Love Story : बड़ी भाभी का दीवाना देवर 

Love Story : भोपाल से 35 किलोमीटर दूर बैरसिया तहसील हमेशा से अनदेखी का शिकार रही है, जिस का फर्क यहां की जिंदगी पर भी पड़ा है. इस इलाके के पिछड़ेपन के चलते यहां अपराध की दर उम्मीद से ज्यादा है. जंगलों से घिरे बैरसिया के बाहरी इलाकों में आए दिन हत्या की वारदातें होती रहती हैं.

ऐसी ही एक वारदात बीती 26 नवंबर को हुई थी. उन दिनों पूरे मध्यप्रदेश की तरह इस क्षेत्र में भी चुनावी चर्चा और गतिविधियां शवाब पर थीं. चुनाव के वक्त पुलिस वालों को सोने के लिए वक्त नहीं मिलता. उस रात करीब 12 बजे नजीराबाद थाने के इंचार्ज योगेंद्र परमार थाने में बैठे कामकाज निपटा रहे थे कि तभी अधेड़ उम्र के एक शख्स ने थाने में कदम रखा. इतनी रात गए जो भी थाने आता है वह कोई बुरी खबर ही लाता है, यह बात योगेंद्र परमार जानते थे. वह उस व्यक्ति के चेहरे की बदहवासी देख कर ही समझ गए कि जो भी होगी, अच्छी खबर नहीं होगी. लेकिन उन्हें यह पता नहीं था कि खबर हत्या की होगी.

आगंतुक ने अपना नाम लक्ष्मण सिंह गुर्जर, निवासी चंद्रपुर गांव बताया. लक्ष्मण सिंह ने आते ही परमार को बताया कि उस के भाई सोनाथ सिंह की हत्या हो गई है और उस की लाश गांव में उस के घर पर पड़ी है. योगेंद्र परमार ने बिना वक्त गंवाए टेबिल पर बिखरे पड़े कागजात समेटे और लक्ष्मण सिंह के साथ चंद्रपुर गांव की रवानगी डाल दी. उन्होंने कुछ सिपाही भी साथ ले लिए थे. जातेजाते उन्होंने थाना क्षेत्र में हुई हत्या की खबर एसडीपीओ संजीव कुमार सिंह को भी दे दी.

घटनास्थल गांव के कोने का एक मकान था, जहां एक कमरे में 40 वर्षीय सोनाथ सिंह की लाश पड़ी थी. लाश के आसपास काफी मात्रा में खून फैला था. पहली नजर में ही समझ आ रहा था कि हत्या पूरी बेरहमी से की गई है, क्योंकि सोनाथ सिंह की गर्दन पर धारदार हथियार के आधा दर्जन से भी ज्यादा जख्म दिख रहे थे. अंदाजा लगाया जा सकता था कि ये निशान कुल्हाड़ी या फरसे के हैं, जिन का गांवों में अकसर इस्तेमाल होता है.

लाश पर भरपूर नजर डाल कर योगेंद्र परमार ने जब लक्ष्मण सिंह से हत्या के बारे में पूछा तो उस ने कुछ बातें चौंका देने वाली बताईं, जिस से योगेंद्र परमार समझ गए कि मामला जर, जोरू और जमीन में से जोरू का है. बकौल लक्ष्मण सिंह जब वह खेत में पानी दे कर घर लौट रहा था तो उस ने गांव के बाहर अपनी भाभी भूलीबाई को भागते हुए देखा था. इतनी रात गए भाभी, भतीजी को ले कर कहां जा रही है, इस बात से चौंके लक्ष्मण सिंह ने भूलीबाई को रोक कर जब उस से बात करनी चाही तो बजाए रुकने के उस ने अपने कदमों की गति और बढ़ा दी.

लक्ष्मण सिंह ही नहीं, यह बात पूरा गांव जानता था कि भूलीबाई और सोनाथ सिंह में आए दिन लड़ाईझगड़ा होता रहता है. इसलिए उस ने यह अंदाजा लगाया कि दोनों में किसी बात पर चिकचिक हुई होगी. इसलिए भाभी यूं घर छोड़ जा रही है. पास के ही गांव कढ़ैया में उस का मायका था. आखिर हुआ क्या, यह जानने के लिए लक्ष्मण सिंह सोनाथ सिंह के घर पहुंचा तो वहां उस का सामना भाई की लाश से हुआ. इस के बाद यह खबर देने के लिए वह थाने जा पहुंचा था.

पति की हत्या पर भूलीबाई ने कोई शोरशराबा नहीं मचाया था और न ही किसी से मदद की गुहार लगाई थी. यह बात ही उसे शक के कटघरे में खड़ा करने के लिए काफी थी. लेकिन अंदाजे की बिना पर किसी नतीजे पर पहुंच जाना समझदारी नहीं थी, इसलिए योगेंद्र परमार ने तुरंत पुलिस टीम भेज कर भूलीबाई को थाने बुलवा लिया.

भूलीबाई के थाने आने से पहले की गई पूछताछ में पुलिस वालों को कोई खास जानकारी हाथ नहीं लगी थी, सिवाय इस के कि मांगीलाल ने अपनी जमीन दोनों बेटों में बराबर बांट दी थी. लेकिन जमीन इतनी नहीं थी कि उस से किसी एक परिवार का भी गुजारा हो पाता इसलिए सोनाथ सिंह रोजगार की तलाश में बाहर चला गया था. लेकिन साल में कुछ दिनों के लिए वह गांव जरूर आता था. उस की गैरमौजूदगी में भूलीबाई खेतीकिसानी संभालती थी. दोनों बच्चों में से बेटे को उस ने अपने मायके में छोड़ रखा था.

इन जानकारियों से एक कहानी तो आकार लेती दिख रही थी, जिस में भूलीबाई का रोल अहम था. लेकिन पुलिस किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंच पा रही थी. ऐसे में भूलीबाई के बयान ही सोनाथ सिंह की हत्या पर पड़ा परदा उठा सकते थे. थाने आ कर अच्छेअच्छे मुलजिमों के हौसले पस्त पड़ जाते हैं, फिर भूलीबाई की क्या बिसात थी. लेकिन इस के बाद भी वह अनाडि़यों की तरह ही सही पुलिस को गुमराह करने की कोशिश करती रही.

पहले तो उस ने अपने देवर लक्ष्मण सिंह को ही फंसाने की गरज से यह बयान दे डाला कि जमीन जायदाद के लालच में उस ने सोनाथ की हत्या की है. साथ ही यह भी कि इस में उस के अलावा और लोग भी शामिल हैं. ये और लोग कौन हैं, इस सवाल पर वह चुप रही. बात यहां तक तो सच लग रही थी कि सोनाथ सिंह की हत्या में एक से ज्यादा लोग शामिल हैं, क्योंकि एक हट्टेकट्टे मर्द को काबू करना आसान बात नहीं थी. दूसरे घटनास्थल पर किसी तरह के संघर्ष के निशान भी नजर नहीं आ रहे थे, इस का सीधा सा मतलब यह निकल रहा था कि पहले सोनाथ को काबू किया गया, फिर उस पर धारदार हथियार से प्रहार किए गए.

जाहिर था, हत्या अगर भूलीबाई ने की थी तो कोई न कोई उस का संगीसाथी रहा होगा. लक्ष्मण सिंह पर शक करने की कोई वजह पुलिस वालों को समझ नहीं आ रही थी, क्योंकि वह कोई कहानी गढ़ता या झूठ बोलता नहीं लग रहा था. उलट इस के भूलीबाई अपने बयानों में गड़बड़ा रही थी. पुलिस ने जब सख्ती दिखाई तो कुछ ही देर में उस ने अपना जुर्म कबूल कर लिया. चूंकि सोनाथ सिंह उस के चालचलन पर शक करता और मारतापीटता था, इसलिए उस ने पति की हत्या कर दी.

लेकिन भूलीबाई ने पूरी बात अभी भी नहीं बताई थी. यह तो कोई बच्चा भी कह सकता था कि एक अकेली औरत धारदार हथियार से लगातार इतने वार, वे भी सोनाथ जैसे तगड़े मर्द पर, नहीं कर सकती थी. अब पुलिस को उस के और टूटने का इंतजार था, जिस से कत्ल की इस वारदात का पूरा सच सामने आ जाए. सोनाथ सिंह की लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी गई थी. दूसरी कानूनी औपचारिकताएं भी पुलिस वालों ने पूरी कर ली थीं. सुबह होतेहोते सोनाथ की हत्या की खबर पूरे इलाके में फैल चुकी थी. लोग चुनावी चर्चा छोड़ तरहतरह की बातें करने लगे थे.

भरेपूरे बदन की भूलीबाई को देख कोई भी यह नहीं कह सकता था कि वह 2 बच्चों की मां है. 35 की उम्र में खासी जवान दिखने वाली भूलीबाई ने आखिरकार पति की हत्या क्यों की होगी, यह राज भी सुबह का सूरज उगने से पहले उस ने उगल ही दिया. पता चला कि इस वारदात में उस का चचेरा देवर प्रेम सिंह और उस का एक दोस्त पन्नालाल भी शामिल थे. नाजायज संबंध का जो शक किया जा रहा था, वह सच निकला. हुआ यूं था कि उम्र में आधा रिश्ते का देवर प्रेमसिंह भूलीबाई को दिल दे बैठा था. आजकल हर हाथ में मोबाइल है, जिस का उपयोग प्रेमसिंह जैसे नौजवान पोर्न फिल्में देखने में ज्यादा करते हैं.

दिनरात ऐसी ही अश्लील और सैक्सी वीडियो के समंदर में डूबे प्रेमसिंह को औरत की तलब लगने लगी थी, पर प्यास मिटाने का जरिया उसे नजर नहीं आ रहा था. हालांकि गांव में लड़कियों की कमी नहीं थी, लेकिन पिछड़ेपन के चलते और प्राइवेसी न होने के कारण किसी को पटा पाना आसान काम नहीं था. इन दिनों गांवों में निकम्मे और अय्याश किस्म के नौजवानों की तादाद तेजी से बढ़ रही है. उन में से एक प्रेमसिंह का दोस्त पन्नालाल भी था.

एक दिन प्रेमसिंह ने जब अपनी जरूरत पन्नालाल को खुल कर बताई तो वह हंस कर बोला, ‘‘लो, बगल में छोरा और गांव में ढिंढोरा.’’

इशारे में कही इस बात को प्रेमसिंह समझ नहीं पाया. लेकिन उम्मीद की एक किरण तो उसे बंधी थी कि पन्नालाल खेला खाया आदमी है, जो उस के लिए जरूर किसी औरत का इंतजाम कर देगा. जल्द ही दारूमुर्गे की एक दावत हुई, जिस में पन्नालाल ने खुल कर उस से कहा कि तू अपनी भाभी भूलीबाई पर लाइन मार, काम बन जाएगा. बात का खुलासा करते हुए पन्नालाल ने उस की मनोवैज्ञानिक और शारीरिक वजहें भी बताईं. मसलन, तेरा चचेरा भाई साल भर बाहर रहता है, ऐसे में भूलीबाई को मर्द की जरूरत तो पड़ती ही होगी. भूलीबाई किसी को घास नहीं डालती, लेकिन तू ट्राई करेगा तो बात बन भी सकती है.

बात प्रेमसिंह की समझ में आ गई और उस रात वह सो नहीं पाया. रातभर ख्वाबों खयालों में वह भूलीबाई को उसी तरह लपेटे सैक्स करता रहा, जैसा कि पोर्न वीडियो में वह देखता था. इस ख्वाब को हकीकत में बदलने के लिए प्रेमसिंह अकसर भूलीबाई के घर जा कर बैठने लगा. यह बात भी उसे समझ आ गई थी कि जल्दबाजी, बेसब्री और हड़बड़ाहट दिखाने से बात बिगड़ भी सकती है, इसलिए पहले औरत का दिल जीतो, फिर जिस्म तो वह खुद ही सौंप देती है.

इसी आनेजाने में वह रोज भूलीबाई के अंगों और उभारों को देखता था तो पागल सा हो जाता था. लेकिन प्रेमसिंह मौके की तलाश में था और दिल जीतने की राह पर चल रहा था. छोटे मोटे कामों में वह अपनी भाभी की मदद करने लगा था. यहां तक कि वह पैसा खर्च करने में भी नहीं हिचकता था. अच्छी बात यह थी कि उस पर कोई शक नहीं करता था, क्योंकि वह था तो परिवार के सदस्य सरीखा ही.

भूलीबाई को भी अब समझ आने लगा था कि जिस देवर को शादी के बाद उस ने गोद में खिलाया था, वह कौन सा खेल खेलने की जुगत में आता जाता है. जल्द ही उस की झिझक दूर होने लगी और पन्नालाल की यह सलाह साकार होती दिखने लगी कि एक बार भी सैक्स का लुत्फ उठा चुकी औरत सैक्स के बगैर ज्यादा दिन नहीं रह सकती. अब दिक्कत यह थी कि प्रेमसिंह पहल कैसे करे. भूलीबाई उस की द्विअर्थी बातों पर हंस कर उसे शह देने लगी थी और इशारों में यदाकदा हल्कीफुल्की सैक्स की बातें भी कर लेती थी. लेकिन प्रेमसिंह को डर इस बात का था कि कहीं ऐसा न हो कि वह पहल करे और भाभी झिड़क दे. डर इस बात का भी था कि भूलीबाई ने अगर घर में शिकायत कर दी तो उस की खासी पिटाई होगी.

लेकिन जिस राह पर दोनों चल पडे़ थे, उस में बहाना खुद चाहने वालों को नजदीक लाने का मौका ढूंढ लेता है. एक दिन यूं ही बातोंबातों में प्रेमसिंह ने डरतेडरते भूलीबाई को एक पोर्न फिल्म दिखा डाली तो भूलीबाई की भी कनपटियां गर्म हो उठीं. इस फिल्म में वह सब बल्कि उस से भी ज्यादा मौजूद था, जो वह सोचती रहती थी. बस फिर क्या था, एक दिन झिझक की दीवार टूटी तो दोनों बेशर्मी के समंदर में गोता लगा बैठे.

अब यह रोजरोज का काम हो चला था. कोई रोकटोक न होने से दोनों सैक्स का यह खेल आए दिन खेलने लगे. प्रेमसिंह ने भूलीबाई पर वे सारे टिप्स और तौरतरीके आजमा डाले जो पोर्न फिल्मों में दिखाए जाते हैं. मुद्दत से संसर्ग के लिए तरस रही भूलीबाई के लिए कुछ अनुभव एकदम नए और रोमांचक थे. भूलीबाई के पास पुराना तजुर्बा था और प्रेमसिंह के पास नया जोश. सैक्स के दरिया में दोनों ऐसे डूबे कि उन्हें इस बात का भी होश नहीं रहा कि जो वे कर रहे हैं वह गैरकानूनी न सही लेकिन खतरनाक तो है.

हर साल की तरह बीती दीवाली पर भी सोनाथ सिंह गांव आया. लेकिन जब उस ने यह बताया कि इस बार वह 4-6 दिन नहीं बल्कि महीने भर से भी ज्यादा रुकेगा, तो भूलीबाई बजाय खुश होने के इस गम में डूब गई कि जब तक सोनाथ रुकेगा तब तक वह अपने किशोर प्रेमी से सैक्स का लुत्फ नहीं उठा पाएगी. यही हाल प्रेमसिंह का था, जो अब एक दिन भी भूलीबाई के बगैर नहीं रह पाता था. वह मन ही मन भूलीबाई भाभी से प्यार भी करने लगा था. यह बेमेल प्यार भले ही शरीर की जरूरत भर था, जिसे वह खुद नहीं समझ पा रहा था.

सोनाथ ने ज्यादा दिन रुकने का फैसला बेवजह नहीं लिया था, बल्कि उसे भूलीबाई पर शक हो चला था. इस की पहली वजह तो यह थी कि भूलीबाई अब पहले की तरह सैक्स के लिए उतावली नहीं होती थी और दूसरी वजह वे बातें थीं जो उस ने उड़ते उड़ते सुनी थीं. सोनाथ के पास अपने शक को ले कर कोई प्रमाण नहीं था, इसलिए वह गुपचुप भूलीबाई की निगरानी करने लगा. फिर एक दिन उस ने भूलीबाई और प्रेमसिंह को नग्नावस्था में रंगरलियां मनाते रंगेहाथों पकड़ लिया. बात आई गई नहीं हुई, बल्कि सोनाथ को अब गांव के लोगों की कही पुरानी कहावत याद आने लगी कि खेती खुद न करो तो जमीन कोई और जोतने लगता है. यही बात औरत पर भी लागू होती है.

पत्नी की इस चरित्रहीनता को न तो वह पेट में पचाए रख सकता था और न ही सार्वजनिक कर सकता था, क्योंकि इस से जगहंसाई उस की ही होनी थी. ठंडे दिमाग से विचार करने पर उस ने अब गांव में ही रहने का फैसला कर लिया, इस से भूलीबाई और प्रेमसिंह दोनों परेशान हो उठे, जिन्हें एकदूसरे का चस्का लग चुका था. यही लत उन्हें चोरी छिपे मिलने के लिए उकसाने लगी. सोनाथ ने पत्नी से पहले ही कह दिया था कि अब अगर वह प्रेमसिंह से मिली तो खैर नहीं.

पर वह यह भूल रहा था कि खैर तो अब उस की नहीं थी. एक दिन उस ने भूलीबाई को फोन पर बात करते पकड़ लिया, तो उस की खासी धुनाई कर डाली. यह बात जब प्रेमसिंह को पता चली तो उस का खून खौल उठा. अपने इकलौते इश्किया सलाहकार पन्नालाल को उस ने बताया कि अब उस से भूलीबाई की जुदाई बरदाश्त नहीं हो रही है. दूसरे अगर सोनाथ भूलीबाई की पिटाई करे, यह उस से बरदाश्त नहीं हो रहा है. तैश में आ कर फिल्मी स्टाइल में उस ने सोनाथ के वे हाथ काट डालने की बात भी कह डाली, जो भूलीबाई पर उठे थे.

इस पर पन्नालाल ने बजाए समझाने के आग में घी डालते हुए कहा कि अकेले हाथ काटने से कुछ हासिल नहीं होगा, उलटे सोनाथ पुलिस में सारी बात बता देगा. अगर कांटे को जड़ से खत्म करना है तो सोनाथ की गरदन ही उड़ानी पड़ेगी.

बस फिर क्या था दोनों ने मिल कर सोनाथ के कत्ल की योजना बना डाली. दूसरी ओर वासना की आग में तड़प रही भूलीबाई भी उन का साथ देने तैयार हो गई. पन्नालाल ने प्रेमसिंह को यह भी मशविरा दिया कि सोनाथ के कत्ल के पहले वह जी भर कर भूलीबाई के जिस्म का सुख उठा ले, नहीं तो फिर 13 दिन मौका नहीं मिलेगा, क्योंकि इस दौरान भूलीबाई शोक में होगी और उस के आसपास कोई न कोई बना रहेगा.

ये तमाम बातें इस ढंग से हुईं, इस्तेमाल  मानो इन्हें कत्ल नहीं करना बल्कि बकरी का बच्चा पकड़ना है. हादसे की रात सोनाथ सिंह के गहरी नींद सो जाने के बाद भूलीबाई ने घर का दरवाजा खोला और प्रेमसिंह को अंदर बुला लिया. पहले तो दोनों ने जी भर के जिस्मों की प्यास बुझाई और फिर पन्नालाल को बुला कर हमेशा के लिए सोनाथ की जिंदगी का चिराग बुझा डाला.

सो रहे सोनाथ पर प्रेमसिंह और पन्नालाल ने कुल्हाड़ी से वार किए. इस दौरान भूलीबाई ने पति के पैर पकड़ रखे थे, सोनाथ सिंह नींद में ही नीचे से ऊपर कब पहुंच गया, यह उसे भी पता नहीं चला. प्लान के मुताबिक भूलीबाई बेटी को गोद में उठा कर भागी, लेकिन इत्तफाकन लक्ष्मण ने उसे देख लिया और तीनों पकड़े गए. जो अब जेल में अपनी करनी की सजा भुगत रहे हैं. Love Story

Love Crime Story : प्यार हुआ खूंखार

Love Crime Story : बदले की भावना को ध्यान में रख कर गुस्से में उठाया गया कदम अकसर नुकसान ही कराता है. बंटी और परमजीत कौर ने भाग कर लवमैरिज की. जिस बंटी के लिए परमजीत कौर ने अपने घरपरिवार को छोड़ा था, वही इतना खूंखार बन जाएगा, परमजीत कौर ने इस की कल्पना तक नहीं की थी…

17 अगस्त, 2021 को सुबह के कोई 8 बजे का वक्त रहा होगा. एक 8 वर्षीय बच्ची को बदहवास स्थिति में भागते देख प्रधान सुखवीर सिंह से रहा नहीं गया. उन्होंने बच्ची को रोकने की कोशिश की तो बच्ची जोरजोर से चीखने लगी, ‘‘उन लोगों ने मेरी मम्मी और मेरी नानी को काट डाला. वे मुझे भी मार डालेंगे.’’

बच्ची की बात सुनते ही प्रधान सुखवीर हैरान रह गए. उन की समझ में नहीं आ रहा था कि वह बच्ची किस की है और कहां रहती है? वह किस के मरनेमारने की बात कर रही थी.

Love became dangerous

‘‘बेटा, तुम्हारी मम्मी और नानी कहां पर हैं.’’ प्रधानजी ने प्यार से बच्ची से पूछा तो उस ने बताया कि वे दोनों नाले के पास पड़ी हुई हैं. यह सब जानकारी देने के बाद बच्ची अपने घर की ओर भागी. उस मासूम बच्ची की हालत देख कर प्रधान सुखवीर सिंह इतना तो समझ ही गए थे कि आज सुबहसुबह ही कोई न कोई बड़ी वारदात हो गई है. उस वक्त तक प्रधानजी के डेरे पर कुछ अन्य लोग भी आ कर खड़े हो गए थे. तभी प्रधानजी कुछ लोगों के साथ हकीकत जाने के लिए उस रास्ते की ओर बढ़ गए, जिधर से वह बच्ची थोड़ी देर पहले ही भागती हुई आई थी. कोई एकडेढ़ किलोमीटर चलने के बाद उन लोगों को रास्ते के किनारे ताजा खून के निशान दिखाई दिए.

लोगों ने आसपास छानबीन की तो वहीं पर सड़क किनारे रक्तरंजित 2 लाशें पड़ी मिलीं. दोनों लाशों की शिनाख्त भी तुरंत ही हो गई थी. दोनों लाशें भोगपुर फार्म निवासी 70 वर्षीय जीत कौर पत्नी स्व. दयाल सिंह व उन की बेटी परमजीत कौर की थी. लेकिन परमजीत कौर की 8 वर्षीय बेटी नैना किसी तरह हमलावरों को चकमा दे कर जान बचाने में सफल हो गई थी. इस सनसनीखेज हत्याकांड की जानकारी मिलते ही क्षेत्र में हड़कंम मच गया. ग्राम प्रधान सुखवीर सिंह ने इस घटना की जानकारी स्थानीय पुलिस चौकी पतरामपुर प्रभारी दीवान सिंह बिष्ट को दी. सुबहसुबह ही क्षेत्र में डबल मर्डर केस की जानकारी मिलते ही पुलिस महकमे में भी हलचल मच गई थी. डबल मर्डर की सूचना पाते ही जसपुर कोतवाल जगदीश सिंह देउपा व एएसपी प्रमोद कुमार पुलिस बल के साथ मौके पर पहुंचे.

घटनास्थल पर पहुंचते ही पुलिस ने उस खौफनाक मंजर की जांचपड़ताल की. दोनों की किसी तेज धार वाले हथियार से गरदन रेत कर हत्या की गई थी. घटनास्थल ही इस बात का गवाह था कि हत्या होने से पहले दोनों ने हत्यारों से काफी संघर्ष किया था. लेकिन तेज हथियारों के सामने उन की एक न चली थी. जांचपड़ताल पूरी हो जाने के बाद पुलिस ने अपनी काररवाई कर दोनों लाशें पोस्टमार्टम हेतु काशीपुर सरकारी अस्पताल भेज दी. पुलिस ने गांव वालों से इस मर्डर केस के बारे में जानकारी ली तो पता चला कि काफी समय से जीत कौर का उस के तलाकशुदा दामाद से विवाद चल रहा था.

पुलिस पूछताछ के दौरान जानकारी मिली कि बलविंदर कौर को काफी समय पहले जीत कौर ने गोद लिया था. 2 साल पहले जीत कौर ने उस की शादी टांडा प्रभापुर निवासी बंटी के साथ की थी. लेकिन एक साल बीततेबीतते किसी कारण उन का तलाक हो गया. इस जानकारी पर पुलिस ने मौके पर मौजूद 8 वर्षीय मासूम नैना से पूछताछ की तो उस ने रोते हुए बताया कि पैदल जाते वक्त झाडि़यों में छिपे बैठे उस के मौसा बंटी और उन के साथी ने उन की नानी और मम्मी को मार डाला. उस के बाद वह बुरी तरह से डरीसहमी सड़क पार कर के छिपतेछिपाते अपने घर पहुंची.

पुलिस ने उसी शाम भादंवि की धारा 34/302 के तहत नामजद मुकदमा दर्ज कर लिया. इस के बाद पुलिस ने अपनी काररवाई करते हुए आरोपियों के घर दबिश दी. लेकिन दोनों ही आरोपी घर से फरार मिले. उस के बाद पुलिस ने उन के परिजनों को पूछताछ के लिए उठा लिया. इस मामले में पुलिस को उन लोगों से कोई जानकारी न मिल सकी. इस केस की तह तक पहुंचने के लिए जसपुर कोतवाली प्रभारी जगदीश सिंह देउपा के नेतृत्व में एक पुलिस टीम गठित की, जिस के बाद पुलिस टीम द्वारा कई अज्ञात स्थानों पर आरोपियों की गिरफ्तारी के लिए छापेमारी की, लेकिन कहीं भी उन का का कोई सुराग नहीं लगा.

पुलिस आरोपियों को गिरफ्तार करने के लिए हाथपांव मार ही रही थी कि 19 अगस्त, 2021 को पुलिस को एक मुखबिर द्वारा सूचना मिली कि आरोपी बंटी और उस का चाचा बलविंदर सिंह कहीं जाने की फिराक में हैं. वे इस समय जसपुर काशीपुर रोड पर सतकार ढाबे के पास खड़े बस का इंतजार कर रहे हैं. यह सूचना मिलते ही पुलिस टीम ने तत्परता दिखाते हुए दोनों को घेराबंदी कर गिरफ्तार कर लिया. दोनों को गिरफ्तार कर पुलिस टीम जसपुर कोतवाली ले आई. दोहरे मर्डर का हुआ खुलासा कोतवाली लाते ही दोनों से कड़ी पूछताछ की तो दोनों ने अपना जुर्म कबूल कर लिया. पुलिस पूछताछ में बंटी ने बताया कि उस की सास और साली परमजीत कौर आए दिन उस से किसी न किसी बात पर झगड़ती रहती थी.

बंटी ने बताया कि उन का चाचा बलविंदर उन्हीं के पास रहता था. लेकिन मांबेटी उसे उस के चाचा के पास तक नहीं जाने देती थी, जिस से चिढ़ कर ही उस ने अपने चाचा के साथ मिल कर दोनों की हत्या कर दी. आरोपियों से पूछताछ के बाद पुलिस ने बंटी और बलविंदर सिंह की निशानदेही पर घटना में प्रयुक्त पाटल, घटना के दौरान पहने गए खून सने कपड़े और घटना को अंजाम देने में प्रयुक्त मोटरसाइकिल भी बरामद कर ली थी. इस हत्याकांड के खुलासे के बाद जो सच्चाई सामने आई, वह बहुत ही विचित्र दर्दभरी कहानी थी. जो प्रेम कहानी से शुरू हो कर तलाक तक पहुंची, लेकिन उस के बाद भी इस कहानी के कारण पूरे 6 मासूम बच्चे लावारिस हो गए थे.

उत्तराखंड के ऊधमसिंह नगर का एक कस्बा है जसपुर. इसी कस्बे से 7 किलोमीटर उत्तर दिशा में एक गांव पड़ता है भोगपुर फार्म. यह गांव वन के किनारे बसा हुआ है, जहां पर कोई ज्यादा आबादी नहीं, लेकिन अपने खेतों पर ही घर बना कर कुछ रायसिक जाति के लोग रहते हैं. इस कहानी की शुरुआत इसी गांव से होती है. इसी गांव में रहता था दयाल सिंह का परिवार. दयाल सिंह के पास जुतासे की जमीन नहीं थी. वह गांव के अन्य लोगों के खेतों में काम कर के ही अपने परिवार की जीविका चलाते थे. उन्हीं के पास उन के छोटे भाई गुरबख्श सिंह भी रहते थे. दोनों भाइयों का अलगअलग रहना था. दोनों ही भाई बहुत पहले से शराब बेचने के धंधे से जुड़े थे, जिस के सहारे ही दोनों के परिवारों की गुजर होती थी.

दयाल सिंह के 2 बेटे और 2 बेटियां थीं, परमजीत कौर और बलविंदर कौर. परमजीत कौर उस की अपनी बेटी थी. जबकि बलविंदर कौर को उस ने अपने भाई से गोद लिया था. समय गुजरते चारों बच्चे जवान हुए तो दयाल सिंह ने जैसेतैसे कर 2 बेटों की शादी कर दी. लड़कों की शादी हो जाने के बाद दोनों अलगअलग रह कर अपनी गृहस्थी संभालने लगे थे. दयाल सिंह का बड़ा बेटा शुरू से ही बीमार रहता था. उस की बीमारी के कारण उस की बीवी उसे छोड़ कर चली गई. उस के चले जाने के बाद कुछ समय के बाद ही पूरन सिंह किसी बीमारी से मर गया.

राज कौर थी तेजतर्रार दयाल सिंह ने अपने दूसरे बेटे कुलवंत सिंह की शादी काशीपुर के नजदीक गांव रमपुरा की रहने वाली राज कौर से की थी. शादी के कुछ समय बाद तक तो राज कौर परिवार के साथ मिलजुल कर रही, लेकिन कुछ ही समय बाद सासबहू में अनबन रहने लगी. राज कौर तेजतर्रार थी. इसी कारण वह ज्यादा समय तक परिवार के साथ निभा नहीं पाई. उस ने पति कुलवंत को उल्टीसीधी पट्टी पढ़ा कर मांबेटी के प्रति कान भरने आरंभ कर दिए थे. जिस के कारण कुलवंत सिंह मांबहन की तरफ से लापरवाह हो गया. फिर राज कौर ने कुलवंत सिंह पर अलग रहने के लिए दबाव बनाना शुरू कर दिया था.

लेकिन कुलवंत सिंह का कहना था कि जब तक उस की दोनों बहनों की शादी नहीं हो जाती, वह परिवार से अलग नहीं हो सकता. उस वक्त तक परमजीत कौर भी जवान हो चुकी थी. उस की पत्नी राज कौर हर समय दयाल सिंह और उन की बीवी जीत कौर को ले कर झगड़ती रहती थी. जबकि दयाल सिंह अपनी बीवी जीत कौर के साथ अलग ही रहते और अपना खाना अलग ही बना कर खाते थे. इस के बावजूद भी कुलवंत सिंह और राज कौर के बीच मनमुटाव बना रहा था. उस वक्त तक परमजीत कौर भी जवानी के मुकाम पर आ खड़ी हुई थी. बेटे की शादी के बाद दयाल सिंह को परमजीत कौर की शादी की चिंता सताने लगी थी. लड़की की शादी की बात मन में उठते ही दयाल सिंह ने बेटी के लिए लड़का तलाशना शुरू कर दिया था.

प्रेमी के साथ भाग कर परमजीत कौर ने की लवमैरिज अभी दयाल सिंह उस के योग्य वर की तलाश कर भी नहीं पाए थे कि उसी दौरान एक दिन उन की बेटी परमजीत कौर अचानक घर से लापता हो गई. जवान बेटी के अचानक गायब होने से दयाल सिंह का परिवार परेशान हो उठा. दयाल सिंह ने अपने रिश्तेदारों की सहायता से उसे हर जगह ढूंढा, लेकिन उस का कहीं भी अतापता नहीं चला. उसी भागदौड़ के दौरान दयाल सिंह को पता लगा कि उन की बेटी उन के ही पड़ोसी भूपेंद्र उर्फ पप्पू के साथ गई है. घर से भागने के बाद दोनों ने शादी भी कर ली थी.

दयाल सिंह को जब इस बात की जानकारी मिली तो उन्हें दुख भी हुआ और गुस्सा भी आया. लेकिन दयाल सिंह जानते थे कि भूपेंद्र सिंह एक झगड़ालू किस्म का युवक है. उस से बात करना उचित नहीं. उस के बाद उन्होंने लड़की की किस्मत उसी के साथ जोड़ते हुए चुप रहने में ही भलाई समझी. कुछ दिन बाहर रह कर भूपेंद्र सिंह परमजीत कौर को साथ ले कर अपने घर आ गया. भूपेंद्र सिंह का घर दयाल सिंह के घर के नजदीक ही था. परमजीत कौर अपने मायके के सामने आ कर रहने लगी थी. यह कुलवंत सिंह को बहुत अखरता था. उस ने कई बार भूपेंद्र सिंह को वहां से कहीं चले जाने का दबाव भी बनाया, लेकिन वह कहीं भी जाने को तैयार न था.

बलविंदर सिंह भूपेंद्र सिंह के परिवार से ही था. इसी बात को ले कर भूपेंद्र सिंह और दयाल सिंह के परिवार में मनमुटाव चला आ रहा था. उसी मनमुटाव के चलते टूटते रिश्तों से जमीनजायदाद पर आ टिका था. दयाल सिंह और बलविंदर सिंह दोनों ही शराब बेचने का काम करते थे. उन दोनों के बीच एकदूसरे के ग्राहकों को तोड़ने का सब से बड़ा विवाद था. जिस के कारण दोनों परिवारों में आपस में लड़ाईझगड़ा होना आम बात हो गई थी. उसी समय की बात है एक दिन किसी बात पर दोनों परिवारों के बीच काफी लड़ाईझगड़ा हुआ. लड़ाईझगड़े के दौरान एक दिन बलविंदर सिंह ने जीत कौर को अकेला पा कर मारापीटा.

जीत कौर की उस वक्त एक न चली तो उस ने जसुपर थाने में बलविंदर सिंह के खिलाफ बलात्कार की एफआईआर दर्ज करा दी. जिस के कारण बलविंदर सिंह को जेल की हवा खानी पड़ी. उसी समय किसी बीमारी के चलते दयाल सिंह की भी मौत हो गई. दयाल सिंह की मौत के बाद कुलवंत सिंह अपने परिवार में अकेला ही रह गया था. समय के साथ कुलवंत सिंह की पत्नी राज कौर 3 बच्चों अभिजीत, चरण कौर व अमृत सिंह की मां बनी. वहीं कुलवंत सिंह की बहन परमजीत कौर भी विजय, हरमन कौर तथा नैना तीन बच्चों की मां बनी. दोनों भाईबहनों के 3-3 बच्चे वह भी लगभग एक ही उम्र के थे. भले ही दोनों परिवारों में कितना भी बड़ा विवाद चल रहा था. लेकिन बच्चे बच्चे ही होते हैं. उन्हें अपने परिवार की रंजिश से कोई लेनादेना नहीं था.

दोनों परिवारों के बच्चे एक ही साथ खेलते थे. दयाल सिंह के गुजर जाने के बाद जीत कौर भी अपनी बेटी परमजीत कौर के साथ मनमुटाव को भुला कर उस से बातचीत करने लगी थी. जिस के बाद दोनों का एकदूसरे के घर आनाजाना भी चालू हो गया था. लेकिन यह बात भूपेंद्र सिंह को अखरने लगी थी. उस ने अपने परिवार के दबाव में आ कर परमजीत कौर को उस की मम्मी के पास जाने से रोकने की काफी कोशिश की, लेकिन उस की एक न चली. उस वक्त तक बलविंदर सिंह भी जेल से छूट कर घर आ गया था. बलविंदर सिंह और जीत कौर थे दुश्मन जेल से आ कर बलविंदर सिंह जीत कौर का कट्टर दुश्मन बन गया था. वह हर समय उसी से बदला लेने की फिराक में लगा रहता था.

हालात यहां तक आ पहुंचे कि बलविंदर सिंह बिना किसी कारण जीत कौर के परिवार को मारने मरने पर उतारू हो जाता था. भूपेंद्र सिंह के सामने भी अजीब सी स्थिति पैदा हो गई थी. एक तरफ उस का परिवार खड़ा था तो दूसरी तरफ उस की बीवी. इस लड़ाईझगड़े से भूपेंद्र सिंह इतना परेशान हो उठा कि एक दिन वह घर से बिना बताए ही कहीं चला गया. उस के जाने के बाद परिवार ने उसे हर जगह खोजा, लेकिन उस का कहीं भी अतापता न चल सका. उस के चले जाने पर परमजीत कौर के सामने 3 बच्चों के पालने की जिम्मेदारी आ खड़ी हुई थी. आर्थिक स्थिति सामने आ खड़ी हुई तो परमजीत कौर ने अपनी मां का दामन थाम लिया.

उस के बाद दोनों ही मांबेटी गांव के खेतों में कामकाज कर के अपनी रोजीरोटी चलाने लगी थीं. बलविंदर सिंह उस वक्त भी शराब बेचने का काम करता था. उसी शराब बेचने के धंधे से जुड़ा था उस का भतीजा बंटी. बंटी जसपुर कोतवाली के गांव टांडा प्रभापुर में रहता था. बंटी का बलविंदर सिंह के घर पर पहले से ही आनाजाना था. उसी आनेजाने के दौरान उस की नजर एक दिन जीत कौर की गोद ली हुई बेटी बलविंदर कौर पर पड़ी. परमजीत कौर की बहन बलविंदर कौर भी प्रेमी के साथ भाग गई बलविंदर कौर देखने में सुंदर थी. बंटी की शादी नहीं हो पा रही थी. उस ने बलविंदर कौर को देखा तो उस का मन मचल गया. बलविंदर कौर को देखते ही उस ने प्रण किया कि चाहे कुछ भी हो वह उसे पटा कर ही छोड़ेगा.

उस के बाद वह उसे पाने के लिए उस के पीछे हाथ धो कर ही पड़ गया. उस वक्त तक बलविंदर कौर भी जवानी के मुकाम पर आ खड़ी हुई थी. बंटी के मन में बलविंदर के प्रति प्यार उमड़ा तो उसे पाने की जुगत में लग गया था. कई बार बलविंदर कौर ने बंटी की नजरों को परखने की कोशिश की. वह हर बार ही उसे ताड़ता रहता था. उसे उस की निगाहों का खेल समझने में देर न लगी. उसे देख कर उस के मन में भी हलचल पैदा हो गई थी. जिस के बाद वह भी मन ही मन उसे चाहने लगी थी. दोनों के बीच इशारोंइशारों में बात आगे बढ़ी तो जल्दी ही दोनों एकदूसरे के दीवाने हो गए थे. बंटी ने बलविंदर कौर का मोबाइल नंबर ले लिया और फिर दोनों की बातचीत शुरू हो गई.

दोनों के बीच प्रेम कहानी शुरू हुई तो बात साथ जीनेमरने तक जा पहुंची थी. धीरेधीरे यह बात जीत कौर और उस की बेटी परमजीत कौर के सामने भी आ गई थी. यह जानकारी मिलते ही मां बेटी ने बलविंदर कौर को समझाने की कोशिश की. लेकिन बलविंदर कौर मौन साध गई थी. उसी दौरान एक दिन बलविंदर कौर भी अपनी बहन परमजीत कौर की तरह ही अपनी मां को छोड़ कर बंटी के साथ भाग गई. बलविंदर कौर के भागने की सूचना मिली तो जीत कौर को बहुत दुख हुआ. उसे अपनी गोद ली बेटी से ऐसी उम्मीद न थी. उस के बाद भी जीत कौर ने बलविंदर कौर से मिल कर उसे समझाने की कोशिश की, लेकिन उस ने अपनी मां की एक न मानी.

जीत कौर ने बंटी के गांव जा कर पंचायत तक की, लेकिन बात नहीं बनी तो उस ने भी बलविंदर कौर को उस के ही नसीब के सहारे छोड़ दिया. पंचायत ने तुरंत ही फैसला लेते हुए बलविंदर कौर की शादी बंटी के साथ करा दी थी. उस के बाद से ही वह अपनी ससुराल में रह रही थी. एक के बाद एक मिले सदमे बलविंदर कौर की शादी के बाद जीत कौर उस सदमे से उबर भी न पाई थी. उसी दौरान अब से लगभग एक साल पहले कुलवंत सिंह की किसी ने हत्या कर दी. कुलवंत सिंह की हत्या के बाद जीत कौर पूरी तरह से टूट चुकी थी. उस के जीने का इकलौता सहारा भी छिन गया था.

भाई की हत्या की खबर सुन कर बलविंदर कौर भी अपनी मां से मिलने आई थी. ऐसी दुख की घड़ी में बलविंदर कौर अपनी मां की खैरखबर लेने आई तो जीत कौर को भी अच्छा लगा. उस के बाद बलविंदर कौर ने अपने मायके आनाजाना चालू कर दिया था. कुलवंत सिंह के खत्म होते ही उस की बीवी राज कौर अपने मायके काशीपुर के रमपुरा में जा कर रहने लगी थी. जीत कौर को उम्मीद थी कि वह अपने पति के सदमे में आ कर अपना मन बहलाने के लिए अपने मायके चली गई होगी. लेकिन काफी समय बीत जाने के बाद भी जब वह ससुराल नहीं आई तो जीत कौर को ही उसे बुलाने के लिए जाना पड़ा.

जीत कौर को देख कर भी वह उस के पास तक नहीं आई और न ही कोई बात की. राज कौर ने उस के साथ जाने से साफ मना कर दिया. उस का कहना था कि जब उस का पति ही नहीं रहा तो वह ससुराल जा कर क्या करेगी. उस ने अपने बच्चों को भी लाने से साफ मना कर दिया था. यह सब सुन कर जीत कौर हक्कीबक्की रह गई. उस के बाद वह अपना सा मुंह ले कर घर वापस चली आई. कुलवंत सिंह की मौत के बाद उस के बच्चों और उस की बेटी परमजीत कौर के बच्चों की परवरिश की समस्या पैदा हो गई थी. उसी समस्या से निपटने के लिए जीत कौर ने शराब बेचने का धंधा अपना लिया था. जिस के सहारे दोनों मांबेटी 6 बच्चों की गुजरबसर कर रही थीं.

बंटी करने लगा प्रताडि़त बलविंदर की शादी को अभी एक साल पूरा भी नहीं हो पाया था. उसी दौरान बंटी उसे परेशान करने लगा. बातबात पर बंटी उसे मारनेपीटने लगा था. इसी अनबन के चलते बलविंदर कई बार अपने मायके चली आती थी. बंटी अपनी ससुराल आता और उसे बुला कर ले जाता. लेकिन अपने घर जाते ही वह फिर से उसे प्रताडि़त करना शुरू कर देता था. जब दोनों के बीच बढ़ा विवाद चरम पर पहुंच गया तो गांव में पंचायत के जरिए मामला निपटाने की कोशिश की. उस दौरान बलविंदर कौर प्रेगनेंट थी. जब भरी पंचायत में भी दोनों के एक साथ रहने की सहमति नहीं बनी तो दोनों ने अलगअलग रहने का फैसला कर लिया. फिर भी बंटी ने बलविंदर कौर से तलाक लेने के लिए एक शर्त रखी.

शर्त के अनुसार बलविंदर कौर जिस बच्चे को जन्म देगी, उस पर केबल बंटी का ही अधिकार होगा. इस बात पर सहमति बनते ही दोनों ने एकदूसरे से तलाक ले लिया. बंटी से तलाक ले कर बलविंदर कौर अपने मायके आ कर रहने लगी थी. बलविंदर कौर से तलाक लेने के बाद बंटी परेशान रहने लगा. उस के बाद उसे अपने किए पर काफी अफसोस भी हुआ. लेकिन अब उस के पास पछताने के सिवा कोई अन्य रास्ता नहीं था. बंटी अभी भी अपने चाचा के पास शराब के धंधे के चक्कर में आताजाता रहता था. उस की निगाहें बलविंदर कौर पर पड़तीं तो पागलों की तरह देखता रहता था. वह अभी भी चाहता था कि बलविंदर कौर उस के पास चली आए. लेकिन बलविंदर कौर उस के साथ बिताए दिन भुला नहीं पाई थी. जिस के कारण वह उस की तरफ नजर भर के देखना भी नहीं चाहती थी.

बंटी और बलविंदर कौर के साथ जो भी हुआ, बंटी उस सब का दोषी अपनी सास जीत कौर और परमजीत कौर को मानता था. बंटी की सोच थी कि बलविंदर को चढ़ा कर इन मांबेटियों ने ही उस से तलाक दिला दिया था. जिस की वजह से वह दोनों से रंजिश रखता था. हालात से टूट चुकी थी जीत कौर जीत कौर अब तक घर के हालात से बुरी तरह से टूट चुकी थी. न तो इस वक्त उस के पास पैसा ही था और न ही किसी से लड़नेझगड़ने की शक्ति. बंटी उस की बेटी को तलाक देने के बाद फिर से उस के घर के इर्दगिर्द चक्कर काटने लगा था. जिस के कारण तीनों मांबेटी परेशान थीं. जीत कौर अपनी बेटी बलविंदर कौर को ले कर पहले ही परेशान थी. उस का इतनी सी कम उम्र में ही पति से तलाक हो गया था. वह अभी जवान ही थी.

जीत कौर ने कई बार बलविंदर के सामने उस की दूसरी शादी करने वाली बात रखी, लेकिन उस ने अपनी मां से साफ कह दिया था कि वह अब दूसरी शादी नहीं करेगी. फिर भी अपनी बेटी बलविंदर कौर की चोरीछिपे जीत कौर ने उस की जिंदगी संवारने के लिए एक अच्छे लड़के की तलाश शुरू की. कुछ ही दिनों में उस की मेहनत रंग लाई. उसे बेटी के योग्य एक लड़का मिल गया. सितारगंज निवासी एक युवक को पसंद करते ही उस ने उस की शादी भी तय कर दी थी. 28 अगस्त, 2021 को उस की बारात आनी थी. बलविंदर कौर की शादी की बात पक्की होने की खबर किसी तरह से बंटी तक भी पहुंच गई थी. बलविंदर कौर की दूसरे लड़के के साथ शादी वाली बात सुनते ही बंटी पागल सा हो गया. उसे ऐसी उम्मीद नहीं थी. यह सुनते ही उस के तनबदन में आग लग गई.

उस के बाद उस ने प्रण किया कि वह किसी भी कीमत पर बलविंदर की शादी किसी दूसरे लड़के के साथ नहीं होने देगा, चाहे उसे बलविंदर कौर की हत्या ही क्यों न करनी पड़े. उस के बाद उस ने कई बार बलविंदर कौर से मिलने की कोशिश की, लेकिन वह सफल न हो सका. 11 अगस्त, 2021 को बंटी भोगपुर डाम में शराब बेच कर अपने घर की ओर जा रहा था. उस दिन बलविंदर कौर की शादी को ले कर मांबेटी की बंटी से नोंकझोंक हो गई, जिस के बाद जीत कौर और परमजीत कौर ने उस की लाठीडंडों से पिटाई की थी. बंटी ने चाचा बलविंदर के साथ बनाई योजना बंटी ने उसी दिन मांबेटी को खत्म करने का फैसला ले लिया था. फिर जल्दी दोनों को मारने का प्लान बनाना भी चालू कर दिया था. इस प्लान की योजना उस ने अपने चाचा बलविंदर सिंह को भी बता दी थी.

बलविंदर सिंह खुद ऐसे मौके की तलाश में लगा हुआ था. वह दोनों से पुरानी दुश्मनी निभाने को तैयार था. बंटी की बात सुनते ही बलविंदर तुरंत ही उस का साथ देने के लिए तैयार हो गया. यह बात बलविंदर सिंह ने अपनी पत्नी को भी बता दी थी. बलविंदर सिंह ने अपनी पत्नी जसविंदर कौर को भी इस योजना में शामिल करते हुए कहा था कि उसे तो केवल उन का पीछा करना है. जिस दिन मांबेटी कहीं जाने की योजना बनाएं, वह फोन कर उन्हें जानकारी दे दे. 17 अगस्त, 2021 को जीत कौर अपनी बेटी परमजीत कौर को साथ ले कर जसपुर जाने वाली थी. इस की जानकारी मिलते ही यह सूचना जसविंदर कौर ने अपने पति बलविंदर सिंह को मोबाइल पर दे दी थी.

जिस वक्त जसविंदर कौर ने यह सूचना बलविंदर सिंह को दी, उस वक्त बंटी भी उस के साथ था. दोनों ही उस वक्त मोटरसाइकिल पर शराब ले कर बेचने जा रहे थे. इस जानकारी के मिलते ही दोनों ने शराब आसपास छिपा दी और फिर दोनों पाटल व अन्य धारदार हथियार ले कर जसपुर जाने वाली नहर के किनारे बने रास्ते पर चलने लगे. कुछ दूर पर ही जीत कौर अपनी बेटी परमजीत कौर के साथ आती दिखाई दी. उन्हें सामने से आते देख बलविंदर सिंह ने अपनी बाइक नहर के किनारे झाड़ी में खड़ी कर दी और स्वयं भी वही पर छिप गए. जैसे ही जीत कौर अपनी बेटी के साथ उन के सामने से गुजर रही थी, तभी मौका पाते ही दोनों ने पीछे से अचानक हमला बोल दिया. जिस के कारण मांबेटी ने मौके पर ही दम तोड़ दिया था.

उस वक्त परमजीत कौर की छोटी बेटी नैना भी उस के साथ थी. लेकिन उस ने हिम्मत से काम लिया और वह फुरती से नहर के किनारे खड़ी झाडि़यों के पीछे छिप गई. जैसे ही बलविंदर कौर और बंटी वहां से चले गए तो उस ने वहां से अपने घर की ओर दौड़ लगा दी. जिस के कारण ही इस घटना का खुलासा हो सका था. पुलिस ने इस मामले में जसविंदर कौर पत्नी बलविंदर सिंह उर्फ बिल्लू की संलिप्तता पाई जाने के कारण कोतवाली में दर्ज केस में धारा 120बी आईपीसी जोड़ कर अभियुक्ता जसविंदर कौर को भी गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया था. लेकिन मांबेटी के खत्म होने के कारण 6 मासूम बच्चों का भविष्य अधर में लटक गया था.

जीत कौर की हत्या के बाद उस की भतीजी बलविंदर कौर को छोड़ बच्चों की देखरेख करने वाला कोई नहीं बचा था. Love Crime Story

Love Crime Story : जोरजबरदस्ती से नहीं दिल से होती है मोहब्बत

Love Crime Story : 27 वर्षीय संजना कुमारी और उस का भाई सौरभ कुमार पटना में रह कर सरकारी जौब की तैयारी कर रहे थे. कुछ दिनों बाद सौरभ का बिहार पुलिस में सबइंसपेक्टर पद पर सेलेक्शन हो गया तो वह ट्रेनिंग पर चला गया. फिर संजना ने एसएससी की सीजीएल परीक्षा पास कर ली. उसे 5 जून को सचिवालय में नौकरी जौइन करनी थी, लेकिन इस से पहले ही किसी ने उस की हत्या कर दी. उस की झुलसी हुई डैडबौडी कमरे में मिली. कौन था संजना का हत्यारा और क्यों की गई उस की हत्या?

जिस तरह से कौपी पर स्याही से लिखे शब्दों को पूरी तरह से मिटाया नहीं जा सकता, उसी तरह से जिंदगी का पहला प्यार दिल का ऐसा अहसास होता है, जिसे आसानी से भुलाया नहीं जा सकता. ठीक ऐसा ही प्यार का रिश्ता था संजना और सूरज के बीच. संजना और सूरज आसपास के गांव के निवासी थे. गांव में एक ही साथ खेले और पढ़े भी थे. कक्षा 7 से ग्रैजुएशन तक की पढ़ाई दोनों ने एक साथ ही की थी. फिर दोनों के बीच प्यार होना तो स्वाभाविक ही था.

जैसे ही संजना और सूरज ने जवानी की दहलीज पर पांव रखा, दोनों एकदूसरे के आकर्षण में बंधे. फिर दोनों के बीच मुलाकातों का सिलसिला शुरू हुआ और उन के बीच प्यार का बीज अंकुरित हो गया. हालांकि दोनों शुरू से ही क्लासफेलो रहे थे, लेकिन दोनों के फेमिली वालों में काफी अंतर था. जातिबिरादरी और हैसियत में भी. लेकिन प्यारमोहब्बत में ये चीजें कोई मायने नहीं रखतीं.

संजना कुमारी एक अच्छे परिवार से थी. उस की जिंदगी का मकसद भी सूरज से कुछ अलग ही था. वह पढ़लिख कर कुछ बनना चाहती थी ताकि अपने परिवार का नाम ऊंचा कर सके. यही कारण रहा कि उस ने ग्रैजुएशन करने के बाद अपना अगला रास्ता चुना और फिर वह गांव छोड़ कर पढ़ाई करने पटना जा पहुंची थी. संजना ने पटना हौस्टल में रह कर 3 साल तक पढ़ाई की. उस के बाद वह पटना के थाना श्रीकृष्णापुरी के आनंदपुरी मोहल्ले में रह रहे अपने भाई सौरभ कुमार के पास चली गई. संजना का भाई सौरभ कुमार पटना में रह कर अपनी जौब की तैयारी कर रहा था. दोनों भाईबहन पर सरकारी नौकरी पाने का जुनून सवार था. दोनों ही पढऩे में होशियार थे.

कुछ दिन पहले ही सौरभ का पुलिस में एसआई की नौकरी में चयन हो गया. फिर वह कमरा छोड़ कर अपनी ट्रेनिंग पर निकल गया था. सौरभ के जाते ही संजना उस कमरे में अकेली ही रह गई थी. सूरज कुमार एक सामान्य परिवार से ताल्लुक रखता था. यही कारण रहा कि वह ग्रैजुएशन करने के बाद सरकारी नौकरी की तैयारी नहीं कर सका. उस के बाद उस ने आर्थिक स्थिति के चलते पटना में ही पेटकेयर क्लीनिक पर नौकरी कर ली थी.

सूरज के पास संजना का पहले ही मोबाइल नंबर था, जिस के सहारे वह टाइम मिलते ही उस से बात कर लिया करता था, लेकिन उसे पता था कि उस का भाई सौरभ कुमार उस के साथ ही रहता था. इसी कारण वह उस के पास जा कर मिलने की हिम्मत नहीं जुटा पाता था. जब उसे जानकारी हुई कि उस के भाई की नौकरी पुलिस में लग गई है और वह अपनी ट्रेनिंग पर भी चला गया है. इस जानकारी के मिलते ही वह संजना के पास जा कर उस से मुलाकात करने लगा था. उस के साथ ही दोनों के बीच फिर से पुराना सोया प्यार जाग उठा. हालांकि संजना भी उसे दिलोजान से प्यार करती थी. लेकिन उस का लक्ष्य सरकारी नौकरी पाना था. जबकि सूरज उसे पाने के लिए व्याकुल रहता था. उस की यह हरकत संजना को भी पसंद नहीं थी, लेकिन वह अपने प्यार के आगे मजबूर थी.

पिछले साल सूरज के फेमिली वालों ने उस पर शादी करने का दबाव बनाना शुरू किया, लेकिन सूरज किसी भी कीमत पर किसी और लड़की से शादी करने को तैयार नहीं था. संजना और सूरज के बीच में क्या खिचड़ी पक रही है, इस बात की जानकारी न तो संजना के फेमिली वालों को थी और न ही सूरज के फेमिली वालों को. सूरज जानता था कि उस के फेमिली वाले संजना की शादी के लिए आसानी से मानने वाले नहीं, लेकिन फिर भी वह संजना के पीछे पड़ा था. वह उस के बिना किसी अन्य लड़की के साथ शादी करने को तैयार नहीं था, लेकिन फेमिली वालों की जिद के आगे उस की एक न चली.

उसी दौरान सूरज ने अपने फेमिली वालों के दबाव में आ कर 25 मार्च, 2025 को किसी अन्य युवती के साथ शादी कर ली. लेकिन सूरज ने यह बात प्रेमिका संजना को नहीं बताई थी. शादी के एक महीने तक सूरज ने संजना को फोन नहीं किया. वह वैसे भी अपनी शादी वाली बात संजना से छिपा कर रखना चाहता था. लेकिन किसी तरह से यह बात संजना के कानों तक पहुंच गई.

जैसे ही संजना को सूरज की शादी वाली बात पता चली तो उस पर उसे गुस्सा भी आया. इस बारे में उस ने सूरज से कोई बात करना उचित नहीं समझा था. उस के बावजूद भी उस ने अपना गुस्सा उस के सामने जाहिर नहीं होने दिया. न ही संजना ने सूरज को यह अहसास होने दिया था कि उस की शादी होने वाली बात उसे पता चल गई है. शादी होने के बाद पहली बार सूरज संजना से मिलने पहुंचा तो संजना ने उस से सीधे मुंह बात नहीं की. सूरज के पहुंचते ही उस ने प्रश्न किया, ”तुम्हारी बीवी कैसी है?’’

”ठीक है, लेकिन यह बात तुम्हें किस ने बताई?’’ संजना का प्रश्न सुन सूरज को जैसे सांप सूंघ गया था.

”क्या तुम्हें लगता है कि तुम जो बात मुझ से छिपाओगे, उस का मुझे पता नहीं चलेगा.’’

”नहींनहीं संजना, मैं तो आज तुम्हें बताने ही वाला था. वो मेरे फेमिली वालों ने जबरदस्ती मेरी शादी कर दी. मैं उन के सामने कोई बहाना भी नहीं बना सका.’’ संजना की बात सुनते ही सूरज सटपटा गया.

”देखो सूरज, तुम अब शादीशुदा हो. अब से पहले हमारे और तुम्हारे बीच में जो भी चल रहा था, उसे पूरी तरह से भूल जाओ. आज तो तुम मेरे पास चले आए हो, लेकिन आगे मुझ से मिलने की कोशिश भी मत करना.’’

”नहीं संजना, यह शादी मैं ने अपनी खुशी से नहीं की. मेरे फेमिली वालों ने मेरी मरजी के बिना जबरदस्ती उस युवती के साथ शादी करा दी. लेकिन मेरी शादी हो जाने से तुम्हें कोई फर्क नहीं पडऩे वाला. संजना, मैं पहले भी तुम्हें जान से ज्यादा प्यार करता था और आगे भी करता रहंूगा.’’

”बस, बहुत हो चुका तुम्हारे प्यार का नाटक. अब मैं तुम्हारे साथ कोई भी रिश्ता रखना नहीं चाहती, अगर तुम ने आगे मुझ से मिलने की कोशिश भी की तो उस का अंजाम ठीक नहीं होगा.’’

उस दिन दोनों के बीच काफी नोकझोंक हुई. उस के बाद सूरज अपना सा मुंह ले कर अपने घर चला आया था.

संजना के पास से आने के बाद भी सूरज ने कई बार उस के फोन पर काल लगाने की कोशिश की. लेकिन हर बार उस का फोन इंगेज ही आता रहा. उस के बाद संजना ने सूरज के मोबाइल नंबर को ब्लौक कर दिया. सूरज को इस तरह से दुत्कारने के बाद संजना को भी बुरा लगा था. सूरज उस की जिंदगी का पहला प्यार था. संजना उसे बहुत प्यार करती थी, लेकिन उसे उस से ऐसी उम्मीद नहीं थी कि वह चोरीछिपे इस तरह से किसी अन्य युवती के साथ शादी भी कर लेगा. उस ने बाद में मन को समझा लिया. सूरज उस से नहीं, बल्कि उस के जिस्म से प्यार करता था.

संजना काफी समझदार थी. उस के बाद उस ने सूरज को भुलाने की कोशिश करते हुए अपना ध्यान पूरी तरह से पढ़ाई पर लगा दिया था. कुछ ही दिनों में उस की मेहनत ऐसी रंग लाई कि उस ने एसएससी सीजीएल का एग्जाम पास कर लिया. उसे अगले महीने 5 जून को ही सचिवालय में नौकरी जौइन करनी थी. संजना की नौकरी लगने वाली बात किसी तरह से सूरज को भी पता चल गई थी. संजना की नौकरी लगने की बात सुनते ही सूरज को बहुत अफसोस हुआ. उसे लगा कि उस ने अपने फेमिली वालों के बहकावे में आ कर अपनी जिंदगी तबाह कर ली. उस के बाद उस ने फिर से संजना को फोन करना शुरू कर दिया.

संजना हर रोज उस की मिसकाल देख कर इग्नोर कर देती थी, लेकिन जब वह उस की मिसकाल से परेशान हो गई तो उस ने उस से लास्ट बार फोन पर बात करने का मन बनाया. फिर उस ने सूरज का फोन मिला दिया.

”सूरज, जब मैं ने तुम से एक बार कह दिया कि मुझे फोन मत करना. फिर बारबार मुझे फोन क्यों कर रहे हो?’’ संजना ने प्रश्न किया.

”संजना प्लीज, मुझे मेरी गलती की इतनी बड़ी सजा मत दो. मैं तुम्हारा गुनहगार हूं, लेकिन मैं तुम्हारे बिना एक पल भी नहीं रह सकता. प्लीज संजना, मैं तुम से केवल एक बार मिलना चाहता हूं.’’ सूरज फोन पर गिड़गिड़ाया.

तब संजना ने सूरज को बताया कि मेरी नौकरी भी पक्की हो गई और अगले साल मेरी शादी भी होने वाली है. इसलिए तुम्हारी भलाई इसी में है कि तुम पूरी तरह से मेरा पीछा करना छोड़ दो. तुम्हारी शादी हो चुकी है, अपनी बीवी के साथ अपनी गृहस्थी संभालो. लेकिन उस के काफी समझाने के बाद भी जब सूरज उस से आखिरी बार मिलने की जिद पर अड़ा रहा तो संजना ने हामी भर ली. संजना ने उस दिन उस से साफसाफ शब्दों में कह दिया था कि यह उस का उस के साथ आखिरी मिलना होगा. उस के बाद कभी भी न तो मुझे फोन करना और न ही मिलने की कोशिश करना.

संजना को सूरज पर अभी भी थोड़ा विश्वास था. लेकिन सूरज के दिमाग में कुछ और ही चल रहा था. जब से संजना ने उस से मिलने से मना किया था, सूरज हर रात क्राइम की वेब सीरीज देखने लगा था. उन में फिल्माए गए हर क्राइम सीन को बहुत ही ध्यान से देखता था. वेब सीरीज देखते हुए उस ने मर्डर करने के कई तरीके भी सीख लिए थे. ताकि अगर उसे संजना का खून भी करना पड़े तो वह उसे किस तरह से अंजाम दे सकता है.

संजना से फोन पर बात होते ही सूरज का मन थोड़ा हलका हुआ. उसे उम्मीद थी कि संजना उस के प्यार को भूल नहीं पाएगी. उसी आशा के साथ वह उस से मिलने की जुगत में लग गया. लेकिन तब भी उस के मन में संजना को ले कर तरहतरह के सवाल उठ रहे थे. जब उसे यह पता चला कि उस की शादी फिक्स हो गई है, तो वह बहुत परेशान रहने लगा. उसे पता था कि उस की शादी के बाद वह उस से मिल नहीं पाएगा, लेकिन सूरज किसी भी तरह से संजना को छोडऩे को तैयार नहीं था.

यही सोच कर कई दिन से उस के दिमाग में कई सवाल उठ रहे थे ‘वह पहले उसे प्यार से समझाने की काशिश करेगा. अगर वह मान गई तो ठीक, नहीं तो वह उसे किसी भी तरह से मौत के घाट उतार देगा.’ यही सोच कर उस ने संजना से मिलने की पूरी तैयारी कर ली थी. पूर्वनियोजित प्लान के अनुसार ही उस ने एक टीशर्ट और ट्राउजर अपने बैग में रख लिया था.

संजना से मिलने की पूरी योजना तैयार करने के बाद वह 15 मई, 2025 को बाइक से घर से निकला और ठीक 11 बजे तक पटना पहुंच गया था. पटना पहुंचते ही उस ने अपनी बाइक बेली रोड में खड़ी की और फिर आटो से बोरिंग रोड तक पहुंचा. बोरिंग रोड से सूरज पैदल ही संजना के रूम तक पहुंचा. सूरज को संजना के मकान की सारी जानकारी थी. उसे पता था कि शहर के अधिकांश लोग गरमी के कारण 11 बजे के बाद अपनेअपने कमरों में कैद हो कर रह जाते हैं.

संजना जिस मकान में रूम ले कर रह रही थी, उस मकान पर हर वक्त अंदर से ताला लगा रहता था. मकान मालिक राजेश्वर प्रसाद ने अपने सभी किराएदारों को एकएक चाबी दे रखी थी, ताकि किराएदार किसी भी समय आएंजाएं. उस के रूम के बाहर पहुंचते ही सूरज ने उसे फोन मिला कर आने की सूचना दी. उस का फोन आते ही संजना उसे लेने मकान के मेन गेट पर आई. फिर वह चुपके से उसे दरवाजे से अपने रूम तक ले गई.

सूरज के रूम के अंदर दाखिल होते ही संजना ने कमरे का दरवाजा बंद कर लिया था, ताकि उस के आने का किसी को आभास भी न हो सके. तभी संजना ने सूरज से प्रश्न किया, ”बोलो, तुम मुझ से क्या कहना चाहते हो? इस वक्त तुम शादीशुदा हो. तुम्हारी शादी हो जाने के बाद तुम्हारे और मेरे बीच में कोई रिश्ता बाकी नहीं रह गया. तुम ने जिस के साथ शादी की है, उसी के साथ ही मौजमस्ती करो. अब मेरे पीछे क्यों पड़े हो? एक बात कान खोल कर सुन लो. मैं बारबार तुम्हें समझासमझा कर हार चुकी हूं. तुम मेरा पीछा करना छोड़ दो. नहीं तो मुझे गुस्सा आ गया तो कहीं के भी नहीं रहोगे.’’

संजना के धमकी भरे शब्द सुन सूरज ने अपना रोनाधोना शुरू किया, ”संजना, मैं कई दिनों से ठीक से सो नहीं पाया हूं. यह शादी मैं ने अपनी मरजी से नहीं की, बल्कि फेमिली वालों ने जबरदस्ती करा दी. अगर तुम चाहो तो मैं तुम्हारे लिए अपनी पत्नी को भी छोडऩे को तैयार हूं, लेकिन तुम मेरे साथ इतना अत्याचार मत करो. मैं तुम्हारे बिना एक पल भी नहीं रह सकता.’’ यह कहतेकहते सूरज संजना की तरफ बढऩे लगा. अपनी तरफ सूरज को बढ़ते देख संजना ने उसे फिर से समझाने की पूरी कोशिश की, ”सूरज, मेरी तरफ मत बढऩा, अगर तुम ने मेरे साथ कोई जोरजबरदस्ती की तो मैं शोर मचा कर सब को इकट्ठा कर लूंगी. फिर तुम अपना अंजाम समझ लो. यहां से भाग भी नहीं पाओगे.’’

उस के बाद भी सूरज अपनी हरकतों से बाज नहीं आया. उस ने 27 वर्षीय संजना के साथ जबरदस्ती करने की कोशिश की. संजना चीख न पाए, इस के लिए उस ने पहले ही उस का मुंह दबा दिया था. इस के बावजूद संजना उस से भिड़ गई. फिर उस ने अपना बचाव करते हुए सूरज का डट कर मुकाबला किया. जब सूरज को लगने लगा कि संजना इतनी जल्दी हार मानने वाली नहीं, तभी उस का ध्यान कमरे में ही रखी कैंची पर गया. उस ने संजना के मुंह को बंद किएकिए ही वह कैंची उठाई और उस की गरदन पर कई वार कर डाले. गरदन पर कैंची का वार होते ही संजना निढाल हो कर नीचे गिर गई. अधिक खून बहने से संजना की मौके पर ही मौत हो गई. यह बात 15 मई, 2025 की है.

संजना के मरने के बाद भी सूरज की हैवानियत खत्म नहीं हुई. उसे मारने के बाद वह सारे सबूत खत्म करना चाहता था, ताकि पुलिस के आने के बाद वह इस मर्डर केस में फंस न जाए. उस ने कई वेब सीरीज देख रखी थी. इन सभी सबूतों को मिटाने के लिए वह किचन में गया. वहां से सिलेंडर लाया और उस का पाइप काट कर मृत पड़ी संजना के मुंह में डाल दिया. फिर उस ने उस में आग लगा दी.

इस घटना को अंजाम देने के दौरान उस के कपड़ों पर खून के छींटे आ गए थे, जिन को पहन कर वह अपने घर नहीं जा सकता था. इसलिए अपने साथ लाई टीशर्ट और लोअर पहन लिया. उस के बाद सूरज ने संजना के रूम में कपड़े इधरउधर बिखेर दिए. उस का मोबाइल, लैपटाप, उस के गले की सोने की चेन व 25 हजार रुपए नकद अपने बैग में रख लिए, ताकि उस के रूम से जाने के बाद पुलिस उस घटना को लूटपाट की घटना समझे.

घटनास्थल से सारे सबूत मिटाने के बाद सूरज ने संजना का रूम बाहर से बंद कर दिया और उस के बाद वह दबेपांव नीचे मेन गेट से फरार हो गया. सूरज ने बड़ी ही चालाकी से संजना को मौत की नींद सुला दिया था. जिस की मकान मालिक या उस में रह रहे अन्य किराएदारों को भनक तक नहीं लगी थी. इस घटना को अंजाम देने के बाद सूरज अपनी बाइक से वैशाली की ओर भाग गया. वैशाली के रास्ते में ही उस ने संजना का मोबाइल, लैपटाप, गंगा नदी में फेंक दिया, जिस से उस के पास उस का कोई भी सबूत न रहे.

शाम को लगभग 4 बजे के आसपास उस मकान में काम करने वाली मेड आई. उस ने घर का दरवाजा खुला हुआ देखा तो उस ने उस की जानकारी मकान मालिक को दी. तभी मेड की नजर संजना के रूम की ओर गई. उस ने देखा कि उस का कमरा पूरी तरह से अस्तव्यस्त था. उस के कमरे से कुछ अजीब सी स्मैल भी आ रही थी. उस ने जैसे ही उस के कमरे में अंदर झांक कर देखा तो संजना कुमारी को जली अवस्था में पड़ी देख उस की जोर से चीख निकल गई.

उस के बाद वह फौरन ही नीचे वाले हिस्से में आ गई थी. इस बात की जानकारी मिलते ही मकान मालिक राजेश्वर प्रसाद अपने किराएदारों के साथ उस कमरे में पहुंचे, जहां पर संजना का आग से झुलसा हुआ शव पड़ा हुआ था. राजेश्वर प्रसाद ने इस घटना की जानकारी मृतका संजना के भाई और श्रीकृष्णापुरी थाना पुलिस को दी. सूचना पाते ही थाने के एसएचओ प्रभात कुमार पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंचे. घटनास्थल पर पहुंचते ही प्रभात कुमार ने जांचपड़ताल की.

शुरुआती जांच में पुलिस को लगा कि सिलेंडर में आग लगने के कारण संजना के साथ यह हादसा हुआ होगा. इस मामले में पुलिस ने मकान मालिक और वहां रह रहे अन्य किराएदारों से भी पूछताछ की. पुलिस को पता चला कि उस के साथ यह हादसा कैसे, कब हुआ, किसी को आभास तक नहीं हुआ था. न ही उस के चीखनेचिल्लाने की आवाज किसी ने सुनी थी.

लेकिन मकान मालिक राजेश्वर प्रसाद ने पुलिस को जानकारी दी कि उन के मकान का मेन गेट हमेशा बंद रहता था, लेकिन घटना के बाद वह खुला हुआ पाया गया था. जिस से लगता है कि उस दौरान उस के मकान में कोई बाहरी व्यक्ति अवश्य आया था, जो घटना को अंजाम दे कर चुपचाप फरार हो गया. संजना के साथ जो घटना घट चुकी थी, उस की जानकारी पाते ही उस के फेमिली वाले भी मुजफ्फरपुर से पटना पहुंच गए थे.

इस घटना की जानकारी पुलिस के उच्चाधिकारियों को भी दी गई. जानकारी मिलते ही सचिवालय एडीपीओ-2 साकेत कुमार व एसपी (सिटी) स्वीटी सेहरावत भी घटनास्थल पर पहुंचीं. मृतका के फेमिली वालों के पहुंचते ही पुलिस ने विस्तार से जानकारी जुटाई. बिहार के जिला मुजफ्फरपुर के गांव सबहा निवासी मिथलेश सिंह की संजना कुमारी इकलौती बेटी थी. मिथलेश सिंह का पढ़ालिखा और सभ्य परिवार था. इस से पहले दोनों भाईबहन पटना में रह कर सरकारी जौब की तैयारी कर रहे थे.

संजना कुमारी के भाई राजेश कुमार का कुछ समय पहले एसआई की पोस्ट पर चयन हो जाने के बाद संजना ने भी सीजीएल की परीक्षा पास कर ली थी. उसे 5 जून, 2025 को सचिवालय में नौकरी जौइन करनी थी. उस के साथ ही उस की शादी भी तय हो गई थी. अगले साल उस की शादी की डेट भी फिक्स हो गई थी. घटना से 2 दिन पहले तक संजना की मम्मी भी उसी के साथ थी. उसी दिन उस का भाई अपनी मम्मी को मुजफ्फरपुर छोड़ आया था. मम्मी ने संजना से घर चलने वाली बात कही थी, लेकिन संजना ने कह दिया कि 5 जून को उस की जौइनिंग हो जाएगी, उस के बाद ही वह घर आएगी, लेकिन उस के आने से पहले ही फेमिली वालों को उस के खत्म होने की सूचना मिली.

संजना के भाई सौरभ कुमार ने पुलिस को बताया कि 15 मई की शाम को 7 बजे उस के मकान मालिक ने बताया कि गैस सिलेंडर से झुलस कर संजना की मौत हो गई है. घटना की जानकारी पाते ही वह पटना पहुंचा. घटना के हालात देख कर ही उसे लगा कि उस की हत्या की गई है. सौरभ कुमार ने पुलिस को बताया कि संजना पूरी तरह से सरकारी जौब की तैयारी में लगी हुई थी. लेकिन वह किसी लड़के के संपर्क में थी या नहीं, उस के परिवार वालों के पास ऐसी कोई जानकारी भी नहीं थी. यह सब जानकारी जुटाने के बाद पुलिस ने अपनी काररवाई को पूरा करते हुए संजना के शव को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया था. उस के मकान मालिक और भाई के द्वारा उस की हत्या का शक जाहिर करने पर पुलिस ने उस क्षेत्र में लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज निकलवाई.

सीसीटीवी फुटेज में एक संदिग्ध युवक आतेजाते दिखा, लेकिन मृतका के फेमिली वाले उस युवक से पूरी तरह से अंजान थे. उस फुटेज को देखते ही उस मकान में काम करनी वाली महिला ने पुलिस को बताया कि उस ने उस युवक को कई बार संजना के पास आतेजाते देखा था. वह युवक कौन और कहां का रहने वाला था, वह इस बारे में कुछ नहीं जानती. इस जानकारी के बाद पुलिस को पूरा यकीन हो गया था कि घटना से पहले संजना से मिलने जरूर कोई युवक आया था. उसी ने उस की हत्या की और वह फिर फरार हो गया.

इस जानकारी के बाद पुलिस ने संजना का मोबाइल तलाशा तो वहां से उस के मोबाइल के साथसाथ उस का लैपटाप भी गायब मिला. उस के बाद पुलिस ने सच्चाई जानने के लिए संजना के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई तो सूरज नामक व्यक्ति का नंबर सामने आया. जिस पर संजना की हत्या होने से पहले बात हुई थी. सूरज के नंबर के सामने आते ही पुलिस ने उस के नंबर पर काल करने की कोशिश की तो वह बंद आ रहा था, लेकिन उस नंबर से सूरज की सारी जानकारी सामने आ गई थी.

सूरज कुमार सकरा थाने के ही बाजी बुजुर्ग गांव का रहने वाला था, जो शुरू से ही संजना का क्लासफेलो रहा था. उस मकान की मेड पहले ही बता चुकी थी कि कई बार एक युवक संजना ने मिलने आता रहता था. इस जानकारी से यह तो पूरी तरह से साफ हो गया कि संजना का हत्यारा सूरज ही था. इस हत्याकांड और पुलिस की काररवाई की पलपल की जानकारी सूरज किसी तरह से ले रहा था. उसी दौरान उस के दिमाग में एक सवाल पैदा हुआ. उस ने सोचा कि पुलिस उस की उस काल डिटेल्स से भी उस पर शक कर सकती है. इस से बचने के लिए उस ने अपने मोबाइल के खोने की रिपोर्ट लिखाने का प्लान बना लिया.

यह विचार मन में आते ही उस ने अपने दोस्त के माध्यम से अपने मोबाइल के खोने की रिपोर्ट दर्ज कराने का प्लान बनाया. फिर वह अपने दोस्त को साथ ले कर सकरा थाने की ओर रवाना हो गया. लेकिन सकरा थाने पहुंचने से पहले ही थाना एस.के. पुरी ने उसे धर दबोचा. पुलिस ने आरोपी सूरज को वैशाली जिले के हाजीपुर से गिरफ्तार किया था.

सूरज को गिरफ्तार कर के पुलिस ने उस से कड़ी पूछताछ की. पुलिस पूछताछ के दौरान सूरज ने बताया कि वह संजना के साथ 7वीं कक्षा से पढ़ा था. आगे चल कर संजना और उस के बीच दोस्ती हुई और फिर प्यार भी हो गया था. उस ने कई बार संजना से शादी करने की बात भी कही थी, लेकिन वह उस के साथ शादी करने के लिए तैयार न थी. सूरज ने अपने फेमिली वालों के दबाव में आ कर किसी और लड़की के साथ शादी कर ली थी. लेकिन वह उस लड़की के साथ शादी कर के खुश नहीं था.

उस ने अपनी शादी वाली बात पूरी तरह से संजना से छिपा कर रखी थी, ताकि उस के साथ उस का प्यार पहले की तरह ही चलता रहे. लेकिन किसी तरह से उस की शादी की बात संजना को पता चल गई. जिस के बाद उस ने उस से मोबाइल पर बात करनी बंद कर दी थी. उसी दौरान सूरज को पता चला कि उस की नौकरी लगने के साथ ही उस की शादी की बात भी फिक्स हो गई है. सूरज चाहता था कि वह किसी दूसरे के साथ शादी न करे और दोनों के बीच पहले जैसा ही प्यार चलता रहे, लेकिन संजना इस के लिए तैयार नहीं थी. फिर 15 जून को उस ने संजना कुमारी की उसी के कमरे में जा कर हत्या कर दी.

 

स्ंाजना के खत्म होने के बाद जैसे ही उस ने वहां से जाने का प्लान बनाया, तभी उस के दिमाग में आया कि संजना ने उस के बाल खींचे थे. कहीं उस के बाल वहां पर न गिर गए हों. सूरज ने कई वेब सीरीजों में देखा था कि घटनास्थल से अगर पुलिस को हत्यारे का एक बाल भी मिल जाता है तो पुलिस उसी का डीएनए करा कर आरोपी तक पहुंच जाती है. यही सोच कर घटनास्थल से सारे सबूत मिटाने के लिए सूरज रसोई से गैस सिलेंडर लाया और उस का पाइप काटने के बाद संजना के मुंह में डाल दिया और वह उस का सारा सामान ले कर फरार हो गया था. इस हत्याकांड के खुलासे के बाद पुलिस ने आरोपी सूरज को कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया था. Love Crime Story

 

 

Love Crime : गर्लफ्रेड ने ली बॉयफ़्रेंड की जान

Love Crime :  एसचओ ने ग्रामीणों की मदद से शव को तालाब से बाहर निकलवाया. शव पूरी तरह नग्न अवस्था में था. शव का बारीकी से निरीक्षण किया तो पाया कि मृतक की उम्र लगभग 30 साल थी और उस के शरीर पर धारदार हथियार से गोदे जाने के कई निशान थे.

उसी दौरान एक युवक ने लाश की शिनाख्त पिडरुआ निवासी तुलसीराम प्रजापति के रूप में की. उस की हत्या किस ने और क्यों की, यह बात कोई भी व्यक्ति नहीं समझ पा रहा था. 26 वर्षीय सविता और 28 वर्षीय तुलसीराम पहली मुलाकात में ही एकदूसरे को दिल दे बैठे थे, सविता को पाने की अभिलाषा तुलसीराम के दिल में हिलोरें मारने लगी थी, इसलिए वह किसी न किसी बहाने से सविता से मिलने उस के खेत पर बनी टपरिया में अकसर आने लगा था.

तुलसीराम प्रजापति के टपरिया में आने पर सविता गर्मजोशी से उस की खातिरदारी करती, चायपानी के दौरान तुलसीराम जानबूझ कर बड़ी होशियारी के साथ सविता के गठीले जिस्म का स्पर्श कर लेता तो वह नानुकुर करने के बजाय मुसकरा देती. इस से तुलसीराम की हिम्मत बढ़ती चली गई और वह सविता के खूबसूरत जिस्म को जल्द से जल्द पाने की जुगत में लग गया. एक दिन दोपहर के समय तुलसीराम सविता की टपरिया में आया तो इत्तफाक से सविता उस वक्त अकेली चक्की से दलिया बनाने में मशगूल थी. उस का पति पुन्नूलाल कहीं गया हुआ था. इसी दौरान तुलसीराम को देखा तो उस ने साड़ी के पल्लू से अपने आंचल को करीने से ढंका.

तुलसीराम ने उस का हाथ पकड़ कर कहा, ”सविता, तुम यह आंचल क्यों ढंक रही हो? ऊपर वाले ने तुम्हारी देह देखने के लिए बनाई है. मेरा बस चले तो तुम को कभी आंचल साड़ी के पल्लू से ढंकने ही न दूं.’’

”तुम्हें तो हमेशा शरारत सूझती रहती है, किसी दिन तुम्हें मेरे टपरिया में किसी ने देख लिया तो मेरी बदनामी हो जाएगी.’’

”ठीक है, आगे से जब भी तेरे से मिलने तेरी टपरिया में आऊंगा तो इस बात का खासतौर पर ध्यान रखूंगा.’’

सविता मुसकराते हुए बोली, ”अच्छा एक बात बताओ, कहीं तुम चिकनीचुपड़ी बातें कर के मुझ पर डोरे डालने की कोशिश तो नहीं कर रहे?’’

”लगता है, तुम ने मेरे दिल की बात जान ली. मैं तुम्हें दिलोजान से चाहता हूं, अब तो जानेमन मेरी हालत ऐसी हो गई है कि जब तक दिन में एक बार तुम्हें देख नहीं लेता, तब तक चैन नहीं मिलता है. बेचैनी महसूस होती रहती है, इसलिए किसी न किसी बहाने से यहां चला आता हूं. तुम्हारी चाहत कहीं मुझे पागल न कर दे…’’

तुलसीराम प्रजापति की बात अभी खत्म भी नहीं हुई थी कि सविता बोली, ”पागल तो तुम हो चुके हो, तुम ने कभी मेरी आंखों में झांक कर देखा है कि उन में तुम्हारे लिए कितनी चाहत है. मुझे तो ऐसा लगता है कि दिल की भाषा को आंखों से पढऩे में भी तुम अनाड़ी हो.’’

”सच कहा तुम ने, लेकिन आज यह अनाड़ी तुम से बहुत कुछ सीखना चाहता है. क्या तुम मुझे सिखाना चाहोगी?’’ इतना कह कर तुलसीराम ने सविता के चेहरे को अपनी हथेलियों में भर लिया.

सविता ने भी अपनी आंखें बंद कर के अपना सिर तुलसीराम के सीने से टिका दिया. दोनों के जिस्म एकदूसरे से चिपके तो सर्दी के मौसम में भी उन के शरीर दहकने लगे. जब उन के जिस्म मिले तो हाथों ने भी हरकतें करनी शुरू कर दीं और कुछ ही देर में उन्होंने अपनी हसरतें पूरी कर लीं.

सविता के पति पुन्नूलाल के शरीर में वह बात नहीं थी, जो उसे तुलसीराम से मिली. इसलिए उस के कदम तुलसीराम की तरफ बढ़ते चले गए. इस तरह उन का अनैतिकता का खेल चलता रहा.

सविता के क्यों बहके कदम

मध्य प्रदेश के सागर जिले में एक गांव है पिडरुआ. इसी गांव में 26 वर्षीय सविता आदिवासी अपने पति पुन्नूलाल के साथ रहती थी. पुन्नूलाल किसी विश्वकर्मा नाम के व्यक्ति की 10 बीघा जमीन बंटाई पर ले कर खेत पर ही टपरिया बना कर अपनी पत्नी सविता के साथ रहता था. उसी खेत पर खेती कर के वह अपने परिवार की गुजरबसर करता था. उस की गृहस्थी ठीकठाक चल रही थी.

उस के पड़ोस में ही तुलसीराम प्रजापति का भी खेत था, इस वजह से कभीकभार वह सविता के पति से खेतीबाड़ी के गुर सीखने आ जाया करता था. करीब डेढ़ साल पहले तुलसीराम ने ओडिशा की एक युवती से शादी की थी, लेकिन वह उस के साथ कुछ समय तक साथ रहने के बाद अचानक उसे छोड़ कर चली गई थी.

सविता को देख कर तुलसीराम की नीयत डोल गई. उस की चाहतभरी नजरें सविता के गदराए जिस्म पर टिक गईं.  उसी क्षण सविता भी उस की नजरों को भांप गई थी. तुलसीराम हट्टाकट्टा नौजवान था. सविता पहली नजर में ही उस की आंखों के रास्ते दिल में उतर गई. सविता के पति से बातचीत करते वक्त उस की नजरें अकसर सविता के जिस्म पर टिक जाती थीं.

सविता को भी तुलसीराम अच्छा लगा. उस की प्यासी नजरों की चुभन उस की देह को सुकून पहुंचाती थी. उधर अपनी लच्छेदार बातों से तुलसीराम ने सविता के पति से दोस्ती कर ली. तुलसीराम को जब भी मौका मिलता, वह सविता के सौंदर्य की तारीफ करने में लग जाता. सविता को भी तुलसीराम के मुंह से अपनी तारीफ सुनना अच्छा लगता था. वह पति की मौजूदगी में जब कभी भी उसे चायपानी देने आती, मौका देख कर वह उस के हाथों को छू लेता. इस का सविता ने जब विरोध नहीं किया तो तुलसीराम की हिम्मत बढ़ती चली गई.

धीरेधीरे उस की सविता से होने वाली बातों का दायरा भी बढऩे लगा. सविता का भी तुलसीराम की तरफ झुकाव होने लगा था. तुलसीराम को पता था कि सविता अपने पति से संतुष्ट नहीं है. कहते हैं कि जहां चाह होती है, वहां राह निकल ही आती है. आखिर एक दिन तुलसीराम को सविता के सामने अपने दिल की बात कहने का मौका मिल गया और उस के बाद दोनों के बीच वह रिश्ता बन गया, जो दुनिया की नजरों में अनैतिक कहलाता है. दोनों ने इस रास्ते पर कदम बढ़ा तो दिए, लेकिन सविता ने इस बात पर गौर नहीं किया कि वह अपने पति के साथ कितना बड़ा विश्वासघात कर रही है.

जिस्म से जिस्म का रिश्ता कायम हो जाने के बाद सविता और तुलसीराम उसे बारबार बिना किसी हिचकिचाहट के दोहराने लगे. सविता का पति जब भी गांव से बाहर जाने के लिए निकलता, तभी सविता तुलसीराम को काल कर अपने पास बुला लेती थी. अनैतिक संबंधों को कोई लाख छिपाने की कोशिश करे, एक न एक दिन उस की असलियत सब के सामने आ ही जाती है. एक दिन ऐसा ही हुआ. सविता का पति पुन्नूलाल शहर जाने के लिए घर से जैसे ही निकला, वैसे ही सविता ने अपने प्रेमी तुलसीराम को फोन कर दिया.

अवैध संबंधों का सच आया सामने

सविता जानती थी कि शहर से घर का सामान लेने के लिए गया पति शाम तक ही लौटेगा, इस दौरान वह गबरू जवान प्रेमी के साथ मौजमस्ती कर लेगी. सविता की काल आते ही तुलसीराम बाइक से सविता के टपरेनुमा घर पर पहुंच गया. उस ने आते ही सविता के गले में अपनी बाहों का हार डाल दिया, तभी सविता इठलाते हुए बोली, ”अरे, यह क्या कर रहे हो, थोड़ी तसल्ली तो रखो.’’

”कुआं जब सामने हो तो प्यासे व्यक्ति को कतई धैर्य नहीं होता है,’’ इतना कहते हुए तुलसीराम ने सविता का गाल चूम लिया.

”तुम्हारी इन नशीली बातों ने ही तो मुझे दीवाना बना रखा है. न दिन को चैन मिलता है और न रात को. सच कहूं जब मैं अपने पति के साथ होती हूं तो सिर्फ तुम्हारा ही चेहरा मेरे सामने होता है,’’ सविता ने भी इतना कह कर तुलसी के गालों को चूम लिया.

तुलसीराम से भी रहा नहीं गया. वह सविता को बाहों में उठा कर चारपाई पर ले गया. इस से पहले कि वे दोनों कुछ कर पाते, दरवाजा खटखटाने की आवाज आई. इस आवाज को सुनते ही दोनों के दिमाग से वासना का बुखार उतर गया. सविता ने जल्दी से अपने अस्तव्यस्त कपड़ों को ठीक किया और दरवाजा खोलने भागी. जैसे ही उस ने दरवाजा खोला, सामने पति को देख कर उस के चेहरे का रंग उड़ गया, ”तुम तो घर से शहर से सौदा लाने के लिए निकले थे, फिर इतनी जल्दी कैसे लौट आए?’’ सविता हकलाते हुए बोली.

”क्यों? क्या मुझे अब अपने घर आने के लिए भी तुम से परमिशन लेनी पड़ेगी? तुम दरवाजे पर ही खड़ी रहोगी या मुझे भीतर भी आने दोगी,’’ कहते हुए पुन्नूलाल ने सविता को एक तरफ किया और जैसे ही वह भीतर घुसा तो सामने तुलसीराम को देख कर उस का माथा ठनका.

”अरे, आप कब आए?’’ तुलसीराम ने पूछा तो पुन्नूलाल ने कहा, ”बस, अभीअभी आया हूं.’’

सविता के हावभाव पुन्नूलाल को कुछ अजीब से लगे, उस ने सविता की तरफ देखा, वह बुरी तरह से घबरा रही थी. उस के बाल बिखरे हुए थे. माथे की बिंदिया उस के हाथ पर चिपकी हुई थी.

यह सब देख कर पुन्नूलाल को शक होना लाजिमी था. डर के मारे तुलसीराम भी उस से ठीक से नजरें नहीं मिला पा रहा था. ठंड के मौसम में भी उस के माथे पर पसीना छलक रहा था. पुन्नूलाल तुलसीराम से कुछ कहता, उस से पहले ही वह अपनी बाइक पर सवार हो कर वहां से भाग गया.

उस के जाते ही पुन्नूलाल ने सविता से पूछा, ”तुलसीराम तुम्हारे पास क्यों आया था और तुम दोनों दरवाजा बंद कर क्या गुल खिला रहे थे?’’

”वह तो तुम से मिलने आया था और कुंडी इसलिए लगाई थी कि आज पड़ोसी की बिल्ली बहुत परेशान कर रही थी.’’ असहज होते हुए सविता बोली.

”लेकिन मेरे अचानक आ जाने से तुम दोनों की घबराहट क्यों बढ़ गई थी?’’

”अब मैं क्या जानूं, यह तो तुम्हें ही पता होगा.’’ सविता ने कहा तो पुन्नूलाल तिलमिला कर रह गया. उस के मन में पत्नी को ले कर संदेह पैदा हो गया था.

पुन्नूलाल ने कड़ा रुख अख्तियार करते हुए पति पर निगाह रखनी शुरू कर दी और हिदायत दे दी कि तुलसीराम से वह आइंदा से मेलमिलाप न करे. पति की सख्ती के बावजूद सविता मौका मिलते ही तुलसीराम से मिलती रहती थी.

सविता और उस के प्रेमी को चोरीछिपे मिलना अच्छा नहीं लगता था. उधर तुलसीराम चाहता था कि सविता जीवन भर उस के साथ रहे, लेकिन सविता के लिए यह संभव नहीं था.

सविता क्यों बनी प्रेमी की कातिल

वैसे भी जब से पुन्नूलाल और गांव वालों को सविता और तुलसीराम प्रजापति के अवैध संबंधों का पता लगा था, तब से सविता घर टूटने के डर से तुलसीराम से छुटकारा पाना चाह रही थी, लेकिन समझाने के बावजूद तुलसीराम उस का पीछा नहीं छोड़ रहा था. तब अंत में सविता ने अपने छोटे भाई हल्के आदिवासी के साथ मिल कर अपने प्रेमी तुलसीराम को मौत के घाट उतारने की योजना बना डाली.

अपनी योजना को अमलीजामा पहनाने के लिए 8 जनवरी, 2024 को सविता अपने मायके साईंखेडा चली गई, जिस से किसी को उस पर शक न हो. वहां से वह 11 जनवरी की दोपहर अपनी ससुराल पिडरुआ वापस लौट आई. उसी दिन शाम के वक्त उस ने तुलसीराम को फोन करके मिलने के लिए मोतियाहार के जंगल में बुला लिया.

अपनी प्रेमिका के बुलावे पर उस की योजना से अनजान तुलसीराम खुशी खुशी मोतियाहार के जंगल में पहुंचा. तभी मौका मिलते ही सविता ने अपने मायके से साथ लाए चाकू का पूरी ताकत के साथ तुलसीराम के गले पर वार कर दिया. अपनी जान बचाने के लिए खून से लथपथ तुलसीराम ने वहां से बच कर भाग निकलने की कोशिश की तो सविता ने चाकू उस के पेट में घोंप दिया. पेट में चाकू घोंपे जाने से उस की आंतें तक बाहर निकल आईं. कुछ देर छटपटाने के बाद ही उस के शरीर में हलचल बंद हो गई.

इस के बाद सविता के भाई हल्के आदिवासी ने तुलसीराम की पहचान मिटाने के लिए उस के सिर को पत्थर से बुरी तरह से कुचल दिया. फिर सविता ने अपने प्रेमी की नाक के पास अपनी हथेली ले जा कर चैक किया कि कहीं वह जिंदा तो नहीं है. दोनों को पूरी तरह तसल्ली हो गई कि तुलसीराम मर चुका है, तब उन्होंने तुलसीराम के सारे कपड़े उतार कर उस के कपड़े, जूते एक थैले में रख कर तालाब में फेंक दिए. लाश को ठिकाने लगाने के लिए सविता और उस का भाई हल्के तुलसी की लाश को कंधे पर रख कर हरा वाले तालाब के करीब ले गए. वहां बोरी में पत्थर भर कर रस्सी को उस की कमर में बांध कर शव को तालाब में फेंक दिया.

नग्नावस्था में मिली थी तुलसी की लाश

12 जनवरी, 2024 की सुबह उजाला फैला तो पिडरुआ गांव के लोगों ने तालाब में युवक की लाश तैरती देखी. थोड़ी देर में वहां लोगों की भीड़ जुट गई. भीड़ में से किसी ने तालाब में लाश पड़ी होने की सूचना बहरोल थाने के एसएचओ सेवनराज पिल्लई को दी.

सूचना मिलते ही एसएचओ कुछ पुलिसकर्मियों को ले कर मौके पर पहुंच गए. लाश तालाब से बाहर निकलवाने के बाद उन्होंने उस की जांच की. उस की शिनाख्त पिडरुआ निवासी तुलसीराम प्रजापति के रूप में की. वहीं पर पुलिस को यह भी पता चला कि तुलसीराम के पिछले डेढ़ साल से गांव की शादीशुदा महिला सविता आदिवासी से अवैध संबंध थे. इसी बात को ले कर पतिपत्नी में तकरार होती रहती थी.

लेकिन तुलसीराम की हत्या इस तरह गोद कर क्यों की गई, यह बात पुलिस और लोगों को अचंभे में डाल रही थी. मामला गंभीर था. एसएचओ ने घटना की सूचना एसडीओपी (बंडा) शिखा सोनी को भी दे दी थी. वह भी मौके पर आ गईं. इस के बाद उन्होंने भी लाश का निरीक्षण कर एसएचओ को सारी काररवाई कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेजने के निर्देश दिए. एसएचओ पिल्लई ने सारी काररवाई निपटा कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. फिर थाने लौट कर हत्या का मुकदमा दर्ज कर जांच शुरू कर दी.

एसडीओपी शिखा सोनी ने इस केस को सुलझाने के लिए एक पुलिस टीम गठित की. टीम में बहरोल थाने के एसएचओ सेवनराज पिल्लई, बरायथा थाने के एसएचओ मकसूद खान, एएसआई नाथूराम दोहरे, हैडकांस्टेबल जयपाल सिंह, तूफान सिंह, वीरेंद्र कुर्मी, कांस्टेबल देवेंद्र रैकवार, नीरज पटेल, अमित शुक्ला, सौरभ रैकवार, महिला कांस्टेबल प्राची त्रिपाठी आदि को शामिल किया गया.

चूंकि पुलिस को सविता आदिवासी और मृतक की लव स्टोरी की जानकारी पहले ही मिल चुकी थी, इसलिए पुलिस टीम ने गांव के अन्य लोगों से जानकारी जुटाने के बाद सविता आदिवासी को पूछताछ के लिए थाने बुला लिया.

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सविता से तुलसीराम की हत्या के बारे में जब सख्ती से पूछताछ की गई तो उस ने पुलिस को गुमराह करने की भरसक कोशिश की, लेकिन एसएचओ सेवनराज पिल्लई के आगे उस की एक न चली और उसे सच बताना ही पड़ा. सविता के खुलासे के बाद पुलिस ने सविता के भाई हल्के आदिवासी को भी साईंखेड़ा गांव से गिरफ्तार कर लिया. उस ने भी अपना जुर्म कुबूल कर लिया सविता और उस के भाई हल्के आदिवसी से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने दोनों अभियुक्तों को कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

सविता और उस के भाई हल्के ने सोचा था कि तुलसीराम को मौत के घाट उतार देने से बदनामी से छुटकारा और बसा बसाया घर टूटने से बच जाएगा, लेकिन पुलिस ने उन के मंसूबों पर पानी फेर कर उन्हें जेल की सलाखों के पीछे पहुंचा दिया. तुलसीराम की हत्या कर के सविता और उस का भाई हल्के आदिवासी जेल चले गए. सविता ने अपनी आपराधिक योजना में भाई को भी शामिल कर के अपने साथ भाई का भी घर बरबाद कर दिया. Love Crime

Love Crime : एकतरफा प्रेमी ने ली प्रेमिका की सहेली की जान

Love Crime : 10 जुलाई, 2023 को रात के लगभग 8 बजे का वक्त रहा होगा, दिव्या रोज की तरह अपनी सहेली अक्षया यादव की स्कूटी पर बैठ कर कोचिंग से घर वापस लौट रही थी. उन दोनों सहेलियों में से किसी को जरा भी अनुमान नहीं था कि मौत दबे पांव उन की ओर बढ़ी आ रही है.

उसी समय अक्षया की स्कूटी के नजदीक से एक बाइक गुजरी. उस पर 4 नवयुवक सवार थे. बाइक पर सवार उन युवकों में से 2 के हाथ में देशी पिस्टल थी. उन चारों में से 2 को पहचानने में अक्षया और उस की सहेली दिव्या ने भूल नहीं की. वे दोनों आर्मी की बजरिया में रहने वाले सुमित रावत और उपदेश रावत थे.

एक नजर चारों तरफ देखने के बाद सुमित नाम के युवक ने रुकने का इशारा कर के अक्षया को बेटी बचाओ चौराहा (मैस्काट चिकित्सालय) के पास रोक लिया.

सडक़ पर ही सुमित और दिव्या में होने लगी नोंकझोंक

अक्षया के स्कूटी रोकते ही सुमित दिव्या से बात करने लगा. कुछ ही पल की बातचीत में दिव्या और सुमित में नोंकझोंक शुरू हो गई. दोनों के बीच सडक़ पर नोंकझोंक होती देख उधर से गुजर रहे कुछ राहगीरों ने महज शिष्टाचार निभाते हुए रुक कर सुमित को समझाने का प्रयास किया, लेकिन सुमित ने लोगों से दोटूक शब्दों में कह दिया कि अगर कोई भी हम दोनों के बीच में आया तो उसे सीधे यमलोक पहुंचा दूंगा.

इतना ही नहीं, सुमित और उस के साथ बाइक पर सवार हो कर आए अपराधी किस्म के साथी तमंचा दिखा कर राहगीरों को बिना किसी हिचकिचाहट के धमकाने लगे. सुमित को समझाने की कोशिश में लगे राहगीर उन युवकों के हाथों में तमंचा देख डर कर दूर हट गए.

राहगीरों के दूर हटते ही सुमित दिव्या को धमकाने लगा, “सोनाक्षी, मैं तुम्हें हमेशा के लिए भूल जाऊं, ये कभी नहीं हो सकता. और मेरे रहते किसी भी सूरत में तुम्हें अपने से मुंह नहीं फेरने दूंगा. अब अपनी जान की खैरियत चाहती हो तो चुपचाप जैसा में कहूं वैसा करो, वरना तुम्हारी लाश ही यहां से जाएगी.

अपनी आगे की जिंदगी का निर्णय खुद तुम्हें लेना है, मेरे साथ दोस्ती रखना चाहती हो याा नहीं? तुम और तुम्हारी मां ने मुकदमा दर्ज करा कर मुझे जेल भिजवा कर मेरी जिंदगी को तबाह कर के रख दिया है. अब बचा ही क्या है मेरी जिंदगी में.”

“सुमित, तुम कान खोल कर सुन लो, सिर्फ मेरी मां ही नहीं मैं भी तुम से नफरत करती हूं. मैं अपने जीते जी तुम जैसे घटिया इंसान से कभी भी दोस्ती नहीं रखूंगी, ये मेरा आखिरी निर्णय है.” दिव्या ने भी उसे साफ बता दिया.

दिव्या का यह फैसला सुन कर सुमित की त्यौरियां चढ़ गईं. उस ने दिव्या को भद्दी सी गाली देते हुए कहा, “साली, तू और तेरी मां अपने आप को समझती क्या है?”

दिव्या की जान खतरे में देख कर सडक़ चल रहे किसी राहगीर ने समूचे घटनाक्रम की सूचना माधोगंज थाने को दे दी.

दिव्या पर चली गोली से अक्षया की गई जान

इस से पहले कि पुलिस घटनास्थल पर पहुंच पाती, सुमित ने बिना एक पल गंवाए देशी कट्टे का रुख दिव्या की ओर कर गोली दाग दी, लेकिन दुर्भाग्यवश गोली दिव्या को न लग कर उस की सहेली अक्षया के सीने में जा धंसी. उस के शरीर से खून का फव्वारा फूट पड़ा. इस के बाद वे सभी युवक वहां से फरार हो गए. मदद के लिए आगे आए राहगीर अक्षया को बगैर वक्त गंवाए आटोरिक्शा में डाल कर जेएएच अस्पताल ले गए.

यह खबर समूचे शहर में आग की तरह फैल गई. देखते ही देखते घटनास्थल पर लोगों का जमघट लग गया. मृतका स्व. मेजर गोपाल सिंह व पूर्व डीजीपी सुरेंद्र सिंह यादव की नातिन थी और घटनास्थल के करीब ही सिकंदर कंपू में रहती थी.

इसी दौरान किसी परिचित ने फोन से इस घटना की खबर अक्षया के पापा शैलेंद्र सिंह को दे दी. शैलेंद्र सिंह को जैसे ही अपनी एकलौती बेटी के गोली लगने की खबर लगी, वह और उन की पत्नी विक्रांती देवी हैरत में पड़ गए. क्योंकि वह काफी विनम्र स्वभाव की थी तो किसी ने उसे गोली क्यों मार दी? अक्षया को गोली मारे जाने की खबर से समूचे सिकंदर कंपू इलाके में सनसनी फैल गई.

सरेराह बेटी को गोली मारे जाने की सूचना मिलने के बाद शैलेंद्र सिंह कार से पत्नी विक्रांती देवी को साथ ले कर अस्पताल के लिए निकले, लेकिन रास्ते में उन की कार सडक़ खुदी होने से फंस कर रह गई. इस के बाद वे अपने दोस्त की गाड़ी से अस्पताल पहुंचे, लेकिन बेटी का इलाज शुरू होने से पहले ही उस ने दम तोड़ दिया.

हत्यारे अपना काम करके हथियार लहराते हुए मौकाएवारदात से चले गए. तब माधोगंज थाने के एसएचओ महेश शर्मा पुलिस टीम के साथ मौकाएवारदात पर पहुंचे. वहां पहुंचने के बाद उन्होंने आसपास के लोगों से घटना के बारे में पूछताछ की. घटनास्थल पर 2 पुलिसकर्मियों को छोड़ कर वह जेएएच अस्पताल की ओर चल पड़े. वारदात की सूचना उन्होंने वरिष्ठ अधिकारियों को भी दे दी.

खबर पा कर एसपी राजेश सिंह चंदेल, एसपी (सिटी पूर्व, अपराध) राजेश दंडोतिया, एसपी (सिटी पश्चिम) गजेंद्र सिंह वर्धमान, सीएसपी विजय सिंह भदौरिया सहित क्राइम ब्रांच के इंसपेक्टर अमर सिंह सिकरवार भी अस्पताल पहुंच गए. वहां मौजूद मृतका के मम्मीपापा को ढांढस दिलाते हुए पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों ने उन्हें बताया कि हत्यारों पर ईनाम घोषित कर दिया गया है. सभी आरोपियों को जल्द से जल्द गिरफ्तार कर लिया जाएगा.

उधर डाक्टरों के द्वारा अक्षया को मृत घोषित करते ही एसएचओ महेश शर्मा ने जरुरी काररवाई निपटाने के बाद अक्षया की लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया और मृतका की 16 वर्षीया सहेली दिव्या शर्मा निवासी बारह बीघा सिकंदर कंपू की तहरीर पर सुमित रावत, उस के बड़े भाई उपदेश रावत सहित 2 अज्ञात युवकों के खिलाफ भादंवि की धारा 307,34 के तहत रिपोर्ट दर्ज कर लिया.

पुलिस ने आरोपियों को पकडऩे के लिए तत्काल संभावित स्थानों पर दबिश देनी शुरू कर दी थी, लेकिन हत्यारे हाथ नहीं लगे. क्योंकि आरोपी घर छोड़ कर फरार हो चुके थे. अनेक स्थानों पर असफलता मिलने के बावजूद पुलिस टीम हताश नहीं हुई.

पुलिस आरोपियों की तलाश बड़ी ही सरगर्मी से कई टीमों में बंट कर कर रही थी, लेकिन शहर के बहुचर्चित अक्षया हत्याकांड के हत्यारे पता नहीं किस बिल में जा कर छिप गए थे. अक्षया की हत्या हुए तकरीबन 24 घंटे होने को थे, लेकिन उस के हत्यारों को पकडऩे की बात तो दूर, पुलिस को उन का कोई सुराग तक नहीं मिला था.

12 जुलाई, 2023 की सुबह का समय था, तभी एक मुखबिर ने पुलिस को बताया कि अक्षया के जिन हत्यारों को वह तलाश रही है, उन में से एक आरोपी उपदेश रावत कोट की सराय डबरा हाईवे पर अपनी ससुराल में छिपा हुआ है. यह खबर मिलते ही क्राइम ब्रांच व थाना माधोगंज की टीम ने मुखबिर के द्वारा बताई जगह पर छापा मार कर मुख्य आरोपी सुमित रावत के बड़े भाई उपदेश रावत को गिरफ्तार कर लिया.

पुलिस ने अलगअलग राज्यों से किए 7 आरोपी गिरफ्तार

10 हजार रुपए के ईनामी उपदेश को पुलिस टीम ने थाने ला कर उस से अक्षया यादव की हत्या के संदर्भ में पूछताछ शुरू की. पहले तो उपदेश अपने आप को निर्दोष बता कर पुलिस टीम को गुमराह करने की कोशिश करता रहा, लेकिन जब पुलिस ने थोड़ी सख्ती की तो वह टूट गया.

उस ने पूछताछ में खुलासा किया कि इस हत्याकांड में 7 लोग शामिल थे. उक्त वारदात को अंजाम देने से पहले हत्या का षडयंत्रकारी सुमित रावत 6 जुलाई को अपने दोस्तों के साथ कंपू स्थित होटल में रुका था. होटल में 7 जुलाई को विवाद होने पर वह अपने दोस्तों के साथ लाज में ठहरने चला गया था. इस वारदात से पहले तक लाज में ही ठहरा था.

यहीं पर हिस्ट्रीशीटर बाला सुबे के साथ बैठ कर दिव्या और उस की मां करुणा की हत्या की उस ने योजना बनाई थी. इन दोनों की हत्या के लिए हथियारों का इंतजाम भी बाला सुबे ने ही कराया था.

पूछताछ में यह भी पता चला कि हत्या वाले दिन से ठीक एक दिन पहले इस हत्याकांड में उस का नाम न आए, इसलिए शातिरदिमाग बाला सुबे एक दिन पहले ही महाराष्ट्र के धुले में अपने रिश्तेदार के यहां चला गया था. धुले में सुमित रावत व उस के सहयोगी विशाल शाक्य की फरारी की व्यवस्था बाला सुबे ने ही कर रखी थी.

योजनानुसार उपदेश और उस के छोटे भाई सुमित अपने 2 साथियों विशाल शाक्य व मनोज तोमर एक बाइक पर तथा दूसरी बाइक पर राकेश सिकरवार और अशोक गुर्जर ने सवार हो कर मृतका व उस की सहेली की रेकी की थी.

आरोपियों के नामों का खुलासा होने पर पुलिस ने बिना देरी किए सातों आरोपियों की कुंडली खंगाली और सभी आरोपियों सुमित रावत, उपदेश रावत,विशाल शाक्य, मनोज तोमर, राकेश सिकरवार, अशोक गुर्जर सहित बाला सुबे को अलगअलग राज्यों से हिरासत में ले लिया. मुख्य आरोपी सुमित रावत से की पूछताछ के बाद अक्षया हत्याकांड की जो कहानी निकल कर सामने आई, वह कुछ इस तरह थी.

16 वर्षीय दिव्या ग्वालियर शहर के बारह बीघा सिकंदर कंपू के रहने वाले विवेक शर्मा की बेटी थी. दिव्या एक होनहार छात्रा थी. इन दिनों वह ग्यारहवीं की तैयारी कर रही थी. उस ने सुमित के बारे में अपनी मां से कुछ भी नहीं छिपाया था.

सुमित उस का 3 साल पुराना फेसबुक फ्रैंड अवश्य था, लेकिन अपराधी प्रवृत्ति का था. जैसे ही उसे सुमित की हकीकत पता चली तो उस ने उसे ब्लौक कर दिया. ब्लौक किए जाने के बाद सुमित दिव्या को फोन ही नहीं करने लगा, बल्कि उस ने प्यार का इजहार भी कर दिया.

सिरफिरा आशिक निकला सुमित रावत

दिव्या के लिए तो यह परेशानी वाली बात थी. वह उस से इसलिए नाराज थी कि पहले तो उस ने शरीफ युवक बन कर उस से दोस्ती की और जैसे ही सारी हकीकत सामने आई तो फोन पर प्यार का इजहार करने लगा. सुमित के इस दुस्साहस से नाराज दिव्या ने उसे जम कर लताड़ा और आइंदा कभी फोन न करने की हिदायत दी.

लेकिन सुमित नहीं माना. दिव्या द्वारा उस की काल रिसीव न करने पर वह उसे मैसेज करने लगा. इस से दिव्या और उस की मां करुणा को लगा कि सुमित अव्वल दरजे का बेशर्म और सिरफिरा लडक़ा है, यह मानने वाला नहीं है, इसलिए उन दोनों ने उस पर गौर करना बंद कर दिया और दिव्या अपनी पढ़ाई में मन लगाने लगी.

जब दिव्या सुमित की फोन काल और मैसेज की अनदेखी करने लगी तो सुमित उस की मम्मी करुणा शर्मा को फोन कर दिव्या से बात कराने की हठ करने लगा. करुणा शर्मा ने सख्ती दिखाते हुए बात कराने से उसे मना कर दिया तो कभी वह करुणा शर्मा के गुढ़ा स्थित सेंट जोसेफ स्कूल पहुंच कर हडक़ाने लगता था.

करुणा शर्मा पेशे से शिक्षक हैं, पति का निधन हो जाने के बाद से वह प्राइवेट स्कूल में नौकरी कर अपने बेटेबेटी का पालनपोषण कर रही हैं. उन के दिव्या के अलावा एक 12 वर्षीय बेटा है.

दिव्या काफी होशियार और समझदार लडक़ी थी. उस का पूरा ध्यान अपनी पढ़ाई और कैरियर पर रहता था. अपनी इसी इच्छा को पूरा करने के लिए उस ने अपनी सहेली के साथ लक्ष्मीबाई कालोनी में कोचिंग जौइन कर रखी थी और बारह बीघा सिकंदर कंपू क्षेत्र में सुकून के साथ अपनी मां और छोटे भाई के साथ रह रही थी.

दिव्या के साथ उस की मम्मी को भी धमकाना शुरू कर दिया सुमित ने

बेहद हंसमुख और खूबसूरत दिव्या का अधिकांश समय पढ़ाईलिखाई में बीतता था. दिन में फुरसत के वक्त वह सोशल मीडिया फेसबुक पर बिता देती थी. फेसबुक का उपयोग करते वक्त क्याक्या ऐहतियात बरतनी चाहिए, उस के बारे में भी उसे जानकारी थी. इसलिए अंजान लोगों और खासकर लडक़ों से वह दोस्ती नहीं करती थी. लेकिन सुमित के मामले में वह भूल कर बैठी, जिसे वक्त रहते उस ने सुधार लिया था.

हालांकि सुमित से चैटिंग के दौरान दिव्या ने अंतरंग बातें कर ली थीं, जो स्वाभाविक भी थी, क्योंकि वह तो उसे बेहद शरीफ समझ रही थी. उसे इस बात का कतई अहसास नहीं था कि इस मासूम से चेहरे के पीछे हैवानियत और वहशीपन छिपा है, लेकिन जैसे ही दिव्या ने सुमित से दूरी बनानी शुरू की तो उस ने उस की मम्मी के साथ बदसलूकी और उन्हें धमकाना शुरू कर दिया. तब दिव्या को अपनी ग़लती का अहसास हुआ.

सुमित दिव्या शर्मा के पीछे इस कदर हाथ धो कर पड़ा था कि उस की कारगुजारियों का खुल कर विरोध करने वाली करुणा शर्मा को भी उस ने नहीं छोड़ा था. सुमित ने उन के साथ भी सरेराह उसी रास्ते पर कट्टा अड़ा कर छेड़छाड़ की थी, जहां दिव्या की सहेली अक्षया यादव की हत्या को अंजाम दिया था.

तब अंत में दिव्या ने कंपू थाने में सुमित रावत के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी. उस की शिकायत पर पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर जेल भेज दिया था.

बात 18 नवंबर, 2022 की है. रोज की तरह सेंट जोसेफ स्कूल में पढ़ाने वाली शिक्षिका करुणा शर्मा अपने नाबालिग बेटे के साथ सुबह के समय स्कूल जा रही थीं. वह जैसे ही कंपू थाना क्षेत्र स्थित हनुमान सिनेमा तिराहे के निकट पहुंची ही थी कि तभी अचानक सुमित रावत आ धमका. उस ने उन का रास्ता रोक कर सरेराह बिना किसी संकोच के उन के साथ छेड़छाड़ शुरू कर दी.

मां के साथ सुमित रावत द्वारा की जा रही छेड़छाड़ को देख कर बेटा बुरी तरह से खौफजदा हो गया था. करुणा ने सुमित की इस हरकत का खुल कर विरोध किया तो वह बौखला गया. उस ने कट्टा निकाल कर करुणा के सीने से लगा दिया. सुमित खुलेआम कट्टे की नोंक पर राहगीरों के सामने करुणा के साथ छेड़छाड़ करता रहा, लेकिन कोई मदद के लिए आगे नहीं आया.

सुमित जान से मारने की धमकी दे कर कट्टा लहराते हुए भाग गया. इस घटना के बाद करुणा ने थाने पहुंच कर सुमित के खिलाफ भादंवि की धारा 341, 354, 345, 506 के तहत प्राथमिकी दर्ज करा दी. इस के बाद पुलिस ने सुमित को दबोच कर जेल भेज दिया था. करुणा शर्मा अभी तक उस घटना को नहीं भूल सकी हैं.

उधर अक्षया यादव हत्याकांड में संलिप्त सातों आरोपियों को अलगअलग जगहों से गिरफ्तार करने के बाद पुलिस ने उन की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त 2 देशी कट्टे और बाइक बरामद करने के बाद मुख्य अभियुक्त सुमित रावत , उपदेश रावत, विशाल शाक्य सहित बाला सुबे को न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया, जबकि अन्य तीन आरोपियों के नाबालिग होने की वजह से बाल न्यायालय में पेश किया गया, जहां से उन तीनों को बाल सुधार गृह भेज दिया गया है.

गौरतलब बात है कि सुमित रावत पर पुलिस के मुताबिक 2 हत्या सहित आधा दरजन प्रकरण दर्ज हैं. इसी क्रम में बाला सुबे पर 27 आपराधिक मामले, उपदेश रावत पर मारपीट और गोली चलाने के 7 मामले, विशाल शाक्य पर गोली चलाने का एक प्रकरण दर्ज है.

72 घंटे में पुलिस की आधा दरजन टीमों के द्वारा महाराष्ट्र, दिल्ली और धौलपुर से अक्षया यादव हत्याकांड में शामिल सातों आरोपियों को दबोचे जाने के बाद एडिशनल डीजीपी डी. श्रीनिवास वर्मा, एसपी राजेश सिंह चंदेल व एडिशनल एसपी राजेश डंडोतिया ने संयुक्त रूप से प्रैस कौन्फ्रैंस कर पत्रकारो को अपराधियों के बारे में जानकारी दी.

उन्होंने बताया कि मुख्य आरोपी सुमित रावत को जब पुलिस की टीम ग्वालियर ले कर आ रही थी, तभी उस ने घाटीगांव पनिहार के बीच लघुशंका के बहाने पुलिस का वाहन रुकवाया और वाहन से उतरते ही भागने का प्रयास किया. इस प्रयास में गिर जाने से उस के पैर में फ्रैक्चर हो गया था, अत: उसे अस्पताल में भर्ती कराया गया था. 17 जुलाई को अस्पताल ने उसे डिस्चार्ज कर दिया तो न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया गया है.

हकीकत यह थी कि सुमित दिव्या से एकतरफा प्यार करने लगा था और उस के इंकार करने से बुरी तरह बौखला गया था. फेसबुक की दोस्ती में ऐसे अपराध वर्तमान दौर में आम हो चले हैं, जिन का शिकार दिव्या जैसी भोलीभाली लड़कियां हो रही है. ऐसे में उन्हें और ज्यादा संभल कर रहने की जरूरत है.

दिव्या उस का पहला प्यार था और उस के ठुकरा देने से वह उस से नफरत करने लगा था. उस की इसी नफरत की आग ने बेकुसूर छात्रा अक्षया यादव की जान ले ली. हालांकि अक्षया की हत्या के बाद उस के मातापिता की शेष जिंदगी तो अब दर्द में ही निकलेगी.

ताउम्र ये सवाल चुभेगा कि हमारी लाडली बिटिया ही क्यों? लेकिन पुलिस के लिए यह सिर्फ एक केस नंबर रहेगा. कुछ समय बाद ये नंबर भी शायद ही किसी को याद रहे. बेटी के बदमाशों के हाथों मारे जाने के गम का बोझ तो मातापिता को ही उठाना होगा. Love Crime

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. कथा में मनोज तोमर, राकेश सिकरवार और अशोक गुर्जर परिवर्तित नाम हैं.

Parivarik Kahani : भाभी के प्यार में छोटे भाई ने रची साजिश फिर कर डाला बड़े भाई का कत्ल

Parivarik Kahani : दिव्यांग सिकंदर शरीर से कमजोर था पर मेहनतकश था. लेकिन इस मेहनत में वह पत्नी ललिता की खुशियों का गला घोंटता रहा. सिकंदर की यह लापरवाही ललिता पर भारी पड़ने लगी. इसी दौरान ललिता ने अपने कदम देवर जितेंद्र की तरफ बढ़ा दिए. यहीं से ललिता की ऐसी खतरनाक लीला शुरू हुई कि…

32 वर्षीया ललिता झारखंड के कोडरमा जिले के गांव दौंलिया की रहने वाली थी. उस की मां का नाम राजवती और पिता का नाम दुल्ली था. वह 4 भाइयों की इकलौती बहन थी. इसलिए घर में सभी की लाडली थी. 16 साल की होते ही उस पर यौवन की बहारें मेहरबान हो गई थीं. बाद में समय ऐसा भी आया कि वह किसी प्रेमी की मजबूत बांहों का सहारा लेने की कल्पना करने लगी. गांव के कई नवयुवक ललिता पर फिदा थे. ललिता भी अपनी पसंद के लड़के से स्वयं नैन लड़ाने लगी. इस के बाद तो दिन प्रतिदिन उस की आकांक्षाएं बढ़ने लगीं तो अनेक लड़कों के साथ उस के नजदीकी संबंध हो गए.

दुल्ली के कुछ शुभचिंतक उसे आईना दिखाने लगे, ‘‘तुम्हारी बेटी ने तो यारबाजी की हद कर दी. खुद तो खराब है, गांव के लड़कों को भी खराब कर रही है. लड़की जब दरदर भटकने की शौकीन हो जाए तो उसे किसी मजबूत खूंटे से बांध देना चाहिए. जितनी जल्दी हो सके, ललिता का विवाह कर दो, वरना तुम बहुत पछताओगे.’’

अपमान का घूंट पीने के बाद दुल्ली ने एक दिन ललिता को समझाया. उसी दौरान राजवती ने ललिता की पिटाई करते हुए चेतावनी दी, ‘‘आज के बाद तेरी कोई ऐसीवैसी बात सुनने को मिली तो मैं तुझे जिंदा जमीन में दफना दूंगी.’’

उस समय तो ललिता ने कसम खा कर किसी तरह अपनी मां को यकीन दिला दिया कि वह किसी लड़के से बात नहीं करेगी. ललिता बात की पक्की नहीं, बल्कि ख्वाहिशों की गुलाम थी. कुछ समय तक ललिता ने अपनी जवानी के अरमानों को कैद रखा, लेकिन अरमान बेलगाम हो कर उस के जिस्म को बेचैन करते तो वह अंकुश खो बैठी और फिर से लड़कों के साथ मटरगश्ती करने लगी. लेकिन यह मटरगश्ती अधिक दिनोें तक नहीं चल सकी. इस की वजह थी कि उस के पिता दुल्ली ने उस का रिश्ता तय कर दिया था. ललिता का विवाह कोडरमा जनपद के ही गांव करौंजिया निवासी काली रविदास के बेटे सिकंदर रविदास से तय हुआ था.

सिकंदर किसान था और काफी सीधासादा इंसान था. लेकिन एक पैर से दिव्यांग था. उस का एक छोटा भाई जितेंद्र रविदास था. सिकंदर की उम्र विवाह योग्य हो चुकी थी, इसलिए ललिता का रिश्ता सिकंदर के लिए आया तो काली रविदास मना नहीं कर सके. 12 साल पहले दोनों का विवाह बड़ी धूमधाम से हो गया. कालांतर में ललिता 3 बेटों की मां बन गई. विवाह के बाद से ही सिकंदर ललिता के साथ अलग मकान में रहने लगा था. सिकंदर का छोटा भाई जितेंद्र अपने मातापिता के साथ रहता था. सिकंदर पैर से दिव्यांग होने पर भी खेतों में दिनरात मेहनत करता रहता था. इसलिए जब वह घर पर आता तो थकान से चूर हो कर सो जाता था, जिस से ललिता की ख्वाहिशें अधूरी रह जाती थीं.

पति के विमुख होने से ललिता बेचैन रहने लगी. इस स्थिति में कुछ औरतों के कदम गलत रास्ते पर चल पड़ते हैं, ऐसा ही ललिता के साथ भी हुआ. अब उसे ऐसे शख्स की तलाश थी, जो उसे भरपूर प्यार दे और उस की भावनाओं की इज्जत करे. उस शख्स की तलाश में उस की नजरों को अधिक भटकना नहीं पड़ा. घर में ही वह शख्स उसे मिल गया, वह था जितेंद्र. सिकंदर जहां अपने भविष्य के प्रति गंभीर तथा अपनी जिम्मेदारियों को समझने वाला था, वहीं जितेंद्र गैरजिम्मेदार था. जितेंद्र का किसी काम में मन नहीं लगता था. जितेंद्र की निगाहें ललिता पर शुरू से थीं. वह देवरभाभी के रिश्ते का फायदा उठा कर ललिता से हंसीमजाक भी करता रहता था.  जितेंद्र की नजरें अपनी ललिता भाभी का पीछा करती रहती थीं.

दरअसल जितेंद्र ने ललिता को विवाह मंडप में जब पहली बार देखा था, तब से ही वह उस के हवास पर छाई हुई थी. अपने बड़े भाई सिकंदर के भाग्य से उसे ईर्ष्या होने लगी थी. वह सोचता था कि ललिता जैसी सुंदरी के साथ उस का विवाह होना चाहिए था. काश! ललिता उसे पहले मिली होती तो वह उसे अपनी जीवनसंगिनी बनाता और उस की जिंदगी इस तरह वीरान न होती, उस की जिंदगी में भी खुशियां होतीं. ललिता के रूप की आंच से आंखें सेंकने के लिए ही वह ललिता के घर के चक्कर लगाता. चूंकि वह घर का ही सदस्य था, इसलिए उस के आनेजाने और वहां हर समय बने रहने पर कोई शक नहीं करता था. जितेंद्र की नीयत साफ नहीं थी, इसलिए वह ललिता से आंखें लड़ा कर और हंसमुसकरा कर उस पर डोरे डाला करता था.

सिकंदर सुबह खेत पर जाता तो दीया बाती के समय ही लौट कर आता. जितेंद्र के दिमाग में अब तक ललिता के रूप का नशा पूरी तरह हावी हो गया था. इसलिए ललिता को पाने की चाह में उस के सिकंदर के घर के फेरे जरूरत से ज्यादा लगने लगे. ललिता घर पर अकेली होती थी, इसलिए जितेंद्र के पास मौके ही मौके थे. एक दिन जितेंद्र दोपहर के समय आया तो ललिता दोपहर के खाने में तहरी बनाने की तैयारी कर रही थी, जिस के लिए आलू व टमाटर काट रही थी. जितेंद्र ने खुशी जाहिर करते हुए कहा, ‘‘लगता है, आज अपने हाथों से स्वादिष्ट तहरी बनाने जा रही हो.’’

‘‘हां, खाने का इरादा है क्या?’’

‘‘मेरा ऐसा नसीब कहां, जो तुम्हारे हाथों का बना स्वादिष्ट खाना खा सकूं. नसीब तो सिकंदर भैया का है, जो आप जैसी रूपसी उन को पत्नी के रूप में मिलीं.’’

यह सुन कर ललिता मुसकान बिखेरती हुई बोली, ‘‘ठीक है, मुझ से विवाह कर के तुम्हारे भैया ने अपनी किस्मत चमका ली तो तुम भी किसी लड़की की मांग में सिंदूर भर कर अपनी किस्मत चमका लो.’’

‘‘मुझे कोई दूसरी नहीं, तुम पसंद हो. अगर तुम तैयार हो तो मैं तुम्हारे साथ अपना घर बसाने को तैयार हूं.’’

ललिता जितेंद्र के रोज हावभाव पढ़ती रहती थी. इसलिए जान गई थी कि जितेंद्र के दिल में उस के लिए नाजुक एहसास है. वह इस तरह चाहत जाहिर कर के उस से प्यार की सौगात मांगेगा, ललिता ने सोचा तक न था. अचानक सामने आई ऐसी असहज स्थिति से निपटने के लिए वह उस से आंखें चुराने लगी और कटी हुई सब्जी उठा कर रसोई की तरफ चल दी. तभी उस के बच्चे भी घर आ गए. प्यार में विघ्न पड़ता देख कर जितेंद्र भी वहां से उठ गया. उस दिन के बाद जब भी मौका मिलता, वह ललिता के पास पहुंच जाता और अपने प्यार का विश्वास दिलाता. धीरेधीरे ललिता को उस के प्यार पर यकीन होने लगा. उसे भी अपने प्रति जितेंद्र की दीवानगी लुभाने लगी थी. उस की दीवानगी को देख कर ललिता के दिल में उस के लिए प्यार उमड़ पड़ा. कल तक जो ललिता जितेंद्र के हवास पर छाई थी, अब जितेंद्र ललिता के हवास पर छा गया.

एक दिन जितेंद्र ने फिर से ललिता के सामने अपने प्यार का तराना सुनाया तो वह बोली, ‘‘जितेंद्र, मेरे प्यार की चाहत में पागल होने से तुम्हें क्या मिलेगा. मैं विवाहित होने के साथसाथ 3 बच्चों की मां भी हूं. इसलिए मुझे पाने की चाहत अपने दिल से निकाल दो.’’

‘‘यही तो मैं नहीं कर पा रहा, क्योंकि यह दिल पूरी तरह से तुम्हारे प्यार में गिरफ्तार है.’’

ललिता कुछ नहीं बोल सकी. जैसे उस के जेहन से शब्द ही मिट गए थे. जितेंद्र ने अपने हाथ उस के कंधे पर रख दिए, ‘‘भाभी, कब तक तुम अपने और मेरे दिल को जलाओगी. कुबूल कर लो, तुम्हें भी मुझ से प्यार है.’’

ललिता ने सिर झुका कर जितेंद्र की आंखों में देखा और फिर नजरें नीची कर लीं. प्रेम प्रदर्शन के लिए शब्द ही काफी नहीं होते, शारीरिक भाषा भी मायने रखती है. जितेंद्र समझ गया कि मुद्दत बाद सही, ललिता ने उस का प्यार कुबूल कर लिया है. उस ने ललिता के चेहरे पर चुंबनों की झड़ी लगा दी. ललिता भी सुधबुध खो कर जितेंद्र से लिपट गई. उस समय मन के मिलन के साथ तन की तासीर ऐसी थी कि ललिता का जिस्म पिघलने लगा.  इस के बाद दोनों ने अपनी हसरतें पूरी कर लीं. यह बात करीब 6 साल पहले की है. बाद में यह मौका मिलने पर चलता रहा.

13 मई, 2021 को दोपहर करीब 12 बजे सिकंदर दास लोचनपुर गांव के निजी कार चालक विजय दास के साथ चरवाडीह के संजय दास के यहां शादी समारोह में गया. सिकंदर और विजय दोनों कार से गए थे. कार विजय की थी. साढ़े 3 बजे शादी समारोह से दोनों निकल आए. लेकिन सिकंदर दास घर नहीं लौटा. उस के नंबर पर सिकंदर के चाचा ने फोन किया गया तो विजय ने उठाया. उस से पूछा गया कि सिकंदर कहां है तो विजय द्वारा अलगअलग ठिकाने का पता बताते हुए फोन काट दिया. इस के बाद सिकंदर की काफी तलाश की गई, वह नहीं मिला. 16 मई को ललिता ने कोडरमा थाने और एसपी को एक पत्र दिया, जिस में उस ने अपने पति सिकंदर दास के लापता होने की बात लिखी. सिकंदर के गायब होने का आरोप उस ने कार चालक विजय दास पर लगाया था.

चूंकि मामला चांदवारा थाना क्षेत्र के करौंजिया गांव का था. इसलिए कोडरमा पुलिस ने मामला चांदवारा पुलिस को ट्रांसफर कर दिया. चांदवारा थाने के थानाप्रभारी सोनी प्रताप सिंह ने पूरा मामला जान कर थाने में सिकंदर की गुमशुदगी दर्ज करा दी. थानाप्रभारी सोनी प्रताप ने 20 मई को जामू खाड़ी से विजय दास को गिरफ्तार कर लिया. सख्ती से पुलिस ने पूछताछ की तो विजय ने सिकंदर की हत्या करने की बात स्वीकारी. उस ने इस हत्या में सिकंदर की पत्नी ललिता और भाई जितेंद्र का भी हाथ होने की बात बताई. 20 मई को विजय के बाद ललिता और जितेंद्र को भी पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया. उन की निशानदेही पर रात में कोटवारडीह के बंद पड़े मकान से सिकंदर की लाश बरामद कर ली.

वह अर्द्धनिर्मित मकान सिकंदर का था. लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेजने के बाद चांदवारा थाने के थानाप्रभारी सोनी प्रताप सिंह अभियुक्तों को ले कर थाने आ गए. थाने में सख्ती से की गई पूछताछ में उन्होंने हत्या के पीछे की पूरी कहानी बयां कर दी. एक दोपहर को जितेंद्र और ललिता घर में बेधड़क रंगरलियां मना रहे थे कि अचानक किसी काम से सिकंदर खेतों से घर लौटा तो उस ने उन दोनों को रंगरलियां मनाते रंगेहाथों पकड़ लिया. यह देख कर उसे एक बार तो अपनी आंखों पर विश्वास ही नहीं हुआ कि उस की पत्नी ऐसा भी कर सकती है. वह ललिता पर खुद से भी ज्यादा विश्वास करता था. लेकिन हकीकत तो सामने उस की दगाबाजी की तरफ इशारा कर रही थी. दूसरी ओर सगा छोटा भाई जितेंद्र था, जिसे वह बहुत प्यार करता था, उस का खूब खयाल रखता था.

वही उस की गृहस्थी में आग लगा रहा था. अपनों की इस दगाबाजी से सिकंदर इतना आहत हुआ कि उस ने पूरे घर को सिर पर उठा लिया. ललिता और जितेंद्र ने भी उस से अपनी गलती की माफी मांग ली और भविष्य में ऐसा कुछ न करने का वादा किया तो सिकंदर शांत हुआ. जितेंद्र और ललिता ने उस समय तो अपनी जान छुड़ाने के लिए वादा कर दिया था, लेकिन वे इस पर अमल करने को कतई तैयार नहीं थे. लेकिन उन का भेद खुल चुका था, इसलिए मिलन में उन को बहुत ऐहतियात बरतनी पड़ती थी. वे चोरीछिपे फिर से मिल लेते थे. सिकंदर ने देखा तो उस ने विरोध किया. मामला घर की चारदीवारी से निकल कर गांव के लोगों तक पहुंच गया. पंचायत तक बैठ गई. भरी पंचायत में ललिता ने जितेंद्र के साथ रहने की बात कही. लेकिन फैसला हो न सका.

इस के बाद सिकंदर उन दोनों के बीच की एक बड़ी दीवार था, जिसे गिराए बिना वे हमेशा के लिए एक नहीं हो सकते थे. इसलिए ललिता और जितेंद्र ने सिकंदर की हत्या करने की ठान ली. सिकंदर दास ने विजय दास से लोन दिलाने के नाम पर डेढ़ लाख रुपए लिए थे. सिकंदर ने जब लोन नहीं दिलाया तो विजय उस से अपने दिए रुपए वापस मांगने लगा. सिकंदर रुपए देने में टालमटोल कर रहा था. ऐसे में ललिता ने जितेंद्र से बात कर के विजय को अपने प्लान में शामिल करने की बात कही. उस ने यह भी कहा कि सिकंदर का काम तमाम होने के बाद वह अकेले विजय को उस की हत्या में फंसवा देगी, जिस से वे दोनों बच जाएंगे.

जितेंद्र को उस की बात सही लगी. दोनों ने विजय से बात की तो वह सिकंदर की हत्या में उन दोनों का साथ देने को तैयार हो गया. 13 मई, 2021 को एक शादी समारोह से लौटने के बाद विजय सिकंदर को ले कर कोटवारडीह में उस के अर्धनिर्मित मकान पर ले गया. वहां ललिता और जितेंद्र पहले से मौजूद थे. तीनों ने मिल कर सिकंदर की गला दबा कर हत्या कर दी और लाश एक कमरे में डाल कर कमरा बंद कर दिया. लेकिन सिकंदर की हत्या में विजय को फंसाने की योजना ही ललिता और जितेंद्र को भारी पड़ गई. ललिता ने उस पर शक जताया तो पुलिस विजय को पकड़ कर उन तक पहुंच गई. तीनों अभियुक्तों के विरुद्ध हत्या व साक्ष्य छिपाने का मुकदमा दर्ज कर के चांदवारा पुलिस ने तीनों को कोर्ट में पेश करने के बाद जेल भेज दिया. Parivarik Kahani

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

hindi love stories : बचपन के प्यार को पाने की जिद में किया सब कुछ

hindi love stories : शाम का वक्त था. दिल्ली के वसंत कुंज स्थित फोर्टिस अस्पताल का पूरा स्टाफ अपनी ड्यूटी पर था. तभी एक युवक अस्पताल के स्ट्रेचर को ठेलता हुआ अस्पताल के इमरजेंसी वार्ड में पहुंचा और बदहवासी में बोला, ‘‘डाक्टर साहब, मेरी वाइफ ने जहर खा लिया है, इसे बचा लो वरना मैं जी नहीं सकूंगा.’’

उस की बात सुन कर अस्पताल के डाक्टरों ने उस युवती का चैकअप शुरू किया. उस की नब्ज और धड़कन गायब थीं. चैकअप के बाद डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया. डाक्टर द्वारा पूछे जाने पर मृतका के साथ आए युवक राहुल मिश्रा ने बताया कि उस ने औफिस से लौटने के बाद पूजा को फर्श पर बेसुध पड़े देखा, उस की बगल में ही एक सुसाइड नोट पड़ा था.

नोट को पढ़ने के बाद उस की समझ में आया कि पूजा ने जहर खा लिया है. इस के बाद वह पूजा को गाड़ी में डाल कर सीधे अस्पताल ले आया.

चूंकि मामला सुसाइड का था, इसलिए अस्पताल प्रशासन ने पूजा राय की मौत की सूचना इलाके के थाना किशनगढ़ को दे दी. थोड़ी ही देर में किशनगढ़ थाने की पुलिस वहां पहुंच गई. पूजा की लाश को अपने कब्जे में ले कर पुलिस राहुल मिश्रा से घटना के बारे में पूछताछ करने लगी.

पूछताछ के दौरान राहुल मिश्रा ने पुलिस को बताया कि वह गुड़गांव की एक बड़ी कंपनी में मैकेनिकल इंजीनियर के पद पर तैनात है. थोड़ी देर पहले जब वह फ्लैट में पहुंचा तो पूजा फर्श पर पड़ी थी और उस के बगल में सुसाइड नोट रखा था, जिस में उस ने सुसाइड करने की बात लिखी थी.

पूजा की लाश को पोस्टमार्टम के लिए सफदरजंग अस्पताल भेज कर थानाध्यक्ष राजेश मौर्य पूजा के पति राहुल मिश्रा के साथ उस के फ्लैट में पहुंचे. राहुल ने उन्हें पूजा का लिखा हुआ सुसाइड नोट सौंप दिया. कमरे का मुआयना करने के बाद थानाध्यक्ष राजेश मौर्य किशनगढ़ थाना लौट गए. पहली नजर में उन्हें यह मामला सुसाइड का ही लग रहा था.

उसी दिन यानी 16 मार्च, 2019 को किशनगढ़ थाने में सीआरपीसी 173 के तहत यह मामला दर्ज कर लिया गया. अगले दिन डाक्टरों की एक टीम ने पूजा राय का पोस्टमार्टम किया. उस का विसरा भी जांच के लिए रख लिया गया. इस दौरान थानाध्यक्ष राजेश मौर्य ने पूजा के मायके सिंदरी, झारखंड को इस घटना की सूचना दे कर उस के पिता सुरेश राय को दिल्ली बुला लिया.

सुरेश राय ने अपने दामाद पर आरोप लगाते हुए थानाध्यक्ष राजेश मौर्य से कहा, ‘‘मेरी बेटी पूजा ने सुसाइड नहीं किया है, बल्कि उस की हत्या की गई है.’’

राजेश पर आरोप लगने के बाद पुलिस ने 18 मार्च को 3 डाक्टरों के पैनल से पूजा का पोस्टमार्टम कराया. डाक्टरों ने पोस्टमार्टम के बाद उस के विसरा को जांच के लिए भेज दिया. करीब एक महीने के बाद 27 अप्रैल, 2019 को पूजा का पोस्टमार्टम तथा विसरा रिपोर्ट आ गई, जिस में उस के मरने का कारण उस के सिर में घातक चोट का लगना तथा जहर मिला जूस पीना बताया गया.

इस के बाद पुलिस ने 31 अप्रैल को पूजा राय की हत्या का मामला आईपीसी की धारा 302 के अंतर्गत दर्ज कर लिया. इस मामले की तफ्तीश थानाध्यक्ष राजेश मौर्य को सौंपी गई.

केस की जांच संभालते ही थानाध्यक्ष राजेश मौर्य ने अपने आला अधिकारियों को पोस्टमार्टम रिपोर्ट तथा केस में आए इस बदलाव से अवगत करा दिया. साउथ वेस्ट दिल्ली के डीसीपी देवेंद्र आर्य इस मामले में पहले से ही दिलचस्पी ले रहे थे.

उन्होंने केस का खुलासा करने के लिए एसीपी ईश्वर सिंह की निगरानी में एक टीम बनाई, जिस में थानाध्यक्ष राजेश मौर्य, इंसपेक्टर संजय शर्मा, इंसपेक्टर नरेंद्र सिंह चहल, एसआई मनीष, पंकज, एएसआई अजीत, कांस्टेबल गौरव आदि को शामिल किया गया.

थानाध्यक्ष ने उसी दिन मृतका के पति राहुल मिश्रा को थाने बुला कर उसे बताया कि पूजा ने आत्महत्या नहीं की, बल्कि किसी ने उस की हत्या की है. इसलिए वह इस मामले को सुलझाने में सहयोग करें.

थानाध्यक्ष की बात सुन कर राहुल को हैरानी हुई. वह बोला, ‘‘सर, पूजा की तो किसी से कोई दुश्मनी नहीं थी. ऐसे में भला उस की हत्या कौन कर सकता है? अगर ऐसा है तो मेरी पत्नी के हत्यारे का पता लगा कर उसे जल्द से जल्द पकड़ने की कोशिश करें.’’

‘‘चिंता मत करो, पुलिस अपना काम करेगी. बस आप जांच में सहयोग करते रहना.’’ थानाध्यक्ष ने कहते हुए राहुल से उस से और पूजा से मिलने आने वाले सभी लोगों के फोन नंबर ले कर सभी नंबरों की काल डिटेल्स निकलवा कर उन की बारीकी से जांच की. राहुल की काल डिटेल्स में एक फोन नंबर ऐसा मिला, जिस पर उस की ज्यादा बातें होती थीं.

वह नंबर पद्मा तिवारी का था, जो दिल्ली के मयूर विहार में रहती थी. राहुल ने बताया कि पद्मा उस की दोस्त है. घटना वाले दिन भी पद्मा ने शाम के वक्त राहुल के मोबाइल पर फोन कर उस से काफी देर तक बातें की थीं. इस से दोनों ही पुलिस के शक के दायरे में आ गए.

इस के बाद थानाध्यक्ष राजेश मौर्य ने राहुल के फ्लैट पर पहुंच कर वहां आसपड़ोस में रहने वालों से पूछताछ की तो पता चला कि 16 मार्च, 2019 की सुबह पद्मा तिवारी पूजा से मिलने उस के फ्लैट पर आई थी. इस के बाद किसी ने पूजा को फ्लैट से बाहर निकलते नहीं देखा था. अलबत्ता शाम के वक्त राहुल पूजा को बेहोशी की हालत में ले कर फोर्टिस अस्पताल गया था.

थानाध्यक्ष को अब मामला कुछकुछ समझ में आने लगा था, लेकिन उस वक्त उन्होंने राहुल मिश्रा से ऐसा कुछ नहीं कहा जिस से उसे पता चले कि उन्हें उस के ऊपर शक हो गया है.

राहुल से पूछताछ के बाद जब वह अपनी टीम के साथ वहां से चलने को हुए तो राहुल को फिर से थाने में आने का आदेश दिया. इस के अलावा उन्होंने राहुल की दोस्त पद्मा तिवारी को भी फोन कर उसे किशनगढ़ थाने में पहुंच कर मामले की जांच में सहयोग करने के लिए कह दिया.

जब राहुल और पद्मा किशनगढ़ थाने में पहुंचे तो उन दोनों से उन की काल डिटेल्स तथा उन के द्वारा पूर्व में दिए गए बयानों में आ रहे विरोधाभासों के आधार पर अलगअलग पूछताछ की गई तो उन के बयानों में फिर से काफी विरोधाभास नजर आया.

सुसाइड नोट की राइटिंग की जांच के लिए पुलिस ने पद्मा की हैंडराइटिंग की जांच की. इस जांच में पुलिस को सुसाइड नोट की राइटिंग और पद्मा की हैंडराइटिंग काफी हद तक एक जैसी लगी.

तीखे पुलिसिया सवालों से आखिर पद्मा टूट गई. उस ने पूजा की हत्या करने का जुर्म स्वीकार कर लिया. फिर राहुल ने भी मान लिया कि पूजा की हत्या पूरी तरह सुनियोजित थी. इतना ही नहीं, घटना वाले दिन पद्मा ने उस के मोबाइल पर फोन कर उसे पूजा की हत्या की जानकारी दी थी.

उन्होंने पूजा की हत्या क्यों की, इस बारे में जब उन से विस्तार से पूछताछ की गई तो पूजा राय की हत्या के पीछे जो तथ्य उभर कर सामने आए, वह बचपन के प्यार को पाने की जिद की एक हैरतअंगेज कहानी थी.

कहा जाता है कि बचपन की दोस्ती और स्कूल के दिनों का प्यार भुलाए नहीं भूलता. और जब शादी के बाद वही बचपन का प्यार उस के शादीशुदा जीवन में अचानक सामने आ कर खड़ा हो जाए तो जिंदगी किस दोराहे या चौराहे पर पहुंचेगी, यह अनुमान लगाना आसान नहीं होता. कुछ ऐसा ही हुआ 32 वर्षीय मैकेनिकल इंजीनियर राहुल मिश्रा और उस के बचपन की दोस्त 33 वर्षीय एमबीए पद्मा तिवारी के साथ.

राहुल मिश्रा अपने पिता रामदेव मिश्रा के साथ झारखंड के शहर सिंदरी में रहता था. वह वहां के डिनोबली स्कूल में पढ़ता था. पद्मा तिवारी भी उस के क्लास में थी. पद्मा तिवारी के मातापिता भी सिंदरी में रहते थे. दोनों बचपन से ही एकदूसरे के दोस्त थे. उम्र बढ़ने के साथ उन की दोस्ती प्यार में बदल गई.

12वीं पास करने के बाद दोनों आगे की पढ़ाई के लिए न चाहते हुए भी एकदूसरे से बिछड़ गए, क्योंकि राहुल मिश्रा ने ग्वालियर से मैकेनिकल इंजीनियरिंग की डिग्री ली थी और सन 2010 में गुड़गांव स्थित एक कंपनी में उस की नौकरी लग गई. राहुल अपनी नौकरी में व्यस्त था. उस का पद्मा तिवारी से एक तरह से संपर्क टूट गया था.

सन 2015 में राहुल मिश्रा के स्कूल के दोस्तों ने एक वाट्सऐप ग्रुप बनाया, जिस में राहुल मिश्रा और पद्मा तिवारी का नाम भी शामिल था. इस ग्रुप के द्वारा पद्मा ने राहुल मिश्रा से मोबाइल फोन पर संपर्क किया. चूंकि उन की काफी दिनों बाद बातचीत हुई थी, इसलिए वे बहुत खुश हुए.

बातचीत से पता चला कि पद्मा ने नोएडा में रह कर एमबीए किया था. उस के बाद उसे नोएडा की एक मल्टीनैशनल कंपनी में नौकरी मिल गई थी. इस समय वह नोएडा में नौकरी कर रही थी, जहां उसे अच्छी खासी तनख्वाह मिलती थी. इस के बाद दोनों लगातार एकदूसरे से फोन पर बातें करने लगे.

इस से उन के स्कूल के दिनों का प्यार फिर से जीवित हो गया. अब दोनों ही अच्छी सैलरी ले रहे थे, इसलिए उन का जब मन होता, वे इधर उधर घूम कर दिल की बातें कर लेते थे. उन की नजदीकियां उस मुकाम पर पहुंच चुकी थीं कि अब दोनों को कोई जुदा नहीं कर सकता था.

लेकिन होनी को कुछ और ही मंजूर था. सन 2017 में जब राहुल मिश्रा के घर में उस की शादी की बात चली तो उन लोगों ने अपनी बहू के रूप में सिंदरी की ही रहने वाली पूजा राय को पसंद कर लिया. इस पर राहुल ने अपने घर वालों को बताया कि वह सिंदरी की रहने वाली सहपाठी पद्मा तिवारी से प्यार करता है और उसी से शादी करना चाहता है.

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                                                 राहुल और पूजा

राहुल ने घर वालों को यह भी बताया कि एमबीए करने के बाद पद्मा नोएडा की एक कंपनी में ऊंचे पद पर नौकरी कर रही है. लेकिन राहुल के पिता रामदेव मिश्रा ने राहुल की बात को हलके में लिया और उस की बात अनसुनी करते हुए पूजा से ही उस की शादी पक्की कर दी.

बनने लगी हत्या की योजना

राहुल को इस बात का दुख हुआ. वह अब ऐसा उपाय सोचने लगा कि किसी तरह उस की पूजा से शादी टूट जाए. उस ने तय कर लिया कि वह पूजा से मिल कर बता देगा कि उस का पद्मा के साथ अफेयर चल रहा है.

एक दिन वह पूजा राय के पास पहुंचा और अपने व पद्मा तिवारी के बीच सालों से चले आ रहे अफेयर की बात यह सोच कर बता दी कि यह सुन कर शायद वह उस से शादी करने से मना कर देगी. लेकिन पूजा समझदार लड़की थी.

वह राहुल की इस बात पर नाराज नहीं हुई बल्कि उसे उस की साफगोई अच्छी लगी कि राहुल दिल का साफ है जो उस ने यह बात उसे बता दी. यानी अपने होने वाले पति के मुंह से उस के पुराने अफेयर के बारे में जानकारी मिलने के बाद भी पूजा उस से शादी के लिए तैयार थी.

अप्रैल, 2017 में राहुल मिश्रा की शादी पूजा राय से हो गई. शादी के बाद राहुल पूजा को ले कर दिल्ली आ गया और साउथ दिल्ली के किशनगढ़ इलाके में किराए का एक फ्लैट ले कर रहने लगा. राहुल से शादी कर के पूजा बहुत खुश थी.

उस ने तय कर लिया था कि वह राहुल को इतना प्यार देगी कि वह अपना पिछला प्यार भूल जाएगा. पूजा ने राहुल की सेवा करने में सचमुच कोई कसर नहीं छोड़ी. यहां तक कि महंगाई के कारण घर चलाने के लिए जब अधिक रुपयों की जरूरत महसूस हुई तो उस ने भी नौकरी करने का फैसला कर लिया.

उधर राहुल पूजा से शादी के बाद भी पद्मा को अपने दिल से नहीं निकाल सका. पद्मा का हाल भी राहुल की तरह ही था. दोनों वक्त निकाल कर एकदूसरे से मिलतेजुलते रहे. पद्मा मयूर विहार में एक किराए के फ्लैट में रहती थी.

अक्तूबर 2018 में जब पूजा की नौकरी करने के लिए उस का बायोडाटा तैयार करने की बात आई तो राहुल ने इसी बहाने पद्मा को अपने फ्लैट पर बुला लिया. पद्मा ने पूजा का बायोडाटा तैयार कर दिया. आगे चल कर पूजा को भी गुड़गांव की एक मल्टीनैशनल कंपनी में नौकरी मिल गई. इस के बाद पद्मा किसी न किसी बहाने उस के यहां आती रही.

जब पद्मा का राहुल के यहां ज्यादा आनाजाना बढ़ गया तो पूजा को पद्मा और राहुल के रिश्तों पर शक हो गया. उसे पद्मा का बारबार फ्लैट पर आना अखरने लगा. तब पूजा उस के साथ रूखा व्यवहार करने लगी.

इतना ही नहीं, वह पद्मा को हंसीमजाक के दौरान राहुल को ले कर कुछ ऐसी बात कर देती जिसे सुन कर वह तिलमिला कर रह जाती थी. पर पद्मा दिल के हाथों मजबूर थी. वह राहुल को बहुत चाहती थी. इसलिए उस ने राहुल के फ्लैट पर आना नहीं छोड़ा. इसलिए पूजा के व्यंग्य करने के बाद भी वह उस के यहां आती रही.

पद्मा ने ही ली पूजा की जान

लेकिन जब पूजा ने उस के और राहुल के रिश्तों को ले कर जलीकटी सुनानी जारी रखीं तो एक दिन उस ने यह बात राहुल को बताई और इस का कोई हल निकालने को कहा. पद्मा की बात सुन कर राहुल को अपनी पत्नी पर बहुत गुस्सा आया. उसी दिन दोनों ने मिल कर निश्चय कर लिया कि वे इस के बदले पूजा को जरूर सबक सिखाएंगे. दोनों ने इस के लिए एक योजना भी बना ली.

16 मार्च, 2019 को शनिवार का दिन था. योजना के अनुसार राहुल सुबह तैयार हो कर गुड़गांव स्थित अपने औफिस चला गया. चूंकि पूजा की उस दिन छुट्टी थी, इसलिए वह फ्लैट पर अकेली आराम कर रही थी. राहुल के जाने के कुछ देर बाद पद्मा पूजा से मिलने फ्लैट पर पहुंची तो पूजा ने उस से कहा कि उसे किसी काम से बाहर निकलना है, इसलिए वह उसे अधिक समय नहीं दे पाएगी.

इस पर पद्मा ने उस से कहा, ‘‘कुछ देर बातचीत कर के मैं चली जाऊंगी तो तुम चली जाना.’’

पद्मा अपने साथ 2 गिलास फ्रूट जूस ले कर आई थी. उस ने दोनों गिलास पूजा के सामने टेबल पर रख दिए. उस वक्त काम करने वाली आया घर का कामकाज निपटा रही थी. इस बीच पूजा ने पद्मा के साथ नाश्ता किया. जब आया अपना काम खत्म कर वहां से चली गई तो पद्मा ने पूजा से जूस पी लेने के लिए कहा.

जैसे ही पूजा ने जूस पीने के लिए गिलास उठाना चाहा तो पद्मा ने कहा कि वह उस के लिए एक गिलास पानी ले आए. यह सुन कर पूजा जूस का गिलास वहीं छोड़ कर पानी लाने के लिए चली गई.

पूजा के जाते ही पद्मा ने अपने कपड़ों में छिपा कर लाया जहरीला पदार्थ उस के गिलास में डाल कर मिला दिया. पूजा किचन से पानी का गिलास ले कर लौटी और गिलास पद्मा को दे दिया. इस के बाद पूजा ने पद्मा द्वारा लाया जूस का गिलास उठाया और धीरेधीरे पूरा जूस खत्म कर दिया.

जूस पीने के थोड़ी देर बाद अचानक उस की तबीयत खराब होने लगी. उल्टी और पेट दर्द की शिकायत होने पर उस ने फ्लैट से बाहर निकलना चाहा लेकिन पद्मा ने उसे पकड़ कर दबोच लिया. पूजा के बेहोश होने पर पद्मा ने उस का सिर बारबार फर्श से पटका ताकि उस के जीवित रहने की संभावना न रहे.

पूजा की हत्या करने के बाद पद्मा ने फ्लैट को अच्छी तरह साफ किया और पेपर के बने उन दोनों गिलासों को अपने साथ ले कर वहां से मयूर विहार अपने कमरे पर लौट आई. शाम को उस ने अपने प्रेमी राहुल मिश्रा को फोन कर बता दिया कि आज उस ने उस की पत्नी पूजा का किस्सा तमाम कर दिया है.

साथ ही उस ने यह भी बताया कि उस ने पूजा के पास में सुसाइड नोट भी लिख कर छोड़ दिया है, जिसे पढ़ कर पुलिस और तमाम लोग यह समझेंगे कि पूजा ने किसी कारण परेशान हो कर सुसाइड कर लिया है.

शाम के वक्त राहुल औफिस से अपने फ्लैट पर पहुंचा तो योजना के अनुसार पूजा की डैडबौडी को ले कर वसंत कुंज स्थित फोर्टिस अस्पताल पहुंचा और वहां डाक्टर से नाटक करते हुए अपनी पत्नी की जान बचा लेने की गुहार लगाई.

लेकिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट में हेड इंजरी तथा पूजा को जूस में जहर देने की बात सामने आई, जिस से राहुल और पद्मा द्वारा रचे गए पूजा के नकली सुसाइड के रहस्य से पदा हटा दिया.

अगले दिन पुलिस ने दोनों आरोपियों को अदालत में पेश कर दिया गया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. hindi love stories

Crime Stories : पति की धमकी से तंग आकर पत्नी ने कराया पति का कत्ल

Crime Stories : पति पत्नी के बीच के झगड़े और मतभेद आम सी बात है. वक्त के साथ सब ठीक हो जाता है. लेकिन अगर हमदर्द बन कर कोई तीसरा दोनों के बीच कूद जाए तो परिणाम भयावह…

वह 26 जून, 2020 की मध्यरात्रि थी. समय सुबह के 3 बजकर 20 मिनट. उत्तराखंड के जिला हरिद्वार की लक्सर कोतवाली के कोतवाल हेमेंद्र सिंह नेगी देहात क्षेत्र के गांवों में गस्त कर रहे थे, तभी उन के मोबाइल की घंटी बजी. नेगी ने मोबाइल स्क्रीन देखी, कोई अज्ञात नंबर था. इतनी रात में कोई यूं ही फोन नहीं करता. नेगी ने मोबाइल काल रिसिव की. दूसरी ओर कोई अपरीचित था, जिस की आवाज डरीसहमी सी लग रही थी. हेमेंद्र सिंह के परिचय देने पर उस ने कहा, ‘‘सर, मेरा नाम अभिषेक है और मैं आप के थाना क्षेत्र के गांव झीबरहेडी से बोल रहा हूं.

मुझे आप को यह सूचना देनी थी कि आधा घंटे पहले बदमाशों ने मेरे चचेरे भाई प्रदीप की हत्या कर दी है.’’

‘‘हत्या, कैसे? पूरी बात बताओ’’

‘‘सर मुझे हत्यारों की तो कोई जानकारी नहीं है, क्योंकि उस वक्त मैं गहरी नींद में था. करीब आधा घंटे पहले मेरे मकान की दीवार से किसी के कूदने की आवाज आई थी. मुझे लगा कि गांव में बदमाश आ गए हैं. मैं तुरंत नीचे आ कर दरवाजा बंद कर के लेट गया.

‘‘थोड़ी देर बाद चचेरे भाई प्रदीप के कराहने की आवाज आई तो मैं बाहर आया. मैं ने देखा कि प्रदीप लहूलुहान पड़ा था, उस के पेट, छाती व सिर पर धारदार हथियारों से प्रहार किए गए थे.’’ अभिषेक बोला.

‘‘फिर?’’

‘‘सर, फिर मैं ने अपने घरवालों को जगाया और प्रदीप को  तत्काल अस्पताल ले जाने को कहा. लेकिन हम प्रदीप को अस्पताल ले जाते, उस ने दम तोड़ दिया.’’ अभिषेक बोला.

‘प्रदीप किसान था?’ नेगी ने पूछा

‘नहीं सर प्रदीप स्थानीय श्री सीमेंट कंपनी में ट्रक चलाता था और गत रात ही वह देहरादून से लौटा था. रात को वह अकेला ही अपने घर की छत पर सो रहा था.’ अभिषेक बोला.

‘‘प्रदीप की गांव में किसी से कोई रंजिश तो नहीं थी?’ नेगी ने पूछा.

‘‘नहीं सर वह तो हंसमुख स्वभाव का था और गांव के सभी बिरादरी के लोग उस की इज्जत करते थे. प्रदीप ज्यादातर अपने काम से काम रखने वाला आदमी था.’’ अभिषेक बोला.

‘‘ठीक है अभिषेक, पुलिस 15 मिनट में घटनास्थल पर पहुंच जाएगी.’’

कोतवाल हेमेंद्र नेगी ने फोन डिस्कनेक्ट कर दिया. नेगी ने सब से पहले लक्सर कोतवाली की चेतक पुलिस को गांव झीबरहेड़ी में प्रदीप के घर पहुंचने का आदेश दिया. फिर इस हत्या के बारे में सीओ राजन सिंह, एसपी देहात स्वप्न किशोर सिंह और वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक सेंथिल अबुदई कृष्णाराज एस. को सूचना दी. नेगी गांव झीबरहेड़ी की ओर चल दिए. 20 मिनट बाद नेगी प्रदीप के घर पर पहुंच गए. उस समय सुबह के 4 बज गए थे और अंधेरा छंटने लगा था. प्रदीप के घर में उस का शव आंगन में चादर से ढका रखा था, आसपास गांव वालों की भीड़ जमा थी. नेगी व चेतक पुलिस के सिपाहियों ने सब से पहले ग्रामीणों को वहां से हटाया. इस के बाद शव का निरीक्षण किया. हत्यारों ने प्रदीप की हत्या बड़ी बेरहमी से की थी.

बदमाशों ने प्रदीप का पूरा शरीर धारदार हथियारों से गोद डाला था. जब नेगी ने प्रदीप के बीबी बच्चों की बाबत, पूछा तो घर वालों ने बताया कि कई सालों से प्रदीप की बीबी ममता बच्चों के साथ अपने मायके बादशाहपुर में रहती है. घरवालों से नंबर ले कर नेगी ने ममता को प्रदीप की हत्या की जानकारी दी. इस के बाद नेगी ने गांव वालों से प्रदीप की दिनचर्या के बारे में जानकारी ली और पूछा कि उस की गांव में किसी से दुश्मनी तो नहीं थी. नेगी का अनुमान था कि प्रदीप की हत्या का कारण रंजिश भी हो सकता है, क्योंकि यह मामला लूट का नहीं लग रहा था.

नेगी ग्रामीणों से प्रदीप के बारे में जानकारी जुटा ही रहे थे, कि सीओ राजन सिंह, एसपी देहात एसके सिंह और वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक सेंथिल अबुदई कृष्णाराज एस भी पहुंच गए. तीनों अधिकारियों ने वहां मौजूद ग्रामीणों से प्रदीप की हत्या के बारे में पूछताछ की. इस के बाद अधिकारियों ने कोतवाल नेगी को प्रदीप के शव को पोस्टमार्टम के लिए जेएन सिन्हा स्मारक राजकीय अस्पताल रुड़की भेजने के निर्देश दिए और चले गए. शव को अस्पताल भेज कर नेगी थाने लौट आए. उन्होंने प्रदीप के भाई सोमपाल की ओर से धारा 302 के तहत हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया और मामले की जांच शुरू कर दी. प्रदीप की हत्या का मामला थोड़ा पेचीदा था, क्योंकि न तो प्रदीप का कोई दुश्मन था और न लूट हुई थी.

अगले दिन 27 जून को एसपी देहात एसके सिंह ने इस केस का खुलासा करने के लिए लक्सर कोतवाली में मीटिंग की, जिस में सीओ राजन सिंह, कोतवाल हेमेंद्र नेगी, थानेदार मनोज नोटियाल, लोकपाल परमार, आशीष शर्मा, यशवीर नेगी सहित सीआईयू प्रभारी एनके बचकोटी, एएसआई देवेंद्र भारती व जाकिर आदि शामिल हुए. एसके सिंह ने सीओ राजन सिंह के निर्देशन में इन सभी को जल्द से जल्द प्रदीप हत्याकांड का खुलासा करने के निर्देश दिए. निर्देशानुसार सीआईयू प्रभारी एनके बचकोटी ने झीबरहेड़ी में घटी घटना का साइट सैल डाटा उठाया. साथ ही रात में हत्या के समय आसपास चले मोबाइलों की काल डिटेल्स खंगाली. इस के बाद पुलिस द्वारा उन मोबाइल नंबरों की पड़ताल की गई.

साथ ही बचकोटी ने सीआईयू के एएसआई देवेंद्र भारती व जाकिर को प्रदीप हत्याकांड की सुरागरसी करने के लिए सादे कपड़ों में झीबरहेड़ी भेजा. सिपाहियों कपिलदेव व महीपाल को उन्होंने प्रदीप की पत्नी ममता के बारे में जानकारी जुटाने के लिए उस के मायके बादशाहपुर भेजा था. इस का परिणाम यह निकला कि 28 जून, 2020 की शाम को पुलिस और सीआईयू के हाथ प्रदीप हत्याकांड के पुख्ता सबूत लग गए. पुलिस को जो जानकारी मिली, वह यह थी कि मृतक प्रदीप के साथ अमन भी ट्रक चलाता था. वह गांव हरीपुर, जिला सहारनपुर का रहने वाला था. इसी के चलते वह प्रदीप के घर आताजाता था. प्रदीप की पत्नी ममता का चालचलन ठीक नहीं था, इस वजह से पति पत्नी में अकसर मनमुटाव रहता था.

घर में आनेजाने से अमन की आंखे ममता से लड़ गई थीं और वे दोनों प्रदीप की गैरमौजूदगी में रंगरलियां मनाने लगे थे. गत वर्ष जब प्रदीप को ममता व अमन के अवैध संबंधों की जानकारी हुई तो उस ने दोनों को धमकाया भी, मगर 42 वर्षीया ममता अपने 23 वर्षीय प्रेमी अमन को छोड़ने के लिए तैयार नहीं थी. इस विवाद के चलते वह अपने बच्चों के साथ मायके बादशाहपुर जा कर रहने लगी थी. उस के जाने के बाद प्रदीप अपने झीबरहेडी स्थित मकान पर अकेला रहने लगा. 29 जून, 2020 को पुलिस को प्रदीप की पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिल गई, जिस में उस की मौत का कारण शरीर पर धारदार हथियारों के प्रहारों से ज्यादा खून बहना बताया गया था.

यह जानकारी मिलने के बाद पुलिस को अमन पर शक हो गया. दूसरी ओर सीआईयू प्रभारी एनके बचकोटी को जिस मोबाइल नंबर पर शक था, वह अमन का ही नंबर था. सीआईयू ने अमन की गिरफ्तारी के लिए जाल बिछा दिया था. अमन को शाम को ही पुलिस ने लक्सर क्षेत्र से उस समय गिरफ्तार कर लिया, जब वह ममता से मिलने जा रहा था. अमन को पकड़ने के बाद पुलिस उसे कोतवाली ले आई. इस के बाद एसपी देहात एसके सिंह व सीओ राजन सिंह ने उस से प्रदीप की हत्या के बारे में सख्ती से पूछताछ की. अमन ने पुलिस को जो जानकारी दी, वह इस प्रकार है—

अमन ने अपना जुर्म कबूल करते हुए बताया कि वह प्रदीप के साथ गत 3 वर्षो से ट्रक चलाता था. उस का प्रदीप के घर आना जाना होता रहता था. प्रदीप की बीवी ममता पति के रूखे व्यवहार से परेशान रहती थी. जब उस ने ममता से प्यार भरी बातें करनी शुरू कर दीं, तो वह भी उसी टोन में बतियाने लगी. तनीजा यह हुआ कि उस के ममता से अवैध संबंध बन गए. यह जानकारी मिलने पर प्रदीप ने मुझे धमकी दी, जिस से मैं बुरी तरह डर गया. इस के बाद उस ने प्रदीप द्वारा दी गई धमकी की जानकारी ममता को दी. तब उस ने ममता की सहमति से प्रदीप की हत्या की योजना बनाई. 26 जून को उस ने प्रदीप के बेटे शकुन को फोन किया और उस से प्रदीप के बारे में पूछा.

शकुन के मुताबिक प्रदीप उस शाम घर पर ही था. रात 12 बजे मैं छुरी ले कर झीबरहेडी की ओर निकल गया. प्रदीप के मकान के पीछे खेत थे रात करीब 2 बजे वह खेतों की ओर से मकान पर चढ़ गया. उस समय प्रदीप मकान की छत पर अकेला बेसुध सोया पड़ा था. उसे देख कर उस का खून खौल गया. इस के बाद उस ने पूरी ताकत लगा कर प्रदीप के गले पर वार करने शुरू कर दिए. उस ने प्रदीप के गले, सिर व पेट पर कई वार किए. इस के बाद वह मकान की छत से कूद कर, वापस लक्सर आ गया. लक्सर से बादशाहपुर ज्यादा दूर नहीं था. इसलिए लक्सर पुलिस ममता को भी कोतवाली ले आई. जब ममता ने अमन को पुलिस हिरासत में देखा, तो वह सारा माजरा समझ गई और पुलिस के सामने अपने पति की हत्या का षडयंत्र रचने में अपनी संलिप्तता मान कर ली.

इस के बाद एसपी देहात एसके सिंह ने प्रदीप हत्याकांड का खुलासा होने और 2 आरोपियों के गिरफ्तार होने की जानकारी वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक हरिद्वार सेंथिल अबुदई कृष्णाराज को दी. 30 जून, 2020 को एसपी देहात एसके सिंह ने लक्सर कोतवाली में प्रैसवार्ता के दौरान मीडियाकर्मियों को प्रदीप हत्याकांड के खुलासे की जानकारी दी. इस के बाद पुलिस ने अमन व ममता को कोर्ट में पेश कर के जेल भेज दिया. 3 बच्चों की मां होने के बाद भी ममता अमन के प्रेम में इस कदर डूबी कि उस ने पति की हत्या अपने प्रेमी से कराने में कोई संकोच नहीं किया, बल्कि इस हत्याकांड को छिपाए रखा.

प्रदीप से ममता की शादी वर्ष 2001 में हुई थी. प्रदीप का 18 वर्षीय बेटा सन्नी हैदराबाद में कोचिंग कर रहा है और 17 साल की बेटी आंचल और 12 साल का बेटा शकुन मां ममता के साथ बादशाहपुर में रहते थे.

(पुलिस सूत्रों पर आधारित)

Kanpur Crime : कुंभ स्नान ले जाने के बहाने पत्नी और बेटे का कर दिया कत्ल

Kanpur Crime : सुमन ने अपने मातापिता की इज्जत की परवाह न कर के अमित वर्मा से प्रेम विवाह किया था. लेकिन जब अमित वर्मा की जिंदगी में खुशी आई तो उसे प्रेमिका से पत्नी बनी सुमन आंखों में खटकने लगी. आखिरकार…

31 जुलाई, 2019 का दिन था. सुबह के  करीब 10 बज रहे थे. कानपुर जिले की एसपी (साउथ) रवीना त्यागी अपने कार्यालय में मौजूद थीं, तभी एक अधेड़ उम्र का व्यक्ति उन के पास आया. वह बेहद मायूस नजर आ रहा था. उस के माथे पर चिंता की लकीरें दिखाई दे रही थीं. वह हाथ जोड़ कर बोला, ‘‘साहब, मेरा नाम मकसूद प्रसाद विश्वकर्मा है. मैं नौबस्ता थाने के राजीव विहार मोहल्ले में रहता हूं. मेरी बेटी सुमन ने करीब 8 साल पहले राजेश वर्मा के बेटे अमित वर्मा के साथ प्रेम विवाह किया था. चूंकि बेटी ने यह काम हम लोगों की मरजी के खिलाफ किया था, इसलिए हम ने उस से नाता तोड़ लिया था.

बच्चों के लिए मांबाप का दिल बहुत बड़ा होता है. 2 साल पहले जब वह घर लौटी तो हमें अच्छा ही लगा. तब से बेटी ने हमारे घर आनाजाना शुरू कर दिया था. उस के साथ उस का बेटा निश्चय भी आता था. उस ने हमें बताया था कि वह रवींद्रनगर, नौबस्ता में अमित वर्मा के साथ रह रही है. पर दिसंबर, 2018 से वह हमारे घर नहीं आई. हम ने उस के मोबाइल फोन पर बात करने की कोशिश की लेकिन उस का मोबाइल भी बंद मिला. हम ने बेटी सुमन व नाती निश्चय के संबंध में दामाद अमित वर्मा से फोन पर बात की तो वह पहले तो खिलखिला कर हंसा फिर बोला, ‘‘ससुरजी, अपनी बेटी और नाती को भूल जाओ.’’

मकसूद प्रसाद विश्वकर्मा ने बताया कि अमित वर्मा की बात सुन कर मेरा माथा ठनका. हम ने गुप्त रूप से जानकारी जुटाई तो पता चला कि दिसंबर के आखिरी सप्ताह से सुमन अपने बेटे के साथ घर से लापता हैं. यह भी जानकारी मिली कि 3 माह पहले अमित ने खुशी नाम की युवती से दूसरा विवाह रचा लिया है. वह हंसपुरम में उसी के साथ रह रहा है. मकसूद ने एसपी के सामने आशंका जताई कि अमित वर्मा ने सुमन व नाती निश्चय की हत्या कर लाश कहीं ठिकाने लगा दी है. उस ने मांग की कि अमित के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करवा कर उचित काररवाई करें. मकसूद प्रसाद विश्वकर्मा की बातों से एसपी रवीना त्यागी को मामला गंभीर लगा. उन्होंने उसी समय थाना नौबस्ता के थानाप्रभारी समरबहादुर सिंह यादव को अपने औफिस बुलाया.

उन्होंने थानाप्रभारी को आदेश दिया कि इस मामले की तुरंत जांच करें और अगर कोई दोषी है तो उसे तुरंत गिरफ्तार करें. एसपी साहब का आदेश पाते ही थानाप्रभारी मकसूद प्रसाद को साथ ले कर थाने लौट गए और उन्होंने मकसूद से इस संबंध में विस्तार से बात की. इस के बाद उन्होंने उसी शाम आरोपी अमित वर्मा को थाने बुलवा लिया. थाने में उन्होंने उस से उस की पत्नी सुमन और बेटे निश्चय के बारे में पूछताछ की तो उस ने बताया कि 24 दिसंबर, 2018 की रात सुमन अपने बेटे को ले कर बिना कुछ बताए कहीं चली गई थी. अमित वर्मा के अनुसार, उस ने उन दोनों को हर संभावित जगह पर खोजा, लेकिन उन का कुछ पता नहीं चला. तब उस ने 28 दिसंबर को नौबस्ता थाने में पत्नी और बेटे के गुम होने की सूचना दर्ज करा दी थी.

यही नहीं, शक होने पर उस ने पड़ोस में रहने वाली मनोरमा नाम की महिला पर कोर्ट के माध्यम से पत्नी व बेटे को गायब कराने को ले कर उस के खिलाफ धारा 156 (3) के तहत कोर्ट के आदेश पर मुकदमा भी दर्ज कराया था लेकिन पुलिस ने जांच के बाद उसे क्लीन चिट दे दी थी. थानाप्रभारी ने अमित वर्मा की बात की पुष्टि के लिए थाने का रिकौर्ड खंगाला तो उस की बात सही निकली. थाने में उस ने पत्नी और बेटे की गुमशुदगी दर्ज कराई थी और पड़ोसी महिला मनोरमा पर कोर्ट के आदेश पर मुकदमा भी दर्ज हुआ था. चूंकि मनोरमा पर आरोप लगा था, अत: थानाप्रभारी समरबहादुर सिंह ने मनोरमा को थाने बुलवाया.

उन्होंने उस से सुमन और उस के बेटे निश्चय के गुम होने के संबंध में सख्ती से पूछताछ की. तब मनोरमा ने उन्हें बताया कि अमित वर्मा बेहद शातिरदिमाग है. वह पुलिस को बारबार गुमराह कर के उसे फंसाने की कोशिश कर रहा है. जबकि वह बेकसूर है. मनोरमा ने थानाप्रभारी समरबहादुर सिंह को यह भी बताया कि 23 दिसंबर, 2018 को उस की सुमन से बात हुई थी. उस ने बताया था कि वह अपने पति के साथ कुंभ स्नान करने प्रयागराज जा रही है. दूसरे रोज वह अमित के साथ चली गई थी. लेकिन वह उस के साथ वापस नहीं आई. शक है कि अमित ने पत्नी व बेटे की हत्या कर उन की लाशें कहीं ठिकाने लगा दी हैं. मनोरमा से पूछताछ के बाद उसे घर भेज दिया गया.

अमित वर्मा की ओर शक की सुई घूमी तो थानाप्रभारी ने सच का पता लगाने के लिए अपने मुखबिर लगा दिए. साथ ही खुद भी हकीकत का पता लगाने में जुट गए. मुखबिरों ने राजीव विहार, गल्लामंडी तथा रवींद्र नगर में दरजनों लोगों से अमित के बारे में जानकारी जुटाई. इस के अलावा मुखबिरों ने अमित पर भी नजर रखी. मसलन वह कहां जाता है, किस से मिलता है और उस के मददगार कौन हैं. 11 अगस्त, 2019 की सुबह 10 बजे 2 मुखबिरों ने थानाप्रभारी को एक चौंकाने वाली जानकारी दी. मुखबिरों ने बताया कि सुमन और उस के बेटे निश्चय की हत्या अमित वर्मा ने अपने दोस्तों के साथ मिल कर की है. दरअसल, अमित वर्मा के नाजायज संबंध देवकीनगर की खुशी नाम की युवती से बन गए थे. इन रिश्तों का सुमन विरोध करती थी. खुशी से शादी रचाने के लिए सुमन बाधक बनी हुई थी.

यह सूचना मिलते ही थानाप्रभारी समरबहादुर सिंह ने अमित वर्मा को गिरफ्तार कर लिया. थाने में जब उस से पूछताछ की गई तो पहले तो वह पुलिस को बरगलाता रहा लेकिन सख्ती करने पर वह टूट गया और पत्नी सुमन तथा बेटे निश्चय की हत्या का जुर्म कबूल कर लिया. उस ने बताया कि पत्नी और 6 साल के बेटे की हत्या उस ने देवकीनगर निवासी संजय शर्मा तथा कबीरनगर निवासी मोहम्मद अख्तर उर्फ गुड्डू मिस्त्री की मदद से की थी. यह पता चलते ही थानाप्रभारी ने पुलिस टीम के साथ संजय शर्मा तथा मोहम्मद अख्तर उर्फ गुड्डू मिस्त्री को भी गिरफ्तार कर लिया. थाने में जब दोनों का सामना अमित वर्मा से हुआ तो उन्होंने भी हत्या का जुर्म कबूल लिया.

पूछताछ करने पर अमित वर्मा ने बताया कि उस ने सुमन व उस के बेटे की हत्या कौशांबी जिले में लाडपुर के पास एक सुनसान जगह पर की थी और वहीं सड़क किनारे लाशें फेंक दी थीं. दोनों की हत्या किए 7 महीने से ज्यादा बीत गए थे, इसलिए मौके पर लाशें नहीं मिल सकती थीं. उम्मीद थी कि लाशें संबंधित थाने की पुलिस ने बरामद की होंगी. यह सोच कर थानाप्रभारी तीनों आरोपियों और शिकायतकर्ता मकसूद प्रसाद विश्वकर्मा को साथ ले कर कौशांबी के लिए निकल पड़े. सब से पहले वह लाडपुर गांव की उस पुलिया के पास पहुंचे, जहां आरोपियों ने सुमन को तेजाब से झुलसाने के बाद गला दबा कर उन की हत्याएं कीं और लाशें फेंक दी थीं.

पुलिस ने सड़क किनारे झाडि़यों में सुमन की लाश ढूंढी लेकिन वहां लाश मिलनी तो दूर, उस का कोई सबूत भी नहीं मिला. तीनों आरोपियों ने बताया कि 6 वर्षीय निश्चय की हत्या उन्होंने लोडर के डाले से सिर टकरा कर की थी. इस के बाद उसे निर्वस्त्र कर लाश पुलिया से करीब एक किलोमीटर दूर चमरूपुर गांव के पास सड़क किनारे फेंकी थी. पुलिस उन्हें ले कर चमरूपुर गांव के पास उस जगह पहुंची, जहां उन्होंने बच्चे की लाश फेंकने की बात बताई थी. पुलिस ने वहां भी झाडि़यों वगैरह में लाश ढूंढी, लेकिन लाश नहीं मिल सकी. जिन जगहों पर दोनों लाशें फेंकी गई थीं, वह क्षेत्र थाना कोखराज के अंतर्गत आता था. अत: पुलिस थाना कोखराज पहुंच गई.

थानाप्रभारी समरबहादुर सिंह ने कोखराज थाना पुलिस को सुमन व उस के बेटे की हत्या की बात बताई. कोखराज पुलिस ने रिकौर्ड खंगाला तो पता चला 25 दिसंबर, 2018 की सुबह क्षेत्र के 2 अलगअलग स्थानों से 2 लाशें मिली थीं. एक लाश महिला की थी, जिस की उम्र 30 वर्ष के आसपास थी. उस का चेहरा तेजाब डाल कर जलाया गया था. दूसरी लाश निर्वस्त्र हालत में एक बालक की थी, जिस की उम्र करीब 6 वर्ष थी. इन दोनों लाशों की सूचना कोखराज गांव के प्रधान गुलेश बाबू ने दी थी. दोनों लाशों की शिनाख्त नहीं हो पाने पर अज्ञात के खिलाफ हत्या की रिपोर्ट दर्ज कर ली गई.

थाना कोखराज पुलिस के पास दोनों लाशों के फोटोग्राफ्स मौजूद थे. फोटोग्राफ्स मकसूद प्रसाद को दिखाए तो वह फोटो देखते ही फफक कर रो पड़ा. उस ने बताया कि फोटो उस की बेटी सुमन तथा नाती निश्चय के हैं. सिंह ने उसे धैर्य बंधाया और थाने का रिकौर्ड तथा फोटो आदि हासिल कर थाना नौबस्ता लौट आए. थानाप्रभारी समरबहादुर सिंह ने सारी जानकारी एसपी रवीना त्यागी को दे दी और मकसूद प्रसाद विश्वकर्मा की तरफ से अमित वर्मा, संजय शर्मा और मोहम्मद अख्तर उर्फ गुड्डू मिस्त्री के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 201, 326 के तहत रिपोर्ट दर्ज कर ली.

एसपी (साउथ) रवीना त्यागी ने अपने कार्यालय में प्रैसवार्ता आयोजित कर मीडिया के सामने इस घटना का खुलासा किया. अभियुक्तों से पूछताछ के बाद दोहरे हत्याकांड की जो कहानी सामने आई, वह काफी दिलचस्प थी—

उत्तर प्रदेश के कानपुर महानगर के कस्बा नौबस्ता में एक मोहल्ला है राजीव विहार. मकसूद प्रसाद विश्वकर्मा इसी मोहल्ले में अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी कमला देवी के अलावा एक बेटी सुमन और 2 बेटे थे. मेहनतमजदूरी कर के वह जैसेतैसे अपने परिवार को पाल रहा था. मकसूद प्रसाद की बेटी सुमन खूबसूरत थी. उस ने जब जवानी की दहलीज पर कदम रखा तो उस की सुंदरता में और भी निखार आ गया. एक रोज सुमन छत पर खड़ी अपने गीले बालों को सुखा रही थी. तभी उस के कानों में फेरी लगा कर ज्वैलरी की सफाई करने वाले की आवाज आई.

उस की आवाज सुनते ही सुमन छत से नीचे उतर आई. उस की चांदी की पायल गंदी दिख रही थी, वह उन की सफाई कराना चाहती थी, इसलिए फटाफट बक्से में रखी अपनी पायल निकाल कर साफ कराने के लिए ले गई. ज्वैलरी की सफाई करने वाला नौजवान युवक था. खूबसूरत सुमन को देख कर वह प्रभावित हो गया. उस ने सुमन की पायल कैमिकल घोल में डाल कर साफ कर दीं. पायल एकदम नई जैसी चमकने लगीं. पायल देख कर सुमन बहुत खुश हुई. पायल ले कर वह घर जाने लगी तो कारीगर बोला, ‘‘बेबी, पायल पहन कर देख लो, मैं भी तो देखूं तुम्हारे दूधिया पैरों में ये कैसी लगेंगी.’’

अपने पैरों की तारीफ सुन कर सुमन की निगाहें अनायास ही कारीगर के चेहरे पर जा टिकीं. उस समय उस की आंखों में प्यार का समंदर उमड़ रहा था. कारीगर की बात मानते हुए सुमन ने उस के सामने बैठ कर पायल पहनीं तो वह बोला, ‘‘तुम्हारे खूबसूरत पैरों में पायल खूब फब रही हैं. वैसे बुरा न मानो तो एक बात पूछूं?’’

‘‘पूछो, क्या जानना चाहते हो?’’ वह बोली.

‘‘तुम्हारा नाम जानना चाहता हूं.’’ उस ने कहा.

‘‘मेरा नाम सुमन है.’’ कुछ पल रुकने के बाद सुमन बोली, ‘‘तुम ने मेरा नाम तो पूछ लिया, पर अपना नहीं बताया.’’

‘‘मेरा नाम अमित वर्मा है. मैं राजीव विहार में ही रहता हूं. राजीव विहार में मेरा अपना मकान है. मेरे पिता भी यही काम करते हैं. फेरी लगा कर जेवरों की सफाई करना मेरा पुश्तैनी धंधा है.’’

पहली ही नजर में सुमन और अमित एकदूसरे की ओर आकर्षित हो गए. उसी समय दोनों ने एकदूसरे को अपने मोबाइल नंबर दे दिए थे. फिर सुमन घर चली गई. अमित भी हांक लगाता हुआ आगे बढ़ गया. उस रोज रात में न तो सुमन को नींद आई और न ही अमित को. दोनों ही एकदूसरे के बारे में सोचते रहे. दोनों के दिलों में चाहत बढ़ी तो उन की मुलाकातें भी होने लगीं. मोबाइल फोन पर बात कर के मिलने का समय व स्थान तय हो जाता था. इस तरह उन की मुलाकातें कभी संजय वन में तो कभी किदवई पार्क में होने लगीं. एक रोज अमित ने उस से कहा, ‘‘सुमन, मैं तुम से बेइंतहा प्यार करता हूं. तुम्हारे बिना अब मैं नहीं रह सकता. मैं तुम्हें अपना जीवनसाथी बनाना चाहता हूं.’’

सुमन कुछ पल मौन रही. फिर बोली, ‘‘अमित, मैं भी हर कदम पर तुम्हारा साथ देने को तैयार हूं.’’

सुमन और अमित का प्यार परवान चढ़ ही रह था कि एक रोज उन के प्यार का भांडा फूट गया. सुमन के भाई दीपू ने दोनों को किदवई पार्क में हंसीठिठोली करते देख लिया. उस ने यह बात अपने मातापिता को बता दी. कुछ देर बाद सुमन वापस घर आई तो मां कमला ने उसे आड़े हाथों लेते हुए खूब डांटाफटकारा. इस के बाद घर वालों ने सुमन के घर से बाहर निकलने पर प्रतिबंध लगा दिया. लेकिन सुमन को प्रतिबंध मंजूर नहीं था. वह अमित के प्यार में इतनी गहराई तक डूब गई थी, जहां से बाहर निकलना संभव नहीं था. आखिर एक रोज सुमन अपने मांबाप की इज्जत को धता बता कर घर से निकल गई. फिर बाराह देवी मंदिर जा कर अमित से शादी कर ली. अमित ने सुमन की मांग में सिंदूर भर कर उसे पत्नी के रूप में अपना लिया.

सुमन से शादी करने के बाद अमित, सुमन को साथ ले कर अपने राजीव विहार स्थित घर पहुंचा तो उस के मातापिता ने सुमन को बहू के रूप में स्वीकारने से मना कर दिया. क्योंकि वह उन की बिरादरी की नहीं थी. हां, उन्होंने दोनों को घर में पनाह जरूर दे दी. सुमन ने अपनी सेवा से सासससुर का मन जीतने की भरसक कोशिश की, लेकिन वह सफल नहीं हुई. अमित के पिता राजेश वर्मा को सदैव इस बात का भय बना रहता था कि सुमन को ले कर उस के घर वाले कोई बवाल न खड़ा कर दें. अत: उन्होंने राजीव विहार वाला अपना मकान बेच दिया और नौबस्ता गल्लामंडी में किराए का मकान ले कर रहने लगा.

चूंकि पिता का मकान बिक चुका था, इसलिए अमित भी नौबस्ता के रवींद्र नगर में किराए पर मकान ले कर सुमन के साथ रहने लगा. इधर सुमन के मातापिता भी गायब हुई बेटी को अपने स्तर से ढूंढ रहे थे. उन्होंने बदनामी की वजह से पुलिस में शिकायत नहीं की थी. कुछ समय बाद उन्हें जानकारी हुई कि सुमन ने अमित के साथ ब्याह रचा लिया है. इस का उन्हें बहुत दुख हुआ. इतना ही नहीं, उन्होंने सुमन से नाता तक तोड़ लिया. उन्होंने यह सोच कर कलेजे पर पत्थर रख लिया कि सुमन उन के लिए मर गई है. अमित सुमन को बहुत प्यार करता था. वह हर काम सुमन की इच्छानुसार करता था. सुमन भी पति का भरपूर खयाल रखती थी. इस तरह हंसीखुशी से 3 साल कब बीत गए, उन्हें पता ही नहीं चला. इन 3 सालों में सुमन ने एक बेटे को जन्म दिया, जिस का नाम निश्चय रखा गया.

बेटे के जन्म के बाद सुमन के घरआंगन में किलकारियां गूंजने लगीं. निश्चय जब 3 साल का हुआ तो सुमन ने उस का दाखिला विवेकानंद विद्यालय में करा दिया. सुमन ही निश्चय को स्कूल भेजने व छुट्टी होने पर घर लाने का काम करती थी. कुछ समय बीतने के बाद स्थितियों ने करवट बदली. धीरेधीरे सुमन की मुसकान गायब हो गई. पति न केवल उस से दूर भागने लगा बल्कि बातबात पर उसे डांटनेफटकारने भी लगा. वह देर रात घर लौटता था. कभीकभी तो पूरी रात गायब रहता. यह सब सुमन की चिंता का कारण बन गया.  वह हमेशा उदास रहने लगी. वह सब कुछ सहती रही. आखिरकार जब स्थिति सहन सीमा से बाहर हो गई, तब उस ने पति के स्वभाव में इस परिवर्तन का पता लगाने का निश्चय किया.

सुमन को यह जान कर गहरा सदमा लगा कि उस का पति खुशी नाम की युवती के प्रेम जाल में फंस गया है. उसे खुशी के बारे में यह भी पता चला कि वह जितनी सुंदर है, उतनी ही चंचल और मुंहफट भी है. वह देवकीनगर में किराए के मकान में रहती है. उस के मांबाप नहीं हैं. एक भाई है, जो शराबी तथा आवारा है. बहन पर उस का कोई नियंत्रण नहीं है. फेरी लगाने के दौरान जिस तरह अमित ने सुमन को फांसा था, उसी तरह उस ने खुशी को भी फांस लिया था. वह उस का इतना दीवाना हो गया था कि अपनी पत्नी और बच्चे को भी भूल गया. हर रोज घर में देर से आना और पूछने पर कोई न कोई बहाना बना देना, उस की दिनचर्या बन गई थी.

सुमन पहले तो अमित की बातों पर विश्वास कर लेती थी किंतु जब असलियत का पता चला तो उस का नारी मन विद्रोह पर उतर आया. भला उसे यह कैसे गवारा हो सकता था कि उस के रहते उस का पति किसी दूसरी औरत की ओर आंख उठा कर देखे. वह इस का विरोध करने लगी. लेकिन अमित अपनी हरकतों से बाज नहीं आया. उलटे वह सुमन को ही प्रताडि़त करने लगा. खुशी से नाजायज रिश्तों को ले कर घर में कलह बढ़ने लगी. पतिपत्नी आए दिन एकदूसरे से झगड़ने लगे. इस तनावपूर्ण वातावरण में एक बुराई और घर में घुस आई. अमित को शराब की लत पड़ गई.

शराब पीने के बाद वह सुमन को बेतहाशा पीटता पर सुमन थी कि सब कुछ सह लेती थी. उस के सामने समस्या यह भी थी कि वह किसी से अपना दुखदर्द बांट भी नहीं सकती थी. मांबाप से उस के संबंध पहले ही खराब हो चुके थे. एक दिन तो अमित ने हद ही कर दी. वह खुशी को अपने घर ले आया. उस समय सुमन घर पर ही थी. खुशी को देख कर सुमन का पारा सातवें आसमान पर जा पहुंचा. उस ने पति को खूब खरीखोटी सुनाई. इतना ही नहीं, उस ने खुशी की बेइज्जती करते हुए उसे भी खूब लताड़ा. बेइज्जती हुई तो खुशी उसी समय वहां से चली गई. उस के यूं चले जाने पर अमित सुमन पर कहर बन कर टूट पड़ा. उस ने सुमन की जम कर पिटाई की. सुमन रोतीतड़पती रही.

सुमन की एक पड़ोसन थी मनोरमा. अमित जब घर पर नहीं होता तब वह मनोरमा के घर चली जाया करती थी. सुमन उस से बातें कर अपना गम हलका कर लेती थी. एक रोज मनोरमा ने सुमन से कहा कि बुरे वक्त में अपने ही काम आते हैं. ऐसे में तुम्हें अपने मायके आनाजाना शुरू कर देना चाहिए. मांबाप बड़े दयालु होते हैं, हो सकता है कि वे तुम्हारी गलती को माफ कर दें. पड़ोसन की यह बात सुमन को अच्छी लगी. वह हिम्मत जुटा कर एक रोज मायके जा पहुंची. सुमन के मातापिता ने पहले तो उस के गलत कदम की शिकायत की फिर उन्होंने उसे माफ कर दिया. इस के बाद सुमन मायके आनेजाने लगी. सुमन ने मायके में कभी यह शिकायत नहीं की कि उस का पति उसे मारतापीटता है और उस का किसी महिला से चक्कर चल रहा है.

इधर ज्योंज्यों समय बीतता जा रहा था, त्योंत्यों खुशी अमित के दिलोदिमाग पर छाती जा रही थी. वह खुशी से शादी रचा कर उसे अपनी पत्नी बनाना चाहता था, लेकिन इस रास्ते में सुमन बाधा बनी हुई थी. खुशी ने अपना इरादा जता दिया था कि एक म्यान में 2 तलवारें नहीं रह सकतीं. यानी जब तक सुमन उस के साथ है, तब तक वह उस की जीवनसंगिनी नहीं बन सकती. खुशी का यह फैसला सुनने के बाद अमित परेशान रहने लगा कि वह किस तरह इस समस्या का समाधान करे. अमित वर्मा का एक दोस्त था संजय शर्मा. वह देवकीनगर में रहता था और केबल औपरेटर था. वह भी अमित की तरह अपनी पत्नी से पीडि़त था. उस की पत्नी संजय को छोड़ कर मायके में रह रही थी.

उस ने संजय के खिलाफ दहेज उत्पीड़न का मुकदमा भी दर्ज करा रखा था. अमित ने अपनी परेशानी संजय शर्मा को बताई तो संजय ने सलाह दी कि वह अपनी पत्नी सुमन व उस के बच्चे को खत्म कर दे. तभी उस की समस्या का निदान हो सकता है. खुशी से विवाह रचाने के लिए अमित पत्नीबेटे की हत्या करने को राजी हो गया. उस ने इस बारे में संजय से चर्चा की तो उस ने अमित की मुलाकात मोहम्मद अख्तर उर्फ गुड्डू मिस्त्री से कराई. अख्तर नौबस्ता क्षेत्र के कबीरनगर में रहता था. वह लोडर चलाता था. साथ ही लोडर मिस्त्री भी था. मोहम्मद अख्तर मूलरूप से कौशांबी जिले के कोखराज थाना क्षेत्र के गांव मारूकपुरवा का रहने वाला था. उस की पत्नी मेहरुन्निसा गांव में ही रहती थी.

अमित, संजय व मोहम्मद अख्तर ने सिर से सिर जोड़ कर हत्या की योजना बनाई. संजय ने गुड्डू मिस्त्री से सलाह मशविरा कर अमित से 35 हजार रुपए में हत्या का सौदा कर लिया. अमित ने संजय को 10 हजार रुपए एडवांस दे दिए. चूंकि अब योजना को अंजाम देना था, इसलिए अमित ने सुमन के साथ अच्छा बर्ताव करना शुरू कर दिया. वह उस से प्यार भरा व्यवहार करने लगा. उस ने सुमन से वादा किया कि अब वह खुशी के संपर्क में नहीं रहेगा. पति के इस व्यवहार से सुमन गदगद हो उठी. उस ने सहज ही पति की बातों पर भरोसा कर लिया. यही उस की सब से बड़ी भूल थी.

योजना के तहत 23 दिसंबर, 2018 को अमित वर्मा और संजय मूलगंज बाजार पहुंचे. वहां से अमित ने एक बोतल तेजाब खरीदा. शाम को अमित ने सुमन से कहा कि कल हम लोग कुंभ स्नान को प्रयागराज जाएंगे. सुमन राजी हो गई. उस ने रात में ही प्रयागराज जाने की सारी तैयारी कर ली. योजना के मुताबिक 24 दिसंबर, 2018 की शाम 7 बजे अमित, पत्नी सुमन व बेटे निश्चय को साथ ले कर रामादेवी चौराहा पहुंचा. पीछे से मोहम्मद अख्तर भी लोडर ले कर रामादेवी चौराहा पहुंच गया. उस के साथ संजय शर्मा भी था. लोडर अमित के पास रोक कर अख्तर ने उस से पूछा कि कहां जा रहे हो तुम लोग॒. तब अमित ने कहा, ‘‘हम कुंभ स्नान के लिए प्रयागराज जा रहे हैं.’’

‘‘मैं भी लोडर ले कर प्रयागराज जा रहा हूं, उधर से वापसी के समय लोडर में पत्थर लाऊंगा. अगर तुम लोग चाहो तो मेरे साथ चल सकते हो.’’ मोहम्मद अख्तर बोला.

अमित ने सुमन से कहा कि लोडर चालक उस का दोस्त है. वह प्रयागराज जा रहा है. ऐतराज न हो तो लोडर से ही निकल चलें. किराया भी बच जाएगा. सुमन को क्या पता थी कि यह अमित की चाल है और इस में उस का पति भी शामिल है. वह तो पति पर विश्वास कर के राजी हो गई. उस के बाद अमित वर्मा, पत्नी व बेटे के साथ लोडर में पीछे बैठ गया, जबकि संजय आगे बैठा. उस के बाद मोहम्मद अख्तर लोडर स्टार्ट कर चल पड़ा. मोहम्मद अख्तर ने जीटी रोड स्थित एक ढाबे पर लोडर रोक दिया. वहां अमित, संजय व गुड्डू ने खाना खाया तथा शराब पी. अधिक सर्दी होने का बहाना बना कर अमित ने सुमन को भी शराब पिला दी. इस के बाद ये लोग चल दिए. कौशांबी जिले के लाडपुर गांव के पास पहुंच कर मोहम्मद अख्तर ने एक पुलिया के पास सुनसान जगह पर गाड़ी रोक दी.

संजय और मोहम्मद अख्तर उतर कर पीछे आ गए. इस के बाद संजय व मोहम्मद अख्तर ने सुमन को दबोच लिया और अमित ने सुमन कोतेजाब से  नहला दिया. सुमन जलन से चीखी तो अमित ने उसे गला दबा कर मार डाला. मां की चीख सुन कर 6 साल का बेटा निश्चय जाग गया. संजय ने बच्चे का सिर लोडर के डाले से पटकपटक कर उसे मार डाला. इन लोगों ने सुमन की लाश लाडपुर पुलिया के पास सड़क किनारे फेंक दी तथा वहां से लगभग एक किलोमीटर आगे जा कर निश्चय की निर्वस्त्र लाश भी फेंक दी. इस के बाद तीनों प्रयागराज गए. वहां से दूसरे रोज लोडर पर पत्थर लाद कर वापस कानपुर आ गए.

25 दिसंबर, 2018 की सुबह कोखराज के ग्रामप्रधान गुलेश बाबू सुबह की सैर पर निकले तो उन्होंने लाडपुर पुलिया के पास महिला की लाश तथा कुछ दूरी पर एक मासूम बच्चे की लाश देखी. उन्होंने यह सूचना कोखराज थाना पुलिस को दी. पुलिस ने दोनों लाशें बरामद कर उन की शिनाख्त कराने की कोशिश की लेकिन उन्हें कोई भी नहीं पहचान सका. शिनाख्त न होने पर पुलिस ने शव पोस्टमार्टम के लिए भेज दिए. गुलेश बाबू को वादी बना कर पुलिस ने अज्ञात हत्यारों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली.

इधर शातिरदिमाग अमित वर्मा ने दोस्त संजय की सलाह पर 28 दिसंबर को थाना नौबस्ता में तहरीर दी कि उस की पत्नी सुमन 24 दिसंबर की रात अपने बेटे निश्चय के साथ बिना कुछ बताए घर से चली गई है. उस का कहीं पता नहीं चल रहा है. इस तहरीर पर पुलिस ने साधारण पूछताछ की, फिर शांत हो कर बैठ गई.  इस के बाद अमित ने पड़ोसी महिला मनोरमा को फंसाने के लिए 156 (3) के तहत कोर्ट से मुकदमा कायम करा दिया. उस ने मनोरमा पर आरोप लगाया कि उस की पत्नी व बच्चे को गायब करने से उस का ही हाथ है. पर जांच में आरोप सही नहीं पाया गया. पूछताछ के बाद पुलिस ने मनोरमा को छोड़ दिया. अप्रैल, 2019 को अमित ने खुशी से शादी कर ली और हंसपुरम में उस के साथ रहने लगा.

सुमन, महीने में एक या 2 बार मायके आ जाती थी. पर पिछले 7 महीने से वह मायके नहीं आई थी, जिस से सुमन के पिता मकसूद प्रसाद को चिंता हुई. उस ने दामाद अमित से बात की तो उस ने बेटी नाती को भूल जाने की बात कही. शक होने पर मकसूद ने 31 जुलाई, 2019 को एसपी रवीना त्यागी को जानकारी दी. इस के बाद ही केस का खुलासा हो सका. 12 अगस्त, 2019 को पुलिस ने अभियुक्त अमित वर्मा, संजय शर्मा तथा मोहम्मद अख्तर को कानपुर कोर्ट के रिमांड मजिस्ट्रैट की अदालत में पेश किया, जहां से तीनों को जिला कारागार भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

Love Crime : ब्लैकमेल से परेशान प्रेमी ने शादीशुदा प्रेमिका का किया कत्ल

Love Crime : कंचन शादीशुदा थी. उस के मायके वालों और ससुराल पक्ष, खासकर पति ने उसे हौस्टल में रह कर एएनएम का कोर्स करने की इजाजत दी तो उसे उन लोगों का मान रखना चाहिए था. लेकिन कंचन ने जब पूर्वप्रेमी आनंद किशोर के साथ रंगरलियां मनानी शुरू कीं तो…

सैफई थानाप्रभारी चंद्रदेव यादव अपने कक्ष में बैठे थे, तभी 30-32 साल का एक युवक उन के पास आया. वह घबराया हुआ था. उस के माथे पर भय और चिंता की लकीरें थीं. थानाप्रभारी के पूछने पर उस ने बताया, ‘‘सर, मेरा नाम अनुपम है. मैं मूलरूप से मैनपुरी जिले के किशनी थानांतर्गत गांव खड़ेपुर का रहने वाला हूं. मेरी पत्नी कंचन सैफई के चिकित्सा विश्वविद्यालय के पैरा मैडिकल कालेज में हौस्टल में रह कर नर्सिंग की

पढ़ाई कर रही थी. 2 दिनों से वह लापता है. उस का कहीं भी पता नहीं चल

रहा है.’’

‘‘तुम ने पता करने की कोशिश की कि वह अचानक कहां लापता हो गई?’’ थानाप्रभारी ने पूछा.

‘‘सर, मैं गुरुग्राम (हरियाणा) में प्राइवेट नौकरी करता हूं. कंचन से मेरी हर रोज बात होती थी. 24 सितंबर, 2019 को भी दोपहर करीब पौने 2 बजे मेरी उस से बात हुई थी. लेकिन उस के बाद बात नहीं हुई. मैं शाम से ले कर देर रात तक उस से बात करने की कोशिश करता रहा, पर उस का फोन बंद था.

‘‘आशंका हुई तो मैं सैफई आ कर हौस्टल गया तो पता चला कि कंचन 24 सितंबर को 2 बजे हौस्टल से यह कह कर निकली थी कि वह अस्पताल जा रही है. उस के बाद वह हौस्टल नहीं लौटी. इस के बाद मैं ने कंचन की हर संभावित जगह पर खोज की लेकिन उस का कहीं पता नहीं चला. सर, आप मेरी रिपोर्ट दर्ज कर मेरी पत्नी को खोजने में मदद करें.’’ अनुपम ने कहा. सैफई मैडिकल कालेज के हौस्टल से नर्सिंग छात्रा का अचानक गायब हो जाना वास्तव में एक गंभीर मामला था. थानाप्रभारी चंद्रदेव ने आननफानन में कंचन की गुमशुदगी दर्ज कर सूचना वरिष्ठ अधिकारियों को भी दे दी. यह 26 सितंबर, 2019 की बात है.

इस के बाद थानाप्रभारी ने अनुपम से पूछा, ‘‘अनुपम, तुम्हारी पत्नी का चरित्र कैसा था? कहीं उस का किसी से कोई चक्कर तो नहीं चल रहा था?’’

‘‘नहीं सर, उस का चरित्र ठीकठाक था. वैसे भी वह अपना कैरियर दांव पर लगा कर किसी के साथ नहीं जा सकती.’’ अनुपम बोला, ‘‘सर, मुझे लगता है कि गलत इरादे से किसी ने उस का अपरहण कर लिया है.’’

‘‘तुम्हें किसी पर शक है?’’ यादव ने अनुपम से पूछा.

‘‘नहीं सर, मेरा किसी से झगड़ा नहीं है. इसलिए किसी पर शक भी नहीं है.’’ अनुपम ने बताया.

अनुपम से पूछताछ के बाद चंद्रदेव यादव सैफई मैडिकल कालेज पहुंचे. वहां जा कर उन्होंने हौस्टल की वार्डन भारती से पूछताछ की. भारती ने बताया कि कंचन का व्यवहार बहुत अच्छा था. वह अपनी साथी छात्राओं के साथ मिलजुल कर रहती थी. 24 सितंबर को दोपहर 2 बजे वह हौस्टल से अस्पताल गई थी, लेकिन अस्पताल नहीं पहुंची. हौस्टल और अस्पताल के बीच उस के साथ कुछ हुआ है. उस का मोबाइल फोन भी बंद है. अस्पताल प्रशासन भी अपने स्तर से कंचन की खोज में जुटा है. पर उस का पता नहीं चल पा रहा है.

थानाप्रभारी चंद्रदेव यादव ने मैडिकल कालेज में जांचपड़ताल की तो पता चला कालेज में कंचन ने वर्ष 2017-18 सत्र में एएनएम प्रशिक्षण हेतु नर्सिंग छात्रा के रूप में प्रवेश लिया था. वह इस साल अंतिम वर्ष की छात्रा थी. वह व्यवहारकुशल थी. यादव ने कंचन के साथ प्रशिक्षण प्राप्त कर रही कई छात्राओं से पूछताछ की तो उन्होंने उसे बेहद शालीन और मृदुभाषी बताया. साथी छात्राओं ने इस बात को भी नकारा कि उस का किसी से विशेष मेलजोल था.

थानाप्रभारी ने हौस्टल वार्डन भारती के सहयोग से कंचन के हौस्टल रूम की तलाशी ली, लेकिन रूम में कोई संदिग्ध चीज नहीं मिली. न ही कोई ऐसा प्रेमपत्र मिला, जिस से पता चलता कि उस का किसी से प्रेम संबंध था. हौस्टल व कालेज के बाहर कई दुकानदारों से भी यादव ने पूछताछ की लेकिन उन्हें कंचन के संबंध में कोई जानकारी नहीं मिली. उन की समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर कंचन कहां चली गई. थानाप्रभारी चंद्रदेव यादव ने कंचन की ससुराल खड़ेपुर जा कर उस के ससुराल वालों से पूछताछ की, लेकिन उन्होंने पुलिस का सहयोग नहीं किया. उन्होंने यह कह कर पल्ला झाड़ लिया कि कंचन ससुराल में बहुत कम रही है. वह या तो मायके में रही या फिर हौस्टल में. इसलिए उस के बारे में कुछ भी नहीं बता सकते.

कंचन का मायका इटावा जिले के थाना जसवंत नगर के गांव जगसौरा में था. यादव जगसौरा पहुंचे और कंचन के पिता शिवपूजन तथा मां उमादेवी से पूछताछ की. कंचन के मातापिता के लापता होने से दुखी तो थे, लेकिन उस के संबंध में जानकारी देने में संकोच कर रहे थे. जब वहां से भी कंचन के बारे में कोई काम की बात पता नहीं चली तो वह थाने लौट आए. अनुपम, पत्नी के लापता होने से बेहद परेशान था. जसवंत नगर, सैफई, इटावा जहां से भी अखबार के माध्यम से उसे अज्ञात महिला की लाश मिलने की खबर मिलती, वह वहां पहुंच जाता. धीरेधीरे 10 दिन बीत गए. लेकिन पुलिस कंचन का पता लगाने में नाकाम रही. अनुपम हर दूसरेतीसरे दिन थाना सैफई पहुंच जाता और पत्नी के संबंध में थानाप्रभारी से सवालजवाब करता. चंद्रदेव उसे सांत्वना दे कर भेज देते थे.

जब अनुपम के सब्र का बांध टूट गया तो वह एसपी (ग्रामीण) ओमवीर सिंह के औफिस पहुंचा. उस ने उन्हें अपनी पत्नी के गायब होने की बात बता दी. नर्सिंग छात्रा कंचन के लापता होने की जानकारी ओमवीर सिंह को पहले से ही थी. वह इस मामले की मौनिटरिंग भी कर रहे थे, ओमवीर सिंह ने अनुपम को आश्वासन दिया कि पुलिस जल्द ही उस की लापता पत्नी की खोज करेगी. आश्वासन पा कर अनुपम वापस लौट आया. एसपी (ग्रामीण) ओमवीर सिंह ने लापता कंचन को खोजने के लिए एक विशेष टीम का गठन किया. इस टीम में उन्होंने सैफई थानाप्रभारी चंद्रदेव यादव, एसआई राजवीर सिंह, वासुदेव सिंह, विपिन कुमार, महिला एसआई अंजलि तिवारी, सर्विलांस प्रभारी सत्येंद्र सिंह, कांस्टेबल अभिनव यादव तथा सर्वेश कुमार को शामिल किया. टीम की कमान खुद एसपी (ग्रामीण) ओमवीर सिंह ने संभाली.

विशेष टीम ने सब से पहले कंचन के पति अनुपम तथा उस के मातापिता से पूछताछ की. इस के बाद टीम ने कंचन के मातापिता तथा पड़ोस के लोगों से जानकारी हासिल की. टीम को आशंका थी कि कंचन का अपहरण दुष्कर्म करने के लिए किया जा सकता है. अत: टीम ने क्षेत्र के इस प्रवृत्ति के कुछ अपराधियों को पकड़ कर उन से पूछताछ की, लेकिन कंचन के संबंध में कोई जानकारी नहीं मिल सकी. सर्विलांस प्रभारी सत्येंद्र सिंह ने कंचन का मोबाइल फोन नंबर सर्विलांस पर लगा दिया, ताकि कोई जानकारी मिल सके पर मोबाइल फोन बंद होने से कोई जानकारी नहीं मिल सकी. इधर थानाप्रभारी, एसआई अंजलि तिवारी व टीम के अन्य सदस्यों के साथ मैडिकल कालेज पहुंचे और कंचन के हौस्टल रूम की एक बार फिर छानबीन की. गहन छानबीन के दौरान उन्हें वहां मोबाइल फोन के 2 खाली डिब्बे मिले. दोनों डिब्बे उन्होंने सुरक्षित रख लिए.

टीम ने सैफई मैडिकल यूनिवर्सिटी के कुलसचिव सुरेशचंद्र शर्मा से भी बात की. साथ ही अन्य कई लोगों से भी कंचन के संबंध में जानकारी जुटाई. कुलसचिव कहा कि वह स्वयं भी कंचन के लापता होने से चिंतित हैं, क्योंकि यह उन की प्रतिष्ठा का सवाल है. महिला एसआई अंजलि तिवारी ने कंचन के हौस्टल रूम से बरामद दोनों डिब्बों पर अंकित आईएमईआई नंबरों की जांच की तो पता चला कि इन आईएमईआई नंबरों के दोनों फोनों में 2 सिम नंबर काम कर रहे थे. एक फोन का सिम कंचन के नाम से खरीदा गया था, जबकि दूसरा आनंद किशोर पुत्र हाकिम सिंह, निवासी नगला महाजीत सिविल लाइंस इटावा के नाम से खरीदा गया था.

पुलिस टीम 12 अक्तूबर, 2019 की रात को आनंद किशोर के घर पहुंच गई. वह घर पर ही मिल गया तो पुलिस ने उसे हिरासत में ले लिया. थाना सैफई ला कर आनंद किशोर से पूछताछ शुरू की गई. तब आनंद किशोर ने बताया, ‘‘सर, मैं किसी कंचन नाम की लड़की को नहीं जानता.’’

‘‘तुम सरासर झूठ बोल रहे हो. तुम कंचन को अच्छी तरह जानते हो. तुम्हारे द्वारा दिया गया मोबाइल फोन का डिब्बा उस के हौस्टल रूम से बरामद हुआ है. अब तुम्हारी भलाई इसी में है कि सारी सच्चाई बता दो वरना…’’

थानाप्रभारी चंद्रदेव का कड़ा रुख देख कर आनंद किशोर डर गया. वह बोला, ‘‘सर, यह सच है कि मैं ने ही बात करने के लिए उसे मोबाइल फोन खरीद कर दिया था.’’

‘‘तो बताओ कंचन कहां है? उसे तुम ने कहां छिपा कर रखा है?’’ यादव ने पूछा.

‘‘सर, कंचन अब इस दुनिया में नहीं है. मैं ने उस की हत्या कर दी है.’’ आनंद ने बताया.

‘‘क्याऽऽ कंचन को मार डाला?’’ वह चौंके.

‘‘हां सर, मैं ने कचंन की हत्या कर दी है. मैं जुर्म कबूल करता हूं.’’

‘‘उस की लाश कहां है?’’ थानाप्रभारी ने पूछा.

‘‘सर, लाश मैं ने भितौरा नहर में फेंक दी थी. फिर उस के दोनों मोबाइल तोड़ कर जगसौरा बंबा के पास फेंक दिए थे. खून से सने अपने कपड़े, शर्ट, पैंट तथा तौलिया भी वहीं जला दिए थे, चाकू भी वहीं फेंक दिया था.’’

इस के बाद पुलिस टीम ने आनंद किशोर की निशानदेही पर जगसौरा बंबा के पास से 2 टूटे मोबाइल तथा आलाकत्ल चाकू बरामद कर लिया. इस के बाद पुलिस टीम आनंद किशोर को साथ ले कर जसवंत नगर क्षेत्र की भितौरा नहर पहुंची. वहां आनंद किशोर ने नहर किनारे जलाए गए अधजले कपड़े बरामद करा दिए. हत्या में इस्तेमाल आनंद किशोर की ओमनी कार भी पुलिस ने उस के घर से बरामद कर ली. आनंद किशोर की निशानदेही पर पुलिस ने अब तक मोबाइल फोन, चाकू, अधजले कपडे़ तथा हत्या में प्रयुक्त कार तो बरामद कर ली थी, लेकिन कंचन की लाश बरामद नहीं हो पाई थी.

अत: लाश बरामद करने के लिए पुलिस आनंद को एक बार फिर भितौरा नहर ले गई, जहां उस ने लाश फेंकने की बात कही थी, वहां तलाश कराई. लेकिन तमाम प्रयासों के बाद भी कंचन की लाश बरामद नहीं हो सकी. चूंकि आनंद किशोर ने कंचन की हत्या का जुर्म स्वीकार कर लिया था और हत्या में इस्तेमाल कार तथा चाकू भी बरामद करा दिया था, इसलिए थानाप्रभारी चंद्रदेव यादव ने गुमशुदगी के इस मामले को हत्या में तरमीम कर दिया और भादंवि की धारा 302, 201 के तहत आनंद किशोर के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर उसे विधिसम्मत गिरफ्तार कर लिया.

थानाप्रभारी ने कंचन की हत्या का परदाफाश करने तथा उस के कातिल को पकड़ने की जानकारी एसपी (ग्रामीण) ओमवीर सिंह को दे दी. उन्होंने पुलिस लाइंस सभागार में प्रैसवार्ता की और हत्यारोपी को मीडिया के सामने पेश कर नर्सिंग छात्रा कंचन की हत्या का खुलासा कर दिया. उत्तर प्रदेश के इटावा जिले के थाना जसवंतनगर क्षेत्र में एक गांव है जगसौरा. इसी गांव में शिवपूजन अपने परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में पत्नी उमा देवी के अलावा 2 बेटियां कंचन, सुमन तथा एक बेटा राहुल था. शिवपूजन खेतीकिसानी करते थे. उन की आर्थिक स्थिति सामान्य थी. शिवपूजन के तीनों बच्चों में कंचन सब से बड़ी थी. वह खूबसूरत तो थी ही, पढ़नेलिखने में भी तेज थी. उस ने गवर्नमेंट गर्ल्स इंटर कालेज जसवंतनगर से इंटरमीडिएट साइंस विषय से प्रथम श्रेणी में पास किया था.

कंचन पढ़लिख कर अपने पैरों पर खड़ी होना चाहती थी, जबकि उस की मां उमा देवी उस की पढ़ाई बंद कर के कामकाज में लगाना चाहती थी. उमा देवी का मानना था कि ज्यादा पढ़ीलिखी लड़की के लिए घरवर तलाशने में परेशानी होती है. लेकिन बेटी की जिद के आगे उसे झुकना पड़ा. कंचन ने इटावा के महिला महाविद्यालय में बीएससी में दाखिला ले लिया. बीएससी की पढ़ाई के दौरान ही एक रोज कंचन की निगाह अखबार में छपे विज्ञापन पर पड़ी. विज्ञापन द्रोपदी देवी इंटर कालेज नगला महाजीत सिविल लाइंस, इटावा से संबंधित था. कालेज को जूनियर सेक्शन में विज्ञान शिक्षिका की आवश्यकता थी.

विज्ञापन पढ़ने के बाद कंचन ने शिक्षिका पद के लिए आवेदन करने का निश्चय किया. उस ने सोचा कि पढ़ाने से एक तो उस का ज्ञानवर्द्धन होगा, दूसरे उस के खर्चे लायक पैसे भी मिल जाएंगे. कंचन ने अपने मातापिता से इस नौकरी के लिए अनुमति मांगी तो उन्होंने उसे अनुमति दे दी. कंचन ने द्रोपदी देवी इंटर कालेज में शिक्षिका पद हेतु आवेदन किया तो प्रबंधक हाकिम सिंह ने उस का चयन कर लिया. हाकिम सिंह इटावा शहर के सिविल लाइंस थानांतर्गत नगला महाजीत में रहते थे. यह उन का ही कालेज था. कंचन इस कालेज में कक्षा 6 से 8 तक के बच्चों को विज्ञान पढ़ाने लगी. कंचन पढ़नेपढ़ाने में लगनशील थी, इसलिए कुछ महीने बाद वह बच्चों की प्रिय टीचर बन गई.

इसी स्कूल में एक रोज आनंद किशोर की निगाह खूबसूरत कंचन पर पड़ी. आनंद किशोर कालेज प्रबंधक हाकिम सिंह का बेटा था. हाकिम सिंह कालेज के प्रबंधक जरूर थे, लेकिन कालेज की देखरेख आनंद किशोर ही करता था. कंचन हुस्न और शबाब की बेमिसाल मूरत थी. उसे देख कर आनंद किशोर उस पर मोहित हो गया. वह उसे दिलोजान से चाहने लगा. कंचन यह जानती थी कि आनंद किशोर कालेज मालिक का बेटा है, इसलिए उस ने भी उस की तरफ कदम बढ़ाने में अपनी भलाई समझी. उसे लगा कि आनंद ही उस के सपनों का राजकुमार है. जब चाहतें दोनों की पैदा हुईं तो प्यार का बीज अंकुरित हो गया.

कंचन आनंद के साथ घूमनेफिरने लगी. इस दौरान उन के बीच अवैध संबंध भी बन गए. आनंद के प्यार में कंचन ऐसी दीवानी हुई कि घर भी देरसवेर पहुंचने लगी. मां उसे टोकती तो कोई न कोई बहाना बना देती. उमा देवी उस की बात पर सहज ही विश्वास कर लेती थी. लेकिन विश्वास की भी कोई सीमा होती है. कंचन जब आए दिन देरी से घर पहुंचने लगी तो उमा देवी का माथा ठनका. उस ने पति शिवपूजन को कंचन पर नजर रखने को कहा. शिवपूजन ने कंचन की निगरानी की तो जल्द ही सच्चाई सामने आ गई. उन्हें पता चला कि कंचन कालेज प्रबंधक के बेटे आनंद किशोर के प्रेम जाल में फंस गई है और उसी के साथ गुलछर्रे उड़ाती है.

शिवपूजन ने इस सच्चाई से पत्नी को अवगत कराया तो उमा देवी ने माथा पीट लिया. पतिपत्नी ने इस मुद्दे पर विचारविमर्श किया और बदनामी से बचने के लिए कंचन का विवाह जल्दी करने का निश्चय किया. तब तक कंचन बीएससी पास कर चुकी थी, इसलिए मां ने एक दिन उस से कहा, ‘‘कंचन, अब तेरा बीएससी पूरा हो चुका है. अब स्कूल में पढ़ाना छोड़ दे. प्राइवेट नौकरी से तेरा भला होने वाला नहीं है.’’

कंचन ने कुछ कहना चाहा तो मां ने बात साफ कर दी, ‘‘क्या यह सच नहीं है कि तेरे और आनंद के बीच गलत रिश्ता है. तुम दोनों के प्यार के चर्चे पूरे स्कूल में हो रहे हैं, इसलिए अब तू उस स्कूल में पढ़ाने नहीं जाएगी.’’

उमा देवी ने जो कहा था, वह सच था. स्कूल प्रबंधक हाकिम सिंह भी उसे सावधान कर चुके थे. पर अपने बेटे आनंद के कारण वह उसे स्कूल से निकाल नहीं पा रहे थे. चूंकि सच्चाई सामने आ गई थी. इसलिए कंचन ने भी स्कूल छोड़ने का मन बना लिया. उस ने इस बात से आनंद किशोर को भी अवगत करा दिया. चूंकि बेटी के बहकते कदमों से शिवपूजन परेशान थे, इसलिए उन्होंने कंचन के लिए घरवर की तलाश शुरू कर दी. कुछ महीने की भागदौड़ के बाद उन्हें एक लड़का पसंद आ गया. लड़के का नाम था अनुपम कुमार.

अनुपम कुमार के पिता रामशरण मैनपुरी जिले के किशनी थानांतर्गत गांव खड़ेपुर के रहने वाले थे. 3 भाईबहनों में अनुपम कुमार सब से बड़ा था. रामशरण के पास 5 बीघा जमीन थी. उसी की उपज से परिवार का भरणपोषण होता था. अनुपम गुरुग्राम (हरियाणा) में प्राइवेट नौकरी करता था. दोनों तरफ से बातचीत हो जाने के बाद 7 फरवरी, 2014 को धूमधाम से कंचन का विवाह अनुपम के साथ हो गया. शादी के एक महीने बाद जब अनुपम नौकरी पर चला गया तो कंचन मायके आ गई. कंचन कुछ दिन बाद आनंद से मिली तो उस ने शादी करने को ले कर शिकवाशिकायत की. कंचन ने उसे धीरज बंधाया कि जिस तरह वह उसे शादी के पहले प्यार करती थी, वैसा ही करती रहेगी.

कंचन जब भी मायके आती, आनंद के साथ खूब मौजमस्ती करती. आनंद किशोर के माध्यम से कंचन अपना भविष्य भी बनाना चाहती थी, वह मैडिकल लाइन में जाने के लिए प्रयासरत थी. दरअसल, वह एएनएम बनना चाहती थी. इधर पिता के दबाव में आनंद किशोर ने भी ऊषा नाम की खूबसूरत युवती से शादी कर ली. लेकिन खूबसूरत पत्नी पा कर भी आनंद किशोर कंचन को नहीं भुला पाया. वह उस से संपर्क बनाए रहा. आनंद किशोर के पास ओमनी कार थी. इसी कार से वह कंचन को कभी आगरा तो कभी बटेश्वर घुमाने ले जाता था. आनंद की पत्नी ऊषा को उस के और कंचन के नाजायज रिश्तों की जानकारी नहीं थी. वह तो पति को दूध का धुला समझती थी.

सन 2017-18 में कंचन का चयन बीएससी नर्सिंग के 2 वर्षीय एएनएम प्रशिक्षण के लिए हो गया. सैफई मैडिकल कालेज में कंचन एएनएम की ट्रैनिंग करने लगी. वह वहीं के हौस्टल में रहने भी लगी. कंचन का जब कहीं बाहर घूमने का मन करता तो वह प्रेमी आनंद को फोन कर बुला लेती थी. आनंद अपनी कार ले कर कंचन के मैडिकल कालेज पहुंच जाता, फिर दोनों दिन भर मस्ती करते. आनंद कंचन की भरपूर आर्थिक भी मदद करता था और उस की सभी डिमांड भी पूरी करता था. आनंद ने कंचन को एक महंगा मोबाइल भी खरीद कर दिया था. इसी मोबाइल से वह आनंद से बात करती थी.

कंचन आनंद किशोर से प्यार जरूर करती थी, लेकिन उस का अपने पति अनुपम कुमार से भी खूब लगाव था. वह हर रोज पति से बतियाती थी. अनुपम भी उस से मिलने उस के कालेज आताजाता रहता था. इस तरह कंचन ने एएनएम प्रथम वर्ष का प्रशिक्षण प्राप्त कर द्वितीय वर्ष में प्रवेश ले लिया. कंचन और उस के प्रेमी आनंद किशोर के रिश्तों में दरार तब पड़ी, जब आनंद ने शहरी क्षेत्र में 5-6 लाख की जमीन अपनी पत्नी ऊषा के नाम खरीदी. यह जमीन खरीदने की जानकारी जब कंचन को हुई तो उस ने विरोध जताया, ‘‘आनंद, ऊषा तुम्हारी घरवाली है तो मैं भी तो बाहरवाली हूं. मुझे भी 3 लाख रुपए चाहिए.’’

धीरेधीरे कंचन आनंद को ब्लैकमेल करने पर उतर आई. अब जब भी दोनों मिलते, कंचन रुपयों की डिमांड करती. असमर्थता जताने पर कंचन दोनों के रिश्तों को सार्वजनिक करने तथा ऊषा को सब कुछ बताने की धमकी देती. कंचन की ब्लैकमेलिंग और धमकी से आनंद घबरा गया. आखिर उस ने इस समस्या से निजात पाने के लिए कंचन की हत्या करने की योजना बना ली. 24 सितंबर, 2019 की दोपहर आनंद किशोर ने कंचन को घूमने के लिए राजी किया. फिर पौने 2 बजे वह अपनी कार ले कर सैफई मैडिकल कालेज पहुंच गया. कंचन हौस्टल से यह कह कर निकली कि वह हौस्पिटल जा रही है. लेकिन वह आनंद किशोर की कार में बैठ कर घूमने निकल गई. आनंद उसे बटेश्वर ले कर गया और कई घंटे सैरसपाटा कराता रहा.

वापस लौटते समय कंचन ने उस से पैसों की डिमांड की. इस बात को ले कर दोनों में कहासुनी भी हुई. तब तक शाम के 7 बज चुके थे और अंधेरा छाने लगा था. आनंद किशोर ने अपनी कार जसवंतनगर क्षेत्र के भितौरा नहर पर रोकी और फिर सीट पर बैठी कंचन को दबोच कर उसे चाकू से गोद डाला. हत्या करने के बाद उस ने कंचन के शव को नहर में फेंक दिया. फिर वहीं नहर की पटरी किनारे खून से सने कपडे़ जला दिए. वहां से चल कर आनंद ने जगसौरा बंबा पर कार रोकी. वहां उस ने कंचन के दोनों मोबाइल फोन तोड़ कर झाड़ी में फेंक दिए. साथ ही खून सना चाकू भी झाड़ी में फेंक दिया. इस के बाद वह वापस घर आ गया. किसी को कानोंकान खबर नहीं लगी कि उस ने हत्या जैसी वारदात को अंजाम दिया है.

24 सितंबर को करीब पौने 2 बजे अनुपम कुमार की कंचन से बात हुई थी. उस के बाद जब बात नहीं हुई तो वह सैफई आ गया और कंचन की गुमशुदगी दर्ज कराई. सैफई पुलिस 18 दिनों तक लापता कंचन का पता लगाने में जुटी रही. उस के बाद हत्या का खुलासा हुआ. लेकिन कंचन की लाश फिर भी बरामद नहीं हुई. 14 अक्तूबर, 2019 को थाना सैफई पुलिस ने हत्यारोपी आनंद किशोर को इटावा कोर्ट में रिमांड मजिस्ट्रैट ए.के. सिंह की अदालत में पेश किया, जहां से उसे जिला कारागार भेज दिया गया. सैफई पुलिस कंचन की लाश बरामद करने के प्रयास में जुटी थी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित