Love Crime : भागकर शादी करने पर पिता ने बेटी और दामाद को मारी गोली

Love Crime : प्यार करने वालों का सदियों से जमाना दुश्मन रहा है. लेकिन नाजिया के तो उस के घर वाले ही दुश्मन बन बैठे. पिता मुजम्मिल और भाई मोहसिन ने उस की लौकडाउन की लवस्टोरी का इस तरह अंत किया कि…

कोरोना काल के चलते जहां एक तरफ पूरी दुनिया अस्तव्यस्त हुई, वहीं आम इंसान के जीवन पर  भी काफी असर पड़ा है. यही कारण है कि आज आम जनता अपनेअपने घरों में कैद रहने के लिए विवश है. 7 सितंबर, 2020 को रात के साढ़े 8 बजे काशीपुर शहर में सड़क पर सन्नाटा पसरा था. उस वक्त नाजिया अपने शौहर राशिद के साथ दवा लेने डाक्टर के पास गई हुई थी. तभी उस के मोबाइल पर उस के अब्बू की काल आई. अपने अब्बू की काल देखते ही उस के दिल की धड़कनें दोगुनी हो चली थीं. क्योंकि उस के अब्बू ने बहुत समय बाद उसे फोन किया था. अब्बू ने न जाने किस लिए फोन किया, उस की समझ में नहीं आ रहा था. यह उस के लिए जिज्ञासा के साथसाथ चिंता का विषय भी था.

नाजिया अपनी दवाई ले चुकी थी. राशिद ने अपनी बाइक स्टार्ट की और घर की ओर निकल पड़ा. उस के पीछे बैठी नाजिया अपने अब्बू से मोबाइल पर बात करने लगी. नाजिया को पता था कि उसे घर पहुंचने में केवल 3-4 मिनट ही लगेंगे. उस के बाद वह घर पर आराम से उन से बात कर लेगी. जैसे ही राशिद की बाइक उस के घर के मोड़ पर पहुंची. सामने से आ रहे कुछ लोगों ने उन पर ताबड़तोड़ फायरिंग शुरू कर दी. इस से पहले कि राशिद और नाजिया कुछ समझ पाते, दोनों ही बाइक से नीचे सड़क पर गिर कर तड़पने लगे. उन के कई गोलियां लगी थीं. देखते ही देखते सड़क उन के खून से तरबतर हो गई.

अधिक खून रिसाव के कारण दोनों की मौके पर ही मौत हो गई. इस घटना के घटते ही नाजिया के हाथ से मोबाइल छूट कर वहीं गिर गया था. खामोशी में डूबे मोहल्ले में अचानक 4-5 गोलियों के चलने की आवाज ने लोगों में दहशत पैदा कर दी थी. दोनों पर की ताबड़तोड़ फायरिंग घटनास्थल के आसपास बने मकानों की खिड़कियां खुलीं और लोगों ने सड़क का मंजर देखा तो देखते ही रह गए. सड़क पर एक साथ 2 लाशें पड़ी हुई थीं. एक युवक और एक युवती की. उन के पास में ही एक बाइक पड़ी हुई थी. मतलब साफ था कि कोई युवकयुवती का मर्डर कर फरार हो चुका था. यह मंजर देख कर आसपड़ोस वालों ने हिम्मत जुटाई और सड़क पर बाहर निकल आए थे. एक के बाद एक लोगों के घर से निकलने का सिलसिला शुरू हुआ, तो घटनास्थल पर लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा.

दोनों मृतक उसी मोहल्ले के रहने वाले थे, इसी कारण दोनों की शिनाख्त होने में भी कोई परेशानी नहीं आई. वहां पर मौजूद लोगों में से किसी ने मृतक युवक राशिद के भाई के मोबाइल पर फोन कर इस घटना की जानकारी दी. घटना की जानकारी मिलते ही उस के घर वालों के साथ उस के पड़ोसी भी तुरंत ही घटनास्थल पर पहुंच गए. घटनास्थल पर पहुंचते ही राशिद के परिवार वालों ने उस के शरीर को छू कर देखा, जो पूरी तरह से ठंडा पड़ चुका था. उस की मौत हो चुकी थी. उस के पास पड़ी नाजिया भी मौत की नींद सो चुकी थी. घटनास्थल पर पड़े खून को देख कर सभी लोगों का मानना था कि उन्हें डाक्टर के पास ले जाने का भी कोई लाभ नहीं होगा.

जैसेजैसे लोगों को इस मामले की जानकारी मिलती गई, वैसेवैसे वहां पर लोगों का जमघट लगता गया. तुरंत ही इस सनसनीखेज मामले की सूचना किसी ने पुलिस नियंत्रण कक्ष को दे दी. चूंकि यह क्षेत्र काशीपुर कोतवाली के अंतर्गत आता है, इसलिए कोतवाली प्रभारी सतीशचंद्र कापड़ी पुलिस टीम के साथ घटनास्थल की तरफ रवाना हो गए. सूचना मिलने पर एएसपी राजेश भट्ट, सीओ मनोज ठाकुर भी मौके पर पहुंचे.  घटनास्थल पर पहुंच कर पुलिस ने जांचपड़ताल की. युवकयुवती दोनों की लाशें पासपास पड़ी हुई थीं. युवक राशिद का चेहरा बुरी तरह से क्षतिग्रस्त हो चुका था. मृतक के चेहरे को देख कर लगता था कि हत्यारों ने उस के सिर से सटा कर गोली चलाई थी. जिस के कारण उस के चेहरे की पहचान ही खत्म हो गई थी.

इस मामले को ले कर पुलिस ने युवक युवती के परिवार वालों के बारे में जानकारी जुटाई. राशिद के परिवार वालों ने बताया कि दोनों का काफी लंबे समय से प्रेम प्रसंग चल रहा था, जिस के चलते दोनों घर से भाग गए थे. उसी दौरान जून, 2020 में दोनों ने प्रेम विवाह कर लिया था. फिर कुछ समय बाद दोनों काशीपुर वापस आ गए थे. तब से पास में ही दोनों किराए का कमरा ले कर रह रहे थे. नाजिया की तबीयत खराब होने के कारण उस शाम दोनों बाइक से दवाई लेने डाक्टर के पास गए थे. वहां से वापसी के दौरान किसी ने उन की गोली मार कर हत्या कर दी. औनर किलिंग का शक घटनास्थल की जांचपड़ताल के दौरान पुलिस ने मृतक राशिद और उस की बीवी नाजिया के मोबाइल अपने कब्जे में ले लिए थे.

पुलिस ने दोनों के मोबाइल चैक किए तो पता चला कि घटना के वक्त नाजिया अपने पिता के मोबाइल पर बात कर रही थी. यह बात सामने आते ही पुलिस समझ गई कि उन दोनों की हत्या में जरूर युवती के पिता मुजम्मिल का हाथ हो सकता है. पुलिस ने तुरंत ही युवती के घर पर जा कर उस के बारे में जानकारी ली तो पता चला कि मुजम्मिल घर से फरार है. उस के घर पर ताला लटका हुआ था. उस के अन्य परिवार वाले भी घर से गायब थे. घर के सभी लोगों के अचानक फरार होने से इस हत्याकांड में उस की संलिप्तता साफ जाहिर हो गई थी. पुलिस ने युवती के घर वालों को सब जगह खोजा,लेकिन उन का कहीं भी अतापता न लग सका.

यह सब जानकारी जुटाने के बाद पुलिस ने दोनों शव पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भेज दिए. इस केस में मृतक राशिद के भाई नईम की तहरीर के आधार पर पुलिस ने 4 आरोपियों मुजम्मिल, उस के बेटे मोहसिन के अलावा अफसर अली, जौहर अली पुत्र निसार अली निवासी अलीखां के खिलाफ भांदंवि की धारा 302/342/504/34 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया. इस केस में नामजद मुकदमा दर्ज होते ही इस घटना की जांच एएसपी (काशीपुर) राजेश भट्ट व सीओ मनोज ठाकुर के नेतृत्व में अलगअलग 3 पुलिस टीमों का गठन किया गया. इन टीमों में काशीपुर कोतवाली प्रभारी सतीशचंद्र कापड़ी, एसआई अमित शर्मा, रविंद्र सिंह बिष्ट, दीपक जोशी, कैलाशचंद्र, कांस्टेबल वीरेंद्र यादव, राज पुरी, अनुज त्यागी, सुरेंद्र सिंह, राजेंद्र प्रसाद, सुनील तोमर, दलीप बोनाल, संजीत प्रसाद, प्रियंका, रिचा आदि को शामिल किया गया.

पुलिस टीमों ने आरोपियों के शरीफ नगर, ठाकुरद्वारा, रामपुर और मुरादाबाद में कई संभावित स्थानों पर दबिश डाली. काफी प्रयास करने के बाद भी आरोपी पुलिस पकड़ में नहीं आए. पुलिस काररवाई के दौरान 9 सितंबर, 2020 को पुलिस को एक मुखबिर से सूचना मिली कि मुजम्मिल और उस का बेटा मोहसिन दोनों ही दडि़याल रोड लोहिया पुल के पास कहीं जाने की फिराक में खड़े हैं. आरोपी चढ़े पुलिस के हत्थे सूचना पाते ही काशीपुर कोतवाली प्रभारी सतीश कुमार कापड़ी तुरंत पुलिस टीम ले कर लोहिया पुल पर पहुंचे. पुलिस ने चारों ओर से घेराबंदी करते हुए दोनों को गिरफ्तार कर लिया. दोनों को हिरासत में ले कर पुलिस कोतवाली आ गई.

पुलिस ने दोनों से इस दोहरे हत्याकांड के बारे में कड़ी पूछताछ की. कुछ समय तक तो मुजम्मिल ने पुलिस को घुमाने की पूरी कोशिश की. फिर बाद में मुजम्मिल ने बताया कि जिस समय वह बेटे के साथ अपनी बेटी नाजिया से मिलने के लिए घर के नुक्कड़ पर पहुंचा, उस वक्त तक उन दोनों की हत्या हो चुकी थी. उस ने अपने बेटे के साथ दोनों को मृत पाया तो वह बुरी तरह से घबरा गया. उन के जाने से पहले ही उन दोनों को कोई मौत के घाट उतार चुका था. उन को उस हालत में देख कर बापबेटे दोनों बुरी तरह से घबरा गए थे. उन्हें डर था कि उन की हत्या का इलजाम उन पर न लग जाए. इसी कारण वे तुरंत ही मौके से फरार हो गए थे.

उस की बातें सुन कर कोतवालीप्रभारी सतीशचंद्र कापड़ी को उस पर शक हो रहा था कि यह झूठ बोल रहा है. उन्होंने मुजम्मिल और उस के बेटे मोहसिन पर थोड़ी सी सख्ती बरती तो दोनों ने अपना जुर्म कबूल कर लिया. उस के तुरंत बाद ही पुलिस ने उन की निशानदेही पर 315 बोर के 2 तमंचे बरामद कर लिए. पुलिस ने दोनों के खिलाफ 3/25 शस्त्र अधिनियम के 2 अलग मुकदमे भी दर्ज कर लिए. सरेआम ताबड़तोड़ फायरिंग कर दोहरे हत्याकांड को अंजाम देने वाले आरोपियों से वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों के सामने पूछताछ करने पर जो जानकारी सामने आई, वह इस प्रकार थी. उत्तराखंड के शहर काशीपुर के मोहल्ला अली खां में रहता था कमरूद्दीन का परिवार. कमरुद्दीन का बड़ा परिवार था. लेकिन बच्चों के बड़े होते ही वह भी पैसे कमाने लगे, जिस से उस के परिवार की आर्थिक स्थिति काफी मजबूत हो गई थी.

उस का एक बेटा काम करने दुबई चला गया और दूसरा सऊदी अरब. उन के और लड़के भी काशीपुर में ही अपना कामधंधा करते थे. कमरुद्दीन के घर के पास ही मुजम्मिल का मकान भी था. मुजम्मिल की आर्थिक स्थिति पहले से ही मजबूत थी. मुजम्मिल मूलत: शरीफनगर (ठाकुरद्वारा) का निवासी था. गांव में उस की काफी जमीनजायदाद थी. अब से लगभग 10 साल पहले मुजम्मिल ने अपनी गांव की कुछ जुतासे की जमीन बेची और काशीपुर के मोहल्ला अलीखां में आ कर बस गया. उस की ससुराल भी यहीं पर थी. काशीपुर आने के तुरंत बाद ही उस ने यहां पर कुछ जुतासे की जमीन खरीदी और उस पर खेती का काम करना शुरू किया. मुजम्मिल के परिवार में उस की बीवी सहित कुल 8 सदस्य थे.

जमीन के बाकी बचे पैसों से मुजम्मिल ने एक कैंटर खरीद लिया था. मुजम्मिल के 4 बेटे जवान थे, जो काफी समय पहले से ही अपना कामधंधा करने लगे थे. कैंटर मुजम्मिल स्वयं ही चलाता था, जिस से काफी आमदनी हो जाती थी. 2 बेटियों में वह एक की पहले ही शादी कर चुका था, उस के बाद सब से छोटी नाजिया बची थी. नाजिया और राशिद की लवस्टोरी कमरुद्दीन और मुजम्मिल दोनों ही पड़ोसी थे, इसी नाते दोनों परिवार एकदूसरे के घर आतेजाते थे. भले ही दोनों अलगअलग जाति से ताल्लुक रखते थे, लेकिन दोनों परिवारों में घर जैसे ही ताल्लुकात थे. मुजम्मिल के बेटे राशिद की मोहसिन से अच्छी दोस्ती भी थी. राशिद और मोहसिन का जब कभी भी कहीं काम होता तो दोनों साथसाथ ही घर से निकलते थे.

मोहसिन की एक बहन थी नाजिया. नाजिया देखनेभालने में जितनी सुंदर थी, उस से कहीं ज्यादा तेजतर्रार भी थी. भले ही नाजिया राशिद के दोस्त की बहन थी, लेकिन उस के दिल को वह भा गई थी. घर आनेजाने की कोई पाबंदी थी नहीं. इसी आनेजाने के दौरान नाजिया ने राशिद की आंखों में अपने प्रति प्यार देखा तो वह भी उस की अदाओं पर मर मिटी. प्यार का सुरूर आंखों के रास्ते उतरा तो दिल में जा कर समा गया. दोनों के बीच मोहब्बत का सफर चालू हुआ तो अमरबेल की तरह बढ़ने लगा. देखतेदेखते उन के प्यार के चर्चे घर की दीवारों को लांघ कर मोहल्ले में छाने लगे थे. यह बात नाजिया के घर वालों को पता चली तो आगबबूला हो उठे. मुजम्मिल ने अपनी बेटी को समझाने की कोशिश की, लेकिन वह राशिद को छोड़ने को तैयार न थी.

उस के बाद मुजम्मिल ने राशिद के परिवार वालों को उन के बेटे की काली करतूतों का हवाला देते हुए उसे समझाने को कहा. लेकिन राशिद भी प्रेम डगर से पीछे हटने को तैयार न था. एक पड़ोसी होने के नाते जितना दोनों परिवारों में प्यार था, पल भर में वह नफरत में बदल गया. हालांकि दोनों ही परिवार वालों ने अपनेअपने बच्चों को समझाने का अथक प्रयास किया. लेकिन दोनों ही अपनी जिद पर अड़े थे. इस मामले को ले कर दोनों परिवारों के बीच विवाद बढ़ा तो मामला पंचायत तक जा पहुंचा. भरी पंचायत में फैसला हुआ कि राशिद काशीपुर छोड़ कर कहीं बाहर जा कर काम देखे. परिवार वालों के दबाव में राशिद रोजगार की तलाश में सऊदी चला गया. राशिद के काशीपुर छोड़ कर चले जाने के बाद नाजिया उस की याद में तड़पने लगी.

कुछ ही दिनों में उस ने राशिद से सऊदी में भी मोबाइल द्वारा संपर्क बना लिए. फिर दोनों ही मोबाइल पर प्रेम भरी बातें करते हुए साथसाथ जीनेमरने की कसमें खाने लगे. पूरी दुनिया में कोरोना का कहर बरपा तो राशिद अपने घर लौट आया. इस वक्त घर आना उस की मजबूरी बन गई थी. अपने घर काशीपुर आते ही उस ने शहर में एक टायर शोरूम में नौकरी कर ली. उसी दौरान मोहसिन अपनी पुरानी रंजिश को भूल कर राशिद से मिला. मोहसिन जानता था कि लौकडाउन खुलते ही राशिद दोबारा सऊदी चला जाएगा. दरअसल राशिद के सऊदी चले जाने के बाद से ही मोहसिन के दिल में भी सऊदी जाने की तमन्ना पैदा हो गई थी. मोहसिन जानता था कि वह राशिद के संपर्क में रह कर ही सऊदी तक पहुंच सकता है. मोहसिन के संपर्क में आने के बाद राशिद को मनचाही मंजिल और भी आसान लग रही थी.

उसी दोस्ती के कारण राशिद का नाजिया के घर आनाजाना बढ़ गया था. यही आनाजाना दोनों को उस मुकाम तक ले गया, जहां से दोनों का लौटना नामुमकिन हो गया था. यानी उन के प्रेम संबंध और ज्यादा मजबूत हो गए. फिर अब से लगभग 3 महीने पहले राशिद और नाजिया अचानक घर से फरार हो गए. नाजिया के घर से फरार होते ही उस के घर वालों को गहरा सदमा लगा. उन्होंने कभी सोचा भी नहीं था कि उन की बेटी एक दिन उन की इज्जत को तारतार कर देगी. मुजम्मिल को पता था कि वह जरूर राशिद के साथ गई होगी. राशिद के बारे में जानकारी लेने पर पता चला वह भी घर से गायब था. मुजम्मिल को दुख इस बात का था कि उस की बेटी ने गैरबिरादरी के लड़के के साथ भाग कर समाज में उस की नाक कटवा दी थी.

मुजम्मिल के मानसम्मान को ठेस पहुंची तो उस ने दोनों से मोबाइल पर बात कर उन्हें जान से मारने की धमकी दे डाली थी. उस के बावजूद भी दोनों ने बाहर रहते ही चोरीछिपे एक मौलवी के सामने निकाह भी कर लिया. यह बात जब नाजिया के घर वालों को पता चली तो घर में मातम सा छा गया. बदनामी की वजह से साधी चुप्पी समाज में अपनी इज्जत को देख नाजिया के अब्बू मुजम्मिल ने इस राज को राज ही बने रहने दिया. मुजम्मिल ने इस मामले में पूरी तरह से चुप्पी साध ली और फिर नाजिया और राशिद के वापस आने का इंतजार करने लगा. राशिद ने नाजिया के साथ निकाह करते ही अपना मोबाइल नंबर भी बदल लिया था, जिस के बाद मुजम्मिल की उन से बात नहीं हो पाई थी. मुजम्मिल पेशे से ड्राइवर होने के नाते काफी तेजतर्रार था. वह किसी तरह से राशिद का नया मोबाइल नंबर हासिल करना चाहता था.

वह जानता था कि राशिद के घर वालों से ही उस का नंबर मिल सकता है. उस ने किसी तरह उस की अम्मी को विश्वास में लेते हुए उस का मोबाइल नंबर हासिल कर लिया. जब मुजम्मिल के सब्र का बांध टूट चुका तो उस ने दूसरी चाल चली. मुजम्मिल ने एक दिन अपनी बेटी को फोन कर कहा, ‘‘नाजिया बेटी, तुम ने जो भी किया ठीक ही किया. बेटा बहुत दिन हो गए. तुम्हारे बिना हम से रहा नहीं जाता. हमें अब तुम से कोई गिलाशिकवा नहीं है. तुम दोनों घर वापस आ जाओ. हम चाहते हैं कि तुम दोनों का धूमधाम से निकाह करा दें.’’

मुजम्मिल की बात सुन कर नाजिया को विश्वास नहीं हुआ. उस ने यह बात पति राशिद को बताई. साथ ही यह भी समझाया कि आप मेरे अब्बू की बातों में मत आना. मैं उन की नसनस से वाकिफ हूं. वह झूठा प्यार दिखा कर हमें काशीपुर बुलाने के बाद हमारे साथ क्या कर डालें, कुछ पता नहीं. इस के बावजूद राशिद मुजम्मिल की बातों में आ कर नाजिया को साथ ले कर काशीपुर चला आया. काशीपुर आने के बाद राशिद ने मोती मसजिद के पास अलीखां मोहल्ले में ही एक किराए का कमरा ले लिया और वहीं पर नाजिया के साथ रहने लगा. यह बात मुजम्मिल को भी पता लग गई थी. उस के बाद मुजम्मिल अपने दिल में राशिद और नाजिया के प्रति फैली नफरत को खत्म करने के लिए उचित समय का इंतजार करने लगा.

बापभाई ही बने प्यार के दुश्मन अपनी बेटी और राशिद के प्रति उस के दिल में इस कदर नफरत पैदा हो गई थी कि वह किसी भी सूरत में दोनों को मौत के घाट उतारने की योजना बना चुका था. उसी योजना के तहत मुजम्मिल ने उत्तर प्रदेश के एक गांव से 315 बोर के 2 तमंचे और 8 कारतूस खरीदे. उस के बाद मुजम्मिल अपने बेटे मोहसिन को साथ ले कर दोनों का साए की भांति पीछा करने लगा. राशिद और नाजिया कब, कहां और क्यों जाते हैं, यह जानना उस की दिनचर्या में शामिल हो गया. इस घटना से 15 दिन पहले मुजम्मिल को जानकारी मिली कि नाजिया राशिद के साथ जसपुर स्थित कालू सिद्ध की मजार पर गई हुई है.

कालू सिद्ध की मजार पतरामपुर के जंगलों में स्थित है. जहां पर दूरदूर तक झाड़झंखाड़ और वन फैला है. यह जानकारी मिलते ही मुजम्मिल अपने बेटे मोहसिन को साथ ले कर कालू सिद्ध के रास्ते में भी छिप कर बैठा. लेकिन उस दिन उन्हें नाजिया अकेले ही दिखाई दी थी. जबकि मुजम्मिल नाजिया के साथ राशिद को भी खत्म करने की फिराक में था. लेकिन उस दिन दोनों बापबेटे गम का घूंट निगल कर अपने घर वापस आ गए.  फिर दोनों के साथ मिलने की ताक में रहने लगे. 7 सितंबर 2020 की शाम को पता चला कि राशिद नाजिया को साथ ले कर बाइक से कहीं पर गया हुआ है. यह जानकारी मिलते ही उस ने अपनी योजना को अंजाम देने के लिए पूरी तैयारी कर ली. लेकिन उस वक्त उसे यह जानना भी जरूरी था कि वे दोनों शहर में गए हैं या फिर कहीं बाहर.

यह जानकारी लेने के लिए वह अपने घर के मोड़ पर एक चबूतरे पर जा बैठा. वहां पर पहले से ही कई लोग बैठे हुए थे. वहां पर भी उस का मन नहीं लगा. उस के मन में राशिद और नाजिया को ले कर जो खिचड़ी पक रही थी, वह उसे ले कर परेशान था. मुजम्मिल वहां से उठ कर अपने घर चला आया. जब राशिद और नाजिया को गए हुए काफी समय बीत गया तो उस के सब्र का बांध टूट गया. उस ने उसी समय नाजिया को फोन मिला दिया. अपने अब्बू का फोन आते ही वह भावुक हो उठी और उस ने बता दिया कि वह दवाई लेने आई हुई थी. अब वह कुछ ही देर में घर की ओर ही निकल रही है. यह जानकारी मिलते ही मुजम्मिल अपने बेटे मोहसिन को साथ ले कर अपने घर की ओर आने वाले मोड़ पर जा पहुंचा. उस वक्त तक वहां पर बैठे लोग भी अपनेअपने घर जा चुके थे.

जैसे ही राशिद नाजिया को साथ ले कर घर की ओर जाने वाले मोड़ पर पहुंचा, मुजम्मिल और उस के बेटे मोहसिन ने इस घटना को अंजाम दे डाला. पुलिस ने मुजम्मिल और उस के बेटे मोहसिन से विस्तार से पूछताछ के बाद उन्हें 10 सितंबर, 2020 को कोर्ट में पेश किया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया था. इस केस का खुलासा करने वाली पुलिस टीम की सराहना करते हुए एएसपी राजेश भट्ट ने ढाई हजार रुपए देने की घोषणा की.

 

विकास दुबे : 8 पुलिसवालों का कातिल, गैंगस्टर और अपराध का बादशाह

Gangster Story : 8 पुलिस वालों की हत्या और पुलिस टीम का खून बहाने वाले गैंगस्टर विकास की उलटी गिनती 3 जुलाई की रात से ही शुरू हो गई थी. फिर भी उस ने एनकाउंटर से बचने के लिए बहुत कोशिश की. महाकाल की शरण तक में गया. लेकिन उसे कांटों की वही फसल तो काटनी ही थी, जो उस ने खुद बोई थी. आखिर…

पुरानी कहावत है कि पुलिस वालों से न दोस्ती अच्छी न दुश्मनी, लेकिन विकास दुबे ने दोनों ही कर ली थीं. कई थानों के पुलिस वाले उस के दरबार में जीहुजूरी करते थे, तो कुछ ऐसे भी थे जिन की वरदी उस की दबंगई पर भारी पड़ती थी. ऐसे ही थे बिल्हौर के सीओ देवेंद्र मिश्रा. विकास ने अपने ही गांव के राहुल तिवारी की जमीन कब्जा ली थी. इतना ही नहीं, उस पर जानलेवा हमला भी किया था. राहुल अपनी शिकायत ले कर थाना चौबेपुर गया, लेकिन चौबेपुर थाने के इंचार्ज विनय तिवारी विकास के खास लोगों में से थे. उन्होंने राहुल की शिकायत सुनने के बजाय उसे भगा दिया.

इस पर राहुल बिल्हौर के सीओ देवेंद्र मिश्रा से मिला. उन्होंने विनय तिवारी को फोन कर के रिपोर्ट दर्ज करने का आदेश दिया तो उस की रिपोर्ट दर्ज हो गई. लेकिन इस पर कोई एक्शन नहीं लिया गया. बाद में राहुल तिवारी ने सीओ देवेंद्र मिश्रा को खबर दी कि विकास दुबे गांव में ही है. देवेंद्र मिश्रा ने यह सूचना एसएसपी दिनेश कुमार पी. को दी. विकास दुबे कोई छोटामोटा अपराधी नहीं था. अलगअलग थानों में उस के खिलाफ हत्या सहित 60 आपराधिक मुकदमे दर्ज थे. ऊपर से उसे राजनीतिक संरक्षण भी मिला हुआ था. एसएसपी दिनेश कुमार पी. ने देवेंद्र मिश्रा को निर्देश दिया कि आसपास के थानों से फोर्स मंगवा लें और छापा मार कर विकास दुबे को गिरफ्तार करें. इस पर देवेंद्र मिश्रा ने बिठूर, शिवली और चौबेपुर थानों से पुलिस फोर्स मंगा ली.

गलती यह हुई कि उन्होंने चौबेपुर थाने को दबिश की जानकारी भी दी और वहां से फोर्स भी मंगा ली. विकास दुबे को रात में दबिश की सूचना थाना चौबेपुर से ही दी गई, जिस की वजह से उस ने भागने के बजाय पुलिस को ही ठिकाने लगाने का फैसला कर लिया. इस के लिए उस ने फोन कर के अपने गिरोह के लोगों को अपने गांव बिकरू बुला लिया. सब से पहले उस ने जेसीबी मशीन खड़ी करवा कर उस रास्ते को बंद किया जो उस के किलेनुमा घर की ओर आता था. फिर अंधेरा घिरते ही अपने लोगों को मय हथियारों के छतों पर तैनात कर दिया. विकास खुद भी उन के साथ था.

योजनानुसार आधी रात के बाद सरकारी गाडि़यों में भर कर पुलिस टीम के 2 दरजन से अधिक जवान तथा अधिकारी बिकरू गांव में प्रविष्ट हुए. लेकिन जैसे ही पुलिस की गाडि़यां विकास के किले जैसे मकान के पास पहुंचीं तो घर की तरफ जाने वाले रास्ते में जेसीबी मशीन खड़ी मिली, जिस से पुलिस की गाडि़यां आगे नहीं जा सकती थीं. निस्संदेह मशीन को रास्ता रोकने के लिए खड़ा किया गया था. सीओ देवेंद्र मिश्रा, दोनों थानाप्रभारियों कौशलेंद्र प्रताप सिंह व महेश यादव और कुछ स्टाफ को ले कर विकास दुबे के घर की तरफ चल दिए. बाकी स्टाफ से कहा गया कि जेसीबी मशीन को हटा कर गाडि़यां आगे ले आएं.

सीओ साहब जिस स्टाफ को ले कर आगे बढ़े थे, उस के चंद कदम आगे बढ़ाते ही अचानक पुलिस पर तीन तरफ से फायरिंग होने लगी. गोलियां विकास के मकान की छत से बरसाई जा रही थीं. अचानक हुई इस फायरिंग से बचने के लिए पुलिस टीम के लोग इधरउधर छिपने की जगह ढूंढने लगे. पूरा गांव काफी देर तक गोलियों की तड़तड़ाहट से गूंजता रहा. काफी देर बाद जब गोलियों की तड़तड़ाहट बंद हुई तो पूरे गांव में सन्नाटा छा गया. सीओ देवेंद्र मिश्रा सहित 8 पुलिस वाले शहीद दबिश देने पहुंची पुलिस टीम पर ताबड़तोड़ गोलियां बरसाई गई थीं,

उस में से बिल्हौर के सीओ देवेंद्र कुमार मिश्रा, एसओ (शिवराजपुर) महेश यादव, चौकी इंचार्ज (मंधना) अनूप कुमार, सबइंस्पेक्टर (शिवराजपुर) नेबूलाल, थाना चौबेपुर का कांस्टेबल सुलतान सिंह, बिठूर थाने के कांस्टेबल राहुल, जितेंद्र और बबलू की गोली लगने से मौत हो गई थी. अचानक हुई ताबड़तोड़ गोलीबारी में बिठूर थाने के एसओ कौशलेंद्र प्रताप सिंह को जांघ और हाथ में 3 गोली लगी थीं. दरोगा सुधाकर पांडेय, सिपाही अजय सेंगर, अजय कश्यप, चौबेपुर थाने का सिपाही शिवमूरत और होमगार्ड जयराम पटेल भी गोली लगने से घायल हुए थे. खास बात यह कि चौबेपुर थाने के इंचार्ज विनय तिवारी और उन की टीम में एक सिपाही शिवमूरत के अलावा कोई घायल नहीं हुआ था. शिवमूरत को भी उस की गलती से गोली लगी. दरअसल, पहले से जानकारी होने की वजह से चौबेपुर की टीम जेसीबी से आगे नहीं बढ़ी थी.

बदमाशों की इस दुस्साहसिक वारदात की जानकारी रात में ही एसएसपी दिनेश कुमार को दी गई. वे एसपी (पश्चिम) डा. अनिल कुमार समेत 3 एसपी और कई सीओ की फोर्स के साथ बिकरू पहुंच गए.  एसओ (बिठूर) समेत गंभीर रूप से घायल 6 पुलिसकर्मियों को रात में ही रीजेंसी अस्पताल में भरती कराने के लिए कानपुर भेज दिया गया. इस वारदात की सूचना मिलते ही आईजी जोन मोहित अग्रवाल और एडीजी जय नारायण सिंह तत्काल लखनऊ से कानपुर के लिए रवाना हो गए. गांव में सुरक्षा व्यवस्था को मजबूत करने के लिए 4 कंपनी पीएसी भी बुलवा ली गई थी.

दूसरी तरफ घटना के बाद कानपुर, कानपुर देहात, कन्नौज, फर्रुखाबाद, इटावा, औरैया की सभी सीमाएं सील कर के पुलिस ने कौंबिंग औपरेशन शुरू कर दिया. कौंबिंग के दौरान बिठूर के एक खेत में छिपे 2 बदमाश पुलिस को दिखाई दे गए. दोनों तरफ से गोलियां चलने लगीं. एनकाउंटर में दोनों बदमाश ढेर हो गए. इन में एक हिस्ट्रीशीटर विकास दुबे का मामा प्रेम प्रकाश पांडेय था और दूसरा उस का चचेरा भाई अतुल दुबे. सीओ देवेंद्र मिश्रा का क्षतविक्षत शव प्रेम प्रकाश के घर में ही मिला था. लूटी गई 9 एमएम की पिस्टल भी प्रेम प्रकाश की लाश के पास मिली. प्रदेश ही नहीं, पूरा देश हिल गया था  सुबह का उजाला बढ़ते ही प्रदेश के एडीजी (कानून व्यवस्था) प्रशांत कुमार तथा स्पैशल टास्क फोर्स के आईजी अमिताभ यश भी अपनी सब से बेहतरीन टीमों को ले कर बिकरू गांव पहुंच गए.

विकास दुबे के बारे में मिली सभी जानकारी ले कर एसटीएफ की कई टीमें उसी वक्त कानपुर, लखनऊ तथा अन्य शहरों के लिए रवाना कर दी गईं. प्रदेश के डीजीपी एच.सी. अवस्थी के लिए यह घटना बड़ी चुनौती थी. उन्होंने विकास दुबे को जिंदा या मुर्दा लाने वाले को 50 हजार रुपए का इनाम देने की घोषणा की. फिर वह लखनऊ से सीधे कानपुर के लिए रवाना हो गए. प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पुलिस अधिकारियों को सख्त आदेश दिए कि किसी भी हालत में इस घटना के लिए जिम्मेदार अपराधियों को उन के अंजाम तक पहुंचाया जाए. मुख्यमंत्री ने सभी शहीद 8 पुलिस वालों के परिवारों को एकएक करोड़ रुपए की आर्थिक मदद देने की भी घोषणा की.

दूसरी तरफ इस घटना के बाद गुस्से में भरी पुलिस की टीमों ने विकास दुबे की तलाश में ताबड़तोड़ काररवाई शुरू कर दी थी. पुलिस की एक टीम ने सुबह 7 बजे विकास के लखनऊ के कृष्णानगर स्थित घर पर दबिश दी. आसपास के लोगों से पता चला कि विकास यहां अपनी पत्नी रिचा दुबे, जो जिला पंचायत सदस्य थी, 2 बेटों आकाश और शांतनु के साथ रहता था. पुलिस को 24 घंटे की पड़ताल के बाद बहुत सारी ऐसी जानकारियां हाथ लगीं, जिस से एक बात साफ हो गई कि विकास दुबे ने उस रात बिकरू गांव में उसे गिरफ्तार करने पहुंची पुलिस पार्टी पर हमला अचानक ही नहीं किया था, बल्कि चौबेपुर थाने के अफसरों की शह पर उस ने पुलिस टीम को मार डालने की पूरी तैयारी की थी.

घायल पुलिसकर्मियों ने जो बताया, उस से एक यह बात भी पता चली कि अचानक हुई ताबड़तोड़ फायरिंग से बचने के लिए पुलिसकर्मियों ने जहां भी छिप कर जान बचाने की कोशिश की उन्हें ढूंढढूंढ कर मारा गया. इसलिए पुलिस को बिकरू के हर घर की तलाशी लेनी पड़ी. पुलिस पार्टी पर हमला करने वाले बदमाशों ने हमले के बाद वारदात में मारे गए पुलिसकर्मियों की एके-47 राइफल, इंसास राइफल, दो 9 एमएम की पिस्टल तथा एक ग्लोक पिस्टल लूट ली थीं. छानबीन में यह बात सामने आ रही थी कि चौबेपुर के थानाप्रभारी विनय कुमार तिवारी ने विकास दुबे को दबिश की सूचना दी थी.

तह तक जाने के लिए अधिकारियों ने चौबेपुर एसओ विनय तिवारी की कुंडली खंगालनी शुरू कर दी. पता चला विनय तिवारी के विकास दुबे से बेहद आत्मीय रिश्ते थे. 2 दिन पहले भी वे विकास दुबे से मिलने उस के गांव आए थे. वरिष्ठ अधिकारियों की एक टीम ने भी विनय तिवारी से विकास दुबे के रिश्तों को ले कर पूछताछ की. इसी थाने के एक अन्य एसआई के.के. शर्मा समेत थाने के सभी कर्मचारियों की विकास दुबे से सांठगांठ का पता चला तो पुलिस ने विकास दुबे के मोबाइल की सीडीआर निकलवा कर उस की जांचपड़ताल शुरू की.

पता चला घटना वाली रात चौबेपुर एसओ विनय तिवारी की विकास दुबे से कई बार बात हुई थी. लिहाजा उच्चाधिकारियों के आदेश पर विनय तिवारी को पूछताछ के लिए हिरासत में ले लिया गया, जबकि एसएसपी ने इस थाने के सभी 200 पुलिस वालों को लाइन हाजिर कर दूसरा स्टाफ नियुक्त कर दिया. विकास दुबे हालांकि इतना बड़ा डौन नहीं था कि पूरे प्रदेश या देश में लोग उस के नाम को जानते हों. लेकिन उस की राजनीतिक पैठ और दुस्साहस ने उसे आसपास के इलाके में इतना दबंग बना दिया था, जिस से उसे पुलिस को घेर कर उन पर हमला करने का हौसला मिला.

किशोरावस्था में ही बन गया था गुंडा विकास ने गुंडागर्दी तभी शुरू कर दी थी जब वह रसूलाबाद में चाचा प्रेम किशोर के यहां रह कर पढ़ता था. जब उस की शिकायत घर तक पहुंची तो प्रेम किशोर ने उसे वापस बिकरू जाने को कह दिया. उसे चाचा ने घर से निकाला तो वह मामा के यहां जा कर रहने लगा. यहीं रहते उस ने ननिहाल के गांव गंगवापुर में पहली हत्या की. तब वह मात्र 18 साल का था. लेकिन इस हत्याकांड में वह सजा से बच गया. यहीं से विकास के आपराधिक जीवन की शुरुआत हुई और वह दिनबदिन बेकाबू होता गया. 1990 में गांव नवादा के चौधरियों ने विकास के पिता की बेइज्जती कर दी थी. उसे पता चला तो उस ने उन्हें उन के घर से निकालनिकाल कर पीटा. ऐसा कर के उस ने चौबेपुर क्षेत्र में अपनी दबंगई का झंडा बुलंद कर दिया.

करीब 20 साल पहले विकास ने मध्य प्रदेश के शहडोल जिले के बुढ़ार कस्बे की रिचा निगम उर्फ सोनू से कानपुर में लव मैरिज की थी. रिचा के पिता और घर वाले इस शादी के खिलाफ थे. उन के विरोध करने पर विकास ने गन पौइंट पर शादी की. फिलहाल उस की पत्नी रिचा जिला पंचायत सदस्य थी. बुलंद हौसलों के बीच 1991 में उस ने अपने ही गांव के झुन्ना बाबा की हत्या कर दी. इस हत्या का मकसद था बाबा की जमीन पर कब्जा करना. इस के बाद विकास ने कौन्ट्रैक्ट किलिंग वगैरह शुरू की. उस ने 1993 में रामबाबू हत्याकांड को अंजाम दिया.

झगड़ा, मारपीट, लोगों से रंगदारी वसूलना और कमजोर लोगों की जमीनों पर कब्जे करना उस का धंधा बन चुका था. उस के रास्ते में जो भी आता, वह उसे इतना डरा देता कि वह उस के रास्ते से हट जाता. अगर कहीं कुछ परेशानी होती तो हरिकृष्ण श्रीवास्तव का एक फोन उस का कवच बन जाता. नेताओं की छत्रछाया में पला गैंगस्टर विकास 1996 के विधानसभा चुनाव के ठीक पहले हरिकृष्ण श्रीवास्तव ने बीजेपी छोड़ कर बीएसपी का दामन थाम लिया और उन्हें पार्टी ने चौबेपुर विधानसभा सीट से टिकट दे दिया. जबकि भाजपा ने संतोष शुक्ला को टिकट दिया. हरिकृष्ण श्रीवास्तव और भाजपा के संतोष शुक्ला के बीच तगड़ा मुकाबला हुआ.

इस चुनाव में विकास दुबे ने इलाके के एकएक प्रधान, ग्राम पंचायत और ब्लौक के सदस्यों को डराधमका कर अपने गौडफादर हरिकृष्ण श्रीवास्तव के पक्ष में मतदान करने को मजबूर कर दिया. इसी चुनाव के दौरान संतोष शुक्ला और विकास दुबे के बीच कहासुनी भी हो गई थी, कड़े मुकाबले के बावजूद हरिकृष्ण श्रीवास्तव इलेक्शन जीत गए. विकास और उस के गुर्गे जीत का जश्न मना रहे थे, तभी संतोष शुक्ला वहां से गुजरे. विकास ने उन की कार रोक कर गालीगलौज शुरू कर दी. दोनों तरफ से जम कर हाथापाई हुई. इस के बाद विकास ने संतोष शुक्ला को खत्म करने की ठान ली.

5 साल तक संतोष शुक्ला और विकास के बीच जंग जारी रही. इस दौरान दोनों तरफ के कई लोगों की जान गई. 1997 में कुछ समय के लिए बीजेपी के सर्मथन से बसपा की सरकार बनी और मायावती मुख्यमंत्री बन गईं. हरिकृष्ण श्रीवास्तव को स्पीकर बनाया गया. बस फिर क्या था विकास दुबे की ख्वाहिशों को पंख लग गए. उस ने हरिकृष्ण श्रीवास्तव को राजनीतिक सीढ़ी बना कर बसपा और भाजपा के कई कद्दावर नेताओं से इतनी नजदीकियां बना लीं कि उस के एक फोन पर ये कद्दावर नेता उस की ढाल बन कर सामने खड़े हो जाते थे, क्योंकि उन सब ने देख लिया था कि विकास राजनीति करने वाले लोगों के लिए वोट दिलाने वाली मशीन है.

विकास ने साल 2000 में ताराचंद इंटर कालेज पर कब्जा करने के लिए शिवली थाना क्षेत्र में कालेज के सहायक प्रबंधक सिद्धेश्वर पांडेय की गोली मार कर हत्या कर दी थी. इस मामले में गिरफ्तार हो कर जब वह कुछ दिन के लिए जेल गया तो उस ने जेल में बैठेबैठे कानपुर के शिवली थानाक्षेत्र में रामबाबू यादव की हत्या करा दी. लेकिन जेल में बंद होने के कारण पुलिस इस मामले में उसे दोषी साबित नहीं कर सकी. सिद्धेश्वर केस में विकास को उम्रकैद की सजा हुई लेकिन उस ने हाईकोर्ट से जमानत हासिल कर ली, जिस के बाद उस की अपील अभी तक अदालत में विचाराधीन है. दुश्मनी ठानने के बाद विकास गोली से बात करता था

शिवली विकास के गांव बिकरू से 3 किलोमीटर दूर है. यहां के लल्लन वाजपेई 1995 से 2017 तक पंचायत अध्यक्ष रहे. जब उन का कार्यकाल समाप्त हुआ तो उन्होंने अगला चुनाव लड़ने का फैसला किया. विकास इस चुनाव में अपने किसी आदमी को अध्यक्ष पद का चुनाव लड़वाना चाहता था. उस ने लल्लन के लोगों को डरानाधमकाना शुरू किया. लल्लन ने उसे रोका तो वह विकास की आंखों में चढ़ गए और उस ने उन्हें सबक सिखाने की ठान ली. ब्राह्मण बहुल इस क्षेत्र में पिछड़ों की हनक को कम करने के लिए विकास कई नेताओं की नजर में आ गया था और वे उसे संरक्षण देने लगे थे. इसी क्षेत्र में कांग्रेस के पूर्व विधायक थे नेकचंद पांडेय. विकास की दबंगई देख कर उन्होंने उसे राजनीतिक संरक्षण देना शुरू कर दिया.

तब वह खुल कर अपनी ताकत दिखाने लगा. उस की दबंगई का कायल हो कर भाजपा के चौबेपुर से विधायक हरिकृष्ण श्रीवास्तव ने भी उस के सिर पर हाथ रख दिया. हरिकृष्ण श्रीवास्तव उसी इलाके में जनता दल, जनता पार्टी से भी विधायक रह चुके थे. इलाके में उन का दबदबा था. उन्होंने चौबेपुर में अपनी राजनीतिक धमक मजबूत करने के लिए विकास दुबे को अपनी शरण में ले लिया. हरिकृष्ण श्रीवास्तव के खिलाफ चुनाव लड़ने के दौरान बीजेपी के नेता संतोष शुक्ला विकास के दुश्मन बन गए. लल्लन और संतोष शुक्ला के करीबी संबंध थे. उन्हीं दिनों भाजपा और बसपा की मिलीजुली सरकार बनी तो मुख्यमंत्री बने कल्याण सिंह. कल्याण सिंह ने संतोष शुक्ला को श्रम संविदा बोर्ड का चेयरमैन बना कर राज्यमंत्री का दर्जा दे दिया था, जिस से संतोष शुक्ला और लल्लन वाजपेई दोनों की ही इलाके में हनक बढ़ गई थी.

हालांकि लखनऊ के कुछ प्रभावशाली भाजपा नेताओं ने संतोष शुक्ला और विकास के बीच सुलह कराने की कोशिश की, लेकिन वे कामयाब नहीं हुए. दरअसल, संतोष शुक्ला ने सत्ता की हनक के बल पर विकास का एनकाउंटर कराने की योजना बना ली थी. एक तो लल्लन वाजपेई की मदद करने के कारण दूसरे अपने एनकाउंटर की साजिश रचने की भनक पा कर विकास को खुन्नस आ गई. उस ने संतोष शुक्ला को खत्म करने का फैसला कर लिया. नवंबर 2001 में जब संतोष शुक्ला शिवली में एक सभा को संबोधित कर रहे थे, तभी विकास अपने गुर्गों के साथ वहां आ धमका और संतोष शुक्ला पर फायरिंग शुरू कर दी. जान बचाने के लिए वह शिवली थाने पहुंचे, लेकिन विकास वहां भी आ धमका और इंसपेक्टर के रूम में छिपे बैठे संतोष को बाहर ला कर मौत के घाट उतार दिया.

जिस तरह पुलिस की मौजूदगी में संतोष शुक्ला की हत्या की गई थी, उस ने पूरे प्रदेश में सनसनी फैला दी थी, इस के बाद पूरे इलाके में विकास की दहशत फैल गई. संतोष शुक्ला के मर्डर के बाद पुलिस विकास दुबे के पीछे पड़ गई. कई माह तक वह फरार रहा. सरकार ने उस के सिर पर 50 हजार का इनाम घोषित कर दिया था. पुलिस एनकाउंटर में मारे जाने के डर से उस ने एक बार फिर अपने राजनीतिक रसूख का इस्तेमाल किया. वह अपने खास भाजपा नेताओं की शरण में चला गया. उन्होंने उसे अपनी कार में बैठा कर लखनऊ कोर्ट में सरेंडर करवा दिया. कुछ माह जेल में रहने के बाद विकास की जमानत हो गई. बाहर आते ही उस ने फिर अपना आतंक फैलाना शुरू कर दिया.

विकास के गैंग के लोगों तथा राजनीतिक संरक्षण देने वालों ने संतोष शुक्ला हत्याकांड में चश्मदीद गवाह बने सभी पुलिसकर्मियों को इतना आतंकित कर दिया कि सभी हलफनामा दे कर गवाही से मुकर गए. अगला निशाना लल्लन वाजपेई पर फलस्वरूप विकास दुबे संतोष शुक्ला हत्याकांड से साफ बरी हो गया. लेकिन इस के बावजूद विकास दुबे के मन में लल्लन वाजपेई को सबक ना सिखा पाने की कसक रह गई थी. क्योंकि उस के साथ शुरू हुई राजनीतिक रंजिश में ही उस ने संतोष शुक्ला की हत्या की थी, इसीलिए वह मौके का इंतजार करने लगा.

जल्द ही उसे यह मौका भी मिल गया. 2002 में पंचायत चुनाव से पहले एक दिन लल्लन के घर पर चौपाल लगी थी. 5 लोग बैठे थे. शाम 7 बजे का समय था. अचानक घर के बगल वाले रास्ते से और सामने से कुछ लोग मोटरसाइकिल से आए और बम फेंकना शुरू कर दिया. साथ ही फायरिंग भी की. दरवाजे की चौखट पर बैठे लल्लन जान बचाने के लिए अंदर भागे. उन की जान तो बच गई लेकिन इस हमले में 3 लोगों की मौत हो गई. गोली लगने से लल्लन का एक पैर खराब हो गया था. इस हमले में कृष्णबिहारी मिश्र, कौशल किशोर और गुलाटी नाम के 3 लोग मारे गए. पुलिस में हत्या का मामला दर्ज हुआ, जिस में विकास दुबे का भी नाम था. लेकिन आरोप पत्र दाखिल करते समय पुलिस ने उस का नाम हटा दिया था.

विकास दुबे ने इस हत्याकांड को जिस दुस्साहस से अंजाम दिया था, सब जानते थे. फिर भी वह अपने रसूख से साफ बच गया था. जबकि अन्य लोगों को सजा हुई. इस के बाद तो उस के कहर और डर के सामने सब ने हथियार डाल दिए. बिकरू और शिवली के आसपास के क्षेत्रों में विकास की दहशत इस कदर बढ़ गई थी कि उस के एक इशारे पर चुनाव में वोट डलने शुरू हो जाते थे. सरकार बसपा, भाजपा या समाजवादी पार्टी चाहे किसी की भी रही  विकास को राजनीतिक संरक्षण देने वाले नेता खुद उस के पास पहुंच जाते थे. 2002 में जब प्रदेश में बसपा की सरकार थी, तो उस का सिक्का बिल्हौर, शिवराजपुर, रिनयां, चौबेपुर के साथसाथ कानपुर नगर में भी चलने लगा था.

विकास ने राजनेताओं के संरक्षण से राजनीति में एंट्री की और जेल में रहने के दौरान शिवराजपुर से नगर पंचायत का चुनाव जीत लिया. इस से उस के हौसले और ज्यादा बुलंद हो गए. राजनीतिक संरक्षण और दबंगई के बल पर आसपास के 3 गांवों में उस के परिवार की ही प्रधानी कायम रही. विकास ने राजनीतिक जड़ें मजबूत करने के लिए लखनऊ में भी घर बना लिया, जहां उस की पत्नी रिचा दुबे के अलावा छोटा बेटा रहता था, जो लखनऊ के एक इंटर कालेज में पढ़ रहा था जबकि उस का बड़ा बेटा ब्रिटेन से एमबीबीएस की पढ़ाई कर रहा है.

यूपी के कई जिलों में विकास दुबे के खिलाफ 60 मामले चल रहे थे. पुलिस ने उस की गिरफ्तारी पर 25 हजार का इनाम रखा हुआ था. लेकिन सामने होने पर भी उसे कोई नहीं पकड़ता था. कानपुर नगर से ले कर देहात तक में विकास दुबे की सल्तनत कायम हो चुकी थी. पंचायत, निकाय, विधानसभा से ले कर लोकसभा चुनाव के वक्त नेताओं को बुलेट के दम पर बैलेट दिलवाना उस का पेशा बन गया था. विकास दुबे के पास जमीनों पर कब्जे, रंगदारी, ठेकेदारी और दूसरे कामधंधों से इतना पैसा एकत्र हो गया था कि उस ने एक ला कालेज के साथ कई शिक्षण संस्थाएं खोल ली थीं.

बिकरू, शिवली, चौबेपुर, शिवराजपुर और बिल्हौर ब्राह्मण बहुल क्षेत्र हैं. यहां के युवा ब्राह्मण लड़के विकास दुबे को अपना आदर्श मानते थे. गर्म दिमाग के कुछ लड़के अवैध हथियार ले कर उस की सेना बन कर साथ रहने लगे थे. आपराधिक गतिविधियों से ले कर लोगों को डरानेधमकाने में विकास इसी सेना का इस्तेमाल करता था. अपने गांव में विकास दुबे ने एनकाउंटर के डर से पुलिस पर हमला कर के 8 जवानों को शहीद तो कर दिया लेकिन वह ये भूल गया कि पुलिस की वर्दी और खादी की छत्रछाया ने भले ही उसे संरक्षण दिया था, लेकिन जब कोई अपराधी खुद को सिस्टम से बड़ा मानने की भूल करता है तो उस का अंजाम मौत ही होती है.

बिकरू गांव में पुलिस पर हमले के बाद थाना चौबेपुर में 3 जुलाई को ही धारा 147/148/149/302/307/394/120बी भादंवि व 7 सीएलए एक्ट के तहत केस दर्ज किया गया था. साथ ही विकास दुबे के साथ उस के गैंग का खात्मा करने के लिए लंबीचौड़ी टीम बनाई गई थी. इस टीम को जल्द से जल्द औपरेशन विकास दुबे को अंजाम तक पहुंचाने के आदेश दिए गए. पुलिस की कई टीमों ने इलैक्ट्रौनिक सर्विलांस के सहारे काम शुरू कर दिया. दूसरी तरफ पुलिस ने अगले 2 दिनों के भीतर विकास दुबे की गिरफ्तारी पर 50 हजार रुपए का इनाम घोषित करने के बाद 3 दिन के भीतर उसे बढ़ा कर 5 लाख का इनामी बना दिया.

विकास दुबे के गांव बिकरू में बने किलेनुमा घर को बुलडोजर चला कर तहसनहस कर दिया गया था. गांव में विकास गैंग के दूसरे सदस्यों के घरों पर भी बुलडोजर चले. साथ ही विकास के गांव तथा लखनऊ स्थित घर में खड़ी कारों को बुलडोजर से कुचल दिया गया. पुलिस की छापेमारी में सब से पहले विकास के साथियों की गिरफ्तारियां और मुठभेड़ में मारे जाने का सिलसिला शुरू हुआ. विकास के मामा प्रेम प्रकाश और भतीजे अतुल दुबे को उसी दिन मार गिराने के बाद एसटीएफ ने सब से पहले कानपुर से विकास के एक खास गुर्गे दयाशंकर अग्निहोत्री को गिरफ्तार किया.

पुलिस अभियान उसी से मिली सूचना के बाद एसटीएफ ने 5 जुलाई को कल्लू को गिरफ्तार किया, जिस ने एक तहखाने और सुरंग में छिपा कर रखे हथियार बरामद करवाए. 6 जुलाई को पुलिस ने नौकर कल्लू की पत्नी रेखा तथा पुलिस पर हुए हमले में मददगार विकास के साढू समेत 3 लोगों को गिरफ्तार किया. 7 जुलाई को पुलिस ने विकास के गैंग में शामिल उस के 15 करीबी साथियों के पोस्टर जारी किए. इसी दौरान पुलिस को विकास की लोकेशन हरियाणा के फरीदाबाद में मिली. लेकिन एसटीएफ के वहां पहुंचने से पहले ही विकास गायब हो गया. लेकिन उस के 3 करीबी प्रभात मिश्रा, शराब की दुकान पर काम करने वाला श्रवण व उस का बेटा अंकुर पुलिस की गिरफ्त में आ गए.

8 जुलाई को एसटीएफ ने हमीरपुर में विकास के बौडीगार्ड व साए की तरह साथ रहने वाले उस के साथी अमर दुबे को मुठभेड़ में मार गिराया. उस पर 25 हजार का इनाम था. अमर दुबे की शादी 10 दिन पहले ही हुई थी. उस की पत्नी को भी पुलिस ने साजिश में शामिल होने के शक में गिरफ्तार कर लिया. पुलिस को सूचना मिली थी कि उस रात पुलिस पर हुए हमले में अमर भी शामिल था. उसी दिन चौबेपुर पुलिस ने विकास के एक साथी श्याम वाजपेई को मुठभेड़ के बाद गिरफ्तार किया. 9 जुलाई को एसटीएफ जब फरीदाबाद में गिरफ्तार अंकुर, श्रवण तथा कार्तिकेय उर्फ प्रभात मिश्रा को ट्रांजिट रिमांड पर कानपुर ला रही थी, तो रास्ते में पुलिस की गाड़ी पंक्चर हो गई.

मौका देख कर प्रभात मिश्रा ने एक पुलिसकर्मी की पिस्टल छीन कर भागने की कोशिश की. प्रभात को पकड़ने के प्रयास में मुठभेड़ के दौरान एनकाउंटर में उस की मौत हो गई. उसी दिन इटावा पुलिस ने बिकरू गांव शूटआउट में शामिल विकास के एक और साथी 50 हजार के इनामी प्रवीण उर्फ बउआ दुबे को भी एनकाउंटर में मार गिराया. विकास के साथियों की ताबड़तोड़ गिरफ्तारियां व एनकाउंटर हो रहे थे, लेकिन एसटीएफ को जिस विकास दुबे की तलाश थी, वह अभी तक पकड़ से बाहर था. फरीदाबाद के एक होटल से फरार होने के बाद पुलिस सीसीटीवी फुटेज के आधार पर उसे पूरे एनसीआर में तलाश रही थी, जबकि विकास दुबे पुलिस को चकमा दे कर मध्य प्रदेश के उज्जैन पहुंच गया था.

वहां 9 जुलाई की सुबह उस ने नाटकीय तरीके से महाकाल मंदिर में अपनी पहचान उजागर कर दी और खुद को पुलिस के हाथों गिरफ्तार करवा दिया. इस नाटकीय गिरफ्तारी की सूचना चंद मिनटों में मीडिया के जरिए न्यूज चैनलों के माध्यम से देश भर में फैल गई. उत्तर प्रदेश एसटीएफ की टीम उसी रात उज्जैन पहुंच गई. उज्जैन पुलिस ने बिना कानूनी औपचारिकता पूरी किए विकास दुबे को यूपी पुलिस की एसटीएफ के सुपुर्द कर दिया. विकास का अंतिम अध्याय  मगर इस बीच एमपी और यूपी पुलिस ने विकास दुबे से जो औपचारिक पूछताछ की थी, उस में उस ने खुलासा किया कि उसे डर था कि गांव बिकरू आई पुलिस टीम उस का एनकाउंटर कर देगी.

चौबेपुर थाने के उस के शुभचिंतक पुलिस वालों ने उसे यह इत्तिला पहले ही दे दी थी. तब उस ने अपने साथियों को बुला कर पुलिस को सबक सिखाने का फैसला किया. विकास दुबे ने यह भी बताया कि वह चाहता था कि मारे गए सभी पुलिस वालों के शव कुएं में डाल कर जला दिए जाएं, ताकि सबूत ही खत्म हो जाएं. इसीलिए उस ने पहले ही कई कैन पैट्रोल भरवा कर रख लिया था. विकास दुबे के साथियों ने शूटआउट में मारे गए 5 पुलिस वालों के शव कुएं के पास एकत्र भी करवा दिए थे, लेकिन जब तक वह उन्हें जला पाते तब तक कानपुर मुख्यालय से अतिरिक्त पुलिस बल आ गया और उन्हें भागना पड़ा.

यह बात सच थी, क्योंकि पुलिस को 5 पुलिस वालों के शव विकास के घर के बाहर कुएं के पास से मिले थे. विकास ने पूछताछ में बताया कि वह सीओ देवेंद्र मिश्रा को पसंद नहीं करता था. चौबेपुर समेत आसपास के सभी थानों के पुलिस वाले उस के साथ मिले हुए थे. लेकिन न जाने क्यों देवेंद्र मिश्रा हमेशा उस का विरोध करते थे. ताकत और घमंड के नशे में चूर कुछ लोग यह भूल जाते हैं कि कुदरत हर किसी को उस के गुनाहों की सजा इसी संसार में देती है. यूपी एसटीएफ की टीम विकास दुबे को ले कर 4 अलगअलग वाहनों से सड़क के रास्ते उज्जैन से कानपुर के लिए रवाना हुई. मीडिया चैनलों की गाडि़यां लगातार एसटीएफ की गाडि़यों का पीछा करती रहीं. हांलाकि एसटीएफ ने लोकल पुलिस की मदद से कई जगह इन गाडि़यों को चकमा देने का प्रयास किया.

10 जुलाई की सुबह 6 बजे के आसपास कानपुर देहात के बारा टोल प्लाजा पर एसटीएफ का काफिला आगे निकल गया, काफिले के पीछे चल रहे मीडियाकर्मियों की गाडि़यों को सचेंडी थाने की पुलिस ने बैरीकेड लगा कर रोक दिया. मीडियाकर्मियों ने पुलिस से बहस की तो कहा गया कि रास्ता अभी के लिए बंद कर दिया गया है. इस के साथ ही हाइवे पर बाकी वाहन भी रोक दिए गए थे. इस काफिले को रोके जाने के 15 मिनट बाद सूचना आई कि विकास दुबे को ले जा रही एसटीएफ की गाड़ी बारिश व कुछ जानवरों के सामने आने से कानुपर से 15 किलोमीटर पहले भौती में पलट गई. पता चला कि गाड़ी पलटने के बाद विकास दुबे ने एक पुलिसकर्मी की पिस्टल छीन कर भागने का प्रयास किया था. तब तक पीछे से दूसरी गाडियां भी पहुंच गईं और विकास दुबे का पीछा कर आत्मसर्मपण के लिए कहा गया, लेकिन वह नहीं रुका और पुलिस पर फायरिंग कर दी.

लिहाजा पुलिस की जवाबी काररवाई में वह घायल हो गया, उसे हैलट अस्पताल भेजा गया. लेकिन वहां पहुंचते ही डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया. विकास दुबे आदतन खतरनाक अपराधी था, जिस के सिर पर कई लोगों की हत्या का आरोप था, ऐसे अपराधी की मौत से किसी को भी हमदर्दी नहीं हो सकती. लेकिन अहम सवाल यह है कि खाकी और खादी के संरक्षण में गैंगस्टर बने विकास दुबे का अंत होने के बाद क्या उन लोगों के खिलाफ कोई काररवाई होगी, जिन्होंने उस के हौसलों को खूनी हवा दी थी?

—कथा पुलिस के अभिलेखों में दर्ज मामलों और पीडि़तों व जनश्रुति के आधार पर एकत्र जानकारी पर आधारित

 

Bijnor News : जिस प्रेमी ने प्रेमिका के लिए प्लौट का नौमिनी बनाया, उसी ने ही ले ली प्रेमी की जान

Bijnor News : मुसकान और शारिक एकदूसरे से दिली मोहब्बत करते थे, ऐसी मोहब्बत कि शारिक ने मुसकान को अपने प्लौट का नौमिनी तक बना दिया था. एक मामले में शारिक के जेल जाने के बाद मुसकान ने उस के जिगरी दोस्त अनस से नजदीकियां बढ़ा लीं. इन दोनों की दोस्ती में फांस बनी मुसकान ने आखिर एक दिन…

दोपहर करीब एक बजे का समय था. मुसकान खाना खाने के बाद घर पर आराम कर रही थी. उस की नजर घड़ी पर गई तो बिस्तर से उठ कर फटाफट तैयार होने लगी. उस ने धानी रंग का टौप और काले रंग की स्किन टाइट जींस पहनी तो उस का खूबसूरत बदन और भी खूबसूरत लगने लगा. कपड़े पहनने के बाद जब उस ने आइने में अपने आप को निहारा तो खुशी से फूली नहीं समाई. यह उस की आदत में भी शुमार था कि रोज आइने के सामने अपने संगमरमरी बदन को देख कर एक बार दिल से मुसकराती थी. वह तैयार हो कर घर से उस स्थान की तरफ निकल गई, जहां वह रोज अपने प्रेमी शारिक उर्फ शेट्टी से मिलती थी. जब वह उस स्थान पर पहुंची तो शारिक वहां पहले से बैठा था. वह बेसब्री से उसी का इंतजार कर रहा था.

मुसकान चुपचाप शारिक के पीछे पहुंची और उस की आंखों को अपने हाथों से बंद कर लिया. यह देख कर पहले तो शारिक हड़बड़ाया लेकिन मुसकान के हाथों को छू कर वह जान गया कि वह कोई और नहीं बल्कि उस की मुसकान है. उस ने मुसकान के हाथों को अपनी आंखों से हटाया तो वह उस के सामने आ कर खड़ी हो गई. उस की खूबसूरती देख शारिक की आंखों में अलग तरह की चमक आ गई.

‘‘क्या बात है मुसकान, आज तो तुम बिजली गिरा रही हो.’’

‘‘धत्त! लगता है, आज तुम ने मुझे बेवकूफ बनाने का इरादा कर रखा है.’’

‘‘नहीं मुसकान, मैं तुम्हें बेवकूफ नहीं बना रहा. तुम तो हीरा हो और हीरे की चमक को सिर्फ जौहरी ही जान सकता है.’’

‘‘अच्छा जौहरी साहब, आप ने इस हीरे की पहचान कर ली हो तो अब जरा यह भी बता दीजिए कि यह हीरे की चमक है या कुछ और…’’ मुसकान उस से नजरें मिलाते हुए बोली.

‘‘यह खूबसूरती और चमक खालिस हीरे की ही हो सकती है. लेकिन इस जौहरी ने अगर अपना जौहर हीरे पर दिखा दिया तो इस हीरे की खूबसूरती और चमक दोगुनी हो जाएगी.’’ शारिक ने मुसकान की आंखों में आंखें डाल कर प्यार से कहा तो मुसकान को भी उस की बात की गहराई समझते देर नहीं लगी. मुसकान अपनी पलकें झुकाते हुए बोली, ‘‘इस हीरे की चाहत सिर्फ तुम हो.’’ इतना कह कर उस ने आस भरी नजरों से शारिक की तरफ देखा तो वह मुसकरा रहा था. शारिक ने मुसकान का हाथ अपने हाथों में लिया और बड़े विश्वास के साथ बोला, ‘‘मुसकान, हम दोनों की चाहत जरूर पूरी होगी.’’

शारिक के प्यार के जुनून को देख कर मुसकान खुश हो गई. मुसकान उत्तर प्रदेश के जनपद बिजनौर के थाना नगीना देहात के गांव हरजानपुर में रहने वाले नाजिम की बेटी थी. उस के 2 भाई थे, जो दूसरे शहर में काम करते थे. मुसकान परिवार में इकलौती बेटी थी, इसी नाते उसे घर में ज्यादा लाड़प्यार मिला. इसी प्यार दुलार ने मुसकान को बेलगाम बना दिया था. घर में मिली खुली छूट से वह बेपरवाह हो गई थी. मुसकान खूबसूरत थी. इस का इल्म उसे तब होता, जब वह आइने के सामने खड़ी होती. अपने आप को आइने में देख कर वह किसी हीरोइन से कम नहीं समझती थी. शुरू में तो मुसकान का मन पढ़ाई में खूब लगा, लेकिन जैसे ही उस के बदन पर सोलहवें साल का यौवन उतरा, पढ़ाई से उस का मन उचट गया और वह सतरंगी सपनों की दुनिया में खोई रहने लगी.

मुसकान में भी दूसरी लड़कियों की तरह अच्छे रहनसहन की ललक थी. वह एक सामान्य परिवार से जरूर थी लेकिन पूरी जिंदगी सुख और खुशी से गुजारना चाहती थी. बिजनौर के मोहल्ला भाटान कुम्हारों वाली गली में शमीम रहते थे. उन के 5 बेटे और एक बेटी थी. बेटी का विवाह हो चुका था. शमीम के सभी बेटे कमाखा रहे थे सिवाय शारिक के. शारिक चौथे नंबर का बेटा था. उसे सीधे तरीके से पैसे कमाना अच्छा नहीं लगता था. उसे अपराध की दुनिया लुभाती थी, जिस में एक झटके में मालामाल हो जाने के रास्ते थे. जैसी चाहत हो, इंसान वैसी ही संगत ढूंढता है. शारिक ने भी अपराध की दुनिया में कदम रखा तो उस के दोस्त भी वैसे ही बन गए. वह आपराधिक वारदातों में शरीक हुआ तो शमीम ने शारिक से किनारा कर लिया.

शारिक ने भी घर जाना बंद कर दिया. वह यारदोस्तों के साथ रहता. जब कभी जेल जाता तो उस के यारदोस्त ही उस की जमानत करा देते. वर्तमान में शारिक पर शहर कोतवाली में ही 7 मुकदमे दर्ज थे. शारिक का हरजानपुर गांव जाना होता था, वहीं उस का एक परिचित रहता था. वहां आनेजाने के दौरान शारिक की मुलाकात मुसकान से हुई थी. इस के बाद दोनों में दोस्ती हो गई. दोनों जबतब मिलने लगे. दिन में मुसकान घर पर अकेली होती थी. इसलिए वह उस के घर पर मिलने आने लगा. इन मुलाकातों में उसे पता चल गया कि मांबाप के काम पर जाने के बाद वह घर में अकेली रहती है. यह जान कर तो उसे जैसे मुंहमांगी मुराद मिल गई.

अब वह उसी समय उस के घर जाता, जब वह घर में अकेली होती. उस से खूब बातें करता, घुमाने ले जाता और उस की पसंद की चीजें खिलातापिलाता. जिस से मुसकान को भी उस का साथ अच्छा लगने लगा था. एक दिन शारिक जब मुसकान के घर पहुंचा तो मुसकान घर में अकेली थी. वह उसी समय नहा कर निकली थी. उस ने बदन पर सिर्फ एक हलकी मैक्सी डाल रखी थी. बाल गीले थे, इसलिए उसने अपना सिर तौलिए से ढक रखा था. उसी ने दरवाजा खोला. शारिक को उस ने अंदर आने को कहा लेकिन उस ने जैसे सुना ही नहीं, वह तो मुसकान के भीगे रूपसौंदर्य में खो सा गया था. उस का दिल कर रहा था कि वह आगे बढ़े और मुसकान को अपनी बांहों में भर ले.

शारिक की निगाहों का निशाना समझ कर मुसकान मुसकरा कर रह गई. फिर वह उसे झिंझोड़ते हुए बोली, ‘‘क्या बात है, कहां खो गए? अंदर भी आओगे या बाहर से ही लौटना है?’’

शारिक हड़बड़ाया, उस की तंद्रा भंग हुई तो एहसास हुआ कि वह अभी बाहर ही खड़ा हुआ है. वह बोला, ‘‘सौरी, क्या करूं, तुम इस समय कुछ ज्यादा ही खूबसूरत लग रही हो, इसलिए तुम्हारे बदन से नजरें हटने का नाम ही नहीं ले रही थीं.’’

‘‘मजाक मत करो, मैं जानती हूं कि मैं इतनी खूबसूरत नहीं लग रही.’’ मुसकान शारिक के मुंह से अपनी तारीफ सुन कर झेंप सी गई.

‘‘मैं सच कह रहा हूं मुसकान, तुम खूबसूरत तो हो ही, आज तो कयामत ढा रही हो.’’

घर के अंदर ले गई मुसकान मुसकान उसे ले कर घर के अंदर आ गई. शारिक उस से बोला, ‘‘देखो मुसकान, मेरी बात तुम्हें कुछ अजीब लग सकती है. मगर यह सच है कि पिछले काफी समय से तुम्हारे प्रति मेरी चाहत बढ़ती जा रही है. मुझे तुम से प्यार हो गया है. बताओ क्या तुम्हें मेरा प्यार स्वीकार है?’’

मुसकान ने मुसकराते हुए शारिक के हाथों को अपने हाथों में लेते हुए कहा, ‘‘हां शारिक, मुझे भी तुम से प्यार है. मुझे भी तुम बहुत अच्छे लगते हो.’’ कह कर मुसकान ने नजरें झुका लीं. मगर उस के शब्दों ने शारिक पर जादू सा असर दिखाया था. शारिक ने आगे बढ़ कर मुसकान को अपनी बांहों में भर लिया और दोनों मस्ती में एकदूसरे को बेतहाशा चूमने लगे. जब शारिक हद से आगे बढ़ने लगा तो मुसकान ने अपने तन को बेकाबू होने से रोका, साथ ही शारिक को भी हटा कर अलग कर दिया. वह अपनी धड़कनों और सांसों पर काबू करने का प्रयास करने लगी.

शारिक को यह अच्छा नहीं लगा, लेकिन उस ने बुरा नहीं माना. उस ने सोचा जब आज इतनी हद पार हो गई है तो किसी और दिन बाकी भी हो जाएगा. दूसरी तरफ मुसकान की धड़कनें और सांसें सामान्य स्थिति में आईं तो वह बोली, ‘‘प्लीज शारिक, इतना तक तो ठीक है लेकिन इस के आगे बढ़ने की कभी उम्मीद न करना और न ही कोशिश करना.’’

‘‘ठीक है, लेकिन जब हम प्यार करते हैं, हमारे दिल मिल चुके हैं तो शारीरिक मिलन में क्या दिक्कत है?’’

‘‘नहीं, जब तक मैं इस के लिए पूरी तरह तैयार नहीं होऊंगी, तब तक ऐसावैसा कुछ नहीं करूंगी.’’

मुसकान ने शारिक को कुछ इस तरह समझाया कि वह बुरा भी न माने और वह उसे अपनी जरूरतों को पूरा करने का जरिया बनाए रखे. शारिक मुसकान की जरूरतों का पूरापूरा खयाल रखने लगा. मुसकान ने जब पूरी तरह से शारिक को अपने ऊपर मेहरबान देखा तो एक दिन उस की चाहत को भी पूरा कर दिया. इस के बाद तो वह उस का पूरी तरह से दीवाना हो गया. मुसकान को बनाया नौमिनी शारिक ने शहर में एक प्लौट खरीद रखा था, दीवानगी में उस ने मुसकान को प्लौट का नौमिनी बना दिया. उस ने नोटरी से प्रमाणित एक शपथपत्र में मुसकान को लिख कर दे दिया कि अगर उसे कुछ हो जाता है तो उस प्लौट की मालकिन मुसकान होगी, वह उसे बेच भी सकती है.

इस शपथपत्र से मुसकान बहुत खुश हुई. खुशी की बात भी थी, क्योंकि वक्तबेवक्त वह प्लौट उस के बहुत काम आ सकता था’ इसी बीच शारिक लंबे समय के लिए जेल चला गया. मुसकान अकेली पड़ गई. शारिक के न होने से उस की शारीरिक और आर्थिक जरूरतें दोनों ही पूरी नहीं हो पा रही थीं. ऐसे में मुसकान की नजर इधरउधर पड़ने लगी. उसे अपनी नजर को दूर तक नहीं ले जाना पड़ा. शारिक का एक जिगरी दोस्त था अनस. अनस शहर कोतवाली के काजीपाड़ा मोहल्ले में रहता था. अनस भी आपराधिक प्रवृत्ति का था. उस पर नगीना देहात थाने में एनडीपीएस ऐक्ट और बाइक चोरी के 2 मुकदमे दर्ज थे.

दोस्ती के कारण हर गलत काम में दोनों एकदूसरे का साथ देते थे. दोनों ही नशे के भी आदी थे. अनस शारिक और मुसकान के प्रेम संबंध से पूरी तरह वाकिफ था. मुसकान भी अनस को बखूबी जानती थी. शारिक के न होने पर वह अनस की ही मदद लेने लगी. जब शारिक ने अनस को पहली बार मुसकान से मिलाया था तो अनस मुसकान को एकटक देखता रह गया था. मुसकान अनस से बड़े प्यार से पेश आने लगी. अपनी आंखों से अनस को उस की चाहत का दीदार कराने की कोशिश करने लगी. बातोंबातों और हंसीमजाक में उस के बदन से चिपकने लगी तो अनस को भी भांपते देर नहीं लगी कि मुसकान का मन बदल रहा है. जो वह चाहता था, उसे हकीकत में होता देख खुशी फूला नहीं समाया.

अब मुसकान की वजह से 2 दोस्तों की गहरी दोस्ती खतरे में आने वाली थी. वैसे भी अपराध की दुनिया में कोई स्थाई दोस्त या दुश्मन नहीं होता, मतलब और समय के हिसाब से सब कुछ बदलता रहता है. अनस मुसकान को पाने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार था. एक दिन जब मुसकान उस के कंधे पर सिर रख कर चाहत दर्शाने लगी तो अनस से रहा न गया, वह बोला, ‘‘तुम्हारा तनमन बहुत खूबसूरत है. तुम इतनी प्यारी हो कि तुम्हारी तसवीर मेरे छोटे से दिल में बस गई है. उस तसवीर को मैं हमेशा अपने दिल में बसाए रखना चाहता हूं. ऐसे में मेरा यह जानना जरूरी है कि तुम मेरे दिल और नजरों की चाहत को पूरा करने की तमन्ना रखती हो कि नहीं?’’

मुसकान अनस के खूबसूरत जज्बातों को बड़े ही प्यार से सुनसमझ रही थी. उस की बात सुन कर मुसकान बोली, ‘‘अनस, मैं भी तुम से यहीं कहना चाह रही थी लेकिन बारबार मेरे जज्बात सीने में कैद हो कर रह जाते थे. यह सोच कर कि कहीं तुम मेरे दिल की बात को न समझ पाए तो मैं अंदर से टूट जाऊंगी.

‘‘लेकिन आज तुम्हारी बातें सुन कर मेरे दिल को बहुत सुकून पहुंचा है. हम दोनों के विचार आपस में मिलते हैं, यह जान कर मुझे बेहद खुशी हुई है. मैं भी तुम्हारे साथ जिंदगी बिताने का सपना देख रही थी, जो आज सच हो गया.’’ भावविभोर हो कर मुसकान अनस के सीने से लग गई. मुसकान ने बदल दिया प्रेमी अनस ने भी उसे अपनी बांहों के घेरे में ले लिया. इस से दोनों ने राहत की सांस ली और एकदूसरे के प्यार की गरमी को नजदीक से महसूस किया. इस के बाद दोनों के बीच एक बार जो संबंध बने, वह बेरोकटोक बनने लगे. 21 जुलाई की सुबह 6 बजे का समय था. खेतों पर काम करने वाले मजदूर काम पर जाने लगे थे. थाना कीरतपुर क्षेत्र के मोहल्ला अफगानान के पश्चिम में वासित खां के आम के बाग में मजदूरों ने एक चारपाई पर किसी अज्ञात युवक की लाश पड़ी देखी.

मजदूरों ने यह सूचना मोहल्ले वालों को दी. मोहल्ले वालों ने जा कर देखा तो वाकई वहां किसी युवक की लाश पड़ी थी. लाश मिलने की सूचना कीरतपुर थाना पुलिस को दे दी गई. थाना इंसपेक्टर सतेंद्र कुमार पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. उन्होंने लाश का निरीक्षण किया. मृतक की उम्र करीब 27-28 साल रही होगी. उस के माथे पर 3 गहरे घाव थे, जो किसी धारदार हथियार से किए गए मालूम हो रहे थे. कपड़ों की तलाशी लेने पर मृतक की जेब से जो आधार कार्ड मिला, उस से पता चला कि वह लाश शमीम के बेटे शारिक की है. इंसपेक्टर सतेंद्र कुमार ने मृतक शारिक के घरवालों को घटना की सूचना भिजवा दी. फिर जरूरी काररवाई कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भेज दिया और थाने वापस आ गए.

शारिक के पिता शमीम थाने आए तो उन की तरफ से अज्ञात के खिलाफ भादंवि की धारा 302 के तहत मुकदमा दर्ज करा दिया. केस की जांच शुरू करते हुए इंसपेक्टर सतेंद्र कुमार ने शमीम से पूछताछ की तो उन्होंने बताया कि डेढ़दो साल से शारिक घर नहीं आया था. वह अपने दोस्तों के साथ ही रहता था, जेल जाता था तो पता नहीं कौन लोग उस की जमानत कराते थे. इंसपेक्टर सतेंद्र कुमार ने शारिक के जमानतदारों व दोस्तों का पता लगाया तो उन में से कुछ नाम शक के घेरे में आए. उन सब की डिटेल्स खंगाली गई तो उन में से अनस नाम के युवक पर उन का शक पुख्ता हो गया. अनस ही वह व्यक्ति था जो शारिक के सब से करीब था. दोनों हर काम साथ करते थे.

घटना वाले दिन की अनस के फोन की लोकेशन शारिक के साथ घटनास्थल की आ रही थी. शारिक और अनस की काल डिटेल्स में एक नंबर कौमन था, जिस पर दोनों की बातें होती थीं, उस नंबर से घटना की रात 12 बजे शारिक के नंबर पर काल भी की गई थी, शारिक ने बात भी की थी. जांच में वह नंबर मुसकान का निकला. शारिक की हत्या में दोनों का हाथ होने के पुख्ता सुबूत मिले तो इंसपेक्टर सतेंद्र कुमार ने दोनों की गिरफ्तारी के प्रयास शुरू कर दिए. लेकिन दोनों ही घर से गायब थे. 25 जुलाई, 2020 की सुबह करीब सवा 5 बजे इंसपेक्टर सतेंद्र कुमार ने दोनों को मोतीचूर गेट के पास से गिरफ्तार कर लिया. थाने ला कर जब सख्ती से पूछताछ की तो दोनों ने अपना जुर्म स्वीकार कर लिया और हत्या की वजह भी बयां कर दी.

अनस और मुसकान के बीच के संबंध इतने मजबूत हो गए थे कि दोनों निकाह कर के एक साथ रहने की सोचने लगे थे. इन सब में सब से बड़ी अड़चन था शारिक. शारिक घटना से कुछ समय पहले ही एनडीपीएस के एक मामले में जमानत पर जेल से छूटा था. जब से वह आया था, दोनों खुल कर नहीं मिल पा रहे थे. मुसकान को आ गया लालच मुसकान अगर अनस के साथ रहती तो शारिक से मिलने वाला प्लौट उस के हाथ से चला जाता और शारिक भी उस की और अनस की जान का दुश्मन बन जाता. ऐसे में अनस के साथ मिल कर शारिक को ही अपने रास्ते से हटाने की योजना मुसकान ने बना ली.

शारिक के हटने से प्लौट और अनस दोनों ही उसे मिल जाने वाले थे. अनस को भी एक तरफ मुसकान मिलती तो दूसरी तरफ मुसकान की वजह से प्लौट भी उस का हो जाता, इसलिए वह अनस की हत्या करने को तैयार हो गया. दूसरी ओर शारिक को इस बात की भनक तक नहीं थी कि उस की प्रेमिका उस से बेवफाई और दोस्त दगाबाजी करने पर उतर आए हैं. 20-21 जुलाई की रात अनस ने शारिक के साथ शराब पी. उस ने खुद तो कम पी, शारिक को अधिक पिलाई. अनस उसे बातों में लगा कर कीरतपुर के मोहल्ला अफगानान में वासित खां के आम के बाग में ले गया.

रात 12 बजे मुसकान ने फोन किया तो शारिक ने मुसकान से बात की. उस के लगभग एक घंटे बाद नशे में बेसुध हो कर शारिक वहीं पड़ी चारपाई पर लुढ़क गया. अनस ने साथ लाए सब्बल से बेसुध पड़े शारिक के माथे पर 3 प्रहार किए, जिस से उस की मौत हो गई. इस के बाद अनस ने शारिक का मोबाइल जेब से निकाल लिया. फिर सब्बल और शारिक का मोबाइल छिपा कर घर लौट गया. पकड़े जाने के डर से वह मुसकान के साथ घर से फरार हो गया.

लेकिन उन का जुर्म छिप न सका और दोनों कानून की गिरफ्त में आ गए. अनस की निशानदेही पर शारिक का मोबाइल और हत्या में इस्तेमाल सब्बल बरामद कर लिया गया. इस के अलावा पुलिस ने मुसकान और अनस का मोबाइल, मुसकान का आधार कार्ड, शारिक का आधार कार्ड और शपथपत्र की छाया प्रति भी बरामद कर ली. कागजी खानापूर्ति पूरी करने के बाद दोनों को न्यायालय में पेश करने के बाद जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Crime News : फिरौती नहीं दी तो गला दबाकर कर दी हत्या

Crime News : उत्तर प्रदेश में बढ़ रही आपराधिक घटनाएं बता रही हैं कि अपराधी अब बेलगाम हो चुके हैं. कानपुर, गोंडा और गोरखपुर में अपहरण के बाद हुई हत्याओं ने साबित कर दिया कि अब अपराधियों के दिल में पुलिस नाम का कोई डर नहीं है.  लगातार बढ़ रही घटनाओं से पुलिस भी शक के घेरे में आ रही है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गृह जनपद में 14 वर्षीय बलराम गुप्ता की अपहरण के बाद हुई हत्या से प्रदेश के लोगों में डर बैठ गया है. लोगों का सोचना है कि जब मुख्यमंत्री के जिले के लोग ही सुरक्षित नहीं हैं तो और लोग कैसे सुरक्षित रह सकते हैं.

गोरखपुर जिले के थाना पिपराइच के गांव जंगल छत्रधारी टोला मिश्रौलिया के रहने वाले बच्चे बलराम गुप्ता का जिस तरह अपहरण करने के बाद उस की हत्या कर दी गई, उस से पूरे क्षेत्र में सनसनी फैल गई. 5वीं कक्षा में पढ़ने वाला बलराम गुप्ता 26 जुलाई, 2020 को दोपहर 12 बजे खाना खा कर रोजाना की तरह घर से बाहर खेलने निकला. अपने दोस्तों के साथ खेलने के बाद वह अकसर डेढ़दो घंटे में घर लौट आता था, लेकिन उस दिन वह घर नहीं लौटा. उस की मां और बहन ने उसे आसपास ढूंढा, लेकिन बलराम के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली. बलराम के पिता महाजन गुप्ता घर के पास में ही पान की दुकान चलाते थे. इस के अलावा वह प्रौपर्टी डीलिंग का काम भी करते थे.

जब उन्हें पता लगा कि बलराम दोपहर के बाद से गायब है तो वह भी परेशान हो गए. करीब 3 बजे महाजन गुप्ता के मोबाइल फोन पर एक ऐसी काल आई जिस से घर के सभी लोग असमंजस में पड़ गए. फोन करने वाले ने कहा कि तुम्हारा बेटा बलराम हमारे कब्जे में है. अगर उसे जिंदा चाहते हो तो एक करोड़ रुपए का इंतजाम कर लो, अन्यथा बहुत पछताना पड़ेगा. यह खबर सुनते ही महाजन गुप्ता घबरा गए. उन्होंने अपहर्त्ता से कहा कि वह उन के बेटे का कुछ न करें. जैसा वे कहेंगे वैसा ही करने को तैयार हैं. बलराम अपनी 5 बहनों के बीच इकलौता भाई था, इसलिए वह घर में सभी का लाडला था. बलराम के अपहरण की जानकारी उस की मां और बहनों को हुई तो सभी परेशान हो गईं.

महाजन गुप्ता की आर्थिक स्थिति इतनी मजबूत नहीं थी कि वह एक करोड़ रुपए की व्यवस्था कर सकें, इसलिए वह यह सोचसोच कर परेशान हो रहे थे कि इतने पैसों का इंतजाम कहां से करें. उसी दौरान अपहर्त्ताओं ने उन्हें दोबारा फोन किया, ‘‘एक बात याद रखना पुलिस को सूचना देने की भूल मत करना…’’

‘‘नहींनहीं, मैं ऐसा हरगिज नहीं करूंगा. लेकिन आप जितने पैसे मांग रहे हैं, मेरे पास नहीं हैं. अगर कुछ कम कर लेंगे तो बड़ी मेहरबानी होगी.’’ महाजन गुप्ता ने गिड़गिड़ाते हुए कहा.

‘‘इस बारे में हम 5 बजे के करीब फिर बात करेंगे. तब तक तुम पैसों का इंतजाम करो.’’ अपहर्त्ता ने कहा.

महाजन को लगा कि वह अपहर्त्ताओं द्वारा मांगी गई फिरौती का इंतजाम नहीं कर सकते, इसलिए उन्होंने इस की जानकारी पुलिस को दे दी. बच्चे के अपहरण की सूचना मिलते ही थाना पपराइच पुलिस उसी समय महाजन के घर पहुंच गई. घर वालों से बातचीत करने के बाद पुलिस ने उन बच्चों से भी पूछताछ की, जिन के साथ बलराम अकसर खेला करता था. थाना पुलिस अभी यह जांच कर ही रही थी कि पुलिस को सूचना मिली कि गांव से 3-4 किलोमीटर दूर नहर में एक बच्चे की लाश पड़ी है. सूचना मिलने पर पुलिस महाजन गुप्ता को ले कर नहर पर पहुंच गई. नहर में मिली लाश बलराम की ही निकली, जिस की शिनाख्त महाजन ने कर ली.

बेटे की लाश देखते ही महाजन गुप्ता गश खा कर वहीं गिर गए. गांव में यह खबर फैली तो सभी सन्न रह गए. महाजन के घर में तो हाहाकार मच गया. गांव वाले समझ नहीं पा रहे थे कि प्रदेश में यह क्या हो रहा है. अपराधी बेलगाम हो कर वारदात पर वारदात कर रहे हैं और पुलिस कान में तेल डाले सो रही है. लिहाजा बलराम की हत्या के बाद ग्रामीणों में पुलिस के प्रति आक्रोश बढ़ने लगा, जिस के बाद खबर मिलने पर जिला स्तर के पुलिस अधिकारी भी मौके पर पहुंच गए. चूंकि मामला प्रदेश के मुख्यमंत्री के गृह जनपद का था, इसलिए मुख्यमंत्री को भी इस घटना की जानकारी मिल गई. उन्होंने मामले को गंभीरता से लेते हुए शीघ्र ही केस का खुलासा करने के आदेश दिए.

मुख्यमंत्री के आदेश पर थाना पुलिस के अलावा क्राइम ब्रांच और एसटीएफ भी केस को खोलने में जुट गई. पुलिस टीमों ने सब से पहले महाजन गुप्ता से पूछा कि उन की किसी से कोई रंजिश तो नहीं है. महाजन ने जब दुश्मनी होने से इनकार कर दिया तो जांच टीमों ने उस फोन नंबर की जांच शुरू कर दी,जिस से महाजन के पास फिरौती की काल आई थी. उस फोन नंबर की जांच के सहारे पुलिस रिंकू नाम के उस शख्स के पास पहुंच गई, जिस ने वह सिम कार्ड फरजी आईडी पर दिया था. रिंकू ने बताया कि वह सिम उस ने दयानंद राजभर नाम के व्यक्ति को दिया था. रिंकू को हिरासत में लेने के बाद पुलिस ने  उस की निशानदेही पर दयानंद राजभर को भी गिरफ्तार कर लिया. उस ने स्वीकार कर लिया कि बलराम की हत्या में अजय चौहान और नितिन चौहान भी शामिल थे. उन्होंने फिरौती के चक्कर में उस की हत्या की थी.

बलराम की हत्या का केस लगभग खुल चुका था. अब केवल अन्य अभियुक्तों की गिरफ्तारी बाकी थी. पुलिस टीमों ने अन्य अभियुक्तों की तलाश में संभावित स्थानों पर दबिश डालनी शुरू की. अगले दिन 27 जुलाई को पुलिस को सूचना मिली कि आरोपी अजय चौहान और नितिन उर्फ मुन्ना चौहान को हैदरगंज के गुलरिहा गांव में रहने वाले उन के एक रिश्तेदार ने कमरे में बंद कर लिया है. सूचना मिलने पर भारी तादाद में पुलिस गुलरिहा पहुंच गई और दोनों आरोपियों को गिरफ्तार कर थाने ले आई. अब तक पुलिस के हत्थे 5 आरोपी चढ़ चुके थे, जिन में 3 लोग बलराम के अपहरण और हत्या में शामिल थे और 2 पर फरजी कागजात के जरिए सिम कार्ड बेचने की बात सामने आई.

पूछताछ में अभियुक्तों ने बताया कि उन्हें खबर मिली थी कि महाजन गुप्ता प्रौपर्टी डीलिंग में अच्छी कमाई करते हैं. हाल ही में उन्होंने अपनी कोई जमीन अच्छे पैसों में बेची थी. मोटी फिरौती के लालच में उन्होंने उन के इकलौते बेटे बलराम का अपहरण किया था. बलराम का अपहरण करने के बाद वे उसे एक दुकान में ले गए थे और भेद खुलने के डर से उस की गला घोंट कर हत्या कर दी थी. फिर उस की लाश नहर में डाल आए थे. लाश ठिकाने लगाने के बाद आरोपी नितिन उर्फ मुन्ना चौहान और अजय चौहान गुलरिहा स्थित अपनी मौसी के घर छिपने के लिए पहुंचे. उन्होंने मौसी को सच्चाई बता दी. मौसी को इस बात का डर था कि कहीं उन के चक्कर में पुलिस एनकाउंटर कर के उस के बच्चों की जान न ले ले, इसलिए उन्होंने आत्मसमर्पण करने की सलाह दी.

दोनों आरोपियों को डर था कि आत्मसमर्पण के बाद भी पुलिस उन का एनकाउंटर कर सकती है. तब रिश्तेदारों ने पूरे गांव वालों के सामने उन का आत्मसमर्पण करने की योजना बनाई. अजय और नितिन को एक कमरे में बंद कर उन्होंने पुलिस को फोन कर दिया और जब पुलिस उन दोनों को गिरफ्तार कर ले जा रही थी तो उस समय पूरा गांव जमा हो गया था. 14 वर्षीय बलराम के अपहरण और हत्या के आरोप में पुलिस ने 5 अभियुक्तों को गिरफ्तारकर लिया. एसएसपी डा. सुनील गुप्ता ने लापरवाही बरतने के आरोप में एक दरोगा और 2 सिपाहियों को सस्पेंड कर दिया. उधर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बलराम गुप्ता की हत्या पर संवेदना व्यक्त की और उस के परिजनों को 5 लाख रुपए की सहायता राशि जिलाधिकारी के माध्यम से भिजवाई.

बलराम एक साल पहले एक रिश्तेदार के घर से रहस्यमय तरीके से लापता हो गया था, जिसे 4-5 दिन बाद पुलिस ने कुसमही के जंगल से बरामद किया था. लेकिन इस बार गायब होने पर उस की लाश मिली.

Extramarital Affair : कोल्‍ड ड्रिंक में नशीली गोलियां मिला कर पहले पति को पिलाया, फिर किया कत्‍ल

Extramarital Affair : महत्त्वाकांक्षी होना कोई गलत बात नहीं है. लेकिन उस के चक्कर में देहरी लांघ जाना ठीक नहीं. 2 बच्चों की मां गजाला इस बात को समझ जाती तो उस का पति शाहिद तो जीवित होता ही, साथ ही गजाला को भी जेल न जाना पड़ता…

10 जुलाई, 2020 की सुबह आगरा के महात्मा दूधाधारी इंटर कालेज के पास नगला कमाल के रास्ते पर एक युवक की लाश पड़ी थी. सूचना मिलते ही मौके पर गांव वाले पहुंच गए, भाजपा नेता उदय प्रताप भी वहां पहुंचे. उन्होंने इस की सूचना थाना खेरागढ़ पुलिस को दे दी. लाश पड़ी होने की सूचना पा कर थानाप्रभारी अवधेश अवस्थी पुलिस टीम के मौके पर पहुंच गए. वहां पहुंच कर उन्होंने फौरेंसिक टीम और डौग स्क्वायड टीम को भी बुलवा लिया. इस के बाद थानाप्रभारी ने लाश का निरीक्षण किया. मृतक की उम्र 28 से 30 वर्ष के बीच रही होगी. उस के गले पर किसी तेज धारदार हथियार के निशान थे.

कपड़ों की तलाशी ली गई तो उस की पैंट की जेब में आधार कार्ड मिला. आधार कार्ड मृतक का ही था. उस में उस का नाम शाहिद खान लिखा था. पता कटघर ईदगाह, आगरा लिखा था. इस के अलावा कोई साक्ष्य नहीं था. आधार कार्ड को जाब्ते में लेने के बाद थानाप्रभारी ने जरूरी काररवाई पूरी कर लाश पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भेज दी. फिर थाने वापस लौट आए. पुलिस ने इस की सूचना मृतक के घरवालों को दे दी. शाहिद की हत्या की खबर मिलते ही घर में हाहाकार मच गया. घर वाले थाने पहुंच गए. थानाप्रभारी अवस्थी ने उन से पूछताछ की तो पता चला मृतक शाहिद खान खुद का टैंपो चलाता था.

4 साल से वह पत्नी गजाला और 2 बच्चों के साथ रैना नगर, धनौली में किराए पर रह रहा था. उन से पूछताछ के बाद पुलिस ने अज्ञात के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया. थानाप्रभारी अवधेश अवस्थी मृतक के घर गए तो घर पर शाहिद की पत्नी गजाला मिली. पूछने पर उस ने बताया कि एक दिन पहले यानी 9 जुलाई की शाम शाहिद टैंपो ले कर निकला था, तब से वापस नहीं आया. थाने लौटने के बाद थानाप्रभारी अवस्थी ने मामले पर विचार किया कि कहीं शाहिद की हत्या की वजह लूटपाट तो नहीं है, क्योंकि उस का टैंपो भी नहीं मिला था. लेकिन अगले ही पल दिमाग में आया कि हत्या लूट के लिए की गई होती तो लुटेरे लाश को इतना दूर क्यों फेंकते.

इंसपेक्टर अवस्थी ने दिमाग पर जोर दिया तो उन्हें शाहिद की पत्नी गजाला की हरकतें कुछ अटपटी लगीं. जब वह शाहिद के घर गए थे तो गजाला घबराई हुई थी. वह रो तो रही थी लेकिन उस की आंखें बराबर इधरउधर चल रही थीं. वह बराबर पुलिस की गतिविधि पर नजर रख रही थी. थानाप्रभारी को गजाला पर शक हुआ तो उन्होंने उस के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई. उस की काल डिटेल्स में एक ऐसा नंबर था, जिस पर वह रोजाना बातें करती थी. वह नंबर रैना नगर के ही रहने वाले राहुल हुसैन का था. इस के बाद सर्विलांस टीम की मदद ली गई. सर्विलांस टीम ने जांच की तो पता चला घटना वाले दिन 9 जुलाई की शाम को राहुल हुसैन शाहिद खान के साथ था.

यह जानकारी मिलने के बाद पुलिस ने 12 जुलाई को राहुल हुसैन को गिरफ्तार कर लिया. उस से पूछताछ के बाद पुलिस ने उस के दोस्त इमरान को भी उठा लिया. दोनों से पूछताछ के बाद गजाला को उस के घर से गिरफ्तार किया गया. तीनों से जब पुलिसिया अंदाज में पूछताछ की गई तो उन्होंने अपना जुर्म स्वीकार कर लिया. 30 वर्षीय शाहिद खान आगरा के खेरागढ़ के कटघर ईदगाह (रकाबगंज) मोहल्ले में रहने वाले हबीब खान का बेटा था. 2 भाइयों में सब से बड़ा शाहिद अपना खुद का टैंपो चलाता था. 8 साल पहले शाहिद का निकाह रैना नगर, धनौली (मलपुरा) में रहने वाली गजाला के साथ हुआ था. शाहिद गजाला जैसी खूबसूरत पत्नी पा कर बहुत खुश था. जबकि सांवले रंग के साधारण शौहर शाहिद से गजाला खुश नहीं थी.

दरअसल गजाला ने अपने मन में जिस तरह शौहर की कल्पना की थी, शाहिद वैसा नहीं था. गजाला ने सपना संजो रखा था कि उस का शौहर हैंडसम और सुंदर होगा. जबकि शाहिद उस की अपेक्षाओं के बिलकुल विपरीत था. गजाला अपने हिसाब से उसे मौडर्न बनाने की कोशिश भी करती, शाहिद फैशनेबल कपड़े पहनता भी तो उस पर वे जंचते नहीं थे, वह रंगरूप से मात खा जाता था. गजाला मन मसोस कर रह जाती. इसी चक्कर में वह कुंठित और चिड़चिड़ी हो गई. वह बातबात में शाहिद से झगड़ने लगती थी. उस की यह आदत सी बन गई थी. पतिपत्नी के रोजरोज के झगड़ों से शाहिद के घरवाले परेशान रहने लगे. इस सब के चलते गजाला एक बेटा और एक बेटी की मां बन गई. 4 साल पहले शाहिद रैना नगर, धनौली में ससुराल के पास किराए पर कमरा ले कर रहने लगा.

शाहिद सुबह टैंपो ले कर निकल जाता तो देर रात घर लौटता था. उस के चले जाने के बाद चंचल हसीन और खूबसूरत गजाला को रोकनेटोकने वाला कोई नहीं था. उस का मन नहीं लगता तो वह बनसंवर कर घर से निकल कर ताकझांक करने लगती. चूंकि पास में ही उस का मायका था, इसलिए वह कुछ देर के लिए मायके चली जाती थी. गजाला भले ही 2 बच्चों की मां बन गई थी, लेकिन उस की महत्त्वाकांक्षा उसे चंचल बना रही थी, मर्यादा हनन करने को उकसा रही थी. रैना नगर में ही राहुल हुसैन रहता था. वह अपने मांबाप की एकलौती संतान था. देखने में स्मार्ट और अविवाहित. गजाला जब उस के मोहल्ले में पति के साथ रहने आई, तभी उस की नजर गजाला पर पड़ चुकी थी. उसे गजाला का रूपसौंदर्य पहली नजर में ही भा गया था.

गजाला राहुल से परिचित थी. शाहिद के घर न होने पर राहुल उसके पास पहुंचने लगा. गजाला को उस से बात करना अच्छा लगता था. चंद मुलाकातों में दोनों के बीच काफी नजदीकियां हो गईं. राहुल और गजाला में हंसीमजाक भी होने लगी. गजाला राहुल के मजाक का बिलकुल बुरा नहीं मानती थी.  राहुल बातूनी था, इसलिए वह भी उस से खूब बतियाती थी. दरअसल गजाला के दिल में राहुल के प्रति चाहत पैदा हो गई थी.  राहुल जब भी उस के रूपसौंदर्य की तारीफ करता तो गजाला के शरीर में तरंगें उठने लगती थीं. 2 बच्चों की मां बनने के बाद गजाला का गदराया यौवन और रसीला हो गया था. आंखों में मादकता छलकती थी.

एक दिन राहुल ने उस के हुस्न और जिस्म की तारीफ  की तो वह गदगद हो गई. फिर वह बुझे मन से बोली, ‘‘ऐसी खूबसूरती किस काम की, जिस पर शौहर ध्यान ही न दे.’’

राहुल को गजाला की ऐसी ही किसी कमजोर नस की ही तलाश थी. जैसे ही उस ने पति की बेरुखी का बखान किया, राहुल ने उस का हाथ थाम लिया, ‘‘तुम क्यों चिंता करती हो, हीरे की परख जौहरी ही करता है. आज से तुम्हारे सारे दुख मेरे हैं और मेरी सारी खुशियां तुम्हारी.’’

राहुल की लच्छेदार बातों ने गजाला का मन मोह लिया. वह उस की बातों और व्यक्तित्व की पूरी तरह कायल हो गई. उस के दिल की धड़कनें बढ़ गईं. मन बेकाबू होने लगा तो गजाला ने थरथराते होठों से कहा, ‘‘अब तुम जाओ. उन के आने का समय हो गया है. कल दोपहर में आना, मैं इंतजार करूंगी.’’

राहुल ने वह रात करवटें बदलते काटी. सारी रात वह गजाला के खयालों में डूबा रहा. सुबह वह देर से जागा. दोपहर तक सजसंवर कर वह गजाला के घर पहुंचा. गजाला उसी का इंतजार कर रही थी. उस ने उस दिन खुद को विशेष ढंग से सजायासंवारा था. राहुल ने पहुंचते ही गजाला को अपनी बांहों में समेट लिया, ‘‘आज तो तुम हूर लग रही हो.’’

‘‘थोड़ा सब्र से काम लो. इतनी बेसब्री ठीक नहीं होती.’’ गजाला ने मुसकरा कर कहा, ‘‘कम से कम दरवाजा तो बंद कर लो, वरना किसी आनेजाने वाले की नजर पड़ गई तो हंगामा हो जाएगा.’’

राहुल ने फौरन कमरे का दरवाजा बंद कर लिया. जैसे ही उस ने अपनी बांहें फैलाईं तो गजाला उन में समा गई. राहुल के तपते होंठ गजाला के नर्म और सुर्ख अधरों पर जम गए. इस के बाद एक शादीशुदा औरत की पवित्रता, पति से वफा का वादा सब कुछ जल कर स्वाहा हो गया. अवैध संबंधों का यह सिलसिला एक बार शुरू हुआ तो फिर रुकने का नाम नहीं लिया. ऐसी बातें समाज की नजरों से कब तक छिपी रह सकती हैं. शाहिद की गैरमौजूदगी में राहुल का उस के कमरे पर बने रहना पड़ोसियों के मन में शक पैदा कर गया. किसी पड़ोसी ने यह बात शाहिद के कान में डाल दी. यह सुन कर उस पर जैसे पहाड़ टूट पड़ा.

बीवी के बारे में ऐसी बात सुन कर शाहिद परेशान हो गया. उस का काम से मन उचट गया. बड़ी मुश्किल से शाम हुई तो वह घर लौट आया. गजाला को पता नहीं था कि उस के शौहर को उस की आशनाई के बारे में पता चल गया है. वह खनकती आवाज में बोली, ‘‘क्या बात है, आज बड़ी जल्दी घर लौट आए.’’

‘‘सच जानना चाहती हो तो सुनो. तुम जो राहुल के साथ गुलछर्रे उड़ा रही हो, मुझे सब पता चल गया है.’’ शाहिद ने बड़ी गंभीरता से कहा, ‘‘अब तुम्हारी भलाई इसी में है कि मुझ से बिना कुछ छिपाए सब कुछ सचसच उगल दो. उस के बाद मैं तुम्हें बताऊंगा कि तुम्हारा क्या करना है.’’

गजाला शौहर की बात सुन कर अवाक रह गई. उस ने सपने में भी नहीं सोचा था कि एक न एक दिन शाहिद को सब पता चल जाएगा. भय के मारे उस का चेहरा उतर गया. वह घबराए स्वर में कहने लगी, ‘‘जिस ने भी तुम से मेरे बारे में यह सब कहा है, वह झूठा है. लोग हम से जलते हैं, इसलिए किसी ने तुम्हारे कान भरे हैं.’’

गजाला ने जान लिया था कि अब त्रियाचरित्र दिखाने में ही उस की भलाई है. वह भावुक स्वर में बोली, ‘‘मैं कल भी तुम्हारी थी और आज  भी तुम्हारी हूं. कोई दूसरा मेरा बदन छूना तो दूर मेरी ओर देखने की हिम्मत भी नहीं कर सकता.

‘‘तुम मुझ पर यकीन करो. तुम ने जो कुछ सुना है, वह सिर्फ अफवाह है. कुछ लोग मेरे पीछे पड़े हैं, वह मुझे हासिल नहीं कर सके तो हमारे बीच आग लगा कर हमारा जीना हराम करना चाहते हैं.’’

आखिरकार गजाला की बातों से शाहिद को लगा कि वह सच कह रही है. उस ने गजाला पर यकीन कर लिया. घर में कुछ दिन और शांति बनी रही. फिर एकदो लोगों ने टोका, ‘‘शाहिद, तुम दिन भर बाहर रहते हो, देर रात को लौटते हो. इस बीच गजाला किस के साथ गुलछर्रे उड़ा रही है, तुम्हें क्या मालूम, अब भी समय है, चेत जाओ वरना ऐसा न हो कि किसी दिन तुम्हें पछताना पड़े.’’

शाहिद को उन की बात समझ में आ गई. वह जान गया कि धुंआ तभी उठता है, जब कहीं आग लगती है. उस ने गजाला को चेतावनी दी कि अब कभी उस ने कोई गलत काम किया तो अंजाम अच्छा नहीं होगा. अच्छा हुआ भी नहीं. कोई न कोई गजाला की खबर उस तक पहुंचा देता था, इस से आजिज आ कर शाहिद गजाला के साथ झगड़ा और मारपीट करने लगा. घटना से 6 दिन पहले गजाला की बहन तनु की शादी थी. शाहिद ने शादी के बाद भी गजाला को पीटा. गजाला पति से परेशान हो चुकी थी. उस ने फोन पर रोतेरोते यह बात राहुल को बताई. वैसे भी गजाला राहुल से निकाह कर के उस के साथ रहने का मन बना चुकी थी.

राहुल भी यही चाहता था. ऐसे में राहुल ने शाहिद को रास्ते से हटाने का फैसला कर लिया. गजाला को उस ने बताया तो उस ने भी अपनी सहमति दे दी. शाहिद की हत्या करने के लिए राहुल ने अपने दोस्त इमरान को भी शामिल कर लिया. वह उसी मोहल्ले में रहता था.  9 जुलाई, 2020 की देर शाम को राहुल ने शाहिद का टैंपो भाड़े पर बुक किया और उसे सब्जी मंडी बुलाया. वहां राहुल इमरान के साथ पहले से मौजूद था. शाहिद के वहां पहुंचने पर राहुल ने उसे कोल्ड ड्रिंक पिलाई, जिस में उस ने नशीली गोलियों का पाउडर मिला दिया था. कोल्ड ड्रिंक पी कर शाहिद बेहोश हो गया. दोनों ने उसे टैंपो की पिछली सीट पर लिटा दिया. इमरान टैंपो चलाने लगा.

दोनों बेहोश हुए शाहिद को दूधाधारी इंटर कालेज के पास ले गए. वहां दोनों ने तेज धारदार चाकू से शाहिद का गला रेत कर उस की हत्या कर दी और उस की लाश वहीं फेंक कर फरार हो गए. लेकिन आखिरकार कानून की गिरफ्त में आ ही गए. राहुल और इमरान की निशानदेही पर पुलिस ने आलाकत्ल चाकू और शाहिद का टैंपो भी बरामद कर लिया. इस के बाद कानूनी लिखापढ़ी कर के गजाला, राहुल और इमरान को न्यायालय में पेश किया, जहां से तीनों को जेल भेज दिया गया़

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

UP Crime : पिता के साथ आपत्तिजनक स्थिति में दिखी पत्नी तो गुस्साए बेटे ने कर दिया कत्ल

UP Crime : ससुर के लिए बहू बेटी जैसी होनी चाहिए. लेकिन वंशलाल की नजरों में बहू विनीता कुछ और ही थी, तभी तो उस ने उस की इज्जत लूट ली. इस का खामियाजा वंशलाल को ऐसा भुगतना पड़ा कि…

सुबह के करीब 10 बज रहे थे. फतेहपुर जिले के बिंदकी थानाप्रभारी नंदलाल सिंह थाने में मौजूद थे. वह एक शातिर बदमाश को गिरफ्तार कर के लाए थे और उस से उस के अन्य साथियों के बारे में जानकारी हासिल कर रहे थे. तभी एक युवक ने उन के कक्ष में प्रवेश किया. वह बेहद घबराया हुआ था. थानाप्रभारी ने उस पर एक नजर डाली फिर पूछा, ‘‘क्या बात है तुम कुछ परेशान लग रहे हो?’’

‘‘सर, मेरा नाम अनिल कुमार है. मैं कमरापुर गांव में रहता हूं और आप के थाने में तैनात होमगार्ड वंशलाल का बेटा हूं. बीती रात किसी ने मेरे पिता की हत्या कर दी. उन की लाश घर में ही पड़ी है.’’

अनिल की बात सुन कर थानाप्रभारी चौंकते हुए बोले, ‘‘क्या कहा, वंशलाल की हत्या हो गई. कल शाम को ड्यूटी पूरी कर घर गया था. फिर किस ने उस की हत्या कर दी. खैर, मैं देखता हूं.’’

चूंकि थाने में तैनात होमगार्ड की हत्या का मामला था, अत: थानाप्रभारी ने होमगार्ड इस की सूचना वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को दी. फिर एसआई शहंशाह हुसैन, कांस्टेबल शैलेंद्र कुमार, अखिलेश मौर्या तथा महिला सिपाही अंजना वर्मा को साथ लिया और जीप से घटनास्थल की ओर रवाना हो गए. यह 17 मार्च, 2020 की बात है. कमरापुर गांव थाने से 8 किलोमीटर दूर बिंदकी अमौली रोड पर था. पुलिस को वहां पहुंचने में ज्यादा समय नहीं लगा. घटनास्थल पर पहुंच कर थानाप्रभारी निरीक्षण में जुट गए. वंशलाल की लाश घर के बाहर बरामदे में तख्त पर पड़ी थी. वह कच्छा बनियान पहने था. उस की होमगार्ड की वर्दी खूंटी पर टंगी थी. उस की हत्या शायद गला दबा कर की गई थी. उस की उम्र 55 साल के आसपास थी.

निरीक्षण के दौरान थानाप्रभारी नंदलाल सिंह की नजर मृतक के कच्छे पर पड़ी जो खून से तरबतर था. लग रहा था जैसे गुप्तांग से खून निकला था. शरीर पर अन्य किसी चोट का निशान नहीं था. पुलिस ने जांच की तो उस का गुप्तांग कुचला हुआ मिला. थानाप्रभारी को शक हुआ कि कही वंशलाल की हत्या नाजायज संबंधों के चलते तो नहीं हुई, किंतु उन्होंने अपना शक जाहिर नहीं किया. थानाप्रभारी नंदलाल सिंह अभी निरीक्षण कर ही रहे थे कि एसपी प्रशांत कुमार वर्मा, एएसपी चक्रेश मिश्रा तथा सीओ अभिषेक तिवारी भी वहां आ गए. पुलिस अधिकारियों ने मौके पर फोरैंसिक टीम तथा डौग स्क्वायड टीम को भी बुलवा लिया. फोरैंसिक टीम ने जांच कर सबूत जुटाए.

डौग स्क्वायड टीम ने मौके पर डौग को छोड़ा. उस ने शव को सूंघ तख्त के 2 चक्कर लगाए, फिर भौंकते हुए गली की ओर बढ़ गया. 2 मकान छोड़ कर वह तीसरे मकान पर जा कर रुक गया और जोरजोर से भौंकने लगा. पर उस मकान में ताला लटक रहा था. पुलिस अधिकारियों ने उस मकान के बारे में पूछा तो मृतक के बड़े बेटे अनिल कुमार ने बताया कि इस मकान में उस का छोटा भाई मनीष कुमार अपनी पत्नी विनीता के साथ रहता है. बीती शाम मनीष घर पर ही था, पर रात में कहां चला गया, उसे पता नहीं है. अनिल की बात सुन कर पुलिस अधिकारियों को शक हुआ कि कहीं मनीष और विनीता ने मिल कर तो वंशलाल की हत्या नहीं कर दी. उन का फरार होना भी इसी ओर इशारा कर रहा था. पुलिस ने मनीष व विनीता की तलाश शुरू कर दी.

निरीक्षण के बाद घटनास्थल की काररवाई के बाद वंशलाल का शव पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दिया गया. इस के बाद पुलिस ने बरामदे में खूंटी पर टंगी मृतक की वर्दी की जामातलाशी कराई तो पैंट की जेब से एक छोटी डायरी तथा पर्स बरामद मिला. कमीज की जेब से एक मोबाइल फोन भी मिला. मोबाइल फोन खंगाला गया तो पता चला कि रात 9:24 बजे वंशलाल की एक नंबर पर आखिरी बार बात हुई थी. जांच में वह नंबर मनीष की पत्नी विनीता का निकला. जांच के हर बिंदु पर जब मनीष और विनीता शक के दायरे में आए तो एसपी प्रशांत कुमार वर्मा ने उन्हें पकड़ने के लिए सीओ अभिषेक तिवारी के निर्देशन में एक पुलिस टीम का गठन किया. इस टीम में थानाप्रभारी नंदलाल सिंह, एसआई शहंशाह हुसैन, कांस्टेबल अखिलेश मौर्या, शैलेंद्र कुमार तथा महिला सिपाही अंजना वर्मा को शामिल किया गया.

तलाश बहू और बेटे की टीम ने सब से पहले मृतक वंशलाल के बड़े बेटे अनिल कुमार, तथा उस की पत्नी रमा देवी के बयान दर्ज किए. अनिल कुमार ने अपने बयान में बताया कि पिताजी रंगीनमिजाज और शराब के आदी थे. मनीष की पत्नी विनीता ने अम्मा से उन की रंगीनमिजाजी की शिकायत भी की थी. इसी आदत की वजह से मनीष और विनीता अलग रहने लगे थे. संभव है कि उन की हत्या में उन दोनों का हाथ हो. पुलिस टीम ने मृतक वंशलाल के पड़ोस में रहने वाले कुछ खास लोगों से बात की तो पता चला कि वंशलाल दबंग किस्म का व्यक्ति था. वह होमगार्ड जरूर था, पर गांव के लोग उसे छोटा दरोगा कहते थे. गांव का कोई भी मामला थाने पहुंचता तो उस का निपटारा वंशलाल द्वारा ही होता था. मनीष जब घर से अलग हुआ था, तब ऐसी चर्चा फैली थी कि वंशलाल अपनी बहू पर गलत नजर रखता था, जिस से वह अलग रहने लगी थी.

पुलिस टीम ने मनीष और विनीता की तलाश तेज कर दी और विनीता के मोबाइल नंबर को सर्विलांस पर भी लगा दिया गया. इस के अलावा पुलिस ने अपने खास मुखबिरों को भी उन की टोह में लगा दिया. विनीता का मायका नगरा गांव में था. उस की लोकेशन भी वहीं की मिल रही थी. अत: पुलिस टीम ने आधी रात को विनीता के पिता विजय पाल के घर छापा मारा, लेकिन मनीष और विनीता पुलिस के हाथ नहीं लगे. 20 मार्च, 2020 को पुलिस टीम ने मुखबिर की सूचना पर फरीदपुर मोड़ से मनीष और उस की पत्नी विनीता को हिरासत में ले लिया. थाने ला कर जब उन दोनों से वंशलाल पाल की हत्या के संबंध में सख्ती से पूछताछ की गई तो वे दोनों टूट गए और वंशलाल की हत्या का जुर्म कबूल कर लिया.

पुलिस टीम ने वंशलाल पाल उर्फ बैजनाथ पाल की हत्या का परदाफाश करने तथा कातिलों को पकड़ने की जानकारी पुलिस अधिकारियों को दी तो सीओ अभिषेक तिवारी कोतवाली बिंदकी आ गए. उन्होंने कातिल मनीष कुमार तथा उस की पत्नी विनीता से विस्तृत पूछताछ की. अभियुक्तों के गिरफ्तार होने की जानकारी मिली तो सीओ अभिषेक तिवारी भी कोतवाली बिंदकी पहुंच गए और अभियुक्तों से विस्तृत पूछताछ की. फिर आननफानन प्रैसवार्ता की. उन्होंने आरोपियों को मीडिया के सामने पेश कर घटना का खुलासा किया. चूंकि हत्यारोपी मनीष कुमार तथा विनीता ने हत्या का जुर्म स्वीकार कर लिया था, इसलिए थानाप्रभारी नंदलाल सिंह ने मृतक के बड़े बेटे को वादी बना कर धारा 302 आईपीसी के तहत मनीष और विनीता के विरूद्ध रिपोर्ट दर्ज कर ली और उन्हेें विधिसम्मत गिरफ्तार कर लिया.

पुलिस जांच में एक ऐसी बहू की कहानी सामने आई, जिस ने पति के साथ मिल कर कामी ससुर को ठिकाने लगाने की गहरी साजिश रची. उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जिले के बिंदकी थाना क्षेत्र में एक गांव है नगरा. इसी गांव में विजय पाल अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी पूनम के अलावा 2 बेटे राजन, अजय तथा 2 बेटियां अनीता व विनीता थीं. विजय पाल के पास मात्र 2 बीघा उपजाऊ भूमि थी. इस की उपज से उस के परिवार का भरणपोषण मुश्किल था. अत: वह दूध का व्यवसाय भी करने लगा. इस काम में उस के दोनों बेटे भी सहयोग करते थे. छोटी बेटी विनीता 4 भाईबहनों में तीसरे नंबर की थी. हाईस्कूल पास करने के बाद वह अपनी आगे की पढ़ाई जारी रखना चाहती थी, लेकिन मातापिता दूरदराज कस्बे में पढ़ाने को राजी न थे, इसलिए उसे पढ़ाई छोड़नी पड़ी.

जब विनीता सयानी हो गई तो उस की शादी कमरापुर गांव के मनीष से कर दी गई. मनीष का पिता वंशलाल उर्फ बैजनाथ पाल बिंदकी थाने में होमगार्ड था. उस के परिवार में पत्नी माया देवी के अलावा 2 बेटे अनिल कुमार, मनीष कुमार तथा एक बेटी रूपाली थी. वंशलाल पाल की आर्थिक स्थिति अच्छी थी. गांव में उस के 2 मकान तथा 2 एकड़ खेती की जमीन थी. 2015 में वंशलाल ने छोटे बेटे मनीष की शादी नगरा गांव की विनीता से कर दी. कुछ ही दिनों में विनीता ने अपने काम और व्यवहार से अपने पति, सासससुर को प्रभावित किया. विनीता का पति व जेठ सबेरा होते ही खेत पर चले जाते थे, जबकि ससुर वंशलाल ड्यूटी करने थाना बिंदकी जाता था. वह शाम को 7 बजे के बाद ही लौटता था. कभी वह शराब पी कर घर आता तो कभी घर पर बैठ कर पीता था.

विनीता को शराब से नफरत थी, पर वह मना भी नहीं कर सकती थी. वैसे भी पूरे घर पर ससुर का ही राज था. उस की इजाजत के बिना कोई कुछ काम नहीं कर सकता था. कृषि उपज का हिसाबकिताब तथा अन्य खर्चों का लेखाजोखा भी वही रखता था. अगर विनीता को जेब खर्च के लिए पैसे की जरूरत होती थी, तो वह भी ससुर से ही मांगती थी. बात उन दिनों की है, जब विनीता की जेठानी रमा मायके गई हुई थी. घर की साफसफाई से ले कर खाना पकाने तक की जिम्मेदारी विनीता पर थी. इधर कुछ दिनों से विनीता घूंघट के भीतर से ही अनुभव कर रही थी कि ससुर वंशलाल जब खाना खाने बैठता है, तो उस की नजर उस के चेहरे पर ही जमी रहती है.

वह उस के खाना पकाने की तारीफ करता, साथ ही ललचाई नजरों से उसे देखता भी था. विनीता समझ नहीं पा रही थी कि आखिर ससुरजी के मन में चल क्या रहा है. उन्हीं दिनों एक शाम विनीता रसोई में खाना पका रही थी कि ससुर वंशलाल आ पहुंचा. वह नशे में था. ससुर को देख कर विनीता ने सिर पर साड़ी का पल्लू डाल लिया और पूर्ववत अपने काम में लगी रही. औपचारिकता के नाते उस ने पूछा, ‘‘बाबूजी, आप को किसी चीज की जरूरत है क्या?’’

‘‘विनीता, बहुत अच्छी खुशबू आ रही है.’’ पीछे से वंशलाल ने विनीता के कंधे पर हाथ रखा और उसे धीमेधीमे दबाते हुए बोला, ‘‘खुशबू से भूख जाग गई है.’’

ससुर के इस व्यवहार से विनीता सकपका गई. पिता समान कोई ससुर ऐसे मस्ताने अंदाज में बहू का कंधा नहीं दबाता. विनीता के मन में यह खयाल भी सिर पटकने लगा कि ससुर का इशारा किस खुशबू की तरफ है, भोजन की खुशबू या उस के बदन की खुशबू. उस को कौन सी भूख जागी है, पेट की या कामनाओं की. विनीता असहज हो चली थी वह अपने कंधे से उस का हाथ हटाना ही चाह रही थी कि वंशलाल ने खुद ही हाथ हटा लिया और एकदम से उस के सामने आ कर बोला, ‘‘बहू, जिन हाथों से तुम लजीज और खुशबूदार खाना बनाती हो, जी चाहता है उन हाथों को चूम लूं.’’

इसी के साथ वंशलाल ने उस का हाथ पकड़ लिया और उसे होंठोें से लगा कर दनादन चूमने लगा. विनीता हतप्रभ रह गई कि ससुर यह क्या कर रहा है. कहीं उस के मन में सचमुच पाप तो नहीं. विनीता के मस्तिष्क में विचारों की उथलपुथल चल ही रही थी कि वंशलाल ने खुद ही उस का हाथ छोड़ दिया. उस के बाद वह हंस कर बोला, ‘‘किसी दिन मैं फिर तुम्हारे हाथ के साथ होंठ भी चूमूंगा.’’

विनीता ने सोच लिया कि सब लोग इत्मीनान से खाना खा लेंगे तो वह सास माया को ससुर की करतूत बताएगी. लेकिन उस की यह इच्छा तब अधूरी रह गई, जब सास खाना खा कर चारपाई पर लेटी और थोड़ी ही देर में गहरी नींद के आगोश में समा गई. सास की नसीहत अगले दिन जब पति, जेठ व ससुर अपनेअपने काम पर चले गए, तब विनीता सास के पास जा बैठी, ‘‘अम्मा मुझे आप से एक जरूरी बात करनी है.’’

माया देवी हंसी, ‘‘एक नहीं चार बात करो बहू. मैं तो यही चाहती हूं कि तुम खूब बात करो. तुम्हारा मन बहल जाएगा और मेरा भी समय कट जाएगा.’’

‘‘अम्मा, मन बहलाने व समय काटने वाला मुद्दा नहीं है,’’ विनीता आहिस्ता से बोली, ‘‘मुझे जो कहना है, वह बात बहुत गंभीर है.’’

माया देवी भी संजीदा हो गई, ‘‘बोलो बहू, क्या बात है?’’

विनीता ने सिर झुका कर मर्यादित शब्दों में ससुर की करतूत कह डाली.

माया देवी ने पैनी निगाहों से बहू को देखा फिर बोली, ‘‘मनीष के बाबू ने नशे में कंधे पर हाथ धर दिया होगा और हाथ चूम लिया होगा. बस इतनी सी बात पर तुम शिकायत ले कर आ गई.’’

‘‘अम्मा…’’ विनीता के मुंह से घुटीघुटी सी चीख निकल गई, ‘‘मेरा खयाल था कि इस शिकायत से आप बाबूजी को मर्यादा का पाठ पढ़ाओगी, लेकिन आप तो उन्हें शह दे रही हो.’’

‘‘चुपऽऽ’’ माया देवी ने विनीता को डांट दिया, ‘‘एक तो जिस के पैसे का खातीपहनती है, जिस के घर में रहती है, सुबहसुबह उस की बुराई करने बैठ गई और दूसरे अम्माअम्मा किए जा रही है. उठ यहां से और अपना काम कर.’’ माया देवी ने विनीता को हड़काया. आंखों में आंसू लिए विनीता, सास के पास से उठ गई. उस की आंखें ही नहीं बरस रही थीं, दिल भी रो रहा था. सास की उदासीनता ने विनीता की घबराहट और बढ़ा दी थी. वह सोचने लगी अपनी अस्मत की हिफाजत के लिए उसे खुद ही कुछ करना होगा. लगभग एक सप्ताह तक ससुर ने कोई हरकत नहीं की तो विनीता थोड़ा निश्चिंत हो गई. सोचा कि शायद उसे कोई गलतफहमी हो गई हो. ससुर के मन में पाप नहीं है. पाप होता तो चुप हो कर नहीं बैठता.

किंतु दूसरे सप्ताह के शुरू में ही विनीता की गलतफहमी दूर हो गई. हुआ यह कि रोज की तरह विनीता शाम को खाना पका चुकी तो वह अपने कमरे में आ कर बैड पर लेट गई. वह आंखें बंद किए हुए लेटी थी, तभी उसे किसी के आने की आहट हुई. विनीता ने झट से आंखें खोल दीं, देखा सामने ससुर वंशलाल खड़ा मुसकरा रहा था. ससुर को देख कर विनीता घबरा गई और बैड से उठ कर खड़ी हो गई. उस ने सिर पर साड़ी का पल्लू डालते हुए पूछा,  ‘‘बाबूजी खाना लगा दूं क्या?’’

‘‘नहीं, मुझे पेट की नहीं शरीर की भूख सता रही है. आज मैं इस भूख को शांत करूंगा.’’ कहते हुए वंशलाल ने विनीता को अपनी बांहों में भर लिया. इज्जत पर आए संकट को देख विनीता ने जोर लगा कर खुद को छुड़ाया और बोली, ‘‘बाबूजी, आप नशे में हैं, इसलिए समझ नहीं पा रहे हैं कि आप को मुझ से ऐसी शर्मनाक बात नहीं करनी चाहिए.’’

वंशलाल के चेहरे पर कुटिल मुसकान फैल गई, ‘‘विनीता, नशे में ही आदमी सच बोलता है.’’

विनीता जानती थी कि ससुर वंशलाल अपनी बेशर्मी से बाज नहीं आने वाला, लिहाजा उस ने उस के सामने से हट जाने में ही अपनी भलाई समझी. कन्नी काट कर वह दूसरे कमरे में जा पहुंची. वहां वह सोचने लगी कि अब इस पूरे मामले को पति की जानकारी में लाना जरूरी हो गया है. वरना ससुर का हौसला इसी तरह बढ़ता रहा, तो वह उस की काया ही नहीं, आत्मा तक को मैली कर देगा. पति को बता दी पूरी कहानी  रात को कमरा बंद कर के विनीता पति के साथ बिस्तर पर लेटी तो वह उदास थी. मनीष ने उदासी का कारण पूछा तो विनीता की आंखों से गंगाजमुना बह निकली. हिचकियां लेते हुए उस ने पूरी दास्तान सुना दी फिर मनीष के कंधे पर सिर टिका कर बोली, ‘‘बाबूजी के मन में पाप समाया है. मेरी इज्जत खतरे में है. यहां रही तो मेरे तन पर अमिट दाग लग जाएगा. तुम दूसरा मकान ले लो. अब हम अलग रहेंगे.’’

मनीष ने कंधे से विनीता का सिर हटा कर उस के आंसू पोंछे, ‘‘अब मेरी समझ में आया कि नशे की झोंक में बाबूजी तुम्हारी इतनी तारीफ क्यों किया करते थे, उन का मन डोला हुआ था तुम पर.’’

‘‘इसीलिए तो मैं तुम से कह रही हूं,’’ विनीता उत्साहित हो कर बोली, ‘‘बाबूजी मेरी इज्जत पर हाथ डालें, उस से पहले ही तुम अपनी घरगृहस्थी अलग कर लो.’’ वह बोली.

मनीष कुछ देर सोचता रहा फिर बोला, ‘‘बात तो तुम सही कह रही हो, पर तुम्हें ले कर मैं अलग हुआ नहीं कि बाबूजी मुझे परिवार से अलग कर देंगे. तब हम खाएंगे क्या.’’

‘‘लालच छोड़ो और मेरी इज्जत के बारे में सोचो. हम मेहनतमजदूरी कर गुजारा कर लेंगे. भूखा भी रहना पड़ा तो रह लेंगे. पर इज्जत बचाने को घरगृहस्थी अलग कर लो.’’

पत्नी की बात मान कर मनीष ने अपनी गृहस्थी अलग करने की बात कही तो वंशलाल भड़क उठा, ‘‘बेशक तुम अलग रहो. पर मैं अपनी जमीन का एक इंच भी जोतनेबोने को नहीं दूंगा. तुम्हें खुद कमानाखाना पड़ेगा.’’

मनीष को पहले से यही उम्मीद थी. अत: उस ने पिता की धमकी की परवाह नहीं की और पिता के खाली पड़े मकान में अलग रहने लगा. उसे दहेज में जो सामान मिला था, उस से उस ने अपना घर सजा लिया और पत्नी के साथ रहने लगा. जेठानी रमा को देवरानी का अलग होना खलने लगा. क्योंकि अब उसे ही घर के कामों के अलावा सास की सेवा करनी पड़ती थी. सास मायादेवी बीमार रहने लगी थी, जिस से उन की दवा आदि का विशेष खयाल रखना पड़ता था. विनीता को भी जब समय मिलता था, तो सास की सेवा में पहुंच जाती थी . इस बहाने देवरानीजेठानी बतिया लेती थी. रामादेवी उसे चोरीछिपे घरगृहस्थी का सामान भी दे देती थी.

वंशलाल बना हैवान विनीता की मुश्किल तब बढ़ी जब मनीष जनवरी, 2019 में बीमार पड़ गया और उस का काम भी छूट गया. उस ने कुछ सप्ताह तो जैसेतैसे काटे और पति का इलाज भी कराया लेकिन जब आर्थिक परेशानी ज्यादा बढ़ी तो एक रोज उस ने ससुर वंशलाल को घर बुलाया और आर्थिक मदद की गुहार लगाई. विनीता पर वंशलाल की गिद्ध दृष्टि पहले से ही थी. अत: लालच में उस ने विनीता की आर्थिक मदद कर दी. इलाज होने पर मनीष स्वस्थ हो गया और फिर से काम करने लगा.

वंशलाल हर हाल में बहू के जिस्म को हासिल करना चाहता था. अत: मदद के बहाने वह विनीता के घर आनेजाने लगा. ससुर होने के नाते विनीता कभी चाय को पूछ लेती तो कभी खाने को. विनीता घूंघट की ओट से ही ससुर से बातें करती थी और चायपानी देती थी. इस बीच वंशलाल किसी प्रकार की अश्लील हरकत नहीं करता था, जिस से विनीता को लगने लगा था कि शायद वह सुधर गया है, पर यह उस की भूल थी. एक शाम वंशलाल डयूटी से घर आया तो उसे पता चला कि उस का बेटा अपनी ससुराल नगरा गया है. यह पता चलते ही उस के जिस्म की भूख जाग उठी. उस ने मन ही मन निश्चय किया कि आज वह अपनी भूख मिटा कर ही रहेगा.

रात 10 बजे जब गली में सन्नाटा पसर गया तो वह विनीता के घर पहुंचा और कुंडी खटखटाई. विनीता ने सोचा कि कहीं मनीष तो नहीं लौट आया. उस ने अलसाई आंखों से दरवाजा खोल दिया. सामने ससुर वंशलाल खड़ा था. इस से पहले कि विनीता कुछ पूछती, ससुर ने अंदर आ कर दरवाजा बंद किया और बहू विनीता को दबोच लिया. फिर वह उसे बिस्तर पर ले गया और मनमानी करने लगा. विनीता ने ससुर की बांहों से छूटने का भरसक प्रयास किया, गिड़गिड़ाई, इज्जत की दुहाई दी, पर वंशलाल पर तो हवस का शैतान सवार था. हाथपांव चलाने के बावजूद उस ने विनीता को नहीं छोड़ा. शारीरिक भूख मिटाने के बाद ही वह विनीता के जिस्म से अलग हुआ. इस के बाद वह वापस चला गया.

विनीता चाहती तो चीखचिल्ला कर पूरे मोहल्ले को इकट्ठा कर लेती. पर उस ने ऐसा कुछ नहीं किया. इस की वजह यह थी कि लोग उसे ही दोषी ठहराते. पुलिस में जाती तो उस की कोई नहीं सुनता. क्योंकि वह बिंदकी थाने में ही ड्यूटी करता था. बाहर भी उस की सुनवाई नहीं होती. इसलिए इज्जत लुटाने के बावजूद वह चुप रही. दूसरे रोज पति आया तो उस ने उसे भी कुछ नहीं बताया. क्योंकि बताने से बापबेटे में द्वंद होता फिर पूरे गांव में इज्जत नीलाम होती. इसलिए सारा जहर विनीता स्वयं ही पी गई. इधर जब घर में कोई शोरशराबा या शिकवाशिकायत नहीं हुई तो वंशलाल का हौसला बढ़ गया. उसे लगा कि विनीता ने दिखावे के तौर पर विरोध किया, पर अंतर्मन से उस की भी रजामंदी है.

हौसला बढ़ते ही एक शाम वंशलाल, विनीता के घर आ पहुंचा. उस ने मदद के नाम पर विनीता की हथेली पर हजार रुपए रखे, फिर उसे बिस्तर पर ले गया और हवस मिटा कर चला गया. इस के बाद तो यह सिलसिला ही बन गया. वंशलाल को जब भी मौका मिलता, बहू के साथ खेल लेता. परंतु गलत काम ज्यादा दिन छिपा नहीं रहता. वंशलाल के साथ भी ऐसा ही हुआ. उस शाम वंशलाल बहू से मुंह काला कर के घर से निकल रहा था, तभी मनीष आ गया. मनीष ने बाप को घर से निकलते देखा तो उस का माथा ठनका. वह अंदर पहुंचा तो विनीता अर्धनग्न अवस्था में बिस्तर पर बैठी सुबक रही थी.

विनीता को उस अवस्था में देख कर मनीष समझ गया कि चंद मिनट पहले ही ससुरबहू ने वासना का खेल खेला है. अत: उस ने गुस्से में विनीता की पिटाई की फिर उस का गला दबाते हुए बोला, ‘‘बता यह सब कब से चल रहा है?’’

विनीता ने किसी तरह अपना बचाव किया फिर बोली, ‘‘मेरा गला क्यों दबा रहे हो. दबाना ही है तो अपने बाप का दबाओ, जो मुझे जबरदस्ती हवस का शिकार बनाता है. मैं गिड़गिड़ाती रहती, पर हवस के उस दरिंदे को जरा भी दया नहीं आती.’’

मनीष ने रची बाप की हत्या की साजिश मनीष ने पत्नी की बात पर सहज भरोसा कर लिया. फिर गुस्से से बोला, ‘‘अगर ऐसी बात है तो बाप को सबक सिखाना ही पड़ेगा. पर इस के लिए मुझे तुम्हारा साथ चाहिए.’’

‘‘मैं साथ देने को तैयार हूं,’’  विनीता ने वादा किया.

इस के बाद मनीष और विनीता ने वंशलाल की हत्या की योजना बनाई और समय का इंतजार करने लगे. 16 मार्च, 2020 की शाम 7 बजे होमगार्ड वंशलाल थाना बिंदकी से ड्यूटी पूरी कर घर लौटा. फिर शराब पीने बैठ गया. रात 9 बजे उस ने खाना खाया और घर के बाहर बरामदे में आ कर वर्दी उतार कर खूंटी पर टांग दी और तख्त पर लेट गया. उसे लेटे हुए अभी चंद मिनट ही बीते थे कि उस के मोबाइल पर काल आई. उस ने मोबाइल नंबर देखा तो विनीता का था. वंशलाल ने काल रिसीव की तो विनीता बोली, ‘‘बाबूजी, मनीष घर पर नहीं है. मैं घर पर अकेली हूं. डर लग रहा है. आप आ जाइए.’’

वंशलाल बहू की चाल को समझ नहीं पाया और बोला, ‘‘तुम डरो मत, मै तुरंत आ रहा हूं.’’

इस के बाद वह कच्छाबनियान पहने ही विनीता के घर पहुंच गया. घर पर मनीष घात लगाए बैठा ही था. वंशलाल के पहुंचते ही उस ने उसे दबोच लिया. पहले दोनों ने वंशलाल कोे लातघूंसों से पीटा, फिर अंगौछे से गला कस कर मार डाला. इस बीच नफरत से भरी विनीता ने फुंकनी से ससुर के गुप्तांग पर चोट पहुंचाई और बुरी तरह कुचल डाला, जिस से खून बहने लगा. हत्या करने के बाद दोनों मिल कर शव को तख्त पर डाल गए फिर घर में ताला लगा कर फरार हो गए. सुबह अनिल जब दिशामैदान को घर से निकला तो उस ने पिता का शव तख्त पर पड़ा देखा. अनिल ने शोर मचाया तो पड़ोसी आ गए. फिर अनिल थाना बिंदकी पहुंचा और बाप की हत्या की सूचना दी.

मनीष और उस की पत्नी विनीता से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने 21 मार्च, 2020 को दोनों को फतेहपुर कोर्ट में रिमांड मजिस्ट्रेट बी.के. सहगल की अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जिला जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधा

Social Crime : लेस्बियन पत्नी की अनोखी जिद

Social Crime : एक बेटी की मां स्वाति को अपनी सहेली ज्योति से ऐसा प्यार हुआ कि वह अपने पति राजकुमार की भी उपेक्षा करने लगी. फिर एक दिन यह लेस्बियन रिश्ता उस के परिवार पर इतना भारी पड़ा कि…

समलैंगिकता की इस कहानी को पढऩे से पहले हमें समलैंगिक संबंधों को जानना जरूरी है. समान लिंग के लोगों के बीच रोमांटिक या यौन संबंध को समलैंगिक संबंध कहते हैं. यह एक समान लिंग के प्रति यौन आकर्षण या रूमानी पे्रम को दर्शाता है. समलैंगिकता की कहानी आज की कोई नई बात नहीं. बल्कि यह सदियों से चली आ रही है. समलैंगिक शादियां करना दूसरी और तीसरी सदी में आम बात थी. लेकिन पहले भी समाज में इस तरह की शादी वर्जित थी, जिस का आज भी समाज में चारों तरफ विरोध होता है.

एक ऐसी ही लेस्बियन प्रेम कहानी उत्तर प्रदेश के बरेली जिले के थाना शीशगढ़ के गांव बंजरिया में सामने आई. 2 सहेलियों ने एकदूसरे से प्यार करते हुए एक मंदिर में शादी भी रचा ली. लेकिन उन का यह रिश्ता समाज और परिवार ने स्वीकार नहीं किया. बरेली के थाना क्षेत्र बंजरिया गांव निवासी राजकुमार की शादी अब से लगभग 9 साल पहले स्वाति के साथ हुई थी. राजकुमार एक किसान का बेटा था. वह गांव में रह कर ही खेतीबाड़ी करता था. हालांकि राजकुमार पढ़ालिखा था, उसी कारण शादी से पहले उस की उत्तराखंड के रुद्रपुर में एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी मिल गई थी.

स्वाति देखनेभालने में जितनी सुंदर और सौम्य थी, उस से कहीं ज्यादा फैशनेबल थी. उस में महत्त्वाकांक्षा कूटकूट कर भरी थी. स्वाति को शुरू से ही सिलाईकढ़ाई का शौक था. उसी शौक के चलते उस ने सिलाई और कढ़ाई को अपना करिअर चुना था. राजकुमार से शादी करने के बाद भी उस ने अपना वही काम चुना और अपने घर पर ही सिलाई की एक दुकान खोल ली थी. कुछ दिन बाद उस का सिलाई का काम ठीकठाक चल भी निकला था. स्वाति के एक ही बेटी थी, जिसे स्कूल भेजने के बाद वह अपने सिलाई के काम में लग जाती थी. उस का पति राजकुमार बाहर रह कर नौकरी करता था.

उसी दौरान उस की मुलाकात गांव की एक युवती ज्योति से हुई. ज्योति उस के पास अपना सूट सिलवाने के लिए आई थी. ज्योति को भी सिलाई के काम में रुचि थी. उस के सामने मजबूरी थी कि उस के परिवार वाले उसे सिलाई का काम सिखाने के लिए शहर नहीं भेजना चाहते थे. ज्योति ने स्वाति से मिल कर सिलाई सीखने की इच्छा जाहिर की. उस की इच्छानुसार स्वाति उसे सिलाई का काम सिखाने के लिए राजी हो गई. यह बात लगभग डेढ़ साल पहले की है. ज्योति तब से ही स्वाति के पास सिलाई का काम सीखने आ रही थी.

स्वाति और ज्योति कैसे बनीं लेस्बियन

स्वाति और ज्योति जैसे ही संपर्क में आईं तो पता चला कि दोनों की आदतें, विचार और शौक बिलकुल एक जैसे हैं. जिस के कारण जल्दी ही दोनों में गहरी दोस्ती हो गई. दोनों पूरे दिन मेहनत से काम करतीं, जिस के चलते उन्हें दिन गुजरने का आभास तक भी नहीं होता था. स्वाति का पति राजकुमार बाहर रह कर ही नौकरी करता था. यानी उस के परिवार वाले उस से अलग रहते थे. वह अपनी बच्ची के साथ घर में अकेली ही रहती थी. ज्योति के आ जाने से स्वाति की बोरियत भी खत्म हो गई थी. ज्योति के साथ स्वाति की घनिष्ठता हो जाने के बाद उस की दोस्ती धीरेधीरे प्यार में बदल गई.

उसी दौरान एक दिन ज्योति की नजर स्वाति के शरीर पर पड़ी. उस दिन स्वाति नहाने के लिए बाथरूम में गई तो वह तौलिया ले जाना भूल गई थी. जब वह स्नान कर चुकी तो उसे तौलिया का ध्यान आया. तब उस ने ज्योति से तौलिया पकड़ाने के लिए कहा. उस दौरान जैसे ही ज्योति की नजर उस के नग्न शरीर पर पड़ी तो उसे देखते ही उस के शरीर में अजीब सी सिहरन पैदा हो गई. स्वाति का खिंचा तना तन देख कर ज्योति देखती ही रह गई.

”भाभी, तुम्हारा शरीर इतनी उम्र में भी इतना खिंचातना है. क्या बात है?’’ ज्योति ने स्वाति की तारीफ की.

”अब तू अपना काम भी कर. क्या मेरे शरीर को नजर लगाएगी.’’ स्वाति ने हंसते हुऐ कहा.

उस दिन के बाद ज्योति स्वाति के शरीर की दीवानी हो चुकी थी. उस के बाद जब कभी भी वह उस के बारे में सोचती तो वह सपनों की दुनिया में खो जाती थी. ज्योति को प्राकृतिक सौंदर्य से बहुत लगाव था. वही प्राकृतिक सौंदर्य उस ने स्वाति के शरीर में देखा तो वह उस के पीछे पागल हो गई.

कभीकभी स्वाति के पास काम ज्यादा होता तो वह ज्योति को रात में ही अपनी घर पर रोक लेती थी. उस के सहयोग से वह अपना काम निपटा लेती थी. रात में काम खत्म करने के दौरान स्वाति उसे अपने साथ ही बैड पर सुला लेती थी. उसी सोने के दौरान कई बार स्वाति करवटें बदल कर ज्योति की ओर मुंह करके उस के शरीर की कोली भर लेती, जिस से ज्योति को बहुत अच्छा लगता था. ज्योति पहले ही इन पलों का इंतजार कर रही थी. उस के बाद ज्योति जानबूझ कर स्वाति के गहरी नींद में सोते ही उस के शरीर पर अपने हाथों का स्पर्श शुरू कर देती थी. जिस के कारण स्वाति के शरीर में भी अजीब सी सिहरन पैदा होने लगी थी.

ज्योति ने स्वाति के शरीर के साथ छेड़छाड़ शुरू की तो उस के अंदर एक काम वासना जागृत हो उठी थी. ज्योति पहले से ही उस की देह की दीवानी हो चुकी थी. रात की खामोश फिजाओं में 2 बदन टकराने लगे तो जल्दी ही दोनों के बीच समलैंगिक संबंध स्थापित हो गए. दोनों के बीच समलैंगिक संबंध स्थापित होते ही दोनों एकदूसरे की दीवानी हो चुकी थीं. ज्योति और स्वाति आए दिन एकदूसरे के शरीर के साथ खेलतेखेलते कामवासना की चरम सीमा को पार करने लगी थीं.

कुछ ही दिनों के बाद ज्योति और स्वाति रिलेशनशिप में रहने लगीं. उस दौरान स्वाति के घर में ज्योति और उस की बेटी ही उस के साथ रहती थी. उस की बेटी छोटी थी. उसे दुनियादारी की समझ भी नहीं थी. स्वाति उसे रात में जल्दी खाना खिलापिला कर सुला देती थी. उस के बाद ज्योति और स्वाति दोनों टीवी पर अश्लील फिल्में देखतीं और जब उन की कामवासना उग्र रूप ले लेती तो दोनों ही निर्वस्त्र हो कर एकदूसरे के शरीर के साथ अश्लीलता का खेल खेलते हुए काम पिपासा शांत करने लगी थीं. यह सिलसिला दोनों के बीच गुप्तरूप से बिना रोकटोक के काफी समय तक चलता रहा.

ज्योति के संपर्क में आने के बाद स्वाति अपने पति राजकुमार को भी पहले जैसा प्यार नहीं दे पाती थी. उस के बाद जब कभी भी राजकुमार छुट्टी पर घर आता तो वह स्वाति के बदले व्यवहार को देख कर परेशान रहने लगा था. उस को ले कर कई बार शंकित भी हो उठता. कहीं स्वाति किसी गैरमर्द के जाल में तो नहीं फंस गई. यही सोच कर उस ने कई बार चोरीछिपे उस का मोबाइल भी चैक किया. लेकिन उस के मोबाइल में किसी भी युवक का कोई नंबर उसे नजर नहीं आया, जिस से वह उस के पीछे उस से बात करती हो. उस के मोबाइल पर ज्योति का ही एक ऐसा नंबर था, जिस पर वह दिन में कईकई बार बात करती थी. जिस पर राजकुमार का शक करने का कोई औचित्य ही नहीं था. लेकिन फिर भी उस के प्रति उस का प्यार कम होता जा रहा था.

पत्नी की किस बात पर राजकुमार हुआ सीरियस

 

स्वाति और ज्योति अपना काम खत्म करने के बाद काफी समय फेसबुक देखने में बिताने लगी थीं. फेसबुक पर रील देखने के दौरान उन्होंने कई ऐसी युवतियों को देखा, जो रील बनातेबनाते कुछ समय में अमीर बन गई थीं. मन में यह विचार आते ही एक दिन स्वाति ने ज्योति के साथ सेल्फी ले कर फेसबुक पर पोस्ट कर दी. पोस्ट पर लिख दिया, ‘तेरी मेरी यारी किस पर पड़ेगी भारी.’ ज्योति और स्वाति दोनों ही देखनेभालने में सुंदर और हसीन थीं. उन की इस पोस्ट पर लोगों ने तरहतरह के कमेंट्स डाले. जिन को देख कर ज्योति और स्वाति को विश्वास हो गया कि अगर वह भी अपनी रील बना कर फेसबुक पर पोस्ट करें तो वे जल्दी ही अपने मुकाम को हासिल कर लेंगी. उस के बाद दोनों ने फेसबुक पर पोस्ट डालनी शुरू कर दी थी.

सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर पैर जमाते ही ज्योति और स्वाति ने सिलाई का काम भी कम कर दिया था. उस के बाद दोनों घर से सजसंवर कर निकलतीं और अलगअलग जगहों पर जा कर वीडियो बनाने लगी थीं. जिस के बाद दोनों साथ में काम करते हुए हर वक्त ही एकदूसरे के साथ रहती थीं, जिस से स्वाति का अपनी प्रेमिका ज्योति के प्रति लगाव इतना बढ़ गया था कि उस ने घर और परिवार की सारी जिम्मेदारियों से किनारा कर लिया था.

शुरूशुरू में राजकुमार को भी लगा कि दोनों सहेलियां जो भी मिल कर एक साथ काम कर रही हैं, सही है. राजकुमार भी फेसबुक की आए दिन पढऩे वाली रीलों को देखने का आदी था. इस के माध्यम से उस ने अनेक इंसानों की जिंदगी बदलते देखी थी. लेकिन ज्योति के साथ स्वाति की नजदीकियां बढ़ते देख राजकुमार भी परेशान रहने लगा था. लेकिन उन दोनों के बीच क्या चल रहा है, वह उस से पूरी तरह से अंजान था. एक दिन जैसे ही स्वाति घर वापस आई तो राजकुमार ने कहा, ”स्वाति, इस तरह से घर कैसे चलेगा? तुम सारे दिन ज्योति के साथ घर के बाहर व्यस्त रहती हो. घरपरिवार की चिंता तुम ने बिलकुल ही छोड़ दी है.’’

”घर चलाने का मैं ने ही ठेका नहीं ले रखा. जैसे तुम्हें चलाना है, चलाओ. अगर तुम से नहीं चल रहा तो अपनी दूसरी शादी कर लो. मुझे ज्योति के साथ ही रहना है. वही मेरी सब कुछ है.’’ स्वाति ने राजकुमार पर एक ही बार में सारा गुस्सा उतार दिया. जब राजकुमार को लगने लगा कि ज्योति की वजह से उस की बसीबसाई गृहस्थी उजडऩे जा रही है तो उस ने ज्योति को अपने घर पर आने से साफ मना कर दिया. इस बात पर स्वाति आपे से बाहर हो गई, ”कान खोल कर सुन लो, आज के बाद ज्योति को कुछ कहने की जरूरत नहीं. उस के और मेरे बीच पतिपत्नी का रिश्ता है. हम दोनों ने मंदिर में शादी भी कर ली है. अगर तुम चाहो तो अपनी दूसरी शादी कर लो.

मेरी तरफ से तुम्हें पूरी छूट है. लेकिन मैं अपनी गर्लफ्रेंड के बिना नहीं रह सकती. मैं रहूंगी भी इसी घर में, लेकिन तुम्हारी इस बेटी की जिम्मेदारी नहीं संभालूंगी.’’ स्वाति ने एक ही सांस में बोल दिया. स्वाति के बदले तेवर देख कर राजकुमार को दिन में तारे नजर आ गए थे. उस दिन राजकुमार को पहली बार अहसास हुआ कि उस के घर में जो भी आग लग रही है, उस की जिम्मेदार उस की सहेली ज्योति ही है. यह सब जानने के बाद भी उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह करे तो क्या करे.

उस दिन के बाद यह बात पूरे गांव में चर्चा का विषय बन गई. यह बात ज्योति के फेमिली वालों के सामने भी जा पहुंची थी, लेकिन वह उन की बातों पर बिलकुल भी विश्वास करने को तैयार नहीं थे. स्वाति की हरकतों को देख राजकुमार को लगने लगा था कि वह किसी मानसिक बीमारी की शिकार होती जा रही है. इस बात की जानकारी उस ने स्वाति के फेमिली वालों के सामने भी रखी.

अपनी बेटी के कारनामों को सुन उस के पापा जानकीदास ने उसे समझाने की काफी कोशिश की, लेकिन वह उन की भी एक बात मानने को तैयार न थी. उस के बाद वह उसे अपने साथ अपने गांव भी ले गए. लेकिन स्वाति ने वहां से भी भागने की कोशिश की. तब उस के पापा ने घर में अंदर से ताला बंद कर दिया, ताकि वह किसी भी कीमत पर घर से बाहर न निकले. फिर भी उस ने घर की छत से कूद कर भागने की कोशिश की. जिस के कारण वह बुरी तरह से घायल भी हो गई थी. बाद में उस के मायके वालों ने उस का उपचार कराया और फिर से उसे उस की ससुराल छोड़ दिया था. स्वाति के ससुराल आते ही फिर से उस की दिनचर्या पहले की तरह शुरू हो गई.

पारिवारिक रिश्तों पर समलैंगिक संबंध कैसे पड़े भारी

स्वाति के इस रवैए से राजकुमार बुरी तरह से तंग आ चुका था. उस के बाद वह अपनी नौकरी पर चला गया. लेकिन इस वक्त दोनों सहेलियों को ले कर समाज व परिवार में उन के प्रति विरोध बढ़ता ही जा रहा था. जिस के कारण स्वाति तनाव में रहने लगी थी. हालांकि स्वाति की बेटी केवल 8 साल की थी, फिर भी उस ने अपनी मम्मी को काफी समझाने की कोशिश की. लेकिन बाद में स्वाति उस के साथ भी मारपीट करने लगी थी. किंतु वह किसी भी कीमत पर ज्योति को छोडऩे को तैयार न थी.

राजकुमार जब कभी भी उसे फोन करता तो वह अकसर ही बाहर होने की बात करती थी. जिस के कारण वह स्वयं भी अपनी बेटी को ले कर चिंतित रहने लगा था. स्वाति के बदले व्यवहार से तंग आ कर राजकुमार 6 मार्च, 2025 बृहस्पतिवार को अपनी नौकरी से छुट्टी ले कर अपने घर आ गया. घर आने के बाद राजकुमार ने उसे काफी समझाने की कोशिश की, लेकिन वह किसी भी कीमत पर ज्योति से जुदा होने के लिए तैयार नहीं थी. कई बार ज्योति को ले कर राजकुमार और उस के बीच इतना विवाद बढ़ जाता कि स्वाति उस के सामने ही आत्महत्या की धमकी देने लगी थी.

6 मार्च को राजकुमार जब छुट्टी पर आया तो बातों ही बातों में दोनों के बीच विवाद काफी बढ़ गया था. उस के बाद राजकुमार खेतों पर घूमने चला गया. जब वह खेतों से घर वापस आया तो उस की बेटी बाहर वाले कमरें में स्कूल का होमवर्क कर रही थी. राजकुमार बेटी को देख कर सीधा अंदर वाले कमरे में पहुंचा. उस ने जैसे ही कमरे का दरवाजा खोला तो अंदर का सीन देख कर उस के होश उड़ गए. स्वाति एक दुपट्टे के सहारे पंखे से लटकी हुई थी. स्वाति को पंखे से लटका देख राजकुमार घबरा गया और उस ने तुरंत यह बात अपनी फेमिली को बताई. फिर उस ने तुरंत ही इस की सूचना मोबाइल द्वारा स्थानीय पुलिस चौकी बंजरिया को दी.

सूचना पाते ही थाना शीशगढ़ से इसंपेक्टर राधेश्याम व सीओ अरुण कुमार राजकुमार के घर पर पहुंचे. पुलिस ने मृतका का शव पंखे से नीचे उतरवाया. उस के बाद पुलिस ने राजकुमार और उस के फेमिली से विस्तृत जानकारी ली. पुलिस ने मौके की काररवाई निपटाने के बाद शव को सील कर पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया था. इस मामले में राजकुमार की ओर से ज्योति, उस की मां शकुंतला देवी, खूशबू और सुमन के खिलाफ आत्महत्या के लिए उकसाने का केस दर्ज कराया था.

कथा लिखने तक पुलिस ने चारों आरोपियों के खिलाफ भारतीय न्याय संहिता की धारा 306 लगा कर इनवैस्टीगेशन शुरू कर दी थी.

 

 

Extramarital Affair : दोस्‍त की बीवी को फंसाया और दोस्‍त को मौत के घाट उतारा

Extramarital Affair : राजवीर ने अपने फुफेरे भाई बबलू को गांव से अपने पास बहादुरगढ़ इसलिए बुला लिया था कि यहां वह उसे किसी फैक्ट्री में नौकरी पर लगवा देगा. बहादुरगढ़ आने के बाद राजवीर ने बबलू की नौकरी लगवा भी दी, लेकिन बबलू ने इस का यह सिला दिया कि उस ने राजवीर की पत्नी अंजलि से अवैध संबंध बना लिए. इस के बाद जो हुआ…

‘‘सा हब, मैं सहतेपुर गांव से अजय पाल बोल रहा हूं. मेरी भाभी अंजलि ने मेरे भाई राजवीर का बड़ी बेरहमी से कत्ल कर दिया है. अंजलि भाभी को मैं ने पकड़ रखा है. आप जल्दी से हमारे गांव सहतेपुर आ जाइए.’’ अजय ने निगोही थाने में फोन करते हुए कहा. यह थाना उत्तर प्रदेश के जिला शाहजहांपुर के अंतर्गत आता है. निगोही थाने के इंचार्ज इंद्रजीत भदौरिया का ट्रांसफर अल्हागंज थाने में हो गया था. उस समय थाने का प्रभार एसएसआई मानबहादुर सिंह के पास था. एसएसआई के लिए यह हैरानी की बात थी कि एक औरत ने अपने पति को निर्दयता से मार डाला था.

एसएसआई ने घटना की सूचना अपने उच्चाधिकारियों को दी, फिर आवश्यक पुलिस बल के साथ सहतेपुर गांव के लिए रवाना हो गए. कुछ ही देर में वह घटनास्थल पर पहुंच गए. मकान के एक कमरे में राजवीर की लाश पड़ी थी. उस की उम्र 28 साल के करीब थी. उस की गरदन व चेहरे पर चोट के निशान थे. पास में एक डंडा, एक लौकेट और टूटी चूडि़यां पड़ी थीं. डंडे से यह जाहिर हो रहा था कि शायद उसी डंडे से राजवीर की हत्या की गई है. पूछने पर पता चला कि टूटा पड़ा लौकेट मृतक राजवीर का ही है. यानी राजवीर ने अपने बचाव में हत्यारे से संघर्ष भी किया था, जिस वजह से लौकेट टूट कर जमीन पर गिर गया. टूटी चूडि़यों से यह भी पता चला कि घटना के समय कोई महिला भी वहां मौजूद थी.

लाश के पास ही एक युवती गुमसुम बैठी थी. उस के पास ही एक युवक खड़ा था. वह युवक एसएसआई से बोला, ‘‘साहब, मेरा नाम अजयपाल है. मैं ने ही आप को फोन किया था. यही मेरी भाभी अंजलि है. इस ने ही बबलू की मदद से मेरे भाई राजवीर की हत्या की है. बबलू तो भाग गया लेकिन इसे मैं ने भागने नहीं दिया. आप इसे गिरफ्तार कर लीजिए.’’

एसएसआई मान सिंह ने अंजलि को महिला कांस्टेबलों की सपुर्दगी में दे कर थाना निगोही भिजवा दिया. एसएसआई सिंह घटनास्थल का निरीक्षण कर ही रहे थे कि सूचना पा कर सीओ (सदर) कुलदीप सिंह गुनावत भी आ गए. सीओ कुलदीप सिंह ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया, फिर मृतक के भाई से पूछताछ की. इस के बाद एसएसआई सिंह को आवश्यक दिशानिर्देश दे कर सीओ चले गए. एसएसआई सिंह ने घटनास्थल पर पड़ा डंडा, लौकेट व टूटी चूडि़यां साक्ष्य के तौर पर सुरक्षित कीं और लाश पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भेज दी. इस के बाद एसएसआई मान सिंह थाने वापस लौट आए. यह 31 मई, 2020 की बात है.

थाने में एसएसआई मान सिंह ने अंजलि से पूछताछ की तो वह फूटफूट कर रोने लगी. कुछ देर बाद आंसुओं का सैलाब थमा तो वह बोली, ‘‘हां साहब, मैं ने ही बबलू की मदद से अपने पति की हत्या की है. मैं अपना जुर्म कबूल करती हूं.’’

‘‘यह बबलू कौन है?’’ सिंह ने पूछा.

‘‘साहब, रिश्ते में बबलू मेरे पति का फुफेरा भाई है. वह निवाड़ी गांव का रहने वाला है.’’

चूंकि अंजलि ने अपने पति राजवीर की हत्या का जुर्म स्वीकार कर लिया था. अत: पुलिस ने अजय की तरफ से अंजलि व बबलू के खिलाफ भादंवि की धारा 302 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया. उस के बाद सिंह ने अंजलि से विस्तृत पूछताछ की. उन्होंने अंजलि से पूछा, ‘‘तुम कैसी औरत हो कि अपना ही सिंदूर अपने हाथों से मिटा दिया. क्यों किया तुम ने ऐसा जघन्य अपराध?’’

अंजलि कुछ देर चुप रही, फिर वह बोली, ‘‘साहब, एक औरत रोज मरे, जलील हो तो वह क्या करेगी. मेरा पति मुझे रोज मारता था. मेरी आत्मा हर रात उस के बिस्तर पर मरती थी. बताइए, मैं कब तक सहती. जो मुझे जानवर समझता था, जिस ने मेरे साथ कभी इंसानों जैसा व्यवहार नहीं किया, जिस ने मेरी भावनाओं को कभी नहीं समझा. उस के हाथों हर रोज मरने के बदले मैं ने ही उसे मार डाला.’’

अंजलि के मन में बिलकुल ही पश्चाताप नहीं था. एक औरत, जिस की जिंदगी के मायने पति से शुरू हो कर उसी पर खत्म होते हैं, क्यों अपना सिंदूर मिटा देती है, यह जानने के लिए सिंह को अंजलि की पूरी कहानी जानना जरूरी था. उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर जिले के निगोही थाना क्षेत्र के अंतर्गत एक गांव सहतेपुर है. इसी गांव में राजेंद्र पाल सपरिवार रहते थे. परिवार में उन की पत्नी लक्ष्मी देवी और 2 बेटे राजवीर और अजयपाल और 2 बेटियां क्रमश: ज्योति व रेनू थीं. राजेंद्र और लक्ष्मी का आकस्मिक देहांत हो गया तो घर की जिम्मेदारी सब से बड़े बेटे राजवीर पर आ गई. वह मेहनतमजदूरी कर के अपने परिवार का खर्च उठाने लगा. उस ने अपनी मेहनत की कमाई से अपनी बड़ी बहन ज्योति का विवाह कर दिया.

इस के बाद राजवीर के विवाह के लिए भी रिश्ते आने लगे. तब उस ने करीब 4 साल पहले शाहजहांपुर की चौक कोतवाली के मोहल्ला अब्दुल्लागंज में रहने वाली युवती अंजलि से विवाह कर लिया. अंजलि को पा कर राजवीर काफी खुश था. समय आगे बढ़ा तो राजवीर ने काम के सिलसिले में बाहर निकलने की सोची. उस के गांव के कई युवक बहादुरगढ़ (हरियाणा) में नौकरी कर रहे थे. राजवीर ने उन से बात की तो उन्होंने उसे भी बहादुरगढ़ बुला लिया. जल्द ही वह बहादुरगढ़ की एक जूता फैक्ट्री में काम पर लग गया. काम पर लगते ही वह अंजलि को भी बहादुरगढ़ ले गया. समय बढ़ता जा रहा था लेकिन अंजलि मां नहीं बन पाई.

राजवीर फैक्ट्री से लौट कर कमरे पर आता तो वह इतना थका होता कि  चारपाई पर लेटते ही नींद के आगोश में समा जाता. अंजलि चारपाई पर करवटें ही बदलती रहती. राजवीर का एक फुफेरा भाई था बबलू. वह राजवीर के गांव से कुछ ही दूरी पर निवाड़ी गांव में रहता था. राजवीर ने बबलू को भी अपने पास बहादुरगढ़ बुला लिया और उसे भी फैक्ट्री में काम पर लगवा दिया. दोनों के काम की शिफ्टें अलगअलग थीं. बबलू राजवीर के साथ उसी के कमरे पर रहता था. बबलू की राजवीर की पत्नी अंजलि से खूब पटती थी. दोनों के बीच देवरभाभी का रिश्ता होने के कारण उन के बीच हंसीमजाक होती रहती थी. अंजलि पति की उपेक्षा का शिकार थी. पति न उस की कभी तारीफ करता था, न ही उसे देह सुख देता था, जिस से वह अभी तक मां नहीं बन पाई थी.

इस कारण वह अकसर उदास रहती थी. बबलू जब भी उस से बातें करता तो मनभावन मीठीमीठी बातें ही करता था. उस के रूप की प्रशंसा भी खूब करता था. इसी कारण अंजलि धीरेधीरे बबलू की ओर आकर्षित होने लगी. एक दिन जब राजवीर फैक्ट्री में था तो बबलू कमरे पर अंजलि के साथ कमरे पर था. अंजलि का चेहरा बुझाबुझा सा क्यों रहता है, इस का कारण बबलू  एक साथ रहने के कारण जान चुका था. अपनी अंजलि भाभी की आंखों में वह प्यास भी पढ़ चुका था. बबलू ने अंजलि का मन जानने के लिए सवाल किया, ‘‘भाभी, एक बात मुझे परेशान करती रहती है. यह बताओ कि थकेहारे राजवीर भैया ड्यूटी से लौटने के बाद खाना खाते ही सो जाते हैं. वह आप का खयाल नहीं रख पाते. आप की खुिशयों का खयाल कब करते हैं.’’

‘‘कैसी खुशियां…कैसा खयाल…’’ अंजलि के मुंह से सच निकल गया, ‘‘उन पर तो हर वक्त थकान ही हावी रहती है. घर आए और घोड़े बेच कर सो गए. उन की बला से कोई जिए या कोई मरे.’’ अंजलि ने दिल की बात कह डाली. मौके को देखते हुए बबलू ने एकदम अंजलि का हाथ थाम लिया, ‘‘भाभी, यह तो बहुत अन्याय है तुम्हारे साथ. इतनी सुंदर भाभी को कोई तड़पाए, यह मुझे मंजूर नहीं है.’’

‘‘तुम इस मामले में क्या कर सकते हो देवरजी. जिस की बीवी है, उसी को फिक्र नहीं.’’

‘‘कर तो बहुत कुछ सकता हूं भाभी,’’ कहते हुए बबलू ने अंजलि की कमर में बांहें डाल दीं, ‘‘अगर तुम कहो तो…’’

‘‘चलो, मैं ने हां कह दी,’’ अंजलि ने मुसकरा कर तिरछी चितवन का तीर चलाया, ‘‘फिर क्या करोगे तुम?’’

‘‘तुम्हारी सारी तड़प मिटा दूंगा.’’ बबलू ने उसे बांहों में भींचते हुए कहा. फिर उस ने अंजलि को चूमना शुरू किया. देवर की गर्म सांसों का अहसास हुआ तो अंजलि भी बबलू से लिपट गई. उस के बाद बबलू ने अंजलि को अपनी बांहों में वह सुख दिया, जो अंजलि ने अपने पति की बांहों में कभी नहीं पाया था. उस दिन से बबलू अंजलि के तन के साथ मन का साथी हो गया. दोनों एकदूसरे के दीवाने हो गए. जब भी उन्हें मौका मिलता, वे देह संगम कर लेते. कुछ दिन तो उन का यह संबंध निर्बाध चलता रहा, फिर एक दिन पाप का भांडा फूट गया. एक दिन राजवीर ने दोनों को आपत्तिजनक स्थिति में देख लिया. यह देख कर उस का खून खौल उठा. उस ने अंजलि और बबलू की पिटाई की. दोनों ने राजवीर से अपने किए की माफी मांग ली. राजवीर ने फिर यह गलती न दोहराने की दोनों को सख्त हिदायत देते हुए माफ कर दिया.

अंजलि तन की शांति के लिए पतित हुई थी. राजवीर को चाहिए था कि वह बीवी की इच्छा पूरी करता, लेकिन राजवीर उन मर्दों में से था जो यह मानते हैं कि बिगड़ी हुई बीवी लातों की बात सुनती है. लिहाजा वह आए दिन अंजलि की पिटाई करने लगा. पति की मार खातेखाते अंजलि विद्रोही बन गई. बबलू से मिला सुख वह भुला नहीं पा रही थी. इसलिए अधिक दिनों तक वे दोनों अलग नहीं रह पाए. अंजलि और बबलू दोनों फिर देह के खेल में लग गए. एक बार फिर दोनों रंगेहाथों पकड़ लिए गए. एक बार फिर अपनी बेवफा पत्नी को राजवीर ने पीटा और बबलू को वापस उस के गांव भेज दिया. बबलू को भेज देने से राजवीर निश्चिंत हो गया. लेकिन अंजलि और बबलू की फोन पर बातें होती थीं.

इस बार दोनों के संबंधों की बात राजवीर के भाई और बहनों के साथसाथ बबलू के घर वालों को भी पता चल गई. बबलू के पिता सुरेंद्र ने उस की शादी के प्रयास करने शुरू कर दिए. इस बीच कोरोना वायरस के कारण देश में लौकडाउन हुआ तो राजवीर को बहादुरगढ़ से अंजलि के साथ अपने गांव सहतेपुर लौटना पड़ा. दूसरी ओर बबलू की शादी तय हो गई. 28 मई, 2020 को उस का तिलक था. अब चूंकि बबलू शादी कर रहा था तो राजवीर को यह लगा कि अब उस के अंजलि से संबंध यहीं खत्म हो जाएंगे.

राजवीर अंजलि, भाई अजय और दोनों बहनों ज्योति और रेनू के साथ बबलू के तिलक में शामिल होने के लिए गया. तिलक  के बाद बबलू ने राजवीर से बात कर के सारे गिलेशिकवे दूर कर दिए. 30 मई को राजवीर और अंजलि अपने घर आ गए, उन्हें छोड़ने के लिए साथ में बबलू भी आया. अजय, ज्योति व रेनू बबलू के घर पर ही रुक गए थे. शाम 5 बजे तक तीनों सहतेपुर गांव पहुंचे. बबलू राजवीर के घर पर ही रुक गया. देर रात राजवीर के सो जाने पर बबलू और अंजलि एकदूसरे के पास आ गए. दोनों साथ रंगरलियां मना ही रहे थे कि राजवीर की आंखें खुल गईं. उस ने देखा तो वह दोनों से झगड़ने लगा, उन में हाथापाई होने लगी.

इस पर अंजलि को गुस्सा आया, वह पति पर पिल पड़ी और बबलू से बोली, ‘‘आओ, आज इस का काम तमाम कर ही दो. फिर हमेशा के लिए हमारा रास्ता साफ हो जाएगा.’’

यह सुन कर बबलू भी राजवीर पर टूट पड़ा. इसी हाथापाई में राजवीर का लौकेट टूट कर जमीन पर गिर गया. अंजलि की भी चूडि़यां टूट गईं. दोनों ने राजवीर को जमीन पर गिरा लिया और उस के गले पर डंडा रख कर दबा दिया, जिस से दम घुटने से राजवीर की मौत हो गई. इस के बाद बबलू वहां से चला गया. सुबह 4 बजे अंजलि ने चीखना- चिल्लाना शुरू कर दिया. पड़ोस में रहने वाले राजवीर के चचेरे भाई संदीप ने अंजलि के चीखने की आवाजें सुनीं तो वह राजवीर के घर आ गया. उस ने देखा कि राजवीर जमीन पर बेसुध पड़ा था. उस के शरीर पर चोटों के निशान थे. बबलू घर में नहीं था. गांव के लोग भी वहां इकट््ठे हो गए थे. राजवीर की मौत हो चुकी है, यह जान कर संदीप ने राजवीर के भाई अजय पाल को फोन कर के सब बता दिया.

बड़े भाई राजवीर की मौत की बात सुन कर अजय पाल दोनों बहनों के साथ बबलू के घर वापस लौट आया, जिस के बाद कोहराम मच गया. अजय ने निगोही थाने फोन कर के घटना के बारे में बताया. पुलिस पहुंची और अंजलि को हिरासत में ले कर पूछताछ की तो सारा मामला सामने आ गया. 31 मई, 2020 की रात में ही पुलिस ने बबलू को भी गिरफ्तार कर लिया गया. आवश्यक पूछताछ व जरूरी लिखापढ़ी के बाद दोनों को न्यायालय में पेश करने के बाद जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Family Dispute : पत्‍नी के सामने एक के बाद एक 5 सल्‍फास की गोलियां खाकर दी जान

Family Dispute : आजकल मांबाप 12-13 साल का होते ही बच्चों के हाथों में मोबाइल थमा देते हैं, जिस में लगे इंटरनेट पर अच्छीबुरी  हर चीज मौजूद है. अगर यह कहा जाए कुछ किशोर सैक्स के बारे में मांबाप से ज्यादा जानते हैं तो गलत नहीं होगा. सौरभ भी ऐसा ही दिशाहीन युवक था. जिस ने…

एक साल के प्यार, 2 साल की रिलेशनशिप और 8 साल के प्रेम विवाह में रचना कभी इतना नहीं घबराई थी. इस दौरान वह हर तरह से, हर कदम पर बृजेश के साथ खड़ी रही थी. बृजेश कम ही कहां था, कोर्टमैरिज करते समय न उस के मायके वालों से घबराया, न अपने घर वालों से, जो उसे घर से निकालने की धमकी दे रहे थे. उन की धमकी से डरने के बजाय उस ने खुद ही उन की देहरी पर कदम न रखने की बात कह दी थी. कहा तो निभाया भी. बृजेश जिला मुरादाबाद के संभल का रहने वाला था और रचना अमरोहा के मोहल्ला कुरैशियान की. अमरोहा में बृजेश के बड़े भाई राजेश की ससुराल थी.

रचना रिश्ते में उस की साली लगती थी. राजेश कभीकभी भाई की ससुराल जाता था, वहीं उस की रचना से मुलाकात हुई और दोनों में प्यार हो गया. बाद में जब दिशू और परी आईं तो घर वालों का प्रेम जागा और वे लोग रचना बृजेश व दोनों बच्चियों को खुद घर ले गए. तब तक रचना के मायके वाले भी दामाद और बेटी के प्रेमिल रिश्ते को समझ गए थे. 10 साल लंबे साथ में रचना को कभी लगा ही नहीं कि बृजेश उसे प्यार नहीं करता या उसे उस पर विश्वास नहीं है. इतनी लंबी अवधि में रचना को न तो कभी ऐसी टेंशन हुई थी और न ही वह कभी इतनी घबराई थी. वजह यह कि तब हर कदम पर बृजेश उस के साथ खड़ा था, उस का हौसला बन कर.

वह इतना प्यार और विश्वास करने वाला पति था कि कभीकभी रचना को अपनी किस्मत पर नाज होने लगता था. फिर बृजेश को अचानक ऐसा क्या हो गया कि अपनी प्रेम संगिनी पर विश्वास ही नहीं रहा, उस के लिए वह दूषित हो गई, पराई सी लगने लगी.

कभीकभी वह बृजेश के पक्ष में सोचती तो उसे लगता, न बृजेश गलत है न उस की सोच. कोई और भी होता तो ऐसे ही सोचता. लेकिन वह खुद ही गलत कहां थी. गलत तो वह था जो अनायास उन दोनों के बीच घुस आया था. रचना की परेशानी यह थी कि बृजेश को उस की हकीकत बता भी नहीं सकती थी. बता देती तो कीचड़ के छींटे उस के दामन पर भी आते. एक स्नेहिल शुरुआत संभल के मोहल्ला डेरा सहाय का रहने वाला बृजेश करीब 8 महीने पहले मुरादाबाद आया था. उस ने थाना नागफनी क्षेत्र के बंगला गांव स्थित रामवती के मकान में किराए के 2 कमरे ले लिए, फिर पत्नी रचना, दोनों बेटियों दिशू और परी को मुरादाबाद ले आया.

मकसद था बड़ी हो रही बेटियों को किसी अच्छे स्कूल में पढ़ाना. बृजेश ने खुद पीतल के एक बड़े कारखाने में नौकरी ढूंढ ली, जहां बनी चीजें एक्सपोर्ट होती थीं. बड़े शहर में आ कर रचना भी खुश थी और दोनों बेटियां भी. उन्हें खुश देख बृजेश उन से भी ज्यादा खुश रहता था. बृजेश सुबह को काम पर जाता तो अंधेरा घिरने तक ही लौटता. रचना दिन भर बच्चियों को पढ़ाने, संभालने और घर के कामों में लगी रहती. देखतेदेखते हंसीखुशी 2-3 महीने गुजर गए. इस बीच रचना और दोनों बच्चियां रामवती से भी घुलमिल गई थीं. सब कुछ ठीक चल रहा था कि एक दिन रामवती का पोता सौरभ दादी से मिलने आया. सौरभ नाबालिग था, लेकिन वाचाल. सौरभ ने रचना को देखा तो उस की खूबसूरती उस के दिल में उतर गई.

दादी ने पोते का परिचय रचना से करा दिया. वह रचना से मीठीमीठी बातें कर के नजदीकी बढ़ाने की कोशिश करने लगा. रचना उसे बच्चा समझ कर उस से वैसी ही बातें करती. नजदीकी बढ़ाने के लिए सौरभ रचना की दोनों बेटियों से भी घुलमिल गया. रचना को वह भाभी कहता था. सौरभ नाबालिग था, बच्चों की तरह. उस के दिमाग में क्या है, रचना न तो जानती थी न जान सकती थी. जो भी हो, इस के बाद सौरभ हर हफ्ते दादी से मिलने आने लगा. आता तो रचना और उस की बेटियों से मिलता भी, बातें भी करता. कभी रामवती के सामने तो कभी पीछे. सौरभ मकान मालिक का पोता है, यह सोच कर रचना हंसती भी, उस से बातें भी करती.

एक दिन सौरभ ने कहा, ‘‘भाभी, आप मुझे बहुत सुंदर लगती हो. मैं आप का एक फोटो ले सकता हूं.’’

रचना ने न हां कहा न ना. तब तक सौरभ ने मोबाइल निकाल कर 3-4 फोटो खींच लिए. यह सामान्य सी बात थी. रचना ने सामान्य ढंग से ही लिया. सौरभ हफ्ते में एकदो बार आता और दादी से कम और रचना व उस की बेटियों से ज्यादा बात करता. बच्चियां उस के साथ खुश रहती थीं, इसलिए इस सब को उस ने किसी दूसरे पहलू से देखासोचा ही नहीं. एक बार सौरभ आया तो दादी के सामने ही रचना से बोला, ‘‘भाभी, आप की सेल्फी ले लूं?’’

रचना मना करती तो मकान मालकिन को बुरा लग सकता था, इसलिए उस ने न ना कहा न हां. इसी बीच सौरभ ने रचना के कंधे के पास सिर ले जा कर सेल्फी ले ली. एक और, एक और कर के उस ने 3 सेल्फी लीं, जिन में एक ऐसी भी थी, जिस में पीछे की ओर से सौरभ का चेहरा रचना के कंधे पर रखा दिख रहा था और दोनों के गाल मिले हुए थे. बाद में उस ने वह सेल्फी रचना को दिखाई तो वह उसे डिलीट करने को कहने लगी. लेकिन उस ने ऐसा नहीं किया. वह अपने घर चला गया.

नाबालिग हो गया जवान सेल्फी ऐसी नहीं थी कि उसे ले कर परेशान हुआ जाए. रचना परेशान भी नहीं हुई. लेकिन घर जा कर सौरभ ने जब सेल्फी को बारबार देखा तो उसे लगा कि वह जवान हो गया है. पलभर में उस का किशोरवय वाला दिमाग जवानी के पाले में जा खड़ा हुआ. दिमाग में उसी तरह की खुराफातें भी आने लगीं. उसे लगा रचना वाली सेल्फी उस के पास ऐसा हथियार है, जिस के बूते पर वह उसे मनचाहे ढंग से झुका सकता है. वह पूरी कोशिश करेगी कि सेल्फी उस के पति के सामने न जा पाए.

सौरभ ने जो सोचा किया भी. उस ने रचना को फोन करना शुरू कर दिया. पहले सामान्य सा हंसीमजाक, फिर प्रेमप्यार की बातें और फिर उन बातों में अश्लीलता घुल गई. रचना को बुरा लगा तो उस ने सौरभ को डांट दिया. फिर से फोन न करने को कह कर फोन डिसकनेक्ट कर दिया. सौरभ एक दिन शांत रहा, लेकिन अगले दिन फिर फोन कर दिया. रचना ने उसे समझाया, ‘‘तुम अभी बच्चे हो, ऐसी बेवकूफी मत करो. नहीं तो मुझे तुम्हारी दादी से शिकायत करनी पड़ेगी.’’

‘‘भाभी, ये हम दोनों के बीच की बात है. दादी इस में क्या करेगी? बात दादी तक गई तो वह तुम लोगों को मकान से निकाल देगी, क्योंकि मैं सच थोड़े ही बोलूंगा. तुम पर उलटा इलजाम लगा दूंगा कि तुम मुझे फंसा रही थीं. मैं नहीं माना तो…’’

सौरभ की बात सुन कर रचना डर गई. सोचने लगी यह औरत होने की सजा है या विश्वास करने की. एक किशोर से स्नेहपूर्वक बात करना क्या इतना घातक है. दादी का वार खाली गया तो रचना ने पति के नाम का हथियार इस्तेमाल करते हुए उस की जुबान पर ताला डालने की कोशिश की, ‘‘ठीक है, मैं आज ही तुम्हारे भैया से कहूंगी, वही तुम्हारा दिमाग ठीक करेंगे.’’

रचना की बात सुन कर सौरभ हंस पड़ा. पलभर हंसने के बाद उस ने आखिरी तीर चलाया, ‘‘मेरी तुम्हारी एक सेल्फी है, तुम तो उसे भूल गई होगी. कोई बात नहीं, मैं भेज देता हूं. पहले देख लो फिर धमकी देना. देखो और सोचो, मैं ने यह सेल्फी बृजेश भैया को भेज दी तो क्या होगा.’’

सौरभ ने सेल्फी रचना को भेज दी. रचना सेल्फी वाले वाकए को भूल चुकी थी. लेकिन उस ने सौरभ की भेजी सेल्फी देखी तो थर्रा कर रह गई. बृजेश उसे देख लेता तो उस पर ही इलजाम लगाता. वह सोच भी नहीं सकती थी कि 17 साल का किशोर इतना शातिर भी हो सकता है. उस की परेशानी यह थी कि सौरभ मकान मालकिन का पोता था. बात बढ़ती तो वह उसी का पक्ष लेती. उन्हें मकान खाली करने को भी कह सकती थी. अनायास जो स्थिति बनी थी या सौरभ ने बना दी थी, उस से वह टेंशन में रहने लगी.

इस स्थिति में उसे सौरभ को बहलाएफुसलाए भी रखना था और उसे बृजेश को सेल्फी भेजने से रोकना भी था. रचना इन्हीं स्थितियों में जीती रही, क्योंकि उसे कोई राह नहीं सूझ रही थी. सौरभ फोन करता तो सीधे कहता, ‘‘कब बुला रही हो?’’

अब उस ने रचना को भाभी कहना भी बंद कर दिया था. यह सब चल ही रहा था कि 23 मार्च को लौकडाउन की घोषणा हो गई. बृजेश का काम पर जाना बंद हो गया. वह घर में रहने लगा. रचना हर समय डरीडरी सी रहने लगी. डर स्वाभाविक था. उसे जिस का डर था, वही हुआ. सौरभ ने फोन कर दिया. रचना को अलग जा कर फोन सुनना पड़ा. उस ने सौरभ से बृजेश के घर में होने की बात कहनी पड़ी. इस पर वह खुश होते हुए बोला, ‘‘यह तो और भी अच्छा है. उस की बगल में बैठ कर बात करो मुझ से, वह सुनेगा तो और मजा आएगा.’’

रचना उस के सामने रोईगिड़गिड़ाई, मिन्नतें कीं, लेकिन सौरभ पर कोई असर नहीं हुआ. वह कमीनों की तरह हंसते हुए बोला, ‘‘छोटी सी बात है, मान जाओ. इतना परेशान होने की क्या जरूरत है. तुम भी खुश रहो, मैं भी खुश.’’

वह बात कर के कमरे में आई तो बृजेश ने पूछा, ‘‘किस से बात कर रही थीं?’’

जल्दी में कुछ नहीं सूझा तो रचना ने कह दिया, ‘‘मायके से फोन था.’’

‘‘उन से तो मेरे सामने भी बात कर सकती थी.’’ रचना ने सौरी कह कर बात तो खत्म कर दी लेकिन बृजेश उस के उतरे चेहरे को देख कर समझ गया कि कहीं कुछ तो गड़बड़ है. उस ने मन ही मन उस गड़बड़ का पता लगाने की ठान ली. फिर एक दिन सौरभ अचानक आ गया. बृजेश घर में था. रचना की रुह कांप गई. उसे लगा कि आज सौरभ मुंह जरूर खोलेगा. गनीमत यह रही कि सौरभ ने ऐसा कुछ नहीं किया और वापस चला गया.

पता तो नहीं लगा पाया, लेकिन जब रोजरोज सौरभ के फोन आने लगे तो उसे पूरा यकीन हो गया कि रचना का किसी के साथ चक्कर जरूर है. पिछले 12 सालों में वह इतनी टेंशन में कभी नहीं रही थी. पति को वह सफाई देती, कसमें खाती, लेकिन वह मानने को तैयार नहीं था. अगर वह सब कुछ सच बताती तो सेल्फी वाला फोटो उस का दुश्मन बन जाता. नतीजा यह हुआ कि बृजेश का शक बढ़ता गया. वह रोजाना शराब पीता और मन में भरा सारा गुबार रचना पर निकाल देता. वह गालियां खाती, पिटाई झेलती. बृजेश उस की सफाई सुनने को तैयार नहीं था. 17 साल के सौरभ ने रचना की बसीबसाई गृहस्थी में आग लगा दी थी. आग लगाई ही नहीं, रोज उसे हवा भी देता रहा. महीना भर से ज्यादा समय तक यही चलता रहा.

कुछ नहीं किया पुलिस ने जब रचना पूरी तरह टूट गई, बात बरदाश्त के बाहर हो गई तो एक दिन उस ने बृजेश को सच्चाई बता दी. बृजेश ने उस की बात पर यकीन किया या नहीं, यह अलग बात है. पर उस ने रचना से कहा, ‘‘तैयार हो जा, थाने चलते हैं.’’

रचना और बृजेश थाना नागफनी गए और लिखित तहरीर दे दी. तहरीर ले कर थानेदार ने कह दिया, बाद में देखेंगे. पतिपत्नी मुंह लटकाए लौट आए. बात जहां थी वहीं रह गई. वही शक वही संदेह और वही लड़ाईझगड़ा, मारपीट. रचना बृजेश को जितनी सफाई देती, समझाती, वह उसे उतना ही गलत समझता. 20 जून, 2020 को शनिवार था. उस दिन बृजेश रचना से खूब लड़ा, इतना ज्यादा कि रचना को अपनी जिंदगी बेकार लगने लगी. कोई रास्ता नहीं सूझा तो उस ने अपनी कलाई की नस काट ली. किसी पड़ोसी ने इस की सूचना बंगला गांव पुलिस चौकी को दी.

चौकी इंचार्ज रामप्रताप सिंह मौके पर आए और उन्होंने रचना को जिला अस्पताल में भरती करा दिया. इस से रचना की जान बच गई. रामप्रताप सिंह को लगा कि पतिपत्नी के झगड़े का मामला है, इसलिए उन्होंने दोनों को समझाया, उन्हें उन की बच्चियों का वास्ता दिया. साथ ही दोनों को सीधे घर जाने को भी कहा. 21 जून, 2020 को सुबह 8 बजे बृजेश दोनों बेटियों दिशू और परी को वहां से थोड़ी दूर पर रहने वाले अपने मौसेरे भाई प्रमोद के घर छोड़ आया.

वापसी में वह सल्फास की गोलियों का पैकेट लाया था. आते ही उस ने रचना से कहा, ‘‘मैं अब जीना नहीं चाहता. तूने मेरे साथ जो विश्वासघात किया है, मैं बरदाश्त नहीं कर पा रहा हूं. मेरे पीछे खूब मौजमजे करना.’’

बृजेश ने जेब से पैकेट निकाला तो रचना ने उस के हाथ से छीन लिया. वह बोली, ‘‘गुनहगार मैं हूं तो मुझे मरना चाहिए, तुम्हें नहीं. बच्चियां अभी छोटी हैं, उन्हें कौन संभालेगा.’’

बृजेश रचना से पैकेट लेने की कोशिश करता, इस से पहले ही उस ने पानी की बोतल उठा कर 4-5 गोलियां गटक लीं. पैकेट फर्श पर पड़ा देख बृजेश ने उठाया और वह भी पानी से 3-4 गोली निगल गया.

दोनों फंस गए मौत के चंगुल में इस बीच बैड पर गिरी रचना के मुंह से झाग निकलने लगे थे. बृजेश भी फर्श पर फैल गया था. बृजेश और रचना के बीच महीनों से विवाद चल रहा था. उन के लड़ने की आवाजें अड़ोसीपड़ोसी भी सुनते थे. उस दिन भी दोनों में विवाद हुआ था. जब अचानक दोनों की आवाजें आनी बंद हो गईं तो आसपड़ोस के लोगों को अनहोनी का डर लगा. उन्होंने जा कर कुंडी खड़काई. गिरतेपड़ते बृजेश ने अंदर से कुंडी खोली. अंदर का हाल देख कर लोग समझ गए कि दोनों ने जहर खाया है.

लोगों ने पुलिस को सूचना दी. पुलिस उन्हें अस्पताल ले गई. डाक्टरों ने अपनी ओर से पूरी कोशिश की लेकिन रात आतेआते रचना ने दम तोड़ दिया. इस दौरान संभल से बृजेश के बड़े भाई और घर वाले आ गए. लेकिन प्रेमकथा में फंसा एक पेंच कैसे पीछे रह पाता. अगले दिन दोपहर में बृजेश ने भी दम तोड़ दिया. उसी शाम पोस्टमार्टम के बाद रचना और बृजेश के शव उन के घर वालों को सौंप दिए, जिन का उन्होंने उसी शाम लालबाग श्मशान घाट में अंतिम संस्कार  कर दिया. शवों को मुखाग्नि बृजेश के भतीजे ने दी.

इस बीच पुलिस ने फोरैंसिक टीम को मौके पर बुलवा कर जांच कराई. जांच का सारा काम सीओ राजेश कुमार की देखरेख में हुआ. पुलिस ने आसपड़ोस के लोगों से पूछताछ की, लेकिन अंदर की कहानी कोई नहीं जानता था. उसी रात बृजेश के बड़े भाई राजेश ने थाना नागफनी जा कर तहरीर दी, जिस में सौरभ को बृजेश और रचना को आत्महत्या के लिए मजबूर करने का दोषी बताया गया था. इस शिकायत पर थाना नागफनी के प्रभारी सुनील कुमार ने सौरभ के खिलाफ भादंवि की धारा 306 के तहत केस दर्ज कर लिया. अगले दिन सौरभ को गिरफ्तार कर लिया गया. जांच के लिए उस का मोबाइल फोन भी बरामद कर लिया गया.

रचना का मोबाइल पहले ही पुलिस के पास था, जो घटनास्थल से मिला था. पूछताछ के बाद सौरभ को अदालत में पेश कर के जेल भेज दिया गया. दूसरी ओर 8 साल की दिशू और 4 साल की परी मां और पिता के लिए बराबर रोए जा रही थीं. उन के ताऊ राजेश और बुआ रीमा उन्हें समझा रहे थे कि मां बीमार है, अस्पताल में है और पापा मम्मी के लिए दवाई लेने गए हैं. लेकिन ऐसी बातों से बच्चियों को कब तक बहलाया जा सकता था. उन्हें यह भी तो पता ही नहीं था कि उन के मम्मीपापा इस दुनिया में नहीं रहे.

सच तो यह है कि बच्चियां यह तक नहीं जानतीं कि इंसान मरता कैसे है और क्यों. फिलहाल बृजेश के बड़े भाई राजेश दिशू और परी को अपने साथ ले गए हैं.

Extramarital Affair : पत्नी ने पति की बीयर में नींद की गोलियां मिलाई फिर प्रेमी से कराई हत्या

Extramarital Affair : समीर बिस्वास अपनी पत्नी श्यामली को इतना प्यार करता थ कि उस ने उस की खातिर अपने मांबाप और भाइयों को घर से निकाल दिया था. पूरी तरह स्वतंत्र हो जाने पर श्यामली के कदम बहक गए. फिर एक दिन उस ने पति को उस के विश्वास का ऐसा सिला दिया कि…

रात के कोई 2 बजे का वक्त रहा होगा. उस समय तक अधिकांश लोग गहरी नींद में खर्राटे भरते नजर आते हैं. लेकिन उस समय भी अगर किसी के घर से अचानक ही गोली चलने की आवाज आए तो नींद में खलल तो पड़ ही जाती है और उन लोगों की नींद उड़ ही जाती है, गोली की आवाज सुन कर अच्छेअच्छों के हौसले पस्त हो जाते हैं. उस समय जिस घर में गोली चली थी, वह समीर बिस्वास का घर था. जिला ऊधमसिंह नगर के रुद्रपुर ट्रांजिट कैंप मुखर्जी नगर में 25 वर्षीय समीर बिस्वास अपनी पत्नी श्यामली और अपने 3 वर्षीय बेटे देव के साथ रहता था. जबकि उस के पिता निताई बिस्वास ट्रांजिट कैंप के नजदीक ही अरविंद नगर में अपनी बीवी अनीता बिस्वास और 2 बेटों सुकीर्ति और विष्णु के साथ रहते थे.

उस समय समीर बिस्वास अपने मकान के एक कमरे में अकेला ही सोया था. उस की बीवी अपने बेटे देव को साथ ले कर अपनी सहेली के साथ ही अपने बैडरूम में सोई थी. घर में अचानक गोली चली तो सब से पहले श्यामली ही चीखी थी. उस की चीख सुन कर लोगों को लगा कि समीर के घर में बदमाश घुस आए हैं और बदमाशों ने किसी को गोली मार दी. घर में कोहराम मचा तो समीर बिस्वास की छत पर सो रहे उस के 2 दोस्त सूरज और छोटू भी छत से नीचे जाने वाली सीढि़यों की ओर दौड़े. लेकिन उन सीढि़यों पर नीचे से कुंडी लगी होने के कारण उन के सामने मजबूरी आ खड़ी हुई. फिर दोनों पड़ोसी के घर में प्रवेश कर उस की दीवार फांद कर समीर के कमरे  में जा पहुंचे.

सूरज और छोटू ने देखा कि समीर अपने बैड पर खून से लथपथ पड़ा हुआ था. जबकि उस की पत्नी श्यामली उसी के पास खड़ी बुरी तरह से दहाड़ मार कर रो रही थी. समीर के घर में रात में चीखनेचिल्लाने की आवाज सुन कर मोहल्ले वाले भी इकट्ठे हो गए थे. लेकिन कोई भी यह नहीं समझ पा रहा था कि बदमाशों ने समीर की हत्या क्यों कर दी. अभी लोग इस मामले को पूरी तरह से समझ भी नहीं पाए थे कि उसी समय श्यामली रोतीबिलखती दूसरे कमरे में बंद हो गई. उस को कमरे में इस तरह से बंद होते देख सभी लोग हैरत में पड़ गए. लोगों की समझ में नहीं आ रहा था कि  उसे अचानक क्या हो गया.

तभी किसी ने खिड़की से झांक कर देखा तो श्यामली अपनी चुनरी को पंखे से बांध रही थी. जिस से लोगों को समझने में देर नहीं लगी कि वह पंखे से लटक कर आत्महत्या करने की कोशिश कर रही है. श्यामली की हरकतों को देख कर मौके पर मौजूद लोगों ने जैसेतैसे कर दरवाजा तोड़ कर उसे बाहर निकाला. उस के बाद उसे समझाने की कोशिश की. मृतक समीर बिस्वास के चाचा अर्जुन बिस्वास कांग्रेस पार्टी के नेता थे. अपने भतीजे की हत्या होने की बात सुनते ही अर्जुन बिस्वास भी तुरंत समीर के घर पर पहुंचे और थाना ट्रांजिट कैंप में इस सब की जानकारी दी. हत्या की सूचना पाते ही थानाप्रभारी विद्यादत्त जोशी कुछ ही देर में घटनास्थल पर पहुंच गए. पुलिस को यह सूचना सुबह लगभग 4 बजे मिली थी.

थानाप्रभारी ने यह जानकारी अपने उच्चाधिकारियों को भी दे दी थी सूचना पाते ही एसएसपी बरिंदरजीत सिंह, एसपी (सिटी) देवेंद्र पिंचा, एसपी (क्राइम) प्रमोद कुमार और सीओ अमित कुमार भी घटना स्थल पर पहुंच गए. पुलिस ने काररवाई करते हुए समीर के कमरे की बारीकी से जांचपड़ताल की. समीर के माथे पर गोली लगी थी. समीर के शव को देख कर साफ जाहिर हो रहा था कि हत्यारों ने समीर के गहरी नींद में सोने के दौरान ही गोली मारी थी. खून उस के चेहरे से होते हुए सारे बिस्तर पर फैल चुका था. पुलिस ने उस कमरे की पड़ताल की जिस में श्यामली ने पंखे में चुनरी बांध कर खुदकुशी करने का ढोंग ही किया था. पुलिस ने उस के परिवार वालों से समीर और उस की बीवी के बारे में जानकारी जुटाई तो इस केस ने अलग ही मौड़ ले लिया.

समीर के परिवार वालों ने पुलिस को जानकारी देते हुऐ बताया कि समीर और श्यामली ने अब से लगभग 7 वर्ष पूर्व प्रेमविवाह किया था. शादी के बाद इन दोनों के बीच कुछ समय तक तो सब कुछ सही रहा, लेकिन बाद में उन दोनों के बीच खटपट रहने लगी थी. उसी के चलते समीर की बीवी ने उसे परिवार से भी अलगथलग कर दिया था. उस के बाद वह न तो उसे किसी परिवार वाले से मिलनेजुलने देती थी और न ही किसी को अपने घर आने देती थी. परिवार वालों ने बताया कि श्यामली का चरित्र ठीक नहीं था. समीर की गैरमौजूदगी में उस के घर पर कुछ संदिग्ध लोगों का आनाजाना था. उस के किसी अन्य युवक के साथ अवैध संबंध थे. जिस का समीर विरोध करता था. जिस के कारण ही समीर की हत्या हुई.

यह सब जानकारी जुटाने के बाद पुलिस ने अपनी काररवाई करते हुए लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी. समीर की लाश को पोस्टमार्टम भेजने के बाद ही पुलिस ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए छानबीन शुरू की. उसी दौरान पुलिस ने श्यामली के साथ रात गुजारने वाली उस की सहेली प्रियंका से भी पूछताछ की. लेकिन प्रियंका ने बताया कि वह स्वयं ही अपनी सहेली के घर मिलने के लिए आई थी. जिस के बाद वह रात का खाना खा कर सो गई थी. उस के सोने के बाद समीर के साथ क्या घटना घटी उसे कुछ नहीं मालूम. इस मामले की बाबत पुलिस ने श्यामली से पूछताछ की तो उस ने बताया कि उस रात समीर और उस के दोस्तों सूरज और छोटू ने खाना खाया और उस के बाद सूरज और छोटू मकान की छत पर जा कर सो गए.

वह अपने बेटे देव को अपने साथ ले कर सहेली प्रियंका के साथ अलग कमरे में सो गई थी. जबकि समीर अपने कमरे में अकेला ही सोया था. रात के समय उस ने अपने घर में  गोली चलने की आवाज सुनी तो वह बुरी तरह से घबरा गई. उस के बाद वह अपनी सहेली प्रियंका के साथ कमरे से बाहर निकली तो उस ने घर से बाहर कुछ लोगों को भागते हुए देखा था. समीर को मरा देख कर वह खुद पर भी कंट्रोल नहीं कर पाई थी, जिस के बाद उस ने भी आत्महत्या करने की कोशिश की, लेकिन वहां पर मौजूद लोगों ने उसे बचा लिया. उसी दौरान पुलिस ने श्यामली का मोबाइल फोन अपने कब्जे में ले लिया. उस की काल डिटेल्स देखी तो आखिरी बार रात के 2 बजे के समय एक नंबर पर उस की बातचीत हुई थी, वह नंबर किसी विश्वजीत राय के नाम से फीड था.

पुलिस ने श्यामली से विश्वजीत राय से रात में बात करने का कारण पूछा तो वह कोई संतोषजनक जबाव नहीं दे पाई. विश्वजीत का नाम सुनते ही उस के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं. उस के बाद पुलिस श्यामली को पूछताछ के लिए थाने ले आई. थाने में पहुंचते ही श्यामली डर गई और सब कुछ बताने को राजी हो गई. श्यामली ने बताया कि उस के विश्वजीत से नाजायज संबंध थे. उन्हीं संबंधों के चलते उस ने प्रेमी के सहयोग से पति की हत्या करा दी. हत्या के इस केस की जो सच्चाई उभर कर सामने आई वह दोस्ती, प्यार, शादी और उस के बाद बेवफाई से जुड़ी एक हैरतअंगेज कहानी थी—

अब से कई साल पहले श्यामली के पिता प्रवास बिस्वास का परिवार बंगाल से आ कर रुद्रपुर और गदरपुर के बीच बसे दिनेशपुर में आ कर रहने लगा था. दिनेशपुर आने के बाद उस की बीवी अपर्णा बिस्वास 2 बच्चों, बेटी श्यामली और बेटे संजीत की मां बन गई. दिनेशपुर में बाहुल्य आबादी बंगालियों की ही है. बंगाल से आने के बाद इन लोगों ने यहां पर स्थानीय लोगों के यहां पर मेहनतमजदूरी करनी शुरू की. इन लोगों में ही कुछ लोग इतने समर्थ थे कि उन्होंने यहां पर कुछ जमीनें खरीदीं और कुछ ने सरकारी जमीनों पर कब्जा कर खेतीबाड़ी का काम शुरू किया. जिस के साथ ही इन लोगों की आर्थिक स्थिति भी सुधरती गई.

इन के आने से पहले यहां के किसान अपनी जमीन से 2 ही फसलें लेते थे. रवि और खरीफ  की. इन लोगों ने यहां पर तीसरी फसल को जन्म दिया. वह थी बेमौसमी धान की फसल. गेहूं की फसल कटते ही धान को लगाया जाता था. जिस के कारण किसानों को एक और फसल से आमदनी बढ़ गई थी. उसी धान की पौध लगाई के दौरान समीर बिस्वास की मुलाकत श्यामली से हुई थी. समीर के पिता निताई बिस्वास का परिवार भी बंगाल से आ कर रुद्रपुर में बस गया था. निताई बिस्वास के 5 बच्चो में से समीर तीसरे नंबर पर था. अब से तकरीबन 7 साल पहले ही श्यामली और समीर के बीच दोस्ती हुई थी. बाद में यह दोस्ती प्यार में बदल कर शादी तक आ पहुंची. लेकिन समीर की मम्मी अनीता बिस्वास को श्यामली पसंद नहीं थी.

समीर का श्यामली के बिना एक पल भी रहना नामुमकिन था. अनीता बिस्वास ने अपने बेटे के भविष्य को देखते हुए उसे श्यामली से दूरी बनाने को कहा तो मां भी उसे दुश्मन लगने लगी थी. यही बात श्यामली के साथ भी आड़े आ रही थी. श्यामली अपने मांबाप की एकलौती बेटी थी. वह भी समीर के बजाय श्यामली की शादी ऐसे घर में करना चाहते थे ताकि उस की गृहस्थी में किसी प्रकार की अड़चन न आए. हालांकि समीर बिस्वास और श्यामली दोनों ही एक ही बिरादरी के थे, लेकिन श्यामली के घर वालों को भी समीर पसंद नहीं था. समीर जिद्दी किस्म का युवक था. यही कारण था कि उस ने अपने मांबाप की एक न मानी और श्यामली से शादी करने पर अड़ गया. हालांकि दोनों के परिवार वाले इस के लिए राजी नहीं थे, लेकिन उन की जिद के आगे उन्हें झुकना पड़ा. और सन 2013 में दोनों की शादी करा दी गई.

श्यामली निताई बिस्वास परिवार की बहू बन कर आई तो घर में खुशियां छा गईं. शादी हो जाने के बाद श्यामली ने समीर के साथसाथ अपने सासससुर और अन्य परिवार वालों का पूरी तरह से ध्यान रखा. शादी के 3 साल बाद वर्ष 2016 में श्यामली ने एक बेटे को जन्म दिया. उस का नाम उन्होंने देव रखा. दोनों के बीच सब कुछ ठीक ही चल रहा था. समीर के  परिवार वालों ने दिन रात कड़ी मेहनत कर के काफी पैसा कमाया था. जिस के बाद उन्होंने थाना ट्रांजिट कैंप अंतर्गत अरविंद नगर में शानदार मकान भी बना लिया था. उसी दौरान समीर कच्ची शराब बेचने के धंधे से जुड़ गया. समीर को शराब बेचने से मोटी आमदनी होने लगी, आमदनी में इजाफा होने पर श्यामली के भी पर लग गए.

उस के रहनसहन में भी काफी बदलाव आ गया था. समीर को दिनभर में जो भी कमाई होती थी, वह उसे श्यामली के हाथ पर ला कर रख देता था. जिस के कारण श्यामली के व्यवहार में काफी अंतर आने लगा था. वह खुले हाथ से पैसा खर्च करने लगी थी. हालांकि इस बात से समीर को कोई फर्क नहीं पड़ता था. लेकिन यह सब उस के मातापिता की बरदाश्त से बाहर की बात हो गई थी. उन्होंने कई बार इस बात की शिकायत समीर से की. लेकिन समीर हमेशा ही अपने परिवार वालों की बातों को हल्के में लेता रहा. तब उन्होंने श्यामली को समझाने की कोशिश की. श्यामली तो पति की सारी कमाई पर अपना ही अधिकार समझती थी. इसलिए सासससुर के समझाने की बात उसे बुरी लगती थी. लिहाजा उस का सासससुर से मनमुटाव रहने लगा था.

वह बातबात पर अपनी सास को खरीखोटी भी सुनाने लगी थी. उस समय समीर को केवल कमाई ही दिखाई दे रही थी. उस के काम का दायरा बढ़ा तो उस ने अपनी सहायता के लिए 2 लड़कों सूरज और छोटू को भी अपने पास रख लिया. उसी दौरान विश्वजीत राय भी समीर के संपर्क में आया. विश्वजीत इलेक्ट्रीशियन था. विश्वजीत गुलरभोज (गदरपुर) का रहने वाला था. लेकिन कुछ समय बाद उस ने भी रुद्रपुर की नारायण नगर कालोनी में अपना मकान बना लिया था. समीर के घर की लाइट की फिटिंग भी उसी ने की थी. विश्वजीत समीर के संपर्क में आया तो उस की आमदनी भी बढ़ गई थी. शराब बेचने से हुई मोटी आमदनी से विश्वजीत ने बिजली फिटिंग का काम छोड़ दिया.

उस के बाद वह हर समय समीर के साथ ही उस के शराब के धंधे में लगा रहने लगा था. काम खत्म हो जाने के बाद विश्वजीत राय, सूरज और छोटू अकसर खानापीना समीर के घर पर ही किया करते थे. श्यामली तीनों को खाना बना कर खिलाती थी. लेकिन श्यामली को पति के परिवार वाले दुश्मन नजर आने लगे थे. समीर और विश्वजीत में गहरी दोस्ती भी हो गई थी. उसी दौरान श्यामली उस को अपना दिल दे बैठी. उन दोनों के बीच फोन पर खूब बातें होती थीं. समीर की गैरमौजूदगी में श्यामली विश्वजीत को अपने घर में ही बुलाने लगी थी. यह बात उस के ससुराल वालों को नागवार गुजरी. जिस के कारण समीर के घर की शांति भंग हो गई. श्यामली ने अपनी सास की शिकायत पति से करते हुए कहा कि वह उसे चरित्रहीन कहती है. समीर अपनी बीवी के प्रति एक भी बुराई सुनने को तैयार न था. नतीजन समीर अपने मातापिता को बुराभला कहने पर उतर आया था.

विश्वजीत के कारण समीर के घर में इतना विवाद बढ़ा कि अपनी बीवी के कहने पर उस ने अपनी मम्मीपापा और 2 छोटे भाइयों विष्णु और सुकीर्ति को भी घर से बाहर का रास्ता दिखा दिया. जिस के बाद 6 कमरों का मकान छोड़ कर उस के परिवार को ट्रांजिट कैंप दुर्गा मंदिर के पास किराए के मकान में रहने पर मजबूर होना पड़ा. जिस औलाद की जिद के आगे हार मान कर उन्होंने उस की शादी उस की मरजी से कराई, आज उसी कपूत ने उन्हें धक्का मार कर घर से निकाल दिया था. श्यामली की जिंदगी में विश्वजीत के आगमन के दौरान ही समीर की गृहस्थी में भी ग्रहण लगना शुरू को गया था. अपनी ससुराल वालों को घर से निकालने के बाद श्यामली समीर की गैरमौजूदगी का लाभ उठाते हुए विश्वजीत के साथ मौजमस्ती करने लगी थी.

जब कभी भी वह घर में अकेली होती तो वह फोन कर के विश्वजीत को बुला लेती और उस के साथ अय्याशी करती. विश्वजीत के संपर्क में आने के बाद श्यामली ने बीयर पीनी भी सीख ली थी. जब कभी भी समीर किसी काम से घर से बाहर जाता तो वह विश्वजीत को अपने घर बुला लेती और फिर सारी रात शराब और शबाव का दौर चलता. समीर की आंखों पर अभी भी श्यामली के प्यार की काली पट्टी बंधी हुई थी. श्यामली समीर की शराफत का लाभ उठाते हुए उस की कमाई का ज्यादातर हिस्सा विश्वजीत पर उड़ाने लगी थी. लेकिन समीर ने कभी भी पत्नी से घर के खर्च का हिसाबकिताब नहीं मांगा था. समीर अपनी बीवी के प्यार में इतना पागल था कि श्यामली ने उस से बीयर लाने की मांग की तो वह डिमांड भी उस ने पूरी की.

उस के बाद दोनों ही मियांबीवी रात में बीयर साथसाथ पीने लगे थे. बीयर पीने से समीर को तो कुछ नहीं हो पाता था, लेकिन श्यामली बीयर के नशे में टल्ली हो कर अपने दिल का पन्ना खुला ही छोड़ कर सो जाती थी. उसी खुले पन्ने के कारण एक दिन श्यामली की हकीकत भी समीर के सामने आ गई. एक रात श्यामली ने समीर के साथ ही बीयर पी और फिर उस ने समीर को सोया जान कर विश्वजीत को फोन मिला दिया. उस रात समीर को उस की हकीकत जान कर बहुत ही गहरा झटका लगा. समीर को उस रात अपनी बीवी की हकीकत पता चली तो वह खून के आंसू रोया. उस के बाद भी उसे विश्वजीत पर ही गुस्सा आया. लेकिन रात अधिक हो जाने के कारण वह कुछ भी नहीं कर सकता था.

अगले दिन सुबह होते ही वह सब कुछ काम छोड़छाड़ कर विश्वजीत से मिला. उस ने उसे समझाते हुए उस की बीवी से फोन पर बात न करने को कहा. उसी दौरान उस की विश्वजीत से कहासुनी भी हुई. उस के बाद समीर अपने घर आया और अपनी बीवी श्यामली को रात की हकीकत बता कर विश्वजीत से बात न करने की चेतावनी दी. पति के समझाने पर श्यामली तो ऐसी अंजान सी बन गई थी कि जैसे वह कुछ जानती ही नहीं. उस के बाद से समीर के आंखकान चौकन्ना हो गए थे. लेकिन समीर 24 घंटों में अपनी बीवी की कितने घंटे चौकसी कर सकता था.

समीर के समझाने के बाद भी वह प्रेमी से मोबाइल पर घंटों बात करती थी. बात करने के तुरंत बाद ही विश्वजीत की काल हिस्ट्री को डिलीट भी कर देती थी. उसी दौरान एक दिन श्यामली से वही गलती हुई जो मियांबीवी में विवाद का कारण बनी. जिस के कारण दोनों की बसीबसाई गृहस्थी में पूरी तरह से आग लग गई. श्यामली के प्रति समीर का विश्वास टूटा तो दोनों की जिंदगी में प्रलय आ गई. लिहाजा अगली सुबह समीर उसे उस के मायके छोड़ आया. श्यामली को मायके छोड़ने के कुछ समय बाद तक उस ने उसे कोई बात भी नहीं की. उस के कई महीनों बाद उस के ससुराल वालों ने उसे बुला कर ले जाने को कहा तो समीर ने उसे लाने से साफ मना कर दिया.

उस के बाद उस की ससुराल वालों ने समीर के परिवार वालों को बुला कर गांव में ही पंचायत की. श्यामली ने भरी पंचायत में अपनी गलती की माफी मांगते हुए भविष्य में ऐसी गलती न करने की बात कही. उस के बाद श्यामली फिर से समीर के साथ रहने लगी थी. मायके से आने के कुछ दिनों तक तो श्यामली ठीकठाक रही. लेकिन एक बार 2 दिलों में आ चुकी दरार पूरी तरह से भर नहीं पाई. और समीर भी उसे पहला प्यार नहीं दे पा रहा था. जिस के कारण उस के मन में समीर के प्रति बसी छवि धूमिल होती चली गई. वहीं दूसरी ओर विश्वजीत उस की जिंदगी में बहार बन कर उस के सपनों का राजकुमार बन गया. यही कारण रहा है कि कुछ समय बाद ही फिर से वह चोरीछिपे विश्वजीत राय से  मिलनेजुलने लगी थी.

उसी मिलनेजुलने के दौरान श्यामली ने विश्वजीत के सामने प्यार के आंसू बहाते हुए किसी भी तरह से समीर को अपनी जिंदगी से निकालने वाली बात कही. विश्वजीत भी श्यामली को हद से ज्यादा प्रेम करने लगा था. वह किसी भी कीमत पर उसे अपनी बीवी के रूप में देखना चाहता था. लिहाजा वह समीर रूपी कांटे को हटाने के लिए तैयार हो गया. इस हत्याकांड को अंजाम देने से एक सप्ताह पूर्व ही श्यामली ने अपने प्रेमी विश्वजीत के साथ मिल कर समीर की हत्या का तानाबाना बुना. इस अंजाम को अमलीजामा पहनाने के लिए श्यामली ने घर में रखे 50 हजार रुपए खर्च वास्ते विश्वजीत को दिए.

विश्वजीत ने उन्हीं 50 हजार रुपए में से दिनेशपुर से 315 बोर का एक तमंचा और कारतूस खरीदे. हालांकि श्यामली ने विश्वजीत के साथ मिल कर समीर की हत्या का तानाबाना बुन तो लिया था. लेकिन अंजाम को सोच कर वह बारबार परेशान हो रही थी. वह समझ नहीं पा रही थी कि इतनी बड़ी बारदात को अंजाम देने के बाद अपने में कैसे हिम्मत जुटाएगी. उसी समय 18 जून, 2020 को उस की मुलाकात उस की एक पुरानी सहेली प्रियंका से हुई. प्रियंका कई दिन से उसी के नजदीक रहने वाली राधिका नाम की सहेली के साथ रह रही थी. वह प्रियंका से मिली तो उस ने श्यामली के सामने अपनी दिल की पीड़ा सुनाते हुए उसे अपने साथ रखने वाली बात कही. श्यामली उस की परेशानी सुन कर उसे अपने घर ले आई.

प्रियंका के आ जाने से श्यामली का मनोबल भी बढ़ गया था. एक सप्ताह पहले समीर की हत्या की साजिश रचने के बाद श्यामली पूरी तरह से सतर्क हो गई थी. 19 जून 2020 की शाम को श्यामली ने समीर के मोबाइल पर फोन कर कहा कि उस की सहेली प्रियंका भी बीयर पीती है. आज रात वह हमारे ही साथ रहेगी. इसीलिए वह बीयर की 3 केन ले कर आए. श्यामली के कहने पर समीर उस शाम वियर की 3 केन ले कर आया. उस दिन समीर के साथ काम करने वाले युवक सूरज और छोटू भी घर पर ही रुक थे. उस दिन श्यामली ने शाम को जल्दी ही खाना बनाया और समीर के आते ही उस ने सूरज और छोटू को खाना खिला कर ऊपर छत पर सोने के लिए भेज दिया था. उस के बाद समीर, श्यामली और प्रियंका तीनों ने एक साथ बैठ कर खाना खाया. खाना खाने के बाद तीनों ने एक जगह बैठ कर बीयर पी.

बीयर पीने के कुछ समय बाद ही समीर नींद में झूमने लगा. श्यामली ने समीर की बीयर में नींद की गोलियां मिला दी थीं. समीर के गहरी नींद में सोने के बाद ही उस ने विश्वजीत को फोन कर के उस की लोकेशन का पता किया. उस के बाद भी वह बारबार छत पर जा कर सूरज और छोटू के सोने का जायजा लेती रही. उस समय सूरज और छोटू भी शराब पी कर सोए थे. नशे में होने के कारण वह दोनों भी शीघ्र ही सो गए थे. उन दोनों के सोते ही जब श्यामली को पूरा विश्वास हो गया कि वह दोनों भी गहरी नींद में सो चुके हैं तो उस ने जीने का दरबाजा अंदर से बंद कर दिया. उस के बाद उस ने अपने प्रेमी विश्वजीत राय को फोन कर शीघ्र आने को कहा.

श्यामली का फोन आने के तुरंत बाद ही विश्वजीत अपने 2 साथियों शिबू अधिकारी और महेश सरकार के साथ रात के कोई 2 बजे के आसपास उस के घर के पास पहुंचा. उस के घर के पास पहुंचते ही मछली बाजार के नजदीक विश्वजीत ने अपनी बाइक रोकी और फिर से श्यामली से फोन पर बात कर स्थिति का सही आंकलन किया. उस के बाद विश्वजीत अपने साथियों शिबू अधिकारी और महेश सरकार के साथ समीर के घर पहुंचा. श्यामली ने पहले से ही घर की दूसरी ओर खुलने वाला दरवाजा खुला छोड़ दिया था. उसी रास्ते से तीनों अंदर आ गए. अंदर जाते ही विश्वजीत ने गहरी नींद में सोए समीर के माथे पर तमंचा सटा कर गोली चला दी. माथे पर गोली लगते ही समीर की तुरंत ही मौत हो गई.

समीर की हत्या करने के बाद विश्वजीत अपने साथियों के साथ पीछे वाले दरवाजे से ही निकल गया. समीर की हत्या हो जाने के बाद श्यामली की हिम्मत जवाब दे गई. जब उस ने समीर को रक्तरंजित हालत में देखा तो वह बुरी तरह से घबरा गई थी. उस के बाद प्रियंका ने उसे हिम्मत बंधाई और धैर्य रखने वाली बात कही. उस समय तक घर में गोली चलने की आवाज सुन कर छत पर सो रहे सूरज और छोटू भी पड़ोसी की छत से कूद कर नीचे आ गए थे. सूरज और छोटू के पूछने पर श्यामली ने बताया कि अभी थोड़ी देर पहले ही कुछ बदमाश घर में घुस आए थे, जिन्होंने आते ही समीर को गोली मार उस की हत्या कर दी और फिर फरार हो गए.

कुछ समय बाद ही पड़ोसी और समीर के मातापिता भी घर पहुंच गए थे. जब श्यामली कोई निर्णय नहीं ले पाई तो उस ने दूसरे कमरे में जा कर पंखे से चुन्नी बांधी और आए लोगों को उलझाने के लिए उस ने अपने को भारी सदमे में दिखा कर खुदकुशी करने का ड्रामा किया. लेकिन पुलिस की जांचपड़ताल के दौरान पंखे से लटकने वाली बात केवल उस का दिखावा ही था. श्यामली द्वारा अपना जुर्म कबूलते ही पुलिस ने इस केस में तीव्रता दिखाते हुए मात्र 9 घंटे में ही उस के प्रेमी विश्वजीत राय, उस के साथी शिबू अधिकारी और महेश सरकार को गिरफ्तार कर लिया था. साथ ही पुलिस ने हत्यारोपियों की निशानदेही पर घटना में इस्तेमाल तमंचा, एक खोखा, बीयर में डाली गई नशे की बाकी बची 3 गोलियां और घटना में इस्तेमाल बाइक भी बरामद कर ली थी.

केस का खुलासा होते ही पुलिस ने इस मामले में हत्याकांड के मुख्य आरोपी श्यामली के प्रेमी विश्वजीत राय पुत्र शिबू अधिकारी, महेश सरकार, मृतक की बीवी श्यामली बिस्वास के खिलाफ आईपीएस की धारा 302/3/25 आर्म्स एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज कर उन्हें 20 जून को कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया. इस मामले के खुलासे के बाद एसएसपी बरिंदरजीत सिंह ने इस केस की जांचपड़ताल में लगी पुलिस टीम में शामिल सीओ अमित कुमार, थानाप्रभारी विद्यादत्त जोशी, एसआई विजय सिंह, प्रदीप शर्मा, कौशल भाकुनी, अर्जुन गिरि, मनोज कुमार, धीरज वर्मा, नीरज शुक्ला, नरेश जोशी, नीरज भोज, दिनेश चंद्र, राकेश उप्रेती, जितेंद्र चौहान, मुकेश मेहरा, गोकुल टम्टा आदि को ढाई हजार रुपए का ईनाम दे कर सम्मानित किया. इस केस की तफ्तीश स्वयं थानाप्रभारी विद्यादत्त जोशी कर रहे थे.