Murder Story : 2500 करोड़ का वारिस जेल में रहेगा, किया था भयानक अपराध

Murder Story : एक ऐसी घटना जिसने सभी को झकझोर कर रख दिया, जिसे जानने के बाद हर कोई हैरान है. जिसमें 2500 करोड़ की संपति के मालिक को ऐसी सजा मिली कि वह उन दिनों की बड़ी चर्चा बन गई.

ब्रिटेन की कंपनी पेटी की वारिस डायलान थॉमस ने एक ऐसा क्राइम किया जिसके लिए डायलान को अब पूरा जीवन जेल के सलाखों के पीछे गुजारना होगा. डायलान ने अपने जिगरी दोस्त विलियम बुश का बड़े बेरहमी से कत्ल कर दिया, जिसके लिए अब डायलान को आजीवन कारावास की सजा सुनाई है. थॉमस ने अपने जिगरी दोस्त की हत्या उसके घर में ही की थी.

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार थॉमस ने अपने जिगरी दोस्त बुश को 37 बार चाकुओं से वार कर उसका पूरा शरीर गोद दिया था. इसके लिए थॉमस ने किचन में इस्तेमाल किए जाने वाले बड़े चाकू और एक फ्लिक चाकू का इस्तेमाल किया था.

घटना करने से पहले थॉमस ने इंटरनेट पर इस संबंध में काफी सर्च किया था. कोर्ट में लाए जाने पर थॉमस ने अपना अपराध स्वीकार कर लिय. कोर्ट ने कहा है कि थॉमस मानसिक अवसाद से गुजर रहा था, लेकिन थॉमस ने अपने दोस्त का कत्ल किया इसलिए उसे अपने द्वारा किए गए अपराध का पूरा एहसाह है.

परिवार और दोस्त का शोक

बुश के परिवार और उनकी प्रेमिका ने अदालत में शोक व्यक्त किया. बुश की बहन कैट्रिन ने इसे एक भयानक हत्या करार दिया है. जबकि बुश के पिता जॉन ने कहा कि इस घटना ने उनके पूरे परिवार को एक गहरी चोट पहुंचाई है. वहीं बुश की प्रेमिका एला जेफ्रीज़ ने कहा कि उन्होंने पूरी जिंदगी के सपने संजोये थे पर अब वह सपने बिखर गए.

थॉमस के बचाव पक्ष ने कहा कि वह मानसिक स्थिति मे था और थॉमस को मानसिक चिकित्सा की आवश्यकता थी.

अरेस्ट करने से पहले थॉमस ने पुलिस से कहा कि वह यीशु हैं

पुलिस ने थॉमस द्वारा अपने दोस्त की बेरहमी से कत्ल करने की हत्या को एक विश्वासघात के रूप में देखा है. थॉमस का परिवार 1950 के दशक में पाई उद्योग में अपनी संपत्ति बनाने में सफल रहा था. हालांकि थॉमस के परिवार ने 1988 में अपनी कंपनी पीटर्स फूड को बेच दिया.

कोर्ट ने थॉमस को अपने जिगरी दोस्त बुश की हत्या करने के लिए दोषी ठहरा गया है. इसलिए अब 2500 करोड़ के वारिश को अब अपना पूरा जीवन जेल की सलाखों में गुजारना होगा.

Best Hindi story : इस्तीफा देने गया कर्मचारी पर कैसे बन गया बैंक मैनेजर

Best Hindi story : अनुराग ठाकुर ईमानदार बैंक कर्मचारी थे, लेकिन 20 सालों तक किसी ने भी उन की ईमानदारी और मेहनत का नोटिस नहीं लिया. फिर एक दिन उन की बीवी ने एक ऐसा रास्ता निकाला कि…    

राष्ट्रीय कृषक बैंक के अध्यक्ष जयगोपाल अपने केबिन में बैठे एक पत्र पढ़ रहे थे. आंखों के सामने से गुजरती पंक्तियों के साथ उन के चेहरे का तनाव बढ़ता जा रहा था. पत्र पढ़ कर उन्होंने एक ओर रखा और इंटरकौम का बटन दबा कर अपनी सैके्रेटरी नीलिमा से कहा, ‘‘नीलिमा, हमारी श्यामगंज शाखा में कोई अनुराग ठाकुर है. रिकौर्ड देख कर उस की पोजीशन पता करो और बताओ मुझे, जल्दी.’’

थोड़ी देर बाद नीलिमा हाथ में एक फाइल थामे राजगोपाल साहब के सामने खड़ी थी. वह फाइल देख कर बताने लगी, ‘‘सर, अनुराग ठाकुर वैसे तो कैशियर हैं, लेकिन फिलहाल एक्टिंग मैनेजर का काम देख रहे हैं. दरअसल, पूर्व मैनेजर राजेश की मौत के बाद वहां किसी की पोस्टिंग नहीं हुई है. इसलिए अस्थाई तौर पर मैनेजर का काम उन्हीं को सौंप दिया गया था. वैसे भी वहां कोई ज्यादा काम नहीं है.’’

 जयगोपाल साहब ने मेज पर रखा लेटर नीलिमा की तरफ बढ़ाते हुए कहा, ‘‘पढ़ो इसे, है तो गुमनाम, पर श्यामगंज से ही किसी ने भेजा है. हम इस लेटर को इग्नोर नहीं कर सकते.’’

नीलिमा फाइल साहब की मेज पर रख कर पत्र पढ़ने लगी. पत्र अध्यक्ष राजगोपाल के ही नाम आया था. लिखा था, ‘महोदय, हम खेतीबाड़ी कर के अपने खूनपसीने की कमाई आप के बैंक में जमा करते हैं. सुनने में आया है कि बैंक दिवालिया होने वाला है. वैसे भी यहां जो कुछ हो रहा है, उस के बाद यह तो होना ही था. पता चला है कि यहां के कैशियर अनुराग ठाकुर ने पिछले कुछ महीनों में लाखों का गबन किया है और वह गबन की रकम को शहर से बाहर ले जाने वाला है. जब तक इस तरफ आप का ध्यान जाएगा तब तक बैंक का दीवाला निकल चुका होगा.’

पत्र पढ़ कर नीलिमा ने कहा, ‘‘सर, यकीन नहीं होता. लेकिन…’’

‘‘लेकिनवेकिन कुछ नहीं, एक लेटर बना कर लाओ, मैं आदेश जारी कर देता हूं. कल ही एक औडिटर को श्यामगंज रवाना करना है. छानबीन के बाद वह सीधे मुझे रिपोर्ट करेगा.’’

नीलिमा चली गई. उस ने बौस के आदेश का पालन किया. लेटर तैयार होते ही आदेश जारी हो गया. अगले दिन एक औडिटर को श्यामगंज भेज दिया गया. क्योंकि मामला अमानत में खयानत का था.अचानक औडिटर को आया देख अनुराग ठाकुर को आश्चर्य हुआ. थोड़ा गुस्सा भी आया. उन्होंने तल्खी से कहा, ‘‘मेरे रिकौर्ड और लेजर की जांच करनी है? आखिर क्यों? महीने के बीच में ऐसा होता है क्या? कोई नोटिफिकेशन, कोई सूचना. यह कानून के खिलाफ है. ऐसी कौन सी आफत गई? अधिकारियों को कोई शक है तो मुझे हटा दें, तबादला कर दें.’’

औडिटर ने माफी मांगते हुए कहा, ‘‘मिस्टर अनुराग, परेशानी की कोई बात नहीं है. समयसमय पर हम ऐसा करते रहते हैं. पहले भी कई शाखाओं में ऐसा हुआ है. वैसे आप चाहे तो अध्यक्ष का आदेश देख सकते हैं. यह रुटीन की काररवाई है. मुझे ज्यादा से ज्यादा 2 घंटे लगेंगे.’’

‘‘मैं आप की बात से सहमत हूं.’’ अनुराग ठाकुर बोले, ‘‘लेकिन लोगों को पता लगेगा तो मैं तो बदनाम हो जाऊंगा. इस कस्बे की छोटी सी बैंक है ये, मुझे सब लोग जानते हैं. बात फैलते देर नहीं लगेगी. लोग सोचेंगे, जरूर मैं ने कोई हेराफेरी की होगी.’’

 ‘नहीं, किसी को पता नहीं चलेगा.’’ औडिटर ने शांत भाव से कहा, ‘‘बस आप किसी को मत बताना. मैं सब कुछ चुपचाप निपटा दूंगा.’’

औडिटर की विनम्रता देख कर अनुराग ठाकुर ने मूक स्वीकृति दे दी. औडिटर 1 घंटे में अपना काम निपटा कर लौट गयाअगले दिन उस ने अपनी रिपोर्ट अध्यक्ष राजगोपाल के सामने रख दी. रिपोर्ट के हिसाब से सब कुछ ठीक था. कहीं भी एक पैसे की हेराफेरी नहीं पाई गई थी. रिपोर्ट देख कर राजगोपाल बोले, ‘‘एक गुमनाम पत्र को हमें इतनी अहमियत नहीं देनी चाहिए थी.’’

बात वहीं खत्म हो गई. सब कुछ ठीक चल रहा था. एक महीना ठीक से गुजर गया. महीना भर बाद बैंक अध्यक्ष राजगोपाल को फिर एक पत्र मिला. इस बार पत्र किसी दूसरे आदमी ने और दूसरी जगह से लिखा था. इस शिकायती पत्र में भी अनुराग ठाकुर को निशाना बना कर हेराफेरी की बात दोहराई गई थी. पत्र लिखने वाले ने दावा किया था कि बैंक के खातों की जांच ठीक से नहीं की गई थी. कैशियर ने औडिटर को या तो बेवकूफ बना दिया था या फिर कुछ दे दिला कर संतुष्ट कर दिया था. आप को इस बात का अहसास तब होगा जब तीर कमान से निकल जाएगा. हो सकता है, आप इस अजनबी के खत पर ध्यान दें. पर एक बार सोचें जरूर कि क्या इस मामले की दोबारा इंक्वायरी करानी चाहिए.

पत्र पढ़ कर राजगोपाल सोच में पड़ गए. वह दोबारा इंक्वायरी के पक्ष में नहीं थे. लेकिन उन के सामने पड़ा पत्र उन्हें बारबार सोचने को मजबूर कर रहा था. उन के मन में आया भी कि श्यामगंज ब्रांच में इंक्वायरी कर के आए औडिटर से पूछताछ करें. लेकिन उन के जहन में सवाल उठा कि उस ने कुछ गलत किया होगा तो वह सच क्यों बोले? यह भी संभव है कि अनुराग ठाकुर चतुर चालाक रहा हो और उस ने औडिटर को हिसाबकिताब में कुछ इस तरह उलझाया हो कि वह उस की चाल को पकड़ ही पाया हो. किसी ब्रांच में अगर कोई गड़बड़ी होती, वह भी आगाह करने के बाद तो इस की जिम्मेदारी राजगोपाल की ही बनती थी. अपनी इमेज बचाए रखने और संभावित गड़बड़ी से बचने के लिए दोबारा इंक्वायरी कराने में कोई हर्ज नहीं था. वैसे भी यह इंटरनल इंक्वायरी थी.

इसलिए सोचविचार कर उन्होंने इस बार इस मामले को पूरी तरह खत्म करने के लिए 3 जिम्मेदार औडिटरों की टीम से जांच कराने का फैसला किया. अध्यक्ष राजगोपाल ने उसी वक्त अपनी सेक्रैटरी नीलिमा को बुला कर आदेश का लेटर तैयार कराया और उस पर हस्ताक्षर कर दिए. अगले ही दिन 3 चुनिंदा औडिटरों की टीम श्यामगंज के लिए रवाना हो गई. औडिटरों ने श्यामगंज ब्रांच में पहुंच कर अनुराग ठाकुर को अपने आने का मकसद बताया तो वह नाराजगी भरे स्वर में बोले, ‘‘मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि आखिर मामला क्या है? क्यों मेरी ईमानदारी पर प्रश्नचिन्ह लगाया जा रहा है?’’

‘‘आप नाराज हों मिस्टर अनुराग, कोई खास बात नहीं है.’’ एक औडिटर ने उन्हें समझाने की कोशिश की, ‘‘इस से कोई फर्क नहीं पड़ेगा. हम अपना काम कर के चुपचाप चले जाएंगे.’’

अनुराग को गुस्सा तो रहा था, लेकिन ऊपरी आदेश था इसलिए चुप होना पड़ा. एक औडिटर अनुराग के साथ बैठ गया और बाकी 2 अपने काम में जुट गए. इस बार एकएक चीज का बारीकी से निरीक्षण किया गया. इस काम में पूरे 7 घंटे लगे. अनुराग चुपचाप देखने के अलावा कुछ कर सके. औडिटरों की टीम अपना काम कर के हेड औफिस लौट गई. इस टीम को हिसाबकिताब में कहीं कोई गड़बड़ी नहीं मिली थी

एक सप्ताह बाद राष्ट्रीय कृषक बैंक अध्यक्ष राजगोपाल अपने केबिन में बैठे थे. तभी नीलिमा ने कर कहा, ‘‘सर, श्यामगंज ब्रांच से मिस्टर अनुराग ठाकुर आए हैं और आप से मिलना चाहते हैं.’’ राजगोपाल ने नीलिमा से कहा कि उन्हें तुरंत अंदर भेज दें. अनुराग अंदर आए तो अध्यक्ष राजगोपाल ने अपनी आदत के विपरीत उठ कर उन का स्वागत किया, उन से गर्मजोशी से हाथ मिलाया. लेकिन इस के बावजूद अनुराग ने खुशी का कोई इजहार नहीं किया. उन के चेहरे पर नागवारी के भाव साफ नजर रहे थे. औपचारिकता के बाद अनुराग ने एक लेटर राजगोपाल की ओर बढ़ाते हुए कहा, ‘‘सर, मैं अपने पद से इस्तीफा देना चाहता हूं. ये रहा मेरा रिजाइन लेटर.’’

राजगोपाल चौंके. फिर उन्हें बैठने का इशारा करते हुए पूछा, ‘‘क्यों, इस्तीफा देने की क्या जरूरत पड़ गई. यह फैसला किस लिए?’’

‘‘सर, पिछले डेढ़ महीने से मुझ पर शक किया जा रहा है. मेरी ईमानदारी पर अंगुलियां उठ रही हैं. मैं इसे बरदाश्त नहीं कर सकता. मुझे इस से दिमागी तौर पर बहुत तकलीफ पहुंची है. मेरी साख खत्म हो गई है. बीवीबच्चे तक शक की नजरों से देखने लगे हैं.’’

‘‘मैं समझ सकता हूं.’’ अध्यक्ष राजगोपाल की बातों से गलती का अहसास साफ झलक रहा था. वह कुछ देर तक चुप बैठे गहराई से सोचते रहे. फिर अनुराग के चेहरे पर नजरें जमाते हुए बोले, ‘‘हेड औफिस से जो गलती हुई है, उसे हम सुधार देते हैं. श्यामगंज ब्रांच में मैनेजर का पद अभी खाली पड़ा है. आप उसे स्थाई तौर पर संभाल लीजिए. आप की साख खुदबखुद बन जाएगी. पद भी बढ़ेगा और वेतन भी. ईमानदार आदमी यूं ही नहीं मिलते. हम आप का इस्तीफा मंजूर नहीं कर सकते मिस्टर अनुराग. फाड़ कर फेंक दीजिए इसे.’’ 

अनुराग ने मैनेजर के हाथ से इस्तीफा लेते हुए हैरानी से पूछा, ‘‘क्या आप इस मामले में वाकई संजीदा हैं सर?’’

‘‘बिलकुल, मैं अभी सारी काररवाई पूरी करा देता हूं.’’ कह कर राजगोपाल ने इंटरकाम का बटन दबा कर अपनी सैके्रटरी नीलिमा को बुलाया.

मैनेजर बनने की खुशखबरी के साथ अनुराग ठाकुर श्यामगंज लौट आए. घर लौट कर उन्होंने यह खुशखबरी अपनी पत्नी को सुनाई. फिर सोफे पर पसरते हुए बोले, ‘‘पिछले 20 सालों से अपनी ईमानदारी को अपने ही कंधों पर उठाए घूम रहा था. कोई जानता ही नहीं था कि मैं ईमानदार हूं. क्या फायदा ऐसी ईमानदारी का? लेकिन मेरे बारे में अब सब जान गए कि मैं कितना ईमानदार हूं. अध्यक्ष तक को पता लग गया.’’

मिसेज अनुराग का चेहरा खुशी से दमक रहा था. अनुराग पत्नी का हाथ थाम कर बोले, ‘‘कमाल का दिमाग है तुम्हारा. आखिर तुम्हारे लेटर वाले आइडिए ने अपना कमाल दिखा ही दिया.’’ 

‘‘कमाल ही नहीं दिखाया, आप को मैनेजर भी बनवा दिया. ईमानदार मैनेजर.’’ कह कर मिसेज अनुराग खिलखिला कर हंस पड़ीं.

Social Crime story : 20 लाख सुपारी देकर लिया थप्पड़ का बदला

Social Crime story : तमाचे के कई रंग होते हैं, अगर कमजोर या गरीब के गाल पर पड़े तो वह मन मसोस कर रह जाता है, लेकिन यही तमाचा किसी समृद्ध व्यक्ति के गाल पर पड़े तो वह लाशें भी बिछवा सकता है. महेंद्र सिंह पूनिया और हरवीर की दुश्मनी बस एक तमाचे की थी, जो…   

राजस्थान के जिला बीकानेर की सेंट्रल जेल में 3500 कैदियों के रखने की क्षमता है, लेकिन यहां फिलहाल  1500 कैदी ही हैं. सरकार भले ही जेलों को सुधार गृह की उपमा दे, पर अंदर की सच्चाई इस से इतर है. विभिन्न आरोपों में जितने लोग जेल भेजे जाते हैं, उन में से अधिकांश लोग सुधरने के बजाय और ज्यादा कुख्यात हो कर आते हैं. बीकानेर जेल में कम से कम 10 ऐसे हार्डकोर अपराधी चिह्नित किए जा सकते हैं, जिन के एक धमकी भरे फोन से सामने वाला बिना किसी नानुकुर के लाख-2 लाख रुपए उस के गुर्गे के पास पहुंचा देता है. यह भी एक कटु सत्य है कि जेल के अंदर जेल प्रशासन की जगह इन हार्डकोर अपराधियों का ही राज चलता है. नए आने वाले कैदियों को डराधमका कर उन के परिजनों से चौथ वसूली मामूली सी बात है.

बीकानेर जेल में एक ऐसा ही कैदी था अजीत यादव. अजीत यादव झुंझुनू जिले का हार्डकोर क्रिमिनल था. हत्या के एक मामले में आजीवन कारावास की सजा भुगत रहे अजीत के खिलाफ विभिन्न अदालतों में लगभग एक दरजन मुकदमे विचाराधीन हैं. एक तरह से अजीत यादव जेल में बौस थासन 2017 की एक घटना है. रावतसर के चाइया निवासी रामनिवास जाट ने रंजिश के चलते एक टोलनाका कर्मी से मारपीट कर के टोलनाका पर लगे बैरियर को तोड़ दिया था. बाद में महाजन थाने की पुलिस ने रामनिवास को गिरफ्तार कर बीकानेर जेल में भिजवा दिया था.

रामनिवास जब जेल में पहुंचा तो उसे अन्य कैदियों से कुख्यात अपराधी अजीत यादव के बारे में जानकारी मिली. पता चला कि जेल में उस का ही राज चलता है, इसलिए पुराने कैदियों की सलाह पर रामनिवास अजीत यादव की बैरक में पहुंचा और जाते ही उस ने उस के पैर छुए. अजीत ने उस की बांहें पकड़ कर उठाते हुए पूछा, ‘‘अरे जवान, कहां से आए हो?’’

‘‘जी, रावतसर थानाक्षेत्र का रहने वाला हूं. महाजन पुलिस ने गिरफ्तार किया था.’’ रामनिवास ने जवाब दिया.

‘‘तूने किस का कत्ल किया था?’’ अजीत ने अपने चिरपरिचित अंदाज में रामनिवास से पूछा.

‘‘भैया, कत्ल नहीं, मारपीट के आरोप में जेल आया हूं.’’ कहते हुए रामनिवास हीनभावना से ग्रसित हो गया. उस का जवाब सुन कर अजीत खिलखिला कर हंस पड़ा, ‘‘तेरी कदकाठी डीलडौल देख कर मैं ने कत्ल की बात कही थी. मारपीट, छेड़छाड़, चोरीचकारी वगैरह सैकेंडहैंड गुंडों को शोभा देती हैं. तेरे जैसे को तो कातिल की उपमा ही शोभा देती है.’’

जाने क्यों अजीत को रामनिवास भा गया. दूसरी ओर रामनिवास ने भी अपराध की दुनिया के बादशाह अजीत को मन ही मन अपना गुरु मान लिया. ऐसे बनते हैं क्रिमिनल रामनिवास ने धीरेधीरे सभी कैदियों से संपर्क बना लिए. 1-2 घंटे अजीत की बैरक में बिताना उस का नित्यक्रम बन गया था. अजीत भी रामनिवास को छोटे भाई की तरह चाहने लगा था. एक दिन रामनिवास ने अजीत का मूड सही देख कर कहा, ‘‘भैया, एक मसले पर आप से मार्गदर्शन लेना है. आप नाराज हों तो जिक्र करूं?’’

‘‘अरे छोटे भाई से कैसी नाराजगी, तू खुल कर बता.’’ अजीत ने कहा.

‘‘भैया, एक आदमी को सुलटाना है.’’ रामनिवास ने कहा.

‘‘कौन है निशाने पर?’’ अजीत ने पूछा.

‘‘रावतसर नगर पालिका की चेयरपरसन का पति है, खुद भी पार्षद है और इस बार नोहर विधानसभा क्षेत्र से एमएलए का चुनाव भी लड़ रहा है. आप शार्पशूटर की व्यवस्था कर दें तो मेरा काम आसानी से हो जाएगा. और हां, 4-5 लाख की सुपारी भी मिल जाएगी, मुझे प्रस्ताव मिल चुका है.’’ रामनिवास ने कहा.

‘‘अरे पगले, लगता है तू निरा बुद्धू है. भावी विधायक की कीमत केवल 5 लाख रुपए. इतने रुपयों में तो कोई सड़कछाप शख्स को भी ठिकाने नहीं लगाएगा. तू एक करोड़ की मांग कर. 50 लाख तक सैटिंग बिठा ले. मैं तुझे शार्पशूटर उपलब्ध करवा दूंगा. याद रखना, मिलने वाली आधी रकम मेरी होगी.’’ अजीत ने कहा.

करीब एक साल बाद जमानत मिलने पर रामनिवास जेल से बाहर गया. जेल में बिताया हर पल उस के दिलोदिमाग पर हावी था. अजीत द्वाराकत्लीकी उपमा ले कर जेल जाने का ताना गाहेबगाहे उस के दिलोदिमाग में घूम रहा था. कभीकभी वह अजीत से फोन पर बतिया भी लेता था. उस दिन 23 सितंबर, 2018 का दिन था. बड़े भैया अजीत ने वादे के अनुसार शार्पशूटर के रूप में हरियाणा निवासी मंजीत सिंह 2 अन्य को रामनिवास के पास भेज दिया. रामनिवास अपने लक्ष्य को साधने में किसी तरह की खामी नहीं छोड़ना चाहता था. वह शूटर मंजीत अन्य को साथ ले कर अपने दोस्त अमनदीप के खेत में बनी ढाणी पर चला गया.

योजना को अंजाम देने के लिए 24 सितंबर का दिन चुना गया था. रामनिवास ने पार्षद चेयरपरसन के पति हरवीर सिंह की रैकी करने और एकएक पल की सूचना देने के लिए अपने दोस्तों अशोक रैगर और फोटोग्राफर रमेश सुथार के साथ अमनदीप को तैनात कर दिया था. रैकी की सूचना कोड वर्ड में दी जानी थी. हरवीर के घर के आगे सीसीटीवी कैमरे लगे हुए थे. वहां वारदात को अंजाम देना खतरे से खाली नहीं था. करीब 11 बजे पार्षद हरवीर अपने बेटे हनुमंत राजू सैनी के साथ एसडीएम कोर्ट पहुंचे. रैकी करने वालों ने अविलंब यह सूचना शूटरों तक पहुंचा दी. एसडीएम कोर्ट पुलिस थाने से मात्र 300 मीटर की दूरी पर है.

लगातार 2-3 दिनों की छुट्टियां होने के कारण उस दिन भीड़ अपेक्षाकृत ज्यादा थी. एसडीएम डा. अवि गर्ग से मिलने के बाद हरवीर सहारण कोर्ट की तरफ चल दिए. वहीं पर उन की कार खड़ी थी. तभी अचानक एक सफेद रंग की कार गेट के सामने कर रुकी. कार से 3-4 लोग बड़ी फुरती से उतरे और कोर्ट परिसर में जा पहुंचेगोलियों से भून दिया पार्षद हरवीर को  2 लोगों ने सामने रहे हरवीर सहारण को अपने हाथों में थामे तमंचों के निशाने पर ले लिया. अगले ही पल दोनों हमलावरों ने हरवीर पर 2-2 फायर झोंक दिए.

अचानक गोलियों की आवाज से कोर्ट परिसर दहल उठा. कचहरी में सैकड़ों की संख्या में मौजूद लोग समझ नहीं सके कि गोलियां की आवाज कहां से रही है. अचानक हुए हमले से हरवीर भी सकते में गए थेजान बचाने के लिए वह फिर से एसडीएम के चैंबर की तरफ भागे पर एक शख्स ने टांग अड़ा कर उन्हें जमीन पर गिरा दिया. तभी एक अन्य शख्स उन के पास कर बोला, ‘‘तूने मेरे आदमी को थप्पड़ मारा था. आज मैं तेरा खेल ही खत्म कर देता हूं.’’

कहने के साथ ही उस ने हरवीर के सिर पर पिस्तौल की नाल सटा कर एक और फायर झोंक दिया. इस के बाद हमलावर फुरती से वहां से भाग कर गेट के सामने स्टार्ट खड़ी अपनी कार में सवार हो गए. कार तेज गति से वहां से चली गई. इन में से एक हमलावर, जिस ने हरवीर के सिर में गोली मारी थी, वह पहचान लिया गया था. वह और कोई नहीं बल्कि रामनिवास जाट था, जो रावतसर पुलिस थाने का हिस्ट्रीशीटर था. कोर्ट परिसर में दिनदहाड़े हुए इस हत्याकांड को ले कर सभी हतप्रभ थे. कोर्ट परिसर में सन्नाटा पसर गया था. वकीलों ने अपने चैंबर्स के शटर डाल दिए थे. गंभीर रूप से घायल हरवीर सिंह को जिला चिकित्सालय हनुमानगढ़ ले जाया गया

सूचना मिलने पर प्रदेश के सिंचाई मंत्री डा. रामप्रताप जो हनुमानगढ़ वासी हैं, अस्पताल पहुंच गए. डाक्टरों के अथक प्रयासों के बाद भी हरवीर सिंह को नहीं बचाया जा सका.  हरवीर के मारे जाने की घटना जंगल की आग की तरह कुछ ही देर में पूरे क्षेत्र में फैल गई. व्यापारी वर्ग इस घटना के विरोध में अपनी दुकानें बंद कर सड़क पर उतर आया. कुछ घंटों में देहात क्षेत्र के लोग भी रावतसर पहुंचने शुरू हो गए. आम लोगों के बढ़ते आक्रोश दबाव को देख कर प्रशासन के हाथपांव फूल गए. आपसी रंजिश या राजनैतिक प्रतिद्वंदिता को ले कर यह हत्याकांड हाईप्रोफाइल बन गया था. क्षेत्र की स्थिति कभी भी विस्फोटक हो सकती थी

इस घटना की सूचना राजस्थान के तेजतर्रार निर्दलीय विधायक हनुमान बेनीवाल तक पहुंच चुकी थी. हनुमान बेनीवाल तीसरे मोर्चे के संस्थापक मृतक हरवीर के राजनीतिक आका थे. सूचना मिलते ही वह भी रावतसर के लिए निकल पड़े. हरवीर की हत्या, हनुमान बेनीवाल का आगमन क्षेत्र के हालात की जानकारी बीकानेर संभाग के आईजी दिनेश एम.एन. तक भी पहुंच गई. आईजी जानते थे कि सत्र के दौरान सरकार को घेरने वाले विधायक बेनीवाल आक्रोशित आमजन को कहीं भी झोंकने का माद्दा रखते हैं

दूध का धुला नहीं था हरवीर सहारण पार्षद हरवीर का नाम आईजी दिनेश एम.एन. के जेहन में था, क्योंकि कुछ महीने पहले ही एसओजी के प्रमुख होने के नाते उन्होंने इसी हरवीर को रावतसर क्षेत्र में घटित एक हत्याकांड में प्रमुख आरोपी मानते हुए गिरफ्तार करवाया था. गिरफ्तारी के लगभग महीने भर बाद ही हरवीर को राजस्थान उच्च न्यायालय ने जमानत पर रिहा कर दिया था. बता दें कि आईजी दिनेश एम.एन. राष्ट्रीय स्तर पर चर्चित रहे सोहराबुद्दीन एनकाउंटर मामले में न्यायिक अभिरक्षा में रहे थे. बाद में ऊपरी अदालत ने उन्हें बाइज्जत बरी कर दिया था. उन का नाम प्रदेश ही नहीं, राष्ट्रीय स्तर के ईमानदार कर्तव्यनिष्ठ आईपीएस अफसरों की पहली पंक्ति में शुमार है

दिनेश एम.एन. को पहले भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो का प्रमुख, बाद में एसओजी प्रमुख और हाल ही में बीकानेर का आईजी बनाया था. हनुमान बेनीवाल के आगमन को देखते हुए आईजी खुद कनिष्ठ अधिकारियों के साथ रावतसर पहुंच गए. शहर में अतिरिक्त पुलिस फोर्स के साथ आरएसी (राजस्थान आर्म्ड कंपनी) के जवान भी तैनात कर दिए गए थेमाना जा रहा था कि मृतक का शव आते ही हालात बेकाबू हो सकते हैं. नियत समय तक मृतक का पोस्टमार्टम हो पाने के कारण शव हनुमानगढ़ के जिला अस्पताल में रखा रहा.

