Crime News : डब्ल्यूटीसी और भूटानी ग्रुप ने लोगों के हड़पे कई सौ करोड़

Crime News : शहर में अपनी छत, अपना घर हर इंसान का सपना होता है. इसीलिए पिछले 2 दशकों में लोगों के इस सपने को पूरा करने के लिए देश भर में बिल्डरों, रियल एस्टेट ग्रुप्स और डेवलपर्स की बाढ़ आ गई है. इन में कुछ ईमानदारी से काम करते हैं तो कुछ जनता के सपने पूरा करने का सपना दिखा कर उन के खूनपसीने की कमाई पर डाका डालते हैं. कुछ रियल एस्टेट ग्रुप्स ने आशियाने का ख्वाब दिखा कर लोगों की जेब से सैकड़ों करोड़ रुपए इतनी आसानी से निकाल लिए कि…

रियल एस्टेट के ये ग्रुप इतने चतुर होते हैं कि वे जनता के पैसे का ही इस्तेमाल कर उन की अपनी संपत्ति का मालिक बनाने के ऐसे सपने दिखाते हैं, जो कभी पूरा ही नहीं होता. अपनी संपत्ति का सपना दिखाने वाले लोगों को बताते हैं कि वे अगर उन के रियल एस्टेट प्रोजेक्ट में पैसा लगाएंगे तो कुछ समय बाद उन्हें अच्छा रिटर्न मिलेगा. यानी प्रोजेक्ट के लिए एडवांस में एक निश्चित रकम निवेश करने के बाद जब वे अपनी संपत्ति के मालिक बनेंगे तो उस की कीमत कई गुना बढ़ जाएगी. अपनी संपत्ति होने का रंगीन सपना देखने वाले ये लोग भूल जाते हैं कि रियल एस्टेट कई तरह के घोटालों से भरा हुआ उद्योग है.

रियल एस्टेट में जुड़े धोखेबाज कई तरह झूठे वादे कर के खरीदारों, विक्रेताओं और निवेशकों का शोषण करते हैं, जिस से वे अपनी खूनपसीने की कमाई गंवा देते हैं और कानूनी परेशानियों का सामना करने लगते हैं. अपना घर, दुकान या औफिस के लिए निवेश करते समय रियल एस्टेट से जुड़े लोग कई प्रोजेक्ट लांच होने से पहले ही रियल एस्टेट परियोजनाओं में निवेश कर देते हैं, ताकि उन्हें अच्छा रिटर्न मिल सके. लेकिन ऐसे प्रोजेक्ट्स में डेवलपर या तो समय पर काम पूरा नहीं कर पाते या फिर प्रोजेक्ट को पूरी तरह से छोड़ देते हैं, जिस से खरीदार वित्तीय संकट में फंस जाते हैं.

कोविड से ठीक पहले की बात है. दिल्लीएनसीआर में ऐसे कई रियल एस्टेट डेवलपर्स थे, जिन्होंने बहुत सारे प्रोजेक्ट लांच किए, लेकिन उन में से कई बहुत देरी से ग्राहकों को डिलीवर हुए तो कई डिलीवर ही नहीं हुए. इस बीच में कुछ रियल एस्टेट कंपनियां ऐसी आईं, जिन्होंने ग्राहकों के इस भरोसे को फिर से जीतने का काम किया. तभी कोविड के बाद रियल एस्टेट की डिमांड भी बढ़ी तो इन का नाम भरोसे की पहचान बन गया. इन्हीं में से 2 नाम वल्र्ड ट्रेड सेंटर्स और भूटानी इंफ्रा थे. लेकिन अचानक ये दोनों रियल एस्टेट ग्रुप और डेवलपर्स ईडी जांच एजेंसी और इनकम टैक्स विभाग के निशाने पर आ गए.

इसी साल मार्च के पहले हफ्ते में देश की राजधानी दिल्ली और आसपास के शहरों में अपना आशियाना खरीदने की चाहत रखने वाले सैकड़ों लोगों के साथ धोखाधड़ी कर उन के सपनों को तारतार करने वाली कंपनियों के खिलाफ प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की टीम ने ताबड़तोड़ ऐक्शन लिया. ईडी ने रियल एस्टेट सेक्टर की 2 नामी कंपनियों के ठिकानों पर छापेमारी की थी. इस से दिल्ली से ले कर नोएडा, गुरुग्राम, फरीदाबाद तक में हड़कंप मच गया.

इस काररवाई से हजारों करोड़ की संपत्तियों का पता चला है. इस के अलावा बड़ी संख्या में संवेदनशील दस्तावेज भी बरामद किए गए. ये कंपनियां घर खरीदारों और निवेशकों के पैसों पर कुंडली मार कर बैठ गई थीं. 10 साल से भी ज्यादा का समय होने के बावजूद न तो घर दिए गए और न ही वादे के अनुसार प्लौट ही सौंपे गए.

ईडी ने क्यों की कई ग्रुप्स के खिलाफ काररवाई

ईडी ने रियल्टी फर्म डब्ल्यूटीसी ग्रुप और भूटानी ग्रुप के खिलाफ दिल्लीएनसीआर में छापेमारी के बाद हजारों करोड़ रुपए की संपत्ति की पहचान की. दरअसल, ईडी ने 27 फरवरी को दिल्ली, नोएडा (उत्तर प्रदेश), फरीदाबाद और गुरुग्राम (दोनों हरियाणा में) में एक दरजन स्थानों पर डब्ल्यूटीसी ग्रुप और उस के प्रमोटर आशीष भल्ला और भूटानी ग्रुप और उस के प्रमोटर आशीष भूटानी के खिलाफ मनी लांड्रिंग के मामले के तहत छापेमारी की.

ईडी ने यह काररवाई दिल्ली पुलिस की इकोनौमिक आफेंस विंग (ईओडब्ल्यू) और फरीदाबाद पुलिस द्वारा डब्ल्यूटीसी ग्रुप और उस के प्रमोटर आशीष भल्ला, सुपर्णा भल्ला, अभिजीत भल्ला और भूटानी इंफ्रा और अन्य के खिलाफ दर्ज कथित धोखाधड़ी, आपराधिक विश्वासघात और सैकड़ों घर खरीदारों के साथ धोखाधड़ी करने के आरोप में हुई दरजनों एफआईआर के आधार पर की.

दूसरी बार छापेमारी मार्च के पहले सप्ताह में की गई. छापेमारी की काररवाई और पड़ताल के बाद ईडी ने डब्ल्यूटीसी ग्रुप के प्रमोटर आशीष भल्ला को गिरफ्तार कर लिया. इस पर करोड़ों रुपए के फ्रौड के आरोप हैं. नोएडा में डब्ल्यूटीसी के करीब आधा दरजन प्रोजेक्ट अभी अंडर कंस्ट्रक्शन में हैं. ईडी ने कंपनी के अकाउंट, एफडी को फ्रीज कर लिया.

क्या है पूरा मामला

दरअसल, रियल्टी फर्म के खिलाफ सैकड़ों घर खरीदारों और इनवेस्टर्स ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई थी कि उन से पैसे तो ले लिए गए, लेकिन घर, दुकान, औफिस व प्लौट अब तक नहीं दिए गए. इस के आधार पर ही ईडी ने मामला दर्ज किया था. अब आगे की काररवाई की जा रही है. हालांकि भूटानी इंफ्रा ने छापे के बाद कहा था कि उस ने हाल ही में डब्ल्यूटीसी ग्रुप के साथ अपने सभी संबंध तोड़ लिए हैं और अब वह जांच में ईडी के साथ पूरा सहयोग कर रहा है.

पुलिस एफआईआर में साफ लिखा है कि डब्ल्यूटीसी फरीदाबाद इंफ्रास्ट्रक्चर प्राइवेट लिमिटेड और उस के प्रमोटरों ने शहर के सेक्टर 111-114 में रेजिडेंशियल प्लौट के लिए अपने प्रोजेक्ट में निवेश करने के लिए आम जनता को प्रलोभन दिया था. इस में कहा गया कि प्रमोटरों/निदेशकों ने एक आपराधिक साजिश रची और निर्धारित समय के भीतर परियोजना को पूरा न कर के और 10 साल से अधिक समय तक भूखंडों की डिलीवरी न कर के प्लौट खरीदारों की गाढ़ी कमाई को हड़प लिया.

निवेशकों की तरफ से दर्ज कराई गई एफआईआर में यह भी आरोप लगाया गया कि भूटानी इंफ्रा समूह ने डब्ल्यूटीसी समूह का अधिग्रहण कर लिया और फरीदाबाद सेक्टर 111-114 में प्रोजेक्ट को फिर से शुरू किया, जिस से प्लौट खरीदारों को अंधेरे में रखा गया है और निवेशकों के साथ धोखाधड़ी की गई है. उन्हें अपनी यूनिट्स सरेंडर करने के लिए लुभाया गया है. ईडी को छापेमारी में दिल्लीएनसीआर में 15 प्रोजेक्ट के खिलाफ विभिन्न निवेशकों से 3,500 करोड़ रुपए से अधिक की वसूली से संबंधित दस्तावेज मिले हैं. हालांकि, ईडी ने यह नहीं बताया कि ये दस्तावेज कहां से बरामद किए गए.

डब्ल्यूटीसी ग्रुप द्वारा शुरू की जा रही 15 प्रमुख परियोजनाओं में से बहुत कम की डिलीवरी दी गई है, जो एक सुनियोजित पोंजी स्कीम और अन्य संस्थाओं के नाम पर संपत्ति बनाने और विदेशों में धन की हेराफेरी का संकेत देती है. सिंगापुर और अमेरिका भी पैसा भेजे जाने के सबूत मिलने के दावे किए गए हैं. ईडी की काररवाई चल ही रही थी कि इनकम टैक्स अधिकारियों ने भी 4 से 10 मार्च के बीच कोलकाता के 2, गुडग़ांव के 2, गाजियाबाद के 5, दिल्ली के 4, नोएडा के 12  बिल्डरों समेत 40 ठिकानों पर एक साथ छापेमारी कर के रियल एस्टेट वालों की नींद उड़ा दी.

इनकम टैक्स के 100 से अधिक अफसरों ने छापेमारी के बाद बरामद दस्तावेजों के आधार पर पूरा ब्यौरा खंगाला. कई सौ करोड़ के कैश और 50 करोड़ के गलत लेनदेन की जानकारी इनकम टैक्स डिपार्टमेंट के हाथ लगी है. पता चला कि इन बिल्डरों ने कामर्शियल प्रौपर्टी में 40 फीसदी नकद खपाया था. बड़े स्तर पर टैक्स चोरी के इनपुट के चलते छापेमारी को आगे बढ़ाया गया.

इनकम टैक्स विभाग भी आया हरकत में

इनकम टैक्स अधिकारियों की पूछताछ और दस्तावेजों की छानबीन में भूटानी और 108 ग्रुप के काले कारनामों को भी इनकम टैक्स टीम ने उजागर किया. इनकम टैक्स डिपार्टमेंट की टीम ने इस छापेमारी के दौरान 2 हजार करोड़ लोन में खेल का खुलासा किया. लौजिक्स, एडवेंट और ग्रुप 108 बिल्डर समेत 2 ब्रोकर कंपनियों के यहां भी रेड डाली गई थी. ये ग्रुप कैश में प्रोजेक्ट बेचते थे. लौजिक्स ग्रुप ने इंडिया बुल्स से करीब 2000 करोड़ का लोन लिया. इस लोन के बाद उस ने नोएडा में 5 से 6 प्लौट लिए. ये प्लौट औफिस कामर्शियल स्पेस के लिए थे. यहां निर्माण शुरू किया गया, लेकिन आधेअधूरे निर्माण के बाद लौजिक्स ने काम बंद कर दिया.

उधर लगातार इंडिया बुल्स की ओर से लोन जमा करने का प्रेशर बना, जिस के चलते लौजिक्स ने भूटानी ग्रुप के साथ एक एग्रीमेंट साइन किया, जिस के तहत भूटानी ग्रुप इन का कामर्शियल स्पेस बनाएगा और बेचेगा. धीरेधीरे लोन के पैसे लौजिक्स को देगा. हुआ भी ऐसा ही. लेकिन यहां अधिकतर खेल टैक्स चोरी कर किया गया. दरअसल, डेढ़ साल पहले फरवरी 2022 में इनकम टैक्स विभाग को पहला इनपुट मिला था. इस के बाद उन्होंने दस्तावेजों को खंगालना शुरू किया. इस दौरान उन्हें जानकारी मिली कि भूटानी ग्रुप 2 भागों में बंट गया.

पहला भूटानी इंफ्रा और दूसरा ग्रुप 108. इन का पैसा भी इस कामर्शियल स्पेस में लगा. इसी तरह एडवंट बिल्डर भी पहले भूटानी के साथ कोलेबोरेशन में काम करता था. उस का पैसा भी इस में लगा है. इसीलिए इन चारों बिल्डरों पर भी एक साथ रेड की गई है. कामर्शियल स्पेस बेचने में टैक्स चोरी का पूरा खेल बेहद दिलचस्प तरीके से अंजाम दिया गया. इस फरजीवाड़े में 40 प्रतिशत कैश लिया जाता था. यह पूरा खेल लौजिक्स ग्रुप के कामर्शियल प्लौट स्पेस को बेचने को ले कर किया गया. लौजिक्स ने इस के लिए भूटानी ग्रुप से इंटरनल एग्रीमेंट किया, जिस के तहत भूटानी ने इस स्पेस को बेचना शुरू किया. यहां अधिकांश पैसा ब्लैक में खपाया गया.

प्लौट को बेचने में 40 प्रतिशत तक की धनराशि कैश में ली गई. इस के न कोई पक्के दस्तावेज होते थे और न ही कोई लीगल डाक्यूमेंट. इसी कामर्शियल स्पेस में नामीगिरामी लोगों ने अपना ब्लैक मनी भूटानी ग्रुप में खपाया.

डब्ल्यूटीसी से हुई घपले की शुरुआत

इस घपले की शुरुआत होती है डब्ल्यूटीसी यानी वल्र्ड ट्रेड सेंटर्स कंपनी से. डब्ल्यूटीसी समूह एक रियल एस्टेट कंपनी है, जो दिल्ली एनसीआर में कई परियोजनाओं पर काम करती थी. इस के कर्ताधर्ता हैं आशीष भल्ला, जो एक आदतन अपराधी है. आशीष भल्ला का काम करने का तरीका यह है कि वह डब्ल्यूटीसी एसोसिएशन यूएसए से फ्रेंचाइजी लेता है. मुख्य रूप से भारत में इनवैस्टर क्लिनिक और विदेशों में स्क्वायर यार्ड और उन के विभिन्न बिक्री एजेंटों के माध्यम से प्रोजेक्ट बेचता है. इन प्रौपर्टी एजेंट्स के माध्यम से डब्ल्यूटीसी नोएडा के प्रोजेक्ट को डब्ल्यूटीसी यूएसए परियोजनाओं का बता कर बेचा जाता है. इस के बाद फिर खरीदारों से भारी प्रीमियम लिया जाता है.

डब्ल्यूटीसी नोएडा प्रोजेक्ट में निवेश करने वाले हजारों बायर्स ने अपनी जीवन भर की जमापूंजी डब्ल्यूटीसी के प्रोजेक्ट में लगाई,  लेकिन अब भी वे अपने निवेश पर ठगे महसूस कर रहे हैं. डब्ल्यूटीसी नोएडा के डायरेक्टर आशीष भल्ला ने लगभग 5 हजार करोड़ रुपए और 20 हजार से अधिक खरीदारों और निवेशकों को धोखा दिया है. बायर्स ने विभिन्न प्रोजेक्ट्स जैसे टेक-1 और 2, 1डी, 1ई, सिग्नेचर टेक जोन, प्लाजा, क्वाड, क्यूबिक और रिवरसाइड रेजिडेंसी में निवेश करने वालों को अब तक उन का हक नहीं मिला है.

बायर्स अब तक 13 से अधिक विरोध प्रदर्शन और प्रैस कौन्फ्रेंस कर चुके हैं. उन्होंने सभी संबंधित अधिकारियों और नेताओं से भी संपर्क किया, लेकिन कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिला. बायर्स ने रेरा, उपभोक्ता अदालतों, हाईकोर्ट और एनसीएलटी सहित कई जगहों पर शिकायतें दर्ज कराईं, लेकिन अब तक कोई ठोस काररवाई नहीं हुई थी. नोएडा प्रशासन और अन्य सरकारी एजेंसियां भी जिम्मेदारी लेने से बचती रहीं. बायर्स को 27 से अधिक मामलों की सुनवाई के बावजूद कोई राहत नहीं मिली.

बायर्स ने डब्ल्यूटीसी नोएडा व आशीष भल्ला के खिलाफ विभिन्न भारतीय अदालतों में कई कानूनी मामले दर्ज कराए थे. दरअसल, इस प्रोजेक्ट में भूटानी ग्रुप द्वारा शेयर खरीद कर एक और बड़े फ्राड को अंजाम देने की भूमिका तैयार की जा रही थी. भूटानी डब्ल्यूटीसी नोएडा परियोजना को भूटानी अल्फातम परियोजना में बदलने की पेशकश करने लगा. डब्ल्यूटीसी नोएडा आशीष भल्ला प्रौपर्टी एजेंटों को भारी कमीशन देता था. हकीकत यह थी कि डब्ल्यूटीसी यूएसए का नोएडा डब्ल्यूटीसी से कोई संबध था ही नहीं. डब्ल्यूटीसी यूएसए ने कभी आशीष भल्ला को अपना नाम इस्तेमाल करने या उन की कंपनी से संबध जोडऩे की अनुमति नहीं दी थी.

जब डब्ल्यूटीसी नोएडा की धोखाधडिय़ों के बारे में उन के बायर्स ने डब्ल्यूटीसी यूएसए के साथ पत्राचार कर उस के कारनामों के बारे में शिकायत की तो यूएसए की कंपनी ने साफ कर दिया कि उन की डब्ल्यूटीसी नोएडा में कोई जिम्मेदारी नहीं है. बायर्स ने जब 2 कदम आगे बढ़ा कर कारपोरेट मामलों के मंत्रालय में छानबीन की तो पता चला कि डब्ल्यूटीसीए यूएसए और डब्ल्यूटीसी नोएडा (वेरिडन रेड) के बीच कोई संबंध नहीं है. इस के बाद साफ हो गया कि आशीष भल्ला आदतन अपराधी होने के कारण ही कभी भी अपना कोई प्रोजेक्ट पूरा नहीं करता है और खरीदारों का सारा पैसा अपनी शेल कंपनियों में जमा कर देता है.

भूटानी ग्रुप ने इस प्रोजेक्ट में शेयर खरीद कर एक और बड़ा घोटाला किया. भूटानी ग्रुप, डब्ल्यूटीसी नोएडा को भूटानी अल्फातम प्रोजेक्ट में बदलने का प्रयास करने लगी और बाजार दर से अधिक कीमत वसूलने की योजना बनाई. आयकर विभाग की काररवाई से पहले प्रवर्तन निदेशालय ने डब्ल्यूटीसी नोएडा और आशीष भल्ला-भूटानी ग्रुप के 12 ठिकानों पर छापेमारी की थी, जिस में 3,500 करोड़ रुपए के अवैध दस्तावेज बरामद हुए थे. सिंगापुर में फंड ट्रांसफर का खुलासा हुआ. मनी लांड्रिंग की इसी जांच के लिए ईडी ने आशीष भल्ला को गिरफ्तार कर 7 दिनों के रिमांड पर भी लिया.

आशियाने के लिए दरदर भटक रहे हैं लोग

डब्ल्यूटीसी में इनवैस्ट करने वालों की अपनीअपनी कहानियां है. एक बायर सुजीत सिंह ने साल 2018 में डब्ल्यूटीसी बिल्डर के यहां लाखों रुपए इनवैस्ट किया था. लेकिन कुछ समय बाद उन्हें अपना पैसा डूबता हुआ नजर आ रहा था, लेकिन भूटानी के आने से अब उन्हें थोड़ी राहत मिलती दिखी. क्योंकि भूटानी ने उन से कहा कि आप हमारी कुछ शर्तों पर फार्म भर दीजिए, जिस के बाद अधिकांश बायर्स ने नई शर्तों के साथ फार्म भर दिए. उन्हें उम्मीद थी कि उन की यूनिट मिल जाएगी. लेकिन ऐसा हो नहीं सका तो बायर्स ने फिर सरकार से गुहार लगाई और भूटानी बिल्डर से भी कहा कि जल्द से जल्द उन के औफिस बना कर पजेशन दिए जाएं.

एक अन्य बायर तरुण रावत का भी यही दर्द है, उन्होंने बताया कि दुबई से उन के भाई ने डब्ल्यूटीसी में लाखों रुपए इनवैस्ट किया था. अब वे काफी लंबे समय से इंतजार कर रहे हैं. प्रोजेक्ट भूटानी में शिफ्ट होने के बाद उम्मीद थी कि भूटानी जल्द से जल्द उन की यूनिट बना कर देंगे. लेकिन उन्होंने भी धोखा दे दिया. डब्ल्यूटीसी के साथ वित्तीय या परिचालन संबंधों के आरोपों के जवाब में, भूटानी इंफ्रा ने एक बयान जारी कर विवादास्पद रियल एस्टेट समूह से भूमि या फंड ट्रांसफर में किसी भी तरह की संलिप्तता से साफ इनकार किया. कंपनी ने स्पष्ट किया कि डब्ल्यूटीसी के साथ अपने संक्षिप्त जुड़ाव के दौरान भूटानी इंफ्रा को कोई भूमि या फंड ट्रांसफर नहीं किया गया, जिस में भूटानी इंफ्रा या उस के निदेशकों को भूमिधारक कंपनियों में कोई शेयर ट्रांसफर शामिल है.

भूटानी इंफ्रा ने कहा कि उस ने जुलाई, 2024 में समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर करने के 6 महीने बाद फरवरी, 2025 में डब्ल्यूटीसी समूह के साथ अपने संबंध पूरी तरह से तोड़ लिए थे. कंपनी ने इस बात पर जोर दिया कि उस का डब्ल्यूटीसी से कोई वित्तीय या परिचालन संबंध नहीं है और इस के विपरीत कोई भी सुझाव गलत और धोखे से भरे हुए हैं. डब्ल्यूटीसी से संबंधित कोई दायित्व न होने के बावजूद भूटानी इंफ्रा ने कहा कि वह चल रही जांच में ईडी के साथ पूरा सहयोग करते हुए संकटग्रस्त ग्राहकों को सहायता और मार्गदर्शन दे रही है.

इस बीच, वल्र्ड  ट्रेड कस्टमर एसोसिएशन के तत्त्वावधान में हजारों घर खरीदार और निवेशक आशीष भल्ला और डब्ल्यूटीसी  नोएडा डेवलपमेंट कंपनी प्राइवेट लिमिटेड से जुड़े भारत के सब से बड़े रियल एस्टेट धोखाधड़ी में तत्काल सरकार से तत्काल हस्तक्षेप की मांग कर रहे हैं. 4 राज्यों— उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब व गुजरात और 17 परियोजनाओं में फैले इस घोटाले ने 20,000 से अधिक खरीदारों को अधूरे विकास और हजारों करोड़ रुपए के वित्तीय नुकसान के साथ फंसा दिया है.

आखिर निवेशकों को क्यों नहीं मिल रहा न्याय

वल्र्ड ट्रेड कस्टमर एसोसिएशन का कहना है कि निवेशकों से धोखाधड़ी गतिविधियों के पर्याप्त सबूतों के बावजूद, भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी), रियल एस्टेट विनियामक प्राधिकरण (रेरा) और उपभोक्ता मंचों जैसे नियामक निकाय प्रभावी काररवाई करने में विफल रहे हैं,  जिस से निवेशकों के पास कोई सहारा नहीं बचा है. सब से बड़ी विफलता गंभीर धोखाधड़ी जांच कार्यालय (एसएफआईओ) और राष्ट्रीय कंपनी कानून न्यायाधिकरण (एनसीएलटी) की है, जहां कंपनी अधिनियम की धारा 241 के तहत एक आपातकालीन आवेदन 28 महीने से अधिक समय से अनसुलझा है.

एसोसिएशन का दावा है कि 24 जुलाई, 2022 को उस ने वल्र्ड ट्रेड कस्टमर एसोसिएशन नोएडा डेवलपमेंट कंपनी के खिलाफ एसएफआईओ को एक व्यापक शिकायत प्रस्तुत की, जिस में धोखाधड़ी वाली सुनिश्चित रिटर्न योजनाओं से जुड़े बड़े पैमाने पर वित्तीय घोटाले का खुलासा हुआ. जवाब में एसएफआईओ ने 29 सितंबर, 2022 को एनसीएलटी के साथ एक आवेदन (सीपी-156/2022) दायर किया, जिस में गंभीर कुप्रबंधन और धोखाधड़ी गतिविधियों के कारण कंपनी के प्रबंधन में सरकारी हस्तक्षेप की मांग की गई.

डब्ल्यूटीसीए का आरोप है, ‘हालांकि, एक आपातकालीन प्रावधान होने के बावजूद, मामले में बारबार देरी हुई है. 28 महीनों में 29 सुनवाई के बाद भी कोई खास प्रगति नहीं हुई है. प्रत्येक सुनवाई एसएफआईओ के कानूनी प्रतिनिधियों या अभियुक्तों के प्रतिनिधियों की अनुपस्थिति के कारण रुकी हुई है, जिस से सिस्टम में हेरफेर करने और जवाबदेही से बचने के लिए धोखेबाजों द्वारा संभावित हस्तक्षेप के बारे में चिंता बढ़ रही है.’

डब्ल्यूटीसीए की अध्यक्ष अलका जैन कहती हैं कि एनसीएलटी का मामला अभी भी अटका हुआ है, न तो एसएफआईओ और न ही किसी अन्य प्राधिकरण ने आरोपियों को गिरफ्तार किया और न ही उन की संपत्ति जब्त की, जिस से वे निवेशकों को धोखा देते रहे हैं. सैकड़ों शिकायतें प्राप्त करने के बावजूद, 4 राज्यों से रेरा ने मामले में फोरैंसिक औडिट शुरू नहीं किया. पंजाब रेरा के समक्ष आधिकारिक फाइलिंग से पता चलता है कि 372 करोड़ रुपए एकत्र किए गए, 284 करोड़ रुपए निकाले गए और जीरो प्रतिशत परियोजना पूरी हुई, फिर भी कोई काररवाई नहीं की गई.

इस के अलावा, डब्ल्यूटीसी समूह के खिलाफ यूपी रेरा में 338 शिकायतें दर्ज की गई हैं, लेकिन कोई सार्थक हस्तक्षेप नहीं हुआ. डब्ल्यूटीसीए ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय कारपोरेट मामलों के मंत्रालय से हस्तक्षेप करने और यह सुनिश्चित करने का आग्रह किया है कि डब्ल्यूटीसी समूह के घर खरीदारों और निवेशकों को बिना किसी देरी के न्याय मिले.

 

 

UP News : गीता हुई भतीजे के प्यार में दीवानी

UP News : 28 वर्षीय गीता का पति प्रकाश कनौजिया मुंबई में था. वह मायके में रहते हुए 2 बच्चों की जिम्मेदारियां संभाले हुए थी. निजी जिंदगी जैसेतैसे तनहाई में गुजर रही थी. हमउम्र भतीजे विकास का जरा सा सहारा क्या मिला, उसी से दिल लगा बैठी. एक तरफ प्रेम की दीवानगी थी, अनैतिक संबंध और वासना का उफान था तो दूसरी तरफ पैसे की तंगी भी थी. फिर जो कुछ हुआ, उस में गेहूं के साथ घुन पिसने की कहावत चरितार्थ हो गई. क्या हुआ, कैसे हुआ, पढ़ें मांबेटी हत्याकांड की पूरी कहानी…

मलीहाबाद में मिर्जागंज बाजार स्थित एक चर्चित कपड़े की दुकान ‘प्रेम वस्त्रालय’ में बैठा विकास बारबार आ रहे फोन काल से परेशान हो गया था. त्यौहार का सीजन था. ग्राहकों की भीड़ थी. 2 दिन बाद ही करवाचौथ आने वाला था. वह ग्राहक को देखे या फिर फोन सुने. तंग आ कर उस ने मोबाइल ही स्विच औफ कर दिया.

दुकान पर जब ग्राहकों की भीड़ कम हुई, तब उस ने लंच करने के लिए अपने टिफिन का थैला उठाया और दुकान के पीछे छोटे से गोदाम में चला गया. लंच बौक्स खोला, साथ ही अपने मोबाइल को औन किया. मोबाइल औन होते ही स्क्रीन पर पर 22 मिस काल और 8 वाट्सऐप मैसेज चमकने लगे. ये सभी मिस्ड काल और मैसेज गीता के थे. कुछ घंटे पहले गीता ही लगातार उसे काल पर काल किए जा रही थी. काल करने के बजाए उस ने मैसेज पढऩा शुरू किया. विकास का मन कड़वा हो गया. सोचा खाना खाने के बाद या दुकान से छुट्टी होने पर गीता को काल कर लेगा. उस ने फटाफट 5-7 मिनट में लंच कर लिया.

लंच बौक्स संभालते वक्त गीता के 2 और वाट्सऐप मैसेज आ गए. मैसेज क्या थे, पूरी शिकायत थी. उस में धमकी भी शामिल थी. लिखा था, ”मैं आ रही हूं दुकान पर, देखती हूं कि तुम मुझे कैसे कपड़े नहीं दिलवाते हो?’’

मैसेज पढ़ कर वह भुनभुनाया, ”कहां से कपड़े दिलवाऊं? वैसे ही दुकान का मालिक पिछला बकाया मांग रहा है…’’

वह झुंझला उठा था. उस के मन में बेचैनी आ गई थी. सिर खुजलाता हुआ किसी तरह खुद को सहज बनाने की कोशिश की और दुकान पर जा बैठा. वहां ग्राहकों की भीड़ लग गई थी. वह जल्दीजल्दी उन्हें निपटाने के लिए अपने सहयोगी सेल्समैन का हाथ बंटाने लगा. अचानक उस की नजर सामने सड़क की ओर गई. उस ने गीता को दुकान में घुसते देखा तो सकपका गया. दुकान के एक किनारे चला गया. तब तक गीता वहां पहुंच गई. आते ही शिकायती लहजे में बोल पड़ी, ”तुम ने फोन क्यों नहीं उठाया, कितनी बार काल किया.’’

”देख रही हो दुकान पर कितने ग्राहक हैं!’’ विकास बोला.

”तुम ने फोन ही बंद कर दिया, लाओ कहां है मेरी साड़ी?’’ गीता सीधे अपनी बात पर आ गई थी.

विकास रिश्ते में गीता का भतीजा था. वह कपड़े की दुकान में सेल्समैन की नौकरी करता था. उसे उस ने 2 दिन पहले ही करवाचौथ के लिए साड़ी लाने को कहा था. विकास गीता की बातों का कोई जवाब नहीं दे पाया था.

