Family Dispute : ऐसी राहों पर खैर नहीं

Family Dispute : अशोक ने भाई ज्योति कुमार और उस के दोस्त नवल के साथ मिल कर अपनी पत्नी और 2 मासूम बेटियों की हत्या करा दी थी. तब उस ने सोचा कि पीछा छूटा. लेकिन कानून उसे और उस के सहयोगी हत्यारों को उन के अंजाम तक ले ही गया.  25 अप्रैल, 2014 को लुधियाना के अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश एस.पी. सूद की अदालत में अन्य दिनों की अपेक्षा कुछ ज्यादा ही भीड़भाड़ थी. इस की वजह यह थी कि उस दिन हत्या के एक महत्वपूर्ण मुकदमे का फैसला सुनाया जाना था. मुकदमा चूंकि दिल दहला देने वाला था, इसलिए अन्य वकील भी बहस सुनने के लिए अदालत में मौजूद थे.

इस मामले में अभियुक्तों ने एक महिला सिमरन कौर उर्फ पिंकी और उस की 8 साल तथा 5 साल की 2 मासूम बेटियों दिव्या और पूजा की बेरहमी से हत्या कर दी थी. बचाव पक्ष के वकील रछपाल सिंह मंड अपने सहायकों के साथ अदालत में मौजूद थे. अभियोजन पक्ष के वकील गुरप्रीत सिंह ग्रेवाल भी पूरी तैयारी के साथ आए थे. 11 बजे जज साहब के आने पर मकुदमे की काररवाही शुरू हुई. अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश एस.पी. सूद ने फाइल पर नजर डाल कर बचाव पक्ष के वकील आर.एस. मंड से कहा, ‘‘मंड साहब, आप को इस मामले में कुछ कहना है?’’

‘‘जी सर,’’ एडवोकेट मंड ने आगे आ कर कहा, ‘‘जैसा कि मैं पहले ही अदालत को बता चुका हूं कि हत्या के इस मामले में कोई चश्मदीद गवाह नहीं है. पूरा मुकदमा हालात पर निर्भर है. अभियोजन पक्ष को एक भी ऐसा गवाह नहीं मिला, जो इस जघन्य हत्याकांड पर रोशनी डालता. हम सिर्फ यही मान कर चल रहे हैं कि ऐसा हुआ था, वैसा हुआ होगा?’’

जज साहब एडवोकेट मंड की इन बातों पर कोई टिप्पणी करते, उस से पहले ही अभियोजन पक्ष के वकील गुरप्रीत सिंह ग्रेवाल ने कहा, ‘‘सर, रात में उस सुनसान जगह पर बैठ कर कोई आदमी यह इंतजार तो करेगा नहीं कि वहां हत्याएं होने वाली हैं और उसे उन हत्याओं का चश्मदीद गवाह बनना है. मौकाए वारदात पर अभियुक्तों के जूतों के निशान, चाकू पर मिले अंगुलियों के निशान और मृतका सिमरन की मुट्ठी में मिले आरोपियों के सिर के बाल ही उन्हें दोषी ठहराने के लिए काफी हैं. इन से भी बड़ा सुबूत है, इन हत्याओं के पीछे अभियुक्तों का मकसद, जो पूरी तरह स्पष्ट हो चुका है. इसलिए मैं एक बार पुन: अदालत से दरख्वास्त करूंगा कि इन हत्याओं के लिए अभियुक्तों को फांसी दी जानी चाहिए.’’

‘‘मैं मानता हूं कि हालात मेरे मुवक्किलों के पक्ष में नहीं हैं,’’ एडवोकेट मंड ने जज साहब को संबोधित करते हुए कहा, ‘‘इस के बावजूद मैं अदालत से निवेदन करूंगा कि मेरे मुवक्किलों के साथ नरमी बरती जाए और इन्हें संदेह का लाभ देते हुए बरी किया जाए.’’

‘‘सर, संदेह का तो कोई सवाल ही नहीं उठता. 5 चाकुओं पर अंगुलियों के निशान, मृतका की मुट्ठी से बरामद बाल, हत्या का उद्देश्य और गवाहों के बयान से संदेह की कोई गुंजाइश ही नहीं बची है. शीशे की तरह साफ है कि हत्याएं इन्हीं लोगों ने की थीं.’’ एडवोकेट गुरप्रीत सिंह ग्रेवाल ने कहा.

‘‘बिना चश्मदीद गवाह के किसी को सजा देना उस के साथ न्याय नहीं होगा.’’ एडवोकेट मंड ने अपना आखिरी दांव चलाया.

बहस पूरी हुई तो अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश एस.पी. सूद फैसला सुनाने की तैयारी करने लगे. अदालती फैसले से पहले आइए इस हत्याकांड की कहानी जान लें, जिस से फैसले को समझने में आसानी रहे. 28 दिसंबर, 2009 की सुबह लुधियाना पुलिस कंट्रोल रूम को सूचना मिली थी कि हैबोवाल क्षेत्र में सिविल सिटी स्थित संधुनगर से गुजरने वाली रेलवे लाइन के पास खेतों में एक महिला और 2 बच्चियों की लाशें पड़ी हैं. कंट्रोल रूम ने इस की सूचना संबंधित थाना सलेम टाबरी को दे दी थी. सूचना पा कर थाना सलेम टाबरी पुलिस घटनास्थल पर तो पहुंच गई, लेकिन कोई भी काररवाई करने से मना कर दिया. उस का कहना था कि घटनास्थल थाना जीआरपी के अंतर्गत है.

इस पर थाना जीआरपी को सूचना दी गई. जीआरपी पुलिस ने आ कर कहा कि यह इलाका उन के अंडर में नहीं है. उन का कहना था कि यह क्षेत्र थाना हैबोवाल में आता है. सूचना पा कर थाना हैबोवाल पुलिस घटनास्थल पर आई. लेकिन उस ने भी काररवाई करने से मना कर दिया. इस तरह कई घंटों तक सीमा विवाद को ले कर काररवाई अटकी रही. चूंकि हत्याओं का मामला था, इसलिए यह बात काफी तेजी से शहर में फैल गई थी. मीडियाकर्मी और पुलिस अधिकारी भी आ गए थे. अंत में एसीपी हर्ष बंसल के हस्तक्षेप पर थाना हैबोवाल पुलिस को काररवाई करनी पड़ी.

थाना हैबोवाल के थानाप्रभारी इंसपेक्टर हरपाल सिंह ने अपराध संख्या 271/09 पर भादंवि की धारा 302/34 के अंतर्गत मुकदमा दर्ज कर के जांच का कार्यभार अतिरिक्त थानाप्रभारी सबइंसपेक्टर अजायब सिंह को सौंप दिया. घटनास्थल पर लगी भीड़ में मृतका सिमरन के घर वाले भी मौजूद थे, इसलिए लाश की शिनाख्त में कोई परेशानी नहीं हुई. लाशों के निरीक्षण में मृतका सिमरन उर्फ पिंकी की मुट्ठी से कुछ बाल बरामद हुए थे, इस का मतलब था कि मृतका और हत्यारे के बीच संघर्ष हुआ था. घटनास्थल से पुलिस को मृत बच्चियों के पास से चिप्स के खाली पैकेट भी मिले थे. मृतका सिमरन और 5 वर्षीया बच्ची पूजा की लाश रेलवे लाइन के बिलकुल पास मिली थी.

जबकि 8 वर्षीया दिव्या की लाश वहां से थोड़ी दूर पर डिप्टी सिंह के खेत से मिली थी. खेत की सिंचाई की गई थी, जिस से उस में कीचड़ था. अंदाजा लगाया गया कि जान बचाने के लिए दिव्या भागी होगी, लेकिन कीचड़ होने की वजह से वह ज्यादा भाग नहीं पाई. रेलवे लाइन से करीब 200 मीटर की दूरी पर मृतका सिमरन का शौल पड़ा था. सबइंसपेक्टर अजायब सिंह ने क्राइम टीम बुला कर घटनास्थल से जरूरी साक्ष्य एकत्र कराए. उस के बाद घटनास्थल की काररवाई पूरी कर के पुलिस ने तीनों लाशों को पोस्टमार्टम के लिए सिविल अस्पताल भिजवा दिया.

स्वरूपनगर निवासी मृतका के पिता विजय ने पुलिस को बताया था कि सिमरन उर्फ पिंकी सहित उन की 4 संताने हैं. सिमरन उर्फ पिंकी की शादी उन्होंने सन 2000 में करनाल, हरियाणा के कुराली निवासी अशोक के साथ की थी. उस की 2 बेटियां थीं, 8 वर्षीया दिव्या और 5 वर्षीया पूजा. शादी के बाद 6-7 सालों तक तो सब ठीकठाक रहा, पर पिछले कुछ समय से पतिपत्नी के बीच किसी बात को ले कर झगड़ा होने लगा था. यह बात तलाक तक पहुंच गई थी, लेकिन पंचायत के बीच में आ जाने से तलाक होने से बच गया. विजय ने सबइंसपेक्टर अजायब सिंह को जो बताया था, उस के अनुसार 26 दिसंबर, 2008 को सिमरन अपनी दोनों बेटियों दिव्या, पूजा और पति अशोक के साथ अपने देवर की शादी के कार्ड देने लुधियाना आई थी.

कुछ कार्ड उस ने उसी दिन पहुंचा दिए थे और कुछ कार्ड अगले दिन यानी 27 तारीख को जा कर दिए थे. 27 तारीख की शाम को सिमरन और उस के पति अशोक में किसी बात को ले कर झगड़ा हुआ. लेकिन थोड़ी ही देर में दोनों में समझौता हो गया. उस के बाद अशोक कहीं चला गया. उस के जाने के थोड़ी देर बाद सिमरन दोनों बेटियों को ले कर बाजार घुमाने गई तो लौट कर नहीं आई. अगले दिन उन की लाशें मिलीं. सिमरन और उस की बेटियों की तलाश में वे लोग रात भर भटकते रहे थे.

सबइंसपेक्टर अजायब सिंह ने मृतका के पति अशोक से पूछताछ की, उस ने भी वही सब बताया, जो उस के ससुर ने बताया था. अजायब सिंह की समझ में यह नहीं आ रहा था कि सिमरन बेटियों को ले कर बाजार गई थी तो वह रेलवे लाइनों के पास सुनसान में कैसे पहुंच गई? जरूर वह वहां किसी परिचित के साथ गई होगी, पर किस के साथ? पोस्टमार्टम के बाद तीनों लाशें घर वालों को सौंप दी गईं. पोस्टमार्टम के अनुसार, दोनों लड़कियों की हत्या गला रेत कर की गई थी. सिमरन के शरीर पर चाकू के तमाम घाव थे. इस के अलावा उस के एक पैर की नस भी काटी गई थी. तीनों की मौत शरीर का खून बह जाने की वजह से हुई थी.

पुलिस का मानना था कि इन हत्याओं में किसी परिचित का हाथ था. इसलिए पुलिस का शक बारबार मृतका के पति अशोक पर जा रहा था. इस के बाद पुलिस ने मुखबिरों से जो जानकारी जुटाई, उस के अनुसार अशोक अपनी पत्नी सिमरन उर्फ पिंकी पर संदेह करता था. उसे संदेह था कि किसी के साथ उस के अवैध संबंध हैं. इसी बात को ले कर दोनों में झगड़ा होता था और बात तलाक तक पहुंच गई थी. अशोक की करनाल रेलवे स्टेशन रोड पर साइकिल रिपेयरिंग की दुकान थी. उस की आमदनी सीमित थी, जबकि सिमरन के खर्च शाही थे. वह एक महत्वाकांक्षी और आजाद खयालों वाली महिला थी. जबकि अशोक का परिवार पुराने खयालों वाला था.

शक के आधार पर अजायब सिंह ने अशोक के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकलवाई. पता चला कि अशोक ने हत्याओं से कुछ घंटे पहले और 2 घंटे बाद तक अपने भाई ज्योति से कई बार बात की थी. इस के बाद ज्योति के फोन की लोकेशन पता की गई तो उस की लोकेशन पहले करनाल की और उस के बाद लुधियाना की मिली. घटना वाले समय उस की लोकेशन घटनास्थल की पाई गई थी. अब शक की कोई गुंजाइश नहीं थी. इस के बाद पुलिस ने थोड़ी सख्ती की तो अशोक ने अपनी पत्नी सिमरन और दोनों बेटियों, दिव्या एवं पूजा की हत्या का अपराध स्वीकार कर लिया. उस ने बताया कि उस ने तीनों हत्याएं छोटे भाई ज्योति कुमार और उस के दोस्त नवल के साथ मिल कर की थीं. इस काम के लिए उस ने नवल को 20 हजार रुपए देने का वादा किया था.

अशोक पकड़ा जा चुका था. ज्योति और नवल को गिरफ्तार करने के लिए सबइंसपेक्टर अजायब सिंह करनाल गए और पूछताछ के बहाने ज्योति और उस के दोस्त नवल को लुधियाना ले आए. पुलिस अधिकारियों की उपस्थिति में अशोक, ज्योति कुमार और नवल से की गई पूछताछ में सिमरन, दिव्या और पूजा की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह बहुत ही शर्मनाक थी. अशोक और सिमरन की शादी सन 2000 में हुई थी. शुरूशुरू में दोनों का वैवाहिक जीवन काफी खुशहाल रहा. अशोक की साइकिल रिपेयरिंग की दुकान थी. वह मेहनती और दूर की सोच रखने वाला था, जबकि सिमरन इस से बिलकुल उलटी थी. वह आजाद पंछी की तरह जीवन गुजारने वाली महिला थी. आजाद खयाल की होने के साथसाथ, वह महत्वाकांक्षी भी थी.

बनठन कर रहना और खुले हाथों खर्च करना सिमरन की आदत में शुमार था. अशोक को यह सब बिलकुल अच्छा नहीं लगता था, लेकिन किसी तरह वह निर्वाह कर रहा था. सिमरन 2 बेटियों की मां बन गई, इस के बावजूद उस की स्वछंदता में कोई सुधार नहीं हुआ. उसी बीच मिसरन की मुलाकात अपने एक पुराने परिचित से हुई. वह लुधियाना में उस के पड़ोस में रहता था. उन दिनों वह करनाल की किसी कंपनी में नौकरी कर रहा था. सिमरन अपने उस परिचित युवक से मिलनेजुलने लगी. उन की मुलाकातें दिनोंदिन बढ़ती गईं. वह उसे अपने घर भी बुलाने लगी. जब इस बात का पता अशोक को चला तो उस ने सिमरन को डांटा. उस ने सिमरन को उस युवक से संबंध तोड़ने और उसे घर पर न बुलाने के लिए कहा, पर सिमरन उस से संबंध विच्छेद करने को तैयार नहीं थी.

इसी बात को ले कर आए दिन दोनों में झगड़ा होने लगा. अशोक ने जब अपने सूत्रों से सिमरन के बारे में पता किया तो उसे जानकारी मिली कि सिमरन के दोस्ताना संबंध उसी एक युवक से नहीं, बल्कि और भी कई युवकों से हैं. अशोक के लिए यह बात बरदाश्त से बाहर थी, जबकि सिमरन को इस की जरा भी परवाह नहीं थी. परिणामस्वरूप अच्छीखासी चल रही गृहस्थी टूटने के कगार पर आ गई. अशोक ने अपनी गृहस्थी को बचाने के लिए सिमरन को काफी समझाने की कोशिश की, ससुराल वालों से भी शिकायतें कीं. जब कोई नतीजा नहीं निकला तो अशोक उसे तलाक देने के बारे में सोचने लगा.

लेकिन जब तलाक देने की नीयत से अशोक वकील के पास सलाह लेने पहुंचा तो वकील ने जो बताया, उस से उस का मन बदल गया. वकील ने बताया था कि बालिग होने तक बेटियां मां के साथ रहेंगी, लेकिन उन का खर्च उसे देना पड़ेगा. एक तो अशोक की इतनी कमाई नहीं थी कि वह दूसरी शादी कर के बेटियों का खर्च उठाता, दूसरे उसे इस बात का भी डर सता रहा था कि मां के साथ रह कर उस की बेटियां भी चरित्रहीन हो जाएंगी. इस के अलावा उसे यह भी लगता था कि तलाक के बाद अगर बेटियां उस के साथ आ गईं तो वह उन का क्या करेगा.

उस ने इन बातों पर गहराई से विचार किया तो उसे लगा कि इन सब से छुटकारा पाने का एक ही तरीका है कि सब की हत्या कर दी जाए. इस के बाद उस ने सब की हत्या की योजना बना डाली, लेकिन समस्या यह थी कि यह काम वह अकेला नहीं कर सकता था. अशोक ने घरपरिवार की इज्जत का हवाला दे कर अपने भाई ज्योति कुमार को अपनी योजना में शामिल कर लिया. ज्योति के हामी भरने पर 2 लोग हो गए. लेकिन हत्या उन्हें 3 लोगों की करनी थी, इसलिए उस ने ज्योति से कहा, ‘‘एक आदमी और होता तो काम करने में आसानी रहती.’’

इस पर ज्योति ने अपने दोस्त नवल को 20 हजार रुपए देने का वादा कर के हत्याओं में शामिल होने के लिए तैयार कर लिया. नवल करनाल में टैक्सी चलाता था. वह पैसों की वजह से नहीं, ज्योति की दोस्ती की वजह से हत्या जैसा अपराध करने को तैयार हुआ था. अशोक की बुआ के बेटे राजेश की 7 जनवरी को शादी थी. योजना के अनुसार, राजेश की शादी के कार्ड बांटने के लिए अशोक पत्नी सिमरन और दोनों बेटियों को ले कर अपनी ससुराल लुधियाना आ गया. यह 26 दिसंबर की बात थी. कुछ कार्ड उन्होंने उसी दिन बांट दिए. इस बीच अशोक फोन से लगातार ज्योति से संपर्क बनाए रहा.

27 दिसंबर, रविवार को योजनानुसार ज्योति अपने दोस्त नवल के साथ सुबह साढ़े 9 बजे की ट्रेन पकड़ कर दोपहर को लुधियाना पहुंच गया. अपने पहुंचने की सूचना उस ने फोन द्वारा अशोक को दे दी. दोपहर को अशोक उन से जालंधर बाईपास चौक पर मिला. वहां से तीनों रेलवे लाइन के किनारेकिनारे पैदल चलते हुए सिविल सिटी संधुनगर काली मंदिर के पास पहुंचे. यही वह स्थान था, जहां उन्हें तीनों हत्याएं करनी थीं. वहां उन्होंने सलाह की कि कैसे और किस तरह तीनों को मारना है. पूरी योजना समझा कर अशोक अपनी ससुराल चला गया.

ससुराल में अशोक सिमरन और दोनों बेटियों के साथ बैठा हंसीमजाक करता रहा. दामाद और बेटी को हंसतेबोलते देख ससुराल वाले भी खुश थे. योजनानुसार कुछ ही देर में अशोक ने सिमरन से झगड़ा कर लिया, लेकिन जल्दी ही उसे मना भी लिया. शाम 7 बजे के आसपास अशोक ने सिमरन को अपने पास बुला कर कहा, ‘‘सिमरन, अभीअभी ज्योति का फोन आया था कि उस ने नई कार खरीदी है और माथा टेकने के लिए वह माता चिंतपूर्णी के दरबार जा रहा है. उस ने कहा है कि जब तक हम लोग साथ नहीं चलेंगे, वह नहीं जाएगा. अब तुम्हीं बताओ हमें क्या करना चाहिए.’’

‘‘यह तो बड़ी खुशी की बात है कि देवरजी ने कार खरीद ली है. हम जरूर साथ जाएंगे. इसी बहाने देवी के दर्शन हो जाएंगे.’’ सिमरन ने खुशी प्रकट करते हुए कहा.

इस के बाद अशोक कुछ नहीं बोला तो सिमरन ने कहा, ‘‘तुम कुछ सोच रहे हो क्या?’’

‘‘तुम जैसा सोच रही हो, वैसा नहीं हो सकता.’’

‘‘क्यों?’’ सिमरन ने पूछा.

‘‘क्योंकि तुम्हारे घर वाले हमें जाने नहीं देंगे. हमारे आने की खुशी में आज उन्होंने खानेपीने का इंतजाम किया है.’’ अशोक ने कहा, ‘‘मैं ने दादीजी से पूछा था, उन्होंने डांट कर कहा कि खबरदार जो कहीं गए.’’

‘‘तब क्या किया जाए?’’ सिमरन ने पूछा तो अशोक ने कहा, ‘‘एक तरीका है. तुम दिव्या और पूजा को बाजार घुमाने के बहाने ले कर रेलवे लाइन के उस पार पहुंचो. मैं तुम्हें वहीं मिलता हूं. फोन कर के ज्योति को भी वहीं बुला लेता हूं. वहीं से हम सभी मंदिर चलेंगे. वापसी में ज्योति हमें यहीं छोड़ देगा.’’

सिमरन अशोक की बातों में आ गई.  वैसे तो सिमरन बहुत चालाक थी, लेकिन जब मौत आती है तो चालाकी काम नहीं देती. सिमरन को मना कर अशोक 7 बजे घर से निकल गया. उस के 10 मिनट बाद सिमरन भी दोनों बेटियों को बाजार घुमाने के बहाने ले कर घर से निकल पड़ी. कुछ देर में वह अशोक द्वारा बताई जगह पर पहुंच गई. अशोक भी पीछे से वहां पहुंच गया.

सिमरन ने पूछा, ‘‘ज्योति कहां है?’’

‘‘वह रेलवे लाइन के उस पार आ रहा है. तुम बच्चों को ले कर उस पार चलो. मैं अभी आ रहा हूं.’’

सिमरन दोनों बेटियों दिव्या और पूजा को ले कर लाइन के उस पार जाने लगी तो अशोक ने वहीं छिपे ज्योति और उस के दोस्त नवल को इशारा कर दिया और खुद ससुराल लौट आया, जिस से किसी को उस पर संदेह न हो. अशोक के कहने पर सिमरन दोनों बेटियों को ले कर रेलवे लाइन के उस पार जाने के लिए आगे तो बढ़ी, लेकिन उसे डर लगा, क्योंकि अंधेरा होने के साथ वहां सन्नाटा था. बहरहाल, उस ने जैसे ही रेलवे लाइन पार की, किसी चीते की तरह नवल हाथ में चाकू लिए उस पर झपटा. ज्योति ने दिव्या पर वार करना चाहा. अचानक हुए हमले से घबरा कर सिमरन ने शोर मचा दिया और दोनों बेटियों को ले कर खेत की ओर भागी. लेकिन ज्योति ने दौड़ कर पीछे से उन्हें दबोच लिया.

हाथ में लिए चाकू से ज्योति ने सिमरन की गर्दन पर पूरी ताकत से वार किया. लेकिन चाकू सिमरन की गर्दन की हड्डी में लगा, जिस से वह हत्थे के पास से टूट कर नीचे गिर गया. इस के बाद नवल ने अपने चाकू से उस की हत्या कर दी. मरने से पहले सिमरन ने जान बचाने के लिए ज्योति और नवल से खूब संघर्ष किया था. इसी संघर्ष में नवल के सिर के बाल उस की मुट्ठी में आ गए थे, जिसे बाद में पुलिस ने बरामद कर लिया था. सिमरन की हत्या करने के बाद नवल और ज्योति दिव्या और पूजा के पीछे दौड़े. मां की हत्या होते देख दोनों लड़कियां जान बचाने के लिए भागीं तो, लेकिन खेत में कीचड़ होने की वजह से भाग नहीं पाई. वैसे भी पूजा तो अभी छोटी ही थी. ज्योति ने पूजा की और नवल ने दिव्या की गला रेत कर हत्या कर दी.

मांबेटियों को मौत के घाट उतारने के बाद उन्होंने फोन द्वारा इस बात की जानकारी अशोक को दे दी. इस काम में उन्हें 20-25 मिनट लगे थे. तीनों की हत्या और अशोक को सूचना देने के बाद दोनों बस से करनाल के लिए रवाना हो गए. रास्ते में उन्होंने राजपुरा के पास चलती बस से अपनी जैकेट उतार कर फेंक दीं, क्योंकि उस पर खून के छीटें पड़ गए थे. रिमांड के दौरान जांच अधिकारी अजायब सिंह ने चाकू और जैकेट बरामद कर लिए थे. सिमरन की हत्या करने के बाद ज्योति ने कान में पहनीं उस की सोने की बालियां उतार ली थीं. अजायब सिंह ने उन्हें भी बरामद कर लिया था. दूसरी ओर जब काफी देर तक सिमरन बाजार से लौट कर नहीं आई तो योजनानुसार अशोक ने चिंता व्यक्त करते हुए अपने ससुराल में हंगामा खड़ा कर दिया.

वह रिश्तेदारों के साथ खुद भी रात भर सिमरन और बेटियों की तलाश करता रहा. सुबह वह अपने रिश्तेदारों और ससुर विजय को सिमरन की तलाश में जानबूझ कर उस ओर ले गया, जहां मांबेटियों की लाशें पड़ी थीं. इस मामले में अभियोजन पक्ष ने अपनी ओर से कुल 19 गवाह पेश किए थे, जिन में घटनास्थल के फोटो खींचने वाला फोटोग्राफर, क्राइमटीम, पोस्टमार्टम करने वाले डाक्टर और कुछ पुलिसकर्मियों के अलावा मुख्य गवाह था मृतका का पिता विजय. तीनों आरोपियों के इकबालिया बयान भी थे, जिन्हें अदालत ने सच माना था. अपने बयान में तीनों अभियुक्तों ने सिमरन और उस की दोनों बेटियों, दिव्या एवं पूजा की हत्या की बात स्वीकार की थी. अदालत ने 23 अप्रैल, 2014 को तीनों अभियुक्तों को दोषी ठहराते हुए फैसले की तारीख 25 अप्रैल, 2014 तय की थी.

25 अप्रैल, 2014 को एडिशनल सेशन जज श्री एस.पी. सूद ने इस तिहरे हत्याकांड का फैसला सुनाया. उन्होंने कहा, ‘‘गवाहों के बयान, पुलिस तफ्तीश, घटनास्थल से प्राप्त सुबूतों एवं अभियुक्तों के बयानों से यह सिद्ध हो गया है कि 27-28 दिसंबर, 2009 की रात अभियुक्त अशोक, जो मृतका सिमरन का पति है, ने अपनी पत्नी सिमरन और दोनों बेटियों, दिव्या एवं पूजा को एक सुनसान जगह पर ले गया और अपने भाई ज्योति कुमार तथा भाई के दोस्त नवल से तीनों की बेरहमी से हत्या करा दी.

‘‘घटनास्थल और मृतका की गर्दन से बरामद चाकुओं पर मिले फिंगरप्रिंट व फोरेंसिक जांच रिपोर्ट से स्पष्ट हो गया है कि फिंगर प्रिंट, जूतों के निशान, डीएनए रिपोर्ट और मृतका की मुट्ठी से बरामद अभियुक्त के सिर के बाल अभियुक्तों के ही हैं.

‘‘इस बात में कोई संदेह नहीं कि तीनों अभियुक्तों ने सिमरन और उस की दोनों बेटियों का बेरहमी से कत्ल किया है. इसलिए ये किसी भी तरह से रहम या माफी के काबिल नहीं हैं. अभियुक्त अशोक कुमार, अभियुक्त ज्योति कुमार और अभियुक्त नवल किशोर को सिमरन, पूजा और दिव्या की हत्या का दोषी मानते हुए जीवित रहने तक जेल में रहने की सजा दी जाती है.’’

इस तरह अशोक व उस के भाई ज्योति और उस के दोस्त नवल को अपने किए की सजा मिल गई. जज के सजा सुनाते ही पुलिस ने तीनों अभियुक्तों को अपनी कस्टडी में ले लिया. Family Dispute

 

UP Crime News : पत्नी की अनेदखी न बाबा न

UP Crime News : बलरामपुर की विनीता और उस का पति मदन कुमार आर्य दोनों ही सरकारी नौकरी पर थे. हर महीने मोटी सैलरी मिलती थी. कमाई के चक्कर में मदन कुमार पत्नी की शारीरिक जरूरत को तवज्जो नहीं देता था. ऐसे में 2 जवान बच्चों की 40 वर्षीय मां विनीता का अपने भांजे उमेश कुमार पर दिल आ गया. फिर एक दिन वही हुआ, जिस की…

विनीता आर्य 2 सप्ताह से अपने भांजे उमेश कुमार की काल रिसीव नहीं कर रही थी, जिस से उमेश की उलझन बढ़ती जा रही थी. इसी उलझन में वह शाम करीब 5 बजे विनीता के घर जा पहुंचा. उस ने डोरबैल बजाई तो चंद मिनट बाद विनीता ने दरवाजा खोला. सामने उमेश को देखते ही विनीता तल्ख स्वर में बोली, ”उमेश, तुम्हारे मामा तो घर में हैं नहीं. बेटा मनु भी कोचिंग गया है.’’

”मामी, मामा नहीं, आप तो हैं.’’ कहते हुए उमेश घर के अंदर आ गया और कमरे में पड़े सोफे पर आ कर बैठ गया. उमेश ने एक सरसरी नजर विनीता मामी पर डाली फिर बोला, ”मामी, वैसे भी मैं मामा से नहीं, तुम से मिलने आया हूं. तुम मेरी काल रिसीव क्यों नहीं कर रही थी.’’

”देखो उमेश, अब तुम शादीशुदा और एक बच्चे के बाप हो. इसलिए तुम से फोन पर बतियाना और तुम्हारा घर आना, दोनों ही ठीक नहीं है. वैसे भी पति और बेटा दोनों तुम्हें शक की नजरों से देखते हैं. तुम से नफरत करते हैं.’’

”मामी, मैं पहले भी तो घर आता था. तब तुम खूब हंसती थी, बोलती थी, बतियाती थी. मेरे आने का इंतजार करती थी. 2-4 दिन भी न आऊं तो उलाहना देती थी. अंतरंग क्षणों में तुम्हें सुख की अनुभूति भी होती थी, परंतु अब क्या हो गया है?’’

”तब की बात और थी उमेश. तब मैं तुम से प्यार करती थी. इसलिए खुल कर हंसतीबोलती थी. तुम्हारा बेसब्री से इंतजार भी करती थी. न आने पर बेचैन हो जाती थी. तुम्हारे साथ मिलन में मुझे सुख भी मिलता था. लेकिन अब बात कुछ और है. तुम्हारी खूबसूरत पत्नी है. बच्चा है. अब तुम पतिधर्म का पालन करो और मुझे भूल जाओ. वैसे भी अब मैं तुम से प्यार नहीं करती. मैं ने तुम्हें अपने दिल से निकाल दिया है.’’

”मामी, मैं मानता हूं कि मेरी पत्नी जवान है और खूबसूरत भी है. लेकिन तुम मेरा पहला प्यार हो. तुम्हारे साथ मिलन में मुझे जो सुख मिलता है, वह बीवी के साथ नहीं. वैसे मामी, मुझे पता है कि तुम मुझे क्यों नजरअंदाज कर रही हो और क्यों तुम ने मुझे अपने दिल से निकाल फेंका है. जवान और सुंदर बीवी तो बहाना है.’’

”क्या पता है तुम्हें?’’ विनीता ने अनजान बनते हुए उमेश से पूछा.

”यही कि अब तुम ने अपने दिल में किसी और को बसा लिया है. उसी के साथ गुलछर्रे उड़ा रही हो. इसलिए तुम ने मुझे अपने दिल से निकाल दिया है और मुझे नजरअंदाज कर रही हो. तुम मामा की आंखों में धूल झोंक सकती हो, मेरी आंखों में नहीं.’’

विनीता गुस्से से बोली, ”उमेश, तुम हदें पार कर रहे हो. तुम्हारा इलजाम सरासर गलत है. मैं ने किसी को दिल में नहीं बसाया है और न ही पति की आंखों में धूल झोंक रही हूं. तुम्हें नजरअंदाज करने लगी हूं. इसलिए तुम मेरे चरित्र पर अंगुली उठाने लगे हो.’’

उस रोज विनीता और उमेश के बीच नजर अंदाज को ले कर काफी देर तक नरमगरम बहस होती रही. उस के बाद उमेश वापस घर आ गया. दरअसल, उमेश को शक था कि विनीता ने अपने साथ नौकरी करने वाले एक टीचर से रिश्ता जोड़ लिया है. इसलिए वह उसे नजरअंदाज करने लगी है और उस से दूरी बना ली है. उमेश नहीं चाहता था कि उस की प्रेमिका विनीता उस के अलावा किसी और की बांहों में समाए. इसलिए उस ने विरोध जताया और समझाने का प्रयास भी किया. लेकिन विनीता जब नहीं मानी तो उस ने उसे सबक सिखाने की ठान ली. उमेश ने मन ही मन निश्चय कर लिया कि विनीता उस की नहीं हुई तो वह उसे किसी और की भी नहीं होने देगा.

पहली अप्रैल, 2025 की शाम 5 बजे उमेश अपनी ब्रेजा कार से वीर विनय चौराहे की ओर जा रहा था, तभी उस की नजर विनीता पर पड़ी. वह बाजार की ओर शायद कुछ घरेलू सामान खरीदने जा रही थी. उमेश कार ले कर विनीता के पास पहुंचा और बोला, ”मामी, क्या बाजार जा रही हो? कार में बैठो, मैं तुम्हें बाजार तक छोड़ देता हूं. बाजार करने के बाद मैं तुम्हें घर भी छोड़ दूंगा.’’

”नहीं, नहीं उमेश, मैं बाजार चली जाऊंगी. तुम मेरे लिए परेशान मत हो. जहां जा रहे हो, जाओ.’’

लेकिन उमेश नहीं माना. उस ने फुरती से कार का दरवाजा खोला और विनीता को अगली सीट पर बिठा लिया. उस के बाद स्वयं ड्राइविंग सीट पर बैठ कर कार बढ़ा दी तो विनीता ने पूछा, ”उमेश, तुम मुझे कहां ले जा रहे हो?’’

उमेश मुसकराते हुए बोला, ”मामी, आज बहुत दिनों बाद मौका मिला है. इसलिए हम सैरसपाटे पर जा रहे है. घंटे दो घंटे में वापस आ जाएंगे.’’

”घर न पहुंची तो तुम्हारे मामा परेशान होंगे. इसलिए मैं घूमने नहीं जाऊंगी. तुम मुझे बाजार छोड़ दो. सामान ले कर मैं समय से घर पहुंच जाऊंगी. मुझे खाना भी बनाना है.’’

लेकिन उमेश ने विनीता की बात अनसुनी कर दी. वह उसे बलरामपुर शहर से श्रावस्ती ले गया, फिर वहां से बहराइच होता हुआ गोंडा जिले के खरगूपुर थाना क्षेत्र के गांव परसौनी पहुंचा. यहां उस ने गांव से कुछ दूर विसुहा नदी के पुल के किनारे कार रोक दी. अब तक रात का अंधेरा घिर आया था. आवाजाही न के बराबर थी. उमेश ने विनीता का हाथ अपने हाथ में ले कर पूछा, ”मामी, सचसच बताओ, क्या तुम मुझ से प्यार नहीं करती और तुम ने किसी और को अपने दिल में बसा लिया है?’’ कहते हुए उमेश ने विनीता को अपनी बांहों में भर लिया और मनमानी करने लगा. विनीता बचाव करने लगी.

बचाव के दौरान ही विनीता ने एक तमाचा उमेश के गाल पर जड़ दिया. तमाचा पड़ते ही उमेश का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया. उस ने विनीता के गले में पड़ा दुपट्टा उसी के गले में लपेटा और गला कसने लगा. कुछ ही देर में विनीता की जीभ और आंखें बाहर आ गईं और उस की मौत हो गई. हत्या करने के बाद उमेश ने विनीता का मोबाइल फोन व दुपट्टा सुरक्षित किया, फिर शव को कार से निकाल कर विसुहा नदी के पुल के नीचे फेंक दिया. वापस लौटते समय उस ने विनीता का मोबाइल फोन बंद कर दिया. फोन और दुपट्टा दुल्हिनपुर के जंगल में फेंक दिया. इस के बाद वह घर आ गया.

इधर विनीता अपने पति मदन कुमार आर्य से शाम 5 बजे यह कह कर घर से निकली थी कि वह घर का सामान खरीदने सिविल लाइंस बाजार जा रही है. सामान खरीद कर घंटे-दो घंटे बाद वापस आ जाएगी. इंतजार करतेकरते मदन कुमार को 3 घंटे से अधिक का समय बीत चुका था, लेकिन विनीता बाजार से खरीददारी कर वापस नहीं आई थी. पत्नी की खोज में मदन कुमार सिविल लाइंस स्थिति मार्केट भी गया और मार्केट का चप्पाचप्पा छान मारा, लेकिन विनीता उसे कहीं नहीं दिखी. अत: हताश हो कर वह वापस आ गया.

सुबह होते ही अड़ोसपड़ोस में भी विनीता के लापता होने की खबर फैल गई. फिर तो विनीता का लापता होना मोहल्ले में चर्चा का विषय बन गया. मदन कुमार आर्य 2 अप्रैल, 2025 की सुबह 10 बजे थाना सिविल लाइंस पहुंचा. उस समय एसएचओ शैलेश सिंह थाने में मौजूद थे. मदन कुमार आर्य ने उन्हें बताया कि उन की पत्नी विनीता कंपोजिट विद्यालय में अनुदेशिका पद पर कार्यरत है. कल शाम 5 बजे वह सिविल लाइंस बाजार गई थी. तब से वह वापस नहीं आई. उस का फोन भी बंद है. उस की खोज हर संभावित स्थान पर की गई है. लेकिन उस का कुछ भी पता नहीं चल पा रहा है. उन्होंने यह भी बताया कि विनीता पूर्व विधायक सुखदेव प्रसाद की बेटी की बहू है.

चूंकि मामला पूर्व विधायक के परिवार से जुड़ा था, अत: एसएचओ शैलेश सिंह ने विनीता के लापता होने की जानकारी एसपी विकास कुमार को दी. साथ ही मदन कुमार की तहरीर पर गुमशुदगी दर्ज कर ली. एसपी विकास कुमार ने विनीता की गुमशुदगी को गंभीरता से लिया और उस की खोज के लिए एएसपी नम्रता श्रीवास्तव की अगुवाई में एक विशेष टीम गठित कर दी. इस टीम में एसएचओ शैलेश सिंह के अलावा कुछ तेजतर्रार पुलिसकर्मियों व सर्विलांस टीम को शामिल किया गया. साथ ही कुछ खास खबरियों को भी विनीता की टोह में लगाया गया.

पुलिस टीम ने सब से पहले विनीता के पति मदन कुमार व उन के बेटे मनु से पूूछताछ की, फिर सर्विलांस टीम की मदद से घर से ले कर बाजार तक सड़क किनारे लगे सीसीटीवी कैमरों को खंगाला. टीम को एक बड़ी सफलता तब मिली, जब सिविल लाइंस बाजार के पहले सड़क किनारे लगे सीसीटीवी कैमरे में विनीता दिखी. वह किसी कार सवार युवक से बात कर रही थी. फिर उसी युवक की कार में बैठ जाती दिखी. पुलिस टीम ने वह फुटेज विनीता के पति मदन कुमार आर्य को दिखाई तो वह चौंकते हुए बोला, ”अरे यह तो उमेश कुमार है. कार भी उसी की है. विनीता उसी से बात कर रही है.’’

”यह उमेश कुमार कौन है?’’ एसएचओ शैलेश सिंह ने मदन कुमार से पूछा.

”सर, उमेश कुमार हमारा भांजा है. वह देहात कोतवाली थाना क्षेत्र के गांव गजाधर सिंह डिडवा में रहता है. बलरामपुर शहर के वीर विनय चौराहा स्थित एचडीएफसी बैंक में सेल्स औफिसर के पद पर कार्यरत है. उस का मेरे घर खूब आनाजाना था. मामीभांजे में खूब पटती थी. परंतु इधर कुछ महीने से उस का घर आनाजाना बेहद कम हो गया है. विनीता भी उस से दूरियां बनाए हुए थी. लेकिन सर..?’’

”लेकिन क्या?’’ एसएचओ शैलेश सिंह ने मदन कुमार की आंखों में झांकते हुए पूछा.

”सर, कल हम ने उमेश को कौल लगा कर विनीता के लापता होने की जानकारी दी थी, लेकिन उस ने साफ मना कर दिया था कि विनीता के बारे में उसे कोई जानकारी नहीं है. आखिर उस ने झूठ क्यों बोला? जबकि विनीता उसी की कार में उसी के साथ बैठ कर फुटेज में जाती दिख रही है. सर, मुझे तो दाल में कुछ काला नजर आ रहा है.’’

सेल्स औफिसर उमेश कुमार शक के घेरे में आया तो पुलिस टीम ने उस के घर रात 11 बजे छापा मारा और उसे हिरासत में ले लिया. उसे थाना सिविल लाइंस लाया गया. थाने में एसएचओ शैलेश सिंह ने उमेश से पूछा, ”विनीता कहां है?’’

”सर, मुझे उस के बारे में कुछ भी पता नहीं है.’’ उमेश बोला.

”तुम सरासर झूठ बोल रहे हो. विनीता तुम्हारे साथ ही गई थी. यकीन नहीं तो यह सीसीटीवी फुटेज देख लो.’’ एसएचओ शैलेश सिंह ने कड़ा रुख अपनाया.

उमेश ने सीसीटीवी फुटेज देखी तो वह हक्काबक्का रह गया और बगलें झांकने लगा. इसी समय शैलेश सिंह ने फिर से पूछा, ”अब बताओ, विनीता कहां है?’’

”सर, विनीता अब इस दुनिया में नहीं है.’’ उमेश ने विस्फोट किया.

”क्या तुम ने उसे मार डाला? उस की लाश कहां है?’’ शैलेश सिंह ने पूछा.

”सर, विनीता को मैं घुमाने के बहाने अपनी कार से ले गया था. फिर गोंडा जिले के गांव परसौना के पास कार में ही उस को गला घोंट कर मार दिया और लाश विसुहा नदी के पुल के नीचे फेंक दी थी.’’

एसएचओ शैलेश सिंह ने अनुदेशिका विनीता की हत्या होने व आरोपी के पकड़े जाने की खबर एसपी विकास कुमार को दी तो वह चौंक गए. उन्होंने तत्काल गोंडा के एसपी विनीत जायसवाल से बात की और विनीता का शव विसुहा नदी के पुल के नीचे से बरामद करने को कहा. गोंडा एसपी विनीत जायसवाल की सूचना पर थाना खरगूपुर पुलिस घटनास्थल विसुहा नदी पुल पर पहुंची. एसएचओ शैलेश सिंह भी अपनी टीम तथा आरोपी उमेश को साथ ले कर घटनास्थल पहुंच गए. फिर उमेश की निशानदेही पर पुलिस की संयुक्त टीम ने मृतका विनीता का शव पुल के नीचे से बरामद कर लिया.

बलरामपुर के एसपी विकास कुमार, एएसपी नम्रता श्रीवास्तव तथा गोंडा एसपी विनीत जायसवाल भी घटनास्थल पहुंचे और घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया. मृतका विनीता की उम्र 40 साल के पार थी. उस की हत्या गला घोंट कर की गई थी. उस के शरीर पर चोट का कोई निशान नहीं था. उस का रंग गोरा, औसत कद तथा शरीर स्वस्थ था. इधर पत्नी विनीता की हत्या की खबर पा कर मदन कुमार भी अपने बेटे मनु के साथ घटनास्थल पर पहुंच गया. पत्नी का शव देख कर मदन कुमार की भी आंखों से आंसू बहने लगे.

पुलिस अधिकारियों ने निरीक्षण के बाद विनीता के शव को पोस्टमार्टम के लिए गोंडा के जिला अस्पताल भिजवा दिया. उस के बाद पुलिस टीम आरोपी उमेश को थाना सिविल लाइंस ले आई. थाने में एसपी विकास कुमार तथा एएसपी नम्रिता श्रीवास्तव ने आरोपी उमेश कुमार से घटना के संबंध में पूछताछ की. उमेश कुमार ने पुलिस अधिकारियों को बताया कि मामा मदन कुमार आर्य के घर उस का आनाजाना बना रहता था. इसी आनेजाने में उस का लव अफेयर मामी विनीता से बन गया. कुछ समय बाद मामी ने अपने विद्यालय के एक टीचर को अपने दिल में बसा लिया और उसे नजरअंदाज करने लगी.

मामी का दूसरे से संबंध बनाना उसे नागवार लगा. उस ने मामी को समझाया भी, लेकिन जब वह नहीं मानी तो घटना वाले दिन वह उसे घुमाने के बहाने ले गया और कार में उसी के दुपट्टे से उस का गला घोंट दिया. उमेश ने हत्या में प्रयुक्त दुपट्टा, कार व मोबाइल फोन भी पुलिस को बरामद करा दिया. दुपट्टा व मोबाइल को उस ने दुल्हिनपुर के जंगल में छिपा दिया था.

चूंकि उमेश कुमार ने विनीता की हत्या का जुर्म कुबूल कर लिया था और आलाकत्ल भी बरामद करा दिया था, अत: पुलिस ने मृतका के पति मदन कुमार आर्य की तरफ से बीएनएस की धारा 103(1) तथा 238 के तहत उमेश कुमार निवासी गांव गजोधर सिंह डिडवा के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली तथा उसे विधिसम्मत गिरफ्तार कर लिया. पुलिस जांच में मामीभांजे के लव क्राइम की जो कहानी सामने आई, उस का विवरण इस प्रकार है.

उत्तर प्रदेश के बलरामपुर शहर के सिविल लाइंस मोहल्ले में मदन कुमार आर्य सपरिवार रहता था. उस के परिवार में पत्नी विनीता के अलावा बेटा मनु व एक बेटी थी. मदन कुमार बिजली विभाग में बाबू था. उस की पत्नी विनीता बलरामपुर जिला पंचायत स्थित आदर्श कंपोजिट विद्यालय में अनुदेशिका के पद पर थी. चूंकि पतिपत्नी दोनों सरकारी नौकरी करते थे, अत: उन की आर्थिक स्थिति मजबूत थी. बेटी पढ़लिख कर जवान हुई तो उन्होंने उस का ब्याह रचा दिया था. वह सुखपूर्वक ससुराल में रह रही थी. मदन कुमार आर्य की मां गंगाजली पूर्व विधायक सुखदेव प्रसाद की बेटी थीं. सुखदेव प्रसाद बलरामपुर शहर की तुलसीपुर विधानसभा सीट से 2 बार विधायक चुने गए थे. सिविल लाइंस वाला बंगला विधायक कोटे के तहत आवंटित हुआ था. विधायक पिता सुखदेव की मृत्यु के बाद गंगाजली अपने बेटे मदन कुमार व बहू विनीता के साथ इसी बंगले में रहने लगी थी.

मदन कुमार व उस की पत्नी विनीता, बेटे मनु को बेहद प्यार करते थे. वह उसे अच्छी शिक्षा दिला कर प्रशासनिक सेवा में लाना चाहते थे. इसलिए वह उस की शिक्षा पर पूरा ध्यान दे रहे थे और पैसा भी खूब खर्च कर रहे थे. मनु भी पढऩे में तेज था. अत: वह पढ़ाई पर जोर दे रहा था. विनीता खुद अच्छा कमाती थी और उस के पति मदन कुमार की भी कमाई खूब थी. घर में किसी चीज की कमी न थी. दोनों खुशहाल थे, लेकिन विनीता को पति की कमी खलती थी. दरअसल, विनीता बलरामपुर शहर में कार्यरत थी, जबकि पति गोंडा शहर में बिजली विभाग में बाबू था.

उस का रोजाना घर आना संभव न था, इसलिए वह गोंडा में ही किराए के मकान में रहता था. महीने में एकदो बार ही घर आता था और 2-3 दिनों बाद वापस चला जाता था. विनीता उन दिनों उम्र के उस दौर से गुजर रही थी, जब औरत को पुरुष की नजदीकियों की ज्यादा जरूरत होती है. विनीता 2 जवान बच्चों की मां जरूर थी, लेकिन उस की उम्र का अंदाजा लगाना मुश्किल था. वह खूब बनसंवर कर रहती थी. वह कुछ समय तक पति की कमी बरदाश्त करती रही. उस के बाद उस का जिस्म अंगड़ाइयां लेने लगा.

एक रोज विनीता सजधज कर घर से निकलने ही वाली थी कि मदन कुमार आर्य का भांजा उमेश कुमार आ गया. विनीता ने उसे आश्चर्य से देखते हुए पूछा, ”अरे तुम, इस तरह अचानक?’’

”मामी, अभीअभी गांव से आ रहा हूं.’’ उमेश कुमार ने मुसकरा कर जवाब दिया.

उस दिन उमेश को मामी बहुत ज्यादा खूबसूरत लगी. उस की निगाहें विनीता के चेहरे पर जम गईं. यही हाल विनीता का भी था. उमेश को इस तरह निगाहें जमाए देखा तो विनीता बोली, ”ऐसे क्या देख रहे हो मुझे? क्या पहली बार देखा है? बोलो, किस संकोच में डूबे हो?’’

”नहीं मामी, ऐसी कोई बात नहीं है. मैं तो यह देख रहा था कि मेकअप में आप कितनी सुंदर लग रही हैं. खुले बालों में तो आप गजब ही ढा रही हो.’’

”बस… बस रहने दो. बहुत बातें बनाने लगे हो. तुम्हारे मामा तो कभी तारीफ नहीं करते. महीने में एक या 2 बार आते हैं. वह भी थकेथके से रहते हैं.’’

”अरे मामी, औरत की खूबसूरती सब को रास थोड़े ही आती है. मामा बिजली विभाग में हैं. ऊपरी कमाई में जुटे रहते हैं, इसलिए वह तुम्हारी कद्र नहीं करते.’’

”तू तो मेरी बहुत कद्र करता है. महीनों बीत जाते हैं, झांकने तक नहीं आता. जा बहुत देखे हैं, तेरे जैसे बातें बनाने वाले.’’

”मुझे सचमुच आप की कद्र है मामी. यकीन न हो तो परख लो. अब मैं तुम्हारी खैरखबर लेने आता रहूंगा. छोटाबड़ा जो भी काम कहोगी, करूंगा.’’ उमेश ने विनीता की चिरौरी सी की. उमेश की यह बात सुन कर विनीता खिलखिला कर हंस पड़ी. फिर बोली, ”तुम आराम से सोफे पर बैठो. मैं तुम्हारे लिए चाय बनाती हूं.’’ कह कर विनीता ने रसोई का रुख किया.

थोड़ी देर में विनीता 2 कप चाय और नाश्ता ले आई. दोनों गपशप लड़ाते हुए चाय पीते रहे और चोरीछिपे एकदूसरे को देखते रहे. दोनों के ही दिलोदिमाग में हलचल सी मची हुई थी. सच तो यह था कि विनीता उम्र में कई साल छोटे स्मार्ट उमेश को देख कर उस पर फिदा हो गई थी. वह ही नहीं, उमेश भी मामी का दीवाना बन गया था. दोनों के दिल एकदूसरे के लिए धड़के तो नजदीकियां खुदबखुद बन गईं. इस के बाद उमेश कुमार हर सप्ताह विनीता से मिलने आने लगा. विनीता को उस का आना अच्छा लगता था. जल्द ही वे एकदूसरे से खुल गए और दोनों के बीच हंसीमजाक होने लगी. चूंकि दोनों के बीच मामीभांजे का रिश्ता था, इसलिए विनीता चाहती थी कि पहल उमेश कुमार करे. जबकि उमेश चाहता था कि जिस्म की भूखी मामी स्वयं उसे उकसाए.

आखिर जब विनीता से नहीं रहा गया तो एक रोज रात में उस ने उमेश को अपने घर रोक लिया. खाना खाने के बाद उमेश कमरे में जा कर पलंग पर लेट गया और सोने की कोशिश करने लगा. थोड़ी देर बाद विनीता भी उसी पलंग पर उमेश के बगल में लेट गई और उस से लिपट गई. विनीता का स्पर्श पा कर उमेश सिहर उठा. लेकिन वह रिश्ते की मर्यादा समझता था. इसलिए चुपचाप लेटा रहा. विनीता उस वक्त अधोवस्त्र में थी, जिस से उस के कोमल उभार उमेश के शरीर को छू रहे थे. वह उस से सटती ही जा रही थी, लेकिन उमेश रिश्ते की मर्यादा सोच कर चुपचाप लेटा था.

लेकिन वह कब तक चुप रहता? विनीता ने उकसाया तो उस रात दोनों के बीच की हर दीवार टूट गई. मामीभांजे का रिश्ता टूट कर बिखर गया और एक नए रिश्ते ने जन्म लिया, वह था अवैध संबंधों का रिश्ता. उस दिन के बाद विनीता और उमेश अकसर देह सुख प्राप्त करने लगे. विनीता भूल गई कि वह 2 जवान बच्चों की मां है और पति से विश्वासघात कर रही है. उस ने पवित्र रिश्ते को भी ताख पर रख दिया. जवां भांजे की वह दीवानी बन गई.

30 वर्षीय उमेश कुमार बलरामपुर (देहात) कोतवाली के गांव गजोधर सिंह डिडवा का रहने वाला था. उस के पिता सालिक राम किसान थे. 3 भाईबहनों में वह सब से बड़ा था. उमेश पढ़ालिखा स्मार्ट था. वह बलरामपुर शहर के वीर विनय चौराहा स्थित एचडीएफसी बैंक में सेल्स औफिसर पद पर था. उस की कमाई अच्छी थी. अत: ठाट से रहता था. उस के पास बे्रजा कार थी, जिस से वह आताजाता था.

दबंग स्वभाव का उमेश अकसर कार से विनीता के घर आता था और मामी के जिस्म से खेल कर वापस चला जाता था. कभीकभी वह रात को भी वहीं रुक जाता था और दोनों रात भर रंगरलियां मनाते. चूंकि दोनों के बीच मामीभांजे का रिश्ता था, इसलिए कोई शक भी नहीं करता था. लेकिन ऐसे संबंध छिपते नहीं. धीरेधीरे मोहल्ले में उन दोनों के संबंधों की चर्चा होने लगी.

विनीता के पति मदन कुमार को जब विनीता और उमेश के संबंधों का पता चला तो उस के पैरों तले से जमीन खिसक गई. उस ने इस बारे में पत्नी व भांजे से बात की तो दोनों ने साफ कह दिया कि ऐसी कोई बात नहीं है. लेकिन एक शाम जब उस ने अचानक दोनों को हंसीठिठोली करते देख लिया तो उस ने दोनों को फटकारा. पर उन पर इस का कोई असर नहीं हुआ. उन का मिलन जारी रहा. इसी बीच विनीता ने अपने रिश्तेदार की लड़की ज्योति से उमेश की शादी करा दी. सुंदर पत्नी पा कर उमेश पत्नी में रम गया. साल भर बाद उमेश एक बच्चे का बाप भी बन गया. पत्नी के आ जाने से उमेश का मामी से शारीरिक मिलन बंद सा हो गया. हां, इतना जरूर था कि उस की फोन पर मामी से बात होती रहती थी.

इधर विनीता पुरुष सुख की आदी बन गई थी, अत: जब उमेश से उस का शारीरिक मिलन बंद हुआ तो उस ने एक जवान टीचर से संबंध बना लिए. कुछ समय बाद नई बीवी का नशा उतरा तो उमेश मामी से संबंध स्थापित करने का प्रयास करने लगा. लेकिन विनीता ने तो किसी और को दिल में बसा लिया था, अत: उस ने उमेश को तवज्जो देनी बंद कर दी और उसे नजरअंदाज करने लगी. उमेश को पहले तो कुछ पता नहीं चला, लेकिन उस ने जब गुप्त रूप से जानकारी जुटाई तो उसे पता चला कि विनीता ने किसी और को दिल में बसा लिया है, जिस से वह उसे नजरअंदाज कर रही है. यही नहीं, उस ने उमेश की काल रिसीव करनी भी बंद कर दी.

मामी की बेवफाई से उमेश बौखला गया. आखिर उस ने विनीता को सबक सिखाने की ठान ली और उस की रेकी करने लगा. पहली अप्रैल, 2025 की शाम 5 बजे विनीता सामान लेने सिविल लाइंस बाजार की ओर गई, तभी उमेश की नजर उस पर पड़ी. इस के बाद वह उस के पास पहुंचा और घुमाने के बहाने विनीता को कार में बिठा लिया. देर रात उस ने विनीता को दुपट्टे से गला घोंट कर मार डाला और लाश को भी ठिकाने लगा दिया.

विस्तार से पूछताछ करने के बाद 4 अप्रैल, 2025 को पुलिस ने हत्यारोपी उमेश कुमार को बलरामपुर कोर्ट में पेश किया, जहां से उसे जिला जेल भेज दिया गया. कथा संकलन तक उस की जमानत लोअर कोर्ट से खारिज हो गई थी. इस के बाद उस के फेमिली वाले जमानत के लिए हाईकोर्ट में पैरवी कर रहे थे. UP Crime News

 

 

Bihar Crime : पत्नी पर बेवजह शक करना ठीक नहीं

Bihar Crime : समस्तीपुर से दुबई काम करने गए उदय कुमार राय को जब पत्नी रीना राय के अवैध संबंधों की खबर मिली तो वह दुबई से घर लौट आया. फिर वह मन में बैठ चुके शक को ले कर पत्नी से रोजाना झगडऩे लगा. इसी शक के चलते घर में ऐसा खून बहा कि…

बिहार के समस्तीपुर जिले की तहसील ताजपुर के हरिपुर भिंडी गांव का रहने वाला उदय कुमार राय काम करने के लिए दुबई गया हुआ था. इसी साल वह फरवरी में होली से पहले गांव आ गया था. उस के आने से परिवार में खुशी का माहौल बना हुआ था. बच्चे खुश थे. उदय की मम्मी भी खुश थीं. पापा का निधन हो चुका था. विधवा मम्मी उस के आते ही बोलीं, ”बेटा, अब दुबई मत जाना, यहीं गांव में कुछ कामधंधा कर लो. उसी से परिवार का गुजारा हो जाएगा. ’ ’

”ठीकी कह हीं माई…अब हम एहिजे रह के कुछ करबै! ’ ’ उदय ने भी मम्मी की हां में हां मिला दी. उस वक्त उस की पत्नी रीना भी वहीं थी. वह तुरंत आंचल को दांतों तले दबाती हुई ‘हुंह! ’ कह कर से चली गई.

”हम्मे कुछ गलत कहलिया, जे तू मुंह चमका के चल गेलहू! हियां के खेतपथार कौन देखतय…अब हमरा ताकत है…बाबूजी जिंदा रहथुन हल तब कोनो बात नय हलै! उन कर पीछे में उदइये ने हय देखेभाले वाला. गोतिया खेत पर नजर लगैले है, से अलगे समस्या है. ’ ’

पत्नी के मुंह बिदका कर अचानक चले जाने पर उदय को भी बुरा लगा था. वह उस के चेहरे के भाव को देख कर उस के दिलोदिमाग में क्या है, समझने की कोशिश करने लगा था. मम्मी से बातें करते वक्त वह पत्नी को घूरता हुआ ऐसे देख रहा था, जैसे उस के मन में छिपी बात को जानना चाहता हो. शाम हुई. सालों बाद पूरे परिवार ने एक साथ बैठ कर खाना खाया. बच्चों के चेहरे खिले हुए थे. उस रोज कुछ खास पकवान खीर भी पकाई थी. खाना खाते वक्त अपने बच्चों को पुचकारते वक्त भी उस की नजर पत्नी के चेहरे पर ही जमी हुई थी. उस ने महसूस किया कि पत्नी के चेहरे पर खुशी की वह चमक नहीं है, जो उस के आने पर होनी चाहिए थी.

दरअसल, उदय के मन में भी शंका का कीड़ा कुलबुला रहा था. जब तक उसे खत्म नहीं कर लेता, तब तक उस के मन को चैन नहीं मिलने वाला था.

रात हुई. लंबे अरसे बाद वह देर रात को पत्नी के साथ बिस्तर पर था. रीना उसे परे धकेलती हुई बोली, ”दारू पी कर आए हो? ’ ’

”अरे का बताएं…विनोदवा जबरदस्ती पिला दिया. ’ ’

”दुन्हो जेल जैबा…हिंया दारू बंद है… जानत हो न कि..? ’ ’ रीना बोली.

”कोय पुलिस में बतयते तबे न! ’ ’ उदय बोला.

”हम्हीं बता देवो तब? ’ ’ मुसकराती हुई रीना बोली.

”सुबह से अब तुम्हारे चेहरे पर मुसकान दिखी है! ’ ’ चहकता हुआ उदय बोला और उसे अपनी ओर खींचने लगा.

”चलो हटो, दारूबाज से कोई समझौता नहीं! ’ ’ रीना तीखेपन के साथ बोली और वहां से बच्चों के कमरे में चली गई.

उस के जाने के बाद उदय कशमकश में आ गया. दारू का नशा कमजोर पडऩे लगा था. जब तक उस के दिमाग में कई बातें अचानक घूम गई थीं. वे बातें जो विनोद ने दारू पीते वक्त बताई थीं… और वे बातें भी जो उस के दुबई में रहते हुए उसी ने फोन पर बताई थीं… उन के तार रीना के पूरे दिन उस के साथ किए गए बरताव के साथ जोडऩे लगा… बुदबुदाया, ”…तो इस के सच का पता लगाना ही होगा? ’ ’

कब उसे नींद आ गई, इस का उसे पता ही नहीं चला. उस की नींद तब खुली, जब खिड़की से आने वाली सूरज की रोशनी उस की आंखों पर पड़ी. बच्चों ने उसे झकझोरते हुए उठाया था. उस के कानों में विनोद की भी आवाज सुनाई दी, ”का रे उदयवा…खेत पर चले के ना हव का! ’ ’

”हांहां, जाय के है कि…चल न कोय काम दिला दीहे. ’ ’

इस तरह दुबई से आने के बाद उदय की नई दिनचर्या शुरू हो गई थी. उस का हमउम्र चचेरा भाई विनोद दोस्त की तरह जो मिल गया था.

दोनों के बीच खुल कर बातें होती थीं. शराब की ललक दोनों को बनी रहती थी. ब्लैक में ही सही, लेकिन इस का इंतजाम विनोद करता था, लेकिन जेब ढीली उदय की होती थी. वह दुबई से कमा कर लाए पैसे दारू पर उड़ाने लगा था. आए दिन शराब पी कर ही घर आता था. इस पर उस की पत्नी रीना के साथ हमेशा तकरार होने लगी थी. रीना उदय को शराब पीने से रोकती थी, जबकि वह पत्नी की बात को अनसुनी कर देता था. रीना उस पर शराब में पैसे उड़ाने का आरोप लगा कर खूब खरीखोटी भी सुनाने लगी थी.

उस दिन 21 अगस्त की रात को तो हद ही हो गई थी. बरसात का मौसम था, लेकिन दिन में तेज धूप निकली थी, जिस से उस रात उमस भरी गरमी थी. रीना ने छत पर ही सोने का इंतजाम किया हुआ था. घर के नीचे बरामदे में बच्चे अपनी दादी के साथ सोए हुए थे. उसी घर के बरामदे में उदय का चाचा रामपुकार राय भी सोया हुआ था. उस की अपने बेटे विनोद राय और बहू से नहीं बनती थी, इस कारण वह उदय के परिवार के साथ ही रहता था. उदय के पापा की मृत्यु हो चुकी थी, इस कारण वह अपने चाचा को परिवार में एक सहारे के नजरिए से देखता था.

उसी के बारे में विनोद ने उदय को काफी अनापशनाप कान भर रखे थे. उस का कहना था कि उस के पापा रामपुकार के साथ उस की बीवी रीना राय के अवैध संबंध हैं. हालांकि इस में कितनी सच्चाई थी, इस का सबूत किसी के पास नहीं था, किंतु उदय के मन में इस बात का संदेह घर कर चुका था. उस रोज भी उदय नशे में जरूर था, लेकिन पूरी तरह से होशोहवास में बातें कर रहा था. रीना को प्यार से पुचकारते हुए अभद्र हरकत करने लगा था तो रीना ने उसे झिड़क दिया. फिर भी उस ने रीना की मरजी के बगैर उस से संबंध बनाए थे. इस में पत्नी ने बेमन से साथ दिया था और वह चिढ़ गई थी. चिढ़ती हुई गुस्से में बोल पड़ी, ”तुम्हारा यहां रहने से अच्छा है कि तुम फिर से दुबई ही चले जाओ. ’ ’

”हांहां, तुम तो चाहोगी ही…कि मैं यहां से चला जाऊं और तुम यहां बिना किसी रोकटोक के गुलछर्रे उड़ाओ! ’ ’

”मैं यहां गुलछर्रे उड़ाती हूं…और तुम क्या करते हो? दारू में पैसे कौन उड़ा रहा है? मैं या तुम? ’ ’

”मुझे सब पता है, तुम मेरे पीछे यहां क्या गुल खिला रही हो?…किस का बिस्तर गरम करती हो? मैं सब कुछ जान गया हूं! ’ ’ उदय बोला.

यह सुन कर रीना अवाक हो गई थी. उसे गुस्से में देखने लगी थी.

”मुझे क्या घूर रही हो…खा जाओगी? ’ ’

”तुम क्या सब गलतसलत बोले जा रहे हो नशे में…कोई सुनेगा, तब क्या कहेगा? ’ ’

दोनों के बीच बहस का दौर चलता रहा. काफी देर तक दोनों एकदूसरे पर कीचड़ उछालते रहे. थोड़े समय में उदय छत से नीचे आ कर अपने कमरे में सो गया. वैसे तो 22 अगस्त, 2025 की सुबह पिछली कुछ दिनों की सुबह जैसी ही थी. आसमान में बारिश के आसार नजर आ रहे थे, लेकिन सूर्योदय की धूप निकल चुकी थी. उदय अपने कमरे में अधूरे बिस्तर पर सोया हुआ था, लेकिन घर में रीना नजर नहीं आ रही थी. बच्चे अभी सो रहे थे, लेकिन उदय की मम्मी थारा देवी जाग चुकी थीं.

उन्होंने बहू को आवाज लगाई. उस की आवाज का कोई जवाब नहीं मिला…रीना को बच्चों को स्कूल जाने के लिए तैयारी करनी थी. वह बड़बड़ाती हुई धीरेधीरे सीढिय़ां चढ़ कर छत पर चली गईं. वहां उस ने जो देखा, उन की आंखों पर भरोसा नहीं हुआ. कुछ पल में ही उन की चीख निकल गई. तेजी से उलटे पैर नीचे चली आईं और उदय को झकझोर कर जगाया. दरअसल, छत पर उन की 25 वर्षीय बहू रीना राय मृत पड़ी थी… उस के बिस्तर पर खून ही खून था, जो सूख चुका था. उस की किसी ने गरदन रेत कर हत्या कर दी थी.

रोती हुई थारा देवी छत पर बहू रीना का गला कटा देख कर विचलित हो गईं. उलटे पैर भागीभागी उदय के पास आईं. उसे झिंझोड़ कर जगाया. छत पर मृत पड़ी रीना के बारे में बताया. हड़बड़ाता हुआ उदय छत पर दौड़ता हुआ गया. वहीं से चिल्लाने लगा, ”माई रे! विनोदवा मरिये देल को! गरदन काटिए देल को रीनवा के! ’ ’

छत से नीचे आया. चीखनेचिल्लाने लगा. घर में चीखपुकार मच गई. पड़ोसियों की भीड़ जुट गई. रक्तरंजित लाश जिस ने भी देखी, दांतों तले अंगुली दबा ली. कुछ देर में पुलिस भी आ गई. काफी संख्या में लोग वहां जुट गए. साथ ही ताजपुर, हलई, मुसरीघरारी, सरायरंजन, वैनी, सहित अन्य कई थानों की पुलिस पहुंच गई.

ताजपुर थाने के एसएचओ शंकर शरण दास ने जांच के लिए पुलिस टीम को आवश्यक निर्देश दिए. एफएसएल की टीम ने मामले की जांच में स्पष्ट किया कि रीना की गला काट कर हत्या की गई है. मौके का मुआयना करने के बाद मृतका के पति उदय और उस की सास से पूछताछ की गई. उदय ने पत्नी की हत्या का आरोप सीधेसीधे अपने चचेरे भाई विनोद राय पर लगा दिया. मृतका के पापा अखिलेश कुमार, जो वैशाली में रहते थे, खबर सुन कर वहां आ चुके थे. पुलिस ने उन से भी पूछताछ की.

उन्होंने बताया कि 2018 में उन की बेटी रीना की शादी उदय कुमार राय से हुई थी. सब कुछ ठीक चल रहा था. सुबह उन्हें जानकारी मिली कि उन की बेटी की छत पर ही किसी ने गला काट कर हत्या कर दी. उन्होंने बताया कि उदय के साथ चचेरे भाई का जमीनी विवाद चल रहा था. इसलिए हो सकता है कि इसी कारण इस घटना को अंजाम दिया गया हो. छत बिलकुल सटी होने के कारण कोई भी उस छत से इस छत पर कूद सकता है.

रीना के 4-5 साल के 2 छोटेछोटे बच्चे हैं. शक के आधार पर पुलिस ने पूछताछ के लिए चचेरे देवर विनोद राय को हिरासत में लिया. पति उदय राय ने बताया कि गरमी के चलते रीना रात में छत पर सोई हुई थी. देर रात मैं शौच के लिए नीचे आया था. मोबाइल चार्ज भी नहीं था. इस वजह से मोबाइल चार्ज लगा कर नीचे ही सो गया था. सुबह पत्नी काफी देर तक नीचे नहीं उतरी. तब उस की मम्मी रीना को उठाने के लिए छत पर गई थीं, जहां उन्होंने उसे मृत पाया था. उस का गला रेता हुआ और आसपास खून पसरा हुआ था.

पुलिस ने उदय और विनोद राय के घर का मुआयना किया. पता चला कि उदय का चचेरे भाई विनोद राय से दरवाजे पर चारदीवारी  को ले कर झगड़ा चल रहा था. एक सप्ताह पहले भी मारपीट की घटना हुई थी. विनोद की रीना के साथ भी मारपीट हुई थी. इस संबंध में थाने में शिकायत भी दी गई थी, लेकिन पुलिस ने कोई काररवाई नहीं की थी. इस आधार पर ही उदय ने दावा किया कि विनोद ने ही पत्नी को मारा है.

पुलिस को यह मालूम हुआ कि विनोद राय के पापा रामपुकार राय अपने बेटे और बहू को छोड़ कर उदय राय के साथ रहते थे. जब इस बारे में तहकीकात की गई, तब मालूम हुआ कि विनोद इस बात को ले कर भी अपने पापा से नाराज रहता था. कई बार इसे ले कर पंचायत भी हुई. इस के बाद भी रामपुकार राय अपने भतीजे उदय के साथ ही रह रहा था. पुलिस इस एंगल से भी हत्याकांड की छानबीन करने लगी. हालांकि पुलिस को कई अहम सुराग जल्द ही मिल गए थे. हत्याकांड में इस्तेमाल किया गया तेज धारदार चाकू बरामद कर लिया गया, जो लाश के पास ही बिस्तर के नीचे था.

इस मामले की रिपोर्ट रीना राय (25) के पिता अखिलेश कुमार राय द्वारा 22 अगस्त, 2025 को लिखवाई गई थी. मामले का पहला अभियुक्त विनोद राय (48) के अलावा उस के पापा रामपुकार राय (65), विनोद की पत्नी पानवती देवी (45) और उस की 18 वर्षीया बेटी सुष्मिता कुमारी को बनाया गया. उन्हें बीएनएस की धारा 103 (1) 3(5) के तहत आरोपी बनाया गया था.

रीना के शव को पोस्टमार्टम के बाद उदय को सौंप दिया गया था, जिस के अंतिम संस्कार के बाद 13 दिनों के श्रद्मद्धकर्म का अनुष्ठान किया गया था. हालांकि इस बीच पुलिस की छानबीन चलती रही. पुलिस ने विनोद को इसी शक के आधार पर हिरासत में ले रखा था कि उस का पहले उदय से विवाद हुआ था. इस संबंध में पुलिस ने विनोद से पूछताछ की. उस ने जो बयान दिया, उस से पूरी जांच की दिशा ही बदल गई. पुलिस ने खोजबीन की तो उदय पर ही शक गहरा गया.

उदय तो खुद को बेकसूर साबित करने में लगा था. लेकिन पुलिस ने रीना की तेरहवीं तक का इंतजार किया, क्योंकि वही सारे क्रियाकर्म कर रहा था. पुलिस चुपचाप घर के पास डेरा डाले रही और कर्मकांड पूरे होने का इंतजार करने लगी. जैसे ही तेरहवीं का काम पूरा हुआ, पुलिस ने उदय को गिरफ्तार कर पूछताछ की तो उदय कुमार राय ने आखिरकार अपनी पत्नी की हत्या करने का जुर्म कुबूल कर लिया और कहा कि शक और शराब के नशे में उस ने यह कर डाला.

उदय ने बताया कि 21 अगस्त की रात वह शराब पी कर घर लौटा और पत्नी को सोने के बहाने छत पर ले गया. उस ने फिर पत्नी से चाचा और उस के अवैध संबंधों के बारे में पूछा, लेकिन पत्नी से फिर वही जवाब मिला. इस के बाद उस ने पत्नी संग जबरन शारीरिक संबंध बनाए. जब पत्नी सो गई तो उस ने तकिए के नीचे से चाकू निकाला और पत्नी रीना का गला रेत दिया. रीना तड़पती रही तो उस ने उस का मुंह बंद कर दिया और हाथपैर जकड़ लिए.

हत्या को अंजाम देने के बाद वह चुपचाप छत से नीचे आ कर सो गया. सुबह जब उस की मम्मी छत पर गईं तो रीना की खून से सनी लाश दिखी. चीखपुकार सुन कर वह भी ऊपर पहुंचा और रोने का नाटक करने लगा. बाद में उस ने पत्नी के मर्डर का आरोप चचेरे भाई विनोद पर लगा दिया. वह खुद को मासूम साबित करने में लगा था, लेकिन पुलिस जांच में उस की सारी चालाकी धरी की धरी रह गई. पुलिस ने जांच पूरी कर पत्नी की हत्या के आरोपी उदय कुमार राय को मजिस्ट्रैट के सामने पेश किया. वहां से उसे न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. पुलिस ने विनोद राय, उस के पापा रामपुकार राय, पत्नी पानवती देवी और बेटी सुष्मिता कुमारी को बेकसूर मानते हुए छोड़ दिया था. Bihar Crime

 

 

Rajasthan Crime News : दगाबाज प्रेमी और 2 हत्याएं

Rajasthan Crime News : शादीशुदा मोनू का अपनी जवानी पर कंट्रोल नहीं था. फैक्ट्री में साथ काम करने वाली विवाहिता आशा पर वह इस कदर लट्टू हो गया था कि उसे हासिल करने के लिए उस ने परिवार, समाज और देश के कायदेकानून तक ताक पर रख दिए. फिर जो हुआ, वह किसी अनहोनी से कम नहीं था…

जयपुर के सांगानेर सदर इलाके में स्थित कई फैक्ट्रियों में कुरती बनाने की भी एक फैक्ट्री थी. वहीं मोनू पंडित और आशा मीणा काम करते थे. उस का पति राजाराम मीणा भी उसी फैक्ट्री में काम करता था. मोनू और आशा हमउम्र थे. विवाहित थे. जब कभी फुरसत में होते, तब इधरउधर की बातें करते थे. उन के बीच होने वाली कुछ मिनटों की बातों में उन्हें अच्छा सुकून मिलता था. कई बार घरेलू समस्याओं से बेखबर एकदूसरे की तारीफ भी कर दिया करते थे.

आशा की तारीफ करते हुए जब मोनू कह देता कि तुम आज बहुत सुंदर दिख रही हो, तब वह शरमा जाती थी. मुसकराती हुई उस के कसरती बदन को बनाए रखने के लिए खानेपीने पर ध्यान देने की सलाह दे डालती थी. एक दिन जब आशा ने बातोंबातों में अपने 4 साल के बच्चे के बारे में जिक्र किया, तब मोनू चौंंक गया. उस ने तुरंत टिप्पणी कर दी, ”तुम्हें देख कर कोई नहीं कहेगा कि तुम 4 साल के बच्चे की मां हो! आखिर तुम्हारी इस खूबसूरती का राज क्या है…जरा मुझे भी बताओ!’’

इस तरह की मीठीमीठी बातों का असर आशा के मन में गहराई से होने लगा था, जबकि मोनू उस के रूपरंग और अदाओं पर मर मिटा था. वह उस की खूबसूरती, चालढाल और बोलचाल की शैली को ले कर जबतब छेडऩे भी लगा था. सच तो यह था कि मोनू का उस के साथ खुल कर बात करना आशा को भी अच्छा लगने लगा था. वे फैक्ट्री में लंच साथसाथ करने लगे थे, जबकि अधिकतर लड़कियां अपने साथ काम करने वाली महिलाओं के साथ ही लंच करती थीं. मोनू उसे अपनी तरफ से कुछ बाहरी खानेपीने की चीजें, आइसक्रीम, चौकलेट, बिसकुट, चाय वगैरह भी देने लगा था.

आशा और मोनू के बीच नजदीकियां बढ़ चुकी थीं. मोनू की मीठी बातें और उस का खयाल रखने को ले कर आशा को बहुत कुछ समझने में देर नहीं लगी कि वह उस का दीवाना बन चुका है… और उस की चाहत क्या है? कई बार उस ने उस की निगाहों को उस की देह पर टिके होने का भी एहसास किया. एक दिन मोनू ने जब अपने प्यार का इजहार किया, तब वह झेंप गई. उस ने कहा कि वह एक बेटे की मां है. तब मोनू भी बोला, ”तो क्या हुआ? मैं भी एक बेटे का पिता हूं. हमारा दिल तुम पर आ गया है…तो इस में बुराई क्या है?’’

इस के बाद धीरेधीरे आशा और मोनू एकदूसरे के करीब आते चले गए. मोनू ने उसे एक नया एंड्रायड फोन गिफ्ट दिया तो आशा बहुत खुश हुई. आशा अपने कुंवारेपन को याद करती हुई मोनू की ओर एक कदम आगे बढ़ाती तो मोनू उस की ओर 2 कदम आगे बढ़ा देता था. कई महीने तक उन के बीच यह सब चलता रहा. एक रोज इस की भनक आशा के पति राजाराम मीणा को हो गई. पत्नी के प्रेम संबंधों और उसे प्रेमी द्वारा फोन गिफ्ट में देने की जानकारी एक परिचित ने उसे दी. जबकि आशा ने पति को बताया था कि उस के साथ काम करने वाली एक लड़की ने किस्त पर मोबाइल दिलवाया है.

आशा ने अपने फोन में मोनू का नंबर पंडित के नाम से सेव कर रखा था. मोनू का पूरा नाम मोनू उपाध्याय उर्फ मोनू पंडित था. उस नंबर पर आशा के दिन में कई बार कौल करने के रिकौर्ड दर्ज थे. इस पर राजाराम चुप नहीं बैठा. उस ने फोन में सबूत दिखाते हुए नाराजगी दिखाई. साफ लहजे में समझाया कि उस का किसी गैरमर्द के साथ प्रेम संबंध रखना इज्जत नीलाम करने जैसा है. इस का असर उस के बच्चों और परिवार पर होगा. इसलिए यह सब छोड़ कर अपनी नौकरी और परिवार पर ध्यान दे. इस का असर आशा पर हुआ. उस ने पति से माफी मांगी. गलती सुधारने का मौका मांगा. कसम खाई कि वह अब मोनू से बात तक नहीं करेगी.

राजाराम ने अगला कदम उठाते हुए आशा की फैक्ट्री से नौकरी छुड़वा दी. उन दिनों वह भी उसी फैक्ट्री में काम करता था. उस ने भी वहां से नौकरी छोड़ कर आदित्य सोलर कंपनी में नौकरी जौइन कर ली. आशा का मोबाइल भी उस ने अपने कब्जे में ले लिया. इस की जानकारी जब मोनू को हुई, तब वह आगबबूला हो गया. वह आशा से बात करने के लिए तड़पने लगा. उस ने राजाराम को आशा के प्यार का रोड़ा मान लिया. उसे राजाराम पर बहुत गुस्सा आ रहा था, लेकिन वह उस के खिलाफ कुछ करने में विवश था.

अचानक उसे आशाराम मीणा उर्फ गोलू का खयाल आया. वह आशा का देवर था. गोलू को अपनी भाभी आशा और मोनू के बीच प्रेम संबंध के बारे में जानकारी हो चुकी थी. यही कारण था कि मोनू ने जब आशा से बात करवाने को कहा, तब उस ने ऐसा करने से इनकार कर दिया. गुस्से में मोनू ने गोलू को धमकी दी. कहा कि इस का अंजाम पूरे परिवार को भुगतना होगा, किंतु मोनू का यह प्रयास भी विफल हो गया. फिर तो वह और भी तड़प उठा. उस के बाद वह 26 वर्षीय राजाराम मीणा को ही रास्ते से हटाने की योजना बनाने लगा. दूसरी तरफ जब से मोनू ने गोलू को धमकी दी थी, तब से आशाराम और राजाराम दोनों भाई सतर्क हो गए थे. खासकर आशा के घर से निकलने पर परिवार का कोई न कोई सदस्य उस के साथ हमेशा रहने लगा था.

24 वर्षीय आशा मीणा अपने पति, 4 साल के बेटे, भाई आशाराम मीणा और बहन मीनाक्षी के साथ जोतवाड़ा के शांति विहार में रहती थी. वैसे वे मूलरूप से जयपुर जिले के चाकसू तहसील में कोटखावदा के रहने वाले थे. आशा राजाराम और गोलू जिस कुरती फैक्ट्री में काम करते थे, वहीं यूपी के आगरा जिले के बंडपुरा गांव का रहने वाला मोनू उपाध्याय उर्फ मोनू पंडित भी काम करता था. सांगानेर में मोनू और आशा के घर के बीच की दूरी करीब आधे किलोमीटर की थी. मोनू किराए के मकान में अपनी पत्नी और 3 बच्चों के साथ रहता था. वह कई साल पहले आगरा से आ कर जयपुर काम करने लगा था.

मोनू के दिलोदिमाग पर आशा छाई हुई थी. वह रातदिन उस की याद में तड़पता रहता था. किंतु जनवरी, 2025 के पहले सप्ताह में जब से आशा का मोबाइल फोन पति ने अपने कब्जे में लिया था, तब से मोनू उस से बात करने तक को तरस गया था. आशा की जुदाई और ऊपर से उस पर लगी पहरेदारी से उस की स्थिति पागलों जैसी हो गई थी. उस की रातों की नींद गायब हो चुकी थी. दिन में बावलों की तरह घूमता रहता था. आशा पर भले ही कई पाबंदियां लगी थीं, लेकिन कई बार उसे अकेले में घर से निकलना ही होता था. इसी सिलसिले में 22 जनवरी, 2025 को वह अपने बेटे को स्कूल से लेने के लिए घर से अकेली निकली जरूर थी, लेकिन गोलू काफी पीछे से उस पर नजर रखे हुए था. अचानक मोनू की नजर आशा पर पड़ी. आशा से बात करने की चाहत में वह उस के पीछेपीछे हो लिया.

किंतु जैसे ही उस की निगाह गोलू पर पड़ी वह सहम गया, तुरंत खुद को संभालते हुए गोलू को धमका कर अपनी राह चल दिया. इस घटना की आशा को भनक तक नहीं लगी, लेकिन जब वह बच्चे को ले कर घर आई, तब गोलू ने उसे और पति को मिली धमकी के बारे में बताते हुए और अधिक सतर्क रहने की हिदायत दी. मोनू अब इस उधेड़बुन में रहने लगा था कि राजाराम को रास्ते से कैसे हटाया जाए, ताकि वह आशा को हासिल कर सके. अंतिम निर्णय लिया, क्यों न उसे गोली मार दी जाए? इसी के साथ अगला सवाल उठा कि गोली दागने का इंतजाम कैसे होगा? उस ने इस का भी हल निकाल लिया.

दिमाग में विचार आया, ‘क्यों न पिस्तौल ही खरीद ली जाए…देसी कट्टा ही सही!’ फिर क्या था, इस बारे में प्रयास तेज कर दिया. पता चला कि धौलपुर में उसे पिस्तौल मिल सकती है. अगले दिन 23 जनवरी, 2025 को ही मोनू धौलपुर के बसेड़ी गांव गया और 50 हजार रुपए में एक देसी पिस्तौल और कारतूस खरीद लाया. तब तक शाम हो चुकी थी. उस ने फैक्ट्री में साथ काम करने वाले अपने दोस्त प्रदीप को वीडियो कौल के जरिए पिस्तौल दिखाई. उस से कहा, ”आशा मुझ से बात नहीं करेगी, तब मैं उस के पति राजाराम मीणा को इसी पिस्तौल से मार दूंगा.’’

प्रदीप को वीडियो कौल से पिस्तौल दिखाने का मकसद उस की धमकी को राजाराम तक पहुंचाने का था. हालांकि प्रदीप ने इसे गंभीरता से नहीं लिया था. 24 जनवरी, 2025 की सुबहसुबह मोनू ने राजाराम के मोबाइल पर कई कौल कीं, लेकिन उस का मोबाइल साइलेंट मोड पर होने के कारण कौल का पता नहीं चला. उस के बाद मोनू ने गोलू को कौल कर उसे राजाराम को कई कौल करने की बात बताई. उस ने मोनू को कौलबैक की और बताया कि वह घर पर है. थोड़ी देर बाद उस का भाई गोलू ड्यूटी पर चला गया.

उसी रोज 24 जनवरी, 2025 को मोनू पिस्तौल ले कर दोपहर करीब साढ़े 12 बजे राजाराम के घर के बाहर जा पहुंचा. काफी समय तक घर के बाहर मंडराता रहा. कभी कमर मेें खोंस कर रखे पिस्तौल को टटोलने लगता तो कभी मोबाइल पर नंबर सरकाने लगता. उस की स्थिति एक विक्षिप्त जैसी थी. उस ने राजाराम मीणा को कौल की. उस की कौल का जवाब राजाराम ने चिढ़ते हुए दिया, ”बोलो, क्या बात है? क्यों सुबह से मुझे कौल कर के तंग कर रहे हो?’’

जवाब में मोनू बोला, ”घर आओ, तुम से जरूरी बात करनी है. मैं तुम्हारे साथ दुश्मनी रख कर एक ही मोहल्ले में भला कैसे रह पाऊंगा?’’

राजाराम को भी न जाने क्या सूझी, वह मोनू के कहने पर घर आ गया. पीछे से ताक लगाए मोनू भी राजाराम के घर में घुस आया. उस वक्त घर पर आशा और उस की विवाहित बहन मीनाक्षी मौजूद थी. वह अपने मायके आई हुई थी. मोनू ने उस से कहा कि बाहर उस की सहेली बुला रही है. उस के कहे पर मीनाक्षी बाहर चली गई, किंतु वहां सहेली को नहीं पा कर सामने उस के घर ही चली गई. राजाराम मोनू को ले कर घर के पिछले हिस्से में बने कमरे में ले कर चला गया. वहीं आशा भी आ गई. राजाराम के कुछ भी बोलने से पहले मोनू ही कड़े तेवर के साथ बोला, ”राजाराम, तूने आशा को मुझ से बात करने से क्यों मना किया?’’

उस के कड़े रुख को देखते हुए राजाराम नरमी के साथ बोला, ”देख मोनू, तू बालबच्चे वाला है, मैं भी बालबच्चेदार हूं…ऐसे में तू जो चाहता है वह कैसे हो सकता है? समाजपरिवार भी कुछ होता है या नहीं?’’

”मुझे अच्छेबुरे की तुझ से ज्यादा समझ है… प्यारमोहब्बत भी तो कुछ होता है कि नहीं…इस पर दुनियाजहान टिकी हुई है.’’ मोनू ने तर्क दिया.

”लेकिन तुम जो चाहते हो, वह सरासर गलत है…और जब आशा ही तुम से बात नहीं करना चाहती, तब तुम क्यों उस के पीछे पड़े हो?’’ अब राजाराम भी उस की तरह गर्म लहजे में बोला.

आशा ने बीचबचाव करने की कोशिश की, लेकिन कुछ सेकेंड में ही बात बिगड़ती चली गई. उन तीनों के बीच गरमागरम बहस छिड़ गई. यहां तक कि मोनू और राजाराम एकदूसरे को धमकाने लगे…और उन के बीच हाथापाई तक की नौबत आ गई. आशा बीचबचाव करने लगी. मोनू उसे परे धकेलता हुआ बोला, ”तुम हट जाओ…आज में इसे हमेशा के लिए हटा कर रहूंगा.’’

आशा को जोर का धक्का लगा था, जिस से वह थोड़ी दूर जा कर गिर पड़ी. इस बीच मोनू ने कमर में खोंस कर रखी पिस्तौल राजाराम मीणा की कनपटी पर सटा दी. आशा चीखी, बचाने की गुहार लगाई…किंतु तब तक तो मोनू के सिर पर आक्रामकता का भूत सवार हो चुका था. सेकेंड भर में ही उस ने गोली दाग दी, राजाराम मीणा धड़ाम से वहीं गिर गया. आशा अवाक रह गई!

किंतु जल्द ही वह चीखती हुई मोनू को मारने के लिए उस की तरफ दौड़ पड़ी. मोनू आशा के विरोधी तेवर को देख कर डर गया. उस ने महसूस किया कि आशा को पति की मौत का जबरदस्त सदमा लगा है, इसलिए उस की विरोधी बन चुकी है. उसे पुलिस में पकड़वा सकती है. आशा जैसे ही पास आई, उस ने तुरंत उस की कनपटी पर भी पिस्तौल रख कर गोली दाग दी. आशा भी राजाराम की तरह जमीन पर गिर पड़ी. उस के बाद मोनू फरार हो गया.

इस तरह एक घर में डबल मर्डर की घटना हो गई थी. दोनों रक्तरंजित लाशें जमीन पर पड़ी थीं. जब मीनाक्षी घर आई, तब वह भाई और भाभी की लाश देख कर घबरा गई. उस वक्त राजाराम का बेटा स्कूल में था. मीनाक्षी ने सब से पहले अपने भाई गोलू को इस की सूचना दी. वह भागाभागा घर आया. इस घटना की खबर आग की तरह पूरे मोहल्ले में फैल गई. गोलू पड़ोसियों की मदद से राजाराम और आशा को नारायण अस्पताल ले गया. वहां डौक्टर ने दोनों को मृत घोषित कर दिया.

दोपहर ढाई बजे सदर थाना सांगाने को इस वारदात की सूचना मिल गई. इंसपेक्टर  नंदलाल चौधरी दलबल के साथ अस्पताल पहुंचे. घटना की तहकीकात डौक्टरी जांच के आधार पर की, उस के बाद पुलिस घटनास्थल पर गई. इस बीच दोहरे हत्याकांड में मोनू पंडित का हाथ होने की जानकारी मिली. उस के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज कर लिया गया. इस घटना की जानकारी एसएचओ नंदलाल चौधरी ने अपने आला अधिकारियों को भी दी. मौके पर डीसीपी (साउथ) दिगंत आनंद अपने अधीनस्थ पुलिस अधिकारियों के साथ घटनास्थल पर पहुंचे.

एफएसएल टीम को भी मौके पर बुलाया गया. जांच टीम ने वहां से साक्ष्य एकत्रित किए. कमरे में बिखरे खून के नमूने लिए. वहीं से खाली कारतूस भी मिले. घटना के बारे में मृतकों के परिजनों में आशाराम मीणा उर्फ गोलू और मीनाक्षी से तमाम तरह की जानकारियां जुटाई गईं. गोलू ने साफतौर पर कहा कि मोनू ने उसे राजाराम को मारने की धमकी दी थी. वह आशा से प्रेम करता था, जिस का राजाराम ने विरोध जताया था.

इस दोहरे हत्याकांड में मुख्य आरोपी मोनू उपाध्याय उर्फ मोनू पंडित फरार हो गया था. उस के घर में तलाशी ली गई, लेकिन वह दूसरे शहर के लिए निकल चुका था. उस के फेमिली वालों को न तो किसी तरह के प्रेमप्रसंग की जानकारी थी और न ही इस तरह की घटना को ले कर कभी संदेह हुआ था. एडिशनल डीसीपी ललित शर्मा के नेतृत्व में पुलिस की टीमें हत्यारे का पता लगाने में जुट गई थीं. घटनाक्रम से पहले वही व्यक्ति था, जो आशा और राजाराम से घर पर बातचीत के लिए आया था.

तीनों के बीच क्या बातें हुईं और पूर्व में किस तरह का कैसा विवाद था? इस बारे में मृतक के परिजनों और फैक्ट्री में काम करने वाले कारीगरों से पूछताछ की गई. उस के पकड़े जाने पर ही वारदात का पूरी तरह से खुलासा हो पाएगा. मोनू की गिरफ्तारी के लिए पुलिस टीम ने पहले उस के मोबाइल नंबर से लोकेशन का पता लगाई. इसी के साथ पूरे इलाके के सीसीटीवी कैमरों की फुटेज की जांच की गई. एक फुटेज में मोनू आगरा जाने वाली बस में सवार होता हुआ दिख गया. उस आधार पर पुलिस टीम ने दौसा आगरा की तरफ रुख किया. उस का मोबाइल फोन भी सर्विलांस पर था.

उस ने जैसे ही फोन को औन किया, उस की लोकेशन दौसा की मिल गई. उस आधार पर 25 जनवरी, 2025 की रात को उसे दौसा से महुवा जाने के क्रम में उसे गिरफ्तार कर लिया गया. अगले दिन 26 जनवरी को उसे सांगनेर सदर थाने लाया गया. उस से सख्ती से पूछताछ की गई. उस ने अपना जुर्म कुबूल कर लिया. उस से पुलिस ने दोनों हत्याओं में प्रयुक्त हुई देसी पिस्तौल भी बरामद कर ली. मोनू को उसी रोज कोर्ट में पेश किया गया, वहां से उसे न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. Rajasthan Crime News

 

 

Love Story in Hindi : भांजी के प्यार में बना बलि का बकरा

Love Story in Hindi : 12 अगस्त, 2013 की बात है. नेहा तय समय पर कुछ कपड़े और सामान ले कर चुपचाप घर के  बाहर निकल गई. उस ने और महेंद्र ने पहले ही घर से भागने की योजना बना ली थी. गांव से निकल कर नेहा रायबरेली लालगंज जाने वाली सड़क पर पहुंच गई. वहां उस का प्रेमी महेंद्र पहले से उस का इंतजार कर रहा था.

दोनों ने वहां से फटाफट बस पकड़ी और कानपुर चले गए. कानपुर के एक मंदिर में दोनों ने पहले शादी की, फिर वहां से दिल्ली चले गए. दिल्ली में महेंद्र का एक दोस्त रहता था. उस की मार्फत दिल्ली में उस की नौकरी लग गई. बाद में उस ने किराए पर एक कमरा ले लिया. किराए के उस कमरे में वह नेहा के साथ रहने लगा. इधर महेंद्र और नेहा के फरार होने के बाद उन के गांव बीजेमऊ में हंगामा मच गया. नेहा नाबालिग थी, ऐसे में उस के मांबाप ने 15 अगस्त को महेंद्र के खिलाफ खीरो थाने में भादंवि की धारा 363, 366 और 376 के तहत अपहरण और बलात्कार का मुकदमा दर्ज करा दिया.

खीरो थाने के एसआई राकेश कुमार पांडेय नेहा और महेंद्र की खोज में जुट गए. हफ्ता भर कोशिश करने के बाद उन्होंने दोनों को आखिर ढूंढ लिया. राकेश कुमार ने महेंद्र और नेहा को बरामद कर के 24 अगस्त को न्यायालय में पेश किया. महेंद्र और नेहा ने कोर्ट में सफाई दी कि उन्होंने शादी कर ली है. इतना ही नहीं, उन्होंने अपनी शादी के फोटो भी कोर्ट में पेश किए लेकिन नेहा के नाबालिग होने की वजह से अदालत ने महेंद्र को जेल भेज दिया और नेहा को उस की मां के हवाले करने का आदेश दिया.

पुलिस ने इस मामले की जांच पूरी करने के बाद 27 अगस्त, 2013 को अदालत में चार्जशीट पेश कर दी. पुलिस की जांच से पता चला कि महेंद्र और नेहा का प्यार 2 साल पहले शुरू हुआ था. नेहा और महेंद्र के प्यार की शुरुआत की कहानी भी बड़ी दिलचस्प है. उत्तर प्रदेश के जिला रायबरेली की रहने वाली नेहा की मां की दोस्ती रेखा गुप्ता नाम की एक महिला से थी. रेखा के पति श्यामू गुप्ता की करीब 8 साल पहले मृत्यु हो गई थी. उन से 3 बेटियां कोमल, करिश्मा और खुशबू थीं. पति की मौत के बाद रेखा किसी तरह परिवार पाल रही थी, उसी दौरान उस की मुलाकात सर्वेश यादव से हुई.

सर्वेश यादव मूल रूप से कन्नौज जिले के मुंडला थाना क्षेत्र के गांव ताल का रहने वाला था. उस के पिता मोहर सिंह किसान थे. सर्वेश काम की तलाश में गांव से रायबरेली आया तो फिर वहीं का हो कर रह गया.   रेखा से मुलाकात होने के बाद उस की उस से दोस्ती हो गई. यह दोस्ती दोनों को इतना करीब ले आई कि रेखा और सर्वेश ने शादी कर ली. सर्वेश से शादी करने के बाद रेखा 2 और बच्चों की मां बनी. बाद में सर्वेश ने रेखा की बड़ी बेटी कोमल की शादी अपने भांजे सुमित से करा दी थी.

सहेली होने के नाते नेहा की मां विनीता अपने घरपरिवार की सारी परेशानी रेखा और सर्वेश से कहती रहती थी. विनीता और सर्वेश एक ही जाति के थे, इसलिए वह विनीता को बहन कहता था. दोनों में बहुत छनती थी. रेखा का घर विनीता के घर से कुछ दूरी पर था. जब भी मौका मिलता था, वह उस के पास चली आती थी. नेहा के भागने के बाद विनीता गांव में खुद को अपमानित महसूस करती थी. वह रेखा के अलावा किसी के घर नहीं जाती थी.

एक बार रेखा और विनीता आपस में बातचीत कर रही थीं तभी वहां मौजूद सर्वेश ने विनीता से कहा, ‘‘बहन, तुम्हारी बेटी नेहा तुम्हारे कहने में नहीं है. अभी तो वह नाबालिग थी तो पुलिस ने उसे पकड़ लिया. बालिग होने के बाद अगर वह किसी के साथ चली जाएगी तो पुलिस भी कोई मदद नहीं करेगी.’’

‘‘भैया, तुम्हारी बात तो सही है. पर क्या करें कुछ समझ नहीं आ रहा है. मैं उसे बहुत समझाने की कोशिश करती हूं लेकिन उस के ऊपर महेंद्र का भूत सवार है.’’ विनीता बोली.

‘‘बहन, तुम चिंता मत करो. मैं अपने गांव में नेहा की शादी की बात करता हूं. वहां के लोगों को नेहा के बारे में कोई बात पता नहीं है. इसलिए शादी होने में कोई परेशानी नहीं आएगी. शादी होने के बाद सब ठीक हो जाता है.’’

सर्वेश का एक भतीजा था जोगिंदर. उस की शादी नहीं हुई थी. सर्वेश ने सोचा कि अगर नेहा और जोगिंदर की शादी हो जाए तो दोनों की जोड़ी अच्छी रहेगी. रायबरेली और कन्नौज के बीच करीब 160 किलोमीटर की दूरी है. ऐसे में नेहा जल्द मायके भी नहीं आजा सकेगी और महेंद्र को भूल कर अपनी गृहस्थी में रचबस जाएगी. विनीता चाहती थी कि महेंद्र के जेल से बाहर आने से पहले नेहा की शादी हो जाए तो अच्छा रहेगा. इसलिए उस ने सर्वेश से कहा कि जितनी जल्दी हो सके, वह इस काम को करवा दे.

सर्वेश ने ऐसा ही किया. जोगिंदर और उस के घरवालों से बात करने के बाद आननफानन में जोगिंदर और नेहा की शादी कर दी गई. शादी के बाद नेहा कन्नौज चली गई. बेटी की शादी हो जाने के बाद विनीता ने राहत की सांस ली. लगभग 3 महीने जेल में रहने के बाद नवंबर, 2013 में महेंद्र जमानत पर घर आ गया. जेल में रहने के बाद भी वह नेहा को भूल नहीं पाया था.  उस ने अपने घरवालों से नेहा के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि नेहा के घर वालों ने उस की शादी दूसरी जगह कर दी है. यह सुन कर उसे बहुत बड़ा धक्का लगा.

बाद में महेंद्र ने पता लगा लिया कि नेहा की शादी कराने में सब से बड़ी भूमिका सर्वेश यादव की रही थी. इसलिए उस ने सर्वेश के पास जा कर उसे धमकी दी, ‘‘नेहा मुझे प्यार करती थी और मेरे साथ रहना चाहती थी. तुम सब ने मुझे जेल भिजवा कर उस की शादी कर दी. तुम ने सोचा होगा कि इस से हम दूर हो जाएंगे. लेकिन मैं तुम्हें बता देना चाहता हूं कि यह तुम लोगों की गलतफहमी है. मैं नेहा को दोबारा हासिल कर के रहूंगा. जिस ने भी नेहा को मुझ से अलग करने का काम किया है, मैं उसे सबक सिखा कर रहूंगा.’’

सर्वेश ने महेंद्र से उलझना ठीक नहीं समझा. उस के जाने के बाद वह अपने काम में लग गया. उधर महेंद्र इस कोशिश में लग गया कि किसी तरह उस की एक बार नेहा से बात हो जाए. वह उस से जानना चाहता था कि शादी के बाद भी वह उस के साथ रहना चाहती है या नहीं. यदि वह उसे अब भी चाहती है तो वह उसे ले कर कहीं दूर चला  जाएगा. महेंद्र यह बात अच्छी तरह जानता था कि अब तक नेहा बालिग हो चुकी है. ऐसे में अब अगर वह अपनी मरजी से उस के साथ जाएगी तो पुलिस भी उसे फिर से जेल नहीं भेज पाएगी.

कुछ समय बाद महेंद्र को किसी तरह नेहा का मोबाइल नंबर मिल गया. उस ने नेहा से बात की. महेंद्र के जेल से आने की बात सुन कर नेहा खुश हो गई.  आपसी गिलेशिकवे दूर करने के बाद नेहा ने उसे बताया, ‘‘घरवालों ने मेरी शादी जबरन कराई है. मैं अब भी तुम्हारे साथ रहना चाहती हूं लेकिन अब इतनी दूर हूं कि मिलना भी संभव नहीं है.’’

प्रेमिका की बात सुन कर महेंद्र का दिल बागबाग हो गया. इस के बाद दोनों ने आगे की रणनीति बनाई.

8 फरवरी, 2014 को नेहा के चचेरे भाई पवन की शादी थी. नेहा ने महेंद्र से कहा कि मैं उस की शादी में शामिल होने के लिए गांव आऊंगी. तब तुम से मिलूंगी.

‘‘बस नेहा एक बार तुम मेरे पास आ जाओ, इस के बाद मैं तुम्हें कभी भी दूर नहीं जाने दूंगा. तुम्हें ले कर इतनी दूर चला जाऊंगा कि किसी को पता तक नहीं चलेगा.’’ महेंद्र ने कहा.

महेंद्र की बातों में आ कर नेहा एक बार फिर से उस के साथ भागने को तैयार हो गई तो महेंद्र ने यह बात अपने कुछ दोस्तों को भी बता दी. फिर क्या था, यह जानकारी सर्वेश को भी मिल गई. महेंद्र के जेल से छूट कर आने के बाद उस ने जब से सर्वेश को धमकी दी थी, तब से वह उस की हर हरकत पर नजर रख रहा था.

सर्वेश को महेंद्र की योजना का पता चल ही गया था. उस की योजना को फेल करने के लिए सर्वेश ने अपने भतीजे जोगिंदर को फोन कर के कहा, ‘‘जोगिंदर पवन की शादी में तुम नेहा को ले कर उस के गांव मत आना. यहां आ कर वह परेशान हो जाती है. अपनी मां, घरपरिवार के मोह में वह यहां आना चाहती है.’’

भतीजे से बात करने के बाद सर्वेश को लगा कि जब नेहा यहां आएगी ही नहीं तो महेंद्र कुछ नहीं कर सकेगा. यही नहीं सर्वेश ने जोगिंदर से कह कर नेहा का मोबाइल नंबर भी बदलवा दिया, ताकि महेंद्र उस से दोबारा बात न कर सके. यह बात जब महेंद्र को पता चली तो उसे शक हो गया कि यह सब सर्वेश ने ही कराया होगा. वह सर्वेश के पास पहुंच गया और आगबबूला होते हुए बोला, ‘‘मैं ने तुम से कहा था कि तुम मेरे बीच में मत आओ लेकिन तुम नहीं माने. अब इस का खामियाजा भुगतने को तैयार रहो.’’

27 मार्च, 2014 की रात को सर्वेश अपने घर के बाहर दरवाजे पर सो रहा था. आधी रात को अचानक उस के चीखने की आवाजें आने लगीं. आवाज सुन कर उस की पत्नी रेखा भाग कर बाहर आई तो सर्वेश का गला कटा हुआ था.  पति की हालत देख कर वह जोरजोर से रोने लगी. उस की आवाज सुन कर गांव के दूसरे लोग भी वहां आ गए. लोगों को इस बात की हैरानी हो रही थी कि इस तरह गला रेत कर सर्वेश की हत्या किस ने कर दी?

सूचना मिलने पर थाना खीरो की पुलिस भी वहां पहुंच गई. पुलिस रेखा और अन्य लोगों से पूछताछ करने लगी. पुलिस को लोगों से तो कुछ पता नहीं चला लेकिन वह इतना जरूर समझ गई कि हत्यारे की सर्वेश से गहरी दुश्मनी रही होगी. पुलिस ने लाश का पंचनामा करने के बाद उसे पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. पुलिस ने रेखा की तरफ से अज्ञात लोगों के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर के तहकीकात शुरू कर दी. पुलिस अधीक्षक राजेश कुमार पांडेय ने खीरो के थानाप्रभारी विद्यासागर पाल को जल्द से जल्द इस मामले का परदाफाश करने के आदेश दिए.

थानाप्रभारी ने रेखा से बात की तो उस ने बताया कि उन की वैसे तो किसी से भी कोई दुश्मनी वगैरह नहीं थी लेकिन महेंद्र कई बार दरवाजे पर आ कर धमकी दे गया था. चूंकि पुलिस अधीक्षक सीधे इस केस की काररवाई पर नजर रखे हुए थे इसलिए थानाप्रभारी ने रेखा द्वारा कही गई बात उन्हें बताई तो उन्होंने महेंद्र के खिलाफ सुबूत जुटाने को कहा.

थानाप्रभारी ने सर्वेश के घर वालों के अलावा मोहल्ले के अन्य लोगों से बात की तो पता चला कि महेंद्र का विनीता की बेटी नेहा से चक्कर चल रहा था. अपने और नेहा के बीच में वह सर्वेश को रोढ़ा मानता था. लोगों से की गई बात के बाद थानाप्रभारी को भी महेंद्र पर शक होने लगा.

एसपी के आदेश पर खीरो थाने की पुलिस महेंद्र के पीछे लग गई. घटना के 3 दिन बाद 31 मार्च, 2014 को मुखबिर की सूचना पर एसआई राकेश कुमार पांडेय, कांस्टेबल सुरेश चंद्र सोनकर, गोबिंद और कमरूज्जमा अंसारी ने महेंद्र को हिरासत में ले लिया. थाने ला कर जब उस से पूछताछ की गई तो उस ने आसानी से स्वीकार कर लिया कि उस ने ही सर्वेश की हत्या की थी. महेंद्र ने पुलिस को बताया कि वह नेहा से बहुत प्यार करता था. उस के लिए वह जेल भी गया था. इस बीच नेहा की शादी जोगिंदर से हो जरूर गई थी, लेकिन उस के जेल से लौटने के बाद भी नेहा पति को छोड़ उस के साथ ही रहना चाहती थी. सर्वेश उस की और नेहा की राह में रोड़ा बन कर बारबार आ रहा था. तब मजबूरी में उस ने सर्वेश को रास्ते से हटाने की योजना बनाई.

वह सर्वेश को मारने का मौका ढूंढता रहा. जाड़े के दिनों में वह घर में सोता था इसलिए उसे मौका नहीं मिला. जाडे़ का मौसम गुजर जाने के बाद सर्वेश घर के बाहर सोने लगा. महेंद्र मौके की तलाश में रात में रोजाना उस के घर की तरफ जाता था. 27 मार्च को भी वह मौके की फिराक में था. रात साढ़े 12 बजे जब सन्नाटा हो गया तो उस ने सर्वेश का मुंह दबा कर उस का गला चाकू से काट दिया.

सर्वेश जोर से चिल्लाने लगा तो उस ने उस पर चाकू से कई वार किए. इस बीच उस की पत्नी रेखा दरवाजा खोल कर आती दिखी तो वह भाग निकला. हत्या के समय खून के छींटे महेंद्र की शर्ट पर भी आए थे. उस ने चाकू और खून लगी शर्ट महारानीगंज, सिधौर मार्ग पर बने मंदिर के बगल वाली पुलिया के नीचे छिपा दी थी. फिर वह घर चला गया था.

महेंद्र को जब पता चला कि पुलिस ज्यादा एक्टिव हो गई है तो उस ने घर से कानपुर के रास्ते दिल्ली भागने की योजना बना ली. इस से पहले कि वह वहां से भाग पाता पुलिस ने मुखबिर की सूचना पर उसे समेरी चौराहे से गिरफ्तार कर लिया. महेंद्र की निशानदेही पर पुलिस ने चाकू और खून से सनी शर्ट भी बरामद कर ली. 1 अप्रैल, 2014 को पुलिस ने महेंद्र को रायबरेली के जिला न्यायालय में पेश किया. वहां से उसे जेल भेज दिया गया.  महेंद्र ने अपने और अपनी प्रेमिका के बीच सर्वेश के आने पर प्रतिशोध की भावना से ग्रस्त हो कर उस की हत्या कर दी. भले ही वह अपना प्रतिशोध लेने में सफल हो गया हो पर यह उस के लिए बहुत महंगा साबित हुआ. अब वह हत्या के आरोप में जेल में बंद है. उसे न तो प्रेमिका मिल सकी और न उस का साथ.

प्रतिशोध की भावना लोगों को अंधा कर देती है. ऐसे में यह दिखाई नहीं देता कि प्रतिशोध का अंजाम जीवन बरबाद करने वाला होता है. महेंद्र को यह कदम उठाने से पहले सोच लेना चाहिए था. वह खुद तो तिलतिल मर कर जेल में अपनी जिंदगी गुजार ही रहा होगा लेकिन उसे इस बात का अहसास नहीं होगा कि उस का परिवार उस से भी अधिक मुसीबत में है.

उस के परिवार वाले अपनी जमीनजायदाद बेच कर मुकदमा लड़ने के लिए वकील की फीस चुका रहे हैं. इस सब के बाद भी अदालत इस मामले में जो फैसला सुनाएगी, वह जरूरी नहीं कि महेंद्र के पक्ष में ही आए.

कुल मिला कर बात यहीं आ कर ठहरती है कि महेंद्र ने गुस्से में जो कदम उठाया उस से उस का परिवार ही मुसीबत में नहीं फंसा बल्कि सर्वेश यादव की हत्या के बाद उस की पत्नी और परिवार का जीवन भी अंधकारमय हो गया है. Love Story in Hindi

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित है. कथा में कुछ पात्रों के नाम परिवर्तित हैं.

UP Crime News : चाहत बनी आफत

UP Crime News : उत्तर प्रदेश के जनपद सीतापुर के थाना संदना का एक गांव है हरिहरपुर. रामप्रसाद का परिवार इसी गांव में रहता था. खेती किसानी करने वाले रामप्रसाद के परिवार में पत्नी सोमवती के अलावा 2 बेटियां और 2 बेटे थे. उन में संगीता सब से बड़ी थी. सांवले रंग की संगीता का कद थोड़ा लंबा था. संगीता जवान हुई तो रामप्रसाद ने उस की शादी अपने ही इलाके के गांव रसूलपुर निवासी मुन्नीलाल के बेटे परमेश्वर के साथ कर दी. यह 6 साल पहले की बात थी.

परमेश्वर के पास 7 बीघा जमीन थी, जिस पर वह खेतीबाड़ी करता था. समय के साथ संगीता 3 बच्चों रजनी, मंजू और रजनीश की मां बनी. शादी के कुछ दिनों बाद ही परमेश्वर अपने घर वालों से अलग रहने लगा, इसलिए पत्नी और बच्चों के भरणपोषण और खेतीबाड़ी की पूरी जिम्मेदारी उसी पर आ गई थी. परमेश्वर खेतों पर जी तोड़ मेहनत करता तो संगीता बच्चों और घर की जिम्मेदारी संभालती. घरगृहस्थी के चक्रव्यूह में फंस कर परमेश्वर यह भी भूल गया कि उस की पत्नी अभी जवान है और उस की कुछ भी हैं.

यह मानव स्वभाव में है कि जब उस की शारीरिक जरूरतें पूरी नहीं होतीं तो उस में चिड़चिड़ापन आ जाता है. ऐसा ही कुछ संगीता के साथ भी था. वह परमेश्वर से अपने मन की चाह के बारे में भले ही खुल कर बता नहीं पाती थी, लेकिन चिड़चिड़ेपन की वजह से लड़ जरूर लेती थी. इस तरह दोनों के बीच कहासुनी होना आम बात हो गई थी.

गांव में ही बाबूराम का भी परिवार रहता था. उस के परिवार में पत्नी, 2 बेटियां और 4 बेटे थे. इन में छोटू को छोड़ कर बाकी सभी भाईबहनों की शादियां हो चुकी थीं.19 वर्षीय छोटू वैवाहिक समारोहों में स्टेज बनाने का काम करता था. जब काम न होता तो वह गांव में खाली घूमता रहता था. छोटू परमेश्वर को बड़े भाई की तरह मानता था, इसलिए उस का काफी सम्मान करता था.

एक दिन परमेश्वर खेत पर काम कर रहा था तो छोटू वहां पहुंच गया. उसे वहां आया देख परमेश्वर ने उसे अपने घर से खाना लाने भेज दिया. छोटू परमेश्वर के घर पहुंचा तो वहां उस की मुलाकात संगीता से हुई. संगीता उसे नहीं जानती थी. उस ने अपने बारे में बता कर संगीता से खाने का टिफिन लगा कर देने को कहा तो संगीता टिफिन में खाना लगाने लगी.

छोटू जवान हो चुका था. इस मुकाम पर महिलाओं के प्रति आकर्षण स्वाभाविक होता है. वह चोर निगाहों से संगीता के यौवन का जायजा लेने लगा. छोटू कुंवारा था, इसलिए नारी तन उस के लिए कौतूहल का विषय था. संगीता के यौवन को देख कर छोटू के तन में कामवासना की आग जलने लगी. वह मन ही मन सोचने लगा कि अगर संगीता का खूबसूरत बदन उस की बांहों में आ जाए तो मजा आ जाए.

संगीता का भी यही हाल था. उसे परमेश्वर से वह सब कुछ हासिल नहीं हो रहा था, जिस की उसे चाह थी. छोटू के बारे में ही सोचतेसोचते उस ने टिफिन में खाना लगा कर उसे थमा दिया. जब छोटू खाना ले कर जाने लगा तो संगीता भी ठीक वैसा ही सोचने लगी, जैसा थोड़ी देर पहले छोटू सोच रहा था. छोटू शारीरिक रूप से हट्टाकट्टा नौजवान ही नहीं था, बल्कि कुंवारा भी था. पहली ही नजर में वह संगीता को भा गया था.

दूसरी ओर छोटू का भी वही हाल था. वह दूसरे दिन का इंतजार करने लगा. परमेश्वर ने जब दूसरे दिन भी उस से खाना लाने को कहा तो वह तुरंत परमेश्वर के घर के लिए रवाना हो गया. वह उस के घर पहुंचा तो संगीता घर के बाहर ही बैठी थी. छोटू को देखते ही संगीता खुश हो गई. वह उसे प्यार से अंदर ले गई. जवान छोटू उसे एकटक निहार रहा था.

छोटू को अपनी ओर एकटक देखते पा कर संगीता ने उस का ध्यान भंग करते हुए कहा, ‘‘ऐसे एकटक क्या देख रहे हो, कभी जवान औरत को नहीं देखा क्या?’’

छोटू तपाक से बोला, ‘‘देखा तो है, पर तुम्हारी जैसी नहीं देखी.’’

संगीता शरमाने का नाटक करती हुई अंदर चली गई और वहीं से उस ने छोटू को आवाज लगाई, ‘‘अंदर आ जाओ, आज खाना लगाने में थोड़ी देर लगेगी.’’

उस के आदेश का पालन करते हुए छोटू अंदर आ गया. दोनों बैठ कर बातें करते हुए एकदूसरे के प्रति आकर्षित होते रहे. अब यही रोज का क्रम बन गया. स्त्रीपुरुष एकदूसरे की तरफ आकर्षित होते हैं तो मतलब की बातों का सिलसिला खुदबखुद जुड़ जाता है. मौका देख एक दिन छोटू ने संगीता की दुखती रग को छेड़ दिया, ‘‘भाभी, तुम खुश नहीं लग रही हो. लगता है, भैया तुम्हारा ठीक से खयाल नहीं रखते?’’

‘‘खुश होने की वजह भी तो होनी चाहिए. तुम्हारे भैया तो सिर्फ खेतों के हो कर रह गए हैं, घर में जवान बीवी है, इस की उन्हें कोई परवाह ही नहीं है.’’

‘‘भैया से इस बारे में बात करतीं तो तुम्हारी समस्या जरूर दूर हो जाती.’’

‘‘मैं ने कई बार उन्हें इस बात का अहसास दिलाया, लेकिन वह अपनी इस जिम्मेदारी को समझने को तैयार ही नहीं हैं. उन्हें पूरे घर की जिम्मेदारी तो दिखती है, लेकिन मेरी कोई जिम्मेदारी नहीं दिखती.’’ संगीता ने बड़े ही निराश भाव से कहा. मौका देख कर छोटू ने अपने मन की बात उस के सामने रख दी, ‘‘भाभी, निराश मत हों. अगर तुम चाहो तो मैं तुम्हें वह खुशियां दे सकता हूं, जो परमेश्वर भैया नहीं दे पा रहे हैं.’’

अपनी बात कह कर छोटू ने संगीता को चाहत भरी नजरों से देखा तो संगीता ने भी उस की आंखों में आंखें डाल दीं. उस की आंखों में जो जुनून था, वह उस की सुलगती कामनाओं को ठंडा करने के लिए काफी था. संगीता ने उस के हाथों में अपना हाथ दे दिया. छोटू उस की सहमति पा कर खुशी से झूम उठा. इस के बाद संगीता ने अपने तन की आग में सारी मर्यादाओं को जला कर राख कर दिया.

एक बार दोनों ने अपने नाजायज रिश्ते की इबारत लिखी तो वह बारबार दोहराई जाने लगी. इसी के साथ उन के रिश्ते में गहराई भी आती गई. रसूलपुर में ही प्रमोद नाम का एक युवक रहता था. उस के पिता हरनाम भी खेतीकिसानी करते थे. 23 वर्षीय प्रमोद अविवाहित था. वह भी परमेश्वर की पत्नी संगीता पर फिदा था और उसे अपने जाल में फांसने का प्रयास करता रहता था.

एक दिन मौका देख कर उस ने संगीता से अपने दिल की बात कह दी. लेकिन संगीता ने उस से संबंध बनाने से साफ इनकार कर दिया. प्रमोद इस से निराश नहीं हुआ. उस ने अपनी तरफ से कोशिश जारी रखी. इसी बीच उसे संगीता के छोटू से बने नाजायज संबंधों के बारे में पता चल गया. प्रमोद को यह बात बिलकुल पसंद नहीं आई कि संगीता उस के अलावा किसी और से संबंध रखे. उस ने परमेश्वर के सामने उन दोनों के नाजायज रिश्ते की पोल खोल दी. परमेश्वर को उस की बात पर विश्वास नहीं हुआ, लेकिन मन में शक जरूर पैदा हो गया.

अगले ही दिन परमेश्वर रोज की तरह छोटू से खाना लाने को कहा. छोटू खाना लाने चला गया तो परमेश्वर भी छिपतेछिपाते उस के पीछे घर की तरफ चल दिया. छोटू घर में जा कर संगीता के साथ रंगरलियां मनाने लगा. चूंकि दोपहर का समय था और किसी के आने का अंदेशा नहीं था, इसलिए दोनों बिना दरवाजा बंद किए ही एकदूसरे से गुंथ गए.

अभी कुछ पल ही बीते थे कि किसी ने भड़ाक से दरवाजा खोल दिया. अचानक दोनों ने घबरा कर दरवाजे की तरफ देखा तो सामने परमेश्वर खड़ा था. उस की आंखों से चिंगारियां फूट रही थीं. उस ने पास पड़ा डंडा उठाया तो छोटू वहां से भागा. लेकिन भागते समय परमेश्वर का डंडा उस की कमर पर पड़ गया. दर्द की एक तेज लहर उस के बदन में दौड़ गई, लेकिन वह रुका नहीं.

उस के जाने के बाद परमेश्वर ने संगीता की जम कर पिटाई की. संगीता ने परमेश्वर से किए की माफी मांग ली और आगे से कभी दोबारा ऐसा कदम न उठाने की कसम खाई. लेकिन एक बार विश्वास की दीवार में दरार आ जाए तो उसे किसी भी तरह भरा नहीं जा सकता.

ऐसे में परमेश्वर भला संगीता पर कैसे विश्वास करता? छोटू ने उस के परिवार की इज्जत से खेलने की जो हिमाकत की थी, उसे वह बरदाश्त नहीं कर पा रहा था. इस आग में घी डालने का काम किया प्रमोद ने. वह परमेश्वर को छोटू से बदला लेने के लिए उकसाने लगा.

दरअसल प्रमोद यह सब सोचीसमझी साजिश के तहत कर रहा था. उस ने सोचा था कि परमेश्वर छोटू की हत्या कर देगा तो वह छोटू के परिजनों से मिल कर परमेश्वर को जेल भिजवा देगा. इस से छोटू और परमेश्वर नाम के दोनों कांटे उस के रास्ते से हट जाएंगे. फिर संगीता को पाने से उसे कोई नहीं रोक पाएगा.

आखिर प्रमोद ने परमेश्वर को छोटू को मार कर बदला लेने के लिए मना ही लिया. परमेश्वर के कहने पर इस साजिश में वह भी शामिल हो गया. परमेश्वर के कहने पर संगीता को भी इस साजिश में शामिल होना पड़ा. क्योंकि इस के अलावा उस के सामने कोई चारा नहीं था.

24 मार्च की रात परमेश्वर ने संगीता से कह कर छोटू को अपने घर बुलाया. परमेश्वर और प्रमोद घर में ही छिप कर बैठे थे. छोटू घर आया तो संगीता उस के पास बैठ कर मीठीमीठी बातें करने लगी. देर रात होने पर परमेश्वर और प्रमोद चुपचाप बाहर निकले और पीछे से छोटू के गले में अंगौछे का फंदा बना कर डाल कर पूरी ताकत से कसने लगे.

छोटू छूटने के लिए छटपटाने लगा. इस से वह जमीन पर गिर पड़ा. छोटू के जमीन पर गिरते ही संगीता ने उस के पैर कस कर पकड़ लिए तो परमेश्वर व प्रमोद ने पूरी ताकत से अंगौछे से छोटू का गला कस दिया. कुछ ही देर में उस का शरीर शांत हो गया. उस की मौत हो गई.

प्रमोद ने छोटू की जेब से उस का मोबाइल निकाल लिया. इस के बाद परमेश्वर और प्रमोद लाश को एक बोरी में भर कर पास के गांव मेदपुर में मुन्ना सिंह के खेत में ले जा कर डाल आए. बोरी को उन्होंने सरकंडे और घासफूस से ढक दिया था. दूसरे दिन छोटू दिखाई नहीं दिया तो घर वालों ने उस की तलाश शुरू की. लेकिन जब काफी कोशिशों के बाद भी उस का कुछ पता नहीं चला तो 26 मार्च, 2014 को उस के पिता बाबूराम ने थाना संदना में उस की गुमशुदगी लिखा दी.

28 मार्च को मेदपुर में गांव के कुछ लोगों ने मुन्ना सिंह के खेत में एक लाश पड़ी देखी तो यह खबर आसपास के गांवों तक फैल गई. बाबूराम को पता चला तो वह भी अपने घर वालों के साथ वहां पहुंच गया. वहां पड़ी लाश देख कर बिलखबिलख कर रोने लगे. लोगों द्वारा सांत्वना देने के बाद सभी किसी तरह शांत हुए तो लाश की सूचना थाना संदना पुलिस को दी गई.

सूचना पा कर थानाप्रभारी राजकुमार सरोज पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंचे. मृतक छोटू के गले में अगौंछा पड़ा हुआ था. गले में उस के कसे जाने के निशान भी मौजूद थे. इस से यही लगा कि उसी अंगौछे से उस की गला घोंट कर हत्या की गई थी. प्राथमिक काररवाई के बाद पुलिस ने लाश को पोस्टमार्टम के लिए जिला चिकित्सालय सीतापुर भिजवा दिया.

थाने लौट कर थानाप्रभारी राजकुमार सरोज ने बाबूराम की लिखित तहरीर पर परमेश्वर और संगीता के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज करा दिया. दूसरी ओर इस की भनक लगते ही पकड़े जाने के डर से परमेश्वर संगीता के साथ फरार हो गया.

30 मार्च की सुबह 8 बजे थानाप्रभारी राजकुमार सरोज ने एक मुखबिर की सूचना पर संदना-मिसरिख रोड पर भरौना पुलिया के पास से परमेश्वर और संगीता को गिरफ्तार कर लिया. थाने ला कर जब पूछताछ की गई तो दोनों ने छोटू की हत्या की पूरी कहानी बयां कर दी.

31 मार्च को सुबह साढ़े 7 बजे पुलिस ने प्रमोद को भी गोपालपुर चौराहे से गिरफ्तार कर लिया. उस ने भी अपना अपराध स्वीकार कर लिया. पूछताछ के बाद पुलिस ने तीनों को सीजेएम की अदालत में पेश किया, जहां से सभी को जेल भेज दिया.

दरअसल, प्रमोद छोटू की हत्या करवाने के बाद छोटू के घर वालों से जा कर मिल गया था. उसी ने ही उन्हें बताया था कि छोटू और संगीता के नाजायज संबंध थे, जिस के बारे में परमेश्वर को पता चल गया था. इसी वजह से परमेश्वर ने संगीता के साथ मिल कर छोटू की हत्या की थी. प्रमोद ही लाश मिलने की जगह भी बाबूराम को ले गया था. बाबूराम ने उसी की बातों के आधार पर परमेश्वर और संगीता के खिलाफ रिपोर्ट लिखाई थी. इतनी चालाकी के बावजूद भी प्रमोद खुद को कानून के शिकंजे से नहीं बचा सका और पकड़ा गया. UP Crime News

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Crime News : बदले की आग

Crime News : लखनऊ के थाना मडि़यांव के थानाप्रभारी रघुवीर सिंह को सुबहसुबह किसी ने फोन कर के सूचना दी कि ककौली में बड़ी खदान के पास एक कार में आग लगी है. सूचना मिलते ही रघुवीर सिंह ककौली की तरफ रवाना हो गए. थोड़ी ही देर में वह ककौली की बड़ी खदान के पास पहुंच गए. उन्होंने एक जगह भीड़ देखी तो समझ गए कि घटना वहीं घटी है. जब तक पुलिस वहां पहुंची, कार की आग बुझ चुकी थी. पुलिस ने देखा, कार के अंदर कोई भी सामान सलामत नहीं बचा था.

यहां तक कि कार की नंबर प्लेट का नंबर भी नहीं दिखाई दे रहा था. इसी से अंदाजा लगाया गया कि आग कितनी भीषण रही होगी. जली हुई कार के अंदर कुछ हड्डियां और 2 भागों में बंटी इंसान की एक खोपड़ी पड़ी थी. उन्हें देख कर थानाप्रभारी चौंके. हड्डियों और खोपड़ी से साफ लग रहा था कि कार के अंदर कोई इंसान भी जल गया था.

थानाप्रभारी ने अपने आला अधिकारियों को भी इस घटना की सूचना दे दी थी. इस के बाद थोड़ी ही देर में क्षेत्राधिकारी (अलीगंज) अखिलेश नारायण सिंह फोरेंसिक टीम के साथ वहां पहुंच गए. कार के अंदर जली अवस्था में एक छोटा गैस सिलेंडर और शराब की खाली बोतल भी पड़ी थी. फोरेंसिक टीम ने अपना काम निपटा लिया तो पुलिस ने अपनी जांच शुरू की.

कार की स्थिति देख कर पुलिस को यह समझते देर नहीं लगी कि यह दुर्घटना नहीं, बल्कि साजिशन इसे अंजाम दिया गया है. कार एक खुले मैदान में थी. आबादी वहां से कुछ दूरी पर थी. इसलिए हत्यारों ने वारदात को आसानी से अंजाम दे दिया था. यह 4 दिसंबर, 2013 की बात है.

कार में कोई ऐसी चीज नहीं मिली थी, जिस से जल कर खाक हो चुके व्यक्ति की शिनाख्त हो पाती. इसलिए पुलिस ने घटनास्थल की आवश्यक काररवाई निपटा कर बरामद हड्डियों और खोपड़ी को पोस्टमार्टम के लिए मैडिकल कालेज भेज दिया, जहां से हड्डियों को फोरेंसिक जांच के लिए भेज दिया गया.

अब तक इस घटना की खबर जंगल की आग की तरह आसपास फैल चुकी थी. ककौली के ही रहने वाले सुरजीत यादव का छोटा भाई रंजीत यादव 3 दिसंबर को कार से कटरा पलटन छावनी एरिया में किसी शादी समारोह में शामिल होने के लिए घर से निकला था. उसे उसी रात को लौट आना था. लेकिन वह नहीं लौटा तो घर वालों को उस की चिंता हुई. यही वजह थी कि यह खबर सुनते ही सुरजीत बड़ी खदान की तरफ चल पड़ा. वहां पहुंच कर कार देखते ही वह समझ गया कि यह कार उसी की है.

सुरजीत ने थानाप्रभारी रघुवीर सिंह को अपने भाई के गायब होने की पूरी बात बता कर आशंका जताई कि कार में जल कर जो व्यक्ति मरा है, वह उस का भाई रंजीत हो सकता है. इस के बाद सुरजीत की तहरीर पर थानाप्रभारी ने अज्ञात लोगों के खिलाफ रंजीत की हत्या की रिपोर्ट दर्ज करा दी.

सुरजीत से बातचीत के बाद थानाप्रभारी रघुवीर सिंह ने तहकीकात शुरू की तो पता चला कि रंजीत शादी समारोह में जाने के लिए घर से निकला तो था, लेकिन समारोह में पहुंचा नहीं था. अब सोचने वाली बात यह थी कि वह शादी समारोह में नहीं पहुंचा तो गया कहां था. यह जानने के लिए उन्होंने मुखबिर लगा दिए. एक मुखबिर ने बताया कि 3 दिसंबर की शाम रंजीत को देशराज और अजय के साथ देखा गया था. देशराज हरिओमनगर में रह कर सिक्योरिटी एजेंसी चलाता था. रंजीत उसी की सिक्योरिटी एजेंसी में सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी करता था.

देशराज से पूछताछ के बाद ही सच्चाई का पता चल सकता था, इसलिए पुलिस ने उस की तलाश शुरू कर दी. 5 दिसंबर, 2013 को सुबह 5 बजे के करीब उसे रोशनाबाद चौराहे के पास से गिरफ्तार कर लिया गया. थाने ला कर जब देशराज से पूछताछ की गई तो उस ने सारा सच उगल दिया. इस के बाद उस ने रंजीत यादव को जिंदा जलाने की जो कहानी बताई, वह इस प्रकार थी.

मूलरूप से उत्तर प्रदेश के जिला सीतापुर का रहने वाला देशराज लखनऊ के हरिओमनगर में एक सिक्योरिटी एजेंसी चलाता था. वहीं पर उस ने एक मकान किराए पर ले रखा था. वह लखनऊ में अकेला रहता था, जबकि उस की पत्नी और बच्चे सीतापुर में रहते थे. समय मिलने पर वह अपने परिवार से मिलने सीतापुर जाता रहता था. उस की एजेंसी अच्छी चल रही थी. जिस से उसे हर महीने अच्छी आमदनी होती थी. कहते हैं, जब किसी के पास उस की सोच से ज्यादा पैसा आना शुरू हो जाता है तो कुछ लोगों में नएनए शौक पनप उठते हैं. देशराज के साथ भी यही हुआ. वह शराब और शबाब का शौकीन हो गया था.

वह पास के ही ककौली गांव भी आताजाता रहता था. वहीं पर एक दिन उस की नजर रानी नाम की एक औरत पर पड़ी तो वह उस पर मर मिटा.

रानी की अजीब ही कहानी थी. उस का विवाह उस उम्र में हुआ था, जब वह विवाह का मतलब ही नहीं जानती थी. नाबालिग अवस्था में ही वह 2 बेटों अजय, संजय और एक बेटी सीमा की मां बन गई थी. उसी बीच किसी वजह से उस के पति की मौत हो गई. पति का साया हटने से उस के ऊपर जैसे मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा. जब कमाने वाला ही न रहा तो उस के सामने आर्थिक संकट पैदा हो गया. मेहनतमजदूरी कर के जैसेतैसे वह दो जून की रोटी का इंतजाम करने लगी.

देशराज ने उस की भोली सूरत देखी तो उसे लगा कि वह उसे जल्द ही पटा लेगा. रानी से नजदीकी बढ़ाने के लिए वह उस से हमदर्दी दिखाने लगा. रानी देशराज के बारे में ज्यादा नहीं जानती थी. बस इतना ही जानती थी कि वह पैसे वाला है. एक पड़ोसन से रानी ने देशराज के बारे में काफी कुछ जान लिया था. इस के बाद धीरेधीरे उस का झुकाव भी उस की तरफ होता गया.

एक दिन देशराज रानी के घर के सामने से जा रहा था तो वह घर की चौखट पर ही बैठी थी. उस समय दूरदूर तक कोई नजर नहीं आ रहा था. मौका अच्छा देख कर देशराज बोल पड़ा, ‘‘रानी, मुझे तुम्हारे बारे में सब पता है. तुम्हारी कहानी सुन कर ऐसा लगता है कि तुम्हारी जिंदगी में सिर्फ दुख ही दुख है.’’

‘‘आप के बारे में मैं ने जो कुछ सुन रखा था, आप उस से भी कहीं ज्यादा अच्छे हैं, जो दूसरों के दुख को बांटने की हिम्मत रखते हैं. वरना इस जालिम दुनिया में कोई किसी के बारे में कहां सोचता है?’’

‘‘रानी, दुनिया में इंसानियत अभी भी जिंदा है. खैर, तुम चिंता मत करो. आज से मैं तुम्हारा पूरा खयाल रखूंगा. चाहो तो बदले में तुम मेरे घर का कुछ काम कर दिया करना.’’

‘‘ठीक है, आप ने मेरे बारे में इतना सोचा है तो मैं भी आप के बारे में सोचूंगी. मैं आप के घर के काम कर दिया करूंगी.’’

इतना कह कर देशराज ने रानी के कंधे पर सांत्वना भरा हाथ रखा तो रानी ने अपनी गरदन टेढ़ी कर के उस के हाथ पर अपना गाल रख कर आशा भरी नजरों से उस की तरफ देखा. देशराज ने मौके का पूरा फायदा उठाया और रानी के हाथ पर 500 रुपए रखते हुए कहा, ‘‘ये रख लो, तुम्हें इस की जरूरत है. मेरी तरफ से इसे एडवांस समझ लेना.’’

रानी तो वैसे भी अभावों में जिंदगी गुजार रही थी, इसलिए उस ने देशराज द्वारा दिए गए पैसे अपने हाथ में दबा लिए. इस से देशराज की हिम्मत और बढ़ गई. वह हर रोज रानी से मिलने उस के घर पहुंचने लगा. वह जब भी उस के यहां जाता, रानी के बच्चों के लिए खानेपीने की कोई चीज जरूर ले जाता. कभीकभी वह रानी को पैसे भी देता. इस तरह वह रानी का खैरख्वाह बन गया.

रानी हालात के थपेड़ों में डोलती ऐसी नाव थी, जिस का कोई मांझी नहीं था. इसलिए देशराज के एहसान वह अपने ऊपर लादती चली गई. पैसे की वजह से उस की बेटी सीमा भी स्कूल नहीं जा रही थी. देशराज ने उस का दाखिला ही नहीं कराया, बल्कि उस की पढ़ाई का सारा खर्च उठाने का वादा किया.

स्वार्थ की दीवार पर एहसान की ईंट पर ईंट चढ़ती जा रही थी. अब रानी भी देशराज का पूरा खयाल रखने लगी थी. वह उसे खाना खाए बिना जाने नहीं देती थी. लेकिन देशराज के मन में तो रानी की देह की चाहत थी, जिसे वह हर हाल में पाना चाहता था.

एक दिन उस ने कहा, ‘‘रानी, अब तुम खुद को अकेली मत समझना. मैं हर तरह से तुम्हारा बना रहूंगा.’’

यह सुन कर रानी उस की तरफ चाहत भरी नजरों से देखने लगी. देशराज समझ गया कि वह शीशे में उतर चुकी है, इसलिए उस के करीब आ गया और उस के हाथ को दोनों हथेलियों के बीच दबा कर बोला, ‘‘सच कह रहा हूं रानी, तुम्हारी हर जरूरत पूरी करना अब मेरी जिम्मेदारी है.’’

हाथ थामने से रानी के शरीर में भी हलचल पैदा हो गई. देशराज के हाथों की हरकत बढ़ने लगी थी. इस का नतीजा यह निकला कि दोनों बेकाबू हो गए और अपनी हसरतें पूरी कर के ही माने.

देशराज ने वर्षों बाद रानी की सोई भावनाओं को जगाया तो उस ने देह के सुख की खातिर सारी नैतिकताओं को अंगूठा दिखा दिया. अब वह देशराज की बन कर रहने का ख्वाब देखने लगी. देशराज और रानी के अवैध संबंध बने तो फिर बारबार दोहराए जाने लगे. रानी को देशराज के पैसों का लालच तो था ही, अब वह उस से खुल कर पैसों की मांग करने लगी.

देशराज चूंकि उस के जिस्म का लुत्फ उठा रहा था, इसलिए उसे पैसे देने में कोई गुरेज नहीं करता था. इस तरह एक तरफ रानी की दैहिक जरूरतें पूरी होने लगी थीं तो दूसरी तरफ देशराज उस की आर्थिक जरूरतें पूरी करने लगा था. वर्षों बाद अब रानी की जिंदगी में फिर से रंग भरने लगे थे.

ककौली गांव में ही भल्लू का परिवार रहता था. पेशे से किसान भल्लू के 2 बेटे रंजीत, सुरजीत और 2 बेटियां कमला, विमला थीं. चारों में से अभी किसी की भी शादी नहीं हुई थी.

24 वर्षीय रंजीत और 22 वर्षीय सुरजीत, दोनों ही भाई देशराज की सिक्योरिटी एजेंसी में काम करते थे. रंजीत और देशराज की उम्र में काफी लंबा फासला था. देशराज की जवानी साथ छोड़ रही थी, जबकि रंजीत की जवानी पूरे चरम पर थी. वैसे भी वह कुंवारा था. देशराज और रंजीत के बीच बहुत अच्छी दोस्ती थी. दोनों साथसाथ खातेपीते थे.

एक दिन शराब के नशे में देशराज ने रंजीत को अपने और रानी के संबंधों के बारे में बता दिया. यह सुन कर रंजीत चौंका. यह उस के लिए चिराग तले अंधेरे वाली बात थी. उसी के गांव की रानी अपने शबाब का दरिया बहा रही थी और उसे खबर तक नहीं थी. वह किसी औरत के सान्निध्य के लिए तरस रहा था. रानी की हकीकत पता चलने के बाद जैसे उसे अपनी मुराद पूरी होती नजर आने लगी.

रंजीत के दिमाग में तरहतरह के विचार आने लगे. वह मन ही मन सोचने लगा कि जब देशराज रानी के साथ रातें रंगीन कर सकता है, तो वह क्यों नहीं? वह देशराज की ब्याहता तो है नहीं.  अगले दिन रंजीत देशराज से मिला तो बोला, ‘‘रानी की देह में मुझे भी हिस्सा चाहिए, नहीं तो मैं तुम दोनों के संबंधों की बात पूरे गांव में फैला दूंगा.’’

देशराज को रानी से कोई दिली लगाव तो था नहीं, वह तो उस की वासना की पूर्ति का साधन मात्र थी. उसे दोस्त के साथ बांटने में उसे कोई परेशानी नहीं थी. वैसे भी रंजीत का मुंह बंद करना जरूरी था. इसलिए उस ने रानी को रंजीत की शर्त बताते हुए समझाया, ‘‘देखो रानी, अगर हम ने उस की बात नहीं मानी तो वह हमारी पोल खोल देगा. पूरे गांव में हमारी बदनामी हो जाएगी. इसलिए तुम्हें उसे खुश करना ही पड़ेगा.’’

रानी के लिए जैसा देशराज था, वैसा ही रंजीत भी था. उस ने हां कर दी. इस बातचीत के बाद देशराज ने यह बात रंजीत को बता दी. फलस्वरूप वह उसी दिन शाम को रानी के घर पहुंच गया. एक ही गांव का होने की वजह से दोनों न केवल एकदूसरे को जानते थे, बल्कि उन में बातें भी होती थीं. रंजीत उसे भाभी कह कर बुलाता था.

सारी बातें चूंकि पहले ही तय थीं, सो दोनों के बीच अब तक बनी संकोच की दीवार गिरते देर नहीं लगी. दोनों के बीच शारीरिक संबंध बने तो रानी को एक अलग ही तरह की सुखद अनूभूति हुई. रंजीत के कुंवारे बदन का जोश देशराज पर भारी पड़ने लगा. उस दिन के बाद तो वह अधिकतर रंजीत की बांहों में कैद होने लगी. रंजीत भी रानी की देह का दीवाना हो चुका था. इसलिए वह भी उस पर दिल खोल कर पैसे खर्च करने लगा. रंजीत ने मारुति आल्टो कार ले रखी थी, जो उस के भाई सुरजीत के नाम पर थी. रंजीत रानी को अपनी कार में बैठा कर घुमाने ले जाने लगा. वह उसे रेस्टोरेंट वगैरह में ले जा कर खिलातापिलाता और गिफ्ट भी देता.

रानी की जिंदगी में रंजीत आया तो वह देशराज को भी और उस के एहसानों को भूलने लगी. रंजीत उस के दिलोदिमाग पर ऐसा छाया कि उस ने देशराज से मिलनाजुलना तक छोड़ दिया. इस से देशराज को समझते देर नहीं लगी कि रानी रंजीत की वजह से उस से दूरी बना रही है. उसे यह बात अखरने लगी. रानी को फंसाने में सारी मेहनत उस ने की थी, जबकि रंजीत बिना किसी मेहनत के फल खा रहा था.

इसी बात को ले कर रंजीत और देशराज में मनमुटाव रहने लगा. देशराज ने रंजीत से उस की कुछ जमीन खरीदी थी, जिस का करीब 5 लाख रुपया बाकी था. रंजीत जबतब देशराज से अपने पैसे मांगता रहता था. इस बात को ले कर रंजीत कई बार उसे जलील तक कर चुका था.

एक तरफ रंजीत ने देशराज की मौजमस्ती का साधन छीन लिया था तो दूसरी ओर उसे 5 लाख रुपए भी देने थे. इसलिए सोचविचार कर उस ने रंजीत को अपने रास्ते से हटाने का फैसला कर लिया. इस के लिए उस ने अपने यहां सुरक्षा गार्ड की नौकरी कर रहे अजय पांडेय को भी लालच दे कर अपनी योजना में शामिल कर लिया. अजय सीतापुर के कमलापुर थानाक्षेत्र के गांव रूदा का रहने वाला था.

3 दिसंबर की शाम को रंजीत को कटरा पलटन छावनी में एक वैवाहिक समारोह में जाना था. यह बात देशराज को पता थी. उस ने उसी दिन अपनी योजना को अंजाम देने के बारे में सोचा. उस दिन देर शाम रंजीत घर से तैयार हो कर कार से कटरा पलटन जाने के लिए निकला. रास्ते में एक जगह उसे देशराज और अजय पांडेय मिल गए. वहां से वे हाइवे पर ट्रामा सेंटर के पास गए और शराब खरीद कर बड़ी खदान के पास आ गए.

तीनों ने कार के अंदर बैठ कर शराब पी. देशराज और अजय ने खुद कम शराब पी, जबकि रंजीत को ज्यादा पिलाई. जब रंजीत नशे में धुत हो गया तो दोनों ने उसे पिछली सीट पर लिटा दिया. कार में एक छोटा गैस सिलेंडर भरा रखा था, जिसे रंजीत घर से गैस भराने के लिए लाया था. साथ ही कार में एक बोतल पेट्रोल भी रखा था. देशराज ने कार के सभी शीशे चढ़ा कर गैस सिलेंडर की नौब खोल दी, जिस से तेजी से गैस रिसने लगी.

देशराज पेट्रोल की बोतल उठा कर कार से बाहर आ गया और कार के सभी दरवाजे बंद कर दिए. इस के बाद उस ने कार के ऊपर सारा पेट्रोल छिड़क कर आग लगा दी. चूंकि कार के अंदर गैस भरी थी, इसलिए आग की लपटें तेजी से बाहर निकलीं. देशराज का चेहरा और हाथ जल गए. गैस और पेट्रोल की वजह से कार धूधू कर के जलने लगी. नशे में धुत अंदर लेटे रंजीत ने बाहर निकलने की कोशिश की, लेकिन वह नाकामयाब रहा. अपना काम कर के देशराज और अजय वहां से भाग खडे़ हुए.

देशराज मौके से तो भाग गया, लेकिन कानून से नहीं बच सका. इंसपेक्टर रघुवीर सिंह ने रानी से भी पूछताछ की. हत्या के इस मामले में उस की कोई भूमिका नहीं थी. अलबत्ता जब गांव वालों को यह पता चला कि हत्या की वजह रानी थी तो लोगों ने उस के साथ भी मारपीट की.

पुलिस ने देशराज को मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत में पेश करने के बाद जेल भेज दिया. कथा संकलन तक पुलिस अजय पांडेय को गिरफ्तार नहीं कर पाई थी.v Crime News

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Hindi Story : गर्लफ्रेंड के लिए बना चोर

Hindi Story : रात के दस बजने वाले थे. वाराणसी जनपद के सिगरा थाना क्षेत्र के अंतर्गत आने वाली नगर निगम चौकी के प्रभारी सबइंसपेक्टर बसंत कुमार एसआई चंद्रकेश शर्मा और 2 सिपाहियों गामा यादव व बाबूलाल के साथ शिवपुरवा तिराहे के पास मौजूद थे. उसी समय एक मुखबिर ने आ कर बताया कि इलाके में पिछले कुछ महीनों से मोबाइल और लैपटाप वगैरह की जो चोरियां हुई हैं, उन का चोर चोरी का सामान बेचने के लिए खरीदार से संपर्क करने के लिए आने वाला है.

चौकीप्रभारी सबइंसपेक्टर बसंत कुमार के लिए सूचना काफी महत्त्वपूर्ण थी. मुखबिर से कुछ जरूरी जानकारी लेने के बाद उन्होंने उस चोर को पकड़ने के लिए व्यूह रचना तैयार कर अपने साथी पुलिस वालों को सतर्क कर दिया. मुखबिर को उन्होंने छिप कर खड़ा होने को कह दिया. थोड़ी देर बाद मुखबिर ने सनबीम स्कूल की ओर से पैदल आ रहे 2 युवकों की ओर इशारा कर दिया. उन दोनों की पहचान कराने के बाद मुखबिर वहां से चला गया.

सबइंसपेक्टर बसंत कुमार और उन के साथी चौकन्ने हो गए. दोनों युवकों में से एक के पास एक काले रंग का बड़ा सा बैग था, जिसे वह पीठ की तरफ टांगे हुए था. दोनों युवक जैसे ही रेलवे कालोनी जल विहार मोड़ के पास पहुंचे. सबइंसपेक्टर बसंत कुमार ने उन दोनों को रुकने का आदेश दिया. लेकिन पुलिस को देख कर दोनों तेजी से विपरीत दिशा की ओर भागने लगे. लेकिन पहले से तैयार पुलिस टीम ने दौड़ कर उन्हें पकड़ लिया.

पुलिस के शिकंजे में फंसते ही दोनों युवक गिड़गिड़ाए, ‘‘सर, आप हम लोगों को क्यों पकड़ रहे हैं, हम ने क्या किया है?’’

‘‘कुछ नहीं किया तो भागने की क्या जरूरत थी?’’

‘‘साहब, हम डर गए थे कि कहीं आप हमें किसी झूठे मुकदमे में न फंसा दें.’’

‘‘तुम्हें क्या लगता है कि पुलिस वाले यूं ही राह चलते लोगों को फंसा देते हैं. खैर, अपना बैग चेक कराओ.’’ कह कर बसंत कुमार ने सिपाही गामा यादव को आदेश दिया, ‘‘इन का बैग चेक करो.’’

‘‘साहब, बैग में कपड़ेलत्तों के अलावा कुछ नहीं है.’’ एक युवक ने कहा तो बसंत कुमार ने उसे डांटा, ‘‘अगर आपत्तिजनक कुछ नहीं है तो घबरा क्यों रहे हो?’’

सबइंसपेक्टर चंद्रकेश शर्मा ने युवक की पीठ पर टंगा काले रंग का बैग जबरदस्ती ले कर खोला तो उस में लैपटाप और नए मोबाइल सेट के डिब्बे दिखे. बैग में मोबाइल सेट और लैपटाप देखते ही बसंत कुमार समझ गए कि शिकार जाल में फंस चुका है.

बसंत कुमार ने बैग वाले युवक का नाम पूछा तो उस ने अपना नाम जयमंगल निवासी शिवपुरवा बताया. उस के साथी का नाम गुडलक था. वह सिगरा थानाक्षेत्र की महमूरगंज रोड स्थित संपूर्णनगर कालोनी में रहता था. विस्तृत पूछताछ के लिए दोनों युवकों को हिरासत में ले कर चौकीप्रभारी बसंत कुमार अपनी टीम के साथ सिगरा थाने आ गए.

सिगरा थाने में जयमंगल से विस्तृत पूछताछ की गई तो उस ने बताया कि उस के बैग में सारा सामान चोरी का है. पुलिस को उस के बैग से 3 लैपटाप, 10 मोबाइल सेट, रितेश नाम से एक वोटर आईडी के अलावा 1560 रुपए और 1 किलो 100 ग्राम चरस मिली. जबकि गुडलक की तलाशी में उस की पैंट की जेब से प्लास्टिक की थैली में रखी 240 ग्राम चरस मिली.

जयमंगल और गुडलक से पूछताछ चल ही रही थी कि तभी गश्त पर गए थानाप्रभारी शिवानंद मिश्र थाने लौट आए. उन्हें जब पता चला कि पिछले दिनों इलाके में हुई चोरी की घटनाओं में शामिल 2 चोर पकड़े गए हैं तो वह भी पूछताछ में शामिल हो गए. जयमंगल से बरामद रितेश नाम से जारी वोटर आईडी को देखने पर पता चला कि उस पर फोटो जयमंगल का लगा था. इस का मतलब उस ने फरजी नाम से आईडी बनवा रखी थी.

थानाप्रभारी शिवानंद मिश्र ने इस बारे में जयमंगल से जब अपने तरीके से पूछताछ की तो उस ने स्वीकार कर लिया कि उसी ने रितेश नाम से फर्जी वोटर आईडी बनवाई थी, ताकि होटल वगैरह में ठहरने के लिए उस आईडी का इस्तेमाल कर के अपनी असली पहचान छिपा सके.

पूछताछ के दौरान यह भी खुलासा हुआ कि वह शिवपुरवा (सिगरा क्षेत्र) स्थित अपने पैतृक घर में न रह कर पिछले तीन सालों से अपनी प्रेमिका पत्नी के साथ पड़ोसी जनपद भदोही के गोपीगंज थानाक्षेत्र स्थित खमरिया में किराए का मकान ले कर रह रहा था. जयमंगल ने गुडलक को अपना दोस्त बताया. जयमंगल पहले ही स्वीकार कर चुका था कि उस के बैग से बरामद सामान अलगअलग जगहों से चोरी किया गया था. चरस के बारे में उस का कहना था कि नशे के लिए चरस का इस्तेमाल वह खुद करता था.

पूछताछ चल ही रही थी कि तभी थानाप्रभारी शिवानंद मिश्र की नजर जयमंगल के हाथों पर पड़ी. उस के हाथों पर 2-3 लड़कियों के नाम गुदे हुए थे. एक साथ 2-3 लड़कियों के नाम हाथों पर गुदे देख शिवानंद मिश्र ने इस बारे में जयमंगल से पूछा. उस ने जो कुछ बताया, उसे सुन कर न सिर्फ थानाप्रभारी बल्कि वहां मौजूद सभी पुलिस वाले आश्चर्यचकित रह गए.

जयमंगल ने बताया कि उस के हाथ पर ही नहीं, बल्कि शरीर के विभिन्न हिस्सों पर उस ने पच्चीसों लड़कियों के नाम गोदवाए हुए हैं. जयमंगल की टीशर्ट को पेट के ऊपर तक उठा कर देखा गया तो उस के सीने और पीठ पर दर्जनों लड़कियों के नाम गुदे मिले. दोनों हाथ, छाती और पीठ पर जिन लड़कियों के नाम गुदे थे, वे सब जयमंगल की प्रेमिकाएं थीं. पूछताछ में पता चला कि जयमंगल को नईनई लड़कियों से देस्ती करने का शौक था. वह उन से दोस्ती ही नहीं करता था, बल्कि उन से जिस्मानी संबंध भी बनाता था.

आर्थिक रूप से कमजोर घर की लड़कियों से जानपहचान बढ़ा कर उन से दोस्ती करना उस का शगल था. इस के लिए वह उन्हें उन की पसंद और जरूरत के मुताबिक तोहफे देता था. इतना ही नहीं, जिन लड़कियों से वह दोस्ती करता था, गाहेबगाहे उन के परिवार वालों की भी आर्थिक मदद कर के परिवार वालों की नजरों में शरीफजादा बन जाता था. इसी वजह से परिवार वाले जयमंगल के साथ अपनी लड़की के घूमनेफिरने पर ज्यादा बंदिशें नहीं लगाते थे.

लड़कियों को इंप्रेस करने के लिए शुरूशुरू में जयमंगल उन का नाम अपने बदन पर गुदवा लेता था. लेकिन जब समय के साथ प्रेमिकाओं की संख्या बढ़ने लगी तो बदन में लड़कियों का नाम गुदवाना उस का शौक बन गया. पुलिस के समक्ष जयमंगल ने खुलासा किया कि अब तक वह 27 प्रेमिकाओं के नाम अपने बदन पर गुदवा चुका है.

जिन लड़कियों को किसी कारणवश वह छोड़ देता था या फिर लड़की ही उस से किनारा कर लेती थी, उस लड़की का नाम वह अपने बदन से मिटा देता था. नाम मिटाने के लिए वह उसे ब्लेड से खुरचने के साथसाथ कई बार गुदे हुए नाम को जला देता था. जयमंगल के हाथों में 3-4 जगहों पर जले के निशान भी दिखाई दिए, जिस के बारे में उस ने पुलिस को बताया कि जली हुई जगह पर उस की जिन प्रेमिकाओं के नाम गुदे थे, अब उन से उस का कोई रिश्ता नहीं रहा. इसलिए उस ने उन के नाम भी अपने बदन से मिटा दिए.

पुलिस की माने तो जयमंगल अब तक 30 से अधिक लड़कियों को अपनी प्रेमिका बना चुका था. जिन में से 2 दर्जन से अधिक प्रेमिकाओं के नाम उस ने अपने बदन पर भी गुदवाए थे. अपनी प्रेमिकाओं में से ही एक गुडि़या से उस ने 3 साल पहले एक मंदिर में शादी कर ली थी. फिलहाल वह उसी के साथ रह रहा था.

पूछताछ के दौरान चौंकाने वाली एक बात यह भी पता चली कि जयमंगल एक रईस खानदान का लड़का था. किशोरावस्था में उस के कदम बहक गए और ज्यादा से ज्यादा लड़कियों से दोस्ती करने की आदत ने उसे चोरी करने पर मजबूर कर दिया.

पुलिस की मानें तो बनारस के शिवपुरवा नगर निगम इलाके में जयमंगल का बहुत बड़ा पुश्तैनी मकान था, इस मकान के अलावा भी शहर के कई इलाकों में उस परिवार के कई मकान थे जिन्हें उन लोगों ने किराए पर उठा रखे थे. लेकिन जयमंगल की गलत हरकतों की वजह से परिवार वाले पिछले 5-6 सालों से उसे पैसा नहीं देते थे.  जयमंगल खुद भी परिवार वालों से किसी तरह की आर्थिक मदद लेने के बजाय चोरी कर के अपनी जरूरतें और शौक पूरा करने का आदी हो चुका था.

जयमंगल ने पुलिस को यह भी बताया कि वह चोरी की ज्यादातर घटनाओं को खुद ही अंजाम दिया करता था. हां, कभीकभार वह किसी जरूरतमंद दोस्त को चोरी में जरूर शामिल कर लेता था, ताकि उस की मदद हो सके. चोरी के लिए कई बार वह होटलों में भी ठहरता था. फरजी आईडी उस ने इसीलिए बनवा रखी थी.

पुलिस ने जयमंगल के पास से जो 10 मोबाइल सेट बरामद किए थे, उन में से 2 मोबाइलों की चोरी की रिपोर्ट सिगरा थाने में पहले से ही दर्ज थी. थाने में दर्ज मोबाइल चोरी की रिपोर्ट के अनुसार चोरी का माल उस के पास से बरामद हो गया था.

पुलिस ने जयमंगल के विरुद्ध भादंवि की धारा 419, 420, 468, 467, 471, 41, 411, 414 के अंतर्गत मुकदमा दर्ज किया. इस के अलावा उस के पास से बरामद 1 किलो 100 ग्राम चरस के लिए एनडीपीएस एक्ट की धारा 8/18/20 के अंतर्गत अलग से मुकदमा दर्ज किया गया. जयमंगल के साथी गुडलक के पास से भी 240 ग्राम चरस बरामद हुई थी, इसलिए उस के खिलाफ भी एनडीपीएस एक्ट की धारा 8/18/20 के अंतर्गत मुकदमा दर्ज किया गया.

जयमंगल और गुडलक की गिरफ्तारी 17 जुलाई, 2014 को हुई थी. अगले दिन 18 जुलाई को दोनों को बनारस के नगर पुलिस अधीक्षक सुधाकर यादव ने एक पत्रकार वार्ता आयोजित कर दोनों आरोपियों को मीडिया के समक्ष प्रस्तुत किया.

जयमंगल ने पत्रकारों के सवालों का जवाब देते हुए कहा कि उस ने जो भी चोरियां की थी, वे अपनी माशूकाओं को गिफ्ट देने और उन्हें खुश करने के लिए की थीं. इस के पहले भी वह 3-4 बार जेल जा चुका था और जब भी बाहर आता था, अपने पुराने धंधे में लग जाता था. पुलिस ने दोनों को वाराणसी के जिला न्यायालय में प्रस्तुत किया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया.  Hindi Story

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Love Crime : प्रेमिका ने प्रेमी से पहले संबंध बनाए फिर पैट्रोल से जिंदा जला दिया

Love Crime : दिल्ली के निजामुद्दीन रेलवे स्टेशन के नजदीक नांगली राजपुर स्थित यश गैस्टहाऊस में 27 अक्तूबर, 2015 को एक ऐसी घटना घटी कि गैस्टहाऊस के मैनेजर और कर्मचारी सिहर उठे. शाम के करीब 4 बजे गैस्टहाऊस के कमरा नंबर 24 से अचानक चीखने की आवाजें आने लगीं. चीखें सुन कर मैनेजर सुमित कटियार 2 कर्मचारियों के साथ उस कमरे की ओर भागे. वहां पहुंच कर उन्होंने देखा कि कमरे से धुआं भी निकल रहा है.

उस कमरे में सुबह ही एक आदमी अपनी पत्नी के साथ आया था. कमरे से चीखने की जो आवाज आ रही थी, वह उसी आदमी की थी. मैनेजर की समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर उस आदमी के साथ ऐसा क्या हो गया, जो वह इस तरह चीख रहा है. चीखों और धुआं निकलने से उस ने यही अंदाजा लगाया कि शायद वह आदमी जल रहा है. यह सोच कर सुमित कटियार घबरा गए.

कमरे का दरवाजा अंदर से बंद था. उन्होंने दरवाजा थपथपाया, लेकिन वह नहीं खुला. वह परेशान हो उठे. जब उन्हें कोई उपाय नहीं सूझा तो उन्होंने अन्य कर्मचारियों के साथ मिल कर कमरे का दरवाजा तोड़ दिया. कमरे के अंदर का खौफनाक दृश्य देख कर सब की घिग्घी बंध गई. कमरे में पड़े बैड के नीचे एक आदमी आग में जलते हुए तड़प रहा था. उस के शरीर पर एक भी कपड़ा नहीं था. बैड के पास खड़ी उस की पत्नी हैरत से उसे जलता देख रही थी. वह भी उसी हालत में थी.

सुमित कटियार ने तुरंत पुलिस कंट्रोल रूम को फोन कर के इस घटना की सूचना दे दी. थोड़ी ही देर में पुलिस कंट्रोल रूम की गाड़ी वहां पहुंच गई, जिस में 4 पुलिसकर्मी थे. यह क्षेत्र दक्षिणीपूर्वी दिल्ली के थाना सनलाइट कालोनी के अंतर्गत आता है, इसलिए पुलिस कंट्रोल रूम से इस घटना की सूचना थाना सनलाइट कालोनी को भी दे दी गई थी.

खबर मिलते ही थानाप्रभारी ओमप्रकाश लेखवाल 2 हैडकांस्टेबलों को ले कर घटनास्थल पर पहुंच गए. निरीक्षण में उन्हें कमरे में एक अधेड़ आदमी फर्श पर झुलसा पड़ा मिला. वह बेहोशी की हालत में लगभग 90 प्रतिशत जला था. उस के कपड़े बैड के पास रखी मेज पर रखे थे. मेज के नीचे एक कोल्डङ्क्षड्रक्स की 2 लीटर की खाली बोतल रखी थी, जिस में थोड़ा पैट्रोल था. थानाप्रभारी ने एक हैडकांस्टेबल के साथ उस जले हुए आदमी को इलाज के लिए अस्पताल भेज दिया.

जिस व्यक्ति के साथ यह घटना घटी थी, वह कौन था, कहां का रहने वाला था और यह घटना कैसे घटी थी, इस बारे में थानाप्रभारी ओमप्रकाश लेखवाल ने गैस्टहाऊस के मैनेजर सुमित कटियार से पूछा तो उन्होंने बताया कि जो आदमी आग से झुलसा है, उस का नाम गजानन है. वह सुबह साढ़े 10 बजे अपनी पत्नी सुनीता के साथ आया था. उस ने आईडी के रूप में अपने वोटर कार्ड की फोटोकौपी जमा कराई थी.

तब उसे कमरा नंबर 24 दे दिया गया था. इस के बाद अभी थोड़ी देर पहले कमरे से चीखने की आवाज सुनाई दी तो वह कुछ कर्मचारियों के साथ वहां पहुंचा. तब उस ने कमरे से धुआं निकलते देखा. उस ने दरवाजा खुलवाने की कोशिश की. जब दरवाजा नहीं खुला तो उस ने दरवाजा तोड़ दिया.

इस के आगे मैनेजर ने बताया कि जब उस ने गजानन की पत्नी सुनीता से आग लगने के बारे में पूछा तो उस ने कहा कि उस की शादी को 15 साल हो गए हैं, लेकिन अभी तक उन्हें संतान नहीं हुई. बड़ेबड़े डाक्टरों को दिखाया, तांत्रिकों के पास भी गए, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. संतान न होने की वजह से दोनों काफी परेशान थे. एक दिन पहले उस के पति ने उस से कहा कि कल उन्हें महाराष्ट्र के नागपुर शहर चलना है. वहां एक बहुत पहुंचे हुए फकीर हैं, जो दुआ पढ़ा हुआ पानी देते हैं. वह पानी पीने के बाद संतान सुख का लाभ मिलता है.

चूंकि जिस ट्रेन से उन्हें नागपुर जाना था, वह रात 9 बजे की थी. इतना टाइम वे सडक़ पर नहीं बिता सकते थे, इसलिए आराम करने के लिए इस गैस्टहाऊस में आ गए. शारीरिक संबंध बनाने के बाद पति पर न जाने क्या फितूर सवार हुआ कि उन्होंने साथ लाए कपड़े के बैग से 2 लीटर वाली प्लास्टिक की बोतल निकाली और उस में भरा पैट्रोल खुद पर उड़ेल लिया. वह कुछ समझ पाती पति ने माचिस की तीली जला कर खुद को आग लगा ली.

“कहां है गजानन की पत्नी सुनीता?” ओमप्रकाश लेखवाल ने पूछा तो मैनेजर इधरउधर देखने लगा. उस ने पूरा गैस्टहाऊस छान मारा, लेकिन सुनीता कहीं नहीं मिली.

“तुम्हारी लापरवाही की वजह से वह भाग गई,” ओमप्रकाश लेखवाल ने कहा, “तुम ने गजानन की उस पत्नी की कोई आईडी ली थी?”

“सर, पति की आईडी मिल गई तो मैं ने उस की आईडी लेना जरूरी नहीं समझा.” कह कर मैनेजर ने सिर झुका लिया.

“वह गजानन की पत्नी ही थी, मुझे नहीं लगता. वह मौजमस्ती के लिए उस के साथ यहां आई थी. मुझे पूरा यकीन है कि वह पैट्रोल गजानन नहीं वही लाई थी. अपना काम कर के वह रफूचक्कर हो गई. उस ने तुम्हें झूठी कहानी सुना कर विश्वास में ले लिया और कपड़े पहन कर चली गई. लापरवाही तुम लोग करते हो और भुगतना पुलिस को पड़ता है.” ओमप्रकाश लेखवाल ने नाराजगी प्रकट करते हुए कहा.

थानाप्रभारी ने गैस्टहाऊस का रजिस्टर चैक किया तो उस में गजानन का पता चांदनी चौक, पुरानी दिल्ली का लिखा था. जबकि उस ने अपने वोटर आईडी कार्ड की जो छायाप्रति जमा कराई थी, उस में उस का पता गांव कामनवास, सवाई माधोपुर, राजस्थान लिखा था.

पुलिस ने गैस्टहाऊस के मैनेजर को वादी बना कर भादंवि की धारा 307 के तहत रिपोर्ट दर्ज कर ली. गजानन का हाल जानने के लिए ओमप्रकाश लेखवाल अस्पताल पहुंचे तो उन्हें पता चला कि गजानन की मौत हो चुकी है. मरने से पहले उस ने डाक्टरों को बताया था कि उसे सुनीता उर्फ ङ्क्षरकू ने जलाया था.

गजानन की मौत की खबर उस के घर वालों को देना जरूरी था, इसलिए उस ने गैस्टहाऊस में दिल्ली का जो पता लिखाया था, पुलिस चांदनी चौक स्थित उस पते पर गौरीशंकर मंदिर पहुंची तो वहां से पता चला कि गजानन पहले इसी मंदिर में महंत था. लेकिन कुछ दिनों पहले उसे वहां से हटा दिया गया था. अब वह सवाई माधोपुर स्थित अपने गांव में रहता था. दिल्ली वह 10-15 दिनों में आताजाता रहता था.

इस के बाद दिल्ली पुलिस ने राजस्थान पुलिस को गजानन की हत्या की खबर भिजवा कर संबंधित थाने द्वारा उस के घर वालों को उस की हत्या की खबर भिजवा दी. खबर सुन कर गजानन के घर वाले थाना सनलाइट कालोनी पहुंच गए.

डीसीपी संजीव रंधावा ने सुनीता की तलाश के लिए पुलिस की एक टीम बनाई, जिस में एसआई ललित कुमार, हैडकांस्टेबल मान ङ्क्षसह, कांस्टेबल सूबे ङ्क्षसह, महिला कांस्टेबल संगीता ङ्क्षसह को शामिल किया गया. टीम का नेतृत्व ओमप्रकाश लेखवाल को सौंपा गया.

गजानन चांदनी चौक के जिस गौरीशंकर मंदिर में महंत था, पुलिस टीम ने वहीं से जांच शुरू की. वहां से पुलिस को कई चौंकाने वाली जानकारियां मिलीं. पता चला कि गजानन 10 साल पहले दिल्ली आया था और गौरीशंकर मंदिर का महंत बन गया था. मंदिर में पूजापाठ कराने के साथसाथ वह ज्योतिषी एवं तंत्रमंत्र का भी काम करता था. उस के पास अपनी समस्याओं के समाधान के लिए पुरुषों के साथसाथ महिलाएं भी आती थीं.

इन में कुछ महिलाओं से उस की अच्छी जानपहचान हो गई थी. वह शराब भी पीने लगा था. इन में से कुछ महिलाओं से उस के अनैतिक संबंध भी बन गए थे. बाद में जब यह बात गौरीशंकर मंदिर की प्रबंधक कमेटी को पता चली तो कमेटी ने सन 2008 में गजानन को मंदिर से निकाल दिया था.

इस के बाद गजानन ने मंदिर के बाहर फूल एवं पूजा सामग्री बेचने की दुकान खोल ली. उस की यह दुकान बढिय़ा चलने लगी थी. उस ने दुकान पर काम करने के लिए 2 नौकर रख दिए और खुद राजस्थान स्थित अपने घर चला गया. यह 2-3 साल पहले की बात है. वह हफ्तादस दिन में दुकान पर आता और नौकरों से हिसाब कर के चला जाता था. यह जानकारी हासिल कर के पुलिस टीम थाने लौट आई.

उधर पोस्टमार्टम के बाद 20 अक्तूबर, 2015 को लाश गजानन के परिजनों को सौंप दी गई. घर वालों ने निगमबोध घाट पर ही उस की अंत्येष्टि कर दी. एसआई ललित कुमार ने घर वालों से पूछताछ की तो उन्होंने किसी पर शक नहीं जताया.

पुलिस ने गैस्टहाऊस में लगे सीसीटीवी कैमरे की फुटेज देखी. फुटेज में सुनीता उर्फ ङ्क्षरकू का चेहरा तो नजर आ रहा था, लेकिन पुलिस के लिए मुश्किल यह थी कि इतनी बड़ी दिल्ली में उसे कहां ढूंढ़ा जाए. पुलिस के पास सुनीता का कोई मोबाइल नंबर भी नहीं था, जिस से उस के द्वारा उसे ढूंढने में आसानी हो. गैस्टहाऊस में गजानन के कपड़ों से एक मोबाइल फोन मिला था. घर वालों ने बताया था कि वह मोबाइल गजानन का ही है.

ललित कुमार ने सुनीता का फोन नंबर जानने के लिए गजानन के मोबाइल की काल लौग देखी तो एक नंबर पर उन की नजर टिक गई. क्योंकि वह नंबर ‘माई लव’ के नाम से सेव था. ललित कुमार जानना चाहते थे कि यह नंबर किस का है. उन्होंने अपने सैल फोन से वह नंबर मिलाया.

कुछ देर बाद एक महिला ने फोन रिसीव कर के ‘हैलो’ कहा तो ललित कुमार बोले, “कार में चलने का शौक है तो इस के लोन की किस्तें भी समय से जमा करा दिया करो. 3 महीने हो गए, आप ने अभी तक किश्तें नहीं जमा कीं.”

“अरे भाई, आप कौन बोल रहे हैं? मैं ने कार के लिए कब लोन लिया?” दूसरी ओर से महिला ने कर्कश स्वर में कहा.

“आप रुखसार बोल रही हैं न?” ललित कुमार ने पूछा.

“नहीं बाबा, मैं रुखसार नहीं, सुनीता हूं. रौंग नंबर.”

“सौरी मैडम, गलत नंबर लग गया.” ललित कुमार ने कहा. इस के बाद उन्होंने फोन काट दिया. इस बातचीत के बाद उन की आंखों में चमक आ गई. क्योंकि सुनीता के फोन नंबर की पुष्टि हो गई थी.

ललित कुमार ने सुनीता का फोन नंबर सॢवलांस पर लगवाया तो उस की लोकेशन लाल किला, रेलवे कालोनी की मिली. वह टीम के साथ रेलवे कालोनी पहुंचे तो वहां के लोगों से सुनीता के बारे में पूछने पर पता चला कि सुनीता का पति रेलवे में नौकरी करता है. वह पहले इसी कालोनी में पति के साथ रहती थी, पर 4 सालों से वह परिवार के साथ नोएडा में कहीं रहने चली गई है.

पता चला कि रेलवे कालोनी का वह क्वार्टर उस ने किसी को किराए पर दे रखा था. किराएदार से वह उस दिन मिलने आई थी. उस से मिल कर वह नोएडा चली गई थी. नोएडा में सुनीता कहां रह रही है, यह बात रेलवे कालोनी में रहने वाला कोई नहीं बता सका.

अलबत्ता सुनीता ने जिस परिवार को अपना क्वार्टर किराए पर दिया था, उस ने पुलिस को बताया कि उस का कुछ जरूरी सामान एक कमरे में रहता है, जिस की चाबी सुनीता के पास रहती है. आज जब वह मिलने आई थी तो वहां से कुछ सामान अपने बैग में भर कर ले गई थी.

इतनी जानकारी मिलने के बाद ललित कुमार ने सॢवलांस द्वारा सुनीता के फोन की लोकेशन पता की तो इस बार लोकेशन नोएडा सैक्टर-29 की निकली.

28 अक्तूबर, 2015 की सुबह ललित कुमार ने टीम में शामिल महिला कांस्टेबल के साथ नोएडा के सैक्टर- 29 स्थित एक मकान पर दबिश दी तो वहां सुनीता मिल गई. थाने ला कर जब उस से पूछताछ की गई तो उस ने कहा, “मेरा गजानन से रिश्ता जरूर था, मगर मैं ने उन्हें जला कर नहीं मारा. उन्होंने खुद ही पैट्रोल डाल कर आग लगाई थी.”

“तो फिर तुम वहां से भागी क्यों?” थानाप्रभारी ओमप्रकाश लेखवाल ने पूछा.

“स…सर, मैं डर गई थी.” वह बोली.

“गजानन भला खुद को आग क्यों लगाएगा?” ओमप्रकाश लेखवाल ने पूछा.

“सर, बात यह है कि गजानन की पत्नी बीमार रहती है. जब मुझ से उन का रिश्ता बना तो वह मुझ पर शादी करने का दबाव बनाने लगे. मैं 2 बच्चों की मां हूं. बच्चों को छोड़ कर मैं ऐसा कैसे कर सकती थी?” कह कर सुनीता सिसकने लगी.

पलभर बाद वह हिचकियां लेते हुए बोली, “26 अक्तूबर की शाम गजानन ने फोन कर के कहा कि मुझ से मिलने की उस की काफी इच्छा है. अगले दिन उन्होंने सुबह 10 बजे मुझे हजरत निजामुद्दीन रेलवे स्टेशन के बाहर बुलाया. अगले दिन तयशुदा समय पर मैं स्टेशन के बाहर पहुंची तो उन्हें मैं ने इंतजार करते पाया. उन के कंधे पर कपड़े का एक बैग था.

“गजानन मुझे यश गैस्टहाऊस ले गए. उन्होंने वहां मुझे अपनी पत्नी बताया था. कमरे में जा कर हम ने शारीरिक संबंध बनाए. उस के बाद गजानन ने साथ लाए बैग से प्लास्टिक की 2 लीटर की बोतल निकाली और उस का ढक्कन खोला. उस में पैट्रोल भरा था.

“गजानन ने मुझ से कहा कि वह आखिरी बार पूछ रहा है कि मैं उस से शादी करूंगी या नहीं? मैं ने साफ इनकार कर दिया. तब उन्होंने कहा कि जब तुम नहीं मान रही तो मैं खुदकुशी कर लूंगा, लेकिन पुलिस यही समझेगी कि उसे तुम ने जलाया है. इस के बाद गजानन ने पूरा पैट्रोल अपने शरीर पर छिडक़ कर आग लगा ली.”

फिर सुनीता जोरजोर से रोते हुए बोली, “सर, मैं ने उन्हें नहीं मारा. मुझे फंसाने के लिए उन्होंने खुदकुशी की थी.”

ओमप्रकाश लेखवाल को लगा कि सुनीता की आंखों के आंसू घडिय़ाली हैं, यह जरूर कुछ छिपा रही है. उन्होंने महिला कांस्टेबलों को इशारा किया. महिला कांस्टेबल ने सुनीता को एक अलग कमरे में ले जा कर थोड़ी सख्ती की तो उस ने सहजता से अपना जुर्म कबूल कर लिया.

सुनीता उर्फ ङ्क्षरकू मूलरूप से पटना, बिहार की रहने वाली थी. 13 साल पहले उस की शादी विजय कुमार के साथ हुई थी. विजय कुमार दिल्ली में रहता था और हजरत निजामुद्दीन रेलवे स्टेशन पर बतौर टैक्नीशियन नौकरी करता था. वह पति के साथ खुश थी. वह 2 बच्चों की मां बनी. विजय कुमार को रेलवे की ओर से जामामस्जिद के पास बनी रेलवे कालोनी में क्वार्टर मिला था. उस में वह पत्नी सुनीता और बच्चों के साथ रहता था.

सुनीता आजादखयालों की थी, जबकि विजय कुमार पंरपरावादी. सुनीता को घूमने एवं सिनेमाहौल में फिल्में देखने का शौक था. अपने शौक पूरे करने के लिए वह पति से अनापशनाप खर्च लेती रहती थी. सुनीता अकसर गौरीशंकर मंदिर भी जाया करती थी. वहीं 8 साल पहले उस की मुलाकात मंदिर के महंत गजानन से हुई.

गजानन पुजारी होने के साथसाथ ज्योतिषी भी था. यही वजह थी कि उस के पास महिलाओं की भीड़ लगी रहती थी. सुनीता गजानन से मिली तो वह उस का दीवाना हो गया. इस के बाद दोनों के बीच संबंध बन गए. कुछ दिनों बाद गजानन और सुनीता के संबंधों की बात मंदिर की प्रबंधक कमेटी को पता चली तो उसे मंदिर से निकाल दिया गया. तब वह मंदिर के बाहर फूल व पूजा सामग्री बेचने लगा.

सुनीता और गजानन के संबंध पहले की ही तरह जारी रहे. गजानन ने चांदनी चौक में किराए का मकान ले रखा था. जब भी उस की इच्छा होती, वह सुनीता को अपने कमरे पर बुला लेता. वह सुनीता को शौक पूरे करने के लिए अच्छेखासे पैसे भी देता था.

सन 2014 के अगस्त महीने में गजानन ने सवाई माधोपुर में अपना एक प्लौट 25 लाख रुपए में बेचा तो सुनीता के मांगने पर उस ने उसे 10 लाख रुपए उधार दे दिए. सितंबर, 2015 के अंतिम दिनों में गजानन ने उस से अपने रुपए मांगे तो सुनीता बहाने बनाने लगी.

दरअसल, अब तक गजानन का मन सुनीता से भर चुका था. वह अपने 10 लाख रुपए ले कर उस से हमेशा के लिए पीछा छुड़ाना चाहता था. लेकिन सुनीता की नीयत में खोट आ गई थी. वह गजानन के 10 लाख रुपए किसी भी सूरत में लौटाना नहीं चाहती थी. वह टालमटोल करने लगी तो गजानन धमकी देने लगा कि उस ने उस के अंतरंग क्षणों की वीडियो बना रखी है. अगर उस ने उस के पैसे नहीं लौटाए तो वह वीडियो उस के पति को दिखा देगा.

सुनीता डर गई. उस ने गजानन की हत्या करने की योजना बना डाली. सुनीता ने 26 अक्तूबर, 2015 की रात गजानन को फोन किया. उस समय गजानन सवाई माधोपुर स्थित अपने घर में था. सुनीता ने कहा, “कल सुबह तुम हजरत निजामुददीन रेलवे स्टेशन के बाहर 11 बजे मिलना. मैं तुम्हारे 10 लाख रुपए लौटा दूंगी.”

पैसों के लालच में गजानन रात में ही ट्रेन द्वारा राजस्थान से चल पड़ा और 27 अक्तूबर की सुबह 9 बजे हजरत निजामुद्दीन रेलवे स्टेशन पहुंच गया. वह स्टेशन के बाहर खड़ा हो कर सुनीता का इंतजार करने लगा.

10 बजे के करीब सुनीता वहां पहुंची. वह गजानन को नांगली राजपुर स्थित यश गैस्टहाऊस ले गई. वहां गजानन ने एक कमरा बुक कराया. जैसे ही वे दोनों कमरे में पहुंचे, तभी सुनीता ने दरवाजा अंदर से बंद कर लिया. मौके का फायदा उठाने के लिए गजानन ने उसे आगोश में ले लिया.

इस के बाद दोनों ने कपड़े उतार कर शारीरिक संबंध बनाए. हसरतें पूरी करने के बाद दोनों बिस्तर पर निर्वस्त्र लेटे थे, तभी गजानन ने उस से अपने 10 लाख रुपए मांगे. तब सुनीता ने कहा, “पंडितजी, 8-10 सालों से मैं तुम्हारी सेवा करती आ रही हूं. अब तो आप उन पैसों को भूल जाइए.”

“नहीं सुनीता, घर वालों को इस की जानकारी हो गई है. वे सब मुझ से झगड़ा करते हैं. इसलिए मैं पैसे मांग रहा हूं.” गजानन ने कहा.

सुनीता उठी और साथ लाए बैग से पैट्रोल से भरी बोतल निकाल कर उस के ऊपर उड़ेल दी. इस से पहले कि गजानन कुछ समझ पाता, सुनीता ने उस पर आग लगा दी. जलता हुआ गजानन चीखने लगा. उस की चीख सुन कर गैस्टहाऊस का मैनेजर वहां आ पहुंचा. इस के बाद क्या हुआ, आप ऊपर पढ़ ही चुके हैं.

सुनीता से पूछताछ कर के पुलिस ने 29 अक्तूबर, 2015 को उसे कोर्ट में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. Love Crime

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Suicide Case : प्रेमी जोड़े ने मिठाइयों में जहरीला पदार्थ खाकर की आत्महत्या

Suicide Case : 11जुलाई, 2014 को सुबह साढ़े 10 बजे इंदौर के स्काई होटल के मालिक दर्शन पारिख ने अपने कर्मचारी को होटल के कमरा नंबर 202 में ठहरे व्यक्ति से 500 रुपए लाने को कहा. एक दिन पहले इस कमरे में रोहित सिंह अपनी छोटी बहन के साथ ठहरा था. कमरा बुक कराते समय उस ने कहा था कि वह कमरे में पहुंच कर फ्रैश होने के बाद पैसे दे देगा.

पैसे लेने के लिए कर्मचारी कमरा नंबर 202 पर पहुंचा तो उसे कमरे का दरवाजा अंदर से बंद मिला. उस ने कालबेल का बटन दबाया. बटन दबाते ही कमरे के अंदर लगी घंटी के बजने की आवाज उस के कानों तक आई तो वह दरवाजा खुलने का इंतजार करने लगा.

कुछ देर बाद तक दरवाजा नहीं खुला तो उस ने दोबारा घंटी बजाई. इस बार भी दरवाजा नहीं खुला और न ही अंदर से कोई आहट सुनाई नहीं पड़ी. फिर उस ने दरवाजा थपथपाया. इस के बाद भी किसी ने दरवाजा नहीं खोला तो वह कर्मचारी अपने मालिक दर्शन पारिख के पास पहुंचा और उन्हें दरवाजा न खोलने की बात बता दी. उस ने यह भी बता दिया कि कई बार घंटी बजाने के बाद भी कमरे में कोई हलचल नहीं हुई.

उस की बात सुन कर दर्शन पारिख खुद रूम नंबर 202 पर पहुंच गया और उस ने भी कई बार दरवाजा थपथपाया. उसे भी कमरे से कोई हलचल सुनाई नहीं दी. उसे शंका हुई कि कहीं मामला गड़बड़ तो नहीं है. उस ने उसी समय थाना खजराना फोन कर के इस बात की सूचना दे दी.

ऐसी कंडीशन में ज्यादातर कमरे के अंदर लाश मिलने की संभावना होती है. इसलिए सूचना मिलते ही थानाप्रभारी सी.बी. सिंह एसआई पी.सी. डाबर और 2 सिपाहियों को ले कर बाईपास रोड पर बने नवनिर्मित होटल स्काई पहुंच गए. उन्होंने भी रूम नंबर 202 के दरवाजे को जोरजोर से खटखटाया. जब दरवाजा नहीं खुला तो पुलिस ने दर्शन पारिख से दूसरी चाबी ले कर दरवाजा खोला. अंदर फर्श पर एक लड़का और लड़की आलिंगनबद्ध मिले.

उन की सांसों को चैक किया तो लगा कि उन की सांसें टूट चुकी हैं. दर्शन पारिख ने उन दोनों को पहचानते हुए कहा कि कल जब यह लड़का आया था तो इस ने इस लड़की को अपनी बहन बताया था और इस समय ये इस हालत में पड़े हैं. कहीं उन की सांसें बहुत धीरेधीरे न चल रही हों, यह सोच कर पुलिस ने उन्हें अस्पताल भेजा. लेकिन अस्पताल के डाक्टरों ने दोनों को मृत घोषित कर दिया.

इस के बाद पुलिस ने होटल के उस कमरे का बारीकी से निरीक्षण किया. मौके पर फोरेंसिक अधिकारी डा. सुधीर शर्मा को भी बुला लिया गया. कमरे में मिठाई का एक डिब्बा, केक, जलेबी आदि खुले पड़े थे.  जिस जगह लाशें पड़ी थीं, वहीं पास में एक पुडि़या में पाउडर रखा था. उसे देख कर डा. सुधीर शर्मा ने बताया कि यह हाई ब्रोस्वोनिक नाम का जहरीला पदार्थ हो सकता है. इन्होंने मिठाई वगैरह में इस पाउडर को मिला कर खाया होगा. जिस की वजह से इन की मौत हो गई.

एसआई पी.सी. डाबर ने सामान की तलाशी ली तो उस में जो कागजात मिले, उन से पता चला कि उन के नाम रोहित सिंह और मीनाक्षी हैं. वहीं 20 पेज का एक सुसाइड नोट भी मिला. उस से पता चला कि वे मौसेरे भाईबहन के अलावा प्रेमी युगल भी थे. पुलिस ने कमरे में मिले सुबूत कब्जे में ले लिए.

कागजात की जांच से पता चला कि लड़की का नाम मीनाक्षी था. वह खंडवा जिले के नेहरू चौक सुरगांव के रहने वाले महेंद्र सिंह की बेटी थी, जबकि लड़के का नाम रोहित था. वह हरदा के चरवा बावडि़या गांव के रहने वाले सोहन सिंह का बेटा था. पुलिस ने दोनों के घरवालों को खबर कर दी तो वे रोतेबिलखते हुए अस्पताल पहुंच गए. उन्होंने लाशों की पहचान रोहित और मीनाक्षी के रूप में कर दी. उसी दिन पोस्टमार्टम के बाद दोनों लाशें उन के परिजनों को सौंप दी गईं.

दोनों के घर वालों से की गई बातचीत और सुसाइड नोट के बाद पुलिस जान गई कि रोहित और मीनाक्षी के बीच प्रेमसंबंध थे. उन के प्रेमप्रसंग से ले कर सुसाइड करने तक की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार निकली—

मध्य प्रदेश के हरदा शहर के चरवा बावडि़या गांव के रहने वाले सोहन सिंह के पास खेती की अच्छीखासी जमीन थी. उन के परिवार में पत्नी के अलावा एक बेटी और 2 बेटे थे. रोहित सिंह उन का दूसरे नंबर का बेटा था. बेटी को पढ़ानेलिखाने के बाद वह उस की शादी कर चुके थे. रोहित इंटरमीडिएट पास कर चुका था. उस की तमन्ना कृषि वैज्ञानिक बनने की थी, इसलिए पिता ने भी उस से कह दिया था कि उस की पढ़ाई में वह किसी तरह की रुकावट नहीं आने देंगे.

करीब 3 साल पहले की बात है. रोहित अपने परिजनों के साथ इंदौर से करीब 30 किलोमीटर दूर अपनी मौसेरी बहन की शादी में गया था. उस शादी में रोहित की दूसरी मौसी की बेटी मीनाक्षी भी अपने घर वालों के साथ आई हुई थी.

मीनाक्षी बेहद खूबसूरत और हंसमुख थी. वह जीवन के 22 बसंत पार कर चुकी थी. मजबूत कदकाठी का 17 वर्षीय रोहित भी बहुत हैंडसम था. पूरी शादी में मीनाक्षी रोहित के साथ रही थी, दोनों ने शादी में काफी मस्ती भी की. मीनाक्षी की रोहित के प्रति दिलचस्पी बढ़ती जा रही थी. चूंकि वे मौसेरे भाईबहन थे, इसलिए दोनों के साथसाथ रहने पर किसी को कोई शक वगैरह नहीं हुआ.

शादी के बाद दोनों अपनेअपने घर चले गए. घर जाने के बाद मीनाक्षी के मन में उथलपुथल होती रही. शादी में रोहित के साथ की गई मस्ती के वह पल उस के दिमाग में घूम रहे थे. समझदार होने के बाद इतने ज्यादा समय तक मोहित उस के साथ पहली बार रहा था. मौसेरा भाई होने के बावजूद मीनाक्षी का उस की तरफ झुकाव हो गया. दोनों के पास एकदूसरे के फोन नंबर थे. समय मिलने पर वे फोन पर बात करते और एसएमएस भेजते रहते.

मीनाक्षी उसे अपने प्रेमी के रूप में देखने लगी. एक दिन उस ने फोन पर ही रोहित से अपने प्यार का इजहार कर दिया. रोहित भी जवानी की हवा में उड़े जा रहा था. उस ने उस का प्रस्ताव मंजूर कर लिया. उस समय वे यह भूल गए कि आपस में मौसेरे भाईबहन हैं. फिर क्या था, दोनों के बीच फोन पर ही प्यार भरी बातें होने लगीं. बातचीत, मेलमुलाकातों के साथ करीब 3 साल तक प्यार का सिलसिला चलता रहा. इस दौरान उन के बीच की दूरियां भी मिट चुकी थीं.

कहते हैं कि प्यार को चाहे कितना भी छिपाने की कोशिश की जाए, वह छिप नहीं पाता, लेकिन मीनाक्षी और रोहित के संबंधों पर घर वालों को जल्दी से इसलिए शक नहीं हुआ था, क्योंकि वे आपस में मौसेरे भाईबहन थे.

भाईबहन का रिश्ता होते हुए भी घर वालों ने जब उन्हें सीमाओं को लांघते देखा तो उन्हें शक हो गया. फिर क्या था, उन के संबंधों को ले कर घर में चर्चा होने लगी. पहले तो उन्हें विश्वास नहीं हुआ. लेकिन उन की हरकतें ऐसी थीं कि संदेह पैदा हो रहा था. इस के बावजूद घर वाले लापरवाह बने रहे.

उधर मीनाक्षी और रोहित का इश्क परवान चढ़ता जा रहा था. अब मीनाक्षी 25 साल की हो चुकी थी और रोहित 20 साल का. वह रोहित से 5 साल बड़ी थी. इस के बावजूद दोनों ने शादी करने का फैसला कर लिया था.  दोनों ने शादी का फैसला तो कर लिया, लेकिन उन के सामने समस्या यह थी कि अपनी बात घर वालों से कहें कैसे.

सच्चे प्रेमियों को अपने प्यार के आगे सभी चीजें बौनी नजर आती हैं. वे अपना मुकाम हासिल करने के लिए कुछ भी कर गुजरने को तैयार रहते हैं. हालांकि उन्हें इस बात की उम्मीद नहीं थी कि उन के घर वाले उन की बात मानेंगे, लेकिन वे यह बात कह कर घर वालों को यह बता देना चाहते थे कि वे एकदूसरे को प्यार करते हैं. मौका पा कर रोहित और मीनाक्षी ने अपनेअपने घर वालों से साफसाफ कह दिया कि वे एकदूसरे को प्यार करते हैं और अब शादी करना चाहते हैं.

यह सुन कर घर वाले सन्न रह गए कि ये आपस में सगे मौसेरे भाईबहन हैं और किस तरह की बात कर रहे हैं? ऐसा होना असंभव था. घर वालों ने उन्हें बहुत लताड़ा और समझाया भी कि सगेसंबंधियों में ऐसा नहीं होता. मोहल्ले वाले और रिश्तेदार जिंदगी भर ताने देते रहेंगे. लेकिन रोहित और मीनाक्षी ने उन की एक न सुनी. उन्होंने आपस में मिलनाजुलना नहीं छोड़ा. घर वालों को जब लगा कि ये ऐसे नहीं मानेंगे तो उन्होंने उन पर सख्ती करनी शुरू कर दी.

मीनाक्षी और रोहित बालिग थे. उन्होंने अपनी गृहस्थी बसाने की योजना पहले ही बना ली थी. फिर योजना को अमलीजामा पहनाने के लिए 15 जून, 2014 को वे अपने घरों से भाग कर इंदौर पहुंच गए. घर से भागने से पहले रोहित अपने दादा के पैसे चुरा कर लाया था तो वहीं मीनाक्षी भी घर से पैसे व जरूरी कपड़े आदि बैग में रख कर लाई थी. वे इंदौर आए और 3 दिनों तक एक होटल में रहे. इस के बाद उन्होंने राज मोहल्ला में एक मकान किराए पर ले लिया.

मीनाक्षी के अचानक गायब होने पर घर वाले परेशान हो गए. उन्होंने सब से पहले उस का फोन मिलाया. वह बंद आ रहा था. फिर उन्होंने अपने खास लोगों को फोन कर के उस के बारे में पता किया. मामला जवान बेटी के गायब होने का था, इसलिए बदनामी को ध्यान में रखते हुए वे अपने स्तर से ही उसे ढूंढते रहे. बाद में जब उन्हें पता चला कि रोहित भी घर पर नहीं है तो उन्हें बात समझते देर नहीं लगी. फिर मीनाक्षी के पिता महेंद्र सिंह ने बेटी के लापता होने की थाने में रिपोर्ट दर्ज करा दी.

घर से भाग कर गृहस्थी चलाना कोई आसान काम नहीं होता. खास कर तब जब आमदनी का कोई स्रोत न हो. वे दोनों घर से जो पैसे लाए थे, वे धीरेधीरे खर्च हो चुके थे. अब पैसे कहां से आएं, यह उन की समझ में नहीं आ रहा था. एक दिन रोहित ने मीनाक्षी से कहा, ‘‘मैं घर जा कर किसी तरह पैसा लाता हूं. वहां से लौटने के बाद हमें गुजरबसर के लिए कुछ करना होगा.’’

मीनाक्षी को इंदौर में ही छोड़ कर रोहित अपने गांव चला गया. वह खंडवा रेलवे स्टेशन पर पहुंचा था कि तभी इत्तफाक से मीनाक्षी के भाई ने उसे देख लिया. उस ने उसे वहीं पर पकड़ लिया. वहां भीड़ जमा हो गई. भीड़ में उस के कुछ परिचित भी थे. उन्होंने रोहित से मीनाक्षी के बारे में पूछा, लेकिन रोहित ने कुछ नहीं बताया तो वह अपने परिचितों के सहयोग से उसे पकड़ कर थाने ले गया.

पुलिस ने रोहित से मीनाक्षी के बारे में पूछा तो उस ने बता दिया कि वह इंदौर में है. पुलिस उसे ले कर इंदौर के राज मोहल्ले में पहुंची. इस से पहले कि वह उस के कमरे पर पहुंच पाती, रोहित पुलिस को झांसा दे कर रफूचक्कर हो गया. पुलिस से छूट कर वह तुरंत अपने कमरे पर पहुंचा और वहां से मीनाक्षी को ले कर खिसक गया. कमरा छोड़ कर वे इंदौर के रेडिसन चौराहे के पास स्थित स्काई होटल पहुंचे.

उन के पास अब ज्यादा पैसे नहीं थे. होटल मालिक दर्शन पारिख से मीनाक्षी ने रोहित को अपना छोटा भाई बताया था. दर्शन पारिख ने जब कमरे का एडवांस किराया 500 रुपए जमा करने को कहा तो उस ने कह दिया कि पैसा हम सुबह दे देंगे, अभी जरा थोड़ा आराम कर लें.

कमरे में सामान रखने के बाद वे खाना खाने बाहर गए. वापस आते समय कुछ मिठाइयां आदि ले कर आए और सुबह होटल के कमरे में उन की लाशें मिलीं. अब संभावना यह जताई जा रही है कि उन्होंने मिठाइयों में वही जहरीला पदार्थ मिला कर खाया होगा, जो घटनास्थल पर मिला था.

कमरे से 20 पेज का जो सुसाइड नोट मिला है, उस में दोनों ने 5-5 पेज अपनेअपने घर वालों को लिखे हैं. रोहित ने लिखा है कि पापा मेरी आखिरी इच्छा है कि आप शराब पीना छोड़ दें. गांव में जा कर दादादादी के साथ रहें. मम्मी के लिए उस ने लिखा कि आप पापा, दादादादी, भैया का खयाल रखना. तुम मुझ से सब से ज्यादा प्यार करती हो, अब मैं यहां से जा रहा हूं.

मीनाक्षी ने भी अपने पिता को लिखा था कि पापा, मैं जो कुछ कह रही हूं, जो कुछ किया है, वह शायद किसी को अच्छा नहीं लगेगा कि मौसी के लड़के से प्यार करती हूं. आप के और रोहित के साथ रहना चाहती थी, लेकिन आप ने अनुमति नहीं दी, इसीलिए मैं ने यह कदम उठाया है. आप अपनी सेहत का ख्याल रखना और कमर दर्द की दवा बराबर लेते रहना. उस ने मां के लिए लिखा था कि आप पापा से झगड़ा मत करना.

उन्होंने सामूहिक सुसाइड नोट में लिखा था कि हमारे पत्र के साथ हमारे फोटो भी हैं. आत्महत्या का समाचार हमारे फोटो के साथ अखबारों में छापा जाए.

रोहित और मीनाक्षी की मौत के बाद उन के घर वाले सकते में हैं. सुसाइड नोट के बाद यह बात साबित हो गई थी कि वे दोनों एकदूसरे से प्यार करते थे. यह बात जगजाहिर होने के बाद दोनों के घर वालों का समाज के सामने सिर झुक गया. क्योंकि रोहित और मीनाक्षी के बीच जो संबंध थे, उसे हमारा समाज मान्यता नहीं देता.

बहरहाल, रोहित के पिता सोहन सिंह का बेटे को कृषि वैज्ञानिक बनाने का सपना धराशाई तो हो ही गया, साथ ही बेटा भी हमेशा के लिए उन से जुदा हो गया. इस के अलावा महेंद्र सिंह को भी इस बात का पछतावा हो रहा है कि जैसे ही उन्होंने मीनाक्षी और रोहित के बीच चक्कर चलने की बात सुनी थी, उसी दौरान वह उस की शादी कहीं और कर देते तो शायद यह दुखद समाचार सुनने को नहीं मिलता. Suicide Case

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित है.