Love Story: दिल लगाने का अपराध

Love Story: मारपीट, चोरीडकैती, अपहरण और फिरौती वसूलने जैसे अपराध करने वाले वैभव को शादीशुदा ज्योत्सना से दिल लगा कर जिंदगी से हाथ क्यों धोना पड़ा. 23 अगस्त की रात के यही कोई 8 बजे महानगर मुंबई के व्यस्ततम थाना डोंगरी के चार्जरूम में ड्यूटी पर मौजूद महिला सबइंसपेक्टर गिरिजा मस्के के सामने रोनी सूरत लिए एक चेहरा अपने पूरे परिवार के साथ आ कर खड़ा हो गया. गिरिजा मस्के उस चेहरे और उस के परिवार वालों को अच्छी तरह से पहचानती थीं. वह विशाल आचरेकर था, जो आपराधिक प्रवृत्ति के वैभव आचरेकर का बड़ा भाई था.

भाई के मामलों में वह अकसर थाना डोंगरी आता रहता था, इसलिए सबइंसपेक्टर गिरिजा मस्के उसे और उस के घर वालों को अच्छी तरह से पहचानती थीं. इसी वजह से उन्होंने सीधे पूछा, ‘‘कहिए, क्या बात है, वैभव ने फिर कोई कांड कर दिया क्या?’’

‘‘नहीं मैडम, इस बार उस ने कोई कांड नहीं किया, बल्कि लगता है वह खुद ही किसी कांड का शिकार हो गया है.’’ विशाल आचरेकर ने भर्राई आवाज में कहा, ‘‘मैडम, 20 अगस्त की सुबह वह घर से निकला था, तब से उस का कुछ अतापता नहीं है. उस का मोबाइल फोन भी बंद है.’’

‘‘चिंता करने की कोई बात नहीं है. अपराध कर के कहीं छिपा होगा. 2-4 दिनों में अपने आप ही आ जाएगा.’’ सबइंसपेक्टर गिरिजा मस्के ने उस की शिकायत को हल्के में लेते हुए कहा, ‘‘हो सकता है, यारोंदोस्तों के साथ कहीं चला गया हो. ऐसे लोगों का क्या भरोसा.’’

‘‘नहीं मैडम, हम लोगों ने उसे हर जगह ढूंढ लिया है. पूरी तरह निराश हो कर ही आप के पास आए हैं. वह कहीं छिपा नहीं, उस के साथ जरूर कोई अनहोनी हो गई है. अब आप ही हमारी कुछ मदद कर सकती हैं.’’

विशाल और उस के घर वालों की विनती पर सबइंसपेक्टर गिरिजा मस्के ने वैभव की गुमशुदगी दर्ज करा कर इस बात की जानकारी अपने सीनियर इंसपेक्टर संदीप डाल को दे दी. इस के बाद उन्होंने विशाल और उस के घर वालों को आश्वासन दे कर घर भेज दिया. थाना डोंगरी के सीनियर इंसपेक्टर संदीप डाल ने तत्काल इस मामले की जानकारी अधिकारियों को देने के साथसाथ पुलिस कंट्रोल रूम को भी दे दी थी. इस के बाद अधिकारियों के दिशानिर्देश पर सीनियर इंसपेक्टर संदीप डाल ने सहायक इंसपेक्टर महादेव कदम और अंकुश काटकर के साथ जांच की रूपरेखा तैयार की और फिर उन्हीं को इस मामले की जांच सौंप दी.

जांच की जिम्मेदारी मिलने के बाद इंसपेक्टर महादेव कदम और अंकुश काटकर ने एक टीम बनाई, जिस में असिस्टेंट इंसपेक्टर शशिकांत यादव, सबइंसपेक्टर संतोष कांबले, महिला सबइंसपेक्टर गिरिजा मस्के, पुलिस नायक सैयद सांलुके, कांबले, धार्गे, कनकुटे और वोडरे को शामिल किया. इस टीम ने जांच तो तेजी से शुरू की, लेकिन कोई कामयाबी हासिल नहीं हुई. 31 वर्षीय वैभव आचरेकर अपने मातापिता, भाईभाभी और बहनों के साथ मुंबई के डोंगरी इलाके में स्थित पोद्दार इमारत की दूसरी मंजिल पर रहता था. पिता का नाम देवीदास आचरेकर था. वैभव डोंगरी के जिस इलाके में रहता था, वह इलाका किसी जमाने में जानेमाने कुख्यात तस्कर करीम लाला और हाजी मस्तान का माना जाता था.

उस समय पठान भाइयों की इजाजत के बगैर इस इलाके का एक पत्ता भी नहीं हिलता था. शायद वैभव पर भी इलाके का असर पड़ गया था और वह भी अपराधी प्रवृत्ति का हो गया था. इलाके के सभी छोटेबड़े अपराधियों के बीच उस की अच्छी पैठ थी. उस के खिलाफ मारपीट, चोरीडकैती और अपहरणफिरौती जैसे कई अपराधों के मामले दर्ज थे, इसलिए थाना डोंगरी पुलिस उसे ही नहीं, उस के घर के हर सदस्य को पहचानती थी. शुरू में वैभव की अपराधी प्रवृत्ति को ध्यान में रख कर पुलिस टीम ने उस के बारे में पता लगाना शुरू किया. पुलिस को लगता था, कि अपने कारनामों की वजह से कहीं उसे मार न दिया गया हो. लेकिन इस बारे में कोई सुराग नहीं मिला.

धीरेधीरे दिन बीतते गए. वैभव को गायब हुए 4 महीने बीत गए और उस का कुछ पता नहीं चला. उस की लाश भी नहीं मिली कि मान लिया जाता कि उसे मार दिया गया है. अगर वह कोई अपराध कर के भी छिपा होता तो इतने दिनों तक न उस का अपराध छिपा रह सकता था और न वह खुद. जांच टीम वैभव के बारे में जो सोच कर जांच कर रही थी, उस से कोई फायदा नहीं हुआ, इसलिए जांच अधिकारी इंसपेक्टर महादेव कदम ने जांच की दिशा बदल दी. माना जाता है कि लड़ाईझगड़े या हत्या जैसे अपराधों की वजह जर, जमीन और जोरू होती है. यहां जर, जमीन का कोई कारण नहीं दिख रहा था, इसलिए उन का ध्यान जोरू की तरफ गया. वैभव जवान, सुंदर और अविवाहित युवक था, इसलिए उन्हें लगा कि कहीं वह किसी जोरू की वजह से तो नहीं गायब कर दिया गया.

इस की एक वजह यह भी थी कि जिस दिन वैभव गायब हुआ था, उस दिन की उस के मोबाइल फोन की लोकेशन मुंबई के उपनगर दहिसर की लाभदर्शन इमारत के आसपास की पाई गई थी. वहां उस के जाने की क्या वजह हो सकती थी? जांच टीम यह जानने के लिए उस के घर गई तो घर वाले इस बारे में कुछ खास नहीं बता सके. लेकिन जब इस टीम ने किसी महिला से संबंध के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि इसी इमारत में रहने वाली ज्योत्सना मोरे से वैभव के मधुर संबंध थे. उस के घर भी उस का खूब आनाजाना था.

पुलिस ने जब ज्योत्सना मोरे से पूछताछ की तो उस ने यह तो स्वीकार कर लिया कि पड़ोसी होने के नाते वैभव का उस के घर आनाजाना था. लेकिन न तो उस के उस से कोई गलत संबंध थे, न उसे उस की गुमशुदगी के बारे में कुछ पता है. इमारत में ईर्ष्या करने वाले लोगों ने उसे बदनाम करने के लिए उस का नाम वैभव के साथ जोड़ दिया होगा. पुलिस ने ज्योत्सना मोरे को गिरफ्तार तो नहीं किया, लेकिन वह संदेह के घेरे में आ गई थी, इसलिए उस का मोबाइल अपने पास रखने के साथ इस हिदायत के साथ घर जाने दिया कि वह पुलिस को बताए बिना मुंबई छोड़ कर कहीं नहीं जाएगी. इस के बाद पुलिस ने ज्योत्सना के बारे में पता लगाना शुरू किया.

जुटाई गई जानकारियों के आधार पर पुलिस को ज्योत्सना मोरे के बारे में जो पता चला, वह चौंकाने वाला था. पुलिस को उस के नंबर की काल डिटेल्स में एक ऐसा नंबर मिला, जिस पर उस ने वैभव के गायब होने वाले दिन कई बार बात की थी. उस नंबर वाले फोन की लोकेशन भी उसी जगह की पाई गई थी, जहां की वैभव के मोबाइल फोन की मिली थी. ज्योत्सना के भी मोबाइल फोन की लोकेशन वहां की थी. तीनों मोबाइल फोनों की लोकेशन एक जगह की मिलने की वजह से ज्योत्सना मोरे संदेह के घेरे में आ गई. यह संदेह तब और गहरा गया, जब पुलिस ने उस से उस नंबर के बारे में पूछा तो उस ने साफ कहा कि वह उस नंबर के बारे में बिलकुल नहीं जानती.

जबकि उस नंबर पर उस की लगातार बातें हो रही थीं. पुलिस को अब तक यह भी पता चल चुका था कि दहिसर की लाभदर्शन इमारत में उस का मायका था. साफ था, ज्योत्सना ने ही वैभव को वहां बुलाया होगा. इस के बाद पुलिस ने उसे हिरासत में ले लिया. 20 दिसंबर, 2014 को इंसपेक्टर महादेव कदम ने सीनियर अधिकारियों की उपस्थिति में जब ज्योत्सना से सुबूतों के आधार पर सख्ती से पूछताछ की तो वह टूट गई. उस ने वैभव की हत्या का अपना अपराध तो स्वीकार कर ही लिया, उस मोबाइल नंबर के बारे में भी बता दिया, जिस के बारे में वह अनभिज्ञता प्रकट कर रही थी.

वह मोबाइल नंबर ज्योत्सना के पुराने प्रेमी प्रकाश पाटिल का था. उसी के साथ मिल कर उस ने वैभव आचरेकर को ठिकाने लगा दिया था. इस के बाद उस की निशानदेही पर इंसपेक्टर महादेव कदम ने उसी रात उस के साथी प्रकाश पाटिल को भी गिरफ्तार कर लिया था. थाने में दोनों से की गई पूछताछ में वैभव आचरेकर की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह प्रेम त्रिकोण में की गई हत्या की थी. 34 वर्षीय प्रकाश पाटिल महाराष्ट्र के जनपद पालघर की तहसील वसई के गांव ज्यूचंद्र का रहने वाला था. उस के पिता रामचंद्र  पाटिल गांव के सुखीसंपन्न किसान थे. बीए करने के बाद प्रकाश नगर महापालिका में ठेकेदारी करने लगा था, जिस से उसे ठीकठाक आमदनी हो रही थी.

जिन दिनों वह बीए कर रहा था, उन्हीं दिनों साथ पढ़ने वाली ज्योत्सना से उसे प्यार हो गया था. ज्योत्सना भी उसे प्यार करती थी, इसलिए दोनों शादी करना चाहते थे. लेकिन किन्हीं कारणों से यह शादी नहीं हो पाई. प्रकाश के घर वालों ने उस की शादी कहीं और कर दी थी तो ज्योत्सना के घर वालों ने भी उस उस की शादी मुंबई के रहने वाले अमित मोरे से कर दी थी. दोनों ही अपनेअपने घरसंसार में सुखी थे. प्रकाश जहां 2 बेटियों का बाप बन गया था, वहीं ज्योत्सना भी एक बेटे की मां बन चुकी थी. लेकिन जब कई सालों बाद बिछड़े हुए प्रेमी एक विवाह समारोह में मिले तो इन का प्यार एक बार फिर उमड़ पड़ा.

गिलेशिकवे दूर करने के बाद प्रकाश और ज्योत्सना ने एकदूसरे के मोबाइल नंबर ले लिए थे. फोन पर बातचीत करतेकरते धीरेधीरे दोनों एक बार फिर पुराने रंग में रंग गए. ज्योत्सना पति अमित मोरे और बेटे के साथ मुंबई के डोंगरी में रहती थी. दरअसल वह अपने पति अमित मोरे से खुश नहीं थी. अमित मोरे एक बीमा कंपनी का एजेंट था. वह ज्योत्सना जैसी सुंदर और पढ़ीलिखी पत्नी पा कर खुद को धन्य समझ रहा था. इसीलिए वह उसे खुश रखने और उस की सुखसुविधाओं का पूरा खयाल रखता था. पत्नी और बेटे को किसी तरह की कोई तकलीफ न हो, इस के लिए वह दिनरात मेहनत करता था.

इसी चक्कर में वह यह भूल भी गया था कि सुखसुविधा के अलावा पत्नी को पति का प्यार भी चाहिए. देर रात वह घर लौटता तो बुरी तरह थका होता. खापी कर वह बिस्तर पर पड़ते ही सो जाता. सुबह उठता और चायनाश्ता कर के काम पर निकल जाता. उस के पास ज्योत्सना के लिए समय ही नहीं होता था. पति की इसी उपेक्षा से ज्योत्सना अंदर ही अंदर सुलग रही थी, जिस का फायदा उसी इमारत में रहने वाले वैभव आचरेकर ने उठाया. वैभव आचरेकर और अमित मोरे के बीच अच्छी दोस्ती थी. दोनों बचपन के दोस्त थे. यह अलग बात थी कि अमित मोरे ईमानदारी और मेहनत की कमाई खाता था, जबकि वैभव आचरेकर अपराध की कमाई से मौज कर रहा था. दोनों की दिशाएं अलग थीं, इस के बावजूद उन की दोस्ती में कोई फर्क नहीं पड़ा था.

वैभव कभी अमित मोरे के साथ उस के घर आया तो खूबसूरत ज्योत्सना को देख कर उस पर मर मिटा. कुंवारा होने की वजह से स्त्रीसुख से वंचित वैभव ज्योत्सना को पाने की कोशिश करने लगा. उस के हावभाव से जब उस के मन की बात ज्योत्सना को पता चली तो वह भी उस की ओर आकर्षित हो उठी. क्योंकि वह यही तो चाहती थी. धीरेधीरे ज्योत्सना वैभव की ओर खिंचने लगी. फिर तो वह स्वयं को संभाल नहीं सकी और वैभव की बांहों में समा गई. ज्योत्सना को वैभव की सशक्त बांहों का सुख मिला तो वह अमित मोरे को भूल कर उसी की हो गई. उसे जब भी मौका मिलता, वैभव को अपने फ्लैट पर बुला लेती. पहले तो वैभव ज्योत्सना के बुलाने का इंतजार करता था, लेकिन कुछ दिनों बाद जब भी उस का मन होता, वह खुद ही ज्योत्सना के फ्लैट पर पहुंच जाता.

धीरेधीरे वह ज्योत्सना को प्रेमिका कम, पत्नी ज्यादा समझने लगा. लेकिन जब ज्योत्सना की मुलाकात उस के पुराने प्रेमी प्रकाश से हुई तो वह वैभव से किनारे करने लगी. अपराधी प्रवृत्ति के वैभव को ज्योत्सना का यह व्यवहार पसंद नहीं आया. क्योंकि वह उसे किसी भी कीमत पर छोड़ने को तैयार नहीं था. उसे जब जैसी जरूरत पड़ती थी, वह ज्योत्सना को उसी हिसाब से इस्तेमाल कर लेता था. यह बात ज्योत्सना को पसंद नहीं थी. प्रकाश से मिलने के बाद वह वैभव से संबंध नहीं रखना चाहती थी. ज्योत्सना जब वैभव की मनमानियों से तंग आ गई तो उस से मुक्ति पाने के लिए परेशान रहने लगी. जब उस की परेशानी के बारे में प्रकाश पाटिल को पता चला तो उस ने ज्योत्सना के साथ मिल कर वैभव को अपने बीच से निकाल फेंकने की खतरनाक योजना बना डाली.

लेकिन वैभव मजबूत कदकाठी और अपराधी प्रवृत्ति का युवक था, इसलिए उस से सीधे निपटना ज्योत्सना और प्रकाश के वश की बात नहीं थी. इसलिए प्रकाश ने अपनी योजना में अपने एक दोस्त माइकल को भी शामिल कर लिया. योजना के अनुसार, ज्योत्सना 19 अगस्त, 2014 को अपने मायके दहिसर आ गई. वहीं से उस ने वैभव को फोन कर के मिलने के लिए वसई के रेलवे स्टेशन नायगांव बुलाया. 20 अगस्त, 2014 की सुबह वैभव अपने घर वालों को बताए बगैर ज्योत्सना से मिलने नायगांव पहुंच गया. साढ़े 10 बजे वैभव नायगांव रेलवे स्टेशन पर पहुंचा तो पहले से ही इंतजार कर रहे प्रकाश और माइकल ने उसे पकड़ लिया. दोनों खुद को पालिका इंसपेक्टर बता कर वैभव को पूछताछ के बहाने नायगांव पूर्व मित्तल क्लब हाउस के पास ले गए.

वहां पहुंच कर प्रकाश पाटिल और माइकल ने वैभव की यह कर पिटाई शुरू कर दी कि वह डोंगरी में रहने वाली ज्योत्सना मोरे को परेशान करता है और उसे धमकी दे कर बिना उस की मरजी के उस के साथ शारीरिक संबंध बनाता है. प्रकाश पाटिल और माइकल ने वैभव की इस तरह पिटाई की कि थोड़ी देर में वह बेहोश हो गया. उस के बेहोश होने के बाद प्रकाश पाटिल ने वैभव के गले में रस्सी डाल कर कस दी, जिस से उस की मौत हो गई.

वैभव को मौत के घाट उतार कर उस की लाश एक चादर में लपेटी और रात में ही माइकल की मारुति कार में रख कर उसे ठिकाने लगाने के लिए मुंबई-अहमदाबाद एक्सप्रेस हाइवे पर चल पड़े. रात 12 बजे के आसपास वे मनोर के पास बह रही नदी के पुल पर पहुंचे. उन्होंने लाश कार से निकाली और तलाशी में उस का सारा सामान निकाल कर लाश को नदी में फेंक दिया. लाश ठिकाने लगाने के बाद प्रकाश ने फोन कर के ज्योत्सना को वैभव की हत्या के बारे में बता दिया. अगले दिन वैभव की लाश किसी मछुआरे के जाल में फंस गई तो उस ने इस बात की जानकारी थाना मनोर पुलिस को दी. पुलिस ने शव बरामद कर के शिनाख्त कराने की कोशिश की. शिनाख्त न होने पर पोस्टमार्टम के बाद थाना मनोर पुलिस ने उस का अंतिम संस्कार करा दिया.

वैभव की हत्या से ज्योत्सना तो खुश थी ही, प्रेमिका को खुश कर के प्रकाश भी खुश था. जिस तरह प्रकाश ने वैभव को अपने रास्ते से हटाया था, उस का सोचना था कि पुलिस उस तक कभी नहीं पहुंच पाएगी. 4 महीने बीत गए तो उसे पूरा विश्वास हो गया कि अब वह बच गया. लेकिन पुलिस खोजतेखोजते ज्योत्सना तक पहुंच गई तो वैभव आचरेकर की हत्या का रहस्य खुल गया और वह भी पकड़ा गया. पूछताछ के बाद पुलिस ने प्रकाश के दोस्त माइकल को भी गिरफ्तार कर लिया. इस के बाद वैभव की हत्या का मुकदमा प्रकाश पाटिल, ज्योत्सना और माइकल के खिलाफ दर्ज कर के महानगर मैट्रोपौलिटन मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक तीनों अभियुक्त जेल में ही थे. Love Story

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Crime News: करवाचौथ पर मौत का उपहार – प्यार में ये क्या कर बैठा मंजीत

Crime News: 29अक्तूबर, 2018 को सुबह के करीब 8 बजे थे. तभी रोहिणी जिले के थाना बवाना के ड्यूटी अफसर हैडकांस्टेबल जितेंद्र कुमार मीणा को सूचना मिली कि दरियापुर-बवाना रोड पर वर्मी कंपोस्ट पोली फार्म के पास एक महिला को किसी ने गोली मार दी है. महिला स्कूटी से जा रही थी. ड्यूटी अफसर ने इस सूचना से इंसपेक्टर राकेश कुमार को अवगत करा दिया. इंसपेक्टर राकेश कुमार तुरंत एएसआई राजेश कुमार, कांस्टेबल यशपाल, अनिकेत आदि को ले कर घटनास्थल की ओर रवाना हो गए.

घटनास्थल थाने से पश्चिम दिशा में करीब 3 किलोमीटर दूर था, इसलिए वह जल्द ही वहां पहुंच गए. उन्हें वर्मी कंपोस्ट पोली फार्म के सामने सड़क पर सफेद रंग की स्कूटी नंबर डीएल 11 एसपी 7044 पड़ी मिली, जिस में चाबी लगी हुई थी.

वहीं पर 2 लेडीज बैग, एक हेलमेट और एक जोड़ी जूती पड़ी थी. पास में सड़क पर ही थोड़ा खून भी था और कारतूस का एक खोखा भी पड़ा था. आसपास के लोगों ने बताया कि एक महिला स्कूटी से जा रही थी, तभी किसी ने उसे गोली मार दी. कुछ लोग उसे महर्षि वाल्मीकि अस्पताल ले गए हैं. कांस्टेबल यशपाल को घटनास्थल पर छोड़ कर इंसपेक्टर राकेश कुमार महर्षि वाल्मीकि अस्पताल चले गए. वहां उन्होंने डाक्टरों से बात की तो पता चला, उस महिला की मौत हो चुकी है. महिला कौन है और कहां रहती है. पुलिस के लिए यह जानना जरूरी था.

इस के लिए पुलिस ने घटनास्थल से मिले बैगों की तलाशी ली तो पता चला मृतका का नाम सुनीता है और वह बवाना के दादा भैया वाली गली के रहने वाले मंजीत की पत्नी है. वह सोनीपत के फिरोजपुर गांव में गवर्नमेंट सीनियर सैकेंडरी गर्ल्स स्कूल में टीचर थीं. मृतका के बारे में जानकारी मिलने के बाद पुलिस ने बवाना स्थित मृतका के ससुराल वालों को सूचना दे दी.

कुछ ही देर में मृतका का पति मंजीत और घर के अन्य लोग महर्षि वाल्मीकि अस्पताल पहुंच गए. उन्होंने जब वहां सुनीता की लाश देखी तो फफकफफक कर रोने लगे. मृतका की शिनाख्त हो जाने के बाद इंसपेक्टर राकेश कुमार ने इस की सूचना वरिष्ठ अधिकारियों को दे दी और कांस्टेबल अनिकेत को अस्पताल में छोड़ कर वह फिर से घटनास्थल पर पहुंच गए. सबूत जुटाने के लिए उन्होंने क्राइम इनवैस्टीगेशन टीम को भी घटनास्थल पर बुला लिया. कुछ ही देर में डीसीपी (रोहिणी) रजनीश गुप्ता भी घटनास्थल पर पहुंच गए. इस के बाद अस्पताल पहुंच कर उन्होंने मृतका  के ससुराल वालों से बात की.

मृतका के पति मंजीत ने बताया कि वह सोनीपत के एक सरकारी स्कूल में टीचर थी. रोजाना की तरह वह आज सुबह करीब 7 बजे अपनी स्कूटी से ड्यूटी के लिए निकली थी. पता नहीं किस ने उसे गोली मार दी. पूछताछ में मंजीत ने बताया कि उस की किसी से कोई दुश्मनी भी नहीं है. माहौल गमगीन होने की वजह से उस समय उन्होंने मंजीत से ज्यादा पूछताछ करनी जरूरी नहीं समझी, लेकिन इतना तो वह जानते ही थे कि सुनीता की हत्या के पीछे कोई न कोई वजह जरूर रही होगी और वह आज नहीं तो कल जरूर सामने आ जाएगी.

इंसपेक्टर राकेश कुमार को कुछ निर्देश दे कर रजनीश गुप्ता वहां से चले गए. उन के जाने के बाद इंसपेक्टर राकेश कुमार ने मौके से बरामद सबूत अपने कब्जे में ले लिए और अज्ञात हत्यारों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर केस की जांच शुरू कर दी. राकेश कुमार ने जांच की शुरुआत मृतका सुनीता की ससुराल से ही की. पति मंजीत ने बताया कि घर में वह वह नौर्मल रहती थी. किसी को भी उस से किसी तरह की शिकायत नहीं थी. वह स्कूटी से ही स्कूल आतीजाती थी. पुलिस ने मंजीत से सुनीता के मायके वालों का पता और फोन नंबर ले कर उन लोगों को बवाना थाने बुला लिया.

पुलिस को मिली महत्त्वपूर्ण जानकारी

सुनीता के मातापिता थाना बवाना पहुंच गए. उन्होंने बताया कि मंजीत सुनीता को अकसर परेशान करता रहता था. साथ ही यह भी कि मंजीत का किसी मौडल के साथ चक्कर चल रहा था, जो मुंबई में रहती है. सुनीता इस का विरोध करती थी तो वह सुनीता को प्रताडि़त करता था. इसी के चलते मंजीत सुनीता पर तलाक लेने का दबाव डाल रहा था. ये बातें उस ने मायके वालों को बताई थीं.

पुलिस के लिए यह जानकारी महत्त्वपूर्ण थी. लिहाजा पुलिस ने सुनीता के पति मंजीत के फोन की काल डिटेल्स निकलवाई. काल डिटेल्स से पता चला कि मंजीत की मुंबई के किसी फोन नंबर पर अकसर बातें होती थीं. जांच में वह नंबर एंजल गुप्ता का निकला. एंजल गुप्ता कोई आम लड़की नहीं थी बल्कि एक मशहूर मौडल थी और बौलीवुड की कई फिल्मों में काम कर चुकी थी. काल डिटेल्स से केस की स्थिति साफ हो गई. साथ ही पुलिस को सुनीता के मातापिता के बयानों में भी सच्चाई नजर आने लगी. लिहाजा इंसपेक्टर राकेश कुमार ने मंजीत को पूछताछ के लिए थाने बुला लिया.

मंजीत से उस की पत्नी सुनीता के मर्डर के बारे में पूछताछ की गई तो पहले वह इधरउधर की बातें कर के पुलिस को गुमराह करने की कोशिश करता रहा, लेकिन सख्ती से पूछताछ की गई तो उस ने अपना अपराध न केवल स्वीकारा बल्कि उस की हत्या में शामिल रहे लोगों के नामों का भी खुलासा कर दिया. उस से पूछताछ के बाद पता चला कि सुनीता की हत्या के मामले में मंजीत की प्रेमिका एंजल गुप्ता के मुंहबोले पिता राजीव गुप्ता का भी हाथ था. राजीव ने ही भाड़े के हत्यारों से 10 लाख रुपए में सुनीता की हत्या का सौदा किया था. मंजीत से हुई पूछताछ के बाद सुनीता की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह एक मौडल के प्यार की कहानी थी.

सीधीसादी जिंदगी थी सुनीता की

मूलरूप से हरियाणा की रहने वाली सुनीता का विवाह दिल्ली के बवाना में रहने वाले मंजीत के साथ हुआ था. मंजीत प्रौपर्टी डीलर था. सुनीता पति से ज्यादा पढ़ीलिखी थी, इस के बावजूद उस ने खुद को ससुराल में ढाल लिया था. पति की आर्थिक स्थिति भी मजबूत थी और उस का प्रौपर्टी का काम भी अच्छा चल रहा था. लिहाजा सुनीता को ससुराल में किसी तरह की परेशानी नहीं थी. धीरेधीरे समय अपनी गति से बीतता रहा. सुनीता एक बेटी और एक बेटे की मां बन गई. फिलहाल उस की बेटी 16 साल की है और बेटा 12 साल का.

सुनीता सोनीपत के फिरोजपुर गांव स्थित गवर्नमेंट सीनियर सैकेंडरी गर्ल्स स्कूल में पढ़ाती थी. ससुराल बवाना से स्कूल की दूरी लगभग 20 किलोमीटर थी, इसलिए स्कूल आनेजाने के लिए सुनीता ने एक स्कूटी खरीद ली थी. उसी से वह स्कूल के लिए सुबह करीब 7 बजे घर से निकल जाती थी. सुनीता अपने गृहस्थ जीवन से खुश थी, लेकिन 2 साल पहले उस की खुशियों में ग्रहण लगना शुरू हो गया था. दरअसल, दिल्ली की एक पार्टी में मंजीत की मुलाकात एंजल गुप्ता नाम की एक मौडल से हुई. एंजल गुप्ता बेहद खूबसूरत थी और बौलीवुड की कई फिल्मों में छोटामोटा काम कर चुकी थी.

जसवीर भाटी द्वारा निर्देशित फिल्म ‘भूरी’ के आइटम सांग ‘ओ मेरा झुमका..मेरा ठुमका बदनाम हो गया’ में भी एंजल गुप्ता ने अपने जलवे बिखेरे थे. वह एक्ट्रैस बनने की दौड़ में थी. एंजल गुप्ता का असली नाम शशिप्रभा था. बताया जाता है कि वह मूलरूप से उत्तर प्रदेश की रहने वाली थी. उस की मां दिल्ली में सीपीडब्ल्यूडी में नौकरी करती है और आर.के. पुरम सेक्टर-4 के सरकारी क्वार्टर में रहती है. उस के पिता का देहांत काफी दिनों पहले हो चुका था. मौडलिंग के क्षेत्र में आने के बाद शशिप्रभा एंजल गुप्ता के नाम से जानी जाने लगी थी. एंजल गुप्ता कुछ दिनों तक तो दिल्ली में ही मौडलिंग करती रही, फिर मन में बौलीवुड के हसीन सपने ले कर मुंबई चली गई.

मुंबई जाने के लिए एंजल गुप्ता के मुंहबोले पिता राजीव गुप्ता ने उस की हर तरह से मदद की. मुंबई में एंजल ने जो फ्लैट किराए पर लिया था, उस का हर महीने का किराया 50 हजार रुपए था, जो राजीव ही देता था. मुंबई जा कर एंजल फिल्मों में काम पाने के लिए संघर्ष करने लगी. उस की मेहनत रंग लाई और उसे कुछ फिल्मों में काम मिल गया. इस के बाद वह और ऊंचाई पर पहुंचने के सपने देखने लगी. एंजल के मुंहबोले पिता राजीव गुप्ता दिल्ली रोहिणी सैक्टर-3 में रहते थे. वह एक बिजनैसमैन हैं और दक्षिणी दिल्ली में उन के रेस्तरां और होटल हैं. वह एंजल गुप्ता को हर तरह से सपोर्ट करते थे.

आकर्षक कदकाठी वाला मंजीत पहली मुलाकात में ही एंजल का दीवाना हो गया था. पार्टी में मिलने के बाद से एंजल और मंजीत की फोन पर बातें होने लगीं. धीरेधीरे एंजल का झुकाव भी मंजीत की तरफ हो गया. समयसमय पर दोनों की मुलाकातें भी होने लगीं, जिस से दोनों और नजदीक आते गए. धीरेधीरे दोनों के संबंध इस स्थिति तक पहुंच गए कि वह शादी करने की सोचने लगे थे. लेकिन इस में सब से बड़ी समस्या मंजीत की पत्नी सुनीता थी. अपनी ब्याहता के रहते हुए एंजल से शादी नहीं कर सकता था.

सुनीता को पता चली हकीकत

पति पर आंखें मूंद कर विश्वास करने वाली सुनीता इस बात से काफी दिनों तक तो अंजान रही. बाद में जब मंजीत ने उसे मानसिक रूप से परेशान करना शुरू किया तब भी वह कुछ नहीं समझ पाई. उस की समझ नहीं आया कि अचानक मंजीत में यह बदलाव कैसे आ गया. सुनीता ने कई बार मंजीत को फोन पर बात करते देखा. फोन पर हो रही बातचीत सुनने के बाद सुनीता समझ गई कि मंजीत का जरूर किसी लड़की से चक्कर चल रहा है.

अंतत: जैसेतैसे सुनीता यह पता लगाने में सफल हो गई कि मुंबई में रहने वाली एक मौडल से मंजीत के प्रेमिल संबंध हैं. सुनीता ने इस बारे में मंजीत से पूछा तो पहले तो वह इस बात को टालने की कोशिश करता रहा लेकिन फिर बोला, ‘‘अगर तुम्हारे मन में इस तरह का कोई शक हो गया है तो मुझ से तलाक ले लो.’’

‘‘नहीं, मैं न तो तलाक नहीं दूंगी और नहीं लूंगी, तुम्हें उस लड़की से बात भी बंद करनी होगी.’’

सुनीता के इतना कहते ही मंजीत ने उसे खूब खरीखोटी सुनाई. सुनीता समझ नहीं पा रही थी कि अपने घर को कैसे संभाले. विपरीत हालातों में मन को शांत रखने के लिए वह रोजमर्रा की डेली डायरी लिखती थी. तनाव की बातें वह डायरी में लिख देती थी. जब वह ज्यादा परेशान होती तो मायके में बात कर के अपना मन हलका कर लेती थी. मायके वालों ने भी मंजीत को बहुत समझाया लेकिन वह एंजल गुप्ता के प्यार में अंधा हो चुका था इसलिए किसी के समझाने का उस पर कोई असर नहीं हुआ. नतीजा यह निकला कि मंजीत और उस के ससुराल वालों के बीच छत्तीस का आंकड़ा बन गया.

बताया जाता है कि एंजल मंजीत पर शादी करने का दबाव बना रही थी. इस बारे में उस ने अपने मुंहबोले पिता राजीव गुप्ता से बात की. राजीव ने उसे भरोसा दिया कि वह उस की शादी मंजीत से कराने में पूरी मदद करेगा. मई, 2017 में सुनीता और एंजल के बीच फोन पर तीखी नोंकझोंक हुई, जिस में सुनीता ने एंजल को गुस्से में काफी कुछ कह दिया. बताया जाता है कि तब एंजल ने उसे अंजाम भुगतने की धमकी भी दी थी.

एंजल सुनीता द्वारा की गई इस बेइज्जती का बदला लेना चाहती थी, इसलिए उस ने बढ़ाचढ़ा कर यह बात मंजीत को बताई ताकि वह सुनीता पर भड़के. उस ने साफ कह दिया कि वह ऐसा अपमान बरदाश्त नहीं कर सकती. अगर मुझे चाहते हो तो या तो सुनीता को तलाक दो या फिर बेइज्जती का बदला लो. इस बात को ले कर एंजल, राजीव और मंजीत ने एक मीटिंग की. बताया जाता है कि इस मीटिंग में राजीव ने सुनीता को ठिकाने लगाने में 10 लाख रुपए खर्च करने को कह दिया. मंजीत इस के लिए तैयार हो गया. क्योंकि सुनीता तलाक देने को राजी नहीं थी, उस के पास उसे ठिकाने लगाने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं था.

राजीव जानता था कि उस के ड्राइवर दीपक के बदमाशों से संबंध हैं, इसलिए उस ने दीपक से सुनीता की हत्या के बारे में बात की. दीपक 10 लाख रुपए में यह काम कराने को तैयार हो गया. राजीव ने बतौर एडवांस उसे ढाई लाख रुपए दे दिए. दीपक ने मेरठ के रहने वाले शहजाद सैफी उर्फ कालू, धर्मेंद्र और विशाल उर्फ जौनी से बात की.

शूटर पहुंच गए दिल्ली

योजना को अंजाम देने के लिए 25 अक्तूबर, 2018 को राजीव गुप्ता, दीपक, धर्मेंद्र, शहजाद और विशाल बवाना पहुंचे. लेकिन तब तक सुनीता स्कूल के लिए निकल चुकी थी. 27 अक्तूबर को करवाचौथ का त्यौहार था. एकतरफ मंजीत जिस पत्नी की हत्या के तानेबाने बुन रहा था, तो पत्नी इस सब से अनभिज्ञ पति की लंबी आयु की कामना के लिए करवाचौथ का व्रत रखे हुए थी. किराए के जो बदमाश बाहर से दिल्ली आए हुए थे, वह खाली हाथ अपने घर नहीं लौटना चाहते थे. लिहाजा उन्होंने हजरत निजामुद्दीन रेलवे स्टेशन के पास किराए का एक कमरा ले लिया. साथ ही सुनीता को स्कूल जाते वक्त उस की हत्या करने की योजना बना ली.

योजना के अनुसार, 29 अक्तूबर को अलसुबह राजीव गुप्ता अपनी डस्टर कार संख्या डीएल8सी जेड4306 से बदमाशों को हजरत निजामुद्दीन से बवाना ले गया. सुनीता किसी भी हालत में न बच पाए, इस के मद्देनजर दीपक और धर्मेंद्र वर्मी कंपोस्ट फार्म, दरियापुर के पास पोजीशन ले कर खड़े हो गए. जबकि शहजाद और विशाल गांव बवाना में राजीव गांधी स्टेडियम के पास बाइक ले कर खडे़ हो गए. उन के हाथों में .315 बोर के तमंचे थे.

सुबह 7 बजे के करीब सुनीता अपनी स्कूटी से जैसे ही स्कूल के लिए निकली तो उस के पति मंजीत ने इंतजार कर रहे बदमाशों को मिस्ड काल दी. यह उन के लिए एक इशारा था. इशारा पाते ही बदमाश सतर्क हो गए. तभी राजीव गुप्ता वहां से चला गया. उधर सुनीता घर से करीब 7 किलोमीटर दूर दरियापुर गांव के नजदीक पहुंची तो वहां घात लगाए बदमाशों ने सुनीता पर फायर कर दिया. उस समय करीब साढ़े 7 बजे थे. गोलियां लगते ही सुनीता गिर गई. वह सड़क पर तड़प रही थी, तभी उधर से गुजर रहे लोगों ने उसे महर्षि वाल्मीकि अस्पताल पहुंचाया, जहां डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया. पता चला कि सुनीता के सीने पर 3 गोलियां मारी गई थीं.

मंजीत से पूछताछ के बाद उस के घर की तलाशी ली गई तो पुलिस को सुनीता की पर्सनल डायरी मिली, जिस में उस ने काफी कुछ लिखा था. मंजीत की निशानदेही पर पुलिस ने प्रेमिका एंजल गुप्ता उर्फ शशिप्रभा व उस के मुंहबोले पिता राजीव गुप्ता को भी गिरफ्तार कर लिया. पुलिस ने एंजल गुप्ता की निशानदेही पर मयूर विहार में रहने वाली उस की मौसी के घर से 2 मोबाइल फोन भी बरामद किए, जिन का इस्तेमाल वारदात में हुआ था. इन तीनों को गिरफ्तार कर पुलिस ने न्यायालय में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

इस के बाद दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच ने वारदात में शामिल रहे दीपक और शहजाद सैफी उर्फ कालू को गिरफ्तार कर लिया. इन दोनों ने भी पुलिस के सामने अपना जुर्म स्वीकार कर लिया. पुलिस ने इन दोनों को कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया. कथा लिखे जाने तक धर्मेंद्र और विशाल पुलिस की पकड़ में नहीं आए थे. Crime News

  कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Rajasthan News: वासना की भेंट चढ़ा ससुर

Rajasthan News: अणछी और नाथू सिंह बेरोकटोक मजे से रंगरलियां मना रहे थे. अचानक ऐसा क्या हुआ कि अणछी और नाथू सिंह को हत्या जैसा अपराध करने को मजबूर होना पड़ा. राजस्थान के जिला राजसमंद के थाना खमनेर के एएसआई रामचंद्र औफिस के सामने गुनगुनी धूप में खड़े मौसम का आनंद ले रहे थे, तभी गांव ढीमड़ी से शंभू सिंह ने फोन द्वारा सूचना दी कि ग्रामपंचायत उनवास के गांव ढीमड़ी के एक बाड़े में एक बूढ़े की लाश पड़ी है.

घटना की गंभीरता को देखते हुए एएसआई रामचंद्र ने तत्काल हत्या की यह सूचना थानाप्रभारी रमेश कविया को दी. पुलिस अधिकारियों को सूचना दे कर थानाप्रभारी रमेश कविया पुलिस बल के साथ घटनास्थल की ओर रवाना हो गए. यह 23 जुलाई, 2014 की सुबह की बात थी. पुलिस जीप उनवास पहुंची तो घटनास्थल के बारे में पता लगाने के लिए थानाप्रभारी रमेश कविया ने गायभैंस का झुंड ले कर जा रहे एक बूढ़े से पूछा, ‘‘दादा, ये ढीमड़ी में लाश कहां मिली है?’’

‘‘सीधे चले जाओ, जहां भीड़ दिखाई दे, वहीं बाड़े में लाश पड़ी है.’’ बूढ़े ने कहा.

जीप थोड़ा आगे बढ़ी तो पुलिस को रोने की आवाज सुनाई दी. थानाप्रभारी ने जीप रुकवाई और पैदल ही वहां पहुंच गए, जहां से रोने की आवाज आ रही थी. लाश वहीं एक बाड़े में पड़ी थी. घटनास्थल के निरीक्षण में उन्होंने देखा कि जूते और कपड़े इधरउधर बिखरे पड़े थे. वहीं एक लाश पड़ी थी. पूछने पर पता चला कि मृतक का नाम किशन सिंह था. दीवार पर खून के छींटे पड़े थे. मृतक की उम्र 70 साल के आसपास थी. सिर पर किसी भारी चीज से वार कर के हत्या की गई थी. सिर फट जाने की वजह से उस का चेहरा काफी वीभत्स लग रहा था. थानाप्रभारी ने तुरंत लाश को कंबल से ढक दिया.

एफएसएल टीम अपना काम निपटा रही थी कि डीएसपी सिद्धांत शर्मा आ गए. घटनास्थल और लाश का निरीक्षण करने के बाद डीएसपी और थानाप्रभारी ने औपचारिक काररवाई निपटा कर शव को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. पुलिस ने मृतक किशन सिंह के घरपरिवार के बारे में तहकीकात शुरू की तो पता चला कि उस के बेटे मांगू सिंह की पत्नी अणछी का चरित्र ठीक नहीं था. उस का बगल के गांव के नाथू सिंह से प्रेम संबंध था. इस के बाद पुलिस को अणछी और उस के प्रेमी पर शक हुआ.

आसपड़ोस के लोगों ने भी इस बात का समर्थन किया तो थानाप्रभारी ने मृतक किशन सिंह की पत्नी वृद्धा सवाबाई से पूछताछ की. उस ने बताया कि अणछी का सोलंकियों की भागल (सेमा) निवासी नाथू सिंह राजपूत से अवैध संबंध था. इसी के चलते आए दिन परिवार में क्लेश होता रहता था. थानाप्रभारी ने बीट कांस्टेबल धीरचंद जांगिड़ से सोलंकियों की भागल के नाथू सिंह राजपूत के बारे में पूछा तो उस ने कहा, ‘‘सर, यह वही नाथू सिंह है, जो कुछ दिनों पहले शांतिभंग के आरोप में पकड़ा गया था.’’

‘‘इस समय वह कहां मिलेगा?’’ थानाप्रभारी ने पूछा.

‘‘अभी पता किए लेते हैं सर.’’ कह कर कांस्टेबल धीरचंद ने मोटरसाइकिल उठाई और एक सिपाही को बैठा कर नाथू सिंह की तलाश में निकल पड़ा. वह सीधा बसअड्डे पहुंचा तो नाथू सिंह उसे दिखाई दे गया. बैग लिए वह कहीं जाने की तैयारी में था. कांस्टेबल धीरचंद को देख कर वह कांप उठा. वह भागने की सोच रहा था कि धीरचंद ने अपनी मोटरसाइकिल उस के सामने ला कर खड़ी कर दी. नाथू सिंह ने उस की ओर देखा तो उस ने पूछा, ‘‘इधर कहां?’’

‘‘साहब मुंबई जा रहा हूं. बस के इंतजार में खड़ा हूं.’’

‘‘फिलहाल तो तू मेरे साथ थाने चल, मुंबई जाना बाद में.’’ धीरचंद ने कहा.

‘‘साहब, थाने जाने में मेरी बस चली जाएगी.’’ नाथू सिंह हकलाया.

‘‘अब तुझे मुंबई नहीं, जेल जाना है. तू ने जो किया है, उस के लिए तुझे अब जेल जाना होगा.’’

कह कर धीरचंद ने नाथू सिंह को मोटरसाइकिल पर बैठाया और थाने आ गया. तब तक थानाप्रभारी रमेश कविया भी थाने आ गए थे. नाथू सिंह की हालत देख कर ही थानाप्रभारी समझ गए कि किशन सिंह की हत्या इसी ने की है. उस के सामने आते ही उन्होंने पूछा ‘‘किशन सिंह की हत्या तू ने ही की है न?’’

‘‘नहीं साहब, उस की हत्या मैं क्यों करूंगा?’’ नजरें चुराते हुए नाथू सिंह ने कहा.

‘‘अणछी ने तो कहा है कि किशन सिंह की हत्या तू ने ही की है.’’

अणछी का नाम सामने आते ही नाथू सिंह ढीला पड़ गया. उस ने सच बोलने में ही अपना भला समझा. इसलिए किशन सिंह की हत्या का अपराध स्वीकार करते हुए उस ने कहा, ‘‘साहब, मैं अणछी से प्यार करता था. एक साल से हमारे बीच संबंध थे. किशन सिंह हमारे प्यार में रोड़ा अटका रहा था, इसीलिए मैं ने और अणछी ने पीटपीट कर उस की हत्या कर दी थी.’’

इस के बाद पुलिस ने किशन सिंह की बहू अणछी को भी गिरफ्तार कर लिया. थाने में की गई पूछताछ में दोनों ने किशन सिंह की हत्या की जो कहानी सुनाई, वह इस प्रकार थी. राजस्थान के जिला राजसमंद के थाना खमनेर के गांव ढीमड़ी की रहने वाली अणछी का पति मांगू सिंह राजपूत मुंबई में किसी कबाड़ी के यहां नौकरी करता था. उस का देवर मोहन सिंह भी भाई के साथ मुंबई में ही रहता था. मांगू सिंह मानसिक रूप से थोड़ा कमजोर था. उस की आर्थिक स्थिति भी ठीक नहीं थी. इसलिए अणछी भी इधरउधर मजदूरी कर के कुछ कमा लेती थी. पति और देवर मुंबई में रहते थे, जबकि अणछी ससुर किशन सिंह और सास सवाबाई की देखभाल के लिए उन के साथ गांव में रहती थी. उस की 3 बेटियां, ललिता, हंजा एवं सीता थीं.

अणछी शादीब्याह के मौके पर खाना बनाने वालों के साथ पूडि़यां बेलने भी जाती थी. इस में पैसा तो मिलता ही था, खाना भी मिल जाता था. ऐसे में ही अणछी की मुलाकात सोलंकियों की भागल के रहने वाले नाथू सिंह से हुई तो पहली ही मुलाकात में उस का दिल अणछी पर आ गया. नाथू सिंह खाना बनाने का कारीगर था. नाथू सिंह ने अणछी को चाहतभरी नजरों से देखा तो वह असहज हो गई. धीरेधीरे जानपहचान बढ़ी तो घरपरिवार के साथसाथ मन की बातें भी होने लगीं. ऐसे में नाथू सिंह ने कहा, ‘‘अणछी, तुम चाहो तो हमेशा के लिए मेरे साथ आ सकती हो.’’

‘‘क्या, क्या कहा तुम ने?’’ अनमने और रोबीले स्वर में अणछी बोली.

‘‘मेरा मतलब है कि मैं रसोइया हूं और आए दिन शादीब्याह में खाना बनाने जाता हूं. मुझे पूडि़यां बेलने के लिए औरतों की जरूरत होती ही है, इसलिए कहा कि तुम चाहो तो मेरे साथ हमेशा काम कर सकती हो.’’

‘‘ठीक है, तुम जब भी बुलाओगे, मैं आऊंगी.’’

इस के बाद अक्सर शादीब्याह में नाथू सिंह और अणछी की मुलाकातें होने लगीं. कभी देर हो जाती तो नाथू सिंह खुद ही उसे ढीमड़ी उस के घर पहुंचाने चला जाता. पति के दूर रहने की वजह से अणछी धीरेधीरे नाथू सिंह के नजदीक आती गई.

एक दिन शादी समारोह में खाना बनाने के बाद नाथू सिंह और अणछी बैठे बातें कर रहे थे तो नाथू सिंह ने कहा, ‘‘अणछी, मैं एक बात कहूं, बुरा तो नहीं मानोगी?’’

अणछी हंसते बोली, ‘‘ऐसी क्या बात हो गई, जो कहने के पहले पूछ रहे हो?’’

‘‘मैं तेरे साथ रहना भी चाहता हूं और सोना भी.’’

कुछ देर चुप रहने के बाद अणछी मंदमंद मुसकराते हुए बोली, ‘‘साथ तो रह ही रहे हो, जब मन हो, सो भी जाना.’’

यह सुन कर नाथू खुश हो गया. अब वह अणछी के साथ सोने के बारे में सोचने लगा. मजे की बात यह थी कि नाथू सिंह अणछी से उम्र में छोटा था. अणछी के पास नाथू सिंह के साथ सोने के बहुत मौके थे. घर में सासससुर बूढ़े थे और बच्चे छोटे. पति और देवर बहुत दूर रहते थे. इसलिए अणछी नाथू सिंह को घर पर ही बुलाने लगी. जल्दी ही दोनों वासना के तालाब में इस कदर डूब गए कि न उन्हें घरपरिवार की चिंता रह गई न इज्जत की. नाथू सिंह का जब मन होता, अणछी के घर पहुंच जाता. ढीमड़ी में अणछी के दो मकान थे. पुराने मकान में ससुर किशन सिंह और सास सवाबाई के साथ उस की 2 बड़ी बेटियां रहती थीं. जबकि दूसरे नए मकान में अणछी अपनी 5 साल की सब से छोटी बेटी सीता के साथ रहती थी. इसलिए नाथू सिंह को उस के घर आनेजाने में कोई परेशानी नहीं होती थी.

घर वाले भले ही अलग रहते थे, मगर गलीमोहल्ले के लोग तो दोनों को मिलतेजुलते देख ही रहे थे. उन्होंने ही यह बात किशन सिंह से बताई तो वह बहू पर नजर रखने लगा. एक दिन शाम को किशन सिंह ने नाथू सिंह को अणछी के घर से निकलते देखा तो चिल्लाया, ‘‘अरे नाथू, तेरे पास कोई कामधाम नहीं है क्या, जो दिनभर इधर ही भटकता रहता है?’’

यह सुन कर नाथू सकपकाया तो लेकिन जल्दी ही खुद को संभाल कर बोला, ‘‘मेरे पास बहुत काम है काका. काम के लिए ही तो अणछी को बुलाने आया था.’’

‘‘ठीक है, ऐसा कर तू अणछी की जगह किसी और को बुला ले. अब अणछी तेरे साथ नहीं जाएगी. और हां, अब तू इधर दिखाई भी मत देना, वरना मुझ से बुरा कोई और नहीं होगा.’’

किशन सिंह की इस धमकी से नाथू सिंह घबरा गया. वह समझ गया कि उन के संबंधों की जानकारी बूढे़ को हो गई है. वह उदास हो गया. क्योंकि अणछी से मिलना अब उस के लिए मुश्किल हो गया था. जब अणछी से मिले कई दिन हो गए तो वह परेशान रहने लगा. दूसरी ओर प्रेमी से न मिल पाने की वजह से अणछी भी बेचैन रहने लगी थी. वह समझ नहीं पा रही थी कि प्रेमी से कैसे मिले. एक दिन मायके जाने के बहाने अणछी घर से निकली और सीधे प्रेमी नाथू सिंह के घर जा पहुंची. न जाने कैसे इस बात की भनक उस के ससुर किशन सिंह को लग गई. वह सीधे नाथू सिंह के घर पहुंचा और पूरी बात नाथू सिंह के पिता हिम्मत सिंह को बताई.

हिम्मत सिंह ने नाथू सिंह को डांटाफटाकारा ही नहीं, पिटाई भी की. इस के बाद नाथू सिंह और अणछी का मेलमिलाप एकदम बंद हो गया. लेकिन यह ज्यादा दिनों तक चल नहीं सका, क्योंकि दोनों ही एकदूसरे से मिले बिना रह नहीं सकते थे. मुलाकात को आसान करने के लिए नाथू सिंह ने एक मोबाइल फोन खरीद कर अणछी को दे दिया. इस के बाद उन के बीच रात में घंटोंघंटों बातें होने लगीं. चूंकि बात दोनों के परिवारों के सभी लोगों को पता चल चुकी थी, इसलिए वे जब भी मिलते, काफी चोरीछिपे मिलते थे. ऐसे में अणछी और नाथू सिंह को अपने ही दुश्मन लगने लगे थे. अणछी पर नजर रखने के लिए किशन सिंह उस के मकान के बाहर बाड़े में सोने लगा था.

22 जुलाई, 2014 की शाम किशन सिंह बाड़े में सोने आया तो अणछी और उस के बीच काफी कहासुनी हुई. गुस्से में किशन सिंह ने अणछी के साथ गालीगलौज की. तब गुस्से में अणछी ने नाथू सिंह को फोन कर के किशन सिंह को खत्म करने के लिए कह दिया. अणछी के प्यार में अंधा नाथू सिंह ठीक साढ़े 12 बजे ढीमड़ी पहुंच गया और दबे पांव अणछी के कमरे में जा पहुंचा. इस के बाद दोनों ने सलाहमशविरा कर के रात ठीक 3 बजे गहरी नींद में सो रहे किशन सिंह के सिर पर लाठियां बरसा कर उसे खत्म कर दिया. उस के चेहरे को भी पत्थर से कुचल दिया.

किशन सिंह की हत्या करने के बाद दोनों ने शारीरिक संबंध बनाए, सुबह होने से पहले नाथू सिंह अपने घर चला गया. सवेरा होने पर किशन सिंह की हत्या की जानकारी शंभू सिंह को हुई तो उस ने पुलिस को फोन कर के घटना की सूचना दे दी. पुलिस ने वह लाठी और पत्थर बरामद कर लिया था, जिस से किशन सिंह की हत्या की गई थी. पूछताछ और सुबूत जुटाने के बाद थाना खमनेर पुलिस ने नाथू सिंह और अणछी को राजसमंद की अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. Rajasthan News

—कथा पुलिस सूत्रों पर आध

UP Crime News: ईंट से लगातार प्रहार कर ली पत्नी की जान

UP Crime News: घरपरिवार और समाज की बंदिशें तोड़ कर बबलू ने शादीशुदा रूबी से प्रेमविवाह किया था. 2 बच्चों के मांबाप दोनों के बीच ऐसी कौन सी वजह पैदा हो गई कि बबलू को पत्नी का हत्यारा बनना पड़ा…

थाना बर्रा के रहने वाले विशाल रफूगर ने सीटीआई नहर के करीब से बहने वाले नाले में बोरे में भरी एक युवती की लाश देखी, जिस का सिर बाहर निकल गया था. उस का क्षतविक्षत चेहरा साफ दिखाई दे रहा था, जिसे चीलकौए नोचनोच कर खा रहे थे. विशाल ने शोर मचाया तो देखतेदेखते वहां भीड़ एकत्र हो गई. किसी राहगीर ने सीटीआई के पास वाले नाले में एक महिला की लाश पड़ी होने की सूचना 100 नंबर पर दे दी. पुलिस कंट्रोल रूम से यह सूचना थाना गोविंदनगर को दी गई. थाना गोविंदनगर की पुलिस आई जरूर लेकिन शव थाना बर्रा क्षेत्र में पड़े होने की बात कह कर लौट गई. नतीजतन 2 घंटे तक लाश नाले में पड़ी रही.

मामला पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों की जानकारी में आया तो एसपी (पूर्वी) हरीशचंदर, सीओ (गोविंदनगर) ओमप्रकाश सिंह थाना बर्रा पुलिस के साथ मौके पर पहुंचे. पुलिस ने साक्ष्य एकत्र करने के लिए फोरेंसिक टीम को भी फोन कर के मौके पर बुला लिया था. पुलिस ने लाश वाले बोरे को नाले से बाहर निकाला. बोरे से लाश निकलवा कर निरीक्षण शुरू हुआ. मृतका की उम्र 30-35 साल रही होगी. वह नीले रंग की सलवार, हरे रंग की लैगिग, लाल कुरता, गुलाबी रंग का स्वेटर पहने थी. उस के पैर की अंगुलियों में बिछिया थीं. दाएं हाथ पर बबलू और ॐ गुदा हुआ था. कपड़ों और रूपरंग से लग रहा था कि मृतका किसी अच्छे परिवार से रही होगी.

शव देख कर ही लग रहा था कि किसी धारदार हथियार से उस की गरदन काटी गई थी. पहचान छिपाने के लिए मृतका का चेहरा बुरी तरह कुचला गया था. यही नहीं, उस के चेहरे पर तेजाब भी डाला गया था. हत्यारों ने मृतका के स्तन और अन्य कोमल अंगों पर भी गंभीर चोटें पहुंचाई थीं. इस से यही अंदाजा लगाया गया कि महिला की हत्या घृणा एवं क्रोध में की गई थी. घटनास्थल की काररवाई पूरी करने के बाद पुलिस ने शव को पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दिया.

अज्ञात लोगों के खिलाफ हत्या का केस दर्ज करने के बाद थाना बर्रा के प्रभारी रामबाबू सिंह उसे अज्ञात महिला के शव की शिनाख्त कराने में जुट गए. आननफानन में शहर के सभी थानों से गुमशुदा महिलाओं की दर्ज सूचनाएं एकत्र कराई गईं. लेकिन शहर के थानों में दर्ज अज्ञात महिलाओं की गुमशुदगी की जानकारियों से मृतका का कोई सुराग नहीं मिल सका.  6 फरवरी को अचानक किसी ने पुलिस को फोन कर के सूचना दी कि 3 फरवरी, 2015 को सीटीआई नहर के पास नाले में मिली लाश कानपुर के सीसामऊ के रहने वाले बबलू की पत्नी रूबी की है. उस की हत्या में उस के पति बबलू की मुख्य भूमिका है. इसीलिए उस ने थाने में अपनी पत्नी रूबी की गुमशुदगी दर्ज नहीं करवाई.

इस सूचना की पुष्टि करने के लिए थानाप्रभारी रामबाबू सिंह पुलिस टीम के साथ सीसामऊ स्थित बबलू के घर जा पहुंचे. लेकिन वहां ताला लटका हुआ था. मामले की तह तक पहुंचने के लिए उन्होंने बबलू के पड़ोसियों से पूछताछ की. मोहल्ले वालों ने बताया कि जितेंद्र शुक्ला उर्फ बबलू किसी बैंक में चपरासी है. उस की पत्नी रूबी का चालचलन ठीक नहीं था. बबलू की गैरमौजूदगी में उस के घर कई लोग आतेजाते थे. एक बार बबलू ने रूबी को एक युवक के साथ घर में रंगरलियां मनाते हुए रंगेहाथों पकड़ लिया था. जिस के बाद मारपीट हुई थी और मामला थाने तक जा पहुंचा था. लेकिन रूबी अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रही थी. बबलू से उसे बच्चे थे, जिन के मोह की वजह से वह रूबी को छोड़ना नहीं चाहता था और उसे समझाबुझा कर लाइन पर लाना चाहता था.

लेकिन रूबी पर बबलू की बातों का कोई असर नहीं हो रहा था. वह बबलू के पीछे खुल कर रंगरलियां मनाती थी, जिस से वह काफी परेशान था. अचानक 31 जनवरी की रात को पता नहीं क्या हुआ कि रूबी और उस के बच्चे गायब हो गए. बबलू भी अपने घर पर ताला डाल कर कहीं चला गया. अब उस ने सिर मुड़वा लिया है और कभीकभी चोरीछिपे अपने घर आता है. मोहल्ले वालों से पूछताछ में यह बात भी सामने आई थी कि रूबी के हाथ पर बबलू का नाम और ‘ॐ’ गुदा हुआ था. इस से यह बात साफ हो गई कि सीटीआई नहर के पास नाले में मिली लाश रूबी की ही थी. मोहल्ले वालों से मिली जानकारी से पुलिस को पक्का विश्वास हो गया था कि रूबी की हत्या उस के पति बबलू ने ही करवाई है.

मोहल्ले वालों से मिली जानकारी के आधार पर पुलिस लाश की शिनाख्त करवाने के लिए वनखंडेश्वर मंदिर, पीरोड पहुंची. वहां से पुलिस मंदिर के पुरोहित गणेशशंकर जोशी को हिरासत में ले कर थाना बर्रा लौट आई. थाने ला कर गणेशशंकर जोशी को मृतका की लाश के फोटो और कपड़े दिखाए गए. सारी चीजें देखने के बाद बबलू के पिता गणेशशंकर ने पुलिस को बताया कि लाश उस की बहू रूबी की ही है. लाश की शिनाख्त होने के बाद पुलिस ने गणेशशंकर जोशी से रूबी की हत्या की सच्चाई जानने का प्रयास किया.

जोशी ने बताया कि उस के 2 बेटे हैं, बबलू और धर्मेंद्र. बबलू बैंक औफ बड़ौदा, पनकी में चपरासी था. उस के 2 बच्चे थे 11 वर्षीय बेटा शिवा और 9 साल की बेटी प्रियंका. वह स्वयं वनखंडेश्वर मंदिर, थाना बजरिया से पुरोहितगीरी करते थे और वहीं एक कमरे में रहते थे. करीब 12 वर्ष पहले जितेंद्र उर्फ बबलू ने रूबी से प्रेमविवाह किया था. इसलिए उस ने उस के साथ अपने संबंध तोड़ लिए थे. बबलू अपनी पत्नी रूबी को ले कर 104/313 बड़ा चौराहा, सीसामऊ में रहता था. उस का घर आनाजाना बहुत कम था. 31 जनवरी को बबलू रात 10 बजे के लगभग अपने दोनों बच्चों को ले कर उस के पास आया था और यह कह कर उन्हें रखने को कहा था कि उस के ऊपर एक बड़ी मुसीबत आ पड़ी है.

उस ने बताया कि रूबी बैंक से रुपए निकाल कर घरगृहस्थी का सामान खरीदने के लिए शाम 4 बजे सीसामऊ बाजार के लिए निकली थी. लेकिन इतनी रात होने पर भी वह वापस नहीं आई थी.  उस ने पूरे कानपुर में छानबीन कर डाली, लेकिन उस का कहीं पता नहीं चला. शायद वह चेन्नई चली गई हो. वह अपने छोटे भाई धर्मेंद्र को ले कर उसे ढूंढने चेन्नई गया है. इस के अलावा रूबी की हत्या के बारे में उसे कोई जानकारी नहीं है.

गणेशशंकर से पुलिस को जो भी जानकारी मिली, उस से पुलिस को पक्का विश्वास हो गया कि बबलू रूबी की हत्या के बारे में अच्छी तरह जानता है. यह भी संभव था कि वह खुद भी हत्या में शामिल हो या फिर उस ने हत्या अन्य लोगों से करवाई हो? इसी कारण बबलू पुलिस के सामने आने में डर रहा है. पुलिस मृतका के पति जितेंद्र उर्फ बबलू की तलाश में जगहजगह दबिश देने लगी. पुलिस ने हत्या का खुलासा जल्द से जल्द करने के लिए बबलू के मिलने के संभावित स्थानों पर छापे डाले, लेकिन वह पुलिस की पकड़ में नहीं आया. मजबूर हो कर पुलिस ने बजरिया थाना क्षेत्र में अपने मुखबिरों का जाल बिछा दिया.

9 फरवरी, 2015 की सुबह पुलिस को सूचना मिली कि रूबी का पति बबलू शास्त्री चौक के पास किसी के इंतजार में खड़ा है. सूचना मिलते ही थान बर्रा पुलिस ने बबलू को घेर कर पकड़ लिया और पूछताछ के लिए थाने ले आई. उस से पूछताछ शुरू हुई तो वह काफी देर तक पुलिस को बरगलाता रहा. लेकिन जब उस से कड़ाई से पूछताछ की गई तो वह टूट गया. उस ने जो कुछ बताया, वह इस तरह था.

जितेंद्र उर्फ बबलू 104/312 बड़ा चौराहा, सीसामऊ, थाना बजरिया, कानपुर में रहता था. वह बैंक औफ बड़ौदा में चपरासी था. करीब 12 साल पहले चंद मुलाकातों में ही उसे विजयनगर, कानपुर निवासी छोटे की पत्नी रूबी से प्यार हो गया था. धीरेधीरे जितेंद्र उर्फ बबलू और रूबी का प्यार ऐसे मुकाम पर पहुंच गया कि दोनों को एकदूसरे की दूरी खलने लगी. फलस्वरूप बबलू और रूबी ने घरपरिवार और सामाजिक मानमर्यादाओं को ताक पर रख कर घर से भाग कर प्रेमविवाह कर लिया. कुछ महीने लुकछिप कर रहने के बाद दोनों सीसामऊ मोहल्ले में खुल कर पतिपत्नी बन कर रहने लगे. कालांतर में दोनों के शिवा और प्रियंका 2 बच्चे हुए.

कुछ सालों तक रूबी ईमानदारी से जीवन जीती रही. उस के बाद उस के कदम बहकने लगे. उस ने पति की गैरमौजूदगी का लाभ उठा कर मोहल्ले के कुछ युवकों से अवैध संबंध बना लिए और घर में रंगरलियां मनाने लगी. इस से मोहल्ले में तरहतरह की चर्चाएं होने लगीं. जब पत्नी की चरित्रहीनता और नएनए लड़कों के साथ गुलछर्रे उड़ाने की खबर बबलू को हुई तो सच्चाई जानने के लिए एक दिन वह अपनी बैंक ड्यूटी छोड़ कर घर आ गया. घर में उस ने रूबी को मोहल्ले के एक युवक के साथ रंगरलियां मनाते हुए रंगेहाथों पकड़ लिया.

उस दिन उस ने रूबी को जम कर मारापीटा और भविष्य में ऐसी कोई हरकत न करने की सख्त हिदायत दी, लेकिन इस से रूबी के चालचलन में कोई बदलाव नहीं आया. यह देख कर बबलू को रूबी से नफरत हो गई. बच्चों का भविष्य बरबाद न हो, यह सोच कर बबलू रूबी को हर तरह से समझाबुझा कर रास्ते पर लाने का प्रयास किया कि वह ईमानदारी भरा जीवन गुजारे, लेकिन रूबी पर इस का कोई असर नहीं हुआ. नतीजतन घरपरिवार और रिश्तेदारों के बीच बबलू की बदनामी होने लगी. दूसरी ओर रूबी स्वयं पर अंकुश लगाने को ले कर सख्त होने लगी और पति को मुंह पर जवाब देने लगी, जिस के चलते बबलू और रूबी में 2 बार जम कर मारपीट हुई.

रूबी ने इस की शिकायत थाने में की. लेकिन पुलिस ने इसे पतिपत्नी का मामला मान कर दोनों को समझाबुझा कर लौटा दिया. तीसरी बार बबलू ने बाहरी लड़कों को घर में बैठाने को ले कर रूबी को जम कर पीटा. इस बार भी पुलिस ने रूबी का पक्ष लिया और सही न्याय करने के बजाय दोनों का समझौता करा दिया. इस समझौते में तय हुआ कि रूबी अपने बच्चों के साथ अलग रहेगी और बबलू उसे 4 हजार रुपए महीने खर्च देगा. इस के बाद रूबी बबलू से 4 हजार रुपए प्रति माह लेती रही. इस के बाद रूबी ने बबलू को अपने पास रहने के लिए मजबूर कर दिया. इस तरह रूबी हर महीने बंधीबंधाई रकम ले कर पत्नी की तरह बबलू के साथ रहती भी रही और उसे पुलिस का डर दिखा कर पूरी तरह अपने कब्जे में किए रही. जरा भी कोई बात होती तो वह उसे जेल भिजवाने की धमकी दे देती.

इस सब के चलते बबलू गहरे तनाव में रहने लगा. इस स्थिति का फायदा उठा कर रूबी खुल कर मनमानी करने लगी. इतना ही नहीं, अब वह अपने चाहने वालों से पति के सामने ही मिलनेजुलने लगी. बबलू से जब पत्नी की हरकतें सही नहीं गईं तो उस ने रूबी को अपनी जिंदगी से हटाने का इरादा बना लिया. जितेंद्र शुक्ला उर्फ बबलू ने गोविंदनगर निवासी अपने खास दोस्त राधेश तिवारी से अपनी पत्नी रूबी की अय्याशी के बारे में पूरी बात बता कर कहा कि अब उस से रूबी की हरकतें बरदाश्त नहीं होतीं. घर में मेरी स्थित एक भड़ुए जैसी हो गई है. उस के कारनामे मुझ से देखे नहीं जा रहे हैं. मैं उस से अपना पिंड छुड़ाना चाहता हूं. वह उसे बातबात में जेल भिजवाने की धमकी देती है, अब वह उस की हत्या कर के ही जेल जाना चाहता है. बबलू की बात सुन कर राधेश तिवारी उस की मदद के लिए तैयार हो गया.

राधेश तिवारी समाचार पत्र विके्रता था. उस की काफी दूरदूर तक अच्छी जानपहचान थी. राधेश तिवारी ने गोविंदनगर में रहने वाले पेशेवर हत्यारे शुभम मौर्य से जितेंद्र जोशी उर्फ बबलू की मुलाकात करवा कर बातचीत करवाई. शुभम मौर्य से रूबी की हत्या का सौदा 30 हजार रुपए में तय हो गया. बबलू ने शुभम मौर्य को रूबी की हत्या के लिए 25 हजार रुपए एडवांस दे दिए. शेष 5 हजार रुपए रूबी की हत्या के बाद देना तय हुआ. योजना के मुताबिक, 31 जनवरी, 2015 की रात 10 बजे के लगभग राधेश तिवारी, शुभम मौर्य व उस का साथी विजय उर्फ पुच्ची बबलू के घर आ गए.

चारों ने घर पर ही देर रात तक शराब पी. उसी दौरान शुभम मौर्य के इशारे पर बबलू अपने बेटे शिवा और बेटी प्रियंका को यह कह कर घर के बाहर ले कर चला गया कि ‘आप लोग बैठो, मैं बच्चों को बाजार से नाश्ता दिलवा कर जल्द वापस आता हूं. जैसे ही बबलू बच्चों को ले कर घर से बाहर गया, शुभम मौर्य, राधेश तिवारी और विजय कमरे में बैठी रूबी के पास पहुंच गए और उसे दबोच कर उस का मुंह दबा लिया. विजय उस के सिर पर ईंट से वार करने लगा. विजय रूबी के सिर पर तब तक ईंट मारता रहा, जब तक वह मरणासन्न नहीं हो गई. इस के बाद विजय ने सूजे से रूबी के गले को बुरी तरह से गोद दिया.

बबलू बच्चों को पिता के घर छोड़ कर पुन: लौट आया. तब तक रूबी मर चुकी थी. योजना के मुताबिक रूबी की लाश की शिनाख्त मिटाने के लिए उस के चेहरे पर ईंटें मारमार कर बुरी तरह से कुचल दिया गया. चेहरे की शिनाख्त किसी परिस्थितियों में न हो सके, इस के लिए उस के चेहरे पर तेजाब भी डाला गया. इस के बाद रूबी के क्षतविक्षत शव को आननफानन में वाटरपू्रफ बोरे में भर कर अच्छी तरह सिल दिया गया. लाश को ठिकाने लगाने के लिए रात के अंधेरे में शुभम मौर्य फरजी नंबर की अपनी स्कूटी पर रूबी के लाश वाले बोरे को लाद कर विजय के साथ चला गया और उस बोरे को सीटीआई नहर के पास नाले में फेंक कर अपने घर चला गया.

जितेंद्र उर्फ बबलू ने पुलिस को बताया कि वह रूबी के मोहल्ले के लड़कों के साथ अवैधसंबंधों से त्रस्त था. रूबी तृप्ति इतनी कामांध हो गई थी कि समझाने के बाद भी वह नहीं मानती थी. इसलिए उस के सामने उस की हत्या करने के अलावा और कोई रास्ता नहीं बचा था. इसलिए 30 हजार रुपए की सुपारी दे कर उस ने उस की हत्या करवा दी थी. पुलिस बबलू को अपने साथ गोविंदनगर के ब्लाक नंबर 10 ले गई. उस की निशानदेही पर राधेश तिवारी, विजय उर्फ पुच्ची, शुभम मौर्य को गिरफ्तार कर लिया गया. साथ ही लाश को ठिकाने लगाने में इस्तेमाल की गई स्कूटी, मृतका और उस के पति बबलू के मोबाइल भी बरामद कर लिए गए.

पूछताछ के बाद जांच अधिकारी ने उपर्युक्त चारों अभियुक्तों को भादंवि. की धारा 302, 201, 120बी के अंतर्गत चालान तैयार कर अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. इस तरह रूबी की बदचलनी की वजह से एक परिवार बरबाद हो गया. UP Crime News

— कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

UP News: रिश्तों की कच्ची डोर

UP News: घर वालों ने मनोज की शादी कर के सोचा था कि पत्नी के आने पर वह अपनी भाभी के प्रेमजाल से निकल जाएगा. लेकिन क्या ऐसा हो पाया? त्तर प्रदेश के जिला गाजियाबाद के कस्बा मोदीनगर के निकट गांव सीकरी खुर्द में हर साल चैत महीने की नवरात्र में एक विशाल मेला लगता है. इस मेले में आसपास के लोग तो आते ही हैं, अगलबगल के जिलों के भी काफी लोग आते हैं. उसी मेले में मेरठ के थाना रसूखपुर जाहिद का रहने वाला मनोज भी पत्नी संगीता और बेटी अनुष्का के साथ मेला देखने जाना चाहता था. इसलिए उस ने संगीता से कहा, ‘‘संगीता, कल सुबह जल्दी तैयार हो जाना, हम सीकरी का मेला देखने चलेंगे.’’

मनोज संगीता से अकसर लड़नेझगड़ने के साथ मारपीट करता रहता था, इसलिए संगीता ने कहा, ‘‘मुझे तुम्हारे साथ कहीं नहीं जाना है, मैं ऐसे ही ठीक हूं. मुझे मेलाठेला देखने का शौक नहीं है.’’

‘‘तुम भी जराजरा सी बात का बतंगड़ बना देती हो. अरे रात गई बात गई. रात में जो हुआ, उसे भूल जाओ. एक ओर तो कहती हो कि मैं तुम्हारे लिए कुछ करता नहीं, तुम्हें कहीं ले नहीं जाता. अब चलने को कह रहा हूं तो नखरे दिखा रही हो.’’ मनोज ने संगीता की खुशामद करते हुए कहा. संगीता कुछ कहती, उस के पहले ही मनोज की मां यानी संगीता की सास शकुंतला ने कहा, ‘‘अरे इतने प्यार से कह रहा है तो चली जा , मेला ही दिखाने तो ले जा रहा है. कुएं में धकेलने थोड़े ही ले जा रहा है.’’

‘‘इन का क्या भरोसा. मेला दिखाने के बहाने ले जा कर कहीं कुएं में ही धकेल दें. लेकिन आप कह रही हैं, इसलिए चली जाती हूं. कितने बजे निकलना है?’’ संगीता ने पूछा.

  ‘‘9 बजे तक निकलेंगे. नहाधो कर आराम से तैयार हो जाना.’’ मनोज ने कहा.

 अगले दिन रविवार था. संगीता ने बेटी अनुष्का को भी तैयार किया और खुद भी तैयार हो गई. मनोज तैयार ही बैठा था. पत्नी और बेटी को ले कर वह बस से मोदीनगर के लिए रवाना हो गया. मोदीनगर के सीकरी खुर्द पहुंच कर दिन भर वह संगीता के साथ मेले में घूमता रहा. इस बीच मनोरंजन के साथसाथ घर के लिए कुछ खरीदारी भी की. छुट्टी का दिन होने की वजह से मेले में भीड़भाड़ ज्यादा थी, डेढ़ साल की बेटी अनुष्का को मनोज खुद ही लिए था. अंधेरा होने लगा तो मनोज घर लौटने की तैयारी करने लगा. उस ने संगीता से मेले से बाहर चलने को कहा. वह तो बेटी को ले कर मेले के बाहर गया, लेकिन संगीता नहीं पाई.

कुछ देर बाहर खड़े हो कर मनोज ने संगीता का इंतजार किया. जब काफी देर तक संगीता नहीं आई तो वह उसे तलाशने के लिए फिर मेले में घुस गया. काफी देर तक वह उसे ढूंढ़ता रहा. जब रात ज्यादा होने लगी तो उस ने इस बात की जानकारी घर वालों के साथ ससुराल वालों को दी. रात ज्यादा हो गई थी और बेटी रो रही थी, इसलिए वह पत्नी के मेले में खो जाने की सूचना थाना पुलिस को दिए बगैर ही घर गया. लेकिन अगले दिन सवेरा होते ही वह थाना मोदीनगर पहुंचा और पत्नी की गुमशुदगी दर्ज करा दी.

मनोज ने संगीता के मेले में खो जाने की जानकारी ससुराल वालों को भी दे दी थी. इसलिए अगले दिन संगीता के पिता जयपाल सिंह भी थाना मोदीनगर पहुंच गए थे. लेकिन उन के पहुंचने तक मनोज संगीता की गुमशुदगी दर्ज करा कर जा चुका था. जयपाल सिंह ने थानाप्रभारी दीपक शर्मा से मिल कर बेटी के गायब होने का आरोप उस की ससुराल वालों पर लगाते हुए एक प्रार्थना पत्र दिया, जिस के आधार पर थानाप्रभारी ने संगीता के पति मनोज सिंह तथा उस के घर वालों के खिलाफ अपराध संख्या 237/2014 पर भादंवि की धाराओं 498, 420 एवं 364 के तहत मुकदमा दर्ज करा कर इस मामले की जांच सबइंसपेक्टर रोशन सिंह को सौंप दी. चूंकि रिपोर्ट नामजद दर्ज थी, इसलिए सबइंसपेक्टर रोशन सिंह ने मनोज के घर छापा मारा.

शायद रिपोर्ट दर्ज होने की जानकारी मनोज और उस के घर वालों को हो गई थी, इसलिए घर पर कोई नहीं मिला. पूरा परिवार भूमिगत हो गया था. फिर भी कोशिश कर के किसी तरह उन्होंने मनोज को हिरासत में ले ही लिया. उसे थाने ला कर पूछताछ शुरू हुई. पहले तो मनोज यही कहता रहा कि संगीता मेले में कहीं खो गई है. लेकिन जब पुलिस ने सख्ती के साथ सवालों की झड़ी लगा दी तो पुलिस के सवालों के जाल में फंसे मनोज ने स्वीकार कर लिया कि उस ने संगीता की हत्या कर के उस की लाश नहर में फेंक दी है. इस के बाद उस ने संगीता की हत्या के पीछे की जो कहानी सुनाई, वह कुछ इस प्रकार थी.

उत्तर प्रदेश के जिला मेरठ के थाना सरूरपुर खुर्द के गांव रसूखपुर जाहिद में रहते थे देवकरण सिंह. उन के पास मात्र 5 बीघा खेती की जमीन थी, जिस पर वह परिवार की मदद से मेहनत से खेती करते थे. यही खेती उन की आजीविका का साधन थी. इसी की कमाई से परिवार का गुजरबसर होता था. देवकरण सिंह के परिवार में पत्नी शकुंतला के अलावा 2 बेटे, सुरेश और मनोज थे. सुरेश ज्यादा पढ़लिख नहीं सका तो पिता के साथ खेती के कामों में मदद करने लगा. पढ़ालिखा तो मनोज भी ज्यादा नहीं था, लेकिन खेती के काम में उस का मन नहीं लगा. उस ने भी पढ़ाईलिखाई छोड़ दी तो देवकरण सिंह ने उसे गांव में ही जनरल स्टोर की दुकान खुलवा दी, जिसे वह अकेला ही संभालता था.

 देवकरण सिंह ने मरने से पहले अपने बड़े बेटे सुरेश की शादी बुलंदशहर के कस्बा स्यान के रहने वाले क्षेत्रपाल सिंह की बेटी शशि से कर दी थी. शशि तीखे नैननक्श वाली खूबसूरत लड़की थी. इसलिए आते ही उस ने ससुराल के सभी लोगों का मन मोह लिया था. वह व्यवहारकुशल के साथसाथ घर के कामों में भी निपुण थी, इसलिए घर का हर आदमी उस से खुश रहने लगा था. इस के बाद जल्दी ही गांव में उस के रूप और गुण की चर्चा होने लगी.

शशि के आगे उस का पति सुरेश कहीं नहीं ठहरता था. सुरेश को भी इस बात का अहसास था. शशि और सुरेश को देख कर कोई अंधा भी कह सकता था कि लंगूर के हाथ अंगूर लगने वाली कहावत यहां पूरी तरह चरितार्थ हो रही है. शशि को अपनी सुंदरता पर गुमान था, इसलिए अपनी उसी सुंदरता के बल पर वह पति सुरेश पर पहले ही दिन से हावी हो गई थी. शशि को सुरेश बिलकुल पसंद नहीं था, लेकिन अब वह कर भी क्या सकती थी. घर वालों ने ब्याह दिया था, इसलिए तकदीर मान कर उस ने उसे गले लगा लिया था. उस ने जैसेतैसे उस के साथ निर्वाह करने का मन बना लिया था. जिस दिन उस ने ससुराल में कदम रखा था, उसी दिन से वह देख रही थी कि उस का देवर मनोज उस का कुछ ज्यादा ही खयाल रखता था.

वह जब भी घर में अकेली होती, मनोज उसे चाहत भरी नजरों से ताकते हुए उस के आगेपीछे नाचता रहता. शुरुआत में तो शशि को लगा कि वह नईनई आई है, इसलिए आकर्षणवश मनोज उस के आगेपीछे घूमता है. लेकिन जब मौका मिलने पर मनोज उस से छेड़छाड़ करने लगा तो शशि को समझते देर नहीं लगा कि उस का प्यारा देवर क्या चाहता है. क्योंकि अब वह बच्ची नहीं रही थी कि मनोज के दिल की बात समझती.

सच भी है, जो बातें जुबान नहीं कह पाती, आंखें उन्हें इशारोंइशारों में कह देती हैं. मनोज भी भले ही दिल की बात मुंह से नहीं कह सका था, लेकिन आंखों ने इशारोंइशारों में कह दिया था. शशि को भी मनोज अच्छा लगता था, क्योंकि वह बड़े भाई सुरेश से काफी ठीकठाक था. लेकिन वह मन की बात देवर से कह नहीं सकती थी. इसलिए वह चाहती थी कि पहल देवर ही करे. इस के लिए वह मनोज को देख कर अकसर मुसकराती तो रहती ही थी, उस की हंसीमजाक और छेड़छाड़ का जवाब भी उसी के अंदाज में देती थी.

समझदार के लिए इशारा काफी होता है. मनोज भी जवान हो चुका था. स्त्रीसुख के लिए बेचैन भी रहता था. इसलिए भाभी की ओर से इशारा मिला तो एक दिन दोपहर में जब घर में शशि और उस के अलावा कोई और नहीं था तो उचित मौका देख कर वह शशि के कमरे में घुस गया. उसे अपने कमरे में देख कर शशि ने कहा, ‘‘इस समय तो तुम्हें दुकान पर होना चाहिए, यहां मेरे कमरे में क्या कर रहे हो?’’

‘‘तुम से एक बात कहनी थी, इसलिए दुकान छोड़ कर चला आया.’’

‘‘कहो, क्या कहना है?’’ शशि ने मुसकराते हुए पूछा.

‘‘भाभी, तुम मुझे बहुत अच्छी लगती हो.’’

‘‘सिर्फ अच्छी लगती हूं, और कुछ नहीं?’’

शशि ने यह कहा तो मनोज का हौसला बढ़ा. उस ने कहा, ‘‘भाभी, अच्छा लगने का मतलब है कि मैं तुम से प्यार करता हूं.’’

‘‘तो करो प्यार, मना किस ने किया है. मैं तो कब से तुम्हारे मुंह से यह बात सुनने का इंतजार कर रही हूं. क्योंकि मुझे तो बहुत पहले ही तुम्हारे दिल की बात का पता चल गया था. मैं इशारे भी कर रही थी. इस के बावजूद तुम ने यह बात कहने में इतने दिन लगा दिए.’’

‘‘तुम्हारे इशारों की वजह से ही तो हिम्मत कर सका हूं. नहीं तो किसी की पत्नी से भला यह कहने की हिम्मत कहां थी.’’ कह कर मनोज ने शशि का हाथ पकड़ा तो वह उस की बांहों में समा गई.

 मनोज ने शशि को बांहों में भर लिया. इस के बाद देवरभाभी का पवित्र रिश्ता कलंकित होने से कैसे बच सकता था. रिश्तों की परिभाषा बदली तो आयाम भी बदल गए. एक ही घर में रहने की वजह से मर्यादा तोड़ने में दिक्कत भी नहीं होती थी. घर वालों के खेतों पर जाते ही देवरभाभी पतिपत्नी बन जाते. यह ऐसा काम है, जिसे लोग करते तो बहुत चोरीछिपे हैं, इस के बावजूद लोगों की नजरों में ही जाता है. मनोज और शशि के मामले में भी ऐसा ही हुआ. घर वालों को जब मनोज और शशि के बदले संबंधों की जानकारी हुई तो दोनों को रोकने की कोशिश शुरू कर दी गई. इसी के मद्देनजर फैसला लिया गया कि अब जितनी जल्दी हो सके, मनोज की शादी कर दी जाए. पत्नी के आने से वह शशि से संबंध तोड़ लेगा.

शादी की बात रिश्तेदारों के बीच पहुंची तो दौराला के गांव पनवाड़ी के रहने वाले जयपाल सिंह बड़ी बेटी संगीता का रिश्ता ले कर उस के यहां पहुंच गए. बातचीत के बाद शादी तय हो गई. 25 जनवरी, 2012 को मनोज और संतीगा का विवाह भी हो गया. संगीता दुलहन बन कर रसूलपुर गई. मनोज की शादी पर शशि ने खूब हंगामा किया. लेकिन मनोज ने कहा था कि कुछ ही दिनों की तो बात है, बाद में सब ठीक हो जाएगा तो वह मान गई थी. संगीता के ससुराल आने के बाद कुछ दिनों तक तो सब ठीकठाक रहा, लेकिन अचानक मनोज संगीता में कमियां निकालने लगा. यही नहीं, कम दहेज लाने के ताने मार कर उस के साथ मारपीट भी करने लगा. इस बात में घर वाले भी उस का साथ दे रहे थे, खासकर शशि.

शुरूशुरू में तो संगीता की समझ में नहीं आया कि अचानक मनोज को ऐसा क्या हो गया कि उस में उसे इतनी सारी कमियां नजर आने लगीं. लेकिन जैसे घर वालों को देवरभाभी के रिश्ते की जानकारी हो गई थी, उसी तरह कुछ दिनों में संगीता को भी पति की असलियत का पता चल गया था. दरअसल एक दिन उस ने पति को भाभी के साथ रंगरलियां मनाते देख लिया था. संयोग से अब तक संगीता एक बेटी अनुष्का की मां बन चुकी थी. उसे लग रहा था कि बेटी का मुंह देख कर ही शायद मनोज का व्यवहार बदल जाए, लेकिन जब उस ने देवरभाभी को रंगेहाथों पकड़ लिया तो समझ गई कि अब कुछ नहीं हो सकता.

 मनोज लगातार संगीता पर मायके से 50 हजार रुपए नगद, अंगूठी और फ्रिज लाने की बात कह कर जुल्म ढा रहा था. 1 मार्च, 2013 को मनोज और उस के घर वालों ने संगीता को मायके भेज दिया और साफसाफ कह दिया कि जितना कहा जा रहा है, उतना सामान और रुपए ले कर ही वह ससुराल आएं, तभी उसे रहने दिया जाएगा. जयपाल ने पंचायत में गुहार लगाई. 24 जून, 2013 को गांव में हुई पंचायत ने फैसला किया कि भविष्य में मनोज के घर वाले कोई दानदहेज नहीं मांगेगे और संगीता को ठीक से रखेंगे. उसे परेशान नहीं करेंगे. समझौते के बाद 2-3 महीने तक तो मनोज और उस के घर वालों ने संगीता को कुछ नहीं कहा. उस के बाद वे अपनी पुरानी हरकतों पर उतर आए.

संगीता मायके वालों से शिकायत करती और वे कुछ करते, उस के पहले ही 6 अप्रैल, 2014 को मनोज ने ससुर जयपाल सिंह को फोन कर के बताया कि संगीता सीकरी के मेले से गायब हो गई है. हैरानपरेशान जयपाल सिंह बेटों के साथ थाना मोदीनगर पहुंचे और मनोज तथा उस के घर वालों के खिलाफ दहेज उत्पीड़न, अपहरण और हत्या का आरोप लगा कर रिपोर्ट दर्ज करा दी. थाना मोदीनगर पुलिस द्वारा की गई पूछताछ में मनोज ने बताया कि पहले से बनाई गई योजना के तहत मेला दिखाने के बहाने वह संगीता को सीकरी खुर्द ले गया. पूरे दिन मेला देखते हुए वह खरीदारी करता रहा. शाम का धुंधलका हो गया तो वह उसे साथ ले कर गंगनहर के चित्तौड़ा पुल की ओर चल पड़ा. तब संगीता ने उस से पूछा, ‘‘इधर कहां जा रहे हो, हमारा घर तो उस ओर है.’’

‘‘यहीं पास के गांव में मेरा एक दोस्त रहता है, इधर आया हूं तो चलो उस से भी मिल लेते हैं.’’ मनोज ने कहा.

इस के बाद संगीता ने कोई सवाल नहीं किया और उस के साथ चल पड़ी. जब संगीता पुल पर पहुंची तो उस ने गोद में ली बेटी को उतार कर खड़ी कर दिया और लापरवाह खड़ी संगीता को एकदम से गिरा दिया. संगीता कुछ कह पाती, उस के पहले ही उस के गले में पड़े दुपट्टे को लपेट कर कस दिया. संगीता छटपटा कर मर गई. संगीता की हत्या कर मनोज ने उस की लाश को गंगनहर में फेंक दिया और वापस गया. उस ने फोन कर के संगीता के गायब होने की सूचना ससुराल वालों को भी दे दी थी और अगले दिन थाने में उस की गुमशुदगी भी दर्ज करा दी थी. लेकिन उस की चालाकी चली नहीं और पकड़ा गया.

अगले दिन मनोज को गाजियाबाद की जिला अदालत में पेश कर के लाश बरामद करने के लिए 3 दिनों के लिए पुलिस रिमांड पर लिया गया. घटनास्थल पर मनोज को ले जा कर पुलिस ने संगीता की लाश बरामद करने की बहुत कोशिश की, लेकिन लाश बरामद नहीं हो सकी. रिमांड अवधि खत्म होने पर मनोज को अदालत में पेश किया गया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. इस के बाद पुलिस ने मनोज के घर वालों को भी गिरफ्तार कर के जेल भेज दिया था. कथा लिखे जाने तक सभी अभियुक्त जेल में बंद थे. पुलिस ने आरोप पत्र दाखिल कर दिया था. UP News

Crime News: ऐसे घर नही बसते

Crime News: जरूरत पड़ने पर अकसर शगुफ्ता खान अरविंद गुप्ता की मदद करती रहीं. फिर ऐसा क्या हुआ कि अरविंद को अपनी मददगार का खून करना पड़ा…

स्कूल से छुट्टी होने के बाद 12 वर्षीया आलिया अपनी 8 वर्षीया छोटी बहन जिया के साथ अपने फ्लैट पर पहुंची तो उस दिन हमेशा की तरह उसे फ्लैट की डोरबेल नहीं बजानी पड़ी, क्योंकि फ्लैट का दरवाजा पहले से ही खुला हुआ था. वह बहन के साथ अंदर चली गई. ड्राइंगरूम में उसे मम्मी शगुफ्ता खान नहीं दिखाई दीं तो वह उन्हें खोजते हुए बैडरूम में पहुंची. वहां उस ने जो देखा, एकदम से डर गई. बैडरूम में एक लड़का शगुफ्ता खान को दबोचे हुए एक लंबे फल वाले चाकू से उन पर हमला करने की कोशिश कर रहा था.

मम्मी की जान खतरे में देख कर आलिया ने अपना स्कूल बैग उतार कर फेंका और मम्मी को बचाने के लिए उस लड़के के कपड़े पीछे से पकड़ कर खींचते हुए बोली, ‘‘अंकल, मेरी मम्मी को छोड़ दो, उन्हें मत मारो.’’

लेकिन लड़के ने आलिया की बात सुनने के बजाय उसे झटक दिया और उस के सामने ही शगुफ्ता खान की गरदन पर चाकू से वार कर के काट दिया. गरदन कटने से शगुफ्ता खान छटपटाने लगीं और फिर थोड़ी देर में शांत हो गईं. शगुफ्ता खान की हत्या करने के बाद उस लड़के ने आलिया और जिया को वही चाकू दिखा कर बैडरूम के एक कोने में बैठा कर बोला, ‘‘तुम दोनों बहनें चुपचाप यहीं बैठी रहना, वरना तुम्हारी मम्मी की तरह तुम्हारा भी गला काट दूंगा.’’

आलिया और जिया को कोने में बैठा कर वह लड़का एक बार फिर मर चुकी शगुफ्ता खान के पास पहुंचा और उन की कमर में लटक रहा अलमारी की चाबियों का गुच्छा ले कर अलमारी खोली और उस में रखे गहने दी, तथा नगद को एक थैले में डाला और जल्दी से बाहर आ कर इमारत के कंपाउंड में खड़े औटो पर सवार हो कर भाग गया. यह 11 नवंबर, 2014 की घटना थी. हत्यारे के जाने के बाद आलिया और जिया जब थोड़ा सहज हुईं तो आलिया ने सब से पहले इस घटना की जानकारी आस्ट्रेलिया गए अपने पिता सोनू जालान और उस के बाद अपने कार ड्राइवर को दी. इस के बाद दोनों बहनें फ्लैट के बाहर आईं और मदद के लिए शोर मचाने लगीं.

चूंकि कार का ड्राइवर इमारत के कंपाउंड में ही था, इसलिए वह तुरंत भाग कर आलिया और जिया के पास आ गया. उस के आतेआते शोर सुन कर अगलबगल रहने वाले लोग भी आ गए थे. उन लोगों ने आलिया और जिया को संभालने के बाद जो देखासुना, उस से उन का कलेजा मुंह को आ गया. इमारत में रहने वाले इस घटना की सूचना पुलिस को देते, उस के पहले ही थाना मलाड पुलिस घटनास्थल पर आ गई. दरअसल आलिया ने जैसे ही मां की हत्या की बात पापा सोनू जालान को बताई, उन्होंने आस्ट्रेलिया से ही अपने दोस्त विमल अग्रवाल को फोन किया. इस के बाद विमल अग्रवाल ने मुंबई के उपनगर कांदीवली पश्चिम स्थित सीआईडी क्राइम ब्रांच को फोन कर के बताया कि मलाड पश्चिम के रुस्तमजी रिवेरा इमारत की छठवीं मंजिल स्थिति फ्लैट नंबर 64 में एक हत्या हो गई है. वहीं से इस घटना की सूचना थाना मलाड पुलिस को भी दे दी गई थी.

घटना की सूचना मिलने के तुरंत बाद इंसपेक्टर चिंभाजी आढ़ाव ने इस घटना की जानकारी अपने सीनियर इंसपेक्टर अभिनाश सावंत के साथसाथ पुलिस कंट्रोल रूम एवं उच्चाधिकारियों को भी दे दी थी. इस के बाद अपने साथ सहायक इंसपेक्टर नितिन विचारे, मनोहर हरपुड़े, शरद झीने, सिपाही वुगड़े, मोरे, माने, कोड़े और गोले को ले कर घटनास्थल की ओर चल पड़े थे. घटनास्थल क्राइम ब्रांच सीआईडी औफिस से 4-5 किलोमीटर दूर था, इसीलिए पुलिस की इस टीम को वहां पहुंचने में 20-25 मिनट लगे. तब तक थाना मलाड पुलिस वहां पहुंच चुकी थी. पूछताछ में पता चला कि जिस फ्लैट के अंदर हत्या हुई थी, वह फ्लैट क्रिकेट के एक बड़े बुकी (सट्टेबाज) सोनू जालान का था. हत्या उस की पत्नी शगुफ्ता खान की हुई थी.

उस फ्लैट में शगुफ्ता खान अपनी 2 बेटियों, आलिया एवं जिया के साथ रहती थीं. उस समय किसी बात को ले कर पतिपत्नी में विवाद चल रहा था, जिस की वजह से सोनू जालान अपनी वृद्ध मां के साथ कांदीवली के महावीरनगर में रहता था. इस के बावजूद वह पत्नी और बेटी का पूरा खयाल रखता था. घटना के समय वह आस्टे्रलिया में था. शुरुआती जांच में इंसपेक्टर चिंभाजी आढ़ाव को मामला काफी रहस्यमय लगा. फ्लैट के बैडरूम में शगुफ्ता खान की लाश पड़ी थी. लाश के पास ही वह चाकू भी पड़ा था, जिस से उस की हत्या की गई थी. ऐसा लगता था, जैसे हत्यारे को मृतका से गहरी नफरत थी. बैडरूम में रखी अलमारी के दोनों पट खुले थे और उस का सारा सामान बिखरा पड़ा था. तिजोरी में चाबियों का गुच्छा लटक रहा था, जिस से स्पष्ट था कि हत्यारे ने हत्या करने के बाद लूटपाट भी की थी.

सीआईडी क्राईम ब्रांच और थाना मलाड पुलिस घटनास्थल और लाश की जांच करने के बाद पूछताछ कर के सुबूत जुटाने की कोशिश कर रही थी कि सीआईडी क्राइम ब्रांच के ज्वाइंट सीपी सदानंद दाते, डीसीपी मोहन कुमार दहिकर, एसीपी सुनील देशमुख, सीनियर इंसपेक्टर अभिनाश सावंत, प्रेस फोटोग्राफर और फिंगरप्रिंट ब्यूरो की टीम भी घटनास्थल पर आ गई थी. प्रेस फोटोग्राफर और फिंगरप्रिंट ब्यूरो ने अपना काम खत्म कर लिया तो अधिकारियों ने भी घटनास्थल का निरीक्षण किया. निरीक्षण के बाद थाना मलाड पुलिस ने घटनास्थल की जरूरी काररवाई निपटा कर शगुफ्ता खान की लाश को पोस्टमार्टम के लिए बोरीवली के भगवती अस्पताल भिजवा दिया. इस के बाद पुलिस आसपड़ोस के लोगों के बयान ले कर थाने आ गई.

शुरुआती जांच में पुलिस को मृतका शगुफ्ता खान के पति सोनू जालान पर शक हुआ. क्योंकि पतिपत्नी के बीच विवाद चल रहा था. हत्या के समय वह देश के बाहर था, इसलिए पुलिस को संदेह हुआ कि कहीं उसी ने पत्नी से छुटकारा पाने के लिए किसी सुपारी किलर से हत्या करा दी है. इस की वजह यह थी कि सोनू जालान क्रिकेट का एक बड़ा बुकी था. उसे सन 2005 से सन 2010 के बीच सीआईडी क्राइम ब्रांच ने 2 बार गिरफ्तार किया था. इस खेल में लाखों का वारान्यारा होता था, जिसे पुलिस ने जब्त भी किया था. उस स्थिति में कई सट्टेबाजों की रकम डूब गई थी. जिस की वजह से सोनू जालान के कई दुश्मन हो गए थे. इस से एक संभावना यह भी बनती थी कि उस के किसी दुश्मन ने इस घटना को अंजाम दिया होगा?

बहरहाल, स्थिति कुछ भी रही हो, जांच टीम के लिए राहत की बात यह थी कि हत्यारा मृतका शगुफ्ता खान की जानपहचान का था और उस के घर आताजाता रहता था. इस बात की जानकारी पड़ोसियों से हुई थी. इमारत में लगे सीसीटीवी कैमरे की फुटेज से उस की शिनाख्त भी हो गई थी. अब पुलिस को उस तक पहुंचने के लिए उस के बारे में अधिक से अधिक जानकारी जुटानी थी. हत्यारे के बारे में पता लगाने के लिए सीआईडी क्राइम ब्रांच के सीनियर इंसपेक्टर अविनाश सावंत ने इंसपेक्टर चिंभाजी आढ़ाव के नेतृत्व में एक टीम गठित कर दी. चिंभाजी आढ़ाव टीम के साथ जांच की दशादिशा तय कर रहे थे कि मृतका शगुफ्ता खान का पति सोनू जालान अपनी दोनों बेटियों आलिया और जिया के साथ सीआईडी क्राइम ब्रांच के औफिस आ पहुंचा.

पूछताछ में उस ने पुलिस को बताया कि उस की पत्नी की हत्या की सूचना उस की बड़ी बेटी आलिया ने दी थी. उस के बाद सच्चाई का पता लगाने के लिए उस ने अपने दोस्त विमल अग्रवाल को फोन किया था. जब विमल ने हत्या की पुष्टि कर दी तो वह तुरंत फ्लाइट पकड़ सीधे मुंबई आ गया. इंसपेक्टर चिंभाजी आढ़ाव ने जब उस के बारे में पूछा तो उस ने बताया कि सन 2010 तक वह क्रिकेट की सट्टेबाजी से जुड़ा रहा. लेकिन उस के बाद उस ने सट्टेबाजी से तौबा कर लिया. इस समय वह औटोपार्ट्स का व्यवसाय कर रहा था. उसी के सिलसिले में वह आस्ट्रेलिया गया था.

रही बात पत्नी से विवाद की तो वह सट्टेबाजी को ही ले कर था. यह काम उस की पत्नी शगुफ्ता खान को पसंद नहीं था. मां से उस की पटती नहीं थी, इसलिए वह यहां अलग रहती थी. सोनू जालान ने हत्यारे का नाम भी बता दिया था. हत्यारे का नाम अरविंद गुप्ता उर्फ गुड्डू था, जो गोरेगांव के सिटी सेंटर मौल स्थित शीराज खान की दुकान पर उठताबैठता था. वहीं से शगुफ्ता खान से  उस की जानपहचान हुई थी और वह उस के घर भी आनेजाने लगा था. जरूरत पड़ने पर शगुफ्ता खान उस की आर्थिक मदद भी कर दिया करती थी. सोनू जालान और उस की बेटियों से पूछताछ के बाद इंसपेक्टर चिंभाजी आढ़ाव को जांच की दिशा मिल गई थी. इस के बाद पल भर की भी देर किए बगैर वह गोरेगांव के सिटी सेंटर मौल स्थित शीराज खान की दुकान पर पहुंच गए थे.

अरविंद गुप्ता उर्फ गुड्डू के बारे में पूछने पर शीराज खान ने बताया कि वह औटो चलाता था. जब खाली होता था, उस के यहां आ कर बैठ जाता था और इधरउधर की बातें किया करता था. ऐसे में कभीकभार जरूरत पड़ने पर वह उस के छोटेमोटे काम भी कर देता था. काम पड़ने पर ही शीराज खान ने उसे कई बार शगुफ्ता खान के फ्लैट पर भी भेजा था. लेकिन इधर 2, ढाई महीने से वह उसकी दुकान पर नहीं आया था. इस बीच उस की कोई बातचीत भी नहीं हुई थी. जब काफी दिनों से अरविंद दिखाई नहीं दिया तो शीराज खान ने उस के दोस्तों से उस के बारे में पता किया. दोस्तों ने बताया था कि वह कमाठीपुरा की रेडलाइट एरिया से कोई लड़की भगा ले गया था, जिस की वजह से कमाठीपुरा की रेडलाइट एरिया के लड़के उसे खोज रहे थे.

शीराज खान से इंसपेक्टर चिंभाजी आढ़ाव को कोई काम की जानकारी नहीं मिली. लेकिन उन से उन्हें अरविंद और उस के दोस्तों के बारे में जरूर पता चल गया था. उन्होंने उस के घर वालों और दोस्तों से उस के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि अरविंद कमाठीपुरा की रेडलाइट एरिया की जिस लड़की को भगा कर ले गया था, उस की एक बहन, भाई और एक सहेली रेशमा जनपद थाना के नाला सोपारा में संतोष भवन के आसपास रहती है. रेशमा पश्चिम बंगाल की रहने वाली थी और बांग्लादेश की सीमा पर दलाली करती थी. वह लोगों को सीमा पार कराने का काम करती थी.

यह जान कर मामले की जांच कर रहे इंसपेक्टर चिंभाजी आढ़ाव के माथे पर बल पड़ गए, क्योंकि अगर अरविंद सीमा पार कर के बांग्लादेश चला जाता तो पकड़ना मुश्किल हो जाता. इस बात को ध्यान में रख कर पुलिस अरविंद के पीछे हाथ धो कर पड़ गई. नालासोपारा में रह रही लड़की की बहन, उस की सहेली रेशमा और उस के भाई से अरविंद के बारे में पूछा गया तो उन्होंने बताया कि घटना से 2-3 दिन पहले वह उन के पास आया था और सीमा पार कराने के लिए कह रहा था. लेकिन उस के बाद न वह आया और न उस का कोई समाचार ही मिला. उन लोगों ने यह जरूर बताया कि घटना वाले दिन सुबह उस लड़की का बांग्लादेश से जरूर फोन आया था, जिसे अरविंद ने कमाठीपुरा की रेडलाइट एरिया से भगाया था. वह अरविंद के बारे में पूछ रही थी. उस का कहना था कि पिछले 2 दिनों से उस का कोई फोन नहीं आया. उस का फोन भी बंद है.

पुलिस ने बांग्लादेश से आए उस लड़की का मोबाइल नंबर ले लिया और उस की काल डिटेल्स निकलवाई तो उस में अरविंद गुप्ता का नया नंबर मिल गया. पुलिस ने जब इस नंबर पर अरविंद की बात उस लड़की की बहन से कराई तो अरविंद ने उस ट्रेन के बारे में बता दिया, जिस से वह पश्चिम बंगाल जा रहा था. अब पुलिस को उस ट्रेन से पहले हावड़ा रेलवे स्टेशन पहुंचना था. इस के लिए टीम ने सीनियर पुलिस अधिकारियों से बात की और हवाईजहाज से ट्रेन से पहले कोलकाता पहुंच गए. पुलिस टीम हवाई अड्डे से टैक्सी से सीधे हावड़ा रेलवे स्टेशन पहुंची और 23 नवंबर, 2014 की सुबह स्थानीय पुलिस की मदद से अरविंद गुप्ता उर्फ गुड्डू को ट्रेन से उतरते ही गिरफ्तार कर लिया.

उसी दिन उसे वहां अदालत में पेश किया गया और ट्रांजिट रिमांड पर मुंबई लाया गया. सीनियर अधिकारियों की उपस्थिति में अरविंद से की गई पूछताछ में शगुफ्ता खान की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी. 20 वर्षीया अरविंद गुप्ता उर्फ गुड्डू का परिवार मूलरूप से उत्तर प्रदेश के जनपद आजमगढ़ का रहने वाला था. उस के पिता विजय कुमार गुप्ता सालों पहले रोजीरोटी की तलाश में महानगर मुंबई आ गए थे. मुंबई में वह उपनगर गोरगांव के मंगतसिंहनगर में किराए का मकान ले कर रहने लगे थे.

गुजरबसर के लिए विजय कुमार औटो चलाने लगे थे. उन की 5 संतानें हुईं, 3 बेटे और 2 बेटियां. विजय कुमार गुप्ता सीधेसाधे सरल स्वभाव के ईमानदार आदमी थे. परिवार बड़ा था. उन की कमाई ज्यादा नहीं थी. आर्थिक तंगी की ही वजह से वह बच्चों को ज्यादा पढ़ालिखा नहीं सके. इसलिए बेटे जैसेजैसे बड़े होते गए औटो चलाना सिखा दिया. बेटे औटो चलाने लगे तो उन्होंने उन की शादियां कर दीं. बेटियों की भी शादियां हो गईं. अरविंद गुप्ता उर्फ गुड्डू विजय कुमार के बच्चों में सब से छोटा था. छोटा होने की वजह से वह सभी का लाडला था. वह जवान भी हो गया और कमाने भी लगा, इस के बावजूद परिवार के प्रति अपनी कोई जिम्मेदारी नहीं समझता था. वह औटो से जो भी कमाता था, अपने ऊपर उड़ा देता था.

अपनी कमाई की एक फूटी कौड़ी घर वालों को नहीं देता था. उस के दोस्त भी वैसे ही थे. इन की कमाई का अधिक आवारागर्दी, तरहतरह के नशे और शबाब पर हिस्सा खर्च होता था. मौजमजे के लिए कमाठीपुरा की रेडलाइट एरिया जाना इन के लिए आम बात थी. इन सब बातों की जानकारी अरविंद के घर वालों को हुई तो उन्होंने उस पर अंकुश लगाने की कोशिश की, लेकिन तब तक वह इतना आगे निकल चुका था कि उस पर घर वालों के अंकुश का कोई असर नहीं पड़ा. मजबूर हो कर घर वालों ने उसे उस की हालत पर छोड़ दिया.

खाली समय में अरविंद गोरेगांव के सिटी सेंटर मौल स्थित सीराज खान की दुकान पर बैठता था. वह मोबाइल फोन बेचने के साथ रिपेयरिंग का भी काम करते थे. बैठनेउठने में अरविंद और सीराज खान के बीच खासी पटने लगी थी. धीरेधीरे वह उन का विश्वासपात्र बन गया. इस के बाद जरूरत पड़ने पर वह उस के भरोसे दुकान छोड़ कर तो जाने ही लगा, किसी ग्राहक के यहां भी जाना होता तो उसे भेज देता था. शगुफ्ता खान भी सीराज खान की ग्राहक थीं. वह काफी संपन्न और सभ्रांत थीं. सिराज खान की दुकान पर आनेजाने में अरविंद से भी उन की जानपहचान हो गई थी. अरविंद के बातव्यवहार से वह काफी प्रभावित थीं.

सीराज खान के कहने पर वह कई बार उन का सामान ले कर शगुफ्ता खान के घर आयागया तो दोनों में काफी घनिष्ठता हो गई. वह परिवार से भी हिलमिल गया. इसी हिलमिल जाने की ही वजह से जरूरत पड़ने पर शगुफ्ता खान ने कई बार उस की आर्थिक मदद भी की थी. शगुफ्ता खान ने जब अरविंद की कई बार मदद की तो उसे लगा कि अगर वह उन से मोटी रकम भी मांगेगा तो वह दे देंगी. यही सोच कर अरविंद शगुफ्ता खान से एक मोटी रकम मांग भी बैठा, लेकिन उन्होंने देने से मना कर दिया. यह बात अरविंद को काफी बुरी लगी और वह उन से नाराज हो गया.

अरविंद का सोचना था कि शगुफ्ता खान को उस पर विश्वास नहीं है, इसलिए वह उसे पैसा नहीं देना चाहती. अरविंद ने वह मोटी रकम शगुफ्ता खान से उस लड़की की मदद के लिए मांगे थे, जिस से वह प्यार करता था और उस से शादी करना चाहता था. दरअसल, वह दोस्तों के साथ कमाठीपुरा की रेडलाइट एरिया की जिस गली में जाता था, उस गली में रानी नाम की एक नई लड़की आई थी. उसे देख कर वह होश खो बैठा था और उस का दीवाना हो गया था. उस से मिलने के बाद जब उसे उस की मार्मिक कहानी का पता चला तो उस का दिल द्रवित हो उठा था.

रानी बांग्लादेश की रहने वाली थी. उस के घर वाले बहुत गरीब थे. उस की एक बहन पहले से ही मुंबई के नाला सोपारा में रहती थी. लेकिन उस की भी आर्थिक स्थिति कुछ ठीक नहीं थी, इसलिए वह मांबाप की कुछ खास मदद नहीं कर पाती थी. मांबाप की मदद के लिए रानी भी मुंबई आना चाहती थी, लेकिन समस्या थी सीमा पार करने की. रानी इस बारे में सोचविचार रही थी कि उस की मुलाकात एक ऐसे लड़के से हुई जो गांव की गरीब और भोलीभाली लड़कियों को बहलाफुसला कर मुंबई ले आता था और उन्हें कमाठीपुरा की रेडलाइट एरिया में बेच देता था, जहां उन की जिंदगी में ग्रहण लग जाता था.

रानी को अच्छी नौकरी दिलाने और बहन से मिलाने का वादा कर के वह लड़का उसे मुंबई ले आया और कमाठीपुरा की रेडलाइट एरिया में बेच दिया. रानी को कमाठीपुरा आए कुछ ही दिन हुए थे कि एक दिन अरविंद गुप्ता उस के यहां जा पहुंचा. जब उसे रानी के बारे में पता चला तो उसे उस से सहानुभूति हो गई और वह उसे उस दलदल से बाहर निकालने की कोशिश में जुट गया. लेकिन यह इतना आसान काम नहीं था. 24 घंटे मकान मालकिन और उस के आदमियों की रानी पर नजर रहती थी. अरविंद ने मकान मालकिन से रानी को आजाद करने की बात की तो उस ने 50 हजार रुपए मांगे. इतने रुपए अरविंद के पास नहीं थे. उस ने शगुफ्ता खान से मदद मांगी. छोटीमोटी आर्थिक मदद की बात अलग थी, इतने रुपए वह अरविंद को किस भरोसे पर देतीं, सो उन्होंने रुपए देने से मना कर दिया.

इस के बाद अरविंद के पास एक ही उपाय बचा कि वह किसी तरह मकान मालकिन तथा उस के आदमियों का विश्वास जीते और फिर मौका मिलते ही वह रानी को ले कर कहीं भाग जाए. अरविंद ने ऐसा ही किया. सितंबर महीने में वह रानी को ले कर भाग गया. कमाठीपुरा से भागने के बाद दोनों बांग्लादेश जाना चाहते थे, लेकिन वे सीमा नहीं पार कर सके. मजबूरन उन्हें मुंबई वापस आना पड़ा. मुंबई में वह रानी के साथ नाला सोपारा में रहने वाली उस की बहन के यहां रुका. लेकिन जब अरविंद को पता चला कि रानी की मकान मालकिन और उस के आदमी पागल कुत्तों की तरह उन्हें खोज रहे हैं तो रेशमा की मदद से वह रानी के साथ बांग्लादेश चला गया. अरविंद रानी से शादी कर के बांग्लादेश में बस जाना चाहता था. लेकिन वहां रहने के लिए उसे कामधंधे की जरूरत थी, जिस के लिए पैसे चाहिए थे. अब पैसे कहां से आएं?

इस बारे में अरविंद ने सोचाविचारा तो उसे शगुफ्ता खान की याद आ गई. उसे लगा कि शगुफ्ता खान से उसे इतनी रकम तो मिल ही सकती है, जिस से उस का काम आसानी से चल सकता है. उस ने उस की मदद नहीं की थी, इसलिए वह उसे सबक भी सिखाना चाहता था. वह शगुफ्ता खान के यहां लूटपाट की योजना बना कर मुंबई आ गया. मुंबई आने के बाद अरविंद ने रानी की बहन और सहेली रेशमा से बांग्लादेश की सीमा पार कराने की बात की. उस के बाद बाजार से एक चाकू खरीदा, जिस से शगुफ्ता खान को डराया जा सके. इस के बाद औटो ले कर वह शगुफ्ता खान के घर पहुंच गया. औटो वाले को नीचे खड़ा कर के वह उस के फ्लैट पर पहुंचा. उस समय शगुफ्ता खान अकेली थीं. उसे डराधमका वह उस से अलमारी की चाबी मांगने लगा.

अरविंद शगुफ्ता खान की हत्या नहीं करना चाहता था, लेकिन उसी बीच शगुफ्ता खान की दोनों बेटियां आ गईं तो वह घबरा गया. उस की योजना फेल न हो जाए, उस ने उस की हत्या कर के चाबी ली और अलमारी खोल कर नगद और गहने ले कर नीचे आ गया. औटो उस ने रुकवा ही रखा था, उसी पर सवार हुआ और मलाड स्टेशन जा पहुंचा. वहां से लोकल ट्रेन पकड़ कर वह विलेपार्ले में रहने वाले अपने एक दोस्त के पास गया. उस की मदद से उस ने एक मोबाइल फोन, अपने और रानी के लिए कुछ कपड़े खरीदे. वहीं से उस ने रानी से अपने नए मोबाइल फोन से बात की और कुर्ला लोकमान्य तिलक रेलवे स्टेशन से ज्ञानेश्वरी एक्सपे्रस पकड़ कर कोलकाता के लिए रवाना हो गया.

उस का सोचना था कि अगर वह सीमा पार कर के बांग्लादेश पहुंच जाएगा तो मुंबई पुलिस उस का कुछ नहीं कर पाएगी. लेकिन उस ने गलती यह कर दी कि रानी को उस ट्रेन के बारे में बता दिया, जिस से वह जा रहा था. पूछताछ के बाद इंसपेक्टर चिंभाजी आढ़ाव ने लूट का सारा माल जब्त कर के अरविंद को थाना मलाड पुलिस के हवाले कर दिया. मलाड पुलिस ने उसे अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.Crime News

 

Hindi Stories Love : प्रेम में दुश्मन बनते भाई

Hindi Stories Love : लड़की के प्यार का जुनून और भाई की जिद में भाईबहन का प्यार और खून का रिश्ता दुश्मनी में बदल रहा है, जो कभीकभी जान पर भी भारी पड़ जाता है. वे एक ही छत के नीचे साथसाथ रह कर, खेलकूद कर, पढ़लिख कर बड़े होते हैं, इस के

बावजूद उम्र के नाजुक पायदान पर कदम पड़ने पर जब कोई लड़की दिल की उमंगों से अपने अंदाज में बेहतर जिंदगी की ख्वाहिश में मोहब्बत का तराना गुनगुनाती है तो उस के खून के रिश्ते का भाई ही उस के प्यार के बीच दीवार बन कर खड़ा हो जाता है. लड़की की मोहब्बत के जुनून और भाई की जिद में प्यार और खून का रिश्ता दुश्मनी में बदल जाता है. यही दुश्मनी एक दिन जान पर भारी पड़ जाती है और सगे भाई ही बहनों का कत्ल कर देते हैं.

मोहब्बत और कत्ल का यह सिलसिला चलता ही रहता है. कानून तो अपना काम करता है, लेकिन समाज खामोशी से देखता रहता है. ऐसा करने वाले यूं तो सलाखों के पीछे होते हैं, लेकिन उन्हें इस का जरा भी मलाल नहीं होता. बात अगर गैरमजहबी युवक से मोहब्बत की हो तो अंजाम और भी दिल दहला देने वाले होते हैं. हापुड़ जनपद के स्याना रोड निवासी इंसाफ अली की 20 साल की बेटी दानिश्ता ने जमाने में देखा, फिल्मों में देखा और कानून की यह बात भी पता चली कि लड़कालड़की बालिग हो जाएं तो अपनी मरजी से जिंदगी जीने के लिए आजाद हैं.

वक्त की बदलती चाल ने दानिश्ता के दिलोदिमाग पर छाप छोड़ी तो वह दूसरे मजहब के सोनू के साथ मोहब्बत का तराना गुनगुनाने लगी. उम्र की दहलीज पर उस ने अपनों से नाफरमानी कर दी. मोहब्बत का जुनून ही था कि उस ने अंजाम की परवाह किए बगैर खूबसूरत भविष्य का ख्वाब संजोया. लेकिन उस के ख्वाबों के महल तब बिखर गए, जब न सिर्फ उस के सगे भाई खलनायक बन कर उभरे, बल्कि परिवार भी उस के खिलाफ हो गया.

29 नवंबर, 2014 की सुबह का वक्त था. दानिश्ता का प्रेमी सोनू किसी काम से जा रहा था कि दानिश्ता के भाइयों तालिब, आसिफ और तसलीम ने उसे घेर लिया और उस के साथ बेरहमी से मारपीट शुरू कर दी. दानिश्ता ने अपनी मोहब्बत को दम तोड़ते देखा तो वह बचाव के लिए आगे बढ़ी और घर वालों से भिड़ गई. इस पर दानिश्ता और उस के प्रेमी सोनू को धारदार हथियारों से बेरहमी से काट कर मौत की नींद सुला दिया गया.

भाइयों में गुस्सा इस कदर था कि कोई उन्हें रोकने की हिम्मत नहीं कर सका. हत्याओं में भाइयों का साथ उन के दोस्तों और मां नूरजहां खातून ने भी दिया. हत्याएं करने के बाद तालिब और नूरजहां खुद ही थाने पहुंच गए और आत्मसमर्पण कर दिया. दानिश्ता और सोनू का प्रेमसंबंध काफी समय से चल रहा था. उन के प्रेमसंबंधों की जानकारी दानिश्ता के घर वालों को हुई तो उन्होंने उसे समझाया कि वह गैरमजहबी लड़के से कोई रिश्ता न रखे. लेकिन प्यार करने वाले ऐसे किसी बंधन को कहां मानते हैं. वे तो जातिधर्म, ऊंचीनीच की दीवारों को गिराने का दम भरते हैं. प्यार के लिए वे जमाने से भी टकराने को तैयार रहते हैं. वे जानते हैं कि प्रेम में ऐसी बाधाएं आएंगी और उन्हें उन का सामना करना पड़ेगा.

लेकिन उन्हें यह उम्मीद होती है कि एक दिन जीत उन के प्यार की ही होगी. यह बात अलग है कि बड़े शहरों की बात छोड़ दें तो ग्रामीण क्षेत्रों में हर कोई ऐसा खुशनसीब नहीं होता. दानिश्ता और सोनू की सोच भी यही थी कि एक दिन उन का प्यार जीत जाएगा. वे विवाह कर के जीवन भर साथ रहने का निर्णय ले चुके थे. जबकि दानिश्ता के भाई इस के लिए तैयार नहीं थे. वह जब भी सोनू से विवाह की बात घर में करती, उस के साथ मारपीट की जाती. दानिश्ता और सोनू दोनों ही समझ गए कि घर वालों की मरजी से वे कभी शादी नहीं कर पाएंगे.

दोनों ने कानून का सहारा लिया और गुपचुप कोर्टमैरिज कर ली. यह बात दोनों ने ही घर वालों से छिपाए रखी और अपनेअपने घर यह सोच कर रहते रहे कि अच्छे वक्त पर घर वालों को मना कर एक हो जाएंगे. जब इस बात का खुलासा हुआ तो हंगामा मच गया. दानिश्ता की शामत आ गई. इस मुद्दे पर हत्या से एक दिन पहले स्थानीय पंचायत भी हुई. दानिश्ता के भाइयों ने ऐलान कर दिया कि वे बहन की मोहब्बत को कुबूल नहीं करेंगे. पंचायत में कथित समाज के ठेकेदारों का भी फरमान था कि दोनों हमेशा अलग ही रहेंगे. जबकि यह फरमान न दानिश्ता को मंजूर था और न सोनू को. नतीजतन मौका पा कर उन की हत्या कर दी गई.

पुलिस गिरफ्त में हत्यारोपी भाई का कहना था, ‘‘बिरादरी में हमारी बदनामी हो रही थी. हमारा घर से बाहर निकलना मुश्किल हो गया था. अब घर वाले समाज में सिर उठा कर जी सकेंगे, क्योंकि हम ने अपनी इज्जत बचा ली है.’’

नूरजहां का बयान भी कुछ ऐसा ही था. उसे भी बेटी की मौत का कोई अफसोस नहीं था. इस दोहरे हत्याकांड के बाद पुलिस ने ऐसे प्रेमी युगलों की सूची बनाई, जिन्होंने अपनी मरजी से विवाह किए थे. पुलिस अधीक्षक आर.पी. पांडे ने कहा, ‘‘हम प्रेमियों को सुरक्षा देने के लिए तत्पर हैं. हमारी कोशिश है कि घृणित कृत्य करने वालों को सख्त सजा मिले.’’

औनर किलिंग की यह पहली वारदात नहीं थी. पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अकसर भाईबहन की मोहब्बत के दुश्मन बन जाते हैं. हैरानी की बात यह है कि अपनों के खून से हाथ रंगने वालों को अपने किए पर अफसोस नहीं होता. शान के लिए लड़कियों और उन के प्रेमियों की हत्या कर दी जाती है. मेरठ की रहने वाली फुरकानी ने भी गैरमजहब के लड़के रविंद्र से मोहब्बत करने का गुनाह किया था. प्रेमसंबंध की जानकारी होने पर जम कर हंगामा हुआ. उस के इस कदम से घर वाले गुस्से में आ गए. दूसरे संप्रदाय के लड़के ने उन की बेटी को दुलहन बना लिया था. उस ने प्रेमी के लिए धर्म ही नहीं, नाम भी बदल लिया था. उस ने अपना नाम निशू रख लिया था.

फुरकानी के घर वालों ने इस बात को आन का सवाल बना लिया. टकराव को टालने के लिए दोनों शहर जा कर रहने लगे. काफी दिनों बाद वे दोनों गांव आ कर रहने लगे तो फुरकानी के घर वाले खफा हो गए. 25 नवंबर को फुरकानी के भाई निजाम और फुरकान उस के घर पहुंचे और उस के सिर में गोली मार कर फरार हो गए.  समय पर उपचार मिलने से निशू की जान तो बच गई, लेकिन उस की एक आंख हमेशा के लिए चली गई. उस के भाइयों को भी गिरफ्तार कर लिया गया. लेकिन निशू के भाई निजाम को उस के जिंदा बच जाने का बहुत अफसोस है.

उस का कहना है कि अगर उसे पता होता कि बहन जिंदा बच जाएगी तो वह उसे एक और गोली मार देता. जब तक वह मरेगी नहीं, उसे चैन नहीं मिलेगा. गैरसमुदाय के लड़के से शादी कर के उस ने उस के परिवार की बहुत बदनामी कराई है, इसलिए उस ने उसे गोली मारी थी. मुजफ्फरनगर के लोई गांव के रहने वाले इलियास की बेटी शाइमा का 2 साल से गांव के ही एक लड़के से प्रेमसंबंध चल रहा था. जब घर वालों को इस बात की खबर हुई तो उन्होंने उस पर बंदिशें लगा दीं. शाइमा लड़के से विवाह करने की जिद पर अड़ गई. बंदिशों को तोड़ कर एक दिन वह घर से भाग गई. शाइमा की इस हरकत से घर वाले आगबबूला हो गए.

कुछ दिनों बाद शाइमा को उन्होंने ढूंढ निकाला और घर ला कर उस के भाई इंतजार ने उसे गोली मार दी. अमित को भी अपनी बहन मोना का प्यार मंजूर नहीं था. वह किसी लड़के से मोबाइल फोन पर बातें किया करती थी. अमित इस बात से बेहद नाराज रहता था. उसे लगता था कि इस से एक दिन परिवार की इज्जत चली जाएगी. एक दिन उस ने बहन को फोन पर बातें करते पकड़ लिया तो उस ने उसे गोली मार दी. मोना किसी तरह बच गई. पश्चिमी उत्तर प्रदेश का सामाजिक परिवेश ऐसा है, जहां प्रेमिल रिश्तों का खुलेआम विरोध है. इस के बावजूद चोरीछिपे रिश्ते पनपते हैं. तेजी से होते शिक्षा और आर्थिक विकास के बीच यह बेहद संवेदनशील मुद्दा है.

प्रेमसंबंधों को आन से जोड़ कर देखा जाता है. घर की बेटी प्रेम संबंध में अपनी मरजी से विवाह जैसा कदम उठाए, यह किसी भी दशा में मंजूर नहीं होता और अपने ही मरनेमारने पर उतारू हो जाते हैं. समाज की टीका टिप्पणियां आग में घी डालने का काम करती हैं. जिस परिवार की लड़की को ले कर इस तरह के मामले सामने आते हैं, उन्हें तरहतरह के ताने दिए जाते हैं. ऐसे में नौजवानों को यह बरदाश्त नहीं होता. मानसिकता ऐसी होती है कि उन्हें लगता है कि हत्या कर देने से उन की इज्जत बच जाएगी और वह शान की जिंदगी जी सकेंगे.

ऐसा करने वाले प्रेम करने वाली लड़की को अपने परिवार के लिए कलंक मानते हैं. कातिल मानते हैं कि सामाजिक तानों व बेइज्जती से बचने के लिए अब यही करना आवश्यक हो गया है. दुखद यह है कि ऐसा कर के भी उन की इज्जत नहीं बचती. समाज भी खुले तौर पर ऐसी हत्याओं का विरोध नहीं करता. कानून का काम लाशों के पंचनामे और हत्यारों की गिरफ्तारी तक सिमट कर रह जाता है. Hindi Stories Love

Stories in Hindi Love : प्यार नहीं, स्वार्थ का रिश्ता

Stories in Hindi Love : पत्नी की कमाई पर पलने वाले पतियों की सोच इतनी गंदी क्यों हो जाती है कि वे उसी के दुश्मन बन जाते हैं. अपनी बैंक मैनेजर पत्नी को मार कर आखिर पवन को क्या मिला? क्या इस मामले में रितु ने प्रेम के नाम पर पवन से शादी कर के बड़ी भूल नहीं की थी?

पवन और रितु की मुलाकात तब हुई थी, जब 2006 में दोनों कंप्यूटर इंस्टीट्यूट में पढ़ रहे थे. धीरेधीरे दोनों एकदूसरे को पसंद करने लगे थे. पवन रितु का हर तरह से ख्याल रखता था. जब कभी घर जाने के लिए कोई साधन नहीं होता था तो वह उसे उस के घर तक छोड़ने जाता था. रितु पढ़ाई में तेज थी, उस ने बैंकिंग की परीक्षा दी तो पास हो गई. फलस्वरूप जल्दी ही उसे नैनीताल बैंक में सहायक प्रबंधक के पद पर नौकरी मिल गई. रितु सेक्टर ए, एलडीए कालोनी, कानपुर रोड, लखनऊ में अपने पिता के साथ रहती थी. कुछ समय पहले उस की मां सुषमा का देहांत हो चुका था, जिस की वजह से उस के पिता श्यामबिहारी श्रीवास्तव परेशान रहते थे.

रितु अपनी बहनों में सब से छोटी थी. उस की बड़ी बहन की शादी हो चुकी थी और वह अपने पति के साथ लखनऊ के ही मडि़यांव इलाके रहती थी. रितु और पवन के प्यार के बारे में हालांकि सब को पता था. लेकिन उस के पिता श्यामबिहारी चाहते थे कि बेटी ऐसे आदमी से शादी करे, जो समाज में उस की तरह ही अपनी हैसियत रखता हो. पवन किसी अच्छी नौकरी की तलाश में था, लेकिन काफी भागदौड़ के बाद भी उसे प्राइवेट नौकरी ही मिल पाई थी.

श्यामबिहारी बूढ़े हो चले थे, उन की तबीयत भी खराब रहती थी. पत्नी की मौत के बाद वह बेटी रितु और बेटे साहिल को ले कर चिंतित रहते थे. वैसे उन्हें पूरा भरोसा था कि रितु हर हाल में अपने भाई का ख्याल रखेगी. बीमारी के चलते ही सन 2009 में उन की मौत हो गई. पिता की मौत के बाद रितु पर परिवार चलाने की जिम्मेदारी आ गई. ऐसे में अपने लिए कुछ सोचना बहुत मुश्किल था. उस का छोटा भाई साहिल उस के साथ ही रहता था. रितु उसे भाई नहीं, बल्कि बेटे की तरह पाल रही थी. रितु के पिता की मौत के बाद पवन ने उस पर शादी करने के लिए दबाव डालना शुरू किया तो रितु ने उसे प्यार से समझाया, ‘‘पवन इस बारे में सोचती तो मैं भी हूं, लेकिन साहिल की चिंता है. वह हाईस्कूल में पहुंच जाए तो मैं उसे आगे की पढ़ाई के लिए हौस्टल भेज दूंगी और तुम से शादी कर लूंगी.’’

‘‘देखो रितु, प्राइवेट ही सही, मुझे भी नौकरी मिल गई है. अब हमें शादी कर लेनी चाहिए. अब नहीं तो क्या हम बुढ़ापे में शादी करेंगे?’’

‘‘ठीक है बाबा, इस बारे में मैं जल्द ही कोई फैसला कर लूंगी.’’ रितु ने पवन को टालने के लिए शादी की हामी भर दी.

सोचविचार कर रितु ने अपनी बहन और भाई ने पवन के साथ शादी करने के बारे में बात की. रीतू के भाई और बहन दोनों का मानना था कि न तो पवन अच्छे स्वभाव का है और न ही वह कहीं अच्छी नौकरी करता है. दरअसल उन दोनों की नजर में पवन में सब से बड़ी बुराई यह थी कि वह शराब पीने का आदी था. भाईबहन की बात सुन कर रितू बोली, ‘‘तुम लोगों की बात अपनी जगह सही है. मैं उस की इस बुराई के बारे में जानती हूं. पर क्या करूं, समझ नहीं पा रही हूं? उस के साथ इतने दिनों की दोस्ती है, उसे भूल कर किसी और से शादी करना मुझे थोड़ा मुश्किल लग रहा है.’’

‘‘दीदी, आप ठीक कह रही हैं, पर हमारा मन इस के लिए तैयार नहीं है.’’ भाईबहन ने दो टूक कहा. इस के बावजूद रितु का खुद का मन शादी टालने का नहीं हो रहा था.

इसी के चलते उस ने अपने परिवार की मरजी के खिलाफ जा कर नवंबर, 2013 में पवन से शादी कर ली. शादी के 2-3 महीने ठीक से गुजरे. इस बीच रितु अपनी ससुराल के बजाय अपने मायके में ही रहती रही. पवन को इस बात से कोई शिकायत नहीं थी. रितु के पास मायके की काफी जायदाद तो थी ही, साथ ही वह बैंक में अच्छे पद पर नौकरी भी करती थी. घर में सुखसुविधा के सारे साधन मौजूद थे. उसे केवल चिंता थी तो अपने छोटे भाई की. एक दिन पवन घर पहुंचा तो बहुत उदास था. रितु ने उसे देखा तो पूछा, ‘‘क्या बात है, उदास क्यों हो?’’

‘‘रितु, आज मेरी कंपनी ने कई लोगों को नौकरी से निकाल दिया है, मेरी भी नौकरी चली गई.’’ पवन ने दुखी हो कर कहा.

‘‘कोई बात नहीं, प्राइवेट नौकरियों में तो यह होता ही रहता है. कहीं और नौकरी तलाश करो.’’ रितु ने पवन को समझाया. पवन को अपना खर्च चलाने के लिए पैसों की ज्यादा जरूरत नहीं थी, क्योंकि उस की पत्नी तो नौकरी कर ही रही थी. उसे पैसों की जरूरत केवल अपने शौक पूरे करने के लिए थी. उसे यह पता था कि रितु को सब से अधिक नफरत उस के शराब पीने से है. इस के लिए वह उसे पैसा देने को तैयार नहीं थी. उस की बात सही भी थी. निठल्ले बैठे पति को शराब के लिए कौन पत्नी अपनी कमाई का पैसा देगी?

इसी बात को ले कर दोनों के बीच दूरियां बढ़ने लगीं. कहासुनी से शुरू होने वाले विवाद धीरेधीरे लड़ाईझगड़े तक पहुंचने लगे. रितु जब भी पवन को समझाने की कोशिश करती, वह उस की बात को गलत तरह से लेता. उसे लगने लगा कि रितु यह सब अपनी नौकरी की धौंस दिखाने के लिए करती है. रितु ने 35 लाख में अपने पिता की एक प्रौपर्टी बेच दी थी ताकि कोई नई जमीन खरीद कर मकान बनवा सके. दरअसल उसे लग रहा था कि मकान बन जाएगा तो वह ठीक से रह सकेगी. इस के लिए उस ने मकान बनाने के लिए एक जमीन पसंद भी कर ली थी.

उस जमीन को खरीदने के लिए 2 लाख रुपए एडवांस देने थे. उस ने यह रकम पवन को दे दी, ताकि वह प्रौपर्टी डीलर को दे दे. लेकिन पवन ने वे पैसे प्रौपर्टी डीलर को देने के बजाय अपने भाई को दे दिए. यह बात जब रितु को पता चली तो वह गुस्से में बोली, ‘‘पवन, पैसे की कीमत को समझो. पैसा डाल पर नहीं लगता कि हाथ बढ़ाया और तोड़ लिया. बहुत मेहनत करनी पड़ती है पैसा कमाने के लिए. हमें नए मकान के लिए पैसे की जरूरत है और तुम पैसे कहीं और दे आए.’’

लेकिन पवन ने रितु की बात को गंभीरता से न ले कर कड़वाहट से जवाब दिया, ‘‘तुम पैसे को ले कर बहुत झगड़ा करने लगी हो. मैं नौकरी नहीं करता, इसलिए तुम मुझे ताना मारती हो. तुम्हें पैसे का बहुत घमंड हो गया है.’’

‘‘तुम से बात करना ही बेकार है, तुम किसी बात को समझना ही नहीं चाहते.’’ कह कर रितु बैंक चली गई.

रितु ने बाकी बची 33 लाख की रकम अपने बैंक खाते में जमा कर दी थी. इस खाते में उस ने अपने भाई साहिल को नौमिनी बनाया था न कि पति को. इस के बाद पैसे और जायदाद को ले कर पतिपत्नी के बीच लड़ाईझगड़ा और बढ़ गया. प्यारमोहब्बत के बीच पैसा विलेन बन चुका था. इस बीच रितु 6 माह की गर्भवती हो गई थी. इस से वह काफी खुश थी. उसे लग रहा था कि बच्चे के आ जाने के बाद शायद पवन में बदलाव आ जाए.

19 दिसंबर, 2014 की बात है. नादान महल रोड, लखनऊ स्थित नैनीताल बैंक की शाखा में बैंक के लौकर नहीं खुल पाए थे. वजह यह थी कि बैंक के लौकर की चाबी सहायक प्रबंधक रितु के पास रहती थी. जबकि वह बैंक नहीं आई थी. बैंक के मैनेजर दयाशंकर मलकानी ने रितु के मोबाइल फोन पर संपर्क किया तो पता चला कि उस का फोन बंद है. दयाशंकर ने परेशान हो कर चौक थाने को सूचना दी. इसी बीच रितु के पति पवन का फोन नंबर मिल गया तो उसे फोन किया गया. बातचीत में उस ने बताया कि रितु कल से लापता है. इस जानकारी के बाद थाना चौक पुलिस ने यह बात कैंट थाने की पुलिस को बताई. पुलिस ने पवन के घर जा कर वहां बाहर खड़ी इंडिका कार की तलाशी ली तो उस में बैंक लौकर की चाबियां मिल गईं.

इस के बाद कैंट थाने की पुलिस रितु को तलाशने में जुट गई. एक महिला बैंक अधिकारी के गायब होने का मामला था. पूरे शहर में खलबली मच गई. लखनऊ में नए एसएसपी यशस्वी यादव ने पद संभाला था. तभी पुलिस के लिए यह घटना बड़ी चुनौती के रूप में सामने आ गई थी. एसएसपी के आदेश पर कैंट क्षेत्र की सीओ बबिता सिंह ने इस चुनौती को स्वीकार करते हुए अपनी पुलिस टीम को रितु का पता लगाने में लगा दिया. इसी बीच एसओ कैंट सुरेश यादव को सूचना मिली कि कैंट क्षेत्र स्थित फायरिंग रेंज के पास झडि़यों में किसी महिला का शव पड़ा है. सूचना मिलते ही सुरेश यादव अपनी टीम के साथ वहां पहुंच गए. सूचना सही थी. लाश की शिनाख्त होने में भी देर नहीं लगी.

लाश बैंक मैनेजर रितु की ही थी. घटनास्थल पर पुलिस को कोई भी ऐसा सुबूत नहीं मिला, जिस से यह लगता कि रितु के साथ कोई जोरजबरदस्ती की गई थी. उस के शरीर के कपड़े भी सही सलामत थे. किसी प्रकार की कोई लूट भी नहीं हुई थी, क्योंकि मृतका के कानों के आभूषण भी सुरक्षित थे और हाथों की चूडि़यां भी. अलबत्ता उस का पर्स और मोबाइल जरूर गायब था. इस से पुलिस को संदेह हुआ कि इस घटना में रितु का कोई अपना ही शामिल हो सकता है. पुलिस ने इस बारे में पहले रितु के भाई साहिल से बात की और फिर उस के पति पवन से. दोनों की बातों से पुलिस का शक पवन पर गहरा गया. पुलिस ने काल डिटेल्स हासिल कर के रितु के फोन नंबर और पवन के फोन नंबर की जांच की तो पता चला कि रितु से अंतिम बार पवन ने ही बात की थी.

इस के बाद पुलिस ने पवन को हिरासत में ले कर पूछताछ की. इस पूछताछ में जो बात सामने आई, वह यह थी कि रितु और पवन के बीच दौलत विलेन बन गई थी. पैसे के लिए पवन इतना अंधा हो गया था कि रितु को मौत के घाट उतारते वक्त उसे उस की कोख में पल रहे अपने बच्चे का भी खयाल नहीं आया. 18 दिसंबर, 2014 को रितु अपनी बैंक की ड्यूटी पूरी करने के बाद औटो से चारबाग पहुंची. वहां से उसे दूसरा औटो ले कर अपने घर पहुंचना था. रितु जैसे ही औटो से उतरी, उस ने देखा कि पवन अपने बहनोई की कार लिए उस का इंतजार कर रहा है. यह देख कर उस ने चौंक कर पूछा, ‘‘तुम यहां, यह कार क्यों लाए?’’

‘‘मैं अपने बीमार भाई से मिलने देहरादून जा रहा हूं, आज ही रात को. उन की तबीयत ज्यादा खराब है.’’ पवन ने कहा.

‘‘मुझे लगा कि तुम मुझे लेने आए हो? तुम्हें तो अपने कामों से ही फुरसत नहीं है. तुम जाओ मैं औटो ले कर घर चली जाऊंगी.’’ अभी रितु ने कहा ही था कि उस के मोबाइल पर उस के भाई साहिल का फोन आ गया. वह उस से घर पहुंचने के बारे में पूछ रहा था. भाई से बात करते हुए रितु ने कहा, ‘‘मैं तुम्हारे जीजाजी के साथ हूं, अभी थोड़ी देर में आती हूं.’’

उस वक्त शाम के करीब पौने 7 बजे थे. रितु के फोन बंद करते ही पवन बोला, ‘‘ऐसे नाराज मत हो. चलो, पहले कहीं घूम आते हैं. तुम्हारी शिकायत भी दूर हो जाएगी.’’ पवन ने मिन्नत की तो रितु उस की कार में बैठ गई. मानमनुहार कर के रितु को मनाने के बाद पवन कार ले कर शहीद पथ की ओर बढ़ गया. रितु को लगा कि वह उस से झगड़ा खत्म करने के लिए ऐसा कर रहा है. सुलतानपुर रोड पर अर्जुनगंज ओवर ब्रिज के पास पवन ने कार कच्चे रास्ते पर उतार कर खड़ी कर दी और बहाना कर के नीचे उतरा. रितु उस के मन की बात को समझ पाती, उस के पहले ही वह रितु की गरदन में रस्सी का फंदा डाल कर उसे कसने लगा. इस के लिए वह रस्सी पहले ही साथ लाया था.

इस के अलावा उस ने रितु को मारने के लिए उस के सिर पर 3 वार भी किए. इस का नतीजा यह हुआ कि रितु तत्काल मर गई. गर्भवती पत्नी की हत्या करने के बाद पवन ने उस का मोबाइल बंद कर के उस के पर्स में रखा और पर्स वहीं नाले में फेंक दिया. इस के बाद वह कार ले कर सुनसान जगह की तलाश में आगे बढ़ गया. आगे जा कर उस ने फायरिंग रेंज के पास रितु की लाश जंगल में फेंक दी. वापस लौट कर कार उस ने अपने घर के सामने खड़ी कर दी और सोने की कोशिश करने लगा. देर रात तक जब रितु घर नहीं पहुंची तो साहिल ने करीब 8 बजे के बाद उसे फोन करना शुरू किया. रितु का फोन बंद था. इस से परेशान हो कर साहिल ने अपने जीजा पवन को फोन किया. उधर से पवन ने कहा, ‘‘मैं तुम्हारी दीदी को छोड़ कर देहरादून जा रहा हूं. तुम परेशान मत हो.’’

साहिल ने कई बार पवन के मोबाइल पर फोन किया तो उस ने बताया कि वह लखनऊ में ही है. पुलिस ने रितु की लाश मिलने के बाद जब साहिल से पूछताछ की थी तो उस ने यह बात सीओ कैंट बबिता सिंह को बता दी थी. इसी से वह संदेह के दायरे में आया था. इस से बबिता सिंह को लगा कि जब पवन देहरादून गया नहीं तो उस ने साहिल से झूठ क्यों बोला? दूसरे पवन के फोन की लोकेशन रितु के फोन के साथ मिली थी. संदेह हुआ तो पुलिस ने पवन को गिरफ्तार कर के उस से सख्ती से पूछताछ की. इस से पवन टूट गया और उस ने पुलिस को रितु की हत्या की पूरी जानकारी दे दी थी. शुरू में पवन रितु की हत्या को आत्महत्या साबित करना चाहता था. इस के लिए उस ने एक सुसाइड नोट भी तैयार किया था. लेकिन वह ऐसा कर नहीं सका.

दरअसल पवन के मन में गुस्सा इस बात को ले कर था कि रितु उस से झगड़ा करती है. उस ने अपने बैंक खाते में भी उस की जगह पर भाई को नौमिनी बनाया था. रितु और पवन के बीच मोहब्बत का दौर जरूर लंबा खिंचा, पर शादी के कुछ दिनों के बाद ही उन के बीच अनबन शुरू हो गई थी. इस की वजह थी पवन का नशा करना. जिस समय उस ने रितु का कत्ल किया था, उस समय भी उस ने शराब पी रखी थी. इसीलिए वह यह भी नहीं समझ पाया कि वह केवल अपनी पत्नी की ही हत्या नहीं कर रहा है, बल्कि उस की कोख में पल रहे अपने बच्चे को भी मार रहा है. Stories in Hindi Love

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारि

Crime Stories : कत्ल एक दिलदार का

Crime Stories : कबड्डी खेलते समय नासिर ने चौधरी आफताब की जो बेइज्जती की थी, उस का बदला लेने के लिए उस नेहैदर अली के साथ मिल कर नासिर के साथ ऐसा क्या किया कि उसे और हैदर अली को पछताना पड़ा. उन दिनों मैं जिला छंग के एक देहाती थाने में तैनात था. वह जगह दरिया के करीब थी. मई का महीना होने की वजह से अच्छीभली गरमी पड़ रही थी. अचानक एक दिन पास के गांव से एक वारदात की खबर आई. कांस्टेबल सिकंदर अली ने बताया कि गुलाबपुर में एक गबरू जवान का बड़ी बेदर्दी से कत्ल कर दिया गया है, जिस की लाश खेतों में पड़ी है. गुलाबपुर मेरे थाने से करीब एक मील दूर था.

वहां से फैय्याज और यूनुस खबर ले कर आए थे. वे दोनों खबर दे कर वापस जा चुके थे. मैं ने पूछा, ‘‘मरने वाला कौन है?’’

‘‘उस का नाम नासिर है, वह कबड्डी का बहुत अच्छा और माहिर खिलाड़ी था.’’ सिकंदर अली ने बताया.

मैं 2 सिपाहियों के साथ गुलाबपुर रवाना हो गया. हमारे घोड़े खेतों के बीच आड़ीतिरछी पगडंडी पर चल रहे थे. जिस खेत में लाश पड़ी थी, वह गांव से एक फर्लांग के फासले पर था. कुछ लोग हमें वहां तक ले गए. वहां एक अधूरा बना कमरा था, न दीवारें न छत. जरूर कभी वहां कोई इमारत रही होगी. नासिर की लाश कमरे के सामने पड़ी थी. लाश के पास 8-9 लोग खड़े थे, जो हमें देख कर पीछे हट गए थे. मैं उकड़ूं बैठ कर बारीकी से लाश की जांच करने लगा. बेशक वह एक खूबसूरत गबरू जवान था. उस की उम्र 23-24 साल रही होगी. वह मजबूत और पहलवानी बदन का मालिक था, रंग गोरा और बाल घुंघराले.

लाश देख कर मैं इस नतीजे पर पहुंचा कि उस पर तेजधार हथियार या छुरे से हमला हुआ होगा. मारने वाले एक से ज्यादा लोग रहे होंगे. उस के हाथों के जख्म देख कर लगता था कि उस ने अपने बचाव की भरपूर कोशिश की थी. नासिर कबड्डी का अच्छा खिलाड़ी था, इसलिए गुलाबपुर के लोग उसे गांव की शान समझते थे. लाश पर चादर डाल कर मैं लोगों से पूछताछ करने लगा. नासिर का 60 साल का बाप वहीं था, उस की हालत बड़ी खराब थी, आंखें आंसुओं से भरी हुईं. उस का नाम बशीर था. मैं ने उस के कंधे पर हाथ रख कर उसे तसल्ली दी, ‘‘चाचा, आप फिकर न करो, आप के बेटे का कातिल पकड़ा जाएगा.’’

उस ने रोते हुए कहा, ‘‘साहब, मेरा बेटा तो चला गया. कातिल के पकड़े जाने से मेरा बेटा लौट कर तो नहीं आएगा.’’

बेटे के गम ने उस की सोचनेसमझने की ताकत खत्म कर दी थी. उसे बस एक ही बात याद थी कि उस का जवान बेटा कत्ल हो चुका है. मुझे उस पर बड़ा तरस आया. मैं ने उसे एक जगह बिठा दिया और अपनी काररवाई करने लगा. सब से पहले मैं ने घटनास्थल का नक्शा तैयार किया. वहां मुझे कत्ल का कोई सुराग नहीं मिला. यहां तक कि वह हथियार भी नहीं, जिस से उस का कत्ल किया गया था.n मैं ने वारदात की जगह पर मौजूद लोगों के बयान लिए. लेकिन सिवाय नासिर की तारीफ सुनने के कोई जानकारी नहीं मिली. मैं ने नासिर की लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया.

मेरे दिमाग में एक सवाल घूम रहा था कि इतनी रात को नासिर इस सुनसान जगह पर क्या कर रहा था. मेरे अंदाज से कत्ल रात को हुआ था. मैं ने मौजूद लोगों से घुमाफिरा कर कई सवाल किए, पर काम की कोई बात पता नहीं चली. मैं ने यूनुस और फैयाज से भी पूछताछ की. पर वे कुछ खास नहीं बता सके. इलियास जिस ने सब से पहले लाश देखी थी, मैं ने उस से भी पूछा, ‘‘इलियास, तुम सुबहसुबह कहां जा रहे थे?’’

‘‘साहबजी, मैं कुम्हार हूं. मैं मिट्टी के बरतन बनाता हूं. मैं रोजाना सुबह मिट्टी लाने के लिए घर से निकलता हूं. मेरा कुत्ता मोती भी मेरे साथ होता है. वह मुझे इस तरफ ले आया, तभी लाश पर मेरी नजर पड़ी. लाश देख कर मैं ने ऊंची आवाज में चीखना शुरू कर दिया. उस वक्त खेतों में लोगों का आनाजाना शुरू हो गया था. कुछ लोग जमा हो गए. मौजूद लोगों से पता चला कि बशीर लोहार के बेटे नासिर का किसी ने कत्ल कर दिया है.’’

बशीर लोहार का घर गांव के बीच में था. उस का छोटा सा परिवार था. घर में नासिर के मांबाप के अलावा एक बहन थी. बशीर ने अपने घर के बरामदे में भट्ठी लगा रखी थी. वहीं पर वह लोहे का काम करता था. जब मैं उस के घर पहुंचा तो वह मुझे घर के अंदर ले गया. मैं ने उस से कहा, ‘‘चाचा बशीर, जो कुछ तुम्हारे साथ हुआ, बहुत अफसोसनाक है. मैं तुम्हारे गम में बराबर का शरीक हूं. मेरी पूरी कोशिश होगी कि जैसे भी हो, कातिल को कानून के हवाले करूं. लेकिन तुम्हें मेरी मदद करनी होगी. हर बात साफसाफ और खुल कर बतानी होगी.’’

उस की बीवी जुबैदा बोल उठी, ‘‘साहब, आप से कुछ भी नहीं छिपाएंगे. हमारी दुनिया तो अंधेरी हो ही गई है, लेकिन जिस जालिम ने मेरे बच्चे को मारा है, उसे कड़ी सजा मिलनी चाहिए.’’

‘‘आप दोनों को किसी पर शक है?’’

‘‘साहब, हमें किसी पर शक नहीं है. मेरा बेटा तो पूरे गांव की आंख का तारा था. अभी पिछले महीने ही उस ने कबड्डी का टूर्नामेंट जीता था. इस मुकाबले में 4 गांवों की टीमों ने हिस्सा लिया था. गुलाबपुर की टीम में अगर नासिर न होता तो यह जीत नजीराबाद के हिस्से में जाती. सुल्तानपुर और चकब्यासी पहले दौर में आउट हो गए थे. असल मुकाबला गुलाबपुर और नजीराबाद में था. जीतने पर गांव वाले उसे कंधे पर उठाए घूमते रहे. बताइए, मैं किस पर शक करूं?’’ बशीर ने तफ्सील से बताया.

‘‘नासिर कबड्डी का इतना अच्छा खिलाड़ी था, जहां 10 दोस्त थे, वहां एकाध दुश्मन भी हो सकता है.’’ मैं ने कहा.

‘‘आप बिलकुल ठीक कह रहे हैं साहब, पर मुझे इस बारे में कुछ पता नहीं है.’’ बशीर ने बेबसी जाहिर की.

‘‘मुझे उस दसवें आदमी की तलाश है, जिस ने नासिर का बेदर्दी से कत्ल किया है. जरूर यह किसी दुश्मन का काम है. हो सकता है, गांव के बाहर का कोई दुश्मन हो?’’ मैं ने कहा.

‘‘बाहर का भी कोई दुश्मन नहीं है साहब.’’ उस की बीवी जुबैदा ने कहा तो मैं सोच में पड़ गया. अचानक बशीर बोल उठा, ‘‘वह तो सारा दिन मेरे साथ काम में लगा रहता था. शाम को अखाड़े में कसरत वगैरह करता था.’’

‘‘यह अखाड़ा कहां है?’’ मैं ने पूछा.

‘‘अखाड़ा ट्यूबवेल के पास है. उस टूटीफूटी इमारत के करीब, जहां यह वारदात हुई.’’ उस ने जवाब दिया.

‘‘मेरे अंदाज से कत्ल देर रात को हुआ है, इतनी रात को वह अखाड़े में क्या कर रहा था?’’ मैं ने पूछा.

‘‘यह बात हमारी भी समझ में नहीं आ रही है.’’ जुबैदा बोली.

‘‘रात को क्या वह रोजाना की तरह समय पर सोया था?’’

‘‘सोया तो रोजाना की तरह ही था.’’ कहतेकहते जुबैदा रुक गई.

‘‘मुझे खुल कर बताओ, क्या बात है?’’ मैं ने कहा तो वह बोली, ‘‘आप हमारे साथ ऊपर छत पर चलिए. आप खुद समझ जाएंगे.’’

हम छत पर पहुंचे तो जुबैदा कहने लगी, ‘‘मैं रोजाना नासिर को उठाने छत पर आती थी और वह 2 पुकार में उठ जाता था. लेकिन आज ऐसा नहीं हुआ. मैं ने आगे बढ़ कर चादर उठाई तो उस के नीचे एक तकिया रखा हुआ था, जिस पर चादर ओढ़ाई हुई थी. ऐसा लग रहा था, जैसे कोई सो रहा है.’’

मैं खामोश खड़ा रहा तो जुबैदा ने कहा, ‘‘इस का मतलब है कि पिछली रात नासिर अपनी मरजी से घर से निकला था. वह नहीं चाहता था कि किसी को उस के जाने के बारे में पता चले.’’ जुबैदा बोली.

‘‘नहीं जुबैदा, ऐसा नहीं है. वह पहले भी जाता रहा होगा, पर सुबह होने से पहले आ जाता होगा. इसलिए तुम्हें पता नहीं चला. तुम्हारा बेटा रात के अंधेरे में कहीं जाता था और जल्द लौट आता होगा, इसलिए तुम्हें खबर नहीं मिल सकी. मुझे तो किसी लड़की का चक्कर लगता है.’’ मैं ने कहा तो वे दोनों बेयकीनी से मुझे देखने लगे, ‘‘लड़की का चक्कर…’’

बशीर ने कहा, ‘‘साहब, नासिर ऐसा लड़का नहीं था. वह तो गुलाबपुर की लड़कियों और औरतों को मांबहनें समझता था. वह कभी किसी की तरफ आंख उठा कर भी नहीं देखता था.’’

‘‘मैं नहीं मान सकता कि लड़की का चक्कर नहीं था. पिछली रात वह किसी लड़की से मुलाकात करने ही खेत में पहुंचा था. अगर आप लोग लड़की का नाम बता दो तो केस जल्द हल हो जाएगा. मैं कातिलों तक पहुंच जाऊंगा, क्योंकि वही लड़की बता सकती है कि खेत में क्या हुआ था?’’ मैं ने पूरे यकीन से कहा.

‘‘जनाब, हम कसम खा कर कह रहे हैं कि हम ऐसी किसी लड़की को नहीं जानते.’’ दोनों ने एक साथ कहा.

‘‘मैं आप की बात का यकीन करता हूं, पर इश्क और मुश्क छिपाए नहीं छिपते. मैं कहीं न कहीं से इस का सुराग लगा ही लूंगा. आप यह बताएं कि गुलाबपुर में नासिर का सब से करीबी दोस्त कौन है?’’

‘‘जमील से उस की गहरी दोस्ती थी.’’ बशीर ने कहा.

‘‘ठीक है, अब मैं पता कर लूंगा. दोस्त दोस्त का राज जानते हैं. मुझे जमील से मिलना है. तुम उसे यहां बुला लो?’’ मैं ने कहा.

‘‘उस का घर पड़ोस में है, मैं अभी बुलाता हूं.’’ कहते हुए बशीर बाहर निकल गया.

उस ने वापस लौट कर बताया कि जमील 2 दिनों से टोबा टेक सिंह गया हुआ है.

‘‘ठीक है, कल वह वापस आएगा तो उस से पूछ लूंगा. अभी उस के घर वालों से बात कर लेता हूं.’’ मैं ने कहा.

सामने ही उस की परचून की दुकान थी. उस का बाप वहीं मिल गया. मैं ने करीब 15 मिनट तक उस से बात की, पर कोई काम की बात पता नहीं चल सकी. वह भी कबड्डी की वजह से नासिर का बड़ा फैन था. उसे उस की मौत का बहुत गम था. मेरा दिमाग गहरी सोच में था. मुझे पक्का यकीन था कि जरूर लड़की का चक्कर है. जहां लाश मिली थी, वहां एक अधूरा कमरा था. रात में मुलाकात के लिए वह बेहतरीन जगह थी. मुझे ऐसी लड़की की तलाश थी, जो नासिर से मोहब्बत करती थी और नासिर उस के इश्क में पागल था.

वह जगह गुलाबपुर के करीब ही थी, इसलिए लड़की भी वहीं की होनी चाहिए थी. मेरी सोच के हिसाब से कातिल इस राज से वाकिफ था कि लड़की और नासिर वहां छिपछिप कर मिलते हैं. उसे इस बात का भी यकीन रहा होगा कि नासिर वहां जरूर आएगा. निस्संदेह कातिल उन दोनों की मोहब्बत और मिलन से सख्त नाराज रहा होगा. उस ने वक्त और मौका देख कर नासिर को मौत के घाट उतार दिया होगा. मुझे उस लड़की को तलाश करना था.

दोपहर के बाद मैं ने हमीदा को थाने बुलाया. वह कस्बे में घरघर जा कर क्रीमपाउडर और परांदे वगैरह बेचा करती थी. हर घर की लड़कियों को वह खूब जानती थी और कई की राजदार भी थी. पहले भी वह मेरे कई काम कर चुकी थी. मैं उसे कुछ पैसे दे देता था तो वह खुश हो जाती थी. मैं ने उस से पूछा, ‘‘हमीदा, तुम गुलाबपुर के हर घर से वाकिफ हो. मुझे नासिर के बारे में जानकारी चाहिए. तुम जो जानती हो, बताओ.’’

‘‘साहब, वह तो गुलाबपुर का हीरो था. बच्चाबच्चा उस पर जान देता था.’’ उस ने दुखी हो कर कहा.

‘‘मुझे गुलाबपुर की उस हसीना का नाम बताओ, जो उस पर जान देती थी और नासिर भी उस का आशिक रहा हो.’’ मैं ने उस की आंखों में झांकते हुए पूछा.

‘‘ओह, तो कत्ल की इस वारदात का ताल्लुक नासिर की मोहब्बत की कहानी से जुड़ा हुआ है.’’ उस ने गहरी सांस ले कर कहा.

‘‘सौ फीसदी, उस के इश्क में ही कत्ल का राज छिपा है.’’ मैं ने पूरे यकीन से कहा.

हमीदा कुछ सोचती रही, फिर धीरे से बोली, ‘‘सच क्या है, यह तो नहीं कह सकती. पर मैं ने उड़तीउड़ती खबर सुनी थी कि रेशमा से उस का कुछ चक्कर चल रहा था. रेशमा शकूर जुलाहे की बेटी है.’’

मैं ने हमीदा को इनाम दे कर विदा किया. मैं पहले भी उस से मुखबिरी का काम ले चुका था. उस की खबरें पक्की हुआ करती थीं. अगले दिन गरमी कुछ कम थी. मैं खाने और नमाज से फारिग हो कर बैठा था कि जमील अपने बाप के साथ आ गया. मैं ने उस के बाप को वापस भेज कर जमील को सामने बिठा लिया. वह गोराचिट्टा, मजबूत जिस्म का जवान था. मैं ने उस से पूछा, ‘‘जमील, तुम्हें नासिर के साथ हुए हादसे का पता चल गया होगा?’’

मेरी बात सुन कर उस की आंखें भीग गईं. वह दुखी लहजे में बोला, ‘‘साहब, मैं ने अपना सब से प्यारा दोस्त खो दिया है. पता नहीं किस जालिम ने उसे कत्ल कर दिया.’’

‘‘तुम उस जालिम को सजा दिलवाना चाहते हो?’’

‘‘जरूर, साहब मैं दिल से यही चाहता हूं.’’

‘‘तुम्हारी मदद मुझे कातिल तक पहुंचा सकती है. जमील मुझे यकीन है कि बिस्तर पर तकिया रख कर वह पहली बार रात को घर से बाहर नहीं गया होगा. जरूर वह पहले भी जाता रहा होगा. यह खेल काफी दिनों से चल रहा था. तुम उस के दोस्त हो, राजदार हो, तुम्हें सब पता होगा. मैं सारी हकीकत समझ चुका हूं, पर तुम्हारे मुंह से सुनना चाहता हूं.’’

कुछ देर सोचने के बाद वह बोला, ‘‘आप का अंदाजा सही है, इस मामले में एक लड़की का चक्कर है.’’

‘‘रेशमा नाम है न उस का?’’ मैं ने बात पूरी की तो वह हैरानी से मुझे देखने लगा. फिर बोला, ‘‘साहब, उस का नाम रेशमा ही है. दोनों एकदूसरे से मोहब्बत करते थे. धीरेधीरे उन की मुलाकातों का सिलसिला शुरू हो गया था. मैं उन का राजदार था या यूं कहिए मेरी वजह से ही ये मुलाकातें मुमकिन थीं. रेशमा हमारी दुकान पर सामान लेने आती थी. उसे पता था कि मैं कब दुकान पर रहता हूं. मैं ही रेशमा को बताया करता था कि उसे कब खेतों में पहुंचना है. नासिर उस की राह देखेगा, अगर वह आने को हां कह देती थी तो मैं नासिर को बता देता था. फिर वह उस जगह पहुंच जाता था. इस तरह उन दोनों की मुलाकात हो जाती थी.’’

‘‘क्या मुलाकात के वक्त तुम भी आसपास होते थे?’’

‘‘नहीं साहब, मैं कभी उस तरफ नहीं गया. हां, दूसरे दिन नासिर मुझे सब बता दिया करता था.’’

‘‘दोनों के बीच बात किस हद तक आगे बढ़ चुकी थी?’’

‘‘दोनों की मोहब्बत शादी तक पहुंच गई थी. रेशमा जल्दी शादी करने का इसरार कर रही थी. नासिर भी शादी करना चाहता था, लेकिन उसे इतनी जल्दी नहीं थी. जबकि रेशमा जल्दी रिश्ता तय करने की बात कर रही थी.’’

‘‘रेशमा की जल्दी के पीछे भी कोई वजह रही होगी?’’

‘‘हां, दरअसल रेशमा की मां सरदारा बी उस का रिश्ता अपनी बहन के लड़के से करना चाहती थी और उस का बाप उस का रिश्ता अपने भाई के लड़के से करना चाहता था. पर बात सरदारा बी की ही चलनी थी, क्योंकि वह काफी तेज है. वही सब फैसले करती है. रिश्ता खाला के बेटे से न तय हो जाए, इस डर से रेशमा नासिर को जल्दी रिश्ता लाने को कह रही थी.’’ जमील ने तफ्सील से बताया.

‘‘एक बात समझ में नहीं आई जमील, तुम्हारे मुताबिक उन की मुलाकातों के तुम अकेले राजदार थे. जबकि कत्ल वाले दिन के पहले से तुम गांव से बाहर थे. फिर उस दिन दोनों की मुलाकात किस ने तय कराई थी?’’ मैं ने पूछा.

‘‘साहब, जिस दिन मैं टोबा टेक सिंह गया था, उसी दिन मैं ने उन की दूसरे दिन की मुलाकात तय करा दी थी. नासिर ने दूसरे दिन मिलने को कहा था. मैं ने यह बात रेशमा को बता दी थी. उस के हां कहने पर मैं ने नासिर को भी प्रोग्राम पक्का होने के बारे में बता दिया था.’’

‘‘इस का मतलब प्रोग्राम के मुताबिक ही नासिर अगली रात रेशमा से मिलने खेतों में पहुंचा था. यकीनन वादे के मुताबिक रेशमा भी वहां आई होगी और उस रात नासिर के साथ जो खौफनाक हादसा हुआ, वह उस ने भी देखा होगा. उस का बयान कातिल तक पहुंचने में मदद कर सकता है. मुझे रेशमा का बयान लेना होगा.’’ मैं ने कहा.

‘‘साहब, मामला बहुत नाजुक है. नासिर तो अब मर चुका है, आप रेशमा से इस तरह मिलें कि बात फैले नहीं. नहीं तो बेवजह वह मासूम बदनाम हो जाएगी.’’

‘‘तुम इस की चिंता न करो, मैं उस से बहुत सोचसमझ कर इस तरह मिलूंगा कि किसी को पता भी नहीं चलेगा.’’ मैं ने उसे समझाया.

‘‘बहुतबहुत शुक्रिया जनाब, आप बहुत अच्छे इंसान हैं.’’

‘‘जमील, तुम एक बात का खयाल रखना, जो बातें हमारे बीच हुई हैं, उन का किसी से जिक्र मत करना.’’

जब मैं नासिर की लाश ले कर गुलाबपुर पहुंचा तो बशीर लोहार के घर तमाम लोग जमा थे. लाश देख कर एक बार फिर रोनापीटना शुरू हो गया. मौका देख कर मैं ने शकूर को एक तरफ ले जा कर कहा, ‘‘शकूर, मुझे नासिर के कत्ल के सिलसिले में तुम से कुछ पूछना है. यहां खड़े हो कर बात करने से बेहतर है तुम्हारे घर बैठ कर बात की जाए.’’

उस ने कोई आपत्ति नहीं की. मैं उस के साथ उस के घर चला आया और उस की बैठक में बैठ गया. उस की एक बेटी थी रेशमा और एक बेटा शमशाद. बेटा 12-13 साल का रहा होगा, जो उस वक्त बाहर खेल रहा था. अभी थोड़ी ही बातचीत हुई थी कि सरदारा बी चाय की ट्रे ले कर आ गई. शकूर ने कहा, ‘‘थानेदार साहब, चाय पीएं और सवाल भी पूछते रहें. ये मेरी बीवी सरदारा बी है, इस से भी जो पूछना है पूछ लें.’’

उन की बातचीत से मैं ने अंदाजा लगाया कि उन्हें रेशमा के इश्क के बारे में कोई जानकारी नहीं थी. मैं ने उन से नासिर के बारे में कुछ सवाल पूछे, उन दोनों ने उस की बहुत तारीफें कीं. बातचीत के बाद मैं ने उन से पूछा, ‘‘आप की बेटी रेशमा कहां है?’’

‘‘वह घर में ही है जनाब, कल से उसे तेज बुखार है. हकीमजी से दवा ला कर दी, पर उस का कुछ असर नहीं हुआ.’’ सरदारा बी ने कहा.

‘‘रेशमा का बुखार हकीमजी की दवा से कम नहीं होगा. यह दूसरी तरह का बुखार है.’’ मैं ने कहा तो शकूर ने चौंक कर मेरी ओर देखा. मैं ने आगे कहा, ‘‘मैं सच कह रहा हूं, यह इश्क का बुखार है. नासिर की मौत ने रेशमा के दिलोदिमाग को झिंझोड़ कर रख दिया है.’’

दोनों उलझन भरी नजरों से मुझे देखने लगे, ‘‘हमारी तो कुछ समझ में नहीं आ रहा. यह सब क्या है?’’

‘‘मैं समझाता हूं. यही सच्चाई है. रेशमा और नासिर एकदूसरे से बहुत मोहब्बत करते थे. दोनों रातों को मिलते भी थे. रेशमा को उस की मौत से बहुत दुख पहुंचा है.’’ मैं ने एकएक शब्द पर जोर देते हुए कहा.

‘‘मुझे बिलकुल यकीन नहीं आ रहा है.’’ सरदारा बी बोली.

हकीकत जान कर वे दोनों परेशान थे. मैं ने कहा, ‘‘परेशान न हों, आप के घर की बात इस चारदीवारी से बाहर नहीं जाएगी. रेशमा मेरी बेटी की तरह है और बिलकुल बेगुनाह है. मुझे उस की इज्जत का पूरा खयाल है. आप मुझे उस के पास ले चलो, मैं उस से कुछ बातें करूंगा. इस बात की कानोंकान किसी को खबर नहीं हो पाएगी. आप को घबराने की जरूरत नहीं है.’’

उन्होंने मुझे रेशमा के पास पहुंचा दिया. मैं ने उन दोनों को बाहर भेज दिया. वे दरवाजे के पीछे जा कर खड़े हो गए. मैं ने रेशमा से नरम लहजे में कहा, ‘‘रेशमा, मैं तुम से कुछ सवाल पूछना चाहता हूं. दरअसल मैं तुम से नासिर के बारे में कुछ बातें जानना चाहता हूं. वैसे तो मैं सब जानता हूं, फिर भी तुम्हारे मुंह से सुनना जरूरी है.’’

‘‘मैं जो जानती हूं, सब बताऊंगी.’’ उस ने बेबसी से कहा.

‘‘कत्ल की रात तुम खेतों में नासिर से मिलने गई थीं, मुझे यह बताओ कि उस पर हमला किस ने किया था?’’ मैं ने पूछा.

‘‘मैं उस रात नासिर से मिलने नहीं गई थी.’’ वह मजबूती से बोली. उस के लहजे में विश्वास और यकीन साफ झलक रहा था.nमैं ने अगला सवाल किया, ‘‘जमील ने मुझे बताया है कि तुम्हारी और नासिर की मुलाकात पहले से तय थी. यह बात इस से भी साबित होती है, क्योंकि नासिर तुम से मिलने खेतों में गया था.’’

‘‘यही बात तो मेरी समझ में नहीं आ रही है कि नासिर वहां क्यों गया था? जबकि उस ने खुद ही प्रोग्राम कैंसिल कर दिया था.’’ उस ने उलझन भरे लहजे में कहा.

‘‘प्रोग्राम कैंसिल कर दिया था, यह तुम क्या कह रही हो?’’ उस की बात सुन कर मैं बुरी तरह चौंका.

‘‘मैं बिलकुल सच कह रही हूं थानेदार साहब, मुझे नहीं पता प्रोग्राम कैंसिल करने के बाद नासिर वहां क्यों गया था. कल से मैं यही बात सोच रही हूं.’’ रेशमा ने सोचते हुए कहा.

‘‘एक मिनट, तुम दोनों के बीच खबर का आदानप्रदान जमील ही करता था न, पर जमील पिछले 2 दिनों से गुलाबपुर में नहीं था. फिर प्रोग्राम कैंसिल होने की खबर तुम्हें किस ने दी?’’ मैं ने उसे देखते हुए पूछा.

‘‘इम्तियाज ने.’’ उस ने एकदम से कहा.

‘‘इम्तियाज कौन है?’’

‘‘माजिद चाचा का बेटा.’’

‘‘क्या इम्तियाज को भी तुम दोनों की मोहब्बत की खबर थी?’’

‘‘नहीं जी, वह तो 8 साल का बच्चा है. हमारे पड़ोस में ही रहता है.’’

‘‘इम्तियाज ने तुम से क्या कहा था?’’

‘‘मुझे तो यह जान कर ही बड़ी हैरानी हुई थी कि नासिर ने इम्तियाज के हाथ यह पैगाम क्यों भिजवाया था कि मुझे वहां नहीं जाना है. मैं ने चेक करने के लिए उस से पूछा, ‘कहां नहीं जाना है.’ इस पर उस ने कहा था कि वह इस से ज्यादा कुछ नहीं जानता. नासिर भाई ने कहा है कि रेशमा को कह दो कि आज नहीं आना है. कुछ जरूरी काम है.’’ उस ने रुकरुक कर आगे कहा, ‘‘मैं जमील की दुकान पर जा कर पता कर लेती, पर वह टोबा टेक सिंह चला गया था. इम्तियाज से कुछ पूछना बेकार था. बहरहाल मैं ने फैसला कर लिया था कि मैं नासिर से मिलने नहीं जाऊंगी.’’

‘‘इस का मतलब है कि नासिर को पूरी मंसूबाबंदी से साजिश के तहत कत्ल किया गया है. मुझे यकीन है कि इम्तियाज उस आदमी को पहचानता होगा, जिस ने नासिर के हवाले से तुम्हारे लिए संदेश भेजा था.’’ मैं ने सोचते हुए कहा.

‘‘आप यह बात इम्तियाज से पूछें. मेरी तबीयत बहुत बिगड़ रही है. चक्कर आ रहे हैं.’’ वह कमजोर लहजे में बोली.

‘‘तुम आराम करो रेशमा, पर इन बातों का किसी से जिक्र मत करना और परेशान मत होना.’’ मैं ने उसे समझाया.

जब मैं कमरे से निकला तो उस के मांबाप ने मुझे घेर कर पूछा, ‘‘थानेदार साहब, कुछ पता चला?’’

‘‘कुछ नहीं, बल्कि सब कुछ पता चल गया है.’’

‘‘हमें भी तो कुछ बताइए न?’’ शकूर ने कहा.

‘‘पहले आप पड़ोस से इम्तियाज को बुलाएं.’’

थोड़ी देर में सरदारा बी इम्तियाज को बैठक में ले आई. वह 8 साल का मासूम सा बच्चा था. मैं ने उसे प्यार से अपने पास बिठा कर पूछा, ‘‘बेटा इम्तियाज, तुम जानते हो कि मैं कौन हूं?’’

‘‘हां, आप पुलिस हैं.’’ वह मुझे गौर से देखते हुए बोला.

इधरउधर की एकदो बातें करने के बाद मैं ने उस से कहा, ‘‘तुम स्कूल जाते हो, एक अच्छे बच्चे हो, सच बोलने वाले. यह बताओ, परसों शाम को तुम ने रेशमा बाजी से कहा था कि नासिर भाई ने कहा है कि आज नहीं आना है.’’ मैं ने उसे गौर से देखते हुए कहा, ‘‘ऐसा हुआ था न?’’

‘‘हां, ऐसा हुआ था साहब.’’ इम्तियाज बोला.

‘‘तुम बहुत अच्छे बच्चे हो. मैं तुम्हें टाफियां दूंगा. अब यह भी बता दो कि तुम ने रेशमा बाजी को कहां जाने से मना किया था?’’

‘‘यह मुझे नहीं पता.’’ वह मासूमियत से बोला, ‘‘आप को यकीन नहीं आ रहा है तो रब की कसम खाता हूं.’’

‘‘नहीं बेटा, कसम खाने की जरूरत नहीं है. मुझे तुम पर भरोसा है. तुम ने तो रेशमा बाजी से वही कहा था, जो नासिर भाई ने तुम से कहलवाया था, है न?’’

‘‘नहीं जी.’’ वह उलझन भरी नजरों से मुझे देखने लगा.

‘‘क्या नहीं?’’

‘‘यह बात मुझे नासिर भाई ने नहीं कही थी.’’

उस ने कहा तो मैं ने तपाक से सवाल किया, ‘‘फिर किस ने कही थी?’’

‘‘हैदर भाई ने.’’

‘‘तुम्हारा मतलब है हैदर अली? सरदारा बी का भांजा हैदर अली, जुलेखा का बेटा.’’ मैं ने पूछा.

‘‘जी, जी वही हैदर भाई.’’ उस ने जल्दी से कहा.

सरदारा बी की बहन जुलेखा का घर भी गुलाबपुर में ही था. हैदर अली उसी का बेटा था और वह इसी हैदर से रेशमा की शादी करना चाहती थी. यह भी सुनने में आया था कि हैदर का दावा था कि रेशमा उस की बचपन की मंगेतर है. मैं सोचने लगा कि जब उसे रेशमा और नासिर की मोहब्बत का पता चला होगा तो उस ने अपने प्रतिद्वंदी को रास्ते से हटाने की कोशिश की होगी. मुझे लगा कि अब केस हल हो जाएगा. जैसे ही वह मेरे हत्थे चढ़ेगा, उसे डराधमका कर मैं उस की जुबान खुलवाने में कामयाब हो जाऊंगा. पर ऐसा नहीं हुआ.

जब मैं जुलेखा के घर पहुंचा तो हैदर अली घर पर नहीं था. मैं ने जुलेखा से पूछा, ‘‘हैदर अली कहां गया है?’’

‘‘मुझे तो पता नहीं, बता कर नहीं गया है जी. वैसे आप हैदर को क्यों ढूंढ रहे हैं?’’ वह परेशान हो कर बोली.

उस की परेशानी स्वाभाविक थी. अगर पुलिस किसी के दरवाजे पर आए तो घर के लोग चिंता में पड़ जाते हैं. मैं जुलेखा को अंधेरे में नहीं रखना चाहता था. मैं ने ठहरे हुए लहजे में कहा, ‘‘तुम्हें यह पता है न कि गुलाबपुर में एक लड़के का कत्ल हो गया है?’’

‘‘जी…जी मालूम है, बशीर लोहार के जवान बेटे का कत्ल हो गया है. किसी जालिम ने उसे बड़ी बेरहमी से मारा है.’’ उस ने कहा.

‘‘किसी ने नहीं, एक खास बंदे ने जिस की तलाश में मैं यहां आया हूं. तुम्हारा लाडला हैदर अली.’’

‘‘नहींऽऽ.’’ उस ने एक चीख सी मारी, ‘‘मेरा बेटा कातिल नहीं हो सकता. आप को कोई गलतफहमी हुई है थानेदार साहब.’’ वह रोनी आवाज में बोली.

‘‘हर मां का यही खयाल होता है कि उस का बेटा मासूम है. पर मैं तफ्तीश कर के पक्के सुबूत के साथ यहां आया हूं.’’

‘‘कैसा सुबूत साहब?’’ वह परेशान हो कर बोली.

‘‘हैदर अली को मेरे हाथ लगने दो, उसी के मुंह से सुबूत भी जान लेना.’’ मैं ने तीखे लहजे में कहा.

काफी देर राह देखने के बाद मैं ने गांव में अपने 2 लोग उस की तलाश में भेजे. पर वह कहीं नहीं मिला. इस का मतलब था, वह गांव छोड़ कर कहीं भाग गया था. गुलाबपुर में भी किसी को उस के बारे में कुछ पता नहीं था. हैदर अली के गांव से गायब होने से पक्का यकीन हो गया कि वारदात में उसी का हाथ था. मैं काफी देर तक गुलाबपुर में रुका रहा. फिर जुलेखा से कहा, ‘‘जैसे ही हैदर घर आए, उसे थाने भेज देना.’’

एक बंदे को टोह में लगा कर मैं थाने लौट आया. अगले रोज मैं सुबह की नमाज पढ़ कर उठा ही था कि किसी ने दरवाजा खटखटाया. दरवाजा खोला तो सामने कांस्टेबल न्याजू खड़ा था. पूछने पर बोला, ‘‘साहब, जिस सिपाही को हैदर पर नजर रखने के लिए गांव में छोड़ कर आए थे, उस ने खबर भेजी है कि वह देर रात घर लौट आया है.’’

‘‘न्याजू, तुम और हवलदार समद फौरन गुलाबपुर रवाना हो जाओ और हैदर अली को साथ ले कर आओ.’’ मैं ने उसे आदेश दिया.

तैयार हो कर मैं थाने पहुंचा तो थोड़ी देर बाद हवलदार समद हैदर को गिरफ्तार कर के ले आया. उस के साथ रोती, फरियाद करती जुलेखा भी थी. मैं ने कहा, ‘‘देखो, रोनेधोने की जरूरत नहीं है. यह थाना है शोर मत करो.’’

‘‘साहब, आप मेरे जवान बेटे को पकड़ कर ले आए हैं, मैं फरियाद भी न करूं.’’ वह रोते हुए बोली.

‘‘मैं ने तुम्हारे बेटे को पूछताछ के लिए थाने बुलाया है, फांसी पर चढ़ाने के लिए नहीं. अगर वह बेकुसूर है तो अभी थोड़ी देर में छूट जाएगा. यह मेरा वादा है तुम से.’’

‘‘अल्लाह करे, मेरा बेटा बेगुनाह निकले.’’

‘‘मेरी सलाह है, तुम घर चली जाओ. अगर हैदर बेकुसूर है तो शाम तक घर आ जाएगा.’’

हैदर को मैं ने अपने कमरे में बुलाया. हवलदार समद भी साथ था. मैं ने उसे गहरी नजर से देख कर तीखे लहजे में कहा, ‘‘हैदर, इसी कमरे में तुम्हारी जुबान खुल जाएगी या तुम्हें ड्राइंगरूम की सैर कराई जाए.’’

मेरी बात सुन कर उस के चेहरे का रंग उतर गया. वह गिड़गिड़ाया, ‘‘साहब, मैं ने ऐसा क्या किया है?’’

‘‘क्या के बच्चे, मैं बताता हूं तेरी काली करतूत. तूने नासिर का कत्ल किया है.’’

‘‘नहीं जी, मैं ने किसी का कत्ल नहीं किया.’’ वह घबरा उठा.

‘‘फिर नासिर का कातिल कौन है?’’ मैं ने उस की आंखों में देखते हुए कहा.

‘‘मुझे कुछ पता नहीं थानेदार साहब.’’ वह हकलाया.

‘‘तुम्हें यह तो पता है न कि रेशमा तुम्हारी बचपन की मंगेतर है.’’ मैं ने टटोलने वाले अंदाज में कहा.

‘‘जी, जी हां, यह सही है.’’ उस ने कहा.

‘‘और यह भी तुम्हें मालूम होगा कि मकतूल नासिर और तुम्हारी मंगेतर रेशमा में पिछले कुछ अरसे से इश्क का चक्कर चल रहा था?’’

‘‘यह आप क्या कह रहे हैं थानेदार साहब?’’ उस ने नकली हैरत दिखाते हुए कहा.

‘‘मैं जो कह रहा हूं, तुम अच्छी तरह समझ चुके हो. सीधी तरह से सच्चाई बता दो, वरना मुझे दूसरा तरीका अपनाना पड़ेगा.’’ मैं ने सख्त लहजे में कहा.

‘‘मैं बिलकुल सच कह रहा हूं, मैं ने नासिर का कत्ल नहीं किया.’’ वह नजरें चुराते हुए बोला.

‘‘नासिर के कत्ल वाली बात पहले हो चुकी है. अभी मेरे इस सवाल का जवाब दो कि तुम्हें रेशमा और नसिर के इश्क की खबर थी या नहीं? सच बोलो.’’ मैं ने पूछा.

‘‘नहीं साहब, मुझे इस बारे में कुछ पता नहीं था.’’

‘‘तो क्या तुम इम्तियाज को भी नहीं जानते?’’

‘‘कौन इम्तियाज?’’ वह टूटी हुई आवाज में बोला.

‘‘माजिद का बेटा, रेशमा का पड़ोसी बच्चा. याद आया कि नहीं?’’ मैं ने दांत पीसते हुए कहा.

‘‘अच्छाअच्छा, आप उस बच्चे की बात कर रहे हैं.’’

‘‘हां…हां, वही बच्चा, जिस के हाथ तुम ने रेशमा के लिए संदेश भेजा था कि नासिर भाई ने कहा है कि आज नहीं आना है.’’ मैंने एकएक शब्द पर जोर देते हुए कहा तो वह हैरानी से बोला, ‘‘मैं ने? मैं ने तो ऐसी कोई बात नहीं की…’’

‘‘तुम्हारे इस कारनामे के 2 गवाह मौजूद हैं. एक तो इम्तियाज, जिस के हाथ तुम ने संदेश भेजा था, दूसरी रेशमा, जिस के लिए तुम ने यह पैगाम भेजा था. अब बताओ, क्या कहते हो?’’

मेरी बात सुन कर वह हड़बड़ा गया. हवलदार समद ने कहा, ‘‘आप इस नालायक को मेरे हवाले कर दें, एक घंटे में फटाफट बोलने लगेगा.’’

मैं ने हैदर अली को हवलदार के हवाले कर दिया. थोड़ी देर में उस की चीखनेचिल्लाने की आवाजें आने लगीं. एक घंटे के पहले ही हवलदार ने खुशखबरी सुनाई.

‘‘हैदर अली ने जुर्म कुबूल लिया है. आप इस का बयान ले लें.’’

‘‘मतलब यह कि उस ने नासिर के कत्ल की बात मान ली है?’’ मैं ने पूछा.

‘‘जी नहीं, बात कुछ और ही है, आप उसी से सुनिए.’’

हैदर अली ने नासिर का कत्ल सीधेसीधे नहीं किया था. अलबत्ता वह एक अलग तरह से इस कत्ल से जुड़ा था. यह भी सच था कि नन्हे इम्तियाज से रेशमा को पैगाम उसी ने भिजवाया था. यह पैगाम उस ने चौधरी आफताब के कहने पर रेशमा को भिजवाया था, ताकि रेशमा वारदात की रात मुलाकात की जगह न पहुंच सके और नासिर को ठिकाने लगाने में किसी मुश्किल का सामना न करना पड़े. चौधरी आफताब नजीराबाद के चौधरी का बेटा था. वह भी कबड्डी का अच्छा खिलाड़ी था. हाल ही में खेले गए टूर्नामेंट में वह नजीराबाद से खेल रहा था. फाइनल मैच में नजीराबाद की बुरी तरह से हार हुई थी. कप और इनाम गुलाबपुर के हिस्से में आए. ढेरों तारीफ व जीत की खुशी भी नासिर के नाम लिखी गई.

एक कबड्डी का दांव नासिर और आफताब के बीच पड़ा था, जिस में नासिर ने चौधरी आफताब को इतनी बुरी तरह से रगड़ा था कि उस की नाक और मुंह से खून बहने लगा था. एक तो गांव की हार, ऊपर से अपनी दुर्गति पर उस का दिल गुस्से और बदले की आग से जलने लगा था. उस का वश चलता तो वह वहीं नासिर का सिर फोड़ देता. उस ने मन ही मन इरादा कर लिया कि नासिर से बदला जरूर लेगा. इस तरह उस का अपने सब से बड़े प्रतिद्वंदी से भी पीछा छूट जाएगा. आफताब से हैदर ने कह रखा था कि रेशमा उस की बचपन की मंगेतर है. किसी तरह उसे यह भी पता चल गया था कि नासिर और रेशमा के बीच मोहब्बत और मुलाकात का सिलसिला चल रहा है. इसलिए उस ने एक तीर से दो शिकार करने का खतरनाक मंसूबा बना लिया.

हैदर अली को रेशमा और नासिर के संबंध का शक तो था ही, पर जब आफताब ने इस बारे में उसे शर्मसार किया तो वह आपे से बाहर हो गया. चौधरी आफताब ने उसे समझाया कि जोश के बजाय होश और तरीके से काम लिया जाए तो सांप भी मर जाएगा और लाठी भी सलामत रहेगी. हैदर अली ने चौधरी आफताब का साथ देने का फैसला कर लिया. हैदर अली ने अपने हाथों से नासिर का कत्ल नहीं किया था, पर वह इस साजिश का एक हिस्सा था. जिस में चौधरी के भेजे हुए दो लोगों ने तेजधार चाकू की मदद से नासिर का बेदर्दी से कत्ल कर दिया था. जब कातिल उसे मौत के घाट उतार रहे थे तो हैदर अली थोड़ी दूर अंधेरे में खड़ा यह खूनी तमाशा देख रहा था.

हैदर अली के इकबालेजुर्म और गवाही पर मैं ने उसी रोज खुद नजीराबाद जा कर नासिर के कत्ल के सिलसिले में चौधरी आफताब को भी गिरफ्तार कर लिया था. आफताब गांव के चौधरी का बेटा था, इसलिए उस की गिरफ्तारी को रोकने के लिए मुझ पर काफी दबाव डाला गया था, पर मैं ने उस के असर व पैसे की परवाह न करते हुए चौधरी आफताब और उस की निशानदेही पर उन दोनों कातिलों को भी जेल की सलाखों के पीछे पहुंचा दिया था. अपनी हर कोशिश नाकाम होते देख चौधरी ने मुझे धमकी दी थी, ‘‘मलिक साहब, आप को मेरी ताकत का अंदाजा नहीं है. मैं अपने बेटे को अदालत से छुड़वा लूंगा.’’

मैं ने विश्वास से कहा, ‘‘चौधरी साहब, मैं सिर्फ खुदा की ताकत और कानून से डरता हूं. आप को जितना जोर लगाना है, लगा लो. आप का होनहार बेटा अदालत से सीधा जेल जाएगा.’’

मैं ने हैदर अली, चौधरी आफताब और नासिर के दोनों कातिलों के खिलाफ बहुत सख्त रिपोर्ट बनाई और उन्हें अदालत के हवाले कर दिया. दोनों कातिल अपने जुर्म का इकबाल कर चुके थे, इसलिए उन की बाकी जिंदगी जेल में ही गुजरनी थी. Crime Stories

 

Stories in Hindi Love : दिल के मरीज डौक्टर की हैवानियत – बेरहम एकतरफा प्यार

Stories in Hindi Love : बीते 19 अगस्त की बात है. उत्तर प्रदेश पुलिस को सूचना मिली कि आगरा फतेहाबाद हाईवे पर बमरोली कटारा के पास सड़क किनारे एक महिला की लाश पड़ी है. यह जगह थाना डौकी के क्षेत्र में थी. कंट्रोल रूप से सूचना मिलते ही थाना डौकी की पुलिस मौके पर पहुंच गई. मृतका लोअर और टीशर्ट पहने थी. पास ही उस के स्पोर्ट्स शू पड़े हुए थे. चेहरेमोहरे से वह संभ्रांत परिवार की पढ़ीलिखी लग रही थी, लेकिन उस के कपड़ों में या आसपास कोई ऐसी चीज नहीं मिली, जिस से उस की शिनाख्त हो पाती. युवती की उम्र 25-26 साल लग रही थी.

पुलिस ने शव को उलटपुलट कर देखा. जाहिरा तौर पर उस के सिर के पीछे चोट के निशान थे. एकदो जख्म से भी नजर आए. युवती के हाथ में टूटे हुए बाल थे. हाथ के नाखूनों में भी स्कीन फंसी हुई थी. साफतौर पर नजर आ रहा था कि मामला हत्या का है, लेकिन हत्या से पहले युवती ने कातिल से अपनी जान बचाने के लिए काफी संघर्ष किया था. मौके पर शव की शिनाख्त नहीं हो सकी, तो डौकी पुलिस ने जरूरी जांच पड़ताल के बाद युवती की लाश पोस्टमार्टम के लिए एमएम इलाके के पोस्टमार्टम हाउस भेज दी. डौकी थाना पुलिस इस युवती की शिनाख्त के प्रयास में जुट गई.

उसी दिन सुबह करीब साढ़े 9 बजे दिल्ली के शिवपुरी पार्ट-2, दिनपुर नजफगढ़ निवासी डाक्टर मोहिंदर गौतम आगरा के एमएम गेट पुलिस थाने पहुंचे. उन्होंने अपनी बहन डाक्टर योगिता गौतम के अपहरण की आशंका जताई और डाक्टर विवेक तिवारी पर शक व्यक्त करते हुए पुलिस को एक तहरीर दी. डाक्टर मोहिंदर ने पुलिस को बताया कि डाक्टर योगिता आगरा के एसएन मेडिकल कालेज से पोस्ट ग्रेजुएशन कर रही है. वह नूरी गेट में गोकुलचंद पेठे वाले के मकान में किराए पर रहती है.

कल शाम यानी 18 अगस्त की शाम करीब सवा 4 बजे डाक्टर योगिता ने दिल्ली में घर पर फोन कर के कहा था कि डाक्टर विवेक तिवारी उसे बहुत परेशान कर रहा है. उस ने डाक्टरी की डिगरी कैंसिल कराने की भी धमकी दी है. फोन पर डाक्टर योगिता काफी घबराई हुई थी और रो रही थी. पुलिस ने डाक्टर मोहिंदर से डाक्टर विवेक तिवारी के बारे में पूछा कि वह कौन है? डा. मोहिंदर ने बताया कि डा. योगिता ने 2009 में मुरादाबाद के तीर्थकर महावीर मेडिकल कालेज में प्रवेश लिया था. मेडिकल कालेज में पढ़ाई के दौरान योगिता की जान पहचान एक साल सीनियर डा. विवेक से हुई थी.

डाक्टरी करने के बाद विवेक को सरकारी नौकरी मिल गई. वह अब यूपी में जालौन के उरई में मेडिकल औफिसर के पद पर तैनात है. डा. विवेक के पिता विष्णु तिवारी पुलिस में औफिसर थे. जो कुछ साल पहले सीओ के पद से रिटायर हो गए थे. करीब 2 साल पहले हार्ट अटैक से उन की मौत हो गई थी. डा. मोहिंदर ने पुलिस को बताया कि डा. विवेक तिवारी डा. योगिता से शादी करना चाहता था. इस के लिए वह उस पर लगातार दबाव डाल रहा था. जबकि डा. योगिता ने इनकार कर दिया था. इस बात को लेकर दोनों के बीच काफी दिनों से झगड़ा चल रहा था. डा. विवेक योगिता को धमका रहा था.

नहीं सुनी पुलिस ने

पुलिस ने योगिता के अपहरण की आशंका का कारण पूछा, तो डा. मोहिंदर ने बताया कि 18 अगस्त की शाम योगिता का घबराहट भरा फोन आने के बाद मैं, मेरी मां आशा गौतम और पिता अंबेश गौतम तुरंत दिल्ली से आगरा के लिए रवाना हो गए. हम रात में ही आगरा पहुंच गए थे. आगरा में हम योगिता के किराए वाले मकान पर पहुंचे, तो वह नहीं मिली. उस का फोन भी रिसीव नहीं हो रहा था.

डा. मोहिंदर ने आगे बताया कि योगिता के नहीं मिलने और मोबाइल पर भी संपर्क नहीं होने पर हम ने सीसीटीवी फुटेज देखी. इस में नजर आया कि डा. योगिता 18 अगस्त की शाम साढ़े 7 बजे घर से अकेली बाहर निकली थी. बाहर निकलते ही उसे टाटा नेक्सन कार में सवार युवक ने खींचकर अंदर डाल लिया. डा. मोहिंदर ने आरोप लगाया कि सारी बातें बताने के बाद भी पुलिस ने ना तो योगिता को तलाशने का प्रयास किया और ना ही डा. विवेक का पता लगाने की कोशिश की. पुलिस ने डा. मोहिंदर से अभी इंतजार करने को कहा.

जब 2-3 घंटे तक पुलिस ने कुछ नहीं किया, तो डा. मोहिंदर आगरा में ही एसएन मेडिकल कालेज पहुंचे. वहां विभागाध्यक्ष से मिल कर उन्हें अपना परिचय दे कर बताया कि उन की बहन डा. योगिता लापता है. उन्होंने भी पुलिस के पास जाने की सलाह दी. थकहार कर डा. मोहिंदर वापस एमएम गेट पुलिस थाने आ गए और हाथ जोड़कर पुलिस से काररवाई करने की गुहार लगाई. शाम को एक सिपाही ने उन्हें बताया कि एक अज्ञात युवती का शव मिला है, जो पोस्टमार्टम हाउस में रखा है. उसे भी जा कर देख लो.

मन में कई तरह की आशंका लिए डा. मोहिंदर पोस्टमार्टम हाउस पहुंचे. शव देख कर उन की आंखों से आंसू बहने लगे. शव उन की बहन डा. योगिता का ही था. मां आशा गौतम और पिता अंबेश गौतम भी नाजों से पाली बेटी का शव देख कर बिलखबिलख कर रो पड़े. शव की शिनाख्त होने के बाद यह मामला हाई प्रोफाइल हो गया. महिला डाक्टर की हत्या और इस में पुलिस अधिकारी के डाक्टर बेटे का हाथ होने की संभावना का पता चलने पर पुलिस ने कुछ गंभीरता दिखाई और भागदौड़ शुरू की.

आगरा पुलिस ने जालौन पुलिस को सूचना दे कर उरई में तैनात मेडिकल आफिसर डा. विवेक तिवारी को तलाशने को कहा. जालौन पुलिस ने सूचना मिलने के 2 घंटे बाद ही 19 अगस्त की रात करीब 8 बजे डा. विवेक को हिरासत में ले लिया. जालौन पुलिस ने यह सूचना आगरा पुलिस को दे दी. जालौन पुलिस उसे हिरासत में ले कर एसओजी आफिस आ गई. जालौन पुलिस ने उस से आगरा जाने और डा. योगिता से मिलने के बारे में पूछताछ की, तो वह बिफर गया. उस ने कहा कि कोरोना संक्रमण की वजह से वह क्वारंटीन में है.

विवेक तिवारी बारबार बयान बदलता रहा. बाद में उस ने स्वीकार किया कि वह 18 अगस्त को आगरा गया था और डा. योगिता से मिला था. विवेक ने जालौन पुलिस को बताया कि वह योगिता को आगरा में टीडीआई माल के बाहर छोड़कर वापस उरई लौट आया था. आगरा पुलिस ने रात करीब 11 बजे जालौन पहुंचकर डा. विवेक को हिरासत में ले लिया. उसे जालौन से आगरा ला कर 20 अगस्त को पूछताछ की गई. पूछताछ में वह पुलिस को लगातार गुमराह करता रहा. पुलिस ने उस की काल डिटेल्स निकलवाई, तो पता चला कि शाम सवा 6 बजे से उस की लोकेशन आगरा में थी. डा. योगिता से उस की शाम साढ़े 7 बजे आखिरी बात हुई थी.

इस के बाद रात सवा बारह बजे विवेक की लोकेशन उरई की आई. कुछ सख्ती दिखाने और कई सबूत सामने रखने के बाद उस से मनोवैज्ञानिक तरीके से पूछताछ की गई. आखिरकार उस ने डा. योगिता की हत्या करने की बात स्वीकार कर ली. बाद में पुलिस ने उसे न्यायिक अभिरक्षा में जेल भेज दिया. पुलिस ने 20 अगस्त को डाक्टरों के मेडिकल बोर्ड से डा. योगिता के शव का पोस्टमार्टम कराया. पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार डा. योगिता के शरीर से 3 गोलियां निकलीं. एक गोली सिर, दूसरी कंधे और तीसरी सीने में मिली. योगिता पर चाकू से भी हमला किया गया था. पोस्टमार्टम कराने के बाद आगरा पुलिस ने डा. योगिता का शव उस के मातापिता व भाई को सौंप दिया.

पूछताछ में डा. योगिता के दुखांत की जो कहानी सामने आई, वह डा. विवेक तिवारी के एकतरफा प्यार की सनक थी. दिल्ली के नजफगढ़ इलाके की शिवपुरी कालोनी पार्ट-2 में रहने वाले अंबेश गौतम नवोदय विद्यालय समिति में डिप्टी डायरेक्टर हैं. वह राजस्थान के उदयपुर शहर में तैनात हैं. डा. अंबेश के परिवार में पत्नी आशा गौतम के अलावा बेटा डा. मोहिंदर और बेटी डा. योगिता थी.

प्रतिभावान डाक्टर थी योगिता

योगिता शुरू से ही पढ़ाई में अव्वल रहती थी. उस की डाक्टर बनने की इच्छा थी. इसलिए उस ने साइंस बायो से 12वीं अच्छे नंबरों से पास की. पीएमटी के जरिए उस का सलेक्शन मेडिकल की पढ़ाई के लिए हो गया. उस ने 2009 में मुरादाबाद के तीर्थंकर मेडिकल कालेज में एमबीबीएस में एडमिशन लिया.

इसी कालेज में पढ़ाई के दौरान योगिता की मुलाकात एक साल सीनियर विवेक तिवारी से हुई. दोनों में दोस्ती हो गई. दोस्ती इतनी बढ़ी कि वे साथ में घूमनेफिरने और खानेपीने लगे. इस दोस्ती के चलते विवेक मन ही मन योगिता को प्यार करने लगा लेकिन योगिता की प्यारव्यार में कोई दिलचस्पी नहीं थी. वह केवल अपनी पढ़ाई और कैरियर पर ध्यान देती थी. इसी दौरान 2-4 बार विवेक ने योगिता के सामने अपने प्यार का इजहार करने का प्रयास किया लेकिन उस ने हंस मुसकरा कर उस की बातों को टाल दिया.

योगिता के हंसनेमुस्कराने से विवेक समझ बैठा कि वह भी उसे प्यार करती है. जबकि हकीकत में ऐसा कुछ था ही नहीं. विवेक मन ही मन योगिता से शादी के सपने देखता रहा. इस बीच, विवेक को भी डाक्टरी की डिगरी मिल गई और योगिता को भी. बाद में डा. विवेक तिवारी को सरकारी नौकरी मिल गई. फिलहाल वह उरई में मेडिकल आफिसर के पद पर कार्यरत था. डा. विवेक मूल रूप से कानपुर का रहने वाला है. कानपुर के किदवई नगर के एन ब्लाक में उस का पैतृक मकान है. इस मकान में उस की मां आशा तिवारी और बहन नेहा रहती हैं. विवेक के पिता विष्णु तिवारी उत्तर प्रदेश पुलिस में अधिकारी थे. वे आगरा शहर में थानाप्रभारी भी रहे थे.

कहा जाता है कि पुलिस विभाग में विष्णु तिवारी का काफी नाम था. वे कानपुर में कई बड़े एनकाउंटर करने वाली पुलिस टीम में शामिल रहे थे. कुछ साल पहले विष्णु तिवारी सीओ के पद से रिटायर हो गए थे. करीब 2 साल पहले उन की हार्ट अटैक से मौत हो गई थी. मुरादाबाद से एमबीबीएस की डिगरी हासिल कर डा. योगिता आगरा आ गई. आगरा में 3 साल पहले उस ने एसएन मेडिकल कालेज में पोस्ट ग्रेजुएशन करने के लिए एडमिशन ले लिया. वह इस कालेज के स्त्री रोग विभाग में पीजी की छात्रा थी. वह आगरा में नूरी गेट पर किराए के मकान में रह रही थी.

इस बीच, डा. योगिता और विवेक की फोन पर बातें होती रहती थीं. कभीकभी मुलाकात भी हो जाती थी. डा. विवेक जब भी मिलता या फोन करता, तो अपने प्रेम प्यार की बातें जरूर करता लेकिन डा. योगिता उसे तवज्जो नहीं देती थी. दोनों के परिवारों को उन की दोस्ती का पता था. डा. विवेक के पास योगिता के परिजनों के मोबाइल नंबर भी थे. उस ने योगिता के आगरा के मकान मालिकों के मोबाइल नंबर भी हासिल कर रखे थे. कहा यह भी जाता है कि विवेक और योगिता कई साल रिलेशन में रहे थे.

पिछले कई महीनों से डा. विवेक उस पर शादी करने का दबाव डाल रहा था, लेकिन डा. योगिता ने इनकार कर दिया था. इस से डा. विवेक नाराज हो गया. वह उसे फोन कर धमकाने लगा. 18 अगस्त को विवेक ने योगिता को फोन कर शादी की बात छेड़ दी. योगिता के साफ इनकार करने पर उस ने धमकी दी कि वह उसे जिंदा नहीं छोड़ेगा, उस की एमबीबीएस की डिगरी कैंसिल करा देगा. इस से डा. योगिता घबरा गई. उस ने दिल्ली में अपनी मां को फोन कर रोते हुए यह बात बताई. इसी के बाद योगिता के मातापिता व भाई दिल्ली से आगरा के लिए चल दिए थे.

योगिता को धमकाने के कुछ देर बाद डा. विवेक ने उसे दोबारा फोन किया. इस बार उस की आवाज में क्रोध नहीं बल्कि अपनापन था. उस ने कहा कि भले ही वह उस से शादी ना करे लेकिन इतने सालों की दोस्ती के नाम पर उस से एक बार मिल तो ले. काफी नानुकुर के बाद डा. योगिता ने आखिरी बार मिलने की हामी भर ली. उसी दिन शाम करीब साढ़े 7 बजे डा. विवेक ने योगिता को फोन कर के कहा कि वह आगरा आया है और नूरी गेट पर खड़ा है. घर से बाहर आ जाओ, आखिरी मुलाकात कर लेते हैं. योगिता बिना सोचेसमझे बिना किसी को बताए घर से अकेली निकल गई. यही उस की आखिरी गलती थी.

घर से बाहर निकलते ही नूरी गेट पर टाटा नेक्सन कार में सवार विवेक ने उसे कार का गेट खोल कर आवाज दी और तेजी से कार के अंदर खींच लिया. रास्ते में डा. विवेक ने योगिता से फिर शादी का राग छेड़ दिया, तो चलती कार में ही दोनों में बहस होने लगी. डा. विवेक उस से हाथापाई करने लगा. इसी हाथापाई में योगिता ने अपने हाथ के नाखूनों से विवेक के बाल खींचे और चमड़ी नोंची, तो गुस्साए विवेक ने उस का गला दबा दिया.

डा. विवेक योगिता को कार में ले कर फतेहाबाद हाईवे पर निकल गया. एक जगह रुक कर उस ने अपनी कार में रखा चाकू निकाला. चाकू से योगिता के सिर और चेहरे पर कई वार किए. इतने पर भी विवेक का गुस्सा शांत नहीं हुआ, तो उस ने योगिता के सिर, कंधे और छाती में 3 गोलियां मारीं. यह रात करीब 8 बजे की घटना है.

हत्या कर के रातभर सक्रिय रहा विवेक

इस के बाद योगिता के शव को बमरौली कटारा इलाके में सड़क किनारे एक खेत में फेंक दिया. पिस्तौल भी रास्ते में फेंक दी. रात में ही वह उरई पहुंच गया. रात को ही वह उरई से कानपुर गया और अपनी कार घर पर छोड़ आया. दूसरे दिन वह वापस उरई आ गया. बाद में पुलिस ने कानपुर में डा. विवेक के घर से वह कार बरामद कर ली. यह कार 2 साल पहले खरीदी गई थी. कार में खून से सना वह चाकू भी बरामद हो गया, जिस से हमला कर योगिता की जान ली गई थी.

बहुत कम बोलने वाली प्रतिभावान डा. योगिता गौतम का नाम कोरोना संक्रमण काल में यूपी की पहली कोविड डिलीवरी करने के लिए भी दर्ज है. कोरोना महामारी जब आगरा में पैर पसार रही थी, तब आइसोलेशन वार्ड विकसित किया गया.

इस के लिए स्त्री और प्रसूति रोग विभाग की भी एक टीम बनाई गई. जिसे संक्रमित गर्भवतियों के सीजेरियन प्रसव की जिम्मेदारी दी गई. विभागाध्यक्ष डा. सरोज सिंह के नेतृत्व में गठित इस टीम में शामिल डा. योगिता ने 21 अप्रैल को यूपी और आगरा में कोविड मरीज के पहले सीजेरियन प्रसव को अंजाम दिया था.  इस के बाद भी उन्होंने कई सीजेरियन प्रसव कराए. डा. योगिता के कराए प्रसव की कई निशानियां आज उन घरों में किलकारियां बन कर गूंज रही हैं.

सिरफिरे डाक्टर आशिक के हाथों जान गंवाने से 5 दिन पहले ही 13 अगस्त को डा. योगिता का पीजी का रिजल्ट आया था. जिस में वह पास हो गई थी. पीजी कर योगिता विशेषज्ञ डाक्टर बन गई थी. लेकिन वक्त को कुछ और ही मंजूर था. लोगों की जान बचाने वाली डा. योगिता की उस के आशिक ने ही जान ले ली. घटना वाले दिन भी वह दोपहर 3 बजे तक अस्पताल में अपनी ड्यूटी पर थी. डा. योगिता की मौत पर आगरा के एसएन मेडिकल कालेज में कैंडल जला कर योगिता को श्रद्धांजलि दी गई. कालेज के जूनियर डाक्टरों की एसोसिएशन ने प्रदर्शन कर सच्ची कोरोना योद्धा की हत्या पर आक्रोश जताया.

बहरहाल डा. विवेक ने अपने एकतरफा प्यार की सनक में योगिता की हत्या कर दी. उस की इस जघन्य करतूत ने योगिता के परिवार को खून के आंसू बहाने पर मजबूर कर दिया. वहीं, खुद का जीवन भी बरबाद कर लिया. डाक्टर लोगों की जान बचाने वाला होता है, लोग उसे सब से ऊंचा दर्जा देते हैं, लेकिन यहां तो डाक्टर ही हैवान बन गया. दूसरों की जान बचाने वाले ने साथी डाक्टर की जान ले ली. Stories in Hindi Love