”अब मुझे टुकुरटुकुर क्या देख रहे हो. साड़ी दो उस में फाल लगवानी है. मैचिंग ब्लाउज भी सिलवाना है. पेटीकोट भी बनवाना है.’’ गीता बोलने लगी.

”गीता, तुम अभी घर जाओ, मैं शाम को साड़ी लेता आऊंगा. पूजा का सामान भी ला दूंगा.’’ विकास बोला.

”यह तो तुम हफ्ते भर से बोल रहे हो, नहीं ले कर आए, तभी तो मुझे यहां आना पड़ा.’’ गीता बोली.

”अभी तुम जाओ, प्लीज तुम यहां से चली जाओ. दुकान पर बहुत काम है!’’ विकास बोला.

”ठीक है, जाती हूं. लेकिन साड़ी, पूजा का सामान ले कर आना और कुछ पैसे भी देना.’’ बोलती हुई गीता वहां से चली गई.

विकास ने राहत की सांस ली. कुछ पल वह मौन बना रहा. फिर काम में लग गया.

दुुकान से निकल कर गीता मायूस थी. वह सोचती हुई जा रही थी, विकास के व्यवहार में कितना बदलाव आ गया है. जो विकास एक समय में उस की हर बात को तुरंत मान लेता था, एक पैर पर खड़े हो कर उस का हर काम करने के लिए तैयार हो जाता था. लेकिन अब वह क्यों बदल गया है. उसे अपनी बदहाल और अभावग्रस्त जिंदगी को ले कर रोना आ रहा था. खुद को कोस रही थी. खुद से बातें करती घर जा रही थी, ‘आखिर वह किस अधिकार से करवाचौथ के लिए उस से साड़ी मांगने गई थी, जबकि उस का पति प्रकाश मुंबई में बैठा था. उस ने त्यौहार के मौके पर छुट्टी नहीं मिलने के कारण घर नहीं आने की खबर कर दी थी. उसी ने विकास से कपड़े आदि खरीदवाने को कहा था. इसी आस में वह विकास से उम्मीद लगा बैठी थी.’

प्रेमी के प्रति गीता के मन में क्यों हुई नफरत

दूसरी तरफ विकास दुकान में अपनी अंगुलियों पर हिसाब लगा रहा था. वह कर्ज के बोझ की चिंता में डूबा था. वह समझ नहीं पा रहा था कि दुकान के मालिक से कैसे साड़ी और कुछ पैसे उधार देने की मांग करे. उस ने पहले से ही जो कर्ज ले रखा था, उसे चुकाने में कई महीने लग जाएंगे. वह और कर्ज लेने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था. गीता ने करवाचौथ के मौके पर बेमन से आए दिन पहनने वाली साड़ी में ही चावल, बतासे और जल से चंद्रमा को अघ्र्य दे कर छोटीमोटी रस्में पूरी कर लीं. छलनी से पति की तसवीर को निहार लिया. चंद्रमा को प्रणाम किया और व्रत तोडऩे के बाद पास बैठी 6 वर्षीय बेटी दीपिका को प्रसाद खाने के लिए दे दिया.

आधी रात का वक्त होने को आया था. गीता भूखीप्यासी थी. उसे नींद नहीं आ रही थी. अचानक दरवाजे पर किसी के आने की आहट सुनाई दी. उस ने कमरे के बाहर जा कर देखा. सामने विकास उसे देख कर मुसकरा रहा था. खाली हाथ उसे देख रहा था.

”अब यहां क्या लेने आया है, वह भी आधी रात को, चलो भागो यहां से. जाओ, आज के बाद से मेरे घर में कदम मत रखना. मुझे तुम्हारी कोई जरूरत नहीं है.’’ गीता विकास को देखते ही आंखे तरेर कर बोली.

”गीता, मेरी मजबूरी तो समझो…’’ विकास के आगे बोलने से पहले ही गीता भद्ïदी सी गाली के साथ बोली, ”हरामी कहीं का, जब देखो मुंह उठाए मेरे यहां चला आता है और जब मुझे जरूरत होती है, तब मुंह फेर लेता है.’’

गीता लगातार गालियां दिए जा रही थी और विकास बेशरमी से सुनता रहा. वह अजीबोगरीब स्थिति में था. जबकि गीता उसे बोलने का मौका ही नहीं दे रही थी. वह ऐसे कर रही थी, जैसे उसे चबा ही जाएगी. भूखी शेरनी की तरह गुर्राने के कारण विकास के बोल नहीं निकल पा रहे थे. बोलते हुए उस के शब्द अटक रहे थे. बोलतेबोलते गीता एक झटके से मुड़ी और कमरे का दरवाजा भीतर से बंद कर लिया. बाहर विकास कुछ सेकेंड तक ठिठका रहा, फिर वापस अपने घर लौट आया. उधर गीता ने सौगंध ले ली कि वह भविष्य में विकास को यहां कभी आने नहीं देगी और न ही वह उस से कभी मिलेगी.

हुआ भी ऐसा ही. हफ्तों बीत गए, गीता ने विकास से मिलना तो दूर उसे फोन तक करना मुनासिब नहीं समझा. यहां तक कि नए साल की शुभकामनाओं का मैसेज तक नहीं दिया. जबकि विकास गीता को फोन करता था, लेकिन गीता उस का फोन कट कर देती थी. विकास के घर आने पर वह बेरुखी से तुरंत दरवाजा बंद कर लेती थी. विकास जब भी दुकान पर होता, तब उस की बारबार बाहर जाने वाली नजर गीता को तलाशती रहती थी. वह उसे एक बार मिल कर बता देना चाहता था कि उस की  मजबूरियां क्या हैं? वह उसे कितना प्यार करता है. उस पर कितना खर्च करता रहा है और उस कारण वह किस कदर कर्जदार बना हुआ है.

विकास को एक दिन संयोग से गीता बाजार में खरीदारी करती दिख गई. वह अपने पापा सिद्धनाथ, बेटे दीपांशु और बेटी के साथ थी. दरअसल, उस की ससुराल ईशापुर में है. पति प्रकाश मुंबई में प्राइवेट नौकरी करता है. लखनऊ से 6 किलोमीटर की दूरी पर उस का मायका दिलावर नगर है. उस के पापा सिद्धनाथ अकसर गीता की देखरेख करने और जरूरत की चीजें दिलवाने के लिए उस की ससुराल आया करते थे. उस दिन विकास गीता को बाजार में देख कर दुकान से तुरंत उतर कर पीछे से गीता के सामने जा कर खड़ा हो गया. उस वक्त गीता अकेली एक कौस्मेटिक्स की दुकान के सामने खड़ी थी. विकास गीता का हाथ पकड़ कर एक किनारे ले गया.

”क्या इरादा है तुम्हारा? क्यों तुम मेरे हाथों मरना चाहती हो?’’ विकास ने एक सांस में ही गीता को बहुत खरीखोटी सुना दी. उस ने यहां तक कह दिया, ”या तो तुम मेरी जान ले लो या मैं तुम्हारी जान ले लूं!’’ गीता मौके की नजाकत को देख कर विकास की बात को सुनती रही. कुछ देर में विकास खुद शांत हो गया. तब गीता बच्चों को साथ ले कर चुपचाप अपने घर चली गई.

दोहरे मर्डर से सकते में आई पुलिस

बात 17 जनवरी, 2025 की है. मलीहाबाद पुलिस के बीट प्रभारी एसआई अमन श्रीवास्तव को सुबहसुबह ईशापुर गांव में एक महिला और 6 वर्षीय बच्ची की मकान के अंदर हत्या किए जाने की सूचना मिली. उन्होंने इस की सूचना एसएचओ सतीशचंद्र साहू को दे दी. साहू ने भी फौरी काररवाई करते हुए अमन श्रीवास्तव को पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर जाने के आदेश दिए.

थोड़ी देर में ही एसीपी अमोल मुरकर और पुलिस टीम घटनास्थल पर पहुंच गई. अमन श्रीवास्तव के साथ एसआई अश्वनी कुमार और विवेक कुमार के अलावा सिपाही गौरीशंकर यादव, उत्तम राठी और हैडकांस्टेबल कामरान खान भी ईशापुर पहुंच गए थे. घर के भीतर दोहरे हत्याकांड की मौके पर की गई जांच के दौरान पुलिस ने पाया कि मृतका की उम्र 28 साल थी और उस का नाम गीता और 6 साल की बच्ची उस की बेटी दीपिका है. दोनों की हत्या धारदार हथियार से की गई थी. मौके पर गीता की गरदन कटी पाई गई.

पुलिस की जांच में रात 2 से 3 बजे के बीच घटना को अंजाम दिए जाने की आशंका जताई गई. पुलिस दल ने दोनों लाशों का पंचनामा भर कर पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. पुलिस ने जांच में गीता की ससुराल ईशापुर और मायका दिलावर नगर के बीच 2 केंद्र चिह्निïत किए. हत्यारे का पता लगाने के लिए सर्विलांस टीम और डौग स्क्वायड ने दिन में 12 बजे ईशापुर गांव जा कर जांच की. खोजी कुत्ता घर से 20 मीटर की दूरी तक लखनऊ रेलवे लाइनों के किनारे कुछ दूर गया और ठहर कर वापस लौट आया. पुलिस ने अनुमान लगाया कि रेलवे ट्रैक के सहारे किनारेकिनारे हमलावर आए होंगे और पैदल गीता के घर तक गए होंगे.

पुलिस ने इस हत्याकांड में किसी परिचित के शामिल होने की आशंका जताई. ग्रामीणों ने पूछताछ में पुलिस को बताया कि गीता के घर में ज्यादातर उस के परिवार के लोगों का ही आनाजाना था, जो ससुराल और मायके के होते थे. वैसे इस हत्याकांड की सूचना गीता के पापा सिद्धनाथ कनौजिया को भेज दी गई थी. वह लखनऊ में दिलावर नगर, रहीमाबाद थाने के रहने वाले हैं. उन की तहरीर पर मलीहाबाद थाने में धारा 103(1) बीएनएस के तहत केस दर्ज कर लिया गया.  इस की आगे की जांच के लिए डीसीपी (पश्चिम) विश्वजीत श्रीवास्तव द्वारा पुलिस की टीमों का गठन किया गया.

डीसीपी और एडीसीपी धनंजय कुमार कुशवाहा ने क्राइम टीम के सर्विलांस की टीम को इंसपेक्टर सतीशचंद्र साहू के साथ शामिल कर दिया. पुलिस कमिश्नर कार्यालय के इंसपेक्टर शिवानंद मिश्रा, एसआई आशुतोष पांडेय, शुभम पाराशर और हबीब के अलावा पवन, दिलीप व सूरज सिंह सिपाहियों को ले कर 5 टीमें बनाई गईं.

प्रकाश घर क्यों नहीं आ पाता था पत्नी से मिलन

सभी जांच टीमों की मेहनत ने 12 घंटे में रंग दिखा दिया. गीता के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स मालूम हो चुकी थी. उस के मुताबिक गीता के मोबाइल फोन पर एक साल के भीतर 1100 काल विकास के द्वारा किए गए थे. फिर क्या था, घटना के अगले दिन ही 17 जनवरी, 2025 को ईशापुर निवासी राजेश के बेटे विकास को मलीहाबाद में हाइवे के किनारे से पकड़ लिया गया.

विकास से थाने में सख्ती से पूछताछ की जाने लगी. जल्द ही उस ने स्वीकार कर लिया कि वह गीता से बहुत प्यार करता था, लेकिन कुछ दिनों से उस की बेरुखी से तंग आ गया था. उस के बाद वारदात की तह में छिपी कहानी इस तरह बताई—

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के अंतर्गत 24 राजमार्ग के किनारे मलीहाबाद से 3 किलोमीटर की दूरी पर ईशापुर गांव में प्रकाश कनौजिया का परिवार रहता है. प्रकाश के पापा का नाम रामखिलावन था. उस के घर की आर्थिक स्थिति काफी कमजोर थी. गांव में रह कर गुजरबसर होनी काफी मुश्किल थी. इस कारण रामखिलावन का भाई रामविलास सन 2010 में गांव से मुंबई चला गया था. किसी तरह वहां कामधंधा किया. बाद में उस ने वहां एक लौंड्री की दुकान खोल ली. जल्द ही लौंड्री का व्यवसाय चलने लगा. धंधा जमते ही रामविलास अपने बुजुर्ग मम्मीपापा के गुजरबसर के लिए हर महीने कुछ पैसा भेजने लगा. रामखिलावन ने रामविलास के कहने पर 2014 में प्रकाश का विवाह दिलावर नगर निवासी सिद्धनाथ कनौजिया की बेटी गीता के साथ करवा दिया.

शादी के बाद गीता अपनी ससुराल ईशापुर आ गई. प्रकाश और गीता का दांपत्य जीवन हंसीखुशी से शुरू हुआ. शादी के एक साल बाद गीता ने एक बेटे को जन्म दिया, जिस का नाम दीपांशु रखा गया. रामविलास के मुंबई जाने के बाद घर के खर्चों की जिम्मेदारी प्रकाश पर आ गई. प्रकाश चाहता था कि वह भी कोई कामधंधा शुरू करे. लेकिन उस के सामने मजबूरी थी. वह पत्नी और मम्मीपापा को अकेला नहीं छोडऩा चाहता था. शादी के 3 साल बाद गीता ने एक बेटी को जन्म दिया. प्रकाश और गीता को अब दोनों बच्चों के भविष्य की चिंता सताने लगी. गीता प्रकाश पर मुंबई जा कर रामविलास के साथ ही कोई कामधंधा करने के लिए दबाव बनाने लगी.

इस बारे में गीता ने अपने ससुर से भी बात कर उन्हें राजी कर लिया. साल 2018 की होली के मौके पर रामविलास अपने घर आया, तब गीता ने उस से भी प्रकाश को साथ ले जाने की विनती की. वह खुशीखुशी तैयार हो गया. होली के बाद अप्रैल, 2018 के पहले सप्ताह में प्रकाश भी मुंबई के उपनगर कल्याण पहुंच गया. रामविलास ने उस के लिए एक छोटी खोली किराए पर ले ली और उस की भी लौंड्री की दुकान खुलवा दी. प्रकाश ने खूब मेहनत की और अपने मधुर व्यवहार से धंधा जमा लिया. किंतु इस बीच वह गीता और बच्चों को एकदम से भूल गया. हालांकि वह चाहता था कि कमाई से पैसा जमा करे और दीवाली के मौके पर ढेर सारा पैसा ले कर घर जाए.

हालांकि करीब 6 महीने बाद प्रकाश पैसा देने के लिए एक रात के लिए अपने गांव  आया और अगले दिन ही मुंबई लौट गया. गीता को पति का इस तरह जल्दी में जाना अच्छा नहीं लगा, लेकिन वह उसे चाह कर भी नहीं रोक पाई. धीरेधीरे एक साल बीतने को आया. प्रकाश गांव नहीं आ पाया. साल 2020 के आते ही कोरोना काल आ गया. लौकडाउन लग गया. वह चाह कर भी गांव नहीं जा पाया.

2022 के फरवरी-मार्च में होली पर प्रकाश ने एक बार फिर गांव ईशापुर आने की तैयारी की. लेकिन दोबारा लौकडाउन के चलते वह मुंबई में ही फंसा रहा. पत्नी और बच्चों से मिलने नहीं आ सका. इस का असर उस के धंधे पर भी हुआ. कमाई बहुत कम हो गई.

चाची का विकास पर कैसे आया दिल

गीता को भी घर का खर्च चलाना मुश्किल हो गया. प्रकाश ने उसे जो पैसे भेजे थे, वे सब खर्च हो गए थे. गीता को अपने परिवार के भरणपोषण के लिए परेशान रहने लगी. इसी बीच प्रकाश ने अपने रिश्ते के चचेरे भाई राजेश के बेटे विकास से मदद मांगी. उसे  अपनी चाची गीता और दोनों बच्चों का खयाल रखने का अनुरोध किया. इस बारे में प्रकाश ने गीता को भी फोन पर बता दिया कि वह बेझिझक विकास से किसी भी तरह की मदद ले सकती है. उस के बाद से विकास और गीता का मिलनाजुलना होने लगा था. विकास गीता से मिलने घर पर बेरोकटोक आने लगा था. उन के बीच चाचीभतीजे का रिश्ता था, इस वजह से पासपड़ोस और मायके के लोगों को उन के मिलनेजुलने पर कोई आपत्ति नहीं थी.

चाचा प्रकाश से किए वायदे को विकास अच्छी तरह निभा रहा था. विकास जब भी काम से फुरसत पाता, चाची गीता से मिलने चला आता था. दोनों घंटों साथ बैठ कर बातें करते रहते थे. विकास उसे जरूरत की चीजें भी ला कर दे दिया करता था. गरमी के दिन थे. रात के 9 बज रहे थे. धीरेधीरे रात पैर पसार रही थी. गीता के दोनों बच्चे आंगन में पड़ी चारपाई पर सो रहे थे. सन्नाटे में घर के अंदर दोनों अकेले थे. विकास जब अपने घर को चलने को हुआ तो गीता ने कहा कि आज रात को खाना यहीं खा कर यहीं सो जाओ.

विकास गीता की बात सुन कर कुछ ठिठक सा गया. जेहन में एक विचार कौंध गया. लालटेन की मध्यम रोशनी में वह गौर से गीता के गोरे चेहरे को निहारने लगा. तभी विकास का कुंवारापन जाग उठा था. वह 25 साल का नवयुवक था. काफी देर तक उस का चेहरा निहारने के बाद बोला, ”आज मुझे घर जाने दो. मैं कल शाम को अपनी मां से यहां रुकने के लिए कह कर आऊंगा.’’

विकास की बात सुन कर गीता मुसकराई और बोली, ”कल जरूर आ कर रुकना, तुम्हें मेरी कसम है.’’

गीता के आग्रह के साथ बोलने और कसम देने की बात कहने पर विकास का दिलदिमाग और भी झनझना उठा था. वह उस की चाहत को समझ गया था. जातेजाते बोला, ”यहीं आ कर रात को रुकूंगा और खाना भी यहीं खाऊंगा.’’

विकास मलीहाबाद में एक कपड़े की दुकान में नौकरी करता था और रोजाना की तरह बाजार से शाम को अपने घर वापस लौटते समय अकसर गीता से बातें करने के लिए उस के पास चला जाता था. उस का मन धीरेधीरे उस की आकर्षित होने लगा था.

एक झटके में टूट गई मर्यादा की दीवार

अगले दिन विकास पूरी तैयारी के साथ गीता के पास गया. उस ने नौनवेज खरीदा. इस के अलावा शराब की एक बोतल भी खरीद कर रख ली. ये चीजें दिन में बाइक से गीता के घर जा कर दे आया और रात में आने को बोल गया. रात के 10 बजे विकास गीता के घर पहुंचा. गीता खाना खाने का इंतजार कर रही थी. विकास ने खाना खाने के पहले शराब के 2 पैग लेने की योजना बनाई. जब तक गीता खाना गर्म करने रसोई में गई, तब तक विकास ने शराब के पैग पीने शुरू कर दिए.

जब खाना ले कर गीता आई, तब उस ने नशे की हालत में गीता को भी जबरन 2 पैग शराब पिला दी. उस रात दोनों पर शराब का नशा इस कदर हावी हो गया कि वे आपस में छेड़छाड़ और नोकझोंक करते हुए वासना की आग में तप गए. एक बार जब उन के बीच रिश्ते की पवित्रता पर धूल पड़ी, तब उस के बाद वे इस के लिए अपनी मनमरजी के मालिक बन गए. गीता को पति से यौनसुख नहीं मिल पा रहा था. विकास भी कुंवारा था. इस में गीता ने खुले विचार से विकास का साथ दिया. बदले में विकास उस की जरूरतों को पूरा करने लगा.

प्रकाश का पिछले साल जनवरी के महीने में लखनऊ आना हुआ. एक सप्ताह घर पर रहने के बाद वह मुंबई वापस चला गया. पति के मुंबई चले जाने के बाद गीता अपने मायके में आ कर रहने लगी थी. इस बार अक्तूबर, 2024 से अपने मायके नहीं आई थी. वह ससुराल में अलग से बने बाग के मकान में अपने बच्चों के साथ रहने चली गई थी. वह मकान रामविलास और प्रकाश ने मिल कर बनवाया था. इसी मकान के आगे बाग की सीमा खत्म हो जाती थी और उस से सटी रेलवे लाइन गुजरती थी. गीता और विकास अकसर वहीं मिलने लगे थे.

गीता उस से मोहब्बत करने लगी थी. दिन निकलने के पहले विकास गीता के घर से चला जाता था और झटपट दोपहर का खाना ले कर मलीहाबाद दुकान पर रवाना हो जाता था. वह रोजाना शाम को जब भी अपने गांव वापस लौटता तो वह गीता के पास जा कर के प्यारमोहब्बत की बातों में मशगूल हो जाता था. विकास जब भी बाजार से घर आता तो गीता के बच्चे उस की जेब में हाथ डाल देते थे. गीता के पास बेटी दीपिका ही रहती थी, जबकि बेटा दीपांशु अपने नाना के पास था.

विकास और गीता की मोहब्बत काफी गहरी हो चुकी थी. वे एकदूसरे के बिना नहीं रह पाते थे. विकास गीता की आशनाई में अपनी नौकरी की कमाई उस पर खर्च करने लगा था. जबकि विकास के परिवार में उस के अलावा 2 बहनें और थीं. पूरे परिवार का खर्च उस की नौकरी पर निर्भर था. फेमिली वालों से उस की हरकतें छिपी न रहीं. उन्होंने  विकास को गीता के मकडज़ाल से मुक्त करवाने की योजना बनानी शुरू की. वे उसे लखनऊ से दूर कहीं दूसरे शहर भेजने की योजना बनाने लगे. विकास गीता पर पैसे खर्च करने के चक्कर में कर्जदार बन गया था.

अपने पापा के कहने पर 2023 में वह साढ़े 3 लाख रुपया खर्च कर कुवैत चला गया. इस बीच गीता अकेली रह गई. विकास के कुवैत में नौकरी करते कुल 2 महीने ही बीते थे कि गीता अपने फोन से उसे रोजाना रात को फोन कर देती थी. फोन पर वह अपना दुखड़ा सुनाने लगती थी. उसे ईशापुर लौटने के लिए कहती थी. गीता के लगातार जिद करने पर केवल 2 महीने में ही वह कुवैत से वापस आ गया. कुवैत से लखनऊ वापस आने के कारण विकास लगभग 4 लाख रुपए का कर्जदार हो चुका था. गीता की जिद पर विकास जब अपने गांव वापस आया तो वह कपड़ों के उसी शोरूम पर जा कर फिर से नौकरी करने लगा.

अक्तूबर, 2024 में करवाचौथ से 2 दिन पहले विकास गीता से मिलने गया था. गीता ने त्यौहार पर आने वाले खर्च की फरमाइशें सुना दीं. साथ ही उस ने बताया कि उस के चाचा प्रकाश इस मौके पर भी नहीं आ रहे हैं, इसलिए पूजा का सामान और साड़ी उसे ही ला कर देनी होगी. उस के सारे कपड़े और गहने मायके में ही रखे हैं. इस पर विकास ने आश्वासन दिया, साथ ही पैसा नहीं होने की मजबूरी बताई. उस ने कहा कि वह अभी बहुत कर्ज में डूबा हुआ है. इसी आश्वासन को पा कर गीता करवाचौथ के दिन विकास से रुपया लेने के लिए दुकान पर गई थी.

विकास के व्यवहार से नाराज हो कर गीता ने उस सेे संबंध तोडऩे का मन बना लिया था. वह विकास को फोन करना भी बंद कर चुकी थी. गीता की इस बेरुखी से तंग आ कर विकास दिनरात परेशान रहने लगा था.

एक के चक्कर में ऐसे हुए 2 मर्डर

15 जनवरी, 2025 की रात को विकास ने अपनी प्रेमिका चाची गीता को फोन किया और उस से मिलने के लिए कहा तो गीता ने फोन पर दोटूक उत्तर देते हुए कहा, ”मैं तुम्हारी ब्याहता थोड़े हूं. मेरे यहां अब मत आना, तुम मेरा बोझ नहीं उठा सकते हो तो तुम्हें कोई हक नहीं है. मुझ से अब कोई उम्मीद मत रखो.’’ इतना कह कर गीता ने फोन डिसकनेक्ट कर दिया.

विकास फोन पर गीता की बातें सुनने के बाद बुरी तरह तिलमिला कर रह गया. उस ने गीता को सबक सिखाने के लिए योजना बना डाली. रात के करीब एक बजे विकास गीता के घर के पास लगे बिजली के खंभे के सहारे चढ़ कर उस के मकान के अंदर घुस गया. गीता के कमरे के सामने पहुंच कर उस ने गीता से कमरा खोलने के लिए कहा. विकास की आवाज पहचान गई थी, इसलिए उस ने अंदर से ही कहा कि वह वहां से चला जाए. करीब आधा घंटा बीतने के बाद भी दरवाजा नहीं खुला तो विकास किचन के अंदर जा कर बरतनों को इधरउधर फेंकने लगा. ऐसा करते हुए उसे एक बड़ा चाकू हाथ लग गया. उस ने उसे अपने पास छिपा लिया.

इसी दौरान गीता बरतनों की आवाज सुन कर बाहर आई और उसे डांटने लगी. पहले से ही तिलमिलाया हुआ विकास गुस्से में बोला,  ”आज मैं अपना और तुम्हारा दुख दूर किए देता हूं.’’

इतना कह कर विकास ने हाथ में लिए डंडे से गीता के सिर पर हमला कर दिया. वह उस पर तब तक हमला करता रहा, जब तक कि वह बुरी तरह बेहोश नहीं हो गई. गीता  के जमीन पर गिरते ही वह अपनी कमर में खोंसे चाकू से उस की गरदन रेतने लगा. इसी बीच गीता की बेटी दीपिका जाग गई. उस ने विकास को इतने गुस्से में पहली बार देखा था. वह तेजी से रोने लगी. विकास ने उसे पकड़ कर चाकू से उस की भी हत्या कर दी. आंगन में रखी बाल्टी में हाथपैर धोने के बाद वह खंभे के सहारे ही मकान से उतर कर बाहर आया और रेलवे लाइन के किनारे होता हुआ फरार हो गया.

विकास ने पुलिस को हत्या में प्रयोग की गई बाइक नंबर यूपी32 जीयू1335, चाकू और कुछ गहने, 760 रुपए नकद बरामद करवा दिए. उस ने पुलिस टीम के सामने स्वीकार किया कि वह गीता से बहुत प्यार करता था और उस के ऊपर गीता की खातिर 4 लाख रुपए का कर्ज हो गया था. उस ने कर्जा उतारने के लिए ही उस ने गीता के गहने चुराने का प्लान भी बनाया था.

विकास से पूछताछ के बाद पुलिस ने उसे कोर्ट में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

 

 

UP Crime : 5 बीवियों वाला नूरी बाबा मदरसे में छापता था नकली नोट

UP Crime : पुलिस ने जब मुबारक अली उर्फ नूरी बाबा को पकड़ा तो यह देख कर दंग रह गई कि दिन में तो वह मदरसे में बच्चों को मजहब की तालीम देता था, जबकि रात को उसी मदरसे में नकली नोट छापे जाते थे. 5 बीवियों के शौहर नूरी बाबा ने आखिर मदरसे को ही क्यों बनाया जुर्म का अड्डा?  

उत्तर प्रदेश के जनपद श्रावस्ती के थाना हरदत्त नगर गिरंट के एसएचओ शैलकांत उपाध्याय दोपहर को अपने कार्यालय में आवश्यक कार्यों में व्यस्त थे, तभी उन का मोबाइल फोन की घंटी बजी. एसएचओ ने मोबाइल स्क्रीन पर नंबर देखा तो उन्होंने तुरंत काल रिसीव कर ली. वह काल उन के एक खास मुखबिर की थी.

”कहो सुरेश (काल्पनिक नाम) क्या खास खबर है. कई महीनों से तो तुम चुपचाप बैठे थे. मैं ने तो सोचा कि कहीं तुम साइलेंट मोड में तो नहीं चले गए हो.’’ एसएचओ ने कहा.

”साहबजी, ऐसी खबर है कि जिस के लिए मैं ने पूरे 7 महीने खर्च किए हैं. देखो साहब, मेरा इस काम में बहुत पैसा भी खर्च हो चुका है. मुझे मेरी मेहनत का पैसा मिल जाए, मेरे लिए तो वही बहुत है.’’ सुरेश ने कहा.

”सुरेश, तुम मुझे यह बताओ कि तुम ने मुझे आज तक जो भी खबर दी है, मैं ने अपने ऊपर के अधिकारियों से कह कर तुम्हारा पूरा हक दिलवाया है न! ऐसी बात तो मत कहो,’’ एसएचओ ने कहा.

”साहब, आप के ऊपर विश्वास है, इसीलिए तो आप को यह खबर मैं दे रहा हूं.’’ सुरेश बोला.

”देखो सुरेश, अब पहेलियां बिलकुल भी मत बुझाओ, खबर क्या है बस मुझे तुरंत बता दो.’’ एसएचओ ने कहा.

मुखबिर ने जो कुछ बताया, उसे सुन कर तो एकबारगी एसएचओ शैलकांत उपाध्याय भी चौंक गए. सचमुच बात ही कुछ ऐसी थी. शैलकांत उपाध्याय ने मुखबिर को उस संदिग्ध व्यक्ति और उस की गतिविधियों पर कड़ी नजर रखने के लिए कहा और इस विशेष खबर की सूचना अपने उच्चाधिकारियों को तुरंत दे दी.

मदरसे में ही क्यों छापता था नकली नोट

मुखबिर द्वारा मिली सूचना पर एसपी घनश्याम चौरसिया के निर्देश पर एएसपी प्रवीण कुमार यादव व सीओ (भिनगा) संतोष कुमार की देखरेख में एसओजी प्रभारी नितिन यादव, एसएचओ शैलकांत उपाध्याय, एसआई विशाल शुक्ला, अंकुर वर्मा, छैल बिहारी, अनीष गोड़, हैडकांस्टेबल जितेंद्र कुमार यादव, भोला सिंह, कांस्टेबल विवेक सिंह, संजीत कुमार, प्रवीण पांडेय, अभिषेक सिंह, अवनीश, विक्रम सिंह, वीरेंद्र यादव आदि को शामिल किया.

यह टीम पहली जनवरी, 2025 को लक्ष्मणपुर के मदरसे में पहुंची तो वहां पर काम कर रहे लोगों में अफरातफरी मच गई और वे सब वहां से बाहर की ओर भागने लगे. लेकिन दूसरी तरफ पूरी पुलिस टीम चौकन्नी थी. उन्होंने मदरसे को चारों ओर से घेर रखा था, इसलिए पुलिस ने उन्हें दबोच लिया.

पुलिस टीम ने मदरसे से 5 लोगों को हिरासत में ले लिया. गिरफ्तार लोगों ने अपने नाम रामसेवक, धर्मराज शुक्ला, जलील अहमद निवासी बहराइच, अवधेश कुमार, मुबारक अली उर्फ नूरी बाबा निवासी श्रावस्ती बताया.

मौके से पुलिस को नकली नोट बनाने के उपकरण सहित 1 प्रिंटर, 2 लैपटाप, 4 इंक बोतल, 35,400 रुपए के नकली नोट, 14,500 रुपए के असली नोट, एक देसी तमंचा .315 बोर व एक जिंदा कारतूस .315 बोर, एक कैंची, एक स्केल, 3 असली नोट चिपके हुए फर्मा, एक बाइक, 5 मोबाइल फोन आदि सामान मिला. पुलिस सभी अभियुक्तों को गिरफ्तार कर थाने ले आई.

इस संबंध में उन के खिलाफ मुकदमा अपराध संख्या 02/2025 धारा 178, 179, 180, 181, 3 (5) बीएनएस व 3/25 आयुध अधिनियम के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया.

पुलिस द्वारा जब सभी पांचों अभियुक्तों से सख्ती से पूछताछ की गई तो आरोपियों ने बताया कि उन्होंने यूट्यूब देख कर नकली नोट छापने के तरीके सीखे थे, जिस में उन्हें समय तो लगा, मगर वे अपने मकसद में कामयाब हो गए, जिस के बाद वे नकली नोटों को मशीन से प्रिंट करने लगे और फिर स्कैनर से नोटों की अन्य रूपरेखाओं को असली नोट की तरह तैयार करने लगे.

इस के बाद तैयार किए गए नकली नोटों को वह जनपदों और विभिन्न ग्रामीण इलाकों में जगहजगह असली नोटों में मिला कर चलाने लगे. इस के अलावा वह लोगों में रकम दुगनी करने का लालच दे कर उन के असली नोटों के बदले में दुगने नकली नोटों का धंधा भी करने लगे थे. इस गैंग का सरगना मदरसा संचालक मुबारक अली उर्फ बाबा था.

गिरफ्तार करने के बाद जब पुलिस ने आरोपियों की हिस्ट्री खंगाली तो और भी चौंकाने वाले खुलासे हुए.

क्या है आरोपियों का काला इतिहास

जब पुलिस ने आरोपियों के आपराधिक इतिहास की गहनता से जांचपड़ताल की तो कुछ आरोपियों का काफी काला और रहस्यमयी इतिहास सामने आया.

आरोपी जलील अहमद निवासी काशीजीत जनपद बहराइच पर 2 गंभीर केस पहले से ही दर्ज हैं. जिन में पहला मुकदमा अपराध संख्या 220/2021 भादंवि की धारा 325, 323, 504 के तहत थाना पयागपुर में चल रहा है. जबकि उस के ऊपर दूसरा केस मुकदमा अपराध संख्या 829/2014 भादंवि की धारा 308, 323 और 504 के तहत थाना पयागपुर में चल रहा है. आरोपी रामसेवक निवासी गांव बेगमपुर रामगांव जनपद बहराइच पर 3 आपराधिक केस दर्ज हैं.

तीसरे आरोपी अवधेश कुमार पांडेय निवासी गांव ककंधू जनपद श्रावस्ती पर एक मुकदमा अपराध संख्या 32/2019 धारा 3/25 आयुध अधिनियम थाना सोनवा जनपद श्रावस्ती में दर्ज पाया गया.

जबकि इस नकली नोटों के गिरोह के सरगना मुबारक अली उर्फ नूरी बाबा पुत्र असगर अली निवासी लक्ष्मणपुर, श्रावस्ती के खिलाफ 3 आपराधिक मुकदमे दर्ज पाए गए. पूछताछ के बाद मदरसे में नूरी बाबा के नकली नोट छापने की जो कहानी सामने आई, इस प्रकार निकली—

कैसे बना कबाड़ी से मदरसा संचालक

उत्तर प्रदेश की मशहूर नदी राप्ती के किनारे पर बसे लक्ष्मणपुर गंगापुर जनपद श्रावस्ती से निकला मुबारक अली पहले कबाड़ी बना, फिर मौलाना बना और उस के बाद फैजुर नबी मदरसा का संचालक भी बन गया. इतना ही नहीं, दीनी तालीम और झाडफ़ूंक की आड़ में इस ने काफी अय्याशियां भी की. पकड़े जाने पर निकाह कर बचने का प्रयास भी खूब किया. यह भी कहा जाता है कि नकली नोटों से नहीं बल्कि मदरसे की फंडिंग ने मुबारक अली उर्फ नूरी बाबा को रातोंरात करोड़पति बना डाला था.

श्रावस्ती जनपद के मल्हीपुर थाना क्षेत्र लक्ष्मणपुर गंगापुर गांव एवं गांव में मौजूद आवासीय मदरसा दारुल उलूम फैजुर्रनबी आज उत्तर प्रदेश में ही नहीं, बल्कि पूरे भारत में एक चर्चा का विषय बन चुका है. इसे इतनी सुर्खियों में लाने वाले मुबारक अली उर्फ नूरी बाबा की पूरी स्टोरी किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं है.

मुबारक अली उर्फ नूरी बाबा ने अपने अब्बू की मौत के बाद अपने और परिवार के जीवनयापन के लिए सब से पहले गांवगली, मोहल्ले जा कर कबाड़ खरीदने से शुरुआत की थी. कबाड़ खरीदने के बाद मुबारक अली ने मल्हीपुर के वीरगंज बाजार में एक कबाड़ की दुकान खरीद ली, जहां पर वह चोरी से लोहे की पोल काट कर लाते समय पुलिस द्वारा पकड़ा गया.

उस के बाद इस कबाड़ के कारोबार से उस का मोहभंग हो गया. फिर अपने आप को एक पत्रकार व मंडलीय ब्यूरो का परिचय दे कर गांव वालों व आसपास के लोगों में अपना रौब गांठने लगा था.

ताज्जुब की बात तो यह है कि इस के निजी वाहनों पर आज भी मीडिया लिखा हुआ है. इस बीच मुबारक अली मदरसे का कामकाज भी देखता रहा. वह इस मदरसे में पढऩे व पढ़ाने के लिए आने वाली युवतियों को भी तरहतरह से प्रताडि़त कर उन का यौनशोषण भी करने लगा था. इस का खुलासा तब हुआ, जब 2 जनवरी, 2025 को एसएसपी की जांच में मदरसे के अंदर काफी संख्या में कामोत्तेजक दवाएं बरामद की गईं.

उसी जांच के दौरान गांव के एक व्यक्ति ने पुलिस को यह भी बताया कि कुछ समय पहले मदरसे में रह रही गोंडा निवासी एक युवती के पिता ने थाने में मुबारक अली उर्फ नूरी बाबा पर अपनी बेटी के यौनशोषण का आरोप भी लगाया था. मगर जेल जाने से बचने के लिए मुबारक अली उर्फ नूरी बाबा ने उस युवती के साथ निकाह कर लिया, जोकि मौजूदा समय में गोंडा में है.

इसी बीच नेपाल सीमा क्षेत्र से सटे मुबारक अली के एक गांव निवासी रिश्तेदार ने मुबारक अली की पहचान बहराइच के पयागपुर थाना क्षेत्र के काशीजोत जलील अहमद उर्फ जलील बाबा से करा दी, जिसे नूरी बाबा ने मदरसे में नौकरी देने के बहाने अपने खास आदमियों में रख कर नकली नोट छापने का कारोबार शुरू कर दिया.

मुबारक अली को बचपन से ही थी करोड़पति बनने की ख्वाहिश

लक्ष्मणपुर गंगापुर निवासी मुबारक अली बचपन से ही करोड़पति बनने की ख्वाहिश रखता था. इस के लिए वह किसी भी हद तक जाने के लिए हमेशा तैयार भी रहता था. मदरसा चलाना तो उस का बस एक बहाना भर ही था. उस का असली मकसद तो विदेशी फंडिंग जुटाने का था.

नूरी बाबा ने सब से पहले अपना कामधंधा कबाड़ से शुरू किया था. उस के घर के बाहर खड़ी 2 ठेलियां आज भी इस की गवाही दे रही हैं. इस के बाद इस शातिर बदमाश ने धर्म अथवा मजहब का रास्ता चुना और इस ने मदरसा खोलने की तैयारी शुरू कर दी. वह अपने इस खेल में भी आसानी से कामयाब हो गया. इस अपराधी ने मदरसे के नाम पर मोटा चंदा भी इकट्ठा कर लिया था और उस के बाद का सारा खेल मदरसे के भीतर ही रचा गया.

मुबारक अली उर्फ नूरी बाबा को जब पुलिस ने गिरफ्तार किया तो इस के तथाकथित मदरसे से पुलिस को कई सैक्सवर्धक दवाइयां भी मिलीं. इस सब को देख कर तो एकबारगी पुलिस की टीम भी हैरान रह गई थी. मुबारक अली की 5 बीवियों की जानकारी भी पुलिस को मिली है, जिन में से एक पत्नी मदरसा संभालती है.

वैसे आमतौर पर मदरसे में महिलाएं नहीं होती हैं, लेकिन मुबारक अली के इस मदरसे में उस की पांचों बीवियों के अतिरिक्त अन्य कई युवतियों का आनाजाना भी लगा रहता था.

इन का नकली नोट छापने का यह मकसद था कि मजहब के नाम पर नौजवानों को जोडऩा और उस के बाद उन का कनैक्शन पड़ोसी देश पाकिस्तान के साथ जोडऩा था.

मुबारक अली उर्फ नूरी बाबा कभी फकीर बन कर जकात मांगता तो कमी रमजान के महीने में मसजिद व मदरसा के लिए चंदा वसूलता था. कभी नेपाल तो कभी पश्चिम बंगाल में जा कर तकरीर करता था. लोगों से खुद को जोडऩे के लिए वह अपने कट्टर मुसलमान होने का भी प्रमाण देता था.

नूरी बाबा का पाकिस्तान प्रेम भी आया सामने

बताया जाता है कि नूरी बाबा ने केवल 10 सालों में नकली नोटों की अवैध कमाई और विदेशों से मिल रही अवैध फंडिंग से करीब 60 बीघा जमीन नेपाल सीमा में खरीदी थी.

मुबारक अली उर्फ नूरी बाबा के सोशल मीडिया प्लेटफार्म और फेसबुक पर 7 अक्तूबर, 2017 को उस के द्वारा डाली गई पोस्ट भी उस के पाकिस्तान प्रेम को उजागर कर रही है. इस पोस्ट में मुबारक अली ने पाकिस्तानी ध्वज के साथ अपनी फोटो भी पोस्ट की थी, जोकि आज भी उस के सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर मौजूद है. ऐसे में अब यह अंदाजा भी लगाया जा रहा कि कहीं मुबारक अली का संबंध आईएसआई के साथ तो नहीं है.

आखिरकार नूरी बाबा ये सब क्यों और किस के लिए और किस की शह पर कर रहा था? इस का मंसूबा आखिर क्या था? आखिर कौन था इस शातिर के निशाने पर?

सब से बड़ी बात तो यह है कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की पुलिस इस केस को बाकी केसों से अलग एक संदिग्ध केस समझ कर इस की विस्तृत जांचपड़ताल में लगी है. इस कहानी में आखिर ऐसा क्या है, जिस का अंदाजा लगाना उत्तर प्रदेश पुलिस के बस का भी नहीं था.

इस केस की जांच में कई सिंघम आईपीएस पुलिस अधिकारी और कई इंसपेक्टरों को लगा दिया. पुलिस कर्मचारी इस नूरी बाबा के पीछे क्यों पड़े थे? आखिर मुबारक अली उर्फ नूरी बाबा ने ऐसा क्या किया था कि उस की तलाश नेपाल से ले कर महाराष्ट्र तक होने लगी और फिर पुलिस को पता चला है कि यह नूरी बाबा तो दिल्ली में है.

उस के बाद नूरी बाबा का कनेक्शन प्रयागराज से मिला. आखिरकार इस की सही और एग्जेक्ट लोकेशन पुलिस को मिली तो उसे दबोच लिया गया. इस शातिर अपराधी की गिरफ्तारी के बाद का सच ऐसा था कि इस शातिर अपराधी की जानकारी उत्तर प्रदेश के एटीएस चीफ अमिताभ यश तक पहुंचाई गई.

मुबारक अली उर्फ नूरी बाबा को अब सूली पर चढ़ाने की तैयारी उत्तर प्रदेश पुलिस कर रही है. इस की बाकी बुरके वाली बीवियां कहां हैं, इन सब की तलाश अभी भी जारी है. मुबारक अली उर्फ नूरी बाबा के फोन से पाकिस्तानी संगठनों के साथ बातचीत के ठोस सबूत भी पुलिस के हाथ लगे हैं.

उत्तर प्रदेश व देश के अन्य राज्यों में कोई न कोई मौलवी या बाबा आए दिन पकड़ा जाता है. लेकिन इन सब के बीच में मुबारक अली उर्फ नूरी बाबा का मंसूबा काफी खतरनाक था. यह शातिर अपनी ही तरह और लोगों को ट्रेंड कर रहा था. उस का असली मकसद क्या था, यह तो अब पुलिस पूछताछ में पता चलेगा.

बीवी और बहन के पुलिस पर आरोप

मुबारक अली उर्फ नूरी बाबा का पहला निकाह राबिका से हुआ था, जिस से उस की 4 बेटियां और 3 बेटे हैं. इस के साथ वह गांव में ही रहता है, जबकि दूसरी बीवी बहराइच के मदरसा जामिया नूरिया मसजिद में टीचर है. वहीं अन्य 3 बीवियां अलगअलग स्थानों पर रहती हैं, जिस की जानकारी गांव वालों को भी नहीं है.

नूरी बाबा की बीवी राबिका ने मीडिया से कहा कि मेरे पति मुबारक अली पर जो भी आरोप लगाए गए हैं, वे सारे गलत हैं. मैं उन के साथ इतने सालों से रह रही हूं, मैं ने तो उन्हें कभी नोट छापते हुए नहीं देखा. अब जो कुछ भी मदरसे में हुआ है, मैं ने अपनी आंखों से तो नहीं देखा है तो इस के बारे में क्या बता

सकती हूं.

जब उस से यह सवाल किया गया कि गांव वाले तो कहते हैं कि आप मदरसे में काफी आतीजाती रहा करती थीं, तब राबिका ने कहा कि मैं अपने छोटे बच्चे को मदरसे में छोडऩे और लाने के लिए आती थी. जब यह पूछा गया कि मदरसे में बाहरी महिलाओं का भी तो बहुत आनाजाना लगा रहता था तो राबिका ने बताया कि जिन बच्चों के दाखिले मदरसे में होते थे, वही महिलाएं यहां आतीजाती थीं.

उस ने यह भी बताया कि रमजान के महीने में मुबारक अली मुंबई जाते थे. नेपाल आतेजाते रहते थे, इस बात का उसे कुछ पता नहीं था. वहीं दूसरी ओर मुबारक अली की बहन समीरा ने तो पुलिस टीम पर ही आरोप लगा दिए.

समीरा ने मीडिया से बातचीत में बताया कि पुलिस मेरे भाई मुबारक अली को फरजी बाबा कह कर फंसा रही है. हमारा गांव में एक आदमी से 10-12 साल से विवाद चल रहा है. वही आदमी मेरे भाई को फंसा रहा है.

पुलिस के अनुसार मुबारक अली उर्फ नूरी बाबा का इतिहास और चरित्र शुरू से ही संदिग्ध रहा है. कबाड़ी नूरी बाबा रमजान माह में मुंबई में रह कर चंदा वसूल करता था. कभी पश्चिम बंगाल तो कभी नेपाल जाता था. कबाड़ी से शुरू हुआ उस का यह सफर नकली नोट छापने तक पहुंच गया.

अपने काले कारनामों को छिपाने के लिए ही मुबारक अली मदरसा संचालक बना था, ताकि उस के कारनामे कभी भी उजागर न हो सकें. इस के लिए उस ने गांव के ही 5 भाइयों से उन के हिस्से की जमीन ले कर 8 साल पहले मदरसा खोला. जिस की आड़ में वह हर गलत काम करता था, जो उसे तथा उस के काले कारनामों से बचाने का माध्यम बना.

Extramarital Affair : देवर के साथ मिलकर किया पति का कत्ल

Extramarital Affair : कुछ लोग स्वभाव से सीधे होते हैं, जबकि आज के परिवेश में सीधे व्यक्ति को मूर्ख समझा जाता है. प्रियंका और मोहन ने सीधे स्वभाव के सत्यशील को मूर्ख समझ कर अपने रास्ते से हटा तो दिया, लेकिन…

16 जुलाई, 2020 की रात के 2 बजे सांती गांव के चौकीदार रामनरेश ने थाना मक्खनपुर में फोन कर के बताया कि सिक्सलेन बाईपास पर सांती पुल के पास सर्विस रोड पर एक युवक का शव पड़ा है. इस सूचना पर थानाप्रभारी मक्खनपुर विनय कुमार मिश्र पुलिस टीम ले कर रात में ही घटनास्थल पर पंहुच गए. प्रभारी निरीक्षक ने शव व घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया. मृतक की उम्र 28-29 साल के आसपास थी. शव देखने से ऐसा लग रहा था जैसे मृतक को किसी वाहन ने रौंदा हो. उस की मौत हो चुकी थी. मृतक के सीधे हाथ की कलाई पर प्रमोद यादव गुदा (लिखा) हुआ था.

इस से यह तो पता चल गया कि मृतक का नाम प्रमोद यादव है लेकिन नाम से यह पता नहीं चल सकता था कि वह कहां का रहने वाला था. इस बीच सुबह हो गई थी. सर्विस रोड पर पुलिस को देख आसपास के लोग एकत्र हो गए. पुलिस ने उन से शव की शिनाख्त कराने का प्रयास किया लेकिन कोई भी मृतक को नहीं पहचान सका. मौके की काररवाई निपटाने के बाद पुलिस ने  मृतक की लाश पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल फिरोजाबाद भेज दी. पुलिस ने मृतक की शिनाख्त के लिए उस का फोटो और दाहिनी बांह जिस पर उस का नाम था, का फोटो सोशल मीडिया पर डाल कर शिनाख्त कराने का प्रयास किया. 17 जुलाई की सुबह मृतक की शिनाख्त फिरोजाबाद जिला के गांव जेबड़ा निवासी 30 वर्षीय सत्यशील उर्फ प्रमोद यादव के रूप में हो गई.

मृतक के घर वालों ने उस की शिनाख्त मोर्चरी जा कर की. जब गांव वालों को सत्यशील की मौत की बात पता चली, तो गांव में मातम छा गया. सत्यशील सीधासादा युवक था, वह रात में सांती पुल पर क्या करने गया था, यह बात किसी की समझ में नहीं आ रही थी. दूसरे दिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट आ गई. रिपोर्ट देख कर पुलिस के होश उड़ गए. पुलिस जिसे अब तक दुघर्टना मान रही थी, वह हत्या थी. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में युवक की मौत का कारण विषैले पदार्थ का सेवन और गला घोंटना बताया गया था. मृतक की शिनाख्त होने के बाद 19 जुलाई को मृतक  के चाचा लालता प्रसाद ने थाना मक्खनपुर में प्रमोद की पत्नी प्रियंका और सत्यशील के ममेरे भाई मोहन सिंह के खिलाफ हत्या की रिपोर्ट दर्ज कराई. मोहन सिंह गांव बनकट का रहने वला था.

रिपोर्ट में आरोप लगाया गया कि मृतक सत्यशील के ममेरे भाई मोहन से मृतक की पत्नी प्रियंका के अवैध संबंध थे. इस की जानकारी सत्यशील को हो गई थी. इसे ले कर सत्यशील और प्रियंका में आए दिन झगड़ा होता था. रास्ते का कांटा निकालने के लिए दोनों ने षडयंत्र रच कर सत्यशील की हत्या करा दी है. उधर पति की दुर्घटना में आकस्मिक मौत पर प्रियंका का रोरो कर बुरा हाल था. जबकि ससुराल वालों द्वारा पति की हत्या में उस का हाथ होने की बात से वह बुरी तरह आहत थी. पुलिस ने चाचा की तहरीर पर भादंवि की धारा 302,201,120बी, 328, 34 के तहत हत्या का मुकदमा  दर्ज करने के बाद गहनता से जांच शुरू कर दी. इस संबंध में पुलिस ने सब से पहले मृतक की पत्नी प्रियंका से पूछताछ की. उस ने बताया, 15 जुलाई की शाम साढ़े 7 बजे सत्यशील किसी कारखाने में काम करने की बात करने के लिए घर से निकले थे.

जब वह देर रात तक लौट कर नहीं आए तो उसे चिंता हुई और उस ने रात में ही अपने मायके वालों को फोन कर इस संबंध में बताया था. उस ने मोहन से अवैध संबंधों की बात सिरे से नकार दी. उस ने पुलिस को बताया कि मोहन उस का ममेरा देवर है और सत्यशील से मिलने घर आता था. पुलिस ने प्रियंका के बयानों की सच्चाई जानने के लिए उस के मोबाइल को खंगाला. उस के फोन नंबर की काल डिटेल्स में एक ऐसा नंबर शक के दायरे में आया, जिस पर प्रियंका सब से ज्यादा बातें करती थी. पुलिस ने उस नंबर को ट्रेस किया तो नंबर मोहन का निकला. पता चला कि 15/16 जुलाई की घटना वाली रात प्रियंका और मोहन की कई बार बातें हुई थीं.

शक के दायरे में प्रियंका प्रियंका को संदेह के दायरे में लाने के लिए इतना ही काफी था. पुलिस ने उसे हिरासत में ले कर पूछताछ की. प्रियंका  बारबार अपने बयान बदलती रही. इस से वह पूरी तरह संदेह के घेरे में आ गई. महिला सिपाही ने जब उस से सख्ती से पूछताछ की तो प्रियंका टूट गई. वह थाने में ही फूटफूट कर रोने लगी. उस ने अपना जुर्म कबूल करते हुए पुलिस को बताया कि मोहन ने उसे 15 जुलाई को फोन किया था कि सत्यशील को शाम 7 बजे कारखाने में नौकरी की बात करने के बहाने मेरे पास पायनियर तिराहे पर भेज देना. मोहन के कहे अनुसार उस ने पति को पायनियर तिराहे पर भेज दिया था. पति की हत्या कैसे और कहां करनी है, ये काम मोहन को करना था. पुलिस समझ गई कि सत्यशील की हत्या प्रियंका और उस के प्रेमी मोहन ने षडयंत्र रच कर योजनाबद्ध तरीके से की थी.

एसएसपी सचिंद्र पटेल ने इस केस के मुख्य आरोपी मोहन की गिरफ्तारी की जिम्मेदारी एसपी (ग्रामीण) राजेश कुमार को सौंपी. साथ ही उन्होंने क्षेत्राधिकारी शिकोहाबाद इंदुप्रभा सिंह और थाना मक्खनपुर के प्रभारी विनय कुमार मिश्र की मदद के लिए एक पुलिस टीम का गठन किया. इस टीम के सहयोग के लिए सर्विलांस टीम को भी लगा दिया गया. पुलिस टीम मुख्य आरोपी मोहन की गिरफ्तारी के लिए पूरी तैयारी के साथ जुट गई. क्योंकि उस की गिरफ्तारी के बाद ही हत्या के इस रहस्य से परदा उठ सकता था. 21 जुलाई को थानाप्रभारी विनय कुमार  मिश्र पुलिस टीम के साथ क्षेत्र में गश्त पर थे. तभी मुखबिर ने सूचना दी कि सत्यशील की हत्या में शामिल नामजद मोहन हाईवे स्थित उसायनी मंदिर पर खड़ा है.

इस सूचना पर पुलिस उसायनी मंदिर के पास पहुंच गई. वहां आरोपी मोहन कार के पास खड़ा था. पुलिस को देख कर वह भागने लगा साथ ही कार में बैठे उस के 2 अन्य साथी भी भागे. पुलिस ने घेराबंदी कर तीनों को गिरफ्तार कर लिया. मोहन सिंह के साथ पकड़े गए उस के दोस्त थे. इन में नीरज मिश्रा नगला सदा का रहने वाला था और जयवीर, गांव कुतकपुर जारखी में रहता था. हत्यारोपियों को गिरफ्तार करने वाली पुलिस टीम में थानाप्रभारी विनय कुमार मिश्र, सब इंस्पेक्टर धीरेंद्र सिंह, कास्टेबल सुमनेश कुमार, राहुल चौधरी, पवन कुमार, महिला कास्टेबल रेनू सिंह शामिल थे.

पुलिस ने सत्यशील की हत्या में शामिल पत्नी प्रियंका उस के प्रेमी मोहन, दोस्त नीरज व जयवीर को गिरफ्तार कर के सभी से पूछताछ की. आरोपियों ने सत्यशील की हत्या करने का जुर्म कबूल कर लिया. प्रियंका को पसंद नहीं था पति का सीधापन एसएसपी सचिंद्र पटेल ने पुलिस लाइन, दबरई में प्रैसवार्ता में हत्यारोपियों की गिरफ्तारी की जानकारी दी. कहानी यह निकल कर सामने आई कि अपने पति सत्यशील के सीधेपन से प्रियंका शादी के 2 साल बाद ही ऊब गई थी. मोहन का प्रियंका के घर काफी दिनों से आनाजाना था. 23 साल का मोहन उम्र में प्रियंका से 2 साल छोटा था. वह रिश्ते में उस का ममेरा देवर था, प्रियंका उस की रोमाटिंक बातों में खूब रस लेती थी.

भाभी के प्रेम में दीवाना मोहन प्यार की राह में आ रहे कांटे को हटाने के लिए तैयार था. प्रियंका और मोहन ने मिल कर सत्यशील की हत्या का षडयंत्र रचा. मोहन ने इस में अपने 2 दोस्तों को भी शामिल कर लिया. हत्यारोपियों ने इस खौफनाक हत्याकांड की जो कहानी बताई, वह इस तरह थी—

उत्तर प्रदेश के शहर फिरोजाबाद का एक थाना है मक्खनपुर. जेबड़ा गांव इसी थाना क्षेत्र में आता है. सत्यशील उर्फ प्रमोद यादव अपने परिवार के साथ इसी गांव में रहता था. उस के परिवार में पत्नी प्रियंका के अलावा 3 बेटियां और वृद्ध मां थीं. सत्यशील मांबाप का इकलौता बेटा था. शादी से पहले वह अकसर गांव बनकट स्थित अपने मामा पप्पू के घर चला जाता था. वहां वह कईकई दिन ठहरता था. उस के मामा के दूसरे नंबर के 23 वर्षीय बेटे मोहन सिंह से उस की खूब पटती थी. सत्यशील के हाईस्कूल कर लेने के बाद घर वालों ने उस की शादी गांव भढ़ाईपुरा निवासी एक युवती से कर दी.

शादी के बाद सत्यशील के 2 बेटियां हुईर्ं. उस की बड़ी बेटी मानसी इस समय 7 साल की व मानवी 6 साल की हैं. तीसरी डिलीवरी के दौरान सत्यशील की पत्नी की मृत्यु हो गई. दोनों बेटियां छोटी थीं. उन की परवरिश करने वाला घर में कोई नहीं था. सत्यशील के पिता महेश चंद्र की मौत हो चुकी थी जबकि मां दिमाग से कमजोर होने के कारण घरगृहस्थी का काम नहीं कर पाती थी. इस के चलते सत्यशील के ससुराल वालों ने 2 साल पहले उस की शादी गांव उतरारा की अपनी जानकार 25 वर्षीय प्रियंका से करा दी. प्रियंका की एक साल की एक बेटी है किट्टू. सत्यशील के पास ढाई बीघा जमीन थी. वह अपनी खेती के साथ बटाई पर जमीन ले कर खेतीकिसानी करता था. इसी से उस के परिवार की गुजरबसर होती थी. सत्यशील ने बच्चों के लिए घर में गाय भी पाल ली थी. सबकुछ ठीकठाक चल रहा था.

सत्यशील फसल की सिंचाई व देखभाल के लिए रात में अकसर खेतों पर चला जाता था. आराम करने के लिए खेतों पर झोपड़ी बनी थी. कभीकभी वह उस झोपड़ी में ही सो जाता था. सुबह होने पर वह घर आ जाता था. ममेरे भाई मोहन के पास निजी टीयूवी कार थी, जिसे वह टैक्सी के रूप में चलाता था. वह अकसर सत्यशील के गांव जेबड़ा आताजाता रहता था. दोनों भाइयों में खूब पटती थी. प्रियंका मोहन की भाभी थी, सो दोनों अकसर एकदूसरे से दिल्लगी करते रहते थे. बातों ही बातों में एक बार मोहन बोला, ‘‘भाभी, रात में भैया तो खेतों पर सोने चले जाते हैं, तुम्हें नींद कैसे आती है?’’

इंटरमीडिएट तक पढ़ी प्रियंका देवर की शरारत समझ कर भी अनजान बनी रही. बोली, ‘‘जैसे तुम्हें नींद आ जाती है वैसे ही मुझे आ जाती है.’’ प्रियंका ने कहा, ‘‘वैसे मोहन, अब तुम शादी कर लो.’’

एक दिन मोहन रात में गाड़ी चलाने के बाद सत्यशील के घर आ गया. सत्यशील खाना खा कर खेत की सिंचाई के लिए जाने वाला था. मोहन के आने पर उस ने प्रियंका से कहा, ‘‘कल्लू को खाना खिला देना.’’ फिर उस ने कल्लू से कहा, ‘‘मुझे खेत पर जाने के लिए देर हो रही है. इसलिए जाता हूं.’’

सत्यशील खेतों पर चला गया.  प्रियंका ने मोहन के लिए खाना बनाया. फिर देवर को बड़े प्यार से खिलाया. खाना खाते और बातचीत करते कब समय निकल गया दोनों को पता ही नहीं चला. प्रियंका ने मोहन से कहा, ‘‘रात ज्यादा हो गई है, सुबह चले जाना.’’

इस पर मोहन ने कहा, ‘‘ठीक है, मैं अपनी गाड़ी में सो जाऊंगा.’’

इस पर प्रियंका ने हंसते हुए कहा, ‘‘तुम्हें घर में सोने के लिए कौन मना कर रहा है. इतना बड़ा घर है और सोओगे गाड़ी में.’’

प्रियंका की बातों से मोहन को मन की मुराद पूरी होती लगी. उस रात प्रियंका और मोहन दोनों अपनेअपने बिस्तर पर करवटें बदलबदल कर सोने का प्रयास करने लगे. मगर 2 जवान दिलों की बढ़ती धड़कनों ने उन्हें सोने नहीं दिया. प्रियंका के पैरों की पायल की रूनझुन ने मोहन की आंखों से नींद उड़ा दी थी. आखिर जब मोहन से नहीं रहा गया तो वह अपने बिस्तर से उठ कर बोला, ‘‘भाभी, नींद नहीं आ रही क्या?’’

