Extramarital Affair : देह सुख के लिए

Extramarital Affair : संजय और कंचन की गृहस्थी बढि़या चल रही थी. दोनों 2 प्यारेप्यारे बच्चों के मांबाप भी थे. इस के बावजूद संजय में ऐसा क्या बदलाव आ गया कि कंचन को पड़ोसी मनीष ज्यादा भाने लगा.15  दिसंबर, 2014 की सुबह करीब 10 बजे थाना बरौर के थानाप्रभारी संजय कुमार अपने कक्ष में बीती रात पकड़े गए 2 अपराधियों से पूछताछ कर रहे थे कि तभी एक अधेड़ उन के पास आया. थानाप्रभारी ने एक सरसरी नजर उस पर डाली. वह बेहद घबराया हुआ लग रहा था. उन्होंने पूछा, ‘‘कहां से आए हो? क्या काम है?’’

‘‘साब, मैं बसहरा गांव से आया हूं. मेरा नाम गोपीचंद है. बीती रात हमारे भतीजे संजय की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गई है.’’

‘‘क्या मतलब?’’ थानाप्रभारी संजय कुमार ने गोपीचंद्र के चेहरे पर नजरें गड़ाते हुए पूछा.

‘‘यह बात मैं इसलिए कह रहा हूं कि उसे कोई बीमारी नहीं थी. देर शाम तक वह मुझ से बतियाता रहा था, उस के बाद घर जा कर सो गया था. मुझे सुबह जानकारी मिली कि उस की मौत हो गई है. मुझे शक है कि उस की मौत स्वाभाविक नहीं है, मुझे लगता है उस की हत्या की गई है.’’

‘‘तुम्हें किसी पर शक है?’’

‘‘जी साब,’’

‘‘किस पर?’’

‘‘साब, यकीन के साथ तो नहीं कह सकता, लेकिन मुझे बहू कंचन पर शक है.’’

‘‘वह कैसे?’’

‘‘मुझे कंचन पर इसलिए शक है, क्योंकि पड़ोस का एक लड़का मनीष उस के यहां आता रहता है. उसे ले कर संजय और कंचन के बीच अकसर झगड़ा होता रहता था. इसीलिए मैं यह बात कह रहा हूं.’’

गोपीचंद की बात सुन कर थानाप्रभारी संजय कुमार सबइंसपेक्टर आर.के. शुक्ला, कांस्टेबल अमर सिंह, शिवप्रताप तथा नीलेश कुमार को साथ ले कर बसहरा गांव की तरफ रवाना हो गए. बसहरा गांव थाने से 5 किलोमीटर दूर औरैया रोड पर है. इसलिए 10-15 मिनट में वह वहां पहुंच गए. गोपीचंद थानाप्रभारी को उस कमरे में ले गया, जहां उस के भतीजे संजय की लाश पड़ी थी. पुलिस को देख कर एक औरत छाती पीटपीट कर रोने लगी. पता चला कि वह मृतक की पत्नी कंचन थी. वहां गांव के और लोग भी मौजूद थे. थानाप्रभारी ने लाश की जांच की तो उस के शरीर पर चोट का कोई निशान नजर नहीं आया. गले में खरोंच का निशान तथा हलकी सूजन जरूर थी.

मरने वाले की उम्र यही कोई 35 साल के आसपास थी. जामा तलाशी में उस की पैंट की जेब से 70 रुपए, पान मसाला के 2 पाउच तथा एक डायरी मिली, जिस में घरगृहस्थी का हिसाब तथा कुछ नातेरिश्तेदारों के नामपते लिखे थे. निरीक्षण के बाद थानाप्रभारी ने मृतक संजय के शव का पंचनामा भरा और सीलमोहर कर के माती स्थित पोस्टमार्टम हाउस भिजवा दिया. मृतक की पत्नी कंचन का रोनाधोना अब तक बंद हो गया था. थानाप्रभारी ने उस से पूछताछ की तो उस ने बताया कि उस का पति संजय देर रात घर आया और खाना खा कर कमरे में सो गया. सुबह जब वह 8 बजे तक नहीं उठा तो वह उस के कमरे में गई. रजाई हटा कर देखा तो उस की धड़कनें बंद थीं.

वह घबरा गई और जोरजोर से चीखनेचिल्लाने लगी. उस की आवाज सुन कर पासपड़ोस के लोग आ गए.

‘‘क्या तुम बता सकती हो कि संजय की मौत कैसे हुई होगी?’’ थानाप्रभारी ने पूछा, ‘‘क्या संजय नशा भी करता था?’’

‘‘सर, वह शराब, गांजा, अफीम जैसी नशीली चीजों का सेवन करते थे. उन की मौत या तो हार्टअटैक से हुई है या फिर ज्यादा नशा करने से.’’ कंचन ने जवाब में कहा. कंचन से पूछताछ के बाद थानाप्रभारी को उस पर शक हुआ, क्योंकि जैसा दुख पति की मौत पर एक जवान औरत के चेहरे पर झलकना चाहिए, वैसा कंचन के चेहरे पर नहीं था. रोनेधोने का भी उस ने नाटक ही किया था, आंखों से आंसू नहीं निकल रहे थे. पुलिस और मौजूद लोगों की गतिविधियों पर भी वह विशेष नजर रख रही थी. चचिया ससुर गोपीचंद को वह नफरत से घूर रही थी. चूंकि कंचन के खिलाफ उन के पास कोई सुबूत नहीं था, इसलिए उन्होंने उसे गिरफ्तार नहीं किया.

अगले दिन थानाप्रभारी को संजय की पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिली तो रिपोर्ट पढ़ कर वह चौंके. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में बताया गया था कि उस की मौत गला कसने से हुई थी. उस ने शराब नहीं पी थी और उस ने मृत्यु से पूर्व खाना भी नहीं खाया था. हत्या की पुष्टि होने पर थानाप्रभारी ने कंचन को पूछताछ के लिए थाने बुलवा लिया. महिला दरोगा सरला यादव ने कंचन से सख्ती से पूछताछ की तो उस ने पति की हत्या की सारी सच्चाई बयां कर दी. उस ने बताया कि पति की हत्या उस ने अपने प्रेमी मनीष के साथ मिल कर की थी. हत्या में मनीष का नाम आने पर पुलिस ने उस के घर पर दबिश दी, लेकिन वह फरार हो गया था. तब पुलिस ने उस के घर वालों पर दबाव बनाया.

घर वालों के सहयोग से पुलिस ने मनीष को भी गिरफ्तार कर लिया. उस ने भी हत्या का जुर्म कुबूल कर लिया. दोनों अभियुक्तों से की गई पूछताछ में एक ऐसी नारी की कहानी सामने आई, जिस ने देहसुख के लिए अपने पति की आहुति दे दी थी. उत्तर प्रदेश के कानपुर देहात जनपद के पुखरायां कस्बे में रामगोपाल अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी के अलावा 3 बेटियां और 2 बेटे थे. कंचन उसी की छोटी बेटी थी. रामगोपाल की कस्बे में ही लकड़ी की टाल थी. उसी की कमाई से पूरे परिवार का भरणपोषण होता था. कंचन ने जवानी की दहलीज पर कदम रखा तो उस के रूपरंग में और निखार आ गया. रामगोपाल दोनों बड़ी बेटियों की शादी कर चुका था.

छोटी बेटी कंचन के जवान होने पर उसे उस के विवाह की चिंता सताने लगी थी. वह उस के लिए योग्य वर खोजने लगा. काफी भागदौड़ के बाद रामगोपाल को कंचन के लिए संजय पसंद आ गया. संजय कानपुर देहात के ही बरौर बसहरा गांव के रहने वाले रामचंद्र का बेटा था. वह अपनी खेतीकिसानी करता था. रीतिरिवाज से कंचन का विवाह संजय के साथ कर दिया गया. संजय सीधासादा था, जबकि कंचन तेजतर्रार व चंचल स्वभाव की थी. वह न तो अपने ससुर से परदा करती थी और न ही चचिया ससुर से. गांव में भी वह हमेशा बनसंवर कर रहती थी. कंचन की ये आदतें उस की सास को अच्छी नहीं लगती थीं.

कंचन को ससुराल में रहते 2 साल भी नहीं बीते थे कि चचिया सास लक्ष्मी से उस का मनमुटाव हो गया. गोपीचंद्र उस समय अपने बड़े भाई रामचंद्र के साथ संयुक्त परिवार में रहता था. कंचन और लक्ष्मी में जब रोजरोज झगड़ा होने लगा तो लक्ष्मी अपने पति गोपीचंद के साथ अलग रहने लगी. इस के बाद जमीन तथा मकान का भी बंटवारा हो गया. रामचंद्र नहीं चाहता था कि उस का भाई उस से अलग रहे. इस बंटवारे से वह इतना दुखी हुआ कि घर छोड़ कर चला गया और संन्यासी बन गया. उस के घर छोड़ने के एक साल के अंदर ही उस की पत्नी की भी मौत हो गई. अब घर में कंचन और उस का पति संजय ही रह गया. कंचन को अब कोई रोकनेटोकने वाला तो था नहीं, इसलिए वह पूरी तरह स्वच्छंद हो गई.

कुछ समय यूं ही बीत चला. इस दरम्यान कंचन 2 बार गर्भवती हुई. पर किसी वजह से उस का दोनों ही बार गर्भ गिर गया. कंचन को लगा कि कोई व्याधा उस का गर्भ गिरा देती है. अत: वह तांत्रिकों के पास जाने लगी. उन के पास जाने के बाद कंचन ने 2 बच्चों के जन्म दिया, जिन में एक बेटा और एक बेटी हुई. 2 बच्चों की मां बनने के बाद भी कंचन के शरीर में कसाव था, ऊपर से वह बनसंवर कर रहती थी. वह चाहती थी कि पति उसे बहुत प्यार करे, लेकिन संजय उस की भावना को नहीं समझता था. वह दिन भर खेतीबाड़ी के काम से थकामांदा घर लौटता और खाना खा कर जल्द ही सो जाता. पति की बेरुखी से कंचन ने देहरी लांघने का फैसला कर लिया. अब उस का मन आसपास रहने वाले ऐसे मर्द की तलाश करने लगा, जो उसे भरपूर प्यार दे सके.

उसी समय उस का ध्यान पड़ोस में रहने वाले 24-25 वर्षीय मनीष की तरफ गया. पढ़नेलिखने में तेज मनीष बीए पास कर चुका था और सरकारी नौकरी पाने की कोशिश में लगा था. वह अकसर उस के यहां आताजाता भी रहता था. वह उसे भाभी कहता था. इस नाते दोनों के बीच हलकाफुलका मजाक भी होता रहता था. मनीष, कंचन से 8-10 साल छोटा जरूर था, लेकिन उस का गठीला बदन कंचन को भा गया था. धीरेधीरे कंचन ने उस पर अपने रूप का जादू चलाना शुरू कर दिया. कुछ ही दिनों में मनीष को उस ने अपने रूप और बातों के जाल में फांस लिया. मनीष भी इतना नासमझ नहीं था, जो कंचन के हावभाव का मतलब न समझता. दोनों ही धीरेधीरे अपनी हदें लांघने लगे और एक दिन ऐसा भी आ गया, जब उन्होंने अपनी हसरतें पूरी कर लीं. अपने से छोटे युवक का प्यार पा कर कंचन फूली नहीं समा रही थी.

इस के बाद एक साल तक उन का यह खेल बेरोकटोक चलता रहा. संजय को इन संबंधों की भनक तक नहीं लगी. वह रोज सुबह खेतों पर निकल जाता और अंधेरा होने पर घर लौटता. उसे क्या पता था कि पत्नी क्या गुल खिला रही है. लेकिन मनीष का जब कंचन के यहां आनाजाना ज्यादा बढ़ गया तो पासपड़ोस की औरतों तथा चचिया सास लक्ष्मी को उन दोनों के रिश्तों पर शक होने लगा. बाद में संजय को पत्नी के संबंधों की जानकारी हुई तो उसे बड़ा दुख हुआ. सच्चाई अपनी आंखों से देखने के लिए संजय अब कंचन व मनीष पर नजर रखने लगा. एक दिन उस ने दोनों को अपने यहां रंगेहाथ पकड़ लिया. पति को सामने देख कर कंचन घबरा गई. मनीष तो सिर पर पैर रख कर भाग गया.

संजय का सारा गुस्सा कंचन पर फूटा. उस ने उस की खूब पिटाई की. तब कंचन ने माफी मांगते हुए वादा किया कि अब वह मनीष से कभी नहीं मिलेगी. लेकिन कहते हैं कि औरत एक बार बहक जाए तो उस का संभलना मुश्किल होता है. कंचन अपने जेहन से मनीष की यादों को निकाल नहीं पा रही थी. बहरहाल उस ने मनीष से मिलनाजुलना फिर से शुरू कर दिया. लेकिन अब वह पहले से ज्यादा सावधानी बरतने लगी थी. कंचन भले ही पति की नजरों से बच कर रंगरलियां मना रही थी, लेकिन मोहल्ले वालों की नजरों को वह कैसे धोखा दे सकती थी. यानी मोहल्ले में कंचन और मनीष के संबंधों को ले कर फिर चर्चाएं होने लगीं.

पत्नी की बदचलनी के कारण संजय का गांव में सिर उठा कर चलना दूभर हो गया था. लोग उस पर फब्तियां कसने लगे थे. जिस से वह तिलमिला उठता था. घर आ कर वह सारा गुस्सा कंचन पर उतारता था.  घर में रोजरोज की कलह से तंग आ कर संजय शराब पीने लगा. जिस दिन शराब नहीं मिलती, उस दिन वह चरस, गांजा आदि पीता. इस नशाखोरी के कारण संजय की आर्थिक स्थिति भी खराब हो गई. नशा के लिए उस ने कंचन के गहने तक बेच डाले. कंचन विरोध करती तो वह उसे जलील करता और पीट देता. पति की पिटाई से कंचन परेशान रहने लगी. कलह के कारण उस ने दोनों बच्चों को अपने मायके भेज दिया.

पिटाई के बावजूद कंचन अपने प्रेमी मनीष को नहीं भुला पाई. एक रोज वह मनीष से बोली, ‘‘मनीष, मैं तुम्हारे बगैर नहीं जी सकती. अब मुझे हमेशा के लिए तुम्हारा साथ चाहिए.’’

‘‘संजय भैया के रहते यह संभव नहीं है. वह हम दोनों के मिलन में दीवार बने हैं.’’

‘‘तो उस दीवार को ढहा क्यों नहीं देते. वैसे भी नशेड़ीगंजेड़ी पति से मैं नफरत करती हूं. कंचन ने अपनी मंशा जाहिर की.’’

‘‘तो ठीक है, जिस दिन मौका मिलेगा, उस दिन यह काम कर दूंगा.’’ मनीष ने वादा किया.

14 दिसंबर, 2014 की रात गांव के प्रधान नरेश पांडेय के घर कीर्तन का आयोजन था. संजय भी कीर्तन सुनने वहां गया था. कंचन को उम्मीद थी कि वह अब आधी रात से पहले घर नहीं लौटेगा. इसलिए मौका देख कर उस ने मनीष को फोन कर के अपने यहां बुला लिया. इस के बाद दोनों जिस्म का खेल खेलने में व्यस्त हो गए. संजय का मन कीर्तन में नहीं लगा तो वह घर की ओर चल पड़ा. रास्ते में उसे चाचा गोपीचंद्र मिल गए. वह उन से कुछ देर बतियाता रहा, फिर घर पहुंचा. उस ने घर की कुंडी खटखटाई, लेकिन दरवाजा नहीं खुला. संजय ने सोचा कि शायद कंचन सो गई होगी. अत: वह पिछवाड़े की दीवार फांद कर घर में दाखिल हुआ. दबे पांव वह कमरे में पहुंचा तो वहां का दृश्य देख कर उस का क्रोध सातवें आसमान पर पहुंच गया. उस की पत्नी और मनीष आपत्तिजनक स्थिति में थे.

संजय को देखते ही वे दोनों उठ गए और कपड़े पहनने लगे. लेकिन दोनों ही बेहद घबरा रहे थे. संजय ने गुस्से में कंचन के गाल पर 2-3 थप्पड़ जड़ दिए. इस के बाद वह मनीष से भिड़ गया. मनीष ने उसे धक्का दिया तो वह लड़खड़ा कर जमीन पर गिर पड़ा. उसी समय कंचन ने प्रेमी को उकसाया, ‘‘देखते क्या हो मनीष, आज इस बाधा को दूर ही कर दो. आखिर मैं कब तक इस के जुल्म सहती रहूंगी.’’

यह सुनते ही मनीष संजय की छाती पर सवार हो गया और दोनों हाथों से उस का गला दबाने लगा. संजय हाथपैर पटकने लगा तो कंचन ने उस के पैर दबोच लिए. कुछ ही देर में संजय की सांसें थम गईं. हत्या करने के बाद दोनों ने कमरा दुरुस्त किया और संजय की लाश को चारपाई पर लिटा कर रजाई से ढंक दिया. मनीष व कंचन संजय के शव को गांव के बाहर झाडि़यों में फेंकना चाहते थे, लेकिन गांव में कीर्तन होने के कारण चहलपहल थी, इसलिए वे हिम्मत नहीं जुटा सके. मनीष तो रात के अंतिम पहर में वहां से फरार हो गया और कंचन सवेरा होते ही त्रियाचरित्र का नाटक कर रोनेचीखने लगी.

उस की चीखपुकार सुन कर पासपड़ोस के लोग आ गए. उन सब को कंचन ने बताया कि पता नहीं कैसे रात में संजय की मौत हो गई. गोपीचंद को जब भतीजे संजय की मौत का पता चला तो उन्हें शक हुआ. अत: वह रिपोर्ट दर्ज कराने थाना बरौर पहुंच गए. पुलिस ने मनीष और कंचन को संजय की हत्या के आरोप में गिरफ्तार कर कानपुर देहात की माती अदालत में रिमांड मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया, जहां से दोनों को जिला कारागार भेज दिया गया. कथा संकलन तक उन की जमानत नहीं हो सकी थी. Extramarital Affair

—कथा पुलिस सूत्रो

Bareilly News : बॉयफ्रेंड बना काल

Bareilly News : इमरान प्रियांगी उर्फ प्रिया को प्यार ही नहीं करता था, बल्कि धर्मांतरण करा कर उस से शादी करना चाहता था. इतना गहरा प्रेम होने के बावजूद दोनों के बीच ऐसा क्या हुआ कि इमरान को प्रियांगी उर्फ प्रिया के खून से हाथ रंगने पड़े. बरेली के थाना प्रेमनगर की शास्त्रीनगर कालोनी के रहने वाले राजेश गंगवार थे तो इंजीनियर, लेकिन जब उन्हें नौकरी रास नहीं आई तो वह समाजसेवा में जुट गए. दिल्ली के चर्चित निर्भया सामूहिक दुष्कर्म कांड के विरोध में 17 दिनों तक चले आंदोलन में उन्होंने बढ़चढ़ कर भाग लिया था. उन के परिवार में पत्नी पुष्पा के अलावा 2 बच्चे थे, बेटी प्रियांगी उर्फ प्रिया और बेटा प्रियांश.

प्रिया बीटेक करने के बाद मेरठ के साईं कालेज से बीएड कर रही थी, जबकि बेटा प्रियांश एनआईटी, कालीकट, केरल से बीटेक कर रहा था. नवंबर, 2014 के पहले हफ्ते में प्रिया अपने घर बरेली आई थी. उसे आंखों में तकलीफ थी, इसलिए 5 नवंबर की दोपहर को 2 बजे वह अपनी स्कूटी से डा. भृमरेश शर्मा के आई क्लीनिक जाने के लिए घर से निकली. उन का क्लीनिक धर्मकांटा के पास था. प्रिया को घर से निकले एक घंटे से ज्यादा हो गया था. अब तक उसे घर लौट आना चाहिए था, लेकिन जब वह घर नहीं लौटी तो पिता राजेश ने उसे फोन किया. फोन बंद था, इसलिए बात नहीं हो सकी. प्रिया कभी फोन बंद नहीं करती थी, इसलिए राजेश को थोड़ी चिंता हुई.

थोड़ीथोड़ी देर में वह बेटी को फोन करते रहे, लेकिन हर बार फोन बंद मिला. जब प्रिया का फोन नहीं मिला तो वह डा. भृमरेश शर्मा के क्लीनिक जा पहुंचे. वहां पता चला कि प्रिया ढाई बजे के करीब दवा ले कर चली गई थी. दवा ले कर प्रिया को घर जाना चाहिए था. घर जाने के बजाय बिना बताए वह कहां चली गई? इस बात को ले कर राजेश गंगवार परेशान हो उठे. घर आ कर उन्होंने यह बात पत्नी को बताई तो वह भी परेशान हो गईं. संभावित जगहों पर उन्होंने उस की तलाश शुरू की, लेकिन कहीं भी उस का पता नहीं चला. बेटी को ढूंढ़तेढूंढ़ते काफी रात हो गई तो वह घर आ गए.

जवान लड़कियों के गायब होने पर पहले यही सोचा जाता है कि कहीं वह अपने प्रेमी के साथ भाग तो नहीं गईं? लेकिन राजेश और पुष्पा की नजरों में प्रिया ऐसी लड़की नहीं थी. वह उन से कोई बात नहीं छिपाती थी. इसलिए उन्हें उस के किसी के साथ भाग जाने की बात पर विश्वास नहीं हो रहा था. उन्हें लग रहा था कि जरूर उस के साथ कोई अनहोनी घट गई है. बेटी की चिंता में रात भर पतिपत्नी को नींद नहीं आई.  सुबह होते ही राजेश गंगवार ने फिर बेटी की तलाश शुरू कर दी. प्रिया की एक सहेली थी शालिनी, जो डीडीपुरम में रहती थी. उस ने और प्रिया ने साथसाथ बीटेक किया था. जब उसे प्रिया के गायब होने की जानकारी हुई तो वह उस के घर आ पहुंची.

उस ने प्रिया की मां पुष्पा को बताया कि कल दोपहर को वह प्रिया के साथ राजेंद्रनगर स्थित इमरान के औफिस गई थी. प्रिया और इमरान में किसी बात को ले कर जोरजोर से झगड़ा होने लगा तो उन्हें झगड़ते देख वहां से अपने घर चली गई थी. घर आने के बाद देर रात को इमरान ने उसे फोन कर के धमकाया था कि अगर उस ने प्रिया के साथ उस के औफिस आने वाली बात किसी को बताई तो उस के लिए अच्छा नहीं होगा. इस से वह तो फंसेगा ही, साथ ही वह भी फंस जाएगी. पुष्पा ने यह बात पति को बताई. राजेश गंगवार इमरान को जानते थे. पत्नी की बात सुन कर राजेश को इमरान पर शक हुआ. वह तुरंत थाना प्रेमनगर पहुंचे और इंसपेक्टर अशोक सिंह को पूरी बताई.

उन्होंने सीबीगंज थाना क्षेत्र के तिलियापुर गांव के रहने वाले इमरान पर बेटी के गायब करने का शक जताया था. उन के इसी शक के आधार पर थानाप्रभारी अशोक सिंह ने प्रियांगी उर्फ प्रिया की गुमशुदगी दर्ज कर ली थी. प्रिया की गुमशुदगी दर्ज किए 3 दिन बीत गए, लेकिन थाना प्रेमनगर पुलिस ने इमरान को पूछताछ तक के लिए थाने नहीं बुलाया. इस के बाद 10 नवंबर को राजेश गंगवार एडीशनल एसपी राजीव मल्होत्रा से मिले. उस समय सीओ (प्रथम) असित श्रीवास्तव भी वहां मौजूद थे. एडीशनल एसपी ने असित श्रीवास्तव से कहा कि तुरंत प्रियांगी के अपहरण की रिपोर्ट दर्ज कराएं और इस मामले में क्या हो सकता है, इसे देखें.

रिपोर्ट दर्ज करने के लिए सीओ ने राजेश गंगवार को थाने भेज दिया. राजेश गंगवार थाना प्रेमनगर पहुंचे तो इंसपेक्टर अशोक सिंह ने एडीशनल एसपी के आदेश के बावजूद प्रियांगी के अपहरण का मुकदमा दर्ज नहीं किया. हां, इमरान रजा खान को पूछताछ के लिए थाने जरूर बुलवा लिया. उन्होंने उस से प्रियांगी के बारे में पूछा तो वह इधरउधर की बातें करने लगा. लेकिन जब अशोक सिंह ने थोड़ी सख्ती की तो इमरान ने उन्हें जो बताया उस के अनुसार, उस की और प्रिया की दोस्ती करीब 2 साल से थी. 5 नवंबर, 2014 को वह उस के राजेंद्रनगर स्थित स्पीड ग्रुप औफ कंपनीज के औफिस आई थी. औफिस की 3 चाबियां थीं, एक उस के पास रहती थी, दूसरी प्रिया के पास और तीसरी उस के यहां काम करने वाली एक अन्य लड़की अनुपम के पास.

प्रिया के उस पर 6 हजार रुपए निकल रहे थे. उस दिन वह अपने 6 हजार रुपए ले कर चली गई थी. रात साढे़ 8 बजे उस ने प्रिया को फोन किया तो उस ने फोन नहीं उठाया. उसी समय वह औफिस पहुंचा तो वहां प्रिया की लाश पंखे से लटकी मिली. प्रिया को उस हालत में देख कर वह डर गया. पुलिस के लफड़े से बचने के लिए उस ने उस की लाश उतार कर एक बोरी में भरी और उसे ठिकाने लगाने के लिए अपनी बाइक से नैनीताल रोड स्थित बिलवा पुल के आगे सड़क किनारे एक गड्ढे में फेंक आया. अगले दिन वह प्रिया की स्कूटी से वहां गया और फावड़े से लाश पर मिट्टी डाल कर वहां से कुछ दूरी पर उस की स्कूटी खड़ी कर के अपने औफिस आ गया.

इस पूछताछ से पुलिस को पता चल गया था कि प्रिया की मौत हो चुकी है. इसलिए उस की लाश बरामद करने के लिए पुलिस इमरान को उस जगह पर ले गई, जहां उस ने लाश दफन करने की बात बताई थी. राजेश गंगवार की मौजूदगी में इमरान द्वारा बताई जगह पर पुलिस ने खुदाई कराई तो वहां औंधे मुंह बैग में पड़ी एक लड़की की लाश मिली. उसे सीधा किया गया तो वह लाश प्रिया की ही थी. उसे देखते ही राजेश गंगवार रोने लगे. उसे दफनाए कई दिन बीत चुके थे, इसलिए लाश काफी सड़गल गई थी. प्रिया के कपड़े फटे हुए थे. पैरों में चप्पलें थीं, लेकिन उस के गले की सोने की चेन नहीं थी. उस का मोबाइल भी नहीं था और न ही वे 6 हजार रुपए मिले, जो उस ने इमरान से लिए थे.

उस की लाश से कुछ दूरी पर एक खेत में प्रिया की स्कूटी अलगअलग पार्ट्स में खुली मिली. मौके पर जरूरी काररवाई निपटाने के बाद पुलिस ने प्रिया की लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. इमरान ने जिस तरह प्रिया की लाश को आननफानन में चोरीछिपे ठिकाने लगाया था, उस से पुलिस को लगा कि यह मामला आत्महत्या का नहीं हो सकता. इसलिए पुलिस ने उस से सख्ती से पूछताछ की तो इमरान टूट गया. उस ने बताया कि प्रिया ने सुसाइड नहीं किया था, बल्कि उस ने तिलियापुर के रहने वाले अपने दोस्त गुड्डू के साथ मिल कर उस की हत्या की थी. हत्या की वजह उस ने यह बताई कि अपने पैसे मांगते समय प्रिया ने उसे बेइज्जत किया था.

उसी बेइज्जती का बदला लेने के लिए उस ने उसे मार डाला. पूछताछ के बाद पुलिस ने इमरान को 17 नवंबर, 2014 को न्यायालय में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. पुलिस ने आननफानन में इमरान को जेल तो भेज दिया, लेकिन यह बात किसी के गले नहीं उतर रही थी कि अकेला इमरान लाश को मोटरसाइकिल पर रख कर कैसे ले गया था? लाश को ठिकाने लगाने में निश्चित उस के साथ और लोग रहे होंगे. इंसपेक्टर अशोक सिंह ने एक बार फिर इमरान के औफिस से लाश ठिकाने लगाने वाली जगह तक का बारीकी से मुआयना किया.

उस रास्ते में उन्हें कई जगहों पर सीसीटीवी कैमरे लगे दिखाई दिए. उन्होंने उन सीसीटीवी कैमरों की फुटेज निकलवाई. एक फुटेज में एक औटो में कुछ युवक बैठे दिखाई दिए. उस औटो को इमरान चला रहा था और उस में एक बड़ा सा बैग भी रखा नजर आ रहा था. औटो में एक लंबा व्यक्ति भी बैठा था. इस के बाद उन्होंने इमरान के फोन नंबर की काल डिटेल्स और लोकेशन भी निकलवाई. इंसपेक्टर अशोक सिंह इस से आगे की जांच करते, उस से पहले उन का ट्रांसफर हो गया. उन की जगह पर इंसपेक्टर विद्याराम दिवाकर नए थानाप्रभारी आए. जाते समय इंसपेक्टर अशोक सिंह ने विद्याराम दिवाकर को इस मामले की पूरी जानकारी दे दी थी. चार्ज लेने के बाद इंसपेक्टर विद्याराम ने आगे की जांच शुरू की.

समाजसेवी राजेश गंगवार की बेटी की हत्या के विरोध में कई सामाजिक संगठनों के साथ मिल कर शहर वालों ने कैंडिल मार्च निकाला. अन्य अभियुक्तों को जल्द गिरफ्तार कर के उन के खिलाफ सख्त काररवाई करने की मांग को ले कर राजेश गंगवार 16 नवंबर से अनिश्चित कालीन अनशन पर बैठ गए. कई सामाजिक संगठनों ने उन का साथ दिया. 11 दिनों बाद पुलिस प्रशासन की नींद टूटी. जिले के पुलिस अधिकारी 26 नवंबर को उन के पास पहुंचे और उन की मांगे मानते हुए अनशन समाप्त कराया. दूसरी ओर लाश के सड़ जाने की वजह से पोस्टमार्टम रिपोर्ट में प्रिया की मृत्यु का कारण स्पष्ट नहीं हो सका. दुष्कर्म की आशंका को देखते हुए डाक्टर ने गुप्तांग को प्रिजर्व करने के साथ स्लाइड भी बनवा ली थी.

इस के अलावा उस के विसरा और गले को भी जांच के लिए फोरेंसिक लैब भेज दिया गया था. हत्या के राज उगलवाने, प्रिया का सामान बरामद करने और अन्य अभियुक्तों की गिरफ्तारी के लिए इमरान से पूछताछ करनी जरूरी थी. इसलिए इंसपेक्टर विद्याराम ने 25 नवंबर को अदालत में प्रार्थनापत्र दे कर इमरान को 36 घंटे के पुलिस रिमांड पर देने की अपील की. अदालत ने उन की अर्जी को मंजूर करते हुए इमरान को 36 घंटे के लिए पुलिस रिमांड पर दे दिया.

पुलिस ने इमरान को उस से औटो में रखे बडे़ बैग के बारे में सख्ती से पूछताछ की तो उस ने बताया कि उस बैग में प्रिया की लाश थी. उस ने कहा कि गुड्डू ने केवल हत्या करने में उस की मदद की थी, जबकि लाश ठिकाने लगाने में उस का भाई सलमान और भांजा मोहम्मद अहमद औटो में उस के साथ थे. उस ने बताया कि प्रिया की सोने की चेन उस की स्कूटी के पार्ट्स के पास ही फेंक दी थी. पुलिस ने इमरान की निशानदेही पर बिलवा पुल के पास स्थित वीरपुर उर्फ कासिमपुर गांव के पास हनीफ के खेत से प्रिया की चेन और स्कूटी के खुले हुए पार्ट्स बरामद कर लिए थे.

रिमांड अवधि पूरी होने से पहले ही पुलिस ने इमरान को अदालत में पेश कर के जेल भेज दिया. इस के बाद पुलिस ने अन्य आरोपियों की तलाश शुरू कर दी. मुखबिर की सूचना पर 27 नवंबर को इमरान के दोस्त गुड्डू को मिली बाईपास से गिरफ्तार कर लिया था. अगले दिन इमरान का भाई सलमान भी पुलिस के हत्थे चढ़ गया. दोनों अभियुक्तों से पूछताछ के बाद उन्हें भी न्यायालय में पेश कर के जेल भेज दिया गया. इमरान से हुई पूछताछ व केस की तफ्तीश के बाद जो कहानी सामने आई, वह कुछ इस प्रकार थी. इमरान रजा खान बिलकुल अपने पिता बुंदन खान के नक्शे कदम पर चल रहा था. बुंदन खान भी एक वहशी दरिंदा था. बुंदन ने 1980 में पढ़ाई के दौरान छात्रसंघ का चुनाव लड़ा था. हाथ उठा कर मतदान कराने के दौरान तब उस के क्लास की 6 लड़कियों ने उसे वोट नहीं दिया था.

इस से बौखलाए बुंदन ने उन से बदला लेने के लिए साजिश रची और चुनाव के कुछ दिनों बाद सभी लड़कियों के साथ क्लास में ही हैवानियत की. उन लड़कियों की हालत बिगड़ गई. कमरा बंद करने पहुंचे चौकीदार ने उन की हालत देख कर कालेज प्रबंधन को इस घटना की सूचना दी. मामले की गंभीरता को देखते हुए पुलिस को बुलाया गया. पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों ने सभी पीडि़त लड़कियों को अस्पताल पहुंचाया. घटना की खबर फैलते ही पूरे शहर में बवाल मच गया. उस समय शांति की अपील के लिए खुद मदर टेरेसा बरेली आई थीं. उस के बाद ही शहर का माहौल सामान्य हुआ था. बुंदन खान पर पहले से ही दुष्कर्म आदि के दरजन भर से अधिक मुकदमे चल रहे थे.

पुलिस ने इस मामले में बुंदन खान को गिरफ्तार कर के उस पर गुंडा ऐक्ट तथा गैंगस्टर लगाने के साथ उस की हिस्ट्रीशीट खोल दी थी. कई वर्षों बाद जब वह जेल से जमानत पर बाहर आया तो जुर्म की दुनिया में उस के कदम दलदल की तरह धंसते गए. 2 हत्याओं के अलावा उस पर 22 दुष्कर्म के मुकदमे दर्ज हुए थे. उस की मौत होने के बाद उस के मुकदमों की फाइल अपने आप बंद हो गई थी. अपनी आपराधिक वारदातों से चर्चित रहे बुंदन खान का बेटा इमरान भी अपने पिता की ही तरह अपराधों में लिप्त रहा. उस पर भी 3 दुष्कर्म और एक हत्या का मुकदमा दर्ज हुआ था.  4 भाइयों में तीसरे नंबर का इमरान शातिर दिमाग था. पिता की ही तरह उस का दिमाग भी अच्छे कामों के बजाय गलत कामों में ज्यादा चलता था. वह गलत कामों से पैसा कमाने में लग गया.

उस ने दिल्ली जा कर एक फाइनेंस कंपनी खोली और प्रौपर्टी ब्रोकर का भी काम करने लगा. फाइनेंस कंपनी के नाम पर वह लोगों को ठगने लगा. औफिस में काम करने वाली एक युवती की हत्या में वह फंस गया तो दिल्ली से भाग कर बरेली आ गया. इस के बाद उस ने उत्तराखंड के शहर हल्द्वानी और चंपावत में रियल एस्टेट कंपनी के औफिस खोले और लोगों को ठगना शुरू कर दिया. मौजमस्ती करने के लिए वह अपने औफिस में केवल लड़कियों को ही नौकरी पर रखता था. उस के औफिस में अर्शी उर्फ रूबी नाम की एक लड़की काम करती थी. वह बेहद खूबसूरत थी.

वह अर्शी की खूबसूरती और अदाओं के जाल में उलझ गया. इमरान लड़कियों से अपने संबंध मौजमस्ती तक ही सीमित रखता था, लेकिन अर्शी को देख कर उस ने उसे अपनी जीवनसंगिनी बनाने का फैसला किया. जल्द ही उस ने अर्शी को प्यार के जाल में फांस लिया. उन का प्यार अमरबेल की तरह बढ़ता गया. अर्शी के मांबाप को पता चला तो उन्होंने उसे समझाया, लेकिन वह नहीं मानी. अर्शी के मांबाप का दबाव बढ़ने पर इमरान अर्शी को ले कर बरेली आ गया और उस से निकाह कर लिया. यह 6 साल पहले की बात है. बाद में अर्शी ने एक बेटे और एक बेटी को जन्म दिया.

बरेली आने के बाद इमरान ने इज्जतनगर क्षेत्र में स्पीड स्काई रियल एस्टेट इंडिया लिमिटेड और बी.के. जनसेवा समिति के नाम से औफिस खोल कर अपना गोरखधंधा शुरू किया. वह लोगों से हर महीने 1,600 रुपए जमा करा कर प्लाट देने का वादा करता था. इस के अलावा वह रुहेलखंड ऐक्शन फ्रंट नाम से एक संस्था चलाता था. इस के जरिए वह सरकारी सस्ते गल्ले के डीलरों और प्रधानों की शिकायतें करता था और बाद में उन्हें ब्लैकमेल करता था. उस का यह धंधा खूब फलफूल रहा था.

2010 में इमरान ने पुराना औफिस बंद कर के बरेली की पौश कालोनी राजेंद्रनगर में नया औफिस स्पीड ग्रुप औफ कंपनीज के नाम से खोला. यह औफिस उस ने एक्सिस कोचिंग चलाने वाले डब्ल्यू.एच. सिद्दीकी की कोठी का पिछला हिस्सा किराए पर ले कर खोला था. स्टाफ की नियुक्ति के लिए उस ने कई अखबारों में विज्ञापन दिए थे. इसी विज्ञापन को देख कर प्रियांगी उर्फ प्रिया इमरान से उस के औफिस में मिली थी. इमरान ने उसे औफिस में कंप्यूटर औपरेटर के पद पर रख लिया था.

औफिस में काम के दौरान ही इमरान और प्रिया में अच्छी दोस्ती हो गई. इमरान उस का पूरा ध्यान रखता था. उसे अपने साथ घुमाने ले जाता. दोनों एकदूसरे से काफी घुलमिल गए. धीरेधीरे उन के बीच नजदीकियां बढ़ने लगीं. फिर एक दिन ऐसा भी आ गया, जब दोनों एकदूसरे के प्यार में डूब गए. उसी दौरान प्रिया बीएड करने मेरठ चली गई. वहां के हौस्टल में रह कर वह साईं कालेज से बीएड करने लगी. भले ही वह इमरान से दूर जा चुकी थी, लेकिन इमरान उस के दिल में बसा था. हफ्ते, 2 हफ्ते में जब भी उसे बरेली अपने घर आना होता तो इमरान ही उसे मेरठ लेने जाता था और मेरठ छोड़ने भी उस के साथ जाता था. वह प्रिया के ऊपर काफी पैसे खर्च कर रहा था. अचानक जरूरत पड़ने पर वह प्रिया से पैसे उधार भी ले लेता था.

जब इमरान की इस प्रेम कहानी का पता उस की पत्नी अर्शी को चला तो वह परेशान हो उठी. अर्शी को रोज डायरी लिखने का शौक था. उस ने डायरी में इमरान और अर्शी के प्रेमसंबंधों का जिक्र कर के अपनी जिंदगी तबाह होने का अंदेशा व्यक्त किया था. क्योंकि उस के मांबाप का देहांत हो चुका था. उन के बाद इमरान ही उस का सब कुछ था. ऐसे में अगर इमरान उस से दूर चला गया तो उस की जिंदगी बर्बाद हो जाती. इमरान ने प्रिया के धर्मांतरण के लिए नवंबर, 2013 में कुछ मौलवियों से बात भी की थी. उस का धर्म बदलवा कर वह उस से निकाह करना चाहता था. इस बात का अर्शी को पता लग गया था. उस ने डायरी में 20 नवंबर, 2013 के पेज पर इस बात का जिक्र भी किया था. करीब 2 महीने पहले प्रिया को जानकारी मिली कि इमरान के अन्य लड़कियों से भी संबंध हैं.

सच्चाई का पता लगाने के लिए उस ने अपने स्तर से छानबीन की तो उसे पता चला कि इमरान के सचमुच अनेक लड़कियों से अवैधसंबंध हैं. हकीकत पता चलने पर प्रिया को अपने आप पर खीझ होने लगी कि उस ने ऐसे गंदे इंसान से प्यार क्यों किया. इस के बाद प्रिया ने तय कर लिया कि वह इमरान से कोई संबंध नहीं रखेगी. उस ने उस से दूरी भी बनानी शुरू कर दी. उस ने इमरान को 6 हजार रुपए उधार दे रखे थे. उस ने कई बार उस से अपने पैसों का तकादा किया, लेकिन कोई न कोई बहाना बना कर इमरान उसे टालता रहा. अब वह मेरठ से जब भी घर आती, अकेली ही आती और अकेली ही जाती थी. प्रिया में आए इस बदलाव को इमरान समझ नहीं पाया. वह उस से बात करने की कोशिश करता तो प्रिया उसे कोई महत्त्व नहीं देती.

प्रिया जब भी मेरठ से बरेली आती, इमरान से अपने पैसे मांगने उस के औफिस पहुंच जाती और उस से झगड़ा करने लगती. एक बार तो उस ने इमरान को स्टाफ के सामने ही थप्पड़ मार दिया था, जिस से इमरान को काफी बेइज्जती महसूस हुई थी. प्रिया के रोजरोज के झगड़ों से वह काफी तंग आ चुका था. 5 नवंबर, 2014 को प्रिया अपनी आंखों की दवा लेने के लिए स्कूटी से धर्मकांटा के पास स्थित डा. भृमरेश शर्मा के क्लीनिक पर पहुंची. वहां से दवा ले कर वह अपनी सहेली शालिनी से मिली और उस से कहा कि वह आज अपने पैसे इमरान से ले कर ही आएगी.

शालिनी को साथ ले कर वह इमरान के औफिस पहुंच गई. वहां इमरान और प्रिया में पैसों को ले कर झगड़ा होने लगा. उन का झगड़ा खत्म न होता देख लगभग 25 मिनट बाद शालिनी वहां से चली गई. प्रिया ने गुस्से में औफिस में चीखना शुरू कर दिया. इमरान उसे समझाने की कोशिश करते हुए औफिस से सटे कमरे में ले गया. उसी कमरे में इमरान लड़कियों के साथ मौजमस्ती करता था. कमरे में उस समय उसी के गांव का रहने वाला उस का दोस्त गुड्डू भी था. कमरे में इमरान ने प्रिया के मुंह पर हाथ रख कर उसे चुप कराने की कोशिश की. वह नहीं मानी तो उस ने बगल में खड़े गुड्डू को इशारा किया.

इस के बाद दोनों ने प्रिया की नाक व मुंह दबा कर हत्या कर दी. हत्या करने के बाद उस के गले में पड़ी सोने की चेन, मोबाइल फोन और रुपए निकाल लिए. इमरान ने गुड्डू की मदद से प्रिया की लाश को एक क्रिकेट बैग में भरा और उसे वहीं छोड़ कर औफिस बंद कर के चला गया. वहां से गुड्डू के साथ सीधे अपने गांव तिलियापुर पहुंचा. गांव पहुंचते ही गुड्डू इमरान को छोड़ कर चला गया. इमरान ने उसे बुलाने की काफी कोशिश की, लेकिन वह वापस नहीं आया. लाश ठिकाने लगाने के लिए इमरान को एक आदमी की जरूरत थी. उस ने गांव के ही बबलू से कहा कि वह उसे बरेली जंक्शन पर छोड़ आए. बबलू उस के साथ स्टेशन तक गया. वहां से इमरान किसी बहाने उसे अपने औफिस ले गया.

जिस बैग में प्रिया की लाश रखी थी, वह बैग उठाने में उस ने बबलू से मदद करने को कहा. बबलू को पता नहीं था कि बैग में क्या है. उस ने बैग उठाना चाहा तो वह बहुत भारी लगा. उसे शक हो गया. उस ने बैग खोल कर देखा तो उस में लाश रखी थी. लाश देख कर वह डर के मारे भाग गया. इमरान ने उसे दौड़ कर पकड़ने की कोशिश भी की, लेकिन वह पकड़ में नहीं आया. इमरान लाश को ठिकाने लगाने के लिए काफी परेशान था. वह अपने गांव आ गया और गांव के ही आजाद का औटो रेलवे स्टेशन तक जाने के बहाने ले लिया. अपने भाई सलमान और भांजे मोहम्मद अहमद को साथ ले कर वह आधी रात को अपने औफिस पहुंचा.

उन के सहयोग से उस ने प्रिया की लाश वाले क्रिकेट बैग को औटो में रखा. सलमान और मोहम्मद अहमद पिछली सीट पर बैग के साथ बैठ गए तो वह औटो चला कर नैनीताल रोड पर स्थित बिलवा पुल के पास ले गया. वहां पानी से कट कर जमीन में एक गड्ढा बन गया था. इमरान ने अपने भाई व भांजे की मदद से प्रिया की लाश वाले बैग को उसी गड्ढे में डाल दिया. इस के बाद तीनों गांव लौट आए. 6 नवंबर, 2014 को इमरान औफिस के बाहर खड़ी प्रिया की स्कूटी से वहां पहुंचा, जहां प्रिया की लाश फेंकी थी. अपने साथ वह एक फावड़ा भी ले आया था. फावड़े की मदद से उस ने प्रिया की लाश वाले बैग पर मिट्टी डाल दी. इस के बाद वह वहां से कुछ दूरी पर स्थित हनीफ के खेत में प्रिया की स्कूटी के पार्ट्स खोल कर छिपा दिए. प्रिया का मोबाइल उस ने किला नदी में फेंक दिया.

इमरान जानता था कि प्रिया अपनी सहेली शालिनी के साथ उस के यहां आई थी, इसलिए उस ने शालिनी को धमकी दी कि वह प्रिया के उस के औफिस आने की बात किसी को नहीं बताएगी, वरना दोनों फंस सकते हैं. इमरान ने सोचा था कि शालिनी खुद के फंस जाने के डर से किसी को कुछ नहीं बताएगी. लेकिन हुआ इस का उलटा. शालिनी ने प्रिया की मां पुष्पा को सब कुछ बता दिया था. इमरान से पूछताछ के बाद पुलिस ने गुड्डू, सलमान और मोहम्मद अहमद के खिलाफ भादंवि की धारा 364, 302, 201 और 404 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया था. सलमान की निशानदेही पर पुलिस ने अभियुक्त गुड्डू और सलमान को भी गिरफ्तार कर लिया था. जबकि मोहम्मद अहमद पुलिस के हत्थे नहीं चढ़ सका.

इमरान की निशानदेही पर पुलिस ने लाश ठिकाने लगाने में प्रयुक्त औटो भी तिलियापुर गांव से बरामद कर लिया था. गिरफ्तार आरोपियों को न्यायालय में पेश कर के जेल भेज दिया गया था. Bareilly News

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित, शालिनी परिवर्तित नाम है.

 

UP Crime : बदनामी का खून

UP Crime : नवीन की शादी इसलिए नहीं हो रही थी, क्योंकि उस की दलित प्रेमिका सीमा को उस से बेटा हो गया था. इस से उस की ही नहीं, घर वालों की भी बदनामी हो रही थी. घर वालों ने इस बदनामी से बचने का जो उपाय किया, क्या वह उचित था?

उत्तर प्रदेश के जिला गोरखपुर थानाकोतवाली बड़हलगंज का एक गांव है तिहामोहम्मद. इसी गांव में रामाश्रय अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी केसरी देवी के अलावा 2 बेटे संजय, राकेश कुमार उर्फ हृदय कुमार और 2 बेटियां सीमा तथा आशा थीं. बात 10 नवंबर, 2014 की है. सुबह साढ़े 6 बजे के करीब गांव के ग्रामप्रधान काशी राय टहलने के लिए घर से निकल कर गलियों से होते हुए गांव के बाहर रह रहे दलितों के मोहल्ले से होते हुए चले जा रहे थे कि गली के किनारे बने रामाश्रय के झोपड़ानुमा मकान की खुली दालान में चारपाई पर उन की नजर पड़ी तो उस की हालत देख कर उन का कलेजा मुंह को आ गया.

दालान में पड़ी उस चारपाई पर एकएक कर के 3 लाशें पड़ी थीं. सब से नीचे रामाश्रय के नाती आशीष उर्फ लालू, उस के ऊपर उस की पत्नी केसरी देवी और सब से ऊपर उस की बेटी सीमा की लाश पड़ी थी. उन्होंने आवाज लगा कर कुछ लोगों को बुलाया और घटना के बारे में बताया. इस के बाद थोड़ी ही देर में घटना की सूचना पूरे गांव में फैल गई. इस के बाद तो रामाश्रय के घर के सामने भीड़ लग गई. ग्रामप्रधान काशी राय ने घटना की सूचना थानाकोतवाली बड़हलगंज पुलिस को दी तो कोतवाली प्रभारी इंसपेक्टर सुनील कुमार राय एसआई वी.पी. सिंह, देवेंद्र मौर्य, हरिकेष कुमार आर्या, हेडकांस्टेबल रमाकांत पांडेय, कांस्टेबल समतुल्ला खान, सुरेश सिंह, अनिल पाल, शंभू सिंह के साथ गांव तिहामोहम्मद आ पहुंचे.

दिल दहला देने वाली स्थिति देख कर इंसपेक्टर सुनील कुमार राय ने इस बात की जानकारी आईजी सतीश कुमार माथुर, डीआईजी डा. संजीव कुमार, एसएसपी राजकुमार भारद्वाज, एसपी (ग्रामीण) बृजेश सिंह और सीओ अशोक कुमार को दी. पुलिस अधिकारियों को सूचना देने के बाद वह साथियों के साथ घटनास्थल और लाशों का निरीक्षण करने के लिए दालान में पहुंचे. दालान में पड़ी चारपाई पर तीनों लाशें एक के ऊपर एक पड़ी थीं. चारपाई के पास ही 315 बोर के 5 खोखे और कांच की टूटी चूडि़यों के टुकड़े पड़े थे. वे टुकड़े मृतका सीमा की कलाई की चूडि़यों के थे, इसलिए उन टुकड़ों को देख कर अनुमान लगाया गया कि मृतका सीमा ने खुद या बच्चे और मां को बचाने के लिए हत्यारों से संघर्ष किया होगा.

पुलिस ने गोलियों के खोखे के साथ टूटी चूडि़यों के उन टुकड़ों को भी कब्जे में ले लिया. लाशों के निरीक्षण में पता चला, मृतका सीमा की पीठ और सिर में बाईं ओर केसरी देवी के सिर और कान के ऊपर बाईं ओर तथा सब से नीचे पड़े आशीष उर्फ लालू के सीने में दाहिनी ओर गोली मारी गई थी. स्थिति देख कर ही लग रहा था कि हत्यारे कम से कम 3-4 रहे होंगे. आसपास वालों से की गई पूछताछ में पता चला कि मृतकों के परिवार में और कोई नहीं है. एक बेटी आशा ससुराल में है और बेटा राकेश मुंबई में है. एक बेटा संजय 18 साल से लापता है. परिवार के मुखिया रामाश्रय की 8-9 साल पहले मौत हो चुकी है. मृतकों के घर में उस समय कोई ऐसा नहीं था, जिस से कुछ जानकारी मिल पाती.

इंसपेक्टर सुनील कुमार राय पूछताछ कर रहे थे कि अन्य पुलिस अधिकारी भी आ पहुंचे. पुलिस अधिकारियों ने भी घटनास्थल और लाशों का निरीक्षण कर लिया तो ग्रामप्रधान काशी राय की उपस्थिति में घटनास्थल की काररवाई निपटा कर तीनों लाशों को पोस्टमार्टम के लिए बाबा राघवदास मैडिकल कालेज भिजवा दिया गया. इस के बाद ग्रामप्रधान काशी राय द्वारा दी गई तहरीर पर थानाकोतवाली बड़हलगंज में अज्ञात लोगों के खिलाफ तीनों हत्याओं का मुकदमा दर्ज कर लिया गया. मुकदमा दर्ज होने के बाद कोतवाली प्रभारी सुनील कुमार राय ने मामले की जांच शुरू की.

सब से पहले उन्होंने पड़ोसियों से राकेश का फोन नंबर ले कर उसे घटना की सूचना दी. स्थिति को देखते हुए हत्या की वजह रंजिश लग रही थी, क्योंकि घर का सारा सामान जस का तस था. इस से साफ था कि हत्यारे सिर्फ हत्या करने आए थे. घर वालों की हत्या की जानकारी मिलते ही राकेश गोरखपुर के लिए चल पड़ा. 11 नवंबर, 2014 को वह घर पहुंचा और सामान वगैरह रख कर सीधे कोतवाली बड़हलगंज के लिए रवाना हो गया. कोतवाली पहुंच कर उस ने इंसपेक्टर सुनील कुमार राय को एक प्रार्थना पत्र दिया, जिस में उस ने गांव के हीरा राय और उन के 4 बेटों, परविंद कुमार राय, अरुण कुमार राय उर्फ विक्की, अरविंद कुमार राय और नवीन कुमार राय उर्फ टुनटुन को अपनी मां, बहन और भांजे की हत्याओं का दोषी ठहराया था.

कोतवाली पुलिस ने राकेश के उस प्रार्थना पत्र के आधार पर अज्ञात की जगह प्रार्थना पत्र में लिखे पांचों को नामजद अभियुक्त बना कर मुकदमे में एससीएसटी ऐक्ट जोड़ दिया. इस के बाद इस मामले की जांच सीओ अशोक कुमार को सौंप दी गई. राकेश द्वारा दिए गए प्रार्थना पत्र के अनुसार उस की बहन सीमा के अवैधसंबंध 13-14 सालों से हीरा राय के तीसरे नंबर के बेटे नवीन कुमार राय उर्फ टुनटुन से थे, जिस की वजह से नवीन के घर वाले आए दिन लड़ाईझगड़ा करते रहते थे. मौका मिलने पर उन्होंने ही ये तीनों हत्याएं की हैं. अगर राकेश भी घर में होता तो उस की भी हत्या हो सकती थी.

नामजद मुकदमा दर्ज होने के बाद पुलिस ने गिरफ्तारी के लिए हीरा राय के घर छापा मारा, लेकिन घर में सिर्फ महिलाएं मिलीं. सारे के सारे पुरुष घर छोड़ कर भाग गए थे. सीमा का मोबाइल फोन मिल गया था. फोन से पता चला कि घटना वाली रात 12 बजे सीमा के फोन पर एक फोन आया था. पुलिस ने उस के बारे में पता किया तो वह नंबर गांव के अरुण का था. इस से साफ हो गया था कि अरुण ने सीमा को फोन कर के स्थिति के बारे में पता किया होगा. इस का मतलब राकेश का शक सही था.

पुलिस को हत्यारों के बारे में पता चल गया, लेकिन वे पकड़ में नहीं आए, क्योंकि वे सभी के सभी फरार थे. गिरफ्तारी न हो पाने की वजह से 13 नवंबर को एसएसपी औफिस के सामने बहुजन समाज पार्टी के जिलाध्यक्ष सुरेश कुमार भारती के नेतृत्व में 6 सूत्रीय मांगें ले कर धरनाप्रदर्शन किया गया. उसी दिन समाजवादी पार्टी की पूर्व विधायक शारदा देवी, राकेश के गांव तिहामोहम्मद पहुंची और राकेश को ढांढस बंधाया. उन्होंने मुख्यमंत्री अखिलेश यादव सरकार को मुआवजा के लिए पत्र तो भेजा ही, अभियुक्तों की गिरफ्तारी के लिए पुलिस पर भी दबाव बनाया.

इन्हीं दबावों का ही परिणाम था कि 14 नवंबर को नामजद अभियुक्तों में से 3 अभियुक्तों परविंद कुमार, अरुण कुमार राय उर्फ विक्की और अरविंद कुमार राय को ओझौली गांव के पास से रात डेढ़ बजे गिरफ्तार कर लिया गया. बाकी बचे 1 अभियुक्त हीरा राय का पता नहीं था, जबकि नवीन कुमार राय उर्फ टुनटुन 2 साल पहले बैंकाक चला गया था और घटना के समय भी वहीं था. इस के बावजूद पुलिस ने हत्या के जुर्म में उसे भी आरोपी बना दिया था. पुलिस परविंद, अरुण और अरविंद को कोतवाली बड़हलगंज कोतवाली ले आई, जहां उन से हत्याओं के बारे में पूछताछ की जाने लगी. तीनों अभियुक्तों ने बिना किसी हीलाहवाली के अपना अपराध स्वीकार कर लिया. इस के बाद उन्होंने तीनों हत्याओं की जो कहानी बताई, वह कुछ इस प्रकार थी.

दलित बस्ती में रहने वाला रामाश्रय खेती कर के अपने परिवार को पाल रहा था. बड़ा बेटा संजय 15 साल का हुआ तो अपने किसी रिश्तेदार के साथ गुजरात के सूरत शहर चला गया. 6 महीने तो उस ने कमा कर रुपए भेजे, लेकिन उस के बाद अचानक उस ने रुपए भेजने बंद कर दिए. घर वालों ने रिश्तेदार को फोन कर के पूछा तो उस ने बताया कि अब वह उन के पास नहीं रहता. इस के बाद से आज तक उस का कुछ पता नहीं चला है. बेटे के इस तरह लापता हो जाने से रामाश्रय को इतना गहरा आघात पहुंचा कि वह बीमार पड़ गया. कुछ दिनों बाद उस की मौत हो गई तो 2 बेटियों और एक बेटे की जिम्मेदारी केसरी देवी पर आ पड़ी.

केसरी देवी की बड़ी बेटी सीमा कीचड़ में खिले कमल की तरह थी. जवानी की दहलीज पर कदम रखते ही उस की सुंदरता में जो निखार आया, वह गांव के लड़कों को लुभाने लगा. मजे की बात यह थी कि वह जितनी सुंदर थी, उतनी ही चंचल भी थी. चंचल, चपल और चालाक सीमा अपनी सीमा जानती थी. वह गरीब घर की बेटी थी, जिस की जमापूंजी सिर्फ इज्जत होती है. वह अपनी इज्जत को बचा कर रखना चाहती थी, लेकिन गांव के ही हीरा राय के तीसरे नंबर का बेटा नवीन कुमार राय उर्फ टुनटुन उस का ऐसा दीवाना हुआ कि उस ने कोशिश कर के उसे अपने रंग में ढाल ही लिया. यह 12-13 साल पहले की बात है.

उस समय सीमा की उम्र 19-20 साल रही होगी. नवीन भी उम्र लगभग उतनी ही थी. नवीन गबरू जवान तो था ही, खातेपीते घर का होने के साथसाथ खूबसूरत भी था. शायद उस की खूबसूरती पर ही सीमा भी मर मिटी थी. प्यार हुआ तो दोनों के बीच शारीरिक संबंध भी बन गए थे. इस के बाद दोनों के संबंधों की बात गांव में चर्चा का विषय बन गई. सीमा दलित थी, जबकि नवीन भूमिहार यानी सामान्य वर्ग का था. नवीन के घर वालों ने सोचा दलित होने के नाते सीमा के घर वाले क्या कर लेंगे. साल, 2 साल बाद दोनों की शादी हो जाएगी तो संबंध अपने आप खत्म हो जाएंगे.

तिहामोहम्मद गांव के ही रहने वाले हीरा राय साधनसंपन्न आदमी थे. उस की 5 संतानों में 4 बेटे, अरविंद कुमार राय, परविंद कुमार राय उर्फ गुड्डू, नवीन कुमार राय उर्फ टुनटुन, अरुण कुमार राय और एक बेटी संध्या राय थी. उस के 2 बेटे अरविंद और परविंद बैंकाक में रहते थे. इन से छोटा नवीन पढ़ाई के साथसाथ खेती के कामों में पिता की मदद करता था. सब से छोटा अरुण समझदार होते ही बड़े भाइयों के पास बैंकाक चला गया था, जहां वह नौकरी करने लगा था. बैंकाक से आने वाले रुपयों से हीरा राय गांव में जमीनें खरीदते गए, जिस से जल्दी ही उन की गिनती बड़े लोगों में होने लगी. बाद में बड़ा बेटा अरविंद गांव आ गया और यहीं रहने लगा. लेकिन परविंद और अरुण वहीं रह कर नौकरी करते रहे.

नवीन और सीमा के संबंध हद पार करने लगे तो हीरा राय और उन के बड़े बेटे अरविंद को लगा कि आगे चल कर बात बिगड़ सकती है. कहीं बात शादी की आ गई तो वे समाज को कैसे मुंह दिखा पाएंगे. यही सोच कर अरविंद ने केसरी देवी को धमकाया कि वह अपनी बेटी को काबू में रखे. उस ने केसरी देवी को ही नहीं धमकाया, नवीन पर भी सीमा से मिलने पर पूरी तरह से पाबंदी लगा दी. नवीन कोई लड़की नहीं था कि घर वाले उस के पैरों में जंजीर डाल कर उसे कमरे में कैद कर देते. उस ने पिता और भाई के दबाव में भले ही सीमा से मिलने के लिए मना कर दिया था, लेकिन यह दिखावा मात्र था. सीमा उस की धमनियों में खून बन कर बह रही थी. इसलिए वह पिता और भाई को दिए आश्वासन पर अटल नहीं रह सका और चोरीछिपे लगातार सीमा से मिलता रहा.

परिणामस्वरूप  बिना शादी के ही सीमा गर्भवती हो गई. धीरेधीरे गांव में यह बात फैली तो केसरी देवी की बदनामी होने लगी. बदनामी से बचने के लिए उस ने देवरिया जिले के थाना एकौना के गांव छपना के रहने वाले दीपचंद के साथ सीमा की शादी कर दी. सीमा ससुराल चली तो गई, लेकिन उस के गर्भ में पल रहा पाप पति से छिपा नहीं रहा. दीपचंद को जब पता चला कि सीमा की कोख में किसी दूसरे का 2-3 महीने का बच्चा पल रहा है तो उस ने इज्जत के साथ सीमा को उस के मायके पहुंचा दिया और सीमा की सहमति से तलाक ले लिया. यह बात 11-12 साल पहले की है.

इस के बाद सीमा मां और बहनभाई के साथ मायके में ही रहने लगी. समय पर उस ने बेटे को जन्म दिया, जिस का नाम आशीष उर्फ लालू रखा. यह सभी को पता था कि सीमा का बेटा आशीष नवीन कुमार राय का बेटा है. नवीन सीमा को अपनाने के लिए तैयार भी था, लेकिन घर वाले इस शादी के सख्त खिलाफ थे. इस की सब से बड़ी वजह सीमा का दलित होना था. लालू धीरेधीरे बड़ा होने लगा. सीमा ने स्कूल में उस का दाखिला कराते समय पिता के नाम के रूप में नवीन कुमार राय का ही नाम लिखाया था. इस से हीरा राय और उन के बेटों, अरविंद, परविंद और अरुण को इस बात का डर सताने लगा कि बड़ा हो कर लालू उन की संपत्ति में हिस्सा ले सकता है.

जबकि नवीन पर इस बात का कोई असर नहीं था, क्योंकि वह सीमा और लालू को अपनाने को तैयार था. शायद इसीलिए वह कहीं और शादी नहीं कर रहा था. लालू और सीमा को ले कर हीरा राय के परिवार में महाभारत छिड़ा हुआ था. सीमा से छुटकारा पाने का अब एक ही उपाय था कि उस की शादी कहीं और हो जाए. हीरा राय और उस के बेटे इस के लिए कोशिश भी कर रहे थे, लेकिन नवीन ऐसा होने नहीं दे रहा था. इस से घर वालों ने सोचा कि अगर नवीन को गांव से हटा दिया जाए तो यह काम आसानी से हो जाएगा.

नवीन के 2 भाई, परविंद और अरुण बैंकाक में रह ही रहे थे. हीरा और अरविंद ने नवीन का पासपोर्ट और वीजा तैयार करा कर उसे भी बैंकाक भेज दिया. नवीन के हटते ही हीरा राय और अरविंद दिमाग चलाने लगे. योजना के अनुसार नवीन के बैंकाक पहुंचते ही परंविद और अरुण गांव आ गए. अरविंद, परविंद और अरुण रास्ते का कांटा लालू को हटाने की योजना बनाने लगे. लालू की ही वजह से नवीन की भी शादी नहीं हो रही थी, बदनामी अलग से हो रही थी. नवीन भले ही बैंकाक चला गया था, लेकिन फोन से वह बराबर सीमा और उस के बेटे का हालचाल लेता रहता था.

अरुण काफी दबंग किस्म का युवक था. बैंकाक से खूब रुपए कमा कर लाया ही था, इसलिए पैसों की भी गरमी थी. उस का उठनाबैठना भी बदमाशों के बीच था, इसलिए लालू को रास्ते से हटाने के लिए उस ने अपने उन्हीं दोस्तों की मदद से कट्टा और कारतूस का इंतजाम किया हथियारों का इंतजाम हो गया तो एक दिन तीनों भाइयों ने पिता हीरा राय के साथ बैठ कर लालू को खत्म करने की योजना बना डाली. 9/10 नवंबर की रात 12 बजे अरुण ने सीमा के मोबाइल पर फोन कर के पता किया कि वह सो गई है या जाग रही है. वैसे तो सीमा सो रही थी, लेकिन मोबाइल की घंटी ने उसे जगा दिया. 2-4 बातें हुईं, उस के बाद सीमा फोन काट कर सो गई.

सीमा से बात होने के काफी देर बाद अरुण, अरविंद और परविंद 315 बोर के देसी कट्टे और कारतूस ले कर केसरी देवी के घर जा पहुंचे. बिजली न होने की वजह से गांव में अंधेरा था. अरुण को पता था कि लालू अपनी नानी के पास बरामदे में चारपाई पर सोता है, जबकि सीमा अंदर कमरे में सोती है. अरुण को सारी स्थिति का पता था, इसलिए सीमा के घर पहुंचते ही उस ने एक, डेढ मीटर की दूरी से लालू पर निशाना साध कर कट्टे से गोली चला दी. गोली लालू के सीने में दाईं ओर लगी. सोया लालू छटपटा कर हमेशाहमेशा के लिए सो गया.

गोली की आवाज सुन कर केसरी देवी जाग गई. पकड़े जाने के डर से अरुण और अरविंद ने एक साथ केसरी देवी को गोली मार दी. केसरी देवी भी लहरा कर नाती लालू के ऊपर गिर गई. दूसरी ओर गोली की आवाज सुन कर कमरे में सो रही सीमा भी जाग गई थी और उठ कर बाहर आ गई थी. उस ने तीनों भाइयों को पहचान भी लिया था. मां को बचाने के चक्कर में वह अरुण से भिड़ गई थी. उसी दौरान उस की चूडि़यां टूट कर नीचे गिर गई थीं. सीमा ने उन्हें पहचान लिया था, इसलिए उसे भी जिंदा नहीं छोड़ा जा सकता था. अरुण और अरविंद ने एक साथ गोलियां चला कर उसे भी मार दिया. मां को बचाने के लिए वह चारपाई के पास ही खड़ी थी. इसलिए गोलियां लगने के बाद भी वह मां के ऊपर चारपाई पर गिर पड़ी थी.

इस तरह एक हत्या करने के चक्कर में अरविंद, अरुण और परविंद ने 3 हत्याएं कर डालीं थीं. फिर भी उन्हें न किसी बात की चिंता थी, न किस तरह का पछतावा. वे घर जा कर आराम से सो गए. लेकिन सुबह होते ही हीरा राय और उन के तीनों बेटे अरविंद, परविंद और अरुण घर छोड़ कर भाग गए. 14 नवंबर, 2014 की रात अरविंद, परविंद और अरुण ओझौली गांव से गिरफ्तार हो गए. पुलिस ने अरुण के पास से 315 बोर का एक कट्टा, कारतूस के 3 खोखे, एक जिंदा कारतूस, अरविंद के पास से 315 बोर का एक कट्टा, कारतूस के 2 खोखे और 1 जिंदा कारतूस बरामद कर लिया था. इस के बाद पुलिस ने तीनों को अदालत मे पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया था.

21 नवंबर को पुलिस ने गांव के बाहर हीरा राय को भी गिरफ्तार कर लिया था. पूछताछ के बाद पुलिस ने उसे भी जेल भेज दिया है. पुलिस का मानना है कि साजिश रचने में नवीन भी शामिल था, इसलिए धारा 120बी के तहत उसे भी आरोपी बनाया है. लेकिन इस समय वह बैंकाक में है. पुलिस उसे वहां से बुला कर गिरफ्तार करने की कोशिश कर रही है. UP Crime

Agra News : बेवफाई या मजबूरी

Agra News : अंजलि सनी का बचपन का प्यार थी, इसलिए वह उसे हर हालत में अपनी बनाना चाहता था, अंजलि भी उस की बनने को तैयार थी. फिर ऐसा क्या हुआ कि सनी को प्रेमिका अंजलि का हत्यारा बनना पड़ा…

5 नवंबर, 2014 की शाम पौने 7 बजे के आसपास अंधेरा घिरने पर आगरा के थाना हरिपर्वत के मोहल्ला नाला बुढ़ान सैयद में रेल की पटरियों के किनारे रहने वाले सतीशचंद की बेटी अंजलि किसी काम से पटरियों की ओर गई तो किसी ने उस पर चाकू से जानलेवा हमला कर दिया. जान बचाने के लिए अंजलि चिल्लाते हुए घर की ओर भागी, लेकिन हमलावर ने उसे गिरा कर गर्दन पर ऐसा वार किया कि उस की गर्दन कट गई और वह तुरंत मर गई. शोर सुन कर आसपास के लोग वहां पहुंच पाते, हमलावर अंजलि को मार कर अंधेरे में गायब हो गया.

शोर सुन कर अंजलि के घर वाले भी आ गए थे. उस की हालत देख कर वे रोने लगे. थोड़ी ही देर में वहां पूरा मोहल्ला इकट्ठा हो गया. हत्या का मामला था, इसलिए पुलिस को सूचना दी गई. थाना हरिपर्वत पास में ही था, इसलिए सूचना मिलते ही थानाप्रभारी इंसपेक्टर हरिमोहन सिंह एसएसआई शैलेश कुमार सिंह, एसआई अभय प्रताप सिंह, हाकिम सिंह, सिपाही परेश पाठक और रामपाल सिंह को साथ ले कर तुरंत घटनास्थल पर पहुंच गए.

चूंकि इस घटना की सूचना पुलिस कंट्रोलरूम को भी दे दी गई थी, इसलिए जिले के पुलिस अधिकारियों को भी घटना की जानकारी हो गई थी. इसलिए थोड़ी ही देर में एसएसपी शलभ माथुर, एसपी (सिटी) समीर सौरभ, सीओ हरिपर्वत अशोक कुमार सिंह, मनीषा सिंह, एएसपी शैलेष पांडे भी घटनास्थल पर पहुंच गए थे. पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल और लाश का निरीक्षण किया. हत्यारे ने जिस तरह चाकू से वार कर के मृतका की हत्या की थी, उस से अंदाजा लगाया कि हत्यारा अंजलि से गहरी नफरत करता था.

पुलिस अधिकारियों ने डौग स्क्वायड टीम भी बुलाई थी. लेकिन कुत्ते पुलिस की कोई मदद नहीं कर सके. वे वहीं आसपास घूम कर रह गए थे. इस हत्या से नाराज मोहल्ले वालों ने पुलिस के विरोध में नारे लगाने के साथ घोषणा कर दी कि वे लाश तब तक नहीं उठाने देंगे, जब तक हत्यारा पकड़ा नहीं जाता. पुलिस अधिकारियों ने समझायाबुझाया और हत्यारे को जल्द पकड़ने का आश्वासन दिया, तब कहीं जा कर घर और मोहल्ले वालों ने लाश ले जाने की अनुमति दी. पुलिस ने जल्दीजल्दी घटनास्थल की काररवाई निपटा कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. अब तक सूचना पा कर पड़ोस के मोहल्ले में रहने वाला मृतका का पति सुनील भी आ गया था.

उस ने पुलिस को बताया कि उस की पत्नी की हत्या उस की ससुराल वालों के पड़ोस में रहने वाले उत्तमचंद के बेटे सनी ने की है. इस के बाद सुनील की ओर से थाना हरिपर्वत में अंजलि की हत्या का मुकदमा नाला बुढ़ान सैयद के रहने वाले उत्तम चंद के बेटे सनी के खिलाफ नामजद दर्ज कर लिया गया. मुकदमा दर्ज होने के बाद पुलिस ने सनी को गिरफ्तार करने के लिए उस के घर छापा मारा तो वह घर से गायब मिला. सनी के घर छापा मारने गई पुलिस टीम से घर वालों से कहा कि अंजलि की हत्या उस के पति सुनील ने ही की है. लेकिन पुलिस टीम को उन की इस बात पर विश्वास नहीं हुआ.

हत्या के इस मामले की जांच थानाप्रभारी इंसपेक्टर हरिमोहन सिंह ने खुद संभाल रखी थी. पुलिस अधिकारियों की भी नजर इस मामले पर थी. इसलिए सनी को पकड़ने के लिए सीओ हरिपर्वत अशोक कुमार सिंह के नेतृत्व में 3 टीमें बनाई गईं. एसएसपी शलभ माथुर ने तीनों टीमों को सख्त चेतावनी देते हुए कहा था कि उन्हें किसी भी तरह उसी रात सनी को पकड़ना है. क्योंकि उन्हें पता था कि पोस्टमार्टम के बाद मृतका के घर वाले फिर हंगामा करेंगे. वह नहीं चाहते थे कि पोस्टमार्टम के बाद अंतिम संस्कार के समय घर वाले किसी तरह का हंगामा करें. सब से बड़ी बात यह थी कि मोहल्ले के पास से रेलवे लाइन गुजरती थी, हंगामा करने वाले लाइन पर बैठ कर गाडि़यों का आवागमन रोक सकते थे.

देर रात सीओ अशोक कुमार सिंह को कहीं से सूचना मिली कि सनी राजा मंडी रेलवे स्टेशन से ट्रेन पकड़ कर दिल्ली जा सकता है. इसी सूचना के आधार पर इंसपेक्टर हरिमोहन सिंह के नेतृत्व वाली पुलिस टीम राजा मंडी रेलवे स्टेशन पर सनी की तलाश में जा पहुंची. सुबह 6 बजे के आसपास वहां से दिल्ली के लिए इंटरसिटी एक्सप्रेस जाती थी, इसलिए तीनों टीमें पूरी सतर्कता के साथ ट्रेन पर चढ़ने वाली सवारियों पर नजर रखने लगीं. सनी को पहचानने वाला एक आदमी पुलिस टीमों के साथ था. ट्रेन छूटने में 5 मिनट बाकी था, तभी उस आदमी ने एक युवक की ओर इशारा किया. चूंकि पुलिस टीमों के सदस्य वर्दी में नहीं थे, इसलिए सनी को पता नहीं चला कि पुलिस स्टेशन पर उसे तलाश रही है.

सनी निश्ंिचत हो कर ट्रेन पर चढ़ रहा था, इसलिए पुलिस ने आराम से उसे पकड़ लिया. थाना हरिपर्वत ला कर उस से पूछताछ शुरू हुई. वह कोई बहानेबाजी करता, उस के पहले ही पुलिस ने उस के कपड़ों पर लगे खून के छींटों की ओर इशारा किया तो उस ने अपना अपराध स्वीकार कर के अंजलि की हत्या की पूरी कहानी सुना दी. अंजलि आगरा के थाना हरिपर्वत के मोहल्ला नाला बुढ़ान सैयद के रहने वाले सतीशचंद की 6 संतानों में पांचवें नंबर की बेटी थी. शहर के पौश इलाके हरिपर्वत से सटा रेलवे लाइन को किनारे बसा है मोहल्ला नाला बुढान सैयद. यहां रहने वाले लोग आपस में मिलजुल कर रहते हैं. कभी यह गरीबों का मोहल्ला था. लेकिन आज यहां लगभग सभी के मकान 3 तीन मंजिल बन चुके हैं.

सतीशचंद के पड़ोस में उत्तमचंद का मकान था. उस के परिवार में पत्नी बेबी के अलावा तीन बेटे, भोलू, बबलू और सनी थे. निम्न मध्यम वर्गीय परिवार होने की वजह से उत्तमचंद के बच्चे पढ़ नहीं सके. जवानी की दहलीज पर कदम रखते ही वे छोटेमोटे काम करने लगे. सनी ने भी हाईस्कूल कर के पढ़ाई छोड़ दी थी. पड़ोसी होने की वजह से सनी और अंजलि साथसाथ खेल कर बड़े हुए थे और एक ही स्कूल में पढ़े थे. अंजलि ने जहां आठवीं पास कर के पढ़ाई छोड़ दी थी, वहीं सनी ने हाईस्कूल पास कर के. हमउम्र होने की वजह से दोनों में कुछ ज्यादा ही पटती थी. यही पटरी किशोरावस्था आतेआते प्यार में बदल गया.

अंजलि के मांबाप ने पहले तो दोनों के मेलमिलाप व मुलाकातों पर कोई बंदिश नहीं लगाई, लेकिन जब उन्हें लगा कि बेटी अब सयानी हो गई है तो उन्हें लगा कि जवान बेटी का किसी जवान लड़के से मिलनाजुलना ठीक नहीं है. बस इस के बाद उन्होंने समझदारी से काम लेते हुए अंजलि को ऊंचनीच का पाठ पढ़ाते हुए उसे सनी से दूर रहने की सलाह दी. अंजलि ने मांबाप को भले ही आश्वासन दिया कि वह सनी से नहीं मिलेगी, लेकिन उस के लिए ऐसा करना आसान नहीं था. सनी अब तक उस के लिए उस की जिस्म की जान बन चुका था, उस के दिल की धड़कन बन चुका था. ऐसे में वह सनी से दूर कैसे रह सकती थी.

अंजलि उस से मिलतीजुलती रही. हां, अब वह उस से मिलने में थोड़ा सावधानी जरूर बरतने लगी थी. लेकिन उस की मुलाकातों की भनक सतीशचंद और विमला देवी को लग ही गई. उन्हें लगा कि अब अंजलि का विवाह कर देना ही ठीक है. उन्होंने आननफानन में लड़का देखा और अंजलि की शादी कर दी. यह 3 साल पहले की बात है. अंजलि का पति सुनील नाला बुढान सैयद से लगे मोहल्ले पीर कल्याणी में रहता था. वह एक जूते की फैक्ट्री में सुपरवाइजर था. नौकरी की वजह से वह सुबह 8 बजे घर से निकल जाता तो देर रात को ही घर लौटता था. शादी के बाद कुछ दिनों तक तो अंजलि ने सनी से दूरी बनाए रखी, लेकिन कुछ दिनों बाद वह उस से फिर मिलनेजुलने लगी. इसी बीच वह एक बेटे की मां बन गई.

अंजलि का सोचना था कि उस का सनी से मिलनाजुलना किसी को पता नहीं है. लेकिन ऐसा नहीं था. उस की हरकतों पर ससुराल वालों की नजर थी. वे एकएक बात सुनील से बताते रहते थे. सुनील ने अंजलि की आशनाई का सुबूत जुटाने के लिए उसे एक ऐसा मोबाइल फोन खरीद कर दे दिया था, जिस में बातचीत करते समय पूरी बात रिकौैर्ड हो जाती थी. इस तरह अंजलि और सनी की अंतरंग बातें रिकौर्ड कर के सुनील ने सुबूत इकट्ठा कर लिए थे. इस के बाद उस ने अंजलि को समझाना चाहा तो वह बगावत पर उतर आई. नाराज हो कर वह बेटे चीनू को ले कर मायके चली गई.

मायके वाले उसे दोष न दें, इसलिए उस ने अपनी मां से बताया कि सुनील का किसी औरत से संबंध है, जिस की वजह से वह उस से प्यार नहीं करता. इसीलिए दुखी हो कर वह मायके आ गई है. विमला देवी को लगा कि बेटी सच कह रही है. इस की वजह यह थी कि सुनील अंजलि और सासससुर से बहुत कम बातें करता था. अंजलि लगभग 6 महीने तक लगातार मायके में रह गई तो आसपड़ोस वाले सवालजवाब करने लगे. इस के बाद सतीशचंद ने सुनील को घर बुलाया तो सच्चाई का पता चला. तब सतीशचंद और विमला देवी ने बेटीदामाद को समझाबुझा कर अंजलि को सुनील के साथ ससुराल भेज दिया.

सुनील अंजलि को साथ ले तो नहीं जाना चाहता था, लेकिन सासससुर का उतरा हुआ चेहरा देख कर वह अंजलि को साथ ले आया. 2-3 महीने तक सब ठीकठाक चला. लेकिन इस के बाद जो होने लगा, वह पहले से भी ज्यादा खतरनाक था. सनी पहले तो अंजलि से फोन पर ही बातें करता था, इस बार वह सुनील की अनुपस्थिति में अंजलि से मिलने उस के पीर कल्याणी स्थित घर आने लगा. अंजलि ने ससुराल वालों से उसे दूर का रिश्तेदार बताया था. 6 महीने तक सनी पीर कल्याणी अंजलि से मिलने आताजाता रहा. लेकिन एक दिन दोपहर को सुनील घर आ गया तो उस ने सनी को अंजलि के कमरे में बैठे बातें करते देख लिया.

पहले तो उस की सनी से हाथापाई हुई, इस के बाद सुनील ने उसे तो बेइज्जत कर के भगाया ही, अंजलि को भी उस की मां विमला देवी से सारी हकीकत बता कर मायके छोड़ आया. विमला देवी उस दिन तो सुनील से कुछ नहीं कह सकी, लेकिन बाद में उस पर अंजलि को ले जाने का दबाव बनाने लगी. सुनील अंजलि को ले जाता, उस के पहले ही एक दोपहर अंजलि बेटे को मायके में छोड़ कर सनी के साथ भाग निकली. इस से दोनों ही परिवारों में हड़कंप मच गया. पता चला कि अंजलि बेटे की दवा लेने के बहाने से घर निकली और राजामंडी चौराहे से धौलपुर जाने वाली बस में सवार हो कर सनी के साथ चली गई थी.

धौलपुर में सनी की मौसी रहती थी. सनी अंजलि को ले कर उन के यहां पहुंचा तो उन्होंने फोन द्वारा अपनी बहन बेबी को इस बात की सूचना दे दी. सतीशचंद सनी के पिता उत्तमचंद के साथ धौलपुर जाने की तैयारी कर रहे थे कि बेटे से मिलने के लिए सुनील ससुराल आ पहुंचा. इस तरह उसे भी पत्नी के सनी के साथ भाग जाने की जानकारी हो गई. उसी शाम सुनील ने थाना लोहामंडी जा कर सनी के खिलाफ अपनी पत्नी अंजलि को बहलाफुसला कर भगा ले जाने की रिपोर्ट दर्ज करा दी. पुलिस कोई काररवाई करती, उस के पहले ही सुनील विमला देवी, सतीशचंद और बेबी उत्तमचंद के साथ धौलपुर गया और अंजलि को आगरा ले आया. आगरा आ कर उस ने थाना लोहामंडी पुलिस को धौलपुर में जहां सनी ठहरा था, वहां का पता बता दिया.

इस के बाद थाना लोहामंडी पुलिस धौलपुर गई और सनी को पकड़ कर ले आई. इस के बाद पुलिस ने सनी को अदालत में पेश करने के साथ अंजलि का भी बयान दर्ज कराया, जहां उस ने सनी के खिलाफ जम कर जहर उगला. उस ने कहा कि सनी ने उस का जबरन अपहरण किया था और उसे बंधक बना कर उस के साथ दुष्कर्म किया था. अंजलि के इसी बयान की वजह से सनी को हाईकोर्ट से अपनी जमानत करानी पड़ी. सनी के साथ जो हुआ था, इस के लिए उस ने अंजलि को दोषी माना. इसलिए उसे अंजलि से गहरी नफरत हो गई. अब वह उस की हत्या करने के बारे में सोचने लगा. जेल से बाहर आने के बाद 1-2 बार उस ने अंजलि से मिलने और बातचीत करने की कोशिश की, लेकिन अंजलि ने साफ मना कर दिया.

इस की वजह यह थी कि सुनील ने साफसाफ कह दिया था कि अगर अब उस ने सुन भी लिया कि वह सनी से बातचीत करती है तो वह उसे तलाक दे देगा. इसलिए अपने और बच्चे के भविष्य को देखते हुए अंजलि ने सनी से दूर रहने का फैसला कर लिया था. कहा जाता है कि अंजलि ने अदालत में सनी के खिलाफ जो बयान दिया था, वह भी सुनील के ही कहने पर दिया था. सुनील का सोचना था कि अंजलि के इस बयान से दोनों के बीच दरार पड़ जाएगी और हुआ भी वही.

जमानत पर जेल से बाहर आने के बाद सनी अपने घर आने के बजाय धौलपुर जा कर मौसी के यहां रह रहा था. लेकिन वह अपने दोस्तों से अंजलि के बारे में पता करता रहता था. जैसे ही उसे पता चला कि अंजलि मायके आई है, वह मौसी से मांबाप से मिलने की बात कह कर आगरा आ गया. सनी भले ही घर आ गया था, लेकिन वह ज्यादातर घर में ही रहता था. 4 नवंबर, 2014 की शाम वह छत पर बैठा था, तभी उसे अंजलि रेलवे की पटरियों की ओर जाती दिखाई दी. सनी को लगा कि अपमान का बदला लेने के लिए यह अच्छा मौका है.

वह नीचे उतरा और बाजार जा कर खुद को कसाई बता कर गोश्त काटने वाला छुरा खरीद लाया. अगले दिन यानी 5 नवंबर को अंधेरा होने से पहले ही वह वहां छिप कर बैठ गया, जिधर अंजलि जाती थी. अंधेरा होने पर अंजलि उधर आई तो उस ने उस की हत्या कर के अपनी नफरत की आग बुझा ली. अंजलि की चीख सुन कर जब तक मोहल्ले वाले वहां पहुंचते, सनी उस की हत्या कर के जा चुका था. उस समय कोई नहीं जान सका कि अंजलि को किस ने इतनी बेरहमी से मार दिया. वहां से भाग कर सनी राजामंडी रेलवे स्टेशन पर पहुंचा. उसे लग रहा था कि लोग उसे खोजते हुए वहां आ सकते हैं, इसलिए वह एक खोखे के पीछे छिप गया.

उसे यह भी पता था कि पुलिस उसे खोजते हुए धौलपुर जा सकती है, इसलिए उस ने दिल्ली जाने का निर्णय लिया. वह दिल्ली जा पाता, उस के पहले ही पुलिस ने उसे पकड़ लिया. पूछताछ के बाद पुलिस ने उस की निशानदेही पर रेलवे लाइन के किनारे से पत्थरों के नीचे से वह छुरा बरामद कर लिया था, जिस से उस ने अंजलि की हत्या की थी. सारे सुबुत जुटा कर पुलिस ने उसे अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक वह जेल में ही था. Agra News

कहानी पुलिस सूत्रों व सुनील के बयान

UP Crime : बीवी के बिस्तर का साथी

UP Crime : मुकेश जगदीश को अपना अच्छा दोस्त समझता था, जबकि जगदीश उस का दोस्त नहीं, उस की बीवी के बिस्तर का साथी था…

मीना और जगदीश पहली मुलाकात में ही एकदूजे को अपना दिल दे बैठे थे. मीना को पाने की चाह जगदीश के दिल में हिलोरे मारने लगी थी. इसलिए वह किसी न किसी बहाने से मीना से मिलने उस के घर अकसर आने लगा. घर आने पर मीना उस की आवभगत करती. चायपानी के दौरान जगदीश जानबूझ कर मीना के शरीर को स्पर्श कर लेता तो वह बुरा मानने के बजाय मुसकरा देती. इस से जगदीश की हिम्मत बढ़ती गई और वह मीना को जल्द से जल्द पाने की कोशिश में लग गया.

एक दिन जगदीश सुमन के घर आया तो सुमन उस समय घर में अकेली आईने के सामने शृंगार करने में मशगूल थी. उस की साड़ी का पल्लू गिरा हुआ था. जगदीश दबे पांव आ कर उस के पीछे चुपचाप खड़ा हो गया. उस की कसी देह आईने में नुमाया हो रही थी. मीना उस की मौजूदगी से अंजान थी. जगदीश कुछ देर तक मंत्रमुग्ध सा आईने में मीना के निखरे सौंदर्य को अपनी आंखों से समेटने की कोशिश करता रहा. इस तरह देख कर उस की चाहत दोगुनी होती जा रही थी.

इसी बीच मीना ने आईने में जगदीश को देखा तो तुरंत पीछे मुड़ी. उसे देख कर जगदीश मुसकराया तो मीना ने अपना आंचल ठीक करने के लिए हाथ बढ़ाया. तभी जगदीश ने उस का हाथ थाम कर कहा, ‘‘मीना, बनाने वाले ने खूबसूरती देखने के लिए बनाई है. मेरा बस चले तो अपने सामने तुम को कभी आंचल डालने ही न दूं. तुम आंचल से अपनी खूबसूरती को बंद मत करो.’’

‘‘तुम्हें तो हमेशा शरारत सूझती रहती है. किसी दिन तुम से बात करते हुए मुसकान के पापा ने देख लिया तो तुम्हारी चोरी पकड़ में आ जाएगी.’’ मीना मुसकराते हुए बोली, ‘‘अच्छा, एक बात बताओ, कहीं तुम मीठीमीठी बातें कर के मुझ पर डोरे डालने की कोशिश तो नहीं कर रहे?’’

‘‘लगता है, तुम ने मेरे दिल की बात जान ली. मैं तुम्हें बहुत चाहता हूं. अब तो मेरी हालत ऐसी हो गई है कि जिस रोज तुम्हें देख नहीं लेता, बेचैनी महसूस होती है. इसलिए किसी न किसी बहाने से यहां चला आता हूं. तुम्हारी चाहत कहीं मुझे पागल न…’’

जगदीश की बात अभी खत्म भी न हो पाई थी कि मीना बोली, ‘‘पागल तो तुम हो चुके हो. तुम ने कभी मेरी आंखों में झांक कर देखा कि उन में तुम्हारे लिए कितनी चाहत है. मुझे ऐसा लग रहा है कि दिल की भाषा को आंखों से पढ़ने में भी तुम अनाड़ी हो.’’

‘‘सच कहा तुम ने. लेकिन आज यह अनाड़ी तुम से बहुत कुछ सीखना चाहता है. क्या तुम मुझे सिखाना चाहोगी?’’ कहते हुए जगदीश ने मीना के चेहरे को अपने हाथों में भर लिया. मीना ने भी अपनी आंखें बंद कर के अपना सिर जगदीश के सीने पर टिका दिया. दोनों के जिस्म एकदूसरे से चिपके तो सर्दी के मौसम में भी उन के शरीर दहकने लगे. जब उन के जिस्म मिले तो हाथों ने भी हरकतें करनी शुरू कर दीं और कुछ ही देर में उन्होंने अपनी हसरतें पूरी कर लीं. शराब पीपी कर खोखले हो चुके पति मुकेश के शरीर में वह बात नहीं रह गई थी, जो उसे जगदीश से मिली. इसलिए उस के कदम जगदीश की तरफ बढ़ते चले गए. इस तरह उन का अनैतिकता का यह खेल चलता रहा.

उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर जिले के निगोही थानाक्षेत्र में एक गांव है हमजापुर. इसी गांव में 30 वर्षीय मुकेश कुमार. अपनी पत्नी मीना और 2 बच्चों के साथ रहता था. मुकेश के पास 20 बीघा जमीन थी. जमीन मुख्य सड़क के किनारे होने की वजह से बहुत कीमती थी. उसी पर खेती कर के वह अपने परिवार का खर्च चलाता था. उस की गृहस्थी ठीकठाक चल रही थी. खर्च उठाने में उसे कभी दिक्कत का सामना नहीं करना पड़ा. मुकेश को शराब पीने की लत थी. मीना ने उसे कई बार समझाया भी, लेकिन उस ने पत्नी की बात नहीं मानी. इस के अलावा वह पत्नी की जरूरतों को भी अनदेखा करने लगा. करीब 6 महीने पहले उस ने जगदीश नाम के राजमिस्त्री को बुलाया.

जगदीश मुकेश का परिचित था और उस के गांव से 2 किलोमीटर दूर गांव पैगापुर में रहता था. जगदीश अय्याश प्रवृत्ति का था. 2 बच्चों का बाप होने के बाद भी उस की प्रवृत्ति नहीं बदली थी. जब वह मुकेश के घर गया तो उस की पत्नी मीना को देख कर उस की नीयत बदल गई. चाहत की नजरें मीना के जिस्म पर टिक गईं. उसी पल मीना भी उस की नजरों को भांप गई थी. जगदीश हट्टाकट्टा युवक था. मीना पहली नजर में ही उस की आंखों के रास्ते के दिल में उतर गई. मुकेश से बातचीत करते समय उस की नजरें बारबार मीना पर ही टिक जाती थीं. मीना को भी जगदीश अच्छा लगा. जगदीश की भूखी नजरों की चुभन जैसे उस की देह को सुकून पहुंचा रही थी.

मीना को पाने के लालच में जगदीश ने काम के पैसे भी कम बताए थे. अगले दिन से जगदीश ने काम शुरू कर दिया. काम शुरू करते ही जगदीश ने अपनी बातों के जरिए मुकेश से दोस्ती कर ली. जगदीश को जब भी मौका मिलता, वह मीना के सौंदर्य की तारीफ करने लग जाता. मीना को भी उस का व्यवहार अच्छा लगता था. वह जब कभी उसे चाय, पानी देने आती, जानबूझ कर उस के हाथों को छू लेता. इस का मीना ने विरोध नहीं किया तो जगदीश की हिम्मत बढ़ती गई. फिर उस की मीना से होने वाली बातों का दायरा भी बढ़ने लगा. मीना का भी जगदीश की तरफ झुकाव होने लगा था.

जगदीश को पता था कि मुकेश को शराब पीने की लत है. इसी का फायदा उठाने के लिए उस ने शाम को मुकेश के साथ ही शराब पीनी शुरू कर दी. मीना से नजदीकी बनाने के लिए वह मुकेश को ज्यादा शराब पिला कर धुत कर देता था. कहते हैं, जहां चाह होती है, वहां राह निकल ही आती है. आखिर एक दिन जगदीश को मीना के सामने अपने दिल की बात कहने का मौका मिल गया और उस के बाद दोनों के बीच वह रिश्ता बन गया, जो दुनिया की नजरों में अनैतिक कहलाता है. दोनों ने इस रास्ते पर कदम बढ़ा तो दिए, लेकिन उन्होंने इस बात पर ध्यान नहीं दिया कि वे अपने जीवनसाथी के साथ कितना बड़ा विश्वासघात कर रहे हैं.

तन से तन का रिश्ता कायम होने के बाद मीना और जगदीश उसे बारबार दोहराने लगे. जगदीश ने मुकेश के यहां का मरम्मत का काम पूरा कर दिया, इस के बावजूद भी वह वहां आताजाता रहा. मुकेश जैसे ही अपने खेतों पर जाने के लिए निकलता, झट से मीना जगदीश को फोन कर देती. अवैधसंबंधों को कोई भले ही लाख छिपाने की कोशिश क्यों न करे, एक न एक दिन उस की पोल खुल ही जाती है. एक दिन ऐसा ही हुआ. मुकेश जैसे ही अपने खेतों की तरफ निकला, मीना ने अपने प्रेमी जगदीश को फोन कर दिया. मीना जानती थी कि मुकेश सुबह घर से निकलने के बाद शाम को ही घर लौटता है. इस दौरान वह प्रेमी से साथ मौजमस्ती कर लेगी. प्रेमिका का फोन आते ही जगदीश  साइकिल से मीना के घर पहुंच गया.

उस दिन भी आते ही उस ने मीना के गले में अपनी बांहों का हार डाल दिया. तभी मीना इठलाते हुए बोली, ‘‘अरे, यह क्या कर रहे हो, थोड़ा सब्र तो करो.’’

‘‘कुआं जब सामने हो तो प्यासे को सब्र थोड़े ही होता है.’’ कहते हुए जगदीश ने उस का मुंह चूम लिया.

‘‘तुम्हारी इन नशीली बातों ने ही तो मुझे अपना दीवाना बना रखा है. न दिन को चैन मिलता है और न रातों को. पता है, जब मैं मुकेश के साथ होती हूं तो केवल तुम्हारा ही चेहरा मेरे समाने होता है.’’ मीना ने इतना कह कर जगदीश के गालों को चूम लिया.

जगदीश से भी रहा नहीं गया, वह मीना को बांहों में उठा कर पलंग पर ले गया. इस से पहले कि वे कुछ कर पाते, दरवाजा खटखटाने की आवाज आई. इस आवाज को सुनते ही उन के दिमाग से वासना का बुखार उतर गया. मीना ने जल्दी से अपने अस्तव्यस्त कपड़ों को ठीक किया और दरवाजा खोलने भागी. जैसे ही उस ने दरवाजा खोला, सामने पति को देख कर उस के चेहरे का रंग उड़ गया.

‘‘तुम इतनी जल्दी कैसे आ गए?’’ मीना हकलाते हुए बोली.

‘‘क्यों… क्या मुझे अपने घर आने के लिए भी किसी की इजाजत लेनी होगी? अब दरवाजे पर ही खड़ी रहोगी या मुझे अंदर भी आने दोगी.’’ कहते हुए मुकेश ने मीना को एक ओर किया और अंदर घुसा तो सामने जगदीश को देख कर उस का माथा ठनका.

‘‘अरे, तुम कब आए?’’ मुकेश ने पूछा तो जगदीश ने कहा, ‘‘बस अभीअभी आ रहा हूं.’’

मीना का व्यवहार मुकेश को कुछ अजीब सा लग रहा था, उस ने पत्नी की तरफ देखा. वह घबरा सी रही थी. उस के बाल बिखरे हुए थे, माथे की बिंदिया भी उस के गले पर चिपकी हुई थी. यह सब देख कर शक होना लाजिमी था. जगदीश भी उस से नजरें नहीं मिला पा रहा था. ठंड में भी उस के माथे पर पसीना छलक रहा था. मुकेश उस से कुछ पूछता, उस से पहले ही वह वहां से भाग गया.

उस के जाते ही मुकेश ने पत्नी से पूछा, ‘‘यह जगदीश यहां क्या करने आया था?’’

‘‘मुझे क्या पता, तुम से मिलने आया होगा.’’ असहज होते हुए मीना बोली.  ‘‘लेकिन मुझ से तो कोई ऐसी

बातें नहीं की.’’

‘‘अब मैं क्या जानूं, यह तो तुम्हें ही पता होगा.’’ मीना ने कहा तो मुकेश गुस्से का घूंट पी कर रह गया. उस के मन में पत्नी को ले कर शक पैदा हो गया. मुकेश ने सख्ती का रुख अख्तियार करते हुए पत्नी पर निगाह रखनी शुरू कर दी और हिदायत दे दी कि जगदीश से वह आइंदा न मिले. वह पत्नी की पिटाई भी करने लगा. पति की सख्ती के बावजूद मीना जगदीश से कई बार मिली. मीना को प्रेमी से चोरीछिपे मिलना अच्छा नहीं लगता था. उधर जगदीश भी चाहता था कि मीना जीवन भर उस के साथ रहे. लेकिन यह इतना आसान नहीं था. अपना स्वार्थ पूरा करने के लिए उन दोनों ने मुकेश को ठिकाने लगाने की योजना बना डाली.

22-23 सितंबर की रात 8 बजे मुकेश ने रोजाना की तरह खाना खाया. उस से पहले वह जम कर शराब पी चुका था और काफी नशे में था. खाना खाने के बाद मुकेश सोने के लिए पहली मंजिल पर बने कमरे में चला गया. उस के सोते ही मीना ने जगदीश को फोन कर के बुला लिया. सुबह 4 बजे के करीब मीना और जगदीश ने गहरी नींद में सो रहे मुकेश को दबोच लिया और उस के हाथपैर बांध दिए. फिर उसे जीवित अवस्था में ही उठा कर पड़ोसी ज्ञान सिंह के खाली पड़े मकान के आंगन में छत से फेंक दिया. जमीन पर गिरते ही मुकेश गंभीर रूप से घायल हो गया.

वह दर्द से तड़पने लगा. मुकेश के बेटे कल्लू ने यह सब होते हुए अपनी आंखों से देख लिया, लेकिन डर की वजह से वह चुपचाप आंखें बंद किए बिस्तर पर ही लेटा रहा. इस के बाद जगदीश वहां से चला गया. मुकेश के गिरने की आवाज से ज्ञान सिंह के परिवार वालों की नींद टूट गई. वे उठ कर आंगन की तरफ आए तो रस्सी से बंधे मुकेश को देख कर हतप्रभ रह गए. उन के शोर मचाने पर आसपड़ोस के अन्य लोग भी वहां आ गए. जब तक मीना वहां पहुंची, तब तक मुकेश की आवाज बंद हो चुकी थी. वहां आते ही मीना घडि़याली आंसू बहा कर रोने लगी. मुकेश की हालत गंभीर बनी हुई थी. वह बोल नहीं पा रहा था. उसी हालत में उसे जिला अस्पताल ले जाया गया.

बासप्रिया गांव में मुकेश के मामा हरद्वारी और उस की बहन राजबेटी रहती थी. उन्हें भी घटना की सूचना दी गई तो वे भी जिला अस्पताल पहुंचे. मुकेश की गंभीर हालत को देखते हुए शाहजहांपुर जिला अस्पताल से उसे बरेली रेफर किया गया, लेकिन बरेली पहुंचने से पहले ही उस ने दम तोड़ दिया. तब मुकेश की लाश को वापस घर ले आया गया. दोपहर बाद करीब 2 बजे किसी ने इस की सूचना निगोही थानापुलिस को दे दी. सूचना पा कर थानाप्रभारी आशीष शुक्ला पुलिस टीम के साथ तुरंत मुकेश के घर पहुंच गए. उन्होंने घटनास्थल और लाश का निरीक्षण करने के बाद लाश पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भेज दी.

थानाप्रभारी ने मुकेश की बहन राजबेटी से पूछताछ की तो उस ने अपनी भाभी मीना और जगदीश के अवैधसंबंधों की जानकारी उन्हें देते हुए शक जताया कि उस की हत्या में इन दोनों का ही हाथ है. उधर मुकेश के बेटे कल्लू ने भी मां की करतूत का खुलासा कर दिया. थानाप्रभारी आशीष शुक्ला ने राजबेटी की तहरीर पर मीना और उस के आशिक जगदीश के खिलाफ भादंवि की धारा 302 और 304 के तहत मुकदमा दर्ज करा कर दोनों को गिरफ्तार कर लिया. दोनों ने पूछताछ के दौरान अपना जुर्म कुबूल कर लिया. इस के बाद उन्हें सीजेएम की अदालत में पेश किया गया, जहां से दोनों को न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. UP Crime

कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

Love Story in Hindi : प्यार का गुलाल

Love Story in Hindi : शराबखोरी की दोस्ती हमेशा घातक होती है, खास कर तब जब शराबी दोस्त की नजर जवान बीवी पर पड़ जाए. संतोष ने सब से बड़ी गलती यही की कि वह अपने दोस्त लक्ष्मण को घर में बुला कर शराब पिलाने लगा. जब लक्ष्मण और संतोष की पत्नी सत्यरूपा के बीच अवैधसंबंध बन गए तो संतोष की शामत आनी ही थी. 4  अक्तूबर की सुबह की बात है. लोगबाग रोजाना की तरह उठ कर अपने दैनिक कार्यों में लग गए थे. तभी खेतों की ओर गए किसी व्यक्ति ने तालाब के किनारे खून से लथपथ

पड़ी लाश देखी. इस के बाद जल्दी ही यह बात आग की तरह पूरे इलाके में फैल गई. जहां लाश पड़ी थी, वह क्षेत्र लखनऊ के थाना विभूति खंड मे आता था. तालाब किनारे लाश पड़ी होने की खबर सुन कर विभूति खंड के ही मोहल्ला बड़ा भरवारा में रहने वाली सत्यरूपा भी वहां पहुंच गई. उस का पति संतोष रात से गायब था. लाश देख कर वह दहाड़ मारमार कर रोने लगी. लाश उस के पति संतोष साहू की थी.

इसी बीच किसी ने इस मामले की सूचना थाना विभूति खंड को दे दी. सूचना पा कर थानाप्रभारी देवेंद्र दुबे पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. उन्होंने लाश का निरीक्षण किया. मृतक संतोष की उम्र करीब 45 साल थी. उस के पेट पर किसी तेज धारदार हथियार से कई वार किए गए थे, जिस से पेट में गहरे घाव लगे थे. लाश के पास ही उस की साइकिल पड़ी थी. मृतक की पत्नी के अनुसार उस के पास मोबाइल भी था, लेकिन कपड़ों की तलाशी में उस का मोबाइल नहीं मिला था.

थानाप्रभारी देवेंद्र दुबे ने सत्यरूपा से पूछताछ की तो उस ने बताया कि बीती रात संतोष अपने बेटे राकेश के साथ मछली खरीदने निकला था. मछली खरीद कर संतोष ने राकेश को घर भेज दिया था और खुद कुछ देर में आने की बात कह कर कहीं चला गया था. जब वह काफी देर तक नहीं लौटा तो उस ने फोन किया, लेकिन उस का मोबाइल बंद मिला. वह पूरी रात उस का नंबर मिलाती रही, लेकिन मोबाइल बराबर बंद ही मिला. सवेरा होते ही उस ने पति की तलाश शुरू की. पड़ोस में ही टिंबर का काम करने वाले सोनू को साथ ले कर जब वह पति को तलाश रही थी, तभी उसे तालाब किनारे एक लाश पड़ी होने की खबर मिली. इस के बाद वह तुरंत तालाब किनारे पहुंच गई.

सत्यरूपा ने बताया था कि संतोष राजगीर था और इन दिनों वह एक डाक्टर के घर पर काम कर रहा था. गत दिवस उसे पैसे मिले थे जिन में से थोड़े उस ने घर में दे दिए, बाकी अपने पास रख लिए थे. सत्यरूपा ने आशंका भी जताई थी कि कहीं लूट का विरोध करने पर उस के पति का कत्ल न कर दिया गया हो? प्राथमिक पूछताछ और काररवाई के बाद थानाप्रभारी दुबे ने संतोष की लाश को पोस्टमार्टम के लिए मैडिकल कालेज भेज दिया. थाने लौट कर उन्होंने सत्यरूपा की तहरीर के आधार पर अज्ञात हत्यारों के खिलाफ भादंवि की धारा 302 के तहत मुकदमा दर्ज करा दिया.

थानाप्रभारी देवेंद्र दुबे ने सब से पहले संतोष के फोन नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई. सीडीआर के मुताबिक संतोष के नंबर पर 3 अक्तूबर यानी घटना वाली रात आखिरी काल लखनऊ के थाना गुडंबा के आदिलनगर निवासी लक्ष्मण साहू ने की थी. पुलिस ने जब लक्ष्मण साहू के बारे में जानकारी जुटाई तो पता चला कि पेशे से लक्ष्मण भी राजगीर था और संतोष का करीबी दोस्त था. संतोष के घर उस का काफी आनाजाना था. यहां तक कि वह संतोष की गैरमौजूदगी में भी उस के घर आताजाता था और काफी देर तक रुकता था. इस से अनुमान लगाया गया कि यह मामला अवैधसंबंधों का हो सकता है. संभव है संतोष के विरोध करने पर उस की हत्या की गई हो.

संदेह हुआ तो थानाप्रभारी देवेंद्र दुबे ने 7 अक्तूबर को लक्ष्मण और सत्यरूपा को हिरासत में ले कर उन से कड़ाई से पूछताछ की. थोड़ी सी सख्ती करने पर उन दोनों ने संतोष की हत्या का जुर्म कुबूल लिया. इतना ही नहीं, लक्ष्मण ने अपने सहयोगियों के नाम भी बता दिए. पूछताछ के बाद पुलिस ने निखिल उर्फ पिंकू निवासी विकासनगर, लखनऊ और अजय चौहान उर्फ मुक्कू निवासी लखनऊ विश्वविद्यालय आवासीय परिसर को भी गिरफ्तार कर लिया. दरअसल, छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले का मूल निवासी संतोष साहू अपने परिवार के साथ लखनऊ के विभूति खंड में बड़ा भरवारा में रहता था. वह राजगिरी का काम करता था.

संतोष का काम ठीक चल रहा था, जिस की वजह से परिवार का भरणपोषण करने में उसे कोई दिक्कत नहीं होती थी. काम के दौरान ही एक दिन संतोष की मुलाकात लखनऊ के थाना गुडंबा के आदिलनगर मोहल्ले में रह रहे लक्ष्मण साहू से हुई. लक्ष्मण भी छत्तीसगढ़ के कमरधा जनपद के गांव पिपरिया थारा का रहने वाला था. वह लखनऊ में आदिलनगर में किराए पर रह कर राजगिरी का काम करता था. वह था तो शादीशुदा, लेकिन अकेला रहता था. उस के बीवीबच्चे कमरधा में ही रह रहे थे.

पहली मुलाकात में ही संतोष और लक्ष्मण कुछ इस तरह घुलमिल गए, मानो पुराने दोस्त हों. पीनेपिलाने वालों के बीच अकसर ऐसा ही होता है. एक ही राज्य से होने और खानेपीने के शौकीन होने की वजह से दोनों में अच्छी पटने लगी. लक्ष्मण ने संतोष को कई अच्छे काम दिलाए. इसी वजह से संतोष उस की दोस्ती पर पूरी तरह कुर्बान था. जब भी खुशी की कोई बात होती, दोनों खूब जश्न मनाते. पीनेपिलाने की महफिल हर बार लक्ष्मण के कमरे पर ही जमती थी.

एक दिन जब एक काफी बड़ा काम मिला तो संतोष बोला, ‘‘लक्ष्मण, आज खुशी का दिन है, इसलिए जश्न होना चाहिए.’’

‘‘जरूर,’’ लक्ष्मण चहका, ‘‘चलो, कमरे पर चलते हैं, वहीं बोतल खाली करेंगे.’’

‘‘तुम्हारे कमरे पर बहुत महफिलें हो चुकीं, आज तुम मेरे घर चलो,’’ संतोष बोला, ‘‘मेरी घर वाली बहुत बढि़या नौनवेज पकाती है. घर में बैठ कर शराब का भी मजा आएगा और मीट का भी.’’

‘‘अगर ऐसी बात है तो आज रहने दो,’’ लक्ष्मण ने अपनी राय जाहिर की, ‘‘अगले हफ्ते होली है, उस दिन दोहरा जश्न मनाएंगे.’’

‘‘होली का जश्न भी हो जाएगा,’’ संतोष अपनी खुशी नहीं दबा पा रहा था, ‘‘मुझे इतना बड़ा काम मिला है, इसलिए आज भी दावत होनी चाहिए.’’

लक्ष्मण संतोष की खुशी कम नहीं करना चाहता था. उस की बात मान कर वह उस के साथ उस के घर चला गया. घर में संतोष की पत्नी और बच्चे मौजूद थे. संतोष ने लक्ष्मण को उन सब से मिलवाया. चूंकि संतोष अपनी पत्नी सत्यरूपा से अकसर लक्ष्मण की बात किया करता था, इसलिए वह उस से मिल कर खुश हुई. लक्ष्मण सत्यरूपा को देख कर आश्चर्य में रह गया. कई बच्चों की मां हो कर भी उस के रूपलावण्य में कमी नहीं आई थी. न उस की त्वचा की दमक फीकी पड़ी थी और न ही पेट या कूल्हों पर चर्बी की परत जमी थी. उस के चेहरे में कशिश थी और मुसकान कातिलाना.

संतोष बोतल और मीट साथ लाया था. वह मीट वाली थैली सत्यरूपा को देते हुए बोला, ‘‘जल्दी से बढि़या मीट पका. ऐसा कि लक्ष्मण भी अंगुलियां चाटता रह जाए.’’

सत्यरूपा मीट ले कर किचन में चली गई तो संतोष लक्ष्मण के साथ शराब पीने बैठ गया. लक्ष्मण बातें करते हुए शराब तो संतोष के साथ पी रहा था, लेकिन उस का मन सत्यरूपा में उलझा हुआ था और उस की निगाहें लगातार उसी का पीछा कर रही थीं. जैसेजैसे नशा चढ़ता गया, वैसेवैसे उस की निगाहों में सत्यरूपा नशीली होती गई. शराब का दौर खत्म हुआ तो सत्यरूपा खाना परोस कर ले आई. खाना खा कर लक्ष्मण ने उस की दिल खोल कर तारीफ की. सत्यरूपा भी उस की बातों में खूब रस ले रही थी. खाना खाने के बाद लक्ष्मण अपने कमरे पर लौट गया.

इस के बाद लक्ष्मण जब भी संतोष से मिलता, उसे होली की दावत की याद दिलाना नहीं भूलता. लक्ष्मण को भी होली का बेसब्री से इंतजार था. उस ने मन ही मन सोच लिया था कि उसे होली में कैसे हुड़दंग मचाना है. उसे संतोष से कम, सत्यरूपा से ज्यादा होली खेलनी थी. सत्यरूपा को छूने, टटोलने और दबाने का इस से बेहतर मौका और कोई नहीं मिल सकता था. भाभी संग होली खेलने की रस्म भी है और दस्तूर भी. कुछ भी कर गुजरो, केवल एक ही जुमले में सारी खताएं माफ, ‘बुरा न मानो होली है.’ लक्ष्मण ने इसी हथियार को आजमाने का फैसला कर लिया था. उसे पूरा यकीन था कि होली में अगर वह मनमानी करेगा तो सत्यरूपा बुरा नहीं मानेगी.

आखिर इंतजार की घडि़यां खत्म हुईं और होली आ गई. होली के दिन 2 बजे तक रंग चला. उस के बाद लक्ष्मण ने नहाधो कर साफसुथरे कपड़े पहने और संतोष के घर पहुंच गया. दोस्त से रंग खेलने के लिए संतोष रंगों से सना बैठा था. लक्ष्मण को साफसुथरा आया देख कर संतोष ने रंग खेलने के बजाय उसे केवल गुलाल लगाया और गुझिया खिलाई. फिर उसे बैठाते हुए बोला, ‘‘मैं जरा नहा लूं, उस के बाद दोनों आराम से बैठ कर पिएंगे.’’

संतोष कपड़े ले कर बाथरूम में जा घुसा. लक्ष्मण को जैसे इसी समय का इंतजार था. उस ने साथ लाए पैकेट से गुलाल निकाला और अंदर पहुंच गया. सत्यरूपा उसे आंगन में मिल गई. वह उसे देखते ही चहका, ‘‘भाभी, होली मुबारक हो.’’ उस ने सत्यरूपा के गाल पर अंगुली से थोड़ा गुलाल लगा दिया. सत्यरूपा भी उसे होली की बधाई देते हुए बोली, ‘‘भाभी से होली खेलने आए हो तो ढंग से खेलो. यह क्या कि अंगुली से थोड़ा गुलाल लगा दिया.’’

लक्ष्मण ने सत्यरूपा की बात का गलत मतलब निकाला. फलस्वरूप उस की हसरतें जोश में आ गईं. उस की मुट्ठी में गुलाल था ही, अच्छा मौका देख उस ने गुलाल वाला हाथ सत्यरूपा के वर्जित क्षेत्रों तक पहुंचा दिया और उन्हें रंगने लगा. सत्यरूपा उस के गुलाल से सने दोनों हाथ पकड़ कर कसमसाते हुए बोली, ‘‘छोड़ो, यह क्या पागलपन है?’’

‘‘बुरा न मानो होली है.’’ लक्ष्मण ने कहा और अंगुलियों का खेल जारी रखा. सत्यरूपा किसी तरह उस से अपने आप को छुड़ा कर बोली, ‘‘अभीअभी नहाई थी, अब फिर से नहाना पड़ेगा.’’

‘‘नहा लेना,’’ लक्ष्मण हंसते हुए बोला, ‘‘साल भर में रंगों का त्यौहार एक ही दिन तो आता है.’’

सत्यरूपा के इस व्यवहार से यह बात साफ हो गई कि उस ने लक्ष्मण की इस अमर्यादित हरकत का बुरा नहीं माना था. लक्ष्मण वह नहीं समझ सका कि ऐसा होली की वजह से हुआ था, सत्यरूपा भी उस के जैसा भाव अपने मन में पाले हुए थी. इस हकीकत को जानने के लिए उस ने फिर से उसे बांहों में भर कर रंग लगाना शुरू कर दिया. सत्यरूपा को जिस तरह पुरजोर विरोध करना चाहिए था, उस ने वैसा विरोध नहीं किया. शायद उसे लक्ष्मण की यह हरकत अच्छी लगी थी. शायद वह कुछ देर और यूं ही लक्ष्मण की बांहों में सिमटी रहती, लेकिन तभी उसे संतोष के बाथरूम से बाहर निकलने की आहट सुनाई दी तो उस ने खुद को लक्ष्मण से अलग कर लिया.

जैसे ही संतोष बाथरूम से निकला, सत्यरूपा झट से बाथरूम में घुस गई. उसे डर था कि कहीं संतोष लक्ष्मण की हरकतों के सुर्ख निशान देख न ले. जब तक संतोष ने कपड़े पहने, तब तक लक्ष्मण ने भी गुलाल से सने हाथ धो लिए. इस के बाद वह कमरे में बैठ गया. नहाधो कर संतोष शराब की बोतल, पानी, गिलास और नमकीन ले आया. इस के बाद दोनों ने जाम से जाम लड़ाने शुरू कर दिए. सत्यरूपा भी नहा कर आ चुकी थी. हया से उस के गाल अब भी लाल हो रहे थे. वह दूर खड़ी अजीब सी नजरों से लक्ष्मण को देख रही थी.

सत्यरूपा के इस व्यवहार से लक्ष्मण को लगा कि सत्यरूपा भी उस की तरह ही मिलन को प्यासी है. अगर वह पहल करेगा तो शायद वह इनकार न करे. यही सोच कर उस ने उसी दिन सत्यरूपा पर अपने प्यार का रंग चढ़ाने का निश्चय कर लिया. लक्ष्मण ने मन ही मन योजना बना कर खुद तो कम शराब पी, संतोष को जम कर शराब पिलाई. देर रात शराब की महफिल खत्म हुई तो दोनों ने खाना खाया. लक्ष्मण ने भरपेट खाना खाया, जबकि संतोष चंद निवाले खा कर एक तरफ लुढ़क गया.

लक्ष्मण की मदद से सत्यरूपा ने संतोष को चारपाई पर लिटा दिया. इस के बाद वह हाथ झाड़ते हुए बोली, ‘‘अब इन के सिर पर कोई ढोल भी बजाता रहे तो भी यह सुबह से पहले जागने वाले नहीं.’’ इस के बाद उस ने लक्ष्मण की आंखों में झांकते हुए भौंहें उचकाईं, ‘‘तुम घर जाने लायक हो या इन के पास ही तुम्हारा भी बिस्तर लगा दूं.’’

लक्ष्मण के दिल में उमंगों का सैलाब उमड़ रहा था. उसे लगा कि सत्यरूपा भी यही चाहती है कि वह यहीं रुके और उस के साथ प्यार की होली खेले. इसलिए बिना देर किए उस ने कहा, ‘‘हां, नशा कुछ ज्यादा हो गया है, मेरा भी बिस्तर यहीं लगा दो.’’

सत्यरूपा ने लक्ष्मण के लिए भी चारपाई बिछा कर बिस्तर लगा दिया और बच्चों के साथ दूसरे कमरे में सोने चली गई. लक्ष्मण की आंखों में नींद नहीं थी. उसे सत्यरूपा के साथ दिन में बिताए पल बारबार याद आ रहे थे. उस के शारीरिक स्पर्श से वह काफी रोमांचित हुआ था. वह उस स्पर्श की दोबारा अनुभूति पाने के लिए बेकरार था. संतोष की ओर से वह पूरी तरह निश्चिंत था. आखिर फैसला कर के वह दबे पैर चारपाई से उठा और संतोष के पास जा कर उसे हिला कर देखा. उस पर किसी तरह की कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई तो वह धड़कते दिल से उस कमरे की ओर बढ़ गया, जिस में सत्यरूपा बच्चों के साथ सो रही थी.

कमरे में चारपाई पर बच्चे लेटे थे, जबकि सत्यरूपा जमीन पर बिस्तर लगा कर लेटी थी. कमरे में जल रही लाइट बंद कर के लक्ष्मण सत्यरूपा के पास जा कर उस के बिस्तर पर लेट गया. जैसे ही उस ने सत्यरूपा को बांहों में भरा वह दबी जुबान में बोली, ‘‘मनमानी कर तो चुके, अब क्या करने आए हो, जाओ यहां से.’’

‘‘उस वक्त तो बनावटी रंग लगाए थे, अब तुम्हें अपने प्यार के असली रंग में सराबोर करने आया हूं. कह कर उस ने सत्यरूपा को अपने अंदाज में प्यार करना शुरू कर दिया. इस के बाद तो 2 जिस्मों के अरमानों की होड़ सी लग गई. बदन से कपड़े उतरते गए और हसरतें बेलिबास हो गईं. जल्दी ही उन के बीच वह संबंध बन गए, जो सिर्फ पतिपत्नी के बीच में होने चाहिए. एक ने अपने पति के साथ बेवफाई की थी तो दूसरे ने दोस्त के साथ दगाबाजी.’’

उस रात के बाद सत्यरूपा और लक्ष्मण एकदूसरे को समर्पित हो गए. सत्यरूपा लक्ष्मण के साथ रंगरलियां मनाने लगी. उस ने लक्ष्मण को अपना सब कुछ मान लिया. यही हाल लक्ष्मण का भी था. सत्यरूपा के साथ मौजमस्ती करने के लिए लक्ष्मण हर दूसरेतीसरे दिन संतोष के घर महफिल जमाने लगा. संतोष को वह नशे में धुत कर के सुला देता और बाद में सत्यरूपा के बिस्तर पर पहुंच जाता. जब लक्ष्मण की रातें अकसर संतोष के घर में गुजरने लगीं तो पड़ोसियों में कानाफूसी शुरू हो गई कि खानेपीने तक तो ठीक है, लेकिन पराए मर्द को घर में सुलाना कैसी दोस्ती है. जरूर कहीं कुछ गड़बड़ है.

लोगों ने तांकझांक की तो लक्ष्मण और सत्यरूपा के संबंध का भेद खुलने में देर नहीं लगी. इस के बाद तो उन के अवैधसंबंध के चर्चे आम हो गए. आसपड़ोस में फैली बात संतोष के कानों तक पहुंची तो उस ने सत्यरूपा से पूछा. इस पर उस ने कहा कि वह उस का दोस्त है, उस के साथ ही खातापीता, उठताबैठता है. इस में वह क्या कर सकती है, लोगों का तो काम ही दूसरों की गृहस्थी में चिंगारी लगाना होता है.

इस के बाद संतोष ने फिर कभी सत्यरूपा से इस संबंध में कोई बात नहीं की. लेकिन सत्यरूपा और लक्ष्मण के दिमाग में यह बात आ गई कि आखिर कब तक वे इस तरह संतोष और दुनिया वालों की नजरों से बच पाएंगे. इस का कोई न कोई स्थाई हल निकालना ही होगा. दोनों ने इस मुद्दे पर काफी सोच विचार किया तो नतीजा यही निकला कि संतोष को बिना रास्ते से हटाए वे दोनों एकसाथ अपनी जिंदगी की शुरुआत नहीं कर सकते. दोनों की सहमति बनी तो योजना बनते देर नहीं लगी.

इसी योजना के तहत लक्ष्मण ने अपने दोस्तों निखिल उर्फ पिंटू और अजय चौहान उर्फ मुक्कू से संतोष की हत्या करने की बात की तो दोनों ने हत्या के लिए 20 हजार रुपए मांगे. लक्ष्मण खुशी से पैसे देने के लिए तैयार हो गया. पेशगी के तौर पर उस ने दोनों को 5 हजार रुपए दे भी दिए. 3 अक्तूबर की रात लक्ष्मण अपने दोनों साथियों निखिल और अजय के साथ हनीमैन चौराहे पर पहुंचा. उस ने संतोष को काम दिलाने के बहाने वहीं से उस के मोबाइल पर बात की. सुन कर संतोष खुश हुआ तो लक्ष्मण ने उसे साइट दिखाने को कहा. वह आने को तैयार हो गया.

संतोष उस वक्त अपने बेटे राकेश के साथ मछली खरीदने के लिए मछली मंडी आया था. लक्ष्मण का फोन सुनने के बाद उस ने मछली खरीद कर बेटे राकेश को दे दी और कुछ देर में घर आने की बात कह कर उसे घर भेज दिया. इस के बाद संतोष साइकिल से हनीमैन चौराहे पर पहुंच गया. वहां लक्ष्मण उसे अपने 2 साथियों के साथ मिला. चारों ने एक ठेके पर बैठ कर शराब पी. शराब पीने के बाद लक्ष्मण और उस के साथी टहलने का बहाना बना कर उसे रेलवे लाइन के किनारे तालाब के पास ले गए. वहां दूरदूर तक कोई नहीं दिख रहा था.

सुनसान जगह देख कर लक्ष्मण ने निखिल और अजय के साथ मिल कर संतोष को दबोच लिया और उस के पेट पर चाकू से ताबड़तोड़ कई वार कर दिए, जिस से संतोष जमीन पर गिर कर कुछ देर तड़पा, फिर हमेशा के लिए शांत हो गया. उसे मारने के बाद लक्ष्मण ने फोन कर के सत्यरूपा को उस की हत्या की जानकारी दे दी और तीनों वहां से फरार हो गए. पुलिस काल डिटेल्स के सहारे उन तक पहुंची तो घटना का खुलासा होने में देर नहीं लगी. सत्यरूपा और लक्ष्मण से पूछताछ के बाद पुलिस ने निखिल और अजय को भी गिरफ्तार कर लिया. पुलिस ने उन की निशानदेही पर घटनास्थल के पास की झाडि़यों से हत्या में इस्तेमाल किया गया चाकू भी बरामद कर लिया.

मुकदमे में चारों आरोपियों के नाम दर्ज करने के बाद पुलिस ने उन्हें उसी दिन सीजेएम की अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. Love Story in Hindi

— कथा

Love Stories in Hindi : प्रेमिका के चक्कर में शिकारी बन गया शिकार

Love Stories in Hindi : यह कहानी है पतिपत्नी और ‘वो’ के बीच एक लव ट्रायंगल की, जिस में सुनंदा नाम की महिला अपने प्रेमी सिद्धप्पा कटकरे के साथ मिल कर अपने पति बीरप्पा पुजारी की हत्या की कोशिश करती है. इस वारदात के बाद अचानक सिद्धप्पा गायब हो जाता है, लेकिन जब पुलिस उस की खोज करती है, तब पुलिस को सिद्धप्पा की लाश मिलती है. एक शिकारी खुद कैसे शिकार बन गया, यह हैरतअंगेज कहानी किसी फिल्म की नहीं, बल्कि एक ऐसी हकीकत है कि…

इस कहानी की शुरुआत होती है कर्नाटक के विजयपुरा जिले के इंडी टाउन के अक्क महादेवी नगर से. यहीं पर अपने बच्चों के साथ किराए के मकान में रहता था बीरप्पा पुजारी. बीरप्पा किसान था. उस का छोटा सा परिवार था. परिवार में पत्नी सुनंदा के अलावा २ बच्चे थे. बीरप्पा को कई बार अपनी पत्नी पर शक हुआ कि उस की पत्नी का किसी दूसरे मर्द के साथ चक्कर चल रहा है, लेकिन वह बिना किसी सबूत के उस पर इलजाम लगा कर अपनी गृहस्थी में आग नहीं लगाना चाहता था. उस ने कई बार पत्नी को रंगेहाथों पकडऩे की कोशिश की, लेकिन वह किसी भी सूरत में सफल नहीं हो सका.

सुनंदा बहुत ही तेज किस्म की थी. उसे भी आभास हो गया था कि उस का पति उस की जासूसी करने पर लगा हुआ है, लेकिन वह हर वक्त पूरी तरह से अलर्ट रहती थी. फिर भी बीरप्पा के मन में पत्नी के प्रति शक पैदा हुआ तो वह छोटीछोटी बातों को ले कर उस के साथ लड़ाईझगड़े पर उतारू हो उठता था, जिस के कारण दोनों के संबधों में जहर घुलना शुरू हो गया यानी एक बसीबसाई गृहस्थी में कलह शुरू हो गई. सुनंदा काफी दिनों बाद अपने खेतों पर गई थी, तभी उस का इंतजार कर रहा प्रेमी सिद्धप्पा कटकरे उस के पास आया और बोला, ”क्या बात है भाभी, आज बहुत दिनों बाद खेतों पर आना हुआ.’’

”आज तो आ भी गई, लेकिन आगे मेरा खेतों पर आने का रास्ता पूरी तरह से बंद होने वाला है. बीरप्पा ने मेरे खेतों पर आने पर पाबंदी लगा दी है. किसी गांव वाले ने उस के कान भर दिए कि तुम्हारी बीवी तुम्हारे पीछे खेतों पर जा कर सिद्धप्पा के साथ मौजमस्ती करती है.’’ सुनंदा ने बताया.

”अरे, भाभी, तुम बीरप्पा की धमकी से डर गई?’’ सिद्धप्पा बोला.

”’डरूं नहीं तो हर रोज उस की मार खाती रहंंू? सिद्धप्पा अब तुम मेरे खेतों पर मत आया करो, तुम्हारे कारण मेरे घर में कलह पैदा हो गई है.’’

”लेकिन भाभी, मैं तो तुम्हें बेइंतहा प्यार करता हंू. तुम से मिले बिना मुझे सब कुछ सूनासूना लगता है. तुम्हारे बिना मेरी जिंदगी अधूरी है.’’

”प्यार तो मैं भी तुम्हें बहुत करती हूं, लेकिन क्या करूं, बीरप्पा ने मेरा जीना हराम कर रखा है.’’ कहतेकहते सुनंदा की आंखें भर आईं.

तब सुनंदा गंभीर हो कर बोली, ”देखो सिद्धप्पा, अगर तुम चाहते हो कि मैं तुम से पहले की तरह ही मिलतीजुलती रहूं तो तुम्हें मेरा एक काम करना होगा. तुम्हें किसी भी तरह से हम दोनों के मिलन में बाधा बन रहे मेरे पति को हटाना होगा. तुम किसी भी तरह से बीरप्पा को खत्म कर दो. उस के बाद हम दोनों पतिपत्नी के रूप में गृहस्थ जीवन बिताएंगे.’’

”तुम ठीक कहती हो भाभी, मैं भी काफी समय से यही सोच रहा था, लेकिन तुम्हारे डर से अपना मुंह बंद किए हुए था. अगर तुम्हारी ऐसी ही मरजी है तो यह काम आप मुझ पर छोड़ दो. आप तो केवल मौका देख कर मुझे फोन कर देना. बाकी काम मैं अपने आप निपटा दूंगा.’’

उस दिन के बाद सुनंदा मौके की तलाश में जुट गई. फिर उसी दौरान ३१ अगस्त, २०२५ को उस योजना को अंजाम देने का प्लान तैयार कर लिया. उसी रात को कोई १२ बजे का वक्त था. बीरप्पा खापी कर गहरी नींद में सोया हुआ था. उसी दौरान उसे लगा कि उस के शरीर पर कोई बैठा हुआ है. अपने शरीर पर वजन महसूस होते ही बीरप्पा ने उठने की कोशिश की. लेकिन तब तक दूसरा आदमी उस के पैरों पर बैठ गया.

इस से पहले कि बीरप्पा कुछ माजरा समझ पाता, एक व्यक्ति ने उस का मुंह दबाते हुए उस का गला घोंटना शुरू कर दिया. वह बुरी तरह से छटपटाने लगा.

और सीने पर सवार हो गई पत्नी

तभी उस के पेट पर बैठे आदमी ने उस के गुप्तांगों को बुरी तरह से दबाना चालू किया. उस की सांसें बंद होती जा रही थीं. देखते ही देखते बीरप्पा बेहोशी की हालत में पहुंच गया.

जब उसे होश आया तो वह एक अस्पताल में भरती था. उस की समझ में कुछ नहीं आ रहा था कि उस के साथ क्या हुआ और किस ने उसे अस्पताल में कब भरती कराया. उस के होश में आते ही पास में खड़ी नर्स ने उसे आश्वासन दिया कि अब आप पूरी तरह से सही हो, चिंता की कोई बात नहीं. इस बात को सुन कर बीरप्पा की आंखें आंसुओं से सराबोर हो आई थीं. अपने को ठीक हालत में देख बीरप्पा ने अपनी पत्नी के बारे में पूछा तो पता चला कि उस की पत्नी ३१ अगस्त, २०२५ से ही गायब है.

बीरप्पा के होश में आते ही पुलिस ने उस से पूछताछ की. तब बीरप्पा ने पुलिस को जानकारी देते हुए बताया कि ३१ अगस्त की रात को वह खाना खा कर सो गया था. उस के सोने के बाद कुछ आदमी उस के घर में घुसे और उन्होंने उस का गला व गुप्तांग दबा कर मारने की कोशिश की. उस दौरान उस की पत्नी सुनंदा भी घर पर ही मौजूद थी. अपने पति को इस हालत में देखते हुए न तो उस ने कोई शोरशराबा किया और न ही उस ने उन लोगों से उसे बचाने की कोशिश की. उस ने बताया कि उसी दौरान उस की पत्नी ने कहा, ”इसे छोडऩा मत सिद्धू, इस की गरदन जोर से दबाओ. यह किसी भी सूरत में बचना नहीं चाहिए.’’

सुनंदा की बात सुनते ही उस व्यक्ति ने मेरे गले पर अपनी पकड़ और भी मजबूत कर दी थी. बुरी तरह से गला दबते ही वह बेहोशी की हालत में चला गया था. बीरप्पा की बात सुनते ही पुलिस समझ चुकी थी कि उस के साथ घटित इस घटना में उस की पत्नी सुनंदा का ही हाथ था. इसी कारण वह घर से गायब हो गई थी. इस जानकारी के मिलते ही पुलिस ने सुनंदा को हर जगह तलाशने की कोशिश की, लेकिन उस का कहीं भी अतापता न चल सका. पुलिस निरंतर सुनंदा की तलाश में जुटी थी. उसी दौरान पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया.

सुनंदा को गिरफ्तार करते ही पुलिस ने उस से कड़ी पूछताछ की तो उस ने सहज ही अपना जुर्म कुबूलते हुए पुलिस को बताया कि काफी समय से उस की सिद्धप्पा से गहरी दोस्ती थी. जिस के कारण उस का पति उस पर शक करते हुए उस के साथ मारपीट करता था. उस की मारपीट से तंग आ कर ही उस ने प्रेमी सिद्धप्पा के साथ मिल कर पति को मारने की योजना बनाई थी.

इस जानकारी के मिलते ही पुलिस ने उस के प्रेमी सिद्धप्पा को गिरफ्तार करने के लिए कई जगह पर दबिश दी, लेकिन वह पुलिस के हत्थे नहीं चढ़ा. उस के बाद पुलिस ने उस की खोज में अपने मुखबिर लगा दिए, लेकिन इस से पहले कि पुलिस सिद्धप्पा तक पहुंच पाती, उस ने एक वीडियो बना कर सोशल मीडिया पर अपलोड कर दी. उस ने उस वीडियो में जो कहा था, वह काफी हैरान कर देने वाला था. उस ने उस वीडियो के जरिए खुद को बेगुनाह साबित करने की कोशिश की थी.

सिद्धप्पा ने कहा कि इस वारदात में मेरी कोई खास गलती नहीं. मैं ने जो भी किया, सुनंदा के कहने पर ही किया है. सुनंदा मुझे दिलोजान से चाहती थी. वह मेरे साथ श्रीशैलम मंदिर भी गई थी. वहां पर उस ने मेरे लिए मन्नत भी मांगी थी. वहां पर उस ने प्रार्थना की कि ३ महीने के भीतर हम पतिपत्नी की तरह साथ रहें. लेकिन इस वक्त वह उसे फंसाना चाहती है.

सिद्धप्पा ने वीडियो में कहा कि बीरप्पा को मौत की साजिश रचने में उस की पत्नी सुनंदा का हाथ था. जबकि वह इस मामले में खुद को निर्दोष साबित करना चाह रही है. वह जानता है कि उस के पास खुद को निर्दोष साबित करने का कोई सबूत नहीं है. फिर पुलिस प्रशासन भी महिलाओं का ही साथ देता है. अगर वह पुलिस के सामने हाजिर हो कर सब कुछ साफसाफ भी बता दे तो पुलिस सुनंदा का ही पक्ष लेगी. इसी कारण मेरे पास सिवाय अपनी जान देने के कोई दूसरा रास्ता नहीं.

सिद्धप्पा ने कहा कि सुनंदा कोई ढाई साल से उस के साथ रिलेशनशिप में थी. उस ने ही बीरप्पा को मौत की नींद सुलाने की साजिश रची थी. उस के दबाव में आ कर ही उस ने उस की पति को मौत की नींद सुलाने की कोशिश की थी. जब तक यह वीडियो पुलिस के हाथों तक पहुंचेगी, शायद तब तक मैं स्वयं भी मौत को गले लगा चुका होऊंगा. मेरी आत्महत्या की जिम्मेदारी भी सुनंदा की ही होगी. इस वीडियो ने सब को चौंका दिया था, क्योंकि वीडियो में सिद्धप्पा ने न सिर्फ खतरनाक साजिश का खुलासा किया था, बल्कि अपनी खुदकुशी का इशारा भी दे दिया था. इस वीडियो के जारी होते ही विजयपुरा के एसपी लक्ष्मण निंबर्गी की देखरेख में उस की तलाश शुरू की गई. फौरन ही सिद्धप्पा की तलाश में पुलिस की सक्रियता बढ़ गई थी.

वीडियो के जारी होते ही पुलिस प्रशासन में हड़कंप मच गया. उसे तलाशने में पुलिस बल को लगा दिया था. पुलिस और उस के मुखबिर अभी उस की तलाश में जुटे थे. उसी दौरान इस घटना के लगभग १० दिन बाद पुलिस को जानकारी मिली कि सुनंदा के प्रेमी सिद्धप्पा की लाश एक पेड़ से लटकी हुई है. पुलिस के हत्थे चढऩे से पहले ही उस ने यह खौफनाक कदम उठा लिया था.

शिकारी कैसे हो गया शिकार

सिद्धप्पा की लाश उस के गांव के बाहर जंगल में एक पेड़ से लटकी हुई थी. उस वक्त तक उस की लाश की हालत बहुत ही खराब हो चुकी थी. जिस से साफ जाहिर था कि सिद्धप्पा ने यह कदम कई दिन पहले ही उठा लिया था. जबकि पुलिस उसे किसी भी कीमत पर जिंदा गिरफ्तार करना चाहती थी. इस की जानकारी मिलते ही लोकल पुलिस मौके पर पहुंची. पुलिस ने घटनास्थल का निरीक्षण किया. जांचपड़ताल से पता चला कि सिद्धप्पा ने खुद ही पुलिस के डर की वजह से खुदकुशी कर ली थी. फिलहाल सिद्धप्पा की मौत के साथ ही इस लव ट्रायंगल की कहानी के सारे सबूत ही दफन हो गए थे, जिस के सबूत पुलिस जुटाना चाह रही थी.

पुलिस ने मृतक सिद्धप्पा का शव पेड़ से उतार कर अपनी काररवाई पूरी करते हुए उस की लाश पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दी. मृतक ने अपने गले में रस्सी का फंदा डाल कर सुसाइड की वारदात को अंजाम दिया था, जिसे देख कर यह आशंका भी नहीं की जा सकती थी कि उसे मार कर लटकाया गया हो. इस मामले में बीरप्पा की तरफ से अपनी पत्नी सुनंदा और उस के प्रेमी सिद्धप्पा को अपनी मौत की साजिश रचने का आरोप लगा कर पुलिस को लिखित तहरीर दी थी. जिस के बाद पुलिस ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए कई लोगों को इस मामले से जोड़ते हुए शक के आधार पर काररवाई करने की योजना बनाई थी.

इस जानकारी के मिलते ही पुलिस पूछताछ के दौरान सिद्धप्पा के फेमिली वालों के साथ ही सुनंदा के बयानों के आधार पर इस केस की जो हकीकत सामने आई, वह इस प्रकार थी. बीरप्पा मयप्पा पुजारी कर्नाटक के जिला विजयपुरा के अंजूतागी गांव का रहने वाला था. सिद्धप्पा कटकरे भी बीरप्पा का ही पड़ोसी था. बीरप्पा पुजारी को इतनी खास जानकारी मिल चुकी थी कि उस की पत्नी का उस के पड़ोसी सिद्धप्पा कटकरे के साथ चक्कर चल रहा है.

बीरप्पा और सिद्धप्पा के खेत पासपास में ही थे. बीरप्पा अपने खेतों पर कम ही जाता था. उस की पत्नी सुनंदा ही ज्यादातर खेतों पर काम करने जाती थी. खेतों पर काम करने के दौरान ही उस की दोस्ती सिद्धप्पा से हो गई. सुनंदा की दोस्ती सिद्धप्पा के साथ हो जाने के बाद वह हर वक्त ही अपने खेतों पर पड़ा रहता था. गांव में अधिकांश लोग दोपहर में अपने घरों पर चले आते हैं, लेकिन सिद्धप्पा फिर भी सुनंदा के साथ दोस्ती होने के कारण उस के मिलने की चाहत में वहीं पर पड़ा रहता था. उसी दोस्ती के सहारे जल्दी ही दोनों के बीच अवैध संबंध भी बन गए थे. सिद्धप्पा के साथ संबंध बनते ही सुनंदा उस के प्यार में पागल हो गई. फिर दोनों फोन पर बातें करने लगे थे. सिद्धप्पा जब कभी भी मौका पाता, फोन कर के सुनंदा को खेतों पर बुला लेता और उस के साथ मौजमस्ती करने लगा था.

लेकिन दोनों के बीच लुकाछिपी का यह खेल ज्यादा दिनों तक नहीं चल सका. जैसे ही दोनों गांव वालों की नजरों में चढ़े, उन की गांव में चर्चा होने लगी थी. यह बात धीरेधीरे बीरप्पा के सामने भी पहुंच गई. यह बात सुनते ही बीरप्पा को बहुत दुख हुआ. बीरप्पा ने सुनंदा के साथसाथ सिद्धप्पा को भी हड़काया, लेकिन सिद्धप्पा फिर भी अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहा था.

बीरप्पा ने कई बार अपनी पत्नी को समझाने की कोशिश भी की थी, लेकिन दोनों के बीच बातचीत का सिलसिला खत्म नहीं हुआ. यह बात बीरप्पा को नागवार गुजरती थी. कई बार दोनों के बीच इस मामले को ले कर मनमुटाव भी हुआ, लेकिन उस के पास कोई ऐसा ठोस सबूत नहीं था, जिस के आधार पर वह उस पर किसी प्रकार का लांछन लगा सके. पूरे गांव में सिद्धप्पा सुनंदा को ले कर चर्चे हो रहे थे. जिस के कारण गांव में बीरप्पा का रहना मुश्किल हो गया था.

जब गांव में उस की पत्नी के चरित्र को ले कर काफी चर्चा होने लगी तो पत्नी की हरकतों से तंग आ कर एक दिन बीरप्पा ने बहुत बड़ा कदम उठाया. उस ने अपनी बीवी की हरकतों से तंग आ कर अपनी जुतासे की जमीन बेचने का निर्णय लिया. गांव छोडऩे का पूरा मन बना कर उस ने अपने गांव की जमीन बेच दी. जमीन बेचते ही बीरप्पा ने अपना कुछ कर्ज भी चुकाया. फिर उस ने शहर की तरफ कदम बढ़ाया. वह अपनी गांव की जमीन बेच कर इंडी टाउन के अक्क महादेवी नगर में किराए के मकान में शिफ्ट हो गया.

प्रेमी के प्यार में पागल हो गई थी सुनंदा

अक्कमहादेवी नगर में आने के बाद बीरप्पा को उम्मीद थी कि वहां पर आ कर सब कुछ सही हो जाएगा. यही सोच कर उस ने वहां पर अपना काम भी लगा लिया था. लेकिन उसी दौरान उसे लगा कि सुनंदा गांव छोडऩे के बाद भी अपने पुराने रास्ते पर ही चल रही है. उस ने कई बार उसे फोन पर किसी से बात करते देखा तो उसे फिर से चिंता सताने लगी. उस ने सुनंदा का मोबाइल चैक किया तो पता चला कि वह फिर से सिद्धप्पा से संपर्क साधे हुए है. इसी बात पर दोनों के बीच जोरदार लड़ाई हुई. यह बात सुनंदा ने सिद्धप्पा से कही तो गुस्से में उस का पारा चढ़ गया. वह अपनी प्रेमिका के दर्द को सुन कर बौखला उठा. फिर उस दिन दोनों के बीच जो बात हुई, उस ने एक खतरनाक योजना को जन्म दिया.

सिद्धप्पा ने अपनी प्रेमिका के पति से छुटकारा पाने के लिए अपने साथ अपने एक दोस्त को भी शामिल कर लिया था. सिद्धप्पा ने सुनंदा के कमरे पर पहुंचने से पहले ही उसे सारी जानकारी दे दी थी. उसी जानकारी के बाद बीरप्पा के सोते ही सुनंदा ने अपने मकान का दरवाजा खुला छोड़ दिया था, ताकि बिना किसी शोरशराबे के प्रेमी सिद्धप्पा उस के घर में प्रवेश कर योजना को अंजाम दे सके. सिद्धप्पा अपने एक साथी के साथ प्रेमिका के घर पहुंच गया.

बीरप्पा को सोते देख सुनंदा ने सिद्धप्पा और उस के साथी को इशारा कर दिया. उस का इशारा पाते ही दोनों गहरी नींद में सो रहे बीरप्पा पर टूट पड़े, लेकिन बीरप्पा ने हिम्मत से काम लिया. उस ने दोनों के साथ डट कर मुकाबला किया.

बीरप्पा के सिर के पास ही दीवार से सटा हुआ फ्रिज रखा हुआ था. उस ने फुरती से अपने पैर बैड से सटा कर जोरदार धक्का मारा, जिस से वह सिरहाने रखे फ्रिज से टकराया. उस के टकराने से कमरे में एक जोरदार आवाज गूंजी, जिसे सुनते ही उस का मकान मालिक कमरे की तरफ आया. उसे देखते ही सिद्धप्पा अपने साथी के साथ घर से फरार हो गया, लेकिन उस के बाद भी वह जोरजोर से चीख रहा था. उस की चीख सुन कर सुनंदा ने उसी से सवाल किया कि आप चीख क्यों रहे हो.

तब तक शोरशराबा सुन कर आसपड़ोस के लोग उस के पास आ गए थे. उस के कुछ समय बाद बीरप्पा बेहोशी की हालत में चला गया. तब उस के किराएदार व पड़ोसियों ने उसे अस्पताल में भरती कराया. घटना के वक्त बीरप्पा की पत्नी उस की बगल में ही मौजूद थी, लेकिन उस ने एक बार भी हमलावरों से कुछ नहीं बोला.

बीरप्पा के बेहोश होते ही उस की पत्नी सुनंदा ने लोगों को बताया कि कुछ बदमाश घर में घुस आए थे. जिन्होंने घर में लूटमार करने के बाद बीरप्पा के साथ बुरी तरह से मारपीट भी की थी, लेकिन अस्पताल में बीरप्पा के होश में आते ही सब भेद खुल गया. बीरप्पा ने पुलिस को बताया कि घटना के वक्त उस की पत्नी ही उस के सीने पर चढ़ी बैठी थी. जबकि उस का प्रेमी सिद्धप्पा और उस का एक साथी उस का गला दबाने व उस के गुप्तांगों को दबा रहे थे.

सुनंदा ने प्लान बनाया था कि वह पति की हत्या कराने के बाद सिद्धप्पा के साथ मौजमस्ती मारेगी, लेकिन उस का फेंका पांसा उलटा पड़ गया. उस का पति तो किसी तरह से मौत के मुंह से वापस आ गया और उस का प्रेमी उसे छोड़ कर दुनिया से चला गया. स्टोरी लिखे जाने तक बीरप्पा एक निजी अस्पताल में भरती था. उस की हालत स्थिर बनी हुई थी. पुलिस की एक विशेष टीम ने बीरप्पा की पत्नी सुनंदा को गिरफ्तार कर लिया था. उस के बाद पुलिस ने उस से विस्तार से जानकारी जुटाने के बाद जेल भेज दिया था.

यह दुखद घटना टूटे हुए विश्वास और घरेलू अनसुलझे झगड़ों के गहरे परिणामों को उजागर करती है, जिस के कारण उन के २ बच्चों का भविष्य अधर में लटक गया. Love Stories in Hindi

 

 

Extramarital Affair : बौस की बीवी से अफेयर

Extramarital Affair : लखनऊ के रिकवरी एजेंट कुणाल शुक्ला (27 वर्ष) और प्रौपर्टी डीलर विवेक सिंह के बीच का रिश्ता भरोसे पर टिका हुआ था. अचानक एक प्रेमप्रसंग के आने से रिश्ते में खटास आ गई. विवेक का उस पर से भरोसा टूट गया… कारण, उस की पत्नी का अफेयर था. उस के बाद दिल दहला देने वाली जो वारदात हुई, उस से पतिपत्नी, गहरी दोस्ती और मालिककर्मचारी के रिश्ते तक में अविश्वास का ऐसा जहर घुल गया कि…

शाम का अंधेरा गहराने लगा था. दादूपुर-डेस्टियन सिटी कालोनी निवासी विवेक सिंह अपनी स्वास्तिक असोसिएट कंपनी के औफिस में अकेला बैठा था. वह गहरी चिंता में डूबा था. इसी बीच उस का एक कर्मचारी वसीम अली खान उस के पास आ कर बोला, ”भाई साहब, कहें तो कुछ खानेपीने के लिए मंगवा दूं?’’

विवेक उस के कहने का मतलब समझ गया था, लेकिन चुपचाप रहा. उस की मासूमियत भरी सूरत को निहारने लगा. विवेक को शांत देख कर वसीम वहां से जाने को मुड़ा.

”वसीम! तुम मेरा एक काम करोगे?’’ अचानक विवेक की आवाज सुन कर वसीम उस की ओर तुरंत पलटता हुआ बोला, ”हांहां, बोलो न! कौन सा ब्रांड लाना है?’’

”अरे भाई वसीम, मैं किसी शराब के बोतल की बात नहीं कर रहा. मैं कुछ औैर कहना चाहता हूं. पहले यहां बैठ.’’ विवेक प्यार से बोला.

”बोलो न भाई, मैं ने कभी किसी काम के लिए आप को मना किया है?’’ वसीम बोला.

”अगर तूने मेरा काम कर दिया तो बदले में तुम्हें एक 100 गज का फ्लैट गिफ्ट कर दूंगा.’’ विवेक बोला.

”ऐंऽऽ ऐसा कौन का काम है भाई, जो मुझे आप इतना बड़ा गिफ्ट दोगे?’’ वसीम ने जानने की जिज्ञासा दिखाई.

”है कुछ पर्सनल काम, जो किसी और से नहीं करवा सकता.’’ विवेक बोला.

”कौन सा काम है, जो मैं ही कर सकता हूं… वह कुणाल नहीं कर सकता क्या?’’ वसीम बोला.

”अरे उस हरामजादे का नाम भी मत ले… वह रिकवरी तो ठीक से करता नहीं है…और उस की वजह से मेरा करोड़ों रुपया मार्केट में फंसा है… अब उस ने मेरी इज्जत पर भी…खैर, छोड़ उस की, जा पहले कुछ खानेपीने को ले कर आ. फिर साथ बैठ कर पर्सनल काम के बारे में बताऊंगा.’’

थोड़ी देर में विवेक और वसीम औफिस के बंद केबिन में बैठे थे. दोनों के हाथों में शराब का गिलास था. टेबल पर सामने प्लेट में नमकीन थी. विवेक एक घूंट शराब पीने के बाद वसीम को समझाने लगा, ”देखो वसीम, यह काम है तो जोखिम वाला, लेकिन इस में हम दोनों की भलाई है. आखिर कब तक हम आस्तीन में सांप को पाले रखें…कहीं किसी दिन हमें ही डंस लिया तो क्या होगा?’’

”फिर भी, भाई अगर बातों से बिगड़ी बात पटरी पर आ जाए तो वही अच्छा होगा.’’ वसीम बोला.

”कुछ नहीं बात बनने वाली है. अब उस का पानी समझो सिर के काफी ऊपर से जा चुका है.’’

”चलो ठीक है…मुझे पूरा प्लान समझाओ,’’ वसीम बोला.

विवेक ने एक कागज का पन्ना लिया और रेखांकन के जरिए पूरी योजना के बारे में वसीम को समझा दिया. वसीम ने अच्छी तरह प्लान समझने की हामी भर दी. गिलास के बचे पैग को खत्म किया… टेबल पर बिखरे सामान को समेट कर और वहां से विदा ले लिया.

औफिस में मिली खून से लथपथ लाश

बात 8 सितंबर, 2025 की है. विवेक सिंह के औफिस में शराब पार्टी चल रही थी. केबिन में विवेक के साथ उस रोज वसीम नहीं, बल्कि कुणाल शुक्ला था. वह विवेक का खास था. उस के बिजनैस में कुणाल की खास भूमिका थी. वह एक रिकवरी एजेंट था. काफी समय से विवेक के साथ जुड़ा हुआ था. कई दिनों बाद दोनों के हाथ शराब का गिलास थामे थे. हंसीठहाके का माहौल बना हुआ था. विवेक उस के गिलास में पैग पर पैग बनाए जा रहा था. जबकि खुद धीरेधीरे घूंट ले रहा था.

”अब बस कर यार!’’ कुणाल शुक्ला लडख़ड़ाई आवाज में बोला.

”यह आखिरी पैग भाभी के नाम.’’ विवेक बोला और एक बड़ा पैग बना दिया.

”तूने तो भाभीजी का नाम ले कर मेरा दिल जीत लिया…लाओ, इसे तो एक सांस में पी लूंगा.’’

”हांहां, ले पी न!’’ वो पैग विवेक ने उसे अपने हाथों से पिला दिया. अपना हाथ तब तक लगाए रखा, जब तक कि उस ने पूरा पैग खत्म नहीं कर लिया.

पूरा पैग गटकते ही कुणाल (27 वर्षीय) वहीं टेबल पर सिर टिका कर लुढ़क गया. वह नशे की हालत में अर्धबेहोश हो चुका था. जबकि विवेक होश में था. वैसे तो जब भी दोनों साथसाथ शराब पीते थे, तब विवेक हमेशा पहले अधिक नशे से लडख़ड़ाने लगता था और उसे कुणाल सहारा दे कर देर को उस के घर तक पहुंचाता था. उस रोज उलटा हुआ था. कुणाल ही नशे में धुत हो चुका था और उसे ही घर पहुंचाने के लिए सहारे की जरूरत थी.

”कुणाल! मेरे भाई कुणाल!! तुझे घर छोड़ दूं.’’ विवेक प्यार से उस की गाल पर थपकी लगाते हुए बोला. जबकि वह कुछ भी बोलने की स्थिति में नहीं था.

वह खुद से बोलने लगा, ”ऐसा करता हूं इसे औफिस के बैडरूम में ही सुला देता हूं. सुबह जल्द आ जाऊंगा या फिर वसीम को बोल दूंगा जल्द आने को!’’

उस के बाद उस ने कुणाल के वजनी शरीर को सहारा दे कर बैडरूम में ले जा कर सुला दिया. अधिक नशे में होने के कारण कुणाल तुरंत खर्राटे भरने लगा. तब तक रात के 11 बज चुके थे. विवेक अपने घर चला गया था. जाने से पहले उस ने वसीम को फोन कर कुणाल के औफिस के बैडरूम में सोने की जानकारी दे दी थी. इस से अलग एक और सच्चाई भी थी. कुणाल को अधिक शराब पिलाना और उसे नशे की हालत में औफिस के बैडरूम में ही सुला देना उसी प्लान का हिस्सा था, जिसे विवेक ने बनाया था.

प्लान के मुताबिक वसीम को जैसे ही विवेक की कौल आई, वह सक्रिय हो गया. वह विवेक का इशारा समझ चुका था. थोड़ी देर में ही वसीम विवेक के औफिस में पहुंच गया. वसीम सीधा वहीं गया, जहां कुणाल बेसुध सोया था. शराब के नशे में गहरी नींद में खर्राटे भर रहा था. उस ने कमरे में इधरउधर नजरें दौड़ाईं.

उस की नजर उस सब्बल पर गई, जिसे उस ने एक दिन पहले कोने में छिपा दिया था. उस के दिमाग में एक साथ कई बातें कौंध गईं. कई तसवीरें तैरने लगीं जिन में फ्लैट, सो रहा कुणाल और आग्रह करता विवेक का मायूस चेहरा था. तभी उसे खुद की सुरक्षा, पुलिस और कोर्टकानून आदि से बचने की भी चिंता का एहसास हुआ. अब उस की निगाह सुरक्षित करने की नजर से कमरे के अंदर लगे सीसीटीवी कैमरे पर गई. उस ने पहले उसे हटाया, फिर उस का डीवीआर हटा दिया. पलभर के लिए निश्चिंतता की लंबी सांस ली.

अगले ही पल उस ने फुरती से सब्बल को दोनों हाथों से पकड़ा और कुणाल के सिर पर तेजी से हमला कर दिया. अचानक हुए हमले से कुणाल कुछ समय के लिए छटपटाया… चीख निकली और जल्द ही मरणासन्न अवस्था में पहुंच गया. वसीम ने सब्बल से 2-3 हमले किए. उस के बाद वह औफिस के कमरे से सीसीटीवी और डीवीआर ले कर फरार हो गया. सर्विलांस के सामान उस ने बाहर झाडिय़ों में फेंक दिए.

अगले रोज 9 सितंबर की सुबह विवेक सिंह की घरेलू नौकरानी संगम थारू औफिस में सफाई करने गई. वहां कुणाल के कमरे में लाश देख कर वह भयभीत हो गई. कांपने लगी. भागीभागी विवेक के आवास पर लौट आई. उस ने विवेक सिंह को जा कर बताया कि कुणाल की किसी ने हत्या कर दी है. बैड के चारों तरफ खून फैला है. दीवार और छत पर खून के छींटे हैं. विवेक देरी किए बगैर कुणाल के भाई सौरभ शुक्ला के साथ कंपनी औफिस गया. उन्होंने इस वारदात की फोन पर पुलिस को सूचना दे दी.

पुलिस ने कई एंगल से शुरू की जांच

सूचना पा कर बंथरा पुलिस स्टेशन के एसएचओ राजेश कुमार सिंह पूरी टीम के साथ घटनास्थल पर आ गए. डीसीपी (साउथ) निपुण अग्रवाल और एसीपी विकास कुमार पांडे भी मौके पर पहुंच गए. उन्होंने घटनास्थल स्वास्तिक एसोसिएट कंपनी के कार्यालय में मुआयना किया. कुणाल का खून से लथपथ शव बैड पर पड़ा था. घटनास्थल पर एसएचओ के साथ एसएसआई प्रमोद यादव, एसआई ब्रजभान सिंह, अभय कुमार गुप्ता और सहदेव कुमार ने कंपनी के तमाम स्थानों पर सीसीटीवी कैमरे की तलाश की. कुछ हिस्से गायब मिले, जबकि कुछ इधरउधर टूटेफूटे बिखरे थे. पुलिस समझ गई कि हत्यारा शातिरदिमाग का है और उस ने यह सब सबूत मिटाने के लिए किया है.

हत्या के बारे में जानकारी जुटाने के लिए घटनास्थल के लोकेशन की तहकीकात के अलावा कंपनी के कर्मचारियों से पूछताछ की गई, लेकिन उन से कोई ठोस जानकारी नहीं मिल पाई. कुणाल के बड़े भाई सौरभ सिंह के सामने शव का निरीक्षण किया गया. उसे देखने से पता चला कि उस की आंखें बुरी तरह से कुचली गई थीं. मौके पर पुलिस को कुणाल का मोबाइल भी नहीं मिला. घटनास्थल को देख कर ऐसा लग रहा था कि कंपनी का ही कोई न कोई व्यक्ति जरूर घटना से पहले अपराधी से मिला हो. जांचपड़ताल के दौरान कंपनी के कर्मियों ने एसएचओ को बताया कि कुणाल औफिस में बने कमरे में ही सोता था. हर रोज अंदर से कमरा बंद कर लेता था, किंतु घटना वाली रात हो सकता है वह ज्यादा नशे में हो और बिना कमरा बंद किए बैड पर जाते ही सो गया हो.

फोरैंसिक टीम के साथ पुलिस ने औफिस के बगल में खाली पड़े प्लौट से खून से सना सब्बल बरामद किया. पास में ही झाडिय़ों में सीसीटीवी कैमरा और उस का डीवीआर भी मिल गया. घटनास्थल पर शव का पंचनामा करने से पहले कुणाल की मम्मी को शव को सही ढंग से देखने भी नहीं दिया गया. कारण, चेहरा काफी विचलित करने वाला था. जांच में पता चला कि शाम के वक्त औफिस बंद करते समय कुणाल, विवेक और वसीम खान अकसर खानेपीने की पार्टियां किया करते थे. कुणाल अकसर घर नहीं जा कर औफिस में ही सो जाता था.

जांच के सिलसिले में कुणाल की हत्या का मामला रिकवरी के मुद्ïदे से जुड़े होने का भी अनुमान लगाया गया. बंथरा के डेस्टिनी कालोनी निवासी रिकवरी एजेंट कुणाल शुक्ला (26) दादूपुर स्थित स्वास्तिक असोसिएट्स (रिकवरी एजेंसी) के लिए काम करता था. लोग यह भी जानते थे कि विवेक और कुणाल के बीच अकसर लेनदेन को ले कर बहस होती रहती थी. यहां तक कि पार्टियों के साथ भी रिकवरी को ले कर कई विवाद थे. इस कारण जांच टीम ने आशंका जताई कि कुणाल की हत्या रंजिशन हो सकती है.

पुलिस ने कुणाल और विवेक के मोबाइल  नंबरों की कौल डिटेल्स निकलवाई. हालांकि पुलिस की शुरुआती जांच में मृतक के सिर को कुचल कर हत्या करने की बात सामने आई थी. कुणाल के बड़े भाई सौरभ सिंह द्वारा उस की हत्या का मुकदमा अज्ञात रूप से दर्ज कराने के लिए तहरीर दी गई. पुलिस द्वारा मुकदमा अपराध संख्या 317/2025 पर बीएनएस की धारा 238(क) के तहत दर्ज किया गया था, जिस में जांच करने के बाद 61(क)/2 की बढ़ोत्तरी कर दी गई. कंपनी के विश्वस्त सूत्रों से मिली जानकारी के आधार पर पुलिस इस नतीजे पर पहुंची कि हत्या के पहले विवेक सिंह ने अपने सहयोगी वसीम खान से फोन पर बात की थी.

साथ ही कुणाल के मोबाइल नंबर से यह बात सामने आई कि उस की बातचीत विवेक सिंह की पत्नी मालती सिंह से होती थी. डिजिटल तथ्यों से पुलिस को कुणाल हत्याकांड का परदाफाश करने में देर नहीं लगी. विवेक सिंह और वसीम खान से इस बारे में सख्ती से पूछताछ की गई. वसीम ने पुलिस को बयान दिया कि 8 सितंबर, 2025 को हत्याकांड की योजना उस के सामने बनाई गई थी, जिस में उसे मकान देने का लालच दे कर इसे अंजाम देने के लिए कहा गया था. उस ने यह भी स्वीकार कर लिया कि हत्या उस के द्वारा ही की गई.

उस से पूछताछ के बाद कुणाल शुक्ला हत्याकांड की जो कहानी सामने आई, इस प्रकार निकली—

पत्नी और कुणाल के बीच बने अवैध संबंधों से विवेक सिंह की काफी बदनामी हो रही थी. विवेक ने योजना बना कर वसीम अली खान को भी उस में शामिल कर लिया. वसीम कुणाल के मर्डर में इसलिए शामिल हो गया कि एक तो विवेक ने उसे फ्लैट देने का वादा किया था और दूसरे पैसों के लेनदेन को ले कर उस का भी कुणाल से विवाद चल रहा था. गाजीपुर जिले के करीमुद्ïदीनपुर स्थित महेन गांव निवासी वसीम अली खान लखनऊ के सरोजनीनगर के गौरी बाजार में किराए पर रहता था. उस ने पूछताछ में बताया कि कुणाल को ठिकाने लगाने के लिए विवेक सिंह ने उसे नया मकान बनवा कर देने का लालच दिया था. विवेक ने कार्यालय में पहले से ही सब्बल रखवा दिया था और सही मौका देख कर उसे वारदात करने के लिए भेजा था.

यह बयान पुलिस के लिए अहम था. उसे हिरासत में लिए जाने के बाद 10 सितंबर को पुलिस की टीम एसएसआई प्रमोद यादव, एसआई श्यामजी मिश्रा, सहदेव कुमार, अभय कुमार गुप्ता को साथ ले कर एसएचओ राजेश कुमार सिंह ने कंपनी  के औफिस से विवेक सिंह को हिरासत में ले लिया. डीसीपी (साउथ) निपुण अग्रवाल के सामने विवेक ने भी अपना जुर्म कुबूल कर लिया. रात को विवेक से कुणाल के कार्यालय में अकेले होने की सूचना पा कर वसीम अली खान वहां गया था और सब्बल से ताबड़तोड़ वार कर उस की हत्या कर दी थी. उस के बाद सब्बल को बगल के प्लौट में फेंक कर भाग गया था. पुलिस ने उसी दिन सब्बल को बरामद कर लिया था.

वसीम ने बताया कि कुणाल की हत्या करने के बाद उस का मोबाइल ले कर कुछ दूरी पर स्थित गिट्टी प्लांट पर गया था. वहां विवेक पहले से मौजूद था. वसीम ने खून से सने अपने कपड़े धोए और उन्हें पौलीथिन में रख कर प्लांट के पास बने टौयलेट में छिपा दिए थे. उस ने दूसरी टीशर्ट पहनी और पकड़े जाने के डर से कुणाल का मोबाइल नाले में फेंक दिया.

पति की उपेक्षा से पहुंची दोस्त की बांहों में

उत्तर प्रदेश लखनऊकानपुर रोड पर बंथरा थाना क्षेत्र में दादूपुर-डेस्टियन सिटी कालोनी में स्वास्तिक एसोसिएट कंपनी का मालिक विवेक सिंह रहता था. कंपनी का मुख्य काम गाडिय़ों की रिकवरी का था. उस के पास करीब 4 साल पहले कुणाल शुक्ला आया था. अयोध्या के धनुआपुर का रहने वाला कुणाल शुक्ला दिखने में हट्टाकट्टा और व्यवहार में कुशल और तेजतर्रार 26 वर्षीय युवक था. विवेक ने उसे गाडिय़ों के रिकवरी एजेंट के रूप में अपने साथ काम पर लगा लिया. उस ने रिकवरी के काम को अच्छी तरह संभाल लिया, जिस से कंपनी की अच्छी आय होने लगी.

कुणाल के पापा अशोक शुक्ला फैजाबाद जनपद में रोडवेज डिपो में ड्राइवर थे और उन्होंने दादूपुर में अपना मकान बनवा लिया था. कुणाल वहीं अपनी मम्मी सुधा और बड़े भाई सौरभ शुक्ला के साथ रहता था. विवेक सिंह का मकान भी वहीं पास में ही था. इस कारण कुणाल और विवेक एकदूसरे के काफी नजदीकी थे. जल्द ही कुणाल विवेक के घर भी आनेजाने लगा. कुणाल और विवेक के परिवार में अच्छे संबंध बन चुके थे. विवेक सिंह के हर काम में कुणाल वफादार साबित हो चुका था. इस कारण कुणाल और विवेक की नजदीकियां काफी बढ़ गई थीं. दोनों एकदूसरे के हमराज बन चुके थे. काम से फुरसत मिलने पर औफिस में देर रात तक पार्टी का जश्न मनाते थे. बाहर की पर्टियों में भी अकसर साथसाथ जाते थे.

कई बार देर रात तक पार्टियों के दौरान विवेक जब शराब के नशे में धुत हो जाता था, तब कुणाल ही उसे अपने कंधे का सहारा दे कर उस के घर के बैडरूम तक छोड़ दिया करता था. उस वक्त उस की पत्नी मालती सिंह भीतर ही भीतर कुढ़ जाती थी, जबकि कुणाल मजाकमजाक में कमेंट कस दिया करता था. हालांकि उस के मजाक का मालती बुरा नहीं मानती थी. एक सच्चाई यह भी थी कि विवेक की आए दिन शराब पी कर धुत होने से वह परेशान रहने लगी थी. उस की परेशानी को कुणाल अच्छी तरह भांप चुका था. उस के रगों के जख्मों पर भावनात्मक बातों का मरहम लगा दिया करता था.

एक बार मजाक में ही कुणाल बोल पड़ा था, ”भाभीजी, आप अपनी अमानत को संभालती क्यों नहीं हो?’’

जवाब में मालती सिर्फ मुसकरा दी थी. वह कुणाल के बोलने का मतलब अच्छी तरह समझ गई थी. कुछ पल ठहर कर बोली, ”ऐसी अमानत से क्या फायदा? कौन सा सुख मिलता है इस अमानत से! आज तक तुम्हारे भैया ने मुझे कौन सा सुख दिया है? हर समय मुझे बुराभला कहते रहते हैं…और रात को भी नशे में बेसुध पड़े रहते हैं.’’

”ऐसा नहीं है भाभी, विवेक भैया बहुत अच्छे हैं. उन की बातों का बुरा मत माना करो. कंपनी का काम बहुत टेंशन भरा होता है.’’ कुणाल बोला.

”कितने टेंशन का काम है, जरा मुझे समझाओ तो?’’ मालती बोली.

”कभी फुरसत में बैठूंगा, तब समझाऊंगा.’’ कुणाल बोला.

”नहीं, अभी बताओ. आओ इधर.’’ मालती उस का हाथ खींचती हुई अपने बैडरूम में ले कर चली गई. उस वक्त रात के 11 बज चुके थे. बोली, ”पास में ही तो रहते हो चले जाना. कुछ खाने को लाती हूं. मैं ने भी अभी तक खाना नहीं खाया है.’’

कहते हुए मालती कमरे से बाहर चली गई थी. कुणाल उस के भूखे रहने की बात सुन कर चौंक गया था. उस के और विवेक के साथ संबंध को ले कर सोचने लगा.

कुछ मिनट में ही मालती 2 प्लेटों में खाने का सामान ले आई थी. बैड के पास रखे साइड टेबल पर रखती हुई हाथों का इशारा करती हुई बोली, ”कहो तो यह भी ला दूं.’’

”भाभी, तुम भी पीती हो?’’ कुणाल चौंकता हुआ बोला.

”अरे! इस में चौंकने की कौन सी बात है. जब घर में बोतल रखी होगी, तब कैसे किसी का मन नहीं करेगा…हां, यह कहो कि इस का मजा तो किसी के साथ ही लिया जा सकता है!’’ मालती जब मोहक अदाओं के साथ बोली, तब कुणाल भी हामी भरने से पीछे नहीं रहा.

”सही कहती हो भाभी, शराब का मजा अकेले कहां मिलता है… अगर साथ कोई औरत हो तब तो इस का मजा और भी दुगुना हो जाता है.’’ कुणाल बोला.

”यह हुई न दिल की बात.’’

थोड़ी देर में कुणाल और मालती के हाथों में शराब का गिलास था. जबकि विवेक दूसरे कमरे में नशे में बेसुध सो रहा था. अधेड़ उम्र की मालती 2-3 पैग में ही बहकने लगी. दिल की बात जुबान पर आने लगी. निराशा और पति से मिलने वाले सुख की कमी की बातें करने लगी. बोलतेबतियाते वह कब कुणाल की बाहों में लिपट गई, इस का दोनों को पता ही नहीं चला. जल्द ही दोनों वासना की रौ में बहने लगे. उस रोज कुणाल भूल गया था कि वह अपने दोस्त समान मालिक की पत्नी के साथ गलत कर चुका है…इसी तरह मालती भी भूल चुकी थी कि उस ने पति के दूसरे कमरे में रहते हुए गैरमर्द के साथ हसरतें पूरी की हैं.

सुबह पौ फटने से पहले कुणाल को मालती ने अपने कमरे से विदा कर दिया और दिनचर्या में ऐसे लग गई, जैसे बीती रात कुछ हुआ ही नहीं.

विवेक भी औफिस जाने की तैयारी में लगा हुआ था. इस दौरान ड्राइंग टेबल पर बाल संवारते वक्त आइने में उस की नजर बैड के एक किनारे पर्स पर गई. उस ने पर्स उठा कर देखा. वह कुणाल का था. उस बारे में मालती से पूछ लिया, ”ये कुणाल का पर्स यहां कैसे?’’

”तुम तो होश में होते नहीं हो और मुझ से पूछते हो… कल रात तुम्हें नशे की हालत में यहां छोड़ गया था, तभी उस का पर्स यहां गिर गया था. मैं ने ही उसे वापस लौटाने के लिए बैड पर रख दिया था. लेते जाओ, उसे वापस कर देना.’’ मालती बड़ी सफाई से रात की बात को छिपा गई. विवेक ने भी कुणाल के पर्स के यहां होने पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया.

दगाबाज दोस्त को ऐसे दी सजा

एक बार जब कुणाल और मालती आपस में खुले तब उन के बीच के रिश्ते, सामाजिक दायरे और शर्म की सीमा खत्म हो गई. जब मौका मिलता, कुणाल को मालती बुला लेती तो कुणाल भी इस ताक में रहने लगा कि कब विवेक किसी काम के सिलसिले में शहर से बाहर जाने वाला है. दोनों के अवैध रिश्ते छिपतेछिपाते चलते रहे. किंतु वे ज्यादा दिनों तक विवेक की नजरों से बच नहीं पाए. पहले तो कुछ बातें और मालती का कुणाल के प्रति बदले हुए हावभाव से संदेह हुआ, लेकिन उस ने एक बार छिप कर देख लिया.

हालांकि विवेक इसे ले कर चुप नहीं बैठा, बल्कि मालती से सीधे तौर पर बात की. उस ने ऐसा करने पर उसे सख्ती के साथ मना किया. इस के बदले में मालती ही उलटे विवेक से उलझ गई. गलत आरोप लगाने की तोहमत मढ़ दी. बिजनैस में घाटे और परेशानियों का गुस्सा उस पर उतारने से मना किया. एक तरह से मालती अपने पति पर ही नाराज हो गई.

विवेक ठगा से मुंह ले कर रह गया. वह चाहता तो कुणाल से भी इस बारे में बात कर सकता था, लेकिन उस के साथ पैसे का लेनदेन बना हुआ था. वह जानता था कि यदि उस ने खुल कर पत्नी के साथ उस के नाजायज रिश्ते की बातें कीं, तब उस के बहुत सारे पैसे डूब सकते थे. इस कारण वह तनाव से घिर गया. वह समझ नहीं पा रहा था कि क्या करे और क्या नहीं? दूसरी तरफ कुणाल का दबदबा विवेक पर बढ़ता ही जा रहा था.

एक तरफ विवेक का शाही खर्च कम नहीं हो रहा था, दूसरी तरफ कुणाल का दबाव उस पर बढ़ता ही जा रहा था. उस के नशे की आदत से काफी परेशान मालती के ताने से उस का दिमाग भन्ना जाता था. इस गम और परेशानी को भूलने के लिए विवेक सिंह दिनरात बुरी तरह से शराब पीने लगा था. घर पर जब होश में होता था, तब उस की पत्नी से अकसर रात को तकरार हो जाया करती थी. विवेक के दिमाग पर चौतरफा मार पड़ रही थी. उस से बचने के लिए उस ने पत्नी से भी बात कर के देख ली थी और कुणाल को भी इशारेइशारे में समझने की कोशिश की थी. सारे प्रयास बेकार साबित हुए थे. आखिरकार उस ने कुणाल के खिलाफ ही ऐक्शन लेने की पहल की. उस से पीछा छुड़ाने के लिए तानाबाना बुन लिया और अपने दिल की बात अपने कर्मचारी वसीम अली खान को बताई.

8-9 सितंबर की रात वसीम अली खान ने योजना के मुताबिक हत्याकांड को अंजाम दे दिया. बचने के तरीके भी अपनाए, लेकिन पुलिस की गहन तहकीकात और कानून के लंबे हाथों से बच नहीं पाया. 10 सितंबर को पुलिस अधिकारियों के समक्ष पेश किए जाने के बाद दोनों आरोपियों को न्यायालय में पेश किया गया. वहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. Extramarital Affair

—कथा में मालती परिवर्तित नाम है

 

 

Ludhiana News : यह तो होना ही था

Ludhiana News : केवल शारीरिक सुख की चाह में 2 बच्चों की मां सुनीता ने अपने किराएदार नरेश की बांहें थाम लीं. पति कृष्णलाल ने उसे समझाने की कोशिश की तो सुनीता और नरेश ऐसा अपराध कर बैठे कि…

कृष्णलाल और सुनीता ने जैसेतैसे कर के अपना एक छोटा सा घर बना लिया था. अपना घर बन जाने से पतिपत्नी बहुत खुश थे. खुश भी क्यों न होते, अपना घर हो जाने से मकान मालिक की किचकिच से छुटकारा जो मिल गया था. अब वे अपने घर में निश्चिंत हो कर रह सकते थे. हर महीने एक मोटी रकम किराए के रूप में देने के बाद और सुबहशाम सिर झुकाने के बाद भी मकान मालिक टोकते रहते, ‘यहां मत बैठो, यहां मत लेटो, नल खुला छोड़ देते हो, तुम्हारे बच्चे शोर बहुत मचा रहे हैं. आज तुम्हारे यहां कौन आया था?’ अपना मकान हो जाने से कम से कम इस तरह की बातें तो सुनने को नहीं मिलेंगी.

कृष्णलाल के पिता रामआसरे लगभग 30 साल पहले रोजीरोटी की तलाश में लुधियाना आए थे. वहां उसे एक फैक्ट्री में चौकीदारी की नौकरी मिल गई तो गांव से वह पत्नी रामदुलारी को भी ले आया था. लुधियाना में रहते हुए ही वह 2 बच्चों, बेटा कृष्णलाल और बेटी सविता का बाप बना. अपनी सामर्थ्य के अनुसार रामआसरे ने बच्चों को पढ़ाना चाहा, लेकिन वे हाईस्कूल से आगे नहीं पढ़ पाए. सविता को घर के कामकाज और सिलाईकढ़ाई सिखा कर सन 2003 में उस की शादी कर दी. सविता का पति मूलरूप से उत्तर प्रदेश के जिला गोंडा का रहने वाला था. जालंधर में वह एक जानेमाने होटल में काम करता था.

कृष्णलाल ने पढ़ाई छोड़ दी तो रामआसरे ने काम सीखने के लिए उसे कई फैक्ट्रियों में भेजा, पर वह कहीं कोई काम न सीख सका. तब उस ने उसे एक स्कूटर मैकेनिक के पास भेजना शुरू किया. लगभग 3 सालों तक उस के यहां काम सीखने के बाद उस ने थाना सलेमटाबरी में जालंघर बाईपास के पास अपनी एक छोटी सी दुकान खोल ली. इस बीच रामआसरे की पत्नी रामदुलारी की मौत हो गई, जिस से खाना वगैरह उन्हें खुद ही बनाना पड़ता था. बाप बूढ़ा था, इसलिए कृष्णलाल पर कुछ ज्यादा ही जिम्मेदारियां आ गई थीं. घर के कामों की वजह से दुकान पर दिक्कत होने लगी तो रामआसरे ने दुलीचंद की बेटी सुनीता से बेटे की शादी तय कर दी.

दुलीचंद मूलरूप उत्तर प्रदेश के जिला सुल्तानपुर का रहने वाला था. लेकिन अब उस का पूरा परिवार लुधियाना में रहता था. सुनीता और कृष्णलाल की शादी धूमधाम से हो गई थी. सुनीता जैसी खूबसूरत पत्नी पा कर कृष्णलाल फूला नहीं समाया था. सुनीता जितनी सुंदर थी, घर के कामकाज में भी उतनी ही कुशल थी. सांवलासलोना रंग, सुतवा नाक, हिरनी जैसी आंखें, पुष्ट उरोज एवं गदराया भरापूरा बदन दिल की धड़कनें बढ़ा देता था. शादी के बाद कई दिनों तक कृष्णलाल सुनीता की बांहों में खोया रहा, जिस से उस का नयानया काम डगमगा गया. वह अपने काम को संभाल पाता, अचानक पिता की ऐसी तबीयत खराब हुई कि वह उठ नहीं सका. पिता की मौत के बाद कृष्णलाल पर जैसे मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा.

चारों ओर खर्च ही खर्च दिखाई देता था. शादी पर लिए कर्ज को अलग से भरना था. लेकिन कृष्णलाल ने हिम्मत नहीं हारी और पिता का क्रियाकर्म कर के पूरी लगन से अपने काम में जुट गया. दिनरात मेहनत कर के 3 सालों में उस ने हर किसी की पाईपाई अदा कर दी. उसी बीच वह 2 बच्चों, बेटे मनीष और बेटी ज्योति का बाप बन गया. अब उस का भरापूरा परिवार हो गया था. कर्ज अदा कर के कृष्णलाल अपना धंधा व्यवस्थित कर के पैसे जमा करने लगा. अब उस की 2 ही तमन्नाएं थीं, एक अपना खुद का घर और दूसरे बच्चों की पढ़ाई. इस के लिए वह हाड़तोड़ मेहनत कर रहा था. आखिर उस की मेहनत रंग लाई. छोटा ही सही, कृष्णलाल ने अपना खुद का मकान बना लिया. जिस दिन वे अपने मकान में रहने गए, पतिपत्नी बहुत खुश थे.

समय अपनी गति से बीतता रहा. कृष्णलाल के दोनों बच्चे स्कूल जाने लगे. दोनों बच्चों को स्कूल पहुंचाते हुए वह दुकान पर चला जाता था. पति और बच्चों के जाने के बाद घर में सुनीता अकेली रह जाती थी. सोने और टीवी देखने के अलावा उस के पास कोई दूसरा काम नहीं होता था. सोने और टीवी देखने की भी एक सीमा होती है. सुनीता कभीकभी ज्यादा ही बोर हो जाती थी. एक दिन उस ने कृष्णलाल से कहा, ‘‘बुरा न मानो तो एक बात कहूं?’’

‘‘हां… हां, कहो.’’

‘‘हमारा छोटा परिवार है, बच्चे भी छोटे हैं, अभी हमारा गुजर नीचे के ही दोनों कमरों में हो जाता है. ऊपर वाला कमरा खाली पड़ा रहता है. क्यों न हम उसे किराए पर उठा दें. हर महीने कुछ रुपए भी आएंगे और किराएदार के आने से मेरा मन भी लगा रहेगा.’’

‘‘बात तो तुम्हारी ठीक ही है. किराएदार रखने में हर्ज ही क्या है. कोई किराएदार देख कर कमरा किराए पर उठा दो.’’

कृष्णलाल की ओर से हरी झंडी मिलने के बाद सुनीता ने अपने पड़ोसियों से अपना कमरा किराए पर देने की बात कह दी तो कुछ दिनों बाद 26-27 साल का एक युवक सुनीता का कमरा किराए पर लेने आ गया. सुनीता से मिल कर उस ने कहा, ‘‘मेरा नाम नरेश है. मैं माधोपुरी की शौल फैक्टरी में नौकरी करता हूं. मुझे एक कमरे की जरूरत है. मुझे पता चला है कि आप का एक कमरा खाली है. अगर आप उसे मुझे किराए पर दे दें तो..?’’

‘‘कमरा तो मुझे किराए पर देना ही है, लेकिन पहले तुम कमरा तो देख लो.’’

सुनीता ने कहा और नरेश को ऊपर ले कर कमरा दिखाया. लैट्रीन, बाथरूम, पानी आदि के बारे में बता कर किराया जो बताया, नरेश को उचित लगा. सारी बातें तय हो गईं तो सुनीता ने पूछा, ‘‘तुम्हारे परिवार में कितने लोग हैं?’’

‘‘अभी तो मैं अकेला ही हूं. शादी की बात चल रही है. शादी हो जाएगी तो पत्नी को ले आऊंगा.’’

‘‘इस का मतलब अभी तुम अकेले ही हो?’’ सुनीता ने कहा.

दरअसल किसी अकेले लड़के को जल्दी कोई किराए पर कमरा नहीं देना चाहता. इसी वजह से जब सुनीता को पता चला कि नरेश अकेला है तो उस ने कमरा देने से मना कर दिया था. लेकिन जब नरेश ने गुजारिश की तो न जाने क्या सोच कर उस ने हामी भर दी. एडवांस किराया दे कर नरेश उसी दिन रहने आ गया. नरेश सुंदर, स्वस्थ्य और हृष्टपुष्ट युवक था. उस की शादी भी नहीं हुई थी. उस की बलिष्ठ भुजाएं देख कर सुनीता का दिल धड़क उठता. लेकिन वह खुद को यह सोच कर रोके हुए थी कि वह शादीशुदा ही नहीं 2 बच्चों की मां भी है. शायद इसी वजह से उस ने यह जानने की कभी कोशिश नहीं की कि बच्चों के पैदा होने के बाद उस की सुंदरता में कितना निखार आ गया है.

उस के शरीर में इतना कसाव था, जो जल्दी कुंवारी लड़कियों में देखने को नहीं मिलता. शायद घर के झंझटों में फंस कर वह खुद को देख नहीं पाती थी. अभी भी उस के शरीर में ऐसी कशिश थी कि किसी का भी मन डोल सकता था. इसीलिए पहली नजर में ही नरेश उस का दीवाना हो उठा था. लेकिन शादीशुदा और मकान मालकिन होने की वजह से वह डरता था. केवल छिपछिप कर देखने के अलावा उस के पास कोई दूसरा उपाय नहीं था. यह सन 2012 के जून महीने की दोपहर की बात है. उन दिनों नरेश की नाइट शिफ्ट चल रही थी. दिनभर वह घर में ही रहता था. सुनीता के दोनों बच्चे स्कूल से लौटने के बाद पिता को खाना देने दुकान पर चले जाते थे तो शाम को ही लौटते थे.

उस दिन घर का काम निपटा कर सुनीता गरमी से परेशान हो कर आंगन में ही नहाने बैठ गई. बाहर का दरवाजा उस ने बंद कर दिया था और उसे पता था कि इस समय नरेश अपने कमरे में सो रहा होगा. इसलिए निश्चिंत हो कर आराम से वह सारे कपड़े उतार कर नहाने लगी. वैसे तो वह समय नरेश के सोने का ही था, लेकिन ना जाने कैसे उस दिन उस की आंखें खुल गईं. आंखें मलते हुए वह अपने कमरे से बाहर आया तो आंगन में सुनीता को उस हालत में देख कर जड़ बन गया. उस की नजरें सुनीता पर पड़ीं तो चिपक कर रह गईं. वह तन्मयता से सुनीता के एकएक अंग का जायजा लेने लगा. उस के लिए यह एक नया और अद्भुत नजारा था. इस के पहले उस ने जीवन में कभी ऐसा नजारा नहीं देखा था.

सुनीता इस बात से बेखबर नहाने में मस्त थी. अचानक उसे अपने सामने किसी परछाई का आभास हुआ तो उस ने तुरंत नजरें उठा कर ऊपर देखा. छत पर खड़े नरेश को देख कर वह शरम से लाल हो गई. अपने दोनों हाथों से वक्षों को ढांपने की नाकाम कोशिश करते हुए वह कमरे की ओर भागी. सुनीता को उस हालत में देख कर नरेश खुद को रोक नहीं सका और सीढि़यां उतर कर उस के कमरे में जा पहुंचा. हैरानपरेशान सुनीता जस की तस खड़ी थी. नरेश ने आगे बढ़ कर सुनीता को अपनी बलिष्ठ भुजाओं में भर लिया. सुनीता ने कसमसा कर छूटने का हलका सा विरोध किया, लेकिन नरेश की मर्दानगी के आगे उस की एक न चली.

नरेश ने उस की खुली पीठ पर हाथ फेरते हुए कहा, ‘‘मैं तुम से बहुत प्यार करता हूं भाभी. मैं तुम्हें इतनी खुशियां और सुख दूंगा, जिस की तुम ने कल्पना भी न की होगी.’’

नरेश की बांहों में सुनीता जिस सुख का अनुभव कर रही थी, वह उसे काफी दिनों से नहीं मिला था. क्योंकि इधर कृष्णलाल अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियों का बोझ ढोतेढोते इस कदर थक चुका था कि बाकी सब कुछ भूल चुका था. सही मायने में वह बूढ़ा हो चुका था. पत्नी या उस के अरमानों की भी उसे चिंता नहीं थी. जबकि सुनीता बेचैन रहती थी. यही वजह थी कि नरेश ने जब उसे बांहों में भरा तो सुनीता के सोए अरमान जाग उठे. उस की तमन्नाएं अंगड़ाइयां लेने लगीं और अंदर सोई औरत ने अपना सिर उठा लिया. वह भी अमरबेल की तरह नरेश से लिपट गई. इस के बाद उन्माद का ऐसा तूफान आया, जिस में सारी मर्यादाएं बह गईं. इस के बाद वह नरेश की मर्दानगी की दीवानी हो गई.

दोनों के बीच यह खेल शुरू हुआ तो रोज का किस्सा बन गया. कृष्णलाल के काम पर और बच्चों के स्कूल जाने के बाद सुनीता के घर के दरवाजे बंद हो जाते. उन बंद दरवाजों के पीछे मकान मालकिन और उस के युवा प्रेमी के बीच इस शिद्दत से वासना का खेल खेला जाने लगा कि उस की धमक पड़ोसियों तक जा पहुंची. चूंकि कृष्णलाल एक शरीफ और मेहनती आदमी था. पूरा मोहल्ला उस की इज्जत करता था, इसलिए गली के कुछ लोगों ने इशारोंइशारों में उसे समझा दिया कि उस की पीठ पीछे सुनीता क्या गुल खिला रही है? कृष्णलाल ने जब सुनीता से उस बारे में पूछा तो उस ने विरोध जताते हुए कहा, ‘‘मोहल्ले वालों की झूठी बातों में आ कर आप ने मुझ पर शक किया?’’

‘‘मैं शक नहीं कर रहा सुनीता, केवल पूछ रहा हूं.’’

‘‘पूछना क्या है, अगर आप को मुझ से ज्यादा मोहल्ले वालों की बातों पर विश्वास है तो बेशक आज ही नरेश से कमरा खाली करा लीजिए. उस के यहां रहने, न रहने से मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता.’’

सुनीता की बातों पर विश्वास कर के कृष्णलाल शांत हो गया. वह जानता था कि सुनीता इस तरह का गलत काम नहीं कर सकती. लेकिन यह उस की भूल थी. एक दिन कृष्णलाल के पास दिल्ली के स्पेयर पार्ट्स के किसी व्यापारी को पैसों के लिए आना था. कृष्णलाल को उसे 27 हजार रुपए देने थे. सुबह जल्दबाजी में दुकान पर आते समय वह पैसे ले जाना भूल गया. व्यापारी आया तो उसे दुकान पर बैठा कर वह रुपए लेने घर आ पहुंचा. इत्तफाक से उस दिन सुनीता मुख्य दरवाजा बंद करना भूल गई थी. उस ने केवल कमरे का दरवाजा अंदर से बंद कर लिया था.

कृष्णलाल मुख्य दरवाजा खोल कर अंदर पहुंचा तो उसे सुनीता के कमरे में हंसने की आवाज सुनाई दी. दरवाजा खुलवाने के बजाय उस ने कमरे की खिड़की की झिरी से अंदर झांका तो अंदर का हाल देख कर दंग रह गया. मारे गुस्से के उस का शरीर कांपने लगा. लेकिन वह कुछ बोला नहीं. लगभग 10 मिनट तक उसी तरह खड़ा रहा. उस के बाद दरवाजा खुलवाया तो दरवाजा खुलते ही नरेश तो भाग गया, जबकि सुनीता उस के पैरों पर गिर कर माफी मांगने लगी. उस ने बच्चों की कसम खा कर कहा कि भविष्य में अब वह ऐसी गलती नहीं करेगी.

सुनीता को माफ करने के अलावा कृष्णलाल के पास दूसरा कोई उपाय नहीं था. बात बढ़ाने से उस का घर ही नहीं बच्चों की भी जिंदगी बरबाद होती. कृष्णलाल ने उसे माफ कर दिया और नरेश से कमरा खाली करवा लिया. नरेश के जाने के बाद सुनीता अकेली पड़ गई. वह जल बिन मछली की तरह छटपटाती रहती थी. एक दिन दोपहर को चुपके से नरेश उस के यहां आया और अपने नए कमरे का पता और मोबाइल नंबर दे गया. इस के बाद सुनीता खुद उस के कमरे पर जाने लगी. कईकई घंटे सुनीता घर से गायब रहने लगी तो कृष्णलाल को उस पर शक हुआ. उस ने सुनीता से पूछा तो वह झूठ बोल गई.

कृष्णलाल ने सुनीता की काफी निगरानी की, लेकिन कोई लाभ नहीं हुआ. वह किसी न किसी तरह चोरी से नरेश तक पहुंच जाती थी. कृष्णलाल की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. काम देखे, बच्चों खयाल करे या सुनीता की निगरानी करे. उस का गुस्सा सीमा पार करने लगा. तभी एक घटना घट गई. नरेश ने जो नया कमरा किराए पर लिया था, वह सुभाषनगर में था. एक दिन कृष्णलाल को उसी मोहल्ले में अपने किसी ग्राहक का स्कूटर देने के लिए जाना पड़ा. वह जैसे ही उस मोहल्ले में पहुंचा, उसे सुनीता जाती दिखाई दी.

कृष्णलाल ने छिप कर उस का पीछा किया. वह नरेश के कमरे पर जा पहुंची. कृष्णलाल पीछे से वहां पहुंच गया. उस दिन नरेश के कमरे पर खूब हंगामा हुआ. कृष्णलाल ने सुनीता और नरेश की जम कर पिटाई की और सब के सामने कहा कि अगर दोनों अपनी हरकतों से बाज नहीं आए तो वह उन की हत्या कर देगा. इस घटना के बाद लगभग 2 महीने तक शांति रही. सुनीता ने नरेश से मिलना बंद दिया. कृष्णलाल को भी विश्वास हो गया कि सुनीता सुधर गई है. 28 अगस्त, 2014 की बात है. उस दिन सुबह से ही मूसलाधार बारिश हो रही थी, जिस की वजह से चारों ओर पानी ही पानी भर गया था.

रोज की तरह कृष्णलाल के दोनों बच्चे मनीष और ज्योति खाना ले कर दुकान पर पहुंचे तो वहां कृष्णलाल की खून से लथपथ लाश देख कर दोनों बच्चे डर के मारे रोने लगे. बच्चों को रोते देख पड़ोसी दुकानदार भाग कर आए तो कृष्णलाल की हालत देख कर पुलिस को सूचना दी. सूचना पा कर थाना बस्ती जोधेवाल के अतिरिक्त थानाप्रभारी इंसपेक्टर सुरेंद्र सिंह पुलिस बल के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. घटनास्थल के निरीक्षण के दौरान उन्होंने देखा कि स्कूटर का एक इंजन मृतक के शरीर के ऊपर पड़ा है तो दूसरा चेनपुली से बंधा उस के सिर के ठीक ऊपर लटक रहा है.

मृतक का सिर फटा था. वहां से बहा खून पूरी दुकान में फैला था. देखने से यही लगता था कि स्कूटर का भारी इंजन ऊंचाई से मृतक के सिर पर आ गिरा था, जिस की वजह से उस का सिर फट गया था और मौत हो गई थी. लेकिन इंसपेक्टर सुरेंद्र सिंह को यह मामला सिर पर गिरे इंजन द्वारा मौत होने का नहीं लगा. उन्हें यह मामला हत्या का लग रहा था. इस की वजह यह थी कि एक इंजन चैन से बंधा लटक रहा था. अगर मृतक के शरीर पर दूसरा इंजन गिरा था तो वह कहां बंधा था, क्योंकि दुकान में केवल एक ही चैनपुली थी. बहरहाल, इंसपेक्टर सुरेंद्र सिंह ने लाश का पंचनामा तैयार कर पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया और थाने आ कर इस मामले की रिपोर्ट दर्ज कर जांच शुरू कर दी.

इंसपेक्टर सुरेंद्र सिंह को साफ लग रहा था कि मृतक की मौत हादसा नहीं, बल्कि सोचीसमझी साजिश के तहत हत्या का मामला है. उन्होंने पड़ोसी दुकानदारों से पूछताछ की. सभी ने कहा कि मृतक एक शरीफ और मेहनती आदमी था. उस की किसी से कोई दुश्मनी नहीं थी. बारिश होने की वजह से उस दिन सभी अपनीअपनी दुकान के अंदर थे, इसलिए किसी को पता नहीं चल सका कि कृष्णलाल की दुकान में क्या और कैसे हुआ. यही बातें मृतक की पत्नी सुनीता ने भी बताई थीं. उस के अनुसार उस के पति का कोई दुश्मन नहीं था. इंसपेक्टर सुरेंद्र सिंह ने महसूस किया था कि बताते समय सुनीता के रोने में दुख कम, अभिनय अधिक था. उन्होंने मृतक कृष्णलाल के दोनों बच्चों से भी अलगअलग पूछताछ की. वे कुछ बताना चाहते थे, लेकिन डर की वजह से कुछ कह नहीं पा रहे थे.

अगले दिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट से स्पष्ट हो गया कि कृष्णलाल की मौत किसी चीज के गिरने या टकराने से नहीं हुई थी, बल्कि उस की हत्या सिर पर कोई भारी चीज मार कर की गई थी. अब सवाल यह था कि कृष्णलाल जैसे सीधेसादे इंसान की जान का दुश्मन कौन हो सकता था? इंसपेक्टर सुरेंद्र सिंह ने अपने कुछ खास मुखबिरों को सुनीता के पीछे लगा दिया और खुद सुनीता के पड़ोसियों से पूछताछ शुरू कर दी. इस पूछताछ में उन्हें कृष्णलाल की हत्या से जुड़ी कई अहम बातें पता चलीं तो उन्होंने लेडी हेडकांस्टेबल जसप्रीत कौर को भेज कर पूछताछ के लिए सुनीता को थाने बुलवा लिया.

पहले तो सुनीता कृष्णलाल की हत्या के बारे अनभिज्ञता प्रकट करती रही, लेकिन जब जसप्रीत कौर ने थोड़ी सख्ती की तो उस ने स्वीकार कर लिया कि कृष्णलाल की हत्या नरेश ने की है. और हत्या की योजना दोनों ने मिल कर बनाई थी. सुनीता की निशानदेही पर तुरंत नरेश को हिरासत में ले लिया गया. दोनों से हुई पूछताछ के बाद कृष्णलाल की हत्या की जो कहानी प्रकाश में आई, वह इस प्रकार थी. दरअसल, कृष्णलाल द्वारा की जाने वाली निगरानी से सुनीता तंग आ चुकी थी. जबकि अब वह नरेश के बिना बिलकुल नहीं रह सकती थी. नरेश भी उस के लिए पागल था. सुनीता को नरेश से जो शारीरिक सुख मिल रहा था, कृष्णलाल वैसा सुख कभी नहीं दे सका था. इसलिए वह नरेश की खातिर अपने पति और बच्चों तक को छोड़ने को तैयार थी.

लेकिन कृष्णलाल के रहते यह संभव नहीं था. इस के अलावा सुनीता और नरेश यह भी चाहते थे कि यह मकान भी उन के हाथ से न निकले. इसलिए काफी सोचविचार कर दोनों ने योजना बनाई कि कृष्णलाल की हत्या कर दी जाए. उस के न रहने पर मकान अपनेआप सुनीता को मिल जाएगा, उस के बाद दोनों शादी कर लेंगे. जिस दिन यानी 28 अगस्त, 2014 कृष्णलाल की हत्या हुई, उस से बात करने के बहाने नरेश दोपहर को उस की दुकान पर जा पहुंचा. उस समय तेज बारिश हो रही थी. सड़कें सूनी पड़ी थीं. ग्राहक न आने पर कृष्णलाल भी आराम करने की नीयत से दुकान की फर्श पर दरी बिछा कर लेटा हुआ था.

जिस समय नरेश उस की दुकान पर पहुंचा था, उस समय कृष्णलाल सो रहा था. कृष्णलाल को आभास नहीं हुआ कि मौत दबे पांव उस के सिरहाने आ कर खड़ी हो गई है. कृष्णलाल को सोते हुए पा कर नरेश का काम आसान हो गया. बिना कोई आहट किए वह दुकान में चला गया और वहां रखा भारी हथौड़ा उठा कर कृष्णलाल के सिर पर दे मारा. नरेश का यह वार इतना सटीक और शक्तिशाली था कि उसी एक वार में कृष्णलाल की मौत हो गई. इस के बावजूद उस ने उस पर कई वार कर दिए थे.

नरेश जिस तरह दबे पांव दुकान में आया था, कृष्णलाल को मौत के घाट उतार कर उसी तरह लौट गया. संयोग से दुकान से निकलते हुए उसे कृष्णलाल के बच्चों ने देख लिया था. लेकिन सुनीता ने उन्हें डरा दिया था कि अगर उन्होंने यह बात किसी को बताई तो पुलिस उन्हें पकड़ ले जाएगी. इसीलिए दोनों बच्चे डरे हुए थे. नरेश और सुनीता के अपराध स्वीकार कर लेने के बाद इंसपेक्टर सुरेंद्र सिंह ने कृष्णलाल की हत्या के आरोप में नरेश तथा साजिश रचने के आरोप में सुनीता को गिरफ्तार कर अदालत में पेश कर के 2 दिनों के पुलिस रिमांड पर लिया. रिमांड अवधि के दौरान वह हथौड़ा भी बरामद कर लिया गया, जिस से कृष्णलाल की हत्या की गई थी.

रिमांड अवधि समाप्त होने के बाद दोनों अभियुक्तों को एक बार फिर अदालत में पेश किया गया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. सुनीता अगर परपुरुष की बांहों में अपना सुख न तलाशती तो आज उस का और उस के बच्चों का भविष्य सुरक्षित रहता. उस की बेलगाम इच्छा ने उस का घर तो बरबाद किया ही, साथ ही उस के दोनों बच्चों का भविष्य भी अंधकारमय बना दिया. उस के दोनों बच्चे नानानानी के पास जालंधर में रह रहे हैं. Ludhiana News

 

Love Story in Hindi : गुनाह प्यार, सजा मौत

Love Story in Hindi : आरती का गुनाह यही था कि उस ने नेतराम से प्यार किया और घर वालों के मना करने के बावजूद उस से कोर्टमैरिज कर ली. घर के अन्य लोगों ने इसे एक दुर्घटना माना और सोच लिया कि आरती मर गई. लेकिन राकेश इस बात को भुला नहीं सका और 7 सालों बाद उसे मौत के घाट उतार दिया.

आरती आगरा की डिफेंस कालोनी के रहने वाले लौहरे सिंह चाहर की बेटी थी. उस के अलावा उन की 3 संतानें और थीं, जिन में 2 बेटे प्रवीण, राकेश और एक बेटी बीना थी. लौहरे सिंह सेना से सूबेदार से रिटायर हुए थे. उन का बड़ा बेटा प्रवीण भी पढ़लिख कर सेना में भर्ती हो गया था. नौकरी लगते ही लौहरे सिंह ने उस का विवाह कर दिया था. इस के बाद उस से छोटी बेटी बीना का भी विवाह लौहरे सिंह ने सेना में सिपाही की नौकरी करने वाले कमल सिंह सोलंकी के साथ किया था. वह चाहते थे कि उन का छोटा बेटा भी सेना में जाए. वह अपनी छोटी बेटी आरती की भी शादी सेना में नौकरी करने वाले से करना चाहते थे, लेकिन न तो उन का छोटा बेटा सेना में गया और न ही वह छोटी बेटी आरती की शादी सेना में नौकरी वाले लड़के से कर पाए.

दरअसल, लौहरे सिंह का छोटा बेटा राकेश लाड़प्यार की वजह से बिगड़ गया था. पढ़नेलिखने के बजाय यारदोस्तों की सोहबत उसे कुछ ज्यादा अच्छी लगती थी. दोस्तों के साथ वह जो उलटेसीधे काम करता था, उस की शिकायतें घर आती रहती थीं, जिस से लौहरे सिंह परेशान रहते थे. उन्होंने बड़े बेटे प्रवीण के साथ मिल कर उसे सुधारने की बहुत कोशिश की, लेकिन उन की इस कोशिश का कोई लाभ नहीं हुआ. राकेश को न सुधरना था, न सुधरा. बेटे की वजह से लौहरे सिंह की काफी बदनामी हो रही थी. बेटे को इज्जत की धज्जियां उड़ाते देख उन्होंने सोचा कि उसे किसी रोजगार से लगा दिया जाए तो दोस्तों का साथ अपनेआप छूट जाएगा.

इस के लिए उन्होंने बगल वाले मोहल्ले चावली में आटा चक्की लगवा कर उस पर उसे बैठा दिया. उस की मदद के 15 साल के मुकेश को नौकर रख दिया. मुकेश था तो नौकर, लेकिन राकेश से उस की खूब पटती थी. जबकि मुकेश की उम्र राकेश से काफी काम थी. चक्की पर अकसर आने वाली एक लड़की पर मुकेश का दिल आ गया. मुकेश ने उसे अपने प्रेमजाल में फंसाने की बहुत कोशिश की, लेकिन लड़की ने उसे भाव नहीं दिया. चूंकि राकेश मुकेश से दोस्त जैसा व्यवहार करता था, इसलिए उस ने लड़की वाली बात राकेश को भी बता दी थी. जब लड़की ने मुकेश को भाव नहीं दिया तो राकेश ने कहा, ‘‘अगर किसी तरह तू उस लड़की से शारीरिक संबंध बना ले तो वह अपनेआप तेरी मुरीद हो जाएगी.’’

इस के बाद मुकेश उस लड़की से शारीरिक संबंध बनाने का मौका ढूंढ़ने लगा. आखिर एक दिन उसे मौका तो मिल गया, लेकिन उस में उसे राकेश को भी साझा करना पड़ा. हुआ यह कि लड़की चक्की पर आटा लेने आई तो किसी बहाने से मुकेश उसे चक्की के पीछे बने कमरे में ले गया और उस के साथ जबरदस्ती कर डाली. उस समय राकेश भी वहां मौजूद था, इसलिए इस काम में उसे साझा करना पड़ा. राकेश ने सोचा था कि इज्जत के डर से लड़की कुछ नहीं बोलेगी. लेकिन जब उस ने कहा कि वह उन की करतूत घर वालों से बताएगी तो दोनों डर के मारे उसे चक्की के अंदर बंद कर के भाग गए. बाद में लड़की ने रोते हुए शोर मचाया तो मोहल्ले वालों ने उसे बाहर निकाला.

इस के बाद पीडि़त लड़की के घर वालों ने मुकेश और राकेश के खिलाफ दुष्कर्म का मुकदमा दर्ज करा दिया. चूंकि पीडि़त लड़की नाबालिग थी, इसलिए मामले की संवेदनशीलता को देखते हुए पुलिस ने रातदिन एक कर के राकेश और मुकेश को पकड़ कर अदालत में पेश किया, जहां से राकेश को जेल भेज दिया गया तो नाबालिग होने की वजह से मुकेश को बाल सुधार गृह. मुकेश नाबालिग था, इसलिए करीब साढ़े 3 महीने बाद उसे जमानत मिल गई, लेकिन बालिग होने की वजह से राकेश की जमानत की अर्जियां एक के बाद एक खारिज होती गईं, जिस की वजह वह जेल से बाहर नहीं आ सका. यह सन 2006 की बात थी.

बेटे के जेल जाने से लौहरे सिंह की बदनामी तो हुई ही, परेशानी भी बढ़ गई थी. बेटे को जेल से बाहर निकालने के लिए वह काफी भागदौड़ कर रहे थे. इस में उन का समय भी बरबाद हो रहा था और पैसा भी. राकेश की वजह से वह छोटी बेटी आरती पर ध्यान नहीं दे पाए और उस ने भी जो किया, उस से एक बार फिर उन्हें बदनामी का दंश झेलना पड़ा. जिन दिनों राकेश ने यह कारनामा किया था, उन दिनों आरती कंप्यूटर का कोर्स कर रही थी. ग्रेजुएशन उस ने कर ही रखा था, इसलिए कंप्यूटर का कोर्स पूरा होते ही उसे एक प्राइवेट कंप्यूटर सेंटर पर कंप्यूटर सिखाने की नौकरी मिल गई. इस नौकरी में वेतन तो ठीकठाक मिल ही रहा था, इज्जत भी मिल रही थी.

आरती ने जो चाहा था, वह उसे मिल गया था. मांबाप की लाडली होने की वजह वह वैसे भी जिद्दी थी, अब ठीकठाक नौकरी मिल गई तो घर में दबंगई दिखाने लगी. आरती जो चाहती थी, वही होता था. कमाऊ बेटी थी, इसलिए मांबाप भी ज्यादा विरोध नहीं करते थे. जिस कंप्यूटर सेंटर पर आरती नौकरी कर रही थी, उसी में आगरा के थाना तेहरा (सैया) के गांव बेहरा छरई का रहने वाला नेतराम कुशवाह भी नौकरी करता था. वह चंदन सिंह की 9 संतानों में चौथे नंबर पर था. एमए करने के बाद उस ने कंप्यूटर कोर्स किया और उसी कंप्यूटर सेंटर पर शिक्षक की नौकरी करने लगा, जहां आरती नौकरी कर रही थी.

आरती और नेतराम हमउम्र और हमपेशा थे, इसलिए दोनों में दोस्ती हो गई. इस के बाद दोनों साथसाथ बैठ कर चाय भी पीने लगे और लंच भी करने लगे. नेतराम को जब पता चला कि आरती डिफेंस कालोनी में रहती है और उस के पिता लौहरे सिंह चहार सेना से रिटायर सूबेदार हैं. उस का बड़ा भाई ही नहीं, बड़ी बहन का पति भी सेना में है तो उस ने हंसते हुए कहा, ‘‘आरती, तब तो तुम्हारी शादी भी किसी फौजी से ही होगी.’’

‘‘हो भी सकती है और नहीं भी हो सकती. मैं शादी उसी से करूंगी, जो मुझे अच्छा लगेगा. आप को बता दूं, यह जरूरी नहीं कि वह मेरी जाति का ही हो. वह किसी अन्य जाति से भी हो सकता है. तुम भी हो सकते हो.’’

आरती की इस बात से नेतराम हैरान रह गया. चूंकि वह कुंवारा था और आरती उसे पसंद थी. वह उस से शादी भी करना चाहता था, लेकिन जाति अलग होने की वजह से यह बात कहने की वह हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था. जबकि लड़की हो कर आरती ने यह बात कह दी थी. लगातार मिलते रहने और साथसाथ खानापीना होने से आरती और नेतराम का आपसी सामंजस्य बैठता गया और फिर उन की दोस्ती सचमुच प्यार में बदल गई. इस के बाद नेतराम आरती के घर भी आनेजाने लगा. घर वाले उसे आरती का दोस्त मानते थे, इसलिए कभी किसी ने न तो उस के घर आने पर ऐतराज जताया, न उस से मिलनेजुलने पर.

इस की सब से बड़ी वजह यह थी कि एक तो वह कमाऊ बेटी थी, दूसरे उन्हें विश्वास था कि उन की बेटी ऐसा कोई काम नहीं करेगी, जिस से उन्हें किसी तरह की दिक्कत का सामना करना पड़े. धीरेधीरे आरती और नेतराम का आपसी लगाव बढ़ता गया. उन्हें देख कर कोई नहीं कह सकता था कि वे अलगअलग जाति से हैं. समय के साथ उन के प्यार की गांठ मजबूत होती गई और वे आपस में शादी के बारे में सोचने लगे. जब इस बात की जानकारी चाहर परिवार को हुई तो घर में हंगामा मच गया. एक तो जाट परिवार, दूसरे फौजी, हंगामा तो मचना ही था. लौहरे सिंह और प्रवीण ने आरती पर बंदिशें लगानी चाहीं तो वह बगावत पर उतर आई.

उस ने साफ कह दिया कि यह जिंदगी उस की अपनी है, वह जैसे चाहे जिए. अगर उसे परेशान किया गया या बंदिश लगाई गई तो वह उन की इज्जत का भी खयाल नहीं करेगी. इस के बाद आरती ने नेतराम से कहा कि जो भी करना है, जल्द कर लिया जाए. क्योंकि जितना समय बीतेगा, तनाव बढ़ता ही जाएगा. आरती का बड़ा भाई प्रवीण नौकरी की वजह से ज्यादातर बाहर ही रहता था. छोटा भाई जेल में था. घर में मातापिता थे, वे भी बूढ़े हो चुके थे. बेटे की वजह से वे वैसे ही परेशान थे, इसलिए आरती के बारे में वे वैसे भी ज्यादा नहीं सोच पाते थे.

नेतराम के भी इरादे मजबूत थे. वह जानता था कि पढ़ीलिखी, समझदार आरती के साथ उस की जिंदगी मजे से कटेगी. आरती उस के प्यार में इतना आगे बढ़ चुकी थी कि उस का पीछे लौटना मुश्किल था. जबकि वह जानती थी कि अलग जाति होने की वजह से नेतराम से शादी करना उस के परिवार पर भारी पड़ सकता है. पूरी बिरादरी हायतौबा मचाएगी, लेकिन वह दिल के हाथों मजबूर थी. उसे अपना भविष्य नेतराम में ही दिखाई दे रहा था. यही वजह थी कि न चाहते हुए भी उस ने 12 दिसंबर, 2007 में नेतराम के साथ कोर्टमैरिज कर ली. उस दिन सुबह आरती नौकरी के लिए घर से निकली तो लौट कर नहीं आई. मां ने फोन किया तो पता चला कि उस का फोन बंद है.

ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था, इसलिए लौहरे सिंह को समझते देर नहीं लगी कि आरती कहां गई होगी. अगले दिन आरती ने फोन कर के अपनी शादी के बारे में बड़ी बहन बीना को बताया तो उन्होंने इस बात की जानकारी मांबाप को दे दी. आखिर वही हुआ, जिस का चाहर परिवार को डर था. बेटी की इस करतूत से घर वालों को गहरा आघात लगा. एक बेटा दुष्कर्म के आरोप में जेल में था, बेटी ने गैर जाति के लड़के से शादी कर ली थी. बदनामी के डर से भले ही उन्होंने कोई काररवाई नहीं की, लेकिन वे उस के इस अपराध को माफ नहीं कर सकते थे. बेटी बालिग थी, वह उस का कुछ कर भी नहीं सकते थे, इसलिए उन्होंने यह सोच कर संतोष कर लिया कि वह उन के लिए मर गई. घर के अन्य लोगों ने तो खुद को संभाल लिया, पर आरती की मां खुद को नहीं संभाल पाई और बेटी के इस निर्णय की वजह से उस की मौत हो गई.

आरती ने नेतराम से शादी कर के अपनी गृहस्थी बसा ली थी. वह उस के साथ खुश थी. पतिपत्नी दोनों ही नौकरी कर रहे थे. इस के अलावा नेतराम घर से भी संपन्न था, इसलिए उन्हें किसी तरह की कोई कभी नहीं थी. शादी के लगभग डेढ़ साल बाद आरती ने बेटे को जन्म दिया, जिस का नाम हर्षित रखा गया. आरती के घर वालों ने शादी के बाद कभी आरती के बारे में कुछ जानने की कोशिश नहीं की तो उस ने भी कभी कुछ नहीं बताया. नेतराम और आरती, दोनों ही पढ़ेलिखे और महत्वाकांक्षी थे. दोनों ठीकठाक कमाते भी थे, इस के अलावा वह घर से भी संपन्न था, इसलिए मजे से जिंदगी कट रही थी.

सन 2009 में नेतराम की मां सुमित्रा देवी का निधन हो गया था. तब तक आरती चाहर ने बीएड भी कर लिया था, इसलिए उस ने नेतराम से अपना एक स्कूल खोलने को कहा. नेतराम के पास पैसे भी थे और जमीन भी, उस ने अपने करीबी कस्बे तेहरा में मां के नाम सुमित्रा देवी कन्या इंटरकालेज खोल दिया. नेतराम खुद स्कूल का मैनेजर बन गया और पत्नी आरती को स्कूल का प्रिंसिपल बना दिया. उन का यह स्कूल जल्दी ही बढि़या चलने लगा, जिस से कमाई भी बढि़या होने लगी. इस के बाद नेतराम ने आगरा की नई विकसित हो रही कालोनी रचना पैलेस में एक प्लाट ले कर उस में 10 कमरों का बढि़या 2 मंजिला मकान बनवा लिया. इस मकान का नंबर था 93. मकान तैयार हो गया तो नेतराम पत्नी और बच्चों के साथ उसी में रहने लगा. अब तक आरती एक और बेटे की मां बन चुकी थी, जिस का नाम युवराज रखा गया था.

सन 2007 से सन 2014 तक के 7 साल कैसे बीते, पता ही नहीं चला. नेतराम तरक्की के नित नए आयाम स्थापित करते चले गए. अब वह एक टैक्निकल कालेज खोलना चाहते थे. वह अपनी एक संस्था भी चला रहे थे, जिस के अंतर्गत गरीब और असहाय बच्चों को कंप्यूटर सिखाया जाता था. राष्ट्रीय कंप्यूटर शिक्षा मिशन के अंतर्गत चल रही इस संस्था की कई जिलों में शाखाएं खुल गई थीं. इन सभी शाखाओं का कोऔर्डिनेशन नेतराम खुद कर रहे थे. नेतराम दिन दूनी रात चौगुनी उन्नति कर रहे थे. उन्हें अब किसी चीज की कमी नहीं थी. भरपूरा परिवार तो था ही, समाज में अच्छीखासी शोहरत और इज्जत मिलने के साथ पैसे भी खूब आ रहे थे. सब कुछ ठीकठाक चल रहा था कि अचानक 20 नवंबर, 2014 को आरती की हत्या हो गई.

हुआ यह कि दिन के डेढ़ बजे नेतराम ने आरती को फोन किया तो फोन नहीं उठा. कई बार फोन करने के बाद जब आरती की ओर से फोन रिसीव नहीं किया गया तो उन्हें हैरानी हुई. इस के बाद उन्होंने ऊपर की मंजिल  में रहने वाले अपने किराएदार को फोन कर के आरती से बात कराने का अनुरोध किया. किराएदार अपना मोबाइल फोन ले कर नीचे आया और ‘भाभीजी… भाभीजी…’ आवाज लगाते हुए घर के अंदर पहुंचा तो बैडरूम का नजारा देख कर उस के होश उड़ गए. उस ने शोर मचा कर पूरी कालोनी तो इकट्ठा कर ही ली, नेतराम से भी तुरंत घर आने को कहा.

5-7 मिनट में ही नेतराम घर आ गए. मोटरसाइकिल खड़ी कर के वह तेजी से घर के अंदर पहुंचे. उन के साथ कालोनी के कई लोग अंदर आ गए थे. घर के अंदर की स्थिति बड़ी ही खौफनाक थी. आरती की लाश बैड पर एक किनारे पड़ी थी, उस का सिर नीचे की ओर लटका हुआ था. गरदन से बह रहा खून फर्श पर फैल रहा था. आरती की बगल में बैठा युवराज रो रहा था. वह मर चुकी मां को उठाने के चक्कर में खून से सन चुका था. पत्नी की हालत देख कर नेतराम फफकफफक कर रोने लगे. रोते हुए ही उन्होंने अपने जिगर के टुकड़े युवराज को उठाया और किराएदार को थमा कर उसे नहला कर कपड़े बदल देने का अनुरोध किया.

अब तक उन का बड़ा बेटा हर्षित भी स्कूल से आ चुका था. मां की हालत देख कर वह भी रोने लगा. पड़ोस की औरतों ने उसे संभाला. घटना की सूचना पुलिस कंट्रोल रूम को दे दी गई थी. थोड़ी ही देर में पुलिस अधिकारियों की आधा दर्जन गाडि़यां रचना पैलेस में आ कर खड़ी हो गईं. एसएसपी शलभ माथुर, एसपी (सिटी) समीर सौरभ, सीओ (सदर) असीम चौधरी थाना ताजगंज के थानाप्रभारी मधुर मिश्रा घटनास्थल पर आ पहुंचे थे. डौग स्क्वायड, फिंगरप्रिंट एक्सपर्ट्स और फोटोग्राफर को भी बुला लिया गया था. पुलिस अधिकारियों ने बारीकी से मकान और उस कमरे का निरीक्षण किया, जिस में आरती की लाश पड़ी थी. इस मामले में डौग स्क्वायड कोई खास मदद नहीं कर सका. उस ने बैडरूम से ले कर ड्राइंगरूम तक 3-4 चक्कर लगाए और मकान से बाहर आ कर बगल वाले मकान की चारदीवारी के पास रुक गया.

पुलिस अधिकारियों ने अनुमान लगाया कि हत्यारे बैडरूम और ड्राइंगरूम के बीच चहलकदमी करते रहे होंगे. उस के बाद मकान से निकल कर बगल वाले मकान चारदीवारी के पास आए होंगे, जहां उन की मोटरसाइकिल या स्कूटर खड़ी रही होगी. मकान के निरीक्षण में पुलिस ने देखा कि हत्या के बाद हत्यारों ने बैडरूम के बगल में लगे वाशबेसिन में खून सने हाथ धोए थे. फिंगरप्रिंट एक्सपर्ट्स ने ड्राइंगरूम में रखे चाय के 2 कपों से फिंगरप्रिंट उठाए. चाय के कप और ट्रे में रखी नमकीन, मिठाई देख कर पुलिस अधिकारी समझ गए कि जिस ने भी यह कत्ल किया है, वह कोई खास परिचित रहा होगा.

अब पुलिस को यह पता करना था कि खास लोगों में ऐसा कौन हो सकता है, जो हत्या कर सकता है. पुलिस ने जब इस बारे में पूछताछ की तो पता चला कि मृतका आरती चाहर ने घर वालों के खिलाफ जा कर अन्य जाति के नेतराम कुशवाह से करीब 7 साल पहले प्रेमविवाह किया था. तब उस के घर वालों ने इस बात को अपना अपमान मान कर खामियाजा भुगतने की धमकी दी थी. पुलिस को जांच आगे बढ़ाने का एक महत्वपूर्ण सूत्र मिल गया था, लेकिन फिलहाल तो उन्हें घटनास्थल की काररवाई निपटानी थी. आवश्यक काररवाई पूरी कर के पुलिस ने आरती की लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. उसी 7 साल पुरानी धमकी के आधार पर नेतराम ने आरती के भाई राकेश चाहर के खिलाफ आरती की हत्या का मुकदमा दर्ज करा दिया.

चूंकि राकेश का एक साथी लोकेश भी अकसर नेतराम के घर आता रहता था, इसलिए नेतराम को शक था कि हत्या के समय वह भी साथ रहा होगा, इसलिए मुकदमे में उस का नाम भी शामिल करा दिया था. रिपोर्ट दर्ज होने के बाद पुलिस ने जांच को आगे बढ़ाने के लिए राकेश और लोकेश के फोन नंबर ले लिए. इस के बाद उन नंबरों पर फोन किए गए तो वे नंबर बंद पाए गए. हत्या के बाद नंबर बंद होने से पुलिस का संदेह बढ़ गया. इस मामले की जांच थाना ताजगंज का उसी दिन चार्ज संभालने वाले थानाप्रभारी मधुर मिश्रा को सौंपी गई.

उन्होंने इस मामले की जांच के लिए एक टीम बनाई, जिस में एसएसआई प्रमोद कुमार यादव, नरेंद्र कुमार, सिपाही रामन और आशीष कुमार को शामिल किया. चूंकि एक स्कूल प्रिंसिपल की दिनदहाड़े हत्या का मामला था, इसलिए सीओ सिटी असीम चौधरी भी इस मामले पर नजर रखे हुए थे. पुलिस को राकेश की तलाश थी. इसलिए पुलिस टीम उस के घर पहुंची तो घर में मौजूद उस का बड़ा भाई प्रवीण सिंह फौजी वर्दी की धौंस दिखाते हुए पुलिस से उलझ गया. नाराज पुलिस टीम उसे हिरासत में ले कर थाने आ गई. थाने में उस से पूछताछ चल रही थी कि मुखबिर से पुलिस टीम को राकेश के साथी लोकेश के बारे में पता चल गया.

पुलिस लोकेश को पकड़ कर थाने ले आई. शुरुआती पूछताछ में तो वह पुलिस को गुमराह करता रहा. उस ने एक पान वाले से भी कहलवाया कि उस दोपहर को वह उस की दुकान पर बैठ कर अखबार पढ़ रहा था. पुलिस पान वाले को भी ले आई. इस के बाद जब पुलिस ने अपने ढंग से पूछताछ की तो पान वाले ने बक दिया कि उस ने लोकेश के कहने पर झूठ बोला था. इस के बाद पुलिस ने लोकेश से सच्चाई उगलवा ली. लोकेश ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया तो उस की निशानदेही पर पुलिस ने थाना एत्माद्दौला की ट्रांस यमुना कालोनी के बी ब्लाक के मकान नंबर 3/5 से राकेश को गिरफ्तार कर लिया. सीओ असीम चौधरी दोनों को अपने औफिस ले आए, जहां की गई लगभग एक घंटे की पूछताछ में राकेश ने आरती की हत्या की जो कहानी सुनाई, वह इस प्रकार थी.

जिन दिनों आरती ने प्रेमविवाह किया था, उन दिनों राकेश जेल में था. दुष्कर्म के मामले में निचली अदालत से उसे 10 साल के कैद की सजा हुई थी. घर वालों के खिलाफ आरती की छोटीमोटी बगावतें वह पहले से ही सुनता आ रहा था, लेकिन जब बड़े भाई प्रवीण ने उसे नेतराम से विवाह की खबर सुनाई तो उस का खून खौल उठा. नेतराम कुशवाह से उसे कोई शिकायत नहीं थी, क्योंकि अगर उस की बहन आरती न चाहती तो भला उस की क्या मजाल थी कि वह आरती से जबरदस्ती कोर्टमैरिज कर लेता. उस की नजरों में इस के लिए दोषी उस की बड़ी बहन आरती थी.

राकेश ने अपने घर वालों की इज्जत बचाने के लिए आरती को खत्म करने का फैसला कर लिया. उस ने जेल से ही आरती को धमकी दी कि उस ने जो किया है, इस के लिए वह उसे सबक जरूर सिखाएगा. उसी बीच आरती की वजह से मां की मौत हो गई तो राकेश को आरती से नफरत हो गई. उस ने कसम खा ली कि कुछ भी हो, वह आरती को जीवित नहीं छोड़ेगा. राकेश जेल की जिस बैरक में सजा काट रहा था, उसी में लोकेश नाम का एक लड़का आया. वह पड़ोस के ही मोहल्ले का रहने वाला था, इसलिए राकेश से उस की दोस्ती हो गई. जल्दी ही दोनों के संबंध इतने मधुर हो गए कि वे एक ही थाली में खाना खाने लगे. उन्होंने जीवन भर इस संबंध को निभाने की कसमें भी खाईं.

राकेश और लोकेश हमउम्र थे. दोनों अच्छे दोस्त बन गए थे, इसलिए राकेश ने अपनी बहन आरती के प्रेमविवाह के बारे में बता कर पूछा कि इस मामले में क्या किया जाना चाहिए? समझदारी दिखाते हुए लोकेश ने सलाह दी कि इस मामले में अभी इंतजार करना चाहिए. आरती को उस के किए की सजा इस तरह दी जाए कि पुलिस भी पता न कर सके कि ऐसा किस ने किया होगा. आरती ने जो किया था, उस से घर के सभी लोग नाराज थे. इसलिए जब कभी कोई जेल में राकेश से मिलने आता तो उस का जिक्र जरूर छिड़ता. राकेश के लिए परेशानी यह थी कि उस के मुकदमे की कोई ठीक से पैरवी करने वाला नहीं था. मां मर चुकी थी, बाप बूढ़ा था, बड़ा भाई और बहनोई फौज में थे. जिस की वजह से वे ज्यादातर बाहर रहते थे. एक बहन थी बीना, वही कभीकभी मिलने आ जाती थी.

राकेश चाहता था कि किसी तरह हाईकोर्ट से उस की जमानत हो जाए. बूढ़े होने की वजह से पिता भागदौड़ नहीं कर पा रहे थे. इसलिए राकेश ने बीना से कहा कि वह आरती से बात कर के उस की जमानत करवा दे. बीना ने आरती को फोन कर के कहा भी कि वह जेल जा कर राकेश से मिल ले और उस की जमानत करा दे. लेकिन आरती न तो राकेश से मिलने जेल गई और न ही उस की जमानत कराई. जबकि राकेश के पिता लौहरे सिंह ने आरती को उस की जमानत कराने के लिए एक लाख रुपए नकद और इतने के गहने भी दिए थे. रुपए और गहने ले कर भी आरती ने राकेश की जमानत के प्रति ध्यान नहीं दिया.

राकेश जेल से बाहर आने के लिए छटपटा रहा था. आरती न तो उस से मिलने गई थी और न उस की जमानत कराई थी. इस से उसे लगा कि बहन उस के बारे में जरा भी नहीं सोच रही है. लगभग 6 महीने पहले हाईकोर्ट से उस की जमानत हुई. राकेश घर आ गया. बहन के व्यवहार से उस के मन में एक टीस सी उठती थी. लेकिन अभी वह जमानत पर जेल से आया था, इसलिए कोई अपराध नहीं करना चाहता था. इस के बावजूद वह बहन को उस के किए की सजा देना चाहता था. लेकिन वह यह काम इस तरह करना चाहता था कि उस पर आरोप लगने की बात तो दूर, कोई शक भी न कर सके. इस के लिए उस ने आरती से मधुर संबंध बनाने शुरू किए. जल्दी ही उस ने इस तरह संबंध बना लिए, जैसे उस से उसे कोई शिकायत नहीं है.

राकेश के बदले व्यवहार से आरती भी उसे मानने लगी थी. वह जब भी आता था, आरती उसे खूब खिलातीपिलाती थी, जाते समय कुछ न कुछ बांध भी देती थी. जरूरत पड़ने पर रुपएपैसे से भी उस की मदद करती थी. इस के अलावा अगर वह पति और बच्चों के साथ कहीं बाहर घूमने जाती थी तो उसे भी साथ ले जाती. उसी बीच लोकेश भी जेल से बाहर आ गया तो दोनों साथसाथ दिखाई देने लगे. आरती के ठाठबाट और सुखी जीवन से राकेश को ईर्ष्या हो रही थी. वह सोचता था कि अगर आरती चाहती तो बहुत पहले ही वह जेल से बाहर आ जाता. लेकिन उस ने उस की परेशानी को बिलकुल नहीं समझा. आरती भले ही राकेश का खूब खयाल रखती थी, लेकिन सही बात यह थी कि आरती बिलकुल नहीं चाहती कि राकेश उस के घर आए.

इस बात को राकेश समझ गया था, इसलिए वह खुद को अपमानित महसूस करता था. इन सब बातों से उसे लगता था कि इस तरह की बहन को सुख से जीने का कोई अधिकार नहीं है. राकेश के मन में क्या है, शायद आरती ने ताड़ लिया था. इसलिए वह उस की ओर से निश्चिंत नहीं थी. वह नेतराम से कहती भी रहती थी कि उसे राकेश से डर लगता है. जबकि नेतराम का कहना था कि राकेश तो वैसे ही कानून के शिकंजे में है, इसलिए अब वह कोई गैरकानूनी काम कर के अपनी जिंदगी बरबाद नहीं करेगा. एक दिन राकेश लोकेश को साथ ले कर आरती के घर पहुंचा. जब आरती को पता चला कि लोकेश भी जेल से छूट कर आया है तो उसे झटका सा लगा. उस ने राकेश से कहा भी, ‘‘उसे ऐसे लोगों से मेलजोल नहीं रखना चाहिए.’’

राकेश को बहन की यह बात बिलकुल अच्छी नहीं लगी. उस ने कहा, ‘‘यह मेरा देस्त है. दोस्त कैसा भी हो, दोस्त ही होता है.’’

इस के बाद राकेश आरती के घर से बाहर आया तो लोकेश से बोला, ‘‘दोस्त, मैं अपनी इस बहन को सहन नहीं कर पा रहा हूं. मेरे घर वालों के मुंह पर कालिख पोत कर देखो यह किस तरह सुख और चैन से जी रही है.’’

‘‘उस कालिख को तो इस के खून से ही धोया जा सकता है.’’ लोकेश ने कहा. राकेश भी यही सोच रहा था. साथी मिल गया तो उस का पूरा ध्यान इस बात पर केंद्रित हो गया कि परिवार की मर्यादा का उल्लंघन करने वाली बहन को कैसे सबक सिखाया जाए. आरती को भले ही राकेश पर विश्वास नहीं था, लेकिन राकेश बहन और बहनोई का विश्वास जीतने कोशिश कर रहा था. हफ्ते में 2-3 बार वह बहनबहनोई और भांजों से मिलने उन के घर आता था. उस के साथ लोकेश भी होता था. आरती के पास किसी चीज की कमी नहीं थी, इसलिए अच्छाअच्छा खिलानेपिलाने के साथ वह छोटे भाई राकेश को पौकेट मनी भी देती थी. इस की वजह यह थी कि आरती और नेतराम राकेश से अपने संबंध मधुर बना लेना चाहते थे.

26 नवंबर, 2014 को वैष्णो देवी जाने के लिए नेतराम ने पूरे परिवार का टिकट कराया था. नेतराम ने साथ ले जाने के लिए राकेश की भी टिकट करा रखी थी. जबकि राकेश बहन को सबक सिखाने का मौका तलाश रहा था. 18 नवंबर को राकेश और लोकेश आरती के यहां बैठे बातें कर रहे थे, तभी बातोंबातों में नेतराम ने कहा कि 20 नवंबर को उसे सजावट का सामान (झूमर झाड़फानूस) लेने फिरोजाबाद जाना है. यह सुन कर राकेश की आंखों में चमक आ गई. थोड़ी देर बाद राकेश लोकेश के साथ बाहर आ गया. इस के बाद उस ने लोकेश के साथ मिल कर आरती की हत्या की योजना बना डाली.

18 नवंबर की बातचीत के अनुसार, 20 नवंबर की सुबह के करीब 11 बजे नेतराम को फिरोजाबाद जाने के लिए घर से निकलना था. लेकिन इस बीच उस का प्रोग्राम बदल गया. उस ने डिजाइन पसंद करने के लिए आरती को भी साथ चलने के लिए तैयार कर लिया था. इस नए प्रोग्राम के अनुसार उसे 2 बजे के आसपास घर से निकलना था. नेतराम का बड़ा बेटा हर्षित स्कूल गया था, जिसे डेढ़ बजे तक घर आना था. आरती चाहती थी कि वह अपने हाथों से उसे खाना खिला कर फिरोजाबाद जाए.

नेतराम के फिरोजाबाद जाने के प्रोग्राम में बदलाव हो चुका है, यह राकेश और लोकेश को पता नहीं था. 20 नवंबर, 2014 दोपहर के बाद नेतराम और आरती को फिरोजाबाद जाना था, इसलिए नेतराम अपने कंप्यूटर सेंटर के काम से 2-3 घंटे में आने के लिए कह कर सेवला स्थित एक साइबर कैफे पर चला गया. आरती घर के कामों में लग गई. नेतराम के जाते ही साढ़े 10 बजे के आसपास राकेश मोटरसाइकिल से लोकेश को साथ ले कर आरती के घर के लिए चल पड़ा. आरती को सबक सिखाने की योजना राकेश ने 18 नवंबर को ही बना डाली थी, इसलिए 19 नवंबर की शाम को उस ने चाकू खरीद लिया था. हत्या करने में किसी तरह की झिझक न हो, इसलिए एकएक क्वार्टर शराब खरीद कर पी लिया.

सवा 11 बजे जब राकेश और लोकेश मोटरसाइकिल से रचना पैलेस कालोनी की ओर जा रहे थे तो उन्हें नेतराम जाता दिखाई दिया. उन्हें लगा कि वह फिरोजाबाद जा रहा है. इस के बाद दोनों एक पान के खोखे के पास खड़े हो गए. आधेपौने घंटे बाद जब उन्हें लगा कि नेतराम शहर से बाहर निकल गया होगा तो दोनों आरती के घर की ओर चल पड़े. योजनानुसार राकेश ने मोटरसाइकिल आरती के घर से कुछ दूरी पर बगल वाले मकान की चारदीवारी के पास खड़ी कर दी और इधरउधर देख कर लोकेश के साथ बहन के घर जा पहुंचा. भाई और उस के दोस्त के आने पर आरती ने फटाफट चाय बनाई और नमकीन एवं मिठाई के साथ उन्हें पीने को दी. इस के बाद उस ने कहा, ‘‘राकेश, तुम दोनों चाय पियो, तब तक मैं युवराज को नहला देती हूं.’’

यह कह कर आरती युवराज को गोद में ले कर कपड़े उतारने लगी तो राकेश ने कहा, ‘‘दीदी, आप ने कुछ देने को कहा था. लाइए उसे दे दीजिए.’’

आरती ने युवराज को लोकेश को थमाया और खुद किचन में गई. अब तक चाय खत्म हो चुकी थी. इसलिए किचन में जा कर जैसे ही आरती ने फ्रिज खोलना चाहा, पीछे से राकेश पहुंच गया. उस ने आरती के गले में पड़े दुपट्टे की लपेट कर पकड़ लिया और घसीटते हुए बैडरूम ले गया. हक्काबक्का आरती कुछ कहती, युवराज को लोकेश की गोद में देख कर डर गई कि उस के चिल्लाने पर वह उस के बेटे का अनिष्ट न कर दे. इस के बाद राकेश ने आरती को बैड पर गिरा कर चाकू से हमला कर दिया. गला रेत कर उस की हत्या करने के बाद गले की चेन और कान के कुंडल उतार लिए. इस के बाद अलमारी वगैरह खोल कर उस में रखा कीमती सामान ले कर इधरउधर फैला दिया, जिस से लगे कि यह हत्या लूट के लिए की गई है.

आरती की हत्या करने के बाद दोनों घर से निकले और मोटरसाइकिल से आराम से चले गए. लोकेश अपने घर चला गया, जबकि राकेश अपने एक दोस्त के घर जा कर लोकल न्यूज चैनल पर समाचार देखने लगा कि पुलिस की जांच किस दिशा में जा रही है. राकेश पुलिस जांच का पता लगा पाता, पुलिस ने पहले लोकेश को और फिर उस की मदद से उसे पकड़ लिया. पूछताछ के बाद पुलिस ने दोनों की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त चाकू, गहने, मोटरसाइकिल और कपड़े बरामद कर के दोनों को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

राकेश ने बहन को मौत के घाट उतार कर उस के मासूम बच्चों को अनाथ कर दिया है. लेकिन उसे न तो बहन की हत्या का कोई दुख है, न उस के बच्चों के अनाथ होने का. उस का कहना है कि बहन ने परिवार पर बदनामी का जो दाग लगाया था, उस के खून से उस ने वह दाग धो दिया है. अब उसे चाहे जो भी सजा मिले, उसे उस का कोई दुख नहीं है. Love Story in Hindi