UP News: चीटर कौन दरोगा या उस की बीवी

UP News: यूपी पुलिस के दरोगा आदित्य कुमार लोचन अपनी पत्नी दिव्यांशी चौधरी को लुटेरी दुलहन बता रहे हैं, जबकि दिव्यांशी ने भी पति पर कई तरह के गंभीर आरोप लगाए हैं. यह हाईप्रोफाइल मामला अब कोर्ट में जा चुका है. कोर्ट के फैसले के बाद ही पता लगेगा कि दोनों में से चीटर कौन?

उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर जिले के बी.बी. नगर का रहने वाला आदित्य कुमार लोचन यूपी पुलिस में दरोगा था. गांव के ही ताऊजी दिव्यांशी चौधरी नाम की युवती का रिश्ता आदित्य कुमार के लिए ले कर आए थे. जब आदित्य कुमार को पता चला कि उसे दहेज में स्कौर्पियो और लाखों के जेवर मिलने वाले हैं तो उस ने शादी के लिए हां कर दी. पर कहते हैं न कि लालच बुरी बला है और इसी बला ने दरोगाजी को घेर लिया.

फरवरी, 2024 की शाम थी. दिन में तेज धूप, शाम को मौसम सामान्य और रात में गुलाबी सर्दी. मौसम का यह मिजाज यहां अकसर देखने को मिलता है. 17 फरवरी, 2024 को भी ऐसा ही मौसम था, जब बुलंदशहर के बी.बी. नगर निवासी दरोगा आदित्य कुमार ने जीवनसाथी के रूप में दिव्यांशी का हाथ थामा था. यह 17 फरवरी,  2024 का वही दिन था, जब आदित्य ने दिव्यांशी से शादी की थी. वह मुसकराती हुई, हल्दी व मेहंदी की खुशबू और कंगनों की खनक के साथ उस के घर आई थी. आदित्य को लगा था कि उस की जिंदगी अब पटरी पर आ जाएगी.

पहली नजर में यह रिश्ता परिवारों के सपनों से सजा लगता था, लेकिन किसी ने भी नहीं सोचा था कि यह रिश्ता कुछ महीनों में सुर्खियों में बदल जाएगा. कुछ ही समय में इस रिश्ते की परतें खुलने लगीं. आदित्य का कहना है कि दिव्यांशी कभी घर रुकती नहीं थी, आए दिन पैसों की मांग करती थी. महीना बीता नहीं था कि तसवीर बदलने लगी. दिव्यांशी का मूड हर दिन कुछ नया बहाना ढूंढता. वह कहती कि यह घर ठीक नहीं, तुम मुझे समझते नहीं, मुझे मायके जाना है, पैसे भेज दो वगैरहवगैरह. आदित्य पहले समझने की कोशिश करता, फिर उसे समझाने की और आखिर में वह थक चुका था.

यूं शुरू हुई दोनों में अनबन

2019 बैच के सबइंसपेक्टर आदित्य कुमार लोचन के पापा ऋषिपाल किसान थे और मम्मी राजेश देवी घरेलू महिला थीं. पापा की मौत के बाद कैंसर से मम्मी की भी मौत हो गई थी. घर में एक भाई है. वह भी दिव्यांग है. यानी एक तरीके से कहें कि सिर्फ दरोगा आदित्य ही घर थे और वही परिवार. एक रिश्ते के ताऊ आदित्य के लिए 29 साल की दिव्यांशी का रिश्ता ले कर आए थे. बताया कि दिव्यांशी की कोठी आदित्य के घर से 50 किलोमीटर दूर मेरठ के मवाना में स्थित है. दहेज में स्कौर्पियो कार, लाखों के जेवर और धूमधाम से शादी की बात ताऊ ने कही. खूबसूरत दिव्यांशी को देख कर दरोगा आदित्य कुमार लोचन और उन के फेमिली वालों ने भी हामी भर दी थी.

शादी को अभी 4 महीने ही हुए थे, पर आदित्य के मन में कुछ खटकने लगा था. दिव्यांशी अकसर कहती, ”मैं बीएड और सीटेट की तैयारी कर रही हूं, मायके में पढ़ाई में ध्यान ज्यादा लगता है. मेरे मायके का घर में बना एक स्टडीरूम मुझे पहचानता है और मैं स्टडीरूम को जानती हूं. मुझे उस में पढऩे की आदत बनी हुई है.’’

पहले आदित्य ने भरोसा किया, फिर धीरेधीरे आदतें शक पैदा करने लगीं. वह मायके में रह कर औनलाइन पैसों की मांग करती, कभी कोचिंग की फीस, कभी किताबें तो कभी फार्म भरने के नाम पर. आदित्य बिना सवाल किए रुपए भेज देता, क्योंकि वह उस की पत्नी थी और भरोसा करना उस के संस्कारों का हिस्सा था, लेकिन हर बार जब वह ससुराल आती, कुछ अजीब करती. अपने मोबाइल से सारे यूपीआई ऐप डिलीट कर देती.

‘इतना क्यों छिपाती है? आखिर क्या है, जो दिखाना नहीं चाहती?’ यह सवाल आदित्य को हर दिन परेशान करता रहा.

एक दिन आदित्य ने उस से कहा, ”दिव्यांशी, अपना मोबाइल दिखाना जरा.’’

बस इतना कहना था कि दिव्यांशी के चेहरे की रंगत उड़ गई. उस ने मोबाइल पकड़ाया. आदित्य ने उस से फोन का पासवर्ड पूछ कर स्क्रीन खोली. जैसे ही उस ने चैक किया, उन की भौंहें सिकुड़ गईं. मोबाइल में एक भी यूपीआई ऐप नहीं था, सब डिलीट. वह धीरे से बोला, ”तैयारी करती हो तो फीस किस से भरी? फार्म किस से जमा किया? किताबें कैसे खरीदीं? इस मोबाइल में यूपीआई या बैंक से संबंधित कोई ऐप डाउनलोड है ही नहीं. जबकि तुम ने जितने भी रुपए मुझ से लिए हैं, सब औनलाइन ही लिए हैं, वो भी अपने फोन नंबर के जरिए.’’

दिव्यांशी कुछ बोल न पाई, बस बारबार होंठ भींचती रही. आदित्य की सारी शंकाएं अचानक आकार लेने लगीं. उस दिन से घर का माहौल ही बदल गया. विश्वास में दरारें साफ दिखने लगीं और दिव्यांशी के झूठ की परतें एकएक कर के खुलती चली गईं.

कमिश्नर औफिस में क्यों किया हंगामा

पिछले साल 25 नवंबर को कानपुर कमिश्नरी कार्यालय में दिव्यांशी ने हाईवोल्टेज ड्रामा किया था. वह एक ठंडी सुबह थी. कमिश्नरी कार्यालय के बाहर भीड़ जमा थी. आरोप है कि वह अपने साथ कई लोगों को ले कर आई थी. भीतर से आवाजें गूंज रही थीं. किसी के रोने की, किसी के समझाने की और किसी के गुस्से से कांपती आवाज थी. यही दिन था, जब दिव्यांशी ने अपने पति आदित्य के खिलाफ आरोपों की झड़ी लगा दी थी. सब के सामने सच उजागर करने का दावा किया था. वह इस समय कमिश्नर के दफ्तर में थी और आदित्य कुमार की शिकायत कर रही थी. रोरो कर अपना दुखड़ा सुना रही थी. चेहरे पर आंसू और आंखों में आग लिए वह पुलिस अधिकारी के सामने बोली, ”इस आदमी ने मेरा सब कुछ बरबाद कर दिया.’’

उस के शब्द हवा में तीर की तरह गूंजे. दिव्यांशी का आरोप था कि पति आदित्य ने उसे महीनों तक मानसिक रूप से परेशान किया और उस की मेहनत की कमाई के 14 लाख 50 हजार रुपए हड़प लिए. लेकिन यह केवल पैसों का मामला नहीं था. दिव्यांशी ने और भी गंभीर आरोप लगाए. उस ने कहा कि आदित्य सोशल मीडिया पर लड़कियों से दोस्ती करता है, मीठी बातें कर उन का भरोसा जीतता है, फिर उन्हें अपने जाल में फंसा लेता है. बाद में उन्हीं की तसवीरें और वीडियो का इस्तेमाल कर उन्हें धमकाता और ब्लैकमेल करता है.

मामला पुलिस के एक दरोगा आदित्य से जुड़ा होने के कारण पत्रकारों की भीड़ कमिश्नरी के बाहर जमा हो गई. कमिश्नर कार्यालय से बाहर निकलते ही यूट्यूबर और चैनलों के पत्रकारों ने भी दिव्यांशी को घेर लिया. दिव्यांशी ने रोरो कर वो सारी बातें पत्रकारों को बताईं, जो शिकायत उस ने कमिश्नर साहब से लिखित में की थी. 14 लाख 50 हजार रुपए दिए जाने के मोबाइल ऐप गूगलपे व सबूत के तौर पर बैंक के लेनदेन के कागज भी पत्रकारों को दिखा रही थी. कमिश्नरी के गलियारों में यह मामला गूंजने लगा.

इस बीच दरोगा आदित्य कुमार भी अपनी सफाई देने कमिश्नर के पास पहुंच गया. यह देख कर मीडियाकर्मी वहीं रुक गए, जिस से कि उस का भी इंटरव्यू लिया जा सके. आदित्य कुमार भी पूरी तैयारी के साथ आया था. एक मोटी फाइल उस के हाथ में थी.

दरोगा ने कमिश्नर को बताई सच्चाई

आदित्य कुमार ने कमिश्नर साहब को सबूत के साथ पूरी जानकारी दी. उस ने कहा, ”मैं ने अपनी खुफिया जांच पत्नी दिव्यांशी घर के आसपास के लोगों से पूछताछ शुरू की थी. पता चला कि वह पहले से ही शादीशुदा है. पहले जिस से शादी हुई थी, दिव्यांशी ने उन लोगों पर मुकदमा दर्ज करा रखा है. इस के बाद मैं ने ई कोर्ट ऐप पर दिव्यांशी की डिटेल डाली तो एक मुकदमा दिव्यांशी वर्सेज प्रेमराज पुष्कर का सामने आ गया.

”मैं ने इस के दस्तावेज निकलवाए. पता चला कि दिव्यांशी ने मेरठ के थाना पल्लवपुर में दरोगा प्रेमराज पुष्कर और उस के भाई भूपेंद्र पुष्कर के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई थी. फिर मैं ने मेरठ न्यायालय से इस मुकदमे के दस्तावेज निकलवाए. दिव्यांशी ने दरोगा प्रेमराज पुष्कर और उस के भाई भूपेंद्र पर एफआईआर दर्ज करवाई थी.

”कोर्ट में मजिस्ट्रैट के सामने बयान देते समय पलट गई. उस ने कहा था कि मेरा प्रेमराज पुष्कर से 3 जुलाई, 2019 को प्रेम विवाह हुआ था. मुझे इस के खिलाफ मेरठ के हस्तिनापुर थाने से भी एक रेप की एफआईआर मिली. इस में दिव्यांशी ने पंजाब नैशनल बैंक, हस्तिनापुर के मैनेजर आशीष राज और मवाना मेरठ के बैंक मैनेजर अमित गुप्ता पर भी एफआईआर दर्ज कराई थी. मुकदमे से अमित का नाम निकाल दिया गया था. नाम निकलवाने में भी मोटी रकम वसूले जाने की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता. इस मामले में भी दिव्यांशी कोर्ट में अपने ही बयान से पलट गई. यहां पर बैंक मैनेजर से लाखों रुपए वसूला गया होगा.’’

दरोगा आदित्य कुमार लोचन ने आगे कहा कि मैं ने रेप के आरोप में जेल जा चुके प्रेमराज पुष्कर से बात की तो पता चला कि वह दिव्यांशी के अभी भी संपर्क में है. दिव्यांशी को उस ने मेरी गोपनीय जांच के बारे में बता दिया. इस से दिव्यांशी समझ गई कि अब उस की दाल नहीं गलने वाली है. इस के बाद दिव्यांशी अपने लाखों के जेवरात और कीमती सामान समेट कर मायके चली गई. कुछ दिनों बाद वह मेरे घर पहुंची और मेन गेट का ताला तोड़ कर घर में घुस गई. मकान पर कब्जा कर वहीं रहने लगी. जब मैं वहां नहीं गया तो उस ने संबंधित थाने में तहरीर दी, लेकिन जांच में उस के सभी आरोप झूठे पाए गए.

 

इस के बाद एक करोड़ रुपए की मांग करने लगी, पूरी नहीं होने पर पूरे परिवार को जेल भिजवाने की धमकी दी. इस के बाद भी कुछ नहीं हुआ तो आज 25 नवंबर को दिव्यांशी कानपुर पहुंची और पुलिस कमिश्नर अखिल कुमार को मेरे खिलाफ तहरीर दी. मैं ने दस्तावेज पेश किए तो वह भाग गई. आदित्य ने बताया कि जब मैं ने दिव्यांशी के फोन में डिलीट हो चुके सभी यूपीआई ऐप डाउनलोड कराए तो मेरे होश उड़ गए. ट्रांजैक्शन हिस्ट्री में 10 से ज्यादा खातों में करोड़ों का ट्रांजैक्शन किया गया था. खातों के बारे में पूछने के बाद दिव्यांशी मुझ से झगड़ा कर के सब ज्वैलरी व कीमती सामान ले कर मायके चली गई.

पुलिस कमिश्नर ने एडीसीपी को सौंपी जांच

उधर तत्कालीन पुलिस कमिश्नर अखिल कुमार ने तुरंत एडिशनल डीसीपी (महिला अपराध) को जांच सौंपी. इस के बाद पुलिस ने दिव्यांशी की जांच शुरू की. पुलिस ने जब दिव्यांशी के खाते की जांच की तो कई चौंकाने वाले सच सामने आए. उस के बैंक खातों में करोड़ों का ट्रांजैक्शन मिला. शक हुआ कि इस के गैंग में कई पुलिसकर्मी भी शामिल हैं. दिव्यांशी के सनसनीखेज आरोपों के बाद मामले की जिम्मेदारी एडिशनल डीसीपी (महिला अपराध) को सौंपी गई थी.

यह एक जटिल जांच थी, क्योंकि इस में न केवल वित्तीय धोखाधड़ी शामिल थी, बल्कि ब्लैकमेलिंग और डिजिटल सबूतों का एक जाल भी था. सब से पहले, दिव्यांशी का विस्तृत बयान दर्ज किया गया. इस में 14.50 लाख रुपए के लेनदेन का ब्यौरा (बैंक रिकौर्ड, हस्तांतरित दस्तावेज) और पति आदित्य द्वारा किए गए कथित ब्लैकमेलिंग की पूरी जानकारी शामिल थी. उस ने उन सोशल मीडिया अकाउंट्स और चैट हिस्ट्री के स्क्रीनशौट्स भी उपलब्ध कराए, जिन से आदित्य कथित तौर पर अन्य युवतियों को फंसाता था.

पुलिस ने आदित्य के बैंक खातों और संपत्ति के रिकौर्ड की जांच शुरू की, ताकि यह पता लगाया जा सके कि 14.50 लाख रुपए कहां गए? क्या वे किसी अन्य खाते में स्थानांतरित किए गए या किसी संपत्ति की खरीद में इस्तेमाल हुए? पुलिस ने आदित्य को पूछताछ के लिए बुलाया तो उस ने सभी आरोपों से इनकार किया. आदित्य के मोबाइल फोन, लैपटाप और अन्य डिजिटल उपकरणों को जब्त कर लिया गया. फोरैंसिक टीम ने डिलीट की गई चैट्स, वीडियो और फोटो को रिकवर करने का प्रयास किया.

पुलिस ने आदित्य के सोशल मीडिया प्रोफाइल की जांच की और उन युवतियों को तलाश किया. यह जांच का सब से नाजुक हिस्सा था, क्योंकि कई पीडि़त बदनामी के डर से सामने आने को तैयार नहीं होते हैं. असली झटका तब लगा था, जब आदित्य कुमार ने ग्वालटोली थाने में दिव्यांशी के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करने के लिए तहरीर देने की हिम्मत जुटाई. यह बात नवंबर 2024 की है. करीब एक साल तक पुलिस काररवाई में ढील देती रही. कभी दोनों का पारिवारिक मामला आपसी समझौते से ही तय हो जाए. मामला उलझता ही जा रहा था.

17 नवंबर, 2025 की बात है. आदित्य थाने में अपने औफिस में बैठा था. पत्नी दिव्यांशी की फाइल उन के सामने रखी थी. कागज पर लिखे शब्द जैसे उस के सपनों को चीरते जा रहे थे. उस का दिमाग अभी भी उस दिन की यादों में ही उलझा था कि तभी गेट पर जोरजोर से बातें होने लगीं. ड्यूटी पर मौजूद सिपाही ने आ कर बताया, ”सर, दिव्यांशी को गिरफ्तार कर लिया गया है.’’

यह सुन कर आदित्य का दिल एक धड़कन के लिए रुक गया. पुलिस जीप के पीछे से उतारी गई दिव्यांशी का चेहरा वैसा ही शांत था, मानो उसे पता ही हो कि ये सब होने वाला है, पर असली तूफान वो नहीं था. तूफान था उस की फाइल. दिव्यांशी उस से पहले 2 बैंक मैनेजरों से शादी कर चुकी थी, एक दरोगा को भी अपने जाल में फंसा चुकी थी और उन तीनों पर बलात्कार जैसे संगीन मामलों के फरजी मुकदमे लिखा कर मोटी रकम ऐंठ चुकी थी. औफिस के बाहर मीडिया का शोर बढ़ता जा रहा था. कितने लोग फंसे इस में? कौन है इस खेल का असली मास्टरमाइंड? क्या दिव्यांशी अकेली है या किसी और के इशारों पर चल रही है? और सब से बड़ा सवाल कि क्या अगला शिकार आदित्य ही था?

दिव्यांशी को सुरक्षित करते हुए पत्रकारों को पूरी जानकारी डीसीपी (सेंट्रल) श्रवण कुमार सिंह ने दी. डीसीपी श्रवण कुमार सिंह ने प्रैसवार्ता में पत्रकारों को बताया कि आरोपी महिला को गिरफ्तार कर लिया गया है. यह बात सोमवार 17 नवंबर, 2025 की है. उस को मंगलवार को कोर्ट में पेश किया जाएगा. इस से पहले थाने आने पर आदित्य ने दिव्यांशी की ओर देखा. वह शांत खड़ी थी, जैसे किसी बात का इंतजार कर रही हो. फिर उस ने हलकी मुसकान दी. ऐसी मुसकान, जिस में डर नहीं, बल्कि रहस्य छिपे थे.

पर सवाल अभी भी हवा में लटका था कि क्या यह उस की आखिरी शादी थी या सिर्फ आखिरी गिरफ्तारी? दरोगा के साथ हुए हैरेसमेंट का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उस ने 2 बार सुसाइड करने का भी प्रयास किया था. यह पुलिसकर्मी दिव्यांशी के गिरफ्तार हो जाने के बाद दरोगा आदित्य पर समझौते का दबाव बना रहे थे. कहानी कुछ ऐसी निकली कि पुलिस अफसरों तक के होश उड़ गए. यह हैरानी की बात नहीं सच है, क्योंकि यहां पकड़ी गई दिव्यांशी 8 करोड़ के गेम को अकेले खेलने वाली ऐसी खिलाड़ी निकली, जिस ने कोई 1-2 नहीं बल्कि  4-4 शादियां कीं.

थाने का माहौल उस दिन बेहद तनावपूर्ण था. पुलिस दिव्यांशी को सीधे थाने ले आई, यह जानते हुए कि मामला हाईप्रोफाइल है और हंगामे की पूरी संभावना है.

दिव्यांशी के पक्ष में वकील पहुंचे थाने में

दिव्यांशी चौधरी, जिसे कुछ दिन पहले तक लोग एक सम्माननीय घर की बहू समझ रहे थे, अब सलाखों के पीछे खड़ी थी. उस की गिरफ्तारी के कुछ ही देर बाद, थाने के बाहर अचानक भीड़ जुटने लगी. यह भीड़ थी वकीलों की, जो दिव्यांशी का पक्ष लेने के लिए वहां पहुंचे थे. वकीलों का एक समूह थाने के गेट पर पहुंचा. उन के चेहरे पर गुस्सा और आत्मविश्वास झलक रहा था. उन्होंने दिव्यांशी से मिलने की कोशिश की, लेकिन एसएचओ ने उन से कोर्ट में मिलने को कहा. यह सुन कर वकील एकएक कर लौट गए. थाने के बाहर सन्नाटा छा गया.

अंदर लौकअप में दिव्यांशी चौधरी चुपचाप दीवार से सिर टिकाए बैठी थी. उस के चेहरे पर अब वो मुसकान भी नहीं थी. शादी के नाम पर ठगी करने के आरोप में मेरठ के बड़ा मवाना से गिरफ्तार कर लाई गई दिव्यांशी चौधरी के खिलाफ ग्वालटोली पुलिस ने 18 नवंबर, 2025 दिन मंगलवार को एसीजेएम-7 अमित सिंह की कोर्ट में पेश किया. पुलिस कोर्ट में कोई ठोस साक्ष्य पेश नहीं कर सकी. पुलिस की रिमांड शीट में कई कमियां थीं, जिन का दिव्यांशी के वकील ने विरोध किया. कानपुर पुलिस ने दिव्यांशी चौधरी के खिलाफ बीएनएस की 12 धाराओं में मुकदमा दर्ज किया था और आगे की पूछताछ के लिए 8 धाराओं में रिमांड की प्रशस्ति मांगी थी, लेकिन अदालत ने स्पष्ट किया कि रिमांड देने के लिए पर्याप्त आधार मौजूद नहीं हैं.

सुनवाई के दौरान अदालत ने कहा कि रिमांड जैसी कठोर प्रक्रिया के लिए आवश्यक साक्ष्य और आधार पुलिस द्वारा प्रस्तुत नहीं किए गए. कोर्ट ने दिव्यांशी को अरेस्ट करने में सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइंस का उल्लंघन पाया. इस के बाद दिव्यांशी को रिहा कर दिया गया. अदालत ने अपनी टिप्पणी में कहा कि ‘मात्र आरोप और अनुमानों’ के आधार पर रिमांड नहीं दी जा सकती. रिमांड खारिज करते हुए अदालत ने दिव्यांशी चौधरी को व्यक्तिगत बंधपत्र पर रिहा करने का आदेश जारी किया. साथ ही निर्देश दिया गया कि आरोपी जांच में सहयोग करेगी और किसी भी प्रकार का दबाव या प्रभाव नहीं डालेगी.

पुलिस की किरकिरी होने पर फौरन डीसीपी (सेंट्रल) श्रवण कुमार सिंह ने अपने औफिस में एक मीटिंग बुलाई. इस में डीसीपी (सेंट्रल), एडीसीपी अर्चना सिंह, विवेचक शुभम सिंह और शिकायत करने वाले दरोगा आदित्य लोचन को बुलाया गया. कानपुर में दरोगा की लापरवाही की वजह से दिव्यांशी चौधरी कोर्ट से रिहा हो गई. इस वजह से आरोपी दिव्यांशी को कोर्ट ने छोड़ दिया. जांच में पता चला कि एक रिटायर सीओ दिव्यांशी की पैरवी में कानपुर पहुंचे थे. वह शुभम के साथ कई घंटे तक रहे.

जौइंट पुलिस कमिश्नर आशुतोष कुमार ने दरोगा शुभम पर विभागीय जांच के आदेश दिए हैं. साथ ही दिव्यांशी के पूरे सिंडिकेट का परदाफाश करने के लिए एक जांच कमेटी बनाई है.

आईओ शुभम से उच्चाधिकारी हुए नाराज

जौइंट सीपी आशुतोष कुमार ने विवेचक शुभम से पूछा कि जब इतने पुलिसकर्मियों का दिव्यांशी से संबंध है तो इन लोगों के बयान क्यों नहीं लिए गए? इन पुलिसकर्मियों और बैंक अफसर की भूमिका की जांच क्यों नहीं की गई? आखिर दिव्यांशी से इन सभी का क्या कनेक्शन है, जो लाखों का ट्रांजैक्शन है? दरोगा शुभम कोई जवाब नहीं दे सका? इस पर जौइंट सीपी ने शुभम को जम कर फटकार लगाई.

जौइंट पुलिस कमिश्नर ने पूरे मामले की जांच में अब एक इंसपेक्टर को भी शामिल किया है. उन्होंने कहा है कि अब इस पूरे सिंडिकेट का खुलासा होना चाहिए. जिन पुलिस अफसरों और बैंक अफसर समेत अन्य की कौल डिटेल्स और लाखों का ट्रांजैक्शन मिला है, एकएक व्यक्ति की जांच होगी. जांच के बाद सिंडिकेट में शामिल सभी के खिलाफ काररवाई की जाएगी. डीसीपी (सेंट्रल) श्रवण कुमार सिंह ने बताया कि अब डीजे कोर्ट में दोबारा सभी साक्ष्यों के साथ अपील करेंगे, ताकि आरोपी को दोबारा अरेस्ट कर के जेल भेजा जाए. पुलिस टीम अब नए सिरे से दोबारा जांच कर के एकएक साक्ष्य जुटा रही है. जल्द ही पूरे सिंडिकेट के खिलाफ पुलिस कड़ी काररवाई करेगी.

दिव्यांशी चौधरी ने रिहा होने के बाद इसे सच्चाई की जीत बताया. कहा, ”मुझे मीडिया में बदनाम किया कि मैं लुटेरी दुलहन हूं. मेरे हसबैंड, जो उसी थाने में पोस्टेड है और जो आईओ है, वो उन का दोस्त है, कहां से फेयर इनवेस्टिगेशन हो जाएगी.’’

दिव्यांशी ने कहा कि मैं थाने खुद गई थी. यह कहने कि आप मेरा भी पक्ष सुनिए, लेकिन उन्होंने उस चीज का फायदा उठाया और मेरे को वहीं से अरेस्ट कर लिया. कौन सी लुटेरी दुलहन शादी में स्कौर्पियो गाड़ी देती है. कौन सी लुटेरी दुलहन 25 लाख की एफडी देगी? मुझ पर सब मनगढ़ंत आरोप हैं. आप शादी से डेढ़ साल पहले से मेरे को जानते हैं.

उस ने बताया कि दरोगाजी मेरे साथ डेढ़ साल से रिलेशन में थे. आप ने मुझ से 14 लाख 50 हजार औनलाइन लिया है. औफलाइन तो जितना लिया है, उस को छोडि़ए. शादी के बाद भी वसूली का रवैय्या खत्म नहीं हुआ. आप की डिमांड खत्म नहीं होती है. आप दरोगा हैं तो इस का मतलब ये थोड़ी न है कि आप कुछ भी करेंगे. अपनी पत्नी को आप ने इस हद तक पहुंचा दिया था कि शायद सुसाइड ही एकमात्र रास्ता रह गया था. अगर मुझे सच्चे वकील वरुण सर न मिलते तो शायद मैं तो मर ही गई होती.

एडवोकेट वरुण ने कहा कि दिव्यांशी पर उस के दरोगा पति ने पैसे के लेनदेन का आरोप लगाया था, उन के ऊपर भी जांच होनी चाहिए. 58 हजार की तनख्वाह है, एक दरोगा की एवरेज महीने की. ढाई-3 करोड़ का दरोगा आदित्य के अकाउंट में ट्रांजैक्शन हुआ है. यह कैसे संभव है? इस की जांच जरूर होनी चाहिए. अदालत के दरवाजे पर सच्चाई और साजिश का दावा करने वाले दोनों पक्ष खड़े हैं, दोनों अपनी बात पर अडिग हैं. कहानी अभी खत्म नहीं हुई, बल्कि न्याय की तलाश में आगे बढ़ चुकी है. अपील की फाइल तैयार हो रही है, साक्ष्य जुटाए जा रहे हैं. एक तरफ दिव्यांशी का दावा, फंसाई गई हूं. उन के वकील साहब का विश्वास है कि दिव्यांशी मासूम है, निर्दोष है. वकील को उम्मीद है कि सच्चाई की जीत होगी.

दूसरी तरफ पुलिस का दावा दुलहन लुटेरी है, सबूत मजबूत हैं, अपील मंजूर होगी, दिव्यांशी जेल जाएगी. न्याय की जीत होगी. अब यह जंग कोर्ट के फैसले पर टिकी है. क्या दिव्यांशी का जाल फिर बचेगा या सिंडिकेट ढह जाएगा?

उत्तर प्रदेश की यह कहानी अभी अधूरी है. सच्चाई का इंतजार है, कानून का इम्तिहान है. लेकिन एक बात साफ है, प्यार के नाम पर ठगी का खेल अब लंबा नहीं चलेगा. न्याय की घंटी बजनी बाकी है. इस समय न कोई विजेता, न कोई स्पष्ट दोषी है. बस 2 सच, 2 दावे और एक ऐसी लड़ाई जिस का फैसला अब कोर्ट करेगी न कि भावनाएं.

कहानी यहीं खत्म नहीं होती, बल्कि वहीं से शुरू होती है, जहां कानून आखिरी शब्द बोलता है और सच अपनी अगली परत खोलता है. UP News

 

Crime News: ठगी का फरजी दूतावास

Crime News: नटवर लाल को गुजरे हुए जमाना हो गया, लेकिन उस के जैसी कहानी को आगे बढ़ाने वालों की अब भी कमी नहीं है. ऐसी ही महाठगी की कहानी सामने आई है गाजियाबाद से. दिल्ली में करीब डेढ़ सौ से ज्यादा देशों के दूतावास या उच्चायोग मौजूद हैं, लेकिन हर्षवर्धन जैन नाम के एक नटवर लाल ने गाजियाबाद में एक नहीं, बल्कि 4-4 फरजी दूतावास खोल डाले. इन फरजी दूतावासों के जरिए उस ने ऐसेऐसे गैरकानूनी कार्य किए कि…

राजधानी दिल्ली में दुनिया भर की करीब डेढ़ सौ एंबेसी, दूतावास या उच्चायोग मौजूद हैं. राजधानी दिल्ली की सीमा से सटा है यूपी का गाजियाबाद शहर. इसी शहर के पौश इलाके कविनगर में एक नहीं, बल्कि 4 देशों की एंबेसी खुली है और वहां हाई कमिश्नर साहब भी रहते हैं, कुछ समय पहले तक ये किसी को नहीं पता था.सलेकिन 22 जुलाई, 2025 की दोपहर कविनगर के केबी ब्लौक की 45 नंबर की आलीशान कोठी में अचानक पुलिस की गाडिय़ों का काफिला देख कर हड़कंप मच गया. शुरुआत में लोगों ने समझा कि यहां कोई वीआईपी आया है या कोई बड़ा राजनयिक. क्योंकि वह कोठी किसी आम इंसान की नहीं थी, बल्कि वहां एक नहीं 4 देशों का कांसुलेट था और वहां बाकायदा एक दूतावास चलता था.

क्योंकि कोठी के बाहर हाईप्रोफाइल नंबर प्लेट्स और बोनट के कोने पर अलगअलग देशों के झंडे लगी एक से बढ़ कर एक चमचमाती हुई लग्जरी गाडिय़ां खड़ी होती थीं. जबकि कोठी में अकसर सूटेडबूटेड लोगों आनाजाना भी लगा रहता था. और तो और कोठी की दीवार पर बाकायदा एंबेसी औफ वेस्ट आर्कटिक का ब्रास बोर्ड लगा हुआ था. ऐसे में हर किसी को लगता था कि शायद इस कोठी में किसी देश का दूतावास है, जहां से डिप्लोमेटिक एक्टिविटीज चलती हैं.

पुलिस की गाडिय़ों के आने के थोड़ी देर बाद ही पता चल गया कि इस कोठी में हर्षवर्धन जैन नाम का व्यक्ति 4-4 फरजी दूतावास चला रहा था. यूपी एसटीएफ की नोएडा टीम ने उस कोठी में चलने वाले नकली दूतावास का भंडाफोड कर दिया. जिस किराए की कोटी में हर्षवर्धन जैन दूतावास चला रहा था, उस की नेमप्लेट पर सुशील अनूप सिंह का नाम लिखा था. जांच से पता चला कि जैन का रैकेट विदेश में व्यापार और नौकरी के अवसरों में मदद का वादा कर के लोगों और कंपनियों को ठगने में शामिल था. वह फरजी कंपनियों के जरिए हवाला नेटवर्क भी चलाता था.

एसटीएफ का शिकंजा

कोठी के बाहर दूसरी नेमप्लेट, जो सुनहरे रंग की थी, उस पर एच.वी. जैन का नाम लिखा था और उस के आगे अंगरेजी में ‘ही’ लिखा था. ‘ही’ का मतलब ‘महामहिम’ होता है, जो एक औपचारिक सम्मानसूचक शब्द है, जो आमतौर पर राष्ट्रमंडल देशों में राजदूतों या उच्चायुक्तों जैसे उच्च पदस्थ अधिकारियों के लिए आरक्षित होता है. हर्षवर्धन जैन खुद को वेस्ट आर्कटिका का डिप्लोमैट बताता था. हालांकि दिल्ली का चाणक्यपुरी इलाका और दक्षिणी दिल्ली के कुछ इलाके में डिप्लोमैटिक एरिया है, जहां बहुत सारे देशों के दूतावास हैं और कांसुलेट रहते हैं. लेकिन दिल्ली से सटे गाजियाबाद के कविनगर में पिछले कई सालों से ये दूतावास चल रहा था और प्रशासन को भनक तक नहीं लगी, ये जान कर लोग दांतों तले अंगुलियां दबा रहे थे.

असल में हुआ यूं कि उत्तर प्रदेश के डीजीपी को एक बहुत प्रभावशाली व्यक्ति ने मिल कर शिकायत की थी कि गाजियाबाद के कविनगर में केबी 45 नंबर की 2 मंजिला किराए की आलीशान कोठी में वेस्ट आर्कटिका, पौल्विया, सबोर्गा और लोडोनिया  जैसे काल्पनिक या माइक्रो नेशंस यानी स्वघोषित देशों का एक दूतावास चल रहा है. जहां का तामझाम तो दूतावासों जैसा ही है, लेकिन असल में काम लोगों को नौकरी के नाम पर विदेश भेजने और विदेश में व्यापार और नौकरी के अवसरों में मदद का होता था.

 

वह फरजी कंपनियों के जरिए हवाला नेटवर्क भी चलाता था. शिकायत करने वाले के किसी परिचित को विदेश में नौकरी दिलाने के नाम पर लाखों रुपए ले कर इस कथित अंबेसडर हर्षवर्धन जैन ने ठग लिया था. शिकायत चूंकि गंभीर थी, इसलिए डीजीपी ने इस मामले की जांच एसटीएफ को सौंपते हुए एसएसपी सुशील घुले से अपनी निगरानी में जांच कराने को कहा.

बस, उसी दिन से जांच का सिलसिला शुरू हो गया. पहले कविनगर में बने इस कथित दूतावास के बारे में जानकारियां जुटाई गईं.  इस के बाद मिनिस्ट्री औफ एक्सटर्नल अफेयर्स में जांच हुई, जहां पता लगा वेस्ट आर्कटिका नाम से कोई देश लिस्ट में है ही नहीं. न ही भारत सरकार ने देश के किसी हिस्से में इस तथाकथित देश को दूतावास खोलने की मंजूरी दी है.

बस फिर क्या था, एसटीएफ ने हर छोटीबड़ी जानकारी एकत्र करनी शुरू कर दी. एसटीएफ के एसएसपी घुले के नेतृत्व में नोएडा एसटीएफ के डिप्टी एसपी राजकुमार मिश्रा ने 22 जुलाई, 2025 को एक बड़ी टीम बना कर स्थानीय पुलिस की मदद से कविनगर की कोठी नंबर 45 की घेराबंदी कर दी. तब लोगों को वहां हुई छापेमारी में बाकी जानकारियां सामने आईं. बाद में पता चला कि हर्षवर्धन जैन का ठगी का ये पहला मामला नहीं था. इस से पहले भी वह ऐसा कर चुका है. कितने हैरत की बात थी कि फरजी दूतावास न सिर्फ खुला, बल्कि सालों तक बेरोकटोक चलता रहा. उसे पहचानने में जांच एजेंसियों को सालोंसाल लग गए.

दूतावास की आड़ में ठगी के इस पूरे औपरेशन के पीछे हर्षवर्धन जैन यानी कथित महामहिम का मुख्य उद्देश्य विदेशों में फरजी नौकरियों का झांसा दे कर लोगों से पैसे वसूलना, शेल कंपनियों के माध्यम से हवाला कारोबार और नकली पासपोर्ट और विदेशी मुद्रा का अवैध व्यापार के साथ निजी कंपनियों को विदेशी कनेक्शन दिलाने के नाम पर दलाली करना था. हैरान करने वाली बात यह है कि आरोपी हर्षवर्धन खुद को वेस्ट आर्कटिका, पौल्विया, सबोर्गा और लोडोनिया जैसे काल्पनिक या माइक्रो नेशंस यानी स्वघोषित देशों का राजदूत  बता कर पिछले 3 सालों से 4 देशों का फरजी दूतावास चला रहा था.

इस फरजी दूतावास से एक नहीं, बल्कि 4-4 ऐसे देशों के राजनयिक औफिसों का संचालन किया जा रहा था. उदाहरण के लिए वेस्ट आर्कटिका नाम के इस देश को ही लीजिए, जिस की एंबेंसी होने का बोर्ड इस कोठी की दीवार पर लगा था. जब इस नाम को गूगल पर सर्च किया गया तो पता चला कि ये वेस्ट आर्कटिका दरअसल एक ऐसा एनजीओ है, जो पर्यावरण सुरक्षा के लिए काम करता है. लेकिन कमाल ये है कि यहां एनजीओ को ही मुल्क का नाम दे कर उस का दूतावास खोल कर ठगी का धंधा बदस्तूर चल रहा था.

उस ने सुरक्षा और खुफिया एजेंसियों को भी चौंका दिया. वो खुद को ऐसे देशों का राजदूत बताता था, जो असल में दुनिया के नक्शे पर अस्तित्व ही नहीं रखते. अगर गूगल पर सबोर्गा सर्च करें तो पता चलेगा कि ऐसा कोई देश ही नहीं है, बल्कि एक गांव और माइक्रो नेशन है, जिसे देश का दरजा नहीं मिला है. दूसरा नाम था पौल्विया जिसे सर्च करने पर कुछ लोगों के नाम का टाइटल मिलता है. इसी तरह जब लोडोनिया सर्च किया जाता है तो ये एक लैब का नाम निकला.

हर्षवर्धन जैन खुद को ऐसे ही ‘माइक्रो नेशन’ या फरजी देशों का राजदूत बताता था. हर्षवर्धन ने पूरा सेटअप कविनगर स्थित किराए की कोठी में खड़ा कर रखा था, जिस की बनावट और साजसज्जा किसी असली दूतावास से कम नहीं थी. सफेद रंग की इमारत, नीली नंबर प्लेट वाली लग्जरी गाडिय़ां और आलीशन घर के बाहर लगे अलगअलग देशों के झंडे देख कर कोई भी धोखा खा सकता था कि यह कोई वैध विदेशी दूतावास है. 47 साल का हर्षवर्धन जैन कोई मालूमी आदमी नहीं है. वह काम बेशक ठगी का कर रहा था, लेकिन उस का ताल्लुक एक अच्छे परिवार से है. उस के पिता जे.डी. जैन एक जानेमाने इंडस्ट्रियलिस्ट रहे हैं, जो गाजियाबाद के जैन रोलिंग मिल के मालिक थे.

जैन परिवार का राजस्थान समेत कई राज्यों में मार्बल और माइनिंग का भी काम था. उन की अचानक मौत होने से बिजनैस को काफी नुकसान हुआ और आर्थिक स्थिति खराब हो गई. हर्षवर्धन जैन का ट्रैक तब चेंज हो गया, जब उस की मुलाकात विवादास्पद तांत्रिक चंद्रास्वामी से हुई. वो चंद्रास्वामी से साल 2000 में मिला, जिस ने उस की मुलाकात आम्र्स डीलर अदनान खशोगी और लंदन के रहने वाले एहसान अली सैयद से करवाई.

जिस के साथ मिल कर हर्षवर्धन जैन ने लंदन में 12 फरजी कंपनियां बनाईं और लाइजनिंग यानी दलाली का काम शुरू कर दिया. वह चंद्रास्वामी के काले धन को ठिकाने लगाने लगा. वहीं चंद्रास्वामी की मौत के बाद हर्षवर्धन टूट गया. इस के बाद गाजियाबाद लौट आया. इस के बाद वह ऐसे ही संदिग्ध लोगों के साथ मिलताजुलता रहा और दलाली के जरिए पैसे कमाता रहा. साल 2012 में उस के पास से पुलिस ने एक सैटेलाइट फोन बरामद किया था. तब भी उस ने खुद को एक सबोर्गा नाम के फरजी देश का एडवाइजर और वेस्ट आर्कटिक समेत कई ऐसे ही काल्पनिक देशों का एंबेसेडर बताया था.

ऐसे हुआ ट्रैक चेंज

हर्षवर्धन जैन की शुरुआती पढ़ाई और निजी जिंदगी के बारे में पुलिस को ज्यादा जानकारी नहीं है, लेकिन उस ने पुलिस को बताया कि गाजियाबाद के इंस्टीट्यूट औफ टेक्नोलौजी ऐंड साइंस (आईटीएस) से उस ने एमबीए किया. इस के अलावा लंदन के कालेज औफ अप्लाइड साइंस से भी उस ने एमबीए किया है. उस ने फ्रांस से पीएचडी की डिग्री हासिल की है. हर्षवर्धन जैन ने अपनी एक मायावी दुनिया बना ली थी. वह खुद को वेस्ट आर्कटिका का कांसुलेट जनरल बताता था. छापा पडऩे से कुछ दिन पहले ही सोशल मीडिया अकाउंट पर क्लेम किया गया कि वह साल 2017 से कांसुलेट चला रहा है और लगातार चैरिटी करता है.

हकीकत यह थी कि हर्षवर्धन एक उच्चश्रेणी का नटवर लाल ठग था, जिस ने ठगी के लिए ही फरजी दूतावास खोला और खुद को राजनयिक घोषित किया. वह महंगी कारों पर फेक डिप्लोमेटिक नंबरों की वजह से वह लगातार सिक्योरिटी चैक से बचता रहा. उस के ठगी और हवाला कारोबार के काले धंधे की मौडस आपरेंडी भी गजब थी. फरजी दूतावास के बाहर खड़ी गाडिय़ां और गाडिय़ों में लगी डिप्लोमैटिक नंबर प्लेट अपनी कहानी खुद बयान करते थे. गाडिय़ों में जो जेनुइन नंबर प्लेट थी, वो तो थी हीं, लेकिन उस के साथसाथ एक दूतावासनुमा नंबर प्लेट भी लगा दी गई थी. जबकि सचमुच के नंबर को प्रौपर प्लेट की जगह ब्लू कलर की प्लेट पर लिखा गया,  ताकि लोगों को देखते ही ये गुमान हो जाए कि ये गाडिय़ां किसी दूतावास की हैं.

और तो और, प्रभाव जमाने के लिए गाडिय़ों पर अलगअलग फरजी देशों के झंडे भी लगा दिए गए. एक बार जब शिकार हर्षवर्धन जैन की इन्हीं तामझाम को देख कर उस के झांसे में फंस जाता था तो फिर उसे लूटना उस के लिए आसान हो जाता था.

हस्तियों के साथ फर्जी फोटो

हर्षवर्धन के पास से 4 डिप्लोमैटिक नंबर प्लेट लगी लग्जरी गाडिय़ां, 12 फरजी डिप्लोमैटिक पासपोर्ट और विदेश मंत्रालय की नकली मोहरें बरामद की गईं. यही नहीं, उस के पास 34 अलगअलग विदेशी कंपनियों और देशों की मोहरें, फरजी प्रैस कार्ड, पैन कार्ड मिले हैं. इस के अलावा कई फारेन करेंसी और कुल 18 डिप्लोमैटिक नंबर प्लेट भी बरामद की गईं. हर्षवर्धन के घर की एक अलमारी से यूपी एसटीएफ को 5 करोड़ रुपए की 12 घडिय़ां मिली हैं. घर के बाहर जो 4 लग्जरी कारें खड़ी हुई थीं, उन में मर्सिडीज, हुंडई की सोनाटा कारें शामिल थीं. उस के पास से 44 लाख रुपए की नकदी भी बरामद हुई.

हर्षवर्धन लोगों को झांसे में लेने के लिए प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति और अन्य वीआईपी हस्तियों के साथ मार्फ की हुई तसवीरों का इस्तेमाल करता था. ये तसवीरें उस ने दीवारों पर और अलबम में लगा रखी थीं. सोशल मीडिया और वेबसाइट्स पर इन्हीं फरजी फोटोज के जरिए लोगों को बातों में फंसाता था और उन्हें झांसे में ले कर विदेशों में काम दिलाने के नाम पर बड़ी दलाली करता था. हर्षवर्धन ने फरजी दूतावास वाली इस कोठी को किराए पर ले रखा था, जबकि वो इसी कविनगर इलाके में थोड़ी ही दूरी पर एक दूसरी कोठी में रहता था. पुलिस को छापेमारी के दौरान अंदर से जो चीजें मिलीं, उस ने इस का इशारा दे दिया कि आखिर वो यहां से कर क्या रहा था.

कोठी से जो 20 जोड़ी फरजी डिप्लोमैटिक नंबर प्लेट मिले, उस से साबित होता है कि वो इन नंबर प्लेट्स को जरूरत के मुताबिक किसी भी गाड़ी में लगा कर उस का इस्तेमाल लोगों पर प्रभाव डालने के लिए करता था. ठीक इसी तरह जब जहां जैसी जरूरत होती, फरजी काड्र्स, दस्तावेज और मार्फ की गई तसवीरों के जरिए वैसे ही लोगों को प्रभाव में ले लिया जाता था. यानी साफसीधे शब्दों में कहें तो ये ठगी की वो प्राइवेट लिमिडेट कंपनी थी, जिस में हर्षवर्धन जैन जब जैसा जी चाहे, करता था.

एसटीएफ के अनुसार, आरोपी हर्षवर्धन का मुख्य काम विदेश में नौकरी के नाम पर दलाली, फरजी दस्तावेज बनवाना और शेल कंपनियों के माध्यम से हवाला ट्रांजैक्शन करना है. एसटीएफ की काररवाई के बाद कविनगर थाने में आरोपी हर्षवर्धन के खिलाफ बीएनएस की ठगी की धाराओं में मामला दर्ज कर लिया गया है. और यह पता लगाने के लिए पूछताछ शुरू हुई कि उस का नेटवर्क कहां तक फैला हुआ है और अब तक कितने लोगों को वह अपने जाल में फंसा चुका है.

पुलिस और जांच एजेंसियां अब इस पूरे नेटवर्क को खंगालने में जुट गई हैं. यूपी एसटीएफ की नोएडा यूनिट यह पता लगाने में जुटी है कि यह पूरा रैकेट अकेले हर्षवर्धन जैन चला रहा था या इस के पीछे कोई संगठित गैंग भी शामिल है. एसटीएफ के छापे के दौरान फरजी दूतावास से टीम को एक डायरी बरामद हुई है, जिस में आरोपी हर्षवर्धन के जीवन का लेखाजोखा मिला. उस में कई देशों के लोगों के नाम और फोन नंबर भी लिखे हैं. विदेशों में कितनी कंपनियां हैं और कितने बैंक खाते हैं, पैसों का लेनदेन और निजी जानकारी भी इस डायरी में हर्षवर्धन ने लिख रखी है.

इस डायरी में 2 दरजन से अधिक स्थानीय लोगों के नाम और नंबर हैं. इन में से कुछ सफेदपोश और कुछ ऐसे आपराधिक प्रवृत्ति के लोग हैं, जो धोखाधाड़ी के मामले में जेल जा चुके हैं. डायरी में हर्षवर्धन जैन और उस की पत्नी डिंपल जैन के बैंक अकाउंट की भी जानकारी मिली है.

विदेशों से मिला फंड

साथ ही विदेशियों के नाम, नंबर, देश, पता आदि भी दर्ज हैं. इस में मिली तमाम जानकारी खुद हर्षवर्धन ने लिखी है. पुलिस की मानें तो हर्षवर्धन द्वारा विदेशों में धोखाधड़ी करने और कुछ आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों से भी संबंध उजागर हुए हैं. बैंक अकाउंट से कौन से देश से कितनी धनराशि आई, किस ने भेजी इस का भी हवाला इस डायरी में है. डायरी में किराए की कोठी का भी उल्लेख है. पुलिस जांच के मुताबिक 5 महीने पहले सुशील अनूप सिंह से 1000 गज की कोठी का किराया 80 हजार रुपए प्रतिमाह तय है. इस एग्रीमेंट में हर्षवर्धन के साले और शहर के एक नामचीन व्यक्ति के हस्ताक्षर हैं. पत्नी डिंपल जैन के खाते से सुशील अनूप सिंह को किए गए किराए के भुगतान का भी विवरण दर्ज है.

हर्षवर्धन की पत्नी डिंपल जैन दिल्ली के चांदनी चौक में चांदी और उस की ज्वैलरी का कारोबार करती है. इस डायरी में इस का भी उल्लेख किया गया है. डिंपल जैन के बैंक खाते और लेनदेन का ब्यौरा भी दर्ज है. कविनगर पुलिस अब पत्नी के कारोबार की भी जांच करेगी. कविनगर में स्थित यह कोठी रालोद से 2 बार विधानसभा का चुनाव लड़ चुके स्वतंत्रता संग्राम सेनानी अनूप सिंह के बेटे सुशील की है. शहर के धनाढ्य लोगों में शामिल समाजसेवी सुशील कुमार ने एसटीएफ को बताया कि जैन ने कोठी को किराए पर एग्रीमेंट से लिया था.

हर्षवर्धन जैन ने खुद को अंतरराष्ट्रीय मंच पर स्थापित करने और प्रभाव जमाने के लिए माइक्रो नेशंस (स्वघोषित देशों) का सहारा लिया. असल में माइक्रो नेशन देश एक फलसफा, जिस में असल कुछ भी नहीं होता. साल 2001 में एक अमेरिकी नागरिक ने अंटार्कटिका के एक कोने को अपना देश बनाने का दावा किया और नाम दिया वेस्ट आर्कटिका. लेकिन यूनाइटेड नेशंस समेत भारत के लिए ये कोई देश नहीं. जैन ने इसी क्लेम का फायदा उठाते हुए खुद को वेस्ट आर्कटिका का राजनयिक घोषित कर दिया.

परतदरपरत ऐसे खुले राज

वर्ष 2012 में सबोर्गा नामक एक माइक्रो नेशन यानी स्वघोषित देश ने हर्षवर्धन को भारत में अपना एडवाइजर नियुक्त किया था. इस के बाद 2016 में ऐसे तथाकथित देश वेस्ट आर्टिका ने भी हर्षवर्धन को अवैतनिक एंबेसडर बनाया. इसी तरह पौल्बिया और लोडोनिया नामक अन्य माइक्रो नेशंस ने भी उसे राजनयिक पद दिया. इन तथाकथित पदों का इस्तेमाल कर हर्षवर्धन ने लोगों को विदेशों में काम दिलाने का झांसा दे कर मोटी रकम वसूली के लिए शुरू कर दिया.

कुल मिला कर कहें तो वह फरजी दूतावास की आड़ में हवाला कारोबार और दलाली का रैकेट चला रहा था. एसटीएफ के इंसपेक्टर सचिन कुमार, जो इस मामले की जांच कर रहे हैं, ने बताया कि जैन के फरजी दूतावास में लगे कई देशों के झंडे सिर्फ कल्पना लोक में है. उन्हें किसी देश या यूएन से कोई मान्यता नहीं मिली हुई है. हां, स्वघोषित देश ने जरूर इसे अपना फ्लैग घोषित किया हुआ है. असली वाणिज्य दूतावास का आभास देने के लिए परिसर में नियमित रूप से इन झंडों को फहराया जाता था.

एसटीएफ को अब तक उस की 25 शेल  कंपनियों और बैंक खातों की जानकारी मिल चुकी है. इन कंपनियों का संबध एहसान अली सैयद से भी है, जो हैदराबाद का निवासी है. इस ने तुर्किश नागरिकता ले ली है. चंद्रास्वामी ने हर्षवर्धन जैन को एहसान अली सैयद के पास ही लंदन भेजा था. हर्षवर्धन ने इस के साथ मिल कर लंदन में कई शेल कंपनियां बनाईं. एसटीएफ को इस मामले की जांच के दौरान मिले दस्तावेजों से अब तक उस की 25 से अधिक कंपनियों के बारे में

जानकारी मिली है, जिन का डाटा हर्षवर्धन के पास था. जिस में यूके में स्टेट ट्रेडिंग कारपोरेशन लिमिटेड, ईस्ट इंडिया कंपनी यूके लिमिटेड तथा यूएई आईसलैंड जनरल ट्रेडिंग कंपनी एलएलसी तथा मारिशस में इंदिरा ओवरसीज लिमिटेड, अफ्रीकी देश कैमरून में कैमरून इस्पात सरल होना ज्ञात हुआ है. हर्षवर्धन जैन के दुबई (यूएई) में 6, मारिशस में एक तथा यूके में 3 तथा भारत में एक बैंक खातों की भी जानकारी मिली है. इन बैंक खातों में हुए लेनदेन के संबंध में भी जानकारी जुटाई जा रही है.

हर्षवर्धन जैन के 2 पैन कार्ड भी संज्ञान में आए हैं, जिन के आधार पर खोले गए बैंक खातों एवं विदेशों में जो खाते प्रकाश में आए हैं, उन के संबंध में भी जांच की जा रही है. पासपोर्ट से मिले रिकौर्ड के अनुसार, खुलासा हुआ है कि उस ने वर्ष 2005 से 2015 के बीच 10 सालों में 162 बार विदेश की यात्रा की. इस दौरान वह 19 देशों में गया. वह सब से अधिक 54 बार यूएई गया. इस के अलावा 22 बार यूके की यात्रा की. इस के साथ ही उस ने मारीशस, फ्रांस, कैमरून, पोलैंड, श्रीलंका, टर्की, इटली, सबोर्गा, इंडोनेशिया, सऊदी अरब, सिंगापुर, मलेशिया, जर्मनी और थाइलैंड आदि देशों की यात्रा की.

इस जानकारी के बाद पासपोर्ट और उस के बाद हुई विदेश यात्राओं का डाटा जुटाने में एसटीएफ की टीमें लगी हैं. एसटीएफ की टीमें 300 करोड़ से अधिक के एक घोटाले की भी जांच कर रही हैं, जिस में हर्षवर्धन की संलिप्तता रही है. यह घोटाला विदेश में लोन दिलाने के नाम पर किया गया. इस के अलावा भी कुछ अन्य घोटालों को ले कर जांच चल रही हैं.

एसटीएफ के डीएसपी राजकुमार मिश्रा ने बताया कि हर्षवर्धन जैन के खिलाफ उन्होंने इंटरपोल को ब्लू कार्नर नोटिस जमा कराया है. इसके जरिए किसी भी व्यक्ति के खिलाफ पूरी दुनिया में कहीं भी दर्ज आपराधिक मामलों की जानकारी हासिल की जाती है. उसी आधार पर उससे आगे जांच और पूछताछ भी की जानी है. फिलहाल दूतावास के नाम पर ठगी का मास्टरमाइंड हर्षवर्धन जैन डासना जेल में बंद है.

फरजी दूतावास चलाने में स्थानीय  प्रशासन की मिलीभगत या लापरवाही 

लंबे समय तक किसी देश में फरजी दूतावास चलाना वाकई गंभीर बात है. लेकिन सवाल है कि ऐसा क्यों हो जाता है. क्या सिस्टम को बायपास कर दूतावास जैसी संस्था भी बनाई जा सकती है? क्या किसी देश में दूतावास खोलने के कोई नियम नहीं या फिर खुलने के बाद उस की जांच नहीं होती? और जब नकली पासपोर्ट जैसी चीजें पकड़ में आ जाती हैं तो पूरा का पूरा फरजी दूतावास कैसे टिका रह गया?

दरअसल, दूतावास किसी देश की तरफ से दूसरे देश में खोला गया आधिकारिक दफ्तर होता है, जहां गेस्ट नेशन के प्रतिनिधि काम करते हैं. यह एक बेहद औपचारिक प्रक्रिया होती है, जिसमें दोनों देशों के विदेश मंत्रालय शामिल होते हैं.  दूतावास के मुख्य अधिकारी राजनयिक कहलाते हैं, जिन्हें डिप्लोमेटिक इम्युनिटी मिली होती है. एंबेसी 2 देशों के बीच पुल का काम करता है. यहीं से वीजा जारी होता है. इस के अलावा अगर होस्ट देश में कोई समस्या आ जाए तो दूतावास अपने नागरिकों को मदद करता है.

अगर कोई फरजी देश के नाम पर एंबेसी बना ले तो क्या वो तुरंत शक में नहीं आएगा? असल में दूतावास के लिए जो तामझाम चाहिए, अगर शख्स वो सब जुटा सके तो तुरंत किसी को शक नहीं होगा. जैसे एंबेसी हमेशा पौश इलाके में होती है. नकली झंडा चाहिए होता है, जो असल जैसा लगे. नकली आईडी, डिप्लोमैटिक नंबर वाली गाडिय़ां और कुछ स्टाफ, जो कनविंसिंग लगे. कई बार लोग नकली देश के डिप्लोमैट बन जाते हैं तो कई बार असल देश के नाम पर भी झांसा देने लगते हैं.

ऐसा एक बेहद चर्चित केस घाना में आया था. लगभग एक दशक पहले राजधानी अक्रा में फरजी अमेरिकी दूतावास चल रहा था. ये कुछ दिन या महीनों नहीं, बल्कि पूरे दस सालों तक चलता रहा. यहां से नकली वीजा जारी किए जाते थे. ठगी का काम एक इंटरनैशनल गिरोह कर रहा था, जिस में वकील और जाली दस्तावेज बनाने वाले भी शामिल थे. मजेदार बात ये है कि गिरोह ने असली वीजा भी जारी किए थे, मतलब असल अमेरिकी दूतावास में भी उन के कुछ लोग थे.

भारत में भी 2022 में कोलकाता के पास एक नकली बांग्लादेशी एंबेसी का पता लगा था. खुद को कांसुलेट जनरल बताने वाला एक स्थानीय शख्स बांग्लादेश से भारत और भारत से बांग्लादेश भेजने के लिए नकली दस्तावेज बनाता और आर्थिक घपले भी करता था. वैसे एंबेसी नकली है या असली, इस की जांच 2 स्तरों पर होती है. एक तो खुद होस्ट देश की जिम्मेदारी है कि वो अपने यहां काम कर रहे सभी दूतावासों और मिशनों पर नजर रखे.

मिनिस्ट्री औफ एक्सटर्नल अफेयर्स और इंटरनेशनल सिस्टम जैसे यूएन या वीजा वैरिफिकेशन सिस्टम के पास भी वैलिड दूतावासों की लिस्ट होती है. इस के बाद भी फरजी एंबेसी लंबे समय तक इसलिए बची रहती है, जब लोकल स्तर पर कुछ भ्रष्ट अधिकारी उस के साथ हों. कई बार अधिकारियों या स्थानीय पुलिस को भी खास जानकारी नहीं होती कि दूतावासों का सिस्टम कैसे काम करता है. इसके अलावा नकली दस्तावेज भी इतने असली लगते हैं कि पहली नजर में शक की गुंजाइश कम ही रहती है.

दूतावास का क्लेम करने वाले लोग बात करते हुए बड़े नाम लेते हैं, बड़े संपर्कों का हवाला देते हैं. यह सब इतना पेशवेर लगता है कि लोग इन पर आसानी से हाथ नहीं डालते और फरजी एंबेसी भी सालों टिक जाती है. विएना कन्वेंशन आन डिप्लोमेटिक रिलेशंस 1961 के मुताबिक, कोई भी दूतावास तभी वैध माना जाएगा, जब होस्ट देश की सहमति से खोला गया हो. इसी तरह से किसी को डिप्लोमैट या कांसुलेट जनरल तब माना जाता है, जब उसे गेस्ट देश ने खुद अधिकृत किया हो.

ऐसे में अगर कोई खुद ही दूतावास खोल ले तो ये गंभीर अपराध है. इस पर जालसाजी की धाराएं तो लगेंगी ही, साथ ही अगर वो लोगों को धोखे से विदेश भेज रहा हो तो मानव तस्करी का आरोप भी लग सकता है. अगर शख्स के साथ विदेशी लोग मिले हों तो देश की सुरक्षा पर खतरा भी माना जा सकता है. Crime News

 

 

Illicit Relationship: मामी से मोहब्बत

Illicit Relationship: लखनऊ के रेल कर्मचारी की हत्या का कारण उस का शराबी होना, गुस्सैल बने रहना या चालचलन था या फिर मामीभांजे के बीच नाजायज रिश्ते की नादानी. इन सब के अलावा एक सच्चाई यह भी थी कि मंजू अपने पति की बुरी आदतों से इतनी परेशान रहती थी कि…

मई, 2025 के अंतिम सप्ताह में मंजू की रिश्तेदारी में शादी थी. उस के सासससुर 24 मई, 2025 की रात को उसी शादी के लिए गए थे. पति ड्यूटी पर था. मंजू घर पर अकेली थी. शाम का वक्त था. इसी बीच एक कौल आ गई. स्क्रीन पर प्रेमी का नाम पढ़ कर उस के होंठों पर मुसकान बिखर गई. उस ने तुरंत कौल रिसीव कर ली. कौल उस के प्रेमी आकाश वर्मा की थी, जो रिश्ते में उस का भांजा लगता था.

”हैलो! मैं कब से तुम्हारे फोन का इंतजार कर रही हूं. तुम उस का काम तमाम कर दो, बहुत दिन हो गए,’’ मंजू शिकायती लहजे में उस से बोली.

”मैं ने फोन किया न! …मुझे तुम से अधिक बेचैनी है…मैं चाहता हूं कि जितना जल्द हो, काम निपटा लिया जाए. मुझे तुम्हारे पति सिद्धि प्रसाद का काम तमाम हर हालत में करना है.’’ आकाश बोला.

”अब यह बताओ कि तुम कितनी देर में आ रहे हो?’’ मंजू का सीधा सवाल था.

”पहले यह बताओ कि घर का क्या हाल है?’’ उस ने सवाल का जवाब सवाल से ही किया.

”अकेली हूं. सभी लोग रिश्तेदार की शादी में गए हैं. तुम्हारा मामा ड्यूटी पर है… आधी रात को आएगा.’’ मंजू बोली.

”चलो ठीक है, मैं आ जाऊंगा, तुम दरवाजा खुला रखना,’’ कह कर आकाश ने कौल डिसकनेक्ट कर दी.

रात गहराई. आकाश अपने दोस्त के साथ पूरी तैयारी के साथ प्रेमिका मंजू के घर आ गया. चुपके से घर में घुसने का इंतजाम मंजू पहले से ही कर चुकी थी. मंजू अपने कमरे में पति सिद्धि प्रसाद लोधी के साथ लेटी हुई थी, जबकि वह गहरी नींद में था. मंजू के घर में आने पर आकाश ने उस के इशारे पर अपने दोस्त के साथ कमरे में रखी प्लास्टिक की रस्सी से एक फंदा बना लिया. मंजू की मदद से फंदा गहरी नींद में सो रहे सिद्धि के गले में डाल दिया. दोनों ने मिल कर उस फंदे को कस दिया. थोड़ी देर सिद्धि प्रसाद छटपटाया, फिर शांत हो गया.

कुछ देर के बाद जब सिद्धि प्रसाद मरणासन्न हालत में पहुंच गया. वह जिंदा न बच जाए, इसलिए आकाश ने अपने दोस्त संजय के साथ उस के सिर पर हथौड़े से हमला कर दिया. उस वार से सिद्धि रक्तरंजित हो गया. लोहे के पाइप से भी उस के सिर पर कई हमले करने के बाद जब उस की मौत हो गई, तब आकाश ने अपने दोस्त की मदद से रात के अंधेरे में घर के पीछे एक तालाब के निकट सूखे गड्ïढे में उस की लाश फेंक दी. वह गड्ïढा झाडिय़ों की ओट में था. सिद्धि प्रसाद का मोबाइल, खून सने कपड़े भी वहीं झाडिय़ों में फेंक दिए.

25 मई, 2025 की सुबह लखनऊ-कानपुर रोड पर थाना बंथरा के एसएचओ राजेश कुमार सिंह को उसी थाने की पुलिस चौकी हरौनी के इंचार्ज एसआई अर्जुन राजपूत ने कौल कर बताया कि बीती रात सिद्धि प्रसाद लोधी नामक एक रेलकर्मी की हत्या हो गई है. उस की लाश उस के घर के ठीक पीछे तालाब के पास गड्ढे में पड़ी है. सिद्धि प्रसाद लोधी का घर दरियापुर मझरा गढ़ी चुनौटी में है. उस की लाश मिलने की सूचना पर चौकी इंचार्ज अरविंद कुमार एसआई श्यामजी मिश्रा, कांस्टेबल देवेंद्र कुमार के अलावा एसएचओ भी घटनास्थल पर पहुंच गए. साथ ही इस की सूचना कृष्णा नगर के एसीपी विकास पांडेय को भी दे दी गई.

घटनास्थल पर उन के साथ एडिशनल डीसीपी अमित कुमावत भी घटनास्थल पर पहुंच गए. दोनों अधिकारियों ने सघन जांच के आदेश दिए. घटनास्थल पर मृतक की पत्नी मंजू देवी भी मौजूद थी. उसी ने अपने पति की हत्या की सूचना पुलिस को दी थी. मंजू रोरो कर पुलिस अधिकारियों को घटना के बारे में बताया, ”साहब, सुबह 6 बजे के करीब जब मैं सो कर उठी, तब पाया कि पति कमरे में नहीं हैं. इन्हें ढूंढते हुए मकान के बाहर निकल गई. घर के पीछे लगभग 50 मीटर दूर तालाब के पास झाडिय़ों में मुझे पति के कपड़े दिखाई दिए. पैंट और शर्ट वही थे, जो उन्होंने रात में पहने थे. पास ही पति औंधे मुंह पड़े थे.

”पास जा कर देखा तो देखते ही मेरे होश उड़ गए. मुझे ऐसा लगा, जैसे मेरे पैरों तले की जमीन खिसक गई हो. पति के सिर पर गहरी चोट थी. काफी खून बह चुका था. वह एकदम से बेजान से थे. पति को इस हालत में देख कर ऐसा लगा, जैसे मेरी दुनिया ही उजड़ गई.’’

घटनास्थल पर नहीं मिली खून की एक भी बूंद

पुलिस ने मंजू से प्रारंभिक पूछताछ के बाद शव की जांचपड़ताल की. एसएचओ के साथ आई पुलिस टीम ने उस की चप्पल, मोबाइल, शर्ट और पैंट पास से ही बरामद कर ली. जांच में घटनास्थल पर खून की एक बूंद भी नहीं थी, जबकि मृतक के सिर से काफी खून बह चुका था. इस से पुलिस ने सहज अनुमान लगा लिया कि इस की हत्या किसी दूसरी जगह पर करने के बाद हत्यारों ने लाश यहां ला कर फेंकी है. उन्होंने अनुमान लगाया कि हत्या करने वाले 2-3 लोग हो सकते हैं. शव की हालत देख कर पुलिस ने रात 2 और 3 बजे हत्या होने का अनुमान लगाया.

शव को ध्यान से देखने पर उस के सिर से खून बहने और गले में किसी चीज से कसाव के निशान का पता चला. एसीपी विकास पांडेय के सामने बंथरा थाना पुलिस ने शव को पोस्टमार्टम के लिए भेजने की औपचारिकताएं पूरी कीं. आगे की प्रक्रिया के लिए मृतक की पत्नी मंजू देवी को थाने बुलाया गया. उस की तहरीर पर अज्ञात के खिलाफ सिद्धि प्रसाद लोधी की हत्या का मुकदमा धारा-103 बीएनएस के तहत दर्ज कर लिया गया. मंजू देवी से जांच टीम की कांस्टेबल मनीषा रावत और सावित्री देवी ने पूछताछ की. साथ ही उस के घर जा कर भी तहकीकात की गई.

हरौनी के चौकीप्रभारी अर्जुन राजपूत, एसआई श्याम मिश्रा, अरविंद कुमार, संदीप सिंह और कांस्टेबल देवेंद्र के साथ देर रात तक ग्रामीणों से पूछताछ करते रहे. इस पूछताछ में हत्याकांड के संबंध में चौंकाने वाली बात सामने आई. पुलिस को विशेष सूत्रों से पता चला कि मंजू ने ही योजना बना कर अपने प्रेमी की मदद से पति की हत्या करवाई है. उस का प्रेमी आकाश वर्मा उर्फ लकी 25 साल का नवयुवक है और रिश्ते में उस के पति का भांजा है. वह जनपद लखनऊ के नरपतखेड़ा गांव का निवासी है. यह भी पता चला कि इस हत्याकांड में उस का दोस्त भी शामिल था.

आकाश वर्मा के संदिग्ध आरोपी होने की जानकारी मिलने पर पुलिस उसे घटना के एक हफ्ते बाद ही गिरफ्त में ले लिया. उसे बंथारा थाने लाया गया. खासकर उस के बारे में मंजू देवी को भनक तक नहीं लगने दी गई. पुलिस ने उस से सिद्धि प्रसाद की हत्या के बारे में कड़ाई से पूछताछ की. काफी समय तक आकाश वर्मा पुलिस को गुमराह करता रहा. सच उगलवाने के लिए आखिरकार पुलिस टीम ने उस पर थोड़ी सख्ती की. पुलिस के दबाव और पूछताछ के तरीके के आगे उस ने हार मान ली और सिद्धि प्रसाद की हत्या करने की बात कुबूल कर ली. उस ने यह भी बताया कि यह हत्या सिद्धि प्रसाद की पत्नी  मंजू देवी की शह पर की थी.

आकाश से पूछताछ पूरी होने के अगले दिन सुबहसुबह पुलिस मंजू देवी को थाने ले आई. जैसे ही उस की नजर थाने के हवालात में बंद आकाश वर्मा पर गई तो वह चौंक गई. उस के चेहरे का रंग फीका पड़ गया. महिला कांस्टेबल मनीषा रावत और सावित्री देवी उसे पकड़ कर एक कोने में ले गईं. जोरदार लहजे में उस से सवाल किया, ”सचसच बता, तूने ही अपने पति की हत्या की है न?’’

दूसरी सिपाही उस की आंखों के आगे बेंत घुमाने लगी. मंजू सिपाहियों के तेवर देख कर सहम गई. उस की जुबान खुल ही नहीं रही थी. वह एकदम से निस्तब्ध थी. तभी डंडे घुमाती सिपाही कड़कती हुई बोली, ”मंजू, तू सचसच सब कुछ बताती है या मुझे कोई दूसरा रास्ता अपनाना पड़ेगा..?’’

मंजू फिर भी कुछ नहीं बोली. दूसरी महिला सिपाही ने उस के ऊपर बेंत उठाया ही था कि मंजू बोल पड़ी, ”मुझे मारिए मत, मैं सारा सच बता दूंगी.’’

उस के बाद मंजू ने जो कहानी बताई, वह और भी चौंकाने वाली थी. उस की कहानी में पति की हत्या ही नहीं, बल्कि रिश्तों की मर्यादा को लांघने की भी बात थी. उस का प्रेमी रिश्ते में पति का भांजा था. इस नाते उस के साथ मांबेटा समान मामीभांजे का रिश्ता था. आकाश और मंजू देवी के बीच लव अफेयर के साथ हत्याकांड की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार निकली—

सिद्धि प्रसाद कैसे बना शराब का लती

उत्तर प्रदेश के लखनऊ शहर के कानपुर रोड पर थाना बंथरा के अंतर्गत पुलिस चौकी हरौनी है. थाने से लगभग 12 किलोमीटर दूर बीहड़ जंगल का यह सुनसान इलाका भी है. यहीं दरियापुर गढ़ी चुनौटी नाम का गांव बसा हुआ है. सिद्धि प्रसाद लोधी अपनी फेमिली के साथ यहीं रहता था. सिद्धि प्रसाद की उम्र लगभग 40 वर्ष की हो चुकी थी. उस का विवाह मंजू देवी के साथ करीब 8 साल पहले हुआ था. मंजू खूबसूरत थी. सिद्धि प्रसाद मंजूू देवी को पा कर बहुत खुश था. वह उस की सुंदरता और यौवन का दीवाना बना हुआ था.

वह रेलवे विभाग में सम्पार (गेट कीपर) के पद पर नौकरी करता था. उसे अच्छी सैलरी मिलती थी. उस की संगत कुछ गलत लोगों के साथ थी, जिस से वह मांसाहारी होने के साथसाथ शराबी भी बन गया था. ड्यूटी पूरी करने के बाद वह जब थकामांदा लौट कर घर वापस आता था, तब अपनी थकान मिटाने के बहाने शराब पीता था. साथ में खूब मटन और चिकन उड़ाता था. उस के बाद बिस्तर पर जाते ही अपनी जिस्मानी भूख मिटाने के लिए मंजू को बांहों में दबोच लेता था. इस का वह जरा भी खयाल नहीं करता था कि पत्नी की इच्छा है भी या नहीं! कई बार वह उस की इच्छा के खिलाफ जिस्मानी भूख मिटाता था. ऐसा वह मंजू के साथ आए दिन करता था. उस की इस आदत से मंजू परेशान हो गई थी.

उस के 2 बच्चों में से एक की असामयिक मौत होने से एकमात्र बेटी ही बची थी. दूसरे बच्चे की चाहत में वह मंजू को अपनी हवस का शिकार बनाता था. जबकि मंजू पति के वहशी व्यवहार से तंग आ गई थी. उस से घृणा करने लगी थी. सिद्धि प्रसाद  की फिजूलखर्ची बढ़ती जा रही थी. मंजू देवी इस का विरोध करती थी. विरोध करने पर सिद्धि उसे प्रताडि़त करता था. मंजू कुछ समझ नहीं पा रही थी कि वह अपने पति की बढ़ती शराब की लत को कैसे रोके.

मंजू और आकाश ऐसे आए करीब

जनवरी, 2025 का महीना था. सिद्धि प्रसाद खाना खा कर ड्यूटी पर चला गया था. उस के जाने के बाद मंजू अपने कमरे में लेटी थी. अपनी मुसीबतों के बारे में सोच रही थी. उस के कपड़े अस्तव्यस्त थे. वह करवट लिए लेटी हुई थी. सिर पर हाथ रखे तकिए में मुंह छिपाए काफी समय तक सिसकती रही.  दिन के 11 बजने को आए थे. चारपाई पर लेटेलेटे उस की कब आंख लग गई, पता ही नहीं चला. जब आंखें खुलीं, तब उस ने अपने बगल में बैठे आकाश को पाया.

वह हड़बडाती हुई उठी और कपड़े संभालने लगी. उस ने महसूस किया कि आकाश की नजर उस की मांसल शरीर पर टिकी है. थोड़ी देर के लिए वह शरमा गई. फिर भी बोली, ”अरे आकाश, तू कब आया? …आ न! बैठ यहीं, तू कोई गैर थोड़े है.’’

”मैं अभीअभी आया मामी, तुम उदास दिख रही हो? क्या बात है फिर मामा से बहस हुई क्या?’’ आकाश ने हमदर्दी जताई.

”अच्छा, तुम्हें याद भी कर रही थी.’’

”सौरी मामी, मैं तुम्हें कुछ और नजरों से देख रहा था.’’

”अरे कुछ नहीं, तुम जैसा गबरू जवान मेरी जवानी को नहीं देखेगा तो और कौन..?’’ मंजू बोली.

”अच्छा! …तो आप ने मुझे माफ कर दिया.’’ झेंपता हुआ आकाश बोला.

उस के बाद दोनों के बीच हंसीमजाक और इधरउधर की बातें होती रहीं. बातोंबातों में मंजू ने अपनी पीड़ा भांजे आकाश वर्मा के सामने उड़ेल कर रख दीं. इस से उस ने महसूस किया कि गम थोड़ा हलका हो गया. फिर उस के कंधे पर अपना सिर टिका कर सिसकती हुई बोली, ”आकाश, तुम ही कोई तरीका निकालो!’’

”हां मामी, मैं कुछ करता हूं आप के लिए. थोड़ा वक्त दो… अभी चलता हूं. जब भी कोई जरूरत हो तो फोन कर देना.’’ आकाश बोला और वहां से चला गया.

आकाश वर्मा सिद्धि प्रसाद का रिश्ते में भांजा लगता था. वह मूलरूप से लखनऊ के ही थाना पारा के अंतर्गत नरपत खेड़ा गांव का रहने वाला था. अकसर खाली समय में अपने मामा सिद्धि प्रसाद के यहां मिलने आताजाता रहता था. मौका मिलने पर मंजू से आंखें छिपा कर अपने मामा सिद्धि प्रसाद के साथ शराब पीने का मौका भी निकाल लेता था. शराब के नशे में दोनों काफी देर तक गपशप किया करते थे. आकाश सरोजनी नगर के नादरगंज की एक नमकीन बनाने वाली कंपनी में काम करता था और समय मिलने पर सिद्धि प्रसाद के घर चला आता था.

हसरतों में बह गया रिश्ता

25 वर्षीय आकाश वर्मा मंजू देवी को बहुत प्यार करता था, किंतु उस ने अपने मन की बात का इजहार करने के लिए मंजू के सामने कभी पेशकश नहीं की थी. आकाश मंजू के सामने जब भी आता तो बैठ कर उसे हसरत भरी नजरों से देखा करता था. वह मंजूू से अपने दिल की बात उजागर करने का कोई अवसर भी नहीं ढूंढ पाया. मंजू को अपने दिल में बसाने के बाद उस की रातों की नींद उड़ चुकी थी. चाहत छिपती नहीं है, जब 2 प्रेमी सामने हों तो आंखों में समाई प्यार की भाषा को समझते देर भी नहीं लगती.

आकाश के अकसर घर आने के बाद मंजू भी उसे चाहत की नजरों से देखा करती थी, किंतु वह विवाहिता थी. उस के सामने समाज की कुछ मर्यादाएं भी थीं. आकाश को मन ही मन में चाहने के बाद मंजू भी अपने मन की भावना व्यक्त नहीं कर पा रही थी. धीरेधीरे मंजू के मन में आकाश के प्रति सम्मान व प्यार का दीप जल उठा था. दोनों उचित अवसर की तलाश में थे. जनवरी माह में उस दिन आकाश के समक्ष उस ने अपनी दुखती रग को व दर्द को बयान किया तो आकाश के मन में दया व प्यार का सागर उमड़ पड़ा, लेकिन समझदारी व अवसर की तलाश में उस दिन मंजू नेे अपनी आंखों की मूक भाषा से सब कुछ समझा दिया कि वह भी इस नरक से उसे छुटकारा दिला दे.

मार्च 2025 के अंतिम सप्ताह में मंजू ने फोन पर आकाश के पूछने पर बताया कि उस दिन सिद्धि प्रसाद रात की ड्यूटी पर घर से गया हुआ है, इसलिए वह घर पर आ जाए, कुछ जरूरी बात करनी है.   आकाश ड्यूटी की छुटटी के बाद मंजू के घर देर रात पहुंच गया. उस ने धीरेधीरे आहट पा कर जानने की कोशिश की कि घर की बगल की दूसरी कोठरी में मंजू के सासससुर अपने कमरे में लिहाफ ओड़े सो रहे हैं. मंजू ने आकाश को घर आया देख कर राहत की सांस ली और चुपके से अपनी कोठरी में आकाश को एकांत में बुला लिया. कमरे में पहुंचने के बाद आकाश ने जाते ही मंजूू को अपनी बाहों में भर लिया. जी भर गालों को चूमने व प्यार करने के बाद वह खाना खाने बैठ गया.

उस दिन आकाश मंजू को पाने को आतुर हो गया था. पति द्वारा प्रताडि़त करने की बात कहते हुए मंजू ने उसे अपनी पीठ पर चोट के निशान दिखाए. पीठ पर पिटाई के निशान देख कर आकाश ने हमदर्दी जताई. इसी हमदर्दी में दोनों प्रेम और सहानुभूति की भावना में बह गए थे. वे कब एकदूसरे की बाहों में आ गए, इस का उन्हें पता ही नहीं चला. फिर दोनों ने अपनी हसरतें पूरी कीं. थोड़ी देर में जब आकाश जाने लगा, तब मंजू उस का हाथ पकड़ कर बोली, ”आकाश, जल्द कुछ उपाय करो… अब छिपछिप कर रहना सहन नहीं होता…और उस का जुल्म भी बढ़ता जा रहा है.’’

”जल्द ही कुछ करूंगा. चिंता मत करो.’’

आकाश जब भी आता था, तब मंजू घर में अकेले होती थी. उसे नहीं पता था कि उस की गतिविधियों पर पासपड़ोस की नजर बनी हुई है. कई बार वह रात के अंधेरे में भी आने लगा था. उस का मंजू के साथ बेमेल ही सही, लेकिन नाजायज रिश्ता बन चुका था. आकाश उस से उम्र में करीब 10 साल छोटा था. मंजू के मन का दर्द आकाश के लिए भी असहनीय हो गया था. सिद्धि प्रसाद की हत्या के 2 दिन पहले जब आकाश आया था, तब घर में बिखरे हुए सामान को देख कर समझ लिया था कि सिद्धि ने उस पर किस तरह का जुल्म ढाया होगा. घर में चारपाई के नीचे शराब की खाली बोतलें पड़ी थीं.

अभी आकाश घर के चारों ओर नजरें दौड़ा ही रहा था कि उस ने मंजू की सिसकती आवाज सुनी, ”जी तो करता है कि मैं कहीं जा कर डूब मरूं और अपनी जान दे दूं.’’

आकाश तेजी से मंजू की ओर मुड़ा और उस के पास जा कर कान में कुछ फुसफुसाया. मंजू उस की बात सुन कर चौंकती हुई बोली, ”ऐसा हो सकता है तो जल्दी करो, मैं तुम्हारा साथ दूंगी. जितना भी खर्च आएगा, उस का भी इंतजाम करूंगी.’’

”मैं तुम्हें 24 मई को फोन करूंगा.’’ आकाश बोल कर वहां से जाने लगा. आकाश को जाता देख मंजू बड़ी हसरत भरी निगाहों से उसे देखने लगी. घर से निकलने से पहले आकाश ने एक बार फिर आश्वासन देते हुए कहा, ”मामी, आप को सब्र से काम लेना होगा. मुझे पूरी प्लानिंग बनाने का मौका दो. काम बहुत जोखिम भरा है.’’

प्रेमी के साथ मिल कर बनाया हत्या का प्लान

23 मई, 2025 की रात को आकाश और मंजू जब फोन पर बातें कर रहे थे, तभी  अचानक रात की ड्यूटी समाप्त कर सिद्धि प्रसाद घर लौट आया था. अचानक पति को घर आया देख कर मंजू सहम गई थी. तुरंत फोन कट कर दिया था. किंतु सिद्धि प्रसाद समझ गया था कि मंजू जरूर अपने प्रेमी से बात कर रही है. इस बारे में पड़ोसियों द्वारा उस के कान पहले से ही भरे जा चुके थे. उस ने तुरंत मंजू की जम कर पिटाई कर डाली. वह कहती रही कि उस की बात सहेली से हो रही थी, लेकिन सिद्धि ने पीटना नहीं छोड़ा.

राज खुलने के डर से मंजू एकाएक वह घबरा गई. परेशान सी हो उठी. किसी तरह उस ने दर्द से कराहते हुए रात बिताई. अगले रोज पति के ड्यूटी पर जाने के बाद आकाश को बीती रात की पूरी बात बता दी. अगले रोज 24 मई को उस का पति सो गया, तब आकाश का फोन आया. उस के बाद उस ने पहले तय प्लान के मुताबिक सिद्धि प्रसाद की प्लास्टिक की रस्सी के फंदे से पहले गला घोंट दिया, फिर उस के सिर पर भारी चीज से हमला कर मार डाला. इस काम में आकाश ने अपने दोस्त संजय निषाद की भी मदद ली थी.

अगले दिन ही मंजू द्वारा की गई पुलिस में शिकायत के बाद सिद्धि प्रसाद की लाश बरामद कर ली गई. इस की हफ्ते भर चली जांच में हत्या का न केवल खुलासा हो गया, बल्कि इस में शामिल आरोपियों में मंजू देवी, आकाश वर्मा और उस के दोस्त संजय निषाद की गिरफ्तारी भी हो गई. उत्तर प्रदेश के जिला गोंडा के रहने वाले संजय निषाद को 40 हजार रुपए देने का वादा किया था, उसे मात्र 5 हजार रुपए एडवांस में दिए थे. मंजू देवी ने पुलिस के सामने अपने पति की क्रूरता का जिक्र करते हुए पति की प्रताडऩा से परेशान रहने की बात कही.

 

उस ने पति पर अय्याशी करने का आरोप लगाया. उस ने यह भी बताया कि सिद्धि प्रसाद के गांव की एक विधवा महिला से कई सालों से  अवैध संबंध बने हुए थे. पुलिस ने आकाश से संजय निषाद का फोन नंबर ले कर उसे सर्विलांस पर लगा दिया. तकनीकी जांच से  वह 10 जुलाई, 2025 को उत्तर पूर्व दिल्ली के सोनिया विहार से पकड़ा गया. संजय वारदात के बाद लखनऊ से फरार हो कर दिल्ली चला गया था. वहां वह एक दुकान पर नौकरी करने लगा था. फोन की लोकेशन के आधार पर वह भी पुलिस की पकड़ में आ गया.

पुलिस ने आरोपी मंजू देवी, उस के प्रेमी आकाश वर्मा और संजय निषाद को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया. Illicit Relationship

 

Love Story in Hindi: प्यार में न बनें बौयफ्रेंड का खिलौना

Love Story in Hindi: एक निजी अस्पताल में नर्स 24 वर्षीय समरीन की दिनचर्या भले ही व्यस्त थी, लेकिन उस के दिल का कोना खाली था. अपने सपनों के राजकुमार की उसे भी तलाश थी. इंस्टाग्राम के जरिए उस की जिंदगी में 25 वर्षीय गौसे आलम ने एंट्री तो की, लेकिन उस ने समरीन को एक ऐसा खिलौना समझा कि…

समरीन ने इंस्टाग्राम पर अपनी जो फोटो पोस्ट की थी, उस में उस का चेहरा आधा दिखता, आधा छिपा हुआ था. उस का हिजाब उस की पहचान बन चुका था. लोग यही समझते थे कि वह एक शरीफ मुसलिम लड़की है, परदे में रहती है. वह जनपद मुरादाबाद के गांव रुस्तम नगर सहसपुर में स्थित अपने घर से करीब 12 किलोमीटर दूर सेफनी कस्बे के एक अस्पताल में नर्स थी. समरीन अस्पताल की लंबी शिफ्ट से थक जाती थी, लेकिन मरीजों की देखभाल में अपना सारा दर्द भूल जाती थी, परंतु रात में अकेलापन उसे घेर लेता.

वह अस्पताल में हर दिन मौत और जिंदगी की जंग देखती थी. रोजाना घर से अस्पताल जाना और वापस घर आना सफर की थकान, साथ में अस्पताल के काम की थकान यह सब समरीन की जिंदगी का हिस्सा था. फिर भी उस के दिल में प्यार की गहराई, भावनाओं का सैलाब, दर्द, तड़प सब कुछ अनुभव करने की अपार क्षमता थी. अपने सपनों के राजकुमार की उसे भी तलाश थी. समरीन को इंस्टाग्राम पर नएनए लोगों से दोस्ती करना अच्छा लगता था. वह फोटोग्राफी और किताबों की तसवीरें डालती, छोटेछोटे कैप्शन में अपने दिल की बातें लिखती.

एक दिन उसे एक युवक का मैसेज मिला. उस की प्रोफाइल खंगाली तो वहां थोड़ेबहुत सुंदर फोटो थे, गौसे आलम नाम था उस का. नाम ऐसा था जो सुनने में सुकून दे रहा था. शुरुआत में तो बस सामान्य ‘हाय’ लिखा मैसेज देखा तो नसरीन ने भी उस का उत्तर ‘हाय’ में ही दे दिया. गौसे आलम एक 25 साल का ट्रक ड्राइवर था, जो लंबी दूरी की सड़कों पर जीवन बिताता था. अकेलापन, परिवार की जिम्मेदारी और जीवन की कठोर सच्चाइयां उस की साथी थीं. गौसे आलम की जिंदगी ट्रक की स्टीयरिंग और राजमार्गों पर लंबीलंबी दूरी तक माल ढोते हुए ही गुजर रही थी. कहीं वह रात में विश्राम करता तो वह रातों में खुद को अकेला महसूस करता. परिवार के लिए पैसा कमाता, लेकिन दिल खाली था. रात में मोबाइल की स्क्रीन पर दुनिया घूमना उस का शौक था.

वह जनपद मुरादाबाद के ही थाना कुंदरकी के चकफाजलपुर गांव का निवासी था. उस का इंस्टाग्राम अकाउंट जैसे उस की छोटी सी दुनिया था. तसवीरें, शायरी और कभीकभी दिल की बातें. हर रात वह अपनी किसी पोस्ट के नीचे लिखता, ‘कोई तो होगी, जो मेरे दिल की बात समझेगी’. वह चाहता था कोई ऐसी लड़की, जो उस की पोस्टों में छिपे जज्बात को महसूस कर सके, उस की अकेली जिंदगी में रंग भर सके. धीरेधीरे उसे समझ आया कि तमाम लड़के आजकल इंस्टाग्राम पर किस तरह की मोहब्बत ढूंढते हैं. कभी लाइक के जरिए, कभी कमेंट से बात शुरू कर के तो कभी किसी की स्टोरी पर रिप्लाई दे कर. गौसे आलम भी वही करने लगा. हर नई तसवीर पर मुसकराहट के साथ एक दिल भेज देता, कभी किसी शायरी पर ‘वाह!’ लिख देता.

एक रात ट्रक सड़क किनारे खड़ा कर के  उस ने इंस्टाग्राम ओपन किया. उस की निगाहें हिजाब पहने हुए एक फोटो पर टिक गईं. उस का नाम था समरीन. वह काफी देर चेहरे को देखता रहा. उस की एक पोस्ट ने गौसे आलम का ध्यान खींचा. अस्पताल की बालकनी से ली गई तसवीर, जहां वह मास्क लगाए एक बच्चे को गोद में ले कर मुसकरा रही थी. यह पोस्ट उस की भावनात्मक थकान दिखाती थी. नर्स की जिम्मेदारी में छिपा दर्द उस की आंखों से छलक रहा था. फिर उस ने समरीन की प्रोफाइल देखी. उस की प्रोफाइल की तसवीर में हल्की मुसकान थी और बायो में लिखा था, ‘दिल चीज क्या है आप मेरी जान लीजिए.’

गौसे आलम ने हिम्मत की और उस की  शायरी पर कमेंट किया, ‘लफ्ज तो बहुत लोग लिखते हैं, पर एहसास सिर्फ तुम लाती हो.’ समरीन ने भी उसे ‘शुक्रिया’ लिखा, लेकिन बात यहीं खत्म नहीं हुई. धीरेधीरे चैट शुरू हुई, फिर देर रात तक चलने लगी. दोनों अपनीअपनी जिंदगी की खाली जगहों को एकदूसरे के शब्दों से भरने लगे. गौसे आलम अब हर सुबह उस की ‘गुड मार्निंग’ का इंतजार करता. समरीन उसे अपने कालेज की बातें बताती और गौसे आलम अपने लंबे सफर की दास्तान सुनाता. अपनी दिन भर की थकान के बीच उस की हंसी में सुकून ढूंढता. उस दिन के बाद से इंस्टाग्राम अब सिर्फ एक ऐप नहीं रहा, वो उन की मोहब्बत की गवाही देने वाला आईना बन गया.

गौसे आलम अब रोज नई तसवीर नहीं डालता, बस एक ही कैप्शन लिखता है ‘मिल गई वो, जिस से जिंदगी रंगीन हो गई.’ इस तरह दोनों तरफ से मैसेज का सिलसिला शुरू हो गया. समरीन हर रोज सुबहशाम 1-2 लाइनें हंसीमजाक, मजहबी और कभी गहराई की बातें पोस्ट किया करती थी. जैसे कोई साथी मिल गया हो. गौसे आलम ने एक दिन दिल  की गहराई से एक पोस्ट लिखी, ‘तुम्हारी मुसकराहट तो मेरी रातों की थकान मिटा देती है. तुम्हारे जैसे लोगों को सलाम, जो दूसरों के लिए हर वक्त लगे रहते हैं. मैं एक ट्रक ड्राइवर हूं, इसलिए मेरी सड़कें भी बहुत तनहा होती हैं.’

गौसे आलम की यह पोस्ट समरीन के दिल में उतर गई. गौसे आलम एक आम युवक था. उम्र बस 25 की, पर सपने बहुत बड़े. समरीन और गौसे आलम एकदूसरे के मोबाइल फोन नंबर ले ही चुके थे. इसलिए दिल खोल कर प्यारमोहब्बत की बातें होने लगीं. जिंदगी भर साथ निभाने की कसमें भी खाई जाने लगीं. गौसे आलम का कहना था कि जल्दी एक मुलाकात हो जाए तो हमारा प्यार और भी परवान चढऩे लगेगा.

समरीन ने महसूस किया कि गौसे आलम उस के लिए बेहद समझदार है और सहानुभूति दिखाने लगा है. उस की बातों पर समरीन का दिल खोयाखोया सा रहने लगा. वह सोचती कि कोई तो है, जो उस की बात ध्यान से सुनता है, उस की परेशानी पर संवेदना दिखाता है और मुश्किल में साथ देने का वादा करता है. वह कहता कि समरीन मैं तुम से शादी करूंगा. तुम मेरी जिंदगी हो. समरीन भी उस की बातों पर गहरा विश्वास करने लगी थी. वह सोचती कि गौसे आलम दिल का सच्चा है. भले ही वह एक ट्रक ड्राइवर है, लेकिन दिल का अच्छा है.

 

इन दोनों की कहानी में पहला मोड़ तब आया, जब वह अकसर ‘सिर्फ तुम्हारे लिए’ जैसी बातें करता. वह कहता कि समरीन मेरा साथ कभी मत छोडऩा, मेरा इस दुनिया में तुम्हारे अलावा कोई नहीं है. मैं तुम्हें दिल से प्यार करता हूं. मुझे कभी किसी से कोई प्यार नहीं मिला. यदि तुम ने मेरा दिल तोड़ दिया तो मैं कहीं का नहीं रहूंगा. इसलिए समरीन को यह अहसास होता कि उन दोनों का यह रिश्ता कुछ खास है. उस ने अपनी सब से करीबी सहेली को ये सारी बातें बताईं.

तब सहेली ने कहा, ”तेरी बातों से तो ऐसा लगता है कि वह तुझ से सच्चा प्यार करता है.’’

कुछ दिनों में उन का रिश्ता इंस्टाग्राम की स्क्रीन से निकल कर असल जिंदगी में उतरने लगा. उन का प्यार परवान चढऩे लगा.

पहली मुलाकात में जब गौसे आलम ने समरीन को देखा तो कहा, ”समरीन, तुम तो तसवीरों से ज्यादा हसीन हो और हकीकत में ज्यादा सच्ची भी.’’

समरीन भी मुसकराती हुई बोली, ”और तुम इंस्टाग्राम से ज्यादा शरमीले हो.’’

फिर दोनों हंस पड़े.

गौसे आलम को जब यकीन हो गया कि समरीन अब उस के फरेबी प्यार के जाल में फंस चुकी है तो  एक दिन वह अपने असली रूप में आ गया. उस ने ‘ओयो होटल’ में एक कमरा बुक किया. फोन कर के उस ने होटल में समरीन को भी बुला लिया.

जनपद मुरादाबाद में ‘ओयो’ जैसे और भी बहुत से केंद्र काफी चर्चित हो चुके हैं, जहां प्रेमी युगल दिन में 2-4 घंटे के लिए कमरा बुक करते हैं और मौजमस्ती कर के चले जाते हैं. होटल में पहुंच कर समरीन को जब गौसे आलम के इरादे का पता चले तो उस ने साफ इनकार किया. उस ने कहा कि शादी से पहले प्यार की अंतिम चरम सीमा पर नहीं पहुंचना चाहिए. तब गौसे आलम ने कहा, ”प्यार में सब जायज है. शादी तो होगी ही. जब हमें जिंदगी भर साथ ही रहना है तो फिर हम दोनों के बीच में किसी भी तरह की यह दूरी क्यों?’’

इस तरह हमबिस्तरी के पक्ष और विपक्ष में दोनों के बीच काफी चर्चा हुई और अंत में वह सब कुछ हो गया, जो सिर्फ सुहागरात को होना चाहिए था. समय बीतता रहा, समरीन ने महसूस किया कि गौसे आलम पहले की तरह प्यारमोहब्बत के लिए नहीं मिलता है. वह तो सिर्फ अंतिम प्यार का मौका देखता है. बस अपनी हवस मिटा लेता है. जब उसे शक हुआ तो समरीन ने उस से शादी के लिए कहा. शादी की बात सुनते ही गौसे आलम का तो नजरिया बदल गया. वैसे तो इन दोनों के प्यार के किस्से दोनों के फेमिली वालों और रिश्तेदारियों में आम हो चुके थे. समरीन ने उस के फेमिली वालों से भी कहा कि उस की शादी अब जल्द करा दी जाए. उन दोनों के प्यार को अब कई महीने बीत चुके हैं.

चारों तरफ से घिरता देख 25 वर्षीय गौसे आलम अब प्रेमिका समरीन से पीछा छुड़ाने के तरीके सोचने लगा. इस का एक कारण दोनों की जातियों का अलगअलग होना भी था. गौसे आलम की जाति के लोग इस क्षेत्र में अपने आप को उच्च जाति का समझते हैं. जबकि समरीन सलमानी यानी पिछड़ी जाति की थी.

 

‘एक ही सफ में खड़े हो गए महमूद ओ अयाज, न कोई बंदा रहा, न कोई बंदा नवाज.’ यह कहावत यहां शादीविवाह में लागू नहीं होती. खासकर तो तुर्क बिरादरी के लोगों के लड़के तो अपनी बिरादरी में ही शादी करते हैं.

सलमानी बिरादरी के लोग भी जनपद में निवास करते हैं. ये लोग अभी तक अपने पारंपरिक कार्य को अंजाम दे रहे हैं. दूसरों के सिर के बाल, दाढ़ी और मूंछें संभालना इन का पेशा है. इन्हें अभी समानता का दरजा इस क्षेत्र में नहीं मिला है. जाति को ले कर भी गौसे आलम के फेमिली वाले समरीन से शादी करने के लिए राजी नहीं थे. समरीन को ले कर गौसे आलम की चिंता अब बढ़ती जा रही थी. इसलिए उसे लगा कि अब इसे ठिकाने लगा कर ही वह पीछा छुड़ा सकता है.

गौसे आलम को समरीन के व्यवहार से ऐसा लग रहा था कि वह शादी न करने पर उसे कानूनी पेंच में फंसा कर जेल भिजवा सकती है. समरीन पढ़ीलिखी थी. एक नर्स का काम करती है. समाज में अच्छेबुरे सभी तरह के लोगों से उस की डीलिंग अस्पताल में रहती है. इसलिए वह भी बड़ी दिलेरी से शादी  करने  के लिए अड़ी हुई थी. अधिकतर ड्राइवरों के चेहरे पर हमेशा एक मुसकान, लेकिन आंखों में हवस की चमक छिपी होती है. ऐसा ही गौसे आलम था. वह खुद को प्यार का पुजारी कहता, लेकिन सच तो यह थी कि वह हवस का गुलाम था.

छोटेछोटे गांवों और शहरों में उस की कई कहानियां बिखरी पड़ी थीं. लड़कियां जो उस के मीठे व झूठे वादों में फंसतीं और फिर छोड़ दी जातीं. लेकिन समरीन की कहानी अलग थी. यह कहानी प्यार की नहीं, बेवफाई की थी, जो दिल को छलनी कर देती है. इस से पहले कि समरीन नाम की फांस गौसे आलम के लिए नासूर बन जाए, उस ने एक दिन अपने इरादे को अंजाम दे दिया. यह काम गौसे आलम ने इतनी चालाकी और प्लानिंग के साथ किया कि पुलिस के हाथ उस की गरदन तक न पहुंचें. समय बलवान होता है. अपराधी कोई न कोई सबूत छोड़ जाता है. अब तो डिजिटल युग है. कोई न कोई सबूत कहीं न कहीं से मिल ही जाता है. आखिरकार वही हुआ यह सब उस ने कैसे किया? यह घटना बहुत ही दिल दहलाने वाली है.

उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद जिला मुख्यालय से करीब 25 किलोमीटर दूर स्थित है तहसील बिलारी. इसी तहसील का एक गांव रुस्तम नगर सहसपुर है. यह बिलारी से मात्र एक किलोमीटर की दूरी पर है. बिलारी और सहसपुर के बीच की इस दूरी में भी मकान बन रहे हैं. आबादी इतनी तेजी से बढ़ रही है कि कुछ ही सालों में गांव सहसपुर भी बिलारी का एक मोहल्ला जैसा हो जाएगा. रुस्तम नगर सहसपुर तहसील क्षेत्र का सब से बड़ा गांव है. इस को नगर पंचायत बनाने की बात भी चल रही है. इस का प्रस्ताव सरकार को भेजा जा चुका है. इसी गांव के मोहल्ला साहूकारा में रियासत हुसैन का परिवार निवास करता है. नर्स समरीन इन्हीं की बेटी थी. अपने 4 भाईबहनों में वह सब से छोटी थी. इस की बड़ी बहन फरहा की शादी हो चुकी है. जबकि 2 बड़े भाई सुहेल और रिजवान दिल्ली में सैलून पर काम करते हैं. उस की अम्मी शाहिदा परवीन की 10 साल पहले मौत हो चुकी है.

रियासत हुसैन शादीविवाह में कौफी मशीन चलाते हैं. सर्दियों में अधिकांश समारोह में कौफी की व्यवस्था मेहमानों के लिए की जाती है. कौफी का स्टाल लगाने वाले अलग लोग होते हैं. इन का हलवाइयों के स्टाल से कोई मतलब नहीं होता है. एक तरह की मजदूरी का काम है. रियासत हुसैन ने भी एक कौफी मशीन ले रखी है. सर्दियों में अधिकांशत: रात में ही बुकिंग मिलती है. यह अपनी कौफी मशीन ले जा कर अपनी स्टाल सजा कर शादी समारोह में बैठ जाते हैं. दूध और काफी बाकी सामान की व्यवस्था समारोह के आयोजकों द्वारा की जाती है. इन की तो सिर्फ मशीन और खुद की मेहनत होती है.

रियासत हुसैन की बेटी समरीन रामपुर जिले के सेफनी कस्बे में स्थित इनाया हेल्थकेयर क्लीनिक में नर्स का काम करती थी. उस से परिवार को बहुत सारी उम्मीदें थीं. सेफनी जिला रामपुर की तहसील शाहबाद के अंतर्गत एक नगर पंचायत है, यानी सेफनी जिला मुरादाबाद की सीमा से एकदम सटा हुआ है. 22 वर्षीय समरीन 24 अगस्त, 2025 की सुबह 10 बजे रोजाना की तरह घर से नर्सिंग होम जाने की बात कह कर निकली थी, लेकिन देर शाम तक वह वापस नहीं लौटी. रियासत हुसैन ने उस के क्लीनिक पर कौल की तो पता चला कि समरीन क्लीनिक पर आज नहीं पहुंची थी.

यह जानकारी मिलने पर फेमिली वालों के होश उड़ गए. इस के बाद परिजन उस की तलाश में जुट गए. अपने सभी रिश्तेदारों और परिचितों को मोबाइल फोन पर संपर्क कर के समरीन के बारे में पूछा गया, लेकिन कहीं से भी यह जवाब नहीं मिला कि समरीन को उन्होंने कहीं देखा है या उन के घर आई है. तब रियासत हुसैन ने दिल्ली में रह रहे अपने दोनों बेटों को फोन से सूचना दी कि समरीन आज सुबह से लापता है. दोनों बेटे भी रात में ही दिल्ली से घर के लिए रवाना हो गए. सुबह रियासत हुसैन और उन के बेटों ने अपने सभी रिश्तेदारों और परिचितों से राय ली. सब की सहमति के बाद उन्होंने 25 अगस्त, 2025 को बिलारी कोतवाली में उस की गुमशुदगी दर्ज करा दी.

समरीन के मोबाइल की पुलिस ने कौल डिटेल्स निकलवाई तो पता चला कि वह बिलारी से 7 किलोमीटर दूर थाना कुंदरकी क्षेत्र के रहने वाले गौसे आलम नाम के युवक से बात करती थी. पुलिस गौसे आलम की तलाश में जुट गई. गौसे आलम ट्रक ले कर कहीं गया हुआ था. उस की लोकेशन पुलिस लगातार ट्रेस कर रही थी. पुलिस की कई टीमें इस मामले की गुत्थी सुलझाने के लिए लगाई गईं. आखिरकार 30 अगस्त, 2025 दिन शनिवार को गौसे आलम पुलिस के हत्थे चढ़ गया. पुलिस ने उसे हिरासत में ले लिया. चूंकि घटना थाना कुंदरकी क्षेत्र की थी, इसलिए गौसे आलम से कुंदरकी पुलिस ने पूछताछ शुरू की. पहले तो वह पुलिस को गुमराह करता रहा. यह साबित करने की कोशिश करता रहा कि उसे समरीन के बारे में कोई जानकारी नहीं है. वह ट्रक ले कर बाहर गया हुआ था, लेकिन पुलिस द्वारा थोड़ी सख्ती करने पर गौसे आलम टूट गया. उस ने समरीन की हत्या करना कुबूल कर लिया.

इस के बाद गौसे आलम की निशानदेही पर पुलिस ने 30-31 अगस्त की रात को थाना कुंदरकी क्षेत्र के चकफजालपुर गांव के गन्ने के खेत से समरीन का सड़ागला शव बरामद कर लिया. समरीन की लाश मिलने की सूचना पर उस के अब्बू, भाई और रिश्तेदार भी घटनास्थल पर पहुंच गए. घटना की सूचना जंगल की आग की तरह आसपास के गांवों में फैल गई. बड़ी संख्या में लोग घटनास्थल पर जमा हो गए. थाना कुंदरकी के एसएचओ प्रदीप सहरावत मय फोर्स के घटना स्थल पर मौजूद थे. सूचना पर एसपी (देहात) कुंवर आकाश सिंह भी घटनास्थल का मुआयना करने पहुंच गए. गौसे आलम को थाने भेज दिया गया. फोरैंसिक टीम भी वहां पहुंच गई. उस ने मौके पर जांच कर के साक्ष्य जुटाए.

मौके की जरूरी काररवाई पूरी करने के बाद पुलिस ने शव को पोस्टमार्टम के लिए जिला मुख्यालय मुरादाबाद भेज दिया. थाना कुंदरकी के एसएचओ प्रदीप सहरावत की गहन पूछताछ के बाद हत्या का एक दिल दहलाने वाला खुलासा हुआ. समरीन का यह कोई पहला मौका नहीं था, जो उस ने किसी युवक पर भरोसा किया था. पहले भी एक युवक उस की जिंदगी में आया था. उस ने भी उस से कहा था, ”चेहरा क्या है, मैं तुम्हारे दिल से प्यार करता हूं.’’ जब शादी की बात आई तो वही आशिक उस के चेहरे व गले पर स्पष्ट दिखाई देने वाले जलने के निशान देख कर पीछे हट गया.

समरीन ने उस से लाख कहा कि इन दागों के नीचे भी मैं वही लड़की हूं. पर उस युवक और उस के फेमिली वालों ने उसे ‘अधूरी’ कह दिया. इसी तरह गौसे आलम ने उसे स्वीकार नहीं किया तो वह टूट गई. उस ने जिद की कि तुम शादी नहीं करोगे तो मैं खुद को खत्म कर दूंगी. इन बातों का समरीन के प्रेमी पर कोई असर नहीं हुआ. उस के फेमिली वालों ने भी समरीन की विनती को ठुकरा दिया. मामला पुलिस तक भी पहुंचा. मगर नतीजा ढाक के तीन पात ही निकला. मजबूरन समरीन और उस के परिवार को समझौता करना पड़ा.

दरअसल, कुछ साल पहले समरीन ने किसी कलह के चलते खुद को आग लगा दी थी. आग की चपेट में आ जाने से वह काफी झुलस गई थी. उस के चेहरे पर आग से जले हुए निशान अब भी स्पष्ट दिखाई देते थे. उस की गरदन पर भी जले हुए के निशान थे. शरीर के और भी हिस्सों पर निशान थे, जो कपड़ों से दब जाया करते थे. जबकि गरदन और चेहरे के निशान ढकने के लिए वह अकसर हिजाब पहना करती थी. समरीन की जले हुए की घटना की जिन्हें जानकारी नहीं थी, वो यही समझते थे कि बहुत ही मजहबी लड़की है. इसलाम और शरीयत की रोशनी में घर से हिजाब पहन कर ही निकलती है. बाहर के लोगों ने कभी उसे बिना हिजाब के नहीं देखा.

गौसे आलम ने जब पहली मर्तबा समरीन के चेहरे और गरदन के जले हुए निशान देखे थे, तब एकदम उस के चेहरे की रंगत बदल गई थी. वह उदास हो गया था. समरीन उस की हालत देख कर घबरा गई थी. वह रोने लगी थी. कहने लगी कि शायद मेरे चेहरे के निशान देख कर आप मायूस हो रहे हैं. निराश हो रहे हैं. आप मुझ से नहीं मेरे चेहरे से मोहब्बत करते हैं. गौसे आलम ने कहा कि ऐसी बात नहीं है. उस ने एकदम अपने चेहरे की रंगत बदली. चेहरे पर शगुफ्तगी लाने की कोशिश की और कहा कि मैं तुम्हें दिल से चाहता हूं. ऐसा कभी मत सोचना. मैं तुम्हारा जिंदगी भर साथ निभाऊंगा.

कस्बा बिलारी से करीब 7 किलोमीटर दूर बिलारी तहसील का ही एक कस्बा कुंदरकी है. गौसे आलम  कुंदरकी कस्बे से करीब डेढ़ किलोमीटर दूर स्थित चकफाजलपुर गांव का निवासी है. यह 3 भाई और 2 बहनें हैं. गौसे आलम बीच का है. एक बहन की शादी हो चुकी है. एक बहन मानसिक रूप से विकलांग है. गौसे आलम के चेहरे पर मासूमियत और बातों में जादू होता था. गांव में उसे सब ‘आशिक आलम’ कह कर चिढ़ाते थे. असली दुनिया उस की इंस्टाग्राम थी. हर शाम हाथ में मोबाइल आता और फिर शुरू होती उस की औनलाइन मोहब्बत की दुनिया.

गौसे आलम का अंदाज ऐसा कि कोई भी लड़की उस की बातों में जल्दी बहक जाती. सिर्फ दोस्ती के नाम पर शुरू होने वाली बातें धीरेधीरे रोमांस में बदल जातीं. शेर ओ शायरी लिखता और हर चैट के अंत में दिल का इमोजी डाल देता. वह कई लड़कियों से चैट करता था. हर किसी से वही बातें ‘तुम बहुत अलग हो’, ‘काश तुम मेरे शहर में होतीं’, ‘तुम्हारी मुसकान दिल में उतर जाती है’.

उस के चेहरे पर एक ऐसी मासूमियत थी, जो किसी भी इंसान के दिल में भरोसा जगा दे. बड़ीबड़ी आंखों में अजीब सी शांति थी, जैसे उस में कभी तूफान उठा ही न हो. चेहरे की वो हलकी मुसकान, मानो किसी दर्द को छिपाने का हुनर हो. कोई पहली नजर में उसे देखे तो कहेगा ‘इतना सादा, इतना खूबसूरत चेहरा कैसे किसी का खून कर सकता है?’ लेकिन वही चेहरा था, जिस ने मोहब्बत की आड़ में मौत की कहानी लिखी थी.

एक दिन गलती से उस ने सना को वही मैसेज भेज दिया जो किसी और को भेजना था. ‘कह दो न, तुम भी मुझ से प्यार करती हो, शाइस्ता?’

मैसेज पड़ कर सना चौंक गई, ”शाइस्ता..? मैं तो सना हूं!’’

गौसे आलम की पोल खुल गई. उस दिन के बाद सना ने उसे ब्लौक कर दिया, उस के बाद से गौसे आलम ने बड़ी ऐहतियात बरतनी शुरू कर दी. इस तरह समरीन उस के प्यार के जाल में तो फंस गई, लेकिन बाद में गले की हड्ïडी भी बन गई. गौसे आलम ने यह एहसास समरीन को होने नहीं दिया. हमेशा की तरह उस ने समरीन को फोन कर के कहा कि बह बिलारी के महाराणा प्रताप चौक पर आ जाए. गौसे आलम बाइक ले कर वहीं खड़ा था. बिलारी का यह वही स्थान था, जहां से अकसर गौसे आलम अपनी बाइक पर बैठा कर समरीन को ले जाया करता था.

उस समय सुबह के लगभग 10 बजे थे. यही वह समय था, जब समरीन अपनी ड्यूटी करने जाया करती थी. अपने गांव रुस्तम नगर सहसपुर से समरीन बैटरी रिक्शा में बैठ कर आई थी. बैटरी रिक्शा से उतर कर समरीन गौसे आलम की बाइक पर बैठ गई और दोनों मौजमस्ती करने मुरादाबाद चले गए. गौसे आलम ने वादा किया था कि आज घर वालों से मिल कर शादी की बात करेंगे और जल्दी ही तारीख भी तय कर लेंगे. समरीन भी चाहती थी कि फेमिली वालों की मंजूरी व सामाजिक नियमकानून के अनुसार शादी होगी तो समाज में दोनों के फेमिली वालों की इज्जत बनी रहेगी.

गौसे आलम की योजना के अनुसार रास्ते में एक निश्चित स्थान पर उस का दोस्त मिल गया, जो जवानी की दहलीज पर कदम रखने  वाला था, लेकिन अभी नाबालिग था. गौसे आलम ने अपने मित्र से ऐसे अनजान बन कर बात की जैसे पहले से कोई प्लानिंग न हो. समरीन ने पूछा कौन है तो उस ने बताया कि यह मेरा कजिन है. उसे भी बाइक पर बैठा लिया. अपने गांव चकफाजलपुर और रूपपुर के बीच रेलवे ट्रैक के पास बाइक रोकी. उस की आंखों में वही मोहब्बत थी, वही भरोसा, जो समरीन को इस जंगल तक लाया था.

अभी तक समरीन को गौसे आलम पर किसी तरह का कोई शक नहीं था. वो नहीं जानती थी कि उसी के साथ में उस का कातिल भी है. गौसे आलम के मन में कुछ और ही तूफान उमड़ रहा था. विश्वास की नींव पर खड़ी उन की कहानी, अब धोखे की चट्टानों से टकराने वाली थी. समरीन बाइक से नीचे उतर गई. गौसे आलम ने मुसकरा कर उस की ओर देखा. वह उसे यहां लाया था, प्रेम की मिठास का वादा कर के.

नीचे उतर कर समरीन ने पूछा, ”क्या हुआ?’’

गौसे आलम ने कहा, ”कुछ नहीं, बस हलका होना है.’’

इस से पहले कि समरीन कुछ समझ पाती गौसे आलम ने उसे वहीं गिरा लिया. उस के साथी ने दबोच लिया. फिर उन्होंने उस की हत्या कर दी. उस की चीख सुनने वाला भी वहां कोई नहीं था. दोनों ने लाश को उठा कर गन्ने के खेत में डाल दिया. प्यार के वादों से शुरू हुई कहानी, उस शाम विश्वासघात की आग में जल कर राख हो गई. गौसे आलम की दास्तान सुन कर पुलिस भी दंग रह गई. पुलिस ने दोनों को अदालत में पेश किया. अदालत ने गौसे आलम को जेल भेज दिया और उस के नाबालिग दोस्त को बाल सुधार गृह के हवाले कर दिया.

पुलिस ने घटना में इस्तेमाल की गई बाइक भी बरामद कर ली. समरीन के मोबाइल को गौसे आलम ने तोड़ कर फेंक दिया था, जो कहानी लिखने तक पुलिस बरामद नहीं कर सकी. Love Story in Hindi

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MP News: बेटी के स्केच में छिपा मां की हत्या का राज

MP News: सोनाली बुधौलिया की मौत को पुलिस भी आत्महत्या ही मान रही थी, लेकिन उस की 5 वर्षीय बेटी रिंकी ने अपनी आंखों देखी का एक स्केच बनाया तो पुलिस समझ गई कि यह मामला कुछ गंभीर है. स्केच के आधार पर पुलिस ने मृतका के पति संदीप बुधौलिया से पूछताछ की तो उस ने पत्नी की हत्या का ऐसा राज खोला कि…

मध्य प्रदेश के जिला निवाड़ी के गांव लिधौरा निवासी संजीव त्रिपाठी की बेटी सोनाली त्रिपाठी 14 फरवरी को अपनी 5 साल की बेटी के साथ ममेरे भाई की शादी में गई हुई थी. उस की ससुराल उत्तर प्रदेश में स्थित झांसी के शिव परिवार कालोनी में थी. पति संदीप बुधौलिया विवाह में शामिल नहीं हो पाया था. हालांकि वह बारात के दिन आने वाला था. परिवार के लोग सभी रिश्तेदार शादी के माहौल का आनंद ले रहे थे. वे एकदूसरे से मिलतेजुलते हुए अपनीअपनी बातें कर रहे थे. कइयों का तो पहली बार मिलनाजुलना हुआ था तो कुछ रिश्तेदारों ने सोनाली की बेटी रिंकी को पहली बार देखा था. वे उस की चंचलता, मासूमियत, सुंदरता और बातूनी व्यवहार से बहुत प्रभावित हो रहे थे.

रिंकी की एक और आदत लोगों की निगाह में बसी हुई थी. असल में कहीं से उसे रंगीन पेंसिलों का पैकेट हाथ लग गया था. वह उसी से दीवारों पर जहांतहां आड़ीतिरछी रेखाएं खींच कर कुछ रेखाचित्र बनाती रहती थी. उन रेखांकनों के बारे में जब कोई पूछता कि यह किन की हैं? तब वह चंचलता के साथ बताती कि ये नाना की हैं, ये नानी की हैं. ये हलवाई की है. ये मौसी की है. वगैरहवगैरह. उस की बातें सुन कर लोग और भी हैरान हो जाते और उन रेखाचित्रों से परिवार में मौजूद लोगों को जोडऩे लगते. फिर कहते थे, ”मेरी भी एक फोटो बना दो.’’

इस पर मचलती हुई वह कहती, ‘ऐसे नहीं, पहले मेरे सामने कोई काम करो… या फिर डांस करो.’

वह शादी के माहौल में लोगों का अलग तरह से दिल बहला रही थी. सभी का  मनोरंजन हो रहा था. बदले में लोग उसे भी प्यार से खानेपीने की चीजें दे रहे थे. उस की मांगें तुरंत पूरी कर देते थे. सब कुछ ठीक चल रहा था. सोनाली भी अपनी बेटी रिंकी को खुश देख कर काफी संतुष्ट थी. उस ने रिंकी को इस तरह चहकतेफुदकते अपनी ससुराल में शायद ही कभी देखा था. वहां उसे लोग अकसर डांटतेडपटते रहते थे, जबकि उसे यहां काफी दुलारप्यार मिल रहा था. वह सोचने लगी थी कि कितना अच्छा होता, जो उसे ऐसी और शादियों में जाने का मौका मिले.

 

रात को सोते समय रिंकी को मिल रहे लोगों के प्यार के बारे में काफी देर तक सोचती रही थी. अगले रोज 16 फरवरी, 2025 को उस की आंखें मोबाइल की घंटी से खुलीं. रिंकी ही मोबाइल हाथ में लिए उस के पास खड़ी थी. वह बोली, ”मम्मीमम्मी, पापा का फोन आ रहा है.’’

”ला देखती हूं…सुबहसुबह क्यों फोन किए, आज तो यहां आना था उन को.’’ बोलती हुई सोनाली ने अपने पति का फोन रिसीव कर लिया.

मुश्किल से 15-20 सेकेंड ही बात हुई. पति संदीप बुधौलिया का फोन सुन कर वह कुछ पल के लिए स्तब्ध रह गई. फोन कट किया और एक ओर रख दिया. वह एकदम से शांत हो गई और अपना सिर ऊपर उठा लिया.

”क्या हुआ मम्मी, पापा ने फोन पर डांटा क्या?’’ रिंकी मासूमियत से बोली.

”अरे नहीं रे!’’ सोनाली बोली और अपनी दोनों हथेलियों से उस के चेहरे पर आ गए बालों को हटाने लगी.

”क्या बोले पापा! मेरे बारे में कुछ बोले?’’ रिंकी फिर बोली.

”तुम्हारे कपड़े कहांकहां हैं, सब इकट्ठा करो, हमें आज यहां से जाना होगा.’’

”क्यों मम्मी? हमें मामा की बारात में जाना है.’’

”कहीं नहीं जाना है. हमें इसी वक्त अपने घर जाना है. वहां तेरी चाची की तबियत खराब है, पापा ने तुरंत आने को कहा है.’’

”मम्मी!’’ रिंकी ठुनकती हुई बोली और मायूस हो गई.

सोनाली अपना सामान समेटने लगी. सोनाली की मम्मी ने उसे कपड़े समेटते देखा तो वह चाह कर भी कुछ नहीं बोली, क्योंकि तबियत खराब की खबर पा कर उस का ससुराल जाना भी जरूरी था. मामामामी सभी स्तब्ध थे. सभी उसे कैसे रुकने के लिए कहते. सोनाली ने अपनी बेटी को गोद में उठाया और दूसरे हाथ से ट्रौली बैग खींचती हुई अपने मामा के घर से विदा हो गई. शाम होने से पहले वह अपनी ससुराल पहुंच गई थी. वहां एकदम शांति का माहौल था. उस वक्त पति भी घर पर नहीं था. परिवार में लोगों से हालचाल पूछा. बीमारी के बारे में पूछा. सभी ने कहा, ”यहां तो कोई बीमार नहीं है!’’

सोनाली को समझने में देर नहीं हुई. वह गुमसुम अपने बैडरूम में गई और औंधे मुंह गिर कर रोने लगी. पीछेपीछे रिंकी भी आ गई. बोली, ”क्या हुआ मम्मी? पापा कहां हैं?’’

रिंकी की मासूमियत भरी बातें सुन कर वह बैड पर उठ बैठी. उसे बांहों में भर लिया. सुबकती हुई बोली, ”कुछ नहीं, मेरी बच्ची! यहां कोई बीमार नहीं है. हमें बहाने से बुलाया गया है.’’

सोनाली उसे मामा के घर से ले कर आई कुछ मिठाई और नमकीन रिंकी को खाने के लिए दी. रिंकी का मन खाने को नहीं हुआ. वह बैड पर चली गई. कब उसे नींद आ गई, सोनाली को भी नहीं पता चला. सोनाली उदास मन से घर में बिखरी चीजों को सहजने लगी. इस बीच उस की पति से फोन पर बात हो गई. उस की पसंद का खाना पकाने के बाद अपने कमरे में चली गई. सो रही रिंकी के सिर को सहलाया और उस की बगल में बैठ गई. रात को संदीप देर से आया. आते ही सोनाली बिफर पड़ी. गुस्से में बहाने से बुलाने का कारण पूछा. उस का गुस्सा देख कर संदीप भी उसी लहजे में बातें करने लगा. डपटते हुए उस पर ही मनमरजी करने का आरोप मढ़ दिया.

सोनाली ने जब घरपरिवार और समाज का हवाला दिया तो संदीप और भी आक्रोश से भर गया. मांबाप और मायके वालों पर अधिक ध्यान देने का आरोप लगा दिया. गुस्से में सोनाली भी जवाबी आरोप लगाते हुई बोली कि वह अपनी बेटी पर ध्यान नहीं देता है. बेटी की बात आते ही संदीप बोला, ”तुम्हारा बाप कौन अपनी बेटीदामाद पर ध्यान दे रहा है? 2 साल हो गए गाड़ी देने के वादे से मुकर गया.’’

”जो दहेज में 20 लाख मिले, वह कम था क्या?’’

”मैं उतने के काबिल हूं?’’

”तो करोड़पति खानदान के हो? तुम ने तो मेरे पिता को धोखा दिया. बताया डाक्टरी पढ़ रहे हो. जब यहां आई, तब पता लगा कि दवाई बेचने का काम करते हो.’’

सोनाली का जवाबी हमला सुनते ही संदीप आगबबूला हो गया. उस ने गुस्से में उस पर हाथ उठा लिया. सोनाली उस का हाथ पकड़ती हुई बोली, ”खबरदार! जरा भी कुछ हुआ तो मैं अभी थाने चली जाऊंगी. भूल जाऊंगी कि तुम मेरे पति हो.’’

दोनों के बीच जबरदस्त तूतूमैंमैं होने लगी. उन की तेज आवाज से रिंकी की अचानक आंखें खुल गईं. बोली,”क्या हुआ मम्मी? पापा आ गए?’’

”कुछ नहीं रिंकी, सो जाओ.’’ सोनाली प्यार से बोली.

जबकि संदीप डपटता हुआ बोला, ”चुपचाप सोई रह, वरना एक झापड़ दूंगा!’’

डांट सुन कर रिंकी कंबल में दुबक गई. मम्मीपापा की बातें साफ सुनाई दे रही थीं. कंबल के भीतर से ही झांक कर मालूम करने की कोशिश करने लगी कि बाहर क्या हो रहा है.

…लेकिन यह क्या? कमरे में उस के मम्मीपापा के बीच जबरदस्त लड़ाई हो रही थी. उस के पापा ने मम्मी के दोनों हाथ पीछे की ओर पकड़ रखे थे. मम्मी हाथ छुड़ाने की कोशिश कर रही थी. कुछ पल में ही पापा का एक हाथ मम्मी की गरदन पर था. वह एक हाथ से मम्मी के दोनों हाथ पकड़े हुए थे और दूसरे हाथ से गरदन दबाए जा रहे थे. मम्मी बचने की कोशिश कर रही थी, लेकिन वह कमजोर बनती जा रही थी. उस की आवाज भी कम होने लगी थी. वह औंधे मुंह बैड पर गिर गई. पापा उस की पीठ पर जम कर बैठ गए और दोनों हाथों से मम्मी का गला दबाते रहे. मम्मी छटपटाती रही. कुछ समय में ही छटपटाहट बंद हो गई. पापा वहां से उठ कर कमरे से बाहर चले गए.

रिंकी यह सब देख कर सहम गई थी. वह समझ नहीं पा रही थी कि मम्मी को क्या हुआ? वह डर से मम्मी को आवाज भी नहीं दे पा रही थी. रिंकी ने देखा कि थोड़ी देर में उस के पापा एक रस्सी ले कर कमरे में आए. पापा को कमरे में आया देख कर उस ने कंबल में खुद को छिपा लिया. डर गई कि कहीं वह उस की पिटाई न कर दें. उस ने महसूस किया कि बैड पर कुछ हलचल हो रही है, लेकिन क्या हो रहा है, देखने की हिम्मत नहीं हुई. जब हलचल शांत हो गई, तब रिंकी ने डरते हुए कंबल के भीतर से झांक कर देखने लगी. बैड पर कोई नहीं था. सोचने लगी कि मम्मी कहां गई? पापा भी नहीं नजर आए, वह कहां गए?

यह जानने की जिज्ञासा में उस ने कंबल से अपना चेहरा निकाला. उस ने चारों ओर अपनी नजर दौड़ाई. जैसे ही रिंकी की नजर ऊपर की ओर गई, उस की चीख निकल गई. उठ बैठी. अपने दोनों हाथों से मुंह ढंक लिया. उस की मम्मी कमरे में पंखे से झूल रही थी. वहां उस के अलावा और कोई नहीं था. अगले रोज 17 फरवरी, 2025 को संदीप ने अपनी ससुराल में फोन कर सूचना दी कि सोनाली ने बीती रात फांसी लगा ली है. सोनाली के फेमिली वाले भागेभागे मौके पर पहुंचे. रोतीबिलखती बच्ची रिंकी को संभाला. वह अपने नानानानी की गोद में दुबक गई. धीमी आवाज में बोली, ”पापा ने मम्मी को मार दिया है.’’

यह सुनते ही उन के कान खड़े हो गए. उन्होंने शहर कोतवाली पुलिस को यह बात बताई. पुलिस को यह सुन कर हैरानी हुई. वह जिसे आत्महत्या समझ रही थी, उस की हत्या की बात सामने आने पर रिंकी से पूछताछ की गई. उस के बाद रिंकी ने अपनी कौपी और पेंसिल मंगवाई. उस ने आड़ीतिरछी लकीरें खींच कर एक रेखांकन बना दिया. पहली नजर में उस में कोई खास बात का अनुमान नहीं लगा, किंतु सरसरी निगाह से देखने पर वह अलग तरह की लगी. रेखांकन में रिंकी ने अपनी मम्मी के दोनों हाथ बराबर बनाए. लेकिन मम्मी की गरदन की दाईं तरफ उस ने एक और हाथ बनाया. इस तीसरे हाथ के साथ कोई चेहरा नहीं था. रिंकी ने बताया कि तीसरा हाथ उस के पापा का है. उस हाथ को उस ने मम्मी की गरदन के काफी करीब से बनाया.

इस रेखांकन को बनाने के बाद रिंकी ने वारदात की पूरी बातें बता दीं. इस जानकारी के बाद सोनाली के शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया. मौके पर पहुंची पुलिस ने हंगामा कर रहे लोगों को शांत कराया और एकमात्र चश्मदीद गवाह रिंकी के बयान के आधार पर आरोपी पति संदीप बुधौलिया, मां विनीता, भाई कृष्णकांत और उस की पत्नी मनीषा के खिलाफ केस दर्ज करने के बाद आरोपी पति को हिरासत में ले कर आगे की काररवाई शुरू कर दी है. पोस्टमार्टम रिपोर्ट से स्पष्ट हो गया कि सोनाली की मौत गला घोंट कर की गई थी. मध्य प्रदेश के टीकमगढ़ निवासी मृत महिला सोनाली के पिता संजीव त्रिपाठी ने पुलिस को बताया कि उन्होंने वर्ष 2019 में अपनी बेटी की शादी झांसी के शिव परिवार कालोनी में संदीप बुधौलिया से की थी.

संदीप मैडिकल रिप्रेजेंटेटिव है. शादी के बाद से ही दामाद और उस के फेमिली वाले बेटी को प्रताडि़त करने लगे थे. सोनाली ने 5 साल पहले बेटी (रिंकी) को जन्म दिया था. तभी उस को ताने मारने के साथ अस्पताल में अकेला छोड़ कर भाग गए थे, जिस पर वह बेटी को अपने साथ घर ले गए. करीब एक साल बाद ससुराल वाले सोनाली को साथ ले गए और फिर उत्पीडऩ करने लगे, जिस पर बेटी ने मुकदमा दर्ज कराया था. हालांकि घटना के 6 माह पहले ही समझौता हो गया था. सोनाली के मामा के बेटे की शादी थी. सोनाली अपनी मासूम बेटी रिंकी को ले कर 12 फरवरी को शादी में गई थी. शादी कार्यक्रम के दौरान ही पति ने फोन कर उसे घर बुला लिया था. तब उस ने कहा था, ‘अभी नहीं आई, तब कभी मत आना.’

सोनाली की ससुराल से 17 फरवरी की सुबहसुबह फोन आया कि सोनाली की तबीयत खराब है. फिर फोन आया कि उस ने फांसी लगा ली. वे मैडिकल कालेज पहुंचे. वहां नातिन (रिंकी) ने बताया कि पापा ने मम्मी को मारा और फिर गला दबा दिया. इस पूरे मामले की तहकीकात करने वाले सीओ (सिटी) रामवीर सिंह ने मुकदमा दर्ज कर मामले की जांच शुरू कर दी. पतिपत्नी के बीच चल रहे विवाद के बारे में सोनाली के पिता संजीव त्रिपाठी ने बताया कि 2 साल तक पतिपत्नी का विवाद चलता रहा. कोर्ट से राजीनामा कर उन की बेटी को घर ले गए. उस के बाद पूरी प्लानिंग के साथ उन की बेटी को बीती रात फांसी के फंदे पर लटका दिया और मौत के बाद मैडिकल कालेज में भरती कर दिया.

जैसे ही मायके वाले पहुंचे तो उन्हें देख कर ससुराल वाले भाग गए. इस के बाद मृतका के परिजनों ने मैडिकल कालेज में ही हंगामा किया. उन्होंने कहा कि पहले बेटी की मारपीट की, फिर फांसी लगाई गई है, उस के चेहरे और पैर पर चोट के निशान दिखाई दे रहे थे. कथा लिखे जाने तक आरोपी संदीप बुधौलिया न्यायिक हिरासत में था. पुलिस द्वारा सुलझाया गया यह अनोखा केस था, जिसे में एक 5 साल की बच्ची के रेखांकन के आधार पर मामला जल्द सुलझा लिया गया था. सोनाली का पोस्टमार्टम होने के बाद अंतिम संस्कार में उस की बेटी ने ही मुखाग्नि दी थी. MP News

—कथा में रिंकी परिवर्तित नाम है

 

 

Love Story in Hindi: औनलाइन इश्क जरा सोचसमझ के

Love Story in Hindi: पांचवीं पास मसजिद का इमाम और 3 बच्चों का बाप शहजाद बहुत चालबाज था. उस ने उच्चशिक्षित असमिया युवती नईमा यासमीन से औनलाइन दोस्ती कर उसे न सिर्फ फरेबी इश्क के जाल में फांसा, बल्कि उस से औनलाइन निकाह भी कर लिया. एक दिन नईमा ने जब अपना मुंह खोला तो उसे ऐसी सजा दी गई कि…

असम की रहने वाली नईमा यासमीन पिछले 2 दिनों से नोएडा के वन बीएचके फ्लैट में उदास बैठी थी. उस की उदासी के कई कारण थे. उस ने मोबाइल से बैंक बैलेंस चैक किया था, जो जीरो पर आ गया था. कहीं भी कोई सेविंग्स नहीं बची थी. सारे पैसे खत्म हो गए थे. उसे अपना मेट्रो कार्ड रिचार्ज करवाने के लिए पैसे की जरूरत थी. मोबाइल का रिचार्ज भी 2 दिनों में खत्म होने वाला था. इस बारे में अपनी बहन को बताए भी काफी समय बीत चुका था. उस से कुछ पैसे अकाउंट में ट्रांसफर करने की उस ने मदद मांगी थी. यह बात सितंबर महीने की 16 तारीख दोपहर की है.

उसे जल्द ही कोई दूसरी नौकरी तलाशनी थी. दिल्ली के एनसीआर गुरुग्राम की नौकरी छोड़े 2 हफ्ते हो गए थे. वह कई दूसरी कंपनियों में अपना रिज्यूम दे चुकी थी, लेकिन कहीं से बुलावे का मेल नहीं आया था. वह पिछले साल 2024 में शादी के बाद गुरुग्राम के पीजी से शिफ्ट हो कर नोएडा में अपने पति शहजाद के साथ रह रही थी. कई बातें दिमाग में उमड़घुमड़ रही थीं. तभी कौल बेल बजने पर उस का ध्यान भंग हो गया. वह बेमन से दरवाजा खोलने के लिए उठ रही थी. तब तक 2-3 बार कौल बेल बज चुकी थी.

दरवाजे की कुंडी खोल कर अपने कमरे में जाने को मुड़ी ही थी कि पीछे से प्यार भरी आवाज आई, ”क्या बात है बेगम साहिबा!  पूछे बगैर कुंडी खोल दी! दरवाजे पर कोई और होता तो..? ऐसी भूल मत किया करो.’’

यह उस के पति शहजाद की आवाज थी, जिस का नईमा ने कोई जवाब नहीं दिया था और कमरे में चली गई थी. पीछेपीछे शहजाद भी आ गया. उस ने पूछा, ”नौकरी का कहीं से बुलावा आया?’’

”अभी नहीं,’’ नईमा उदासी से बोली.

”कोई बात नहीं, चलो जब तक कहीं से कोई बुलावा नहीं आता, तब तक तुम्हें सैर करवाने ले चलता हूं.’’ शहजाद बोला.

”मैं टेंशन में हूं और तुम्हें सैर की सूझ रही है.’’

”थोड़ा घूमोगी तभी तो तुम्हारा मन हलका होगा. आज नहीं तो कल नौकरी मिल ही जाएगी, चिंता क्यों करती हो?’’ शहजाद बोला.

नईमा को पति के बदले रूप पर हैरानी हुई. कुछ देर पहले वह उस से काफी झगड़ कर निकला था. फिर अचानक उस से प्यार जताने लगा, सैर पर जाने के लिए कह रहा है. वह बोली, ”पैसे कहां हैं?’’

”इस की चिंता मत करो…’’ शहजाद के आगे कुछ बोलने से पहले ही पास रखे नईमा के मोबाइल पर मैसेज आने की टोन सुनाई दी. वह यूपीआई द्वारा पैसे आने का मैसेज था.

टोन सुन कर शहजाद फोन की तरफ देखने लगा. वह बोला, ”यह लो, पैसे भी आ गए!’’

”नहींनहीं! इस पर नजर मत डालो. बड़ी मिन्नतों के बाद दीदी ने पैसे भेजे हैं. मेट्रो कार्ड और फोन रिचार्ज करवाना है.’’ नईमा तुनकती हुई बोली और पैसा ट्रांसफर का मैसेज पढऩे लगी.

उस में शहजाद भी झांकने लगा. अंगरेजी में लिखा मैसेज आसानी से नहीं समझ पाया. बैलेंस अमाउंट देखने से पहले ही नईमा ने मोबाइल बंद कर दिया.

”ठीक है मत बताओ, मेरी जेब में पैसे हैं. यह देखो.’’ कहते हुए शहजाद ने जेब से 500 रुपए के नोटों की एक गड्डी निकाल कर दिखा दी.

”इस में पूरे 30 हजार रुपए हैं. चलो, तुम्हें मेरठ घुमा लाता हूं. वहीं कुछ शौपिंग भी करवा दूंगा. बचे पैसे तुम रख लेना.’’

”इतने पैसे कहां से आए. अभी तो तुम्हारे पास एक रुपया नहीं था…सचसच बताना किस से कर्ज लिया है?’’ नईमा बोली.

”तुम बेकार की बातों में मत उलझो. तैयार हो जाओ, हमें जल्दी निकलना है.’’ शहजाद बोला और अपना सामान पैक करने के लिए बैग निकाल लिया.

नईमा शहजाद के इस रूप को देख कर हैरान थी. बातबात पर गालियां बकने और हाथ उठाने वाले में यह बदलाव कैसे आ गया. इस पर अधिक बात न करना ही उस ने मुनासिब समझा. उस की दिली तमन्ना को पूरा करने के लिए वह भी उस के साथ चलने की तैयारी करने लगी.

कुछ घंटे बाद शहजाद और नईम मेरठ के भीड़भाड़ वाले बाजार में थे. वहीं दोनों ने कुछ शौपिंग की. नईमा ने झिझकते हुए अपनी पसंद की एक ड्रैस ली, लेकिन नईम ने उस के लिए एक बुरका भी खरीद लिया. फिर दोनों ने एक साधारण से रेस्टोरेंट में खाना खाया.

वहीं शहजाद की मुलाकात नदीम से हुई. उस का परिचय नईमा से करवाया, ”यह मेरा खास दोस्त है. मुसीबत में मेरा साथ देता है.’’

”अच्छा!’’ नईमा इस से अधिक और कुछ नहीं बोली.

शहजाद उसे रेस्टोरेंट के बाहर तक छोड़ आया.

तब तक शाम घिरने लगी थी. नईम वापस दिल्ली लौटने को बोली. इस पर शहजाद ने अगले रोज लौटने के बारे में बोल कर अपने दोस्त नदीम घर ठहरने का आग्रह किया.

नईमा थकान महसूस कर रही थी. शहजाद के आग्रह को मान लिया. दोनों नदीम के घर की ओर चल पड़े. रास्ते में एक जूस की दुकान दिखी. शहजाद बोला, ”क्यों न एकएक गिलास जूस पी लिया जाए! जूस की यह बहुत फेमस दुकान है. तुम्हारे लिए कौन सा जूस बनवाऊं?’’

”अनार का बनवा लो,’’ वह बोली.

”ठीक है, मैं तो अनानास का लूंगा!’’ शहजाद बोला और जूस की दुकान की ओर चल पड़ा. नईमा थोड़ी दूरी पर खड़ी रही. कुछ मिनटों में ही शहजाद 2 गिलास जूस ले कर नईमा के पास आ गया. दोनों ने अपनीअपनी पसंद का जूस पीया और फिर वहां से चल पड़े. अगले रोज 17 सितंबर, 2025 को मेरठ में जानी थाने की पुलिस को सिवालखास जंगली इलाके में एक महिला की रक्तरंजित लाश मिली. लाश बुरके में थी. पुलिस लावारिस लाश की पहचान के लिए तहकीकात में जुट गई. महिला का गला रेता हुआ था.

इस की स्थिति देख कर पहली नजर में पुलिस ने अनुमान लगाया कि महिला की मौत गला रेतने से हुई होगी. किंतु हो सकता है उस की मौत के और भी कुछ कारण रहे हों. हो सकता है उस का गला घोंटा गया हो या फिर उसे जहर खिलाने के बाद मृत देह का गला रेता गया हो. कारण जो भी हो, वो तो पोस्टमार्टम के बाद ही पता चल सकेगा.  शक्ल और कदकाठी से महिला उत्तर पूर्व की लग रही थी, जिस की उम्र लगभग 35-36 साल थी.

मौत के कारण की जांच के लिए लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. उस की रिपोर्ट में गला रेतने से मौत की पुष्टि हुई. किंतु उस की हफ्तों तक पहचान नहीं हो पाई. पुलिस को कोई सुराग भी हाथ नहीं लग रहा था. मेरठ की पुलिस तफ्तीश में जुटी हुई थी.

अचानक 8 अक्तूबर, 2025 को मेरठ पुलिस को एक गुमशुदा की रिपोर्ट पर ध्यान गया. दरअसल, वह रिपोर्ट मुजफ्फरनगर के चरथावल थाने में दर्ज की गई थी. करीब 35 वर्षीया नईमा यासमीन नामक महिला के बारे में बताया गया था कि वह 16 सितंबर से लापता है. गुमशुदमी दर्ज होते ही नईमा यासमीन का फोटो और पूरी डिटेल्स पुलिस के औनलाइन रिकौर्ड पर फीड हो गई. मेरठ पुलिस की नजर जब इस पर गई, तब वह चौंक गई. कारण गुमशुदा महिला की तसवीर 17 सितंबर को बरामद हुई लाश से मिलतीजुलती थी.

मेरठ पुलिस को गुमशुदा की रिपोर्ट से ही शिकायत दर्ज करवाने वाले के बारे में मालूम हो गया. वह पहले चरथावल थाने गई. वहां से रिपोर्ट दर्ज करवाने वाले का पूरा विवरण ले लिया, जो उस लापता महिला नई यासमीन का पति शहजाद है. उस के ग्राम सैद नगला मुजफ्फरनगर का रहने की पुष्टि हुई. मेरठ पुलिस तुरंत शहजाद के घर गई. पुलिस को देखते ही शहजाद घबरा गया. उस की बौडी लैंग्वेज से पुलिस समझ गई कि जरूर दाल में कुछ काला है. पुलिस ने उसे उस की लापता पत्नी की लाश मिलने की जानकारी दी.

यह सुन कर शहजाद घडिय़ाली आंसू बहाने लगा. फिर पुलिस उसे पूछताछ के लिए थाने ले गई. थाने में उस से यासमीन की हत्या के संबंध में पूछताछ की तो शहजाद पुलिस के सवालों के सही जवाब देने से कतराता रहा, किंतु जब पुलिस ने सख्त रुख अख्तियार किया, तब  उस ने नईम की हत्या करना कुबूल कर लिया. उस ने यह भी बताया कि इस वारदात को अंजाम देने में उस ने अपने साथी नदीम अंसारी की मदद ली थी. दोनों ने मिल कर यासमीन की हत्या की थी. इस से पहले उस ने यासमीन को जूस में नींद की गोलियां मिला कर दी थीं. उस के बेहोश हो जाने के बाद दोनों उसे घटनास्थल तक ले गए थे.

हत्या के बाद किसी को शक नहीं हो, इसलिए उस ने गुमशुदगी की रिपोर्ट थाना चरथावल में दर्ज करवाई थी. यह उस तक पुलिस के पहुंचने का कारण बन गया. जांचपड़ताल के बाद जानी थाने की पुलिस ने शहजाद और नदीम को गिरफ्तार कर वारदात का खुलासा कर दिया. पुलिस ने उस की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त छुरी व रस्सी भी बरामद कर ली. इस खुलासे पर एसएसपी डा. विपिन ताडा ने पुलिस टीम को 25 हजार रुपए का इनाम दे कर पुरस्कृत किया. शहजाद ने नईम की हत्या करने का जो कारण बताया, इस में उस की मक्कारी, हैवानियत, अपनी पहली बीवी और इसलाम धर्म तक के साथ बेवफाई की हैरान करने वाली दर्दनाक दास्तान थी.

हत्या की शिकार होने वाली नईमा यासमीन और शहजाद एक बेमेल जोड़ा था. उन के बीच कुछ समय के लिए वैचारिक तालमेल बन गए थे और यही उन के बीच प्रेम संबंध और निकाह का कारण भी था. नईम यासमीन जितनी सच्ची और प्रतिभावान और पढ़ीलिखी थी, शहजाद उतना ही उस के उलट था. असम के शहर गुवाहाटी की रहने वाली नईमा ग्रैजुएट थी और दिल्ली एनसीआर में स्थित मल्टीनैशनल कंपनी में नौकरी करती थी. दूसरी तरफ 5वीं तक पढ़ाई करने वाला शहजाद मेरठ की एक मसजिद में इमाम की छोटी से नौकरी करता है. वह शादीशुदा है और 3 बच्चों का बाप भी था. वह सोशल मीडिया का दीवाना था.

साल 2024 में उस की नईमा से औनलाइन जानपहचान हो गई थी. नईमा एनिमल वेलफेयर एनजीओ से भी जुड़ी थी. जानवरों से उसे बेहद लगाव था. साथ ही उस के पास 5-6 बिल्लियां भी थीं. इसी एनजीओ के जरिए साल 2024 में उस की मुलाकात शहजाद से हुई थी. सोशल मीडिया के जरिए दोनों के बीच बातचीत शुरू हुई और फिर धीरेधीरे दोस्ती आगे बढ़ी. शहजाद ने खुद को दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) का ग्रैजुएट और कारोबारी बता कर नईमा का दिल जीत लिया था. साथ ही उस ने कहा था कि उसे भी बिल्लियों से बहुत प्यार है. उस ने नईमा से वही बातें कीं, जो उसे पसंद थीं.

कैट लवर बन कर शहजाद ने धीरेधीरे नईमा का भरोसा जीत लिया था और फिर प्यार का सिलसिला शुरू हो गया था. सितंबर 2024 में दोनों ने औनलाइन निकाह भी कर लिया. निकाह के बाद दोनों दिल्ली में साथ रहने लगे, जिस की जानकारी नईमा की बहन को भी थी. नईमा खुश थी और अपने नए जीवन की बातें सिर्फ अपनी बहन के साथ साझा करती थी. निकाह के करीब 3 महीने बाद शहजाद ने नईमा से मुजफ्फरनगर में स्थित अपना पुश्तैनी घर दिखाने के लिए कहा. उस के कहने पर नईमा मुजफ्फरनगर पति के घर पहुंची. वहां उस के सपने टूट गए. खुद को बिजनैसमैन बताने वाला शहजाद बेहद साधारण परिवार से था और एक इमाम की नौकरी करता था. खुद मसजिद के राशन पर पलता था. उस का कोई कारोबार या व्यापार नहीं था. उस ने नईमा को झूठ बताया था.

सब से बड़ा झूठ तो उस ने अपनी शादी को ले कर कहा था. नईमा से उस ने बात छिपा ली थी कि वह पहले से विवाहित और 3 बच्चों का बाप भी है. नईमा को समझते देर नहीं लगी कि शहजाद ने उस से निकाह उस की नौकरी और सैलरी, सेविंग्स के लालच में किया था. इस सच्चाई के खुलते ही नईमा ने शहजाद का विरोध किया. बदले में शहजाद उस के साथ गालीगलौज और मारपीट  पर उतर आया. शहजाद की हकीकत जान कर नईमा यासमीन पूरी तरह टूट गई. उस ने अपना दुखड़ा बहन को सुनाया. अपनी सच्चाई का परदाफाश होते  ही शहजाद का चेहरा भी बदल गया. वह नईमा की सैलरी हड़पने लगा. उस की सारी सेविंग्स भी खत्म कर दी.

नईमा परेशान हो गई. उस ने शहजाद से पहली पत्नी और बच्चों से मिलने से मना किया. यह बात शहजाद को नागवार गुजरी. तब उस ने नईमा को ही रास्ते से हटाने का प्लान बना लिया.  जिस के लिए उस ने अपने दोस्त नदीम को 12 हजार रुपए दे कर योजना में शामिल कर लिया. योजना के मुताबिक शहजाद 16 सितंबर, 2025 को शौपिंग के बहाने नईमा को मेरठ ले कर आया और रास्ते में उसे जूस में नींद की गोलियां दे कर बेहोश कर दिया. फिर दोनों उसे जंगली इलाके के एक खेत में ले गए. जहां नदीम ने रस्सी से उस का गला दबाया और शहजाद ने छुरे से गले को रेत दिया. फिर दोनों ने लाश को एक बुरके में लपेट कर फेंक दिया. फिर वापस घर लौट आए.

हफ्तों तक वे चुप्पी साधे रहे, लेकिन भीतरभीतर डरे हुए भी थे कि कहीं वे पकड़े न जाएं. इसी भय से शहजाद ने 8 अक्तूबर, 2025 को मुजफ्फरनगर में नईमा यासमीन की गुमशुदगी भी दर्ज करवा दी थी. पुलिस ने आरोपी शहजाद और उस के साथी नदीम से पूछताछ करने के बाद कोर्ट में पेश किया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया गया. Love Story in Hindi

 

UP Crime: 70 करोड़ के लिए पेरेंट्स और वाइफ का मर्डर

UP Crime: लालची व अय्याश विशाल सिंघल अपनी पत्नी और मम्मी की हत्या कर बीमा कंपनियों से लगभग सवा करोड़ का क्लेम पा चुका था. हिम्मत बढ़ गई तो उस ने अपने पापा मुकेश सिंघल की भी योजनानुसार हत्या कर दी. वह उन की 64 बीमा पौलिसियों के 70 करोड़ रुपए का क्लेम हासिल करने की काररवाई कर रहा था, लेकिन उस से पहले उस की चौथी पत्नी श्रेया सामने आ गई. फिर इस के बाद जो हुआ…

उत्तर प्रदेश के जिला मेरठ के मोहल्ला गंगानगर के रहने वाले मुकेशचंद सिंघल पेशे से फोटोग्राफर थे. बाजार में उन की अपना फोटो स्टूडियो था. वह दुकान संभालते थे तो पत्नी प्रभा देवी घर संभालती थीं. उन का एक ही बेटा था विशाल, जो उन्हीं के साथ कभीकभार दुकान पर बैठता था. बाकी आवारागर्दी करता था. विशाल ने इसी साल 2025 के अप्रैल महीने में 39 करोड़ रुपए का बीमा क्लेम किया था, जिस में उस ने बताया था कि उस के पापा मुकेश सिंघल 27 मार्च, 2025 को दोपहर को यूपी के गढग़ंगा यानी गढ़मुक्तेश्वर से लौट रहे थे, तब एक अज्ञात वाहन ने उन्हें टक्कर मार दी थी, जिस में उन की मौत हो गई थी. एक बीमा कंपनी से उसे डेढ़ करोड़ रुपए मिल भी गए थे.

लेकिन निवा बूपा हेल्थ कंपनी ने क्लेम किए गए रुपए देने से पहले जांच शुरू कर दी. जांच में पता चला कि पिछले 8 सालों में विशाल की पत्नी, मम्मी और पापा की मौत हादसों में हुई थी. 22 जून, 2017 को विशाल की मम्मी प्रभा देवी की मौत हापुड़ में रोड एक्सीडेंट में हुई थी. विशाल ने पुलिस को बताया था कि वह मम्मी प्रभा देवी को ले कर बाइक से जा रहा था, तभी अज्ञात वाहन ने टक्कर मार दी थी. इस हादसे में उसे भी चोटें आई थीं, जबकि मम्मी की मौत हो गई थी. पुलिस ने इस दुर्घटना की जांच कर के फाइनल रिपोर्ट लगा दी थी. उस के बाद विशााल को प्रभा देवी की बीमा के 25 लाख रुपए मिल गए थे.

इस के बाद साल 2022 में विशााल की पत्नी एकता की संदिग्ध अवस्था में मौत हो गई थी. वह करीब एक सप्ताह तक मेरठ के प्रमुख आनंद अस्पताल में भरती रही थी. बीमारी से मौत दिखा कर विशाल ने एकता की बीमा के 80 लाख रुपए ले लिए थे. पहली अप्रैल, 2025 को विशााल ने अपने पापा मुकेश सिंघल को मेरठ के आनंद अस्पताल में भरती कराया था. अगले दिन यानी 2 अप्रैल को उन की मौत हो गई थी. विशाल के अनुसार उस के पापा गढग़ंगा से आते समय दुर्घटनाग्रस्त हुए थे. मौत की वजह उन के सिर की गहरी चोटें थीं. मुकेश सिंघल के नाम कुल 64 बीमा पौलिसी थीं, जिन की कीमत 50 करोड़ से अधिक थी.

इसी जांच में यह भी पता चला था कि विशाल ने अपने जिस पापा मुकेश सिंघल की मौत के बाद बीमा की राशि के लिए क्लेम किया था, उन्होंने निवा बूपा हेल्थ इंश्योरेंस के अलावा टाटा एआईजी, मैक्स लाइफ, टाटा एआईए, आदित्य बिड़ला, एचडीएफसी एर्गो सहित 50 से अधिक बीमा कंपनियों में 39 करोड़ की बीमा पौलिसियां ले रखी थीं. जबकि उन की सालाना आमदनी 12 से 15 लाख थी. उन्हें अपनी पौलिसियों के लिए हर साल 30 लाख रुपए का प्रीमियम चुकाना पड़ रहा था. देखा जाए तो यह सिंघल परिवार की हैसियत के बाहर था. मुकेश सिंघल एक साधारण फोटोग्राफर थे और विशाल भी कोई खास काम नहीं करता था. फिर इधर 2 साल से उन की फोटोग्राफी की दुकान भी बंद थी. यह देखते हुए सवाल उठा कि आखिर इतनी मोटी रकम की पौलिसियां क्यों ली गईं?

विशाल ने पापा की मौत के बाद क्लेम के लिए जो दस्तावेज जमा कराए थे, उन में बताया गया था कि हादसे के बाद उस ने पापा को मेरठ के आनंद अस्पताल में भरती कराया था. जबकि कंपनी ने पोस्टमार्टम रिपोर्ट और अस्पताल में डाक्टरों ने जो रिपोर्ट तैयार की थी, दोनों का मिलान किया तो दोनों रिपोर्टों में जो चोटें बताई गई थीं, वे आपस में मिल नहीं रही थीं. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मौत की वजह पहले से लगी चोट बताई गई थी, जबकि अस्पताल ने सड़क हादसे में लगी चोटों का जो विवरण दिया था, वह बिलकुल अलग था.

विशााल ने कंपनी द्वारा बारबार मांगने पर भी क्लेम के लिए जरूरी दस्तावेज भी उपलब्ध नहीं कराए थे. यही नहीं, जांच में यह भी सामने आया कि क्लेम जल्दी मिल जाए, इस के लिए विशााल ने कंपनी के एक अधिकारी को रिश्वत देने की भी पेशकश की थी. इस से कंपनी को विश्वास हो गया कि इस मामले में कुछ न कुछ तो गड़बड़ है. आगे की जांच में इस बात का भी खुलासा हो गया कि विशाल ने जिन लोगों के बयान दिलाए थे, उन्हें पैसे दिए गए थे. इस के अलावा विशाल के आधार कार्ड और पेन कार्ड में दर्ज उम्र में भी गड़बड़ी पाई गई थी. यह आधिकारिक रिकौर्ड से मेल नहीं खा रहा था. इस के अलावा विशाल ने उस गाड़ी के कोई कागजात भी नहीं जमा कराए थे, जिस से हादसे में उस के पापा की मौत हुई थी.

पता चला कि मुकेश सिंघल को पहले नवजीवन अस्पताल में भरती कराया गया था. लेकिन विशाल ने कंपनी को यह बात नहीं बताई थी. दुर्घटना सार्वजनिक स्थान पर होनी बताई गई थी, लेकिन इस दुर्घटना का कोई चश्मदीद गवाह नहीं था. इस के बाद शक के आधार पर कंपनी ने विशाल के खिलाफ पहले मेरठ में मामला दर्ज कराया. उस के बाद उसी एफआईआर के आधार पर उत्तर प्रदेश की हापुड़ कोतवाली में विशाल के खिलाफ धोखाधड़ी का मुकदमा दर्ज कराया गया.

इसी बीच पुलिस के पास एक और सनसनीखेज शिकायत पहुंची. यह शिकायत विशाल की चौथी पत्नी बताने वाली एक महिला ने दर्ज कराई थी, जिस का नाम श्रेया था. उस ने पुलिस को जो बताया था, उस के अनुसार, विशाल और उस की शादी साल 2024 के फरवरी महीने में हुई थी. शादी के बाद विशाल ने उसे बीमा कंपनियों के साथ करने वाली धोखाधड़ी के बारे में बताया था. यही नहीं, उस ने श्रेया से अपने पापा की हत्या करने की योजना के बारे में भी बताया था. यह सब बताते हुए उस ने उसे धमकी दी थी कि अगर उस ने यह बात किसी को बताई या उस ने उस के पापा की हत्या करने में उस की मदद नहीं की तो वह उस की और उस की बेटी की हत्या कर देगा. उसी बीच श्रेया को किसी से पता चला कि विशाल उस के नाम से भी पौलिसी खरीदने वाला है. विशाल की सच्चाई उसे पता चल ही चुकी थी.

इसी दौरान 100 करोड़ से ज्यादा का बीमा घोटाले का परदाफाश करने वाली संभल (उत्तर प्रदेश) की एएसपी (दक्षिण) अनुकृति शर्मा ने बीमा कंपनियों से ऐसे लोगों के बारे में पूछा था, जहां पौलिसीधारकों की पौलिसी खरीदने के एक साल के अंदर ही मौत हो गई थी. खासकर हार्टअटैक या एक्सीडेंट के कारण. इस में उन के पास जो नाम आए थे, उस में मेरठ के मुकेशचंद सिंघल का भी नाम सामने आया था, जिस ने 64 बीमा पौलिसियां करा रखी थीं, जिन की कीमत करीब 70 करोड़ थी. उन की मौत के बाद इन का लाभ विशाल को मिलना था. ये सभी बीमा पौलिसियां साल 2018 से 2023 के बीच कराई गई थीं.

यही नहीं, 25 जनवरी, 2025 से 6 फरवरी, 2025 के बीच मुकेशचंद सिंघल के नाम 4 गाडिय़ां टोयोटा लीजेंडर, निशान मेग्नाइट, ब्रेजा और रौयल इनफील्ड लोन पर खरीदी गई थीं. इन के अलावा महंगे गैजेट्स-2 आईफोन, एक मैकबुक और एयरपोड्स भी खरीदे थे. कथित रूप से जिस कार ने विशाल के पापा मुकेश सिंघल को टक्कर मारी थी, उसे विशाल का बहुत करीबी दोस्त चला रहा था. बीमा एजेंट ने मुकेश की मौत की रिपोर्ट मेरठ के अस्पताल को सत्यापन के लिए भेजी तो उस में कहा गया था कि कथित दुर्घटना में उस के शरीर पर एक भी खरोंच नहीं आई थी. यह जान कर एएसपी अनुकृति शर्मा को लगा कि फोटोग्राफी-कम-जेरोक्स की दुकान से 25 हजार रुपए कमाने वाला आदमी 64 पौलिसियों का प्रीमियम और इतनी गाडिय़ों की ईएमआई कहां से भरता रहा होगा. इस में कुछ न कुछ तो गड़बड़ है.

पुलिस जांच के अनुसार विशाल के घर में 3 लोगों की मौत हुई थी. तीनों लोगों के नाम बीमा पौलिसी थीं, जिन का सीधा फायदा विशाल को होना था. वह पहली पत्नी एकता और मम्मी प्रभा देवी की बीमा पौलिसी से एक करोड़ 5 लाख रुपए हासिल कर चुका था. इस के अलावा पापा की मौत के बाद 2 पौलिसियों के डेढ़ करोड़ से अधिक रुपए पा चुका था. अभी 62 पौलिसियों का करोड़ों रुपए का क्लेम और आना था. हालांकि बीमा कंपनियों ने पिछले साल स्थानीय पुलिस को विशाल की चौथी पत्नी श्रेया द्वारा संपर्क किए जाने की सूचना दी थी, लेकिन स्थानीय पुलिस ने कोई काररवाई नहीं की थी. श्रेया द्वारा रिपोर्ट लिखाने के बाद अनुकृति शर्मा की टीम ने 29 सितंबर, 2025 को विशाल को अपने मम्मीपापा और पहली पत्नी की हत्या कर के उन के जीवन बीमा की रकम वसूलने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया था.

पुलिस द्वारा की गई पूछताछ में उस ने पहली पत्नी और मम्मी की हत्या का अपराध स्वीकार भी कर लिया था. इस पूछताछ में उस ने अपने अपराध की जो कहानी सुनाई थी, वह कुछ इस प्रकार थी. मूलरूप से उत्तर प्रदेश के जिला हापुड़ के एक गांव का रहने वाला विशाल 15 साल पहले मेरठ आ कर 3 बैडरूम वाले मकान में रहने लगा था. गांव में रहते समय विशाल का परिवार काफी गरीब था. गांव में उस का परिवार कच्चे मकान में रहता था. गुजरबसर के लिए विशाल एक स्थानीय चाय की दुकान पर नौकरी करता था. वहां काम करने के दौरान ही विशाल की मुलाकात एकता से हुई.

एकता काफी संपन्न परिवार से थी, लेकिन दिव्यांग थी. इसलिए उस का विवाह नहीं हो रहा था. इसीलिए उस ने अपना दिल विशाल को दे दिया था. बाद में एकता के घर वालों ने उस का विवाह विशाल के साथ कर दिया था. विवाह के बाद एकता के फेमिली वालों ने बेटी और दामाद के रहने लिए मेरठ के गंगानगर में कसेरू बक्सर के पास 3 बैडरूम का एक मकान खरीद दिया था. विशाल उसी मकान में परिवार के साथ रहने लगा था. पड़ोसियों का तो यह भी कहना है कि एकता और विशाल की जोड़ी को देख कर आश्चर्य होता था. क्योंकि एकता जहां बहुत बड़े घर की बेटी थी, वहीं विशाल का परिवार बहुत गरीब था. यही नहीं, कहा जाता है कि विशाल की ससुराल वालों ने जो घर उसे रहने के लिए दिया था, उस पर उस ने कब्जा कर लिया था.

विशाल के पापा फोटोग्राफर थे. वह फोटोग्राफी की अपनी दुकान चलाते थे, लेकिन 2 साल से उन की वह दुकान बंद पड़ी है. विशाल भी कुछ नहीं करता था, जबकि मेरठ आने के बाद उस के खर्च बहुत बढ़ गए थे. यहां आने के बाद उस ने आधुनिक जीवनशैली अपना ली थी. पापा की कमाई उतनी थी नहीं. फिर उन्हें घर भी तो चलाना था. विशाल पैसे कमाने के शार्टकट रास्ते खोजने लगा. तभी उस ने एक दिन बीमा कंपनियों से पत्नी के नाम बीमा पौलिसी ले कर उस की हत्या कर मोटी रकम वसूल करने का समाचार पढ़ा. यह उपाय उसे उचित लगा. इस के बाद उस ने अपनी पत्नी एकता के नाम 80 लाख रुपए का जीवन बीमा कराया.

बीमा कराए साल भर भी नहीं बीता था कि एक दिन एकता को दस्त के इलाज के लिए मेरठ के एक निजी अस्पताल में भरती कराया गया. जबकि अस्पताल में बताया गया था कि उसे हार्टअटैक आया है, लेकिन जांच में हार्टअटैक का कोई लक्षण नहीं मिला था. फिर भी एक सप्ताह बाद उस की मौत हो गई थी. उस की मौत के बाद बीमा कंपनी को विशाल को 80 लाख रुपए का भुगतान करना पड़ा था. एक बार बीमा कंपनी से मोटी रकम मिलने के बाद विशाल के लिए यह व्यवसाय बन गया. उस ने मम्मी के नाम 25 लाख रुपए की बीमा पौलिसी ली और उन की भी हत्या कर के 25 लाख रुपए बीमा कंपनी से वसूल लिए.

उस ने बताया था कि उस की मम्मी प्रभा देवी का पिलखुवा के पास एक अज्ञात वाहन से एक्सीडेंट हो गया था. जबकि जांच में पता चला कि एक्सीडेंट के समय दोनों अकेले थे. इस एक्सीडेंट में प्रभा देवी की मौत हो गई थी, जबकि उसे मामूली चोट आई थी. बाद में पता चला कि प्रभा देवी की मौत सिर में चोट लगने से हुई थी. उन की मौत के बाद विशाल को उन की बीमा की 25 लाख की रकम मिल गई थी. अब विशाल की हिम्मत और बढ़ गई. बीमा कंपनियों को धोखा देने का उसे रास्ता भी मिल गया था. ऐसा ही कुछ उस के पापा मुकेशचंद सिंघल की मौत में भी हुआ था. मम्मी और पत्नी की हत्या कर के एक करोड़ 5 लाख वसूलने के बाद विशाल की नजर पापा मुकेशचंद पर टिक गई. उस ने उन के नाम से कई बीमा कंपनियों से करोड़ों रुपए की 64 पौलिसियां कराईं. इन सभी पौलिसियों में एक ही नौमिनी था— विशाल.

यही नहीं, उस ने उन के नाम से लोन पर कई लग्जरी कारें और महंगे गैजेट्स खरीदे. फिर उस ने उन्हें भी एक्सीडेंट के बहाने ठिकाने लगा दिया. उस के बाद उस ने बीमा कंपनियों से बीमा राशि के लिए क्लेम किया. 2 पौलिसियों का पैसा उसे मिल भी गया था. लेकिन बाकी पौलिसियों का पैसा मिलने के पहले उस की धोखाधड़ी का खुलासा हो गया. विशाल ने अपने पापा मुकेशचंद सिंघल के नाम जो गाडिय़ां और गैजेट्स खरीदे थे, नियम के तहत वह कर्ज माफ हो गया था. इस तरह वह फ्री में 4 लग्जरी गाडिय़ों का मालिक हो गया. गैजेट्स भी फ्री में मिल गए, लेकिन अब पुलिस ने सारा कुछ जब्त कर लिया है.

पुलिस जांच में यह भी सामने आया है कि विशाल ने एकता के बाद एकएक कर के 3 शादियां और की थीं. विशाल की तीनों पत्नियां उस के साथ रह नहीं सकीं. पड़ोसियों के बताए अनुसार, उस की ये पत्नियां जवान थीं, लेकिन वे परदे में रहती थीं. अगर उन से कोई गलती होती तो विशाल उन की पिटाई कर देता था. शायद वे सभी कुछ ही दिनों में उसे छोड़छोड़ कर चली गई थीं. चौथी पत्नी श्रेया, जिस की शिकायत पर विशाल की गिरफ्तारी हुई है, वह मेरठ की रहने वाली थी. जब उसे विशाल के बारे में पता चला तो उस के इरादे को भांप कर किसी तरह वह उस के चंगुल से भाग निकली थी.

शादी के बाद ही उसे पता चल गया था कि विशाल पहले भी कई शादियां कर चुका था. पुलिस को उस ने बताया था कि उसे जो जानकारी मिली थी, उस के हिसाब से वह उस की 14वीं पत्नी थी. पापा की मौत से कुछ दिनों पहले विशाल ने श्रेया से कहा था कि 5-7 दिनों में उस के पापा की मौत होने वाली है, क्योंकि उन्हें कैंसर है. तब श्रेया ने कहा था कि वह क्या बेकार की बातें करता है? पापा तो एकदम ठीक हैं. उन्हें कैंसर कब हो गया? इस पर विशाल बहाने बनाने लगा. श्रेया ने जिद पकड़ ली तो विशाल ने बताया कि उस ने पापा का 70 करोड़ का बीमा करवा रखा है. उन की हत्या करवा कर वह पौलिसी की रकम हासिल करेगा. पापा की हत्या में उसे भी उस की मदद करनी होगी. अगर पापा की हत्या करने में उस ने उस की मदद नहीं की तो वह उस की और उस की बेटी की हत्या कर देगा.

इस के बाद विशाल ने उस के नाम भी 3 करोड़ का बीमा करवा दिया था. मुकेशचंद सिंघल की हत्या के बाद बीमा कंपनियों के अधिकारी जांच के लिए आने लगे तो श्रेया विशाल का इरादा भांप गई. एक रात नाराज हो कर विशाल ने श्रेया की इस तरह पिटाई कर दी कि उस की रीढ़ की हड्ïडी में फ्रैक्चर हो गया था. शायद वह उसे जान से मार देना चाहता था. श्रेया ने अपने मायके वालों को फोन किया. तब उस के पापा और भाई आए और उसे अपने साथ ले गए. इस तरह उस की जान बच गई. विशाल ने कई बार उसे साथ ले जाने की कोशिश की, लेकिन फिर वह विशाल के घर नहीं गई.

श्रेया ने 21 अक्तूबर, 2024 को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री को एक शिकायती पत्र भेजा था. इस से पहले उस ने मेरठ के एसएसपी औफिस में कई बार विशाल के बारे में लिखित शिकायत की थी. लेकिन पुलिस ने हर बार फेमिली मैटर बता कर मामला टाल दिया था.

18 दिसंबर, 2024 को 8 अलगअलग इंश्योरेंस कंपनियों के प्रतिनिधियों ने मेरठ के एसएसपी को अलग शिकायत पत्र दिए थे. इन्होंने बताया कि विशाल सिंघल ने अपने पापा मुकेश सिंघल के नाम पर 70 करोड़ रुपए का बीमा कराया था. लोन से 4 गाडिय़ां खरीदी थीं. विशाल ने पिता की दुर्घटना में मौत बता कर बीमा की रकम पाने के लिए क्लेम किया है. आंतरिक जांच के दौरान पता चला है कि यह एक तरह की धोखाधड़ी है. इसलिए इस मामले की बारीकी से जांच की जाए. कहा जाता है कि मेरठ पुलिस ने इंश्योरेंस कंपनियों की शिकायतों को भी ठंडे बस्ते में डाल दिया था.

इसी तरह हापुड़ पुलिस की भी लापरवाही सामने आई है. विशाल ने जब अपनी मम्मी की सड़क दुर्घटना की रिपोर्ट दर्ज कराई थी तो पुलिस ने उसे सही मान कर फाइल बंद कर दी थी. जब संभल पुलिस ने हापुड़ पुलिस को सूचना दी, तब हापुड़ पुलिस ने दोबारा सड़क दुर्घटना की रिपोर्ट फाइल की थी. संभल की एएसपी अनुकृति शर्मा को इंश्योरेंस कंपनी के जरिए इस धोखाधड़ी की जानकारी मिली थी. इस पर उन्होंने अपने स्तर से जांच शुरू कर की और मामले का खुलासा किया.

संभल पुलिस के सामने सब से बड़ी समस्या यह थी कि यह पूरा मामला मेरठ और हापुड़ से जुड़ा था, इसलिए उन्होंने डीआईजी मेरठ कलानिधि नैथानी को मामले से अवगत कराया. तब डीआईजी के निर्देश पर हापुड़ जिले में एक नई रिपोर्ट दर्ज की गई. इस के बाद विशाल सिंघल और उस के सहयोगी सतीश कुमार की गिरफ्तारी दर्शाई गई. पुलिस इस मामले की गहराई से जांच कर साक्ष्य जुटा रही है. फिर भी अब तक की जांच से यह साबित हो गया है कि बीमा की मोटी रकम पाने के लिए विशाल सिंघल ने अपने मम्मीपापा और पत्नी की हत्या की है. अपनों का खून कर अय्याशी से रहने का सपना देखने वाला विशाल अपने साथी सतीश के साथ फिलहाल जेल में है. UP Crime

 

 

UP News: लव के गेम की खिलाड़ी बनी पिंकी

UP News: कहते हैं कि घर की देहरी लांघने के बाद भी यदि किसी महिला के पैर नहीं रुकते हैं तो उस घर की बरबादी निश्चित है. मुरादाबाद की पिंकी ने भी यही किया. अपने ब्याहता को छोड़ कर वह किशनवीर के साथ रहने लगी. इस के बावजूद चाचाभतीजे से उस के अवैध संबंध हो गए. इस के बाद जो हुआ, वह…

पति की रोजरोज की कलह से पिंकी परेशान हो चुकी थी, इसलिए उस ने अपने दोनों प्रेमियों से बात कर किशन को रास्ते से हटाने के लिए खतरनाक योजना बना डाली. किशन को कई दिनों से नशे के लिए शराब की व्यवस्था नहीं हो पाई थी. जेब में कोई पैसा भी नहीं था. योजना के अनुसार पिंकी ने अपने पति किशन से कहा कि इस समय नितिन स्योंडारा में है, उस से बात हो गई है. तुम उस के पास चले जाओ, वह 4 हजार तुम्हें देगा, ले कर आ जाओ.

ग्राम स्योंडारा मिट्ठनपुर मौजा गांव से करीब 2 किलोमीटर की दूरी पर है. किशन स्योंडारा पहुंच गया. वहां पर चमन शर्मा, नितिन शर्मा, अवनेश और रविकांत मौजूद थे. बराबर में ही शराब की दुकान थी. नितिन ने जा कर 2 बोतल शराब खरीदी और एकांत में पांचों जा कर बैठ गए. किशन ने नितिन से कहा कि पिंकी ने पैसों के लिए भेजा है.

”हमें पता है, पहले एक पेग ले ले, फिर चले जाना.’’

योजना के अनुसार, उन्होंने किशन को जम कर शराब पिलाई. किशन नशे में इतना चूर हो गया कि अपने पैरों पर खड़ा भी नहीं हो सकता था. तीनों ने किशन को उठा कर एक बाइक पर बैठाया. नितिन उसे पकड़ कर पीछे बैठ गया. बाकी दोनों लोग बाइक के पीछेपीछे चल दिए. अंधेरा हो चुका था. करीब 15 किलोमीटर दूर गांव ढकिया नरू पहुंचने पर उन्हें धान के खेत में पानी भरा दिखाई दिया. यह एक सुनसान जगह थी. उस समय उधर से किसी का आनाजाना भी नहीं हो रहा था. तीनों ने फिर उसे बाइक से उतारा. उसे खेत में ले जा कर औंधे मुंह गिरा दिया और वे उस के ऊपर खड़े हो गए. वह छटपटाता रहा, हाथपांव मारता रहा, लेकिन जब तक सांसें रुक नहीं गईं, वे उस के ऊपर खड़े रहे.

किशन की मौत होते ही सब घबरा कर वहां से भाग गए. पिंकी शुरू से पूरी लोकेशन मोबाइल से ले रही थी. नितिन लगातार अपने मोबाइल से पिंकी को अपडेट दे रहा था. उस की सांस रुक जाने पर नितिन ने बता दिया कि रास्ते का कांटा हट गया है. जिला मुरादाबाद के थाना बिलारी क्षेत्रांतर्गत ग्राम ढकिया नरू को जाने वाले रोड किनारे प्रेम सिंह का खेत स्थित है. खेत में धान लगे थे. 31 जुलाई, 2025 को उन के धान के खेत में शव पड़े होने की सूचना से गांव में हड़कंप मच गया. वह व्यक्ति कोई अनजान था.

अज्ञात व्यक्ति का शव पड़े होने की सूचना ग्रामप्रधान मनोहर सिंह द्वारा पुलिस को दी गई. ग्रामप्रधान की सूचना पर मौके पर पहुंचे कोतवाल मोहित कुमार मलिक और फोरैंसिक टीम ने बारीकी से शव और मौके की जांच की. वहां मोजूद कोई भी व्यक्ति शव की शिनाख्त नहीं कर सका. घटनास्थल की काररवाई पूरी कर पुलिस ने शव पोस्टमार्टम के लिए जिला मुख्यालय भेज दिया. दूसरे दिन अखबारों में किसी व्यक्ति की लाश मिलने की खबरें छपीं. खबर पढ़ कर महेंद्र नाम का व्यक्ति कोतवाली बिलारी पहुंचा, क्योंकि उस का भाई किशनवीर एक दिन पहले शाम साढ़े 4 बजे से गायब था.

महेंद्र सिंह जिला संभल के थाना कुढफ़तेहगढ़ के गांव मिठनपुर मौजा निवासी पर्वत सिंह का बेटा था. पुलिस उसे मोर्चरी ले गई. पुलिस ने उसे मोर्चरी में रखी लाश दिखाई तो लाश देख कर महेंद्र के होश उड़ गए. उस की चीख निकल गई. उसे चक्कर आने लगा. साथ के लोगों ने उसे संभाला. क्योंकि वह लाश किसी और की नहीं बल्कि उस के 40 वर्षीय भाई किशनवीर की थी. पुलिस उसे दुर्घटना मान रही थी, क्योंकि पुलिस को पता चला कि किशनवीर शराबी था. इसलिए पुलिस ने सोचा कि यह नशे में धुत हो कर खेत की तरफ चला आया होगा और मुंह के बल गिरा होगा.

मुंह और नाक में पानी मिट्टी भर जाने से सांस न आने पर मौत हो गई होगी. किंतु यहां पर एक सवाल यह उठ रहा था कि किशनवीर अपने घर से करीब 15 किलोमीटर दूर एकांत जगह किसी खेत में कैसे आया, क्यों आया? उधर पति के लापता होने के दूसरे दिन पिंकी गांव के लोगों से कहती रही कि उस के पति रात से अभी तक नहीं आए हैं. तीसरे दिन बड़े भाई महेंद्र सिंह ने अखबारों में खबर छपने के बाद बिलारी कोतवाली पुलिस से संपर्क किया और पोस्टमार्टम हाउस में जा कर अपने भाई की लाश की पहचान की. डैडबौडी को ले कर वे लोग अपने गांव आ गए.

12 अगस्त, 2025 को कोतवाली में रिपोर्ट दर्ज हुई. महेंद्र सिंह ने बताया कि ये लोग किशन की मृत्यु के बाद होने वाले धार्मिक अनुष्ठान में लगे हुए थे. इसलिए 12 दिन बाद रिपोर्ट दर्ज कराई. गांव में खूब चर्चा थी कि चाचाभतीजे चमन शर्मा और नितिन शर्मा ने ही किशनवीर की हत्या की है. पुलिस ने पिंकी से जानकारी की तो उस ने कहा कि उस के पति तो शराबी थे. कहीं चले गए होंगे. नशे में होने के कारण उस खेत में गिर गए होंगे, जिस से उन की मौत हो गई होगी. पुलिस को पिंकी से पूछताछ के समय ज्यादा सख्ती की जरूरत नहीं पड़ी. धमकाने पर ही उस ने सारा सच उगल दिया.

कोतवाल मोहित कुमार मलिक के निर्देशन में गठित पुलिस टीम ने अभियुक्त चमन शर्मा नितिन शर्मा निवासी गांव मनकुला, रविकांत निवासी मोहल्ला प्रेम विहार, बिलारी, पिंकी निवासी गांव मिठनपुर मौजा थाना कुढफ़तेहगढ़ जनपद संभल को गिरफ्तार किया गया. आरोपियों से की गई पूछताछ के बाद किशनवीर की हत्या की चौंकाने वाली कहानी सामने आई—

उत्तर प्रदेश के जिला मुरादाबाद की तहसील बिलारी से करीब 13 किलोमीटर दूर एक गांव है मिठनपुर मौजा. इस गांव का थाना कुढ़ फतेहगढ़ लगता है. गांव मिट्ठनपुर मौजा के रहने वाले पर्वत सिंह के 3 बेटे और एक बेटी थी. सब से बड़ा सतपाल सिंह, दूसरे नंबर का महेंद्र सिंह तीसरे नंबर पर किशनवीर उर्फ ऋषिपाल. इस गांव में अधिकांश लोग यादव जाति के ही हैं. सब से बड़े भाई सतपाल की किशनवीर के मर्डर से 27 दिन पहले ही मृत्यु हुई थी. वह बीमार थे. दूसरे नंबर के महेंद्र सिंह ने अभी तक शादी नहीं की है.

महेंद्र सिंह और किशनवीर का मकान संयुक्त रूप से बना हुआ है. सतपाल बराबर में अलग से रहते थे. मातापिता की पहले ही मृत्यु हो चुकी थी. यह परिवार किसान वर्ग में नहीं रखा जा सकता, क्योंकि इतनी कृषि भूमि इन के पास नहीं है कि खेती कर के गुजरबसर कर सकें. तीनों भाइयों के पास मिला कर 8-9 बीघा खेती की जमीन थी, इसलिए मेहनतमजदूरी कर के यह परिवार अपनी गुजरबसर कर रहा था. बड़े भाई सतपाल का विवाह हो गया था. गनीमत तो यह रही कि पर्वत सिंह ने अपने सामने ही अपनी बेटी का विवाह कर दिया था.

पिंकी नाम की एक युवती जो किसी कारणवश शादी के कुछ महीने बाद ससुराल से भाग गई. किशनवीर के बहनोई रघुवीर के वह संपर्क में आ गई. वह ट्रक चलाते हैं. युवती ससुराल जाने को तैयार नहीं थी. रघुवीर का अपना परिवार था, जो ठीकठाक चल रहा था. किसी अज्ञात महिला को अपने साथ रख कर वह अपनी फेमिली में कोई लफड़ा करना नहीं चाहते थे. पिंकी की शादी अभी कुछ ही महीने पहले बड़े धूमधाम से हुई थी, पर ससुराल की चौखट उस के लिए वैसी नहीं निकली, जैसी उस ने सपनों में देखी थी. रोज की तकरार, छोटेछोटे आरोप और दबाव ने उस का मन तोड दिया था.

एक दिन आंसुओं से भीगी आंखों के साथ पिंकी ने तय कर लिया कि वह अब और सहन नहीं करेगी. बिना किसी को बताए वह रात में घर से निकल पड़ी.

किशन की जिंदगी में इस तरह आई पिंकी

सड़क पर भटकतेभटकते उस की मुलाकात ट्रक ड्राइवर रघुवीर से हुई. रघुवीर ने उस की परेशानी देखी और उसे अपने साथ ले गया. पिंकी का कहना था कि वह ससुराल नहीं जाएगी और मायके भी नहीं जाएगी. दोनों जगह ही उसे जान का खतरा है. पिंकी की मजबूरी और हालत को देखते हुए रघुवीर ने सोचा कि इस की शादी अपने किसी साले से करा दी जाए. रघुवीर ने अपने साले महेंद्र और किशन से बात की. दोनों साले अभी कुंवारे थे.

महेंद्र ने किशनवीर के साथ ही पिंकी की शादी कराने का सुझाव दिया. रघुवीर ने किशन से बात की तो वह तैयार हो गया. बड़े भाई और बहनोई के कहने पर किशन पिंकी को साथ रखने को तैयार हो गया. फिर सामाजिक रीतिरिवाज से पिंकी और किशनवीर के साथ सात फेरे करा दिए. किशनवीर के साथ रह कर पिंकी को पहली बार अपनापन और सुकून महसूस हुआ. धीरेधीरे दोनों में विश्वास और लगाव पैदा होता गया.

जब पिंकी के ससुराल वालों को पिंकी के घर से भाग जाने का पता चला तो उन्होंने कोई काररवाई नहीं की. उन के लिए पिंकी का घर से चले जाना कोई बड़ी बात नहीं थी, क्योंकि वे लोग उस से पीछा छुड़ाना ही चाहते थे. अपने बचाव में पिंकी के ससुराल वालों ने दूसरे दिन सुबह को ही फोन कर के बता दिया कि तुम्हारी बेटी पिंकी यहां से रात किसी टाइम चली गई है. मायके वाले बेटी के गायब होने से परेशान थे. खोजबीन करने पर किसी तरह उन्हें पता चल गया कि पिंकी इस समय जिला संभल के एक गांव मिठनपुर मौजा में है. उन्होंने थाने के चक्कर काटे, पुलिस रिपोर्ट दर्ज करवाई और हर जगह गुहार लगाई.

इन सब उथलपुथल के बीच पिंकी ने अपने दिल की सुनने का फैसला किया. उस ने सब के सामने घोषणा कर दी कि अब किशनवीर ही उस का पति है. लोगों ने तरहतरह की बातें कीं. किसी ने इसे पिंकी की गलती बताया, किसी ने उस की हिम्मत की तारीफ की, लेकिन पिंकी के लिए सच यही था कि उस ने अपने जीवन का नया रास्ता चुन लिया था. अब वह बीते कल की कैदी नहीं थी. वह पिंकी नहीं, बल्कि अपनी नई कहानी की नायिका थी. पिंकी के दूसरी बिरादरी में शादी करने पर उस के मायके वालों की बहुत बदनामी हो रही थी. लोग ताने दे रहे थे.

समय पंख लगा कर उड़ रहा था. किशनवीर और पिंकी अपनी जिंदगी को और विशाल बनाने के लिए कोशिश करते रहे. एक दिन किशन अपनी पत्नी पिंकी को ले कर अलीगढ़ चला गया. वहां उस ने एक कारखाने में नौकरी कर ली. दिन भर मेहनत कर के आता, पत्नी उस के स्वागत में तैयार गेट पर ही मिलती. कभी देर हो जाती है तो पिंकी शिकायत करती, ”टाइम से घर आया करो, अकेले मुझे डर लगता है.’’

तब किशन पत्नी पिंकी को बाहों में भर लेता, ”मैं हूं तो तुझे डरने की क्या बात है.’’

गोद न भरने पर अधूरी थी पिंकी की जिंदगी

सब कुछ खुशहाल गुजर रहा था. लेकिन 9 साल बीत जाने के बाद भी इन को संतान सुख नहीं मिला. जब दोनों ने  वैवाहिक जिंदगी की शुरुआत की थी, तब एक दिन किशन ने अपनी पत्नी पिंकी से कहा था कि जल्द ही हमारा घर बच्चों की हंसी से गूंजेगा. लेकिन समय बीतता गया, पर हंसी उन के आंगन में नहीं आई. किशन हर शाम जब काम से लौटता तो आसपास के बच्चों को खेलते देख उस की आंखें भर आतीं. भीतर ही भीतर सोचता कि अगर मेरा भी एक बेटा होता तो थके होने पर मेरी गोद में बैठ जाता. अगर एक बेटी होती तो घर में आते ही मेरे गले में हाथ डाल कर उछल कर मेरी बाहों में समा जाती. उस की हंसी मेरे सारे दर्द भुला देती.

पिंकी की पीड़ा और गहरी थी. गांव की औरतें जब मेले या त्यौहार पर अपने बच्चों का हाथ थामे जातीं तो उस के खाली हाथ और भारी हो जाते. रिश्तेदार और पड़ोसी ताने कसते, ‘संतान नहीं तो जीवन का क्या सुख?’

इन तानों से वह चुप हो जाती, लेकिन रात को आंसू उस के तकिए भिगोते. किशन उस का हाथ पकड़ कर कहता, ”मुझे तेरी हंसी ही सब से बड़ा सहारा है. दुनिया चाहे कुछ भी कहे, तू मेरे साथ है तो मैं सब से अमीर हूं.’’

फिर भी दोनों के भीतर कहीं एक अधूरी चाह थी. उन का प्यार मजबूत था, लेकिन समाज की बातें और भीतर की कसक बारबार दिल चीर देतीं. कभीकभी दोनों बैठ कर सोचते कि क्या हमारा प्यार ही हमारी संतान नहीं? क्या हमारी मेहनत से बनी ये रोटी ही हमारी विरासत नहीं? किशन की अपनी मर्दानगी पर सवाल उठने लगे, पर वह इन्हें मेहनत में डुबो देता. वह खुद को तसल्ली देता. उसे अपनी मर्दानगी में कोई कमी कभी नजर नहीं आई. पिंकी ने इस तरह की शिकायत कभी नहीं की. वह मंदिर जाती, मन्नतें मांगती, व्रत रखती.

किशन भी उस का साथ देता, पर उस का विश्वास धीरेधीरे टूट रहा था. किशन ने कहा, ”क्या हमारा प्यार अधूरा है? क्या हमारी जिंदगी में बस यही कमी रह जाएगी?’’

उस की आवाज में दर्द था, जो पिंकी के सीने में भी उतर गया. पिंकी ने उस का हाथ थामा और बोली, ”हमारा प्यार अधूरा नहीं है, बच्चा नहीं हुआ तो क्या? हम एकदूसरे के लिए तो हैं.’’

लेकिन सच तो यह था कि दोनों के दिल में एक टीस थी. पिंकी को लगता, शायद वह मां बनने के लायक नहीं. किशन को लगता, शायद वह एक पिता बनने का फर्ज नहीं निभा पाया. फिर भी, दोनों एकदूसरे का सहारा बने रहे. दिन भर की मेहनत के बाद, जब वे रात को एकदूसरे के पास बैठते तो सारी दुनिया की थकान और दुख जैसे पलभर के लिए गायब हो जाते. यहां यादव जाति के लोग बहुत पिछड़े हुए हैं. बच्चा पैदा होने के लिए दोनों में से किसी ने कभी किसी डौक्टर की सलाह पाने के लिए अज्ञानतावश जरूरत नहीं समझी.

करीब 3 साल पहले दोनों अलीगढ़ को छोड़ कर अपने घर गांव वापस आ गए. किशनवीर ने एक ईरिक्शा लोन पर ले लिया, जिस से गुजर ठीकठाक हो रही थी. इसी बीच उस की मुलाकात करीब 4-5 किलोमीटर दूर मनकुला गांव निवासी चमन शर्मा से हुई. चमन शर्मा क्षेत्र में पंडिताई करता था. मुरादाबाद जिले के ग्रामीण इलाकों में पंडित (ब्राह्मण) समाज का एक विशेष धार्मिक और सांस्कृतिक स्थान होता है. गांवों में उन की भूमिका सिर्फ धार्मिक कर्मकांड तक सीमित नहीं रहती, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन से भी गहराई से जुड़ी होती है. ब्राह्मïण गांव में धार्मिक परामर्शदाता माने जाते हैं.

पहले ब्राह्मïणों को कृषि पर निर्भर लोगों से दक्षिणा के रूप में धान, गेहूं, अनाज, सब्जी, कपड़ा आदि मिलती थी. अब धीरेधीरे लोग नकद दक्षिणा देने लगे हैं. आधुनिकता के बावजूद गांवों में ब्राह्मïणों का सम्मान और धार्मिक आयोजन में उन की भूमिका लगभग उतनी ही मजबूत है, जितनी पहले थी. परिस्थितियों के चलते 50 वर्षीय चमन शर्मा का आनाजाना किशन के घर हो गया. चमन 3 भाई हैं. चमन का विवाह हो चुका है. एक बच्चा भी है.

पिंकी थी यजमान उसे बना लिया प्रेमिका

चमन दुनियादारी में बड़ा चालाक था. किशनवीर के घर जाते समय वह उस के घर के जरूरत के सामान भी ले जाने लगा. फिर पिंकी उस का बहुत आदरसत्कार करती और उसे खाना खिलाती थी. एक दिन चमन पनीर और उस से संबंधित मसाले व अन्य सामान भी ले कर आया, लेकिन उस दिन थैले में एक शराब की बोतल भी थी. चमन ने बोतल निकाल कर थैला पिंकी को थमाते हुए कहा, ”लो भाभी, आज पनीर बनाओ. लेकिन पहले 2 गिलास और लोटे में पीने का पानी दे दो.’’

चमन ने गिलास में पैग तैयार किया. किशन ने मना किया, ”मैं नशा नहीं करूंगा, मैं शराब नहीं पीता हूं. कभी तीजत्यौहार की बात अलग है.’’

दोस्ती का वास्ता दे कर चमन ने किशन को शराब पीने के लिए राजी कर लिया. चमन ने अपने दोस्त किशन से कहा, ”जाम उठा ले और मुंह से लगा ले, मुंह से लगा कर पी.’

दोस्त के इस शायरी अंदाज पर किशन मुसकराया. पीतेपीते दोनों मस्त हो गए. इतनी देर में खाना तैयार हो चुका था. दोनों ने खाना खाया. अगले दिन फिर मुलाकात हुई तो किशन ने चमन का रात की पार्टी के लिए एहसान व्यक्त किया. चमन ने मुसकराते हुए कहा, ”अरे, दोस्ती किस दिन काम आएगी? और फिर, मैं तेरे दुखदर्द का हल भी लाया हूं.’’

किशन चौंका, ”कौन सा हल?’’

चमन धीरेधीरे अपनी चाल चलने लगा. उस ने पिंकी की ओर देखते हुए कहा, ”भाभी को बच्चा न होने की चिंता है न? मेरे पास ऐसा नुस्खा है जिस से निस्संतान दंपति भी मातापिता बन जाते हैं. अगर भरोसा हो तो मैं मदद कर सकता हूं.’’

यह सुनते ही पिंकी की आंखों में चमक आ गई. 9 साल से उस का यही सपना अधूरा था, लेकिन किशन को कुछ अटपटा लगा. वह बोला, ”क्या वाकई ऐसा संभव है?’’

चमन ने रहस्यमई अंदाज में कहा, ”हां, मगर यह बात नुस्खे तक नहीं है. साथ में धार्मिक अनुष्ठान व खास उपाय करना पड़ता है. वह सब मैं करूंगा और अपने खर्चे पर करूंगा, लेकिन यह राज बाहर न जाए.’’

धीरेधीरे चमन ने पिंकी के मन में झूठे सपनों की डोर बुननी शुरू कर दी. कभी दवाइयों के नाम पर, कभी ताबीजटोने के बहाने, वह उसे समझाने लगा कि बच्चा तभी आएगा, जब वह उस के बताए ‘खास उपायों’ पर भरोसा करेगी. किशन सीधासादा था. उस के दोस्त ने कुछ पुडिय़ा ला कर दीं. कहा संभोग से एक घंटा पहले खा लेना. अवश्य संतान की प्राप्ति होगी. पिंकी मासूम थी, मां बनने की चाहत में उस ने चमन की हर बात पर विश्वास कर लिया. वह सोचती, ‘सच में अब मेरी गोद भर जाएगी.’

इस तरह चमन और पिंकी के बीच देवरभाभी का रिश्ता गहरा होता चला गया. चमन मजाक के साथसाथ मौका लगता तो थोड़ी छेड़छाड़ और चुम्माचाटी भी कर लेता था. इसी लालच और विश्वास के बीच चमन ने उसे अपने जाल में उलझा लिया. किशन को लगा उस का दोस्त मददगार है, जबकि असलियत में वह उस की कमजोरी का फायदा उठा रहा था. जिस दिन चमन शर्मा को दक्षिणा अधिक मिल जाती, वह कुछ न कुछ अच्छे भोजन के लिए सामान ले कर किशन के घर आ जाता.

एक दिन चमन खाने के व्यंजन के साथ में हमेशा की तरह बोतल भी लाया था. उस दिन चमन ने अपने दोस्त को कुछ अधिक शराब पिलाई. मौका लगते ही नशे की गोलियों की पुडिय़ा लाया था, एक पैग में मिला दी. कुछ ही देर बाद किशन चारपाई पर बेसुध हो कर लुढ़क गया.

फिर चमन ने अपनी भाभी पिंकी को बुला कर बाहों में समेट लिया. वह बोली, ”अरे क्या कर रहे हो, वो देख लेंगे.’’

चमन मुसकराता हुआ बोला, ”उस का पूरा इलाज आज कर दिया है. वैसे इसे अब सुबह तक भी होश नहीं आएगा.’’

पिंकी शरमाते हुए बोली, ”ऐसा क्या कर दिया?’’

चमन ने पूरी बात बताई और कहा कि आज हम खुल कर रोमांस करेंगे. इस के बाद कमरे का माहौल अचानक बदल गया.

पिंकी भी चमन की आंखों में अजीब सी मोहब्बत देख रही थी. इतने दिनों से वह समझ रही थी कि चमन सिर्फ पति का दोस्त ही नहीं, बल्कि उस के दिल में कुछ और जगह बना चुका है.

चमन ने कहा,”पिंकी, तुम जानती हो कि मैं तुम्हें बहुत चाहता हूं. आज हालात ने हमें मौका दिया है. अगर तुम चाहो तो यह रात हमारी हो सकती है.’’

पिंकी कुछ पल चुप रही, फिर उस की आंखों में हलकी मुसकान तैर गई.

”देवरजी, शायद किस्मत ने ही यह मौका दिया है. मैं भी अब रुकना नहीं चाहती.’’

इस के बाद दोनों के बीच की दूरी मिट गई. सारी बंदिशें टूट गईं और वो रात उन के लिए इश्क की एक नई दास्तां बन गई.

2 जिस्म जैसे एक जान हो गए. रात का आखिरी पहर था. चमन की अचानक आंखें खुलीं तो सुबह होने वाली थी. पिंकी भी उठ चुकी थी. पिंकी का चेहरा चमक रहा था और चमन की आंखों में संतोष था. दोनों जानते थे कि यह रिश्ता अब सिर्फ एक रात का नहीं, बल्कि उन के जीवन की नई शुरुआत है. पिंकी ने कमरे से बाहर निकल कर देखा, उस के जेठ का कमरा भी बंद था. फिर वह मेनगेट पर आई, बाहर जा कर इधरउधर देखा. कोई नहीं था. पूरा सन्नाटा छाया हुआ था. उस ने चमन को इशारा किया और वह दबेपांव घर से निकल कर अपने घर चला गया.

फिर यह सिलसिला चलता रहा. पिंकी गर्भवती हो गई और उसे एक बेटा पैदा हुआ. किशन बहुत खुश था. समझ रहा था कि उस के दोस्त ने जो दवा दी थी, उस की वजह से संतान हुई है. किशन ने कर्ज ले कर जो ईरिक्शा लिया था, उसे भी बेच दिया. क्योंकि उसे शराब की लत लग चुकी थी. कारोबार कुछ नहीं था. चमन कभीकभी उस के घर आता तो अब वह इतनी मदद नहीं कर पा रहा था, जितनी पहले कर दिया करता था. बड़ी तंगी से दिन गुजर रहे थे. बेटा पैदा होने से खर्चे और भी बढ़ गए थे.

इसी दौरान इस लव स्टोरी में एक और किरदार प्रवेश कर गया. उस का नाम था नितिन. 20 साल का नितिन पिंकी के प्रेमी चमन का सगा भतीजा था. किशन और नितिन के बीच ईरिक्शा चलाते समय दोस्ती हो गई थी. वह किशन के आर्थिक हालात से भलीभांति परिचित था. नितिन अपने पिता की अकेली संतान था. बहुत बड़ा परिवार नहीं है. अपनी सामान्य आर्थिक स्थिति होने के बावजूद नितिन समयसमय पर किशन को कुछ रुपए उधार दे दिया करता था. कई दिनों से किशन से उस की मुलाकात नहीं हुई. एक दिन वह अपने उधार की रकम का तकाजा करने किशन के घर गया.

शाम का समय था. सूर्यास्त हो रहा था. किशन और चमन आंगन में बैठे हुए शराब का दौर चला रहे थे. दोनों ने एक साथ नितिन को आवाज लगाई, ”आओ नितिन, आओ.’’

वह अंदर आया. दोनों ने उसे भी अपनी महफिल में शामिल कर लिया. जाम का दौर खत्म हो जाने पर पिंकी से खाना लाने को कहा. पिंकी 3 थालियों में खाना ले कर आई. पिंकी ने आदतन नितिन से नमस्ते की. नितिन ने सर उठा कर देखा तो देखता ही रह गया. नशे का सुरूर उसे चढ़ ही रहा था. नितिन ने देखा, उस की आंखों में चमक थी, चेहरे पर ऐसा तेज जैसे कोई दीपक जल उठा हो. बच्चा पैदा होने के बाद तो जैसे उस के हुस्न में नया निखार आ गया था. उस के गालों पर हलकी लाली, आंखों की गहराई में शांति और होंठों पर हमेशा रहने वाली

हलकी मुसकान, सब कुछ उसे और भी आकर्षक बना रहे थे. खाना खाते समय भी नितिन की नजरें पिंकी का ही पीछा करती रहीं. नितिन ने अपने कर्ज की कोई बात किशन से नहीं की. जाते समय किशन से कहा कि अगर तुम्हें कोई परेशानी हो तो मुझे जरूर बताना. मैं तुम्हारा दोस्त हमेशा तुम्हारी मदद के लिए तैयार रहूंगा. इस समय भी उस की नजरें टकटकी लगाए पिंकी को ही देख रही थीं. पहली ही मुलाकात में वह पिंकी को दिल दे बैठा. इस के बाद मुलाकातें बढती रहीं. पिंकी भी नितिन को चाहने लगी. नितिन ने भी अपने चाचा की तरह का तरीका अपनाया.

एक दिन वह भी थैला भर कर खानेपीने का अच्छा सामान किशन के घर ले गया. दारू की बोतल और साथ में नशीली गोलियों की पिसी हुई पुडिय़ा भी थी. उस ने भी दारू पीते समय किशन के पैग में नशा की गोलियों का पाउडर मिला दिया. इस के बाद किशन के बेहोशी जैसी हालत में पहुंच जाने पर पिंकी और नितिन ने रात भर एकदूसरे पर जम कर प्यार लुटाया. जवानी से भरपूर नितिन के साथ पिंकी ने भी खूब मौजमस्ती की. इस तरह चाचाभतीजा दोनों ही पिंकी के आशिक हो गए. कभी चाचा तो कभी भतीजा पिंकी की मस्त जवानी का आनंद लेने आ जाते.

पिंकी का नितिन की तरफ ज्यादा झुकाव हो गया था. फिर भी पिंकी उस के चाचा चमन को नाराज करना नहीं चाहती थी. गाहेबगाहे वह चमन को भी खुश कर दिया करती थी. दोनों पिंकी का पूरा खयाल रखते. साथ में किशन की भी समयसमय पर दारू की व्यवस्था कर दिया करते थे. अपनी पत्नी और उस के आशिकों के बीच होने वाली रंगीन रात का किशन को पूरा अहसास था. दिन में नशा उतर जाने पर इधरउधर गांव के लोगों के बीच जाता, तब लोग उस के घर की हालत बयान करते तो वह बहुत शर्मिंदा होता.

मामला पूरे गांव में चर्चा का विषय बना हुआ था. क्योंकि दोनों किशन के दोस्त थे, इसलिए कोई सीधे आरोप नहीं लगा रहा था. वह चाचाभतीजे दोनों से टकराने की स्थिति में नहीं था. उन दोनों से टकराने का मतलब उसे साफ दिख रहा था मौत. इसलिए वह पत्नी पर ही अपना गुस्सा उतार देता था. पिंकी की मुसकान में मासूमियत का मुखौटा था, लेकिन उस की आत्मा में विश्वासघात की आग धधक रही थी. वह प्यार नहीं, बल्कि वासना का खेल खेल रही थी. इसी खेल के चलते उस ने अपने पति किशनवीर उर्फ ऋषिपाल की अपने प्रेमियों के द्वारा हत्या करा दी.

सभी आरोपियों से पूछताछ के बाद पुलिस ने उन्हें अदालत में पेश किया गया, जहां से सभी को जेल भेज दिया गया. पिंकी के साथ उस का 2 साल का बेटा भी जेल चला गया. एक आरोपी अवनीश कुमार निवासी गांव रमपुरा थाना सोनकपुर जिला मुरादाबाद को पुलिस ने 14 सितंबर को गिरफ्तार कर लिया. उसे भी अदालत में पेश कर जेल भेज दिया. केस की जांच कोतवाल मोहित कुमार मलिक कर रहे थे. UP News

 

 

UP Crime News: 8 करोड़ के लालच में अस्पताल संचालक किडनैप

UP Crime News: गोरखपुर में स्थित एक अस्पताल के संचालक अशोक जायसवाल के दिलोदिमाग से किडनैप की छाप मिटने का नाम ही नहीं ले रही थी. पहले उन के बिजनैसमैन पिता को किडनैपर्स ने मोटी रकम ले कर छोड़ा. उस के बाद उन के बड़े भाई का किडनैप हो गया. उन्हें भी मोटी रकम दे कर किडनैपर्स से छुड़ाया गया. इन दोनों घटनाओं से वह उबर पाते, उस से पहले ही 8 करोड़ रुपए की फिरौती के लिए अशोक जायसवाल का ही किडनैप हो गया. क्या उन की पत्नी डा. सुषमा जायसवाल ने किडनैपर्स को यह रकम दी या फिर…

गोरखपुर मुख्यालय से 60 किलोमीटर दूर स्थित है थाना सिकरीगंज. गांव अबू पट्टी इसी थानाक्षेत्र के अंतर्गत पड़ता है. यह गांव मुसलिम बाहुल्य के रूप में जाना जाता है. गांव के अधिकांश युवा खाड़ी देशों में जौब कर के अच्छा पैसा कमाते हैं. यही देख इसी गांव का रहने वाला 35 वर्षीय कमालुद्दीन अहमद उर्फ कमालु का भी सपना ढेरों पैसे कमाने का था. अमीर बनने के लिए वह किसी भी हद तक जाने के लिए तैयार रहता था. छोटीमोटी चोरियां कर के उस ने जरायम की दुनिया के रोजनामचे पर अंगद की तरह मजबूती से पांव जमा कर पुलिस की नाक में दम कर दिया था.

खतरनाक असलहों और लड़कियों के शौकीन कमालु ने 3 शादियां की थीं, जिन में 2 लड़कियां हिंदू और एक मुसलिम थी. दोनों हिंदू लड़कियों में से एक कमालु की छाया बन कर हर वक्त उस के साथ रहती थी. वही उस के नाम से इंस्टाग्राम चलाती और उस के गुनाहों का बहीखाता संभालती. वह लड़कियों की तस्करी भी करता था, तभी तो उस की पुलिस से ले कर राजनेताओं के बीच में गहरी पैठ बन गई थी. इसलिए वह पुलिस के चंगुल में आसानी से फंसता नहीं था.

बात मई, 2025 की है. शाम के 5 बजे का वक्त था. कमालु अपने घर के डाइनिंग रूम में सोफे पर बैठा हुआ था. सामने लकड़ी की बनी छोटी मेज पर कांच की प्याली में चाय रखी थी, जिसे वह चुस्की ले कर पी रहा था. तभी उस के मोबाइल फोन की घंटी बजी. उस ने दाहिने हाथ में मोबाइल उठा कर नंबर को गौर से देखा, वह उस के परिचित प्रदीप सोनी का था. काल रिसीव कर वह अदब से बोला, ”बताएं सोनीजी, आज इस नाचीज की कैसे याद आई?’’

”कुछ खास काम था तुम से.’’

”मेरे से खास काम..!’’ चौंकते हुए कमालु ने सवाल किया, ”बताएं…बताएं, क्या खास काम है?’’

”एक मोटी आसामी कटने को तैयार है. बोलो, टास्क पूरा करोगे?’’

”कीमत?’’

”8 करोड़.’’

”8 करोड़.’’ सुन कर कमालु ऐसे चौंका, जैसे उसे सैकड़ों बिच्छुओं ने एक साथ डंक मारे हों.

”आसामी मोटी और बड़ी है. 8 करोड़ की रकम उस के घर में रखी है, मगर मेरी एक शर्त है.’’ प्रदीप शख्स ने कहा.

”हां, बोलो भाईजान. कैसी शर्त है?’’

”पहली शर्त तो यह कि कुछ भी हो जाए, इस में मेरा नाम सामने नहीं आना चाहिए. दूसरी शर्त टास्क पूरी होने के बाद फिरौती की रकम में से आधा हिस्सा मेरा. बोलो, मेरी दोनों शर्तें मंजूर हैं तुम्हें?’’

”हां, 100 फीसदी डील पक्की समझो. बस मुझे मेरे शिकार का पता दे दो.’’

”वह है पादरी बाजार स्थित अंशुमान हौस्पिटल का डायरेक्टर और सेना से रिटायर जवान अशोक जायसवाल. उस की पत्नी डा. सुषमा जायसवाल है. एक बेटी और एक बेटा है, जो शहर से बाहर रहते हैं. घर पर मियांबीवी के अलावा तीसरा कोई नहीं रहता है. अपनी फिटनैस के लिए वह रोज सुबह साढ़े 5 बजे साइकिल से जेल रोड बाईपास से होते हुए रेलवे स्टेडियम में जौगिंग और स्वीमिंग करने अकेला जाता है.’’

प्रदीप सोनी ने शिकार का पूरा हुलिया और उस के आनेजाने की पूरी खबर कमालु को दे दी. सारी जानकारी पा कर कमालु की खुशियों का ठिकाना नहीं था. वह इस टास्क को पूरा करने लिए जीजान लगाने के लिए तैयार था. कमालु के पास 8-10 सदस्यों का गैंग था. करुणेश कुमार दुबे उस का सब से विश्वासपात्र था. यूं कहें कि वह उस का दाहिना हाथ था. करुणेश बेलाघाट थाने के शंकरपुर स्थित चौतरा पट्टी का रहने वाला था. कमालु की तरह वह भी कम समय में अमीर बनने के सपने देखा करता था. बाद में वह कमालु के गैंग का सक्रिय सदस्य बन गया.

ऐसे किया किडनैप

अस्पताल के डायरेक्टर अशोक जायसवाल का किडनैप करने का टास्क मिलने के बाद कमालु करुणेश के साथ उस की रेकी के काम में जुट गया. पूरे 2 महीने तक रेकी करने के बाद जब उन्हें लगा कि अब टास्क पूरा करने का समय आ चुका है, तब कमालु ने इस काम को अंजाम देने के लिए अपने और साथियों श्याम सुंदर उर्फ गुड्डू यादव, जनार्दन गौड़, प्रीतम कुमार, अंश कुमार और शेरू सिंह को सक्रिय किया.

योजना तैयार होने के बाद 25 जुलाई, 2025 को शिकार को टारगेट बनाने की बुनियाद रखी. शातिर कमालु ने गिरोह के सदस्यों को 2 टीमों में बांट दिया, ताकि कोई मुसीबत आने पर सभी साथी सुरक्षित निकल कर भागने में सफल रहें. पहली टीम में उस ने श्यामसुंदर, जनार्दन गौड़ और करुणेश दुबे को रखा था. जबकि दूसरी टीम में वह खुद, प्रीतम कुमार, शेरू सिंह और अंश कुमार को रखा था.

25 जुलाई, 2025 की भोर के 4 बजे एक कार में सवार हो कर श्यामसुंदर, जनार्दन गौड़ और करुणेश दुबे कौआबाग अंडरपास पहुंचे. कार श्यामसुंदर चला रहा था. कार एक साइड में लगा कर तीनों उस में से निकल कर थोड़ीथोड़ी दूरी पर फैल गए थे, ताकि किसी को उन पर शक न हो. अंडरपास के दूसरी ओर कमालु कार ले कर खड़ा था, जिस में प्रीतम कुमार, शेरू सिंह और अंश कुमार सवार थे.

ठीक साढ़े 5 बजे साइकिल पर सवार हो कर अशोक जायसवाल कौआबाग पुलिस चौकी होते हुए अंडरपास की ओर आते दिखाई दिए. उन्हें आते हुए देख कर करुणेश, जनार्दन और श्यामसुंदर सतर्क हो गए. जैसे ही अशोक अंडरपास के पास पहुंचे, अचानक उन की साइकिल के सामने करुणेश आ गया और उन की साइकिल रोक कर पता पूछने के बहाने अपनी बातों में उलझा लिया. तब तक वहां श्यामसुंदर और प्रीतम भी पीछे से आ गए और अशोक को धक्का दे कर साइकिल से नीचे गिरा दिया.

अशोक जायसवाल साइकिल सहित नीचे गिर गए. वह खुद को संभाल पाते या कुछ समझ पाते, इतने में तीनों ने उन्हें दबोच कर कार की पिछली सीट पर डाल दिया. अशोक को बीच में बैठा कर उन्होंने उन की आंखों पर पट्टी बांध दी. टारगेट पूरा होने की सूचना जैसे ही कमालु को मिली, वह खुशी से झूम उठा और अपनी कार ले कर करुणेश की कार के पीछे लगा दी. इधर अशोक जायसवाल को घर से निकले करीब 4 घंटे बीत चुके थे. वह अब तक घर नहीं पहुंचे थे. यह देख कर उन की पत्नी डा. सुषमा जायसवाल परेशान हो गई थीं कि कभी ऐसा नहीं हुआ कि उन्हें घर लौटने में इतनी देर लगे. जौगिंग कर के वह 2 घंटे में घर लौट आते थे, फिर आज कहां रह गए. उन का फोन भी लगातार स्विच्ड औफ आ रहा था.

पति का फोन लगातार बंद आने पर डा. सुषमा को किसी अनहोनी की आशंका हुई. मन में बुरेबुरे खयालों के काले बादल उमडऩे लगे. अभी वह इन्हीं खयालों के मकडज़ाल में उलझी हुई थीं कि उन के फोन की घंटी घनघना उठी. डिसप्ले पर उभर रहा नंबर अननोन था. हिम्मत कर के डा. सुषमा ने वह कौल रिसीव किया, ”हैलो! कौन?’’

”क्या मेरी बात डौक्टर सुषमा जायसवाल से हो रही है?’’ दूसरी ओर से रौबीली आवाज कान के परदे से टकराई.

”हां, मैं सुषमा जायसवाल हूं. बताइए, क्या बात है?’’

”सुन डौक्टरनी, तेरा पति अशोक मेरे कब्जे में है. उसे जिंदा और सहीसलामत देखना चाहती है तो 8 करोड़ रुपए तैयार कर के रखना. दोबारा फोन करूंगा तो बताऊंगा कि रुपए कब और कहां ले कर आना है. और हां, जरा भी होशियारी करने की कोशिश मत करना, वरना तेरे पति को खलास कर दूंगा, रोती रहना जिंदगी भर. समझी. यह भी सुन ले, पुलिस के पास जाने की गलती कतई मत करना, वरना इस के शरीर के इतने टुकड़े करूंगा कि तेरे को जोडऩे में जिंदगी बीत जाएगी, समझी. चल, पैसों के इंतजाम में जुट जा.’’ फोन करने वाले ने सुषमा को धमकी दी. धमकी करुणेश ने दी थी.

8 करोड़ की मांगी फिरौती

पति के किडनैप होने की सूचना पाते ही डा. सुषमा घबरा गईं. समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करें? किडनैपर ने पति को आजाद करने के बदले में 8 करोड़ रुपयों की डिमांड की थी. ये 8 करोड़ रुपए कहां से आएंगे? काफी सोचविचार कर डा. सुषमा जायसवाल अपने बहनोई को साथ ले कर शाहपुर थाने पहुंचीं. इंसपेक्टर नीरज राय को उन्होंने पति के किडनैप से ले कर बदमाशों द्वारा फिरौती में 8 करोड़ की रकम मांगने की बात बताई.

डा. सुषमा के मुंह से किडनैपर्स द्वारा फिरौती की 8 करोड़ की रकम सुन कर इंसपेक्टर नीरज राय चौंक पड़े. यह सूचना उन्होंने वरिष्ठ अधिकारियों को दी तो पुलिस विभाग में हड़कंप मच गया और आननफानन में सीमा के सभी राष्ट्रीय राजमार्गों को सील करा कर बैरिकेड्स लगा कर वाहनों की जांच शुरू करने के आदेश दे दिए गए, लेकिन बदमाश पुलिस की पकड़ से बहुत दूर जा चुके थे. रिटायर्ड एयरफोर्स जवान और अस्पताल संचालक अशोक जायसवाल के किडनैप केस को एसएसपी राजकरन नैयर ने गंभीरता से लिया. उन्होंने एसपी (सिटी) अभिनव त्यागी के नेतृत्व में पुलिस की 4 टीमें बनाईं और उन्हें बदमाशों को पकडऩे के लिए रवाना किया.

पुलिस के लिए यह घटना चुनौतीपूर्ण थी और वे किडनैप किए गए अशोक जायसवाल को सकुशल बचाना चाहते थे. बदमाशों ने जिस नंबर से फिरौती की रकम के लिए कौल की थी, एसपी (सिटी) अभिनव त्यागी ने सब से पहले उसे सर्विलांस पर लगा दिया और बदमाशों के लोकेशन का पता लगाने की कोशिश की. साथ ही उन्होंने डा. सुषमा से यह भी कह दिया कि बदमाशों का फिर से फोन आए तो उसे अपनी लंबी बातों में देर तक उलझाए रखें. उसी शाम 4 बजे के करीब बदमाशों का फोन डा. सुषमा जायसवाल के फोन पर आया. 8 करोड़ की फिरौती की मांग पर सौदेबाजी करतेकरते बदमाश 15 लाख की रकम पर आ कर टिक गए.

पति की सलामती के लिए वह जैसेतैसे 8 लाख रुपयों का इंतजाम कर सकीं और बदमाशों के बताए गीडा थानाक्षेत्र के कालेसर नामक स्थान पर रकम पहुंचाने के लिए तैयार हुईं. दूसरी तरफ सर्विलांस के जरिए पुलिस दोनों की बातों को सुन भी रही थी. इस के अलावा डा. सुषमा ने एसपी (सिटी) अभिनव त्यागी को फोन कर के किडनैपर्स से हुई सारी बात बता दी. सादे कपड़ों में पुलिस टीम ने कालेसर एरिया को चारों ओर से घेर लिया था. किडनैपर्स ने पैसे लेने के लिए यही जगह डा. सुषमा जायसवाल को बताई थी. शाम 7 बजे के करीब एक नीले रंग की कार कालेसर आ कर रुकी तो सादे कपड़ों में चारों ओर फैली पुलिस पोजीशन ले कर सतर्क हो गई. उन्हें यकीन था कि इसी कार में बदमाश अशोक जायसवाल को ले कर आए होंगे.

पलभर बाद कार में से 3 व्यक्ति बाहर निकले, जबकि कार के अंदर एक व्यक्ति बैठा नजर आ रहा था. इस के कुछ दूरी पर एक और कार आ कर खड़ी हो गई. पहली वाली कार से उतरे 3 व्यक्तियों में से एक ने चारों तरफ का जायजा लेने के बाद अपनी जेब से फोन निकाला और वह कोई नंबर लगाने के बाद फोन पर बात करने लगा. एसपी (सिटी) त्यागी को विश्वास हो गया कि ये शायद बदमाश ही हैं, जो फिरौती की रकम लेने यहां आए हैं. इसलिए उन्होंने मौके पर मौजूद पुलिस टीम को फोन कर के सतर्क किया और किसी भी तरह बदमाशों को गिरफ्तार करने का आदेश दिया.

आदेश मिलते ही घात लगाए बैठी पुलिस टीम बदमाशों की ओर बढ़ी तो तीनों बदमाश खतरे को भांप कर मौके से भागने लगे. बदमाशों को भागता देख कार में बैठा व्यक्ति भी दरवाजा खोल कर कार में से निकल कर भागने लगा. वह व्यक्ति कोई और नहीं, बल्कि अपहृत किए गए अशोक जायसवाल ही थे. पुलिस ने अशोक को सकुशल बरामद कर लिया.

भावुक हो पत्नी से लिपट गए अशोक जायसवाल

पुलिस के साथ पत्नी सुषमा जायसवाल को देख कर अशोक जायसवाल को सहसा यकीन नहीं हुआ. पत्नी को देखते ही उन की आंखें डबडबा गईं और वह उन से जा लिपटे. पति को सहीसलामत देख कर सुषमा का भी गला रुंध गया था. भावुक हो कर कुछ पलों तक दोनों एकदूसरे को अपलक देखते रहे. इधर पुलिस ने भागने वाले तीनों किडनैपर्स को कुछ दूर जा कर पकड़ लिया, जिन में 2 किडनैपर्स जनार्दन गौड़ और श्यामसुंदर उर्फ गुड्ïडू यादव भागते समय सड़क पर गिर गए थे, जिस से दोनों के पैरों में गंभीर चोटेें आई थीं. वे लंगड़ा कर चल रहे थे. पुलिस ने करीब 15 घंटों में अपहृत अशोक जायसवाल और किडनैपर्स को सकुशल पकडऩे में कामयाबी हासिल कर ली थी.

पुलिस तीनों किडनैपर्स को ले कर थाना शाहपुर पहुंची. इधर इंसपेक्टर नीरज राय ने कप्तान राजकरन नैय्यर और एसपी (सिटी) अभिनव त्यागी को सूचना दे दी थी. अशोक जायसवाल की सकुशल बरामदगी और 3 किडनैपर्स की गिरफ्तारी की सूचना पाते ही दोनों अधिकारी थाने पहुंचे और तीनों किडनैपर्स से सख्ती से पूछताछ की तो करुणेश दुबे ने बताया कि घटना का मास्टरमाइंड कमालुद्ïदीन अहमद उर्फ कमालु है. कमालु के अलावा घटना में प्रीतम, शेरू सिंह और अंश तिवारी भी शामिल थे. कुल मिला कर इस घटना में 7 किडनैपर्स के नाम सामने आए, जिन में 4 मौके से गाड़ी ले कर फरार हो गए थे.

अगले दिन 26 जुलाई, 2025 को एसएसपी राजकरन नैय्यर ने पुलिस लाइन में प्रैसवार्ता आयोजित की और तीनों किडनैपर्स को गिरफ्तार करने और अशोक जायसवाल को सहीसलामत बरामद करने की जानकारी पत्रकारों को दी. जांच में सामने आया कि परिवार की गतिविधियों पर कोई नजर बनाए हुए था, जिस की वजह से पूरे औपरेशन को बहुत गोपनीय रखा गया था. फिर तीनों को अदालत में पेश कर के 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में गोरखपुर मंडलीय कारागार, बिछिया भेज दिया. फरार चारों बदमाशों की गिरफ्तारी के लिए उन के ठिकानों पर दबिश देने लगे, लेकिन बदमाश पुलिस की पकड़ से दूर थे.

27 जुलाई, 2025 को डीआईजी डा. एस. चनप्पा ने घटना के मास्टरमाइंड कलामुद्ïदीन उर्फ कमालु के ऊपर 50 हजार रुपए का इनाम घोषित किया. इनाम घोषित होते ही अगले दिन 28 जुलाई को कमालु रायबरेली की कोर्ट में एक पुराने केस में आत्मसमर्पण कर जेल चला गया. ऐसा करना कमालु की मजबूरी थी, उसे डर सता रहा था कि कहीं उस का एनकाउंटर न हो जाए. एनकाउंटर के डर से ही उस ने खुद को न्यायालय में आत्मसमर्पण किया था. गोरखपुर पुलिस ने कमालु से पूछताछ के लिए न्यायालय में ट्रांजिट रिमांड की मांग कर दी थी.

24 अगस्त, 2025 को पुलिस की मेहनत रंग लाई और कमालु 48 घंटे की रिमांड पर पुलिस को सौंप दिया गया. कड़ी सुरक्षा के बीच कमालु रायबरेली जेल से गोरखपुर लाया गया. पुलिस अधिकारियों ने गुप्त स्थान पर रख कर उस से सख्ती से पूछताछ की तो उस ने रट्टू तोते की तरह सारा राज उगल दिया था और परतदरपरत राज खुलता चला गया. पूछताछ में कमालु ने बताया कि अशोक जायसवाल के अपहरण की सुपारी उन्हीं के पड़ोसी ज्वैलर प्रदीप सोनी ने दी थी.

उस ने आगे बताया कि गोला थाने का गैंगस्टर मोनू त्रिपाठी, तरुण त्रिपाठी का दोस्त था. क्रिमिनल्स से उस की अच्छी दोस्ती थी. यह बात तरुण जानता था. उस ने लाखों रुपए मिलने का लालच दे कर इसे भी अपनी योजना में मिला लिया था. मोनू का दोस्त करुणेश दुबे था, जो मेरा (कमालुद्दीन उर्फ कमालु) गैंग चलाता था. मोनू त्रिपाठी के जरिए प्रदीप सोनी और तरुण त्रिपाठी मुझ तक पहुंचे और अशोक जायसवाल के किडनैप सुपारी दी. पूछताछ के बाद पुलिस ने आरोपी कमालु को 26 अगस्त, 2025 को रायबरेली जेल पहुंचा दिया. इस के बाद पुलिस ने आरोपी प्रदीप सोनी, देवेशमणि त्रिपाठी उर्फ तरुण त्रिपाठी और मोनू त्रिपाठी को गिरफ्तार कर उस से भी पूछताछ की.

पिता और भाई भी हो चुके थे किडनैप

अशोक जायसवाल किडनैप केस में अब तक 10 आरोपी अरेस्ट किए जा चुके थे. 2 आरोपी पुलिस की पकड़ से अभी भी दूर थे. पुलिस ने सभी आरोपियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर जेल भेज दिया था और फरार चल रहे 2 आरोपियों प्रीतम और अंश तिवारी की तलाश तेज कर दी थी. अशोक जायसवाल मूलरूप से बिहार के बेतिया जिले के रहने वाले थे. वह व्यापार घराने से ताल्लुक रखते थे. उन के पिता बड़ेलाल जायसवाल एक बड़े व्यापारी थे. एक दिन में लाखों का कारोबार होता था. बात सन 1993 की है. तब बिहार में अपहरण कारोबार बड़े पैमाने पर चल रहा था. एक शाम बदमाशों ने अशोक के पिता का किडनैप कर लिया और फिरौती की बड़ी रकम दे कर उन्हें मुक्त कराया था.

पिता के साथ घटी घटना की छाप अभी पूरी तरह से अशोक जायसवाल के जहन से उतरी नहीं थी कि 1995 में उन के बड़े भाई मुरारी लाल का अपहरण हो गया. इस बार भी बदमाशों ने बड़ी फिरौती ले कर मुरारी लाल को आजाद किया था. बारबार परिवार में घट रही घटनाओं से अशोक जायसवाल इस कदर डर गए थे कि अब बेतिया में रहना नहीं चाहते थे. इसे इत्तफाक ही कहा जाएगा कि व्यापारी घराने में होते हुए वह व्यापार के धंधे से दूर रहे थे. इसी दौरान उन्हें एयरफोर्स में नौकरी मिल गई. साल 2000 में उन का ट्रांसफर गोरखपुर हो गया और परिवार के साथ गोरखपुर आ गए.

यहीं रह कर कई साल नौकरी की. साल 2003 में वह एयरफोर्स से रिटायर हुए. रिटायरमेंट के बाद वह शाहपुर थानाक्षेत्र के पादरी बाजार इलाके में जमीन ले कर बस गए थे. पत्नी सुषमा जायसवाल भी बस्ती जिले के एक सरकारी अस्पताल में डौक्टर थी. समय अपनी रफ्तार आगे बढ़ता रहा. रिटायरमेंट में अशोक को अच्छीखासी रकम मिली थी और पत्नी भी सरकारी मुलाजिम थीं. दोनों को मिला कर उन के पास अच्छा बैंक बैलेंस था. वे जहां रहते थे, उसी जमीन पर उन्होंने ‘आयुष्मान हौस्पिटल’ बनाया. अस्पताल के निचले हिस्से में वे परिवार सहित रहते थे. ऊपर अस्पताल चलता था.

अशोक जायसवाल के पास जब पैसे आने लगे तो उन्होंने एक स्कूल खोलने की योजना बनाई. यह बात 2017-18 की थी. अपनी योजना को पूरी करने के लिए उन्होंने करोड़ों रुपए की पिपराइच में जमीन खरीदी. जमीन खरीद कर उसे वैसे ही छोड़ दी, ताकि वक्त आने पर उस का सही से इस्तेमाल किया जा सके. यह बात उन के करीबी जानते थे. यही नहीं, उन्होंने अपने बड़बोलेपन में अपने करीबियों और दोस्तों के बीच में यह बात फैला दी थी कि उन को और जमीन की तलाश है. मिल जाए तो खड़ेखड़े नकद खरीद लेंगे. 8-10 करोड़ रुपए तो घर के कैशबौक्स में हमेशा पड़े रहते हैं.

लालच में ज्वैलर ने रची किडनैप की साजिश

यह बात उन का पड़ोसी और बस्ती जिले का रहने वाला प्रदीप सोनी उर्फ पिंटू को भी पता चल गई. हाल में वह पादरी बाजार में किराए का कमरा ले कर परिवार के साथ रहता था. वह उन्हीं के आयुष्मान हौस्पिटल के निचले वाले हिस्से में बनी दुकानों में एक दुकान किराए पर ले कर ज्वैलरी का शोरूम खोल रखा था. अशोक ने सुरक्षा के लिहाज से अस्पताल में कई सीसीटीवी कैमरे लगे थे, जिस का एक्सेस अशोक जायसवाल के मोबाइल में था तो वही एक्सेस प्रदीप के मोबाइल में भी था, जिस की जानकारी अशोक को नहीं थी. उसी एक्सेस के जरिए वह उन की हरेक गतिविधियों पर नजर गड़ाए हुए था.

पड़ोसी प्रदीप सोनी की नीयत में खोट आ गई थी. दरअसल, वह इन दिनों काफी परेशान चल रहा था. उस की परेशानी का कारण था कर्ज का लेना. प्रदीप ने यहां से पहले पादरी बाजार से जेल बाईपास रोड पर एक दुकान ली थी. वह दुकान अच्छीभली चल रही थी. जब जेल बाईपास रोड का चौड़ीकरण हुआ तो उस की दुकान टूट गई थी, जिस से उसे बड़ा नुकसान हुआ था. उस ने अशोक से 5 लाख रुपए कर्ज ले रखा था. अशोक पैसे लौटाने के लिए उस पर बारबार दबाव बनाने लगे थे. उन के तकादे से वह बुरी तरह परेशान रहने लगा था.

प्रदीप सोनी को पता चल चुका था कि अशोक जायसवाल के कैश बौक्स में 8 से 10 करोड़ रुपए नकद पैक हैं. इस के बाद उस ने अशोक जायसवाल को किडनैप कराने का प्लान बनाया और सोचा कि 8 करोड़ की फिरौती में से वह उन के 5 लाख रुपए भी लौटा देगा. इस प्लान को अंजाम देने के लिए उस ने अपने खास दोस्त देवेशमणि त्रिपाठी उर्फ तरुण त्रिपाठी और इंद्रेश तिवारी उर्फ मोनू को शामिल कर लिया और उन्हें लालच दिया कि फिरौती की रकम में से एकएक करोड़ आपस में बांट लेंगे और अपना देश छोड़ कर नेपाल में शिफ्ट हो जाएंगे, जहां मजे से जिंदगी कटेगी और पुलिस कभी उन तक पहुंच भी नहीं पाएगी.

उसी प्लान के तहत 25 जुलाई, 2025 को सुबह के समय अशोक जायसवाल का अपहरण करा लिया. लेकिन उन के ख्वाब अधूरे के अधूरे रह गए. डा. सुषमा जायसवाल की समझदारी के चलते घटना में लिप्त सभी आरोपी गिरफ्तार कर जेल भेज दिए गए. 2 आरोपियों प्रीतम और अंश तिवारी कथा संकलन तक फरार चल रहे थे. UP Crime News

 

 

UP Crime News: ईंट से लगातार प्रहार कर ली पत्नी की जान

UP Crime News: घरपरिवार और समाज की बंदिशें तोड़ कर बबलू ने शादीशुदा रूबी से प्रेमविवाह किया था. 2 बच्चों के मांबाप दोनों के बीच ऐसी कौन सी वजह पैदा हो गई कि बबलू को पत्नी का हत्यारा बनना पड़ा…

थाना बर्रा के रहने वाले विशाल रफूगर ने सीटीआई नहर के करीब से बहने वाले नाले में बोरे में भरी एक युवती की लाश देखी, जिस का सिर बाहर निकल गया था. उस का क्षतविक्षत चेहरा साफ दिखाई दे रहा था, जिसे चीलकौए नोचनोच कर खा रहे थे. विशाल ने शोर मचाया तो देखतेदेखते वहां भीड़ एकत्र हो गई. किसी राहगीर ने सीटीआई के पास वाले नाले में एक महिला की लाश पड़ी होने की सूचना 100 नंबर पर दे दी. पुलिस कंट्रोल रूम से यह सूचना थाना गोविंदनगर को दी गई. थाना गोविंदनगर की पुलिस आई जरूर लेकिन शव थाना बर्रा क्षेत्र में पड़े होने की बात कह कर लौट गई. नतीजतन 2 घंटे तक लाश नाले में पड़ी रही.

मामला पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों की जानकारी में आया तो एसपी (पूर्वी) हरीशचंदर, सीओ (गोविंदनगर) ओमप्रकाश सिंह थाना बर्रा पुलिस के साथ मौके पर पहुंचे. पुलिस ने साक्ष्य एकत्र करने के लिए फोरेंसिक टीम को भी फोन कर के मौके पर बुला लिया था. पुलिस ने लाश वाले बोरे को नाले से बाहर निकाला. बोरे से लाश निकलवा कर निरीक्षण शुरू हुआ. मृतका की उम्र 30-35 साल रही होगी. वह नीले रंग की सलवार, हरे रंग की लैगिग, लाल कुरता, गुलाबी रंग का स्वेटर पहने थी. उस के पैर की अंगुलियों में बिछिया थीं. दाएं हाथ पर बबलू और ॐ गुदा हुआ था. कपड़ों और रूपरंग से लग रहा था कि मृतका किसी अच्छे परिवार से रही होगी.

शव देख कर ही लग रहा था कि किसी धारदार हथियार से उस की गरदन काटी गई थी. पहचान छिपाने के लिए मृतका का चेहरा बुरी तरह कुचला गया था. यही नहीं, उस के चेहरे पर तेजाब भी डाला गया था. हत्यारों ने मृतका के स्तन और अन्य कोमल अंगों पर भी गंभीर चोटें पहुंचाई थीं. इस से यही अंदाजा लगाया गया कि महिला की हत्या घृणा एवं क्रोध में की गई थी. घटनास्थल की काररवाई पूरी करने के बाद पुलिस ने शव को पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दिया.

अज्ञात लोगों के खिलाफ हत्या का केस दर्ज करने के बाद थाना बर्रा के प्रभारी रामबाबू सिंह उसे अज्ञात महिला के शव की शिनाख्त कराने में जुट गए. आननफानन में शहर के सभी थानों से गुमशुदा महिलाओं की दर्ज सूचनाएं एकत्र कराई गईं. लेकिन शहर के थानों में दर्ज अज्ञात महिलाओं की गुमशुदगी की जानकारियों से मृतका का कोई सुराग नहीं मिल सका.  6 फरवरी को अचानक किसी ने पुलिस को फोन कर के सूचना दी कि 3 फरवरी, 2015 को सीटीआई नहर के पास नाले में मिली लाश कानपुर के सीसामऊ के रहने वाले बबलू की पत्नी रूबी की है. उस की हत्या में उस के पति बबलू की मुख्य भूमिका है. इसीलिए उस ने थाने में अपनी पत्नी रूबी की गुमशुदगी दर्ज नहीं करवाई.

इस सूचना की पुष्टि करने के लिए थानाप्रभारी रामबाबू सिंह पुलिस टीम के साथ सीसामऊ स्थित बबलू के घर जा पहुंचे. लेकिन वहां ताला लटका हुआ था. मामले की तह तक पहुंचने के लिए उन्होंने बबलू के पड़ोसियों से पूछताछ की. मोहल्ले वालों ने बताया कि जितेंद्र शुक्ला उर्फ बबलू किसी बैंक में चपरासी है. उस की पत्नी रूबी का चालचलन ठीक नहीं था. बबलू की गैरमौजूदगी में उस के घर कई लोग आतेजाते थे. एक बार बबलू ने रूबी को एक युवक के साथ घर में रंगरलियां मनाते हुए रंगेहाथों पकड़ लिया था. जिस के बाद मारपीट हुई थी और मामला थाने तक जा पहुंचा था. लेकिन रूबी अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रही थी. बबलू से उसे बच्चे थे, जिन के मोह की वजह से वह रूबी को छोड़ना नहीं चाहता था और उसे समझाबुझा कर लाइन पर लाना चाहता था.

लेकिन रूबी पर बबलू की बातों का कोई असर नहीं हो रहा था. वह बबलू के पीछे खुल कर रंगरलियां मनाती थी, जिस से वह काफी परेशान था. अचानक 31 जनवरी की रात को पता नहीं क्या हुआ कि रूबी और उस के बच्चे गायब हो गए. बबलू भी अपने घर पर ताला डाल कर कहीं चला गया. अब उस ने सिर मुड़वा लिया है और कभीकभी चोरीछिपे अपने घर आता है. मोहल्ले वालों से पूछताछ में यह बात भी सामने आई थी कि रूबी के हाथ पर बबलू का नाम और ‘ॐ’ गुदा हुआ था. इस से यह बात साफ हो गई कि सीटीआई नहर के पास नाले में मिली लाश रूबी की ही थी. मोहल्ले वालों से मिली जानकारी से पुलिस को पक्का विश्वास हो गया था कि रूबी की हत्या उस के पति बबलू ने ही करवाई है.

मोहल्ले वालों से मिली जानकारी के आधार पर पुलिस लाश की शिनाख्त करवाने के लिए वनखंडेश्वर मंदिर, पीरोड पहुंची. वहां से पुलिस मंदिर के पुरोहित गणेशशंकर जोशी को हिरासत में ले कर थाना बर्रा लौट आई. थाने ला कर गणेशशंकर जोशी को मृतका की लाश के फोटो और कपड़े दिखाए गए. सारी चीजें देखने के बाद बबलू के पिता गणेशशंकर ने पुलिस को बताया कि लाश उस की बहू रूबी की ही है. लाश की शिनाख्त होने के बाद पुलिस ने गणेशशंकर जोशी से रूबी की हत्या की सच्चाई जानने का प्रयास किया.

जोशी ने बताया कि उस के 2 बेटे हैं, बबलू और धर्मेंद्र. बबलू बैंक औफ बड़ौदा, पनकी में चपरासी था. उस के 2 बच्चे थे 11 वर्षीय बेटा शिवा और 9 साल की बेटी प्रियंका. वह स्वयं वनखंडेश्वर मंदिर, थाना बजरिया से पुरोहितगीरी करते थे और वहीं एक कमरे में रहते थे. करीब 12 वर्ष पहले जितेंद्र उर्फ बबलू ने रूबी से प्रेमविवाह किया था. इसलिए उस ने उस के साथ अपने संबंध तोड़ लिए थे. बबलू अपनी पत्नी रूबी को ले कर 104/313 बड़ा चौराहा, सीसामऊ में रहता था. उस का घर आनाजाना बहुत कम था. 31 जनवरी को बबलू रात 10 बजे के लगभग अपने दोनों बच्चों को ले कर उस के पास आया था और यह कह कर उन्हें रखने को कहा था कि उस के ऊपर एक बड़ी मुसीबत आ पड़ी है.

उस ने बताया कि रूबी बैंक से रुपए निकाल कर घरगृहस्थी का सामान खरीदने के लिए शाम 4 बजे सीसामऊ बाजार के लिए निकली थी. लेकिन इतनी रात होने पर भी वह वापस नहीं आई थी.  उस ने पूरे कानपुर में छानबीन कर डाली, लेकिन उस का कहीं पता नहीं चला. शायद वह चेन्नई चली गई हो. वह अपने छोटे भाई धर्मेंद्र को ले कर उसे ढूंढने चेन्नई गया है. इस के अलावा रूबी की हत्या के बारे में उसे कोई जानकारी नहीं है.

गणेशशंकर से पुलिस को जो भी जानकारी मिली, उस से पुलिस को पक्का विश्वास हो गया कि बबलू रूबी की हत्या के बारे में अच्छी तरह जानता है. यह भी संभव था कि वह खुद भी हत्या में शामिल हो या फिर उस ने हत्या अन्य लोगों से करवाई हो? इसी कारण बबलू पुलिस के सामने आने में डर रहा है. पुलिस मृतका के पति जितेंद्र उर्फ बबलू की तलाश में जगहजगह दबिश देने लगी. पुलिस ने हत्या का खुलासा जल्द से जल्द करने के लिए बबलू के मिलने के संभावित स्थानों पर छापे डाले, लेकिन वह पुलिस की पकड़ में नहीं आया. मजबूर हो कर पुलिस ने बजरिया थाना क्षेत्र में अपने मुखबिरों का जाल बिछा दिया.

9 फरवरी, 2015 की सुबह पुलिस को सूचना मिली कि रूबी का पति बबलू शास्त्री चौक के पास किसी के इंतजार में खड़ा है. सूचना मिलते ही थान बर्रा पुलिस ने बबलू को घेर कर पकड़ लिया और पूछताछ के लिए थाने ले आई. उस से पूछताछ शुरू हुई तो वह काफी देर तक पुलिस को बरगलाता रहा. लेकिन जब उस से कड़ाई से पूछताछ की गई तो वह टूट गया. उस ने जो कुछ बताया, वह इस तरह था.

जितेंद्र उर्फ बबलू 104/312 बड़ा चौराहा, सीसामऊ, थाना बजरिया, कानपुर में रहता था. वह बैंक औफ बड़ौदा में चपरासी था. करीब 12 साल पहले चंद मुलाकातों में ही उसे विजयनगर, कानपुर निवासी छोटे की पत्नी रूबी से प्यार हो गया था. धीरेधीरे जितेंद्र उर्फ बबलू और रूबी का प्यार ऐसे मुकाम पर पहुंच गया कि दोनों को एकदूसरे की दूरी खलने लगी. फलस्वरूप बबलू और रूबी ने घरपरिवार और सामाजिक मानमर्यादाओं को ताक पर रख कर घर से भाग कर प्रेमविवाह कर लिया. कुछ महीने लुकछिप कर रहने के बाद दोनों सीसामऊ मोहल्ले में खुल कर पतिपत्नी बन कर रहने लगे. कालांतर में दोनों के शिवा और प्रियंका 2 बच्चे हुए.

कुछ सालों तक रूबी ईमानदारी से जीवन जीती रही. उस के बाद उस के कदम बहकने लगे. उस ने पति की गैरमौजूदगी का लाभ उठा कर मोहल्ले के कुछ युवकों से अवैध संबंध बना लिए और घर में रंगरलियां मनाने लगी. इस से मोहल्ले में तरहतरह की चर्चाएं होने लगीं. जब पत्नी की चरित्रहीनता और नएनए लड़कों के साथ गुलछर्रे उड़ाने की खबर बबलू को हुई तो सच्चाई जानने के लिए एक दिन वह अपनी बैंक ड्यूटी छोड़ कर घर आ गया. घर में उस ने रूबी को मोहल्ले के एक युवक के साथ रंगरलियां मनाते हुए रंगेहाथों पकड़ लिया.

उस दिन उस ने रूबी को जम कर मारापीटा और भविष्य में ऐसी कोई हरकत न करने की सख्त हिदायत दी, लेकिन इस से रूबी के चालचलन में कोई बदलाव नहीं आया. यह देख कर बबलू को रूबी से नफरत हो गई. बच्चों का भविष्य बरबाद न हो, यह सोच कर बबलू रूबी को हर तरह से समझाबुझा कर रास्ते पर लाने का प्रयास किया कि वह ईमानदारी भरा जीवन गुजारे, लेकिन रूबी पर इस का कोई असर नहीं हुआ. नतीजतन घरपरिवार और रिश्तेदारों के बीच बबलू की बदनामी होने लगी. दूसरी ओर रूबी स्वयं पर अंकुश लगाने को ले कर सख्त होने लगी और पति को मुंह पर जवाब देने लगी, जिस के चलते बबलू और रूबी में 2 बार जम कर मारपीट हुई.

रूबी ने इस की शिकायत थाने में की. लेकिन पुलिस ने इसे पतिपत्नी का मामला मान कर दोनों को समझाबुझा कर लौटा दिया. तीसरी बार बबलू ने बाहरी लड़कों को घर में बैठाने को ले कर रूबी को जम कर पीटा. इस बार भी पुलिस ने रूबी का पक्ष लिया और सही न्याय करने के बजाय दोनों का समझौता करा दिया. इस समझौते में तय हुआ कि रूबी अपने बच्चों के साथ अलग रहेगी और बबलू उसे 4 हजार रुपए महीने खर्च देगा. इस के बाद रूबी बबलू से 4 हजार रुपए प्रति माह लेती रही. इस के बाद रूबी ने बबलू को अपने पास रहने के लिए मजबूर कर दिया. इस तरह रूबी हर महीने बंधीबंधाई रकम ले कर पत्नी की तरह बबलू के साथ रहती भी रही और उसे पुलिस का डर दिखा कर पूरी तरह अपने कब्जे में किए रही. जरा भी कोई बात होती तो वह उसे जेल भिजवाने की धमकी दे देती.

इस सब के चलते बबलू गहरे तनाव में रहने लगा. इस स्थिति का फायदा उठा कर रूबी खुल कर मनमानी करने लगी. इतना ही नहीं, अब वह अपने चाहने वालों से पति के सामने ही मिलनेजुलने लगी. बबलू से जब पत्नी की हरकतें सही नहीं गईं तो उस ने रूबी को अपनी जिंदगी से हटाने का इरादा बना लिया. जितेंद्र शुक्ला उर्फ बबलू ने गोविंदनगर निवासी अपने खास दोस्त राधेश तिवारी से अपनी पत्नी रूबी की अय्याशी के बारे में पूरी बात बता कर कहा कि अब उस से रूबी की हरकतें बरदाश्त नहीं होतीं. घर में मेरी स्थित एक भड़ुए जैसी हो गई है. उस के कारनामे मुझ से देखे नहीं जा रहे हैं. मैं उस से अपना पिंड छुड़ाना चाहता हूं. वह उसे बातबात में जेल भिजवाने की धमकी देती है, अब वह उस की हत्या कर के ही जेल जाना चाहता है. बबलू की बात सुन कर राधेश तिवारी उस की मदद के लिए तैयार हो गया.

राधेश तिवारी समाचार पत्र विके्रता था. उस की काफी दूरदूर तक अच्छी जानपहचान थी. राधेश तिवारी ने गोविंदनगर में रहने वाले पेशेवर हत्यारे शुभम मौर्य से जितेंद्र जोशी उर्फ बबलू की मुलाकात करवा कर बातचीत करवाई. शुभम मौर्य से रूबी की हत्या का सौदा 30 हजार रुपए में तय हो गया. बबलू ने शुभम मौर्य को रूबी की हत्या के लिए 25 हजार रुपए एडवांस दे दिए. शेष 5 हजार रुपए रूबी की हत्या के बाद देना तय हुआ. योजना के मुताबिक, 31 जनवरी, 2015 की रात 10 बजे के लगभग राधेश तिवारी, शुभम मौर्य व उस का साथी विजय उर्फ पुच्ची बबलू के घर आ गए.

चारों ने घर पर ही देर रात तक शराब पी. उसी दौरान शुभम मौर्य के इशारे पर बबलू अपने बेटे शिवा और बेटी प्रियंका को यह कह कर घर के बाहर ले कर चला गया कि ‘आप लोग बैठो, मैं बच्चों को बाजार से नाश्ता दिलवा कर जल्द वापस आता हूं. जैसे ही बबलू बच्चों को ले कर घर से बाहर गया, शुभम मौर्य, राधेश तिवारी और विजय कमरे में बैठी रूबी के पास पहुंच गए और उसे दबोच कर उस का मुंह दबा लिया. विजय उस के सिर पर ईंट से वार करने लगा. विजय रूबी के सिर पर तब तक ईंट मारता रहा, जब तक वह मरणासन्न नहीं हो गई. इस के बाद विजय ने सूजे से रूबी के गले को बुरी तरह से गोद दिया.

बबलू बच्चों को पिता के घर छोड़ कर पुन: लौट आया. तब तक रूबी मर चुकी थी. योजना के मुताबिक रूबी की लाश की शिनाख्त मिटाने के लिए उस के चेहरे पर ईंटें मारमार कर बुरी तरह से कुचल दिया गया. चेहरे की शिनाख्त किसी परिस्थितियों में न हो सके, इस के लिए उस के चेहरे पर तेजाब भी डाला गया. इस के बाद रूबी के क्षतविक्षत शव को आननफानन में वाटरपू्रफ बोरे में भर कर अच्छी तरह सिल दिया गया. लाश को ठिकाने लगाने के लिए रात के अंधेरे में शुभम मौर्य फरजी नंबर की अपनी स्कूटी पर रूबी के लाश वाले बोरे को लाद कर विजय के साथ चला गया और उस बोरे को सीटीआई नहर के पास नाले में फेंक कर अपने घर चला गया.

जितेंद्र उर्फ बबलू ने पुलिस को बताया कि वह रूबी के मोहल्ले के लड़कों के साथ अवैधसंबंधों से त्रस्त था. रूबी तृप्ति इतनी कामांध हो गई थी कि समझाने के बाद भी वह नहीं मानती थी. इसलिए उस के सामने उस की हत्या करने के अलावा और कोई रास्ता नहीं बचा था. इसलिए 30 हजार रुपए की सुपारी दे कर उस ने उस की हत्या करवा दी थी. पुलिस बबलू को अपने साथ गोविंदनगर के ब्लाक नंबर 10 ले गई. उस की निशानदेही पर राधेश तिवारी, विजय उर्फ पुच्ची, शुभम मौर्य को गिरफ्तार कर लिया गया. साथ ही लाश को ठिकाने लगाने में इस्तेमाल की गई स्कूटी, मृतका और उस के पति बबलू के मोबाइल भी बरामद कर लिए गए.

पूछताछ के बाद जांच अधिकारी ने उपर्युक्त चारों अभियुक्तों को भादंवि. की धारा 302, 201, 120बी के अंतर्गत चालान तैयार कर अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. इस तरह रूबी की बदचलनी की वजह से एक परिवार बरबाद हो गया. UP Crime News

— कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित