Rajasthan News : रोज के झगड़ों से परेशान होकर पत्नी को टुकड़ों में काट डाला

Rajasthan News : बिना छानबीन के हुई शादी के बाद जब पति या पत्नी की हकीकत सामने आनी शुरू होती है तो विवाद बढ़ना स्वाभाविक होता है. कई बार इस विवाद में किसी एक की जान भी दांव पर लग जाती है. अमित और कोमल के मामले में भी…

भिवाड़ी राजस्थान ही नहीं, उत्तरी भारत का प्रमुख औद्योगिक इलाका है. भिवाड़ी और हरियाणा के बीच केवल एक सड़क का फासला है. भिवाड़ी में सुई से ले कर अंतरिक्ष यान तक के कलपुर्जे बनाने वाले उद्योग हैं. भिवाड़ी वैसे तो अलवर जिले में आता है, लेकिन अपराधों के नजरिए से महत्त्वपूर्ण होने के कारण साल भर पहले अलवर जिले में भिवाड़ी को नया पुलिस जिला बना दिया गया था. राजस्थान में केवल अलवर ही ऐसा जिला है, जहां अलगअलग जिलों के नाम से 2 एसपी हैं. राज्य के कुछ जिलों में ग्रामीण और शहर एसपी हैं. जबकि जयपुर और जोधपुर शहर में पुलिस कमिश्नरेट है. अपराधों के लिहाज से 2 महीने पहले भिवाड़ी में दबंग और इंटेलीजेंट एसपी के रूप में राममूर्ति जोशी को यह जिम्मेदारी सौंपी गई थी.

बात 14 अगस्त की है. एसपी साहब जब अपने औफिस में स्वतंत्रता दिवस पर पुलिस की ओर से किए जाने वाले इंतजामों की फाइल देख रहे थे, तभी उन के मोबाइल पर यूआईटी फेज थर्ड थानाप्रभारी सुरेंद्र कुमार का फोन आया. थानाप्रभारी ने कहा, ‘‘सर, खिदरपुर गांव के सरकारी स्कूल के पास सड़क किनारे एक महिला के शव के अलगअलग टुकड़े मिले हैं.’’

महिला के शव के टुकड़े मिलने की बात सुन कर एसपी साहब चौंके. मामले की गंभीरता को देखते हुए उन्होंने थानाप्रभारी को कुछ जरूरी निर्देश दे कर कहा, ‘‘आप शव के बाकी टुकड़े तलाश कराओ, मैं मौके पर आता हूं.’’

एसपी साहब ने अपने पीए को एडिशनल एसपी अरुण माच्या से बात कराने और तुरंत गाड़ी लगवाने को कहा. पीए ने फोन पर लाइन दी, तो एसपी साहब ने एडिशनल एसपी को महिला के शव के टुकड़े मिलने की बात बता कर तुरंत मौके पर चलने को कहा और खुद औफिस के बाहर खड़ी गाड़ी में सवार हो कर खिदरपुर स्कूल की ओर चल दिए. कुछ ही देर में वह खिदरपुर गांव पहुंच गए. स्कूल के पास तमाशबीन खड़े थे. वहां सड़क किनारे झाडि़यां उगी हुई थीं. थानाप्रभारी और कई पुलिसकर्मी भी वहां मौजूद थे. एसपी जोशी के पहुंचने के 2-4 मिनट बाद ही एडिशनल एसपी अरुण माच्या भी पहुंच गए. पुलिस के आला अधिकारियों को देख कर लोगों की भीड़ एक तरफ हट गई.

थानाप्रभारी ने आगे आ कर एसपी और एडिशनल एसपी को सैल्यूट किया. फिर बताया कि सब से पहले कमर से नीचे और जांघों से ऊपर का हिस्सा मिला. इस के बाद आसपास तलाश कराई गई तो कुछ दूर झाडि़यों में अलगअलग जगह पर दोनों हाथ मिले. एक जगह पर बालों में उलझा इंसानी मांस का टुकड़ा मिला. शव के ये अलगअलग टुकड़े महिला के थे, जो करीब 200 मीटर के दायरे में मिले थे. टुकड़ों से पता लगाना मुश्किल था एसपी राममूर्ति जोशी ने शव के टुकड़ों का निरीक्षण किया. वे 4-5 दिन पुराने लग रहे थे. जांघ और कमर से नीचे के हिस्से पर कोई कपड़ा नहीं था. शव के टुकड़े आवारा जानवरों के नोंचने और फूल जाने के कारण उम्र का अंदाज भी नहीं लग सका.

जहांजहां शव के टुकड़े मिले, वहां तेज बदबू आ रही थी. मौकामुआयना कर जोशी समझ गए कि महिला की बेरहमी से हत्या कर उस के शव को टुकड़ों में काट कर अलगअलग जगह फेंका गया है. यह भी आशंका थी कि महिला के साथ दुष्कर्म किया गया हो. चिंता की बात यह थी कि सिर सहित शव के अन्य टुकड़े नहीं मिले थे. जोशीजी ने थानाप्रभारी और एडिशनल एसपी को आसपास के इलाकों में शव के बाकी हिस्से तलाशने के निर्देश दिए. इसी के साथ उन्होंने अलवर से विधि विज्ञान विशेषज्ञों और डौग स्क्वायड को भी बुलवा लिया. अलवर से एफएसएल के विशेषज्ञ और डौग स्क्वायड मौके पर पहुंच गया. पुलिस ने खोजी कुत्ते को शव के टुकड़े सुंघा कर बाकी टुकड़ों की तलाश कराई, लेकिन पुलिस को शव का कोई अन्य हिस्सा नहीं मिला. इस का कारण यह था कि 2-3 दिन से हो रही बारिश ने सुराग मिटा दिए थे.

फोरैंसिक विशेषज्ञों ने भी मौके से साक्ष्य जुटाए, लेकिन 8-10 घंटे की खोजबीन के बाद भी पुलिस को न तो महिला के बारे में कोई सुराग मिला और न ही कातिलों के बारे में कोई जानकारी. पुलिस ने जगहजगह से एकत्र किए शव के टुकड़े सरकारी अस्पताल की मोर्चरी में भिजवा दिए. भिवाड़ी के यूआईटी फेज थर्ड पुलिस थाने में इस संबंध में मुकदमा दर्ज कर लिया गया. मामले की गंभीरता को देखते हुए जयपुर रेंज के आईजी एस. सेंगाथिर के निर्देश पर एसपी (भिवाड़ी) राममूर्ति जोशी के निर्देशन में विशेष जांच टीम का गठन किया गया. इस टीम को एडिशनल एसपी अरुण माच्या के नेतृत्व में काम करना था. टीम में डीएसपी (भिवाड़ी) हरिराम कुमावत और यूआईटी फेज थर्ड थानाप्रभारी सुरेंद्र कुमार सहित कई अफसरों और जवानों को शामिल किया गया.

पुलिस ने तेजी से जांचपड़ताल शुरू की, लेकिन कहीं कोई ओरछोर नहीं मिल पा रहा था. इस का कारण यह था कि औद्योगिक इलाका होने के कारण भिवाड़ी में रोजाना राजस्थान के ही नहीं बल्कि हरियाणा के गुड़गांव, धारूहेड़ा, रेवाड़ी, बावल, फरीदाबाद, पलवल और दिल्ली तक के रोजाना हजारों लोग नौकरी और कामकाज के सिलसिले में भिवाड़ी आतेजाते हैं. यह भी आशंका थी कि हरियाणा में हत्या करने के बाद शव के टुकड़े राजस्थान के भिवाड़ी में फेंके गए हों. हत्या के ऐसे एकदो मामले पहले भी सामने आए थे. दूसरी बड़ी समस्या यह थी भिवाड़ी में देश के विभिन्न राज्यों के लाखों श्रमिक काम करते हैं, इन श्रमिकों की भिवाड़ी सहित आसपास के गांवों में बड़ीबड़ी बस्तियां हैं. साथ ही भिवाड़ी में भी सैकड़ों बहुमंजिला सोसायटियां हैं. इन सभी इलाकों में एक महिला के बारे में खोजबीन करना चुनौती भरा काम था.

एसपी राममूर्ति जोशी पहले भी अलवर में विभिन्न पदों पर रह चुके थे. इसलिए उन्होंने अपने अनुभवों के आधार पर भिवाड़ी और आसपास के इलाकों से पिछले दिनों लापता हुई महिलाओं का रिकौर्ड मंगवाया. इन महिलाओं की गुमशुदगी के बारे में जांचपड़ताल की गई, लेकिन ऐसा कोई सुराग नहीं मिला, जिस से पुलिस को शव के टुकड़ों की शिनाख्त में मदद मिलती. इलाके की सोसायटियों में पिछले दिनों मकान खाली कर जाने वाले किराएदारों का भी पता लगाया गया. इस के अलावा घटनास्थल के निकटवर्ती सांथलका गांव में पिछले दिनों मकान खाली करने वाले किराएदारों और कंपनियों से अचानक नौकरी छोड़ने वाले महिलापुरुषों के बारे में जानकारी हासिल करने के लिए डोर टू डोर सर्वे किया गया.

यह काम भूसे के ढेर में सूई खोजने जैसा था. पचासों पुलिस वाले इस काम में सुबह से शाम तक जुटे रहते. एसपी साहब इस काम में कोई कमी नहीं छोड़ना चाहते थे. वह हर संभव प्रयास से मृतका की शिनाख्त और कातिलों तक पहुंचना चाहते थे. इसलिए रोजाना शाम को एडिशनल एसपी और डीएसपी से रिपोर्ट लेते और उन्हें जरूरी निर्देश देते. पुलिस को मिली जांच की राह 2 सप्ताह से भी ज्यादा समय तक चली इस भागदौड़ में पुलिस को पता चला कि गांव सांथलका की विनोद कालोनी में रहने वाले अमित गुप्ता और उस की पत्नी कोमल पिछले कुछ दिनों से बिना किसी को बताए अचानक कमरा खाली कर चले गए.

पुलिस ने कालोनी के दूसरे लोगों से पूछताछ की, तो जानकारी मिली कि अमित और कोमल में आपस में झगड़ा होता रहता था. दोनों अलगअलग फैक्ट्रियों में काम करते थे. पुलिस को अमित का पता तो नहीं मिला. अलबत्ता यह जरूर पता लगा कि वह भरतपुर का रहने वाला है. यह सुराग मिलने पर पुलिस को उम्मीद की कुछ किरण नजर आई. अब पुलिस अमित और कोमल को तलाशने में जुट गई. इसी दौरान 3 सितंबर को यूआईटी फेज थर्ड पुलिस थाने पर डाक से एक पत्र आया. पत्र में अमित गुप्ता ने अपनी पत्नी कोमल के गायब होने की बात लिखी थी. पत्र में अमित का मोबाइल नंबर और कोमल का कानपुर का पता लिखा था.

पुलिस ने मामले की पड़ताल करने के लिए अमित के मोबाइल पर फोन किया, लेकिन वह स्विच्ड औफ मिला. चूंकि अमित और उस की पत्नी अचानक मकान खाली कर के गए थे और अब अमित ने खुद थाने आने के बजाय पत्र लिख कर अपनी पत्नी की गुमशुदगी की बात कही थी. इस से पुलिस को संदेह हुआ. थानाप्रभारी सुरेंद्र कुमार ने एसपी राममूर्ति जोशी को पूरी बात बताई. जोशी को भी मामले में संदेह नजर आया. उन्होंने भी अमित के मोबाइल नंबर पर कई बार काल की. लेकिन उस का फोन हर बार स्विच्ड औफ मिला. मोबाइल स्विच्ड औफ होने से उस की लोकेशन का भी पता नहीं चल पा रहा था. सच्चाई का पता लगाने के लिए एसपी ने थानाप्रभारी को पत्र में लिखे कोमल के कानपुर के पते पर पुलिस टीम भेजने के निर्देश दिए.

भिवाड़ी से पुलिस टीम कानपुर में मीरपुर कैंट स्थित कोमल के घर पहुंची. वहां पूछताछ में पता चला कि कोमल की अपने परिजनों से 11 अगस्त के बाद से कोई बात नहीं हुई थी. उन्हें न तो कोमल का कुछ पता था और न ही अमित का. कोमल के परिजनों ने पुलिस को बताया कि दोनों मियांबीवी में आए दिन झगड़ा होता था. यह भी बताया कि अमित ने कोमल से धोखे से शादी की थी. उन से यह जानकारी भी मिली कि अमित ने अपनी किसी महिला दोस्त की हत्या भी की थी. उन्हें शंका थी वह कोमल की भी हत्या कर सकता है. कानपुर में कोमल के घर वालों से मिली जानकारी के बाद अमित पर पुलिस का शक पक्का हो गया.

साथ ही यह अनुमान भी लग गया कि 14 अगस्त को खिदरपुर स्कूल के पास मिले शव के टुकड़े कोमल के ही हो सकते हैं. अब अमित को तलाशना जरूरी था, क्योंकि उसी से सारी सच्चाई का पता लग सकता था. एसपी राममूर्ति जोशी ने भिवाड़ी पुलिस की साइबर सेल को अमित गुप्ता के मोबाइल नंबर का तकनीकी अनुसंधान करने का निर्देश दिया. साइबर सेल के हैड कांस्टेबल मोहनलाल, कांस्टेबल संदीप और नीरज ने अमित का मोबाइल लगातार स्विच्ड औफ मिलने पर उस की पुरानी काल डिटेल्स निकलवा कर उन का विश्लेषण किया. पुलिस ने इन काल डिटेल्स के आधार पर पहले से अमित के संपर्क में रहे लोगों से उस की पूरी जन्मकुंडली हासिल की.

तमाम प्रयासों के बाद पुलिस ने 7 सितंबर को अमित गुप्ता को भिवाड़ी के ही सांथलका इलाके से गिरफ्तार कर लिया. उसे पुलिस थाने ला कर पूछताछ की गई. पहले तो वह पुलिस को यह कह कर गुमराह करता रहा कि कोमल लापता है. मैं उस की तलाश कर रहा हूं. लेकिन कड़ाई से पूछताछ में उस ने अपना जुर्म स्वीकार कर लिया. पुलिस पूछताछ में कोमल की हत्या की जो कहानी उभर कर सामने आई, वह इस प्रकार है—

अमित गुप्ता राजस्थान के भरतपुर शहर का रहने वाला था. उस की शादी 13 दिसंबर, 2019 को कानपुर निवासी हरिप्रसाद गुप्ता की बड़ी बेटी कोमल से भरतपुर में हुई थी. कोमल की यह दूसरी शादी थी. उस की पहली शादी 2004 में कानपुर के संजय से हुई थी, लेकिन टीबी की बीमारी के कारण उस के पति संजय की 4 साल बाद 2008 में मौत हो गई थी. लौकडाउन में भुखमरी की नौबत ले आई भिवाड़ी अमित भरतपुर में ई मित्र की दुकान करता था. अमित और कोमल भरतपुर में कुम्हेर गेट पर रहते थे. कोमल अपने पहले पति संजय के भांजे लाली गुप्ता से फोन पर बात करती थी. इस पर अमित को ऐतराज था. इसी बात पर दोनों में आए दिन झगड़ा होता था.

कोरोना संक्रमण के कारण लौकडाउन होने से अमित का ई मित्र का कामकाज ठप हो गया. वह बेरोजगार हुआ, तो रोजीरोटी की तलाश में भरतपुर से भिवाड़ी आ गया. अमित और कोमल भिवाड़ी में सांथलका गांव की विनोद कालोनी में किराए का कमरा ले कर रहने लगे. अमित सेंट गोबेन कंपनी में नौकरी करने लगा. केवल अमित की नौकरी से घर का खर्च नहीं चल पाता था. इसलिए उस ने कोमल को भी नौकरी करने को कहा. कोमल ने प्रयास किया, तो उसे भिवाड़ी के पास चौपानकी में क्लच वायर बनाने वाली कंपनी में नौकरी मिल गई. भले ही पतिपत्नी दोनों नौकरी करने लगे थे, लेकिन उन के बीच झगड़े खत्म नहीं हुए. परेशान हो कर कोमल ने 11 अगस्त को अमित को कमरे से निकाल दिया. अमित कमरे से चला गया, उस के कुछ देर बाद कोमल अपनी नौकरी पर चली गई.

पत्नी से झगड़े के बाद अमित ने एक बार तो अपने घर भरतपुर जाने का विचार बनाया. फिर उस ने रोजरोज का झगड़ा खत्म करने के लिए कोमल का ही खेल खत्म करने की योजना बना डाली. उस ने बाजार से एक लुहार से तेज धारदार वाला बड़ा चाकू खरीदा और वापस कमरे पर आ गया. कमरे की एक चाबी अमित के पास पहले से ही रहती थी. इसलिए उसे कोई परेशानी नहीं हुई. शाम को कोमल अपनी नौकरी से वापस कमरे पर लौटी, तो अमित ने कमरे का गेट बंद कर उसे तरंग नामक भांग की गोलियां खिला दीं. भांग के नशे में कोमल को कुछ होश नहीं रहा. अमित ने उस के हाथपैर बांध दिए और गला दबा कर उस की हत्या कर दी.

इस के बाद उस ने तेज धार वाले लंबे चाकू से उस के शरीर के अलगअलग टुकड़े किए. टुकड़े करने के दौरान कमरे के फर्श पर बिछी दरी पर खून फैल गया. इस पर उस ने दरी को एक तरफ रख कर बाकी खून के निशान पानी से धो दिए. इस काम में उसे करीब 3 घंटे लगे. कोमल के शव के टुकड़ों को प्लास्टिक के 3 अलगअलग बोरों में भर कर वह रात को कमरे पर ही सो गया. दूसरे दिन सुबह जब कालोनी के लोग अपनेअपने कामों पर चले गए, तब वह कमरे से एकएक बोरा निकाल कर ले गया और कच्चे रास्ते से हो कर खिदरपुर स्कूल के पास अलगअलग जगहों पर फेंक दिए. उस ने खून से लथपथ वह दरी भी फेंक दी.

दूसरे दिन वह अपना थोड़ाबहुत घरेलू सामान ले कर बिना किसी को कुछ बताए किराए का कमरा खाली कर फरार हो गया. बाद में 7 सितंबर को पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया. फरारी के दौरान वह भिवाड़ी के अलावा पलवल, भरतपुर और जयपुर में रहा. अमित की गिरफ्तारी के बाद उस की निशानदेही पर पुलिस ने 7 सितंबर को ही कोमल के सीने से ऊपर का हिस्सा बरामद कर लिया. इस के अगले दिन 8 सितंबर को पुलिस ने खिदरपुर गांव से करीब 2 किलोमीटर दूर झाडि़यों से वह दरी भी बरामद कर ली, जिस पर कोमल की हत्या की गई थी. दरी पर खून के निशान सूख चुके थे. 9 सितंबर को पुलिस ने अमित की निशानदेही पर सिर का हिस्सा भी बरामद कर लिया.

पुलिस की सूचना पर कोमल के घर वाले 8 सितंबर को कानपुर से भिवाड़ी पहुंचे. पुलिस ने कोमल के भाई और बहन के डीएनए के सैंपल लिए ताकि कोमल के शव की अधिकृत पुष्टि की जा सके. पूछताछ में यह भी पता चला कि अमित ने सन 2013 में भरतपुर में दुष्कर्म करने के बाद एक महिला होमगार्ड की हत्या कर दी थी. इस मामले में पुलिस ने उसे गिरफ्तार किया था. करीब डेढ़ साल तक वह भरतपुर जिले की सेवर जेल में बंद रहा. इस मामले में अदालत ने उसे आजीवन कारावास की सजा दी थी. सन 2014 में हाईकोर्ट से उस की जमानत हो गई थी. अमित ने जो अपराध किया, उस की सजा उसे कानून देगा. लेकिन कोमल की मौत से उस के पिता हरिप्रसाद टूट गए हैं.

कानपुर में चाय की थड़ी लगाने वाले हरिप्रसाद की 3 बेटियों में कोमल सब से बड़ी थी. पहले पति की मौत के बाद से कोमल कानपुर में अपने पिता के पास रह कर जौब करती थी. सुमन ने फंसाया था कोमल को हरिप्रसाद का कहना है कि इस दौरान कोमल के संपर्क में सुमन नाम की महिला आई. सुमन धीरेधीरे उन के घर भी आने लगी. फिर वह कोमल का रिश्ता भरतपुर के अच्छे परिवार में कराने की बात कहने लगी. भरतपुर ज्यादा दूर होने के कारण उन्होंने मना कर दिया. फिर भी सुमन ने पता नहीं कब कोमल का भरतपुर के अमित से संपर्क करा दिया. जल्दी ही अमित ने कोमल को पूरी तरह अपने झांसे में ले लिया. इस का उन्हें पता भी नहीं चला. बाद में सुमन ने कहा कि एक बार भरतपुर जा कर लड़का देख आओ, पसंद आए तभी रिश्ता करना.

बेटी की खुशी के लिए हरिप्रसाद भरतपुर गए. वहां देखा तो पहले से ही शादी की पूरी तैयारी हो चुकी थी. अनजान शहर में वे अकेले पड़ गए. बेटी की सहमति से उन्होंने अगले ही दिन 13 दिसंबर, 2019 को भरतपुर में कोमल की शादी अमित से कर दी. बाद में उन्हें पता चला कि यह शादी कराने के एवज में सुमन ने अमित से एक लाख रुपए लिए थे. कोमल शादी के बाद केवल एक बार होली पर अपने घर कानपुर गई थी. कोमल अपनी छोटी बहन काजल को फोन पर बताती थी कि अमित का चालचलन ठीक नहीं है. वह उस पर शक करता है और आए दिन झगड़ता है. कोमल की छोटी बहन काजल की 10 अगस्त को अमित से फोन पर बात हुई थी, तब अमित ने कहा था कि आज के बाद तुम से हमारा कोई रिश्ता नहीं रहेगा और न ही तुम कोमल से बात कर सकोगी.

इस के बाद से लगातार संपर्क करने के बाद भी जब परिजनों की कोमल से बात नहीं हुई तो हरिप्रसाद ने अमित के पिता को फोन किया. उन्होंने कहा कि उन का बेटे और बहू से कोई संबंध नहीं है. इस संबंध में वे अखबार में विज्ञापन भी छपवा चुके हैं. हरिप्रसाद का कहना है कि बेटी तो चली गई, लेकिन अमित जैसे जल्लाद से कोमल का रिश्ता कराने वाली सुमन के खिलाफ भी काररवाई हो, जो पैसे कमाने के लिए जरूरतमंद युवतियों को झांसे में ले कर उन की जिंदगी बरबाद कर देती हैं.

 

Murder Case : प्लास्टिक की रस्सी से भाई-बहन की हत्या कर किसने बॉडी को पेड़ से लटकाया

Murder Case : बंटी और सुखदेवी चचेरेतहेरे भाईबहन जरूर थे लेकिन वे एकदूसरे से दिली मोहब्बत करते थे. दोनों के घर वालों ने शादी करने से मना कर दिया तो अपनी शादी से एक दिन पहले दोनों घर से भाग गए. इस के बाद जो हुआ, उस की किसी ने कल्पना तक नहीं की थी…

बंटी की अजीब सी स्थिति थी. उस का दिमाग तो चेतनाशून्य हो चला था. साथ ही उस के दिमाग में एक तूफान सा मचा हुआ था. यही तूफान उसे चैन नहीं लेने दे रहा था. बेचैनी का आलम यह था कि वह कभी बैठ जाता तो कभी उठ कर चहलकदमी करने लगता. अचानक उस का चेहरा कठोर होता चला गया, जैसे वह किसीफैसले पर पहुंच गया था, उस फैसले के बिना जैसे और कुछ हो नहीं सकता था. बंटी पश्चिमी उत्तर प्रदेश के संभल जिले के थाना धनारी के गांव गढ़ा में रहता था. उस के पिता का नाम बिन्नामी और माता का नाम शीला था. बिन्नामी खेतीकिसानी का काम करते थे. 22 वर्षीय बंटी इंटर पास था. उस के बड़े भाई 25 वर्षीय संदीप का विवाह हो चुका था. बंटी से छोटे 2 भाई तेजपाल (14 वर्ष) और भोलेशंकर (9 वर्ष) के अलावा छोटी बहनें कश्मीरा, सोमवती और राजवती थीं, जोकि क्रमश: 17 वर्ष, 7 वर्ष और 5 वर्ष की थीं.

उस के पड़ोस में उस के ताऊ तुलसीदास रहते थे. परिवार में उन की पत्नी रमा देवी और उन के 6 बेटै रामपाल, विनीत उर्फ लाला, किशोरी, गोपाल उर्फ रामगोपाल, धर्मेंद्र और कुलदीप उर्फ सूखा थे. इस के अलावा इकलौती बेटी थी 21 वर्षीय सुखदेवी, जोकि सब भाइयों से छोटी थी. रिश्ते में बंटी और सुखदेवी तहेरे भाईबहन थे. बचपन से दोनों साथ खेलेघूमे. हर समय एकदूसरे का साथ दोनों को खूब भाता था. समय के साथ ही बचपन का यह खेल कब जवानी के प्यार की तरफ बढ़ने लगा, उन को एहसास भी नहीं हुआ. जवान होती सुखदेवी के सौंदर्य को देखदेख कर बंटी आश्चर्यचकित हो गया था. सुखदेवी पर छाए यौवन ने उसे एक आकर्षक युवती बना दिया था. उस के नयननक्श में अब गजब का आकर्षण पैदा हो गया था.

हिरनी जैसे नयन, गुलाब की पंखुडि़यों जैसे होंठ, जिन का रसपान करना हर नौजवान की हसरत होती है. उस के गालों पर आई लाली ने उसे इतना आकर्षक बना दिया था कि बंटी खुद पर काबू न रख सका और उसे देख कर उसे पाने को लालायित हो उठा. सुखदेवी के यौवन में वह इस कदर खो गया कि उस के बदन को ऊपर से नीचे तक निहारता रह गया. उस के छरहरे बदन में यौवन की ताजगी, कसक और मादकता की साफसाफ झलक दिखती थी. बंटी अपनी तहेरी बहन के मादक सौंदर्य को बस देखता रह गया और उस की चाहत में डूबता चला गया. वह इस बात को भी भूल गया कि वह उस की तहेरी ही सही, लेकिन बहन तो है.

बंटी जब सुखदेवी के घर गया तो उसे एकटक देखने लगा. उधर सुखदेवी इस बात से बेखबर अपने काम में व्यस्त थी. जब उस की मां रमा ने उसे आवाज दी, ‘‘ऐ सुखिया, देख बंटी आया है.’’ तो उस का ध्यान बंटी की तरफ गया. चाहने लगा था सुखदेवी को सुखदेवी को भी बंटी पसंद था, मगर उस रूप में नहीं जिस रूप में उसे बंटी देख रहा था और उसे पाने की चाह में तड़पने लगा था. रमा देवी ने फिर आवाज लगाई. सुखदेवी ने तुरंत एक गिलास पानी और थोड़ा मीठा ला कर बंटी के सामने रख दिया. पानी का गिलास हाथ में पकड़ाते हुए बोली, ‘‘क्या हाल हैं जनाब के?’’

जब बंटी ने उस से पानी का गिलास लिया तो उस का स्पर्श पा कर वह पहले से अधिक व्याकुल हो उठा. उस के साथ सुंदर सपनों में खो गया. इधर सुखदेवी ने उस के गालों को खींच कर कहा, ‘‘कहां खो गए जनाब?’’

इस के बाद वह चाय बनाने चली गई. बंटी का सारा ध्यान तो सुखदेवी की तरफ ही था, जो किचन में उस के लिए चाय बना रही थी. वह तो इस कदर व्याकुल था कि दिल हुआ किचन में जा कर खड़ा हो जाए. उधर जब सुखदेवी चाय ले कर आई तो बंटी की बेचैनी थोड़ी कम हुई. सुखदेवी ने जब बंटी को चाय दी तो उस ने पुन: उसे छूना चाहा, मगर नाकाम रहा. तभी उस की ताई को कुछ काम याद आ गया और वह उठ कर बाहर चली गईं. इधर बंटी की धड़कनें रेल के इंजन की तरह दौड़ने लगीं. वह घबराने लगा. मगर एक खुशी भी थी कि उस तनहाई में वह सुखदेवी को देख सकता है. फिर सुखदेवी अपने काम में लग गई, मगर बंटी के कहने पर वह उस के करीब ही चारपाई पर बैठ गई. उस के शरीर के स्पर्श ने उसे गुमशुदा कर दिया.

उस का दिल तो चाह रहा था कि वह उसे अपनी बांहों में भर ले और प्यार करे, मगर न जाने कैसी झिझक उसे रोक देती और वह अपने जज्बातों पर काबू किए उस की बातें सुनता जा रहा था. वह बारबार हंसती तो बंटी के मन में फूल खिल उठते थे. थोड़ी ही देर में बंटी को न जाने क्या हुआ, वह उठा और जाने लगा. तभी सुखदेवी ने उस का हाथ पकड़ कर पूछा, ‘‘कहां जा रहे हो?’’

मगर बंटी ने बिना कुछ कहे अपना हाथ छुड़ाया और वहां से चला गया. सुखदेवी उस से बारबार पूछती रही. मगर वह रुका नहीं और बिना पीछे देखे चला गया. प्यार के इजहार का नहीं मिला मौका बंटी को उस दिन के बाद कुछ अच्छा न लगता, वह तो बस सुखदेवी के खयालों में ही खोया रहता था, मगर चाह कर भी वह उस से मन की जता नहीं पाता था. उस के मन में पैदा हुई दुविधा ने उसे अत्यंत उलझा रखा था. तहेरी बहन से प्रेम की इच्छा ने उस के दिलोदिमाग को हिला रखा था. मगर सुखदेवी के यौवन का रंग बंटी पर खूब चढ़ चुका था. उस के यौवन की किसी एक बात को भी वह भुला नहीं पा रहा था.

एक दिन बंटी घर पर अकेला था और सुखदेवी के खयालों में खोया हुआ था. वह चारपाई पर लेटा था, तभी सुखदेवी उस के घर पहुंची और बिना कुछ कहे सीधे अंदर चली गई. बंटी उसे देख कर आश्चर्यचकित रह गया. कुछ देर तक वह उसे देखता ही रहा था. तभी सुखदेवी ने सन्नाटा भंग करते हुए कहा, ‘‘क्या हाल है? क्या मुझे बैठने तक को नहीं कहोगे?’’

‘‘कैसी बात कर रही हो, आओ तुम्हारा ही घर है.’’ बंटी ने कहा तो सुखदेवी वहीं पड़ी चारपाई पर बैठ गई.

सुखदेवी ने बैठते ही बंटी को देखा और कहने लगी, ‘‘क्या बात है आजकल तुम घर नहीं आते? मुझ से कोई गलती हो गई है कि उस दिन तुम बिना कुछ कहे घर से चले आए.’’

बंटी मूक बैठा बस सुखदेवी को निहारे जा रहा था. सुखदेवी ने जब उसे चुप देखा तो बंटी के करीब पहुंच कर वह बैठ गई और उस के हाथों को अपने हाथों में ले कर बोली, ‘‘बोलो न क्या हुआ? तुम इतने चुपचुप क्यों हो, क्या कोई बात है जो तुम्हें बुरी लग गई है. मुझे बताओ न, तुम तो हमेशा हंसते थे, मुझ से ढेर सारी बातें करते थे. मगर अब क्या हुआ है तुम्हें, तुम इतने खामोश क्यों हो?’’

मगर उधर बंटी तो एक अलग ही दुविधा में फंसा हुआ था. सुखदेवी की बातों को सुन कर अचानक ही बंटी उस की ओर घूमा और उसे बड़े गौर से देखने लगा. तभी सुखदेवी ने उस से पूछा कि वह क्या देख रहा है, मगर बंटी जड़वत हुआ उसे घूरता ही जा रहा था. सुखदेवी भी उस की निगाह के एहसास को महसूस कर रही थी, शायद इसलिए वह भी खामोश नजरें झुकाए वहीं बैठी रही थी. बंटी उस से प्रेम का इजहार करना चाहता था, मगर इस दुविधा में उलझा हुआ था कि वह मेरी तहेरी बहन है. मगर अंत में प्रेम की विजय हुई. उस ने सुखदेवी के चेहरे को अपने हाथों में ले लिया. बंटी के इस व्यवहार से सुखदेवी थोड़ा घबरा गई. मगर अपनी धड़कनों पर काबू पा कर उस ने अपनी दोनों मुट्ठियों को बहुत जोर से भींचा और अपनी आंखें बंद कर लीं.

तभी बंटी ने उस से आंखें खोलने को कहा, मगर सुखदेवी हिम्मत न कर सकी. फिर दोबारा कहने पर सुखदेवी ने अपनी पलकें उठाईं और फिर तुरंत झुका लीं. तभी बंटी ने उस की आंखों को चूम लिया. सुखदेवी घबरा गई’ उस ने वहां से उठना चाहा. मगर बंटी ने उसे उठने नहीं दिया. वह शर्म के मारे कांपने लगी. उस के होंठों की कंपकंपाहट से बंटी अच्छी तरह वाकिफ था. मगर वह तो उस दिन अपने प्यार का इजहार कर देना चाहता था. तभी उस ने सुखदेवी की कलाई पकड़ कर कहा, ‘‘मैं तुम से बहुत प्यार करता हूं, मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकता, मैं सचमुच तुम से बहुत प्यार करता हूं.’’

बंटी की इन बातों को सुन कर सुखदेवी आश्चर्यचकित हो गई और उस ने बंटी को समझाना चाहा, मगर बंटी तो अपनी जिद पर ही अड़ा रहा. सुखदेवी ने कहा, ‘‘बंटी, मैं तुम्हारी बहन हूं. हमारा प्यार कोई कैसे स्वीकार करेगा.’’

मगर बंटी ने इन सब बातों को खारिज करते हुए सुखदेवी को अपनी बांहों में समेट लिया और बड़े प्यार से उस के होंठों पर अपने प्यार की मोहर लगा दी. सुखदेवी के लिए यह किसी पुरुष का पहला स्पर्श था, जिस ने उसे मदहोश होने पर मजबूर कर दिया और बंटी की बांहों में कसमसाने लगी. सुखदेवी चाह कर भी अपने आप को उस से अलग नहीं कर पा रही थी. लगातार कुछ क्षणों तक चले इस प्रेमालाप से सुखदेवी मदमस्त हो गई, तभी अचानक बंटी उस से अलग हो गया.

प्यार को लग गई हवा सुखदेवी तड़प उठी. बंटी के स्पर्श से छाया खुमार जल्दी ही उतरने लगा. वह बिना कुछ कहे घर के दरवाजे की तरफ बढ़ी तो पीछे से बंटी ने उसे कई आवाजें लगाईं, मगर सुखदेवी नजरें झुकाए चुपचाप बाहर चली गई. बंटी घबरा सा गया. उस के दिल में हजारों सवाल सिर उठाने लगे और इसी दुविधा में फंसा रहा कि सुखदेवी उस का प्यार ठुकरा न दे या कहीं ताऊताई को उस की इस हरकत के बारे में न बता दे. इसी सोच में बंटी परेशान रहा और पूरी रात सो न सका, बस बिस्तर पर करवटें बदलता रहा. उधर सुखदेवी का हाल भी बंटी से जुदा न था. वह भी पूरे रास्ते बंटी द्वारा कहे हर लफ्ज के बारे में सोचती गई. घर पहुंच कर बिना कुछ खाएपीए वह अपने बिस्तर पर लेट गई. मगर उस की आंखों में नींद भी कहां थी.

वह भी इसी सोच में डूबी रही. बंटी का प्यार दस्तक दे चुका था. वह भी बिस्तर पर पड़ीपड़ी करवटें बदलती जा रही थी. सुखदेवी भी अपनी भावनाओं पर काबू न रख पाई और वह भी बंटी से प्यार कर बैठी. अपने इस फैसले को दिल में लिए सुखदेवी बहुत बेकरारी से सुबह का इंतजार करने में लगी रही. पूरी रात आंखोंआंखों में कटने के बाद सुखदेवी सुबह जल्दीजल्दी घर का सारा काम कर के अपनी मां को बता कर बंटी के घर चली गई. सुखदेवी के कदम खुदबखुद आगे बढ़ते जा रहे थे. वह बस कभी बंटी के प्रेम स्नेह के बारे में सोचती तो कभी समाज व लोकलाज के बारे में, रास्ते में जाते वक्त कई बार वापस होने को सोचा, मगर हिम्मत न जुटा सकी. क्योंकि बंटी के उस जुनून को भी भुला नहीं पा रही थी.

लेकिन कहीं न कहीं उस के दिल में भी बंटी के लिए प्रेम की भावना उछाल मार रही थी. इन्हीं सोचविचार में वह बंटी के घर के दरवाजे पर पहुंच गई लेकिन अंदर जाने की हिम्मत न जुटा सकी. तभी बंटी की नजर उस पर पड़ गई और फिर उसे अंदर जाना ही पड़ा. उधर बंटी का चेहरा एकदम पीला पड़ा हुआ था. बस एक रात में ही ऐसा लग रहा था कि वह कई दिनों से बिना कुछ खाएपीए हो. उस की आंखें लाल थीं, जिस से साफ पता चल रहा था कि वह न तो रात भर सोया है और न ही कुछ खायापीया है. उस की आंखों को देख कर सुखदेवी समझ चुकी थी कि वह बहुत रोया है. सुखदेवी को इस का आभास हो चुका था कि बंटी उस से अटूट प्रेम करता है.

उस ने आते ही बंटी से पूछ लिया कि वह रोया क्यों था? बस फिर क्या था, इतना सुनते ही बंटी की आंखें फिर छलक आईं. उस की आंखों से छलके आसुंओं ने सुखदेवी को इस दुविधा में उतार दिया कि अब उसे न समाज की सोच, न अपने परिजनों का भय रह गया, वह उस से लिपट गई और उस के चेहरे को चूमने लगी. उस के बाद उस ने अपने हाथों से बंटी को खाना खिलाया. फिर दोनों तन्हाई में एक कमरे मे बैठ गए. तन्हाई के आलम में बंटी से रहा न गया और उस ने सुखदेवी को अपनी बांहों में भर लिया, सुखदेवी ने विरोध नहीं किया. दोनों ने लांघ दी सीमाएं सुखदेवी ने इस से पहले कभी ऐसे एहसास का अनुभव नहीं किया था. बंटी का हर स्पर्श सुखदेवी की मादकता को और भड़का रहा था. उस दिन बंटी ने सुखदेवी को पूरी तरह पा लिया.

सुखदेवी को भी यह अनुभव आनन्दमई लग रहा था. उसे वह सुख प्राप्त हुआ जो पहले कभी नहीं हुआ था. उस दिन के बाद सुखदेवी के मन में भी बंटी के लिए प्यार और बढ़ गया. अब उस के लिए बंटी सब कुछ था. एक बार जब उस पर जिस्मानी ताल्लुकात कायम हुआ तो बस यह सिलसिला चलता ही रहा. दोनों घंटोंघंटों बातें करते. एकदूसरे के बगैर दोनों के लिए रहना अब मुश्किल होता जा रहा था. लेकिन एक दिन उन के प्यार का भेद उन के परिजनों के सामने खुल गया तो कोहराम सा मच गया. उन को समझाया गया कि उन के बीच खून का संबंध होने के कारण उन की शादी नहीं हो सकती लेकिन वे प्रेम दीवाने कुछ भी सुनने को तैयार नहीं थे. आखिर रिश्ते में दोनों भाईबहन थे, ऐसे में समाज उन की शादी पर अंगुलियां उठाता और उन का जीना मुहाल हो जाता.

परिजनों के विरोध से दोनों परेशान रहने लगे. इसी बीच बंटी के परिजनों ने उस की शादी बदायूं जनपद के गांव तिमरुवा निवासी एक युवती से तय कर दी. शादी की तारीख तय हुई 26 जून, 2020. इस से सुखदेवी तो परेशान हुई ही बंटी भी बेचैन हो उठा. बेचैनी में काफी देर तक वह सोचता रहा, फिर उस ने फैसला कर लिया कि वह अब अपने प्यार को ले कर कहीं और चला जाएगा, जहां प्यार के दुश्मन उन को रोक न सकें. अपने फैसले से उस ने सुखदेवी को भी अवगत करा दिया. सुखदेवी भी उस के साथ घर छोड़ कर दूर जाने को तैयार हो गई.

शादी की तारीख से एक दिन पहले 25 जून, 2020 को बंटी सुखदेवी को घर से ले कर भाग गया. उन के भाग जाने की भनक दोनों के घर वालों को लग गई. उन्होंने तलाशा लेकिन कोई पता नहीं चला. प्रेमी युगल के मिले शव पहली जुलाई को गढ़ा गांव के जंगल में देवराज उर्फ दानवीर के यूकेलिप्टस के बाग में बंटी और सुखदेवी की लाशें शीशम के एक पतले  से पेड़ पर लटकी मिलीं. गांव के कुछ लड़के उधर आए तो उन्होंने यह देखी थीं. दोनों के घर वालों को उन लड़कों ने जानकारी दे दी. सूचना पा कर बंटी के घर वाले और गांव के लोग तो पहुंच गए, लेकिन सुखदेवी के घर वाले वहां नहीं पहुंचे. संबंधित थाना धनारी को घटना की सूचना दे दी गई. सूचना पा कर इंसपेक्टर सतेंद्र भड़ाना कुछ पुलिसकर्मियों के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. थानाप्रभारी की सूचना पर एएसपी आलोक जायसवाल और सीओ (गुन्नौर) डा. के.के. सरोज भी वहां पहुंच गए.

सुखदेवी और बंटी की लाशें एक ही पेड़ से लटकी हुई थीं. सुखदेवी के गले में हरे रंग के दुपट्टे का फंदा था तो बंटी के गले में प्लास्टिक की रस्सी का. दोनों के चेहरे किसी तेजाब जैसे पदार्थ से झुलसे हुए थे. प्रथमदृष्टया मामला आत्महत्या का था, लेकिन दोनों के चेहरे झुलसे होने से हत्या का शक भी जताया जा रहा था. फिलहाल मौके पर मौजूद मृतक बंटी के पिता बिन्नामी से पुलिस अधिकारियों ने आवश्यक पूछताछ की. फिर इंसपेक्टर सतेंद्र भड़ाना को दिशानिर्देश दे कर दोनों अधिकारी चले गए. इस के बाद पुलिस ने जरूरी काररवाई कर भड़ाना ने दोनों लाशों को पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भेज दिया. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मौत का सही कारण नहीं आ पाया. 7 जुलाई, 2020 को सुखदेवी के भाई 25 वर्षीय कुलदीप उर्फ सूखा का गढ़ा के जंगल में नीम के पेड़ से लटका शव मिला.

जहां सुखदेवी और बंटी के शव मिले थे, उस से कुछ दूरी पर ही कुलदीप का शव मिला. थानाप्रभारी सतेंद्र भड़ाना  पुलिस टीम के साथ वहां पहुंचे. सीओ के.के. सरोज भी फोरैंसिक टीम के साथ पहुंच गए. कुलदीप का शव प्लास्टिक की रस्सी से लटका हुआ था और उस का चेहरा भी तेजाब से झुलसा हुआ प्रतीत हो रहा था. लाश का निरीक्षण करने पर पता चला कि तीनों की मौत का तरीका एक जैसा ही था. मुआयना करने के बाद पुलिस को इस मामले में भी हत्या की साजिश नजर आ रही थी. पहले बंटी व सुखदेवी की मौत और अब सुखदेवी के भाई कुलदीप की मौत सिर्फ आत्महत्या नहीं हो सकती थी. हां, आत्महत्या का रूप दे कर हत्यारों ने गुमराह करने का प्रयास जरूर किया था.

कुलदीप के घर वालों से पूछताछ की तो पता चला कि कुलदीप 25 जून से ही लापता था. लेकिन सुखदेवी और बंटी की मौत के बाद घर वाले पुलिस के पास जाने से डर रहे थे, इसलिए पुलिस तक सूचना नहीं पहुंची. गढ़ा गांव में 3 हत्याओं के बाद एसपी यमुना प्रसाद एक्शन में आए. उन्होंने शीघ्र ही केस का खुलासा करने के निर्देश इंसपेक्टर सतेंद्र भड़ाना को दिए. मृतक बंटी के पिता बिन्नामी की तहरीर पर इंसपेक्टर भड़ाना ने अज्ञात के खिलाफ भादंवि की धाराओं 302/201/34 के तहत मुकदमा थाने में दर्ज करा दिया. इस के बाद थानाप्रभारी ने सुखदेवी के घर वालों से पूछताछ की तो सुखदेवी का भाई विनीत उर्फ लाला और किशोरी घर से गायब मिले. पुलिस ने दोनों की तलाश की तो गढ़ा के जंगल से दोनों को हिरासत में ले लिया. उन से पूछताछ की गई तो इन 3 हत्याओं का परदाफाश हो गया.

उन से पूछताछ में कई और लोगों के शामिल होने का पता चला. इस के बाद पुलिस ने गढ़ा गांव के ही जगपाल यादव उर्फ मुल्लाजी और श्योराज को गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ में सभी ने अपना जुर्म स्वीकार कर लिया और घटना के बारे में विस्तार से बता दिया. पता चला कि सुखदेवी और बंटी के घर से लापता हो जाने के बाद उन के घर वाले काफी परेशान हो गए थे. जबकि बंटी सुखदेवी के साथ अपने गन्ने के खेत में छिप गया था. गांव के जगपाल यादव उर्फ मुल्लाजी ने 26 जून को उन्हें देख लिया. उस ने दोनों के खेत में छिपे होने की बात जा कर सुखदेवी के भाई विनीत उर्फ लाला को बता दी. विनीत ने यह बात अपने भाई किशोरी और गांव के श्योराज को बताई. समाज में बदनामी के डर से विनीत ने जगपाल से अपनी बहन सुखदेवी और बंटी को मारने की बात कही और बदले में ढाई लाख रुपया देने को कहा. जगपाल पेशे से अपराधी था, इसलिए वह हत्या करने को तैयार हो गया.

विनीत ने उसे ढाई लाख रुपए ला कर दे दिए. इस के बाद योजना बना कर रात 11 बजे चारों बंटी के खेत में पहुंचे. वे शराब और तेजाब की बोतल साथ ले गए थे. वहां पहुंच कर चारों ने बंटी और सुखदेवी को दबोच लिया. श्योराज ने बंटी को जबरदस्ती शराब पिलाई. फिर श्योराज पास में ही जगपाल के ट्यूबवेल पर पड़े छप्पर में लगी प्लास्टिक की रस्सी निकाल लाया. इस के बाद सुखदेवी के गले को उसी के हरे रंग के दुपट्टे से और बंटी के गले को प्लास्टिक की रस्सी से घोंट कर मार डाला. इसी बीच विनीत का छोटा भाई 25 वर्षीय कुलदीप उर्फ सूखा वहां आ गया. उस ने दोनों हत्याएं करते उन लोगों को देख लिया. विनीत ने उसे समझाबुझा कर वहां से वापस घर भेज दिया.

इस के बाद वे लोग दोनों की लाशों को कुछ दूरी पर देवराज यादव उर्फ दानवीर के यूकेलिप्टस के बाग में ले गए. वहां शीशम के पेड़ से दोनों की लाशों को दुपट्टे व रस्सी की मदद से लटका दिया. इस के बाद उन की पहचान मिटाने के लिए दोनों के चेहरों पर तेजाब डाल दिया. फिर वापस अपने घरों को लौट गए. कुलदीप को दौरे पड़ते थे, उन दौरों की वजह से उस का दिमाग भी सही नहीं था, उस पर भरोसा करना ठीक नहीं था. वह घटना का लगातार विरोध भी कर रहा था. इस पर चारों लोगों ने योजना बनाई कि कुलदीप को भी मार दिया जाए, नहीं तो वह उन लोगों का भेद खोल देगा. 2 जुलाई, 2020 को विनीत और उस के तीनों साथी कुलदीप को बहाने से रात को जंगल में ले गए.

वहां गांव के नेकपाल यादव के खेत में कुलदीप का गला पीले रंग के दुपट्टे से घोंट कर उस की हत्या कर दी और उस की लाश को नीम के पेड़ से दुपट्टे से बांध कर लटका दिया. और उस के चेहरे पर भी तेजाब डाल दिया. फिर निश्चिंत हो कर घरों को लौट गए. कुलदीप की हत्या उन के लिए बड़ी गलती साबित हुई. थानाप्रभारी सतेंद्र भड़ाना ने अभियुक्तों की निशानदेही पर हत्या के एवज में दिए गए ढाई लाख रुपए, शराब के खाली पव्वे और तेजाब की खाली बोतल बरामद कर ली. फिर आवश्यक कानूनी लिखापढ़ी करने के बाद चारों अभियुक्तों विनीत उर्फ लाला, किशोरी, जगपाल और श्यौराज को न्यायालय में पेश किया गया, वहां से उन्हें न्यायिक अभिरक्षा में भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

Love Crime : सात साल बाद प्रेमी जेल से छूटा तो प्रेमिका ने कर दिया पति का कत्ल

Love Crime : अंशुल बावरा जब 7 साल की सजा काट कर जेल से बाहर आया तो उसे अपनी प्रेमिका निशा की याद आई. निशा की शादी हो चुकी थी और वह एक बेटी की मां भी थी. लेकिन अंशुल जब फोन पर बातें कर के उसे पुरानी यादों में ले गया तो वह पति, परिवार और बेटी को भूल कर…

निशा छत पर टकटकी लगाए रजत को उस वक्त तक देखती रही जब तक वह गली के नुक्कड़ पर नहीं पहुंच गया. गली के नुक्कड़ पर सुषमा स्कूटी लिए खड़ी थी. रजत के पास आते ही सुषमा स्कूटी से उतर गई और रजत ने स्कूटी थाम ली. ड़्राइविंग सीट पर पर वह खुद बैठा, जबकि सुषमा पीछे की सीट पर बैठ गई. रजत ने एक नजर गली में मकान की छत पर खड़ी निशा को देखा और हाथ हिला कर ‘बाय’ करते हुए स्कूटी आगे बढ़ा दी. उत्तर प्रदेश के मेरठ में रजपुरा गांव का रहने वाला रजत सिवाच उर्फ मोनू (27) मंगलपांडे नगर के बिजलीघर में सुपरवाइजर की नौकरी करता था. पिछले 4 साल से वह संविदा पर काम कर रहा था. सुषमा (परिवर्तित नाम) भी मंगलपांडे नगर के बिजली घर में ही काम करती थी.

एक तो रजत और सुषमा के घर एकडेढ़ किलोमीटर के दायरे में थे, दूसरा उन का दफ्तर भी एक ही था. यहां तक कि दोनों का ड्यूटी का समय भी एक ही रहता था, इसलिए पिछले कुछ महीने से दोनों एक ही वाहन से आते जाते थे. कभी रजत अपनी बाइक से जाता तो वह सुषमा को उस के घर से साथ ले लेता था और अगर सुषमा को अपनी स्कूटी ले जानी होती तो वह रजत को अपने साथ ले लेती थी. 29 अप्रैल, 2020 की सुबह भी ऐसा ही हुआ. रजत की मोटरसाइकिल के गियर में कुछ खराबी आ गई थी, इसलिए पिछले एक सप्ताह से रजत सुषमा के साथ उस की स्कूटी से बिजली घर जा रहा था. उस दिन सुबह करीब सवा 8 बजे वह सुषमा की स्कूटी पर उसे पीछे बैठा कर बिजली घर जा रहा था.

जब वह मवाना रोड पर विजयलोक कालोनी के सामने एफआईटी के पास पहुंचा तो अचानक पीछे से तेजी से आए स्पलेंडर बाइक सवार 2 युवकों ने अपनी बाइक स्कूटी के सामने अड़ा दी. सब कुछ इतनी तेजी से हुआ कि रजत को ब्रेक लगा कर स्कूटी रोकनी पड़ी. वह गुस्से से चिल्लाया, ‘‘ओ भाई, होश में तो है भांग पी रखी है क्या?’

बाइक पर सवार दोनों युवकों ने रूमाल बांध कर मास्क पहना हुआ था इसलिए उन्हें पहचान पाना मुश्किल था. इस से पहले कि सुषमा और रजत कुछ समझते बाइक सवार युवकों में से एक बाइक से उतरा और कमर में लगा रिवौल्वर निकाल कर तेजी से स्कूटी के पास जा कर रजत के जबड़े पर पिस्टल सटा कर गोली चला दी. इतना ही नहीं, उस ने एक गोली और चलाई जो रजत के भेजे में घुस गई. एक के बाद एक 2 गोली लगते ही रजत स्कूटी से नीचे गिर गया. उस के शरीर से खून का फव्वारा छूट पड़ा. सब कुछ इतनी तेजी से अचानक हुआ था कि सुषमा कुछ भी नहीं समझ पाई, न ही उस की समझ में यह आया कि क्या करे. जब माजरा समझ में आया तो उस के हलक से चीख निकल गई और वह मदद के लिए चिल्लाने लगी. इतनी देर में वारदात को अंजाम दे कर दोनों बाइक सवार फरार हो गए.

दिनदहाड़े भरी सड़क पर हुई इस वारदात के कुछ ही देर बाद राहगीरों की भीड़ एकत्र हो गई, लोगों में दहशत थी. जिस जगह ये वारदात हुई थी वह इलाका रजत के घर से मात्र 2 किलोमीटर की दूरी पर था. बदहवास सी सुषमा ने सब से पहले अपने मोबाइल से रजत के पिता जोगेंद्र सिंह को फोन किया. जोगेंद्र सिंह ने तुरंत अपने भतीजे विपिन को फोन कर के ये बात बताई और परिवार के सदस्यों के साथ घटनास्थल की तरफ दौड़ पड़े. परिवार का एकलौता बेटा था रजत रजत के ताऊ का लड़का विपिन चौधरी रजपुरा गांव का प्रधान है. जैसे ही उसे अपने चाचा से रजत के ऊपर गोली चलने की सूचना मिली तो वह लोगों को साथ ले कर कुछ मिनटों में ही विजयलोक कालोनी के पास पहुंच गया.

विपिन चौधरी के पहुंचने से पहले ही रजत की मौत हो चुकी थी. जिस जगह घटना घटी थी, वह इलाका गंगानगर थाना क्षेत्र में आता था. लिहाजा विपिन चौधरी ने तुरंत गंगानगर थाने के एसएचओ बृजेश शर्मा को फोन कर के अपने भाई के साथ घटी घटना की सूचना दे दी. सुबह का वक्त ऐसा होता है जब रात भर की गश्त और निगरानी के बाद पुलिस नींद की उबासी में होती है. फिर भी पुलिस को घटनास्थल पर आने में मुश्किल से 10 मिनट का समय लगा. घटना की सूचना मिलते ही एएसपी (सदर देहात) अखिलेश भदौरिया, एसपी देहात अविनाश पांडे, फोरैंसिक टीम और क्राइम ब्रांच की टीम के अफसरों को ले कर मौके पर पहुंच गए. थोड़ी देर बाद एसएसपी अजय साहनी भी घटनास्थल पर पहुंच गए.

पुलिस अधिकारियों ने घटना को ले कर सब से पहले वारदात की प्रत्यक्षदर्शी सुषमा से जानकारी ली, उस के बाद रजत के घर वालों के बयान दर्ज किए गए. लेकिन किसी ने भी यह नहीं बताया कि रजत की किसी से कोई दुश्मनी थी. वहां पहुंची रजत की मां और पत्नी निशा दहाड़े मारमार कर रो रही थीं, जिस से माहौल बेहद गमगीन हो गया था. एसएसपी के निर्देश पर लिखापढ़ी कर के रजत के शव को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया गया. पुलिस के साथ थाना गंगानगर पहुंचे परिवार वालों की तहरीर पर एएसपी अखिलेश भदौरिया ने अज्ञात हत्यारों के खिलाफ भादंसं की धारा 302 के तहत हत्या का मुकदमा दर्ज करवा दिया. इस केस की जांच का काम एसएचओ बृजेश कुमार शर्मा को सौंपा गया. एसएसपी अजय साहनी ने गंगानगर पुलिस की मदद के लिए क्राइम ब्रांच की टीम को भी लगा दिया.

उसी शाम को पोस्टमार्टम के बाद रजत का शव उस के घर वालों को सौंप दिया गया. परिजनों ने उसी शाम रजत के शव का अंतिम संस्कार कर दिया. इस दौरान जांच अधिकारी बृजेश शर्मा ने उस इलाके का फिर से निरीक्षण किया, जहां वारदात हुई थी. वारदात के बाद हत्यारे जिस दिशा में भागे थे, संयोग से वहां कई सीसीटीवी कैमरे लगे थे. जांच अधिकारी के आदेश पर पुलिस ने उन सभी सीसीटीवी कैमरों की फुटेज अपने कब्जे में ले ली. एक पुरानी कहावत है कि हत्या जैसे हर अपराध के पीछे मुख्य रूप से 3 कारण होते है जर, जोरू और जमीन. यानी वारदात के पीछे या तो कोई पुरानी रंजिश हो सकती है, जिस की संभावना ना के बराबर थी. क्योंकि रजत के परिवार ने अपने बयान में साफ कर दिया था कि न तो उन की, न ही उन के बेटे की किसी से कोई रंजिश थी और न ही इस की संभावना थी.

वैसे भी रजत के बारे में अभी तक जो जानकारी सामने आई थी, उस के मुताबिक वह हंसमुख और मिलनसार प्रवृत्ति का लड़का था. वह केवल अपने काम से काम रखता था. एक आशंका यह भी थी परिवार की कोई जमीनजायदाद या प्रौपर्टी का कोई मामला हो. लेकिन परिवार ने बताया कि उन के परिवार में प्रौपर्टी से जुड़ा हुआ कोई विवाद नहीं है. रजत अपने परिवार का एकलौता बेटा था. उस के पिता के नाम काफी संपत्ति थी, ऐसे में संपत्ति के लिए भी उस की हत्या हो सकती थी. इस के अलावा तीसरा अहम बिंदु था प्रेम प्रसंग. हत्या को जिस तरह से अंजाम दिया गया था, उस से इस बात की आशंका ज्यादा लग रही थी कि इस वारदात के पीछे कोई प्रेम त्रिकोण हो सकता है.

पुलिस उलझी जांच में जिस वक्त रजत की हत्या हुई, उस वक्त वह अपनी दोस्त सुषमा के साथ औफिस जा रहा था. यह भी पता चला कि दोनों अक्सर साथ ही दफ्तर आतेजाते थे. जांच अधिकारी बृजेश शर्मा के मन में अचानक सवाल उठा कि कहीं ऐसा तो नहीं कि रजत और सुषमा के बीच कोई ऐसा संबध हो, जिस की वजह से रजत की हत्या कर दी गई हो. इस आशंका के पीछे एक अहम कारण यह भी था क्योंकि पूछताछ में पता चला था कि उत्तराखंड के युवक से सुषमा की 10 दिन बाद ही शादी होनी थी. एक तरफ पुलिस टीमों ने क्राइम ब्रांच की मदद से कब्जे में ली गईं सभी सीसीटीवी कैमरों की फुटेज देखने का कामशुरू कर दिया, दूसरी तरफ पुलिस ने रजत व उस के कुछ करीबी दोस्तों के साथ सुषमा के मोबाइल नंबरों की सीडीआर निकलवा ली.

इन सीडीआर की जांचपड़ताल कर के यह देखा जाने लगा कि रजत का ज्यादा संपर्क किस से था. पुलिस की नजर में शुरुआती जांच में ही सुषमा सब से ज्यादा संदिग्ध नजर आ रही थी. इसलिए पुलिस ने सुषमा और उस के एक भाई को पूछताछ के लिए हिरासत में ले लिया. वारदात के दूसरे ही दिन रजत की पत्नी निशा भी थाने पहुंच गई. उस ने पुलिस के सामने ही सुषमा पर अपने भाइयों के साथ मिल कर रजत की हत्या का आरोप लगाया. उस ने सुषमा से जिस तरह के सवालजवाब किए, उस से भी पुलिस को लगने लगा कि कहीं न कहीं रजत और सुषमा के बीच असामान्य रिश्ते थे.

हालांकि सुषमा अभी तक केवल यही कह रही थी औफिस में एक कर्मचारी के नाते ही वह रजत के साथ आतीजाती थी. इस से ज्यादा उन के बीच कोई रिश्ता नहीं था. लेकिन निशा इस बात पर जोर दे रही थी कि जब रजत पर हमला हुआ तो उस ने हत्यारों से मुकाबला क्यों नहीं किया. सुषमा का कहना था कि गोली चलते ही वह डर गई थी. उस समय उस में कुछ भी सोचने समझने की शक्ति नहीं रह गई थी. पुलिस को सुषमा व उस के भाई पर शक होने का एक मजबूत आधार यह भी था कि जब सीसीटीवी फुटेज देखी गई तो उस में एक हत्यारोपी पैर में चप्पल पहने नजर आया. जब पुलिस सुषमा के भाई को पकड़ कर थाने लाई तो उस ने ठीक वैसी ही चप्पल पहनी हुई थी.

सुषमा का भाई योगेश (परिवर्तित नाम) गुड़गांव की एक प्राइवेट कंपनी में काम करता था और लौकडाउन के चलते छुट्टी पर घर आया हुआ था. जब पुलिस ने उसे पूछताछ के लिए उठाया तो उस वक्त उस के पैर में वैसी ही चप्पल थी. सुषमा व उस के भाइयों पर शक का एक दूसरा आधार ये भी था कि सुषमा ने रजत से 8 हजार रुपए उधार लिए थे. हालांकि जब पुलिस ने सुषमा से पूछताछ की तो उस ने इस बात से साफ इनकार किया कि उस का रजत से कोई लेनदेन का हिसाब था. लेकिन जब निशा ने लेनदेन की बात बताई तो सुषमा ने माना कि उस ने रजत से 8 हजार रुपए उधार लिए थे, जिस में से 2 हजार चुकता कर दिए थे.

अब पुलिस को लगने लगा कि हो न हो कोई ऐसी कहानी जरूर है, जिसे सुषमा छिपा रही है. लग रहा था कि उस के भाइयों ने ही रजत की हत्या की है. क्योंकि सुषमा काफी दिनों से रजत को गांव के बाहर से स्कूटी पर बैठा कर औफिस ले जा रही थी. कातिलों की टाइमिंग भी एकदम परफेक्ट थी, जैसे ही वह रजत को ले कर गांव से निकली कातिलों ने पीछा शुरू कर दिया और सब से हैरानी की बात ये थी कि कातिलों ने सुषमा को छुआ तक नहीं. जबकि रजत को 2 गोली मारी और फरार हो गए. सीसीटीवी फुटेज का सहारा पुलिस की कई टीमें अलगअलग बिंदुओं पर रजत हत्याकांड की गुत्थी सुलझाने में लगी थीं. मोबाइल की काल डिटेल्स व दोस्तों से पूछताछ में यह भी पता चला कि रजत की कई अन्य लड़कियों से भी दोस्ती थी. काल डिटेल्स से पुलिस को कुछ और क्लू भी मिले.

इस दौरान पुलिस ने एफआईटी से ले कर रजपुरा तक 42 सीसीटीवी की फुटेज देखने का काम पूरा कर लिया. फुटेज में बाइक सवार तो मिले, पर उन की पहचान नहीं हो पाई. सुषमा से कातिलों के बारे में जितनी भी जानकारी मिली थी, उस के आधार पर पुलिस ने उन के स्केच तैयार कर लिए. पुलिस और क्राइम ब्रांच की टीमें 2 हफ्तों तक सीसीटीवी फुटेज खंगालते हुए हर संदिग्ध से पूछताछ करती रहीं. पुलिस ने एफआईटी से सीसीटीवी को आधार बना कर भी बदमाशों की तलाश की. सीसीटीवी की फुटेज देख कर लग रहा था कि बदमाश गंगानगर से अम्हेड़ा होते हुए सिखेड़ा की तरफ गए थे और सिवाया टोलप्लाजा होते हुए मुजफ्फरनगर की तरफ निकल गए थे. आशंका थी कि शूटर मुजफ्फरनगर क्षेत्र के हो सकते हैं. पुलिस और क्राइम ब्रांच की टीम इस आधार पर भी मामले की पड़ताल करती रही.

पुलिस ने दोनों शूटरों के स्केच के आधार पर जेल में बंद बदमाशों से भी पहचान कराने की कोशिश की. 2 सप्ताह की जांच में एक बात साफ हो गई थी कि सुषमा या उस के परिवार के लोग कुछ बातों को ले कर संदिग्ध जरूर लग रहे थे, लेकिन उन के खिलाफ अभी तक ऐसा कोई ठोस सबूत या आधार सामने नहीं आया था कि उन्हें गिरफ्तार किया जाता. इसलिए पुलिस उन्हें पूछताछ के लिए थाने बुलाती तो रही लेकिन इस के साथ दूसरी दिशा में भी अपनी जांच आगे बढ़ाती रही. दरअसल, पुलिस जब सीसीटीवी की जांच कर रही थी, तो उन्हें घटनास्थल से पल्लवपुरम तक के सीसीटीवी कैमरे में एक ऐसी बाइक दिखी, जिस में मुंह पर गमछा बांधे 2 सवार बैठे थे,

बाइक भी एक जैसी थी बस फर्क इतना था कि वह बाइक जब घटनास्थल पर दिखी तो उस की नंबर प्लेट इस तरह मुड़ी हुई थी कि सीसीटीवी में उस का नंबर नहीं दिख रहा था. लेकिन पल्लवपुरम के बाद जब वो बाइक दिखी तो उस की नंबर प्लेट एकदम सीधी थी और उस का नंबर भी साफ दिख रहा था. क्राइम ब्रांच की टीम ने जब जांच अधिकारी बृजेश शर्मा को उस बाइक का नंबर निकाल कर दिया तो शर्मा ने तत्काल बाइक के नंबर को ट्रेस करवा कर उस के मालिक का पता निकलवा लिया. पता चला वह बाइक कंकरखेड़ा के सैनिक विहार में रहने वाले इशांत दत्ता के नाम थी. लंबी कवायद के बाद पुलिस को एक बड़ा सुराग मिला था इसलिए पुलिस ने तत्काल एक पुलिस टीम को भेज कर इशांत दत्ता को थाने बुलवा लिया.

सीसीटीवी में जो स्पलेंडर बाइक दिखाई दे रही थी, उसी नंबर प्लेट की बाइक इशांत के घर पर खड़ी थी. पुलिस उसे भी अपने साथ थाने ले आई. थाने में इशांत दत्ता से पूछताछ का सिलसिला शुरू हुआ. इशांत नौकरीपेशा युवक था, जब पुलिस ने उसे बताया कि 29 मई को उस की बाइक का इस्तेमाल रजत सिवाच की हत्या करने में हुआ था, तो इशांत ने बिना एक पल गंवाए बता दिया कि उस से एक दिन पहले कंकरखेड़ा के श्रद्धापुरी में रहने वाला उस का दोस्त अंशुल उस की बाइक यह कह कर ले गया था कि उसे किसी काम से मुजफ्फरनगर जाना है 1-2 दिन में बाइक लौटा देगा.

चूंकि लौकडाउन के कारण इशांत को कहीं नहीं जाना था, इसलिए उस ने अपनी बाइक अंशुल को दे दी और अंशुल वादे के मुताबिक 2 दिन बाद उस की बाइक वापस लौटा गया. इशांत ने बताया कि उसे नहीं मालूम कि अंशुल ने उस की बाइक का इस्तेमाल किसी गलत काम में किया है. इशांत था बेकसूर पुलिस को पहले तो इशांत की बातों पर यकीन नहीं हुआ, लेकिन उस के मोबाइल की लोकेशन को ट्रेस करने के बाद यह बात साफ हो गई कि उस दिन वह अपने घर पर ही था. पुलिस ने पुख्ता यकीन करने के लिए आसपड़ोस के लोगों से भी इस बात की पुष्टि कर ली. उस दिन इशांत अपने घर पर ही था.

इशांत से पूछताछ के बाद यह बात तो साफ हो गई कि उस की बाइक अंशुल बावरा नाम का उस का दोस्त ले कर गया था. अब पुलिस के राडार पर अंशुल बावरा आ गया. इशांत दत्ता से अंशुल बावरा की सारी जानकारी और पता हासिल करने के बाद पुलिस ने अपना जाल बिछा दिया. अगले 24 घंटे में पुलिस ने अंशुल को भी हिरासत में ले लिया, जिस के बाद पुलिस ने सुषमा से उस की शिनाख्त कराई तो उस ने बता दिया कि जिन लोगों ने रजत के ऊपर हमला किया था, उन में से एक की कदकाठी बिल्कुल अंशुल के हुलिए से मेल खाती है. इस के बाद पुलिस ने जब अंशुल से अपने तरीके से पूछताछ की तो कुछ घंटों की मशक्कत के बाद वह टूट गया. उस ने कबूल कर लिया कि उस ने सरधना के दबथुआ में रहने वाले अपने एक दोस्त कपिल जाट के साथ मिल कर रजत की हत्या की थी.

अंशुल ने यह भी मान लिया कि उस ने सैनिक विहार निवासी अपने दोस्त इशांत से झूठ बोल कर उस की बाइक से वारदात को अंजाम दिया था. घटना के वक्त बाइक के पीछे लगी नंबर प्लेट को उस ने मोड़ कर ऊपर की तरफ कर दिया था ताकि किसी को नंबर पता न चल सके. घटना के बाद जब वे लोग पल्लवपुरम के पास पहुंचे तो उस ने नंबर प्लेट सीधी कर दी. इसी के बाद एक जगह लगे सीसीटीवी कैमरे में बाइक का नंबर आ गया होगा. इस से साफ हो गया कि रजत की हत्या करने में इशांत दत्ता उर्फ ईशू शामिल नहीं था. अब सवाल था कि आखिर अंशुल बावरा ने रजत की हत्या क्यों की. जब इस बारे में पूछताछ हुई तो पुलिस के पांव तले की जमीन खिसक गई. क्योंकि पिछले 2 हफ्ते से वह इस हत्याकांड के सुराग तलाशने में दूसरे जिलों तक हाथपांव मार रही थी, उसे क्या पता था कि रजत का कातिल उस के घर में ही छिपा बैठा था.

अंशुल से पूछताछ में पता चला कि उस ने रजत की पत्नी निशा के कारण रजत की हत्या को अंजाम दिया था. अब कपिल जाट के अलावा रजत की पत्नी भी उस की हत्या में वांछित हो गई. पुलिस ने कोई भी कदम उठाने से पहले रजत के परिवार वालों को विश्वास में लेना जरूरी समझा, इसलिए उन्होंने रजत के पिता जोगेंद्र सिंह और उस के कजिन रजपुरा के प्रधान विपिन चौधरी को बुला कर अंशुल बावरा से हुई पूछताछ के बारे में बताया. यह जानकारी मिलने के बाद उन्होंने पुलिस को निशा को हिरासत में ले कर पूछताछ करने की अनुमति दे दी. महिला पुलिस के सहयोग से उसी दिन निशा को भी हिरासत में ले लिया गया. दूसरी ओर एक टीम पहले ही कपिल जाट की गिरफ्तारी के लिए भेज दी गई थी, उसे भी रात होतेहोते पुलिस ने धर दबोचा. इस के बाद तीनों आरोपियों को आमनेसामने बैठा कर पूछताछ की गई.

जो कहानी पुलिस के सामने आई, उसे जानने के बाद सभी के होश उड़ गए, क्योंकि निशा की 7 साल पुरानी एक प्रेम कहानी ने जो अंगड़ाई ली थी, उस ने उस की जिंदगी में खूनी रंग भर दिए. खास बात यह कि खून के रंग भरने वाली चित्रकार वही थी. निशा का पहला प्यार था अंशुल कंकरखेड़़ा के श्रद्धापुरी का रहने वाला अंशुल बावरा (37) पहले से शादीशुदा और 2 बच्चों का पिता था और दूध की डेयरी चलाता था. निशा का परिवार लंबे समय से उस के पड़ोस में ही रहता था. निशा को अंशुल ने अपनी आंखों के सामने जवान होते देखा था. निशा को वह उसी वक्त से पसंद करता था जब वह किशोरावस्था में थी. ऐसा नहीं था कि उस का प्यार एकतरफा था.

रजत दबंग किस्म का फैशनपरस्त और चकाचौंध भरी जिंदगी जीने वाला नौजवान था. कोई भी लड़की उस की तरफ आकर्षित हो सकती थी. निशा भी अंशुल की तरफ आकर्षित थी और मन ही मन उसे पसंद भी करती थी. पड़ोस में रहने के कारण निशा बदनामी के डर से अंशुल से ज्यादा तो नहीं मिल पाती थी लेकिन जब भी दोनों की बातचीत होती तो उस से दोनों को ही यह आभास हो गया था कि वे एकदूसरे को पसंद करते हैं. दबी जबान से दोनों ने एक दूसरे से यह बात कह भी दी थी. लेकिन इसी दौरान एक ऐसी घटना घटी, जिस की वजह से अंशुल और निशा के प्यार ने परवान चढ़ने से पहले ही दम तोड़ दिया. हुआ यह कि साल 2011 में नोएडा के एक व्यवसायी के अपहरण और उस से फिरौती वसूलने के आरोप में अंशुल को नोएडा पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया. इस मामले में उसे 6 साल जेल में गुजारने पड़े.

जब 2017 में अंशुल जेल से बाहर आया तो उसे पता चला कि उस की माशूका निशा की शादी हो चुकी है. उस ने निशा के बारे में अपनी कालोनी के लड़कों से जानकारी हासिल करने के बाद किसी तरह उस का मोबाइल नंबर भी प्राप्त कर लिया. 3 साल पहले अंशुल ने निशा के नंबर पर फोन किया तो पहले वह अंजान नंबर देख कर सकपका गई. लेकिन जब उसे पता चला कि फोन करने वाला अंशुल है तो उस की जान में जान आई. अंशुल ने पहली बार की बातचीत में ही निशा के सामने अपने दिल की शिकायत दर्ज करा दी. उस ने निशा से शिकायत भरे लहजे में कहा, ‘‘यार मैं ने तो तुम्हें अपने मन के मंदिर में बसा कर जीवन भर साथ निभाने के सपने देखे थे, किस्मत ने मेरे जीवन के साथ थोड़ा खिलवाड़ क्या किया कि तुम ने मुझे भुला ही दिया. मेरा इंतजार किए बिना घर बसा लिया.’’

निशा के पास कोई जवाब तो था नहीं, लिहाजा उस दिन उस ने सिर्फ यही कहा कि वह अपनी मम्मी से मिलने के लिए घर आएगी तब उस के साथ विस्तार से बात करेगी. उस दिन के बाद निशा और अंशुल की हर रोज फोन पर बातें होने लगीं. कुछ दिन बाद जब वह कंकरखेड़ा अपने मायके गई तो लंबे अरसे बाद अंशुल से मुलाकात हुई. अंशुल ने खूब गिलेशिकवे किए और बताया कि झूठे मुकदमे में फंसा कर उसे जेल भेज दिया गया था. जेल में वह हर दिन उसे याद कर के अपना वक्त गुजारता था. अंशुल की इस बात ने निशा को भावुक कर दिया, वह सोचने लगी कि उस ने तो अंशुल को जेल जाने के बाद ही भुला दिया था जबकि वह अपने प्यार की खातिर उसे 7 साल बाद भी नहीं भुला पाया.

निशा जब कालेज में पढ़ती थी, तब उस की जानपहचान रजत से हुई थी. कालेज के दिनों में दोनों के बीच इश्क शुरू हुआ और कालेज की पढ़ाई खत्म होतेहोते इश्क इस तरह परवान चढ़ा कि दोनों ने लव मैरिज कर ली. रजत जाट परिवार से था जबकि निशा वैश्य परिवार की थी. रजत का परिवार बिरादरी से बाहर निशा से उस की शादी के लिए तैयार नहीं था, लेकिन रजत ने परिवार के विरुद्ध जा कर निशा से शादी की. शादी के कुछ दिन तक वह परिवार से अलग रहा, लेकिन परिवार का एकलौता लड़का होने की वजह से घर वालों ने निशा से शादी को मंजूरी दे दी. शादी के एक साल बाद ही निशा ने एक प्यारी सी बेटी को जन्म दिया, जो अब करीब 5 साल की है.

रजत की मां स्वास्थ्य विभाग में नौकरी करती थीं, जो कुछ दिन पहले ही रिटायर हुई हैं. हांलाकि रजत के पिता के पास काफी जमीनजायदाद थी, लेकिन इस के बावजूद 3 साल पहले रजत ने बिजली विभाग में संविदा पर सुपरवाइजर की नौकरी जौइन कर ली थी. कुछ ही दिन पहले निशा दोबारा गर्भवती हुई थी. अतीत के तमाम खुशनुमा लम्हों के बावजूद 3 साल पहले जब अंशुल दोबारा निशा की जिदंगी में आया तो वह सब कुछ भूल कर फिर से उस के आगोश में समा गई. पुराने प्यार ने ऐसी अंगड़ाई ली कि निशा यह भी भूल गई कि वह एक बेटी की मां है और उस ने उस शख्स से शादी की है जिस ने उस के प्यार की खातिर अपने परिवार से बगावत कर दी थी.

3 साल पहले फिर से ताजा हुई निशा की अंशुल से पुरानी मोहब्बत दिनोंदिन परवान चढ़ती गई. वह अपनी मां से मिलने का बहाना बना कर अक्सर कंकरखेड़ा जाती और फिर कभी किसी होटल में तो कभी किसी दोस्त के घर पर अंशुल के गले का हार बन कर अपने पति को धोखा देती. हालांकि हर घर में पतिपत्नी में छोटीमोटी बातों पर तकरार होती है, झगड़ा होता है यहां तक कि कभीकभी मारपीट तक हो जाती है. ऐसा ही रजत और निशा की जिदंगी में भी था. लेकिन जब से अंशुल उस की जिंदगी में आया था, तब से रजत का ऐसा हर व्यवहार उसे अपने ऊपर अत्याचार लगने लगा था. जब वह अंशुल से रजत के इस व्यवहार के बारे में बताती तो वह आग में घी डालने का काम करता.

अब अक्सर ऐसा होने लगा कि जब भी रजत व निशा के बीच किसी बात को ले कर तकरार होती तो वह अकसर झगड़े में बदल जाती थी. धीरेधीरे रजत और निशा के बीच मनममुटाव झगड़े और मारपीट में बदलने लगे थे. जब भी ऐसा होता तो निशा अकसर मायके जाती और वहां अंशुल की बांहों का सहारा उसे दिलासा देता. निशा के ऊपर अब अंशुल के प्यार की खुमारी इस कदर चढ़ चुकी थी कि वह रजत को छोड़ने का मन बना चुकी थी. अंशुल ने भी उसे अपनी बनाने को कह दिया था कि वह उसे भगा कर उस से शादी कर लेगा. ऐसा ही हुआ भी, निशा ने घर से भागने की पूरी तैयारी भी कर ली.

22 मार्च को लौकडाउन होने से पहले निशा ने 20 मार्च को फोन कर के इस योजना के तहत रात के समय अंशुल को अपने घर के पीछे बुलाया और कपड़ों से भरे 2-3 बैग छत से नीचे फेंक दिए. जिन्हें ले जा कर अंशुल ने अपने घर में रख लिया. योजना यह थी कि अगले दिन निशा घर से कुछ गहने व नकदी ले कर किसी बहाने खाली हाथ निकल जाएगी और फिर अंशुल उसे कहीं ले जाएगा, जहां दोनों शादी कर लेंगे. लेकिन अगले ही दिन जनता कर्फ्यू का ऐलान हो गया और उस के अगले ही दिन देश भर में लौकडाउन लग गया. फलस्वरूप दोनों की योजना पूरी नहीं हो सकी. कुछ दिनों बाद निशा ने अंशुल को फोन कर दोबारा कहा कि वह बहुत परेशान है. आ कर उसे ले जाए.

इस के बाद अंशुल ने कहा कि रजत को मार देता हूं, जिस के जवाब में निशा ने कहा कि तुम्हें जो करना है करो, लेकिन मुझे यहां से ले जाओ. उस के बाद अंशुल और निशा ने मिल कर रजत की हत्या की योजना बनाई. इसी योजना को पूरा करने के लिए अंशुल ने पहले एक तमंचे का इंतजाम किया. उस के बाद उस ने किसी ऐसे साथी का साथ लेने का फैसला किया जो हिम्मत वाला हो. इस काम के लिए उस ने अपहरण केस में अपने साथी कपिल जाट को साथ रखने का फैसला किया. उस ने वाहन के लिए सैनिक विहार में रहने वाले अपने दोस्त इशांत दत्ता से झूठ बोल कर 28 मई को उस की स्पलेंडर बाइक ले ली.

उसी सुबह वह पहले तड़के दबथुआ गया और वहां से कपिल जाट को साथ ले कर गंगानगर पहुंचा. गंगानगर में मोटरसाइकिल पर सवार होने के दौरान ही अंशुल ने कपिल को बताया था कि उसे अपनी प्रेमिका के पति का काम तमाम करना है. हालांकि कपिल ने इस बात पर ऐतराज भी किया था कि अगर ऐसा काम करना ही था तो उसे पहले बताना चाहिए था, फिर कारगर योजना बना कर काम करते. लेकिन अंशुल ने उसे समझा दिया कि उस ने पूरी प्लानिंग कर ली है, बस वह बाइक चला ले गोली मारने का काम वह कर लेगा. दूसरी तरफ निशा अंशुल को पहले ही बता चुकी थी कि रजत अपने औफिस में काम करने वाली लड़की के साथ 8 से साढ़े 8 बजे के करीब घर से निकलता है.

इसीलिए अंशुल कपिल जाट के साथ 8 बजे ही गली के बाहर कुछ दूरी बना कर रजत के बाहर आने का इंतजार करने लगा. रजत जैसे ही सुषमा के साथ स्कूटी ड़्राइव करते हुए अपने औफिस के लिए चला तो अंशुल ने उस की स्कूटी का पीछा शुरू कर दिया. करीब 2 किलोमीटर पीछा करने के बाद मौका देख कर स्कूटी को ओवरटेक कर के रोका, फिर रजत को 2 गोली मार कर कपिल के साथ फरार हो गया. रजत की हत्या के बाद अंशुल सीधे अपने घर पहुंचा. कपिल को उस ने कहीं छोड़ दिया था. दूसरी तरफ पड़ोस में रहने वाले निशा के घर वालों को जब पता चला कि उन के दामाद रजत की किसी ने हत्या कर दी है तो उस के घर में रोनापीटना शुरू हो गया. पता चलने पर अंशुल कालोनी के कुछ लोगों के साथ निशा के परिजनों को सांत्वना देने पहुंचा.

जब निशा के घर वाले रजत के घर जाने की चर्चा करने लगे तो हमदर्दी दिखाते हुए अंशुल अपनी कार से उन्हें रजत के घर ले गया. निशा के परिजनों के साथ उस ने भी पारिवारिक सदस्य की तरह ही शोक व्यक्त किया. अंशुल के वहां आने से निशा इस बात को बखूबी समझ गई थी कि अंशुल ने अपना काम न सिर्फ सफाई से किया है बल्कि वह सुरक्षित भी है. अंशुल ने खेला सेफ गेम इस दौरान अंशुल ने किसी को भी शक नहीं होने दिया. अगले दिन सुबह ही अंशुल ने इशांत दत्ता की मोटरसाइकिल उसे वापस लौटा दी. अंशुल निश्चिंत था कि उस ने रजत की हत्या इतनी सफाई से की है कि पुलिस के हाथ उस की गरदन तक नहीं पहुंचेंगे.

लेकिन हर अपराधी से कहीं न कहीं चूक होती है. अंशुल की चुगली सीसीटीवी कैमरों ने कर दी. पुलिस ने घटनास्थल से ले कर कई किलोमीटर तक करीब 40 सीसीटीवी कैमरों से कडि़यां जोड़ते हुए वारदात में शामिल उस बाइक को खोज निकाला. इस तरह अंशुल बावरा, कपिल जाट तथा निशा तीनों पुलिस के चंगुल में फंस गए. पुलिस ने हत्या में प्रयुक्त बाइक पहले ही बरामद कर ली थी बाद में अंशुल से पूछताछ के बाद हत्या में इस्तेमाल तमंचा भी बरामद कर लिया गया. पुलिस ने अंशुल के घर से ही निशा के कपड़ों से भरे बैग भी बरामद कर लिए. दरअसल, पुलिस ने जिन 20 नंबरों की सीडीआर खंगाली थी, उन में एक नंबर रजत की पत्नी निशा सिवाच का भी था. सीडीआर में पता चला कि रजत की हत्या से पहले निशा एक नए नंबर पर लगातार 2 महीने तक बातचीत कर रही थी.

पुलिस ने जब उस नंबर की आईडी निकलवाई तो पता चला वह निशा की मां के नाम पर है. हालांकि यह नंबर 21 अप्रैल को बंद हो गया था. पता चला कि 2 महीने पहले निशा ने अपनी मम्मी की आईडी पर नया सिम ले कर अंशुल को दिया था. 21 अप्रैल को अंशुल इस सिम को निशा को दे कर चला गया था, जिस के बाद वह एक्टिव नहीं था. दरअसल, इस नंबर को निशा ने अपनी मां के नाम से ले कर अंशुल को इसलिए दिया था ताकि वे दोनों इसी नंबर पर बात करते रहें और निशा जब घर से भागे और पुलिस उस के मोबाइल की काल डिटेल्स निकाले तो कहीं भी अंशुल का नंबर ट्रेस न हो.

पुलिस ने जिस वक्त निशा को गिरफ्तार कर के जेल भेजा था वह साढ़े 3 माह की गर्भवती थी. रजत के कत्ल और अंशुल से निशा के नाजायज रिश्तों की कहानी सामने आने पर रजत के घर वाले चाहते हैं कि निशा की कोख में पल रहे बच्चे का डीएनए टेस्ट कराया जाए. यदि बच्चा रजत का है तो वे अपना लेंगे. हालांकि परिवार ने रजत निशा की 5 साल की बेटी को अपने पास ही रखा है. दूसरी तरफ निशा के पिता बेटी की करतूत से बेहद शर्मिदा हैं और कहते हैं कि वे उस की पैरवी नहीं करेंगे. यह अंशुल की अपने प्यार को पाने के लिए रची गई खूनी साजिश थी, जिस ने उसे सलाखों के पीछे पहुंचा दिया है.

—कथा पुलिस व आरोपियों से हुई पूछताछ पर आधारित

मां संग रची साजिश : क्यों बेटी ने करवाया पिता का कत्ल

Crime News : नाबालिग बेटी खुशबू के पैर बहक जाने की जानकारी मिलने पर मां रानी देवी को बेटी को समझा कर सही रास्ते पर लाना चाहिए था, लेकिन ऐसा करने के बजाय उस ने बेटी के सहारे अपना प्रेमी ही ढूंढ लिया. इस के बाद जो हुआ, उस की किसी ने कल्पना तक नहीं की थी…

‘‘भा भी, भैया कहां हैं? दिन ढल गया, दिखाई नहीं दे रहे. किसी काम से गए हैं क्या?’’ राकेश सिंह ने अपनी भाभी रानी से पूछा.

‘‘दोपहर में किसी का फोन आया था, फोन पर बात करते हुए थोड़ी देर में आने को कह कर घर से निकले. लेकिन सांझ हो गई है, अभी तक नहीं लौटे. मुझे चिंता हो रही है.’’ परेशान रानी ने देवर राकेश से कहा.

‘‘मैं भैया को ढूंढने जा रहा हूं. अगर कुछ पता नहीं चला तो मैं पहासू थाने चला जाऊंगा और गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज करा दूंगा.’’

‘‘आप के जो समझ में आए, करो. किसी भी तरह उन का का पता लगाओ.’’ रानी बोली.

‘‘जी छोटा मत करो भाभी.’’ राकेश ने भाभी को समझाया. राकेश भाई को ढूंढने निकल गया. उस समय शाम के करीब साढ़े 6 बज रहे थे. तारीख थी 9 जुलाई 2020. जितना संभव था, राकेश ने बड़े भाई बलवीर सिंह को ढूंढा लेकिन उस का कहीं पता नहीं चला. बलवीर सिंह न तो किसी दोस्त के यहां गया था और न ही किसी परिचित के यहां. राकेश भी परेशान था कि बाइक ले कर वह कहां गया होगा. बलवीर का फोन स्विच्ड औफ आ रहा था. फोन बंद होने से राकेश के माथे पर चिंता की लकीरें उभर आईं. जब बलवीर का कहीं पता नहीं चला तो राकेश पहासू थाने पहुंच गया.

थाने के दीवान अशोक कुमार को अपनी परेशानी बता कर उस ने भाई की गुमशुदगी की तहरीर उन्हें दे दी. अशोक कुमार ने राकेश को विश्वास दिलाया कि बड़े साहब के आते ही आवश्यक काररवाई हो जाएगी. रात काफी हो गई है, अभी अपने घर जाओ. दीवान के आश्वासन पर राकेश घर लौट आया. उस समय रात के करीब 10 बज रहे थे. घर वालों की बढ़ी चिंता रानी और राकेश ने किसी तरह रात काटी. बलवीर की पत्नी रानी दरवाजे पर इस आस से टकटकी लगाए रही कि वह अब घर लौटेंगे तो दरवाजा कौन खोलेगा. बलवीर सिंह को घर से गए 24 घंटे हो गए. लेकिन उस का कहीं पता नहीं चला. समझ नहीं आ रहा था कि वह गया तो कहां गया? इस बात को ले कर घर वालों को चिंता सताने लगी.

डर था कि उस के साथ कहीं कोई अप्रिय घटना तो नहीं घट गई, क्योंकि उस का फोन अब भी बंद आ रहा था. उस के फोन का बंद आना, घर वालों की चिंता बढ़ा रहा था. पहासू थाने के थानाप्रभारी आर.के. यादव ने राकेश की तहरीर पर बलवीर की गुमशुदगी की सूचना दर्ज कर आवश्यक काररवाई शुरू कर दी थी. गुमशुदगी के तीसरे दिन यानी 11 जुलाई को पुलिस को दिन के करीब 11 बजे सूचना मिली कि थाने से करीब 6 किलोमीटर दूर गंगावली नहर के किनारे झाड़ी में एक अधेड़ उम्र के आदमी की लाश पड़ी है. लाश बुरी तरह झुलसी हुई है और उस के पास एक लावारिस बाइक खड़ी है. सूचना मिलते ही थानाप्रभारी अपनी टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. उन्होंने इस की जानकारी राकेश को भी दे दी थी और उसे लाश की शिनाख्त के लिए मौके पर पहुंचने को कह दिया.

जानकारी मिलते ही राकेश घटनास्थल पहुंच गया. लाश की कदकाठी और कपड़ों से उस ने लाश की पहचान अपने भाई बलवीर सिंह के रूप में कर ली. पुलिस ने लाश झाड़ी के अंदर से बाहर निकलवाई. उस का चेहरा बुरी तरह झुलसा हुआ था. हत्यारों ने बलवीर की हत्या करने के बाद पहचान छिपाने के लिए उस के चेहरे पर कोई ज्वलनशील पदार्थ उड़ेल कर आग लगा दी थी. शव के पास जो मोटरसाइकिल बरामद हुई, वह भी बलवीर की ही थी. पुलिस ने लाश और बाइक दोनों को अपने कब्जे में ले लिया. घटनास्थल का निरीक्षण करने पर मौके से कोई अन्य चीज बरामद नहीं हुई थी.

घटनास्थल की काररवाई कर पुलिस ने लाश पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दी. थाने लौट कर पुलिस ने राकेश सिंह की तहरीर पर धारा 302 भादंसं के तहत अज्ञात हत्यारों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया और आगे की काररवाई शुरू कर दी. बलवीर सिंह की हत्या की सूचना मिलते ही उस के घर में कोहराम मच गया. मृतक की पत्नी रानी, बेटी खुशबू और राकेश का रोरो कर बुरा हाल था. किसी की समझ में नहीं आ रहा था कि बलवीर की हत्या किस ने और क्यों की? जबकि उस की किसी से दुश्मनी नहीं थी. वह सीधासादा किसान था, अपने काम से काम रखने वाला.

बलवीर सिंह की हत्या ब्लांइड मर्डर थी. पुलिस के लिए चुनौती. पुलिस को बलवीर का मोबाइल नंबर मिल गया था. नंबर ही एक ऐसा आधार था जिस से पुलिस कातिलों तक पहुंच सकती थी. यह भी पता चल सकता था कि उस के फोन पर आखिरी बार किस ने काल की थी. 2 दिनों बाद पुलिस को बलवीर के मोबाइल की कालडिटेल्स मिल गई. काल डिटेल्स का अध्ययन करने पर पता चला कि उस के नंबर पर आखिरी काल दोपहर एक बजे के करीब आई थी. फिर एक घंटे बाद उस का फोन स्विच्ड औफ हो गया था. इस से एक बात साफ हो गई कि बलवीर के साथ जो कुछ हुआ, वह इसी एक घंटे के बीच में हुआ था. हत्यारों ने इसी एक घंटे के भीतर अपना काम कर के लाश ठिकाने लगा दी होगी.

पुलिस को मिली अहम जानकारी पुलिस को जांचपड़ताल से पता चला कि बलवीर के फोन पर आखिरी बार जिस नंबर से काल आई थी, वह नंबर हेमंत का था. हेमंत पहासू थाने के जाटोला का रहने वाला था. मृतक भी पहासू का रहने वाला था और फोन करने वाला भी. इस का मतलब बलवीर और हेमंत के बीच जरूर कोई संबंध था. बलवीर और हेमंत के बीच की बिखरी कडि़यों को जोड़ते हुए पुलिस को मुखबिर के जरिए ऐसी चौंकाने वाली जानकारी मिली कि पुलिस भौचक रह गई. मृतक की बेटी खुशबू और गांव के हेमंत के बीच कई सालों से अफेयर था. इतना ही नहीं, बलवीर की पत्नी रानी के भी गांव के ही एक युवक से मधुर संबंध थे.

मांबेटी का अफेयर गांव के 2 अलगअलग युवकों से चल रहा था. बलवीर सिंह को मांबेटी के अनैतिक संबंधों की जानकारी हो गई थी. वह दोनों के संबंधों का विरोध करता था. इसे ले कर पतिपत्नी के बीच काफी समय से विवाद चल रहा था. पुलिस के लिए यह जानकारी काफी थी. उस की हत्या प्रेम में बाधा बनने के कारण हुई थी. लेकिन पुलिस के पास इस बात का कोई ठोस सबूत नहीं था, जिस से वह मांबेटी को गिरफ्तार कर सके. मांबेटी तक पहुंचने के लिए पुलिस को दोनों के मोबाइल नंबरों की जरूरत थी. पुलिस चाहती थी कि मांबेटी को इस की भनक तक न लगे. बहरहाल, किसी तरह पुलिस ने मांबेटी के फोन नंबर हासिल कर लिए. नंबर मिल जाने के बाद दोनों नंबर सर्विलांस पर लगा दिए गए.

साथ ही दोनों नंबरों की काल डिटेल्स भी निकलवा ली गई. इस से पता चला कि खुशबू की काल डिटेल्स में हेमंत का वही नंबर था जो नंबर मृतक बलवीर सिंह की काल डिटेल्स में मिला था. हेमंत और खुशबू के बीच घटना वाले दिन और उस से पहले कई बार बातचीत हुई थी. घटना के बाद भी खुशबू और हेमंत फोन पर बातचीत कर रहे थे. दोनों को इस बात की जानकारी नहीं थी कि पुलिस उन के नंबरों को सर्विलांस पर लगा कर उन की बातचीत सुन रही है. घटना के कई दिनों बाद हेमंत ने खुशबू को फोन कर के कहा, ‘‘अब तो हमारे रास्ते का कांटा हमेशाहमेशा के लिए निकल चुका है. अब हमें एक होने से कोई नहीं रोक सकता.’’

इस पर खुशबू ने जवाब दिया, ‘‘ज्यादा इतराओ मत. पुलिस को हमारे राज के बारे में पता चल गया तो जिंदगी भर जेल में बैठे चक्की पीसेंगे. फिर सलाखों के पीछे बैठे इश्क की माला जपते रहना. थोड़ा सब्र रखो, ऐसा कोई काम मत करना जिस से हम पकड़े जाएं.’’

पुलिस को सुराग तो मिल गया था लेकिन उसे अभी भी यकीन नहीं हो रहा था कि बलवीर की हत्या मांबेटी ने मिल कर अपने आशिकों से कराई थी. मृतक की पत्नी रानी की अपने आशिक से बातचीत का रिकौर्ड पुलिस के पास मौजूद था. इन्हीं पुख्ता सबूतों के आधार पर पुलिस 22 जुलाई, 2020 को रानी और उस की बेटी खुशबू को गिरफ्तार कर पहासू थाने ले आई. दोनों से कड़ाई से पूछताछ की गई तो दोनों ने अपना जुर्म कबूल कर लिया. पता चला कि बलवीर की हत्या प्रेम संबंधों में बाधक बनने की वजह से हुई थी. माशूकाओं ने पकड़वाया आशिकों को रानी और खुशबू से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने उसी दिन शाम को उन के आशिकों हेमंत, गोली और उस के दोस्त आकाश को बसअड्डा, पहासू से गिरफ्तार कर लिया.

पुलिस तीनों आरोपितों को गिरफ्तार कर के पहासू थाने ले आई. उन तीनों ने खुशबू और उस की मां रानी को पुलिस हिरासत में देखा तो उन के होश उड़ गए. उन्होंने भी बड़ी आसानी से अपना जुर्म कबूल कर लिया. 14 दिनों से राज बने बलवीर सिंह हत्याकांड से आखिर परदा उठ ही गया. पुलिस ने अज्ञात की जगह मृतक पत्नी रानी, बेटी खुशबू, उन के आशिकों हेमंत और गोली व उस के दोस्त आकाश को नामजद कर दिया. एसपी गोपालकृष्ण चौधरी ने उसी दिन पुलिस लाइंस में प्रैस कौन्फ्रैंस कर के बलवीर हत्याकांड के पांचों आरोपियों को पत्रकारों के सामने पेश कर घटना का खुलासा कर दिया.

पुलिसिया पूछताछ में बलवीर सिंह हत्याकांड की कहानी ऐसे सामने आई—

45 वर्षीय बलवीर सिंह उत्तर प्रदेश के जिला बुलंदशहर के थाना पहासू के गांव जाटोला में रहता था. उस का छोटा सा परिवार था, जिस में पत्नी रानी और बेटी खुशबू तथा एक बेटा था. बलवीर का एक छोटा भाई था राकेश सिंह. बलवीर और राकेश दोनों भाइयों के बीच अटूट प्रेम था. दोनों भाई एकदूसरे के दुखसुख में हमेशा खड़े रहते थे. बलवीर सिंह को इलाके का सब से बड़ा किसान कहा जाता था. उस के पास खेती की कई एकड़ जमीन थी, जिस पर वह वैज्ञानिक विधि से खेती करवाता था. इस से उसे अच्छा मुनाफा होता था. इसी आमदनी से वह दोनों बच्चों को अच्छे स्कूलों में पढ़ा रहा था.

बच्चों की पढ़ाई के साथ वह कोई समझौता नहीं करता था. धीरेधीरे बलवीर के दोनों बच्चे बड़े हो रहे थे. बेटी खुशबू बड़ी थी और बेटा छोटा. कब बचपन को पीछे छोड़ कर खुशबू ने जवानी की दहलीज पर कदम रख दिया था. वह 17 साल की हो चुकी थी. खुशबू कब तक कोरे दिल को आशिकों की नजरों से बचाती फिरती, आखिरकार वह हेमंत को अपना दिल दे बैठी. हेमंत उसी गांव का रहने वाला था. आतेजाते हेमंत की नजर खुशबू पर पड़ी तो वह उस के दिल में समा गई. खुशबू को भी हेमंत पसंद था. 22 साल का हेमंत गबरू जवान था. वह अभी पढ़ाई कर रहा था. पढ़ाई के दौरान नौकरी की तैयारी में भी जुटा था. जल्दी ही दोनों ने एकदूसरे से प्रेम का इजहार कर दिया.

हेमंत से मोहब्बत की लगन लगने के बाद खुशबू के चेहरे पर कुछ अलग ही तरह का निखार आ गया था. उस के चेहरे पर हर घड़ी मुसकान थिरकने लगी. यह देख कर उस की मां रानी को शक हुआ कि खुशबू के चेहरे पर बिन बरसात हरियाली क्यों छाई रहती है. कहीं कोई इश्कविश्क का चक्कर तो नहीं है. खुशबू की मां रानी औरत थी. एक औरत दूसरी औरत के मन की बात को जल्दी भांप लेती है. यहां तो खुशबू उस की बेटी थी, वह बेटी के दिल की बात जान सकती थी. वैसे भी मांबेटी के बीच सहेलियों जैसा रिश्ता था. मां ने पूछी दिल की बात एक दिन दोपहर का समय था. घर में मां और बेटी के अलावा कोई नहीं था. बेटा और पिता बलवीर सिंह के साथ खेती के काम से बाहर गया हुआ था. मांबेटी दोनों एक साथ पलंग पर लेटी हुई थीं. उन के बीच में घर की बातों को ले कर बातचीत हो रही थी.

इसी दरमियान रानी ने बेटी के मन की बात जानने के लिए पूछा,‘‘क्या बात है खुशबू, आजकल तुम्हारे चेहरे पर कुछ ज्यादा ही चमक रहती है. कहीं प्यारव्यार का चक्कर तो नहीं है?’’

‘‘मम्मी, कैसी बातें कर रही हो?’’ खुशबू एकदम से हड़बड़ा गई, जैसे उस की चोरी पकड़ी गई हो. वह बोली, ‘‘कोई अपनी बेटी से ऐसे बात करता है क्या?’’

‘‘देखो बेटी, मैं मां हूं तुम्हारी. तुम मेरे सामने मत उड़ो.’’ कह कर रानी ने जता दिया कि वह अनुभवी है. उस से कोई बात छिपी नहीं रह सकती.

‘‘कहां मां, मैं कहां उड़ रही हूं. जैसा तुम सोच रही हो, ऐसी कोई बात नहीं है.’’ खुशबू ने मां से झूठ बोलने की कोशिश की, लेकिन रानी ने उस का झूठ पकड़ लिया.

‘‘मुझे सब पता है. तुम मुझ से झूठ बोल कर बच नहीं सकती.’’

‘‘क….क्या पता है?’’ खुशबू हड़बड़ा गई.

‘‘यही कि तुम जिस से प्यार करती हो वो कौन है?’’

‘‘क…कौन है? बताओ..बताओ कौन है?’’

‘‘उस का नाम हेमंत है न.’’ मां की जुबान से प्रेमी का नाम सुनते ही खुशबू के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं. बेटी के चेहरे का रंग बदलते देख रानी खिलखिला कर हंस पड़ी. मां की रहस्यमई हंसी देख कर खुशबू और भी परेशान हो गई.

‘‘देखा, उड़ा दिए न तुम्हारे होश.’’ रानी बेटी के चेहरे को ध्यान से देखती हुई बोली, ‘‘वैसे हेमंत के साथ घूमने वाला दूसरा गबरू जवान कौन है, जो अकसर उस के साथ घूमताफिरता है?’’

‘‘वो…वो तो उस का दोस्त गोली है. पर बात क्या है मां? तुम क्यों पूछ रही हो?’’

‘‘बड़ा बांका छोरा है. जब तेरे पापा घर पर न रहें तो उसे हेमंत के साथ घर बुलवाना.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘उसे बुलवाओ तो सही, पता चल जाएगा. लेकिन याद रहे कि ये बात हम दोनों के बीच ही रहनी चाहिए. किसी तीसरे तक बात पहुंची तो तुम्हारी खैर नहीं.’’ कहती हुई रानी बिस्तर से नीचे उतरी और सीधे किचन में चली गई. खुशबू मां की बातों से अवाक थी क्योंकि वह उस की प्रेम कहानी जान गई थी. मां की बात नहीं मानी तो पापा से कह सकती है. इसलिए उस ने मां की बात मानने में ही भलाई समझी. रानी को बेटी के बहकते कदमों को रोकना चाहिए था. लेकिन ऐसा न कर के वह पति के होते हुए पराए पुरुष के आगोश में समाने को बेकरार होने लगी. बेटी के जरिए मिला मां को यार खुशबू ने हेमंत से कह कर उस के दोस्त गोली को अपने घर बुलाया. उस गबरू जवान को देख कर रानी खुश हो गई. बेशरमी की सारी हदें पार कर के रानी बेटी के सामने ही गोली से हंसहंस कर बातें करने लगी.

रानी गोली से पहली बार मिली थी. पहली ही मुलाकात में उस ने गोली के मन को टटोल लिया. बेटी के सामने जो नहीं कहना चाहिए था, रानी वहां तक कह गई थी. खुशबू की मां की जुबान से ऐसी बातें सुन कर गोली भी अवाक रह गया. वह समझ नहीं पा रहा था इन के सवालों का क्या और कैसे जवाब दे. कुछ देर बाद हेमंत गोली को ले कर वापस चला गया. जाते समय रानी ने दोनों को आते रहने के लिए कह दिया. 23 साल का बांका जवान गोली रानी के मन की बात समझ गया था. उस दिन के बाद से हेमंत और गोली रानी के घर ऐसे समय पर जाते थे जब उस का पति बलवीर सिंह और बेटा घर पर नहीं होते थे. धीरेधीरे गोली और रानी के बीच प्रेम प्रसंग बढ़ा और दोनों का रिश्ता जिस्मानी संबंधों तक पहुंच गया. उधर उस की बेटी खुशबू भी खुलेआम अपने प्रेमी की बांहों में रंगरलियां मनाने लगी.

अनैतिक काम ज्यादा दिनों तक नहीं छिप पाता. धीरेधीरे मांबेटी के प्रेम के चर्चे गांव में फैलने लगे. यह बात जब बलवीर सिंह तक पहुंची तो उस के पैरों तले की जमीन खिसक गई. उसे सुनी बातों पर यकीन नहीं हुआ. क्योंकि वह पत्नी व बेटी पर बहुत विश्वास करता था. इस खबर ने उस के मन में वहम पैदा कर दिया था. लिहाजा उस ने तय कर लिया कि जब तक वह अपनी आंखों से देख नहीं लेगा, किसी का विश्वास नहीं करेगा. वह पत्नी और बेटी दोनों को रंगेहाथों पकड़ना चाहता था. दोनों को रंगेहाथों पकड़ने के लिए बलवीर ने एक युक्ति निकाली. घटना से करीब 3 माह पहले की बात है. वह सुबह के समय जानबूझ कर बेटे को साथ ले कर खेतों पर चला गया.

यह बात उस ने घर में बता दी थी. उस ने पत्नी से कहा था कि लौटने में शाम हो सकती है. पति की बात सुन कर मांबेटी दोनों मन ही मन खुश हुईं. मां के कहने पर दोपहर के समय खुशबू ने अपने और मां के प्रेमी दोनों को घर बुला लिया और दोनों अलगअलग कमरों में रंगरलियां मनाने लगीं. बलवीर शाम को आने की बात कह कर गया था लेकिन वह दोपहर में ही घर लौट आया. दरवाजा बेटी खुशबू ने ही खोला था. सामने पापा को देख कर उस के होश उड़ गए. तब तक बलवीर की नजर कमरे में पड़ चुकी थी. रंगेहाथों पकड़ा मांबेटी को घर में गांव के 2 युवक हेमंत और गोली कुरसी पर आराम से बैठे थे. बलवीर को देख कर दोनों वहां से दबेपांव भाग गए. बलवीर का खून खौल उठा.

बलवीर ने न आव देखा न ताव, पत्नी और बेटी दोनों को लातथप्पड़ों से जम कर पीटा और धमकाया भी आज के बाद तुम दोनों ने घिनौनी हरकतें कीं तो मुझ से बुरा कोई नहीं होगा. उस दिन के बाद से घर में जो विवाद शुरू हुआ, उस ने थमने का नाम नहीं लिया. इस प्रेम प्रसंग को ले कर आए दिन घर में पत्नीबेटी और पिता के बीच महाभारत होने लगी थी. इस विवाद से घर की शांति खत्म हो गई थी. कोई सुकून से रोटी नहीं खा पा रहा था. रोजरोज के विवाद और टोकाटाकी से मांबेटी बलवीर से तंग आ गई थीं. बेटी ने मां को समझाया कि क्यों न इस विवाद की जड़ को ही हमेशा के लिए रास्ते से हटा दिया जाए. न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी. मां ने बेटी को मंजूरी दे दी.

फिर क्या था. खुशबू ने हेमंत को फोन कर के अपने पापा बलवीर सिंह को रास्ते से हटाने का फरमान जारी कर दिया. खुशबू के प्यार में अंधे हेमंत ने हां कर दी. हेमंत ने गोली से मिल कर बलवीर की हत्या की योजना बनाई. इन्होंने एक अवैध पिस्टल भी खरीद ली. इस के बाद हेमंत ने खुशबू को बता दिया कि पूरी योजना बन गई है, शिकार का शिकार कब करना है बताओ. खुशबू की ओर से जवाब आया, ‘‘ठीक है, जल्द बताती हूं.’’ बात 7 जुलाई, 2020 की है. बलवीर सिंह अपनी बाइक से मोबाइल खरीदने बाजार गया. दोपहर एक बजे के करीब नया मोबाइल खरीद कर वह घर लौटा. बलवीर के घर लौटते ही खुशबू ने हेमंत को फोन कर दिया कि शिकार घर आ गया है.

फिर तय योजना के अनुसार, हेमंत ने अपने फोन के ऊपर रुमाल रख कर बलवीर को फोन किया ताकि बलवीर उस की आवाज न पहचान सके. उस ने बलवीर को बाजार में जरूरी काम से मिलने के लिए बुलाया. नंबर अंजान था फिर भी बलवीर बाइक ले कर उस अंजान व्यक्ति से मिलने बाजार चला गया.हो गई योजना पूरी बाजार में हेमंत, गोली और उस का दोस्त आकाश मिल गए. बलवीर को देखते ही दोनों नाटक करते हुए माफी मांगने लगे और उसे अपनी बातों में उलझा कर बाजार से काफी दूर सुनसान इलाके में ले आए. गोली और उस का दोस्त आकाश बलवीर को अपनी बातों में उलझाए रहे. तभी हेमंत ने अपने साथ लाए लकड़ी के एक मोटे डंडे से उस के सिर पर पीछे से जोरदार वार किया.

सिर पर वार होते ही बलवीर जमीन पर गिर गया. उस के बाद हेमंत ने बलवीर को पिस्टल से 2 गोलियां सिर और सीने में मार दीं. बलवीर की मौत हो गई. फिर तीनों ने बलवीर की लाश गंगावली नहर के किनारे झाड़ी में डाल दी. उसे कोई आसानी से न पहचान सके, इस के लिए आधा लीटर की प्लास्टिक की बोतल में लाया तेजाब उस के चेहरे पर उड़ेल दिया, जिस से उस का चेहरा झुलस गया. उस की बाइक भी उसी झाड़ी में छिपा दी और तीनों अपनेअपने घरों को लौट आए. हेमंत ने काम पूरा हो जाने के बाद फोन कर के खुशबू को जानकारी दे दी कि हमारे प्यार के रास्ते का सब से बड़ा कांटा हमेशाहमेशा के लिए निकल गया है, अब हमें मिलने से कोई नहीं रोक सकता है.

लेकिन मृतक के छोटे भाई राकेश की हिम्मत ने हत्यारों के मंसूबे पर पानी फेर दिया. जेल की सलाखों के पीछे पहुंचने के बाद रानी और खुशबू को अपने किए पर पश्चाताप हो रहा था कि खुद अपने ही हाथों सुखमय गृहस्थी में आग लगा दी, लेकिन अब पछताने से क्या होगा, जो होना था सो हो चुका था.

—कथा में खुशबू परिवर्तित नाम है. कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

Kanpur News : किस प्रेशर की वजह से प्रेमी ने दुपट्टे से प्रेमिका का घोंटा गला

Kanpur News : आलोक की प्रेमिका राधा भले ही दूसरी जाति की थी, लेकिन उस ने उसे भरोसा दिया था कि वह जीवन भर उस का साथ निभाएगा. लेकिन अपने घर वालों के दबाव में उस ने राधा से दूरी बना ली. इस के बाद आलोक ने प्रेमिका के साथ ऐसा छल किया कि…

कानपुर (देहात) जिला मुख्यालय से करीब 40 किलोमीटर दूर रसूलाबाद- बिल्हौर मार्ग पर एक कस्बा है ककवन. इसी कस्बे से सटा एक गांव है नदीहा धामू. यहीं पर रामदयाल गौतम अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी कुसुमा के अलावा 2 बेटे सर्वेश, उमेश तथा 2 बेटियां राधा व सुधा थीं. रामदयाल गांव का संपन्न किसान था. उस का बेटा सर्वेश गांव में डेयरी चलाता था. संपन्न होने के कारण जातिबिरादरी में रामदयाल की हनक थी. रामदयाल की छोटी बेटी सुधा 10वीं कक्षा में पढ़ रही थी, जबकि बड़ी बेटी ने 12वीं पास कर के पढ़ाई छोड़ दी थी. रामदयाल उसे पढ़ालिखा कर मास्टर बनाना चाहता था, लेकिन राधा के पढ़ाई छोड़ देने से उस का यह सपना पूरा नहीं हो सका.

पढ़ाई छोड़ कर वह मां के साथ घरेलू काम में मदद करने लगी थी. गांव के हिसाब से राधा कुछ ज्यादा ही सुंदर थी. जवानी में कदम रखा तो उस की सुंदरता में और निखार आ गया. उस का गोरा रंग, बड़ीबड़ी आंखें और कंधों तक लहराते बाल, हर किसी को अपनी ओर आकर्षित कर लेते थे. अपनी इस खूबसूरती पर राधा को भी नाज था. यही वजह थी कि जब कोई लड़का उसे चाहत भरी नजरों से देखता तो वह इस तरह घूरती मानो खा जाएगी. उस की इन खा जाने वाली नजरों से ही लड़के डर जाते थे. लेकिन आलोक राजपूत राधा की इन नजरों से जरा भी नहीं डरा था. वह राधा के घर से कुछ ही दूरी पर रहता था. आलोक के पिता राजकुमार राजपूत प्राइमरी स्कूल में अध्यापक थे. लेकिन रिटायर हो चुके थे. उन की एक बेटी तथा एक बेटा आलोक था. बेटी का वह विवाह कर चुके थे.

पिता के रिटायर हो जाने के बाद घरपरिवार की जिम्मेदारी आलोक पर आ गई थी. बीए करने के बाद वह नौकरी की तलाश में था. लेकिन जब नौकरी नहीं मिली तो उस ने अपनी खेती संभाल ली थी. इस के अलावा उस ने घर में किराने की दुकान भी खोल ली थी. इस से उसे अतिरिक्त आमदनी हो जाती थी. राधा के भाई सर्वेश की आलोक से खूब पटती थी. आसपड़ोस में रहने की वजह से दोनों का एकदूसरे के घर भी आनाजाना था. आलोक जब भी सर्वेश के घर आता था, राधा उसे घर के कार्यों में लगी नजर आती थी. वैसे तो वह उसे बचपन से देखता आया था, लेकिन पहले वाली राधा में और अब की राधा में काफी फर्क आ गया था.

पहले जहां वह बच्ची लगती थी, अब वही जवान होने पर ऐसी हो गई थी कि उस पर से नजर हटाने का मन ही नहीं होता था. एक दिन आलोक राधा के घर पहुंचा तो सामने वही पड़ गई. उस ने पूछा, ‘‘सर्वेश कहां है?’’

‘‘मम्मी और भैया तो कस्बे में गए हैं. कोई काम था क्या?’’ राधा बोली.

‘‘नहीं, कोेई खास काम नहीं था. बस ऐसे ही आ गया था. सर्वेश आए तो बता देना कि मैं आया था.’’

‘‘बैठो, भैया आते ही होंगे.’’ राधा ने कहा तो आलोक वहीं पड़ी चारपाई पर बैठ गया.

आलोक बैठा तो राधा रसोई की ओर बढ़ी. उसे रसोई की ओर जाते देख आलोक ने कहा, ‘‘राधा, चाय बनाने की जरूरत नहीं है. मैं चाय पी कर आया हूं.’’

‘‘कोई बात नहीं, मैं ने अपने लिए चाय भी चढ़ा रखी है. उसी में थोड़ा दूध और डाल देती हूं.’’ कह कर राधा रसोेई में चली गई. थोड़ी देर बाद वह 2 गिलासों में चाय ले आई. एक गिलास उस ने आलोक को थमा दिया, तो दूसरा खुद ले कर बैठ गई. चाय पीते हुए आलोक ने कहा, ‘‘राधा, बुरा न मानो तो मैं एक बात कहूं.’’

‘‘कहो.’’ उत्सुक नजरों से देखते हुए राधा बोली.

‘‘अगर तुम जैसी खूबसूरत और ढंग से घर का काम करने वाली पत्नी मुझे मिल जाए तो मेरी किस्मत ही खुल जाए.’’ आलोक ने कहा. आलोक की इस बात का जवाब देने के बजाय राधा उठी और रसोई में चली गई. उसे इस तरह जाते देख आलोक को लगा, वह उस से नाराज हो गई है, इसलिए उस ने कहा, ‘‘राधा लगता है मेरी बात तुम्हें बुरी लग गई. मेरी बात का कोई गलत अर्थ मत लगाना. मैं ने तो यूं ही कह दिया था.’’

इतना कह आलोक वहां से चला गया. लेकिन इस के बाद वह जब भी सर्वेश के घर जाता, मौका मिलने पर राधा से 2-4 बातें जरूर करता. उन की इस बातचीत पर घरवालों को कोई ऐतराज भी न था. क्योंकि मोहल्ले के नाते रिश्ते में दोनों भाईबहन लगते थे. गांवों में तो वैसे भी रिश्तों को काफी अहमियत दी जाती है. लेकिन आलोक और राधा रिश्तों की मर्यादा निभा नहीं पाए. मेलमुलाकात और बातचीत से आलोक के दिलोदिमाग पर राधा की खूबसूरती और बातव्यवहार का ऐसा असर हुआ कि वह उसे अपनी जीवनसंगिनी बनाने के सपने देखने लगा. लेकिन अपने मन की बात वह राधा से कह नहीं पाता था.

वह सोचता था कि कहीं राधा बुरा मान गई और उस ने यह बात घर वालों से बता दी तो वह मुंह दिखाने लायक नहीं रह जाएगा. लेकिन यह उस का भ्रम था. राधा के मन में भी वही सब था, जो उस के मन में था. जब दोनों ओर ही चाहत के दीए जल रहे हों तो मौका मिलने पर उस का इजहार भी हो जाता है. ऐसा ही राधा और आलोक के साथ भी हुआ. फिर एक दिन उन्होंने अपने मन की बात जाहिर भी कर दी. दोनों के बीच प्यार का इजहार हो गया तो उन का प्यार परवान चढ़ने लगा. आए दिन होने वाली मुलाकातों ने दोनों को जल्द ही करीब ला दिया. वे भूल गए कि उन का रिश्ता नाजुक है. आलोक राधा के प्यार के गाने गाने लगा. इस तरह दोनों मोहब्बत की नाव में सवार हो कर काफी आगे निकल गए.

राधा और आलोक के बीच नजदीकियां बढ़ीं तो मनों में शारीरिक सुख पाने की कामना भी पैदा होने लगी. इस के बाद मौका मिला तो दोनों सारी मर्यादाएं तोड़ कर एकदूसरे की बांहों में समा गए. इस के बाद तो उन्हें जब भी मौका मिलता, अपनी हसरतें पूरी कर लेते. इस का नतीजा यह निकला कि कुछ दिनों बाद ही दोनों गांव वालों की नजरों में आ गए. उन के प्यार के चर्चे पूरे गांव में होने लगे. उड़तेउड़ते यह खबर राधा के पिता रामदयाल के कानों में पड़ी तो सुन कर उस के पैरों तले से जमीन खिसक गई. उसे एकाएक विश्वास नहीं हुआ कि आलोक उस की इज्जत पर हाथ डाल सकता है. वह तो उसे अपने बेटों की तरह मानता था.

यह सब जान कर उस ने राधा पर तो पाबंदी लगा ही दी, साथ ही आलोक से भी कह दिया कि वह उस के घर न आया करे. बात इज्जत की थी, इसलिए राधा के भाई सर्वेश को दोस्त की यह हरकत अच्छी नहीं लगी. उस ने आलोक को समझाया ही नहीं, धमकी भी दी कि अगर उस ने अब उस की बहन पर नजर डाली तो वह भूल जाएगा कि वह उस का दोस्त है. इज्जत के लिए वह किसी भी हद तक जा सकता है. इस के बाद उस ने राधा की पिटाई भी की और उसे समझाया कि उस की वजह से गांव में सिर उठा कर चलना दूभर हो गया है. वह ठीक से रहे अन्यथा अनर्थ हो जाएगा.

रामदयाल जानता था कि बात बढ़ाने पर उसी की बदनामी होगी, इसलिए बात बढ़ाने के बजाय वह पत्नी व बेटों से सलाह कर के राधा के लिए लड़के की तलाश करने लगा. इस बात की जानकारी राधा को हुई तो वह बेचैन हो उठी. एक शाम वह मौका निकाल कर आलोक से मिली और रोते हुए बोली, ‘‘घर वाले मेरे लिए लड़का ढूंढ रहे हैं. जबकि मैं तुम्हारे अलावा किसी और से शादी नहीं करना चाहती.’’

‘‘इस में रोने की क्या बात है? हमारा प्यार सच्चा है, इसलिए दुनिया की कोई ताकत हमें जुदा नहीं कर सकती.’’ राधा को रोते देख आलोक भावुक हो उठा. वह राधा के आंसू पोंछ उस का चेहरा हथेलियों में ले कर उसे विश्वास दिलाते हुए बोला, ‘‘तुम मुझ पर भरोसा करो, मैं तुम्हारे साथ हूं. मेरे रोमरोम में तुम्हारा प्यार रचा बसा है. तुम्हें क्या लगता है कि तुम से अलग हो कर मैं जी पाऊंगा, बिलकुल नहीं.’’

उस की आंखों में आंखें डाल कर राधा बोली, ‘‘मुझे पता है कि हमारा प्यार सच्चा है, तुम दगा नहीं दोगे. फिर भी न जाने क्यों मेरा दिल घबरा रहा है. अच्छा, अब मैं चलती हूं. कोई खोजते हुए कहीं आ न जाए.’’

‘‘ठीक है, मैं कोई योजना बना कर तुम्हें बताता हूं.’’ कह कर आलोक अपने घर की तरफ चल पड़ा तो मुसकराती हुई राधा भी अपने घर चली गई.

रामदयाल राधा के लिए लड़का ढूंढढूंढ कर थक गया, लेकिन कहीं उपयुक्त लड़का नहीं मिला. इस से राधा के घर वाले परेशान थे, वहीं राधा और आलोक खुश थे. इस बीच घर वाले थोड़ा लापरवाह हो गए तो वे फिर से चोरीछिपे मिलने लगे थे. एक दिन सर्वेश ने खेतों पर राधा और आलोक को हंसीमजाक करते देख लिया तो उस ने राधा की ही नहीं, आलोक की भी पिटाई की. इसी के साथ धमकी भी दी कि अगर फिर कभी उस ने दोनों को इस तरह देख लिया तो अंजाम अच्छा न होगा. सर्वेश ने आलोक की शिकायत उस के घर वालों से की तो घर वालों ने उसे भरोसा दिया कि वे आलोक को समझाएंगे. इस के बाद सर्वेश घर आ गया. इधर शाम को आलोक घर पहुंचा तो पिता राजकुमार ने टोका, ‘‘सर्वेश उलाहना देने आया था. तुम्हारी शिकायत कर रहा था कि तुम उस की बहन के पीछे पड़े हो. सच्चाई क्या है?’’

‘‘पिताजी, मैं और राधा एकदूसरे से प्यार करते हैं और शादी करना चाहते हैं.’’

‘‘तुम्हारा दिमाग फिर गया है क्या? जो उस लड़की से शादी करना चाहते हो. क्या तुम्हें मालूम नहीं कि राधा दूसरी जाति की है और हम राजपूत हैं. यदि तुम ने उस से ब्याह रचाया तो समाज में हम मुंह दिखाने लायक नहीं बचेंगे. बिरादरी के लोग हमारा हुक्कापानी बंद कर देंगे. इसलिए कान खोल कर सुन लो, उस लड़की से तुम्हारा रिश्ता हरगिज नहीं हो सकता. भूल जाओ उसे.’’ राजकुमार ने कहा. पिता की फटकार और स्पष्ट चेतावनी से आलोक परेशान हो उठा. उस का एक दोस्त छोटू उर्फ नीलू था. उस ने इस बारे में छोटू से बात की तो उस ने उस के पिता की बात को जायज ठहराया और राधा से संबंध तोड़ लेने का सुझाव दिया. आलोक ने अपनी मां का दिल टटोला तो उस ने भी साफ कह दिया कि जिस दिन राधा की डोली उस के घर आएगी, उसी दिन उस की अर्थी उठेगी.

मां की इस धमकी से आलोक कांप उठा. उस पर सवार राधा के प्यार का भूत उतरने लगा. मातापिता और दोस्त की नसीहत उसे भली लगने लगी. अत: उस ने निश्चय किया कि वह राधा से दूरी बनाएगा और प्यारमोहब्बत की बात नहीं करेगा. अब उस ने राधा से ब्याह रचाने की बात दिमाग से निकाल दी. इस के बाद जब कभी आलोक का सामना राधा से होता, तो वह उस से बेमन से मिलता. बेरुखी से बात करता. न होंठों पर मुसकराहट, न चेहरे पर दमक होती. राधा नजदीकियां बढ़ाने की पहल करती, तो वह मना कर देता. फोन पर भी उस ने बात करना एक तरह से बंद ही कर दिया था. राधा दस बार फोन करती तो वह मुश्किल से एक बार रिसीव करता, उस पर भी ज्यादा बात न करता और फोन कट कर देता.

आलोक के इस रूखे व्यवहार से राधा परेशान हो उठी. उसे शक होने लगा कि आलोक किसी दूसरी लड़की के चक्कर में तो नहीं पड़ गया. अत: वह आलोक पर शादी के लिए दबाव डालने लगी. वह जब भी मिलती या फोन पर बात करती तो शादी की ही बात करती. इधर कुछ समय से राधा आलोक को धमकाने भी लगी थी कि यदि उस ने शादी नहीं की तो वह पुलिस में उस की शिकायत कर देगी, तब उसे जेल भी हो सकती है. 24 अगस्त, 2020 की शाम 4 बजे राधा घर से गायब हो गई. वह देर शाम तक घर वापस नहीं लौटी तो रामदयाल को चिंता हुई. उस ने अपने बेटे सर्वेश व उमेश को साथ लिया और रात भर उस की खोज करता रहा.

लेकिन राधा का कुछ भी पता न चला. रामदयाल को शक हुआ कि कहीं आलोक उसे भगा तो नहीं ले गया. वह आलोक के घर पहुंचा, तो आलोक घर पर ही मिला.  26 अगस्त की सुबह गांव का ही किसान विमल अपने खेत पर पानी लगाने पहुंचा तो उस ने अपने खेत की मेड़ के पास पीपल के पेड़ के नीचे राधा का शव देखा. उस ने खबर राधा के घर वालों को दी. उस के बाद तो रामदयाल के घर में रोनापीटना शुरू हो गया.  घर के सभी लोग घटनास्थल पहुंच गए. लाश मिलते ही आलोक का परिवार घर से गुपचुप तरीके से फरार हो गया. रामदयाल गौतम ने थाना ककवन पुलिस को सूचना दी तो थानाप्रभारी अमित कुमार मिश्रा पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. उन की सूचना पर एसपी केशव कुमार चौधरी तथा एएसपी अनूप कुमार आ गए.

पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया. उस के गले में दुपट्टा था. इस से अंदाजा लगाया गया कि राधा की हत्या दुपट्टे से गला घोंट कर की गई होगी. उस की उम्र 19 वर्ष के आसपास थी. घटनास्थल पर मृतका का पिता रामदयाल तथा भाई सर्वेश मौजूद थे. पुलिस अधिकारियों ने उन दोनों से पूछताछ की तो सर्वेश ने उन्हें बताया कि उस की बहन की हत्या गांव के आलोक व उस के दोस्त छोटू ने की है. पूछताछ के बाद पुलिस अधिकारियों ने राधा के शव को पोेस्टमार्टम हेतु माती स्थित अस्पताल भिजवा दिया तथा थानाप्रभारी अमित मिश्रा को आदेश दिया कि वह मुकदमा दर्ज कर आरोपियों को शीघ्र गिरफ्तार करें.

आदेश पाते ही अमित कुमार मिश्रा ने मृतका के भाई सर्वेश की तहरीर पर भादंवि की धारा 302/201 के तहत आलोक व छोटू के खिलाफ रिपोेर्ट दर्ज कर ली और उन्हें गिरफ्तार करने में जुट गए. इस के लिए उन्होंने मुखबिरों को भी लगा दिया.  29 अगस्त, 2020 की रात 10 बजे अमित कुमार मिश्रा ने मुखबिर की सूचना पर आलोक व छोटू को ककवन मोड़ से गिरफ्तार कर लिया. उन्हें थाना ककवन लाया गया. थाने पर जब दोनों से पूछताछ की गई तो उन्होंने राधा की हत्या का जुर्म कबूल कर लिया. पूछताछ में आलोक ने बताया कि राधा उस पर शादी का दबाव बना रही थी, जबकि वह राधा से शादी नहीं करना चाहता था.

उस ने जब पुलिस में शिकायत दर्ज करने की धमकी दी, तो उस ने राधा को ही मिटाने की योजना बनाई. इस में उस ने अपने दोस्त छोटू को शामिल कर लिया. योजना के तहत उस ने 24 अगस्त की शाम 4 बजे राधा को खेतों पर बुलाया फिर उसी के दुपट्टे से उस का गला घोंट दिया. 30 सितंबर, 2020 को पुलिस ने अभियुक्त आलोक राजपूत व छोटू को कानपुर देहात की माती कोर्ट में पेश किया, जहां से दोनों को जिला जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

MP News : ब्यूटीपार्लर में सज रही लड़की को किसने चाकू मारा

MP News : एक शादी समारोह में सोनू से मुलाकात कर के राम यादव बहुत खुश हुआ. बाद में वह अपने से उम्र में 7 साल बड़ी सोनू से दिली मोहब्बत करने लगा. लेकिन जब उसे पता चला कि सोनू की शादी किसी और के साथ होने जा रही है तो शादी वाले दिन उस ने ऐसा कदम उठाया कि…

घटना 5 जुलाई, 2020 की है. मध्य प्रदेश का शाजापुर शहर जब गहरी नींद में सो रहा था, शहर के सदर बाजार क्षेत्र में रहने वाले एक प्रतिष्ठित व्यापारी का परिवार बड़े जोरशोर से अपनी बेटी की शादी की तैयारी में जुटा था. इस परिवार की खूबसूरत और सुशील बेटी सोनू परिवार की शान मानी जाती थी. सोनू शहर के ही सरस्वती स्कूल में उपप्रधानाचार्य के पद पर कार्यरत थी तथा अपनी योग्यता और व्यवहार के कारण स्कूल के सभी विद्यार्थियों की चहेती भी. सोनू की शादी उज्जैन जिले के नागदा के रहने वाले प्रतिष्ठित बागरेचा परिवार के बेटे के साथ होने जा रही थी. दूल्हे के मामा जावरा सर्राफा बाजार में रहते थे.

मामा चाहते थे कि भांजे की शादी जावरा से हो, इसलिए दोनों परिवारों ने एक मत हो कर 5 जुलाई को जावरा के कोठारी रिसोर्ट से विवाह करने की तैयारी कर ली. इसलिए सोनू का परिवार उस दिन सुबह जल्दी ही शाजापुर से जावरा के लिए निकलने वाला था. ऐसे में जिस लड़की की शादी हो, उसे नींद कैसे आ सकती है. इसलिए सोनू भी परिवार वालों के साथ जाग रही थी. सोनू के अलावा रतलाम के दीनदयाल नगर इलाके में रहने वाला एक युवक राम यादव भी जाग रहा था. वैसे राम इस परिवार का सदस्य नहीं था लेकिन राम के इस तरह जागने का कारण सोनू की शादी से जरूर जुड़ा था.

इसलिए सुबह को जिस वक्त सोनू अपने परिवार के साथ जावरा को रवाना हुई, लगभग उसी समय राम यादव भी अपने एक दोस्त पवन पांचाल के साथ मोटरसाइकल पर सवार हो कर जावरा के लिए निकल पड़ा. दोनों एक ही शहर के लिए रवाना हुए थे, मगर उन की मंजिलें अलगअलग थीं. सोनू की मंजिल उस का होने वाला पति था तो राम यादव की मंजिल सोनू थी. सुबह कोई साढ़े 8 बजे सोनू अपने परिवार के साथ जावरा के कोठारी रिसोर्ट पहुंच गई. लौकडाउन के कारण शादी में ज्यादा मेहमानों को शामिल करने की मनाही होने के कारण दोनों पक्षों के गिनेचुने खास मेहमान ही शामिल होने के लिए आए थे. इसलिए उस रिसोर्ट में बहुत ज्यादा चहलपहल नहीं थी.

सुबह के 9 बजे के आसपास सोनू अपनी चचेरी बहन के साथ शृंगार करवाने के लिए पहले से बुक किए ब्यूटीपार्लर जाने को तैयार हुई तो उस के भाई ने दोनों बहनों को कार में बैठा कर आंटिक चौराहे पर स्थित ब्यूटीपार्लर के सामने सड़क पर छोड़ दिया. इधर रतलाम से जावरा पहुंचा राम यादव पिछले 2 घंटे से पागलों की तरह सड़कों पर सोनू को तलाश रहा था. संयोग से जैसे ही चौराहे पर सोनू अपनी बहन के साथ कार से उतरी वैसे ही उस पर राम की नजर पड़ गई. लेकिन जब तक वह उस के पास पहुंचता सोनू बिल्डिंग में दाखिल हो गई. बिल्डिंग के अंदर ब्यूटीपार्लर देख कर राम समझ गया कि सोनू पार्लर में आई होगी, इसलिए उस ने दोस्त पवन के मोबाइल से सोनू के मोबाइल पर फोन लगाया.

सोनू मेकअप सीट पर बैठ चुकी थी, इसलिए उस का फोन साथ आई चचेरी बहन ने रिसीव किया. जिस से राम को पता चल गया कि सोनू पार्लर में ही है. इसलिए फोन काटने के बाद वह चारों दिशाओं का जायजा ले कर पार्लर में दाखिल हो गया. मेकअप सीट पर बैठी सोनू ने सामने लगे आइने में दरवाजे से राम को अंदर आता देखा तो उस का दिल धड़क उठा. लेकिन इस से पहले कि वह कुछ कर पाती राम ने तेजी से पास आ कर सोनू का मेकअप कर रही लड़की को जोर से धक्का दे कर एक तरफ गिरा दिया. फिर झटके के साथ जेब से बड़ा सा चाकू निकाल कर सोनू की गरदन रेत दी और वहां से फरार हो गया.

यह सूचना वरवधू के घर वालों को मिली तो वे सदमे में आ गए. घटनास्थल पर तड़पती सोनू को तत्काल अस्पताल ले जाया गया, लेकिन वहां पहुंचने से पहले उस की मृत्यु हो गई. कुछ ही घंटे बाद फेरे लेने जा रही दुलहन की हत्या की खबर फैलते ही जावरा में सनसनी फैल गई. इस घटना की सूचना मिलते ही थानाप्रभारी बी.डी. जोशी पुलिस टीम के साथ पहुंच गए. उन के पहुंचने के थोड़ी देर बाद सीएसपी पी.एस. राणावत भी मौके पर पहुंच गए. सोनू के साथ पार्लर गई उस की चचेरी बहन से पूछताछ की गई, लेकिन उस का कहना था कि वह हत्यारे को नहीं जानती. उस ने बताया कि इस घटना से 2 मिनट पहले ही सोनू के मोबाइल पर एक फोन आया था. वह किस का था, यह पता नहीं. थानाप्रभारी ने वह नंबर हासिल कर लिया. वह समझ रहे थे कि हत्यारे तक पहुंचने के लिए वह नंबर पहली सीढ़ी हो सकता है.

इस बीच घटना की खबर पा कर एसपी गौरव तिवारी तथा आईजी (उज्जैन) राकेश गुप्ता भी जावरा पहुंच गए. उन के निर्देश पर पुलिस टीम ने चारों तरफ नाकेबंदी कर जावरा से बाहर जाने वाले रास्तों पर संदिग्ध मोटरसाइकिल की तलाश की. इस जांच में पुलिस को एक बाइक एमपी43डीटी 8979 पर सवार 2 युवक राजस्थान की तरफ तेजी से भागते दिखे. लेकिन वह पुलिस के हाथ न लग सके. सोनू के साथ घटना जावरा में हुई जरूर थी, लेकिन वह जावरा की रहने वाली नहीं थी, इसलिए पुलिस को शक था कि उस का हत्यारा उस के पीछे शाजापुर या किसी अन्य शहर से आया होगा. इसलिए जब बाइक नंबर के आधार पर रतलाम में बाइक की तलाश की गई तो एक सीसीटीवी फुटेज से पता चला कि इस बाइक पर सवार 2 युवक सुबह करीब 6 बजे रतलाम से जावरा की तरफ निकले थे.

इसलिए सीसीटीवी के आधार पर इस बात की संभावना नजर आई कि वह युवक रतलाम के ही होंगे. लिहाजा पुलिस ने सीसीटीवी से ले कर दोनों युवकों के फोटो पहचान के लिए सभी थानों में भिजवा दिए. इस प्रयास में दीनदयाल नगर थाने में तैनात एक आरक्षक ने फुटेज के फोटो देखते ही दोनों की पहचान राम यादव और पवन पांचाल के रूप में कर दी, जो जाटों का वास इलाके के रहने वाले थे. चूंकि राम यादव पहले भारतीय जनता युवा मोर्चा की जिला कार्यकारिणी में पदाधिकारी था, जिस से पुलिस ने उसे आसानी से पहचान लिया.

इस पर पुलिस ने राजस्थान के रास्ते पर नाकाबंदी कर दी. क्योंकि सीएसपी राणावत को भरोसा था कि इन में से पवन पांचाल वापस रतलाम लौट सकता है क्योंकि ब्यूटीपार्लर में लगे सीसीटीवी कैमरे में केवल राम यादव पार्लर में जाते और निकल कर भागते दिखाई दिया था. इस से साफ था कि हत्या राम यादव ने की है जबकि पवन उस की मदद करने की गरज से साथ गया था. सीएसपी राणावत का सोचना एकदम सही साबित हुआ. पवन जल्द ही उस समय पुलिस की गिरफ्त में आ गया, जब वह राजस्थान से वापस लौट रहा था. पुलिस ने उस से सख्ती से पूछताछ की तो उस ने बता दिया कि सोनू की हत्या राम यादव ने की थी तथा वह उसे बांसवाड़ा डिपो पर छोड़ कर वापस आ रहा था.

राम को पवन के पकड़े जाने की खबर नहीं थी, इसलिए पुलिस ने पवन से उसे फोन करवाया. राम यादव ने उसे बताया कि कि वह सावरियाजी में है. यह पता चलते ही पुलिस ने एक टीम तुरंत सावरियाजी भेज दी. वहां से पुलिस ने राम को भी गिरफ्तार कर लिया. एक दिन में ही सोनू के हत्यारे पुलिस की गिरफ्त में आ गए थे, जिन से पुलिस ने हत्या में प्रयुक्त बड़ा चाकू और राम के खून सने कपड़े भी बरामद कर लिए. पुलिस ने दोनों आरोपियों से पूछताछ की तो सोनू की निर्मम हत्या के पीछे की कहानी इस प्रकार से सामने आई. शाजापुर के व्यापारी परिवार की बेटी सोनू गुणों के संग रूप की भी खान थी. नातेरिश्तेदार, सहेलियां सभी उसे चाहते थे.

सोनू के लिए उस के पिता ने काफी सोचसमझ कर वर का चुनाव कर सन 2010 में उस की शादी उज्जैन निवासी सजातीय युवक से कर दी. लेकिन पति के साथ सोनू की पटरी नहीं बैठने के कारण दोनों में विवाद होने लगा, जो इस हद तक बढ़ा कि शादी के 4 साल बाद ही उस का पति से तलाक हो गया. तलाक के बाद सोनू वापस मायके में आ कर रहने लगी. उच्चशिक्षित तो वह थी ही, इसलिए उस ने शाजापुर आ कर स्थानीय सरस्वती विद्यालय में शिक्षिका की नौकरी कर ली, जहां वह जल्द ही अपनी योग्यता के आधार पर वह उप प्राचार्य के पद तक पहुंच गई. सोनू की हत्या की कहानी की भूमिका 3 साल पहले सन 2017 में उस वक्त शुरू हुई, जब वह अपने एक रिश्तेदार के घर शादी में शामिल होने के लिए रतलाम गई. वह रिश्तेदार रतलाम शहर के दीनदयाल नगर में रहते थे.

उन के पड़ोस में ही राम यादव रहता था. ज्वैलर्स की दुकान पर काम करने वाला राम भाजयुमो का नेता था. इस शादी में राम यादव भी शामिल हुआ था. यहीं पर राम यादव की सोनू से पहली मुलाकात हुई. राम सोनू से उम्र में 7 साल छोटा था फिर भी सोनू के रूप ने उस पर ऐसा जादू डाला कि वह पूरी शादी में उस के आगेपीछे घूमता रहा. इस दौरान औपचारिकतावश दोनों में बातचीत हुई तो राम ने सोनू से उस का मोबाइल नंबर ले लिया, जिस से शादी के बाद दोनों की अकसर सोशल मीडिया पर बातचीत होेने लगी. सोनू खुले विचारों की थी ही, इसलिए उसे समाज के इस राजनैतिक युवक की बातों में बहुत कुछ सीखने को मिलने लगा. वह भी राम से अकसर चैटिंग करने लगी.

लेकिन उसे नहीं मालूम था कि राम के मन में उसे ले कर क्या चल रहा है. वह खुद राम से उम्र में काफी बड़ी थी, इसलिए वह सोच भी नहीं सकती थी कि राम उस में अपनी प्रेमिका तलाश रहा है. बहरहाल, इस सब के बीच राम के साथ सोनू की दोस्ती काफी गहरी होती गई तो राम ने एक दिन उस के सामने अपने प्यार का इजहार कर दिया. सोनू समझदार थी. वह जानती थी कि ऐसे दीवाने अचानक मना करने से कुछ बवाल खड़ा कर सकते हैं, इसलिए उस ने समझदारी दिखाते हुए राम को टालते हुए कहा कि उस ने कभी इस बारे में नहीं सोचा. सोचने का समय दो, फिर अपना निर्णय बता सकूंगी. राम को लगा कि टीचर होने के नाते सोनू प्यार सीधे स्वीकार नहीं कर पा रही है, कुछ दिन बाद वह राजी हो जाएगी.

इसलिए वह लगातार उस से फोन कर के या फेसबुक वाट्सऐप पर चैट करते हुए प्रणय निवेदन करता रहा. दोनों की अकसर फोन पर बातें भी होती थीं. इसलिए जून के अंतिम दिनों में फोन पर बात करते हुए जब राम ने एक बार फिर सोनू के सामने शादी कर प्रस्ताव रखा तो सोनू ने उस से कहा, ‘‘राम, यह संभव नहीं है. एक तो तुम्हारी उम्र मुझ से काफी कम है. दूसरे मैं एक बार तलाक का दंश झेल चुकी हूं, इसलिए अब मैं वहीं शादी करने जा रही हूं, जहां मेरे पिता ने कहा है.’’

‘‘क्याऽऽ तुम शादी कर रही हो?’’ राम ने चौंकते हुए पूछा.

‘‘हां, 5 जुलाई को मेरी शादी है और घर वालों ने जावरा में एक रिसोर्ट भी बुक करा दिया है.’’

‘‘कहां, किस से.’’ राम ने पूछा तो मन की साफ सोनू ने उसे सब कुछ बता दिया. यह सुन कर राम गुस्से में पागल हो गया तथा उस ने सोनू को यह शादी न करने की धमकी दी. लेकिन सोनू ने उस की नहीं सुनी और आगे से उस का फोन अटैंड करना भी  बंद कर दिया. राम सोनू को ले कर न जाने क्याक्या सपने देख चुका था. सोनू की शादी की खबर ने उस के सारे अरमानों पर पानी फेर दिया. इस से उसे गुस्सा आ गया. उस ने उसी समय फैसला ले लिया कि यदि सोनू उस की नहीं हुई तो वह किसी और की नहीं हो सकती. यह बात राम ने अपने दोस्त पवन पांचाल को बताई तो वह राम का साथ देने को तैयार हो गया.

उस ने 5 जुलाई को ही सोनू की हत्या करने की ठान ली. इस के बाद 5 जुलाई को उस ने दोस्त पवन के साथ जावरा पहुंच कर उस की हत्या कर दी. इधर सोनू के परिवार वालों का कहना है कि उन की बेटी का किसी से कोई संबंध नहीं था. आरोपी अपने अपराध को छिपाने के लिए उन की बेटी पर गलत आरोप लगा रहा है. पुलिस ने आरोपी राम यादव और पवन पांचाल से विस्तार से पूछताछ करने के बाद उन्हें कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया.

 

Murder Story : टूटी चूड़ियों से खुला पत्नी की मौत का राज

Murder Story : कई बार ऐसा कुछ हो जाता है, जो इंसान करना नहीं चाहता. गुस्से में इस की संभावना प्रबल होती है. हां, एक बात यह भी है कि जब आदमी ऐसा कृत्य कर गुजरता है तो वह अपने बचाव के रास्ते भी सुदृढ़ तरीके से तैयार करता है. यही वजह थी कि पूर्णिमा सेठी के हत्यारे तक पहुंचने में…

300 गज में फैली उस कोठी में 2 बैडरूम और एक ड्राइंगरूम भूतल पर था, 2 बैडरूम और एक ड्राइंगरूम पहली मंजिल पर था. दाएं हिस्से में एक लंबी ओपन गैलरी कोठी के पीछे के हिस्से में बने गैराज तक गई थी. ऊपर की मंजिल में जाने के लिए सीढि़यां अंदर से भी थीं और बाहरी गैलरी से भी. इस कोठी में एक ही परिवार रहता था. इस परिवार में मात्र 5 प्राणी थे- नरेश सेठी, उस की पत्नी पूर्णिमा सेठी और नौकर रामकिशन उर्फ रामू. नरेश सेठी का एकमात्र 8 वर्षीय बेटा विशु मसूरी के किसी पब्लिक स्कूल में पढ़ रहा था और बोर्डिंग में रहता था.

पूर्णिमा सेठी की लाश ऊपर की मंजिल के एक बैडरूम में डबल बैड पर पड़ी मिली थी. उसे गला घोंट कर मारा गया था. जिस चुन्नी से पूर्णिमा का गला घोंटा गया था, वह उसी की थी और उस के गले में ही लिपटी मिली थी. पता चला कि पूर्णिमा सेठी सुबह साढ़े 9 बजे से दोपहर डेढ़ बजे तक घर में अकेली थी. उस का पति नरेश सेठी अपने औफिस गया हुआ था और नौकर रामू कनाट प्लेस. इसी बीच किसी समय पूर्णिमा का कत्ल हुआ था. पूर्णिमा की लाश सब से पहले दोपहर के डेढ़ बजे नौकर रामू ने देखी थी. उसी ने शोर मचा कर पासपड़ोस के लोगों की बुलाया था. उन्हीं में से किसी ने पुलिस को सूचना दी थी.

जिस वक्त मैं मौका ए वारदात पर पहुंचा, उस समय पूर्णिमा का पति नरेश आ चुका था और इंसपेक्टर उसी से पूछताछ कर रहा था. नरेश ने बताया कि वह सुबह 9 बजे घर से निकला था. रास्ते में उसे 2-3 जगह जाना था, वहीं से होता हुआ वह पौने 2 बजे औफिस पहुंचा था. 2 बजे उसे औफिस में ही पूर्णिमा की हत्या की सूचना मिली थी. पूछताछ में रामू ने बताया कि वह सुबह साढ़े 9 बजे घर से निकला था. उसे पहले जमुनापार शकरपुर में अपने एक रिश्तेदार के घर जाना था और उस के बाद कनाट प्लेस की एक ट्रैवल एजेंसी से मैडम का मुंबई का हवाई टिकट ले कर वापस लौटना था.

यह काम कर के वह डेढ़ बजे कोठी पर लौटा. उस समय कोठी का मुख्य द्वार बंद था, पर अंदर के सारे दरवाजे खुले मिले. मैडम नीचे दिखाई नहीं दीं तो वह ऊपर पहुंचा. वहीं उस ने बैडरूम में मैडम की लाश पड़ी देखी. घर में न तो किसी प्रकार की लूटपाट हुई थी और न ही कोई चीज गायब थी. संघर्ष का भी कोई चिह्न नहीं मिला. अलबत्ता जिस में पूर्णिमा की लाश मिली थी, उसी बैडरूम में बैड के पास कमीज का गुलाबी रंग का एक बटन जरूर पड़ा मिला. बटन रामू की उसी कमीज का था, जो वह पहने हुए था. रामू को स्वयं पता नहीं था कि उस की कमीज का एक बटन गायब है. इंसपेक्टर ने इस ओर उस का ध्यान दिलाया तो वह चौंका. उस ने बताया कि सुबह कमरे की सफाई करते समय बटन टूटा होगा.

रामू शादीशुदा युवक था. वह उत्तर प्रदेश के जिला सुलतानपुर का रहने वाला था और पिछले 11 सालों से नरेश सेठी के घर में नौकरी कर रहा था. मात्र बटन के आधार पर उस पर शक करना बेमानी था. मैं ने इंसपेक्टर को साथ ले कर कोठी की दोनों मंजिलों का मुआयना किया. कोठी की छानबीन में हमें कई ऐसी चीजें मिलीं, जो हमारी जांच को दिशा दे सकती थीं. ऐसी चीजें थीं, फ्रिज के ऊपर रखा मिला एक बिल और कुछ खुले रुपए. बिल 440 रुपए का था और उसी के पास 10 रुपए खुले रखे थे. नरेश सेठी ने बताया कि वह बिल दूध का है. उस दिन महीने की 2 तारीख थी और 2 तारीख को ही दूध वाला बिल लेने आता था. बिल के अलावा हमें कुछ और भी ऐसी चीजें मिलीं, जिन्हें मुद्दा बना कर घटना की जड़ों को टटोल सकते थे.

चाय के 2 जूठे प्याले रसोई के सिंक में पड़े मिले थे और 2 ऊपर की मंजिल वाले ड्राइंगरूम की सेंटर टेबल पर. इस के अलावा नीचे की मंजिल वाले ड्राइंगरूम के सोफे पर हमें खूबसूरत सा एक पेन भी पड़ा मिला. वहीं पर साइड टेबल पर 2 किताबें और एक आधी लिखी नोट बुक रखी थी. दोनों ही किताबें जनरल इंगलिश की थीं और नोटबुक में भी अंगरेजी ही लिखी थी. पूछताछ करने पर पता चला कि पूर्णिमा सेठी मदन भाटिया नाम के एक ट्यूटर से अंगरेजी बोलना सीख रही थी. जो उसे प्रतिदिन 11 से 12 बजे के बीच पढ़ाने आता था. सोफे पर मिले पेन को पूर्णिमा का पति नरेश तो नहीं पहचान पाया, अलबत्ता रामू ने उस पेन को पहचान कर बताया कि उस तरह का पेन मदन भाटिया अपनी जेब में लगाए रहते थे.

सिंक और ऊपर की मंजिल वाले ड्राइंगरूम की टेबल पर मिले प्यालों के बारे में किसी तरह की कोई जानकारी नहीं मिल सकी कि उन में किस ने चाय पी थी. हम ने अनुमान लगाया कि चाय 2 बार बनाई गई थी और दोनों बार नीचे की मंजिल वाली रसोई में ही बनी थी. पूर्णिमा ने दोनों बार चाय एक ही व्यक्ति के साथ पी या अलगअलग व्यक्तियों के साथ, यह कहना मुश्किल था. ऊपर की मंजिल पर पूर्णिमा सेठी किसी खास व्यक्ति को ही साथ ले जा सकती थीं. प्यालों से यह भी संदेह हुआ कि पूर्णिमा सेठी की हत्या संभवत: दूसरी बार चाय पीने के बाद चाय पीने वाले व्यक्ति द्वारा की गई होगी.

साढ़े 9 बजे से डेढ़ बजे के बीच हुई हत्या की वारदात के लिए हम ने 5 लोगों को संदेह के दायरे में रखा. ये थे रामू, मृतका का पति नरेश सेठी, दूध वाला शंकर और ट्यूटर मदन भाटिया. 5वें नंबर पर उस शख्स पर संदेह किया जा सकता था, जिस के साथ पूर्णिमा ने ऊपर के ड्राइंगरूम में चाय पी थी. इन पांचों में सब से ज्यादा संदिग्ध रामू लगा. वह काफी घबराया हुआ भी था, जिस से उस पर संदेह और भी बढ़ा. मैं ने रामू से पूछा, ‘‘तुम कहां सोते हो?’’

‘‘पहली मंजिल के जिस बैडरूम में मैडम की लाश मिली है, उसी के बराबर वाले बैडरूम में सोता हूं. कोठी में सर्वेंट क्वार्टर न होने की वजह से मालिक ने वह कमरा मुझे दे रखा है.’’ रामू बोला.

रामू पर शक था, इसीलिए मैं ने उस के कमरे में जा कर देखा. जिस कमरे में रामू सोता था, यह 8×10 का बैडरूम था और उस में सिंगल बैड पड़ा हुआ था. सामान या सजावट के नाम पर उस कमरे में कुछ नहीं था, अलावा रामू के कपड़ों और जरूरत की दूसरी चीजों के. बैड भी सामान्य सा था. बैड के साथ वाले शोकेस में एक औरत और बच्चे का सादा सा फोटो फ्रेम रखा था. वह रामू की पत्नी और बच्चे का फोटो था. मैं ने रामू के बैड को गौर से देखा तो मुझे लगा कि उस कमरे में जरूर कुछ न कुछ अस्वाभाविक घटा था. रामू के कमरे का निरीक्षण करने पर खिड़की में लाल रंग की टूटी हुई चूड़ी का एक टुकड़ा मिला. पूर्णिमा सेठी के दोनों हाथों में कोई चूड़ी नहीं मिली थी.

मैं ने चूड़ी के उस टुकड़े को सावधानीपूर्वक उठा लिया. जिस खिड़की में टुकड़ा मिला था, वह पीछे की ओर गली में खुलती थी. कुछ सोच कर मैं कोठी के बाहर आया और आसपड़ोस की 2-3 कोठियों का चक्कर काट कर पीछे वाली गली में पहुंचा. पीछे वाली गली से मुझे रामू के कमरे की वह खिड़की नजर आ गई, जिस में चूड़ी का टुकड़ा मिला था. मैं ने उस खिड़की के नीचे गली में खोजबीन की, तो लाल चूडि़यों के वैसे ही 8 टुकड़े मिल गए. सारे टुकड़े एकत्र कर के मैं ने कागज में रख लिए. मैं ने वे टुकड़े नरेश सेठी को दिखा कर पूछा, ‘‘ये टुकड़े तुम्हारी पत्नी की चूडि़यों के हैं?’’

‘‘नहीं,’’ नरेश सेठी ने दो टूक जवाब दिया, ‘‘मेरी पत्नी कांच की चूडि़यां विशेष अवसरों पर ही पहनती थी. लाल रंग की चूडि़यां तो उस ने कभी पहनी ही नहीं. चूडि़यां तो क्या, लाल रंग के कपड़ों तक से उसे चिढ़ थी.’’

रामू के कमरे की खिड़की के नीचे से चूडि़यों के टुकड़े एकत्र करते समय मैं सोच रहा था कि मैं हत्यारे के करीब पहुंच गया हूं, लेकिन नरेश सेठी ने यह बात बता कर मेरी सारी आशाओं पर पानी फेर दिया. रामू 27-28 साल का था, लगभग इतनी ही उम्र पूर्णिमा सेठी की भी थी. ऐसी स्थिति में संदेह के लिए कई बातें सोचीसमझी जा सकती थीं. मैं ने रामू को चूडि़यों के टुकड़े दिखा कर पूछा, ‘‘पहचानते हो इन्हें? तुम ने ही खिड़की से बाहर फेंके थे?’’

‘‘जी नहीं, मैं इस बारे में कुछ नहीं जानता.’’

‘‘कोई बात नहीं, थाने चल कर हम पता लगा लेंगे.’’ मैं ने उस पर मनोवैज्ञानिक प्रभाव डाला तो वह रोने लगा, ‘‘साहबजी, आप गलत समझ रहे हैं. मैं इस घर में 11 साल से नौकरी कर रहा हूं. मैं इस परिवार का बुरा नहीं सोच सकता.’’

नरेश सेठी पत्नी की असमय मौत के गम से व्यथित था. फिर भी उस ने रामू को तसल्ली दी. समझाया, ‘‘डर मत. पुलिस को अपना काम करने दे.’’

मैं ने नरेश सेठी से पूछा कि क्या उसे रामू के शकरपुर और कनाट प्लेस जाने की बात मालूम थी. उस ने बताया कि इस संबंध में तो उसे कोई जानकारी नहीं थी, अलबत्ता यह जरूर मालूम था कि पूर्णिमा को 5 अगस्त को मुंबई जाना है और इस के लिए उस ने कनाट प्लेस की किसी ट्रैवल एजेंसी को टिकट का इंतजाम करने को कहा था. मैं ने रामू से उस के शकरपुर वाले रिश्तेदार और ट्रैवल एजेंसी का पता ले लिया, फिर वह टिकट देखा, जो वह ले कर आया था. टिकट वास्तव में 5 अगस्त का ही था.

‘‘पूर्णिमा मुंबई किस सिलसिले में जा रही थी?’’ मेरे यह पूछने पर नरेश सेठी ने कोई संतोषजनक जवाब नहीं दिया. उस वक्त हमारे सामने रामू के अलावा कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं था, जिसे हम संदेह के दायरे में रख सकते. इसीलिए हम रामू को पूछताछ के लिए थाने ले आए. चूडि़यों के टुकड़े, कमीज का बटन, सोफे पर मिला पेन, ड्राइंगरूम और सिंक में मिले चाय के प्याले, फ्रिज पर मिला दूध का बिल और पैसे आदि सभी चीजें हम ने जांच के लिए कब्जे में ले ली थीं. इस के साथ ही हम ने हत्या का केस दर्ज करने के बाद पूर्णिमा सेठी की लाश पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दी थी.

जिन दिनों की यह बात है, उन दिनों मैं एसीपी था. मेरा औफिस थाने में ही था. थाने पहुंचते ही मैं ने 2 सबइंसपेक्टरों को बुलाया. उन में से एक को कनाट प्लेस स्थित ट्रैवल एजेंसी और दूसरे को रामू के शकरपुर स्थित रिश्तेदार के यहां भेजा. शाम होतेहोते मुझे दोनों जगह की रिपोर्ट मिल गई. पता चला कि रामू पौने 11 बजे अपने मौसा श्यामबाबू के यहां पहुंचा था. श्यामबाबू के पास रामू पौन घंटे के करीब रुका. उस के बाद वह कनाट प्लेस स्थित टै्रवल एजेंसी के औफिस पहुंचा. वहां वह 12 या सवा 12 बजे पहुंचा था और 15 या 20 मिनट वहां रहा, फिर वहां से मैडम का एयर टिकट ले कर वापस लौट आया.

रात को हम ने रामू से पूछताछ की. रामू के अनुसार उस ने न तो पूर्णिमा सेठी का कत्ल किया था और न वह ऐसा सोच सकता था. पूर्णिमा को वह अपनी बहन मानता था. रामू ने बताया कि वह डेढ़ नहीं, बल्कि एक बजे कोठी पर वापस लौटा था. उसे कोठी का मुख्य दरवाजा बंद मिला. दरवाजा खोल कर जब वह अंदर पहुंचा, तो उसे सारे दरवाजे खुले मिले. उस ने मैडम को पहले नीचे खोजा, लेकिन जब वह नीचे नजर नहीं आईं तो वह ऊपर की मंजिल पर गया. ऊपर  की मंजिल पर उस ने मैडम को अपने कमरे में बैड पर पड़े देखा, तो उस का माथा ठनका. मैडम ऊपर की मंजिल पर कम ही आती थीं. उस के रूम में तो मैडम के आने का प्रश्न ही नहीं था.

रामू ने बताया कि मैडम को 2 चीजें चमचमाती हुई रखने का शौक था, एक बाथरूम और दूसरा बैड. वह न तो किसी के बैड पर बैठना पसंद करती थीं और न ही किसी को अपने बैड पर बैठाती थीं. मैडम का रामू के बैड पर तो बैठने का प्रश्न ही नहीं था. वह समझ गया कि जरूर कोई गड़बड़ है. गौर से देखा तो उसे समझते देर नहीं लगी कि मैडम मर चुकी हैं. उन के गले में जिस ढंग से चुन्नी लिपटी थी, उसे देख कर कोई भी बता सकता था कि उन्हें गला घोंट कर मारा गया था.पूर्णिमा सेठी की हत्या रामू के कमरे में उसी के बैड पर हुई थी. वह यह सोच कर डर गया था कि सब उसी पर शक करेंगे, वह पकड़ा जाएगा. सोचविचार कर उस ने मैडम की लाश को अपने कमरे से हटाने का निश्चय किया.

सब से पहले उस ने लाश को नीचे वाली मंजिल में ले जाने की सोची. लेकिन पूर्णिमा सेठी चूंकि उस से काफी भारी थीं, इसलिए उसे अपना इरादा बदलना पड़ा. अंतत: उस ने पूर्णिमा की लाश को अपने कमरे से उठा कर दूसरे बैडरूम के बैड पर डालने का निश्चय किया. ऐसा ही उस ने किया भी. लाश को दूसरे बैडरूम में डालते समय ही उस की कमीज का बटन भी दूटा था, जिस पर बौखलाहट में ध्यान नहीं दे पाया था. इतना सब करने के बाद रामू ने अपने आप को सामान्य किया और फिर शोर मचा कर आसपड़ोस के लोगों को बुला लिया था.

रामू से हम ने रात को साढ़े 12 बजे पूछताछ शुरू की थी, जो सुबह साढ़े 4 बजे तक चलती रही. इस पूछताछ के बाद मैं इस नतीजे पर पहुंचा कि रामू जो कह रहा है, वह सच है. उस ने अपने बचाव के लिए हत्या के सबूतों को अपने स्थान से हटाने और मिटाने का अपराध जरूर किया है, लेकिन वह हत्यारा नहीं है. अब सवाल यह था कि पूर्णिमा सेठी की हत्या रामू ने नहीं की, तो किस ने की? रामू के बाद संदिग्धों की लिस्ट में हम दूधिया शंकर, ट्यूटर मदन भाटिया और नरेश सेठी को रख सकते थे. रामू की गैरमौजूदगी में मदन भाटिया और शंकर कोठी पर आए थे, इस बात के प्रमाण हमारे पास थे ही.

मदन भाटिया का पता मैं ने नरेश सेठी से ले लिया था. शंकर का पता उस के पास भी नहीं था. मैं ने इंसपेक्टर से कहा कि वह सुबह होते ही एक हवलदार को इस निर्देश के साथ नरेश सेठी की कोठी पर भेज दें कि शंकर अगर दूध देने आए, तो वह उसे थाने ले आए. सुबह में मैं ने इंसपेक्टर से कहा कि एक एसआई को मदनगीर स्थित भाटिया के घर भेज कर उसे बुला लें. मदन भाटिया की उम्र 32-33 साल थी. स्वभाव से वह सीधासज्जन लगता था. उसे ले कर आने वाले दरोगा ने मेरी हिदायत के मुताबिक उसे पूर्णिमा सेठी के कत्ल की बात नहीं बताई थी. मैं ने मदन भाटिया को सामने की कुरसी पर बैठा कर पूछताछ की. कुछ सामान्य रूप से तो कुछ तीखे सवालों के साथ.

मदन भाटिया के चेहरे और मन के भावों को समझने के लिए मैं उस के साथ सख्ती से पेश आया था. पूर्णिमा सेठी की हत्या की बात सुन कर मदन भाटिया बेहद आश्चर्य में था. उस से बातचीत के दौरान मुझे जरा भी ऐसा नहीं लगा कि वह इस मामले में कहीं दोषी है. मैं ने उस से पिछले दिन की सारी बातें बताने को कहा. मदन भाटिया ने बताया कि वह रोज की तरह गत दिवस भी सवा 11 बजे नरेश सेठी की कोठी पर पहुंचा था. उस ने घंटी बजाई तो रामू की जगह पूर्णिमा सेठी ने दरवाजा खोला. पता चला, रामू कहीं बाहर गया हुआ था. मदन भाटिया पूर्णिमा के साथ अंदर गया और ड्राइंगरूम में सोफे पर जा बैठा. पूर्णिमा वहीं बैठ कर पढ़ती थी. उस ने मदन भाटिया को पानी पिलाया और किताबें तथा नोटबुक ले कर पढ़ाई के लिए आ बैठी.

इत्तफाक से पूर्णिमा पेन लाना भूल गई थी. वह पेन लाने के लिए उठी, तो भाटिया ने उसे अपना पेन दे दिया. भाटिया ने लगभग पौन घंटे तक पूर्णिमा को पढ़ाया. जब वह जाने लगा तो पूर्णिमा चाय पीने की जिद करने लगी. वह बैठ गया. पूर्णिमा रसोई में जा कर 2 कप चाय बना लाई. चाय पीते समय पूर्णिमा की नजर किताबों के ऊपर रखे पेन पर पड़ी, तो उस ने पेन उठा कर भाटिया की ओर बढ़ाया. उस समय भाटिया के हाथ में चाय का प्याला था. उस ने यह सोच कर पेन सोफे पर रख दिया कि जाते समय उठा लेगा. लेकिन उसे पेन उठाने का ध्यान नहीं रहा.

मदन भाटिया नरेश सेठी की कोठी से सवा 12 बजे लौटा था. अगर वह सच बोल रहा था, तो फिर कत्ल सवा 12 से एक बजे के बीच पौन घंटे की अवधि में हुआ था. मदन भाटिया के अनुसार पूर्णिमा ने उसे चाय पिलाई थी. चाय के प्याले भी सिंक में पड़े मिले थे. इस का मतलब यह था कि ऊपर वाली मंजिल में चाय के जो प्याले मिले थे, उन में पूर्णिमा ने मदन भाटिया के जाने के बाद किसी और के साथ चाय पी थी. रामू और मदन भाटिया को भी हम संदेह से मुक्त नहीं कर सकते थे. इसीलिए मैं ने दोनों को निगरानी में रखने का आदेश दिया. दूसरा सबइंसपेक्टर शंकर को ले कर साढ़े 10 बजे मेरे औफिस आया. शंकर 40-42 साल का गठे हुए बदन का व्यक्ति था. मैं ने शंकर से पूछताछ की तो उस ने बताया कि गत दिवस वह सवा 10 बजे सेठी की कोठी पर पहुंचा था. उस ने घंटी बजाई तो रामू की जगह पूर्णिमा सेठी ने दरवाजा खोला.

उस ने अंदर जा कर दूध दिया और साथ ही पिछले महीने का बिल भी. पूर्णिमा सेठी ने उसे साढ़े 4 सौ रुपए ला कर दिए. बिल 440 रुपए का था, अत: उस ने 10 रुपए पूर्णिमा को लौटा दिए. उस के बाद वह वहां से चला गया था. मदन भाटिया के अनुसार पूर्णिमा सेठी सवा 12 बजे तक सहीसलामत थीं. जबकि शंकर सवा 10 बजे ही कोठी पर पहुंचा था. ऐसी स्थिति में उस पर शक करने की कोई तुक नहीं थी, फिर भी ऐहतियात के तौर पर मैं ने उसे भी निगरानी में रखने को कहा. पूर्णिमा की हत्या हुए 24 घंटे होने को थे. इस बीच नरेश सामान्य हो गया होगा, यह सोच कर मैं इंसपेक्टर को साथ ले कर उस की कोठी पर पहुंचा. वहां पर हमें पूर्णिमा के मातापिता और भाई भी मिल गए. वे लोग रात को आए थे. पता चला, पूर्णिमा का मायका चंडीगढ़ में था.

हम ने पूर्णिमा के मातापिता और भाई से बातचीत की तो उन्होंने अपने दामाद पर किसी तरह का संदेह व्यक्त नहीं किया. उन का कहना था कि नरेश पूर्णिमा को बहुत प्यार करता था. ऐसा कोई कारण नहीं था जिस की वजह से उसे पूर्णिमा की हत्या करने की जरूरत पड़ती. मैं ने नरेश सेठी को एक अलग कमरे में बैठा कर पूछताछ की. उस ने बताया कि गत दिवस उसे 2-3 जगह जाना था, इसीलिए वह सुबह 9 बजे घर से निकल गया था. घर से रवाना होने के बाद वह पहले जैकी एक्सपोर्ट के मालिक नवीन खन्ना के घर ग्रेटर कैलाश गया. नवीन खन्ना के घर वह सवा घंटा बैठा रहा. वहां से वह आरकेपुरम स्थित अशोक बब्बर के घर गया. अशोक बब्बर की कालकाजी में बब्बर ओवरसीज के नाम से एक्सपोर्ट कंपनी थी. बब्बर के साथ वह एक घंटे तक रहा.

बब्बर के घर से वह लक्ष्मीबाई नगर स्थित अंजलि एक्सपोर्ट में पहुंचा. इस कंपनी के मालिक रमेश भसीन के साथ वह डेढ़ घंटा रहा. फिर वह ग्रीन पार्क स्थित अपने औफिस गया. तब तक दोपहर के पौने 2 बज गए थे. 2 बजे उसे औफिस में ही पूर्णिमा की हत्या की सूचना मिली. नरेश सेठी के सचझूठ को परखने के लिए मैं ने तीनों पतों से जानकारी कराई तो पता चला, उस की बात सच थी. लेकिन इस के बावजूद हम नरेश सेठी को शक के दायरे से बाहर नहीं कर सकते थे. वजह यह थी कि नरेश जिनजिन जगहों पर गया था, वे सब लाजपतनगर के करीब थीं. नरेश के पास चूंकि कार थी, इसलिए वह आर.के. पुरम, ग्रेटर कैलाश, ग्रीन पार्क और लक्ष्मीबाई नगर कहीं से भी 10-15 मिनट में लाजपत नगर पहुंच सकता था.

बाकी सारी चीजें तो पता चल गईं, लेकिन हम यह पता नहीं लगा पाए कि पूर्णिमा ने दूसरी बार किस के साथ चाय पी थी. दोपहर होतेहोते हमें पूर्णिमा सेठी की लाश की पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिल गई. उस की मृत्यु दम घुटने से हुई थी. मृत्यु से पहले उस के साथ कुकर्म या सहवास नहीं हुआ था. रिपोर्ट के अनुसार, पूर्णिमा की मृत्यु 12 बजे से दोपहर 2 बजे के बीच हुई थी. नरेश सेठी की कोठी से न तो कोई सामान गायब था, न पूर्णिमा के साथ कुछ ऐसावैसा हुआ था, फिर हत्या क्यों की गई? इस मुद्दे पर हम बुरी तरह उलझ कर रह गए. कोई राह नहीं सूझी, तो मैं ने रामू के कमरे की खिड़की के नीचे गली में मिले चूडि़यों के टुकड़ों को जांच का मुद्दा बनाया.

सारे टुकड़ों को जोड़ा गया, तो 2 चूडि़यों के मौडल तैयार हुए. मैं ने चूडि़यों के इन मौडलों की नाप को पूर्णिमा के हाथों में मिली चूडि़यों से मिलाया, तो यह देख कर आश्चर्य हुआ कि मौडल वाली चूडि़यों की साइज पूर्णिमा की चूडि़यों से काफी छोटी थी. संदेह होने पर मैं ने नरेश सेठी की कोठी पर जा कर वार्डरोब में रखी पूर्णिमा की कांच की चूडि़यां देखीं. उन चूडि़यों में वास्तव में लाल रंग की कोई चूड़ी नहीं थी. साइज भी घटनास्थल पर मिली चूडि़यों से बड़ी थी. इस से यह बात साफ हो गई कि खिड़की के बाहर गली में मिले चूडि़यों के टुकड़े पूर्णिमा के नहीं थे. नरेश सेठी ने मेरे 3 बार पूछने पर भी यह बात स्पष्ट नहीं की थी कि पूर्णिमा मुंबई किस लिए जा रही थी. यह जानकारी हमारे लिए महत्त्वपूर्ण साबित हो सकती थी. रामू उस परिवार में पिछले 11 साल से नौकरी कर रहा था.

यह सोच कर कि उसे परिवार के सभी महत्त्वपूर्ण मामलों की जानकारी रहती होगी, मैं ने रामू से पूछताछ करने की सोची. इस बारे में रामू ने बताया कि मुंबई में मैडम के एक कजिन परवीन चड्ढा का काफी बड़ा कारोबार है. उन के कारोबार में मैडम स्लिपिंग पार्टनर थीं. वह उन्हीं के पास मुंबई आतीजाती थीं.

‘‘कितनेकितने दिनों के अंतराल से जाती थीं?’’ मैं ने पूछा तो रामू ने बताया कि वह महीने में 1-2 बार मुंबई जरूर जाती थीं और 3-4 दिन में लौटती थीं. इतना ही नहीं, कभीकभी परवीन चड्ढा भी दिल्ली आते रहते थे. वह हमेशा होटल में ठहरते थे. मेरे पूछने पर रामू ने यह भी बताया कि नरेश सेठी मैडम के बारबार मुंबई आनेजाने से खुश नहीं थे. इस बात को ले कर दोनों में एकदो बार झड़पें भी हुई थीं. यह बात पता चलते ही मैं ने नरेश सेठी को बुलाया. उस से परवीन चड्ढा के बारे में पूछा तो वह थोड़ी झुंझलाहट में बोला, ‘‘मैं उस शख्स के बारे में कोई बात नहीं करना चाहता. उस से मेरा न तो कोई सरोकार था, न है.’’

‘‘लेकिन तुम्हारी पत्नी का तो था? वह उस के पास महीने में 2-2 बार जाती थी.’’

नरेश सेठी कुछ देर खामोश बैठा रहा. फिर कुछ सोच कर बोला, ‘‘आप परवीन चड्ढा को इस केस में न घसीटें तो ठीक रहेगा. इस से हमारी बदनामी हो सकती है. मैं इतना ही कह सकता हूं कि वह मुंबई से यहां आ कर पूर्णिमा का कत्ल नहीं कर सकता. इस की उसे जरूरत भी नहीं थी, क्योंकि पूर्णिमा ने उस की बहुत मदद की थी.’’

‘‘कर भी तो सकता है. पूर्णिमा उस के कारोबार में स्लिपिंग पार्टनर थी. हो सकता है, उस ने अपने किसी व्यावसायिक लाभ के लिए…’’ मैं ने कहना चाहा तो नरेश सेठी खीझे से स्वर में बोला, ‘‘स्लिपिंग पार्टनर सिर्फ नाम के लिए थी. एक बहाना था यह.’’

नरेश सेठी की बातों से मैं समझ गया कि पूर्णिमा और परवीन चड्ढा के बीच चाहे जो भी रिश्ता रहा हो, उसे नरेश सेठी पसंद नहीं करता था. मैं नरेश सेठी को ले कर उस की कोठी पर गया और उस के बैडरूम और ड्राइंगरूम में लगे फोन के पास रखी मैसेज स्लिपें चैक कीं. बैडरूम के फोन वाली स्लिपों में मुझे एक काम का टेलीफोन नंबर मिल गया. इस नंबर के साथ 311 लिखा था. मैं ने उस नंबर पर फोन मिलाया तो मेरा अनुमान सही निकला. वह नंबर नई दिल्ली के एक होटल का था. मैं समझ गया कि 311 इसी होटल के कमरे का नंबर है. औफिस लौट कर मैं ने एक सबइंसपेक्टर को बुला कर कहा कि वह उस होटल के रिकौर्ड से पता लगाए कि कमरा नंबर 311 में एक और दो तारीख को कौन ठहरा था. वह कब होटल आया और कब गया? क्या उस के साथ कोई महिला भी थी?

सबइंसपेक्टर ने वापस लौट कर जो कुछ बताया, वह मेरी आशा के अनुरूप था. पता चला, उस कमरे में 30 तारीख से 2 तारीख की शाम तक परवीन चड्ढा ठहरा था. साथ में एक औरत भी थी, जो उस ने अपनी पत्नी बताई थी. परवीन चड्ढा ने अपना नामपता सही लिखा था. आगमन की जगह उस ने मुंबई लिखा था और जाने की जगह चंडीगढ़. परवीन चड्ढा दिल्ली आया हो और पूर्णिमा से न मिला हो, ऐसा संभव नहीं था. मुझे लगा कि पूर्णिमा का कत्ल संभवत: परवीन चड्ढा ने ही किसी औरत की मदद से किया है. कत्ल क्यों किया, यह वही बता सकता है. परवीन चड्ढा के बारे में जानकारी मिलने के बाद मैं ने शंकर और मदन भाटिया को इस चेतावनी के साथ जाने की इजाजत दे दी कि वह पूछताछ के लिए दिल्ली में ही उपलब्ध रहें. रामू की स्थिति अभी स्पष्ट नहीं थी.

परवीन चड्ढा का मुंबई और चंडीगढ़ का पता नरेश सेठी से मिल गया था. मैं ने उसी रात उस की तलाश में दोनों जगह पुलिस पार्टियां भेजीं. चंडीगढ़ गई पुलिस पार्टी दूसरे दिन परवीन चड्ढा को साथ ले कर दिल्ली लौट आई. उस के साथ उस की पत्नी परमजीत कौर भी थी. वे दोनों काफी घबराए हुए थे. परवीन चड्ढा कुछ दुखी और परेशान सा भी लग रहा था. मैं ने सब से पहले परमजीत कौर की चूडि़यों का साइज चैक किया. परमजीत कौर का साइज भी बड़ा था. घटनास्थल पर मिली चूडि़यां उस की नहीं थीं, यह देख मुझे आश्चर्य हुआ. परवीन और परमजीत से बातचीत के बाद यह बात तो साफ हो गई कि होटल में वह दोनों ही कमरा नंबर 311 में ठहरे थे.

मैं ने परमजीत कौर से पूछा, ‘‘आप पूर्णिमा सेठी को जानती थीं?’’

‘‘हां, सालों पहले 2-3 बार मुलाकात हुई थी.’’ परमजीत कौर ने बताया तो मैं ने आश्चर्यचकित हो कर पूछा, ‘‘वह तो हर महीने मुंबई जाती थीं. क्या आप के घर नहीं ठहरती थीं?’’

‘‘नहीं.’’ उस ने जवाब दिया.

‘‘वह आप लोगों के व्यवसाय में स्लिपिंग पार्टनर थीं?’’

‘‘स्लिपिंग पार्टनर!’’ परमजीत ऐसे चौंकी, जैसे मैं ने कोई अनहोनी बात कह दी हो.

मेरी और परमजीत कौर की इन बातों से परवीन चड्ढा के चेहरे का रंग उतर गया था. वह नजरें झुकाए बैठा था. मैं ने परमजीत से एक सवाल और पूछा, ‘‘आप को मालूम है, आप के पति एक और दो तारीख को दिल्ली में पूर्णिमा सेठी से मिले थे?’’

‘‘नहीं, यह बात मेरी जानकारी में नहीं है.’’

मैं ने परवीन को समझाते हुए कहा, ‘‘मि. चड्ढा, आप की प्रेमिका का कत्ल हो चुका है. हमें संदेह है कि कत्ल में आप शामिल हैं. अगर आप इस बात से इत्तफाक नहीं रखते तो हमें सारी बातें साफसाफ बता दें.’’

परवीन चड्ढा की स्थिति बड़ी विचित्र हो गई. उस के एक ओर पुलिस थी, दूसरी ओर बीवी. चेहरे का रंग उड़ जाना स्वाभाविक था. उस की समझ में नहीं आ रहा था, क्या करे. लेकिन बोलना उस की मजबूरी थी. परवीन चड्ढा ने जो कुछ बताया, उस का सार यह था कि पूर्णिमा और परवीन दोनों सहपाठी रहे थे. शादी से पहले दोनों न केवल एकदूसरे को जानते थे, बल्कि प्यार भी करते थे. उन की शादी भी हो जाती. लेकिन परवीन चड्ढा को 2 साल का बिजनैस मैनेजमेंट का कोर्स करने इंग्लैंड जाना पड़ा. इसी बीच पूर्णिमा के पिता ने उस की शादी नरेश सेठी से कर दी थी. इस शादी का पूर्णिमा ने विरोध भी किया था, लेकिन अपनी मां और दिल्ली वाली मौसी के दबाव की वजह से उसे झुकना पड़ा था.

मैनेजमेंट का कोर्स करने के बाद परवीन भारत लौटा, तो उस ने पूर्णिया को उस की बेवफाई के लिए ताना दिया. पूर्णिमा ने बताया कि उस ने नरेश सेठी से अपनी मरजी से शादी नहीं की थी. इंग्लैंड से लौटने के बाद परवीन चड्ढा को मुंबई की एक मल्टीनैशनल कंपनी में मैनेजर की नौकरी मिल गई. उस ने चंडीगढ़ की ही एक लड़की से शादी भी कर ली. लेकिन इस के बावजूद उस ने पूर्णिमा सेठी से मिलनाजुलना बंद नहीं किया था. पूर्णिमा के पति का आयातनिर्यात का काफी बड़ा कारोबार था. पैसे की उस के पास कोई कमी नहीं थी. पूर्णिमा का जब भी मन होता, वह परवीन चड्ढा से मिलने मुंबई चली जाती थी. नरेश सेठी की मां की मृत्यु उस की शादी से पहले ही हो चुकी थी. 2 साल बाद पिता भी चल बसे. लेदे कर नरेश सेठी का एक ही बड़ा भाई था, जो अमेरिका में रहता था.

परवीन को नौकरी करते अभी 3 साल हुए थे कि पूर्णिमा ने उसे कोई अपना व्यवसाय करने की राय दी. उस ने उस से यह भी कहा कि वह उस की आर्थिक मदद करेगी. कुछ पैसा परवीन चड्ढा के पास था, कुछ पूर्णिमा ने दिया. कुछ पैसा बैंक से कर्ज ले कर उस ने भांडुप, पश्चिम मुंबई में इलैक्ट्रौनिक उपकरण बनाने की फैक्ट्री लगा ली. फैक्ट्री में इलैक्ट्रौनिक उपकरण बनने तो लगे, इस के बावजूद कई कारणों से उतना लाभ अर्जित न हुआ, जितना होना चाहिए था. इस का नतीजा यह हुआ कि परवीन चड्ढा की आर्थिक स्थिति नरेश सेठी जैसी सुदृढ़ न हो सकी. उस की स्थिति को ध्यान में रखते दुए पूर्णिमा सेठी उस की जबतब रुपएपैसे से मदद करती रही. पूर्णिमा सेठी, नरेश सेठी से परवीन चड्ढा को अपना कजिन बताती थी. उस ने परवीन चड्ढा के कारोबार में स्लिपिंग पार्टनर होने की बात भी बताई थी.

नरेश सेठी चूंकि अपने कारोबार में बेहद व्यस्त रहता था, इसलिए उस ने हमेशा उसी बात पर यकीन किया, जो पूर्णिमा ने कही थी. पूछताछ में परवीन चड्ढा ने यह बात स्वीकार की कि पूर्णिमा उस से मिलने मुंबई जाती थी और होटल में ठहरती थी. उस ने यह भी माना कि 30 जुलाई को दिल्ली आते ही उस ने पूर्णिमा को फोन किया था. होटल का फोन नंबर और कमरा नंबर भी उस ने ही बताया था. उस ने बताया कि वह 31 जुलाई, एक और 2 अगस्त को पूर्णिमा से उस की कोठी पर ही जा कर मिला था. वहीं पर पूर्णिमा का 5 अगस्त को मुंबई जाने का प्रोग्राम बना था. परवीन चड्ढा के अनुसार, परमजीत कौर को चंडीगढ़ छोड़ते हुए उसे भी 5 अगस्त को मुंबई पहुंचना था.

परवीन चड्ढा ने बताया कि पूर्णिमा के कत्ल में उस का कोई हाथ नहीं है. उस ने यह भी बताया कि पूर्णिमा उसे तनमनधन हर तरह से चाहती थी. ऐसी हालत में वह उस का बुरा कैसे सोच सकता था. अगर परवीन चड्ढा सच बोल रहा था तो फिर ऐसा कोई कारण नहीं था कि उसे पृर्णिमा का कल्ल करने की जरूरत पड़ती. इस मामले में जितने भी लोग संदिग्ध हो सकते थे, मैं ने एकएक कर सभी से पूछताछ कर ली थी, फिर भी मैं हत्यारे की छाया को नहीं छू पाया. समझ में नहीं आ रहा था कि हत्यारा कौन है. मैं ने परवीन चड्ढा से पूछा कि 31 जुलाई और एक व 2 अगस्त को जब वह पूर्णिमा से मिलने गया था, तब उसे नरेश सेठी ने तो नहीं देखा था?

‘‘नरेश सेठी ने तो नहीं, लेकिन 3 अगस्त को जब मैं कोठी से बाहर जा रहा था, तो रामू मुझे जरूर मिला था. वह उसी समय कहीं से लौटा था.’’

परवीन चड्ढा की इस बात से मुझे लगा कि कहीं नरेश सेठी ने ही तो पूर्णिमा की हत्या नहीं की. हो सकता है, चूडि़यों के टुकड़े उस ने पुलिस को गुमराह करने के लिए फेंके हों. मैं ने रामू से पूछा कि उसे 3 अगस्त को परवीन चड्ढा को कोठी से निकलते देखा था, क्या यह बात उस ने नरेश सेठी से बताई थी? रामू ने बताया कि 3 अगस्त को मैडम ने मुझे 11 बजे टेलीफोन का बिल जमा करने भेजा था. बिल जमा करने में काफी देर लगी. मैं साढ़े 12 बजे जब वापस लौटा, तो परवीन चड्ढा कोठी से निकल रहे थे. नरेश सेठी ने मुझे निर्देश दे रखा था कि कभी परवीन चड्ढा दिखाई दे, तो बताना. परवीन चड्ढा कई बार कोठी पर आए थे. मैं उन्हें पहचानता था, इसलिए यह बात मैं ने मालिक को बता दी थी.

रामू की बात से मुझे पक्का विश्वास हो गया कि पूर्णिमा की हत्या उस के पति ने ही की है. लेकिन समस्या यह थी कि नरेश सेठी के खिलाफ हमारे पास कोई ऐसा सुबूत नहीं था, जिस के बूते पर हम उसे गिरफ्तार कर सकते. जब कोई रास्ता नहीं सूझा, तो मैं ने नरेश सेठी के बैडरूम की तलाशी लेने का निश्चय किया. मैं इंसपेक्टर को ले कर नरेश की कोठी पर पहुंचा और उस से बातचीत करने के बाद तलाशी लेने की इच्छा जाहिर की. उस ने इस में कोई आपत्ति नहीं की. नीचे के दोनों बैडरूम, उन की शेल्फों और अलमारियों में हमें कोई भी ऐसी चीज न मिली, जिस के आधार पर कोई कड़ी जुड़ पाती. ऊपर वाले बैडरूम में भी हमें कोई खास चीज नहीं मिली. ऊपर वाले बैडरूम में अलमारी के ऊपर लोहे का पुराना संदूक रखा था.

मैं ने वह संदूक उतरवाने को कहा, तो नरेश सेठी बोला, ‘‘इस संदूक में मां के पुराने कपड़े हैं. चाबी भी पता नहीं कहां होगी. उसे छोड़िए उस में कुछ नहीं मिलेगा.’’

नरेश सेठी की इस बात से मुझे शक हुआ. मैं ने वह संदूक उतरवा लिया और उस से चाबी मांगी. वह बोला यह संदूक मां की मौत के बाद से यूं ही बंद है. चाबी पता नहीं कहां होगी. वैसे भी चाबियां पूर्णिमा के पास ही रहती थीं. कोई और चारा न देख मैं ने संदूक का ताला तुड़वा दिया. उस संदूक में सब से ऊपर बिना तह किया शादी का लाल जोड़ा कुछ इस तरह रखा था, जैसे जल्दी में रखा गया हो. संदूक के अंदर गहने वगैरह तो नहीं थे, अलबत्ता सूखे फूलों की पत्तियां, कुछ पुराने कपड़े और एक पुरानी सफेद चादर थी. देख कर ही बताया जा सकता था कि यह सब सुहागरात की इस्तेमाली चीजें थीं.

उसी संदूक में हमें वह सबूत भी मिल गया, जिस के आधार पर हम कह सकते थे कि हत्यारा कौन है. वह सबूत था, लाल रंग की दरजनभर से ज्यादा चूडि़यां. ये चूडि़यां बिलकुल वैसी ही थीं, जैसी चूडि़यों के टुकड़े खिड़की के बाहर मिले थे. मैं ने संदूक के अंदर से चूडि़यां निकाल कर हाथ में लीं, तो नरेश सेठी के चेहरे का रंग उतर गया. पूर्णिमा की मां अभी दिल्ली में ही थीं. मैं ने शादी का जोड़ा और चूडि़यां उसे दिखाईं तो उस ने बताया कि शादी का जोड़ा और चूडि़यां पूर्णिमा की ही थीं. उस के अनुसार, 10 साल पहले जब पूर्णिमा की शादी हुई थी, तो वह बहुत दुबलीपतली थी. तब उस के हाथों में उसी साइज की चूडि़यां आती थीं.

इस के बाद नरेश समझ गया कि अब कुछ भी छिपाना व्यर्थ है. उस ने स्वत: ही सब कुछ कह डाला. नरेश सेठी ने बताया कि पूर्णिमा को वह बहुत प्यार करता था. उसे उस ने अपने व्यापार में भी औन रिकौर्ड आधे का साझेदार बना रखा था. शादी के बाद शुरू के 6 साल उस ने पूर्णिमा के साथ बड़े आराम और प्रेम के साथ गुजारे. इस बीच उन के यहां एक बच्चा भी पैदा हुआ. तब तक उसे पूर्णिमा और परवीन चड्ढा के संबंधों या प्रेम की कोई बात पता नहीं थी. यही वजह थी कि जब पूर्णिमा ने परवीन के व्यवसाय में पैसा लगाया, तो भी उस ने कोई आपत्ति नहीं की.

नरेश सेठी के अनुसार पूर्णिमा पर उसे संदेह तब हुआ, जब 4 साल पहले रामू ने एक दिन बताया कि परवीन चड्ढा उस के पीछे कोठी पर आता है और घंटों वहां रहता है. पूर्णिमा उस वक्त किसी न किसी बहाने से उसे कहीं भेज देती थी. उस समय मेरा बेटा भी दिल्ली में ही था. उस ने भी मुझे यह बात बताई. यह पता चलने के बाद भी मैं ने पूर्णिमा पर शक नहीं किया. बाद में जब बेटा मसूरी चला गया और पूर्णिमा हर महीने मुंबई जाने लगी, तो मैं ने टोकाटाकी शुरू की. लेकिन जबजब मैं ने कुछ कहा, पूर्णिमा मुझ से लड़ बैठती कि मैं बिना वजह उस पर शक करता हूं. मेरे मना करने के बावजूद वह मुंबई के चक्कर पर चक्कर लगाती रही और मैं कुछ न कर सका.

मेरी जानकारी के हिसाब से पूर्णिमा ने परवीन चड्ढा के व्यवसाय में 20 लाख रुपए लगाए थे. यह अलग बात थी कि उस व्यवसाय से पूर्णिमा को लाभ की कोई राशि कभी नहीं मिली थी. इस साल फरवरी में इत्तफाक से पूर्णिमा की एक व्यक्तिगत डायरी मेरे हाथ लग गई. उस डायरी में पूर्णिमा ने उस रकम का ब्यौरा लिख रखा था, जो उस ने परवीन चड्ढा को दी थी. मैं ने टोटल किया तो पता चला यह रकम लगभग 40 लाख थी. मुझे लगा कि मैं ने कुछ न किया तो पूर्णिमा चड्ढा के चक्कर में मुझे बरबाद कर देगी. मैं ने निश्चय किया कि जैसे भी होगा, मैं इस कहानी को खत्म कर दूंगा. नरेश सेठी ने बताया कि पिछले एक साल से उसे व्यापार में काफी नुकसान हुआ था. पैसे की परेशानी हो रही थी. मैं ने पूर्णिमा से कहा कि उस ने चड्ढा के व्यवसाय में जो 20 लाख रुपए लगाए हैं, उन से कोई लाभ तो हो नहीं रहा, अत: वापस ले ले.

पैसे लाने का बहाना कर वह मुंबई जाती और पैसा लाने के बजाए उसे पैसा दे कर आ जाती. मुझ से वह बहाने बना देती. मैं ने उस से कई बार कहा कि वह परवीन चड्ढा से मेरी बात करा दे, लेकिन उस ने चड्ढा से न तो मेरी बात ही कराई और न मिलवाया. मजबूरी में मैं ने एक प्राइवेट जासूस की मदद ली और चड्ढा और अपनी पत्नी के संबंध की हकीकत पता की. जो कुछ पता चला, उस से मेरा दिल भी टूटा और विश्वास भी. रामू ने चड्ढा को 3 तारीख को देखा था. उस ने यह बात मुझे उसी शाम को बताई. मुझे लगा कि परवीन चड्ढा दिल्ली में ही होगा. मैं ने रामू से पूछा, ‘‘क्या मैडम ने आज दोपहर भी तुम्हें कहीं भेजा था?’’

उस ने बताया कि मैडम ने उसे 12 बजे कुछ कीमती साडि़यां दे कर कहा था कि वह उन्हें बैंडबौक्स ड्राईक्लीनर कनाट प्लेस को ड्राई क्लीनिंग के लिए दे आए. साडि़यां दे कर रामू ढाई बजे वापस लौटा था. लाजपत नगर में कई बड़े ड्राई क्लीनर थे, फिर क्लीनिंग के लिए साडि़यां कनाट प्लेस भेजने की क्या तुक थी. मैं समझ गया कि दोपहर में चड्ढा आया होगा. इसीलिए पूर्णिमा ने रामू को कनाट प्लेस भेजा होगा. नरेश ने बताया, 2 अगस्त की सुबह जब मैं ड्राइंगरूम में बैठा चाय पी रहा था, तो रामू ने मुझ से कहा कि उस के मौसा का फोन आया था, उसे थोड़ी देर के लिए शकरपुर जाना है. मैं ने उस से पूछा कि कब तक लौटेगा तो वह बोला, 2-ढाई घंटे में लौट आएगा.

पूर्णिमा मेरे पास बैठी थी. वह बोली, ‘‘कनाट प्लेस से मेरा एयर टिकट भी लाना है. मैं ने फोन किया था, साढ़े 12 या 1 बजे तक कंफर्मेशन मिलेगा.’’

नरेश ने मन ही मन हिसाब लगाया. साढ़े 12, एक बजे तक रामू कनाट प्लेस में रहेगा, फिर एकडेढ़ घंटे में घर लौटेगा. इसी बीच चड्ढा को आना चाहिए. नरेश ने चाय पीतेपीते पूरी योजना बना ली कि उसे क्या करना है. हकीकत में उस का इरादा पूर्णिमा और चड्ढा को कोई शारीरिक क्षति पहुंचाने का नहीं था. अलबत्ता उस दिन वह उन दोनों को आमनेसामने बैठा कर कुछ बातें साफ कर लेना चाहता था. नरेश ने बताया कि वह अशोक बब्बर के आरके पुरम स्थित घर से सवा 12 बजे निकला और पहले ग्रीन पार्क गया. उस का इरादा औफिस में जाने का था. लेकिन औफिस से थोड़ा पहले ही उस का इरादा बदल गया और उस ने घर जाने का निश्चय किया. जिस समय वह कोठी पर पहुंचा, उस समय पौने एक बजा था.

जब वह अपनी गली में प्रवेश कर रहा था, तो उस गली से एक टैक्सी को निकलते देखा. उसे लगा कि वह औफिस के चक्कर में लेट हो गया और चड्ढा निकल गया. नरेश सेठी ने बताया कि वह काफी गुस्से में था. कोठी के अंदर पहुंचा तो बाहर का गेट खुला पड़ा था. नीचे की मंजिल के दरवाजे भी खुले हुए थे. पूर्णिमा नीचे नहीं दिखी, तो वह ऊपर गया. ऊपर ड्राइंगरूम की मेज पर रखे 2 प्याले देखते ही नरेश समझ गया कि चड्ढा ही आया था. उस ने देखा, पूर्णिमा ऊपर वाले बैडरूम में पुराना संदूक खोले बैठी थी और उस का सामान सहेज रही थी.

नरेश गुस्से में तो था ही, उस ने पूर्णिमा से पूछा कि उस संदूक को क्यों खोले बैठी है? लेकिन उस ने कोई संतोषजनक उत्तर नहीं दिया. चड्ढा के बारे में भी उस ने जुबान नहीं खोली. इस पर नरेश ने संदूक का सारा सामान उलटपलट कर देखा, तो उसे पत्रों का एक बंडल मिला. नरेश ने बंडल खोलना चाहा, तो पूर्णिमा उलझ गई. उस ने पत्रों का बंडल नरेश के हाथ से छीनने की कोशिश की. जबकि वह सारे पत्र बिना पढ़े लौटाना नहीं चाहता था. नरेश गुस्से में था और पूर्णिमा डरी हुई. जब वह नहीं मानी, तो नरेश ने उसे बैड पर गिराया और उस की चुन्नी से ही उस का गला घोंट दिया. वह भहरा कर एक ओर लुढ़की तो नरेश की रूह फना हो गई. वह उसे मारना नहीं चाहता था. लेकिन वह मर चुकी थी.

पूर्णिमा की लाश बैड पर पड़ी थी. बैड पर ही सामान भी फैला पड़ा था. सामान संदूक में भरने के बाद बैड को झाड़ना जरूरी था. सोचविचार कर नरेश पूर्णिमा की लाश रामू के कमरे में डाल आया और सारा सामान संदूक में भर दिया. पूर्णिमा से गुत्थमगुत्था होने की वजह से बैड पर सामान के साथ पड़ी कुछ चूडि़यां टूट गई थीं. उन के टुकड़े बीन कर नरेश ने रामू के कमरे की खिड़की से बाहर फेंक दिए. दरअसल जिस बैडरूम में नरेश ने पूर्णिमा का गला घोंटा था, उस की खिड़की साइड वाली गैलरी में खुलती थी, जबकि रामू के कमरे की खिड़की गली में खुलती थी. इसीलिए उस ने चूडि़यां वहां से फेंक दी थीं.

संदूक में सामान भरने के बाद नरेश ने संदूक अलमारी के ऊपर रख दिया और डबल बैड की चादर झाड़ कर बिछा दी. पत्रों का बंडल साथ लिया और बिना एक पल भी गंवाए कोठी से बाहर निकल गया. यह सारा काम 15 मिनट में निपट गया था. यह इत्तेफाक ही था कि किसी ने उसे आतेजाते नहीं देखा था. नरेश ने आगे बताया कि कोठी से निकल कर वह अंजलि एक्सपोर्ट के औफिस गया और वहां लगभग पौन घंटा बैठ कर अपने औफिस चला गया था. पूर्णिमा के कत्ल की पूरी कहानी पता चल चुकी थी. हम ने नरेश को विधिवत गिरफ्तार कर लिया. उस ने अपने औफिस से पत्रों का पुलिंदा भी बरामद करा दिया. ये पत्र वे थे जो पूर्णिमा ने लंदन और मुंबई के पतों पर शादी से पहले और बाद में परवीन चड्ढा को लिखे थे. पत्रों के हिसाब से उन दोनों में बहुत प्यार था. प्यार ही नहीं दैहिक संबंध भी था.

रामू पर भी भादंवि की धारा 201 का अपराध बनता था. अत: पूछताछ के बाद हम ने नरेश सेठी और रामू को अदालत में पेश कर के जेल भेज दिया.

—प्रस्तुति : पुष्कर पुष्प

 

Extramarital Affair : पति को छत से फिकवाने का राज कैसे खुला

Extramarital Affair : पटवारी संदीप सिंह ने प्रियंका से लवमैरिज की थी. बाद में उन के 2 बच्चे भी हुए. इसी दौरान संदीप की एक अविवाहित पटवारी रानी के साथ लव स्टोरी शुरू हो गई. पत्नी प्रियंका के समझाने के बावजूद भी पति ने रानी का साथ नहीं छोड़ा तो प्रियंका की जिंदगी में भी ‘वो’ आ गया. उस ‘वो’ के साथ प्रिंयका ने एक ऐसी खूनी साजिश रची कि…

32 वर्षीय संदीप सिंह अपने परिवार सहित सतना जिले के कोलगवां थाना क्षेत्र के संतोषी माता मंदिर कालोनी में कैलाश गुप्ता के मकान में किराए पर रहता था. उस के परिवार में पत्नी प्रियंका सिंह और 2 बेटियां थीं. हालांकि संदीप मूलरूप से महादेवा बिहरा क्रमांक-1, सतना का रहने वाला था. चूंकि वह पेशे से पटवारी था और सगौनी तहसील में पदस्थ था, गांव से नौकरी जानेआने में उसे काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता था, इसीलिए उस ने शहर में किराए का कमरा ले लिया था ताकि नौकरी पर आराम से आजा सके.

ऐसा नहीं था कि संदीप का पत्नी और बच्चों के अलावा कोई और नहीं था. उस के मांबाप गांव में अपने पुश्तैनी मकान में अन्य बच्चों के परिवार के साथ रहते थे. वह भी सरकारी नौकरी से रिटायर्ड थे. इसलिए गांव में रहते थे. संदीप का जब भी मांबाप से मिलने का मन करता था, वह महीने में एकदो बार गांव जा कर उन से मिल कर उसी दिन वापस लौट आता था. ऐसे में संदीप और उस के परिवार की जिंदगी मजे से कट रही थी. बात 31 मई, 2020 की है. संदीप और उस का परिवार रात 10 बजे खाना खा कर फारिग हुए तो प्रियंका बरतनों को साफ करने किचन में चली गई. उस ने दोनों बेटियों को खिलापिला कर पहले ही सुला दिया था. संदीप की पुरानी आदत थी कि वह रात का खाना खाने के बाद कम से कम एकडेढ़ घंटे टहलता जरूर था.

उस रात भी खाना खाने के बाद संदीप अपना फोन ले कर मकान की छत पर टहलने गया. वह ग्राउंड फ्लोर पर रहता था. उस समय रात के 11 बज रहे थे. प्रियंका जब किचन की साफसफाई कर के फारिग हुई तो दीवार घड़ी पर नजर दौड़ाई. घड़ी में उस समय रात के 12 बज रहे थे. अकसर यही समय हो जाया करता था उसे किचन से फारिग होतेहोते. दिन भर के कामों और 2-2 बच्चों की देखभाल करतेकरते प्रियंका बुरी तरह थक जाती थी. इस रात भी वह बुरी तरह थक गई थी. किचन से फारिग हो कर जैसे ही वह बिस्तर पर लेटी, उस की आंखें लग गईं. दु:स्वप्न देख अचानक प्रियंका की नींद टूटी तो वह बिस्तर पर उठ कर बैठ गई. उस ने दीवार घड़ी पर नजर डाली, उस समय रात के 2 बज चुके थे. पति संदीप बिस्तर पर नहीं था.

पति को बिस्तर पर न पा कर प्रियंका हैरान रह गई. उस ने सोचा इतनी रात गए वह छत पर क्या रह रहे होंगे. वह पति को बुलाने छत पर गई तो देखा, पति छत पर नहीं थे. यह देख कर प्रियंका हैरान रह गई कि पति कमरे में नहीं हैं और छत पर भी नहीं हैं तो कहां चले गए. उस ने सोचा कहीं ऐसा तो नहीं कि टहलतेटहलते छत से नीचे गिर गए हों. अपनी तसल्ली के लिए उस ने ऊपर छत से नीचे झांक कर देखा, लेकिन नीचे भी कुछ नहीं दिखाई दिया. यह सोच कर प्रियंका और भी हैरान थी कि रहस्यमय ढंग से पति कहां गायब हो गए. उस ने ऊपर से नीचे तक सब जगह देख लिया था. संदीप का कहीं पता नहीं चला तो वह बुरी तरह घबरा गई और मकान मालिक कैलाश गुप्ता को नींद से जगा कर पति के अचानक गायब हो जाने की बात बताई.

प्रियंका की बात सुन क र मकान मालिक गुप्ता की नींद उड़ गई थी कि वह अचानक से घर से कहां गायब हो सकता है? बड़ी हैरान कर देने वाली बात थी यह. मकान मालिक भी प्रियंका के साथ संदीप को ढूंढने में जुट गए. नीचे से ऊपर तक एक बार फिर से दोनों ने संदीप को तलाशा, लेकिन उस का कहीं पता नहीं चला. फिर दोनों उसे ढूंढते हुए मकान के पीछे यह सोच कर गए कि कहीं ऐसा तो नहीं कि छत के ऊपर से नीचे जा गिरा हो. टौर्च की रोशनी में दीवार से करीब 5-6 फीट दूरी छान मारी, फिर भी संदीप का कहीं पता नहीं चला. उधर प्रियंका पति को ढूंढतेढूंढते कुछ आगे बढ़ गई थी.

तभी अचानक प्रियंका के मुंह से जोर से चिल्लाने की आवाज आई. चिल्लाने की आवाज सुन कर कैलाश गुप्ता डर गए और उसी ओर दौड़े, जिस ओर से आवाज आई थी. देखा जमीन पर संदीप का शव पड़ा था. उस के सिर से खून बह रहा था. उस की लाश के पास खून से सना एक पत्थर पड़ा था. पास में ही उस का मोबाइल पड़ा था. प्रियंका पति के पास बैठ कर विलाप कर रही थी. मामला बड़ा संदिग्ध लग रहा था. छत से गिर कर संदीप की मौत हुई थी, यही कह कर प्रियंका विलाप करती रही. पटवारी संदीप की छत से गिर कर मौत की खबर सुन कर पासपड़ोस के लोग रात में ही मौके पर जुटने लगे थे. प्रियंका ने ससुर छोटेलाल सिंह को फोन कर के पति के छत से गिर कर मौत हो जाने की सूचना दे दी थी.

बेटे के मौत की खबर जैसे ही घर वालों को मिली, घर में कोहराम मच गया. सहसा किसी को यकीन ही नहीं हो रहा था कि संदीप अब इस दुनिया में नहीं रहा. संदीप की मौत की खबर मिलते ही छोटेलाल बेटों के साथ घटनास्थल पहुंचे. उस समय सुबह के 10 बज चुके थे. संदीप की लाश देख कर किसी को यकीन ही नहीं हो रहा था कि उस की मौत छत से गिर कर हुई है. इसी बीच किसी ने घटना की सूचना कोलगवां थाने को दे दी. घटना की सूचना पा कर कोलगवां थाने के इंसपेक्टर मोहित सक्सेना अपनी टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए थे. उन की टीम में एसआई शैलेंद्र सिंह, डी.आर. शर्मा, कांस्टेबल आर. बृजेश सिंह, देवेंद्र सेन और पुष्पेंद्र बागरी शामिल थे.

इंसपेक्टर मोहित सक्सेना ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया. लाश के पास एक बड़ा पत्थर खून से सना पड़ा था. वहीं लाश के पास ही मृतक का मोबाइल फोन गिरा पड़ा था. जो बिल्कुल सहीसलामत था. मोबाइल पर खरोंच तक नहीं आई थी. उस के बाद इंसपेक्टर सक्सेना ने मौके पर मौजूद मृतक की पत्नी प्रियंका, जिस का रोरो कर हाल बुरा हो रहा था और पिता छोटेलाल सिंह के बयान लिए. पत्नी प्रियंका ने छत से गिर कर पति की मौत होना बताया था. लाश की पोजिशन और घटनास्थल देख कर पता नहीं क्यों इंसपेक्टर सक्सेना मृतक की पत्नी का बयान पचा नहीं पा रहे थे. सब से आश्चर्य वाली बात तो ये थी मृतक करीब 28-30 फीट की ऊंचाई से जमीन पर गिरा था और उस की मौत हो गई थी.

लेकिन उस के मोबाइल फोन पर खरोंच तक नहीं आई थी. ऐसे कैसे हो सकता था? यह बात उन के गले नहीं उतर रही थी. उसी समय उन्होंने एसपी रियाज इकबाल, एएसपी गौरव सिंह सोलंकी, सीएसपी विजय प्रताप और एफएसएल टीम प्रभारी डा. महेंद्र सिंह को फोन कर के सूचना दे दी थी. सूचना मिलने के थोड़ी देर बाद मौके पर सारे पुलिस अधिकारी पहुंच चुके थे. पुलिस अधिकारियों ने मौके का बारीकी से मुआयना किया. उन्हें भी पटवारी संदीप सिंह की मौत छत से गिरने से हुई हो, ऐसा नहीं लग रहा था. बल्कि यह हत्या का मामला लग रहा था. लेकिन यह बात पुलिस ने अपने तक ही सीमित रखी ताकि किसी को शक न हो, नहीं तो कातिल मौके का लाभ उठा कर फरार हो सकता था.

बहरहाल, पुलिस ने लाश का पंचनामा भर कर उसे पोस्टमार्टम के लिए अस्पताल भिजवा दिया और मौके से मृतक का मोबाइल फोन और खून सना पत्थर बतौर साक्ष्य अपने कब्जे में ले कर पुलिस थाने लौट आई थी. पुलिस ने पटवारी संदीप सिंह की संदिग्ध मौत की जांच शुरू कर दी. फिलहाल न तो मृतक की पत्नी प्रियंका ने और न ही पिता छोटेलाल सिंह ने हत्या की कोई तहरीर पुलिस को दी. पुलिस ने घटना को रीक्रिएट किया. 2 जून, 2020 को एसपी रियाज इकबाल, एएसपी गौरव सिंह सोलंकी, सीएसपी विजय प्रताप, इंस्पेक्टर मनोज सक्सेना और एफएसएल प्रभारी डा. महेंद्र सिंह घटनास्थल पर पहुंचे और घटना का रीक्रिएशन किया. पुलिस अधिकारियों ने मृतक संदीप के वजन के बराबर एक डमी तैयार की और वह डमी उसी छत से धक्का दे कर नीचे गिराई.

डमी दीवार से 5 फीट की दूरी पर जा कर गिरी. यह क्रिया उन्होंने 3 बार की थी. तीनों बार डमी 5 फीट की दूरी पर जा कर गिरी थी. जबकि संदीप की लाश दीवार से 15 फीट की दूरी पर मिली थी. यह कैसे संभव हो सकता है. यह सोच कर पुलिस अधिकारियों का माथा ठनक गया. वैज्ञानिक तर्कों से भी यह सिद्ध हो गया कि संदीप की मौत छत से गिरने से नहीं बल्कि एक साजिश के तहत उस की हत्या की गई थी. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में भी सिर में गहरी चोट के कारण मौत होने का उल्लेख था. अब तक की जांचपड़ताल से यह सिद्ध हो चुका था कि पटवारी संदीप सिंह की हत्या की गई थी. पुलिस को आश्चर्य तब हुआ जब मृतक संदीप सिंह और उस की पत्नी प्रियंका के फोन का काल डिटेल्स निकलवा कर अध्ययन किया गया.

घटना वाली रात प्रियंका ने 2 अलगअलग फोन नंबरों पर बात की थी. एक काल रात करीब 11 बजे की थी और दूसरी काल दूसरे नंबर पर रात डेढ़ बजे के आसपास की थी. ये कौन हो सकते हैं, इस का पता तो प्रियंका से पूछताछ करने पर ही चल सकता था. पुलिस ने दोनों नंबरों की काल डिटेल्स निकलवा कर शक के आधार पर प्रियंका के नंबर को सर्विलांस पर लगवा दिया. उधर दोनों नंबरों की डिटेल्स पुलिस के हाथ लग चुकी थी. उन दोनों नंबरों में एक नंबर अनूप कुमार सिंह का था और दूसरा नंबर सनी कुमार सिंह का. दोनों एक ही मोहल्ले सगमनिया के रहने वाले थे.

वैज्ञानिक साक्ष्यों और काल डिटेल्स के आधार पर पुलिस ने पटवारी संदीप सिंह की मौत की गुत्थी करीबकरीब सुलझा ली थी. साक्ष्यों के आधार पर यह सिद्ध हो चुका था पति की मौत में पत्नी का हाथ है. इसी बीच एक चौंकाने वाली बात पुलिस को पता चली. प्रियंका ने अपने नंबर से अनूप को फोन किया था. सर्विलांस पर लगे उस के नंबर पर हुई बातचीत को साइबर सेल प्रभारी दीपेश पटेल ने सुन लिया था. प्रियंका अनूप से कह रही थी कि पुलिस को उस पर शक हो गया है. अब क्या होगा? अब तो हम पकड़े जा सकते हैं.

इस के बाद प्रियंका के बचने की कोई गुंजाइश नहीं बची थी. 5 जून को दोपहर इंसपेक्टर मोहित सक्सेना पूरी टीम के साथ संतोषी माता मंदिर स्थित कैलाश गुप्ता के घर पहुंचे, जहां प्रियंका रहती थी. उस समय घर पर संदीप के घर वाले और पत्नी प्रियंका मौजूद थी. सामने खड़ी पुलिस को देख कर प्रियंका के चेहरे पर पसीने की बूंदें छलक आईं. उसी वक्त इंसपेक्टर मोहित सक्सेना ने कहा, ‘‘आप का खेल खत्म हुआ, प्रियंका. अब हमारे साथ चलिए.’’

‘‘क…कहां चलें? आप के कहने का क्या मतलब है?’’ हकलाती हुई प्रियंका ने पूछा.

‘‘थाने चल कर सब पता चल जाएगा. अरेस्ट हर सरला.’’ इंसपेक्टर सक्सेना ने साथ आई दोनों महिला सिपाहियों सरला शर्मा और प्रियंका चतुर्वेदी को गिरफ्तार करने का आदेश दिया. पुलिस प्रियंका सिंह को गिरफ्तार कर के थाने ले आई. उस के गिरफ्तार होने की सूचना उन्होंने एसपी रियाज इकबाल, एएसपी गौरव सिंह सोलंकी और सीएसपी विजय को दे दी थी. प्रियंका ने कबूला गुनाह  सूचना मिलते ही पूछताछ करने के लिए एसपी इकबाल थाने पहुंच गए. प्रियंका कोई हार्डकोर क्रिमिनल तो थी नहीं कि घंटों पुलिस को यहांवहां घुमाती. पुलिस को देखते ही उस की हालत पतली हो गई थी. फिर क्या था.

उस ने आसानी से अपना जुर्म कबूल करते हुए कहा कि उसी ने अपने प्रेमी अनूप कुमार सिंह और उस के दोस्त सनी के साथ मिल कर पति की हत्या कराई थी. अगर वो उसे नहीं मरवाती तो पति अपनी प्रेमिका के साथ मिल कर उस की हत्या करवा देता. प्रियंका का सनसनीखेज बयान सुन कर पुलिस चौंकी. दोनों ही नैतिक पतन चरित्र वाले किरदार थे. दोनों के ही चरित्र मैले हो चुके थे. मैले चरित्र वाले पति और पत्नी दोनों एकदूसरे के जानी दुश्मन बने हुए थे. आगे की कहानी प्रियंका पुलिस के सामने परत दर परत खोलती चली गई. पूछताछ के बाद पटवारी की हत्या की कहानी कुछ इस तरह सामने आई—

कहते हैं, जोडि़यां ऊपर से बन कर आती हैं, यहां तो सिर्फ फेरे लेते हैं 7 वचनों के बंधन में बंधने के लिए. संदीप और प्रियंका के साथ भी ऐसा ही हुआ था. सामान्य कदकाठी और सुदर नैननक्श वाली प्रियंका के गोरे बदन पर संदीप की जब पहली बार नजर पड़ी थी, वह अपलक उसे निहारता रह गया था. दोनों की मुलाकात एक शादी की पार्टी में हुई थी. जहांजहां प्रियंका जाती, उस की हसरत भरी निगाहें उस का पीछा करती रहतीं. इस बात से बेखबर अल्हड़ प्रियंका मदमस्त बिंदास हो कर पार्टी का लुत्फ उठाती रही.  प्रियंका पहली ही नजर में संदीप के दिल में मुकाम कर गई थी. पार्टी में जब तक वह रहा, उस की नजरें सिर्फ प्रियंका पर टिकी हुई थीं. जब पार्टी समाप्त हुई तभी वह अपने घर वापस लौटा.

तब वह गांव में रह रहा था और वहीं से अपनी बाइक से ड्यूटी करने सगौनी जाया करता था. ये 6 साल पहले की बात है. प्रियंका के इश्क में संदीप इस कदर डूब चुका था कि उसे इस के अलावा कुछ भी नहीं सूझ रहा था. उस दिन के बाद से संदीप प्रियंका की तलाश में जुट गया था. आखिरकार उस की मेहनत रंग लाई और उस ने उसे ढूंढ ही लिया. दरअसल, संदीप जिस दोस्त की पार्टी में शरीक हुआ था, उसी से प्रियंका का हुलिया बता कर उस के बारे में पूछ लिया था. दोस्त ने ही उस लड़की का नाम प्रियंका बताया था. वह भी सतना की रहने वाली थी.

संदीप को भा गई थी प्रियंका संदीप दोस्त के जरिए प्रियंका से मिलने पहली बार उस के घर पहुंच गया था. प्रियंका के घर वालों से उस के दोस्त ने ही संदीप का परिचय करवाया था. बातोंबातों में प्रियंका के घरवालों ने जाना कि संदीप सरकारी नौकरी करता है. वह चकबंदी विभाग में पटवारी के पद पर कार्यरत है. खैर, संदीप को देख कर प्रियंका चकित रह गई थी. वह वही लड़का था, जो उस दिन पार्टी में उसे ही घूर रहा था और आज उस के घर तक पहुंच गया था. यह देख कर वह नतमस्तक थी. ऐसा नहीं था कि वह पार्टी में इतना बेसुध थी कि उसे कुछ दिख नहीं रहा था बल्कि वो संदीप की नजरों पर अपनी नजरें गड़ाए बैठी थी. वह देख रही थी कि संदीप की नजरें बड़ी शिद्दत उसे देख रही थीं. यह देख कर वह मन ही मन मुसकराए जा रही थी.

प्रियंका अपने घर में सब से बड़ी थी. उस से 2 छोटे भाईबहन और थे. प्रियंका ग्रैजुएशन कर चुकी थी. ग्रैजुएशन करने के बाद खाली समय में उस ने कंप्यूटर कोर्स करना शुरू कर दिया था. काफी खुशमिजाज और खुले विचारों वाली वह आधुनिक युवती थी. एक लड़की को कितनी मर्यादा में रहना चाहिए, वह अच्छी तरह जानती थी और उसी मर्यादा के दायरे में रहती थी. उस दिन के बाद संदीप को जब भी मौका मिलता था, अंकल आंटी से मिलने के बहाने प्रियंका के घर आ जाया करता था. घर पहुंचते ही उस की नजरें प्रियंका की खोज में जुट जाती थीं. जब तक वह उसे देख नहीं लेता था, उस के मन को सुकून नहीं मिलता था.

प्रियंका संदीप की नजरों को पहचानती थी. वह उस से बेहद मोहब्बत करता था. वह भी चुपकेचुपके संदीप से प्यार करने लगी थी और अपने दिल के कोरे कागज पर अपने महबूब संदीप का नाम लिख लिया था. मौका देख कर दोनों एकदूसरे से अपने प्यार का इजहार भी कर चुके थे. इश्क के रथ पर सवार मोहब्बत के शहजादे खुले आसमान में पंख फैलाए ऊंचीऊंची कुलांचे भर रहे थे. जल्द ही दोनों ने एक होने का फैसला कर लिया था. दोनों ने की थी कोर्टमैरिज फिर क्या था संदीप और प्रियंका ने घर वालों की मरजी के खिलाफ कोर्ट मैरिज कर ली. संदीप के घर वालों ने प्रियंका को अपनी बहू के रूप में स्वीकार कर लिया था, लेकिन प्रियंका के घर वालों ने बेटी से अपने संबंध हमेशा के लिए तोड़ लिए थे.

प्रियंका को पा कर संदीप बेहद खुश था. खुश भला क्यों न हो, उस के मन की मुराद जो पूरी हुई थी. आहिस्ताआहिस्ता दोनों के जीवन की गाड़ी पटरी पर चल रही थी. रिया और प्रिया नाम के 2 फूल उन की बगिया में खिल चुके थे. दोनों बेटियों को पा कर उन के जीवन की सारी मुरादें पूरी हो गई थीं. उन का जीवन खुशी से बीत रहा था. पता नहीं दोनों के खुशहाल जीवन में किस की बुरी नजर लगी कि उन के घर से सुख और चैन दोनों काफूर हो गए थे. कल तक एकदूसरे के बिना न रह पाने वाले प्रेमी से पतिपत्नी बने आज एकदूसरे के खून के प्यासे बन गए थे.

धीरेधीरे संदीप के सिर से प्रियंका के इश्क का भूत उतर चुका था. उस की जिंदगी में एक नई युवती दखल दे चुकी थी. दरअसल, हुआ यूं कि संदीप जहां नौकरी करता था, उसी के साथ रीवा जिले की रहने वाली रानी (परिवर्तित नाम) नाम की एक कुंवारी युवती भी पदस्थ थी. वह भी पटवारी थी. दोनों में गहरी दोस्ती थी. उस का दिल रानी पर आ गया था. संदीप की जिंदगी में आई रानी शाम को छुट्टी मिलते ही संदीप घर वापस लौट आता था. रात को खाना खाने के बाद वह अपना फोन ले कर छत पर चला जाता था. वहां इत्मीनान से घंटों तक रानी से बातें करता. देर रात 12-1 बजे के करीब कमरे में लौटता. ये संदीप का रोजाना का रुटीन बन चुका था. शुरू के दिनों में प्रियंका यही समझती रही कि औफिस के किसी साथी से जरूरी बात करते होंगे.

लेकिन जब महीनों तक यही रुटीन बन गया था तो प्रियंका को पति पर कुछ शक हुआ. उसे लगा कि दाल में कुछ काला है. यह बात दिमाग में आने के बाद से प्रियंका ने पति पर अपनी नजर पैनी कर दी थी. पति फोन ले कर जब भी रात में छत पर पहुंचता था, बिल्ली के मानिंद वह भी दबेपांव उस के पीछेपीछे हो लेती थी. आखिरकार उस की मेहनत रंग लाई. एक दिन उस ने पति को रानी से बात करते सुन लिया. उस रात इस बात को ले कर दोनों के बीच खूब झगड़ा हुआ था. उस ने खुल कर पति से कह दिया कि वह अपने जीते जी सिंदूर का बंटवारा नहीं कर सकती है. उस औरत से अपने संबंध तोड़ ले, वरना इस का परिणाम बहुत बुरा हो सकता है.

रानी को ले दोनों के बीच घर में एक बार जो संग्राम छिड़ा तो थमने का नाम ही नहीं ले रहा था. पत्नी के लाख मना करने के बावजूद संदीप रानी से अलग होने का नाम ही नहीं ले रहा था. उस ने साफ तौर पर पत्नी से कह दिया था कि चाहे जो हो जाए, वह रानी का साथ नहीं छोड़ सकता. पति का दोटूक जवाब सुन कर प्रियंका ठगी रह गई थी, पर हार मानने वालों में से वह नहीं थी. एक छत के नीचे दोनों किसी अजनबी की तरह रह रहे थे. दोनों के बीच धीरेधीरे मतभेद बढ़ता गया. प्यार की जगह नफरत का साम्राज्य बढ़ता गया. यहां तक कि उन के बीच बातें भी बंद हो गई थीं. प्रियंका ने पति से तलाक लेने के लिए अपने वकील के जरिए पारिवारिक न्यायालय में भरणपोषण की एक याचिका दायर करा दी थी.

उस ने याचिका में दोनों बेटियों की परवरिश के लिए गुजारा भत्ता के लिए 14 हजार रुपए महीने के खर्चे और 25 लाख का दावा किया था. भले ही उन के बीच बातचीत होनी बंद हो गई थी, पर इतना जरुर था कि वह घर की जरूरतों को पूरी करता था. बेटियों को भरपूर प्यार देने में कोताही नहीं करता था. प्रियंका के भी बहक गए कदम इसी बीच प्रियंका के जीवन में एक नए किरदार ने एंट्री ली. प्रियंका की बड़ी बेटी रिया बोनांजा स्कूल में पढ़ती थी. बेटी को स्कूल पहुंचाने प्रियंका ही जाती थी. जातेआते रास्ते में सगमनिया के रहने वाले अनूप कुमार सिंह (21 साल) से उस का परिचय हो गया. वह भी अपने भाई की बेटी को स्कूल पहुंचाने जाता था.

अनूप देखता था कि वह जब भी उस से मिलता था प्रियंका उदास और दुखी रहती थी. एक दिन बातोंबातों में अनूप ने उस के हर घड़ी उदास रहने की बात पूछ ली. प्रियंका की दुखती रग पर पहली बार किसी ने हाथ रखा था. वह भावुक हो गई और अपने घर की कहानी उसे सुना बैठी. उस की कारुणिक कथा सुन कर अनूप का मन द्रवित हो उठा. बातों से उस ने उसे सहारा दिया तो प्रियंका अपने से 9 साल छोटे अनूप की ओर अनायास ही खिंची चली गई. अनूप से बात कर के उस के मन को शांति मिलती थी और खुद को काफी हलका महसूस करती थी. धीरेधीरे दोनों के बीच दोस्ती ने प्यार का रूप ले लिया था. पति के ड्यूटी चले जाने के बाद प्रियंका प्रेमी अनूप को अपने कमरे पर बुलाती और दिन भर रंगरलियां मनाती थी.

बात घटना से 15 दिन पहले 16 मई, 2020 की है. उस दिन संदीप ड्यूटी से छुट्टी ले कर जल्दी घर वापस लौट आया था. घर में एक अजनबी युवक को पत्नी के साथ देख कर उस का खून खौल उठा. भले ही पतिपत्नी के बीच अनबन चल रही थी. लेकिन प्रियंका अभी भी उस की पत्नी थी. पत्नी को किसी और की बांहों में देख कर कोई भी पुरुष आपा खो सकता था. संदीप भी आपा खो चुका था. उस ने जम कर दोनों पर लातघूंसे बरसाए. अनूप किसी तरह अपनी जान बचा कर वहां से भाग गया लेकिन प्रियंका की तो शामत आ चुकी थी. संदीप ने अपना सारा गुस्सा उस पर उतार दिया था. पति द्वारा प्रेमी की पिटाई करना प्रियंका को अच्छा नहीं लगा था.

प्रियंका और उस के प्रेमी ने रची साजिश फिर क्या था? दोनों ने संदीप को रास्ते से हटाने की योजना बना ली. अपनी योजना में अनूप ने अपने जिगरी यार सनी कुमार (20 साल) को थोड़ा पैसों का लालच दे कर मिला लिया, जो उसी के गांव का रहने वाला था. उस दिन के बाद घटना से 3 दिन पहले 28, 29 और 30 मई तक अनूप और सनी दोनों ने मिल कर संदीप की रेकी की. उन्होंने पता लगा लिया कि संदीप घर से कब निकलता है? घर वापस कब लौटता है? किसकिस से मिलता है? वैसे भी प्रियंका ने पति की सारी गतिविधियों के बारे में उसे विस्तार से बता दिया था. बस योजना को अंजाम देना था.

प्रियंका और उस के प्रेमी अनूप ने योजना ऐसी बनाई थी कि संदीप की मौत हत्या नहीं वरन स्वाभाविक मौत लगे ताकि किसी का उन पर शक न जाए. यानी सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे. योजना के अनुसार, 31 मई, 2020 की रात 11 बजे प्रियंका ने अनूप को फोन कर के बता दिया कि उस ने घर का मुख्यद्वार खोल दिया है. अनूप अपने दोस्त सनी के साथ प्रियंका के घर पहुंचा. उस ने सनी से बाहर ही रह कर देखभाल करने को कहा. फिर वह चुपके से आ कर घर की सीढि़यों के नीचे छिप गया और प्रियंका को अपने आने की सूचना फोन पर दे दी. सब कुछ योजना के मुताबिक चल रहा था. संदीप को अपना फोन ले कर छत पर जाने के करीब डेढ़ घंटे बाद रात साढ़े 12 बजे प्रियंका और उस का प्रेमी अनूप दबे पांव छत पर पहुंचे.

संदीप फोन पर रानी से बात करने में मशगूल था. उस ने जैसे ही दोनों को एक साथ अपनी ओर आते देखा, वहां से भागना चाहा. तब तक दोनों ने झपट्टा मार कर उसे अपने काबू में ले लिया. प्रियंका ने उस के हाथ से फोन छीन कर अपने कब्जे में ले लिया. फिर दोनों ने मिल कर संदीप को छत से नीचे गिरा दिया. संदीप के नीचे गिरते ही अनूप सीढि़यों से तेजी से नीचे आया और प्रियंका फोन ले कर अपने कमरे में चली गई ताकि किसी को शक न हो. फिर वह तेजी से वहां पहुंच गया, जहां संदीप दर्द के मारे कराह रहा था. लेकिन अभी वह जिंदा था. प्लानिंग से की थी हत्या तब तक प्रियंका भी वहां पहुंच गई थी. उस समय सनी वहां मौजूद नहीं था. अनूप और प्रियंका दोनों मिल कर उसे वहां से घसीटते हुए कुछ और दूर लाए, जहां एक बड़ा पत्थर मौजूद था. फिर प्रियंका की आंखों के सामने अनूप ने वह पत्थर उठा कर संदीप के सिर पर जोरदार वार किया.

संदीप के मुंह से एक दर्दनाक चीख निकली और वह मौत की आगोश में समा गया. उस के बाद उसे स्वाभाविक मौत का रूप देने के लिए उस के पास उस का मोबाइल फोन रख दिया. फिर अपने फोन से सनी को फोन कर उसे मौके पर बुलाया ताकि वह अनूप को वहां से घर ले जा सके. अनूप के मौके से जाने के बाद प्रियंका अपने कमरे में वापस लौट आई. उस ने यही सोचा था कि थोड़ी देर बाद वह पति को ढूंढते हुए छत पर जाएगी. जब वहां उस का पति नहीं मिलेगा तो साक्ष्य के तौर पर मकान मालिक को ले कर पति को ढूंढेगी ताकि किसी को उस पर शक न हो और वह बेदाग बच जाए.

योजना के अनुसार प्रियंका ने वही किया. पहले पति को ढूंढने का नाटक किया. जब उस का पता नहीं चला तो 2 बजे रात में मकान मालिक कैलाश गुप्ता को नींद से जगा कर अचानक पति के गायब होने की जानकारी दे उसे ढुंढवाने में उन से मदद मांगी. कैलाश गुप्ता ने प्रियंका के साथ पूरा घर छान मारा, लेकिन संदीप का कहीं पता नहीं चला था. जब वे दोनों उसे तलाशते हुए मकान के पीछे गए तो वहां संदीप की लाश मिली. कहते हैं, कातिल लाख शातिर क्यों न हो, वह कोई न कोई गलती कर बैठता है. प्रियंका और उस के प्रेमी अनूप से भी एक गलती हो चुकी थी. कानून के शातिर खिलाडि़यों ने जांच कर उसी गलती की डोर पकड़ ली और पटवारी संदीप सिंह की मौत की गुत्थी सुलझा दी.

वह गलती थी संदीप के शरीर को मौके से करीब 15 फीट दूर घसीट कर ले आना और फोन का सुरक्षित पाया जाना. जिद्दी प्रियंका थोड़ी सूझबूझ और धैर्य से काम लेती तो शायद उस के रिश्ते सुधर सकते थे. उस का सुहाग भी जिंदा रहता और बेटियां पिता के प्यार से महरूम भी न होतीं, लेकिन उस के गुस्से की सनक ने उसी के हाथों उस के परिवार में आग लगा दी और भरापूरा आशियाना जल कर खाक हो गया.

खैर कथा लिखे जाने तक प्रियंका सिंह, अनूप कुमार सिंह और सनी कुमार तीनों गिरफ्तार कर जेल भेज दिए गए, जहां वे सलाखों के पीछे कैद अपने गुनाहों की सजा काट रहे थे.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

Uttarakhand News : लव मैरिज से नाराज अब्बू ने बेटी दामाद को कैसी सजा दी

Uttarakhand News : प्यार करने वालों का सदियों से जमाना दुश्मन रहा है. लेकिन नाजिया के तो उस के घर वाले ही दुश्मन बन बैठे. पिता मुजम्मिल और भाई मोहसिन ने उस की लौकडाउन की लवस्टोरी का इस तरह अंत किया कि…

कोरोना काल के चलते जहां एक तरफ पूरी दुनिया अस्तव्यस्त हुई, वहीं आम इंसान के जीवन पर भी काफी असर पड़ा है. यही कारण है कि आज आम जनता अपनेअपने घरों में कैद रहने के लिए विवश है. 7 सितंबर, 2020 को रात के साढ़े 8 बजे काशीपुर शहर में सड़क पर सन्नाटा पसरा था. उस वक्त नाजिया अपने शौहर राशिद के साथ दवा लेने डाक्टर के पास गई हुई थी. तभी उस के मोबाइल पर उस के अब्बू की काल आई. अपने अब्बू की काल देखते ही उस के दिल की धड़कनें दोगुनी हो चली थीं. क्योंकि उस के अब्बू ने बहुत समय बाद उसे फोन किया था. अब्बू ने न जाने किस लिए फोन किया, उस की समझ में नहीं आ रहा था. यह उस के लिए जिज्ञासा के साथसाथ चिंता का विषय भी था.

नाजिया अपनी दवाई ले चुकी थी. राशिद ने अपनी बाइक स्टार्ट की और घर की ओर निकल पड़ा. उस के पीछे बैठी नाजिया अपने अब्बू से मोबाइल पर बात करने लगी. नाजिया को पता था कि उसे घर पहुंचने में केवल 3-4 मिनट ही लगेंगे. उस के बाद वह घर पर आराम से उन से बात कर लेगी. जैसे ही राशिद की बाइक उस के घर के मोड़ पर पहुंची. सामने से आ रहे कुछ लोगों ने उन पर ताबड़तोड़ फायरिंग शुरू कर दी. इस से पहले कि राशिद और नाजिया कुछ समझ पाते, दोनों ही बाइक से नीचे सड़क पर गिर कर तड़पने लगे. उन के कई गोलियां लगी थीं. देखते ही देखते सड़क उन के खून से तरबतर हो गई.

अधिक खून रिसाव के कारण दोनों की मौके पर ही मौत हो गई. इस घटना के घटते ही नाजिया के हाथ से मोबाइल छूट कर वहीं गिर गया था. खामोशी में डूबे मोहल्ले में अचानक 4-5 गोलियों के चलने की आवाज ने लोगों में दहशत पैदा कर दी थी. दोनों पर की ताबड़तोड़ फायरिंग घटनास्थल के आसपास बने मकानों की खिड़कियां खुलीं और लोगों ने सड़क का मंजर देखा तो देखते ही रह गए. सड़क पर एक साथ 2 लाशें पड़ी हुई थीं. एक युवक और एक युवती की. उन के पास में ही एक बाइक पड़ी हुई थी. मतलब साफ था कि कोई युवकयुवती का मर्डर कर फरार हो चुका था.

यह मंजर देख कर आसपड़ोस वालों ने हिम्मत जुटाई और सड़क पर बाहर निकल आए थे. एक के बाद एक लोगों के घर से निकलने का सिलसिला शुरू हुआ, तो घटनास्थल पर लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा. दोनों मृतक उसी मोहल्ले के रहने वाले थे, इसी कारण दोनों की शिनाख्त होने में भी कोई परेशानी नहीं आई. वहां पर मौजूद लोगों में से किसी ने मृतक युवक राशिद के भाई के मोबाइल पर फोन कर इस घटना की जानकारी दी. घटना की जानकारी मिलते ही उस के घर वालों के साथ उस के पड़ोसी भी तुरंत ही घटनास्थल पर पहुंच गए. घटनास्थल पर पहुंचते ही राशिद के परिवार वालों ने उस के शरीर को छू कर देखा, जो पूरी तरह से ठंडा पड़ चुका था. उस की मौत हो चुकी थी.

उस के पास पड़ी नाजिया भी मौत की नींद सो चुकी थी. घटनास्थल पर पड़े खून को देख कर सभी लोगों का मानना था कि उन्हें डाक्टर के पास ले जाने का भी कोई लाभ नहीं होगा. जैसेजैसे लोगों को इस मामले की जानकारी मिलती गई, वैसेवैसे वहां पर लोगों का जमघट लगता गया. तुरंत ही इस सनसनीखेज मामले की सूचना किसी ने पुलिस नियंत्रण कक्ष को दे दी. चूंकि यह क्षेत्र काशीपुर कोतवाली के अंतर्गत आता है, इसलिए कोतवाली प्रभारी सतीशचंद्र कापड़ी पुलिस टीम के साथ घटनास्थल की तरफ रवाना हो गए. सूचना मिलने पर एएसपी राजेश भट्ट, सीओ मनोज ठाकुर भी मौके पर पहुंचे.

घटनास्थल पर पहुंच कर पुलिस ने जांचपड़ताल की. युवकयुवती दोनों की लाशें पासपास पड़ी हुई थीं. युवक राशिद का चेहरा बुरी तरह से क्षतिग्रस्त हो चुका था. मृतक के चेहरे को देख कर लगता था कि हत्यारों ने उस के सिर से सटा कर गोली चलाई थी. जिस के कारण उस के चेहरे की पहचान ही खत्म हो गई थी. इस मामले को ले कर पुलिस ने युवक युवती के परिवार वालों के बारे में जानकारी जुटाई. राशिद के परिवार वालों ने बताया कि दोनों का काफी लंबे समय से प्रेम प्रसंग चल रहा था, जिस के चलते दोनों घर से भाग गए थे. उसी दौरान जून, 2020 में दोनों ने प्रेम विवाह कर लिया था. फिर कुछ समय बाद दोनों काशीपुर वापस आ गए थे. तब से पास में ही दोनों किराए का कमरा ले कर रह रहे थे.

नाजिया की तबीयत खराब होने के कारण उस शाम दोनों बाइक से दवाई लेने डाक्टर के पास गए थे. वहां से वापसी के दौरान किसी ने उन की गोली मार कर हत्या कर दी. औनर किलिंग का शक घटनास्थल की जांचपड़ताल के दौरान पुलिस ने मृतक राशिद और उस की बीवी नाजिया के मोबाइल अपने कब्जे में ले लिए थे. पुलिस ने दोनों के मोबाइल चैक किए तो पता चला कि घटना के वक्त नाजिया अपने पिता के मोबाइल पर बात कर रही थी. यह बात सामने आते ही पुलिस समझ गई कि उन दोनों की हत्या में जरूर युवती के पिता मुजम्मिल का हाथ हो सकता है. पुलिस ने तुरंत ही युवती के घर पर जा कर उस के बारे में जानकारी ली तो पता चला कि मुजम्मिल घर से फरार है. उस के घर पर ताला लटका हुआ था. उस के अन्य परिवार वाले भी घर से गायब थे.

घर के सभी लोगों के अचानक फरार होने से इस हत्याकांड में उस की संलिप्तता साफ जाहिर हो गई थी. पुलिस ने युवती के घर वालों को सब जगह खोजा,लेकिन उन का कहीं भी अतापता न लग सका. यह सब जानकारी जुटाने के बाद पुलिस ने दोनों शव पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भेज दिए. इस केस में मृतक राशिद के भाई नईम की तहरीर के आधार पर पुलिस ने 4 आरोपियों मुजम्मिल, उस के बेटे मोहसिन के अलावा अफसर अली, जौहर अली पुत्र निसार अली निवासी अलीखां के खिलाफ भांदंवि की धारा 302/342/504/34 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया.

इस केस में नामजद मुकदमा दर्ज होते ही इस घटना की जांच एएसपी (काशीपुर) राजेश भट्ट व सीओ मनोज ठाकुर के नेतृत्व में अलगअलग 3 पुलिस टीमों का गठन किया गया. इन टीमों में काशीपुर कोतवाली प्रभारी सतीशचंद्र कापड़ी, एसआई अमित शर्मा, रविंद्र सिंह बिष्ट, दीपक जोशी, कैलाशचंद्र, कांस्टेबल वीरेंद्र यादव, राज पुरी, अनुज त्यागी, सुरेंद्र सिंह, राजेंद्र प्रसाद, सुनील तोमर, दलीप बोनाल, संजीत प्रसाद, प्रियंका, रिचा आदि को शामिल किया गया. पुलिस टीमों ने आरोपियों के शरीफ नगर, ठाकुरद्वारा, रामपुर और मुरादाबाद में कई संभावित स्थानों पर दबिश डाली. काफी प्रयास करने के बाद भी आरोपी पुलिस पकड़ में नहीं आए.

पुलिस काररवाई के दौरान 9 सितंबर, 2020 को पुलिस को एक मुखबिर से सूचना मिली कि मुजम्मिल और उस का बेटा मोहसिन दोनों ही दडि़याल रोड लोहिया पुल के पास कहीं जाने की फिराक में खड़े हैं. आरोपी चढ़े पुलिस के हत्थे सूचना पाते ही काशीपुर कोतवाली प्रभारी सतीश कुमार कापड़ी तुरंत पुलिस टीम ले कर लोहिया पुल पर पहुंचे. पुलिस ने चारों ओर से घेराबंदी करते हुए दोनों को गिरफ्तार कर लिया. दोनों को हिरासत में ले कर पुलिस कोतवाली आ गई. पुलिस ने दोनों से इस दोहरे हत्याकांड के बारे में कड़ी पूछताछ की. कुछ समय तक तो मुजम्मिल ने पुलिस को घुमाने की पूरी कोशिश की.

फिर बाद में मुजम्मिल ने बताया कि जिस समय वह बेटे के साथ अपनी बेटी नाजिया से मिलने के लिए घर के नुक्कड़ पर पहुंचा, उस वक्त तक उन दोनों की हत्या हो चुकी थी. उस ने अपने बेटे के साथ दोनों को मृत पाया तो वह बुरी तरह से घबरा गया. उन के जाने से पहले ही उन दोनों को कोई मौत के घाट उतार चुका था. उन को उस हालत में देख कर बापबेटे दोनों बुरी तरह से घबरा गए थे. उन्हें डर था कि उन की हत्या का इलजाम उन पर न लग जाए. इसी कारण वे तुरंत ही मौके से फरार हो गए थे. उस की बातें सुन कर कोतवालीप्रभारी सतीशचंद्र कापड़ी को उस पर शक हो रहा था कि यह झूठ बोल रहा है.

उन्होंने मुजम्मिल और उस के बेटे मोहसिन पर थोड़ी सी सख्ती बरती तो दोनों ने अपना जुर्म कबूल कर लिया. उस के तुरंत बाद ही पुलिस ने उन की निशानदेही पर 315 बोर के 2 तमंचे बरामद कर लिए. पुलिस ने दोनों के खिलाफ 3/25 शस्त्र अधिनियम के 2 अलग मुकदमे भी दर्ज कर लिए. सरेआम ताबड़तोड़ फायरिंग कर दोहरे हत्याकांड को अंजाम देने वाले आरोपियों से वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों के सामने पूछताछ करने पर जो जानकारी सामने आई, वह इस प्रकार थी. उत्तराखंड के शहर काशीपुर के मोहल्ला अली खां में रहता था कमरूद्दीन का परिवार. कमरुद्दीन का बड़ा परिवार था. लेकिन बच्चों के बड़े होते ही वह भी पैसे कमाने लगे, जिस से उस के परिवार की आर्थिक स्थिति काफी मजबूत हो गई थी. उस का एक बेटा काम करने दुबई चला गया और दूसरा सऊदी अरब. उन के और लड़के भी काशीपुर में ही अपना कामधंधा करते थे.

कमरुद्दीन के घर के पास ही मुजम्मिल का मकान भी था. मुजम्मिल की आर्थिक स्थिति पहले से ही मजबूत थी. मुजम्मिल मूलत: शरीफनगर (ठाकुरद्वारा) का निवासी था. गांव में उस की काफी जमीनजायदाद थी. अब से लगभग 10 साल पहले मुजम्मिल ने अपनी गांव की कुछ जुतासे की जमीन बेची और काशीपुर के मोहल्ला अलीखां में आ कर बस गया. उस की ससुराल भी यहीं पर थी. काशीपुर आने के तुरंत बाद ही उस ने यहां पर कुछ जुतासे की जमीन खरीदी और उस पर खेती का काम करना शुरू किया. मुजम्मिल के परिवार में उस की बीवी सहित कुल 8 सदस्य थे.

जमीन के बाकी बचे पैसों से मुजम्मिल ने एक कैंटर खरीद लिया था. मुजम्मिल के 4 बेटे जवान थे, जो काफी समय पहले से ही अपना कामधंधा करने लगे थे. कैंटर मुजम्मिल स्वयं ही चलाता था, जिस से काफी आमदनी हो जाती थी. 2 बेटियों में वह एक की पहले ही शादी कर चुका था, उस के बाद सब से छोटी नाजिया बची थी. नाजिया और राशिद की लवस्टोरी कमरुद्दीन और मुजम्मिल दोनों ही पड़ोसी थे, इसी नाते दोनों परिवार एकदूसरे के घर आतेजाते थे. भले ही दोनों अलगअलग जाति से ताल्लुक रखते थे, लेकिन दोनों परिवारों में घर जैसे ही ताल्लुकात थे. मुजम्मिल के बेटे राशिद की मोहसिन से अच्छी दोस्ती भी थी. राशिद और मोहसिन का जब कभी भी कहीं काम होता तो दोनों साथसाथ ही घर से निकलते थे.

मोहसिन की एक बहन थी नाजिया. नाजिया देखनेभालने में जितनी सुंदर थी, उस से कहीं ज्यादा तेजतर्रार भी थी. भले ही नाजिया राशिद के दोस्त की बहन थी, लेकिन उस के दिल को वह भा गई थी. घर आनेजाने की कोई पाबंदी थी नहीं. इसी आनेजाने के दौरान नाजिया ने राशिद की आंखों में अपने प्रति प्यार देखा तो वह भी उस की अदाओं पर मर मिटी. प्यार का सुरूर आंखों के रास्ते उतरा तो दिल में जा कर समा गया. दोनों के बीच मोहब्बत का सफर चालू हुआ तो अमरबेल की तरह बढ़ने लगा. देखतेदेखते उन के प्यार के चर्चे घर की दीवारों को लांघ कर मोहल्ले में छाने लगे थे. यह बात नाजिया के घर वालों को पता चली तो आगबबूला हो उठे. मुजम्मिल ने अपनी बेटी को समझाने की कोशिश की, लेकिन वह राशिद को छोड़ने को तैयार न थी.

उस के बाद मुजम्मिल ने राशिद के परिवार वालों को उन के बेटे की काली करतूतों का हवाला देते हुए उसे समझाने को कहा. लेकिन राशिद भी प्रेम डगर से पीछे हटने को तैयार न था. एक पड़ोसी होने के नाते जितना दोनों परिवारों में प्यार था, पल भर में वह नफरत में बदल गया. हालांकि दोनों ही परिवार वालों ने अपनेअपने बच्चों को समझाने का अथक प्रयास किया. लेकिन दोनों ही अपनी जिद पर अड़े थे. इस मामले को ले कर दोनों परिवारों के बीच विवाद बढ़ा तो मामला पंचायत तक जा पहुंचा. भरी पंचायत में फैसला हुआ कि राशिद काशीपुर छोड़ कर कहीं बाहर जा कर काम देखे. परिवार वालों के दबाव में राशिद रोजगार की तलाश में सऊदी चला गया. राशिद के काशीपुर छोड़ कर चले जाने के बाद नाजिया उस की याद में तड़पने लगी.

कुछ ही दिनों में उस ने राशिद से सऊदी में भी मोबाइल द्वारा संपर्क बना लिए. फिर दोनों ही मोबाइल पर प्रेम भरी बातें करते हुए साथसाथ जीनेमरने की कसमें खाने लगे. पूरी दुनिया में कोरोना का कहर बरपा तो राशिद अपने घर लौट आया. इस वक्त घर आना उस की मजबूरी बन गई थी. अपने घर काशीपुर आते ही उस ने शहर में एक टायर शोरूम में नौकरी कर ली. उसी दौरान मोहसिन अपनी पुरानी रंजिश को भूल कर राशिद से मिला. मोहसिन जानता था कि लौकडाउन खुलते ही राशिद दोबारा सऊदी चला जाएगा. दरअसल राशिद के सऊदी चले जाने के बाद से ही मोहसिन के दिल में भी सऊदी जाने की तमन्ना पैदा हो गई थी. मोहसिन जानता था कि वह राशिद के संपर्क में रह कर ही सऊदी तक पहुंच सकता है.

मोहसिन के संपर्क में आने के बाद राशिद को मनचाही मंजिल और भी आसान लग रही थी. उसी दोस्ती के कारण राशिद का नाजिया के घर आनाजाना बढ़ गया था. यही आनाजाना दोनों को उस मुकाम तक ले गया, जहां से दोनों का लौटना नामुमकिन हो गया था. यानी उन के प्रेम संबंध और ज्यादा मजबूत हो गए. फिर अब से लगभग 3 महीने पहले राशिद और नाजिया अचानक घर से फरार हो गए. नाजिया के घर से फरार होते ही उस के घर वालों को गहरा सदमा लगा. उन्होंने कभी सोचा भी नहीं था कि उन की बेटी एक दिन उन की इज्जत को तारतार कर देगी. मुजम्मिल को पता था कि वह जरूर राशिद के साथ गई होगी.

राशिद के बारे में जानकारी लेने पर पता चला वह भी घर से गायब था. मुजम्मिल को दुख इस बात का था कि उस की बेटी ने गैरबिरादरी के लड़के के साथ भाग कर समाज में उस की नाक कटवा दी थी. मुजम्मिल के मानसम्मान को ठेस पहुंची तो उस ने दोनों से मोबाइल पर बात कर उन्हें जान से मारने की धमकी दे डाली थी. उस के बावजूद भी दोनों ने बाहर रहते ही चोरीछिपे एक मौलवी के सामने निकाह भी कर लिया. यह बात जब नाजिया के घर वालों को पता चली तो घर में मातम सा छा गया. बदनामी की वजह से साधी चुप्पी समाज में अपनी इज्जत को देख नाजिया के अब्बू मुजम्मिल ने इस राज को राज ही बने रहने दिया. मुजम्मिल ने इस मामले में पूरी तरह से चुप्पी साध ली और फिर नाजिया और राशिद के वापस आने का इंतजार करने लगा.

राशिद ने नाजिया के साथ निकाह करते ही अपना मोबाइल नंबर भी बदल लिया था, जिस के बाद मुजम्मिल की उन से बात नहीं हो पाई थी. मुजम्मिल पेशे से ड्राइवर होने के नाते काफी तेजतर्रार था. वह किसी तरह से राशिद का नया मोबाइल नंबर हासिल करना चाहता था. वह जानता था कि राशिद के घर वालों से ही उस का नंबर मिल सकता है. उस ने किसी तरह उस की अम्मी को विश्वास में लेते हुए उस का मोबाइल नंबर हासिल कर लिया. जब मुजम्मिल के सब्र का बांध टूट चुका तो उस ने दूसरी चाल चली. मुजम्मिल ने एक दिन अपनी बेटी को फोन कर कहा, ‘‘नाजिया बेटी, तुम ने जो भी किया ठीक ही किया. बेटा बहुत दिन हो गए. तुम्हारे बिना हम से रहा नहीं जाता. हमें अब तुम से कोई गिलाशिकवा नहीं है.

तुम दोनों घर वापस आ जाओ. हम चाहते हैं कि तुम दोनों का धूमधाम से निकाह करा दें.’’

मुजम्मिल की बात सुन कर नाजिया को विश्वास नहीं हुआ. उस ने यह बात पति राशिद को बताई. साथ ही यह भी समझाया कि आप मेरे अब्बू की बातों में मत आना. मैं उन की नसनस से वाकिफ हूं. वह झूठा प्यार दिखा कर हमें काशीपुर बुलाने के बाद हमारे साथ क्या कर डालें, कुछ पता नहीं. इस के बावजूद राशिद मुजम्मिल की बातों में आ कर नाजिया को साथ ले कर काशीपुर चला आया. काशीपुर आने के बाद राशिद ने मोती मसजिद के पास अलीखां मोहल्ले में ही एक किराए का कमरा ले लिया और वहीं पर नाजिया के साथ रहने लगा. यह बात मुजम्मिल को भी पता लग गई थी. उस के बाद मुजम्मिल अपने दिल में राशिद और नाजिया के प्रति फैली नफरत को खत्म करने के लिए उचित समय का इंतजार करने लगा.

बापभाई ही बने प्यार के दुश्मन अपनी बेटी और राशिद के प्रति उस के दिल में इस कदर नफरत पैदा हो गई थी कि वह किसी भी सूरत में दोनों को मौत के घाट उतारने की योजना बना चुका था. उसी योजना के तहत मुजम्मिल ने उत्तर प्रदेश के एक गांव से 315 बोर के 2 तमंचे और 8 कारतूस खरीदे. उस के बाद मुजम्मिल अपने बेटे मोहसिन को साथ ले कर दोनों का साए की भांति पीछा करने लगा. राशिद और नाजिया कब, कहां और क्यों जाते हैं, यह जानना उस की दिनचर्या में शामिल हो गया. इस घटना से 15 दिन पहले मुजम्मिल को जानकारी मिली कि नाजिया राशिद के साथ जसपुर स्थित कालू सिद्ध की मजार पर गई हुई है.

कालू सिद्ध की मजार पतरामपुर के जंगलों में स्थित है. जहां पर दूरदूर तक झाड़झंखाड़ और वन फैला है. यह जानकारी मिलते ही मुजम्मिल अपने बेटे मोहसिन को साथ ले कर कालू सिद्ध के रास्ते में भी छिप कर बैठा. लेकिन उस दिन उन्हें नाजिया अकेले ही दिखाई दी थी. जबकि मुजम्मिल नाजिया के साथ राशिद को भी खत्म करने की फिराक में था. लेकिन उस दिन दोनों बापबेटे गम का घूंट निगल कर अपने घर वापस आ गए. फिर दोनों के साथ मिलने की ताक में रहने लगे. 7 सितंबर 2020 की शाम को पता चला कि राशिद नाजिया को साथ ले कर बाइक से कहीं पर गया हुआ है. यह जानकारी मिलते ही उस ने अपनी योजना को अंजाम देने के लिए पूरी तैयारी कर ली. लेकिन उस वक्त उसे यह जानना भी जरूरी था कि वे दोनों शहर में गए हैं या फिर कहीं बाहर.

यह जानकारी लेने के लिए वह अपने घर के मोड़ पर एक चबूतरे पर जा बैठा. वहां पर पहले से ही कई लोग बैठे हुए थे. वहां पर भी उस का मन नहीं लगा. उस के मन में राशिद और नाजिया को ले कर जो खिचड़ी पक रही थी, वह उसे ले कर परेशान था. मुजम्मिल वहां से उठ कर अपने घर चला आया. जब राशिद और नाजिया को गए हुए काफी समय बीत गया तो उस के सब्र का बांध टूट गया. उस ने उसी समय नाजिया को फोन मिला दिया. अपने अब्बू का फोन आते ही वह भावुक हो उठी और उस ने बता दिया कि वह दवाई लेने आई हुई थी. अब वह कुछ ही देर में घर की ओर ही निकल रही है. यह जानकारी मिलते ही मुजम्मिल अपने बेटे मोहसिन को साथ ले कर अपने घर की ओर आने वाले मोड़ पर जा पहुंचा. उस वक्त तक वहां पर बैठे लोग भी अपनेअपने घर जा चुके थे.

जैसे ही राशिद नाजिया को साथ ले कर घर की ओर जाने वाले मोड़ पर पहुंचा, मुजम्मिल और उस के बेटे मोहसिन ने इस घटना को अंजाम दे डाला. पुलिस ने मुजम्मिल और उस के बेटे मोहसिन से विस्तार से पूछताछ के बाद उन्हें 10 सितंबर, 2020 को कोर्ट में पेश किया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया था. इस केस का खुलासा करने वाली पुलिस टीम की सराहना करते हुए एएसपी राजेश भट्ट ने ढाई हजार रुपए देने की घोषणा की.

 

Love Story : लाड़ली बहन को भाई ने क्यों मारी गोली

Love Story : घर वालों की मरजी के खिलाफ पढ़ीलिखी ज्योति ने रोहित से अंतरजातीय विवाह किया था. रोहित सरकारी नौकरी करता था, इसलिए ज्योति उस के साथ हंसीखुशी से रह रही थी. इस के 2 साल बाद इन के जीवन में ऐसा वाकया हुआ, जिस की किसी ने कल्पना तक नहीं की थी.

उत्तर प्रदेश के मैनपुरी जिले का एक गांव है बृजपुरा. इसी गांव के निवासी महेश सिंह यादव पेशे से किसान थे. उन का बड़ा बेटा रोहित पशु पालन विभाग में नौकरी करता था. 9 जुलाई, 2020 की बात है. रोहित की पत्नी ज्योति की तबियत अचानक खराब हो गई थी. बुखार के साथ उस के पेट में दर्द भी हो रहा था. इस से रोहित बहुत परेशान हो रहा था. ज्योति की तबियत खराब होने से रोहित परेशान हो उठा. शाम का वक्त हो गया था. जब घरेलू उपायों से भी कोई लाभ नहीं हुआ. घर वालों ने रोहित से ज्योति को कीरतपुर के किसी डाक्टर को दिखाने को कहा. क्योंकि बृजपुरा में कोई अच्छा डाक्टर नहीं था.

घर वालों की बात मान कर रोहित ने ज्योति से कहा, ‘‘चलो डाक्टर को दिखा आते हैं. कहीं रात में ज्यादा तबियत खराब हो गई तो किसे दिखाएंगे.’’

पति की बात मान कर ज्योति डाक्टर के पास चलने के लिए तैयार हो गई. गांव ब्रजपुरा से कीरतपुर लगभग 5 किलोमीटर दूर था. इसलिए रोहित अपनी मोटरसाइकिल से ज्योति को कीरतपुर में स्थित एक डाक्टर के क्लीनिक पर ले गया. ज्योति का चैकअप करने के बाद डाक्टर ने दवा दे दी और 2 दिन बाद फिर से आने को कहा. डाक्टर से दवा लेने के बाद रोहित पत्नी को ले कर अपने घर की तरफ चल दिया. लौटते समय रात हो गई थी. जब उस की मोटरसाइकिल सिंहपुर नहर पुल स्थित हुर्रइया पुलिया के पास पहुंची. उस समय रात के सवा 8 बज रहे थे. सड़क पर सन्नाटा था. ज्योति रोहित को पकड़े बाइक पर बैठी थी. उस ने कहा, ‘‘अंधेरे में मुझे डर लग रहा है. तुम गाड़ी कुछ तेज चलाओ जिस से हम घर जल्दी पहुंच जाएं.’’

रोहित कुछ कह पाता, तभी वहां घात लगाए हमलावरों ने उन दोनों पर हमला कर दिया. दोनों को जिस बात का डर था वही हो गई. ऐसा लग रहा था बदमाश जैसे उन दोनों का ही इंतजार कर रहे थे. अचानक हुए हमले से दोनों घबरा गए. रोहित ने मोटरसाइकिल तेज कर वहां से भागने का प्रयास किया. लेकिन बदमाशों ने ताबड़तोड़ फायरिंग शुरू कर दी थी. तभी एक गोली रोहित के पेट में लगी और बाइक सहित दोनों सड़क पर जा गिरे. कई गोली लगने से ज्योति गंभीर रूप से घायल हो गई थी. हमलावर 2 मोटरसाइकिलों पर सवार हो कर आए थे. रात के सन्नाटे में गोलियों की आवाज सुन कर आसपास के ग्रामीण घटनास्थल पर पहुंच गए.

ग्रामीणों के वहां पहुंचने से पहले ही बदमाश घटनास्थल से फरार हो चुके थे. कुछ ग्रामीणों ने घायल दंपति को पहचान लिया और उन्होंने बृजपुरा उन के घर फोन कर घटना की जानकारी दे दी. घटना की जानकारी होते ही रोहित के घर में कोहराम मच गया. छोटा भाई मोहित, पिता महेश व अन्य घर वाले गांव वालों के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. ज्योति और रोहित सड़क किनारे बिजली के खंभे के पास लहूलुहान पड़े हुए थे. इसी बीच किसी ने थाना मैनपुरी पुलिस को भी घटना की सूचना दे दी. सड़क पर बाइक सवार दंपति को गोली मारने की सूचना पर थाने में हड़कंप मच गया. घटनास्थल थाने से लगभग 7-8 किलोमीटर दूर था. कुछ ही देर में इंसपेक्टर भानुप्रताप सिंह पुलिस टीम व एंबुलेंस के साथ मौके पर पहुंच गए.

उन्होंने गंभीर रूप से घायल दंपति को एंबुलेंस से जिला अस्पताल में उपचार के लिए भिजवाया. दंपति पर जानलेवा हमले की वारदात से ग्रामीणों में रोष फैल गया था. गांव वालों के रोष को भांप कर थानाप्रभारी ने घटना की जानकारी उच्चाधिकारियों को दे कर स्थिति से अवगत कराया. खबर मिलते ही एएसपी मधुबन सिंह, सीओ अभय नारायण राय भी घटनास्थल पर पहुंच गए. अधिकारियों ने घटनास्थल का निरीक्षण किया. घटनास्थल से पुलिस को जहां 2 खोखे मिले, वहीं घटनास्थल से लगभग 150 मीटर की दूरी पर भी एक खोखा मिला. पुलिस ने घटनास्थल से जरूरी सबूत जुटा कर मौके की जरूरी काररवाई निपटाई. वहीं सीओ ने गुस्साए ग्रामीणों को भरोसा दिया कि पुलिस हमलावरों को जल्द गिरफ्तार कर लेगी. उन के आश्वासन के बाद ही ग्रामीण शांत हुए.

पुलिस बदमाशों की तलाश में जुट गई. लेकिन रात का समय होने के कारण बदमाशों के बारे में कोई जानकारी नहीं मिल सकी. बदमाशों ने दंपति को घायल करने के बाद उन की बाइक, नकदी व आभूषण की लूट नहीं की थी. इस से पुलिस को भी आशंका हुई कि बदमाशों ने हमला लूटपाट के लिए नहीं किया, इस के पीछे जरूर कोई रंजिश रही होगी. घटनास्थल से अधिकारी सीधे जिला चिकित्सालय पहुंचे. उन्होंने घायलों के बारे में चिकित्सकों से जानकारी ली. चिकित्सकों ने बताया कि रोहित के पेट में एक गोली तथा ज्योति के शरीर में 6 गोलियां लगी थीं. घायल रोहित ने अधिकारियों को हमलावरों के नाम भी बता दिए.

अस्पताल में मौजूद रोहित के छोटे भाई मोहित ने रंजिश के चलते अंगौथा निवासी बृजेश मिश्रा उस के बेटे गुलशन व हिमांशु मिश्रा, बृजेश के छोटे भाई अशोक मिश्रा व उस के 2 बेटों राघवेंद्र उर्फ टेंटा व रघुराई पर वारदात को अंजाम देने का आरोप लगाया था. घायल दंपति का जिला अस्पताल मैनपुरी में उपचार शुरू किया गया. उपचार के दौरान दोनों की गंभीर हालत को देखते हुए डाक्टरों ने उन्हें मैडिकल कालेज सैफई रैफर कर दिया. पुलिस व घर वाले जब एंबुलेंस से घायल दंपति को सैफई ले जा रहे थे तो रास्ते में ज्योति की मौत हो गई. जबकि रोहित का सैफई पहुंचते ही इलाज शुरू हो गया था. गोली उस के पेट में लगी थी जो पार हो गई थी.

औपरेशन के बाद चिकित्सकों ने रोहित को आईसीयू में भरती कर दिया था. रोहित की सुरक्षा के लिए थानाप्रभारी ने 2 सिपाही भी तैनात कर दिए गए थे. रोहित के भाई मोहित ने रिपोर्ट में आरोप लगाया था कि ज्योति मिश्रा ने उस के भाई रोहित यादव के साथ करीब 2 साल पहले अंतरजातीय प्रेम विवाह किया था, जिस से ज्योति के घर वाले उस के भाई रोहित व भाभी ज्योति से बहुत नफरत करते थे, उन्होंने कई बार धमकियां भी दी थीं. इसी के चलते इन लोगों ने घटना को अंजाम दिया. रिपोर्ट दर्ज होने के बाद पुलिस ने नामजद आरोपियों की गिरफ्तारी के लिए उन के गांव में दबिश दी. लेकिन कोई भी आरोपी घर नहीं मिला. पुलिस ने बृजेश मिश्रा के परिवार के कुछ लोगों के साथ ही कई संदिग्धों को हिरासत में ले लिया था. उन्हें कोतवाली ला कर पूछताछ की गई.

2 गांव के बीच प्रेम विवाह को ले कर हुई इस खूनी घटना के बाद खुफिया विभाग भी सतर्क हो गया था. लगातार दोनों गांव की स्थिति पर पुलिस नजर बनाए हुए थी. जहां रोहित के घर पर मातम पसरा हुआ था, वहीं अंगौथा में आरोपी के घरों पर कोई नहीं था. दोनों गांवों में इस घटना के बाद से सन्नाटा पसरा हुआ था. इस सनसनीखेज हत्याकांड के एक हफ्ते बाद भी पुलिस के हाथ खाली थे. पुलिस अब तक नामजद आरोपियों में से एक भी आरोपी को गिरफ्तार नहीं कर सकी थी. हत्यारों द्वारा ज्योति पर ताबड़तोड़ गोलियां बरसा कर मार देने की खबर इलैक्ट्रौनिक और प्रिंट मीडिया में प्रमुखता से छाने लगी, जिस से पुलिस पर दबाव बढ़ता जा रहा था, लेकिन पुलिस अपने काम में जुटी रही. पुलिस की जांच सही दिशा में आगे बढ़ रही थी.

पुलिस के अलावा सर्विलांस टीम, स्वाट टीम को भी आरोपियों की गिरफ्तारी के काम में लगाया गया. पुलिस की मेहनत रंग लाई और हत्याकांड के 3 नामजद आरोपियों को पुलिस ने दबिश के बाद उन के गांव के पास से गिरफ्तार कर लिया. 16 जुलाई, 2020 को पुलिस ने 10 दिन पहले हुए ज्योति हत्याकांड का परदाफाश कर दिया. एसपी अजय कुमार पांडेय ने प्रैसवार्ता आयोजित कर इस हत्याकांड का खुलासा किया. पता चला कि इस हत्याकांड को सम्मान की खातिर सगे भाई और 2 चचेरे भाइयों ने अंजाम दिया था. घटना में नामजद 5 आरोपियों में से पुलिस ने ज्योति के सगे भाई गुलशन मिश्रा तथा 2 चचेरे भाइयों राघवेंद्र मिश्रा व रघुराई मिश्रा को गिरफ्तार कर उन के कब्जे से 2 तमंचे व 5 कारतूस बरामद किए थे. तीनों हत्यारोपियों ने अपना जुर्म कुबूल कर लिया. इस हत्याकांड की जो कहानी बताई, वह कुछ इस तरह थी—

थाना मैनपुरी के बृजपुरा और अंगौथा गांव अगलबगल थे. बृजपुरा निवासी महेश सिंह के 2 बेटे व एक बेटी थी. बड़ा बेटा 25 वर्षीय रोहित यादव पशु पालन विभाग में नौकरी करता था. जबकि छोटा बेटा मोहित अभी बीएससी फर्स्ट ईयर में पड़ रहा था. छोटी बहन प्रियंका चौथी क्लास में पढ़ती थी. वहीं अंगौथा निवासी बृजेश मिश्रा खेतीकिसानी करता था. गांव में उस की आटा चक्की भी थी. उस के 4 बेटे बेटियों में गुलशन व हिमांशु के अलावा ज्योति तीसरे नंबर की थी. ज्योति की एक छोटी बहन और थी. गुलशन पिता के साथ आटा चक्की के काम में हाथ बंटाता था जबकि दूसरे नंबर का बेटा हिमांशु पुणे में नौकरी करता था.

रोहित यादव पशुपालन विभाग में अंगौथा मौजा (मझरा) में स्थित पशु चिकित्सालय व कृत्रिम गर्भाधान केंद्र में कार्य करता था. इसी सिलसिले में उस का आसपास के गांवों में आनाजाना लगा रहता था. वह पड़ोसी गांव अंगौथा भी पशुओं के इलाज के सिलसिले में जाता था. एक दिन जिस घर के पशुओं के इलाज के संबंध में रोहित आया था, उसी घर में पड़ोस में रहने वाली ज्योति आई हुई थी. रोहित की नजर उस पर पड़ी. ज्योति सुंदर लड़की थी. वह उस का अनगढ़ सौंदर्य देख ठगा सा रह गया. उस ने उसी क्षण उसे दिल में बसा लिया.

ज्योति को भी अहसास हो गया कि रोहित उसे चाहत की नजरों से देख रहा है. रोहित कसी हुई कदकाठी का जवान युवक था. उसे देख कर 22 वर्षीय ज्योति का दिल भी तेजी से धड़कने लगा था. रोहित जब भी ज्योति के गांव जाता उस की मुलाकात ज्योति से हो जाती. दोनों ही एकदूसरे को देख कर मुसकरा देते थे. जब दो युवा मिलते हैं तो जिंदगी में नया रंग घुलने लगता है. दोनों एकदूसरे से प्यार का इजहार करना चाहते थे. एक दिन ज्योति को मौका मिल ही गया. भाई और पिता आटा चक्की पर थे, मां घर के कामों में व्यस्त थी. ज्योति ने जैसे ही रोहित को देखा वह उस के पास से निकली और चुपचाप से एक पर्ची उस के पास गिरा दी. रोहित ने वह पर्ची झट से उठा कर अपने पास रख ली. काम निपटाने के बाद रास्ते में उस पर्ची को खोला तो उस पर एक मोबाइल नंबर लिखा था. बिना देर किए रोहित ने वह नंबर डायल किया.

दूसरी ओर से आवाज आई, ‘‘मैं ज्योति मिश्रा बोल रही हूं, आप कौन?’’

इस पर उस ने जवाब दिया, ‘‘मैं रोहित यादव बोल रहा हूं. आप के गांव के मवेशियों के इलाज के लिए आताजाता रहता हूं.’’

‘‘जनाब, आप इलाज जानवरों का करते हैं और घायल इंसानों को कर देते हैं,’’ कह कर ज्योति खिलखिला कर हंस पड़ी.

‘‘आप चिंता न करें, अब मुझे आप का फोन नंबर मिल गया है. अब आप बिलकुल ठीक हो जाओगी.’’ रोहित ने भी उसी अंदाज में जवाब दिया.

एकदूसरे के मोबाइल नंबर मिलने के बाद दोनों के बीच धीरेधीरे बातचीत का सिलसिला शुरू हो गया. यह काफी दिनों तक चलता रहा. जब भी रोहित ज्योति के गांव में आता दोनों चोरीछिपे मिल कर एकदूसरे की दिल की बात जान लेते. दोनों की जातियां भले ही अलगअलग थीं. लेकिन प्यार के दीवानों को इस की परवाह नहीं थी. दोनों का मानना था कि समाज और जाति सब अपनी जगह हैं, लेकिन हमारा प्यार इन सब से ऊपर है. यह सोच कर दोनों ने एकदूसरे का हमसफर बनने का निर्णय ले लिया था. इश्क की खुशबू कभी छिपती नहीं है. ज्योति के घर वालों को जब दोनों के बीच चल रहे प्रेमप्रसंग का पता चला तो उन्होंने ज्योति को कड़ी चेतावनी दी और रोहित से न मिलने की हिदायत दे दी. लेकिन रोहित की प्रेम दीवानी ज्योति पर इस चेतावनी का कोई असर नहीं हुआ था.

उस ने घर वालों से बगावत कर दी और एक दिन मौका मिलते ही ज्योति रोहित के साथ घर से भाग गई. इस बात की जानकारी होने पर ज्योति के घर वालों ने दोनों को बहुत तलाशा. उन के न मिलने पर उन्होंने रोहित के खिलाफ कोतवाली मैनपुरी में ज्योति को बहलाफुसला कर भगा ले जाने की रिपोर्ट दर्ज करा दी. 17 सितंबर, 2018 को दोनों ने घर वालों की मरजी के बिना प्रयागराज में कोर्ट मैरिज कर ली. कोर्ट मैरिज के बाद रोहित और ज्योति कुछ दिन दिल्ली जा कर रहे. दोनों बाद में गांव बृजपुरा आ गए थे. ज्योति के घर वालों ने यह जानकारी  पुलिस को दे दी. तब पुलिस ने ज्योति और रोहित को हिरासत में ले लिया. पुलिस ज्योति को जब न्यायालय में बयान दर्ज कराने के लिए ले जा रही थी, तब ज्योति के घर वालों ने उस से कहा कि वह उन के साथ चलने की बात कोर्ट में कहे.

इस बात के लिए ज्योति ने हामी तो भर दी थी, लेकिन जब कोर्ट में ज्योति के बयान दर्ज हुए तो उस ने पति रोहित के साथ ही जाने के बयान दिए थे. लिहाजा ज्योति को उस के पति रोहित के साथ भेज दिया गया. बेटी के इस फैसले के बाद वृद्ध पिता ब्रजेश मिश्रा व मां चुपचाप घर चले गए थे. उस समय उन्होंने खुदको बहुत अपमानित महसूस किया था. अंतरजातीय प्रेम विवाह ज्योति के घर वालों को मंजूर नहीं था. खासकर ज्योति के भाई गुलशन व चचेरे भाइयों राघवेंद्र व रघुराई को. इस वजह से वह ज्योति और रोहित से रंजिश मानने लगे थे. वे लोग दोनों की हत्या करना चाहते थे, लेकिन घर के बड़ेबुजुर्गों ने उन्हें समझाया कि हत्या करने से गई हुई इज्जत वापस तो आ नहीं जाएगी. यदि तुम लोग हत्या करोगे तो पुलिस का शक तुम्हीं लोगों पर जाएगा और पकड़े जाओगे.

उस समय तो वे लोग खून का घूंट पी कर रह गए थे. लगभग 2 साल बीतने के बाद घर वाले भी यह मान बैठे थे कि अब ये लड़के कोई घटना नहीं करेंगे. ज्योति के गैर जाति में शादी कर लेने की वजह से गांव में भी लोग आए दिन घर वालों पर छींटाकशी करते रहते थे. इस के साथ ही अविवाहित चचेरे भाई राघवेंद्र की शादी के लिए रिश्ते तो आते थे, लेकिन जब उन्हें सारी बातों की जानकारी होती, तो वे शादी से इंकार कर देते थे. चचेरी बहन के यादव जाति में शादी कर लेने से राघवेंद्र की शादी भी नहीं हो पा रही थी. इस से राघवेंद्र परेशान रहने लगा था. एक बार राघवेंद्र अकेला ज्योति की ससुराल जा पहुंचा और उस ने ज्योति से घर चलने के लिए दवाब डाला. लेकिन ज्योति ने साफ मना कर दिया. इस पर राघवेंद्र मुंह लटका कर घर लौट आया था.

यह बात गुलशन व रघुराई को नागवार लगी थी. इस घटना के बाद एक बार उन्होंने 50 हजार में भाड़े के एक शूटर से ज्योति व रोहित की हत्या कराने की योजना भी तैयार की गई थी, लेकिन वे सफल नहीं हुए थे. समय बीतने के साथ ही तीनों आरोपियों के मन में ज्योति के प्रति नफरत बढ़ती गई. इन्हें डर था कि कहीं ज्योति मां बन गई तो इस रिश्ते की डोर और भी मजबूत हो जाएगी. फिर दोनों परिवार कभी एक भी हो सकते हैं. सब तरफ से हताश होने के बाद गुलशन और उस के चचेरे भाइयों ने दोनों की हत्या करने की प्लानिंग की. वे पिछले एक महीने से इस की तैयारी कर रहे थे. उन्होंने तय कर लिया था कि ज्योति और रोहित जिस दिन एक साथ मिलेंगे, वह उन की हत्या कर देंगे. इसी वजह से वे घर वालों को अंधेरे में रख कर हत्या की योजना बना रहे थे.

उन्होंने असलहों का इंतजाम भी कर लिया था. फिर तीनों ने उन की रेकी करने का काम शुरू कर दिया. 7 जुलाई, 2020 को उन को मौका मिल भी गया. उस दिन राघवेंद्र ने मोटरसाइकिल से शाम के समय रोहित और ज्योति को जाते देख लिया था. उस ने गुलशन और रघुराई को बताया कि आज दोनों को निपटा देने का अच्छा मौका है. उसी समय उन लोगों ने योजना को अंजाम देने की ठान ली थी. तीनों ने तमंचों व कारतूसों का इंतजाम पहले ही कर लिया था. वे सिंहपुर नहर पुल के बंबे के पास मोटरसाइकिलों से जा कर उन क ा इंतजार करने लगे. रात सवा 8 बजे जैसे ही उन्हें रोहित की मोटरसाइकिल आती दिखी, उन लोगों ने दोनों पर घात लगा कर हमला कर दिया. उन्होंने दोनों पर ताबड़तोड़ फायरिंग  कर दी.

घटना के दौरान गुलशन मार्ग से आनेजाने वाले लोगों पर नजर भी रख रहा था, जबकि ज्योति को 6 गोलियां राघवेंद्र व रघुराई ने मारीं थीं, जिस से उस के बचने की कोई गुंजाइश न रहे. वहीं योजना थी कि रोहित के घुटने में गोली मार कर उसे जिंदगी भर के लिए अपाहिज कर दिया जाए. ताकि वह सारी जिंदगी अपने किए पर पछताता रहे. इसीलिए उन्होंने रोहित के एक गोली मारी. लेकिन हड़बड़ी में गोली रोहित के घुटने के बजाय पेट में जा लगी. अपनी योजना को अमलीजामा पहनाने के बाद आरोपी घटनास्थल से फरार हो गए थे. रिपोर्ट 5 लोगों के खिलाफ दर्ज कराई गई थी. इन में 3 नामजदों को पुलिस द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया था. जबकि पिता बृजेश मिश्रा के खिलाफ जांच में कोई सबूत नहीं मिला था. इसी तरह पांचवें आरोपी की लोकेशन घटना के समय पुलिस को पुणे में मिली थी.

इस संबंध में कहानी लिखे जाने तक विवेचना जारी थी. हत्या के लिए 2 तमंचे व 10 कारतूस का इंतजाम आरोपियों ने किया था. कारतूस व तमंचा कहां से जुटाए गए थे, पुलिस इस की भी जांच कर रही थी, ताकि दोषियों के विरुद्ध काररवाई की जा सके. इस हत्याकांड के खुलासे में एएसपी मधुबन सिंह, सीओ अभय नारायण राय, इंसपेक्टर भानुप्रताप सिंह, सर्विलांस सेल प्रभारी जोगिंदर सिंह, स्वाट टीम प्रभारी रामनरेश यादव का विशेष सहयोग रहा. एसपी अजय कुमार पांडेय ने पुलिस टीम को इस हत्याकांड का खुलासा करने पर 20 हजार का इनाम देने की घोषणा की.

पुलिस ने गिरफ्तार आरोपियों को 18 जुलाई, 2020 को ही न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया गया. मामले की जांच इंसपेक्टर भानुप्रताप सिंह कर रहे थे.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित