Family Dispute : रोटी बना रही मां को बेटे ने मारी गोली

Family Dispute : कभीकभी औरत अपने व परिवार के विनाश की खुद ही रचयिता बन जाती है. बेबीरानी का पति रेलवे में नौकरी करता था, उस के 2 बेटे भी थे. घर में सब कुछ होते हुए भी बेबी ने रेलवे के गार्ड गजेंद्र से नाजायज संबंध बना लिए. यही संबंध उस के परिवार के लिए इतने घातक साबित हुए कि…

उत्तर प्रदेश के जिला फिरोजाबाद के थाना टूंडला क्षेत्र के मोहल्ला इंदिरा कालोनी में 19 सितंबर, 2018 को दोपहर 2 बजे गोली चलने की आवाज से सनसनी फैल गई. गोली चलने की आवाज रिटायर्ड दरोगा रमेशचंद्र के मकान की ओर से आई थी. इस मकान में ग्राउंड फ्लोर और फर्स्ट फ्लोर पर किराएदार रहते थे. चूंकि गोली की आवाज फर्स्ट फ्लोर से आई थी, इसलिए नीचे रहने वाले किराएदार तुरंत ऊपर पहुंचे तो वहां किराए पर रहने वाली महिला बेबीरानी खून में लथपथ किचन में पड़ी थी. उसे इस हालत में देखते ही उन्होंने शोर मचाया. इस के बाद तो मोहल्ले के कई लोग वहां पहुंच गए.

महिला के सिर से खून बह रहा था. उस के शरीर में कोई हरकत न होने से लोग समझ गए कि उस की मौत हो चुकी है. घटना के समय मृतका का 4 साल का बच्चा आदित्य घर में ही मौजूद था. इसी दौरान किसी ने इस की सूचना पुलिस को दे दी. कुछ ही देर में थानाप्रभारी बी.डी. पांडेय पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. पुलिस ने घटनास्थल का निरीक्षण किया. पता चला कि हत्या के समय महिला रसोई में खाना बना रही थी. खाना बनाते समय कोई उस के सिर में गोली मार कर चला गया. पुलिस को पूछताछ के दौरान पता चला कि 35 साल की बेबीरानी अपने 4 साल के बेटे आदित्य के साथ इस मकान में रहती थी. यह मकान रिटायर्ड दरोगा रमेशचंद्र का है.

इस बीच मकान मालिक रमेशचंद्र भी वहां पहुंच गए. उन्होंने बताया कि डेढ़ महीने पहले ही बेबी ने उन का मकान किराए पर लिया था. इस से पहले यह इसी क्षेत्र में अमित जाट के मकान में किराए पर रहती थी. थानाप्रभारी ने महिला की हत्या की जानकारी अपने उच्चाधिकारियों को दे दी. इस पर एसएसपी सचिंद्र पटेल, एसपी (सिटी) राजेश कुमार सिंह, सीओ संजय वर्मा फोरैंसिक टीम के साथ वहां पहुंच गए. उच्चाधिकारियों ने घटनास्थल का निरीक्षण किया. इस के साथ ही पुलिस ने काररवाई शुरू कर दी.

फोरैंसिक टीम द्वारा कई स्थानों से फिंगरप्रिंट उठाए गए. घटनास्थल का जायजा लेने पहुंचे एसएसपी सचिंद्र पटेल के निर्देश पर थानाप्रभारी ने जरूरी काररवाई कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दिया. अधिकारियों ने 4 साल के मासूम आदित्य से पूछा कि घर में कौन आया था? मम्मी को गोली किस ने मारी? आदित्य ने बताया, ‘‘भैया आए थे. उन्होंने ठांय किया और मर गई मेरी मम्मी.’’

उस बच्चे ने भैया का नाम लिया तो पुलिस पता करने में जुट गई कि यह भैया कौन है. पुलिस ने छानबीन की तो जानकारी मिली कि मृतका बेबीरानी के पहले पति रामवीर के बड़े बेटे गुलशन को आदित्य भैया कहता था. बेबी के पहले पति रामवीर की हत्या 9 साल पहले हो चुकी है. पहले पति की हत्या के बाद बेबी ने अपने प्रेमी विजेंद्र सिंह उर्फ गुड्डू से दूसरी शादी कर ली. दूसरे पति से 4 साल का बेटा आदित्य है. दूसरे पति से भी नहीं बनी बेबी की पुलिस को पूछताछ में पता चला कि शादी के कुछ समय बाद बेबी की दूसरे पति से नहीं पटी और वह उस से अलग हो गया. वर्तमान में वह आगरा में रह रहा है. बेबी पहले पति रामवीर की पेंशन से गुजारा करते हुए बेटे आदित्य के साथ किराए के मकान में रहती थी.

बेबी के पास उस के पहले पति का बेटा गुलशन अकसर आयाजाया करता था. पड़ोसियों ने भी गुलशन के वहां आते रहने की बात कही. बेबी के पहले पति रामवीर से 2 बेटे हैं गुलशन और हिमांशु. पिता की हत्या के बाद बच्चों के दादादादी दोनों को अपने साथ शिकोहाबाद के गांव कटौरा बुजुर्ग ले गए थे. वहीं रह कर दोनों बच्चे बड़े हुए. मृतका के 4 वर्षीय बेटे के बयान के आधार पर पुलिस को यह शक हो गया कि बेबी की हत्या (Family Dispute) में उस के बेटे गुलशन का हाथ हो सकता है. जांच के दौरान यह भी पता चला कि दूसरा पति विजेंद्र सिंह पिछले ढाई साल से अपने बेटे आदित्य को देखने तक नहीं आया. चूंकि पुलिस का शक 20 वर्षीय गुलशन की तरफ था, इसलिए पुलिस सरगर्मी से उस की तलाश में जुट गई.

थानाप्रभारी बी.डी. पांडेय दूसरे दिन पुलिस की एक टीम के साथ गांव कटौरा बुजुर्ग पहुंचे. घर पर उस का बीमार भाई हिमांशु मिला. उस ने बताया कि उसे मां की हत्या के बारे में कोई जानकारी नहीं है. उस ने बताया कि गुलशन घर पर नहीं है. वह दिल्ली में रह कर काम करता है. लिहाजा पुलिस टीम वहां से बैरंग लौट आई. 29 सितंबर को पुलिस ने मुखबिर की सूचना पर आरोपी गुलशन को ऐत्मादपुर तिराहे से बाइक सहित गिरफ्तार कर लिया. गुलशन बाइक से कहीं जा रहा था. गिरफ्तार करने वाली टीम में थानाप्रभारी बी.डी. पांडेय, एसआई मुकेश कुमार, सुरेंद्र कुमार, इब्राहीम खां, धर्मेंद्र सिंह शामिल थे. गुलशन की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त तमंचा पुलिस ने बरामद कर लिया. आरोपी गुलशन ने थाने में मौजूद एसपी (सिटी) राजेश कुमार सिंह द्वारा की गई पूछताछ में जो कहानी बताई, वह इस प्रकार थी—

बेबीरानी मूलरूप से उत्तर प्रदेश के जिला मैनपुरी के थाना भौगांव अंतर्गत गांव मोटा की रहने वाली थी. उस की शादी थाना शिकोहाबाद के गांव कटौरा बुजुर्ग निवासी 30 साल के रामवीर सिंह से हुई थी, जो रेलवे में खलासी पद पर नौकरी करता था. उस की पोस्टिंग टूंडला में हुई थी तो वह वहीं आ कर बस गया. वह रेलवे कालोनी के क्वार्टर में पत्नी बेबीरानी व दोनों बच्चों गुलशन व हिमांशु के साथ रहने लगा. तीखे नैननक्श, सुंदर और शोख अदाओं वाली बेबी के प्रेम संबंध हाथरस के सादाबाद के रहने वाले गजेंद्र उर्फ गुड्डू से हो गए थे, जोकि रेलवे में गार्ड था तथा टूंडला के रैस्टकैंप में ही रहता था. रामवीर के ड्यूटी पर जाने के बाद गुड्डू बेबी से मिलने उस के क्वार्टर पर पहुंच जाता था.

इस की भनक जब रामवीर को लगी तो उस ने बेबी पर निगाह रखनी शुरू कर दी. वह पत्नी पर सख्ती करने लगा, जिस की वजह से बेबी अपने पति से नाखुश रहने लगी. गहरी साजिश रची थी हत्या की  3-4 अक्तूबर, 2009 की आधी रात को जब पूरा परिवार घर में सोया हुआ था, तभी रात लगभग 2 बजे 2 व्यक्ति उस के क्वार्टर पर आए तथा दरवाजा खटखटाया. जैसे ही बेबी ने दरवाजा खोला, उन्होंने सोते हुए रामवीर को दबोच लिया तथा चाकू से उस का गला रेत कर उस की हत्या कर दी. उस समय घर पर उस का बेटा गुलशन 11 साल का था.

बेबी अपने प्रेमी गुड्डू के प्रेमपाश में पूरी तरह बंध चुकी थी. उस से अवैध संबंध थे. अवैध संबंधों में बाधक बनने पर रामवीर भेंट चढ़ गया. इस मामले में तत्कालीन एसएसपी रघुवीर लाल को बेबीरानी ने बताया कि जगदीश नामक व्यक्ति ने दरवाजा खुलवाया था. उस के साथ एक व्यक्ति कोई और था. उन के द्वारा पति को चाकू मारने पर वह चीखीचिल्लाई, लेकिन कोई सहायता के लिए नहीं आया. घटना के बाद पड़ोसी वहां पहुंचे, लेकिन तब तक बदमाश भाग गए. पुलिस जांचपड़ताल कर ही रही थी, तभी पुलिस को मृतक के 11 वर्षीय बेटे गुलशन ने ऐसी जानकारी दी कि उस से न सिर्फ हत्यारे के बारे में जानकारी मिली बल्कि हत्या की वजह भी सामने आ गई.

एसपी रघुवीर लाल के निर्देश पर मृतक के चश्मदीद बेटे गुलशन व दूसरे बेटे हिमांशु को भी पूरी पुलिस सुरक्षा प्रदान करने के साथ उन बच्चों की मां बेबीरानी को हिरासत में ले लिया गया था. घटना की रिपोर्ट मृतक के भाई श्यामवीर सिंह ने अपनी भाभी बेबीरानी और उस के प्रेमी गजेंद्र उर्फ गुड्डू व शाहिद के विरुद्ध दर्ज कराई थी. ‘मेरे पिता को हत्यारों ने जिस तरह से मारा है, उन्हें उन की सजा मैं ही दूंगा कोई और नहीं.’ यह बात गुलशन ने तत्कालीन एसपी से कही तो वह भी सन्न रह गए. उन्होंने जब उस से उस के पिता की हत्या के बारे में पूछा तो उस की आंखों में खून उतर आया था.

घटना के चश्मदीद गुलशन ने तब पूरी घटना को बताते हुए कहा था कि बस उसे अपनी रिवौल्वर दे दो, वह अपनी मां को अभी मार देगा. उस ने सिर्फ हत्यारों की पहचान ही नहीं कराई बल्कि अपनी मां की पोल भी खोल दी थी. उस ने बताया, ‘‘बदमाशों ने उस के पिता को पलंग से खींच कर जमीन पर गिराया तभी वह जाग गया था. इस दौरान उस की मां उसे खींच कर दूसरे कमरे में ले जाने लगी थी. पिता की चीख पर जब उस ने पलट कर देखा तो उस ने पिता के गले में चाकू घुसा पाया.’’ इस दौरान उस ने मां के रोने की बात को नाटक बताया था.

गुलशन के सामने हुई थी पिता की हत्या इस छोटी सी उम्र में अपनी आंखों के सामने हुई पिता की हत्या से उस समय मासूम गुलशन के चेहरे पर बदले की भावना के तीखे तेवर स्पष्ट दिखाई दे रहे थे. पुलिस कस्टडी में बैठी बेबीरानी को तब उस के प्रेम संबंधों के चलते न ही प्रेमी मिल पाया था और न ही पति रहा और बच्चे भी उस से दूर चले गए थे. पिता की हत्या के बाद बिखरे रिश्ते अंत तक नहीं जुड़ पाए. गुलशन पिता की हत्या का चश्मदीद गवाह था. बेबी जेल से जल्दी छूट आई थी. वह पति की पेंशन से अपना खर्च चला रही थी. गुलशन ने रिश्तों की बर्फ पिघलाने की हरसंभव कोशिश की. उस ने मां को दादादादी के गांव चल कर रहने की बात कही, लेकिन उस ने साफ इनकार कर दिया.

बेबी व गुड्डू के कोर्ट से बरी होने के बाद दोनों ने शादी कर ली थी. शादी के बाद बेबी के गुड्डू से एक बेटा आदित्य हुआ जो इस समय 4 साल का है. शादी के बाद बेबी की अपने दूसरे पति गजेंद्र से भी नहीं पटी. वक्त गुजरने के साथसाथ बेबी और गजेंद्र अलग हो गए. गुलशन ने बताया कि वह कई दिन से मां के पास लगातार जा रहा था. छोटा भाई बीमार था, उस का इलाज कराने की बात पर मां ने कहा कि मेरे पास आ कर रहो. गुलशन ने मना कर दिया. उस का कहना था कि जो मेरे बाप को मरवा सकती है, वह मुझे भी मरवा सकती थी. गुलशन को पिता की जगह आश्रित कोटे से रेलवे में नौकरी मिलने का मामला भी तय हुआ था.

मां उस से इस कदर नफरत करने लगी थी कि जब उस की नौकरी लगने का मौका आया तो उस ने सहमतिपत्र पर दस्तखत करने से इनकार कर दिया. वह उस से बेगाने जैसा (Family Dispute) व्यवहार कर रही थी. मां के सहमतिपत्र पर हस्ताक्षर जरूरी थे. भाई का इलाज व नौकरी को मना करने पर गुलशन का खून खौल उठा. गुलशन बना मां का हत्यारा 19 सितंबर को दोपहर 2 बजे वह मां के पास पहुंचा. उस समय वह रसोई में रोटी बना रही थी. आटे की लोई बेल रही थी. गुलशन ने तमंचे से उस के सिर के पीछे गोली मार दी. गोली लगते ही बेबी कटे पेड़ की तरह रसोई में ही गिर गई. उस के हाथ से आटे की लोई छूट कर पास ही गिर गई. घटना को अंजाम दे कर गुलशन तेजी से घर से भाग गया. भागते समय उस के 4 वर्षीय सौतेले भाई आदित्य ने उसे देख लिया था.

मृतका बेबी का 4 साल का बेटा आदित्य अनाथ हो गया. मां की हत्या के बाद अब उसे कहां भेजा जाएगा, कोई नहीं बता रहा है. क्योंकि पिछले ढाई साल से उस का पिता गजेंद्र उर्फ गुड्डू एक बार भी उसे देखने नहीं आया. फिलहाल पुलिस ने उसे पड़ोस में रहने वाली एक महिला को सौंप दिया है. यह अजीब संयोग था कि मां का कातिल बना बेटा गुलशन अपने पिता की हत्या में मां के खिलाफ गवाह था. वहीं अब दूसरा बेटा आदित्य मां की हत्या के मामले में अपने बड़े भाई के खिलाफ गवाह है. अपने प्रेमी की मोहब्बत पाने के लिए उस ने अपनी ही मांग का सिंदूर उजाड़ डाला. जेल से छूटने के बाद प्रेमी के साथ घर बसाया, मगर सब कुछ उजड़ गया.

पहले पति के बेटे की गोली का शिकार बनी मृतका बेबी का शव पोस्टमार्टम कक्ष में रखा रहा. टूंडला में ही मृतका की बहन रेनू रहती है, लेकिन मायका व ससुराल पक्ष से, यहां तक कि बेबीरानी से शादी रचाने वाला गजेंद्र सिंह उर्फ गुड्डू भी सामने नहीं आया. बेबी को अपने किए की सजा उसे मौत के रूप में मिली. अपनों के होते हुए भी पोस्टमार्टम के बाद पुलिस ने ही लावारिस लाशों की तरह उस का अंतिम संस्कार किया.

पुलिस ने हत्यारोपी गुलशन को न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

Rajasthan Crime : संपत्ति के लिए प्रेमी से कराई पति की हत्या

Rajasthan Crime : जब किसी ब्याहता के पैर बहक जाते हैं तो उसे वापस अपने रास्ते पर लाना बड़ा मुश्किल होता है. बैंक मैनेजर रोशनलाल की पत्नी निर्मला के साधनसंपन्न होने के बावजूद पड़ोसी उमेश शर्मा से नाजायज संबंध हो गए. इस का नतीजा इतना दुखद निकला कि…

इसी साल 19 सितंबर की बात है. रोशनलाल यादव को बैंक में काम करतेकरते काफी देर हो गई थी. रोशनलाल जयपुर में गवर्नमेंट हौस्टल चौराहे के पास स्थित सिटी बैंक की शाखा में मैनेजर थे. वैसे तो उन्हें आमतौर पर रोजाना ही शाम के 7-8 बज जाते थे. इस की वजह यह थी कि निजी बैंकों में सरकारी बैंकों की तरह सुबह 10 से शाम 5 बजे तक की ड्यूटी नहीं होती है. हालांकि निजी बैंकों में भी ड्यूटी आवर्स होते हैं, लेकिन सारी जिम्मेदारियां मैनेजर की होती हैं. इसीलिए उन्हें बैंक से निकलने में रात के साढ़े 8 बज गए थे.

दिन भर कामकाज करने और उच्चाधिकारियों के ईमेल, वाट्सऐप के जवाब देतेदेते रोशनलाल भी थक गए थे. काम की व्यस्तता में वह शाम की चाय भी नहीं पी सके थे. जोरों की भूख भी लग रही थी. वे जल्द घर पहुंच कर फ्रैश होने के बाद भोजन करना चाह रहे थे. रोशनलाल ने बैंक के बाहर खड़ी अपनी कार निकाली और घर की ओर चल दिए. उन के साथ बैंक का एक कर्मचारी उन की कार में पानीपेच चौराहे तक साथ आया, वह पानीपेच चौराहे पर उतर गया. रोशनलाल जयपुर के करधनी इलाके में गणेश नगर विस्तार कालोनी में पत्नी और बच्चों के साथ रहते थे.

कोई पुराना गीत गुनगुनाते हुए रोशनलाल अपनी कार मध्यम रफ्तार से चला रहे थे. रास्ते में उन्हें सिगरेट पीने की तलब लगी तो अपने घर से करीब एक किलोमीटर पहले रास्ते में कार रोक दी. कार से उतर कर वह दक्षिणमुखी हनुमान मंदिर के पास एक थड़ी पर सिगरेट लेने चले गए. सिगरेट ले कर वह अपनी कार में आ कर बैठे ही थे कि सामने से अचानक एक स्कूटी पर सवार 2 युवक तेजी से उन की कार के सामने आ गए. स्कूटी से उतर कर एक युवक उन के पास आया और नजदीक से 2 फायर कर दिए. दोनों गोलियां रोशनलाल के सीने में लगीं यह रात करीब 9 बजे की घटना है. गोली चलते ही उस इलाके में अफरातफरी मच गई. यह इलाका रोशनलाल के घर के पास था, इसलिए कुछ लोग उन्हें जानतेपहचानते थे.

आसपास के लोग रोशनलाल को उन की ही कार से नजदीकी निजी अस्पताल ले गए. निजी अस्पताल के डाक्टरों ने प्राथमिक उपचार के बाद उन की गंभीर हालत को देखते हुए उन्हें सवाई मानसिंह अस्पताल ले जाने को कहा. रोशनलाल को निजी अस्पताल ले जाने वाले लोग जब उन्हें सवाई मानसिंह अस्पताल ले जा रहे थे तो उन्होंने रास्ते में करधनी पुलिस थाने पर रुक कर पुलिस को इस घटना के बारे में बता दिया. थाने में ही खड़ी सरकारी एंबुलेंस से एक पुलिसकर्मी के साथ रोशनलाल को सवाई मानसिंह अस्पताल भेजा गया. साथ ही उन के परिजनों को भी सूचना दे दी गई.

सूचना मिलने पर रोशनलाल की पत्नी निर्मला यादव और कुछ सगेसंबंधी सीधे अस्पताल पहुंच गए. अस्पताल में डाक्टरों ने रोशनलाल की जिंदगी बचाने का हरसंभव प्रयास किया, लेकिन रात करीब सवा 11 बजे उन की मृत्यु हो गई. बैंक मैनेजर रोशनलाल पर हुई फायरिंग की जानकारी मिलने पर पुलिस ने घटनास्थल पर जा कर जांचपड़ताल की. पुलिस ने फायरिंग करने वाले बदमाशों का पता लगाने के लिए घटनास्थल के आसपास लगे सीसीटीवी कैमरों के फुटेज खंगाले, लेकिन पुलिस को रात भर की भागदौड़ के बाद भी बदमाशों का कुछ पता नहीं चला. केवल इतना ही पता चल पाया कि बदमाश पहले से ही घात लगा कर बैठे थे. वे लोग रोशनलाल का बैंक से लौटने का इंतजार कर रहे थे.

दूसरे दिन रोशनलाल के बड़े भाई कोटपुतली निवासी रत्तीराम यादव की रिपोर्ट पर थाना करधनी में रोशनलाल की हत्या का मामला आईपीसी की धारा 302 व 34 में दर्ज कर लिया गया. पोस्टमार्टम कराने के बाद पुलिस ने रोशनलाल का शव उन के घर वालों को सौंप दिया. मुकदमा दर्ज होते ही पुलिस जांच में जुट गई. पुलिस ने मृतक की पत्नी निर्मला सहित परिवार के लोगों और बैंककर्मियों से पूछताछ कर के पता लगाने का प्रयास किया कि क्या उन की किसी से दुश्मनी थी. पुलिस ने बैंक के उस कर्मचारी से भी पूछताछ की, जो रोशनलाल के साथ पानीपेच चौराहे तक आया था.

उस ने बताया कि रास्ते में चिंकारा कैंटीन के पास रोशनलाल के मोबाइल पर एक फोन आया था, जिस पर वे कुछ देर तक बात करते रहे थे. फोन किस का था, यह उसे पता नहीं. वह पूरा दिन करीब सौ लोगों से पूछताछ, मौकामुआयना और कैमरों की फुटेज की जांच में निकल गया. रात तक हत्यारों के बारे में कुछ पता नहीं चला. रोशनलाल मूलरूप से जयपुर जिले के कोटपुतली के रहने वाले थे. उन की मौत की सूचना मिलने पर उन के गांव से भी कुछ लोग जयपुर आ गए थे. पुलिस ने उन से भी पूछताछ कर के रोशनलाल के हत्यारों का पता लगाने की कोशिश की, लेकिन इस से कोई खास मदद नहीं मिल सकी.

पुलिस की जांच में 2-3 बातें मुख्यरूप से सामने आईं. एक तो यह कि रोशनलाल बैंक में कामर्शियल वाहनों के लोन मंजूर करते थे. बैंक से लोन देने के अलावा वह निजी रूप से भी ब्याज पर लोगों को पैसा उधार देते थे. रोशनलाल ने कुछ लोगों को मोटी रकम भी उधार दे रखी थी. एक महत्त्वपूर्ण बात यह भी पता चली कि पत्नी निर्मला से उन का अकसर झगड़ा होता रहता था. निर्मला ने करीब 4 महीने पहले मारपीट की शिकायत पुलिस को दी थी. पुलिस इन तीनों कोणों से जांच करने में जुट गई.

इस के लिए जयपुर के अतिरिक्त पुलिस आयुक्त (प्रथम) नितिन दीप ब्लग्गन के निर्देश पर पुलिस उपायुक्त (पश्चिम) अशोक कुमार गुप्ता ने अतिरिक्त पुलिस उपायुक्त (प्रथम) रतन सिंह और झोटवाड़ा के सहायक पुलिस आयुक्त आस मोहम्मद के सुपरविजन में करधनी थानाप्रभारी मानवेंद्र सिंह चौहान, मुरलीपुरा, झोटवाड़ा व कालवाड़ के थानाप्रभारियों और इंसपेक्टर जहीर अब्बास के नेतृत्व में अलगअलग स्पैशल टीमें गठित कीं. इस बीच पुलिस ने रोशनलाल के मकान के आसपास के लोगों से पूछताछ की तो लोगों ने उमेश शर्मा पर शक करते हुए उस के मोबाइल नंबर भी दे दिए. उमेश पहले रोशनलाल के पड़ोस में ही रहता था. पारिवारिक बातों को ले कर रोशनलाल, उन की पत्नी निर्मला और उमेश के बीच कई बार झगड़े होते थे.

बाद में उमेश वहां से अपना खुद का मकान खाली कर के जयपुर (Rajasthan Crime) में ही मानसरोवर कालोनी में रहने लगा था. उस ने गणेश नगर विस्तार के अपने मकान के 2 कमरे किराए पर दे दिए थे. अपने मकान की देखभाल के बहाने उमेश आए दिन इस कालोनी में आता रहता था. पुलिस ने उमेश के मोबाइल नंबरों की लोकेशन खंगाली तो उत्तराखंड की आई. पुलिस ने उत्तराखंड पुलिस की मदद से 21 सितंबर को उमेश और उस के 3 साथियों को अल्मोड़ा से पकड़ लिया. मृतक की पत्नी भी थी शामिल पुलिस इन सब को जयपुर ले आई. उमेश ने पूछताछ में पुलिस को बताया कि उस ने बैंक मैनेजर रोशनलाल की हत्या अपने भाई की मार्फत उत्तर प्रदेश के शूटरों को सुपारी दे कर करवाई थी.

उमेश ठेकेदारी करता था. इसी काम के बहाने वह रोशनलाल की हत्या से करीब 10 दिन पहले उत्तराखंड चला गया था. उत्तराखंड से ही वह मोबाइल के जरिए रोशनलाल की गतिविधियों पर नजर रखे हुए था. उस ने यह काम शातिराना तरीके से इसलिए किया था, ताकि उस की लोकेशन जयपुर में न आए. उमेश ने पुलिस को बताया कि रोशनलाल की हत्या की साजिश में उन की पत्नी निर्मला भी शामिल थी. इस पर पुलिस ने निर्मला को थाने बुला कर पूछताछ की. निर्मला और उमेश से अलगअलग और आमनेसामने बैठा कर की गई पूछताछ में रोशनलाल की हत्या का राज खुल कर सामने आ गया.

इस से यह बात भी साफ हो गई कि निर्मला ने ही उमेश के साथ मिल कर अपने बैंक मैनेजर पति की हत्या करवाई थी. निर्मला को प्रेमी के साथ पति की संपत्ति भी चाहिए थी, इसलिए उस ने रोशनलाल को तलाक देने के बजाय उन की हत्या करवा दी. यह रोशनलाल का दुर्भाग्य था कि निर्मला की बेवफाई का पता होने के बावजूद वह अपनी जान नहीं बचा सके. उन्हें यह बात अच्छी तरह पता थी कि उन की पत्नी एक दिन उस की हत्या करा देगी. फिर भी वह इतने दरियादिल थे कि अपनी पत्नी की उस के प्रेमी से शादी कराने को भी तैयार हो गए थे. लेकिन निर्मला का प्रेमी उमेश समय पर अदालत नहीं पहुंचा, जिस से दोनों की शादी नहीं हो सकी.

निर्मला यादव और उमेश शर्मा से पूछताछ के आधार पर पुलिस के सामने जो कहानी आई, वह इस तरह थी—

रोशनलाल यादव जयपुर जिले के कोटपुतली के पवाना गांव के रहने वाले थे. सन 2004 में रोशन का विवाह निर्मला से हो गया. वह उन से उम्र में 6 साल छोटी थी. जब निर्मला की शादी हुई, तब वह 11वीं कक्षा में पढ़ती थी. उन्होंने शादी के बाद निर्मला को एमए तक पढ़ाया. साथ ही फैशन डिजाइनिंग का कोर्स भी कराया. नौकरी के दौरान रोशनलाल की जहां भी पोस्टिंग हुई, उन्होंने निर्मला को अपने साथ रखा. बैंक में बड़े पद पर होने के कारण रोशन की तनख्वाह भी अच्छी थी. घर में कभी किसी चीज की कमी नहीं रही.

8 साल पहले सन 2010 में जयपुर (Rajasthan Crime) में पोस्टिंग होने पर रोशनलाल ने करधनी में एक प्लौट ले कर अपना मकान बनवा लिया. उसी दौरान उत्तर प्रदेश के फिरोजाबाद जिले के नई आबादी रैना गांव के रहने वाले उमेश शर्मा ने भी रोशनलाल के पड़ोस में मकान बनवाया. दोनों ने एक ही दिन अपनेअपने मकान में गृह प्रवेश किया. रोशनलाल और उमेश के बीच बन गए पारिवारिक संबंध उमेश शर्मा 2003 के आसपास जयपुर आया था. उस समय जयपुर में प्रौपर्टी बाजार में बूम आया हुआ था. उमेश ने प्रौपर्टी में रकम लगा कर काफी पैसा कमाया. वह अमीरों की तरह जिंदगी जीता था. फिलहाल उस के पास करधनी इलाके में 2 मकान और अजमेर रोड पर बिचून में 15 बीघा जमीन थी. कई प्रौपर्टीज में उस ने मोटा पैसा लगा रखा था. अब वह ठेकेदारी का काम भी करने लगा था.

पड़ोसी होने के नाते उमेश व रोशनलाल के परिवार के बीच अच्छे संबंध थे. एकदूसरे के घर आनाजाना लगा रहता था. दोनों परिवार एकदूसरे के सुखदुख में भी काम आते थे. सन 2016 में उमेश और रोशनलाल सहित कालोनी के कई परिवार शिमला घूमने गए. शिमला में उमेश की निर्मला से नजदीकियां बढ़ गईं. शिमला से जयपुर लौटने के कुछ दिन बाद ही निर्मला के भाई की मौत हो गई. उस समय सांत्वना देने के लिए उमेश का पूरा परिवार कई बार निर्मला के घर गया. जनवरी 2017 में उमेश और निर्मला के बीच मोबाइल पर एसएमएस और वाट्सऐप के माध्यम से चैटिंग होने लगी.

कभीकभी दोनों मोबाइल पर भी बातें कर लेते थे. बाद में दोनों के बीच शारीरिक संबंध बन गए. पहले दोनों छिप कर मिलते थे. बाद में जब उन के संबंधों की चर्चा पासपड़ोस में होने लगी तो रोशनलाल को इस बात का पता चल गया. उन्होंने निर्मला को काफी भलाबुरा कहा और समझाया भी. इस के बाद दोनों परिवारों में झगड़े होने लगे. निर्मला से अवैध संबंधों को ले कर कई बार उमेश और रोशनलाल के बीच मारपीट की नौबत भी आ गई थी. बाद में नवंबर 2017 में उमेश शर्मा गणेश नगर विस्तार करधनी का अपना मकान खाली कर के मानसरोवर कालोनी में रजतपथ पर किराए के मकान में रहने लगा. उमेश ने रोशनलाल के पड़ोस का अपना मकान किराए पर दे दिया था.

उमेश भले ही रोशनलाल के मकान से 20 किलोमीटर दूर रहने लगा था, लेकिन निर्मला से उस की बातचीत होती रहती थी. इतना जरूर हुआ था कि अब निर्मला और उमेश का मिलनाजुलना कम हो गया था. फिर भी जैसे ही मौका मिलता, तब दोनों एकदूसरे से मिल लेते थे. निर्मला करती थी पति को निपटाने की बातनिर्मला जब भी उमेश से मिलती, तो उस से अपने पति रोशनलाल को रास्ते से हटाने की बात कहती थी, ताकि दोनों बिना किसी डर के एकदूसरे के साथ रह सकें. उमेश तो पहले से ही निर्मला के प्यार में अंधा हो चुका था. निर्मला के बारबार कहने पर उस ने इसी साल अप्रैल में आपराधिक पृष्ठभूमि वाले अपने सगे भाई राहुल शर्मा को रोशन की हत्या की जिम्मेदारी सौंप दी. राहुल ने रोशन की हत्या करवाने के लिए अपने भाई से 4 लाख रुपए लिए.

राहुल के खिलाफ उत्तर प्रदेश में मारपीट, लूट और वाहन चोरी के कई मामले दर्ज थे. राहुल ने जयपुर के जगतपुरा में टीएस टेक्सटाइल्स नाम से बैडशीट बनाने की फैक्ट्री लगा रखी थी, जिस में उसे काफी नुकसान हुआ था. वह कर्ज में डूबा हुआ था. राहुल भी पहले गणेश नगर विस्तार में ही रहता था. बाद में वह जगतपुरा में रहने लगा था.  राहुल ने रोशनलाल की हत्या के लिए उत्तर प्रदेश के फिरोजाबाद के शूटर शिवकांत उर्फ लालू, पप्पू कश्यप और विष्णु कश्यप नाम के बदमाशों से संपर्क किया. संपर्क होने के बाद राहुल ने इन बदमाशों को जयपुर बुलाया. बदमाश हथियार ले कर जयपुर पहुंचे. राहुल ने 29 मई से 1 जून तक तीनों बदमाशों को जयपुर के एक होटल में ठहराया.

राहुल ने रोशल की हत्या के लिए एडवांस के तौर पर शूटर शिवकांत को 30 हजार रुपए, विष्णु को 15 हजार और पप्पू कश्यप को 10 हजार रुपए दिए थे. राहुल ने भाई उमेश से लिए 4 लाख रुपए में से बाकी पैसे अपना कर्ज चुकाने में खर्च कर दिए थे. इस दौरान राहुल ने इन बदमाशों से रोशनलाल की उन के मकान, सिटी बैंक और कोटपुतली के पास स्थित गांव के आसपास की रैकी करवाई. उमेश शर्मा इन शूटरों से फिरोजाबाद और जयपुर में तो मिला ही, रोशनलाल की रैकी में कई बार उन के साथ भी रहा.

रैकी के दौरान निर्मला अपने पति रोशन के आनेजाने की पूरी सूचना उमेश को देती रही. कई बार कोशिशों के बावजूद उत्तर प्रदेश से आए शूटरों को रोशनलाल की हत्या का मौका नहीं मिला. बाद में तीनों शूटर जयपुर से वापस चले गए. 2 सप्ताह बाद ही राहुल ने फिरोजाबाद से तीनों शूटरों को फिर जयपुर बुलाया. उन्हें 15 और 16 जून को गोपालपुरा के एक होटल में ठहराया गया. इस बार भी राहुल और उमेश ने रोशनलाल की रैकी करवाई, लेकिन शूटर अपने मकसद में कामयाब नहीं हो सके. इस बीच उमेश शर्मा से मुलाकात होने और कई जगह रैकी में साथ रहने के दौरान फिरोजाबाद से आए शूटरों को पता चला कि राहुल तो केवल मोहरा है.

रोशनलाल की जान तो उमेश शर्मा लेना चाहता है और उमेश काफी मोटी आसामी है, इसलिए शूटरों ने राहुल से रोशनलाल को मारने के एवज में अपनी डिमांड बढ़ा कर 15 लाख रुपए कर दी. राहुल उन दिनों कर्ज में डूबा हुआ था. रोशनलाल की हत्या की सुपारी के नाम पर वह अपने भाई उमेश से 4 लाख रुपए पहले ही ले चुका था. दूसरी ओर एकएक दिन गिन रही निर्मला लगातार उमेश पर रोशन को मरवाने के लिए दबाव बना रही थी. इस पर उमेश ने अपने भाई राहुल पर रोशनलाल की जल्द से जल्द हत्या करवाने या 4 लाख रुपए वापस लौटाने का दबाव बनाया.

भाई पर दबाव बना कर उमेश उत्तराखंड चला गया. उसे उम्मीद थी कि जल्दी ही रोशनलाल का खेल खत्म हो जाएगा. इसलिए अपने बचाव के लिए वह अपने साथी महेंद्र प्रताप उर्फ टीटू के साथ अल्मोड़ा में कार्यरत अपने साले आकाश रावत के पास चला गया. महेंद्र प्रताप उर्फ टीटू को रोशनलाल की हत्या की साजिश और पूरे घटनाक्रम की जानकारी दी. वह उमेश के गांव के पास का ही रहने वाला था और दोनों भाइयों उमेश व राहुल का खास दोस्त था. उमेश ने महेंद्र प्रताप को काफी पैसा भी दे रखा था. निर्मला ने प्रेमी को दिया था उलाहना 18 सितंबर को निर्मला ने मोबाइल पर उमेश से बात कर के अभी तक काम न होने का उलाहना दिया.

इस पर उमेश ने अपने भाई राहुल को रोशन की हत्या या पैसे वापस करने का अल्टीमेटम दे दिया. उन दिनों राहुल का भांजा फरीदाबाद निवासी मनीष उर्फ सनी जयपुर आया हुआ था. आखिरकार राहुल ने अपने भांजे के साथ मिल कर रोशनलाल की हत्या करने का फैसला किया. राहुल ने मनीष के साथ मिल कर 19 सितंबर की रात करीब 9 बजे फायरिंग कर के रोशनलाल की हत्या कर दी. रोशन को गोलियां मारने के तुरंत बाद राहुल ने उमेश को फोन कर के बता दिया कि रोशन को मार दिया. रोशनलाल की मौत की सूचना मिलने के बाद उमेश के साले आकाश रावत ने राहुल के बैंक खाते में 20 हजार रुपए ट्रांसफर कर दिए.

पुलिस ने रोशनलाल की हत्या के मामले में उस की पत्नी निर्मला यादव और उस के प्रेमी उमेश शर्मा के अलावा जयपुर के करधनी इलाके में गणेश नगर विस्तार के रहने वाले महेंद्र प्रताप ओझा उर्फ टीटू, उमेश के साले आकाश रावत और फिरोजाबाद के शूटर शिवकांत उर्फ लालू को गिरफ्तार कर लिया. इन में आकाश रावत मूलत: आगरा के सिकंदरा थानांतर्गत शास्त्रीपुरम का रहने वाला था. वह आजकल उत्तराखंड में जिला ऊधमसिंह नगर के रुद्रपुर में रह रहा था. पुलिस ने वारदात में इस्तेमाल की गई राहुल की स्कूटी उस के घर से बरामद कर ली.

पूछताछ में यह बात भी सामने आई कि रोशनलाल ने लोगों को करीब 50 लाख रुपए ब्याज पर दे रखे थे. निर्मला इस रकम के साथसाथ रोशनलाल की सारी संपत्तियां लेना चाहती थी. इसलिए वह रोशन से तलाक लेने के बजाय उस की हत्या करवाना चाहती थी. उमेश ने भी रोशनलाल से मोटी रकम ब्याज पर ले रखी थी. उमेश चाहता था कि रोशनलाल मारा जाए तो पैसे नहीं चुकाने पड़ेंगे. इसलिए उस ने रोशन की मौत का सौदा किया. वह निर्मला के सामने यह दिखावा करता रहा कि वह यह सब उस के प्रेम की वजह से कर रहा है.

पत्नी के प्रेमी से शादी कराने को राजी हो गए थे रोशनलाल उमेश और निर्मला के अवैध संबंधों के बारे में रोशनलाल को सब से पहले उमेश की पत्नी ने ही बताया था. इस के दूसरे ही दिन रोशन ने घर में नया मोबाइल चार्जिंग के लिए लगा देखा तो निर्मला से पूछा. उस ने बताया कि यह मोबाइल उमेश ने दिया है. रोशन ने पत्नी से मोबाइल का लौक खुलवाया. मोबाइल में निर्मला और उमेश के बीच हुई वाट्सऐप चैटिंग देख कर रोशनलाल अपनी 2 बेटियों और 3 साल के बेटे के भविष्य और अपनी प्रतिष्ठा के कारण खून का घूंट पी कर रह गए.

निर्मला का उमेश के प्रति लगातार बढ़ा झुकाव देख कर रोशनलाल अपने बच्चों का भविष्य बचाने के लिए उस की शादी उमेश से कराने को भी तैयार हो गए थे. पतिपत्नी कोर्ट में पहुंच भी गए, लेकिन वहां पर उमेश नहीं आया. इस के कुछ दिन बाद तक रोशन के घर में शांति रही. निर्मला उमेश से नहीं मिली लेकिन कुछ दिन बाद ही वह फिर उस से मिलने लगी. एक दिन रोशन ने दोनों को देख लिया तो निर्मला ने कहा कि उमेश ने उस के साथ जबरदस्ती की है. तब रोशन ने उस से कहा कि अगर जबरदस्ती की है तो उमेश के खिलाफ बलात्कार का केस दर्ज कराने चलो. निर्मला थाने पहुंच भी गई, लेकिन उमेश के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराने से पहले ही वह बदल गई. वह आगे से उमेश से न मिलने का वादा कर के रोशनलाल को मना कर बिना रिपोर्ट दर्ज कराए घर वापस लौट आई.

इस के कुछ दिन बाद करीब एक साल पहले निर्मला अपने ढाईतीन साल के बेटे को गोद में ले कर प्रेमी उमेश के साथ भागने के लिए घर से निकल गई. निवारू रोड पर वह उमेश से मिलने के बाद अपने रिश्तेदार के घर चली गई. बाद में रोशन उसे समझाबुझा कर घर ले आए. निर्मला प्रेमी के प्यार में इतनी अंधी हो गई थी कि वह अपने प्रेमी और उस के रिश्तेदारों के जरिए पति को धमकी भरे फोन करवाती, फिर खुद ही पड़ोसियों से जा कर कहती कि पति को कोई जान से मारने की धमकी दे रहा है. हत्या से करीब एक सप्ताह पहले निर्मला और रोशनलाल के बीच झगड़ा हुआ. मामला पुलिस तक पहुंच गया.

रोशन ने मिल रही धमकियों के बारे में पुलिस को बताया. लेकिन पुलिस ने मामले को गंभीरता से न ले कर दोनों को समझा कर घर भेज दिया. पुलिस ने यह जानने की भी कोशिश नहीं की कि धमकियां कहां से मिल रही हैं. अगर पुलिस जांच करती तो शायद रोशनलाल आज जीवित होते. बाद में पुलिस ने इस मामले में उत्तर प्रदेश के शूटर पप्पू कश्यप को भी गिरफ्तार कर लिया. पप्पू ने पुलिस को बताया कि शिवकांत के साथ उस ने और विष्णु कश्यप ने जयपुर व कोटपुतली में रोशनलाल की रैकी की थी.

उन्हें लगा कि अगर रोशन की हत्या के बाद पुलिस उन तक पहुंच गई तो वे फंस जाएंगे. इसलिए पप्पू और विष्णु कश्यप उत्तर प्रदेश में पहले से दर्ज आपराधिक मामलों में जारी वारंट की वजह से खुद ही गिरफ्तार हो गए और जमानत नहीं करवाई. कथा लिखे जाने तक इस मामले में राहुल शर्मा और उस के भांजे मनीष उर्फ सनी के अलावा एक शूटर फरार था. पुलिस इन की तलाश में जुटी थी. पुलिस ने गिरफ्तार सभी 6 आरोपियों को 30 सितंबर को अदालत में पेश कर के जेल भिजवा दिया.

यह विडंबना रही कि निर्मला को अपने बैंक मैनेजर पति के खून से हाथ रंगने के बाद भी प्रेमी नहीं मिल सका. अभी 6वीं और 7वीं कक्षा में पढ़ने वाली निर्मला की 2 बेटियां बड़ी होने के बाद भी अपनी मां को कभी माफ नहीं कर सकेंगी. और तो और निर्मला के 3 साल के अबोध बेटे से भी मां का आंचल छिन गया है.

Maharashtra Crime : बेटे को मरवाने के लिए मां ने बेचा मंगलसूत्र

Maharashtra Crime : बेटा कितना भी राक्षस बन जाए, मां के साथ दुराचार नहीं कर सकता. लेकिन रामचरण द्विवेदी ऐसा दुराचारी बन गया था कि उस ने उस मां का भी शिकार कर लिया, जिस ने उसे जन्म दिया था. मां इस अनर्थ को सह नहीं पाई और उस ने…

सुबह के यही कोई साढ़े 9 बजे का समय था. मुंबई (Maharashtra Crime) महानगर से सटे जनपद पालघर के उपनगर वसई जानकी पाड़ा की पहाडि़यों के बीच की खाई के पास काफी लोगों की भीड़ जमा थी. लोगों के जमा होने की वजह यह थी कि उस गहरी खाई में एक युवक की लाश पड़ी थी. मामला हत्या का लग रहा था, इसलिए किसी व्यक्ति ने इस की सूचना पालघर पुलिस कंट्रोल रूम को दे दी. यह क्षेत्र थाना वालिव के अंतर्गत आता था, इसलिए कंट्रोल रूम ने युवक की लाश की सूचना थाना वालिव के अलावा वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को भी दे दी.

सूचना मिलते ही थानाप्रभारी संजय हजारे इंसपेक्टर डी.वी. वांदेकर और एसआई विनायक माने को साथ ले कर घटनास्थल पर पहुंच गए. घटनास्थल थाने से करीब 2 किलोमीटर की दूरी पर था. पुलिस 10 मिनट में मौके पर पहुंच गई. पुलिस ने खाई में उतर कर युवक की लाश पर सरसरी नजर डाली. उस की उम्र करीब 22 साल थी. वह जमीन पर औंधे मुंह पड़ा हुआ था, शरीर पर किसी धारदार हथियार के कई घाव थे. उस का गला भी काटा हुआ था.

थानाप्रभारी संजय हजारे टीम के साथ लाश का निरीक्षण कर ही रहे थे कि पालघर डिवीजन के एसपी मंजूनाथ सिंगे, एसडीपीओ दत्ता तोटेवाड़ फोरेंसिक टीम के साथ वहां पहुंच गए. फोरेंसिक टीम का काम खत्म होने के बाद पुलिस अधिकारियों ने मृतक के शव का निरीक्षण किया और थानाप्रभारी को दिशानिर्देश दे कर लौट गए. थानाप्रभारी संजय हजारे ने शव को खाई से बाहर निकलवाया और वहां भीड़ से उस की शिनाख्त करने को कहा. लेकिन भीड़ में ऐसा कोई नहीं था जो मृतक को पहचान पाता. इस से यह बात साफ हो गई कि मृतक उस जगह या उस इलाके का रहने वाला नहीं था.

प्राथमिक काररवाई के बाद पुलिस ने शव पोस्टमार्टम के लिए पालघर जिला अस्पताल भेज दिया. यह 21 अगस्त, 2017 की बात है. थाने लौटने के बाद थानाप्रभारी संजय हजारे ने इस केस के बारे में अपने सहायकों के साथ विचारविमर्श किया और जांच की जिम्मेदारी इंसपेक्टर डी.वी. वांदेकर को सौंप दी. डी.वी. वांदेकर ने मामले की तह तक जाने के लिए एक पुलिस टीम बनाई, जिस में उन्होंने एसआई विनायक माने और कुछ सिपाहियों को टीम में शामिल किया. पुलिस के सामने सब से बड़ी समस्या लाश की शिनाख्त की थी, क्योंकि शिनाख्त के बाद ही आगे की कडि़यां जुड़ सकती थीं.

शिनाख्त के लिए पुलिस ने वायरलैस से जिले के सभी पुलिस थानों को मृतक का हुलिया भेज कर यह पता लगाने की कोशिश की कि किसी पुलिस थाने में उस हुलिए के युवक की गुमशुदगी तो नहीं दर्ज है. पुलिस टीम को पूरी आशा थी कि किसी न किसी पुलिस थाने में मृतक के लापता होने की शिकायत जरूर दर्ज होगी. लेकिन पुलिस टीम की यह उम्मीद विफल हो गई. किसी भी थाने में मृतक के हुलिए से मिलतेजुलते किसी युवक की गुमशुदगी की सूचना दर्ज नहीं थी. लेकिन इस से पुलिस टीम निराश नहीं हुई. टीम ने लाश के फोटो वाले पैंफ्लेट छपवा कर जिले के सभी रेलवे स्टेशनों, बस अड्डों और सार्वजनिक स्थानों पर लगवा दिए.

इस के अलावा पुलिस ने सोशल मीडिया और प्रिंट मीडिया का सहारा ले कर मृतक की शिनाख्त की अपील की. लेकिन इस से भी कामयाबी नहीं मिली. जैसेजैसे समय गुजर रहा था, वैसेवैसे वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों का दबाव बढ़ता जा रहा था. तमाम कोशिशों के बावजूद पुलिस के हाथ खाली थे. 15 दिसंबर को पुलिस को अचानक एक गुप्त सूचना मिली. इस सूचना पर काम किया गया तो सफलता मिलती गई. पुलिस को सूचना मिली कि जिस युवक की हत्या हुई थी, उस युवक का नाम रामचरण द्विवेदी है. वह उसी दिन से गायब है, जिस दिन खाई में अज्ञात लाश मिली थी. सूचना में यह भी बताया गया कि रामचरण उपनगर भायंदर के गणेश देवल नगर में रहने वाले रामदास द्विवेदी का बेटा है.

सूचना मिलने के बाद पुलिस ने रामदास और उस के परिवार वालों को थाने बुला लिया. उन्हें जब लाश के फोटो और कपड़े दिखाए गए तो वे फोटो और कपड़ों को देखते ही दहाड़ मार कर रोने लगे. रामदास ने बताया कि यह उस का बेटा रामचरण है. पुलिस ने रामदास द्विवेदी से उस के बेटे के बारे में पूछताछ की तो उस ने बस इतना ही बताया कि रामचरण का चालचलन ठीक नहीं था. वह आवारा किस्म का युवक था. ड्रग्स के अलावा वह शराब और शबाब का भी आदी था. औरत उस की खास कमजोरी थी, जिस की वजह से इलाके के कई लोगों से उस की दुश्मनी हो गई थी.

प्रारंभिक पूछताछ करने के बाद पुलिस ने रामचरण द्विवेदी और उन के परिवार को घर भेज दिया. शव की शिनाख्त हो जाने के बाद पुलिस टीम का सिरदर्द आधा हो गया था. अब उन्हें यकीन हो गया था कि हत्या की गुत्थी जल्दी ही सुलझ जाएगी. पुलिस टीम ने मुखबिरों के जरिए जब मृतक रामचरण का इतिहास खंगाला तो कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आए. इस के बाद पुलिस गणेश देवल नगर पहुंची. पुलिस ने वहां के लोगों से पूछताछ की तो संदेह की सुई रामचरण द्विवेदी के घर वालों की तरफ ही घूम गई.

पुलिस ने रामचरण के घर वालों को फिर से थाने में बुला कर पूछताछ की तो वे पुलिस के सवालों के बीच उलझ कर रह गए. उन के पास इस बात का कोई जवाब नहीं था कि उन्होंने रामचरण के गायब होने की शिकायत स्थानीय पुलिस थाने में क्यों नहीं दर्ज कराई. पुलिस समझ गई कि दाल में जरूर ही कुछ काला है. लिहाजा जब उन से सख्ती से पूछताछ की गई तो रामदास ने सच उगल दिया. उस ने बताया कि उस के सामने ऐसे हालात बन गए थे कि उसे अपने ही बेटे की हत्या करने के लिए मजबूर होना पड़ा. चूंकि उस से विस्तृत पूछताछ करनी थी, इसलिए पुलिस ने उसे वसई कोर्ट के मैट्रोपोलिटन मजिस्टै्रट के यहां पेश कर के एक सप्ताह के रिमांड पर ले लिया.

रिमांड के दौरान रामदास और उन की पत्नी रजनी ने अपने ही बेटे की हत्या करने की जो कहानी बताई वह पारिवारिक रिश्तों को तारतार कर देने वाली निकली. रामदास द्विवेदी मुंबई के उपनगर भायंदर (वेस्ट) में अपने परिवार के साथ रहता था. परिवार में उस की पत्नी रजनी के अलावा 2 बेटे थे. बड़े बेटे का नाम सीताराम और छोटे का नाम रामचरण था. बड़े बेटे की शादी हो चुकी थी. छोटा बेटा रामचरण भी शादी के लायक हो गया था. लेकिन उस का आचरण ठीक नहीं होने के कारण उस के लिए कोई रिश्ता नहीं आ रहा था.

रामदास द्विवेदी मूलरूप से उत्तर प्रदेश के जिला जौनपुर के मछली शहर का रहने वाला था. उस के पिता रामचंद्र द्विवेदी कथावाचक ब्राह्मण थे. गांव, समाज और बिरादरी में उन की काफी इज्जत थी. लेकिन उन के घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी. पूजापाठ में इतनी कमाई नहीं थी कि घर का खर्च सुचारू रूप से चल सके. घर की परेशानियों की वजह से रामदास द्विवेदी रोजीरोटी की तलाश में मुंबई चला आया था. मुंबई के भायंदर इलाके में उस के गांव के कई लोग रहते थे. उन के सहयोग से रामदास को कोई अच्छी नौकरी तो नहीं मिली, उसी इलाके की एक इमारत में चौकीदारी की नौकरी जरूर मिल गई. हालांकि चौकीदारी में इतनी कमाई नहीं थी. लेकिन रामदास मेहनती इंसान था.

वह लोगों की कारों की धुलाई और साफसफाई कर के इतना कमा लेता था कि घरपरिवार का काम चल सके. धीरेधीरे पैसे जमा कर के उस ने अपना एक झोपड़ा खरीद लिया था. अपने खर्चे के बाद जो पैसा बचता, उसे वह गांव भेज देता था. इस से परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक होने लगी थी. इसी दौरान बनारस की रहने वाली लक्ष्मी से उस की शादी हो गई. शादी के बाद रामदास ने कुछ दिनों तक अपनी पत्नी को मांबाप की सेवा में छोड़ा. उस के बाद वह पत्नी को ले कर (Maharashtra Crime) मुंबई चला आया. समय के साथसाथ लक्ष्मी सीताराम और रामचरण 2 बच्चों की मां बन गई थी. रामचरण चूंकि छोटा था, इसलिए सभी उसे बहुत प्यार करते थे. उस समय उन्हें यह नहीं पता था कि यही लाड़प्यार एक दिन उन के पूरे परिवार को समाज में मुंह दिखाने लायक नहीं छोड़ेगा.

परिवार के लाड़प्यार ने रामचरण को इस कदर बिगाड़ दिया कि बाद में उसे संभालना मुश्किल हो गया. स्कूल में उस का मन पढ़ाईलिखाई में कम मटरगश्ती में ज्यादा लगता था. घर की आर्थिक स्थिति कमजोर होने के कारण वह अपने बड़े बेटे सीताराम को अधिक पढ़ालिखा नहीं पाए थे. लेकिन रामचरण से उन्हें काफी उम्मीदें थीं. मगर घर वालों का यह सपना सपना ही रह गया. कहने के लिए तो वह स्कूल जाता था लेकिन पढ़ाई के नाम पर वह आवारा बच्चों के साथ घूमता था जो अपने ही घरों से चोरी कर के लाए पैसों का गलत इस्तेमाल करते थे. छोटी सी उम्र में ही रामचरण ड्रग्स, चरस, शराब और शबाब के चक्कर में पड़ गया.

शुरू में रामदास द्विवेदी और घर वालों को रामचरण की इस कमजोरी के बारे में पता नहीं चला और जब पता चला तब तक काफी देर हो चुकी थी. रामचरण नशे के उस मुकाम पर पहुंच गया था, जहां से लौटना मुश्किल था. वह जिस बस्ती और इलाके में रहता था, वहां के लोगों के लिए वह सिर दर्द बन गया था. मारपीट, राहजनी और अय्याशी के शौक में वह पूरी तरह जकड़ चुका था. मोहल्ले की कोई भी लड़की या औरत रास्ते में उस के सामने आने तक से डरती थी. अपनी बस्ती और इलाके की कई औरतों को वह अपनी हवस का शिकार बना चुका था. अपनी धौंस और डर दिखा कर रामचरण कई औरतों का यौनशोषण कर चुका था.

इज्जत और समाज में बदनामी होने के डर से कोई उस के खिलाफ पुलिस में नहीं जाता था. इस से उस का हौसला इतना बढ़ गया था कि ड्रग्स के नशे में उस ने अपने घर को भी नहीं छोड़ा. पहले उस ने अपनी भाभी के साथ रेप किया और इस के बाद अपनी मां की इज्जत भी तारतार कर डाली थी. रामचरण इंसान से जानवर बन गया था. मां ने जिस बेटे को जन्म दिया, वही बेटा एक दिन उस के साथ ही रेप कर बैठेगा, यह बात लक्ष्मी ने सपने में भी नहीं सोची थी. एक जानवर में और रामचरण में अब कोई फर्क नहीं रह गया था. कहावत है कि जब कोई आदमी जानवर बन जाए और फिर आदमखोर हो जाए तो उसे मार देना ही एक रास्ता होता है.

यही सोच कर लक्ष्मी ने रामचरण के लिए एक खतरनाक फैसला ले लिया. बेटे के कृत्य की वजह से वह बड़ी ही शर्मिंदगी महसूस कर रही थी. एक तरह से वह घुटघुट कर जी रही थी. अपने खतरनाक फैसले में अपने पति रामदास द्विवेदी, बेटे सीताराम द्विवेदी और बहू को भी शामिल कर लिया. यह काम उन में से किसी के भी बस का नहीं था, लिहाजा वह किराए के हत्यारे को तलाशने लगे. इस तलाश में लक्ष्मी और उस के पति को अपने ही इलाके में रहने वाले अपराधी प्रवृत्ति के केशव मिस्त्री की याद आई. केशव मिस्त्री वसई के जानकीपाड़ा में रहता था और राजगीर का काम करता था. कभीकभार वह लक्ष्मी और उन के परिवार से मिलनेजुलने आया करता था.

इस मामले में लक्ष्मी और उस के पति, बेटे और बहू ने केशव मिस्त्री से मिल कर जब सारी बातें बता कर अपनी योजना बताई तो वह रामचरण को मारने के लिए तैयार हो गया. उस ने इस काम के लिए एक लाख रुपए की मांग की. लक्ष्मी इतना पैसा देने की स्थिति में नहीं थी. उस ने अपनी मजबूरी बताई तो मामला 50 हजार रुपए में तय हो गया. लक्ष्मी के पास 50 हजार रुपए भी नहीं थे उस के पास शादी का मंगलसूत्र था. बेटे को मरवाने के लिए उस ने अपना मंगलसूत्र तक बेच कर केशव मिस्त्री को पैसे दे दिए. पैसे मिलने के बाद केशव मिस्त्री ने इस काम को अंजाम देने के लिए अपने दोस्त राकेश यादव को तैयार कर लिया.

योजना के अनुसार 20 अगस्त, 2017 को केशव मिस्त्री और राकेश यादव लक्ष्मी के घर आए और रामचरण द्विवेदी को शराब और शबाब की पार्टी के बहाने अपने साथ लाए टैंपो में बैठा कर जानकीपाड़ा की खाई के पास ले गए और उसे टैंपो से उतार कर उस के गले और शरीर पर गंड़ासे से वार कर के अधमरा कर दिया. फिर उन्होंने उस की गरदन काट कर उसे खाई में फेंक दिया. पुलिस ने गिरफ्तार रामदास द्विवेदी, उस की पत्नी लक्ष्मी द्विवेदी, बेटे सीताराम द्विवेदी और बहू के बयान दर्ज किए. तत्पश्चात उसे न्यायालय में पेश कर के जेल भेज दिया गया. जब पुलिस टीम केशव मिस्त्री और राकेश यादव के घर पहुंची तो पता चला कि वे दोनों घटना को अंजाम देने के बाद अपने गांव उत्तर प्रदेश चले गए.

यह जानकारी मिलते ही थानाप्रभारी संजय हजारे ने एसआई विनायक माने को एक पुलिस टीम के साथ उत्तर प्रदेश के लिए रवाना कर दिया, जहां उन्होंने केशव मिस्त्री और राकेश यादव को गिरफ्तार कर लिया और मुंबई ले आए थे. पुलिस ने दोनों आरोपियों से भी विस्तार से पूछताछ के बाद उन्हें कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. लक्ष्मी परिवर्तित नाम है.

 

Crime Stories : कोठी नंबर 387 में हुआ रहस्यमयी कत्ल

Crime Stories : पुष्पा कोहली ने अपनी बेटी किरन की हत्या इसलिए कराई क्योंकि उस का आचरण सही नहीं था और उस के कर्मों से परिवार की बदनामी हो रही थी. लेकिन यह बात इसलिए गले नहीं उतरती क्योंकि परिवार के किसी अन्य सदस्य को इस बात की भनक तक नहीं थी. सैक्टर-46 फरीदाबाद के चौकीप्रभारी सोहनपाल अपनी टीम के साथ क्षेत्र की रात्रि गश्त पर निकलने की तैयारी कर रहे थे कि तभी पुलिस कंट्रोल रूम से फोन आ गया. उन्हें बताया गया कि सेक्टर-45 की कोठी

नंबर 387 में एक कत्ल हो गया है. पुलिस चौकी से घटनास्थल महज 2 किलोमीटर दूर था. सोहनपाल अपनी टीम के साथ 10 मिनट में उस जगह पहुंच गए, जहां वारदात हुई थी. वह पौश एरिया था और अकसर सुनसान रहता था. इस वजह से पड़ोसियों को भी इस घटना का पता नहीं चल पाया था. रात को लगभग 3 बजे पुलिस को आया देख आसपास की कोठियों से लोग बाहर निकल आए. कोठी नंबर 387 में मौजूद एक व्यक्ति ने कोठी का मेनगेट खोल दिया. पता चला वह उसी कोठी में रहने वाला किराएदार राजेश सिंह था.

चौकीप्रभारी सोहनपाल ने अंदर जा कर देखा तो बेड पर एक लड़की मरी पड़ी थी, जिस की हत्या गला रेत कर की गई थी. बिस्तर खून से पूरी तरह सना हुआ था. जिस कमरे में हत्या हुई थी, उस में रखी अलमारी और उस का लौकर खुला हुआ था. अलमारी का सारा सामान बिखरा पड़ा था. प्रथमदृष्टया मामला लूटपाट का लग रहा था. ऐसा लगता था जैसे हत्यारे लूटपाट के इरादे से घर में घुसे हों और विरोध करने पर लड़की की हत्या कर के कीमती सामान व नकदी ले कर फरार हो गए हों. पुलिस को सूचना कोठी की मालकिन पुष्पा कोहली ने दी थी. उस ने बताया कि मृतका उस की बेटी किरन है. पुष्पा के अनुसार उस का पति सुरेंद्र कोहली और 12 वर्षीय बेटा नितिन कोहली बीते दिन सुबह ही उस की अस्वस्थ मां को देखने बठिंडा, पंजाब गए थे. वारदात के वक्त पुष्पा कोहली और किरन ही घर में थीं.

पौश इलाके में हुई इस सनसनीखेज (Crime Stories) वारदात की सूचना पा कर पुलिस के उच्चाधिकारी भी घटनास्थल पर पहुंच गए थे. पूछताछ में पुष्पा कोहली ने बताया कि बीती रात करीब पौने 10 बजे जब वह रसोई में खाना बना रही थी, तभी मेनगेट खोल कर बुरके वाली 2 औरतें अंदर आईं. किरन उन दोनों को अंदर ले आई. कुछ देर बाद जब उस ने किरन से उन दोनों के बारे में पूछा तो उस ने बताया कि वे उस की परिचित हैं और उसे उन के साथ कुछ हिसाबकिताब करना है. उस वक्त बुरके वाली दोनों औरतें सोफे पर बैठी थीं. वे दोनों चूंकि अपने चेहरों पर नकाब डाले हुए थीं इसलिए वह उन के चेहरे नहीं देख सकी थी. उन्हें बैठा छोड़ कर वह अपने कमरे में चली गई थी.

पुष्पा के अनुसार कुछ देर बाद किरन एक गिलास में पानी ले कर उस के कमरे में आई. उस ने चूंकि थोड़ी देर पहले ही खाना खाया था इसलिए पानी पी कर गिलास मेज पर रख दिया. उस के बाद या तो वह बेहोश हो गई थी या फिर सो गई थी. पुष्पा के अनुसार देर रात करीब 2 बजे जब वह उठी तो उस के दोनों हाथ और दोनों पैर दुपट्टे से बंधे हुए थे और मुंह में कपड़ा ठुंसा हुआ था. उस ने उठने की कोशिश की तो वह बिस्तर से नीचे गिर गई. कपड़ा ठुंसा होने की वजह से उस के मुंह से आवाज भी नहीं निकल रही थी.

पुष्पा ने आगे बताया कि जैसेतैसे उस ने बेड पर पड़ा फोन उठा कर पहले किरन का नंबर मिलाया लेकिन उस ने फोन नहीं उठाया. फिर उस ने अपनी नौकरानी सपना के पति अजीत का नंबर मिलाया. नंबर तो लग गया लेकिन मुंह में कपड़ा ठुंसा होने की वजह से बात नहीं हो सकी. इस पर वह घिसटते हुए दरवाजे के पास पहुंची और दोनों पैरों से जोरजोर से कमरे का दरवाजा पीटा. दरवाजा पीटने की आवाज सुन कर किराएदार राजेश सिंह नीचे आया. वह बाहर से दरवाजा खोल कर अंदर आया और उस के हाथपैर खोल दिए. तब तक नौकरानी सपना और उस का पति भी आ गए थे.

पुष्पा कोहली ने आगे बताया कि उस के यह पूछने पर कि किरन कहां है, राजेश सिंह ने जवाब दिया कि वह अपने कमरे में सो रही होगी. लेकिन जब उस के कमरे में जा कर देखा गया तो किरन मरी पड़ी थी. किसी ने उस का गला काट कर उस की हत्या कर दी थी. उस का सारा बिस्तर खून में डूबा हुआ था और अलमारी का सामान इधरउधर फैला पड़ा था. यह देख कर उस ने इस घटना की सूचना पुलिस को दे दी थी. उपरोक्त बातें बतातेबताते पुष्पा कोहली फूटफूट कर रोने लगी. पुलिस ने उस से नंबर ले कर उस के पति सुरेंद्र कोहली को फोन कर के इस हादसे की सूचना दे दी और जल्दी से जल्दी फरीदाबाद पहुंचने को कहा. इस के साथ ही पुलिस ने पुष्पा की शिकायत पर अज्ञात हत्यारों के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 394 के तहत केस दर्ज कर लिया.

सुबह को एसीपी पूनम दयाल ने मामले की गंभीरता को देखते हुए इस की जांच इलाका पुलिस की जगह सीआईए एनआईटी इंचार्ज इंसपेक्टर विमल कुमार, सबइंसपेक्टर नरेंद्र कुमार और अश्विनी कुमार को सौंप दी ताकि पौश इलाके में हुई इस हत्या के मामले से जल्दी से जल्दी परदा उठ सके.इंसपेक्टर विमल कुमार ने अपनी टीम के साथ मौकाएवारदात का मुआयना किया. उन्होंने पुलिस फोटोग्राफर, फिंगरप्रिंट एक्सपर्ट और फोरेंसिक टीम को भी मौके पर बुला लिया था ताकि जरूरी सुबूत जुटाए जा सकें. प्राथमिक काररवाई के बाद मृतका किरन की लाश को पोस्टमार्टम के लिए अस्पताल भेज दिया गया. पोस्टमार्टम से पता चला कि उस की मृत्यु श्वांस नली कट जाने के कारण हुई थी.

पूछताछ और पुलिस छानबीन में पता चला कि मृतका किरन के पिता सुरेंद्र कोहली काफी समय पहले पंजाब से आ कर फरीदाबाद में बस गए थे. उन का फरीदाबाद सैक्टर-28 में बिल्डिंग मैटीरियल का कारोबार था. सुरेंद्र कोहली का विवाह 1989 में बठिंडा, पंजाब की पुष्पा कोहली से हुआ था. विवाह के बाद कोहली के घर में किरन का जन्म हुआ जिसे घर में सब प्यार से गुडि़या कहते थे. किरन के जन्म के 11 साल बाद कोहली परिवार में बेटा जन्मा जिस का नाम नितिन रखा गया. 12 वर्षीय नितिन कोहली फिलहाल फरीदाबाद के एक नामी स्कूल में कक्षा-7 में पढ़ रहा था. पुष्पा कोहली घरेलू महिला थी और घर पर रह कर घरपरिवार व बच्चों की जिम्मेदारी संभालती थी.

किरन जवान हो चुकी थी. उस पर चूंकि कभी भी पारिवारिक पाबंदियां नहीं रही थीं इसलिए वह शुरू से ही फैशनपरस्त और आजादखयाल लड़की थी. मोबाइल, फिल्में, टीवी और इंटरनेट की दुनिया ने उसे और भी आधुनिक और स्वच्छंद बना दिया था. वह जो करना चाहती थी, कर गुजरती थी बिना इस बात की परवाह किए कि उस के परिवार वालों की नजर में वह अच्छा है या नहीं. इसी सब के चलते किरन ने अपने परिवार की मरजी के खिलाफ 22 नवंबर, 2010 को एक विजातीय युवक रंजीत त्रिपाठी से प्रेमविवाह कर लिया था. रंजीत गांव लकड़पुर जिला फरीदाबाद का रहने वाला था. शादी के बाद किरन घर छोड़ कर रंजीत त्रिपाठी के साथ दिल्ली स्थित सरिता विहार के निकटवर्ती इलाके मदनपुर खादर में किराए के मकान में रहने लगी थी.

परिवार से अलग रह कर जब जिंदगी की कड़वी सच्चाइयों से सामना हुआ तो किरन और रंजीत दोनों ने अलगअलग प्राइवेट फर्मों में नौकरी कर ली. किरन ने जिस फर्म में नौकरी की, वह रियल एस्टेट का कारोबार करती थी. उस के मालिक का नाम महफूज आलम था. महफूज आलम का औफिस कालिंदीकुंज में था. कालिंदीकुंज मदनपुर खादर के पास ही है इसलिए किरन को औफिस आनेजाने में कोई परेशानी नहीं होती थी. महफूज आलम के साथ काम करतेकरते किरन उस के लिए काफी महत्वपूर्ण बन गई थी.

नतीजतन महफूज आलम उसे अच्छी तनख्वाह के अलावा सौदे से मिलने वाली रकम में मोटा कमीशन भी देने लगा. इसी के चलते किरन ने अच्छाखासा बैंक बैलेंस इकट्ठा कर लिया था. दूसरी ओर उस के पति रंजीत को नौकरी से इतना पैसा भी नहीं मिलता था कि घर का खर्च ठीक से चल सके.जब उम्मीद से ज्यादा पैसा मिलने लगता है तो कई कमजोर लोगों के पैर बहकने लगते हैं. किरन के साथ भी ऐसा ही हुआ. आय का स्रोत बढ़ा तो उस ने शराब पी कर देर से घर आना शुरू कर दिया. रंजीत ने यह बात किरन की मां पुष्पा कोहली को बताई. मां ने अपने स्तर पर किरन को समझाने का प्रयास भी किया लेकिन इस से किरन की दिनचर्या और व्यवहार में कोई बदलाव नहीं आया.

नतीजतन पतिपत्नी के बीच मतभेद बढ़ने शुरू हो गए. इस बात को ले कर रंजीत और किरन के बीच कई बार गरमागरम बहस भी हुई. पति से जब ज्यादा मतभेद बढ़ गए तो किरन ने उस के खिलाफ दिल्ली की साकेत कोर्ट में तलाक का मुकदमा डाल दिया. इस के बाद वह 27 जून, 2013 को रंजीत का साथ छोड़ कर फरीदाबाद में मां के पास आ कर रहने लगी. घर लौट कर भी किरन में कोई बदलाव नहीं आया. अब उस ने नाइटक्लब में शराब पी कर देर रात घर आना शुरू कर दिया था. जवाब मांगने पर वह गालीगलौज और मारपीट तक पर उतर आती थी. किरन का हाईप्रोफाइल लाइफस्टाइल कोहली परिवार के लिए बदनामी का कारण बन रहा था.

एक तो शादी के बाद भी बेटी घर में बैठी थी, दूसरे वह शराब पी कर देर रात घर लौटती थी. मां पुष्पा कोहली इस बात को ले कर तनावग्रस्त रहने लगी थी. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि इस समस्या का कैसे समाधान करे. यह सब चल ही रहा था कि किरन की हत्या हो गई थी. बहरहाल, इंसपेक्टर विमल कुमार ने अपनी टीम के साथ बेहद बारीकी से घटनास्थल का मुआयना किया तो पाया कि पुष्पा कोहली द्वारा लिखाई गई रिपोर्ट और मौकाएवारदात पर पाए गए सुबूतों में काफी झोल है. इसी को ध्यान में रख कर उन्होंने सुरेंद्र कोहली के किराएदार राजेश सिंह, नौकरानी सपना व उस के पति अजीत के अलगअलग बयान दर्ज किए.

जब उन बयानों को क्रौस चैक किया गया तो विमल कुमार को कई बातों पर शक हुआ. मसलन किरन ने पुष्पा को गिलास में पानी दिया था जिसे पी कर वह बेहोश हो गई थी और शायद बाद में सो गई थी. यह बात समझ के बाहर थी कि किरन ने बिना मांगे मां को पानी क्यों दिया और उस ने क्यों पीया? इंसपेक्टर विमल कुमार ने गिलास के बचे पानी को सूंघ कर देखा तो वह सामान्य पानी था और उस में किसी तरह की कोई गंध नहीं थी. फिर भी उन्होंने उस पानी और गिलास को जांच के लिए प्रयोगशाला भिजवा दिया. दूसरे पुष्पा कोहली से जब दोनों बुरकेवालियों के डीलडौल, शक्ल और आवाज के बारे में सवाल किए गए तो वह कोई संतोषप्रद जवाब नहीं दे सकी. संदेह हुआ तो पुलिस टीम ने पुष्पा कोहली का मोबाइल फोन सर्विलांस पर ले लिया और उस के फोन की पिछले 6 महीने की काल डिटेल्स निकलवाई.

इस बीच पुष्पा कोहली के पति सुरेंद्र कोहली, बेटा नितिन और कुछ अन्य रिश्तेदार भी आ गए थे. माहौल कुछ ऐसा था कि पुलिस पुष्पा से कड़ाई से पूछताछ भी नहीं कर सकती थी. अगले दिन पोस्टमार्टम के बाद किरन का शव उस के परिवार को सौंप दिया गया. उन लोगों ने उसी दिन उस का अंतिम संस्कार कर दिया. अंत्येष्टि में शामिल होने के लिए किरन की नानी भी आई थी. इंसपेक्टर विमल कुमार ने नानी से भी पूछताछ की. पता चला कि वह पूरी तरह से स्वस्थ थी. जबकि पुष्पा ने अपनी इसी मां को अस्वस्थ बता कर पति सुरेंद्र कोहली और बेटे नितिन को 250 किलोमीटर दूर बठिंडा भेजा था.

पुष्पा से टुकड़ों में हुई पूछताछ में महफूज आलम का नाम कई बार आया था. बुरकेवाली औरतों का जिक्र आने से पुलिस का शक महफूज आलम पर ही गया. पुलिस ने महफूज आलम से पूछताछ की लेकिन उस ने इस मामले में अपनी कोई भी भूमिका होने से इनकार किया. अलबत्ता यह जरूर माना कि किरन उस के यहां काम कर चुकी थी और वह उसे मोटा वेतन देता था. महफूज हालांकि किरन की हत्या में अपनी कोई भी भूमिका होने से इनकार कर रहा था. फिर भी हत्या का मामला होने की वजह से पुलिस ने उसे पूछताछ के लिए थाने में ही बिठाए रखा बाद में उसे छोड़ दिया गया.

किरन की हत्या की सूचना पा कर उस का पति रंजीत त्रिपाठी भी फरीदाबाद आ गया था. वह फिलहाल मुंबई में नौकरी कर रहा था. पुलिस ने उस से भी पूछताछ की लेकिन हत्या में उस की किसी भी तरह की भूमिका न मिलने पर अगले आदेश तक उसे घर छोड़ कर न जाने की कड़ी हिदायत दे कर जाने दिया गया. पुष्पा कोहली के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स पुलिस के पास आ गई थी. उस का गहराई से अध्ययन करने पर पुलिस को उस में एक ऐसा नंबर मिला जिस पर पुष्पा दिन के समय हफ्ते में 2-3 बार फोन करती थी. यह नंबर पंजाब का था.

पुष्पा से इस नंबर के बारे में पूछा गया तो उस ने बताया कि वह नंबर उस के  एक मुंहबोले चाचा का है, जो पंजाब में रहता है. उस से वह पारिवारिक बातें करती थी. घटना वाली रात पुष्पा कोहली के मोबाइल पर आनेजाने वाली कुल 3 काल्स पाई गई थीं. पहली काल रात 8 और 9 बजे के बीच आई थी जोकि मिस्ड काल थी. इसी नंबर पर पुष्पा कोहली के मोबाइल से 10 बजे के आसपास एक मिस्ड काल दी गई थी. तीसरी और आखिरी काल पुष्पा कोहली की नौकरानी सपना के मोबाइल से आई थी, जिसे रिसीव किया गया था. पुलिस ने उस नंबर पर जिस से मिस्ड काल आई थी और जिस पर पुष्पा ने मिस्ड काल दी थी, फोन किया तो वह नंबर लगातार बंद मिला.

जब उस नंबर की जांच की गई तो पता चला कि उस नंबर की सिम पंजाब से नकली आईडी और फरजी पते पर खरीदी गई थी. लेकिन आश्चर्य की बात यह थी कि घटना वाली रात उस नंबर की लोकेशन सेक्टर-45 और उस के आसपास थी. ऐसा लग रहा था जैसे उस नंबर का इस्तेमाल किसी खास मकसद से ही किया गया था. इस से शक की सुई पूरी तरह से पुष्पा कोहली पर आ कर ठहर गई. अपने शक को और पुख्ता करने के लिए जब पुलिस ने पुष्पा की नौकरानी सपना से उस के द्वारा की गई फोन काल के बारे में पूछा तो इस हत्याकांड की तसवीर काफी हद तक साफ हो गई. लेकिन कुछ कारणों से पुलिस अब भी पुष्पा कोहली से पुलिसिया तरीके से पूछताछ नहीं कर सकती थी क्योंकि वह शिकायतकर्ता होने के साथसाथ महिला भी थी.

अंतत: इंसपेक्टर विमल कुमार ने अपने उच्चाधिकारियों से विचारविमर्श कर के 3 जनवरी 2014 को पुष्पा को हिरासत में ले लिया. जब सपना द्वारा दिए गए बयान को आधार बना कर उसे घेरा जाने लगा तो पहले तो वह पुलिस को बरगलाती रही लेकिन अंत में टूट गई. आखिर उस ने स्वीकार कर लिया कि उस ने ही सुपारी दे कर (Crime Stories) अपनी बेटी किरन की हत्या कराई थी. दरअसल पुष्पा की नौकरानी सपना ने घटना वाली रात कोठी के आगे वैगनआर कार खड़ी देखी थी. बाद में उस ने पुष्पा को फोन कर के पूछा था कि क्या घर में कोई मेहमान आया है. चूंकि पुष्पा ने सपना की काल रिसीव की थी इसलिए यही उस के लिए मुसीबत बन गई क्योंकि यह बात सपना ने पुलिस को बता दी थी. जबकि पुलिस को दिए बयान के अनुसार उस वक्त  पुष्पा बेहोश थी.

पुलिस को दिए गए इकबालिया बयान में पुष्पा कोहली ने बताया कि किरन की आदतों और व्यवहार से वह तनावग्रस्त रहने लगी थी. अपनी इस समस्या को हल करने की योजना के तहत उस ने अपने गांव के मुंहबोले चाचा हवलदार कुलविंदर सिंह, जोकि जालंधर के कैंट थाने में तैनात था, को हत्या की रात फरीदाबाद बुलाया. कुलविंदर अपने एक अन्य साथी के साथ वैगनआर कार से 27 दिसंबर की देर शाम फरीदाबाद पहुंच गया था. वह अपना मोबाइल फोन जालंधर में अपने घर छोड़ आया था ताकि पुलिस की जांच में उस पर कोई आंच आए तो वह साबित कर सके कि वह हत्या के वक्त जालंधर में था.

कुलविंदर पंजाब से फरजी आईडी पर खरीदी गई नई सिम अपने साथ लाया था. इसी सिम को उस ने दूसरे मोबाइल में डाल कर पुष्पा कोहली को मिस्ड काल दे कर अपने फरीदाबाद पहुंचने की सूचना दी थी. पूर्व नियोजित योजना के तहत पुष्पा ने अपने मोबाइल से उसे मिस्ड काल दी जिस का मतलब था कि रास्ता साफ है, कभी भी अंदर आ सकते हो. इस के बाद रात के अंधेरे में कुलविंदर और उस के साथी ने घर के अंदर घुस कर किरन की गला रेत कर हत्या कर दी और कमरे में रखी अलमारी का सामान इधरउधर बिखेर दिया ताकि मामला लूट व हत्या का लगे. हत्या के वक्त पुष्पा कोहली अपने बेडरूम में चली गई थी और अपने कानों को तकिए से ढक लिया था ताकि बेटी के चीखने की आवाज उसे सुनाई न दे.

इस हत्या की एवज में पुष्पा कोहली ने कुलविंदर को 1 लाख रुपए व सोने के कुछ गहने दिए थे जिन्हें ले कर वह उसी रात अपने साथी के साथ पंजाब लौट गया था. पुष्पा के बयान के आधार पर पुलिस ने इस मामले में भादंवि की धारा 302, 494 के अलावा 34 भी जोड़ दी. पुष्पा कोहली को विधिवत 4 जनवरी 2014 को गिरफ्तार कर के फरीदाबाद की अदालत में पेश किया गया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. कुलविंदर व उस के साथी की गिरफ्तारी के लिए एक पुलिस टीम जालंधर गई लेकिन वह भूमिगत हो गया था. शायद उसे हरियाणा पुलिस के आने की सूचना पहले ही मिल गई थी. फरीदाबाद पुलिस उच्चाधिकारियों द्वारा दबाव बना कर फरार चल रहे हवलदार कुलविंदर और उस के साथी की गिरफ्तारी का प्रयास कर रही है. पुष्पा कोहली जेल में बंद है.

इस मामले में पुलिस किरन की हत्या की जो थ्योरी बता रही है, वह गले नहीं उतरती. क्योंकि कोई भी मां केवल अपने तनाव को दूर करने के लिए सुपारी दे कर बेटी की हत्या नहीं करा सकती. संभव है, पुलिस जांच में कोई और सच्चाई सामने आए. लेकिन इस की संभावना फिलहाल कम ही है.

—कथा पुलिस सूत्रों, परिजनों के बयानों पर आधारित है.

 

UP Crime news : पत्थर से वार कर दोस्त की खोपड़ी के किए कई टुकड़े

UP Crime news : मनीष जिस सौरभ को अपना सब से अच्छा दोस्त समझता था, पैसों के लालच में वही उस का सब से खतरनाक दुश्मन बन गया था. मनीष को घर से गए 24 घंटे से ज्यादा बीत गए थे. इतनी देर तक वह घर वालों को बताए बिना कभी गायब नहीं रहा था. उस के भाई अनिल ने कई बार उस के दोनों फोन नंबरों पर फोन किया था, लेकिन हर बार उस के दोनों नंबरों ने स्विच्ड औफ बताया था. इस के बावजूद वह बीचबीच में फोन मिलाता रहा कि शायद फोन मिल ही जाए. पूरा घर मनीष को ले कर काफी परेशान था.

संयोग से सुबह 7 बजे के लगभग मनीष का फोन मिल गया. मनीष के फोन रिसीव करते अनिल ने कहा, ‘‘मनीष, तू कहां है? कल से तेरा कुछ पता नहीं चल रहा है, तुझे घरपरिवार की इज्जत की भी फिक्र नहीं है. तू किसी को कुछ बताए बगैर ही दोस्तों के साथ मटरगश्ती कर रहा है?’’

‘‘भाई… मैं घंटे भर में घर पहुंच रहा हूं.’’ दूसरी तरफ से मनीष की लड़खड़ाती आवाज आई.

लड़खड़ाती आवाज सुन कर अनिल चौंका. उस की समझ में नहीं आया कि वह इस तरह क्यों बोल रहा है. उस ने कहा, ‘‘वो तो ठीक है. तू घंटे भर में नहीं सवा घंटे में आ जाना, लेकिन यह तो बता कि कल शाम से तेरे दोनों फोन बंद क्यों हैं? और तेरी आवाज को क्या हुआ है, जो इस तरह आ रही है?’’

‘‘भैया, वो क्या है कि मेरे फोन गाड़ी में रह गए थे.’’ मनीष की आवाज फिर लड़खड़ाई. इस के साथ फोन कट गया. अनिल ने तुरंत फोन मिलाया, लेकिन फोन का स्विच औफ हो गया. जिस तरह मनीष की आवाज लड़खड़ा रही थी. साफ लग रहा था कि वह बहुत ज्यादा नशे में है. 24 वर्षीय मनीष संगत की वजह से शराब भी पीने लगा था. इसलिए अनिल ने तय किया कि उस के आते ही वह उस से बात करेगा कि वह अपनी आदत सुधारेगा या नहीं?

जिस समय अनिल मनीष से फोन पर बातें कर रहा था, उस समय उस की मां और घर के अन्य लोग भी वहीं बैठे थे. मनीष से हुई बातचीत अनिल ने घर वालों को बताई तो वे और ज्यादा परेशान हो उठे. उन्हें चिंता होने लगी कि वह गलत लोगों के साथ तो नहीं उठनेबैठने लगा. चूंकि अनिल की मनीष से बात हो चुकी थी, इसलिए वह यह सोच कर अपनी दुकान पर चला गया कि घंटे, 2 घंटे में मनीष घर लौट ही आएगा. अब वह शाम को उस से बात करेगा.

शाम के 5 बज गए, लेकिन न तो मनीष घर आया और न ही उस का कोई फोन ही आया. बूढ़े पिता ओमप्रकाश गुप्ता बेटे की चिंता में पिछली रात भी नहीं सो पाए थे. बेटे को ले कर सारी रात उन के मन में उलटेसीधे विचार आते रहे. अब दूसरा दिन भी बीत गया था और उस का कुछ पता नहीं चल रहा था. अनिल दुकान से जल्दी ही घर आ गया था. वह मनीष के कुछ दोस्तों को जानता था. उस ने उन से भाई के बारे में पूछा, लेकिन उन से उस के बारे में कोई खास जानकारी नहीं मिली. 12 फरवरी को जब मनीष घर से निकला था, तो बड़ी बहन शशि ने उसे फोन किया था. तब उस ने कहा था कि वह मोंटी के मेडिकल स्टोर पर बैठा है और आधे घंटे में घर आ जाएगा.

मोंटी उर्फ मुकेश शर्मा का मेडिकल स्टोर लंगड़े की चौकी में था. अनिल अपने भाई राजीव के साथ मोंटी की दुकान पर पहुंचा. जब अनिल ने मोंटी से मनीष के बारे में पूछा तो उस ने कहा, ‘‘मनीष कल दोपहर को यहां आया तो था, लेकिन घंटे भर बाद मोटरसाइकिल से चला गया था. यहां से वह कहां गया, यह मुझे पता नहीं. वहां से निराश हो कर दोनों भाई मनीष की अन्य संभावित स्थानों पर तलाश करने लगे, लेकिन उस का कहीं कुछ पता नहीं चला. थकहार कर दोनों भाई रात 11 बजे तक घर लौट आए. बीचबीच में वह मनीष को फोन भी मिलाते रहे, लेकिन उस के दोनों फोन स्विच्ड औफ ही बताते रहे. किसी अनहोनी की आशंका से घर की महिलाओं ने रोनापीटना शुरू कर दिया. किसी की समझ में नहीं आ रहा था कि मनीष ऐसी कौन सी जगह चला गया है, जहां से उस से फोन पर बात नहीं हो पा रही है.

खैर, जैसेतैसे रात कटी. अगले दिन पूरे मोहल्ले में मनीष के 2 दिनों से गायब होने की खबर फैल गई. मोहल्ले वाले गुप्ता के यहां सहानुभूति जताने के लिए आने लगे. उन्हीं लोगों के साथ राजीव और अनिल जीवनी मंडी पुलिस चौकी पहुंचे और चौकी प्रभारी सूरजपाल सिंह को मनीष के लापता होने की जानकारी दी. यह पुलिस चौकी थाना छत्ता के अंतर्गत आती है, इसलिए सूरजपाल सिंह उन्हें ले कर थाने पहुंचे. थानाप्रभारी भानुप्रताप सिंह को जब मनीष के गायब होने की जानकारी दी गई तो उन्होंने तुरंत उस की गुमशुदगी दर्ज करा कर मामले की जांच एसएसआई रमेश भारद्वाज को सौंप दी.

जब उन्हें पता चला कि मनीष अपनी मोटरसाइकिल (UP Crime news) यूपी80एवाई 4799 से घर से निकला था तो उन्होंने वायरलैस से जिले के समस्त थानों को मनीष का हुलिया और उस की मोटरसाइकिल का नंबर बता कर उस के गायब होने की सूचना देने के साथ कहलवाया कि अगर इन के बारे में कुछ पता चलता है तो तुरंत थाना छत्ता को सूचना दें. यह मैसेज प्रसारित होने के कुछ देर बाद ही थाना सदर बाजार से थाना छत्ता को सूचना मिली कि मैसेज में बताई गई नंबर की नीले रंग की मोटरसाइकिल पिछली शाम को एक रेस्टोरेंट के सामने लावारिस हालात में बरामद हुई है. थाना सदर बाजार आगरा कैंट रेलवे स्टेशन के नजदीक है.

एसएसआई रमेश भारद्वाज ने यह खबर मिलने के बाद अनिल को थाने बुलाया और उसे साथ ले कर थाना सदर बाजार पहुंचे, ताकि वह मनीष की बाइक को पहचान कर सके. थाना सदर बाजार पुलिस ने जब उसे रेस्टोरेंट के सामने से लावारिस हालत में बरामद की गई मोटरसाइकिल दिखाई गई तो अनिल ने उसे तुरंत पहचान लिया. वह मोटरसाइकिल मनीष की थी. मनीष गुप्ता का परिवार आर्थिक रूप से काफी संपन्न था. वह हाथों में सोने की वजनी  अंगूठियां और गले में सोने की काफी वजनी चेन पहने था. उस के मोबाइल फोन भी काफी महंगे थे. इस से पुलिस ने अनुमान लगाया कि कहीं ऐसा तो नहीं कि किसी ने लूटपाट कर के उस का कत्ल कर के लाश कहीं फेंक दी हो. लव एंगल की भी संभावना थी. इस बारे में पुलिस ने अनिल से पूछा भी, लेकिन उस का कहना था कि इस तरह की कोई बात उस ने नहीं सुनी थी. अगले महीने उस की शादी भी होने वाली थी.

एसएसआई रमेश भारद्वाज ने मनीष के दोनों फोन नंबरों को सर्विलांस पर लगवाने के साथ उन की पिछले 5 दिनों की काल डिटेल्स भी निकलवाई. 13 फरवरी, 2014 को मनीष के दोनों फोनों की लोकेशन लंगड़े की चौकी की मिली थी. इस के बाद लोकेशन खेरिया मोड़ अर्जुननगर की आई. वहीं से उस की अनिल से अंतिम बार बात हुई थी. इस का मतलब वह वहीं से लापता हुआ था. घर वाले भी अपने स्तर से मनीष के बारे में छानबीन कर रहे थे. उस के स्टेट बैंक औफ बीकानेर, आईडीबीआई, एक्सिस बैंक और एचडीएफसी बैंकों में खाते थे, जिन में उस के लाखों रुपए जमा थे. मनीष के पास हर समय इन बैंकों के डेबिड कार्ड रहते थे.’

मनीष के बड़े भाई राजीव ने सभी बैंकों में जा कर छानबीन की तो पता चला कि अयोध्या कुंज, अर्जुननगर की आईसीआई सीआई बैंक के एटीएम से 13 फरवरी की शाम 17 हजार 5 सौ रुपए निकाले गए थे. इस के अलावा 14,15 और 16 फरवरी को अलगअलग एटीएम कार्डों से साढ़े 3 लाख रुपए निकाले गए थे. यह बात जान कर घर वालों को आश्चर्य हुआ कि मनीष ने इतने पैसे क्यों निकाले. यह जानकारी उन्होंने पुलिस को दी. जीवन मंडी पुलिस चौकी के इंचार्ज सूरजपाल सिंह राजीव गुप्ता के साथ पास ही स्थित एचडीएफसी बैंक गए. उन्होंने ब्रांच मैनेजर से इस बारे में बात की तो ब्रांच मैनेजर ने बताया कि मनीष गुप्ता के खाते से एटीएम कार्ड द्वारा उस रोज 11 बज कर 19 मिनट पर डेबिड कार्ड द्वारा पैसे निकाले गए थे. वे रुपए मोतीलाल नेहरू रोड स्थित भारतीय स्टेट बैंक के एटीएम बूथ से निकाले गए थे.

पुलिस जानती थी कि पैसे निकालने वाले का भारतीय स्टेट बैंक के एटीएम बूथ पर लगे सीसीटीवी कैमरे में फोटो जरूर आया होगा. उस दिन की फुटेज हासिल करने के लिए पुलिस ने स्टेट बैंक औफ इंडिया के अधिकारियों से बात की. जब बैंक अधिकारियों ने पुलिस और राजीव गुप्ता को फुटेज दिखाई तो पता चला, मनीष के खाते से पैसे निकालने वाला कोई और नहीं, मनीष का दोस्त सौरभ शर्मा था. सौरभ शर्मा मुकेश शर्मा उर्फ मोंटी का सगा भांजा था. उस की मोबाइल फोन रिचार्ज करने और एसेसरीज बेचने की दुकान थी. राजीव गुप्ता अकसर उसी के यहां से अपना मोबाइल रिचार्ज कराते थे. उस की दुकान मोंटी के मेडिकल स्टोर के बराबर में ही थी.

मनीष ने अपने पैसे सौरभ से क्यों निकलवाए थे, इस बारे में सौरभ ही बता सकता था. पुलिस राजीव को साथ ले कर सौरभ शर्मा की दुकान पर पहुंची. वह दुकान पर ही मिल गया. पुलिस के साथ राजीव और अनिल को देख कर वह सकपका गया. सबइंस्पेक्टर सूरजपाल सिंह ने उस से मनीष के बारे में पूछा तो उस ने उस के बारे में कुछ भी बताने से साफ मना कर दिया. परंतु जब उसे एटीएम के कैमरे की फुटेज दिखाई गई तो उस ने कहा, ‘‘क्या इस में मैं मनीष गुप्ता के एटीएम कार्ड्स से रुपए निकालता दिख रहा हूं. सर, उस समय मैं अपने कार्ड से रुपए निकालने गया था.’’

सौरभ झूठ बोला रहा था, यह बात पुलिस और राजीव गुप्ता अच्छी तरह जान रहे थे. पुलिस उस के खिलाफ और सुबूत जुटाना चाहती थी, इसलिए उस समय उस से ज्यादा कुछ नहीं कहा. चौकीप्रभारी ने यह बात थानाप्रभारी भानुप्रताप सिंह को बताई. मनीष के बारे में कोई जानकारी न मिलने से लोगों में पुलिस के प्रति गुस्सा बढ़ता जा रहा था. जनता आंदोलन न कर दे, इस से पहले ही एसएसपी शलभ माथुर ने इस मामले को ले कर एसपी (सिटी) सत्यार्थ अनिरुद्ध पंकज, क्षेत्राधिकारी करुणाकर राव और थानाप्रभारी भानुप्रताप सिंह को अपने औफिस में बुला कर मीटिंग की और जल्द से जल्द इस मामले का खुलासा करने के निर्देश दिए.

वरिष्ठ पुलिस अधिकारी का आदेश मिलते ही थानाप्रभारी ने सौरभ शर्मा और उस के मामा मोंटी उर्फ मुकेश शर्मा को पूछताछ के लिए थाने बुला लिया. मोंटी ने बताया कि जिस समय मनीष उस के मेडिकल स्टोर पर आया था, वह दुकान पर नहीं था. उस समय मेडिकल पर सौरभ था. सौरभ ने मोंटी की इस बात की पुष्टि भी की. इस के बाद पुलिस ने सौरभ से मनीष के बारे में पूछा तो उस ने बताया कि मनीष पर बाजार का करीब 15 लाख रुपए का कर्ज हो गया है, इसलिए वह गोवा भाग गया है.

‘‘अगर वह गोवा भाग गया है तो उस का एटीएम कार्ड तुम्हारे पास कैसे आया, जिस से तुम ने पैसे निकाले थे?’’ थानाप्रभारी ने पूछा.

‘‘सर, मैं ने उस के नहीं, अपने कार्ड से पैसे निकाले थे.’’ सौरभ ने कहा.

पुलिस ने जब उस के खाते की जांच की तो पता चला कि उस ने उस दिन अपने खाते से पैसे निकाले ही नहीं थे. इस सुबूत को सौरभ झुठला नहीं सकता था, इसलिए उस ने स्वीकार कर लिया कि मनीष के एटीएम कार्ड्स से पिछले 3-4 दिनों में साढ़े 3 लाख रुपए उसी ने निकाले थे. पुलिस ने जब उस से मनीष के बारे में पूछा तो उस ने बताया कि अपने भांजे रिंकू शर्मा के साथ मिल कर उस ने मनीष की हत्या कर उस की लाश को चंबल के बीहड़ों में फूंक दी है. जब घर वालों को पता चला कि उस के दोस्तों ने मनीष की हत्या कर दी है तो घर में हाहाकार मन गया.

पुलिस मनीष की लाश बरामद करना चाहती थी. चूंकि उस समय अंधेरा हो चुका था इसलिए बीहड़ में लाश ढूंढना आसान नहीं था. अगले दिन यानी 18 फरवरी, 2014 की सुबह इंसपेक्टर भानुप्रताप सिंह की अगुवाई में गठित  एक पुलिस टीम सौरभ शर्मा को ले कर चंबल के बीहड़ों में जा पहुंची. टीम सौरभ शर्मा द्वारा बताए स्थान पर पहुंची तो वहां लाश नहीं मिली. सौरभ पुलिस टीम को वहां 3 घंटे तक इधरउधर घुमाता रहा. पुलिस ने जब सख्ती की तो आखिर वह पुलिस को वहां से करीब 4 किलोमीटर दूर अरंगन नदी के पास स्थित एक पैट्रोल पंप के पीछे ले गया. उस ने बताया कि यहीं से उस ने मनीष की लाश को खाई में फेंकी थी.

खाई में भी पुलिस को लाश दिखाई नहीं दी. इस से अनुमान लगाया गया कि जंगली जानवर लाश खींच ले गए हैं. लिहाजा पुलिस इधरउधर लाश ढूंढने लगी. करीब 15 मिनट बाद एक पुराने खंडहर के पीछे एक सड़ीगली लाश दिखाई दी. लाश काफी विकृत अवस्था में थी. उस का चेहरा किसी भारी चीज से कुचला गया था. उस का दाहिना हाथ शरीर के सारे कपड़े गायब थे. बाएं हाथ की एक अंगुली में सोने की अंगूठी थी. उसी अंगूठी और जूतों से मनीष के भाई राजीव ने लाश की शिनाख्त की. लाश की स्थिति से अनुमान लगाया कि मनीष की हत्या कई दिनों पहले की गई थी. मनीष की लाश बरामद होने की बात राजीव ने अपने घर वालों को बता दी.

मौके की जरूरी काररवाई पूरी कर के पुलिस लाश ले कर आगरा आ गई. जैसे ही लाश पोस्टमार्टम हाउस पहुंची, सैकड़ों की संख्या में लोग वहां पहुंच गए. पुलिस के खिलाफ लोगों का गुस्सा भड़क उठा और वहां से जीवनी मंडी पुलिस चौकी पहुंच कर वहां से गुजरने वाले वाहनों को अपने गुस्से का शिकार बनाना शुरू कर दिया. लोग दुकानों पर तोड़फोड़ और लूटपाट करने लगे. इस में कई राहगीर भी घायल हुए. मौके पर जो 2-4 पुलिसकर्मी थे वे उन्हें समझाने और रोकने में असमर्थ रहे. उसी समय शहर के मेयर वहां पहुंचे तो भीड़ ने उन की गाड़ी को भी क्षतिग्रस्त कर दिया. किसी तरह गनर के साथ भाग कर वह सुरक्षित जगह पर पहुंचे. यह हंगामा लगभग एक घंटे तक चलता रहा.

ऐसा लग रहा था मानो शहर में पुलिस नाम की कोई चीज ही नहीं है. जब एसपी (सिटी) सत्यार्थ अनिरुद्ध पंकज काफी फोर्स के साथ वहां पहुंचे और हंगामा करने वालों पर लाठीचार्ज किया गया तब जा कर हंगामा रुका. पूछताछ में सौरभ शर्मा ने मनीष की हत्या की जो कहानी पुलिस को बताई, वह ‘मन में राम बगल में छुरी’ वाली कहावत को चरितार्थ करने वाली थी. मनीष गुप्ता आगरा जिले के थाना छत्ता के मोहल्ला मस्वा की बगीची का रहने वाला था. वह अपने 9 बहनभाइयों में 8वें नंबर पर था. उस के पिता ओमप्रकाश गुप्ता की इलैक्ट्रिकल की दुकान थी, जिस से उन्हें अच्छी आमदनी होती थी. बीएससी करने के बाद मनीष पिता के साथ दुकान पर बैठने लगा था.

पिछले 8-9 महीने से मनीष दवाइयों का कारोबार करने लगा था. उस के संबंधों और व्यवहार की वजह से उस का यह कारोबार चल निकला था. उसे मोटी कमाई होने लगी थी. उस ने कई बैंकों में अपने खाते खोल लिए थे. मनीष गुप्ता अपने खानपान और पहनावे का काफी खयाल रखता था. शौकीन होने की वजह से वह महंगे मोबाइल फोन रखता था. दोनों हाथों की अंगुलियों में 7 सोने की अंगूठियां और गले में काफी वजनी सोने की चेन पहने रहता था. यह सब देख कर कोई भी उस की संपन्नता को समझ सकता था. वैसे तो अपनी उम्र के तमाम लड़कों के साथ उस का उठनाबैठना था, लेकिन उन में से 5-7 लोग उस के काफी करीबी थे. उन के साथ उस की दांत काटी रोटी थी. उन्हीं में से एक था सौरभ शर्मा. खेरिया मोड़, अर्जुननगर का रहने वाला सौरभ मनीष का ऐसा दोस्त था, जो मनीष की हर बात को जानता था.

सौरभ के पिता का देहांत हो चुका था. वह अपने परिवार के साथ किराए के मकान में रहता था. उस के मामा मोंटी उर्फ मुकेश शर्मा का लंगड़े की चौकी में मेडिकल स्टोर था. इस के अलावा मोंटी प्रौपर्टी डीलिंग का काम भी करता था. मोंटी ने अपने मेडिकल स्टोर के पास एक केबिन बनवा कर उस में सौरभ को मोबाइल रिचार्ज और एसेसरीज का धंधा करा दिया था. मनीष मोंटी के मेडिकल स्टोर पर दवाएं सप्लाई करता था. इसलिए वहां आने पर सौरभ से अपना मोबाइल फोन रिचार्ज करा लेता था. सौरभ मनीष के हमउम्र था, इसलिए उस की उस से दोस्ती हो गई.

सौरभ काफी तेजतर्रार था. उसी की मार्फत मनीष ने आईसीआईसीआई और एचडीएफसी बैंकों में खाते खुलवाए थे. मनीष को उस पर इतना विश्वास हो गया था कि कई बार उस ने अपने खातों में मोटी रकम जमा कराने के लिए सौरभ को भेज दिया था. सौरभ और मनीष बेशक गहरे दोस्त थे, लेकिन दोनों के स्तर में जमीनआसमान का अंतर था. सौरभ भी चाहता था कि उस के पास भी ढेर सारे पैसे हों. लेकिन उस छोटी सी दुकान की आमदनी से उस की यह इच्छा पूरी नहीं हो सकती थी. लिहाजा उस ने अपने धनवान दोस्त की दौलत के सहारे अपनी इच्छा पूरी करने की योजना बनाई. उस योजना में उस ने अपने भांजे रिंकू को भी शामिल कर लिया. रिंकू की स्थिति भी सौरभ जैसी ही थी. दोनों ने सलाहमशविरा कर के मनीष के पैसे हड़पने की एक फूलप्रूफ योजना बना डाली.

13 फरवरी, 2014 को देपहर के समय मनीष घर से खापी कर अपनी मोटरसाइकिल से मोंटी के मेडिकल स्टोर पर पहुंचा. उस समय मोंटी अपनी दुकान पर नहीं था. सौरभ ही वहां बैठा था. सौरभ ने मनीष से अपनी प्रेमिका से मिलवाने की बात कही. पहले तो मनीष ने टाल दिया, लेकिन बारबार कहने पर मनीष तैयार हो गया. तब सौरभ ने मनीष को अर्जुननगर अपने घर के पास भेज कर इंतजार करने को कहा. मनीष अर्जुननगर तिराहे पर पहुंच कर सौरभ का इंतजार करने लगा. करीब 2 मिनट बाद सौरभ वहां पहुंचा. सौरभ उस की मोटरसाइकिल पर बैठ गया तो मनीष उस के बताए स्थान की तरफ चल दिया. रास्ते में सौरभ का भांजा रिंकू शर्मा भी मिल गया. सौरभ ने उसे भी उसी मोटरसाइकिल पर बैठा लिया.

सौरभ उसे अर्जुननगर के ही एक कमरे पर ले गया, जिसे रिंकू शर्मा ने अपनी पढ़ाई के लिए किराए पर ले रखा था. कुछ देर बाद रिंकू मनीष के लिए कोल्डड्रिंक की एक बोतल ले आया. उस कोल्डड्रिंक में रिंकू ने नींद की दवा मिला रखी थी. कोल्डड्रिंक पीने के बाद मनीष बेहोश होने लगा. तब तक अंधेरा हो चुका था. मनीष की आंखें झपकने लगीं तो सौरभ अपने असली रूप में आते हुए बोला, ‘‘मनीष, मैं ने तुम्हें किडनैप कर लिया है. अगर तुम ने मेरी बात नहीं मानी तो तुम्हें काट कर किसी नाले में फेंक दिया जाएगा.’’

मनीष जानता था कि उस का दोस्त सौरभ गुस्सैल और लड़ाकू है, लेकिन उसे यह पता नहीं था कि वह पैसों के लिए इतना गिर सकता है. उस की जान खतरे में थी. वह बेहोशी की तरफ बढ़ रहा था. फिर भी जान खतरे में देख कर उस ने हाथ जोड़ कर सौरभ से पूछा, ‘‘तुझे क्या चाहिए भाई? मुझे बता दे. मैं तुझे वह सब कुछ दे दूंगा.’’

‘‘फिलहाल तो तू अपनी जेब में रखे सभी एटीएम कार्ड्स मुझे दे कर उन के पिन नंबर बता दे. अर्द्धबेहोशी की हालत में भी मनीष समझ रहा था कि अगर उस ने एटीएम कार्ड्स और पिन नंबर नहीं दिए तो ये दोनों उस के साथ कुछ भी कर सकते हैं. लिहाजा उस ने अपने सभी एटीएम कार्ड्स उसे सौंपते हुए उन के पिन नंबर बता दिए. इस के थोड़ी देर बाद मनीष पूरी तरह बेहोश हो गया. मनीष के बेहोश होते ही सौरभ ने उसी शाम एक एटीएम कार्ड का इस्तेमाल कर के पास के ही आईसीआईसीआई बैंक के एटीएम से साढ़े 7 हजार रुपए निकाल लिए. उस समय रिंकू मनीष की निगरानी कर रहा था.

सौरभ ने मनीष के दोनों मोबाइल फोनों को स्विच औफ कर दिया था. रात में मनीष को होश न आ जाए, सौरभ ने उसे बेहोशी का इंजेक्शन लगा दिया. मनीष के परिवार वालों को गुमराह करने के लिए अगले दिन सुबह सौरभ ने उस के दोनों फोन चालू कर दिए. दूसरी ओर मनीष के गायब होने से उस के घर वाले परेशान थे. इस बीच जब मनीष के भाई अनिल का फोन आया तो मनीष होश में नहीं था. फिर सौरभ ने उसे पहले ही बता दिया था कि उसे फोन पर क्या कहना है. इसलिए फोन रिसीव कर के मनीष ने वही कहा जो सौरभ ने कहने के लिए कहा था.

भाई से बात कराने के बाद सौरभ ने उसे पुन: बेहोशी का इंजेक्शन लगा दिया. उस के बाद दोनों मोबाइल फिर बंद कर दिए. उन्होंने उस के हाथों की अंगूठियां और गले से चेन निकाल ली. योजना के अनुसार उन्होंने एक ही अंगूठी छोड़ दी थी. अब वह उसे ठिकाने लगाने योजना बनाने लगे. योजनानुसार 14 फरवरी, 2014 की सुबह करीब साढ़े 9 बजे रिंकू अरनौटा गांव जाने को कह कर एक टैंपो ले आया. यह गांव चंबल के बीहड़ में पड़ता है.

अर्द्धबेहोशी की हालत में उन दोनों ने मनीष को उस टैंपो में बैठा दिया. सौरभ मनीष के साथ टैंपो में बैठ गया तो रिंकू मनीष की मोटरसाइकिल ले कर टैंपो के पीछेपीछे चलने लगा. अरनौटा गांव के पास सुनसान जगह पर मनीष को टैंपो से उतार कर उन्होंने मोटरसाइकिल पर बैठा लिया और बसई अरेला गांव के नजदीक आंगन नदी के पैट्रोल पंप के पीछे की झाडि़यों में जा पहुंचे. वहां उन्होंने उस की गला दबा कर हत्या कर दी.

मनीष की शिनाख्त न होने पाए इस के लिए उन्होंने उस के कपड़ों व चेहरे पर तेजाब डाल कर उसे जला दिया. तेजाब वे अपने साथ ले कर आए थे. मनीष के दाहिने हाथ को पत्थर पर रख कर दूसरा भारी पत्थर पटक कर उस के उस हाथ को शरीर से अलग कर दिया. दूसरे हाथ की भी सारी अंगुलियां तोड़ दीं. एक अंगूठी इन लोगों ने जानबूझ कर उस की अंगुली में छोड़ दी थी कि अगर पुलिस को लाश मिल भी जाए तो वह उसे प्रेम प्रसंग के चलते नफरत में की गई हत्या समझे, लूट की वजह से नहीं. वहां से चलने से पहले सौरभ और रिंकू ने एक भारी पत्थर उठा कर मनीष के सिर पर दे मारा. मनीष की खोपड़ी कई टुकड़ों में बंट गई. लाश को बुरी तरह क्षतिग्रस्त करने के बाद दोनों ने उसे 40-50 फुट नीचे गहरी खाई में फेंक दी और फिर आगरा लौट आए.

फतेहाबाद रोड स्थित एटीएम से एक लाख 10 हजार रुपए अलगअलग कार्डों के जरिए निकाल लिए. इस के बाद उन्होंने मनीष की मोटरसाइकिल (UP Crime news) आगरा कैंट रेलवे स्टेशन के बाहर खड़ी कर दी और घर चले गए. सौरभ ने मनीष एटीएम कार्डों से कुल साढ़े 3 लाख रुपए निकाले. मनीष के गहने और एटीएम से निकाले रुपए दोनों ने आपस में बांट लिए. मनीष की मोटरसाइकिल आगरा कैंट स्टेशन के बाहर जीआरपी ने बरामद कर के इस की सूचना थाना सदर बाजार को दे दी थी, जिसे बाद में मनीष के भाई ने पहचान लिया था. सौरभ और रिंकू के खिलाफ भादंवि की धारा 364, 302, 201 के तहत मामला दर्ज कर लिया गया. इस के बाद उसे न्यायालय में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

दूसरे अभियुक्त रिंकू की गिरफ्तारी के लिए कई जगहों पर दविश डाली गई, लेकिन वह नहीं मिल सका. कथा संकलन तक वह फरार था. पुलिस उसे सरगर्मी से तलाश रही है. मामले की विवेचना एसएसआई रमेश भारद्वाज कर रहे हैं.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित.

 

Haryana Crime news : करोड़ों की जमीन के लालच में बहन ने किया भाई का कत्ल

Haryana Crime news : सुरजीत को प्रीति से नहीं, उस की करोड़ों की जमीन से प्यार था, जिसे पाने के लिए उस ने सोनू की मदद से षड्यंत्र रच कर उस के पति विजय और नरेश की हत्या की, फिर…

इलाके की गश्त से लौटतेलौटते मुझे सुबह के 4 बज गए थे. थाने आते ही मैं ने एक सिपाही से चाय बना कर लाने को कहा. पूरी रात गश्त करने की वजह से काफी थकान महसूस हो रही थी, इसलिए कमर सीधी करने की गरज से मैं रेस्टरूम में पड़े बेड पर लेट गया. सिपाही चाय बना कर लाता, उस के पहले ही मुंशी ने मेरे पास आ कर कहा, ‘‘सर, अभीअभी मुंडियां चौकी से वायलैस संदेश आया है कि गुरु तेगबहादुर नगर की गली नंबर-3 में किसी की हत्या कर दी गई है.’’

चूंकि संदेश स्पष्ट नहीं था, इसलिए अधिक जानकारी नहीं मिल सकी थी. लेकिन उस के बाद चौकीइंचार्ज सबइंसपेक्टर वरनजीत सिंह ने फोन कर के मुझे जल्दी घटनास्थल पर पहुचंने को कहा है. मुंशी अपना काम कर के चला गया था. हत्या की जानकारी मिलने पर चाय पीने का होश कहां रहा. चाय की बात भूल कर मैं उठा और परिसर में खड़ी जीप पर सवार हो कर ड्राइवर से मुंडिया चौकी की ओर चलने को कहा. मेरे जीप पर सवार होते ही मेरे साथ गश्त कर रहे सिपाही भी जीप पर सवार हो गए थे. सब के सवार होते ही जीप चल पड़ी थी.

मुंडिया चौकी, लुधियाना-चंडीगढ़ रोड पर मुंडियां गांव से लगभग 6 किलोमीटर की दूरी पर थी. सड़क से गांव जाने वाली टूटीफूटी सड़क पर हम हिचकोले खाते हुए लगभग 25 मिनट में मुंडिया चौकी पहुंचे. चौकी का मुंशी हेडकांस्टेबल सुखविंदर सिंह चौकी पर ही मिल गया था. उसे साथ ले कर मैं घटनास्थल पर जा पहुंचा. चौकीइंचार्ज वरनजीत सिंह और हेडकांस्टेबल हरभजन सिंह वहां पहले ही पहुंच गए थे. जिस घर में वारदात हुई थी, उस के सामने काफी भीड़ जमा थी. उन्हीं लोगों के बीच 24-25 साल की एक खूबसूरत औरत दहाड़े मार कर रो रही थी. पूछने पर पता चला कि इस का नाम प्रीति है और इसी के पति की हत्या हुई है.

‘‘जिस की हत्या हुई है, उस का नाम क्या है?’’ मैं ने सबइंसपेक्टर वरनजीत से पूछा तो उस ने बताया, ‘‘सर, एक नहीं, 2 लोग मारे गए हैं. यह महिला रो रही है, इस के पति का नाम विजय कुमार था. दूसरा उस का साथी नरेश था. उस की लाश ऊपर के कमरे में पड़ी है.’’

एक ही मकान में 2-2 हत्याओं की बात सुन कर मैं चकरा गया. प्रीति का रोरो कर बुरा हाल था. वह छाती पीटपीट कर रो रही थी. आसपड़ोस की औरतें उसे संभालने की कोशिश कर रही थीं. फिलहाल वह कुछ बताने की स्थिति में नहीं थी, इसलिए मैं ने मोहल्ले वालों से घटना के बारे में पूछना शुरू किया. उन लोगों ने बताया कि 2 गोलियां चली थीं. उस के बाद प्रीति गली में खड़ी हो कर चिल्ला रही थी, ‘‘मार दिया रे, मेरे पति को गोली मार दिया रे… पकड़ो… गोली मार कर वे भागे जा रहे है.’’

उस की चीखपुकार सुन कर ही लोग बाहर आए थे. मैं उन लोगों से जानना चाहता था कि गोली मारने वाले कौन थे, कहां से आए थे, उन्होंने दोनों को गोली क्यों मारी? लेकिन इस बारे में आसपड़ोस वाले कुछ नहीं बता सके थे. इस घटना की सूचना अधिकारियों को देने के साथ सुबूत जुटाने के लिए मैं ने क्राइम टीम को भी घटनास्थल पर बुला लिया. चौकीइंचार्ज वरनजीत सिंह के साथ मैं ने घटनास्थल और लाशों का बारीकी से निरीक्षण किया.

गभग 35-40 गज का वह 2 मंजिला मकान था. भूतल पर एक कमरा, रसोई, टायलेट था तो ऊपर वाली मंजिल पर सिर्फ एक कमरा और उस के सामने बरामदा बना हुआ था. मारा गया विजय कुमार पत्नी प्रीती के साथ भूतल पर रहता था. ऊपर वाले कमरे में उस का दोस्त नरेश अकेला ही रहता था. वह विजय के साथ ही काम करता था और उस का खानापीना भी उसी के साथ होता था. विजय कुमार की लाश नीचे वाले कमरे में बेड पर पड़ी थी. वह 26-27 साल का अच्छाखासा जवान था. उस के सीने पर एक सुराख था, जिस से उस समय तक खून रिस रहा था. सीने के उस सुराख को देख कर लग रहा था कि हत्यारे ने उस पर एकदम करीब से गोली चलाई थी.

मैं ने कमरे में एक नजर डाली. कमरे का सारा सामान यथावत था. किसी भी चीज के साथ कोई छेड़छाड़ नहीं हुई थी. अच्छी तरह निरीक्षण करने के बाद भी वहां से ऐसा कोई सुबूत नहीं मिला, जिस से हत्यारों तक पहुंचने में मदद मिलती. इस के बाद मैं सबइंसपेक्टर वरनजीत सिंह के साथ ऊपर वाले कमरे में गया. उस कमरे का हाल भी लगभग नीचे वाले कमरे जैसा ही था. नरेश की उम्र भी 26-27 साल थी. उस की भी सीने में गोली मर कर हत्या की गई थी. कमरे में पड़े बेड के पास ही 3 कुरसियां और एक टेबल रखी थी. टेबल पर कांच के 4 खाली गिलास, बीयर की 4 खाली बोतलें, एक शराब की खाली बोतल, पानी का जग और एक प्लेट रखी थी, जिस में शायद खानेपीने का कोई सामान रखा गया था. इस का मतलब था कि हत्याएं होने से पहले सब ने एकसाथ बैठ कर शराब पी थी.

मेरे कहने पर वरनजीत सिंह ने वह सारा सामान कब्जे में ले लिया. क्राइम टीम ने भी अपना काम निबटा लिया तो अन्य औपचारिक काररवाई पूरी कर के मैं ने दोनों लाशें पोस्टमार्टम के लिए सरकारी अस्पताल भिजवा दीं. इस के बाद थाने लौट कर मैं ने अज्ञात लोगों के खिलाफ इस मामले का मुकदमा दर्ज करा कर जांच शुरू कर दी. प्रीति का बयान लेने की गरज से उसी दिन दोपहर को मैं उस के घर पहुंचा. सांत्वना दे कर मैं ने उस से पूरी घटना के बारे में विस्तार से बताने को कहा. प्रीति गुरु तेगबहादुर नगर की गली नंबर 3 निहाल सिंह वाली मुंडियां में स्थित मकान में अपने पति विजय कुमार के साथ किराए पर रहती थी. विजय कुमार ने वह पूरा मकान किराए पर ले रखा था. इसी मकान के ऊपर वाले कमरे में उस का दोस्त नरेश रहता था.

विजय अपने साथी नरेश के साथ मकानों और औफिसों में एल्युमिनियम की खिड़कीदरवाजे लगाने का काम करता था. काम न होने की वजह से उस दिन सुबह से ही दोनों घर पर थे. प्रीति एक ब्यूटीपार्लर में काम करती थी. उस दिन उस की साप्ताहिक छुट्टी थी, इसलिए वह भी घर पर थी. करीब 3 बजे विजय ने प्रीति से कहा, ‘‘तुम 2-3 घंटे के लिए ब्यूटीपार्लर वाली अपनी सहेली के यहां चली जाओ. बाहर से मेरे कुछ दोस्त आ रहे हैं. उन से हमें कुछ व्यक्तिगत बातें करनी हैं, जो तुम्हारे सामने नहीं हो सकतीं.’’

विजय कुमार के कहने पर प्रीति अपनी सहेली के घर चली गई. उसी के साथ विजय और नरेश भी स्कूटर से अपने आने वाले दोस्तों को लेने के लिए समराला चौक की ओर रवाना हो गए थे. शाम 7 बजे के आसपास प्रीति वापस आई तो ऊपर वाले कमरे से बातचीत और हंसने की आवाजें आ रही थीं. प्रीति ने ऊपर जा कर कमरे में झांक कर देखा तो विजय और नरेश के साथ 2 लड़के बैठे थे. सब शराब पीते हुए आपस में हंसीमजाक कर रहे थे. विजय के साथ बैठे उन लड़कों को प्रीति ने इस के पहले कभी नहीं देखा था. उसे देख कर विजय उठा और उस के पास आ कर बोला, ‘‘अच्छा हुआ तुम आ गईं. मैं तुम्हें फोन करने वाला था. तुम नीचे जाओ और सभी के लिए खाने का इंतजाम करो.’’

प्रीति नीचे आ गई और खाना बनाने लगी. 10 बजे तक उस का खाना बन गया तो वह बेड पर लेट गई, क्योंकि अभी तक ऊपर उन लोगों की महफिल जमी हुई थी. रात करीब 11 बजे विजय ने प्रीति से खाना लगाने को कहा तो उस ने खाना लगा दिया. खाना खा कर नरेश और बाहर से आए दोनों लड़के ऊपर वाले कमरे में सोने चले गए तो विजय और प्रीति नीचे वाले कमरे में लेट गए. नशे में होने की वजह से विजय तुरंत सो गया, लेकिन प्रीति को नींद नहीं आ रही थी. लगभग आधे घंटे बाद विजय के दोनों दोस्तों में से एक ने नीचे आ कर कमरे का दरवाजा खटखटाया. प्रीति ने सोचा किसी को पानी वगैरह चाहिए, इसलिए उस ने दरवाजा खोल दिया. विजय का वह दोस्त धीरे से अंदर आ गया और कमरे में पड़े बेड पर बैठ गया. खटरपटर से विजय की भी आंख खुल गई थी. दोस्त को देख कर वह भी उठ कर बैठ गया.

विजय के साथी ने आंखों से कोई इशारा किया तो विजय ने प्रीति की ओर देखते हुए कहा, ‘‘प्रीति, तुम थोड़ी देर के लिए बाहर चली जाओ. हमें एक जरूरी बात करनी है.’’

विजय की इस बात पर प्रीति हैरान रह गई. उस की समझ में नहीं आया कि ऐसी कौन सी बात है, जो आधी रात को होनी है, सुबह नहीं हो सकती. बात करने का यह भी कोई समय है. प्रीति उतनी रात को बाहर नहीं जाना चाहती थी, लेकिन विजय जिद पर अड़ गया. आधी रात को कोई तमाशा न खड़ा हो, यह सोच कर प्रीति गुस्से से पैर पटकती हुई बाहर निकल गई. प्रीति कमरे से बाहर निकली ही थी कि एक धमाका हुआ. वह गोली चलने की आवाज थी. गोली चलने की आवाज सुन कर वह तुरंत लौट पड़ी. वह कमरे के दरवाजे पर ही पहुंची थी कि अंदर से वह लड़का तेजी से प्रीति को धक्का दे कर निकल गया. उस के हाथ में पिस्तौल थी. पिस्तौल देख कर ही वह सारा मामला समझ गई.

तभी एक धमाका ऊपर हुआ. उस ने ऊपर की ओर देखा तो सीढि़यों से उस का दूसरा साथी उतर रहा था. दोनों लड़के नीचे मिले और बाहर गली में खड़े उस के स्कूटर को स्टार्ट किया. पीछे वाले लड़के ने प्रीति को पिस्तौल दिखा कर कहा, ‘‘हम लोगों के जाने तक चुप रहना. अगर शोर मचाया तो तुझे भी गोली मार दूंगा.’’

दोनों लड़के उसी के स्कूटर से चले गए. प्रीति असमंजस की स्थिति में किसी बुत की तरह खड़ी यह सब देखती रही. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. लड़कों के जाने के बाद वह भाग कर कमरे में गई. अंदर की हालत देख कर उस की सांस थम सी गई. बेड पर उस के पति की खून से लथपथ लाश पड़ी थी. उस के सीने से खून बह रहा था. यह देख कर उस के होश उड़ गए. प्रीति चीखतीचिल्लाती हुई मदद के लिए ऊपर के कमरे की ओर भागी. हड़बड़ाहट में उसे खयाल ही नहीं रहा कि ऊपर भी एक धमाका हुआ था. बेड पर पड़ी नरेश की लाश देख कर उसे उस धमाके की याद आ गई. नरेश की लाश उसी तरह पड़ी थी, जिस तरह विजय की लाश पड़ी थी. 2-2 लाशें देख कर प्रीति पागलों की तरह मदद के लिए चीखने लगी.

प्रीति का चीखनाचिल्लाना सुन कर आसपास वाले अपनेअपने घरों से बाहर आ गए, लेकिन हत्यारे तो कब के भाग चुके थे. पड़ोसी प्रीति को सांत्वना देने लगे. इतनी जानकारी मिलने के बाद मैं ने प्रीति से हत्यारों का हुलिया जानना चाहा तो उस ने बताया, ‘‘दोनों की उम्र 30 साल के आसपास रही होगी. उन की लंबाई ठीकठाक थी. उन के सिर के बाल छोटेछोटे थे. एक ने जींस पर शर्ट पहन रखी थी तो दूसरे ने टीशर्ट.’’

प्रीती से पूछताछ के बाद एक बार फिर मैं ने प्रीति के पड़ोसियों से पूछताछ की. पड़ोसियों ने बताया था कि आधी रात को गोलियों के चलने की आवाज से उन की आंखें खुल गई थीं. उस के बाद स्कूटर स्टार्ट होने की आवाज आई थी. स्कूटर के चले जाने के कुछ देर बाद प्रीति के चीखनेचिल्लाने की आवाज आई तो सभी घर से बाहर आ कर उस की ओर दौड़ पड़े थे. लुधियाना का मुंडियां कलां अभी नया बस रहा मोहल्ला था. इसलिए वहां के ज्यादातर प्लौट खाली पड़े थे. लेकिन यह मोहल्ला सुनसान भी नहीं था. प्रीति जिस गली नंबर 3 के मकान में रहती थी, उस गली में कोई भी प्लौट खाली नहीं था. मैं ने इंचार्ज सबइंसपेक्टर वरनजीत सिंह और हेडकांस्टेबल हरभजन सिंह को गुप्तरूप से इस मामले की जांच करने का आदेश दिया.

अब तक की जांच से यह पता चल गया था कि हत्यारे मारे गए लोगों की जानपहचान के थे. लेकिन बाद में जो जानकारियां मिलीं, वे चौंकाने वाली थीं. पड़ोसियों ने बताया था कि प्रीति का असली नाम कमलजीत कौर था. पतिपत्नी में लगभग रोज ही झगड़ा होता था. लेकिन वे इस झगड़े की वजह नहीं बता सके थे. मैं ने अंदाजा लगाया कि झगड़े की वजह नरेश भी हो सकता था, क्योंकि वह शुरू से ही उन दोनों के साथ रह रहा था. पड़ोसियों ने यह भी बताया था कि विजय और नरेश कोई खास कामधंधा नहीं करते थे. इस के बावजूद उन के खर्च शाही थे. इस का अंदाजा तो उन के घर को देख कर भी लगाया जा सकता था.

क्येंकि घर में सुखसुविधा का हर सामान मौजूद था. इस का मतलब यह हुआ कि कहने को वे डोरविंडो फिटिंग का काम करते थे, लेकिन उन का असली काम कुछ और ही था. उन का रहनसहन, खानपान, पहनावा और खर्च देख कर कहीं से भी नहीं लगता था कि वे मेहनतमजदूरी करने वाले साधारण लोग थे. बहरहाल, अब तक मेरी और सबइंसपेक्टर वरनजीत सिंह की जांच एवं पड़ोसियों से मिली जानकारी से यही नतीजा निकल रहा था कि इस दोहरे हत्याकांड की वजह कहीं न कहीं से अवैध संबंध हैं, क्योंकि अब तक यह स्पष्ट हो गया था कि ये हत्याएं लूटपाट या आपसी रंजिश की वजह से नहीं हुई थीं. अगर ये हत्याएं रंजिश की वजह से हुई होतीं तो हत्यारे प्रीति को भी जिंदा न छोड़ते.

क्योंकि कोई भी अपराधी यह कभी नहीं चाहेगा कि उस के किए अपराध का कोई चश्मदीद गवाह जिंदा रहे. यह सोचने वाली बात थी कि घर के 2 लोगों की हत्या कर के हत्यारे प्रीति को जिंदा क्यों छोड़ गए? यह पता लगाना जरूरी था. क्योंकि इसी के पीछे विजय और नरेश की हत्या का रहस्य छिपा था. इसी बात को ध्यान में रख कर मैं ने अपनी जांच आगे बढ़ाई. मैं ने कुछ विश्वसनीय और तेजतर्रार पुलिस वालों की एक टीम बना कर प्रीति के बारे में पता लगाने के साथ अपने कुछ मुखबिरों की भी मदद ली. टीम को मैं ने मारे गए विजय और नरेश के कामधंधे एवं उन के चरित्र के बारे में भी पता करने को कहा था. आखिर मेहनत रंग लाई और कुछ ही दिनों में जो नतीजा सामने आया, वह चौंकाने वाला था. मजे की बात यह थी कि इस दोहरे हत्याकांड की साजिश रचने वाली खुद प्रीति उर्फ कमलजीत कौर ही थी.

मेरे कहने पर सबइंसपेक्टर वरनजीत सिंह प्रीति को थाने ले आए. मैं ने उस से पूछताछ शुरू की तो वह उस हर बात से मना करती रही, जो मैं ने अपने सूत्रों से पता किया था. मैं ने उस पर दबाव बनाने की कोशिश की तो वह पुलिस को बुराभला कहते हुए बोली, ‘‘मेरे ही पति की हत्या हुई है. आप लोग हत्यारों को ढूंढ़ने के बजाय मुझे ही दोषी ठहराने पर तुले हैं.’’

जब मुझे लगा कि सीधी अंगुली से घी निकलने वाला नहीं है तो मैं ने पुलिसिया दांव आजमाने का मन बनाया. मैं ने उसे महिला पुलिस जसबीर कौर और सिमरन कौर के हवाले कर दिया. फिर तो थोड़ी ही देर में प्रीति अपना अपराध स्वीकार कर के इस दोहरे हत्याकांड की सच्चाई बताने को तैयार हो गई. इस के बाद उस ने विजय और नरेश की हत्याओं के पीछे की जो कहानी सुनाई, वह इस प्रकार थी:

प्रीति उर्फ कमलजीत कौर मूलरूप से हरियाणा के करनाल (Haryana Crime news) की रहने वाली थी. उस के परिवार में मातापिता के अलावा एक भाई जोगा सिंह था. मातापिता का नाम बताना इसलिए उचित नहीं है, क्योंकि वे शरीफ, सज्जन और इज्जतदार लोग हैं. जोगा सिंह और प्रीति, दोनों बचपन से उच्च महत्त्वाकांक्षी और स्वच्छंद प्रवृत्ति के थे. मौजमस्ती में डूबे रहने की वजह से दोनों ही ज्यादा पढ़लिख नहीं सके तो अपनी महत्त्वाकांक्षा पूरी करने के लिए अपराधियों से संबंध बना लिए और अपहरण, लूटपाट, डकैती और हत्याओं जैसे जघन्य अपराधों को अंजाम देने लगे.

प्रीति उर्फ कमलजीत कौर अपने भाई जोगा सिंह से 4 कदम आगे थी. खूबसूरत तो वह इतनी थी कि जिस की भी नजर एक बार उस पर पड़ जाती, हटाने का नाम नहीं लेता था. यही वजह थी कि राह चलते लोगों को पलक झपकते वह अपना दीवाना बना लेती थी. यही वजह थी कि प्रीती के जवान होते ही उस के चाहने वालों की लाइन लग गई थी. लेकिन वह सभी को मय के भरे प्याले की तरह अपनी जवानी को दूर से दिखा कर ललचाती रहती थी, किसी को हाथ नहीं लगाने देती थी.

उसी बीच उस के भाई जोगा सिंह के हाथों एक कत्ल हो गया. पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर के जेल भेज दिया. मातापिता बहनभाई के कारनामों से वैसे ही दुखी थे, इसलिए उन की ओर से जोगा की पैरवी का सवाल ही नहीं उठता था. इसलिए प्रीति को ही भाई को छुड़ाने की पैरवी करनी पड़ रही थी. वह सप्ताह में 2 बार उस से मिलने करनाल जेल भी जाती थी. उन्हीं दिनों हरियाणा के जींद का रहने वाला विजय कुमार भी अपने दोस्त नरेश से मिलने सप्ताह में 2 बार करनाल जेल आता था. उसी दौरान प्रीति की मुलाकात विजय से हुई थी. विजय भी हृष्टपुष्ट एवं इस तरह का खूबसूरत युवक था कि कोई भी लड़की उसे देखे तो कम से कम एक बार उसे और देखने का मन हो जाए.

विजय शक्लसूरत और पहनावे से ठीकठाक तो लगता ही था, यह भी लगता था कि उस के पास पैसों की कमी नहीं है. जबकि सच्चाई यह थी कि वह हरियाणा के एक ऐसे अपराधी गिरोह का सदस्य था, जो लूटमार, अपहरण और डकैती आदि से मोटी कमाई कर रहा था. बहरहाल, जेल में अपनेअपने मिलने वालों का नाम लिखवा कर विजय और प्रीति जेल के बाहर बैठ कर मिलाई का इंतजार करते थे. प्रीति सुंदर तो थी ही, विजय खाली समय में उसे ही ताकता रहता था. स्मार्ट विजय प्रीति को भा गया, इसलिए वह भी उस से आंखें मिलाने लगी. परिणामस्वरूप जल्दी ही दोनों में दोस्ती हो गई तो वे सब से अलग हट कर एकांत में एक साथ बैठने लगे. जल्दी ही दोनों की यह दोस्ती काफी गहरी हो गई.

विजय अपने दोस्त नरेश की जमानत की कोशिश कर ही रहा था, प्रीति से दोस्ती के बाद उस ने जोगा की जमानत के लिए कोशिश ही नहीं की, बल्कि पैसा भी पानी की तरह बहाया. उसी की कोशिश का नतीजा था कि नरेश के साथ जोगा को भी जमानत मिल गई. नरेश और जोगा की जमानतें हो गईं तो विजय और प्रीति का करनाल जेल जाना बंद हो गया, लेकिन अब तक दोनों के संबंध इतने गहरे हो चुके थे कि वे कभी हिसार तो कभी जींद तो भी करनाल तो कभी कुरुक्षेत्र में मिलने लगे. विजय ने प्रीति पर जो एहसान किया था, वह उसे कैसे भूल सकती थी. धीरेधीरे वह विजय के इतने करीब आ गई कि घर वालों को बिना बताए ही विजय से कोर्टमैरिज कर ली.

मांबाप से तो वैसे भी कोई मतलब ही नहीं था, लेकिन बहन का यह कदम भाई जोगा सिंह को भी अच्छा नहीं लगा. अत: वह भी उस से नफरत करने लगा, क्योंकि वह विजय की असलियत अच्छी तरह जानता था. शादी के बाद कुछ दिनों तक प्रीति विजय के साथ करनाल में रही, लेकिन उस के बाद विजय और नरेश उसे ले कर लुधियाना आ गए. लुधियाना के मुंडिया में किराए का मकान ले कर सभी एक साथ रहने लगे. दरअसल विजय का प्रीति से शादी कर के लुधियाना आने की वजह यह थी कि हरियाणा (Haryana Crime news) पुलिस, खासकर जींद पुलिस विजय और नरेश के पीछे हाथ धो कर पड़ गई थी. वे कभी भी ऐनकाउंटर में मारे जा सकते थे. इसलिए वे लुधियाना भाग आए थे. प्रीति से शादी उस ने इसलिए की थी कि पत्नी के साथ रहने पर लोगों को संदेह कम होता है और मकान वगैरह भी आसानी से मिल जाता है.

विजय और नरेश आपराधिक गिरोह के सदस्य हैं, यह बात प्रीति को पहले मालूम नहीं थी. लेकिन जब उसे इस बात का पता चला तो भी उस ने बुरा नहीं माना, क्योंकि वह ऐशोआराम से जीने की आदी थी. विजय के पास किसी चीज की कमी नहीं थी. इस के अलावा उस के पास रुतबा भी था. उस के एक बार कहने पर विजय और नरेश किसी को भी गोली मार सकते थे. विजय और प्रीति का दांपत्य ठीकठाक चल रहा था. लेकिन इस में दरार तब आ गई, जब विजय को अपने दोस्त नरेश को ले कर प्रीति पर शक हो गया. दरअसल हुआ यह कि एक दिन नरेश जल्दी घर आ गया. खाना खा कर वह प्रीति के पास बैठ कर बातें करने लगा. किसी बात पर दोनों हंस रहे थे कि तभी अचानक विजय आ गया. उस ने नरेश और प्रीति की इस हंसी का कुछ और ही नतीजा निकाल लिया.

अपराधी प्रवृत्ति के लोगों की सोच कुछ ऐसी होती है. क्योंकि उन्हें जब स्वयं पर ही विश्वास नहीं होता तो वे दूसरे पर भला कैसे विश्वास कर सकते हैं. बस उसी दिन से विजय और प्रीति के बीच क्लेश शुरू हो गया. धीरेधीरे यह क्लेश इतना बढ़ गया कि प्रीति विजय से नफरत करने लगी. उसी दौरान विजय के घर उस के गिरोह के सरगना सुरजीत का आनाजाना शुरू हो गया. सुरजीत, बिट्टू और सोनू डागर का एक ऐसा गिरोह था, जिस का आतंक उन दिनों पूरे हरियाणा में था. इन के हाथ इतने लंबे थे कि जेल में रहते हुए भी ये आपराधिक गतिविधियों को अंजाम देते रहते थे. नरेश और विजय सुरजीत के गिरोह के सक्रिय सदस्य थे.

उसी बीच किसी बैंक को लूटने के चक्कर में सुरजीत कई दिनों तक विजय के घर रुका तो प्रीति की खूबसूरती पर वह रीझ गया. वहां रहते हुए उस ने देखा था कि विजय रोज शराब पी कर उस की पिटाई करता है. प्रीति की परेशानी को देखते हुए एक दिन उस ने कहा, ‘‘प्रीति, अगर तुम विजय को छोड़ दो तो मैं तुम्हें अपनाने को तैयार हूं. मैं तुम्हें रानी बना कर रखूंगा. तुम्हें तो पता ही है कि गिरोह का सरगना मैं हूं. विजय और नरेश मेरे गिरोह के सदस्य हैं. मेरे सामने इन की क्या औकात है. अगर मैं इन्हें अपने गिरोह से निकाल दूं तो इन्हें सड़क पर खड़े हो कर भीख मांगनी पड़ेगी.’’

प्रीति भी महसूस कर रही थी कि सुरजीत उस पर पूरी तरह से फिदा है. उस की बात में दम भी था. गिरोह का सरगना वही था. उस ने देखा भी था कि किसी की भी हिम्मत उस के सामने बोलने की नहीं होती थी. उस के सामने शेर बना रहने वाला विजय सुरजीत के सामने आंख तक नहीं उठाता था. प्रीति सुरजीत की बात मान कर उस की झोली में जा गिरी. अब समस्या यह थी कि विजय से कैसे पीछा छुड़ाया जाए. अगर सुरजीत चाहता तो अपनी ताकत के बल पर भी प्रीति को अपने साथ भी रख सकता था. लेकिन इस में खतरा था. जोरू के लिए आदमी कुछ भी कर सकता है. सामने से नहीं तो पीछे से विजय वार कर ही सकता था. इसलिए सुरजीत ने सोचा, विजय को खत्म कर दिया जाए. जब वह रहेगा ही नहीं तो वार कौन करेगा.

विजय से शादी की वजह से जोगा सिंह प्रीति से काफी नाराज था. इसी वजह से प्रीति को भी भाई से नफरत हो गई थी. जिस की वजह से वह भाई के बारे में कुछ और ही सोचने लगी थी. जोगा सिंह की पैतृक जमीन की कीमत करोड़ों में थी. उस पर उस का अकेले का कब्जा था. जब इस बात का पता सुरजीत को चला तो उस ने बहनभाई की नफरत को हवा दे कर प्रीति को उकसाते हुए कहा, ‘‘तुम्हारी करोड़ों की जमीन जोगा सिंह हड़पे हुए है. अगर उसे निपटा दिया जाए तो करोड़ों की वह जमीन तुम्हारी हो सकती है.’’

करोड़ों की जमीन के लालच में प्रीति भाई की हत्या कराने के लिए तैयार हो गई. इस के बाद वह सुरजीत को ले कर जींद के सापर गांव में रहने वाली अपनी बड़ी बहन बलजीत कौर के यहां भी गई. उस ने भी हामी भर दी, क्योंकि जोगा सिंह ने उसे भी हिस्सा नहीं दिया था. इस के बाद सुरजीत ने जो योजना बनाई, उस के अनुसार पहले विजय और नरेश को ठिकाने लगा कर प्रीति को हासिल करना था. प्रीति के साथ आने के बाद उसे जोगा सिंह से प्रीति के हिस्से की जमीन मांगना था. अगर उस ने जमीन दे दी तो ठीक अन्यथा उसे ठिकाने लगा कर पूरी जमीन पर कब्जा कर लेना था. इस के बाद प्रीति को भी ठिकाने लगा कर करोड़ों की उस जमीन पर वह कब्जा कर लेता. इस योजना को अंजाम देने के लिए सुरजीत ने सोनू डागर को साथ मिला लिया.

यहां यह बताना जरूरी है कि सुरजीत और सोनू सजायाफ्ता अपराधी थे. करनाल के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश के यहां से सुरजीत को उम्रकैद की सजा हुई थी. 6 साल की सजा काटने के बाद 7 मार्च, 2009 को वह 32 दिनों के पैरोल पर जेल से बाहर आया तो लौट कर गया ही नहीं. इस के बाद अदालत से उसे भगोड़ा घोषित कर दिया गया था. जिस रात विजय और नरेश की हत्या हुई थी, उस से एक दिन पहले सुरजीत ने विजय को फोन कर के कहा था कि अगर वह लुधियाना में उस के रहने की व्यवस्था कर दे तो कुछ दिनों के लिए वह लुधियाना आ जाए. विजय ने ऊपर वाले जिस कमरे में नरेश रहता था, उसी में सुरजीत के रहने की व्यवस्था कर के उस ने उसे लुधियाना आने के लिए कह दिया था.

फिर उसी दिन शाम को सुरजीत और सोनू डागर समराला चौक पहुंच गए थे. विजय और नरेश वहां खड़े उन का इंतजार कर रहे थे. विजय उन्हें साथ ले कर अपने घर पहुंचा. घर जाते हुए रास्ते में उन्होंने खानेपीने की चीजें खरीद ली थीं. घर पहुंचते ही महफिल जम गई थी. सुरजीत को देख कर प्रीति खुशी से झूम उठी थी, क्योंकि उसे पता था उस दिन उसे विजय से मुक्ति मिल जाएगी. योजना के अनुसार, सुरजीत ने विजय और नरेश को अधिक शराब पिला दी थी. उन की महफिल देर रात तक जमी रही. रात 11 बजे खाना खा कर सब सो गए. साढ़े 11 बजे के बाद सुरजीत उठा और बगल में सो रहे नरेश को गोली मार दी. नरेश को मार कर दोनों नीचे उतरे. नीचे आ कर सोनू ने सो रहे विजय को गोली मार कर उस का भी खेल खत्म कर दिया. प्रीति खड़ी तमाशा देखती रही.

साथ जीनेमरने की कसमें खाने वाली प्रीति ने सुख और दौलत के लिए अपनी आंखों के सामने पति की हत्या करवा कर खुद को विधवा करवा लिया. विजय और नरेश की हत्या कर के सुरजीत और सोनू विजय के ही स्कूटर से चले गए. उन के जाने के बाद प्रीती ने अपना नाटक शुरू किया. पूछताछ के बाद मैं ने प्रीती को अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. मैं ने सुरजीत और सोनू की तलाश में न जाने कहांकहां छापे मारे, लेकिन उन का कुछ पता नहीं चला. मैं ने समय से इस मामले की चार्जशीट अदालत में पेश कर दी, जिस से मुकदमा चला. हत्या का षड्यंत्र रचने और पुलिस को गुमराह करने के जुर्म में प्रीति को 5 साल की सजा हुई. इस समय वह लुधियाना की जेल में अपनी सजा काट रही है. मजे की बात यह है कि सुरजीत और सोनू का पता आज तक नहीं चला है.

— प्रस्तुति : हरमिंदर खोजी

 

Delhi Crime : पहले बीवी से बात की फिर झूल गया फांसी पर

Delhi Crime : उस ने मरने से पहले आखिरी बार अपनी पत्नी से बात की. बातचीत के कुछ समय बाद उस ने फांसी के फंदे पर लटक कर आत्महत्या कर ली. इस सनसनीखेज वारदात ने लोगों को झकझोर कर रख दिया. मामला राजधानी दिल्ली के मौडल टाउन इलाके के कल्याण विहार की है, जहां 39 वर्षीय पुनीत खुराना की मौत की खबर सुन कर सनसनी फैल गई।

उस ने अपने ही घर में फांसी लगा कर आत्महत्या कर ली थी. जब परिवार वालों को पता चला कि दरवाजा अंदर से बंद है तो उन्होंने देखा कि वह फांसी के फंदे पर लटका हुआ है.

पुलिस को सूचना

आननफानन में इस की सूचना पुलिस को दी गई। पुलिस को जांच में पता चला कि पुनीत की शादी 2016 में हुई थी और उस का अपनी पत्नी से तलाक का केस चल रहा था.

परिवार वालों का कहना है कि पुनीत अपनी पत्नी से परेशान था और उस ने आखिरी बार अपनी पत्नी से बात भी की थी. इसी बीच पुनीत की पत्नी का इंस्टा पोस्ट भी सुर्खियों में रहा. करीब 6 दिन पहले पुनीत की पत्नी मनिका पाहवा ने अपने इंस्टा पोस्ट में लिखा था कि तनावभरे माहौल और दुर्व्यवहार के बाद वह ठीक हो रही है और बेहतर होने की कोशिश कर रही है.

आखिरी बार की बातचीत

पुनीत के परिवार वालों ने कहा है कि आखिरी बार पुनीत ने अपनी पत्नी से बात की थी. बात करते हुए दोनों के बीच बिजनैस को ले कर भी चर्चा हुई थी. इसी बातचीत का एक (Delhi Crime) औडियो कौल सामने आया है. बातचीत का ब्योरा कुछ इस तरह है :

पत्नी : हैलो, नींद नहीं आ रही क्या? तुम तो मुझे और मेरे परिवार को बदनाम कर रहे थे…

पुनीत : साफसाफ बताओ जो चाहिए तुम्हें, बाकी जो तुम्हें करना है करो.

पत्नी : अब धमकी दोगे कि सुसाइड कर लूंगा या घर छोड़ जाऊंगा?

पुनीत : इन बातों का कोई मतलब नहीं निकलता है. तुम बताओ कि मुझ से क्या चाहिए? मेरा किसी से भी अफेयर नहीं है.

पत्नी : मुझे इन बातों से फर्क नहीं पड़ता. हम तलाक की बात कर चुके हैं. हम दोनों सिर्फ बिजनैस पार्टनर हैं, वह भी अलगअलग। लेकिन तुम्हारी झूठ बोलने की आदत है। भिखारी, मैं ने तुझ से क्या मांगा?

पुनीत : तुम मुझे गालियां क्यों दे रही हो?

पत्नी : यह भाषा मैं ने तुम से ही सीखी है. सामने आए तो चांटा मारूंगी, लेकिन तुम्हें मार कर मैं अपने हाथ गंदे नहीं करना चाहती.

पुनीत : मैं ने कौल इसलिए किया कि तुम मेरा अकाउंट हैक न करो.

पत्नी : तुम दूसरी लड़कियों से क्यों मिलते हो…

पुनीत के सुसाइड (Delhi Crime) करने के बाद पुलिस का कहना था कि इस घटना में व्यापार में घाटे के ऐंगल से जांच की जा रही है. पुलिस ने कहा कि दोनों के बीच बिजनैस को ले कर बातचीत हुई थी. पुनीत और उस की पत्नी बेकरी का बिजनैस किया करते थे और दोनों ही उस में पार्टनर थे. इसी बीच पत्नी ने कहा कि हम दोनों के बीच तलाक का केस चल रहा है, लेकिन यह तो नहीं है कि मुझे कारोबार से अलग कर दिया जाए.

इसी बीच पुनीत के परिवार वालों ने आरोप लगाया है कि पुनीत की आखिरी रिकौर्डिंग कर के पत्नी ने अपने रिश्तेदारों को भेजी थी.

पुलिस ने पुनीत का फोन जब्त कर लिया है और पत्नी को जांच के लिए बुलाया है. पुलिस अभी पूरे मामले की जांच कर रही है. सारे सुबूतों के आधार पर काररवाई की जाएगी.

UP Crime : बेटी ने ‘मां के प्रेमी’ को फंसाकर कराई मां की हत्या

UP Crime : 17 वर्षीय सपना ने अपनी मम्मी अलका के प्रेमी सुभाष के जाल में फंसने के बाद अपने दोनों प्रेमियों अखिलेश और अनिकेत से किनारा कर लिया था. फिर एक दिन ऐसा क्या हुआ कि माइनर सपना ने मम्मी के प्रेमी सुभाष से ही उस की हत्या करा दी? आखिर सपना क्यों बनी मम्मी की दुश्मन?

अलका को जब पता चला कि उस की बेटी सपना ने अपनी ननिहाल में भी अपने प्रेमी से बात करनी बंद नहीं की है तो वह 26 सितंबर, 2024 को अपने मायके से बेटी को घर ले आई. दूसरे रोज अलका ने सुभाष से फोन पर बात की और घर बुला लिया. उस के बाद अलका ने सुभाष से एकांत में बात की और कहा, ”सुभाष, मैं सपना से बहुत परेशान हूं. वह हम दोनों के रिश्तों का राज भी जान गई है. इसलिए तुम मेरी बदचलन बेटी सपना को खत्म कर दो. इस काम के लिए मैं तुम्हें 50 हजार रुपए दूंगी.’’

सुभाष राजी हो गया तो अलका ने कहा कल बेटी के केस की तारीख है. मैं सपना को ले कर एटा कोर्ट जाऊंगी. वहीं मैं तुम्हें सपना को सौंप दूंगी. फिर तुम उस को मार देना और उस की लाश को भी ठिकाने लगा देना. किसी को कुछ भी पता नहीं चलेगा. योजना के तहत अलका 28 सितंबर, 2024 को बेटी सपना को साथ ले कर एटा कोर्ट पहुंची. वहीं उसे सुभाष मिल गया. अलका ने बेटी से कहा कि वह सुभाष मामा के साथ घर चली जाए. वह कुछ और काम निपटा कर घर पहुंचेगी.

अभी तक सपना मम्मी के खतरनाक इरादों से वाकिफ नहीं थी. रास्ते में सुभाष ने कहा, ”सपना, तुम्हारी मम्मी ने मुझे 50 हजार रुपयों की सुपारी दी है. तुम सुनोगी तो तुम्हारे होश उड़ जाएंगे. हो सकता है कि तुम्हें मेरी बात पर यकीन ही न हो.’’

सपना ने पूछा, ”मामा, सच बताओ कि मां ने तुम्हें 50 हजार रुपए देने को क्यों कहा?’’

”तुम्हारी मम्मी तुम्हारी हत्या करवाना चाहती है. इसलिए रुपए देने को कहा है.’’

मम्मी के खतरनाक इरादों की जानकारी पा कर सपना की आंखों से आंसू बहने लगे. वह सुभाष के गले लग गई और बोली, ”मामा, मेरी जान बख्श दो. आप जो कहोगे, वह करूंगी. आप की हर बात मानूंगी.’’

सपना कुछ देर मौन रही फिर आंसू पोंछते हुए बोली, ”मामा, जो मंसूबे मम्मी के थे, वही अब मेरे हैं. तुम मम्मी को मार डालो. उस के बाद मैं तुम से शादी कर लूंगी. तुम्हारे साथ ही जीवन बिताऊंगी. मैं अखिलेश व अनिकेत को भी भुला दूंगी, जिन से मैं प्यार करती हूं. यह मेरा वादा रहा.’’

सपना की बात सुन कर सुभाष ने उस की हत्या का इरादा त्याग दिया. इस के बाद वह सपना को एक खेत में ले गया. वहां उस ने सपना की मोबाइल पर ऐसी फोटो क्लिक की, जैसे उसे मार डाला गया हो. यह फोटो सुभाष ने अलका के मोबाइल पर भेज दी और कहा कि फोटो देख लो. मैं ने तुम्हारी बेटी को मार डाला है. इस के बाद सुभाष सपना को ले कर आगरा चला गया. आगरा (UP Crime) की मधु विहार कालोनी में सुभाष का एक परिचित रहता था. वह उसी के घर में रुका. रात में सपना व सुभाष एक ही कमरे में सोए और उन के बीच संबंध बने. सपना ने किसी तरह का विरोध नहीं किया.

2 अक्तूबर, 2024 को सुभाष अलका के घर अल्हापुर पहुंचा. उस ने फिर से अलका को फोटो दिखाई कि तुम्हारी बेटी को मार डाला है. अब पैसे दे दो. इस पर उस ने कहा 2-3 दिन रुको. मैं पैसे दे दूंगी. इस के बाद सुभाष वापस आगरा आ गया. एक दिन बाद उस ने फिर अलका को फोन किया और पैसे मांगे. लेकिन वह टाल गई. सुभाष समझ गया कि अलका की नीयत पैसे देने की नहीं है. अगले दिन सुभाष ने फिर अलका को फोन किया और कहा कि मुझे पता था कि तुम रुपया नहीं दे पाओगी. इसलिए मैं ने सपना को नहीं मारा. वह मेरे साथ आगरा में है. तुम आ कर उसे ले जाओ.

5 अक्तूबर, 2024 को अलका 12 बजे आगरा पहुंच गई. दोनों फोन से जुड़े थे और उन के बीच बात हो रही थी. आगरा बस स्टाप पर अलका को सुभाष मिला. उस के साथ सपना भी थी. वहां से तीनों पिकअप गाड़ी पर बैठ कर एटा आ गए. यहां रामलीला ग्राउंड में दशहरा मेला लगा था. तीनों ने मेला घूमा. इस के बाद पिपरन चौराहा आए. फिर पैदल ही जसरथपुर थाने के नगला चंदन पुरंजला गांव के पास पहुंचे.

अब तक रात के लगभग साढ़े 10 बज चुके थे. अलका ने एक बार फिर सुुभाष के कान में फुसफुसा कर कहा कि सपना को मार डालो. पैसे मिल जाएंगे. लेकिन सपना ने तो शादी की बात कह कर बाजी पलट दी थी. चारों ओर घुप अंधेरा छाया था. सुभाष सपना को ले कर बाजरे के खेत में पहुंचा. अलका खेत से कुछ दूर मेढ़ पर बैठी थी. सुभाष ने सपना से कहा, ”तुम अपना वादा पूरा करने का वचन दो तो मैं अभी तुम्हारी मां को मार डालूं.’’

सपना सुभाष का हाथ अपने हाथ में लेकर बोली, ”मैं तुम्हें वचन देती हूं कि तुम से शादी रचा कर मैं अपना वादा पूरा करूंगी. तुम मेरी मां को मार डालो.’’

इस के बाद सुभाष ने अलका को आवाज दी तो वह भी बाजरे के खेत में पहुंच गई. उस के पहुंचते ही सुभाष और सपना ने उस को दबोच लिया और उसे पीटने लगे. फिर उसी की साड़ी के पल्लू को गरदन में लपेट कर गला कस कर मार डाला. शव को बाजरे के खेत में छोड़ कर दोनों फरार हो गए. 6 अक्तूबर, 2024 की सुबह नगला चंदन पुरंजला गांव के कुछ लोगों ने गांव के बाहर बाजरे के खेत में एक महिला की लाश देखी तो सूचना थाना जसरथपुर पुलिस को दी. सूचना पाते ही एसएचओ ओमप्रकाश सिंह पुलिस बल के साथ घटनास्थल पर आ गए. उन्होंने सूचना पुलिस अधिकारियों को दी तो एसपी श्याम नारायन सिंह, एएसपी राजकुमार सिंह तथा डीएसपी सुधांशु शेखर भी आ गए. उन्होंने मौके पर फोरैंसिक टीम को भी बुला लिया.

पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल की बारीकी से जांच की. मृतका की उम्र 33 वर्ष के आसपास थी. उस की हत्या गला कस कर की गई थी. शरीर पर चोटों के भी निशान थे. वह गुलाबी साड़ी व उसी के मैचिंग का ब्लाउज पहने थी. फोरैंसिक टीम ने भी जांच कर साक्ष्य जुटाए. अभी तक सैकड़ों लोग शव को देख चुके थे, लेकिन कोई भी उसे पहचान नहीं पाया था. महिला की शिनाख्त नहीं हो पाई तो उस का फोटो खींच कर शव को पोस्टमार्टम हाउस एटा भेज दिया गया. पुलिस अधिकारियों के आदेश पर एसएचओ ओमप्रकाश सिंह ने डैडबौडी का फोटो आसपास के थानों तथा सोशल मीडिया पर भेज दिया. साथ ही अखबारों में भी छपने को भेजा गया ताकि उस की जल्दी शिनाख्त हो सके.

7 अक्तूबर को हुलिया सहित अज्ञात लाश का फोटो अखबारों में छपा तो उसे देख कर अल्हापुर के रमाकांत का माथा ठनका. क्योंकि उस की पत्नी अलका 2 दिन से लापता थी. वह तुरंत थाना जसरथपुर पहुंचा और एसएचओ ओमप्रकाश सिंह को सारी बात बताई. रमाकांत को पोस्टमार्टम हाउस ले जाया गया. वहां उस ने जैसे ही लाश को देखा, वह फफक पड़ा और बताया कि लाश उस की पत्नी अलका की है. एएसपी राजकुमार सिंह ने अलका मर्डर केस की तह तक पहुंचने के लिए डीएसपी सुधांशु शेखर की निगरानी में एक पुलिस टीम का गठन किया. साथ ही मृतका की ससुराल व मायके में खबरियों को लगा दिया.

टीम ने सब से पहले मृतका के पति रमाकांत से पूछताछ की. उस ने बताया कि गांव के 2 युवक अखिलेश व अनिकेत उस की बेटी को बहलाफुसला कर भगा ले गए थे. अखिलेश जेल भी गया था. इन्हीं दोनों ने रंजिशन उस की पत्नी की हत्या की है. रमाकांत के पास पत्नी का मोबाइल फोन नंबर था. उस ने वह नंबर पुलिस को दे दिया. इस के बाद पुलिस टीम ने पोस्टमार्टम रिपोर्ट का अध्ययन किया. रिपोर्ट के अनुसार अलका की हत्या गला कस कर की गई थी. चोटों के निशान भी शरीर पर थे. लेकिन उस के साथ बलात्कार नहीं हुआ था. रमाकांत के बयान के आधार पर पुलिस ने गांव के 2 युवकों अखिलेश व अनिकेत को हिरासत में लिया और उन से सख्ती से पूछताछ की, लेकिन वे निर्दोष साबित हुए. अत: उन्हें घर जाने दिया गया.

मृतका अलका का मोबाइल फोन नंबर पुलिस के पास था. पुलिस ने उस के नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई तो पता चला कि वह एक नंबर पर सब से ज्यादा बात करती थी. यह नंबर सुभाष का था जो फर्रुखाबाद के गांव अकराबाद सिकंदरपुर खास का रहने वाला था. पुलिस ने जांच आगे बढ़ाई तो यह भी पता चला कि सुभाष का अलका के घर आनाजाना था. दोनों के बीच नाजायज रिश्ता था. मृतका की बेटी सपना तथा सुभाष घर से फरार थे. सुभाष और सपना पर शक गहराया तो पुलिस उन की तलाश में जुट गई. खबरियों को भी उन की टोह में लगा दिया गया. टीम ने अनेक संभावित स्थानों पर छापेमारी की लेकिन उन का पता नहीं चला.

9 अक्तूबर, 2024 की रात 12 बजे पुलिस टीम को खबरियों के जरिए पता चला कि सुभाष और सपना कल्लू इलाके में देखे गए हैं. पुलिस टीम तब वहां पहुंच गई और उन्हें अलीगंज-कुरावली मार्ग के पास से गिरफ्तार कर लिया.

पूछताछ करने पर सुभाष ने पहले तो अनजान बनने की कोशिश की, लेकिन सख्ती करने पर वह टूट गया. उस के बाद सुभाष और सपना ने अलका की हत्या का जुर्म कुबूल कर लिया. दोनों से पूछताछ के बाद हत्या की जो कहानी सामने आई, इस प्रकार निकली—

उत्तर प्रदेश (UP Crime) के जिला एटा के थाना नयागांव का एक गांव है- अल्हापुर. रमाकांत इसी गांव का रहने वाला था. उस के परिवार में पत्नी अलका के अलावा 2 बेटियां थीं. वह किसानी से अपने परिवार का पालनपोषण करता था. वह सीधासादा इंसान था. रमाकांत की बड़ी बेटी सपना खूबसूरत थी. उस ने 16 बरस की उमर पार की तो उस की सुंदरता में गजब का निखार आ गया. वह स्कूल जाती तो गांव के लड़के उसे अपनी ओर आकर्षित करने का प्रयास करते. सपना पढ़ाई में तेज थी. उस ने नयागांव स्थित महिला इंटर कालेज से इंटरमीडिएट की पढ़ाई कर रही थी.

सपना के चाहने वालों में वैसे तो गांव के कई लड़के थे, लेकिन उस के घर से कुछ दूरी पर रहने वाला अखिलेश उसे कुछ ज्यादा ही चाहता था. उस के पापा राजेश सिंह दबंग व्यक्ति थे. उन की आर्थिक स्थिति भी मजबूत थी. अखिलेश उन का बिगड़ैल बेटा था. वह बनठन कर घूमता रहता था. अखिलेश व सपना एक ही गली में खेलकूद कर बड़े हुए थे. वह उसे बहुत अच्छी लगती थी. सपना स्कूल जाती तो वह उसे देखने के लिए गली के मोड़ पर खड़ा हो जाता था. दोनो की नजरें मिलतीं तो चंचल स्वभाव की सपना खिलखिला कर हंस पड़ती. फिर इतरातीइठलाती स्कूल का रास्ता पकड़ लेती.

उस की यह हंसी अखिलेश के दिल में उतरती चली गई. एक रोज उस ने सपना का रास्ता रोक लिया, फिर उस ने उसे गौर से देखते हुए कहा, ”सपना, तुम सचमुच बहुुत अच्छी हो. तुम्हारी हंसी से मेरे दिल को सुकून मिलता है.’’

अखिलेश की बात सुन कर सपना मुसकराई, फिर लजाते हुए चली गई. उस ने जिस अंदाज में उस से बातें की थीं, उस से सपना भी उस का मतलब समझ गई थी. लेकिन यह बात उस ने अखिलेश को महसूस नहीं होने दी. जबकि सपना के दिल में अखिलेश की तसवीर उतर गई थी. उस का भावुक मन अखिलेश की ओर खिंचता चला जा रहा था. अखिलेश ने जो कहा था, वे बातें उस के दिमाग में घूम रही थीं.

अखिलेश की बेचैनी अब बढऩे लगी थी. रातदिन वह उसी के बारे में सोचता रहता था. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह अपने दिल की बात उस से कैसे कहे. उस के मन में इस बात का भी डर था कि कहीं वह बुरा न मान जाए. आखिर जब उस से नहीं रहा गया तो हिम्मत कर अखिलेश छुट्टी के समय सपना के कालेज के सामने जा कर खड़ा हो गया. सपना सहेलियों के साथ कालेज से निकली तो अखिलेश को देख कर उस का दिल तेजी से धड़कने लगा. अखिलेश ने उसे एक तरफ आने का इशारा किया तो वह उस का इशारा समझ गई.

सपना सहेलियों से अलग हो कर अखिलेश के पास आ गई. जैसे ही वह उस के पास आई, अखिलेश ने उसे बाइक पर बैठने का इशारा किया. सपना बैठ गई तो वह तेजी से चल पड़ा. सपना ने कहा, ”कहां जा रहे हो, मुझे घर जाना है?’’

”चली जाना, आज मुझे तुम से कुछ कहना है.’’ अखिलेश ने कहा.

तभी सपना ने हंसते हुए अदा से कहा, ”यही न कि तुम मुझ से प्यार करते हो.’’

अखिलेश ने बिना किसी संकोच के कहा, ”सपना, सचमुच मैं तुम से प्यार करने लगा हूं.’’

सपना मुसकरा कर बोली, ”मैं भी तो तुम से प्यार करती हूं. लेकिन झिझक की वजह से इजहार नहीं कर पाई.’’

अखिलेश ने उसे हैरानी से देखा तो सपना ने नजरें झुका लीं. यह थी अखिलेश और सपना के प्यार की शुरुआत. अकसर प्रेम करने वालों की शुरुआत ऐसे ही होती है. लेकिन कभीकभी यही प्यार जीवन के लिए एक अभिशाप भी बन जाता है. अखिलेश और सपना का प्यार परवान चढ़ा तो उन के बीच की दूरियां भी मिट गईं. उन का शारीरिक मिलन भी होने लगा. इश्क की आंधी में दोनों इस तरह उडऩे लगे कि उन्होंने घरसमाज की चिंता ही नहीं की. उन्हें जब भी मौका मिलता, एकदूसरे में समा जाते.

वह इस खेल में बेहद सावधानी बरतते थे. लेकिन प्यार ऐसी चीज है, जिसे जितना भी छिपा कर रखा जाए, वह कभी न कभी घरसमाज की नजरों में आ ही जाता है. सपना और अखिलेश के साथ भी यही हुआ. एक रोज देर शाम सपना की मम्मी अलका ने उसे फोन पर हंसहंस कर बातें करते देखा तो उसे शक ही नहीं हुआ, बल्कि उसे विश्वास हो गया कि उस की नाबालिग बेटी इश्क की राह पर चल पड़ी है. अलका परेशान हो उठी. उस ने पूछा तो सपना ने झूठ बोल दिया.

कुछ दिनों बाद अलका को पता चला कि सपना स्कूल न जा कर पड़ोस में रहने वाले राजेश सिंह के आवारा बेटे अखिलेश के साथ प्यार की पींगें बढ़ा रही है. वह समझ गई कि सपना चोरीछिपे अखिलेश से ही मोबाइल पर बात करती है. पूरी बात समझ में आई तो इस बार उस ने बेटी से सख्ती से पूछा तो उस ने बिना झिझक के कहा, ”मम्मी, मैं अखिलेश से प्यार करती हूं और वह भी मुझे बहुत चाहता है. हम दोनों शादी करना चाहते हैं.’’

”शादीप्यार यह सब क्या कह रही है तू? तेरी अभी उम्र ही क्या है? फिर वह हमारी जाति का भी तो नहीं है. अखिलेश अमीर बाप का बिगड़ैल बेटा है. वह तुम्हारे जीवन को बरबाद कर देगा. इसलिए यह बात तू मन से निकाल दे और उसे भुला दे. तेरी शादी उस से किसी भी कीमत पर नहीं हो सकती.’’

”क्यों नहीं हो सकती मम्मी? अब जमाना बदल गया है. दूसरी जाति में शादी करना अब आम बात हो गई है. फिर अखिलेश बहुत अच्छा लड़का है. आज नहीं तो कल तुम्हें भी पसंद आ जाएगा.’’ मम्मी को समझाते हुए सपना बोली.

अपनी कच्ची उम्र की बेटी के मुंह से ऐसी बातें सुन कर अलका हैरान रह गई. उस ने गुस्से से कहा, ”सपना, अब बहुत हो चुका. कल से तुम मेरी निगरानी में घर में ही रहोगी. तुम्हारा अब कालेज जाना बंद.’’

”क्यों मम्मी?’’ सपना ने हैरानी से पूछा.

”कह दिया न, नहीं जाना है तो नहीं जाना.’’ कह कर अलका अपने काम में लग गई और सपना कमरे में जा कर आंसू बहाने लगी. शाम को रमाकांत खेत से लौटा तो अलका ने पति को बेटी की प्रेम कहानी बयां की.

पत्नी की बात सुन कर रमाकांत को अपने पैरों तले से जमीन खिसकती नजर आई. उस ने सोचा कि उस की नादान बेटी यदि उस के सीने में इज्जत का छुरा घोंप कर घर से भाग गई तो वह जीते जी मर जाएगा. उस की इज्जत नीलाम हो जाएगी. वह किसी को मुंह दिखाने लायक नहीं रहेगा. इसलिए रमाकांत ने पहले सपना को डांटाफटकारा, फिर सिर पर हाथ रख कर उसे प्यार से समझाया भी.

प्यार पर पहरा लगा तो सपना और अखिलेश का मिलनाजुलना बंद हो गया. अब दोनों मिलन के लिए तड़पने लगे. अलका ने सपना का मोबाइल फोन भी छीन लिया था और उसे तोड़ कर फेंक दिया था. इसलिए वह मोबाइल फोन से भी अखिलेश से बात नहीं कर पाती थी. जैसेजैसे दिन बीतते जा रहे थे, वैसेवैसे दोनों की बेचैनी बढ़ती जा रही थी. अखिलेश का एक दोस्त अनिकेत था. वह भी सपना का दीवाना हो गया था, लेकिन सपना ने उस के चक्कर में प्रेमी अखिलेश का विश्वास तोड़ दिया था. अनिकेत उन दोनों के बीच दरार पैदा नहीं करना चाहता था, इसलिए उस ने सपना से दूरियां बना ली थीं.

अखिलेश का सपना से मिलनाजुलना बंद हुआ तो उस ने अनिकेत की मदद ली. अनिकेत की मार्फत उस ने एक लैटर सपना के पास भिजवाया. इस लैटर में उस ने लिखा कि घरवाले उस के प्यार के दुश्मन बन गए हैं. इसलिए वह उस के साथ भाग चले. क्योंकि वह उस के बिना जी नहीं पाएगा. अब अनिकेत उन दोनों के बीच की धुरी बन गया था. इस लैटर का सपना पर असर हुआ. अनिकेत के मार्फत ही उस ने भी एक भावुक लैटर अखिलेश को भिजवाया. इस पत्र में सपना ने लिखा कि वह रातदिन उसी के प्यार में खोई रहती है. वह भी उस के बिना अधूरी है. उस का कमरे में दम घुटता है. मां के ताने उसे सूई की तरह चुभते हैं. वह जल्दी आजाद होना चाहती है. वह उस के साथ कहीं भी जाने को राजी है.

फरवरी 2024 के पहले सप्ताह में एक रात सपना प्रेमी अखिलेश के साथ अपने घर से फुर्र हो गई. सुबह अलका कमरे में चाय ले कर गई तो चारपाई पर बेटी नहीं थी. उस ने घर का कोनाकोना छान मारा, लेकिन वह कहीं नहीं मिली. अलका समझ गई कि सपना अखिलेश के साथ भाग गई है. उस ने यह बात पति को बताई तो रमाकांत ने भी माथा पीट लिया. वह सोचने लगा कि जिस का उसे डर था, वही हो गया. बुरी बातें छिपती कहां हैं? जल्दी ही यह खबर पूरे गांव में फैल गई कि रमाकांत की बड़ी बेटी सपना गांव के राजेश सिंह के बेटे अखिलेश के साथ भाग गई है. इस के बाद तो महिलाएं कुछ ज्यादा ही चटखारे ले कर बातेंकरने लगीं. वे अलका की परवरिश पर अंगुली उठा रही थीं. कुछ तो कहतीं कि जैसी मां, वैसी बेटी.

रमाकांत व अलका ने 2 दिन तक गुपचुप तरीके से बेटी की खोज की, लेकिन जब उस का कुछ भी पता नहीं चला तो रमाकांत रिपोर्ट दर्ज कराने थाना नयागांव जा पहुंचा. उस ने इंसपेक्टर आर.बी. सिंह को बेटी के गायब होने की बात बता दी. इंसपेक्टर आर.बी. सिंह ने रमाकांत की तहरीर पर अखिलेश के खिलाफ अपहरण का मुकदमा दर्ज कर लिया. इस के बाद पुलिस सपना की बरामदगी में जुट गई.

चूंकि नाबालिग लड़की का मामला था, इसलिए पुलिस ने मामले को गंभीरता से लिया. जांचपड़ताल से पुलिस को पता चला कि सपना को भगाने में अखिलेश के दोस्त अनिकेत ने अहम भूमिका निभाई थी. पुलिस ने उसे हिरासत में ले कर पूछताछ की. उस का मोबाइल फोन भी ले लिया. पुलिस ने अखिलेश के पापा राजेश सिंह पर भी दबाव बनाया. इस के अलावा मुखबिरों का भी सहारा लिया.

इस का परिणाम यह निकला कि पुलिस ने 28 फरवरी, 2024 को नाटकीय ढंग से एटा से सपना को बरामद कर लिया और अखिलेश को भी हिरासत में ले लिया. पुलिस पूछताछ में सपना ने बताया कि अखिलेश उसे भगा कर नहीं ले गया था, बल्कि वह खुद उस के साथ घूमनेफिरने गई थी. अखिलेश उस का बौयफ्रेंड है. पुलिस ने सपना का डाक्टरी परीक्षण कराया और कोर्ट में बयान दर्ज करा कर उसे उस के पेरेंट्स को सौंप दिया तथा अखिलेश को जेल भेज दिया.

सपना वापस तो आ गई, लेकिन उस की गांव भर में थूथू होने लगी. उस की सहेलियां भी उस से कतराने लगीं. सपना के भागने से रमाकांत व अलका का भी जीना दूभर हो गया था. गांव में वे सिर झुका कर घर से निकलते थे. महिलाएं जहां अलका को ताने मारती थीं तो वहीं रमाकांत को पड़ोसी इज्जत की नजरों से नहीं देखते. इन्हीं दिनों अलका के घर सुभाष सिंह का आनाजाना शुरू हुआ. सुभाष फर्रुखाबाद जिले के कायमगंज थाने के गांव अकराबाद सिकंदरपुर खास का रहने वाला था. अलका का इसी गांव में मायका था. सुभाष उस के मायके वाले घर से कुछ दूरी पर रहता था. वह कारपेंटर था. उस की अच्छी कमाई थी. सुभाष अलका के मायके का यार था.

अलका ने जब जवानी की दहलीज पर कदम रखा था, तभी उस का नाजायज रिश्ता सुभाष से जुड़ गया था. सुभाष अलका का दीवाना था, सो उस पर खूब खर्च करता था. कुछ समय बाद अलका का विवाह रमाकांत से हो गया तो वह अपनी ससुराल अल्हापुर आ गई. सुभाष अल्हापुर भी आने लगा. अलका की शादी के बाद भी उस ने रिश्ता खत्म नहीं किया.

अलका ने पति को बताया कि सुभाष मायके के रिश्ते से उस का भाई लगता है. इसलिए जब तब मिलने आ जाता है. सीधेसादे रमाकांत ने सहज ही पत्नी की बातों पर भरोसा कर लिया था. रमाकांत की बेटी सपना उन दिनों 6 साल की थी. सुभाष को वह मामा कहती थी. सुभाष उस से खूब बतियाता था और उसे खूब प्यार करता था. सुभाष अय्याश किस्म का था. औरत उस की कमजोरी थी. अलका जब ससुराल में रहने लगी तो वह गांव की एक अन्य महिला पर डोरे डालने लगा था. लेकिन वह महिला उस के झांसे में नहीं आई.

सुभाष ने तब उस से जोरजबरदस्ती की और एक दिन अकेला पा कर महिला को अपनी हवस का शिकार बना डाला. महिला के घरवालों ने तब कायमगंज थाने में सुभाष के खिलाफ भादंवि की धारा 323/504/506/376 के तहत रिपोर्ट दर्ज करा दी. पुलिस ने मारपीट, धमकी व बलात्कार के मामले में सुभाष को जल्दी ही गिरफ्तार कर लिया और उसे जेल भेज दिया. कोर्ट में मुकदमा चला और अदालत ने उसे 10 साल की सजा सुनाई. सजा भुगतने के लिए उसे फतेहगढ़ सेंट्रल जेल भेज दिया गया. जेल जाने के बाद सुभाष का अलका से मिलनाजुलना बंद हो गया.

फतेहगढ़ सेंट्रल जेल में सजा काटने के बाद वर्ष 2024 के जनवरी माह में उस की रिहाई हुई. उस के बाद वह गांव आ कर रहने लगा. उस ने बढ़ई का काम फिर शुरू कर दिया. लेकिन उस के काम ने रफ्तार नहीं पकड़ी, क्योंकि गांव के लोग सजायाफ्ता सुभाष से कटने लगे थे. इसलिए उस की आर्थिक स्थिति डावांडोल थी. एक रोज सुभाष को पता चला कि अलका की बेटी सपना गांव के किसी युवक के साथ भाग गई थी. पुलिस ने उसे बरामद कर लिया है तो वह अलका से मिलने अल्हापुर पहुंच गया. सुभाष को देख कर अलका चौंक पड़ी, ”अरे, तुम जेल से कब आए? क्या तुम्हारी सजा पूरी हो गई?’’

”4 हफ्ते पहले ही जेल से आया हूं. मेरी सजा पूरी हो गई है. मैं ने 10 साल जेल में कैसे गुजारे, यह मैं ही जानता हूं. खैर, मेरी छोड़ो अपनी बताओ, तुम कैसी हो. मेरी भांजी सपना कैसी है. वह तो अब जवान हो गई होगी. जब मैं जेल गया था, तब शायद 6-7 साल के आसपास थी.’’ सुभाष ने अलका को जानबूझ कर कुरेदते हुए पूछा. अलका तब गुस्से से बोली, ”उस कमीनी का नाम मत लो. उस की वजह से पूरे गांव में हमारी बदनामी हुई है. अगर मैं जानती कि जवानी में वह ऐसा गुल खिलाएगी तो पैदा होते ही उस का गला घोंट देती. मुझे उस से नफरत हो गई है. वह मुझे फूटी आंख भी नहीं सुहाती है.’’

सुभाष और अलका अभी बात कर ही रहे थे कि कमरे से निकल कर सपना आ गई. सपना के आते ही अलका रसोई में चली गई. सुभाष ने सपना को देखा तो देखता ही रह गया. वह बोला, ”सपना, तुम तो अपनी मां से भी ज्यादा खूबसूरत हो. जेल में रहते मुझे तुम्हारी बहुत याद आती थी.’’

इस के बाद सपना और सुभाष के बीच देर तक बातें होती रहीं. उस ने सपना से कहा कि तुुम ने जवानी में जो भूल की है, उस से पूरे परिवार की बदनामी हुई है. तुम्हें ऐसा नहीं करना चाहिए था. सुभाष का अलका के घर आनाजाना शुरू हुआ तो दोनों के बीच फिर नाजायज रिश्ता कायम हो गया. वह जब भी घर आता, बात करने के बहाने अलका के साथ कमरे में बंद हो जाता. सपना ने पहले तो ध्यान नहीं दिया, लेकिन फिर उसे मां और मामा पर शक होने लगा. एक रोज उस ने खिड़की से झांक कर देखा तो उस का शक यकीन में बदल गया. वह जान गई कि मां और सुभाष मामा के बीच नाजायज रिश्ता है. दोनों पापा की आंखों में धूल झोंक कर घर में रंगरलियां मनाते हैं.

सपना अखिलेश से अब भी प्यार करती थी, लेकिन उस के जेल जाने के बाद सपना उस के दोस्त अनिकेत से प्यार करने लगी. दोनो चोरीछिपे मिलने भी लगे. वह सैक्स सुख का आनंद ले चुकी थी, इसलिए उस का मिलन अनिकेत से होने लगा. उन्हें खेत, बागबगीचा, जहां भी मौका मिलता, मिलन कर लेते. किसी को कानोंकान इस की खबर न लगती. लेकिन अलका को एक रोज पता चल ही गया कि सपना अब अनिकेत के साथ गुलछर्रे उड़ाने लगी है. उस ने तब सपना को खूब फटकार लगाई और उस के गाल पर 2 थप्पड़ भी जड़ दिए.

गाल पर थप्पड़ पड़ते ही सपना का गुस्सा भी फट पड़ा, ”मां, मैं तो जवान हूं. मेरी तो उम्र बहकने की है, लेकिन तुम तो अधेड़ उम्र की हो. तुम पर तो अब भी जवानी सवार है. तुम सुभाष मामा के साथ बंद कमरे में जो गुल खिलाती हो, उस की मुझे पूरी जानकारी है. मैं ने तुम्हें सुभाष मामा के साथ बिस्तर पर अपनी आंखों से देखा है.’’

सपना की बात सुन कर अलका सन्न रह गई. मन ही मन डर भी गई कि अगर सपना ने अपने पापा को सब कुछ बता दिया तो घर में कलह मच जाएगी. इस समस्या से निपटने के लिए अलका ने फोन कर अपने आशिक सुभाष को घर बुला लिया. उस ने सुभाष को बताया कि सपना को हम दोनों के नाजायज रिश्तों के बारे में पता चल गया है. डर है कि वह सब कुछ पति रमाकांत को न बता दे.

सुभाष ने अलका को समझाया कि वह सब कुछ संभाल लेगा और इस बाबत सपना से बात करेगा. सपना उस समय कमरे में सो रही थी. कुछ देर बाद जागी तो सुभाष उस के कमरे में पहुंच गया. फिर बोला, ”अलका ने मुझे बताया कि तुम्हें मेरे और अलका के अफेयर के बारे में पता चल गया है. कोई बात नहीं. लेकिन इस बारे में अपने पापा को मत बताना. उस के एवज में तुम जो मांगोगी, मैं तुम्हें दूंगा.’’

सपना मुसकराते हुए बोली, ”ठीक है मामा, मैं किसी को कुछ नहीं बताऊंगी. आप मुझे एक नया मोबाइल फोन खरीद कर दे दीजिए.’’

सुभाष ने सपना की बात मान ली और उसे एक मोबाइल खरीद कर दे दिया. मोबाइल फोन हाथ में आया तो वह अनिकेत से फोन पर खूब बतियाने लगी. उस को अब मां का डर भी नहीं सताता था. जब कभी अलका उसे टोकती तो वह उसे ऐसा करारा जवाब देती कि वह तिलमिला उठती. सपना अब एक तरह से उस की दुश्मन बन गई थी. सुभाष अय्याश किस्म का था. उस का अलका से तो नाजायज रिश्ता था ही, अब उस की बुरी नजर सपना पर भी पडऩे लगी थी. वह जब भी अल्हड़ जवान सपना को देखता तो उसे भोगने की ललक जाग उठती थी. लेकिन उम्र का फासला दूने से भी अधिक था. इसलिए सपना उसे भाव नहीं देती थी.

लगभग 2 महीने बाद सपना के प्रेमी अखिलेश को जमानत मिल गई और वह जेल से छूट कर घर आ गया. अखिलेश आया तो अलका की चिंता बढ़ गई. उसे लगा कि अखिलेश कहीं फिर उस की बेटी को भगा न ले जाए. इसलिए उस ने इस बारे में पति रमाकांत से बात की फिर अलका ने सपना को अपने मायके भेज दिया. सपना अपनी ननिहाल अकराबाद सिकंदरपुर खास आई तो वह स्वच्छंद हो कर रहने लगी. उसे अब कोई रोकनेटोकने वाला नहीं था. उस के हाथ में मोबाइल रहता ही था, सो अपने प्रेमी अनिकेत व अखिलेश से खूब बात करती. हालांकि मोबाइल फोन पर ज्यादा बातचीत करना उस के मामामामी को पसंद न था.

सुभाष भी इसी गांव का रहने वाला था. उस का घर सपना के ननिहाल से कुछ ही दूरी पर था. उसे जब पता चला कि सपना ननिहाल आई है तो वह बेहद खुश हुआ. उस ने सपना से मेलजोल व उसे रिझाना शुरू कर दिया. सपना व सुभाष की फोन पर भी बातचीत होने लगी थी. सपना सुभाष के घर भी जाने लगी थी. सुभाष सपना का मोबाइल फोन रिचार्ज कराता तथा उसे खर्च के लिए पैसे भी देता था. इस से सपना का झुकाव सुभाष की तरफ होने लगा. सपना जब भी उस के सामने होती, वह उसे ललचाई नजरों से देखता और उस के शरीर से छेड़छाड़ करता. सुभाष की छेड़छाड़ से सपना रोमांचित हो उठती. आखिर एक रोज एकांत पा कर सुभाष ने सपना को बांहों में भरा और उस के नाजुक अंगों से छेड़छाड़ की तो सपना पिघल गई और दोनों के बीच नाजायज रिश्ता बन गया.

इस के बाद तो सुभाष मांबेटी दोनों से मौजमस्ती करने लगा. अलका को सुभाष के साथ बेटी के अवैध रिश्तों की बात पता नहीं चली. ननिहाल में रहते हुए सपना को 5 महीने बीत गए थे. एक रात वह अपने प्रेमी अखिलेश व अनिकेत से हंसहंस कर मोबाइल पर अश्लील बातें कर रही थी, तभी उस की बातें उस के सगे मामा देवीदीन ने सुन लीं. उन का माथा ठनका. उन्होंने तब अपनी बहन अलका से फोन पर बात की और अपनी बिगड़ैल बेटी को तुरंत वहां से लिवा ले जाने को कहा. उन्होंने अलका को खूब खरीखोटी भी सुनाई.  देवीदीन ने यह जानकारी अपनी बहन अलका को देने के बाद उसे घर बुला लिया. फिर अलका बेटी सपना को अपने मायके से घर ले गई.

पुलिस टीम ने हत्या का खुलासा करने और आरोपियों को पकडऩे की जानकारी पुलिस अधिकारियों को दी तो एएसपी राजकुमार सिंह ने पुलिस सभागार में प्रेसवार्ता कर मीडिया के सामने हत्या का खुलासा किया. चूंकि सुभाष और सपना ने हत्या का जुर्म कुबूल कर लिया था, अत: एसएचओ ओमप्रकाश सिंह ने मृतका के पति रमाकांत की तहरीर पर भारतीय न्याय संहिता की धारा 103 के तहत सुभाष और सपना के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली और दोनों को विधिसम्मत गिरफ्तार कर लिया.

11 अक्तूबर, 2024 को पुलिस ने हत्यारोपी सुभाष और सपना को एटा की कोर्ट में पेश किया, जहां से सुभाष को जिला जेल भेज दिया गया तथा सपना को बालिका सुधार गृह भेजा गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. कथा में सपना नाम परिवर्तित है.