. उस के सिर व गले पर किसी तेज धारदार हथियार से वार किए गए थे. गला आधा कटा हुआ था. इंसपेक्टर सिंह इस से पहले कि लाश की शिनाख्त कराते, मृतक के घरवाले वहां पहुंच गए. वह लाश भरत वर्मा की थी, जिस की शिनाख्त मौके पर पहुंचे उस के छोटे भाई शत्रोहन ने की.

इंसपेक्टर सिंह ने उस से आवश्यक पूछताछ की. शत्रोहन ने किसी पर शक नहीं जताया. उस ने कहा कि भरत शराब पीता था. शराब के नशे में किसी से विवाद हो गया होगा, जिस की वजह से यह घटना हुई होगी. फिलहाल इंसपेक्टर सिंह ने लाश को पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भेज दिया और शत्रोहन को साथ ले कर कोतवाली आ गए. शत्रोहन की तहरीर पर इंसपेक्टर सिंह ने अज्ञात के खिलाफ भादंवि की धारा 302 के तहत मुकदमा दर्ज करा दिया. इस के बाद उन्होंने भरत वर्मा के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई. काल डिटेल्स में घटना से पहले जिस नंबर से काल आई थी, वह नंबर भी था.

उस नंबर की पड़ताल की गई तो नंबर कोतवाली नगर के ही आनंद नगर, लखपेड़ाबाग निवासी शिवम उर्फ शंभूनाथ शुक्ला का निकला. शिवम का पुलिस रिकौर्ड भी था. वह वाहन चोरी के मामले में कई बार जेल जा चुका था. इंसपेक्टर पंकज सिंह ने 24 अक्तूबर, 2020 को शिवम को उस के घर से गिरफ्तार कर लिया. उस से पूछताछ के बाद उस की प्रेमिका इशिका कश्यप उर्फ नैंसी को भी उस के घर से गिरफ्तार कर लिया गया. इशिका भरत के घर के पास ही रहती थी. दोनों से पूछताछ के बाद जो कहानी सामने आई, वह कुछ इस तरह थी—

उत्तर प्रदेश के जिला बाराबंकी के नगर कोतवाली क्षेत्र की नई बस्ती पीरबटान मोहल्ले में प्रेमा कश्यप रहती थीं. वह नगर पालिका में नौकरी करती थीं. उन के 4 बेटे थे अशोक, संतोष, राजेश व नन्हकू और एक बेटी थी पिंकी. सभी विवाहित थे. करीब 25 साल पहले पिंकी का विवाह ब्रजेश कश्यप से हुआ था. दोनों की एक बेटी थी पिंकी. घर में उसे सब नैंसी नाम से बुलाते थे. इशिका के जन्म के बाद पतिपत्नी में कुछ विवाद हुआ. यह विवाद इस नतीजे पर पहुंचा कि पिंकी पति का घर छोड़ कर अपनी मां प्रेमा के घर आ गई.

समय के साथ पिंकी की बेटी इशिका जवान हो गई. यौवन की दहलीज पर कदम रखा तो उस की काया में काफी खूबसूरत बदलाव आ गए, जिन की वजह से वह काफी सुंदर दिखती थी. विवाह योग्य होने पर पिंकी ने उस का विवाह फतेहपुर के गांव फय्याजपुरवा निवासी सुमित कश्यप से कर दिया. लेकिन विवाह के कुछ समय बाद ही इशिका भी अपनी मां की तरह पति को छोड़ कर हमेशा के लिए मायके में आ कर रहने लगी थी. बाराबंकी के मोहल्ला आनंदनगर, लखपेड़ाबाग में शिवम उर्फ शंभूनाथ शुक्ला रहता था. 28 वर्षीय शिवम अविवाहित था. उस के पिता का नाम गंगाचरण शुक्ला था. शिवम के 4 भाई थे, वह सब से बड़ा था.

शिवम आपराधिक प्रवृत्ति का था. उस पर वाहन चोरी के कई मामले दर्ज थे. ऐसे ही एक मामले में वह इसी साल लौकडाउन के बाद जेल से छूट कर आया था. एक दिन शिवम अपने एक परिचित के यहां गया हुआ था, वहीं इशिका भी आई हुई थी. परिचित ने दोनों का परिचय कराया. परिचय हुआ तो दोनों में बातें होने लगीं. दोनों को एकदूसरे से बात कर के काफी अच्छा लगा. बात करने के बाद इशिका फिर मिलने के वादे के साथ वहां से चली गई. इशिका के तीखे नैननक्श और बात करने के अंदाज ने शिवम का चैन छीन लिया था. इशिका से मिलने के बाद उस के दिमाग में हर समय इशिका के ही खयाल उमड़उमड़ कर आ रहे थे.

वह बारबार सिर झटकता, दिमाग से कुछ और सोचने की कोशिश करता, लेकिन सब व्यर्थ ही जाता. इशिका उस के दिलोदिमाग पर इस कदर छा गई थी कि लाख जतन के बाद भी वह उस का खयाल दिमाग से नहीं निकाल पा रहा था. दूसरी ओर इशिका को भी शिवम पसंद आ गया था. वह स्मार्ट तो था ही, साथ ही अपनी बातों से किसी का भी दिल जीत सकता था. उस की इसी खासियत के कारण इशिका भी उसे दिल दे बैठी थी. वह जितनी बार उस के बारे में सोचती, उतनी ही बार चेहरे पर हया के बादल छा जाते और होंठों पर मुसकान सज जाती थी. जल्द ही दोनों ने एक रेस्टोरेंट में मुलाकात की. फिर अनगिनत मुलाकातों का सिलसिला शुरू हो गया. दोनों एकदूसरे के नजदीक आने लगे. मुलाकातों के दौरान दोनों को एकदूसरे को समझने का मौका मिला.

एक दिन मौका देख कर शिवम ने इशिका से अपने प्यार का इजहार करने का फैसला कर लिया. दोनों एकदूसरे की आंखों में झांक कर दिल का हाल जान चुके थे, देर थी तो बस जुबां से इजहार करने की. एक मुलाकात के दौरान शिवम ने इशिका का हाथ अपने हाथ में ले कर कहा, ‘‘इशिका, हम दोनों काफी समय से मिल रहे हैं. एकदूसरे को ठीक से जान गए हैं. हमारी सोच और विचार भी बहुत मिलते हैं. हम दोनों को एकदूसरे का साथ भी बहुत पसंद है. हमारी आंखों में भी एकदूसरे के लिए प्यार दिखता है. चुपकेचुपके प्यार करने से क्या फायदा, जब प्यार करते है तो जुबां पर लाएं भी. आज मैं तुम से प्यार का इजहार करता हूं. आई लव यू… आई लव यू इशिका.’’ कह कर शिवम बडे़ प्यार से इशिका की तरफ देखने लगा.

इशिका उस के इजहार से काफी खुश हुई और बोली, ‘‘आई लव यू टू शिवम. मैं भी तुम्हें बहुत चाहती हूं. लेकिन इजहार करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रही थी. आज तुम ने मुझे बहुत बड़ी खुशी दी है.’’ कह कर इशिका शिवम के सीने से लग गई. शिवम ने भी उसे अपनी बांहों में भर लिया. इस तरह दोनों के बीच प्यार की शुरुआत हो गई. शिवम अकसर इशिका के घर से कुछ दूरी पर आ कर उसे फोन करता और इशिका उस से मिलने चली आती. इशिका के घर के पास ही भरत रहता था. वह इशिका की खूबसूरती पर मर मिटा था. उसे इशिका बेहद पसंद थी. वह उस के आगेपीछे मंडराता रहता था. लेकिन इशिका उसे पसंद नहीं करती थी. फिर भी भरत उस के पीछे पड़ा था.

एक दिन भरत ने रास्ते में रोक कर इशिका को फूल दे कर अपने प्यार का इजहार किया, ‘‘इशिका, मैं तुम से बेइंतहा प्यार करता हूं. तुम मेरा प्यार स्वीकार कर लो, मैं तुम्हें जीवन भर खुश रखूंगा, किसी चीज की कमी नहीं होने दूंगा.’’

‘‘पागल हो गए हो तुम. मैं तुम्हें पसंद नहीं करती, प्यार करना तो दूर की बात है. मेरे रास्ते में भी न आया करो, न आगेपीछे घूमा करो. मैं किसी और को चाहती हूं, उसी के साथ अपनी जिंदगी बिताऊंगी.’’ कह कर इशिका वहां से चल दी. इशिका को जाते देख कर भरत बड़बड़ाया, ‘‘मैं भी देखता हूं कि तुम मुझे ठुकरा कर किसी और को कैसे अपनाती हो.’’

इस के बाद वह इशिका पर नजर रखने लगा. जब भी इशिका शिवम से मिलने घर के पास जाती तो भरत वहां पहुंच जाता और किसी बात पर शिवम से झगड़ने लगता. इशिका ने भरत द्वारा बदतमीजी किए जाने की बात भरत के घरवालों को बताई. इस पर भरत ने दोबारा ऐसी हरकत न करने का वादा लिया. लेकिन भरत इशिका को दूसरे की होते हुए भी नहीं देखना चाहता था. इसलिए वह शिवम से भिड़ जाता था. जब भरत बारबार परेशान करने लगा तो इशिका ने शिवम से कहा कि भरत को रास्ते से हटा दो. भरत उस के साथ पहले भी बदतमीजी कर चुका है. शिवम तो वैसे भी आपराधिक प्रवृत्ति का था. उस ने इशिका की बात सहर्ष मान ली.

22 अक्तूबर, 2020 की रात करीब साढ़े 8 बजे शिवम ने भरत को फोन कर के मिलने के लिए बुलाया. भरत उस से मिलने यंग स्ट्रीम स्कूल के पीछे पहुंच गया. शिवम ने भरत को फिर से समझाया कि वह इशिका पर गलत नजर न रखे, इसी में उस की भलाई है. भरत भी तेवर दिखाते हुए बोला, ‘‘इशिका क्या तेरी बहन लगती है जो तू उस का इतना पक्ष ले रहा है.’’

इस बात पर शिवम को गुस्सा आ गया और उन दोनों के बीच झगड़ा बढ़ गया. तभी शिवम ने पास रखे लोहे के चापड़ से भरत के सिर व गले पर ताबड़तोड़ कई वार कर किए, जिस से भरत की मौत हो गई. इस के बाद शिवम ने लोहे का चापड़ और भरत का मोबाइल फोन कुछ दूरी पर नाले के किनारे फेंक दिया. जिस बजाज सुपर स्कूटर पर बैठ कर वह वहां आया था, उसी से वापस चला गया. पूछताछ के बाद इंसपेक्टर पंकज सिंह ने शिवम की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त लोहे की चापड़ और स्कूटर नंबर यूपी32जे 6395 बरामद कर लिया. गिरफ्तारी के समय शिवम के पास से 315 बोर का एक तमंचा और एक कारतूस भी बरामद हुआ.

आवश्यक कानूनी कागजात तैयार करने के बाद पुलिस ने दोनों को न्यायालय में पेश किया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया गया.