शाम घिरते ही हनुमान बेनीवाल रावतसर पहुंच गए. परिजनों को ढांढस बंधा कर विधायक बेनीवाल जिला मुख्यालय पहुंचे. वहां बेनीवाल ने पत्रकार वार्ता आयोजित कर मामले की सीबीआई जांच, हत्यारों की अविलंब गिरफ्तारी रावतसर के जिम्मेदार अधिकारियों का तुरंत ट्रांसफर किए जाने की मांग उठा दीं. बेनीवाल ने यह आरोप भी लगाया कि हरवीर की हत्या के पीछे असली चेहरे कुछ सफेदपोशों के हैं. वारदात के बाद पुलिस ने नाकाबंदी करवा दी थी पर हमलावर कच्चे रास्तों से किसी तरह हरियाणा में घुस गए थे. सभी आरोपी हरियाणा में तितरबितर हो गए थे. मुख्य आरोपी रामनिवास प्राइवेट गाड़ी से राजस्थान के झुंझुनू  जिले में घुस गया था.

25 सितंबर को थाने में आईजी के साथ पुलिस अधिकारियों की एक हाईलेवल मीटिंग चल रही थी. बैठक में एसपी अनिल कयाल, एएसपी नरेंद्र, सीआई अरविंद बरेड़, डीएसपी दिनेश राजौरा मौजूद थे. मामले का सुपरविजन आईजी खुद कर रहे थे. अब तक की जांच में पुलिस को यह पता चल चुका था कि इस मामले में हिस्ट्रीशीटर रामनिवास का हाथ है. अधिकारियों का मानना था कि मुख्य आरोपी की जल्द गिरफ्तारी होने पर इलाके में हालात बेकाबू हो सकते हैंरामनिवास का फोन बंद था, उस के फोन नंबरों के ट्रैसआउट नहीं होने की सूरत में उस की गिरफ्तारी मुश्किल थी. तेजतर्रार आईजी के निर्देश पर अधिकारियों ने रामनिवास की एक प्रेमिका तमन्ना (परिवर्तित नाम) को ढूंढ निकाला. एसआई अनीता लाखर तमन्ना को हिरासत में थाने ले आई थीं

पुलिस ने प्रेमिका पर साधा निशाना  थाने में आईजी ने तमन्ना से पूछताछ करनी शुरू कर दी, ‘‘देखो मैडम, कत्ल का मामला है. झूठ बोलना आप पर भारी पड़ सकता है. पुलिस को रामनिवास का वह नंबर चाहिए, जिस से आप उस से बात करती हैं.’’

आईजी ने कहा तो तमन्ना ने अगले ही पल अपने मोबाइल में सहेली के नाम से फीड किए गए नंबर बता दिए. तमन्ना से मिले मोबाइल नंबर जिला मुख्यालय में स्थित साइबर सेल ने सर्विलांस पर लगा दिए. स्वयं आईजी दिनेश एम.एन. वीडियो कौन्फ्रैंसिंग में जुड़ चुके थे. आईजी के निर्देश पर तमन्ना ने रामनिवास को फोन किया तो रामनिवास ने फोन उठा लिया

‘‘कोई गया है, 10 मिनट बाद फिर फोन करूंगी.’’ कह कर तमन्ना ने फोन डिसकनेक्ट कर दियाउसी समय साइबर सेल ने रामनिवास की लोकेशन पता कर ली. वह फतेहपुररतनगढ़ के नजदीक सांखू फांटा में था. यानी वह वहां के एक ढाबे में था. आईजी के निर्देश पर क्षेत्र के सभी थानों की पुलिस गाडि़यों में भर कर सांखू फांटा पहुंच गई. पुलिस ने उसे चारों तरफ से घेर लिया. अब तमन्ना के फोन से आईजी ने रामनिवास को काल कराई. फोन रिसीव होते ही आईजी बोले, ‘‘देखो रामनिवास, मैं आईजी बोल रहा हूं. तुम चारों ओर से पुलिस से घिर चुके हो. भागने या गोली चलाने की कोशिश की तो तुम्हें गोली मार दी जाएगी. मैं ने सभी अधिकारियों को शूटआउट का आदेश दे दिया है. भलाई इसी में है कि तुम सरेंडर कर दो और हाथ ऊपर उठाए ढाबे से बाहर जाओ.’’

अगले ही पल दोनों हाथ ऊपर उठाए रामनिवास ढाबे से बाहर गया. नोहर थाने के कांस्टेबल दुनीराम गोदारा ने रामनिवास की पुख्ता पहचान कर दी थी. पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया. रामनिवास की गिरफ्तारी की सूचना अविलंब फ्लैश कर दी गई. उस के गिरफ्तार होने पर जिला पुलिस प्रशासन ने राहत की सांस ली. 25 सितंबर की शाम पोस्टमार्टम के बाद हरवीर का शव रावतसर गया. हरवीर की शवयात्रा में रिकौर्ड भीड़ एकत्र हुई. पुलिस अमला रामनिवास जाट को ले कर रावतसर गया था. आईजी की मौजूदगी में रामनिवास ने पूछताछ में जो बताया, उसे सुन कर हर कोई हतप्रभ रह गया

रामनिवास के बताए अनुसार, हनुमानगढ़ के केंद्रीय सहकारी बैंक के चेयरमैन महेंद्र पूनिया ने हरवीर की हत्या की 20 लाख की सुपारी दी थी. इस में से 5 लाख रुपए रामनिवास को अग्रिम दे दिए गए थे. यह खुलासा होते ही पुलिस ने महेंद्र पूनिया की मौजूदगी को ट्रैस आउट कर के उसे सूरतगढ़ क्षेत्र से गिरफ्तार कर लिया. हरवीर की आपराधिक पृष्ठभूमि कौन थे हरवीर महेंद्र पूनिया और रामनिवास ने हरवीर को क्यों मौत की नींद सुला दिया था? जानने के लिए हमें अतीत में जाना पड़ेगा. राजस्थान पुलिस के रिटायर्ड एसआई रामजस सहारण शांति देवी सहारण (पूर्व अध्यक्षा कृषि उपज मंडी समिति, रावतसर) का इकलौता बेटा था हरवीर. एक बेटी एक बेटे का पिता हरवीर ज्यादा पढ़ालिखा तो नहीं था, पर राजनीति में उस का अच्छा दखल था.

इसी के चलते हरवीर अपनी मां को कृषि उपज मंडी समिति की अध्यक्ष बनाने में सफल रहा था. खुद भी वह नगर पालिका का पार्षद बन गया था. हरवीर भले ही पार्षद उस की पत्नी नीलम सहारण चेयरपरसन निर्वाचित हुए थे, पर उस का दामन भी कथित रूप से दागदार था. आरोप है कि सन 2001 में हरवीर ने एक युवक प्रेम कुमार की गरदन मरोड़ कर इसलिए कत्ल कर दिया था कि वह उस की मां को चुनाव में हरवाना चाहता था. प्रेम के शव को कहीं दूर जंगल में जला कर सबूत नष्ट कर दिए थे. इसी तरह रुपयों के लेनदेन के चक्कर में हरवीर ने लीलाधर सोनी नामक शख्स की कथित हत्या कर दी थी. लीलाधर का शव भी नहीं मिला था.

मृतकों के परिजनों ने पुलिस अदालत की मार्फत मुकदमे दर्ज करवाए थे, पर दोनों मामलों की जांच में पुलिस ने फाइनल रिपोर्ट लगा दी थी. इसी साल हरवीर के विरोधी इन मामलों को हाई लेवल की सिफारिश के दम पर एसओजी तक ले जाने में सफल हो गए थे. एसओजी के तत्कालीन प्रमुख दिनेश एम.एन. ने 13 मई, 2018 को हरवीर को गिरफ्तार करवा कर जेल भिजवा दिया था. 20-25 दिनों बाद हरवीर जमानत पर रिहा हुआ तो उस के समर्थक करीब 400 गाडि़यां ले कर बीकानेर जेल तक पहुंचे थे. हरवीर विधायक हनुमान बेनीवाल का चहेता था. वह इस चुनाव में नोहर विधानसभा क्षेत्र, जहां से भाजपा के युवा विधायक अभिषेक मटोरिया लगातार 2 बार जीतते रहे हैं, अपनी पत्नी को चुनाव लड़वाना चाहता था. इस 30 सितंबर को हरवीर नोहर में एक विशाल रैली करने वाले थे, पर 24 सितंबर को ही उन की हत्या कर दी गई.

एक अन्य घटनाक्रम भी काबिलेगौर है. सन 2015 में एक भाजपा नेता एक पूर्व विधायक ने मिल कर नगरपालिका चुनाव में नागरिक मोर्चा का गठन किया था. इस चुनाव में हरवीर उस की पत्नी नीलम पार्षद चुने गए थे. नागरिक मोर्चा ने 25 वार्डों में 13 वार्डों पर विजय हासिल की थी. महिला हेतु आरक्षित चेयरपरसन पद पर नीलम सहारण चुनी गई थीसन 2016 में नगर पालिका प्रशासन ने अतिक्रमण हटाओ अभियान चलाया था. कहा जाता है कि इस अभियान में हनुमानगढ़ केंद्रीय सहकारी बैंक के जिलाध्यक्ष महेंद्र पूनिया रामनिवास जाट को कथित अतिक्रमणकारी चिह्नित कर उन के प्लौट्स पर पालिका  प्रशासन नेनगर पालिका संपत्तिके बोर्ड लगा दिए थे.

इस अभियान से घबरा कर शहर के कथित अतिक्रमणकारियों नेरावतसर बचाओअभियान चला कर एक दिन रावतसर बंद का आह्वान किया था. इसी बंद के दौरान रावतसर धान मंडी में जबरदस्ती दुकानें बंद करवाने की बात सुन कर हरवीर भी धान मंडी पहुंच गए थे. महेंद्र पूनिया ने रची थी हरवीर की हत्या की साजिश कहा जाता है कि जबरन दुकानें बंद करवा रहे महेंद्र पूनिया को देख कर चेयरपरसन के पति हरवीर ताव खा गए थे और उन्होंने भरे बाजार में सहकारी बैंक के जिलाध्यक्ष को 2-3 चांटें रसीद कर दिए थे. इस प्रकरण में महेंद्र पूनिया ने पुलिस में हरवीर के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करवाई थी. उसी दिन महेंद्र पूनिया ने हरवीर को सबक सिखाने की ठान ली थी.

फर्श से अर्श पर पहुंचने वाले महेंद्र पूनिया का अतीत भी रोचक रहा है. नोहर क्षेत्र के गांव पदमपुरा का मूल निवासी है महेंद्र पूनिया. वह सन 1996-97 में रावतसर आया था. एक जानकार ठेकेदार के सहयोग से वह सार्वजनिक निर्माण विभाग के छिटपुट निर्माण कार्यों के ठेके लेने लगा था. इसी दौर में वह एक भाजपाई विधायक का खास बन गया था. आर्थिक हालत पटरी पर आई तो महेंद्र पूनिया ने हरियाणा में एंट्री मार दी. राजनैतिक पहुंच के बल पर महेंद्र पूनिया हरियाणा में करोड़ों में खेलने लगा तो फिर से रावतसर लौट आया. बड़े व्यवसाय में दखल के साथसाथ महेंद्र ने राजनीति में भाग लेना शुरू कर दिया था. विधायकजी की शह पर पूनिया सहकारी बैंक का जिलाध्यक्ष बन गया था.

मृतक के बेटे हनुमंत सहारण की तहरीर पर पुलिस ने रामनिवास, महेंद्र पूनिया 4-5 अन्य के खिलाफ आईपीसी की धारा 302 अन्य धाराओं के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया. नामजद दोनों हत्यारोपी गिरफ्त में चुके थे. अदालत में पेश कर दोनों को 8 दिन के रिमांड पर ले लिया गया. रिमांड अवधि में दोनों आरोपियों के खुलासे के बाद पुलिस ने रेकी करने वाले रमेश सुथार, अशोक रैगर, अमनदीप जाट, सहकारी बैंक के संचालक मंडल सदस्य रामचंद्र भील, जो महेंद्र पूनिया का खास है को भी गिरफ्तार कर लिया. आरोप है कि रामचंद्र भील षडयंत्र रचने का सूत्रधार था.

शूटर मंजीत सिंह की निगरानी के बाद पुलिस ने बीकानेर जेल में बंद अजीत यादव को भी गिरफ्तार कर लिया. मंजीत सिंह ने खुलासा किया कि हमले के दिन उस के और रामनिवास के अलावा 2 और शूटर जोगेंद्र सिंह उर्फ धोलिया निवासी महेंद्रगढ़ मोहित उर्फ जैलदार निवासी लुहारू कोर्ट में हथियारों सहित घुसे थे. हरवीर की हत्या किए जाने का विरोध होने पर चारों हमलावर कोर्ट में गोलियां बरसाने को तत्पर थे. दोनों शार्पशूटरों को भी पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया. व्यापक पूछताछ अपेक्षित बरामदगी के बाद पुलिस ने सभी 10 आरोपियों को अदालत में पेश किया. अदालत ने उन्हें जेल भिजवा दिया.

इस हाईप्रोफाइल हत्याकांड में यह अफवाह भी उड़ी कि सुपारी की एक नहीं बल्कि 2 डील हुई थीं. दूसरी सुपारी हरवीर को गोली मारने वाले रामनिवास की हत्या की सुपारी अन्य शार्पशूटरों को दी गई थी. अगर रामनिवास की हत्या हो जाती तो यह मामला ब्लाइंड मर्डर बन कर रह जाता और षडयंत्रकर्ता बेनकाब नहीं होते. कहा जाता है कि रामनिवास को शक हो गया था और फरारी के कुछ देर बाद ही वह चालाकी से शूटरों से अलग हो गया था. हालांकि जांच अधिकारी ने इस तथ्य का खंडन किया है. पुलिस प्रशासन ने सुरक्षा की दृष्टि से मृतक हरवीर सहारण के परिवार को सशस्त्र गार्ड उपलब्ध करवा दिए थे.

अपेक्षाकृत अमनचैन शांत रहने वाले रावतसर क्षेत्र में रंजिशन हुआ यह हत्याकांड भविष्य में क्या गुल खिलाएगा, कहा नहीं जा सकता.

   —कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

    

Inspector ने फेसबुक के जरिए पकड़ा शातिर चोर

इंसपेक्टर (Inspector) अनिरुद्ध सिंह जानते थे कि लड़की के नाम पर बड़ेबड़े फिसल जाते हैं. जबकि आरिफ तो अभी लड़का है. उन्होंने लड़की के नाम से उस के फेसबुक पर प्यार का संदेश भेजा तो सचमुच आरिफ फिसल गया और उन की गिरफ्त में आ गया. बिहार के शहर पटना के मोहल्ला राजापुर के रहने वाले राकेश रंजन को जब भी कामधंधे से

फुरसत मिलती, वह इस का सदुपयोग देश के किसी न किसी पर्यटकस्थल पर जाने के रूप में करते. काफी दिनों से वह जम्मूकश्मीर जा कर वहां वैष्णो देवी के मंदिर का दर्शन करने की सोच रहे थे, इसलिए बरसात खत्म होते ही उन्हें मौका मिला तो उन्होंने अगस्त के अंतिम सप्ताह में जम्मूकश्मीर जाने की तैयारी कर के ट्रेन से आनेजाने का टिकट करा लिया. अपनी पूर्व तैयारी के हिसाब से राकेश रंजन जम्मूकश्मीर पहुंच गए और वैष्णो देवी मंदिर के दर्शन कर के आराम से घूमेफिरे. 15 सितंबर, 2013 को हिमगिरि एक्सप्रेस से उन का वापसी का टिकट था. जम्मू से चल कर हावड़ा तक जाने वाली हिमगिरि एक्सपे्रस जम्मू से रात पौने 11 बजे चलती थी.

राकेश रंजन खाना वगैरह खा कर समय से स्टेशन पर पहुंच गए और सीधे अपने कोच में जा कर पहले से आरक्षित बर्थ पर आराम से लेट गए. जम्मू से लखनऊ तक का उन का सफर आराम से बीता. अगले दिन 16 सितंबर की शाम 4 बजे के आसपास टे्रन लखनऊ पहुंची तो कुछ यात्री उतरे तो कुछ सवार हुए. सवार होने वाले यात्रियों में राकेश रंजन की बगल वाली खाली हुई सीट पर एक युवक आ कर बैठ गया. उस की ऊपर वाली बर्थ थी. वह बातचीत बड़ी शालीनता से कर रहा था, इसलिए जल्दी ही राकेश रंजन उस से हिलमिल गए. दोनों में बातचीत होने लगी.

युवक ने अपना नाम मोहम्मद आरिफ खां बताया. आगे बातचीत में उस ने बताया कि उस के पिता फिरोज खां सेना में सूबेदार मेजर हैं, जो जम्मूकश्मीर के उधमसिंहनगर में तैनात हैं. वह वाराणसी का रहने वाला है और दिल्ली में रह कर इंजीनियरिंग की तैयारी कर रहा है. आरिफ बातें बहुत अच्छे ढंग से कर रहा था, इसलिए राकेश रंजन उस से काफी देर तक बातें करते रहे. बातें करतेकरते ही कब 8 बज गए, उन्हें पता ही नहीं चला. हिमगिरि एक्सप्रेस वाराणसी रात के 9 बजे के आसपास पहुंचती थी. राकेश रंजन को रात में ही ट्रेन से उतरना था, इसलिए उन्होंने सोचा कि अगर वह जल्दी सो जाएंगे तो रात में जागने में उन्हें दिक्कत नहीं होगी.

इसीलिए वाराणसी आने से पहले ही उन्होंने खाना मंगा कर खा लिया और अपनी बर्थ पर लेट कर सोने की कोशिश करने लगे. आरिफ भी कुछ देर तक कोई पत्रिका पलटता रहा, उस के बाद लाइट बंद कर के लेट गया. रात 11 बजे के आसपास ट्रेन बक्सर पहुंच रही थी तो राकेश रंजन को पेशाब लगी. वह पेशाब कर के लौटे तो बर्थ पर लेटने से पहले एक बार अपना सामान चैक करने लगे. सारा सामान यथास्थान रखा था, लेकिन उन्हें लगा कि उन के सामान से उन का एक बैग गायब है. वह सीट के नीचे और अगलबगल बैग को तलाशने लगे, लेकिन बैग उन्हें कहीं दिखाई नहीं दिया. बैग कहीं दिखाई नहीं दिया तो उन्हें समझते देर नहीं लगी कि कोई उन का बैग उठा ले गया है.

राकेश रंजन ने यह सोच कर एसी बोगी बर्थ आरक्षित कराई थी कि रास्ते में उन्हें कोई दिक्कत न उठानी पड़े और सामान भी सुरक्षित रहे. क्योंकि एसी डिब्बों में फालतू लोगों का आनाजाना न के बराबर होता है. एसी कोच में वही यात्री चढ़ते हैं, जिन की बर्थ कनफर्म होती है. राकेश जहां स्वयं को सुरक्षित महसूस कर रहे थे, वहीं से उन का बैग चोरी हो गया था.

एसी डिब्बों में प्लेटफार्म का शोरगुल भी नहीं सुनाई देता, इसलिए राकेश रंजन अपनी बर्थ पर आराम से सोए रहे थे. ट्रेन मुगलसराय स्टेशन से कब छूटी थी, उन्हें यह भी पता नहीं चला था. मुगलसराय स्टेशन से गाड़ी के चलने के लगभग घंटे भर बाद राकेश रंजन को पेशाब लगा था. तब उन की आंख खुली थी. जितनी देर उन्होंने पेशाब करने में लगाया था, बस उतनी ही देर के लिए वह अपने सामान के पास से हटे थे. जाते समय उन्होंने अपना सामान नहीं देखा था, इसलिए वह दुविधा में फंसे थे कि उन का बैग पहले गायब हुआ था या बाद में.

उसी बैग में उन का सारा कीमती जरूरी सामान था, इसलिए वह परेशान हो उठे थे. कीमती सामान का मतलब, 3 बैंकों के डेबिट कार्ड और 5-6 हजार रुपए नकद के अलावा कुछ जरूरी कागजात भी थे. संकट के उस समय राकेश रंजन की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करें? बैग को कहां तलाशें, उस के बारे में किस से पूछें? उस समय रात के 11 बज रहे थे, डिब्बे के अन्य यात्री अपनीअपनी सीटों पर आराम से सो रहे थे. इसलिए वह बैग के बारे में किसी भी यात्री से पूछने में झिझक रहे थे. लेकिन बैग गायब होने से परेशान राकेश रंजन का मन नहीं माना और उन्होंने अपने कूपे के यात्रियों को जगा कर बैग के बारे में पूछा.

इस पूछताछ में उन्हें कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिला. सभी ने एक ही जवाब दिया, ‘मैं तो सो रहा था.’ आपस में बात चली तो लखनऊ से चढ़े मोहम्मद आरिफ खां पर सब का ध्यान गया. लोगों ने अंदाजा लगाया कि वह मुगलसराय में उतरा था. कहीं वही तो बैग ले कर नहीं उतर गया. उस समय संदेह व्यक्त करने के अलावा और कुछ नहीं किया जा सकता था, क्योंकि ट्रेन अपनी पूरी रफ्तार से चली जा रही थी. कूपे के यात्रियों ने राकेश रंजन को सलाह दी कि अगले स्टेशन पर उतर कर वह जीआरपी थाने में बैग के चोरी की रिपोर्ट दर्ज करा दें. ट्रेन का अगला स्टेशन बक्सर था.

लेकिन वहां ट्रेन केवल 2 मिनट के लिए रुकती थी. इतने कम समय में ट्रेन से उतर कर जीआरपी थाने तक जा कर रिपोर्ट दर्ज करा कर डिब्बे तक वापस आना संभव नहीं था. तब किसी सहयात्री ने सलाह दी कि वह अपने बैग के चोरी की रिपोर्ट पटना में उतर कर आराम से वहां के जीआरपी थाने में दर्ज कराएं, वहां उन के पास समय ही समय रहेगा, क्योंकि उन्हें वहीं उतरना है. केश रंजन को यह सुझाव ठीक लगा. इसलिए उन्होंने पटना पहुंच कर रिपोर्ट दर्ज कराने का निर्णय लिया. वह लेट तो गए, लेकिन अब उन्हें नींद कहां आ रही थी, करवट बदलते हुए वह पटना जंक्शन आने का इंतजार करने लगे. हिमगिरि एक्सपे्रस 16/17 सितंबर की रात डेढ़ बजे के आसपास पटना पहुंचती थी. लेकिन उस दिन ट्रेन कुछ लेट थी, इसलिए ढाई बजे के बाद पहुंची.

पटना प्लेटफार्म पर उतर कर राकेश रंजन सीधे थाना जीआरपी पहुंचे और थानाप्रभारी से मिल कर अपने बैग के चोरी की रिपोर्ट दर्ज करा दी. थानाप्रभारी ने उन से चोरी गए बैग के बारे में पूछताछ कर के उन्हें घर भेज दिया. राकेश रंजन की यह रिपोर्ट 17 सितंबर, 2013 की सुबह 3 बजे के आसपास भादंवि की धारा 379 के तहत पटना के थाना जीआरपी में दर्ज हुई थी. इस के बाद इस रिपोर्ट को जांच के लिए बक्सर के जीआरपी थाना पुलिस को भेज दिया गया, क्योंकि राकेश रंजन का बैग बक्सर सीमाक्षेत्र में चोरी हुआ था. 19 सितंबर को बक्सर के थाना जीआरपी के सबइंसपेक्टर शंकरराम को राकेश रंजन द्वारा दर्ज कराई गई रिपोर्ट जांच के लिए मिली तो उन्होंने तुरंत राकेश रंजन को फोन किया. पूछताछ में पता चला कि राकेश रंजन के चोरी गए डेबिट कार्ड से अब तक 90 हजार रुपए की खरीदारी हो चुकी थी.

सबइंसपेक्टर (Inspector) शंकरराम समझ गए कि चोर शातिर और चालाक ही नहीं, मंझा हुआ खिलाड़ी भी है. उसे पता है कि किस चीज का उपयोग कैसे हो सकता है. शंकरराम ने जांच आगे बढ़ाई तो पता चला कि चोरी के 24 घंटे के अंदर ही चोर ने डेबिट कार्ड से 90 हजार रुपए की खरीदारी कर ली थी. यह खरीदारी उत्तर प्रदेश के जिला चंदौली के शहर मुगलसराय के एक शोरूम से की गई थी. जांच के लिए सबइंसपेक्टर शंकरराम मुगलसराय स्थित उस शोरूम में पहुंचे और जब उन्होंने वहां पूछताछ की तो पता चला कि युवक ने उस डेबिट कार्ड से सैमसंग के 2 स्मार्ट मोबाइल फोन और कुछ कपड़े खरीदे थे.

खरीदारी के दौरान खरीदार को अपनी ईमेल आईडी, मोबाइल नंबर के साथ पता लिखाना जरूरी होता है, इसलिए शंकरराम को पता था कि चोर का पता, मोबाइल नंबर और ईमेल आर्डडी मिल ही जाएगी. सबइंसपेक्टर शंकरराम ने शोरूम के मैनेजर से मिल कर खरीदार का विवरण मांगा तो मैनेजर ने खरीदार द्वारा दी गई ईमेल आईडी, मोबाइल नंबर और पता उन्हें दे दिया. शोरूम से मिली जानकारी के अनुसार खरीदार वाराणसी के थाना कैंट के मोहल्ला खजुरी (फुलवरिया) का रहने वाला था.

सबइंसपेक्टर शंकरराम ने शोरूम से ही मैनेजर द्वारा दिए गए मोबाइल नंबर पर फोन किया तो पता चला फोन बंद है. इस का मतलब चोर ने मोबाइल नंबर गलत दिया था. अब उस के द्वारा दिए गए पते का सहारा था. सबइंसपेक्टर शंकरराम मुगलसराय से वाराणसी आ गए और चोर द्वारा दिए गए पते पर पहुंच कर उस के बारे में पता किया तो लोगों ने बताया कि इस नाम का कोई आदमी वहां नहीं रहता. इस का मतलब आरिफ ने पता भी गलत लिखाया था.

सबइंसपेक्टर शंकरराम ने खजुरी (फुलवरिया) इलाके में घूमघूम कर तमाम लोगों से आरिफ खां के बारे में पूछताछ की. लेकिन कोई भी उस के बारे में कोई ठोस जानकारी नहीं दे सका. जब आरिफ के बारे में वहां कोई जानकारी नहीं मिली तो शंकरराम निराश हो कर थाना कैंट पहुंचे और थानाप्रभारी इंसपेक्टर अनिरुद्ध कुमार सिंह से मिल कर उन्हें पूरी बात बता कर अनुरोध किया कि उस चोर को पकड़वाने में वह उन की मदद करें. पूरी बात सुनने के बाद इंसपेक्टर अनिरुद्ध सिंह ने राकेश रंजन का पता और मोबाइल नंबर नोट कर के बक्सर पुलिस को मदद का आश्वासन दे कर वापस भेज दिया. इस के बाद वह मामले की जांच में लग गए.

जांच आगे बढ़ाई तो उन्हें भी पता चला कि चोर ने मुगलसराय के एक शोरूम से सैमसंग के 2 स्मार्ट फोन और कपड़े खरीदे थे. उन्होंने शोरूम जा कर मैनेजर से खरीदार के बारे में पूछताछ की तो उस ने खरीदार का जो हुलिया बताया, वह राकेश रंजन द्वारा बताए आरिफ के हुलिए से बिलकुल मिलता था. अनिरुद्ध सिंह को पता था कि आरिफ ने जो पता दिया है, वह फरजी है, इसलिए वहां जाना बेकार है. उन्होंने खुद न जा कर अपने मुखबिरों को खजुरी इलाके में लगा दिया. इस के अलावा उन्होंने आरिफ द्वारा दी गई ईमेल आईडी के अनुसार उस के नाम से फेसबुक पर सर्च किया तो कैंट निवासी आरिफ का फेसबुक एकाउंट दिखाई दे गया.

उस में आरिफ का फोटो लगा था, इसलिए उन्होंने पहचान लिया कि यही वह आरिफ, जिस की उन्हें तलाश है. इस तरह उन्होंने असली आरिफ को खोज निकाला. दरअसल फेसबुक में बैकग्राउंड में वाराणसी के मानसिक चिकित्साल्य की फोटो लगी थी, इसी से पहचानने में उन्हें आसानी हो गई थी. इस के बाद आरिफ तक पहुंचने की उन्होंने एक अलग ही तरकीब सोची. उन्होंने एक लड़की का फोटो लगा कर जोया के नाम से फरजी प्रोफाइल बनाई और आरिफ को दोस्ती का पैगाम भेज दिया. आरिफ ने जोया के पैगाम को स्वीकार कर लिया तो उसे अपने जाल में फंसाने के लिए अनिरुद्ध सिंह उसे प्रेम भरे संदेश भेजने लगे. चैटिंग के दौरान उन्होंने उसे संदेश भेजा, ‘‘आरिफ, मुझे तुम से प्रेम हो गया है.’’

‘‘ऐसा ही कुछ मैं भी महसूस कर रहा हूं.’’ जवाब में आरिफ ने लिखा.

‘‘लेकिन आरिफ, मैं दिल्ली में रहती हूं. तुम कहां रहते हो?’’

‘‘मैं तो वाराणसी में रहता हूं. मैं यहां बीएचयू से इंजीनियरिंग कर रहा हूं. तुम दिल्ली में क्या करती हो? आरिफ ने अपने बारे में झूठा मैसेज भेज कर उस के बारे में पूछा.’

‘‘वाराणसी में तुम कहां रहते हो? मैं दिल्ली से फैशन डिजाइनिंग का कोर्स कर रही हूं.’’

‘‘वाराणसी में मैं हौस्टल में रहता हूं.’’

‘‘तुम दिल्ली आ सकते हो?’’

सोच तो रहा हूं. लेकिन कालेज से छुट्टी नहीं मिल रही है.’’ आरिफ ने जोया को फिर झूठा मैसेज भेजा.

‘‘छुट्टी तो मुझे भी नहीं मिल रही है. लेकिन मैं तुम से मिलना चाहती हूं, इसलिए किसी भी तरह छुट्टी ले लूंगी. क्योंकि अब तुम से मिले बिना रहा नहीं जा रहा है.’’

‘‘जोया, मुझे भी लगता है कि अब मेरी जिंदगी तुम्हारे बिना अधूरी है.’’

‘‘फिर भी मुझ से मिलने के लिए तुम्हारे पास समय नहीं है.’’

‘‘जोया कभीकभी ऐसी मजबूरियां आ जाती हैं कि आदमी चाह कर भी मन की नहीं कर पाता.’’

‘‘खैर, मैं तो अपने मन की करूंगी. क्योंकि मुझे तुम से मिलना है और वाराणसी घूमना है. क्या तुम मुझे वाराणसी घुमाओगे?’’

‘‘क्यों नहीं. तुम आओ तो मैं तुम्हें पूरी वाराणसी घुमाऊंगा.’’

‘‘यह मैं ने इसलिए पूछा, क्योंकि तुम ने कहा था न कि मुझे कालेज से छुट्टी नहीं मिलती.’’

‘‘जोया, तुम आओ तो सही, देखो मैं तुम्हारे लिए कैसे समय निकालता हूं.’’

चैटिंग के दौरान आरिफ ने जोया का मोबाइल नंबर भी मांगा था. लेकिन उसे नंबर कैसे दिया जाता, इसलिए नंबर देने से मना कर दिया गया. उसे संदेश भेजा गया, ‘‘आरिफ, मैं वाराणसी आऊंगी, तब खूब बातें होंगी. तभी नंबर भी दे दूंगी. पहले नंबर दे कर मैं बातें करने की उत्सुकता खत्म नहीं करना चाहती.’’

‘‘इस का मतलब आग दोनों ओर लगी है.’’

‘‘मैं आऊंगी, तब मिल कर तनमन की इस आग को बुझाएंगे.’’

आरिफ ने सपने में भी नहीं सोचा था कि जोया यहां तक पहुंच जाएगी. दरअसल अनिरुद्ध सिंह आरिफ को उत्तेजित कर के उसे अपने जाल में फंसाना चाहते थे. इसलिए उन्होंने अगला संदेश भेजा, ‘‘आरिफ, मैं तुम से मिलने के लिए बेचैन हूं.’’

‘‘तो वाराणसी आ जाओ. मैं भी तुम से मिलने के लिए बेचैन हूं.’’

‘‘आरिफ, मैं वाराणसी में 2-3 दिन रहना चाहती हूं.’’

इस संदेश पर आरिफ खुशी से फूला नहीं समाया. उस ने संदेश में लिखा, ‘‘अरे भाई, आओगी, तभी तो 2-3 दिन रहोगी.’’

‘‘सही बात तो यह है कि मैं ने अपना रिजर्वेशन करा लिया है. मैं 30 सितंबर को वाराणसी पहुंच जाऊंगी. बताओ, तुम कहां मिलोगे?’’

‘‘वाराणसी में मैं तुम से जेएचवी मौल में दोपहर 11 बजे मिलूंगा.’’

‘‘लेकिन मैं तुम्हें पहचानूंगी कैसे?’’

‘‘मेरी प्रोफाइल में जो फोटो लगा है, उस से तुम मुझे पहचान नहीं सकती?’’

‘‘उस से तो पहचान लूंगी.’’ अनिरुद्ध सिंह ने संदेश भेजा.

आरिफ भी जोया से मिलने के लिए आतुर था. इसलिए उसे 30 सितंबर का बेचैनी से इंतजार था. आखिर 30 सितंबर आ गया. जोया ने 11 बजे जेएचवी मौल में मिलने को कहा था, इसलिए आरिफ समय से पहले ही वहां पहुंच गया. अनिरुद्ध सिंह भी समय से पहले ही बिना वर्दी के अपने 2 सहयोगियों के साथ जीएचवी मौल पहुंच गए थे. आरिफ को देखते ही उन्होंने उसे पहचान लिया. इसीलिए जैसे ही वह गेट के अंदर घुसा, उन्होंने उसे दबोच लिया. पहले तो उस ने अनिरुद्ध सिंह और उन के साथियों को रौब में लेने की कोशिश की, लेकिन जब इंसपेक्टर अनिरुद्ध सिंह ने अपनी असलियत बता कर उस की भी सच्चाई बताई तो वह शांत हो गया. अनिरुद्ध सिंह उसे थाना कैंट ले आए.

थाने आ कर भी आरिफ पहले अपनी पहचान छिपाते हुए पुलिस को बरगलाने की कोशिश करता रहा, लेकिन जब इंसपेक्टर अनिरुद्ध सिंह ने उसे बताया कि जोया बन कर वही उस से चैटिंग कर रहे थे, तब वह काबू में आ गया. इस के बाद उस ने राकेश रंजन के बैग चुराने का अपना अपराध स्वीकार कर के अपनी पूरी कहानी उन्हें सुना दी. मोहम्मद आरिफ खां वाराणसी के खजुरी के रहने वाले फिरोज खां का बेटा था. सेना में सूबेदार मेजर फिरोज खां की ड्यूटी इस समय जम्मूकश्मीर के उधमसिंहनगर में है. उस की पढ़ाई कैंट के आर्मी पब्लिक स्कूल में शुरू हुई थी. वहां से हाईस्कूल पास करने के बाद उस ने मुगलसराय के एक इंटर कालेज में दाखिला लिया, जहां उस की दोस्ती आवारा लड़कों से हो गई. इस का नतीजा यह निकला कि वह इंटर में 3 बार फेल हुआ. इस के बाद उस ने पढ़ाई छोड़ दी.

कालेज के उन्हीं आवारा दोस्तों के साथ रह कर आरिफ छोटीमोटी चोरियां करने लगा. लेकिन ये चोरियां ऐसी थीं, शायद उन की रिपोर्टें नहीं लिखाई गईं. इसलिए पुलिस से उस का कभी सामना नहीं हुआ. 17 सितंबर को वह लखनऊ से हिमगिरि एक्सप्रेस पर चढ़ा तो बातोंबातों में राकेश रंजन से उस की दोस्ती हो गई. पहले उस का चोरी का कोई इरादा नहीं था. लेकिन खाना खा कर राकेश रंजन सो गए तो पत्रिका पलटते हुए उस की नजर राकेश के बैग पर पड़ी. उसी समय उस की नीयत खराब हो गई. तब उस ने तय कर लिया कि कैसे भी हो, उसे इस बैग पर हाथ साफ करना है.

आरिफ का टिकट वाराणसी तक ही था. लेकिन तब तक कूपे के लोग जाग रहे थे. इसलिए आरिफ का काम नहीं हो सका. तब उस ने सोचा कि वह मुगलसराय तक चला जाए, शायद तब तक लोग सो ही जाएं. मुगलसराय वाराणसी से ज्यादा दूर भी नहीं है. वहां से कभी भी वाराणसी आया जा सकता है. मुगलसराय तक सचमुच सब लोग सो गए. जैसे ही मुगलसराय में ट्रेन रुकी, आरिफ राकेश रंजन का बैग ले कर उतर गया. मुगलसराय से उस ने खरीदारी इसलिए की थी, जिस से पुलिस को लगे कि वह मुगलसराय का रहने वाला है. लेकिन सामान खरीदते समय उस ने भले ही पता गलत दिया था, लेकिन वाराणसी का दे कर गलती तो की ही. इस के अलावा उस ने इस से भी बड़ी गलती अपना सही ईमेल दे कर की.

आरिफ ने अपराध स्वीकार कर लिया तो अनिरुद्ध सिंह ने उस से राकेश रंजन का सामान बरामद कर के उस की गिरफ्तारी की सूचना सबइंसपेक्टर शंकरराम को दे दी. वह उसी दिन   वाराणसी आ गए और चीफ ज्युडीशियल मजिस्ट्रेट के सामने पेश कर के ट्रांजिट रिमांड पर बक्सर ले कर चले गए. कथा लिखे जाने तक आरिफ की जमानत नहीं हुई थी, वह बक्सर की जिला जेल में बंद था.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Jammu and kashmir Crime : फर्जी आर्म्स लाइसेंस और हथियार बेचने वाले गिरोह का हुआ पर्दाफाश

Jammu and Kashmir Crime : फर्जी शस्त्र लाइसेंस बनवाने वाला अनंत कोठारी, धर्मवीर और उस के साथी पुलिस की गिरफ्त में (दाहिने पेज पर) बनवाया गया फर्जी लाइसेंस राजस्थान के आतंकवाद निरोधक दस्तेएटीएसके एडीजी उमेश मिश्रा जयपुर स्थित अपने औफिस में बैठे थे, तभी उन्हें सूचना मिली कि राज्य में बड़े पैमाने पर अवैध हथियार खरीदनेबेचने और फर्जी आर्म्स लाइसेंस बनाने का कारोबार चल रहा है. यह गिरोह 10 साल पुराने लाइसेंस को नया करा कर पुलिस से भी सत्यापित करा लेता है. लेकिन संबंधित थाने में हथियारों को दर्ज नहीं कराया जाता.

ये लाइसेंस जम्मूकश्मीर (Jammu and Kashmir Crime) और नागालैंड से बनवाए जाते हैं. सैकड़ों लोग ऐसे भी हैं, जो लाइसेंस लेने के लिए फर्जी तरीके से सेना और बीएसएफ के जवान बन गए हैं. यह बात मई, 2017 महीने की है. सूचना महत्त्वपूर्ण थी. उमेश मिश्रा ने एटीएस के मातहत अधिकारियों को बुला कर विचारविमर्श किया और एटीएस के आईजी बीजू जौर्ज जोसफ एसपी विकास कुमार के निर्देशन और एडिशनल एसपी बरजंग सिंह के नेतृत्व में एक टीम गठित की, जिस में इंसपेक्टर श्याम सिंह रत्नू, मनीष शर्मा, राजेश दुरेजा, कामरान खान और प्रदीप सिंह को शामिल किया गया.

एटीएस की उदयपुर इकाई के इंसपेक्टर श्याम सिंह रत्नू लाइसेंस बनाने वाले गिरोह के बारे में सूचनाएं जुटाने लगे. उमेश मिश्रा ने इस औपरेशन का नाम रखा था– ‘जुबैदा.’ गोपनीय तरीके सेऔपरेशन जुबैदाकी शुरुआत कर दी गई. पुलिस टीमें जम्मू और पंजाब के अबोहर में भेजी गईं. पुलिस जांच में जुटी थी, तभी उदयपुर के एक आदमी ने एटीएस मुख्यालय को सूचना दी कि अजमेर के जुबेर ने लाइसेंस बनाने और हथियार मुहैया कराने के लिए उस से 12 लाख रुपए लिए हैं. जबकि हथियार और लाइसेंस संदिग्ध नजर रहे हैं.

उस बीच एटीएस की टीम को इसी जुबेर द्वारा मध्य प्रदेश के देवास शहर में भी हथियारों की खरीदफरोख्त की जानकारी मिली. एटीएस की टीम ने फर्जी लाइसेंस और अवैध हथियार करोबारियों को रंगेहाथ पकड़ने के लिए जुबेर का मोबाइल नंबर हासिल कर के फर्जी ग्राहक के माध्यम से अवैध हथियार और लाइसेंस दिलवाने का सौदा कराया. जुबेर ने इस के लिए सिरोही बुलाया. जुबेर के बुलाने पर पुलिस टीम सिरोही पहुंच गई. जहां जुबेर उन्हें मिला. उस ने 2 लाख रुपए का चैक और 30 हजार रुपए नकद ले कर 6 हथियार उन्हें सौंप दिए. इसी बीच टीम ने उसे पकड़ लिया. उसे जयपुर ले जा कर पूछताछ की गई तो उस ने बताया कि उस के अजमेर स्थित मकान पर बड़ी संख्या में फर्जी आर्म्स लाइसेंस और अवैध हथियार रखे हुए हैं.

जुबेर से मिली जानकारियों के आधार पर एटीएस की टीमों ने अबोहर के विशाल आहूजा और अजमेर के रहने वाले गणपत सिंह रावत को गिरफ्तार किया. अगले दिन एटीएस टीम ने जम्मू के रहने वाले राहुल ग्रोवर और पाली निवासी भारत सिंह को गिरफ्तार किया. पुलिस ने इन से करीब 700 आर्म्स लाइसेंस बरामद किए. राहुल ग्रोवर ने अवैध लाइसेंसों की बदौलत करोडों रुपए कमाए थे. जम्मू में उस का आलीशान फ्लैट और कई गाडि़यां थीं. इस के बाद एडीजी उमेश मिश्रा ने अजमेर के जिला कलेक्टर और एसपी को वहां के हथियार डीलर वली मोहम्मद का रिकौर्ड चैक करने, स्टौक की जानकारी लेने और प्रविष्टियों की जांच करने के लिए पत्र लिखा.

राजस्थान एटीएस ने जम्मूकश्मीर के होम  कमिश्नर को पत्र लिख कर गृह विभाग में सन 2001 के बाद तैनात अधिकारियों की सूची और उन की हैंडराइटिंग के नमूने मांगे. जम्मूकश्मीर के गृह विभाग ने सभी जिला कलेक्टरों से उन लोगों का पूरा ब्यौरा मुहैया कराने और तस्दीक कराने को कहा, जिन्होंने अपने हथियार लाइसेंस आल इंडिया लाइसेंस में परिवर्तित कराने के लिए अनुरोध पत्र दिया था. यह बात भी सामने आई कि दिल्ली पुलिस की स्पैशल सेल ने सन 2013 में जम्मूकश्मीर पुलिस को हथियार लाइसेंसों के फर्जीवाडे़ की आशंका जता कर चेताया था. दिल्ली पुलिस ने बताया था कि डोडा रामबन जिले में सुरक्षाबलों के जवानों के नाम पर फर्जी लाइसेंस बनवाए गए हैं

दूसरी ओर एटीएस ने 21 सितंबर को मध्य प्रदेश के देवास शहर में मालवा गन हाउस के मालिक जाफर को गिरफ्तार किया. जयपुर से गई टीम ने जाफर की गिरफ्तारी से पहले कई दिनों तक उस की दुकान का सारा रिकौर्ड खंगाला तो पता चला कि जम्मूकश्मीर से बने अवैध हथियार लाइसेंसों पर उस ने 50 से ज्यादा हथियार बेचे थेइस मामले में एटीएस जाफर के पिता प्यारे मोहम्मद की भूमिका की भी जांच कर रही है. उस से पूछताछ में पता चला कि जुबेर उस का रिश्तेदार है. जाफर ने फर्जी लाइसेंसों पर जुबेर को हथियार सप्लाई किए थे. जुबेर ने ये हथियार जम्मूकश्मीर से फर्जी लाइसेंस बनवाने वाले व्यापारियों, प्रौपर्टी कारोबारियों और बदमाशों को बेचे थे.

आगे की जांच में पता चला कि जम्मूकश्मीर (Jammu and Kashmir Crime) की तरह नागालैंड के दीमापुर से भी हथियारों के फर्जी लाइसेंस बनवाए गए हैंइस पर उदयपुर के एसपी राजेंद्र प्रसाद गोयल ने एएसपी सुधीर जोशी के नेतृत्व में एक टीम बनाई. जिस ने शराब कारोबारी डूंगरपुर निवासी विजय चौबीसा, शराब और होटल व्यवसाई बांसवाडा निवासी सुरेंद्र खत्री टैक्टर पार्ट्स व्यवसाई बांसवाड़ा निवासी हरसी खन्ना से 3 पिस्तौलें एवं 44 कारतूस बरामद किए. इन लोगों ने पुलिस को बताया था कि सीकर निवासी धर्मवीर सिंह शेखावत का बांसबाड़ा में रौयल्टी शराब का कारोबार था.

कारोबार के दौरान ही वे धर्मवीर के संपर्क में आए थे. धर्मवीर ने ही मोटी रकम ले कर उन्हें नागालैंड के दीमापुर से लाइसेंस बनवा कर दिए थे. डूंगरपुर के शराब कारोबारी विजय चौबीसा से पूछताछ में पता चला कि धर्मवीर सिंह ने कई अन्य लोगों से मोटी रकम ले कर नागालैंड से लाइसेंस बनवाए थेइस के बाद पुलिस ने बांसवाड़ा निवासी धर्मेंद्र तेली, बांसवाडा के ही राजेंद्र कुमार बसेर, सीकर निवासी चुन्नीलाल कलाल, जयपुर के मुहाना निवासी विक्रम सिंह शेखावत, सीकर के अमरजीत सिंह शेखावत सीकर के धर्मवीर सिंह शेखावत से अलगअलग पूछताछ की.

इन से 7 पिस्तौलें, 3 रिवाल्वर और 12 बोर की एक बंदूक मय लाइसेंस तथा बड़ी मात्रा में कारतूस बरामद की. पुलिस ने धर्मवीर सिंह शेखावत को गिरफ्तार कर लिया. उस ने पुलिस को बताया कि खुद का लाइसेंस सीकर के श्रीमाधोपुर तहसील के गांव पृथ्वीपुरा निवासी केसर सिंह के जरिए बनवाया था. जबकि दूसरे लोगों के लाइसेंस भंवरलाल ओझा के मार्फत बनवाए थेउदयपुर पुलिस ने भंवरलाल ओझा से पूछताछ की तो उस ने बताया कि वह सन 1977 से नागालैंड में रहता था. सन 2014 में जब वह नागालैंड के दीमापुर में ठेकेदारी करता था, तब वहां कलेक्टर औफिस में जाने के दौरान क्लर्क संजय पांडे और मौखिय अंकल और उन के एजेंट उत्तम छेत्री, मोहम्मद सिराज आदि से जानपहचान हो गई

वह इन्हीं लोगों के माध्यम से पैसे दे कर पता नागालैंड का बता कर संबंधित व्यक्ति का स्थाई या अस्थाई लाइसेंस बनवा कर दे देता था. लाइसेंस बनवाने के लिए वह दीमापुर कलेक्टरेट के बाबू एजेंट को 70-80 हजार रुपए देता था. जबकि लाइसेंस बनवाने वाले से 3-4 लाख रुपए लिए जाते थे. उस ने नागालैंड से सवा सौ से ज्यादा लाइसेंस बनवाए थे. पूछताछ में मिली जानकारियों के आधार पर उदयपुर से इंसपेक्टर शैतान सिंह और हनवंत सिंह की टीम ने जयपुर और सीकर जा कर हथियारों की दुकान पर छापे मारे और नागालैंड के बने लाइसेंसों पर हथियार खरीदने वाले लोगों की जांच कर सूची तैयार की

वहीं इंसपेक्टर चांदमल के नेतृत्व में एक टीम नागालैंड गई, जहां अवैध रूप से बनवाए गए लाइसेंसों के रिकौर्ड की जांच कीजांच में पता चला कि डूंगरपुर निवासी विजय चौबीसा, उदयपुर के खैरवाडा निवासी चुन्नीलाल कलाल उदयपुर के ऋषभदेव निवासी अनंत कुमार कोठारी के नाम से नागालैंड से कोई हथियार लाइसेंस जारी नहीं हुआ थापूछताछ में तीनों ने बताया कि नागालैंड में कभी नहीं रहे थे. इस का मतलब तीनों के नाम से जारी हथियार लाइसेंस पूरी तरह फर्जी थे. भंवरलाल ओझा और फर्जी हथियार लाइसेंस धारक अनंत कुमार कोठारी को गिरफ्तार कर लिया गया.

यह भी पता चला कि हथियार विक्रेता फर्म जयपुर में बड़ी चौपड़ स्थित शिकार गन स्टोर एवं कोलकाता में चौरंगी रोड नेहरू बाजार स्थित जे. विश्वास कंपनी ने भी मिलीभगत कर के इन फर्जी लाइसेंसों पर हथियार बेचेइन में जयपुर के शिकार गन स्टोर ने 309 लोगों, जयपुर में ही चांदपोल स्थित राजस्थान गन हाउस ने 41 लोगों सीकर के सीकर गन स्टोर ने 168 लोगों को नागालैंड के विभिन्न स्थानों से बने लाइसेंसों के आधार पर हथियार एवं कारतूस बेचे. पुलिस ने इन सभी के रिकौर्ड जब्त किए हैं. धर्मवीर ने अपने रिश्तेदार जयपुर में एक निजी बैंक के मैनेजर विक्रम सिंह शेखावत के खिलाफ पुलिस में प्रकरण दर्ज होने के बावजूद भंवरलाल ओझा के माध्यम से नागालैंड से उस का लाइसेंस बनवा दिया था

धर्मवीर सिंह और भंवरलाल ने कई लोगों के रिटेनर लाइसेंस भी बनवाए हैं. नागालैंड से लाइसेंस बनवाने वाले अधिकांश लोग शराब, मार्बल और प्रौपर्टी के कारोबार से जुड़े हुए हैं. इन में कई लोगों का आपराधिक रिकौर्ड भी है. इस बीच एक नया खेल हो गया. उदयपुर पुलिस द्वारा गिरफ्तार भंवरलाल ओझा को छुड़वाने के नाम पर उस के घर वालों से 4 लोगों ने 32 लाख रुपए ठग लिए. रुपए देने के कई दिनों बाद भी जब भंवरलाल नहीं छूटा तो उस के भाई इंदरलाल ओझा ने उदयपुर के थाना प्रतापनगर में रिपोर्ट दर्ज करा दी

इस के बाद पुलिस ने गुजरात के सूरत निवासी संपत, धरियावद निवासी राजकुमार आचार्य उदयपुर निवासी अनिल आचार्य को गिरफ्तार किया. इन से 20 लाख रुपए भी बरामद किए गए. इस मामले में एक आरोपी लोकेश आचार्य फरार हो गया. उस के पास से 12 लाख रुपए बताए जाते हैं. पुलिस उस की तलाश कर रही हैइन चारों ने इंदर से लिए 32 लाख रुपए आपस में बांट लिए थे. लोकेश मंत्रियों के नाम पर पहले भी ठगी कर चुका है. एक बार वह पकड़ा भी जा चुका है. इन चारों ने इंदर को झांसा दिया था कि उन के पुलिस के बड़े अफसरों से संबंध हैं. वे भंवरलाल का नाम लाइसेंस के मामले से निकलवा देंगे.

एटीएस ने जम्मू निवासी राहुल ग्रोवर के सहयोगी दीपक गुलाटी को भी गिरफ्तार किया था. राहुल के अधिकांश फर्जी लाइसेंस बनाने में दीपक की भूमिका थी. राहुल उसे प्रति लाइसेंस कमीशन देता था. जम्मूकश्मीर से फर्जी लाइसेंस बनवाने में एटीएस ने अजमेर के प्रौपर्टी व्यवसाई विजय कृष्ण सराधना को भी गिरफ्तार किया है. एटीएस ने जम्मूकश्मीर के फर्जी लाइसेंस बनवा कर हथियार खरीदने के मामले में श्रीगंगानगर के कपड़ा व्यवसाई नरेंद्र कुमार, डिस्ट्रीब्यूटर सुमित, राजसमंद के प्रौपर्टी व्यवसाई राजेश कोठारी और डूंगरपुर के मार्बल व्यापारी का बेटा हेमंद्र कलाल शामिल थे.

पुलिस ने इन से हथियार भी बरामद किए. हेमेंद्र कलाल के पास कई लग्जरी गाडि़यां भी मिलीं. इस में खास बात यह रही कि गिरोह ने हेमेंद्र का हथियार लाइसेंस तभी बनवा दिया था, जब वह नाबालिग था. एटीएस ने जम्मूकश्मीर (Jammu and Kashmir Crime) से फर्जी हथियार लाइसेंस बनवाने के मामले में उदयपुर के होटल संचालक अजमल खान को गिरफ्तार किया है. उस से एक पिस्टल बरामद की गई है. अजमल ने ढाई लाख रुपए में लाइसेंस बनवाया थाइस के बाद एटीएस ने 6 नवंबर को अजमेर के प्रौपर्टी व्यवसाई सांवरलाल गुर्जर, उदयपुर के ट्रैवल एजेंसी संचालक अब्दुल सलाम खान एवं राजसमंद के मार्बल व्यवसाई असलम मोहम्मद सिलावट को गिरफ्तार किया. इन तीनों ने भी जुबेर से 2-3 लाख रुपए में जम्मूकश्मीर से लाइसेंस बनवाए थे.

एटीएस की जांच में सिरोही के मुकेश मोदी और रोहित मोदी द्वारा भी इसी गिरोह से हथियार लाइसेंस बनवाने की बात सामने आई थी. एटीएस ने दोनों को नोटिस दे कर पूछताछ के लिए बुलाया, लेकिन उन्होंने हाईकोर्ट से अग्रिम जमानत ले ली. 8 नवंबर को एटीएस ने अहमदाबाद के एक अरबपति व्यवसाई अनस खान को भी इसी मामले में गिरफ्तार किया है. उस ने खुद को बीएसएफ का जवान बता कर फर्जी लाइसेंस बनवाया था. उस ने मध्य प्रदेश के देवास निवासी जफर और उस के पिता प्यारे मोहम्मद के मार्फत अजमेर निवासी जुबेर से 4 लाख रुपए में जम्मूकश्मीर के कुपवाड़ा से लाइसेंस बनवाया था.

उदयपुर के नामी बिल्डर और प्रौपर्टी व्यवसाई निर्मल नट्टा ने खुद को आर्मी में राइफलमैन बता कर लाइसेंस बनवाया था. उस के लाइसेंस पर निर्मल की सेना की वर्दी पहने फोटो भी लगी थी. एटीएस निर्मल को गिरफ्तार कर चुकी है. अजमेर के नामी ज्वैलर संजय शर्मा ने भी खुद को बीएसएफ का सिपाही बता कर फर्जी लाइसेंस बनवा कर उस के आधार पर रिवाल्वर खरीदी थी. उदयपुर के प्रौपर्टी व्यवसाई अरुण नागदा ने खुद को बीएसएफ का सिपाही और आर्मी पोस्टऔफिस का पता बता कर लाइसेंस बनवाया था. राजसमंद के व्यापारी दीपेश ने भी खुद को बीएसएफ का सिपाही बता कर जम्मूकश्मीर में तैनाती और एपीओ 56 के पते पर लाइसेंस बनवाया था

निंबाहेड़ा के लोकेश ने खुद को जम्मूकश्मीर में बीएसएफ पोस्ट पर तैनात सिपाही आर्मी डाकघर का पता बता कर लाइसेंस बनवाया था. पाली के मोस्टवांटेड हिस्ट्रीशीटर जब्बर सिंह ने खुद को बीएसएफ में हैडकांस्टेबल और आर्मी पोस्ट औफिस का बता कर लाइसेंस बनवा लिया थाखुद को बीएसएफ का जवान बता कर लाइसेंस बनवाने वाले इन लोगों ने 100 रुपए के स्टांप पेपर पर झूठे शपथपत्र पेश किए थे. इन्होंने लाइसेंस लेने की वजह खुद की सुरक्षा बताई थी. जांच में पता चला है कि जम्मूकश्मीर के 3 जिलों में राजस्थान के करीब 5 हजार लोगों के हथियार लाइसेंस सैनिकों के नाम से बनवाए गए थे. लाइसेंस बनवाने वालों ने खुद को सेना का जवान बताया था

एटीएस ने इन की रिपोर्ट बना कर दिल्ली सेना मुख्यालय को भेजी है. इस सूची के साथ यह जानकारी मांगी गई है कि ये लोग वास्तव में सेना में हैं या नहीं  और क्या कभी इन की जम्मूकश्मीर में तैनाती रही है. जम्मूकश्मीर में तैनात सैनिकों को यह विशेषाधिकार है कि वे सेना में रहते हुए वहां से लाइसेंस बनवा सकते हैं. गिरोह ने इसी बात का फायदा उठा कर राजस्थान के हजारों लोगों को वहां तैनात बता कर फर्जी लाइसेंस बनवा दिए हैंअधिकांश लाइसेंसों में आर्मी पोस्टऔफिस एपीओ 56 का पता दिया गया है. आर्मी पोस्टऔफिस की सुरक्षा कारणों से सिविल पुलिस जांच नहीं कर सकती.

जम्मूकश्मीर में 3 साल तक तैनात रहने वाले जवान रिटायर होने के बाद भी जम्मूकश्मीर से लाइसेंस बनवा सकते हैं. गिरोह ने जम्मू के जिला कलेक्टरों, गृहसचिव, एडिशनल गृहसचिव कमांडेंट की फर्जी मोहरें बनवा रखी थीं.

   —कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

काली दुनिया का कुख्यात Gangster

Gangster story : बदन सिंह बद्दो मूलरूप से पंजाब का रहने वाला है. उस के पिता चरण सिंह पंजाब के जालंधर से 1970 में मेरठ आए और यहां के एक मोहल्ला पंजाबीपुरा में बस गए. चरण सिंह एक ट्रक ड्राइवर थे. ट्रक चला कर उस आमदनी से किसी तरह अपने 7 बेटेबेटियों के बड़े परिवार को पाल रहे थे. बदन सिंह बद्दो सभी भाईबहनों में सब से छोटा था. 8वीं के बाद उस ने स्कूल जाना बंद कर दिया. कुछ बड़ा हुआ तो बाप के साथ ट्रक चलाने लगा. एक शहर से दूसरे शहर माल ढुलाई के दौरान उस का वास्ता पहले कुछ छोटेमोटे अपराधियों से और फिर शराब माफियाओं से पड़ा. उस ने कई बार पैसे ले कर शराब की खेप एक जगह से दूसरी जगह पहुंचाई.

धीरेधीरे पश्चिमी यूपी के बौर्डर के इलाकों में उस ने बड़े पैमाने पर शराब की तस्करी शुरू कर दी. फिर स्मगलिंग के बड़े धंधेबाजों से उस की दोस्ती हो गई. वह स्मगलिंग का सामान बौर्डर के आरपार करने लगा. हरियाणा और दिल्ली बौर्डर पर तस्करी से उस ने खूब पैसा कमाया. इस के बाद तो वह पूरी तरह अपराध के कारोबार में उतर गया और उस की दिन की कमाई लाखों में होने लगी. दिखने के लिए बद्दो खुद को ट्रांसपोर्ट के बिजनैस से जुड़ा दिखाता रहा, मगर उस का धंधा काला था.

अपराध की राह पर बड़ी तेजी से आगे बढ़ते बद्दो की मुलाकात जब पश्चिमी उत्तर प्रदेश के 2 बड़े बदमाश सुशील मूंछ और भूपेंद्र बाफर से हुई तो इन दोनों के साथ उस का मन लग गया. इन के साथ ने बद्दो को निडर बनाया. बद्दो ने कई गुर्गे पाल लिए जो उस के इशारे पर सुपारी ले कर हत्या और अपहरण का धंधा चलाने लगे. सुशील मूंछ और बद्दो के गठजोड़ ने जमीनों पर अवैध कब्जे का धंधा भी शुरू कर दिया. सरकारी जमीनों पर अवैध कब्जे कर वहां दुकानें बना कर करोड़ों में खरीदनेबेचने के इस धंधे में सरकारी सिस्टम में बैठी काली भेड़ें भी शामिल थीं, जो अपना हिस्सा ले कर किसी भी फाइल को आगे बढ़ा देती थीं.

बदन सिंह बद्दो और सुशील मूंछ की दोस्ती जब बहुत गहरी हुई तो भूपेंद्र बाफर और सुशील मूंछ में दूरियां बढ़ गईं और एक समय वह आया जब बाफर सुशील मूंछ का दुश्मन हो गया. तब मूंछ और बद्दो एकदूसरे का सहारा बन गए. सुशील मूंछ का बड़ा गैंग था. विदेश तक उस के कारनामों की गूंज थी. जरायम की दुनिया के इन 2 बड़े कुख्यातों का याराना पुलिस फाइल और अपराध की काली दुनिया में बड़ी चर्चा में रहता था. दोस्ती भी अजीबोगरीब थी. हैरतअंगेज था कि जब एक किसी अपराध में गिरफ्तार हो कर जेल जाता तो दूसरा बाहर रहता था और धंधा संभालता था. 3 दशकों तक ये दोनों पुलिस से आंखमिचौली खेलते रहे. मूंछ जब 3 साल जेल में बंद रहा तो उस दौरान बद्दो जेल से बाहर था. मूंछ का सारा काम बद्दो संभालता था.

वहीं 2017 में जब बद्दो को उम्रकैद की सजा हुई तो मूंछ बाहर था और बद्दो की पूरी मदद कर रहा था. 2019 में जब बद्दो पुलिस को चकमा दे कर कस्टडी से फरार हुआ तो दूसरे ही दिन सुशील मूंछ ने सरेंडर कर दिया और जेल चला गया. पुलिस कभी भी इन दोनों की साजिश को समझ नहीं पाई. कहते हैं कि बद्दो को कस्टडी से फरार करवाने की सारी प्लानिंग सुशील मूंछ ने की. इस के लिए पुलिस और कुछ सफेदपोशों को बड़ा पैसा खिलाया गया. लेकिन बद्दो कहां है यह राज आज तक पुलिस सुशील मूंछ से नहीं उगलवा पाई. कहा जाता है कि वह दुनिया के किसी कोने में बैठ कर हथियारों का धंधा करता है.

पर्सनैलिटी में झलकता रईसी अंदाज

बदन सिंह बद्दो सिर्फ 8वीं पास था, लेकिन उस में बात करने की सलाहियत ऐसी थी कि लगता वह दर्शन शास्त्र का कोई बड़ा गहन जानकार हो. बातबात में वह शायरी और महापुरुषों के वक्तव्यों को कोट करता था. एक पार्टी के दौरान जब एक रिपोर्टर ने उस से पूछ लिया कि जरायम की दुनिया से कैसे जुड़ गए तो विलियम शेक्सपियर को कोट करते हुए बद्दो ने कहा, ‘ये दुनिया एक रंगमंच है और हम सब इस मंच के कलाकार.’ पश्चिमी उत्तर प्रदेश का कुख्यात गैंगस्टर बदन सिंह बद्दो अब खुल कर लग्जरी लाइफ जीने लगा था. बद्दो का रहनसहन देख कर कोई भी उस के रईसी शौक का अंदाजा आसानी से लगा सकता है. लूई वीटान जैसे महंगे ब्रांड के जूते और कपड़े पहनना बदन सिंह बद्दो को अन्य अपराधियों से अलग बनाता है. वह आंखों पर लाखों रुपए मूल्य के विदेशी चश्मे लगाता है. हाथों में राडो और रोलैक्स की घडि़यां पहनता है.

बदन सिंह बद्दो महंगे विदेशी हथियार रखने का भी शौकीन है. उस के पास विदेशी नस्ल की बिल्लियां और कुत्ते थे, जिन के साथ वह अपनी फोटो फेसबुक पर भी शेयर करता था. इन तसवीरों को देख कर कोई कह नहीं सकता कि मासूम जानवरों को गोद में खिलाने वाले इस हंसमुख चेहरे के पीछे एक खूंखार गैंगस्टर छिपा हुआ है. बुलेटप्रूफ कारों का लंबा जत्था उस के साथ चलता था. उस के महलनुमा कोठी में सीसीटीवी कैमरे समेत आधुनिक सुरक्षा तंत्र का जाल बिछा है. ब्रांडेड कपड़े और जूते पहन कर जब वह किसी फिल्मी हस्ती की तरह विदेशी हथियारों से लैस बौडीगार्ड्स और बाउंसर्स की फौज के साथ घर से निकलता तो आसपास देखने वालों की भीड़ लग जाती थी. वह हमेशा बुलेटप्रूफ बीएमडब्ल्यू या मर्सिडीज कार से ही चलता था. उस की शानोशौकत भरी जिंदगी देख कर कोई यकीन नहीं करता था कि वह एक हार्डकोर क्रिमिनल है.

पहली हत्या और फिर हत्याओं का सिलसिला

बदन सिंह बद्दो की हिस्ट्रीशीट के मुताबिक, उस पर पहला आपराधिक मामला साल 1988 में दर्ज हुआ था, जब उस ने एक जमीन विवाद में मेरठ के गुदरी बाजार कोतवाली इलाके में राजकुमार नाम के व्यक्ति की दिनदहाड़े हत्या कर दी थी. इस हत्या के बाद उस का नाम मेरठ से निकल कर हापुड़, गाजियाबाद और बागपत तक पहुंच गया. बदमाशों के बीच चर्चा शुरू हो गई कि बदन Gangster story  सिंह नाम का नया गैंगस्टर आ गया है, जिसे ‘न’ सुनना पसंद नहीं है. बद्दो को इस अपराध में पुलिस ने एक राइफल और 15 जिंदा कारतूस के साथ गिरफ्तार किया था. वह कुछ समय तक जेल में रहा, फिर जमानत पर बाहर आ गया. इस के बाद तो उस की हिम्मत और बढ़ गई.

1994 में बदन सिंह बद्दो ने प्रकाश नाम के एक युवक की गोली मार कर हत्या कर दी. साल 1996 में बदन सिंह ने वकील राजेंद्र पाल की हत्या की. इस के बाद तो जैसे हत्याओं का सिलसिला ही शुरू हो गया. वह सुपारी ले कर हत्याएं करवाने का धंधा भी करने लगा. बद्दो के बारे में कहा जाता है कि उस का गुस्सा तभी शांत होता था, जब वह अपने दुश्मन से बदला ले लेता था. कहते हैं कि उसे टोकाटाकी कतई बरदाश्त नहीं है. वकील राजेंद्र पाल की हत्या ने बद्दो को खूब मशहूर किया.

दरअसल, वकील राजेंद्र पाल भी कुछ कम दबंग नहीं था. एक पार्टी में बदन सिंह बद्दो ने किसी बात से चिढ़ कर वकील राजेंद्र पाल के पारिवारिक मित्र की पत्नी के बारे में अनुचित टिप्पणी कर दी थी, जिस से नाराज राजेंद्र पाल ने उसे सरेआम थप्पड़ जड़ दिया. बस फिर क्या था, राजेंद्र को मौत के घाट उतार कर बद्दो ने बदला पूरा किया और फरार हो गया. पुलिस ने केस दर्ज किया और जांच शुरू की. यह केस कई साल चलता रहा. इस बीच बद्दो ने जमानत करवा ली और अपने आपराधिक कारनामे बदस्तूर चलाता रहा.

उस के क्राइम का ग्राफ दिनबदिन बढ़ता ही चला गया.

2011 में जहां उस ने मेरठ के हस्तिनापुर क्षेत्र के जिला पंचायत सदस्य संजय गुर्जर की गोली मार कर हत्या की, वहीं साल 2012 में उस ने केबल नेटवर्क के एक संचालक पवित्र मैत्रेय की हत्या कर दी. इन हत्याओं के अलावा बदन सिंह के खिलाफ दिल्ली और पंजाब में किडनैपिंग, जमीन कब्जाने के कई केस दर्ज हुए. मेरठ जिले के प्रतिष्ठित व्यवसायी राजेश दीवान से 2 करोड़ रुपए की रंगदारी मांगने और धमकी देने के मामले में भी बद्दो के खिलाफ परतापुर और लालकुर्ती थाने में मुकदमे दर्ज हुए. इस मामले में चार्जशीट भी दाखिल हो चुकी है.

सफेदपोश नेताओं और अधिकारियों का खास उत्तर प्रदेश समेत कई राज्यों में उस पर हत्या, वसूली, लूट, डकैती के 40 से ज्यादा मामले दर्ज हैं. सुपारी किंग के नाम से मशहूर हो चुके बदन सिंह बद्दो ने सुपारी ले कर कई हत्याएं करवाईं. उस से यह सेवा लेने वाले कई सफेदपोश नेता भी हैं, जिन्होंने बद्दो के जरिए अपने राजनीतिक प्रतिद्वंदियों का सफाया करवाया. बदले में बद्दो को मोटी रकम मिली. राजेंद्र पाल हत्या के मामले में 21 साल बाद वर्ष 2017 में बद्दो को उम्रकैद की सजा सुनाई गई और उसे गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया. बदन सिंह बद्दो की दोस्ती के ख्वाहिशमंद सिर्फ अपराध की दुनिया के लोग ही नहीं थे, बल्कि बड़ेबड़े कारोबारी, सफेदपोश नेता और पुलिस अधिकारी भी उस से अच्छे रिश्ते बना कर रखते थे. बद्दो भी इन तमाम लोगों का खास खयाल रखता था. खासतौर से पुलिस के साथ तो उस का दोस्ताना साफ दिखाई देता था. इस की एक बानगी देखिए.

2012 में बद्दो को पुलिस ने धमकी देने के एक मामले में गिरफ्तार किया. उसे लालकुर्ती थाने ले जाया गया. बद्दो जैसे ही थाने पहुंचा, थानेदार उछल कर अपनी कुरसी से खड़ा हो गया. थानेदार के मुंह से एकाएक निकला, ‘अरे बद्दो तुम यहां कैसे?’ बद्दो ने उसे देखा और मुसकरा कर सामने पड़ी कुरसी पर फैल कर बैठ गया. उस को थाने ले कर आने वाले एसआई और सिपाही इस बदली सिचुएशन से सकपका गए. बद्दो अभी थाने में बैठा ही था कि एसएसपी समेत कई बड़े कारोबारी थाने पहुंच गए. अब एफआईआर हुई थी तो पुलिस को काररवाई तो दिखानी थी.

अगले दिन जब बद्दो को कचहरी ले जाया गया तो शहर के सारे बड़े कारोबारी उस के पीछे चल रहे थे. साल 2000 के बाद से बदन सिंह बद्दो नेताओं को मोटी फंडिंग करने वाला बन गया था. यही कारण था कि उस के धंधों पर हाथ डालने से पुलिस अधिकारी पीछे हटने लगे.

वकील हत्याकांड में हुई उम्रकैद की सजा

21 साल बाद 31 अक्तूबर, 2017 को वकील राजेंद्र पाल हत्याकांड में गौतमबुद्धनगर के जिला न्यायालय ने 9 गवाहों की गवाही के बाद बदन सिंह बद्दो को उम्रकैद की सजा सुनाई. उस दिन बद्दो कोर्ट में मौजूद था. सजा का ऐलान होते ही वह रो पड़ा. इस से पहले 13 अक्तूबर को बदन सिंह बद्दो ने फेसबुक पर एक पोस्ट डाली थी. उस में लिखा था, ‘जब गिलाशिकवा अपनों से हो तो खामोशी ही भली, अब हर बात पर जंग हो यह जरूरी तो नहीं.’ उस को जानने वाले कहते हैं कि इस मामले में उसे सजा का एहसास हो गया था. कोर्टरूम में सजा सुनाए जाने के तुरंत बाद बद्दो को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया.

बदन सिंह बद्दो 2 साल जेल में रहा. जेल के अंदर से भी उस के काले कारनामे बदस्तूर चलते रहे, जिन्हें बाहर उस का खास दोस्त सुशील मूंछ संभालता रहा. 28 मार्च, 2019 का दिन था जब बद्दो को फतेहगढ़ जेल से एक पुराने मामले में पेशी के लिए गाजियाबाद कोर्ट ले जाना था. पुलिस का दस्ता बख्तरबंद गाड़ी में बद्दो को ले कर गाजियाबाद पहुंचा और कोर्ट में उस की पेशी हुई. वापसी में बद्दो ने पुलिसकर्मियों को कुछ देर के लिए मेरठ चलने के लिए राजी कर लिया. एवज में बड़ी रकम का लालच दिया गया.

5-5 सौ रुपए के लिए कानून को धता बताने वाले पुलिसकर्मी इतने बड़े औफर को भला कैसे ठुकरा देते. बद्दो के लिए पुलिस की गाड़ी मेरठ की ओर मुड़ गई. वहां एक शानदार थ्री स्टार मुकुट महल होटल में बद्दो ने सभी पुलिसकर्मियों को छक कर उन का मनपसंद खाना खिलवाया और जम कर शराब पिलवाई. इतनी शराब कि सारे होश खो बैठे. उन्हें होटल में बेसुध छोड़ कर बदन सिंह बद्दो ऐसा फरार हुआ कि फिर आज तक किसी को नजर नहीं आया. कहते हैं बद्दो को फरार करवाने की पूरी प्लानिंग उस के दोस्त सुशील मूंछ ने की और जेल से ले कर होटल तक सब को मैनेज किया. पूरा प्लान जेल के अंदर बद्दो तक पहुंचाया गया. इस प्लानिंग में होटल का मालिक और स्टाफ भी शामिल था.

होटल के बाहर पार्किंग में पहले से ही एक लग्जरी गाड़ी मय ड्राइवर खड़ी थी. पुलिसकर्मियों को दारू के नशे में धुत कर के बद्दो कब उस गाड़ी में बैठ कर मेरठ की सीमा लांघता हुआ विदेश पहुंच गया, कोई नहीं जानता. मजे की बात तो यह है कि जिस दिन यह घटना घटी उस दिन मेरठ में हाई अलर्ट था, क्योंकि 28 मार्च को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी घटनास्थल से लगभग 18 किलोमीटर दूर टोल प्लाजा के पास एक चुनावी रैली को संबोधित कर रहे थे. पुलिस डिपार्टमेंट और इंटेलिजेंस के लिए इस से शर्मनाक और क्या होगा.

देश भर की पुलिस इस खूंखार अपराधी को पकड़ने के लिए बीते 3 सालों से हाथपैर मार रही है, मगर उस की छाया तक कहीं नहीं मिल रही है. उस को पकड़ने के लिए इंटरपोल तक से मदद मांगी गई है. उस के सिर पर जिंदा या मुर्दा मिलने पर ढाई लाख रुपए का ईनाम घोषित है. मगर बद्दो किस बिल में जा छिपा है, कोई नहीं जानता. पुलिस व एजेंसियां मानती हैं कि वह अपने बेटे के साथ विदेश में है, लेकिन अभी  तक कोई भी सुराग पुलिस के हाथ नहीं लग पाया है. बदन सिंह बद्दो के पुलिस कस्टडी से फरार होने के बाद मेरठ पुलिस ने उस के बेटे सिकंदर पर 25 हजार रुपए का ईनाम घोषित कर दिया और कुछ दिनों बाद उसे अरेस्ट कर लिया.

लेकिन बदन सिंह की तलाकशुदा पत्नी ने जब आस्ट्रेलिया से मेरठ के एसएसपी को फोन कर के कहा कि उस का बेटा बेकुसूर है और बदन सिंह बद्दो के गलत कामों की सजा उसे न दी जाए तो उस के कुछ ही दिन बाद सिकंदर को छोड़ दिया गया. इस के बाद तो सिकंदर भी ऐसा गायब हुआ जैसे गधे के सिर से सींग. अब बापबेटे दोनों की तलाश में पुलिस लकीर पीट रही है. बद्दो की फरारी मामले में 2 दरोगा, 3 सिपाही और 2 ड्राइवरों को तुरंत निलंबित कर दिया गया था. फर्रुखाबाद जिले के 6 पुलिसकर्मियों सहित कुल 21 व्यक्तियों को आरोपी बनाया गया.

इन में मेरठ के कई नामचीन व्यापारियों सहित होटल मुकुट महल के मालिक मुकेश गुप्ता और करण पब्लिक स्कूल के संचालक भानु प्रताप भी जेल भेज दिए गए. बद्दो और उस के बेटे के खिलाफ रेड कौर्नर नोटिस जारी हो चुका है. इंटरपोल से भी मदद मांगी गई, मगर कोई फायदा नहीं हुआ. इंटरपोल ने यह कहते हुए इंकार कर दिया कि बद्दो के पासपोर्ट पर कोई एंट्री ही नहीं है. कहते हैं कि बद्दो की 2 प्रेमिकाएं थीं. एक मेरठ के साकेत में ब्यूटीपार्लर चलाती थी और दूसरी गुरुग्राम में रहने वाली एक महिला थी. पुलिस कहती है कि बद्दो जब होटल से भागा तो सीधे मेरठ वाली प्रेमिका के घर पहुंचा.

आज तक ढूंढ नहीं सकी पुलिस

बद्दो को शहर की सीमा से निकलने में परेशानी न हो, इस के लिए उस ने बद्दो का लुक बदल दिया, जबकि गुरुग्राम वाली प्रेमिका ने देश छोड़ कर भागने में बद्दो की मदद की. मेरठ से अपनी वेशभूषा बदल कर निकले बद्दो को उस की गुड़गांव वाली प्रेमिका दिल्ली मेट्रो स्टेशन पर मिली और उस के बाद बद्दो उसी के साथ उस की कार में गया. बद्दो की यह प्रेमिका अपने फ्लैट पर ताला लगा कर बीते 2 साल से गायब है. कहते हैं गुड़गांव वाली प्रेमिका बद्दो से नाराज भी थी, क्योंकि बद्दो के बेटे को इसी प्रेमिका ने अपने बेटे की तरह पाला था और बद्दो ने उस से वादा किया था कि वह उसे अपने साथ विदेश ले जाएगा. मगर फरार होने के बाद बद्दो ने पलट कर अपनी प्रेमिकाओं की ओर कभी नहीं देखा.

माना जाता है कि बदन सिंह बद्दो नीदरलैंड और मलेशिया में अपना ठिकाना बना चुका है और वहीं से वह अवैध हथियारों का धंधा करता है. उस के धंधे में उस का बेटा Gangster story  सिकंदर अब उस का पार्टनर बन चुका है. जब उत्तर प्रदेश एसटीएफ, क्राइम ब्रांच और दूसरे राज्यों की स्पैशल पुलिस भी बदन सिंह बद्दो का कुछ पता नहीं लगा पाई तो खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे की तर्ज पर बीते साल योगी सरकार ने इस गैंगस्टर की संपत्तियों को खंगालना और उन्हें जब्त करने की काररवाई शुरू करवाई. 20 जनवरी, 2021 को मेरठ नगर निगम के अधिकारी मनोज सिंह 2 बुलडोजर और 20 मजदूर ले कर पंजाबीपुरा पहुंचे और बद्दो की आलीशान कोठी को जमींदोज कर दिया गया. गैंगस्टर बदन सिंह बद्दो के गुर्गे अजय सहगल की संपत्ति पर भी बाबा का बुलडोजर चला.

अजय सहगल को गैंगस्टर बदन सिंह बद्दो का राइट हैंड माना जाता है. उस की 7 अवैध दुकानों को तोड़ दिया गया. ये दुकानें 1500 वर्गमीटर के सरकारी जमीन पर बने पार्क पर अवैध रूप से कब्जा कर के बनाई गई थीं और इन का बैनामा भी करा लिया गया था.

इस से पहले नवंबर, 2020 में बद्दो की कुछ अन्य संपत्तियां कुर्क की गई थीं. मेरठ प्रशासन को बद्दो के पास दरजनों लग्जरी गाडि़यां होने का पता था, मगर उन में से वह एक भी जब्त नहीं कर पाई, क्योंकि बद्दो ने तमाम गाडि़यां दूसरों के नाम से खरीदी थीं.

 

चौहरा हत्याकांड : हनीमून के बाद दबेपांव आई मौत

पत्नी व 3 बच्चों के होते हुए भी सर्राफा कारोबारी मुकेश वर्मा ने रिश्ते की साली स्वाति सोनी के साथ मंदिर में शादी कर ली थी. उस के साथ गोवा में हनीमून के बाद वह घर लौटा तो दबेपांव मौत ने भी घर में दस्तक दे दी. नतीजतन घर के 4 लोग मौत के मुंह में समा गए. आखिर कैसे हुआ यह सब? पढ़ें, यह दिलचस्प कहानी.

प्लान के मुताबिक 10 नवंबर, 2024 की सुबह 10 बजे मुकेश अपनी स्कूटी से घर से निकला. इस के बाद वह अपनी जानपहचान वाले 3 मैडिकल स्टोर्स पर गया और वहां से नींद वाली 15 गोलियां खरीदीं. इन गोलियों को पीस कर उस ने 4 पुडिय़ा बना ली और अपने घर वापस लौट आया. इस के बाद शाम तक वह बीवीबच्चों से खूब हंसता, बोलता, बतियाता रहा. उन्हें मुकेश के प्लान की भनक तक नहीं लगी.

रात 10 बजे मुकेश ने और्डर कर 4 पिज्जा मंगवा लिए. बड़ी चालाकी से उस ने पिज्जा में पिसी हुई नींद की गोलियों का पाउडर मिला दिया. पत्नी व बच्चे उस समय टीवी पर कोई मूवी देख रहे थे. रात 12 बजे के आसपास मूवी खत्म हुई तो सभी ने पिज्जा खाया. बच्चों को पिज्जा का स्वाद कुछ अजीब लगा तो उन्होंने आधाअधूरा पिज्जा ही खाया और बचा हुआ फ्रिज में रख दिया. पिज्जा खाने के बाद पत्नी रेखा, बेटी भव्या और बेटा अभीष्ट ग्राउंड फ्लोर वाले कमरे मेें पड़े पलंग पर जा कर लेट गए, जबकि दूसरी बेटी काव्या फस्र्ट फ्लोर वाले कमरे में जा कर पलंग पर लेट गई. नींद की गोलियों ने कुछ देर बाद ही असर दिखाना शुरू कर दिया. फिर एक के बाद एक सभी गहरी नींद के आगोश में समा गए.

लेकिन मुकेश की आंखों से नींद कोसों दूर थी. रात 2 बजे मुकेश ने अपनी माशूका स्वाति से मोबाइल फोन पर बात की और सारी बात बताई. उस ने स्वाति से फोन पर संपर्क बनाए रखने को भी कहा. स्वाति सुबह तक उस के संपर्क में रही. इधर पत्नी व बच्चे जब गहरी नींद में सो गए तो सुबह लगभग 4 बजे मुकेश ग्राउंड फ्लोर वाले कमरे में पहुंचा. उस ने पलंग पर सो रही पत्नी रेखा, बेटी भव्या व बेटे अभीष्ट पर एक नजर डाली. फिर रस्सी का टुकड़ा, जिसे उस ने पहले से ही कमरे में सुरक्षित कर लिया था, पत्नी रेेखा (44 वर्ष) की गरदन में लपेटा और कसने लगा. नींद की आगोश में समाई रेखा चीख भी नहीं पाई और उस ने दम तोड़ दिया.

रेखा के बाद उस ने बेटी भव्या (19 वर्ष) और बेटा अभीष्ट (13 वर्ष) को भी रस्सी से गला कस कर मार डाला. इस के बाद वह फस्र्ट फ्लोर पर कमरे में सो रही छोटी बेटी काव्या (17 वर्ष) के पास पहुंचा और उस का भी रस्सी से गला कस दिया. पत्नी व बेटियों का गला कसने के बाद मुकेश ने बेटे अभीष्ट को भी नहीं बख्शा और उसे भी मौत की नींद सुला दिया. पत्नी व बच्चों की हत्या करने के बाद मुकेश ने प्रेमिका स्वाति से फोन पर बात की और उसे बताया कि उस ने पत्नी व बच्चों की हत्या कर दी है. वह सुबह इटावा रेलवे स्टेशन पर आ कर मिले और फोन पर संपर्क में रहे.

4 हत्याएं करने के बाद नारमल क्यों रहा मुकेश

मुकेश 3 घंटे तक लाशों के बीच बैठा रहा. इस बीच उस ने बच्चों के गले में पड़ी  सोने की चेन, पत्नी के गले में पड़ा मंगलसूत्र, चेन व दोनों हाथों से सोने कीे अंगूठियां निकाल कर सुरक्षित कर लीं. तिजोरी का लौकर खोल कर उस में रखी ज्वैलरी भी सुरक्षित कर ली. सुबह 8 बजे मुकेश ने दोनों कमरों का ताला बंद किया और कीमती सामान का थैला ले कर प्लान के मुताबिक रेलवे स्टेशन पहुंच गया. अपने किए गए प्रौमिस के मुताबिक स्वाति रेलवे स्टेशन के बाहर मौजूद थी. चंद मिनट पहले ही वह कानपुर से इटावा ट्रेन द्वारा आई थी.

मुकेश ने कुछ मिनट स्वाति से बात की, फिर कीमती सामान वाला थैला उसे थमा दिया. इस के बाद दोनों बस स्टाप आए. मुकेश ने स्वाति को कानपुर जाने वाली बस में बैठा दिया. बस में बैठते ही स्वाति ने अपना मोबाइल फोन स्विच औफ कर लिया. पुश्तैनी मकान में रहने वाले मुकेश के भाइयों ने सुबह मुकेश के दोनों कमरों में ताला लगा देखा तो था, लेकिन उन्होंने ज्यादा गौर नहीं किया. उन्होंने सोचा कि मुकेश परिवार के साथ कहीं घूमनेफिरने गया होगा, एकदो दिन में वापस आ जाएगा.

मुकेश ने पुलिस से बचने का प्लान पहले से ही बना लिया था. उसी प्लान के तहत वह सिविल लाइंस कोतवाली पहुंचा. वहां टंगे बोर्ड से उस ने सीओ (सिटी) अमित कुमार सिंह का फोन नंबर नोट किया. फिर दोपहर में गल्ला मंडी स्थित एक होटल पर भरपेट खाना खाया. यहीं पर उस ने एक सुसाइड नोट तैयार किया. इस सुसाइड नोट में उस ने अपने भाई अखिलेश वर्मा व सीलमपुर दिल्ली निवासी फुफेरे भाई मनोज कुमार वर्मा पर लाखों रुपया हड़पने और मांगने पर ताने मार कर जलील करने का आरोप लगाया. तथा हत्या/आत्महत्या करने को उकसाने का आरोप लगाया.

इस नोट को लिखने के बाद गल्ला मंडी में ही एक ज्वैलर्स की दुकान पर उस ने अपनी सोने की अंगूठी बेची. अंगूठी बेचने से उसे जो पैसे मिले, उन में से 700 रुपया सैलून वाले को तथा डेढ़ हजार रुपया सोनू नाम के व्यक्ति को उधारी के दिए. सामूहिक हत्याकांड को अंजाम देने के बावजूद मुकेश विचलित नहीं हुआ. वह बेखौफ इटावा शहर की गलियों में घूमता रहा. शाम 6 बजे के बाद उस ने अपने साढ़ू भोपाल निवासी आशीष वर्मा तथा भिंड निवासी साले रविंद्र व सत्येंद्र से फोन पर बात की और हालचाल पूछा.

उस ने अपने भाइयों से भी फोन पर बात की, लेकिन किसी को महसूस नहीं होने दिया कि उस ने 4 लोगों का मर्डर किया है. रात करीब सवा 8 बजे मुकेश ने सुसाइड नोट का फोटो खींच कर सीओ (सिटी) अमित कुमार सिंह को वाट्सऐप कर दिया तथा डायल 112 पर सूचना दी कि उस की पत्नी व बच्चों ने सुसाइड कर लिया है. वह भी सुसाइड करने रेलवे स्टेशन जा रहा है. इस के बाद उस ने बेटी काव्या व पत्नी रेखा के मोबाइल फोन के वाट्सऐप स्टेटस पर मृतकों की फोटो लगा कर कैप्शन लिखा, ‘ये सब लोग खत्म.Ó फिर उस ने अपना मोबाइल फोन स्विच्ड औफ कर लिया.

इस स्टेटस को देख कर सगेसंबंधी सन्न रह गए. पड़ोसी भी सकते में आ गए. पड़ोसी मुकेश के घर पहुंचे तो ताला बंद था. उन्होंने मुकेश के बड़े भाई रत्नेश वर्मा व अवधेश वर्मा को सूचना दी. थोड़ी देर बाद दोनों भाई घर आ गए. उन्होंने पड़ोसियों के सहयोग से कमरों का ताला तोड़ा. अंदर का दृश्य देख कर सभी का कलेजा कांप उठा. रत्नेश वर्मा ने सूचना थाना सिविल लाइंस पुलिस को दी तो हड़कंप मच गया. सूचना पाते ही एसएचओ विक्रम सिंह चौहान पुलिस दल के साथ लालपुरा स्थित मुकेश वर्मा के घर आ गए.

मामले की गंभीरता को समझते हुए उन्होंने सूचना पुलिस अफसरों को दी तो थोड़ी देर में मौके पर एसएसपी संजय कुमार वर्मा, एएसपी अभय नाथ त्रिपाठी तथा सीओ (सिटी) अमित कुमार सिंह भी आ गए. पुलिस अफसरों ने घटनास्थल को देखा तो सहम गए. 2 कमरों में 4 लाशें पड़ी थीं. दोनों कमरों में खून की एक बूंद भी नहीं थी. अब तक फोरैंसिक टीम भी आ गई थी और वह जांच में जुट गई थी. घर का मुखिया मुकेश वर्मा घर से नदारद था. पुलिस को पता चल गया था कि उस ने डायल 112 पर पत्नी व बच्चों के सुसाइड करने की जानकारी दी. लेकिन वह स्वयं कहां है, जीवित भी है या नहीं, इस की जानकारी न दे कर उस ने अपना मोबाइल फोन बंद कर लिया था.

अब तक मीडिया को भी घटना की जानकारी मिल गई थी, इसलिए मीडियाकर्मियों की भी भीड़ जुट गई थी. पुलिस औफिसर इस स्थिति में नहीं थे कि वे बता सकें कि मामला हत्या का है या आत्महत्या का. अत: उन के सवालों से बचने के लिए चारों शवों को इटावा के सदर अस्पताल पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. मुकेश की खोज में पुलिस ने उस के मोबाइल फोन को सर्विलांस पर लिया तो रात 8:20 पर उस की लोकेशन इटावा रेलवे स्टेशन के पास मिली. उस के बाद उस का फोन बंद हो गया था. पुलिस की टीम इटावा रेलवे स्टेशन पहुंची. वहां पता चला कि मुकेश रेल से कट कर आत्महत्या करना चाहता था, लेकिन वह सफल नहीं हुआ. वह जीआरपी पुलिस की हिरासत में है. पुलिस टीम तब मुकेश को अपनी कस्टडी में ले कर थाना सिविल लाइंस आ गई.

थाने में पुलिस अफसरों ने जब मुकेश से पूछताछ की तो उस ने पहले से प्लानिंग कर बनाई गई कहानी पुलिस को बताई. उस ने पुलिस अधिकारियों को बताया कि पिछले कई सालों से वह परेशान था. रिश्तेदारों को उस ने 15 लाख रुपए उधार दिए थे, जो वापस नहीं कर रहे थे. पैसा मांगने पर वे उसे जलील करते थे और ताने मारते थे. इस कारण उसे व्यापार करने में दिक्कत आ रही थी. धीरेधीरे घर खर्च का ज्यादा और आमदनी कम होती गई. इस से वह काफी समय से तनाव में था. टेंशन के चलते सिर्फ वह आत्महत्या करना चाहता था. उस ने यह बात पत्नी रेखा को बताई तो वह बोली कि आत्महत्या के बाद उस का और बच्चों का क्या होगा.

फिर पत्नी की सहमति के बाद उस ने सभी को मारने के बाद आत्महत्या करने की योजना बनाई. वह करवाचौथ वाले दिन सभी को मारना चाहता था, लेकिन पत्नी ने उस दिन ऐसा करने से मना कर दिया, जिस से मौत टल गई. इस के बाद दीपावली के बाद का प्लान बनाया. 11 नवंबर, 2024 को बड़ी बेटी भव्या पढ़ाई के लिए वापस दिल्ली जाने वाली थी, इसलिए उस ने एक दिन पहले ही सब को मारने का प्लान बनाया. प्लान के मुताबिक वह मैडिकल स्टोर से नींद की 15 गोलियां खरीद कर लाया. 5 गोलियां पीस कर पत्नी रेखा को पिज्जा के साथ मिला कर खिला दी, बाकी गोलियां बच्चों को पीस कर पिज्जा के साथ खिला दीं.

उस ने बताया कि गला घोंटते समय बच्चे बेहोशी की अवस्था में बोले थे, ”पापा, ये क्या कर रहे हो?

तब मैं ने उन से कहा था कि मेरे मरने के बाद तुम लोग रह नहीं पाओगे. इसलिए मरना ही बेहतर है और फिर गला घोंट कर सभी को मार डाला. मुकेश ने आगे बताया कि घटना को अंजाम देने के बाद वह दिन भर शहर की गलियों में भटकता रहा. रात साढ़े 8 बजे वह इटावा रेलवे स्टेशन पहुंचा और सुसाइड के लिए पूर्वी छोर पर पटरियों के बीच लेट गया. मरुधर एक्सप्रैस उस के ऊपर से गुजर गई, लेकिन वह बच गया. जीआरपी ने उसे पकड़ा. जामातलाशी में पुलिस को मुकेश से 2 मोबाइल फोन बरामद हुए. उन्हें पुलिस ने सुरक्षित कर लिया. मुकेश की निशानदेही पर पुलिस ने उस के घर से रस्सी का वह टुकड़ा बरामद कर लिया, जिस से उस ने पत्नी व बच्चों का गला घोंटा था.

पुलिस अधिकारियों ने पूछताछ के बाद उस की बात को सच मान कर उस का बयान दर्ज किया. लेकिन अधिकारियों के मन में एक फांस चुभ रही थी कि मुकेश को यदि आत्महत्या करनी ही थी तो उस ने घर में क्यों नहीं की? घटना को अंजाम देने के 16 घंटे बाद वह आत्महत्या करने इटावा रेलवे स्टेशन क्यों गया? वह भी बच गया. उस के शरीर पर खरोंच तक नहीं आई. उन्हें लगा कि दाल में कुछ काला जरूर है. 12 नवंबर, 2024 को इस हत्या/आत्महत्या प्रकरण की खबर प्रमुख अखबारों में छपी, जिसे पढ़ कर लोग सन्न रह गए. शहरवासियों तथा सगेसंबधियों की भीड़ मुकेश के घर पर जुट गई. सहमति से आत्महत्या की बात न शहरवासियों के गले उतर रही थी और न ही परिवार तथा सगेसंबधियों की समझ में आ रही थी.

सगेसंबंधी भी नहीं समझ पाए वारदात की वजह

पुलिस ने मामले की तह तक पहुंचने के लिए मुकेश के बड़े भाई एडवोकेट रत्नेश वर्मा, अवधेश वर्मा तथा मां चंद्रकला से पूछताछ की. उन्होंने बताया कि रिश्तेदारों व पड़ोसियों के फोन आने के बाद वह मुकेश के घर गए तो देखा कि लाशें पड़ी थीं. रत्नेश ने बताया कि मुकेश के घर में तनाव जैसी कोई बात नहीं थी. तनाव की बात उस ने कभी उन्हें नहीं बताई. आर्थिक स्थिति भी कमजोर नहीं थी. वह सोनेचांदी के व्यापार में अच्छा पैसा कमाता था. पता नहीं मुकेश ने यह कदम क्यों उठाया.

अब तक मृतका रेखा का भाई भिंड निवासी सत्येंद्र सोनी भी बहन के घर आ गया था. उस ने पुलिस औफिसरों को बताया कि उस ने भांजी काव्या का स्टेट्स देखा था, जिस में लिखा था-ये सब खत्म. बहन और बच्चों की फोटो लगी थी. इस के बाद उस ने सब को फोन लगाया, लेकिन किसी का फोन नहीं लगा. यहां आ कर पता चला कि बहन व बच्चों की हत्या हो गई है.

सत्येंद्र ने आरोप लगाया कि बहनोई मुकेश शराब पीता था. औरत उस की कमजोरी थी. बहनोई मुकेश ने ही प्लान के तहत उस की बहन रेखा व उस के बच्चों की हत्या की है. सहमति से हत्या/आत्महत्या की बात गलत है. सत्येंद्र ने यह भी बताया कि दीपावली के 2 दिन पहले उस की बहन रेखा व बच्चे भिंड आए थे. तब रेखा ने न तनाव वाली बात बताई थी और न ही आर्थिक परेशानी की. वह हंसीखुशी से बच्चों के लिए पटाखे खरीद कर चली गई थी.

पूछताछ के बाद एसएसपी संजय कुमार वर्मा ने दोपहर बाद 2 बजे पुलिस सभागार में प्रैसवार्ता की और मुकेश वर्मा को मीडिया के समक्ष पेश किया. पत्रकारों से रूबरू होते वक्त मुकेश को न कोई पछतावा था और न ही माथे पर कोई शिकन. साले सत्येंद्र ने भी मुकेश पर हत्या का आरोप लगाया था. अत: सिविल लाइंस थाने के एससएचओ विक्रम सिंह ने सत्येंद्र सोनी की तहरीर पर मुकेश वर्मा के खिलाफ भारतीय न्याय संहिता की धारा 103 (1) तथा 61 (2) के तहत रिपोर्ट दर्ज कर ली तथा उसे विधिसम्मत गिरफ्तार कर लिया. शाम 4 बजे उसे इटावा कोर्ट में पेश किया गया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

जेल भेजने के बाद अधर में क्यों अटका मामला

पुलिस ने मुकेश को जेल जरूर भेज दिया था, लेकिन सामूहिक हत्या आत्महत्या का मामला अब भी अधर में ही लटका हुआ था. पुलिस टीम ने जांच आगे बढ़ाई तो मुकेश के एक और झूठ का खुलासा हो गया. पता चला कि मुकेश ने आत्महत्या करने का नाटक किया था. मरुधर एक्सप्रैस ट्रेन उस के ऊपर से गुजरी ही नहीं थी. वह प्लेटफार्म नंबर 4 पर खड़ी मरुधर एक्सप्रैस ट्रेन के इंजन के आगे लेट गया था. गाड़ी चलने के पहले ही चालक की नजर उस पर पड़ गई थी. चालक ने तब उसे जीआरपी के हवाले कर दिया था.

पुलिस की इस गुत्थी को सुलझाया मृतका रेखा की बहन राखी तथा उस के पति आशीष वर्मा ने, जो भोपाल से इटावा आए थे. आशीष वर्मा व राखी ने पुलिस को चौंकाने वाली जानकारी दी. राखी ने बताया कि उस के बहनोई मुकेश वर्मा का कानपुर (बर्रा) की रहने वाली तलाकशुदा महिला स्वाति सोनी से नाजायज रिश्ता है. वह महिला मुकेश की पहली पत्नी नीतू की रिश्तेदार है. रिश्ते में वह मुकेश की साली लगती है.

इन नाजायज संबंधों की जानकारी रेखा को भी हो गई थी. वह इस का विरोध करती थी, जिस से घर में कलह होती थी. बहन ने उसे कई बार फोन पर यह जानकारी दी थी. करवाचौथ पर रेखा ने मुकेश के मोबाइल फोन में स्वाति की तसवीर देखी थी, तब खूब झगड़ा हुआ था. उस ने बताया कि अवैध संबंधों के चलते ही बहनोई मुकेश ने प्रीप्लान कर उस की बहन रेखा व उस के बच्चों की हत्या की है. हत्या के इस प्लान में स्वाति भी शामिल है. उस ने मुकेश को अपने प्रेमजाल में फंसा रखा है.

अवैध रिश्तों में हुई सामूहिक हत्या का पता चलते ही पुलिस अधिकारियों के कान खड़े हो गए. उन्होंने जांच तेज कर दी. पुलिस को मुकेश के पास से 2 मोबाइल फोन बरामद हुए थे. पुलिस ने उन की काल डिटेल्स निकलवाई तो पता चला कि घटना वाली रात 2 बजे से 5 बजे के बीच एक फोन नंबर सक्रिय था, जिस पर मुकेश ने कई बार बात की थी. इस नंबर पर पहले भी उस की बातें होती थीं. पुलिस ने उस मोबाइल नंबर की जानकारी जुटाई तो पता चला कि वह नंबर स्वाति सोनी निवासी विश्व बैंक कालोनी बर्रा (कानपुर) के नाम दर्ज है.

एसएसपी संजय कुमार वर्मा ने स्वाति की गिरफ्तारी के लिए पुलिस टीम भेजी. लेकिन उस के घर पर ताला लगा था. पुलिस टीम तब खाली हाथ लौट आई. पुलिस ने उस की टोह में खबरियों को लगा दिया. इधर सीओ (सिटी) अमित कुमार सिंह मुकेश के उस हस्तलिखित सुसाइड नोट की जांच कर रहे थे, जिसे मुकेश ने उन के वाट्सऐप पर भेजा था. जांच में यह बात सच निकली कि मुकेश के फुफेरे भाई मनोज वर्मा ने उस का लाखों रुपया हड़प लिया था. मांगने पर जलील करता था. झूठे मामले में फंसाने की धमकी देता था. इस के अलावा भाई अखिलेश ने भी उस के रुपए हड़प रखे थे. जांच पूरी होने के बाद सीओ (सिटी) ने उन की गिरफ्तारी का जाल बिछाया.

15 नवंबर, 2024 को सीओ (सिटी) अमित कुमार सिंह की टीम ने अखिलेश व मनोज वर्मा को बस स्टैंड इटावा से दबोच लिया. पूछताछ में दोनों ने गलत फंसाने का आरोप लगाया. लेकिन पुलिस ने उन की एक न सुनी और दोनों को आत्महत्या करने को मजबूर करने के जुर्म में जेल भेज दिया. 20 नवंबर, 2024 की दोपहर 12 बजे एसएचओ विक्रम सिंह चौहान को मुखबिर के जरिए जानकारी मिली कि मुकेश की प्रेमिका स्वाति इस समय अंबेडकर चौराहे के पास निर्माणाधीन रामनगर ओवरब्रिज के नीचे मौजूद है. वह कोर्ट में सरेंडर करने के लिए किसी वकील का वेट कर रही है.

चूंकि मुखबिर की इनफार्मेशन खास थी, इसलिए पुलिस टीम रामनगर ओवरब्रिज के नीचे पहुंची और घेराबंदी कर स्वाति को गिरफ्तार कर लिया. उसे थाना सिविल लाइंस लाया गया. उस की गिरफ्तारी की सूचना पर पुलिस अफसर भी थाने आ गए. पुलिस औफसरों ने स्वाति से पूछताछ की तो उस ने बताया कि मुकेश वर्मा से उस का नाजायज रिश्ता था. पूछताछ के बाद इंसपेक्टर विक्रम सिंह चौहान ने स्वाति सोनी के खिलाफ बीएनएस की धारा 103 (1) तथा 61 (2) के तहत रिपोर्ट दर्ज कर ली तथा उसे गिरफ्तार कर लिया. पुलिस जांच, मुकेश व स्वाति के बयानों तथा अन्य सूत्रों के आधार पर इस सामूहिक हत्याकांड की सनसनीखेज कहानी सामने में आई.

बीवीबच्चों वाला मुकेश क्यों फंसा स्वाति के चक्कर में

उत्तर प्रदेश के इटावा शहर के सिविल लाइंस थाने के अंतर्गत एक मोहल्ला है— लालपुरा. इसी मोहल्ले में खुशीराम वर्मा सपरिवार रहते थे. उन के परिवार में पत्नी चंद्रकला के अलावा 6 बेटे रत्नेश, राकेश, अवधेश, मुकेश, अखिलेश व रघुवेश थे. खुशीराम वर्मा सर्राफा व्यापारी थे. इस व्यवसाय में उन का बड़ा नाम था. उन्होंने अपना हुनर बेटों को ही नहीं, रिश्तेदारों को भी सिखाया था. वे सभी इसी व्यापार से अपनी जीविका चलाते थे. खुशीराम वर्मा के बच्चे पढ़लिख कर जवान हुए तो सभी किसी न किसी व्यापार में रम गए. बेटे कमाने लगे तो उन्होंने एक के बाद एक सभी बेटों का विवाह कर दिया. 3 मंजिला घर में उन के 4 बेटे अवधेश, मुकेश, अखिलेश व रघुवेश वर्मा अपनेअपने परिवारों के साथ रहने लगे.

जबकि सब से बड़ा बेटा रत्नेश वर्मा, जोकि नोटरी वकील था, वह एआरटीओ औफिस के सामने नवविकसित कालोनी में परिवार सहित रहता था. उस से छोटा राकेश वर्मा सपरिवार गाड़ीपुरा मोहल्ले में रहता था. उस की वहीं स्थित चारा मार्केट में सर्राफा की दुकान तथा पालिका बाजार में कपड़े की दुकान थी.

खुशीराम वर्मा के चौथे नंबर का बेटा था— मुकेश. उस की शादी नीतू से हुई थी. शादी के एक साल बाद नीतू ने एक बेटी को जन्म दिया, जिस का नाम उस ने भव्या रखा. भव्या 2 साल की थी, तभी उस की मम्मी नीतू का निधन हो गया. वह कैंसर से पीडि़त थी.

पत्नी की मौत के बाद मुकेश को बेटी के पालनपोषण की समस्या हुई तो उस ने सन 2006 में रेखा से दूसरी शादी कर ली. रेखा भिंड शहर कोतवाली के मोहल्ला झांसी की रहने वाली थी. उस के 2 भाई सत्येंद्र, रविंद्र तथा एक बहन राखी थी. दूसरी शादी के बाद मुकेश खुश था. रेखा ने एक बेटी काव्या व बेटे अभीष्ट को जन्म दिया. रेखा अब दोनों बेटियों व बेटे का पालनपोषण करने लगी. बच्चे कुछ बड़े हुए तो तीनों बच्चे ज्ञानस्थली स्कूल में पढऩे लगे. मुकेश वर्मा सर्राफा व्यापार का मंझा हुआ खिलाड़ी था. सर्राफा की दुकान पर उस का छोटा भाई रघुवेश बैठता था. मुकेश दिल्ली से सोनाचांदी के आभूषण लाता था और इटावा, औरैया, मैनपुरी के व्यापारियों को सप्लाई करता था. उस का बिजनैस कानपुर तक फैला था. इस व्यवसाय से उसे लाखों रुपए की कमाई होती थी.

वर्ष 2019 में मुकेश अपनी पत्नी रेखा के साथ मथुरा-वृंदावन घूमने गया. वहां एक होटल में उस की मुलाकात स्वाति सोनी से हुई. वह भी अपने पति अर्पण के साथ घूमने आई थी. वह भी उसी होटल में रुकी थी, जिस में मुकेश ठहरा था. दोनों के बीच बातचीत शुरू हुई तो रिश्तेदारी खुल गई. स्वाति मुकेश की पहली पत्नी नीतू की मौसी की बेटी निकली. इस नाते मुकेश और स्वाति के बीच जीजासाली का रिश्ता बन गया.

गुपचुप शादी कर गोवा में मनाया हनीमून

स्वाति मुकेश के रहनसहन से प्रभावित हुई. लौटते समय दोनों ने एकदूसरे को अपने फोन नंबर भी दे दिए. स्वाति सोनी, बर्रा (कानपुर) की रहने वाली थी. उस की शादी 2007 में जालौन के उरई कस्बा निवासी अर्पण से हुई थी. अर्पण प्राइवेट नौकरी करता था. उस की आर्थिक स्थिति ज्यादा अच्छी नहीं थी. वह शराब का लती भी था. स्वाति उस से खुश नहीं थी. खर्चे पूरे न होने के कारण स्वाति और अर्पण के बीच अकसर झगड़ा होता रहता था.

स्वाति पहली ही नजर में मुकेश के दिलोदिमाग पर छा गई थी, इसलिए वह उस की ससुराल जाने लगा. मोबाइल फोन पर भी दोनों की रसभरी बातें होने लगीं. जल्दी ही दोनों के बीच दूरियां कम हो गईं और उन के बीच नाजायज रिश्ता बन गया. मुकेश ने स्वाति के पति अर्पण से भी दोस्ती कर ली और उस के साथ शराब की पार्टी करने लगा. लेकिन एक रोज भांडा फूट गया, जब अर्पण ने दोनों को रंगेहाथ पकड़ लिया. अर्पण ने स्वाति को जम कर पीटा. तब स्वाति रूठ कर मायके बर्रा कानपुर आ गई. साथ में बेटे को भी ले आई. बाद में पति अर्पण से उस का तलाक हो गया.

स्वाति मायके में आ कर रहने लगी तो मुकेश का वहां भी आनाजाना शुरू हो गया. मुकेश जब भी बिजनैस के सिलसिले में आता, स्वाति के घर पर ही रुकता. रात में उस के साथ रंगरलियां मनाता. मुकेश ने बर्रा में ही उसे ब्यूटीपार्लर खुलवाया ताकि वह कुछ पैसा कमा सके, लेकिन स्वाति ब्यूटीपार्लर चला नहीं पाई. कुछ समय बाद स्वाति के कहने पर मुकेश ने बर्रा की विश्व बैंक कालोनी में एक मकान खरीद लिया. इस मकान में स्वाति मालकिन बन कर रहने लगी. यही नहीं मुकेश ने खाड़ेपुर में स्वाति को सर्राफा की दुकान भी खुलवा दी. इस दुकान पर मुकेश भी बैठता था. पूछने वालों को स्वाति मुकेश को अपना पति बताती थी. मुकेश अब कईकई दिनों तक बर्रा में ही रुकने लगा था.

स्वाति बहुत चालाक थी. उस की नजर मुकेश की धनदौलत पर टिकी थी. इसलिए वह मुकेश को रिझाने में कोई कसर नहीं छोड़ती थी. स्वाति मुकेश के प्यार में इतनी अंधी हो गई थी कि वह उस के साथ शादी रचा कर जिंदगी भर तक साथ रहने का सपना देखने लगी थी. अपना सपना पूरा करने के लिए स्वाति ने मुकेश के सामने शादी का प्रस्ताव रखा तो वह राजी हो गया. मुकेश यह तक भूल गया कि वह शादीशुदा और 4 बच्चों का बाप है. मुकेश के राजी होने के बाद स्वाति ने उस के साथ मंदिर में विवाह कर लिया. फिर वह हनीमून के लिए मुकेश के साथ गोवा चली गई. वहां से सप्ताह भर बाद मौजमस्ती करने के बाद दोनों लौटे.

एक रोज रेखा ने पति के मोबाइल फोन में स्वाति की फोटो देखी तो उस का माथा ठनका. उस ने गुप्तरूप से जानकारी जुटाई तो पता चला कि दोनों के बीच नाजायज रिश्ता है.

और अवैध संबंधों में स्वाहा हो गया परिवार

अपना घर उजड़ता देख कर रेखा ने विरोध शुरू किया, जिस से दोनों के बीच झगड़ा होने लगा. लेकिन विरोध के बावजूद मुकेश नहीं माना. धीरेधीरे दोनों के बीच नफरत बढ़ती गई.

वर्ष 2021 में मुकेश के छोटे भाई रघुवेश की बीमारी के चलते मौत हो गई. उस के बाद मुकेश ने गल्ला मंडी वाली दुकान 16 लाख रुपए में बेच दी. दुकान बेचने का रेखा ने भरपूर विरोध किया था, लेकिन मुकेश नहीं माना. दुकान बेचने से मिले 16 लाख रुपयों में से 3 लाख रुपया स्वाति ने लटकेझटके दिखा कर ले लिए तथा 10 लाख रुपए उस ने सीलमपुर दिल्ली निवासी फुफेरे भाई मनोज कुमार वर्मा को दे दिया. उस ने चांदी रिफाइनरी का काम शुरू किया था और आधा लाभ देने का वादा किया था. बाद में वह अपने प्रौमिस से मुकर गया.

अब तक मुकेश के बच्चे भी बड़े हो गए थे. बड़ी बेटी भव्या 18 साल की उम्र पार कर चुकी थी. उस ने स्थानीय ज्ञानस्थली स्कूल से इंटरमीडिएट की परीक्षा पास कर दिल्ली यूनिवर्सिटी के रानी लक्ष्मीबाई कालेज में बीकौम (प्रथम वर्ष) में प्रवेश ले लिया था. 17 वर्षीय काव्या 11वीं कक्षा में तथा 13 वर्षीय अभीष्ट 9वीं कक्षा में पढ़ रहा था. तीनों बच्चे होनहार थे. मन लगा कर पढ़ाई कर रहे थे.

रेखा की छोटी बहन राखी भोपाल निवासी आशीष वर्मा को ब्याही थी. रेखा जब परेशान होती थी, तब वह राखी से मोबाइल फोन पर बात करती थी और अपना दर्द बयां करती थी. उस ने राखी को बताया था कि उस के बहनोई के कानपुर की एक तलाकशुदा महिला से नाजायज संबंध है. उस के कारण घर में कलह होती है. दुकान बेचने की जानकारी भी उस ने राखी को दी थी.

ज्योंज्यों समय बीतता जा रहा था, त्योंत्यों मुकेश वर्मा की उलझन भी बढ़ती जा रही थी, जिस के कारण उस का व्यापार में भी मन नहीं लगता था. उस का दिन का चैन छिन गया था और रात की नींद हराम हो गई थी. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे, क्या न करे. इसी उलझन मेें उस ने 7 नवंबर को स्वाति के घर का रुख किया. मुकेश और स्वाति ने कान से कान जोड़ कर पूरा प्लान बना लिया. मुकेश ने पत्नी और बच्चों को मारने का प्लान बना लिया. यही नहीं, पुलिस से बचने के लिए मुकेश ने पूरी योजना भी बना ली.

फिर प्लान के तहत ही मुकेश ने 10 नवंबर की रात पत्नी व बच्चों की हत्या कर दी और स्वयं आत्महत्या करने का नाटक रचा. 21 नवंबर, 2024 को पुलिस ने आरोपी स्वाति सोनी को इटावा कोर्ट में पेश किया, जहां से उसे जिला जेल भेज दिया गया. मुकेश को पुलिस पहले ही जेल भेज चुकी थी.

-कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

 

Social Crime Stories : 20 लाख के लिए साले ने किया जीजा के भाई का कत्ल

Social Crime Stories : आगरा के संजय पैलेस स्थित आईसीआईसीआई बैंक के कैशियर के सामने जैसे ही एक करोड़ रुपए का चैक आया, उस ने नजरें उठा कर चैक रखने वाले को देखा तो एकदम से उस के मुंह से निकल गया, ‘‘नमस्कार इमरान भाई, कहो कैसे हो?’’

‘‘ठीक हूं भाईजान, आप कैसे हैं?’’ जवाब में इमरान ने कहा.

‘‘मैं भी ठीक हूं्.’’ कैशियर ने कहा.

‘‘भाईजान थोड़ा जल्दी कर देंगे, बड़े भाईजान का फोन आ चुका है. वह मेरा ही इंतजार कर रहे हैं.’’ इमरान ने कहा.

कैशियर अपनी सीट से उठा और मैनेजर के कक्ष में गया. थोड़ी देर बाद लौट कर उस ने कहा, ‘‘इमरानभाई, आज तो बैंक में इतनी रकम नहीं है. जो है वह ले लीजिए, बाकी का भुगतान कल कर दूं तो..?’’

‘‘कोई बात नहीं. आज कितना कर सकते हैं?’’ इमरान ने पूछा.

‘‘20-25 लाख होंगे. ऐसा है, आप को आज 20 लाख दे देता हूं. बाकी कल ले लीजिएगा.’’ कैशियर ने कहा तो इमरान ने एक करोड़ वाला चैक वापस ले कर 20 लाख का दूसरा चैक दे दिया. कैशियर ने उसे 20 लाख रुपए दिए तो उन्हें बैग में डाल कर वह बाहर खड़ी अपनी मारुति 800 से शहर से 15 किलोमीटर दूर कुबेरनगर स्थित अपने ताऊ के बेटे पूर्व विधायक जुल्फिकार अहमद भुट्टो के स्लाटर हाउस (कट्टीखाने) की ओर चल पड़ा.

यह शाम के सवा 4 बजे की बात थी. साढे़ 4 बजे के आसपास इमरान पैसे ले कर वाटर वर्क्स चौराहे पर पहुंचा था कि उस के बड़े भाई इरफान का फोन आ गया. फोन रिसीव कर के उस ने कहा, ‘‘भाईजान, बैंक से 20 लाख रुपए ही मिल सके हैं. मैं उन्हें ले कर 10-15 मिनट में पहुंच रहा हूं.’’

इमरान ने 10-15 मिनट में पहुंचने को कहा था. लेकिन एक घंटे से भी ज्यादा समय हो गया और वह स्लाटर हाउस नहीं पहुंचा तो उस के बड़े भाई इरफान को चिंता हुई. उस ने इमरान को फोन किया तो पता चला कि उस के दोनों फोन बंद हैं. इरफान परेशान हो उठा.  वह बारबार नंबर मिला कर इमरान से संपर्क करने की कोशिश करता रहा, लेकिन फोन बंद होने की वजह से संपर्क नहीं हो पाया. अब तक शाम के 7 बज गए थे. इरफान को हैरानी के साथसाथ चिंता भी होने लगी.

इमरान और इरफान आगरा छावनी से बसपा के विधायक रह चुके जुल्फिकार अहमद भुट्टो के चचेरे भाई थे. दोनों भाई आगरा शहर से यही कोई 15 किलोमीटर दूर कुबेरपुर स्थित जुल्फिकार अहमद भुट्टो के स्लाटर हाउस (कट्टीखाने) का कामकाज देखते थे. इरफान फैक्ट्री का एकाउंट संभालता था तो उस से छोटा इमरान फील्ड का काम देखता था. बैंक में रुपए जमा कराने, निकाल कर लाने आदि का काम वही करता था.

चूंकि उन के चचेरे भाई बसपा के विधायक रह चुके थे, इसलिए यह काम इमरान अकेला ही करता था. अपने साथ वह कोई हथियार भी नहीं रखता था. इस की वजह यह थी कि वह खुद तो साहसी था ही, फिर सिर पर बड़े भाई का हाथ भी था. लेकिन जब से उस के बड़े भाई इरफान का साला भोलू स्लाटर हाउस से जुड़ा था, वह इमरान के साथ रहने लगा था. बड़े भाई का साला होने की वजह से भोलू भरोसे का आदमी था. इसीलिए बैंक आनेजाने में इमरान उसे साथ रखने लगा था.

लेकिन 3 दिसंबर को भोलू ने फोन कर के कहा था कि वह जानवरों की खरीदारी के लिए शमसाबाद जा रहा है, इसलिए आज नहीं आ पाएगा. भोलू ने यह बात इमरान और इरफान दोनों भाइयों को बता दी थी, जिस से वे उस का इंतजार न करें. भोलू नहीं आया तो इमरान अकेला ही बैंक चला गया था. वह चला तो गया था, लेकिन लौट कर नहीं आया था.

7 बजे के आसपास पैसे ले कर इमरान के वापस न आने की बात इरफान ने बड़े भाई जुल्फिकार अहमद भुट्टो को बताई तो वह भी परेशान हो उठे. उन्हें पैसों की उतनी चिंता नहीं थी, जितनी भाई की थी. वह इमरान को बहुत पसंद करते थे. इसीलिए उन्होंने उसे अपने यहां रखा था. उन के यहां काम करते उसे लगभग ढाई साल हो गए थे. इस बीच उस ने एक पैसे की भी हेराफेरी नहीं की थी.

जुल्फिकार अहमद भुट्टो ने भी इमरान के दोनों नंबरों पर फोन किया. जब दोनों नंबर बंद मिले तो वह इरफान के अलावा फैक्ट्री के 20-25 लोगों को 6-7 गाडि़यों से ले कर वाटर वर्क्स चौराहे पर जा पहुंचे, क्योंकि इमरान ने वहीं से बड़े भाई इरफान को आखिरी फोन किया था. इधरउधर तलाश करने के बाद वहां के दुकानदारों से ही नहीं, बीट पर मौजूद सिपाहियों से भी पूछा गया कि यहां कोई हादसा तो नहीं हुआ था.

वाटर वर्क्स चौराहे पर इमरान के बारे में कुछ पता नहीं चला तो वाटर वर्क्स चौराहे से फैक्ट्री तक ही नहीं, पूरे शहर में उस की तलाश की गई. लेकिन उस के बारे में कहीं कुछ पता नहीं चला. सब हैरानपरेशान थे. लोगों की समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर इमरान कहां चला गया. ऐसे में जब कुछ लोगों ने आशंका व्यक्त की कि कहीं पैसे ले कर इमरान भाग तो नहीं गया, तब पूर्व विधायक जुल्फिकार अहमद ने चीख कर कहा था, ‘भूल कर भी ऐसी बात मत करना. वह मेरा भाई है, ऐसा हरगिज नहीं कर सकता.’

सुबह होते ही फिर इमरान की खोज शुरू हो गई थी. उस के इस तरह गायब होने से उस के घर में कोहराम मचा हुआ था. घर के किसी भी सदस्य के आंसू थम नहीं रहे थे. सब को इस बात की आशंका सता रही थी कि कहीं इमरान के साथ कोई अनहोनी तो नहीं घट गई. बैंक जा कर भी इमरान के बारे में पूछा गया. बैंक में लगे सीसीटीवी कैमरे की फुटेज भी देखी गई. पता चला, वह बैंक में अकेला ही आया था और अकेला ही गया था.

अब इमरान के घर वालों के पास इमरान की गुमशुदगी दर्ज कराने के अलावा दूसरा कोई चारा नहीं बचा था. जुल्फिकार अहमद भुट्टो पुलिस अधीक्षक (नगर) पवन कुमार से मिले और उन्हें सारी बात बताई. उन्होंने तुरंत थाना हरिपर्वत के थानाप्रभारी सुरेंद्र कुमार और क्षेत्राधिकारी समीर सौरभ को इस मामले को प्राथमिकता से देखने का आदेश दिया. थाना हरि पर्वत पुलिस ने इमरान की गुमशुदगी दर्ज कर इमरान के दोनों नंबर सर्विलांस सेल को दे कर उन की काल डिटेल्स और आखिरी लोकेशन बताने का आग्रह किया.

पुलिस अधीक्षक (नगर) पवन कुमार ने इस मामले की जानकारी वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक शलभ माथुर को भी दे दी थी. पुलिस इस मामले में तत्परता से लग गई. इमरान के मोबाइल जब बंद हुए थे, तब वे वाटर वर्क्स और रामबाग चौराहे के टावरों की सीमा में थे. काल डिटेल्स में ऐसा कोई भी नंबर नहीं था, जिस पर संदेह किया जाता. जो भी फोन आए थे या किए गए थे, वे अपनों को ही किए गए थे या आए थे. जैसे कि इरफान, पूर्व विधायक के घर के नंबरों व भोलू के नंबरों के थे. एक दिन पहले भी इरफान या भोलू के फोन आए थे या इन्हें ही किए गए थे. चूंकि पुलिस को इन फोनों में कुछ नया या संदेहास्पद नजर नहीं आया, इसलिए पुलिस अन्य बातों पर विचार करने लगी.

इस काल डिटेल्स और लोकेशन की एकएक कौपी वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक शलभ माथुर, पुलिस अधीक्षक पवन कुमार और क्षेत्राधिकारी समीर सौरभ को भी दी गई थी. इन अधिकारियों ने जब काल डिटेल्स और लोकेशन का अध्ययन किया तो उन्हें एक नंबर पर संदेह हुआ. पुलिस ने उस नंबर की लोकेशन निकलवाई तो यह संदेह और बढ़ गया. यह आदमी कोई और नहीं, इरफान का साला भोलू था, जो इमरान के साथ बैंक आता जाता था.

पुलिस ने भोलू को थाने बुलाया तो उस के साथ पूरा परिवार ही चला आया. सभी पुलिस से उस पर शक की वजह पूछने लगे तो क्षेत्राधिकारी समीर सौरभ ने कहा, ‘‘पुलिस शक के आधार पर ही अभियुक्तों तक पहुंचती है. हम किसी पर भी शक कर सकते हैं. वह सगा हो या पराया. आप लोग निश्चिंत रहें, हम किसी निर्दोष व्यक्ति को कतई नहीं फंसाएंगे.’’

क्षेत्राधिकारी के इस आश्वासन पर सभी को विश्वास हो गया कि भोलू को सिर्फ पूछताछ के लिए बुलाया गया है. क्योंकि वही उस के साथ बैंक आताजाता था. पुलिस भोलू से पूछताछ करती रही, जबकि वह स्वयं को निर्दोष बताते हुए पुलिस की इस काररवाई को अपने साथ अन्याय कहता रहा था. इस तरह 4 दिसंबर का दिन भी बीत गया. कोई जानकारी न मिलने से इमरान के घर वालों की चिंता बढ़ती ही जा रही थी. 5 दिसंबर की सुबह आगरा से यही कोई 20 किलोमीटर दूर यमुना एक्सप्रेसवे से सटे गांव चौगान के पंचमुखी महादेव मंदिर के पुजारी ने एक्सप्रेसवे से सटे एक गड्ढे में एक Social Crime Stories युवक की लाश देखी. चूंकि लाश खून से लथपथ थी, इसलिए उसे समझते देर नहीं लगी कि किसी ने इस अभागे को मार कर यहां फेंक दिया है.

पुजारी ने इस घटना की सूचना ग्रामप्रधान को दी तो उस ने इस बात की जानकारी थाना एत्मादपुर पुलिस को दे दी. थाना एत्मादपुर पुलिस तुरंत घटनास्थल पर पहुंची और लाश की शिनाख्त कराने की कोशिश की. लाश की शिनाख्त नहीं हो सकी तो उन्होंने इस बात की सूचना जिले के वरिष्ठ अधिकारियों को दे दी. साथ ही उन्होंने मृतक का हुलिया भी बता दिया था. थाना एत्मादपुर पुलिस ने मृतक का जो हुलिया बताया था, वह 3 दिसंबर की शाम से लापता इमरान से हुबहू मिल रहा था. इसलिए वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक शलभ माथुर पुलिस अधीक्षक (ग्रामीण-पश्चिम) बबीता साहू, क्षेत्राधिकारी अवनीश कुमार, समीर सौरभ के अलावा कई थानों का पुलिस बल एवं इमरान के घर वालों को साथ ले कर गांव चौगान पहुंच गए.

शव इमरान का ही था. हत्यारों ने उसे बड़ी बेरहमी से मारा था. उसे गोली तो मारी ही थी, उस का गला भी काट दिया था. पुलिस ने जहां लाश पड़ी थी, वहीं से थोड़ी दूरी पर पड़े चाकू और पिस्टल को भी बरामद कर लिया था. साफ था, इन्हीं से इमरान की हत्या की गई थी. हत्या करने वाले दोनों चीजें वहीं फेंक गए थे. घटनास्थल की काररवाई निपटा कर पुलिस ने लाश को पोस्टमार्टम के लिए आगरा मैडिकल कालेज भिजवा दिया. लाश बरामद होने से साफ हो गया कि इमरान की हत्या हो चुकी है. लाश के पास उस की कार और पैसे नहीं मिले थे, इस का मतलब यह हत्या उन्हीं पैसों के लिए की गई थी, जो वह बैंक से ले कर चला था. लाश बरामद होने के बाद पुलिस ने भोलू से सख्ती से पूछताछ शुरू की. इस की वजह यह थी कि पुलिस के पास उस के खिलाफ अब तक पुख्ता सुबूत मिल चुके थे.

पुलिस ने उस के मोबाइल फोन की 3 दिसंबर की लोकेशन निकलवाई तो चौगान की मिली थी. पुलिस ने इसी लोकेशन को आधार बना कर भोलू के साथ सख्ती की तो उसे इमरान की हत्या की बात स्वीकार करनी ही पड़ी. इस के बाद उस ने अपने उस साथी का भी नाम बता दिया, जिस के साथ मिल कर उस ने इस घटना को अंजाम दिया था. इमरान की हत्या का राज खुला तो इमरान के घर वाले ही नहीं, रिश्तेदार और दोस्त यार भी हैरान रह गए. हैरान होने वाली बात ही थी. इमरान की हत्या करने वाला भोलू इमरान के बड़े भाई का साला तो था ही, इमरान का पक्का दोस्त भी था. इस के बावजूद उस ने हत्या कर दी थी. आइए, अब यह जानते हैं कि आखिर भोलू ने ऐसा क्यों किया था?

हाजी सलीमुद्दीन और हाजी मोहम्मद आशिक, दोनों सगे भाई आगरा के ताजगंज के कटरा उमर खां में रहते हैं. हाजी मोहम्मद आशिक के बड़े बेटे मोहम्मद जुल्फिकार अहमद भुट्टो उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी के विधायक भी रह चुके हैं. मायावती प्रदेश की मुख्यमंत्री थीं तो भुट्टो की प्रदेश में खासी इज्जत थी. इस की वजह यह थी कि वह मायावती के खासमखास नसीमुद्दीन सिद्दीकी के खासमखास थे. भुट्टो के विधायक रहते हुए आगरा के कुबेरपुर स्थित उन के स्लाटर हाउस ने खासी तरक्की की. इस की खपत एकाएक बढ़ गई. काम बढ़ा तो वर्कर भी बढ़ गए. तभी उन्होंने अपने चाचा सलीमुद्दीन के बड़े बेटे इरफान को अपने स्लाटर हाउस का हिसाबकिताब देखने के लिए रख लिया. इरफान को यह काम पसंद आ गया तो 2 साल पहले उस ने अपने छोटे भाई इमरान को भी अपनी मदद के लिए स्लाटर हाउस में रख लिया.

20 वर्षीय इमरान मेहनती युवक था. स्लाटर हाउस में नौकरी करने से पहले वह ताजमहल में गाइड का काम करता था. वहां वह ठीकठाक कमाई कर रहा था, लेकिन जब भुट्टो ने उस से इरफान की मदद के लिए स्लाटर हाउस में काम करने को कहा तो उस ने गाइड का काम छोड़ दिया और भाई के स्लाटर हाउस का काम देखने लगा. 5 भाइयों में सब से छोटे Social Crime Stories इमरान ने स्लाटर हाउस में आते ही रुपयों के लेनदेन से ले कर बाहर के सारे काम संभाल लिए. इस तरह इमरान ने आते ही इरफान का बोझ आधा कर दिया.

इरफान की शादी हो चुकी थी. उस का विवाह आगरा शहर के ही वजीरपुरा के रहने वाले अहसान की बेटी सीमा के साथ हुआ था. उस के ससुर दरी के अच्छे कारीगर थे, इसलिए उन का दरियों का कारोबार था. उन के इंतकाल के बाद इस पुश्तैनी काम में ज्यादा मुनाफा नहीं दिखाई दिया तो उन के सब से छोटे बेटे भोलू ने जूतों के डिब्बे बनाने का काम शुरू कर दिया. जबकि उस के 3 अन्य भाई और चाचा दरी का पुश्तैनी कारोबार ही करते रहे. भोलू का जूतों के डिब्बे बनाने का काम बढि़या चल निकला. उसी की कमाई से जल्दी ही उस ने मारुति स्विफ्ट कार खरीद ली. भोलू अपनी बहन सीमा के यहां आताजाता ही रहता था. इसी आनेजाने में उस ने महसूस किया कि स्लाटर हाउस में जो लोग जानवर सप्लाई करते हैं, उन की अच्छीखासी कमाई होती है. उस के पास पैसे तो थे ही, उस ने अपने बहनोई इरफान से इस संबंध में बात की तो उस ने भुट्टो से बात कर के भोलू को जानवर खरीद कर लाने के लिए कह दिया.

इस के बाद भोलू आगरा के जानवरों के बाजारों, किरावली, शमसाबाद, बटेश्वर आदि से सस्ते दामों में जानवर खरीद कर बहनोई की मार्फत स्लाटर हाउस में बेचने लगा. इस काम में उसे अच्छीखासी कमाई होने लगी. जूतों के डिब्बों का उस का काम चल ही रहा था. इस तरह महीने में वह एक लाख रुपए से अधिक की कमाई करने लगा. किरावली बाजार में जानवरों की खरीदारी के दौरान भोलू की मुलाकात सलमान से हुई तो उसे यह आदमी भा गया. सलमान भी जानवरों की खरीदफरोख्त करता था. इस की वजह यह थी कि एक तो भोलू को कई काम देखने पड़ते थे, दूसरे सलमान इस काम में काफी तेज था. इसीलिए पहली मुलाकात में ही भोलू ने सलमान को बिजनैस पार्टनर बना लिया था. इस के बाद दोनों मिल कर जानवर खरीदने और बेचने लगे.

भोलू ने सलमान को बिजनैस पार्टनर तो बना लिया, लेकिन उस के बारे में उसे ज्यादा कुछ पता नहीं था. उस के बारे में उसे सिर्फ इतना पता था कि वह किरावली का रहने वाला है और उस का मोबाइल नंबर यह है. भोलू के साथ रहने में सलमान को फायदा दिखाई दिया, इसलिए वह उस के साथ रहने लगा. बड़े भाई का साला होने की वजह से इमरान की भोलू से खूब पटती थी. जिस दिन भोलू पशु मेले या बाजार नहीं गया होता था, सारा दिन इमरान उसे अपने साथ रखता था. उसी के सामने वह बैंक से पैसे भी निकालता था और जमा भी कराता था. 50 लाख से ले कर करोड़ रुपए निकालना उस के लिए आम बात थी.

भोलू ने कभी कोई ऐसी वैसी हरकत नहीं की थी, इसलिए इमरान उस पर पूरा विश्वास करने लगा था. भोलू का काम दोनों ओर से ठीकठाक चल रहा था. उस की कमाई महीने में लाख रुपए से ऊपर थी. लेकिन कमाई बढ़ी तो उस की पैसों की भूख भी बढ़ गई थी. अब वह करोड़पति बनने के सपने देखने लगा.

एक दिन शाम को वह सलमान के साथ बैठा था तो उस के मुंह से निकला, ‘‘यार सलमान, मेरे पास एक ऐसी योजना है, जिस के तहत हमें एक करोड़ रुपए आसानी से मिल सकते हैं.’’

‘‘कैसे?’’ सलमान ने पूछा.

इस के बाद भोलू ने उसे जो योजना बताई, सुन कर सलमान की रूह कांप उठी. लेकिन जब भोलू ने उसे पूरी योजना समझा कर मिलने वाली रकम का लालच दिया तो वह उस की योजना में शामिल हो गया.  3 दिसंबर को उन्होंने अपनी इस योजना को अंजाम देने की तैयारी भी कर ली. 2 दिसंबर यानी सोमवार को भोलू इमरान के साथ ही रहा. उस दिन बैंक का कोई काम नहीं था, इसलिए बैंक जाना नहीं हुआ. लेकिन उस दिन भोलू को पता चल गया कि अगले दिन इमरान को बैंक जाना है और लगभग एक करोड़े रुपए निकाल कर लाना है. शाम को घर जाते समय इमरान ने भोलू को वाटर वर्क्स चौराहे पर छोड़ दिया तो वहां से वह वजीरपुरा स्थित अपने घर चला गया.

इमरान की गाड़ी से उतरते ही भोलू ने सलमान को फोन कर के अगले दिन चाकू और पिस्तौल ले कर तैयार रहने के लिए कह दिया था. अगले दिन यानी 3 दिसंबर, 2013 दिन मंगलवार को योजनानुसार 10 बजे के आसपास भोलू ने अपने बहनोई इरफान को फोन कर के बताया कि आज वह सलमान के साथ जानवरों की खरीदारी करने शमसाबाद जा रहा है. इसलिए वह देर शाम तक ही स्लाटर हाउस आ पाएगा. तब इरफान ने उस से कहा था, ‘‘आज इमरान को बैंक से बड़ी रकम निकाल कर लाना है, हो सके तो तुम यह काम करा कर जाओ.’’

इस पर भोलू ने कहा, ‘‘दरअसल वहां कुछ व्यापारी सस्ते जानवर ले कर आने वाले हैं, अगर उन से सौदा पट गया तो काफी मोटा मुनाफा हो सकता है. इसलिए वहां जाना जरूरी है.’’

इस के बाद भोलू ने इमरान को भी फोन कर के कहा था, ‘‘इमरानभाई, मैं सलमान के साथ शमसाबाद जानवर खरीदने जा रहा हूं. इसलिए तुम अकेले ही बैंक चले जाना. क्योंकि मैं देर शाम तक ही वापस आ पाऊंगा.’’

योजनानुसार न तो भोलू शमसाबाद गया न सलमान. दोनों साए की तरह इमरान के पीछे इस तह लगे रहे कि वह उन्हें देख न पाए. इस बीच इमरान को फोन कर के वह पूछता रहा कि वह क्या कर रहा है? लेकिन उस ने यह नहीं पूछा था कि आज वह कितने रुपए निकाल रहा है?

इमरान जैसे ही रुपए ले कर बैंक से निकला, भोलू और सलमान टूसीटर से उस से पहले वाटर वर्क्स चौराहे पर पहुंच गए और वहीं खड़े हो कर इमरान पर नजर रखने लगे. जब उन्हें लगा कि इमरान वाटर वर्क्स चौराहे पर पहुंच गया होगा तो भोलू ने उसे फोन किया, ‘‘इमरानभाई, मैं शमसाबाद से लौट आया हूं और वाटर वर्क्स चौराहे पर खड़ा हूं. इस समय तुम कहां हो?’’

‘‘मैं यहीं वाटर वर्क्स चौराहे पर जाम में फंसा हूं. जहां से जवाहर पुल शुरू होता है, तुम वहीं पहुंचो. मैं वहीं से तुम्हें ले लूंगा.’’

भोलू सलमान के साथ जवाहर पुल के पास जा कर खड़ा हो गया. 5-7 मिनट बाद इमरान वहां पहुंचा तो भोलू इमरान की बगल वाली सीट पर बैठ गया तो सलमान पीछे वाली सीट पर. गाड़ी आगे बढ़ गई. इमरान को बातों में उलझा कर भोलू ने डैशबोर्ड पर रखे उस के दोनों मोबाइल फोन के स्विच औफ कर दिए. कार जैसे ही कुबेरपुर के पास पहुंची, भोलू ने कहा, ‘‘इमरानभाई, मेरे 2 दोस्त चौगान गांव के पास एक्सप्रेसवे के नीचे मेरा इंतजार कर रहे हैं. अगर तुम मुझे वहां तक छोड़ देते तो अच्छा रहता.’’

इमरान ने नानुकुर की, लेकिन चौगान गांव वहां से कोई बहुत ज्यादा दूर नहीं था. फिर भोलू पर उसे पूरा विश्वास था, इसलिए साथ में इतने रुपए होने के बावजूद इमरान ने कार चौगान गांव की ओर मोड़ दी. चौगान से कोई आधा किलोमीटर पहले ही सुनसान जंगली रास्ते पर लघुशंका के बहाने भोलू ने इमरान से कार रुकवा ली. भोलू नीचे उतरा और इधरउधर देख कर अंदर बैठे सलमान को इशारा किया. जैसे ही सलमान नीचे उतरा, भोलू ने तमंचा निकाल कर ड्राइविंग सीट पर बैठे इमरान के सीने पर गोली मार दी. उस ने दूसरी गोली मारनी चाही, लेकिन तमंचा धोखा दे गया. गोली लगते ही इमरान के मुंह से हलकी सी चीख निकली और वह छटपटाने लगा. भोलू ने सलमान से छुरा ले कर इमरान पर कई वार करने के साथ गला भी काट दिया कि कहीं यह बच न जाए. चाकू चलाने के दौरान भोलू के दोनों हाथ जख्मी हो गए, जिस में उस ने रूमाल बांध ली.

इस के बाद इमरान की लाश घसीट कर दोनों ने हाईवे से सटे एक गड्ढे में फेंक दी. वहीं पास ही उन्होंने चाकू और तमंचा भी फेंक दिया. इस के बाद कार ले कर भाग निकले. रास्ते में एक हैंडपंप पर कार रोक कर थोड़ीबहुत धुलाई की. वहां से थोड़ा आगे आ कर एक्सप्रेसवे पर उन्होंने रकम गिनी तो पता चला कि ये तो सिर्फ 20 लाख रुपए ही हैं. जबकि उन्हें एक करोड़ रुपए होने की उम्मीद थी. दोनों ने ही अपना अपना सिर पीट लिया. बहरहाल अब तो जो होना था, वह हो गया था. दोनों ने आधीआधी रकम ले ली. भोलू ने  सलमान को कार ठिकाने लगाने के लिए दे कर एक जगह रकम छिपाई और खुद स्लाटर हाउस पहुंच गया.

स्लाटर हाउस में इमरान के न आने की वजह से इरफान परेशान था. बहनोई से हालचाल पूछ कर वह इमरान की तलाश करने के बहाने बाहर आ गया. इरफान ने उस के हाथों पर रूमाल बंधी देखी तो उस के बारे में पूछा था. तब उस ने बहाना बना दिया था. स्लाटर हाउस से निकल कर भोलू ने छिपा कर रखे रुपए अपने एक परिचित के पास रखे और वापस जा कर इरफान के साथ इमरान की तलाश करने लगा.

दूसरी ओर इमरान की कार ले कर गया सलमान वहां से 5 किलोमीटर दूर एक ढाबे पर पहुंचा और एक दुर्घटनाग्रस्त ट्रेलर के पीछे कार खड़ी कर के ढाबे के एक कर्मचारी को 5 सौ रुपए का नोट दे कर कहा कि वह दिल्ली जा रहा है, इसलिए एक दिन के लिए अपनी इस कार को यहीं खड़ी कर रहा है. ढाबे के उस कर्मचारी को क्या ऐतराज होता, उस ने कह दिया कि खड़ी कर दो. सलमान ने वहीं अपने फोन का स्विच औफ किया और रुपए ले कर फरार हो गया.

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पुलिस ने मोबाइल फोन की लोकेशन के आधार पर इमरान की हत्या में भोलू को गिरफ्तार किया था. इस की वजह यह थी कि उस ने सब से कहा था कि वह शमसाबाद जा रहा है, जबकि उस के मोबाइल फोन की लोकेशन आईसीआईसीआई बैंक से ले कर जहां से इमरान की लाश बरामद हुई थी, वहां तक मिली थी. मामले का खुलासा होने के बाद पुलिस ने इमरान की कार तो उस ढाबे से बरामद कर ली थी, लेकिन सलमान का मोबाइल बंद होने की वजह से उसे नहीं पकड़ पाई. पूछताछ के बाद पुलिस ने भोलू को अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया था.

सलमान की तलाश में आगरा के कई थानों की पुलिस तो लगी ही है, मृतक इमरान के घर वाले भी उस की खोज में लगे हैं. उन्हें 10 लाख रुपयों से ज्यादा इमरान के हत्यारे को जेल की सलाखों के पीछे पहुंचाने की चिंता है.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

चुनाव लड़वाने के लिए ली दोस्त की बीवी उधार, चेयरमैन बनते ही मुकर गयी

Family Story in Hindi : नसीम अंसारी की 2 पत्नियां थीं, लेकिन आर्थिक तंगी और शराब की लत के चलते वह परेशान रहता था. भोजपुर के चेयरमैन शफी अहमद ने चुनाव लड़ाने के लिए जब उस से उस की दूसरी पत्नी रहमत जहां मांगी तो वह इनकार नहीं कर सका. जब रहमत जहां चुनाव जीत कर चेयरमैन बन गई तो उस ने नसीम को पहचानने से भी इनकार कर दिया. ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि …

5 अगस्त, 2018 को एक डेली न्यूजपेपर में एक खबर प्रमुखता से छपी, जिस की हैडलाइन ऐसी थी जिस पर जिस की भी नजर गई, उस ने जरूर पढ़ी. न्यूज कुछ इस तरह से थी— ‘भरोसे पर दोस्त ने दोस्त को पत्नी उधार दी थी, चेयरमैन बन गई तो वापस नहीं किया.’

इस न्यूज में उधार में दी गई बीवी वाली बात पढ़ने वाला हर आदमी हैरत में था. इस हैडलाइन की न्यूज में यह भी शामिल था कि महिला के पति की ओर से बीवी को Family Story in Hindi वापस दिलाने के लिए अदालत में अर्जी लगाई गई है. इस न्यूज के हिसाब से एक शादीशुदा व्यक्ति को अपनी बीवी को नेता बनाने का ऐसा खुमार चढ़ा कि उस ने पत्नी को सियासी गलियारों में उतारने के लिए यह सोच कर बीवी अपने दोस्त को उधार दे दी कि वह उसे चुनाव लड़ाएगा. यह संयोग ही था कि उस की बीवी चुनाव जीतने के बाद चेयरमैन बन गई. लेकिन चेयरमैन बनने के बाद पत्नी ने पति को भुला दिया. शर्त के मुताबिक चुनाव जीतने के बाद महिला के पति ने दोस्त से बीवी लौटाने को कहा तो दोनों की दोस्ती दुश्मनी में बदल गई. यहां तक कि दोस्त ने महिला के पति को पहचानने तक से इनकार कर दिया. इस पर मामला गरमा गया. नतीजा यह हुआ कि जो बात अभी तक 3 लोगों के बीच थी, वह सार्वजनिक हो गई.

उत्तराखंड के ऊधमसिंह नगर के थाना कुंडा, जसपुर के थाना क्षेत्र में एक गांव है बावरखेड़ा. नसीम अंसारी का परिवार इसी गांव में रहता है. नसीम के अनुसार, मुरादाबाद जिले के भोजपुर निवासी पूर्व नगर अध्यक्ष शफी अहमद के साथ उस की काफी समय से अच्छी दोस्ती थी. उसी दोस्ती के नाते शफी अहमद का उस के घर आनाजाना था. कुछ महीने पहले शफी ने उसे विश्वास में ले कर उस की पत्नी रहमत जहां को भोजपुर से चेयरमैन का चनुव लड़ाने की बात कही. शफी अहमद ने नसीम को बताया कि इस बार चेयरमैन की सीट ओबीसी के लिए आरक्षित है.

जबकि वह सामान्य जाति के अंतर्गत आने के कारण अपनी बीवी को चुनाव नहीं लड़ा सकता. नसीम अपने दोस्त के झांसे में आ गया और उस ने दोस्त की मजबूरी समझते हुए चुनाव लड़ाने के लिए अपनी बीवी उस के हवाले कर दी. लेकिन दूसरे की बीवी को चुनाव लड़ाना इतना आसान काम नहीं था. यह बात नसीम ही नहीं, नसीम की बीवी रहमत जहां भी जानती थी. इस के लिए सब से पहले रहमत जहां का कानूनन शफी अहमद की बीवी बनना जरूरी था. शफी की बीवी का दरजा मिलने के बाद ही वह चुनाव लड़ने की हकदार होती.

चुनाव के लिए इशरत बनी शमी की पत्नी चुनाव लड़ने में आ रही अड़चन को दूर करने के लिए दोनों दोस्तों और रहमत जहां ने साथ बैठ कर गुप्त रूप से समझौता किया. उसी समझौते के तहत शफी अहमद ने रहमत जहां से कोर्टमैरिज कर ली. कोर्टमैरिज के बाद शफी अहमद ने अपने पद और रसूख के बल पर जल्दी ही सरकारी कागजातों में रहमत जहां को अपनी बीवी दर्शा कर उस का आईडी कार्ड और आधार कार्ड बनवा दिया. रहमत जहां का आधार कार्ड बनते ही उस ने चुनाव की अगली प्रक्रिया शुरू कर दी. इस से पहले सन 2012 से 2017 तक भोजपुर के चेयरमैन की कुरसी पर शफी अहमद का ही कब्जा रहा था. शफी को पूरा विश्वास था कि इस बार भी जनता उन्हीं का साथ देगी. लेकिन इस बार आरक्षण के कारण शफी को सपा से टिकट नहीं मिल पाया. वजह यह थी कि इस बार भोजपुर चेयरमैन की सीट पिछड़े वर्ग की महिला के लिए आरक्षित कर दी गई थी.

शफी अहमद सामान्य वर्ग में आते थे. इस समस्या से निपटने के लिए शफी अहमद ने रहमत जहां से कोर्टमैरिज कर के उसे कानूनन अपनी बीवी बना कर निर्दलीय चुनाव लड़वाया. शफी के पुराने रिकौर्ड और रसूख की वजह से रहमत जहां चुनाव जीत गई. उस ने अपनी प्रतिद्वंदी परवेज जहां को 117 वोटों से हरा कर जीत हासिल की थी. रहमत जहां को चेयरमैन बने हुए अभी 8 महीने ही हुए थे कि नसीम अंसारी ने अपनी बीवी रहमत जहां को वापस ले जाने के लिए शफी अहमद से बात की तो बात बढ़ गई. शफी ने इस मामले से अपना पल्ला झाड़ते हुए नसीम से कहा कि वह स्वयं ही रहमत जहां से बात करे.

नसीम ने जब इस बारे में रहमत जहां से बात की तो उस ने साफ कह दिया कि तुम से मेरा कोई लेनादेना नहीं है. मैं ने शफी अहमद से कोर्टमैरिज की है. वही मेरे कानूनन पति हैं. मैं तुम्हें नहीं जानती. रहमत जहां की बात सुन कर नसीम स्तब्ध रह गया. उस ने बच्चों का वास्ता दे कर रहमत से ऐसा न करने को कहा, लेकिन उस ने उस के साथ जाने से साफ इनकार कर दिया. नसीम ने वापस मांगी बीवी इस पर नसीम ने फिर से शफी अहमद से बात की और अपनी बीवी वापस मांगी, लेकिन उस ने रहमत जहां को देने से साफ मना कर दिया. शफी अहमद का कहना था कि उस ने रहमत के साथ निकाह किया है और वह कानूनन उस की बीवी है. उसे जो करना है करे, वह रहमत को वापस नहीं देगा.

उस के बाद नसीम के पास एक ही रास्ता था कि वह अदालत की शरण में जाए. उस ने जसपुर के अधिवक्ता मनुज चौधरी के माध्यम से जसपुर के न्यायिक मजिस्ट्रैट की अदालत में धारा 156(3) के तहत प्रार्थनापत्र दिया, जिस में कहा गया कि शफी अहमद ने उस की बीवी से जबरन निकाह कर लिया. नसीम अंसारी ने अदालत में जो प्रार्थनापत्र दिया, उस में कहा कि वर्ष 2006 में उस का निकाह सरबरखेड़ा निवासी दादू की बेटी रहमत जहां के साथ हुआ था, जिस से उस का एक बेटा और एक बेटी हैं. 17 नवंबर, 2017 की रात 10 बजे शफी अहमद, नईम चौधरी, मतलूब, जिले हसन निवासी भोजपुर, उस के घर आए. उन लोग ने मेरी कनपटी पर तमंचा रखा और मेरी पत्नी को कार में डाल कर ले गए. बाद में शफी अहमद ने उस की बीवी के साथ जबरन निकाह कर लिया. उस के कुछ समय बाद कुछ लोग कार से फिर उस के घर आए और उस के दोनों बच्चों को उठा ले गए.

13 अगस्त, 2018 को इस मामले में अदालत ने पीडि़त नसीम अंसारी के अधिवक्ता मनुज चौधरी की दलील सुनने के बाद थाना कुंडा की पुलिस को रिपोर्ट दर्ज करने के आदेश दिए. नसीम Family Story in Hindi अंसारी ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि रहमत जहां ने उसे बिना तलाक दिए ही उस के साथ निकाह किया है, जो शरीयत के हिसाब से गलत है. बदल गई रहमत जहां दूसरी ओर रहमत जहां का कहना था कि उस ने नसीम की रजामंदी से ही शफी के साथ निकाह किया था. आर्थिक तंगी के चलते नसीम ने शफी अहमद से इस के बदले हर माह घर खर्च के लिए 12 हजार रुपए देने का समझौता किया था, जो शफी अहमद उसे हर माह दे रहे हैं. इस में उस का कोई कसूर नहीं. इस वक्त वह कानूनन शफी की पत्नी है और रहेगी. उस के दोनों बच्चे भी उसी के साथ रह रहे हैं, जिन्हें शफी के साथ रहने में कोई ऐतराज नहीं.

बहरहाल, नसीम अहमद की ओर से यह मामला थाना कुंडा में दर्ज हो गया. कुंडा थाने के थानाप्रभारी सुधीर ने सच्चाई सामने लाने के लिए जांच शुरू कर दी. इस मामले पर शुरू से प्रकाश डालें तो कहानी कुछ और ही कहती है. उत्तराखंड के ऊधमसिंह नगर का गांव सरबरखेड़ा थाना कुंडा क्षेत्र में आता है. सरबरखेड़ा मुसलिम बाहुल्य आबादी वाला गांव है. अब से कुछ साल पहले यह गांव बहुत पिछड़ा हुआ था. गांव में गिनेचुने लोगों को छोड़ कर अधिकांश लोग मजदूरी करते थे. लेकिन गांव के पास में नवीन अनाज मंडी बनते ही गांव के लोगों के दिन बहुरने लगे.

अनाज मंडी बनने के बाद मजदूर किस्म के लोगों को घर बैठे ही मजदूरी मिलने लगी तो यहां के लोगों के रहनसहन में काफी बदलाव आ गया. बाद में गांव के पास हाईवे बनते ही जमीनों की कीमतें कई गुना बढ़ गईं. यहां के कम जमीन वाले काश्तकारों ने अपनी जमीन बेच कर अपनेअपने कारोबार बढ़ा लिए. इसी गांव में दादू का परिवार रहता था. दादू के पास जुतासे की नाममात्र की जमीन थी जबकि परिवार बड़ा था, जिस में 5 लड़के थे और 2 लड़कियां. जमीन से दादू को इतनी आमदनी नहीं होती थी कि अपने परिवार की रोजीरोटी चला सके. इस समस्या से निपटने के लिए दादू ने अनाज मंडी में अनाज खरीदने बेचने का काम श्ुरू कर दिया.

दादू गांवगांव जा कर धान, गेहूं खरीदता और उसे एकत्र कर के अनाज मंडी में ला कर बेच देता था. इस से उस के परिवार का पालनपोषण ठीक से होने लगा. दादू का काम मेहनत वाला था. इस काम से आमदनी बढ़ी तो उस के खर्च भी बढ़ते गए. पैसा आया तो दादू को शराब पीने की लत गई. धीरेधीरे वह शराब का आदी हो गया, जिस की वजह से वह फिर आर्थिक तंगी में आ गया. जब घर के खर्च के लिए लाले पड़ने लगे तो वह जुआ खेलने लगा. दरअसल, उस की सोच थी कि वह जुए में इतनी रकम जीत लेगा कि घर के हलात सुधर जाएंगे. लेकिन हुआ उलटा. वह मेहनत से जो कमाता जुए की भेंट चढ़ जाता.

उसी दौरान उस की मुलाकात नसीम से हुई. नसीम में जुआ खेलने की लत तो नहीं थी, लेकिन शराब पीने का वह भी आदी था. नसीम सरबरखेड़ा गांव से करीब 3 किलोमीटर दूर गांव बाबरखेड़ा का रहने वाला था. नसीम अपने 3 भाइयों में दूसरे नंबर का था. तीनों भाइयों पर जुतासे की थोड़ीथोड़ी जमीनें थीं. तीनों ही अलगअलग रहते थे. कई साल पहले नसीम का निकाह थाना ठाकुरद्वारा, जिला मुरादाबाद में आने वाले गांव राजपुरा नंगला टाह निवासी सुगरा के साथ हुआ था. समय के साथ सुगरा 6 बच्चों की मां बनी, जिन में 2 लड़के और 4 लड़कियां थीं. थोड़ी सी जुतासे की जमीन से नसीम के बड़े परिवार का खर्च मुश्किल से चलता था. इस के बावजूद नसीम को शराब पीने की गंदी आदत पड़ गई थी. वह शराब पीने के चक्कर में इधरउधर चक्कर लगाता रहता था.

उसी दौरान उस की मुलाकात दादू से हो गई. शराब पीनेपिलाने के चलते दोनों एकदूसरे के संपर्क में आए. जल्दी ही दोनों की दोस्ती हो गई. दोस्ती के चलते दोनों एकदूसरे के घर भी आनेजाने लगे. उस वक्त तक दादू की बेटी रहमत जहां जवानी के दौर से गुजर रही थी. रहमत जहां देखनेभालने में बहुत सुंदर थी. नसीम ने चलाया चक्कर हालांकि नसीम का दादू के साथ दोस्ती का रिश्ता था, लेकिन जब नसीम ने रहमत जहां को देखा तो उस की नीयत में खोट आ गया. वह उसे गंदी नजरों से देखने लगा. रहमत जहां भी नसीम की निगाहों को परखने लगी थी. रहमत जहां को यह मालूम नहीं था कि नसीम शादीशुदा है. लेकिन जब वह उस की नजरों में प्रेमी बन कर उभरा तो उस ने अपने दिल में उस के लिए गहरी जगह बना ली. प्रेम का चक्कर शुरू हुआ तो दोनों घर से बाहर भी मिलने लगे.

दादू की बेटी क्या खिचड़ी पका रही है, उस के घर वालों को इस बात की जरा भी जानकारी नहीं थी. उन्हीं दिनों दादू का बड़ा लड़का बीमार पड़ गया. बीमारी की वजह से उसे कई दिन तक अस्पताल में भरती रहना पड़ा. उस के इलाज के लिए काफी रुपयों की जरूरत थी जबकि उस वक्त दादू आर्थिक तंगी से गुजर रहा था. कुछ दिन पहले ही नसीम ने अपनी जुतासे की थोड़ी सी जमीन बेची थी. उस के पास जमीन का कुछ पैसा बचा हुआ था. यह बात दादू को भी पता थी. दादू ने अपनी मजबूरी नसीम के सामने रखते हुए मदद करने को कहा तो नसीम ने उस के लड़के के इलाज के लिए कुछ रुपए उधार दे दिए. उन्हीं रुपयों से दादू ने अपने बेटे का इलाज कराया. उस का बेटा ठीक हो गया.

इस के कुछ दिन बाद नसीम ने दादू से अपने पैसे मांगे तो उस ने मजबूरी बताते हुए फिलवक्त पैसे न देने की बात कही. नसीम दादू की मजबूरी सुन कर शांत हो गया. नसीम के सामने दादू से बड़ी मजबूरी आ गई थी. लेकिन दादू की बेटी रहमत जहां को चाहने की वजह से वह दादू से कुछ कह भी नहीं सकता था. यह बात दादू भी समझता था कि नसीम उस की बेटी के पीछे हाथ धो कर पड़ा है लेकिन वह नसीम के अहसानों तले दबा हुआ था, इसलिए उस के सामने मुंह खोल कर कुछ भी नहीं कह सकता था. अपनी मजबूरी के आगे दादू ने नसीम और अपनी बेटी रहमत जहां को अनदेखा कर दिया. दादू की हालत देख कर नसीम भी समझ गया था कि उस के पैसे किसी भी कीमत पर नहीं मिलने वाले.

वह बीच मंझधार में खड़ा था. एक तरफ उस का पैसा था, जो दादू के बेटे की बीमारी पर खर्च हो चुका था. जबकि दूसरी ओर उस की मोहब्बत रहमत जहां थी, जिसे वह दिलोजान से चाहने लगा था. रहमत जहां भी नसीम को दिल से चाहती थी. उसे नसीम के साथ कभी भी कहीं भी जाने से ऐतराज नहीं था. उस वक्त दादू आर्थिक तंगी से गुजर रहा था. उस के पास नवीन अनाज मंडी के सामने हाईवे के किनारे जुतासे की कुछ जमीन थी, जो आर्थिक तंगी के चलते उस ने पहले ही बेच दी. अब उस के पास केवल जुआ खेलने और शराब पीने के अलावा कोई काम नहीं था. ऐसी स्थिति में नसीम ने दादू से अपने पैसों के बदले उस की बेटी का हाथ मांगा तो वह राजी हो गया. रहमत जहां हो गई नसीम की

दादू जानता था कि नसीम और उस की बेटी एकदूसरे को चाहते हैं. अगर उस ने बेटी की शादी उस की रजामंदी के खिलाफ की तो उस का अंजाम ठीक नहीं होगा. यही सोचते हुए उस ने नसीम से अपनी बेटी रहमत जहां का निकाह कर दिया. रहमत जहां से निकाह के बाद नसीम उसे अपनी दूसरी बीवी बना कर अपने घर ले आया. इस में रहमत जहां ने ऐतराज नहीं किया. वह उस के घर में दूसरी बीवी की तरह रहने लगी. नसीम अहमद भी काफी दिनों से शराब का आदी था. शराब और शबाब के चक्कर में उस ने अपनी जुतासे की सारी जमीन दांव पर लगा दी थी. रहमत जहां के प्यार में पड़ कर उस ने उस से निकाह तो कर लिया था, लेकिन जब 2 बीवियां होने से खर्च बढ़ा तो उस का दिमाग घूमने लगा. वह बहुत परेशान रहने लगा.

शफी उर्फ बाबू का पहले से ही बाबरखेड़ा आनाजाना था. वजह यह कि शफी अहमद की एक बुआ का निकाह बाबरखेड़ा में हुआ था. वह अपनी बुआ के घर आताजाता था. शफी अहमद की बुआ का एक लड़का था याकूब, जो नसीम का अच्छा दोस्त था. याकूब के घर पर ही शफी अहमद की जानपहचान नसीम से हुई. नसीम शफी अहमद के बारे में सब कुछ जान चुका था. जब उसे यह पता चला कि शफी भोजपुर कस्बे का नगर पंचायत चेयरमैन है तो वह खुश हुआ. वैसे भी शफी उस के दोस्त याकूब का ममेरा भाई था. गांव में अपना रुतबा बढ़ाने के लिए नसीम कई बार उसे अपने घर भी ले गया था. घर आनेजाने के चक्कर में शफी की नजर नसीम की बीवी रहमत जहां पर पड़ी तो वह उस की खूबसूरती पर फिदा हो बैठा.

हालांकि उस वक्त चेयरमैन शफी के घर में पहले से ही एक से बढ़ कर एक 2 खूबसूरत बीवियां थीं. लेकिन रहमत जहां पर उन की नजर पड़ी तो वह अपने पर काबू नहीं रख सके. इसी चक्कर में उन का नसीम के घर आनाजाना और भी बढ़ गया. कुछ ही दिनों में शफी अहमद के स्वार्थ की नींव पर नसीम से पक्की दोस्ती हो गई. जब कभी शफी अहमद अपने यहां पर कोई प्रोग्राम कराते तो नसीम और उस की बीवी को बुलाना नहीं भूलते थे. इसी आनेजाने के दौरान शफी अहमद और रहमत जहां के बीच प्यार का रिश्ता बन गया. मोबाइल ने जल्दी ही शफी अहमद और रहमत जहां के बीच की दूरी खत्म कर दी. रहमत जहां शफी अहमद के बारे में सब कुछ जान चुकी थी. चेयरमैन के घर में पहले से ही 2 बीवियां मौजूद हैं, यह बात रहमत जहां जानती थी, लेकिन शफी अहमद की ओर से इशारा मिलने पर उस का दिल भी मजबूर हो गया.

शफी अहमद के पास धनदौलत, ऐशोआराम, इज्जत सभी कुछ था. रहमत जहां ने कई बार शफी अहमद से निकाह करने को कहा. लेकिन समाज में अपनी साख खत्म होने की बात कह कर शफी ने मना कर दिया था. इस के बावजूद रहमत जहां अपने दिल को समझा नहीं पा रही थी. नसीम के 2 बच्चों की मां बनने के बावजूद रहमत जहां शफी के प्यार में पड़ गई थी. रहमत को शफी अहमद में दिखा भविष्य इत्तफाक से उसी समय भोजपुर नगर पंचायत का चुनाव आ गया. अब तक नगर पंचायत अध्यक्ष की सीट शफी अहमद के पास थी, लेकिन चुनाव करीब आने पर पता चला कि इस बार सीट ओबीसी के लिए आरक्षित है. शफी अहमद चूंकि सामान्य जाति में आते थे, इसलिए चेयरमैन की सीट उन के हाथ से निकलने का डर था.

शफी अहमद जानते थे कि नसीम की जाति ओबीसी के तहत आती है. बीवी होने के नाते रहमत जहां भी उसी जाति में आती थी. यह बात मन में आते ही शफी अहमद ने तिकड़मबाजी लगानी शुरू की. उन्हें पता था कि अगर नसीम से इस बारे में बात की जाए तो वह उन की बात नहीं टालेगा. हालांकि बात बहुत असंभव सी थी, फिर भी शफी अहमद ने बाबरखेड़ा जा कर नसीम और उस की बीवी रहमत जहां के सामने अपनी परेशानी रखते हुए इस बारे में बात की. पर नसीम ने इस मामले में उन का साथ देने से साफ इनकार कर दिया. नसीम अंसारी जानता था कि रहमत जहां को चुनाव लड़ने के लिए शफी की बीवी बन कर भोजपुर में रहना होगा.

भला वह अपनी बीवी को शफी के पास कैसे छोड़ सकता था. नसीम के दो टूक फैसले के बाद शफी अहमद के सपनों पर पानी फिर गया. फिर भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी. उन की रहमत जहां से मोबाइल पर बात होती रहती थी. शफी ने इस मामले में सीधे रहमत जहां से बात की तो उस के मन में लड्डू फूटने लगे. वह पहले से ही शफी के प्यार में पागल थी. यह बात सुन कर तो उस के दिल में खुशियों के फूल महकने लगे. वह जानती थी कि अगर वह भोजपुर की चेयरमैन बन गई तो उस की किस्मत सुधर जाएगी. शफी अहमद के दिल की बात जान कर उस ने नसीम को प्यार से समझाने की कोशिश की, लेकिन वह नहीं चाहता था कि उस की बीवी किसी और की बन कर रहे. नसीम को यह भी मालूम था कि ऐसे काम इतनी आसानी से नहीं होते. इस के लिए कानूनी काररवाई पूरी करना जरूरी है. फिर भी उस ने अपनी आर्थिक तंगी के चलते शफी अहमद से समझौता कर के अपनी बीवी चुनाव लड़ने के लिए उन्हें दे दी.

नसीम अंसारी के अनुसार आपसी समझौते के तहत शफी अहमद ने कहा था कि चुनाव जीतने के बाद वह उस की बीवी उसे वापस कर देगा. उस के बाद जो भी हुआ करेगा, रहमत जहां भोजपुर जा कर काम निपटा लिया करेगी. यह बात नसीम को भी अच्छी लगी. समझौते के बाद नसीम ने अपनी बीवी रहमत जहां को चुनाव लड़ने की अनुमति दे दी. शफी अहमद ने रहमत जहां को अपनी बीवी दर्शाने के लिए उस के साथ कोर्टमैरिज कर ली. कोर्टमैरिज के बाद रहमत जहां कानूनन शफी अहमद की बीवी बन गई. रहमत जहां को बीवी का दरजा मिलते ही शफी अहमद ने चुनाव की तैयारियां शुरू कर दीं. सन 2017 में जब नामांकन किया जा रहा था, शफी अहमद अपनी नई पत्नी रहमत जहां को पिछड़ी जाति की महिला के रूप में सामने ले आए. यह देख विरोधी उम्मीदवार हैरान रह गए. लेकिन लोगों को विश्वास नहीं हो रहा था कि वह उन की बीवी है.

रहमत जहां बन गई चेयरमैन शफी अहमद रहमत जहां को अपनी बीवी बता कर नामांकन कराने कलेक्टरेट पहुंचे तो विपक्षियों में खलबली मच गई. लेकिन शफी ने रहमत जहां के पिछड़ी जाति के प्रमाणपत्र प्रस्तुत कर के विपक्षियों की नींद उड़ा दी. निकाह के बावजूद लोगों को भरोसा नहीं था कि पिछड़ी की रहमत जहां जीत पाएगी. फिर भी शफी Family Story in Hindi अहमद ने हार नहीं मानी. किसी पार्टी से टिकट नहीं मिला तो उन्होंने रहमत जहां को निर्दलीय चुनाव लड़ाने का फैसला किया. इस सीट पर वह पिछले 5 सालों से काबिज थे. उन्हें पूरा यकीन था कि  जनता उन का साथ देगी. शफी अहमद ने फिर से चेयरमैन की कुरसी पर कब्जा जमाने के लिए दिनरात मेहनत की. फलस्वरूप वह रहमत जहां के नाम पर चुनाव जीत गए. सन 2017 के लिए नगर पंचायत भोजपुर की चेयरमैन का सेहरा रहमत जहां के सिर पर बंध गया.

अभी इस चुनाव को जीते हुए 8 महीने भी नहीं हो पाए थे कि नसीम अहमद ने अपनी बीवी रहमत जहां को पाने के लिए कोर्ट में दावेदारी ठोक दी. इस से पहले नसीम अंसारी  ने अपनी बीवी वापस करने के लिए शफी अहमद से दोस्ती के नाते प्यार से बात की थी, लेकिन जब मामला ज्यादा उलझ गया तो उसे अदालत की शरण लेनी पड़ी. नसीम के प्रार्थनापत्र पर जसपुर के न्यायिक मजिस्ट्रैट प्रकाश चंद ने थाना कुंडा पुलिस को भोजपुर के पूर्व चेयरमैन शफी अहमद, उन के बहनोई नईम चौधरी, भाई जिले हसन और साथी मतलूब के खिलाफ रहमत जहां और उस के 2 बच्चों का अपहरण करने और बंधक बना कर जबरन निकाह करने के आरोप में केस दर्ज कर के जांच करने के आदेश दे दिए.

कुंडा पुलिस दर्ज केस के आधार पर जांच में जुट गई. इस मामले में नसीम अंसारी का कहना था कि शफी अहमद ने उस की आर्थिक तंगी का लाभ उठा कर उस से उस के बीवीबच्चों को छीन लिया. वह अपने बीवीबच्चों को हासिल करने के लिए अंतिम सांस तक लड़ेगा. कई पेंच हैं मामले में वहीं दूसरी ओर नसीम अहमद की बीवी रहमत जहां का कहना था कि उस के निकाह के कुछ समय बाद ही नसीम को शराब पीने की लत पड़ गई थी. जिस के चलते उस ने अपनी जुतासे की पुश्तैनी जमीन भी बेच दी थी. उस के बाद उसे अपने 2 बच्चे पालने के लिए भी भुखमरी के दिन देखने पड़े. रहमत जहां के अनुसार उस ने नसीम को कई बार समझाने की कोशिश की लेकिन उस ने उस की एक नहीं सुनी. उस ने नसीम के शराब पीने का विरोध किया तो उस ने सन 2010 में उसे तलाक दे दिया था. नसीम के तलाक देने के बाद उस ने अपने दोनों बच्चों को साथ ले कर अपने पिता दादू के गांव सरबरखेड़ा में जा कर दिन गुजारे.

रहमत जहां का कहना था कि नसीम के तलाक देने के बाद उस ने 2011 में भोजपुर निवासी शफी अहमद से निकाह कर लिया. उस के बाद भी वह काफी दिनों तक अपने मायके में ही रही. बाद में वह चुनाव लड़ कर चेयरमैन बन गई तो नसीम के मन में लालच आ गया. नसीम अंसारी ने शफी अहमद से अपने खर्च के लिए कुछ रुपयों की मांग की, जिस के न मिलने पर उस ने यह विवाद खड़ा कर दिया. रहमत जहां का कहना था कि उस ने शफी अहमद के साथ निकाह किया है. नसीम उसे पहले ही तलाक दे चुका था. जिस के बाद उस का नसीम के साथ कोई भी संबंध नहीं रह गया था.

फिलहाल कुंडा पुलिस मामले की जांच कर रही है. रहमत किस की होगी, यह अभी भविष्य के गर्त में है.

 

नौकरानी ने 10 शादियां करके कमाएं करोड़ों रुपए

Social Story in Hindi : प्रीति को डा. सुधा के घर लाने से पहले ही सचिन ने उसे अच्छी तरह से समझा दिया था. हालांकि डा. सुधा का बेटा शिवम देखनेभालने मे स्मार्ट था, लेकिन जब इंसान दिमागी रूप से अस्वस्थ हो तो उस की सुंदरता का कोई लाभ नहीं. फिर भी प्रीति ने डा. सुधा के घर आते ही अपना पूरा ध्यान शिवम पर फोकस कर दिया था. वह घर के कामकाज करने के साथसाथ पूरे दिन शिवम की ही चापालूसी में लगी रहती थी. जिस से शिवम भी उस के साथ खुश रहने लगा था. उस के साथसाथ प्रीति डा. सुधा का भी पूरा ध्यान रखती थी. जिस के कारण कुछ ही दिनों में प्रीति ने डा. सुधा का मन जीत लिया और वह जल्दी ही उन के घर के सदस्य की तरह बन गई थी.

खुश हो कर डा. सुधा ने जब प्रीति की तारीफ करनी शुरू कर दी, तब प्रीति उस घर की बहू बनने के सपने संजोने लगी थी. कुछ ही दिनों में उस के रहनसहन में भी काफी बदलाव आ गया था. उस ने पूरी तरह से खुद को डा. सुधा के परिवार के अनुरूप ही ढाल लिया था. वह हर रोज महंगे कपड़े पहन कर बनठन कर रहती थी.

22 फरवरी, 2023 को डा. आकांक्षा ने अपनी मम्मी डा. सुधा सिंह को फोन किया, ‘‘कैसी हो मम्मी? कुछ खापी भी रही हो या नहीं?’’

‘‘हां बेटी, अब तो ठीक हूं मैं. बेटी, अब तू मेरी चिंता छोड़ दे. तेरे सचिन अंकल ने मेरी सेवा के लिए प्रीति नाम की एक मेड रखवा दी है. वह मेरी पूरी तरह से सेवा कर रही है.’’ डा. सुधा ने बताया.

डा. आकांक्षा सचिन को अच्छी तरह से जानती थी. सचिन का उन के घर पर पहले से ही आनाजाना था. यह सुन कर डा. आकांक्षा ने कुछ राहत की सांस ली. सोचा कि अब उसी के सहारे उस के भाई शिवम को भी खानापीना ठीक से मिल जाया करेगा.

उत्तर प्रदेश के जिला गाजियाबाद के मुरादनगर निवासी यूनिक ग्रुप औफ कालेज की चांसलर सुधा काफी समय से कैंसर रोग से ग्रस्त थीं. इस वक्त उन की बीमारी तीसरे स्टेज से गुजर रही थी. बहुत समय पहले किसी बीमारी के चलते उन के पति की मौत हो गई थी. उन की मौत के बाद यूनिक इंस्टीट्यूट औफ मैनेजमेंट टेक्नोलौजी (यूआईएमटी) की जिम्मेदारी उन्हीं के ऊपर आ पड़ी थी.

उन के 2 बच्चे थे, जिन में बड़ी बेटी आकांक्षा तथा उस से छोटा बेटा शिवम. बेटी आकांक्षा पढ़लिख कर डाक्टर बन गई, लेकिन उन का बेटा शिवम मंदबुद्धि था. जिस के कारण वह न तो ज्यादा पढ़लिख ही पाया था और न ही उस में किसी तरह की सोचसमझ की शक्ति ही थी.

सारी संपत्ति कर दी बेटी के नाम

डा. सुधा के पास अकूत संपत्ति थी, लेकिन उन्हें दुख इस बात का था कि उन का बेटा इस काबिल नहीं था कि उन के बाद वह पूरी तरह से अपनी देखरेख कर सके. इसी कारण उन्होंने समय रहते ही अपनी सारी संपत्ति बेटी आकांक्षा के नाम कर दी थी. जिस से उन की मौत के बाद वह उस की मालकिन बन जाए और अपने भाई की भी देखरेख करती रहे.

डा. सुधा ने समय रहते ही अपनी बेटी की शादी भी कर दी. डा. आकांक्षा दुलहन बन कर अपनी मम्मी और भाई को छोड़ कर अपनी ससुराल चली गई थी. लेकिन उस के बाद भी वह अपने भाई और मम्मी की पूरी तरह से खैरखबर लेती रहती थी. डा. सुधा इस वक्त 2 कालेजों की मालकिन थीं.

बेटे के मंदबुद्धि होने के कारण दोनों कालेजों की जिम्मेदारी उन्हें ही उठानी पड़ रही थी. अपने पति के निधन के बाद डा. सुधा ने सब कुछ ठीकठाक ही संभाल लिया था. लेकिन अचानक ही उन की भी तबीयत खराब रहने लगी, जिस के बाद उन की बेटी ने उन के चैकअप कराए तो पता चला कि डा. सुधा कैंसर से पीडि़त हैं. यह सुन कर डा. सुधा के साथसाथ उन की बेटी डा. आकांक्षा को भी बहुत बड़ा झटका लगा.

बीमारी भी ऐसी जिस का कोई इलाज ही नहीं. फिर भी डाक्टरों की सलाह पर उन्होंने महंगे से महंगा उन का इलाज कराया लेकिन उस से उन्हें कोई आराम नहीं मिल पा रहा था. धीरेधीरे उन की बीमारी तीसरे चरण पर पहुंच गई थी.

उसी दौरान सचिन उन की बीमारी के चलते उन की खैर खबर लेने उन के घर पहुंचा. सचिन का उन के घर पर काफी समय पहले से आनाजाना था. डा. सुधा ने कई बार उस के सामने अपने बेटे की चिंता जताते हुए अपनी परेशानी जाहिर की, ‘‘सचिन, तुम तो जानते हो कि मेरा बेटा किसी लायक नहीं है. न तो वह खुद कुछ बना कर खाता है और न ही मेरी कोई सहायता ही कर पाता है. इसीलिए अगर तुम्हारी नजर में कोई अच्छी लडक़ी हो तो बताओ, जो मेरी देखरेख के साथसाथ मेरे बेटे के खानेपीने की भी व्यवस्था करे और घर की देखरेख भी कर सके.’’

‘‘हांहां क्यों नहीं. भाभीजी, आप परेशान न हों. इस सब की चिंता करने की कोई जरूरत नहीं. आप का यह काम जल्दी ही हो जाएगा.’’

सचिन ने उसी समय अपने मोबाइल पर एक लडक़ी का फोटो दिखाते हुए कहा, ‘‘देखो भाभी, लडक़ी तो यह है. घर के कामकाज में पूरी तरह से परफेक्ट है. यह ऐसी मिलनसार है कि यह आप के साथ साथ आप के बेटे की भी पूरी तरह से देखरेख करेगी.’’

डा. सुधा ने लडक़ी का फोटो देखते ही कहा, ‘‘लडक़ी तो ठीक है. लेकिन मैं चाहती हूं कि लडक़ी ज्यादा चालाक नहीं होनी चाहिए.’’

‘‘अरे भाभी, कैसी बात करती हो. जब इस लडक़ी को मैं आप के घर पर रखवाऊंगा तो उस की जिम्मेदारी मेरी ही होगी. आप किसी तरह की टेंशन न लें. मैं कल ही इसे आप के पास ले आता हूं.’’ सचिन बोला और कुछ देर रुक कर वहां से चला गया.

23 फरवरी, 2023 को सचिन अपने साथ प्रीति नाम की एक खूबसूरत युवती को अपने साथ ले कर उन के घर पर पहुंचा. डा. सुधा ने देखते ही उसे पसंद कर लिया और अपने घर की चाबी भी उस के हवाले कर दी. उस के बाद प्रीति उसी दिन से डा. सुधा के घर पर मेड का काम करने लगी थी.

प्रीति को डा. सुधा के घर लाने से पहले ही सचिन ने उसे अच्छी तरह से समझा दिया था. हालांकि डा. सुधा का बेटा शिवम देखनेभालने मेें स्मार्ट था, लेकिन जब इंसान दिमागी रूप से अस्वस्थ हो तो उस की सुंदरता का कोई लाभ नहीं. फिर भी प्रीति ने डा. सुधा के घर आते ही अपना पूरा ध्यान शिवम पर फोकस कर दिया था.

प्रीति ने घर में जमा लिया अपना प्रभाव

वह घर के कामकाज करने के साथसाथ पूरे दिन शिवम की ही चापलूसी में लगी रहती थी. जिस से शिवम भी उस के साथ खुश रहने लगा था. उस के साथसाथ प्रीति डा. सुधा का भी पूरा ध्यान रखती थी. जिस के कारण कुछ ही दिनों में प्रीति ने डा. सुधा का मन जीत लिया और वह जल्दी ही उन के घर के सदस्य की तरह बन गई थी. खुश हो कर डा. सुधा ने जब प्रीति की तारीफ करनी शुरू कर दी, तब प्रीति उस घर की बहू बनने के सपने संजोने लगी थी. कुछ ही दिनों में उस के रहनसहन में भी काफी बदलाव आ गया था. उस ने पूरी तरह से खुद को डा. सुधा के परिवार के अनुरूप ही ढाल लिया था. वह हर रोज महंगे कपड़े पहन कर बनठन कर रहती थी.

कैंसर की बीमारी के चलते ही 7 अगस्त, 2023 को डा. सुधा की मौत हो गई. अपनी मां की मौत होने पर डा. आकांक्षा भी अपने घर आई. मां की मौत के बाद वह पहली बार प्रीति से मिली थी. उस से पहले उस ने उस का फोटो ही देखा था. प्रीति को घर में देख कर उसे हैरत हुई. उस वक्त उस के साथ 2 अन्य महिलाएं भी थीं, इसलिए डा. आकांक्षा ने प्रीति से उन के बारे में जानकारी ली, तब उस ने नीलम नामक युवती को अपनी मौसी और उस के साथ आई दूसरी महिला प्रवेश को अपनी दूर की रिश्तेदार बताया. प्रीति ने बताया कि वह उस से मिलने के लिए आई थीं. इस के बाद भी डा. आकांक्षा Social Story in Hindi की समझ में यह बात नहीं आ रही थी कि अगर वह उस से मिलने ही आई थीं तो वह अभी तक उसी के पास क्यों ठहरी हुई हैं.

भाई की शादी पर डा. आकांक्षा हुई आश्चर्यचकित

डा. सुधा की मृत्यु के बाद सभी संस्कार संपन्न हो चुके थे, फिर भी वह दोनों ही औरतें वहीं पर टिकी पड़ी थीं. जिन को देख कर डा. आकांक्षा का माथा ठनका. उस के बाद उस ने प्रीति से कहा कि अब उन्हें घर में मेड की जरूरत नहीं है. इसलिए आप लोग अपने घर जा सकती हो. आकांक्षा की बात सुनते ही प्रीति बोली, ‘‘दीदी, अब मैं यहां से कहां जाऊं, अब तो यही मेरा घर है. अब मैं इस घर की बहू और तुम्हारी भाभी हूं.’’

यह बात सुनते ही डा. आकांक्षा को दिन में तारे नजर आ गए. वह बोली, ‘‘क्या बकवास कर रही हो तुम? जानती हो कि क्या कह रही हो?’’

‘‘हां दीदी, मैं जो भी कह रही हूं, वह सच ही है. अगर तुम्हें विश्वास नहीं हो रहा तो अपने भाई से ही पूछ लो.’’

लेकिन शिवम तो पहले ही मंदबुद्धि था. उस के बाद भी डा. आकांक्षा को विश्वास नहीं हुआ तो प्रीति ने आकांक्षा को शादी के फोटो दिखाते हुए विश्वास दिलाने की कोशिश की. जिस में वह अस्पताल के रूम में शिवम के साथ उस के गले में माला पहनाते हुए नजर आ रही थी. यह सब देखते हुए उसे हैरत हुई. उसे विश्वास ही नहीं हो रहा था कि उस की मम्मी उसे बिना कुछ बताए ही इतना बड़ा कदम कैसे उठा सकती थीं. डा. आकांक्षा की हर रोज ही अपनी मम्मी से बात होती थी. लेकिन एक दिन भी उन्होंने उस से इस बारे में जिक्र तक नहीं किया था.

फिर भी डा. आकांक्षा ने प्रीति से शादी के मामले में कोई अन्य प्रूफ दिखाने की बात कही, लेकिन प्रीति के पास न तो कोर्ट मैरिज का कोई पेपर ही था और न ही किसी प्रकार का कोई अन्य सबूत. प्रीति के पास फोटो के अलावा कोई सबूत नहीं मिला तो उस ने तीनों महिलाओं को घर से निकल जाने को कहा. साथ ही डा. आकांक्षा ने तीनों को धमकी दी कि अगर वह सीधी तरह से घर से नहीं निकली तो वह उन्हें पुलिस के हवाले कर देगी.

पुलिस की धमकी सुन कर प्रीति ने फोन कर के सचिन को भी बुला लिया. डा. आकांक्षा सचिन को ठीक से जानती थी. सचिन के आते ही डा. आकांक्षा ने कहा, ‘‘अंकल, आप ने तो प्रीति को हमारे यहां पर एक मेड के काम के लिए रखवाया था. फिर अब वह जो बकवास कर रही है, वह सब क्या नौटंकी है?’’

डा. आकांक्षा की बात सुनते ही सचिन ने बताया कि आप की मम्मी ने मेरे सामने ही आप के भाई की शादी प्रीति के साथ कराई थी. आप की मम्मी शिवम को ले कर काफी समय से परेशान थीं. बीमारी के दौरान उन्होंने ही मेरे सामने शिवम की शादी प्रीति के साथ करने की इच्छा जाहिर की थी. उन्होंने कहा था कि अब मेरा तो पता नहीं कि कब मौत आ जाए. मेरी मौत के बाद मेरा बेटा बिलकुल ही अकेला पड़ जाएगा. मैं चाहती हूं कि मेरे जिंदा रहते ही मेरे बेटे की शादी हो जाए, जिस से मेरी मौत के बाद मेरा बेटा ठीकठाक रह सके. यही इच्छा जाहिर करते ही उन्होंने अस्पताल में एकदूसरे को माला पहना कर शादी की थी.

सचिन ने डा. आकांक्षा के सामने जो बात कही थी, वह भी उस के गले नहीं उतर रही थी. फिर भी उस ने कहा कि वह इस शादी पर विश्वास नहीं कर सकती. जब डा. आकांक्षा इस बात से सहमत नहीं हुई तो सचिन ने फोन कर के पुलिस को बुला लिया. सचिन के बुलाने पर पुलिस आ भी गई, लेकिन पुलिस इस मामले में कुछ नहीं कर पाई तो वह भी वहां से चली गई. उस के बाद सचिन भी उसी घर में उन के साथ रहने लगा. सचिन ने डा. आकांक्षा से साफ शब्दों मे कहा कि अब इस संपत्ति की मालिक प्रीति है. वह ही शिवम की पत्नी है. वह इस घर से कहीं नहीं जाएगी.

उन सभी के घर में रहते डा. आकांक्षा की समझ में कुछ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. डा. आकांक्षा समझ चुकी थी कि यह सब उस की भाई की संपत्ति हड़पने का मायाजाल है. उस के बाद डा. आकांक्षा गाजियाबाद के वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों से मिलीं और अपने साथ हुई धोखाधड़ी की कहानी सुनाई.

पुलिस ने खोल दी फरजी शादी की पोल

22 सितंबर, 2023 को इस मामले को ले कर डा. आकांक्षा की ओर से सचिन, प्रीति और उस की सहयोगी महिलाओं के खिलाफ धोखाधड़ी कर के संपत्ति हड़पने का मुरादनगर थाने में मुकदमा दर्ज कराया गया. थाने में मुकदमा दर्ज होते ही पुलिस ने इस मामले में जांचपड़ताल शुरू कर दी. जांच के दौरान पता चला कि सचिन पर पहले ही मुरादनगर, मसूरी और सिहानी गेट थाने में Social Story in Hindi धोखाधड़ी के कई मामले दर्ज हैं. सचिन गाजियाबाद में नूरपुर गांव का रहने वाला था. उसी जांचपड़ताल के दौरान इस शादी की हकीकत सामने आई कि करोड़ों की प्रौपर्टी को हड़पने के लिए इस गैंग ने यह षडयंत्र रचा था.

उसी दौरान पुलिस जांच में पता चला कि प्रीति की भी इस मामले में पूरी भागीदारी थी. प्रीति इस से पहले इसी तरह से धोखाधड़ी कर कई लोगों को चूना लगा चुकी थी. इस से पहले वह 10 शादियां कर चुकी थी. पुलिस ने अपनी काररवाई करते हुए उस की 4 शादियों के दस्तावेज भी हासिल कर लिए थे. यह सब जानकारी जुटाते ही पुलिस डा. सुधा के घर पर पहुंची तो पुलिस के पहुंचने से पहले ही सभी फरार हो चुके थे. उस के बाद पुलिस ने सचिन के गांव में उस के घर पर छापा मारा तो वह पुलिस के हत्थे चढ़ गया. पुलिस ने सचिन को गिरफ्तार किया और मुरादनगर थाने ले आई.

थाने लाते ही पुलिस ने उस से कड़ी पूछताछ की तो उस ने सारा राज आसानी से खोल दिया. सचिन ने स्वीकार किया कि सीधेसादे लोगों को अपने विश्वास में ले कर उन की शादी के बहाने उस का गैंग मोटी रकम ऐंठता था, जिस में प्रीति का अहम रोल था. सचिन ने पुलिस को बताया कि अब तक गैंग के लोग प्रीति की 10 शादियां करा कर करोड़ों रुपए कमा चुके हैं. इस पूरे गैंग का संचालक सचिन ही था. वही प्रीति के साथ प्रवेश और नीलम के सहारे ही करोड़पति घरानों में पहले मेड की नौकरी दिलाता था और फिर उन की प्रौपर्टी हथियाने के लिए मंदबुद्धि, दिव्यांग या फिर अधिक उम्रदराज व्यक्तियों के साथ शादी कर उन को अपने जाल में फंसा कर करोड़ों कमाता था.

यह गैंग के सदस्य किस तरह से लोगों को अपने जाल में फंसाता था और किस तरह लोगों को लूट कर फरार हो जाते, यह सभी को सचेत करने वाली नसीहत भरी कहानी है.

सचिन फरजी शादी कर ब्लैकमेलिंग का चलाता था गैंग

सचिन गाजियाबाद जिले के गांव नूरपुर का रहने वाला था. उस ने मात्र हाईस्कूल ही पास किया था. वह शुरू से ही शातिर दिमाग था. प्रीति उस के रिश्ते की भांजी थी. वह पहले से ही घरों में मेड का काम किया करती थी. प्रीति जब पहली बार किसी के घर में मेड के काम पर गई तो उस का लडक़ा विकलांग था, जिस की शादी नहीं हो पा रही थी. उस के पास करोड़ों रुपए की जमीनजायदाद थी. प्रीति ने उस की जमीनजायदाद को देख कर पहली बार गेम खेला और उस के लडक़े के साथ शादी कर के उस घर से लाखों रुपए के जेवर और नकदी ले कर फरार हो गई थी.

इस के बाद सचिन उस से मिला. प्रीति का यह काम उसे अच्छा लगा. फिर वह उसी के साथ उस की सहायता कर के ऐसे ही घरों को तलाश करने लगा था, जिस घर में विकलांग या फिर मंदबुद्धि अनमैरिड युवा होते थे. उस के बाद वह किसी भी तरह से उस परिवार से संपर्क कर के जानपहचान बढ़ा लेता था. उस के बाद मेड दिलाने के नाम पर प्रीति को वहां पर लगा देता था. फिर प्रीति उस घर में घुसते ही वहां पर अपना विश्वास जमा लेती और शादी कर के कुछ दिन वहीं पर रहती. योजना के अनुसार वह उस परिवार पर तरह तरह के आरोप लगा कर मुकदमा दर्ज करा देती, जिस के बाद अधिकांश परिवार अपनी इज्जत के डर से उसे मोटी रकम दे कर समझौता कर लेते थे. यही काम करते करते उस ने दिल्ली एनसीआर में 3 शादियां की थीं. उस से पहले उस ने 3 शादियां हरियाणा में की थीं. जिस के बाद वह सभी को चूना लगा कर फरार हो जाती थी.

डा. सुधा के घर भी प्रीति को सचिन ने ही बतौर मेड के रूप में रखवाया था. सचिन का डा. सुधा के घर पहले से ही आनाजाना था. उन्हीं संबंधों के कारण एक दिन डा. सुधा ने सचिन से किसी मेड को दिलाने की बात कही थी. सचिन का मकसद भी यही था. डा. सुधा के कहते ही उस ने प्रीति को उन के घर भेज दिया था. डा. सुधा के घर जाते ही प्रीति ने मीठी मीठी बातें बनाते हुए उन पर पूरा विश्वास जमा लिया था. डा. सुधा का बेटा शिवम पहले से ही मंदबुद्धि था. उस में सोचनेसमझने की ज्यादा क्षमता नहीं थी. सचिन को यह भी पता था कि डा. सुधा की बीमारी आखिरी स्टेज पर पहुंच चुकी है, जिस के कुछ दिन बाद उन की मौत निश्चित है.

यही सोच कर उस ने प्रीति को समझा दिया कि वह किसी भी तरह से शिवम और डा. सुधा से प्यार जताते हुए उस के साथ उस के गले में माला डाल कर शादी की नौटंकी करे. फिर उस के बाद बाकी वह देख लेगा. उस वक्त डा. सुधा की हालत ज्यादा ही खराब थी. न तो वह अधिक बोल सकती थीं और न ही ज्यादा चलफिर सकती थीं. उन की हालत का नाजायज फायदा उठाते हुए प्रीति ने एक दिन उन से बात करते हुए कहा, ‘‘मैडम, हर रोज आप की हालत खराब होती जा रही है. अगर आप को कुछ हो गया तो आप के पीछे शिवम बाबू की देखरेख कौन करेगा. इसीलिए मैं चाहती हूं कि इस से पहले आप को कुछ हो जाए, आप शिवम बाबू की शादी मुझ से कर दो. ताकि आप के बाद मैं उन की पूरी देखरेख कर सकूं.’’

हालांकि डा. सुधा की हालत दिनबदिन बिगड़ती ही जा रही थी. फिर भी वह प्रीति के कहने पर उस की शादी करने को तैयार न थीं.

सचिन और प्रीति का प्लान हुआ फेल

उसी दौरान डा. सुधा की तबीयत ज्यादा ही खराब हो गई, जिस के कारण उन्हें अस्पताल में भरती कराना  पड़ा. उसी वक्त प्रीति ने फिर से डा. सुधा के सामने वही शादी की बात दोहराई. डा. सुधा उस वक्त ऐसी हालत में थीं कि वह कुछ कहनेसुनने में पूरी तरह से असमर्थ थीं. उन की हालत को देखते हुए प्रीति अपने साथ लाई माला ले कर शिवम के गले में डालते हुए फिर उसी तरह से उस से भी अपने गले में डलवा ली. शिवम कुछ भी नहीं समझ पाया था. उस के साथ ही उस ने दोनों के माला डालते हुए कई फोटो भी खींच लिए थे. उस के साथ ही प्रीति ने डा. सुधा के साथ खड़े हो कर भी फोटो खिंचवाए थे. यह नौटंकी खत्म करने के बाद सभी डा. सुधा की मौत का इंतजार करने लगे.

जैसे ही 7 अगस्त, 2023 को डा. सुधा की मौत हुई, उस के बाद ही सचिन की पूर्व योजनानुसार प्रीति ने खुद को शिवम की पत्नी मान लिया और अपनी सहेली प्रवेश और नीलम को भी बुला लिया था. लेकिन डा. आकांक्षा के आगे उन का सारी योजना धरी की धरी रह गई. हालांकि सचिन ने शिवम की सारी संपत्ति हड़पने के लिए यह साजिश रची थी, लेकिन अपने इस मंसूबे में यह गैंग कामयाब नहीं हो पाया था. इस केस का खुलासा करते हुए डीसीपी (रूरल) विवेकचंद्र यादव ने बताया कि अगर किसी तरह से यह केस पुलिस तक नहीं पहुंच पाता तो ये लोग अपनी योजना में हरगिज कामयाब नहीं हो पाते. क्योंकि डा. सुधा ने पहले ही अपनी सारी प्रौपर्टी की वसीयत अपने बेटे के नाम करा दी थी. लेकिन बाद में अपने बेटे की हालत देखते हुए उन्होंने अपनी प्रौपर्टी अपनी बेटी डा. आकांक्षा के नाम कर दी थी. ताकि उन के खत्म होने के बाद उन की प्रौपर्टी सहीसलामत रहे.

इस मामले में पुलिस ने इस गैंग के संचालक हिस्ट्रीशीटर सचिन को 2 अक्तूबर को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया था. प्रीति की तलाश में गाजियाबाद पुलिस की एक टीम हरियाणा मेें डेरा डाले हुए थी. गाजियाबाद पुलिस की जांच में सामने आया कि प्रीति पर सोनीपत में भी कई मुकदमे दर्ज हैं. इसी वर्ष 2023 में भी सोनीपत सिटी कोतवाली में एक धमकी का और दूसरा आईटी ऐक्ट का मुकदमा दर्ज हुआ था. इस के अलावा प्रीति ने वर्ष 2022 में भी एक लेखपाल के खिलाफ सोनीपत सदर कोतवाली में रेप का मुकदमा दर्ज कराया था, जिस में प्रीति कोर्ट में दिए बयान से पलट गई थी.

उस में प्रीति ने अपना केस वापस लेने के लिए उस लेखपाल से लाखों रुपए लिए थे. जिस की गिरफ्तारी के बाद ही इस पूरे गेम की फाइल खुल सकेगी. इस मामले में पुलिस ने उस के पूर्व में रहे पतियों से भी बातचीत की थी.

पुलिस पूछताछ के दौरान जानकारी मिली कि प्रीति पहले शादी करती और फिर अपने पतियों पर तरहतरह के आरोप लगा कर केस दर्ज करा देती थी. फिर उन से केस वापस लेने की एवज में अच्छीखासी मोटी रकम की मांग करती थी. उस के साथ ही वह दूसरे शिकार की तलाश में लग जाती थी.

-कथा लिखने तक पुलिस यह भी जांच कर रही थी कि इस गैंग में और कितने लोग शामिल हैं.