प्रियंका मुसकरा कर बोली, ‘‘तुम्हें आ रही है?’’

मोहन बोला, ‘‘तुम्हारे बिना कैसे आएगी?’’

फिर प्यासी नदी के 2 किनारों को मिलने में देर नहीं लगी. इस के बाद जब भी मौका मिलता दोनों मिल लेते थे. उन्हें रोकने टोकने वाला घर में कोई नहीं था.

लौकडाउन में तो मोहन रोज ही सत्यशील के घर जाता था. इस बीच सत्यशील कहीं भी आजा नहीं रहा था. यहां तक कि पुलिस के डर से रात में अपने खेतों पर सोने भी नहीं जाता था. इस के चलते प्रेमी युगल को क्वालिटी टाइम स्पेंड करने का मौका नहीं मिल पा रहा था. दोनों के दिलों में सुलग रही आग बाहर आने लगी थी. बाद में दोनों ने राह के कांटे को हमेशा के लिए निकालने की खौफनाक साजिश रची. दोनों ने इस षडयंत्र को 15/16 जुलाई को अंजाम भी दे दिया. मक्खनपुर क्षेत्र में कांच के कई कारखाने हैं. साजिश के तहत प्रियंका ने अपने पति सत्यशील से कहा, ‘‘तुम किसी कारखाने में काम कर लो. मोहन तुम्हारा काम लगवा देगा. इस से घर का खर्च भी अच्छी तरह चल जाएगा.’’

सीधासादा सत्यशील पत्नी की शतरंजी चाल को समझ नहीं पाया. प्रियंका ने 15 जुलाई की शाम साढ़े 7 बजे सत्यशील को काम के बहाने मोहन के पास भेज दिया. पायनियर तिराहे पर मोहन पहले से ही अपनी कार में अपने 2 साथियों के साथ सत्यशील का बेसब्री से इंतजार कर रहा था. जैसे ही वह वहां पहुंचा मोहन ने उसे कार में बैठा लिया. आगे चल कर मोहन ने एक होटल से कोल्ड ड्रिंक की 4 बोतलें खरीदीं. पीछे बैठे उस के दोनों साथियों ने पहले से साथ लाई नशे की गोलियां एक बोतल में मिला दीं. आगे की सीट पर मोहन की बगल में बैठे सत्यशील को इस का पता नहीं चला. कोल्ड ड्रिंक पीने के कुछ देर बाद सत्यशील पर बेहोशी छाने लगी.

मोहन का इशारा मिलते ही जयवीर व नीरज ने मिल कर सत्यशील के गले में पड़े सफेद रंग के अंगोछे से उस का गला दबा कर गाड़ी में ही हत्या करने की कोशिश की.  लेकिन उस के मुंह से खून आने लगा. इस पर मोहन गाड़ी को सांती पुल के नीचे ले गया और सत्यशील को सर्विस रोड पर फेंक दिया. उस की मौत की पुष्टि के लिए इन लोगों ने कार 2 बार उस के ऊपर चढ़ाई. जब उन्हें पूरी तसल्ली हो गई कि सत्यशील मर चुका है, तब मोहन ने प्रियंका को रात में ही फोन कर के बता दिया कि काम हो गया है. इस पर प्रियंका ने कहा, कार चढ़ाने के बाद तुम ने देख भी लिया है कि उस की मौत हुई या नहीं. मोहन ने उसे तसल्ली दी कि तुम किसी बात की चिंता मत करो.

नहीं बना पाए दुर्घटना मोहन ने हत्या को दुर्घटना दिखाने के लिए सत्यशील के ऊपर 2 बार कार चढ़ाई थी. मुख्य आरोपी मोहन ने हत्या की योजना में शामिल करने के लिए दोनों साथियों को 15 हजार रुपए देने का प्रलोभन दिया था. साथ ही नीरज मिश्रा को एक मोबाइल भी खरीद कर दिया था. पुलिस ने उस मोबाइल के साथ ही मृतक का सैमसंग मोबाइल, प्रियंका का मोबाइल, मृतक की चप्पलें, हत्यारोपियों के कब्जे से खून से सना सत्यशील का गमछा, कोल्ड ड्रिंक की 4 बोतलें, हत्या में इस्तेमाल टीयूवी कार आदि चीजें बरामद कर लीं. पुलिस ने सत्यशील की हत्या करने के आरोप में प्रियंका, मोहन, नीरज व जयवीर को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जिला जेल भेज दिया गया.

प्रियंका की बेटी किट्टू व गाय को प्रियंका की मां अपने साथ ले गई. जबकि पहली पत्नी के मायके वाले दोनों बेटियों को अपने साथ ले गए. प्रियंका ने आशनाई के चक्कर में अपने सुहाग व सुखी गृहस्थी को अपने ही हाथों उजाड़ लिया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

Crime Story : हंसिए से काट डाली प्रेमिका के पिता और मां की गर्दन

Crime Story : बबीता और लालमणि भले ही अलगअलग बिरादरी के थे, लेकिन उन का प्यार अटूट था. लालमणि ने बबीता के मातापिता से जब शादी के बारे में बात की तो उन्होंने शादी करने से इनकार कर दिया. इस के बाद ऐसा क्या हुआ कि बबीता के घर में एक नहीं, बल्कि 2 हत्याएं हुईं?

थाना गोसाईगंज के थानाप्रभारी एस.के. सिंह को सुबहसुबह सलारपुर गांव में डबल मर्डर की सूचना मिली तो वह विचलित हो उठे. उन्होंने वारदात की सूचना वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को दी फिर पुलिस टीम के साथ घटनास्थल की ओर रवाना हो गए. यह बात 25 मई, 2020 की सुबह 8 बजे की है. एस.के. सिंह को दोहरे हत्याकांड की सूचना सलारपुर गांव के किसी व्यक्ति ने मोबाइल फोन से दी थी. उस ने अपना नाम तो नहीं बताया था, पर यह जरूर बताया था कि गांव के बुजुर्ग दंपति की निर्मम हत्या हुई है. एस.के. सिंह कुछ और पूछते, उस से पहले ही फोन डिसकनेक्ट कर दिया गया था. सलारपुर गांव से थाना गोसाईगंज 8 किलोमीटर दूर था. पुलिस को वहां पहुंचने में करीब आधा घंटा लगा.

सलारपुर पहुंचते ही एस.के. सिंह को पता चल गया कि हत्या राममिलन व उस की बीवी राजकुमारी की हुई है. उस समय घटनास्थल पर लोगों की भीड़ जुटी थी. पूछने पर पता चला कि शव घर की छत पर पड़े हैं. एस.के. सिंह साथी पुलिसकर्मियों के साथ छत पर पहुंचे. वहां एक 20-22 वर्षीय युवती चीखचीख कर रो रही थी. वह मृतक दंपति की बेटी वंदना थी. थानाप्रभारी ने उसे समझाबुझा कर शव से अलग किया फिर निरीक्षण में जुट गए. राममिलन और उस की पत्नी राजकुमारी के शव अगलबगल पड़े थे. शवों के पास ही खून सना हंसिया पड़ा था. संभवत: उसी हंसिया से वार कर दोनों को मौत के घाट उतारा गया था. दोनों के गले पर गहरे जख्म थे. चेहरों पर भी वार किए गए थे.

मृतक राममिलन की उम्र 60 वर्ष के आसपास थी, जबकि उस की पत्नी राजकुमारी 55 वर्ष के आसपास थी. पुलिस ने साक्ष्य के तौर पर आला कत्ल हंसिया जाब्ते में लिया. थानाप्रभारी एस.के. सिंह अभी निरीक्षण कर ही रहे थे कि सूचना पा कर एसपी शिवहरी मीणा, एएसपी (ग्रामीण) शिवराज तथा सीओ दलबीर सिंह भी आ गए. पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल पर फोरैंसिक टीम तथा डौग स्क्वायड को भी बुलवा लिया. पुलिस अधिकारियों ने जहां घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया, वहीं फौरेंसिक टीम ने जांच कर साक्ष्य जुटाए और कई जगह से फिंगरप्रिंट उठाए. डौग स्क्वायड ने खोजी कुतिया लूसी को मौका ए वारदात पर छोड़ा.

लूसी दोनों शवों को सूंघ कर छत से जीने के रास्ते घर के बाहर आई और भौकते हुए आगे बढ़ी फिर प्राथमिक पाठशाला के पास लगे हैंडपंप पर जा कर रुक गई.

उस ने हैंडपंप को कई बार सूंघा और भौंकने लगी. इस के बाद वह वापस लौट आई. टीम के सदस्यों ने अनुमान लगाया कि हत्यारों ने हत्या करने के बाद हाथपैरों पर लगे खून को संभवत: इसी हैंडपंप पर धोया होगा. घटनास्थल पर मृतक की बेटी वंदना मौजूद थी. उस की आंखों बहते आंसुओं का सैलाब थम नहीं रहा था. पुलिस अधिकारियों ने उस से पूछताछ की तो वंदना ने बताया कि उस के मांबाप का कातिल कोई और नहीं उस का प्रेमी लालमणि उर्फ लल्लू है. वह पड़ोसी गांव कसमऊ का रहने वाला है. वह बीती रात 8 बजे घर आया था. उस ने मातापिता पर शादी करने का दबाव डाला था, लेकिन उन्होंने साफ इंकार कर दिया था. इस से नाराज हो कर वह वापस चला गया था.

आधी रात के बाद लगभग 3 बजे वह घर से सटे पेड़ पर चढ़ कर छत पर आया और छत पर सो रहे मातापिता की हंसिया से वार कर हत्या कर दी और फरार हो गया. आप उसे जल्दी गिरफ्तार कर लीजिए वरना वह मुझे भी मार डालेगा.

‘‘लालमणि के अलावा कोई और भी उस के साथ था?’’ सीओ दलबीर सिंह ने वंदना से पूछा.

‘‘नहीं साहब, कोई दूसरा उस के साथ नहीं था. उस ने अकेले ही घटना को अंजाम दिया है.’’ वंदना बोली.

वंदना से पूछताछ के बाद पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल की काररवाई पूरी कर राममिलन और राजकुमारी के शव पोस्टमार्टम के लिए सुलतानपुर के जिला अस्पताल भिजवा दिए. इस के बाद वंदना की तहरीर पर थाना गोसाईगंज थाने में भादंवि की धारा 302 के तहत लालमणि उर्फ लल्लू के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया गया. चूंकि मामला डबल मर्डर का था और क्षेत्र में दहशत थी. इसलिए हत्यारोपी को पकड़ने के लिए एसपी शिवहरी मीणा ने एएसपी शिवराज की अगुवाई में एक पुलिस टीम का गठन किया. इस टीम में गोसाईगंज थानाप्रभारी एस.के. सिंह, सीओ दलबीर सिंह, एसआई जगदेव सिंह, रामकुमार, आरक्षी अनूप कुमार तथा सिपाही लाल को सम्मिलित किया गया. टीम के साथ सर्विलांस टीम को भी लगा दिया गया.

गठित पुलिस टीम ने सब से पहले घटनास्थल का निरीक्षण किया, वंदना का बयान दर्ज किया तथा उस नीम के पेड़ का जायजा लिया, जिस पर चढ़ कर हत्यारा छत पर आया था. टीम ने वंदना के पड़ोसियों और उस के चाचा गिरिराज व चाची सरिता से भी पूछताछ की और उन के बयान दर्ज किए. लालमणि की तलाश इस के बाद देर रात पुलिस टीम ने कसमऊ गांव निवासी लालमणि के घर छापा मारा. लालमणि घर से फरार था, पुलिस टीम ने उस के पिता तुलसीराम से उस के बेटे के बारे में सख्ती से पूछताछ की. तुलसीराम ने टीम को उन ठिकानों की जानकारी दी जहां लालमणि छिप सकता था.

जानकारी हासिल करने के बाद पुलिस टीम ने उन ठिकानों पर ताबड़तोड़ छापे मारे लेकिन लालमणि हाथ नहीं लगा. उस ने अपना मोबाइल फोन भी बंद कर लिया था, जिस से सर्विलांस टीम उस की लोकेशन पता नहीं कर पा रही थी. पुलिस टीम ने खास मुखबिर भी लगाए पर हत्यारोपी का पता न चल सका. 2 जून, 2020 की शाम सर्विलांस टीम को लालमणि की लोकेशन गोपालगंज और कसमऊ गांव के बीच की मिली. लोकेशन ट्रेस होते ही पुलिस टीम ने उस का पीछा किया और रात 8 बजे उसे कसमऊ गांव के बाहर से धर दबोचा. वह अपने पिता तुलसीराम से रात के अंधेरे में मिलने जा रहा था. पुलिस टीम उसे पकड़ कर थाना गोसाईगंज ले आई.

थाने में जब लालमणि से दोहरे हत्याकांड के बारे में पूछा गया तो वह साफ मुकर गया. उस ने कहा कि वह तो वंदना से प्यार करता है, भला उस के मातापिता की हत्या कैसे कर सकता है. वंदना के मांबाप की हत्या उस के परिवार वालों ने की है. वे लोग उन की जमीन और घर हड़पना चाहते थे. उसे झूठा फंसाया जा रहा है. उस के इस झूठ पर थानाप्रभारी एस.के. सिंह को गुस्सा आ गया. उन्होंने उस से सख्ती के साथ पूछताछ की. इस के बाद वह टूट गया और दोहरी हत्या का जुर्म कबूल कर लिया. यही नहीं उस ने खून से सने कपड़े भी बरामद करा दिए, जो उस ने अपने खेत के पास झाडि़यों में छिपा दिए थे. उस ने बताया कि वह वंदना से शादी करना चाहता था.

दोनों एक दूसरे से मोहब्बत करते थे. लेकिन वंदना के मांबाप राजी नहीं थे. इसलिए उस ने दोनों को मौत की नींद सुला दिया. चूंकि लालमणि ने दोहरी हत्या का जुर्म कबूल कर लिया था, उस ने खून सने कपड़े भी बरामद करा दिए थे. इस के अलावा पुलिस आला कत्ल हंसिया पहले ही बरामद कर चुकी थी. अत: पुलिस ने उसे हत्या के जुर्म में विधिसम्मत गिरफ्तार कर लिया. पुलिस जांच में प्यार के प्रतिशोध में हुई दोहरी हत्या की सनसनीखेज घटना प्रकाश में आई—

सुलतानपुर जिले का गांव सलारपुर, थाना गोसाईगंज क्षेत्र में आता है. राममिलन अपने परिवार के साथ इसी गांव में रहता था. उस के परिवार में पत्नी राजकुमारी के अलावा 3 बेटियां गीता, अनीता और वंदना थीं. राममिलन के पास उपजाऊ खेती की जमीन तो नाम मात्र की थी, लेकिन वह पंपिंग मशीन का बेहतरीन कारीगर था. अपने हुनर से वह अपने परिवार का पालनपोषण करता था. मशीनरी का कारीगर होने के कारण राममिलन आसपास के दरजनों गांव में चर्चित था. लोग उस की इज्जत करते थे. राममिलन ने गीता और अनीता की शादी कर दी थी. लालमणि बना राममिलन का शागिर्द वंदना राममिलन की सब से छोटी बेटी थी. वह अपनी 2 बहनों से ज्यादा खूबसूरत थी, सादे कपड़ों और बिना मेकअप के भी उस की सुंदरता पहली ही नजर में मन में उतर जाती थी.

उस ने गांव के गांधी स्मारक माध्यमिक विद्यालय से हाईस्कूल पास किया था. इस के बाद उस की पढ़ाई पर विराम लग गया था. वह मां के घरेलू कामों में हाथ बंटाने लगी थी. एक रोज राममिलन पंपिंग इंजन ठीक  करने पड़ोसी गांव कसमऊ गया. वहां उस की मुलाकात युवा लालमणि उर्फ लल्लू से हुई. लालमणि कसमऊ गांव निवासी तुलसीराम का बेटा था. तुलसीराम राजमिस्त्री था. उस के 2बच्चों में लालमणि बड़ा था. इंटर पास लालमणि नौकरी की कोशिश में लगा था. राममिलन ने चंद घंटों में इंजन की मरम्मत कर उसे   चालू कर दिया और मालिक से 1000 रुपए मेहनताना ले लिया. राममिलन के इस हुनर को देख कर लालमणि प्रभावित हुआ और उसे अपने घर ले गया.

घर ला कर लालमणि ने राममिलन का खूब आदरसत्कार किया फिर बोला, ‘‘चाचा, आप हुनरमंद हैं. आप अपने इस हुनर को मुझे भी सिखा दें तो मेरी बेरोजगारी दूर हो जाएगी. मैं जीवन भर आप का एहसान मानूंगा.’

‘‘एहसान किस बात का, पर तुम्हें हुनर सीखने के लिए मेहनत और लगन से काम करना होगा, समय भी देना होगा. भूखप्यास से भी जूझना पड़ सकता है.’’ राममिलन ने उसे टटोला.

‘‘मुझे आप की हर शर्त मंजूर है, बस आप अपना हुनर सिखा दीजिए.’’ लालमणि बेताब हो कर बोला.

इस के बाद लालमणि, राममिलन के साथ जाने लगा. राममिलन उसे इंजन खोलना, बांधना सिखाने लगा. लालमणि में हुनर सीखने का जज्बा था. साल बीततेबीतते वह हुनर सीख गया. अब राममिलन बैठा रहता और लालमणि इंजन को सुधारने का काम करता. लालमणि की मेहनत व लगन से राममिलन खुश था. उसे जो भी मेहनताना मिलता, उस का आधा लालमणि को दे देता. लालमणि राममिलन के घर भी आनेजाने लगा था. घर आतेजाते ही उस की निगाह उस की खूबसूरत जवान बेटी वंदना पर पड़ी. वंदना पहली ही नजर में लालमणि के दिल में रचबस गई. वह उसे मन ही मन प्यार करने लगा. वंदना भी लालमणि से प्रभावित थी.

जब भी दोनों का आमनासामना होता तो एकदूसरे को देख कर मुसकरा देते थे. लेकिन अपने प्यार का इजहार करने की हिम्मत दोनों में से कोई नहीं जुटा पाता था. एक रोज वंदना घर की साफसफाई कर रही थी, तभी लालमणि दरवाजे पर आ कर खड़ा हो गया और टकटकी लगा कर वंदना को निहारने लगा. लालमणि को अपनी ओर निहारते देख वंदना के चेहरे पर मुसकान तैर गई, ‘‘आइए लल्लूजी आइए.’’ आंखें मिली तो दोनों के दिल के तार झनझना उठे.

‘‘चाचा नहीं दिखाई पड़ रहे, कहीं गए हैं क्या?’’ लालमणि ने वंदना से पूछा.

‘‘हां, पापा गोसाईगंज बाजार गए हैं. दोपहर बाद ही लौट पाएंगे.’’

‘अच्छा, तो मैं चलता हूं, चाचा आ जाएं तो बता देना लल्लू आया था.’

‘‘अरे, ऐसे कैसे चले जाओगे. चायनाश्ता कर लो, फिर चले जाना. नहीं तो पापा नाराज होंगे. कहेंगे उन का शागिर्द आया था और तुम ने चायपानी को भी नहीं पूछा.’’ कहते हुए वंदना ने आंगन में कुरसी डाल दी.

लालमणि कुरसी पर बैठ गया. वंदना उस समय साधारण कपड़ों में थी. लेकिन उस सादगी में भी वह गजब की खूबसूरत लग रही थी. लालमणि के मन में आया कि वह उस के सौंदर्य की जी भर कर प्रशंसा करे, मगर संकोच के झीने परदे ने उस के होंठों को हिलने से रोक लिया. हालांकि मनमस्तिष्क में जज्बातों की खुशनुमा हवाएं काफी देर तक हिलोरें लेती रहीं. दिल में एक आशंका यह भी आ रही कि कही वंदना ने किसी दूसरे को अपने दिल में न बसा रखा हो. ऐसा हुआ तो उस के अरमानों को ग्रहण लगने का खतरा हो सकता था. इश्क हर किसी से तो नहीं होता, बस एक बार और फिर आर या पार.

आंगन में कुरसी पर बैठे लालमणि के मस्तिष्क में सुखद विचारों का मंथन चल रहा था. उधर वंदना के दिलोदिमाग में एक अलग तरह की हलचल मची हुई थी. उन्हीं विचारों में खोई वंदना चायनाश्ता ले कर आ गई, ‘‘लीजिए गरमागरम चाय पीजिए.’’

उस रोज वंदना के हाथों बनाई चाय पीते समय लालमणि की आंखें लगातार उस के शबाबी जिस्म का जायजा लेती रहीं. दिन के उजाले में ही लालमणि की आंखें उस के हुस्न के दरिया में डूब जाने के सपने देखने लगी. इस मुलाकात के बाद वंदना की मोहब्बत की आस में उस पर ऐसी दीवानगी सवार हुई कि वह उसे अपनी आंखों का काजल बना बैठा. कुछ ही दिनों में आंखों से उठ कर वंदना ने लालमणि की रूह में आशियाना बना लिया. लालमणि जैसा ही हाल वंदना का भी था. रात में वह सोने के लिए बिस्तर पर लेटती तो नींद के भौरे पलकों पर आआ कर चले जाते. वे उड़ जाते तो लालमणि का मुसकराता चेहरा पलकों में आ कर छिप जाता. तब वह रोमांचित हो उठती और सुखद अनुभूति महसूस करती.

प्यार का इजहार आखिर जब लालमणि से नहीं रहा गया तो एक रोज उस ने प्यार का इजहार कर ही दिया, ‘‘वंदना, मैं तुम से बेहद प्यार करता हूं. तुम्हारे बिना अब मैं खुद को अधूरा समझता हूं. तुम मेरे दिल में रचबस गई हो. तुम्हारे अलावा मुझे कुछ सूझता ही नहीं.’’

वंदना कुछ क्षण मौन रही फिर बोली, ‘‘लल्लू, प्यार तो मैं भी तुम से करती हूं, पर हम दोनों के बीच ऊंचनीच, बिरादरी का मतभेद है. पता नहीं मेरे मांबाप इस रिश्ते को स्वीकार करेंगे भी या नहीं. मुझे इस बात का डर सता रहा है.’’

‘‘तुम डरो नहीं वंदना, हम चाचाचाची को मना लेंगे. मुझे उम्मीद है वह मेरी बात मान जाएंगे. क्योंकि चाचा राममिलन जानते हैं कि अब मैं कमाने लगा हूं. मुझ में नशाखोरी जैसा कोई ऐब भी नहीं है. सब से बड़ी बात हम दोनों हमउम्र हैं और दोनों एकदूसरे को प्यार करते हैं.’’ लालमणि बोला. इस के बाद वंदना और लालमणि का प्यार परवान चढ़ने लगा. उन के बीच की दूरियां कम होने लगीं. फिर उन का शारीरिक मिलन भी होने लगा. लालमणि ऐसे समय पर घर आता जब राममिलन घर के बाहर होता. वंदना मां की आंखों में धूल झोंक कर प्रेमी से मिलन कर लेती. उन्हें घर में मौका न मिलता तो खेतखलिहान, बागबगीचे में भूख मिटा लेते. इस मिलन का परिणाम यह हुआ कि गांव भर में दोनों के अवैध संबंधों की चर्चा होने लगी.

वंदना के बहकते कदमों की खबर जल्द ही उस के पिता राममिलन और मां राजकुमारी के कानों तक जा पहुंची. दोनों को जमीन घूमती हुई नजर आई. इज्जत ही गरीब की दौलत होती है और उसी दौलत को उन की बेटी नीलाम करने पर उतारू थी. यह बात उन्हें भला कैसे गवारा होती. लिहाजा दोनों ने बेटी डांटाफटकारा भी और समझाया भी, ‘‘वंदना, लल्लू छोटी जाति का है. उस से तुम्हारा रिश्ता हरगिज नहीं हो सकता. अगर तूने मनमानी की तो बिरादरी के लोग हमारा हुक्कापानी बंद कर देंगे. उस हालात में हमारा जीना दूभर हो जाएगा. इसलिए तू अपना रास्ता बदल ले.’’

मांबाप की नसीहत सौ फीसदी सच थी, इसलिए वंदना ने उन की बात मान ली और लालमणि से मिलनाजुलना बंद कर दिया. उस ने लल्लू को बता भी दिया कि उस के मांबाप उस के साथ शादी को राजी नहीं हैं. यह पता चलते ही लालमणि का गुस्सा फट पड़ा. वह राममिलन तथा राजकुमारी को अपने प्यार में बाधक मानने लगा. जब उस का गुस्सा शांत होता तो वह वंदना के घर पहुंच जाता और चाचाचाची के पैर छू कर उन्हें शादी के लिए मनाता. इतना ही नहीं, उन के न मानने पर अंजाम भुगतने की धमकी भी देता. उस ने वंदना पर भाग कर शादी करने का भी दबाव डाला, पर वंदना राजी नहीं हुई. इस से लालमणि वंदना से भी नाराज रहने लगा.

24 मई, 2020 की रात 8 बजे भी लालमणि, राममिलन के घर पहुंचा और उस पर तथा उस की पत्नी राजकुमारी पर उस से वंदना की शादी करने का दबाव डाला. लेकिन वह दोनों राजी नहीं हुए. इस पर लालमणि ने उन्हें धमकी दी कि इस का परिणाम अच्छा नहीं होगा. लालमणि की धमकी बनी काल धमकी देने के बाद लालमणि ने प्यार के प्रतिशोध में वंदना के मातापिता को शादी का रोड़ा मानते हुए ठिकाने लगाने का निश्चय कर लिया और घर चला गया. उस ने घर में पहले से रखी शराब पी फिर आधी रात के बाद घर से निकला और वंदना के घर पहुंच गया. राममिलन के घर का मुख्य दरवाजा बंद था. इस पर वह घर के पिछवाड़े पहुंचा और नीम के पेड़ पर चढ़ कर वंदना के घर की छत पर पहुंच गया.

वंदना नीचे कमरे में सोई थी. छत पर राममिलन व उस की पत्नी राजकुमारी गहरी नींद में सो रहे थे. जीने के रास्ते लालमणि किचन में चाकू लाने पहुंचा, पर उसे चाकू नहीं मिला, तभी उस की निगाह सामने रखी हंसिया पर पड़ी. वह हंसिया ले कर छत पर आया और सो रहे राममिलन की गरदन पर हंसिया से वार पर वार करने लगा. हंसिया के वार से राममिलन की गरदन कट गई और खून बहने लगा. कुछ देर तड़पने के बाद राममिलन की मौत हो गई. इस के बाद इसी तरह उस ने राजकुमारी पर हंसिया से वार किया तो वह चीख पड़ी. उस की चीख सुन कर वंदना छत पर आ गई, लेकिन तब तक वह राजकुमारी को भी मौत के घाट उतार चुका था.

वंदना को आया देख कर लालमणि ने हंसिया वहीं फेंक दिया और पेड़ के रास्ते छत से नीचे आ गया. उस ने प्राइमरी स्कूल के पास जा कर खून सने हाथपांव और मुंह धोया, फिर घर जा कर कपड़े बदले. इस के बाद उस ने खून सने कपड़े अपने खेत के पास झाडि़यों में छिपा दिए. सवेरा होने से पहले ही वह घर से फरार हो गया. इधर वंदना मांबाप की लाशें देख कर चेतनाशून्य हो गई. जब उसे होश आया तो उस ने चीखनाचिल्लाना शुरू किया. उस की चीख सुन कर पासपड़ोस के लोग आ गए. फिर तो सूरज की किरण बिखरते ही पूरे गांव में डबल मर्डर का शोर मच गया.

इसी बीच किसी व्यक्ति ने मोबाइल फोन से डबल मर्डर की सूचना गोसाईगंज पुलिस को दे दी. सूचना पाते ही थानाप्रभारी एस.के. सिंह घटनास्थल पर आ गए. लालमणि उर्फ लल्लू से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने उसे 3 जून, 2020 को सुलतानपुर की जिला अदालत में पेश किया, जहां से उसे जिला जेल भेज दिया गया. कथा संकलन तक लालमणि की जमानत स्वीकृत नहीं हुई थी. वंदना अपनी बड़ी बहन गीता के साथ उस की ससुराल अमेठी चली गई थी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

UP Crime : 3 लाख की सुपारी देकर कराई पति की हत्या

UP Crime : अपने दोस्त रामदीन को कल्लू ने ही घर लाना शुरू किया था. उस ने जब पंचवटी की आंखों में अजीब सी प्यास देखी तो वह कल्लू के पीछे भी घर आने लगा. बस यहीं से उस की घरगृहस्थी की नींव हिलने लगी. फिर एक दिन गृहस्थी की दीवार ऐसी भरभरा कर गिरी कि उस ने कल्लू को ही…

पंपंचवटी ने जो कुछ बताया, वह किसी के भी गले उतरने वाला नहीं था, फिर सिद्धार्थ शंकर तो आईपीएस थे. घटनाक्रम का खाका दिमाग में उतारने के बाद उन्होंने गहरी सांस ले कर पूछा, ‘‘तुम कितने समय से मायके में थीं पंचवटी?’’

‘‘जी, एक साल से मायके में थी. मेरा मायका हमीरपुर के गांव रूरीपहरी में है. पिता सिपाही लाल अरहर का व्यापार करते हैं. अरहर गांवों से…’’

पंचवटी मायके का और बखान करना चाहती थी, लेकिन सिद्धार्थ शंकर ने उसे बीच में टोक दिया, ‘‘सिर्फ उतना बताओ जितना पूछा जाए.’’

उन की आवाज में घुले रोष को समझ पंचवटी सहम गई. उन्होंने उस से अगला सवाल किया, ‘‘तुम्हारी अपनी घरगृहस्थी थी, सालभर मायके में रहने की कोई खास वजह? मायके वालों ने रोक रखा था या आने का मन नहीं किया. हां, सोचसमझ कर जवाब देना, क्योंकि हम सभी से पूछताछ करेंगे.’’

‘‘हम दोनों में अनबन हो गई थी, साहब. इसलिए मायके चली गई थी. लौट कर आना तो था ही, सो आ गई.’’ पंचवटी ने कहा तो एसपी साहब ने पूछा, ‘‘खुद कहां आईं, तुम्हारा पति लाया था. अच्छा, यह बताओ, ससुराल आने के लिए पति को तुम ने बुलाया था या वह खुद ही तुम्हें लाने के लिए पहुंचा?’’

‘‘वह नाराज थे, मैं ने ही उन्हें फोन कर के बुलाया था. वह मेरे गांव रूरीपहरी आए और मैं उन के साथ चली आई.’’

‘‘…और वापसी में कुछ बदमाशों ने तुम्हारे पति को मार डाला, उस का मोाबइल भी ले गए.’’ सिद्धार्थ शंकर ने पंचवटी के आंसुओं से भरे चेहरे पर तीखी नजर डालते हुए पूछा, ‘‘तुम्हारा मोबाइल, जिस से तुम ने पुलिस को खबर दी, पति से महंगा रहा होगा. बदमाशों ने तुम से न मांगा न छीना. तुम पर ऐसी मेहरबानी क्यों?’’

‘‘मैं क्या जानूं साहब, जो सच था मैं ने बता दिया.’’ पंचवटी ने गालों पर ढुलक आए आंसुओं को पोंछ कर चेहरा झुका लिया. एसपी साहब ने उस पर उपेक्षा की नजर डाल कर कहा, ‘‘कुछ सच बाद के लिए बचा कर रखो, शाम को फिर पूछताछ होगी. खयाल रखना मुझे झूठ पसंद नहीं है.’’

जहां सिद्धार्थ शंकर मीणा पंचवटी से पूछताछ कर रहे थे, वहां से थोड़ी सी दूरी पर उस के पति कालीचरण उर्फ कल्लू की गोली और घावों से छलनी लाश पड़ी थी. आसपास लोगों की भीड़ जमा थी, जो कभी कल्लू की लाश को देख रही थी तो कभी जमीन पर पड़ी उस की मोटरसाइकिल को. कुछ लोगों की नजर पंचवटी पर भी अटकी हुई थी. बांदा शहर कोतवाली प्रभारी इंसपेक्टर दिनेश सिंह अपनी टीम के साथ घटनास्थल का नक्शा बनाने, लाश पर गोलियों और चोटों के निशान गिनने और लोगों से पूछताछ में लगे थे. एसपी सिद्धार्थ शंकर और एएसपी महेंद्र प्रताप सिंह को इंसपेक्टर दिनेश सिंह ने ही सूचना दे कर बुलाया था. वह अपने साथ फोरैंसिक टीम और डौग स्क्वायड को भी लाए थे, जिन्होंने अपनाअपना काम निपटा लिया था.

वापस जाते समय एसपी साहब ने इंसपेक्टर दिनेश सिंह को निर्देश दिया, ‘‘लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेज दो और मृतक के घर वालों से कहो, रिपोर्ट लिखाएं. हां, इस औरत को शाम को कोतवाली बुला लेना, पूछताछ करनी है.’’

यह घटना 28 जून, 2020 की है. कोतवाली प्रभारी दिनेश सिंह को कंट्रोल रूम से फोन पर सूचना मिली थी कि सोहाना गांव के बाहर एक युवक की हत्या हो गई है. गांव सोहाना कोतवाली से 12 किलोमीटर दूर था. इंसपेक्टर दिनेश सिंह पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. उन्होंने एसपी सिद्धार्थ शंकर और एएसपी महेंद्र प्रताप सिंह को घटना के बारे में बता दिया था. घटनास्थल पर लोगों की भीड़ जमा थी. वहीं तालाब के पास कल्लू की लाश पड़ी थी, उस की मोटरसाइकिल भी. लाश के पास बैठी उस की पत्नी पंचवटी रो रही थी. मृतक की लाश देख पुलिस टीम भी सिहर उठी. हत्यारों ने कल्लू का कत्ल बड़ी बेरहमी से किया था. न केवल उस के सीने में गोली मारी गई थी, बल्कि किसी तेजधार हथियार से उस की गरदन और शरीर के दूसरे अंगों पर भी वार किए गए थे. उस की गरदन आधी कट गई थी.

दिनेश सिंह ने पंचवटी को धैर्य बंधाने के बाद उस से पूछताछ की तो उस ने बताया कि उस का पति कल्लू उसे मायके से ले कर आ रहा था. 4 बजे जब हम लोग गांव के बाहर तालाब के पास पहुंचे तो बदमाशों ने मोटरसाइकिल रुकवा कर उस के पति के सीने में गोली मार दी. फिर उन पर कुल्हाड़ी से कई वार किए और उन का मोबाइल ले कर फरार हो गए. इंसपेक्टर दिनेश सिंह ने घटनास्थल का निरीक्षण करने और लोगों से बातचीत के बाद कल्लू के शव को पोस्टमार्टम के लिए बांदा जिला अस्पताल भिजवा दिया. संदिग्धों में पंचवटी का भी नाम उसी दिन मृतक कल्लू के भाई रामशरण ने थाना कोतवाली बांदा में कल्लू के कत्ल की नामजद रिपोर्ट लिखाई. उस ने इस रिपोर्ट में रामदीन, रज्जन और चंद्रप्रकाश उर्फ भूरा को नामजद किया.

रिपोर्ट में पंचवटी का भी नाम था. इंसपेक्टर दिनेश सिंह ने रामशरण से कहा कि कल को वह एसपी साहब के औफिस जा कर उन से मिल ले. एसपी साहब पंचवटी से पूछताछ करना चाहते हैं लेकिन उस से पहले वह कुछ जानकारियां हासिल करना चाहते हैं. उधर एसपी सिद्धार्थ शंकर मीणा ने कल्लू हत्याकांड का जल्दी खुलासा करने के लिए एएसपी महेंद्र प्रताप सिंह के नेतृत्व में एक विशेष टीम गठित की. इस टीम में इंसपेक्टर दिनेश सिंह, दरोगा राजीव यादव, मुन्नालाल, सिपाही कुंवर सिंह, मेवालाल, महिला सिपाही पार्वती, एसओजी प्रभारी आनंद कुमार सिंह और सर्विलांस टीम को शामिल किया गया.

अगले दिन रामशरण एसपी सिद्धार्थ शंकर से मिला. उन के यह पूछने पर कि उस ने अपने भाई कल्लू की हत्या में जिन लोगों को नामजद किया है, उन पर शक क्यों है. इस पर रामशरण ने बताया कि रामदीन अपराधी प्रवृत्ति का दबंग आदमी है. उस के और पंचवटी के नाजायज संबंध हैं. कल्लू इन संबंधों का विरोध करता था. पतिपत्नी में मारपीट भी होती थी. इसी वजह से पंचवटी ने उसे मरवा दिया.

‘‘और बाकी लोग, उन की क्या भूमिका है?’’

‘‘बाकी 2 लोग रज्जन और चंद्रप्रकाश रामदीन के रिश्तेदार हैं, अपराधी भी हैं. रामदीन ने उन्हें साथ लिया होगा. पैसे वाला आदमी है. कुछ रकम दे दी होगी.’’ रामशरण ने बताया.

एसपी साहब ने रामशरण को घर भेज दिया. पंचवटी पर उन्हें पहले ही शक था. अब उस से पूछताछ के लिए मजबूत आधार मिल गया था. अगले दिन एसपी सिद्धार्थ शंकर के आदेश पर पंचवटी को कोतवाली बुलाया गया. एसपी साहब ने महिला सिपाहियों की मौजूदगी में पंचवटी से पूछताछ की. उन का पहला सवाल था, ‘‘रामदीन से तुम्हारा क्या रिश्तानाता है?’’

‘‘वह मेरे पति कल्लू का दोस्त था. वही उसे घर ले कर आते थे.’’

‘‘मैं ने तुम से कहा था कि झूठ मुझे पसंद नहीं है, लेकिन तुम ने मेरी बात पर ध्यान नहीं दिया. सच बताओ, तुम ने रामदीन के साथ कल्लू की हत्या क्यों कराई? अगर तुम ने झूठ बोला तो तुम्हारे सिर पर खड़ी ये महिला सिपाही मारमार कर तुम्हारी खाल उधेड़ देंगी.’’

एसपी साहब की पूछताछ में पंचवटी ने यह तो मान लिया कि रामदीन से उस के संबंध थे और कल्लू इस का विरोध करता था. लेकिन हत्या के बारे में उस ने कुछ नहीं बताया. कुछ सोच कर एसपी साहब ने उसे घर भेज दिया. एसपी सिद्धार्थ शंकर द्वारा गठित विशेष पुलिस टीम ने सब से पहले घटनास्थल का निरीक्षण किया, पोस्टमार्टम रिपोर्ट का अध्ययन किया, फिर कल्लू के घर वालों के बयान दर्ज किए. इस के बाद सोहाना गांव निवासी रामदीन व रज्जन के घर दबिश दी गई, लेकिन दोनों घर से फरार थे. उन की सुरागसी के लिए टीम ने उन के परिवार वालों पर दबाव बनाया, उन्हें हिरासत में ले कर कड़ी पूछताछ की गई. लेकिन रामदीन व रज्जन का पता नहीं चला.

उधर सर्विलांस टीम ने मृतक की पत्नी पंचवटी के मोबाइल फोन को खंगाला तो पता चला कि पंचवटी एक नंबर पर अकसर बात करती थी. उस नंबर का पता लगाया गया तो जानकारी मिली कि वह नंबर सोहाना गांव के ही रामदीन का है. इस नंबर पर 28 जून कोे सुबह 9 बजे से शाम 4 बजे तक पंचवटी बराबर बात करती रही थी. उसी दिन कल्लू का कत्ल हुआ था. सर्विलांस टीम ने लोकेशन ट्रेस करने के लिए रामदीन के नंबर को सर्विलांस पर ले लिया और पंचवटी के नंबर को लिसनिंग पर लगा दिया गया, ताकि दोनों बात करें तो पुलिस को जानकारी हो जाए. इतना ही नहीं टीम ने मृतक के मोबाइल फोन को भी सर्विलांस पर लगाया ताकि फोन चालू करते ही उस की लोकेशन पुलिस को मिल जाए.

पंचवटी पर पुलिस का पहरा पंचवटी ससुराल वालों को चकमा दे कर कहीं फरार न हो जाए, इसलिए जांच कर रही टीम ने उस की निगरानी के लिए घर के बाहर 2 महिला और 2 पुरुष सिपाहियों को तैनात कर दिया. घर वालों को भी सतर्क किया गया कि वे अपनी बहू पर नजर रखें. 2 जुलाई, 2020 की सुबह 7 बजे सर्विलांस टीम को रामदीन के मोबाइल फोन की लोकेशन केन नदी किनारे सिद्ध बाबा देवस्थान के पास की मिली. सर्विलांस टीम ने इस की जानकारी विशेष पुलिस टीम को दे दी. चूंकि जानकारी अतिमहत्त्वपूर्ण थी, इसलिए टीम सादे कपड़ों में वहां पहुंच गई. लगभग 8 बजे सुबह केन नदी की ओर से सिद्ध बाबा देवस्थान की तरफ 3 आदमी आते दिखे. पुलिस टीम ने उन्हें टोका तो तीनों देवस्थान की ओर भागे. लेकिन पुलिस टीम ने उन्हें दबोच लिया.

तीनों को थाना बांदा कोतवाली लाया गया. थाने पर जब उन से नामपता पूछा गया तो एक ने अपना नाम रामदीन, दूसरे ने अपना नाम रज्जन बताया. जबकि तीसरे का नाम चंद्रप्रकाश उर्फ भूरा, निवासी वनसखा गिरवां जिला बांदा पता लगा. तब तक एएसपी महेंद्र प्रताप चौहान भी कोतवाली आ गए थे. उन्होंने उन तीनों से कल्लू हत्याकांड के संबंध में पूछा तो वे साफ मुकर गए. उन्होंने बताया कि मृतक के घर वाले उन से रंजिश रखते हैं, इसलिए उन्हें फंसा रहे हैं. यह सुनते ही पास खड़े कोतवाल दिनेश सिंह को गुस्सा आ गया. वह तीनों को अलग कक्ष में ले गए और तीनों की जम कर पिटाई की. इस से तीनों टूट गए. फिर उन्होंने एएसपी चौहान के सामने हत्या का जुर्म कबूल कर लिया.

यही नहीं, पुलिस टीम ने उन तीनों की निशानदेही पर हत्या में इस्तेमाल 2 तमंचे, 2 जिंदा कारतूस, 2 खोखे और खून सनी कुल्हाड़ी भी बरामद कर ली, जिसे उन्होंने घटनास्थल से कुछ दूरी पर झाडि़यों में छिपा दिया था. पुलिस ने रामदीन से मृतक कल्लू का मोबाइल फोन भी बरामद कर लिया. बरामद सामान को साक्ष्य के लिए सीलमोहर कर दिया गया. पूछताछ में हत्यारोपी रज्जन ने बताया कि मृतक कल्लू की पत्नी पंचवटी से रामदीन के नाजायज संबंध थे. रामदीन पंचवटी से शादी करना चाहता था. लेकिन उस का पति कल्लू बाधक बना हुआ था. कल्लू को रास्ते से हटाने के लिए पंचवटी और रामदीन ने मिल कर मुझे 3 लाख की सुपारी दी थी. साथ ही रामदीन ने 10 बिस्वा जमीन भी देने का वादा किया था.

सुपारी मिलने के बाद मैं ने अपने रिश्तेदार चंद्रप्रकाश उर्फ भूरा को डेढ़ लाख रुपया देने का लालच दे करअपने साथ मिला लिया. इस के बाद हम लोगों ने योजनाबद्ध तरीके से कल्लू की हत्या कर दी. रज्जन के बयान से स्पष्ट था कि कल्लू की हत्या में उस की पत्नी पंचवटी बराबर की साझेदार थी. पुलिस टीम ने महिला पुलिस के सहयोग से पंचवटी को उस के घर से गिरफ्तार कर लिया. थाना कोतवाली में जब उस का सामना प्रेमी रामदीन और उस के सहयोगी रज्जन से हुआ तो वह सब कुछ समझ गई. उस ने सहज ही पति की हत्या का जुर्म कबूल कर लिया.

चूंकि आरोपियों ने हत्या का जुर्म कबूल कर लिया था और आलाकत्ल कुल्हाड़ी तथा तमंचा भी बरामद करा दिया था, इसलिए इंसपेक्टर दिनेश सिंह ने सब को विधिसम्मत गिरफ्तार कर लिया. पुलिस जांच और मुलजिमों से विस्तृत पूछताछ में एक ऐसी औरत की कहानी सामने आई, जिस ने देह सुख के लिए अपने उस पति को मौत के घाट उतरवा दिया, शादी के समय जिस के साथ पूरी जिंदगी गुजारने का वचन दिया था. 6 साल पहले उस के इसी पति को ढूंढने के लिए उस के पिता सिपाही लाल ने महीनों धक्के खाए थे. और जब कालीचरण उर्फ कल्लू मिल गया तो पिता ने इसे बेटी की किस्मत माना था. बाद में 18 जून, 2014 को पिता ने पंचवटी का हाथ इसी कल्लू के हाथ में दे दिया था.

कालीचरण को सब लोग भले ही कल्लू कहते थे, लेकिन वह था गोराचिट्टा और स्मार्ट. ऐसा पति पा कर पंचवटी खुश थी. कल्लू भी पंचवटी सी सुंदर बीवी पा कर फूला नहीं समाता था. शादी के बाद कई सालों तक पंचवटी और कल्लू की गृहस्थी खूब मजे से चलती रही. लेकिन फिर धीरेधीरे उन के आंतरिक रिश्ते में खटास आती गई. वजह यह कि एक तो कल्लू दिन भर काम कर के हाराथका घर लौटता था, दूसरे उस के जोशोखरोश में कमी आ गई थी. इसी बीच पंचवटी ने कल्लू के परिवार से अलग रहने की जिद करनी शुरू कर दी. कल्लू के पिता चिनकावन को जब पता चला कि छोटी बहू परिवार से अलग रहना चाहती है, तो उन्होंने उसे रहने को 2 कमरों वाला अलग मकान दे दिया.

परिवार से अलग होने के बाद पंचवटी पूरी तरह आजाद हो गई. अब वह पति को अपनी अंगुलियों पर नचाने लगी. पति के साथ वह सैरसपाटे के लिए बांदा शहर भी जाने लगी. कल्लू की जानपहचान रामदीन से थी. वह सोहाना गांव के पूर्वी छोर पर रहता था. अपराधी प्रवृत्ति का रामदीन दबंग आदमी था. उस की आर्थिक स्थिति मजबूत थी. रामदीन की शराब पार्टी में कभीकभी कल्लू भी शामिल होता था, जिस से दोनों में दोस्ती हो गई थी. हालांकि कल्लू रामदीन से 3-4 साल छोटा था, फिर भी दोनों गहरे दोस्त बन गए थे. एक रोज रामदीन, कल्लू के घर आया, तो उस की नजर उस की खूबसूरत पत्नी पंचवटी पर पड़ी. पंचवटी पहली ही नजर में रामदीन के दिल में रचबस गई. इस के बाद वह अकसर पंचवटी से मिलने आने लगा.

रामदीन अपनी लच्छेदार बातों से पंचवटी को रिझाने की कोशिश करने लगा. पंचवटी भी उस की बातों में रुचि लेने लगी थी. धीरेधीरे वह रामदीन की ओर आकर्षित होने लगी. काम पर जाने के लिए कल्लू सुबह 9 बजे घर से निकलता और फिर रात 8 बजे ही घर लौटता. इस बीच पंचवटी घर में अकेली रहती थी. ऐसे ही समय में रामदीन उस से मिलने आता था. चूंकि आकर्षण दोनों तरफ था, इसलिए जल्द ही दोनों के बीच नाजायज रिश्ता बन गया. कल्लू की अपेक्षा रामदीन पौरुष में बलवान था, सो पंचवटी उस की दीवानी हो गई. रामदीन का कल्लू के घर आनाजाना बढ़ा तो पासपड़ोस के लोगों में दोनों के अवैध रिश्तों को ले कर कानाफूसी होने लगी. बात कल्लू के कानों में पड़ी, तो उस का माथा ठनका. उस ने पंचवटी से सवाल किया, ‘‘यह रामदीन मेरी गैरमौजूदगी में क्यों आता है? तुम दोनों के बीच क्या चल रहा है?’’

पंचवटी डरने या लजाने के बजाय त्यौरियां चढ़ा कर बोली, ‘‘रामदीन तुम्हारा दोस्त है. तुम्हीं उसे घर ले कर आते थे. मैं तो उसे बुलाने नहीं गई थी. अब जब वह घर आ जाता है, तो मैं उसे कैसे मना करूं. तुम्हें ऐतराज है, तो उसे मना कर दो. वैसे लगता है मोहल्ले वालों ने तुम्हारे कान भरे हैं. इसलिए मेरे चरित्र पर अंगुली उठा रहे हो.’’

कल्लू उस समय तो चुप रह गया, लेकिन उस के दिमाग में शक गहरा गया. वह पंचवटी पर नजर रखने लगा. इस का परिणाम भी जल्द ही सामने आ गया. एक शाम उस ने पंचवटी व रामदीन को रंगरेलियां मनाते रंगेहाथ पकड़ लिया. उस रोज कल्लू ने पत्नी की जम कर पिटाई की, उसे खूब जलील किया. रामदीन से भी कल्लू की कहासुनी हुई लेकिन रामदीन ने उलटे उसे ही हड़का दिया. इस के बाद तो रामदीन को ले कर आए दिन कल्लू और पंचवटी में झगड़ा और मारपीट होने लगी. तंग आ कर पंचवटी जून 2019 में अपने मायके चली गई. कुछ दिन बाद कल्लू उसे लेने गया तो उस ने साथ चलने से साफ मना कर दिया. उस ने पति कल्लू के खिलाफ अपने मांबाप के भी कान भरे, जिस से उन्होेंने भी बेटी का ही साथ दिया.

पंचवटी मायके रूरीपहरी आ कर रहने लगी, तो रामदीन उस से मिलने वहां भी आने लगा. एक रोज रामदीन ने पंचवटी से कहा कि वह उसे बहुत प्यार करता है और शादी करना चाहता है. इस पर पंचवटी बोली, ‘‘प्यार तो मैं भी करती हूं, शादी भी करना चाहती हूं. लेकिन पति के रहते यह संभव नहीं है.’’

‘‘कल्लू की चिंता तुम छोड़ दो. उस का बंदोबस्त हम कर देंगे.’’ रामदीन ने उसे आश्वासन दिया. दे दी हत्या की सुपारी इस के बाद रामदीन और पंचवटी ने कल्लू की हत्या का षडयंत्र रचा. रामदीन ने रज्जन से संपर्क किया. अपराधी प्रवृत्ति का रज्जन सोहाना गांव का ही रहने वाला था. वह अपनी अंटी में तमंचा लगा कर चलता था. रामदीन और पंचवटी ने मिल कर रज्जन से कल्लू की हत्या का सौदा 3 लाख रुपए में कर दिया. साथ ही रामदीन ने उसे 10 बिस्वा जमीन भी देने का लालच दिया. हत्या की सुपारी लेने के बाद रज्जन अपने रिश्तेदार चंद्रप्रकाश उर्फ भूरा से मिला. बनसखा गिरवां गांव का रहने वाला चंद्रप्रकाश भी कमर में तमंचा खोसे रहता था.

रज्जन ने उसे हत्या की सुपारी लेने की बात बताई और डेढ़ लाख रुपया देने का लालच दिया. इस पर भूरा तैयार हो गया. फिर सब ने मिल कर हत्या की योजना बनाई. योजना के तहत 26 जून, 2020 को पंचवटी ने अपने पति कल्लू से मोबाइल फोन पर बात की. उस ने कहा कि वह उस के साथ रहने को तैयार है, आ कर लिवा ले जाए. कल्लू तो पहले ही चाहता था कि पत्नी उस के साथ रहे. वह 27 जून की शाम अपनी ससुराल रूरीपहरी पहुंच गया. वहां उस की खूब आवभगत हुई. 28 जून, 2020 की दोपहर बाद पंचवटी सजधज कर ससुराल जाने के लिए पति कल्लू के साथ मोटरसाइकिल से निकली.

उस दिन सुबह से ही पंचवटी मोबाइल फोन पर प्रेमी रामदीन के संपर्क में थी. वह उसे हर जानकारी दे रही थी. पति के साथ घर से निकलने की जानकारी भी वह दे चुकी थी. फिर रास्ते भर वह रामदीन से जानकारी शेयर करती रही. उधर जानकारी पा कर रामदीन कुल्हाड़ी हाथ में ले कर सोहाना गांव के बाहर तालाब के पास पहुंच गया. उस ने वहीं पर रज्जन और भूरा को भी बुलवा लिया था. पंचवटी की सूचना के अनुसार उन दोनों को मोटरसाइकिल पर यहीं से गुजरना था. कल्लू शाम 4 बजे पंचवटी के साथ तालाब के पास पहुंचा, तभी घात लगाए बैठे रामदीन, रज्जन और चंद्रप्रकाश उर्फ भूरा ने कल्लू को घेर लिया. पंचवटी मोटरसाइकिल से उतर कर मुंह घुमा कर कुछ दूर जा कर खड़ी हो गई. कल्लू कुछ समझ पाता, तभी भूरा ने उस पर फायर झोंक दिया. लेकिन उस का फायर मिस हो गया.

कल्लू जान बचा कर भागने लगा तो सामने से रज्जन ने फायर कर दिया. गोली कल्लू के सीने में समा गई और वह जमीन पर गिर कर छटपटाने लगा. उसी समय रामदीन ने उस पर कुल्हाड़ी से वार पर वार किए, जिस से उस की गरदन कट गई और उस की मौत हो गई. हत्या के बाद हत्यारों ने तालाब के दूसरे छोर पर जा कर हाथपैर धोए फिर कुल्हाड़ी, तमंचा, तालाब किनारे झाडि़यों में छिपा कर फरार हो गए. दूसरी ओर त्रियाचरित्र दिखाते हुए पंचवटी रोनेपीटने लगी. उस ने अपने मोबाइल फोन द्वारा ससुराल वालों को पति की हत्या की जानकारी दी. इस पर घर में कोहराम मच गया. मातापिता, भाई व गांव के तमाम लोग घटनास्थल पर आ गए.

इस बीच पंचवटी ने पुलिस कंट्रोल रूम को भी हत्या की सूचना दे दी थी. कंट्रोल रूम से मिली सूचना पर थाना कोतवाली के प्रभारी निरीक्षक दिनेश सिंह पुलिस टीम के साथ मौके पर आ गए. उन्होंने जांच शुरू की तो हत्या का परदाफाश हो गया. 3 जुलाई, 2020 को थाना कोतवाली पुलिस ने अभियुक्त रामदीन, रज्जन, चंद्रप्रकाश व पंचवटी को बांदा कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जिला जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Crime News : दो प्रेमियों के साथ मिलकर किया पति का कत्ल

Crime News : अपने 2 बच्चों और पति सुखपाल की परवाह करने के बजाए मंजू अपने ननदोई राजीव और दूसरे प्रेमी राजकुमार के साथ इश्क लड़ा रही थी. फिर एक दिन अपने लालची प्रेमियों के साथ मिल कर मंजू ने ऐसी योजना बनाई कि…

15 जुलाई, 2020 की सुबह करीब 9 बजे मंजू नाम की महिला गांव के कुछ लोगों के साथ जनपद मुरादाबाद के थाना मूंडा पांडे पहुंची. उस ने थानाप्रभारी नवाब सिंह को बताया कि वह 4 दिन पहले अपने पति सुखपाल के साथ ननद ऊषा की ससुराल खाईखेड़ा आई थी. कल 14 जुलाई, 2020 की रात को उस का पति वहीं से अचानक गायब हो गया. पुलिस पूछताछ में मंजू ने यह भी बताया कि उस का पति देर रात अपने बहनोई राजीव के साथ घर से निकला था. लेकिन उस के बाद उस का बहनोई तो घर वापस आ गया लेकिन उस के पति का कोई अतापता नहीं है.

किसी मामले में अगर किसी आरोपी का नाम पहले ही सामने आ जाता है तो पुलिस की सिरदर्दी काफी कम हो जाती है. इस मामले में भी पुलिस ने कुछ राहत की सांस ली और सब से पहले इस आरोपी राजीव कुमार को हिरासत में लेना जरूरी समझा. थानाप्रभारी उसी वक्त राजीव के गांव खाईखेड़ा पहुंचे तो राजीव तो घर पर नहीं मिला. लेकिन उस की पत्नी ऊषा ने जो बताया, उस ने इस केस को और भी उलझा दिया. ऊषा ने बताया कि उस की भाभी के साथ मुरादाबाद निवासी राजकुमार भी था, जिसे वह भैया बता रही थी. 14 जुलाई की देर रात वह सभी मेहमानों को खाना खिलाने के बाद घर का काम खत्म कर अपने बच्चों को ले कर छत पर सोने चली गई थी. उस के बाद उस का भाई सुखपाल अचानक कहां गायब हो गया उसे कुछ नहीं मालूम.

उस रात उस के भाई सुखपाल, राजकुमार ने उस के पति के साथ शराब भी पी थी. जिस के बाद तीनों पर ज्यादा नशा हावी हो गया तो गांव के पास बगीचे में आम खाने की बात कह कर घर से निकल गए थे. वहां पर आम खाने के बाद राजीव और राजकुमार तो घर वापस आ गए, लेकिन सुखपाल अचानक गायब हो गया था. पुलिस जिस केस को आसान समझ रही थी, इस जानकारी के बाद वह पुलिस के लिए काफी जटिल बन गया. क्योंकि ऊषा ने पुलिस को जो जानकारी दी थी, वह सुखपाल की बीवी मंजू ने ही उस के पूछने पर बताई थी. इस मामले में पुलिस को सब से पहले सुखपाल की बीवी मंजू की बातों में झोल नजर आ रहा था. लेकिन पुलिस को लिखित तहरीर मंजू ने दी थी.

इसलिए पुलिस पहले इस मामले में जानकारी जुटाना चाहती थी. पुलिस ने सब से पहले राजीव कुमार से पूछताछ करना ठीक समझा. उस की तलाश की गई तो वह जल्दी ही पुलिस के हत्थे चढ़ गया. राजीव ने पुलिस को गुमराह करते हुए बताया कि उस रात वह उन सभी के साथ आम खाने बाग में गया जरूर था, लेकिन आते समय सुखपाल न जाने अचानक कहां गायब हो गया. राजीव ने पुलिस को यह भी बताया कि उस की बीवी मंजू भी उस के साथ थी. उस के बाद उन्होंने उसे काफी ढूंढने की कोशिश की, लेकिन उस का कहीं पता न चला. उन्होंने सोचा कि उसे शायद कुछ ज्यादा ही नशा हो गया था. जिस के कारण वह पीछे आतेआते कहीं बैठ गया होगा.

उन्हें उम्मीद थी कि वह खुद ही घर चला आएगा. लेकिन हम सब देर रात तक उस का इंतजार करते रहे, वह नहीं आया. उस के बाद उसे सुबह में भी सब जगह पर तलाशा लेकिन उस का कहीं भी अतापता न चल सका. इस मामले की पूछताछ की हर कड़ी में एक नई जानकारी जुड़ रही थी. जिस से पुलिस को लगने लगा था कि सुखपाल इस दुनिया में नहीं रहा. राजीव कुमार की बातों से पुलिस को सारी कहानी समझ आ गई थी. पुलिस यह भी जानती थी कि यह मामला इतनी जल्दी खुलने वाला नहीं है. तभी थानाप्रभारी ने अपनी चाल चलते हुए राजीव कुमार से प्रश्न किया, ‘‘लेकिन उस की बीवी मंजू का कहना है कि तुम ने उस की हत्या कर डाली है.’’

यह सुनते ही राजीव बोला, ‘‘वो सरासर झूठ बोल रही है, सर. सुखपाल की हत्या की पूरी योजना तो उसी की थी. इस में वह खुद शामिल थी.’’

इस के बाद पुलिस ने सुखपाल की पत्नी मंजू को भी हिरासत में ले लिया. इस केस के खुलते ही पुलिस ने मंजू और उस के ननदोई राजीव कुमार की निशानदेही पर कुएं से सुखपाल का शव बरामद कर लिया. शव मिलने के बाद पुलिस ने काररवाई कर के उस की लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी. पोस्टमार्टम हो जाने के बाद पुलिस ने उस की डैडबौडी सुखपाल के परिवार वालों को सौंप दी. पुलिस पूछताछ में राजीव, मंजू और उस के प्रेमी राजकुमार के जुर्म की जो दास्तान उभर कर सामने आई. वह इस प्रकार थी—

उत्तर प्रदेश के मुरादाबादरामपुर हाईवे से उत्तर दिशा में एक छोटा सा गांव है हरसैनपुर. इस गांव में ठाकुर जाति के लोग रहते हैं. आज भी सरकार द्वारा उपलब्ध कराई जा रही आधुनिक सुखसुविधा प्रदान करने के बाद भी यह गांव पिछड़ा हुआ सा लगता है. यहां के घरों में आज तक बाथरूम और शौचालय तक नहीं है. इसी गांव में रहता था, रतन सिंह का परिवार. रतन सिंह के पास गांव में लगभग 8 बीघा खेती की जमीन थी, जिस के सहारे उस के परिवार का पालनपोषण होता था. रतन सिंह का सीमित परिवार था. उस के घर में उस की बीवी और 3 बच्चों को मिला कर 5 सदस्य थे.

3 बच्चों में सब से बड़ी बेटी ऊषा थी. उस के बाद राजबाला तथा सुखपाल थे. दोनों बेटियों की शादी हो चुकी था. सुखपाल ने बड़े होते ही घर की जिम्मेदारी संभाल ली. सुखपाल राजगीर का काम करता था. अब से लगभग 6 साल पहले उस का विवाह गांव कनौबी निवासी राजेंद्र की बेटी मंजू के साथ हो गया था. शुरू से मंजू का सपना किसी शहरी युवक से शादी करने का था. जो सुखपाल के साथ शादी होने के बाद एक छोटे से घर में आ कर बिखर गया था. मंजू सुखपाल को कभी भी अपने दिल में जगह नहीं दे पाई थी. दूसरी तरफ सुखपाल उस के लिए कुछ भी करने को तैयार रहता था. मांबाप की मौत के बाद सुखपाल अकेला पड़ गया था. उस के घरेलू खर्च भी बढ़ गए थे. लेकिन खेती से सीमित आय ही होती थी.

जिस के कारण उसे गांव में राजगीरी करनी पड़ती थी. वह सारे दिन काम करने के बाद शाम को थकाहारा घर लौटता और रात का खाना खा कर जल्दी सो जाता. यह बात मंजू को बिलकुल पसंद नहीं थी. उस के बावजूद भी वह सुखपाल से तरहतरह की फरमाइशें पूरी कराती रहती थी, जिन्हें वह किसी न किसी तरह से पूरी करता था. लेकिन मंजू को इतने से भी तसल्ली नहीं होती थी. वह जानती थी कि सुखपाल उसे बहुत प्यार करता है. इसी का लाभ उठाते हुए वह उस पर हावी होती गई. इसी बीच मंजू ने एक बेटे को जन्म दिया. जिस का नाम अभिमन्यु रखा गया. लेकिन प्यार से सब उसे अभि कह कर पुकारते थे. सुखपाल को उम्मीद थी कि बच्चा हो जाने के बाद पत्नी के व्यवहार में बदलाव आ जाएगा, लेकिन उस का दिमाग और भी सातवें आसमान पर चढ़ गया था.

घर में तकरार बढ़ी तो सुखपाल शराब का आदी हो गया. एक बच्चे की मां बन जाने के बाद मंजू की खूबसूरती में चार चांद लग गए थे. इस वह और भी ज्यादा सजसंवर कर रहने लगी थी. राजीव का गांव सुखपाल के गांव के पास ही था. वह वक्तबेवक्त ससुराल आताजाता रहता था. मंजू के बच्चा होने के समय राजीव काफी समय तक अपनी बीवी ऊषा के साथ वहीं पर रहा था. सुखपाल दिन निकलते ही अपने काम पर चला जाता, लेकिन राजीव दामाद होने के नाते घर पर ही पड़ा रहता था. मौके का फायदा उठाते हुए वह मंजू के साथ लच्छेदार बातें करने लगा. जो उस के मन को भी भाने लगी थीं.

राजीव मंजू से कभीकभी मजाक भी कर लेता था. मंजू उस की बात का बुरा नहीं मानती थी. उसी दौरान राजीव मंजू के सौंदर्य को देख विचलित हो उठा. यही हाल मंजू का भी था. उस के दिल पर ननदोई हावी हुआ तो उस की खुशी चेहरे पर नजर आने लगी. वैसे भी वह अपने पति के साथ अनचाहा रिश्ता रख रही थी. मंजू पहले से ही खुले गले का कुरता पहनती थी, जिस में से उस के वक्ष झांकते दिखाई देते थे. मंजू जब कभी घर के कामकाज करती तो वह बिना चुन्नी गले में डाले काम पर लग जाती थी. राजीव घर में अकेला होता तो उस की निगाहें उसी के गले पर टिकी रहतीं. मंजू इतनी अंजान नहीं थी कि कुछ समझ न सके. चूंकि वह भी राजीव की भावनाओं से खेलना चाह रही थी, इसलिए हवा देती रही.

एक दिन मंजू घर में अकेली थी. सुखपाल किसी काम से बाहर गया हुआ था. उस का बेटा अभि सोया था. घर में बाथरूम न होने के कारण मंजू घर का दरवाजा बंद कर अंदर चारपाई खड़ी कर नहाने लगी. उस वक्त राजीव घर में मौजूद था. मंजू को नहाते देख उस का दिल बेकाबू हो उठा. मंजू का वह सैक्सी रूप देख राजीव मदहोश सा हो गया. उस के बाद मंजू पेटीकोट और ब्लाज में ही कमरे के अंदर आ गई. राजीव मंजू के आमंत्रण को समझ चुका था. मौका पाते ही राजीव ने मंजू को अपनी आगोश में समेट लिया. राजीव की बाहों में आ कर मंजू का शरीर ढीला पड़ गया. वह रोमांचित हो कर राजीव के शरीर से चिपक गई. राजीव ने मंजू को कमरे में पड़ी चारपाई पर लिटा दिया और अपने होंठ उस के होठों पर रख दिए. मंजू जिस प्यार के लिए सालों से छटपटा रही थी, राजीव ने उसे पल भर में दे दिया था.

इस के बाद मंजू दूसरे बच्चे की मां भी बन गई थी. इस बार उस ने एक बच्ची को जन्म दिया था. दोनों के बीच अवैध संबंधों का सिलसिला अनवरत चलता रहा. अपनी पत्नी को भुला कर राजीव ससुराल में पड़ा रहता था. सुखपाल काम में व्यस्त रहता था. इस के बावजूद उसे अपनी बीवी के कारनामों की जानकारी हो गई थी. सुखपाल ने मंजू को समझाने की काफी कोशिश की, लेकिन वह उस की एक भी सुनने को तैयार नहीं थी. इस का नतीजा यह हुआ कि दोनों में आए दिन मनमुटाव रहने लगा. मनमुटाव के चलते मंजू एक दिन सुखपाल से झगड़ा कर के मुरादाबाद शहर के गोविंद नगर में रहने वाली अपनी मौसी के घर चली गई. उस के बाद वह काफी समय तक मौसी के घर ही रही.

इसी दौरान उस की मुलाकात राजकुमार से हुई. राजकुमार उस की मौसी का पड़ोसी था. उस का मौसी के घर पर पहले से ही आनाजाना था. राजकुमार ने मंजू को देखा तो वह उस की खूबसूरती पर मोहित हो गया. एक दिन उस की मौसी ने राजकुमार को उस के पति द्वारा प्रताडि़त करने की सारी दास्तान सुना दी. राजकुमार के हाथों में मंजू की कमजोर नस आई, तो वह उस का फायदा उठाने की सोचने लगा. एक दिन राजकुमार ने मंजू के सामने सहानुभूति दिखाते हुए कहा कि उसे कभी भी कोई मदद चाहिए तो वह हर समय तैयार है. राजकुमार भी सुंदरसजीला युवक था. वह भी मंजू के दिल को भाने लगा था. जब मंजू को अपनी मौसी के घर गए हुए काफी समय हो गया तो सुखपाल उस से मिलने के लिए गोविंद नगर चला गया. काफी दिन बाद सुखपाल के आने से नाराज मंजू उस से सीधे मुंह नहीं बोली.

दोनों के मनमुटाव को देख मंजू की मौसी ने दोनों को आमनेसामने बिठा कर बात की, ताकि उन की समस्या का समाधान हो सके. लेकिन मंजू ने उस के साथ गांव जाने से साफ मना कर दिया. मंजू ने सुखपाल को सलाह दी कि अगर वह उसे साथ रखना चाहता है तो गांव छोड़ कर मुरादाबाद आ कर बस जाए. मंजू की बात सुनते ही सुखपाल का पारा हाई हो गया. लेकिन वह अपने बच्चों को बहुत ही प्यार करता था. इसलिए कुछ नहीं बोला. उसी दौरान राजकुमार भी वहां आ गया. राजकुमार ने भी मंजू की हां में हां मिलाते हुए सुखपाल को मुरादाबाद आने की सलाह दे डाली. राजकुमार ने सुखपाल को यह बात भी बता दी थी कि उस की मौसी के पास एक प्लौट बिक रहा है.

अगर वह चाहे तो उसे खरीद कर वहां मकान बना कर रह सकता है. राजकुमार जानता था कि सुखपाल राजगीरी का काम जानता है. उस ने सुखपाल को बताया कि गांव में राजगीरी में काफी कम पैसा मिलता है. अगर शहर में काम करेगा तो अच्छी आमदनी होगी. अपने बच्चों के भविष्य को देखते हुए सुखपाल का मन बदल गया. बीवी की चाहत और बच्चों के प्यार को देखते हुए उस ने गांव जाते ही अपने खेत की 6 बीघा जमीन बेच दी. उस ने राजकुमार के घर के पास ही गोविंद नगर में 12 लाख रुपए का बनाबनाया मकान खरीद लिया. फिर वह गांव छोड़ कर बीवीबच्चों के साथ मुरादाबाद के गोविंद नगर में रहने लगा था. सुखपाल के हाथ में जो हुनर था, वह उस के सहारे कहीं भी पैसा कमा सकता था.

मुरादाबाद जाने के बाद वह वहीं पर राजगिरि का काम करने लगा. सुखपाल सुबह काम पर निकल जाता और देर रात तक घर लौटता था. राजकुमार ने मंजू के साथ मौज मस्ती करने के लिए जो जाल फैलाया था, वह उस में कामयाब हो गया था. सुखपाल की गैरमौजूदगी में वह मंजू के पास जाने लगा. मंजू यह तो पहले ही जानती थी कि उस का पति उस की देह को पढ़ने में पूरी तरह नाकाबिल है. गांव में रहते हुए उस ने अपने शरीर का सुख अपने ननदोई के साथ भोगा था. शहर आ कर उस की मुलाकात राजकुमार से हुई तो उस ने उस के साथ भी अवैध संबंध बना लिए. राजकुमार से अवैध संबंध बनने के बाद वह दुनियादारी को भूल गई.

राजकुमार चालाक युवक था. उस ने अपनी चालाकी से मंजू को फंसा कर उस की गांव की जमीन बिकवा कर मकान भी खरीदवा दिया था. उस का अगला कदम सुखपाल को अपने रास्ते से हटा कर मंजू को पूरी तरह से अपने कब्जे में करना था. अपनी इस चाहत को पूरा करने के लिए उस ने सुखपाल और मंजू के बीच मतभेद बढ़ाने का काम किया. राजकुमार ने मंजू को चढ़ा कर सुखपाल के नाम की बाकी जमीन बेचने के लिए उस पर दबाव बनाने को कहा. जिसे सुन कर सुखपाल बिगड़ गया. इसे ले कर मियांबीवी के बीच काफी समय तक मनमुटाव रहा. सुखपाल पत्नी के चरित्र को पूरी तरह से समझ चुका था. लेकिन बच्चों की वजह से वह उस से कुछ नहीं कहता था.

एक दिन सुखपाल सुबहसुबह काम के लिए घर से निकला. लेकिन काम नहीं मिला तो वह जल्दी घर लौट आया. उस वक्त मंजू और राजकुमार दोनों एक ही चारपाई पर पड़े हुए थे. घर पर राजकुमार को देख कर सुखपाल का गुस्सा सातवें आसमान पर चढ़ गया. उसे आया देख राजकुमार चुपचाप घर से निकल गया. तब उस ने मंजू को काफी खरीखोटी सुनाई. उस दिन पहली बार सुखपाल को शहर में मकान खरीदने का मतलब समझ आया था. अपनी बीवी की हकीकत सामने आते ही सुखपाल ने गोविंद नगर, मुरादाबाद का मकान बेचने की बात चलाई. यह बात जब मंजू को पता चली तो उस ने राजकुमार के साथ मिल कर उसे काफी मारापीटा. बीवी के इस व्यवहार से तंग आ कर सुखपाल अपने दोनों बच्चों को साथ ले कर अपने गांव आ गया.

बच्चों के चले जाने के बाद मंजू अकेली पड़ गई. वह बच्चों से मिलने के लिए परेशान रहने लगी. लेकिन बच्चों को वापस लाने का उसे कोई भी रास्ता नहीं सूझ रहा था. गांव से उस की बेटी को उस का मामा अपने साथ अपने गांव ले गया. लेकिन उस का बेटा अभि सुखपाल के पास ही था. बेटे अभि को अपने पास बुलाने के लिए उस ने अपने ननदोई राजीव से संपर्क किया. उस ने राजीव को 30 हजार रुपए का लालच देते हुए कहा कि अगर वह उस के बेटे को सुखपाल के पास से ले आए तो उसे 30 हजार रुपए देगी. लौकडाउन में 30 हजार रुपए मिलने वाली बात सुनते ही राजीव ने सुखपाल को अपने विश्वास में ले कर अभि को साथ लिया और उसे मुरादाबाद पहुंचा दिया.

देश में लौकडाउन लगते ही सभी अपने घरों में कैद हो कर रह गए थे. शहर या गांव सभी जगह कामकाज मिलना बंद हुआ तो सुखपाल खर्च के लिए पैसेपैसे को तरसने लगा. उस ने गांव की जो जमीन बेची थी उस का बाकी पैसा भी मंजू के पास ही था. मंजू से कुछ खर्च के लिए पैसे मिल जाएं यह सोच कर वह हिम्मत कर के गोविंद नगर जा पहुंचा. सुखपाल को अचानक घर आया देख पहले तो मंजू उस से बोलने तक को तैयार न थी. लेकिन पता नहीं उस के दिमाग में ऐसा क्या चल रहा था कि जल्द ही वह मोम की तरह पिघल गई. उस ने पति को खाना बना कर दिया. फिर वह उस के साथ गांव आ गई.

गांव आ कर वह सुखपाल के साथ हंसीखुशी से रहने लगी. जब राजीव को सुखपाल के गांव आने वाली बात पता चली तो वह भी उस के घर के चक्कर लगाने लगा. मंजू और राजीव के बीच पहले से ही अवैध संबंध थे. राजीव से मंजू का पुनर्मिलन हुआ तो उस का दिल बागबाग हो उठा. लौकडाउन के चलते राजीव भी अपनी ससुराल में आ कर पड़ा रहने लगा. उसी दौरान मंजू ने अपने ननदोई को विश्वास में लेते हुए कहा कि अगर वह सुखपाल को अपने बीच से हटाने में उस का साथ दे तो उस की 2 बीघा जमीन बेच कर वह सारे पैसे उसे देगी. तब दोनों के मिलने को रोकनेटोकने वाला कोई नहीं होगा.

मंजू की बात सुनते ही राजीव लालच में आ कर अपने साले को ही मौत की नींद सुलाने के लिए साजिश में शामिल हो गया. राजीव को साथ देने के लिए पक्का कर के मंजू फिर से मुरादाबाद पहुंची. मुरादाबाद जाते ही उस ने राजकुमार को भी अपने लटकेझटके दिखाने के बाद उसे भी मकान का लालच दे कर साजिश में शामिल होने को कहा. राजकुमार तो पहले ही उस मकान पर निगाहें गड़ाए बैठा था. जिस राह की खोज में वह काफी समय से भटक रहा था, वह राह उसे मंजू ने स्वयं दिखा दी. मंजू ने राजकुमार को गोविंद नगर का मकान और उस के साथ सदा के लिए जीवनयापन करने की पट्टी पढ़ा कर अपनी योजना में शामिल कर लिया.

जब मंजू को पूरा यकीन हो गया कि उस के दोनों दीवाने उस की हर तरफ से सहायता करने को तैयार हैं तो उस ने सुखपाल को ठिकाने लगाने की योजना बना डाली. राजकुमार से बात करने के बाद वह फिर से सुखपाल के पास गांव आ गई. पति के पास आ कर उस ने प्रेम का नाटक करना शुरू किया. सुखपाल उस की मंशा को जाने बिना उस की मीठीमीठी बातों में फंस कर उस के साथ बिताए बुरे दिनों को पल भर में भुला बैठा. इस घटना को अंजाम देने से 5 दिन पहले मंजू ने सुखपाल से अपनी ननद ऊषा देवी के पास जाने की मंशा जाहिर की. सुखपाल अब किसी भी तरह उस के दिल को कोई ठेस नहीं पहुंचाना चाहता था. इसीलिए वह उसे साथ ले कर अपनी बहन ऊषा के गांव खाईखेड़ा पहुंच गया.

अपनी ननद के पास 4 दिन तक मेहमाननवाजी करते हुए वह सुखपाल को मौत की नींद सुलाने की योजना बनाती रही. लेकिन वह योजना को अंतिम रूप नहीं दे पा रही थी. अपनी ननद के घर से ही उस ने राजकुमार को फोन कर के वहीं पर बुला लिया. राजकुमार के आते ही ऊषा के घर पर हर रोज दावत होने लगी. राजकुमार ने अपनी शानशौकत दिखाते हुए वहां पर शराब और मीट मछली बनाने खाने में काफी पैसा खर्च कर दिया. खाना खाने के बाद राजकुमार, राजीव और मंजू को एकांत में ले जा कर सुखपाल को मौत के घाट उतारने की योजना बनाते रहे. उसी योजनानुसार मंगलवार 14 जुलाई की रात फिर से राजीव के घर पर दावत का प्रोग्राम बना.

उस शाम राजकुमार और राजीव ने सुखपाल को जम कर शराब पिलाई. काफी देर तक खानेपीने का प्रोग्राम चलता रहा. जब रात काफी हो गई तो सारे दिन की थकीहारी ऊषा अपने दोनों बच्चों को साथ ले कर मकान की छत पर चली गई. ऊषा के छत पर जाते ही मौका पा कर मंजू ने राजीव, राजकुमार व सुखपाल से गांव के पास ही बाग में आम खाने की बात कही और रात 11 बजे उन को साथ ले कर घर से निकल गई. आम खाने की बात सुनते ही सुखपाल नशे में धुत होने के बावजूद उन के साथ जाने को तैयार हो गया था. चारों एक साथ गांव से लगभग एक किलोमीटर दूर हसनगंज गांव की सीमा में ईट भट्ठे के पास पीपल के पेड़ से लगे कुएं के पास पहुंचे. कुएं की दीवार पर बैठते ही नशे में डूबा सुखपाल फैल गया.

उस के नशे से बेहोश होते ही मंजू अपना आपा खो बैठी. उस ने बड़ी ही फुरती से पति के पैर पकड़े और अपने ननदोई राजीव और राजकुमार से धारदार हथियार से बार करने को कहा. उस समय वैसे भी रात का अंधेरा छाया हुआ था, ऊपर से राजीव और राजकुमार बुरी तरह नशे में धुत थे. मंजू के कहते ही राजीव और राजकुमार कसाई बन सामने बेहोश पड़े सुखपाल पर ताबड़तोड़ प्रहार करने लगे. सुखपाल पर पहला प्रहार होते ही वह उठ बैठा था. लेकिन उस के बाद तीनों ने उसे दबोच लिया और तेजधार वाले हथियार से उसे काट कर मार डाला. सुखपाल को मौत की नींद सुलाने के बाद तीनों ने उस की गरदन भी काट दी. फिर उस की लाश कुएं में फेंक दी.

लाश को छिपाने के लिए उन्होंने बाग में से पत्ते इकट्ठे किए और उस की लाश के ऊपर डाल दिए. सुखपाल की हत्या करने के बाद तीनों चोरीछिपे घर पर आ कर सो गए. उस समय तक सुखपाल की बहन ऊषा गहरी नींद में सो चुकी थी. उसे कुछ पता नहीं चल पाया था. सुबह होने पर उस ने मंजू और अपने पति राजीव से भाई सुखपाल के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि रात सुखपाल ने कुछ ज्यादा ही पी ली थी. उस के बाद वह सो गया था. लेकिन वह रात में पता नहीं कहां गायब हो गया था. यह सुनते ही ऊषा ने अपने भाई के साथ किसी अनहोनी होने की आशंका के चलते मंजू से थाने जा कर रिपोर्ट दर्ज कराने को कहा.

इस केस के खुलते ही पुलिस ने मृतक की बीवी मंजू उस के ननदोई प्रेमी राजीव पर भादंवि की धारा 364/302/201 के अंतर्गत केस दर्ज कर कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया. कहानी लिखे जाने तक इस मामले का तीसरा अभियुक्त राजकुमार पुलिस की पकड़ से बाहर था. मंजू ने अपने पति की जिंदगी के साथ जो खेल खेला उस से उस पर कोई फर्क नहीं पड़ा. पति की हत्या में गिरफ्तार हुई मंजू के चेहरे पर गम की कोई शिकन तक नहीं थी. उस का कहना था कि उसे पति की हत्या का कोई पछतावा नहीं है.

मंजू ने पुलिस को दोटूक जबाव दिया कि वह जेल से आने के बाद भी दोनों प्रेमियों के साथ रहेगी. उसे अपने बच्चों के भविष्य को ले कर किसी तरह की चिंता नहीं थी, जो अनाथ हो गए थे. उस का बेटा अभि उस की तहेरी दादी गंगा देवी के पास रह रहा था. जबकि उस की बेटी उस की नानी के साथ चली गई थी.

 

Crime News : दोस्त का अपहरण करके मांगी 30 लाख की फिरौती

Crime News : पुलिस ने अगर संजीत के पिता चमन सिंह की बात पर जरा सा भी यकीन किया होता तो न तो संजीत की जान जाती और न 30 लाख रुपए. इस के बजाय पुलिस यही कहती और मानती रही कि संजीत अपनी किसी गर्लफ्रैंड के साथ मौजमस्ती करने गया होगा. इस का नतीजा…

कानपुर दक्षिण में काफी बड़े क्षेत्र में फैला एक बड़ी आबादी वाला क्षेत्र है बर्रा. बड़े क्षेत्र को देखते हुए इसे कई भागों में बांटा गया है. चमन सिंह यादव अपने परिवार के साथ इसी बर्रा क्षेत्र के बर्रा 5 की एलआईजी कालोनी में रहते थे. उन के परिवार में पत्नी कुसुमा देवी के अलावा एक बेटा था संजीत और एक बेटी रुचि यादव. चमन सिंह एक फैक्ट्री में काम करते थे. वह धनवान तो नहीं थे, पर घर में किसी चीज की कमी भी नहीं थी. चमन सिंह मृदुभाषी थे सो अड़ोसीपड़ोसी सभी से मिलजुल कर रहते थे. चमन सिंह खुद तो ज्यादा पढ़ेलिखे नहीं थे, लेकिन उन्होंने बच्चों को उच्च शिक्षा दिलाई थी. बेटी रुचि डीबीएस कालेज गोविंद नगर से बीएससी कर के प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में जुटी थी, जबकि बेटे संजीत ने बीएससी नर्सिंग कर रखा था.

वह नौबस्ता स्थित धनवंतरि अस्पताल के पैथोलौजी विभाग में बतौर लैब टेक्नीशियन कार्यरत था. उस का काम था मरीजों के खून का नमूना जांच हेतु एकत्र करना. फिर उसे जांच के लिए पैथोलौजी लैब ले जाना और जांच रिपोर्ट लाना. चमन सिंह की बेटी रुचि जौब की तलाश में थी, चमन सिंह बेटी का ब्याह कर देना चाहते थे. इस में उन की पत्नी कुसुमा की भी सहमति थी. इसी कवायद में चमन सिंह को रुचि के लिए राहुल यादव पसंद आ गया. राहुल बर्रा विश्व बैंक कालोनी में रहता था. उस के पिता राजेंद्र यादव पीएसी में तैनात थे. राहुल पसंद आया तो उन्होंने बेटी का रिश्ता तय कर दिया. रिश्ता तय हुआ तो चमन सिंह बेटी की शादी की तैयारी में जुट गए. उन्होंने बेटी के लिए जेवरात बनवा लिए तथा कैश का भी इंतजाम कर लिया.

संजीत का सपना था कि वह अपनी बहन को कार से ससुराल भेजेगा. कार खरीदने के लिए उस ने बैंक से 2 लाख का कर्ज भी ले लिया था. रुचि की शादी की तैयारियां चल ही रही थीं कि इसी बीच चमन सिंह को पता चला कि राहुल रुचि के लिए ठीक लड़का नहीं है. चमन सिंह ने अपने स्तर से पता लगाया तो बात सच निकली. इस के बाद उन्होंने पत्नी व बच्चों के साथ इस गंभीर समस्या पर विचारविमर्श किया और रुचि के भविष्य को देखते हुए रिश्ता तोड़ दिया. रिश्ता टूटने से राहुल और उस के घर वाले बौखला गए. राहुल, रुचि के पिता व भाई को मनाने में जुट गया, परंतु बात नहीं बनी. हर रोज की तरह 22 जून, 2020 को भी संजीत अस्पताल गया, लेकिन जब वह रात 10 बजे तक वापस घर नहीं आया, तब चमन सिंह व उस की पत्नी कुसुमा को चिंता हुई.

दरअसल संजीत रात 9 बजे तक हर हाल में घर आ जाता था. कभी उसे अस्पताल में रुकना होता था या कहीं और जाना होता तो वह अपनी मां या बहन को फोन कर के बता देता था. 10 बज गए थे. न वह आया था, न ही फोन पर बताया था. ताज्जुब की बात यह थी कि उस का मोबाइल फोन भी बंद था. ज्योंज्यों समय बीतता रहा था, चमन सिंह, उन की पत्नी कुसुमा और बेटी रुचि की धड़कनें बढ़ती जा रही थीं. रुचि ने संजीत के अस्पताल फोन किया तो पता चला वह 7 बजे ही अस्पताल से चला गया था. पैथोलाजी लैब वह गया ही नहीं था. रुचि ने भाई के दोस्तों जिन्हें वह जानती थी, सब को फोन किया, कोई जानकारी नहीं मिली. मांबेटी और पिता रात भर फोन पर फोन करते रहे, लेकिन कहीं से भी संजीत के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली.

सुबह का उजाला फैला तो पूरी कालोनी में संजीत के लापता होने की खबर फैल गई. पड़ोसी सांत्वना देने घर पहुंचने लगे. चमन सिंह ने कुछ खास पड़ोसियों से विचारविमर्श किया फिर बेटी रुचि को साथ ले कर जनता नगर पुलिस चौकी पहुंच गए. उस समय चौकी इंचार्ज राजेश कुमार चौकी पर मौजूद थे. चमन सिंह ने उन्हें एकलौते बेटे संजीत के लापता होने की जानकारी दी. साथ ही अपहरण की आशंका भी जताई. राजेश कुमार ने चमन सिंह से तहरीर ले ली, फिर पूछा, ‘‘तुम्हारी किसी से दुश्मनी या जमीन वगैरह की रंजिश तो नहीं है. संजीत का लेनदेन में किसी से झगड़ाफसाद तो नहीं हुआ था.’’

‘‘सर, हम सीधेसादे लोग हैं. हमारी या बेटे संजीत की न तो किसी से रंजिश है, न ही लेनदेन का झगड़ा है.’’

‘‘तुम्हें किसी पर शक है?’’ चौकीप्रभारी राजेश कुमार ने पूछा.

‘‘हां सर, मुझे राहुल यादव पर शक है.’’ चमन सिंह ने बताया.

‘‘वजह बताओ?’’ राजेश कुमार ने अचकचा कर पूछा.

‘‘सर, राहुल यादव, विश्व बैंक कालोनी बर्रा में रहता है. उस के पिता पीएसी में तथा चाचा मैनपुरी में दरोगा है. राहुल के साथ मैं ने अपनी बेटी रुचि का विवाह तय किया था. लेकिन कुछ कारणों से हम ने रिश्ता तोड़ दिया था. रिश्ता टूटने से राहुल बौखला गया. मुझे शक है कि इसी बौखलाहट में उस ने संजीत का अपहरण किया है.’’

‘‘ठीक है, तुम जाओ. मैं इस मामले को देखता हूं.’’ कह कर राजेश कुमार ने चमन सिंह को टरका दिया. उन्होंने न तो गुमशुदगी दर्ज की और न ही किसी से कोई पूछताछ की.

24 जून की सुबह 10 बजे चमन सिंह आशंका जताते हुए राहुल के खिलाफ नामजद तहरीर ले कर चौकी पहुंचे. तहरीर पढ़ते ही चौकीप्रभारी राजेश कुमार भड़क उठे, ‘‘तुम्हारा बेटा गर्लफ्रैंड के साथ मौजमस्ती करने गया होगा. किसी पर गलत आरोप लगाओगे तो भुगतना पड़ेगा. गलत होने पर मैं तुम्हारे खिलाफ मानहानि का मुकदमा लिख दूंगा, समझे.’’

चमन सिंह समझ गए कि यहां कोई काररवाई संभव नहीं है. अत: वह थाना बर्रा जा कर थानाप्रभारी रणजीत राय से मिले. उन्होंने उन्हें जनता नगर चौकी में दी गई तहरीर के आधार पर गुमशुदगी दर्ज न करने की बात बताई. इस पर वह नाराज होते हुए बोले, ‘‘हथेली पर सरसों मत उगाओ. तुम्हारा बेटा मिल जाएगा.’’

थाने से निराशा हाथ लगी तो चमन सिंह डीएसपी (गोविंद नगर) मनोज कुमार गुप्ता और एसपी (साउथ) अपर्णा गुप्ता से मिले और अपनी परेशानी बताई. लेकिन जिम्मेदार पुलिस अधिकारियों ने भी उस के आंसुओं को नजरअंदाज कर दिया. दरअसल, पुलिस यह मान रही थी कि संजीत मौजमस्ती करने कहीं चला गया है. अगर उस का अपहरण हुआ होता तो अब तक फिरौती के लिए फोन आ गया होता. पुलिस की खुमारी तब टूटी जब 29 जून को फिरौती के लिए अपहर्त्ताओं का फोन आया. उन्होंने संजीत को सहीसलामत लौटाने के लिए 30 लाख रुपए मांगे थे. चमन सिंह ने यह बात पुलिस को बताई. पुलिस ने उन्हें रुपयों का इंतजाम करने को कहा.

एक साधारण परिवार के लिए 30 लाख रुपए का इंतजाम करना आसान नहीं था. लेकिन सवाल एकलौते बेटे का था. चमन सिंह ने बेटी रुचि की शादी के लिए जो रकम सहेज कर रखी थी, वह और बेटी की शादी के लिए बनवाए गए जेवर बेच कर पैसा एकत्र किया. पर 30 लाख की रकम पूरी नहीं हो पाई. इस पर उन्होंने गांव की जमीन और मकान बेच दिया. पैसा एकत्र हो गया तो चमन सिंह ने यह बात पुलिस को बता दी. इस बीच अपहर्त्ताओं  के फोन पर फोन आ रहे थे. उन का कहना था कि चाहे जैसे भी हो, 30 लाख रुपए जमा कर लो, बेटा अमित मिल जाएगा. रुचि हर रोज सारी बात पुलिस को बता रही थी. इस बीच संजीत के अपहरण को 3 हफ्ते बीत गए थे. इसे पुलिस की कमजोरी ही कहा जाएगा कि वह अपहर्त्ताओं का नंबर तक ट्रेस नहीं कर पाई थी.

रकम का इंतजाम हो जाने पर यह बात पुलिस को बता दी गई. इस पर एसपी (साउथ) अपर्णा गुप्ता ने अपहर्त्ताओं को रंगेहाथों पकड़ने के लिए योजना तैयार की. इस के लिए क्राइम ब्रांच की टीम और सर्विलांस टीम को भी साथ लिया गया. चमन सिंह के परिवार को तो अपहर्त्ताओं के फोन का इंतजार था ही, पुलिस भी इंतजार कर रही थी. लेकिन अपहर्त्ताओं का फोन आया 12 जुलाई को. चमन सिंह ने उन्हें बता दिया कि रकम तैयार कर ली गई है. इस पर उन्होंने कहा कि 30 लाख की रकम बैग में भर कर तैयार रखो. जल्दी ही बता दिया जाएगा कि रकम कहां और कैसे देनी है. रुचि ने यह बात भी एसपी अपर्णा गुप्ता को बता दी.

उन्होंने पूरी टीम को सादे कपड़ों में तैयार रहने के लिए अलर्ट कर दिया.  लेकिन उस दिन अपहर्त्ताओं का फोन नहीं आया. उन का फोन आया 13 जुलाई की दोपहर में. अपहर्त्ताओं ने चमन सिंह से कहा कि शाम 5 बजे रकम का बैग ले कर वह गुजैनी हाइवे के फ्लाईओवर पर पहुंच जाएं. फ्लाईओवर से बैग नीचे फेंकना है. वे लोग पुल के नीचे रहेंगे. रकम मिलते ही संजीत को छोड़ दिया जाएगा. यह बात भी एसपी अपर्णा गुप्ता को बता दी गई. उन्होंने पुलिस टीम को तैयार रहने का आदेश दे दिया. ठीक 6 बजे पुलिस की 2 गाडि़यां फ्लाईओवर पर पहुंच गईं. एक गाड़ी में पुलिस जवानों के साथ अपर्णा गुप्ता थीं और दूसरी में सहयोगियों के साथ थानाप्रभारी रणजीत राय थे.

तभी रकम का बैग ले कर चमन सिंह मोटरसाइकिल से वहां पहुंच गया. मोटरसाइकिल खड़ी कर के उस ने नीचे झांका. तभी अपहर्त्ताओं का फोन आ गया कि चंद कदम आगे जा कर बैग नीचे फेंक दो. चमन सिंह ने बैग नीचे फेंक दिया तो अपहर्त्ताओं का फिर फोन आया. उन्होंने कहा कि थोड़ा आगे जा कर हनुमान मंदिर है, वहीं पहुंचो. संजीत मिल जाएगा. इस बीच पुलिस की निगाहें चमन सिंह पर ही जमी थीं. जैसे ही उस ने बैग फेंका, पुलिस अपहर्त्ताओं को पकड़ने के लिए दौड़ी, लेकिन नीचे जाने का रास्ता लंबा था. पुलिस के वहां पहुंचने तक अपहर्त्ता बैग ले कर भाग गए थे. उधर चमन सिंह आंखों में आस समेटे मंदिर पर पहुंचा. लेकिन संजीत वहां नहीं मिला. पुलिस औपरेशन पूरी तरह फेल रहा.

चमन सिंह का परिवार अवाक रह गया. जैसेतैसे जुटाई 30 लाख की रकम तो गई ही, बेटा भी नहीं मिला. इस पर रुचि पिता के साथ जा कर आईजी मोहित अग्रवाल से मिली. रुचि ने पूरी बात आईजी को बताई. साथ ही संदेह भी व्यक्त किया कि पुलिस अपहर्त्ताओं से मिली हुई थी. संभव है पैसों का बैग भी पुलिस के ही पास हो. चमन सिंह और रुचि की शिकायत पर आईजी मोहित अग्रवाल उसी समय थाना बर्रा पहुंचे. उन्होंने थानाप्रभारी रणजीत राय से पूछताछ की. उन की बातों से संतुष्ट न होने पर उन्होंने रणजीत राय को सस्पेंड कर के हरमीत सिंह को थानाप्रभारी नियुक्त कर दिया.

इंसपेक्टर हरमीत सिंह ने क्राइम ब्रांच व सर्विलांस टीम की मदद से जांच प्रारंभ की. उन्होंने पहले अपहृत संजीत के परिवार वालों से पूछताछ की, फिर संजीत के मोबाइल नंबर को खंगाला, जिस से पता चला अपहरण वाले दिन यानी 22 जून को संजीत के मोबाइल फोन पर एक नंबर से 5 काल आई थीं. 2 बार काल करने वाले ने बात की थी और 3 बार संजीत ने उसी नंबर पर बात की थी. रात पौने 8  बजे संजीत की उस नंबर पर आखिरी बार बात हुई थी. पौने 9 बजे संजीत का मोबाइल और संदिग्ध नंबर के मोबाइल का स्विच्ड औफ हो गया था. फिरौती के लिए अलग नंबर प्रयोग किया गया था. उस नंबर से 22 बार काल की गई थी.

इस जानकारी के बाद पुलिस टीम ने सिम बेचने वाले दुकानदार का पता लगाया तो पता चला उस की सिम कार्ड की दुकान चकरपुर में हैं. पुलिस ने उसे उठा कर कड़ाई से पूछताछ की तो उस ने 6 सिम कार्ड बेचने की बात कही. सर्विलांस टीम ने सभी मोबाइल नंबरों की काल डिटेल्स निकलवानी शुरू की. साथ ही उन नंबरों को लिसनिंग पर भी लगा दिया. इस के बाद पुलिस ने धनवंतरि अस्पताल की पैथालौजी के 2 कर्मचारियों को हिरासत में लिया. उन में से एक की संदिग्ध नंबर पर बात हुई थी. उस कर्मचारी से सख्ती से पूछताछ की गई तो पता चला, वह संदिग्ध नंबर कुलदीप गोस्वामी का था, जो कुछ माह पहले धनवंतरि अस्पताल में काम करता था. लौकडाउन में विवाद होने पर उस ने नौकरी छोड़ दी थी. कुलदीप गोस्वामी पुलिस की रडार पर आया तो उस की तलाश शुरू की गई.

23 जुलाई, 2020 की सुबह 10 बजे थानाप्रभारी हरमीत सिंह को सूचना मिली कि कुलदीप गोस्वामी अपने साथियों के साथ अंबेडकर नगर के पटेल चौक पर मौजूद है. इस सूचना पर हरमीत सिंह क्राइम ब्रांच की टीम के साथ पटेल चौक पहुंच गए. पुलिस को देख कर एक युवती और 4 युवक भागने लगे. लेकिन क्राइम ब्रांच की टीम ने घेराबंदी कर युवती सहित 4 युवकों को गिरफ्तार कर लिया और सुरक्षा की दृष्टि से थाना बर्रा न ले जा कर सीओ औफिस गोविंद नगर ले आए. उन से पूछताछ की गई तो युवकों ने अपना नाम कुलदीप गोस्वामी, नीलू सिंह, ज्ञानेंद्र सिंह और रामजी शुक्ला बताया. युवती ने अपना नाम प्रीति शर्मा बताया. पकड़े गए सभी युवक थे. उन की उम्र 25 से 30 वर्ष के बीच थी.

पकड़े गए युवकों से जब संजीत यादव के अपहरण के संबंध में पूछा गया तो सब ने मौन धारण कर लिया और एकदूसरे का मुंह ताकने लगे. इस पर उन्हें तराशा गया, आखिर उन्होंने जुबान खोली और बताया कि संजीत अब इस दुनिया में नही है. इन लोगों ने आगे बताया कि अपहरण के 4 दिन बाद उस की हत्या कर दी थी. फिर उस के शव को बोरी में भर कर पांडव नदी में फेंक दिया था. यह सुनते ही थानाप्रभारी हरमीत सिंह के होश उड़ गए. उन्होंने सूचना वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को दी. सूचना पाते ही आईजी मोहित अग्रवाल, एसएसपी दिनेश कुमार पी, तथा एसपी (साउथ) अपर्णा गुप्ता आ गईं. पुलिस अधिकारियों ने अपहर्ताओं से पूछताछ की, फिर शव बरामदगी के लिए फ्लड कंपनी बटालियन की 6 बोट तथा 35 गोताखोरों को बुला कर उन्हें पांडव नदी में उतारा गया.

गोताखोरों ने 30 किलोमीटर तक शव को तलाशा, लेकिन शव बरामद नहीं हो सका. इधर अपहर्ताओं की निशानदेही पर पुलिस ने सड़क किनारे झाड़ी में छिपाई गई संजीत की मोटरसाइकिल, अपहरण व हत्या में प्रयुक्त कार, कार में रखा बैग तथा 4 मोबाइल फोन बरामद किए. पुलिस अब तक फिरौती के 30 लाख रुपए बरामद नहीं कर पाई थी. इस बाबत अपहर्ताओं से पूछताछ की गई तो उन्होंने बताया कि पुलिस के डर से वे नोटों से भरा बैग नहीं ले जा पाए थे. अब सवाल था, जब नोटों से भरा बैग अपहर्ताओं ने नहीं उठाया, तो बैग क्या पुलिस ने गायब कर दिया.

पुलिस अधिकारियों को डर था कि हत्या की खबर फैलते ही बर्रा क्षेत्र में सनसनी फैल जाएगी. लोग सड़क पर उपद्रव मचाएंगे. नेता आग में घी डालने का काम करेंगे, अत: पुलिस अधिकारियों ने पहले क्षेत्र में सुरक्षा व्यवस्था कड़ी की, फिर रात 11 बजे चमन सिंह के घर जा कर अपहर्ताओं के पकड़े जाने तथा संजीत की हत्या कर शव को पांडव नदी में बहाने की जानकारी दी. संजीत की हत्या की खबर सुन कर घर में कोहराम मच गया. चमन सिंह, कुसुमा और रुचि चीखनेचिल्लाने लगी. उन की चीखपुकार सुन कर रात के सन्नाटे में मोहल्ले के लोग घरों से निकल आए.

देखते ही देखते सैकड़ों की भीड़ चमन सिंह के घर आ पहुंची. हत्या की जानकारी मिलने पर लोगों का गुस्सा भड़क उठा. मांबेटी की चीखों से महिलाएं द्रवित हो उठीं. रुचि पुलिस अधिकारियों के पैर पकड़ कर बोली, ‘‘आप लोग, जिंदा तो मेरे भाई को ला नहीं पाए, कम से कम मुर्दा ही ला दो. ताकि आखिरी बार उसे राखी बांध सकूं.’’ उस की इस बात पर पुलिस अधिकारी द्रवित हो गए. उन्होंने रुचि को धैर्य बंधाया. 24 जुलाई, 2020 की सुबह 11 बजे आईजी मोहित अग्रवाल तथा एसएसपी दिनेश कुमार पी ने पुलिस लाइन सभागार में प्रैस वार्ता बुलाई और अपहर्ताओं को प्रिंट तथा इलेक्ट्रौनिक मीडिया के सामने पेश कर संजीत के अपहरण और हत्या का खुलासा कर दिया.

मीडिया के तीखे सवालों के आगे पुलिस अधिकारी बेबस नजर आए. चूंकि अपहर्ताओं ने अपहरण और हत्या का जुर्म कबूल कर लिया था, अत: थाना बर्रा पुलिस ने पहले से दर्ज अपहरण के मामले में राहुल यादव का नाम हटा दिया और उसी क्राइम नंबर पर भादंवि की धारा 364/302/201/120बी के तहत कुलदीप गोस्वामी, नीलू सिंह, ज्ञानेंद्र सिंह, रामजी शुक्ला तथा प्रीति शर्मा के विरुद्ध रिपोर्ट दर्ज कर ली. उन्हेें विधिसम्मत गिरफ्तार कर लिया गया. पुलिस जांच तथा अभियुक्तों के बयानों से पैसे के लिए दोस्ती का कत्ल करने की घटना प्रकाश में आई.

कानपुर शहर के बर्रा भाग 5 में रहने वाला संजीत यादव नौबस्ता स्थित धनवंतरि अस्पताल के पैथालौजी विभाग में काम करता था. उसी के साथ कुलदीप गोस्वामी तथा ज्ञानेंद्र सिंह काम करते थे. कुलदीप का दोस्त नीलू सिंह था, जबकि ज्ञानेंद्र का दोस्त रामजी शुक्ला था. सभी में खूब पटती थी और सप्ताह में एक बार बीयर पार्टी होती थी. दोस्तों के बीच संजीत धनवान होने का बखान करता था. उस ने दोस्तों को बताया था कि उस के 2 ट्रक चलते हैं, 2 कार हैं, गांव में जमीनमकान है. नौकरी तो वह समय काटने के लिए करता है. जल्द ही अपनी पैथालौजी खोल लेगा.

संजीत का दोस्त ज्ञानेंद्र सिंह दबौली में रहता था. उस के पिता श्रीकृष्ण यादव धनाढ्य थे. उस ने पिता से अस्पताल खोलने के लिए पूंजी लगाने का अनुरोध किया था. लेकिन उन्होंने साफ मना कर दिया था. बीएससी नर्सिंग पास ज्ञानेंद्र सिंह महत्त्वाकांक्षी था. वह अमीर बनना चाहता था. पर 10-12 हजार की नौकरी से अमीर नहीं बना जा सकता था. यद्यपि वह ठाटबाट से रहता था. कार से आताजाता था. जनवरी 2020 में कुलदीप और ज्ञानेंद्र सिंह ने धनवंतरि अस्पताल से नौकरी छोड़ दी. ज्ञानेंद्र सिंह संविदा पर हैलट अस्पताल में काम करने लगा जबकि कुलदीप स्वरूपनगर में डा. एस.के. कटियार के यहां नौकरी करने लगा. कुलदीप सरायमीता पनकी में रहता था. उस के पिता प्रेम गोस्वामी किराए की गाड़ी चलाते थे. उस की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी.

कुलदीप की दोस्ती सचेंडी के गज्जापुरवा निवासी नीलू सिंह से थी. वह फरजी काम करता था. उस की मां की मौत हो चुकी थी और पिता चंद्रप्रकाश सरिया मिल में काम करते थे. 3 भाइयों में वह दूसरे नंबर का था. नीलू की एक महिला मित्र थी प्रीति शर्मा. वह हनुमान पार्क कौशलपुरी की रहने वाली थी. उस ने अपने पति को छोड़ दिया था और पनकी में अपनी मां सिम्मी के साथ रहने लगी थी. नीलू सिंह का उस के घर आनाजाना था. वह अपनी अवैध कमाई उसी पर खर्च करता था. उस ने कुलदीप से भी उस की दोस्ती करा दी थी. ज्ञानेंद्र सिंह का दोस्त रामजी शुक्ला अंबेडकर नगर (गुजैनी) में रहता था. वह तेजतर्रार और अपराधी प्रवृत्ति का था. उस के पिता योगेश शुक्ला फैक्ट्रीकर्मी थे. छोटा भाई श्यामजी है.

दोनों भाइयों को राजनैतिक संरक्षण प्राप्त था, जिस से क्षेत्र में उन का दबदबा था. ज्ञानेंद्र सिंह ने उस से दबंगई की वजह से ही दोस्ती की थी. ज्ञानेन्द्र सिंह को 2 टीवी सीरियल सावधान इंडिया और क्राइम पैट्रोल बेहद पसंद थे. इन सीरियलों को देख कर उस ने अपहरण कर फिरौती वसूलने की योजना बनाई. इस योजना में उस ने कुलदीप, रामजी शुक्ला, नीलू सिंह व उस की प्रेमिका प्रीति शर्मा को शामिल किया. प्रीति को 3 लाख रुपए देने का लालच दिया गया. एक रोज सब ने सिर से सिर जोड़ कर माथापच्ची की तो संजीत यादव के अपहरण और फिरौती की बात तय हुई. क्योंकि उस के बताए अनुसार संजीत धनवान था.

योजना के तहत नीलू सिंह ने महिला मित्र प्रीति शर्मा के साथ जा कर 15 जून को रतनलाल नगर में ब्रोकर रवींद्र तिवारी की मार्फत 15 हजार रुपया मासिक किराए पर सुनील श्रीवास्तव का मकान ले लिया. मकान किराए पर लेते समय प्रीति को उस ने अपनी पत्नी बताया था. इस मकान में प्रीति अपनी मां सिम्मी के साथ रहने लगी. नीलू ने ही फरजी आईडी पर 6 सिम और 4 चाइनीज मोबाइल खरीदे और ज्ञानेंद्र को दे दिए. ज्ञानेंद्र ने चारों मोबाइल आपस में बांट लिए. ये मोबाइल अपहरण में इस्तेमाल करने के लिए थे. इधर ज्ञानेंद्र सिंह ने संजीत को बेहोश करने के लिए नशे के इंजेक्शन, मुंह पर लगाने के लिए टेप तथा नींद की गोलियां हैलट अस्पताल के सामने मैडिकल स्टोर से खरीदीं.

मैडिकल स्टोर के कर्मचारी ज्ञानेंद्र को जानते थे इसलिए उन्होंने डाक्टर का पर्चा नहीं मांगा. ज्ञानेंद्र ने इस सामान को बैग में सुरक्षित कर कार में रख लिया. 22 जून की शाम 7बज कर 47 मिनट पर ज्ञानेंद्र सिंह ने संजीत को फोन कर के बताया कि आज उस का जन्मदिन है, पार्टी करने चलते हैं. पार्टी के नाम पर संजीत तैयार हो गया. इस के बाद दोनों का फोन पर संपर्क बना रहा. ज्ञानेंद्र अपनी फोर्ड फीगो कार ले कर शिवाजी पुलिया नौबस्ता के पास खड़ा हो गया. उस समय कार में ज्ञानेंद्र के अलावा कुलदीप, नीलू तथा रामजी शुक्ला मौजूद थे. कुछ देर बाद संजीत आया तो इन लोगों ने उसे कार में बिठा लिया.

कार में ही उन लोगों ने संजीत को शराब पिलाई. उसी में नशीली गोलियां मिला दी गई थीं. बेहोश होेने पर ये लोग उसे रतनलाल नगर स्थित किराए वाले मकान पर ले आए. यहां प्रीति पहले से मौजूद थी. उसी ने दरवाजा खोला. कमरे में ला कर इन लोगों ने संजीत के हाथपैर बांधे, मुंह पर टेप लगाया और नशीला इंजेक्शन लगा दिया. इस के बाद बारीबारी से सब उस की निगरानी करने लगे. 26 जून की रात 10 बजे खाना खाते वक्त संजीत ने भागने का प्रयास किया और गेट तक पहुंच गया. लेकिन नीलू सिंह ने उसे दबोच लिया. इस के बाद ज्ञानेंद्र, कुलदीप व रामजी शुक्ला आ गए. सभी ने मिल कर संजीत का गला घोंट दिया. फिर शव को बोरी में भर कर, कार की डिक्की में रखा और सवेरा होने के पहले ही पांडव नदी में फेंक आए. फिर नीलू को छोड़ कर सब अपनेअपने घर चले गए.

संजीत की हत्या के बाद अपहर्त्ताओं ने फिरौती के लिए फोन किया और 30 लाख रुपए की मांग की. 13 जुलाई को उन्होंने फिरौती की रकम ले भी ली. अपहर्त्ताओं ने पुलिस से बचने का भरसक प्रयास किया, लेकिन बच नहीं पाए और पकड़े गए. इधर संजीत की हत्या की खबर प्रिंट मीडिया में छपी और टीवी चैनलों में दिखाई जाने लगी तो राजनीतिक भूचाल आ गया. सपा, बसपा व कांग्रेस के बड़े नेता प्रदेश की कानूनव्यवस्था पर सवाल खड़े करने लगे तो सीएम योगी तिलमिला उठे. मुख्यमंत्री ने आईजी मोहित अग्रवाल से संजीत प्रकरण की जानकारी जुटाई, साथ ही पुलिस की भूमिका की भी जानकारी ली. इस के बाद उन्होंने लापरवाह पुलिस अधिकारियों व पुलिसकर्मियों को सस्पेंड करने का फरमान जारी कर दिया.

एसएसपी दिनेश कुमार पी का भी तबादला झांसी कर दिया गया. शासन के आदेश पर एसपी (साउथ) अपर्णा गुप्ता, डीएसपी मनोज कुमार गुप्ता, पूर्व बर्रा थानाप्रभारी रणजीत राय, चौकी प्रभारी राजेश कुमार, दरोगा योगेंद्र सिंह, सिपाही अवधेश, भारती, दिशू, विनोद कुमार, सौरभ, मनीष और शिव प्रताप को सस्पेंड कर दिया गया. लेकिन मृतक संजीत की बहन रुचि ने मीडिया से रूबरू हो कर कहा कि सस्पेंड पुलिसकर्मियों की लापरवाही से उस के भाई की हत्या हो गई. इसलिए ये पुलिसकर्मी उतने ही दोषी हैं, जितने अपहर्त्ता. उस की शासन से मांग कि केवल निलंबन से काम नहीं चलेगा. उन पर हत्या का मुकदमा दर्ज कर जेल भेजा जाए.

25 जुलाई, 2020 को थाना बर्रा पुलिस ने अभियुक्त ज्ञानेंद्र सिंह, कुलदीप गोस्वामी, नीलू सिंह, रामजी शुक्ला तथा प्रीति शर्मा को कानपुर कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जिला जेल भेज दिया गया. कथा संकलन तक पुलिस न तो शव बरामद कर सकी थी और न ही नोटों भरा बैग. बैग बरामदगी तथा जांच हेतु पुलिस हेडक्वार्टर से एडीजी वी.पी. जोगदंड को भेजा गया. उन्होंने जांच शुरू कर दी थी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

 

Love Story : भागकर शादी करने पर लड़की के घरवालों ने दामाद की कर दी हत्या

Love Story : घर वालों की मरजी के खिलाफ पढ़ीलिखी ज्योति ने रोहित से अंतरजातीय विवाह किया था. रोहित सरकारी नौकरी करता था, इसलिए ज्योति उस के साथ हंसीखुशी से रह रही थी. इस के 2 साल बाद इन के जीवन में ऐसा वाकया हुआ, जिस की किसी ने कल्पना तक नहीं की थी.

उत्तर प्रदेश के मैनपुरी जिले का एक गांव है बृजपुरा. इसी गांव के निवासी महेश सिंह यादव पेशे से किसान थे. उन का बड़ा बेटा रोहित पशु पालन विभाग में नौकरी करता था. 9 जुलाई, 2020 की बात है. रोहित की पत्नी ज्योति की तबियत अचानक खराब हो गई थी. बुखार के साथ उस के पेट में दर्द भी हो रहा था. इस से रोहित बहुत परेशान हो रहा था. ज्योति की तबियत खराब होने से रोहित परेशान हो उठा. शाम का वक्त हो गया था. जब घरेलू उपायों से भी कोई लाभ नहीं हुआ. घर वालों ने रोहित से ज्योति को कीरतपुर के किसी डाक्टर को दिखाने को कहा. क्योंकि बृजपुरा में कोई अच्छा डाक्टर नहीं था.

घर वालों की बात मान कर रोहित ने ज्योति से कहा, ‘‘चलो डाक्टर को दिखा आते हैं. कहीं रात में ज्यादा तबियत खराब हो गई तो किसे दिखाएंगे.’’

पति की बात मान कर ज्योति डाक्टर के पास चलने के लिए तैयार हो गई. गांव ब्रजपुरा से कीरतपुर लगभग 5 किलोमीटर दूर था. इसलिए रोहित अपनी मोटरसाइकिल से ज्योति को कीरतपुर में स्थित एक डाक्टर के क्लीनिक पर ले गया. ज्योति का चैकअप करने के बाद डाक्टर ने दवा दे दी और 2 दिन बाद फिर से आने को कहा. डाक्टर से दवा लेने के बाद रोहित पत्नी को ले कर अपने घर की तरफ चल दिया. लौटते समय रात हो गई थी. जब उस की मोटरसाइकिल सिंहपुर नहर पुल स्थित हुर्रइया पुलिया के पास पहुंची. उस समय रात के सवा 8 बज रहे थे. सड़क पर सन्नाटा था. ज्योति रोहित को पकड़े बाइक पर बैठी थी. उस ने कहा, ‘‘अंधेरे में मुझे डर लग रहा है. तुम गाड़ी कुछ तेज चलाओ जिस से हम घर जल्दी पहुंच जाएं.’’

रोहित कुछ कह पाता, तभी वहां घात लगाए हमलावरों ने उन दोनों पर हमला कर दिया. दोनों को जिस बात का डर था वही हो गई. ऐसा लग रहा था बदमाश जैसे उन दोनों का ही इंतजार कर रहे थे. अचानक हुए हमले से दोनों घबरा गए. रोहित ने मोटरसाइकिल तेज कर वहां से भागने का प्रयास किया. लेकिन बदमाशों ने ताबड़तोड़ फायरिंग शुरू कर दी थी. तभी एक गोली रोहित के पेट में लगी और बाइक सहित दोनों सड़क पर जा गिरे. कई गोली लगने से ज्योति गंभीर रूप से घायल हो गई थी. हमलावर 2 मोटरसाइकिलों पर सवार हो कर आए थे. रात के सन्नाटे में गोलियों की आवाज सुन कर आसपास के ग्रामीण घटनास्थल पर पहुंच गए. ग्रामीणों के वहां पहुंचने से पहले ही बदमाश घटनास्थल से फरार हो चुके थे. कुछ ग्रामीणों ने घायल दंपति को पहचान लिया और उन्होंने बृजपुरा उन के घर फोन कर घटना की जानकारी दे दी.

घटना की जानकारी होते ही रोहित के घर में कोहराम मच गया. छोटा भाई मोहित, पिता महेश व अन्य घर वाले गांव वालों के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. ज्योति और रोहित सड़क किनारे बिजली के खंभे के पास लहूलुहान पड़े हुए थे. इसी बीच किसी ने थाना मैनपुरी पुलिस को भी घटना की सूचना दे दी. सड़क पर बाइक सवार दंपति को गोली मारने की सूचना पर थाने में हड़कंप मच गया. घटनास्थल थाने से लगभग 7-8 किलोमीटर दूर था. कुछ ही देर में इंसपेक्टर भानुप्रताप सिंह पुलिस टीम व एंबुलेंस के साथ मौके पर पहुंच गए. उन्होंने गंभीर रूप से घायल दंपति को एंबुलेंस से जिला अस्पताल में उपचार के लिए भिजवाया.

दंपति पर जानलेवा हमले की वारदात से ग्रामीणों में रोष फैल गया था. गांव वालों के रोष को भांप कर थानाप्रभारी ने घटना की जानकारी उच्चाधिकारियों को दे कर स्थिति से अवगत कराया. खबर मिलते ही एएसपी मधुबन सिंह, सीओ अभय नारायण राय भी घटनास्थल पर पहुंच गए. अधिकारियों ने घटनास्थल का निरीक्षण किया. घटनास्थल से पुलिस को जहां 2 खोखे मिले, वहीं घटनास्थल से लगभग 150 मीटर की दूरी पर भी एक खोखा मिला. पुलिस ने घटनास्थल से जरूरी सबूत जुटा कर मौके की जरूरी काररवाई निपटाई. वहीं सीओ ने गुस्साए ग्रामीणों को भरोसा दिया कि पुलिस हमलावरों को जल्द गिरफ्तार कर लेगी. उन के आश्वासन के बाद ही ग्रामीण शांत हुए.

पुलिस बदमाशों की तलाश में जुट गई. लेकिन रात का समय होने के कारण बदमाशों के बारे में कोई जानकारी नहीं मिल सकी. बदमाशों ने दंपति को घायल करने के बाद उन की बाइक, नकदी व आभूषण की लूट नहीं की थी. इस से पुलिस को भी आशंका हुई कि बदमाशों ने हमला लूटपाट के लिए नहीं किया, इस के पीछे जरूर कोई रंजिश रही होगी. घटनास्थल से अधिकारी सीधे जिला चिकित्सालय पहुंचे. उन्होंने घायलों के बारे में चिकित्सकों से जानकारी ली. चिकित्सकों ने बताया कि रोहित के पेट में एक गोली तथा ज्योति के शरीर में 6 गोलियां लगी थीं. घायल रोहित ने अधिकारियों को हमलावरों के नाम भी बता दिए.

अस्पताल में मौजूद रोहित के छोटे भाई मोहित ने रंजिश के चलते अंगौथा निवासी बृजेश मिश्रा उस के बेटे गुलशन व हिमांशु मिश्रा, बृजेश के छोटे भाई अशोक मिश्रा व उस के 2 बेटों राघवेंद्र उर्फ टेंटा व रघुराई पर वारदात को अंजाम देने का आरोप लगाया था. घायल दंपति का जिला अस्पताल मैनपुरी में उपचार शुरू किया गया. उपचार के दौरान दोनों की गंभीर हालत को देखते हुए डाक्टरों ने उन्हें मैडिकल कालेज सैफई रैफर कर दिया. पुलिस व घर वाले जब एंबुलेंस से घायल दंपति को सैफई ले जा रहे थे तो रास्ते में ज्योति की मौत हो गई. जबकि रोहित का सैफई पहुंचते ही इलाज शुरू हो गया था. गोली उस के पेट में लगी थी जो पार हो गई थी.

औपरेशन के बाद चिकित्सकों ने रोहित को आईसीयू में भरती कर दिया था. रोहित की सुरक्षा के लिए थानाप्रभारी ने 2 सिपाही भी तैनात कर दिए गए थे. रोहित के भाई मोहित ने रिपोर्ट में आरोप लगाया था कि ज्योति मिश्रा ने उस के भाई रोहित यादव के साथ करीब 2 साल पहले अंतरजातीय प्रेम विवाह किया था, जिस से ज्योति के घर वाले उस के भाई रोहित व भाभी ज्योति से बहुत नफरत करते थे, उन्होंने कई बार धमकियां भी दी थीं. इसी के चलते इन लोगों ने घटना को अंजाम दिया. रिपोर्ट दर्ज होने के बाद पुलिस ने नामजद आरोपियों की गिरफ्तारी के लिए उन के गांव में दबिश दी. लेकिन कोई भी आरोपी घर नहीं मिला. पुलिस ने बृजेश मिश्रा के परिवार के कुछ लोगों के साथ ही कई संदिग्धों को हिरासत में ले लिया था. उन्हें कोतवाली ला कर पूछताछ की गई.

2 गांव के बीच प्रेम विवाह को ले कर हुई इस खूनी घटना के बाद खुफिया विभाग भी सतर्क हो गया था. लगातार दोनों गांव की स्थिति पर पुलिस नजर बनाए हुए थी. जहां रोहित के घर पर मातम पसरा हुआ था, वहीं अंगौथा में आरोपी के घरों पर कोई नहीं था. दोनों गांवों में इस घटना के बाद से सन्नाटा पसरा हुआ था. इस सनसनीखेज हत्याकांड के एक हफ्ते बाद भी पुलिस के हाथ खाली थे. पुलिस अब तक नामजद आरोपियों में से एक भी आरोपी को गिरफ्तार नहीं कर सकी थी. हत्यारों द्वारा ज्योति पर ताबड़तोड़ गोलियां बरसा कर मार देने की खबर इलैक्ट्रौनिक और प्रिंट मीडिया में प्रमुखता से छाने लगी, जिस से पुलिस पर दबाव बढ़ता जा रहा था, लेकिन पुलिस अपने काम में जुटी रही. पुलिस की जांच सही दिशा में आगे बढ़ रही थी.

पुलिस के अलावा सर्विलांस टीम, स्वाट टीम को भी आरोपियों की गिरफ्तारी के काम में लगाया गया. पुलिस की मेहनत रंग लाई और हत्याकांड के 3 नामजद आरोपियों को पुलिस ने दबिश के बाद उन के गांव के पास से गिरफ्तार कर लिया. 16 जुलाई, 2020 को पुलिस ने 10 दिन पहले हुए ज्योति हत्याकांड का परदाफाश कर दिया. एसपी अजय कुमार पांडेय ने प्रैसवार्ता आयोजित कर इस हत्याकांड का खुलासा किया. पता चला कि इस हत्याकांड को सम्मान की खातिर सगे भाई और 2 चचेरे भाइयों ने अंजाम दिया था. घटना में नामजद 5 आरोपियों में से पुलिस ने ज्योति के सगे भाई गुलशन मिश्रा तथा 2 चचेरे भाइयों राघवेंद्र मिश्रा व रघुराई मिश्रा को गिरफ्तार कर उन के कब्जे से 2 तमंचे व 5 कारतूस बरामद किए थे. तीनों हत्यारोपियों ने अपना जुर्म कुबूल कर लिया. इस हत्याकांड की जो कहानी बताई, वह कुछ इस तरह थी—

थाना मैनपुरी के बृजपुरा और अंगौथा गांव अगलबगल थे. बृजपुरा निवासी महेश सिंह के 2 बेटे व एक बेटी थी. बड़ा बेटा 25 वर्षीय रोहित यादव पशु पालन विभाग में नौकरी करता था. जबकि छोटा बेटा मोहित अभी बीएससी फर्स्ट ईयर में पड़ रहा था. छोटी बहन प्रियंका चौथी क्लास में पढ़ती थी. वहीं अंगौथा निवासी बृजेश मिश्रा खेतीकिसानी करता था. गांव में उस की आटा चक्की भी थी. उस के 4 बेटे बेटियों में गुलशन व हिमांशु के अलावा ज्योति तीसरे नंबर की थी. ज्योति की एक छोटी बहन और थी. गुलशन पिता के साथ आटा चक्की के काम में हाथ बंटाता था जबकि दूसरे नंबर का बेटा हिमांशु पुणे में नौकरी करता था.

रोहित यादव पशुपालन विभाग में अंगौथा मौजा (मझरा) में स्थित पशु चिकित्सालय व कृत्रिम गर्भाधान केंद्र में कार्य करता था. इसी सिलसिले में उस का आसपास के गांवों में आनाजाना लगा रहता था. वह पड़ोसी गांव अंगौथा भी पशुओं के इलाज के सिलसिले में जाता था. एक दिन जिस घर के पशुओं के इलाज के संबंध में रोहित आया था, उसी घर में पड़ोस में रहने वाली ज्योति आई हुई थी. रोहित की नजर उस पर पड़ी. ज्योति सुंदर लड़की थी. वह उस का अनगढ़ सौंदर्य देख ठगा सा रह गया. उस ने उसी क्षण उसे दिल में बसा लिया. ज्योति को भी अहसास हो गया कि रोहित उसे चाहत की नजरों से देख रहा है. रोहित कसी हुई कदकाठी का जवान युवक था. उसे देख कर 22 वर्षीय ज्योति का दिल भी तेजी से धड़कने लगा था.

रोहित जब भी ज्योति के गांव जाता उस की मुलाकात ज्योति से हो जाती. दोनों ही एकदूसरे को देख कर मुसकरा देते थे. जब दो युवा मिलते हैं तो जिंदगी में नया रंग घुलने लगता है. दोनों एकदूसरे से प्यार का इजहार करना चाहते थे. एक दिन ज्योति को मौका मिल ही गया. भाई और पिता आटा चक्की पर थे, मां घर के कामों में व्यस्त थी. ज्योति ने जैसे ही रोहित को देखा वह उस के पास से निकली और चुपचाप से एक पर्ची उस के पास गिरा दी. रोहित ने वह पर्ची झट से उठा कर अपने पास रख ली. काम निपटाने के बाद रास्ते में उस पर्ची को खोला तो उस पर एक मोबाइल नंबर लिखा था. बिना देर किए रोहित ने वह नंबर डायल किया.

दूसरी ओर से आवाज आई, ‘‘मैं ज्योति मिश्रा बोल रही हूं, आप कौन?’’

इस पर उस ने जवाब दिया, ‘‘मैं रोहित यादव बोल रहा हूं. आप के गांव के मवेशियों के इलाज के लिए आताजाता रहता हूं.’’

‘‘जनाब, आप इलाज जानवरों का करते हैं और घायल इंसानों को कर देते हैं,’’ कह कर ज्योति खिलखिला कर हंस पड़ी.

‘‘आप चिंता न करें, अब मुझे आप का फोन नंबर मिल गया है. अब आप बिलकुल ठीक हो जाओगी.’’ रोहित ने भी उसी अंदाज में जवाब दिया. एकदूसरे के मोबाइल नंबर मिलने के बाद दोनों के बीच धीरेधीरे बातचीत का सिलसिला शुरू हो गया. यह काफी दिनों तक चलता रहा. जब भी रोहित ज्योति के गांव में आता दोनों चोरीछिपे मिल कर एकदूसरे की दिल की बात जान लेते.

दोनों की जातियां भले ही अलगअलग थीं. लेकिन प्यार के दीवानों को इस की परवाह नहीं थी. दोनों का मानना था कि समाज और जाति सब अपनी जगह हैं, लेकिन हमारा प्यार इन सब से ऊपर है. यह सोच कर दोनों ने एकदूसरे का हमसफर बनने का निर्णय ले लिया था. इश्क की खुशबू कभी छिपती नहीं है. ज्योति के घर वालों को जब दोनों के बीच चल रहे प्रेमप्रसंग का पता चला तो उन्होंने ज्योति को कड़ी चेतावनी दी और रोहित से न मिलने की हिदायत दे दी. लेकिन रोहित की प्रेम दीवानी ज्योति पर इस चेतावनी का कोई असर नहीं हुआ था. उस ने घर वालों से बगावत कर दी और एक दिन मौका मिलते ही ज्योति रोहित के साथ घर से भाग गई.

इस बात की जानकारी होने पर ज्योति के घर वालों ने दोनों को बहुत तलाशा. उन के न मिलने पर उन्होंने रोहित के खिलाफ कोतवाली मैनपुरी में ज्योति को बहलाफुसला कर भगा ले जाने की रिपोर्ट दर्ज करा दी. 17 सितंबर, 2018 को दोनों ने घर वालों की मरजी के बिना प्रयागराज में कोर्ट मैरिज कर ली. कोर्ट मैरिज के बाद रोहित और ज्योति कुछ दिन दिल्ली जा कर रहे. दोनों बाद में गांव बृजपुरा आ गए थे. ज्योति के घर वालों ने यह जानकारी  पुलिस को दे दी. तब पुलिस ने ज्योति और रोहित को हिरासत में ले लिया. पुलिस ज्योति को जब न्यायालय में बयान दर्ज कराने के लिए ले जा रही थी, तब ज्योति के घर वालों ने उस से कहा कि वह उन के साथ चलने की बात कोर्ट में कहे.

इस बात के लिए ज्योति ने हामी तो भर दी थी, लेकिन जब कोर्ट में ज्योति के बयान दर्ज हुए तो उस ने पति रोहित के साथ ही जाने के बयान दिए थे. लिहाजा ज्योति को उस के पति रोहित के साथ भेज दिया गया. बेटी के इस फैसले के बाद वृद्ध पिता ब्रजेश मिश्रा व मां चुपचाप घर चले गए थे. उस समय उन्होंने खुदको बहुत अपमानित महसूस किया था. अंतरजातीय प्रेम विवाह ज्योति के घर वालों को मंजूर नहीं था. खासकर ज्योति के भाई गुलशन व चचेरे भाइयों राघवेंद्र व रघुराई को. इस वजह से वह ज्योति और रोहित से रंजिश मानने लगे थे. वे लोग दोनों की हत्या करना चाहते थे, लेकिन घर के बड़ेबुजुर्गों ने उन्हें समझाया कि हत्या करने से गई हुई इज्जत वापस तो आ नहीं जाएगी. यदि तुम लोग हत्या करोगे तो पुलिस का शक तुम्हीं लोगों पर जाएगा और पकड़े जाओगे.

उस समय तो वे लोग खून का घूंट पी कर रह गए थे. लगभग 2 साल बीतने के बाद घर वाले भी यह मान बैठे थे कि अब ये लड़के कोई घटना नहीं करेंगे. ज्योति के गैर जाति में शादी कर लेने की वजह से गांव में भी लोग आए दिन घर वालों पर छींटाकशी करते रहते थे. इस के साथ ही अविवाहित चचेरे भाई राघवेंद्र की शादी के लिए रिश्ते तो आते थे, लेकिन जब उन्हें सारी बातों की जानकारी होती, तो वे शादी से इंकार कर देते थे. चचेरी बहन के यादव जाति में शादी कर लेने से राघवेंद्र की शादी भी नहीं हो पा रही थी. इस से राघवेंद्र परेशान रहने लगा था. एक बार राघवेंद्र अकेला ज्योति की ससुराल जा पहुंचा और उस ने ज्योति से घर चलने के लिए दवाब डाला. लेकिन ज्योति ने साफ मना कर दिया. इस पर राघवेंद्र मुंह लटका कर घर लौट आया था.

यह बात गुलशन व रघुराई को नागवार लगी थी. इस घटना के बाद एक बार उन्होंने 50 हजार में भाड़े के एक शूटर से ज्योति व रोहित की हत्या कराने की योजना भी तैयार की गई थी, लेकिन वे सफल नहीं हुए थे. समय बीतने के साथ ही तीनों आरोपियों के मन में ज्योति के प्रति नफरत बढ़ती गई. इन्हें डर था कि कहीं ज्योति मां बन गई तो इस रिश्ते की डोर और भी मजबूत हो जाएगी. फिर दोनों परिवार कभी एक भी हो सकते हैं. सब तरफ से हताश होने के बाद गुलशन और उस के चचेरे भाइयों ने दोनों की हत्या करने की प्लानिंग की. वे पिछले एक महीने से इस की तैयारी कर रहे थे. उन्होंने तय कर लिया था कि ज्योति और रोहित जिस दिन एक साथ मिलेंगे, वह उन की हत्या कर देंगे. इसी वजह से वे घर वालों को अंधेरे में रख कर हत्या की योजना बना रहे थे.

उन्होंने असलहों का इंतजाम भी कर लिया था. फिर तीनों ने उन की रेकी करने का काम शुरू कर दिया. 7 जुलाई, 2020 को उन को मौका मिल भी गया. उस दिन राघवेंद्र ने मोटरसाइकिल से शाम के समय रोहित और ज्योति को जाते देख लिया था. उस ने गुलशन और रघुराई को बताया कि आज दोनों को निपटा देने का अच्छा मौका है. उसी समय उन लोगों ने योजना को अंजाम देने की ठान ली थी. तीनों ने तमंचों व कारतूसों का इंतजाम पहले ही कर लिया था. वे सिंहपुर नहर पुल के बंबे के पास मोटरसाइकिलों से जा कर उन का इंतजार करने लगे. रात सवा 8 बजे जैसे ही उन्हें रोहित की मोटरसाइकिल आती दिखी, उन लोगों ने दोनों पर घात लगा कर हमला कर दिया. उन्होंने दोनों पर ताबड़तोड़ फायरिंग  कर दी.

घटना के दौरान गुलशन मार्ग से आनेजाने वाले लोगों पर नजर भी रख रहा था, जबकि ज्योति को 6 गोलियां राघवेंद्र व रघुराई ने मारीं थीं, जिस से उस के बचने की कोई गुंजाइश न रहे. वहीं योजना थी कि रोहित के घुटने में गोली मार कर उसे जिंदगी भर के लिए अपाहिज कर दिया जाए. ताकि वह सारी जिंदगी अपने किए पर पछताता रहे. इसीलिए उन्होंने रोहित के एक गोली मारी. लेकिन हड़बड़ी में गोली रोहित के घुटने के बजाय पेट में जा लगी. अपनी योजना को अमलीजामा पहनाने के बाद आरोपी घटनास्थल से फरार हो गए थे.

रिपोर्ट 5 लोगों के खिलाफ दर्ज कराई गई थी. इन में 3 नामजदों को पुलिस द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया था. जबकि पिता बृजेश मिश्रा के खिलाफ जांच में कोई सबूत नहीं मिला था. इसी तरह पांचवें आरोपी की लोकेशन घटना के समय पुलिस को पुणे में मिली थी. इस संबंध में कहानी लिखे जाने तक विवेचना जारी थी. हत्या के लिए 2 तमंचे व 10 कारतूस का इंतजाम आरोपियों ने किया था. कारतूस व तमंचा कहां से जुटाए गए थे, पुलिस इस की भी जांच कर रही थी, ताकि दोषियों के विरुद्ध काररवाई की जा सके. इस हत्याकांड के खुलासे में एएसपी मधुबन सिंह, सीओ अभय नारायण राय, इंसपेक्टर भानुप्रताप सिंह, सर्विलांस सेल प्रभारी जोगिंदर सिंह, स्वाट टीम प्रभारी रामनरेश यादव का विशेष सहयोग रहा. एसपी अजय कुमार पांडेय ने पुलिस टीम को इस हत्याकांड का खुलासा करने पर 20 हजार का इनाम देने की घोषणा की.

पुलिस ने गिरफ्तार आरोपियों को 18 जुलाई, 2020 को ही न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया गया. मामले की जांच इंसपेक्टर भानुप्रताप सिंह कर रहे थे.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Crime Story : बेइज्जती का बदला लेने के लिए दोस्त का किया कत्ल

Crime Story : प्रदीप 8 महीने तक फेसबुक पर ज्योति के संपर्क में रहा. दोनों में पहले दोस्ती हुई, फिर प्यार और फिर मिलन की तैयारी. उस के इस फेसबुकिया प्रेम ने उस के दोस्त…

फिरोजाबाद जिले का एक थाना है नगला खंगर. इसी के थाना क्षेत्र में एक गांव है धौनई. यहीं के रहने वाले अजयपाल का बेटा है प्रदीप यादव. वह झारखंड की एक कंपनी में नौकरी करता था. अजयपाल रक्षाबंधन से 9-10 दिन पहले अपने गांव धौनई आ गया था ताकि त्यौहार अच्छे से मनाया जा सके. उस के आने से पूरा परिवार खुश था. वजह यह कि नौकरी की वजह से अजय को झारखंड में रहना पड़ता था. वहां से वह कईकई महीने में आ पाता था. करीब 8 महीने पहले अजयपाल की फेसबुक के माध्यम से एक युवती ज्योति शर्मा से दोस्ती हो गई थी. बाद में दोनों ने एकदूसरे को अपने मोबाइल नंबर भी दे दिए थे. इस के बाद मोबाइल पर दोनों के बीच बातों का सिलसिला शुरू हो गया था.

बातों बातों में प्रदीप को पता चला कि ज्योति फिरोजाबाद जिले के गांव नगला मानसिंह की रहने वाली है. ज्योति ने बताया था कि वह बीए में पढ़ रही है. फेसबुक से शुरू हुई दोनों की दोस्ती धीरेधीरे आगे बढ़ने लगी. अब ज्योति और प्रदीप मोबाइल पर प्यार भरी बातें भी करने लगे. अगर किसी लड़केलड़की के बीच लगातार बातचीत होती रहे तो कई बार प्यार हो जाता है. यही अजयपाल और ज्योति के बीच भी हुआ. दोनों एकदूसरे को प्यार करने लगे. दोनों ने एकदूसरे पर अपने प्रेम को भी उजागर कर दिया. प्रदीप ने ज्योति को बताया कि वह भी फिरोजाबाद जिले के थाना नगला खंगर के गांव धौनई का रहने वाला है. यह जानने के बाद दोनों एकदूसरे से मिलने के लिए उतावले हो गए.

लेकिन प्रदीप को कंपनी से छुट्टी नहीं मिल पा रही थी. अपने गांव जाने से वह इसलिए भी कतरा रहा था कि घर वाले पूछेंगे कि तुम अचानक क्यों आ गए? इसलिए प्रदीप ने ज्योति को बताया, वह रक्षाबंधन पर घर आएगा तो उस से जरूर मुलाकात करेगा. प्रदीप अपनी प्रेयसी से मिलने को आतुर था. इसलिए उस ने रक्षाबंधन से पहले ही घर जाने का निर्णय कर लिया. उस ने घर जाने के लिए छुट्टी ले ली. फिर वह रक्षाबंधन से 10 दिन पहले ही गांव आ गया. रक्षाबंधन 3 अगस्त को था. इस बीच उस की ज्योति से फोन पर बातचीत होती रही. प्रदीप का गांव में एक ही दोस्त था सत्येंद्र. वह गांव में ही खेतीकिसानी करता था. उस के पिता रामनिवास की मृत्यु हो चुकी थी. सत्येंद्र फौज में भरती होने की तैयारी कर रहा था.

2 अगस्त की शाम 7 बजे थे. सत्येंद्र खेत से काम कर के वापस घर लौटा था. हाथमुंह धो कर उस ने मां से खाना परोसने के लिए कहा. मां थाली परोस कर लाई ही थी कि सत्येंद्र का दोस्त प्रदीप आ पहुंचा. प्रदीप ने इशारे से सत्येंद्र को अपने पास बुलाया. प्रदीप ने उस के कान के पास मुंह ले जा कर धीमी आवाज में कुछ कहा. इस पर सत्येंद्र बोला, ‘‘खाना खा कर चलते हैं.’’

लेकिन प्रदीप ने कहा, ‘‘अभी लौट कर आते हैं, तभी खा लेना.’’

इस पर सत्येंद्र ने परोसी थाली छोड़ कर मां से कहा कि वह जरूरी काम से प्रदीप के साथ तिलियानी गांव जा रहा है. थोड़ी देर में लौट आएगा और वह जाने लगा तो मां ने कहा, ‘‘बेटा खाना तो खा ले, अभी तो कह रहा था तेज भूख लग रही है.’’

‘‘चिंता मत करो मां, वापस आ कर खा लूंगा.’’ कह कर 23 वर्षीय सत्येंद्र अपने 24 वर्षीय दोस्त प्रदीप की मोटरसाइकिल पर बैठ कर उस के साथ चला गया. दोस्ती में सत्येंद्र बना शिकार रात सवा 8 बजे सत्येंद्र के घर वालों को सूचना मिली कि सत्येंद्र तिलियानी रोड पर नगला मानसिंह के पास लहूलुहान पड़ा है. यह सुन कर घर वालों के पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई. घर वाले आननफानन में घटनास्थल पर पहुंचे और घायल सत्येंद्र को उपचार के लिए जिला अस्पताल ले आए. उस के माथे पर गोली लगी थी. उस की गंभीर हालत देख डाक्टरों ने उसे आगरा रेफर कर दिया. घर वाले सत्येंद्र को उपचार के लिए जब आगरा ले जा रहे थे, तो रास्ते में उस की मौत हो गई. पोस्टमार्टम के लिए उस के शव को जिला अस्पताल वापस लाया गया. सत्येंद्र के शरीर में गोली न मिलने के कारण उस के शव का एक्सरे किया गया.

पता चला कि गोली माथे में लगने के बाद पार हो गई थी. सुबह जब सत्येंद्र की मौत की खबर गांव पहुंची तो सनसनी फैल गई. सभी उसे सीधासादा बता कर उस की हत्या पर शोक जताने लगे. उधर पुलिस की पूछताछ में सत्येंद्र के भाई धर्मवीर ने बताया कि कल शाम 7 बजे जब सत्येंद्र खाना खाने बैठा था, तभी गांव का उस का दोस्त प्रदीप आया और भाई को जबरन साथ ले गया. धर्मवीर ने आरोप लगाया कि उसी ने भाई की गोली मार कर हत्या कर दी है. धर्मवीर की तहरीर पर पुलिस ने प्रदीप के विरुद्ध भादंवि की धारा 302 के तहत हत्या की रिपोर्ट दर्ज कर ली. पुलिस ने प्रदीप को हिरासत में लेने के साथसाथ उस के मोबाइल को भी कब्जे में ले लिया और उस से पूछताछ शुरू कर दी.

पूछताछ के दौरान प्रदीप ने पुलिस को बताया कि वह सत्येंद्र के साथ तिलियानी गांव की ओर जा रहा था. इसी दौरान रास्ते में अचानक गोली चली और मोटरसाइकिल चला रहे सत्येंद्र के माथे में आ लगी, उस ने मोटरसाइकिल रोक दी. सत्येंद्र को गोली लगने पर वह डर गया और अपनी जान बचाने के लिए वहां से भाग गया. हत्या का यह मामला आईजी (आगरा रेंज) ए. सतीश गणेश तक पहुंचा. उन्होंने कहा, ‘कहानी जितनी सीधी दिख रही है उतनी है नहीं. कोई पागल ही होगा जो अपने साथ किसी को उस के घर से ले कर आए और उस की हत्या कर दे. इस मामले में गहराई से जांच कराई जाए.’

पुलिस को प्रदीप की बात गले नहीं उतर रही थी. पुलिस को लगा कि वह सच्चाई छिपा रहा है. सवाल यह था कि रात में दोनों तिलियानी गांव किस से मिलने जा रहे थे और क्या काम था, पुलिस प्रदीप से जानना चाहती थी कि हत्या से पहले क्याक्या हुआ था, अब प्रदीप के पास सच बताने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं था. पुलिस ने इस बारे में प्रदीप से सख्ती से पूछताछ की तो वह टूट गया. उस ने पुलिस को बहुत बाद में बताया कि उस की एक गर्लफ्रैंड है ज्योति शर्मा. उस ने ही उसे मिलने के लिए नगला मानसिंह मोड़ पर बुलाया था, दोनों उसी के पास जा रहे थे कि रास्ते में यह घटना घट गई. उस ने पुलिस से कहा कि वह चाहें तो ज्योति से पूछ ले.

प्रदीप के बयानों की सच्चाई जानने के लिए पुलिस ने ज्योति की तलाश शुरू की. लेकिन ज्योति होती तो मिलती. प्रदीप से उस का मोबाइल नंबर लेने के बाद सर्विलांस पर लगा दिया गया. साइबर सेल ने यह गुत्थी सुलझा दी. दरअसल प्रदीप को फंसाने के लिए ज्योति शर्मा के नाम से एक हाईटेक जाल फैलाया गया था, जांच में पुलिस को पता चला कि जो नंबर ज्योति शर्मा का बताया जा रहा था वह नंबर गांव इशहाकपुर निवासी राघवेंद्र उर्फ काके का है. पुलिस ने प्रदीप से कहा, तुम जिस नंबर को ज्योति शर्मा का बता रहे हो, वह तो राघवेंद्र का है. यह सुनते ही प्रदीप का माथा ठनका. उस ने पुलिस को बताया कि इशहाकपुर का राघवेंद्र तो उस से रंजिश रखता है. लगता है वह मेरी बात ज्योति शर्मा नाम की किसी लड़की से कराता था. वह लड़की कौन है, यह बात तो राघवेंद्र ही बता सकता है.

एसएसपी सचिंद्र पटेल इस सनसनीखेज हत्याकांड की पलपल की जानकारी ले रहे थे. उन्होंने इस केस के आरोपियों की गिरफ्तारी की जिम्मेदारी एसपी (देहात) राजेश कुमार को सौंपी. साथ ही उन्होंने उन की मदद के लिए एएसपी डा. इरज रजा और थाना सिरसागंज के प्रभारी गिरीश चंद्र गौतम को ले कर एक पुलिस टीम का गठन कर दिया. इस पुलिस टीम में थानाप्रभारी के साथ ही एसओजी प्रभारी कुलदीप सिंह, एसआई रनवीर सिंह, अंकित मलिक, प्रवीन कुमार, कांस्टेबल विजय कुमार, परमानंद, राघव दुबे, हिमांशु, महिला कांस्टेबल हेमलता शामिल थे. इस टीम के सहयोग के लिए एसओजी प्रभारी कुलदीप सिंह को भी सहयोग करने का आदेश दिया गया. पुलिस शुरू से ही इस मामले की गहनता से जांच कर रही थी.

सौफ्टवेयर का कमाल जांच कार्य में एसएसपी सचिंद्र पटेल के निर्देश के बाद और तेजी आ गई. 7 अगस्त को पुलिस को मुखबिर से जानकारी मिली कि नगला मानसिंह में हुई हत्या के आरोपी गड़सान रोड पर व्यास आश्रम के गेट के पास खड़े हैं. इस सूचना पर थानाप्रभारी गिरीशचंद्र गौतम पुलिस टीम के साथ बताए गए स्थान पर पहुंच गए और घेराबंदी कर राघवेंद्र यादव उर्फ काके और उस के दोस्त अनिल यादव को गिरफ्तार कर लिया. पुलिस दोनों हत्यारोपियों को थाने ले आई. पुलिस ने उन के कब्जे से हत्या में इस्तेमाल 315 बोर का तमंचा, एक खोखा, एक कारतूस, 3 मोबाइल और हत्या में इस्तेमाल मोटरसाइकिल बरामद कर ली. दोनों आरोपियों ने सत्येंद्र की हत्या करने का जुर्म कबूल कर लिया. पुलिस लाइन सभागार में आयोजित प्रैस कौन्फ्रैंस में एसपी (ग्रामीण) राजेश कुमार ने हत्यारोपियों की गिरफ्तारी की जानकारी दी.

राघवेंद्र प्रदीप से रंजिश के चलते उस की हत्या करना चाहता था. उस ने फूलप्रूफ षडयंत्र भी रचा. हत्यारोपियों ने हाईटेक जाल बिछाया और प्रदीप को अपने जाल में फंसा कर उसे अपनी मनपसंद जगह पर भी बुला लिया लेकिन निशाना चूक गया. हत्या प्रदीप की करनी थी, लेकिन हो गई उस के दोस्त सत्येंद्र की. हत्यारोपियों ने इस सनसनीखेज हत्याकांड के पीछे की जो कहानी बताई, वह चाैंकाने वाली थी—

सन 2014 की बात है. प्रदीप के गांव धौनई की रहने वाली एक लड़की से थाना नगला खंगर क्षेत्र के गांव इशहाकपुर निवासी राघवेंद्र का प्रेमप्रसंग चल रहा था. एक दिन प्रदीप राघवेंद्र को उसी लड़की के चक्कर में धोखे से बुला कर अपने गांव ले गया था. उस ने अपने परिवार के युवक हिमाचल से राघवेंद्र की पिटाई करवाने के साथसाथ उसे बेइज्जत भी कराया. तभी से वह प्रदीप से रंजिश मानने लगा था.वह प्रदीप से अपनी बेइज्जती का बदला लेना चाहता था. लेकिन इस घटना के बाद प्रदीप नौकरी के लिए झारखंड चला गया था. राघवेंद्र के सीने में प्रतिशोध की आग धधक रही थी. करीब 8 माह पहले उसे प्रदीप की फेसबुक से पता चला कि वह झारखंड की एक कंपनी में काम करता है. इस के बाद उस ने ज्योति शर्मा बन कर उस से दोस्ती कर ली और उस का मोबाइल नंबर भी ले लिया.

प्रदीप का मोबाइल नंबर लेने के बाद राघवेंद्र ने अपने मोबाइल में वौइस चेंजर ऐप डाउनलोड किया. इसी ऐप के माध्यम से वह नगला मानसिंह की ज्योति शर्मा बन कर प्रदीप से बातें करने लगा. रक्षाबंधन पर प्रदीप को गांव आना था, राघवेंद्र को इस की जानकारी थी. उस ने कई दिन पहले से प्रदीप की हत्या की साजिश का तानाबाना बुनना शुरू कर दिया था. उस ने ज्योति शर्मा बन कर आवाज बदलने वाले सौफ्टवेयर से आवाज बदल कर प्रदीप को फोन किया. दोनों के बीच फोन पर प्यार भरी बातें होने लगीं. मिलने के वादे हुए. फोन पर प्रदीप जिसे ज्योति समझ कर हंसीमजाक करता था, उस से अपने दिल की बात कहता था वह राघवेंद्र था. वह भी ज्योति बन कर प्रदीप से पूरे मजे लेता था.

रक्षाबंधन पर प्रदीप के घर आने की जानकारी राघवेंद्र को थी. प्रदीप से बदला लेने का अच्छा मौका देख उस ने ज्योति की आवाज में पहली अगस्त को प्रदीप को नगला मानसिंह मोड़ पर मिलने के लिए शाम को बुलाया. उस से वादा किया कि आज मिलने पर उस की सारी हसरतें पूरी कर देगी. पहले दिन मोटरसाइकिल पर 2 लोग होने के कारण राघवेंद्र घटना को अंजाम नहीं दे सका था. 2 अगस्त को उस ने दोबारा ज्योति बन कर प्रदीप को फोन किया और मिलने के लिए बुलाया. प्रदीप ने ज्योति से कहा कि वह कुछ ही देर में उस से मिलने आ रहा है. इस के बाद प्रदीप अपने दोस्त सत्येंद्र के घर गया और उसे साथ ले कर तिलियानी रोड स्थित नगला मानसिंह मोड़ की ओर चल दिया.

नगला मानसिंह के पास रास्ते में राघवेंद्र अपने गांव के ही दोस्त अनिल यादव के साथ मोटरसाइकिल से पहले ही पहुंच गया था. प्रदीप को मोटरसाइकिल पर आते देख कर राघवेंद्र ने गोली चला दी. गोली प्रदीप को न लग कर उस के दोस्त सत्येंद्र के माथे में लगी, जिस से बाद में उस की मौत हो गई थी. पुलिस ने दोनों हत्यारोपियों को न्यायालय में पेश किया, जहां से उन्हें जिला जेल भेज दिया गया. इस सनसनीखेज घटना का खुलासा करने वाली टीम को एसएसपी सचिंद्र पटेल ने 15 हजार रुपए का पुरस्कार दिया. यह सच है कि युवक हों या युवतियां प्यार में अंधे हो जाते हैं. न तो खुद गहराई से सोचते हैं और न दूसरे को सोचने देते हैं. इसी वजह से कभीकभी ऐसा कुछ हो जाता है, जो सावधानी बरतने पर नहीं होता. उस के अंधे प्यार ने उस के दोस्त की बलि ले ली.

आईजी के शक के चलते प्रदीप हत्या का आरोपी बनने से बच गया. उस की जगह उस का दोस्त सत्येंद्र बिना वजह मारा गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित