Emotional Story : फिनाइल पीकर गर्लफ्रेंड और बॉयफ्रेंड ने ली जान

Emotional Story : शिव सिंह उर्फ मक्कू कस्बा अकबरपुर में बन रहे अपने मकान पर पहुंचे तो उन्होंने वहां जो देखा, वह दिल दहला देने वाला था. मकान के अंदर एक लड़के और एक लड़की की लाश पड़ी थी. लाशों को देख कर ही लग रहा था कि वे प्रेमीप्रेमिका थे, क्योंकि मरने के बाद भी दोनों एकदूसरे का हाथ थामे हुए थे. शिव सिंह ने तुरंत इस बात की सूचना थाना अकबरपुर पुलिस को दी. उन्होंने यह बात कुछ लोगों को बताई तो जल्दी ही यह खबर अकबरपुर कस्बे में फैल गई. इस के बाद सैकड़ों लोग उन के मकान पर पहुंच गए. लोग तरहतरह की बातें कर रहे थे. यह 20 अप्रैल, 2017 की बात है.

थाना अकबरपुर के थानाप्रभारी इंसपेक्टर ए.के. सिंह यह जानकारी अधिकारियों को दे कर तुरंत पुलिस बल के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. उन के पहुंचने के थोड़ी देर बाद ही एसपी प्रभाकर चौधरी, एएसपी मनोज सोनकर तथा सीओ आलोक कुमार जायसवाल भी फील्ड यूनिट की टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए.

अधिकारियों के आते ही घटनास्थल का निरीक्षण शुरू हुआ. लड़की की उम्र 18-19 साल रही होगी तो लड़का 23-24 साल का था. लाशों के पास ही फिनाइल की 2 खाली बोतलें पड़ी थीं. इस से अंदाजा लगाया गया कि फिनाइल पी कर दोनों ने आत्महत्या की है. उन बोतलों को पुलिस ने जब्त कर लिया.

इस के बाद पुलिस ने वहां मौजूद लोगों से लाशों की शिनाख्त कराने की कोशिश की, लेकिन वहां इकट्ठा लोगों में से कोई भी उन की पहचान नहीं कर सका. लाशों की पहचान नहीं हो सकी तो एसपी प्रभाकर चौधरी ने एक सिपाही से लड़के की जेब की तलाशी लेने को कहा. सिपाही ने लड़के की पैंट की जेब में हाथ डाला तो उस में 2 सिम वाला एक मोबाइल फोन, बीकौम का परिचय पत्र, जो कुंदनलाल डिग्री कालेज, रनियां का था, मिला.

लड़की की लाश के पास एक बैग पड़ा था. पुलिस ने उस की तलाशी ली तो उस में से हाईस्कूल, इंटरमीडिएट की मार्कशीट, आधार कार्ड, कालेज का परिचय पत्र, बैंक की पासबुक, मोबाइल फोन, कुछ दवाएं तथा जिला अस्पताल की स्त्रीरोग विशेषज्ञ का ओपीडी का पर्चा मिला.

आधार कार्ड के अनुसार, लड़की का नाम रोहिका था. उस के पिता का नाम अजय कुमार था. वह जिला कानपुर देहात के आधू कमालपुर गांव की रहने वाली थी. लाशों की शिनाख्त के बाद एसपी प्रभाकर चौधरी ने रोहिका के आधार कार्ड में लिखे पते पर 2 सिपाहियों को घटना की सूचना देने के लिए भेज दिया. इस के बाद लड़के की जेब से मिले मोबाइन फोन को उन्होंने जैसे ही औन किया, फोन की घंटी बज उठी. उन्होंने फोन करने वाले से बात की और उसे तुरंत अकबरपुर कस्बा स्थित जिला अस्पताल के पीछे आने को कहा.

अभी आधा घंटा भी नहीं बीता था कि एक आदमी वहां आ पहुंचा. लड़के की लाश देख कर वह सिर पीटपीट कर रोने लगा. पूछने पर उस ने अपना नाम राजेंद्र कुमार बताया. वह जिला कानपुर देहात के आधू कमालपुर गांव का रहने वाला था. वह लाश उस के बेटे अंकित उर्फ रामबाबू की थी.

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एक दिन पहले यानी 19 अप्रैल, 2017 को सुबह 10 बजे अंकित कालेज जाने  की बात कह कर घर से निकला था. देर शाम तक वह घर नहीं लौटा तो उस की तलाश शुरू हुई. मोबाइल पर फोन किया गया तो वह बंद था. नातेरिश्तेदारों से पता किया गया, लेकिन अंकित का कुछ पता नहीं चला.

सवेरा होते ही उस की खोज फिर शुरू हुई. उसे कई बार फोन भी किया गया. उसी का नतीजा था कि उस का फोन मिल गया. राजेंद्र एसपी प्रभाकर चौधरी को बेटे अंकित के बारे में बता ही रहा था कि उस के साथ मरने वाली लड़की रोहिका के घर वाले भी आ गए. फिर तो वहां कोहराम मच गया.

रोहिका की मां सुनीता और बहन रितिका छाती पीटपीट कर रो रही थीं. रोहिका के पिता का नाम अजय था. उन के भी आंसू नहीं थम रहे थे. रोतेबिलखते घर वालों को सीओ आलोक कुमार जायसवाल ने किसी तरह शांत कराया और उन्हें हटा कर अपनी काररवाई शुरू की.

लाशों को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा कर पुलिस ने पूछताछ शुरू की. लाशों की स्थितियों से साफ था कि अंकित और रोहिका एकदूसरे को प्रेम करते थे. यह भी निश्चित था कि उन्होंने आत्महत्या की थी. उन्होंने आत्महत्या इसलिए की होगी, क्योंकि घर वालों ने उन की शादी नहीं की होगी. इस बारे में घर वालों से विस्तारपूर्वक पूछताछ की गई तो जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी—

कानपुर देहात के थानाकस्बा अकबरपुर का एक गांव है आधू कमालपुर. यह कस्बे से मात्र एक किलोमीटर की दूरी पर है. इसी गांव में अजय कुमार अपने परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में पत्नी सुनीता के अलावा 2 बेटियां रितिका और रोहिका थीं. बड़ी बेटी रितिका की शादी हो चुकी थी.

अजय सेना में नौकरी करते थे. इस समय वह असम में तैनात थे. सरकारी नौकरी होने की वजह से उन्हें अच्छा वेतन मिलता था, इसलिए घर में किसी चीज की कमी नहीं थी. उन की छोटी बेटी रोहिका काफी खूबसूरत थी. उस की इस खूबसूरती में चार चांद लगाता था उस का स्वभाव.

रोहिका अत्यंत सौम्य और मृदुभाषी थी. वह तनमन से जितनी खूबसूरत थी, उतनी ही पढ़ने में भी तेज थी. अकबरपुर इंटरकालेज से इंटरमीडिएट करने के बाद वह वहीं स्थित डिग्री कालेज से बीएससी कर रही थी. पढ़ाईलिखाई और स्वभाव की वजह से वह मांबाप की आंखों का तारा थी.

अंकित भी रोहिका के ही गांव का रहने वाला था. उस के पिता राजेंद्र कुमार के पास खेती की ठीकठाक जमीन थी, इसलिए वह गांव का संपन्न किसान था. उस के परिवार में पत्नी के अलावा 2 बेटे और एक बेटी थी. संतानों में अंकित सब से छोटा था. कस्बे से इंटरमीडिएट कर के वह रानियां के कुंदनलाल डिग्री कालेज से बीकौम कर रहा था.

रोहिका और अंकित एक ही जाति के थे. उन के घर वालों में भी खूब पटती थी, इसलिए अंकित रोहिका के घर बेरोकटोक आताजाता था. इसी आनेजाने में रोहिका अंकित को भा गई. फिर तो वह कालेज आतेजाते समय उस का पीछा करने लगा.

अंकित रोहिका को तब तक चाहतभरी नजरों से ताकता रहता था, जब तक वह उस की आंखों से ओझल नहीं हो जाती थी. लेकिन रोहिका थी कि उसे भाव ही नहीं दे रही थी. धीरेधीरे अंकित के मन की बेचैनी बढ़ने लगी. हर पल उस के दिल में रोहिका ही छाई रहती थी. अब उस का मन पढ़ाई में भी नहीं लगता था.

रोहिका के करीब पहुंचने की तड़प जब अंकित के लिए बरदाश्त से बाहर हो गई तो वह उस के घर कुछ ज्यादा ही आनेजाने लगा. चूंकि घर वालों में अच्छा तालमेल था, इसलिए उस के घर आने और रोहिका से बातें करने पर किसी को ऐतराज नहीं था. उस के घर आने पर अंकित भले ही बातें दूसरों से करता रहता था, लेकिन उस की नजरें रोहिका पर ही टिकी रहती थीं.

अंकित की इस हरकत से जल्दी ही रोहिका ने उस के मन की बात भांप ली. अंकित के मन में अपने लिए चाहत देख कर रोहिका का भी मन विचलित हो उठा. अब वह भी उस के आने का इंतजार करने लगी. जब भी अंकित आता, वह उस के आसपास ही मंडराती रहती. इस तरह दोनों ही एकदूसरे की नजदीकी पाने को बेचैन रहने लगे.

अंकित की चाहतभरी नजरें रोहिका की नजरों से मिलतीं तो वह मुसकराए बिना नहीं रह पाती. इस से अंकित समझ गया कि जो बात उस के मन में है, वही रोहिका के भी मन में है. लेकिन वह दिल की बात रोहिका से कह नहीं पा रहा था.

अंकित ऐसे मौके की तलाश में रहने लगा, जब वह अपने दिल की बात रोहिका से कह सके. चाह को राह मिल ही जाती है. आखिर एक दिन अंकित को मौका मिल ही गया. उस दिन रोहिका को घर में अकेली पा कर अंकित ने कहा, ‘‘रोहिका, मैं तुम से कुछ कहना चाहता हूं. अगर तुम बुरा न मानो तो अपने मन की बात तुम से कह दूं.’’

‘‘बात ही कहनी है तो कह दो. इस में बुरा मानने वाली कौन सी बात है?’’ रोहिका आंखें नचाते हुए बोली. शायद उसे पता था कि वह क्या कहने वाला है.

‘‘रोहिका, तुम मुझे बहुत अच्छी लगती हो. मुझे तुम्हारे अलावा कुछ अच्छा ही नहीं लगता.’’ नजरें झुका कर अंकित ने कहा, ‘‘हर पल मेरी नजरों के सामने तुम्हारी सूरत नाचती रहती है.’’

अंकित की बातें सुन कर रोहिका की धड़कनें बढ़ गईं. शरमाते हुए उस ने कहा, ‘‘अंकित, जो हाल तुम्हारा है, वही मेरा भी है. तुम भी मुझे बहुत अच्छे लगते हो.’’

‘‘सच…’’ कह कर अंकित ने रोहिका को अपनी बांहों में भर कर कहा, ‘‘यही सुनने का तो मैं कब से इंतजार कर रहा था.’’

उस दिन के बाद दोनों का प्यार परवान चढ़ने लगा. रोहिका कालेज या कोचिंग जाने के बहाने घर से निकलती और अंकित से मिलने पहुंच जाती. अंकित उसे मोटरसाइकिल पर बैठा कर कानपुर शहर चला जाता, जहां दोनों फिल्में देखते, चिडि़याघर या मोतीझील घूमते और प्यार भरी बातें करते. कभी दोनों बिठूर पहुंच जाते, जहां गंगा में नौका विहार करते.

ऐसे में ही दोनों साथ जीनेमरने की कसमें खाते हुए भविष्य के सपने देखने लगे थे. मन से मन मिला तो दोनों के तन मिलने में देर नहीं लगी. समय इसी तरह बीतता रहा और इसी के साथ रोहिका और अंकित का प्यार गहराता गया. उन्होंने लाख कोशिश की कि उन के प्यार की जानकारी किसी को न हो, लेकिन ऐसा हो नहीं पाया.

एक दिन रोहिका के चचेरे भाई रवि ने नहर के किनारे दोनों को इस हालत में देख लिया कि सारा मामला समझ में आ गया. उस ने अपने परिवार की बेइज्जती महसूस की और तुरंत यह बात अपनी चाची सुनीता को बता कर चेतावनी देते हुए कहा, ‘‘रोहिका और अंकित को समझा देना. अगर वे दोनों नहीं माने तो उन्हें मैं अपने ढंग से मनाऊंगा. तब बहुत महंगा पड़ेगा.’’

रोहिका की हरकत पता चलने पर सुनीता सन्न रह गई. वह घर आई तो सुनीता ने बेटी को आड़े हाथों लेते हुए कहा, ‘‘रोहिका, तुम पर तो मैं बहुत भरोसा करती थी. लेकिन तुम ने तो अभी से रंग दिखाना शुरू कर दिया. अंकित के साथ तेरा क्या चक्कर है?’’

‘‘मेरा किसी से कोई चक्कर नहीं है.’’ रोहिका ने दबी आवाज में कहा.

‘‘तू क्या सोचती है कि तेरी बात पर मुझे विश्वास हो जाएगा. जो बात मैं कह रही हूं, उसे कान खोल कर सुन ले. आज के बाद तू अंकित से बिलकुल नहीं मिलेगी और वह इस घर में कदम नहीं रखेगा. आज के बाद तूने कोई हरकत की तो तेरा बाप और चचेरा भाई तुझे जिंदा जमीन में गाड़ देंगे.’’ सुनीता ने चेतावनी देते हुए कहा.

मां ने जो कहा था, वह सच था. इसलिए रोहिका ने कोई जवाब नहीं दिया. मां बड़बड़ाती रही और वह चुपचाप उन की बातें सुनती रही. मां की चेतावनी से वह बुरी तरह डर गई थी. इस से साफ था कि मां उस के संबंधों को जान गई थी.

अजय असम में तैनात थे. कुछ दिनों बाद जब वह छुट्टी पर घर आए तो सुनीता ने उन्हें बेटी की करतूत बता दी. अजय ने उसे जम कर डांटा. चूंकि बात इज्जत की थी, इसलिए अजय ने अंकित को तो डांटा ही, उस के पिता राजेंद्र से भी उस की शिकायत की. रोहिका पर अब कड़ी नजर रखी जाने लगी. उस का घर से निकलना भी लगभग बंद कर दिया गया था. अगर किसी जरूरी काम से कहीं जाना होता तो मां उस के साथ जाती थी. उसे अकेली कहीं नहीं जाने दिया जाता था.

कहते हैं, प्यार पर पहरा लगा दिया जाता है तो वह और बढ़ता है. शायद इसी से रोहिका और अंकित परेशान रहने लगे थे. दोनों एकदूसरे की एक झलक पाने को बेचैन रहते थे. रोहिका के प्यार में आकंठ डूबा अंकित तरहतरह के अपमान भी बरदाश्त कर रहा था.

कुछ समय बाद सुनीता को लगा कि बेटी सुधर गई है और अंकित के प्यार का भूत उस के सिर से उतर गया है तो उन्होंने उसे ढील दे दी. ढील मिलते ही रोहिका और अंकित की प्रेमकहानी एक बार फिर शुरू हो गई. हां, अब मिलने में दोनों काफी सतर्कता बरतते थे.

तमाम सतर्कता के बावजूद एक शाम रवि ने दोनों को एक साथ देख लिया. इस बार रवि आपा खो बैठा और अंकित के साथ मारपीट कर बैठा. घर आ कर उस ने नमकमिर्च लगा कर चाची से रोहिका की शिकायत की. गुस्से में सुनीता ने रोहिका को भलाबुरा तो कहा ही, पिटाई भी कर दी. यही नहीं, उन्होंने फोन कर के सारी बात पति को भी बता दी.

अजय बेटी को ले कर परेशान हो उठा. उसे डर था कि कहीं रोहिका उस की इज्जत पर दाग न लगा दे. इसलिए किसी तरह छुट्टी ले कर वह घर आ गया. उस ने पत्नी सुनीता से इस गंभीर समस्या पर विचार किया. अंत में रोहिका का विवाह जल्द से जल्द करने का निर्णय लिया गया. दौड़धूप कर उन्होंने रोहिका का विवाह औरैया में तय कर दिया और अपनी ड्यूटी पर चले गए.

रोहिका को शादी तय होने की जानकारी मिली तो वह बेचैन हो उठी. किसी तरह इस बात की जानकारी अंकित को भी हो गई. एक दिन मौका मिलने पर वह रोहिका से मिला तो पहला सवाल यही किया, ‘‘रोहिका, मैं ने जो सुना है, क्या वह सच है?’’

‘‘हां अंकित, तुम ने जो सुना है, वह सच है. मेरे घर वालों ने मेरी मरजी के खिलाफ मेरी शादी तय कर दी है. लेकिन मैं बेवफा नहीं हूं. मैं तुम्हें जितना प्यार पहले करती थी, उतना ही आज भी करती हूं. मैं ने तुम्हारे साथ जीनेमरने की कसमें खाई हैं, उसे निभाऊंगी.’’

रोहिका की ये बातें सुन कर अंकित के दिल को थोड़ा सुकून मिला. लेकिन उस की बेचैनी खत्म नहीं हुई. अब तो उस का खानापीना तक छूट गया. उसे न दिन में चैन मिल रहा था न रात में. रोहिका पर हर तरह से पाबंदी थी, इसलिए वह उस से मिल भी नहीं सकता था. फिर भी जब कभी मौका मिलता था, वह फोन कर के बात कर लेता था.

15 मार्च, 2017 से रोहिका की परीक्षा शुरू हुई, इसलिए उस पर लगी पाबंदी हटानी पड़ी. वह परीक्षा देने अकबरपुर डिग्री कालेज जाने लगी. परीक्षा के दौरान उस की अंकित से मुलाकातें होने लगीं. लेकिन मिलते हुए दोनों काफी सतर्क रहते थे.

18 अप्रैल, 2017 को रोहिका का आखिरी पेपर था. उस दिन परीक्षा दे कर वह अंकित से मिली. तब उस ने उसे बताया कि कल उस के पापा असम से आ रहे हैं. उसे लगता है कि आते ही वह उस की शादी की तारीख तय कर देंगे. इस के पहले वह किसी और की हो जाए, वह उसे कहीं और ले चले. अगर उस ने ऐसा नहीं किया तो वह अपनी जान दे देगी. इतना कह कर वह रोने लगी.

रोहिका के गालों पर लुढ़के आंसुओं को पोंछते हुए अंकित ने कहा, ‘‘रोहिका, तुम्हें मुझ से कोई नहीं छीन सकता. हम कल ही सब छोड़ देंगे और तुम्हें ले कर अपनी अलग दुनिया बसाएंगे.’’

इस के बाद दोनों ने घर छोड़ने की योजना बना डाली. उसी योजना के तहत 19 अप्रैल, 2017 की सुबह रोहिका ने अपने बैग में शैक्षणिक प्रमाण पत्र, आधार कार्ड, बैंक की पासबुक तथा कालेज का परिचय पत्र और मोबाइल फोन रखा और मां से कालेज में जरूरी काम होने की बात कह कर घर से निकल पड़ी.

सड़क पर अंकित उस का बेसब्री से इंतजार कर रहा था. उस के आते ही दोनों टैंपो में बैठ कर अकबरपुर कस्बा आ गए. रोहिका को हलका बुखार था और जी मितला रहा था. अंकित उसे जिला अस्पताल ले गया और ओपीडी में पर्चा बनवा कर महिला डाक्टर को दिखाया. महिला डाक्टर ने कुछ दवाएं रोहिका के पर्चे पर लिख दीं.

दवा लेने के बाद रोहिका कुछ सामान्य हुई तो उस ने कहा, ‘‘अंकित, हम भाग कर कहां जाएंगे? हमारे पास तो पैसे भी नहीं है. कहीं मुसीबत में फंस गए तो बड़ी परेशानी होगी. इसलिए भागना ठीक नहीं है.’’

‘‘भागने के अलावा कोई दूसरा रास्ता भी तो नहीं है हमारे पास.’’ अंकित ने मायूस हो कर कहा.

‘‘एक रास्ता है.’’ रोहिका बोली.

‘‘क्या?’’

‘‘घर वाले हमें साथ रहने नहीं देंगे और हम एकदूसरे के बिना रह नहीं सकते. हम साथ जीवित भले नहीं रह सकते, लेकिन साथ मर तो सकते हैं.’’

‘‘शायद तुम ठीक कह रही हो रोहिका.’’ इस के बाद दोनों ने जीवनलीला समाप्त करने की योजना बना डाली.

योजना के तहत रोहिका और अंकित अकबरपुर बाजार गए और वहां 2 बोतल फिनाइल खरीदी. इस के बाद देर शाम दोनों जिला अस्पताल के पीछे बन रहे शिव सिंह के मकान पर पहुंचे. वहां वे आधी रात तक बातें करते रहे. इस के बाद एकएक बोतल फिनाइल पी कर एकदूसरे का हाथ पकड़ कर लेट गए.

कुछ ही देर में फिनाइल ने अपना असर दिखाना शुरू किया तो दोनों तड़पने लगे. कुछ देर तड़पने के बाद उन की जीवनलीला समाप्त हो गई. दूसरी ओर शाम तक जब रोहिका घर नहीं लौटी तो सुनीता को चिंता हुई. उस ने उस के मोबाइल पर फोन किया, लेकिन फोन बंद मिला. अजय घर आए तो पतिपत्नी मिल कर रात भर बेटी की तलाश करते रहे, लेकिन उस का कुछ पता नहीं चला.

सुबह 10 बजे पुलिस द्वारा बेटी की मौत की सूचना मिली. इसी तरह अंकित के घर वाले भी उस की तलाश करते रहे. सुबह उन्हें भी फोन द्वारा उस के मौत की सूचना मिली. पोस्टमार्टम के बाद रोहिका और अंकित की लाशें उन के घर वालों को सौंप दी गईं. घर वालों ने अलगअलग उन का अंतिम संस्कार कर दिया. इस तरह एक प्रेमकहानी का अंत हो गया. Emotional Story

Romance Kahani : पारुल और विकास की आड़ी-तिरछी प्रेम कहानी

Romance Kahani : पारुल और विकास के बीच नईनई जानपहचान हुई थी. दोनों ही ठाकुरगंज के होम्योपैथी अस्पताल में साफसफाई का काम करते थे. वैसे तो दोनों की मुलाकात कम ही होती थी, क्योंकि दोनों के काम करने का समय अलगअलग था. जब से दोनों के बीच एकदूसरे के प्रति लगाव बढ़ा था, समय निकाल कर दोनों मिलने और बातचीत करने की कोशिश करते थे. पारुल ने विकास को अपने बारे में सच बता दिया था. विकास के साथ उस का ऐसा लगाव था कि वह उस से कोई बात छिपाना नहीं चाहती थी.

एक दिन पारुल अपने बारे में बता रही थी और विकास उस की बातें सुन रहा था. पारुल बोली, ‘‘मेरी शादी को 14 साल हो गए. कम उम्र में शादी हो गई थी. मेरे 3 बच्चे भी हैं. मैं सोचती हूं कि जब हम दोस्ती कर रहे हैं तो एकदूसरे की हर बात को समझ लें.

‘‘मेरे पति तो जेल में हैं. ससुराल वालों से मेरा कोई संपर्क नहीं रह गया है. मैं अपने 3 बच्चों का पालनपोषण अपनी मां के पास रह कर करती हूं.’’

शाम का समय था. विकास और पारुल ठाकुरगंज से कुछ दूर गुलालाघाट के पास गोमती के किनारे बैठे थे. दोनों ही एकदूसरे से बहुत सारी बातें करने के मूड में थे. दोनों को कई दिनों बाद आपस में बात करने का मौका मिला था.

‘‘तुम्हारी शादी हो चुकी है तो मैं भी कुंवारा नहीं हूं. मैं बरेली से यहां नौकरी करने आया था. मेरी शादी 8-9 महीने पहले हुई है. शादी के कुछ महीने बाद से ही पत्नी के साथ मेरे संबंध ठीक नहीं रहे. मैं 5 महीने से अलग रह रहा हूं.

‘‘मेरी पत्नी की भी मेरे साथ रहने की कोई इच्छा नहीं है. ऐसे में मैं उस के साथ रहूं या नहीं, कोई फर्क नहीं पड़ता.’’ पारुल की बातें सुन कर विकास ने कहा.

‘‘आप की शादी तो पिछले साल ही हुई है, फिर भी आप पत्नी को छोड़ मुझे पसंद करते हैं. ऐसा क्यों?’’ पारुल ने विकास से पूछा.

‘‘शादी के बाद से ही पत्नी से मेरे आत्मिक संबंध नहीं रह सके. पतिपत्नी होते हुए भी ऐसा लगता था जैसे हम एकदूसरे से अनजान हैं. जब से आप मिलीं, आप से अपनापन लगने लगा. मैं अपनी पत्नी के साथ खुश नहीं हूं. हम दोनों ही अलग हो जाना चाहते हैं.’’ विकास ने पारुल की बात का जबाव दिया.

विकास बरेली जिले के प्रेम नगर का रहने वाला था. वह नौकरी करने लखनऊ आया था. रश्मि के साथ उस की शादी 2018 के जून में हुई थी. 4-5 महीने दोनों साथ रहे, पर इस के बाद वह पत्नी से अलग रहने लगा. पारुल और विकास की मुलाकात साल 2019 के जून में हुई थी. शुरुआती कई महीनों तक दोनों में बातचीत नहीं होती थी. दोनों बस एकदूसरे को देखते रहते थे. जब बातचीत होने लगी और एकदूसरे की पंसद नापसंद पर बात हुई तो पहले पारुल ने खुद को शादीशुदा बताया. तब विकास ने हंसते हुए कहा, ‘‘शादीशुदा तो मैं भी हूं. लेकिन बच्चे नहीं हैं. हमारी शादी पिछले साल हुई थी.’’

जब पता चला कि दोनों ही शादीशुदा हैं तो वे निकट आने लगे. दोनों ही अपनेअपने जीवनसाथी के साथ खुश नहीं थे. पारुल का पति रिंकू आटोरिक्शा चलाता था. शादी के 7 साल बाद परिवार में हुई हत्या में रिंकू को जेल हो गई. उस समय तक पारुल के 3 बच्चे मुसकान, पवन और गगन हो चुके थे. पति के जेल जाने के बाद उस की सुसराल वालों ने उस से संबंध नहीं रखे. पारुल अपने बच्चों को ले कर अपनी मां सुषमा के साथ रहने लगी. वहीं पर पारुल ने अपने बच्चों का स्कूल में एडमिशन करा दिया. अब पारुल पर मां का दबाव रहता था. वह उस की एकएक गतिविधि पर पूरी नजर रखती थी.

इधर धीरेधीरे पारुल और विकास के बीच नजदीकियां बढ़ने लगीं. सही मायनों में दोनों ही एकदूसरे की जरूरतों को पूरा करने लगे थे. एकदूसरे के साथ दोनों का पूरी तरह से तालमेल बैठ गया था. कभी साथ घूमने जाते तो कभी एक साथ फिल्म देखते. जब पारुल की मां को जानकारी मिली तो उस ने पारुल को समझाया और ऐसे संबंधों से दूर रहने को कहा. पर पारुल मानने को तैयार नहीं थी. कुछ दिन बाद दोनों फिर मिलने लगे. पारुल की मां सुषमा को लग रहा था कि विकास उन की बेटी को बहका कर अपने साथ रखता है. पारुल और विकास के संबंधों को ले कर मोहल्ले के लोगों और नातेरिश्तेदारों में भी चर्चा होने लगी थी.

दूसरी ओर पारुल को विकास के साथ संबंधों की लत लग चुकी थी. वह किसी भी स्थिति में विकास से दूर नहीं रहना चाहती थी. विकास भी पूरी तरह पारुल का दीवाना हो चुका था. जब पारुल की मां और करीबी रिश्तेदारों का दबाव पड़ने लगा तो दोनों ने लखनऊ छोड़ने का फैसला कर लिया. पारुल के सामने सब से बड़ी परेशानी उस के बच्चे थे. प्यार के लिए पारुल ने उन का मोह भी छोड़ दिया. उस ने विकास से कहा, ‘‘अब हम साथ रहेंगे. हमारे बच्चे भी हमारे बीच में नहीं आएंगे. हम लोग यहां से कहीं दूर चलेंगे. बच्चे यहीं रहेंगे. जब समय ठीक होगा, तब हम वापस आ कर बच्चों को अपने साथ रख लेंगे.’’

विकास ने फैसला किया कि वह पारुल को ले कर अपने घर बरेली चला जाएगा. दिसंबर, 2019 की बात है. पारुल और विकास लखनऊ छोड़ कर बरेली चले आए. यहां दोनों साथ रहने लगे. पारुल के लखनऊ छोड़ने का सारा ठीकरा उस की मां सुषमा ने विकास के ऊपर फोड़ दिया. सुषमा ने लखनऊ की कृष्णानगर कोतवाली में जा कर एक प्रार्थनापत्र दिया और विकास पर अपनी बेटी पारुल को बहलाफुसला कर भगा ले जाने का आरोप लगाया. पुलिस ने प्रार्थनापत्र रख लिया.

पुलिस ने रिपोर्ट लिखने की जगह एनसीआर दर्ज की. पुलिस का मानना था कि पारुल बालिग है, 3 बच्चों की मां है और अपना भलाबुरा समझती है. वह जहां भी गई होगी, अपनी मरजी से गई होगी. कई माह बीत जाने के बाद भी जब पुलिस ने कोई काररवाई नहीं की तो पारुल की मां सुषमा ने कोर्ट की शरण ली. 14 अगस्त, 2020 को कोर्ट ने पुलिस को धारा 498 और 506 के तहत मुकदमा कायम करने का आदेश दिया.

पुलिस ऐसे मामलों की विवेचना 155 (2) के तहत करती है. इस में किसी तरह का कोई वारंट जारी नहीं होता. पुलिस दोनों को कोर्ट के सामने पेश करती है, जहां दोनों कोर्ट के सामने बयान देते हैं. कोर्ट अपने विवेक से फैसला देती है. 20 सितंबर, 2020 की रात लखनऊ के थाना कृष्णानगर के दरोगा भरत पाठक एक सिपाही और विकास व पारुल के 2 रिश्तेदारों को साथ ले कर बरेली गए. पुलिस रात में ही पारुल और विकास को कार से ले कर लखनऊ वापस लौटने लगी.

पुलिस द्वारा लखनऊ लाए जाने की बात पारुल और विकास को पता चल चुकी थी. उन के मन में भय था कि लखनऊ ले जा कर पुलिस दोनों को अलग कर देगी, जेल भी भेज सकती है. पारुल ने अपने पति को देखा था. हत्या के आरोप में 8 साल बाद भी वह जेल से बाहर नहीं आ सका था. विकास सीधासादा था, उसे भी पुलिस, जेल और कचहरी के चक्कर से डर लग रहा था. ऐसे में दोनों ने फैसला किया कि वे साथ रह नहीं सकते तो साथ मर तो सकते हैं.

रात के समय जब पुलिस ने लखनऊ चलने के लिए कहा तो दोनों ने तैयार होने का समय मांगा. पारुल ने अपने पास कीटनाशक दवा की 4 गोली वाला पैकेट रख रखा था. दोनों कपड़े पहन कर वापस आए तो पुलिस ने पारुल की तलाशी नहीं ली. पुलिस की दिक्कत यह थी कि वह अपने साथ कोई महिला सिपाही ले कर नहीं आई थी, जिस से उस की तलाशी नहीं ली जा सकी. पुलिस ने पारुल विकास को अर्टिगा गाड़ी में बैठाया और बरेली से लखनऊ के लिए निकल गई. आगे की सीट पर दारोगा भरत पाठक और एक सिपाही बैठा था. पीछे वाली सीट पर विकास और पारुल को बैठाया गया था, जबकि बीच की सीट पर दोनों के रिश्तेदार बैठे थे.

गाड़ी बरेली से चली तो रात का समय था. ड्राइवर को छोड़ कर सभी लोग सो गए. अपनी योजना के मुताबिक पारुल और विकास ने कीटनाशक की 2-2 गोलियां खा लीं. कुछ ही देर में दोनों को उल्टी होने लगी. पुलिस वालों को लगा कि गाड़ी में बैठ कर अकसर कई लोगों को उल्टी होेने लगती है, शायद वैसा ही कुछ होगा. जब गाड़ी सीतापुर पहुंची तो सो रहे लोगों की नींद खुली. पीछे की सीट से उल्टी की बदबू आ रही थी. आगे की सीट पर बैठे लोगों ने पारुल और विकास को आवाज दी, पर दोनों में से कोई नहीं बोला. पास से देखने पर पता चला दोनों बेसुध हैं. दोनों की तलाशी ली गई. उन के पास कीटनाशक दवा का एक पैकेट मिला, जिस में 2 गोलियां शेष बची थीं.

इस से पता चल गया कि दोनों ने वही दवा खाई है. लखनऊ पहुंच कर पुलिस दोनों को ले कर लखनऊ मैडिकल कालेज के ट्रामा सेंटर पहुंची, जहां डाक्टरों ने दोनों को मृत घोषित कर दिया. दो प्रेमियों के आत्महत्या करने का मसला पूरे लखनऊ में चर्चा का विषय बन गया. शुरुआत में विकास और पारुल के घर वालों ने पुलिस पर लापरवाही का आरोप लगाया. बाद में उन्हें भी लगा कि पुलिस, कचहरी और कानून के डर से पारुल और विकास ने आत्महत्या की है.

विकास और पारुल दोनों ही बालिग थे. अपना भलाबुरा समझते थे. परिवार वालों ने अगर आपसी सहमति से समझाबुझा कर फैसला लिया होता तो दोनों को यह कदम नहीं उठाना पड़ता. इस तरह की घटनाएं नई नहीं हैं. ऐसे मामलों में पुलिस की प्रताड़ना प्रेमीजनों के मन में भय पैदा कर देती है. पुलिस, समाज और कचहरी के भय से प्रेमी युगल ऐसे कदम उठा लेते हैं. ऐसे में समाज और कानून दोनों को संवेदनशीलता से काम लेना चाहिए. Romance Kahani

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Agra Crime News : बंद बोरे का खुला राज

Agra Crime News : अवैध संबंध अकसर अपराध को जन्म देते हैं. इतना सब जानते हुए भी सुनीता उर्फ सुषमा ने पति के रहते हुए मान सिंह से नाजायज संबंध बना लिए. इस के बाद जो हुआ, वह..

8 जून, 2021 की बात है. आगरा के थाना सदर के सेवला में रात के 11 बजे एक आदमी कंधे पर बोरा ले कर जा रहा था. अचानक बोरे के वजन के कारण उस का पैर फिसला और वह बोरे सहित  गिर पड़ा. इस पर वहां से निकल रहे लोगों की नजरें उस आदमी की तरफ गईं. वह किसी तरह उठा और बोरे को उठाने का प्रयास करने लगा. उसी समय बोरा खुल गया और उस में से एक हाथ बाहर निकल आया. यह देखते ही लोग उस की ओर दौड़े और उसे पकड़ लिया. बोरे को खुलवा कर देखा तो उस में एक युवक का शव था जिसे देख कर सभी के होश उड़ गए. बोरे में युवक की लाश मिलने से वहां सनसनी फैल गई. इस घटना की सूचना तुरंत पुलिस को दे दी गई.

सूचना मिलते ही थाना सदर के थानाप्रभारी अजय कौशल अपनी टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. वहां लोग एक व्यक्ति को पकड़े हुए थे. यह माजरा देखते ही उन्होंने वहां मौजूद लोगों से जानकारी ली. लोगों ने बताया कि यही व्यक्ति कंधे पर बोरे में किसी की लाश ले कर जा रहा था. वजन के कारण वह बोरे सहित गिर गया. बोरा खुलने से लाश के बारे में पता चला. पुलिस ने देखा बोरे में एक युवक की लाश थी. शव की पहचान 40 वर्षीय जूता कारीगर संजय के रूप में हुई. पुलिस ने शव की पहचान होने के बाद उस के घरवालों को सूचना दी. जानकारी होते ही परिवार में कोहराम मच गया.

इस बीच घटना की जानकारी थानाप्रभारी द्वारा अपने उच्च अधिकारियों को दी गई. सूचना मिलते ही एसपी (सिटी) रोहन प्रमोद बोत्रे वहां पहुंच गए. उन्होंने लाश का निरीक्षण किया. युवक के गले  पर चोट के निशान दिखाई दे रहे थे. मौके की जरूरी काररवाई निपटा कर पुलिस ने शव को मोर्चरी भिजवा दिया. प्रेमी हुआ गिरफ्तार पुलिस पकड़े गए युवक मान सिंह को हिरासत में ले कर थाने लाई. थाने पर उस से पूछताछ की गई. जानकारी देने पर पुलिस ने रात में ही मृतक संजय के घर पहुंच कर उस की 35 वर्षीय पत्नी सुनीता उर्फ सुषमा से पूछताछ की.

सुनीता ने बताया कि वह दवा लेने गई हुई थी. जब लौट कर आई तो पति संजय घर पर नहीं मिले. उस ने सोचा कि कहीं गए होंगे. जब देर हो गई तो उस ने पति की तलाश शुरू की. बाद में पता चला कि उस के जाने के बाद पति की किसी ने हत्या कर दी थी. उधर हिरासत में लिए गए युवक ने बिना कुछ छिपाए पुलिस को सच्चाई बता दी. उस ने हत्या का जुर्म कुबूल कर लिया. उस ने बताया कि मृतक संजय की पत्नी से उस के प्रेम संबंध हैं. पति विरोध करता था.  हम दोनों के प्यार के बीच संजय रोड़ा बना हुआ था. वह अपनी पत्नी के साथ मारपीट करता था. मुझे भी घर आने से मना करता था. इसलिए हम दोनों ने मिल कर उस की हत्या कर दी.

वह शव को बोरे में बंद कर ठिकाने लगाने ले जा रहा था. लेकिन बोरे के गिर जाने से भेद खुल गया. पुलिस समझ गई कि मृतक की पत्नी सुनीता इस हत्याकांड में शामिल होने के बावजूद अपने को निर्दोष बता रही है. जबकि उस के प्रेमी मान सिंह ने पुलिस को सारी हकीकत बता दी थी. पुलिस ने सुनीता को भी गिरफ्तार कर लिया और फोरैंसिक टीम को बुला लिया. टीम ने मृतक के घर से कई साक्ष्य जुटाए. 9 जून, 2021 को प्रैस कौन्फ्रैंस में एसएसपी मुनिराज जी. ने इस हत्याकांड का खुलासा करते हुए हत्या में शामिल मृतक की पत्नी सुनीता उर्फ सुषमा व उस के 38 वर्षीय प्रेमी मान सिंह की गिरफ्तारी की जानकारी दी. संजय की हत्या के पीछे जो कहानी निकल कर आई वह 4 प्रेमियों के प्यार के बीच कांटा बनने की इस प्रकार निकली—

मृतक संजय आगरा की एक जूता फैक्ट्री में कारीगर था. वह मूलरूप से निबोहरा के मूसे का पुरा का रहने वाला है. देवरी रोड पर मकान ले कर वह परिवार सहित रहता था. उस के परिवार में पत्नी सुनीता सुषमा के अलावा 3 बच्चे भी हैं. कुछ समय पहले संजय ने अपना मकान बेच दिया. मकान बेचने के बाद वह सेवला में किराए का मकान ले कर रहने लगा. संजय शराब पीने का शौकीन था. वह शराब पी कर अकसर सुनीता से झगड़ा करता और उस के साथ मारपीट करता था. सुनीता की दोस्ती थाना सदर के ही टुंडपुरा के रहने वाले मान सिंह से थी. दोनों की मुलाकात कुछ महीने पहले हुई थी. दोस्ती गहरी हो गई. एकदूसरे को पसंद करने लगे.

धीरेधीरे दोनों का प्यार परवान चढ़ने लगा. सुनीता मान सिंह के साथ कई बार पति की गैरमौजूदगी में घूमने जा चुकी थी. संजय को यह जानकारी हो गई. वह पत्नी को भलाबुरा कहता था. उस के पास कोई सबूत नहीं था. इसलिए वह मौके की तलाश में रहता था. जब संजय पत्नी के साथ मारपीट करता तो मानसिंह बीच में पड़ कर मामला शांत करा देता. कई बार उस ने सुनीता को बचाया भी था. संजय शराब पी कर सुनीता से अभद्रता करता था. मान सिंह ने इसी बात का फायदा उठाया. सुनीता के प्रति सहानुभूति दिखाते हुए उसे अपनी बातों के जाल में फंसा लिया.

पति संजय को पत्नी की मान सिंह से दोस्ती पसंद नहीं थी. वह इस का विरोध करता था. जबकि मान सिंह व सुनीता के बीच प्रेम संबंध दिनप्रतिदिन पुख्ता होते जा रहे थे. दोनों एकदूसरे के बिना रह नहीं पाते थे. पति की आदतों से अब सुनीता को वह अपना दुश्मन दिखाई देता था. प्रेमी संग पकड़ी गई सुनीता सुनीता और मान सिंह को जब भी मौका मिलता दोनों तनमन की प्यास बुझा लेते थे. संजय को दोनों पर शक हो गया. एक दिन संजय ने दोनों को घर में आपत्तिजनक स्थिति में देख लिया. इस से मान सिंह तिलमिला कर रह गया. लेकिन वक्त की नजाकत को देखते हुए मान सिंह बिना कुछ बोले उस दिन वहां से चला गया. मान सिंह के जाने के बाद संजय ने सुनीता की पिटाई कर दी.

वह दोनों के संबंधों का विरोध करने लगा. सुनीता खून का घूंट पी कर रह गई थी. रंगेहाथों पकड़े जाने से वह विरोध की स्थिति में भी नहीं थी. संजय ने सुनीता को चेतावनी दी कि यदि मान सिंह से उस ने बात करते भी देख लिया तो दोनों को जान से मार देगा. सुनीता ने दूसरे दिन प्रेमी मान सिंह से पति द्वारा की गई पिटाई और धमकी के बारे में मोबाइल पर बताया. यह सुन कर मान सिंह का खून खौलने लगा. तब एक दिन सुनीता और मान सिंह ने अपने प्यार की राह के रोड़े को हटाने की योजना बनाई. सुनीता ने प्रेमी का प्यार पाने के लिए पति की हत्या की साजिश रची.

घटना वाले दिन सोमवार की शाम प्रेमी मान सिंह सुनीता से मिलने उस के घर गया. उस समय संजय भी घर पर मौजूद था. मान सिंह को देखते ही उस ने कहा, ‘‘जब मना कर दिया था फिर भी तू आ गया?’’

इस पर मानसिंह ने हंसते हुए कहा, ‘‘मैं तुम्हारे लिए तुम्हारी पसंद की चीज लाया हूं.’’ यह कहते हुए उस ने साथ लाई शराब की बोतल उसे दिखाई. मान सिंह जानता था कि संजय की कमजोरी शराब है. इसलिए वह बेधड़क घर आ गया था. मान सिंह और सुनीता ने  संजय को जम कर शराब पिलाई. जब वह नशे में बेसुध हो गया तब दोनों ने उस के गले में दुपट्टा डाल कर कस दिया. दोनों ने गला घोट कर उस की हत्या कर दी. इस से पहले सुनीता ने बच्चों को खाना खिलाया और उन्हें कमरे में टीवी चला कर बैठा दिया. कमरे की बाहर से कुंडी लगा दी थी. हत्या के बाद दोनों ने शव को बोरे में बंद कर दिया. सुनीता ने प्रेमी मान सिंह से पति की लाश इलाके से दूर ले जा कर किसी तालाब में फेंकने को कहा. ताकि लोगों को लगे कि पानी में डूबने से उस की मौत हुई है.

तब मान सिंह शव को बोरे में भर कर कंधे पर रख उसे फेंकने के लिए रात में ही चल पड़ा. जब वह शव को ठिकाने लगाने जा रहा था तभी रास्ते में पैर फिसलने से बोरा गिर गया और हत्या का भेद खुल गया. प्रेमी मान सिंह द्वारा लाश फेंकने से पहले ही लोगों ने उसे रंगेहाथों दबोच लिया. आशिकी में पत्नी ने पति की हत्या करा दी थी. सुनीता को अपने पति की हत्या का कोई अफसोस नहीं था. अपने प्यार की खातिर प्रेमी के साथ मिल कर पति की हत्या करने वाली सुनीता के चेहरे पर गिरफ्तारी के बाद भी पछतावे के भाव नहीं दिखाई दिए.

इतना ही नहीं, पति की हत्या के मामले में पकड़े जाने पर बच्चों का क्या होगा? उस ने इस बारे में भी नहीं सोचा. मगर जब उसे पता चला कि अब उस की और प्रेमी दोनों की बाकी जिंदगी जेल में कटेगी तो वह रोने लगी. सुनीता की शादी को 10 साल से अधिक हो गए थे. 3 बच्चों में सब से बड़ा बेटा 9 साल का है. लोगों की सतर्कता के चलते पुलिस ने एक हत्या का परदाफाश घटना के कुछ घंटे बाद ही कर दिया था. पुलिस ने आरोपियों के कब्जे से फंदा लगाने वाला दुपट्टा, मृतक का मोबाइल फोन और आधार कार्ड बरामद कर दोनों को न्यायालय के समक्ष पेश किया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया गया. Agra Crime News

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

UP Crime News : बेवफा बीवी बरदास्त नहीं

UP Crime News : दीक्षा की खूबसूरती पर फिदा हो कर ही हरेंद्र ने उस से विवाह किया था. लेकिन शादी के कुछ दिनों बाद ही हरेंद्र को शक हो गया कि पत्नी के अन्य कई लोगों के साथ संबंध हैं. इस की पुष्टि उसे पत्नी के फोन के काल रिकौर्डर की बातों से हो गई. फिर क्या था, उस ने बेवफा पत्नी को बीच सड़क पर ऐसी सजा दी कि…

हरेंद्र और दीक्षा की शादी के 2 साल हो चुके थे, मगर उन के बीच अटूट रिश्ता नहीं बन पाया था. वे पतिपत्नी जरूर थे, लेकिन यह कहना गलत होगा कि वे एकदूसरे को बेइंतहा मोहब्बत करते थे. कारण हरेंद्र की कई आदतें दीक्षा को पसंद नहीं थीं और हरेंद्र को भी दीक्षा का बारबार मायके जाने की जिद करना अच्छा नहीं लगता था. एक तरफ दीक्षा की 17-18 साल की कच्ची उम्र थी तो वहीं दूसरी तरफ कामधंधे से बेफिक्र हरेंद्र को अपनी पुश्तैनी धनसंपत्ति पर बहुत ही गुमान था. रक्षाबंधन के एक सप्ताह पहले से ही दीक्षा मायके जाने की जिद करने लगी थी, जबकि हरेंद्र उस की बात को टालने लगा था. वह दीक्षा के मायके जाने का कारण जान गया था. उस के मोबाइल फोन में रिकौर्ड बातों से उस का संदेह और भी गहरा हो गया था.

‘‘मुझे मायके जाना है तो जाना है… मैं और कोई बहाना नहीं सुनूंगी.’’ दीक्षा अपनी बात पर अड़ती हुई बोली.

‘‘पिछले महीने ही तो तुम मायके गई थी…’’ हरेंद्र ने कहा.

‘‘गई थी, लेकिन 4 दिन बाद रक्षाबंधन है…राखी पर घर जाना है…सभी जाते हैं,’’ दीक्षा विफरती हुई बोली.

‘‘सभी जाते हैं तो क्या हुआ? आनेजाने में खर्च भी तो होगा.’’ हरेंद्र ने कहा.

‘‘तो मैं क्या करूं? कोई काम क्यों नहीं करते हो? कमातेधमाते क्यों नहीं हो?’’ दीक्षा बोली.

‘‘नहीं कमाता हूं तो क्या तुम्हें भूखा रखता हूं? खानेपहनने के लिए नहीं देता हूं? 2 महीने पहले ही तुम्हें 10 हजार रुपए का स्मार्टफोन खरीद कर दिया है.’’

‘‘वो तो तुम्हारा फर्ज बनता है पत्नी को खुश रखना और उस की अच्छी देखभाल करना,’’ दीक्षा बोली.

‘‘तुम हो तो पांचवीं फेल, पर बातें पढ़़ेलिखों जैसी करती हो. मुझे ही अधिकार और फर्ज का पाठ पढ़ा रही हो. तुम्हारा क्या कर्तव्य है, कभी समझा है?’’ हरेंद्र ने जवाबी हमला बोलते हुए ताना मारा.

‘‘तुम ने भी हमारी बात कभी नहीं मानी, जब देखो तब शराब के नशे में धुत रहते हो. बापदादा की कमाई पर गुजारा कर रहे हो, आवारा दोस्तों के साथ घूमतेफिरते रहते हो और कितने ऐब गिनवाऊं, बताओ…’’ दीक्षा लगातार बोलती जा रही थी. उस की एकएक बात हरेंद्र को चुभ रही थी. गुस्से में उस ने हाथ उठाया और एक थप्पड़ उस के गाल पर जड़ दिया. थप्पड़ खा कर दीक्षा तिलमिला गई. तन कर बोलने लगी, ‘‘ऐंऽऽ तुम ने मुझे थप्पड़ मारा. अब तो मैं यहां एक पल भी रुकने वाली नहीं हूं. अभी के अभी मायके जाऊंगी. देखती हूं कि तुम कैसे रोकते हो मुझे.’’ यह कहती हुई दीक्षा अपने कमरे से बाहर जा कर सूखने के लिए फैले कपड़े समेटने लगी.

हरेंद्र भी गुस्से से कमरे से बाहर निकल आया. बाइक स्टार्ट की और कहीं चला गया. कहां गया, इस की जानकारी केवल उस के यारों को ही थी. 2 घंटे बाद घर लौटा तो देखा, दीक्षा मायके जाने के लिए अपने सामान के साथ तैयार बैठी थी. हरेंद्र के हाथ में एक थैला था. उस का गुस्सा शांत हो चुका था. उस ने थैला उसे देते हुए सौरी बोला. फिर कहा, ‘‘इस में तुम्हारी छोटी बहन शीतल और तुम्हारे लिए सलवारसूट के कपड़े हैं, मायके में सिलवा लेना.’’

इसी के साथ उस के चेहरे को दोनों हाथों से पकड़ कर अगले दिन सुबहसुबह मायके छोड़ आने का वादा किया. सलवारसूट का कपड़ा देख कर दीक्षा पति का थप्पड़ भूल गई. खुश हो कर बोली, ‘‘बहुत सुंदर है, तुम्हारे लिए चाय बना कर लाती हूं.’’

दीक्षा चली गई मायके अगले रोज वह अपने मायके चली गई. दीक्षा का मायका मुरादाबाद जिले की तहसील बिलारी के गांव मुडि़या राजा का था. वह अरविंद कुमार की बेटी थी. अरविंद कुमार के 2 बेटियों दीक्षा व शीतल के अलावा 2 बेटे अभिषेक व आयुष थे. दीक्षा बड़ी बेटी थी. उन्होंने दीक्षा का विवाह 28 नवंबर, 2019 को पास के ही गांव ढकिया नरू निवासी भागीरथ के बेटे हरेंद्र के साथ किया था. बात 18 अगस्त, 2021 की है. रात के समय करीब साढ़े 9 बजे थे. अरविंद  कुमार के पिता अतर सिंह अपनी पोतियों शीतल और दीक्षा के साथ घर पर थे.

उन दिनों उन का बड़ा बेटा अपने परिवार के साथ हिमाचल के सोलन में रह रहा था. उस की रोजीरोटी वहीं से चलती थी. और छोटा बेटा राजकुमार अपनी रिश्तेदारी में गया हुआ था और रक्षाबंधन की वजह से उस की पत्नी अपने मायके गई हुई थी. इस तरह से उस समय घर में केवल दीक्षा और उस की छोटी बहन शीतल ही थी. रात को दरवाजा खटखटाने की आवाज सुन कर अतर सिंह ने अपनी पोती को आवाज दी, ‘‘शीतल बेटा, देखो तो इस वक्त कौन आया है?’’

शीतल दादा की आवाज सुन कर नीचे गई. दरवाजा खोला. देखा उस के जीजा हरेंद्र थे. शीतल वहीं से बोली, ‘‘दादाजी, जीजाजी आए हैं.’’

हरेंद्र सीढि़यां चढ़ता हुआ सीधे अतर सिंह के कमरे में जा पहुंचा. बोला, ‘‘रामराम बाबा, कैसे हैं?’’

‘‘रामराम बेटा, आओ बैठो. अच्छा हुआ तुम आ गए मैं घर में अकेला बैठा ऊब रहा था.’’ कहते हुए उन्होंने फिर शीतल को आवाज लगाई, ‘‘बेटा शीतल, दीक्षा को बोलो हरेंद्र के लिए पानी और कुछ खाने को ले कर आए.’’

‘‘अरे नहीं बाबाजी, मैं तो बस समझिए आप का हालचाल लेने आया हूं. कल रक्षाबंधन है. सुबहसुबह चला जाऊंगा.’’

अतर सिंह ने हरेंद्र को सम्मान के साथ बैठाया. वैसे भी दीक्षा रक्षाबंधन के त्यौहार की वजह से आई हुई थी. किसी तरह की कोई शिकायत नहीं थी.

‘‘बाइक से आए हो?’’ अतर सिंह ने पूछा.

‘‘नहीं कार से आया हूं.’’ थोड़ी देर में ही हरेंद्र ने अंग्रेजी शराब का एक अद्धा अपनी जेब से निकालते हुए बोला, ‘‘बाबाजी, गिलास मंगाओ. आज आप के साथ हो जाए एकएक पैग.’’

अतर सिंह हरेंद्र के इस व्यवहार को देख कर हतप्रभ रह गए.

फिर भी शांति से कहा, ‘‘बेटा तुम्हारी शादी को करीब 2 साल होने जा रहे हैं, आज तक तो तुम ने मेरे सामने कभी शराब नहीं पी. तो फिर आज तुम ऐसा कैसे कह रहे हो?’’

‘‘बाबाजी, यूं ही मूड हो आया. सोचा कि अपने दोस्तों के साथ तो पीता ही रहता हूं, क्यों न आप के साथ पी कर कुछ गिलेशिकवे दूर कर लिए जाएं.’’ हरेंद्र बोला.

‘‘लेकिन बेटा मेरी तबीयत ठीक नहीं है. ये देखो मेरी दवाई.’’ अतर सिंह ने जेब से दवाई निकाल कर दिखाते हुए कहा, ‘‘मैं शराब नहीं पीऊंगा.’’

उसी वक्त दीक्षा भी कमरे में पानी का गिलास और खाने की थाली ले कर आ गई. सामने शराब देख कर गुस्से भरी नजरों से हरेंद्र को घूरा. बोली कुछ नहीं. खाने की थाली सामने रखी और गिलास को रख कर तेजी से जाने लगी. गिलास का पानी छलक कर वहीं छोटे से स्टूल पर फैल गया.

‘‘दिखता नहीं है, यहीं मोबाइल रखा हुआ है, गीला हो गया तो..?’’ हरेंद्र की बात पूरी भी नहीं हुई कि उस के मोबाइल की रिंगटोन बजने लगी. उस ने काल रिसीव की, ‘‘हैलो…’’

उधर से जो आवाज आई, उसे सुन कर दीक्षा को आवाज लगाई, ‘‘…ये लो सुनो, तुम्हारा ही फोन है, मेरे जीजाजी हैं, तुम से ही बात करना चाहते हैं.’’

ननदोई की उस के लिए आई काल जान कर दीक्षा ने तुरंत हरेंद्र के हाथों से फोन ले लिया और नीचे सीढि़यों से उतरने लगी. हरेंद्र भी उस के पीछेपीछे आया और चुपके से दीक्षा और अपने बहनोई के बीच फोन पर हो रही बातों का अनुमान लगाने लगा. हरेंद्र ने दीक्षा को यह कहते हुए सुना, ‘‘मैं ने पहले मना किया है हरेंद्र के फोन पर मेरे लिए फोन नहीं   करें, क्योंकि उसे हम पर अब शक है.’’

वास्तव में हरेंद्र अपनी पत्नी को हमेशा ही शक की निगाह से देखता था. यहां तक कि उस ने दीक्षा को जो मोबाइल दिया था, उस में आटोमैटिक वायस रिकौर्डिंग का ऐप डाउनलोड कर दिया था. दीक्षा की गैरमौजूदगी में वह उस के सभी काल की रिकौर्डिंग सुनता था. उसी से उसे इस बात का पता चल गया था कि उस के कई चाहने वाले हैं. उन्हीं में एक उस का बहनोई भी था. उस की लच्छेदार बातों से हरेंद्र को अनुमान हो गया था कि दीक्षा उस के साथ बेवफाई कर रही है. यही नहीं हरेंद्र को यह भी शक था कि उस के मायके में भी कई प्रेमी हैं. ऐसा होना भी स्वाभाविक था. क्योंकि दीक्षा बला की खूबसूरत थी, उसे देख कर कोई भी उस पर मोहित हुए बिना नहीं रह सकता था. हरेंद्र भी उस की खूबसूरती को देख कर ही शादी करने के लिए राजी हुआ था.

दूसरी बात दीक्षा के बातें करने का लहजा और मजाक का जवाब मजाक में देने का अंदाज किसी को भी पसंद आ जाता था. वीडियो कालिंग की दीवानी थी. उस के कई वीडियो कालिंग की क्लिपिंग्स हरेंद्र भी देख चुका था. उसे देखते हुए हरेंद्र के सीने पर सांप लोटने लगते थे कि दीक्षा उस के साथ प्रेम से क्यों नहीं पेश आती है? वह उस से हमेशा रूखी बातें क्यों करती है. जबकि दूसरों के साथ वह दिल की बातें उड़ेल कर रख देती  थी. वीडियो कालिंग, फ्लाइंग किस तो ऐसे देती थी जैसै वह प्रेमी नहीं पति हो. यह सब बातें हरेंद्र को भीतर से खाए जा रही थीं. उस के वैवाहिक संबंध में मधुरता कम कड़वाहट अधिक भर गई थी.

ऊपर से दीक्षा द्वारा बारबार शराबीकबाबी कहना, नाकारा, नालायक मर्द कहते हुए ताने मारना हरेंद्र को काफी दुखी कर देता था. बातबात पर उस की दीक्षा से बहस हो जाती थी. ऐसी बहस रक्षाबंधन के कुछ रोज पहले भी हो गई थी. दीक्षा को मारी गोली कुछ समय बाद दीक्षा हरेंद्र के कमरे में आ कर उस का मोबाइल लौटाने आई. खाना स्टूल पर पड़ा देख कर बोली, ‘‘आप ने कुछ खाया नहीं?’’

‘‘अरे बेटी, इसे अपने कमरे में ले जा, वहीं तुम दोनों खाना खा लेना. और हां, शीतल को एक गिलास गर्म दूध ले कर भेज देना. सोने से पहले वाली दवाई खानी है.’’ अतर सिंह बोले.

उस के बाद दीक्षा और हरेंद्र नीचे के अपने कमरे में आ गए. अगले दिन अतर सिंह को जो सूचना मिली उस से पूरा परिवार सदमे में आ गया. बात ही कुछ ऐसी हुई कि अतर सिंह के परिवार से ले कर भागीरथ के परिवार में खलबली मच गई. हरेंद्र भागीरथ का सब से छोटा बेटा था. उन का पुश्तैनी मकान बिलारी से सिरसी जाने वाले मार्ग के किनारे ग्राम ढकिया नरू में है. भागीरथ का परिवार वहीं सालों से रहते आए हैं. सिरसी मार्ग पर सड़क के किनारे उन की अच्छी खेतीबाड़ी भी है. अतर सिंह की नींद सुबह देर से तब खुली, जब नीचे घर में कोई हलचल सुनाई दी. शीतल से कुछ लोग तेज आवाज में बातें कर रहे थे. आवाज सुन कर अतर सिंह भी नीचे गए. घर पर आए एक सिपाही को देख कर वह अचंभित हो गए.

जल्द ही उन्हें मालूम हो गया कि दीक्षा को गोली लगी है. वह मुरादाबाद अस्पताल में है. अतर सिंह अभी पूरा मामला समझ पाते इस से पहले ही सिपाही ने बताया कि दीक्षा की मौत हो चुकी है. वह बेहद घायलावस्था में थाना कुंदरकी क्षेत्र के बाईपास के किनारे पैट्रोलिंग पुलिस को मिली थी. वह खून से लथपथ तड़प रही थी. पुलिस ने इस की सूचना थानाप्रभारी संदीप कुमार को देने के बाद उसे निकट के अस्पताल पहुंचा दिया था. डाक्टर ने उस के सिर में गोली लगने की जानकारी दी और प्राथमिक उपचार के बाद जिला मुख्यालय रेफर कर दिया, परंतु उस ने रास्ते में ही दम तोड़ दिया.

थाना कुंदरकी पुलिस मृतका की शिनाख्त में जुट गई. अभी वह इस केस की कागजी काररवाई कर ही रहे थे. तभी उन्हें कोतवाली बिलारी से सूचना मिली कि कुंदरकी बाईपास के किनारे घायलावस्था में जो युवती मिली थी, उस के हमलावर ने कोतवाली में सरेंडर कर दिया है. वह हमलावर कोई और नहीं बल्कि दीक्षा का पति हरेंद्र ही था. हरेंद्र ने ही अपनी पत्नी दीक्षा की हत्या की सूचना कोतवाली बिलारी को दे दी थी. बिलारी कोतवाली के प्रभारी आर.पी. सिंह  ने हरेंद्र से मामले की पूछताछ की. हरेंद्र ने अपना अपराध स्वीकारते हुए बताया कि उस का वैवाहिक जीवन तनावपूर्ण था. विवाह के 2 महीने बाद ही उसे मालूम हो गया था कि उस की पत्नी के और भी प्रेमी हैं. इस कारण वह हमेशा मायके जाती रहती थी.

हरेंद्र ने अपनी मृतक बीवी पर यह भी आरोप लगाया कि वह किसी की चिकनीचुपड़ी बातों में तुरंत आ जाती थी और पति को छोड़ कर उस के ही प्रेम इजहार को महत्त्व देती थी. हरेंद्र का कहना था कि दीक्षा ही प्रेमी को फंसा कर रखती थी. इस कारण वह हमेशा पत्नी से नाराज रहता था. इस की वजह से घर में कलह काफी बढ़ गई थी. घटना के दिन भी रात को उस की ननदोई से फोन पर हुई बात को ले कर काफी बहस हो गई थी. उस रात बात इतनी बिगड़ गई कि जबरन रात को ही घर से बाहर उसे ले कर निकल पड़ा. उसे अपनी गाड़ी में बिठाया और बाईपास पर नीचे उतार कर उस के सिर में गोली मार दी.

उस के बाद कुछ दूर जा कर सोच में पड़ गया कि उसे अब क्या करना चाहिए. हालांकि गोली लगने से दीक्षा तड़पती हुई गिर पड़ी थी. पुलिस के आने तक उस की सांसें चल रही थीं. हरेंद्र के बयानों के आधार पर उस से पूछताछ थाना कुंदरकी में भी हुई. वहां उस ने पुलिस को घटनास्थल पर ले जा कर हत्या में इस्तेमाल तमंचा बरामद करा दिया, जो उस ने जंगल में फेंक दिया था. उस की बताई हुई जगह पर तलाशी के बाद एक बाइक भी कब्जे में ली गई. पुलिस ने दीक्षा के पिता अरविंद कुमार की तहरीर पर रिपोर्ट दर्ज कर ली. हरेंद्र से पूछताछ के बाद उसे न्यायालय में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

पुलिस का कहना है कि घटनास्थल पर मोटरसाइकिल बरामद हुई है. यह सवाल बना रहा कि जब हरेंद्र अपनी ससुराल कार से आया था तब मोटरसाइकिल कहां से आ गई? क्या हत्या में हरेंद्र के साथ कोई और भी शामिल था? इस बारे में पुलिस कोई जवाब नहीं दे सकी थी. बहरहाल, थानाप्रभारी संदीप कुमार चार्जशीट तैयार करने से पहले इस बात की जांच कर रहे हैं कि मृतका के पति हरेंद्र ने पत्नी पर जो आरोप लगाए थे, उन में कितनी सच्चाई है? UP Crime News

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Extramarital Affair : पति की सेज पर यार का धमाल

Extramarital Affair : औरत कब और कहां बहक जाए, कहा नहीं जा सकता. सब कुछ ठीकठाक होते हुए भी मालती ने पति फेरन के दोस्त रामऔतार  से अवैध संबंध बना लिए थे. इसी दौरान ऐसा क्या हुआ कि मालती ने पति की सेज पर धमाल मचाने वाले यार रामऔतार के साथ मिल कर पति को कंकाल में बदल दिया…

माना कि शराब की लत बुरी होती है, लेकिन उस से भी बुरा होता है वासना का नशा. अगर पति और पत्नी दोनों इन आदतों के शिकार हो जाएं तब तो उन की जिंदगी की गाड़ी को पटरी से उतरने से कोई नहीं रोक सकता. ऐसा ही हुआ मालती और उस के पति फेरन के साथ. पति को नशे की लत थी और पत्नी अनैतिकता की मस्ती में ऐसी डूबी कि उस ने पतिपत्नी के रिश्ते को वासना की आग में झोंक दिया था. एक दिन बाजार से घर के कुछ जरूरी सामान की खरीदारी कर मालती तेज कदमों से अपने घर लौट रही थी. पीछे से साइकिल चला कर आते रामऔतार ने उसे रोका, ‘‘पैदल क्यों चल रही हो, पीछे कैरियर पर बैठ जाओ.’’ रामऔतार उस के गांव का ही रहने वाला युवक था.

‘‘अरे, नहींनहीं, तुम जाओ. गांव वाले देखेंगे तो गलत समझेंगे.’’ मालती ने उस से कहा.

‘‘गलत समझेंगे तो क्या हुआ. हम कौन भला सच्चे हैं.’’ रामऔतार बोला.

‘‘सब की नजरों में तो अच्छे हैं. पति घर आ चुका होगा. 2 हफ्ते बाद काम पर गया है.’’ मालती बोली.

‘‘अच्छा कोई बात नहीं. अपना थैला मुझे दे दो. और हां, फेरन को बोलना कि मैं शाम के 7 बजे तक आऊंगा. मैं ने उस के लिए एक बोतल खरीदी है.’’ कहते हुए रामऔतार ने मालती के हाथ से सब्जी और सामान का थैला ले लिया. उसे कैरियर पर एक हाथ से बांधने लगा, क्योंकि एक हाथ से वह विकलांग था.

‘‘तुम एक हाथ से कैसे सब काम कर लेते हो, मुझे देख कर हैरत होती है,’’ देख कर मालती बोली.

‘‘इस में हैरानी की क्या बात है, यह तो तुम्हारा प्यार है, जो तुम्हें देख कर हिम्मत आ जाती है.’’ रामऔतार उस के गाल को छूते हुए बोला.

मालती शरमा गई. बोली, ‘‘बसबस, मैं चलती हूं तुम कितना खयाल रखते हो मेरा.’’

‘‘मैं तुम्हारा सामान दरवाजे की बगल में रख कर टोकरी से ढंक कर रख दूंगा,’’ कह कर रामऔतार वहां से चला गया.

मालती खाली हाथ सड़क किनारे चलती हुई पैडल मारते रामऔतार को देखती रही. निश्चित तौर पर वह रामऔतार के बारे में ही सोचने लगी थी. मालती उसे पिछले 7 सालों से जानती थी. वह उस के पति फेरन का जिगरी दोस्त था. उस के घर से कुछ मकान छोड़ कर वह दूसरे टोले में रहता था. एक हाथ से विकलांग होने के बावजूद वह खेतीकिसानी से ले कर घर का सारा कामकाज खुद करता था. उस की शादी नहीं हुई थी. परिवार में वह अकेला था. उस की दूसरे रिश्तेदारों से जरा भी नहीं पटती थी. यही कारण था कि उस का दोस्त फेरन के घर निर्बाध रूप से आनाजाना लगा रहता था. मालती भी उस के घर बेरोकटोक आतीजाती थी. उस के यहां वह झाड़ू और साफसफाई जैसे घरेलू काम को अपने घर का कामकाज समझ निपटा दिया करती थी.

फेरन को इस का जरा भी बुरा नहीं लगता था. रामऔतार की एक ही लत थी शराब पीने की. कहते हैं कि यह लत फेरन ने ही उसे लगाई थी. हालांकि सालों से शराब का इंतजाम करने का काम रामऔतार ही करता आ रहा था. उस रोज भी वह अपने दोस्त के लिए एक बोतल शराब खरीद लाया था. मालती अंधेरा होने से पहले अपने घर पहुंच गई थी, उस का पति भी काम से लौट आया था.

‘‘कितने दिनों का काम मिला है?’’ मालती ने सामान का थैला उठाते हुए पति ने पूछा.

‘‘2 हफ्ते का है, लेकिन ठेकेदार पैसा कम दे रहा है. कहता है लौकडाउन में काम कम हो गया है.’’ फेरन ने बताया.

‘‘कोई बात नहीं, घर में कुछ तो आएगा, बैठे रहने से तो अच्छा है.’’ मालती लंबी सांस लेते हुई बोली.

‘‘आज कुछ अच्छा मसालेदार खाना पकाओ.’’ फेरन ने कहा.

‘‘हांहां, क्यों नहीं! तुम्हारा दोस्त भी आने वाला होगा, काम मिलने की खुशी में उस के साथ जश्न मनाना.’’ मालती ने चुटकी ली.

इसी बीच रामऔतार ने दरवाजे पर आवाज दी.

‘‘लो, आ गया तुम्हार यार!’’ मालती कह कर हंसने लगी.

रामऔतार के आने के बाद कुछ देर में ही घर के आंगन में फेरन और रामऔतार की दारू की महफिल सज गई थी. खाने को 3 तरह के नमकीन थे. बड़ी बोतल के साथ रखे 2 गिलासों में शराब खाली होने का नाम ही नहीं ले रहा था. जैसे ही फेरन का गिलास खाली होता, रामऔतार उस में और शराब डाल देता था. मक्के की मोटी रोटी के एक टुकड़े के साथ चटखारेदार सब्जी का आनंद लेते हुए सहज बोल पड़ता कि मीट होती तो और भी मजा आ जाता. मालती भी पति रामऔतार के गिलास से ही फेरन की नजर बचा कर एकदो घूंट पी लेती थी. धीरेधीरे दोनों दोस्त नशे में झूमने लगे थे, लेकिन फेरन पर नशा अधिक चढ़ गया था. वह एक ओर मुंह नीचे कर बड़बड़ाने लगा,

‘‘रामऔतार तू मेरा बहुत अच्छा यार है, इस कड़की में भी तूने मुझे अच्छी दारू पिलाई. मजा आ गया.’’

‘‘तू पैसे और काम की चिंता मत कर, जब तक तेरा दोस्त है तब तक दारू पिलाएगा. और अच्छीअच्छी विदेशी दारू भी पिलाएगा.’’ रामऔतार यह कहते हुए बगल में खड़ी मालती का हाथ खींच कर बिठा लिया. मालती के बैठने के धम्म की आवाज सुन कर फेरन बोला, ‘‘कौन मालती है? जरा मुझे पकड़ कर उठाना, पैर भर गया है. पेशाब करने जाना है.’’

मालती ने बैठेबैठे फेरन को हाथ का सहारा दिया. वह उठ कर कुछ पल खड़ा रह कर बोला, ‘‘अब ठीक है, मैं अभी आया.’’

यह कहता हुआ पेशाब करने के लिए घर से बाहर नाले के पास चला गया. उस के जाते ही रामऔतार ने ममता के कमर में हाथ डाल दिया. इस अंदेशे से बेखबर मालती बोल उठी, ‘‘अरे, क्या करते हो?’’

‘‘कुछ नहीं, थोड़ा प्यार करने का मन हो आया है. ये लो एक घूंट और पी लो.’’ रामऔतार ने कमर से हाथ निकाल कर अपने शराब का गिलास उस की होंठ से लगा दिया. मालती भी बिना किसी झिझक के घूंट पीने लगी. रामऔतार ने तुरंत उस का गाल को चूम लिया. मालती थोड़ी असहज हो गई.

‘‘इतना बेचैन क्यों हो रहे हो. 2 दिन पहले ही तो तुम ने…’’ मालती की बात पूरी करने से पहले ही फेरन ने आवाज दी. उस ने कहा कि वह सोने जा रहा है, अब और दारू नहीं पिएगा.

उस के बाद फेरन अपने कमरे की ओर चला गया. मालती उठी और बाहर का दरवाजा बंद कर लिया. रामऔतार ने अपने गिलास में कुछ और शराब डाली. ममता भी वहीं आ कर खाने के लिए रोटियां तोड़ने लगी. रामऔतार ने उस का हाथ पकड़ कर अपनी और खींच लिया. बगैर विरोध किए मालती उस की ओर खिसक आई. दूसरे हाथ से उस ने पास जल रही लालटेन की लौ धीमी कर दी. अगले पल मालती का सिर रामऔतार की गोद में था और रामऔतार के हाथ उस के नाजुक शरीर पर रेंगने लगे थे. जल्द ही दोनों बेकाबू हो गए. वासना की आग में जल उठे.

कुछ समय में वे एकदूसरे की कामाग्नि शांत कर निढाल हो चुके थे. मालती को होश तब आया जब फेरन ने उसे लात मारी. हड़बड़ा कर उठी. कपड़े समेटने लगी. कुछ कपड़ों पर रामऔतार बेसुध लेटा हुआ था, ब्लाउज और ब्रा उस ने खींच कर निकाला. फेरन यह सब देख कर गुस्से में तमतमा रहा था, उस के उठते ही फेरन ने पत्नी मालती के बाल पकड़ लिए. गुस्से में बदजात, बेहया, बदलचन बोलता हुआ भद्दीभद्दी गालियां देने लगा. आधी रात का समय था. फेरन को गुस्से में देख कर रामऔतार मामला समझ गया. कुछ कहेसुने बगैर वह चुपके से निकल गया. उस के जाते ही फेरन ने लातघूंसों से मालती की जम कर पिटाई कर दी. उसे तब तक पीटता रहा जब तक वह थक नहीं गया.

अगले दिन सुबह मालती चुपचाप आंगन में पड़ी रात की गंदगी को साफ करने लगी. थोड़ी देर में रामऔतार भी आ गया. वह आते ही चुपचाप दातून करते फेरन के पैरों पर गिर पड़ा. फेरन ने उसे झटक दिया. गुस्से में बोला, ‘‘तूने मेरी पीठ में खंजर घोंपा. बहुत बुरा किया. अब देखना मैं तुम्हारे साथ क्या करता हूं.’’

रामऔतार ने मालती की ओर देखा. इस से पहले कि वह कुछ बोलता, मालती ने उसे चुप रहने और चले जाने का इशारा किया. थोड़ी देर में फेरन बिना कुछ खाएपिए घर से निकल पड़ा. भारत की आजादी के जश्न का दिन था. कोरोना काल की वजह से भितरवार थाने में सादगी के साथ 15 अगस्त 2020 का झंडा फहराने का कार्यक्रम संपन्न हो चुका था. दोपहर का समय था. थानाप्रभारी पंकज त्यागी रोजाना की तरह ड्यूटी पर मौजूद थे. मालती बदहवास घबराई हुई थाने आई. आते ही फफकफफक कर रोने लगी. पूछने पर उस ने बताया कि पिछले 9 दिन से उस के पति का कुछ पता नहीं चल पा रहा है, वह 6 अगस्त से ही लापता है. उस की कई जगहों पर  तलाश की जा चुकी है, लेकिन कोई पता नहीं चल पा रहा है.

उस ने बताया कि वह 6 अगस्त को काम पर निकले थे. उस के बाद वह घर नहीं लौटे. उस ने बताया कि उन के पास पुराना मोबाइल फोन था, लेकिन वह बंद आ रहा है. हो सकता है खराब हो गया हो. इसी के साथ मालती किसी अनहोनी की आशंका जताते हुए थाने में रोने लगी. थाना प्रभारी ने उसे ढांढस बंधाते हुए जल्द ही पता लगाने का आश्वासन दिया. उन्होंने उस के लापता होने की रिपोर्ट दर्ज कर ली. इसी के साथ उसे भी कहा कि पति के बारे में जो भी बात मालूम हो, वह थाने में तुरंत बताए. उस के बाद हर दूसरे दिन मालती थाने आती और अपने पति के बारे में पूछती थी.

एक दिन थाने में मालती पति को ले कर जोरजोर से हायहाय कर रोने लगी. देर तक थाने में हंगामा होता रहा. महिला पुलिसकर्मी ने उसे चुप कराया, खाना खिलाया. थानाप्रभारी ने उसे बताया कि उन्होंने उस के पति की तलाश के लिए कई लोगों से पूछताछ की है. काम देने वाले ठेकेदार से भी फेरन के बारे में पूछा गया है, उस के एक खास दोस्त रामऔतार से पूछताछ बाकी थी. पुलिस ने तय कर लिया था कि कोई संदिग्ध सुराग हाथ लगते ही रामऔतार को भी थाने बुला कर उस से पूछताछ की जाएगी. इस काम के लिए थानाप्रभारी ने कई भरोसेमंद मुखबिर भी लगा दिए.

कई महीने बीतने पर भी फेरन का कुछ पता नहीं चला. धीरेधीरे उस की गुमशुदगी की फाइल पर धूल जम गई. उस के ऊपर कई दूसरी फाइलें रख दी गईं. किंतु मालती चुप नहीं बैठी. उस ने 14 सितंबर, 2020 को पुलिस पर पति को नहीं ढूंढने का आरोप लगाते हुए हाईकोर्ट में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका लगा दी. इस पर कोर्ट ने ग्वालियर एसपी अमित सांघी को जांच के आदेश दिए. सांघी ने फेरन की गुमशुदगी के मामले को गंभीरता से लेते हुए एएसपी (देहात) जयराज कुबेर के नेतृत्व में टीम गठित कर दी. इस के अलावा उन्होंने भितरवार एसडीओपी अभिनव बारंगे को भी इस केस को खोलने में लगा दिया.

यह मामला पुलिस के लिए किसी अबूझ पहेली से कम नहीं था, क्योंकि पिछली तफ्तीश में पुलिस के हाथ कोई ऐसा तथ्य नहीं लग पाया था, जिस से पुलिस को कोई मदद मिल सके.  एसडीओपी  बारंगे ने इस सनसनीखेज मामले की 7 जुलाई, 2021 को नए सिरे से बारीकी से अध्ययन करते हुए जांच शुरू की. जांच की शुरुआत उस के अजीज दोस्त रामऔतार से हुई. थानाप्रभारी पंकज त्यागी को अपने साथ ले कर फेरन के गांव मोहनगढ़ गए. वहीं उस से फेरन के बारे में हर छोटीछोटी बातें पूछी गईं. उस से मिली कई जानकारियां काफी चौंकाने वाली थीं. उसी सिलसिले में मालूम हुआ कि फेरन की पत्नी मालती का चालचलन ठीक नहीं है.

फेरन के लापता होने वाले दिन से ही वह रामऔतार के घर पर रह रही है. जबकि इस बात का मालती ने पुलिस से जरा भी जिक्र तक नहीं किया था. यहां तक कि उस ने फेरन और रामऔतार के जिगरी दोस्त होने की बात तक नहीं बताई थी. पुलिस के लिए यह जानकारी महत्त्वपूर्ण थी. पंकज त्यागी ने 26 जुलाई, 2021 को रामऔतार को पूछताछ के लिए थाने बुलाया. उस ने न तो फेरन के बारे में कोई खास नई जानकरी दी और न ही मालती से संबंध के बारे में कुछ बताया. उस ने अपने दोस्त के लापता होने पर काफी दुख भी जताया. मालती भी रामऔतार के फेरन का परम मित्र होने का वास्ता देती रही. दोनों की बातों पर भरोसा कर एसडीओपी ने उस दिन उन्हें छोड़ दिया, लेकिन टीआई भितरवार को दोनों पर चौकस नजर रखने को कहा.

दूसरे दिन एसडीओपी ने बिना वक्त गंवाए दूसरे राउंड की पूछताछ के लिए मालती और रामऔतार को फिर से बुलवा लिया. उन्होंने पूछताछ के लिए सब से पहले मालती को अपने कक्ष में बुलाया. उस से फेरन और रामऔतार के बारे में कई कोणों से पूछताछ की. हर सवाल का जवाब उस ने अपने सुहाग का हवाला दे कर कसम के साथ दिया. बातोंबातों में उस ने बोल दिया कि मैं अपने सुहाग को क्यों मिटाऊंगी? यही बात पुलिस के गले नहीं उतरी कि आखिर मालती के दिमाग में अपने सुहाग को मिटाने की बात क्यों आई? कहीं उस ने सच में ऐसा तो नहीं किया है? जरूर कुछ बात है, जो वह छिपा रही है.

2 दिनों बाद पुलिस ने मालती को फिर थाने बुलाया. वहां पहले से रामऔतार को देख कर वह चौंक पड़ी. उस के आते ही टीआई ने कड़कदार आवाज में कहा, ‘‘मुझे तुम्हारे बारे में बहुत कुछ मालूम हो चुका है. अब तुम सब कुछ सचसच बता दो, वरना मुझे सच्चाई पता करने के लिए दूसरा रास्ता अख्तियार करना पडे़गा. और हां, तुम्हारे पति का सुराग मिल गया है.’’

‘‘क्या कहते हैं साहब, मेरा पति कहां है?’’ मालती खुद को संभालती हुई बोली. जब तक दूसरे पुलिसकर्मी ने रामऔतार को दूसरे कमरे में बुला लिया.

‘‘तुम्हारे बारे में रामऔतार ने बहुत सारी बातें बताई हैं.’’ यह कहते हुए जांच अधिकारी ने अंधेरे में तीर चलाया, जो निशाने पर जा लगा. मालती के चेहरे का रंग उड़ गया था.

‘‘क्या बोला साहब मेरे बारे में?’’ मालती डरती हुई बोली.

‘‘यह कि तुम पति से हमेशा झगड़ती रहती थी और वह उस की मारपीट से तुम्हें बचाया करता था.’’

‘‘किस मियांबीवी के बीच झगड़ा नहीं होता है, साहब?’’ मालती बोली.

‘‘तुम बातें मत बनाओ, सहीसही बताओ कि 6 अगस्त को तुम्हारा पति से झगड़ा हुआ था या नहीं?’’ जांच आधिकारी ने पूछा.

उसी वक्त एक पुलिसकर्मी आ कर बोला, ‘‘साब, रामऔतार ने अपना जुर्म कुबूल कर लिया है.’’

‘‘क्याऽऽ कैसा जुर्म?’’ मालती अचानक बोल पड़ी.

जांच अधिकारी बोले, ‘‘जुर्म कुबूला है रामऔतार ने तो तुम क्यों चौंक रही हो?’’ उस के बाद वह रामऔतार से पूछताछ करने चले गए. इधर मालती सिर झुकाए बैठी रही. एसडीओपी थोड़ी देर बाद रामऔतार को ले कर मालती के पास आए. उन्होंने मालती से कहा तुम्हारा सारा राज खुल गया है. उस का सबूत कुछ मिनटों में मिल जाएगा. इसलिए भलाई इसी में है कि तुम दोनों सब कुछ सचसच बता दो. कुछ देर में ही 2 पुलिसकर्मी एक ग्रामीण को ले कर आए. उसे देखते ही रामऔतार चौंक गया, लेकिन खुद को काबू में रखते चुप रहा. एसडीओपी रामऔतार से बोले, ‘‘इसे तो तुम पहचानते ही हो. शिवराज है. इस की एक गलती ने तुम्हारा भेद खोल दिया है.’’

मालती और रामऔतार चुप रहे. अब जांच अधिकारी ने कुछ बातें विस्तार से बताते हुए कहा, ‘‘इस के पास जो मोबाइल है, उस में तुम्हारे दोस्त और मालती के पति फेरन के मोबाइल का खास नंबर आ चुका है.  शिवराज का कहना है कि उस ने रामऔतार के साथ मिल कर फेरन की हत्या कर दी है. उस के बाद उस के मोबाइल के सिम को फेंक कर अपना नया सिम लगा लिया था, जिस से फेरन के मोबाइल का आईएमईआई नंबर एक्टिवेट हो गया और हमारी पहुंच उस तक हो गई.’’

इतना बताने के बाद जांच अधिकारी ने रामऔतार से कहा, ‘‘अब तुम सच बताओगे या मुझे कुछ और सख्ती दिखानी होगी.’’

‘‘तो फिर रामऔतार ने अभी तक जुर्म नहीं कुबूला था, आप लोगों ने मुझ से झूठ बोला.’’ मालती सहसा बोल पड़ी.

‘‘एक जुर्म करने वाला तुम्हारे सामने आ चुका है, दूसरा तुम्हारा प्रेमी रामऔतार है, जो अपनी सच्चाई बताएगा.’’

‘‘यदि पता होता तो मैं आप को अवश्य बता देता साहब. हम दोनों तो रोज मजदूरी करने साथ जाते थे. मेरी तो उस से खूब पटती थी.’’

रामऔतार का यह बोलना था कि थानाप्रभारी पंकज त्यागी का झन्नाटेदार थप्पड़ उस के गाल पर पड़ा. वह अपना गाल पकड़ कर बैठ गया. अभी बैठाबैठा कुछ सोच ही रहा था कि एसडीओपी अभिनव बारंगे बोले, ‘‘तुम्हारा इश्क किस से और किस हद तक है, यह सब मुझे जांच के दौरान पता चल चुका है. तुम ने फेरन को क्यों और किसलिए मारा, वह भी तुम्हारे सामने है.’’ उन्होंने मालती की ओर इशारा करते हुए कहा. यह सुन कर मालती ने शर्म से नजरें झुका लीं. उसे इस बात का जरा भी अंदेशा नहीं था कि टीवी पर क्राइम सीरियल देख कर बनाई कहानी का अंत इतनी आसानी से हो जाएगा और पुलिस उस से सच उगलवा लेगी.

तीर निशाने पर लगता देख एसडीओपी  ने बिना विलंब किए तपाक से कहा कि अब तुम्हारी भलाई इसी में है कि तुम दोनों साफसाफ बता दो कि फेरन की हत्या क्यों की? मुझे तुम्हारे मुंह से सच जानना है. मालती और रामऔतार लगातार पुलिस अधिकारियों द्वारा फेरन को ले कर पूछे जा रहे सवालों के जवाब देने में इस कदर उलझ गए कि उन्होंने उस की हत्या का अपना अपराध स्वीकार करने में ही अपनी भलाई समझा. फेरन की हत्या की जो कहानी उभर कर सामने आई, वह पराए मर्द की चाहत में निर्दयता की पराकाष्ठा की कहानी बयां करती है. कोई सोच भी नहीं सकता था कि पत्नी अपने ही पति का अपने प्रेमी के साथ मिल कर कत्ल कर देगी. वह भी तब जब वह अपनी पत्नी को हर सुखसुविधाएं उपलब्ध कराता हो.

रामऔतार ने अपना गुनाह कुबूल करते हुए बताया कि उस ने अपनी प्रेमिका मालती के कहने पर अपने दोस्त शिवराज के साथ मिल कर  फेरन की हत्या की थी. पूछताछ में मालती ने बताया कि उस के और रामऔतार के बीच संबंध थे. पति ने उसे एक बार रंगेहाथों पकड़ लिया था. उस के बाद से उस के फेरन के साथ संबंध बिगड़ गए थे. इसे देख कर ही फेरन को रास्ते से हटाने के लिए उस की हत्या की योजना बनाई. योजना के तहत रामऔतार ने अपने दोस्त शिवराज को भी शामिल कर लिया. इस के लिए उस ने शिवराज को 5 हजार रुपए और शराब भी उपलब्ध कराई.

6 अगस्त, 2020 को फेरन अपने मामा के गांव निमाई गया हुआ था. वहां से उस के लौट कर घर आते समय रामऔतार और शिवराज ने उसे रास्ते में ही रोक लिया. फिर शराब पिलाने के बहाने से हस्तिनापुर क्षेत्र के चपरोली गांव के बाहर खेत में ले गए. वहीं तीनों ने शराब पी. रामऔतार और उस के दोस्त शिवराज ने जानबूझ कर फेरन को कुछ ज्यादा ही शराब पिला दी. जब उसे अधिक नशा हो गया, तब उन्होंने उस के सिर पर पत्थर और लोहे के पाइप से वार कर मौत के घाट उतार दिया. फिर उस की लाश शिवराज की बाइक पर ले जा कर कृपालपुर गांव में स्थित एक सूखे कुएं में फेंक दी. बाद में उस कुएं पर मिट्टी डाल कर पौधे लगा दिए गए.

तीनों को भरोसा था कि अब वे कभी भी फेरन की हत्या के मामले में पकडे़ नहीं जाएंगे. लेकिन इस बीच शिवराज ने यह गलती कर दी कि फेरन के मोबाइल में डाली सिम निकाल कर फेंक दी और उस में अपनी सिम डाल ली. मालती और रामऔतार की निशानदेही पर पुलिस द्वारा 26 जुलाई, 2021 को कुएं से फेरन का कंकाल बरामद कर लिया गया. बाद में वह डीएनए टेस्ट के लिए प्रयोगशाला भेज दिया. थाना हस्तिनापुर में हत्यारोपियों मालती, रामऔतार और शिवराज के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 201, 120बी के तहत रिपोर्ट दर्ज कर तीनों अभियुक्तों को जेल भेज दिया गया. Extramarital Affair

Love Story : इश्क का दरवाजा

Love Story : अनैतिक रिश्ते को अधिक दिनों तक परदे में नहीं छिपाया जा सकता. इस से परदा हटते ही भूचाल आ जाता है. कई बार इस कारण आक्रोश की भड़की ज्वाला में जीवनलीला ही भस्म हो जाती है. ऐसा ही कानपुर के एक बैंककर्मी के साथ हुआ. अवैध संबंध में न केवल उस की जान गई, बल्कि 3 जिंदगियां भी तबाह हो गईं गु मशुदा विशाल अग्रवाल की लाश बरामद होने पर उन्नाव के दही थाने की पुलिस ने पहली जांच में ही उस के हत्या किए जाने की पुष्टि

कर दी थी. करीब 25 वर्षीय विशाल एक बैंककर्मी था, जिस की लाश जिले में शारदा नहर के किनारे झाडि़यों में लावारिस हालत में पड़े ड्रम से मिली थी. लाश को एक प्लास्टिक के ड्रम में ठूंस कर पैक किया गया था. ड्रम पुरवा मार्ग पर स्थित बंद पड़ी एलए आयरन फैक्ट्री से एक किलोमीटर दूर सराय करियान गांव के पास गुजरने वाली नहर के किनारे पड़ा था. ड्रम से दुर्गंध आने की सूचना ग्रामीणों ने पुलिस को दी थी. सूचना के आधार पर ही खेड़ा चौकीप्रभारी अंशुमान सिंह ने ड्रम को खुलवाया, जिस में से 25 वर्षीय युवक की रक्तरंजित लाश बरामद हुई.

वहीं पास में ही एक स्कूटी की चाबी भी मिली. पुलिस ने मौके की काररवाई पूरी करने के बाद लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी और उस की शिनाख्त के लिए जिले के सभी थानों में सूचना प्रसारित करवा दी. उन्हीं दिनों नौबस्ता थानाप्रभारी सतीश कुमार सिंह विशाल अग्रवाल नामक युवक की तलाशी कर रहे थे. उस के लापता होने की सूचना अंशुल अग्रवाल ने दर्ज करवाई थी. वह अंशुल का छोटा भाई था. नौबस्ता थानाप्रभारी को दही थानाक्षेत्र में एक युवक की लाश बरामद होने की सूचना मिली तो वह अंशुल को साथ ले कर उन्नाव के थाना दही जा पहुंचे.

वहां पहुंच कर उन्होंने चौकीप्रभारी अंशुमान सिंह से मुलाकात की. तब चौकीप्रभारी ने मोर्चरी ले जा कर बरामद लाश थानाप्रभारी सतीश कुमार सिंह और उन के साथ आए युवक अंशुल को दिखाई. अंशुल ने उस लाश की शिनाख्त अपने छोटे भाई विशाल अग्रवाल के रूप में की. लाश की शिनाख्त हो जाने के बाद थानाप्रभारी नौबस्ता लौट आए. उन्होंने सब से पहले गुमशुदगी के मामले को हत्या में तरमीम कराया फिर वह हत्यारे की तलाश में जुट गए. उन्होंने पहले मृतक के फोन की काल डिटेल्स निकलवाई तो पता चला कि उस का मोबाइल 7 सितंबर को रात 10 बजे के बाद स्विच्ड औफ हो गया था. उस मोबाइल से अंतिम बातचीत 8 बज कर 50 मिनट पर हुई थी, जबकि साढ़े 8 बजे उस पर एक मिस्ड काल भी आई थी. जांच का सिलसिला मोबाइल से मिली कुछ जानकारियों के साथ शुरू किया गया.

जिस नंबर से विशाल के मोबाइल पर काल की गई थी, वह नंबर सत्यम ओमर नाम के व्यक्ति का था. सत्यम कानपुर निवासी अनिल ओमर का बेटा था. पुलिस द्वारा उस मोबाइल नंबर पर काल की गई तो वह बंद मिला. फिर पुलिस ने नंबर से मिले पते पर दबिश दी, किंतु वहां सत्यम नहीं मिला. सिर्फ इतना मालूम हुआ कि वह इस पते पर ढाई साल पहले रहता था. हालांकि जल्द ही थानाप्रभारी को मुखबिरों से सत्यम के नए पते की जानकारी मिल गई. पता चला कि वह अब रामनारायण बाजार स्थित फ्लैट में रहता है. पुलिस को मुखबिर से उस के उस फ्लैट में उपस्थित रहने के समय का भी पता लग गया.

इस सूचना के आधार पर थानाप्रभारी ने क्राइम ब्रांच इंसपेक्टर छत्रपाल सिंह, उस्मानपुर चौकीइंचार्ज प्रमोद कुमार, बसंत विहार चौकीइंचार्ज मनीष कुमार, एसआई रवींद्र कुमार, हैडकांस्टेबल अरविंद सिंह, सुरेंद्र सिंह, दीपू भारतीय, राजीव यादव, कांस्टेबल सौरभ पाडेय, महिला सिपाही पल्लवी के साथ उक्त फ्लैट पर दबिश दी. उस समय फ्लैट से 2 युवक सीढि़यों से उतर रहे थे. पुलिसकर्मियों को देखते ही दोनों भागने लगे, लेकिन वे पकड़ लिए गए. पुलिस दोनों को ले कर उस फ्लैट में गई. उन से पूछताछ करने पर एक युवक ने अपना नाम सत्यम ओमर, जबकि दूसरे ने सरवन बताया. वहीं 16-17 साल की एक लड़की भी मौजूद थी. उस ने पुलिस को बताया कि वह सत्यम की मौसेरी बहन है और पास ही दूसरे मकान में रहती है. उस का नाम राधा (परिवर्तित) था.

उन से पूछताछ के बाद पुलिस ने फ्लैट के बारीकी से निरीक्षण में पाया कि कमरे की दीवारों को जगहजगह खुरचा गया है. इस का कारण पूछने पर उन्होंने बताया कि डिस्टेंपर करवाना है. यह बात पुलिस को हजम नहीं हुई, क्योंकि वहां डिस्टेंपर के लिए किसी तरह के इंतजाम कहीं नहीं दिखा. दीवारों पर खुरचने के निशान भी जहांतहां मिले. उस बारे में सभी ने हिचकिचाट के साथ बताया. थानाप्रभारी ने राधा के चेहरे पर भी गौर किया, जिस का रंग अचानक तब फीका पड़ गया था, जब उन्होंने कहा कि वे विशाल अग्रवाल की हत्या के सिलसिले में पूछताछ करने आए हैं. इस में उस ने साथ नहीं दिया तो वह भी मुश्किल में पड़ जाएगी. इसी के साथ थानाप्रभारी दोनों युवकों को विशेष पूछताछ के लिए थाने ले आए. उन्होंने सत्यम से सीधा सवाल किया, ‘‘तुम ने 7 सितंबर की शाम साढ़े 8 बजे विशाल को मिस्ड काल क्यों की थी?’’

इस का जवाब देते हुए सत्यम हकबकाता हुआ बोला, ‘‘वह नंबर मैं नहीं, मेरी मौसेरी बहन इस्तेमाल करती है. उसी से पूछना होगा.’’

‘‘वह विशाल को कैसे जानती है?’’ सिंह ने सवाल किया.

‘‘मुझे नहीं मालूम,’’ सत्यम बोला.

उस के बाद थानाप्रभारी को उस की मौसेरी बहन राधा भी संदिग्ध लगी. उन्होंने उसे भी तुरंत थाने बुलाया और पूछताछ शुरू की. उस से फोन काल के बारे में नहीं पूछा, बल्कि सीधे लहजे में पूछ लिया कि विशाल से उस के क्या संबंध थे. यह सवाल सुन कर सामने बैठे अपने भाई और उस के दोस्त सरवन को देख कर घबरा गई. उस के कुछ बोलने से पहले ही थानाप्रभारी ने समझाया, ‘‘तुम्हारे विशाल से जो भी संबंध रहे, वे उस की मौत के साथ खत्म हो गए. तुम्हारे भाई ने भी मुझे कई बातें बताई हैं, जिस से तुम पर भी उस की हत्या में साथ देने का शक है. मुझे पता है कि विशाल ने तुम्हारे मिस्ड काल के थोड़ी देर बाद फोन किया था. तुम सिर्फ इतना बता दो कि उस से तुम्हारी क्या बात हुई थी.’’

यह सुन कर राधा कभी पुलिस को देखती, तो कभी इधरउधर देखने के बहाने से सत्यम को देखने लगती. वह यह सोच कर भीतर से डर गई कि लगता है सरवन ने पुलिस को सब कुछ बता दिया. कुछ सेकेंड बाद सिंह ने फिर सवाल किया, ‘‘बताया नहीं, तुम्हारे विशाल से क्या संबंध थे?’’

‘‘सर, मैं उसे प्यार करती थी,’’ राधा धीमी आवाज में बोली.

‘‘इस का सत्यम को पता था?’’ सिंह ने पूछा.

‘‘नहीं,’’ राधा बोली.

‘‘क्यों?’’

‘‘मैं डर गई थी.’’

‘‘भाई से डर कर कुछ नहीं बताया था या फिर कुछ और बात है?’’

‘‘सर, मैं भाई से डरती थी, इसलिए नहीं बताया.’’ राधा बोली.

‘‘अच्छा चलो, अब यह बता दो कि 7 सितंबर की शाम को तुम्हारी विशाल से क्या बात हुई थी?’’

अलगअलग तरह से बदले हुए सवालों को सुन कर राधा पसीनेपसीने हो गई थी, दुपट्टे से पसीना पोछती हुई बोली, ‘‘उस से मिलना चाहती थी.’’

‘‘वह भी रात में! मिलने के लिए कहां बुलाया था?’’ सिंह ने पूछा.

‘‘भाई के फ्लैट पर,’’ राधा ने बताया.

‘‘क्यों, क्या उसे भाई से मिलवाना था? लेकिन भाई तो बोला कि वह उस दिन कहीं गया हुआ था. घर पर था ही नहीं.’’ थानाप्रभारी के सवालों से राधा खुद को घिरा महसूस करने लगी. कुछ भी नहीं बोल पाई. बीच में सत्यम कुछ बोलने को हुआ, तब थानाप्रभारी ने उसे डपट दिया. उस के बाद राधा रोने लगी. थानाप्रभारी ने तुरंत महिला सिपाही को एक गिलास पानी लाने के लिए कहा और खुद उठ कर अलमारी खोलने लगे. महिला सिपाही से पानी पीने के बाद सिंह एक बार फिर बोले, ‘‘सचसच बताओ, 7 सितंबर को तुम्हारे और विशाल के साथ क्याक्या हुआ? अभी मैं तुम से प्यार से पूछ रहा हूं, लेकिन मुझे सच्चाई बाहर निकलवाना भी आता है. देखो उसे, जिस ने तुम्हें पानी पिलाया है, वही तुम्हारे मुंह में अंगुली डाल कर सारी बातें भी निकलवा लेगी.’’ यह कहते हुए थानाप्रभारी ने सत्यम और सरवन को दूसरे कमरे में भेज दिया.

अब तक पुलिस दबाव में आ कर राधा पूरी तरह से टूट गई थी. उस ने विशाल के साथ अपने अवैध संबंध को स्वीकार करते हुए 7 सितंबर की पूरी घटना बता दी. फिर क्या था, जो बातें थानाप्रभारी ने सत्यम और सरवन से भी नहीं पूछी थीं और उन पर विशाल की हत्या का सिर्फ संदेह था, उस की पुष्टि राधा ने ही कर दी. थानाप्रभारी के लिए राधा द्वारा दी गई जानकारी बेहद महत्त्वपूर्ण थी. वह मुसकराए और राधा को महिला सिपाही के साथ बैठा कर सत्यम व सरवन के पास जा पहुंचे. उन से भी उन्होंने विशाल अग्रवाल की हत्या के संबंध में घुमाफिरा कर कई सवाल पूछे.

कुछ सवाल उन्होंने हवा में तीर की तरह चलाए. जबकि कुछ सवालों के साथ सबूत होने के दावे और राधा द्वारा बताए जाने की बातें कह कर उन्हें उलझा दिया. नतीजा यह हुआ कि सत्यम और सरवन भी टूट गए और उन्होंने विशाल हत्याकांड से ले कर उस की लाश को ठिकाने लगाने तक की बात बता दी. राधा, सरवन और सत्यम के द्वारा जुर्म स्वीकार किए जाने के बाद सरवन ने विशाल के शव को फेंकने का खुलासा कर दिया. इस तरह राधा ने विशाल के साथ अनैतिक संबंध बनाते हुए रंगेहाथों पकड़े जाने से ले कर उस की हत्या संबंधी साक्ष्य मिटाने का जुर्म स्वीकार कर लिया. पुलिस ने साक्ष्य को मजबूत बनाने के लिए राधा का वैजाइनल टेस्ट करवाया. साथ ही आरोपियों की निशानदेही पर विशाल अग्रवाल की स्कूटी, लैपटाप तथा हत्या में प्रयुक्त लोहे की रौड बरामद कर ली. य्याशी के चक्कर में जान गंवाने वाले बैंककर्मी विशाल की प्रेम कहानी इस प्रकार सामने आई—

उत्तर प्रदेश जिला कानपुर के थाना नौबस्ता अंतर्गत संजय नगर कालोनी मछिरिया में विष्णु प्रसाद अग्रवाल के 2 बेटे अंशुल (26 वर्ष) औरविशाल (25 वर्ष) के अलावा बेटी दिव्या (23 वर्ष) थी. इन में से विशाल कुंवारा था. वह भी अपने भाई अंशुल की तरह ही  बैंक मैनेजर था और मातापिता के साथ ही रहता था. स्वभाव से वह आशिक मिजाज था. जल्द ही किसी लड़की के पीछे पड़ जाता था. आकर्षक और सैक्स अपील होने के कारण कोई भी लड़की पहली ही नजर में उस की ओर आकर्षित हो जाती थी. उस के दिलफेंक होने के कारण ही वह किसी के साथ भी यौन संबंध बनाने से परहेज नहीं करता था. उस ने मौका पा कर राधा को भी अपने प्रेमजाल में फंसा लिया था. उसे शादी के सपने दिखाते हुए ऐशोआराम की जिंदगी देने के वादे किए थे. राधा भी उस के प्रेम में फंस चुकी थी.

सत्यम ओमर अपने मातापिता के साथ पहले माहेश्वरी मोहाल में रहता था. बाद में उन के देहांत के बाद वह घंटाघर स्थित अपने मामा के यहां रहने लगा था. हालांकि 6 साल पहले उस के मामा की भी मृत्यु हो गई थी. उस की मामी अपने मायके में रहती थी, जिस कारण उस ने घंटाघर में ही एक फ्लैट किराए पर ले लिया था. वहीं विशाल अग्रवाल भी आताजाता था. बताते हैं कि वहां दोनों के एक बैंक में इंश्योरेंस का काम करने वाली युवती के साथ अवैध संबंध हो गए थे. विशाल और सत्यम के लिए वह युवती केवल मौजमस्ती का साधन भर थी. दोनों बदले में युवती को कुछ पैसे या गिफ्ट दे दिया करते थे.

वह फ्लैट सत्यम और विशाल के लिए मौजमस्ती का अड्डा बन कर रह गया था. कई बार वहां सरवन के साथ भी बैठकें होती थीं और पार्टी का दौर चलता था. उस फ्लैट पर एक और लड़की राधा का भी अकसर आनाजाना लगा रहता था. वह वहां बेधड़क आती थी और अधिकार के साथ कुछ समय वहां गुजार कर चली जाती थी. हालांकि वह दूसरे मोहल्ल्ले मनीराम बगिया में रहती थी. वास्तव में वह सत्यम की मौसेरी बहन थी. सत्यम ने एक चाबी राधा को भी दे रखी थी. वहीं करीब 2 साल पहले एक बार उस की विशाल से मुलाकात हो गई थी. पहली नजर में ही दोनों एकदूसरे की ओर आकर्षित हो गए थे.

विशाल राधा की खिलती किशोरावस्था को देख कर हतप्रभ रह गया था, जबकि राधा उस की बातें और माचो बदन की दीवानी बन गई थी. उस के बाद से विशाल और राधा अकसर साथसाथ घूमनेफिरने लगे थे, लेकिन दोनों सत्यम की नजरों से बच कर भी रहते थे. वे नहीं चाहते थे कि उन के प्रेम संबंध के बारे में सत्यम को कोई जानकारी हो. जल्द ही विशाल ने मौका पा कर राधा से शारीरिक संबंध भी बना लिए. राधा की भी उस में स्वीकृति मिल गई थी. सत्यम की गैरमौजूदगी में राधा विशाल को उसी फ्लैट पर बुला लेती थी.  7 सितंबर, 2021 को सत्यम ओमर ने राधा को फोन पर बताया था कि वह आज वहां नहीं आएगा. बाहर बालकनी में उस के कपड़े सूख गए होंगे, उन्हें अलमारी में रख दे. किचन और दूसरे कमरे के बिखरे सामान आ कर ठीक कर दे.

अपने भाई की बातों पर अमल करते हुए राधा ने अपने प्रेमी विशाल के साथ मौज करने की भी योजना बना ली. उस ने तुरंत फोन कर इस की सूचना विशाल को दी और शाम को खानेपीने का सामान ले कर फ्लैट पर आने को कहा. शाम होने से पहले वह फ्लैट पर चली गई, किचन और कमरे को दुरुस्त किया. तब तक शाम के साढ़े 8 बज चुके थे. अब तक विशाल को आ जाना चाहिए था, क्योंकि उस ने 8 बजे तक आने को कहा था. देर होने पर राधा ने विशाल को फोन किया, जिसे विशाल ने रिसीव नहीं किया. करीब 20 मिनट बाद विशाल ने फोन कर राधा को बताया कि वह पहुंचने वाला है. और फिर वह ठीक 9 बजे फ्लैट पर पहुंच गया. वहीं अपार्टमेंट की पार्किंग में उस ने अपनी स्कूटी भी लगा दी.

राधा उस का बेसब्री से इंतजार कर रही थी. उसे देखते ही वह उस के गले लग गई. दोनों अकेले में कई हफ्तों बाद मिले थे. इस मौके को किसी भी सूरत में गंवाना नहीं चाहते थे. राधा के लिए पूरी रात थी. विशाल भी खानेपीने के सामान के साथ आया था. दोनों बेफिक्र थे. मौजमस्ती के लिए पूरी तरह से तैयार और तत्पर भी थे. इसी तत्परता में उन से एक भूल हो गई. मुख्य दरवाजे की अंदर से कुंडी लगाना भूल गए. वे बैडरूम में थे. ड्राइंगरूम की ओर उन का जरा भी ध्यान नहीं था.

दोनों एकदूसरे पर प्यार की बौछार करते हुए कब यौनाचार में लीन हो गए, पता ही नहीं चला. दूसरी ओर वाटर प्लांट में काम समाप्त हो जाने पर सत्यम फ्लैट पर अचानक आ गया. फ्लैट का दरवाजा खुला होने पर वह सीधे ड्राइंगरूम में दाखिल हुआ. बैडरूम में रोशनी देख कर चौंक गया और वहां जा कर दरवाजे पर लगे परदे को हटाया. बैड पर अपनी बहन राधा के साथ विशाल को लिपटा देख सन्न रह गया. वे दोनों आंखें मूंदे इतने बेफिक्र थे कि सत्यम के दरवाजे पर आने की जरा भी आहट नहीं हुई. गुस्से की ज्वाला को दबाए सत्यम चुपचाप फ्लैट के नीचे आया.

नीचे से लोहे की रौड निकाली और ऊपर पहुंच कर राधा के आलिंगन में बंधे विशाल के सिर पर दे मारी. एक ही वार में सिर से खून बहने लगा. राधा अपनी जान बचाते हुए दूसरे कमरे में भागी. गुस्से में सत्यम ने विशाल के सिर पर दनादन 3-4 और वार कर दिए. सिर पर ताबड़तोड़ वार से विशाल की वहीं मौत हो गई. राधा के सामने ही विशाल की मौत हो गई थी, लेकिन वह डर गई थी कि कहीं सत्यम उसे भी न मार डाले. सत्यम ने डपटते हुए इस बारे में किसी को बताने की उसे सख्त हिदायत दे दी. उसे जल्दी से दीवार पर लगे खून के दाग मिटाने को कहा. उस के बाद तुरंत अपने दोस्त सरवन को बुलाया.

सरवन भागाभागा आया. लाश देख कर उस के होश उड़ गए, लेकिन जल्द ही सामान्य होने पर लाश को ठिकाने लगाने की योजना बनाई. तब तक रात के साढ़े 11 बज गए थे. इसलिए सरवन योजना के अनुसार अगले रोज 8 सितंबर को प्लास्टिक का एक ड्रम खरीद लाया. उस में विशाल की लाश ठूंस कर पैक कर दी. ड्रम को उस पर लगी स्टील की स्ट्रिप से पैक कर दिया. उस के बाद ड्रम को विशाल की स्कूटी पर लादकर कैंट होते हुए जाजमऊ गंगापुल से दही थाने की खेड़ा चौकी क्षेत्र जा पहुंचे. उन्होंने ड्रम को नहर के पास झाडि़यों में फेंक दिया. साथ ही विशाल का मोबाइल फोन भी नहर में फेंक दिया. उस की स्कूटी से वापस कानपुर आ गए.

सत्यम ने विशाल की स्कूटी अपने यशोदा नगर स्थित प्लौट के पास पेड़ के नीचे खड़ी कर दी. जबकि उस के खून से सने कपड़ों को कूड़ाघर में फेंक आया. आरोपियों द्वारा अपना जुर्म स्वीकार कर लेने के बाद थानाप्रभारी सतीश कुमार सिंह ने आईपीसी की धारा 302/201/120बी के तहत हत्यारोपी सत्यम ओमर, सरवन किशोरी राधा को न्यायालय में पेश किया. वहां से सत्यम और सरवन को कानपुर के जिला कारागार भेज दिया गया, जबकि साक्ष्य छिपाने के आरोप में राधा को नारी निकेतन के सुरक्षा गृह में भेज दिया गया. Love Story

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित है तथा किशोरी राधा का नाम कल्पनिक है

 

Love Crime : पति को दफन कर लगवा दीं टाइल्स

Love Crime : 32 वर्षीय विजय चौहान मुंबई में काम करता था. वह अपनी 28 वर्षीय पत्नी चमन देवी उर्फ गुडिय़ा को यूपी के जौनपुर में स्थित अपने गांव से मुंबई इसलिए ले गया कि इकलौते बेटे की किसी अच्छे स्कूल में पढ़ाई करा सके. लेकिन मुंबई जाते ही चमन कुमारी को शहर की ऐसी हवा लगी कि उस के रंगढंग ही बदल गए. फिर उस ने एक दिन पति की हत्या कर लाश कमरे में ही दफन कर ऊपर से टाइल्स लगवा दीं. आखिर एक पत्नी इतनी बेवफा और निर्दयी क्यों बनी?

मूलरूप से उतर प्रदेश के जिला जौनपुर के गांव कलीचाबाद का रहने वाला विजय चौहान पिछले 10 सालों से मुंबई में रह कर राजमिस्त्री का काम करता था. मुंबई में वह परिवार के साथ नालासोपारा के गाड़ीपाड़ा इलाके की ओम साईं वेलफेयर सोसाइटी की एक चाल में रहता था. मुंबई आने से पहले विजय चौहान का विवाह चमन देवी उर्फ गुडिय़ा के साथ हुआ था. उसी साल वह पत्नी गुडिय़ा को अपने साथ मुंबई ले आया था, ताकि वहां अच्छी पढ़ाई करा सके. इस समय उस का 7 साल का बेटा था.

विजय का बड़ा भाई अजय चौहान मुंबई में पहले से ही रहता था. वह जम गया तो उस का छोटा भाई अखिलेश चौहान भी मुंबई आ गया था. कुछ दिनों तक साथ रख कर उसे भी राजमिस्त्री का काम सिखा दिया. जब वह पूरी तरह काम में निपुण हो गया और कमाने लगा तो उस ने उसे अलग रहने के लिए कह कर अलग कमरा दिला दिया था. अजय और अखिलेश भी वहीं करीब ही एक चाल में रहते थे. रहते भले ही सभी अलग थे, लेकिन जब भी किसी को कोई जरूरत होती थी, सभी एकदूसरे की मदद करते थे.

इसी साल जुलाई महीने के पहले सप्ताह में विजय चौहान के छोटे भाई अखिलेश को कुछ पैसों की जरूरत पड़ी तो उस ने अपने बड़े भाई विजय को फोन किया. लेकिन विजय का फोन स्विच्ड औफ था. अखिलेश ने सोचा कि काम पर होने की वजह से फोन चार्ज नहीं हो पाया होगा, इसलिए फोन स्विच्ड औफ है. उस ने शाम को फोन किया कि अब तो भाई घर आ गया होगा, लेकिन उस समय भी उस का फोन बंद था. देर रात फिर फोन किया, तब भी उस के फोन को बंद बताया तो उसे थोड़ी चिंता हुई. रात ज्यादा हो गई थी, इसलिए उस ने सोचा कि सुबह भाई के घर जा कर पता करेगा कि उस का फोन बंद क्यों है?

हैरानपरेशान अखिलेश सुबह भाई के घर पहुंचा. जब उस ने भाभी चमन देवी से भाई के बारे में पूछा तो उस ने कहा, ”तुम्हारे भैया तो किसी काम के सिलसिले में कुर्ला गए हैं.’’

”उन का फोन भी बंद है.’’ अखिलेश ने कहा.

”हां, उन का फोन खराब है. कल सुबह किसी के मोबाइल से फोन कर के बताया था. वहां कोई जानपहचान का मिस्त्री तो है नहीं, इसलिए फोन ठीक नहीं कराया है.’’ चमन देवी ने बताया.

”आएंगे कब तक, कुछ बताया है?’’ अखिलेश ने पूछा.

”कहा तो है कि जल्दी ही लौट आएंगे. फिर लौटना काम पर निर्भर करता है. कोई और काम आ गया तो देर भी हो सकती है. कोई जरूरी काम है क्या?’’ चमन ने पूछा.

”भाभी, कोई जरूरी काम हो, तभी भैया को पूछूंगा क्या? ऐसे नहीं पूछ सकता क्या?’’

”मेरे कहने का मतलब वह नहीं था लाला. क्यों नहीं पूछ सकते अपने भैया को. मेरा मतलब यह था कि अगर मेरे लायक काम हो तो बता देते, मैं ही कर देती.’’ चमन देवी बोली.

”नहीं, आप से मेरा काम नहीं होगा. भैया को आने दीजिए, उन्हीं से बात कर लूंगा.’’ कह कर अखिलेश चला गया.

घर में दफन निकली विजय की लाश

अखिलेश भाई को लगातार फोन करता रहा. पर उस का फोन चालू नहीं हुआ. तब वह भाभी को फोन कर के भाई तथा उस के परिवार के बारे में पूछ लेता था. लेकिन वहां से आने के 9 दिन बाद भाभी का भी फोन लगना बंद हो गया. तब उसे चिंता हुई. अपनी चिंता दूर करने के लिए वह 20 जुलाई, 2025 को एक बार फिर भाभी के घर जा पहुंचा. भाभी के घर जाने से पहले उस ने बड़े भाई अजय को भी फोन कर के विजय के घर पहुंचने के लिए कह दिया था.

जब दोनों भाई विजय के घर पहुंचे तो घर पर भाभी भी नहीं मिली. तब उन्हें शक हुआ. घर में नई टाइल्स भी लगी थीं. इस से उन का शक और बढ़ गया. इस की वजह यह थी कि जब भी अखिलेश चमन से भाई (विजय) के बारे में पूछता था, वह टालमटोल करने लगती थी. कभी कहती कि वह नाराज हो कर गए हैं तो कभी कहती कि गोरेगांव काम करने गए हैं.

भाभी के ही कहने पर अखिलेश विजय के बारे में पता करने गोरेगांव भी गया था. वहां से पता चला था कि वह 8-10 दिन पहले ही काम छोड़ कर चला गया था. चमन देवी ने यह भी कहा था कि उस ने दूसरा सिम ले लिया है. लेकिन जब अजय और अखिलेश ने दूसरे सिम का नंबर मांगा था तो इस के लिए भी उस ने बहाना बना दिया था कि उस के पास भी दूसरे सिम का नंबर नहीं है. भाभी की इस बहानेबाजी पर ही अखिलेश ने अजय से कहा था, ”भैया, मुझे शक हो रहा है. मामला गड़बड़ लगता है. कहीं विजय भैया के साथ कोई अनहोनी तो नहीं घट गई.’’

इस की वजह यह थी कि अखिलेश ने इस तरह की तमाम घटनाओं के बारे में पढ़ा था, जिन में पत्नियों ने पति की हत्या करवा कर लाश घर में ही गड़वा दी थीं और ऊपर फर्श बनवा दिया था. चमन ने भी घर में नई टाइल्स लगवाई थीं. इसीलिए अखिलेश ने भाई से शक जाहिर करते हुए आगे कहा, ”घर में नई टाइल्स भी लगी हैं. मेरा मन करता है कि खोद कर देखा जाए. 1-2 टाइल्स टूट भी जाएगी तो क्या होगा?’’

अजय को छोटे भाई अखिलेश की बात सच लगी. इस के बाद अजय और अखिलेश ने पड़ोसियों से बात की. पड़ोसियों को भी उन की बात में दम लगा. सभी ने तय किया कि खुद ही कुछ टाइल्स हटा कर देखते हैं. अगर वैसा कुछ होगा तो पुलिस को सूचना दी जाएगी. टाइल्स हटा कर खुदाई की गई. करीब डेढ़ फुट खुदाई की गई होगी, तभी तेज बदबू आने लगी. इस से उन्हें समझते देर नहीं लगी कि उन का जो सोचना था, वह सच है.

उसी दिन यानी 20 जुलाई, 2025 को अजय और अखिलेश ने मुंबई के थाना पेल्हार जा कर शिकायत दर्ज कराई कि उन का बड़ा भाई विजय और भाभी चमन देवी लापता हैं. उन्होंने पड़ोसियों की मौजूदगी में घर के अंदर खुदाई की तो तेज बदबू आई. रात को तो पुलिस नहीं आई, लेकिन 21 जुलाई, 2025 को सवेरा होते ही थाना पेल्हार के सीनियर इंसपेक्टर जितेंद्र वनकोटी कुछ पुलिसकर्मियों और फोरैंसिक टीम के साथ ओम साईं वेलफेयर सोसायटी की उस चाल में जा पहुंचे, जहां विजय चौहान अपनी पत्नी और बेटे के साथ रहता था. पुलिस अधिकारियों के निर्देश पर उस जगह की खुदाई शुरू हुई, जहां खुदाई करने पर बदबू आई थी. करीब आधे घंटे की खुदाई के बाद घर और उस के आसपास का पूरा इलाका दुर्गंध से भर गया.

शाम 6 बजे के आसपास 4 फुट की गहराई से एक लाश निकाली गई. लाश इस कदर सड़ी हुई थी कि उसे पहचाना नहीं जा सकता था, लेकिन लाश पर मौजूद कपड़ों और कदकाठी से स्पष्ट हो गया था कि वह लाश किसी और की नहीं, बल्कि 32 साल के विजय चौहान की थी. विजय की लाश मिलने के बाद पहला सवाल यह था कि उस की हत्या किस ने और क्यों की? घर की तलाशी, खुदाई और विजय की लाश मिलने के बाद पुलिस हरकत में आई. पूछताछ में मोनू शर्मा का नाम सामने आया. लोगों ने बताया कि मोनू और विजय की पत्नी चमन का चक्कर चल रहा था.

फिर मोनू तथा चमन देवी का पता लगाने के लिए पेल्हार पुलिस ने 2 टीमें बनाईं. विजय चौहान की पत्नी चमन देवी उर्फ गुडिय़ा भी लापता थी. मोनू के बारे में पता किया गया तो जानकारी मिली कि वह भी गायब है. इस से यही अंदाजा लगाया गया कि चमन मोनू के साथ ही है. सच्चाई तभी सामने आ सकती थी, जब चमन देवी और मोनू पकड़े जाते, लेकिन उन्हें पकडऩा आसान नहीं था. दोनों कहां हैं, इस का पुलिस के पास कोई सुराग नहीं था. पुलिस ने चमन और मोनू के फोन नंबर सर्विलांस पर लगवा दिए थे. इस के अलावा अपने मुखबिरों को भी सक्रिय कर दिया था. एक टीम तकनीकी जांच कर रही थी तो दूसरी टीम मुखबिरों के जरिए जानकारी जुटाने में लगी थी.

चमन, मोनू और उन के एक मददगार सुरेश, तीनों के मोबाइल फोन स्विच्ड औफ थे. इस वजह से पुलिस उन्हें ट्रैक नहीं कर पा रही थी. लेकिन पुलिस की पैनी नजर उन के मोबाइल नंबरों पर थी. इत्तफाक से 22 जुलाई, 2025 को विजय चौहान के फोन से एक पेमेंट किया गया. पुलिस ने तुरंत उस फोन की लोकेशन पता की. पता चला कि पुणे के हड़पसर इलाके की एक दुकान पर विजय चौहान के फोन से औनलाइन पेमेंट किया गया था.

इसी के आधार पर मुंबई पुलिस ने तुरंत लोकेशन ट्रैस कर ली थी. चंद घंटों बाद पेल्हार पुलिस हड़पसर में थी. फिर तो पुलिस को चमन और मोनू तक पहुंचने मे देर नहीं लगी. सीनियर इंसपेक्टर जितेंद्र वनकोटी ने अपनी टीम की मदद से चमन और मोनू को गिरफ्तार कर लिया था. उन के साथ विजय का 7 साल का बेटा सुरक्षित था.

इस के बाद पुलिस ने मोनू और चमन देवी की मदद से उन की भागने में मदद करने वाले सुरेश को भी गिरफ्तार कर लिया था. थाने ला कर चमन देवी, मोनू शर्मा और सुरेश की गिरफ्तारी की सूचना पुलिस कमिश्नर सुवास बावचे को देने के साथ ही उन्हें वसई कोर्ट में पेश किया गया, जहां विस्तार से पूछताछ के लिए तथा साक्ष्य जुटाने के लिए तीनों को 7 दिनों के लिए पुलिस रिमांड पर लिया गया. रिमांड के दौरान पूछताछ में चमन देवी और मोनू शर्मा के लव क्राइम की जो कहानी सामने आई, वह कुछ इस प्रकार थी.

उत्तर प्रदेश के जिला जौनपुर के रहने वाले 32 साल के विजय चौहान का विवाह करीब 10 साल पहले उस के गांव के नजदीक रहने वाली 28 साल की चमन देवी उर्फ गुडिय़ा के साथ हुआ था. चूंकि विजय विवाह के पहले से मुंबई में रहता था, इसलिए शादी के बाद वह पत्नी को भी अपने साथ मुंबई ले आया था. मुंबई में वह राजमिस्त्री का काम करता था. वह मेहनती था, इसलिए कमाता भी ठीकठाक था. पत्नी आ गई तो वह और भी मेहनत करने लगा था. क्योंकि खर्च बढ़ गए थे. काम की वजह से भले ही वह पत्नी को समय नहीं दे पाता था, पर उस की वह हर भौतिक इच्छा पूरी करता था, जो वह कर सकता था.

शायद पत्नी को समय न दे पाने की वजह से वह खुश नहीं रहती थी. विवाह के 3 साल बाद उसे बेटा हुआ था, जो इस समय 7 साल का था. इस बीच विजय का छोटा भाई अखिलेश गांव से भाई के पास आ गया था. विजय ने उसे भी अपनी तरह राजमिस्त्री का काम सिखा दिया था. दोनों भाई राजमिस्त्री का काम करते हुए अलग रहते थे. विजय का जो काम था, उस में उसे घर आने में देर हो जाती थी. सुबह जल्दी निकलना पड़ता था. इसलिए वह पत्नी को उस के मनमाफिक समय नहीं दे पाता था. यही वजह थी कि चमन का झुकाव पड़ोस में रहने वाले 20 साल के मोनू शर्मा की ओर हो गया. जबकि मोनू उस से उम्र में 8 साल छोटा था. लेकिन दिल ही तो है, वह किसी पर भी आ जाए. वैसे भी कहा जाता है कि प्यार न उम्र देखता है और न जातिधर्म.

पत्नी ने खाने में मिला दी नशीली दवा

बिहार का रहने वाला मोनू शर्मा फेमिली के साथ विजय चौहान के पड़ोस में रहता था. वह बीएससी (आईटी) के तीसरे साल में पढ़ता था. वह पढ़ाई में काफी होशियार था. पड़ोस में रहने की वजह से दिन में चमन देवी को कभी कुछ मंगाना होता था तो वह मोनू से मंगा लेती थी. इसी तरह लव अफेयर होने पर मोनू का चमन के घर आनाजाना शुरू हुआ तो कुछ ही दिनों में यह संबंध शारीरिक संबंध तक पहुंच गया. कुंवारे मोनू को चमन देवी की देह क्या मिली, मानो सारा जहां मिल गया. फिर तो जब देखो, तब चमन के घर में पड़ा रहता था. किसी जवान महिला के घर में पति की गैरहाजिरी में कोई कुंवारा लड़का जब देखो तब घुसा रहेगा तो पड़ोसियों में खुसुरफुसुर होगी ही.

चमन और मोनू को ले कर भी कानाफूसी होने लगी थी. फिर इस बात की जानकारी विजय को भी हो गई कि उस की गैरहाजिरी में पड़ोस में रहने वाला मोनू शर्मा उस के घर में घुसा रहता है. विजय ने जब चमन से कहा कि वह मोनू को घर न आने दे तो वह पति की बात मानने के बजाए उस से लडऩे लगी. विजय ने मोनू को भी डांटाफटकारा, पर उस पर भी कोई फर्क नहीं पड़ा. दोनों पहले की ही तरह मिलते रहे.

2 जुलाई, 2025 की शाम विजय घर आया तो चमन देवी मोनू से फोन पर बात कर रही थी. वह मोनू से जिस तरह की बातें कर रही थी, उसे सुन कर किसी भी गैरतमंद पति को गुस्सा आ सकता था. विजय को भी गुस्सा आ गया. उस ने पत्नी की चार्जर के तार से पिटाई कर दी. इस के बाद मोनू को भी खूब खरीखोटी सुनाई. उस रात घर में खाना नहीं बना. रात में विजय को भूख लगी तो उस ने पत्नी से खाना बनाने को कहा, लेकिन वह खाना बनाने नहीं उठी. तब विजय ने उस की फिर से पिटाई कर दी. तब चमन देवी ने गुस्से में दाल चावल बनाया और उस में नशीली दवा मिला कर खिला दिया. थोड़ी देर में विजय सो गया तो चमन ने फोन कर के मोनू को अपने घर बुला लिया. फिर दोनों ने गला दबा कर पति विजय चौहान की हत्या कर दी.

जबकि चमन का कहना था कि उस का पति से अकसर लड़ाईझगड़ा होता रहता था. विजय सुबह 7 बजे काम पर जाता था तो रात 9 साढ़े 9 बजे लौटता था. दिन भर का थकामांदा विजय घर आ कर खाना खा कर सो जाता था. पति का प्यार न मिलने की वजह से चमन देवी का झुकाव युवा और खुशमिजाज मोनू की तरफ हो गया था. दोनों को जब भी मौका मिलता था, मिलने भी लगे थे.

जल्दी ही विजय चौहान और उस के फेमिली वालों को चमन और मोनू के अवैध संबंधों का पता चल गया था. विजय को पत्नी चमन के फोन से दोनों की चैट और फोटो भी मिल गए थे. उस के बाद पतिपत्नी में लगभग रोज ही लड़ाईझगड़ा होने लगा था. विजय चमन के साथ मारपीट भी करता था. चमन को वैसे भी पति से प्यार नहीं मिलता था, इसीलिए पति की मारपीट से तंग आ कर उस ने उस से छुटकारा पाने का निश्चय कर लिया.

चमन देवी के बताए अनुसार, उस ने पति विजय के खाने में जहर दे कर उस की हत्या की है. पति की हत्या करने के बाद उस की लाश को ठिकाने लगाने के लिए उस ने पानी की टंकी बनवाने के बहाने मजदूर बुला कर घर के अंदर गड्ढा खुदवाया और उसी में पति विजय की लाश दफना कर गड्ढे में मिट्टी भर दी. इस के बाद अपने देवर अजय को बुला कर ऊपर से टाइल्स लगाने के लिए कहा. अजय ने पूछा कि यहां की टाइल्स कैसे टूटीं? इस पर चमन देवी ने बताया कि पाइप जाम हो गई थी. उसी की मरम्मत के लिए टाइल्स तोड़वानी पड़ीं. अजय ने भाभी की बात सच मानी और टाइल्स लगा कर चला गया.

चमन देवी का कहना था कि यह काम उस ने अकेले ही किया है. मोनू की इस में कोई भूमिका नहीं है. इसी के साथ उस ने पुलिस से कहा कि वह मोनू को बहुत प्यार करती है. उस का कोई दोष नहीं है, इसलिए उसे छोड़ दिया जाए. दूसरी ओर मोनू का कहना था कि वह चमन देवी से मिलने गया था. उस समय चमन सब्जी खरीदने बाजार गई थी. तभी विजय आ गया. वह उस से लडऩे लगा. विजय उस के और चमन के प्यार में बाधा बन रहा था. इसलिए वह उस से लडऩे लगा. दोनों के बीच बहस बढ़ गई. उसे गुस्सा आ गया और उस ने लड़ाई के दौरान विजय का गला पकड़ कर दबा दिया, जिस की वजह से उस की मौत हो गई थी.

इस के बाद उस ने विजय की लाश को ठिकाने लगाने के लिए उसी के घर मे गड्ढा खोद कर दफना दिया. उस के बाद चमन ने अपने जेठ अजय से टाइल्स लगवा दी थी. मोनू का कहना था कि चमन का इस मामले में कोई दोष नहीं है. इसलिए उसे इस मामले में बिलकुल न घसीटा जाए.

पुलिस का मानना है कि मोनू झूठ बोल रहा है. विजय उस से लंबाचौड़ा और तंदुरुस्त था. वह उस पर अकेले कतई काबू नहीं पा सकता था. दोनों ही झूठे बयान दे कर एकदूसरे को बचाने की कोशिश कर रहे हैं. पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार विजय की हत्या नशीली दवा देने के बाद गला दबा कर की गई थी. इस से स्पष्ट हो गया था कि विजय की हत्या दोनों ने मिल कर की थी. उस के बाद दोनों ने मिल कर विजय की लाश को घर में गड्ढा खोद कर दफना दिया था. उस के बाद चमन ने अजय को बुला कर टाइल्स लगवा दी थीं.

जब अखिलेश और अजय भाई के बारे में बारबार पूछने लगे तो चमन और मोनू घर से भाग निकले. खर्च के लिए उन्होंने विजय का फोन साथ ले लिया था, क्योंकि वह नेट बैंकिंग चलाता था. फोन की पिन उन्होंने सुरेश से बदलवा ली थी. इस तरह उस ने उन की घर से भागने में मदद की थी. उसी फोन से पेमेंट करने पर दोनों पकड़े गए थे. पुलिस ने सारे साक्ष्य जुटा कर चमन देवी उर्फ गुडिय़ा और मोनू शर्मा को 30 जुलाई, 2025 को फिर से अदालत में पेश किया था, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया था. Love Crime

 

 

Bihar Crime News : स्कूली प्रेमी कातिल बना

Bihar Crime News : 19 वर्षीय पूजा कुमारी और 21 वर्षीय अमित कुमार की दोस्ती उस समय से थी, जब वे स्कूल में साथसाथ पढ़ते थे. बाद में यह दोस्ती प्यार में बदल गई, दोनों शादी करना चाहते थे. न चाहते हुए भी पूजा के पेरेंट्स बेटी की शादी अमित से कराने को राजी हो गए. इसी बीच एक दिन पूजा की रक्तरंजिश लाश मिली. कौन था पूजा का हत्यारा? उस की हत्या क्यों की गई? पढ़ें, लव क्राइम की यह स्टोरी.

25 वर्षीय अमित कुमार बिहार में नालंदा जिले के नगर थानाक्षेत्र स्थित कागजी मोहल्ले के विजय कुशवाहा के मकान में किराए पर अकेला ही रहता था. यहां रह कर वह एक प्राइवेट फर्म में नौकरी करता था. वह कई दिनों से बुरी तरह से परेशान दिख रहा था, इस की वजह से नौकरी पर जा नहीं रहा था और वह इस से हमेशाहमेशा के लिए निजात पाना चाहता था, इसीलिए उस ने अपने दोस्त विशाल को कमरे पर बुलाया था. यह 10 जून, 2025 की बात है.

जैसे ही विशाल कमरे पर पहुंचा तो अमित बोला, ”यार, तू मेरा कैसा दोस्त है, जो मुसीबत में मेरा साथ नहीं दे सकता? यदि तेरी जगह मैं ने किसी और से मदद की गुहार लगाई होती तो वो अपना कलेजा निकाल कर अब तक मेरी हथेलियों पर रख दिया होता. और एक तू है कि मेरी मदद करने की बजाए मेरी खिल्ली उड़ा रहा है.’’

”नहीं यार, मैं खिल्ली नहीं उड़ा रहा हूं, बल्कि यह सोच रहा हूं कि मैं तेरी मदद कैसे करूं…’’ विशाल ने सोचने वाली मुद्रा में जवाब दिया.

”मैं कुछ नहीं जानता, बस तू इस मुसीबत की घड़ी में मेरा साथ देगा या नहीं?’’

”मैं साथ देने के लिए तैयार हूं, तू बता मुझे करना क्या होगा?’’

”देख भाई, तू जानता है कि पूजा से मैं कितना प्यार करता हूं, उस के बिना जी नहीं सकता.’’

”हुआ क्या यह तो बता..?’’ विशाल ने हैरानी से पूछा.

”उसे मेरे दूसरे प्यार वाली बात पता चल गई है. जब से उसे ये पता चला है कि मेरा अफेयर कंचन से भी था और मैं ने उसे यूज कर के छोड़ दिया, तब से वह विद्रोह पर उतर आई है. अगर उस ने कुछ ऐसावैसा कर दिया तो मैं अपने फेमिली वालों और कालेज में क्या मुंह दिखाऊंगा. जिस कालेज में मैं ने प्रोफेसरों के सामने अच्छी रेपुटेशन बनाई है, सब खत्म हो जाएगी. यही सोच कर मैं बहुत परेशान हूं. तभी मैं ने तुझ से हेल्प मांगी है.’’

”हंू तो यह बात है.’’ विशाल ने सिर हिलाते हुए कहा.

”हां, यह मुसीबत मेरे गले की हड्डी बनती जा रही है. इसे रास्ते से हटाया नहीं तो मैं बरबाद हो जाऊंगा. इसलिए अपनी सेफ्टी के लिए उसे मारना होगा. इस के अलावा और कोई दूसरा रास्ता बचा नहीं है.’’ अमित ने विशाल से मदद करने की रिक्वेस्ट की.

”जो करना है तुझे करना है, मैं तो तेरे साथ परछाई बन कर खड़ा रहूंगा. अब तू ही बता, उसे कैसे रास्ते से हटाएगा.’’ विशाल ने अमित के सवाल का जवाब सवाल में दिया.

”देख भाई, इस में कोई शक नहीं, आज भी पूजा मुझ से उतना ही प्यार करती है जितना कल करती थी. लेकिन यह सच है कि उस के यकीन का बांध थोड़ा डगमगा सा गया है, पर कोई बात नहीं. मैं उसे विश्वास में ले कर मजबूती से अपने प्यार के धागे से बांधने की कोशिश करूंगा. जब उसे मुझ पर पक्का यकीन हो जाएगा कि अमित मिस्टर फ्लर्ट नहीं रहा, वह सचमुच बदल गया है, तब मैं अपनी चाल चल दूंगा यानी उसे खलास कर दूंगा.’’ उत्साहित हो कर विशाल ने अपना प्लान समझाया.

”कह तो ठीक ही रहा है, लेकिन पूजा तेरी बातों पर यकीन करेगी, इस की गारंटी क्या है?’’

”वह तू मुझ पर छोड़ दो, मैं जानता हूं उसे कैसे यकीन दिलाना है. अब आगे सुन.’’

”बोल, सुन रहा हूं मैं.’’

”मेरा प्लान यह है कि उसे मौत के घाट उतारने के बाद लाश बोरे में भर सूटकेस में डाल कर किसी ऐसी जगह फेंक देंगे, जहां उस के फरिश्ते भी नहीं पहुंच पाएंगे.’’

20 वर्षीया पूजा कुमारी अमित के बगल वाले कमरे में किराए पर रहती थी. यहीं रह कर वह नर्सिंग की पढ़ाई करती थी. ये दोनों कालेज के दिनों से एकदूसरे को जानते थे. पहले दोनों के बीच में दोस्ती थी. दोस्ती ने कब उन के बीच प्यार का रूप ले लिया था, उन्हें पता नहीं चला.

धीरेधीरे 4 साल हो गए थे उन के प्यार को. पूजा के फेमिली वालों को बेटी के प्यार वाली बात पता चल चुकी थी. वे उसे अमित से मिलने से मना करते थे, लेकिन अमित के प्यार में अंधी और बहरी पूजा के कानों पर जूं तक नहीं रेंगती थी.

पेरेंट्स की बातों का उस पर कोई असर नहीं हो रहा था. यहां तक कि उस ने अपना जीवनसाथी बनाने का फैसला कर लिया था. बेटी जब फेमिली वालों की बातें सुनने के लिए तैयार नहीं हुई तो उन्होंने उसे उस के हाल पर छोड़ दिया. पूजा यह नहीं जानती थी कि जिस प्यार के लिए वह अपनी फेमिली से बगावत पर उतर चुकी थी, जिस प्यार के लिए जेठ के महीने की तपती धूप में सावन की हरियाली देख रही थी, वह उस का आशिक नहीं, रसिकलाल है.

पूजा की हत्या करने के परफैक्ट प्लान को अमित ने पहले ही अंतिम रूप दे दिया था. बाजार से एक धारदार चापड़, जूट वाली 2 बड़ी बोरियां और लाश को ठिकाने लगाने के लिए एक बड़े साइज का नया मैरून कलर का सूटकेस खरीद कर कमरे में ला कर उसे तख्त के नीचे छिपा दिया, ताकि किसी को उस पर कोई संदेह न हो. उस ने जब पूरी तैयारी कर ली तो पूजा को उस के मोबाइल फोन पर काल की और घडिय़ाली आंसू बहाते हुए माफी मांगने का नाटक किया, ताकि उस का खतरनाक मकसद पूरा हो जाए, ”हैलो पूजा, मेरी पूरी बात सुने बगैर फोन मत काटना, प्लीज.’’

फोन पर अमित गिड़गिड़ाया. वह आगे कुछ और कहता, उस की बात सुने बगैर पूजा ने काल डिसकनेक्ट कर दी और अपने कामों में लगी रही. उस समय सुबह के साढ़े 10 बज रहे थे. पूजा अमित की बेवफाई और धोखेबाजी को भुला नहीं पाई थी. कैसे उस ने धोखा दिया था. वह कभी उस की बातों पर शायद यकीन नहीं करेगी, यही अमित सोच रहा था, लेकिन अमित अपनी योजना पर यूं ही पानी फिरने नहीं देना चाहता था. किसी भी हद तक जा कर पूजा को मनाने की अपनी जिद पर अड़ा रहा और 10-10 मिनट के अंतराल पर करीब 8 बार उसे फोन किया.

बारबार काल आने से पूजा परेशान हो गई थी. वह उस से बात करना नहीं चाहती थी. परेशान हो कर उसने काल रिसीव किया आर उसे झाड़ते हुए कहा, ”बारबार क्यों काल कर के मुझे परेशान कर रहे हो? जबकि मुझे तुम से कोई बात नहीं करनी है.’’

”मैं जानता हूं कि तुम मुझ से बहुत नाराज हो, ऐसा काम ही मैं ने किया है, लेकिन मैं उस के लिए तुम से सौरी बोलता हूं. बस, एक बार मेरी पूरी बात सुन लो, फिर तुम्हें जो सही लगे वो करना. तब मैं तुम्हें कभी न ही रोकूंगा और न ही टोकूंगा, बस एक बार मेरी बात सुन लो, प्लीज.’’

अमित ने मीठी और चिकनीचुपड़ी बातों का ऐसा तीर फेंका, जो सीधा उस के दिल के पार हो गया और एक पल के लिए पूजा विचलित हो गई थी.

न चाहते हुए भी उस ने उस की बातों को दिल पर लेते हुए कहा, ”यह मत समझना कि मैं ने तुम्हें माफ कर दिया.’’ एक लंबीगहरी सांस लेती हुई फिर आगे बोली, ”बताओ, क्या कहना चाहते हो?’’

”बात कुछ ऐसी है, जो मैं फोन पर नहीं कह सकता, एक बार आ कर मिल लो तो सारी बातें क्लीयर हो जाएंगी.’’ अमित अपने होंठों पर जहरीली मुसकान लिए बोला.

”ठीक है, तुम इतना जिद कर ही रहे हो तो तुम से मिलना ही पड़ेगा.’’ पूजा ने जवाब दिया तो अमित की आंखों में शैतानी चमक जाग उठी. मतलब उस ने अंधेरे में जो तीर चलाया था, वह ठीक निशाने पर जा कर लगा था.

पूजा के मुंह से हां सुन कर अमित की खुशी का कोई ठिकाना नहीं था. दूसरी तरफ किसी अनहोनी से बेखबर पूजा अमित के किए को भुला कर उस से मिलने के लिए तैयार हो गई थी. उसी ने फोन पर 3 दिनों बाद यानी 17 जून, 2025 को मिलने के लिए कही. पूजा ने प्रेमी अमित से मिलने का वायदा कर दिया था. फेमिली वालों ने उस के घर से बाहर जाने पर सख्त पाबंदी लगा दी थी. यह कदम उन्होंने तब उठाया था, जब अमित के साथ उन्हें बेटी के अफेयर की जानकारी हुई थी.

बात 17 जून की है. पूजा जानती थी फेमिली वाले उसे आसानी से घर से बाहर अकेले निकलने नहीं देंगे. तब उस ने इस का एक आसान सा रास्ता निकाला. फेमिली वालों से उस ने झूठ बोला कि कल यानी 18 जून को उस की नर्सिंग की परीक्षा है, उस की ड्रेस कमरे पर है, बगैर ड्रेस के कालेज में एंट्री नहीं मिलेगी. उसे लेने कमरे पर जा रही है. फेमिली वालों ने पूजा की बातों पर यकीन कर लिया और उसे घर से अकेले जाने की परमिशन दे दी. जातेजाते उसे सख्त हिदायत भी दी कि ड्रेस ले कर जल्द से जल्द घर वापस लौट आना, वरना कभी घर से बाहर निकलने नहीं देंगे.

उस समय सुबह के करीब साढ़े 10 बज रहे थे. पूजा अपना मोबाइल साथ में ले कर निकली और फेमिली वालों को यकीन दिलाया था कि वह जल्दी घर वापस लौट आएगी. दोपहर करीब डेढ़ बजे पूजा अपने कमरे पर पहुंची, जहां अमित उस के आने का बेसब्री से इंतजार कर रहा था. उस ने पूजा को आते हुए जैसे देखा तो उस के चेहरे पर एक कुटिल मुसकान थिरक उठी. उस वक्त कमरे में पूजा और अमित के सिवाय कोई और नहीं था. मकान मालिक विजय कुशवाहा भी ड्यूटी जा चुका था.

धूप की तपन से जली और थकी हुई पूजा कमरे में पहुंची तो उस के आवभगत में अमित जुट गया था. चाय और नाश्ता कर के जब दोनों फारिग हुए तो अमित पूजा की ओर मुखातिब हुआ और अपनी बातों में उलझा कर बड़ी चालाकी से उस का मोबाइल फोन स्विच औफ कर दिया. इस के बाद उस ने कहा, ”मुझे माफ कर दो पूजा. मैं तुम्हारा गुनहगार हूं. मैं ने तुम्हें धोखा दिया, फिर भी तुम मेरी बात सुन कर मुझ से मिलने आ गई. मैं कैसे बताऊं कि मैं कितना खुश हूं. हनुमान होता तो सीना चीर कर दिखा देता कि किस कदर तुम्हारी तसवीर अपने दिल में बसा रखी है.’’

”ठीक है अमित. बीती बातों को कुरेद कर जख्मों को हरा मत करो तो ही अच्छा होगा.’’ पूजा तड़प कर बोली, ”बड़ी मुश्किल से मैं उन बातों भुला पाई हूं और घर वालों से झूठ बोल कर यहां तक आई हूं. मुझे घर जल्दी पहुंचना भी है. जो बात हो फटाफट बताओ.’’

”इतनी जल्दी भी क्या है. अभी तो आई हो, अभी जाने की बात कर रही हो, इस का मतलब तुम ने मुझे माफ नहीं किया है.’’

”नहीं…नहीं…ऐसी बात नहीं है. मैं ने तुम्हें माफ नहीं किया होता तो यहां आती नहीं. बस मम्मीपापा तुम्हारे खिलाफ हैं. उन्हें पता न चले इसीलिए जल्द घर पहुंचना है, वरना वो मुझे कभी घर से बाहर निकलने नहीं देंगे.’’

”ठीक है, जब तुम इतनी जिद कर रही हो तो थोड़ी देर बाद चली जाना, रोकूंगा नहीं मैं. बस, तुम ने मेरी बात का मान रख लिया और मुझे माफ कर दिया तो समझो मेरे सीने से एक बड़ा बोझ उतर गया.’’

जिस पल का अमित को बेसब्री से इंतजार था, वह समय आ गया था. अमित ने अपनी भावनाओं के भंवर में पूजा को पूरी तरह से उतार लिया था. पूजा से बात करतेकरते वह तख्त के नीचे झुका और चुपके से धारदार चापड़ निकाला. उस के हाथ में चापड़ देख कर पूजा डर गई तो अमित के चेहरे पर शैतानियत साफ झलकने लगी थी. गुस्से से उस की आंखें लाल हो गईं और जबड़ा भिंच गया था. पूरी तरह दैत्य दिख रहा था वह. पूजा समझ गई थी कि अमित ने उसे धोखा दिया है.

पूजा कुछ कर पाती, इस से पहले ही अमित ने चापड़ से उस की गरदन पर जोरदार प्रहार किया. एक ही प्रहार से पूजा की गरदन धड़ से कट कर लटक गई और वह फर्श पर गिर कर अपने ही खून में लथपथ हो कर छटपटाने लगी. उसे छटपटाता देख अमित ने नफरत भरी हुंकार ली और होंठों पर बुदबुदाया, ”चली थी हरामजादी मेरा करिअर बरबाद करने, मुझे नंगा करने. अब ऊपर जा कर मेरे नाम की माला जपना. हुंह..’’

पूजा की हत्या करने के बाद अमित जब होश में आया तो उस की आखों के सामने जेल की सलाखें नजर आने लगी थीं. फटाफट उस ने लाश को बोरी में भरी और पूजा के मोबाइल को उसी बोरी में डाल दिया, ताकि कोई सबूत न बचे और पुलिस किसी कीमत पर उस तक न पहुंच सके. लाश बोरी में भरने के बाद उस ने लाल सूटकेस में बोरी को डाल कर अच्छी तरह बंद कर दिया. फिर फर्श पर फैले खून को साफ कर दिया. इस के बाद उस ने वाशरूम में जा कर अपने शरीर और कपड़ों को अच्छी तरह साफ किया. यह सब करतेकरते शाम के 5 बज गए थे.

सारी तैयारी करने के बाद उस ने विशाल को फोन कर के उस की कार मांगी. विशाल के पास उस के पापा की कार थी. उस ने कह भी रखा था कि जब भी कहीं घूमने जाना हो तो वह उस की कार बेझिझक ले जा सकता है. लेकिन विशाल के फेमिली वालों ने उसे कार देने से साफतौर पर मना कर दिया. इस से उस की योजना पर पानी फिर गया. समझ नहीं पा रहा था कि अब वह लाश का क्या करे. वह डरने लगा कि लाश ठिकाने नहीं लगाई तो वह बुरी तरह फंस सकता था. जब कुछ समझ नहीं आया तो शहर के बाहर स्थित नाला याद आया. उसी नाले में लाश को ठिकाने लगाने की योजना बनाई.

जब उस बिल्डिंग के सभी लोग सो गए तो अमित दबे पांव अपने कमरे से बाहर निकला. घर का मुख्य दरवाजा आहिस्ता से खोला और चुपके से बाहर निकल गया. उस समय रात के करीब 11 बज रहे थे. फिर वह भाड़े पर एक टोटो (टैंपो) ले आया और सूटकेस को उस में रख दिया. टोटो चालक से शहर से बाहर की ओर चलने को कहा. वह जब बड़े नाले के पास पहुंचा तो उस ने टोटो वहीं रोकवा दिया और सूटकेस ले कर उतर गया. टोटो वाले को तय भाड़े से कुछ ज्यादा पैसे दे कर उसे छोड़ दिया. ज्यादा पैसे पा कर टोटो चालक बहुत खुश हुआ और दूसरी ओर चला गया.

चारों ओर गहरा सन्नाटा पसरा हुआ था. अमित ने इधरउधर चारों ओर देखा. वहां कोई आजा नहीं रहा था. जल्दीजल्दी उस ने सूटकेस खोला और बोरे में भरी लाश बाहर निकाली और बोरी कंधे पर उठा कर नाले में फेंक दी. सूटकेस वहीं सड़क पर ही छोड़ दिया था. फिर वहां से कमरे में आ कर सो गया, ताकि किसी को उस पर कोई शक न हो. इधर पूजा के फेमिली वाले उस के देर शाम तक घर वापस न लौटने पर परेशान हो गए थे. उस ने घर से निकलते वक्त उन से दोपहर तक वापस लौट आने को कहा था, लेकिन शाम के 6 बजे तक जब वह घर नहीं लौटी तो फेमिली वाले जवान बेटी को ले कर काफी परेशान थे.

उन के माथे पर चिंता की लकीरें तब और उभरी थीं, जब उस का मोबाइल लगातार स्विच्ड औफ आ रहा था. अपनी तरफ से उन्होंने हर जानपहचान वालों के पास फोन कर के पूछा, लेकिन उस का कहीं भी पता नहीं चला. सभी ने एक ही जवाब दिया था कि वह हमारे यहां नहीं आई थी. रात जैसेतैसे फेमिली वालों की आंखों में कटी. सुबह होते ही वे गांव के कुछ लोगों को ले कर अस्थावा थाने पहुंच गए. उस समय थाने के औफिस में हैडकांस्टेबल दयाराम मौजूद थे. पूजा के पापा संजय कुमार ने बताया कि उन की बेटी कल सुबह शहर गई थी, लेकिन अभी तक वह घर नहीं लौटी है. उस का मोबाइल फोन भी लगातार बंद आ रहा है.

हैडकांस्टेबल दयाराम ने यह बात एसएचओ सुशील कुमार को दी. इस के बाद संजय कुमार ने एसएचओ को बेटी पूजा के घर न लौटने की पूरी बात बता दी. तब एसएचओ ने पूजा की गुमशुदगी दर्ज करने के बाद आगे की काररवाई शुरू कर दी. एसएचओ सुशील ने संजय कुमार से किसी पर शक होने की बात पूछी तो उन्होंने बेटी के प्रेमी अमित पर शक जताया और पूरी बात विस्तार से बताई. पुलिस ने उस का मोबाइल नंबर ले कर जांच की तो संजय की बात सच निकली.

जांच में पता चला कि 17 जून, 2025 को सुबह के समय पूजा से अमित की आखिरी बार बात हुई थी और दोपहर बाद पूजा का फोन स्विच्ड औफ हो गया था. इस के बाद एक पुलिस टीम अमित की तलाश में भेज दी. वह कागजी मोहल्ले में स्थित अपने कमरे पर मिल गया. उसे हिरासत में ले कर पुलिस टीम थाने लौट आई. उस से सख्ती से पूछताछ शुरू की तो जल्द ही पुलिस के सामने उस ने घुटने टेक दिए और पूजा की हत्या का जुर्म आसानी से स्वीकार कर लिया.

एसएचओ ने यह जानकारी डीएसपी नुरुलहक को दी तो वह भी थाने में आ गए. डीएसपी ने भी पूजा की हत्या के बारे में कई सवाल किए. तब अमित ने घटना के बारे में तफसील से सारी जानकारी दे दी और जिस नाले में पूजा की लाश फेंकी थी, वहां ले कर गया. उस की निशानदेही पर पुलिस ने नाले में से मृतका की लाश बरामद कर उसे पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भेज दिया. आरोपी अमित की निशानदेही पर उस के कमरे से हत्या में प्रयुक्त धारदार चापड़ और खून सने कपड़े बरामद कर लिए. जिस सूटकेस में लाश भर कर ले गया था, वह वहां नहीं मिला. उस टोटो (टैंपो) वाले की तलाश में जुटी थी, जिस में लाश ले कर वह गया था. पुलिस द्वारा की गई पूछताछ में पूजा कुमारी के मर्डर के पीछे की जो सस्पेंस स्टोरी सामने आई, इस प्रकार निकली—

बिहार के नालंदा जिले के ओडा गांव के मूल निवासी संजय कुमार सरकारी प्राइमरी स्कूल के टीचर हैं. कुल 5 सदस्यों वाला उन का भरापूरा परिवार था, जिन में पतिपत्नी के अलावा 3 बेटियां थीं. 19 वर्षीय पूजा सब से बड़ी और समझदार थी. देखने में वह साधारण शक्लसूरत की थी, लेकिन उस की बोली में जैसे मिश्री घुली हुई थी. अपनी बातों से वह अपरिचितों को भी अपनी ओर खींच लेती थी. वह पढऩे में भी अव्वल थी. पढ़लिख कर वह डाक्टर बनना चाहती थी. जब वह डाक्टरों को सफेद पोशाक में देखती थी तो उस का रोमरोम खिल उठता था. वह यही सोचती थी कि एक दिन उस के भी बदन पर यह पोशाक झलकेगी.

बात साल 2022 के आसपास की है. हंसमुख और चंचल स्वभाव वाली पूजा जिस स्कूल में पढ़ती थी, उसी स्कूल में अमित भी पढ़ता था. पूजा 10वीं कक्षा की छात्रा थी. तब उस की उम्र 16 साल के आसपास रही होगी. उस समय 18 वर्षीय अमित भी इंटरमीडिएट में पढ़ रहा था. दोनों किशोरावस्था से जवानी की दहलीज की ओर कदम बढ़ा रहे थे. दोनों ही पैदल एक ही रास्ते से हो कर स्कूल जातेआते थे. अमित इसी नालंदा जिले के शेखपुरा गांव का रहने वाला था. 4 भाईबहनों में वह दूसरे नंबर पर था. उस के पापा रामबरन कुमार एक किसान थे.

खैर, उम्र के जिस पड़ाव पर पूजा और अमित खड़े थे, उस दौरान कइयों के कदम बहकने लगते थे. ऐसे में पूजा और अमित कहां अछूते रहने वाले थे यानी उन के भी कदम बहकने लगे थे. स्कूल से घर आतेजाते दोनों एकदूसरे को दिल दे बैठे. धीरेधीरे उन का प्यार समय के रथ पर सवार हो कर आगे बढ़ता रहा. बड़़े जतन से दोनों 3 सालों तक अपने प्यार को परदे के पीछे छिपाने में कामयाब रहे. आखिरकार बेटी पूजा की करतूतों की सच्चाई उस के पापा संजय कुमार के कानों तक पहुंची तो उन के पैरों तले की जमीन खिसक गई. वह आगबबूला हो उठे. उन्होंने बेटी को खूब खरीखोटी सुनाई और पत्नी को भी आड़ेहाथों लिया. उन्होंने पूजा का घर से निकलना बंद कर दिया.

पूजा ने थोड़ी चालाकी और समझदारी से काम लिया. उस ने फेमिली वालों के सामने पैंतरा खेला और झूठ बोलते हुए मम्मी से कहा, ”मम्मी, मुझ से गलती हो गई थी. इस गलती के लिए सब से माफी मांग रही हूं. मुझे माफ कर दो. अमित से अब मैं कभी नहीं मिलूंगी और न बात करूंगी.’’

बेटी की बातों पर फेमिली वालों को विश्वास हो गया और उन्होंने उसे माफ कर दिया. फिर अपना ध्यान उस की ओर से हटा लिया. पूजा यही चाहती थी. फेमिली वालों की तरफ से पूजा एक तरह से आजाद हो गई थी. अब कोई रोकटोक करने वाला नहीं था. इंटरमीडियट पास करने के बाद उस ने मैडिकल कालेज में दाखिला लिया और एएनएम की पढ़ाई शुरू की. वहीं दूसरी ओर अमित प्राइवेट जौब करते हुए बीएड की पढ़ाई कर रहा था. उस ने कागजी कालोनी में विजय कुशवाहा के मकान में एक किराए का कमरा ले लिया था. चूंकि पूजा को गांव से शहर आ कर क्लास लेने आने में बहुत दिक्कत उठानी पड़ती थी तो पापा से परमिशन ले कर अमित के बगल में किराए का एक कमरा ले कर रहने लगी.

पेरेंट्स की नजरों में पूजा ने यह साबित कर दिया था कि अब अमित से उस का कोई संबंध नहीं है और न ही उस से कभी मिलती है. जबकि हकीकत में मामला इस के विपरीत था. अब दोनों खुल्लमखुल्ला आपस में मिलते थे और टूट कर एकदूसरे से प्यार करते थे. धीरेधीरे यह बात फिर से संजय कुमार को पता चल गई तो उन के दिल को बहुत ठेस पहुंचा और बेटी को वापस घर बुलाया और समाज के ऊंचनीच रीतिरिवाजों को समझाया. संजय कुमार एक सुलझे हुए इंसान थे. उन्होंने बेटी को अपने पास बैठा कर समझाया कि वह अपने करिअर पर ध्यान दे, समय आने पर अच्छा घरवर देख कर धूमधाम से उस की शादी कर देंगे.

इस पर पूजा ने खुले शब्दों में जबाव दिया कि वह अमित से प्यार करती है उसी से शादी करेगी. चाहे जो हो जाए, वह अपने फैसले पर अडिग है और कोई भी कुरबानी देने के लिए तैयार है. फेमिली वालों ने पूजा को बहुत समझाया, लेकिन उस पर कोई असर नहीं हुआ तो वो चुप हो गए, मगर विचलित नहीं हुए. आखिरकार संजय कुमार को भी बेटी की जिद के सामने झुकना पड़ा, लेकिन कोई फैसला लेने से पहले वह अमित के बारे में खूब जांचपरख लेना चाहते थे. आखिर बेटी के जीवन का सवाल था. इस बात को उन्होंने सिर्फ अपने तक ही सीमित रखा था.

संजय ने अमित के बारे में पड़ताल शुरू की तो वह हैरान रह गए. जानकारी मिली कि कई लड़कियों के साथ अमित के संबंध हैं. उस आवारा ने कंचन नाम की एक लड़की का जीवन बरबाद कर दिया था. यह बात महीनों तक सुर्खियों में छाई रही. अमित की यह सच्चाई सामने आने के बाद संजय ने बेटी का रिश्ता अमित से जोडऩे का अपना इरादा बदल दिया. और फिर बेटी के सामने उस के प्रेमी की कलई खोल दी. पापा के मुुंह से अमित की सच्चाई सुन कर पूजा को धक्का लगा था.

पूजा ने सपने में भी कभी नहीं सोचा होगा कि जिस अमित से वह अंधा प्यार करती थी, जिस के लिए अपनी फेमिली से बगावत पर उतर आई थी, वह इतना बड़ा दगाबाज निकलेगा. उस के सारे सपने चूर हो गए थे. उस दिन के बाद से पूजा ने अमित से बात करनी बंद कर दी थी. उसे देखते ही अपना रास्ता बदल लेती थी. उसे उस से नफरत हो गई थी. पूजा अमित से इतनी नफरत करने लगी थी कि उस की शक्ल तक नहीं देखना चाहती थी. उस ने अमित को किसी माध्यम से संदेश भिजवाया था कि जैसे उस ने उस की जिंदगी के साथ खेला है, उसे धोखा दे कर खून के आंसू रुलाया है, वह भी उसी तरह उस की जिंदगी तबाह और बरबाद कर के दम लेगी. किसी कीमत पर उसे नहीं छोड़ेगी.

आखिर अमित को पता चल ही गया था कि पूजा को उस के और लड़कियों के साथ चक्कर वाली बात पता चल गई थी, इसलिए उस ने उस से दूरी बना ली. वह यह भी जानता था कि पूजा बहुत जिद्दी किस्म की है, एक बार जो ठान लेती है, उसे पूरा कर के ही दम लेती है. अमित को लगने लगा कि पूजा उस के भविष्य के लिए खतरा बन सकती है. इस से पहले कि वह उस के लिए खतरा बने, इस खतरे को मिटा देगा. उसे जान से मार देगा. न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी. इस के बाद अमित पूजा को मनाने में लग गया. आखिरकार अमित ने अपनी खतरनाक साजिश में फांसने के बाद 17 जून, 2025 को पूजा की हत्या कर दी.

पूजा की हत्या करने के बाद वह भी कानून के लंबे हाथों से बच नहीं सका और अपने असल ठिकाने तक पहुंच गया. पुलिस आरोपी अमित कुमार को गिरफ्तार कर उस की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त धारदार चापड़, फर्श पर फैले खून को साफ करने वाला कपड़ा बरामद कर उसे साक्ष्य के तौर पर अपने पास सुरक्षित कर लिया. मौके से गायब सूटकेस 2 दिन बाद उसी जगह से बरामद हो गया था, जहां से गायब हुआ था. जिस टोटो (टैंपो) से लाश ले जाई गई थी, 10 दिनों बाद उसे भी पुलिस ने जब्त कर लिया. Bihar Crime News

 

 

UP Crime News : प्यार को कायदों से बांधोगे तो अति होगी

UP Crime News : गुलफ्शां ने अपने निकाह से पहले ही प्रेमी संग मिल कर साजिश रची और मंगेतर निहाल को भरोसे में ले कर उस के साथ वही किया, जो पिछले दिनों सोनम ने हनीमून के दरम्यान अपने पति के साथ किया था. पढ़ें, इस कहानी में क्या प्रेम खून मांगता है? गुलफ्शां की शादी महीनों पहले तय हो गई थी. जबकि वह गांव के ही सद्दाम से मोहब्बत करती थी. सद्दाम भी उस से बेइंतहा मोहब्बत करता था. दोनों के परिवार गांवसमाज और परिवार के कायदेकानून में बंधे थे, लेकिन उन 2 प्रेमियों का दिल आजाद हो कर भी अपनेअपने परिवार के संस्कारों जुड़ा था.

जैसेजैसे विवाह की तारीख 15 जून नजदीक आ रही थी, वैसेवैसे सद्दाम की बेचैनी बढ़ती जा रही थी. यही हाल गुलफ्शां का भी था. सद्दाम तो अपनी बेचैनी और मोहब्बत की दास्तां दोस्तों से शेयर कर लेता था, लेकिन गुल की तमाम प्यारमोहब्बत की बातें सिसकियां बन कर चारदीवारी से टकराती रहती थीं. सिर्फ एकमात्र सहारा मोबाइल का वाट्सऐप था. मन बहलाने के लिए मनोरंजक रील्स, फिल्मों के शार्ट वीडियो और छिटपुट खबरें थीं. पिछले दिनों सोनम और राजा रघुवंशी की खबरों से इंटरनेट मीडिया अटा पड़ा था. बारबार गुल के दिमाग पर वह घटना चोट पर चोट किए जा रहा था.

गुल परेशान हो गई थी. कभी सोनम के बारे में सोचने लगती तो कभी उस के गरीब प्रेमी के बारे में…जब नतीजे पर पहुंचती, तब उस के दिमाग में सद्दाम का चेहरा घूमने लगता. उस ने महसूस किया कि शायद सोनम भी उस की तरह मजबूर रही होगी. उस के बारे में सोचतेसोचते जब दिमाग खाली हो जाता, तब खुद के बारे में सोचने लगती. खयाल आता, ‘क्यों न वह अपनी लव स्टोरी को कायम रखने के लिए निकाह से पहले ही कोई तरीका अपनाए.’ अगले पल ही मन में सवाल आता, ‘कौन सा तरीका? सोनम वाला? नहींनहीं! वैसा नहीं कर सकती!…तो फिर क्या किया जाए?’

कुछ ऐसी ही ऊलजुलूल की उधेड़बुन में खोई थी. निकाह के सिर्फ 2 दिन बचे थे. अपने कमरे में दीवार की तरफ टकटकी लगाए हुए थी. उस वक्त कमरे में और कोई नहीं था. सामने अलमारी के बगल में मोबाइल चार्ज में लगा था. अचानक उस का स्क्रीन चमक उठा. छोटी सी कुछ सेकेंड का काल रिंग बजी. मोबाइल हाथ में ले कर पह देखने लगी. उस के मंगेतर निहाल का फोन था. वह चिढ़ गई, ‘निकाह हुआ नहीं…और अभी से ही बेचैन है!’

वह मोबाइल फिर से चार्ज के लिए लगाने ही वाली थी कि फिर से काल रिंग बजी. इस बार जो नंबर उभरा, उसे देख कर गुल की आंखों में चमक आ गई. चेहरा खिल उठा. काल उस के प्रेमी सद्दाम की थी, जिसे उस ने सलमान के नाम से सेव कर रखा था.

उस ने तुरंत काल रिसीव करते हुए कहा, ”हां बोलो.’’

”अब क्या बोलना बचा है… तुम ने मेरा वाट्सऐप नहीं देखा!’’ सद्दाम ने कहा.

”हां देखा, सलमान खान का फोटो है. क्यों भेजा, समझी नहीं.’’ गुल बोली.

”तुम नहीं मिलीं तो मेरी भी उसी जैसी हालत होगी!’’ सद्दाम बोला.

”ऐसा क्या? मेरे बिना कुंवारे बैठे रहोगे?’’ गुल हैरानी के साथ बोली.

”तुम मेरे बिना रह पाओगी…उस बावर्ची के साथ?’’ सद्दाम ने चुटकी ली.

”अब क्या करूं मेरी जान? किस से कहूं दिल की बात? यहां घर में कोई मेरी नहीं सुनने वाला.’’ गुल की आवाज में निराशा थी.

”मैं समझता हूं तुम्हारी मजबूरी. तुम से कुछ नहीं हो पाएगा. अब जो कुछ करूंगा, मैं ही करूंगा. तुम को सिर्फ मेरा साथ देना है.’’ सद्दाम समझाते हुए बोला.

”मुझे क्या करना होगा?’’ गुल का सवाल था.

”तुम्हें निहाल को अपने विश्वास में लेना है. आगे का काम मैं करूंगा.’’ सद्दाम बोला.

”ठीक है, तुम से पहले उस की ही काल आई थी.’’ गुल बोली.

”अभी उसे काल बैक करो. सब कुछ अच्छा रहा तो सब हमारी मरजी का होगा.’’ सद्दाम ने जैसा बोला वैसा ही गुल ने किया.

निहाल को काल बैक कर उस से प्यार भरी बातें कीं. उसे बताया कि अगले रोज उस का कोई रिश्तेदार काल करेगा. विवाह की रस्म का कुछ काम है. वह जैसा कहे, वैसा करना. उत्तर प्रदेश के जिला रामपुर में भोट थाना क्षेत्र के धनुपुरा गांव की निवासी गुलफ्शां की शादी निहाल के साथ 6 महीने पहले ही तय हो गई  थी. वह थाना गंज क्षेत्र का रहने वाला था. बावर्ची का काम करता था. निहाल अपने परिवार में सब से छोटा था. उस के 2 भाई और 2 बहनें हैं, जिन में से एक भाई और एक बहन की शादी हो चुकी है.

दोनों के घरों में शादी की तैयारियां चल रही थीं. 14 जून, 2025 को दिन में ही निहाल के पास फोन आया. फोन करने वाले ने बताया कि वह उस का चचेरा साला लगेगा. कपड़े खरीदवाने के लिए उस के साथ बाजार चलना होगा. इस बारे में उस की गुलफ्शां से बीती रात बात हुई होगी. निहाल ने इस की हामी भरी, क्योंकि गुल ने उस की पसंद के कपड़े खरीदवाने के लिए रिक्वेस्ट किया था. निहाल घर से निकला. उसे लेने के लिए बाइक से 2 युवक आए थे. वह उन के साथ बीच में बैठ कर चला गया. देर शाम होने तक निहाल घर नहीं लौटा तो फेमिली वालों को चिंता होने लगी. उस के बड़े भाई नायब ने उस की खोजबीन के लिए कई जगह काल की.

सभी जगह से एक ही जवाब आया कि उन के पास निहाल आया ही नहीं था. काफी खोजबीन के बाद जब कुछ पता नहीं चला तो फेमिली वालों ने गंज थाने में उस की गुमशुदगी की सूचना दर्ज करवा दी. निहाल के अचानक दिनदिन में ही लापता हो जाने की सूचना नायब ने गुलफ्शां के फेमिली वालों को भी दे दी. पुलिस ने निहाल की तलाशी के लिए सीसीटीवी फुटेज का सहारा लिया. तब पुलिस को बाइक पर 3 लोग बैठ कर जाते हुए दिख गए. सीसीटीवी के जरिए पुलिस को निहाल के अपहरण की पुष्टि हुई थी. फुटेज में 2 बाइक सवार युवक निहाल को बीच में बैठाए हुए कहीं ले जाते दिखे थे.

बाइक चला रहे युवक ने हेलमेट पहन रखा था, जबकि दूसरे ने चेहरा गमछे से ढक रखा था. हालांकि बाइक नंबर सीसीटीवी कैमरे में कैद हो गया. इस की मदद से ही पुलिस आरोपियों तक पहुंच पाई थी. बाइक चलाने वाले की पहचान सद्दाम के रूप में हो गई. उस के साथ बैठा युवक सद्दाम का साथी फरमान था. तकनीकी सबूत के आधार पर सद्दाम और फरमान 15 जून, 2025 को गिरफ्तार कर लिए गए. पुलिस ने दोनों से निहाल के बारे में सख्ती से पूछताछ की. दोनों ने मार पडऩे के डर से स्वीकार कर लिया कि उन्होंने निहाल की हत्या कर दी है. उन के द्वारा अपराध कुबूल कर लेने के बाद पुलिस सद्दाम को हत्या वाली जगह पर ले गई. तभी उस ने एक कांस्टेबल की पिस्टल छीन कर भागने की कोशिश की.

सद्दाम ने छीनी गई पिस्टल से पुलिस पर फायरिंग शुरू कर दी, जिस के जवाब में पुलिस ने भी गोली चलाई. इस मुठभेड़ में सद्दाम के पैर में गोली लगी और उसे घायल अवस्था में जिला अस्पताल में भरती कराया गया. निहाल के परिजनों में उस के भाई नयाब की तहरीर पर सद्दाम, फरमान, अनीस और युवती यानी होने वाली दुलहन गुलफ्शां निवासी धनुपुरा रामपुर के खिलाफ अपहरण कर हत्या करने की रिपोर्ट लिखी गई. पुलिस ने फरमान को गिरफ्तार कर लिया. उस ने बताया कि निहाल का अपहरण कर गला घोंट कर हत्या की गई और शव को जंगल में एक मक्के के खेत में छिपा दिया था. उस का मोबाइल तोड़ दिया था.

दोनों आरोपियों की निशानदेही पर 16 जून, 2025 को अजीमनगर थाना क्षेत्र के रतनपुरा जंगल से निहाल का शव बरामद कर लिया गया. पूछताछ में सद्दाम ने निहाल की मंगेतर गुलफ्शां का भी नाम लिया. उस ने बताया कि उस के कहने पर ही उन्होंने निहाल की हत्या की है. सद्दाम ने यह भी स्वीकार किया कि वह गुलफ्शां से मोहब्बत करता है. पुलिस ने प्रेमी सद्दाम और फरमान को गिरफ्तार कर लिया तो गुलफ्शां और अनीस फरार हो गए थे. गुलफ्शां पर निहाल की हत्या की क्राइम स्टोरी की साजिश रचने का आरोप था. उस की भूमिका की पुलिस बारीकी से जांच में जुटी थी. इस के लिए सुबूत भी जुटाने के लिए उस की काल डिटेल्स भी खंगाली गई.

इस वारदात से 2 घरों में मातम का माहौल बन गया था. जबकि 6 महीने पहले रिश्ता तय होने के बाद से ही गूजर टोला स्थित फकीरों वाली मसजिद निवासी निहाल के घर में शादी की तैयारियां चल रही थीं. निहाल ने निकाह के लिए खास ड्रेस बनवाई थी. घर मेहमानों से भरा था. निहाल की शादी को ले कर सभी खुश थे. 15 जून, 2025 रविवार को बारात जानी थी, लेकिन खुशियों को न जाने किस की नजर लग गई. शादी से महज एक दिन पहले ही निहाल का अपहरण कर उसे मौत के घाट उतार दिया गया. दूल्हे की ड्रेस में निहाल को देखने के लिए आतुर अब्बूअम्मी ने जब उस का कफन में लिपटा शव देखा तो वे बेसुध हो गए. अन्य परिजनों का भी रोरो कर बुरा हाल हो गया.

फेमिली वालों ने गमगीन माहौल में 16 जून की देर रात उसे सुपुर्द ए खाक कर दिया. रामपुर के एसपी विद्यासागर मिश्र के अनुसार लिखे जाने तक गुलफ्शां से पूछताछ की जानी थी. वह अपने 32 वर्षीय पड़ोसी सद्दाम से एक साल से प्रेम संबंध कायम किए हुए थी. गुलफ्शां की शादी तय होने के बाद से वह नाराज था. इसे ले कर वह गुलफ्शां के घर जा कर झगड़ा भी कर चुका था. निहाल की हत्या की साजिश रचने के आरोप में घिरी गुलफ्शां के घर भी मातम छा गया. गुलफ्शां के अब्बू आशिक अली ने पुलिस से उसे बचाने की गुहार लगाई है. उन का कहना था कि वह बहुत गरीब हैं. उन के 9 बच्चे हैं. उधार ले कर बेटी की शादी कर रहे थे.

उन्होंने पुलिस को बताया कि हत्यारोपी सद्दाम अकसर उन की बेटी को शादी न करने के लिए धमकी देता था. उस ने परिवार तक को खत्म करने की धमकी दी थी.  सद्दाम से पुलिस द्वारा पूछताछ में जो क्राइम स्टोरी सामने आई, उस से पता चला कि दोनों एकदूसरे से प्यार करते थे. सद्दाम ने पुलिस को बताया है कि उस के और गुलफ्शां के बीच लव अफेयर चल रहा था. उस ने गुलफ्शां से शादी की इच्छा भी जताई थी, लेकिन गुलफ्शां के परिजनों ने उस का निकाह निहाल से तय कर दिया था.

गुलफ्शां के साथ ही उस की बहन की भी शादी थी. गुलफ्शां की बारात तो नहीं आई, लेकिन उस की बहन की बारात आई. गुलफ्शां की बहन का निकाह संपन्न हुआ, लेकिन गुलफ्शां व उस के फेमिली वाले दूसरी बारात का इंतजार ही करते रहे. देर रात जब पुलिस यहां पहुंची, तब उन्हें जानकारी हुई कि गुलफ्शां के होने वाले शौहर की हत्या हो चुकी है. UP Crime News

 

 

Love Crime Story : प्यार हुआ खूंखार

Love Crime Story : बदले की भावना को ध्यान में रख कर गुस्से में उठाया गया कदम अकसर नुकसान ही कराता है. बंटी और परमजीत कौर ने भाग कर लवमैरिज की. जिस बंटी के लिए परमजीत कौर ने अपने घरपरिवार को छोड़ा था, वही इतना खूंखार बन जाएगा, परमजीत कौर ने इस की कल्पना तक नहीं की थी…

17 अगस्त, 2021 को सुबह के कोई 8 बजे का वक्त रहा होगा. एक 8 वर्षीय बच्ची को बदहवास स्थिति में भागते देख प्रधान सुखवीर सिंह से रहा नहीं गया. उन्होंने बच्ची को रोकने की कोशिश की तो बच्ची जोरजोर से चीखने लगी, ‘‘उन लोगों ने मेरी मम्मी और मेरी नानी को काट डाला. वे मुझे भी मार डालेंगे.’’

बच्ची की बात सुनते ही प्रधान सुखवीर हैरान रह गए. उन की समझ में नहीं आ रहा था कि वह बच्ची किस की है और कहां रहती है? वह किस के मरनेमारने की बात कर रही थी.

Love became dangerous

‘‘बेटा, तुम्हारी मम्मी और नानी कहां पर हैं.’’ प्रधानजी ने प्यार से बच्ची से पूछा तो उस ने बताया कि वे दोनों नाले के पास पड़ी हुई हैं. यह सब जानकारी देने के बाद बच्ची अपने घर की ओर भागी. उस मासूम बच्ची की हालत देख कर प्रधान सुखवीर सिंह इतना तो समझ ही गए थे कि आज सुबहसुबह ही कोई न कोई बड़ी वारदात हो गई है. उस वक्त तक प्रधानजी के डेरे पर कुछ अन्य लोग भी आ कर खड़े हो गए थे. तभी प्रधानजी कुछ लोगों के साथ हकीकत जाने के लिए उस रास्ते की ओर बढ़ गए, जिधर से वह बच्ची थोड़ी देर पहले ही भागती हुई आई थी. कोई एकडेढ़ किलोमीटर चलने के बाद उन लोगों को रास्ते के किनारे ताजा खून के निशान दिखाई दिए.

लोगों ने आसपास छानबीन की तो वहीं पर सड़क किनारे रक्तरंजित 2 लाशें पड़ी मिलीं. दोनों लाशों की शिनाख्त भी तुरंत ही हो गई थी. दोनों लाशें भोगपुर फार्म निवासी 70 वर्षीय जीत कौर पत्नी स्व. दयाल सिंह व उन की बेटी परमजीत कौर की थी. लेकिन परमजीत कौर की 8 वर्षीय बेटी नैना किसी तरह हमलावरों को चकमा दे कर जान बचाने में सफल हो गई थी. इस सनसनीखेज हत्याकांड की जानकारी मिलते ही क्षेत्र में हड़कंम मच गया. ग्राम प्रधान सुखवीर सिंह ने इस घटना की जानकारी स्थानीय पुलिस चौकी पतरामपुर प्रभारी दीवान सिंह बिष्ट को दी. सुबहसुबह ही क्षेत्र में डबल मर्डर केस की जानकारी मिलते ही पुलिस महकमे में भी हलचल मच गई थी. डबल मर्डर की सूचना पाते ही जसपुर कोतवाल जगदीश सिंह देउपा व एएसपी प्रमोद कुमार पुलिस बल के साथ मौके पर पहुंचे.

घटनास्थल पर पहुंचते ही पुलिस ने उस खौफनाक मंजर की जांचपड़ताल की. दोनों की किसी तेज धार वाले हथियार से गरदन रेत कर हत्या की गई थी. घटनास्थल ही इस बात का गवाह था कि हत्या होने से पहले दोनों ने हत्यारों से काफी संघर्ष किया था. लेकिन तेज हथियारों के सामने उन की एक न चली थी. जांचपड़ताल पूरी हो जाने के बाद पुलिस ने अपनी काररवाई कर दोनों लाशें पोस्टमार्टम हेतु काशीपुर सरकारी अस्पताल भेज दी. पुलिस ने गांव वालों से इस मर्डर केस के बारे में जानकारी ली तो पता चला कि काफी समय से जीत कौर का उस के तलाकशुदा दामाद से विवाद चल रहा था.

पुलिस पूछताछ के दौरान जानकारी मिली कि बलविंदर कौर को काफी समय पहले जीत कौर ने गोद लिया था. 2 साल पहले जीत कौर ने उस की शादी टांडा प्रभापुर निवासी बंटी के साथ की थी. लेकिन एक साल बीततेबीतते किसी कारण उन का तलाक हो गया. इस जानकारी पर पुलिस ने मौके पर मौजूद 8 वर्षीय मासूम नैना से पूछताछ की तो उस ने रोते हुए बताया कि पैदल जाते वक्त झाडि़यों में छिपे बैठे उस के मौसा बंटी और उन के साथी ने उन की नानी और मम्मी को मार डाला. उस के बाद वह बुरी तरह से डरीसहमी सड़क पार कर के छिपतेछिपाते अपने घर पहुंची.

पुलिस ने उसी शाम भादंवि की धारा 34/302 के तहत नामजद मुकदमा दर्ज कर लिया. इस के बाद पुलिस ने अपनी काररवाई करते हुए आरोपियों के घर दबिश दी. लेकिन दोनों ही आरोपी घर से फरार मिले. उस के बाद पुलिस ने उन के परिजनों को पूछताछ के लिए उठा लिया. इस मामले में पुलिस को उन लोगों से कोई जानकारी न मिल सकी. इस केस की तह तक पहुंचने के लिए जसपुर कोतवाली प्रभारी जगदीश सिंह देउपा के नेतृत्व में एक पुलिस टीम गठित की, जिस के बाद पुलिस टीम द्वारा कई अज्ञात स्थानों पर आरोपियों की गिरफ्तारी के लिए छापेमारी की, लेकिन कहीं भी उन का का कोई सुराग नहीं लगा.

पुलिस आरोपियों को गिरफ्तार करने के लिए हाथपांव मार ही रही थी कि 19 अगस्त, 2021 को पुलिस को एक मुखबिर द्वारा सूचना मिली कि आरोपी बंटी और उस का चाचा बलविंदर सिंह कहीं जाने की फिराक में हैं. वे इस समय जसपुर काशीपुर रोड पर सतकार ढाबे के पास खड़े बस का इंतजार कर रहे हैं. यह सूचना मिलते ही पुलिस टीम ने तत्परता दिखाते हुए दोनों को घेराबंदी कर गिरफ्तार कर लिया. दोनों को गिरफ्तार कर पुलिस टीम जसपुर कोतवाली ले आई. दोहरे मर्डर का हुआ खुलासा कोतवाली लाते ही दोनों से कड़ी पूछताछ की तो दोनों ने अपना जुर्म कबूल कर लिया. पुलिस पूछताछ में बंटी ने बताया कि उस की सास और साली परमजीत कौर आए दिन उस से किसी न किसी बात पर झगड़ती रहती थी.

बंटी ने बताया कि उन का चाचा बलविंदर उन्हीं के पास रहता था. लेकिन मांबेटी उसे उस के चाचा के पास तक नहीं जाने देती थी, जिस से चिढ़ कर ही उस ने अपने चाचा के साथ मिल कर दोनों की हत्या कर दी. आरोपियों से पूछताछ के बाद पुलिस ने बंटी और बलविंदर सिंह की निशानदेही पर घटना में प्रयुक्त पाटल, घटना के दौरान पहने गए खून सने कपड़े और घटना को अंजाम देने में प्रयुक्त मोटरसाइकिल भी बरामद कर ली थी. इस हत्याकांड के खुलासे के बाद जो सच्चाई सामने आई, वह बहुत ही विचित्र दर्दभरी कहानी थी. जो प्रेम कहानी से शुरू हो कर तलाक तक पहुंची, लेकिन उस के बाद भी इस कहानी के कारण पूरे 6 मासूम बच्चे लावारिस हो गए थे.

उत्तराखंड के ऊधमसिंह नगर का एक कस्बा है जसपुर. इसी कस्बे से 7 किलोमीटर उत्तर दिशा में एक गांव पड़ता है भोगपुर फार्म. यह गांव वन के किनारे बसा हुआ है, जहां पर कोई ज्यादा आबादी नहीं, लेकिन अपने खेतों पर ही घर बना कर कुछ रायसिक जाति के लोग रहते हैं. इस कहानी की शुरुआत इसी गांव से होती है. इसी गांव में रहता था दयाल सिंह का परिवार. दयाल सिंह के पास जुतासे की जमीन नहीं थी. वह गांव के अन्य लोगों के खेतों में काम कर के ही अपने परिवार की जीविका चलाते थे. उन्हीं के पास उन के छोटे भाई गुरबख्श सिंह भी रहते थे. दोनों भाइयों का अलगअलग रहना था. दोनों ही भाई बहुत पहले से शराब बेचने के धंधे से जुड़े थे, जिस के सहारे ही दोनों के परिवारों की गुजर होती थी.

दयाल सिंह के 2 बेटे और 2 बेटियां थीं, परमजीत कौर और बलविंदर कौर. परमजीत कौर उस की अपनी बेटी थी. जबकि बलविंदर कौर को उस ने अपने भाई से गोद लिया था. समय गुजरते चारों बच्चे जवान हुए तो दयाल सिंह ने जैसेतैसे कर 2 बेटों की शादी कर दी. लड़कों की शादी हो जाने के बाद दोनों अलगअलग रह कर अपनी गृहस्थी संभालने लगे थे. दयाल सिंह का बड़ा बेटा शुरू से ही बीमार रहता था. उस की बीमारी के कारण उस की बीवी उसे छोड़ कर चली गई. उस के चले जाने के बाद कुछ समय के बाद ही पूरन सिंह किसी बीमारी से मर गया.

राज कौर थी तेजतर्रार दयाल सिंह ने अपने दूसरे बेटे कुलवंत सिंह की शादी काशीपुर के नजदीक गांव रमपुरा की रहने वाली राज कौर से की थी. शादी के कुछ समय बाद तक तो राज कौर परिवार के साथ मिलजुल कर रही, लेकिन कुछ ही समय बाद सासबहू में अनबन रहने लगी. राज कौर तेजतर्रार थी. इसी कारण वह ज्यादा समय तक परिवार के साथ निभा नहीं पाई. उस ने पति कुलवंत को उल्टीसीधी पट्टी पढ़ा कर मांबेटी के प्रति कान भरने आरंभ कर दिए थे. जिस के कारण कुलवंत सिंह मांबहन की तरफ से लापरवाह हो गया. फिर राज कौर ने कुलवंत सिंह पर अलग रहने के लिए दबाव बनाना शुरू कर दिया था.

लेकिन कुलवंत सिंह का कहना था कि जब तक उस की दोनों बहनों की शादी नहीं हो जाती, वह परिवार से अलग नहीं हो सकता. उस वक्त तक परमजीत कौर भी जवान हो चुकी थी. उस की पत्नी राज कौर हर समय दयाल सिंह और उन की बीवी जीत कौर को ले कर झगड़ती रहती थी. जबकि दयाल सिंह अपनी बीवी जीत कौर के साथ अलग ही रहते और अपना खाना अलग ही बना कर खाते थे. इस के बावजूद भी कुलवंत सिंह और राज कौर के बीच मनमुटाव बना रहा था. उस वक्त तक परमजीत कौर भी जवानी के मुकाम पर आ खड़ी हुई थी. बेटे की शादी के बाद दयाल सिंह को परमजीत कौर की शादी की चिंता सताने लगी थी. लड़की की शादी की बात मन में उठते ही दयाल सिंह ने बेटी के लिए लड़का तलाशना शुरू कर दिया था.

प्रेमी के साथ भाग कर परमजीत कौर ने की लवमैरिज अभी दयाल सिंह उस के योग्य वर की तलाश कर भी नहीं पाए थे कि उसी दौरान एक दिन उन की बेटी परमजीत कौर अचानक घर से लापता हो गई. जवान बेटी के अचानक गायब होने से दयाल सिंह का परिवार परेशान हो उठा. दयाल सिंह ने अपने रिश्तेदारों की सहायता से उसे हर जगह ढूंढा, लेकिन उस का कहीं भी अतापता नहीं चला. उसी भागदौड़ के दौरान दयाल सिंह को पता लगा कि उन की बेटी उन के ही पड़ोसी भूपेंद्र उर्फ पप्पू के साथ गई है. घर से भागने के बाद दोनों ने शादी भी कर ली थी.

दयाल सिंह को जब इस बात की जानकारी मिली तो उन्हें दुख भी हुआ और गुस्सा भी आया. लेकिन दयाल सिंह जानते थे कि भूपेंद्र सिंह एक झगड़ालू किस्म का युवक है. उस से बात करना उचित नहीं. उस के बाद उन्होंने लड़की की किस्मत उसी के साथ जोड़ते हुए चुप रहने में ही भलाई समझी. कुछ दिन बाहर रह कर भूपेंद्र सिंह परमजीत कौर को साथ ले कर अपने घर आ गया. भूपेंद्र सिंह का घर दयाल सिंह के घर के नजदीक ही था. परमजीत कौर अपने मायके के सामने आ कर रहने लगी थी. यह कुलवंत सिंह को बहुत अखरता था. उस ने कई बार भूपेंद्र सिंह को वहां से कहीं चले जाने का दबाव भी बनाया, लेकिन वह कहीं भी जाने को तैयार न था.

बलविंदर सिंह भूपेंद्र सिंह के परिवार से ही था. इसी बात को ले कर भूपेंद्र सिंह और दयाल सिंह के परिवार में मनमुटाव चला आ रहा था. उसी मनमुटाव के चलते टूटते रिश्तों से जमीनजायदाद पर आ टिका था. दयाल सिंह और बलविंदर सिंह दोनों ही शराब बेचने का काम करते थे. उन दोनों के बीच एकदूसरे के ग्राहकों को तोड़ने का सब से बड़ा विवाद था. जिस के कारण दोनों परिवारों में आपस में लड़ाईझगड़ा होना आम बात हो गई थी. उसी समय की बात है एक दिन किसी बात पर दोनों परिवारों के बीच काफी लड़ाईझगड़ा हुआ. लड़ाईझगड़े के दौरान एक दिन बलविंदर सिंह ने जीत कौर को अकेला पा कर मारापीटा.

जीत कौर की उस वक्त एक न चली तो उस ने जसुपर थाने में बलविंदर सिंह के खिलाफ बलात्कार की एफआईआर दर्ज करा दी. जिस के कारण बलविंदर सिंह को जेल की हवा खानी पड़ी. उसी समय किसी बीमारी के चलते दयाल सिंह की भी मौत हो गई. दयाल सिंह की मौत के बाद कुलवंत सिंह अपने परिवार में अकेला ही रह गया था. समय के साथ कुलवंत सिंह की पत्नी राज कौर 3 बच्चों अभिजीत, चरण कौर व अमृत सिंह की मां बनी. वहीं कुलवंत सिंह की बहन परमजीत कौर भी विजय, हरमन कौर तथा नैना तीन बच्चों की मां बनी. दोनों भाईबहनों के 3-3 बच्चे वह भी लगभग एक ही उम्र के थे. भले ही दोनों परिवारों में कितना भी बड़ा विवाद चल रहा था. लेकिन बच्चे बच्चे ही होते हैं. उन्हें अपने परिवार की रंजिश से कोई लेनादेना नहीं था.

दोनों परिवारों के बच्चे एक ही साथ खेलते थे. दयाल सिंह के गुजर जाने के बाद जीत कौर भी अपनी बेटी परमजीत कौर के साथ मनमुटाव को भुला कर उस से बातचीत करने लगी थी. जिस के बाद दोनों का एकदूसरे के घर आनाजाना भी चालू हो गया था. लेकिन यह बात भूपेंद्र सिंह को अखरने लगी थी. उस ने अपने परिवार के दबाव में आ कर परमजीत कौर को उस की मम्मी के पास जाने से रोकने की काफी कोशिश की, लेकिन उस की एक न चली. उस वक्त तक बलविंदर सिंह भी जेल से छूट कर घर आ गया था. बलविंदर सिंह और जीत कौर थे दुश्मन जेल से आ कर बलविंदर सिंह जीत कौर का कट्टर दुश्मन बन गया था. वह हर समय उसी से बदला लेने की फिराक में लगा रहता था.

हालात यहां तक आ पहुंचे कि बलविंदर सिंह बिना किसी कारण जीत कौर के परिवार को मारने मरने पर उतारू हो जाता था. भूपेंद्र सिंह के सामने भी अजीब सी स्थिति पैदा हो गई थी. एक तरफ उस का परिवार खड़ा था तो दूसरी तरफ उस की बीवी. इस लड़ाईझगड़े से भूपेंद्र सिंह इतना परेशान हो उठा कि एक दिन वह घर से बिना बताए ही कहीं चला गया. उस के जाने के बाद परिवार ने उसे हर जगह खोजा, लेकिन उस का कहीं भी अतापता न चल सका. उस के चले जाने पर परमजीत कौर के सामने 3 बच्चों के पालने की जिम्मेदारी आ खड़ी हुई थी. आर्थिक स्थिति सामने आ खड़ी हुई तो परमजीत कौर ने अपनी मां का दामन थाम लिया.

उस के बाद दोनों ही मांबेटी गांव के खेतों में कामकाज कर के अपनी रोजीरोटी चलाने लगी थीं. बलविंदर सिंह उस वक्त भी शराब बेचने का काम करता था. उसी शराब बेचने के धंधे से जुड़ा था उस का भतीजा बंटी. बंटी जसपुर कोतवाली के गांव टांडा प्रभापुर में रहता था. बंटी का बलविंदर सिंह के घर पर पहले से ही आनाजाना था. उसी आनेजाने के दौरान उस की नजर एक दिन जीत कौर की गोद ली हुई बेटी बलविंदर कौर पर पड़ी. परमजीत कौर की बहन बलविंदर कौर भी प्रेमी के साथ भाग गई बलविंदर कौर देखने में सुंदर थी. बंटी की शादी नहीं हो पा रही थी. उस ने बलविंदर कौर को देखा तो उस का मन मचल गया. बलविंदर कौर को देखते ही उस ने प्रण किया कि चाहे कुछ भी हो वह उसे पटा कर ही छोड़ेगा.

उस के बाद वह उसे पाने के लिए उस के पीछे हाथ धो कर ही पड़ गया. उस वक्त तक बलविंदर कौर भी जवानी के मुकाम पर आ खड़ी हुई थी. बंटी के मन में बलविंदर के प्रति प्यार उमड़ा तो उसे पाने की जुगत में लग गया था. कई बार बलविंदर कौर ने बंटी की नजरों को परखने की कोशिश की. वह हर बार ही उसे ताड़ता रहता था. उसे उस की निगाहों का खेल समझने में देर न लगी. उसे देख कर उस के मन में भी हलचल पैदा हो गई थी. जिस के बाद वह भी मन ही मन उसे चाहने लगी थी. दोनों के बीच इशारोंइशारों में बात आगे बढ़ी तो जल्दी ही दोनों एकदूसरे के दीवाने हो गए थे. बंटी ने बलविंदर कौर का मोबाइल नंबर ले लिया और फिर दोनों की बातचीत शुरू हो गई.

दोनों के बीच प्रेम कहानी शुरू हुई तो बात साथ जीनेमरने तक जा पहुंची थी. धीरेधीरे यह बात जीत कौर और उस की बेटी परमजीत कौर के सामने भी आ गई थी. यह जानकारी मिलते ही मां बेटी ने बलविंदर कौर को समझाने की कोशिश की. लेकिन बलविंदर कौर मौन साध गई थी. उसी दौरान एक दिन बलविंदर कौर भी अपनी बहन परमजीत कौर की तरह ही अपनी मां को छोड़ कर बंटी के साथ भाग गई. बलविंदर कौर के भागने की सूचना मिली तो जीत कौर को बहुत दुख हुआ. उसे अपनी गोद ली बेटी से ऐसी उम्मीद न थी. उस के बाद भी जीत कौर ने बलविंदर कौर से मिल कर उसे समझाने की कोशिश की, लेकिन उस ने अपनी मां की एक न मानी.

जीत कौर ने बंटी के गांव जा कर पंचायत तक की, लेकिन बात नहीं बनी तो उस ने भी बलविंदर कौर को उस के ही नसीब के सहारे छोड़ दिया. पंचायत ने तुरंत ही फैसला लेते हुए बलविंदर कौर की शादी बंटी के साथ करा दी थी. उस के बाद से ही वह अपनी ससुराल में रह रही थी. एक के बाद एक मिले सदमे बलविंदर कौर की शादी के बाद जीत कौर उस सदमे से उबर भी न पाई थी. उसी दौरान अब से लगभग एक साल पहले कुलवंत सिंह की किसी ने हत्या कर दी. कुलवंत सिंह की हत्या के बाद जीत कौर पूरी तरह से टूट चुकी थी. उस के जीने का इकलौता सहारा भी छिन गया था.

भाई की हत्या की खबर सुन कर बलविंदर कौर भी अपनी मां से मिलने आई थी. ऐसी दुख की घड़ी में बलविंदर कौर अपनी मां की खैरखबर लेने आई तो जीत कौर को भी अच्छा लगा. उस के बाद बलविंदर कौर ने अपने मायके आनाजाना चालू कर दिया था. कुलवंत सिंह के खत्म होते ही उस की बीवी राज कौर अपने मायके काशीपुर के रमपुरा में जा कर रहने लगी थी. जीत कौर को उम्मीद थी कि वह अपने पति के सदमे में आ कर अपना मन बहलाने के लिए अपने मायके चली गई होगी. लेकिन काफी समय बीत जाने के बाद भी जब वह ससुराल नहीं आई तो जीत कौर को ही उसे बुलाने के लिए जाना पड़ा.

जीत कौर को देख कर भी वह उस के पास तक नहीं आई और न ही कोई बात की. राज कौर ने उस के साथ जाने से साफ मना कर दिया. उस का कहना था कि जब उस का पति ही नहीं रहा तो वह ससुराल जा कर क्या करेगी. उस ने अपने बच्चों को भी लाने से साफ मना कर दिया था. यह सब सुन कर जीत कौर हक्कीबक्की रह गई. उस के बाद वह अपना सा मुंह ले कर घर वापस चली आई. कुलवंत सिंह की मौत के बाद उस के बच्चों और उस की बेटी परमजीत कौर के बच्चों की परवरिश की समस्या पैदा हो गई थी. उसी समस्या से निपटने के लिए जीत कौर ने शराब बेचने का धंधा अपना लिया था. जिस के सहारे दोनों मांबेटी 6 बच्चों की गुजरबसर कर रही थीं.

बंटी करने लगा प्रताडि़त बलविंदर की शादी को अभी एक साल पूरा भी नहीं हो पाया था. उसी दौरान बंटी उसे परेशान करने लगा. बातबात पर बंटी उसे मारनेपीटने लगा था. इसी अनबन के चलते बलविंदर कई बार अपने मायके चली आती थी. बंटी अपनी ससुराल आता और उसे बुला कर ले जाता. लेकिन अपने घर जाते ही वह फिर से उसे प्रताडि़त करना शुरू कर देता था. जब दोनों के बीच बढ़ा विवाद चरम पर पहुंच गया तो गांव में पंचायत के जरिए मामला निपटाने की कोशिश की. उस दौरान बलविंदर कौर प्रेगनेंट थी. जब भरी पंचायत में भी दोनों के एक साथ रहने की सहमति नहीं बनी तो दोनों ने अलगअलग रहने का फैसला कर लिया. फिर भी बंटी ने बलविंदर कौर से तलाक लेने के लिए एक शर्त रखी.

शर्त के अनुसार बलविंदर कौर जिस बच्चे को जन्म देगी, उस पर केबल बंटी का ही अधिकार होगा. इस बात पर सहमति बनते ही दोनों ने एकदूसरे से तलाक ले लिया. बंटी से तलाक ले कर बलविंदर कौर अपने मायके आ कर रहने लगी थी. बलविंदर कौर से तलाक लेने के बाद बंटी परेशान रहने लगा. उस के बाद उसे अपने किए पर काफी अफसोस भी हुआ. लेकिन अब उस के पास पछताने के सिवा कोई अन्य रास्ता नहीं था. बंटी अभी भी अपने चाचा के पास शराब के धंधे के चक्कर में आताजाता रहता था. उस की निगाहें बलविंदर कौर पर पड़तीं तो पागलों की तरह देखता रहता था. वह अभी भी चाहता था कि बलविंदर कौर उस के पास चली आए. लेकिन बलविंदर कौर उस के साथ बिताए दिन भुला नहीं पाई थी. जिस के कारण वह उस की तरफ नजर भर के देखना भी नहीं चाहती थी.

बंटी और बलविंदर कौर के साथ जो भी हुआ, बंटी उस सब का दोषी अपनी सास जीत कौर और परमजीत कौर को मानता था. बंटी की सोच थी कि बलविंदर को चढ़ा कर इन मांबेटियों ने ही उस से तलाक दिला दिया था. जिस की वजह से वह दोनों से रंजिश रखता था. हालात से टूट चुकी थी जीत कौर जीत कौर अब तक घर के हालात से बुरी तरह से टूट चुकी थी. न तो इस वक्त उस के पास पैसा ही था और न ही किसी से लड़नेझगड़ने की शक्ति. बंटी उस की बेटी को तलाक देने के बाद फिर से उस के घर के इर्दगिर्द चक्कर काटने लगा था. जिस के कारण तीनों मांबेटी परेशान थीं. जीत कौर अपनी बेटी बलविंदर कौर को ले कर पहले ही परेशान थी. उस का इतनी सी कम उम्र में ही पति से तलाक हो गया था. वह अभी जवान ही थी.

जीत कौर ने कई बार बलविंदर के सामने उस की दूसरी शादी करने वाली बात रखी, लेकिन उस ने अपनी मां से साफ कह दिया था कि वह अब दूसरी शादी नहीं करेगी. फिर भी अपनी बेटी बलविंदर कौर की चोरीछिपे जीत कौर ने उस की जिंदगी संवारने के लिए एक अच्छे लड़के की तलाश शुरू की. कुछ ही दिनों में उस की मेहनत रंग लाई. उसे बेटी के योग्य एक लड़का मिल गया. सितारगंज निवासी एक युवक को पसंद करते ही उस ने उस की शादी भी तय कर दी थी. 28 अगस्त, 2021 को उस की बारात आनी थी. बलविंदर कौर की शादी की बात पक्की होने की खबर किसी तरह से बंटी तक भी पहुंच गई थी. बलविंदर कौर की दूसरे लड़के के साथ शादी वाली बात सुनते ही बंटी पागल सा हो गया. उसे ऐसी उम्मीद नहीं थी. यह सुनते ही उस के तनबदन में आग लग गई.

उस के बाद उस ने प्रण किया कि वह किसी भी कीमत पर बलविंदर की शादी किसी दूसरे लड़के के साथ नहीं होने देगा, चाहे उसे बलविंदर कौर की हत्या ही क्यों न करनी पड़े. उस के बाद उस ने कई बार बलविंदर कौर से मिलने की कोशिश की, लेकिन वह सफल न हो सका. 11 अगस्त, 2021 को बंटी भोगपुर डाम में शराब बेच कर अपने घर की ओर जा रहा था. उस दिन बलविंदर कौर की शादी को ले कर मांबेटी की बंटी से नोंकझोंक हो गई, जिस के बाद जीत कौर और परमजीत कौर ने उस की लाठीडंडों से पिटाई की थी. बंटी ने चाचा बलविंदर के साथ बनाई योजना बंटी ने उसी दिन मांबेटी को खत्म करने का फैसला ले लिया था. फिर जल्दी दोनों को मारने का प्लान बनाना भी चालू कर दिया था. इस प्लान की योजना उस ने अपने चाचा बलविंदर सिंह को भी बता दी थी.

बलविंदर सिंह खुद ऐसे मौके की तलाश में लगा हुआ था. वह दोनों से पुरानी दुश्मनी निभाने को तैयार था. बंटी की बात सुनते ही बलविंदर तुरंत ही उस का साथ देने के लिए तैयार हो गया. यह बात बलविंदर सिंह ने अपनी पत्नी को भी बता दी थी. बलविंदर सिंह ने अपनी पत्नी जसविंदर कौर को भी इस योजना में शामिल करते हुए कहा था कि उसे तो केवल उन का पीछा करना है. जिस दिन मांबेटी कहीं जाने की योजना बनाएं, वह फोन कर उन्हें जानकारी दे दे. 17 अगस्त, 2021 को जीत कौर अपनी बेटी परमजीत कौर को साथ ले कर जसपुर जाने वाली थी. इस की जानकारी मिलते ही यह सूचना जसविंदर कौर ने अपने पति बलविंदर सिंह को मोबाइल पर दे दी थी.

जिस वक्त जसविंदर कौर ने यह सूचना बलविंदर सिंह को दी, उस वक्त बंटी भी उस के साथ था. दोनों ही उस वक्त मोटरसाइकिल पर शराब ले कर बेचने जा रहे थे. इस जानकारी के मिलते ही दोनों ने शराब आसपास छिपा दी और फिर दोनों पाटल व अन्य धारदार हथियार ले कर जसपुर जाने वाली नहर के किनारे बने रास्ते पर चलने लगे. कुछ दूर पर ही जीत कौर अपनी बेटी परमजीत कौर के साथ आती दिखाई दी. उन्हें सामने से आते देख बलविंदर सिंह ने अपनी बाइक नहर के किनारे झाड़ी में खड़ी कर दी और स्वयं भी वही पर छिप गए. जैसे ही जीत कौर अपनी बेटी के साथ उन के सामने से गुजर रही थी, तभी मौका पाते ही दोनों ने पीछे से अचानक हमला बोल दिया. जिस के कारण मांबेटी ने मौके पर ही दम तोड़ दिया था.

उस वक्त परमजीत कौर की छोटी बेटी नैना भी उस के साथ थी. लेकिन उस ने हिम्मत से काम लिया और वह फुरती से नहर के किनारे खड़ी झाडि़यों के पीछे छिप गई. जैसे ही बलविंदर कौर और बंटी वहां से चले गए तो उस ने वहां से अपने घर की ओर दौड़ लगा दी. जिस के कारण ही इस घटना का खुलासा हो सका था. पुलिस ने इस मामले में जसविंदर कौर पत्नी बलविंदर सिंह उर्फ बिल्लू की संलिप्तता पाई जाने के कारण कोतवाली में दर्ज केस में धारा 120बी आईपीसी जोड़ कर अभियुक्ता जसविंदर कौर को भी गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया था. लेकिन मांबेटी के खत्म होने के कारण 6 मासूम बच्चों का भविष्य अधर में लटक गया था.

जीत कौर की हत्या के बाद उस की भतीजी बलविंदर कौर को छोड़ बच्चों की देखरेख करने वाला कोई नहीं बचा था. Love Crime Story